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Fgjkkjj

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Writer Ehsaas

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ghkklkg

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Page 1 of 1

  • 1. Fgjkkjj - Chapter 1

    Words: 1535

    Estimated Reading Time: 10 min

    Episode - 6
    एक नए रिश्ते की शुरुआत


    चंद्र (आश्चर्यचकित होकर) : " आप.. आप यहां पर...?

    कामायनी : " क्या बात हैं इस बार तो आपने बिना चेहरा देखे ही हमें पहचान लिया "


    अपने सामने खड़ी कामायनी को देख चन्द्र चौंक उठा। हालांकि उसके वस्त्र साधारण थे और उसने बड़े से घुंघट से खुद का चेहरा छुपाया हुआ था किंतु फिर भी चन्द्र उसे पहचान चुका था। कामायनी आज फिर महल से चोरी छिपे बाहर आई थी। लेकिन आज मालिनी और रोमा उसके साथ नहीं थी बल्कि वह अकेले ही आई थी।



    कामायनी: " क्या हुआ आप हमें देखकर इतना चकित क्यों हैं.?? क्या हम यहां नहीं आ सकते..."

    चन्द्र(हिचकिचाते हुए) : " नहीं ऐसी बात नहीं हैं.. क्या आप यहां अकेले ही आई हैं??..

    कामायनी (हंसते हुए) : " हां क्यों.. हमे किसी और को भी साथ लाना चाहिए था। ? "


    चंद्र (चिंतित होते हुए) : " लेकिन अगर किसी ने आपको यहां देख लिया तो उस दिन की तरह आपकी जान को खतरा हो सकता हैं.. .."

    कामायनी (छेड़ते हुए) : " चिंता मत कीजिए कोई हमें नहीं पहचान पाएगा.. जब तक हम स्वयं अपना घुंघट नहीं हटाएंगे.. और आप स्वयं तो किसी को हमारे बारे में बताने से रहे.. क्योंकि आप नहीं चाहेंगे हम किसी भी मुश्किल में पड़े, क्यों हमने सही कहा ना.. नहीं बताएंगे ना आप.."


    कामायनी ने शरारत से कहा तो चन्द्र झेंप उठा और ध्यान से इधर उधर देखने लगा कही कोई उन्हें देख तो नहीं रहा। इसी समय कामायनी दुकान के भीतर आकर खड़ी हो गई।

    चन्द्र(सकुचाते हुए) : " आप..आप यहां क्यों आई...आपको कुछ चाहिए था "

    कामायनी(गहरी आवाज में) : " हां अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर.."

    चंद्र: " कैसे प्रश्न..?"

    कामायनी: " जब से आप कामिनी महल से लौटे है तबसे कुछ प्रश्न हमे परेशान किए जा रहे हैं.. तो सोचा आपसे मिलकर ही उनके उत्तर पूछ ले.. "

    चन्द्र: " जी पूछिए..."


    कामायनी ने धीरे से अपना घुंघट हटाया और चन्द्र की आंखों में देखते हुए बोली।

    कामायनी(गंभीरता से) : " क्या हम सुंदर नहीं हैं...."

    चन्द्र(अचंभे से): " ये क्या कह रही है आप.. आप की सुंदरता के चर्चे तो दूर दूर तक फैले हुए हैं.. फिर अचानक ऐसा प्रश्न क्यूं..."


    कामायनी: " तो क्या हम तुम्हें सुंदर नहीं लगे..."

    चंद्र(हिचकिचाते हुए): " ये.. ये कैसा प्रश्न है भला..?"

    कामायनी: " जो पूछा है केवल उसका उत्तर दीजिए..."

    चंद्र (शर्माते हुए) : " मैं.. मैंने कब ऐसा कहा.. कि आप सुंदर नहीं हैं.. सच कहूं तो मैंने अभी तक आप जितनी सुंदर स्त्री कहीं नहीं देखी.. पूरे स्वर्णगिरी राज्य में आप से सुंदर कोई नहीं हैं..."

    कामायनी: " तो फिर उस रात्रि आप हमे ऐसे छोड़ क्यों आए.. जबकि हम तो अपनी ओर से पूर्ण समर्पित थे.. बताइए??"

    चन्द्र(गंभीरता से) : " क्योंकि मैं एक साधारण इंसान हूं.. मेरे लिए ऐसे संबंधों से पहले आपस मे प्रेम, विश्वास , सम्मान जैसे भावनात्मक जुड़ाव ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.. कोई उपकार नहीं.. और आप ये करके, मेरे द्वारा आपकी जान बचाने के बदले मुझपर उपकार करना चाहती थी जो मुझे बिल्कुल स्वीकार्य नहीं... नाही हमारे मध्य कोई प्रेम संबंध है और नाही मेरे मन में आपको पाने की लालसा। मैं कामिनी महल केवल आपको आपकी अमानत लौटाने आया था।"


    चन्द्र ने गंभीरता से उत्तर दिया। उसका उत्तर सुन कामायनी हैरान होकर उसके मुख को देखती रह गई। वो जैसे जैसे चंद्र के बारे में जान रही थी वैसे वैसे ही चंद्र उसके हृदय में उतरता जा रहा था।



    चन्द्र: " अब अगर आपको, आपके प्रश्नों के उत्तर मिल गए हो तो आपको यहां से जाना चाहिए.. किसी को अगर पता चल गया तो आप मुश्किल में पड़ सकती हैं..."


    कामायनी ने चन्द्र की बात सुनी और मुस्कुराते हुए अपना घुंघट नीचे कर दुकान में रखे सामानों को व्यवस्थित करने लगी। ये देखकर वो चौंकते हुए बोला

    चन्द्र: " अरे अरे.. ये.. ये आप क्या कर रही हैं..."

    कामायनी: " हम तो उस दिन आपका उपकार चुकाना चाहते थे किंतु आप हमारे नुपुर लौटकर एक और उपकार करके चले गए.. तो अब कम से कम इस उपकार के बदले ही हमें आपकी मदद करने दीजिए..."

    चन्द्र: " किंतु आप ये नहीं कर सकती.."

    कामायनी: " क्यों.. हम क्यों नहीं कर सकते.. क्या आप भी बाकी लोगों कि तरह यही सोचते हैं कि हम केवल बिस्तर सजा सकते है.. सामान नहीं..."

    चन्द्र: " नहीं.. मेरा ये मतलब नहीं.."

    कामायनी: " तो फिर करने दीजिए आपकी मदद.. हमे ये करके अच्छा लगेगा... वैसे भी पूरा समय महल में रहकर हम ऊब जाते हैं.. यहां कुछ देर रहेंगे तो हमें अच्छा लगेगा... और चिंता मत कीजिए हम आपको बिल्कुल परेशान नहीं करेंगे.. संध्या होने से पूर्व ही यहां से चले जाएंगे..."

    कामायनी ने जिद्द करते हुए कहा तो चन्द्र अब आगे कुछ कह नहीं पाया । चंद्र की असमंजस भरी चुप्पी को देख कामायनी ने धीरे से दुकान के अंदर आकर एक-एक करके सामानों को उठाकर व्यवस्थित करना शुरू कर दिया। उसका हर हाव-भाव, हर गतिविधि चंद्र के लिए एक नई पहेली बनती जा रही थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि कामायनी, जिसके बारे में स्वर्णगिरी राज्य में तरह-तरह की बातें फैली हुई थीं, इतनी सरल और सहज भी हो सकती है। उसकी सुंदरता तो उसे पहले ही मोह चुकी थी, पर अब उसकी विनम्रता और मदद करने की इच्छा उसे और भी प्रभावित कर रही थी।

    उसके हाथों की निपुणता और काम करने का तरीका देखकर चंद्र आश्चर्यचकित था। उसने उसे सिर्फ एक नगर वधू ही नहीं, बल्कि एक साधारण स्त्री की तरह भी देखा था। वो अपने काम में इतनी तल्लीन थी कि उसे चंद्र की उपस्थिति लगभग भूल ही गई थी।

    कामायनी: " देखिए, मैंने ये सब कुछ अच्छे से किया हैं ना.. " "


    उसकी आवाज़ में एक मीठा सुर था। ये सब काम करके उसके आंखों की चमक और चेहरे पर छाई खुशी चन्द्र घुंघट के बाहर से भी महसूस कर सकता था।

    चन्द्र: " जी आपने वाकई सब कुछ बहुत व्यवस्थित ढंग से किया हैं... "


    चंद्र ने कामायनी की ओर देखा, उसके मन में अब भी उलझन थी, लेकिन कामायनी की सादगी और सच्चाई ने उसे प्रभावित किया था।

    चन्द्र (मन में ): "आप... आप वाकई बहुत अच्छी हैं, और नेक दिल भी.. जितना बुरा आपके बारे में लोगों से सुना कि आप घमंडी, बदतमीज, लालची.. और चरित्रहीन.. हैं , लेकिन आप बिल्कुल वैसी नहीं हैं... एक नगरवधू होकर भी आपके अंदर का आत्म सम्मान जिंदा हैं... तभी तो हमारी की गई मदद के बदले आप स्वयं हमारी मदद करने यहां तक आ गई..."

    कामायनी: "अब हमें जाना चाहिए। कुछ ही समय में संध्या होने वाली है।"

    कामायनी की आवाज से चन्द्र अपनी सोच से बाहर आया। उसने कामायनी को जाने से रोकने की कोशिश नहीं की। कामायनी ने एक नजर पीछे मुड़कर उसे देखा


    कामायनी: " आप जैसा पुरुष हमने अभी तक नहीं देखा चन्द्र.. क्या हैं आप.. जितना आपके बारे में जान रहे हैं उतना ही आप हमारे हृदय में उतरते जा रहे हैं.. जहां लोग हमारी सुंदरता के बारे में सुनने मात्र से ही अपने पाने की लालसा रखने लगते हैं वहीं एक आप हैं इतने समय साथ रहने पर हमें स्पर्श करना तो दूर हमारी तरफ नजर उठाकरठीक से देखा तक नहीं.. जहां हमें देखकर सबकी नजरों में वासना भर जाती हैं.. वही आपकी नजरों में केवल हमारे लिए सम्मान..."



    उसने महसूस किया था कि यह मुलाक़ात दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण थी, एक नया अध्याय जो दोनों के जीवन को बदल सकता था, भले ही उसके आगे का रास्ता कितना ही मुश्किल क्यों न हो। उसकी आँखों में एक नई उम्मीद जगने लगी थी। वह समझने लगी थी कि प्यार सिर्फ़ सुंदरता या शारीरिक आकर्षण नहीं होता, बल्कि विश्वास, सम्मान और आत्मीयता का एक गहरा बंधन भी होता है। और वो इस बंधन में चन्द्र के साथ बंधने लगी थी।




    दूसरी तरफ कामिनी महल में,

    कामायनी को वापस कामिनी महल आए अभी कुछ ही समय हुआ था कि तभी मालिनी उसके पास आकर उसे शक भरी निगाहों से देखते हुए बोली।



    मालिनी: " कहां गई थी आप...."

    कामायनी: " कही नहीं हम तो यही महल में ही थे.. "

    मालिनी (शक भरी निगाहों से) : " किंतु हमने तो आपको सब जगह देख लिया हमे तो आप कही नजर नहीं आई।"


    कामायनी: " तुमने ठीक से देखा नहीं होगा..."

    मालिनी: " अच्छा ठीक हैं मान लेते है आपकी बात... हम बस ये कहने आए थे कि भावलगढ़ के राजा शीलेंद्र का संदेशा आया था वो आज की रात यहां आना चाहते हैं..."

    कामायनी(मुंह बनाते हुए) : " उन्हें कहलवा दो फिर किसी दिन आए आज हमारा स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं हैं... "

    मालिनी: " किंतु हम उन्हें पहले ही संदेशा भिजवा चुके हैं.. "

    कामायनी: " तो आज रात तुम उनकी सेवा में हाजिर हो जाना.."


    मालिनी: "किंतु उन्होंने आपके संग ही समय बिताने की इच्छा जताई हैं"


    मालिनी ने कहा तो कामायनी अपनी चूड़ियों से खेलती हुई बेपरवाही से बोली,

    कामायनी (बेपरवाही से) : " ठीक हैं जब वो आयेंगे हम स्वयं उनसे बात कर लेंगे.. "


    उसने मालिनी की बातों को गंभीरता से नहीं लिया। चन्द्र के ख्यालों में खोई वो आगे बढ़ गई। ये देखकर मालिनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई।


    मालिनी: " हम जानते हैं आप झूठ बोल रही हैं.. और शायद ये भी की आज आप कहां गई थी.... "








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