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Nazaij riste

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gurwinder sidhu

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पौष की कड़ाके की ठंड में बिस्तर पर पड़ी प्रीत अभी भी प्यासी नजरों से पाले की ओर देख रही थी। रोशनदान से आती ठंडी हवा दोनों को और भी करीब ला रही थी। कच्ची स्वात में मद्धम लौ में जल रही मोमबत्ती शरमाकर अपने आप बुझ गई। पाले के माथे से टपकता पसीना प्रीत क...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. पौष की कड़ाके की ठंड में बिस्तर पर पड़ी प्रीत अभी भी प्यासी नजरों से पाले की ओर देख रही थी। रोशनदान से आती ठंडी हवा दोनों को और भी करीब ला रही थी। कच्ची स्वात में मद्धम लौ में जल रही मोमबत्ती शरमाकर अपने आप बुझ गई। पाले के माथे से टपकता पसीना प्रीत की गोर

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 2. Nazaij riste - Chapter 3

    Words: 835

    Estimated Reading Time: 6 min

    पौष की कड़ाके की ठंड में बिस्तर पर पड़ी प्रीत अभी भी प्यासी नजरों से पाले की ओर देख रही थी। रोशनदान से आती ठंडी हवा दोनों को और भी करीब ला रही थी। कच्ची स्वात में मद्धम लौ में जल रही मोमबत्ती शरमाकर अपने आप बुझ गई। पाले के माथे से टपकता पसीना प्रीत की गोरी गालों पर गिर रहा था।पाले ने प्रीत के मुँह पर हाथ रखकर उसे चुप रखा था। फिर भी प्रीत की धीमी-धीमी सिसकियाँ पूरे कमरे को मदहोश कर रही थीं। प्रीत और पाले की आज पूरे दस साल बाद मुलाकात हुई थी। पाला भी प्रीत से बेशुमार मोहब्बत करता था, और प्रीत भी पाले के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने को तैयार थी। प्रीत के एक-एक साँस में पाला बसा हुआ था। प्रीत को दिन-रात पाले का ही खयाल आता रहता था। पाले के साथ दो पल साथ बिताने के लिए प्रीत को बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा था। प्रीत सुबह उठकर अपने रब से रोज़ पाले से मिलने की दुआएँ माँगती थी। आखिर रब ने प्रीत की दुआएँ कबूल कर लीं और पाले को प्रीत से मिलवा ही दिया। आज प्रीत ने अपना सब कुछ छोड़कर पाले की बाहों में बेफिक्र होकर पड़ी थी। भले ही प्रीत ने अपना सब कुछ पीछे छोड़ दिया था, उसे इस बात का कोई अफसोस नहीं था। प्रीत के लिए पाला ही सब कुछ था। पाले की छाती पर सिर रखकर पड़ी प्रीत अपनी नई दुनिया का आनंद ले रही थी। पाले के लिए भी यह पल स्वर्ग से कम नहीं थे। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसने प्रीत को फिर से पा लिया है।अपनी पुरानी जिंदगी को याद करते हुए प्रीत और पाला दोनों की आँखें भर आईं। प्रीत ने पाले का हाथ जोर से पकड़ लिया। माथे को चूमती हुई पाले के साथ लग गई। प्रीत जितनी खूबसूरत पाले को पहली मुलाकात में लगी थी, आज उससे भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।कई साल बीत गए उसके इंतजार में,
    न कोई संदेश आया, न कोई बात हुई।
    वह फिर भी बसती है मेरी दुआओं में,
    एक बार भी भले ही मुलाकात न हुई।
    ऐसा कील लिया उसकी ताकनी ने,
    आज तक मेरी प्रभात न हुई।
    बेहाल कर गई है हाल मेरे दिल का,
    न दिन चढ़ा, न रात हुई।
    ऐसा डूबा उसके इश्क समंदर में,
    वह चाहे तो भी भूल न हुई।प्रीत का गठीला शरीर, गोरा रंग, ठाठें मारती जवानी, खनकता हँसता चेहरा, कातिल आँखें, मृगी-सी चाल, मीठी रसभरी ज़ुबान, साँपनी-सी काली चोटी, जवानी के दूसरे पहर में भी कहर ढा रही थी। जो प्रीत जवानी के दूसरे पहर में इतनी खूबसूरत थी, वह चढ़ती जवानी में कितनी खूबसूरत और कातिल होगी। प्रीत और पाला आज पूरे दस साल बाद एक हो रहे थे। लेकिन प्रीत की खूबसूरती दस साल बाद भी वैसी ही थी। प्रीत और पाले की इश्क की दास्तान भी बड़े अनूठे अंदाज में थी। पाला वैसे तो घर से सरदारों वाला परिवार था, लेकिन ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था।इलाके के आवारा, नशेड़ियों के साथ भी उसकी अच्छी बनती थी। थाने-कचहरी भी उसका रोज का आना-जाना था। पाले का पिता इलाके का नामी जमींदार था। पिता की मृत्यु के बाद पाले और उसके भाइयों ने जमीन के अपने-अपने हिस्से कर लिए थे। पाले की माँ वैसे तो पाले के घर ही रहती थी, लेकिन जब पाला कई-कई दिन घर नहीं लौटता, तो पाले की भतीजी दीपी अपनी दादी को अपने घर ले जाती थी। दीपी पाले के बड़े भाई दियुणे की बेटी थी। पाले के तीन भाई और दो बहनें थीं। बाकी सब अपने-अपने घरों में थे, बस पाला ही था जिसने अभी तक शादी नहीं की थी। पाले की माँ भाग कौर उसे रोज कहती थी कि पाला, शादी के लिए हाँ कर दे, तेरा ब्याह भी देख लूँ। अगर कल को मैं मर गई, तो तुझे कौन चूल्हे पर चढ़ाएगा। लेकिन पाला हर बार अपनी माँ की बात हँसकर टाल देता था। पाले की भतीजी दीपी अपने माता-पिता से ज्यादा प्यार पाले से करती थी। जब भी पाला दो-चार दिन बाद घर लौटता, तो दीपी के लिए नए कपड़े या कोई और चीज जरूर लाता था। दीपी का पाले के साथ बचपन से ही बहुत ज्यादा लगाव था।प्रीत और पाले की मुलाकात भी एक संयोग ही थी।मझोले कद का पाला—नक्श भी जवान राँझे जैसे, शेरों-सी चाल, ताकतवर शरीर, जोश समंदर को भी ठंडा कर दे। जब वह कढ़ी टिल्लेदार जूती, कुरता-चादर, सिर पर फरले वाली पगड़ी, हाथ में कोकिया वाला खूँडा पकड़कर चलता था, तो नामी-गिरामी औरतों के सीने में आग लगा जाता था। लेकिन आज तक पाले ने किसी भी मुटियार की खूबसूरती का मोल नहीं लगाया था। जब पाले के यार-दोस्त कहते कि पालिया, सोहनी से सोहनी मुटियार तेरा पानी भरती है, फिर तू किसी एक को अपने महलों की रानी क्यों नहीं बना लेता, तो पाला हँसकर जवाब देता, "हुस्न का क्या है, यह तो एक न एक दिन फीका पड़ ही जाएगा। लेकिन मुझे तो उस हीर की तलाश है, जिसका हुस्न भी आसमान से उतरी परी जैसा हो, और दिल भी खरे सोने जैसा।"

  • 3. Nazaij riste - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min