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billionaire Boss wifey

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अभय सिंह रायजादा, जो अपने पैसे के घमंड में हमेशा से डूबा रहता था, अपने परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए उसने एक मामूली लड़की से शादी की। क्योंकि वो गलती से कर बैठा था, उस लड़की के साथ एक *one night stand*। लेकिन उसने कभी उस लड़की को प्यार या इज़्ज़त, क...

Total Chapters (22)

Page 1 of 2

  • 1. billionaire boss wifey- Chapter 1

    Words: 2172

    Estimated Reading Time: 14 min

    I Want Divorce...
    गोल्डन और रेड कलर की साड़ी में, एक दुबली-पतली लेकिन कमाल की ख़ूबसूरत लड़की, आँखों में नमी लिए, जल्दबाज़ी में एक कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी थी। उसके चेहरे पर ग़ज़ब की सादगी थी। उस लड़की ने होटल के कमरे का दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, अंदर से उसे कुछ लोगों के हँसने की आवाज़ सुनाई देने लगी थी।

    लोग अलग-अलग तरह से एक-दूसरे से मज़ाक कर रहे थे। साथ ही साथ उसके बारे में भी उल्टी-सीधी बातें कह रहे थे।

    बाहर खड़ी हुई लड़की, यानी अनाया को ये लगा जैसे कि सब उसके बारे में ही उल्टी-सीधी, बकवास बातें बोल रहे हों? उसका ही मज़ाक उड़ा रहे हों? फ़िलहाल, दरवाज़े के हैंडल पर उसकी पकड़ और ज़्यादा मज़बूत हो गई थी।

    लेकिन उसने खुद को संभाला, और जल्दी ही दरवाज़ा खोलकर अंदर चली गई। उसने देखा, एक साथ वहाँ पर कितने ही सारे सूट-बूट पहने बड़े-बड़े बिज़नेसमैन बैठे हुए थे। उन सभी के हाथों में रेड वाइन मौजूद थी।

    और उन सबसे हटकर, वहीं पर एक पावरफ़ुल पर्सनालिटी वाला बंदा बैठा हुआ था। जिसका नाम अभय रायजादा था।

    वेल, अनाया ने वहाँ जाकर बिना किसी की परवाह करते हुए अभय की ओर देखकर कहा, “अभय, क्या तुम मेरे साथ घर चल सकते हो?”

    अभय रायजादा, कोई और नहीं बल्कि अनाया का पति था।

    अब जैसे ही अभय ने अनाया की बात सुनी, उसने उसकी तरफ़ आँखें उठाकर देखना भी ज़रूरी समझा था। वो केवल अपनी रेड वाइन पर कंसंट्रेट करने में बिज़ी हो गया था, और शराब पीता रहा। उसने एक अजनबी की तरह अपनी बीवी को नज़रअंदाज़ कर दिया था।

    तब इस तरह से नज़रअंदाज़ होने पर अनाया काफ़ी दुखी हो गई! लेकिन फिर वो खुद को शांत करते हुए शांत स्वर में बोली, “अभय, आज हमारी शादी की सालगिरह है।

    मैं जानती हूँ कि तुम्हें शादी की सालगिरह मनाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मुझे समझ में नहीं आता, जब तुम्हें सालगिरह मनानी ही नहीं थी, तो तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आए? फ़िलहाल, तुम मुझे घर छोड़ दो, मुझे घर जाना है।”

    अनाया की बात सुनकर, उसके पति ने ग्लास उठाया, और शराब का घूंट भर लिया। उसकी आँखें हल्की रोशनी में भी काफ़ी ज़्यादा डार्क हो गई थीं। अब एक बार फिर अनाया के बोलने पर अभय का पारा चढ़ गया! और वो उसकी ओर घूरकर झिड़की देते हुए बोला, “जस्ट शटअप… ये क्या शादी की सालगिरह का तुमने ड्रामा लगा रखा है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ! तुम क्या कहना चाहती हो!”

    अब जैसे ही अभय ने अनाया से अपने दोस्तों के सामने इतनी तेज़ आवाज़ में डाँटकर बात की! तो अनाया का दिल छलनी सा हो गया।

    और तभी अभय ने, बिना अनाया के दर्द की परवाह करते हुए, अपने वॉलेट से एक चेक निकाला, उस पर कुछ नंबर लिखे, और अपनी पत्नी अनाया के सामने फेंक दिया! और बेफ़िक्री से बोला, “मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि तुम यहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे पैसे माँगने के लिए आई हो। ये पैसे लो और यहाँ से निकल जाओ।” उस वक़्त अभय की आँखों में झुंझलाहट और नफ़रत साफ़ दिखाई दे रही थी।

    अब उसकी पत्नी अनाया ने जैसे ये सब कुछ सुना, उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उसकी साँस छीन ली हो!

    और फिर अभय एरोगेंट वॉइस में बोला, “ये पैसे लो, चुपचाप तुम यहाँ से चली जाओ! और अब मेरा मूड ख़राब करने की कोशिश मत करना। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि तुम जैसी औरतें पैसों के लिए ही ये सब ड्रामा करती हैं।”

    अब जैसे ही उसके पति ने सबके सामने ये बेहूदा बातें कीं, जितने भी आस-पास आदमी बैठे हुए थे, सब बुरी तरह से अनाया पर हँसने लगे थे। आज अंदर ही अंदर अनाया को काफ़ी ज़्यादा बेइज़्ज़ती महसूस हो रही थी। उसे ऐसा लगने लगा था कि मर्दों की भरी महफ़िल में, उसी के अपने पति ने उसे नंगा कर दिया है।

    तभी उसे भीड़ में से एक बिज़नेसमैन, जिसका नाम रुद्र प्रताप था, वो उठा और वो चेक जो नीचे गिर गया था, उसे उठाकर अनाया की तरफ़ बढ़ाते हुए, उस पर भरपूर नज़र डालते हुए बोला, “ये चेक रखो, और जाओ जाकर पार्टी मनाओ।

    अभय बिल्कुल ठीक कह रहा है। तुम जैसी औरतें पैसों के लिए बड़े-बड़े अमीर लोगों को फँसा लेती हैं। फिर एनिवर्सरी के नाम पर, या किसी और चीज़ के नाम पर, उनसे पैसे निकालने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ती हैं।” ये बोलकर अब अभय के दोस्त रुद्र ने उसी के मुँह पर एक बार फिर वो चेक फेंक दिया था, जो टेबल पर जा गिरा था।

    और अब सब लोग उस पर पूरी तरह से हँसने लगे थे। अनाया को इतना तेज़ गुस्सा आया था। उसने अपने हाथों की मुट्ठी को कसकर भींच लिया था। उसके नाख़ून उसके हाथेलियों में चुभ गए थे।

    अपनी शादी की सालगिरह पर इतने सारे लोगों के सामने अपने ही पति के द्वारा इंसल्ट करने पर उसे ऐसा लगा मानो कि उसकी कोई इज़्ज़त ही नहीं हो! उसकी सारी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ गई हों? अभी अनाया गुस्से से दाँत भींचकर आगे बढ़कर अभय का गिरिबान पकड़कर उससे सवाल करना चाहती थी।

    लेकिन तभी अचानक वहाँ पर एक आवाज़ गूंजती है, “आई एम सो सॉरी गाइस… मुझे आने में थोड़ी सी देर हो गई।”

    एक दम शॉर्ट्स, रेड कलर की शॉर्ट्स पहने हुए एक बड़ी ही ख़ूबसूरत सी लड़की, जिसने शॉट स्कर्ट और पेंसिल पहनी हिल हुई थी, वो बिना अनाया की तरफ़ देखें, अपनी हाई हील से टकटक करती हुई सीधा आकर अभय के बराबर में बैठ गई थी।

    उसने अपना बैग नीचे रखा और अभय के कंधे पर सिर रखकर, बड़ी ही मीठी आवाज़ में बोली, “अभय, मैं देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा होगा!” ये बोलकर उसने अभय के कंधे को बड़े ही प्यार से छुआ, और उसकी मस्कुलर चैस्ट पर अपना हाथ फेरा था।

    अब सब लोग हैरानी से उसे देखने लगे थे। तभी उस लड़की, जिसका नाम टीना कपूर था, उसने अपनी निगाह भी अपने सामने खड़ी हुई अनाया पर गई, तो उसे देखकर उसके चेहरे पर एक जहरीली मुस्कराहट आ गई थी।

    वो अनाया को बड़े ही तिरस्कार भरी नज़रों से देख रही थी। और फिर वापस से अभय की ओर देखकर, अनजान बनते हुए बोली, “अभय, ये तुम्हारी पत्नी यहाँ क्या करने के लिए आई है?”

    उसकी बात सुनकर अभय ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, वो केवल रेड वाइन पीता रहा! और फिर तभी टीना की नज़र टेबल पर रखे हुए चेक पर पड़ी, और उस चेक को देखकर वो अपनी मुस्कराहट को दबाती हुई अनाया की ओर देखकर बोली, “अनाया, क्या तुम फिर से यहाँ पर पैसे माँगने के लिए आई हो?”

    फ़िलहाल, वो उठी और टेबल पर पड़े हुए चेक को बड़े ही घमंड से अनाया की तरफ़ फेंकते हुए उसका मज़ाक उड़ाया! और उसकी ओर देखकर बोली, “तुम जैसी गोल्ड डिगर लड़की, मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक नहीं देखी!

    मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आखिरकार अभय ने तुम जैसी पैसों के पीछे भागने वाली लड़की से शादी कैसे कर सकता है? अरे मैं पूछती हूँ कि अगर तुम्हें पैसों से इतना ही प्यार है, तो तुम मुझसे पैसे माँगो, ना। टीना कपूर के पास पैसों की कोई कमी नहीं है।

    लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, तुम इस तरह से अभय को परेशान नहीं कर सकती! क्योंकि मैं अभय बिल्कुल भी परेशान नहीं देखना चाहती हूँ। और तुम अच्छी तरह से जानती हो कि अभय को तुम्हारी शक्ल बिल्कुल भी पसंद नहीं है। तो क्यों उसके आस-पास भटकती रहती हो! हूँउउ…”

    अब टीना कपूर के इतने कठोर शब्द, अब अनाया के दिल में चाकू की तरह चुभ गए थे। ये पहली बार नहीं था जब टीना ने सबके सामने अनाया की इस तरह से बेइज़्ज़ती की हो!

    वो जब भी मिला करती थी, इसी तरह से अनाया का मज़ाक उड़ाया करती थी। और उसके बाद एक छोटी सी मुस्कराहट देकर इस तरह से जताती थी मानो कि उसे किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता है।

    लेकिन आज उसकी शादी की सालगिरह के दिन इस भरी महफ़िल में, उसकी इज़्ज़त तार-तार हो रही थी। अभय के बिज़नेसमैन दोस्त उसे बड़ी अजीब नज़रों से घूर रहे थे।

    इस वक़्त अनाया बहुत ज़्यादा शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। क्योंकि इस वक़्त उसे अभय के साथ अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी एक मज़ाक के अलावा कुछ नहीं लग रही थी।

    वही अभय अभी भी वहाँ बेपरवाही से बैठा हुआ था। वो एक राजा की तरह अपने हाथ में रेड वाइन का गिलास पकड़े हुए था। ऐसा लग रहा था जो कुछ भी वहाँ हो रहा हो, उससे उसका कोई लेना-देना नहीं है! चाहे उसकी बीवी की कोई कितनी ही बेइज़्ज़ती क्यों ना कर रहा हो! उसे बिल्कुल भी फ़र्क नहीं पड़ रहा था।

    वेल, कुछ सोचते हुए अचानक अनाया मुस्कुराई, खुशी से नहीं बल्कि खुद का ही मज़ाक उड़ाते हुए, क्योंकि वो चाहती थी कि अभय उसकी हेल्प करे, उसकी तरफ़ से बोले! भले ही अभय ने चार सालों में उसे कितना ही ज़्यादा दुख क्यों ना दिया हो।

    अभय उसके साथ ऐसा बिहेवियर करेगा! उसे शादी से पहले इन सब चीज़ों के बारे में सब कुछ पता चल गया होता, तो वो कभी भी अभय से शादी करने का डिसीज़न नहीं लेती।

    फ़िलहाल, उसने अपनी दाएं हाथ की बाजू को छुआ उसकी दाई बाजू काफी काफ़ी ज़्यादा कमजोर व बदसूरत हो चुकी थी। इसके बारे में किसी को भी नहीं पता था कि अभय की वजह से वो पहले ही अपने एक हाथ की खूबसूरती खो चुकी थी। लेकिन इसके बारे में किसी को नहीं पता था।

    फिर उसे पास्ट की कुछ बातें याद आने लगीं कि किस तरह से उसने पहली बार खाना बनाना सीखा, और सिर्फ़ अभय के लिए कितनी ही बार उसकी उंगलियाँ कट गईं! फिर भी उसने हार नहीं मानी, लेकिन कभी भी अभय ने उसके हाथ का बना हुआ खाना नहीं खाया।

    अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को सफल करने के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया! यहाँ तक कि जब वो उसकी कंपनी में खाना लेकर गई, तो अभय ने उस खाने को अपने कर्मचारियों के सामने ही कूड़ेदान में फेंक दिया।

    और साथ ही साथ अनाया को वार्निंग दी, “तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी इस तरह की हरकतों से मैं तुमसे इम्प्रेस हो जाऊँगा? ख़बरदार जो तुमने मेरी चापलूसी करने की कोशिश की तो!”

    अभय ने कभी भी उसका साथ नहीं दिया था। जब भी उसे अभय की ज़रूरत होती थी, तब वो ग़ायब रहता था।

    एक बार जब अनाया को बहुत तेज़ बुख़ार था, उस वक़्त अभय अपनी गर्लफ़्रेंड टीना कपूर का जन्मदिन मना रहा था।

    जब एक बार अनाया एक तूफ़ानी रात में बिजली गिरने की वजह से डरकर बिस्तर में दुबकी हुई थी, तब वो टीना कपूर के साथ मूवी देखने के लिए गया हुआ था। पिछले 4 सालों में अनाया ने लगभग हर दिन अकेले ही बिताया था।

    अभय ने बार-बार ये साबित कर दिया करता था कि उसने कभी भी अनाया को प्यार नहीं किया था, यहाँ तक कि थोड़ा सा भी नहीं।

    इतना ही नहीं, इतने सालों में तो किसी पालतू जानवर को पालते हैं तो उससे भी लगाव हो जाता है। लेकिन अभय को तो उससे इतना सा भी लगाव नहीं था।

    अनाया ने सोचा था कि एक ना एक दिन अपने प्यार के बलबूते पर वो अभय का दिल जीत ही लेगी! लेकिन इस उम्मीद से उसने अपना सेल्फ़ रिस्पेक्ट ही खो दिया था।

    उसे इस शादीशुदा ज़िंदगी में बेइज़्ज़ती और कड़वी बातों के अलावा कभी कुछ नहीं मिला था। यहाँ तक कि वो अपने वजूद को ही भूल गई थी।

    लेकिन आज तो कुछ ज़्यादा ही हद पार हो गए थे। आज तो सबके सामने यूँ उस पर चेक फेंके जाने से उसे ऐसी फ़ील हो रहा था मानो कि वो कोई बाज़ारू औरत हो!

    फ़िलहाल, इस बार वो ज़्यादा सहन नहीं कर पाई। वो थोड़ा सा झुकी, जमीन पर पड़ा हुआ चेक उठाया! और उसने उसे चेक को सबके सामने फाड़ दिया! इस वक़्त उसका दिल काफ़ी ज़्यादा टूटा हुआ था। चेक के टुकड़ों की तरह उसने अपने आँसू रोके और कमरे से बाहर निकल गई!

    होटल के लॉबी तक दौड़ते हुए वो एक दीवार के सहारे झुक गई! और साँस लेने के लिए हाफ़ने लगी। कुछ देर तक खड़े रहने के बाद उसने अपना फ़ोन निकाला! और अभय को फ़ोन करके अभय का नाम पुकारा, और रोने लगी!

    लेकिन तभी अभय उसकी आवाज़ सुनकर तिरछा सा मुस्कुराया, और उसकी इस तरह से रोती हुई आवाज़ सुनकर उसे लगा कि शायद चेक फाड़े जाने के अफ़सोस में अनाया रो रही है, जो उसने गुस्से से फाड़ दिया है।

    तब अभय बिना किसी इमोशन्स के बोला, “क्या हुआ? चेक फाड़े जाने से दुखी हो, या बिना पैसे लिए जाने का अफ़सोस हो रहा है? इसलिए रो रही हो?”

    अब जैसे ही अभय ने उसकी रोती हुई आवाज़ सुनकर उसे इस तरह की बात की, अब तो पानी सर से ऊपर जा चुका था।

    तभी अनाया ने अपने आँसुओं को बेरहम तरीके से पोंछ दिया, और गहरी साँस लेकर थोड़ी देर रुकने के बाद गंभीरता से बोली, “अभय, मुझे तुमसे तलाक़ चाहिए! आई वांट डाइवोर्स…”

  • 2. billionaire boss wifey w - Chapter 2

    Words: 1569

    Estimated Reading Time: 10 min

    Civil Court

    तभी “अनाया” ने अपने आँसुओं को बेदर्दी से पोंछ दिया, और गहरी सांस लेकर थोड़ी देर रुकने के बाद पूरी गंभीरता से बोली —

    "अभय, मुझे तुमसे तलाक चाहिए! आई वांट डाइवोर्स..."

    अब आगे —

    अब जैसे ही अनाया ने बिल्कुल सीरियस होकर कहा कि मुझे तुमसे तलाक़ चाहिए, तब अभय के माथे पर बल पड़ गए! क्योंकि आज तक चार सालों में कभी भी अनाया ने इस तरह की कोई बात नहीं की थी — और इतने सीरियस अंदाज़ में!

    इसीलिए अभय बिल्कुल कोल्ड वॉइस में बोला —

    "आर यू सीरियस? क्या तुम सच कह रही हो?"

    क्योंकि कहीं न कहीं अभय को लग रहा था कि यह लड़की मुझे छोड़कर कभी नहीं जा सकती है। और वैसे भी, उसे तो सिर्फ और सिर्फ पैसों से मतलब है। और उसके पैसों के लिए वह कुछ भी कर सकती है, क्योंकि आज तक सिर्फ वन नाइट स्टैंड के अलावा अभय ने कभी दोबारा से अनाया को हाथ तक नहीं लगाया था।

    हालांकि वह दिखने में बेहद खूबसूरत थी, लेकिन कभी उसने उसकी खूबसूरती की कोई परवाह नहीं की। वह उसकी तरफ से पूरी तरह से लापरवाह रहा था। कभी उसने उसे वह मान सम्मान, इज़्ज़त, प्यारी पत्नी का हक़ नहीं दिया।

    अगर उसने कुछ दिया भी तो सिर्फ और सिर्फ दुख, तन्हाई और बेइज्जती। इसके अलावा उसने उसे ज़िंदगी में कभी कुछ नहीं दिया।

    फिलहाल उसे यह बात काफी हैरान कर रही थी कि भला जो लड़की आज तक उसे छोड़कर नहीं गई — वह अचानक से ऐसी बात कर रही थी! उसे हैरानी हुई। इसीलिए उसने अनाया से कन्फर्म करने के लिए एक बार फिर पूछा —

    "क्या तुम सच कह रही हो? क्या तुम्हें वाकई मुझसे तलाक चाहिए?"

    तभी गहरी लंबी सांस लेते हुए “अनाया” ने जवाब दिया —

    "हाँ, मैं तुमसे तलाक़ लेना चाहती हूँ। और एक बात... मुझे तलाक़ के बदले में तुमसे एक भी रुपया नहीं चाहिए।"

    अब जैसे ही अनाया ने यह कहा, अभय पूरी तरह से चौंक गया था। लेकिन अगले ही पल अपने चेहरे पर एक मक्कारी भरी मुस्कुराहट लाते हुए बोला —

    "मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि मुझसे ज़्यादा पैसे निकलवाने के लिए ये तुम्हारी कोई नई चाल है। और मैं अच्छी तरह से समझता हूँ कि तुम मुझसे तलाक़ लेने का ड्रामा क्यों कर रही हो!"

    अभय को लग रहा था कि अनाया का यह ड्रामा बहुत जल्द ख़त्म हो जाएगा। भला, जिस लड़की ने पूरे चार साल उसके साथ गुज़ार दिए और बदले में हमेशा से उससे पैसे लेती आई है — न जाने अब तक कितने सारे अपने कार्ड, अनलिमिटेड ब्लैक चेक, अभय अनाया को दे चुका था।

    उसने कभी भी यह चेक करने की कोशिश नहीं की कि अनाया ने उसके पैसे खर्च किए हैं या नहीं, या अनाया ने कभी कुछ खरीदा भी है या नहीं। उसे तो यही लगता था कि वह सारे पैसे खर्च कर रही है — और वह ऐसी गोल्ड डिगर लड़की है, जो इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं है।

    इसीलिए वह विचारों में अनजाने में ही अनाया से बेइंतहा नफरत कर बैठा था। उसे अनाया से बहुत ही ज़्यादा नफरत थी, जिसका कोई अंदाज़ा भी नहीं लग सकता था। लेकिन कभी भी अपनी ज़ुबान से वह अपनी नफरत का इज़हार नहीं कर पाया।

    लेकिन उसके हाव-भाव, हर जगह अनाया की बेइज़्ज़ती करना — यह सब इसी बात की गवाही देते थे कि अभय को अनाया बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसीलिए अभय, अनाया पर तंज़ कसते हुए बोला —

    "अगर तुम वाकई मुझसे तलाक़ लेना चाहती हो — ठीक है! हम कल ही सिविल कोर्ट चलेंगे, ठीक है!"

    यह बोलकर अभय ने, बिना अनाया की कोई प्रतिक्रिया सुने, फोन काट दिया।

    ---

    वहीं “टीना कपूर”, जो कि उस वक्त अभय के बिल्कुल बराबर में बैठी हुई थी — अभय के चेहरे के बिगड़ते हुए एक्सप्रेशंस देखकर बोली —

    "क्या हुआ अभय? तुम कुछ परेशान लग रहे हो?"

    टीना की बात सुनकर अभय ने अपना सिर ना में हिलाया और शराब पीने लगा, क्योंकि उसे इस बात का पूरा यक़ीन था कि —

    “अनाया उससे कभी तलाक़ नहीं लेगी।”

    क्योंकि अभय रायज़ादा एक करोड़पति आदमी था। और भला इस तरह से एक मामूली सी लड़की उसे कैसे छोड़ सकती थी?

    वो जानता था कि अनाया का कुछ खास बैकग्राउंड भी नहीं था। और जहाँ तक चार सालों में अभय ने अनाया के बारे में जाना था —

    उसे तो कोई काम भी करना नहीं आता था। ना तो उसकी एजुकेशन कुछ खास थी और ना ही उसे कोई स्किल आती थी।

    क्योंकि वह हमेशा से ही अनाया, अभय के घर में एक नौकरानी की तरह रही थी। उसके लिए छोटे-छोटे काम किया करती थी और कभी उसने कोई शिकायत तक नहीं की।

    ना ही इन सालों में कभी कोई अनाया से मिलने आया — न उसका कोई घर, न परिवार, न दोस्त... उसका कोई भी नहीं था।

    कहीं न कहीं, अभय को यही लगता था कि वह सिर्फ और सिर्फ उसके साथ... उसके पैसों के लिए है।

    ---

    क्योंकि अभय उसे अनलिमिटेड पैसे दिया करता था — शॉपिंग करने के लिए, खर्च करने के लिए — जिससे उसकी मर्ज़ी जो चाहे वह खरीद सकती थी। और जहाँ तक अभय को पता था, अनाया को किसी भी चीज़ की — ना बिजनेस की, ना किसी और फील्ड में — कोई खास नॉलेज नहीं थी। तो उसे तलाक लेने के बाद, और बदले में एक भी रुपया ना लेने की बात के बाद... भला वो अपनी ज़िंदगी, जीने के लिए कोई काम किए बिना कैसे रहेगी?

    कहीं ना कहीं, अभय को यही लगा — कि ज़रूर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए “अनाया” इस तरह की नई ट्रिक चला रही है, और उससे तलाक़ लेने का ड्रामा कर रही है। और ज़रूर देर-सवेर वो उससे पैसों की भीख माँगने के लिए वापस आएगी।

    उसे इस बात का पूरा-पूरा यक़ीन था। इसीलिए बेफिक्र होकर वह अपने दोस्तों के साथ अच्छी तरह से पार्टी इंजॉय करने लगा था।

    वेल... अब ढेर सारी ड्रिंक करने के बाद “अभय” उसी होटल रूम में सो गया था। हालाँकि “टीना” उस होटल में उसके साथ रुकने की बहुत कोशिश कर रही थी, लेकिन अभय के दोस्तों ने उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा। इसीलिए टीना अपना मन मारकर रह गई थी।

    लेकिन उसके पास वह अच्छा मौका था — अभय को अपना बनाने का, और उसके साथ वन नाइट स्टैंड करने का। लेकिन वह जितनी भी कोशिश करती, अभय के पास जाने की, वह अभी तक उसके साथ कोई भी वन नाइट स्टैंड नहीं कर पाई थी। ना ही वह उसके साथ किसी तरह का कोई किस कर पाई थी।

    इसीलिए टीना ने सोचा कि अभय ने काफ़ी ड्रिंक कर लिया है, तो आज रात को वह उसे अपना बना लेगी। लेकिन जब उसके दोस्तों ने उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा, तो उसका पारा काफ़ी ज़्यादा हाई हो गया था, और वह अपना मन मसोस कर रह गई थी।

    फिलहाल, अब अभय गहरी नींद में, होटल में अपने दोस्तों के साथ ही सो गया था।

    और अगले दिन जैसे ही उसकी आँख खुली, उसके फोन पर लगातार कितने ही सारे “अनाया” के मिस्ड कॉल्स थे।

    क्योंकि आज तक अनाया ने कभी भी अभय को कॉल्स नहीं की थीं — और इस तरह से अनाया के कॉल्स देखकर, अभय की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।

    अब “अभय” चौंक गया, और कल रात जिस तरह “अनाया” ने तलाक लेने की बात कही थी — वो सारी बातें उसके दिमाग़ के सामने घूमने लगी थीं।

    उसकी इतनी सारी कॉल्स आना देखकर, उसे लगा — कि ज़रूर अब “अनाया” उससे माफ़ी माँगने के लिए कॉल कर रही होगी! क्योंकि उसने “अभय” को तलाक़ की धमकी दी थी।

    यह सोचते हुए, एक खतरनाक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई और वह सोचने लगा —

    "पैसा... पैसा... ना जाने पैसे के लिए लोग क्या-क्या करते हैं!"

    कहीं ना कहीं, यह सोचते हुए वह “अनाया” के बारे में काफी ग़लत सोचने लगा था।

    इसीलिए बेपरवाही से “अभय” ने वापस “अनाया” को कॉल बैक किया और बेरुखी से बोला —

    "बोलो, क्या कहना चाहती हो तुम?"

    दूसरी तरफ से “अनाया” ने उसे कहा —

    "मिस्टर अभय सिंह रायज़ादा, मैं आपका सिविल कोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रही हूँ। आप फ़टाफ़ट से आ जाइए... प्लीज़!"

    इतना बोलकर “अनाया” ने, बिना अभय की कोई बात सुने, तुरंत फोन काट दिया था।

    अब “अभय” पूरी तरह से चौंक गया!

    उसे तो लगा था — कि “अनाया” उससे माफ़ी माँगने के लिए कॉल कर रही होगी। लेकिन ये क्या? “अनाया” तो उसे अभी कोर्ट के बाहर आने के लिए कह रही है!

    अब तो अभय के चेहरे पर बल पड़ गए थे। और वह सोचने लगा था —

    "ये लड़की आख़िर क्या करने की कोशिश कर रही है? कहीं वो किसी अलग तरीक़े से मुझे ब्लैकमेल तो नहीं कर रही? पर अब कुछ भी हो... मुझे वहाँ जाकर देखना ही होगा!

    मैं भी तो देखूँ — इस लड़की के तेवर अब कैसे बदल गए हैं... जो मुझसे इस तरह की बात बोल रही है। वो भी अभय सिंह रायज़ादा से? और मुझे ऑर्डर दे रही है कि मैं आकर उसे सिविल कोर्ट के बाहर मिलूँ?"

    "अगर यह भी कोई नया नाटक निकला..." —

    "...तो अब मैं इस तलाक को लेकर ही रहूँगा!"

    कहीं ना कहीं, अभय यह सोचते हुए पीसते दाँतों से बुदबुदाने लगा था। और जल्दी ही ..

    अभय ने जल्दी से अपने असिस्टेंट “माधव” को कॉल किया और ऑर्डर देते हुए बोला —

    "फ़टाफ़ट से गाड़ी तैयार करो! हमें सिविल कोर्ट चलना है!"

    ---

  • 3. The games of billionaire wife - Chapter 3

    Words: 1520

    Estimated Reading Time: 10 min

    अभय ने जल्दी से अपने असिस्टेंट “माधव” को कॉल किया और ऑर्डर देते हुए बोला —

    "फ़टाफ़ट से गाड़ी तैयार करो! हमें सिविल कोर्ट चलना है!"

    -
    अब अपने बॉस की इस तरह से कॉल आने पर “माधव” हैरान हो गया, क्योंकि वो अच्छी तरह से जानता था — कि उसका बॉस अपनी बीवी “अनाया” को नापसंद करता है। और उसे अपनी बीवी में कोई इंटरेस्ट नहीं है। वो तो उसकी ओर देखना भी पसंद नहीं करता।

    कहीं ना कहीं “माधव” को यकीन था — कि ये दोनों अलग हो जाएंगे!
    लेकिन इतनी जल्दी अलग हो जाएंगे? ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था।

    फिलहाल, उसने जल्द ही गाड़ी तैयार कर दी थी।


    ---

    वहीं दूसरी ओर —

    फिलहाल, “अभय” ने होटल रूम में ही चेंज किया। फ्रेश होने के बाद अच्छे से ड्रेसिंग की, और सीधा “माधव” के साथ सिविल कोर्ट के दरवाज़े के बाहर पहुँच चुका था।

    “अनाया” काफ़ी देर से “अभय” का वहाँ इंतज़ार कर रही थी।

    “अभय सिंह रायज़ादा” एक अमीर आदमी के रूप में बेहद अट्रैक्टिव और बहुत ही ज़्यादा हैंडसम था।
    उसका पावरफुल औरा और उसकी पर्सनालिटी — कितनी ही सारी लड़कियों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करवा देती थी।

    वो दिखने में कामदेव पुरुष के जैसा था. अब जैसे ही वो वहां आया उसने देखा
    अनाया बिलकुल सादा कपड़ों में, बिना किसी मेकअप के, एक फाइल हाथ में लिए कोर्ट परिसर में खड़ी थी। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बल्कि एक अजीब सी शांति थी।
    जैसे ही उसकी नज़र अनाया पर पड़ी, वह ठिठक गया।
    उसे आज की अनाया बिल्कुल अलग लगी — शांत, गंभीर और दृढ़। अभय “अनाया के क़रीब जाकर, अपनी कोल्ड आंखों से घूरने लगा और उसकी ओर देखकर नाखुश होकर बोला_ ये तलाक़ का क्या, ड्रामा लगा रखा है तुमने?

    चाहती क्या हो तुम?



    तब “अनाया ने बिना किसी एक्सप्रेशंस, के उसे जवाब दिया मैं, सिर्फ तुमसे तलाक चाहती हूं।

    अनाया ने उसकी आंखों में आंखें, डालते हुए बड़े ही शांत भाव से उत्तर दिया था. इसके आगे उसने “अभय को कुछ नहीं बोला।



    अब तो माधव “अनाया की बात सुनकर- पूरी तरह से चौक गया। क्योंकि उसने आज तक “अनाया को जितना जाना था- “अनाया तों हमेशा से ही उसके बॉस, के सामने डरी सहमी सी रहा करती थी। वो कभी भी “अभय कों किसी बात का उल्टा जवाब, नहीं दिया करती थी।

    लेकिन ना जाने आज मासूम सी और सीधी साधी “अनाया मे इतनी हिम्मत कहा से आ गई थी? वो एकदम शेरनी, की तरहां “अभय रायजादा के सामने खड़ी हुई थी।

    कहीं ना कहीं “माधव अपने मन में आज पहली, बार “अनाया से इंप्रेस हुआ था।


    तभी"मिसेज़ अनाया रायज़ादा?" — कोर्ट क्लर्क ने आवाज़ दी।

    अनाया ने बिना कुछ बोले कदम बढ़ाए और अंदर चली गई। अभय ने भी पीछे से प्रवेश किया।

    वेल... अब फिलहाल जैसे ही वो अंदर गए, उन्होंने देखा कि अदालत में लोग पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे।

    आखिरकार, "द फेमस बिज़नेसमैन अभय सिंह रायज़ादा" के तलाक़ का मामला था — तो बहुत जल्दी ही सारी फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकी थी। और जल्दी ही वो लोग अंतिम चरण, यानी डाइवोर्स पेपर्स पर साइन करने के लिए पहुँच गए।

    वहीं “अनाया” ने बिना किसी हिचकिचाहट के, सिर्फ एक नज़र उन डाइवोर्स पेपर्स पर डाली — और अपने साइन कर दिए।
    उसके बाद उन्होंने वह कागज़ “अभय” को दे दिए।

    अब जैसे ही “अनाया” ने इतने बोल्ड तरीक़े से, अभय के सामने सिग्नेचर कर उसे कागज़ दिए — “अभय” को हैरानी हुई।
    उसे अचानक कुछ अजीब सा लगा!

    उसे लगने लगा — कि सामने खड़ी हुई औरत अब उसके लिए अजनबी हो गई है।


    --

    कोर्ट में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।


    ---

    हालांकि आज से पहले “अनाया” पूरी तरह से उस पर ही डिपेंड रहा करती थी। एक-एक रुपये के लिए उसे “अभय सिंह रायज़ादा” से भीख माँगनी पड़ती थी।
    लेकिन आज “अनाया” ने उसे तलाक़ देने का साहस कैसे किया?
    अभी “अभय” यही सोच ही रहा था।

    तभी “अनाया” ने उसकी ओर देखते हुए बेपरवाही से कहा —
    "अब आप किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं, मिस्टर रायज़ादा? तलाक़ के पेपर पर साइन कीजिए!"

    तभी “अभय” उसकी ओर देखकर एरोगेंट वॉइस में बोला —
    "एक बार फिर सोच लो! अगर मैंने तलाक़ के पेपर पर साइन कर दिया, तो तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा...
    क्योंकि यहाँ इन पेपरों में यह बात साफ़-साफ़ मेंशन की गई है — अभय सिंह रायज़ादा तुम्हें एक भी रुपया नहीं देगा!"

    "याद रखना, तुम्हारे पास जो कुछ भी प्रॉपर्टी है — तुम सब कुछ खो दोगी। क्या तुम्हें यक़ीन है, मिसेज़ अनाया सिंह रायज़ादा, कि तुम मुझसे तलाक़ लेना चाहती हो?"

    तब “अनाया” ने उसकी ओर देखकर कहा —
    "मुझे तुमसे कुछ भी नहीं चाहिए। और मैं 100% श्योर हूँ!"

    इतना बोलकर उसने “अभय” की आँखों में ललकारते हुए देखा।

    वेल... अब “अभय” अंदर ही अंदर पूरी तरह से हैरान हो रहा था।
    फिलहाल, उसने फटाफट से कागज़ों पर साइन कर दिए थे और तलाक़ की अर्जी दाखिल कर दी थी।

    और उसके बाद सिविल कोर्ट के फैमिली जज ने उन्हें तीन महीने तक इंतज़ार करने को कहा था —
    कि अगर उन्हें कभी भी अपने तलाक़ वाले डिसीज़न पर पछतावा हो, तो वो अपनी अर्जी वापस ले सकते हैं।

    ये सुनकर अचानक “अनाया” बेफिक्री से मुस्कुराते हुए बोली —
    "मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं होगा।"

    अब जैसे ही “अनाया” ने बिना किसी भाव के यह कहा,
    अब तो “अभय सिंह रायज़ादा” का चेहरा ग़ुस्से से काला पड़ गया था।

    अब उसने “अनाया” को ग़ुस्से से घूरकर देखा — क्योंकि “अनाया” ने आज जो कुछ भी किया था, वाकई वह उसके इस एक्शन से काफी परेशान हो चुका था।

    क्योंकि “अनाया” के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था — कि वो “अभय” से छुटकारा पाने के लिए काफ़ी ज़्यादा एक्साइटेड लग रही थी।
    इस वक़्त “अभय” के मन में काफ़ी सारी मिक्स्ड फीलिंग्स थीं।

    तभी “माधव” के चेहरे पर पसीना आना शुरू हो गया था।
    क्योंकि उसने “अभय” के चेहरे को देख लिया था —
    “अभय” का चेहरा इस वक़्त काफ़ी ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था।

    “माधव” ने घबराहट से मन में सोचा —
    "अनाया मैडम खुद तो बॉस की ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर जा रही हैं... लेकिन क्या ये ज़रूरी है कि बॉस को इस तरह से उल्टे-सीधे जवाब देकर भड़काया जाए?
    खुद तो मैडम चली जाएँगी... लेकिन बॉस के चेहरे को देखकर लग रहा है कि वो हमें नहीं छोड़ेंगे। उनका ग़ुस्सा हमें झेलना पड़ेगा!"

    कहीं न कहीं “अभय” को देखकर “माधव” को बहुत ज़्यादा डर लग रहा था।

    फिलहाल, “अभय” ने तभी जज से कहा —
    "मुझे पूरी उम्मीद है कि तीन महीने बाद भी मुझे इससे छुटकारा पाने का मौका नहीं मिलेगा... और ये मुझसे तलाक़ लेने से मना कर देगी!"

    अब जैसे ही “अभय” ने यह सब इतने कॉन्फिडेंस से कहा, तो “अनाया” सारकास्टिक स्माइल के साथ उसकी ओर देखने लगी थी।

    क्योंकि अभी भी “अभय सिंह रायज़ादा” को यही लग रहा था —
    कि तीन महीने तक “अनाया” गिड़गिड़ाकर उसके पास आएगी और वापस से उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए कहेगी।

    फिलहाल, वो सब सिविल कोर्ट से बाहर निकल गए।

    और तब “अनाया” ने बिना किसी इमोशंस के “अभय” की ओर देखकर कहा —
    "ओके मिस्टर रायज़ादा... आपसे तीन महीने बाद मुलाक़ात होगी!"
    तब अभय ने अनाया को घमंड से देखकर कहा —
    "बहुत अच्छा नाटक कर रही हो, लेकिन मैं तुम्हें एक पल में बेनकाब कर दूँगा।"
    बहुत जल्द पेसो की भीख मांगते हुए तुम मेरे पास आओगी।

    अभी “अनाया” उसे कुछ और कहना चाहती थी,
    लेकिन “अभय” ने उसे कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया — और सीधा जाकर अपनी लग्ज़री कार में बैठ गया,
    और दरवाज़ा ज़ोरों से पटक कर बंद कर दिया। अभय के बर्ताव उसकी चाल उसके ढंग से साफ पता चल रहा था कि उसमें घमंड कूट-कूट कर भरा हुआ है।

    फिलहाल अभय के बैठते ही जल्दी ही “माधव” ने गाड़ी चला दी थी — जो कि “अनाया” के ठीक बराबर से तेज़ी से निकल गई।


    ---

    Well... “अभय” के जाने के बाद “अनाया” ने अपना सिर ना में हिलाया और कड़वाहट से मन में बोली —
    "क्या ये वाकई 'अभय सिंह रायज़ादा' था?"

    वो यह बात अच्छी तरह से जानती थी —
    कि ये बिल्कुल भी मैनर्स वाला आदमी नहीं था।
    तलाक़ के बाद भी “अनाया” के साथ वह बुरा बर्ताव कर रहा था। क्या वाकई इस आदमी के लिए उसने अपनी जिंदगी के चार साल बर्बाद कर दिए। कहीं ना कहीं अनाया कुछ देर तक अफसोस से वहां खड़ी रही थी, और उस और देखती रही जिस और अभय सिंह रायजादा अपनी शानदार गाड़ी से गया था।

    Well... कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद, “अनाया” ने अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल पर बोला —
    "मेरा तलाक़ हो गया है... मुझे लेने के लिए सिविल कोर्ट आ जाओ।"

    अब जैसे ही “अनाया” ने यह कॉल कट किया, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट थी।

    तभी दस मिनट भी नहीं हुए थे — कि एक लाल रंग की चमचमाती हुई स्पोर्ट्स कार वहाँ आकर रुक गई। 🚗✨


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  • 4. The games of billionaire wife - Chapter 4

    Words: 1701

    Estimated Reading Time: 11 min

    अभी दस मिनट भी नहीं हुए थे कि एक लाल रंग की चमचमाती हुई स्पोर्ट्स कार वहाँ आकर रुक गई।

    और उसमें से कोई और नहीं, बल्कि “अनाया” की सबसे अच्छी दोस्त “इशिका कपूर” बाहर निकलती है।

    और “इशिका” दनदनाते हुए आकर सबसे पहले “अनाया” की ओर देखकर हड़बड़ाहट में कहती है —

    "क्या सच में तुम्हारा डाइवोर्स हो गया है?"

    जैसे ही सीधे-सीधे इशिका ने ये पूछा, तभी “अनाया” ने उसकी ओर देखकर ‘हाँ’ में सिर हिलाया और दरवाज़ा खोला व कार के अंदर बैठ गई।

    तब अचानक “इशिका”, खुशी से कूदते हुए बिना दरवाज़ा खोले, खिड़की से ही कार के अंदर कूद गई।

    और चहकते हुए बोली —

    "What a great news! और वैसे भी उस घटिया इंसान से शादी करने से पहले, तुम बहुत अच्छी-खासी पावरफुल लड़की हुआ करती थी।

    और अब तुम खुद को देखो, तुमने खुद को खो दिया है... एकदम नौकरानी जैसी लग रही हो!

    फिलहाल, फाइनली तुम इस रिश्ते से आज़ाद हो गई हो! और अब वापस से अपनी कंपनी को संभालने का तुम्हारा समय आ गया है।"

    ये कहते हुए “इशिका” ने एक्साइटमेंट में बैठे-बैठे ही कार के अंदर से “अनाया” को गले से लगा लिया था।

    उसके चेहरे से खुशी साफ़ टपक रही थी, और वो खुद के इमोशंस कंट्रोल करते हुए बोली —

    "तुम जानती हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी।"

    फिलहाल “अनाया” ने अपने होंठ काटे, वह कुछ बोली नहीं — क्योंकि उसके लिए ये सिचुएशन बहुत मुश्किल थी।

    Well... उस वक़्त वह काफी ज़्यादा बुरे मूड में थी।

    फिलहाल “इशिका” ने आगे बढ़कर उसे बड़ा सा हग दिया और बोली —

    "चलो, इन आँसुओं को रोकने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    फिलहाल “अनाया” ने कुछ देर तक “इशिका” की ओर देखा और फिर अपना चेहरा “इशिका” की बाहों में छुपा लिया।

    उसने अपनी आँखों से आँसुओं को पोंछते हुए अजीब तरह से मुस्कुराया और बोली —

    "तुमने कई सालों तक कंपनी चलाने में मेरी मदद की है... लेकिन मुझे अब इस बात का डर है कि पता नहीं मैं सही से सब कुछ मैनेज कर पाऊँगी या नहीं।"

    तभी “इशिका” मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखकर कॉन्फिडेंस से बोली —

    "शायद तुम भूल रही हो कि तुम इस फील्ड की सुपरस्टार हो!

    और मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हारी वापसी इस पूरी दुनिया को हिला कर रख देगी।"

    ऐसे बोलते हुए “इशिका” ने “अनाया” के सिर पर एक टपली मारी,

    क्योंकि उसे ये कायर और टूटी हुई सी “अनाया” बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थी।

    Well... तभी “इशिका” उसकी ओर देखकर हौसला देते हुए बोली —

    "उस पागल आदमी ने तुम्हें अंधा कर दिया है और तुम भूल गई कि तुम कितनी ज़्यादा टैलेंटेड हुआ करती थी।

    तुम्हारे लिए खुद को वापस पाना बहुत आसान है!

    तुम आसानी से खुद को साबित कर सकती हो।

    इस बात पर तुम कभी भी शक मत करना —

    तुम अच्छी तरह से सारी चीज़ें मैनेज कर सकती हो।

    मुझे तुम पर पूरा का पूरा भरोसा है।"

    ये बोलकर “इशिका” ने “अनाया” को इनकरेज किया।

    ---

    Well... अब “इशिका” के इस तरह से कहने पर “अनाया” को अपने पुराने दिन याद आ गए थे —

    जब उसने अपना खुद का काम शुरू किया था।

    हालाँकि स्टार्टिंग में वो सब काम थका देने वाला था, लेकिन वो काफी ज़्यादा खुश और एक्साइटेड थी।

    हालाँकि अब उसकी शादी की असफलता ने उसके अस्तित्व को काफी बड़ा झटका दिया था —

    जिससे वो खुद को फिर से हासिल नहीं कर पाई थी।

    फिलहाल, अपनी मानसिक स्थिति को एक बार फिर से परफेक्टली ठीक करने के लिए उसे कुछ टाइम की ज़रूरत थी।

    तब “अनाया” ने “इशिका” की ओर देखकर स्लो वॉइस में कहा —

    "इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे... अभी फिलहाल मुझे सिर्फ रेस्ट की ज़रूरत है।"

    ये बोलकर वो गाड़ी की सीट से टेक लगाकर आँखें बंद करके लेट गई थी।

    “इशिका” ने भी उसे ज़्यादा परेशान नहीं किया, और कार को जल्दी ही उसने बंगले की तरफ घुमा दी थी।

    ---

    Well...

    शाम के धुंधलके में जब कार बंगले के लॉन में रुकी, “अनाया” ने हल्के से आँखें खोलीं। इशिका ने बिना कुछ बोले कार का दरवाज़ा खोला, और उसे सहारा देते हुए बाहर लाया।

    “चलो अंदर चलें,” इशिका ने धीमे स्वर में कहा।

    लेकिन तभी, अनाया की आँखों में एक अलग ही चमक थी। उसने सामने खड़े बंगले को एक नजर देखा — मानो कुछ पुरानी परछाइयाँ उसके ज़ेहन में लौट आई हों।

    यही वो जगह थी... जहां से उसका असली जीवन शुरू हुआ था, लेकिन किसी को इसकी भनक तक न थी।

    ---

    "अनाया" — वो नाम जो आम दिखता था, मगर उस नाम के पीछे छिपी थी एक ऐसी पहचान, जो पूरी दुनिया को हिला सकती थी।

    वो कोई साधारण लड़की नहीं थी... वो थी "दुनिया के सबसे शक्तिशाली औद्योगिक साम्राज्य की इकलौती वारिसा!"

    लेकिन उसने ये सच हमेशा खुद में दफ़्न रखा था।

    ---

    दुनिया उसे बस एक सामान्य लड़की समझती रही — एक ऐसी औरत जिसने एक घमंडी बिजनेस टायकून से शादी की थी, और चार साल तक चुपचाप अपमान सहा था।

    पर असल में, वो वही थी जिसकी एक दस्तख़त से कई देशों की अर्थव्यवस्था हिल सकती थी।

    ---

    इशिका अंदर दाखिल होते ही जानती थी कि अब वक्त आ चुका है।

    “क्या तुम तैयार हो, अनाया?”

    इशिका ने गंभीर होकर पूछा।

    अनाया ने धीमे स्वर में जवाब दिया —

    “अब और छुपने का वक्त नहीं है, इशिका। बहुत झेल लिया मैंने। अब मुझे फिर से अपना ताज पहनना होगा... लेकिन इस बार एक औरत बनकर — जिसने सब कुछ खोकर खुद को पाया है।”

    ---

    सच तो यह था कि अनाया, ‘रॉयल मेहरा ग्रुप ऑफ एम्पायर’ की एकमात्र उत्तराधिकारी थी — जिसकी जड़ें यूरोप, अमेरिका, और एशिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्रीज से जुड़ी थीं।

    उसके पिता, सर रूद्र प्रताप मेहरा विश्व के उन गिने-चुने लोगों में से थे जिनके पास सिर्फ दौलत नहीं, बल्कि सत्ता भी थी।

    पर अनाया ने बचपन से ही अपनी अलग पहचान बनानी चाही।

    उसे नहीं चाहिए थे ताज, सिंहासन या नाम।

    उसे चाहिए थी ख़ुद की बनाई दुनिया, खुद की पहचान।

    ---

    इशिका ही थी जो उसके इस गुप्त जीवन की सबसे करीबी साथी थी।

    कुछ और पुराने दोस्तों को भी उसके असली नाम "अनाया मेहरा" की सच्चाई पता थी — पर उन्होंने कभी किसी से एक लफ्ज़ नहीं कहा।

    ---

    और अब... तलाक के बाद जब पूरा समाज उसे टूटी हुई, बेसहारा और हार चुकी औरत समझ रहा था — वो मुस्कुरा रही थी।

    क्योंकि अब वह “अनाया रायज़ादा” नहीं...

    "अनाया मेहरा" बनकर लौट रही थी।

    ---

    इशिका ने मुस्कुराते हुए उसे कोट थमाया —

    “तो अब क्या प्लान है, महारानी?”

    अनाया ने एक लंबी सांस ली और बोली —

    “अब वक्त है अपनी कंपनी को दोबारा उठाने का... लेकिन इस बार सिर्फ कारोबार के लिए नहीं,

    बल्कि हर उस औरत के लिए... जिसने रिश्तों की आड़ में खुद को खो दिया।”

    ---

    फिलहाल अनाया ने इशिका की ओर देखकर कहा था कल मुझे एक आखरी बार रायजादा मेंशन जाना होगा क्योंकि वहां मेरा एक जरूरी सामान है मुझे वह लेकर आना है।

    अब जैसे ही “अनाया” ने इशिका को बताया कि वह कल एक बार रायज़ादा विला जाना चाहती है...

    इशिका चौंक गई। उसकी आँखों में हैरानी थी, और लहजे में नाराज़गी।

    “तुझे क्या ज़रूरत है वहाँ जाने की?”

    इशिका ने ऐतराज़ जताते हुए तेज़ स्वर में कहा,

    “तूम चाहो तो एक से बढ़कर एक चीज़ खुद के लिए खरीद सकती है! फिर तुझे उस जगह जाने की ज़रूरत ही क्या है?”

    वो एक पल रुकी... और फिर लगभग चीखते हुए बोली —

    “यार, मैं तो कहती हूँ उस हरामी आदमी का चेहरा भी वापस से मत देख! उसकी शक्ल तक देखने लायक नहीं है वो।"

    इस वक़्त इशिका का चेहरा गुस्से से लाल था।

    वो अपने दोस्त के लिए परेशान भी थी, और ज़रा भी नहीं चाहती थी कि अनाया दोबारा उस जहरीले माहौल में जाए।

    हालाँकि इशिका जानती थी —

    “अभय सिंह रायज़ादा” जैसा शख़्स...

    जिसे देखकर कोई भी अपनी नज़रों को रोक नहीं सकता,

    वो अपनी हैंडसम पर्सनैलिटी और ताक़तवर रुतबे से हर किसी को लुभा सकता है।

    पर इशिका को आज उसमें सिर्फ ज़हर दिख रहा था।

    वो आदमी, जिसने चार साल तक “अनाया” को तोड़ा, उसे छोटा महसूस कराया, उसकी आत्मा को चुपचाप घुटने पर मजबूर किया...

    उससे ज्यादा नफ़रत इशिका ने किसी से नहीं की थी।

    लेकिन तभी, “अनाया” ने बहुत शांति से, एक धीमी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा।

    उसकी मुस्कान में दर्द भी था... और आज़ादी की सुकून भरी हवा भी।

    "मैं अपना सामान ज़रूर लेकर आऊँगी,"

    अनाया ने धीरे से कहा,

    "और डोंट वरी... अब वो इंसान मुझसे और फायदा नहीं उठा सकता!"

    उसका स्वर धीमा था... पर उसमें जो आत्मविश्वास था, उसने इशिका को शांत कर दिया।

    ये कहकर “अनाया” धीरे-धीरे बंगले के अंदर चली गई।

    सीढ़ियाँ चढ़ती हुई वो अपने पुराने कमरे तक पहुँची,

    जो कभी उसका हुआ करता था।

    कमरे में घुसते ही एक हल्की सी खुशबू, मुलायम पर्दे, और खामोशी ने उसका स्वागत किया।

    ये वही कमरा था जहाँ वो “अनाया मेहरा” हुआ करती थी — आज़ाद, बेखौफ़, और बेमिसाल।

    उसने दरवाज़ा बंद किया और सीधे जाकर अपने बिस्तर पर गिर पड़ी।

    चादर के नर्म अहसास ने उसे जैसे एक माँ की तरह अपनी बाँहों में ले लिया।

    आज पहली बार उसे अपने आसपास का माहौल अपना लगा था।

    हर दीवार, हर कोना उसे कह रहा था — "अब तुम वापस आ गई हो।"

    उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि

    वो सच में आज़ाद हो चुकी है।

    कोई बेड़ियाँ नहीं, कोई डर नहीं,

    न किसी के ताने... न कोई ज़िम्मेदारी, जो उसके आत्मसम्मान को कुचलती हो।

    आज उसके जिस्म से ही नहीं, उसकी रूह से भी वो रिश्ता अलग हो गया था

    जिसने उसे एक “ताकतवर औरत” से “कमज़ोर पत्नी” बना दिया था।

    बिस्तर पर लेटे-लेटे, वो छत की ओर देखने लगी।

    उसकी आँखें धीरे-धीरे भारी होने लगीं...

    अक्सर तकलीफें नींद चुरा लेती हैं,

    लेकिन आज... एक अलग सी थकान ने, उसे एक मीठी नींद दे दी।

    उसने खुद को फैलाकर बिस्तर पर छोड़ा —

    जैसे किसी ने सालों बाद एक पिंजरे से निकलकर पंख फैलाए हों।

    और फिर बिना कोई आवाज़ किए, वो गहरी नींद में खो गई।

    वो नींद... जिसमें न “अभय” था,

    न आँसू, न अपमान, न तन्हाई।

    बस थी... वो खुद।

    वो "अनाया" — जो अब खुद को फिर से पाने की राह पर थी।

  • 5. The games of billionaire wife - Chapter 5

    Words: 1511

    Estimated Reading Time: 10 min

    ।।।।।।हम तलाक शुदा है।।।।।

    अब आगे।

    लेकिन आज... एक अलग सी थकान ने, उसे एक मीठी नींद दे दी।
    उसने खुद को फैलाकर बिस्तर पर छोड़ा

    जैसे किसी ने सालों बाद एक पिंजरे से निकलकर पंख फैलाए हों

    और फिर बिना कोई आवाज़ किए, वो गहरी नींद में खो गई

    वो नींद... जिसमें न “अभय” था,
    न आँसू, न अपमान, न तन्हाई।
    बस थी... वो खुद।
    वो "अनाया" — जो अब खुद को फिर से पाने की राह पर थी।

    नेक्स्ट मॉर्निंग,_



    अगले दिन “अनाया सीधा अपना सामान लेने के लिए रायजादा विला, में चली गई थी। “अनाया विला के बाहर ही खड़ी रही अंदर नहीं गई! “अनाया सीधा अभय, के असिस्टेंट “माधव को कॉल किया और माधव से, साफ-साफ कहा- की उसका एक जरूरी समान उसके, कमरे में रखा हुआ है। तो वो बैग उसे लाकर बाहर दे!



    माधव पहले तो “अनाया की कॉल से काफी हद तक हैरान हो चुका था. और फिर अंदर ही अंदर कूढ़ कर रह गया वो, सोचने लगा- मिसेज रायजादा खुद तो हमेशा के लिए, हमारे “बॉस की जिंदगी से जा रही है! लेकिन जाते-जाते मेरे लिए मुसीबतें बढ़ा रही है।



    क्योंकि जब से यानी डिवोर्स, के बाद से “माधव अभय के साथ था. अभय के चेहरे के बदलते हुए एक्सप्रेशन, और "बिहेवियर देखकर वो काफी हैरान हो रहा था।



    फिलहाल “माधव को पता था. की इस वक़्त उसका “बॉस कहीं गया हुआ है। और सुबह का समय है तो इसलिए, फटाफट से वो "रायजादा विला में पहुंच चुका था'।



    एक नौकर के थ्रू उसने सामान मंगवा लिया था. और “अनाया के आने का इंतजार करने लगा था. बस मन में यही दुआ कर रहा था- उसका “बॉस अभय सिंह रायजादा, वहाँ ना आ जाए वरना उसकी खैर नहीं थी।



    वेल विला मे पहुंच कर “अनाया ने फोन करके नौकर से अपना, समान बहार लाने को कहा! और नोकर के बाहर आने के इंतिज़ार करने लगी!लेकिन ठीक उसी वक़्त “अभय सिंह रायजादा की लग्जरी कार, वहाँ आकर रुकी।



    और “अभय सिंह रायजादा बिना किसी एक्सप्रेशन के उस कार से उतरा, उसकी नज़र सीधा “अनाया के चेहरे पर पड़ी हालांकि “अनाया ने एक रात बाहर गुजारी थी. लेकिन फिर भी “अभय पर इसका कुछ खास फर्क नहीं पड़ा था।



    अनाया को इतनी सुबह विला, के बाहर देखकर उसे लगने लगा- की शायद “अनाया अब वापस आ गई हैं, और उसका ये "डिवोर्स लेने का भुत अब उतर गया है'।



    वेल तभी “अभय सिंह रायजादा ने अनाया, की ओर देखते हुए एरोगेंट वॉइस में कहा_ तमाशा खत्म करो और अंदर चलो।



    अब अनाया को तुरंत इसका, मतलब समझ में आ गया उसने सोचा की- अब उसे इस “आदमी की कोई बात या ऑर्डर नहीं सुनने ज़रूरत नहीं है! फिलहाल अनाया, ने “अभय सिंह की ओर घूरते हुऐ कहा_ मिस्टर रायजादा मुझे लगता है की आपकी, याददाश्त खराब हो चुकी है! क्या आपको याद नहीं, कल ही हमारा “डाइवोर्स हुआ है।



    अब अनाया, की बात सुनकर “अभय ने अपनी भौहें सिकुड़ते हुए पूछा_ ओंह तों मिस “अनाया क्या सच में आप मूझसे दुर होकर, मेरी "जिंदगी से जाना चाहती है'।



    अभी जैसे ही अभय ने “अनाया को घूरते हुऎ सख्त लहजे में ये कहा! तों “अनाया के कुछ बोलने से पहले ही, अचानक तभी एक "धमाके की आवाज़ उन्हे सुनाई दिया।



    तभी “अभय और अनाया ने पीछे मुड़कर देखा की, वहां एक बहुत बड़ा बैनर लगा हुआ था. जिस पर लिखा हुआ था.



    congrtulation for your divorce Anaya



    अनाया, तुम्हें “डाइवोर्स की बधाई हों!



    बैनर के नीचे कुछ अलग तरह के, और word थे. जिन पर अलग-अलग शब्द लिखे हुऎ थे।



    जैसे "हैप्पी डिवोर्स, बेस्ट ऑफ लक अनाया।



    ये देखकर “अनाया की आँखें हैरत से बड़ी हो गई थी। सब कुछ इतनी अचानक से हुआ की अनाया, पुरी तरहां से शोक्ड हो गई थी। अभी इससे पहले की वो, कुछ सोचती समझ पाती! तभी अचानक उसे अपने सामने, गुलाबों का एक बहुत बड़ा बुके देखा?



    तब अनाया ने उसकी ओर देखने के लिए, अपना सर उठाया तो “अनाया के सामने घुटनों के बल एक मॉडल जैसा, खूूबसूरत हैंडसम “आदमी घुटनों के बल बैठा हुआ था।



    और उसने “अनाया की ओर प्यार भरी नजरों से देखकर कहा_ क्या मेरा अभी "कोई चांस है?



    अब जैसे ही उस आदमी, ने ये कहा “अनाया पूरी तरह से शॉकड थी. क्योंकि वो हैंडसम और मॉडल देखने वाला “आदमी अनाया के सामने घुटनों के बल बैठा हुआ था।



    और वो उम्मीद भरी नजरों से देखकर बोला_ मैं मरते दम तक तुम्हारा, साथ नहीं छोडूंगा! मैं कसम खाता हूं! जब तक मेरे शरीर में जान है! मेरे दिल पर सिर्फ, तुम्हारा नाम ही लिखा रहेगा।



    अभी जैसे उस मॉडल टाइप “आदमी ने घुटनों के बल बैठकर “अनाया के सामने ये सब शब्द कहें, तों अब “अनाया तो बेहोश होने के लिए तैयार थी. साथ ही साथ उसे, अब थोड़ी-थोड़ी हंसी भी आ रही थी।



    वहीं अभय सिंह रायजादा, ने जैसे ही ये सब कुछ देखा और सुना, उसका चेहरा पुरी तरह से डार्क हो गया था। क्योंकी जिस तरह से वो “आदमी कह रहा था. की वो मरते दम तक “अनाया का साथ नहीं छोड़ेगा! तो “अभय को लगा जरुर वो आदमी, उसका मजाक उड़ा रहा है। और तभी अभय ने अपनी भौंहे सिकुड़ ली थी और वह सोचने लगा था कि शायद अनाया जानबूझकर यह इस तरह का नाटक कर रही हैं।



    और तभी “अभय अनाया, की ओर गहरी नजरों से घूरता हुआ सीधा अपने विला, के अंदर चला गया था'। क्योंकी कहीं ना कहीं “अभय को यही लग रहा था. जरुर इस तरह की बातें, सुनाकर “अनाया उसे अपने सामने झुकाना चहती है।



    वो ये साबित करना चाहती है कि उसके लिए लड़कों की की कमी नहीं है, जरूर इस लड़के को कुछ पैसे देकर वो इस तरह का घटिया नाटक करा रही है ,,



    फिलहाल अनाया हैरानी से “अभय को जाते हुए देख रही थी। इसलिए वो अंदर चला गया।



    वेल उसके जाने के बाद “अनाया ने घूरकर उस मॉडल टाइप “आदमी की ओर देखा,



    और उसे बिना कुछ कहे वो, भी अब "रायजादा विला के अंदर चली गई, और जैसे ही वह वहाँ गई!



    माधव की नजर अनाया, पर पड़ी और साथ ही साथ उसने अपने बॉस, के एक्सप्रेशन को नोटिस किया! माधव थोड़ा हैरान हो गया की वो, अब इन दोनों के बीच क्या बोले?



    तभी माधव ने अपने बॉस, के पीछे “अनाया को आता हुआ देखकर “माधव बोला_ ओ मिसेज़ रायजादा, आप यहां पर आइए ना प्लीज़ मैं, अभी आपका समान "उसने इतना ही बोला था. की?



    अब “अभय के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गई, क्योंकि उसे यही लगा था- की जरूर अब “अनाया उसके पास वापस आएगी, और जो कुछ भी उसने "ड्रामा किया उसके लिए उससे माफी मांगेगी। और जो लड़का बाहर एक्टिंग करने के लिए लेकर आई है उसके लिए भी उसे sorry बोलेगी, और उससे जो वो डाइवोर्स लेने का और साथ ही साथ एक भी पैसे न लेने का वो ड्रामा कर रही है वो भी खत्म कर देगी।



    यही सोच कर अभय के चेहरे पर एक घमंड भरी मुस्कान थी , साथ ही साथ वो सोच रहा था



    अब जब वो, बेकार की एक्टिंग कर रही थी. वो ज्यादा नहीं करेंगी. और साथ ही साथ उसने सोचा- कि इस बार वो “अनाया को अच्छा खासा झाड़ देगा! कि उसे इस तरह की हरक़त दुबारा नहीं करना चाहिए, वरना वो हमेशा सिर्फ और सिर्फ उससे नफ़रत करेगा।



    और सचमुच तलाक देकर यहां से बाहर निकाल कर फेंक देगा।



    वेल अभय ने खुश होकर मन में “अनाया के खरी खोटी सुनाने का प्लेन बना लिया था। उसे और बेइज्जत करने के बाद, अपनी "बात मनवाने का प्लेन भी बना लिया था!



    वेल तभी अभय, रुका और मुड़कर वो “अनाया को झाड़ना चाहता था. लेकिन तभी “अनाया की आवाज़ उसके कानों में सुनाई दी!



    उसने सॉफ्ट टोन में “माधव को थैंक यू बोला! और उसके पास से, अपना छोटा सा एक बैग ले लिया। और सीधा “अभय के पास से गुज़रने लगी और फिर “अनाया जाते-जाते थोड़ा सा आगे गई, कुछ सोचते हुए रुकी।



    और पलटकर फिर “माधव की ओर देखकर बोली_ एक और बात मिस्टर “माधव तुम अपने बाॅस मिस्टर रायजादा, से कह देना की मैं यहां सिर्फ और सिर्फ अपना, बैग लेने के लिए वापस आयी थी।



    जहां तक मेरे कमरे में बाकी की चीजों का सवाल है! उनका चाहे आप लोग कुछ भी सकते हैं! और यही बात आप मिस्टर रायजादा को, भी कह देना की मैं, अब उन्हे कभी भी परेशान नहीं करूँगी।



    क्योंकि अब हम “तलाकशुदा है।



    और एक और बात मैंने उन्हें, एक कार्ड भेजा है। और जब उनकी अगली "शादी होंगी तों मेरी तरफ से उन्हें, ये कार्ड को वो अपनी शादी का तोहफ़ा समझे, इतना बोलकर- उसने जल्दी ही एक कार्ड “माधव को थमा दिया था।



    माधव अब चोर नजरो से “अभय की और देखने लगा! इस वक़्त अभय, के चहरे का रंग उड़ा हुआ था! माधव ने “अनाया को एक नज़र देखने के बाद, कांपते हाथो से वो कार्ड जो “अनाया ने दिया था. उसे “अभय के हाथो मे सोंप दिया।



    और “अभय ने अब जैसे ही उस कार्ड को देखा, तो वो पूरी तरह से चौंक गया था।✍🏻



    “Dosto, हौसला बढ़ाने के लिये 💞 Please Like👍🏻 Shere Comments💬 जरूर करें ✍🏻

  • 6. billionaire Boss wifey - Chapter 6

    Words: 830

    Estimated Reading Time: 5 min

    यह खाने की वजह से ही तो है! यह हमेशा साधारण खाना खाता है, जो इसे उल्टी-सीधी बीमारियों से, हर चीज़ से बचाता है। देखो, तभी तो इतना स्ट्राँग है।" अब दादी के बाद, अरमान ने उन्हें हल्का सा एक लुक दिया। अरमान ठाकुर को आज तक किसी ने हँसते हुए नहीं देखा था। उसके चेहरे पर कभी कोई हँसी नहीं आई। बहुत ही कम उम्र से ही उसने अनुशासन में रहना सीख लिया था। इतना ही नहीं, हँसी-मज़ाक तक करना क्या होता है, यह सब उसे कुछ नहीं पता था। वह तो सिर्फ़ अपनी दुनिया में, अपने अकेलेपन में, पूरी तरह से बिज़ी हो गया था। वेल, अब खाना खाने के बाद, सरस्वती जी अपने बेटे को निहार कर देखती रहीं। पूरे दो साल के बाद वह अपने बेटे को देख रही थीं। साथ-साथ, अपनी बेटी के हाथ में लगी चोट की भी उन्हें चिंता हो रही थी, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थीं कि किस तरह से अपने बेटे के ये दो सेल गुज़रे, यह चोटें कैसे लगीं, यह सारी बातें वह अपने बेटे से पूछे।

    वहीं, कुसुम जी सरस्वती जी को इस तरह से अपने बेटे को देखते हुए देखकर, थोड़ा कड़क आवाज़ में बोलीं, "यह क्या बहू? जब से यह बच्चा आया है, तब से तुम उसे घूर रही हो? क्या तुम नज़र लगाओगी क्या बच्चे को? हाँ, अभी आया है, जी भरकर देख लेना। थोड़ा थक गया होगा, उसे आराम वगैरा करने दो, भाई! हाँ, यह ऐसे उसे घूर क्यों रही हो?" जैसे ही कुसुम जी ने थोड़ा कड़वापन से यह बात बोली, सरस्वती जी की तो हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वहीं, राधिका का दिल भी कटकर रह गया था, और वह अपने दादाजी की ओर देखने लगी। दादाजी ने भी अपनी एक नज़र अपनी बहू और पोती की ओर देखा, उसके बाद चुपचाप उबले हुए खाने पर कंसंट्रेट करने लगे। वहीं, कुसुम जी की बात सुनकर सरस्वती जी के लिए वहाँ रहना मुश्किल हो गया था, इसलिए वह वहाँ से खड़ी हुईं और सीधा अपने कमरे में चली गईं, क्योंकि वहाँ सबके सामने वह अपने आँसू नहीं बहा सकती थीं। कमरे में जाकर वह अपना दिल हल्का करने लगीं। वहीं, राधिका के लिए भी वहाँ रहना मुश्किल हो गया था। वैसे भी उसे वह खाना खाया ही नहीं जा रहा था, इसीलिए वह अपनी माँ को सांत्वना देने के लिए ठीक उनके पीछे-पीछे उनके कमरे में चली गई। वहीं, कुसुम जी दोनों माँ-बेटी के चेहरे देखकर बोल उठीं, "देखा आपने? हो गया ना दोनों माँ-बेटियों का ड्रामा! सुनो, बेटे को आए 2 मिनट नहीं हुए और देखो कैसे उसके सामने ड्रामा करके दिखा रही हैं! खाना ही खाकर नहीं गईं क्या? मैं ही बुरी हूँ, उसे घर में!" यह बोलकर दादी माँ, यानी कुसुम जी ने अपना मुँह बनाया। "मैं ही बुरी हूँ," हर बार यह लाइन बोलना जैसे उनकी आदत हो चुकी थी। वह वहीँ थीं।

    अब अरमान अपनी मां के पीछे जाना चाहता था लेकिन जल्दी ही अरमान का फ़ोन बजने लगा। फ़ोन पर कोई और नहीं, बल्कि अरमान के ही कलीग थे, जो अरमान के गोली लगने पर उसके ठीक से हालचाल नहीं ले पाए थे। तो जब उन्हें पता चला कि अरमान ऑलरेडी छुट्टी पर गया हुआ है, तो जल्दी ही अयान ने उसे फ़ोन किया था। अयान का फ़ोन आने पर, अरमान सीधा अपने कमरे के अंदर चला गया। कमरे में जाकर उसने अपने कमरे की खिड़की खोली, थोड़ी देर ताज़ी हवा फील की और फ़ोन उठाकर अपने कानों पर लगा लिया। दूसरी तरफ़ से अयान की शरारती, भारी आवाज़ थी। "हेलो ब्रो! फ़ाइनली! कम से कम गोली के बहाने से ही कुछ दिन तो आराम करोगे! और मैं तो कहता हूँ, अभी तुम पूरे 28 साल के हो गए हो तुम! अभी तो अपने लिए कोई लड़की देख लो और शादी कर लो! कब तक इस तरह से शहर भर की सभी लड़कियों को अपने पीछे पागल बनाए रखोगे?" तो अभी जैसे ही अयान ने थोड़ा मज़ाकिया लहज़े में यह कहा, अरमान को उसकी बातें बोरिंग लगने लगीं और वह बोला, "कोई काम की बात हो तो बताओ; यह फ़ालतू की बातें कुछ मेरे साथ मत करो।" जैसे ही अरमान ने बिना किसी इमोशन के यह बोला, अयान अपना सर पकड़कर रह गया और बोला, "यार, इस उम्र में लोग लड़कियाँ, गर्लफ्रेंड्स, वगैरह इन सब की बातें करते हैं, लेकिन तू है कि तुझे यह सारी बातें ही फ़ालतू और बकवास लगती हैं। वेल, फ़िलहाल मिशन से रिलेटेड मेरे पास कोई नई इंफ़ॉर्मेशन नहीं है, और वैसे भी, चालीस दिन की छुट्टी पर गया है, तो मिशन भूल जा और आराम से छुट्टियाँ एन्जॉय कर! और मैं तो कहता हूँ, एक लड़की पटा ही ले इस बार! हाँ, मैं जानता हूँ कि तुझे इस बात का डर है कि अगर तू किसी एक लड़की से शादी कर ले, या तुझे कोई एक पसंद आ गई, तो बाकी की, पूरे शहर भर की लड़कियों का क्या होगा? सबका दिल टूट जाएगा। लेकिन तू फ़िक्र मत कर, तेरा भाई यार है ना, वह सबको संभाल लेगा।"

  • 7. billionaire Boss wifey - Chapter 7

    Words: 1232

    Estimated Reading Time: 8 min

    तेरा भाई यार है ना, वह सबको संभाल लेगा।"

    वेल अयान से बात करने के बाद अरमान सीधा अंदर गया था,


    वही दूसरी ओर सरस्वती जी उस वक्त काफ़ी ज़्यादा रो रही थीं और बोल रही थीं, "देखा राधिका, तुम्हारा भाई कितने दिनों के बाद घर आया है, मैं जी भरकर अपने बेटे को देख भी नहीं सकती हूँ! देखो तो दादी क्या बोलती हैं!"

    अभी अपनी माँ की बात सुनकर राधिका तुरंत बोली, "लेकिन माँ, भैया ने भी तो कुछ नहीं बोला। भैया भी तो आपसे 6 महीने बाद मिले हैं। जितना प्यार आप भैया को करती हैं, भैया ने तो कभी इतना प्यार नहीं दिखाया। तो मुझे लगता है, माँ, आपको इतनी ज़्यादा फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"

    जैसे ही राधिका ने यह बोला, सरस्वती जी तुरंत बोल पड़ीं, "अरे वो तो बच्चा है, उसे क्या पता! लेकिन तेरी दादी तो बड़ी हो गई है, समझदार है। आखिरकार वो कब समझेगी?"

    तब राधिका बोली, "माँ, प्लीज़, पहले तो आप यह रोना बंद कीजिए। मुझे आपकी आँखों में एक भी आँसू पसंद नहीं है। और हाँ, अभी भैया आ गए हैं, और भैया के आने के चक्कर में अपना कोई काम नहीं कर पाई हो। और कल से मेरे कॉलेज स्टार्ट हो रहे हैं, तो मैं जाकर अपना बैगपैक तैयार करती हूँ और कॉलेज के लिए निकलती हूँ, ठीक है? और हाँ, एक बात तो मैं आपको बताना ही भूल गई। आपको याद है मेरी फ़्रेंड, राशमी?"

    तब सरस्वती जी बोलीं, "हाँ-हाँ, जानती हूँ रशमी को। कितनी बार तो आई है तेरे साथ घर पर।"

    "हाँ, एक्चुअली उसके अलावा कोई दूर के रिश्तेदार हैं, जो इस शहर में नई हैं, तो रशमी का घर तो छोटा है, उनके लिए ही कम पड़ता है। तो कुछ दिनों के लिए रशमी ने रिक्वेस्ट की है कि मैं उनकी मेहमान को अपने घर पर रखूँ। और वह एक पेइंग गेस्ट की तरह हमारे यहाँ रहेगी। प्लीज़ माँ, इतना बड़ा महल जैसा घर है, हम एक कमरा तो उसे दे ही सकते हैं ना?"

    अभी जैसे ही राधिका ने यह बात बोली, सरस्वती जी थोड़ा सा चौंक गईं और बोलीं, "लेकिन बेटा, भले ही घर बड़ा है और कमरे भी यहाँ पर काफ़ी सारे हैं, लेकिन किसी अनजान को इस तरह से रखना मुझे नहीं लगता कि बिलकुल भी ठीक होगा। और तेरे पापा क्या कहेंगे?"

    तब राधिका बोली, "माँ, मैं पापा से पहले ही बात कर चुकी हूँ, और पापा को कोई प्रॉब्लम नहीं है। और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, वो कोई ऐसी-वैसी मेहमान नहीं है, वो मेरी ही कॉलेज की प्रोफ़ेसर है। कुछ महीनों के लिए ही हमारे पास रुकेगी।"

    अभी जैसे ही राधिका ने यह बोला, सरस्वती जी को भी कोई प्रॉब्लम नहीं थी, और वह मान गईं। लेकिन फिर बोलीं, "बेटा, अपनी दादी को कैसे मनाओगी?"

    तब राधिका मुस्कुराकर बोली, "दादी को तो आप मनाओगी ना माँ?"

    सरस्वती जी चौंककर बोलीं, "मैं? मैं कैसे?"

    तब राधिका मुस्कुराकर बोली, "आइए मेरे साथ!" यह बोलकर राधिका जल्दी ही अपनी माँ का हाथ थामकर बाहर चली गई।

    हॉल में, उस वक़्त, खाना खाने के बाद, कुसुम जी अपने पति के साथ बैठकर चाय के मज़े ले रही थीं। तब राधिका मुँह फुलाकर दादा जी के पास बैठते हुए बोली, "दादा जी, देखा आपने? माँ मेरी बात नहीं मान रही है! मैं कह रही हूँ कि इस घर के सारे फ़ैसले माँ ही लेती हैं, और यह मेरी इतनी छोटी-सी बात नहीं मान रही हैं! और मैंने अपनी फ़्रेंड को बुला भी दिया है।"

    अभी दादा जी चौंक गए और बोले, "क्या बात है बेटा? ऐसी कौन सी बात है जो तेरी माँ नहीं मान रही है?"

    वहीं, कुसुम जी के तो माथे पर बल पड़ गए और वह बोल पड़ीं, "अच्छा! तो मैं घर की मालकिन कब से बन गई और कब से वह घर के फ़ैसले लेने लगी है? हाँ, वो भी हमारे रहते हुए! बता, तुझे क्या चाहिए? क्या बात नहीं मान रही है तेरी माँ?" तब राधिका ने अपनी मां की ओर आंख मारी और जल्दी ही दादी के सामने खुशी का जिक्र कर दिया और अपनी बहू को निचा दिखाने के चक्कर में दादी ने खुशी को वहां रहने की इजाजत दे दी थी, सो इस तरह से खुशी ठाकुर मेंशन में रहने के लिए आ गई थी।
    और पहली मुलाकात में ही वो अरमान ठाकुर से टकरा गई थी वो भी उसी के कमरे के बेड पर।

    फिलहाल, खुशी जो कि अपने कमरे में थी, उसकी नींद भी उड़ चुकी थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एकदम से उसकी ज़िंदगी में अरमान ठाकुर जैसा हैंडसम सोल्जर आ जाएगा। कितनी ही देर तक वह उसकी डैशिंग पर्सनालिटी में पूरी तरह से खो गई थी। खुशी के चेहरे पर मुस्कान भी नाम मात्र की ही आया करती थी, जल्दी से वह मुस्कुरा भी नहीं पाती थी। फिलहाल, राधिका उसके पास आई और उससे माफ़ी माँगकर बोली, "मुझे पता है कि आप भाई के बिहेवियर से नाराज़ हो, लेकिन प्लीज़, तुम मुझे माफ़ कर देना। मुझे नहीं पता था कि आप गलती से भाई के कमरे में चली जाओगी।"

    तब खुशी ने राधिका की ओर एक नज़र देखा और बोली, "ठीक है, इट्स ओके।" यह बोलकर एक बार फिर उसने खुद को चादर में कवर करके सोने की कोशिश की। वहीं, दूसरी ओर, अरमान बेड पर तो लेट गया था, लेकिन बार-बार जिस तरह से खुशी ने उसे कसकर गले से लगाया था, यह बात उसके दिमाग से जा ही नहीं रही थी, क्योंकि पहली बार कोई लड़की उसके इतने ज़्यादा करीब आई थी। तो उसका दिल पूरी तरह से बेचैन हो उठा था। वहीं, खुशी की खुशबू बेड पर से भी आ रही थी। झिझक में अरमान खड़ा हुआ और उसने बेड पर से चादर उठाकर खींच ली। जल्दी ही अपने बेडशीट बदलकर वह लेट गया। अभी भी खुशी की खुशबू वह अपने कमरे में महसूस कर सकता था, लेकिन ज़्यादा ना सोचकर जल्दी ही उसने अपनी कुछ मेडिसिन्स लीं और एक गहरी नींद में सो गया।

    अगली सुबह, सब लोगों ने बड़े ही प्यार और दुलार से अरमान को देखा। अभी तक किसी को यह नहीं पता था कि अरमान के हाथ में गोली लगी है, क्योंकि अरमान नहीं चाहता था कि उसके हाथ में गोली लगी है, इस बारे में अगर किसी को भी पता चल गया, तो उसका परिवार बहुत ज़्यादा दुखी हो जाएगा, और वह अपने परिवार को दुखी नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने यह बात किसी को नहीं बताई। केवल मामूली सा जख्म ही बताया था फिलहाल, अरमान फ़्रेश होने के बाद, अच्छे से खुद को तैयार करके, सीधा ब्रेकफ़ास्ट करने के लिए नीचे डाइनिंग टेबल पर आ गया, और उसकी माँ, सरस्वती जी ने उसकी पसंद का सारा नाश्ता बनाया था। नाश्ता बनाकर अरमान को देखकर बोलीं, "मॉम, मैं आपके हाथ के बने हुए खाने को बहुत ज़्यादा मिस किया हूँ।"

    तब कुसुम जी, उसकी दादी बोलीं, "हाँ-हाँ, मेरे बच्चे! इसीलिए तो अब हम तुम्हें जल्दी से यहाँ से जाने नहीं देंगे।"

    माँ सरस्वती जी ने भी आगे बढ़कर अरमान के माथे को चूमा और बोलीं, "मैंने भी सोच लिया है, अब तो मैं तेरी शादी करने के बाद ही तुझे यहाँ से भेजूँगी! देखना, जब तेरे हाथों में हथकड़ियाँ लग जाएँगी ना, शादी की, फिर तू जल्दी-जल्दी यहाँ से कहीं नहीं जाएगा।"

    कहीं ना कहीं बोलते हुए सरस्वती जी की आँखें भर आईं। उसी वक़्त, ठीक पीछे, जब सरस्वती जी अरमान की शादी की बात कर रही थीं, खुशी और राधिका ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर आ रही थी।

  • 8. billionaire Boss wifey - Chapter 8

    Words: 1028

    Estimated Reading Time: 7 min

    अरमान की शादी की बात सुनकर, न जाने क्यों, लेकिन खुशी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, और उसके माथे पर पूरी तरह से बल पड़ गए थे। उसका मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था। फिलहाल, वह बिना नाश्ता किए ही वहाँ से बाहर जाने लगी, लेकिन राधिका ने उसका हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग टेबल पर खींच लिया और बोली, "इस तरह से कहाँ जा रही है? आप नाश्ता करके जाइए, प्लीज़।" यह बोलकर, उसने अरमान के ठीक बराबर वाली सीट पर खुशी को बिठा दिया और खुद वहीं बैठकर नाश्ता करने लगी। अब जैसे ही अरमान ने एक नज़र भरकर खुशी को देखा, तो कल रात जो कुछ भी हुआ था, उसकी आँखों के सामने आ गया। वहीं, खुशी अब बिना किसी इमोशन्स के, बिना किसी भाव के, अरमान की ओर देखने लगी। खुशी का ध्यान इस वक़्त खाने में कम, सिर्फ़ और सिर्फ़ अरमान पर बहुत ज़्यादा था। कहीं ना कहीं यह बात वहाँ डाइनिंग टेबल पर मौजूद सभी लोगों ने महसूस कर ली थी। सभी लोगों को यह बात कहीं ज़्यादा अजीब भी लग रही थी कि खुशी ने जिस तरह से वहाँ पर बिहेव किया था, किसी को ज़्यादा इम्पॉर्टेंस नहीं दिया था, लेकिन अरमान को यूँ देखना कहीं ना कहीं सब लोगों को हैरान कर रहा था। वहीं, अरमान अब थोड़ा सा शर्मिंदा सा हो गया था कि आखिरकार इस लड़की को क्या हो गया है? इस तरह से सब लोगों के सामने मुझे घूर क्यों रही है? फिलहाल, यह सोचते हुए अरमान को खांसी आने लगी। जल्दी ही सरस्वती जी आगे बढ़कर पानी का गिलास अरमान की तरफ़ बढ़ाने लगीं, लेकिन उससे पहले खुशी ने पानी का गिलास अरमान की ओर बढ़ा दिया था। अब अरमान को समझ में नहीं आया कि वह पानी का गिलास किसके हाथों से ले—खुशी के हाथों से ले या अपनी माँ के हाथों से ले? फिलहाल, उसने अपनी माँ, सरस्वती जी के हाथों से पानी का गिलास लिया और एक घूँट पानी पीने के बाद, "थैंक यू" बोलकर अपनी माँ की ओर देखते हुए उठ खड़ा हुआ। टिशू पेपर से अपने होठों को पोंछकर बोला, "मॉम, बस मेरा हो गया है, मैं चलता हूँ। मुझे अपने कुछ दोस्तों से मिलने के लिए जाना है। मैं शाम तक आ जाऊँगा।"

    जैसे ही अरमान ने यह बोला, सरस्वती जी पूरी तरह से चौंकते हुए बोलीं, "लेकिन बेटा! आज का दिन तो कम से कम हमारे साथ बिताओ! बेटा, कल ही तो तू आया है और आज ही अपने दोस्तों से मिलने के लिए चल दिया?"

    तभी उसके पिताजी, , तुरंत अपनी पत्नी को टोकते हुए बोले, "अरे भाग्यवती! क्या कर रही हो? बेटा इतने दिनों के बाद आया है, तो जाने दो उसे। अपने दोस्तों से मिलने दो, थोड़ी मौज-मस्ती कर ले, बातें करने दो। हम हैं ना, हम बिताएँगे तुम्हारे साथ टाइम।"

    जैसे ही राघव जी ने थोड़ा सा मज़ाक के अंदाज़ में यह कहा, सरस्वती जी हल्की सी मुस्कान के साथ मान गईं। वहीं, अरमान के उठते ही, तुरंत खुशी भी उठ खड़ी हुई और राधिका की ओर देखकर बोली, "मैं भी चलती हूँ, मुझे लेट हो रहा है।"

    अब राधिका तुरंत खुशी के पीछे दौड़ते हुए बाहर की ओर निकल गई और बोली, "यह क्या खुशी दीदी? आपको हमेशा इतनी जल्दी क्यों लगी रहती है? अरे आपको पता है, आप मेरे ही कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं, वह भी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक महीने के लिए, क्योंकि जो हमारे पुराने प्रोफ़ेसर थे, उन्हें कुछ इमरजेंसी आ गई थी, उसी की जगह आपको रखा गया है। यह बात मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, और आप जानती हैं, मैं इंग्लिश में बहुत ज़्यादा कमज़ोर हूँ, इसीलिए मैंने आपको अपने घर पर रखने की ज़िद की थी।"

    यह सुनकर खुशी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "डोंट वरी, आई विल टेक केयर। मैं सब संभाल लूँगी।" यह बोलकर अब खुशी वहाँ से जाने लगी थी। खुशी किसी न किसी ड्राइवर के थ्रू ही वहाँ से जाना चाहती थी, लेकिन राधिका तुरंत टोकते हुए बोली, "खुशी दीदी, मैं भी तो आपके साथ चल रही हूँ ना! प्लीज़, हम दोनों साथ चलते हैं।"

    और जैसे ही वे सड़क पर आए, तो उन्होंने देखा कि अरमान अपनी गाड़ी स्टार्ट कर रहा था अपने दोस्तों के पास जाने के लिए। तभी राधिका तुरंत दौड़ते हुए अपने भाई के पास गई और बोली, "भाई-भाई! अगर आप फ़्री हैं, तो प्लीज़, क्या आप हम लोगों को छोड़ देंगे? हम लोग भी उसी ओर जा रहे हैं।"

    यह सुनकर, कहीं ना कहीं खुशी तो काफ़ी ज़्यादा खुश हो गई थी, क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी अरमान के साथ ही जाना चाहती थी। वहीं, राधिका यह बोलने के बाद सीधा गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर गाड़ी के पीछे वाली सीट पर बैठ गई थी, और जब खुशी गाड़ी में नहीं बैठी, तब राधिका अंदर से ही चिल्लाकर बोली, "अरे खुशी दीदी! आप बाहर क्या कर रही हैं? प्लीज़, जल्दी से बैठ जाइए ना!" यह बोलकर अब अंदर से बैठे-बैठे ही उसने फ़्रंट सीट का दरवाज़ा खोल दिया था। तब खुशी ना चाहते हुए भी सीधा गाड़ी में जाकर बैठ गई थी। खुशी अरमान को पहली नज़र में ही पसंद करने लगी थी, लेकिन उसे उसे साफ़-साफ़ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। खुशी राधिका के कहने पर अरमान की गाड़ी की फ़्रंट सीट पर जाकर बैठ गई थी, और उसकी नज़रें अभी भी ड्राइव करते हुए अरमान पर जा रही थीं। वहीं, अरमान अब थोड़ा-थोड़ा इरिटेट होने लगा था, क्योंकि जिस तरह से खुशी उसकी ओर देख रही थी, वह गाड़ी पर पूरी तरह से फ़ोकस भी नहीं कर पा रहा था। राधिका को किसी बात से कोई मतलब नहीं था; वह अपने कानों में ईयरफ़ोन लगाकर म्यूज़िक एन्जॉय करने लगी थी। वहीं, खुशी की गहरी नज़रें पूरी तरह से अरमान पर पड़ीं; कभी वह उसकी बॉडी को देख रही थी, जो कि उसकी शर्ट में से ही उसके परफ़ेक्ट शेप की गवाही दे रही थी। वह अपने आप ही अरमान को देखते हुए, न जाने कब खुशी के चेहरे पर एक हल्के से मुस्कान आ गए। अब अरमान, जो कि उस वक़्त नज़रों से खुशी को देख रहा था, उसे अपनी ओर इस तरह से देखते हुए देखकर पूरी तरह से चौंक गया, और उसने अचानक से गाड़ी के ब्रेक मार दिए।

  • 9. billionaire Boss wifey - Chapter 9

    Words: 1

    Estimated Reading Time: 1 min

    और जैसे ही दादी कमरे से बाहर गईं, उन्होंने कबीर को छोड़ दिया। अब अहान और जया दोनों गहरी साँस लेने लगे। वहीं, कबीर की हालत उन दोनों के चिपकने से काफी ज़्यादा खराब हो गई थी। तब जल्दी ही सोया की नज़र कबीर पर पड़ी। उसने देखा कि कबीर अपनी साँसें खड़ी-खड़ी ले रहा है। तब जल्दी से सोया आगे बढ़ा और एक गिलास पानी, जो दादी के कमरे में रखा हुआ था, कबीर की ओर बढ़ा दिया। उसे शांत रहने के लिए कहने लगा। तभी, अब उसे इस सिचुएशन में थोड़ा-सा अपने आप को बेवकूफ़ महसूस कर रहा था। वह सोच रहा था कि वह बेकार में खाना खाकर कबीर भाई के ऊपर चढ़ गया और उल्टा उन्हें और परेशानी हो गई। तो इस सोच के साथ वह जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया। वहीं, अब जया रुक गई, क्योंकि कबीर पूरी तरह से हाफ़ रहा था। अहान ने अपना पूरा भार कबीर के ऊपर डाल दिया था, तो इसीलिए वह उसकी पीठ को सहलाने लगी थी। वहीं, वहाँ अब जया को इतने करीब पाकर कबीर काफी ज़्यादा हल्का-फुल्का सा महसूस कर रहा था, और छोटी सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई थी। वहीं दूसरी ओर, दादी जैसे ही बाहर गईं, उन्हें अपने आप ही एहसास हो गया कि इस वक्त अरमान मिनी-हॉस्पिटल में है। और जल्दी से आयशा, जो डॉक्टरों को देख रही थी जो अरमान का ट्रीटमेंट कर रहे थे, के पास गईं। क्योंकि आयशा को कहीं ना कहीं इस बात का डर था कि जंगल में जो कुछ भी हुआ, क्योंकि अरमान ने वह सारी चीज़ अपनी आँखों के सामने देखी थीं, और उसके तुरंत बाद ही उसे अटैक हुआ था। तो कहीं ना कहीं ऐसा सोच रही थीं कि सबसे पहले अरमान से मिलना होगा। अरमान को कितनी चीज़ें याद हैं, कितनी नहीं हैं, और वह मेरे बारे में कितना जान गया है, ये सारी बातें उसे सबसे पहले पता करनी होंगी। कहीं ऐसा ना हो कि अरमान उसका भेद सबके सामने खोल दे। कहीं ना कहीं आयशा को इसी बात का डर था, इसलिए वह इस वक्त अरमान के मिनी-हॉस्पिटल में मौजूद थीं। वहीं, डॉक्टर हैरानी से आयशा को देख रहे थे, क्योंकि वह वहाँ खड़ी होकर अरमान का इलाज बेपरवाही से देख रही थी। अरमान को काफी गहरे ज़ख्म लगे थे, उसके सर पर भी काफी गहरी चोट लगी थी। लेकिन आयशा बिना किसी इमोशन के वहाँ खड़ी होकर उसे देख रही थीं। क्योंकि भले ही अरमान वही इंसान है जिसके लिए आयशा इस पृथ्वी पर आई है, लेकिन अभी तक आयशा के दिल में अरमान के लिए ऐसा कोई एहसास पैदा नहीं हुआ था। अब डॉक्टर भी हिम्मत नहीं कर सके कि आयशा को वहाँ से बाहर जाने के लिए बोल दें। वह तो बस आयशा को वहाँ देखकर हैरान हो रहे थे और आपस में इशारे कर रहे थे। फिलहाल, दादी जैसे ही अचानक से वहाँ पहुँचीं, उन्होंने तुरंत जाकर आयशा को गले से लगा लिया और बोलीं, "मेरी शहजादी, तुम आ गई हो! शहजादी, तुम नहीं जानती मेरी आँखें कितनी तरस रही थीं तुम्हें देखने के लिए। सचमुच, शहजादी, तुम आ गई हो! तुमने मुझे माफ़ कर दिया? हाँ, बोलो ना, जवाब दो ना!" अब जैसे ही वहाँ जाकर दादी ने इस तरह की बातें कीं, डॉक्टर सभी हैरान हो गए थे। आयशा खुद भी हैरान हो गई थी। आखिरकार ये दादी कौन हैं और उसे बार-बार शहजादी क्यों बुलाती हैं? क्या मसला है इनका? लेकिन तभी जैसे दादी की नज़र घायल अरमान पर पड़ी, दादी पूरी तरह से शक में आ गईं और तुरंत अरमान के पास जाकर उसका हाथ थामा, "मेरे बेटे को क्या हुआ? क्या हुआ? ये गहरी चोट कैसे लग गई? शहजादी, अगर आप उसकी माँ के साथी हो, तो उसे ये चोट कैसे लग सकती है? क्यों नहीं बचाया आपने उसे? बताइए, जवाब दीजिए! आपकी शक्तियाँ बोलिए!" जैसे ही वहाँ खड़ी होकर दादी ने अचानक से आयशा की शक्तियों के बारे में बात की, अब तो आयशा का दिल और दिमाग पूरी तरह से सन्न हो चुका था। उसे तो समझ ही नहीं आया कि आखिरकार दादी कहना क्या चाह रही हैं। किस तरह से बात कर रही हैं? दादी को कैसे पता चला कि उसके पास शक्तियाँ हैं? पूरी तरह से कन्फ्यूज़न और हैरानी से दादी की ओर देखने लगी थी। वहीं, डॉक्टर दादी को इस तरह की बातें सुनकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उन्हें लगने लगा कि दादी तो इतने सालों से बीमार हैं, इसीलिए शायद उलटी-सीधी बातें करती रहती हैं। तो किसी ने भी दादी की बातों को सीरियसली नहीं लिया। तभी एक डॉक्टर ने नर्स का हाथ थामकर बोला, "मैडम सूर्यवंशी, प्लीज़ आप घबराइए मत, परेशान मत होइए। मिस्टर सूर्यवंशी को कुछ नहीं होगा, बहुत जल्दी ठीक हो जाएँगे। ऐसी दादी, प्लीज़ आप बाहर जाकर आराम कीजिए।" और तभी वह नर्स आयशा की ओर देखकर बोली, "मैडम, प्लीज़ आप दादी को बाहर लेकर चली जाइए। ऐसी हालत में देखकर उनकी तबीयत और ज़्यादा खराब हो जाएगी। वैसे भी इनका बूढ़ा शरीर इस तरह की बीमारी को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। आप सुन रही हैं ना मेरी बात?" कहीं ना कहीं नर्स ये कहते हुए घबरा रही थी, क्योंकि आज सब बड़ी हिम्मत से बातें कर रहे थे। लेकिन क्योंकि आयशा सूर्यवंशी मेंशन में थी, तो इसीलिए ऐसा सुर में बोलने के बारे में, या फिर आयशा से कुछ भी महसूस करने के बारे में डॉक्टर कुछ नहीं बोल सकते थे। किसी भी मेंबर का सूर्यवंशी मेंशन में होने का मतलब यह है कि वह ज़रूर घर का कोई मेंबर है या कोई ना कोई खास है। क्योंकि सूर्यवंशी मेंशन में किसी को भी आने की इजाज़त नहीं थी, सिवाय खास लोगों के। फिलहाल, जल्दी ही आयशा मामले की नजाकत को समझते हुए दादी को लेकर बाहर जाने लगी थीं। और फिर अचानक से रुककर डॉक्टर की ओर देखकर बोलीं, "जब भी इन्हें होश आए, सबसे पहले आप मुझे बताइएगा।" तभी आयशा ने एक डॉक्टर की ओर गहरी नज़रों से देखना शुरू कर दिया था, और एक अदृश्य सी बिजली आयशा की आँखों से निकलकर सीधे डॉक्टर की आँखों में जा लगी थी। आयशा ने आँखों ही आँखों में डॉक्टर को अपने जादू के द्वारा हिप्नोटाइज़ कर दिया था और उसे ये बात अच्छी तरह से समझा दी थी कि अगर अरमान सूर्यवंशी को होश आ जाता है, तो सबसे पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ आयशा को ही इन्फ़ॉर्म किया जाए, किसी और को नहीं। ये बात अपनी जादुई शक्तियों के द्वारा डॉक्टर के दिल-दिमाग में बैठाने के बाद आयशा दादी को लेकर बाहर आ गई थीं और उन्हें बाहर लाकर एक सोफ़े पर बैठा दिया। और दादी से कहा, "दादी, आप कौन हैं? क्या आप मुझे जानती हैं? मैं कौन हूँ? बोलिए, जवाब दीजिए। आपको कैसे पता चला कि मैं शहजादी हूँ?" अब जैसे ही आयशा ने ये बात बोली, अब दादी तुरंत आयशा का हाथ थामकर बोलीं, "शहजादी, इस वक्त सारी बातें करने का समय नहीं है। मेरे पोते को क्या हुआ है? वह ठीक क्यों नहीं हो रहा है? और आप उसे ठीक क्यों नहीं कर देती हैं? आप तो उसे आसानी से ठीक कर सकती हैं ना?" अब दादी ने जैसे एक बार फिर विश्वास के साथ ये बात बोली, आयशा की हैरानी पर हैरानी बढ़ते जा रही थी। फिलहाल, इससे पहले कि वह दादी को कुछ भी जवाब देती, अहान, जो अब नॉर्मल हो गया था और दादी जो अपने बाल बना चुकी थी, वह तुरंत आकर दादी से लिपट गया और रोने लगा और बोलने लगा, "दादी, आपको पता है, आज तो मेरी जान ही जाती-जाती बची है। मुझे लगा था कि मैं अरमान भाई को देख नहीं पाऊँगा। सच, दादी, मैंने आप लोगों को बहुत मिस किया। और आज मुझे जाकर इस बात का एहसास हुआ कि मैं आप लोगों से कितना ज़्यादा प्यार करता हूँ। दादी, सच में मैं आप लोगों के बिना नहीं रह सकता हूँ।" ये बोलते हुए वह रो दिया था। अहान को रोते हुए देखकर दादी ने उसके सर पर हाथ फेरा और बड़े ही प्यार से उसे कहा, "जब तक शहजादी तुम्हारे भाई के साथ है, उसे कुछ नहीं होगा, और न ही हमारे परिवार को कुछ होगा। शहजादी सबको बचाएगी।" जैसे ही एक बार फिर दादी ने 'शहजादी' बोला, अब तो अहान भी अपनी आँखें मसल-मसल कर बार-बार दादी की ओर देखने लगा था। और ये एक बार फिर सुनने की कोशिश करने लगा था कि आखिरकार दादी कहना क्या चाह रही हैं। वह दुनिया की सबसे बदसूरत लड़की को 'शहजादी' कह रही हैं। ये बात तो वह पहले आज तक अपनी समझ से परे थी। और बल्कि अगर आज अहान वहाँ फँसा था, तो इस बदसूरत 'शहजादी' की वजह से ही तो फँसा था। अहान मन में सोचने लगा, "आखिर मेरी दादी की बीमारी इतनी ज़्यादा बढ़ती क्यों जा रही है? पता नहीं उनके बोलने की बीमारी कब ख़त्म होगी? अब मैं क्या बताऊँ? अगर मेरी जान आज ख़तरे में थी, तो उनके बदसूरत शहजादी की वजह से ही तो थी। नहीं तो हमारी ज़िन्दगी में आती ना, मैं इनका बल लेकर अघोरी बाबा के पास जाता ना, वह अघोरी बाबा फ्रॉड निकलता ना, मेरे साथ वह इतना बड़ा स्कैम करता ना, मेरी जान लेने की कोशिश करता ना..." कहीं ना कहीं अहान मन में सोचते हुए बढ़ा हुआ था। लेकिन आयशा इस वक्त वहाँ की बातें अपने जादुई शक्तियों के द्वारा अच्छी तरह से सुन पा रही थी। और वह वहाँ की ओर मुड़कर बोली, "तुम पागल हो गए हो! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! तुम्हें क्या ज़रूरत है इस तरह से मेरा सर का बल लेकर उस ढोंगी के पास जाने की?" अब जैसे ही आयशा ने अहान को घूरते हुए बोला, अहान के मन में ये सारी बातें बोल रहा था। आयशा किस तरह से बोल रही थी, उसकी तो जैसे जिंदगी बन गई और उसके दांत आपस में कट-कट आने लगे थे। क्योंकि थोड़ी देर पहले तो दादी को देखकर डर गया था, लेकिन अब आयशा किस तरह की बातें सुनकर, तो उसे ऐसा लगा मानो कि सचमुच में आयशा कोई ना कोई भूत है। लेकिन वह गलत जगह चला गया। एक बार फिर आयशा के बाल, जो अभी भी उसकी पॉकेट में मौजूद थे, उनको कहीं और दिखाने के बारे में वह सोचने लगा था। लेकिन फिलहाल, आयशा उसकी मन की बात पढ़कर तुरंत बोल पड़ी, "तुम्हारे दिमाग में जो भी उलटी-सीधी बातें आ रही हैं ना, उनको बंद करो, ठीक है?" तब अहान खुद को रोक नहीं पाया और थोड़ा सा घबराते हुए, और बड़ी ही विनम्रता के साथ बोला, "भूत? और अगर आयशा, अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लग गई, तो हो सकता है कि आयशा मुझसे कोई बकरा, कुत्ता, मुर्गा या कुछ भी बना देगी।" तो इसी बात को सोचते हुए वह फटाफट से बड़ी ही सहजता के साथ आयशा की ओर देखकर बोला, "अगर आपको बुरा ना लगे, तो क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?" जैसे ही आयशा अहान की घबराहट भरी आवाज़ सुनी, वह मुस्कुराने लगी थी। लेकिन फिलहाल उसने अपना चेहरा बिल्कुल भावहीन करके बोला, "हाँ।" उसकी बात सुनकर कहीं ना कहीं अहान को हिम्मत मिली थी और वह बनाकर बोला, "एक्चुअली, मैं आपसे जानना चाहता हूँ, अभी थोड़ी देर पहले जब मैं मन में बातें सोच रहा था, वह आप कैसे जान लेती हैं? क्योंकि मैं सोच रहा था कि आप एक भूत हैं, चुड़ैल हैं, और आप कितने सारे जादू कर सकती हैं, जादुई शक्तियाँ हैं आपके पास। समझे? इसीलिए मैं तुम्हारे मन की सारी बातें जान लेती हूँ।" अब जैसे ही आयशा ने बिना किसी इमोशन के ये बात बोली, कहीं ना कहीं अहान पूरी तरह से चौंक गया था।


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  • 10. billionaire Boss wifey - Chapter 10

    Words: 946

    Estimated Reading Time: 6 min

    अब अरमान यह देखकर पूरी तरह से चौंक गया कि "लड़की का क्या दिमाग़ खराब हो गया है? एक नंबर की बेशर्म लड़की है! यह अचानक से इस तरह से मुझे गले क्यों लगा रही है?" अरमान को यह लड़की, यानी खुशी, को वह यह बर्दाश्त कर ही नहीं पा रहा था कि आखिरकार खुशी उसके साथ क्या चाहती है। अब अरमान ने कई बार उसके कंधों से पकड़कर उसे खुद से दूर करने की कोशिश की, लेकिन खुशी ने उसे बड़ी कसकर पकड़ रखा था। अब अरमान को खुशी से बड़े ही नेगेटिव फ़ीलिंग आने लगे। उसे लगने लगा कि यह एक नंबर की कैरेक्टरलेस लड़की है, जिसका कोई कैरेक्टर नहीं है, इसीलिए यह उसे खुद आकर चिपक रही है। तभी अचानक उसने खुशी को जोरों से अपने ऊपर से हटा दिया और खींचकर एक तमाचा उसके मुँह पर मार दिया।

    अब अचानक से जैसे ही उसने खींचकर एक तमाचा खुशी के मुँह पर मारा, खुशी का चेहरा एक तरफ़ झुक गया। उसके होठों के पास से खून तक निकलना शुरू हो गया। लेकिन तभी, अचानक देखते ही देखते, 15-20 काले कपड़े पहने हुए गार्ड वहाँ आ गए। उन्होंने आकर अरमान को चारों तरफ़ से घेर लिया। यह देखकर अरमान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था कि अचानक से इतने सारे गार्ड कहाँ से आ गए और आखिरकार उसने ऐसा क्या कर दिया कि इतने सारे गार्ड उसे इस तरह से घेर रहे हैं? अरमान की हैरानी काफ़ी ज़्यादा बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन अचानक खुशी ने उन गार्डों की ओर देखकर कहा, "आप लोग कौन हैं? और इस तरह से आप हमारे बीच में क्या कर रहे हैं? हम दोनों मियाँ-बीवी हैं और हम दोनों में झगड़ा हो गया है। इसीलिए मेरे पति ने मुझ पर हाथ उठाया है। तो इस तरह से आप लोगों को हमारे बीच में आने का क्या मतलब है?"

    अब जैसे ही खुशी ने बिल्कुल बिना किसी इमोशन्स के यह सारी लाइन्स बोलीं, अरमान की आँखें तो बाहर निकलने को तैयार थीं। उसे तो समझ ही नहीं आया कि आखिरकार यह लड़की क्या है और इस तरह की उटपटाँग बातें क्यों कर रही है? वहीं, वह गार्ड अब एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार इस लड़की का क्या मामला है। तभी उनमें से एक समझदार गार्ड आगे आया और अरमान की ओर देखकर बोला, "हमें माफ़ कीजिएगा सोल्जर!" क्योंकि उन्होंने अरमान की गाड़ी देख ली थी। साथ ही साथ, अरमान के जेब में गन देखकर और उसका लटकता हुआ रैंक देखकर वह समझ चुके थे कि यह आदमी कोई आम आदमी नहीं है, बल्कि अरमान ठाकुर है, जो कि एक फ़ेमस सोल्जर है। अरमान के बारे में हाल ही में एक मिशन पूरा करने के बाद बड़ा सा आर्टिकल छपा था, तो काफ़ी सारे लोग अरमान के बारे में अच्छी तरह से जानते थे। तब उनमें से गार्ड ने बोला, "हम माफ़ कीजिएगा सोल्जर। वह इस सड़क पर लड़कियों के साथ काफ़ी ज़्यादा बदतमीज़ी होती रहती है, तो इसीलिए हम सिविलियन के तौर पर एक ऑपरेशन चला रहे हैं, जिससे कि गुनाहगारों को पकड़ा जा सके। हमें नहीं पता था कि आप लोग यहाँ हैं। माफ़ कीजिएगा।" यह बोलकर वह सोल्जर जल्दी ही वहाँ से चले गए। वहीं, खुशी उन्हें बिना किसी इमोशन के देख रही थी।

    वहीं, अब अरमान ने जैसे ही खुशी के चेहरे की ओर देखा और उसने देखा कि उसके होठों के पास से खून निकलने लगा है, तो उसे इसका थोड़ा सा तरस भी आया। लेकिन जिस तरह से खुशी ने बाकियों से यह बोला था कि वह और उसका पति, और दोनों के बीच झगड़ा हो रहा था, तो यह सुनकर उसकी आँखों में कड़वाहट भर गई। वहीं, खुशी ने एक नज़र अरमान की ओर देखकर, अब जिस तरह से वह पैदल-पैदल घर की ओर जा रही थी, उसी तरह से आगे बढ़ने लगी।

    अब अरमान अपने सर पर तीन बार टैप करके सोचने लगा कि आखिरकार यह लड़की क्या है? पल-पल में, तो ना इस लड़की की कहानी समझ में नहीं आ रही है। क्या चाहती है यह लड़की? अब अरमान का गुस्सा काफ़ी हद तक बढ़ चुका था। इसीलिए, बिना देर किए, उसने डिसीज़न लिया कि वह अब इस लड़की को सबक़ सिखाएगा और उससे पूछेगा कि आखिरकार यह लड़की क्या चाहती है और इसकी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से मुझे अपना पति बोलने की? कहीं ना कहीं यह सोचकर, अब जल्दी ही अरमान खुशी के पीछे-पीछे तेज़ कदमों से बढ़ने लगा। लेकिन जैसे ही अब खुशी थोड़ा आगे बढ़ी, अचानक से अरमान एक बार फिर जाकर उसके हाथ को पीछे से कसकर पकड़ लिया और सीधा, क्योंकि लैंडस्लाइड हुई पड़ी थी, तो पूरे रास्ते पूरी तरह से जंगल का रास्ता ही शॉर्टकट रास्ता था जिससे घर जाया जा सकता था, वह भी पैदल। मन में, अरमान ने अपने एक सोल्जर को फ़ोन करके उससे मदद माँग ली और अपनी गाड़ी को डायवर्ट करवा लिया और सीधा खुशी को वह जंगल में ले आया।

    खुशी को जंगल में अरमान के साथ जाते हुए बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था, बल्कि वह तो हल्की सी मुस्कराहट के साथ उसकी ओर ही देख रही थी। अब उसे लड़के की आँखों में इतना पागलपन देखकर, न जाने क्यों, अरमान का दिल अंदर ही अंदर कड़वाहट से भरता जा रहा था। उसका बस नहीं चल रहा था, वरना वह कब का खुशी का सर फोड़ चुका होता। फिलहाल, जब खुशी ने पूरी इरिटेशन की लिमिट क्रॉस कर दी, तब अरमान ने उसके बालों को कसकर पकड़ लिया और अचानक उसे एक बड़े से पत्थर से लगा दिया। इस वक़्त खुशी की साँसें ऊपर-नीचे होने लगी थीं। वहीं, अरमान गहरी नज़रों से देखते हुए बोला, "बेकार औरत! कौन हो तुम? और तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है?"

  • 11. billionaire Boss wifey - Chapter 11

    Words: 960

    Estimated Reading Time: 6 min

    हाँ, क्यों मुझे इतना घूर रही हो तुम? देखो, मैं एक सोल्जर हूँ, और मुझे इस तरह की लड़कियाँ पूरी तरह से जहर लगती हैं। इसीलिए मेरे आस-पास वापस से भटकने की कोशिश मत करना। और जिस तरह से तुम मुझे देखती हो, क्या तुम्हें बिल्कुल भी शर्म नहीं आती? क्या तुम्हें नहीं पता कि मेरे घर में एक जवान बहन भी है? अगर तुम उसके सामने इस तरह से मुझे देखोगी, तो उसे कैसा लगेगा? जैसे ही अरमान ने यह बोला, अचानक खुशी बोली, "अच्छा, अगर वह सामने ना हो, तो क्या तुम मुझे इस तरह से देख सकते हो?" अब जैसे ही खुशी ने यह बोला, अरमान की बोलती बंद हो गई। कुछ समझ में नहीं आया कि वह उसे किस तरह का जवाब दे। तभी अरमान खुशी को घूरकर बोला, "अपनी फ़ालतू की बकवास बंद करो! और तुम मुझे क्यों देखोगी इस तरह से? मैं तुम्हारा क्या लगता हूँ? क्या हूं तुम्हारा ?"तब खुशी तपाक से बोली, "क्या तुम्हें नहीं पता कि मैंने अभी सब के सामने तुम्हें अपना पति बोला है? तो तुम मेरे होने वाले पति हो, और मैं बोल दिया, वह मैं करके रहूँगी। तुम्हें मुझसे शादी करनी पड़ेगी।" अब खुशी ने जैसे ही बिना किसी इमोशंस के, और बेफ़िक्र अंदाज़ में अपनी बात आगे रखी, अरमान का तो हैरानी के मारे बुरा हाल हो चुका था। अरमान ने आज तक कितने ही तरह के क्रिमिनल्स देखे थे, कितने ही सारे दुश्मनों को फेस किया था, लेकिन इस तरह की लड़की उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार देखी थी। हालाँकि, एक से बढ़कर एक खूबसूरत लड़कियों ने उसे प्रपोज़ किया था। उसके आर्मी कैंप में ट्रेनिंग के दौरान कितनी ही आर्मी ऑफ़िसर से उसकी मुलाकातें हुई थीं, लेकिन अरमान ने किसी को भी आंखें उठाकर नहीं देखा था। उसका ध्यान अगर किसी चीज़ की तरफ़ था, तो सिर्फ़ अपना लक्ष्य कंप्लीट करने की तरफ़ था। लेकिन यहाँ, अरमान खुशी के रंग-बिरंगे व्यवहार देखकर पूरी तरह से चौंक गया था। कभी खुशी बिल्कुल इस तरह से बात करती थी, मानो अरमान पर उसका किसी तरह का पूरा हक़ हो, और अरमान सिर्फ़ उसका है। उसके अलावा, कोई और अरमान को न देख सकता है, ना ही कोई उससे बात कर सकता है। यह बात उसे काफ़ी ज़्यादा अजीब लगी। अब अरमान ने तुरंत खुशी का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "अपनी फ़ालतू की बकवास और ड्रामा बंद करो! जो तुम सोच रही हो, वह कभी भी नहीं होगा। तुम्हारा और मेरा कोई रिश्ता नहीं है, इसीलिए मुझे दूरी बनाकर रखो, समझे?" यह बोलकर अरमान अब जल्दी ही आगे बढ़ने लगा था, और खुशी ने अपना सर झुकाकर मुस्कुराते हुए बोला, "तुम सिर्फ़ मेरे हो, सिर्फ़ मेरे!" यह बोलकर खुशी अब आगे बढ़ने लगी थी। वहीं अरमान ने एक नज़र पीछे मुड़कर भी देखना ज़रूरी नहीं समझा था कि खुशी उसके पीछे आ रही है या नहीं। वहीं खुशी अरमान को देखते हुए बेख़याली से आगे बढ़ रही थी, और नहीं देखा कि उसके सामने इस वक़्त काँटों भरी झाड़ियाँ हैं, जिससे एक बड़ा सा काँटा अचानक खुशी के पैरों में चुभ गया था। जैसे ही उसकी हल्की सी चीख़ सुनाई दी, अरमान तुरंत रुक गया और उसने पीछे मुड़कर खुशी को देखा, जो अब अपना पैर पकड़कर बैठी हुई थी। उसके पैर से लगातार खून निकल रहा था। यह देखकर अरमान के माथे पर बल पड़ गए। "यह लड़की पागल है क्या? यह देखकर नहीं चल सकती थी?" फ़िलहाल अरमान उसके पास गया और उसने देख लिया था कि यह काँटा कोई आम काँटा नहीं, बल्कि ज़हरीला काँटा था। आखिरकार, अरमान को हर तरह की झाड़ियों, फूल-पत्तियों, हर चीज़ की नॉलेज थी। वह एक सोल्जर था, तो सारी चीज़ों की नॉलेज देना उसकी ट्रेनिंग का एक हिस्सा होता था। फ़िलहाल उसने आगे बढ़कर खुशी के पैर पर एक रुमाल बाँध दिया था और उसे गोद में उठा लिया। अब अरमान की गोद में आकर खुशी ने तुरंत अपने हाथों को उसके गले में डाल दिया था और उसके ओर मुस्कुराकर देखती रही थी। अब अरमान उसे उठाते हुए इरिटेट हो रहा था, और वह फिर खुशी की ओर देखकर बोला, "देखो, अगर तुम मेरे घर पर नहीं रह रही होतीं, मेरी मेहमान नहीं होतीं, तो मैं तुम्हें यहीं छोड़कर चला जाता, समझे?" तब खुशी ने मुस्कुराकर कहा था, "नहीं, तुम ऐसा नहीं करते। तुम एक सोल्जर हो, और लोगों की रक्षा करना तुम्हारा सबसे पहला फर्ज़ है। तो तुम मुझे यहाँ छोड़कर किसी भी कीमत पर नहीं जाते।" खुशी ने जैसे ही यह पूरे आत्मविश्वास से यह बात बोली, अरमान एक पल के लिए उसे देखता रहा था, और अगले ही पल, क्योंकि वह शॉर्ट रास्ता था, तो जल्दी ही वह लोग उसके घर पर पहुँच चुके थे। अब जैसे ही अरमान की दादी, कुसुम जी ने इस तरह से खुशी को अरमान की गोद में देखा, तो उन्होंने अपना सर पकड़ लिया था और खुशी को घूरते हुए बोलीं, "सत्यानाश! लड़की तेरा, तूने क्या खिला दिया मेरे पोते को एक ही दिन में? जो तूने उसे अपनी ओर आकर्षित कर लिया, और यह सरस्वती कहाँ मर गई तू? मैं तो तुझे कब से कह रही थी कि इस लड़की से अपने बेटे को दूर रख! देख इस कलमोहि ने किया, जादू कर दिया? देख किस तरह से गोद में सवार होकर आ रही है मेरे पोते के साथ! अब मैं क्या करूँ? अरे, मुझे तो इसका अपने पोते का रिश्ता इस पूरे शहर के सबसे बड़े खानदान में करना है! मैं इस तरह की कोई ऐरी गिरी लड़की को, जिसके पास रहने का भी ठिकाना नहीं है, उसे कभी भी अपनी बहू नहीं बनने दूँगी!" जल्दी ही कुसुम जी ने खुशी को अरमान की गोद में देखकर गुस्से से भरे विचार बना लिए थे, और जो उसके दिल दिमाग में आ रहा था, वह उसके मुँह से निकल रहा था। वो बोले जा रही थी।

  • 12. billionaire Boss wifey - Chapter 12

    Words: 892

    Estimated Reading Time: 6 min

    वहीँ, सरस्वती तुरंत अरमान के पास आईं और बोलीं, "क्या बात है, बेटा? यह खुशी को तुमने गोद में क्यों उठा रखा है?" तभी अरमान अपनी माँ की ओर देखकर बोला, "माँ, बाहर लैंडस्लाइड हुआ है, और यह लड़की मुझे रास्ते में मिली। जब हम जंगल के रास्ते से आ रहे थे, तो उसके पैर में एक ज़हरीला काँटा चुभ गया है। आपको अभी और इसी वक़्त डॉक्टर को बुलाना होगा, वरना ज़हर फैलने से इस लड़की की जान भी जा सकती है। इसलिए मजबूरन मुझे उसे इस तरह से लाना पड़ा।" अब बात को समझकर सरस्वती ने राहत की साँस ली, फ़टाफ़ट से डॉक्टर को फ़ोन कर दिया, और खुशी के पैर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "क्या बात है, बेटा? तुम ठीक तो हो? तुम्हें ध्यान से चलना चाहिए था, बेटा।" एक पल के लिए सरस्वती का प्यार पाकर खुशी हल्का सा इमोशनल हुई थी, लेकिन उसने अपने इमोशंस को किसी के सामने आने नहीं दिया। इस वक़्त वह पूरी तरह से खामोश थी। वहीं अरमान हैरानी से खुशी को देख रहा था। वह सोच रहा था, "मेरे सामने तो कितना ज़्यादा चटर-पटर बोलती है, और परिवार वालों के सामने आती ही इसकी ज़ुबान किस तरह से बंद हो जाती है?" कहीं न कहीं यह सोचकर वह काफ़ी ज़्यादा हैरान भी हो रहा था। अब फ़िलहाल जल्दी से एक डॉक्टर की टीम वहाँ आई, और उन्होंने आकर खुशी को चेक करना शुरू कर दिया। खुशी बेपरवाही से वहाँ बैठकर चिंगम चबाने लगी थी। उसे इतनी ज़्यादा चोट लगी थी, लेकिन उसने बिल्कुल भी ज़ाहिर नहीं होने दिया। अगर उसकी जगह कोई नॉर्मल लड़की होती, तब तक वह रोकर पूरा घर भर देती, लेकिन खुशी के मुँह से हल्की सी चीख़ के अलावा, जिस वक़्त से वह काँटा चुभा था, उस हल्की चीख अलावा, उसके मुँह से एक दर्द की आवाज़ भी नहीं निकली थी। अब खुशी को इतनी मज़बूती से अपनी ड्रेसिंग करवाते हुए देखकर कहीं न कहीं अरमान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था कि आखिरकार यह लड़की है क्या चीज़? क्या इसको इतना सा भी दर्द नहीं हो रहा है? जल्दी ही डॉक्टर ने वहाँ पर उसके ज़ख्मों पर मरहम पट्टी कर दी। डॉक्टर ने उसके ज़ख्मों की मरहम-पट्टी कर दी, कुछ पेनकिलर वगैरह उसे खाने के लिए दिए, और साथ ही साथ एक एंटीसेप्टिक इंजेक्शन भी दे दिया। खुशी बेपरवाही से वहाँ बैठकर चिंगम चबाती रही। डॉक्टर की टीम भी वाकई हैरान थी, क्योंकि जितना भी गहरा ज़ख्म उसे लगा था, लेकिन उसके चेहरे पर दर्द की शिकन तक नहीं थी। तभी सरस्वती जी ने खुशी को एक गिलास हल्दी वाला दूध देते हुए कहा, "अरे, बेटा, तू तो बड़ी बहादुर निकली! क्या तुझे इतना दर्द का एहसास नहीं हुआ? जब डॉक्टर तेरे ज़ख्म को साफ़ करके उसका ज़हर बाहर निकाल रहे थे, तुझे इंजेक्शन लगा रहे थे, मुझे तो बहुत दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन बेटा, तेरे मुँह पर इतना सा भी दर्द महसूस नहीं हुआ है, बिल्कुल मेरे अरमान की तरह!" जैसे ही बातों-बातों में सरस्वती जी ने यह बोला, खुशी के चेहरे पर एक न दिखने वाली मुस्कुराहट थी, जिसे अरमान ने महसूस कर लिया था। लेकिन कुसुम जी को इस तरह से खुशी, जो कि उनकी नज़रों में एक "आई-गई" लड़की थी, उसका इस तरह से अपने पोते के साथ कंपेरिज़न बर्दाश्त नहीं हुआ। वह तुरंत सरस्वती जी को डाँट-फटकार लगाते हुए बोलीं, अरे बहू! तेरी क्या मति मारी गई है? कैसे उल्टी-सीधी बातें कर रही है तू? किसी आई-गई लड़की को तू मेरे पोते के साथ कंपेयर कर रही है? तेरा दिमाग़ खराब हो गया है? हाँ, देख, यह लड़की मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है, और मेरे अरमान की शादी इस शहर के सबसे रईस आदमी की बेटी से होगी, समझे तू?" अभी खुशी यह सुनकर पूरी तरह से आग-बबूला हो उठी थी, और उसने बिना अपनी पट्टी की परवाह किए, वह सीधा दादी के सामने खड़ी हो गई और उनकी ओर हल्का सा झुककर मुस्कुराकर बोली, "आपकी गलतफ़हमी है, दादी! आपके पोते की शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे होगी, और किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि आपके पोते को मुझसे अलग कर सके!" यह बोलकर खुशी हल्का सा लँगड़ाते हुए अपने कमरे में चली गई। वहीं सरस्वती जी, दादी, अरमान के पिता, दादा, और साथ ही साथ अरमान पूरी तरह से शॉक में हो चुके थे। वहीं अरमान के लिए अपने परिवार के सामने ऐसी सिचुएशन को फेस करना काफ़ी ज़्यादा मुश्किल हो चुका था, और वह गुस्से से दाँत पीसता हुआ सीधा खुशी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। वहीं खुशी इस वक़्त जाकर खिड़की के पास खड़ी होकर बाहर का नज़ारा देख रही थी। अब जैसे ही अरमान उसके कमरे में आया, कमरे में आकर उसने झट से उसकी बाजू को कसकर पकड़ लिया। एक पल के लिए खुशी अरमान के सीने से जा लगी, लेकिन अरमान ने तुरंत उसे सीधा खड़ा कर, उसकी ओर गुस्से भरी आँखों से देखकर बोला, "कितनी बेशर्म लड़की हो तुम! तुम्हारे जैसे बेशर्म लड़की मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में नहीं देखी! आखिरकार तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी दादी से इस तरह की बात करने की? यहाँ पर तुम समझती क्या हो अपने आपको? क्या मतलब कि मैं तुम जैसे घटिया लड़की से शादी करूँगा? यह तुम्हारा सपना है, सिर्फ़ और सिर्फ़ सपना! मैं तुम जैसी घटिया, आवारा लड़की से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करूँगा!" अरमान की यह बात सुनकर खुशी के अंदर ही अंदर आग लग गई थी।

  • 13. billionaire Boss wifey - Chapter 13

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    और जैसे ही अरमान उसे धमकी देकर वहाँ से जाने लगा। तभी खुशी की आवाज़ उसे सुनाई दी। खुशी, ने चिल्लाकर कहा, "रुको!" अब जैसे ही खुशी ने इस तरह से बोला, अरमान तुरंत वहीं रुक गया। तब खुशी तुरंत उसके पास गई और जाकर अचानक उसने अरमान का गिरेबान पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा। और जैसे ही अरमान हल्का सा झुका, खुशी ने तुरंत उसके होठों को अपने होंठों में ले लिया और बड़े ही प्यार से उसे किस करने लगी। अब तो अरमान की हैरानी इतनी ज़्यादा बढ़ चुकी थी कि कोई सोच भी नहीं सकता था। पहली बार किसी लड़की ने उसे इस तरह से छुआ था, उसे किस किया था। उसे एक अलग ही लेवल का एहसास हो रहा था। इस बीच उसे यह एहसास ही नहीं रहा कि कब वह भी आँखें बंद करके खुशी के साथ किस इन्जॉय करने लगा था। वहीं खुशी उसे बड़े ही रफ़्तार से, जिस तरह से वह उसे किस कर रही थी, उसे छोड़ने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। वहीं अरमान के कानों में जल्दी ही उसकी दादी की आवाज़ सुनाई दी। उसकी दादी अचानक से जोरों से चीख पड़ी थीं। अब दादी की आवाज़ सुनकर अरमान तुरंत अपनी सेंस पर वापस आया और उसने झुँझलाकर खुशी को खुद से दूर किया। और उसने जब यह देखा कि खुशी उसे किस करने के बाद मुस्कुरा रही है, अब अरमान गुस्से से दाँत पीसता हुआ तुरंत धड़ाम से उसके कमरे से बाहर निकल गया। वहीं दूसरी ओर, खुशी मुस्कुराते हुए अब अपने बेड के सिरहाने पर बैठ गई थी। वहीं खुशी ने इतनी बड़ी बात दादी से बोली थी कि दादी ने पूरे घर में हंगामा बरपा दिया था और वह राधिका के आने का इंतज़ार करने लगी थी, ताकि राधिका वहाँ आए क्योंकि वो राधिका को पहले खुशी को वहाँ रखने से रोक रही थी। फ़िलहाल राधिका लैंडस्लाइड की वजह से फँसी हुई थी, लेकिन जैसे ही रास्ता क्लियर हुआ, वह घर, सीधे घर आ गई थी और उसने देखा कि सब लोग इस वक्त हाल में इकट्ठे हैं, तो वह उनके पास जाने लगी। वह बड़ी-बड़ी आँखों से अपनी माँ से पूछने लगी थी कि क्या हुआ है। तभी दादी तुरंत राधिका को सारे हालात देखकर उसकी ओर घूरकर बोलीं, "तेरी हिम्मत! कहाँ से लाई है तू इस लड़की को? पकड़ के कौन है वह लड़की? क्या उसके खून-खानदान में तुझे कुछ पता ही नहीं है? वह लड़की एक नंबर की बदमाश है! मेरे मुँह पर खड़ी होकर बोल कर गईं है कि मेरे पोते से शादी करेगी! किसी में हिम्मत हो तो रोककर दिखाएँ! मैं कह रही हूँ, उस लड़की को अभी इस घर से निकालकर बाहर फेंक दो! मुझे वह लड़की बिल्कुल भी पसंद नहीं है और मैं नहीं चाहती कि उस लड़की का साया भी मेरे पोते पर पड़े! .." बोलते हुए कुसुम जी पूरी तरह से गुस्से से भर चुकी थीं। वहीं राधिका के होश उड़ गए थे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि क्या वाकई खुशी ऐसी हरकत कर सकती है? क्योंकि जब से वह खुशी से मिली थी, खुशी पूरी तरह से संजीदा, एकदम सीरियस थी। ना तो वह मुस्कुराती थी, ना किसी से ज़्यादा बात करती थी, केवल चुप-चुप और खामोश रहती थी। लेकिन खुशी इतनी बड़ी बात बोल सकती है, तो उसके तो होश उड़ गए थे। उसे तो यकीन नहीं हुआ कि क्या वाकई ऐसा कुछ भी हो सकता है। फ़िलहाल उसने दादी को समझाया और बोली कि वह जाकर खुशी से बात करेगी। वहीं अरमान का तो चेहरा ऐसा हो रहा था जो कि गुस्से से एकदम लाल हो चुका था, क्योंकि जिस तरह से खुशी ने उसे आगे बढ़कर किस किया, उसे कुछ अलग ही लेवल का एहसास हो रहा था। या फिर यह कहो कि अरमान के दिल में भी खुशी के लिए मोहब्बत ने जन्म ले लिया था। लेकिन खुशी का बेरुख़ी से, खुशी का इस तरह से बात करना, सीधे तरीके से जो उसके मन में है बोल देना, उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह लड़की है क्या चीज़? फ़िलहाल अब जब राधिका खुशी से बात करने के लिए गई, उस वक़्त खुशी गहरी नींद में सोई हुई थी, क्योंकि डॉक्टर ने उसे कुछ पेनकिलर्स वगैरा दिए थे, जिसके नशे में वह गहरी नींद में सोती रही। राधिका की हिम्मत नहीं हुई कि वह उसे उठा सके। उसने सोचा, सुबह उसे उठाकर बात कर लेगी। वहीं रात के करीब 3:बजे अचानक से पूरा का पूरा ठाकुर मेंशन गूंज उठा था, क्योंकि चारों तरफ़ से बंदूक के चलने की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। अब अरमान पूरी तरह से डर गया था कि आखिर यह सब क्या हुआ है? हालाँकि वह हर खतरे के लिए 24 घंटे तैयार रहता था, लेकिन फ़िलहाल यह मामला उसके परिवार का था। फ़टाफ़ट से अरमान देर न करते हुए, अरमान ने अपनी बंदूक अपनी जेब में रख ली थी और धीरे से वह नीचे की तरफ़ जाने लगा था। और जैसे ही वह नीचे गया, तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गई थीं। उसने देखा कि उसकी दादी, साथ ही साथ उसके दादा, पापा, उसकी बहन, उसकी माँ, सभी लोगों को कुछ क्रिमिनल्स ने गन पॉइंट पर ले रखा है। अब तो अरमान के होश उड़ गए थे। वह अपने परिवार के आगे मजबूर हो चुका था, वरना वह अकेला उन लोगों को धूल चटा सकता था, लेकिन उस वक़्त उसके पूरे परिवार की जान खतरे में थी। तभी उन क्रिमिनल्स में से एक आदमी आगे आया और अरमान की ओर देखते हुए बोला, "अपनी बंदूक अभी इसी वक़्त फेंक दो, सोल्जर!" यह बोलते हुए वह बड़ा ही ख़तरनाक लग रहा था। अब अरमान ने बिना देर किए अपनी बंदूक फेंक दी थी और जल्दी से अरमान को उन्होंने उसके घुटनों के बल पर बैठने के लिए कह दिया और उसके दोनों हाथों को उसके कंधे के पीछे पकड़कर बैठने को बोल दिया था। अब तो अरमान घुटनों के बल बैठ गया था और गुस्से से उन क्रिमिनल्स में देख रहा था और बोला था, "अगर मेरे परिवार को कुछ भी हुआ, तो मैं तुम लोगों का नाम और निशान मिटा दूँगा!"


    यह सुधार आपको कैसे लगे? क्या आपको और कोई सुझाव चाहिए?

  • 14. billionaire Boss wifey - Chapter 14

    Words: 2514

    Estimated Reading Time: 16 min

    अरमान की बात सुनकर उसकी दादी की आँखें ऐसी हो गईं कि वह भी अपनी आँखों ही आँखों से अरमान को सुलगा रही थीं। अब आहान और कबीर दोनों ही हैरान थे कि आखिरकार दादी को क्या हो गया है, क्योंकि दादी ने कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं किया था। जिस तरह से दादी अब कर रही थीं, कहीं न कहीं उनकी हैरानी काफी बढ़ चुकी थी। आखिरकार दादी ने आयशा में ऐसा क्या देख लिया कि वह आशा के लिए अरमान तक को, जिसको वह इतना प्यार और दुलार करती हुई आई थी, उसे तक को आज इतना गुस्सा दिखा रही थीं? तभी दादी ने, बिना अरमान को कुछ बोले, कबीर की ओर देखकर कहा था, "कबीर बेटा, मेरे अस्पताल में दम घुट रहा है। एक काम कर, मुझे घर लेकर चल। और एक और बात, मैं इस लड़के की शक्ल तब तक नहीं देखूँगी जब तक यह मेरी बहू से माफ़ी नहीं माँग लेता और सही-सलामत उसे मेरे पास नहीं लेकर आ जाता।" अब जैसे ही दादी ने अरमान के सर पर यह बम फोड़ा, तो उसकी माँ की तो आँखें बाहर निकलने को तैयार थीं, और वह माथे पर हाथ रखकर दादी की ओर देखने लगा था। इस वक्त उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ कसकर बंद कर लीं और जल्दी ही, बिना दादी की ओर देखे, तुरंत अस्पताल के वार्ड से बाहर निकल गया और सीधा अपने फार्म हाउस पर जाने लगा था। इस वक्त उसका बॉडीगार्ड, शेरा, उसके साथ था। आरमान बिना देरी किए उसके आगे बढ़ रहा था। अब तो आहान और कबीर एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वह लड़की अचानक से उनकी ज़िंदगी में कहाँ से आ गई। वहीं अरमान तुरंत कबीर के बाजू को खींचकर बोला था, "आप मानो या ना मानो, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वह कोई आम लड़की नहीं है। कोई इतना बड़ा जादू आखिर कैसे कर सकता है? ज़रूर उस लड़की के अंदर कुछ ना कुछ शक्तियाँ हैं। क्योंकि आप ही सोचिए, जिस दिन गुंडों ने मुझ पर हमला किया, किस तरह से उस लड़की ने गुंडे की बंदूक की नली को मोड़ दिया था, वह भी ठीक उसी परफेक्ट टाइमिंग पर, जो गुंडा मुझे गोली मारने वाला था। आप मानो या ना मानो, लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है यह कोई आम लड़की बिल्कुल भी नहीं है, और इसका पता मैं लगाकर रहूँगा।" तभी कबीर उसके कान में फुसफुसाकर बोला था, "तो मेरी बात ध्यान से सुनो, अपने इस भूत-प्रेत के चक्कर में कुछ उल्टे-सीधे हरकत मत कर देना, और कहीं फँस मत जाना।" उसके बाद कबीर दादी को देखने लगा था और जल्दी ही दादी से बोला था, "दादी, आप फ़िक्र मत कीजिएगा, बहुत जल्दी हम आपको यहाँ से डिस्चार्ज करवा देंगे।" वहीं दादी तुरंत अपनी आँखें बंद करके लेट गई थीं। वहीं दूसरी ओर, आयशा, जिसे कहीं न कहीं समझ चुकी थी कि वह अरमान की कंपनी में ही काम करेगी और उसी की आँखों के सामने उसे मोहब्बत का एहसास करवाएगी, क्योंकि इतनी बातें समझ चुकी थी कि अरमान सूर्यवंशी इस वक्त उससे कितनी ज़्यादा नफ़रत करता है, और अब कुछ न कुछ करके दादी को समझाकर आयशा को उसकी नफ़रत को मोहब्बत में बदलना है। साथ ही साथ आयशा को इस बात के बारे में भी पता लगाना है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ था कि अरमान ने उसे बदसूरती का श्राप दिया? क्योंकि अगर अरमान उसकी सच्ची मोहब्बत था, तो उसे बदसूरती का श्राप कैसे दे सकता था? क्योंकि जब जिन्नातों की दुनिया से शहजादी आयशा इंसानों की दुनिया में आ रही थी, उसके पिता ने साफ़-साफ़ यह बात उसे बताई थी कि उसी की अपनी मोहब्बत ने उसे बदसूरती का श्राप दिया है। आयशा को अभी तक यह नहीं पता था कि आखिरकार इस बात का क्या कारण था कि उसे बदसूरती का श्राप मिला। वहीं दूसरी ओर, जोया ने एक बार और कोशिश की थी और आशा से कहा था, "हम आपको बोल चुकी हैं, आप एक बार और सोच लीजिए। आशा क्या आप सच में अरमान सूर्यवंशी की कंपनी में काम करना चाहती हैं? जिस तरह से उसने आपकी जान लेने की कोशिश की है, तो इससे तो आपको वहाँ पर जान का खतरा हो सकता है। हो सकता है कि वह आपको देखकर एक बार फिर वायलेंट हो जाए, और अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारी जान को एक बार फिर खतरा हो सकता है। मेरे हिसाब से तो आपको वेट करना चाहिए, फिर तुम्हें कहीं और काम करना चाहिए।" यह सुनकर आशा हल्का सा मुस्कुरा रही थी और जया की ओर ध्यान से देखने लगी थी। वहीं दूसरी ओर, शहज़ाद, या गुलफ़ाम, जो कि आशा की मदद करने के लिए वहाँ आया था, जैसे ही उसने यह देखा कि इस वक्त लावण्या, जो कि मल्लिका के मलिक की लावण्या के रूप में थी, वह हर हाल में आयशा और अरमान की शादी करवाना चाहती थी, जबकि अरमान एक नंबर का अहंकारी आदमी था। इतना ही नहीं, उसने न जाने कितनी ही जानें ली थीं। तो इसीलिए अब गुलफ़ाम ने ठान लिया था कि चाहे उसकी जान भी चली जाए, लेकिन वह हमेशा जैन परिवार के लिए वफ़ादार रहेगा और हर हाल में आयशा की रक्षा करेगा, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े। इसी सोच के साथ, जल्दी ही गुलफ़ाम वहाँ से निकलकर सीधा अरमान की कंपनी में जाने का फ़ैसला कर लिया था। उसने सोचा था कि जहाँ आयशा रहेगी, वहाँ पर वह किसी न किसी बहाने से रहेगा और 24 घंटे लावण्या और साथ ही साथ आयशा पर नज़र रखेगा ताकि आशा को उसकी जब भी ज़रूरत हो, तो उसकी मदद कर सके। वहीं अरमान सूर्यवंशी अगले ही सबेरे सीधा अपने फार्म हाउस पर पहुँच चुका था, और वहाँ जाकर वह इस वक्त उस गुफा में गया था जिस गुफा में उसका सबसे बड़ा दोस्त, यानी के ख़ूंखार जानवर, ब्लैकी रहा करता था। अरमान को जब भी दिल उदास होता था, उसके दिल में जब भी बेचैनी बहुत ज़्यादा बढ़ती थी, तब वह जाकर उस के पास ही बैठा करता था। इस वक्त अरमान उस गुफा के अंदर चला गया और सीधा ब्लैकी के पास जाकर बैठ गया था, लेकिन ब्लैकी इस वक्त सोया हुआ था। और जैसे ही उसे अरमान की आहट सुनाई दी, अचानक से ब्लैकी अपने बड़े-बड़े दांत और आँखों के साथ अरमान को घूरने लगा था। और अरमान को देखते ही वह एकदम से भीगी बिल्ली की तरह हो गया था। और अरमान जल्दी ही पिंजरे का दरवाज़ा खोलकर सीधा ब्लैकी के पास जाकर बैठकर उसके सर पर हाथ फेरने लगा था। ऐसा लगने लगा था मानो कोई मालिक अपने पालतू कुत्ते को सहला रहा हो। हालाँकि यह दृश्य काफी भयानक था। इस तरह से इतने बड़े अजगर या साँप को देखकर किसी के भी हालत ख़राब हो सकते थे, किसी को भी अटैक आ सकता था। इस वक्त अरमान ब्लैकी को इस तरह से सहला रहा था मानो कि वह उसका कोई पालतू जानवर हो, और वह वाकई उसका पालतू जानवर ही था। हालाँकि ब्लैकी कितना ज़्यादा ख़तरनाक और ख़ूंखार था, इसका अंदाज़ा पूरे शहर भर को था। एक साथ लेकर कितने ही सारे लोगों को ज़िंदा निगल सकता था। अब अरमान कुछ देर उसके पास बैठा रहा और कुछ देर तक अपने मन की बातें ब्लैकी से करता रहा था, क्योंकि ब्लैकी से बातें करने के बाद उसका मन, उसका दिल थोड़ा बहुत शांत हो जाया करता था। वही अगली सुबह आयशा अरमान सूर्यवंशी की कंपनी जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। हालाँकि उसने खुशी-खुशी सबके लिए ब्रेकफ़ास्ट तो बना ही दिया था, और सब लोगों ने खुशी से मिलकर एक साथ ब्रेकफ़ास्ट किया था। जया आयशा को बाहर से बार-बार देख रही थी, क्योंकि आयशा जैसी लड़की उसने अपनी ज़िंदगी में पहले नहीं देखी थी। आशा ख़ूबसूरत नहीं थी, लेकिन उसके पास बड़ा ही ख़ूबसूरत दिल था, उसकी सीरत बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत थी। कहीं न कहीं आशा को काफी अच्छा लगा सोचा जितना आयशा की ओर देखे, उतना उसे उसके साथ अच्छा लगता था। लेकिन आशा सोच रही थी कि आखिरकार आयशा इतनी बदसूरत होने का क्या कारण हो सकता है? क्योंकि इंसानों की दुनिया में एक से बढ़कर एक इंसान थे, लेकिन आयशा के जैसा इंसान शायद कोई था ही नहीं। अजीब सी बदसूरती थी आयशा के अंदर। फ़िलहाल आशा ने ज़्यादा नहीं सोचा और वह आशा से कहा था, "हमको जल्दी अपनी स्कूटी पर सवार होकर सूर्यवंशी एम्पायर की ओर रवाना हो चुके थे।" वहीं अरमान सूर्यवंशी ने पूरी रात ब्लैकी के साथ बिताई थी, वह ब्लैकी के साथ ही पूरी रात बैठ रहा था और जो भी उसके दिल में बातें आ रही थीं, वह ब्लैकी से शेयर कर रहा था। शेरा ऑफ़िस के बाहर खड़ा होकर अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था कि कहीं उसके बॉस को कुछ हो तो नहीं गया। आखिरकार इतने ख़तरनाक जानवर पर भरोसा करने की ज़रूरत ही क्या है? कहीं उसके इस फालतू जानवर ने उसके बॉस के साथ कुछ कर दिया हो, तो कहीं न कहीं शेरा इस वक्त काफी ज़्यादा घबरा रहा था, क्योंकि शेरा किसी से नहीं डरता था, लेकिन ब्लैकी के क्रोध से तो वह भी अच्छी तरह से वाकिफ़ था और वह बहुत ज़्यादा डरता था। लेकिन अरमान सूर्यवंशी के अंदर से कोई भी आवाज़ नहीं आई। पूरी रात शेरा बिना पलक झपके गुफा के बाहर खड़ा रहा, और अगली सुबह जैसे ही अरमान वहाँ से बाहर आया, तब जाकर शेरा ने राहत की साँस ली। हालाँकि अरमान की आँखें एकदम लाल-सूरख़ थीं, और वह किसी भयानक राक्षस से कम नहीं लग रहा था, क्योंकि उसकी हालत बहुत बुरी हो गई थी। पूरी रात भर सो ना पाने की वजह से उसकी हालत बहुत बुरी हो गई थी, और अपनी आँखों पर इसीलिए वह हर वक्त चश्मा चढ़ाए रखता था ताकि कोई उसकी आँखें ना देख ले। फ़िलहाल, जल्दी अरमान के आते ही, तुरंत शेरा ने उसे ब्लैक शेड्स दिए। उसने अपनी आँखों पर चढ़ा लिए, और फ़टाफ़ट से वह लोग अब अरमान ने कहा, "कबीर को फ़ोन करके बोलो कि दादी को अस्पताल से घर पर शिफ़्ट करवा दें।" अरमान यहीं से सीधा ऑफ़िस जाएगा, और साथ ही साथ उसने रोहित को इन्फ़ॉर्म कर दिया था कि, "उस लड़की, आयशा का अपॉइंटमेंट लेटर जारी करवाओ, क्योंकि यह अरमान को अच्छी तरह से पता था कि उस लड़की, यानी कि आशा ने अपना टेस्ट कंप्लीट कर लिया है लावण्या के साथ रहने का, तो अब यह उसकी हो चुकी है, और जहाँ तक उसने आयशा को देखा था, जाना था, तो वह बहुत अच्छी तरह से समझ चुका था कि आयशा इतनी आसानी से उसकी ज़िंदगी से नहीं जाने वाली, और कहीं न कहीं अरमान ने ठान लिया था कि वह आशा के अपनी ज़िंदगी में आने का मक़सद ज़रूर पता लगाएगा कि आखिरकार वह लड़की उसकी ज़िंदगी में क्यों आई है और क्यों उस लड़की ने उसके दादी पर दादी को अपनी ओर आकर्षित किया है। कहीं न कहीं आशा की आइडेंटिटी को लेकर वह कितना हैरान था, और अरमान ने डिसीज़न लिया था कि सबसे पहले वह उस लड़की के बारे में पता लगाएगा कि आखिरकार इस लड़की का यहाँ आने का मक़सद क्या है, और जब तक वह उसका मक़सद पता नहीं चल जाता, तब तक वह चैन से नहीं बैठेगा। इसी उम्मीद के साथ अब अरमान सूर्यवंशी ने ऑफ़िस की ओर रवाना हो चुका था। वहीं आयशा और जया जल्दी ही ऑफ़िस में पहुँच चुके थे। अब तक अरमान नहीं पहुँचा था, क्योंकि अरमान सीधा अपने फार्म हाउस से ऑफ़िस पहुँचने वाला था, और फार्महाउस से ऑफ़िस की दूरी में काफी फ़र्क था। फ़िलहाल, जया ने डिसीज़न लिया था कि वह ऑफ़िस ना जाकर, कॉलेज जाकर, अरमान के सामने कॉलेज का बहाना बनाकर, अब आयशा यानी कव्वाली करो नागौरी बाबा के पास जाएगी और वहाँ जाकर पता लगाएगी कि आखिरकार आयशा है कौन? क्योंकि कहीं न कहीं आशा की आइडेंटिटी को लेकर उसे शक हो रहा था, और अब तो इतनी सारी प्रॉब्लम्स हो गई थीं, तो इन सारी प्रॉब्लम्स से बचने के लिए वह आयशा की आइडेंटिटी के बारे में अघोरी बाबा से पता लगवाना चाहता था। इसलिए उसने डिसीज़न लिया कि वह उनसे मिलने के लिए जाएगा। वहीं दूसरी ओर, कबीर ने अरमान के ऑर्डर के मुताबिक़ दादी को जल्दी ही अस्पताल से घर शिफ़्ट करवा दिया था। वह समझ चुका था कि अरमान इस वक्त दादी के सामने क्यों नहीं आना चाहता है। अरमान ने आज तक दादी के मुँह से निकली हुई हर एक बात को पूरा किया है, और आज दादी ने आयशा की डिमांड की है, तो अरमान उसे भी पूरा करेगा। कहीं न कहीं कबीर सोच रहा था कि कहीं आहान और अरमान जो सोच रहे हैं कि यह सच तो नहीं है? कहीं वाकई आशा किसी दुश्मन की भेजी हुई लड़की तो नहीं है? कबीर ने सोचा कि वह जया से इस बारे में बात करेगा। आखिरकार उन दोनों से मिली है। किसी सोच के साथ अब कबीर दादी को अच्छी तरह से शिफ़्ट करने के बाद उनसे बोला था कि वह बिल्कुल भी फ़िक्र ना करें, तब तक वह उनका अच्छा ख्याल रखेंगे। अगर वे दवाई नहीं खाएँगे, तो उनकी बहू का स्वागत कौन करेगा? कहीं न कहीं ये सारी बातें कबीर ने अब दादी को बोल दी थीं, और दादी उसकी बात मानकर काफी खुश हो गई थी। और दादी ने साफ़-साफ़ कबीर से कह दिया था कि अरमान से कह देना कि उसकी बहू के बिना वह अपनी शक्ल उसे बिल्कुल भी ना दिखाएँ। ऐसी सोच के साथ अब कबीर जल्दी तैयार होकर ऑफ़िस की ओर रवाना हो चुका था। वहीं जया और आयशा जैसे ही ऑफ़िस में कहीं इस वक्त थर्ड टीम के मेंबर कहीं न कहीं बार-बार आयशा और जया को देख रहे थे। कहीं न कहीं कल जिस तरह से अरमान ने आशा पर हमला किया था, उन्होंने नहीं सोचा था कि आयशा इस तरह से वापस से यहाँ पर आ जाएगी। लेकिन अब आयशा जैसे ही वहाँ आई, लोगों की हैरानी काफी ज़्यादा बढ़ चुकी थी। अब कोई कह रहा था कि, "यह लड़की पागल है क्या? जो यहाँ इस तरह से मुँह उठाकर आ गई है? यह लड़की एक नंबर की बेवकूफ़ है। लगता है इसे अपनी जान प्यारी नहीं है जो अरमान सूर्यवंशी जैसे शेर के मुँह में आ गई है। लगता है बस तो हिसाब जिंदा ही निपटा देंगे।" वहीं रोहित, जिसे अरमान का यह इन्फ़ॉर्मेशन मिल चुका था जो सुबह मिला था कि वह आयशा को कंफ़र्म कर दे कि उसे हर रोज़ ऑफ़िस आना है, और उसकी जॉब पूरे 6 महीने के लिए कंफ़र्म हो गई है। 6 महीने से पहले, बिना नोटिस दिए अगर कंपनी से निकाल लेना चाहे तो वह यहाँ से निकलकर कहीं नहीं जा सकती। अगर उसने जॉब छोड़ने की कोशिश की, तो उसे कंपनी को अच्छा-ख़ासा जुर्माना देना होगा। अब यह सुनकर रोहित काफी हद तक हैरान था। उसने भी नहीं सोचा था कि उसका बॉस अगली सुबह उसे इस तरह का हुक्म दे देगा। लेकिन अब क्योंकि अरमान का ऑर्डर था, तो इसीलिए जैसे ही उसने अपना फ़ोन उठाया और जया को कॉल करने के लिए किया, ठीक उसी वक्त सामने से उसे जया और आशा आते हुए दिखाई दीं। और रोहित अपनी आँखें मुँह से लेकर बार-बार वह आयशा को देखने लगा था।

  • 15. billionaire Boss wifey - Chapter 15

    Words: 1

    Estimated Reading Time: 1 min

    और वह घूरकर आयशा को देखने लगा था। तब तक अहान, कबीर और जोया भी वहाँ आ गए थे। और जैसे ही जोया ने देखा कि आयशा घर से बाहर की ओर जा रही है, तो वह भी जाकर आयशा के पास खड़ी हो गई थी, और दादी की ओर देखकर बोली थीं, "दादी, आप गलत समझ रही हैं। देखिए, दादी, मैं जानती हूँ कि आप बीमार हैं और शायद बीमारी की वजह से ही, या आपकी दवाई की वजह से आप आयशा को अपना कोई रिलेटिव समझ रही हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। आप हमें जाने दीजिए, हमें घर जाना है।" अब जैसे ही जोया ने यह बात बोली, दादी तुरंत जोया को घूरकर बोली थीं, "तुम होते कौन हो मेरे और मेरी शहजादी के बीच में आने वाले? यह मेरी शहजादी यहाँ से कहीं नहीं जाएगी। अगर यह यहाँ से गई तो मैं भी इसके साथ जाऊँगी।" जैसे ही दादी ने यह बात बोली, अरमान के लिए वहाँ रुकना थोड़ा मुश्किल हो चुका था। उसी वक्त अरमान दादी के पास आया और दादी को घूरने लगा था, और फिर थोड़ा सा खुद को शांत करके बोला था, "ये लड़की जो है, गेस्ट रूम में जाएगी। जब तक दादी नहीं चाहेगी, तुम यहाँ से कहीं से कहीं तक नहीं जाओगी।" जैसे ही अरमान ने यह बोला, आयशा की हैरानी काफी ज़्यादा बढ़ चुकी थी, और वह गुस्से और नफ़रत के मिले-जुले भाव से अरमान की ओर देखकर बोली थीं, "तुम आखिरकार समझते क्या हो अपने आपको? मैं आपकी कोई नौकर नहीं हूँ। हाँ, मैं आपकी कंपनी के लिए काम करती हूँ और उसकी मुझे सैलरी मिलती है, सिर्फ़ इतना ही। लेकिन आपके घर पर रहने की मैं कोई पाबंद नहीं हूँ, तो क्यों रुकूँ मैं आपके घर पर?" हाँ, जैसे ही आयशा ने तू-तू, मैं-मैं के जवाब दिए, और अरमान जो पहले से ही गुस्से में था, उसका गुस्सा और बढ़ता जा रहा था। कहीं न कहीं आयशा यह देख चुकी थी कि अरमान पूरी तरह से ठीक हो चुका है। और अरमान उसके हँसने की वजह से ठीक हुआ है। यह बात आयशा को भी बहुत ज़्यादा हैरान कर रही थी, लेकिन वह इस बात का मतलब समझ नहीं पा रही थी कि आखिरकार अरमान से उसका रिश्ता क्या था, क्या थी उसके रिश्ते की सच्चाई? कहीं न कहीं अरमान के करीब रहकर वह सारा सच भी जानना चाहती थी, लेकिन इस तरह से बेइज़्ज़ती के साथ नहीं, बल्कि इज़्ज़त के साथ। वहीं अरमान तुरंत अपने चेहरे पर दो-तीन बार हाथ फेरने लगा था। अब आहान ने जैसे ही यह देखा कि अरमान कितने गुस्से में है, वह तुरंत आयशा की मिन्नतें करने लगे थे, और बड़े ही नरम स्वभाव से बोला था, "आयशा दीदी, प्लीज़ आज रात के लिए आप यहाँ रुक जाइए। देखिए ना, भाई वैसे ही बेहोश हो गए थे और अगर इस हालात में भाई इतना ज़्यादा स्ट्रेस लेंगे, तो यह उनकी सेहत के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं रहेगा। प्लीज़, आयशा दीदी अभीके लिए आप बस आज यहाँ रुक जाइए। प्लीज़। देखिए, अगर आप नहीं रुकीं, तो मैं समझूँगा कि आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है।" जैसे ही अहान ने बच्चों वाली शक्ल बनाकर यह बात बोली, आयशा ने कंट्रोल किया और अहान की ओर देखकर बोली, "ठीक है, मैं रुक जाती हूँ, लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे लिए।" अब यह बोलकर आयशा अरमान को एक किलर लुक देती हुई सीधा जाकर अरमान के सोफ़े पर बैठ गई थी, और वह सीधा उस सोफ़े पर बैठी थी जिस पर अरमान बैठा करता था। अब यह देखकर तो अरमान का पारा और बढ़ रहा था, लेकिन तुरंत कबीर ने अरमान का हाथ पकड़ कर उसके कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, "वह यहाँ रुक गई है, यही बहुत है। और अब प्लीज़ तुम उसे सोफ़े से फिर से मत उठा देना। कहीं ऐसा न हो, वह यहाँ से चली जाए। अगर वह यहाँ से चली जाएगी तो दादी को कैसे संभालेंगे? अभी फ़िलहाल तुम्हें अपनी सेहत पर ध्यान देना चाहिए। तुम्हारी बेहोशी की वजह से दादी स्ट्रेस में है और अहान भी अभी कितने बड़े खतरे से बचकर आया है। तो अभी के लिए तुम थोड़ा सा खुद को कूल रखो।" जैसे ही कबीर ने थोड़े से कम शब्दों में अरमान को यह बातें समझाईं, अरमान ज़्यादा कुछ ना बोलते हुए दादी की ओर देखने लगा था। वहीं दादी हल्का-हल्का आयशा को देखकर मुस्कुरा रही थीं। और अरमान यह बात बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, और सोच रहा था कि कहीं उसकी दादी नाटक तो नहीं कर रही है। दादी एक पल में तो एकदम बीमार हो जाती है, एक पल में वह बिल्कुल ठीक लगने लगती है, और एक पल में अजीब सी जिद कर बैठी है। क्योंकि अरमान को आज भी इसी तरह से ज़्यादा याद आती है जब लास्ट टाइम वाली मूवी देखी थी, तो कितनी बार, कितने दिनों तक दादी ने अरमान को बंदर बनकर परेशान किया था, और अरमान बंदर बना भी था, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी दादी की खुशियों के लिए। फिलहाल तो अरमान को बदसूरत लड़की के साथ दिल लगा रही थी, जिसे वह सह नहीं पा रहा था, क्योंकि आयशा की बदसूरती उसे बहुत ज़्यादा खटक रही थी, यह बात भी उसे हैरान कर रही थी। फिलहाल अब जोया भी आयशा के पास चली गई थी और उसकी ओर देखकर बोली थी, "क्या इरादा है ऐसा? क्या तुम पक्का यहाँ रुक रही हो?"

  • 16. billionaire Boss wifey - Chapter 16

    Words: 1920

    Estimated Reading Time: 12 min

    "इसीलिए उसने अपनी सबसे खूबसूरत काली शक्ति का इस्तेमाल किया था, ताकि वह महापुरुष - या फिर शंकर आर्य - दोनों में से किसी एक को अपने मोह में फँसा ले।

    अगर उसने किसी एक को भी अपने हुस्न के जाल में फँसा लिया, तो उनका अनुष्ठान पूरी तरह से बाधित हो जाएगा - और उन्हें शक्तियाँ नहीं मिल पाएँगी। इसी सोच के साथ उसने अपनी काली छाया को अब राजवंश राज्य में महाराज के महल में भेज दिया था। वहीं दूसरी ओर, घुड़सवारी करते वक्त युवान और संयोगिता कुछ ज़्यादा ही करीब आ गए थे। अब युवान का दिल पूरी तरह से संयोगिता को रास्ते में ही पाने के लिए मचल उठा था। उसके करीब होने पर, उसकी पीठ को उसके शरीर को खुद पर महसूस होने पर, उसके दिल में अजीब तरह की गुदगुदी होने लगी थी। तभी अचानक उसने घोड़े पर बैठे-बैठे ही संयोगिता की खूबसूरत सी कमर को चूम लिया था, और संयोगिता पूरी तरह से सहम उठी थी। हल्की सी घोड़े पर लगाम उससे ढीली पड़ गई थी, लेकिन अब युवान पूरी तरह से संयोगिता की खूबसूरती देखकर मदहोश होता जा रहा था। और तभी उसने संयोगिता के कानों में सरगोशी करते हुए कहा था, 'हमारा यह सफर तो लगातार दो से तीन दिन तक चलने वाला है, तो क्यों ना हम कहीं रुककर विश्राम कर लें?' जैसे ही युवान ने अपनी आँखों में मदहोशी लाते हुए यह कहा, संयोगिता कहीं ना कहीं युवान की बातों का मतलब समझ चुकी थी, और शायद उस वक्त वह भी वही चाहती थी कि युवान उसे छुए और उसके काफ़ी करीब आए। उसके अंदर के जज़्बात भी जाग गए थे। इसीलिए संयोगिता ने थोड़ी आगे चल रहे सैनिकों को कहा था कि वह यहीं से थोड़ी दूरी पर विश्राम के लिए जगह तैयार कर लें। वह लोग यहीं पर विश्राम करेंगे। अब यह सुनते ही सभी सैनिकों ने फटाफट से तंबू गाड़ने शुरू कर दिए थे, और युवान और संयोगिता के लिए उन्होंने अलग से एक तंबू क्रिएट कर दिया था। युवान संयोगिता के साथ की प्रतीक्षा कर रहा था, और जल्दी ही जैसे ही सभी सैनिक थोड़ा विश्राम करने के लिए घोड़े को थोड़ा चारा वगैरह खिलाने के लिए एक ओर ले गए थे, ठीक उसी वक्त अब मौका देखकर युवान ,संयोगिता को उस तंबू के अंदर ले आया था। तब संयोगिता युवान को देखकर कहा था, 'क्या बात है, हमारे प्रियतम! आप रास्ते में इस तरह की हरकत कैसे कर सकते हैं? हम जानते हैं कि आप हमें बहुत प्रेम करते हैं, लेकिन आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम किस कार्य के लिए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा इस तरह से करीब होना क्या ठीक है?' तभी संयोगिता को अपनी बाहों में भरते हुए युवान बोला था, 'अगर आप मेरे साथ हैं, तो हर स्थिति अच्छी है, सब कुछ ठीक है।' यह बोलकर जल्दी ही उसने संयोगिता को अपने बाहों में भरकर प्यार करना शुरू कर दिया था, और संयोगिता पूरी तरह से युवान की बाहों में एक आइसक्रीम की तरह पिघल हो चुकी थी। वहीं दूसरी ओर राजगुरु का इस वक्त अपने कक्ष में इधर-उधर टहल रहा था। उसका गुस्सा काफ़ी ज़्यादा बढ़ चुका था। वह किसी भी हाल में युवान और संयोगिता का पता लगाना चाहता था कि आखिरकार इस तरह से युवान और संयोगिता कहाँ जा सकते हैं। इस वक्त उसके हैरानी और गुस्से की कोई सीमा नहीं थी। जल्दी ही उसने जिंदा लाश विक्रम को बुलाने वाला मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया था, क्योंकि चांडालनी तो उसकी मदद के लिए नहीं आ सकती थी, लेकिन विक्रम आ सकता था। और कुछ ही पलों में विक्रम उसके सामने मौजूद था। तब राजगुरु उसकी ओर देखकर बोला था, 'मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इस तरह से युवान और संयोगिता कहाँ जा सकते हैं। क्या तुम पता लगाकर बता सकते हो कि इस तरह से वो लोग कहाँ गायब हो सकते हैं? मुझे तो कुछ ना कोई गड़बड़ लग रही है। कहीं वह उन्हें कुछ शक तो नहीं हो गया? क्या वाकई युद्ध होने भी वाला है या नहीं?' अब यह सुनकर विक्रम अचानक उसे हंसते हुए बोला था। वह मामूली सैनिक इतनी भी बुद्धिमान नहीं है और अप आप भूल रहे हैं वह मामूली सा सैनिक हमारी कुछ गलतियों की वजह से सेनापति बन गया है पर मुझे पूरी उम्मीद है कि उसमें इतनी बुद्धिमता नहीं है कि वह हमारा मुकाबला कर पाएगा।' यह बोलकर विक्रम पूरी तरह से हंसने लगा था। विक्रम को इतना और कॉन्फिडेंस देख कर कहीं ना कहीं राजगुरु को भी थोड़ी तसल्ली हुई थी, और उसे भी लगने लगा था कि शायद किसी ज़रूरी काम से वह वैसे ही कहीं गया होगा। लेकिन फिर भी राजगुरु का दिल में कुछ घुस गया था, और उसने विक्रम को देखकर कहा था, 'मैं कुछ नहीं जानता उसमें बुद्धिमत्ता है। यह पूरी तरह से मूर्ख है, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता। लेकिन पता करके बताओ कि इस वक्त वह कहाँ है।' अब जैसे ही विक्रम को राजगुरु ने आदेश दिया, तब विक्रम ने गहरी साँस ली और राजगुरु को देखकर बोला था, 'ठीक है, में अभी में बता देता हूं 1 मिनट।' यह बोलकर उसने जल्दी ही कुछ फूंक मारी थी, और देखते ही देखते एक सफेद रंग का धुआँ उस कमरे में उड़ने लगा था। उस धुएं को देखकर अब राजगुरु पूरी तरह से हैरानी से देखने लगा था कि क्या उसमें कुछ दिखाई दे रहा है या नहीं। तब विक्रम राजगुरु को देखकर बोला था, 'एक बार फिर सोच लो क्या तुम वाकई चाहते हो कि मैं जादू का इस्तेमाल करूं क्योंकि चांडालनी ने मुझे कहा था कि मैं सिर्फ एक ही बार इसमें किसी को भी देखने वाली जादू का प्रयोग कर सकता हूं।' अब यह सुनकर राजगुरु तुरंत सोच में पड़ गए, लेकिन सब उसके दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि भला इस तरह से राज्य इस तरह से सेनापति युवान और संयोगिता कहाँ जा सकते कहाँ जा सकते है। इसीलिए उसने विक्रम को देखकर कहा था, 'मैं कुछ नहीं जानता इसीलिए मगर मेरे लिए सबसे ज़्यादा कुछ ज़रूरी है, तो सिर्फ़ यह ज़रूरी है कि संयोगिता और युवान कहाँ गया। तुम देख कर बताओ।' अब यह बोलकर जैसे ही अब उसने उसे सफ़ेद धुएँ के अंदर कुछ मत्रों का इस्तेमाल किया, देखते-देखते संयोगिता और युवान इस वक्त कहाँ थे और क्या कर रहे थे, यह सारी चीज़ अब राजगुरु चिन्मय और वह जिंदा लाश विक्रम देखने लगा था। क्योंकि उस वक्त वह रास्ते में आराम करने के लिए रुक गए थे, और दोनों एक दूसरे के प्यार में पूरी तरह से खोए हुए थे। अब यह सब देखकर तो राजगुरु ने तुरंत अपनी मुट्ठी को कसकर बंद कर लिया था वही विक्रम पूरी तरह से आग उगलने लगा था और वह राजगुरु को देखकर बोला था, 'क्या यही सब दिखाने के लिए तुमने मुझे यहाँ बुलाया था? तुम अच्छी तरह से जानते हो राजकुमारी को मैं किसी के साथ बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं, और तुमने मुझे यह सब दिखाने के लिए बुलाया है।' इस वक्त विक्रम यानी उस जिंदा लाश को बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था, और अचानक कि वह अपनी आग उगलती राजगुरु पर डालने के बाद वहाँ से गायब हो गया। वहीं राजगुरु ने कहीं ना कहीं उन दोनों को एक साथ देखकर उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उसने फिर भी राहत की सांस साथ ली थी वरना उसे लगने लगा था कि कहीं ना कहीं वह लोग कुछ अलग तरह की खिचड़ी तो नहीं पका रहे, लेकिन अब यह देखकर कि राजकुमारी तो युवान के साथ भ्रमण करने के लिए गई है कहीं ना कहीं राजगुरु चिंता से मुक्त हो गया था। साथ-साथ उसके दिमाग में अभी भी यह सवाल रखा हुआ था कि इतनी बड़ी युद्ध की स्थिति राज्य पर होने के बावजूद भी इस तरह से घूमने के लिए कैसे जा सकते है। फिलहाल उसने अब उनकी तरफ से अपना ध्यान हटा लिया था तो उसे पर किसी से किसी तरीके से युद्ध की तैयारी करने लगा था और महारानी गायत्री को किस तरह से अपने बेड तक लेकर आना है इस बारे में सोचने लगा था। वहीं दूसरी और आधुनिक जिंदगी में जैसे ही अविका ने अर्जुन को यह बोला कि वह उसे कुछ टिप्स लेना चाहती है, तो फिर क्लास लेना चाहती है, तब अर्जुन ने गहरी नज़रों अविका को देखा बोला था, 'ठीक है, वैसे भी आपने एक बार मेरी मामी से बचा कर मेरी मदद की थी, तो मैं भी आपकी मदद ज़रूर करूंगा और जब भी आपको मेरी ज़रूरत हो कुछ भी नोटस आपको लेने हो तो आप मुझे कांटेक्ट कर सकती है।' यह बोलकर बिना रुके तुरंत ही उसे पार्क से बाहर निकल गया था। वही अब मोनिका और टीना दोनों गुस्से से बोली थी, अविका यह क्या हरकत थी तुम ये कैसे कर सकती हो तुम्हें क्या जरूरत थी उस भद्दे से दिखने वाले लड़के से इस तरह से टिप्स मांगने की, शहर में कोचिंग सेंटर है टीचर है तुम उनसे भी तो क्लासेस ले सकती हो एक्स्ट्रा क्लास ले सकती हो इस तरह से उसे मदद मांगने की क्या जरूरत है।' तो अविका ने केवल मोनिका और टीना को एक नॉर्मल मुस्कान दी और बोली थी 'मैं तुम लोगों को इसके बारे में बाद में बताऊंगी।' यह बोलकर जल्दी ही वह वहाँ से बाहर निकल गई थी। वही मोनिका और टीना दोनों ही कीलस कर रह गई थी फिलहाल अर्जुन जीसका मूड थोड़ा सा अब काफ़ी हद तक ठीक-ठाक सा हो गया ,तब वापस से वह घर आ गया था। जैसे वह घर आया उसने देखा आज उसके लिए उसकी मामी ने अलग-अलग तरीके के पकवान बनाकर रखे हुए थे और वह अपने चेहरे पर झूठी मुस्कुराहट के साथ और उनका अर्जुन का स्वागत करते हुए बोली ' अर्जुन बेटा तुम आ गए फटाफट से आओ देखो आज मैंने तुम्हारी पसंद का सारा खाना बनाया है तुम्हें मटर पुलाव पसंद है ना देखो मैं तुम्हारे लिए उसके साथ सात दाल मखनी साथ-साथ तुम्हारा फेवरेट पनीर टिक्का भी बनाया है देखो देखो तुम्हें बहुत पसंद आएगा।' यह बोलते हुए राधिका पूरी तरह अपने मुँह से शहद टपका रही
    थी ।
    पलेकिन उसकी आँखों की क्रूरता अर्जुन से छिपी नहीं रही थी। अर्जुन ने गहरी साँस ली और उस खाने की और देखा और तुरंत ही खाना खाने के लिए बैठ गया । उससे ज़ खाना-वाना खाने के बाद उसने राधिका को किसी तरह का कोई लूक नहीं दिया और सीधा अपने कमरे में जाने लगा था। अब तो राधिका पूरी तरह से भून गई थी वह तो यहाँ अपने पति को थोड़ा खुश करने के लिए इस तरह से अर्जुन के साथ बर्ताव कर रही थी ताकि अर्जुन फिर से उन लोगों के बारे में पूछताछ ना करें, जिन्होंने उन्हें सोपा था उसके बचपन में। क्योंकि सुनील जी नहीं चाहते थे कि अर्जुन किसी भी कीमत पर जहाँ से जाए और सुनील जी इस बात से राधिका से बहुत ज़्यादा गुस्सा थे क्योंकि राधिका ने शुरू से ही अर्जुन के साथ नौकरों से भी ज़्यादा बदतर व्यवहार किया पर अर्जुन पहले जिस तरह से वह कमजोर था और राधिका से डरता था सुनील से भी डरता था और सारी बातें मानता था, लेकिन आप अब तो सब कुछ बदल चुका था।" अब अर्जुन के तेवर पूरी तरह से बदल चुके थे, और यही बात सुनील जी को पूरी तरह से डरा गई थी, क्योंकि वह अर्जुन जैसे सोने का अंडा देने वाले मुर्गे को अपने घर से किसी भी कीमत पर जाने नहीं देना चाहते थे। और अगर एक बार अर्जुन ने अपने परिवार के बारे में पता लगा लिया तो सब कुछ बर्बाद हो जाना था। और तभी?

  • 17. billionaire Boss wifey - Chapter 17

    Words: 2100

    Estimated Reading Time: 13 min

    फिलहाल, जैसे ही अरमान वहाँ आया और उसने देखा कि आस्था इस वक्त दादाजी के साथ बैठी है, दादाजी बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ फेर रहे हैं—यह देखते ही अरमान के माथे पर बल पड़ गए।

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    और वह सोचने लगा कि यह लड़की आखिरकार है क्या! यह मेरे दादा को भी मैंनूप्लेट करने से पीछे नहीं हटेगी। हां, फिलहाल अरमान तुरंत वहां आकर अकड़ से बोला था – "क्या हो रहा है यहां पर? दादाजी! और, आप इस लड़की के सर पर हाथ फेर रहे हैं? मुझे समझ में नहीं आता कि यह आपके साथ क्या कर रही है।"

    जल्दी ही आस्था ने अपने आंखों में आए आंसुओं को पोंछ डाला था और सोचने लगी थी कि इस वक्त मिस्टर सिंघानिया वापस से कैसे आ सकते हैं, क्योंकि अभी तो दोपहर का ही वक्त है और इस वक्त यह कैसे आ गए? और अगर इन्होंने आकाश भैया, सुमित भैया या ध्रुव वहां के बारे में पूछ लिया तो वो क्या जवाब देगी ,अब आस्था जल्दी से बोली थी आप आप इस वक्त यहां कैसे आ गए , ये तोआपका ऑफिस टाइम है न– आप इस वक्त घर कैसे आ सकते हैं? आज तो आपकी खुराना इंडस्ट्रीज के साथ और साथ ही साथ वर्मा अंपायर के साथ भी आपकी तीन मीटिंग थी, तो आपको तीनों मीटिंग छोड़कर कैसे आ सकते हैं? और मीटिंग तो 2:00 बजे के बाद स्टार्ट होंगे ना!

    जैसे ही आस्था ने अरमान के आज के शेड्यूल की डेट अरमान को बताई, अरमान की तो आंखें फटने को तैयार थी। वह सोचने लगा था कि इस लड़की की इतनी हिम्मत! की मुझ पर जासूसी कर रही है? इसे कैसे पता चला कि मेरी इतने सारे मीटिंग्स कैंसिल करके आया हूं? ऐसा कैसे हो सकता है?

    और वह तुरंत आस्था के बेहद करीब जाकर खड़ा हो गया। एक पल के लिए आस्था और अरमान की सांस आपस में घुलने लगीं, लेकिन अरमान ने तुरंत अपनी फीलिंग को इग्नोर करके अपने दिमाग से काम लेते हुए आस्था को बोला था – तुम्हें यह कैसे पता चला कि मेरी सबके साथ मीटिंग है? तुम मेरी जासूसी कर रही हो? कौन हो तुम? सही से जवाब दो मुझे! इस बात का मुझे तुम पर पहले दिन से ही शक है। कुछ-ना-कुछ तो है तुम्हारे साथ, जो इस तरह से तुमने मेरे पूरे घर वालों को अपने चक्कर में फंसा लिया है। मुझे साफ-साफ बताओ तुम्हें कैसे पता चला कि मेरी आज उन इंडस्ट्रीज के साथ मीटिंग है?"

    अरमान गुस्से से भर गया था। क्योंकि वह जाकर क्या काम करने वाला था, उसकी पूरी डिटेल ऑर्डर आस्था उसके ऑफिस से ले लिया करती थी। क्योंकि ऑलरेडी आस्था ने, आ अरमान का पूरा ऑफिस सहेजा हुआ था। अरमान सिंघानिया ने खुद आस्था को जो लैपटॉप दे रखा था, उसमें उसने पहले ही सारे उसके वर्क डिटेल्स भर रखे थे, जो सीधा-सिधा अरमान सिंघानिया के लैपटॉप से ही कनेक्ट था।

    तो आज तक अरमान की सारी मीटिंग्स, सब चीजों के बारे में आस्था को अच्छी तरह से पता हुआ करता था कि कब क्या करना है। इतना ही नहीं, अरमान की जिसके भी साथ मीटिंग हुआ करती थी, आस्था खुद उसे पर्सनली फोन करके पहले इस बात के बारे में इनफार्मेशन दे दिया करती थी कि कोई भी डील कैंसिल न की जाए। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि अरमान को बिल्कुल भी इस बात का एहसास हो कि वह अपनी खास यादें खो चुका है।

    तो पूरी तरह से आस्था, अरमान का भी प्रोफेशनली, उसके वर्क प्रोग्रेस में भी पूरी तरह से ध्यान रख रही थी – वह भी अरमान को बिना बताए। फिलहाल, आस्था ने गहरी सांस ली और जल्दी से बोल पड़ी थी – "नहीं-नहीं मिस्टर सिंघानिया, शायद आप भूल रहे हैं, आपने मुझे खुद कहा था कि मैं आपके सारे वर्क डिटेल्स तैयार रखूं। और इतना ही नहीं, आपके ऑफिस से हमेशा मुझे आपके वर्क शेड्यूल की कॉपी आ जाती है, ताकि वक्त आने पर मैं आपको याद दिला सकूं।"

    जैसे ही आस्था ने गोल-गोल आंखें घुमाकर जो भी उसे पहला शब्द मिला, उसने फटाफट से अरमान के सामने एक्सप्लेन कर दिया। अब तो अरमान पूरी तरह से कंफ्यूज हो गया था, क्योंकि उस की बातों पर उसे कुछ खास यकीन नहीं आ रहा था।

    लेकिन ठीक उसी वक्त दादाजी आगे आए और बोले थे – "अरमान! अगर तू घर आ ही गया है तो बेटी से ने अगर पूछ लिया कि इस वक्त अपनी मीटिंग छोड़कर क्यों आया है? तो क्या जरूरत है तुझे बात आगे बढ़ाने की?"

    अब दादाजी ने अरमान का ध्यान डायवर्ट किया और अरमान दादा जी को देखते हुए बोला था – "अच्छा ठीक है दादाजी, वैसे भी आपको इस लड़की की बातें ही सही लगेंगी। जब से मैं देख रहा हूं, यह लड़की घर के अंदर ज्यादा ही अनमोल नहीं हो गई? मुझे समझ में नहीं आता, इसे ये हक दिया तो दिया किसने?"

    तभी दादाजी अचानक ही बोल पड़े थे – "तूने दिया उसे इतना हक!"

    अब फिलहाल अगर तू घर आ ही गया है, तो अच्छी बात है, क्योंकि मैं तुझे ही फोन करने वाला था। एक काम कर – तू फटाफट से आस्था बेटी को ले और इसको आज जन्माष्टमी का त्यौहार है, तो इसको ले जाकर कुछ शॉपिंग वगैरह और नई साड़ी दिला ला।

    अरमान पूरी तरह से हैरान हो गया। उसने अपना सर खुजाने लगा और सोचने लगा कि कहीं उसके दादा का दिमाग तो नहीं चल गया है। वह उनके शब्द सुनकर अपने मुंह से कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।

    तभी दादाजी अच्छी तरह से समझ गए और बोले थे – "क्या हुआ तुझे? क्या सुनाई नहीं दिया?"

    अरमान का गुस्सा काफी हद तक बढ़ चुका था। वह तुरंत ही बोला था – "दादाजी, आखिरकार आपको हो क्या गया है? आप चाहते हैं कि मैं एक मामूली सी केयरटेकर को, जो कि मेरे ही रहमों-करम पर इस घर में पल रही है और साथ ही साथ अपना बच्चा भी यहां लेकर आई हुई है, उसको लेकर शॉपिंग पर जाऊं? आपने मुझे समझ क्या रखा है दादाजी? क्या भूल गए कि मेरा नाम अरमान सिंघानिया है?"

    जैसे ही अरमान ने डांट भरे लहजे में कहा, दादाजी को उस पर काफी हंसी आई। लेकिन उन्होंने अपनी हंसी अपने चेहरे पर नहीं आने दी और अपना चेहरा पूरी तरह से इमोशनलेस करके बोले थे – "मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू अरमान सिंघानिया है। लेकिन तू शायद भूल रहा है कि बच्चे की जिम्मेदारी तूने ली थी, जब तक उसका पति ढूंढ कर उसके पास नहीं लाया जाता। तो तब तक इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से तेरी ही है। अब मैं तुझे नहीं तो किससे कहूंगा? आकाश, सुमित, ध्रुव – आहान वह भी घर पर नहीं हैं, वे भी अपने किसी काम से चले गए हैं। तो फिर मैं किससे बोलूंगा? हां, और वैसे भी… आस्था बेटी, तुम जाओ तैयार होकर आओ और फटाफट से अरमान के साथ जाकर आज शाम के लिए कपड़े-सामान, जो भी खरीदना है, खरीद कर ले आओ। ठीक है?"

    अब जैसे ही दादाजी ने यह कहा, आस्था पूरी तरह से सोच में पड़ गई थी कि आखिरकार दादाजी क्या करने की कोशिश कर रहे हैं। और तभी अरमान का चेहरा देखकर आस्था बोली थी – "नहीं-नहीं दादाजी, रहने दीजिए। मिस्टर सिंघानिया को परेशानी होगी। मैं अकेली चली जाऊंगी शॉपिंग करने, कोई मसला नहीं है।"

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    जैसे ही आस्था ने यह कहा, अरमान के माथे पर बल पड़ गए। वह सोचने लगा था कि वह यहाँ जल्दी सिर्फ इस लड़की पर नजर रखने के लिए आया था। अगर वह शॉपिंग पर चली जाएगी तो उसे उस पर नजर कैसे रखेगा? और दादाजी का कह रहे हैं तो क्यों न मैं उसे शॉपिंग पर ले जाऊँ—और फिर वहाँ पर मुझे इस लड़की के बारे में सारी बातें अच्छी तरह से पता चल जाएँगी; पता चल जाएगा कि वह किससे मिलती है, जरूर यह बाहर निकलकर किसी दोस्त यार को बुलाएगी और उसके साथ किसी न किसी तरह की गुटर- गु करने की कोशिश करेगी। और इस वक्त मैं इसके खिलाफ सबूत पक्का collect कर लूँगा और मेरे घर वालों के दिल-दिमाग पर जो इस लड़की और उसके बच्चे के नाम की भरोसे और प्यार की पट्टी बँधी हुई है, वह पूरी तरह हट जाएगी। और उसके बाद में सब लोगों को बताऊँगा कि 2 साल पहले बच्चा कैसे हुआ, यह बच्चा किसका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सच बाहर आ जाएगा।

    अरमान अपने आप में पूरी तरह सोच में गुम था। कल रात के बाद वह काफी हद तक हैरत। में था, क्योंकि जिस तरह से अरमान ने कल रात अंश को छुपाया था, यह बात उसके दिमाग से जा ही नहीं रही थी। वह सोच रहा था आस्था इतनी आसानी से अरमान को माफ कैसे कर सकती थी, जबकि मैंने तो उससे माफी भी नहीं मांगी थी।

    फिलहाल दादाजी कुछ सोचते हुए बोले—“अरमान बेटा, अगर तूने इसकी जिम्मेदारी ली है तो इस तरह से पीछे नहीं हट सकता। तू जा और बच्ची को शॉपिंग करा कर लेकर आ।”

    अरमान गहराई से आस्था पर नजर डालते हुए बोला—“लेकिन दादाजी, मैं मना कर चुका हूँ कि इस घर में कोई त्यौहार नहीं मनाया जाएगा। तो फिर कैसा त्यौहार, किसलिए शॉपिंग करनी है?”

    दादाजी ने तुरंत ही अरमान की बात सुनकर अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा—“रे बेटा, हम तेरे मेंशन में कोई त्यौहार नहीं मना रहे हैं। तुझे इसके बारे में ज्यादा कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। तू जाओ, फटाफट से बेटी को जो भी खरीदना है, दिलाकर लाओ। और वैसे भी, उसने अपने कान्हा जी के लिए कपड़े बना रखे हैं और अपने बेटे के लिए भी बना लिए हैं। पर अगर वह अपने पति के लिए कुछ खरीदना चाहती है तो ले आओ। सुन—बच्ची का उपवास है, तो पूरा दिन इसका ध्यान रखना।”

    दादाजी ने जब सीधे-सीधे अरमान को निर्देश दिया तो अरमान पूरी तरह मजबूर हो गया और बिना किसी भाव के बोला—“ठीक है। मैं सिर्फ पाँच मिनट इंतजार करूँगा। अगर पाँच मिनट के अंदर यह लड़की तैयार होकर नहीं आई तो मैं इसे लेकर नहीं जाऊँगा।”

    यह सुनकर दादाजी मुस्कुरा दिए। वहीं आस्था के चेहरे पर भी एक अनचाहा सा मुस्कुराहट उभर आया। अब वह देर न करते हुए अपने कमरे की ओर भागी—भला अरमान के साथ शॉपिंग जाने का मौका कैसे छोड़ सकती थी?

    रही बात उसकी नाराज़गी की, तो आस्था ने सोच लिया था कि जब अरमान शॉपिंग पर निकल रहा है तो अंश वाली बात को लेकर आज वह पूरी तरह अरमान से बदला लेगी। वह इतनी आसानी से इस बात को कैसे जाने दे सकती है कि अरमान ने उसके बेटे को छुपाकर उसके दिल को ऐसे कैसे धड़काया।

    फिलहाल, तीन मिनट के अंदर—फटाफट से—आस्था चेंज करके अरमान के सामने मौजूद थी। अरमान ने एक नजर में देखा तो क्या—आस्था ने कुछ खास मेकअप नहीं लगाया था।उसकी खूबसूरत बड़ी-बड़ी आँखों में केवल काजल ही सजा हुआ था और उसके गुलाबी होठों को किसी मेकअप की जरूरत ही नहीं थी। वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। हाँ, उसकी कद-काठी थोड़ी कम थी—जो कि अरमान के सीने तक ही जाती थी; क्योंकि जब पहले वह गले लगती थी तो उसे अरमान की धड़कन साफ महसूस होती थी। अरमान कहता भी था कि अगर उसकी थोड़ी और हाइट उससे मिलती तो और अच्छा होता तब आस्था नाराज़ होकरकहती की उसेइतनी हाइट पसंद है क्योंकि कम से कम आस्था उसके सीने पर अपना सिर रखकर उसके दिल की धड़कन तो सुन सकती थी।

    फिलहाल इस बात पर अरमान उसे दिल खोलकर प्यार किया करता था, पर आज आस्था सिर्फ मन में ही ये बातें सोच रही थी। एक बार फिर सारी बातें याद आने पर उसका मन हल्का-सा हिचका और वह जल्दी से अरमान के साथ उसकी गाड़ी की पीछे वाली सीट पर बैठ गई।

    अरमान के माथे पर फिर बल पड़ गया। उसने आज तक किसी भी लड़की को अपनी गाड़ी की पीछे वाली सीट पर नहीं बिठाया था, पर आस्था के साथ बैठते ही वह असहज महसूस कर रहा था। फिर भी वह आस्था पर पूरी नजर रखकर उसका असली चेहरा सबके सामने लाना चाहता था, इसलिए उसने कड़वा घूँट पी लिया और आस्था के साथ पीछे वाली सीट पर बैठ गया।

    फिलहाल गाड़ी बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की ओर रवाना हो चुकी थी। वहीं दूसरी ओर, आहान और रौनक को शॉपिंग से पहले सीधे डॉक्टर के पास ले जाया गया था। आज वहाँ पर स रौनक को एक इंजेक्शन भी लगाया जाना था। जब डॉक्टर ने रौनक को इंजेक्शन के बारे में बताया, तो रौनक पूरी तरह से दहशत में आ गई—क्योंकि उसे इंजेक्शन से बहुत डर लगता था। वह तुरंत आह्नान का हाथ पकड़कर बोली— कुछ करो यार, मुझे इंजेक्शन नहीं लगवाना। तुम डॉक्टर से बोलो न कि दवाई दे दें, मैं दवाई खा लूंगी, या फिर पूरा सिरप पी लूंगी।”

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  • 18. billionaire Boss wifey - Chapter 18

    Words: 2115

    Estimated Reading Time: 13 min

    यह सब बातें याद आते ही आज अचानक से अभिमान जी के गाल अपने आप ही लाल हो उठे। वहीं, वसुंधरा, जो थोड़ी ही दूरी पर खड़ी थी, उसे भी अपने कॉलेज वाले दिन याद आने लगे थे।

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    और वह भी सोचने लगी थी कि वह भी क्या दिन थे, किस तरह से वह अपनी लाइफ पहले गुजारा करती थी। फिलहाल वसुंधरा ने गहरी सांस ली और अपना काम करने लगी थी। लेकिन तभी दादाजी की आवाज वहाँ सुनाई दी थी। दादाजी भी वहीं आ गए थे। दादाजी को वहाँ आया हुआ देखकर अब नानी मां मुस्कुराने लगी थी क्योंकि दादी जी की गोद में कोई और नहीं बल्कि अंश मौजूद था। क्योंकि थोड़ी ही देर बाद वह उठकर बैठ गया और तब दादाजी के दिमाग में ऑलरेडी एक आईडिया आ चुका था। तो देर ना करते हुए वह अंश को लेकर नानी मां के पास आए और बोले थे—

    “बहन जी, यह आप लोग इतने काम यहाँ पर करवा रहे हैं, तब तक आप लोग अंश बेटे को भी संभालिए। मुझे लगता है कि आस्था बेटी को भी अपने लिए कुछ न कुछ सामान खरीद कर ले आना चाहिए, इसलिए मैं उसे भी शॉपिंग के लिए भेज रहा हूँ।”

    यह सुनकर नानी मां चौंकते हुए बोली थी—

    “लेकिन भाई साहब, आप गोरी बिटिया को शॉपिंग के लिए किसके साथ भेजेंगे? और शायद आप भूल रहे हैं, दामाद जी को पता चल गया तो वह अच्छा-खासा बवाल मचा सकते हैं। उन्हें तो यही लगता है कि हम लोग बहुत गरीब हैं और हमारे पास कोई पैसे वगैरह नहीं हैं, तो हम लोग शॉपिंग कैसे करेंगे—!”

    नानी मां की बात सुनकर दादाजी बोले—

    “बहन जी, आप क्या कहने की कोशिश कर रही हैं, मैं आपकी बात समझ भी रहा हूँ। लेकिन मैं भी तो अरमान सिंघानिया को अच्छी तरह से जानता हूँ। कि किस तरह से वह मेरे काबू में आएगा। फिलहाल आप यह लीजिए अंश बेटा को ख्याल रखिए और अच्छे से साफ-सफाई करवा लीजिए।”

    यह कहकर दादाजी ने गहरी नजरों से वसुंधरा को देखा और वहाँ से वापस आ गए। वहीं अभिमान जी ने तुरंत अंश को आगे ले लिया और उसे प्यार करने लगे थे। अचानक ही अंश को प्यार करते-करते उनकी आँखें भर आईं और नानी मां की ओर देखकर बोले—
    नानी मां, यह भी कितना प्यारा एहसास है ना। औलाद इतनी प्यारी नहीं होती, जितनी प्यारी औलाद की औलाद हो जाती है। जब-जब अंश को गोद में लेता हूँ, ऐसा लगता है कि मेरे आस-पास सिर्फ सुकून और शांति है। मुझे अंश के अलावा अपनी जिंदगी में और कोई नहीं चाहिए।”

    अब जैसे ही अभिमान जी ने उसे गोद में लेकर इस तरह की बातें करना शुरू किया, अंश बिल्कुल खिलखिलाकर हंस दिया था। वहीं वसुंधरा भी अब खेलते हुए अंश को देखने लगी थी क्योंकि एक वक्त था जब वसुंधरा अपने बेटे अरमान से बहुत प्यार किया करती थी। आखिरकार उसने अरमान को 9 महीने अपनी कोख में पाला था। अपने बच्चों को लेकर उसके कितने ही सपने थे। फिर धीरे-धीरे अरमान जब उसकी जिंदगी में आया तो खूब दिल खोलकर उस पर प्यार लुटाया था। लेकिन कब धीरे-धीरे उसका प्यार उसकी महत्वाकांक्षाओं पर भारी पड़ गया और महत्वाकांक्षाओं के नीचे दबकर रह गया, यह उसे कब एहसास ही नहीं रहा। उसी के चक्कर में उसने अपनी जिंदगी तबाह कर दी और बहुत कुछ खो दिया।

    फिलहाल वह अंश को देखने लगी थी। वहीं नानी मां भी अपनी चतुर नजरों से वसुंधरा को नोटिस कर रही थी कि यह औरत कब क्या कर रही है। वसुंधरा जी तिरछी नजरों से बार-बार उसे देख रही थी। नानी मां समझ चुकी थी कि इस लालची औरत के अंदर की ममता अब निकलकर बाहर आ रही है। लेकिन नानी मां तो नानी मां थीं, वह भला इतनी आसानी से वसुंधरा को चैन कैसे लेने देतीं।

    इसलिए नानी मां ने वसुंधरा को देखकर बोला—

    “कहीं ना कहीं, हाँ, यही सही समय है।”

    इशारे से वसुंधरा को अपने पास बुलाया, फिर बोलीं—

    “एक काम कर। अभी-अभी यह सो कर उठा है और सोकर उठने के बाद बच्चों को सबसे ज्यादा भूख लगती है। तो तू फटाफट से बच्चों के लिए दूध बनाकर ले आ। देख, यहाँ पर अभी तो खाना-पीने का सिस्टम शुरू नहीं हुआ है रघुवंशी मेंशन में। इसलिए बच्चे के लिए दूध-वगैरह लेने के लिए सामने सिंघानिया मेंशन में ही जाना होगा। तू जाकर बच्चे के लिए दूध ले आ, फिर हम इसको पिला देंगे।”

    यह सुनकर वसुंधरा के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कुराहट आ गई। ना जाने क्यों वंश के लिए छोटे-छोटे काम करना उसे अब कुछ खास पसंद आने लगा था। उसे अच्छा लगने लगा था। अगर वसुंधरा गुस्से या नफरत में होती तो अब तक मन ही मन नानी मां को कितनी बातें सुना चुकी होती और अपनी भड़ास निकाल चुकी होती। लेकिन फिलहाल वह चुप रही। जल्दी से अभिमान को देखते हुए तुरंत ही दूध लेने के लिए सिंघानिया मेंशन चली गई।

    वहीं नानी मां तिरछा-सा मुस्कुराकर बोली—

    “बेटा, तुम देखना, इस वसुंधरा की मैं तुम्हें इतनी रेल बना दूँगी कि इसे उस दिन के लिए पछतावा होगा, जिस दिन इसने तुम्हें पहली बार धोखा दिया था।”

    अब नानी मां की बात सुनकर अभिमान जी केवल मुस्कुरा कर रह गए और एक बार फिर अंश के साथ बिज़ी हो गए।


    वहीं दूसरी ओर, आस्था अपने कमरे में मौजूद थी और मायूस-सी बिस्तर के किनारे पर बैठी थी। हालांकि वह भी थोड़ी देर के लिए अपने कमरे में आराम करने आई थी ताकि रात में जागरण में आराम से जा सके। इसीलिए वह कुछ देर के लिए विश्राम करना चाहती थी, लेकिन कमरे में आते ही उसे एक बार फिर अरमान सिंघानिया की याद सताने लगी।

    स्पेशली तब, जब अरमान ने उसके साथ वह बर्ताव किया था। आस्था सोचने लगी—“कहीं अरमान ने सच में मेरे बेटे के साथ कुछ कर तो नहीं दिया? क्योंकि अरमान को तो यह याद ही नहीं है कि असल मे अंश उसका भी बेटा है, बल्कि उसकी जान है।”

    आस्था अब जल्दी-जल्दी कमरे में टहलने लगी थी, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो करे क्या। भले ही आकाश, सुमित और ध्रुव आहान ने अपने आदमियों को पूरी तरह सतर्क कर दिया था और उस पागल डॉक्टर राजवीर जिंदल को खोजने में लगा दिया था, लेकिन पूरे शहर भर में कहीं भी राजवीर जिंदल का नाम-निशान नहीं मिला। यहाँ तक कि उसका जो पुराना ठिकाना मिला था, वहाँ पर भी आकाश ने कुछ आदमियों के साथ जाकर पर्सनली चेक किया, लेकिन वहाँ भी उसका कोई नामोनिशान नहीं था।

    क्योंकि उसके डार्क विला को तो बहुत पहले ही अविनाश और अबीर सिंह राठौड़ ने मिलकर आग लगा दी थी। आस्था पूरी तरह कन्फ्यूज़ थी और सोच रही थी कि उसकी ज़िंदगी न जाने अब कौन-सा मोड़ ले चुकी है। वह बस जल्दी से जल्दी एक बार फिर अपना हँसता-खेलता परिवार वापस चाहती थी। वह ठान चुकी थी कि चाहे उसे कुछ भी करना पड़े, वह अरमान को अपनी ओर आकर्षित करके रहेगी। अगर उसकी किस्मत में अपने पति को एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार पाना लिखा है, तो वह दूसरी बार भी उसके दिल को जीतकर रहेगी।

    कभी अरमान की पुरानी यादें याद करके आस्था थोड़ा-सा मुस्कुरा देती थी, लेकिन उसके दिल की हालत इस वक्त काफी अजीब हो रही थी। फिलहाल देर ना करते हुए उसने सोचा कि जाकर एक बार अंश को देख ले। जैसे ही वह नीचे आई, उसने दादाजी को अकेले हॉल में बैठे हुए देखा। पूरा का पूरा मेंशन काफी खाली-खाली लग रहा था क्योंकि पहले ही आस्था ने सभी कपल्स को शॉपिंग करने और डॉक्टर के पास भेज चुके थे। बाकी जो घर के लोग बचे थे, वे सब रघुवंशी मेंशन में साफ-सफाई कर रहे थे।

    आस्था मायूस-सी आकर दादाजी के सामने बैठ गई। दादाजी ने उसकी मायूसी महसूस कर ली थी, लेकिन वह जानते थे कि अगर वे भी आस्था के सामने दुखी हो जाएंगे तो आस्था और ज्यादा मायूस हो जाएगी। इसलिए उन्होंने हल्का-सा मुस्कुराकर कहा—

    “आस्था बेटी, मैं जानता हूँ बच्चा कि तुम बहुत परेशान हो। लेकिन मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम्हें इस तरह दुखी या परेशान नहीं रहना है। तुम हम सबकी हिम्मत और ताकत हो। यह बातें हम तुम्हें पहले भी कई बार कह चुके हैं। तुम्हें बताने की कोई जरूरत नहीं है कि तुम हमारे लिए क्या हो, इस परिवार के लिए क्या कर सकती हो। और सबसे बड़ी बात, तुम अरमान के लिए क्या हो। अरमान की साँसें सिर्फ तुममें बसती हैं, बेटा। अब मेरी बात ध्यान से सुनो—मैं चाहता हूँ कि तुम कुछ ऐसा करो जिससे तुम अरमान के कमरे में उसके साथ रहना शुरू कर दो। चाहे तुम उसे शादी का सच बता दो या कुछ भी करो, लेकिन अब तुम्हें अरमान के साथ उसके कमरे में रहना ही होगा। क्योंकि जब तुम उसके साथ रहोगी, तो मुझे पूरी उम्मीद है कि उसका दिल एक बार फिर तुम्हारे लिए धड़केगा।”

    यह सुनकर आस्था की आँखें भर आईं। जल्दी से बात बदलते हुए वह बोली—

    “दादाजी, मैं अभी आती हूँ। मैं अंश को देखकर आती हूँ। नानी मां उसे सुला कर गई थी।”

    दादाजी ने उसे रोकते हुए कहा—

    “जरूरत नहीं है, इधर आओ। अंश बेटा यहाँ नहीं है। मैं पहले ही उसे अभियान और बहन जी के पास भेज चुका हूँ। वे दोनों उसका ख्याल रखेंगे। तुम बस एक काम करो—फटाफट से तैयार हो जाओ और अपने पति अरमान सिंघानिया के साथ जाकर शॉपिंग करो।”

    यह सुनकर आस्था कन्फ्यूज़-सी दादाजी की ओर देखने लगी। तब दादाजी ने उसे पास बुलाया और बोले—

    “यहाँ आओ बेटी।”

    यह कहते हुए उन्होंने आस्था का हाथ थामा। आस्था घुटनों के बल बैठकर दादाजी के पास आ गई। दादाजी ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और बोले—

    “तुम तो जानती हो ना कि उस नालायक का दादा हूँ मैं। और वह मेरे लिए कुछ भी कर सकता है। यह बात तुम भी अच्छी तरह जानती हो। अब देखो मैं किस तरह उसे बातों में उलझाकर तुम्हारे साथ शॉपिंग करने भेज दूँगा। फिर देखना, वह तुम्हारे साथ जाएगा। जितना समय वह तुम्हारे साथ स्पेंड करेगा, मुझे पूरी उम्मीद है कि उसका दिल एक बार फिर तुम्हारी ओर आकर्षित होगा। और फिर देखना—सब ठीक हो जाएगा।”

    कहीं ना कहीं, दादाजी अपने मरहम भरे शब्दों से आस्था के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की पूरी कोशिश कर रहे थे ताकि आस्था खुद को बिल्कुल भी अकेला महसूस ना करे। फिलहाल दादाजी ने आस्था के सर पर एक बार फिर प्यार से हाथ रखा और बोले—

    “हम हैं ना बेटा, हम सब ठीक कर देंगे।”

    तभी दादाजी आस्था से बातें कर ही रहे थे कि एक सेवक ने आकर बताया—

    “अरमान सिंघानिया पूरी रफ्तार से, गुस्से और बेचैनी में, सिंघानिया मेंशन की ओर आ रहे हैं।”

    असल में ऑफिस में भी अरमान का दिल नहीं लग रहा था। रह-रहकर उसके सामने अंश का चेहरा, घरवालों का उसे गोद में खिलाना, उसकी इतनी केयर करना—स्पेशली आस्था का उसमें शामिल होना—ये सारी बातें उसे बहुत बेचैन कर रही थीं। उसे लग रहा था कि कुछ ना कुछ तो उससे छुपाया जा रहा है।

    लेकिन अरमान सिंघानिया हार मानने वालों में से नहीं था। भले ही उसने अपनी यादें खो दी थीं, लेकिन वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि बेवकूफ वह बिल्कुल भी नहीं है। और किसी से पूछकर खुद को बेवकूफ साबित भी नहीं करना चाहता था। उसके दिमाग में सबसे पहले यही आया कि कोई उसके भोले और खूबसूरत चेहरे के पीछे छुपकर उसे बेवकूफ बना रहा है।

    -

    और अपने बच्चों का इस्तेमाल करते हुए वह किसी-न-किसी तरीके से घर में बस जाना चाहती है। इसीलिए वह कुछ भी करके सिंघानिया मेंशन में ही रहना चाहती है।

    लेकिन अरमान सिंघानिया ने सोच लिया था कि वह आस्था को जरूर किसी-न-किसी आदमी के साथ पकड़ लेगा, क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि आस्था आजकल जरूर किसी के साथ मिलकर धोखा दे रही है। जहाँ तक अरमान को अब तक समझ में आया था, अंश अभी सिर्फ 4–5 महीने का बच्चा था। जबकि आस्था का पति—यानि कि उसके बच्चे का पिता—तो 2 साल पहले ही आस्था को छोड़कर चला गया था।

    तो इसका मतलब साफ था कि इतनी जल्दी बच्चा कैसे हो सकता है? अरमान के दिमाग में यही बात घूम रही थी—“जरूर आस्था का किसी और के साथ चक्कर है।”

    इसी बात का सच जानने के लिए अरमान अब खुद अपनी आँखों से सबूत पाना चाहता था। और वह यह भी चाहता था कि सीधे-सीधे आस्था को सभी लोगों के सामने बेनकाब कर सके। इसके लिए उसके दिमाग में एक के बाद एक कई प्लान बनने लगे। वह तय कर चुका था कि अब सब कुछ अपने हिसाब से आगे बढ़ाएगा।

    फिलहाल, जैसे ही अरमान वहाँ आया और उसने देखा कि आस्था इस वक्त दादाजी के साथ बैठी है, दादाजी बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ फेर रहे हैं—यह देखते ही अरमान के माथे पर बल पड़ गए।

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  • 19. billionaire Boss wifey - Chapter 19

    Words: 2164

    Estimated Reading Time: 13 min

    राधिका: "न-नहीं, मुझे जाने की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी, मेरे पास ऑलरेडी साड़ियाँ पड़ी हुई हैं। मैं उनमें से ही कुछ पहन लूँगी। और तुम देखो, इतने प्यारे झुमके लेकर आई हो, मैं वही झुमके पहन लूँगी।"

    -

    फिलहाल मेरा कहीं जाने का कोई इरादा नहीं है।

    यह सुनकर सुमित ने राधिका की नाराज़गी तो महसूस कर ली थी; आस्था भी समझ चुकी थी कि कुछ तो इन दोनों के बीच हुआ है। लेकिन फ़िलहाल उसने तुरंत ही राधिका से कहा —

    “राधिका दीदी, प्लीज़ आप ज़रूर जाइए। और हाँ, उन झुमकों से मैचिंग कोई साड़ी खरीद कर लीजिएगा; देखिएगा आप बहुत प्यारी लगेगी। प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़ आप जाइए — मैं आपकी कोई बात नहीं सुनूँगी।”

    यह बोलकर उसने उन दोनों को शॉपिंग के लिए भेज दिया।

    फिलहाल, आस्था की नज़र फोन पर लगी हुए आकाश पर गई। आकाश को एक इम्पॉर्टेंट कॉल आ गया था और वह कॉल पर बिजी था। तब आस्था तुरंत उनके पास गई, आकाश के हाथ से फोन लेकर बोली —

    “मैंने रश्मि दीदी को फोन कर दिया हूँ। वह पहले से ही हॉस्पिटल में है; उनके सारे चेकअप वगैरा भी हो चुके हैं और वह कुछ पेशेंट्स हैंडल कर रही हैं। तब तक आप उनके पास जाइए; वह फ्री हो जाएँगी। आप जाइए, शॉपिंग पर लेकर जाइए।”

    यह सुनकर आकाश कुछ कहना चाहता था, लेकिन आस्था ने दूसरा कोई चॉइस नहीं छोड़ा; उसने तुरंत ही शॉपिंग के लिए निकलने का रुख कर दिया। ऐसे ही सारे कपल्स भेज दिए गए।

    अब दादाजी, अभिमान अंश, नानी माँ और आस्था वहीं मौजूद रहे। सबको भेजने के बाद दादाजी आए और आस्था के सिर पर हाथ रखकर बोले —

    “बेटी, तुमने सब लोगों की ज़िन्दगी की प्रॉब्लम पलभर में ही खत्म कर दी। सभी को एक साथ टाइम देने का मौका दिया। पर तुम्हारा क्या बेटा... तुम्हारा दिल अंदर से कितना दुखी है, कितना खाली है — यह हम महसूस कर पा रहे हैं। पर हमें पूर्ण उम्मीद है कि मेरी बच्ची अपनी ज़िन्दगी ठीक कर लेगी।”

    तभी आस्था को गले लगाकर दादाजी बोले —

    “तुम तो हमारी बहादुर बिटिया हो। देखना, जिस तरह से तुमने सबकी ज़िन्दगी सामान्य कर दी है और सबको खुशी दी है, उसी तरह हमारी कान्हा जी तुम्हारी ज़िन्दगी भी खुशियों से भर देंगे। हमें पूरी उम्मीद है।”

    दादाजी-नानी माँ की बातें सुनकर आस्था अंदर से काफी इमोशनल महसूस कर रही थी। लेकिन तभी अंश के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी; अभिमान जी उसे संभाल नहीं पा रहे थे और वह जोर-जोर से रोने लगा। आस्था ने जल्दी से जाकर उसे अपनी गोद में लिया और अभिमान की ओर देखकर बोली —

    “पिताजी, आप एक काम कीजिए न — सामने वाले मेंशन पर जाकर देख लीजिए। मैंने वहाँ कुछ नौकरों को सफ़ाई के लिए भेजा है; आप एक बार जाकर देख लीजिए कि वे सही से काम कर रहे हैं या नहीं। कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। वैसे भी मुझे वसुंधरा पर अभी भी कुछ भरोसा नहीं है।”

    आस्था ने वसुंधरा का नाम सीधे नहीं लिया, पर इशारा साफ़ था। अभिमन्यु जी को यह बात अच्छी लगी; वे बोले —

    “ठीक है, मैं जाता हूँ और देख आता हूँ कि कोई कम कर रहा है या नहीं। आप लोग अच्छे से तैयारी कीजिए।”

    फिलहाल आस्था ने नानी माँ की ओर देखा और बोली —

    “नानी माँ, अंश को तैयार करने की जिम्मेदारी आपकी है। वैसे भी आज पूरी रात हम कृष्ण जी के भजन-कीर्तन में जाएंगे और आधी रात के बाद अपना उपवास तोड़ेंगे। ठीक है? कृष्ण जी को भोग लगाने के बाद आप लोग भी इसमें शामिल होंगे। एक काम कीजिए — अब दिन है, आप लोग थोड़ी देर आराम कर लीजिए ताकि रात में जागरण में आराम से जाग पाएं।”

    आस्था ने सबको दिन में आराम करने की सलाह दी क्योंकि वह आज रात कृष्ण भक्ति के लिए जागरण रख रही थी। दादाजी ने आस्था के सिर पर हाथ रखा और बिना एक शब्द कहे अपने कमरे में चले गए।

    इधर अरमान पूरे रास्ते आस्था के बारे में सोचता रहा — आज जिस तरह से उसने टाइगर और मारिया के लिए बातें की थी, वह बात उसके दिमाग से नहीं जा रही थी। बार-बार उसे ऐसा लग रहा था कि आस्था उसे ऑर्डर दे रही है, जैसे वह उसका कोई सेवक या नौकर हो। ये सारी बातें उसके मन को भड़का रही थीं। वह खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वह किसी लड़की की बातें सुनकर अपनी ज़िन्दगी डिस्टर्ब नहीं होने देगा।

    फिलहाल अरमान जल्दी से अपने ऑफिस पहुँचा। ऑफिस में पहुँचते ही संजना मिली। संजना ने जेंट्स के लिये शॉर्ट कुर्ती पहनी थी; उसने अपने लंबे घने बाल खुले छोड़े थे और माथे पर बड़ा सा टीका लगाया हुआ था — जो बताता था कि उसने भी व्रत रखा है। अरमान ने संजना से पूछा —

    “क्या हम आज व्रत रख रहे हैं? आपके घर पर कुछ हो रहा है क्या?”

    संजना ने उत्तर नहीं दिया और जल्दी से बोली —

    “नहीं-नहीं, बस मेरी कुछ मीटिंग्स हैं। आपकी कंपनी ने कोलैबोरेशन किया है, उसके ओनर्स को बुलाइए मैं उनसे मिलना चाहती हूँ। आपकी लिस्ट पूरी कर दो। इंडिया रिलेटिव 15 दिनों के बाद रघुवंशी के साथ मीटिंग फिक्स कर दी गई है।”

    लेकिन अरमान के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था; उसने ठान लिया था कि वह जल्द ही पता लगाएगा कि आखिर यह लड़की किसके साथ चक्कर में है।

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    ठीक है 👍 मैंने आपके दिए हुए लंबे टेक्स्ट में सही विराम-चिह्न (punctuation), पैराग्राफ ब्रेक और प्रवाह डालकर उसे पढ़ने और समझने योग्य बना दिया है। आपके शब्द मैंने बिल्कुल कम नहीं किए — सिर्फ़ सुधार और क्लैरिटी दी है:

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    क्योंकि अरमान को इस बात का पूरा शक हो गया था। उसने फटाफट अपने केबिन में बैठकर गूगल सर्च करना शुरू कर दिया — “बच्चा ज़्यादातर कितने महीने में पैदा होता है?”

    सारी जानकारियों के अनुसार अरमान को जितनी बातें सामने आईं, उसे लगा कि — “दो साल पहले तो उसका पति उसे छोड़कर चला गया था, लेकिन बच्चा अभी चार–पाँच महीने का है। तो ज़्यादा से ज़्यादा उसे पैदा हुए डेढ़ साल हुआ होगा। तो फिर उसका पति दो साल पहले छोड़कर कैसे जा सकता है? फिर यह बच्चा किसका है?”

    कहीं न कहीं अरमान को शक था। जिस तरह से वह लड़की सबके सामने उससे बेबाकी से बात कर रही थी, जिस तरह की नज़रें डाल रही थी, और ऊपर से अपना बच्चा भी उसकी गोद में देकर संभालने को कह रही थी… यह सब उसे और भी शंकित कर रहा था।

    अरमान ने सोचा — “ज़रूर यह लड़की कुछ गड़बड़ कर रही है। या तो मेरे किसी दुश्मन ने इसे मेरे पास भेजा है। कुछ न कुछ तो ऐसा है, जो मुझे सही से समझ नहीं आ रहा। वरना घर वाले इसे इतना मान-सम्मान क्यों देते हैं? उसके बेटे को इतना ज़्यादा प्यार क्यों करते हैं?”

    अरमान अपनी उलझन में पूरी तरह खोया हुआ था। वहीं, उसी वक्त संजना माँ के कमरे में मौजूद थी। उसे अरमान के चेहरे पर आई परेशानी साफ नज़र आ रही थी। संजना मन ही मन सोच रही थी — “आखिर बॉस को इतनी टेंशन किस बात की है?” लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सीधे अरमान से पूछ ले।

    अरमान ने लैपटॉप बंद किया और संजना की तरफ देखकर बोला —

    “अगले तीन दिनों की मेरी सारी मीटिंग्स कैंसिल कर दो। मैं कोई मीटिंग अटेंड नहीं करूंगा।”

    यह बोलकर अरमान उठ खड़ा हुआ और सीधा बाहर निकल गया। अरमान को जाते देख संजना के चेहरे पर अजीब-से एक्सप्रेशन आए, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाई।

    वहीं दूसरी ओर, अरमान ने मन ही मन ठान लिया — “मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े, मैं सिर्फ़ आस्था पर नज़र रखूंगा। उसकी बेबाकी, सबका उसके इर्द-गिर्द घूमना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। यह लड़की मेरे घर-परिवार को तोड़ने की कोशिश कर रही है। पहले आकाश, सुमित, ध्रुव, आहान सब मेरे साथ खड़े रहते थे। लेकिन जब से आस्था आई है, सबका बर्ताव बदल गया है। ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

    अरमान ने गहरी सांस ली और कुछ लोगों को तुरंत मैसेज करना शुरू कर दिया।

    ---

    उधर, अंश के रोने के बाद नानी माँ आस्था के पास आईं और बोलीं —

    “बेटा, अंश सो गया है। मुझे लगता है जब उठेगा तो बिलकुल फ्रेश उठेगा। हम उसे शाम को ही तैयार करेंगे। तब तक तू भी एक काम कर — तू भी अपने लिए कुछ शॉपिंग कर ले। आज अंश का ध्यान मैं रखूँगी।”

    आस्था बोली —

    “नानी माँ, कपड़े तो वैसे भी ऑस्ट्रेलिया से बहुत लाए हैं। और अभी तो फिलहाल हम यह देखने जा रहे हैं कि वसुंधरा जी सही से काम कर रही हैं या नहीं। वैसे भी पिताजी को भले ही हमने वहाँ भेजा है, लेकिन ऐसी औरत के पास पिताजी को भेजना भी हमें ठीक नहीं लग रहा। इसलिए हम खुद जाकर नज़र रखना चाहते हैं।”

    नानी माँ ने सोचते हुए कहा —

    “बेटा, तुझे वहाँ जाने की क्या ज़रूरत है? मैं हूँ ना। वैसे भी आज अंश कभी भी उठ सकता है। उसके पास किसी न किसी का होना ज़रूरी है, ख़ासकर तेरा होना। अभी उसे हम सबके साथ घुलने मिलने में थोड़ा वक्त लगेगा। इसलिए तू यही रह, मैं जाती हूँ वहाँ। मैं ही ध्यान रखूँगी कि कहीं वसुंधरा भाई साहब यानी अभिमन्यु को अपने जाल में फँसाने की कोशिश तो नहीं कर रही।”

    यह सोचते हुए नानी माँ फटाफट रघुवंशी मेंशन पहुँच गईं।

    नानी माँ पहली बार रघुवंशी मेंशन आई थीं। वसुंधरा, वीर और अभियान भी पहली बार यहाँ आए थे। मेंशन की खूबसूरती देखकर सभी हैरान रह गए। यह मेंशन सिंघानिया मेंशन से भी ज़्यादा खूबसूरत था। ख़ासकर उसका गार्डन तो देखने लायक था।

    नानी माँ ने मन ही मन सोचा — “वाह आस्था बेटी, तेरा घर तो बहुत प्यारा है।”

    जैसे ही वे अंदर पहुँचीं, उन्होंने देखा कि अभियान एक कुर्सी पर बैठे हैं और उनके सामने वसुंधरा डेकोरेशन की निगरानी कर रही है। वहाँ पहले से ही कई नौकर मौजूद थे। आस्था ने साफ-सफाई के साथ-साथ थोड़ी सजावट के लिए उन्हें भेजा था। इसीलिए वे फूलों की लड़ियाँ और बाकी सजावट का काम कर रहे थे।

    अभिमन्यु बिना कुछ कहे वसुंधरा को देख रहे थे। वहीं वीर उनके सामने एक मामूली नौकर की तरह बर्ताव कर रहा था। उसकी हरकतें जानबूझकर ऐसी थीं कि अभिमन्यु को बुरा लगे। लेकिन अभियान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, क्योंकि वे पहले से ही वीर के असली रूप को समझ चुके थे।

    अभियान जानते थे कि वीर अपने समय में कितना बड़ा गुंडा-मवाली था और कितनी लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद कर चुका था। इतनी आसानी से वह उसे माफ नहीं कर सकते थे। अगर उन्होंने उसे अपना बेटा मानना है, तो पहले उसे एक अच्छा इंसान बनाना होगा। इसलिए जो कुछ भी वीर के साथ हो रहा था, अभियान उसे होने देना चाहते थे।

    ---यहाँ आपके दिए गए टेक्स्ट को बिना शब्द घटाए सही विराम-चिह्नों और प्रवाह के साथ सुधारकर पेश किया गया है:

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    लेकिन आखिरकार, अभिमान जी के अंदर एक बाप का दिल था। और जब से उन्हें यह पता चला था कि वीर उन्हीं का बेटा है, तब से उनके अंदर कुछ अलग से जज़्बात जन्म ले रहे थे वीर के लिए।

    फिलहाल, नानी मां के वहां जाने पर वसुंधरा तुरंत ही अभिमान जी के सामने से हट गई थी, क्योंकि थोड़ी देर पहले वह अभिमान जी को काफी ज्यादा टशन दे रही थी। लेकिन अभिमान जी भी वसुंधरा को काम करते हुए देखकर कुछ अलग लेवल का सुकून महसूस कर रहे थे।

    लेकिन सामने आकर बात करने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि नानी मां की तीखी बातें उनके दिल को भीतर तक चोट पहुंचा दिया करती थीं। अपने कारनामों की वजह से न तो वह नानी मां को कुछ कह पाते थे और न ही अपने लिए कोई स्टैंड ले पाते थे। नानी मां की नजरों से बचकर, जल्दी ही वसुंधरा वहां से कहीं और जाकर काम करवाने लगी थी।

    वहीं, नानी मां तभी अभिमान जी के साथ बैठ गई थी और बोली थी —

    “बेटा, एक बात बताओ। कहां से मिले थे? क्या तुम्हें इंसान पहचानने की अक़्ल नहीं थी? क्या बेटा, तुम्हें इतना मूर्ख बना दिया था इस औरत ने?”

    अब जैसे ही सवाल किए गए, अभिमान जी को समझ ही नहीं आया कि वह नानी मां को क्या जवाब दें। क्योंकि वसुंधरा उनकी पहली नज़र की मोहब्बत थी। उन्हें वह कॉलेज लाइफ़ से ही बहुत ज़्यादा प्यार किया करते थे। लेकिन अब नानी मां को अपनी लव स्टोरी बताने के लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं थे।

    फिलहाल, जल्दी ही अभिमान जी ने गहरी सांस ली और उनकी आंखों के सामने वसुंधरा का जवानी वाला रूप आ गया। जिस तरह से वसुंधरा जवानी में अपनी अदाएं दिखाकर सबको आकर्षित कर लिया करती थी, आधा कॉलेज ही वसुंधरा के पीछे था। और उनमें से अभिमान भी शामिल थे। लेकिन वसुंधरा ने अभिमान को ही चुना था अपनी ज़िंदगी गुजारने के लिए।

    यह सब बातें याद आते ही आज अचानक से अभिमान जी के गाल अपने आप ही लाल हो उठे। वहीं, वसुंधरा, जो थोड़ी ही दूरी पर खड़ी थी, उसे भी अपने कॉलेज वाले दिन याद आने लगे थे।

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  • 20. billionaire Boss wifey - Chapter 20

    Words: 2035

    Estimated Reading Time: 13 min

    आस्था वसुंधरा की हालात देखकर अंदर ही अंदर थोड़ा-सा सुकून महसूस कर रही थी



    वही वसुंधरा चोर नज़रों से अभिमान को देखने लगी थी, मानो कहना चाह रही हो—

    "बहुत खुश हो रहे हो तुम? जितना खुश होना है हो लो। लेकिन जब मेरा वक्त आएगा, तब मैं तुम्हें बताऊंगी कि वसुंधरा क्या चीज़ है और क्या नहीं।"

    उधर राधिका और रौनक जल्दी से आस्था के पास आकर बोलीं—

    "अरे वाह आस्था, तुमने तो बहुत अच्छा तरीका निकाला। आज तुम इस दुनिया की पहली बहू होगी जो अपनी सास को इस तरह से अपनी उँगलियों पर नचा रही हो।"

    उनकी बात सुनकर आस्था भी मुस्कुरा दी।

    फिलहाल, तभी सीढ़ियों से अरमान सिंघानिया अपने पावरफ़ुल तेवरों के साथ नीचे उतरते नज़र आए। उन्हें देखते ही सब लोग अलग-अलग हो गए। कोई भी अरमान के सामने ज़्यादा देर खड़ा नहीं रहना चाहता था। क्योंकि अरमान ने साफ़ कह रखा था कि अगर ये लड़कियाँ यहाँ रह सकती हैं तो भी वो कभी उसके सामने ना आएँ।

    वैसे भी, जब से अरमान ने राखी वाले दिन ड्रामा किया था, तब से सभी लड़कियाँ उससे कुछ खिंची-खिंची सी थीं। उससे बात करने से भी कतराती थीं।

    वहीं रौनक पहले से ही तैयार बैठी थी क्योंकि दादाजी ने बता दिया था कि अरमान के ऑफिस निकलने के बाद वे लोग अस्पताल जा सकते हैं।

    अरमान जैसे ही वहाँ आया, उसकी नज़र एक बार सीधी आस्था पर पड़ी। आस्था ने तुरंत ही उसकी ब्लैक कॉफ़ी उसके सामने रख दी। अरमान ने गहरी नज़रों से आस्था को देखना शुरू कर दिया।

    आस्था अब तक काफ़ी उखड़ी-उखड़ी सी थी और अरमान को सीधा देखने से कतराती थी। कल रात अरमान ने अंश के साथ जो किया, वही बात आस्था को अंदर तक डरा रही थी। वह मन ही मन सोच रही थी—

    "मुझे अरमान की यादें वापस लाने के लिए अपने बेटे को बलि का बकरा नहीं बनाना है। न ही मैं मां होते हुए अपने बेटे को अकेला छोड़ सकती हूँ।"

    फिलहाल, तभी नानी माँ वहाँ आईं और बड़े प्यार से कपड़े आस्था को देते हुए बोलीं—

    "आस्था, अंश को तैयार तो कर लो। आज भगवान का जन्मदिन है, तो तुम्हारे पास भी तो कान्हा है। देखो, अंश कान्हा जी के कपड़ों में कितना प्यारा लगेगा।"

    उसी वक्त ध्रुव वहाँ आया और बोला—

    "अरे हाँ-हाँ, मैं तो बताना ही भूल गया था। मैंने अंश के लिए बांसुरी भी ला दी है। कान्हा के कपड़े पहनेंगे तो बांसुरी के बिना अधूरा लगेगा ना!"

    यह सुनकर आस्था मुस्कुरा दी क्योंकि आज ध्रुव पहले की तरह बर्ताव कर रहा था।

    सब लोग मिलकर अंश को घेरकर खड़े हो गए। अभिमान जी और दादाजी भी मुस्कुराते हुए बोले—

    "आज तो हमारा नन्हा अंश कृष्णा बनकर और भी प्यारा लगेगा।"

    इसी बीच, डाइनिंग टेबल पर बैठे अरमान की नज़रें बार-बार अंश पर ठहर रही थीं। वह देख रहा था कि अंश को कितना इम्पॉर्टेंस दिया जा रहा है। यह देखकर वह अंदर ही अंदर खिन्न हो रहा था और सोचने लगा—

    "ये लोग इस बच्चे को इतना प्यार क्यों दे रहे हैं? जब इसका असली पति आएगा और इसे यहाँ से ले जाएगा, तब क्या होगा? और मुझे समझ में नहीं आता—अगर यह बच्चा अभी 4–5 महीने का है, तो इसका पति जो इसे 2 साल पहले छोड़कर गया था, तब यह बच्चा किसका है?"

    अरमान का दिमाग और तेज़ी से चलने लगा—

    "ज़रूर इसका कहीं और अफेयर था। और अब यह मेरे नाम पर यह सब कर रही है। मेरी यादें जाने का फायदा उठा रही है। इसका पति भी शायद इसी वजह से इसे छोड़कर भाग गया होगा। यह लड़की कैरेक्टरलेस है। और यह बच्चा भी शायद उसके पति का नहीं है। मुझे इस पर नज़र रखनी होगी। अगर मैंने आकाश या सुमित से कहा, तो वे पक्का इसका साइड ले लेंगे। लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूँगा।"

    अरमान कॉफ़ी पीते हुए यही सब सोच रहा था। फिर उसने अचानक दादाजी की ओर देखा और बोला—

    "दादाजी, यह सब क्या हो रहा है यहाँ? किस त्यौहार की तैयारी हो रही है? सिंघानिया मेंशन में आज तक कोई त्यौहार सेलिब्रेट नहीं हुआ, और न ही होगा।"

    यह सुनकर दादाजी ने उखड़े अंदाज़ में जवाब दिया—

    "बेटा, तुझे चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। वैसे भी यह फेस्टिवल सिंघानिया मेंशन में नहीं होगा, बल्कि कहीं और होगा। तू परेशान मत हो।"

    यह कहकर दादाजी मुँह फेरकर खड़े हो गए।

    अरमान अब और खीझ गया और सोचने लगा—

    "सब लोग मुझसे अलग-थलग बातें करते हैं। यहाँ तो सबके तौर-तरीके ही बदले हुए हैं। यह सब आस्था की वजह से हो रहा है। लेकिन मैं इसे ज़्यादा दिन नहीं टिकने दूँगा। इस लड़की की सच्चाई बहुत जल्दी में सब घरवालों के सामने लेकर आऊंगा ।और फिर सब इसे घर से खुद निकाल देंगे। उसके बाद सिर्फ़ नानी माँ और उनकी बेटियाँ बचेगी। और एक बार इसकी बेटी मेरा एंटीडोट बना दे, उसके बाद मैं इन्हें भी निकाल बाहर कर दूँगा।"

    फिर अरमान अचानक खड़ा हुआ और तेज़ आवाज़ में बोला—

    "टाइगर... चलो! हमें लेट हो रहा है।"

    ठीक उसी वक्त टाइगर पलक झपकते वहाँ आ गया।

    जैसे ही अरमान और टाइगर जाने लगे, आस्था तुरंत उनके सामने खड़ी हो गई। उसे सामने देखकर अरमान घूरते हुए बोला—

    "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे सामने आकर खड़े होने की?"

    उसकी तेज़ आवाज़ सुनकर अब बाकी सब भी अंश को छोड़कर उनकी ओर देखने लगे।

    -
    ठीक उसी वक्त सबके सब वहीं आकर खड़े हो गए। वहीं आस्था अपने हाथ बाँधकर खड़ी हो गई थी और टाइगर की ओर देखकर बोली थी —

    : "टाइगर भैया, आज आप मिस्टर सिंघानिया के साथ नहीं जा सकते।"

    अब जैसे ही आस्था ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ यह कहा, अरमान के माथे पर बल पड़ गए। वह गुस्से से बोला —: "तुम होती कौन हो इस तरह से मेरे बॉडीगार्ड को ऑर्डर देने वाली? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? हाँ, बोलो जवाब दो!"

    अरमान पूरी तरह से गुस्से में था क्योंकि उसे घर में किसी को ऑर्डर देने की आदत थी तो सिर्फ और सिर्फ अरमान सिंहानिया को। किसी और का इस तरह ऑर्डर देना उसे बर्दाश्त नहीं था।

    वहीं टाइगर ने थोड़ी झिझक के साथ कहा —

    : "आप कहना क्या चाहती हैं, आस्था?"

    आस्था ने सीधे उसकी आँखों में देखकर कहा —: "शायद आप भूल रहे हैं कि आप एक पिता बनने वाले हैं। आपको कोई हक़ नहीं है अपनी पत्नी का टाइम मिस्टर सिंघानिया को देने का। इस वक्त मारिया दीदी को आपकी ज़रूरत है, टाइगर भैया। आप इस तरह से मिस्टर सिंघानिया के साथ नहीं जा सकते। और वैसे भी, शायद आपको इस बात की जानकारी नहीं है, लेकिन मारिया दीदी की तबीयत पिछले तीन दिनों से खराब है। आज आप उन्हें डॉक्टर के पास लेकर जाएंगे।"

    अब यह सुनकर टाइगर अंदर से बेचैन हो गया क्योंकि मारिया ने उसे अपनी तबीयत के बारे में कुछ नहीं बताया था। लेकिन आस्था, जो नाश्ता देने के लिए उसके कमरे में गई थी, उसने मारिया के चेहरे को देख लिया था और समझ चुकी थी कि जरूर उसे कोई परेशानी है, लेकिन वह किसी से कह नहीं पा रही।

    आस्था की ये बातें सुनकर अरमान चौंक गया। उसने तुरंत आस्था को टोकते हुए कहा —

    : "तुम्हें इसकी फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि टाइगर और मारिया एक-दूसरे से अलग होने वाले हैं। वे दोनों डिवोर्स देने वाले हैं। तो टाइगर को मारिया के साथ प्यार का दिखावा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। और मारिया कोई कमजोर औरत नहीं है। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ। वह ब्रेव है और शादी-प्यार के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती।"

    अरमान की यह बात सुनकर आस्था का गुस्सा और बढ़ गया। उसने दृढ़ आवाज़ में कहा —

    आस्था: "अच्छा, मिस्टर सिंघानिया, लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप मारिया दीदी और टाइगर भैया को अलग कर सकते हैं, लेकिन उनके बच्चे का क्या? अगर बच्चा पिता के बिना पैदा हुआ, तो क्या उसे पिता की कमी कभी महसूस नहीं होगी? और अगर मारिया दीदी इस हालत में आपकी बॉडीगार्ड बनी रही और उन्हें कुछ हो गया, तो उसके बच्चे का क्या होगा? उस पर कितना बुरा असर पड़ेगा! क्या आपने कभी यह सोचा है?"

    आस्था की बातें सीधे अरमान के दिल पर चोट कर गईं। उसके दिमाग में अचानक पुरानी बातें और मेंटल हॉस्पिटल के पल ताज़ा हो गए। वह अंदर से टूटने लगा, लेकिन आस्था को टाइगर और मारिया का रिश्ता बचाने के लिए यह कहना ज़रूरी था।

    आस्था ने फिर कहा —
    "देखिए, मिस्टर सिंघानिया, आपने उनकी जिंदगी का फैसला एक मिनट में कर दिया। जब आपका दिल किया, आपने उनकी शादी करवाई, और अब आपका दिल कर रहा है कि वे अलग हो जाएँ। आखिरकार आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? क्या आपने कभी टाइगर भैया से पूछा कि वे डिवोर्स लेना चाहते हैं या नहीं? अगर वे दोनों खुश नहीं होते, तो क्या उनकी जिंदगी इस मुकाम तक पहुँचती? उनका बच्चा कैसे आने वाला होता?"

    आस्था की बातें सुनकर अरमान पूरी तरह निरुत्तर हो गया। उसकी ज़ुबान साथ नहीं दे रही थी। उसने एक नजर टाइगर की ओर देखा और घूरते हुए बोला —

    "जाओ, और मारिया को डॉक्टर के पास लेकर जाओ।"

    यह कहकर उसने आस्था पर एक गुस्साई नजर डाली और लंबे-लंबे कदम बढ़ाता हुआ वहाँ से चला गया।

    उसके जाने के बाद सभी लोग आस्था के पास आकर खड़े हो गए। नानी माँ चिंता भरे स्वर में बोलीं —: "बेटा, तूने यह क्या किया? इस तरह से दामाद जी से बहस नहीं करनी चाहिए थी। अगर उन्होंने गहराई से सोच लिया तो लेने के देने पड़ सकते हैं।"

    आस्था ने गहरी सांस लेकर कहा —

    आस्था: "आप लोग परेशान मत होइए। मैंने सिर्फ उतना ही कहा है जितना वे डाइजेस्ट कर सकते हैं।"

    वहीं, कमरे में मौजूद मारिया यह सब सुन चुकी थी। वह दौड़कर आस्था को गले से लगा लेती है। टाइगर, जो अब तक हैरान खड़ा था, अचानक घुटनों के बल बैठ गया और कान पकड़ते हुए बोला —: "आई एम सॉरी, मारिया। मुझसे गलती हुई है। प्लीज़ मुझे माफ कर दो।"

    मारिया ने बिना कुछ कहे उसे गले से लगा लिया। दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रोने लगे। बाकी सबने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं।

    ध्रुव ने नारा लगाया —
    "हिप हिप… हुर्रे!"

    सभी लोग खुशी से मुस्कुराने लगे कि कम से कम इन सब झगड़ों के बीच एक अच्छी बात हुई।

    वहीं रौनक को आहान ने कहा —
    "चलो , गाड़ी तैयार है। मैं आपको लेकर अस्पताल चलता हूँ।"

    यह कहकर वह तुरंत रौनक को लेकर अस्पताल के लिए जाने लगे।



    लेकिन आस्था तुरंत ही बोली —
    "आप रौनक को लेकर तो जा रहे हैं, लेकिन उसे सीधा शॉपिंग भी कराकर लाएँगे। क्योंकि आज आप लोगों को पता है कि हम फेस्टिवल सेलिब्रेट कर रहे हैं और हमने व्रत भी रखा है। रश्मि दीदी रौनक को मैंन मना कर दिया था, क्योंकि प्रेगनेंसी में व्रत रखना ठीक नहीं है। लेकिन हाँ, आप रौनक को साड़ी ज़रूर दिलाकर लाएँगे। हमने डिसाइड किया है कि हम सब एक जैसी साड़ियाँ पहनेंगे।"

    अब यह सुनकर आहान खुशी से उछल पड़ा।
    "भाभी, थैंक यू सो मच! अप तो जानती हो ना, हवा हवा को कब से साड़ी में देखना चाहता हूँ। और वैसे भी उसके ढीले-ढाले बनियान देखकर मैं पक चुका हूँ। साड़ी में तो मेरी हवाई बहुत प्यारी लगेगी।"

    अब जैसे ही आहान बिना किसी परवाह किए इस तरह से रौनक के लिए प्यार जताया, सब मुस्कुरा दिए। जल्दी ही रौनक और आहान हॉस्पिटल के लिए निकल गए। आहान ने बात को समझाते हुए फटाफट उसे लेकर बाहर का रास्ता पकड़ लिया।

    वहीं अब आस्था सीधा राधिका और वंशिका के सामने जाकर खड़ी हो गई और सुमित व ध्रुव को घूरते हुए बोली —
    : "आप लोगों को क्या मुझे अलग से कहना पड़ेगा? जाइए और जाकर इन्हें इनके पसंद के कपड़े दिलाकर लाइए। और यह भी साड़ियाँ ही पहनेंगी, ठीक है? और थोड़ा सा टाइम भी साथ में स्पेंड कीजिए, क्योंकि आज दोपहर का लंच हम घर पर नहीं बना रहे हैं।"

    अब यह सुनकर वंशिका और रश्मि दोनों मुस्कुरा दीं। लेकिन राधिका का मूड कुछ खास नहीं था। वह सुमित के साथ जाने को लेकर आनाकानी करने लगी।

    राधिका: "न-नहीं, मुझे जाने की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी, मेरे पास ऑलरेडी साड़ियाँ पड़ी हुई हैं। मैं उनमें से ही कुछ पहन लूँगी। और तुम देखो, इतने प्यारे झुमके लेकर आई हो, मैं वही झुमके पहन लूँगी।"

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