अभय सिंह रायजादा, जो अपने पैसे के घमंड में हमेशा से डूबा रहता था, अपने परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए उसने एक मामूली लड़की से शादी की। क्योंकि वो गलती से कर बैठा था, उस लड़की के साथ एक *one night stand*। लेकिन उसने कभी उस लड़की को प्यार या इज़्ज़त, क... अभय सिंह रायजादा, जो अपने पैसे के घमंड में हमेशा से डूबा रहता था, अपने परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए उसने एक मामूली लड़की से शादी की। क्योंकि वो गलती से कर बैठा था, उस लड़की के साथ एक *one night stand*। लेकिन उसने कभी उस लड़की को प्यार या इज़्ज़त, कुछ नहीं दिया। लेकिन हद तो तब हो गई, जब अपनी शादी की सालगिरह वाले दिन अभय ने अपनी बीवी की अपने सब अमीर दोस्तों के सामने बेइज़्ज़ती की। जिसे अनाया बर्दाश्त नहीं कर पाई, और उसी दिन उसने अभय से तलाक़ माँग लिया। अभय को लगा वो नाटक कर रही है, उससे और पैसे लेने के लिए। लेकिन जब सचमुच अनाया ने तलाक़ लिया, तब अनाया के रहस्यमयी जीवन से पर्दा हटा। असल में, अनाया एक मामूली और ग़रीब लड़की के वेश में थी; देश के सबसे ताक़तवर परिवार की बेटी और सबसे बड़ी बिलिनेयर, जो सब की बॉस थी। कौन थी अनाया, जो अपनी पहचान छुपाकर रह रही थी अभय के साथ? आख़िर क्यों? जानने के लिए पढ़िए दोस्तों, *बिलिनेयर्स बॉस वाइफी*।
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I Want Divorce...
गोल्डन और रेड कलर की साड़ी में, एक दुबली-पतली लेकिन कमाल की ख़ूबसूरत लड़की, आँखों में नमी लिए, जल्दबाज़ी में एक कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी थी। उसके चेहरे पर ग़ज़ब की सादगी थी। उस लड़की ने होटल के कमरे का दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, अंदर से उसे कुछ लोगों के हँसने की आवाज़ सुनाई देने लगी थी।
लोग अलग-अलग तरह से एक-दूसरे से मज़ाक कर रहे थे। साथ ही साथ उसके बारे में भी उल्टी-सीधी बातें कह रहे थे।
बाहर खड़ी हुई लड़की, यानी अनाया को ये लगा जैसे कि सब उसके बारे में ही उल्टी-सीधी, बकवास बातें बोल रहे हों? उसका ही मज़ाक उड़ा रहे हों? फ़िलहाल, दरवाज़े के हैंडल पर उसकी पकड़ और ज़्यादा मज़बूत हो गई थी।
लेकिन उसने खुद को संभाला, और जल्दी ही दरवाज़ा खोलकर अंदर चली गई। उसने देखा, एक साथ वहाँ पर कितने ही सारे सूट-बूट पहने बड़े-बड़े बिज़नेसमैन बैठे हुए थे। उन सभी के हाथों में रेड वाइन मौजूद थी।
और उन सबसे हटकर, वहीं पर एक पावरफ़ुल पर्सनालिटी वाला बंदा बैठा हुआ था। जिसका नाम अभय रायजादा था।
वेल, अनाया ने वहाँ जाकर बिना किसी की परवाह करते हुए अभय की ओर देखकर कहा, “अभय, क्या तुम मेरे साथ घर चल सकते हो?”
अभय रायजादा, कोई और नहीं बल्कि अनाया का पति था।
अब जैसे ही अभय ने अनाया की बात सुनी, उसने उसकी तरफ़ आँखें उठाकर देखना भी ज़रूरी समझा था। वो केवल अपनी रेड वाइन पर कंसंट्रेट करने में बिज़ी हो गया था, और शराब पीता रहा। उसने एक अजनबी की तरह अपनी बीवी को नज़रअंदाज़ कर दिया था।
तब इस तरह से नज़रअंदाज़ होने पर अनाया काफ़ी दुखी हो गई! लेकिन फिर वो खुद को शांत करते हुए शांत स्वर में बोली, “अभय, आज हमारी शादी की सालगिरह है।
मैं जानती हूँ कि तुम्हें शादी की सालगिरह मनाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मुझे समझ में नहीं आता, जब तुम्हें सालगिरह मनानी ही नहीं थी, तो तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आए? फ़िलहाल, तुम मुझे घर छोड़ दो, मुझे घर जाना है।”
अनाया की बात सुनकर, उसके पति ने ग्लास उठाया, और शराब का घूंट भर लिया। उसकी आँखें हल्की रोशनी में भी काफ़ी ज़्यादा डार्क हो गई थीं। अब एक बार फिर अनाया के बोलने पर अभय का पारा चढ़ गया! और वो उसकी ओर घूरकर झिड़की देते हुए बोला, “जस्ट शटअप… ये क्या शादी की सालगिरह का तुमने ड्रामा लगा रखा है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ! तुम क्या कहना चाहती हो!”
अब जैसे ही अभय ने अनाया से अपने दोस्तों के सामने इतनी तेज़ आवाज़ में डाँटकर बात की! तो अनाया का दिल छलनी सा हो गया।
और तभी अभय ने, बिना अनाया के दर्द की परवाह करते हुए, अपने वॉलेट से एक चेक निकाला, उस पर कुछ नंबर लिखे, और अपनी पत्नी अनाया के सामने फेंक दिया! और बेफ़िक्री से बोला, “मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि तुम यहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे पैसे माँगने के लिए आई हो। ये पैसे लो और यहाँ से निकल जाओ।” उस वक़्त अभय की आँखों में झुंझलाहट और नफ़रत साफ़ दिखाई दे रही थी।
अब उसकी पत्नी अनाया ने जैसे ये सब कुछ सुना, उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उसकी साँस छीन ली हो!
और फिर अभय एरोगेंट वॉइस में बोला, “ये पैसे लो, चुपचाप तुम यहाँ से चली जाओ! और अब मेरा मूड ख़राब करने की कोशिश मत करना। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि तुम जैसी औरतें पैसों के लिए ही ये सब ड्रामा करती हैं।”
अब जैसे ही उसके पति ने सबके सामने ये बेहूदा बातें कीं, जितने भी आस-पास आदमी बैठे हुए थे, सब बुरी तरह से अनाया पर हँसने लगे थे। आज अंदर ही अंदर अनाया को काफ़ी ज़्यादा बेइज़्ज़ती महसूस हो रही थी। उसे ऐसा लगने लगा था कि मर्दों की भरी महफ़िल में, उसी के अपने पति ने उसे नंगा कर दिया है।
तभी उसे भीड़ में से एक बिज़नेसमैन, जिसका नाम रुद्र प्रताप था, वो उठा और वो चेक जो नीचे गिर गया था, उसे उठाकर अनाया की तरफ़ बढ़ाते हुए, उस पर भरपूर नज़र डालते हुए बोला, “ये चेक रखो, और जाओ जाकर पार्टी मनाओ।
अभय बिल्कुल ठीक कह रहा है। तुम जैसी औरतें पैसों के लिए बड़े-बड़े अमीर लोगों को फँसा लेती हैं। फिर एनिवर्सरी के नाम पर, या किसी और चीज़ के नाम पर, उनसे पैसे निकालने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ती हैं।” ये बोलकर अब अभय के दोस्त रुद्र ने उसी के मुँह पर एक बार फिर वो चेक फेंक दिया था, जो टेबल पर जा गिरा था।
और अब सब लोग उस पर पूरी तरह से हँसने लगे थे। अनाया को इतना तेज़ गुस्सा आया था। उसने अपने हाथों की मुट्ठी को कसकर भींच लिया था। उसके नाख़ून उसके हाथेलियों में चुभ गए थे।
अपनी शादी की सालगिरह पर इतने सारे लोगों के सामने अपने ही पति के द्वारा इंसल्ट करने पर उसे ऐसा लगा मानो कि उसकी कोई इज़्ज़त ही नहीं हो! उसकी सारी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ गई हों? अभी अनाया गुस्से से दाँत भींचकर आगे बढ़कर अभय का गिरिबान पकड़कर उससे सवाल करना चाहती थी।
लेकिन तभी अचानक वहाँ पर एक आवाज़ गूंजती है, “आई एम सो सॉरी गाइस… मुझे आने में थोड़ी सी देर हो गई।”
एक दम शॉर्ट्स, रेड कलर की शॉर्ट्स पहने हुए एक बड़ी ही ख़ूबसूरत सी लड़की, जिसने शॉट स्कर्ट और पेंसिल पहनी हिल हुई थी, वो बिना अनाया की तरफ़ देखें, अपनी हाई हील से टकटक करती हुई सीधा आकर अभय के बराबर में बैठ गई थी।
उसने अपना बैग नीचे रखा और अभय के कंधे पर सिर रखकर, बड़ी ही मीठी आवाज़ में बोली, “अभय, मैं देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा होगा!” ये बोलकर उसने अभय के कंधे को बड़े ही प्यार से छुआ, और उसकी मस्कुलर चैस्ट पर अपना हाथ फेरा था।
अब सब लोग हैरानी से उसे देखने लगे थे। तभी उस लड़की, जिसका नाम टीना कपूर था, उसने अपनी निगाह भी अपने सामने खड़ी हुई अनाया पर गई, तो उसे देखकर उसके चेहरे पर एक जहरीली मुस्कराहट आ गई थी।
वो अनाया को बड़े ही तिरस्कार भरी नज़रों से देख रही थी। और फिर वापस से अभय की ओर देखकर, अनजान बनते हुए बोली, “अभय, ये तुम्हारी पत्नी यहाँ क्या करने के लिए आई है?”
उसकी बात सुनकर अभय ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, वो केवल रेड वाइन पीता रहा! और फिर तभी टीना की नज़र टेबल पर रखे हुए चेक पर पड़ी, और उस चेक को देखकर वो अपनी मुस्कराहट को दबाती हुई अनाया की ओर देखकर बोली, “अनाया, क्या तुम फिर से यहाँ पर पैसे माँगने के लिए आई हो?”
फ़िलहाल, वो उठी और टेबल पर पड़े हुए चेक को बड़े ही घमंड से अनाया की तरफ़ फेंकते हुए उसका मज़ाक उड़ाया! और उसकी ओर देखकर बोली, “तुम जैसी गोल्ड डिगर लड़की, मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक नहीं देखी!
मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आखिरकार अभय ने तुम जैसी पैसों के पीछे भागने वाली लड़की से शादी कैसे कर सकता है? अरे मैं पूछती हूँ कि अगर तुम्हें पैसों से इतना ही प्यार है, तो तुम मुझसे पैसे माँगो, ना। टीना कपूर के पास पैसों की कोई कमी नहीं है।
लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, तुम इस तरह से अभय को परेशान नहीं कर सकती! क्योंकि मैं अभय बिल्कुल भी परेशान नहीं देखना चाहती हूँ। और तुम अच्छी तरह से जानती हो कि अभय को तुम्हारी शक्ल बिल्कुल भी पसंद नहीं है। तो क्यों उसके आस-पास भटकती रहती हो! हूँउउ…”
अब टीना कपूर के इतने कठोर शब्द, अब अनाया के दिल में चाकू की तरह चुभ गए थे। ये पहली बार नहीं था जब टीना ने सबके सामने अनाया की इस तरह से बेइज़्ज़ती की हो!
वो जब भी मिला करती थी, इसी तरह से अनाया का मज़ाक उड़ाया करती थी। और उसके बाद एक छोटी सी मुस्कराहट देकर इस तरह से जताती थी मानो कि उसे किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता है।
लेकिन आज उसकी शादी की सालगिरह के दिन इस भरी महफ़िल में, उसकी इज़्ज़त तार-तार हो रही थी। अभय के बिज़नेसमैन दोस्त उसे बड़ी अजीब नज़रों से घूर रहे थे।
इस वक़्त अनाया बहुत ज़्यादा शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। क्योंकि इस वक़्त उसे अभय के साथ अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी एक मज़ाक के अलावा कुछ नहीं लग रही थी।
वही अभय अभी भी वहाँ बेपरवाही से बैठा हुआ था। वो एक राजा की तरह अपने हाथ में रेड वाइन का गिलास पकड़े हुए था। ऐसा लग रहा था जो कुछ भी वहाँ हो रहा हो, उससे उसका कोई लेना-देना नहीं है! चाहे उसकी बीवी की कोई कितनी ही बेइज़्ज़ती क्यों ना कर रहा हो! उसे बिल्कुल भी फ़र्क नहीं पड़ रहा था।
वेल, कुछ सोचते हुए अचानक अनाया मुस्कुराई, खुशी से नहीं बल्कि खुद का ही मज़ाक उड़ाते हुए, क्योंकि वो चाहती थी कि अभय उसकी हेल्प करे, उसकी तरफ़ से बोले! भले ही अभय ने चार सालों में उसे कितना ही ज़्यादा दुख क्यों ना दिया हो।
अभय उसके साथ ऐसा बिहेवियर करेगा! उसे शादी से पहले इन सब चीज़ों के बारे में सब कुछ पता चल गया होता, तो वो कभी भी अभय से शादी करने का डिसीज़न नहीं लेती।
फ़िलहाल, उसने अपनी दाएं हाथ की बाजू को छुआ उसकी दाई बाजू काफी काफ़ी ज़्यादा कमजोर व बदसूरत हो चुकी थी। इसके बारे में किसी को भी नहीं पता था कि अभय की वजह से वो पहले ही अपने एक हाथ की खूबसूरती खो चुकी थी। लेकिन इसके बारे में किसी को नहीं पता था।
फिर उसे पास्ट की कुछ बातें याद आने लगीं कि किस तरह से उसने पहली बार खाना बनाना सीखा, और सिर्फ़ अभय के लिए कितनी ही बार उसकी उंगलियाँ कट गईं! फिर भी उसने हार नहीं मानी, लेकिन कभी भी अभय ने उसके हाथ का बना हुआ खाना नहीं खाया।
अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को सफल करने के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया! यहाँ तक कि जब वो उसकी कंपनी में खाना लेकर गई, तो अभय ने उस खाने को अपने कर्मचारियों के सामने ही कूड़ेदान में फेंक दिया।
और साथ ही साथ अनाया को वार्निंग दी, “तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी इस तरह की हरकतों से मैं तुमसे इम्प्रेस हो जाऊँगा? ख़बरदार जो तुमने मेरी चापलूसी करने की कोशिश की तो!”
अभय ने कभी भी उसका साथ नहीं दिया था। जब भी उसे अभय की ज़रूरत होती थी, तब वो ग़ायब रहता था।
एक बार जब अनाया को बहुत तेज़ बुख़ार था, उस वक़्त अभय अपनी गर्लफ़्रेंड टीना कपूर का जन्मदिन मना रहा था।
जब एक बार अनाया एक तूफ़ानी रात में बिजली गिरने की वजह से डरकर बिस्तर में दुबकी हुई थी, तब वो टीना कपूर के साथ मूवी देखने के लिए गया हुआ था। पिछले 4 सालों में अनाया ने लगभग हर दिन अकेले ही बिताया था।
अभय ने बार-बार ये साबित कर दिया करता था कि उसने कभी भी अनाया को प्यार नहीं किया था, यहाँ तक कि थोड़ा सा भी नहीं।
इतना ही नहीं, इतने सालों में तो किसी पालतू जानवर को पालते हैं तो उससे भी लगाव हो जाता है। लेकिन अभय को तो उससे इतना सा भी लगाव नहीं था।
अनाया ने सोचा था कि एक ना एक दिन अपने प्यार के बलबूते पर वो अभय का दिल जीत ही लेगी! लेकिन इस उम्मीद से उसने अपना सेल्फ़ रिस्पेक्ट ही खो दिया था।
उसे इस शादीशुदा ज़िंदगी में बेइज़्ज़ती और कड़वी बातों के अलावा कभी कुछ नहीं मिला था। यहाँ तक कि वो अपने वजूद को ही भूल गई थी।
लेकिन आज तो कुछ ज़्यादा ही हद पार हो गए थे। आज तो सबके सामने यूँ उस पर चेक फेंके जाने से उसे ऐसी फ़ील हो रहा था मानो कि वो कोई बाज़ारू औरत हो!
फ़िलहाल, इस बार वो ज़्यादा सहन नहीं कर पाई। वो थोड़ा सा झुकी, जमीन पर पड़ा हुआ चेक उठाया! और उसने उसे चेक को सबके सामने फाड़ दिया! इस वक़्त उसका दिल काफ़ी ज़्यादा टूटा हुआ था। चेक के टुकड़ों की तरह उसने अपने आँसू रोके और कमरे से बाहर निकल गई!
होटल के लॉबी तक दौड़ते हुए वो एक दीवार के सहारे झुक गई! और साँस लेने के लिए हाफ़ने लगी। कुछ देर तक खड़े रहने के बाद उसने अपना फ़ोन निकाला! और अभय को फ़ोन करके अभय का नाम पुकारा, और रोने लगी!
लेकिन तभी अभय उसकी आवाज़ सुनकर तिरछा सा मुस्कुराया, और उसकी इस तरह से रोती हुई आवाज़ सुनकर उसे लगा कि शायद चेक फाड़े जाने के अफ़सोस में अनाया रो रही है, जो उसने गुस्से से फाड़ दिया है।
तब अभय बिना किसी इमोशन्स के बोला, “क्या हुआ? चेक फाड़े जाने से दुखी हो, या बिना पैसे लिए जाने का अफ़सोस हो रहा है? इसलिए रो रही हो?”
अब जैसे ही अभय ने उसकी रोती हुई आवाज़ सुनकर उसे इस तरह की बात की, अब तो पानी सर से ऊपर जा चुका था।
तभी अनाया ने अपने आँसुओं को बेरहम तरीके से पोंछ दिया, और गहरी साँस लेकर थोड़ी देर रुकने के बाद गंभीरता से बोली, “अभय, मुझे तुमसे तलाक़ चाहिए! आई वांट डाइवोर्स…”
Civil Court
तभी “अनाया” ने अपने आँसुओं को बेदर्दी से पोंछ दिया, और गहरी सांस लेकर थोड़ी देर रुकने के बाद पूरी गंभीरता से बोली —
"अभय, मुझे तुमसे तलाक चाहिए! आई वांट डाइवोर्स..."
अब आगे —
अब जैसे ही अनाया ने बिल्कुल सीरियस होकर कहा कि मुझे तुमसे तलाक़ चाहिए, तब अभय के माथे पर बल पड़ गए! क्योंकि आज तक चार सालों में कभी भी अनाया ने इस तरह की कोई बात नहीं की थी — और इतने सीरियस अंदाज़ में!
इसीलिए अभय बिल्कुल कोल्ड वॉइस में बोला —
"आर यू सीरियस? क्या तुम सच कह रही हो?"
क्योंकि कहीं न कहीं अभय को लग रहा था कि यह लड़की मुझे छोड़कर कभी नहीं जा सकती है। और वैसे भी, उसे तो सिर्फ और सिर्फ पैसों से मतलब है। और उसके पैसों के लिए वह कुछ भी कर सकती है, क्योंकि आज तक सिर्फ वन नाइट स्टैंड के अलावा अभय ने कभी दोबारा से अनाया को हाथ तक नहीं लगाया था।
हालांकि वह दिखने में बेहद खूबसूरत थी, लेकिन कभी उसने उसकी खूबसूरती की कोई परवाह नहीं की। वह उसकी तरफ से पूरी तरह से लापरवाह रहा था। कभी उसने उसे वह मान सम्मान, इज़्ज़त, प्यारी पत्नी का हक़ नहीं दिया।
अगर उसने कुछ दिया भी तो सिर्फ और सिर्फ दुख, तन्हाई और बेइज्जती। इसके अलावा उसने उसे ज़िंदगी में कभी कुछ नहीं दिया।
फिलहाल उसे यह बात काफी हैरान कर रही थी कि भला जो लड़की आज तक उसे छोड़कर नहीं गई — वह अचानक से ऐसी बात कर रही थी! उसे हैरानी हुई। इसीलिए उसने अनाया से कन्फर्म करने के लिए एक बार फिर पूछा —
"क्या तुम सच कह रही हो? क्या तुम्हें वाकई मुझसे तलाक चाहिए?"
तभी गहरी लंबी सांस लेते हुए “अनाया” ने जवाब दिया —
"हाँ, मैं तुमसे तलाक़ लेना चाहती हूँ। और एक बात... मुझे तलाक़ के बदले में तुमसे एक भी रुपया नहीं चाहिए।"
अब जैसे ही अनाया ने यह कहा, अभय पूरी तरह से चौंक गया था। लेकिन अगले ही पल अपने चेहरे पर एक मक्कारी भरी मुस्कुराहट लाते हुए बोला —
"मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि मुझसे ज़्यादा पैसे निकलवाने के लिए ये तुम्हारी कोई नई चाल है। और मैं अच्छी तरह से समझता हूँ कि तुम मुझसे तलाक़ लेने का ड्रामा क्यों कर रही हो!"
अभय को लग रहा था कि अनाया का यह ड्रामा बहुत जल्द ख़त्म हो जाएगा। भला, जिस लड़की ने पूरे चार साल उसके साथ गुज़ार दिए और बदले में हमेशा से उससे पैसे लेती आई है — न जाने अब तक कितने सारे अपने कार्ड, अनलिमिटेड ब्लैक चेक, अभय अनाया को दे चुका था।
उसने कभी भी यह चेक करने की कोशिश नहीं की कि अनाया ने उसके पैसे खर्च किए हैं या नहीं, या अनाया ने कभी कुछ खरीदा भी है या नहीं। उसे तो यही लगता था कि वह सारे पैसे खर्च कर रही है — और वह ऐसी गोल्ड डिगर लड़की है, जो इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं है।
इसीलिए वह विचारों में अनजाने में ही अनाया से बेइंतहा नफरत कर बैठा था। उसे अनाया से बहुत ही ज़्यादा नफरत थी, जिसका कोई अंदाज़ा भी नहीं लग सकता था। लेकिन कभी भी अपनी ज़ुबान से वह अपनी नफरत का इज़हार नहीं कर पाया।
लेकिन उसके हाव-भाव, हर जगह अनाया की बेइज़्ज़ती करना — यह सब इसी बात की गवाही देते थे कि अभय को अनाया बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसीलिए अभय, अनाया पर तंज़ कसते हुए बोला —
"अगर तुम वाकई मुझसे तलाक़ लेना चाहती हो — ठीक है! हम कल ही सिविल कोर्ट चलेंगे, ठीक है!"
यह बोलकर अभय ने, बिना अनाया की कोई प्रतिक्रिया सुने, फोन काट दिया।
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वहीं “टीना कपूर”, जो कि उस वक्त अभय के बिल्कुल बराबर में बैठी हुई थी — अभय के चेहरे के बिगड़ते हुए एक्सप्रेशंस देखकर बोली —
"क्या हुआ अभय? तुम कुछ परेशान लग रहे हो?"
टीना की बात सुनकर अभय ने अपना सिर ना में हिलाया और शराब पीने लगा, क्योंकि उसे इस बात का पूरा यक़ीन था कि —
“अनाया उससे कभी तलाक़ नहीं लेगी।”
क्योंकि अभय रायज़ादा एक करोड़पति आदमी था। और भला इस तरह से एक मामूली सी लड़की उसे कैसे छोड़ सकती थी?
वो जानता था कि अनाया का कुछ खास बैकग्राउंड भी नहीं था। और जहाँ तक चार सालों में अभय ने अनाया के बारे में जाना था —
उसे तो कोई काम भी करना नहीं आता था। ना तो उसकी एजुकेशन कुछ खास थी और ना ही उसे कोई स्किल आती थी।
क्योंकि वह हमेशा से ही अनाया, अभय के घर में एक नौकरानी की तरह रही थी। उसके लिए छोटे-छोटे काम किया करती थी और कभी उसने कोई शिकायत तक नहीं की।
ना ही इन सालों में कभी कोई अनाया से मिलने आया — न उसका कोई घर, न परिवार, न दोस्त... उसका कोई भी नहीं था।
कहीं न कहीं, अभय को यही लगता था कि वह सिर्फ और सिर्फ उसके साथ... उसके पैसों के लिए है।
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क्योंकि अभय उसे अनलिमिटेड पैसे दिया करता था — शॉपिंग करने के लिए, खर्च करने के लिए — जिससे उसकी मर्ज़ी जो चाहे वह खरीद सकती थी। और जहाँ तक अभय को पता था, अनाया को किसी भी चीज़ की — ना बिजनेस की, ना किसी और फील्ड में — कोई खास नॉलेज नहीं थी। तो उसे तलाक लेने के बाद, और बदले में एक भी रुपया ना लेने की बात के बाद... भला वो अपनी ज़िंदगी, जीने के लिए कोई काम किए बिना कैसे रहेगी?
कहीं ना कहीं, अभय को यही लगा — कि ज़रूर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए “अनाया” इस तरह की नई ट्रिक चला रही है, और उससे तलाक़ लेने का ड्रामा कर रही है। और ज़रूर देर-सवेर वो उससे पैसों की भीख माँगने के लिए वापस आएगी।
उसे इस बात का पूरा-पूरा यक़ीन था। इसीलिए बेफिक्र होकर वह अपने दोस्तों के साथ अच्छी तरह से पार्टी इंजॉय करने लगा था।
वेल... अब ढेर सारी ड्रिंक करने के बाद “अभय” उसी होटल रूम में सो गया था। हालाँकि “टीना” उस होटल में उसके साथ रुकने की बहुत कोशिश कर रही थी, लेकिन अभय के दोस्तों ने उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा। इसीलिए टीना अपना मन मारकर रह गई थी।
लेकिन उसके पास वह अच्छा मौका था — अभय को अपना बनाने का, और उसके साथ वन नाइट स्टैंड करने का। लेकिन वह जितनी भी कोशिश करती, अभय के पास जाने की, वह अभी तक उसके साथ कोई भी वन नाइट स्टैंड नहीं कर पाई थी। ना ही वह उसके साथ किसी तरह का कोई किस कर पाई थी।
इसीलिए टीना ने सोचा कि अभय ने काफ़ी ड्रिंक कर लिया है, तो आज रात को वह उसे अपना बना लेगी। लेकिन जब उसके दोस्तों ने उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा, तो उसका पारा काफ़ी ज़्यादा हाई हो गया था, और वह अपना मन मसोस कर रह गई थी।
फिलहाल, अब अभय गहरी नींद में, होटल में अपने दोस्तों के साथ ही सो गया था।
और अगले दिन जैसे ही उसकी आँख खुली, उसके फोन पर लगातार कितने ही सारे “अनाया” के मिस्ड कॉल्स थे।
क्योंकि आज तक अनाया ने कभी भी अभय को कॉल्स नहीं की थीं — और इस तरह से अनाया के कॉल्स देखकर, अभय की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था।
अब “अभय” चौंक गया, और कल रात जिस तरह “अनाया” ने तलाक लेने की बात कही थी — वो सारी बातें उसके दिमाग़ के सामने घूमने लगी थीं।
उसकी इतनी सारी कॉल्स आना देखकर, उसे लगा — कि ज़रूर अब “अनाया” उससे माफ़ी माँगने के लिए कॉल कर रही होगी! क्योंकि उसने “अभय” को तलाक़ की धमकी दी थी।
यह सोचते हुए, एक खतरनाक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई और वह सोचने लगा —
"पैसा... पैसा... ना जाने पैसे के लिए लोग क्या-क्या करते हैं!"
कहीं ना कहीं, यह सोचते हुए वह “अनाया” के बारे में काफी ग़लत सोचने लगा था।
इसीलिए बेपरवाही से “अभय” ने वापस “अनाया” को कॉल बैक किया और बेरुखी से बोला —
"बोलो, क्या कहना चाहती हो तुम?"
दूसरी तरफ से “अनाया” ने उसे कहा —
"मिस्टर अभय सिंह रायज़ादा, मैं आपका सिविल कोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रही हूँ। आप फ़टाफ़ट से आ जाइए... प्लीज़!"
इतना बोलकर “अनाया” ने, बिना अभय की कोई बात सुने, तुरंत फोन काट दिया था।
अब “अभय” पूरी तरह से चौंक गया!
उसे तो लगा था — कि “अनाया” उससे माफ़ी माँगने के लिए कॉल कर रही होगी। लेकिन ये क्या? “अनाया” तो उसे अभी कोर्ट के बाहर आने के लिए कह रही है!
अब तो अभय के चेहरे पर बल पड़ गए थे। और वह सोचने लगा था —
"ये लड़की आख़िर क्या करने की कोशिश कर रही है? कहीं वो किसी अलग तरीक़े से मुझे ब्लैकमेल तो नहीं कर रही? पर अब कुछ भी हो... मुझे वहाँ जाकर देखना ही होगा!
मैं भी तो देखूँ — इस लड़की के तेवर अब कैसे बदल गए हैं... जो मुझसे इस तरह की बात बोल रही है। वो भी अभय सिंह रायज़ादा से? और मुझे ऑर्डर दे रही है कि मैं आकर उसे सिविल कोर्ट के बाहर मिलूँ?"
"अगर यह भी कोई नया नाटक निकला..." —
"...तो अब मैं इस तलाक को लेकर ही रहूँगा!"
कहीं ना कहीं, अभय यह सोचते हुए पीसते दाँतों से बुदबुदाने लगा था। और जल्दी ही ..
अभय ने जल्दी से अपने असिस्टेंट “माधव” को कॉल किया और ऑर्डर देते हुए बोला —
"फ़टाफ़ट से गाड़ी तैयार करो! हमें सिविल कोर्ट चलना है!"
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अभय ने जल्दी से अपने असिस्टेंट “माधव” को कॉल किया और ऑर्डर देते हुए बोला —
"फ़टाफ़ट से गाड़ी तैयार करो! हमें सिविल कोर्ट चलना है!"
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अब अपने बॉस की इस तरह से कॉल आने पर “माधव” हैरान हो गया, क्योंकि वो अच्छी तरह से जानता था — कि उसका बॉस अपनी बीवी “अनाया” को नापसंद करता है। और उसे अपनी बीवी में कोई इंटरेस्ट नहीं है। वो तो उसकी ओर देखना भी पसंद नहीं करता।
कहीं ना कहीं “माधव” को यकीन था — कि ये दोनों अलग हो जाएंगे!
लेकिन इतनी जल्दी अलग हो जाएंगे? ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था।
फिलहाल, उसने जल्द ही गाड़ी तैयार कर दी थी।
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वहीं दूसरी ओर —
फिलहाल, “अभय” ने होटल रूम में ही चेंज किया। फ्रेश होने के बाद अच्छे से ड्रेसिंग की, और सीधा “माधव” के साथ सिविल कोर्ट के दरवाज़े के बाहर पहुँच चुका था।
“अनाया” काफ़ी देर से “अभय” का वहाँ इंतज़ार कर रही थी।
“अभय सिंह रायज़ादा” एक अमीर आदमी के रूप में बेहद अट्रैक्टिव और बहुत ही ज़्यादा हैंडसम था।
उसका पावरफुल औरा और उसकी पर्सनालिटी — कितनी ही सारी लड़कियों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करवा देती थी।
वो दिखने में कामदेव पुरुष के जैसा था. अब जैसे ही वो वहां आया उसने देखा
अनाया बिलकुल सादा कपड़ों में, बिना किसी मेकअप के, एक फाइल हाथ में लिए कोर्ट परिसर में खड़ी थी। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बल्कि एक अजीब सी शांति थी।
जैसे ही उसकी नज़र अनाया पर पड़ी, वह ठिठक गया।
उसे आज की अनाया बिल्कुल अलग लगी — शांत, गंभीर और दृढ़। अभय “अनाया के क़रीब जाकर, अपनी कोल्ड आंखों से घूरने लगा और उसकी ओर देखकर नाखुश होकर बोला_ ये तलाक़ का क्या, ड्रामा लगा रखा है तुमने?
चाहती क्या हो तुम?
तब “अनाया ने बिना किसी एक्सप्रेशंस, के उसे जवाब दिया मैं, सिर्फ तुमसे तलाक चाहती हूं।
अनाया ने उसकी आंखों में आंखें, डालते हुए बड़े ही शांत भाव से उत्तर दिया था. इसके आगे उसने “अभय को कुछ नहीं बोला।
अब तो माधव “अनाया की बात सुनकर- पूरी तरह से चौक गया। क्योंकि उसने आज तक “अनाया को जितना जाना था- “अनाया तों हमेशा से ही उसके बॉस, के सामने डरी सहमी सी रहा करती थी। वो कभी भी “अभय कों किसी बात का उल्टा जवाब, नहीं दिया करती थी।
लेकिन ना जाने आज मासूम सी और सीधी साधी “अनाया मे इतनी हिम्मत कहा से आ गई थी? वो एकदम शेरनी, की तरहां “अभय रायजादा के सामने खड़ी हुई थी।
कहीं ना कहीं “माधव अपने मन में आज पहली, बार “अनाया से इंप्रेस हुआ था।
तभी"मिसेज़ अनाया रायज़ादा?" — कोर्ट क्लर्क ने आवाज़ दी।
अनाया ने बिना कुछ बोले कदम बढ़ाए और अंदर चली गई। अभय ने भी पीछे से प्रवेश किया।
वेल... अब फिलहाल जैसे ही वो अंदर गए, उन्होंने देखा कि अदालत में लोग पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे।
आखिरकार, "द फेमस बिज़नेसमैन अभय सिंह रायज़ादा" के तलाक़ का मामला था — तो बहुत जल्दी ही सारी फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकी थी। और जल्दी ही वो लोग अंतिम चरण, यानी डाइवोर्स पेपर्स पर साइन करने के लिए पहुँच गए।
वहीं “अनाया” ने बिना किसी हिचकिचाहट के, सिर्फ एक नज़र उन डाइवोर्स पेपर्स पर डाली — और अपने साइन कर दिए।
उसके बाद उन्होंने वह कागज़ “अभय” को दे दिए।
अब जैसे ही “अनाया” ने इतने बोल्ड तरीक़े से, अभय के सामने सिग्नेचर कर उसे कागज़ दिए — “अभय” को हैरानी हुई।
उसे अचानक कुछ अजीब सा लगा!
उसे लगने लगा — कि सामने खड़ी हुई औरत अब उसके लिए अजनबी हो गई है।
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कोर्ट में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।
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हालांकि आज से पहले “अनाया” पूरी तरह से उस पर ही डिपेंड रहा करती थी। एक-एक रुपये के लिए उसे “अभय सिंह रायज़ादा” से भीख माँगनी पड़ती थी।
लेकिन आज “अनाया” ने उसे तलाक़ देने का साहस कैसे किया?
अभी “अभय” यही सोच ही रहा था।
तभी “अनाया” ने उसकी ओर देखते हुए बेपरवाही से कहा —
"अब आप किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं, मिस्टर रायज़ादा? तलाक़ के पेपर पर साइन कीजिए!"
तभी “अभय” उसकी ओर देखकर एरोगेंट वॉइस में बोला —
"एक बार फिर सोच लो! अगर मैंने तलाक़ के पेपर पर साइन कर दिया, तो तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा...
क्योंकि यहाँ इन पेपरों में यह बात साफ़-साफ़ मेंशन की गई है — अभय सिंह रायज़ादा तुम्हें एक भी रुपया नहीं देगा!"
"याद रखना, तुम्हारे पास जो कुछ भी प्रॉपर्टी है — तुम सब कुछ खो दोगी। क्या तुम्हें यक़ीन है, मिसेज़ अनाया सिंह रायज़ादा, कि तुम मुझसे तलाक़ लेना चाहती हो?"
तब “अनाया” ने उसकी ओर देखकर कहा —
"मुझे तुमसे कुछ भी नहीं चाहिए। और मैं 100% श्योर हूँ!"
इतना बोलकर उसने “अभय” की आँखों में ललकारते हुए देखा।
वेल... अब “अभय” अंदर ही अंदर पूरी तरह से हैरान हो रहा था।
फिलहाल, उसने फटाफट से कागज़ों पर साइन कर दिए थे और तलाक़ की अर्जी दाखिल कर दी थी।
और उसके बाद सिविल कोर्ट के फैमिली जज ने उन्हें तीन महीने तक इंतज़ार करने को कहा था —
कि अगर उन्हें कभी भी अपने तलाक़ वाले डिसीज़न पर पछतावा हो, तो वो अपनी अर्जी वापस ले सकते हैं।
ये सुनकर अचानक “अनाया” बेफिक्री से मुस्कुराते हुए बोली —
"मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं होगा।"
अब जैसे ही “अनाया” ने बिना किसी भाव के यह कहा,
अब तो “अभय सिंह रायज़ादा” का चेहरा ग़ुस्से से काला पड़ गया था।
अब उसने “अनाया” को ग़ुस्से से घूरकर देखा — क्योंकि “अनाया” ने आज जो कुछ भी किया था, वाकई वह उसके इस एक्शन से काफी परेशान हो चुका था।
क्योंकि “अनाया” के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था — कि वो “अभय” से छुटकारा पाने के लिए काफ़ी ज़्यादा एक्साइटेड लग रही थी।
इस वक़्त “अभय” के मन में काफ़ी सारी मिक्स्ड फीलिंग्स थीं।
तभी “माधव” के चेहरे पर पसीना आना शुरू हो गया था।
क्योंकि उसने “अभय” के चेहरे को देख लिया था —
“अभय” का चेहरा इस वक़्त काफ़ी ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था।
“माधव” ने घबराहट से मन में सोचा —
"अनाया मैडम खुद तो बॉस की ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर जा रही हैं... लेकिन क्या ये ज़रूरी है कि बॉस को इस तरह से उल्टे-सीधे जवाब देकर भड़काया जाए?
खुद तो मैडम चली जाएँगी... लेकिन बॉस के चेहरे को देखकर लग रहा है कि वो हमें नहीं छोड़ेंगे। उनका ग़ुस्सा हमें झेलना पड़ेगा!"
कहीं न कहीं “अभय” को देखकर “माधव” को बहुत ज़्यादा डर लग रहा था।
फिलहाल, “अभय” ने तभी जज से कहा —
"मुझे पूरी उम्मीद है कि तीन महीने बाद भी मुझे इससे छुटकारा पाने का मौका नहीं मिलेगा... और ये मुझसे तलाक़ लेने से मना कर देगी!"
अब जैसे ही “अभय” ने यह सब इतने कॉन्फिडेंस से कहा, तो “अनाया” सारकास्टिक स्माइल के साथ उसकी ओर देखने लगी थी।
क्योंकि अभी भी “अभय सिंह रायज़ादा” को यही लग रहा था —
कि तीन महीने तक “अनाया” गिड़गिड़ाकर उसके पास आएगी और वापस से उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए कहेगी।
फिलहाल, वो सब सिविल कोर्ट से बाहर निकल गए।
और तब “अनाया” ने बिना किसी इमोशंस के “अभय” की ओर देखकर कहा —
"ओके मिस्टर रायज़ादा... आपसे तीन महीने बाद मुलाक़ात होगी!"
तब अभय ने अनाया को घमंड से देखकर कहा —
"बहुत अच्छा नाटक कर रही हो, लेकिन मैं तुम्हें एक पल में बेनकाब कर दूँगा।"
बहुत जल्द पेसो की भीख मांगते हुए तुम मेरे पास आओगी।
अभी “अनाया” उसे कुछ और कहना चाहती थी,
लेकिन “अभय” ने उसे कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया — और सीधा जाकर अपनी लग्ज़री कार में बैठ गया,
और दरवाज़ा ज़ोरों से पटक कर बंद कर दिया। अभय के बर्ताव उसकी चाल उसके ढंग से साफ पता चल रहा था कि उसमें घमंड कूट-कूट कर भरा हुआ है।
फिलहाल अभय के बैठते ही जल्दी ही “माधव” ने गाड़ी चला दी थी — जो कि “अनाया” के ठीक बराबर से तेज़ी से निकल गई।
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Well... “अभय” के जाने के बाद “अनाया” ने अपना सिर ना में हिलाया और कड़वाहट से मन में बोली —
"क्या ये वाकई 'अभय सिंह रायज़ादा' था?"
वो यह बात अच्छी तरह से जानती थी —
कि ये बिल्कुल भी मैनर्स वाला आदमी नहीं था।
तलाक़ के बाद भी “अनाया” के साथ वह बुरा बर्ताव कर रहा था। क्या वाकई इस आदमी के लिए उसने अपनी जिंदगी के चार साल बर्बाद कर दिए। कहीं ना कहीं अनाया कुछ देर तक अफसोस से वहां खड़ी रही थी, और उस और देखती रही जिस और अभय सिंह रायजादा अपनी शानदार गाड़ी से गया था।
Well... कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद, “अनाया” ने अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल पर बोला —
"मेरा तलाक़ हो गया है... मुझे लेने के लिए सिविल कोर्ट आ जाओ।"
अब जैसे ही “अनाया” ने यह कॉल कट किया, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट थी।
तभी दस मिनट भी नहीं हुए थे — कि एक लाल रंग की चमचमाती हुई स्पोर्ट्स कार वहाँ आकर रुक गई। 🚗✨
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अभी दस मिनट भी नहीं हुए थे कि एक लाल रंग की चमचमाती हुई स्पोर्ट्स कार वहाँ आकर रुक गई।
और उसमें से कोई और नहीं, बल्कि “अनाया” की सबसे अच्छी दोस्त “इशिका कपूर” बाहर निकलती है।
और “इशिका” दनदनाते हुए आकर सबसे पहले “अनाया” की ओर देखकर हड़बड़ाहट में कहती है —
"क्या सच में तुम्हारा डाइवोर्स हो गया है?"
जैसे ही सीधे-सीधे इशिका ने ये पूछा, तभी “अनाया” ने उसकी ओर देखकर ‘हाँ’ में सिर हिलाया और दरवाज़ा खोला व कार के अंदर बैठ गई।
तब अचानक “इशिका”, खुशी से कूदते हुए बिना दरवाज़ा खोले, खिड़की से ही कार के अंदर कूद गई।
और चहकते हुए बोली —
"What a great news! और वैसे भी उस घटिया इंसान से शादी करने से पहले, तुम बहुत अच्छी-खासी पावरफुल लड़की हुआ करती थी।
और अब तुम खुद को देखो, तुमने खुद को खो दिया है... एकदम नौकरानी जैसी लग रही हो!
फिलहाल, फाइनली तुम इस रिश्ते से आज़ाद हो गई हो! और अब वापस से अपनी कंपनी को संभालने का तुम्हारा समय आ गया है।"
ये कहते हुए “इशिका” ने एक्साइटमेंट में बैठे-बैठे ही कार के अंदर से “अनाया” को गले से लगा लिया था।
उसके चेहरे से खुशी साफ़ टपक रही थी, और वो खुद के इमोशंस कंट्रोल करते हुए बोली —
"तुम जानती हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी।"
फिलहाल “अनाया” ने अपने होंठ काटे, वह कुछ बोली नहीं — क्योंकि उसके लिए ये सिचुएशन बहुत मुश्किल थी।
Well... उस वक़्त वह काफी ज़्यादा बुरे मूड में थी।
फिलहाल “इशिका” ने आगे बढ़कर उसे बड़ा सा हग दिया और बोली —
"चलो, इन आँसुओं को रोकने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
फिलहाल “अनाया” ने कुछ देर तक “इशिका” की ओर देखा और फिर अपना चेहरा “इशिका” की बाहों में छुपा लिया।
उसने अपनी आँखों से आँसुओं को पोंछते हुए अजीब तरह से मुस्कुराया और बोली —
"तुमने कई सालों तक कंपनी चलाने में मेरी मदद की है... लेकिन मुझे अब इस बात का डर है कि पता नहीं मैं सही से सब कुछ मैनेज कर पाऊँगी या नहीं।"
तभी “इशिका” मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखकर कॉन्फिडेंस से बोली —
"शायद तुम भूल रही हो कि तुम इस फील्ड की सुपरस्टार हो!
और मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हारी वापसी इस पूरी दुनिया को हिला कर रख देगी।"
ऐसे बोलते हुए “इशिका” ने “अनाया” के सिर पर एक टपली मारी,
क्योंकि उसे ये कायर और टूटी हुई सी “अनाया” बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थी।
Well... तभी “इशिका” उसकी ओर देखकर हौसला देते हुए बोली —
"उस पागल आदमी ने तुम्हें अंधा कर दिया है और तुम भूल गई कि तुम कितनी ज़्यादा टैलेंटेड हुआ करती थी।
तुम्हारे लिए खुद को वापस पाना बहुत आसान है!
तुम आसानी से खुद को साबित कर सकती हो।
इस बात पर तुम कभी भी शक मत करना —
तुम अच्छी तरह से सारी चीज़ें मैनेज कर सकती हो।
मुझे तुम पर पूरा का पूरा भरोसा है।"
ये बोलकर “इशिका” ने “अनाया” को इनकरेज किया।
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Well... अब “इशिका” के इस तरह से कहने पर “अनाया” को अपने पुराने दिन याद आ गए थे —
जब उसने अपना खुद का काम शुरू किया था।
हालाँकि स्टार्टिंग में वो सब काम थका देने वाला था, लेकिन वो काफी ज़्यादा खुश और एक्साइटेड थी।
हालाँकि अब उसकी शादी की असफलता ने उसके अस्तित्व को काफी बड़ा झटका दिया था —
जिससे वो खुद को फिर से हासिल नहीं कर पाई थी।
फिलहाल, अपनी मानसिक स्थिति को एक बार फिर से परफेक्टली ठीक करने के लिए उसे कुछ टाइम की ज़रूरत थी।
तब “अनाया” ने “इशिका” की ओर देखकर स्लो वॉइस में कहा —
"इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे... अभी फिलहाल मुझे सिर्फ रेस्ट की ज़रूरत है।"
ये बोलकर वो गाड़ी की सीट से टेक लगाकर आँखें बंद करके लेट गई थी।
“इशिका” ने भी उसे ज़्यादा परेशान नहीं किया, और कार को जल्दी ही उसने बंगले की तरफ घुमा दी थी।
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Well...
शाम के धुंधलके में जब कार बंगले के लॉन में रुकी, “अनाया” ने हल्के से आँखें खोलीं। इशिका ने बिना कुछ बोले कार का दरवाज़ा खोला, और उसे सहारा देते हुए बाहर लाया।
“चलो अंदर चलें,” इशिका ने धीमे स्वर में कहा।
लेकिन तभी, अनाया की आँखों में एक अलग ही चमक थी। उसने सामने खड़े बंगले को एक नजर देखा — मानो कुछ पुरानी परछाइयाँ उसके ज़ेहन में लौट आई हों।
यही वो जगह थी... जहां से उसका असली जीवन शुरू हुआ था, लेकिन किसी को इसकी भनक तक न थी।
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"अनाया" — वो नाम जो आम दिखता था, मगर उस नाम के पीछे छिपी थी एक ऐसी पहचान, जो पूरी दुनिया को हिला सकती थी।
वो कोई साधारण लड़की नहीं थी... वो थी "दुनिया के सबसे शक्तिशाली औद्योगिक साम्राज्य की इकलौती वारिसा!"
लेकिन उसने ये सच हमेशा खुद में दफ़्न रखा था।
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दुनिया उसे बस एक सामान्य लड़की समझती रही — एक ऐसी औरत जिसने एक घमंडी बिजनेस टायकून से शादी की थी, और चार साल तक चुपचाप अपमान सहा था।
पर असल में, वो वही थी जिसकी एक दस्तख़त से कई देशों की अर्थव्यवस्था हिल सकती थी।
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इशिका अंदर दाखिल होते ही जानती थी कि अब वक्त आ चुका है।
“क्या तुम तैयार हो, अनाया?”
इशिका ने गंभीर होकर पूछा।
अनाया ने धीमे स्वर में जवाब दिया —
“अब और छुपने का वक्त नहीं है, इशिका। बहुत झेल लिया मैंने। अब मुझे फिर से अपना ताज पहनना होगा... लेकिन इस बार एक औरत बनकर — जिसने सब कुछ खोकर खुद को पाया है।”
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सच तो यह था कि अनाया, ‘रॉयल मेहरा ग्रुप ऑफ एम्पायर’ की एकमात्र उत्तराधिकारी थी — जिसकी जड़ें यूरोप, अमेरिका, और एशिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्रीज से जुड़ी थीं।
उसके पिता, सर रूद्र प्रताप मेहरा विश्व के उन गिने-चुने लोगों में से थे जिनके पास सिर्फ दौलत नहीं, बल्कि सत्ता भी थी।
पर अनाया ने बचपन से ही अपनी अलग पहचान बनानी चाही।
उसे नहीं चाहिए थे ताज, सिंहासन या नाम।
उसे चाहिए थी ख़ुद की बनाई दुनिया, खुद की पहचान।
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इशिका ही थी जो उसके इस गुप्त जीवन की सबसे करीबी साथी थी।
कुछ और पुराने दोस्तों को भी उसके असली नाम "अनाया मेहरा" की सच्चाई पता थी — पर उन्होंने कभी किसी से एक लफ्ज़ नहीं कहा।
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और अब... तलाक के बाद जब पूरा समाज उसे टूटी हुई, बेसहारा और हार चुकी औरत समझ रहा था — वो मुस्कुरा रही थी।
क्योंकि अब वह “अनाया रायज़ादा” नहीं...
"अनाया मेहरा" बनकर लौट रही थी।
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इशिका ने मुस्कुराते हुए उसे कोट थमाया —
“तो अब क्या प्लान है, महारानी?”
अनाया ने एक लंबी सांस ली और बोली —
“अब वक्त है अपनी कंपनी को दोबारा उठाने का... लेकिन इस बार सिर्फ कारोबार के लिए नहीं,
बल्कि हर उस औरत के लिए... जिसने रिश्तों की आड़ में खुद को खो दिया।”
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फिलहाल अनाया ने इशिका की ओर देखकर कहा था कल मुझे एक आखरी बार रायजादा मेंशन जाना होगा क्योंकि वहां मेरा एक जरूरी सामान है मुझे वह लेकर आना है।
अब जैसे ही “अनाया” ने इशिका को बताया कि वह कल एक बार रायज़ादा विला जाना चाहती है...
इशिका चौंक गई। उसकी आँखों में हैरानी थी, और लहजे में नाराज़गी।
“तुझे क्या ज़रूरत है वहाँ जाने की?”
इशिका ने ऐतराज़ जताते हुए तेज़ स्वर में कहा,
“तूम चाहो तो एक से बढ़कर एक चीज़ खुद के लिए खरीद सकती है! फिर तुझे उस जगह जाने की ज़रूरत ही क्या है?”
वो एक पल रुकी... और फिर लगभग चीखते हुए बोली —
“यार, मैं तो कहती हूँ उस हरामी आदमी का चेहरा भी वापस से मत देख! उसकी शक्ल तक देखने लायक नहीं है वो।"
इस वक़्त इशिका का चेहरा गुस्से से लाल था।
वो अपने दोस्त के लिए परेशान भी थी, और ज़रा भी नहीं चाहती थी कि अनाया दोबारा उस जहरीले माहौल में जाए।
हालाँकि इशिका जानती थी —
“अभय सिंह रायज़ादा” जैसा शख़्स...
जिसे देखकर कोई भी अपनी नज़रों को रोक नहीं सकता,
वो अपनी हैंडसम पर्सनैलिटी और ताक़तवर रुतबे से हर किसी को लुभा सकता है।
पर इशिका को आज उसमें सिर्फ ज़हर दिख रहा था।
वो आदमी, जिसने चार साल तक “अनाया” को तोड़ा, उसे छोटा महसूस कराया, उसकी आत्मा को चुपचाप घुटने पर मजबूर किया...
उससे ज्यादा नफ़रत इशिका ने किसी से नहीं की थी।
लेकिन तभी, “अनाया” ने बहुत शांति से, एक धीमी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा।
उसकी मुस्कान में दर्द भी था... और आज़ादी की सुकून भरी हवा भी।
"मैं अपना सामान ज़रूर लेकर आऊँगी,"
अनाया ने धीरे से कहा,
"और डोंट वरी... अब वो इंसान मुझसे और फायदा नहीं उठा सकता!"
उसका स्वर धीमा था... पर उसमें जो आत्मविश्वास था, उसने इशिका को शांत कर दिया।
ये कहकर “अनाया” धीरे-धीरे बंगले के अंदर चली गई।
सीढ़ियाँ चढ़ती हुई वो अपने पुराने कमरे तक पहुँची,
जो कभी उसका हुआ करता था।
कमरे में घुसते ही एक हल्की सी खुशबू, मुलायम पर्दे, और खामोशी ने उसका स्वागत किया।
ये वही कमरा था जहाँ वो “अनाया मेहरा” हुआ करती थी — आज़ाद, बेखौफ़, और बेमिसाल।
उसने दरवाज़ा बंद किया और सीधे जाकर अपने बिस्तर पर गिर पड़ी।
चादर के नर्म अहसास ने उसे जैसे एक माँ की तरह अपनी बाँहों में ले लिया।
आज पहली बार उसे अपने आसपास का माहौल अपना लगा था।
हर दीवार, हर कोना उसे कह रहा था — "अब तुम वापस आ गई हो।"
उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि
वो सच में आज़ाद हो चुकी है।
कोई बेड़ियाँ नहीं, कोई डर नहीं,
न किसी के ताने... न कोई ज़िम्मेदारी, जो उसके आत्मसम्मान को कुचलती हो।
आज उसके जिस्म से ही नहीं, उसकी रूह से भी वो रिश्ता अलग हो गया था
जिसने उसे एक “ताकतवर औरत” से “कमज़ोर पत्नी” बना दिया था।
बिस्तर पर लेटे-लेटे, वो छत की ओर देखने लगी।
उसकी आँखें धीरे-धीरे भारी होने लगीं...
अक्सर तकलीफें नींद चुरा लेती हैं,
लेकिन आज... एक अलग सी थकान ने, उसे एक मीठी नींद दे दी।
उसने खुद को फैलाकर बिस्तर पर छोड़ा —
जैसे किसी ने सालों बाद एक पिंजरे से निकलकर पंख फैलाए हों।
और फिर बिना कोई आवाज़ किए, वो गहरी नींद में खो गई।
वो नींद... जिसमें न “अभय” था,
न आँसू, न अपमान, न तन्हाई।
बस थी... वो खुद।
वो "अनाया" — जो अब खुद को फिर से पाने की राह पर थी।
।।।।।।हम तलाक शुदा है।।।।।
अब आगे।
लेकिन आज... एक अलग सी थकान ने, उसे एक मीठी नींद दे दी।
उसने खुद को फैलाकर बिस्तर पर छोड़ा
जैसे किसी ने सालों बाद एक पिंजरे से निकलकर पंख फैलाए हों
और फिर बिना कोई आवाज़ किए, वो गहरी नींद में खो गई
वो नींद... जिसमें न “अभय” था,
न आँसू, न अपमान, न तन्हाई।
बस थी... वो खुद।
वो "अनाया" — जो अब खुद को फिर से पाने की राह पर थी।
नेक्स्ट मॉर्निंग,_
अगले दिन “अनाया सीधा अपना सामान लेने के लिए रायजादा विला, में चली गई थी। “अनाया विला के बाहर ही खड़ी रही अंदर नहीं गई! “अनाया सीधा अभय, के असिस्टेंट “माधव को कॉल किया और माधव से, साफ-साफ कहा- की उसका एक जरूरी समान उसके, कमरे में रखा हुआ है। तो वो बैग उसे लाकर बाहर दे!
माधव पहले तो “अनाया की कॉल से काफी हद तक हैरान हो चुका था. और फिर अंदर ही अंदर कूढ़ कर रह गया वो, सोचने लगा- मिसेज रायजादा खुद तो हमेशा के लिए, हमारे “बॉस की जिंदगी से जा रही है! लेकिन जाते-जाते मेरे लिए मुसीबतें बढ़ा रही है।
क्योंकि जब से यानी डिवोर्स, के बाद से “माधव अभय के साथ था. अभय के चेहरे के बदलते हुए एक्सप्रेशन, और "बिहेवियर देखकर वो काफी हैरान हो रहा था।
फिलहाल “माधव को पता था. की इस वक़्त उसका “बॉस कहीं गया हुआ है। और सुबह का समय है तो इसलिए, फटाफट से वो "रायजादा विला में पहुंच चुका था'।
एक नौकर के थ्रू उसने सामान मंगवा लिया था. और “अनाया के आने का इंतजार करने लगा था. बस मन में यही दुआ कर रहा था- उसका “बॉस अभय सिंह रायजादा, वहाँ ना आ जाए वरना उसकी खैर नहीं थी।
वेल विला मे पहुंच कर “अनाया ने फोन करके नौकर से अपना, समान बहार लाने को कहा! और नोकर के बाहर आने के इंतिज़ार करने लगी!लेकिन ठीक उसी वक़्त “अभय सिंह रायजादा की लग्जरी कार, वहाँ आकर रुकी।
और “अभय सिंह रायजादा बिना किसी एक्सप्रेशन के उस कार से उतरा, उसकी नज़र सीधा “अनाया के चेहरे पर पड़ी हालांकि “अनाया ने एक रात बाहर गुजारी थी. लेकिन फिर भी “अभय पर इसका कुछ खास फर्क नहीं पड़ा था।
अनाया को इतनी सुबह विला, के बाहर देखकर उसे लगने लगा- की शायद “अनाया अब वापस आ गई हैं, और उसका ये "डिवोर्स लेने का भुत अब उतर गया है'।
वेल तभी “अभय सिंह रायजादा ने अनाया, की ओर देखते हुए एरोगेंट वॉइस में कहा_ तमाशा खत्म करो और अंदर चलो।
अब अनाया को तुरंत इसका, मतलब समझ में आ गया उसने सोचा की- अब उसे इस “आदमी की कोई बात या ऑर्डर नहीं सुनने ज़रूरत नहीं है! फिलहाल अनाया, ने “अभय सिंह की ओर घूरते हुऐ कहा_ मिस्टर रायजादा मुझे लगता है की आपकी, याददाश्त खराब हो चुकी है! क्या आपको याद नहीं, कल ही हमारा “डाइवोर्स हुआ है।
अब अनाया, की बात सुनकर “अभय ने अपनी भौहें सिकुड़ते हुए पूछा_ ओंह तों मिस “अनाया क्या सच में आप मूझसे दुर होकर, मेरी "जिंदगी से जाना चाहती है'।
अभी जैसे ही अभय ने “अनाया को घूरते हुऎ सख्त लहजे में ये कहा! तों “अनाया के कुछ बोलने से पहले ही, अचानक तभी एक "धमाके की आवाज़ उन्हे सुनाई दिया।
तभी “अभय और अनाया ने पीछे मुड़कर देखा की, वहां एक बहुत बड़ा बैनर लगा हुआ था. जिस पर लिखा हुआ था.
congrtulation for your divorce Anaya
अनाया, तुम्हें “डाइवोर्स की बधाई हों!
बैनर के नीचे कुछ अलग तरह के, और word थे. जिन पर अलग-अलग शब्द लिखे हुऎ थे।
जैसे "हैप्पी डिवोर्स, बेस्ट ऑफ लक अनाया।
ये देखकर “अनाया की आँखें हैरत से बड़ी हो गई थी। सब कुछ इतनी अचानक से हुआ की अनाया, पुरी तरहां से शोक्ड हो गई थी। अभी इससे पहले की वो, कुछ सोचती समझ पाती! तभी अचानक उसे अपने सामने, गुलाबों का एक बहुत बड़ा बुके देखा?
तब अनाया ने उसकी ओर देखने के लिए, अपना सर उठाया तो “अनाया के सामने घुटनों के बल एक मॉडल जैसा, खूूबसूरत हैंडसम “आदमी घुटनों के बल बैठा हुआ था।
और उसने “अनाया की ओर प्यार भरी नजरों से देखकर कहा_ क्या मेरा अभी "कोई चांस है?
अब जैसे ही उस आदमी, ने ये कहा “अनाया पूरी तरह से शॉकड थी. क्योंकि वो हैंडसम और मॉडल देखने वाला “आदमी अनाया के सामने घुटनों के बल बैठा हुआ था।
और वो उम्मीद भरी नजरों से देखकर बोला_ मैं मरते दम तक तुम्हारा, साथ नहीं छोडूंगा! मैं कसम खाता हूं! जब तक मेरे शरीर में जान है! मेरे दिल पर सिर्फ, तुम्हारा नाम ही लिखा रहेगा।
अभी जैसे उस मॉडल टाइप “आदमी ने घुटनों के बल बैठकर “अनाया के सामने ये सब शब्द कहें, तों अब “अनाया तो बेहोश होने के लिए तैयार थी. साथ ही साथ उसे, अब थोड़ी-थोड़ी हंसी भी आ रही थी।
वहीं अभय सिंह रायजादा, ने जैसे ही ये सब कुछ देखा और सुना, उसका चेहरा पुरी तरह से डार्क हो गया था। क्योंकी जिस तरह से वो “आदमी कह रहा था. की वो मरते दम तक “अनाया का साथ नहीं छोड़ेगा! तो “अभय को लगा जरुर वो आदमी, उसका मजाक उड़ा रहा है। और तभी अभय ने अपनी भौंहे सिकुड़ ली थी और वह सोचने लगा था कि शायद अनाया जानबूझकर यह इस तरह का नाटक कर रही हैं।
और तभी “अभय अनाया, की ओर गहरी नजरों से घूरता हुआ सीधा अपने विला, के अंदर चला गया था'। क्योंकी कहीं ना कहीं “अभय को यही लग रहा था. जरुर इस तरह की बातें, सुनाकर “अनाया उसे अपने सामने झुकाना चहती है।
वो ये साबित करना चाहती है कि उसके लिए लड़कों की की कमी नहीं है, जरूर इस लड़के को कुछ पैसे देकर वो इस तरह का घटिया नाटक करा रही है ,,
फिलहाल अनाया हैरानी से “अभय को जाते हुए देख रही थी। इसलिए वो अंदर चला गया।
वेल उसके जाने के बाद “अनाया ने घूरकर उस मॉडल टाइप “आदमी की ओर देखा,
और उसे बिना कुछ कहे वो, भी अब "रायजादा विला के अंदर चली गई, और जैसे ही वह वहाँ गई!
माधव की नजर अनाया, पर पड़ी और साथ ही साथ उसने अपने बॉस, के एक्सप्रेशन को नोटिस किया! माधव थोड़ा हैरान हो गया की वो, अब इन दोनों के बीच क्या बोले?
तभी माधव ने अपने बॉस, के पीछे “अनाया को आता हुआ देखकर “माधव बोला_ ओ मिसेज़ रायजादा, आप यहां पर आइए ना प्लीज़ मैं, अभी आपका समान "उसने इतना ही बोला था. की?
अब “अभय के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गई, क्योंकि उसे यही लगा था- की जरूर अब “अनाया उसके पास वापस आएगी, और जो कुछ भी उसने "ड्रामा किया उसके लिए उससे माफी मांगेगी। और जो लड़का बाहर एक्टिंग करने के लिए लेकर आई है उसके लिए भी उसे sorry बोलेगी, और उससे जो वो डाइवोर्स लेने का और साथ ही साथ एक भी पैसे न लेने का वो ड्रामा कर रही है वो भी खत्म कर देगी।
यही सोच कर अभय के चेहरे पर एक घमंड भरी मुस्कान थी , साथ ही साथ वो सोच रहा था
अब जब वो, बेकार की एक्टिंग कर रही थी. वो ज्यादा नहीं करेंगी. और साथ ही साथ उसने सोचा- कि इस बार वो “अनाया को अच्छा खासा झाड़ देगा! कि उसे इस तरह की हरक़त दुबारा नहीं करना चाहिए, वरना वो हमेशा सिर्फ और सिर्फ उससे नफ़रत करेगा।
और सचमुच तलाक देकर यहां से बाहर निकाल कर फेंक देगा।
वेल अभय ने खुश होकर मन में “अनाया के खरी खोटी सुनाने का प्लेन बना लिया था। उसे और बेइज्जत करने के बाद, अपनी "बात मनवाने का प्लेन भी बना लिया था!
वेल तभी अभय, रुका और मुड़कर वो “अनाया को झाड़ना चाहता था. लेकिन तभी “अनाया की आवाज़ उसके कानों में सुनाई दी!
उसने सॉफ्ट टोन में “माधव को थैंक यू बोला! और उसके पास से, अपना छोटा सा एक बैग ले लिया। और सीधा “अभय के पास से गुज़रने लगी और फिर “अनाया जाते-जाते थोड़ा सा आगे गई, कुछ सोचते हुए रुकी।
और पलटकर फिर “माधव की ओर देखकर बोली_ एक और बात मिस्टर “माधव तुम अपने बाॅस मिस्टर रायजादा, से कह देना की मैं यहां सिर्फ और सिर्फ अपना, बैग लेने के लिए वापस आयी थी।
जहां तक मेरे कमरे में बाकी की चीजों का सवाल है! उनका चाहे आप लोग कुछ भी सकते हैं! और यही बात आप मिस्टर रायजादा को, भी कह देना की मैं, अब उन्हे कभी भी परेशान नहीं करूँगी।
क्योंकि अब हम “तलाकशुदा है।
और एक और बात मैंने उन्हें, एक कार्ड भेजा है। और जब उनकी अगली "शादी होंगी तों मेरी तरफ से उन्हें, ये कार्ड को वो अपनी शादी का तोहफ़ा समझे, इतना बोलकर- उसने जल्दी ही एक कार्ड “माधव को थमा दिया था।
माधव अब चोर नजरो से “अभय की और देखने लगा! इस वक़्त अभय, के चहरे का रंग उड़ा हुआ था! माधव ने “अनाया को एक नज़र देखने के बाद, कांपते हाथो से वो कार्ड जो “अनाया ने दिया था. उसे “अभय के हाथो मे सोंप दिया।
और “अभय ने अब जैसे ही उस कार्ड को देखा, तो वो पूरी तरह से चौंक गया था।✍🏻
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यह खाने की वजह से ही तो है! यह हमेशा साधारण खाना खाता है, जो इसे उल्टी-सीधी बीमारियों से, हर चीज़ से बचाता है। देखो, तभी तो इतना स्ट्राँग है।" अब दादी के बाद, अरमान ने उन्हें हल्का सा एक लुक दिया। अरमान ठाकुर को आज तक किसी ने हँसते हुए नहीं देखा था। उसके चेहरे पर कभी कोई हँसी नहीं आई। बहुत ही कम उम्र से ही उसने अनुशासन में रहना सीख लिया था। इतना ही नहीं, हँसी-मज़ाक तक करना क्या होता है, यह सब उसे कुछ नहीं पता था। वह तो सिर्फ़ अपनी दुनिया में, अपने अकेलेपन में, पूरी तरह से बिज़ी हो गया था। वेल, अब खाना खाने के बाद, सरस्वती जी अपने बेटे को निहार कर देखती रहीं। पूरे दो साल के बाद वह अपने बेटे को देख रही थीं। साथ-साथ, अपनी बेटी के हाथ में लगी चोट की भी उन्हें चिंता हो रही थी, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थीं कि किस तरह से अपने बेटे के ये दो सेल गुज़रे, यह चोटें कैसे लगीं, यह सारी बातें वह अपने बेटे से पूछे।
वहीं, कुसुम जी सरस्वती जी को इस तरह से अपने बेटे को देखते हुए देखकर, थोड़ा कड़क आवाज़ में बोलीं, "यह क्या बहू? जब से यह बच्चा आया है, तब से तुम उसे घूर रही हो? क्या तुम नज़र लगाओगी क्या बच्चे को? हाँ, अभी आया है, जी भरकर देख लेना। थोड़ा थक गया होगा, उसे आराम वगैरा करने दो, भाई! हाँ, यह ऐसे उसे घूर क्यों रही हो?" जैसे ही कुसुम जी ने थोड़ा कड़वापन से यह बात बोली, सरस्वती जी की तो हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था। वहीं, राधिका का दिल भी कटकर रह गया था, और वह अपने दादाजी की ओर देखने लगी। दादाजी ने भी अपनी एक नज़र अपनी बहू और पोती की ओर देखा, उसके बाद चुपचाप उबले हुए खाने पर कंसंट्रेट करने लगे। वहीं, कुसुम जी की बात सुनकर सरस्वती जी के लिए वहाँ रहना मुश्किल हो गया था, इसलिए वह वहाँ से खड़ी हुईं और सीधा अपने कमरे में चली गईं, क्योंकि वहाँ सबके सामने वह अपने आँसू नहीं बहा सकती थीं। कमरे में जाकर वह अपना दिल हल्का करने लगीं। वहीं, राधिका के लिए भी वहाँ रहना मुश्किल हो गया था। वैसे भी उसे वह खाना खाया ही नहीं जा रहा था, इसीलिए वह अपनी माँ को सांत्वना देने के लिए ठीक उनके पीछे-पीछे उनके कमरे में चली गई। वहीं, कुसुम जी दोनों माँ-बेटी के चेहरे देखकर बोल उठीं, "देखा आपने? हो गया ना दोनों माँ-बेटियों का ड्रामा! सुनो, बेटे को आए 2 मिनट नहीं हुए और देखो कैसे उसके सामने ड्रामा करके दिखा रही हैं! खाना ही खाकर नहीं गईं क्या? मैं ही बुरी हूँ, उसे घर में!" यह बोलकर दादी माँ, यानी कुसुम जी ने अपना मुँह बनाया। "मैं ही बुरी हूँ," हर बार यह लाइन बोलना जैसे उनकी आदत हो चुकी थी। वह वहीँ थीं।
अब अरमान अपनी मां के पीछे जाना चाहता था लेकिन जल्दी ही अरमान का फ़ोन बजने लगा। फ़ोन पर कोई और नहीं, बल्कि अरमान के ही कलीग थे, जो अरमान के गोली लगने पर उसके ठीक से हालचाल नहीं ले पाए थे। तो जब उन्हें पता चला कि अरमान ऑलरेडी छुट्टी पर गया हुआ है, तो जल्दी ही अयान ने उसे फ़ोन किया था। अयान का फ़ोन आने पर, अरमान सीधा अपने कमरे के अंदर चला गया। कमरे में जाकर उसने अपने कमरे की खिड़की खोली, थोड़ी देर ताज़ी हवा फील की और फ़ोन उठाकर अपने कानों पर लगा लिया। दूसरी तरफ़ से अयान की शरारती, भारी आवाज़ थी। "हेलो ब्रो! फ़ाइनली! कम से कम गोली के बहाने से ही कुछ दिन तो आराम करोगे! और मैं तो कहता हूँ, अभी तुम पूरे 28 साल के हो गए हो तुम! अभी तो अपने लिए कोई लड़की देख लो और शादी कर लो! कब तक इस तरह से शहर भर की सभी लड़कियों को अपने पीछे पागल बनाए रखोगे?" तो अभी जैसे ही अयान ने थोड़ा मज़ाकिया लहज़े में यह कहा, अरमान को उसकी बातें बोरिंग लगने लगीं और वह बोला, "कोई काम की बात हो तो बताओ; यह फ़ालतू की बातें कुछ मेरे साथ मत करो।" जैसे ही अरमान ने बिना किसी इमोशन के यह बोला, अयान अपना सर पकड़कर रह गया और बोला, "यार, इस उम्र में लोग लड़कियाँ, गर्लफ्रेंड्स, वगैरह इन सब की बातें करते हैं, लेकिन तू है कि तुझे यह सारी बातें ही फ़ालतू और बकवास लगती हैं। वेल, फ़िलहाल मिशन से रिलेटेड मेरे पास कोई नई इंफ़ॉर्मेशन नहीं है, और वैसे भी, चालीस दिन की छुट्टी पर गया है, तो मिशन भूल जा और आराम से छुट्टियाँ एन्जॉय कर! और मैं तो कहता हूँ, एक लड़की पटा ही ले इस बार! हाँ, मैं जानता हूँ कि तुझे इस बात का डर है कि अगर तू किसी एक लड़की से शादी कर ले, या तुझे कोई एक पसंद आ गई, तो बाकी की, पूरे शहर भर की लड़कियों का क्या होगा? सबका दिल टूट जाएगा। लेकिन तू फ़िक्र मत कर, तेरा भाई यार है ना, वह सबको संभाल लेगा।"
तेरा भाई यार है ना, वह सबको संभाल लेगा।"
वेल अयान से बात करने के बाद अरमान सीधा अंदर गया था,
वही दूसरी ओर सरस्वती जी उस वक्त काफ़ी ज़्यादा रो रही थीं और बोल रही थीं, "देखा राधिका, तुम्हारा भाई कितने दिनों के बाद घर आया है, मैं जी भरकर अपने बेटे को देख भी नहीं सकती हूँ! देखो तो दादी क्या बोलती हैं!"
अभी अपनी माँ की बात सुनकर राधिका तुरंत बोली, "लेकिन माँ, भैया ने भी तो कुछ नहीं बोला। भैया भी तो आपसे 6 महीने बाद मिले हैं। जितना प्यार आप भैया को करती हैं, भैया ने तो कभी इतना प्यार नहीं दिखाया। तो मुझे लगता है, माँ, आपको इतनी ज़्यादा फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"
जैसे ही राधिका ने यह बोला, सरस्वती जी तुरंत बोल पड़ीं, "अरे वो तो बच्चा है, उसे क्या पता! लेकिन तेरी दादी तो बड़ी हो गई है, समझदार है। आखिरकार वो कब समझेगी?"
तब राधिका बोली, "माँ, प्लीज़, पहले तो आप यह रोना बंद कीजिए। मुझे आपकी आँखों में एक भी आँसू पसंद नहीं है। और हाँ, अभी भैया आ गए हैं, और भैया के आने के चक्कर में अपना कोई काम नहीं कर पाई हो। और कल से मेरे कॉलेज स्टार्ट हो रहे हैं, तो मैं जाकर अपना बैगपैक तैयार करती हूँ और कॉलेज के लिए निकलती हूँ, ठीक है? और हाँ, एक बात तो मैं आपको बताना ही भूल गई। आपको याद है मेरी फ़्रेंड, राशमी?"
तब सरस्वती जी बोलीं, "हाँ-हाँ, जानती हूँ रशमी को। कितनी बार तो आई है तेरे साथ घर पर।"
"हाँ, एक्चुअली उसके अलावा कोई दूर के रिश्तेदार हैं, जो इस शहर में नई हैं, तो रशमी का घर तो छोटा है, उनके लिए ही कम पड़ता है। तो कुछ दिनों के लिए रशमी ने रिक्वेस्ट की है कि मैं उनकी मेहमान को अपने घर पर रखूँ। और वह एक पेइंग गेस्ट की तरह हमारे यहाँ रहेगी। प्लीज़ माँ, इतना बड़ा महल जैसा घर है, हम एक कमरा तो उसे दे ही सकते हैं ना?"
अभी जैसे ही राधिका ने यह बात बोली, सरस्वती जी थोड़ा सा चौंक गईं और बोलीं, "लेकिन बेटा, भले ही घर बड़ा है और कमरे भी यहाँ पर काफ़ी सारे हैं, लेकिन किसी अनजान को इस तरह से रखना मुझे नहीं लगता कि बिलकुल भी ठीक होगा। और तेरे पापा क्या कहेंगे?"
तब राधिका बोली, "माँ, मैं पापा से पहले ही बात कर चुकी हूँ, और पापा को कोई प्रॉब्लम नहीं है। और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, वो कोई ऐसी-वैसी मेहमान नहीं है, वो मेरी ही कॉलेज की प्रोफ़ेसर है। कुछ महीनों के लिए ही हमारे पास रुकेगी।"
अभी जैसे ही राधिका ने यह बोला, सरस्वती जी को भी कोई प्रॉब्लम नहीं थी, और वह मान गईं। लेकिन फिर बोलीं, "बेटा, अपनी दादी को कैसे मनाओगी?"
तब राधिका मुस्कुराकर बोली, "दादी को तो आप मनाओगी ना माँ?"
सरस्वती जी चौंककर बोलीं, "मैं? मैं कैसे?"
तब राधिका मुस्कुराकर बोली, "आइए मेरे साथ!" यह बोलकर राधिका जल्दी ही अपनी माँ का हाथ थामकर बाहर चली गई।
हॉल में, उस वक़्त, खाना खाने के बाद, कुसुम जी अपने पति के साथ बैठकर चाय के मज़े ले रही थीं। तब राधिका मुँह फुलाकर दादा जी के पास बैठते हुए बोली, "दादा जी, देखा आपने? माँ मेरी बात नहीं मान रही है! मैं कह रही हूँ कि इस घर के सारे फ़ैसले माँ ही लेती हैं, और यह मेरी इतनी छोटी-सी बात नहीं मान रही हैं! और मैंने अपनी फ़्रेंड को बुला भी दिया है।"
अभी दादा जी चौंक गए और बोले, "क्या बात है बेटा? ऐसी कौन सी बात है जो तेरी माँ नहीं मान रही है?"
वहीं, कुसुम जी के तो माथे पर बल पड़ गए और वह बोल पड़ीं, "अच्छा! तो मैं घर की मालकिन कब से बन गई और कब से वह घर के फ़ैसले लेने लगी है? हाँ, वो भी हमारे रहते हुए! बता, तुझे क्या चाहिए? क्या बात नहीं मान रही है तेरी माँ?" तब राधिका ने अपनी मां की ओर आंख मारी और जल्दी ही दादी के सामने खुशी का जिक्र कर दिया और अपनी बहू को निचा दिखाने के चक्कर में दादी ने खुशी को वहां रहने की इजाजत दे दी थी, सो इस तरह से खुशी ठाकुर मेंशन में रहने के लिए आ गई थी।
और पहली मुलाकात में ही वो अरमान ठाकुर से टकरा गई थी वो भी उसी के कमरे के बेड पर।
फिलहाल, खुशी जो कि अपने कमरे में थी, उसकी नींद भी उड़ चुकी थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एकदम से उसकी ज़िंदगी में अरमान ठाकुर जैसा हैंडसम सोल्जर आ जाएगा। कितनी ही देर तक वह उसकी डैशिंग पर्सनालिटी में पूरी तरह से खो गई थी। खुशी के चेहरे पर मुस्कान भी नाम मात्र की ही आया करती थी, जल्दी से वह मुस्कुरा भी नहीं पाती थी। फिलहाल, राधिका उसके पास आई और उससे माफ़ी माँगकर बोली, "मुझे पता है कि आप भाई के बिहेवियर से नाराज़ हो, लेकिन प्लीज़, तुम मुझे माफ़ कर देना। मुझे नहीं पता था कि आप गलती से भाई के कमरे में चली जाओगी।"
तब खुशी ने राधिका की ओर एक नज़र देखा और बोली, "ठीक है, इट्स ओके।" यह बोलकर एक बार फिर उसने खुद को चादर में कवर करके सोने की कोशिश की। वहीं, दूसरी ओर, अरमान बेड पर तो लेट गया था, लेकिन बार-बार जिस तरह से खुशी ने उसे कसकर गले से लगाया था, यह बात उसके दिमाग से जा ही नहीं रही थी, क्योंकि पहली बार कोई लड़की उसके इतने ज़्यादा करीब आई थी। तो उसका दिल पूरी तरह से बेचैन हो उठा था। वहीं, खुशी की खुशबू बेड पर से भी आ रही थी। झिझक में अरमान खड़ा हुआ और उसने बेड पर से चादर उठाकर खींच ली। जल्दी ही अपने बेडशीट बदलकर वह लेट गया। अभी भी खुशी की खुशबू वह अपने कमरे में महसूस कर सकता था, लेकिन ज़्यादा ना सोचकर जल्दी ही उसने अपनी कुछ मेडिसिन्स लीं और एक गहरी नींद में सो गया।
अगली सुबह, सब लोगों ने बड़े ही प्यार और दुलार से अरमान को देखा। अभी तक किसी को यह नहीं पता था कि अरमान के हाथ में गोली लगी है, क्योंकि अरमान नहीं चाहता था कि उसके हाथ में गोली लगी है, इस बारे में अगर किसी को भी पता चल गया, तो उसका परिवार बहुत ज़्यादा दुखी हो जाएगा, और वह अपने परिवार को दुखी नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने यह बात किसी को नहीं बताई। केवल मामूली सा जख्म ही बताया था फिलहाल, अरमान फ़्रेश होने के बाद, अच्छे से खुद को तैयार करके, सीधा ब्रेकफ़ास्ट करने के लिए नीचे डाइनिंग टेबल पर आ गया, और उसकी माँ, सरस्वती जी ने उसकी पसंद का सारा नाश्ता बनाया था। नाश्ता बनाकर अरमान को देखकर बोलीं, "मॉम, मैं आपके हाथ के बने हुए खाने को बहुत ज़्यादा मिस किया हूँ।"
तब कुसुम जी, उसकी दादी बोलीं, "हाँ-हाँ, मेरे बच्चे! इसीलिए तो अब हम तुम्हें जल्दी से यहाँ से जाने नहीं देंगे।"
माँ सरस्वती जी ने भी आगे बढ़कर अरमान के माथे को चूमा और बोलीं, "मैंने भी सोच लिया है, अब तो मैं तेरी शादी करने के बाद ही तुझे यहाँ से भेजूँगी! देखना, जब तेरे हाथों में हथकड़ियाँ लग जाएँगी ना, शादी की, फिर तू जल्दी-जल्दी यहाँ से कहीं नहीं जाएगा।"
कहीं ना कहीं बोलते हुए सरस्वती जी की आँखें भर आईं। उसी वक़्त, ठीक पीछे, जब सरस्वती जी अरमान की शादी की बात कर रही थीं, खुशी और राधिका ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर आ रही थी।
अरमान की शादी की बात सुनकर, न जाने क्यों, लेकिन खुशी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, और उसके माथे पर पूरी तरह से बल पड़ गए थे। उसका मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था। फिलहाल, वह बिना नाश्ता किए ही वहाँ से बाहर जाने लगी, लेकिन राधिका ने उसका हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग टेबल पर खींच लिया और बोली, "इस तरह से कहाँ जा रही है? आप नाश्ता करके जाइए, प्लीज़।" यह बोलकर, उसने अरमान के ठीक बराबर वाली सीट पर खुशी को बिठा दिया और खुद वहीं बैठकर नाश्ता करने लगी। अब जैसे ही अरमान ने एक नज़र भरकर खुशी को देखा, तो कल रात जो कुछ भी हुआ था, उसकी आँखों के सामने आ गया। वहीं, खुशी अब बिना किसी इमोशन्स के, बिना किसी भाव के, अरमान की ओर देखने लगी। खुशी का ध्यान इस वक़्त खाने में कम, सिर्फ़ और सिर्फ़ अरमान पर बहुत ज़्यादा था। कहीं ना कहीं यह बात वहाँ डाइनिंग टेबल पर मौजूद सभी लोगों ने महसूस कर ली थी। सभी लोगों को यह बात कहीं ज़्यादा अजीब भी लग रही थी कि खुशी ने जिस तरह से वहाँ पर बिहेव किया था, किसी को ज़्यादा इम्पॉर्टेंस नहीं दिया था, लेकिन अरमान को यूँ देखना कहीं ना कहीं सब लोगों को हैरान कर रहा था। वहीं, अरमान अब थोड़ा सा शर्मिंदा सा हो गया था कि आखिरकार इस लड़की को क्या हो गया है? इस तरह से सब लोगों के सामने मुझे घूर क्यों रही है? फिलहाल, यह सोचते हुए अरमान को खांसी आने लगी। जल्दी ही सरस्वती जी आगे बढ़कर पानी का गिलास अरमान की तरफ़ बढ़ाने लगीं, लेकिन उससे पहले खुशी ने पानी का गिलास अरमान की ओर बढ़ा दिया था। अब अरमान को समझ में नहीं आया कि वह पानी का गिलास किसके हाथों से ले—खुशी के हाथों से ले या अपनी माँ के हाथों से ले? फिलहाल, उसने अपनी माँ, सरस्वती जी के हाथों से पानी का गिलास लिया और एक घूँट पानी पीने के बाद, "थैंक यू" बोलकर अपनी माँ की ओर देखते हुए उठ खड़ा हुआ। टिशू पेपर से अपने होठों को पोंछकर बोला, "मॉम, बस मेरा हो गया है, मैं चलता हूँ। मुझे अपने कुछ दोस्तों से मिलने के लिए जाना है। मैं शाम तक आ जाऊँगा।"
जैसे ही अरमान ने यह बोला, सरस्वती जी पूरी तरह से चौंकते हुए बोलीं, "लेकिन बेटा! आज का दिन तो कम से कम हमारे साथ बिताओ! बेटा, कल ही तो तू आया है और आज ही अपने दोस्तों से मिलने के लिए चल दिया?"
तभी उसके पिताजी, , तुरंत अपनी पत्नी को टोकते हुए बोले, "अरे भाग्यवती! क्या कर रही हो? बेटा इतने दिनों के बाद आया है, तो जाने दो उसे। अपने दोस्तों से मिलने दो, थोड़ी मौज-मस्ती कर ले, बातें करने दो। हम हैं ना, हम बिताएँगे तुम्हारे साथ टाइम।"
जैसे ही राघव जी ने थोड़ा सा मज़ाक के अंदाज़ में यह कहा, सरस्वती जी हल्की सी मुस्कान के साथ मान गईं। वहीं, अरमान के उठते ही, तुरंत खुशी भी उठ खड़ी हुई और राधिका की ओर देखकर बोली, "मैं भी चलती हूँ, मुझे लेट हो रहा है।"
अब राधिका तुरंत खुशी के पीछे दौड़ते हुए बाहर की ओर निकल गई और बोली, "यह क्या खुशी दीदी? आपको हमेशा इतनी जल्दी क्यों लगी रहती है? अरे आपको पता है, आप मेरे ही कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं, वह भी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक महीने के लिए, क्योंकि जो हमारे पुराने प्रोफ़ेसर थे, उन्हें कुछ इमरजेंसी आ गई थी, उसी की जगह आपको रखा गया है। यह बात मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, और आप जानती हैं, मैं इंग्लिश में बहुत ज़्यादा कमज़ोर हूँ, इसीलिए मैंने आपको अपने घर पर रखने की ज़िद की थी।"
यह सुनकर खुशी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "डोंट वरी, आई विल टेक केयर। मैं सब संभाल लूँगी।" यह बोलकर अब खुशी वहाँ से जाने लगी थी। खुशी किसी न किसी ड्राइवर के थ्रू ही वहाँ से जाना चाहती थी, लेकिन राधिका तुरंत टोकते हुए बोली, "खुशी दीदी, मैं भी तो आपके साथ चल रही हूँ ना! प्लीज़, हम दोनों साथ चलते हैं।"
और जैसे ही वे सड़क पर आए, तो उन्होंने देखा कि अरमान अपनी गाड़ी स्टार्ट कर रहा था अपने दोस्तों के पास जाने के लिए। तभी राधिका तुरंत दौड़ते हुए अपने भाई के पास गई और बोली, "भाई-भाई! अगर आप फ़्री हैं, तो प्लीज़, क्या आप हम लोगों को छोड़ देंगे? हम लोग भी उसी ओर जा रहे हैं।"
यह सुनकर, कहीं ना कहीं खुशी तो काफ़ी ज़्यादा खुश हो गई थी, क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी अरमान के साथ ही जाना चाहती थी। वहीं, राधिका यह बोलने के बाद सीधा गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर गाड़ी के पीछे वाली सीट पर बैठ गई थी, और जब खुशी गाड़ी में नहीं बैठी, तब राधिका अंदर से ही चिल्लाकर बोली, "अरे खुशी दीदी! आप बाहर क्या कर रही हैं? प्लीज़, जल्दी से बैठ जाइए ना!" यह बोलकर अब अंदर से बैठे-बैठे ही उसने फ़्रंट सीट का दरवाज़ा खोल दिया था। तब खुशी ना चाहते हुए भी सीधा गाड़ी में जाकर बैठ गई थी। खुशी अरमान को पहली नज़र में ही पसंद करने लगी थी, लेकिन उसे उसे साफ़-साफ़ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। खुशी राधिका के कहने पर अरमान की गाड़ी की फ़्रंट सीट पर जाकर बैठ गई थी, और उसकी नज़रें अभी भी ड्राइव करते हुए अरमान पर जा रही थीं। वहीं, अरमान अब थोड़ा-थोड़ा इरिटेट होने लगा था, क्योंकि जिस तरह से खुशी उसकी ओर देख रही थी, वह गाड़ी पर पूरी तरह से फ़ोकस भी नहीं कर पा रहा था। राधिका को किसी बात से कोई मतलब नहीं था; वह अपने कानों में ईयरफ़ोन लगाकर म्यूज़िक एन्जॉय करने लगी थी। वहीं, खुशी की गहरी नज़रें पूरी तरह से अरमान पर पड़ीं; कभी वह उसकी बॉडी को देख रही थी, जो कि उसकी शर्ट में से ही उसके परफ़ेक्ट शेप की गवाही दे रही थी। वह अपने आप ही अरमान को देखते हुए, न जाने कब खुशी के चेहरे पर एक हल्के से मुस्कान आ गए। अब अरमान, जो कि उस वक़्त नज़रों से खुशी को देख रहा था, उसे अपनी ओर इस तरह से देखते हुए देखकर पूरी तरह से चौंक गया, और उसने अचानक से गाड़ी के ब्रेक मार दिए।
और जैसे ही दादी कमरे से बाहर गईं, उन्होंने कबीर को छोड़ दिया। अब अहान और जया दोनों गहरी साँस लेने लगे। वहीं, कबीर की हालत उन दोनों के चिपकने से काफी ज़्यादा खराब हो गई थी। तब जल्दी ही सोया की नज़र कबीर पर पड़ी। उसने देखा कि कबीर अपनी साँसें खड़ी-खड़ी ले रहा है। तब जल्दी से सोया आगे बढ़ा और एक गिलास पानी, जो दादी के कमरे में रखा हुआ था, कबीर की ओर बढ़ा दिया। उसे शांत रहने के लिए कहने लगा। तभी, अब उसे इस सिचुएशन में थोड़ा-सा अपने आप को बेवकूफ़ महसूस कर रहा था। वह सोच रहा था कि वह बेकार में खाना खाकर कबीर भाई के ऊपर चढ़ गया और उल्टा उन्हें और परेशानी हो गई। तो इस सोच के साथ वह जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया। वहीं, अब जया रुक गई, क्योंकि कबीर पूरी तरह से हाफ़ रहा था। अहान ने अपना पूरा भार कबीर के ऊपर डाल दिया था, तो इसीलिए वह उसकी पीठ को सहलाने लगी थी। वहीं, वहाँ अब जया को इतने करीब पाकर कबीर काफी ज़्यादा हल्का-फुल्का सा महसूस कर रहा था, और छोटी सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई थी। वहीं दूसरी ओर, दादी जैसे ही बाहर गईं, उन्हें अपने आप ही एहसास हो गया कि इस वक्त अरमान मिनी-हॉस्पिटल में है। और जल्दी से आयशा, जो डॉक्टरों को देख रही थी जो अरमान का ट्रीटमेंट कर रहे थे, के पास गईं। क्योंकि आयशा को कहीं ना कहीं इस बात का डर था कि जंगल में जो कुछ भी हुआ, क्योंकि अरमान ने वह सारी चीज़ अपनी आँखों के सामने देखी थीं, और उसके तुरंत बाद ही उसे अटैक हुआ था। तो कहीं ना कहीं ऐसा सोच रही थीं कि सबसे पहले अरमान से मिलना होगा। अरमान को कितनी चीज़ें याद हैं, कितनी नहीं हैं, और वह मेरे बारे में कितना जान गया है, ये सारी बातें उसे सबसे पहले पता करनी होंगी। कहीं ऐसा ना हो कि अरमान उसका भेद सबके सामने खोल दे। कहीं ना कहीं आयशा को इसी बात का डर था, इसलिए वह इस वक्त अरमान के मिनी-हॉस्पिटल में मौजूद थीं। वहीं, डॉक्टर हैरानी से आयशा को देख रहे थे, क्योंकि वह वहाँ खड़ी होकर अरमान का इलाज बेपरवाही से देख रही थी। अरमान को काफी गहरे ज़ख्म लगे थे, उसके सर पर भी काफी गहरी चोट लगी थी। लेकिन आयशा बिना किसी इमोशन के वहाँ खड़ी होकर उसे देख रही थीं। क्योंकि भले ही अरमान वही इंसान है जिसके लिए आयशा इस पृथ्वी पर आई है, लेकिन अभी तक आयशा के दिल में अरमान के लिए ऐसा कोई एहसास पैदा नहीं हुआ था। अब डॉक्टर भी हिम्मत नहीं कर सके कि आयशा को वहाँ से बाहर जाने के लिए बोल दें। वह तो बस आयशा को वहाँ देखकर हैरान हो रहे थे और आपस में इशारे कर रहे थे। फिलहाल, दादी जैसे ही अचानक से वहाँ पहुँचीं, उन्होंने तुरंत जाकर आयशा को गले से लगा लिया और बोलीं, "मेरी शहजादी, तुम आ गई हो! शहजादी, तुम नहीं जानती मेरी आँखें कितनी तरस रही थीं तुम्हें देखने के लिए। सचमुच, शहजादी, तुम आ गई हो! तुमने मुझे माफ़ कर दिया? हाँ, बोलो ना, जवाब दो ना!" अब जैसे ही वहाँ जाकर दादी ने इस तरह की बातें कीं, डॉक्टर सभी हैरान हो गए थे। आयशा खुद भी हैरान हो गई थी। आखिरकार ये दादी कौन हैं और उसे बार-बार शहजादी क्यों बुलाती हैं? क्या मसला है इनका? लेकिन तभी जैसे दादी की नज़र घायल अरमान पर पड़ी, दादी पूरी तरह से शक में आ गईं और तुरंत अरमान के पास जाकर उसका हाथ थामा, "मेरे बेटे को क्या हुआ? क्या हुआ? ये गहरी चोट कैसे लग गई? शहजादी, अगर आप उसकी माँ के साथी हो, तो उसे ये चोट कैसे लग सकती है? क्यों नहीं बचाया आपने उसे? बताइए, जवाब दीजिए! आपकी शक्तियाँ बोलिए!" जैसे ही वहाँ खड़ी होकर दादी ने अचानक से आयशा की शक्तियों के बारे में बात की, अब तो आयशा का दिल और दिमाग पूरी तरह से सन्न हो चुका था। उसे तो समझ ही नहीं आया कि आखिरकार दादी कहना क्या चाह रही हैं। किस तरह से बात कर रही हैं? दादी को कैसे पता चला कि उसके पास शक्तियाँ हैं? पूरी तरह से कन्फ्यूज़न और हैरानी से दादी की ओर देखने लगी थी। वहीं, डॉक्टर दादी को इस तरह की बातें सुनकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उन्हें लगने लगा कि दादी तो इतने सालों से बीमार हैं, इसीलिए शायद उलटी-सीधी बातें करती रहती हैं। तो किसी ने भी दादी की बातों को सीरियसली नहीं लिया। तभी एक डॉक्टर ने नर्स का हाथ थामकर बोला, "मैडम सूर्यवंशी, प्लीज़ आप घबराइए मत, परेशान मत होइए। मिस्टर सूर्यवंशी को कुछ नहीं होगा, बहुत जल्दी ठीक हो जाएँगे। ऐसी दादी, प्लीज़ आप बाहर जाकर आराम कीजिए।" और तभी वह नर्स आयशा की ओर देखकर बोली, "मैडम, प्लीज़ आप दादी को बाहर लेकर चली जाइए। ऐसी हालत में देखकर उनकी तबीयत और ज़्यादा खराब हो जाएगी। वैसे भी इनका बूढ़ा शरीर इस तरह की बीमारी को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। आप सुन रही हैं ना मेरी बात?" कहीं ना कहीं नर्स ये कहते हुए घबरा रही थी, क्योंकि आज सब बड़ी हिम्मत से बातें कर रहे थे। लेकिन क्योंकि आयशा सूर्यवंशी मेंशन में थी, तो इसीलिए ऐसा सुर में बोलने के बारे में, या फिर आयशा से कुछ भी महसूस करने के बारे में डॉक्टर कुछ नहीं बोल सकते थे। किसी भी मेंबर का सूर्यवंशी मेंशन में होने का मतलब यह है कि वह ज़रूर घर का कोई मेंबर है या कोई ना कोई खास है। क्योंकि सूर्यवंशी मेंशन में किसी को भी आने की इजाज़त नहीं थी, सिवाय खास लोगों के। फिलहाल, जल्दी ही आयशा मामले की नजाकत को समझते हुए दादी को लेकर बाहर जाने लगी थीं। और फिर अचानक से रुककर डॉक्टर की ओर देखकर बोलीं, "जब भी इन्हें होश आए, सबसे पहले आप मुझे बताइएगा।" तभी आयशा ने एक डॉक्टर की ओर गहरी नज़रों से देखना शुरू कर दिया था, और एक अदृश्य सी बिजली आयशा की आँखों से निकलकर सीधे डॉक्टर की आँखों में जा लगी थी। आयशा ने आँखों ही आँखों में डॉक्टर को अपने जादू के द्वारा हिप्नोटाइज़ कर दिया था और उसे ये बात अच्छी तरह से समझा दी थी कि अगर अरमान सूर्यवंशी को होश आ जाता है, तो सबसे पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ आयशा को ही इन्फ़ॉर्म किया जाए, किसी और को नहीं। ये बात अपनी जादुई शक्तियों के द्वारा डॉक्टर के दिल-दिमाग में बैठाने के बाद आयशा दादी को लेकर बाहर आ गई थीं और उन्हें बाहर लाकर एक सोफ़े पर बैठा दिया। और दादी से कहा, "दादी, आप कौन हैं? क्या आप मुझे जानती हैं? मैं कौन हूँ? बोलिए, जवाब दीजिए। आपको कैसे पता चला कि मैं शहजादी हूँ?" अब जैसे ही आयशा ने ये बात बोली, अब दादी तुरंत आयशा का हाथ थामकर बोलीं, "शहजादी, इस वक्त सारी बातें करने का समय नहीं है। मेरे पोते को क्या हुआ है? वह ठीक क्यों नहीं हो रहा है? और आप उसे ठीक क्यों नहीं कर देती हैं? आप तो उसे आसानी से ठीक कर सकती हैं ना?" अब दादी ने जैसे एक बार फिर विश्वास के साथ ये बात बोली, आयशा की हैरानी पर हैरानी बढ़ते जा रही थी। फिलहाल, इससे पहले कि वह दादी को कुछ भी जवाब देती, अहान, जो अब नॉर्मल हो गया था और दादी जो अपने बाल बना चुकी थी, वह तुरंत आकर दादी से लिपट गया और रोने लगा और बोलने लगा, "दादी, आपको पता है, आज तो मेरी जान ही जाती-जाती बची है। मुझे लगा था कि मैं अरमान भाई को देख नहीं पाऊँगा। सच, दादी, मैंने आप लोगों को बहुत मिस किया। और आज मुझे जाकर इस बात का एहसास हुआ कि मैं आप लोगों से कितना ज़्यादा प्यार करता हूँ। दादी, सच में मैं आप लोगों के बिना नहीं रह सकता हूँ।" ये बोलते हुए वह रो दिया था। अहान को रोते हुए देखकर दादी ने उसके सर पर हाथ फेरा और बड़े ही प्यार से उसे कहा, "जब तक शहजादी तुम्हारे भाई के साथ है, उसे कुछ नहीं होगा, और न ही हमारे परिवार को कुछ होगा। शहजादी सबको बचाएगी।" जैसे ही एक बार फिर दादी ने 'शहजादी' बोला, अब तो अहान भी अपनी आँखें मसल-मसल कर बार-बार दादी की ओर देखने लगा था। और ये एक बार फिर सुनने की कोशिश करने लगा था कि आखिरकार दादी कहना क्या चाह रही हैं। वह दुनिया की सबसे बदसूरत लड़की को 'शहजादी' कह रही हैं। ये बात तो वह पहले आज तक अपनी समझ से परे थी। और बल्कि अगर आज अहान वहाँ फँसा था, तो इस बदसूरत 'शहजादी' की वजह से ही तो फँसा था। अहान मन में सोचने लगा, "आखिर मेरी दादी की बीमारी इतनी ज़्यादा बढ़ती क्यों जा रही है? पता नहीं उनके बोलने की बीमारी कब ख़त्म होगी? अब मैं क्या बताऊँ? अगर मेरी जान आज ख़तरे में थी, तो उनके बदसूरत शहजादी की वजह से ही तो थी। नहीं तो हमारी ज़िन्दगी में आती ना, मैं इनका बल लेकर अघोरी बाबा के पास जाता ना, वह अघोरी बाबा फ्रॉड निकलता ना, मेरे साथ वह इतना बड़ा स्कैम करता ना, मेरी जान लेने की कोशिश करता ना..." कहीं ना कहीं अहान मन में सोचते हुए बढ़ा हुआ था। लेकिन आयशा इस वक्त वहाँ की बातें अपने जादुई शक्तियों के द्वारा अच्छी तरह से सुन पा रही थी। और वह वहाँ की ओर मुड़कर बोली, "तुम पागल हो गए हो! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! तुम्हें क्या ज़रूरत है इस तरह से मेरा सर का बल लेकर उस ढोंगी के पास जाने की?" अब जैसे ही आयशा ने अहान को घूरते हुए बोला, अहान के मन में ये सारी बातें बोल रहा था। आयशा किस तरह से बोल रही थी, उसकी तो जैसे जिंदगी बन गई और उसके दांत आपस में कट-कट आने लगे थे। क्योंकि थोड़ी देर पहले तो दादी को देखकर डर गया था, लेकिन अब आयशा किस तरह की बातें सुनकर, तो उसे ऐसा लगा मानो कि सचमुच में आयशा कोई ना कोई भूत है। लेकिन वह गलत जगह चला गया। एक बार फिर आयशा के बाल, जो अभी भी उसकी पॉकेट में मौजूद थे, उनको कहीं और दिखाने के बारे में वह सोचने लगा था। लेकिन फिलहाल, आयशा उसकी मन की बात पढ़कर तुरंत बोल पड़ी, "तुम्हारे दिमाग में जो भी उलटी-सीधी बातें आ रही हैं ना, उनको बंद करो, ठीक है?" तब अहान खुद को रोक नहीं पाया और थोड़ा सा घबराते हुए, और बड़ी ही विनम्रता के साथ बोला, "भूत? और अगर आयशा, अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लग गई, तो हो सकता है कि आयशा मुझसे कोई बकरा, कुत्ता, मुर्गा या कुछ भी बना देगी।" तो इसी बात को सोचते हुए वह फटाफट से बड़ी ही सहजता के साथ आयशा की ओर देखकर बोला, "अगर आपको बुरा ना लगे, तो क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?" जैसे ही आयशा अहान की घबराहट भरी आवाज़ सुनी, वह मुस्कुराने लगी थी। लेकिन फिलहाल उसने अपना चेहरा बिल्कुल भावहीन करके बोला, "हाँ।" उसकी बात सुनकर कहीं ना कहीं अहान को हिम्मत मिली थी और वह बनाकर बोला, "एक्चुअली, मैं आपसे जानना चाहता हूँ, अभी थोड़ी देर पहले जब मैं मन में बातें सोच रहा था, वह आप कैसे जान लेती हैं? क्योंकि मैं सोच रहा था कि आप एक भूत हैं, चुड़ैल हैं, और आप कितने सारे जादू कर सकती हैं, जादुई शक्तियाँ हैं आपके पास। समझे? इसीलिए मैं तुम्हारे मन की सारी बातें जान लेती हूँ।" अब जैसे ही आयशा ने बिना किसी इमोशन के ये बात बोली, कहीं ना कहीं अहान पूरी तरह से चौंक गया था।
मुझे उम्मीद है कि यह मददगार है! मुझे बताएं कि क्या आप चाहते हैं कि मैं आपके साथ किसी और चीज़ पर काम करूँ।
अब अरमान यह देखकर पूरी तरह से चौंक गया कि "लड़की का क्या दिमाग़ खराब हो गया है? एक नंबर की बेशर्म लड़की है! यह अचानक से इस तरह से मुझे गले क्यों लगा रही है?" अरमान को यह लड़की, यानी खुशी, को वह यह बर्दाश्त कर ही नहीं पा रहा था कि आखिरकार खुशी उसके साथ क्या चाहती है। अब अरमान ने कई बार उसके कंधों से पकड़कर उसे खुद से दूर करने की कोशिश की, लेकिन खुशी ने उसे बड़ी कसकर पकड़ रखा था। अब अरमान को खुशी से बड़े ही नेगेटिव फ़ीलिंग आने लगे। उसे लगने लगा कि यह एक नंबर की कैरेक्टरलेस लड़की है, जिसका कोई कैरेक्टर नहीं है, इसीलिए यह उसे खुद आकर चिपक रही है। तभी अचानक उसने खुशी को जोरों से अपने ऊपर से हटा दिया और खींचकर एक तमाचा उसके मुँह पर मार दिया।
अब अचानक से जैसे ही उसने खींचकर एक तमाचा खुशी के मुँह पर मारा, खुशी का चेहरा एक तरफ़ झुक गया। उसके होठों के पास से खून तक निकलना शुरू हो गया। लेकिन तभी, अचानक देखते ही देखते, 15-20 काले कपड़े पहने हुए गार्ड वहाँ आ गए। उन्होंने आकर अरमान को चारों तरफ़ से घेर लिया। यह देखकर अरमान की हैरानी का कोई ठिकाना नहीं था कि अचानक से इतने सारे गार्ड कहाँ से आ गए और आखिरकार उसने ऐसा क्या कर दिया कि इतने सारे गार्ड उसे इस तरह से घेर रहे हैं? अरमान की हैरानी काफ़ी ज़्यादा बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन अचानक खुशी ने उन गार्डों की ओर देखकर कहा, "आप लोग कौन हैं? और इस तरह से आप हमारे बीच में क्या कर रहे हैं? हम दोनों मियाँ-बीवी हैं और हम दोनों में झगड़ा हो गया है। इसीलिए मेरे पति ने मुझ पर हाथ उठाया है। तो इस तरह से आप लोगों को हमारे बीच में आने का क्या मतलब है?"
अब जैसे ही खुशी ने बिल्कुल बिना किसी इमोशन्स के यह सारी लाइन्स बोलीं, अरमान की आँखें तो बाहर निकलने को तैयार थीं। उसे तो समझ ही नहीं आया कि आखिरकार यह लड़की क्या है और इस तरह की उटपटाँग बातें क्यों कर रही है? वहीं, वह गार्ड अब एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार इस लड़की का क्या मामला है। तभी उनमें से एक समझदार गार्ड आगे आया और अरमान की ओर देखकर बोला, "हमें माफ़ कीजिएगा सोल्जर!" क्योंकि उन्होंने अरमान की गाड़ी देख ली थी। साथ ही साथ, अरमान के जेब में गन देखकर और उसका लटकता हुआ रैंक देखकर वह समझ चुके थे कि यह आदमी कोई आम आदमी नहीं है, बल्कि अरमान ठाकुर है, जो कि एक फ़ेमस सोल्जर है। अरमान के बारे में हाल ही में एक मिशन पूरा करने के बाद बड़ा सा आर्टिकल छपा था, तो काफ़ी सारे लोग अरमान के बारे में अच्छी तरह से जानते थे। तब उनमें से गार्ड ने बोला, "हम माफ़ कीजिएगा सोल्जर। वह इस सड़क पर लड़कियों के साथ काफ़ी ज़्यादा बदतमीज़ी होती रहती है, तो इसीलिए हम सिविलियन के तौर पर एक ऑपरेशन चला रहे हैं, जिससे कि गुनाहगारों को पकड़ा जा सके। हमें नहीं पता था कि आप लोग यहाँ हैं। माफ़ कीजिएगा।" यह बोलकर वह सोल्जर जल्दी ही वहाँ से चले गए। वहीं, खुशी उन्हें बिना किसी इमोशन के देख रही थी।
वहीं, अब अरमान ने जैसे ही खुशी के चेहरे की ओर देखा और उसने देखा कि उसके होठों के पास से खून निकलने लगा है, तो उसे इसका थोड़ा सा तरस भी आया। लेकिन जिस तरह से खुशी ने बाकियों से यह बोला था कि वह और उसका पति, और दोनों के बीच झगड़ा हो रहा था, तो यह सुनकर उसकी आँखों में कड़वाहट भर गई। वहीं, खुशी ने एक नज़र अरमान की ओर देखकर, अब जिस तरह से वह पैदल-पैदल घर की ओर जा रही थी, उसी तरह से आगे बढ़ने लगी।
अब अरमान अपने सर पर तीन बार टैप करके सोचने लगा कि आखिरकार यह लड़की क्या है? पल-पल में, तो ना इस लड़की की कहानी समझ में नहीं आ रही है। क्या चाहती है यह लड़की? अब अरमान का गुस्सा काफ़ी हद तक बढ़ चुका था। इसीलिए, बिना देर किए, उसने डिसीज़न लिया कि वह अब इस लड़की को सबक़ सिखाएगा और उससे पूछेगा कि आखिरकार यह लड़की क्या चाहती है और इसकी हिम्मत कैसे हुई इस तरह से मुझे अपना पति बोलने की? कहीं ना कहीं यह सोचकर, अब जल्दी ही अरमान खुशी के पीछे-पीछे तेज़ कदमों से बढ़ने लगा। लेकिन जैसे ही अब खुशी थोड़ा आगे बढ़ी, अचानक से अरमान एक बार फिर जाकर उसके हाथ को पीछे से कसकर पकड़ लिया और सीधा, क्योंकि लैंडस्लाइड हुई पड़ी थी, तो पूरे रास्ते पूरी तरह से जंगल का रास्ता ही शॉर्टकट रास्ता था जिससे घर जाया जा सकता था, वह भी पैदल। मन में, अरमान ने अपने एक सोल्जर को फ़ोन करके उससे मदद माँग ली और अपनी गाड़ी को डायवर्ट करवा लिया और सीधा खुशी को वह जंगल में ले आया।
खुशी को जंगल में अरमान के साथ जाते हुए बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था, बल्कि वह तो हल्की सी मुस्कराहट के साथ उसकी ओर ही देख रही थी। अब उसे लड़के की आँखों में इतना पागलपन देखकर, न जाने क्यों, अरमान का दिल अंदर ही अंदर कड़वाहट से भरता जा रहा था। उसका बस नहीं चल रहा था, वरना वह कब का खुशी का सर फोड़ चुका होता। फिलहाल, जब खुशी ने पूरी इरिटेशन की लिमिट क्रॉस कर दी, तब अरमान ने उसके बालों को कसकर पकड़ लिया और अचानक उसे एक बड़े से पत्थर से लगा दिया। इस वक़्त खुशी की साँसें ऊपर-नीचे होने लगी थीं। वहीं, अरमान गहरी नज़रों से देखते हुए बोला, "बेकार औरत! कौन हो तुम? और तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है?"
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अरमान अब पूरी तरह से आस्था की सिचुएशन देख रहा था। लेकिन वह चाहता था कि आस्था खुद आगे बढ़कर उससे मदद माँगे। इसीलिए अरमान ने ऐसा दिखाया मानो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो।
---यह रहा आपका टेक्स्ट, जिसे मैंने बिना शब्द घटाए साफ़ और सही प्रवाह में सुधार दिया है:
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जल्दी ही अरमान ने कड़क आवाज़ में जितने भी नौकर वहाँ मौजूद थे, उन सबको इंस्ट्रक्शन दी—
"अच्छी तरह से यहाँ की साफ़-सफ़ाई कर दी जाए, और उसके बाद ही कोई यहाँ से जाएगा।"
फिलहाल अब अरमान आगे बढ़ा और बाहर की ओर जाने लगा।
वहीं आस्था, अरमान को मदद के लिए रोकने के बारे में सोचती ही रह गई थी, लेकिन तब तक अरमान रघुवंशी मेंशन से बाहर निकलने लगा।
तब आस्था ने हिम्मत की, अंश को गोद में उठाया और एक हाथ से अपनी साड़ी संभालते हुए सीधा बाहर जाने लगी। लेकिन अचानक उसका सिर ज़ोरों से चकरा गया और वह खुद को संभाल ही नहीं पाई। आस्था पूरी तरह से अंश को लेकर गिरने को तैयार थी, लेकिन तभी अरमान ने तुरंत आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में थाम लिया।
आस्था की आँखें बार-बार खुल और बंद हो रही थीं।
अब अरमान पूरी तरह से हैरान था— “ये लड़की पागल है क्या? ये इतनी ज़िद्दी क्यों है? ये मुझसे मदद माँग क्यों नहीं सकती थी?”
फिलहाल अरमान ने आगे बढ़कर आस्था को अंश समेत अपनी गोद में उठा लिया। आस्था और अंश को उठाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। अरमान बॉडीबिल्डर था और जब से आस्था गई थी, तब से उसने खुद को और भी मज़बूत बना लिया था। वह आराम से तीन-चार लड़कियों को एक साथ उठा सकता था।
फिलहाल आस्था और अंश को लेकर वह जल्दी ही सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ उनके कमरे में ले आया।
दादाजी मन ही मन आस्था और अरमान को देख रहे थे और सोचने लगे—
"शायद आस्था का करीब होना अरमान के मन की फीलिंग्स को एक बार फिर बदल रहा है। भले ही दुश्मन कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन प्यार करने वालों को कभी अलग नहीं कर सकते। भले किसी ने मेरे बेटे का सुकून छीन लिया हो, लेकिन उसके सुकून की वजह यही आस्था और उसका अंश है। बहुत जल्द, बहुत जल्द वह अपना सुकून वापस हासिल कर लेगा।"
यह सोचकर दादाजी मुस्कुरा उठे।
वहीं अरमान ने आस्था और अंश को सावधानी से उनके कमरे में लिटा दिया। और जैसे ही वह वहाँ से जाने लगा, आस्था ने नींद की हालत में अरमान का हाथ थाम लिया।
अरमान की नज़रें एक बार फिर आस्था पर लौटीं और उसकी कमर पर जाकर ठहर गईं। आस्था की खुली हुई कमर उसे पूरी तरह अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। उसका दिल चाह रहा था कि वह झुककर आस्था की कमर को चूम ले।
लेकिन तभी अचानक अरमान ने खुद को झटका—
"ये मुझे क्या हो गया है? मैं किसी लड़की के बारे में ऐसे कैसे सोच सकता हूँ? वैसे भी इस लड़की से मेरा कोई लेना-देना नहीं। ये तो यही चाहती है कि अरमान सिंघानिया इसके सामने झुके, इसकी ओर आकर्षित हो और इस घर की महारानी बने। लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा। किसी भी औरत को मैं अपनी ज़िंदगी में शामिल नहीं करूँगा।"
इसी सोच के साथ अरमान उठ खड़ा हुआ और वापस अपने कमरे में आ गया।
लेकिन आस्था की कमर, उसे गोद में उठाना, और फिर आकाश, सुमित, ध्रुव का अपनी पार्टनर्स को उठाकर ले जाना— ये सारी बातें अरमान की आँखों के सामने बार-बार घूम रही थीं।
उसे काफी अजीब लगने लगा।
तभी अरमान सोचने लगा—
"कुछ तो है… ये लड़कियाँ इस मेंशन से ज़्यादा जुड़ी हुई क्यों लगती हैं? ऐसा क्या है, जो ये सब मुझसे छुपा रहे हैं? मुझे खुद इसका पता लगाना होगा।"
वह जानता था कि आकाश और सुमित तो लड़कियों से हमेशा दूरी बनाए रखते थे।
तो फिर अचानक ये लड़कियाँ उनकी ज़िंदगी में इतनी करीब कैसे आ सकती थीं?
और तभी अरमान के ज़ेहन में राधिका की यादें तैरने लगीं।
राधिका वही लड़की थी, जिसकी जान अरमान ने बचाई थी जब सुमित उसे मारना चाहता था। लेकिन अपने गुस्से और अंधेपन की वजह से अरमान उसे ठीक से याद नहीं कर पा रहा था।
अब राधिका के बारे में सोचकर अरमान के सामने पूरी तस्वीर साफ़ हो रही थी।
"अगर यह वही लड़की है जिसकी जान मैंने बचाई थी, तो यह सुमित की ज़िंदगी में कैसे आ सकती है? सुमित तो सबसे ज़्यादा नफ़रत करता है उस तरह की लड़कियों से।"
अरमान अब अपनी ही सोच में उलझ गया।
"डॉ. रश्मि तो हमेशा से आकाश को पसंद करती थी। लेकिन आकाश ने कभी उसकी तरफ़ देखा तक नहीं। और मैं तो बचपन से रश्मि के दिल की बात जानता हूँ। तो आज आकाश अचानक रश्मि को इतना करीब कैसे आने दे रहा है? और रश्मि जैसी खुद्दार लड़की इस तरह से इस मेंशन में कैसे रह सकती है?"
अरमान को अब लगने लगा कि सब उससे कोई बड़ा राज़ छुपा रहे हैं।
और उसने मन ही मन ठान लिया—
"बहुत जल्द मैं सबका सच सामने लाऊँगा। लेकिन सबसे पहले, इस लड़की को… जो मुझे सबसे ज़्यादा इरिटेट कर रही है।"
यह रहा आपका टेक्स्ट, जिसे मैंने सही प्रवाह और व्याकरण सुधार के साथ बिना शब्द घटाए एडिट किया है:
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सबसे पहले मुझे इस लड़की को यहाँ से निकालकर बाहर फेंकना होगा, क्योंकि जब तक यह लड़की यहाँ से नहीं जाएगी, मुझे कुछ भी सोचने-समझने का मौका नहीं मिलेगा। मुझे इस लड़की को हर हाल में यहाँ से निकलना होगा, क्योंकि इस लड़की के करीब आने पर मुझे अजीब सा एहसास हो रहा है। यह कैसा एहसास है, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। मुझे इस तरह से इस लड़की के करीब नहीं जाना चाहिए। मुझे कुछ न कुछ करके इस लड़की से दूरी बनानी होगी, क्योंकि मेरे दिल की हालत पहली बार इतनी उलझन में थी।
अरमान खुद से ही एक जंग लड़ रहा था। और अचानक कब उसे नींद आ गई, उसे एहसास नहीं हुआ।
वहीं दूसरी ओर, अगली सुबह वसुंधरा के चेहरे पर एक अलग ही तरह का तेज़ था। ऐसा लग रहा था कि जैसे जो प्लान वह सोच रही थी, उसने उसे सीधे अमल में ला दिया हो। फिलहाल, वसुंधरा सोचने लगी कि केवल तीन दिन और… तीन दिन और उसे घर में नौकरानी बनकर रहना होगा। उसके बाद इस घर का पूरा नक्शा बदल जाएगा, और मुझे पूरी उम्मीद है कि जो मैं चाहती हूँ, वह मैं करके रहूँगी।
फिलहाल वसुंधरा की यह उल्टे-सीधे बातें वीर, जो अपनी मां से मिलने वहाँ आ रहा था, सुन चुका था और बोला—
"यह आप क्या कह रही हैं? क्या आपको लगता है कि हम केवल तीन दिन तक इस मेंशन में काम करेंगे?"
तब वसुंधरा बोली—
"तुझे अपने मां पर भरोसा नहीं है? तू देख, मैं तीन दिनों के अंदर ऐसा कर दूँगी कि ये सब लोग हमें बाद में नौकर नहीं मान पाएंगे।"
वसुंधरा की यह बातें वीर को थोड़ी अजीब लगीं, लेकिन फिलहाल उसने कुछ नहीं कहा। वह खुद अपनी मेहनत से कुछ न कुछ करना चाहता था। क्योंकि जिस तरह से नानी मां उसे संभाल रही थी, वह अभी भी उसे हैरान कर रही थी। उसने सोचा कि सबसे पहले नानी मां को यहाँ से हटाना चाहिए, क्योंकि जब तक वह यहाँ रहेंगी, उनके प्लान पूरे नहीं होंगे। कहीं न कहीं वसुंधरा अलग ही तरह की चाल चली रही थी।
इतनी जल्दी भला कैसे सुधार कर पाएँ, लेकिन अभी तो उसे एक और चुनौती का सामना करना था, जिसके बाद उसकी जिंदगी पूरी तरह बदलने वाली थी।
फिलहाल अगली सुबह सभी लोग सोकर उठे। लेकिन अरमान सिंघानिया केवल एक-दो घंटे की नींद लेकर ही उठ चुका था।
वहीं आस्था अभी भी थकी हुई सो रही थी, और अंश जल्दी उठकर आस्था के पास खेलने लग गया।
अरमान ने सोचा कि उसे एक बार जाकर देखना चाहिए कि यह लड़की क्या कर रही है। यह सोचकर वह बिना किसी झिझक के आस्था के कमरे में चला गया। वहाँ जाकर उसने देखा कि अंश पहले ही उठ चुका है, लेकिन आस्था अभी भी पूरी तरह से सो रही थी।
"अगर मैं इसे उठाने की कोशिश करूँ, तो शायद ये असंभव होगा," अरमान ने सोचा।
लेकिन तभी अंश ने अपने पिता की गोद में पहुँचकर जोर-जोर से किलकारी मारनी शुरू कर दी और अपने नन्हे हाथों से अरमान के चेहरे को छूना शुरू कर दिया।
अंश का स्पर्श अरमान को अलग ही लेवल का सुकून दे रहा था। वह सोच रहा था—
"यह क्या है? यह कैसा लग रहा है? मुझे इतना सुकून क्यों मिल रहा है? और ऊपर से जब यह लड़की मेरे सामने आती है, मेरे दिल की हालत इतनी अजीब क्यों हो जाती है?"
अरमान अपने आप में ही खुद से जंग लड़ रहा था। लेकिन वह भला इस तरह की मामूली लड़की को अपने घर पर अपने दिल और दिमाग पर हावी कैसे होने दे सकता था।
इसीलिए उसने गहरी सांस ली और फटाफट आस्था को उठाने की कोशिश की। आस्था अभी तक वही रात वाली साड़ी पहने थी, जिसमें सुबह की धूप की किरणें खिड़की से आकर उसकी कोरी कमर पर पड़ रही थीं।
यह देखकर अरमान और ज्यादा पहचान गया और अचानक उसका शरीर खुद-ब-खुद सख्त सा महसूस होने लगा। उसकी हालत काफी खराब थी। उसने जल्दी से अंश को सुरक्षित पास रखे झूले पर लेटाया और फटाफट कमरे से बाहर निकल गया।
अरमान के जाने के बाद, आस्था टूटकर बैठ गई। क्योंकि उसने देखा था कि अरमान उसे गोद में ले गया। मौका देखकर उसने तुरंत अपनी कमर का पल्लू थोड़ा हटा दिया, जिसकी वजह से अरमान उसकी साफ़ कमर देख चुका था।
तब आस्था मुस्कुराते हुए बोली—
"मिस्टर सिंघानिया, और कितना मुझसे दूर रहेंगे? जितना आप मेरे करीब आने के लिए तड़प रहे हैं, मैं भी यकीन जानिए, मिस्टर सिंघानिया, मैं भी आपके करीब आने के लिए उतना ही तड़प रही हूँ।"
कहीं न कहीं आस्था की बातों में रोमांस और आकर्षण की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी।
--ठीक है, मैंने आपके टेक्स्ट को स्पष्ट, सुगठित और पढ़ने में आसान बनाने के लिए सुधार दिया है, बिना शब्द घटाए:
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रोमांस की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी। फिलहाल आस्था जल्दी खड़ी हुई और फटाफट अंश को गोद में लेकर उसे दुलार करने लगी। उसने बोला, “पहले बच्चा, थोड़ा सा वेट करो मामा, अभी आई।”
आस्था जल्दी वॉशरूम में घुसी, क्योंकि अरमान ने अंश को पूरी तरह से सेफ तरीके से झूले में लिटा दिया था। अंश बाद ही किलकारी मारते हुए अकेले खेलने लगा, खिलौनों के साथ खुश होकर मुस्कुराता रहा।
फिलहाल आस्था जल्दी नहा कर कपड़े बदलकर बाहर आ गई। जैसे ही वह नीचे आई, उसने देखा कि सभी लोग उठ चुके थे और वहां बैठे थे। अचानक आस्था ने महसूस किया कि सभी लोग अपना मुंह लटकाए बैठे हैं।
आस्था थोड़ी सोच में पड़ गई और जल्दी से उनके पास जाकर बोली, “क्या हुआ? आप सब इतने मायूस क्यों लग रहे हैं?”
तभी आकाश, सुमित, ध्रुव और आहान चारों ने एक साथ कहा, “कल रात जागरण में हमारी बीवी हमारे कंधे पर सो गए थे।”
यह बात अरमान को पसंद नहीं आई थी, और इसलिए उसने हमसे बात करने का डिसीजन लिया था। वे सब घबराए हुए थे। आस्था के पास उछलते हुए आहान बोला,
“आज तो भाभी, प्लीज कुछ करो ना! आपको पता है, मैं तो सिर्फ भक्ति के मोड में था। मेरे कोई और इरादे नहीं थे। हमने रात में कोई रोमांस नहीं किया, बस आराम से सो गए थे। हमें क्या पता कि अरमान भाई की नजर में आ जाएंगे। प्लीज भाभी, कोई ना कोई रास्ता निकालो, हमें बचा लो, प्लीज, प्लीज, प्लीज!”
आस्था ने गहरी सांस ली और उन्हें शांत करते हुए कहा,
“पहले आप लोग चुप हो जाइए और सोने दीजिए। अब हमें सोचना होगा कि क्या करना है।”
चूंकि वह भी काफी नींद में थी, इसलिए अभी पूरी तरह से समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या हुआ। फिर उसने कहा,
“लेकिन आप चिंता मत कीजिए। सबसे पहले जाकर अरमान जी से मिल लीजिए।”
इस पर आहान बोला, “भाभी, आप क्या कह रही हैं? अगर हम जाकर अरमान भाई से मिलेंगे, तो वह हमारे सर पर बम फोड़ देंगे!”
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अरमान ने ऐसा दिखाया मानो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो।
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