अनुराधा जिसका जन्म कोटे पर हुआ था लेकिन किस्मत उसे ठाकुर घराने की बहु बना देती है जिस उम्र में जहाँ बच्चे खेलते और पडते है उस उम्र में अनुराधा किसी की पत्नी और बहु बन गई थी जहाँ उसे अपना पति ( प्रिय ) मिलता जब उसको प्रेम का अर्थ भी नहीं पता था तब से... अनुराधा जिसका जन्म कोटे पर हुआ था लेकिन किस्मत उसे ठाकुर घराने की बहु बना देती है जिस उम्र में जहाँ बच्चे खेलते और पडते है उस उम्र में अनुराधा किसी की पत्नी और बहु बन गई थी जहाँ उसे अपना पति ( प्रिय ) मिलता जब उसको प्रेम का अर्थ भी नहीं पता था तब से वो उससे प्रेम करने लगी थी लेकिन तब क्या होगा जब वो ही पति उसे धोखा देगा क्या करेगी अनुराधा जिसके लिए उसका सब कुछ पति ही है और क्या लिखा है उसके भाग्य में इस आगे आप सब कहानी आराधना प्रिय की पडे
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राम राम
मेरी यह कहनी सन् 1970 के समय की है तो सब कुछ उसी के हिसाब से होगा अब आते हैं कहानी पर
एक बडे से मैदान में बहोत से लोग इकट्ठा हुए थे उन्ही भीड़ के आगे कुछ औरते भी खडी थी और वही गाँव के सरपंच जमीदार बलराम ठाकुर भी बैठे थे उनको देख के लग रहा था की वो बहोत ही गहरी सोच में है
तभी समाने से एक बुजुर्ग कहता है -: ठाकुर साहब कुछ करीए नहीं तो ऐसे में हमारे गाँव का भविष्य अंधकार में चला जाए गा आप जानते हैं गाँव में कोठा होने के कारण गाँव का हर जवान लडका अब तो 15,16 साल लडके भी वहाँ जाने लगे हैं ऐसे में कोठे को बंद करवाने में ही पुरे गाँव की भलाई है ।
तभी उन्ही भीड़ के सामने खडी कुछ औरतों में से एक औरत आगे आई और ठाकुर साहब के आगे हाथ जोड़कर बोली -: ठाकुर साहब आप ये बात बहुत अच्छे से जानते हैं कि इस कोठे के आलाव हमारे पास सर छुपाने का कोई जगह नहीं है और इस काम के आलाव अपना और अपने बच्चों का पेट कैसे भरेगे अगर ऐसे में हमको यह से निकाला गया तो अपने बच्चों लेकर कहाँ जाएगे ।
वही ठाकुर साहब दोनों पक्ष की बात सुन रहे थे पर उनके दिमाग में तो बहुत कुछ चल रहा था ये जो यहाँ के लोग शिकायत कर रहे हैं यही शिकायत तो ठाकुर साहब को भी है लेकिन वो इस शिकायत को किसी को नहीं बता सकते वो इस बात की शिकायत किसी से नहीं कर सकते ।
अब उन्ही को इस का इलाज करना होगा और वो भी न्याय पुण तरिके से उन्होंने अभी अपने सर को नीचे किया हुआ था।
तभी उनके कंधे पर कोई हाथ रखता है ।
उस छुवन के एहसास से ठकुर साहब अपने सोच से बाहर आते है और उस तरफ देखते है जहाँ उनका छोटा भाई सुधीर उनके कंधे पर हाथ रखे खड़ा था और आखो से ही उन्हें इस बात का विस्वास दिला रहा था कि हर परिस्थितियों में वो उनके साथ है ।
फिर ठाकुर साहब भीड़ कि तरफ नजर करते हैं जहाँ सभी उन्ही कि तरफ देख रहे थे फिर वो उन महिलाओं की तरफ देखते हैं जो उन्हें इस उम्मीद से देख रहे थे कि ठाकुर साहब फैसला उनके हक मे करेगे ।
वो अपनी जगह से उठते हैं और उन सभी कि तरफ देखते हुए कहते हैं - : " मै यहाँ मजुद दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद ये फैसला करता हूँ की गाव वालो का कहना सही है गाँव के अंदर कोठा होने का मतलब है आने वाली पिडी को एक गलत रह देना "
उनकी बात सुन जहाँ गाँव वाले खुश हो रहे थे ।
वही उन महिलाओं का चेहरा उतर गया तभी उन्ही में से एक महिला आगे आते हुए कहती है -" ठाकुर साहब आप ये क्या कह रहे हैं आप अच्छे से जानते अगर ये कोठा बंद हो गया तो हम अपना पेट कैसे पाले गे वैसे भी हम किसी को उसके घर से उठा कर नहीं लाते वो सभी खुद हमारी चौखट पर आते "
वही उसकी बात सुन ठाकुर साहब अपनी नजरें नीची किए हुए हि कहती है - " इसकी आप लोग को परेशान होने कि जरूरत नहीं है हम आप लोग को गाँव से दुर शहर के कोठे पर रहने की व्यवस्था कर देगे "
उनकी बात सुन कर वो औरत चिड गई और अपनी आवाज ऊची करते हुए कहती है - " ठाकुर साहब आप हमे हमारे घर से निकल कर उस दलदल में तो डाल देगे लेकिन आप ही बताओं कि हमारे छोटे बच्चे कहाँ जाएगे क्यों की यहाँ तो हम अपने बच्चों को कैसे भी इन सब से दूर रख लेते थे । पर शहर पर हम अपनी बच्चीयों की जिंदगी भी खराब हो जाएगी नहीं हमे यहाँ से कही नही जाएगे । "
उनकी बात सुन अब कही ठाकुर साहब की भी नजर उन बच्चीयों पर पडी जो बहोत सुंदर और मासूम है । ठाकुर साहब को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। कि अब वो क्या फैसला ले ।
तभी भीड में फिर से जोर सुरू हो गया सब कहने लगे कि कोठा बंद करने को ।
तभी ठाकुर साहब की तेज आवाज से सभी शांत हो जाते है। वही ठाकुर साहब भीड़ कि तरफ देखते हुए कहते हैं - " हम आप की और फिर महिलाओं की तरफ देखते हुए कहते हैं - " और आप की दोनों की ही परेशानी समझते है। और इस लिए हम आप दोनों के हि समस्या हल कर चाहते हैं हम चाहते हैं जो ये छोटी मासूम बच्चीया है उनको गाँव वाले गोद ले ले जिससे उन्हें एक अच्छा महोल और परिवार दोनों मिल जाएगा और इन महिलाओं की भी परेशानी कम हो जाएगी। "
वही उनकी बात सुन कर भीड भडक गई भीड में ही खड़ा वो आदमी कहता है - " ठाकुर साहब आप ये कैसी बात कर रहे हम इन बच्चों को कैसे गोद ले सकते हैं। ना इनके खुन का पता और इनकी परवरिश भी उस कोठे में हुई है पता नहीं हमारे घर आ घर का क्या हाल करे ।"
तभी दुसरा आदमी कहता है - " और मान लिजिए हमने इन्हें गोद ले भी लिया तो आगे चल कर कौन इन से शादी करे गा कौन इन को अपने घर की बहु बताएगा ऐसे में तो ये सभी जिंदगी भर हमारे घर में ही बैठे रह जाएगी । "
वही उनकी बात सुन कर तो ठाकुर साहब गुस्से से काप रहे थे। जिसे महसूस कर सुधीर उनके कंधे पर हाथ रख शांत रहने का इसारा करते हैं ।
लेकिन इसका ठाकुर साहब के ऊपर कोई भी असर नहीं दिखता वो सुधीर का हाथ अपने कंधे से हठा कर एक बार पुरे गाँव वाले पर नजर डालते हैं। और फिर अपनी आवाज ऊची कर के कहते हैं - " ये कैसी बात आप सब कर रहे हैं बच्चे तो भगवान को रुप होते हैं और बेटी तो देवी होती है आप सब ऐसे कैसे कह सकते हैं।
वही ठाकुर साहब की बात सुन कर गाँव का बुजुर्ग कहता है - " साहब ये कहना आसान होता है की बेटी देवी का रूप होती है लेकिन जब उसी बिटिया के लिए रिस्ता देखने जाऊ तो लोग दस कमी गिना देते हैं और फिर इनके तो जन्म से ही कमी है और वैसे भी ठाकुर साहब आप ये जो इतनी बड़ी बातें कर रहे हैं क्या आप बाएगे इन्ही में से किसी को अपने घर की बहु "
वही उस बुजुर्ग की बात पर पुरा गाँव एक जुट होकर सवाल करने लगता है - " क्या आप बनाएंगे अपने घर की बहु "
वही उनकी बातें और तरक सुन कर ठाकुर साहब का गुस्सा ही बड रहा था वो अपनी आवाज ऊची करते हुए कहते हैं " - " मैं बलराम ठाकुर इन्ही लडकीयों में से किसी एक की शादी अपने एकलौते बेटे से करूगाँ "
उनकी बात सुन कर तो जैसे पुरा गाँव ही शांत पड गया । हो तो वही उन औरतों का एक और तरिका उनके काम ना आया था जो वो उन बच्चीयों के सहारे इस गाँव में रहना चाहते थे ।
वही सुधीर जो ठाकुर साहब की बात सुन कर थोडा परेशान हो गया था ।
वो एक बार फिर ठाकुर साहब को रोकने के इरादे से उसके हाथ को पकडते है लेकिन ठाकुर साहब की एक नज़र में ही ऐसा कुछ था की वो भी उनके साथ खड़े हो जाते हैं ।
वही अब ठाकुर साहब उन औरतों की तरफ देखते है कहते हैं - " अब आप बताइये कि इन बच्चीयों में से कौन हमारे घर की बहु बनेगी "
वही ठाकुर साहब की बात सुन सभी औरते अपनी बेटी को अपने पिछे छिपा लेती है बस एक को लडकी को छोड़ जो डरी सहमी वहा खडी थी ।
उसको तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। क्या हुआ वो कल तक अपनी उस एक कमरे की दुनिया में खुश थी। लेकिन अब वो इतने सारे लोगों के सामने है ।
वही ठाकुर साहब की नजर भी उस लडकी पर गई छोटी सी वोई कोई बस ग्यारह साल की होगी रंग एक दम दुध सा सफेद आखे बडी और कुछ डरी हुई भी और ना जाने कितना कुछ कहती ठाकुर साहब को उसको देखते ही ऐसा लगा जैसे देवी माँ स्वयं उनके समाने खडी है
वही ठाकुर साहब की नजर भी उस लडकी पर गई छोटी सी वोई कोई बस ग्यारह साल की होगी रंग एक दम दुध सा सफेद आखे बडी और कुछ डरी हुई भी और ना जाने कितना कुछ कहती ठाकुर साहब को उसको देखते ही ऐसा लगा जैसे देवी माँ स्वयं उनके समाने खडी है
वही वो बच्ची अपने समाने ठाकुर साहब और वहाँ मौजूद सभी कि नजर खुद पर देख कर वो और ज्यादा डर गई उसको तो लोगों के नजरों से दुर रहना पंसद है
अब आगे
वही ठाकुर साहब धीरे धीरे अपने कदम उस बच्ची तरफ बडा रहे थे वही वो बच्ची उनको अपने पास आता देख डर से कापने लगी और जैसे ही ठाकुर साहब उस बच्ची के पास पहुचते है और उसको पकडने के लिए अपना हाथ बडाते है वैसे ही वो बच्ची गिरने लगती है वही उसको ऐसे गिरते देख कर ठाकुर साहब उसको पकडते है और अपने गोद में उठा लेते हैं फिर अपने भाई की तरफ देखते हुए कहते हैं - " सुधीर जल्दी चलो सभी बच्चीयों को डाक्टर को पास ले जाना होगा हम इसे लेकर जा रहे हैं तुम बाकी सभी को ले आओ और फिर चले गए "
होस्पिटल में ठाकुर साहब उस बच्ची को डाक्टर को दिखाते हैं और जब तक डाक्टर उस का चैक अप कर रही थी तब तक वो वही बैचेनी से चहलकदमी कर रहे थे तब तक सुधीर भी सभी को लेकर होस्पिटल आ गया और ठाकुर साहब को इतना ज्यादा परेशान देख कर वो भी परेशानी में ठाकुर साहब से पुछते है - " भाईसाहब क्या हुआ बच्ची ठिक तो है "
उनके सवाल का ठाकुर साहब कुछ जवाब दे पाते उससे पहले ही डाक्टर उनके तरफ देखते हुए कहती है - " ठाकुर साहब "
वही डाक्टर के बुलाने पर चले जाते हैं वही सुधीर बाकी के बच्चो का चैक अप कराने ले जाता है
ठाकुर साहब डाक्टर के पास आ कर गम्भीर आवाज में कहते हैं - " डाक्टर क्या हुआ बच्ची ठीक तो है ना इस तरह बिहोश कैसे हो गई "
उनको घबराया देख डाक्टर उन्हें बहोत ही शांत सी आवाज में कहती है - " ठाकुर साहब घबराने वाली कोई बात नहीं है वो बच्ची डर गई थी और ठोडी डरी हुई भी है ठोडे समय में होश आ जाएगा "
और डाक्टर जाने को होती है तभी ठाकुर साहब फिर से रोक लेते हैं और कहते हैं - " डाक्टर और बाकी की बच्चीया तो ठीक है ना "
डाक्टर मुस्कराते हुए कहती है - " ठाकुर साहब सभी ठीक है लेकिन ठाकुर साहब आप जो काम किया है वो बहुत अच्छा था देखो कितने लडकीयों की जिंदगी सवरेगी "
डाक्टर की बात पर ठाकुर साहब बस मुस्कुरा कर चले जाते हैं
वही ठाकुर साहब की इस फैसले से गाव के बहुत से लोग जिन के घर बच्चे नहीं थे और समाज के डर से गोद नहीं ले रहे थे वो सभी अब आगे बड कर उन बच्चीयों को गोद ले लिए सुधीर ने भी एक बच्ची को गोद लिया क्यो कि उनके यहाँ भी सिर्फ बेटा था बेटी नहीं
ठाकुर साहब उस बच्ची के पास जाते जो अब तब बिहोश थी उसका मासूम चेहरे देख कर ऐसा लगा रहा था जैसे देवी माँ उनके समाने आ गई हो ।
तभी वो बच्ची को भी होश आने लगता है और होश में आते ही वो अपने समाने एक अनजान चेहरा देख कर डर जाती है और बिस्तर के एक कोने में अपने चेहरे को अपने पैरों के बीच में छुपा लेती है ।
वही ठाकुर साहब उसको इतना डरा और सहम कर ऐसे बैठे देख उनको बहोत दुख होता है ।
वो उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहते हैं - " बेठा डरो मत मै आप को कुछ नही करो गा "
लेकिन वो बच्ची उनकी आवाज से अब कापने लगी थी और धीरे - धीरे रोने लगी थी और बस एक ही शब्द हल्की आवाज में बड बडा रही थी - " माँ , माँ "
तभी कमरे में कोई आया जिससे ठाकुर साहब का ध्यान उस पर चला गया वो और रूम के दरवाजे पर खाड़ी थी और ठाकुर साहब को अपनी और देखता पा कर अंदर आने का का पुछती है ठाकुर साहब अपना सर हिला कर अंदर आने की अनुमति दे देते हैं ।
वही उस औरत की आवाज सुन कर वो बच्ची जो इतने समय से अपना सर नीचे किए रो रही थी ।
वो अब अपना सर ऊपर करती है और उस औरत के पास जा कर उससे लीपट जाती है
वही ठाकुर साहब उस औरत को देखते है जिसके आते ही ये बच्ची उससे कैसे लिपट गई तभी वो उस औरत से कहते हैं - " तुम हो इस की माँ "
वो औरत जो उस बच्ची को चुप करा रही थी।
वै ठाकुर साहब की तरफ देखते हुए कहती है - " नहीं ठाकुर साहब ये बीन माँ की बच्ची है इस की माँ नहीं है इसकी माँ ने जाते समय इसको मुझे सोपा था और मै इसको आप को सौपती हु "
और फिर उस बच्ची का हाथ पकड़ कर ठाकुर साहब के पास लाती है ओर उसका हाथ पकड़ कर ठाकुर साहब के हाथ में देती है और उनसे कहती है - " ठाकुर साहब यह हमे से नहीं है इसकी माँ एक बहोत अच्छे घरने से थी और कुछ कारण से वहाँ रह रही थी उसने मुझसे कहा था कि इसको लेने को आएगा इतने सालो में तो कोई नहीं आया और अब इस के आगे सब आप है मुझे इसके बारे में जितना पता था । में उतना आप को बता चुकी हु "
और फिर उस बच्ची के पास घुटनो के बल बैठ उसके चेहरे को अपने हाथ में ले कर उसके आसु पोछते हुए कहती है - " बेटा आज से ( ठाकुर साहब की तरफ इशारा कर ) ये तुम्हारे बाबा है समझी और ये जो भी कहे इनकी बात मनना ये हमेशा तुम्हारे लिए अच्छा ही करेगे ठीक है "
वो बच्ची भी आपना सर हा में हिलाने लगी जैसे वो उनकी सारी बात समझ रही हो ।
फिर वो औरत उठती है और जैसे ही बाहर जाने के लिए बडती है वो बच्ची उसका साड़ी पकड़ लेती है तब वो औरत भी उसकी तरफ देखती है तभी वो बच्ची बहुत ही धीरे से कहती है - " रानी मौसी तुम कहाँ जा रही हो "
तभी वो औरत उसके उसके हाथ से अपनी साड़ी छुडाते हुए कहती है- " अभी मैने समझाया था ना फिर भी क्यों रोक रही हो अब मैं नहीं आऊगी तुम्हारे पास तुम्हारे बाबा है ना "
तभी वहा सुधीर आ जाता है अपने साथ एक बच्ची को लिए जिसकी उम्र ग्यारह या बारह साल की होगी ।
वो बच्ची रूम में आते ही उस औरत से माँ कहते हुए लिपट जाती है तभी वो औरत जिसका नाम रानी था वो अपने पिछे आदमी को एक नज़र देखती है फिर अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरती है और फिर दोनों बच्चीयों को अपने समाने खड़े कर के कहती है - " मैं यहाँ नहीं होगी तो दोनों एक दुसरे का ध्यान रखना फिर अपनी बेटी की तरफ देख कर प्रिया तुम बडी हो तो तुम्हे ज्यादा ध्यान देना होगा समझी "
ठाकुर साहब की तरफ देख कर अपने हाथ जोड़कर बाहर आती है। दरवाजे पर हि सुधीर मील जाता है । जो अपना सर नीचे कर खडा था रानी उसे देख कर कहती है - " मेरी बेटी का ध्यान रखना "
वही उसकी आवाज पर सुधीर भी उसे देखता है और कुछ समय के बाद ही रानी उसके समाने भी हाथ जोड कर आगे बड जाती है और सुधीर वही बस उसे जाते हुए देखते ही रह जाता है ।
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राम राम
वो बच्ची रूम में आते ही उस औरत से माँ कहते हुए लिपट जाती है तभी वो औरत जिसका नाम रानी था वो अपने पिछे आदमी को एक नज़र देखती है फिर अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरती है और फिर दोनों बच्चीयों को अपने समाने खड़े कर के कहती है - " मैं यहाँ नहीं होगी तो दोनों एक दुसरे का ध्यान रखना फिर अपनी बेटी की तरफ देख कर प्रिया तुम बडी हो तो तुम्हे ज्यादा ध्यान देना होगा समझी "
ठाकुर साहब की तरफ देख कर अपने हाथ जोड़कर बाहर आती है दरवाजे पर हि सुधीर मील जाता है जो अपना सर नीचे कर खडा था रानी उसे देख कर कहती है - " मेरी बेटी का ध्यान रखना "
वही उसकी आवाज पर सुधीर भी उसे देखता है और कुछ समय के बाद ही रानी उसके समाने भी हाथ जोड कर आगे बड जाती है और सुधीर वही बस उसे जाते हुए देखते ही रह जाते है ।
अब आगे
ठाकुर साहब उस बच्ची को लिए एक बडे से हवेली के समाने खड़े थे वही वो बच्ची ठाकुर साहब का हाथ पकड़े उस बडे से हवेली को देख रही थी उसकी आखे चमक रही थी आज तक उसने कभी उस रूम के बाहर की दुनिया नही देखी और जो देखी वो इतनी भी खुबसूरत नहीं थी वो हर तरफ अपनी नजर कर सब कुछ बहुत गौर से देख रही थी ।
वही ठाकुर साहब के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था उन्हें अब इस बात की चिंता हो रही थी की उनके इस फेसले पर उनकी पत्नी के क्या विचार होगे वो उनका साथ देगी की इन सब सोच में थी तभी उन्हें अपने हाथ हिलते से लगे तो उनका ध्यान उस तरफ गाया जहाँ वो प्यारी सी बच्ची उनके हाथ को पकडे आगे देख रही थी । उसकी आखो मे थोडा डर था ।
ठाकुर साहब की नजर भी उसी तरफ गई तो वहाँ एक औरत खडी थी जो बहुत ही सुंदर थी उसकी आखे इस समय लाल थी और चेहरे थोड़ा उतरा हुआ था
ठाकुर साहब उनको देखते ही उनके तरफ बडते हुए कहते हैं - " शांति "
वो आगे बढते उससे पहले हि वो हवेली के अंदर चली जाती है । ठाकुर साहब उस बच्ची को अपने साथ लिए उनके पिछे उन्हें पुकारे हुए जाते हैं पर वो और चौके पर चली जाती है ।
वही ठाकुर साहब आंगन में ही रूक जातें हैं वो उस बच्ची की तरफ देखते हैं जो थोडी डरी हुई नजरों से उन्ही को देख रही थी ठाकुर साहब अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ला कर बच्ची के सर पर प्यार से हाथ फेरते है और बहुत ही हल्की आवाज में कहते हैं - " डरो नहीं बेटा यहाँ सब अपने है "
तभी ठाकुर साहब के समाने पानी का एक गि्लास आता है। ठाकुर साहब का ध्यान फिर उस तरफ जाता है जहाँ उनकी पत्नी पानी का गि्लास लिए खाड़ी थी ठाकुर साहब पानी लेते हैं और कहते हैं - " शांति हमारी बात तो सुनो " तभी ठकुराइन अपनी आवाज ऊची करते हुए कहती है - " रजो , रजो दो तीन बार आवाज देने के बाद के औरत आती है वो उनकी तरफ देख थोड़ा झुक कर ही कहती है - " जी बहुरानी "
ठकुराइन उसकी तरफ देख उस बच्ची तरफ इसारा करते हुए कहती है - " इसे यहाँ से ले जाओ "
तभी ठाकुर साहब बीच में ही कहते हैं - " इसको नहला का कुछ खिला देना और फिर एक झोला उसकी तरफ करते हुए कहते हैं - " और इसमें दवा है इसे भी खिला देना "
रजो आगे बड जैसे ही उस बच्ची को हाथ पकड़ने को होती है । तभी वो बच्ची ठाकुर साहब के पिछे चुप जाती है और ना जाने का इसारा करती है ।
तभी ठाकुर साहब उसके पास बैठ कर उसे प्यार से समझाते है - " बेटा डरो नहीं ये रजो काकी है ये यहाँ पर काम करती है ये तुम्हे खाना खाने ले जाएगी "
उसके बाद उसका हाथ रजो को पकडा देते हैं और रजो उसको ले कर चली जाती है
तभी ठाकुर साहब अपनी पत्नी की तरफ देखते है जो आखो मे आसु लिए वहाँ से अपने कमरे की तरफ चली जाती है
वही ठाकुर साहब भी उसको आवाज देते हुए उसके पिछे पिछे जाने है वो अपने कमरे का दरवाजा बंद करने वाली थी तभी ठाकुर साहब अपना हाथ बीच में कर उन्हें रुक देते हैं और कहते हैं - " शांति हमारी बात तो सुनो जब तक हमारी बात सुनो गी नहीं तब तक हमे कैसे समझो गी "
" हम आप को बहुत अच्छे से जानते हैं अपके समाज सेवा में हमारे बेटे की बली नहीं चडने देगे आपने एक बार भी हमारे या हमारे बेटे के बारे में नहीं सोचा आप हमेशा ऐसा क्यों करते हैं " और रोने लगती है
वही उनकी सिसकीया ठाकुर साहब को बहुत कष्ट दे रहा था वो उनके पास जाते हैं और उनके आसु पोछते हुए कहते है - " तुम अच्छे से जानती हो शांति हमने ये फैसला क्यों लिया आप को पता अपके लाडले ने क्या किया और अब हम उनकी और किसी गलती का इंतजार नहीं कर सकते "
शांति जी उनसे दुर होते हुए कहती है - " ठाकुर साहब हम मानते हैं अशु से गलती हुई है लेकिन उसके लिए इतनी बड़ी सजा अभी वो सिर्फ सोलह साल का है और फिर उस लड़की से से शादी आप को पता है वो लडकी कहाँ पैदा हुईं हैं और पली है वो इस ठाकुर खानदान की बहु बनाने लायक है भी "
ठाकुर साहब को उनकी बात सुन बहोत गुस्सा आता है वो गुस्से में कहते हैं - " शांति आप जानती है आप क्या कह रही है और अनु इतना भी छोटा नहीं है जो उसे पता ना हो की वो क्या कर रहा है रही बात उस बच्ची की तो लडकी की देवी की रूप होती है चाहे वो जहाँ पैदा हो और वो अभी सिर्फ ग्यारह साल की है तुम चाहे उसे जो सिखाओ और तुम चाहो तो उसे अपनी परछाई बना लो अभी तो वो कच्ची मिट्टी की तरह है आकार देना तुम्हारे हाथ में है "
उनकी बात सुनाने के बाद ठकुराइन अब कुछ ना कह सकी
वही रजो उस बच्ची को अपने साथ ले जाते हुए यही सोच रही थी पता नहीं किस सोने के कलम से ये लडकी ने अपने किस्मत लिखाई है जो इतने बड़े खानदान की बहु बनेगी फिर वो उस बच्ची की तरफ देखते हुए कहती है - " बेटा तुम्हरा नाम क्या है "
वो बच्ची कुछ नहीं कहती अपना सर नीचे कर लेती है
वही एक बडे से पेड के नीचे एक लडका बैठा था जिसकी उम्र सोलह हो गी उसके नैन नक्स बहुत ही सुंदर थे वो किसी राज कुमार सा लग रहा था वो अपने समाने फैले खेत को ही देख रहा था
तभी एक लडका भागा , भागा उसके पास आया और अपने दोनों हाथ अपने घुटने पर रखते हुए लम्बी लम्बी सास लैने लगता है ।
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राम राम
ठाकुर साहब को उनकी बात सुन बहोत गुस्सा आता है वो गुस्से में कहते हैं - " शांति आप जानती है आप क्या कह रही है और अनु इतना भी छोटा नहीं है जो उसे पता ना हो की वो क्या कर रहा है रही बात उस बच्ची की तो लडकी की देवी की रूप होती है चाहे वो जहाँ पैदा हो और वो अभी सिर्फ ग्यारह साल की है तुम चाहे उसे जो सिखाओ और तुम चाहो तो उसे अपनी परछाई बना लो अभी तो वो कच्ची मिट्टी की तरह है आकार देना तुम्हारे हाथ में है "
उनकी बात सुनाने के बाद ठकुराइन अब कुछ ना कह सकी
वही रजो उस बच्ची को अपने साथ ले जाते हुए यही सोच रही थी पता नहीं किस सोने के कलम से ये लडकी ने अपने किस्मत लिखाई है जो इतने बड़े खानदान की बहु बनेगी फिर वो उस बच्ची की तरफ देखते हुए कहती है - " बेटा तुम्हरा नाम क्या है "
वो बच्ची कुछ नहीं कहती अपना सर नीचे कर लेती है
वही एक बडे से पेड के नीचे एक लडका बैठा था जिसकी उम्र सोलह हो गी उसके नैन नक्स बहुत ही सुंदर थे वो किसी राज कुमार सा लग रहा था वो अपने समाने फैले खेत को ही देख रहा था
तभी एक लडका भागा , भागा उसके पास आया और अपने दोनों हाथ अपने घुटने पर रखते हुए लम्बी लम्बी सास लैने लगता है
अब आगे
( धीरज सुधीर ठाकुर का बेटा है)
वही हवेली में शांति जी इस समय ठाकुर साहब को खाना परोस रही थी वो अभी भी नराज लग रही थी लेकिन अब तो जैसे ठाकुर साहब भी अपना फैसला सुना चुके थे
तभी वहाँ रजो उस बच्ची को अपने साथ लेकर आई इस समय उस बच्ची से लहगा और चोली पहन रखी थी और उसके लम्बे और घने बाल खुले हुए थे शायद गिले थे इस लिए
वो एक कोने में अपना सर नीचे कर के खडी वो अभी भी डरी हुई लग रही थी ।
वही वो लडका दुसरे लडके की तरफ देखते हुए कहता है - " क्या बात है धीरज इतना क्यों भाग रहे हो आराम से आओ "
तभी धीरज उसके बाजु में बैठते हुए कहता है - " अशु भाईया वो बड़े बाबा का तार आया है मामा तुम्हे बुला रहे थे "
उसकी बात सुन कर अशुतोष खुश हो जाता है वो अपनी जहाँ से उठते हुए कहता है - " माँ की तार होगी बाबा तो हमसे गुस्सा है वैसे भी वो हमें तार कहाँ भेजते हैं "
धीरज भी अपनी जगह से उठते हुए कहता है - " नहीं अशु भाईया मामा ने तो कहा की बडे बाबा की तार है "
अशुतोष कहता है - " ठीक है चल घर चल के देखते है "
वही ठाकुर साहब की हवेली में ठाकुर साहब और सुधीर बैठे हुए थे ठाकुर साहब कहते हैं - " सुधीर हमने बच्चों के पास तार कर दिया है मोहन उन्हें कल लेकर आ जाएगा तुम भी बाकी के रिस्तेदारो को तार कर दो की अशुतोष का विवाह हम अगले हफ्ते के सोमवार को करे गे हमे बाकी की व्यवस्था भी देखनी है "
वही ठाकुर साहब को इतना परेशान देख कर सुधीर कहता है - " भाईया आप परेशान मत होई सब हो जाएगा बस आप बताईए क्या करना है हम कर देगे "
तभी ठाकुर साहब कुछ सोचते हुए कहते हैं - " सुधीर हम चाहते हैं सब कुछ बहोत अच्छे से हो आखिर अशु हमारा एक लोता बेटा है "
सुधीर भी मुस्कुराते हुए कहते हैं - " हाँ भाईया आप बिलकुल सही कह रहे हैं "
वही दोनों बच्चे घर पहुंचे तो वहाँ का महोल बहुत खुश नुमहा लग रहा था सभी के चहरे चमक रहे थे तभी वहाँ एक बुजुर्ग महिला की नजर उस पर वह उसे आवाज देते हुए कहती है - " अशु इधर आ "
वही अशु भी खुश होते हुए उनके पास जा कर कहता है - " नानी क्या बात है आप बहुत खुश लग रही है "
वो बुजुर्ग महिला उसकी नजर उतारते हुए कहती है - " मेरे अशु को किसी नजर ना लगे कितना प्यारा लगे गा दुल्हा बन कर "
उनकी बात सुन कर अशु के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है और वो आचरय से नानी से कहता है - " कौन दुल्हा नानी "
और फिर अपने मामा की तरफ देख ता जो उसे हि देख रहे थे
मोहन जी उसका नजर को भाफते हुए कहते हैं - " जीजा जी का तार आया उन्होंने तुम दोनों का आज हि निकलने को कहा है "
" पर क्यों मामा जी " अशु थोड़ा खिजते हुए कहता है
मोहन जी उसके सर पर हाथ रख कर कहते हैं - " बेटा जीजा जी ने तुम्हारी ब्याह तय कर दिया है जाओ जाने की तैयारी करो ठोडी समय में निकलना है "
वही उनकी बात सुन उसकाे बहुत गुस्सा आता है और वो उसी गुस्से में घर से बाहर निकल जाता है उसको ऐसे जाते देख धीरज भी उसे रोकते हुए उसके पिछे जाने लगता है
कुछ समय बाद दोनों तलाब के किनारे बैठे हुए थे जहाँ अशुतोष की आखे गुस्से से धधक रही थी तो वही धीरज उसी ठोडी दुरी बना कर बैठे हुए थे
अब उन्होंने ये तरिका निकाल है मुझे रोकने का वो ऐसे कैसे कर सकते हैं और माँ वो कैसे उनकी बात मान गई वो पत्थर को तलाब में फेकते हुए कहता है
वही धीरज उसकी बात पर कहता है - " अशु भाई मुझे नहीं लगता कि बडे बाबा कुछ भी गलत कर सकते हैं वो जो भी करेंगे वो आप के भले के लिए ही करे गे और फिर इन सब के पिछे कुछ कारण भी तो हो सकता है "
उसकी बात सुन अशुतोष उसे गुस्से में घुरता है फिर से तलाब में पत्थर फेकते हुए कहता है - " हा क्या ही हो सकता है फिर से किसी समाज सेवा के लिए वो हमारी बली चडा रहे होगे वो उन्हें अपनी शान के आगे कभी कुछ दिखा है "
धीरज उसकी बात सुन चिडते हुए कहता है - " अच्छा ठीक है तुम्हे जो भी कहना है ना तो वो तुम घर चल बडे बाबा से बात करने के बाद कहना अभी उठो और चलो "
लेकिन अशुतोष को देख कर ऐसे लग रहा था जैसे वो उसकी बात सुना ही ना हो अब तो धीरज को भी गुस्सा आने लगा था वो उसके हाथ को पकड़ कर कहता है - " अशु उठो और चलो मामा हमारा इंतज़ार कर रहे होगे "
धीरज को जब भी उस पर गुस्सा आता है तो वो उसको नाम से बुलाता है
वही वो दोनों कुछ ही समय में बैल गाड़ी में बैठ कर अपने गाँव के लिए निकल जाते हैं उनका गाँव ज्यादा दुर नही था दो घंटे का रास्ता था और अभी दो बज रहे थे तो वो चार बजे तक पहुँच ही जाते हैं
वही ठाकुर साहब अपने पुस्तकालय में बैठ कर कुछ काम कर रहे थे तभी शांति जी चाय लेकर उनके पास आती है और उनके टेबल पर रखते हुए कहती है - " चाय "
ठाकुर साहब बस अपना सर हिला देते हैं लेकिन शांति जी अभी भी वही खडी थी
ठाकुर साहब अपनी जगह से उठ कर उनके पास कर कहते हैं - " कुछ कहना है शांति तुम परेशान लग रही हो ।
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राम राम
लेकिन अशुतोष को देख कर ऐसे लग रहा था जैसे वो उसकी बात सुना ही ना हो अब तो धीरज को भी गुस्सा आने लगा था वो उसके हाथ को पकड़ कर कहता है - " अशु उठो और चलो मामा हमारा इंतज़ार कर रहे होगे "
धीरज को जब भी उस पर गुस्सा आता है तो वो उसको नाम से बुलाता है ।
वही वो दोनों कुछ ही समय में बैल गाड़ी में बैठ कर अपने गाँव के लिए निकल जाते हैं उनका गाँव ज्यादा दुर नही था दो घंटे का रास्ता था और अभी दो बज रहे थे तो वो चार बजे तक पहुँच ही जाते हैं ।
वही ठाकुर साहब अपने पुस्तकालय में बैठ कर कुछ काम कर रहे थे तभी शांति जी चाय लेकर उनके पास आती है और उनके टेबल पर रखते हुए कहती है - " चाय "
ठाकुर साहब बस अपना सर हिला देते हैं लेकिन शांति जी अभी भी वही खडी थी
ठाकुर साहब अपनी जगह से उठ कर उनके पास आ कर कहते हैं - " कुछ कहना है शांति तुम परेशान लग रही हो "
अब आगे
शांति जी ठाकुर साहब के गले लगते हुए कहती है - " ठाकुर साहब आप अच्छे से जानते हैं अशु कितना जिद्दी हैं वो हमेश आजद रहना पसंद करता है वो कभी भी अपने ऊपर किसी कि मनमानी नही मनाता तो वो आप के इस फैसले पर क्या बवंडर करे गे मेरे जी घबरा रहा है "
वही ठाकुर साहब उनका सर सहला रहे थे और उनकी बात भी सुन रहे थे
शांति जी अपनी बात खत्म कर ठाकुर साहब से दुर हटती है तभी ठाकुर साहब उनके बालो को ठिक करते हुए कहते हैं - " शांति तुम परेशान मत हो इस बार मै अशु की मनमानी नही चलने दुगा अगर इसका यही हाल रहा तो ये लड़का हमारा बुडापा मुस्किल कर देगा इस लिए मै जो कर रहा हूँ वो सही है और वैसे भी जो गलती उसने कि मैं उसके बाद उसको कोई मौका नहीं दे सकता "
शांति जी परेशान होते हुए कहती है - " ठाकुर साहब जिद्दी तो आप भी कम नहीं और रही बात उस गलती कि तो आप ने कभी उससे उस बारे में कुछ नहीं पुछा बस उसे इतना मारा पता है दिन पुरा मेरा बच्चा उठ नहीं पाया "
ठाकुर साहब ठोडे गुस्से में ही कहते हैं -" शांति इतनी बड़ी गलती करने के बाद हम क्या उनसे पुछते आप बताई और हम बहुत अच्छे से समझते हैं आप क्या करना चाह रही है लेकिन हमारा फैसला नहीं बदले गा हमने भरी पंचायत में इस बात की घोषणा की है "
शांति जी भी ठोडे गुस्से तो ठोडा रोते हुए ही कहती है - " ठीक है " लडे आप बाप बेटा आप दोनों के बीच तो हमें ही पीसना है ना ना पती को छोड़ सकते हैं और ना ही बेटा को आप दोनों के झगड़े में सिर्फ हमारा ही नुकशान होता है "
और फिर रोते हुए वहाँ से निकल जाती है ।
वही अशुतोष और धीरज अब घर पहुँच गए थे ।
घर पहुचे ही असुतोष माँ माँ कहता हुआ हर जगह शांति जी को डुड रहा था लेकिन वो उसको कही भी नहीं दिख रही थी जिससे उसकी खीज बडती जा रही थी ।
तभी एक नौकर भागा भागा आता है और अशुतोष से कहता है - " छोटे बाबा क्या हुआ आप को कुछ चाहिए "
अशुतोष उसकी पुरी बात बीना सुने ही कहता है - " माँ कहाँ है "
वो नौकर उसी सौम्यता से ही कहता है - " अशु बाबा मालकिन तो छत पर है शाग काट रही है आप कहे तो बुला लाऊ "
तभी अशुतोष छत की तरफ जाते हुए कहता है - " नहीं काका मैं खुद जा रहा हु माँ के पास और से माँ माँ कहता सीडी चडने लगा "
जब छत पर पहुँचा तो वहाँ शांति जी चार पाच ओरतो के साथ बैठी थी और जैसे ही उनको अशुतोष की अवाज आती है ।
वो उठने को होती है तभी अशुतोष उन के गोद में सर रख लेता है । वही शांति जी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगती है ।
वही अशुतोष जिसे दो ही चीजो से सुकुन मिलता था पहला तो माँ के आचल में दुसरा किताबो और कहानियों में और इस समय तो मानो वो अपने सुकून के सबसे सुंदर पल में था वही बाकी सारी औरतों को शांति जी ने जाने का इसारा कर दिया ।
अभी गरमी का मौसम था और शाम के इस पहर में तो बहोत अच्छी हवा चल रही थी और सफर की थकान और माँ की गोद अशुतोष की ऑ़ंख लग गई ।
करीबन एक घंटे बाद शांति जी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है - " अशु उठ जा बेटा शाम हो गई "
माँ थोडी देर ओर सोने दो ना अशुतोष कस मासाते हुए अपना सर शांति जी की गोद में घुसने लगता है
शांति जी प्यार से चेहरा उसका ऊपर कर के उसके बालो को ठीक करते हुए कहती है - " चल नीचे तु सो जाना मुझे खाना पकाना है फिर तु खाना मागेगा तो कहा से दुगी और फिर तेरे बाबा को भी समय से भोजन चाहिए होता था "
अशुतोष इस समय पुरी बात जैसे भुल ही गया था लेकिन ठाकुर साहब का जिक्र से ही उसका पुरा ध्यान फिर से उन्ही तरफ चला गया उसका चेहरा एक बार फिर उतर गया और वो शांति जी कि तरफ देख कर कहता है - " माँ यहाँ क्या हो रहा है मामा कह रहे थे "
वो इसके आगे कुछ कहता उससे पहले ही शांति जी अपने जगह से उठ कर अशुतोष को भी अपने जगह से उठाते हुए भी कहती है - " चल कब से यहाँ पर है मैं भी ना पता नहीं ध्यान कहा रहता है लडका सफर से आया है भुख तो लगी होगी "
कहते हुए उसको अपने साथ नीचे लाने लगती है वही अशुतोष भी अपनी माँ को अपने लिए इतना परेशान देख कर चुप हो जाता है
दोनों नीचे आ कर ऑंगन से जा रहे थे तब ही अशुतोष की नजर एक लडकी पर पडती है जो अभी तक तो रजो का हाथ पकड़े खडी़ थी लेकिन अशुतोष और शांति जी के आने से रजो के पिछे छुप जाती है वही अशुतोष उसकी नजर मानो वहाँ थम गई उसको वो लडकी अपने कहानी के परी जैसे लग रही थी
जो इस समय रजो के पिछे छुपी हुई थी और उसको ऐसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे चाॅंद बदलो मे छुप रहा है
तभी अशुतोष के पैर लडखडाए
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वो इसके आगे कुछ कहता उससे पहले ही शांति जी अपने जगह से उठ कर अशुतोष को भी अपने जगह से उठाते हुए भी कहती है - " चल कब से यहाँ पर है मैं भी ना पता नहीं ध्यान कहा रहता है लडका सफर से आया है भुख तो लगी होगी "
कहते हुए उसको अपने साथ नीचे लाने लगती है वही अशुतोष भी अपनी माँ को अपने लिए इतना परेशान देख कर चुप हो जाता है
दोनों नीचे आ कर ऑंगन से जा रहे थे तब ही अशुतोष की नजर एक लडकी पर पडती है जो अभी तक तो रजो का हाथ पकड़े खडी़ थी लेकिन अशुतोष और शांति जी के आने से रजो के पिछे छुप जाती है वही अशुतोष उसकी नजर मानो वहाँ थम गई उसको वो लडकी अपने कहानी के परी जैसे लग रही थी
जो इस समय रजो के पिछे छुपी हुई थी और उसको ऐसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे चाॅंद बदलो मे छुप रहा है
तभी अशुतोष के पैर लडखडाए
अब आगे
शांति जी अशुतोष को पकडते हुए कहती है - " अशु देख के ध्यान कहा है तेरा "
" कुछ नहीं मा बस पैर फस गया " और फिर एक बार पिछे देख आगे अपने रूम की तरफ चला जाता है ।
वही शांति जी जी देख रही थी की कैसे हैरानी भरी नजरों से अशुतोष उस लडकी की तरफ देख रहा रहा उन्हें घबराहट हो रही थी। की वो अशुतोष को सब कुछ कैसे समझाएगी इस लिए शांति जी उसका ध्यान हटा कर उसको रूम में भेज दिया ।
वही अशुतोष सिढी चडते हुए यही सोच रहा था कि ये लडकी यहाँ क्या कर रही यो तो वहाँ रहती है ना "
वही शांति जी रजो और उस बच्ची के पास आ जाती है वो बच्ची शांति जी को देख कर डर जाती है और अपनी आखे बंद कर लेती है
उसकी ऐसी हरकत देख कर शांति जी भी उसके प्यारे से चेहरे को निहरने लगती है फिर खुद को कडक कर रजो से कहती है - " रजो तुम जाओ खाने की तैयारी करो हम आते है "
रजो भी उनकी बात मान कर वहाँ से जा रही थी तभी वो बच्ची भी उनके पिछे जा रही थी जिससे शांति जी उसे रोकते हुए कहती है - " ये लडकी तुम कहाँ जा रही हो यहाँ आओ "
उनकी बात सुन वो बच्ची डर जाती और वही अपनी जगह पर खड़े हो जाती है शांति जी रजो को जाने का इसारा कर उस बच्ची से पुछती है - " तुम्हारा नाम क्या है "
वही वो बच्ची अपनी आखे बंद कर चुप चाप खडी थी कोई जवाब ही नहीं दे रही थी शांति जी एक दो बार और पुछती है लेकिन जब फिर भी वो बच्ची डर की वजह से कुछ नहीं कहती
शांति जी उसकी ऐसी हरकत पर चिडते हुए वहाँ से उठ रसोई की तरफ जाते हुए कहती है - " पता नहीं मेरे सर पर भी ठाकुर साहब क्या क्या बवाल ला कर रख देते हैं बताओ ये लडकी कुछ बोलने को तैयार नहीं है तो मै इसको कुछ कैसे सिखा पाऊगी "
बडबडाते हुए वो रसोई में जा कर एक ग्लास पानी और पैठा लेकर रजो की तरफ देखते हुए कहती है - " रजो हम अशु को पानी दे कर आते है तुम खाने की तैयारी कर हम आ कर चुल्हा जलाएगे "
और फिर अशुतोष के कमरे की तरफ चली जाती है जो ऊपर था उसके रूम में पहुचती है
जहाँ अशुतोष तो पेट के बल पलग लेट कर पुस्तक पड रहा था उसको ऐसे देख कर उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ जाती है ।
वो उसके पास आती है और उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है - " तु फिर इन किताब में व्यस्त हो गया "
अशुतोष किताब को वही पलट कर रख कर शांति जी के चारो तरफ अपनी बाह डाल कर कहता है - " माँ आप को पता है ना की मुझे कहानी और किताब पडना किनता पसंद है मेरी सारी थकान इन किताबों के साथ दुर हो जाती है "
" हा मै जानती हु तुझे यह किताबे और कहानीयां कितनी पंसद है अब ये सब छोड़ और ये ले पैठा खा कर पानी पि लिए इतने दुर से आया और अभी तक पानी भी नहीं पिया चल पी ले "
अशुतोष भी शांति जी से पैठा लेकर कहता है - " माँ मेरे पास बैठो ना "
शांति जी भी उसके पास बैठ जाती है और अशुतोष उनके गोद में सर रख लेता है शांति जी उसके बालो पर हाथ फेरने लगती है वही अशुतोष कुछ समय चुप रह कर कहता है - " माँ "
" हम्म " शांति जी भी एक छोटा सा जवाब देती है
" माँ वो लडकी कौन है जो नीचे रजो काकी के साथ खडी थी "
अशुतोष की बात सुन कर शांति जी के हाथ जो अब तब अशुतोष के बालो में चल रही थी वो अब रोक गए "
शांति जी कि प्रतिक्रिया को महसूस कर अशुतोष भी एक बार कहता है - " माँ बताओ ना कौन है वो और यहाँ क्या कर रही है "
उसकी बात सुन कर शांति जी अपने सोच से बाहर आती है और अशुतोष के बाल में फिर से हाथ फेरते हुए कहती है - " वो आज गाँव में पंचायत बैठी थी उस कोठे को बंद करने के लिए वही पर वो लडकी थी तेरे बाबा उसको अपने साथ ले आए और उन्होंने पुरे पंचायत और गाव वालो के समाने सभी को ये वचन दिया है की वो उस लडकी का विवाह तेरे साथ इसी हफ्ते कर देगे "
वही जहाँ शांति जी हैरान थी वही अशुतोष खुद भी हैरान था जहाँ शांति जी इस बात से हैरान थी की उनके सोच के विपरीत हुआ था।
उन्हें लगा कि जब वो इस बात को अशुतोष को बताएगी तो वो गुस्से से पागल हो जाएगा लेकिन उसके विपरीत वो तो शांत है ।
वही अशुतोष इस बात से हैरान था कि जब उसको यही बात धीरज ने बताई थी तो अशुतोष को बहुत गुस्सा आया था लेकिन वही अभी जब यही बात उसकी माँ ने बताया तो उसको बिलकुल भी गुस्सा नहीं आया बल्कि अच्छा लगा उसको उस लड़की का चेहरा अपने समाने दिख रहा था जो उसके कहानी के नायिका के जैसी है
वही शांति जी की परेशानी बड गई क्यों कि अशुतोष कुछ कह ही नहीं रहा था शांति जी उसको पुकारते हुए कहती है - " अशु मै जानती हु की तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे साथ गलत किया उन्होंने बीना तुमसे एक बार भी बात किए ये फैसला ले लिया "
वही अपनी माँ की आवाज से वो अपने सोच से बाहर आया और अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहता है - " मै जनता हु माँ बाबा की समाज सेवा के आगे उनका परिवार हमेशा पिछे ही रहा है लेकिन माँ मुझे हमेशा बाबा पर गर्व रहा है वो कभी भी कुछ गलत नहीं करेगे पता है माँ मै जब कहानियों में नायक के बारे पडता हु ना तो मुझे ऐसा लगता जैसे मै अपने बाबा के बारे में पड रहा हु लेकिन माँ आप परेशान मत हो मै बाबा का सर झुकने नही दुगा "
वही उसकी ऐसी बातें सुन कर शांति जी के आखो से आसु गिरने लगता है जो अशुतोष के गालो पर गिरता है अशुतोष उठ कर शांति जी की तरफ देखता है जिनका चेहरा अशु से भरा हुआ था अशुतोष उनके आसु पोछते हुए कहता है - " माँ आप ये सब मत करो आप ऐसे रोओ गे तो फिर पता नहीं मै क्या करूगाँ "
शांति जी अपने आसु पोछते हुए कहती है - " मै कहाँ रो रही हु वो तो आख मे कुछ चला गया था "
अशुतोष शांति जी की तरफ देखते हुए कहता है - " माँ मुझे भुख लग रही है "
शांति जी उसकी बात सुन कर जल्दी से खड़े होते हुए कहती है - " अपने साथ बातो में लगा लिया देख कितना देर हो गया "
और फिर वो अशुतोष के कमरे से बाहर आ जाती है वही सीढ़ी यो से उतर रही थी तो वो समाने देखती है जहाँ ठाकुर साहब आगॅंन के पलग पर बैठे हुए थे और वो लडकी उनके समाने अपना सर नीचे कर खडी थी ।
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शांति जी अपने आसु पोछते हुए कहती है - " मै कहाँ रो रही हु वो तो आख मे कुछ चला गया था "
अशुतोष शांति जी की तरफ देखते हुए कहता है - " माँ मुझे भुख लग रही है "
शांति जी उसकी बात सुन कर जल्दी से खड़े होते हुए कहती है - " अपने साथ बातो में लगा लिया देख कितना देर हो गया "
और फिर वो अशुतोष के कमरे से बाहर आ जाती है वही सीढ़ी यो से उतर रही थी तो वो समाने देखती है जहाँ ठाकुर साहब आगॅंन के पलग पर बैठे हुए थे और वो लडकी उनके समाने अपना सर नीचे कर खडी थी
अब आगे
शांति जी भी वही जा कर खड़े हो जाती है वही ठाकुर साहब उस बच्ची को देखते हुए कहते हैं - " बेटा अपना नाम तो बता दो "
ठाकुर साहब के कहने पर भी वो बच्ची अपना सर नीचे किए खडी थी
ठाकुर साहब समझ रहे थे की ये बच्ची डर रही है इस लिए ठाकुर साहब उसको अपने पास बुलाते हैं और उसको अपने गोद में बैठा कर कहते हैं - " बेटा अपने बाबा से भी बात नहीं करोगी "
ठाकुर साहब के इतने प्यार से कहने और गोद में बिठाने से उस बच्ची का डर थोड़ा कम होता है और वो ठाकुर साहब के तरह देखते हुए बहुत ही धीमे से कहती है - " अनुराधा "
वही उसकी इतनी मीठी और प्यारी आवाज सुन कर शांति जी तो देखते ही रह जाती है वही ठाकुर साहब मुस्कुराते हुए कहती है - " अरे वाह तुम्हारा नाम तो बिलकुल तुम्हारी तरह प्यारा है अनुराधा "
वही ठाकुर साहब के इतने प्यार और अपने पन के कारण अनुराधा ठाकुर साहब के साथ घुलने लगी थी वो उसी तरह नीचे देखते हुए कहती है - " बाबा आप हमे अनु बुला सकते हैं हमारी मा और मासी सभी हमे अनु बुलाते थे "
वही ठाकुर साहब के तो खुशी का ठिकाना ही नहीं की अब अनुराधा उनसे बात कर रही है
तभी अनुराधा अपना सर ऊपर करती है और उसको अपने समाने शांति जी दिखती है जो उसी को देख रही थी
वो जल्दी से ठाकुर साहब की गोद से उतर जाती है वही उसके ऐसे करने से ठाकुर साहब का ध्यान भी शांति जी पर जाता है
वो हंसते हुए कहते हैं " शांति तुम आओ यहाँ देखो अनुराधा है हमारी बच्ची का नाम "
और फिर अनुराधा की तरफ देख कहते हैं - " अनुराधा बेटा इनसे मत डरो यो तो तुम्हारी माँ है तुम्हे कभी भी कोई भी परेशानी हो तो इनको बताना समझी "
अनुराधा भी अपना सर हा मे हिला देती है
वही शांति जी भी उसके पास आती है और अनुराधा की तरफ देख कर कहती है - " क्या आता है तुम्मे कुछ काम आते है "
वही शांति जी के ऐसे कडकी से पुछने पर वो अपना सर नीचे कर धीरे हिलाते हुए कहती है - " मुझे कुछ नहीं आता "
और फिर अपना सर ऊपर करती है जब वो शांति जी के चेहरे पर नराजगी दिखती है तो वो फिर से अपना सर नीचे कर के कहती है - " लेकिन मैं जल्दी सब सिख लुगी "
तभी शांति जी उसकी तरफ देखते हुए कहती है - " और तुम्हे सिखाऐ गा कौन "
शांति जी की बात सुन कर अनुराधा चमकती आखो से शांति जी कि तरफ देखते हुए कहती है - " तुम हमको सब कुछ सिखा देना हम तुम्हे परेशान नहीं करेंगे "
वही अनुराधा को इस तरह बीना डरे बच्चे की तरह बात करते देख ठाकुर साहब हसने लगते हैं और हसते हुए कहते हैं - " बिलकुल सही कहा अनु ने "
फिर अनु के सर हाथ रखते हुए कहते हैं - " तुम शांति के साथ रहना वो तुम्हें सब सिखागी ठीक है "
अनुराधा भी अपना सर हा में हिला देती है
वही ठाकुर साहब शांति जी कि तरफ देखते हुए कहते हैं - " आप के साहब जादे आ गए "
हाँ वो अपने कमरे में है शांति जी भी छोटा सा ही जवाब देती है
और ठाकुर साहब भी अपना सर हिलाते हुए आगन से बाहर की तरफ चले जाते हैं जहाँ उन्होंने कुछ लोगों को बुलाया था
वही शांति जी भी अपने रसोई की तरफ जाने लगती है लेकिन कुछ दुर चलने के बाद उनको अपने साड़ी के पल्लू में खिचाओ महसूस होता है तो वो पिछे पलट कर देखती है जहाँ अनुराधा उनकी साड़ी का पल्लू पकड़े उनके पिछे आ रही थी ।
शांति जी थोडे कड़े आवाज में ही कहा - " तुम ये क्या कर रही हो "
अनुराधा उनको देखते हुए कहती है - " बाबा ने कहा है मै आपके साथ रहु आप मुझे सब कुछ सिखाओगी आप भी तो बोली थी "
उसकी बात सुन कर शांति अपना सर हिला कर कहती है - " पागल लडकी " और फिर जाने लगती है
वही अनुराधा फिर से उनके पिछे पिछे जाने लगती है ।
कुछ समय बाद अशुतोष आगन में पडे छुले पर बैठा पुस्तक पड रहा था और उन्ही पुस्तक के आड से रसोई की तरफ देख रहा था जहाँ पर जैसे जैसे शांति जी कर रही थी वैसे ही वो भी कर रही थी उनके आगे पिछे घुम रही थी
उसकी ऐसी हरकत देख कर अशुतोष के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाता है ।
तभी किसी के कदमों के आवाज से उसका ध्यान उस तरफ जाता है तो देखता है ठाकुर साहब आ रहे थे उनको देख कर अशुतोष अपनी जगह से उठ कर उनके पास जाता है और उनके पैर छुता है
वही ठाकुर जी भी उसे घुरते हुए उसके सर पर हाथ रखते हैं
और फिर आगन में आ कर शांति जी को आवाज देते हुए कहते हैं - " शांति खाना तैयार हो तो परोसो हमे आज भुख लग रही है "
तभी अशुतोष भी कहता है - " माँ मुझे भी भुख लगी है "
शांति जी भी रसोई के अंदर से ही कहती है - " हा ला रही हु आप लोग हाथ मुह धौ लो "
वही दोनों बाप बैटा पिडा पर बैठ जाते हैं तभी शांति जी अपने हाथ में एक थाली लिए हुए आ रही थी और उन्ही के पिछे अनुराधा भी अपने हाथ में थाली पकड़े आ रही थी जिसको देख कर ठाकुर साहब के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है
शांति जी अपनी पकडी हुईं थाली ठाकुर साहब के आगे रखती है वही अनुराधा वैसे ही खडी रहती है तब शांति जी उसके हाथ से थाली ले कर अशुतोष के समाने रख देती है ।
वही उनको ऐसे करते देख अनुराधा अपना सर धीरे से ऊपर कर और अशुतोष की तरफ देखते हुए मन में ही सोचती है - " ये डाकु बाबु बाबा के बेटे हैं " र
तभी शांति जी रसोई की तरफ चली जाती है वही अनुराधा फिर से शांति जी के पिछे - पिछे जाने लगती है
कुछ समय बाद शांति जी उसके हाथ में एक थाली पकडाते हुए कहती है - " जा बाबा को पुडी दे आ "
अनुराधा भी उनकी बात मान कर अपना सर नीचे किए जाती है और ठाकुर साहब की थाली में पुडी डाल कर फिर जल्दी से रसोई में वापस आ जाती है
वही अशुतोष कब से बस उसी को देख रहा था और क्या कैसे कर रही है कैसे चोरी - चोरी उसकी तरफ देख रही
तभी ठाकुर साहब की नजर उस पर पडती है उसको शांति से बैठा देख कर वो कहते हैं - " अगर तुम्हरा हो गया तो उठो "
उनकी आवाज से अशुतोष अपनी ध्यान में आता है और उनकी तरफ देख कर कहता है - " वो पुडी "
तभी अनुराधा पुडी लेकर आती है और ठाकुर साहब को देने ही वाली थी की ठाकुर साहब को मुस्कुराते हुए अशुतोष की तरफ इसारा कर के कहते हैं - " अनु बेटा इसको दे दो "
अनुराधा डरते डरते अशुतोष की थाली में पुडी डाल कर भाग जाती है ।
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वही अशुतोष कब से बस उसी को देख रहा था और क्या कैसे कर रही है कैसे चोरी - चोरी उसकी तरफ देख रही
तभी ठाकुर साहब की नजर उस पर पडती है उसको शांति से बैठा देख कर वो कहते हैं - " अगर तुम्हरा हो गया तो उठो "
उनकी आवाज से अशुतोष अपनी ध्यान में आता है और उनकी तरफ देख कर कहता है - " वो पुडी "
तभी अनुराधा पुडी लेकर आती है और ठाकुर साहब को देने ही वाली थी की ठाकुर साहब को मुस्कुराते हुए अशुतोष की तरफ इसारा कर के कहते हैं - " अनु बेटा इसको दे दो "
अनुराधा डरते डरते अशुतोष की थाली में पुडी डाल कर भाग जाती है
अब आगे
वही ठाकुर साहब खाना खा चुके थे और नल के पास आ गए थे वही शांति जी भी उनके पिछे उनकी थाली लेकर आ रही थी फिर वो ठाकुर साहब के हाथ में पानी डाल ती है और ठाकुर साहब के हाथ धुलने के बाद अपने साड़ी का पल्लू आगे कर देती है हाथ पोछने के लिए
वह अशुतोष जिसका पुरा ध्यान अपनी कहानी की नायका के ऊपर था तभी ठाकुर साहब शांति जी से कहते हैं - " हम अपने पुस्तकालय में जा रहे हैं तुम हमारा दुध वही ले आना "
वही ठाकुर साहब की बात से अशुतोष का ध्यान भी उनपर गया फिर वो अपनी थाली पर देखता है जिसमें अब कुछ भी नहीं है
वो भी अपनी जगह से उठ कर नल के पास जाता है तो उसको अपने पिछे कदमो की आहट होती है वो पिछे देखता है तो वो अपनी बड़ी बड़ी काजल से शानी आखो से उसे ही देख रही थी उसके हाथ में उसी कु झुठी थाली पकडी हुई थी जिसे वो नीचे रख कर डरी हुई सी अशुतोष की तरफ देख रही थी वही अशुतोष को अपने जीवन के इस नई किरदार कि चुप्पी पंसद आ रही थी जिससे उसे बहुत आंनद आ रहा था वो अपने हाथ उसके आगे कर देता है वही अनुराधा को कुछ समझ नहीं आया यहाँ उसको सब कुछ बहोत अजीब लग रहा था उसको वो अपनी एक कमरे वाली जिंदगी ही अच्छी लग रही थी उसको ऐसे लग रहा था को वो यहाँ कहाँ फस गई ।
यही सब सोचते एक बार फिर अशुतोष की तरफ देखती है जो उसको बल्टी की तरफ इसारा कर रहा था अब जा कर अनुराधा को समझ आया की वो क्या कह रह है वो तुंरत ही लोटा ले कर उसके हाथो में पानी धीरे धीरे डालने लगी और अब वो उसको पास से देख रही थी वो तो अच्छा दिखता है उस रात तो वो उसको दुर से ही देख पाई थी ।
वही अशुतोष का जब हाथ धुल गया फिर भी जब पानी बंद ना हुआ तो वो भी अनुराधा की तरफ देखने लगा कुछ पल के लिए दोनों की नजरें एक दुसरे पर टेहरी लेकिन अनुराधा ने जल्दी ही अपनी पलके झुका ली वही अशुतोष उसकी इस हरकत पर हल्का सा मुस्कुरा दिया लेकिन जल्द ही अपनी मुस्कान चुपा लिया वो उसके मन की बात समझ रहा था उसकी हिचकिचाहट समझ रहा था उसको ये लडकी बहोत दिल चस्प लग रही थी ।
वही अनुराधा अब भी वैसे ही खडी रही तो अशुतोष ही उसके हाथ से लोटा लेकर कर बल्टी में रख दिया और अब अपने चारो तरफ हाथ पोछने के लिए कुछ डुड रहा था लेकिन उसको कुछ ना मिला हर तरफ देखते हुए उसकी नजर फिर अनुराधा पर पडी तो उसने अपने गिले हाथ आगे कर दिए लेकिन इस बार भी उसको कुछ समझ ना आया तो उसने अपने हाथो की तरफ इसारा किया लेकिन अनुराधा को फिर भी कुछ समझ नहीं आया थक हार कर अशुतोष खुद ही आगे बड कर अनुराधा के दुपट्टे में अपने हाथ पोछ लेता है वही उसके इस तरह करने से अनुराधा हैरानी से उसकी तरफ देखने लगती है वही अशुतोष भी उसी को देख रहा था अपने हाथ पोछ कर वो अंदर चला गया ।
वही अशुतोष अपनी मस्ती में अपने रूम में पहुचा आज उसको बहोत अच्छा लग रहा था पता नहीं क्यों रूम में घुसते ही उसकी नजर उस किताब पर पडी जिसके लिए उसने बहोत से कष्ट सहे थे " मन मोहनी " इस किताब में एक राजा और एक वैश्या की सच्ची प्रेम कहानी थी जो आज से करीब तीन सौ साल पहले लिखी गई थी वो भी उस वैश्या के द्वारा जब उसको इस बात का पता चला तो उसने उस किताब को बहोत डुडा तब उसके एक दोस्त ने बताया कि ये किताब अपने गाँव में जो कौटा है ना वहाँ मिल जाएगी फिर वो अपने उसी दोस्त के साथ रात के अधेरे में अपना चेहरा छिपा कर वहा गया था जहाँ पर गाने बजाने की बहोत आवाज आ रही थी अब कोटे में यही तो होता है वो जैसे तैसे खुद को छुपा को उस बडे से रूम में पहुचा जहाँ पर कई किताबे पडी हुई थी जिन्हें देख कर तो उसकी आखे ही चमक गए वो उस बडी सी आलमारी के पास आ कर किताब देखने लगा उसका और कही ध्यान नही था सिर्फ किताबो पर
तभी अचानक ही आवाज आई - " माँ "
इस आवाज को सुन कर तो अशुतोष की हलात ही खराब हो गई थी
आखे फाडे वो इसके आगे कुछ कहती उससे पहले ही अशुतोष उसके मुह बंद कर देता है और वो बीचारी कुछ कह ही नहीं पाती
लुटे -------
और इस सब छिना झपटी में कई किताबे अलमारी से गीर जाती है और वो जमीन पर गिर जाती है अशुतोष भी उसको पकड़े जमीन पर ही बैठ जाता है
वही अपने मसुम से चेहरे पर असीम डर लिए उस डके मुने आदमी को देख रही थी जिसके आख के सिवा ओर कुछ भी नहीं दिख रहा था ।
वही अशुतोष अपनी आवाज धीमे कर के कहता है - " चुप रहना वरना "
वही उस लडकी ने अपना सर हा में हिला दिया तब जा कर अशुतोष उसको छोड़ उसके समाने आया और उसकी तरफ गहराई से देखते हुए कहता है - " चुप चाप बैटो गी तो बच जाओगी वरना " उसने उसको आखे दिखाई
" अच्छे बच्चे की तरह बैठो मुझे कुछ लैना है मैं लेकर चला जाऊगा समझी " ?
वही वो इतना डर गई थी की कह ही नहीं पा रही थी उसने बस हा में सर हिला दिया ।
अशुतोष उसको एक तरफ इसारा कर कहता है - " वहाँ जा कर चुप चाप बैटो आवाज मत निकालना "
वही वो भी तुरंत उसकी बात मान कर चुप चाप बैठ गई अपना सितार ले कर
वही अशुतोष को भी उस बच्ची का यहा होना बहोत अजीब लग रहा था वो बहुत सी पुस्तके पड चुका था वो भी जो उसके पडने के लिए थी और वो भी जो नहीं थी उन किताबों को चुप कर पडा था उसने उसको पता था ऐसे जगहों पर क्या होता है ।
वही अशुतोष इन सब बातो से खुद को निकाल कर अपनी किताब को डुडने में उलझ जाता और वो वहाँ उन तारो में और जैसे ही अशुतोष उसको देखता वो फिर शांत हो जाती पर फिर थोडे समय में उब जाती और फिर उन सितार की तार से खेलने लगती
वही अशुतोष ने उससे उसका नाम पुछा था और उसने बहोत ही धीमी आवाज में अपना नाम बताया था अशुतोष को उसमें बहोत रूची हो रही थी वो उसकी कहानी की तरह है एक लुभाने वाला किरदार उसे वो उन कहानी की नायिको के बचपन की तरह दिख रही थी
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राम राम
वही वो इतना डर गई थी की कह ही नहीं पा रही थी उसने बस हा में सर हिला दिया
अशुतोष उसको एक तरफ इसारा कर कहता है - " वहाँ जा कर चुप चाप बैटो आवाज मत निकालना "
वही वो भी तुरंत उसकी बात मान कर चुप चाप बैठ गई अपना सितार ले कर
वही अशुतोष को भी उस बच्ची का यहा होना बहोत अजीब लग रहा था वो बहुत सी पुस्तके पड चुका था वो भी जो उसके पडने के लिए थी और वो भी जो नहीं थी उन किताबों को छुप कर पडा था उसने उसको पता था ऐसे जगहों पर क्या होता है
वही अशुतोष इन सब बातो से खुद को निकाल कर अपनी किताब को डुडने में उलझ जाता और वो वहाँ उन तारो में और जैसे ही अशुतोष उसको देखता वो फिर शांत हो जाती पर फिर थोडे समय में उब जाती और फिर उन सितार की तार से खेलने लगती ।
वही अशुतोष ने उससे उसका नाम पुछा था और उसने बहोत ही धीमी आवाज में अपना नाम बताया था अशुतोष को उसमें बहोत रूची हो रही थी वो उसकी कहानी की तरह है एक लुभाने वाला किरदार उसे वो उन कहानी की नायिको के बचपन की तरह दिख रही थी
जहाँ उसको उस रात वो मिली थी । जो अपने सितार के साथ उस पुस्तक वाले कमरे में थी । उसको देख कर कितना डर गई थी ।
वही सभी के खाने के बाद शांति जी अनुराधा को एक कमरे में ले जाती है जो ज्यादा बडा तो नहीं लेकिन ज्यादा छोटा भी नहीं उसमें एक खिडकी थी जिससे चांद की रोशनी रूम में आ रही थी शांति जी अनुराधा की तरफ देख कर कहती है - " अब से ये कमरा तुम्हारा है यहाँ पर तुम सोओगी "
अनुराधा भी अपना सर हा मै हिला देती है ।
शांति जब उसको ऐसे करते देखती है तो हल्का सा उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाता है और वो उस मुस्कान को छुपाते हुए कहती है - " जब देखो लडकी आपना सर हि हिलाती रहती है ये नहीं कुछ कह दे "
फिर उसके बिस्तर के चादर ठीक करती है फिर लालटेन की रोशनी धीमी कर वही टेबल पर रखते हुए अनुराधा की तरफ देख कर कहती है - " इसको ऐसे ही जलने देना नहीं तो रात को डर लगेगा समझी "
फिर से अनुराधा अपना सर हाॅं में हिला देती है ।
वही उसको ऐसे करते देख कर शांति कहती है - " ये लडकी नहीं सुधारेगी "
और फिर उसके रूम से निकल जाती है और उसी रूम के उल्टे तरफ या कह लो उसके सामने ही अशुतोष का रूम था शांति जी उसके रूम में जाती है।
जहाँ वो अपनी किताबे पडते - पडते सो गया था उसको ऐसे देख कर शांति उसके हाथ से पुस्तक ले कर टेबल पर रख देती है और प्यारे से उसके सर पर सहलाती है इस समय उनके चेहरे पर सिर्फ सुकून ही था वो मुस्कुराते हुए कहती है - " ये खुद जैसा पागल है वैसे ही इसकी पत्नी भी भगवान् ने इसके जैसे ही डुडी है "
फिर उसके रूम के लालटेन की रोशनी कम कर अपने रूम में आती है जहाँ पर ठाकुर साहब कुछ हिसाब किताब का काम कर रहे थे शांति को रूम में आते देख कहते हैं - "कहाँ रह गई इतनाबड़ा समय लग गया "
वही शांति उनके पास जा कर बैठते हुए कहती है - " आपके आजुबा बहु को रूम दिखाने ले गई थी पता नहीं वो लडकी क्या करे गी वो इस जीम्मेदारी के लायक है या नहीं वो हमारे घर को समाल पाएगी या नहीं हमे तो पागल ही लगती है कुछ कहती ही नहीं है बस सर हिला देती है बोलो लोग क्या कहेगे की ठाकुराइन कि बहु तो बोलती ही नहीं "
वही शान्ति जी अपने धुन मे बोले जा रहे हैं जब उनकी नजर ठाकुर साहब पर पडती है तो वो ये देख कर चिड जाती है की ठाकुर साहब उनकी बात सुन कर हंस रहे थे वो चिडते हुए ही कहती है - " आप क्यों हंस रहे हैं हम कोई चुटकूला नहीं सुना रहे आपकी बहु की हरकते गिना रहे हैं "
ठाकुर जी हंसते हुए कहते हैं - " हम तो ये सोच कर हस रहे हैं की कल जिस लडकी को आप बहु नहीं मान रही थी। आज उसको अपनी बहु मान कर शिकायत कर रही है "
वही शांति जी अब बिलकुल चुप हो गई थी ठाकुर साहब उनके पास आते है और उनका हाथ पकड़ कर कहती है - " शांति मैं समझ रहा हूँ तुम्हारी परेशानी लेकिन तुम भी मेरी एक बात याद रखना एक समय ऐसा आएगा कि तुम खुद कहोगी की तुम्हे अनुराधा से अच्छी बहु नहीं मिले गी "
उनकी बात सुन शांति जी अपने जगह से उठते हुए लालटेन की रोशनी कम करते हुए कहती है - " अच्छा ठीक है जब की बात हो गी तब देखेंगे अभी सो जाइए कल से मेहमान आने सुरू हो जाएगे वैसे भी शादी दो दिन में ही है और फिर मुझे उस लड़की के लिए कपड़े गहने भी तो लेने है "
वही अनुराधा जो अपने नरम बिस्तर पर बार - बार करवट ले रही थी साथ ही हाथ भी फेर रही थी और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है वो बहुत ही धीमी आवाज में कहती है - " यहाँ का बिस्तर कितना नरम हैं वहाँ पर तो जमीन पर सोना पडता है "
लेकिन अभी वो मुस्कुराते हुए सपनो की दुनिया में खो जाती है ।
अगली सुबह होते ही शांति जी अपने कामो में लग गई थी वही उन्होंने रजो को भेज दिया था अनुराधा के पास जहाँ वो उसे उठा कर तैयार कर लाए ।
वही अशुतोष जो कल रात पुस्तक पडते हुए जल्दी सो गया था वो फिर से वही पुस्तक ले कर आंगन में पडे पलग पर बैठ कर पड रहा था
तभी रजो अनुराधा का हाथ पकडे आगन में आती है । और उसे आगन में बैठा कर उसके बाल जो अभी गीले थे उन्हें सुखा रही थी
तभी शांति जी रज्जो को आवाज लगाती है
रज्जो . . . . . . . . . . . .
रज्जो अपनी जगह से उठते हुए कहती है - " आई बहुरानी "
फिर अनुराधा को बैठे रहने का कह कर चली जाती है ।
वही अशुतोष जब से अनुराधा नीचे आई है तब से वो उसे अपनी पुस्तक से छुप छुप कर देख रहा था ।
लेकिन अब जब रज्जो चली गई थी तो वो अपनी पुस्तक एक तरफ रख कर अब वो अच्छे से बैठ कर अनुराधा को देख रहा था जो अपना सर नीचे कर अपने हाथो को उगली को उलझा रही थी ।
कुछ देर उसको देखने के बाद अनुतोष कहता है - " ये यहाँ आओ "
आप सभी को story कैसी लग रही है कमेंट में बताइये और को सुझाव हो तो वो भी दिजिए और मुझे फोलो भी करीए
राम राम ❤❤
रज्जो अपनी जगह से उठते हुए कहती है - " आई बहुरानी "
फिर अनुराधा को बैठे रहने का कह कर चली जाती है ।
वही अशुतोष जब से अनुराधा नीचे आई है तब से वो उसे अपनी पुस्तक से छुप छुप कर देख रहा था ।
लेकिन अब जब रज्जो चली गई थी तो वो अपनी पुस्तक एक तरफ रख कर अब वो अच्छे से बैठ कर अनुराधा को देख रहा था जो अपना सर नीचे कर अपने हाथो को उगली को उलझा रही थी ।
कुछ देर उसको देखने के बाद अनुतोष कहता है - " ये यहाँ आओ "
अब आगे
वही अनुराधा जो अपने मे मस्त थी एक दम से आवाज आने पर अपना सर ऊपर करती है और अशुतोष को देखने लगती है ।
अशुतोष उसे अपने हाथ से आने का इसारा करता है ।
वही अनुराधा फिर से नीचे सर कर के उसके समाने जा कर खडी हो जाती है ।
उसको ऐसे देख कर अशुतोष को तो हंसी आ रही थी। वो अपने मुंह पर हाथ रख कर अपनी हंसी छुपने की कोशिश करता है ।
फिर अच्छे से बैठते हुए कहता है - " जाओ मेरे लिए पानी ले कर आओ "
उसकी बात सुन कर अनुराधा इधर उधर देखती है फिर अशुतोष की तरफ देखती है
उसको ऐसे देख कर अशुतोष को बहुत मजा आ रहा था वो फिर कहता है - " इधर उधर क्या देख रही हो तुम से ही कह रहा हु पानी लाने को "
अब अनुराधा ज्यादा समय उसके समाने नहीं रूकती और रसोई घर की तरफ चली जाती है जहाँ पर शांति जी काम में लगी हुई थी
अब वो वहा पर खडी थी उसको कुछ भी समझ नहीं आ रहा था
वही शांति जी और रज्जो अपने काम में इतना मस्त थे कि उनको पता ही नहीं चला की अनुराधा यहाँ खडी़ है
वही अनुराधा को जब एहसास हुआ की अब किसी का भी ध्यान उस पर नहीं है वो धीमी आवाज में कहती है - " बहुरानी "
लेकिन उसकी आवाज इतनी धीमी थी कोई सुन ही नहीं पाया
वो इस बार अपनी आवाज थोडा ऊची कर के कहती है - " बहुरानी "
इस बार उसकी आवाज सब सुनते है यहाँ तक अशुतोष भी जो छुप कर उसके पिछे आया था ।
वही शांति जी जो अपने काम में मस्त थी वो एक दम से रूक जाती है और अनुराधा को देखती है जो अपनी बड़ी - बड़ी आखो से उसी को देख रही थी
तभी शांति जी का ध्यान रज्जो पर जाता है जो उन दोनों को देख कर हंस रही थी वो गुस्से में उसको घुरती है
रज्जो तुरंत वहाँ से भाग जाती है ।
अब शांति जी अनुराधा के पास जा कर कहती है - " तुम हमारी सास हो "
उनकी बात सुन अनुराधा को कुछ समझ तो नहीं आता इस लिए वो अपना सर ना मे हिला देती है ।
शांति जी फिर उसी तरह कहती है - " फिर तुमने हमे बहु रानी क्यों कहा "
उनकी बात सुन कर अनुराधा अपना सर नीचे कर ली है और धीरे से कहती है - " तुम्हे तो सभी ही बहु रानी कहते हैं काकी भी इस लिए हमने भी कह दिया है "
वही शांति जी उसकी बात सुन कर कहती है - " हाँ अब बस तुम ही बची थी मेरी सास बनाने के लिए है ना "
वही शांति जी की बात सुन कर वो अपना सर ऊपर करते हुए कहती है - " ये सास क्या होता है "
वही उसकी ये बात सुन कर तो शांति जी अपना सर ही पिठ लेती है और कहती है - " अरे हम है तुम्हारे सास और क्या "
अनुराधा कुछ समझते हुए कहती है - " तो क्या हम तुम्हें सास बुलाए "
शांति जी फिर आपना सर ना मे हिलाते हुए कहती है - " अरे पगली मै तेरी सास जरूर हु लेकिन तु मुझे वही बुलना जो मेरा अशु बोलता है "
अनुराधा फिर से शांति जी को ऐसे देखती है जैसे उसे उसकी बात समझ नहीं आई हो ।
और शांति जी भी उसके देखने के तरिके से समझ गई हो ।
वो एक गिलास पानी निकाल कर अनुराधा को पकडाते हुए कहती है - " अशु हमे माँ कहता है तो तुम भी हमें मा ही कहो "
उनकी बात सुन कर अनुराधा खुश हो जाती है तो अपनी आखो मे चमक ले कर शांति जी को देखते हुए कहती है - " तुम सच कह रही हो मै तुम्हे माँ कहु "
शांति जी बस अपना सर हिला देती है ।
वही
वही वो मुस्कुराते हुए रसोई से बाहर निकल जाती है वही अनुराधा को बाहर आता देख कर अशुतोष जो कब से उसकी बात सुन रहा था वो तुरंत अपनी जगह पर चला जाता है।
वही अनुराधा जो गिलास पकड़े धीरे - धीरे चल कर वो अशुतोष के समाने आ जाती है और उसका सर फिर नीचे ही था पर इस बार उसके होठों पर मुस्कान है और पानी का गिलास उसकी तरफ बडा देती है ।
वही अशुतोष भी उसके हाथो से पानी ले लेता है।
वही शांति जी जो अनुराधा के रसोई से निकलते ही उसी को देख रही थी ।
वो जब देखती है की पानी अशुतोष को ले जा कर दे रही है तो उन्हें खुशी होती है ।
कुछ ही समय में घर रिश्ते दारो से भर गया था। और कुछ औरते आंगन में बैठ कर शादी के गीत गा रही थी ।
और अब तो दिन बैठने लगा था । और सुर्य देव अब लौट रहे थे । कल फिर जो उन्हें आना था एक नई दिन के साथ वही अनुराधा घर के पिछे बगीचे मे काट पर पैट के बल लैटे हुईं थी और पता नहीं जमीन पर अपने हाथो से चित्र बना रही थी और बिगाड़ रही थी।
तभी उसको अपने पैरो पर कुछ महसूस होता है ।
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राम राम ❤❤
वही अशुतोष भी उसके हाथो से पानी ले लेता है।
वही शांति जी जो अनुराधा के रसोई से निकलते ही उसी को देख रही थी ।
वो जब देखती है की पानी अशुतोष को ले जा कर दे रही है तो उन्हें खुशी होती है ।
कुछ ही समय में घर रिश्ते दारो से भर गया था। और कुछ औरते आंगन में बैठ कर शादी के गीत गा रही थी ।
और अब तो दिन बैठने लगा था । और सुर्य देव अब लौट रहे थे । कल फिर जो उन्हें आना था एक नई दिन के साथ वही अनुराधा घर के पिछे बगीचे मे काट पर पैट के बल लैटे हुईं थी और पता नहीं जमीन पर अपने हाथो से चित्र बना रही थी और बिगाड़ रही थी।
तभी उसको अपने पैरो पर कुछ महसूस होता है ।
अब आगे
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