"सुन सांवरे"— जहां प्रेम की तक़दीर एक स्वीकारोक्ति पर ठहरी है!सर्वज्ञ की ज़िद है कि प्रेम का रंग तभी पूरा होगा,जब धरा के शब्द उसे छूएंगे। वह हर नटखट चाल अपनाएगा,हर हद पार करेगा,बस उस एक स्वीकारोक्ति के लिए।पर क्या धरा अपने मौन के बंधन तोड़ पाएगी,या य... "सुन सांवरे"— जहां प्रेम की तक़दीर एक स्वीकारोक्ति पर ठहरी है!सर्वज्ञ की ज़िद है कि प्रेम का रंग तभी पूरा होगा,जब धरा के शब्द उसे छूएंगे। वह हर नटखट चाल अपनाएगा,हर हद पार करेगा,बस उस एक स्वीकारोक्ति के लिए।पर क्या धरा अपने मौन के बंधन तोड़ पाएगी,या यह प्रेम अनकहा ही रह जाएगा? कही उम्र के फासले हैं, तो कहीं समाज की बंदिशें। धरा, जो अबोध सी लगती है संसार की नज़रों में, भीतर ही भीतर अपने भावों का महासागर समेटे बैठी है। और सर्वज्ञ— उसका प्रेम नादान नहीं, पर परिपक्व भी नहीं। अब आगे क्या होगा? क्या धरा अपने मौन के बंधन को तोड़ पाएगी? या प्रेम यूँ ही नज़रों के रास्ते बहता रहेगा, बिना कहे?
धरा ठाकुर
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सर्वज्ञ यादव
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