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Ret ke mahal

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gurwinder sidhu

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समय अपनी चाल जरूर चलता है। जब चलता है, तो सब कुछ पलट कर रख देता है और इंसान को संभलने का मौका भी नहीं देता। एक तरह से इंसान के किए हुए कर्म ही किसी न किसी रूप में जरूर सामने आते हैं। जैसे अब मनवीर के साथ हो रहा था। शायद न कभी मनवीर ने यह सोचा होगा और...

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Nazaij riste part 1

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Total Chapters (25)

Page 1 of 2

  • 1. Romantic love story - Chapter 1

    Words: 872

    Estimated Reading Time: 6 min

    समय अपनी चाल चलता था। जब वह चलता था, तो सब कुछ पलटकर रख देता था और इंसान को संभलने का मौका नहीं देता था। एक तरह से, इंसान के किए हुए कर्म किसी न किसी रूप में सामने आते ही थे। जैसे अब मनवीर के साथ हो रहा था। शायद न कभी मनवीर ने यह सोचा होगा और न ही मनवीर के परिवार ने, कि जिसे हमने अपने लायक नहीं समझा, उसी से एक दिन इंसाफ मांगना पड़ेगा। जरीना भी चुपचाप बैठी थी। उसने अपने आँसू पोछे और फिर से अपनी जिंदगी के अधूरे ख्वाबों में खो गई। मनवीर की पत्नी को भी अपने हक में बोलने का मौका दिया गया था। "अगर मनवीर एक पत्नी होने के बावजूद दूसरी औरतों से संबंध रख सकता है, तो मैं क्यों नहीं? जब मनवीर अपनी पत्नी, अपने बच्चों, अपने रिश्तों के लिए वचनबद्ध नहीं हो सकता, तो फिर यह कैसे किसी और के चरित्र पर उंगली उठा सकता है? मैंने तो उसी की भाषा में उसे जवाब दिया है।" "जज साहब, मैंने तो अपने पुराने हमसफर की जिंदगी में से ही अपने लिए थोड़ी खुशी ढूंढने की कोशिश की। इसमें मैंने क्या गलत किया, जज साहब?" "बस बच्चे पैदा करने से सारी जिम्मेदारियां पूरी नहीं हो जातीं। यह तो हर रोज़ नई औरत की तलाश करता है। पता नहीं कितने घर बर्बाद कर दिए होंगे इसने। क्या जब मनवीर यह सब करता है, तो क्या यह सही है? अगर सही है, तो फिर मैं गलत कैसे?" मनवीर आँखें झुकाए नीचे की ओर देखता हुआ खड़ा था। शायद मनवीर के पास अब अपनी सफाई में कहने को कुछ भी नहीं बचा था। वकीलों की बहस चल रही थी। एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए तरह-तरह के आरोप और सवाल एक-दूसरे पर लगाए जा रहे थे। लेकिन जरीना अपने विचारों में खोई हुई, कहीं और ही गुम हो गई थी। वकीलों की बहस खत्म हो गई। जज ने "ऑर्डर ऑर्डर" कहकर अदालत की कार्यवाही खत्म कर दी और केस की अगली तारीख दे दी। जरीना अपने ख्यालों में खोई हुई, अदालत से बाहर आई और गाड़ी में बैठकर जल्दी से अपने घर चली गई। माथे पर पसीना था और दिल बेचैन होने लगा था। कुछ ही पलों में जरीना का अपने आप पर काबू खत्म होने लगा था। वह रसोई में गई, पानी का गिलास लिया और फिर अपने कमरे में आ गई। वह बिस्तर के सहारे ढेर होकर बैठ गई। जरीना की आँखों के सामने फिर से अपनी पुरानी जिंदगी के दिन याद आने लगे। कितना कुछ बदल गया था। क्या-क्या सोचा था और क्या हो गया था। जरीना की आँखों के सामने अचानक अंधेरा-सा छा गया। जरीना सोचों में डूबी हुई, फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में वापस चली गई, जब उसने बारहवीं कक्षा में दाखिला लिया था। जिंदगी बेवफा थी, या दिल बेईमान हुआ, रातें सच्ची काली थीं, या रोशनी को गुमान हुआ, तारे हंसते थे तन्हाइयों के राजदार बनकर, जान बनकर जिस्म से जान निकाली, हमारे दिल पर सजना, तेरा यह एहसान हुआ, मुहब्बत बेइंतहा कर बैठा पागल दिल चंद्रा, तुझे अपना कहकर आज तो जिस्म भी बेजान हुआ। जरीना बहुत ही खूबसूरत और सौम्य लड़की थी। नीली आँखें, गोरा रंग, पतला शरीर, लंबी गर्दन, देखने में बिल्कुल परियों-सी लगती थी। जो कोई भी जरीना को देखता, बस देखता ही रह जाता था। जरीना इतनी हंसमुख थी कि कोई कितना ही उदास क्यों न हो, उसे एक बार देखकर सारे दुख-दर्द भूलकर हंसने को मजबूर हो जाता था। जरीना का परिवार मुसलमान था, लेकिन वे गुरुद्वारे भी जाते थे। जरीना के पिता के पास चार किल्ले जमीन थी, जहाँ वे खेती करते थे। खेती के साथ-साथ उनका शहर में भी कारोबार था, जो जरीना के पिता और चाचा मिलकर चलाते थे। लेकिन वे रहते ज्यादातर गांव में ही थे। जरीना ने तब बारहवीं कक्षा में दाखिला लिया था। वह पढ़ाई में भी बहुत होशियार थी। जरीना की स्कूल में दो सबसे खास सहेलियां थीं—स्वीप और जपलीन। तीनों ही बहुत खुशमिजाज थीं। वे एक साथ स्कूल आती थीं, एक साथ ही स्कूल से घर वापस जाती थीं। वे सगी बहनों से भी बढ़कर लगती थीं। मनवीर भी जरीना के गांव के बड़े जमींदार परिवार से था। वह पहले अपने ननिहाल में रहता था। एक तो जायदाद खुली थी, दूसरे ननिहाल में रहने की वजह से बिंदासपन ज्यादा था और पैसे का रौब था। एक दिन जरीना अपनी सहेलियों के साथ स्कूल जा रही थी। एक तेज रफ्तार गाड़ी उनके पास से गुजरी। कच्ची सड़क होने की वजह से धूल-मिट्टी से भर गईं। जरीना ने चिल्लाकर गाड़ी रोकने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी आग की तरह गुजर गई और देखते-देखते पक्की सड़क पर चढ़ गई। जरीना, स्वीप और जपलीन ने अपनी चुनरियों से चेहरों पर लगी धूल-मिट्टी साफ की। मन ही मन बहुत गुस्सा भी हुआ। करतीं भी तो क्या करतीं, गाड़ी वाले का पता भी नहीं था कि कौन था। तीनों ही वापस घर की ओर चल पड़ीं। जरीना को बहुत ज्यादा गुस्सा था। स्वीप और जपलीन जरीना को समझाते हुए घर तक आ गईं। कभी फुर्सत से लिखेंगे तकदीर अपनी, एक-एक सांस के साथ तेरा जिक्र लिखेंगे, तेरे से शुरू और तेरे तक ही मंजिल मेरी, आखिरी पैगाम भी तेरे नाम लिखेंगे, एक-एक कतरा निचोड़ के लहू का, इस दिल पर सरेआम तेरा नाम लिखेंगे।

  • 2. Romantic love story - Chapter 2

    Words: 631

    Estimated Reading Time: 4 min

    रूहों की मोहब्बत हीरे, कैसे अक्षरों में बयान करूँ, कहकर तो देख एक बार मुझे, जान निकालकर तेरे कदमों में धर दूँ। जरीना की माँ ने अचानक तीनों को उस हाल में देखकर घबराते हुए कहा, "क्या हुआ? आज स्कूल से वापस क्यों आईं? यह क्या, सारा रेत-मिट्टी?" जरीना: "कुछ नहीं, बस ऐसे ही। एक फुक्कड़-सा लड़का इतनी तेज गाड़ी चलाकर ले गया कि हमें धूल-मिट्टी से भर दिया।" स्वीप: "कोई बदतमीज-सा था।" जरीना की माँ: "नहा लो और दोबारा कपड़े पहन लो। और हाँ, तुम दूसरी गली से जाया करो, वह भी साफ है।" जरीना को अभी भी बहुत गुस्सा था। स्वीप और जपलीन ने बड़ी मुश्किल से जरीना को शांत किया। सारा दिन जरीना को उस गाड़ी वाले पर बहुत गुस्सा आता रहा। मन ही मन बहुत कुछ बोलती रही, लेकिन कर कुछ नहीं सकती थी। जरीना हर शाम अपनी सहेलियों के साथ गुरुद्वारे और मस्जिद जाया करती थी। पहले गुरुद्वारा, फिर मस्जिद। आज जब जरीना और उसकी सहेलियाँ गुरुद्वारे से बाहर निकलीं और मस्जिद की ओर जाने लगीं, तो मनवीर भी वहाँ मौजूद था। उसने अपनी दादी को गुरुद्वारे लाया था। जरीना अपनी सहेलियों से बातें करते हुए बाहर आ रही थी। तभी जरीना की एक सहेली की नज़र उस सुबह वाली गाड़ी पर पड़ी, जो गुरुद्वारे के बाहर खड़ी थी। उसने जरीना का ध्यान उस ओर खींचते हुए गाड़ी की तरफ इशारा किया। "यह वही गाड़ी है, जो सुबह गुज़री थी," उसने कहा। गाड़ी देखते ही जैसे जरीना का खून खौल उठा। वह गुस्से से लाल-पीली होने लगी। जरीना ने अपनी सहेलियों को वहीं रुकने को कहा और खुद गाड़ी की ओर चल पड़ी। सहेलियाँ उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन जरीना का गुस्सा तो जैसे सातवें आसमान पर पहुँच गया था। वह तेज़ी से गाड़ी की ओर बढ़ी। सहेलियाँ भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ीं। जरीना गाड़ी के पास खड़े मनवीर के पास पहुँची। स्वीप और जपलीन उसे रोक रही थीं, लेकिन वह कहाँ रुकने वाली थी। जरीना ने मनवीर से पूछा, "यह गाड़ी तेरी है?" ठंडी हवा के बुलबुले-सा लगता है तेरा एहसास सजना, तू न जाने इस दिल के लिए, तू कितना है खास सजना। मनवीर ने जरीना को पहली बार देखा और बस देखता ही रह गया। जरीना का गोरा रंग, सुडौल शरीर, बिल्ली-सी आँखें, काली जुल्फ़ें... देखने में बिल्कुल परियों-सी लगती थी। मनवीर तो जैसे जरीना को देखते ही गहरे ख्यालों में खो गया। उसका ध्यान सिर्फ़ जरीना पर था। टकटकी बाँधे वह उसी की ओर देख रहा था। जरीना ने फिर पूछा, "ऐ, हैलो! मैं तुझसे कुछ पूछ रही हूँ... यह गाड़ी तेरी है?" मनवीर: "हाँजी, मेरी ही है।" "क्यों, क्या हुआ जी?" जरीना: "सुबह भी तू ही चला रहा था?" मनवीर: "सुबह कब?" जरीना: "इतनी जल्दी भूल गया? अरे, सुबह कब!" जरीना की सहेलियाँ उसे शांत रहने को कह रही थीं, लेकिन जरीना का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था। जरीना ने मनवीर को बोलना शुरू कर दिया। वह तेज आवाज में बोल रही थी, लेकिन मनवीर टकटकी बाँधे बस उसकी ओर ही देखे जा रहा था। जरीना उसे कुछ कह रही थी, लेकिन मनवीर तो बस उसे देखता रहा। उसकी जुबान से जरीना के खिलाफ़ एक भी शब्द नहीं निकला। जरीना की खूबसूरती देखकर जैसे मनवीर की जुबान ही बंद हो गई थी। जरीना बस बोलती जा रही थी। मनवीर टकटकी बाँधे उसके चेहरे को देखे जा रहा था। स्वीप और जपलीन ने जरीना को बाँह से पकड़ा और अपने साथ खींचकर ले गईं। जरीना को चुप कराने की उनकी कोशिशें बेकार थीं। मनवीर अभी भी जरीना की ओर ही देख रहा था। जब तक जरीना उसकी आँखों से ओझल नहीं हुई, वह बस उसे ही देखता रहा। तेरी आँखों में हीरे, सारी कायनात बसती है, तेरे चेहरे की लाली भी, बहुत कुछ कहती है, जान निकाल ले जाती है हीरे, जब शर्म का मीठा हासा हँसती है।

  • 3. Romantic love story - Chapter 3

    Words: 777

    Estimated Reading Time: 5 min

    बेचैन था मनवीर का दिल उसकी मोहब्बत, जरीना, को पाने के लिए। उसने दुनिया भी छोड़ दी थी, उसके एक बार मुस्कुराने के लिए। न जाने फिर भी क्या गलती हो गई उसके दिल से, जो इतनी बड़ी सजा मिली, अपनी ही मोहब्बत को चाहने के लिए।


    तेरी आँखों में हीरे, सारी कायनात बसती है; तेरे चेहरे की लाली भी, बहुत कुछ कहती है। जान निकाल ले जाती है हीरे, जब शर्म का मीठा हासा हँसती है।


    जरीना की नीली आँखों और काँच-से खूबसूरत हुस्न ने मनवीर के दिल पर गहरी चोट की थी। मनवीर की आत्मा जैसे जरीना के साथ ही चली गई थी, या फिर जरीना ने मनवीर की आत्मा को कैद कर लिया था। रात को भी मनवीर की आँखों के सामने सिर्फ जरीना ही आ रही थी। जरीना ने एक ही मुलाकात में मनवीर का चैन छीन लिया था।


    अगले दिन, जब जरीना, स्वीप और जपलीन स्कूल जा रही थीं, तो मनवीर ने अपनी गाड़ी धीमे से उनके पास से गुजार दी थी।


    जरीना को मनवीर का यह व्यवहार बहुत अच्छा लगा था।


    जरीना की खूबसूरती ने मनवीर के दिल को रूखे-सूखे स्वभाव से बदलकर एक नरम और दूसरों की फिक्र करने वाला बना दिया था। मनवीर को हर पल सिर्फ जरीना के ही सपने आते थे। हर तरफ उसे बस जरीना ही नजर आने लगी थी। फुक्कड़पन छोड़कर मनवीर ने अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया था। उसने जरीना वाली ही क्लास में दाखिला ले लिया था। मनवीर को जरीना बहुत खूबसूरत लगती थी। वह हर वह चीज करने लगा था, जो जरीना को पसंद थी। मनवीर ने खुद को पूरी तरह बदल लिया था।


    जरीना को भी लगने लगा था कि मनवीर वाकई बहुत बदल गया है। मनवीर अब फुक्कड़पन छोड़कर सौम्य स्वभाव का हो गया था। शाम को जब जरीना गुरुद्वारे जाने का समय होता था, तो मनवीर भी वहाँ जाने लगा था। मनवीर ने आज तक जरीना से मुँह से कुछ नहीं कहा था, लेकिन अपनी नजरों से अपने प्यार का हाल जरीना को बता देता था। मनवीर बस जरीना को दूर से देखकर ही खुश हो जाता था। उसे जरीना के सख्त स्वभाव का भी पता था। मनवीर अपने प्यार का इजहार करने में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। वह धीरे-धीरे जरीना के दिल में उतरकर उसके दिल में अपने और अपने प्यार की जगह बनाना चाहता था। इसलिए बस दूर से ही जरीना को देख लेता था।


    धीरे-धीरे समय बीतता गया। मनवीर को पहले से पूरी तरह बदला हुआ देखकर जरीना को भी वह अच्छा लगने लगा था। जरीना भी चोरी-चोरी मनवीर को देखने लगी थी। मनवीर की छोटी-छोटी बचकानी हरकतें जरीना के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान ला देती थीं। जरीना को भी अब हर रोज शाम का इंतजार रहने लगा था, जब वह घर से बाहर जाती और मनवीर भी आता था।


    भले ही दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोलकर नहीं कहा था, लेकिन आँखों से आँखों की बातें होने लगी थीं। जरीना के दिल में भी मनवीर के लिए प्यार जागने लगा था।


    हालाँकि जरीना के दिल में मनवीर के लिए प्यार जागने लगा था, लेकिन वह अपने दिल से ज़्यादा दिमाग से काम लेना जानती थी। रात को जब वह खाली होकर अपने बिस्तर पर लेटती, तो दिन भर की सारी बातें याद करती। क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा हुआ, सब कुछ दोबारा सोचने लगती। मनवीर को देखकर भले ही जरीना का दिल मोहब्बत के नगमे गाने लगता था, लेकिन फिर भी वह खुद को काबू में रखती और दिमाग से काम लेती। जरीना बहुत समझदार लड़की थी; वह अच्छा-बुरा सब सोच सकती थी। उसे पता था कि वह किस रास्ते की ओर बढ़ रही है। वह खुद को काबू में रखती और मनवीर से थोड़ा दूरी बनाए रखने की कोशिश करती। जरीना का मन बार-बार मनवीर के लिए धड़कता था, लेकिन उसने दिल की बात न सुनकर दिमाग से काम लेना बेहतर समझा।


    जरीना अच्छी तरह जानती थी कि जिस रास्ते पर मनवीर उसे ले जाना चाहता है, वह न उनके लिए सही है, न उसके लिए। न मनवीर का परिवार मानेगा, न उसका। दूसरी बात, उनका धर्म भी अलग-अलग है। उनकी जात-पात, सब कुछ एक-दूसरे से अलग है। समाज कभी उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा। इस रास्ते पर बहुत मुश्किलें हैं।


    जरीना के पेपर भी नज़दीक आ गए थे, इसलिए उसने घर पर रहकर ही पेपर की तैयारी शुरू कर दी थी। यह उसके लिए थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उस समय उसे यही सही लगा। जरीना ने तबीयत खराब का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी ले ली थी।


    एक के साथ लावां लेकर,
    जो नया खसम बना ले,
    वह नार थोड़ी है।
    चार दिन की बात में ही अगर बात कपड़े उतारने पर आ जाए,
    वह प्यार थोड़ा है।
    जो नित नया बिस्तर ढूंढे,
    वह इज्जत की हकदार थोड़ी है।

  • 4. Romantic love story - Chapter 4

    Words: 816

    Estimated Reading Time: 5 min

    जब जरीना कई दिन स्कूल नहीं गई, तो मनवीर बेचैन होने लगा। वह जरीना के घर के चक्कर लगाता रहा, उसे एक नज़र देखने की तमन्ना उसे बेचैन कर रही थी। लेकिन जरीना अपने कमरे में ही रहती थी। फिर भी मनवीर बार-बार कोशिश करता रहा कि जरीना को देख ले। मगर उसे जरीना का दीदार नहीं हो पा रहा था। मनवीर जरीना से मिलने के लिए सुबह-शाम गुरुद्वारे जाता, घंटों उसका इंतज़ार करता, लेकिन जरीना से बात नहीं हो पाती थी। मनवीर ने स्वीप और जपलीन से जरीना के बारे में बहुत पूछा, लेकिन उन्होंने उसे कुछ नहीं बताया। मनवीर बार-बार जरीना से बात करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जरीना हर बार बात टाल देती थी। मनवीर की इस तड़प ने जरीना के दिल में उसके लिए प्यार को और गहरा कर दिया। जरीना को लगने लगा कि मनवीर उससे सच्चा प्यार करता है।

    जब जरीना गुरुद्वारे जाती, तो मनवीर हर रोज उससे बात करने की कोशिश करता था। लेकिन जरीना हर बार अनदेखा करके चली जाती थी।

    एक दिन दोपहर के वक़्त जरीना के घर में कोई नहीं था। यह बात मनवीर को भी पता चल गई थी। उसका दिल चाहता था कि वह सीधे जरीना के घर चला जाए। सामने बैठकर जरीना का दीदार करे। उसकी खूबसूरत और दिलकश आँखों को निहारता रहे। जरीना के खूबसूरत हाथों को अपने हाथों में थाम ले। और अपने दिल की सारी बात खुलकर जरीना को कह दे। एक पल में ही मनवीर जरीना के साथ हसीन दुनिया के ख्वाबों में खो गया। जरीना को याद करके उसके चेहरे पर एक अलग ही खुशी छा गई थी। मनवीर को यह सब एक सपने की तरह सच लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे जरीना सामने ही बैठी हो और प्यार भरी मीठी-मीठी बातें कर रही हो।

    गली में, जरीना के घर के दरवाज़े के सामने खड़ा मनवीर उसकी यादों में इतना डूब गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब धीरे-धीरे उसका सिर दीवार से जा टकराया। सिर टकराने से वह एकदम होश में आया। आसपास देखा तो वह गली में खड़ा था। जरीना कहीं नहीं थी। न ही वह दृश्य था, जो वह कुछ देर पहले देख रहा था। आसपास कोई नहीं था, सिर्फ़ सुनसान गली और सामने जरीना का घर। मनवीर का दिल चाहता था कि वह जल्दी से जरीना के घर चला जाए। लेकिन उसका दिल यह भी नहीं चाहता था कि वह जरीना के घर जाए। डर था कि कहीं जरीना गलत न समझ ले। डर यह भी था कि कहीं जरीना डर न जाए। "अगर जरीना ने मेरे आने की बात अपने घरवालों को बता दी, तो?" मनवीर के मन में कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। उसे तो जरीना के सख्त स्वभाव का भी पता था।

    डर था कि कहीं जरीना को उसका इस तरह घर में आना बुरा न लगे। कहीं अब तक की सारी मेहनत बेकार न हो जाए। अब तक जरीना के दिल में जो थोड़ा-बहुत प्यार जगाया था, कहीं वह सब मिट न जाए। लेकिन जरीना का चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने आ जाता था। बार-बार मनवीर के कदम जरीना के घर की ओर बढ़ने को बेताब हो जाते। मगर अगले ही पल मन में डर भी पैदा हो जाता। इसी कशमकश में उलझा मनवीर काफी देर तक वहीं खड़ा रहा। कभी हिम्मत करके दो कदम जरीना के घर की ओर बढ़ता, तो कभी डर के मारे दो कदम पीछे हट जाता।

    अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, और पीछे मुड़ने के लिए दिल के ज़ज़्बात इज़ाजत नहीं दे रहे थे। मनवीर के दिल पर जरीना के इश्क़ का इतना नशा चढ़ने लगा था कि वह जरीना को एक नज़र देखकर ही खुश हो जाना चाहता था। लेकिन जरीना के घर का दरवाज़ा भी बंद था। अपने ख्यालों से बाहर निकलकर जरीना को एक नज़र देखने के लिए पल-पल तड़पते मनवीर के लिए जरीना की एक झलक खुदा के दीदार जैसी थी। उसकी नज़रें जैसे जरीना की एक झलक देखने के लिए ही ज़िंदा थीं। "करूँ तो क्या करूँ? कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस किसी न किसी बहाने जरीना को देखना चाहता था।"

    लेकिन मनवीर को जरीना के स्वभाव का भी पता था। एक बार तो वह जरीना के घर के दरवाज़े तक भी चला गया था, लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न कर सका। जरीना के दिल में भले ही अब मनवीर के लिए कुछ था, लेकिन उसे यह सब कभी पसंद नहीं था। मनवीर अभी भी वहीं खड़ा अपने विचारों में उलझा हुआ था। गली में दूर से किसी के आने की आहट सुनाई देने लगी। लेकिन मनवीर जरीना को देखे बिना वापस कैसे जा सकता था?

    चाहकर भी उसे चाह न सके,
    मंज़िल से बहुत करीब थी,
    मगर फिर भी उसे पा न सके।
    ग़म इतने ज़्यादा थे ज़िंदगी की लकीरों में,
    चाहकर भी हम मुस्कुरा न सके।

  • 5. Romantic love story - Chapter 5

    Words: 789

    Estimated Reading Time: 5 min

    लेकिन क्या करे? जरीना कहीं नज़र नहीं आ रही थी, और गली में किसी के आने की पदचापें और नज़दीक आ रही थीं। दिल चाहता था कि जरीना के घर चला जाए, लेकिन यह मुमकिन भी तो नहीं था। इतना करीब आकर जरीना को देखे बिना वापस चले जाना मनवीर को अच्छा नहीं लग रहा था। जरीना के घर के सामने एक ढहा हुआ मकान पड़ा था। वहाँ ईंटों का ऊँचा ढेर लगा था—ईंटें, रोड़े, कचरा, सब कुछ था। देखने में जैसे झाड़ी-सा बना पड़ा था। मनवीर ने हिम्मत करके उस ईंटों के ढेर पर चढ़ गया, जहाँ से जरीना का घर साफ़ दिखता था।

    वह ढेर पर तो चढ़ गया, लेकिन जरीना कहीं नज़र नहीं आई। उसने जरीना के घर के अंदर गौर से देखा, लेकिन वह कहीं दिखी ही नहीं। उधर, गली में पदचापें और नज़दीक आ रही थीं। मनवीर बेचैनी में जरीना को देखने के लिए और ऊँचा खड़े होने की कोशिश कर रहा था, लेकिन जरीना का दीदार किसी तरह नहीं हो रहा था। जैसे ही कोई गली में नज़दीक आया, मनवीर उसी ढेर के पीछे छिप गया। वहाँ घास-फूस बहुत था, और मनवीर उसमें छिप गया। जैसे ही वह शख्स गली से गुज़रा, मनवीर फिर से उसी ईंटों के ढेर पर खड़ा हो गया।

    कुछ देर तक वह वहीं खड़ा जरीना के दीदार के लिए तरसता रहा। डर भी था कि कहीं कोई देख न ले, लेकिन दिल में जरीना को देखने का दर्द भी था। उसे देखे बिना वापस जाना भी नहीं चाहता था। कुछ देर तक वह टकटकी लगाए जरीना के घर की ओर देखता रहा। काफी देर बाद जरीना बाथरूम से नहाकर बाहर निकली। मनवीर की नज़रें उस पर टिक गईं। जरीना के दीदार को तरसती आँखों को जैसे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई थी।

    जरीना मनवीर को अब और भी खूबसूरत लग रही थी। उसकी काली घटाओं-सी जुल्फें, गोरा-गोरा रंग, सुडौल शरीर—मनवीर के लिए जैसे जिंदगी जीने का मकसद बन गए थे। जब जरीना धीरे-धीरे नाजुक कदमों से चलती, तो मनवीर को वह और भी खूबसूरत लगती। जरीना की खिलती जवानी ने मनवीर को और भी तड़पने पर मजबूर कर दिया था। मनवीर बस उसे ही देखे जा रहा था। जरीना के गोरे रंग पर काला सूट उसकी जवानी को और भी खूबसूरत बना रहा था। मनवीर का दिल चाहता था कि जल्दी से जरीना के पास चला जाए और अपने दिल की सारी बात उसे बता दे। उसे देखते-देखते मनवीर उसके प्यार के गहरे ख़्वाबों में डूब गया। उसे ऐसा लगने लगा जैसे जरीना सचमुच उसके पास खड़ी हो।

    काफी देर तक वह ईंटों पर खड़ा जरीना के प्यार के सपने देखता रहा। अचानक उसका पैर थोड़ा फिसला, और खुद को बचाते हुए वह नीचे आ गया। आस-पास जरीना को ढूँढने लगा, लेकिन वहाँ घास-फूस के सिवा कुछ नहीं था। फिर से देखने के लिए वह ढेर पर चढ़ा, लेकिन जरीना आँगन में कहीं नहीं थी। मन ही मन जरीना के बारे में सोचता हुआ वह अपने घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में भी जरीना के बारे में ही सोचता रहा। उसकी काली जुल्फें, गोरा रंग—सब कुछ मनवीर का चैन छीन चुके थे। दिन-रात उसे अब जरीना के ही सपने आते थे।

    वह बहाने से जरीना के घर के चक्कर लगाता, लेकिन हर बार उसका दीदार नसीब नहीं होता। फिर भी दिल में उसे देखने की आग और तेज हो रही थी। "करे तो क्या करे?" "जरीना के घर कैसे जाए?" वह अब स्कूल भी तो नहीं आ रही थी। "देखे तो कैसे देखे?"

    जरीना की सबसे पक्की सहेली स्वीप थी। मनवीर को पता था कि स्वीप ही उसे जरीना से मिलाने में मदद कर सकती है। मनवीर और स्वीप के घर पास-पास थे। दोनों परिवारों में अच्छा मेल-जोल था। एक-दूसरे के घर आना-जाना भी था। स्वीप भी मनवीर के घर आती-जाती थी। एक दिन जब स्वीप मनवीर के घर जा रही थी, तो हवेली के बाहर बने कमरे के पास मनवीर ने उसे रोक लिया। उसने स्वीप से जरीना से एक बार मिलवाने की मिन्नतें शुरू कर दीं। स्वीप भोली थी, और मनवीर की बातों ने उसका दिल पिघला दिया। स्वीप ने जरीना से एक बार बात करने के लिए हामी भर दी।

    मनवीर ने स्वीप के हाथ जरीना को संदेश भेजा—"बस एक बार बात करनी है।" जरीना ने मिलने से मना करना चाहा, लेकिन स्वीप ने उसे मनवीर से एक बार मिलने के लिए मना लिया। जरीना ने गुरुद्वारे और मस्जिद के रास्ते में पड़ी पुरानी कुटिया के पास मिलने की हामी भर दी, लेकिन उसने कहा कि "वह सिर्फ़ दूर से ही बात करेगी।" स्वीप ने जाकर मनवीर को यह बताया। उसने यह भी कहा कि बड़ी मुश्किल से जरीना को मिलने के लिए मनाया है, इसलिए वह ध्यान रखे कि कुछ ऐसा न करे जिससे उनकी दोस्ती में फ़र्क पड़े।

  • 6. Romantic love story - Chapter 6

    Words: 632

    Estimated Reading Time: 4 min

    कविता अनुवाद (हिंदी):

    तेरी एक दीद के लिए तरसते हुए नैनों की प्यास बुझा दे,
    मीठा-सा सपना बनकर, कभी सामने आ जा,
    हम कई सदियों से प्यासे हैं इश्क की राहों में,
    मीठे-मीठे बोलों से कभी प्यास बुझा दे।


    मनवीर ने स्वीप को भरोसा दिलाया था कि वह जरीना से सिर्फ़ दूर से ही बात करेगा। स्वीप ने जरीना को मिलने से तो मना कर दिया था, लेकिन उसका दिल बहुत घबरा रहा था। उसे मनवीर की बातों पर यकीन तो था, लेकिन फिर भी डर था कि कहीं मनवीर जरीना के साथ कुछ गलत न कर दे। स्वीप ने मनवीर को साफ़-साफ़ कह दिया था कि अगर उसने जरीना के साथ कोई गलत हरकत की, तो इसका नतीजा बहुत बुरा होगा। मनवीर ने फिर से भरोसा दिलाया था कि वह जरीना से दूर से ही बात करेगा और उसके करीब नहीं जाएगा।


    फिर भी स्वीप को जरीना की बहुत फिक्र थी। उसने जरीना से कहा था कि वह पुरानी कुटिया तक उसके साथ जाएगी।

    जरीना: "नहीं, मैं अकेले ही जाऊँगी।"

    स्वीप: "यार, तू समझ, मैं तुझे अकेले नहीं जाने दूँगी।"

    जरीना: "वह कोई भूत थोड़े ही है, जिससे मैं डरूँ।"

    स्वीप: "वह बात नहीं है, यार।"

    जरीना: "पहले भी तो बात होती थी। मैं आज सब कुछ साफ़-साफ़ कह दूँगी। इस रास्ते पर चलने का कोई फायदा नहीं।"

    स्वीप: "मैं जानती हूँ तेरा गुस्सा। मुझे पता है, तू वहाँ जाकर मनवीर से लड़ाई-झगड़ा करेगी।"

    जरीना: "यार, तू समझा कर, प्लीज। मैं सब कुछ खुद संभाल लूँगी।"

    स्वीप: "तू मानने वाली तो है नहीं, यार।"

    जरीना: "नहीं, मैं खुद ही समझा दूँगी। जो नया-नया आशिकी का जिन्न चढ़ा है उसका, आज सारा उतार कर आऊँगी। फिर देख, यहाँ तो क्या, अपनी हवेली में भी नज़र नहीं आएगा।"

    स्वीप: "इसीलिए कह रही हूँ, मुझे साथ ले चल। मुझे पता है तेरा गुस्सा।"

    जरीना: "ऐसे मत डर। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी।"

    स्वीप: "डर लगता है, पता नहीं तू क्या-क्या बोल देगी।"

    जरीना: "मैं क्या बोलूँगी? बस इतना समझाऊँगी कि वह ऐसे अपना टाइम बर्बाद न करे।"

    स्वीप: "पक्का? बस यही कहेगी?"

    जरीना: "हाँ बाबा, हाँ। बस इतना ही कहूँगी।"

    स्वीप: "मुझे फिर भी डर लग रहा है।"

    जरीना: "क्यों?"

    स्वीप: "कहीं गुस्से में कुछ उल्टा-सीधा न बोल दे।"

    जरीना: "नहीं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगी।"

    स्वीप: "चल, ठीक है फिर। अपना ख्याल रखना।"


    यह कहकर स्वीप अपने घर चली गई थी। जरीना भी घर के कामों में लग गई थी। उधर, मनवीर बेसब्री से जरीना का इंतज़ार कर रहा था।


    उस दिन जरीना के घर में कोई नहीं था, इसलिए सारा काम उसे अकेले ही करना पड़ा था। मनवीर से किया वादा भी उसे याद नहीं रहा था। जरीना की माँ भी देर से घर आई थी, जिसके कारण जरीना उस दिन गुरुद्वारे भी नहीं जा सकी थी।


    मनवीर जरीना से सामने खड़े होकर बात करने के लिए बेचैन था और उसके आने का इंतज़ार कर रहा था। स्वीप भी बेचैन थी कि जरीना और मनवीर की क्या बात होगी। क्या जरीना गई होगी? अगर गई होगी, तो कहीं कोई बात ज़्यादा न बिगड़ जाए। स्वीप बार-बार जरीना को देखने की कोशिश करती थी, लेकिन उसकी माँ हर बार कोई न कोई काम देकर उसे रोक देती थी।


    उधर, जरीना की माँ देर से आई थी, जिसके कारण सारा काम जरीना को अकेले करना पड़ा था। कामों में उलझी जरीना गुरुद्वारे भी नहीं जा सकी थी। मनवीर से मिलने का वादा भी कामों के बीच भूल गई थी।


    मनवीर अब भी जरीना का इंतज़ार कर रहा था। भले ही काफ़ी अंधेरा हो चुका था, फिर भी वह वहीं खड़ा इंतज़ार करता रहा। जरीना की एक झलक के लिए तड़पते मनवीर की आँखों के सामने उसका खूबसूरत चेहरा ही घूम रहा था। इंतज़ार करने के सिवा वह और कर भी क्या सकता था।


    रात काफ़ी गहरी हो चुकी थी। मनवीर को भी पता था कि अब जरीना नहीं आएगी, लेकिन फिर भी वह वहीं रुककर उसका इंतज़ार करता रहा।

  • 7. Romantic love story - Chapter 7

    Words: 594

    Estimated Reading Time: 4 min

    क्या फर्क पड़ता है, हम जिंदा रहें या मर जाएँ? तेरी ज़िंदगी में हमारी कोई जगह थोड़ी है। अक्सर लोग पैरों तले कुचल देते हैं सुहाने फूलों को, फिर भी महक बाँटते रहते हैं; कोई गुलाब थोड़ी है।

    लेकिन जरीना काम-काज निपटाकर अपने कमरे में चली गई। जब तक उसे मनवीर से मिलने का वादा याद आया, तब तक रात बहुत गहरी हो चुकी थी। रात को वह बाहर कैसे जा सकती थी? जरीना ने सोचा कि अब तक तो मनवीर भी वहाँ से चला गया होगा। शायद उसे समझ आ गया होगा कि हमारे रास्ते अलग-अलग हैं। यही सोचते-सोचते जरीना भी सपनों की गहरी दुनिया में खो गई।

    मनवीर अभी भी वहीं खड़ा जरीना के आने का इंतज़ार कर रहा था। शायद यही इश्क होता है, जिसका इंतज़ार कभी खत्म नहीं होता।

    सुबह-सुबह जरीना की माँ ने उसे जगा दिया। उठते ही जरीना पढ़ाई करने लगी। माँ ने उसके लिए चाय बना दी। अचानक जरीना ने मनवीर की गाड़ी की आवाज़ सुनी। खिड़की खोलकर देखा तो दूर धूल उड़ती दिखी। उसने सोचा, शायद किसी काम से शहर जा रहा होगा। मनवीर से किया वादा उसे पूरी तरह भूल चुका था। जरीना फिर से अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई।

    पढ़ाई के बाद वह माँ के साथ घर के कामों में जुट गई। तभी स्वीप उसके घर आ गई।

    "रात को नींद नहीं आई? क्या हुआ, इतनी सुबह कैसे आ गई?" जरीना ने पूछा।

    जरीना की माँ भी वहीं पास में थी।

    "मुझे तेरी किताब चाहिए।" स्वीप ने कहा।

    "वो तो ठीक है, लेकिन इतनी सुबह-सुबह?" जरीना ने कहा।

    स्वीप ने जरीना की बाँह पकड़ी और उसे कमरे में ले गई।

    "बता न, क्या हुआ? क्या बात है?" जरीना ने पूछा।

    "कल शाम मनवीर से मिलने गई थी?" स्वीप ने पूछा।

    "क्या हुआ, बता तो सही!" जरीना ने कहा।

    "गई थी या नहीं?" स्वीप ने फिर पूछा।

    "अम्मी देर से आईं, तो काम-काज में ध्यान ही भूल गया। लेकिन बता तो कुछ!" जरीना ने कहा।

    "मैं गुरुद्वारे से आई हूँ। वहाँ कुछ बुज़ुर्गों को मनवीर के बारे में बात करते सुना।" स्वीप ने बताया।

    "क्या कह रहे थे?" जरीना ने पूछा।

    "मनवीर को सुबह उसके परिवार वाले पुरानी कुटिया के पास से ले गए। कहते हैं, बेहोश-सी हालत में था।" स्वीप ने बताया।

    "वो सारी रात वहीं खड़ा इंतज़ार करता रहा?" जरीना ने पूछा।

    "तुझे जाना चाहिए था, यार।" स्वीप ने कहा।

    "कामों में ध्यान ही नहीं रहा। मनवीर अब कैसा है?" जरीना ने पूछा।

    "शायद शहर के अस्पताल ले गए।" स्वीप ने बताया।

    "यार, कोई ऐसा करता है? सारी रात इंतज़ार क्यों करता रहा? और कुछ पता चला?" जरीना ने पूछा।

    "बस इतना ही पता चला। मैंने सब बता दिया।" स्वीप ने कहा।

    "जपलीन के घर चलते हैं। उसका घर हवेली के पास है। उनका हवेली में आना-जाना भी अच्छा है।" जरीना ने सुझाव दिया।

    "तेरी अम्मी नहीं मानेंगी। तू रुक, मैं अकेले जाकर आती हूँ। दोनों पर शक हो जाएगा। मैं तुझे फ़ोन पर सब बता दूँगी या किताब वापस करने के बहाने आ जाऊँगी।" स्वीप ने कहा।

    "जल्दी बता, घबराहट हो रही है।" जरीना ने कहा।

    "ठीक है, मैं चलती हूँ।" स्वीप ने कहा।

    स्वीप जरीना से किताब लेकर चली गई। जरीना कमरे में बैठी बेचैन हो रही थी। मनवीर के ख्याल उसके दिमाग में घूम रहे थे। पता नहीं वह कैसा होगा? क्या हुआ होगा? जरीना कभी खिड़की से बाहर देखती, तो कभी दीवार पर लगी पीरों की फ़ोटो के सामने अरदास करने लगती।

    जरीना मनवीर के ख्यालों में इतनी गहरे डूब गई कि उसे अपनी माँ की आवाज़ भी सुनाई नहीं दी। जब माँ ने पास आकर उसे हिलाया, तो जरीना एकदम उठ खड़ी हुई।

    "क्या हुआ? आज तबीयत खराब है?" माँ ने पूछा।


    धीरे-धीरे तेरा एहसास-सा होने लगा है, ठंडी-ठंडी हवाओं में तेरा दीदार-सा होने लगा है। न जाने क्यों तेरी इतनी फ़िक्र-सी होने लगी है, लगता है तुझसे हल्का-हल्का प्यार-सा होने लगा है।

  • 8. Romantic love story - Chapter 8

    Words: 504

    Estimated Reading Time: 4 min

    न जाने दिल को क्यों तेरी फिक्र इतनी होने लगी थी। कभी मिट्टी डाल-डाल हम भी इश्क की राहों पर चलते थे, पता ही न लगा कब इतने करीब आ गए। तुझसे दूर होने के लिए हम भी बहाने ढूंढते थे।


    जरीना ने कहा, "नहीं अम्मी, बस थोड़ा सिरदर्द था।"

    जरीना की मां ने कहा, "आराम कर ले, सुबह बहुत जल्दी उठा दिया था। आज हवा भी ठंडी चल रही है। खिड़की बंद कर ले।"

    यह कहकर जरीना की मां बाहर चली गई।

    जरीना का मन बहुत बेचैन था। वह जल्दी से जल्दी मनवीर के बारे में जानना चाहती थी, लेकिन स्वीप ने अभी तक कोई खबर नहीं दी थी। जरीना ने अपनी मां को बताकर स्वीप के घर जाने का फैसला किया।

    असल में, जरीना को यह नहीं पता था कि वह किन रास्तों पर चलने लगी है। जरीना इतनी खूबसूरत थी कि एक बार तो खुद जरीना को देखकर उसका आश्‍चर्य हो जाए। ऊपर से चढ़ती जवानी, अंग-अंग में भरा जवानी का जोश, जरीना को भी सोने नहीं देता था। ऊपर से मनवीर के ख्याल जरीना को और जवान करने लगे थे। दिन-रात...

    जरीना ने स्वीप की मां से स्वीप के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि स्वीप जपलीन के घर गई है और जल्दी ही वापस आएगी। उन्होंने कहा, "मंजे पर बैठ, मैं चाय बनाती हूँ।"

    जरीना ने कहा, "नहीं आंटी जी, मैं चलती हूँ। फिर आ जाऊँगी।"

    स्वीप की मां ने जरीना को मंजे पर बिठा लिया। तभी स्वीप जपलीन के घर से लौट आई। उसने जरीना को अपने कमरे में ले गई।


    जरीना ने कहा, "अब मनवीर कैसा है? क्या हुआ, कुछ पता चला?"

    जरीना ने एक ही सांस में सारे सवाल कर डाले।


    स्वीप ने कहा, "सांस तो ले ले। सब ठीक है। ज़्यादा कुछ नहीं, बस ठंड की वजह से ऐसा हुआ। जपलीन की मां मनवीर के घर जाकर आई थी।"

    जरीना ने पूछा, "और कुछ पता चला?"

    स्वीप ने कहा, "नहीं, और कुछ नहीं। बस इतना ही पता चला। तू फ़िक्र मत कर, सब ठीक है। शाम तक वह वापस आ जाएगा।"

    जरीना ने कहा, "ठीक है, अगर कुछ और पता चले तो मुझे बता देना। अब मैं चलती हूँ।"

    स्वीप ने कहा, "ठीक है, बता दूँगी।"

    जरीना स्वीप के घर से अपने घर लौट आई। वह अभी भी फिक्र में थी। मनवीर के बारे में सोच-सोचकर उसका मन बेचैन हो रहा था। कभी वह खिड़की से बाहर देखती, तो कभी हाथ जोड़कर मनवीर के लिए दुआएँ मांगने लगती।

    दोपहर में स्वीप जरीना के घर आई और बताया कि मनवीर बिल्कुल ठीक है और घर आ गया है। जरीना ने हाथ जोड़कर रब का शुक्राना किया।

    जरीना ने सुबह से कुछ नहीं खाया था। स्वीप ने रसोई में जाकर जरीना के लिए खाना बनाया।


    स्वीप ने कहा, "शाम को मैं तेरे घर आऊँगी। गुरुद्वारे चलेंगे।"

    जरीना ने कहा, "जल्दी आ जाना।"

    स्वीप ने कहा, "ठीक है।"

    स्वीप अपने घर चली गई। जरीना शाम होने का इंतज़ार करने लगी।


    एक-एक पल अब तो बहुत मुश्किल से गुज़रता है, तेरी आँखों में हँसना भी जिंद को सूली पर टाँगता है। तू गुरविंदर को चाहे लाख बार भूल जाए, कुड़े, पर दिल चंद्रा तेरे हास्यों के लिए हर रोज़ दुआएँ माँगता है।

  • 9. Romantic love story - Chapter 9

    Words: 644

    Estimated Reading Time: 4 min

    जैसे ही स्वीप और जपलीन जरीना के घर आईं, वे उसे साथ लेकर गुरुद्वारे गईं। गुरुद्वारे के बाद जब वे मस्जिद की ओर जा रही थीं, तो रास्ते में पुरानी कुटिया के पास मनवीर खड़ा जरीना का इंतज़ार कर रहा था। अचानक मनवीर को सामने देखकर जपलीन बोली:

    "इतनी जल्दी ठीक भी हो गया! आराम कर ले, कहीं फिर से तबीयत न बिगड़ जाए।"

    मनवीर: "तुम्हारी दुआएं कब काम आएंगी? अगर तबीयत बिगड़ भी गई, तो क्या है? फिर दुआएं कर देना, ठीक हो जाऊंगा।"

    स्वीप: "हर बार दुआएं काम नहीं आतीं।"

    जरीना: "सारी रात यहां खड़ा रहा, जा नहीं सकता था?"

    मनवीर: "ऐसे कैसे चला जाता?"

    जरीना: "अगर कुछ हो जाता, तो?"

    मनवीर: "ज्यादा से ज्यादा मौत ही आती, फिर क्या था, आ जाने देते।"

    जरीना: "तू तो जवां ही पागल है।"

    स्वीप (जरीना और जपलीन से): "जल्दी चलो, कोई देख लेगा।"

    जरीना और मनवीर ने आंखों-आंखों में ही बहुत कुछ कह दिया। और भी बहुत कुछ कहना था। स्वीप ने जरीना का हाथ पकड़ा और मस्जिद की ओर चल पड़ी। जरीना के दिल में अब मनवीर के लिए सम्मान और प्यार की भावना जाग चुकी थी। वह बार-बार पीछे मुड़कर मनवीर को देख रही थी, जैसे उसका दिल मनवीर से और बातें करना चाहता हो। मनवीर का दिल भी बहुत खुश था। आज पहली बार उसने जरीना को आंखों से मुस्कुराते हुए देखा था।

    स्वीप (जरीना से): "जरीना, तूने मनवीर को कुछ कहा क्यों नहीं? ऐसे क्यों परेशान करता है हमें?"

    जरीना चुप थी, जैसे किसी गहरे ख्यालों में खोई हो। स्वीप ने जोर से बोला, तो जरीना एकदम बोली:

    "क्या हुआ?"

    जपलीन (जरीना से): "कहां खो गई?"

    स्वीप: "कल तो बड़ी शेरनी बन रही थी। ये कहूंगी, वो कहूंगी। आज एक बोल तक नहीं निकला। क्या हुआ आज?"

    जरीना: "कुछ नहीं। जल्दी चलो, कितना टाइम हो गया। अम्मी राह देख रही होगी।"

    जल्दी-जल्दी चलते हुए जब वे फिर कुटिया के पास पहुंचीं, तो मनवीर अभी भी वहीं खड़ा था।

    जपलीन: "घर चला जा, मनवीर। ऐसे कोई फायदा नहीं।"

    यह कहकर वे आगे बढ़ गईं।

    जब भी जरीना और स्वीप गुरुद्वारे से मस्जिद जातीं, मनवीर हर रोज कुटिया के पास खड़ा होता। वह स्वीप के जरिए जरीना से बात करने की कोशिश करता। जरीना के दिल में भी मनवीर के लिए प्यार की भावना जागने लगी थी। वह उसे देखकर खुश हो जाती थी। भले ही दोनों ने कभी मुंह से एक-दूसरे से कुछ न कहा हो, लेकिन आंखों से बहुत कुछ कह जाते थे।

    कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। जरीना को भी अब मनवीर का आना अच्छा लगने लगा था। उसे दिन-रात मनवीर के ख्याल आने लगे। मनवीर तो पहले से ही जरीना के लिए जान देने को तैयार था। आंखों से शुरू हुई उनकी कहानी फोन के मैसेज तक पहुँच गई थी। सारी रात उनकी बातें होतीं, लेकिन दिल फिर भी नहीं भरता था। शाम को कुटिया के पास एक-दूसरे का दीदार हो जाता, लेकिन फिर भी दिल को चैन न आता।

    एक-दूसरे के ख्यालों में खोए रहना, छोटी-छोटी बातें एक-दूसरे को बताना—जैसे जरीना और मनवीर के बीच कोई बात छुपी न रहती थी। धीरे-धीरे मनवीर जरीना को मिलने के लिए कहने लगा, लेकिन जरीना हर बार टाल देती थी। मनवीर हमेशा कहता कि वह उसके बिना नहीं रह सकता। वह जरीना से शादी की बात भी करता, लेकिन जरीना अभी इसके लिए तैयार नहीं थी। वह कहती, "अभी और टाइम चाहिए।"

    जरीना मनवीर से यह भी कहती कि उसके घरवाले कैसे मानेंगे। "हमारा धर्म, जात, सब अलग-अलग है।" मनवीर हर बार कहता, "हवेली का इकलौता बेटा हूँ, मानेंगे कैसे नहीं? मानना तो पड़ेगा ही। अगर न भी माने, तो भी हमारी शादी तो होकर रहेगी।"

    जरीना अपने परिवार के बारे में कहती कि उन्हें भी मुश्किल से मनाना पड़ेगा, लेकिन वे मान जाएंगे। "मैं धीरे-धीरे अम्मी को मना लूंगी।"

  • 10. Ret ke mahal - Chapter 10

    Words: 839

    Estimated Reading Time: 6 min

    तंग करती है तुझसे मिलने की तड़प,
    कभी पास-पास आ जा, परछाई बनकर,
    अपने नाम के साथ जोड़ ले नाम मेरा,
    सारी उम्र के लिए रहूँ तेरा सरनामा बनकर।


    इसी तरह जरीना और मनवीर की इश्क की कहानी अपने पूरे जोबन पर पहुँच गई थी। दोनों को एक-दूसरे के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। हर पल वे एक-दूसरे के ख्यालों में ही खोए रहते थे। लेकिन अभी तक जरीना और मनवीर ने सिर्फ आँखों से एक-दूसरे के दिल को पढ़ा था। वे बस दूर से ही एक-दूसरे को निहारते थे।


    मनवीर का दिल जरीना से मिलने को बेताब था। वह जी भरकर उसे देखना चाहता था। लेकिन जरीना हर बार उसे टाल देती थी। जरीना पर भी मनवीर के इश्क का रंग गहरा होने लगा था। खिलती जवानी में जरीना पहले ही बहुत खूबसूरत थी, लेकिन इश्क के रंग ने उसे और भी हसीन और जवान बना दिया था। उसका रंग-रूप अब परियों को भी मात देने लगा था। उसकी नशीली आँखें और कातिलाना बन गई थीं, जो दिलों को छलनी कर देती थीं। उसकी मृगनयनी चाल और पतली कमर के चर्चे पूरे गाँव के चौबारों में छा गए थे। जो कोई उसे एक बार देख लेता, बस देखता ही रह जाता। जरीना जिसे एक नज़र देख लेता, उसकी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेती थी।


    जरीना का सुडौल शरीर, आग लगाती जवानी, लाल-सुहा रंग, और कमर को हिलाकर चलना—बस कहर ही ढाता था। मनवीर भी उसे पहली बार देखकर ही दिल-जान उसके नाम कर बैठा था। मनवीर अच्छे घर का लड़का था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। उसने जरीना को अपने प्यार के जाल में फँसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।


    मनवीर हर हाल में जरीना को ही पाना चाहता था। या यूँ कहें कि जरीना की खूबसूरती ने उसे अपने हुस्न के जाल में फँसा लिया था। मनवीर जरीना के सिवा कुछ और सोच ही नहीं पाता था। वह उसे हाथों से छूकर देखना चाहता था। उसके मलमल जैसे गोरे जिस्म और नरम अंगों को महसूस करना चाहता था। लेकिन जब भी वह जरीना से अकेले मिलने की बात कहता, जरीना हर बार मना कर देती।


    मनवीर अपने सच्चे प्यार की दुहाई देता, लेकिन जरीना ने अभी तक उसे अपने पास नहीं आने दिया था। यह बात मनवीर को हमेशा खलती थी। ऊपर से पूरे गाँव में कान से कान तक यह बात फैलने लगी थी कि जरीना का मनवीर के साथ चक्कर है। इस बात से मनवीर के दोस्त उसे ताने मारते थे कि, "अगली ने अभी तक तुझे हाथ तक नहीं लगाने दिया। प्यार स्वाह का करती है तुझसे।"


    मनवीर दोस्तों के रोज़ के तानों और मिहणों से भी तंग आ चुका था। ऊपर से जरीना भी उसकी तड़प का फायदा उठाने लगी थी। मनवीर आँखों से शुरू हुए इश्क को थोड़ा आगे ले जाना चाहता था, लेकिन जरीना ने अभी उस हद तक नहीं सोचा था।


    जरीना के लिए आँखों और रूहों का प्यार ही सच्चा इश्क था। या यूँ कहें कि जरीना में अभी तक काम-वासना नहीं जागी थी। लेकिन मनवीर को तो जरीना का सुडौल शरीर और लटकती जवानी ही हर पल नज़र आती थी। रात को जरीना के ख्वाब और दिन में उसकी याद—मनवीर को दो पल भी चैन से नहीं रहने देते थे।


    मनवीर ने स्वीप के ज़रिए जरीना को मिलने का संदेश भेजा। लेकिन इस बार भी जरीना ने मिलने से मना कर दिया। एक तरफ मनवीर के दोस्त उसे ताने मार रहे थे, दूसरी तरफ जरीना मिलने को तैयार नहीं थी। गुस्से में आकर मनवीर ने स्वीप से कहा, "अगर जरीना मुझसे नहीं मिलती, तो मैं उसके घर चला जाऊँगा।"


    मनवीर ने जरीना को एक बार मिलने के लिए मजबूर कर ही दिया था। जरीना से एक बार मिलने से मनवीर के दिल को सुकून मिल जाता और वह दोस्तों के तानों से भी आजाद हो जाता।


    इस बार जरीना भी मजबूर हो गई थी। एक तो वह मनवीर को नाराज़ नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उसने मनवीर से दिल और रूह से प्यार किया था। दूसरा, उसे डर था कि अगर उसने मिलने से मना किया, तो कहीं मनवीर सचमुच उसके घर न आ जाए। अगर ऐसा हुआ, तो जरीना के लिए बहुत मुश्किल हो जाती। जरीना ने मिलने तो हाँमी भर दी, लेकिन अपनी कुछ शर्तों के साथ।


    जरीना ने कहा कि वह स्वीप को साथ लाएगी। "बस दो ही बातें करूँगी, वह भी दूर से।"


    मनवीर के लिए जरीना का इतना दीदार ही बहुत था। उसकी आँखों का बस जरीना को देखना ही जिंदगी का एकमात्र मकसद बन गया था। उसे हर पल बस जरीना ही नज़र आती थी। जरीना के दिल में भी मनवीर से मिलने की तड़प जाग उठी थी। दूर रहकर एक-एक मिनट गुजारना दोनों के लिए बहुत मुश्किल हो गया था। हर पल बस एक-दूसरे के ख्याल, नई दुनिया के सपने, और मिलने की तड़प—इसके सिवा कुछ और नहीं था।


    जिंद कल भी तेरी थी, सजना, जिंद आज भी तेरी है,
    आँखों से मुझे रोशन करते हैं,
    हमारी जिंदगी बहुत अंधेरी है।
    मौत से पहले तुझे भूल नहीं पाऊँगा,
    आखिरी साँस तक वफ़ा निभानी है।

  • 11. Ret ke mahal - Chapter 11

    Words: 1158

    Estimated Reading Time: 7 min

    इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं। ज़रीना कुछ शर्तों के साथ स्वीप को साथ लेकर मनवीर से मिलने चल पड़ी। ज़रीना नहीं जाना चाहती थी, लेकिन स्वीप ने ही एक बार मनवीर से मिलने के लिए ज़रीना को मनाया था। इसलिए ज़रीना स्वीप को ही साथ लेकर गई थी। गुरुद्वारे जाकर ज़रीना और स्वीप मस्जिद की ओर चल पड़ीं।

    जहाँ मनवीर ने ज़रीना को मिलने के लिए बुलाया था। ज़रीना के दिल की धड़कन भी धीरे-धीरे तेज़ होने लगी थी। क्योंकि ज़रीना के लिए यह सब करना, ऐसे मिलना गलत ही था। लेकिन स्वीप के कहने पर ज़रीना ने आखिरी बार मिलने के लिए कहकर जाना स्वीकार कर लिया था। मनवीर भी बेसब्री से ज़रीना का इंतज़ार कर रहा था। ज़रीना के अंग-अंग की खुशबू मनवीर को हवाओं में से आती प्रतीत होने लगती थी।

    ज़रीना और स्वीप का दिल बहुत तेज़-तेज़ धड़क रहा था। ज़रीना और मनवीर की आज पहली मुलाकात थी। स्वीप और ज़रीना को डर भी था कि अगर किसी ने देख लिया तो क्या कहेंगी। लेकिन ज़रीना को मनवीर का ख्याल भी था कि अगर वह नहीं मिली तो वह सारी रात यहीं खड़ा रहेगा। ज़रीना को मनवीर ने अपने सच्चे प्यार का अहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

    ज़रीना के दिल में मनवीर के प्यार ने एक ऐसी चिंगारी जला दी थी, जो ज़रीना को बार-बार मनवीर की ओर खींच रही थी। भारी कदमों से चलती हुईं स्वीप और ज़रीना कुटिया के पास पहुँच गईं। कुटिया के पास पहुँचकर आगे-पीछे देखा तो दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आया। स्वीप और ज़रीना डरते-डरते कुटिया के अंदर चली गईं। स्वीप और ज़रीना ने एक-दूसरे का हाथ कसकर पकड़ रखा था।

    अंदर जाकर देखा तो मनवीर भी कहीं नज़र नहीं आया। ज़रीना को भी बेसब्री और बेचैनी हो रही थी मनवीर से मिलने की। जब ज़रीना को मनवीर कहीं नज़र नहीं आया तो बेचैन नज़रों से आसपास देखा, चारों ओर नज़र घुमाई। लेकिन मनवीर कहीं भी नज़र नहीं आया। थोड़ा और आगे की ओर गईं।

    एक तो अंधेरा था, ऊपर से दोनों ही डर रही थीं। अंधेरे में डरती हुई स्वीप ने ज़रीना को वापस चलने के लिए कहा। ज़रीना भी स्वीप के कहे पर वापस मुड़ने लगी। जब ज़रीना वापस मुड़ी तो मनवीर ने अचानक आकर ज़रीना को बाँह से पकड़कर रोक लिया। अचानक बाँह पकड़ने की वजह से ज़रीना भी बहुत डर गई थी। ज़रीना के डर के मारे चीख निकलने लगी थी। लेकिन मनवीर ने एक हाथ से ज़रीना का मुँह बंद कर लिया था।

    छोटी सी बैटरी के उजाले से अपने चेहरे पर रोशनी डाली। ज़रीना ने अचानक पीछे मुड़कर देखा तो मनवीर ज़रीना के साथ ही खड़ा था। मनवीर को देखकर स्वीप ने ज़रीना को मनवीर के पास ही छोड़कर कुटिया के बाहर जाने के लिए ज़रीना से कहा। लेकिन ज़रीना ने स्वीप का हाथ ही नहीं छोड़ा। मनवीर की ओर देखकर स्वीप ने ज़रीना से अपना हाथ ज़बरदस्ती छुड़वा लिया और कुटिया से बाहर जाकर इंतज़ार करने लगी।

    मनवीर को देखकर ज़रीना के दिल को चाव भी चढ़ रहा था, लेकिन अचानक ही मनवीर ने ज़रीना को पीछे से पकड़ा था, इससे ज़रीना बहुत डर भी गई थी। ज़रीना ने अपनी बाँह मनवीर से छुड़वानी चाही, लेकिन मनवीर ने ज़रीना को और भी अपनी ओर खींच लिया। ज़रीना के दिल की धड़कन तेज़-तेज़ चलने लगी थी। गोरा-गोरा रंग और भी लाल-लाल हो गया था। ज़रीना के लाल-लाल होंठ पानी से निकली मछली की तरह फड़फड़ाने लगे थे।

    ज़रीना के गोरे और मुलायम अंगों को पसीना भी आने लग गया था। ज़रीना को अपने शरीर से आग निकलती महसूस हो रही थी। मनवीर भी ज़रीना के इतना करीब खड़ा था कि ज़रीना की तेज़-तेज़ धड़क रही छाती की धड़कन मनवीर को सुनाई दे रही थी। ज़रीना के हाथ तो जैसे बर्फ में लगे हों, एक जगह पर ही जम चुके थे। ज़रीना के इतना करीब कभी कोई नहीं आया था, इसलिए ज़रीना डरी भी हुई थी। और मनवीर को दूर हटने के लिए कहना चाहती थी। लेकिन ज़रीना कुछ बोलती उससे पहले ही मनवीर ने ज़रीना के होंठों पर अपनी उँगली रखकर ज़रीना को चुप करा दिया था।

    मनवीर के लिए आज का पल बहुत ही खास था। क्योंकि मनवीर को आज वह मिल गया था जिसका उसे बड़ी शिद्दत और बेसब्री से इंतज़ार था। मनवीर को ज़रीना का गठीला शरीर और चढ़ती जवानी ने इस हद तक अपने काबू में कर लिया था कि ज़रीना के बिना मनवीर को और कुछ नज़र ही नहीं आता था।

    मनवीर तो ज़रीना को दूर से देखकर ही खुश हो लेता था, लेकिन आज तो ज़रीना मनवीर के इतना करीब आ गई थी कि ज़रीना के दिल की धड़कन भी मनवीर को सुनाई दे रही थी। ज़रीना के अंग-अंग की खुशबू मनवीर को मदहोश करने लगी थी। मनवीर कितनी ही देर खड़ा ज़रीना की आँखों में देखता रहा। जैसे मनवीर को ज़रीना की आँखों से ही पूरी कायनात नज़र आने लगी थी।

    ज़रीना की खूबसूरत और कातिल आँखें जैसे मनवीर को कत्ल करने के लिए अपने जाल में फँसा रही थीं। ज़रीना को कुछ बोलने से रोकते वक्त जैसे ही मनवीर का हाथ ज़रीना के लाल-लाल और मोटे होंठों पर लगा था, ज़रीना भी हाथों के छूने से ही तड़प उठी थी। जैसे किसी ने कोई गर्म चीज़ ज़रीना के नर्म-नर्म अंगों पर रख दी हो।

    ज़रीना के माथे से पसीना बहकर ज़रीना की गोरी गालों पर आ गया था। ज़रीना का तो अंग-अंग काँपने लगा था। दिल की तेज़-तेज़ धड़कन जैसे पूरे आसमानों में फैल रही थी। मनवीर थोड़ा और ज़रीना के करीब होने लगा। जैसे ही मनवीर ने अपने पैर ज़रीना की ओर बढ़ाए, ज़रीना डरकर और भी पीछे हट गई।

    ज़रीना को अब मनवीर से डर भी लगने लग गया था। अपने दोनों हाथों को एक-दूसरे में पकड़कर मसलने लगी थी। मन ही मन भगवान को भी याद कर रही थी कि हे भगवान, आज बचा ले। ज़रीना मनवीर से इतना ज़्यादा डर गई थी कि दिल में और ही तरह के सवाल उठने लग गए थे। कभी-कभी सोचती कि यहाँ आकर गलती ही की है। मनवीर मुझे यहाँ से सही-सलामत नहीं जाने देगा। मेरे साथ कुछ न कुछ ज़बरदस्ती ज़रूर करेगा।

    कभी मनवीर की आँखों में देखती, जो कब से ज़रीना की आँखों में ही देख रही थीं। कभी चोरी-चोरी आँखों से मनवीर के पीछे देखती कि कहीं कोई और तो नहीं आया मनवीर के साथ। डर के मारे ज़रीना के अंग-अंग से पसीना निकल-निकलकर ज़रीना के पूरे कपड़े गीले हो चुके थे। कभी-कभी ज़रीना अपनी सहेली स्वीप को मन में ही गालियाँ निकालने लग जाती, क्योंकि स्वीप ने ही ज़रीना को मिलने के लिए मजबूर किया था।

    मनवीर थोड़ा और ज़रीना की ओर बढ़ा। डरती हुई ज़रीना और पीछे हट गई और पीछे जाकर दीवार से जा लगी। जैसे-जैसे मनवीर ज़रीना के और करीब आ रहा था, वैसे-वैसे ज़रीना के दिल की धड़कन तेज़ और तेज़ होने लग गई थी। ज़रीना की आँखें बंद हो गईं। मनवीर ने ज़रीना की गोरी गर्दन पर अपने हाथ रख दिए। ज़रीना के पूरे शरीर से पसीना आने लग गया।

    ,,,,,,,,जारी,,,,,,,,

  • 12. Ret ke mahal - Chapter 12

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    ज़रीना का दिल तेज़-तेज़ धड़कने लगा था। मन में डर भी था। मनवीर के हाथ छूते ही उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। डर के मारे काँपती हुई, वह दीवार में समा जाने को तैयार हो गई थी। काँपते होंठों से मनवीर को रोकना मुश्किल हो रहा था। वह मनवीर को रोकना चाहती थी, पर इतनी हिम्मत नहीं बची थी। मनवीर ने ज़रीना की गोरी, साफ़ गर्दन पर उँगली फेरी; इससे ज़रीना और काँपने लगी। ज़रीना का गोरा, दूध-सा रंग मनवीर के स्पर्श से लाल हो गया था। सारा शरीर बिना ठंड के ही काँपने लगा था। धीरे-धीरे मनवीर ने अपना दूसरा हाथ भी ज़रीना की गर्दन पर रख दिया। जैसे-जैसे मनवीर के हाथ ज़रीना के शरीर को छू रहे थे, वैसे-वैसे ज़रीना का डर बढ़ रहा था। मनवीर ने ज़रीना के डर का थोड़ा फायदा उठाने लगा। उसने ज़रीना के कानों के पास अपना हाथ ले जाकर, धीरे-धीरे ज़ुल्फ़ों तक पहुँचाने की कोशिश की। लेकिन बाहर खड़ी ज़रीना की सहेली स्वीप ने धीमी आवाज़ में कुछ कहा। ज़रीना ने आवाज़ सुनी, पर चुप रही। स्वीप की आवाज़ ने मनवीर के हाथ रोक दिए। ज़रीना का दिल पहले से भी तेज़ धड़कने लगा। उसके गोरे माथे पर पसीना आ चुका था। वह जाना चाहती थी, लेकिन मनवीर ने दोनों तरफ़ हाथ रखकर उसे वहीं रोक लिया था। मनवीर का दिल चाहता था कि ज़रीना के गोरे, कोमल शरीर को अपनी बाहों में भर ले और प्यार के गहरे समंदर में डूबकर उसके इश्क़ का स्वाद ले। लेकिन ज़रीना अभी उस मुक़ाम पर नहीं पहुँची थी, जहाँ मनवीर उसे बेपरवाह होकर छू सके।


    मनवीर जानता था कि अगर ज़रीना के मुलायम, गोरे शरीर को पाना है, तो और इंतज़ार करना होगा। वह किसी भी हाल में ज़रीना को नाराज़ नहीं कर सकता था। क्योंकि अगर ज़रीना को उसकी कोई बात बुरी लग जाती, तो वह दोबारा मिलने नहीं आती। इसलिए मनवीर चाहकर भी ज़रीना की ख़ूबसूरती और क़ातिल अदा को अपना नहीं बना सकता था। वह हर हाल में ज़रीना को खुश करके ही विदा करना चाहता था। उसने अपनी जेब से ज़रीना के लिए लाई मोतियों की माला निकाली और उसकी गोरी, साफ़ गर्दन में डाल दी। ज़रीना की आँखें पहले से बंद थीं। जैसे ही उसे अपने शरीर पर कुछ महसूस हुआ, उसने तुरंत आँखें खोलीं और मनवीर की दी हुई माला को देखने लगी। ज़रीना की गोरी गर्दन के इर्द-गिर्द रात के अंधेरे में मोतियों की माला जुगनू की तरह चमक रही थी। मनवीर की दी हुई माला को देखकर ज़रीना की खुशी का ठिकाना न रहा। जो ज़रीना एक पल पहले डरी और सहमी खड़ी थी, वह अचानक खुश हो गई। बार-बार मनवीर की दी माला को अपने हाथों से छूकर देखती रही। मनवीर को भी इस बात की खुशी थी कि ज़रीना को उसका दिया तोहफ़ा पसंद आया। ज़रीना की गोरी छाती पर पड़ी मोतियों की माला उसकी ख़ूबसूरती को और बढ़ा रही थी।


    "ज़रीना, तुझे पसंद आई मेरी दी छोटी-सी निशानी?" मनवीर ने धीमी आवाज़ में पूछा।

    "हाँ मनवीर, बहुत सुंदर है। कहाँ से लाया तू इसे? पक्का मस्सिया वाले मेले से लाया होगा, है ना?" ज़रीना ने उत्साह से कहा।

    "बता ना ज़रीना, कैसी लगी तुझे ये माला?" मनवीर ने फिर पूछा।

    "बता तो दिया मनवीर, बहुत सुंदर है। फिर बार-बार क्यों पूछ रहा है?" ज़रीना ने थोड़ी नाराज़गी से कहा।


    "इसलिए ज़रीना, क्योंकि मुझे डर था कि अगर ये माला तेरे गोरे रंग से मेल नहीं खाई, तो... मैंने तो बहुत प्यार से तेरे लिए लाई थी, ज़रीना।" मनवीर ने समझाते हुए कहा।

    "मनवीर, जब मैंने तुझे पहली बार देखा था, मुझे लगा था कि तू एक नंबर का घमंडी और पैसे का रौब दिखाने वाला है। लेकिन आज सचमुच बहुत प्यारा लग रहा है, मनवीर।" ज़रीना ने कहा।

    "मेरे पास तेरे लिए और भी कुछ है, मेरी प्यारी ज़रीना।" मनवीर ने कहा।

    "और क्या है मेरे लिए? लगता है आज तो जट्ट ने सारी जायदाद बेचकर मेरे पर लुटाने के लिए ले आया!" ज़रीना हँसते हुए बोली।


    मनवीर ने अपनी जेब से सोने के कंगन निकाले, जिन पर ज़रीना और मनवीर का नाम लिखा था। कंगन देखकर ज़रीना और खुश हो गई। मनवीर को लग रहा था कि ज़रीना खुशी से झूमकर उसकी बाहों में आ जाएगी। ज़रीना की साँप-सी लहराती गोरी चोटी उसकी गोरी छाती पर मेल खा रही थी। उसकी आग उगलती जवानी सूट से बाहर निकलने को बेताब थी। ज़रीना मनवीर के हाथ में पड़े कंगनों को छू-छूकर देखने लगी। मनवीर कंगन ज़रीना की कलाइयों में डालना चाहता था। उसने ज़रीना का नरम-नरम हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन ज़रीना ने तुरंत अपना हाथ पीछे खींच लिया।


    "क्या हुआ मेरी जान ज़रीना? लगता है मेरा ये छोटा-सा तोहफ़ा मेरी जान को पसंद नहीं आया।" मनवीर ने पूछा।

    "मनवीर, मुझे ये जान-जान मत कह। और ना ही मैं ये कंगन लूँगी।" ज़रीना ने कहा।

    "क्या हुआ ज़रीना, ऐसे क्यों कह रही है? मैंने कोई ग़लती की क्या?" मनवीर ने पूछा।


    "मुझे नहीं पता मनवीर... बस मैं तुझसे कुछ नहीं ले सकती।" ज़रीना ने कहा।

    ज़रीना अपनी गर्दन में डाली माला भी उतारने लगी। मनवीर ने ज़रीना का हाथ पकड़कर माला उतारने से रोक दिया।

    "ज़रीना, बता तो सही, अचानक तुझे क्या हो गया? किस बात का गुस्सा कर रही है अब?" मनवीर ने पूछा।


    "मनवीर, तू जिन रास्तों पर मुझे ले जाना चाहता है, वो रास्ते बिल्कुल ग़लत हैं। मैं कभी भी तेरी बातों में आकर उन रास्तों पर नहीं जाऊँगी। तेरे लाए तोहफ़े बहुत सुंदर हैं, लेकिन मनवीर, मैं इन्हें नहीं ले सकती।" ज़रीना ने स्पष्ट रूप से कहा।

    "लेकिन क्यों ज़रीना?" मनवीर ने पूछा।

    "मनवीर, समझा कर यार... हमारे बीच बहुत फ़र्क है। प्लीज़ मनवीर, इस बात को समझ।" ज़रीना ने विनती की।

    "मुझे इन सब का कुछ नहीं पता ज़रीना। मुझे बस इतना पता है कि मैं तुझसे दिल-जान से बहुत प्यार करता हूँ। आख़िरी साँस तक करता रहूँगा।" मनवीर ने कहा।

  • 13. Ret ke mahal - Chapter 13

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    तेरे सुर्ख होंठों से निकला हर बोल मुझे कबूल है,
    तेरी आँखों के सिवा कहीं और देखना फ़िज़ूल है मुझे।
    काली ज़ुल्फ़ों के नीचे रख ले मुझे कैद करके,
    तेरी दीवानगी में तड़प-तड़प कर मर जाना कबूल है मुझे।


    ज़रीना: मैं कोई हूर-परी नहीं हूँ। क्यों पागल हुआ फिरता है मेरे पीछे? ज़रा ठंडे दिमाग से सोचकर देख, मनवीर। ये हुस्न-जवानी एक ना एक दिन उड़ ही जाती है।

    मनवीर: मुझे नहीं पता ज़रीना, मैं तेरे लिए क्या हूँ। लेकिन सच जान, ज़रीना, तू मेरे दिल की धड़कन है। मैंने तेरी रूह से मोहब्बत की है। तेरी आँखों से मोहब्बत की है। तेरे साथ हँसती-हँसती हवाओं से मोहब्बत की है। मेरे दिल, मेरे दिमाग, मेरी साँसों में सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़रीना ही बसती है। ये मत सोच, ज़रीना, कि मैं तुझे ये तोहफ़े देकर खरीदना चाहता था। मैंने तो अपने खून के एक-एक कतरे पर तेरा नाम लिखवाया है।

    (मनवीर ने अपनी शर्ट की बाँह हटाई और अपनी बाँह पर ब्लेड से लिखा ज़रीना का नाम उसे दिखाया।)

    ज़रीना, मनवीर की बाँह पर ब्लेड के निशान और खून देखकर डर गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने मनवीर की बाँह को जोर से अपने चेहरे से लगा लिया।

    ज़रीना: मनवीर, तूने ये क्यों किया? तुझे दर्द क्यों नहीं हुआ, चन्द्रिया?

    मनवीर: मेरा दर्द कुछ भी नहीं है तेरी मुस्कुराहट के सामने, तेरे एक दीदार के सामने।

    ज़रीना: मनवीर, इन राहों पर दर्द के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।

    मनवीर: मुझे हर दर्द कबूल है, ज़रीना। मुझे बस मेरी ज़रीना चाहिए। हँसती-बस्ती ज़रीना, जिसका भोला-भाला और ख़ूबसूरत चेहरा मैं हर रोज़ देख सकूँ।

    (ज़रीना मनवीर के थोड़ा और क़रीब आ गई। लेकिन उसका दिल अभी भी तेज़-तेज़ धड़क रहा था। ज़रीना की काली ज़ुल्फ़ें उड़-उड़कर मनवीर के चेहरे को छू रही थीं। ज़रीना की लपटें मारती जवानी मनवीर को मदहोश कर रही थी। जब ज़रीना अपने लाल-लाल होंठों से कुछ कहती, तो उसके हिलते होंठ मनवीर को और भी ख़ूबसूरत लगते थे।)

    कुछ देर तक मनवीर ज़रीना को टकटकी बाँधे देखता रहा। ज़रीना ने मनवीर की बाँह अपने हाथों में पकड़ी हुई थी। अपने लाल होंठों से हवा फूँककर मनवीर के दर्द को कम करने की कोशिश कर रही थी। ज़रीना थोड़ा झुककर खड़ी थी और मनवीर की बाँह पर फूँक मारकर दर्द कम करने की कोशिश कर रही थी। ज़रीना के झुकने से उसका शरीर मनवीर को और ज़्यादा नज़र आने लगा। ज़रीना के नर्म अंगों को देखकर मनवीर की नज़रें ललचाने लगीं।

    ज़रीना की गोरी, नरम छाती जवानी के पूरे जोश में थी। झुकने की वजह से उसका सूट धीरे-धीरे कंधों से नीचे खिसकने लगा। मनवीर को ज़रीना की छाती और ज़्यादा दिखने लगी। रस से भरी ज़रीना की छाती आधी से ज़्यादा नज़र आने लगी। ज़रीना का अपने सूट की तरफ़ कोई ध्यान नहीं था, वह तो बस मनवीर की बाँह पर फूँक मार रही थी। लेकिन मनवीर ज़रीना के नर्म अंगों का दीदार कर रहा था। मनवीर ने कभी सोचा भी नहीं था कि पहली मुलाक़ात में ज़रीना के ऐसे दीदार हो जाएँगे। ना ही उसे ज़रीना की इतनी ख़ूबसूरत जवानी का अंदाज़ा था।

    मनवीर की हालत शिकारी कुत्ते जैसी हो गई थी। शिकार उसके सामने खड़ा था। ज़रीना की खुली जवानी देखकर मनवीर के मुँह में पानी आ गया था। एक-दूसरे से टकराते ज़रीना के नर्म अंग मनवीर को लगता जैसे उसके साथ शरारतें कर रहे हों। जैसे ही ज़रीना थोड़ा हिलती, उसके अंग भी एक-दूसरे से शरारतें करते दिखते। ज़रीना की गर्म जवानी देखकर मनवीर को जो ख़ुशी हो रही थी, उसका कोई ठिकाना नहीं था। मनवीर की नज़रें ज़रीना के शरारती, नर्म अंगों पर टिक गई थीं। मनवीर ने धीरे-धीरे अपना दूसरा हाथ भी ज़रीना के शरीर से लगा लिया। ज़रीना के लाल होंठों से निकलती ठंडी हवा मनवीर को अंदर तक हिला रही थी। ज़रीना की हिलती छाती मनवीर के जज़्बातों को काबू से बाहर कर रही थी।


    नीली आँखें मुटियार की,
    उसके अमृत जैसे बोल।
    जब देखूँ चेहरा, उसका खिलता ज़ुल्फ़ों से,
    ऐसा लगता है जैसे रब हो मेरे पास।
    चाँदी का कंगन गोरी बाहों में,
    लेता दिल की परतें खोल।


    मनवीर का दिल बहुत चाह रहा था कि ज़रीना को गले लगाए, लेकिन बाहर स्वीप भी खड़ी थी। मनवीर को लगता था कि ज़रीना को तो वह किसी तरह मना लेगा, लेकिन स्वीप शोर मचा देगी। मन के मन में मनवीर को स्वीप से नफ़रत होने लगी थी। लेकिन वह ज़रीना को भी तो नाराज़ नहीं कर सकता था। मनवीर कब तक ज़रीना की हिलती छाती को देखता रहा। उसने अपने जज़्बातों को काबू में किया और ज़रीना के कंधों से खिसके सूट को अपने दूसरे हाथ से ठीक करने लगा। अचानक मनवीर का हाथ कंधे पर लगते ही ज़रीना भी डर गई। लेकिन जैसे ही मनवीर ने दोनों कंधों पर सूट ठीक किया, ज़रीना को हौसला हुआ कि मनवीर उसके साथ कुछ ग़लत नहीं करेगा।

    काफ़ी हिम्मत जुटाने के बाद मनवीर का मुँह कुछ बोलने के लिए खुला।

    मनवीर: "ये मोहब्बत है मेरी, ज़रीना। मैं नहीं कहता कि तू कभी ज़बरदस्ती मेरी हो। लेकिन मैंने तेरी रूह से मोहब्बत की है। आख़िरी साँस तक करता रहूँगा। हमारे धर्म, जात, रीति-रिवाज अलग हो सकते हैं, लेकिन मेरी मोहब्बत हमेशा अमर रहेगी। मैं मर सकता हूँ, लेकिन मेरी आत्मा हमेशा तुझसे इतना ही नहीं, बल्कि इससे भी ज़्यादा प्यार करती रहेगी। ज़रीना, मैंने तेरी रूह से मोहब्बत की है। तेरी आँखों से नशा किया है। तेरी ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू प्यारी लगती है। तुझसे हँसकर आने वाली हवाएँ अच्छी लगती हैं। सच जान, ज़रीना, तुझे याद किए बिना एक भी साँस नहीं आती मुझे।" मनवीर ने अपने दिल की धड़कने की आवाज जरीना को सुनते हुए उसे इमोशनल करने के लहजे से बताया।

    ज़रीना मनवीर की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी, लेकिन चुप थी।


    मेरी नज़रें नहीं हटतीं तेरे चेहरे से,
    तुझे फ़िक्र है मेरे किरदार की।
    तेरी पवित्र रूह अड़िए,
    मुझे ललक है तेरे दीदार की।
    तेरा सरनाम अमृत का रास्ता लगे,
    बात करनी तेरे पैरों से प्यार की।


    इतनी चाहत रखी है दिल में तेरे लिए,
    कि मरकर भी तुझे भूलना नहीं।
    रेत बन सकता हूँ तेरे क़दमों की,
    पर भेद इश्क़ का किसी और के सामने खुलना नहीं।

  • 14. Ret ke mahal - Chapter 14

    Words: 1182

    Estimated Reading Time: 8 min

    मनवीर की बांह से अभी भी थोड़ा-थोड़ा खून निकल रहा था। ज़रीना की आँखों में यह सब देखकर आँसू आ गए।

    ज़रीना कभी मनवीर की तरफ़ देखती, तो कभी मनवीर की बांह से निकल रहे खून की बूंदों की तरफ़, जो अब ज़मीन पर गिरने लगी थीं। ज़रीना ने अपनी चुन्नी का एक सिरा फाड़कर मनवीर की बांह पर बांधना शुरू किया। मनवीर ने गहरे-गहरे ब्लेड मारकर ज़रीना का नाम लिखा था। ज़रीना ने मनवीर की बांह पकड़ी और अपने चेहरे से लगा ली। मनवीर की बांह से निकल रहे खून पर उसने फिर से अपने होंठ रख दिए। मनवीर के दिए तोहफ़ों से ज़्यादा, मनवीर के इस तरह करने ने ज़रीना के दिल को छू लिया था।

    बाहर खड़ी स्वीप को बेचैनी हो रही थी कि कहीं बाहर से कोई और इधर न आ जाए। स्वीप ने ज़रीना को धीमी आवाज़ में पुकारा, "ज़रीना..." लेकिन इश्क के समंदर में तैर रही ज़रीना को स्वीप की आवाज़ कहाँ सुनाई देनी थी। स्वीप ने फिर से थोड़ी ज़ोर से आवाज़ लगाई, "ज़रीना!" स्वीप की आवाज़ सुनकर ज़रीना एकदम से जैसे कांपकर अपने ख्यालों से बाहर आई। मनवीर भी ज़रीना के नरम शरीर पर हाथ फेरते-फेरते हट गया। स्वीप की आवाज़ ने मनवीर और ज़रीना को एक बार फिर से अलग कर दिया। लेकिन अब ज़रीना के चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कान थी। आँखों में कातिलाना अदा थी, जैसे मनवीर के सामने उठी हों। दिल में अधूरी चाहत थी।

    मनवीर ने ज़रीना के लिए लाई मोतियों की माला तो पहले ही ज़रीना के गले में डाल दी थी। मनवीर ने ज़रीना के लिए लाए कंगन भी ज़रीना के हाथ में थमा दिए, लेकिन ज़रीना लेना नहीं चाहती थी।

    ज़रीना कुछ बोलने लगी, तभी मनवीर ने ज़रीना के होंठों पर हाथ रखकर उसे चुप करा दिया। ज़रीना के दिल की धड़कन पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गई थी। मनवीर के हाथ ज़रीना के नरम शरीर को छू रहे थे। ज़रीना मनवीर के इतने करीब थी कि उसे मनवीर के दिल की धड़कन भी सुनाई दे रही थी। ज़रीना का पूरा शरीर कांप रहा था। ज़रीना की ज़ुबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।

    ज़रीना का शरीर मनवीर के हाथों की छुअन से ठंडा हो गया था। ज़रीना के गले में अपनी मोहब्बत की निशानी माला और हाथों में कंगन डालकर, मनवीर ने ज़रीना के सिर पर उसकी चुन्नी रखकर पीछे हटकर खड़ा हो गया। ज़रीना ने माला को छुआ तो उसे एक नई दुनिया का अहसास हुआ। मनवीर ज़रीना के चेहरे से एक पल के लिए भी अपनी नज़र नहीं हटाना चाहता था। ज़रीना ने मुश्किल से अपनी ज़ुबान से कुछ शब्द बोलने की कोशिश की। लेकिन मनवीर तो ज़रीना को इतने करीब देखकर मदहोश-सा हो गया था।

    स्वीप कुटिया के बाहर खड़ी ज़रीना को जल्दी चलने के लिए कह रही थी। ज़रीना जाने के लिए मुड़ी, तभी मनवीर ने ज़रीना के हाथ को कसकर पकड़ लिया।

    "मैं तेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, ज़रीना। तू मेरी ज़िंदगी बन गई है। कभी एक पल के लिए भी मेरी आँखों से ओझल न होना।"

    "मनवीर, मुझे लगता है हम जल्दबाज़ी कर रहे हैं। ज़िंदगी के फैसले इतनी जल्दी कैसे हो सकते हैं? मुझे सोचने का मौका तो दे, पागल।"

    "ज़रीना, मेरे दिल में हर साँस के साथ तू धड़कती है। अगर तू मुझे न मिली, तो मैं यहीं तड़प-तड़पकर अपनी जान दे दूँगा।"

    "ऐसे क्यों कहता है, मनवीर? रब मेरी उम्र भी तुझे दे दे।"

    "मैं उस ज़िंदगी का क्या करूँ, जिसमें तू न हो।"

    "यार, मनवीर, मैं इतनी जल्दी कोई फैसला कैसे ले लूँ? तेरी बात और है। हमारी जात, हमारा धर्म, सब कुछ अलग-अलग है। न तेरे घरवाले, न मेरे घरवाले हमारे रिश्ते को कभी मंज़ूर करेंगे।"

    "मुझे बस तेरा साथ चाहिए, ज़रीना। अगर तू न मिली, तो मैं यहीं तड़प-तड़पकर अपनी..."

    ज़रीना ने मनवीर की बात बीच में काटकर उसके होंठों पर अपनी उंगली रख दी।

    "ऐसा कुछ नहीं सोचना। मैं भी अब तेरे बिना नहीं जी सकती, मनवीर। मैं भी तुझसे बहुत प्यार करने लगी हूँ।"

    यह कहते हुए ज़रीना की आँखों से फिर आँसू निकलने लगे। ज़रीना ने मनवीर को अपनी बाहों में कस लिया। मनवीर ने भी ज़रीना को अपनी बाहों में भर लिया। ज़रीना और मनवीर एक मिनट के लिए अपनी नई दुनिया में खो गए।

    स्वीप को बाहर से किसी के आने की आहट सुनाई दी, तो उसने ज़रीना को पुकारा। ज़रीना ने एकदम से मनवीर को खुद से दूर कर दिया। स्वीप अंदर आई और ज़रीना की बांह पकड़कर बाहर ले गई।

    ज़रीना ने मनवीर को प्यार की भूखी नज़रों से पीछे मुड़कर देखा। मनवीर और ज़रीना दोनों ही कुछ पल और साथ रहना चाहते थे, लेकिन स्वीप ने ज़रीना को बांह पकड़कर जबरदस्ती मनवीर से दूर ले गई। मनवीर और ज़रीना की यह पहली मुलाक़ात थी, फिर भी दोनों के बीच गहरी साँझ बन गई थी।

    ज़रीना आई तो मनवीर को समझाने थी, लेकिन मनवीर के इश्क़ ने ज़रीना के जज़्बातों को अपने काबू में कर लिया था। कभी ज़रीना मनवीर से दूर भागती थी, लेकिन अब वह मनवीर के प्यार में इतनी खो चुकी थी कि मनवीर के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।

    स्वीप ने गुस्से में ज़रीना से कहा, "तू अब मनवीर के प्यार में पागल हो चुकी है। सिर्फ़ दूर से बात करने की बात थी, फिर तू इतने करीब क्या करने गई? ज़रीना, यह सब ठीक नहीं है। मनवीर तो पहले ही पागल था, अब उसने तुझे भी पागल कर दिया।"

    स्वीप गुस्से में ज़रीना को बोल रही थी, लेकिन ज़रीना के चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कान थी। ज़रीना की आँखों के सामने अभी भी मनवीर ही दिख रहा था।

    ज़रीना मनवीर की दी हुई पहली प्यार की निशानी को बार-बार देख रही थी। उसे एक नई दुनिया का अहसास हो रहा था, जो आज से पहले कभी नहीं हुआ था।

    "ज़रीना, तू सुन रही है?"

    "हाँ बाबा, सब सुन रही हूँ। ऐसे क्यों गुस्सा करती है, मेरी जान?"

    "ज़रीना, तू ठीक तो है?"

    "हाँ, मुझे क्या होना? मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

    "यार, तू बहुत भोली है। जो ज़रीना कल तक मनवीर से नफ़रत करती थी, आज उसी के प्यार में पागल होने लगी है।"

    "मनवीर वैसा नहीं है, मेरी जान। तुझे पता है, मनवीर ने अपनी बांह पर मेरा नाम लिखा था। उसने तो मुझे सचमुच गुलाम बना लिया पहली मुलाक़ात में ही। और तो और, मेरे बिना वह एक पल भी नहीं रह सकता।"

    "आँखें बंद करके भरोसा मत कर, ज़रीना। अक्ल से काम ले। क्यों माँ-बाप की इज़्ज़त मिट्टी में मिलाने लगी है?"

    "गुस्सा क्यों करती है, यार? मैंने कुछ गलत तो नहीं किया।"

    "अगर मैं तेरी बांह पकड़कर न ले आती, तो वह भी कर ही लेना था। मेरी तो अक्ल मारी गई थी, जो उस झूठे पागल की बातों में आकर तुझे मिलाने ले आई। ज़रीना, अगर तू मेरी सच्ची सहेली है, तो वादा कर कि आज के बाद तू मनवीर से नहीं मिलेगी।"

    "ठीक है, नहीं मिलती। खुश?"

    "पक्का ना, मुकरना नहीं।"

    "हाँ मेरी जान, पक्का, आज के बाद नहीं मिलती। अब जल्दी चल, बहुत लेट हो गए।"

    जारी...

  • 15. Ret ke mahal - Chapter 15

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    यदि मसला सुलझ सकता था, तो बिगाड़ा ही क्यों? जब तुझे पता था मैं तेरे बिना कुछ नहीं, फिर इतना सँवारा ही क्यों?


    स्वीप ज़रीना को समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन ज़रीना स्वीप की किसी भी बात को दिल से नहीं सुन रही थी। वह बस ऊपर-ऊपर से स्वीप की हाँ में हाँ मिला रही थी। स्वीप को अब लगने लगा था कि ज़रीना को मनवीर से मिलवाकर उसने बहुत बड़ी गलती कर दी थी।


    स्वीप बार-बार ज़रीना से गले में पहनी माला उतारने के लिए कह रही थी। ज़रीना ने कंगन तो उतारकर अपनी चुनरी में छुपा लिया था, क्योंकि गले की माला को उसने सूट के अंदर कर लिया था, जिसका किसी को पता नहीं चलना था। लेकिन कंगन छुपाना मुश्किल था। इसलिए ज़रीना ने अपनी बांह से कंगन उतारकर अपनी चुनरी के पल्लू में छुपा लिया। स्वीप ज़रीना से गले की माला भी उतारने के लिए कह रही थी, लेकिन ज़रीना ने उसे सूट के अंदर छुपा लिया था। बातें करते-करते स्वीप और ज़रीना, ज़रीना के घर के पास पहुँच गईं। स्वीप का घर भी पास में ही था, लेकिन पहले ज़रीना का घर आता था। घर के गेट पर पहुँचकर भी स्वीप ज़रीना को मनवीर से दूर रहने के लिए कहती रही। ज़रीना को घर छोड़कर स्वीप अपने घर की ओर चली गई।


    ज़रीना घर के अंदर आई। धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर जाने लगी ताकि मनवीर का दिया हुआ तोहफा संभालकर रख सके। अभी घर के अंदर थोड़ा ही आई थी कि रसोई में खड़ी ज़रीना की माँ की नज़र उस पर पड़ गई।
    "क्या हुआ ज़रीना, ऐसे छुप-छुपकर क्यों जा रही है?"


    ज़रीना: "कुछ नहीं मम्मी, मैं तो बस देख रही थी कि आपको पता चलता है कि नहीं।"


    ज़रीना की माँ: "अरे, हमें पता चलने को तू क्या आसमान से टपकी है? मुझे सब पता है, तू हर वक्त काम से जी चुराती रहती है। कभी अपनी माँ के साथ भी कुछ काम कर लिया कर। फिर तेरी सास मुझे ही ताने देगी कि कुछ सिखाया कि नहीं अपनी बेटी को।"


    ज़रीना रसोई में अपनी माँ के पास आ गई और पीछे से अपनी माँ को गले लगा लिया।
    ज़रीना: "अरे मम्मी जी, आप फिक्र न करें। मैं कहीं नहीं जा रही, आपको छोड़कर। मैं तो सारी उम्र अपनी मम्मी-पापा के पास ही रहूँगी।"


    ज़रीना की माँ: "लो, सुन लिया न जवाँ कमली! कहती है मैं नहीं जाऊँगी। अरे, मुझे बता, पहले भी किसी ने ऐसा नहीं कहा होगा।"


    ज़रीना: "मुझे नहीं पता मम्मी, बस मैं शादी नहीं करवाऊँगी। मैं तो सारी उम्र अपनी प्यारी मम्मी के पास ही रहूँगी।"


    ज़रीना की माँ: "जवाँ पागल है ये लड़की! चल, अब हाथ-पैर धो ले, खाना बनकर तैयार है। तेरे पापा भी बस आने वाले होंगे।"


    ज़रीना: "मम्मी, मैं तो पापा के आने पर ही खाना खाऊँगी।"


    ज़रीना की माँ: "ठीक है, वो भी बस आने वाले हैं।"


    ज़रीना की माँ का ध्यान अपने कामों में चला गया। ज़रीना अपने कमरे में जाने लगी।


    कमरे में जाकर जल्दी से, लेकिन धीरे-धीरे बिना आवाज़ किए अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया। मनवीर के दिए कंगन, जो चुनरी के पल्लू में छुपाए थे, निकालकर फिर से देखने लगी। कंगनों को देखकर ज़रीना के चेहरे पर अपने आप एक प्यारी-सी मुस्कुराहट आ गई। ज़रीना ने मनवीर के दिए कंगन गले लगाकर अपनी छाती से लगा लिए।


    ज़रीना को एक ठंडक-सा अहसास होने लगा। उसके तड़पते दिल को एक शांति-सी मिल गई थी। सब कुछ सुंदर और सुखद लगने लगा था। ज़रीना को ऐसा लग रहा था जैसे उसने मनवीर को ही अपनी बाहों में गले लगा लिया हो। बाहर से खिड़की के रास्ते आ रही ठंडी हवा भी ज़रीना के दिल और जिस्म को गर्माहट और सुकून दे रही थी।


    मनवीर के ख्यालों में खोई ज़रीना को लग रहा था जैसे यह हवा मनवीर के साथ ही आई हो। आँखों में चमक, होंठों पर मनवीर का नाम, और छाती से लगे मनवीर के दिए कंगन—ज़रीना न जाने कब तक अपने ख्यालों में खोई एक ही जगह खड़ी रही। ज़रीना की माँ ने रसोई से ही ज़रीना को आवाज़ लगाई, तो ज़रीना एकदम अपने ख्यालों से बाहर आई। जल्दी से कंगनों को अलमारी में सारी किताबों के नीचे छुपाकर रख दिया। गले की माला को सूट के नीचे छुपाते हुए जल्दी से बाहर चली गई।


    दूसरी ओर, मनवीर ज़रीना के चले जाने के बाद भी वहीं खड़ा था। ज़रीना का गोरा चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार घूम रहा था। ज़रीना का उसे गले लगाना अभी भी मनवीर को सुकून दे रहा था। ज़रीना के कंधे पर सरका हुआ सूट तो मनवीर की बेचैनी को और बढ़ा रहा था। मन ही मन सोचने लगा कि ज़रीना को फिर से कैसे अपने पास बुलाऊँ, और वो अकेली आए। ऐसा क्या करूँ ज़रीना के लिए कि उसे मुझ पर खुद से भी ज्यादा यकीन हो जाए।


    अब किसी भी हाल में मनवीर ज़रीना को अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता था। ज़रीना के गोरे और आग उगलते जिस्म ने मनवीर की हालत पागलों जैसी कर दी थी। काफी देर तक वहीं खड़ा ज़रीना के बारे में सोचता रहा।


    ज़रीना भी अपने परिवार के साथ खाना खाकर अपने कमरे में आ गई। लेकिन एक पल के लिए भी उसके दिल से मनवीर का ख्याल नहीं जा रहा था। जो ज़रीना पहले मनवीर को देखना भी पसंद नहीं करती थी, वही ज़रीना अब मनवीर के प्यार में पल-पल तड़प रही थी। जरीना को भी ये एहसास होने लगा था के मनवीर उसके लिए किया है।


    जरीना को दिन रात मनवीर की तलब रहने लगी थी। कभी हँसने लगती कभी एक पल में ही उदास हो जाती। जरीना पूरी पूरी रात मनवीर के बारे में सोचती रहती। कभी तकिए को मनवीर समझ कर अपनी छाती से लगाती और जोर से घुट लेती। कभी आइने के सामने खड़ी होकर अपने आप को देखती रहती। जरीना अब और वो जवान होने लगी थी। उसके जिस्म की खुशबू और उसकी खूबसूरती दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।


    मैं जल जाऊँगा एक दिन चिता में,
    तुझे खबर भी नहीं होगी मेरी मौत की।
    रब से बढ़कर तुझे चाह बैठा,
    ज़िंदगी की रानी थी तू,
    अब कहानी बन जाएगी मेरी मौत की।

    जारी...

  • 16. Ret ke mahal - Chapter 16

    Words: 1114

    Estimated Reading Time: 7 min

    ज़रीना और मनवीर का इश्क़ एक नए मुकाम पर पहुँच गया था। ज़रीना मनवीर की एक झलक पाने को बेताब रहती थी और उससे शादी की बात भी करती रहती थी। मनवीर हमेशा कहता, "मैं जल्द ही घरवालों से बात करूँगा।"

    मनवीर का दिल ज़रीना से अकेले में मिलने को तड़पता था, लेकिन ज़रीना एक मुलाकात के बाद दोबारा मिलने को तैयार नहीं होती थी। मनवीर अपने सच्चे प्यार का वास्ता देता, पर ज़रीना का दिल अकेले होने से डरता था। आखिरकार, मनवीर की मिन्नतों और उसके प्यार के आगे ज़रीना मान गई और उससे मिलने को तैयार हो गई।

    लेकिन सिर्फ़ दो मिनट के लिए। वह भी केवल कुटिया में। स्वीप भी साथ आनी थी। मनवीर का दिल ज़रीना को पास से देखना चाहता था। "अकेले आ," मनवीर ने कहा, लेकिन ज़रीना नहीं मानी। मनवीर और क्या कर सकता था? उसे स्वीप को बर्दाश्त करना पड़ा। स्वीप को भी ज़रीना ने बड़ी मुश्किल से मनाया था साथ चलने के लिए।

    शाम को ज़रीना स्वीप को साथ लेकर पहले गुरुद्वारे गई, फिर मनवीर से मिलने कुटिया गई। ठंड का मौसम था, और आसमान में कोहरा छा गया था। कोई भी ठंड के डर से बाहर नहीं निकलता था। स्वीप और ज़रीना दबे पांव जल्दी-जल्दी कुटिया पहुँचीं। स्वीप बाहर ही रुक गई, और ज़रीना अकेली अंदर चली गई।

    थोड़ा अंदर मनवीर खड़ा ज़रीना का इंतज़ार कर रहा था। ज़रीना को देखते ही मनवीर ने उसे अपनी बाहों में भर लिया।

    ज़रीना को भी मनवीर की गोद की गर्माहट सुकून देने लगी। ज़रीना ने शॉल ओढ़ रखा था। मनवीर ने ज़रीना के शॉल की गठरी खोली और ख़ुद भी उसी शॉल के अंदर घुस गया। ज़रीना भी मनवीर के प्यार के लिए तड़प रही थी। उसने मनवीर को अपनी गर्म छाती से और ज़्यादा कसकर गले लगा लिया।

    मनवीर ज़रीना की काली ज़ुल्फ़ों में हाथ फेरने लगा। ज़रीना का गठीला शरीर और उसकी आग उगलती जवानी सूट के अंदर से ही मनवीर को गर्म सुकून दे रही थी। ज़रीना ने भी पागलपन में मनवीर को बहुत ज़ोर से गले लगाया। ज़रीना की नरम छाती मनवीर और ज़रीना के बीच से बाहर की ओर निकल रही थी, जैसे सूट से बाहर आने को बेताब हो।

    ज़रीना के अंग-अंग की ख़ुशबू मनवीर के जज़्बात को काबू से बाहर करने लगी थी। मनवीर तो ज़रीना को दूर से देखकर ही ख़ुश हो जाता था, लेकिन अब ज़रीना उसकी बाहों में थी। मनवीर धीरे-धीरे ज़रीना के नरम शरीर पर हाथ फेरने लगा। ज़रीना को भी मनवीर की बाहों में गर्म सुकून मिलने लगा था।

    ज़रीना के नरम और गर्म अंग मनवीर को मदहोश करने लगे। ज़रीना के कोमल और नशीले अंगों का नशा मनवीर को चढ़ने लगा। ज़रीना ने मनवीर को इतना कसकर गले लगाया कि दोनों के बीच हवा भी नहीं गुज़र सकती थी। मनवीर ने भी हिम्मत करके ज़रीना की ज़ुल्फ़ों में हाथ फेरना शुरू किया, फिर धीरे-धीरे उसके नरम शरीर पर भी। जैसे-जैसे मनवीर का हाथ ज़रीना के शरीर पर पड़ता, वैसे-वैसे ज़रीना को कंपकंपी छूटने लगती। ज़रीना का गोरा रंग और ज़्यादा ख़ूबसूरत होने लगा। उसकी जवानी अपने पूरे जोबन के नशे में डूब गई। ज़रीना का मखमली गोरा रंग गहरा और लाल होने लगा।

    धीरे-धीरे मनवीर ने ज़रीना को पीछे धकेलकर कच्ची दीवार के साथ सटा दिया। मनवीर ने एक झटके के साथ ज़रीना के और क़रीब जाकर उसे चिपक लिया। दोनों के दिलों की धड़कनें साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थीं।

    ज़रीना के काले लंबे बाल उड़कर बार-बार मनवीर के चेहरे को छूकर उसे मदहोश कर रहे थे। मनवीर ज़रीना को प्यार करना चाहता था, लेकिन दिल में डर भी था कि कहीं ज़रीना को बुरा न लग जाए। लेकिन अब तक उसे यह समझ आ चुका था कि ज़रीना के दिल में भी उसका प्यार बस चुका है।

    दीवार के साथ सटी ज़रीना को मनवीर ने अपनी बाहों में उठा लिया। ज़रीना ने भी अपनी बाहें मनवीर की गर्दन में डाल दीं। जो ज़रीना को मनवीर दूर से देखकर ख़ुश हो जाता था, आज वही ज़रीना उसकी बाहों में अपना सब कुछ हार चुकी थी। ज़रीना को यह भी याद नहीं रहा कि बाहर स्वीप खड़ी है।

    ज़रीना का अंग-अंग मनवीर की गोद में समा गया था। मनवीर ने एक हाथ ज़रीना के कंधों के पास और दूसरा हाथ उसके पीछे नीचे रखा हुआ था। ज़रीना का चेहरा मनवीर के चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। मनवीर के हाथ ज़रीना के साथ हल्की शरारत करने लगे। ज़रीना को भी मनवीर की शरारत अच्छी लगने लगी।

    ज़रीना का अंग-अंग नशे में डूबकर मनवीर के और क़रीब आने लगा। उसकी गोल-गोल टांगों से लेकर गोल छाती तक, ज़रीना ने सब कुछ मनवीर के साथ सटा दिया। अब बस एक चिंगारी की ज़रूरत थी कि ज़रीना का हुस्न बारूद बनकर भड़क उठे।

    मनवीर के साथ सटी ज़रीना अपनी कमर हिलाकर और ज़्यादा नशा बिखेर रही थी। मनवीर ने ज़रीना के इश्क़ का सुरूर देखकर अपने हाथ उसके नरम अंगों पर रखकर दबाने शुरू कर दिए। ज़रीना का सब्र अब टूटने लगा था। उसने मनवीर की गर्दन पर अपने लाल-लाल होंठ रख दिए।

    ज़रीना मनवीर से भी ज़्यादा तड़पने लगी थी। दोनों को भूल गया था कि बाहर स्वीप भी खड़ी है। मनवीर ज़रीना के लाल होंठों से प्यार का रस पीना चाहता था। ज़रीना इतनी खो चुकी थी कि मनवीर से ज़्यादा बेताबी उसे हो रही थी।

    ज़रीना का ऊपर लटका शॉल नीचे गिर चुका था। मनवीर ने अपना हाथ ज़रीना के सूट के नीचे डालकर उसके नरम शरीर पर फेरना शुरू कर दिया। ज़रीना मनवीर का हाथ रोकना चाहती थी, लेकिन रोक न सकी। मनवीर ने सूट के अंदर से ही ज़रीना के कोमल शरीर को टटोल लिया था। उसके हाथ ज़रीना की नरम छाती को मसलने लगे। ज़रीना इतनी मदहोश हो चुकी थी कि मनवीर को कुछ न कह सकी। मनवीर ने ज़रीना का सूट भी उतार दिया।

    ठंड में भी ज़रीना का हुस्न गर्माहट दे रहा था। ज़रीना का गठीला शरीर और आग उगलता हुस्न, रस से भरे अंगों ने मानो मनवीर को पागल कर दिया था। मनवीर ज़रीना के कोमल शरीर को सहलाने लगा। जैसे ही मनवीर ने ज़रीना की गर्दन पर चूमा, ज़रीना की बारूद सी जवानी को आग लग गई।

    वह ज़रीना के लाल होंठों का रस पीने लगा। मनवीर की गोद में बैठी ज़रीना अपनी सुध-बुध खो चुकी थी। मनवीर के हाथ उसके ऊपरी शरीर को छूकर रज चुके थे और धीरे-धीरे उसकी टांगों को मसलने लगे। मनवीर किसी भी हाल में ज़रीना को छोड़ना नहीं चाहता था। उसने अपने हाथ ज़रीना की टांगों के बीच फेरने शुरू कर दिए। ज़रीना प्यार में मदहोश होकर सिसकियां लेने लगी थी।

    जारी...

  • 17. Ret ke mahal - Chapter 17

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    ज़रीना की आग उगलती जवानी और भी लपटों में बदल चुकी थी। मनवीर ने ज़रीना के मोटे-मोटे होंठों का रस पीकर उन्हें और भी लाल कर दिया था। उसने ज़रीना की रस भरी छाती को सूट के ऊपर से ही टटोला था। ज़रीना के अंदर की आग और भड़कने लगी थी।

    ज़रीना भी मदहोश होकर मनवीर को प्यार कर रही थी। मनवीर ने एक झटके में ज़रीना को अपनी बाहों में उठा लिया।

    उसने ज़रीना के पूरे जिस्म को चूम लिया था। मनवीर तो ज़रीना की जवानी को पूरी तरह कपड़ों से आज़ाद करके देखना चाहता था, लेकिन ज़रीना ने, "बाहर स्वीप खड़ी है," कहकर उसे रोक दिया।

    भले ही ज़रीना ने मनवीर को पूरी छूट नहीं दी थी, लेकिन फिर भी उसने ज़ोर-ज़बरदस्ती से ज़रीना के अंग-अंग को टटोल लिया था। ज़रीना की जवानी चरम पर चढ़ चुकी थी। मनवीर को गले लगाकर ज़रीना का दिल भी चाहता था कि अपने नरम अंगों को मनवीर के सामने खोल दे, लेकिन स्वीप का डर भी दिल में था।

    जरीना को गले से लगाकर मनवीर के अंदर की आग और भी ज्यादा तड़फ उठी थी। जरीना के हॉट जिस्म को अपने साथ चिपकाकर मनवीर उसकी गोरी बैक को सहलाने लगा था। धीरे-धीरे उसने अपने हाथों से जरीना की हिप को भी पकड़ लिया था।

    फिर भी ज़रीना ने मनवीर को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आई तो वह दो मिनट के लिए थी, लेकिन इश्क के स्वाद में पागल हुई ज़रीना को समय का कोई अंदाज़ा ही नहीं रहा था।

    ज़रीना को एक गर्म सुकून मिला और उसने और ज़ोर से मनवीर को गले लगा लिया। मनवीर ने फिर से उसे अपनी बाहों में ले लिया। कुछ देर तक बिना कुछ बोले ही वे एक-दूसरे की बाहों में पड़े रहे। मनवीर की बाहों में पड़ी ज़रीना जैसे सारी दुनिया को भूल गई थी।

    मनवीर ने अपनी जेब से ज़रीना के लिए लाई हुई झांझरों का जोड़ा निकालकर ज़रीना के गोरे-गोरे पैरों में पहना दिया। झांझरों को देखकर ज़रीना और भी ज़्यादा खुश हो गई। खड़ी हुई ज़रीना को मनवीर ने फिर से पीछे से पकड़ लिया। ज़रीना के नरम अंगों को अभी भी ठंडा अहसास हो रहा था। बाहर से स्वीप की धीमी-सी आवाज़ आने पर ज़रीना ने खुद को मनवीर की बाहों से छुड़ा लिया।

    अपने कपड़ों को ठीक करती हुई ज़रीना बाहर आ गई। पीछे मुड़-मुड़कर प्यासी नज़रों से मनवीर की ओर देखती रही। ज़रीना के पैरों में झांझरों की आवाज़ सुनकर स्वीप उस पर गुस्सा होने लगी। लेकिन जैसे-तैसे ज़रीना ने स्वीप को मना ही लिया।

    स्वीप जो सोच रही थी, ज़रीना उससे भी आगे निकल चुकी थी। स्वीप ने ज़रीना को बहुत कहा कि अब से मनवीर से नहीं मिलेगी, लेकिन ज़रीना का इश्क तो हदें पार करने के लिए तैयार हो रहा था। चढ़ती जवानी और मनवीर का इश्क ज़रीना को अब कहाँ टिकने दे रहा था।

    घर आकर भी ज़रीना चुपके से अपने कमरे में चली गई। कमरे की सिटकनी लगाकर खिड़की भी बंद कर ली। ज़रीना के लिए आज का पल बहुत खास था क्योंकि आज पहली बार उसे अपने अंदर से खुशी मिली थी। उसे लगता था कि यही प्यार की आखिरी मंज़िल होती है। उसने अपनी कुर्ती ऊपर की और अपने गोरे जिस्म पर पड़े निशानों को देखने लगी। मनवीर ने ज़रीना के पूरे जिस्म को लाल-लाल कर दिया था।

    मनवीर का इश्क ज़रीना के दिल-दिमाग पर इतना हावी हो चुका था कि उसे अपनी से ज़्यादा मनवीर की फिक्र रहने लगी थी। सारा दिन मनवीर के ख्यालों में, सारी रात मनवीर को याद करना। एक हद से भी ज़्यादा वह मनवीर के प्यार में पागल हो चुकी थी।

    वह अपने ही ख्यालों में खोई रहती। कभी सपने में मनवीर के साथ इश्क करने लग जाती। और तो जैसे सब कुछ उसे भूल ही गया था। बस एक मनवीर ही था जो हर पल उसके दिल-दिमाग में याद रहता था। या यूँ कहें कि वह मनवीर के इश्क की गुलाम हो चुकी थी।

    जो ज़रीना पढ़ाई में बहुत होशियार थी, अब उसका पढ़ाई में मन ही नहीं लगता था। जो पहले अपने परिवार के साथ हँसती-खेलती रहती थी, अब वही ज़रीना अपने परिवार से दूर अकेली रहने लगी थी।

    अगर घर में कोई कुछ कहता तो सबको अनसुना और अनदेखा ही करती रहती थी। ज़रीना के दिल-दिमाग पर तो जैसे मनवीर का ही कब्ज़ा हो चुका था। वह पल-पल मनवीर से मिलने के लिए तड़पती रहती थी। जिस ज़रीना ने आज तक अपनी अम्मी से पूछे बिना घर का दरवाज़ा भी नहीं लाँघा था, अब वही ज़रीना सारी हदें पार करने के लिए तैयार थी।

    जिस ज़रीना को इश्क के नाम से भी नफरत थी, अब वही ज़रीना इश्क का नाम लिए बिना एक पल भी जी नहीं सकती थी। बिस्तर पर पड़ी ज़रीना तकिए को मनवीर समझकर अपनी बाहों में गले लगाकर बातें करने लगती थी।

    जब ज़रीना की अम्मी घर पर नहीं होती थी, ज़रीना मनवीर की दी हुई झांझरों को बड़े शौक से पैरों में पहनती, मटक-मटक कर अपने पैरों को उठाती। शीशे के सामने खड़े होकर मनवीर की दी हुई गाणी को अपने गले में डालती। मनवीर के दिए कंगन को बाँह में पहनकर घंटों शीशे के सामने खड़ी होकर खुद को देखती रहती थी।

    ज़रीना का हुस्न पहले से भी ज़्यादा निखरने लगा था। कभी-कभी अपने गठीले शरीर और चढ़ते हुस्न पर गर्व भी करने लगती थी। उसे अपने अंग-अंग पर मनवीर का नाम लिखा हुआ ही नज़र आता था। साँपनी जैसी काली चोटी गूँथकर अपनी छाती पर आगे कर लेती थी। घंटों बाथरूम में नहाते हुए अपने शरीर को और निखारती रहती थी।

    ज़रीना की जवानी पहले से भी ज़्यादा खिल चुकी थी। उसकी खूबसूरती तो पहले ही कातिलाना थी, कातिल आँखों में सुरमा डालकर वह और भी खूबसूरत लगने लगती थी। गोरा रंग और भी ज़्यादा निखरने लगा था। काले-काले सूट उसके गोरे-गोरे रंग पर बहुत ही ज़्यादा सुंदर लगते थे।

    कैसे लिखूँ तेरे हुस्न की तारीफ को,
    तेरा हुस्न ही कुरे बड़ा लाजवाब है।
    आँखों में डाला सुरमा काहे से मुटियारे नी,
    तुझ में जवानी का चढ़ा नशा भी बेशुमार है।

    जारी...

  • 18. Ret ke mahal - Chapter 18

    Words: 879

    Estimated Reading Time: 6 min

    मैंने तुझ तक आने के लिए कितना इंतज़ार किया है, कितनी बार ज़िंदगी को मनाया है, और कितनी बार मौत को धोखा दिया है मैंने।

    ज़रीना पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत हो गई थी। जवानी का नशा और मनवीर के इश्क़ का रंग ज़रीना के अंग-अंग से झलकने लगा था। हर पल अपने ही खयालों में खोई रहना, मनवीर को याद करना, मनवीर की बाहों में मिले स्वाद को बार-बार चेते करना, यही उसका दिनचर्या बन गया था।

    शाम को जब ज़रीना गुरुद्वारे और कुटिया जाती, हर रोज़ ही मनवीर से बातें कर लेती थी। कभी कुटिया के अंदर भी मनवीर से मिल लेती थी। लेकिन दिल तो चंद्रमा कुछ और ही माँग करने लगा था। स्वीप भी अब हर रोज़ ज़रीना के साथ नहीं आती थी। ज़रीना वैसे तो सारा दिन मनवीर के खयालों में खोई रहती थी, लेकिन मनवीर से मिलकर एक अलग ही खुशी मिलती थी।

    ज़रीना और मनवीर का प्यार अभी बातों तक ही सीमित था। मनवीर की छोटी-छोटी शरारतें अब ज़रीना को भी अच्छी लगने लगी थीं। ज़रीना कुटिया में ही मनवीर के साथ घंटों बातें करती रहती थी।
    "अगर कभी मनवीर ज़रीना को अपनी बाहों में जकड़ लेता,"
    "तो ज़रीना भी मनवीर के लिए पूरा प्यार दिखाती थी।"

    पहले ज़रीना कभी-कभी मनवीर से मिलने जाती थी। फिर धीरे-धीरे ज़रीना का मनवीर से मिलने का प्रोग्राम हर रोज़ होने लगा। मनवीर भी ज़रीना के लिए हर रोज़ कोई न कोई तोहफ़ा ज़रूर लाता था। ज़रीना मनवीर के इश्क़ की एक नई दुनिया में खो चुकी थी, जहाँ उसे सिर्फ़ मनवीर और उसका प्यार ही नज़र आता था। और कुछ नहीं।

    स्वीप हर बार ज़रीना को मनवीर के साथ ज़्यादा घुलने-मिलने से रोकती थी, जिसके कारण ज़रीना और स्वीप की पहले वाली दोस्ती भी नहीं रही। अब ज़रीना अकेले ही मनवीर से मिलने जाने लगी थी।

    मनवीर ज़रीना की खूबसूरती की बहुत तारीफ़ करता था। कभी काली लंबी ज़ुल्फ़ों की, कभी चाँद जैसे गोरे चेहरे की। ज़रीना को हर बार लगता जैसे मनवीर सचमुच उसके लिए पागल है। मनवीर किसी भी हाल में ज़रीना को अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता था। हालाँकि ज़रीना ख़ुद ही मनवीर के प्यार में पागल हो चुकी थी, लेकिन उसका इश्क़ अभी उस मुकाम तक नहीं पहुँचा था, जहाँ मनवीर बिना किसी रोक-टोक के ज़रीना को जहाँ चाहे छू सके।

    मनवीर ने कई बार कोशिश की थी कि ज़रीना को सारी रात कुटिया में रखा जाए या कहीं और ले जाया जाए। लेकिन ज़रीना का इश्क़ कुछ अलग ही तरह का था। ज़रीना तो बस मनवीर के साथ बातें करना चाहती थी। मनवीर की गोद में सिर रखकर सारी उम्र बिताना चाहती थी। लेकिन मनवीर को ज़रीना की चढ़ती जवानी दिन-ब-दिन और जवां होती दिख रही थी।

    मनवीर तो ज़रीना के नर्म अंगों को अपने हाथों से छूकर देखना चाहता था। ज़रीना के आग लगाने वाले जिस्म को कपड़ों से आज़ाद करके अपनी बाहों में जकड़ना चाहता था। इसके लिए मनवीर ज़रीना की हर छोटी-बड़ी ख्वाहिश पूरी करता था। ज़रीना के होंठों से निकला हर बोल पूरा करता था।

    ज़रीना की चढ़ती जवानी ने मनवीर की रातों की नींद और दिन का चैन सब छीन लिया था। ऊपर से मनवीर के दोस्त भी कहते रहते थे कि, "ज़रीना जैसी खूबसूरत लड़की तेरे वश की नहीं है। वो तो बस तेरे साथ बातें करके समय बिता रही है। ज़रीना को तेरी बातों और तोहफ़ों का चस्का है, और कुछ नहीं।" यह बात भी मनवीर को हर वक़्त चुभती रहती थी।

    मनवीर हर पल, हर हाल में ज़रीना को पाने के बारे में सोचता रहता था। ज़रीना भी भले ही मनवीर के इश्क़ में दिन-रात तड़पती रहती थी। मनवीर को कई बार गले भी लगा चुकी थी, लेकिन मनवीर का दिल कुछ और ही चाहता था।

    अब तक ज़रीना भी मनवीर के प्यार में पूरी तरह पागल हो चुकी थी। उसे लगता था कि मनवीर उसे कभी छोड़कर नहीं जाएगा।

    एक दिन मनवीर ने ज़रीना से कहा, "वह कल जल्दी मिलने आए, क्योंकि उसके पास ज़रीना के लिए एक सरप्राइज़ है।" यह सुनकर ज़रीना बहुत उत्साहित हो गई। ज़रीना ने तुरंत मनवीर को पीछे से पकड़कर अपनी बाहों में जकड़ लिया। ज़रीना ने आज कई दिनों बाद मनवीर को गले लगाया था।

    मनवीर को भी ज़रीना में कुछ बदला-बदला सा महसूस होने लगा। जैसे ही ज़रीना की गर्म साँसें मनवीर के साथ टकराईं, मनवीर को एकदम हिलाकर रख दिया। ज़रीना ने सहज भाव से ही मनवीर को पीछे से गले लगाया था, लेकिन मनवीर के दिल में मच रही आग को और भड़का दिया।

    मनवीर के साथ लगते ही ज़रीना के अंग-अंग से जवानी का नशा टपक रहा था। जैसे ही ज़रीना मनवीर से टकराई, दबाव से ज़रीना की छाती उसके सूट से बाहर की ओर उभर आई। मनवीर ने पलक झपकते ही पलटकर ज़रीना को अपनी बाहों में जकड़ लिया।

    मनवीर ने ज़रीना को अपनी छाती से लगाकर उसके बालों में हाथ फेरना शुरू कर दिया। ज़रीना की ज़ुल्फ़ों को खोलकर उनमें हाथ फिराने लगा।

    मनवीर ने झटके से ज़रीना को पीछे दीवार के साथ लगा लिया। ज़रीना के हाथों को अपने हाथों में जकड़कर पकड़ लिया। ज़रीना का दिल भी तेज़-तेज़ धड़क रहा था। ज़रीना का गोरा बदन एक मिनट में ही पसीने से भर गया।

    ज़रीना के चेहरे और गर्दन से पसीना टपककर उसकी छाती तक आ रहा था। मनवीर के पकड़ते ही ज़रीना का पूरा सूट पसीने से गीला हो गया था।

    जारी...

  • 19. Ret ke mahal - Chapter 19

    Words: 826

    Estimated Reading Time: 5 min

    जरीना के अचानक चीखने से मनवीर एक तरफ़ हट गया। जरीना अपना सूट ठीक करने लगी।

    मनवीर ने फिर से जरीना से बात शुरू की। जरीना ने मनवीर से बहुत कुछ पूछना चाहा, लेकिन मनवीर ने कहा, "कल ही पता चलेगा, अभी नहीं।"
    जरीना सारी रात मनवीर के सरप्राइज के बारे में सोचती रही कि आखिर क्या होगा। उसने स्वीप को भी इसके बारे में कुछ नहीं बताया।

    सारी रात जरीना यही सोचती रही कि सरप्राइज क्या हो सकता है। मनवीर द्वारा दिए गए झांझर, गले की माला और कंगन भी जरीना को बहुत सुंदर लगते थे। गले की माला को जरीना ने तुरंत पहन लिया था। झांझरों की छनछन की आवाज जरीना को बहुत अच्छी लगती थी, लेकिन क्या करती, झांझरों को हर वक्त तो पहनकर नहीं रख सकती थी।

    दिन-ब-दिन जरीना की जवानी और भी निखरने लगी थी। दिन-रात जरीना मनवीर के बारे में ही सोचती रहती थी। शीशे के सामने खड़ी होकर खयालों में मनवीर को देखने लगती, कभी सोते वक्त सपने में मनवीर आ जाता। कभी बाथरूम में नहाते वक्त मनवीर के बारे में सोचने लगती। जरीना का इश्क अब रूहों के इश्क से जिस्मों तक पहुँचने लगा था।

    मनवीर का जरीना का सूट हटाकर उसकी छाती को सहलाना भी अब अच्छा लगने लगा था। हर वक्त जरीना को बस मनवीर ही चाहिए था। मनवीर के दिए तोहफे जरीना को और भी उत्साहित कर देते थे।

    मनवीर से मिलने की चाहत में जरीना अगले दिन मनवीर के कहे अनुसार जल्दी ही घर से निकल गई। जरीना को सरप्राइज का इतना चाव था कि उस दिन वह गुरुद्वारे भी नहीं गई। घर से सीधे मनवीर से मिलने पुरानी कुटिया में चली गई।

    मनवीर तो पहले से ही जरीना का इंतज़ार कर रहा था। जरीना को सामने देखकर मनवीर को भी चाव चढ़ गया। जरीना आज पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। मनवीर तो जरीना को देखते ही अपनी बाहों में भर लेना चाहता था।

    लेकिन जरीना ने मनवीर को रोककर सब्र करने को कहा। जरीना ने चुन्नी के नीचे छिपाकर लाई मनवीर की दी हुई झांझरें पैरों में पहन लीं। माला तो पहले ही गले में डाली हुई थी। कंगन भी जरीना ने अपनी बाहों में पहन लिए।

    जरीना ने गोरे रंग पर काला सूट पहन रखा था। जरीना ने अपने सुडौल शरीर पर तंग सूट पहना हुआ था। जरीना को देखते ही मनवीर की आँखें उसकी गर्म जवानी पर टिक गईं। कमर तक लहराती जरीना की जुल्फें जान निकाल रही थीं।

    मनवीर जरीना के और करीब आया। जरीना ने सबसे पहले मनवीर से सरप्राइज माँगा। मनवीर ने कहा, "सब्र तो रख, ज़रूर मिलेगा सरप्राइज, लेकिन यहाँ नहीं।"
    मनवीर को लगता था कि जरीना अब तक कल की बातें भूल गई होगी। लेकिन जरीना ने आते ही सरप्राइज की माँग कर दी थी।

    जरीना: "मज़ाक मत कर, मनवीर। साफ़-साफ़ बता, मेरा सरप्राइज कहाँ है?"

    मनवीर: "जरीना, तू मुझसे मिलने आई है या सरप्राइज के लिए?"

    जरीना: "मनवीर, मुझसे और सब्र नहीं हो रहा। प्लीज़, जल्दी-जल्दी दे मेरा सरप्राइज।"

    मनवीर: "ऐसे नहीं मिलेगा, जरीना का सरप्राइज।"

    जरीना: "तो फिर कैसे मिलेगा, बता। हम वैसे ही ले लेंगे।"

    मनवीर: "मतलब आज मेरी प्यारी जरीना सरप्राइज लिए बिना नहीं मानेगी।"

    जरीना: "ना, कभी नहीं। सरप्राइज तो देना ही पड़ेगा आज, जनाब।"

    मनवीर: "ओके, जरीना। पहले आँखें बंद कर, फिर दूँगा सरप्राइज।"

    जरीना: "अच्छा, बाबा। लो, कर लीं बंद। अब दे मेरा सरप्राइज।"

    मनवीर ने जरीना के माथे को अपने होंठों से छू लिया।

    जरीना: "यार, ये था तेरा सरप्राइज?"

    मनवीर: "नहीं-नहीं, मेरी जान, सरप्राइज अभी बाकी है।"

    जरीना: "तो दे ना सरप्राइज।"

    मनवीर ने जरीना को अपनी बाहों में समेटकर उठा लिया।

    जरीना: "ये क्या है, यार?"

    मनवीर: "अभी आँखें नहीं खोलनीं।"

    जरीना: "ओके, बाबा, नहीं खोलती।"

    मनवीर ने जरीना को अपनी गाड़ी में बिठा लिया और गाड़ी स्टार्ट कर दी।

    जरीना: "गाड़ी क्यों स्टार्ट की? हम कहाँ जा रहे हैं? जल्दी बता। मुझसे सब्र नहीं हो रहा।"

    मनवीर: "सब्र का फल मीठा होता है। जल्दी ही एक बहुत बढ़िया गिफ्ट दूँगा।"

    जरीना मनवीर के प्यार में पागल मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।

    मनवीर ने जल्दी ही गाड़ी एक आलीशान घर के अंदर ले गया।

    जरीना: "हम कहाँ आ गए, मनवीर?"

    मनवीर: "सब्र तो रख, मेरी जान। एक तो तू हमेशा जल्दी-जल्दी करती रहती है।"

    मनवीर ने जरीना को अपनी गोद में उठाया और अंदर ले गया। मनवीर ने जरीना की आँखों पर अपने हाथ रखकर उसे सामने कमरे में पड़े सोफ़े पर बिठा दिया।

    मनवीर: "सरप्राइज! अब आँखें खोल, मेरी जान।"

    मनवीर ने जरीना की आँखों से हाथ हटाया, तो जरीना ने आँखें खोलीं। जरीना एकदम हैरान रह गई।

    जरीना: "वाह, इतना सुंदर घर किसका है?"

    मनवीर: "तू ही बता, किसका हो सकता है?"

    जरीना: "जल्दी बता, यार, मुझसे सब्र नहीं हो रहा।"

    मनवीर: "ये घर है..."

    जरीना: "बोल, जल्दी!"

    मनवीर: "मिसेज़ जरीना का।"

    जरीना ये सब देखकर बहुत हैरान हुई और बोली: "घरवालों को मना लिया, मनवीर?"

    "कहाँ ढूँढता है दिलों-रूहों की वफ़ा यहाँ,
    यहाँ तो जिस्मों का व्यापार भी दोपहर में खुलेआम होता है।"

    जारी...

  • 20. Ret ke mahal - Chapter 20

    Words: 750

    Estimated Reading Time: 5 min

    मनवीर: घरवाले भी मान जाएँगे।

    ज़रीना: अभी घर में हमारे बारे में कोई बात नहीं की।

    मनवीर: बहुत जल्दी करूँगा। पहले ये बता, ज़रीना, ये सरप्राइज़ तुझे कैसा लगा?

    ज़रीना ने मनवीर को जोर से गले लगाया। "इतना शानदार था आज का सरप्राइज़!"

    मनवीर ने भी ज़रीना को अपनी बाहों में कस लिया। ज़रीना इतने स्वाभाविक तरीके से मनवीर के करीब आई कि उसका हर अंग मनवीर को उसकी जवानी का अहसास कराने लगा। ज़रीना के जिस्म से निकलने वाली जवानी की गर्म खुशबू ने मनवीर के मुँह में पानी ला दिया। मनवीर का मन कर रहा था कि अभी ज़रीना को कपड़ों से आज़ाद कर दे। उसने ज़रीना को और भी जोर से गले लगाया। ज़रीना के कोमल अंग मनवीर के दबाव से उसके अंगों में समा गए। ज़रीना की रसीली छाती सूट से आज़ाद होने के लिए बाहर निकल आई। मनवीर ने ज़रीना की कमर को पीछे से पकड़कर अपने साथ सटा लिया। मस्ती में डूबी ज़रीना ने भी मनवीर के पैरों पर अपने पैर रखकर अपनी जांघों को उसकी जांघों से जोड़ लिया। मनवीर और ज़रीना इतने करीब थे कि उनके बीच हवा भी नहीं गुज़र सकती थी। मनवीर ने ज़रीना की काली ज़ुल्फों में हाथ फेरना शुरू किया। ज़रीना को भी मनवीर का ऐसा करना अच्छा लग रहा था। उसने अपनी कमर हिलाकर मनवीर के इश्क को और भड़काने लगा।


    ज़रीना: प्यार से धीरे बोलते हुए, "मनवीर, तुम मुझे कभी छोड़ तो नहीं जाओगे?"

    मनवीर: "ज़रीना, ये कैसी बात कर रही है? मैं तुझे कैसे छोड़ सकता हूँ? ज़िंदगी है तू मेरी, तेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता।"

    ज़रीना: "मनवीर, अगर तूने कभी मुझसे दूर होने की सोची भी, तो मैं सचमुच मर जाऊँगी।"

    मनवीर: "ले, बता, है ना जवां कमली? ज़रीना, तू मेरी जान है। तुझसे तो मरकर भी दूर नहीं हो सकता। अब तो जीना भी तेरे साथ, मरना भी तेरे साथ। लव यू, मेरी जान।"

    ज़रीना: "लव यू टू, मनवीर। चल, अब ये बता, घर में हमारे बारे में कब बात करेगा? अब तो मुझे दिन-रात बस तेरे ही ख्याल आते हैं। दिल करता है तुझे सारी दुनिया से दूर ले जाऊँ, जहाँ बस मैं और तू हों, कोई और न हो।"

    मनवीर: "ज़रीना, अब तो मेरा भी तेरे बिना मन नहीं लगता। मेरी हालत भी पागलों जैसी हो रही है।"

    ज़रीना: "अच्छा?"

    मनवीर: "हाँ, मेरी जान, दिल करता है बस तुझे देखता रहूँ, हर पल।"

    ज़रीना: "तो फिर ले जा ना अपने पास, जितनी मर्ज़ी देख ले, जैसे दिल करे वैसे देख ले।"

    मनवीर: "वो दिन भी बहुत जल्दी आएगा, जब ढोल-नगाड़ों के साथ तुझे ब्याह कर ले जाऊँगा।"

    ज़रीना: "हाय, मनवीर, कितना सुंदर होगा वो पल। मेरा तो अभी मन करता है कि तेरे साथ चली जाऊँ, तेरे घर की बहू बनकर।"

    मनवीर: "ओए होए, इतनी जल्दी? थोड़ा सब्र कर ले।"

    ज़रीना: "मनवीर, अब सब्र ही तो नहीं होता।"

    ज़रीना ने मनवीर को फिर से जोर से गले लगाया। मनवीर भी ज़रीना की खूबसूरती की और तारीफ करने लगा। ज़रीना का हर अंग मनवीर के साथ लगकर नशे में डूबने लगा। ज़रीना के गर्म जिस्म की खुशबू मनवीर को और उत्तेजित कर रही थी। ज़रीना को भी एक अलग ही सुरूर चढ़ रहा था। मनवीर ने ज़रीना की खामोशी को अपने हक़ में समझकर उसे और करीब खींच लिया। ज़रीना को मनवीर की हरकतें शारीरिक प्यार की ओर जाती महसूस हुईं।


    ज़रीना ने मनवीर की बाहों से खुद को छुड़ाने की कोशिश की। उसने मनवीर को पीछे धक्का दे दिया।

    मनवीर: पीछे हटते हुए, "क्या हुआ यार?"

    ज़रीना: "मनवीर, तू ये क्या कर रहा है? मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा। प्लीज़, मनवीर, मैं ये सब शादी से पहले नहीं कर सकती।"

    मनवीर: प्यार से मनाने की कोशिश करते हुए, "शादी तो यार होनी ही है हमारी।"

    ज़रीना: "फिर भी, मेरे लिए ये सब गलत है।"

    मनवीर: "ज़रीना, तुझे मेरे प्यार पर यकीन नहीं? क्या तुझे लगता है मैं तुझसे प्यार नहीं करता?"

    ज़रीना: "वो बात नहीं, मनवीर। मुझे तुझ पर खुद से भी ज़्यादा यकीन है। मेरे साँसों में धड़कता है तू।"

    मनवीर: "फिर तुझे क्यों लगता है कि मैं तुझसे शादी नहीं करूँगा?"

    ज़रीना: "नहीं यार, मनवीर, तुझ पर खुद से ज़्यादा भरोसा है। लेकिन ये सब शादी से पहले ठीक नहीं।"

    मनवीर: "ओके, मेरी जान, जैसा तुझे ठीक लगे। तेरी खुशी में ही मेरी खुशी।"


    मनवीर ने ज़रीना को पानी का गिलास दिया। ज़रीना का पूरा शरीर अचानक काँपने लगा। मनवीर के हाथ से लिया पानी का गिलास भी ज़रीना से संभाला नहीं जा रहा था।

    जारी...