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Kissed by the Curse

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Khushi Jestha

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"कभी-कभी, जिस अंधेरे से हम भागते हैं, वही हमारी किस्मत बन जाता है…" पावनी की दुनिया रंगों से भरी थी—जब तक वह सिर्वेश से नहीं मिली। एक सदियों पुराना वैम्पायर, जिसकी आँखों में कुछ ऐसे राज़ थे कि छू भर लेने से सामने वाले कि धड़कनें थम जाएं। पावनी उससे द...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. Kissed by the Curse - Chapter 1

    Words: 1473

    Estimated Reading Time: 9 min

    कराके की ठंड थी, और आसमान पूरी तरह काले बादलों से ढका हुआ था। हवाएँ ज़मीन पर बर्फीली सिहरन छोड़ रही थीं, और जंगल की गहराई में खड़ी एक उजाड़ हवेली अंधेरे में डूबी हुई थी। केवल एक धुंधली पीली रोशनी हवेली के खंडहर में टिमटिमा रही थी, मानो किसी अनजान शक्ति की मौजूदगी को दर्शा रही हो।

    उस अंधेरी रात में, घने कोहरे के बीच, हवेली के सामने एक रहस्यमयी शख्स खड़ा था। उसका काला हुड चेहरे को आधा ढँके हुए था, लेकिन उसकी सिल्वर रंग की आँखें धीरे-धीरे गहरी लाल होने लगीं। उन चमकती आँखों में इतनी गहराई और भय था कि अंधेरा भी उनसे कांप उठा।

    उसकी लंबी कद-काठी को हाई-कॉलर क्लोक और भी प्रभावशाली बना रहा था। ठंडी हवाओं में उसका काला लिबास हवा में लहरा रहा था, मानो अंधकार उसके कदमों को छूकर गुजर रहा हो। उसकी उपस्थिति इतनी भारी थी कि आसपास की काली शक्तियां भी उसकी ऊर्जा को महसूस कर रही थीं।

    आसमान में काले चमगादड़ उड़ रहे थे, जैसे किसी अनदेखे खतरे की दस्तक दे रहे हों। उनके परों की सरसराहट के बीच रहस्यमयी शख्स ने अपनी आँखें बंद कीं और धीमे स्वर में एक गूढ़ मंत्र पढ़ा। जैसे ही उसने हथेली खोली और उस पर फूँक मारी, आसपास की सभी काली शक्तियां और चमगादड़ हवा में विलीन हो गए।

    फिर उसने अपना सिर झटका और ठोस लेकिन धीमे कदमों से उजाड़ हवेली की ओर बढ़ने लगा। जैसे अंधकार का राजा अपने शिकार की तलाश में हो। तभी, अचानक, हवेली के विशाल दरवाजे करकराने लगे; तेज़ हवाओं के थपेड़ों के बीच वे अपने आप अंदर-बाहर होने लगे।

    वह लंबा चौड़ा, काले लिबास में लिपटा हुआ शख्स मेन गेट से हवेली के अंदर दाखिल हुआ। उसकी सिल्वर रंग की खतरनाक आँखों में कुछ सवाल थे, और चेहरे पर एक अजीब-सा गुस्सा झलक रहा था। हवेली के बीचोंबीच एक पुराना लकड़ी का सिंहासन पड़ा था, जिसकी सतह समय की मार से घिस चुकी थी।

    और उस सिंहासन पर बैठा था एक रहस्यमयी बूढ़ा आदमी—तारक। उसके सफ़ेद बाल और झुर्रियों से भरा चेहरा उसकी उम्र से कहीं ज़्यादा कहानियाँ बयाँ कर रहा था। उसकी आँखों में समय के रहस्यों की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी।

    तारक ने उस रहस्यमयी शख्स को देखा और गहरी साँस ली। फिर उसने भारी, रहस्यमयी स्वर में कहा—

    "तो तुम आ ही गए, राजकुमार...
    चंदवंशी वंश के उत्तराधिकारी।"

    "मुझे पता था कि यह दिन ज़रूर आएगा...
    तुम अपने सवालों के जवाब ढूँढने एक न एक दिन यहाँ ज़रूर आओगे।"

    जिसे वो इस वक्त राजकुमार कहकर सम्बोधित कर रहा था, उसने कठोर स्वर में उसे देखते हुए कहा, "मुझे तुम शाप की सच्चाई बताओ। यह सब कैसे शुरू हुआ? और मैं इस सबका हिस्सा क्यों हूँ?" कहते हुए वो अपनी सर्द निगाहों से उसे घूर रहा था।

    उसकी बात सुनकर तारक हँसा। उसकी हँसी गहरी और डरावनी थी, जैसे वह किसी अनकही कहानी को याद कर रहा हो। फिर तारक गहरी साँस लेकर बोला- "यह सिर्फ़ तुम्हारा अतीत नहीं, बल्कि तुम्हारे पूरे वंश की कहानी है। सुनो, और याद रखना, जो मैं तुम्हें आज बताने जा रहा हूँ, वह तुम्हारी ज़िंदगी बदल देगा।"

    "अगर मौत प्यारी नहीं है तो जल्दी बोलो, वरना मैं तुम्हारी जान अपने हाथों से लूँगा और ये कोई मज़ाक की बात नहीं है समझे?" कहते हुए उसने एकदम गोली की रफ़्तार से आकर तारक के सामने हल्का सा झुकते हुए उसका गला काफी मज़बूती से दबोच लिया था। इस वक्त उसके मुँह के कोनों को चीरते हुए दो नुकीले दांत बाहर आ गए थे।

    तारक अपनी डरी सहमी नज़रों से उसे देखते हुए अपना लार निगल गया और एक हाथ से उसका हाथ पकड़कर खुद के गले से दूर हटाते हुए जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए बोला- "राजकुमार आप यहाँ पर आराम से बैठिए, मैं बताता हूँ ना आपको, चलिए बैठ जाइए, इतना गुस्सा करना अच्छी बात नहीं होती कभी।" फिर वो उसे अपने उस बेकार से सिंहासन पर बिठाकर खुद उसके सामने अपना गर्दन पकड़कर ऊँट की चाल से इधर से उधर टहलने लगा।

    वो शख्स, जो इस वक्त उसके सिंहासन पर अपने कठोर भाव के साथ विराजमान था, उसे तारक की ऐसी हरकत पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसने अपने मुट्ठियों को मज़बूती के साथ भींच लिया और कठोरता से बोला- "तारक क्या तुम मेरे सब्र का इम्तिहान लेना बंद करोगे? जो कहना है साफ़-साफ़ कहो, मैं यहाँ तुम्हारी पहेलियाँ सुनने नहीं आया हूँ।"

    जिस पर तारक अचानक से रुक गया और उसे देखते हुए मुस्कुराया। उसकी मुस्कान ऐसी थी, जैसे किसी शिकारी ने अपने शिकार को काबू में कर लिया हो। वो बोला- "यह गरमाहट तो तुम्हारे खून में हमेशा से रही है राजकुमार, खैर इन सब की शुरुआत हुई थी..." कहकर तारक ने पास रखी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी खींची। बैठते हुए उसने अपने चारों ओर निगाह खुफिया दृष्टि से डाली, जैसे वह युगों पुराने किसी समय को याद कर रहा हो।

    तो इस कहानी की शुरुआत आज से करीब पाँच सौ साल पहले कुमाऊँ की पहाड़ियों के बीच, एक विशाल और भव्य साम्राज्य—चंदवंशी साम्राज्य से हुई थी।

    कुमाऊँ की घने जंगलों और बर्फीली पहाड़ियों के बीच बसा चंदवंशी साम्राज्य, जो बेहद खूबसूरत और संपन्नता का केंद्र था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि इस साम्राज्य की हर ईंट, हर दीवार अपने भीतर कितने गहरे अंधकार और रक्त की कितने खतरनाक और रहस्यमयी किस्से-कहानियाँ समेटे हुए थी।

    लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व। युद्धों और राजनीतिक साज़िशों का समय, जब राजाओं के बीच सत्ता और अमरता का जुनून अपने चरम पर था।

    एक दिन चंदवंशी महल के दरबार में रात का समय था। चंदवंशी महल के विशाल कक्ष में, झूमर की हल्की रोशनी राजा अग्निवीर चंदवंशी के चेहरे पर गिर रही थी। उनके माथे पर चिंता की गहरी रेखाएँ नज़र आ रही थीं। वे अपने सिंहासन पर विराजमान थे, और उनके सामने खड़ा था रक्ताचार्य—एक रहस्यमयी साधु, जिनकी आँखें गहरे काले कुएँ जैसी लगती थीं।

    दरबार के कोने में खड़े मंत्री और सेनापति फुसफुसा रहे थे।
    मंत्री १: (धीमे स्वर में) "यह रक्ताचार्य कौन है? इसकी ऊर्जा बहुत अजीब है। मुझे इस पर भरोसा नहीं।"

    मंत्री २: (डरते हुए) "कहते हैं, यह मृत आत्माओं से बात कर सकता है। लेकिन राजा इसे दरबार में क्यों लाए, ये मुझे समझ नहीं आता।"

    तभी राजा अग्निवीर ने गंभीर स्वर में, रक्ताचार्य की ओर देखते हुए कहा- "तुमने कहा था कि तुम्हारे पास एक उपाय है जो मेरे राज्य को अजेय बना देगा। लेकिन रक्ताचार्य, याद रखना, मैं अपनी प्रजा के जीवन के साथ कोई समझौता नहीं करूँगा।"

    रक्ताचार्य ने हल्की मुस्कान के साथ कहा- "राजन, यह उपाय आपके वंश को अमरता का वरदान देगा। आप केवल राजा नहीं, अमर योद्धा बनेंगे। लेकिन याद रखें, हर वरदान की कीमत होती है। देवी चंडिका को संतुष्ट करने के लिए आपको भी एक बलिदान देना होगा।"

    "बलिदान? कैसा बलिदान?" राजा अग्निवीर ने चौंकते हुए कहा।

    रक्ताचार्य धीमी और रहस्यमयी आवाज में बोला- "एक निर्दोष का रक्त। जो खून यज्ञ कुंड में गिरेगा, वह आपके रक्त-वंश को अमरता का आशीर्वाद देगा। पर राजन, यह खून केवल एक जीवन नहीं है—यह आपके साम्राज्य का भविष्य है।"

    राजा कुछ पल के लिए गहरी सोच में डूब गया था। वह जानते थे कि उनका साम्राज्य दुश्मनों से घिरा हुआ था। अगर वे कमज़ोर पड़े, तो उनका वंश खत्म हो जाएगा।

    राजा अग्निवीर आखिरकार बोल पड़े- "अगर यह मेरे राज्य और वंश की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, तो मैं यह बलिदान दूँगा। लेकिन अगर तुमने मुझे धोखा दिया, रक्ताचार्य, तो तुम्हारे प्राण भी इस यज्ञ कुंड में चढ़ेंगे।"

    उसकी बात सुनकर रक्ताचार्य के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई थी जो अग्निवीर नहीं देख पाए थे।

    इसके बाद गुप्त तहखाने में आने वाले पूर्णिमा की रात को इस अनुष्ठान की तैयारी की गई।

    यह तहखाना उसी राजमहल के नीचे बना हुआ था। यहाँ पर दीवारों पर अजीबोगरीब चित्र उकेरे गए थे। मशालों की मद्धम रोशनी अंधेरे को छिपाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन यह जगह भयावह और ठंडी थी।

    यज्ञ कुंड के चारों ओर दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और चंदन की लकड़ियाँ जल रही थीं। कुंड से उठती धुँआ वातावरण में रहस्य और भय का मिश्रण फैला रही थी।

    रक्ताचार्य द्वारा यह अनुष्ठान शुरू हुआ और रक्ताचार्य के कहने पर एक ख़ास युवती को आगे लाया गया। वह युवती, जिसे बलिदान के लिए चुना गया था, डर के मारे अपनी जगह पर काँप रही थी।

    युवती गिड़गिड़ाते हुए बोली- "मुझे छोड़ दो! मैं निर्दोष हूँ। मेरा जीवन क्यों छीन रहे हो? महाराज ये अन्याय है।" कहते हुए उसने अपनी आश भरी नज़रों से अग्निवीर की तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सी चाह नज़र आ रही थी, जो शायद अजय की चाहत थी।

    तभी रक्ताचार्य निर्ममता से उस युवती से बोला- "तुम्हारा जीवन देवी चंडिका को अर्पित हो रहा है। यही तुम्हारा भाग्य है। शांत रहो।"

    राजा अग्निवीर और उनके वंशज चुपचाप खड़े यह तमाशा देख रहे थे। उनकी आँखों में अविश्वास तो नज़र आ रहा था, पर यह अनुष्ठान पूरा करना अब उनकी मजबूरी बन चुकी थी।

  • 2. Kissed by the Curse - Chapter 2

    Words: 2061

    Estimated Reading Time: 13 min

    रक्ताचार्य ने कुछ मंत्र उच्चारण करते हुए, एक धारदार तलवार उस युवती के एक हाथ तक ले जाकर, अचानक उसके हाथ को तलवार के सहारे आगे की ओर करते हुए उसकी कलाई पर तेज़ी से प्रहार किया। एक तेज चीख के साथ रक्त की पहली बूँद यज्ञकुंड में जा गिरी। इतने में पूरे तहखाने में हलचल मच गई। हवा अचानक ठंडी और भारी हो गई।


    रक्ताचार्य गहरी आवाज़ में मंत्र पढ़ते हुए बोला-
    "देवी चंडिका, इस पवित्र रक्त को स्वीकार करो। इस रक्त के माध्यम से चंद्रवंशी वंश को अमरता का वरदान दो।"


    इसी के साथ, हवाओं में गूँजती उस युवती की चीखें अचानक थम गईं। कुंड से उठने वाली लपटें लाल हो गईं, और राजा व उनके वंशजों के शरीर में एक अजीब सी ऊर्जा दौड़ने लगी। अचानक उनकी आँखें खून की तरह लाल हो गईं और उनके दो अगले दांत नुकीले और लंबे होने लगे।


    यह अजीब सा बदलाव देखकर वे सभी आश्चर्यचकित रह गए। लेकिन रक्ताचार्य धीरे से मुस्कुराते हुए बोला-
    "बधाई हो महाराज, अब से सम्पूर्ण चंद्रवंशी सम्राज्य वैम्पायर कहलाए जाएंगे। यानी कि अमर और अजर, जो कभी नहीं मर सकता। लेकिन याद रखें, यह शक्ति एक शाप भी है। इसे जितनी जल्दी हो सके नियंत्रित करना सीखिए, वरना यह आपको और आपके पूरे वंश के सर्वनाश का कारण भी बन सकता है।"


    एक ओर जहाँ सभी चंद्रवंशी वंश के लोग रक्ताचार्य के समक्ष अपना सीस झुकाकर उसे अपना गुरु मान चुके थे, वहीं इसी वंश का कोई था जो इन सब बातों से पूरी तरह से अनजान था।


    चाँदनी रात में नदी के किनारे एक युवती एकटक नदी में चाँद के प्रतिबिम्ब को देख रही थी। उसकी आँखों में एक अनकहा दर्द और होंठों पर एक अधूरी मुस्कान थी। उसकी खूबसूरती का कोई जवाब नहीं था।


    तभी उसके पास एक सुंदर युवक आकर खड़ा हो गया और धीरे से मुस्कुराते हुए बोला-
    "सुंदरी, यह जंगल खतरनाक है। तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए।"


    युवती ने निडर होकर कहा-
    "यह जंगल मेरा घर है। और आप? राजकुमार होते हुए भी आप यहाँ क्यों आए हैं?"


    अग्निवंश उसकी बात सुनकर हल्के से मुस्कुराया और उसे कमर से पकड़कर अपने करीब खींचते हुए बोला-
    "अच्छा, तो हमारी प्यारी माया हमसे रूठी हुई है?"


    माया अपनी अदाएँ बिखेरते हुए बोली-
    "रूठेगी वो भी माया, कभी नहीं। मैं भला क्यों रूठने लगी? अब आप तो एक राजकुमार हैं और मैं बस एक मामूली सी दासी, मैं भला कैसे एक राजकुमार से रूठने की गुस्ताखी कर सकती हूँ।"


    अग्निवंश ने हल्के से माया के गुस्से से लाल हो चुके नाक को छुआ और उसे इधर-उधर हिलाते हुए कहा-
    "मेरी नटखट महबूबा, तुम्हारा मुझ पर पूरा हक़ है और बहुत जल्द तुम हमारी पत्नी, यानी कि चंद्रवंशी वंश की युवराणी बनने वाली हो।"


    यह सुनकर माया पहले तो बहुत खुश हुई, लेकिन फिर कुछ सोचकर वह एकदम से मायूस हो गई और बोली-
    "सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन आपके पिता हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगे राजकुमार।"


    अग्निवंश पूरे विश्वास के साथ बोला-
    "वो जरूर करेंगे, तुम उनकी चिंता मत करो, तुम्हें मुझ पर भरोसा तो है ना?"


    माया ने सहमति से अपना सिर हिलाया और अग्निवंश ने माया को कसकर अपनी बाहों में भर लिया।


    माया वह लड़की थी जिसने कुछ समय पहले अग्निवंश को शिकारियों से बचाया था और तब से उन दोनों के बीच प्रेम प्रसंग की शुरुआत हुई थी।


    कुछ समय तक सब कुछ ऐसे ही चलता रहा। इन दिनों राजा अग्निवीर के अंदर क्रूरता और अंधकार ने अपना दबदबा बना लिया था। लेकिन अग्निवंश, जो चंद्रवंशी खानदान का जायज़ वारिस था, वह इन सब बातों से पूरी तरह से अनजान था। वह अपने शिकार और माया के साथ अपनी सपनों से भरी खूबसूरत ज़िंदगी पहले की तरह ही जी रहा था।


    लेकिन एक दिन माया, अपने गाँव की युवतियों के अचानक गायब होने से परेशान होकर, गुप्त रूप से महल के तहखाने में पहुँच गई। वहाँ का दृश्य शरीर के अंदर से आत्मा निचोड़ देने वाला था। उसने देखा कि निर्दोष लड़कियों को बलि के लिए कैसे कैद किया गया था। यह सब देखकर माया का ह्रदय अनगिनत दर्द से घिर गया। वह इस वक़्त ज्वालामुखी की तरह फटकर इस पूरे सम्राज्य को आग लगा देना चाहती थी।


    तभी वहाँ किसी के आने की आहट हुई और अचानक माया को पीछे से किसी ने खींचा और उसे अपने साथ एक दूसरे सुरक्षित हिस्से में ले गया।


    यह अग्निवंश था, जिसने उसे चुपके से अंदर आते हुए देख लिया था और उसका पीछा करते हुए यहाँ तक पहुँचा था। उसने माया को देखकर चिंतित स्वर में कहा-
    "माया, तुम यहाँ पर क्या कर रही हो? वो भी इस तरह से?"


    भले ही अग्निवंश एक राजकुमार था, लेकिन माया भी कोई साधारण लड़की नहीं थी। वह देवी चंडिका की उपासक थी और अपने गाँव की संरक्षक के रूप में चुनी गई थी। उसे पता चला कि अग्निवंश के परिवार की शक्ति निर्दोष जीवन को नष्ट करने पर आधारित है। जब माया को यह सच्चाई पता चली कि वह जिनसे प्रेम करती है, वे एक वैम्पायर वंश का हिस्सा हैं, उसका दिल बुरी तरह से टूट गया।


    माया आँसू भरी आँखों के साथ बोली-
    "तो यह है तुम्हारे परिवार का सच, अग्निवंश! तुम और तुम्हारा वंश निर्दोषों का खून बहाकर अपनी ताकत बढ़ाते हो? धिक्कार है, तुम सब इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। वाक़ई तुम सब इंसान हो ही नहीं।"


    यह सब सुनकर अग्निवंश ने दर्द भरे स्वर में कहा-
    "माया, मुझे पता है कि यह सब गलत है। मुझे खुद कल ही यह सब पता चला है, मैंने पिता जी से बात की है। मेरा यकीन मानो, मैं खुद इन मिथकों को ख़त्म करना चाहता हूँ, पर मेरे हाथ बंधे हुए हैं। पर मैं वादा करता हूँ, तुम्हारे गाँव और बाकी निर्दोषों को बचाऊँगा। लेकिन मुझे थोड़ा समय दो, मैं विनती कर रहा हूँ तुमसे।"


    अग्निवंश, माया से सच्चा प्रेम करता था। उसने माया को यह वादा किया कि वह अपने पिता की क्रूर परंपराओं को ख़त्म करेगा, लेकिन माया उससे ये शब्द सुनकर ही वहाँ से गुस्से में बाहर निकल गई और उसने जाने से पहले अग्निवंश की दी हुई एक खूबसूरत लॉकेट उसके मुँह पर मार दिया।


    मतलब वह वहाँ से अपना रिश्ता पूरी तरह से ख़त्म करके चली गई। पीछे से अग्निवंश उसे जाते हुए देखता ही रह गया। लेकिन वह उसके पीछे जा पाता, इससे पहले ही किसी ने पीछे से आकर उसके कंधे पर एक नशीली चीज चुभो दी, जिससे वह वहीं पर मूर्छित हो गया।


    जब राजा अग्निवीर को माया और अग्निवंश के प्रेम का पता चला, तो वह क्रोधित हो गए। राजा अग्निवीर धमकी भरे स्वर में अपने एक खास सिपाही से बोला-
    "यह दासी लड़की हमारे वंश के लिए खतरा है। इसे तुरंत बलिदान के लिए तैयार करो। अग्निवंश, तुम्हारा प्रेम तुम्हें बर्बाद कर देगा।"


    इसके बाद माया को अग्निवीर के सैनिकों द्वारा जबर्दस्ती देवी चंडिका की प्रार्थना के लिए मंदिर में ले जाया गया।


    तब माया ने दृढ़ स्वर में कहा-
    "हे माता, मुझे अपनी शक्ति दो। इन राक्षसों का अंत मेरे रक्त से हो। मैं प्रार्थना करती हूँ कि यह वंश कभी सच्चा प्रेम न जान पाए। इनकी आत्माएँ इस शाप के बोझ तले दबकर ख़त्म हो जाएँ।"


    देवी चंडिका की शक्ति से माया बलिदान देती है। उसके खून के स्पर्श से वैम्पायर वंश पर शाप लग जाता है।


    लेकिन मरने से पहले, माया अपनी अंतिम साँस में भविष्यवाणी करती है। माया धीमे स्वर में बोली-
    "जब मेरा वंशज, मानव और वैम्पायर के खून का संगम, इस दुनिया में आएगा, तब यह शाप टूटेगा। लेकिन इसकी कीमत प्रेम और उसकी अपनी जान होगी।"


    माया के बलिदान के बाद, वैम्पायर वंश के लोग धीरे-धीरे अपने ही अंधकार और शाप के कारण बर्बाद होने लगे। उनकी शक्ति घटने लगी, और वे एक-दूसरे के ही दुश्मन बन गए। दूसरे राक्षसों और बुरी शक्तियों ने इस शक्ति विभाजन का फायदा उठाना शुरू कर दिया।


    अग्निवंश, जो माया को बचाने में असफल रहा, अपने शापित जीवन को समाप्त करने के लिए जंगलों में चला गया। लेकिन वैम्पायर होने के कारण उसकी मृत्यु संभव नहीं थी।


    अपनी सारी बात ख़त्म करके तारक ने अपने सामने बैठे उस खतरनाक आभा वाले शख्स को देखा तो पाया कि वह वहीं बैठे-बैठे नींद के आगोश में डूबा हुआ था।


    यह देखकर तारक की बूढ़ी चतुर आँखें फटी की फटी रह गईं। वह इस लापरवाह लड़के को इतनी देर से बिना रुके इतनी महत्वपूर्ण गाथा सुना रहा था और यह महाराज यहाँ पर अपनी कितने जन्मों की नींद सो रहा था?


    तारक अपना गला साफ करते हुए धीमे स्वर में बोला-
    "तुम समझ गए, राजकुमार? यही वह शाप है, जिसे तुम्हारे पिता और तुम्हारे वंशज झेल रहे हैं। और आज महाराज कहीं चलने-फिरने की हालत में नहीं हैं?"


    सामने से उस सोए हुए शख्स की एकदम ख़ौफ़नाक आवाज़ सुनाई दी-
    "तो क्या इस शाप को ख़त्म करने का कोई रास्ता है तुम्हारे पास?"


    उसकी आँखें धीरे से खुलीं और उसकी सिल्वर कलर की रहस्यमयी नज़रें तारक की खोखली नज़रों से जा टकराईं।


    तारक ने उसकी नज़रों से नज़र मिलाते हुए एक झूठी मुस्कान के साथ कहा-
    "हाँ, बिल्कुल, माया की आत्मा ने एक भविष्यवाणी की थी ना। माया का एक वंशज—एक लड़की, जिसका खून इस शाप को तोड़ सकता है। लेकिन उसे ढूँढना कोई इतना आसान नहीं होगा।"


    यह सुनकर वह शख्स अपनी जगह से एकदम से उठ खड़ा हुआ और दृढ़ता से बोला-
    "ऐसा कोई कार्य नहीं जो सिर्वेश चंद्रवंशी न कर सकें, तुम आगे बोलो, वैसे माया का कोई भी वंशज आख़िर कहीं भी जीवित कैसे हो सकता है?"


    तारक ने उसे बताया-
    "ऐसा जरूर हो सकता है अगर माया और अग्निवीर की छुपी हुई पीढ़ी किसी तरह से जीवित रह गई हो, क्योंकि कोई ऐसे ही भविष्यवाणी नहीं करते।"


    "फ़िलहाल तो मैं तुम्हें बस इतना बता सकता हूँ कि इस समय वह लड़की इंसानों के बीच है, पृथ्वी ग्रह पर है। लेकिन उसकी पहचान छुपी हुई है। उसका नाम पता कोई कुछ नहीं जानता है, लेकिन उसके पास एक खास किस्म का बर्थमार्क होगा जिससे तुम्हें उसे खोजने में आसानी होगी। वह बर्थमार्क तुम्हें उसका पता बताएगा।"


    कहकर उसने उसे उस बर्थमार्क की तरह बना एक लॉकेट दिया और बताया कि यह लॉकेट उसके नज़दीक आने से ही चमकने लगेगा।


    सिर्वेश ने उसे अपनी कातिलाना नज़रों से घूरते हुए एक गहरी साँस ली और बोला-
    "तो मुझे अब एक अनजान बर्थमार्क वाली लड़की को पूरे पृथ्वी ग्रह पर ढूँढना होगा। लेकिन अगर मैं उसे लेकर वापस आया, तो क्या वह इस शाप को ख़त्म कर पाएगी?"


    तारक ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ जवाब दिया-
    "सिर्फ़ खून बहाने से यह शाप ख़त्म नहीं होगा। तुम्हें उससे प्यार करना होगा, और उससे ज़रूरी बात उसे तुमसे प्यार करना होगा, उसे तुम्हारे खून में बहते अंधकार से प्यार करना होगा, तभी वह बलिदान सफल होगा। लेकिन याद रखना, यह सफ़र तुम्हारे लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होगा। वह लड़की तुम्हारे वंश को बचा सकती है, लेकिन उसकी कीमत बहुत बड़ी होगी।"


    इसके साथ ही सिर्वेश ने तेज़ी से आगे बढ़कर तारक का गला पकड़कर उसे हल्का सा ऊपर हवा में उठा दिया और बोला-
    "सुनो तारक, अगर तुमने मेरे साथ उस रक्ताचार्य की तरह कोई विश्वासघात करने की जरा सी भी कोशिश भी की ना तो मैं तुम्हारे इतने टुकड़े करूँगा कि तुम्हारी रूह भी तड़पकर मर जाएगी।"


    और उसे जोर से नीचे जमीन पर पटक दिया। अगले ही पल वह तूफ़ान से तेज़ उस हवेली से बाहर निकल चुका था।


    लेकिन तारक की आँखों में इस वक़्त एक अजीब सी शैतानी झलक रही थी।


    तो कौन थी वह लड़की जो माया की वंशज थी और उस शाप का अंत करेगी? क्या सिर्वेश उसे कभी ढूँढ पाएगा? क्या तारक सच में सिर्वेश की मदद कर रहा था या इन सब में उसका कोई छिपा हुआ एजेंडा था? तो कैसी होगी पावनी और सिर्वेश की पहली मुलाक़ात?

  • 3. Kissed by the Curse - Chapter 3

    Words: 1591

    Estimated Reading Time: 10 min

    सांझ ढल रही थी, और सूरज की आखिरी किरणें खेतों में बिखर रही थीं। एक काली, विशाल भैंस खेतों के बीच बेकाबू दौड़ रही थी; उसकी भारी टापों की गूंज दूर तक सुनाई दे रही थी। उसकी पीठ पर एक नन्ही बच्ची सवार थी, मुश्किल से खुद को संभाले हुए।

    उसकी छोटी उंगलियाँ भैंस के खुरदुरे शरीर को कसकर थामने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन जानवर की तेज गति ने उसे डगमगा दिया। उसकी आँखों में डर था, और होठों से हल्की चीख निकल पड़ी।
    "आह, बचाओ! प्यारी चुलबुल, प्लीज रुक जाओ! पानु को डर लग रहा है।"

    वह लड़की अपनी मासूम सी आवाज़ में भैंस से बोली। लेकिन ऐसा लग रहा था, आज उसकी शैतानी उसे बहुत भारी पड़ने वाली थी। वह बेसंदेह 6-7 साल की छोटी सी, क्यूट प्रिंसिस की तरह नज़र आती थी। लेकिन उसने जब वह भैंस अपनी प्यारी सी नींद ले रही थी, उसकी पीठ पर चढ़कर उसे परेशान करने की गुस्ताखी की थी।

    इस वक्त भैंस और भी बेकाबू हो गई; उसकी आँखें लाल हो उठीं, और वह तेज़ी से खेत के किनारे की ओर भागी। बच्ची की पकड़ ढीली पड़ गई, और अचानक वह हवा में झूल गई।

    छोटी पावनी की एक दर्दनाक चीख निकल गई, परन्तु हवा में नीचे गिरने से पहले ही, कुछ ऐसा हुआ जो उसकी छोटी-सी समझ से परे था।

    एक काली छाया, बिजली की तेज़ी से लहराती हुई, अंधकार में से प्रकट हुई। समय जैसे थम सा गया। वह छाया इतनी तेज़ थी कि उसकी आँखों ने इसे देख भी नहीं पाया, बस हवा में एक हल्की सरसराहट महसूस हुई।

    पलक झपकते ही वह बच्ची किसी की मजबूत बाहों में थी। गर्म साँसों की हल्की सरसराहट उसकी गर्दन पर महसूस हुई।

    उसने हड़बड़ाकर ऊपर देखा—एक अजीब-सा आदमी... नहीं, इंसान से कुछ ज़्यादा। उसकी त्वचा चाँदनी जैसी सफ़ेद थी, आँखें गहरी लाल—रक्त के रंग जैसी। लम्बे, धारदार नुकीले दाँत उसके होठों के पीछे चमक रहे थे। उसके होठों पर उसे देखते ही अचानक हल्की मुस्कान खिल गई थी, लेकिन पावनी का डर के मारे बुरा हाल हो गया था।

    "तुम... तुम कौन हो?" बच्ची की आवाज़ काँप उठी।

    वह अजनबी उसे देखता रहा; उसकी आँखों में एक गहरा रहस्य था। फिर धीमे से फुसफुसाया—
    "जो हुआ उसे भूल जाओ, बेबी गर्ल।"

    पावनी की आँखें अचानक उसकी उन खूंखार नज़रों में मजबूरन खोने लगी थीं।

    भैंस अब शांत हो गई थी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे वश में कर लिया हो। हवा में हल्की ठंडक भर गई, और वह वैम्पायर धीरे-धीरे बच्ची को ज़मीन पर उतारने लगा।

    "अब तुम सुरक्षित हो," उसने कहा; उसकी आवाज़ किसी सम्मोहन जैसी थी।

    बच्ची ने नीचे जमीन पर से अपनी ओझल होती नज़रों से उसे दूर जाते हुए देखा, लेकिन उसके दिल की धड़कन अभी भी तेज़ थी।

    "आखिर कौन था वो?"

    तभी पावनी हड़बड़ाते हुए एकदम से उठकर अपने बिस्तर पर बैठ गई और उसने अपने सीने को थाम लिया और लम्बी-लम्बी साँस लेने लगी।

    उसने जोर से अपना सिर दबाया और बड़बड़ाई—
    "क्या यार! पिछले 10 सालों से एक ही सपना देख-देखकर मैं अब बहुत बोर हो गई हूँ। एक तो उस गोबलिन का चेहरा मुझे याद ही नहीं आता।"

    फिर उसने अलसाई नज़रों से अपने पूरे कमरे की तरफ़ देखा और अपने चीक्स को दोनों हाथों के बीच सजाकर बोली—
    "V, आज तो मैं तुम्हारा हैंडसम चेहरा बनाकर ही रहूँगी। खबरदार गोबलिन, जो इस बार तुम मेरे और V के बीच में आए।"

    ये कहते हुए वह सामने वॉल पर टंगी हुई एक अधूरी पेंटिंग को देख रही थी। उस पेंटिंग का चेहरा ही नहीं था और वह बहुत अजीब लग रहा था।


    देहरादून, उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों में बसा एक शांत और सुरम्य शहर, अपने प्राकृतिक सौंदर्य और शांतिपूर्ण वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। चारों ओर फैले घने जंगल, हिमालय की चोटियों से बहती ठंडी हवाएँ, और हर सुबह सुनाई देने वाली पक्षियों की चहचहाहट इसे और भी मनमोहक जगह बनाती हैं। देहरादून की सड़कों पर दौड़ती गाड़ियाँ, पलटन बाज़ार में गूंजती बातचीत, और दूर पहाड़ियों से टकराकर आती नदी की आवाज़ इस शहर को जीवंत बनाती है।

    इसी शहर के एक छोर पर एक छोटी पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है, आशीर्वाद अनाथालय। और इसी अनाथालय के छत्रछाया में पली-बढ़ी है हमारी प्यारी सी चुलबुली लड़की पावनी।

    वैसे तो यह जगह दिखने में काफी साधारण ही लगती थी, लेकिन यह पावनी की तरह कई अनाथ बच्चों का आशियाना था, उनका घर था यह। चारों ओर पेड़ों की हरियाली से घिरा हुआ, यह अनाथालय पुराने लेकिन मज़बूत पत्थरों से बना था। यहाँ मुख्य द्वार पर "आशीर्वाद अनाथालय" का नाम नीले रंग में लिखा हुआ था और उसके नीचे एक छोटा सा मंत्र—"हर बच्चे में भगवान का वास होता है"—लिखा गया था।

    अनाथालय के भीतर एक बड़ा आंगन था, जो हमेशा बच्चों के हँसी-ठिठोली की चिलकारी से गूँज उठता था। बाईं ओर एक छोटा सा पुस्तकालय था, जिसमें दान की गई किताबें और कहानियों से भरी अलमारियाँ विराजमान थीं। दाईं ओर एक छोटा सा बगीचा था, जहाँ बच्चे अपने हाथों से लगाए गए फूलों और सब्जियों की देखभाल करते थे।

    आशीर्वाद अनाथालय न केवल एक जगह थी, बल्कि उन बच्चों के लिए उम्मीद का घर था, जो अपनी ज़िन्दगी में किसी न किसी तरह से टूट चुके थे। यहाँ हर सुबह की शुरुआत सामूहिक प्रार्थना से होती थी और हर रात की समाप्ति कहानियों और हँसी के साथ।


    इस वक्त पावनी अपने कमरे की खिड़की के पास लगे एक पुरानी मेज़ पर बैठी हुई थी। उसके सामने एक कागज़ रखा हुआ था। इस वक्त वह उस कागज़ पर ध्यानमग्न होकर एक स्केच बना रही थी।

    इस पूरे कमरे की दीवारें उसके द्वारा बनाए गए रहस्यमयी ड्रॉइंग्स से भरी हुई थीं; जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता था कि वह गोथिक आर्ट की कितनी बड़ी शौक़ीन थी। और सचमुच एक-दो को छोड़कर बाकी ड्रॉइंग्स को देखकर ऐसा लगता था जैसे उन्हें किसी प्रोफ़ेशनल आर्टिस्ट ने बनाया है। और मानो हर एक पेंटिंग के पीछे अपना ही कोई रहस्यमयी कहानी छुपा हुआ हो।

    पावनी दिखने में काफी सुन्दर थी; उसकी गहरी काली आँखें और चेहरे पर हल्की मुस्कान उसे एक ड्रीमगर्ल वाली छवि देती थी। इस वक्त उसके बालों की लटें बार-बार चेहरे पर गिर रही थीं, जिन्हें वह बार-बार पीछे हटा रही थी।

    तभी अचानक उसके हाथ स्केच करते हुए रुक गए और उसने अपनी गोल-मटोल आँखों को टिमटिमाते हुए उस स्केच पेपर पर बने उन दो जोड़ी आँखों को गौर से देखा और मन ही मन बुदबुदाई—
    "ये आँखें ऐसी तो नहीं बननी चाहिए थीं। मेरा प्यारा सा V, उसकी आँखें ऐसी तो नहीं दिखतीं! अब ये मैंने किसकी आँखें बना दी?"

    फिर वह एक गहरी साँस लेकर वहीं साइड में रखे अपने फ़ोन के स्क्रीन पर BTS के V की स्केच को एकटक देखने लगी, जिसे देखकर वह यह स्केच बना रही थी।

    लेकिन V की आँखें और इन आँखों में तो ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ नज़र आ रहा था। उसने हल्के से अपना माथा रब करते हुए वापस अपने बनाए गए उस स्केच को देखा और मासूम सा चेहरा बनाकर बोली—
    "अरे यार! अब ये किस जानवर की आँखें बना दी मैंने? आखिर कहाँ देखा था मैंने इन आँखों को? गोबलिन की तो नहीं लग रही हैं ये आँखें। आह, फ़रगेट इट! वैसे भी मुझे हमेशा ही बनाना कुछ और होता है, लेकिन मुझसे बन कुछ और ही जाता है। खैर, चलो अब एक बार इसे ही कम्प्लीट करके देखते हैं। मैं भी तो देखूँ अब क्या बनता है।"

    फिर वह अपना सिर झटककर वापस से उस स्केच को बनाने में मग्न हो गई थी।

    तभी एक छोटी सी बच्ची भागते हुए उस कमरे में आती हुई, उसके हाथ में रंग-बिरंगे बलून्स थे, जिनके पीछे वह डॉल सी दिखने वाली बच्ची लगभग आधी छिपी हुई थी।

    इतने में वह छोटी बच्ची चहकते हुए बोली—
    "पानु दीदी! आप यहाँ क्या कर रही हो? जल्दी नीचे चलो न! सब आपको बुला रहे हैं।"

    उस क्यूट सी बेबी को देखकर पावनी मुस्कुराते हुए बोली—
    "नीचे? क्या हुआ रिहा? अरे वाह! सुबह-सुबह आपको आज ये इतने सारे कलरफुल बलून्स किसने दिए हैं?"

    छोटी बच्ची, जिसका नाम रिहा था, वह यहाँ कोई 5 साल की होगी, वह थिरकते हुए उसके सामने आकर रुकी और उन बलून्स के एक साइड से उसे अपनी छोटी-छोटी आँखों से झाँकते हुए बोली—
    "ओफ्फो! माँ तो आपको बहुत इंटेलिजेंट समझती है पानु दीदी, लेकिन आपको तो इतना भी नहीं पता कि आज आपका हैप्पी वाला बर्थडे है। रीहा तो ये बलून आपके लिए ही तो लाई थी?"

    फिर वह आगे क्यूट सा फेस बनाकर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए बोली—
    "उप्पस! मुझे तो माँ ने इन सरप्राइज़ के बारे में आपको बताने से साफ़ मना किया था। सुनो पानु दीदी, आप मुझे माँ के सामने एक्सपोज़ तो नहीं कर दोगी ना?" कहते हुए वह एकदम बेहद मासूम चेहरा बनाकर उसे देख रही थी।

    अपनी वन ऑफ़ द फ़ेवरेट डॉल रिहा की इन प्यारी-प्यारी बातों को सुनकर पावनी की आँखों में हल्का सा आश्चर्य और खुशी झलक गई।

    पावनी तुरंत मेज़ से नीचे उतरी और हल्का सा झुकते हुए उसने रिहा के हाथों से उन बलून्स को छुड़ाकर वहीं अपने बिस्तर की तरफ़ उड़ा दिया और फिर उसके छोटू से नोज़ को क्यूटली टॉस करते हुए बोली—
    "आज तक कभी इस पानु दीदी ने रिहा बेबी की कोई सी भी सीक्रेट्स किसी के सामने रिवील की है? बताओ मुझे?"

    उसकी यह बात सुनकर रिहा अपने चीक्स पर एक उंगली टिकाकर फिर धीरे-धीरे टैप करते हुए कुछ सोचते हुए बोली—
    "उम्म... रिहा ने भी तो अपनी पानु दीदी की सारी टॉप सीक्रेट अपने छोटू से दिल में छुपाकर रखा हुआ है।"

  • 4. Kissed by the Curse - Chapter 4

    Words: 1725

    Estimated Reading Time: 11 min

    उस छोटी बच्ची के मुंह से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुनकर पावनी की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसने तुरंत उसे अपनी गोद में उठाकर कहा, "Aww, थोड़ा मुझे भी तो बताओ। हमारी रिहा ने पानु दीदी की कौन सी टॉप सीक्रेट अपने इस बेबी हार्ट में छुपाकर रखा हुआ है?" कहते हुए वो उसके पेट में हल्के से टिकलिंग करते हुए उसे देख रही थी।

    रिहा उसके बाहों में क्यूट सी जैली फिश की तरह मचलते हुए बोली, "अरे पहले रिहा को टिकलिंग करना तो बंद करो, वरना वो बोलेगी कैसे?"

    पावनी उसे चुपचाप देख रही थी। ये आजकल के बच्चे सचमुच कुछ ज्यादा ही एडवांस हो गए थे। रिहा भी उसे छोटा सा पाउट बनाकर देख रही थी।

    पावनी ने उसे देखकर क्यूट सा फेस बनाते हुए कहा, "अब किसका इंतज़ार है? अब तो बता दो मुझे पानु दीदी के सीक्रेट्स।"

    यह सुनकर रिहा अपने मुँह के आगे एक हाथ लगाते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोली, "अरे बद्दू! इतना भी नहीं पता? टॉप सीक्रेट कभी किसी को नहीं बताते, लेकिन मैं जानती हूँ आप रोज़ नाईट में माँ से छुपकर आइसक्रीम खाती हो और..."

    इतने में पावनी सदमे में आकर उसके मुँह पर धीरे से अपना एक हाथ रखकर उसे चुप कराया और कहा, "अरे बस, बस, बस! मेरी थंडरस्टॉर्म! ऐसे सीक्रेट्स बातें खुलेआम बोलने की नहीं होतीं। वैसे रिहा, अब मुझे हैप्पी बर्थडे विश कौन करेगा? तुमने तो मुझे अभी तक विश किया ही नहीं।" और यह कहते हुए उसने उसे देखकर झूठमूठ नाराज़ होते हुए अपना गुब्बारे जैसा मुँह फुला लिया।

    रिहा ने उसे देखकर कुछ सोचते हुए कहा, "अरे ये भी कोई पूछने वाली बात है? रिहा ही करेगी ना अपनी फेवरेट पानु को सबसे पहले विश, और कौन करेगा? लेकिन एक मिनट, पहले मुझे नीचे तो उतारो, जल्दी-जल्दी।"

    फिर जब पावनी ने उसे नीचे उतारा, तो रिहा जल्दी से जाकर बेड के सामने से एक रेड कलर का हार्ट शेप्ड बलून उठाकर लाई और बलून उसकी तरफ बढ़ाकर अपनी प्यारी सी आवाज़ में बोली, "हैप्पी बर्थडे पानु दीदी, रिहा की तरफ़ से आपके लिए ये बलून और..." फिर वो अपने पॉकेट में कुछ ढूँढ़ने लगी। फिर आखिरकार एक पेज उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोली, "ये गिफ्ट भी मेरी तरफ़ से ख़ास आपके लिए बनाया है मैंने।"

    पावनी उसके सामने घुटनों के बल बैठ गई। फिर मुस्कुराते हुए उसने उस बलून को लिया। फिर उस पेज को लेकर उसे खोलकर देखने लगी। उसमें रिहा ने अपनी कलाकारी करते हुए इस आश्रम के साथ, माँ के साथ, उसकी और अपनी तस्वीर बनाने की नाकाम कोशिश की थी।

    उसकी क्यूट सी ड्राइंग देखकर पावनी का मन भर आया था। उसकी आँखों में नमी आ गई थी। लेकिन उसने हमेशा की तरह अपने आँसुओं को छुपा लिया और रिहा को पकड़कर उसे जोर से अपने सीने से लगा लिया। अपने आँसुओं को साफ़ करते हुए बोली, "ओ मेरी एंजेल! थैंक यू बच्चा, ये गिफ्ट मेरे लिए लाइफ़टाइम सबसे बेस्ट रहेगा, बिल्कुल तुम्हारी तरह। ओ रिहा, तुम इतनी क्यूट क्यों हो, हाँ?" यह कहते हुए वो उससे अलग होकर उसके क्यूट से चीक्स को छूते हुए उसे देखने लगी।

    रिहा भी बेहद क्यूट सी स्माइल करते हुए उसके चीक्स को पकड़कर बोली, "अभी मैं क्यूट हूँ, लेकिन मैं भी बड़ी होकर आपकी तरह सुंदर बनूँगी।" यह सुनकर पावनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई और वो उसके शोल्डर को थपथपाते हुए बोली, "अच्छा, तुम्हें इतनी बड़ी-बड़ी बातें आखिर सिखाता कौन है, हाँ? चलो अब जाकर देखते हैं सब लोग क्या कर रहे हैं।"

    फिर थोड़ी देर बाद वो रिहा को लेकर अपने रूम से बाहर आ गई थी। यहाँ अनाथालय का पूरा हॉल आज आर्टिफिशियल फ्लावर्स और गुब्बारों से सजाया गया था।

    तभी पावनी जैसे ही रिहा के साथ वहाँ आई, तो छोटे-छोटे बच्चे दौड़ते हुए उसके पास आए और एक-दूसरे का हाथ पकड़कर उसके चारों ओर गोल-गोल घूमते हुए "हैप्पी बर्थडे टू यू" वाला सांग गुनगुनाने लगे। रिहा भी पावनी का हाथ छोड़कर उनमें शामिल हो गई थी।

    पावनी इस वक्त बेहद खुश नज़र आ रही थी और वो भी उन बच्चों के साथ ही क्लिपिंग करते हुए गोल-गोल घूमते हुए गा रही थी।

    वहीं एक पुराने टेबल पर एक साधारण सा केक रखा था, जो बच्चों ने इतनी सारी कलाकारी करते हुए खुद उसके लिए बनाया था। वहीं पास ही पावनी का एक हमउम्र लड़का खड़ा था, जो कैमरे से यह सब कैप्चर कर रहा था। वहीं साइड में दो औरतें खड़ी हुई थीं। उनमें से एक औरत, जो उम्र में थोड़ी बड़ी और सौम्य नज़र आ रही थी, वो शांति जी थीं, यानी इस अनाथालय की मुखिया। उन्हें यहाँ सभी माँ कहकर सम्बोधित किया करते थे। और दूसरी उनके साथ खड़ी, रमा जी, वो यहाँ की संरक्षिका थीं।

    यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि उन दोनों स्त्रियों ने ही इस आश्रम को अपने स्नेह और लाड़-प्यार से सम्भाला हुआ था। और ये सारे बच्चे उनके जैसे खुद के बच्चे थे।

    लेकिन पावनी माँ के लिए उनकी 'सब कुछ' थी। वो इस वक्त पावनी को खुश देखकर एक तरफ खड़ी मुस्कुरा रही थी।

    तभी रमा जी ने एक गहरी साँस लेकर शांति जी से कहा, "ये वक्त भी कितनी जल्दी बदल जाता है ना? अभी भी इस लड़की को देखती हूँ तो लगता है जैसे अभी कल की बात हो।"

    जिस पर शांति जी बोलीं, "सही कहा तुमने रमा, ये हमारे इस घर की रौनक है। पता नहीं जब ये यहाँ से चली जाएगी तो कैसे रह पाएँगे हम, इसकी आदत लग गई है।" कहते हुए वो पल्लू से अपने आँसुओं को साफ़ करने लगीं।

    तभी रमा जी ने उनके कंधे पर धीरे से हाथ रखते हुए कहा, "आपने सही कहा। हमारी पानु है ही इतनी प्यारी कि पल भर में वो सबका मन मोह लेती है। उसके बिना हमारा मन तो नहीं लगेगा, लेकिन फिर भी उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसका यहाँ से बाहर निकलना ज़रूरी है।"

    जिस पर शांति जी बोलीं, "तुम सही कहती हो रमा, हम उसे यूँ अपने मोह में बाँध नहीं सकते। उसके सपने बहुत बड़े हैं और मैं चाहती हूँ कि उसे ज़िंदगी में सब कुछ मिले।" कहती हुई वो हल्के से मुस्कुरा देती हैं, जिस पर रमा जी भी मुस्कुरा देती हैं।

    तभी पावनी भागते हुए उनके पास आ गई और बोली, "माँ, काकी! इतनी सारी डेकोरेशन की क्या ज़रूरत थी, हाँ?" फिर उसने पहले शांति जी से आशीर्वाद लिया और बाद में रमा जी से।

    उन दोनों ने भी उसे भर-भरकर आशीर्वाद दिया और उसे केक काटने के लिए कहा।

    इतने में कैमरे के पीछे से पावनी का जिगरी यार निशान मुस्कुराते हुए उससे कहा, "हैप्पी बर्थडे टू यू पानु।"

    जिस पर पावनी ने नाक चढ़ाकर कहा, "एक्सक्यूज़ मी! तुम हो कौन? मैं तो तुम्हें जानती तक नहीं। देखो तो ये फ़ोटोग्राफ़र कितना फ़ॉर्मल बिहेव कर रहा है।"

    यह सुनकर निशान उससे माफ़ी माँगते हुए बोला, "अरे यार पानु! सुबह-सुबह इतने अच्छे टाइम पर ऐसी अशुभ बातें तो मत करो। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दे यार, मैं कसम से तुम्हारा बर्थडे भुला नहीं था, बस मुझे आज का डेट याद नहीं था। तुम तो जानती हो ना मेरा मैथ्स।"

    लेकिन पावनी ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, "हूह! भुलक्कड़ कहीं का।" और उसके साथ-साथ रिहा और सभी बच्चे भी "भुलक्कड़, भुलक्कड़" कहकर निशान को चिढ़ाने लगे। यह देखकर निशान का मुँह ही बन गया था। वहीं रमा जी और शांति जी साइड में खड़ी इनकी हरकत पर मुस्कुरा रही थीं।

    वैसे निशान होने को तो पावनी का बचपन का मित्र था और उसका सहपाठी भी था। और वो रमा जी का इकलौता अडॉप्टेड सुपुत्र भी था, तो उसे इस आश्रम में सभी बहुत प्यार करते थे। लेकिन वो अपनी आदत से मजबूर, हमेशा की तरह पावनी का बर्थडे आज भी भूल गया था। वो तो अच्छा था कि उसे रमा जी ने सुबह-सुबह याद दिला दिया था। लेकिन पावनी उससे इसी बात को लेकर नाराज़ थी, क्योंकि वो उसे उससे बेहतर जानती थी।

    तभी माँ पावनी से बोली, "पानु, ये सब छोड़ो बेटा। क्या तुम जानती हो ये केक किसने बनाया है? तुम्हारे इन नन्हें-मुन्ने कलाकारों ने। देखकर बताओ तो डेकोरेशन कैसा है?"

    पावनी एक नज़र उस अतरंगी केक को देखकर फिर भावुक होकर बच्चों को देखने लगी। उसकी आँखें भर आई थीं। उसने हाथ जोड़कर आँखें बंद कीं और विश माँगा। फिर रुंधी आवाज़ में उसी तरह से बोली, "ये केक वर्ल्ड का सबसे बेस्ट केक है माँ। अरे यार! तुम सबने मेरे लिए इतना सब किया? मैं... मैं क्या कहूँ? ये मेरे लिए सबसे ख़ास दिन है।" कहती हुई वो वहाँ पर मौजूद सभी को देख रही थी।

    तभी शांति जी आगे बढ़कर पावनी को गले लगाते हुए बोलीं, "बेटा, तुम... तुमसे ही तो इस घर में रौनक है। तुम जानती हो ना, तुम्हारे बिना ये घर कितना अधूरा है। चलो अब इमोशनल नहीं होते, चलकर केक काटो अब, रोना नहीं है आज के दिन, शाबाश मेरी प्यारी बेटी।"

    जिस पर पावनी ने अपने होठों को दबाकर खुद के भावनाओं को काबू करते हुए अपना सिर हिलाया। फिर पावनी और बच्चे मिलकर केक काटा। यहाँ का माहौल खुशी से भर गया था।

    जब पावनी कैमरामैन निशान को छोड़कर वहाँ पर मौजूद एक-एक को केक खिलाते हुए रमा जी के पास पहुँची, तो रमा जी पहले उसे केक खिलाकर फिर हल्की हँसी के साथ बोलीं, "पानु, अब केक के बाद तुम्हारे हाथों का बना गरमा-गरम अदरक वाली चाय पीऊँगी मैं।"

    पावनी हँसते हुए बोली, "काकी! ये भी कोई कहने की बात है? आप जो कहेंगी, वही होगा आज। कसम से बहुत ज़्यादा सुप्रीम फ़ील हो रहा है मुझे आज।" ये कहते हुए वो शांति जी को देखने लगीं, जो उन्हें अपनी सख्त निगाहों से घूर रही थीं, क्योंकि डॉक्टर ने रमा जी को कैफ़ीन लेने से साफ़ मना किया हुआ था।

    खैर, पूरे घर में खुशी का यह माहौल छाया हुआ था। सभी बच्चे पावनी को अपनी-अपनी लर्न की हुई पोयम सुना रहे थे। लेकिन इसी बीच जब शांति जी अचानक लड़खड़ाकर बेहोश होकर गिर गईं, तो हॉल में एकदम से सन्नाटा छा गया।

    पावनी जोर से चिल्लाई, "माँ!"

    ***

    तो क्या हुआ था शांति जी को और क्या लिखा था पावनी की ज़िंदगी में? आखिर कौन थी पावनी? जानने के लिए बने रहिए और कहानी कैसी लग रही है, मुझे कमेंट करके बताना मत भूलिए। धन्यवाद