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"फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!)

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Farheen Rajput

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आधी रात के समय चारों ओर काला अँधेरा छाया हुआ था। तेज़ बारिश हो रही थी और तेज़ बिजली गरज रही थी। बिजली की कड़क इतनी ज़ोरदार थी कि किसी का भी दिल दहल सकता था। इसी बीच, एक लड़की, लाल कपड़े पहने, एक सुनसान सड़क पर भाग रही थी। वह भागते हुए बार-बार पीछे मु...

Total Chapters (58)

Page 1 of 3

  • 1. "फना".....(द अनब्रेकेबल प्रॉमिस🤞)..... Chapter 1

    Words: 1055

    Estimated Reading Time: 7 min

    आधी रात थी। घने काले अंधेरे में तेज बारिश की बौछार और गरजती बिजली किसी का भी दिल दहला सकती थी। सड़क पर एक लड़की, लाल कपड़े पहने, बदहवास सी, उस सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी। वह बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी, मानो कोई उसका पीछा कर रहा हो। अचानक, उसकी नज़र सड़क किनारे चाय की टपरी के पास खड़ी एक काली गाड़ी पर पड़ी। वह उसमें छिपने के लिए गाड़ी की ओर बढ़ी। उसकी किस्मत अच्छी थी; गाड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था। वह इधर-उधर देखते हुए गाड़ी की सीट पर छिप गई और दरवाज़ा बंद कर लिया।

    कुछ देर बाद, ड्राइवर साइड का दरवाज़ा खुला और गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी। उस जगह से दूर आकर लड़की ने राहत की साँस ली, लेकिन अब उसे इस गाड़ी से बाहर निकलने का तरीका सोचना था। अंधेरे के कारण वह गाड़ी चला रहे शख्स को नहीं देख पा रही थी। गाड़ी तेज रफ्तार से दौड़ रही थी जब अचानक वह एक शानदार बंगले के सामने जाकर रुक गई। हूडी वाली जैकेट पहने एक शख्स ने गाड़ी की खिड़की का शीशा नीचे उतारा। उसने बंगले के अंदर एक कमरे की खिड़की से एक शख्स को देखा जो फोन पर था।

    अगले ही पल, खिड़की के शीशे को चीरती हुई एक गोली सीधे उस शख्स के सीने में जा लगी, और खिड़की पर खून की बूँदें उछल पड़ीं। गाड़ी में बैठा शख्स साइलेंसर लगी अपनी बंदूक को अपनी पॉकेट में रखता है, और किसी को फोन करके काम पूरा होने की सूचना देता है। अगले ही पल गाड़ी सड़क पर वापस दौड़ गई। गाड़ी में मौजूद लड़की यह सब देखकर स्तब्ध रह गई थी, और उसने अपने मुँह को दोनों हाथों से दबा लिया था।

    तभी गाड़ी फिर से एक सुनसान जगह जाकर रुक गई और वह शख्स गाड़ी से उतर गया। लड़की गाड़ी से बाहर निकलने का मौका ढूँढ़ रही थी। जब उसने धीरे से अपना सिर उठाकर खिड़की से बाहर देखा, तो वह शख्स गाड़ी के बाहर, लड़की की तरफ़ वाली साइड में, गाड़ी से पीठ लगाकर खड़ा था। उसके होंठों के बीच सिगरेट दबी हुई थी, जिसे वह लाइटर से जला रहा था। लेकिन अंधेरे के कारण वह उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पा रही थी। एक पल बाद, उस लड़की की साँस अटक गई जब उस शख्स की सर्द आवाज़ उसके कानों में पड़ी:

    "बाहर आओ!!"

    एक पल के लिए उसे लगा कि शायद वह किसी और से कह रहा है, लेकिन अगली बार उसकी खतरनाक आवाज़ से उसे साफ समझ आ गया कि वह उसे ही बुला रहा है। वह डरते-डरते बाहर निकल आई।

    "मैं तुमसे ही कह रहा हूँ, बाहर आओ मेरी गाड़ी से!!"

    काँपते दिल और डर से सूखे गले से, वह लड़की धीरे से गाड़ी से बाहर निकली। लेकिन अगले ही पल, उसकी आँखों के आगे काले धब्बे दिखाई देने लगे, और उसकी आँखें झपकने लगीं। वह खुद को जमीन पर गिरते हुए महसूस कर रही थी, लेकिन कुछ पल बाद, उसे जमीन पर नहीं, बल्कि मज़बूत हाथों की गिरफ्त में महसूस हुआ। उसी के साथ, उसकी आँखों के सामने पूरी तरह अंधेरा छा गया, और उसकी आँखें बंद हो गईं।

    दूसरी तरफ, हुडी वाला आदमी उस लड़की को गिरते हुए देखता है, और उसके जमीन पर गिरने से पहले ही उसे अपनी बाहों में थाम लेता है। वह उस लड़की के चेहरे को गौर से देखने लगता है: लाल सूट, साँवला रंग, तीखी नाक में एक छोटी सी बाली, बारीक होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक, माथे पर छोटी सी बिंदी, बड़ी-बड़ी आँखें, घनी पलकें, और कुछ बाल जो उसकी चोटी से बाहर निकल रहे थे और गीले होने की वजह से उसके चेहरे से लिपट रहे थे। वह उसे ऐसे ही लिए हुए था कि तभी वहाँ एक शख्स अपनी बाइक से आता है।

    दूसरा शख्स (लड़की की तरफ़ इशारा करते हुए): "यह लड़की कौन है, राधे?"

    राधे (लड़की को अपनी गोद में उठाते हुए): "पता नहीं!"

    दूसरा शख्स: "फिर यह तुम्हारे साथ क्या कर रही है? वैसे तो तू बड़ा रफ़ एंड टफ़ बनता फिरता है, किसी लड़की को अपने आस-पास नहीं भटकने देता, और अकेले में ऐसे एक लड़की को अपनी गोद में उठाए हुए... आखिर माज़रा क्या है? (ड्रामा करते हुए) मेरी पीठ पीछे तू यह गुल खिला रहा है... हे भगवान!!"

    राधे: "ऐसा कुछ नहीं है, विहान। यह मेरी गाड़ी में छिपी हुई थी, और इससे पहले कि मैं इससे कुछ पूछता, यह बेहोश हो गई!"

    विहान (शरारती मुस्कान के साथ): "हूँ, हूँ। क्या बात है, अकेले में लड़की और तू, और ऊपर से यह खूबसूरत जवा मौसम... उफ़्फ़! उफ़्फ़!!"

    राधे (विहान की तरफ़ घूरते हुए): "अगर एक मिनट और तेरी बकवास चालू रही ना, तो पिस्तौल में बची सारी गोलियाँ तेरे भेजे के अंदर ही फिट कर दूँगा!!"

    विहान (अपने हाथ उठाते हुए): "ओ, ओ... कूल डाउन, डार्लिंग, कूल डाउन। आई एम जस्ट जोकिंग। (अपने दाँत दिखाते हुए) मैं जानता हूँ तू सिर्फ़ मेरी मोहब्बत है और मुझे कभी धोखा नहीं दे सकती!!"

    राधे विहान की ड्रामाबाज़ी को छोड़कर गाड़ी की तरफ़ बढ़ा और बैक सीट पर उस लड़की को लेटाकर सावधानी से दरवाज़ा बंद कर दिया।

    विहान (राधे के कंधे पर हाथ रखकर): "डार्लिंग, तुझे नहीं लगता कि जो तू सोच रहा है, वह थोड़ा रिस्की है?"

    राधे: "मेरे पास कोई और ऑप्शन नहीं है!!"

    अगली सुबह जब उस लड़की की आँख खुली, तो वह खुद को एक अनजान जगह पाती है। वह एक छोटे से कमरे में थी, जिसमें ज़रूरत का सामान था। खिड़की से आती धूप से कमरे में रोशनी भर गई थी। वह लड़की सहमी हुई थी। कुछ पल बाद उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। दरवाज़े की आवाज़ और कदमों की आहट सुनकर वह सहमते हुए बिस्तर पर बैठ गई।

  • 2. "फना".....(द अनब्रेकेबल प्रॉमिस🤞!) - Chapter 2

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    अगली बार जब उस लड़की की आँख खुली, तो वह खुद को एक नई जगह में पाती थी। उसने अपने आस-पास देखा; वह एक छोटे से कमरे में थी, जिसमें ज़रूरी सामान रखे हुए थे। खिड़की से आती सुबह की धूप से कमरे में काफी रोशनी थी। अनजान जगह पर होने की वजह से वह सहमी-सहमी सी लग रही थी। कुछ पल बाद, उसके कमरे का दरवाज़ा खुला; उसकी आवाज़ और कदमों की आहट सुनकर वह सहमते हुए बिस्तर पर बैठ गई और खुद में सिमट गई। कुछ ही पल में, उसकी नज़रों के सामने विहान, नाश्ते की ट्रे लेकर आ गया। वह मध्यम कद-काठी का, हैंडसम, लाल शर्ट और काले पैंट में, शरारत भरी आँखों और होंठों पर बड़ी सी मुस्कान लिए, बिस्तर पर नाश्ते की ट्रे रख गया।

    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): "गुड मॉर्निंग! आह... तुम्हारा नाम?" (लड़की को खामोश देखकर) "खैर, जो भी हो... मेरी तरफ़ से तुम आज से बसंती। तो बसंती, सबसे पहले नाश्ता कर लो, फिर कोई बात करेंगे।" (लड़की को खामोश और सहमी देखकर विहान फिर बोलता है) "अरे, तुम इतनी डरी क्यों हुई जा रही हो? जस्ट रिलेक्स, बसंती, और तुम..."

    विहान अभी कह ही रहा था कि दरवाज़े से राधे अंदर आ गया। उसकी आहट सुनकर लड़की और विहान दरवाज़े की तरफ़ देखते हैं। लड़की की नज़रें राधे पर पड़ती हैं: लगभग 27-28 साल का, काली शर्ट और नीली जीन्स पहने, गोरा रंग, गुलाबी होंठ, थोड़े लंबे बाल जिनकी पोनी बनाई हुई थी, गंभीर और बड़ी-बड़ी खूबसूरत सुरमई आँखें, और हल्की दाढ़ी, जो उसके चेहरे की खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। राधे के कमरे में आते ही, लड़की और भी सहम गई। राधे विहान से इशारे में कुछ काम करने के लिए कहता है, और विहान वहाँ से चला जाता है। यह देखकर लड़की और घबरा जाती है और अपनी नज़रें नीचे कर लेती है। लेकिन जब राधे की आवाज़ उसके कानों में पड़ती है, तो उसका दिल डर से उछल पड़ता है, क्योंकि यह वही ठंडी आवाज़ थी जिसकी गाड़ी में वह कल रात छिपी थी और जिसने उसकी आँखों के सामने किसी की जान ली थी।

    राधे: "नाम क्या है तुम्हारा?"

    लड़की (घबराते हुए): "र...र...र...रव्या!"

    राधे: "मेरी गाड़ी में क्या कर रही थीं तुम?"

    लड़की (अपनी हथेलियों को घूरते हुए): "ह...हमारे पी...पीछे कु...कुछ लोग पड़े थे, इसीलिए ह...हम आ...आपकी गाड़ी में छिप गए थे!"

    रव्या जब राधे की बात सुनती है, तो पहली बार अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों से राधे को देखती है। राधे की नज़रें भी उसकी आँखों पर ही टिकी हुई हैं, जिनमें उसकी बात सुनकर आँसू उभर आए हैं।

    राधे (खड़े होकर ट्रे रव्या के आगे रखते हुए): "पहले कुछ खा लो, फिर शायद तुम ठीक से कह पाओगी।"

    रव्या: "ह...हमें फ्रेश होना है!"

    राधे कमरे के बाहर एक छोटे से दरवाज़े की तरफ़ इशारा करता है, और रव्या चुपचाप उठकर उस तरफ़ चली जाती है। कुछ देर बाद रव्या कमरे में वापस आती है, और राधे उसे चाय पीने का इशारा करता है। लेकिन रव्या घबराई हुई अपनी उंगलियों में अपने दुपट्टे के कोने को घुमाने लगती है और अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखों से उस कप को घूरती रहती है।

    राधे: "क्या हुआ? कोई परेशानी है?"

    रव्या (राधे की तरफ़ देखकर): "हम यह चाय नहीं पी सकते!"

    राधे (असमंजस से): "क्यों?"

    रव्या (घबराते हुए): "क्यों...क्योंकि हमने बहुत बार देखा है कि..."

    राधे: "कि?"

    रव्या (मासूमियत भरे लहजे में): "कि लोग चाय या खाने में कुछ मिलाकर खिला देते हैं और फिर उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं!"

    राधे: "और ऐसा तुमने कहाँ देखा?"

    रव्या: "एक-दो बार टीवी में देखा है। ऐसा ही होता है, या फिर उनको मारकर फेंक देते हैं, और आपने तो कल रात को भी..."

    रव्या को जब एहसास होता है कि वह क्या बोलने जा रही थी, तो वह जल्दी से अपने मुँह पर हाथ रख लेती है। यह देखकर और उसकी बात सुनकर, राधे के गंभीर चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है, जो उसे और भी आकर्षक बना रही थी और उसके चेहरे पर बहुत जँच रही थी।

    राधे: "अच्छा, अगर बस यही परेशानी है, तो मैं अभी सॉल्व कर देता हूँ!"

    इतना कहकर राधे चाय की केतली से कप में चाय निकालकर पीने लगता है और साथ ही ट्रे में रखे सारे नाश्ते के सामान को भी थोड़ा-थोड़ा चखता है।

    राधे (रव्या की तरफ़ देखकर): "अब तो यह पूरी तरह सेफ है, तो तुम खा सकती हो...नई?"

    रव्या मासूमियत से अपनी गर्दन हाँ में हिला देती है, और राधे के इशारा करने पर चाय का कप उठाकर नाश्ता करने लगती है। खाते वक़्त वह अपने आस-पास के माहौल को बिल्कुल भूल गई थी और बस अपने खाने में मगन थी। लगभग उसने पूरी ट्रे का खाना खा लिया था। नाश्ता करने के बाद जब वह अपनी गर्दन उठाती है, तो राधे की नज़रें उस पर ही होती हैं।

    रव्या (खाली ट्रे को देखते हुए): "सो...सॉरी, हमें बहुत भूख लगी थी, इसीलिए हमने सब खा लिया!"

    राधे (हल्का मुस्कुराकर): "कोई बात नहीं। और चाहिए क्या?"

    रव्या (मासूमियत से अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): "नहीं!"

    राधे (कुछ पल बाद): "चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ!"

    रव्या (दुखी भाव से): "हमारा कोई घर नहीं है!"

    विहान (कमरे के अंदर आते हुए): "तो बसंती, तुम क्या सीधे आसमान से टपकी हो फिर?"

    राधे विहान को घूरता है, तो वह अपने मुँह पर जल्दी से उंगली रख लेता है।

    राधे (गंभीरता से): "फिर वे लोग कौन थे जो तुम्हारे पीछे पड़े थे? और एक बात याद रखना... मुझे झूठ और झूठ बोलने वालों दोनों से सख्त नफ़रत है!"

    रव्या (दुखी भाव से): "हम यहीं इंदौर के एक छोटे से कस्बे में रहते थे। हमारा पूरा नाम रव्या शर्मा है। दस साल की थी जब हमारी माँ इस दुनिया से चली गईं। उनके बाद हमारे पास अपना कहने के लिए सिवाय हमारे बाबा के कोई और नहीं था, जिनमें हमारी जान बसती थी और जो हमें अपनी जान से ज़्यादा चाहते थे। हमारी बार-बार ज़िद करने पर, माँ के जाने के एक साल बाद, हमारे बाबा ने दूसरी शादी कर ली। हमें लगा कि अब हमें फिर से माँ का प्यार और दुलार मिलेगा, लेकिन हम गलत थे। वह औरत हमारे बाबा की पत्नी ज़रूर बनी, लेकिन हमारी माँ नहीं... (नम आँखों से) हम फिर भी खुशी से हमेशा उनकी मार, गालियाँ, तिरस्कार, सब सहते आए, सिर्फ़ अपने बाबा के लिए। लेकिन जब हमारा सब्र और हिम्मत दोनों टूट गई, जब भगवान ने एक साल पहले हमसे हमारे बाबा को भी छीन लिया... बाबा के जाने के बाद हमारी ज़िंदगी जीते जी नर्क बन गई। हमारी पढ़ाई छुड़ा दी गई, हमें घर से बाहर कदम रखने पर भी पाबंदी लगा दी गई। हर छोटी-सी बात पर हमें सिर्फ़ मार और गालियाँ ही खानी पड़ती थीं। हमने अपने बाबा के जाने के बाद कभी पेट भरकर खाना नहीं खाया, एक पल को सुकून से सो नहीं पाईं, और बस लोगों के हाथों की कठपुतली बनकर रह गईं... (भावुक होकर) हम करते भी तो क्या करते, कहाँ जाते? कोई था ही नहीं पूरी दुनिया में हमारा, जिसके पास हम जाकर अपना ग़म बाँट सकते। इसीलिए बस यह बेनाम सी ज़िंदगी जीते आ रहे थे... हम तो इतने बुज़दिल हैं कि न तो अपनी इस बोझ जैसी ज़िंदगी को ख़त्म कर पाएँ, और न ही ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ ही उठा पाएँ... लेकिन जो अब हमसे करने के लिए कहा गया, वह हम नहीं कर सकते थे... तीन दिन पहले हमने अपने 23वें साल में क़दम रखा..."

    (फ्लैशबैक..........)

  • 3. "फना".....(द अनब्रेकेबल प्रॉमिस🤞!) - Chapter 3

    Words: 1948

    Estimated Reading Time: 12 min

    रव्या: हम तो इतने बुज़दिल हैं कि न तो अपनी इस बोझ जैसी ज़िंदगी को ख़त्म कर पाए और न ही ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ ही उठा पाए; लेकिन जो अब हमसे करने के लिए कहा गया था, वह हम नहीं कर सकते थे। तीन दिन पहले हमने अपने तेईसवें साल में क़दम रखा था।


    वह रव्या का तेईसवाँ जन्मदिन था, लेकिन अपने बाबा के जाने के बाद उसके पास ऐसा एक भी इंसान नहीं था जिसे उसकी या उसके इस ख़ास दिन की ज़रा भी फ़िक्र हो। वह रोज़ की तरह सुबह उठी और रोज़ की तरह ही किसी गुलाम की भाँति अपने काम में जुट गई, और लाचारी और इस बेनाम सी ज़िंदगी का वह दिन भी ऐसे ही गुज़र गया। लेकिन रव्या के जन्मदिन के दो दिन बाद, उसे बड़ा अजीब लगा और हैरानी हुई जब उसकी सौतेली माँ उसके पास आई। रव्या अपने कमरे में थी, जो सिर्फ़ नाम का कमरा था; बाकी वह किसी कबाड़खाने से कम नहीं था। उस कमरे की हालत बहुत ही ख़स्ता थी; रव्या फ़र्श पर सोती थी और उसमें नाममात्र का भी जीने लायक़ सामान मुश्किल से होगा, सिवाय कबाड़ के। जब रव्या ने अपनी सौतेली माँ को अचानक रात को अपने कमरे में देखा, तो वह सहमकर उठ बैठी।

    रव्या (डरते हुए): क्...क्या ह...हुआ माँ?

    मिसेज़ शर्मा (मुस्कुराकर): कुछ भी तो नहीं हुआ। क्या एक माँ अपनी बेटी को देखने नहीं आ सकती? अच्छा, चलो अब उठो, आओ मेरे साथ!

    रव्या (घबराकर सुबकते हुए): म...मैंने कु...कुछ भी न...नहीं किया...प्लीज़ मु...मुझे मार...मारिएगा नहीं...नहीं बह...बहुत द...दर्द हो...होता है...प्लीज़ मार...मारना नहीं...मु...मुझे प्लीज़!

    मिसेज़ शर्मा (रव्या के पास बैठते हुए): अरे-अरे बेटा, तुम तो ख़ामख़वाह डर रही हो। माना मैंने तुम्हारे साथ थोड़ा बुरा व्यवहार किया, लेकिन जैसी भी हूँ, अब हूँ तो तुम्हारी माँ ही। और मुझे अपनी गलती का एहसास भी है। तो अब से मैं तुम्हारा पूरा ख़्याल रखूँगी। अब उठो, चलो आओ मेरे साथ!

    रव्या असमंजस में उठकर अपनी सौतेली माँ के पीछे-पीछे चली गई। जब उसकी माँ उसे उसके पुराने कमरे में, जिसमें वह अपने बाबा के ज़िंदा रहने तक हमेशा से रहती आई थी, ले गई और उसे आज से यहीं रहने के लिए कहा, तो वह हैरान रह गई। मगर अपनी माँ से कुछ भी पूछने या कहने की हिम्मत उसके पास नहीं थी। उस पूरे दिन रव्या की सौतेली माँ का उसके प्रति व्यवहार बहुत ही सकारात्मक और प्रेम से भरा था, जिसकी उसे हमेशा से इच्छा भी थी, लेकिन वक़्त बढ़ने के साथ ही उसकी इस इच्छा और उम्मीद को उसकी सौतेली माँ के क्रूर व्यवहार ने दबाया और तोड़ा था। लेकिन आज अचानक से उसके प्रति उनका प्रेम और परवाह का पैदा हो जाना रव्या के लिए पूरी तरह हैरानी और असमंजस से परिपूर्ण था। लेकिन असमंजसता होने के बावजूद भी वह नहीं चाहती थी कि यह कोई झूठ या छल हो; बस वह चाहती थी कि यह सब अब हमेशा यूँ ही चलता रहे। जाने कितने अरसे बाद उस रात वह सुकून की नींद सो पाई थी। लेकिन अगले दिन सूरज ढलने के साथ ही उसकी ज़िंदगी की बची-कुछी रोशनी भी ढलने को तैयार हो चुकी थी। रव्या जैसे ही शाम को काम करने के लिए अपने कमरे से उठकर बाहर आई, तो उसकी माँ ने उसे कुछ भी न करने के लिए कहा और उसे कुछ नए कपड़े देकर जल्दी से तैयार होने के लिए कहा।

    रव्या (कपड़ों का बैग देखते हुए): मगर ऐसे अचानक कहाँ जा रहे हैं?

    मिसेज़ शर्मा (बेपरवाही से): शादी है आज तुम्हारी!

    रव्या (शॉक होकर): शा...शा...शादी?

    मिसेज़ शर्मा (अजीब सा मुँह बनाकर): और अब खाली-पीली में मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए। इसीलिए चुपचाप ये कपड़े पहन और तैयार हो जा!

    रव्या (परेशान होकर): माँ, प्लीज़, ह...हम अ...अभी शादी नहीं करना चाहते!

    मिसेज़ शर्मा (सख़्त लहज़े में): और तुझे क्या लगता है कि तेरे चाहने या न चाहने से मुझे रत्ती भर भी फ़र्क़ पड़ता है...

    रव्या: माँ, ऐ...ऐसे अचानक शा...शादी, और वह भी आज...

    मिसेज़ शर्मा (मुँह बनाकर): तो क्या ज़िंदगी भर तुझे अपनी छाती पर सवार रखूँगी मैं? मेरा दिल ही जानता है कि इतने साल मैंने तुझे बर्दाश्त करके किस अज़ाब में गुज़ारे हैं, और तेरे अट्ठारह का होने का इंतज़ार किया। लेकिन अब एक मिनट भी मैं और तुझे अपनी नज़रों के सामने और बर्दाश्त नहीं कर सकती!

    "और ज़रूरत भी नहीं अब बर्दाश्त करने की, क्योंकि आज से यह मेरी ज़िम्मेदारी बन जाएगी!"

    रव्या आवाज़ की दिशा में देखती है, तो सामने नकुल को खड़ा देखती है, जो इंदौर में एक जाना-माना चोर-उचक्का था, और जिसकी शक्ल से ही उसका कमीनापन मालूम पड़ता था। कोई ऐब या बुराई नहीं थी जो उसमें न हो; राह चलती लड़कियों को छेड़ने से लेकर डाका डालने तक में वह अव्वल दर्जे का था। उसका नाम था, और इसके चलते वह कई बार जेल भी जा चुका था। अभी हाल ही में छह महीने वह एक क़त्ल करने की कोशिश में भी जेल में रहकर आया था। और इन सबसे अलग, उसकी दो शादियाँ पहले ही हो चुकी थीं, और अब रव्या के साथ उसकी तीसरी शादी होने जा रही थी। जब रव्या उसे वहाँ देखती है और उसे एहसास होता है कि जिससे उसकी शादी होने जा रही है, वह और कोई नहीं, बल्कि नकुल जैसा घटिया इंसान है, तो वह अपनी सौतेली माँ के आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए मिन्नतें करने लगती है।

    रव्या (लगभग गिड़गिड़ाकर): माँ, प्लीज़, आप हमें जितना चाहें मारें, गालियाँ दें, कोसें, लेकिन इस दरिंदे के हाथों हमें मत सौँपिए, प्लीज़ माँ! आप हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं, जबकि आप अच्छे से जानती हैं कि यह कैसा इंसान है और...और इसकी पहले से दो पत्नियाँ हैं!

    मिसेज़ शर्मा: तो तुझे क्या लगता है कि तेरे लिए आसमान से कोई राजकुमार उतरकर आएगा क्या!

    नकुल (गंदी सी मुस्कान के साथ): और दो बीवियाँ हुईं तो क्या हुआ? मेरे पास कुछ कमी तो नहीं है, और तुम्हें तो मैं अपनी रानी बनाकर रखूँगा!

    रव्या (रोते हुए ना में अपना सिर हिलाकर): नहीं माँ, प्लीज़, हमारे साथ ऐसा मत कीजिए, प्लीज़ माँ! हम आपके आगे हाथ जोड़ते हैं, आपके पाँव पड़ते हैं, प्लीज़ माँ!

    मिसेज़ शर्मा (एक जोरदार थप्पड़ रव्या के गाल पर जड़ते हुए): तुझे एक बार में समझ नहीं आता क्या? पहले तेरे उस भिखारी बाप ने ज़िंदगी भर मेरा जीना हराम करके रखा, और ख़ुद तो मर गया, लेकिन मरते-मरते भी तुझ जैसी आफ़त को मेरे मथे मढ़ गया। लेकिन अब मुझे अपनी ज़िंदगी सुकून से जीनी है, जिसके लिए तुझे नकुल से ही शादी करनी होगी। और तुझसे शादी के बदले मुझे नकुल पूरे दस लाख भी देगा, तो कर्म-ज़ली कुछ तो मेरा भी सोच, और जीने दे मुझे चैन से! (रव्या अभी भी बस रोते हुए लाचारी से अपनी गर्दन ना में हिलाती है!) देख लड़की, ख़ामख़वाह मेरा दिमाग और गर्म करने की ज़रूरत नहीं है। इसीलिए चुपचाप जाकर वही कर जो कहा गया है, वरना तेरी खाल उधेड़कर रख दूँगी आज मैं!

    रव्या (सुबकते हुए): माँ, ह...हमारे सा...साथ ऐ...ऐसा मत कीजिए, प्लीज़! हम आ...आपकी हर बा...बात मानेंगे!

    मिसेज़ शर्मा (झुंझलाकर): तो तू ऐसे नहीं मानेगी? तेरा इलाज अभी करती हूँ मैं!

    इतना कहकर मिसेज़ शर्मा दराज से बेल्ट निकालती है और बिना किसी सहानुभूति और दया के वह बेल्ट रव्या पर बरसाने लगती है। कुछ ही देर में पूरे घर में रव्या की चीख गूंजने लगती है। नकुल वहीं सोफ़े पर बैठकर मुस्कुराते हुए यह सब शौक़ से देख रहा था। लेकिन जब थोड़ी देर बाद भी वह नहीं रुकती, तो नकुल उसे रोकता है।

    नकुल (मिसेज़ शर्मा को रोकते हुए): बस करो! अब क्या पूरा अधमरा ही करोगी उसे? भूलो मत, शादी है आज मेरी इसके साथ, तो ज़्यादा रिस्क नहीं ले सकते!

    मिसेज़ शर्मा (गुस्से से बेल्ट को जमीन पर पटकते हुए): तो समझा दो फिर इसे कि मेरा माथा ख़राब न करे और चुपचाप जो कहा है वह करे!

    इतना कहकर मिसेज़ शर्मा वहाँ से अपने कमरे में चली जाती है। नकुल गंदी सी मुस्कान के साथ ज़मीन पर ख़ुद में ही सिमटी रव्या को छूने की कोशिश करता है, लेकिन रव्या जल्दी से ख़ुद को पीछे की तरफ़ उससे दूर घसीट लेती है।

    नकुल (ईविल मुस्कान के साथ): रव्या, देखो, तुम चाहो या न चाहो, यह तो होना ही है अब। इसीलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि मेरी बात चुपचाप मान लो। मैंने तुम्हें तुम्हारी माँ के गुस्से से तो बचा लिया, लेकिन अगर मुझे गुस्सा आया, तो तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा पाएगा। (रव्या पर अपनी नज़रें घुमाते हुए) मैं चाहूँ तो तुम्हें ऐसे भी, बिना शादी के, हासिल कर सकता हूँ, और ऐसा करने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, इसीलिए मैं चाहता हूँ कि इज़्ज़त के साथ मैं तुम्हें यहाँ से लेकर जाऊँ और पूरी ज़िंदगी, आख़िरी साँस तक, तुम मेरी गिरफ़्त में रहो। आई प्रॉमिस, मैं तुम्हें हर चीज़ दूँगा, बस एक बार मेरी हो जाओ!

    रव्या (मिन्नत करते हुए): प्लीज़, हमें जाने दीजिए! हम यह शादी नहीं करना चाहते!

    नकुल (लापरवाही से): और तुम्हें लगता है कि मुझे तुम्हारे चाहने या न चाहने से ज़रा सा भी फ़र्क़ पड़ता है? अब बहुत वक़्त बर्बाद कर लिया तुमने। पंद्रह मिनट हैं तुम्हारे पास। या तो चुपचाप मेरी बात मानो और ये कपड़े पहनकर आओ, वर्ना मैं तुम्हारी सौतेली माँ की तरह पत्थर दिल तो नहीं बन सकता तुम्हारे साथ, लेकिन इसके बाद मैं तुम्हें ख़ुद अपने हाथों से ये कपड़े पहनाऊँगा... (ईविल मुस्कान के साथ)... और यक़ीन करो, मुझे ऐसा करते हुए ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं होगी, बल्कि मेरी तो एक दिली मुराद पूरी हो जाएगी... तो अब फ़ैसला तुम्हारे हाथ में है!

    रव्या जानती थी कि नकुल यूँ ही नहीं बोल रहा है, और वह इतना घटिया इंसान है कि किसी भी हद तक जा सकता है। इसीलिए वह लाचारी से लड़खड़ाते क़दमों से उठकर वह कपड़े लेकर वहाँ से अपने कमरे में चली जाती है। दस मिनट बाद ही लाल जोड़ा पहने वह बाहर आती है, और मिसेज़ शर्मा ज़बरदस्ती उसका थोड़ा मेकअप करके उसे तैयार करती है। शादी मंदिर में रखी गई थी, जो घर से दूर था। इसीलिए नकुल रव्या को अपने साथ गाड़ी में ले जाता है, और मिसेज़ शर्मा नकुल की दूसरी गाड़ी से आती है। अचानक ही बिजली कड़कने के साथ ही तेज़ बारिश शुरू हो गई थी। रास्ते में रव्या के आँसू बिना रुके उसकी आँखों से निकल रहे थे। वह जान चुकी थी कि उसका बच पाना अब मुश्किल है, लेकिन उसने फ़ैसला कर लिया था कि वह नकुल को कभी ख़ुद को हासिल नहीं करने देगी, चाहे इसके लिए आख़िर में उसे ख़ुद की जान ही क्यों न देनी पड़े।

    वह आसमान की तरफ़ देखते हुए मन ही मन बस अपने बाबा से ख़ुद को बचाने की प्रार्थना कर रही थी। दूसरी तरफ़, नकुल के चेहरे पर, पास बैठी रव्या को देखकर, ईविल मुस्कान तैर रही थी कि अचानक बीच रास्ते में गाड़ी रुक जाती है। नकुल गुस्से से बड़बड़ाता हुआ छाता लेकर गाड़ी का बोनट खोलकर उसे चेक करता है। कुछ देर तक भी जब नकुल को कुछ समझ नहीं आया कि आख़िर गाड़ी में कहाँ ख़राबी हुई है, तो वह कुढ़कर अपना फ़ोन निकालकर किसी को फ़ोन करता है। इस वक़्त उसकी पीठ गाड़ी की तरफ़ थी। अचानक ही, डरी-सहमी सी रव्या में ना जाने कहाँ से इतना साहस आता है कि वह इस मौके का फ़ायदा उठाने का ठान लेती है, और दबे पाँव धीरे से गाड़ी से नीचे उतरकर उल्टी दिशा में पीछे मुड़ते हुए देखकर भागने लगती है। वह जानती थी कि नकुल ज़रूर उसे ढूँढ़ने उसके पीछे आएगा, और अगर यह मौका उसने खो दिया, तो दुबारा फिर कभी उसे यह मौका नहीं मिलेगा। इसीलिए वह ऐसी जगह ढूँढ़ रही थी जहाँ वह ख़ुद को सुरक्षित छिपा सके। भागते हुए जब उसे सड़क किनारे राधे की काली गाड़ी खड़ी दिखती है, तो वह जल्दी से उसमें जाकर छिप जाती है।

  • 4. "फना".....(द अनब्रेकेबल प्रॉमिस🤞!) - Chapter 4

    Words: 1748

    Estimated Reading Time: 11 min

    वह जानती थी कि नकुल ज़रूर उसे ढूँढ़ने उसके पीछे आएगा। अगर यह मौका उसने खो दिया, तो दुबारा उसे यह मौका नहीं मिलेगा। इसीलिए वह ऐसी जगह ढूँढ़ रही थी जहाँ वह खुद को सुरक्षित छिपा सके। भागते हुए, जब उसे सड़क किनारे राधे की काली गाड़ी दिखाई दी, तो वह जल्दी से उसमें जाकर छिप गई।


    अपना अतीत बयाँ करते हुए, रव्या की आँखों से लगातार आँसू छलक रहे थे। उसके चेहरे पर दुःख और तकलीफ़ के भाव साफ़ दिख रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो वह अतीत बयाँ करते-करते एक बार फिर उन कड़वी यादों को जी उठी हो। रव्या को रोते देख, राधे शांत खड़ा था, बस उसे एकटक देख रहा था। विहान उसे देखकर उसके पास गया।


    विहान: "मतलब, यार, बसंती, तुम्हारी कहानी तो बिल्कुल किसी पुरानी फ़िल्म की बहुत ही दुखियारी हीरोइन की तरह है! नहीं, डार्लिंग?"


    राधे (विहान की बातों को अनसुना करते हुए): "तो तुम्हारा कोई दोस्त, रिश्तेदार, कोई तो होगा जहाँ तुम जा सको?"


    रव्या (अपना सिर ना में हिलाते हुए): "हमारा, हमारे बाबा के सिवाय, इस पूरी दुनिया में और कोई नहीं था!"


    विहान: "तो फिर अब तुम कहाँ जाओगी?"


    रव्या: "आप लोग हमें कहीं भी, किसी आश्रम या ऐसी जगह छोड़ दीजिए जहाँ हम इज़्ज़त से अपनी ज़िंदगी गुज़ार सकें!"


    राधे (गंभीर भाव से): "फ़िलहाल, अभी तुम आराम करो; हम लोग आते हैं बाद में!"


    रव्या ने अपना सिर हाँ में हिला दिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और क्या नहीं। राधे विहान को लेकर कमरे से बाहर आया और नीचे वाले फ़्लोर पर आकर रेलिंग के पास खड़ा हो गया। वह सड़क को निहारने लगा।


    राधे (सड़क को निहारते हुए, गंभीरता से): "पता करो कि कितनी सच्चाई है उसकी बातों में!"


    विहान: "डोंट वरी, डार्लिंग! मैंने पहले ही अपने लोगों को इस काम के लिए कह दिया है, और बस जल्दी ही ख़बर आ जाएगी!"


    राधे: "हम्म!"


    विहान: "वैसे, डार्लिंग, जब तुम अपनी सोच बना ही चुके हो, तो फिर यह फ़ॉर्मेलिटी क्यों भला?"


    राधे (गंभीरता से): "पूरी दुनिया में मुझे तुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता, यह बात एक फ़ैक्ट है; लेकिन हमारे काम में हम अपनी परछाई पर भी भरोसा नहीं कर सकते, तो वह तो फिर भी अनजान है!"


    विहान: "हम्म, जानता हूँ मैं। अच्छा, हाँ, सुनो, शायली का फ़ोन आया था। वह कह रही थी कि तू उसका फ़ोन नहीं उठा रहा, और वह तुझसे कोई ज़रूरी बात करने का कह रही थी!"


    राधे: "हम्म, ठीक है, मैं कर लूँगा!"


    तभी विहान का फ़ोन बजा, और वह नंबर देखकर फ़ोन रिसीव किया।


    विहान (दूसरी तरफ़ की बात सुनने के बाद): "पक्की ख़बर है ना? (कुछ पल बाद)... अच्छा, ठीक है... (विहान फ़ोन रखने के बाद)... डार्लिंग, मैंने उस लड़की का पता करवाया है, और ख़बर पक्की है!"


    राधे: "क्या?"


    विहान: "यही कि वह लड़की जो कह रही है... (एक पल रुककर)... बिल्कुल ठीक कह रही है, और उसकी बातों में सच्चाई है!"


    राधे यह बात सुनकर, एक पल को उसके चेहरे पर सुकून के भाव उभर आए, लेकिन अगले ही पल कुछ सोचकर उसके ये सुकून के भाव तनाव के भाव में बदल गए।


    विहान: "अगर तुम कहो तो हम..."


    राधे: "तुम जानते हो यह पॉसिबल नहीं है, विहान। अब तुम पता करो उसके लिए किसी सुरक्षित जगह का, उसके बाद ही हम यहाँ से वापस जाएँगे!"


    विहान: "हम्म, ठीक है!"


    (दो घंटे बाद....)


    विहान (रव्या के पास जाकर): "चलो, आओ बसंती?"


    रव्या: "क...कहाँ?"


    विहान: "तुम्हें तुम्हारी मंज़िल तक ले जाने!"


    विहान की बात सुनकर रव्या के चेहरे पर डर के भाव आ गए।


    विहान: "क्या हुआ बसंती? तुम्हारा चेहरा किसी बुझे हुए दीपक की तरह ठंडा क्यों पड़ गया?"


    रव्या (आँखों में हल्की नमी के साथ): "आप लोग हमें मारने के लिए ले जा रहे हैं ना? और हमें मारने के बाद फिर आप लोग हमारी बॉडी को किसी नदी में फेंक देंगे या तो किसी जंगल में गड्ढा खोदकर उसे गाड़ देंगे!"


    एक पल तक विहान रव्या को अपलक देखता रहा, लेकिन अगले ही पल वह जोर-जोर से हँसने लगा और हँसते-हँसते वहीं बिस्तर पर गिर गया। रव्या उसे असमंजस के भाव से देखने लगी।


    विहान (अपनी हँसी कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए): "ओह गॉड, बसंती, यू आर सो क्यूट! मतलब...मतलब यार, तुम तो मेरे डार्लिंग से भी ज़्यादा बड़ा और ख़ौफ़नाक सोच लेती हो!"


    रव्या (मासूमियत से): "हम कुछ भी ख़ौफ़नाक और ग़लत नहीं सोच रहे हैं, बल्कि जो सच में होता है, बस वही बता रहे हैं!"


    विहान (बिस्तर से उठते हुए): "अच्छा, एक बात बताओ, तुम सब लड़कों को देखकर ऐसा ही सोचती हो या फिर हम लोगों की शक्लें देखकर ही तुम्हें ये उच्च विचार आए?"


    रव्या: "हम कभी भी किसी लड़के के साथ नहीं रहीं, लेकिन हमने हमेशा ऐसा ही सुना है और देखा है। और फिर आपके दोस्त ने तो कल रात को हमारी आँखों के सामने ही किसी को मार डाला था, तो फिर हम आप लोगों पर कैसे यक़ीन कर सकते हैं भला!"


    विहान: "बसंती, जो हमेशा दिखता है वही सही नहीं होता!"


    रव्या: "मतलब?"


    विहान: "मतलब यह कि..."


    राधे (कमरे के दरवाज़े से ही विहान को टोकते हुए): "विहान, देर हो रही है, चलो!"


    विहान: "ओके, डार्लिंग! बस चलते हैं। (रव्या की तरफ़ देखकर) और बसंती, डोंट वरी, तुम हम पर भरोसा कर सकती हो। कम से कम हम तुम्हारी उस ताड़का माँ जितने दुष्ट तो बिल्कुल भी नहीं हैं। चलो अब, वरना देर हो जाएगी!"


    रव्या (एक पल को सोचकर): "हम्म!"


    कुछ ही देर में तीनों उस घर से बाहर निकले और एक सफ़ेद गाड़ी में बैठे: राधे ड्राइविंग सीट पर, विहान उसके बराबर में, और रव्या बैक सीट पर। रव्या जब से विहान और राधे से मिली थी, तभी से उसके हाथ में एक बहुत छोटी सी कान्हा की मूर्ति थी, जो उसने अपनी मुट्ठी में ही रखी हुई थी और एक पल के लिए भी ख़ुद से दूर नहीं की थी; यहाँ तक कि जब वह बेहोश हुई थी, तब भी वह उसके हाथ में ही थी, जिसे राधे उसी के साथ उसे घर ले आया था। अभी भी वह गाड़ी में उस मूर्ति को ही निहार रही थी।


    विहान (पीछे मुड़कर रव्या को देखते हुए): "बसंती, तुम उस मूर्ति को ऐसे क्यों देख रही हो, जैसे इसमें हीरे-जवाहरात जड़े हों और जाने कितनी कीमती हो?"


    रव्या: "हाँ, यह हमारे लिए बहुत कीमती है, क्योंकि इसे हमारे बाबा ने हमें दिया था, और यह हमारे पास उनकी आख़िरी निशानी है। जब से वे गए हैं, तब से हमने एक दिन के लिए भी इस मूर्ति को ख़ुद से अलग नहीं किया। और जब भी हम किसी मुसीबत में होते हैं या हमें किसी भी चीज़ का डर लगता है, तब हम इस मूर्ति को देख लेते हैं, और हमें हमेशा यह एहसास होता है कि हमारे कान्हा और बाबा हमारे साथ ही, हमारे आस-पास ही हैं, जो हमें हमेशा शक्ति देते हैं!"


    विहान (मुस्कुराकर अपना सिर हिलाते हुए): "तुम भी ना, मेरे डार्लिंग की तरह ही, पूरी दुनिया में एक अलग-अकेला पीस हो!"


    रव्या बस हल्का सा मुस्कुरा दी। इसके बाद गाड़ी में ख़ामोशी छा गई। क़रीब एक घंटे बाद गाड़ी एक बड़े से गेट के आगे जाकर रुकी। विहान और राधे रव्या की ओर पीछे मुड़कर देखे, जो गहरी नींद में सो रही थी। विहान रव्या को नींद से जगाने के लिए आवाज़ दी, और रव्या बच्चे की तरह आलसी आँखों से उन दोनों को देखा। कुछ पल बाद ही तीनों गाड़ी से नीचे उतरे। रव्या गाड़ी से उतरकर देखा कि उसकी नज़रों के सामने एक महिला आश्रम था। विहान के कहने से वह उन दोनों के पीछे चल पड़ी। विहान आश्रम के अंदर आकर एक कमरे की ओर बढ़ गया और कुछ ही देर में वापस आकर राधे को एक कमरे की चाबी दी और वापस वहाँ के हेड से मिलने चला गया। राधे रव्या को अपने साथ कमरे की ओर ले गया।


    राधे (कमरा खोलकर अंदर आते हुए): "आज से तुम यहीं रहोगी। यहाँ के हेड से विहान की बात हो गई है, तो किसी बात की कोई फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है, और तुम यहाँ सेफ़ भी रहोगी, और तुम्हें यहाँ किसी भी किस्म की कोई परेशानी भी नहीं होगी। (एक बैग की ओर इशारा करते हुए) तुम्हारे कपड़ों और कुछ पैसों का इंतज़ाम भी कर दिया गया है, लेकिन अगर फिर भी कभी कोई ज़रूरत हो, तो तुम यहाँ के हेड से कह सकती हो; वह तुम्हारी पूरी मदद करेंगी!"


    रव्या (अपना सिर हिलाते हुए): "हम्म, और इस सब के लिए आपका बहुत शुक्रिया! हम आपका यह एहसान कभी नहीं भूलेंगे!"


    राधे: "इसकी ज़रूरत नहीं है!"


    रव्या: "फिर भी, आपने जो कुछ भी हमारे लिए किया, उसके लिए हम बस आपका शुक्रिया ही अदा कर सकते हैं!"


    राधे: "हम्म!"


    रव्या को वहाँ सेटल करने के कुछ देर बाद, राधे और विहान वहाँ से जाने लगे।


    विहान (गाड़ी में बैठते हुए): "ओके, बसंती, टेक केयर! और हाँ, कोई भी ज़रूरत या परेशानी हो तो बिना हिचकिचाए बोल देना और बिंदास होकर रहना। (मज़ाक करते हुए) यहाँ कोई तुम्हारा क़त्ल करके तुम्हारी बॉडी को कहीं ठिकाने नहीं लगाने वाला; यहाँ तुम बिल्कुल सेफ़ हो!"


    रव्या (हल्का सा मुस्कुराकर): "हम्म... थैंक्यू... (रव्या राधे की ओर देखकर)... थैंक्यू सो मच!"


    राधे: "मैंने पहले भी कहा था, इसकी ज़रूरत नहीं है!"


    रव्या (थोड़ा हिचकिचाते हुए): "आ...आप लोग हमसे मिलने आएंगे ना?"


    राधे (एक पल के लिए रव्या को देखकर, गंभीरता से): "नहीं!"


    इतना कहकर राधे अपनी गाड़ी में बैठ गया। राधे की बात सुनकर रव्या के चेहरे पर उदासी छा गई, जिसे गाड़ी के मिरर से विहान और राधे भी देख पा रहे थे। शायद यह पहली बार था जब रव्या के लिए किसी ने, उससे बिना किसी उम्मीद और लालच के, उसके लिए कुछ किया था; और जाने कितने अरसे बाद वह किसी को अपनी परवाह करते देख रही थी। और शायद यही वजह थी कि इस पल वह दो अनजान लोगों से खुद का जुड़ाव महसूस कर रही थी। देखते ही देखते गाड़ी वहाँ से आगे बढ़ गई और कुछ ही पल में उसकी आँखों से ओझल हो गई। वह वापस अंदर आश्रम में आ गई और अपने कमरे में जाकर खिड़की के पास खड़े होकर उस रास्ते को निहारने लगी जहाँ से अभी राधे और विहान की गाड़ी निकल कर गई थी, अपनी आगे की ज़िंदगी के बारे में सोचने लगी।

  • 5. "फना".....(द अनब्रेकेबल प्रॉमिस🤞!) - Chapter 5

    Words: 1261

    Estimated Reading Time: 8 min

    रव्या आश्रम में वापस आकर अपने कमरे में गई और खिड़की के पास खड़ी होकर उस रास्ते को निहारने लगी जहाँ से राधे और विहान की गाड़ी निकल गई थी। वह अपनी आगे की ज़िंदगी के बारे में सोचने लगी।

    लगभग एक घंटे बाद, राधे और विहान अपनी जगह पर वापस आये। गाड़ी से उतरते वक़्त राधे की नज़र बैक सीट पर गई, जहाँ रव्या बैठी थी। उसकी निगाह सीट पर रखी कान्हा की छोटी सी मूर्ति पर पड़ी जो रव्या के हाथ में थी। रव्या ने जाते वक़्त बताया था कि यह उसके बाबा की आखिरी निशानी है और उसके लिए कितनी ज़रूरी और अहम है। राधे ने उस मूर्ति को देखकर गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला, मूर्ति उठाई और उसे देखकर कुछ सोचने लगा। तभी, विहान उसके पास आया क्योंकि उसने राधे को अंदर नहीं आते देखा था।

    "क्या हुआ, डार्लिंग? तुम यहाँ क्यों रुक गए?" विहान ने पूछा।

    राधे ने हाथ आगे करके मूर्ति दिखाई, "यह मूर्ति..."

    "यह तो बसंती की मूर्ति है ना, जिसका वह आज ही ज़िक्र कर रही थी!" विहान ने कहा।

    "हाँ!" राधे ने उत्तर दिया।

    "लेकिन यह तो उसके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थी, फिर वह इसे यहाँ क्यों छोड़ गई?" विहान ने सवाल किया।

    "वह गाड़ी में सो गई थी, और शायद जब उसकी नींद खुली, तो वह जल्दी में गलती से इसे यहाँ छोड़ गई!" राधे ने जवाब दिया।

    "हम्म, तुम ठीक कह रहे हो, डार्लिंग; शायद यही हुआ होगा। लेकिन अब तो यह यहीं रह गई, बिचारी बहुत परेशान भी होगी बसंती इसे लेकर!" विहान ने कहा।

    "हम्म, उसकी बातों से लग रहा था कि बहुत ख़ास है यह उसके लिए!" राधे ने सहमति जताई।

    "हम्म, परेशान तो होगी; लेकिन अगर तुम चाहो, डार्लिंग, तो उसकी परेशानी हल की जा सकती है... (राधे विहान की ओर सवालिया नज़रों से देखता है)... क्यों न हम वापस जाकर बसंती को उसकी यह मूर्ति दे आएँ... अगर...अगर तुम चाहो तो!" विहान ने सुझाव दिया।

    "चलो!" राधे ने तुरंत कहा।

    "क्या बात है, डार्लिंग? आज तो तू एक बार में ही आसानी से मान गई! (अपने दाँत दिखाते हुए)... सब ठीक है ना? आई मीन, दिल विल जगह पर तो है ना तेरा?" विहान हैरानी से बोला।

    "शट अप, और चुपचाप गाड़ी में बैठ!" राधे ने गुस्से से कहा।


    राधे और विहान रव्या को उसकी मूर्ति लौटाने के लिए वापस आश्रम की ओर चल पड़े। इस बार विहान गाड़ी चला रहा था।

    लगभग एक घंटे बाद, आश्रम पहुँचकर विहान गाड़ी साइड में लगाने के लिए रुका। जैसे ही राधे आश्रम के मुख्य दरवाज़े से अंदर आया, तो वह एक पल के लिए असमंजस में आ गया; लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे पर गुस्से भरी गंभीरता छा गई और उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।

    रव्या उसके सामने खड़ी थी, उसका हाल बेहाल था। एक शख़्स, लगभग राधे की ही उम्र का, जो रव्या के बताए अनुसार नकुल ही लग रहा था, और उसके साथ एक औरत थी, जिसके चेहरे पर अजीब से भाव थे; राधे समझ गया कि वह रव्या की सौतेली माँ, मिसेज़ शर्मा हैं। नकुल ने रव्या की कलाई बेरहमी से पकड़ी हुई थी और उसे खींचते हुए बाहर ले जा रहा था। मिसेज़ शर्मा लगातार रव्या को खरी-खोटी सुना रही थी, और उनके कुछ गुंडे आश्रम के लोगों को चाकू की नोक पर रोक रहे थे। जैसे ही नकुल की नज़र राधे पर पड़ी, वह थोड़ी दूरी पर रुक गया।

    "ए हीरो, चल सामने से हट! रास्ता छोड़ हमारा!" नकुल ने चिल्लाया।

    इससे पहले कि नकुल को राधे की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया मिलती, रव्या ने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी कलाई पकड़े नकुल के हाथ पर कसकर काट लिया। नकुल दर्द से कराहा और हाथ हटा दिया। रव्या पलक झपकते ही राधे की ओर भागी और उसके सीने से लग गई, डर से काँपते हुए उसकी बाहों को कसकर पकड़ लिया। राधे ने रव्या को देखा, जिसके चेहरे पर डर और उम्मीद के भाव थे: डर नकुल और अपनी माँ का; और उम्मीद की किरण राधे के रूप में। रव्या की भौहें सिकुड़ी हुई थीं, उसकी आँखें बंद थीं, और उसका एक गाल राधे के सीने से टिका हुआ था। राधे की नज़र रव्या के होंठ से निकल रहे ख़ून पर पड़ी, जो जुल्म के सबूत थे। ख़ून देखकर राधे की आँखों में अलग ही भाव आ गए, और उसकी बाहों की नसें तन गईं।

    "ए हीरो, अगर अपनी ज़िंदगी प्यारी है, तो चुपचाप लड़की को हमारे हवाले कर और चल यहाँ से!" नकुल ने फिर धमकी दी।

    "अरे ओ कर्मज़ली! यह कौन सा तेरा सैय्या लगता है जो इसके साथ ऐसे चिपक के खड़ी है? सीधे तरीक़े से, बिना किसी नाटक के, हमारे साथ चल यहाँ से, वर्ना आज तेरी खाल ही उधेड़ दूँगी मैं!" मिसेज़ शर्मा ने चिल्लाई।

    राधे ने आराम से रव्या की बाहों को पकड़कर उसे खुद से दूर किया। तभी विहान भी अंदर आया। उसे पूरी बात समझ नहीं आई, लेकिन वहाँ का माहौल, रव्या की हालत, और राधे के भाव देखकर वह समझ गया कि मामला गंभीर है।

    "किसने हाथ उठाया तुम पर?" राधे ने असामान्य लहजे में रव्या से पूछा।

    "व...वो...मु...मुझ..." रव्या सुबकते हुए बोली।

    "मैंने उठाया! बोल, क्या कर लेगा बे? कोई मसीहा है तू? या कोई हीरो? बोल, है कौन बे तू? लगता है यहाँ से तेरी मौत ही तुझे अब वापस लेकर जाएगी! और इस रव्या की असली औक़ात तो अब इसे मैं दिखाऊँगा। तुझे ठिकाने लगाने के बाद ही इसे मैं सरेआम यहाँ से घसीटते हुए ले जाऊँगा!" नकुल ने घमंड से कहा।

    राधे की आँखें गुस्से से लाल हो गईं, और उसकी नसें तन गईं। यह रूप देखकर रव्या भी सहम गई। राधे ने उसे अपने पास किया और नकुल की ओर देखने लगा, जैसे कोई गुर्राता शेर।

    "कु...कुछ की...कीजिए! ये लोग बहुत ख़तरनाक हैं! पा...पता नहीं क्या होगा!" रव्या घबराते हुए विहान से बोली।

    "यही तो मैं भी सोच रहा हूँ, बसंती, कि जाने क्या ही होगा! (अपनी जेब से चने निकालते हुए)... अच्छा, तुम ज़्यादा मत सोचो, और आखिर हम क्यों सोच-सोचकर ख़ामख़वाह अपनी एनर्जी वेस्ट करें? जो होगा, अभी देख ही लेंगे। इसीलिए लो, तुम चने खाओ। (ख़ुद को देखती रव्या को देखकर)... अरे! दिमाग़ तेज होता है! लो, लो, खाओ बसंती, और बस शो एन्जॉय करो!" विहान ने कहा।

    रव्या विहान की लापरवाही देखकर हैरानी से उसे देखने लगी।

  • 6. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 6

    Words: 1588

    Estimated Reading Time: 10 min

    रव्या (घबराते हुए, विहान की तरफ बढ़कर): कुछ... कुछ कीजिए! ये लोग बहुत खतरनाक हैं... पता नहीं क्या होगा!

    विहान: यही तो मैं भी सोच रहा हूँ, बसंती! कि जाने क्या ही होगा... (अपनी जेब से चने निकालते हुए)... अच्छा, तुम ज़्यादा मत सोचो। आखिर हम क्यों सोच-सोच कर ख़ामाख़ा अपनी एनर्जी वेस्ट करें? जो होगा, अभी देख ही लेंगे। इसीलिए लो, तुम चने खाओ... (खुद को देखती रव्या को देखकर)... अरे! दिमाग़ तेज होता है... लो लो, खाओ बसंती, और बस शो एन्जॉय करो!


    रव्या ऐसी सिचुएशन में भी विहान की इस क़दर लापरवाही भरी बात सुनकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को और बड़ा करके बस एकटक हैरानी से विहान को देखने लगती है!


    रव्या (अविश्वास से): आ... आप कैसे दोस्त हैं और...

    विहान (रव्या को टोकते हुए): अरे यार बसंती... तुम चुप करके चने खाओ और शो देखो बस, और अब बिल्कुल एकदम शांत रहो!


    इसके बाद रव्या विहान से आगे कुछ भी नहीं कहती और एक बार फिर अपनी नज़रें राधे पर टिका लेती है, जो इस वक़्त बहुत ही गंभीर और गुस्से में नज़र आ रहा था। और उसकी गुस्से से सुलगती आँखें सिर्फ़ नकुल पर ही टिकी थीं। नकुल अपनी मुँडी को अपनी दाईं ओर घुमाकर वहाँ खड़े अपने एक आदमी को इशारा करता है, और वह अपने हाथ में पकड़ी हॉकी के साथ राधे की तरफ़ बढ़ता है। और उसके करीब जाकर जैसे ही वह हॉकी को ऊपर हवा में उछालकर उससे राधे पर वार करने के लिए उसकी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाता है, लेकिन बीच हवा में ही राधे उसका हाथ पकड़ लेता है। और जब वह शख़्स अपना हाथ राधे की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करता है, तो उसे ऐसा लगता है जैसे उसका हाथ एक ही जगह जम सा गया हो। कुछ पल तक उसका हाथ न इधर न उधर ज़रा सा भी नहीं हिल पा रहा था, और अगले ही पल राधे अपने सर से उस गुंडे के सर में टक्कर मारता है। और वह टक्कर इतनी जोरदार और प्रभावित करने वाली थी कि वह गुंडा पलक झपकते ही आधी बेहोशी की हालत में नीचे ज़मीन पर नज़र आता है। इसके बाद राधे कुछ क़दम आगे बढ़ता है कि एक दूसरा गुंडा, हाथ में मोटी सी जंज़ीर घुमाते हुए, राधे को लपकने के लिए उसकी तरफ़ बढ़ता है। और जैसे ही वह गुंडा जंज़ीर को घुमाकर राधे को मारने के लिए होता है, कि राधे उस जंज़ीर को अपने हाथ से पकड़कर उसके तीन-चार अलबेटे अपने हाथ के इर्द-गिर्द ले लेता है, और एक झटके से ही वह उस जंज़ीर को पकड़े गुंडे को अपनी तरफ़ खींचता है। जिससे उस गुंडे के हाथ से वह जंज़ीर छूट जाती है, और राधे उसी जंज़ीर को उस गुंडे पर धड़ाधड़ बरसाना शुरू कर देता है। और कुछ ही पल में वह गुंडा वहीं अधमरा होकर लेट गया था। अगले आने वाले दो-तीन गुंडों का हाल भी राधे ने कुछ ऐसा ही किया। दूसरी तरफ़ विहान वहीं साइड में दीवार से लगकर रव्या के साथ खड़े होकर मज़े से चने खाते हुए यह सब देखकर खुश हो रहा था, और लगातार राधे को चियर अप कर रहा था। रव्या अभी भी थोड़ा परेशान ही थी!


    विहान (राधे को गुंडों को पीटता हुआ देखकर): अरे जियो मेरी जान! कम ऑन, डार्लिंग! डार्लिंग, मेरे प्यार की लाज रखकर ही लौटना! एक को भी नहीं छोड़ना! यस! कम ऑन, डार्लिंग!


    इधर अब सिर्फ़ वहाँ एक ही गुंडा बचा था, और नकुल के इशारा करने पर घबराहट से वह गुंडा अपना थूक़ गटकते हुए एक क़दम आगे बढ़ाता है। लेकिन साथ ही खुद के सामने अपने दोस्तों का यह हाल देखकर उसकी हालत ख़राब थी। वह गुंडा अपने हाथ में पकड़े चाकू पर अपनी पकड़ मज़बूत करके अगले ही पल तेज़ी से भागते हुए राधे की तरफ़ बढ़ता है। और जैसे ही वह राधे के करीब पहुँचता है, वैसे ही अचानक राधे उसके सामने से हटकर साइड हो जाता है। और वह गुंडा आगे बढ़ते हुए अपना बैलेंस बड़ी मुश्किल से संभाल पाता है। लेकिन वह पूरी तरह खुद को संभाल पाता है, उससे पहले ही राधे उस पर अपनी लात से एक ज़ोरदार प्रहार करता है, जिससे वह गुंडा मुँह के बल नीचे ज़मीन पर गिर जाता है। राधे उस गुंडे की तरफ़ दुबारा बढ़ता है, और विहान और रव्या का भी ध्यान भी उसी तरफ़ लगा था। अचानक ही राधे को अपने पीछे किसी की आहट महसूस होती है, और इससे पहले कि वह पूरी तरह सतर्क होकर वहाँ से हट पाता, उससे पहले ही नकुल चाकू से उस पर हमला कर देता है। और बचते-बचते भी राधे के काँधे पर वह चाकू ज़ख़्म दे जाता है। और यह देखकर एक पल को विहान भी सकते में आ गया था, और यह देखकर रव्या के तो मारे डर, हैरानी और घबराहट के दोनों हाथ उसके मुँह पर आ जाते हैं। राधे के काँधे पर वह चाकू बहुत गहरा ज़ख़्म दे गया था, लेकिन उसके चेहरे पर सामान्य भाव ही बने थे, जैसे इस सबकी तो उसे सामान्य तौर पर आदत ही हो। और नकुल के हमला करने के बाद ही वह अपने एक हाथ से उसका चाकू पकड़ा हाथ पकड़ता है, और दूसरे हाथ से उसकी गर्दन को अपनी पकड़ में ले लेता है। राधे की पकड़ नकुल की गर्दन पर इतनी टाइट थी, जिसकी वजह से नकुल की आँखें उसके माथे पर चढ़ने के लिए तैयार लग रही थीं, और इसी वजह से उसके हाथ से चाकू वहीं ज़मीन पर छूट जाता है। लेकिन नकुल के बेहोश होने या गिरने से पहले ही राधे उसकी गर्दन को छोड़ देता है, और वह वहीं ज़मीन पर गिरकर बुरी तरह खांसने लगता है। लेकिन नकुल भी पूरा चिकना घड़ा था, उस पर कहाँ इतनी आसानी से कोई फ़र्क पड़ने वाला था। और जैसे ही उसे कुछ राहत महसूस होती है कि वह दुबारा से खड़े होकर राधे को मुक्का जड़ने के लिए तेज़ी से उसकी तरफ़ बढ़ता है, लेकिन राधे बीच में ही उसकी मुट्ठी को एक हाथ से कसकर पकड़ लेता है, और दूसरे हाथ से उसकी गर्दन को पीछे से पकड़कर एक पल को रव्या की तरफ़ देखता है, और दाँत पीसते हुए अगले ही पल उसका सर सामने दीवार में दे मारता है। और इसी के साथ नकुल के सर से ख़ून की एक झड़ी बहने लगती है, और नकुल की बत्ती गुल होना शुरू हो जाती है। इसी बीच मिसेज़ शर्मा पतली गली से निकलने की फ़िराक़ में होती हैं कि विहान उन्हें बाहर निकलने से पहले ही दरवाज़े के बीच में खड़ा होकर लपक लेता है!


    विहान (मिसेज़ शर्मा का रास्ता रोकते हुए): अरे! आप कहाँ चलीं, कोबराइन?

    मिसेज़ शर्मा (असमंजस से, घबराते हुए): को... कोबराइन?

    विहान: अरे! तुमको कोबराइन का मतलब नहीं पता... (अपने दाँत दिखाते हुए)... चलो कोई नहीं, हम समझा देते हैं। देखो, जैसे ठकुराइन होता है, ठाकुरों के ख़ानदान से बिलॉन्ग करने वाली... ऐसे ही कोबराइन का मतलब होता है कोबरा के ख़ानदान से बिलॉन्ग करने वाली। अब क्या है, इतना ज़हर कोई आम इंसान तो उगल नहीं सकता, इसीलिए मैंने आइडिया लगा लिया कि तुम वहीं से आई हो... इसीलिए हमने तुम्हारा यह नाम इज़ाद किया!

    मिसेज़ शर्मा: देखो बेटा, हमें जाने दो, हम तुम्हारी माँ जैसे हैं!

    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए, ड्रामा करते हुए): ओ तेरी की... मतलब जैसे पूँ बन गई पार्वती... शूर्पणखा बनने चली सीता... (अपनी आँखें छोटी करके एक्टिंग करते हुए)... लेकिन... लेकिन... लेकिन... सज़ा तो मिलेगी... बराबर मिलेगी... (रव्या की तरफ़ देखकर)... अरे ओ रव्या, यह कोबराइन कितने थप्पड़ मारी थी रे!


    मिसेज़ शर्मा (जल्दी से रव्या की तरफ़ देखकर): बेटी, मुझे माफ़ कर दे... मैंने तेरे साथ बहुत ग़लत किया, लेकिन मैं वादा करती हूँ कि आइन्दा से कभी तुझे शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगी। और... और मैंने जितना भी ग़लत या अन्याय किया, और जो भी पाप किए, उसके लिए मैं... मैं तीर्थ जाकर अपने पापों का प्रायश्चित करूँगी!

    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): बस इतनी सी बात... लो, मैं अभी तुम्हें चारों धाम की सैर करवा देता हूँ!


    इतना कहकर विहान एक उलटे हाथ का थप्पड़ मिसेज़ शर्मा के गाल पर जड़ देता है, और वह थप्पड़ इतना जोरदार था कि मिसेज़ शर्मा चकरी की तरह घूमकर वापस विहान के सामने आकर रुक जाती हैं। और विहान दुबारा से दूसरे हाथ से उनके गाल पर एक चांटा रसीद कर देता है। विहान को ऐसा करता देख रव्या उसे अचंभे से देख रही थी!


    विहान (खुद को अचंभे से देखती रव्या से): कहाँ था ना, बसंती, चने खाने से दिमाग़ तेज होता है... (अपने दाँत दिखाते हुए)... बस उसी का कमाल है सब!


    रव्या बिना कुछ बोले बस अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से विहान को तो कभी राधे को देख रही थी। दूसरी तरफ़ राधे ने नकुल को मार-मारकर अधमरा कर दिया था, और अभी भी वह उसके मुँह और पेट में एक के बाद एक घूँसा जड़े जा रहा था। जिसकी वजह से नकुल के चेहरे का नक्शा ही बदल गया था, मगर इसके बावजूद भी राधे की आँखों का गुस्सा अभी भी यूँ ही बरकरार था। और वह अपने गुस्से में यह भी भूल चुका था कि उसके काँधे पर चोट लगी थी, और जिसमें से लगातार ख़ून रिस रहा था। राधे एक बार फिर अधमरे हो चुके नकुल के मुँह पर एक जोरदार घूँसा मारने के लिए अपना हाथ उठाता है, और जिसकी हालत से इस वक़्त मानो ऐसा लग रहा था कि अगर राधे ने एक बार और उस पर हाथ उठाया, तो वह यहीं ढेर हो जाएगा। और जैसे ही राधे अपनी मुट्ठी को कसकर बाँधकर उसका घूँसा बनाकर नकुल को मारने के लिए अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाता है, कि उसकी घूँसा बनी मुट्ठी बीच हवा में ही रुक जाती है।

  • 7. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 7

    Words: 1685

    Estimated Reading Time: 11 min

    राधे ने एक बार फिर अधमरे नकुल के मुँह पर घूँसा मारने के लिए हाथ उठाया। नकुल की हालत ऐसी थी कि लग रहा था अगर राधे ने एक बार और हाथ उठाया, तो वह वहीं ढेर हो जाएगा। जैसे ही राधे ने मुट्ठी कसकर घूँसा बनाया और नकुल पर मारने के लिए हाथ बढ़ाया, उसकी मुट्ठी बीच हवा में रुक गई। एक हाथ से नकुल की गर्दन पकड़े हुए, उसने अपनी गर्दन अपने बाएँ काँधे की ओर घुमाई, जहाँ रव्या ने अपनी हथेली रखी हुई थी। राधे ने जब ऊपर देखकर रव्या की ओर देखा, तो वह बेहद मासूम चेहरे और खूबसूरत आँखों में हल्की नमी लिए, अपनी गर्दन ना में हिला रही थी। यह देखकर राधे ने एक पल के लिए आँखें बंद कीं, और गहरी साँस लेते हुए आँखें खोलकर नकुल का कॉलर पकड़ उसे अपनी ओर खींच लिया!


    राधे (डेंजर लहजे और आँखों के साथ): "आइन्दा अगर मैंने तुझे इसके (रव्या) के आस-पास भी देखा ना, तो तेरे इतने टुकड़े करूँगा कि तेरी सात पुश्तें भी तेरी लाश के टुकड़े नहीं बटोर पाएँगी... (नकुल को ज़मीन पर धकेलकर)... और इसे सिर्फ़ मेरी धमकी समझने की भूल हरगिज़ मत करना!"


    इसके बाद राधे रव्या का हाथ पकड़कर विहान की ओर बढ़ गया, जहाँ विहान ने मिसेज़ शर्मा के गालों को थप्पड़ों की बौछार से बंदर के पिछवाड़े की तरह लाल कर दिया था। राधे ने मिसेज़ शर्मा को भी गंभीर चेतावनी दी और रव्या को अपने साथ बाहर ले गया। जाते-जाते विहान एक बार वापस मुड़ा और एक और चांटा मिसेज़ शर्मा के गाल पर जड़ दिया। उसने आश्रम के कुछ लोगों से रव्या का सामान बाहर गाड़ी में रखवाने को कहा। बाहर आते ही रव्या रुक गई। उसके रुकने पर राधे भी पीछे मुड़ा, जिसने अभी भी रव्या का हाथ पकड़ा हुआ था!


    राधे: "क्या हुआ? तुम रुक क्यों गई?"


    विहान: "क्या हुआ बसंती? कहीं तुम्हें भी तो उस कोबराइन और चिलगौज़े को दो-चार लगाने का मन तो नहीं कर उठा?"


    रव्या बिना कुछ कहे, दुखी भाव के साथ राधे के काँधे पर चाकू से लगे ज़ख्म को देखती रही, जिसे विहान भी लगभग भूल चुका था!


    विहान: "ओ तेरी डार्लिंग... मैं तो उस कोबराइन को कूटने के चक्कर में तेरा भूल ही गया था!"


    राधे (अपना ज़ख्म देखते हुए): "अरे, इतना कुछ भी नहीं है। बस छोटा सा ज़ख्म है, यूँ ही ठीक हो जाएगा!"


    विहान: "अच्छा, मुझे तो छोटा नहीं दिख रहा... चुप करके पहले डॉक्टर के पास चल!"


    राधे: "इसकी ज़रूरत नहीं है, विहान। तू जानता है मुझे इन छोटे-मोटे ज़ख़्मों की आदत है... बस अब हम यहाँ से चल रहे हैं, और अब कोई बहस नहीं!"


    रव्या: "पहले हम डॉक्टर के पास चलें... प्लीज़!"


    राधे: "लेकिन..."


    रव्या (राधे का ज़ख्म देखकर, आँखों में हल्की नमी के साथ): "प्लीज़...!!"


    राधे (गहरी साँस ले कर): "ओके, फ़ाइन..." (राधे की बात सुनकर रव्या के होंठों पर मुस्कान तैर गई!)


    विहान (राधे को लपकते हुए): "क्या-क्या... बोला डार्लिंग तूने... मतलब मैंने, तेरी अपनी डार्लिंग ने जब यह बात बोली, तब तूने डिस्कशन ओवर का ठप्पा लगा दिया मेरी बात पर, लेकिन बसंती के कहते ही झट से हाँ... (दुखी होने का नाटक करते हुए)... मतलब मेरी मोहब्बत आज बसंती के आगे हार गई, साहेबा!"


    राधे: "अगर तेरी नौटंकी पूरी हो गई हो, तो चलें... वर्ना अगर तू ऐसे ही चालू रहा ना, तो फिर मैं कहीं नहीं जाने वाला!"


    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): "यह दिल तेरी मोहब्बत के हाथों मजबूर है, डार्लिंग! इसीलिए माफ़ किया तुझे... (गाड़ी की तरफ़ बढ़ते हुए)... चल अब, फ़ॉलो मी!"


    राधे ने अपना सर हिलाया और रव्या के साथ विहान के पीछे गाड़ी की ओर गया। तब तक रव्या का सामान भी गाड़ी में आ चुका था। कुछ ही देर में तीनों हॉस्पिटल पहुँचे, और डॉक्टर ने राधे की मरहम-पट्टी की। कुछ ही देर में तीनों हॉस्पिटल से बाहर निकल आए!


    राधे (गंभीरता से, रव्या की तरफ़ देखकर): "तो कुछ सोचा है तुमने कि आगे क्या करना है, कहाँ जाना है?"


    रव्या (अपना सर ना में हिलाते हुए): "इस पूरी दुनिया में हमारा कोई नहीं है... (दुखी भाव से)... ना कोई घर, ना कोई ठिकाना... हम इस पूरी दुनिया में अनाथ हैं!"


    विहान: "कौन कहता है कि तुम अकेली हो, बसंती? आज से मैं तुम्हारा सखा-बंधु हमेशा तुम्हारे साथ ही रहूँगा... और इसीलिए तुम अब हमारे साथ ही चलोगी!"


    रव्या: "ले... लेकिन कहाँ?"


    विहान (मज़ाक करते हुए): "डोंट वरी, बसंती! जहाँ भी ले जाएँगे, लेकिन तुम्हें मारकर तो बिल्कुल नहीं फेकेंगे... हाँ, बस मेरा फ़ोन ख़राब हो गया है, तो नए आईफ़ोन के लिए तुम्हारी किडनी ज़रूर बेच सकता हूँ, बाक़ी तुम्हें मुझसे कोई भी ख़तरा नहीं, इसकी पूरी गारंटी है!"


    विहान की बात सुनकर रव्या हल्का हँस दी, जिसे देखकर राधे के होंठों पर भी एक हल्की सी मुस्कान बिखर गई!


    विहान (अपना हाथ रव्या की तरफ़ बढ़ाकर): "तो फिर डन रहा! आज से तुम मेरी सखी और मैं तुम्हारा सखा!"


    रव्या (अपना हाथ विहान की तरफ़ बढ़ाकर, मुस्कुराते हुए): "ओके, डन!"


    राधे: "चलें अब, वर्ना देर हो जाएगी!"


    विहान: "हाँ, चलो... ओफ़्फ़ो! एक तो यह बसंती भी ना, कहीं भी बातें शुरू हो जाती हैं इसकी! यह नहीं, गाड़ी में बैठकर बातें करे आराम से... हॉस्पिटल के बाहर ही इसकी बातें शुरू हो गई!"


    रव्या (हैरानी से): "मगर हमने कब बातें शुरू की? वह तो आप ही हमें बोल रहे थे!"


    विहान (रव्या का हाथ पकड़कर): "ओहो!... कितनी बोलती है यह लड़की... एक मैं इतना कम बोलने वाला मासूम बंदा, जाने कैसे संभालूँगा इस बसंती को!"


    रव्या हैरानी से एकटक खुद को ले जाते विहान को देख रही थी। राधे भी विहान की नौटंकी को देखकर अपना सर हिलाते हुए उन दोनों के पीछे चल पड़ा। कुछ ही देर में उन तीनों की गाड़ी हॉस्पिटल से निकल पड़ी। विहान ड्राइविंग कर रहा था, और राधे उसकी साइड में बैठा था, जबकि रव्या बैक सीट पर बैठी थी। इस वक़्त हल्की शाम का वक़्त था!


    विहान: "वैसे बसंती, वह चिलगौज़ा और कोबराइन यहाँ पहुँचे कैसे?"


    रव्या: "हमें नहीं पता। बस जब आप लोग वहाँ से निकले, तभी उसके कुछ देर बाद ही वे लोग वहाँ आ गए थे। और फिर उन्होंने आश्रम के लोगों को बंदी बना लिया, और हमें जबरदस्ती वहाँ से ले जाने लगे। लेकिन ऐन मौके पर आप लोग वहाँ पहुँच गए, और फिर जो कुछ भी हुआ, वह तो आप लोगों के सामने ही हुआ!"


    विहान: "हम्म... बाकी सब तो ठीक रहा, बस एक अफ़सोस रहेगा कि मेरी आरजू अधूरी रह गई!"


    रव्या: "कैसा अफ़सोस और कैसी आरजू?"


    विहान: "अरे, मैंने बड़ा मन था कि उस चिलगौज़े और कोबराइन का मुँह काला करके गधे पर बिठाकर उनको मीडिया के सामने ले जाकर उनका इंटरव्यू निकलवाऊँ, और फिर पूरे इंदौर के कूड़ेदान और टॉयलेट के बाहर उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगवाऊँ!"


    रव्या (हँसकर): "आप की सारी बातें बहुत फ़नी होती हैं!"


    विहान: "अरे! मैं तो बस लोगों को अपने मन की इच्छाएँ बताता हूँ, जाने लोगों को क्यों फ़नी लगती हैं!"


    राधे अपनी सीट से सर टिकाए हुए अपनी आँखें बंद करके इन दोनों की बातों को चुपचाप सुन रहा था, और इंजेक्शन की वजह से उसे नींद का हल्का नशा भी हो रहा था!


    रव्या: "अच्छा विहान जी, हम आपसे एक सवाल पूछें?"


    विहान: "हाँ, पूछो?"


    रव्या: "आप करते क्या हैं? मतलब आपका काम क्या है?"


    विहान (कूल अंदाज़ में): "मरम्मत का काम... बिगड़े को सुधारना!"


    रव्या: "मरम्मत? मतलब ठोका-पीटी... ओह! यानी आप गाड़ियों के मैकेनिक हैं!"


    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): "हम्म, आधी बात सही समझी तुम... ठोका-पीटी का ही काम करते हैं हम... मतलब टेढ़े को सीधा करना अपना मेन काम है... इनशॉर्ट कहूँ तो हम लोगों के मैकेनिक हैं, और उनमें आई ख़राबी को सुधारना हमारा मेन बिज़नेस है... (रव्या की तरफ़ देखकर)... कुछ समझी बसंती?"


    रव्या (असमंजस के भाव के साथ): "नहीं, हमें आपकी आधी बातें समझ ही नहीं आईं!"


    विहान: "यह सब चने न खाने के साइड इफ़ेक्ट्स हैं। अगर बचपन से तुम्हें चने दिए होते ना, उस कोबराइन ने, तो आज तुम्हारा आईक्यू लेवल मेरे से थोड़ा बहुत ही पीछे होता... (एक हाथ से अपनी शर्ट का कॉलर उठाते हुए)... क्योंकि मेरे जैसा हसीन और ज़हीन पीस तो दूसरा कोई हो ही नहीं सकता इस पूरे जहाँ में!"


    रव्या (अपना सर हिलाते हुए): "हम्म!"


    इसके बाद रव्या ने विहान से आगे कुछ नहीं पूछा, और विहान ही बस अब उससे नॉन-स्टॉप बातें कर रहा था। काफ़ी देर बाद भी विहान रव्या की कोई प्रतिक्रिया नहीं देख पाया, तो वह पीछे पलटा और रव्या को सोता हुआ देख अपने साइड में बैठे राधे से कुछ कहने के लिए मुँह खोलने ही वाला था कि उसे भी गहरी नींद में सोता देख उसने गाड़ी में लगा सिस्टम ऑन कर लिया, और धीरे आवाज़ में गाने सुनने लगा, ताकि ड्राइविंग करते वक़्त उसे सुस्ती न आए। धीरे-धीरे रात गहराने लगी थी, और सड़क पर उनकी गाड़ी बिना रुके दौड़ रही थी। अगली बार रव्या की नींद तब खुली जब विहान ने उसे गाड़ी से नीचे उतरने के लिए कहा। रव्या अपनी आँखें मसलते हुए गाड़ी से बाहर आई। अंधेरा देखकर मालूम पड़ रहा था कि काफ़ी रात हो चुकी थी, और इस वक़्त उनकी गाड़ी एक बड़े से ढाबे के सामने रुकी हुई थी, और वहीं पास में नल लगा था, जहाँ इस वक़्त राधे अपने मुँह-हाथ धो रहा था!


    रव्या (अलसाई आँखों से, विहान से): "हम यहाँ क्यों रुके हैं?"


    विहान: "क्योंकि बसंती, मेरे पेट में इस वक़्त चूहों की पूरी फ़ौज एक साथ कूद रही है, और भूख की वजह से कुछ ने तो अंदर ही सुसाइड भी कर ली है!"


    रव्या: "लेकिन इस वक़्त हम लोग हैं कहाँ?"


    विहान (रव्या के दोनों कांधे पकड़कर उसका मुँह पीछे की तरफ़ घुमाते हुए): "यहाँ!"


    रव्या (अपने सामने लगे बोर्ड को हैरानी से देखते हुए): "मुंबई...!!"


    विहान: "हाँ... सपनों की नगरी, आमची मुंबई में आपका स्वागत है...!"

  • 8. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 8

    Words: 1814

    Estimated Reading Time: 11 min

    रव्या: लेकिन इस वक्त हम लोग हैं कहाँ?

    विहान (रव्या के दोनों कांधे पकड़ कर उसका मुँह पीछे की तरफ घुमाते हुए): यहाँ!

    रव्या (अपने सामने लगे बोर्ड को हैरानी से देखते हुए): मुंबई..!!

    विहान: हाँ... सपनों की नगरी, आमची मुंबई में आपका स्वागत है..!!


    रव्या सामने लगे मुंबई के बोर्ड को देखती रही और कुछ सोचने लगी।


    विहान: क्या सोचने लगी बसंती... अब चलो भी, नहीं तो मेरे पेट को चूहों की लाशों से पूरा कब्रिस्तान ही बना कर चलोगी!

    रव्या (मुस्कुरा कर): ठीक है, आप चलिए... हम बस मुँह धो कर आते हैं।

    विहान: ठीक है, जल्दी आना, इतने में मैं खाना ऑर्डर करता हूँ।

    रव्या: जी।


    रव्या नल की तरफ बढ़ी। राधे अपनी शर्ट की बाजू फोल्ड करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन ज़ख्म की वजह से उस हाथ से उसके लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा था। रव्या ने यह देखकर राधे के पास जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और खुद उसकी बाजू फोल्ड करने लगी। राधे खामोशी से उसे ऐसा करते देख रहा था।


    रव्या (बिना राधे की तरफ देखे, उसकी बाजू फोल्ड करते हुए): मुझे दर्द नहीं होता कहने से... सच में दर्द चला नहीं जाता। इंसान है आप, कोई आयरन मैन नहीं, तो ज़ाहिर है तकलीफ होगी ही!


    रव्या नल की तरफ बढ़ गई, और राधे धीरे से मुस्कुराते हुए विहान की ओर बढ़ गया। कुछ ही देर में टेबल पर रव्या भी उनके बीच आ गई।


    विहान (कुढ़ कर इधर-उधर देखते हुए): इतनी देर हो गई है, लेकिन पता नहीं यह खाना अभी तक आया क्यों नहीं!

    राधे: सब्र रख, बस आता ही होगा।


    कुछ पल बाद वहाँ दो लड़के आकर टेबल पर खाना लगाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कुछ ही देर में वह लम्बी सी पूरी टेबल खाने से भर गई।


    रव्या (हैरानी से लड़कों को देखते हुए): इतना खाना?

    लड़का: हाँ, साहब (विहान) ने बोला था कि जो जो भी है, सब एक-एक प्लेट ले आएँ।

    विहान: हाँ, ठीक है, ठीक है, तुम लोग जाओ।


    इसके बाद खाना रखकर वे दोनों लड़के वहाँ से चले गए।


    रव्या (विहान की तरफ देख कर): आपने इतना खाना किसलिए मँगवाया?

    विहान (खाने की प्लेट अपनी तरफ सरका कर): किसलिए का क्या मतलब? खाने के लिए मँगवाया, और क्यों... अच्छा, अब जल्दी से खाना शुरू करो, वर्ना ठंडा हो जाएगा!

    रव्या (चाय का कुल्हड़ उठाते हुए): नहीं, हम सिर्फ चाय पियेंगे, हमें भूख नहीं है।

    विहान (एक निवाला मुँह में रख कर चटकारा लेते हुए): सोच लो बसंती, इतना टेस्टी खाना मिस करने वाली हो तुम!

    रव्या (मुस्कुरा कर): कोई बात नहीं, आप खाएँ, हम सिर्फ चाय ही पियेंगे।

    विहान (अपने कंधे उचका कर रव्या के आगे की प्लेट उठाते हुए): ओके बसंती, अगर तुम्हें नहीं खाना, तो तुम्हारे हिस्से का भी मैं ही खा लेता हूँ फिर!


    इन दोनों से अलग राधे चुपचाप अपनी प्लेट में पराठा रख कर चाय के साथ उसे खा रहा था। कुछ ही देर में विहान लगभग सारी प्लेट्स से सारा खाना चट कर चुका था। हालाँकि उन प्लेटों में अभी थोड़ा सा खाना बचा रह गया था, लेकिन फिर भी अकेले किसी इंसान का एक साथ इतना खाना खाना वाकई में हैरान करने वाली बात थी, और यही देख कर रव्या भी हैरान थी, हालाँकि राधे के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, इसीलिए उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा था।


    रव्या (विहान से): शांत हो गए आपके पेट के चूहे अब?

    विहान: हाँ, फ़िलहाल समझा-बुझा कर बैठा दिया है मैंने उन्हें, कि सुबह को अच्छा सा तगड़ा नाश्ता मिलेगा, अभी इसी से काम चला लें वो!

    रव्या (अपनी आइब्रो ऊपर करते हुए): यह सिर्फ़ काम चलाऊ था?

    विहान (मज़ाक करते हुए): हाँ, मतलब जैसे होता है ना, गुज़ारे लायक, बस वही था यह... मतलब मैं जान-बूझ कर कम खाना खाता हूँ, जैसे अभी खाया, बस ऐसे ही थोड़ा बहुत जायके के तौर पर... (अपनी मसल्स उठाते हुए)... वो क्या है ना, मैं डाइट पर हूँ, और ऐसी सेक्सी और हॉट बॉडी के लिए इतनी मेहनत तो ज़रूरी है ना, वर्ना मेरी यह जानेमन सी फ़िगर खराब हो जाएगी ना!


    रव्या विहान की बात सुन कर दो पल तक यूँ ही विहान को देखती रही, और अगले ही पल जोर से हँसने लगी। विहान के साथ ही राधे की नज़रें भी रव्या पर टिक गईं, जो इस पल बिना किसी परवाह के बस अपनी हँसी में गुम थी, और आज पहली बार वे दोनों उसे हँसते हुए देख रहे थे। रव्या का रंग भले ही साँवला था, लेकिन उसके चेहरे की अमूल्य कशिश और हँसते हुए उसके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल से उसकी खूबसूरती हमेशा अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान केंद्रित कर ही लेती थी।


    रव्या (कुछ पल बाद अपनी हँसी कंट्रोल करते हुए): हे भगवान!... अच्छा हुआ विहान जी, आप डाइट पर हैं, और हम तो यही कहेंगे कि आप हमेशा डाइट पर ही रहें... जिससे एक साथ दो फ़ायदे होंगे!

    विहान: अच्छा, और वो क्या?

    रव्या: पहला तो आपकी जानेमन सी फ़िगर यूँ ही बरकरार रहेगी!

    विहान (उत्सुकता से): और दूसरा?

    रव्या (विहान की टांग खिंचाई करते हुए): दूसरा यह कि हमारे देश का अनाज कुछ साल ज़्यादा चल जाएगा, वर्ना अगर आपने अपनी डाइट छोड़ी ना, तो कुछ साल नहीं, बल्कि कुछ महीनों में ही हमारे देश में भुखमरी पैदा हो जाएगी!


    इतना कह कर रव्या एक बार फिर से जोर से हँस पड़ी, और उसकी बात सुन कर राधे भी दूसरी तरफ़ मुँह घुमा कर मुस्कुरा उठा।


    विहान (अपनी आइब्रो ऊपर उठाते हुए): हाहहाहा, वेरी फ़नी... तुम मज़ाक उड़ा रही हो मेरा?


    रव्या अपनी हँसी दबाते हुए जल्दी से अपनी गर्दन ना में हिलाती है, लेकिन विहान के फ़नी से एक्सप्रेशन देख कर वह चाह कर भी अपनी हँसी नहीं रोक पाती।


    विहान (मुस्कुरा कर): कोई नहीं बसंती, उड़ा लो तुम मज़ाक भी... क्योंकि अपनी डार्लिंग के बाद यह हक मैंने सिर्फ़ तुम्हें दिया है!

    रव्या (मुस्कुरा कर): आप को पता है, आप बहुत अच्छे हैं!

    विहान (अपनी शर्ट का कॉलर उठाते हुए): यह तो मुझे पैदा होते ही मालूम पड़ गया था कि आई एम दा बेस्ट... कोई नई बात है तो बताओ... (रव्या बस मुस्कुरा देती है)... अच्छा, मेरी छोड़ो, मेरे डार्लिंग के बारे में कुछ बताओ, यह कैसी लगी तुम्हें?


    रव्या विहान का सवाल सुन कर बस खामोश हो गई। राधे बात बदलने के लिए विहान से वहाँ से चलने के लिए कहा।

    राधे (विहान से): अब चलें या पूरी रात यहीं यूँ ही बातों में गुज़ारनी है बस!

    विहान (खड़े होते हुए): जो हुकुम मेरे आका!


    इसके बाद तीनों गाड़ी की तरफ़ बढ़ गए, और कुछ ही देर में वहाँ से निकल गए। कुछ वक़्त बाद गाड़ी एक बार फिर एक जगह जाकर रुक गई, और विहान और राधे के साथ ही रव्या भी गाड़ी से उतरी। इस वक़्त सुबह के लगभग 4 बजे थे, और वे लोग एक खोली-नुमा घर के आगे खड़े थे। राधे आगे बढ़कर घर का ताला खोला, और विहान थोड़ी असहज और झिझकती रव्या से अंदर चलने का इशारा किया। रव्या भी विहान के साथ घर के अंदर गई, जो ज़रूरत के मुताबिक़ बस एक सामान्य घर था। यह बाथरूम और एक छोटे से किचन के साथ ही दो कमरों का घर था। विहान बहुत थके होने के कारण घर के अंदर आते ही कुछ पल बाद उन दोनों को गुड नाईट बोलकर सामने वाले कमरे में सोने चला गया।


    राधे (रव्या से): आओ, मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा देता हूँ।

    रव्या (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): जी!


    राधे रव्या को अपने साथ ऊपर आने का इशारा किया, और ऊपर के कमरे में जाकर रव्या को वहाँ आराम करने के लिए कहा। रव्या कमरे को चारों तरफ़ से देखती है, जो भले ही देखने में छोटा, लेकिन सलीकेदार था, और हर एक चीज़ करीने से रखी हुई थी, और कमरे से ही जुड़ी एक छोटी सी बालकनी दी हुई थी। रव्या के चेहरे पर थोड़ी असहजता और झिझक थी, जिसे राधे ने भी नोटिस कर लिया था, लेकिन वह फिर भी शांत ही रहा।


    रव्या: यह आप... आपका कमरा है?

    राधे: हम्म!

    रव्या: यहाँ बस आप और विहान जी ही रहते हैं?

    राधे: हम्म... तुम आराम करो अब... गुड नाईट!

    रव्या: जी... गुड नाईट!


    राधे जाने के लिए अपने क़दम बढ़ाए और दरवाज़े पर जाकर रुक गया। बिना पलटे ही रव्या से कहा:


    राधे: तुम यहाँ आराम से हो... तुम्हें यहाँ किसी भी तरीके का कोई ख़तरा या डर नहीं है, तो बिना झिझक या डर के तुम यहाँ रह सकती हो... अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, तो मैं और विहान नीचे विहान के कमरे में ही हैं, बिना किसी झिझक के आ कर कह सकती हो।


    राधे बिना रव्या का जवाब सुने वहाँ से चला गया। कुछ पल बाद रव्या दरवाज़ा बंद करके बिस्तर पर आकर लेट गई, और कुछ ही देर में वह नींद के आगोश में चली गई। अगली सुबह राधे जब उठकर ऊपर आया, तो रव्या कमरे में मौजूद नहीं थी। राधे अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़कर अपने कपड़े निकालने लगा, कि तभी अचानक से कोई पीछे से आकर उसे हग कर लेता है। राधे जल्दी से पीछे की तरफ़ पलटा, और इस वक़्त अपने सामने खड़ी एक लड़की को खुद से दूर किया।


    राधे: शायली, तुम? ... तुम यहाँ कर रही हो?

    शायली (राधे के गले में अपनी बाजू डाल कर): अब तेरे को तो मेरी याद आती नहीं, तो मैंने सोचा मैं इच तेरे से मिल आएँ!


    राधे कुछ रिएक्ट कर पाता इससे पहले ही उसकी नज़र बालकनी से अभी-अभी कमरे में आई रव्या पर पड़ी, जो उसे और शायली को देख रही थी। इस वक़्त उसके चेहरे पर एक साथ कई मिले-जुले भाव मौजूद थे। दूसरी तरफ़, जब शायली राधे की नज़रों को फ़ॉलो करते हुए रव्या की दिशा में देखी, और राधे को उसे एक टक देखते हुए देखी, तो उसकी भौहें गुस्से से तन गईं।


    शायली (गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए): कौन है यह लड़की... (राधे की तरफ़ देख कर तिलमिला कर)... मैं तेरे से पूछ रही हूँ, कौन है यह??

    राधे (गंभीरता से): बाहर चल मेरे साथ... वहाँ बात करते हैं।

    शायली (खा जाने वाली नज़रों से रव्या की तरफ़ देख कर): क्यों, यहाँ क्यों नहीं... कोई ख़ास वजह?

    राधे: मैंने कहा ना, बाहर चल!

    शायली (तिलमिला कर): मेरे को यहीं बात करनी है, और अगर तू मेरे को नहीं बताएगा कि यह कौन है, तो फिर मैं इच इस से अपने तरीके से सच पूछेगी!


    इतना कह कर शायली गुस्से से दनादनती हुई, शायली की बातों से डरी और सहमी हुई रव्या की तरफ़ बढ़ी, लेकिन इससे पहले कि वह रव्या के करीब पहुँचती, राधे शायली की बाजू पकड़ कर उसे वहाँ से खींच कर बाहर ले गया।

  • 9. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 9

    Words: 1186

    Estimated Reading Time: 8 min

    राधे (गंभीरता से): "बाहर चल मेरे साथ... वहाँ बात करते हैं।"

    शायली (खा जाने वाली नज़रों से रव्या की तरफ़ देखकर): "क्यों? यहाँ क्यों नहीं? कोई ख़ास वजह?"

    राधे: "मैंने कहा ना, बाहर चल!"

    शायली (तिलमिलाकर): "मेरे को यहीं बात करनी है। और अगर तू मेरे को नहीं बताएगा कि यह कुतिया कौन है, तो फिर मैं इससे अपने तरीके से सच पूछूँगी!"

    इतना कहकर शायली गुस्से से दनादनती हुई, रव्या की तरफ़ बढ़ी। लेकिन इससे पहले कि वह रव्या के करीब पहुँच पाती, राधे ने शायली की बाजू पकड़कर उसे वहाँ से खींचकर बाहर ले गया। बाहर आकर उसने झटके से शायली की बाज़ू छोड़ी और उसे गंभीर नज़रों से घूरने लगा!

    शायली (अपने दाँत पीसते हुए): "कौन है वह, और यहाँ क्या कर रही है?"

    राधे: "वह कौन है और कौन नहीं, यह मैं किसी को भी बताना ज़रूरी नहीं समझता... यह मेरा ज़ाती मामला है, तो बेहतर होगा कि तू इससे दूर रहे!"

    शायली (तंज कसते हुए): "वह तो मैं देख ही रही हूँ कि यह तेरा कितना ज़ाती मामला है! क्योंकि तू ही ना जो किसी लड़की को आज तक यहाँ इस घर में आने की परमिशन नहीं देता। और तो और, जब कभी मैं भी यहाँ आई, तो तू हमेशा मेरे को सुनाया और मेरे पर गुस्सा किया। तो फिर इस दो कौड़ी की लड़की में ऐसी क्या ख़ास बात है कि तू इसे न सिर्फ़ इस घर में लाया, बल्कि अपने कमरे तक ले गया, जहाँ आज तक ठीक से तूने मेरे को दो पल भी नहीं रहने दिया। और जब-जब मैं यहाँ आई हूँ, तूने हमेशा मेरे को सुनाकर बाहर किया है... फिर इस लड़की ने तेरे पर क्या जादू कर दिया कि तू अपने बनाए रूल ही भूल गया?"

    राधे (गंभीरता से): "मैं क्या सोचता हूँ और क्या करता हूँ, यह मुझे तुझे क्या किसी को भी ना तो बताने की ज़रूरत है, और न ही कुछ भी एक्सप्लेन करने की... सो नाउ, गेट आउट!"

    शायली (गुस्से से राधे का कॉलर पकड़कर): "यहाँ से तो मैं चली जाऊँगी, लेकिन इस ग़लत फ़ैमी में बिल्कुल मत रहना कि तेरी ज़िन्दगी से शायली कभी जाएगी! क्योंकि तू चाहे या ना चाहे, लेकिन तुझ पर और तेरे प्यार पर सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही लड़की का हक़ है, और वह सिर्फ़ मैं ही हूँ... (गुस्से से)... और कोई भी तेरे-मेरे बीच आने की कोशिश भी करेगा, तो मैं जान ले लूँगी उसकी! और इस लड़की ने यह हिम्मत की है, और जिसका जुर्माना अब इसे अपनी जान देकर चुकाना होगा... (राधे का कॉलर छोड़कर अपनी जेब से पिस्तौल निकालते हुए)... मैं छोड़ूँगी नहीं आज इस साली को... ख़त्म कर दूँगी इसे!"

    इतना कहकर शायली जैसे ही राधे के कमरे में जाने के लिए कदम बढ़ाती, राधे ने एक झटके से शायली का हाथ पकड़कर उसे वापस खींच लिया। और अगले ही पल शायली के जुड़े को पकड़कर उसके सर पर अपनी बंदूक तान दी। इस वक़्त राधे की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं, और वह अपनी डेंजर आँखों से एकटक सीधा शायली को देख रहा था!

    राधे (अपनी डेंजर आवाज़ में): "अपनी सोच में भी दुबारा कभी इस बात को मत लाना! क्योंकि अगर तूने दुबारा भूलकर भी ऐसा सोचा, तो आई शपथ... आई शपथ कि मैं अपनी बंदूक की सारी गोली तेरे इस भेजे में उतार दूँगा! और तू जानती है कि मैं ख़ाली पीली की धमकी कभी नहीं देता। और मेरे हाथों को हर लम्हा ख़ून की कितनी लत लगी रहती है, यह तू अच्छे से जानती और समझती है। और अगर तूने अपनी हद पार करने की कोशिश भी की ना, तो तेरे ख़ून से अपने हाथ रंगने में मुझे ज़रा भी नहीं सोचना पड़ेगा... इसीलिए तेरी भलाई इसी में है कि जितना हो सके, तू उस लड़की से दूर रहे... (शायली को छोड़ते हुए)... अब इससे पहले कि मेरा दिमाग़ और भी ज़्यादा घूमे और मैं कुछ ग़लत कर बैठूँ... अभी के अभी निकल यहाँ से!"

    राधे की गुस्से भरी डेंजर वार्निंग सुनकर शायली इस वक़्त आगे कुछ न कहने में ही अपनी भलाई समझी। और गुस्से से दनादनती हुई वहाँ से नीचे की तरफ़ जाने लगी, जहाँ ऊपर की तरफ़ ही सीढ़ियों पर उसे विहान खड़ा दिखाई दिया। वह चुपचाप यहाँ खड़ा होकर उनकी बातें सुन रहा था। शायली को देखकर वह उसे अपने दाँत दिखाने लगा। लेकिन जब शायली उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरती है, तो वह जल्दी से अपना मुँह दूसरी तरफ़ घुमा लेता है। कुछ पल बाद शायली वहाँ से चली गई। विहान राधे के पास जाकर उसके काँधे पर हाथ रखा!

    विहान: "तू तो जानता है, डार्लिंग! वह ऐसी है, तो उसकी फ़िज़ूल बातों से काय को अपना दिमाग़ गरम करना!"

    राधे: "विहान, उसकी कुछ हरकतें बिल्कुल टॉलरेट करने लायक नहीं होतीं। और आज भी उसने ऐसा ही कुछ किया, जो बर्दाश्त के बाहर था!"

    विहान: "तू तो जानता है, डार्लिंग, कि वह दिल की बुरी नहीं है। बस तेरे ही तरह गुस्से की तेज़ है। और अगर बात तेरी आए, तो वह किसी को भी ना बख्शे, फिर चाहे उसके सामने कोई भी क्यों ना हो... पागल है वह तेरे प्यार में... (अपने दिल पर हाथ रखकर)... हाए! मैं मर जाऊँ अगर कोई इतना प्यार मुझे करे! तो मैं तो अपना तन-मन सब उस पर वार दूँ... तेरी तरह बेरहम पिया बनकर उसे यूँ न सताऊँ!"

    राधे (विहान को घूरकर): "तू..."

    राधे आगे बोलते-बोलते बीच में ही रुक गया। जब उसने विहान को राधे के पीछे की दिशा में एकटक देखते पाया, तो वह भी उस तरफ़ अपने पीछे देखा, जहाँ रव्या खड़ी थी। वह कब से राधे के कमरे के बाहर खड़ी, राधे और विहान की सारी बातें सुन रही थी। और उसके चेहरे पर इस वक़्त न जाने क्यों उदासी छा गई थी, और ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी। कुछ पल तक भी रव्या कोई रिएक्ट नहीं करती, तो विहान उसके सामने जाकर चुटकी बजाई। रव्या एकदम से अपने ख़यालों से बाहर आई, और अपने सामने खड़े विहान को देखते हुए एक पल के लिए राधे की तरफ़ देखती है, जो इस वक़्त उसे ही देख रहा था, और उसके चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जैसे ही एक पल के लिए रव्या की ख़ूबसूरत और मासूम आँखें उसकी आँखों से टकराती हैं, तो वह फ़ौरन रव्या पर से अपनी नज़रें हटाकर अगले ही पल वहाँ से बिना कुछ बोले सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। रव्या की नज़रें उसकी पीठ को तब तक देखती रहीं, जब तक वह सीढ़ियों से उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया। वह कुछ सोचते हुए उन ख़ाली सीढ़ियों को निहार रही थी, जिससे अभी-अभी राधे नीचे की ओर गया था। वह अपने ख़यालों से तब बाहर आई, जब उसके कानों में अपना गला साफ़ करते हुए विहान के झूठ-मूठ के खांसने की आवाज़ आई। वह अपने दाँत दिखाते हुए एकटक रव्या को ही देख रहा था।

  • 10. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 10

    Words: 1725

    Estimated Reading Time: 11 min

    रव्या की नज़रें राधे की पीठ को तब तक देखती रहीं, जब तक वह सीढ़ियों से उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया। वह कुछ सोचते हुए उन खाली सीढ़ियों को निहार रही थी, जिससे अभी-अभी राधे नीचे गया था। उसके ख़यालों में तब व्यवधान पड़ा, जब उसके कानों में विहान के गला साफ़ करने की आवाज़ आई। विहान दाँत दिखाते हुए रव्या को देख रहा था।


    विहान (अपना गला साफ़ करते हुए): "क्या हुआ बसंती? किन ख़यालों में गुम हो गई तुम?"


    रव्या: "न...नहीं, कुछ नहीं!"


    विहान: "अच्छा, तो फिर आओ, चलो नाश्ता करते हैं, इससे पहले कि मेरे पेट में चूहों की रेस लगे!"


    रव्या: "जी, आप चलिए, हम आते हैं।"


    विहान (सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ते हुए): "ठीक है, जल्दी आना, वर्ना मैं सारा खाना खा जाऊँगा, फिर ना कहना... इसीलिए जल्दी से आओ!"


    कुछ देर बाद रव्या नीचे आई। उसने कमरे के बाहर विहान को छोटी सी टेबल पर नाश्ता लगाते हुए देखा। रव्या को देखकर विहान मुस्कुराया और उसे आने का इशारा किया।


    रव्या (विहान के पास आकर): "लाएँ, हम आपकी कुछ मदद करते हैं!"


    विहान: "यह सब हो गया। अब बस तुम बैठकर इसे खाने में मेरी मदद करो... (वड़ा पाव की प्लेट रव्या की तरफ़ बढ़ाकर)... लो, सबसे पहले तुम मुंबई के फ़ेमस वड़ा पाव से शुरुआत करो!"


    रव्या (छोटा सा टुकड़ा तोड़कर, इधर-उधर देखते हुए): "बस हम दोनों ही खाएँगे?"


    विहान: "नहीं, अगर तुम कहो तो मैं पूरे मुंबई को नाश्ते की दावत दे आता हूँ, फिर करेंगे सब साथ में मिलकर... बस उसके लिए ज़्यादा कुछ नहीं, बस मुझे अपने साथ-साथ तुम्हारे शरीर के सारे पुर्ज़े बेचने पड़ेंगे!"


    रव्या: "नहीं, हमारा वह मतलब नहीं था!"


    विहान (बिरयानी खाते हुए): "जानता हूँ, बसंती... लेकिन तुम उसकी फ़िक्र मत करो, वह अपना ख़्याल अच्छे से रखना जानता है। और जब तक उसका मूड ठीक नहीं होगा, वह वापस नहीं आएगा... मगर वह कुछ ही देर में नॉर्मल होकर आ जाएगा... (बिरयानी के मज़े लेते हुए)... मुझे तो यह समझ नहीं आता कि इंसान अपना गुस्सा इतने टेस्टी खाने पर कैसे निकाल सकता है... मतलब ठीक है, टेंशन और गुस्सा अपनी जगह, लेकिन यार, खाना, वह भी ऐसा लज़ीज़... टोटली वेस्ट!"


    रव्या (मुस्कुराकर): "आप बहुत फ़ूडी हैं ना!"


    विहान: "फ़ूडी तो नहीं जानता, बस 24/7 मैं खाने को कभी इग्नोर नहीं कर सकता... नहीं, अब तुम सोचो, इतनी सेक्सी, ख़ूबसूरत बॉडी को मेंटेन करने के लिए भी तो यह ज़रूरी है ना! और फिर इंसान की ज़िन्दगी में कितनी मुश्किलें और परेशानियाँ होती हैं! अब उन सबसे यूँ ही थोड़ी लड़ा जा सकता है... मतलब बाकियों का पता नहीं, लेकिन मेरे दिमाग़ में तो बिरयानी खाते-खाते ही उनसे लड़ने के बेस्ट आइडिया आते हैं!"


    रव्या (हल्का मुस्कुराकर): "हम्म... (कुछ सोचते हुए)... आपसे एक बात पूछूँ?"


    विहान: "हाँ, पूछो ना, बसंती!"


    रव्या: "अभी कुछ देर पहले जो यहाँ शायना जी आई थीं... वह और राधे जी... क्या वे लोग साथ हैं...?"


    विहान (शरारती मुस्कान के साथ): "क्या बात है बसंती... तुमने बड़ा इंटरेस्ट आ रहा है उन दोनों की लाइफ़ को लेकर... कहीं तुम्हें भी तो कुछ लव एट फ़र्स्ट साइट तो..."


    रव्या (झेंपते हुए): "य...यह आ...आप क्या कह रहे हैं? ह...हमने तो बस इसीलिए पूछा कि कहीं हमारी वजह से उन लोगों के बीच ग़लत फ़ैमी न हो गई हो...और कु...कुछ नहीं!"


    विहान: "अरे, रिलेक्स, बसंती! तुम अब तक नहीं समझी? मुझे तो बकवास करने की आदत है... मैं तो बस तुमसे मज़ाक कर रहा था... आई नो, ऐसा कभी नहीं हो सकता!"


    रव्या: "जी!"


    विहान (चाय की सिप लेते हुए): "दरअसल, अगर हम यह कहें कि यह लव एट फ़र्स्ट साइट है, तो ग़लत नहीं होगा... मतलब कि राधे के मन में क्या है, यह कभी कोई समझ ही नहीं पाता... वह क्या सोचता है, क्या करता है, बस वही जानता है... राधे ने एक बार अपनी जान पर खेलकर शायली की जान बचाई थी, बिल्कुल किसी हीरो के माफ़िक़! बस उसी पल राधे के लिए शायली के दिल की ऐसी घंटी बजी कि आज तक उसी घंटी को बजा-बजाकर दूसरों को बहरा करने पर उतारू हो जाती है वह लड़की... उसको ऐसा लगता है कि राधे सिर्फ़ उसका है, और किसी का नहीं। और उसके लिए वह एकदम अलग ही ताड़का टाइप हो जाती है... राधे की अगर बात आए, तो वह अपनी जान देने और किसी की जान लेने, दोनों के बारे में ही एक पल को नहीं सोचेगी... मतलब उसका बस नहीं चलता, वर्ना वह राधे के नाम का स्टैम्प पेपर बनवाकर उसे अपने नाम लिखवा ले!"


    रव्या (विहान की तरफ़ देखकर): "और राधे जी?... हमारा मतलब है कि अगर शायली जी राधे जी को इस क़दर चाहती हैं, तो फिर वह क्यों उनकी बात मान नहीं लेते?"


    विहान (हल्का मुस्कुराकर): "अक्सर बसंती, वह नहीं होता जो हम चाहते हैं!"


    रव्या: "मतलब?"


    विहान: "मतलब यह कि अक्सर जो दिखता है, वह होता नहीं, और जो होता है, वह दिखता नहीं!"


    रव्या (असमंजस के भाव से): "हम कुछ समझे नहीं!"


    विहान: "जब भी तुम यह बोलती हो ना कि हम कुछ समझें नहीं, तब-तब मुझे तुम्हारी वह कोबराइन माँ याद आती है!"


    रव्या: "और वह क्यों?"


    विहान: "वह इसीलिए, क्योंकि अगर उसने तुम्हें भरपूर मात्रा में खाने को चने दिए होते ना, तो तुम मेरे जैसे जीनियस की बातों को कुछ हद तक आसानी से समझ पाती... ख़ैर, जो बीत गया, वह बीत गया... अब मैं तुम्हें हर एक घंटे में खाने के लिए चने दूँगा, फिर तुम देखना कि कैसे तुम्हारा दिमाग़ रेस के घोड़े की तरह दौड़ता है... (रव्या मुस्कुरा देती है)... अच्छा, तुम मुझे अपना बताओ कि क्या तुम्हें कभी लव एट फ़र्स्ट साइट की बीमारी लगी है? मतलब किसी नमूने को देखकर लगा कभी कि हाँ, यह वही नमूना है जिसका मैं ज़िन्दगी भर पोपट बन सकती हूँ, या जिसे मैं अपने इशारों पर नचा सकती हूँ?"


    रव्या (हल्का हँसकर): "नहीं, कभी नहीं!"


    विहान: "हम्म, फिर तो तुम्हें यह सब समझने में थोड़ा ज़्यादा वक़्त लगेगा... पर फ़िक्र नॉट... (अपना हाथ हवा में उठाकर)... अब तुम विहान गुरुदेव की शरण में आ गई हो, तो वह धीरे-धीरे तुमको सब सिखा भी देंगे, और सही रास्ते पर चलने की राह भी दिखा देंगे, बालिके!"


    रव्या विहान की नौटंकी और एक्सप्रेशन देखकर हँसी नहीं रोक पाई। दोनों नाश्ता करते हुए ढेर सारी बातें करने में मशगूल थे। रव्या को यहाँ तीन दिन बीत चुके थे। इन तीन दिनों में उसने शायली के साथ हुई बहस के बाद राधे से न तो कोई बात की थी, और न ही उसे ठीक से देखा था। अक्सर राधे देर रात घर आता था, जब तक रव्या सोने के लिए अपने कमरे में चली जाती थी। सुबह उसके उठने से पहले ही वह घर से निकल जाता था। यह बात उसे विहान से पता चलती थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह इत्तेफ़ाक़ है या राधे जानकर ऐसा कर रहा है। इन तीन दिनों में उसकी विहान से लगातार बातें हुईं, और जिसके साथ वह धीरे-धीरे सहज महसूस करने लगी थी। उसकी नौटंकी और ड्रामा-बाज़ी की बातों से हमेशा उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी। हालाँकि वह अब तक राधे और विहान के बारे में कुछ नहीं जानती थी, सिवाय इतना कि दो फ़रिश्तों की तरह आकर उन्होंने उसकी ज़िन्दगी बचाई।

    आज भी रव्या सुबह फ़्रेश होकर नीचे गई, लेकिन आज उसे विहान कहीं नज़र नहीं आया, जो कि रोज़ उसे नाश्ते की टेबल पर मिलता था। इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात उसे लगी, राधे का घर पर होना, और वह भी नाश्ते की ट्रे के साथ किचन से बाहर आते देखना। राधे टेबल पर नाश्ते की ट्रे रखकर रव्या को बैठने का इशारा किया, और दोनों चुपचाप बैठकर बिना कुछ कहे नाश्ता करने लगे। रव्या को थोड़ी अजीब महसूस हो रहा था, क्योंकि विहान के साथ वह खुल चुकी थी, लेकिन राधे के साथ उसकी बहुत ही कम बात हुई थी। वह विहान से बिल्कुल अलग था, हमेशा शांत रहता था, बस जितना पूछो, उतना ही जवाब देता था। जबकि विहान की नॉन-स्टॉप बातें किसी को भी उससे बात करने के लिए मजबूर कर देती थीं। रव्या राधे से कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन उसका गंभीर भाव भरा चेहरा देखकर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह राधे से कुछ बात करे। राधे चुपचाप खाने में बिज़ी था, जैसे उसके आस-पास उसके सिवा कोई और है ही नहीं। काफ़ी देर बाद हिम्मत करके रव्या राधे से बात करने की कोशिश करती है।


    रव्या (इधर-उधर देखते हुए): "वि...विहान जी कहीं नज़र नहीं आ रहे?"


    राधे (बिना रव्या की तरफ़ देखे): "हम्म, वह किसी ज़रूरी काम से बाहर गया है, शाम तक लौटेगा।"


    इसके बाद दोनों के बीच कुछ देर तक शांति पसर गई।


    रव्या: "आ...आप हमसे कह देते, हम बना देते नाश्ता...हम तो फ़्री ही थे!"


    राधे (गंभीर भाव के साथ): "आदत है मुझे खुद से अपने काम करने की!"


    रव्या (मन में): "पता नहीं, हमेशा ऐसे ख़डूस से ही क्यों बने रहते हैं ये...यही बात प्यार से मुस्कुराकर भी तो कह सकते थे ना!"


    कुछ देर बाद राधे अपना नाश्ता ख़त्म करके वहाँ से उठकर जाने लगा, कि रव्या उसे पीछे से जल्दी से रोकती है।


    रव्या (जल्दी से राधे को टोकते हुए): "हमें आपसे कुछ बात करनी थी?"


    राधे (बिना पलटे ही): "हम्म, कहो?"


    रव्या: "हम...हम दरअसल अब य...यहाँ नहीं रहना चाहते...हमारा मतलब है कि हम अब और आप लोगों के साथ नहीं रह सकते...(अपने पैरों को घूरते हुए)...इसी...इसीलिए अब आप हमारे रहने का इंतज़ाम और कहीं करवा दीजिए!"


    राधे रव्या की बात सुनकर उसकी तरफ़ पलटकर उसे गंभीर भाव से देखने लगा। रव्या खुद पर राधे की नज़रों को महसूस करते हुए, बिना किसी हरकत के स्तब्ध होकर अपनी नज़रों को अपने पैरों पर ही जमाए खड़ी थी।

  • 11. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 11

    Words: 1627

    Estimated Reading Time: 10 min

    रव्या: हम... हम दरअसल अब यहाँ नहीं रहना चाहते। हमारा मतलब है कि हम अब और आप लोगों के साथ नहीं रह सकते। इसलिए अब आप हमारे रहने का इंतज़ाम और कहीं करवा दीजिए! (अपने पैरों को घूरते हुए)


    राधे रव्या की बात सुनकर उसकी तरफ़ पलटकर उसे गंभीर भाव से देखने लगा। रव्या खुद पर राधे की नज़रों को महसूस करते हुए, बिना किसी हरकत के, स्तब्ध होकर अपनी नज़रें अपने पैरों पर ही जमाए खड़ी रही।


    राधे (अपने हाथ सीने पर बाँधकर रव्या की तरफ़ देखते हुए): और किसलिए अचानक से ये ख़्याल तुम्हारे मन में आया?


    रव्या: क्योंकि हम... (अपने दुपट्टे को अपनी उंगली में घुमाते हुए)... क्योंकि हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से कोई भी थोड़ा भी परेशान हो या फिर हम किसी पर बोझ बन जाएँ। आप हमें किसी महिला आश्रम या किसी ऐसी जगह छोड़ दीजिए जहाँ हम मेहनत करके अपना पेट खुद पाल सकें। और यहाँ तो हमें किसी से कोई ख़तरा भी नहीं है!


    राधे: ये इंदौर नहीं, मुंबई है, जहाँ ज़िंदा तो क्या मरे हुए लोगों को भी अपनी जगह के लिए लड़ना होता है। यहाँ रहने के लिए छत ढूँढ़ते-ढूँढ़ते लोगों की पूरी ज़िंदगी गुज़र जाती है! बाकी कोई किसी पर बोझ नहीं होता, सबकी अपनी अलग-अलग किस्मत होती है जो वक्त आने पर एक दिन चमकती ज़रूर है। दोपहर का खाना फ़्रिज में है, खा लेना!


    रव्या (जाते हुए राधे को टोकते हुए): लेकिन हम मैनेज कर लेंगे और...


    राधे (गंभीर भाव के साथ रव्या के करीब आकर): तुम यहाँ से कहीं भी नहीं जा रही हो, एंड दैट्स फ़ाइनल। (पूरी गंभीरता के साथ) अंडरस्टैंड?


    रव्या (जल्दी से अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): जी... जी!


    इसके बाद राधे अपनी कार लेकर घर से निकल गया और कुछ देर बाद एक बंगले के आगे जाकर रुक गया। गार्ड राधे को देखकर उसे फ़ौरन ही अंदर जाने की इजाज़त दे दिया और राधे अगले ही पल बंगले के अंदर दाखिल हो गया। बंगले के बाहर गार्डन एरिया में ही कुछ लोग बैठे थे और उनमें से एक शख़्स सबका बॉस लग रहा था, जिसे सब 'भाऊ' कहकर सम्बोधित कर रहे थे। उसने काले कलर का कुर्ता-पाजामा पहना हुआ था और उसकी सफ़ेद दाढ़ी उसके चेहरे पर भरी हुई थी। उसकी उम्र लगभग 50-51 साल की होगी। जब वो शख़्स राधे को वहाँ देखता है तो वहाँ मौजूद बाकी लोगों को वहाँ से जाने का इशारा करता है और वो लोग फ़ौरन ही वहाँ से चले गए। वो शख़्स राधे को अपने सामने रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा करता है।


    राधे: कैसी तबियत है भाऊ, अब आपकी?


    भाऊ: मैं ठीक हूँ। अब इस उम्र में तो ये सब लगा ही रहेगा। तू बता मेरे को कि तू कैसा है और सब ठीक है ना?


    राधे: हाँ भाऊ, सब ठीक है!


    भाऊ: आज सुबह सवेरे जब मैं यहाँ लौटा तो मेरे को शायली ने बताया कि कोई लड़की है जिसको तू और विहान इंदौर से अपने साथ यहाँ लाए हो। देख राधे, मैं तेरे से कोई सवाल नहीं करूँगा क्योंकि मैं अच्छे से जानता हूँ कि तू कोई भी काम बिना सोचे-समझे कभी नहीं करता। बस मैं इतना ही कहूँगा कि सतर्क रहना, वरना जरा सी लापरवाही हम सबको ले डुबोएगी!


    राधे: हालात ऐसे थे कि हम उस लड़की को वहाँ अकेले नहीं छोड़ सकते थे, लेकिन आप बिल्कुल बेफ़िक्र रहें भाऊ! मैं सब अच्छे से समझता भी हूँ और जानता हूँ!


    भाऊ: हम्म्म!


    तभी वहाँ शायली आई, जो राधे और भाऊ की बात को वहाँ खड़ी सुन रही थी।


    शायली (गुस्से से): बाबा, इससे कहें कि उस लड़की को अभी के अभी अपने घर से उठाकर फेंके, वरना मैं उसकी जान ले लूँगी!


    भाऊ: इस मामले में मेरी बात हो गई है राधे से और इस बात को राधे को उसके हिसाब से हैंडल करने दे। तू बीच में ना पड़!


    शायली (झुंझलाकर): ऐसे कैसे ना पड़ूँ मैं बीच में बाबा? वो साली इसके घर में, इसके कमरे में रह रही है और तुम मेरे को बोल रहे हो बीच में ना पड़ने को। मैं बता देती हूँ बाबा, अगर राधे ने आज के आज ही उस लड़की को अपने घर से बाहर निकालकर नहीं फेंका तो मैं उस साली का खून कर दूँगी!


    भाऊ (सख़्ती से): मैंने तेरे को बोला ना कि तेरे को बीच में नहीं पड़ना है तो मतलब नहीं पड़ना है!


    शायली: लेकिन बाबा...


    भाऊ (अपनी हथेली शायली के आगे करके चुप रहने का इशारा करते हुए): बस अब कोई बहस ना... मेरी बेटी होने का ये बिल्कुल भी मतलब नहीं कि मैं तेरी सारी बातें सुनूँगा। राधे पर मैं आँखें बन्द करके भरोसा करता हूँ और मैं जानता हूँ कि वो कभी कोई गलत फ़ैसला नहीं करेगा। इसीलिए इसे इसके हिसाब से चलने दे और हाँ, एक बात और, मेरी कान खोल के सुन ले... अगर उस लड़की के आस-पास भी तू मेरे को दिखी तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा। समझी? अब जा सकती है तू यहाँ से!


    अपने बाबा की बात सुनकर शायली गुस्से से अपने पैर पीटते हुए वहाँ से अंदर की तरफ़ चली गई। कुछ देर बाद राधे भी वहाँ से चला गया। दो दिन गुज़र गए थे। विहान अपने काम के सिलसिले में व्यस्त था इसीलिए घर पर बहुत ही कम रुक पा रहा था और रव्या तो यहाँ उसके सिवा किसी को न तो जानती थी और न ही किसी से बात करती थी। हालाँकि राधे इन दो दिनों में अक्सर ज़्यादातर वक़्त घर पर ही रुका था, लेकिन उसका शांत स्वभाव अभी भी पूरी तरह शांत ही बना हुआ था और रव्या पूरा दिन बस कमरे में यहाँ से वहाँ टहलकर जैसे-तैसे अपना वक़्त गुज़ार रही थी। हल्की रात शुरू हो रही थी और अभी भी रव्या बोर होते हुए खिड़की के पास खड़े होकर बस आते-जाते लोगों को देख रही थी कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई और वह पीछे पलटकर राधे को वहाँ मौजूद देखती है और बिना कुछ बोले, सवालिया नज़रों से वह राधे की तरफ़ देखने लगती है।


    राधे: अपना सारा सामान पैक कर लो। थोड़ी देर में निकलना है हमें!


    रव्या (धीरे से): कहाँ?


    राधे: जल्दी ही जान जाओगी। फ़िलहाल मैं नीचे इंतज़ार कर रहा हूँ, जल्दी से नीचे आ जाओ!


    इतना कहकर राधे वहाँ से वापस नीचे चला गया।


    रव्या (खुद से): एक तो इनका हमें समझ नहीं आता, जाने क्यों हर बात में इन्हें इतना सस्पेंस रखना होता है। जाने क्यों इन्हें ऑलवेज ख़डूस टाइप ही बने रहना होता है। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं अब, कहाँ हैं तो करना भी तो पड़ेगा। अगर विहान जी होते तो हम उनसे कुछ पूछते भी, मगर इनके आगे अब हम क्या ही कहें!


    कुछ देर बाद रव्या अपना सामान लेकर नीचे आई और राधे उसे अपने साथ चलने का इशारा करता है।


    रव्या: लेकिन अभी विहान जी को तो आने दीजिए ना। हम उनसे मिले बिना ऐसे कैसे कहीं जा सकते हैं?


    राधे: विहान से मेरी बात हो गई है, वो कुछ दिनों के लिए आउट ऑफ़ सिटी गया है और उसने कहा है कि वो जब भी वापस आएगा तब आकर तुमसे मिल लेगा।


    रव्या: ठीक है, लेकिन आखिर हम जा कहाँ रहे हैं? हमारा मतलब है कि उस दिन तो आप ही मना कर रहे थे कि हम कहीं नहीं जा सकते, तो फिर अचानक से अब आप हमें यहाँ से क्यों ले जा रहे हैं?


    राधे (रव्या की तरफ़ देखकर): भरोसा नहीं है मुझ पर?


    रव्या (राधे की आँखों में देखते हुए): अपनी ज़िन्दगी में अपने बाबा और कान्हा के बाद अगर किसी पर भरोसा किया है या कर सकते हैं तो वो आप हैं!


    राधे: तो वादा है मेरा भी कि अपनी आखिरी साँस तक इस भरोसे को कभी टूटने नहीं दूँगा। (एक पल को रुककर) अब चलें?


    रव्या (मुस्कुराकर): हम्म, चलिए!


    इसके बाद राधे रव्या को अपने साथ गाड़ी में बैठाकर वहाँ से ले गया। कुछ वक़्त बाद राधे एक बड़ी सी बिल्डिंग के आगे जाकर अपनी गाड़ी रोकता है, जो देखने में बहुत ही बड़ी और क्लासी लग रही थी। राधे रव्या को गाड़ी से उतरने का इशारा करता है और कुछ पल बाद ही वह रव्या और उसके सामान के साथ बिल्डिंग की लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ जाता है। लिफ़्ट पाँचवें माले पर जाकर रुकती है और दोनों लिफ़्ट से बाहर आते हैं। राधे लिफ़्ट के सामने मौजूद फ़्लैट का दरवाज़ा खोलता है और दोनों फ़्लैट के अंदर जाते हैं। राधे फ़्लैट की लाइट ऑन करता है और रव्या पूरे फ़्लैट में चारों तरफ़ अपनी नज़रें दौड़ाती है। ये दो रूम का एक बड़ा सा फ़्लैट था और जहाँ बहुत सारा सामान भी मौजूद था, जो सफ़ेद चादर से ढका हुआ था और उस पर जमी धूल देखने से साफ़ मालूम पड़ रहा था कि काफ़ी वक़्त से यहाँ कोई नहीं आया।


    रव्या (फ़्लैट देखते हुए): ये किसका घर है?


    राधे (रव्या की तरफ़ घर की चाबी बढ़ाकर): आज से तुम्हारा ही है!


    रव्या (राधे की तरफ़ देखकर): लेकिन हम यहाँ कैसे... हमारा मतलब है कि हम किसी और के घर में कैसे रह सकते हैं?


    राधे: ये घर मेरा है और काफ़ी वक़्त से खाली ही पड़ा है। जब से ये घर लिया है तब से मैं और विहान बस एक-दो बार ही यहाँ आए हैं, लेकिन अब तुम इसे अपना ही घर समझो और अब से तुम यहाँ आराम से बिना किसी टेंशन के रह सकती हो!


    रव्या: लेकिन हम वहाँ भी अच्छे से रह रहे थे, तो फिर इसकी क्या ज़रूरत?


    राधे: जानता हूँ, लेकिन अब से तुम यही रहोगी!


    रव्या: लेकिन क्यों?


    राधे (गंभीरता से रव्या की आँखों में देखते हुए): क्योंकि ये बात मेरी बर्दाश्त के बिल्कुल बाहर है अगर कोई भी तुम पर या तुम्हारी इज़्ज़त पर उंगली उठाए!


    राधे की बात सुनकर रव्या असमंजस और थोड़े हैरानी के भाव के साथ राधे की तरफ़ देखने लगती है।

  • 12. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 12

    Words: 2088

    Estimated Reading Time: 13 min

    रव्या: लेकिन हम वहाँ भी अच्छे से रह रहे थे, तो फिर इसकी क्या ज़रूरत?

    राधे: जानता हूँ, लेकिन अब से तुम यहीं रहोगी।

    रव्या: लेकिन क्यों?

    राधे (गंभीरता से रव्या की आँखों में देखते हुए): क्योंकि ये बात मेरी बर्दाश्त के बिल्कुल बाहर है अगर कोई भी तुम पर या तुम्हारी इज़्ज़त पर उंगली उठाए!

    राधे की बात सुनकर रव्या असमंजस और थोड़े हैरानी के भाव के साथ राधे की तरफ़ देखने लगी।

    राधे: क्या हुआ? तुम ऐसे क्यों देख रही हो मुझे?

    रव्या: हम इसीलिए आपको ऐसे देख रहे हैं क्योंकि हम हैरान हैं!

    राधे (अपनी आइब्रो ऊपर उठाते हुए): और वो किसलिए?

    रव्या: क्योंकि हम पहली बार आपको आम लोगों की तरह इतना बोलते हुए देख रहे थे। वरना हमें तो लगा था कि आपको "हम्म्म," "ओके," और दो-चार शब्दों के अलावा और शब्द आते ही नहीं!

    राधे (हल्का सा मुस्कुराकर): ऐसा कुछ नहीं है, मैं भी आम इंसानों की तरह ही हूँ!

    रव्या: हे भगवान! आप तो मुस्कुरा भी सकते हैं! मतलब हम तो बेवजह ही आपको ख़डूस समझते आए थे!

    राधे (हैरानी से): ख़डूस?

    रव्या (मासूमियत भरे भाव के साथ): और क्या? जब आप हमेशा एंग्री यंग मैन की तरह रहेंगे तो हमें तो यही लगेगा ना कि आप ख़डूस हैं! लेकिन एक सच्ची बात बताएँ... आप मुस्कुराते हुए बहुत ही प्यारे लगते हैं, बिल्कुल किसी मूवी के हीरो की तरह!

    राधे (झेपकर बात बदलते हुए): आ...च...चलो जल्दी से, मैं घर साफ़ करने में हेल्प करता हूँ तुम्हारी, फिर तुम आराम से यहाँ रह सकोगी।

    रव्या (मुस्कुराकर): जी!

    रव्या ने अपने दुपट्टे को अपनी कमर से बाँधकर काम में लग गई और राधे उसे ऐसे शिद्दत से काम करते देख मन ही मन मुस्कुरा रहा था। करीब तीन घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार दोनों ने पूरे घर का नक्शा ही बदल दिया था। सामान से सारी सफ़ेद चादर हटाकर उसे सलीके से साफ़ करके उसकी सही जगह सेट कर दिया था और अब साफ़-सुथरा होकर पूरा घर लाइट की रोशनी में जगमगा रहा था।

    रव्या (सोफ़े पर बैठते हुए): फ़ाइनली काम ख़त्म! (चारों तरफ़ नज़रें घुमाते हुए) कितना सुंदर लग रहा है ना सब?

    राधे (रव्या की तरफ़ देखकर): हम्म… वाकई में बहुत सुंदर है!

    रव्या: हम्म!

    राधे: भूख तो नहीं लगी तुम्हें?

    रव्या: नहीं, हमने यहाँ आने से पहले ही तो खाना खाया था!

    राधे: अच्छा… चलो फिर अब मैं चलता हूँ, तुम आराम करो।

    रव्या (झिझकते हुए): जा... जाना ज़रूरी है?

    राधे: मतलब?

    रव्या: मतलब कि क्या आप आज यहाँ नहीं रुक सकते?

    राधे: नहीं… जिस वजह से मैं तुम्हें यहाँ लाया हूँ, अगर वही वजह यहाँ भी पैदा हो तो फिर…!!

    रव्या (अपना सर हाँ में हिलाते हुए): जी, हम समझ रहे हैं आपकी बात। आप बेफ़िक्र रहें, हम संभाल लेंगे खुद को।

    राधे (गंभीरता से): जानता हूँ, मैं, तुम कर सकती हो। बस एक बात याद रखना, ये मुंबई है… यहाँ आप जल्दी से किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते। जो जैसा दिखता है वो वैसा बिल्कुल भी नहीं होता। इसीलिए किसी पर भी यहाँ ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा नहीं करना और जब तक कन्फ़र्म न कर लो कि कौन है, घर का दरवाज़ा किसी के लिए भी मत खोलना और रात में तो बिल्कुल भी नहीं। समझ रही हो ना मेरी बात?

    रव्या: जी, हम समझ रहे हैं।

    राधे (अपनी जेब से एक फ़ोन निकालकर रव्या की तरफ़ बढ़ाते हुए): ये तुम्हारा फ़ोन है। इसमें मैंने अपना और विहान का नंबर सेव किया है। जब भी, जिस वक़्त ज़रूरत हो, हमें फ़ौरन कॉल कर लेना। बस याद रखना कि हम तुमसे सिर्फ़ एक कॉल की ही दूरी पर हैं। ओके?

    रव्या (फ़ोन की तरफ़ देखकर): ये तो बहुत महँगा है… हम ये नहीं ले सकते। आपने पहले ही हमारे लिए इतना कुछ किया है, हम अब और एहसान नहीं ले सकते आपके… हम कैसे उतारेंगे आपके ये एहसान और…

    राधे (रव्या का हाथ पकड़कर उस पर फ़ोन रखते हुए): चुप करके रखो इसे और कोई एहसान-वहसान नहीं किया है मैंने। इसीलिए ज़्यादा फ़ालतू सोचना बंद करो और ये तुम्हारी सेफ़्टी के लिए है!

    राधे ने जैसे ही आज पहली बार रव्या के हाथ को अपने हाथ में थामा, तो एक अनछुआ सा ख़ूबसूरत एहसास उसके दिल को छूकर गुज़रा और वह ख़ामोशी से एकटक अपने हाथ को थामे राधे के हाथ को निहारने लगी। जब राधे को इस बात का एहसास हुआ, तो वह झेपकर जल्दी से अपना हाथ पीछे खींच लिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया। यह देखकर रव्या मुस्कुराए बिना नहीं रह पाई!

    राधे: तो फिर मैं चलता हूँ अब।

    रव्या: हम्म!

    राधे दरवाज़े तक गया और रव्या भी उसे दरवाज़े तक छोड़ने उसके पीछे गई। राधे दरवाज़े तक जाकर वापस रव्या की तरफ़ पलटा और अपनी पॉकेट में से कुछ निकालकर अपनी मुट्ठी को रव्या की तरफ़ बढ़ा दी।

    रव्या (असमंजस से): ये क्या है?

    राधे (अपनी मुट्ठी खोलते हुए): लो, खुद ही देख लो!

    राधे ने जब अपनी मुट्ठी खोली, तो उसमें रव्या की वही कान्हा जी की मूर्ति थी जो उसे उसके बाबा ने दी थी और जिसे देखकर रव्या के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी!

    रव्या (मूर्ति देखते हुए खुशी से): ये आपके पास है! हमें तो लगा था कि हमने इसे इंदौर में ही कहीं खो दिया। (राधे रव्या की तरफ़ मूर्ति बढ़ाता है जिसे रव्या खुशी से अपने हाथों में ले लेती है) थैंक यू सो मच… आप बहुत-बहुत अच्छे हैं… हमेशा आप हमारी मदद ही करते हैं… हमें समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर हम कैसे आपका शुक्रिया अदा करें?

    राधे: मैंने पहले भी कहा था कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। चलो अब चलता हूँ मैं, कल आऊँगा फिर!

    रव्या: ओके… गुड नाईट!

    राधे (दरवाज़ा खोलते हुए): गुड नाईट!

    रव्या (जल्दी से): सुनिए?

    राधे (रव्या की तरफ़ पलटकर): हम्म?

    रव्या (अपनी नज़रें झुकाकर): आराम से जाइएगा!

    राधे (अपना सर हाँ में हिलाकर): हम्म… दरवाज़ा ठीक से लॉक करना अंदर से!

    रव्या: जी… बाय!

    राधे: बाय!

    इसके बाद राधे वहाँ से चला गया और रव्या दरवाज़ा लॉक करने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए आ गई, लेकिन काफ़ी देर तक उसे नींद नहीं आई। वह राधे के बारे में ही सोच रही थी कि तभी उसके फ़ोन पर मैसेज आया और आवाज़ सुनकर उसने फ़ोन चेक किया। उसमें राधे का मैसेज था!

    "आराम से सो जाओ… मैं घर पहुँच चुका हूँ"!

    रव्या ने जवाब में बस एक स्माइली भेजी और कुछ पल फ़ोन देखने के बाद वह आखिरकार सोने के लिए चली गई। इधर राधे घर पहुँचकर रव्या को मैसेज किया और जवाब में क्यूट सी स्माइली देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिया और फिर फ़ोन अपनी जेब में रखकर अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। जैसे ही वह अपने कमरे का दरवाज़ा खोला, तो रव्या की खुशबू के साथ ही उसे उसके यहाँ होने का एहसास हुआ और वह एक पल के लिए अपनी आँखें इसी एहसास को महसूस करते हुए बंद कर लिया और अगले ही पल अपनी आँखें खोलकर अंदर कमरे में गया। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कुछ ही वक़्त में रव्या का एहसास इस पूरे कमरे में बस गया है। उसके दिल में रव्या के लिए पहले दिन से एक सॉफ़्ट कॉर्नर था, यह बात तो तय थी, लेकिन यह महज़ आकर्षण था या कुछ और, यह बात वह समझ नहीं पा रहा था या यूँ कहें समझना नहीं चाहता था। राधे अपने दिल-दिमाग़ की सारी बातों को इग्नोर करते हुए अपने बेड पर आकर लेट गया। राधे को अपने सर के नीचे किसी चीज़ का एहसास हुआ और वह अपना सर उठाकर देखा तो वहाँ रव्या का लाल दुपट्टा था जो उसने आज सुबह ही डाला हुआ था और शायद जल्दी-जल्दी में वह उसे यहाँ भूल गई थी और जिसमें रव्या की ख़ूबसूरती समाई हुई थी। राधे उस दुपट्टे को अपने हाथ में लेकर दूसरा हाथ अपने सर के नीचे लगाए कुछ पल तक बस उसे यूँ ही निहारता रहा और कुछ पल बाद वह उस दुपट्टे को अपने चेहरे पर डालकर एक गहरी सोच के साथ जल्दी ही नींद के आगोश में चला गया।

    अगली सुबह जल्दी ही राधे सामान के साथ तैयार होकर रव्या के पास जाने के लिए निकलने लगा कि उसकी नज़र बेड पर रखे रव्या के दुपट्टे पर पड़ी और वह उस दुपट्टे को बेड से लाकर बाकी सामान के साथ बैग में रखने लगा, लेकिन अगले ही पल वह कुछ सोचकर वापस से उस दुपट्टे को निकालकर अपने अलमारी में रख दिया और बाकी के सामान के साथ वह रव्या से मिलने के लिए घर से निकल पड़ा। सामान लेकर जब राधे रव्या से मिलने पहुँचा तो वह अभी तक सोई हुई ही थी और राधे के उसे कॉल करके दरवाज़ा खोलने के कहने के बाद वह अलसाई आँखों से दरवाज़ा खोली और कुछ देर बाद फ़्रेश होने के बाद वह वापस राधे के पास हॉल में आई।

    रव्या (सामान देखते हुए): इतना सारा सामान किसलिए?

    राधे (टेबल पर सामान रखते हुए): ये घर का राशन और कुछ ज़रूरी सामान है। वैसे तो मैंने सब ले आया हूँ, लेकिन फिर भी अगर कुछ रह गया हो या फिर किसी और चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे कह देना। दूध वाले को मैंने बोल दिया है वो रोज़ सुबह यहाँ आकर दूध दे जाएगा और अभी थोड़ी ही देर में केबल वाला भी आता ही होगा। फिर तुम जब भी बोर हो तो आराम से टीवी देखना और बाकी कुछ अगर मैं भूल गया हूँ तो मुझे बता दो, मैं वो भी अरेंज कर दूँगा। (रव्या की तरफ़ देखकर) क्या हुआ? तुम इतनी चुप क्यों हो? कोई बात है तो तुम मुझसे कह सकती हो?

    रव्या (गंभीरता से): ह… हम जानते हैं कि आप जो कुछ भी हमारे लिए कर रहे हैं वो आप कोई एहसान समझकर नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप एक बार हमारे नज़रिए से भी तो सोचें… मतलब हम ऐसे कब तक रहेंगे? हमें ये सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा कि हम ऐसे आप पर बोझ बनें!

    राधे: और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम बोझ बन रही हो? मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वो अपनी मर्ज़ी और खुशी से कर रहा हूँ, तो तुम्हें ये सब सोचने की ज़रूरत नहीं!

    रव्या: ये आपकी अच्छाई और बड़प्पन है कि आप ऐसा सोचते हैं, लेकिन सच तो ये है कि आप और हम एक-दूसरे को ठीक से जानते तक नहीं। हमारा और आपका सिवाय इंसानियत के कोई रिश्ता भी नहीं। आज के वक़्त में जहाँ अपने साथ छोड़ देते हैं, वहाँ आपने हमें सहारा दिया… हमारी ज़िन्दगी को बर्बाद होने से बचाया और हमें एक नई ज़िन्दगी दी… हम अगर चाहें भी तो आपका ये कर्ज़ अपनी जान देकर भी नहीं उतार पाएँगे… हम पहले ही आपके इतने एहसानमंद हैं… हम पर और कर्ज़ ना चढ़ाएँ!

    राधे (गंभीरता से): मानता हूँ कि हमारा कोई रिश्ता नहीं, लेकिन इंसानियत के रिश्ते से बड़ा भी तो कोई रिश्ता नहीं!

    रव्या: जानते हैं, लेकिन फिर भी हमारे अपने कुछ उसूल हैं जो हमें किसी दूसरे पर निर्भर रहने की इजाज़त नहीं देते। उम्मीद करते हैं आप हमारे जज़्बात समझेंगे।

    राधे: हम्म, ये बात मैं मानता हूँ और तुम्हारे उसूलों की क़द्र भी करता हूँ और तुम्हारे इस जज़्बे के मैं चाहकर भी ख़िलाफ़ नहीं जा सकता।

    रव्या (मुस्कुराकर): तो बस फिर हमें कुछ ऐसा काम दिलवा दीजिए जिससे हम खुद के सहारे अपनी ज़िन्दगी जी सकें!

    राधे: मैं तुम्हारे जज़्बे की क़द्र करता हूँ, लेकिन मुंबई शहर में नौकरी मिलना उतना ही मुश्किल है जितना समुंदर में मोती ढूँढ़ना। और फिर एक सच ये भी है कि तुम्हारी क्वालिफ़िकेशन भी इतनी नहीं है कि तुम्हें यहाँ आसानी से कोई भी जॉब मिल पाए!

    रव्या (उदासी से): तो फिर हम क्या कभी कुछ नहीं कर पाएँगी?

    राधे: किसने कहा कि नहीं कर पाओगी? बस थोड़ा सा वक़्त चाहिए होगा और मेरी कुछ बातें चुपचाप बिना किसी बहस के माननी होगी, बस फिर और कुछ नहीं!

    रव्या: हम मानेंगे आपकी बात!

    राधे (अपने हाथ बाँधते हुए): पक्की बात?

    रव्या (अपनी गर्दन छूते हुए): बिल्कुल पक्की बात!

    राधे (अपनी पॉकेट से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर रव्या की तरफ़ बढ़ाकर): बस फिर कोई दिक्कत नहीं… ये लो!

    रव्या (लिफ़ाफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए): ये क्या है?

    राधे: खुद ही देख लो!

    रव्या उस लेटर को खोलती है जो असल में एक फ़ॉर्म था कॉलेज में एडमिशन के लिए और जिस पर रव्या का नाम लिखा था। जब रव्या उस फ़ॉर्म पर अपना नाम देखती है तो हैरानी से राधे की तरफ़ देखने लगती है।

  • 13. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 13

    Words: 2243

    Estimated Reading Time: 14 min

    राधे ने कहा, "किसने कहा कि नहीं कर पाओगी? बस थोड़ा-सा वक़्त चाहिए होगा और मेरी कुछ बातें चुपचाप, बिना किसी बहस के, माननी होंगी। बस फिर और कुछ नहीं!"


    रव्या ने उत्तर दिया, "हम मानेंगे आपकी बात!"


    राधे ने अपने हाथ बाँधते हुए पूछा, "पक्की बात?"


    रव्या ने अपनी गर्दन छूते हुए कहा, "बिल्कुल पक्की बात!"


    राधे ने अपनी पॉकेट से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर रव्या की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "बस फिर कोई दिक्कत नहीं… ये लो!"


    रव्या ने लिफ़ाफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा, "ये क्या है?"


    राधे ने कहा, "खुद ही देख लो!"


    रव्या ने उस लेटर को खोला जो असल में एक फ़ॉर्म था, कॉलेज में एडमिशन के लिए, और जिस पर रव्या का नाम लिखा था। रव्या उस फ़ॉर्म पर अपना नाम देखकर हैरानी से राधे की तरफ़ देखने लगी।


    रव्या ने कहा, "ये तो कॉलेज के एडमिशन के लिए है… मगर हम कैसे करेंगे? हमारा मतलब है कि हम अब कैसे पढ़ सकते हैं?"


    राधे ने कहा, "क्यों? अभी तो कुछ देर पहले तुमने ही कहा था ना कि तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा होना है… तो उसकी पहली सीढ़ी की शुरुआत तो यहीं से होनी है!"


    रव्या ने कहा, "लेकिन हम आप पर इतनी ज़िम्मेदारी हरगिज़ नहीं डाल सकते!"


    राधे ने कहा, "आँ… आँ अभी तुमने ही कहा था ना कि कोई भी बहस नहीं करोगी… और मैं कब कह रहा हूँ कि तुम हमेशा के लिए मेरे सारे पैसे यूँ ही रख लेना? जब तुम काबिल हो जाओ और तुम्हें अच्छी जॉब मिल जाए तब मेरे पैसे लौटा देना!"


    रव्या ने मासूमियत से राधे की तरफ़ देखते हुए, कुछ सोचते हुए कहा, "ठीक है, हम आपकी मदद लेंगे, लेकिन हम रोज़-रोज़ कॉलेज नहीं जाएँगे। मतलब हमें नहीं पसंद लोगों की तरह वहाँ जाकर घूमना-फिरना… (मासूमियत भरे भाव से) मतलब सब ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं और पढ़ना ही तो है तो वो हम घर रहकर भी तो पढ़ सकते हैं ना!"


    राधे ने कहा, "ठीक है, जैसे तुम्हारी मर्ज़ी!"


    (एक हफ़्ते बाद…)

    रव्या को वहाँ शिफ़्ट हुए एक हफ़्ता हो चुका था और वह राधे की मदद से अच्छे से वहाँ सेटल भी हो गई थी। राधे की मदद से ही उसका कॉलेज में एडमिशन भी हो चुका था और हफ़्ते में उसे कॉलेज सिर्फ़ दो दिन ही जाना था। इस बीते हफ़्ते में राधे और उसके बीच बस उसकी पढ़ाई के सिलसिले में ही बात हुई थी और राधे सिर्फ़ किसी काम के चलते ही वहाँ आता था। और पिछले दो दिन से राधे वहाँ आया ही नहीं था। बस उसने फ़ोन पर ही रव्या से एक बार बात की थी, जिसकी वजह से रव्या कुछ उदास भी थी। पूरे दिन रव्या घर पर अकेले बैठे-बैठे बोर हो चुकी थी। आज सुबह भी रव्या रोज़ की तरह उठकर अपने काम निपटा रही थी कि तभी दरवाज़े की घंटी बजती है और वह दूध वाला समझकर दरवाज़ा खोलती है, लेकिन उसके सामने एक ग्रीन सूट पहने लड़की खड़ी थी जो अपने हुलिए से देखने में शादीशुदा लग रही थी।


    रव्या ने लड़की को देखते हुए पूछा, "जी, कहिए?"


    लड़की ने कहा, "हैलो… मेरा नाम किरण है और मैं यहीं नीचे वाले फ़्लोर पर अभी कल ही अपने हसबैंड के साथ शिफ़्ट हुई हूँ। एक्चुअली मुझे थोड़ी-सी शक्कर चाहिए थी, क्या मुझे थोड़ी-सी शक्कर मिलेगी?"


    रव्या ने किरण से कटोरी लेते हुए कहा, "जी, आप रुकिए, हम बस अभी लेकर आते हैं!"


    किरण ने कहा, "ओके!"


    कुछ ही देर में रव्या किरण को शक्कर लाकर दे देती है।


    किरण ने मुस्कुराकर रव्या से शक्कर लेते हुए पूछा, "थैंक यू… आपका नाम?"


    रव्या ने उत्तर दिया, "रव्या!"


    किरण ने कहा, "आपकी तरह आपका नाम भी बहुत प्यारा है!"


    रव्या ने कहा, "थैंक यू!"


    इसके बाद किरण वहाँ से चली जाती है और रव्या अपने काम में जुट जाती है। अगले दिन सुबह रव्या खाना बनाकर नहाने चली जाती है। कुछ देर बाद लगातार दो-तीन बार दरवाज़े की घंटी बजने के बाद रव्या दरवाज़ा खोलती है और सामने विहान और राधे को देखकर उसके चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान तैर जाती है। विहान भी उसे देखकर बिना सोचे-समझे उसे अपने गले लगा लेता है। रव्या को ज़रा भी न तो बुरा लगा और न ही किसी तरह की असहजता ही महसूस हुई क्योंकि वह जितना भी विहान को जानती थी या उसके साथ रही, इतना तो समझ चुकी थी कि उसका मन और नियत दोनों बिल्कुल साफ़ हैं। विहान के पीछे खड़े राधे की नज़र जब रव्या पर पड़ती है तो वह उसे कुछ पल तक अपलक देखता रहता है। सफ़ेद सूट में उसका साँवला रंग बहुत ही फ़ब रहा था जिस पर उसने रेड दुपट्टा डाला हुआ था। कानों में छोटी-छोटी सिल्वर की झुमकी और माथे पर छोटी-सी लाल बिंदी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में गहरा काजल और गीले आधे बालों में क्लीचर लगा हुआ था। कुल मिलाकर आज वह बहुत ही दिलकश लग रही थी और राधे अपने ख़्यालों से तब बाहर आता है जब उसके कानों में रव्या और विहान की आवाज़ पड़ती है।


    विहान ने कहा, "आई मिस यू, बसन्ती!"


    रव्या ने मुस्कुराकर विहान से अलग होते हुए कहा, "हमने भी आपको बहुत मिस किया!"


    विहान ने अपने दाँत दिखाते हुए कहा, "चल, झूठी!"


    रव्या ने कहा, "नहीं, सच्ची-मुच्ची!"


    विहान ने अंदर आते हुए कहा, "वैसे सच-सच बताना, तुमने दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों लगाई? (ड्रामा करके अपनी आँखें छोटी करते हुए) कहीं मेरी पीठ पीछे कोई कलमुआ तो तुमसे टाँका नहीं भिड़ा गया ना और तुम उसे ही छुपा रही थी इतनी देर तक!"


    रव्या ने विहान और राधे के लिए पानी लाते हुए कहा, "हे भगवान! आप कितना सोचते हैं!"


    विहान ने अपना कॉलर उठाते हुए कहा, "क्योंकि मैं पैदा होने के साथ से ही जीनियस हूँ, इसीलिए बस सोचता ही रहता हूँ!"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "जी, लेकिन सिर्फ़ फ़ालतू और फ़िजूल!"


    विहान ने कहा, "हाहहाहा… बिल्कुल भी फ़नी नहीं था… सबसे पहले ये बताओ कि तुमने खाने में क्या बनाया है? (सूँघते हुए) मुझे खाने की बहुत अच्छी खुशबू आ रही है!"


    रव्या ने कहा, "हमने खीर-पूरी बनाई है… आप बैठे, हम बस अभी लेकर आते हैं!"


    विहान ने टेबल की तरफ़ बढ़ते हुए उत्सुकता से कहा, "हाँ, जाओ जल्दी से लेकर आओ!"


    कुछ ही देर में रव्या राधे और विहान के लिए खीर-पूरी लेकर आती है। विहान तो खाना देखते ही उस पर भूखड़ों की तरह टूट पड़ता है और राधे, रव्या के बार-बार कहने पर, सिर्फ़ खीर की कटोरी लेकर उसे खाने लगता है।


    विहान ने कहा, "उम्मम्… यार बसन्ती, तुम्हारे हाथों में तो साक्षात् सरस्वती का वास है!"


    राधे ने कहा, "वो देवी सरस्वती नहीं… अन्नपूर्णा होती है!"


    विहान ने कहा, "कर दी ना फिर वही अनलॉजिक सी बात… कितनी बार समझाया है, डार्लिंग? मेरे जैसे जीनियस की बातें तुम जैसे तुच्छ प्राणियों को आसानी से यूँ ही समझ नहीं आने वाली!"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "तो जीनियस जी, फिर आप ही समझा दीजिए हम लोगों को!"


    विहान ने कहा, "देखो, अब हमने तुम्हारे हाथ का इतना सुपर टेस्टी खाना खाया और जो इतना टेस्टी था, इतना टेस्टी कि हमारे मुँह से होते हुए वो हमारे गले को इस क़दर तृप्त कर गया कि अब जो वाणी भी हमारे गले से निकलेगी वो भी सुरम्य और कानों को मंत्रमुग्ध कर देने वाली होगी… तो बताओ, इन शॉर्ट, तुम्हारे हाथ में फिर हुई ना सरस्वती देवी!"


    राधे विहान की बेतुकी बात सुनकर उसकी तरफ़ देखकर अपनी आँखें घुमा देता है और रव्या एक पल विहान को अजीब से भाव से देखते हुए अगले पल जोर से हँस देती है!


    रव्या ने हँसते हुए कहा, "आपको पता है हमने आपको और आपकी ऐसी ही बातों को कितना ज़्यादा मिस किया!"


    विहान ने अपने बालों में हाथ घुमाते हुए कहा, "अब मैं बंदा ही इतना नायब हूँ कि एक बार जो मिले, फिर वो कभी मुझे भूल ही ना पाए!"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "ये तो है, बॉस!"


    विहान ने कहा, "मैं तो कब से मिलना चाहता था तुमसे, बस काम की वजह से नहीं मिल पाया। लेकिन आज जैसे ही फ़्री हुआ, सीधा डार्लिंग को अपने साथ उठाकर यहाँ अपनी बसन्ती के पास ले आया!"


    रव्या ने पूछा, "ये आप हमेशा हमें बसन्ती क्यों कहते हैं? हम इतना बोलते हैं क्या?"


    विहान ने कहा, "नहीं, इतना नहीं बोलती हो… लेकिन लॉजिक रे बाबा… देखो, जब तुम हमें मिली थीं तो लाल कपड़ों और मेकअप में बिल्कुल रंग-बिरंगी सी लग रही थीं और फिर तुमने पूछने पर अपना नाम भी नहीं बताया… तो मैंने तुम्हारा नाम बसन्ती रख दिया और अब मुझे यही कहना अच्छा लगता है!"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "आप और आपके लॉजिक… सच में हमारी सोच से बिल्कुल परे हैं!"


    विहान ने कहा, "हम्म… ये तो होना ही है, बसन्ती! समझ कैसे आएगा आखिर तुमने चने जो नहीं खाए… अच्छा, अब ये सब छोड़ो और बताओ मुझे, जब हम आए तो क्या कर रही थीं तुम? और ये माधुरी दीक्षित बनकर क्यों घूम रही हो आज? चक्कर क्या है, बसन्ती?"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "कोई भी चक्कर नहीं है… आज राखी है और जब आप आए… (मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए)… तो हम बस अपने कान्हा को हर साल की तरह राखी बाँध रहे थे, इसीलिए दरवाज़ा खोलने में देर हो गई!"


    विहान ने अपनी आइब्रो ऊपर उठाकर पूछा, "तुम कान्हा को राखी बाँधती हो?"


    रव्या ने कहा, "हम्म, बचपन से… हमारा अपना कोई भाई नहीं था और बचपन में हमारा राखी पर हमेशा बड़ा मन होता था कि हम भी दूसरों की तरह अपने भाई को राखी बाँधें, लेकिन हमारे पास तो भाई ही नहीं था, तो हम किसे राखी बाँधते? फिर बाबा ने हमें कहा कि हम कान्हा जी को राखी बाँध दें, जो हमेशा हमारे साथ रहकर हमारी रक्षा भी करेंगे और हमेशा हमारे अच्छे दोस्त भी बनेंगे। तो बस तब से ही हम ये राखी बाँधते हैं उन्हें… (उदासी से) कभी-कभी हम सोचते हैं कि अगर हमारा भी कोई भाई होता तो हम भी अपने बहन होने के सारे अरमान पूरे करते… हमारे कान्हा ने हमेशा से हमें सब दिया, बस एक भाई की ही कमी रह गई!"


    विहान ने अपना हाथ आगे करते हुए कहा, "तो समझो आज वो कमी भी पूरी हो गई!"


    राधे और रव्या एकटक विहान को देखने लगे!


    विहान ने रव्या की तरफ़ देखकर कहा, "अब ऐसे टुकुर-टुकुर देखती ही रहोगी या बाँधोगी भी राखी? (गंभीरता से) देखो, लाइफ़ में अपनी डार्लिंग के बाद पहली बार किसी से रिश्ता जोड़ने की बात कर रहा हूँ। वरना ये रिश्ते-नाते कभी अपने को जचते नहीं… भरोसा नहीं होता दिल को किसी पर और फिर दिल बहुत दुखता है जब ये भरोसा टूटता है और ये रिश्ते दूर होते हैं। तो इसीलिए अपनी डार्लिंग के सिवा कभी किसी से रिश्ता जोड़ा ही नहीं, क्योंकि लाइफ़ में लोगों से सिवाय धोखे के कुछ मिला ही नहीं… लेकिन जब से तुम मिली हो, बसन्ती… तो पहली बार ऐसा लगा कि कोई अपना मिल गया हो और आज ये रिश्ता और भी गहरा हो जाएगा… हम भले ही भाई-बहन के रिश्ते में जुड़े, लेकिन सबसे पहले तुम हमेशा मेरी एक अच्छी दोस्त रहोगी, जिसे हर हाल में मेरी सारी नॉन-स्टॉप बकवास बिना किसी शिकायत के हमेशा सुननी होगी!"


    रव्या ने भावुक होकर पूछा, "सच कह रहे हैं ना आप?"


    विहान ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, "लाओ, चाकू लेकर आओ… अभी अपनी डार्लिंग का हाथ काटकर उसके ख़ून से लिखकर गारंटी देता हूँ… वो क्या है ना, मेरी जानेमन (बॉडी) थोड़ी नाज़ुक है, तो उसका ख़ून निकालने से थोड़ी प्रॉब्लम हो जाएगी और अपनी जानेमन को हर्ट नहीं कर सकता मैं!"


    विहान की बात सुनकर रव्या नम आँखों से भी मुस्कुरा देती है और इसके बाद वो आरती की थाल लाकर विहान की आरती और तिलक करने के बाद उसे राखी बाँध देती है और ये सब करते हुए उसके चेहरे पर एक अलग ही खुशी नज़र आ रही थी!


    विहान ने अपनी कलाई पर राखी देखते हुए कहा, "आई प्रॉमिस, बसन्ती, कि एक अच्छे दोस्त और भाई की तरह हमेशा तुम्हारी रक्षा करूँगा और लाइफ़ में कभी भी, किसी भी सिचुएशन में, तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगा। अगर तुम कभी धक्के मारकर घर के दरवाज़े से भी बाहर निकाल दोगी ना तो मैं खिड़की से वापस घर के अंदर घुस आऊँगा, लेकिन तुम्हारा पीछा अब कभी नहीं छोड़ने वाला मैं!"


    रव्या ने खुशी से भावुक होकर कहा, "थैंक यू सो मच फॉर एवरीथिंग!"


    विहान और रव्या को यूँ साथ में खुश होता देख राधे भी मन ही मन खुश था और उनकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ खुशियाँ आने की प्रार्थना कर रहा था कि तभी राधे को रव्या को निहारते देख विहान के ख़ुराफ़ाती दिमाग़ की बत्ती जलती है और वो शरारती मुस्कान के साथ रव्या की तरफ़ पलटता है!


    विहान ने कहा, "बसन्ती, मैं क्या सोच रहा था कि मौक़ा भी है, दस्तूर भी है और कान्हा भी शायद आज तुमसे ज़्यादा ही खुश हैं, तो चलो इस खुशी को दुगनी कर देते हैं!"


    रव्या ने अपने भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा, "और वो कैसे?"


    विहान ने शरारती मुस्कान के साथ राधे को देखते हुए कहा, "बसन्ती, थाली में अभी भी एक राखी बची है, तो क्यों न तुम लगे हाथ आज डार्लिंग को भी राखी बाँध ही दो!"


    विहान की बात सुनकर रव्या हैरानी से उसकी तरफ़ देखने लगती है। दूसरी तरफ़ राधे, जो कि इस वक़्त पानी पी रहा था, विहान की बात सुनकर अचानक ही उसके मुँह से पानी बाहर आ जाता है और वो बुरी तरह खांसने लगता है!


    विहान ने राधे की पीठ सहलाते हुए, शरारती मुस्कान के साथ कहा, "अरे! अरे! डार्लिंग… संभालकर क्या कर रहे हो!"


    राधे ने खाँसते हुए कहा, "म…मैं ठीक हूँ!"


    विहान ने कहा, "बहुत अच्छी बात है कि तुम ठीक हो। चलो, आओ अब जल्दी करो, बसन्ती कब से इंतज़ार कर रही है तुम्हें राखी बाँधने के लिए!"


    राधे ने जल्दी से खड़ा होकर कहा, "मुझे बहुत ज़रूरी काम से अर्जेंट जाना है, मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ… बाय!"


    इतना कहकर राधे वहाँ से रॉकेट की स्पीड से नौ दो ग्यारह हो जाता है और विहान उसे आवाज़ देता रह जाता है, लेकिन राधे बिना रुके वहाँ से बस जल्दी से निकल जाता है। राधे के वहाँ से जाने के बाद रव्या और विहान एक पल को गंभीरता से एक-दूसरे की तरफ़ देखते हैं और अगले ही पल दोनों साथ में ज़ोर से ठहाका मारकर हँस पड़ते हैं।

  • 14. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 14

    Words: 1283

    Estimated Reading Time: 8 min

    विहान: ये तो अच्छी बात है। चलो, आओ अब जल्दी करो, रव्या कब से इंतज़ार कर रही है तुम्हें राखी बाँधने के लिए!


    राधे (जल्दी से खड़ा होकर): "मुझे बहुत ज़रूरी काम से अर्जेंट जाना है, मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ… बाय!"


    इतना कहकर राधे वहाँ से रॉकेट की स्पीड से नौ दो ग्यारह हो गया। विहान उसे आवाज़ देता रह गया। राधे के जाने के बाद रव्या और विहान एक पल को गंभीरता से एक-दूसरे की तरफ़ देखते रहे और अगले ही पल दोनों साथ में ज़ोर से हँस पड़े। रात को जब विहान घर पहुँचा, तो राधे घर पर ही मौजूद था और अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ था।


    विहान (राधे के साइड में लेटते हुए): "डार्लिंग, तू यहाँ आकर लेटा है और वहाँ मैं और बसन्ती कब से तेरा इंतज़ार कर रहे थे और" (अपनी हँसी दबाते हुए) "बिचारी बसन्ती तो अब तक राखी लेकर तेरा इंतज़ार कर रही थी!"


    राधे (चिढ़कर): "तूने बंधवा ली ना तो खुश रह, मगर मुझे कोई शौक नहीं है उससे राखी बंधवाने का!"


    विहान: "अरे! ऐसे कैसे? मेरी बात अलग है और तेरी बात अलग है…" (पेट के बल लेटते हुए राधे को छेड़ते हुए) "चल, एक काम करते हैं, अभी भी वक़्त है तो वापस बसन्ती के पास चलते हैं और तेरी राखी बंधवा आते हैं। फिर वो तेरे लिए भी तो बहन जैसी ही है ना!"


    राधे (विहान के ऊपर चढ़ते हुए, कुढ़कर): "साले, चुप कर! बहन होगी वो तेरी और मुझे तेरी तरह कोई शौक नहीं बेवजह रिश्ते बनाने की। और आई शपथ… आई शपथ कि एक बार और तूने मुझे उससे राखी बंधवाने की बात की ना तो तेरा मुँह तोड़ दूँगा मैं!"


    विहान (मासूम-सा चेहरा बनाकर): "अरे! तू अपनी डार्लिंग, अपनी जानेमन, अपने लफ़्ज़े-जिगर को मारेगा?"


    राधे (वापस अपनी जगह बैठते हुए): "हाँ, क्योंकि तेरी हरकतें ही मार खाने वाली होती हैं!"


    विहान (मासूम बनते हुए): "अब मैंने क्या किया, डार्लिंग?"


    राधे (विहान को गुस्से से घूरकर बेड से धक्का देते हुए): "अब तू दफ़ा हो मेरे कमरे से, अभी के अभी!"


    विहान (खड़े होकर, रोब से): "हाँ-हाँ, जा रहा हूँ, डार्लिंग। मगर एक बात याद रखना, अब वो मेरी बहन है और अगर तूने मेरी शान में ज़रा-सी भी गुस्ताखी की ना तो…"


    राधे (बेड से तकिया उठाकर विहान की तरफ़ फेंकते हुए): "तेरी शान की तो ऐसी की तैसी…"


    तकिया लगने से पहले ही विहान साइड होकर हँसता हुआ कमरे से बाहर भाग गया।


    (पन्द्रह दिन बाद…)


    पन्द्रह दिन से ज़्यादा बीत चुके थे रव्या को यहाँ शिफ़्ट हुए और अब वो यहाँ अच्छे से सेटल भी हो चुकी थी। राखी के बाद विहान तो दो-चार बार रव्या से मिलने आ चुका था और अक्सर रोज़ ही वो उसे दिन में एक बार कॉल भी ज़रूर करता था, लेकिन राखी से राधे ना तो यहाँ आया था और ना ही उसने रव्या से कोई बात ही की थी। ये बात कहीं ना कहीं रव्या को चुभ भी रही थी और वो राधे से थोड़ा नाराज़ भी थी। अपनी नाराज़गी दिखाने के लिए रव्या ने भी अपनी तरफ़ से राधे से कोई बात नहीं की थी। हफ़्ते में दो दिन कॉलेज जाना था जिसमें वो अभी एक ही बार विहान के साथ कॉलेज गई थी और बाकी का वक़्त घर पर ही, बस टीवी या अपने घर के थोड़े-बहुत काम में ही रव्या का वक़्त गुज़र रहा था। बीते पन्द्रह दिन में बस उसकी किरण से अच्छी जान-पहचान हो चुकी थी और दोनों अक्सर शाम को कॉलोनी के पार्क में कई बार साथ ही बैठकर बातें करते थे। अभी दोपहर का वक़्त था और रव्या बेमन से कुछ सोचते हुए टीवी के आगे बैठे रिमोट से बस चैनल बदल रही थी कि तभी उसके पास विहान का फ़ोन आया और वो उसका फ़ोन पिक करती है।


    विहान (चहकते हुए): "हैलो, बसन्ती… फिर क्या हाल-चाल, सोनियो?"


    रव्या: "क्या करेंगे? वही रोज़ की तरह बैठकर बोर हो रहे हैं!"


    विहान (बेड पर बैठे राधे के पास लेटते हुए फ़ोन को स्पीकर पर डालते हुए): "क्यों? तुम आज बोर क्यों हो रही हो? आज कुछ काम नहीं किया तुमने? अगर नहीं है तो टीवी देख लो?"


    रव्या: "रोज़ की तरह हम अपना सारा काम ख़त्म कर चुके हैं और रोज़ की तरह टीवी के सामने ही बैठकर इधर से उधर चैनल बदल रहे हैं… रोज़ की तरह ही बस ये दीवारें हमें और हम इन दीवारों को घूर रहे हैं और रोज़ की ही तरह हमारे सामने लगी ये घड़ी अपनी गति से चलते हुए पूरे दिन में आज भी दो बार बारह बजाएगी और फिर रोज़ की तरह ही हमारा ये दिन भी यूँ ही बोर होते हुए गुज़र जाएगा और…"


    विहान (हँसते हुए बीच में ही): "अरे-अरे… रिलैक्स, बसन्ती! यार, तुम तो मेरे से भी ज़्यादा फ़्रस्ट्रेट लग रही हो!"


    रव्या: "अब फ़्रस्ट्रेट न हों तो क्या करें? इतने दिन से हम बस घर में ही बन्द हैं!"


    विहान: "ओहो! बस इतनी सी बात… दस मिनट में रेडी हो जाओ… आई एम कमिंग, बसन्ती!"


    रव्या (चहकते हुए): "सच में आप आ रहे हैं यहाँ?"


    विहान: "नहीं, बसन्ती। एक्चुअली मैं अपनी बॉडी को यहाँ सुलाकर उसमें से अपनी आत्मा को बाहर निकालकर फिर तुम्हें तुम्हारे फ़्लैट से अपने साथ उठाकर मुंबई के सबसे फ़ेमस क़ब्रिस्तान में तुम्हें लेकर जाकर मज़े से पार्टी करूँगा!"


    रव्या (हँसकर): "आप भी ना, कुछ भी बोलते हैं, विहान जी!"


    विहान: "यार, एक तो तुम ये विहान जी-विहान जी कहना बंद करो। इतनी इज़्ज़त मुझे जन्म से आज तक सारी इकट्ठी करूँ तब भी नहीं मिली होगी जितनी तुमने इतने से दिनों में दे दी है मुझे… और सच्ची बोलूँ, जब भी तुम मुझे इतने प्यार से विहान जी-विहान कहती हो ना, कसम से… कसम से बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे कोई अधेड़ उम्र की सास अपने" (एक्टिंग करते हुए) "दामाद को “दामाद जी-दामाद जी” कहकर सम्बोधित कर रही हो!"


    विहान की नौटंकी देखकर, अपने अलमारी में कपड़े सेट करते हुए, राधे भी अपना सर हिलाते हुए हल्का-सा मुस्कुरा देता है।


    रव्या (हँसकर): "आपका ना कुछ भी नहीं हो सकता… अच्छा, अब आप लोग जल्दी से आ जाएँ, हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं!"


    विहान: "हम नहीं, बस मैं आ रहा हूँ, बसन्ती… डार्लिंग नहीं आएगा!"


    रव्या (मायूसी से): "लेकिन क्यों?"


    विहान (राधे की तरफ़ देखकर): "वो दरअसल डार्लिंग को एक ज़रूरी काम आ गया है, तो वो नहीं आ सकता!"


    रव्या आगे कुछ बोलती, तभी दरवाज़े की घंटी बजती है और रव्या फ़ोन होल्ड पर रखकर दरवाज़े पर देखने जाती है और कुछ पल बाद वापस आती है।


    विहान: "कौन था, बसन्ती?"


    रव्या: "वो किरण थी, हमारी दोस्त!"


    विहान (अपनी आइब्रो उठाकर): "कौन किरण?"


    रव्या: "वो नीचे वाले फ़्लैट में ही रहती है और अभी कुछ वक़्त पहले ही हमारी उनसे दोस्ती हुई है और वो हमसे पूछने आई थी कि क्या हम उनके साथ बाज़ार चलेंगे। वो बहुत दिनों से हमसे कह रही हैं, लेकिन हम गए नहीं उनके साथ, पर आज वो बहुत ज़िद कर रही थी, तो हमने कह दिया कि आज तो नहीं, लेकिन हम कल उनके साथ पक्का चलेंगे!"


    तभी राधे अचानक ही विहान के हाथ से फ़ोन ले लेता है।


    राधे (गंभीरता से): "तुम किसी के साथ कहीं नहीं जाओगी। ऐसे किसी के साथ भी तुम्हारा जाना सेफ़ नहीं है। तुम्हें जहाँ भी जाना है, विहान के साथ जाओगी… समझी तुम?"


    रव्या (नाराज़गी से): "नहीं… हम जाएँगे और आपको हमारी फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम अपना ध्यान खुद अच्छे से रख सकते हैं, इसीलिए आप हमारे लिए बेवजह परेशान न हों… और विहान जी, आप जल्दी से आइएगा, हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं… बाय!"


    इतना कहकर रव्या फ़ोन काट देती है और राधे, कॉल कटने के बाद फ़ोन को देखकर एक पल को अपनी आँखें बन्द करके एक गहरी साँस लेता है।

  • 15. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 15

    Words: 1706

    Estimated Reading Time: 11 min

    राधे ने गंभीरता से कहा, "तुम किसी के साथ कहीं नहीं जाओगी। ऐसे किसी के साथ भी तुम्हारा जाना सेफ़ नहीं है। तुम्हें जहाँ भी जाना है, विहान के साथ जाओगी… समझी तुम?"


    रव्या ने नाराज़गी से कहा, "नहीं… हम जाएँगे और आपको हमारी फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम अपना ध्यान खुद अच्छे से रख सकते हैं। इसीलिए आप हमारे लिए बेवजह परेशान न हों… और विहान जी, आप जल्दी से आइएगा, हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं… बाय!"


    रव्या ने इतना कहकर फ़ोन काट दिया। कॉल कटने के बाद राधे ने फ़ोन को देखकर एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर एक गहरी साँस ली।


    विहान ने कहा, "तू क्यों बेवजह बात को बढ़ा रहा है?"


    राधे ने फ़ोन विहान की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "वो इंतज़ार कर रही होगी। तुझे जाना चाहिए अब और जाते वक़्त दरवाज़ा ठीक से बंद करते जाना!"


    विहान बेड से उठते हुए बोला, "डार्लिंग, तेरा ना कुछ भी नहीं हो सकता… तुझे कुछ भी कहने का फ़ायदा ही नहीं!"


    इसके बाद विहान रव्या से मिलने के लिए घर से निकल गया और कुछ ही देर में रव्या के घर पहुँच गया।


    विहान ने दरवाज़ा खोलती रव्या से कहा, "हैलो, बसन्ती! और क्या हाल-चाल?"


    रव्या ने उदासी के भाव से कहा, "हम ठीक हैं!"


    विहान ने रव्या को देखते हुए कहा, "तुम अभी तक तैयार नहीं हुई?"


    रव्या ने वापस अंदर जाते हुए कहा, "नहीं, हमारा मन नहीं है अब कहीं भी जाने का!"


    विहान रव्या के पीछे आते हुए बोला, "अरे! अभी थोड़ी देर पहले तो तुम इतनी एक्साइटेड थीं जाने के लिए, मगर अब क्यों नहीं जाना?"


    रव्या सोफ़े पर बैठते हुए बोली, "बस अब हमारा मन नहीं है… हम यहीं ठीक हैं… इनफ़ैक्ट हम आज के बाद कहीं भी नहीं जाएँगे अब से… यहाँ तक कि कॉलेज भी नहीं!"


    विहान रव्या के पास बैठते हुए बोला, "ओ तेरी! इतना गुस्सा, बसन्ती… जिस पर गुस्सा है उस पर निकालो ना! मेरी जानेमन के अंदर धड़कता मेरा ये मासूम दिल को क्यों डरा रही हो!"


    रव्या ने हल्की नाराज़गी से कहा, "हम क्यों किसी से गुस्सा होंगे? सबकी अपनी मर्ज़ी और ज़िन्दगी है, जिसे जो करना वो करे। हम भी अब से बस वही करेंगे जो हमें करना है!"


    विहान ने कहा, "ओ माई… ये डार्लिंग ने मेरी अच्छी-खासी भोली-भाली बसन्ती को गुस्सैल हसीना में बदल दिया!"


    तभी दरवाज़े से राधे अंदर आया।


    राधे ने रव्या की तरफ़ देखकर कहा, "विहान, बताओ अपनी दोस्त को कि ज़्यादा गुस्सा सेहत के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं होता है!"


    रव्या ने नाराज़गी के भाव से कहा, "विहान जी, आप भी कह दीजिए अपने दोस्त को कि हमें किसी की किसी भी तरह की एडवाइस की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं और ना ही हम किसी से गुस्सा ही हैं!"


    विहान ने कहा, "एक मिनट! ये तुम दोनों बीच में मुझे क्यों चिट्ठी वाला हँस बना रहे हो? जो भी कहना है, खुद ही कह लो…" रव्या विहान की तरफ़ देख रही थी। "हाँ-हाँ, समझ गया। मगर बसन्ती, समझती नहीं हो यार लॉजिक ना… हाँ, जानता हूँ कि आमतौर पर चिट्ठी का काम कबूतरों का होता है, लेकिन अब क्या है ना, मैं और मेरी जानेमन थोड़े ज़्यादा ही गोरे-चिट्टे हैं और कबूतर का एग्जांपल मुझसे मेल नहीं खाएगा। वो क्या है ना, वो ज़रा मुझसे ज़रा से काले हैं, इसीलिए मैंने खुद को और अपनी जानेमन को एक हँस से कंपेयर किया। वो ज़रा थोड़े मेरे रंग-रूप के आस-पास आ जाते हैं… तो बस इत्ता-सा ही लॉजिक है, बसन्ती। पर मेरी सुपर इंटेलिजेंट बातें समझने में तुमको वक़्त लगेगा… ख़ैर, वक़्त के साथ सब सीख ही जाओगी तुम मेरे साथ रहकर, बसन्ती… चलो, मैं इतने ज़रा बाहर घूमकर आता हूँ, तुम सुलटाओ आपस में!"


    इसके बाद विहान वहाँ से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद रव्या भी सोफ़े से उठकर अंदर जाने लगी, लेकिन उसके वहाँ से जाने से पहले ही राधे उसकी कलाई पकड़कर उसे रोक लिया। रव्या की पीठ राधे के सामने थी और राधे के उसका हाथ पकड़ते ही वो अपनी जगह बिना मुड़े रुक गई।


    राधे ने गंभीरता से कहा, "कई बार चीज़ें वैसी होती नहीं जैसी कि अक्सर नज़र आती हैं… हमेशा हमारी एक्सपेक्टेशन के हिसाब से चीज़ें हों, ये मुमकिन नहीं, क्योंकि कभी किस्मत तो कभी हालात को ये मंज़ूर नहीं होता!"


    रव्या ने बिना मुड़े कहा, "अगर दिल में किसी चीज़ को लेकर पूरी शिद्दत हो तो हालात और किस्मत दोनों को ही बदला जा सकता है!"


    राधे ने गंभीर भाव से ही कहा, "किसी से इतनी भी उम्मीदें मत रखो कि एक वक़्त के बाद वो उम्मीदें आपको ही तकलीफ़ दे जाएँ!"


    रव्या ने राधे की तरफ़ पलटकर कहा, "दिल उम्मीदें भी हर किसी से नहीं रखता। बस जो ख़ास और दिल के पास हो जाते हैं, उम्मीदें भी उनसे खुद-ब-खुद ही जुड़ जाती हैं!"


    राधे ने कहा, "आख़िर में इन उम्मीदों से दर्द के सिर्फ़ कुछ भी नहीं पाओगी!"


    रव्या ने कहा, "आख़िर की आख़िर में देखी जाएगी… अभी जो लम्हे मिले हैं, कम से कम वो तो जी भर के खुशी से जी लूँगी!"


    राधे ने रव्या की तरफ़ देखकर, उसका हाथ छोड़ते हुए कहा, "बहुत पछताओगी!"


    रव्या ने मुस्कुराकर कहा, "मंज़ूर है!"


    कुछ पल तक दोनों एकटक एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। कुछ देर बाद रव्या के फ़ोन पर विहान की कॉल आने से दोनों अपने ख़्याल से बाहर आ गए। राधे जल्दी से रव्या का हाथ छोड़कर अपना चेहरा दूसरी दिशा में कर लेता है और रव्या विहान की कॉल पिक करती है।


    रव्या ने कहा, "हाँ, विहान जी, कहिए?"


    विहान ने कहा, "फिर तुमने विहान जी-विहान जी शुरू किया?"


    रव्या ने कहा, "अच्छा, सॉरी… विहान, बोलो, क्या बात है?"


    विहान ने कहा, "क्या बात है का क्या मतलब… यार, मुझे कसम से बहुत भूख लगी है। अगर तुम दोनों का रव्या-राधे मिलाप पूरा हो गया हो तो अब नीचे आ जाओ, प्लीज़। मैं यहीं गाड़ी में इंतज़ार कर रहा हूँ!"


    रव्या ने कहा, "ठीक है, हम लोग बस आते हैं!"


    विहान ने कहा, "ओके, जल्दी आना, मैं इंतज़ार कर रहा हूँ!"


    रव्या ने कहा, "हम्म…" रव्या फ़ोन रखकर राधे से बोली, "आप चलिए नीचे, हम बस दस मिनट में तैयार होकर आते हैं!"


    राधे ने कहा, "हम्म!"


    इसके बाद राधे वहाँ से नीचे चला गया। कुछ देर बाद रव्या भी तैयार होकर लिफ़्ट से नीचे गई और जैसे ही वो नीचे पहुँचकर लिफ़्ट से बाहर निकली तो अचानक ही सामने खड़े शख़्स से टकरा गई!


    रव्या ने शख़्स से कहा, "अरे, आप… आई एम सो सॉरी! वो मैं जल्दी-जल्दी में आपसे टकरा गई!"


    शख़्स ने कहा, "इट्स ओके। गलती मेरी ही थी, मुझे देखकर चलना चाहिए था!"


    रव्या ने कहा, "नहीं, हमें जल्दी में थे… गलती हमारी ही है!"


    शख़्स ने मुस्कुराकर कहा, "इट्स ओके, रव्या जी… आप कहीं जा रही थीं? जाइए, वरना देर हो जाएगी!"


    रव्या ने कहा, "ओह, हाँ… हम जाते हैं। बाय!"


    शख़्स ने कहा, "बाय!"


    इसके बाद रव्या बाहर की तरफ़ अपने क़दम बढ़ाती है जहाँ कुछ दूर पर ही राधे खड़ा होकर उसका ही इंतज़ार कर रहा था और उस शख़्स को गौर से देख रहा था जो अभी कुछ पल पहले ही रव्या से बात कर रहा था।


    रव्या राधे के पास आकर बोली, "चलें?"


    राधे ने पूछा, "कौन था वो जिससे अभी तुम बात कर रही थीं?"


    रव्या ने कहा, "कौन? विशाल जी… विशाल जी की बात कर रहे हैं आप… वो हमारी दोस्त किरण के हसबैंड हैं… एक-दो बार हम किरण के साथ ही मिले हैं उनसे!"


    राधे ने कहा, "हम्म, ठीक है। लेकिन जितना हो सके आज के बाद उतना दूर रहो इन लोगों से!"


    रव्या ने कहा, "लेकिन वो हमारी दोस्त है और हम बस…"


    राधे ने बीच में ही सख़्ती से कहा, "लेकिन मैं तुम्हें जब कह रहा हूँ कि आज के बाद तुम इन लोगों से दूर रहोगी तो मतलब दूर रहोगी… समझी तुम?"


    रव्या ने अपनी नज़रें झुकाकर बस हाँ में अपना सर हिलाकर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई। राधे समझ रहा था कि उसका रव्या से ऐसे बात करना रव्या को कहीं ना कहीं अच्छा नहीं लगा, लेकिन वो जानता था कि वो जो कुछ भी उसे बोल रहा है या करने को कह रहा है वो उसके भले के लिए कह रहा है। राधे भी कुछ पल बाद वहाँ आगे बढ़ गया। पूरे रास्ते रव्या बिल्कुल शांत ही बैठी रही। थोड़ी ही देर में तीनों की गाड़ी एक रेस्टोरेंट के सामने जाकर रुकती है। गाड़ी पार्क करने के बाद तीनों रेस्टोरेंट के अंदर जाते हैं और टेबल पर बैठने के बाद विहान खाना ऑर्डर करने के लिए जाता है। रव्या अभी भी शांत ही बैठी थी और राधे का ध्यान उस पर ही लगा था। कुछ देर बाद विहान भी वहाँ आ जाता है।


    राधे ने कुछ देर शांत रहने के बाद कहा, "मैं तुम पर या तुम्हारी लाइफ़ पर कोई भी पाबंदी नहीं लगा रहा हूँ। बस मैं ये सब…"


    रव्या ने बीच में ही राधे को टोकते हुए कहा, "हमारे भले के लिए कह रहे हैं… जानते हैं हम!"


    राधे ने कहा, "ये दुनिया ऐसी नहीं है जैसा कि तुम सोचती हो… ये दुनिया सिर्फ़ मतलबी और धोखेबाज़ लोगों से भरी है!"


    रव्या ने राधे की आँखों में देखते हुए कहा, "आपसे मिलने से पहले हमें भी यही लगता था और हमें ये दुनिया भी बहुत ही बेरंग और बेमानी सी लगती थी… लेकिन अब हम ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचते और अब हमें ये दुनिया बहुत ही ख़ूबसूरत और रंगीन नज़र आने लगी है!"


    रव्या की बात सुनकर राधे भी कुछ पल तक एकटक बस उसे देखने लगा। विहान उन दोनों को एक-दूसरे में खोया हुआ देखकर चुपके से उनकी ऐसे ही एक फ़ोटो निकाल लेता है!


    विहान ने खाँसते हुए कहा, "अहूँ… अहूँ…" राधे और रव्या विहान की आवाज़ सुनकर झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगे। "कसम से अगर तुम दोनों ने ऐसे ही कुछ देर और एक-दूसरे को घूरा ना तो तुम दोनों का ऑटोग्राफ़ लेने के लिए यहाँ कुछ ही देर में लैला-मजनूँ, हीर-राँझा, सोनी-महीवाल जैसे कितने ही चाहने वालों की आत्माओं की लम्बी लाइन लग जाएगी और उन सबकी आत्माएँ यहाँ आकर कबाब में हड्डी की तरह बैठे हुए सबसे पहले मुझे ही पटक़ी देकर मारेंगी… इसीलिए प्लीज़, तुम दोनों मुझ पर और मेरी जानेमन पर ज़रा थोड़ा-सा रहम करो!"


    रव्या ने झेंपकर कहा, "हम अभी फ़्रेश होकर आते हैं!"


    राधे ने रव्या के जाने के बाद विहान को घूरते हुए कहा, "तुझे नहीं लगता तेरी ज़ुबान आजकल ज़रूरत से ज़्यादा चलने लगी है!"


    विहान ने अपने दाँत दिखाते हुए कहा, "अच्छा, सच में ऐसा है क्या? मुझे तो नहीं लगा वैसे ऐसा कुछ भी!"


    राधे आगे कुछ कहता, उससे पहले ही उसका फ़ोन बजने लगा और वो नंबर देखकर फ़ोन पिक करता है। फ़ोन सुनने के बाद राधे के एक्सप्रेशन एकदम बदलकर अचानक ही सख़्त हो जाते हैं और ये देखकर कुछ पल के लिए विहान के चेहरे पर भी गंभीरता छा जाती है।

  • 16. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 16

    Words: 1528

    Estimated Reading Time: 10 min

    राधे (रव्या के जाने के बाद विहान को घूर कर): तुझे नहीं लगता तेरी ज़ुबान आजकल ज़रूरत से ज़्यादा चलने लगी है!

    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): अच्छा, सच में ऐसा है क्या... मुझे तो नहीं लगा वैसे ऐसा कुछ भी!


    राधे आगे कुछ कहता, उससे पहले ही उसका फ़ोन बजने लगता है। उसने नंबर देखकर फ़ोन पिक किया। फ़ोन सुनने के बाद राधे के एक्सप्रेशन एकदम बदल गए। अचानक ही उसके चेहरे के भाव सख्त हो गए। यह देखकर कुछ पल के लिए विहान के चेहरे पर भी गंभीरता छा गई।


    विहान (राधे के फ़ोन रखने के बाद): क्या हुआ, डार्लिंग? किसका फ़ोन था?

    राधे: भाऊ का फ़ोन था..... विक्रम वापस मुंबई आ गया है... उन्होंने सतर्क रहने के लिए कहा है!

    विहान: ओह माई.... यह पक्का! फिर गड़बड़ करेगा!

    राधे: हम्म्म, अब और भी ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है!


    तभी रव्या वहाँ वापस आ गई। राधे और विहान उसे देखकर खामोश हो गए।


    रव्या (उन दोनों को खामोश देखकर): क्या हुआ? सब ठीक है?

    विहान: कहाँ ठीक है, यार बसंती..... इतनी देर हो गई हमें यहाँ आए हुए और ये मुए अभी तक खाना नहीं ले कर आए!

    रव्या (मुस्कुरा कर): बस आता ही होगा, थोड़ा सा सब्र कीजिए!

    विहान (मुँह लटका कर): हम्म्म!


    कुछ ही देर में खाना आ गया। विहान तो हर बार की तरह खाना देखकर उस पर टूट पड़ा। राधे और रव्या भी अपना खाना शुरू करते हैं। खाना खाने के बाद तीनों रेस्टोरेंट से वापस रव्या के घर के लिए निकल गए। घर पहुँचकर विहान राधे से रव्या को ऊपर तक छोड़कर आने के लिए कहता है। लिफ़्ट में दोनों के बीच बस शांति ही पसरी रही। जब रव्या लिफ़्ट से बाहर आकर उसे बाय बोलती है, तो राधे उसे टोकता है।


    राधे (कुछ सोचते हुए): सुनो?

    रव्या (राधे की तरफ़ देखकर): जी?

    राधे: दरअसल मैं कह रहा था कि..... मतलब तुम....

    रव्या: डोंट वरी, हम किरण को मना कर देंगे कि हम नहीं आ सकते उनके साथ!

    राधे (हल्का सा मुस्कुरा कर): हम्म...!!

    रव्या: अब तो आप हमसे मिलने आते रहेंगे ना?

    राधे (गंभीर भाव से): मैं दो दिनों के लिए मुंबई से बाहर जा रहा हूँ!

    रव्या: क..कब?

    राधे: एक ज़रूरी काम आ गया है तो कल सुबह ही जाना पड़ेगा!

    रव्या (उदासी से): जाना ज़रूरी है... हम यहाँ अकेले कैसे रहेंगे?

    राधे: परेशानी की कोई बात नहीं है... विहान है यहाँ। अगर कोई भी बात हो तो तुम उसे कह देना। बाकी मेरा नंबर है ही तुम्हारे पास। कोई भी परेशानी हो तो तुम मुझे कॉल कर सकती हो...!

    रव्या (मायूसी से): हम्म!

    राधे: तो अब मैं चलूँ?

    रव्या: जी.... (एक पल रुककर).... अच्छा सुनिए?

    राधे: हम्म, कहो?

    रव्या (राधे की तरफ़ देखकर): जल्दी वापस आइएगा और अपना ख्याल रखिएगा!

    राधे: हम्म... तुम भी.... बाय!

    रव्या: जी.... बाय!


    इसके बाद राधे बिना मुड़े सीधा लिफ़्ट में वापस चला जाता है। रव्या बस उसे जाते हुए देखती रह जाती है। अगले दिन सुबह ही राधे मुंबई से अपने काम के सिलसिले में निकल गया। दूसरी तरफ़ रव्या से मिलने किरण उसके घर में आती है।


    किरण: चलो रव्या, जल्दी करो वरना देर हो जाएगी!

    रव्या: सॉरी, मगर हम नहीं आ सकेंगे!

    किरण: लेकिन क्यों.... तुमने तो कहा था कि तुम आज पक्का चलोगी मेरे साथ!

    रव्या: हाँ, कहा तो था लेकिन हम नहीं आ सकते.... सॉरी!

    किरण: लेकिन क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें ऐसा करने से मना किया है?

    रव्या: ऐसा कुछ नहीं है किरण, बस हमारी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है!

    किरण: ठीक है, तुम्हारी मर्ज़ी। लेकिन एक दोस्त होने के नाते मैं तुम्हें यही एडवाइस दूँगी कि जितना हो सके तुम अपने उन दोस्तों से दूर रहो, यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा!

    रव्या: तुम कहना क्या चाहती हो किरण?

    किरण: देखो रव्या, तुम मेरी दोस्त हो और मैं बस तुम्हारा भला ही चाहूँगी... दरअसल तुम्हारे वो जो दो दोस्त हैं, उनकी इमेज सोसाइटी में कुछ ख़ास अच्छी नहीं है..... वो बगल वाली मिसेज़ गुप्ता मुझे बता रही थीं कि वो दोनों एक नंबर के गुंडे और बिगड़े हुए इंसान हैं और उनका रिकॉर्ड बिल्कुल भी अच्छा नहीं है और....

    रव्या (नाराज़गी से बीच में ही): बस किरण, बहुत हुआ.... तुम राधे जी और विहान के बारे में कुछ भी नहीं जानती हो इसीलिए तुम्हें कोई हक़ नहीं उन्हें इस तरह जज करने का.... वो लोग हमारे लिए किसी फ़रिश्ता से कम नहीं हैं इसीलिए आइन्दा हमारे सामने उन लोगों के लिए कुछ गलत ना कहो तो ही बेहतर होगा!

    किरण: लेकिन रव्या, मैं तो बस....

    रव्या: हमने कहा ना बस किरण, तो बस बहुत हुआ... और आज के बाद तुमने अगर राधे जी या विहान के बारे में कुछ भी गलत कहा तो हम भूल जाएँगे कि तुम हमारी दोस्त हो!

    किरण (गुस्से से): तुम्हारी ज़िन्दगी जो चाहो वो करो लेकिन एक बात याद रखना, जिस दिन तुम्हें सच का पता चलेगा बहुत पछताओगी तुम!


    इतना कहकर किरण नाराज़गी से वहाँ से चली जाती है। जैसे ही किरण वापस अपने घर में आती है, उसका फ़ोन रिंग करने लगता है। उसने नंबर देखकर फ़ोन उठाया।


    किरण: हैलो....

    दूसरी तरफ़ से: काम हुआ?

    किरण: नहीं..

    दूसरी तरफ़ से (नाराज़गी से): अब तक तेरे से इतना छोटा सा काम नहीं हुआ?

    किरण: मैं क्या करूँ.... वो लड़की मेरी लाख कोशिशों के बाद भी कहीं भी मेरे साथ बाहर आने के लिए तैयार ही नहीं है.... अब मैं उसे यूँ ही सबके बीच से तो गायब नहीं कर सकती ना!

    दूसरी तरफ़ से: मेरे को ये सब नहीं पता.... मेरे को रिजल्ट चाहिए बस..... वो भी जल्दी ही!!!


    इतना कहकर दूसरी तरफ़ से फ़ोन कट जाता है। किरण फ़्रस्ट्रेट होकर अपना फ़ोन सोफ़े पर पटक देती है। उधर दूसरी तरफ़ किरण के जाने के बाद कुछ ही देर में विहान वहाँ आ जाता है।


    विहान (रव्या को देखकर): जल्दी करो बसंती, हमें जाना है!

    रव्या: लेकिन कहाँ?

    विहान (रव्या का हाथ पकड़कर): वो सब मैं तुम्हें रास्ते में बताता हूँ.... फ़िलहाल चलो जल्दी से!

    रव्या: अरे लेकिन हमें चेंज तो करने दीजिए कम से कम!

    विहान: उसकी ज़रूरत नहीं है, तुम हमेशा ही नहाई हुई लगती हो। बाकी मेरे पास मस्त वाला परफ़्यूम है, वो डाल लेना तो प्रॉब्लम सॉल्व!

    रव्या (विहान को अजीब भाव से देखकर): आपके पास कितने हटके आइडियाज़ होते हैं ना....!!

    विहान (अपने दाँत दिखाते हुए): अब बसंती, मैं बंदा ही हटके हूँ तो मेरे आइडियाज़ भी तो हटके ही होंगे!

    रव्या (अपना सर हिलाते हुए): ठीक है, लेकिन हमें घर तो लॉक कर दीजिए!

    विहान (घर से बाहर निकलते हुए घर लॉक करते हुए): लो, हो गया। अब चलो जल्दी से!

    रव्या: चलिए.... आपका न कुछ भी नहीं हो सकता!


    इसके बाद दोनों लिफ़्ट से नीचे आकर विहान की गाड़ी में वहाँ से निकल जाते हैं।


    रव्या (रास्ते में): अब तो बता दीजिए कि आखिर हम जा कहाँ रहे हैं!

    विहान: हम्म, तो सुनो.... जिस खोली में हम रहते हैं उसी के थोड़ी दूर एक मौसी रहती हैं तो उनकी बेटी की मेहँदी का फ़ंक्शन है आज.... उन्होंने मुझे और डार्लिंग को आने के लिए बोला है लेकिन अब डार्लिंग तो यहाँ है ही नहीं इसीलिए सिर्फ़ हम दोनों शाम को वहाँ जाएँगे और फ़ंक्शन में जाने के लिए अपनी जानेमन को हसीं और दिलकश बनाने के लिए मुझे एक्स्ट्रा तैयारी की ज़रूरत है इसीलिए हम शॉपिंग पर जा रहे हैं!

    रव्या: लेकिन हम फ़ंक्शन में कैसे जाएँगे?

    विहान (अपने कंधे उचकाते हुए): अपने पैरों से और कैसे?

    रव्या: ओहो!.. हमारा मतलब है हम तो वहाँ किसी को जानते भी नहीं हैं तो फिर हम कैसे....

    विहान: नहीं जानती तो जान जाओगी बसंती और फिर जब मैं साथ हूँ तो तुम्हें कैसी टेंशन..... सो जस्ट चिल बसंती... वैसे भी मैं डार्लिंग की तरह खड़ूस नहीं हूँ, मैं कंपनी दूँगा ना तुम्हें!

    रव्या: वो खड़ूस नहीं हैं!

    विहान: ओहो, तुम्हें बड़ा पता है!

    रव्या: हाँ, हमें पता है... कि वो खड़ूस नहीं हैं। बस वो सख्त बनने का दिखावा करते हैं वरना असल में उनका दिल बहुत ही नर्म है!

    विहान (ड्रामा करते हुए): उफ़्फ़!... जलन होती है कभी-कभी मुझे..... कोई मुई मेरी तो कभी ऐसे तरफ़दारी नहीं करती.... कभी-कभी लगता है बप्पा ने पैदा भी की है कोई मेरे लिए कि आसमान और ज़मीन के बीच ही अटक के रह गई है मेरी वाली... मिलती ही नहीं!!

    रव्या (हंसकर): आप भी कहाँ-कहाँ तक सोच लेते हैं!

    विहान: अरे यार बसंती, पता है सच यह है कि यह दुनिया ने मेरे जैसे सुपर टैलेंटेड और हसीं इंसान की क़दर ही नहीं करती.... अच्छा चलो, तुम मेरी छोड़ो, अपनी बताओ?

    रव्या: हम क्या बताएँ... सब तो आपको पता है!

    विहान: यही कि मेरे डार्लिंग के बारे में क्या ख़्याल है तुम्हारा?

    रव्या (झेंप कर): के... कैसा ख़्याल?

    विहान (रोड पर देखते हुए): जानकर अनजान बन रही हो बसंती... बट रिमेंबर, मैं भी दा ग्रेट विहान हूँ। कुछ छुप नहीं सकता मुझसे!

    रव्या (अपना चेहरा खिड़की की तरफ़ करके): ऐ... ऐसा कु..कुछ भी न..नहीं है। आप कु..कुछ भी सोच रहे हैं!

    विहान (शरारती मुस्कान के साथ): चल झूठी...... इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपता बसंती!!!


    विहान की बात सुनकर रव्या ड्राइविंग कर रहे विहान को अपनी बड़ी-बड़ी हैरानी भरी आँखों से उसे देखने लगती है। विहान शरारती मुस्कान से उसकी तरफ़ देखते हुए विंक कर देता है।

  • 17. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 17

    Words: 870

    Estimated Reading Time: 6 min

    विहान, शरारती मुस्कान के साथ, बोला, "चल झूठी... इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपता बसंती!!!"

    विहान की बात सुनकर रव्या, ड्राइविंग कर रहे विहान को अपनी बड़ी-बड़ी हैरानी भरी आँखों से देखने लगी। विहान शरारती मुस्कान से उसकी तरफ़ देखते हुए विंक कर गया। रव्या खामोश होकर गाड़ी से बाहर देखने लगी। कुछ ही देर में दोनों मॉल पहुँचे और शॉपिंग शुरू कर दी। लगभग तीन घंटे से ज़्यादा हो गए थे, उन दोनों को इधर-उधर घूमते हुए, लेकिन विहान को कुछ पसंद ही नहीं आ रहा था। अब रव्या का सब्र जवाब दे गया।

    रव्या ने कहा, "विहान, तुम तो लड़कियों से भी आगे निकल गए... मतलब इतना टाइम कौन लेता है शॉपिंग के लिए... इतनी देर में हम अब तक दस जोड़ी कपड़े ले लेते... अब हम और नहीं घूम सकते। बस इसी शॉप से फ़ाइनल करो और बात ख़त्म करो!"

    "यार बसंती, अपनी एक्स्ट्रा स्पेशल जानेमन के लिए मुझे एक्स्ट्रा स्पेशल केयर और कपड़ों की भी ज़रूरत है ना, तो मैं ऐसे ही थोड़ी कुछ ले सकता हूँ... मेरी जानेमन पर जचना भी तो चाहिए ना अच्छे से!" विहान ने कहा।

    "अब तुम चुप करके अपनी जानेमन के साथ यहीं खड़े रहो... हम तुम्हारे कपड़े सिलेक्ट करते हैं!" रव्या ने आँखें दिखाते हुए कहा।

    "लेकिन...." विहान ने कहा।

    "हमने कहा ना हम करेंगे, तो बस चुप रहो अब!" रव्या ने कहा।

    "ओके!" विहान ने अपनी मुँडी हिलाते हुए कहा।

    इसके बाद रव्या ने शाम के लिए विहान के लिए सफ़ेद पजामा पर हल्का ग्रीन कलर का कुर्ता और कल के लिए ब्लैक शर्ट पर ब्लू जीन्स सिलेक्ट किए, जो विहान को भी पसंद आए। इसके बाद दोनों ने बिल चुकाकर वहाँ से मॉल में ही बने फ़ूड कॉर्नर पर चले गए। विहान ने रव्या को बैठाकर खाना ऑर्डर करने चला गया और कुछ देर बाद वापस रव्या के पास आकर बैठ गया। कुछ देर बाद उनका ऑर्डर आया, जिसे देखकर रव्या हैरानी से विहान की तरफ़ देखने लगी। चीज़ बर्गर, चीज़ पिज़्ज़ा, चिली पोटैटो, चिली पनीर, फ़्रेंच फ़्राइज़, चॉकलेट पेस्ट्री के साथ कोक और आइसक्रीम!!

    रव्या ने हैरानी से पूछा, "तुमने बस हम दोनों के लिए ऑर्डर किया ये खाना?"

    "हाँ, वो क्या है ना, मैंने सोचा हम दोनों का दोपहर का खाना तो हो गया था इसीलिए अब बस थोड़ा हल्का-फुल्का स्नैक ही चलेगा तो मैंने बस कम ही ऑर्डर किया!!" विहान ने जवाब दिया।

    "ये तुम्हारे लिए हल्के-फुल्के स्नैक्स हैं... सीरियसली?" रव्या ने पूछा।

    विहान ने बर्गर मुँह में ठूँसते हुए कहा, "और नहीं तो क्या... वो तो मैंने तुम्हें बताया था ना कि मैं डाइट पर हूँ तो बस मजबूरी के तहत ये सब कम ही खाना पड़ता है!"

    रव्या हँसते हुए बोली, "सच में भगवान आप जैसी मजबूरी सबको दे... (विहान को छेड़ते हुए)... मतलब हम तो ये सोचते हैं कि तुम इतना कम खाते हो फिर भी तुम्हारी जानेमन टस से मस नहीं होती... सच में दाद देनी पड़ेगी आपके खाने और आपकी जानेमन के बीच तालमेल की!"

    विहान ने अपनी आइब्रो उठाते हुए पूछा, "तुम मेरा मज़ाक उड़ा रही हो बसंती?"

    रव्या ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा, "भला हमारी इतनी जुर्रत हो सकती है कि हम दा ग्रेट विहान जी का मज़ाक उड़ाएँ!"

    "उड़ा लो मज़ाक, बेटा, जितना उड़ाना है। मेरा भी वक़्त जल्दी आने वाला है... वैसे बसंती, ये तो मानना पड़ेगा तुम्हारी पसंद काफ़ी बेस्ट है!" विहान ने कहा।

    "मानते हैं ना आप भी ये बात?" रव्या ने मुस्कुराकर पूछा।

    विहान ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "हम्म, बिल्कुल। मैंने देखा ना... चाहे कपड़े हों या फिर डार्लिंग, तुम्हारी चॉइस तो बेस्ट ही है... सबसे हटकर!"

    रव्या विहान की बात सुनकर एक पल को खाते-खाते रुक गई।

    विहान ने रव्या को छेड़ते हुए कहा, "जितनी जुबान मेरे आगे चलती है ना, अगर उसकी आधी भी डार्लिंग के आगे चला लो तो बाय गॉड, डार्लिंग सेट है!"

    "हमारा हो गया। अब चलिए जल्दी से यहाँ से!" रव्या उठते हुए बोली।

    रव्या बिना रुके वहाँ से आगे बढ़ गई और विहान टेबल से अपने एक हाथ में कोक और एक हाथ में पिज़्ज़ा लेकर कैफ़े से बाहर आ गया। कुछ देर बाद दोनों पार्किंग में आकर वापस घर के लिए निकल गए। रास्ते में विहान के पास राधे की कॉल आई।

    विहान ने फ़ोन स्पीकर पर डालकर कहा, "कैसा है, डार्लिंग, तू?"

    "मैं ठीक हूँ और यहाँ पहुँच भी चुका हूँ!" राधे ने कहा।

    "डार्लिंग, कब वापस आएगी तू... इतने सालों में आज मैं और मेरी जानेमन तुझसे दूर हुए हैं तो तेरी बहुत याद आ रही है!" विहान ने कहा।

    "मैं परसों तक वापस आ जाऊँगा... (एक पल रुककर)... और बाकी सब ठीक है ना वहाँ?" राधे ने पूछा।

    "ले, बाकी सब का तू बाकी सब से ही पूछ ले!" विहान ने कहा।

    इतना कहकर विहान राधे की सुनने से पहले ही फ़ोन रव्या की तरफ़ बढ़ा दिया।

    "कैसे हैं आप?" रव्या ने पूछा।

    राधे कुछ पल शांत रहने के बाद बोला, "ठीक... तुम?"

    "हम भी ठीक हैं!" रव्या ने कहा।

    इसके बाद दोनों के बीच शांति पसर गई, जिसे देखकर कुछ पल बाद विहान ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

    विहान ने रव्या के हाथ से फ़ोन लेते हुए कहा, "देखो, तुम दोनों को जब बात ही नहीं करनी तो क्यों बेवजह फ़ोन का बिल बढ़ा रहे हो... ठीक है, डार्लिंग, तू अपना ध्यान रखना। मैं बाद में बात करता हूँ। फ़िलहाल मैं ड्राइविंग कर रहा हूँ... बाय!"

    रव्या और राधे के कुछ रिएक्ट करने से पहले ही विहान ने कॉल कट कर दी। रव्या असमंजस से विहान को देखने लगी।

  • 18. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 18

    Words: 1304

    Estimated Reading Time: 8 min

    रव्या और राधे के कुछ रिएक्ट करने से पहले ही विहान ने कॉल कट कर दिया। उसके ऐसा करने पर रव्या असमंजस से विहान को देखने लगी।

    "तुमने कॉल क्यों कट की?" रव्या ने पूछा।

    "क्योंकि तुम दोनों को मौन व्रत मोड पर देखकर मेरी जानेमन का दिल जल रहा था!" विहान ने कहा।

    "कभी-कभी ख़ामोशी लफ़्ज़ों से ज़्यादा सुकून देती है!" रव्या ने कहा।

    "कभी तुम्हारी इसी ख़ामोशी के सन्नाटे में कोई और ही मुद्दे को उड़ा ना ले जाए!" विहान ने कहा।

    रव्या बस मुस्कुरा दी। रव्या घर पहुँचकर विहान को बाय बोलकर जाने लगी तो विहान ने उसे एक बैग थमा दिया।

    "ये क्या है?" रव्या ने असमंजस से पूछा।

    "ये तुम्हारे लिए है। तुमने मेरे लिए कपड़े पसंद लिए तो मैंने तुम्हारे लिए कर लिए... (अपने कंधे उचकाते हुए)... सिंपल!" विहान ने कहा।

    "मगर हम......" रव्या ने कहा।

    "कुछ अगर-मगर नहीं... इसे चुप करके रखो तुम... वैसे भी मैंने राखी पर तुम्हें कोई तोहफ़ा नहीं दिया था तो समझो मेरी तरफ़ से उस दिन का तोहफ़ा है ये!!" विहान ने बीच में ही टोकते हुए कहा।

    इसके बाद रव्या विहान से कोई बहस नहीं की और चुपचाप वो बैग उससे लेकर रख लिया। शाम को रव्या की पसंद के कुर्ते-पजामा में विहान के साथ मेहँदी के प्रोग्राम में गई, जहाँ सब लोगों की उसकी आवभगत देखकर उसका मन खुशी से भर उठा। बातों ही बातों में उसे मौसी से पता चला कि उनकी बेटी की शादी में राधे और विहान ने बड़ा योगदान दिया है और अगर वो साथ नहीं देते तो शायद उनकी बेटी की शादी कभी हो ही नहीं पाती। इधर विहान को बार-बार ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस पर कोई नज़र रखे हुए है, लेकिन जब चारों तरफ़ देखने पर भी उसे कोई नज़र नहीं आया तो वो इसे अपना वहम समझकर रव्या को साथ लेकर जमकर अपनी पेट पूजा की। खाना खाने के बाद विहान रव्या को ज़बरदस्ती खींचकर हॉल के बीच में ले आया और डीजे से म्यूज़िक चलाने के लिए कहा और कुछ ही पल में गाना शुरू हो गया।

    बुम्बरो बुम्बरो शाम रंग बुम्बरो
    आए हो किस बगिया से ओ ओ तुम
    भंवरे ओ शाम भंवरे खुशियों को साथ लाए
    मेहँदी की रात में तुम लेके सौगात आए
    ओ काजल का रंग लाए नज़रें उतारने को
    बागों से फूल लाए रस्ते सँवारने को
    आओ मेहँदी की छांव में गीत सुनाएँ बुम्बरो
    झूमें नाचें साज़ उठाएँ जश्न मनाएँ बुम्बरो
    हो बुम्बरो बुम्बरो ...

    खिल-खिल के लाल हुआ मेहँदी का रंग ऐसे
    गोरी हथेलियों पे खिलते हों फूल जैसे
    ये रंग धूप का है ये रंग छाँव का है
    मेहँदी का रंग नहीं माँ की दुआओं का है
    इस मेहँदी का रंग है सच्चा बाकी सारे झूठे
    हाथों से अब मेहँदी का रंग कभी ना छूटे
    ओ बुम्बरो बुम्बरो ...

    चंदा की पालकी में दिल की मुराद लाई
    जन्नत का नूर लेके मेहँदी की रात आई
    रुख पे सहेलियों के ख़्वाबों की रोशनी है
    सभी दुआएँ मांगी रब ने कुबूल की है
    ये हाथों की मेहँदी है या शाम की लाली
    चाँद सितारे लेकर आए रात निराली
    ओ चंदा की पालकी में ...
    हो बुम्बरो बुम्बरो ...


    रव्या भी विहान और बाकी लोगों के साथ गाने की मस्ती में झूम रही थी और गाने के बोल के अनुसार ही वो विहान के साथ लिप्सिंग करते हुए दुल्हन के इर्द-गिर्द घूम रहे थे। रव्या को बाकी लोगों के बीच झूमता देख विहान उन सबसे थोड़ी दूर पर आया और रव्या को सब कुछ भूलकर इस खुशी के पल में झूमता देखकर वो उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करने लगा। कुछ देर उसकी ऐसे ही वीडियो बनाने के बाद वो उसे राधे को भेज दिया और एक बार फिर रव्या और सब लोगों के बीच पहुँच गया। काफ़ी देर तक सब यूँ ही धमाल करते रहे। उधर जब राधे विहान के द्वारा भेजी गई वीडियो देखी और रव्या को इतना खुश और मस्ती करते देखा तो उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई। अगला पूरा दिन यूँ ही गुज़र गया और शाम को जब रव्या को लेने उसके घर पहुँचा तो उसे देखकर कुछ पल अपलक उसे ही देखता रहा। ब्लू एंड गोल्डन कलर के कंट्रास्ट का सिंपल एम्ब्राइडरी वाले लहँगे में उसका साँवला रंग और भी ख़ूबसूरत लग रहा था।

    "क्या हुआ? आप क्या सोच रहे हैं?... क्या हम अच्छे नहीं लग रहे?" रव्या ने पूछा।

    "यार बसंती, क्या तुम्हारी कोई जुड़वा दोस्त भी है?" विहान ने कहा।

    "जुड़वा दोस्त?" रव्या ने पूछा।

    "हाँ, जुड़वा दोस्त। मतलब तुम्हारी जैसी मासूम और प्यारी सी, जिससे मेरे 46 के 46 गुण मिलें!" विहान ने कहा।

    "लेकिन गुण तो 36 होते हैं ना, फिर 46 कैसे?" रव्या ने पूछा।

    "अरे बसंती, लॉजिक रे बाबा... अब मैं एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी बंदा हूँ तो बप्पा ने मेरे डेटा में दस गुण दूसरों से ज़्यादा डाले हैं!" विहान ने कहा।

    "तुम्हारे लॉजिक हम आकर सुनेंगे। फ़िलहाल चलो, वरना हमें फ़ंक्शन के लिए देर हो जाएगी!!!" रव्या ने मुस्कुराकर अपना सर हिलाते हुए कहा।

    "हम्म, बसंती, तुम भी ना यार कितना बोलती हो सच्ची... हमेशा बातों में लगा लेती हो... (रव्या का हाथ पकड़कर)... चलो जल्दी करो अब!" विहान ने कहा।

    रव्या बस विहान की बात सुनकर मुस्कुराकर रह गई। इसके बाद दोनों शादी के फ़ंक्शन के लिए निकल गए। शादी में पहुँचने के बाद विहान कुछ लोगों से सारे इंतज़ामात देखने के लिए कहा। सब कुछ देखने और ठीक होने की तसल्ली के बाद विहान रव्या को लेकर अपनी फ़ेवरेट जगह यानी खाने के पंडाल में पहुँच गया और अपनी आत्मा तृप्त होने तक वो जी भर के खाया। पूरी शादी में विहान ने एक पल को भी रव्या की साइड नहीं छोड़ी थी। जाने क्यों उसे बार-बार कुछ अजीब सा लग रहा था, पर रब के शुक्र से शादी अच्छी तरह सम्पन हो गई थी और दुल्हन भी विदा हो चुकी थी। विहान भी रव्या को लेकर वहाँ से जाने लगा कि अचानक ही सामने से एक गोली चली, जिसका निशाना रव्या और विहान की तरफ़ ही था, लेकिन दोनों की किस्मत अच्छी थी कि वो गोली चूक गई और उनके सामने खड़ी बाइक के मिरर में लग गई। विहान गोली की आवाज़ सुनकर जल्दी से रव्या का हाथ पकड़कर वहीं ज़मीन पर बैठ गया और धीरे-धीरे सरकते हुए वो रव्या के साथ ही पास खड़ी गाड़ी की आड़ में छुप गया।

    "विहान, कौन है ये लोग और हमारे पीछे क्यों पड़े हैं?" रव्या ने परेशान होकर पूछा।

    "अब ज़ाहिर है बसंती, मेरे ससुराल वाले तो पक्का नहीं हैं ये, जो मुझे उनके बारे में कुछ पता होगा... (पेड़ के पीछे खड़े गोली चलाने वाले शख़्स को देखते हुए)... अच्छा सुनो बसंती, जब तक मैं ना कहूँ तुम यहाँ से बाहर नहीं आओगी... ओके?" विहान ने कहा।

    "जी!" रव्या ने अपना सर हिलाते हुए कहा।

    इतना कहकर विहान रव्या को वहाँ छोड़कर गाड़ियों के पीछे से रेंगते हुए कुछ ही देर में उस शूटर के पीछे जाकर खड़ा हो गया और अगले ही पल उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे पीछे देखने का इशारा किया। जैसे ही वो शूटर पीछे पलटा, विहान ने एक पंच उसके मुँह पर मार दिया और उस शूटर के हाथ से बंदूक नीचे गिर गई। इसी मौके का फ़ायदा उठाकर विहान उसे बिना रुके कूटना शुरू कर दिया। लेकिन तभी बीच में एक और शख़्स आकर विहान के सर पर बंदूक तान दी और विहान वहीं का वहीं रुक गया। ये देखकर गाड़ी के पीछे छुपी रव्या पास पड़े डंडे को उठाकर उस दूसरे गुंडे को मारने के लिए आगे बढ़ी, लेकिन बीच रास्ते में ही अचानक एक शख़्स और आकर रव्या का हाथ पकड़कर उसे बीच रास्ते में ही रोक लिया। उस मोटे और अजीब से गुंडे को देखकर रव्या के चेहरे पर डर और कंपकपी के भाव उभर आए और उसके हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर गया। रव्या को उस गुंडे के चंगुल में देखकर विहान के चेहरे पर भी गंभीरता और टेंशन के भाव आ गए।

  • 19. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 19

    Words: 975

    Estimated Reading Time: 6 min

    गाड़ी के पीछे छिपी रव्या पास पड़े डंडे को उठाकर उस दूसरे गुंडे को मारने के लिए आगे बढ़ी। लेकिन बीच रास्ते में ही अचानक एक शख्स और आकर रव्या का हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। उस मोटे और अजीब से गुंडे को देखकर रव्या के चेहरे पर डर और कंपकपी के भाव उभर आए और उसके हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर गया। रव्या को उस गुंडे के चंगुल में देखकर विहान के चेहरे पर भी गंभीरता और टेंशन के भाव आ गए। मगर अगले ही पल विहान अपने पास खड़े गुंडों को अपने दाँत दिखाने लगा।

    विहान (रव्या की तरफ़ देखकर): "देखो बसंती, हमेशा मैंने एक ही बात सीखी है कि हमेशा मुश्किल का सामना डटकर करना चाहिए, लेकिन (गुंडों को देखते हुए) यहाँ तो अच्छी-खासी मुश्किलें खड़ी हो गई हमारे सामने। तो समझदारी इसी में है कि हम इन मुश्किलों से पंगा न लें... (गुंडों की तरफ़ देखकर)... और भाईसाहब, आप सब लोग तो बड़े बॉडी बिल्डर-शिल्डर लगते हैं... मगर क्या है ना, मेरा भी एक उसूल है कि लाइफ़ में मैं कभी भी अपने से स्ट्रॉन्ग और मुस्टंडे लोगों से पंगा नहीं लेता... (अपने दाँत दिखाते हुए)... तो अभी हम दोनों चलते हैं। फिर कभी मिलेंगे... बाय, टेक केयर!"

    इतना कहकर विहान जैसे ही एक कदम अपने से थोड़ी दूर खड़ी रव्या की दिशा में बढ़ाया, तो विहान पर बंदूक ताने खड़ा गुंडा उसे वहीं रोक दिया। और वो दूसरा गुंडा, जिसे विहान ने कुछ देर पहले कूटा था, वो भी संभलकर पहले वाले गुंडे के साथ खड़ा हो गया।

    गुंडा: "ए शियाने... ज़्यादा शियानपती ना कर... चुप करके खड़ा रह यहाँ... और जो तूने मेरे थोबड़े को सुजा दिया है, उसका हिसाब-किताब लेना तो अभी बाकी है!"

    विहान: "देखो भाईसाहब, मेरी जानेमन... जानेमन बोले तो मेरी ये दिलकश सी हसीं बॉडी... दोनों ही बहुत नाज़ुक मिज़ाज़ हैं... एक हल्की सी खरोच भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। तो क्यों ख़ामख़्वाह मेरी जानेमन का दिल घबरा रहे हो... जाने दो हम लोगों को... और ये जो आपके चेहरे पर मैंने डेटिंग पेंटिंग का काम किया है, उसको सही करने का पूरा ख़र्चा मेरी तरफ़ से!!"

    गुंडा 2 (पहले गुंडे से): "क्यों न एक काम करें, इसे जाने देते हैं... बस इसकी आइटम को यहीं रख लेते हैं!"

    विहान: "ऐ भाईसाहब, बसंती बहन है मेरी!"

    गुंडा 3 (रव्या की कलाई को मरोड़ते हुए): "तो भाईजान, एक काम कर। अब तू निकल पतली गली से और अपनी बहन को अपनी जानेमन के सदके यहीं हमारे लिए छोड़कर जा!!!"

    विहान जब उस गुंडे को रव्या की कलाई मरोड़ते हुए और रव्या को दर्द से कसमसाते हुए देखा, तो उसके चेहरे के भाव एकदम से गंभीर हो गए और उसकी मुट्ठियाँ बिल्कुल कस गईं।

    विहान (गुंडे से गंभीर भाव से): "हाथ छोड़ उसका?"

    गुंडा 2 (एक घूँसा विहान के मुँह पर मारकर): "वरना क्या करेगा बे... अब तेरे सामने ही तेरी बहन को यहीं नोचेंगे हम और तू..."

    उस गुंडे की बात पूरी होने से पहले ही गोली की आवाज़ आई और वो गुंडा धड़ाम से एक पल बाद ही अपना पेट पकड़कर ज़मीन पर गिर गया। रव्या और बाकी के दो गुंडे विहान की तरफ़ शॉक होकर देख रहे थे, जो अपने हाथ में बंदूक थामे गुस्से से हुई लाल आँखों से रव्या का हाथ पकड़े उस गुंडे को देख रहा था। इस वक़्त जिस विहान को अब तक रव्या जानती थी, उस विहान से ये बिल्कुल विपरीत और गंभीर विहान लग रहा था, जिसकी आँखों में सिर्फ़ गुस्सा था। दूसरा गुंडा जैसे ही विहान की तरफ़ बढ़ा, विहान सीधी एक गोली उसके सीने के पार करके उसे वहीं ढेर कर दिया। अब बचा था तीसरा गुंडा। जैसे ही उसने अपनी तरफ़ विहान के क़दम बढ़ते देखे तो वो थोड़ा हड़बड़ा गया और उसने जल्दी से अपनी बंदूक निकाली। जब रव्या उस गुंडे के हाथ में बंदूक देखकर उसके हाथ पर मारने की कोशिश की, तो उसने दूसरे हाथ से रव्या के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा मार दिया और रव्या के होंठों के किनारे से ख़ून निकलने लगा। रव्या वहीं ज़मीन पर गिरने को हुई कि वो गुंडा उसकी कलाई को मोड़कर उसे अपने शिकंजे में ले लिया ताकि विहान उस पर गोली ना चलाए और अपनी बंदूक को विहान पर तान दिया। लेकिन उसके बाद भी विहान के क़दम ना रुकते देख वो विहान को वार्निंग दी।

    गुंडा: "ए रुक जा अपनी जगह, वरना... वरना मैं गोली चला दूँगा!"

    विहान (विहान अपने क़दम आगे लेते हुए): "चल मुस्टंडे कौवे, चला गोली!"

    गुंडा: "देख, रुक जा। नहीं तो मैं सचमुच गोली चला दूँगा!"

    जब उस गुंडे की लगातार वार्निंग से विहान नहीं रुका और बस अब कुछ ही क़दम दूर रह गया, तब वो आखिर में विहान पर गोली चला ही दिया। गोली विहान के कंधे को चीरती हुई निकल गई और विहान के हाथ से गन छूटकर नीचे गिर गई। विहान घुटनों के बल वहीं ज़मीन पर गिर गया और ये देखकर रव्या लगभग चिल्लाते हुए विहान का नाम पुकारा।

    विहान (अपने हाथ से ख़ून निकलते हुए देख गुंडे से): "तेरी माँ की... (एक पल रुककर)... जय हो... साले, तुझे मैं छोड़ भी देता, लेकिन तूने मेरी मासूम सी जानेमन को हर्ट किया ना, तो अब तू सीधा जाएगा जहन्नुम में!!!"

    इतना कहकर विहान उस गुंडे के कुछ समझने से पहले ही अपनी पैंट की मोहरी के पास से एक गन निकाली और पलक झपकते ही वो एक बार में ही ठीक उस गुंडे के सर के आर-पार गोली मार दी। मरते-मरते उसके ख़ून की छींटे रव्या के चेहरे पर उड़ गईं और वो गुंडा उसी पल वहीं ढेर हो गया। ये सब देखकर रव्या तो अपनी जगह किसी बुत की तरह, बिना किसी हरकत के जम सी गई।

  • 20. "फना".....(द अनब्रेकेबल–प्रॉमिस 🤞!) - Chapter 20

    Words: 1193

    Estimated Reading Time: 8 min

    इतना कहकर विहान ने, उस गुंडे के कुछ समझने से पहले ही, अपनी पैंट की जेब से एक गन निकाली और पलक झपकते ही, ठीक उस गुंडे के सर के आर-पार गोली मार दी। मरते-मरते उसके खून की छींटे रव्या के चेहरे पर उड़ गईं और वह गुंडा उसी पल वहीं ढेर हो गया। यह सब देखकर रव्या अपनी जगह किसी बुत की तरह जम सी गई थी। विहान उसकी हालत समझ रहा था और उसके पास जाना चाहता था, लेकिन विहान की आँखें अब दर्द और गोली से बोझिल होने लगी थीं। तभी वहाँ आती एक गाड़ी की फ़ॉक्स विहान पर पड़ी और कुछ ही पल में वह गाड़ी विहान से कुछ दूरी पर आकर रुक गई। उसमें से राधे जल्दी-जल्दी में बाहर आया।


    राधे (जल्दी से विहान के पास जाकर गंभीर होकर): "विहान, ये सब कैसे हुआ और तू... तू ठीक तो है ना?"


    विहान: "डा... डार्लिंग, मैं ठी.. ठीक हूँ... (रव्या की तरफ़ देखकर)... बसंती..."


    राधे ने एक नज़र जड़वत सी रव्या को देखा और अगले ही पल विहान को गोद में उठाकर गाड़ी की बैक सीट पर बिठा दिया। फिर वह जल्दी से रव्या के पास आया। जब कई बार आवाज़ देने के बाद भी वह कोई रिएक्ट नहीं कर रही थी, तो उसने उसका हाथ पकड़कर उसे गाड़ी में बिठा दिया और जल्दी से गाड़ी आगे बढ़ा दी।


    विहान (दर्द से कराहकर): "आह!.. डार्लिंग... मेरी जानेमन बच तो जाएगी ना?"


    राधे: "विहान, कुछ भी नहीं होगा। डोंट वरी... बस हम पहुँच चुके!"


    राधे का ध्यान चुपचाप शून्य को निहारती रव्या पर था, लेकिन इस वक्त उसके लिए विहान ज़्यादा ज़रूरी था। कुछ ही देर में राधे अपनी गाड़ी अपने और विहान के घर के आगे रोक दी और विहान को गोद में उठाकर रव्या को अंदर आने के लिए कहा। लेकिन जब विहान को बेड पर लिटाने के बाद तक भी रव्या नहीं आई, तो राधे वापस बाहर आया। गाड़ी में बैठी रव्या को देखकर, उसने उसे बिना कुछ कहे अपनी बाहों में उठा लिया और अंदर ले आया। उसे अपने कमरे में ले जाकर उसने अपने पजामा-टीशर्ट देकर कपड़े बदलने को कहा और वापस नीचे विहान के पास आ गया। कुछ देर बाद वह गरम पानी और चाकू लेकर विहान के पास गया।


    राधे: "विहान, तू सह लेगा ना?"


    विहान: "डार्लिंग, तू तो ऐसे रिएक्ट कर रहा है जैसे ये सब पहली बार हो...!!"


    राधे: "जानता हूँ कि पहली बार नहीं है, लेकिन ये भी अच्छे से जानता हूँ कि तेरे लिए ये कितना मुश्किल होता है!!"


    विहान: "डोंट वरी, डार्लिंग। मेरी जानेमन सह लेगी, तू कर... (विहान अपने मुँह में कपड़ा डालकर राधे को थम्स अप करता है)!!"


    जैसे ही राधे ने विहान की शर्ट खोली और चाकू से विहान के ज़ख्म को छुआ, विहान की मुट्ठियाँ तकिए पर कस गईं। इस वक्त उसकी आँखें आँसुओं और दर्द से लाल हो रही थीं। जैसे ही राधे ने विहान को लगी गोली को चाकू की सहायता से निकाला, विहान की एक दर्द भरी आवाज़ निकल गई। तभी राधे की नज़र अपने दोनों हाथों को मुँह पर रखे, नम आँखों से दरवाज़े पर खड़ी रव्या पर पड़ी। वह विहान की ऐसी हालत देखकर वहाँ से जल्दी से वापस ऊपर की तरफ़ भाग गई। राधे ने रव्या से ध्यान हटाकर जल्दी से विहान को एक दर्द का इंजेक्शन दिया और उसके बाद उसके कंधे की मरहम-पट्टी शुरू कर दी। कुछ ही देर में राधे ने विहान के ज़ख्म को साफ़ करके पट्टी कर दी थी और कुछ ही देर में विहान को इंजेक्शन के नशे से नींद आनी शुरू हो गई थी।


    राधे: "अब तू आराम कर और किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो मैं यहीं हूँ तेरे पास!"


    विहान (अदखुली आँखों से): "मुझे बहुत नींद आ रही है, डार्लिंग..."


    राधे (विहान का सर सहलाकर): "वो इंजेक्शन की वजह से है... तू सोएगा तो तेरे दर्द को भी आराम होगा इसीलिए बस आराम से सो जा तू!"


    विहान: "हाँ... मैं सो जाऊँगा। तू... तू ब... बसंती को संभाल... मैं ठीक हूँ अब!"


    राधे: "हम्म, मैं देख लूँगा उसे। लेकिन अभी तू सो जा!!"


    कुछ ही देर में विहान गहरी नींद में सो गया और राधे अपनी पूरी तसल्ली करने के बाद आराम से विहान का कमरा बंद करके ऊपर रव्या से मिलने गया। जब राधे ऊपर गया तो रव्या को बेड पर खुद में सिमटा हुआ, अभी भी उसी हाल में देखा। राधे रव्या के पास गया और रव्या उसे देखकर बस उसके सीने से लग गई। कुछ पल स्थिर रहने के बाद आखिर राधे भी उसके इर्द-गिर्द अपनी बाहों को जमा लेता है और प्यार से सुबकती हुई रव्या का सर सहलाने लगा।


    राधे (रव्या का सर सहलाते हुए): "शशशशशहहह... सब ठीक है!!!"


    रव्या (सुबकते हुए राधे की शर्ट को कसकर पकड़ते हुए): "ह.. हम एक पल को ब.. बहुत डर गए थे... हमें लगा हम अपने बा.. बाबा की तरह ही विहान को खो देंगे आज... हमारे बाबा की भी ऐसे ही लोगों ने पैसों के लिए जान ले ली थी और उन्हें हमेशा के लिए हमसे छीन लिया!"


    राधे: "कुछ नहीं हुआ है... डोंट वरी, सब ठीक है और विहान भी बिल्कुल ठीक है!"


    रव्या (राधे की तरफ़ नम आँखों से देखकर): "हमें बहुत डर लग रहा है... आप हमें छोड़कर तो नहीं जाएँगे ना?"


    राधे ने बिना कुछ जवाब दिए रव्या का हाथ पकड़कर उसे बाथरूम की तरफ़ ले गया। अपने एक हाथ से रव्या के घने काले बालों को आराम से सहेजकर पकड़ते हुए, दूसरे हाथ से उसने उसके मुँह पर धीरे-धीरे पानी डालकर उसके चेहरे को तब तक साफ़ किया जब तक उसका चेहरा बिल्कुल साफ़ नहीं हो गया और उसके चेहरे से खून की सारी छींटे नहीं धुल गईं। इसी बीच राधे का हाथ रव्या के होठों के किनारे को छू गया, जहाँ उस गुंडे के थप्पड़ से चोट आई थी। रव्या ने एक हल्की दर्द भरी आह के साथ अपनी आँखें मूँद लीं। जब राधे ने रव्या के माथे पर परेशानी और दर्द से आई लकीरों को देखा तो कुछ पल को उसके चेहरे के भाव भी बदल गए। उसने रव्या के होंठों पर लगी चोट पर सहजता से अपने अंगूठे को फिराया। इसे महसूस करके अगले ही पल रव्या ने अपनी बंद आँखें खोलीं। कुछ पल तक दोनों यूँ ही एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। कुछ पल बाद, जैसे ही दोनों के होंठ एक-दूसरे के होंठों के करीब आने को हुए, अचानक ही राधे झटके से रव्या से दूर हो गया।


    राधे (एक पल को अपनी आँखें बंद करके गहरी साँस लेकर): "एम सॉ.. सॉरी!!"


    इतना कहकर राधे जैसे ही वहाँ से जाने लगा, रव्या ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। राधे रव्या की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखने लगा।


    रव्या (राधे की आँखों में देखते हुए): "कैद कर लो अब मुझे अपनी इन बाहों में... कि अब ये आज़ादी मुझे अच्छी नहीं लगती!.......!!"