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Tu ishq ❤️‍🔥

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Slave... Sex slave. You have to be my sex slave.. ये शब्द सुनते ही जैसे रूमि पे पैरों के नीचे से किसी ने जमीन की खिसका दी... उसके पैरों ने जैसे अपनी ताकत ही खो दी.. रूमी धड़ाम से अपने घुटनों के बल जमीन पर गिरती है... उसकी आँखों से आँसुओं की...

Total Chapters (15)

Page 1 of 1

  • 1. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 1

    Words: 1096

    Estimated Reading Time: 7 min

    "स्लेव... सेक्स स्लेव।" "तुम्हें मेरी सेक्स स्लेव बनना होगा।" ये शब्द सुनते ही रूमी के पैरों तले से जैसे ज़मीन खिसक गई। उसके पैरों ने अपनी ताकत खो दी। रूमी धड़ाम से घुटनों के बल जमीन पर गिर गई। उसकी आँखों से आँसुओं की बारिश हो रही थी। उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं आ रहा था। वह इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि उसकी ज़िन्दगी कभी ऐसी करवट भी लेगी। किसी दिन उसका सब कुछ इस तरह खत्म हो जाएगा और वह यूँ बेबस होकर पड़ी होगी, अपने ही प्यार से भीख माँग रही होगी। तभी अथर्व ने टेबल के ड्रॉवर में से कागज़ात निकाले और रूमी के सामने फेंके। साथ में एक पेन भी फेंका। रूमी काँपते हुए हाथों से उन कागज़ातों को उठाकर पढ़ने लगी। उन पर साफ़-साफ़ लिखा था कि रूमी आज से अथर्व की सेक्स स्लेव है; वह अपने तन और मन से अथर्व को समर्पित करती है और यह सब वह अपनी मर्जी से कर रही है, इसके लिए किसी ने उसे मजबूर नहीं किया है। अगर गलती से भी उसने यह कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने की कोशिश की तो उसे पाँच करोड़ रुपये का हर्जाना भुगतना पड़ेगा या एक साल की जेल। कागज़ात पढ़ते ही रूमी का दिल धड़कना बंद सा हो गया। उसे मौत से भी ज़्यादा दर्द का एहसास हो रहा था। वहीं दूसरी तरफ, रूमी की ऐसी हालत देखकर अथर्व के चेहरे पर एक ईविल स्माइल थी। रूमी आँसुओं से भरी आँखों से अथर्व की तरफ देखती रही, इस उम्मीद से कि शायद उस पर दया आ जाए। लेकिन उसके चेहरे पर जंग जीतने वाली मुस्कान देखकर रूमी की यह छोटी सी उम्मीद भी उसके सीने में दम तोड़ गई। आखिर कैसे हो गया यह सब? क्यों हो गया? उसके दिल में बहुत-से सवाल थे, बहुत कुछ कहने को, सुनने को... लेकिन दुर्भाग्य से उसके पास इतना समय नहीं था। अथर्व वहीं टेबल के सहारे खड़ा होकर उसे देख रहा था। उसके हाथ उसके सीने पर क्रॉस थे और उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी, एक बहुत बुरी, ईविल वाली मुस्कान। रूमी ने पास में पड़ा पेन उठाया और कागज़ात पर हस्ताक्षर कर दिए। वह जानती थी कि वह क्या कर रही है, लेकिन उसके पास अब कोई और रास्ता नहीं था। "ये लो, यही चाहिए था ना तुम्हें? अब मैं हाथ जोड़ती हूँ, प्लीज़ मुझे पैसे दे दो। मेरे भाई को हर सेकंड मौत के करीब ले जा रही है। मुझे उसे बचाना है।" रूमी हाथ जोड़कर उससे बिनती करने लगी। अथर्व ने उसके हाथ से कागज़ात छीन लिए और उन्हें चेक किया। "हम्म, गुड... तुम जाओ, पैसे पहुँच जाएँगे।" अथर्व उसकी तरफ देखकर बोला। रूमी वहाँ से अस्पताल के लिए निकल गई। वह ऑफिस से बाहर निकलने ही वाली थी कि पीछे से अथर्व की आवाज़ आई, जिसे सुनकर वह रुक गई। "टुनाइट, ऐट माई होम... फ्रॉम नाउ ऑन यू विल स्टे विद मी... इन माई रूम... इन माई बेड..." उसने ठंडे स्वर में मुस्कराते हुए कहा। रूमी ने हाँ में सिर हिलाया और तुरंत वहाँ से निकल गई। उसने फटाफट टैक्सी लेकर अस्पताल पहुँचने की कोशिश की। उसके जाते ही अथर्व ने अपना फ़ोन निकाला और कॉल किया। "आप ऑपरेशन का जितना भी खर्चा है और उसके बाद अस्पताल का जितना भी बिल बनेगा, वह सब मेरे नाम से बनाएँ..." यह बोलकर अथर्व ने फ़ोन काट दिया और अस्पताल के अकाउंट में एक बहुत बड़ी रकम ट्रांसफर कर दी। तभी उसके ऑफिस में उसका बेस्ट फ्रेंड आ गया। दोनों बिज़नेस पार्टनर्स थे, लेकिन असल में दोनों एक-दूसरे के लिए भाइयों से भी बढ़कर थे। "कॉन्ग्रैचुलेशन ब्रदर, फ़ाइनली यू गॉट व्हाट यू वांटेड..." उसने मुस्कराते हुए कहा। उसकी आवाज़ में ताना जैसा हिंट था। "मुझे तुम्हारा चेहरा देखकर ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझे मुबारकबाद नहीं दे रहे, बल्कि ताना मार रहे हो?" यह बोलकर अथर्व अपनी चेयर पर बैठ गया। राहुल गुस्से में अपनी आँखें बंद कर लेता है। एक सेकंड के बाद वह उसके पास जाकर टेबल पर बैठ गया और अथर्व की आँखों में देखकर बोला, "ब्रो, आर यू श्योर अबाउट इट??... थिंक अगेन..." अथर्व ने अपनी भौहें उठाकर उससे पूछा, "क्या मतलब है तुम्हारा? कहना क्या चाहते हो?" उसके उस तरह अनजान होने के नाटक को देखकर राहुल चिढ़ गया और गुस्से में टेबल पर हाथ पटककर बोला, "डोंट बिहेव लाइक एज़ इफ यू हैव नो आइडिया व्हाट आई एम टॉकिंग अबाउट..." उसे इस तरह गुस्से में देख अथर्व ने उसे पानी का ग्लास पकड़ाया। उसे हटाकर राहुल टेबल से खड़ा होकर खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। उसके ऐसे व्यवहार को देख अथर्व ने एक गहरी साँस ली। पानी का ग्लास टेबल पर रखकर वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। अपनी जेब से सिगरेट निकालकर उसे मुँह में पकड़कर जलाई और धुएँ का कस लेते हुए बोला, "आई एम वेरी श्योर अबाउट इट..." राहुल हैरानी से उसकी तरफ देखकर बोला, "लेकिन उन सब में रूमी का कोई दोष नहीं था अथर्व। उसे किस बात की सज़ा दे रहे हो? तुमसे प्यार करने की? या तुम पर आँख बंद करके भरोसा करने की?" "तू सब जानता है। तू गवाह है हर चीज़ का। सब जानने के बाद भी इस सवाल का क्या मतलब बनता है?" अथर्व खिड़की के बाहर देखते हुए, सिगरेट पीते हुए, सीधे चेहरे के साथ बोला। उसकी बात सुनकर राहुल ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, "ऑफ़्कोर्स... मुझे सब याद है, कुछ नहीं भुला है मैंने... लेकिन अथर्व, इसके लिए रूमी को सज़ा क्यों...?" "उसे सज़ा मिलेगी... ज़रूर मिलेगी... पता है क्यों? क्योंकि उसे यह नफ़रत विरासत में मिली है... ठीक वैसे ही जैसे एक बच्चे को पैदा होने पर उसके बाप की जायदाद मिलती है विरासत में... बाप जो कुछ भी कमाता है, उसकी संतान को मिलता है... किसी का बाप दौलत कमाता है, किसी की शोहरत और किसी की दुश्मनी और नफ़रत..." "मतलब तुमने ठान ही लिया है... खैर, तुम्हें समझाना मेरा फ़र्ज़ था, जो मैंने पूरा किया। अब आगे जैसा तुम्हें ठीक लगे... लेकिन हालात चाहे जो भी हों, यह बात हमेशा याद रखना, तेरा भाई हर हाल में तेरे साथ है।" "मैं जानता हूँ।" अथर्व उसकी तरफ एक नज़र घुमाकर देखता है। "फ़िक्र मत करो, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ।" अथर्व सिगरेट राहुल को देता है। राहुल भी उसका कस लगाता है और बोलता है, "मैं तुम्हें बचपन से जानता हूँ... कहीं ऐसा ना हो जाए कि किसी दिन इस रास्ते पर इतना आगे निकल जाओ कि लौट ही न पाओ।" अथर्व उसकी बातों का कोई जवाब नहीं देता और दोनों इसी तरह एक-एक करके सिगरेट का कस लगाते हुए खिड़की पर खड़े, बाहर का नज़ारा देखते रहते हैं। क्रमशः

  • 2. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 2

    Words: 1107

    Estimated Reading Time: 7 min

    रूमी भागती हुई अस्पताल पहुँची। उसके साँसें फूली हुई थीं। वह भागकर रिसेप्शन पर पहुँची और पूछी, "विजय सिसोदिया, मेरा भाई... उसका ऑपरेशन..."

    "ओह... तो आप ही हैं उनकी बहन... डॉक्टर कब से आपके बारे में पूछ रहे थे। आपके भाई की तबियत ख़राब हो रही थी... कहाँ चली गयी थीं आप???" रिसेप्शन पर खड़ी नर्स बोली। उसकी बात सुनकर रूमी बहुत डर गयी और सोची,

    "क्या अथर्व ने अभी तक पैसे नहीं दिए? अथर्व ऐसा कैसे कर सकता है? उसने बोला था कि वह पैसे दे देगा... फिर वह मेरे साथ ऐसा कैसे...?" रूमी की आँखें आँसुओं से भर गयीं और वह नर्स की तरफ देखने लगी जो उसके ही बोलने का इंतज़ार कर रही थी। "सिस्टर, मेरा भाई... वह ठीक तो है ना?" रूमी की आवाज़ काँप रही थी।

    नर्स उसकी तरफ देखकर हल्की सी मुस्कुराई, "आप चिंता मत कीजिये। आपके भाई का ऑपरेशन हो चुका है और सर्जरी बिलकुल सफल हुई है। बहुत जल्द आपका भाई अच्छे से रिकवर कर लेगा।"

    नर्स की बातें सुनकर रूमी को राहत की साँस मिली और वह नर्स से अपने भाई का कमरा नंबर पूछकर उसके कमरे की तरफ़ भागती हुई चली गयी।

    उसका आठ साल का भाई बेड पर लेटा हुआ था, अभी भी बेहोश। डॉक्टर उसके पास खड़ा उसका चेकअप कर रहा था। रूमी के कमरे में प्रवेश करते ही डॉक्टर उसकी तरफ़ देखा, "ओह, मिस सिसोदिया... मुबारक हो, आपके भाई की सर्जरी सफल रही।"

    डॉक्टर एक मुस्कान के साथ बोला। रूमी का भागता हुआ दिल थम सा गया। अपने भाई को सही-सलामत देखकर उसके दिल को बहुत सुकून मिला। उसने डॉक्टर को धन्यवाद दिया और पूछा,

    "मेरे भाई को होश कब तक आएगा डॉक्टर? मैं उसे घर कब ले जा पाऊँगी?"

    "अभी नहीं, मिस सिसोदिया... अभी-अभी तो ऑपरेशन हुआ है... इन्हें होश कल तक आएगा और एक हफ़्ते तक हमें इसे यहीं ऑब्ज़र्वेशन में रखना होगा।" डॉक्टर रूमी से बोला।

    "अगर समय पर ऑपरेशन ना होता तो कुछ भी हो सकता था... आप तो जानती हैं, इतने छोटे से बच्चे के दिल में छेद कितना ज़्यादा खतरनाक होता है।"

    "थैंक्यू डॉक्टर, थैंक्यू सो मच... आप नहीं जानते, मेरा भाई मेरे लिए सब कुछ है... अब इस दुनिया में मेरा इसके अलावा कोई नहीं है..." रूमी अपने भाई को देखकर बोली।

    "थैंक्यू मुझे नहीं, अपने आप को बोलिये। अगर समय पर आपने पेमेंट ना की होती तो इनका बच पाना मुश्किल था..."

    यह बोलकर डॉक्टर मुस्कुराकर वार्ड से बाहर चला गया।

    रूमी कुछ वक़्त वहाँ मौन खड़ी रही। अपने भाई के बेड के पास खड़ी, उसके सोये हुए चेहरे को देखती रही। फिर अपने आप पर हँसी,

    "हाँ, सही कहा आपने डॉक्टर... थैंक्यू मुझे खुद को ही बोलना चाहिए... अपने भाई की जान बचाने के लिए मैंने अपने आप को बेच ही दिया।" उसने अपने आप पर कड़वी मुस्कान दी।

    "मुझे इस बात का कोई गिल्ट नहीं... आख़िर इससे मेरे भाई की जान तो बच गयी आज... इसके लिए मैं अपने आप को सौ बार भी बेच सकती हूँ।" रूमी अपने भाई के बिस्तर के पास आयी और उसका हाथ पकड़ा जो बेहोश था। इस वक़्त वार्ड में सिर्फ़ वह और उसका भाई ही थे।

    कुछ देर उसके पास बैठती रही, तभी उसका फ़ोन बजा। किसी ने अभी-अभी उसे मैसेज किया था। उसने अपना फ़ोन चेक किया।

    [tonight at my home....don't forget..from now on you will stay here......with me]

    अपने फ़ोन पर अथर्व का मैसेज पढ़ते ही उसका दिल बैठ गया। ज़िन्दगी उसके साथ बड़ा ही बेरहम खेल खेल रही थी। बाप जेल में, भाई अस्पताल में, और आज वह खुद भी किसी की हवस का शिकार होने जा रही है। अब तो उसकी खुद की ज़िन्दगी पर भी उसका हक़ नहीं रहा। वह भी आज किसी और के नाम हो गयी। भगवान जाने अब आगे क्या होने वाला है।

    अपना दिल मज़बूत कर लो रूमी... क्योंकि अब

    तुम्हें हर रोज़ मरना है... मरने के लिए तैयार हो जाओ... रूमी अपने भाई की तरफ़ देखती है, फिर उसके माथे को चूमी और बोली, "तेरे लिए मुझे हज़ार मौतें मरना भी मंज़ूर है... जब तक तुम्हारी ज़िन्दगी सुरक्षित है, मैं किसी भी तकलीफ़ से गुज़रने को तैयार हूँ।"

    रूमी की आँखें आँसुओं से भर गयीं। वह वार्ड से निकलकर अस्पताल से बाहर गयी जहाँ बहुत जोर से बारिश हो रही थी।

    वह बारिश में जाकर खड़ी हो गयी। उसका पूरा शरीर बारिश से भीग गया। उसके सारे कपड़े भीग गए। आज उसे ऐसा लग रहा था कि उसके प्राण सूख गए हैं। अब वह सिर्फ़ एक ज़िंदा लाश की तरह खड़ी हुई थी।

    रूमी को बारिश बहुत ज़्यादा पसंद थी। बारिश में खेलना-नाचना उसे बहुत अच्छा लगता था बचपन से ही।

    बारिश हमेशा ही रूमी को बहुत ठंडक देती थी, लेकिन आज तो ऐसा लग रहा था कि आसमान पानी नहीं, तेज़ाब बरसा रहा है।

    रूमी वहीं बारिश में बैठ गयी और सोचने लगी,

    "कहाँ गलती हो गयी मेरे प्यार में? ऐसा क्या गुनाह मैंने कर दिया जो मेरे साथ ऐसा हो रहा है? मैंने तो बस प्यार किया था... सच्चा प्यार... क्यों मेरा प्यार उसकी नफ़रत को ख़त्म नहीं कर पाया? क्यों मैं उसके दिल में नहीं बस पाई? क्या मेरे प्यार में ताक़त ही नहीं थी? क्या उसकी नफ़रत इतनी ज़्यादा ज़बरदस्त थी?" रूमी जोर-जोर से रोने लगी। शुक्र है, वहाँ कोई नहीं था उसकी लाचारी पर हँसने के लिए, तो वह खुलकर रो सकी।

    आज उसे ऐसा लग रहा था कि काश यह ज़मीन फट जाए और उसे अभी के अभी निगल जाए। लेकिन वह अपनी मर्ज़ी से मर भी नहीं सकती थी क्योंकि उसकी ज़िन्दगी पर ही उसके छोटे भाई की ज़िन्दगी निर्भर करती है।

    अभी कुछ दिनों की ही बात थी जब उसकी और अथर्व की शादी होने वाली थी। अथर्व जैसा प्यार करने वाला इंसान पाकर रूमी के तो पैर ही ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। लेकिन एक ही झटके में ज़िन्दगी ने उसे ऐसा ज़मीन पर पटका कि उसकी दोबारा उठकर खड़े होने की हिम्मत ही टूट गयी।

    वह जिस इंसान की बीवी बनने का सपना देखती थी, आज उसी की सेक्स स्लेव बनकर रह गयी। वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी किस्मत पर हँसे या रोए।

    थोड़ी देर अपनी तकदीर पर जी भरकर रोने के बाद, उसे कोसने के बाद, वह आख़िरकार खड़ी हुई और बोली, "अपने भाई की ज़िन्दगी की कीमत चुकाने का वक़्त आ गया है रूमी..." यह बोलकर रूमी वहाँ से सीधे अथर्व के बंगले पर चली गयी।


    क्रमशः

  • 3. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 3

    Words: 1219

    Estimated Reading Time: 8 min

    हे... "चलो, तुमसे कोई मिलने आया है।" जेल की लोहे की सलाखों पर डंडा मारते हुए एक हवलदार बोला।


    हवलदार की आवाज सुनते ही, जेल की चारदीवारी में जमीन पर लेटे हुए 44-45 साल के आदमी ने, जिसके हाथ उसकी आँखों पर थे, अपने हाथ हटाकर आँखें खोलीं और हवलदार से पूछा, "मुझसे मिलने आया है!!! कौन है???"


    "मुझे नहीं पता, जाकर खुद देख ले।"


    यह बोलकर हवलदार वहाँ से चला गया।


    थोड़ी देर में एक हवलदार उसे मिलने वाली जगह पर ले आया जहाँ एक हैंडसम नौजवान कुर्सी पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था।


    वह आदमी जैसे ही उस लड़के को देखता है, उसका खून खौल उठता है और वह गुस्से में उस पर हमला करने दौड़ता है।


    "हरामज़ादे.. तेरी इतनी हिम्मत कि तू यहाँ आया है... मेरी आँखों के सामने... मैं तेरा खून पी जाऊँगा, हरामी की औलाद!"


    वह आदमी उस पर हमला करने आता है, लेकिन उनके बीच दीवार होने की वजह से वह उस तक पहुँच नहीं पाता। वहाँ सिर्फ़ एक जाली थी जिससे वे एक-दूसरे को देख और बात कर सकते थे।


    उसकी इस तरह की बेवकूफाना हरकत पर अथर्व हँसने लगता है। उसकी हँसी देख उस आदमी का खून उबलने लगता है।


    अथर्व को बहुत अच्छा लग रहा था, बहुत सुकून मिल रहा था अपने सबसे बड़े दुश्मन को इस तरह तड़पता हुआ देखकर।


    "कैसे हो रणजीत सिसोदिया..." अथर्व बहुत ही कोल्ड टोन में बोला।


    "तू क्या समझता है कि तू कामयाब हो गया, लेकिन यह मत भूल, कोई भी जेल रणजीत सिसोदिया को ज़्यादा दिन तक कैद नहीं रख सकती। बहुत जल्द मैं यहाँ से बाहर निकलूँगा और बाहर निकलते ही सबसे पहले तुझे मारूँगा..." रणजीत अपने दाँत कसते हुए बोला।


    "बिलकुल... क्यों नहीं... अथर्व वशिष्ठ अपने दुश्मनों को पूरा मौका देता है। कभी बाहर आओगे तो ज़रूर मुलाक़ात होगी।"


    अथर्व एक स्माइल के साथ बोला।


    "क्यों किया तूने ऐसा क्यों.. मैंने तुम्हें अपना बेटा माना था, तुम्हें अपना दामाद बनाना चाहता था और तुमने मेरी ही पीठ में छुरा घोंप दिया..." रणजीत दीवार पर गुस्से में हाथ पटककर बोला।


    अथर्व कुर्सी से उठकर उसके पास गया। उसकी आँखों में आग और चेहरे पर गुस्सा था।


    "शिवराज वशिष्ठ... नाम याद तो है ना तुम्हें..."


    "शिवराज वशिष्ठ... तुम उसे कैसे जानते हो..." यह नाम सुनते ही रणजीत के पैरों तले से ज़मीन ही निकल जाती है।


    "मैं इसलिए जानता हूँ क्योंकि मैं अथर्व वशिष्ठ, उसी शिवराज वशिष्ठ का बेटा हूँ..." अथर्व अपने दाँत गुस्से में कसते हुए बोला।


    यह सुनते ही रणजीत की आँखें हैरानी से फट जाती हैं। वह सोच भी नहीं सकता था कि अथर्व उसे इतना करीब से जानता था। रणजीत की यह हालत देख अथर्व मुस्कुराया। वह जेल की दीवारों को छूकर बोला,


    "ये जेल की दीवारें याद हैं रणजीत, कभी इन्हीं दीवारों के पीछे मेरे बाप ने अपना दम तोड़ा था... तुमने ही उन्हें यहाँ भेजा था ना... जो इंसान सिर्फ़ अपनी इज़्ज़त के लिए जीता था... उसी पर तुमने किसी की इज़्ज़त लूटने का इल्ज़ाम लगाया था ना..." अथर्व अपने पापा के बारे में सोचकर थोड़ा उदास हो जाता है, लेकिन वह अपने चेहरे के एक्सप्रेशन को कोल्ड ही रखता है।


    "ओह... तो तुम उस हरामी की औलाद हो, यहाँ बदला लेने आए हो..." रणजीत शॉक से बाहर निकलकर बोला।


    "सही कहा... मैं यहाँ बदला लेने ही आया था, वो सब कुछ वापस छीनने जो मेरे बाप का था... यह सारी प्रॉपर्टी, सब कुछ मेरा है, मेरे बाप का है..." अथर्व उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला।


    दोनों की आँखों में गुस्सा था। अगर बीच में दीवार न होती तो दोनों एक-दूसरे पर टूट पड़ते।


    "और मेरा बदला अभी खत्म नहीं हुआ है, अभी बहुत कुछ करना है मुझे... तुमने मुझे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर किया था, मेरे हँसते-खेलते परिवार को एक झटके में बर्बाद कर दिया... उसका बदला भी लूँगा, लेकिन..."


    "लेकिन क्या... क्या करने वाले हो तुम..." रणजीत पूछता है। उसकी बेचैनी देख अथर्व को बहुत मज़ा आता है।


    "लेकिन अब बदला मैं तुमसे नहीं, तुम्हारे बदले तुम्हारी बेटी से लूँगा..." अथर्व अपने चेहरे पर एक ईविल स्माइल के साथ बोला।


    अथर्व की बात सुन रणजीत बौखला जाता है और जालियों को जोर से पकड़ता है।


    "हरामज़ादे... मेरी बेटी की तरफ़ आँख उठाकर भी देखा तो जान से मार डालूँगा..." अथर्व उसके इस तरह बौखलाने पर हँसने लगता है।


    "Hahaha... तुम्हारी बेवकूफ़ बेटी... कितना आसान था उसे बेवकूफ़ बनाना... तुम्हारी बेटी तुम्हारे गुनाहों की सज़ा भुगतेगी... हर रोज़ भुगतेगी।"


    "नहीं... देखो... जो किया मैंने किया... उसके साथ कुछ मत करना... उसका कोई कसूर नहीं है..." रणजीत उससे विनती करता है।


    "उसका कसूर है, और वह यह है कि वह तुम्हारी बेटी है, तुम्हारा खून है... यही उसकी सबसे बड़ी गलती है जिसकी सज़ा उसे मिलेगी..." अथर्व की आँखों में खून उतर आता है और वह गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ कस लेता है।


    "म.. म.. मैं माफ़ी मांगता हूँ... मैंने जो कुछ भी तुम्हारे परिवार के साथ किया, मैं उसके लिए माफ़ी मांगता हूँ, मेरी बेटी को बख्श दो प्लीज..." रणजीत अपने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता है।


    "हाहाहा माफ़ी??? और तुम्हें??... मिस्टर रणजीत सिसोदिया- तुमने जो किया वह गुनाह था, और माफ़ी ग़लतियों की दी जाती है, गुनाहों की सिर्फ़ सज़ा होती है... मैं वादा करता हूँ तुमसे... तुम्हारी बेटी को बहुत तबियत से सज़ा दूँगा... उसका साँस लेना, उसका एक-एक पल मौत से भी बत्तर बना दूँगा... अपने इन्हीं पैरों तले उसकी इज़्ज़त को रौंद दूँगा, तार-तार कर दूँगा, हर रोज़ तड़पाऊँगा उसे और तू... तू बस बेबस होकर अपनी बेटी की बर्बादी का तमाशा देखेगा..."


    रणजीत अपने घुटनों पर बैठ जाता है और अपने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगता है। "ऐसा मत करो, प्लीज़ ऐसा मत करो... मैं भीख मांगता हूँ... तू चाहे तो मेरी जान ले ले लेकिन उसे छोड़ दे।"


    उसे ऐसे गिड़गिड़ाता देख अथर्व को बहुत सुकून मिलता है और वह बोला, वह कोल्ड आवाज़ में बोला, "तुझे इस तरह गिड़गिड़ाता हुआ देख, मैं बता नहीं सकता कि कितना अच्छा लग रहा है मुझे... लेकिन इतना तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है... तेरे गुनाह इतने ज़्यादा हैं... उसका बोझ तू अकेले नहीं उठा पाएगा... साथ में तेरी बेटी को भी उठाना होगा..."


    "नहीं अथर्व... वह बेक़सूर है... उस बेचारी को तो कुछ पता भी नहीं है... उसे किस बात की सज़ा दे रहे हो..." रणजीत गिड़गिड़ाते हुए बोला। "उसे बख्श दो अथर्व, आख़िर उसने प्यार किया था तुमसे..."


    "लेकिन मैंने नहीं किया था... मैंने सिर्फ़ उसे फँसाया था क्योंकि मैं जानता था कि तुम्हारी बेटी वह तोता है जिसमें तेरी जान अटकी है... तेरे गुनाहों की उसे सज़ा मिलेगी, उसे तड़पता देख तुझे दुःख होगा... और तुझे तड़पता देख मुझे सुकून मिलेगा... अपनी मौत से कोई नहीं टूटता, लेकिन जब बात अपनों पर आ जाए तो भगवान भी टूट जाता है तो इंसान क्या चीज़ है..." यह बोलकर अथर्व अपना चश्मा उठाकर पहनता है और वहाँ से चला जाता है।


    उसके पीछे रणजीत वहाँ जोर-जोर से चिल्लाता रह जाता है।


    "मेरी बेटी के साथ कुछ मत करना अथर्व..."


    "उसकी कोई गलती नहीं उसे सज़ा मत देना..."


    "अथर्व मैं हाथ जोड़ता हूँ प्लीज़ उसे बख्श देना..."

  • 4. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 4

    Words: 1290

    Estimated Reading Time: 8 min

    रूमी अथर्व के बंगले के गेट पर पहुँची। वॉचमैन ने उसके लिए दरवाज़ा खोल दिया और रूमी अंदर चली गई। रूमी के कपड़े भीगे हुए थे; वह पूरी तरह भीग गई थी। उसके बालों और कपड़ों से पानी टपक रहा था। बारिश अभी भी हो रही थी। रूमी बंगले के अंदर गई।

    अथर्व ने हाल ही में शहर का सबसे बड़ा और शानदार बंगला खरीदा था, वह भी मुँह माँगी कीमत पर। अथर्व का बंगला बहुत ही बड़ा और शानदार था। बहुत सारे नौकर हाथ बाँधे आदेश का इंतज़ार कर रहे थे। अथर्व अकेला ही इतने बड़े बंगले में रहता था। घर के हर काम के लिए अलग नौकर था। बिलकुल किसी राजा जैसी शान थी उसकी।

    बंगले के अंदर प्रवेश करते ही उसने कुछ ऐसा देखा जिससे उसके कदम वहीं ठहर गए। अंदर का माहौल देख रूमी का दिल बैठ गया। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसका दिल जैसे धड़कना बंद ही कर गया।

    वह देखती है कि उसकी बेस्ट फ्रेंड करिश्मा अथर्व की गोद में बैठी थी। दोनों के बीच हवा के गुज़रने का भी फासला नहीं था। अथर्व उसे किस कर रहा था।

    दोनों पागलों की तरह एक-दूसरे को किस कर रहे थे। रूमी यह देखकर अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई। तभी अचानक अथर्व की नज़र उस पर पड़ी और वह किस करना बंद कर दिया। करिश्मा ने भी देखा कि रूमी वहाँ खड़ी थी।

    "ओह! तुम्हारी स्लेव आ गई... अब ये मत बोलना कि तुम मुझे छोड़कर इसे अटेंड करने वाले हो..." करिश्मा ने अपने चेहरे को बेचारा सा बनाकर कहा। अथर्व हँस दिया और बोला,

    "ऑफ़ कोर्स नॉट माई लव... तुम दोनों में फ़र्क है। तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो और ये कुछ भी नहीं... तुम मेरे लिए हमेशा प्रायोरिटी ही रहोगी..."

    अथर्व के मुँह से ये बात सुनकर करिश्मा का दिल खुशी से उछल पड़ा और वह फिर से उसके होठों पर टूट पड़ी।

    वहीं दूसरी तरफ़, अथर्व की बात सुनकर रूमी की जैसे दुनिया ही जल गई हो। जैसे उसके सपने, उसका संसार, उसकी उम्मीदें चकनाचूर हो गईं। उसके और अथर्व के बीच अब कोई प्यार का रिश्ता नहीं, यह तो वह जानती थी... लेकिन कहीं न कहीं उसका दिल नहीं मान रहा था। उसे अब भी उम्मीद थी।

    अब लगता है कि उसका दिल भी मान गया है कि उनका रिश्ता सिर्फ़ एक धोखा था और कुछ भी नहीं। रूमी वहीं अपनी आँखों में आँसू लिए खड़ी रही।

    उसकी अपनी बेस्ट फ्रेंड, बचपन से जिसके साथ उसने अपनी ज़िन्दगी की हर बात शेयर की, हर चीज शेयर की, आखिर उसने भी उसे धोखा दे दिया। अब भी चीजें ठीक हो सकती थीं... अब उसके पागल दिल ने यह बोलना भी बंद कर दिया था। उसकी सारी उम्मीदें ख़त्म हो चुकी थीं।

    रूमी को उन्हें इस तरह देखकर खुद पर ही घिन आ रही थी कि कैसे इंसान से प्यार किया, कैसी दोस्त बनाई उसने। दोनों कितने घटिया और बेशर्म थे! रूमी वहीं सर झुकाए खड़ी थी। थोड़ी देर में अथर्व किस करना बंद करके करिश्मा से पूछता है,

    "व्हाना हैव अ ड्रिंक... माई लव?"

    करिश्मा मुस्कुराकर हाँ में सर हिलाती है। अथर्व रूमी की तरफ़ देखकर बोलता है,

    "हे... यू... कम हियर... गेट मी टू ड्रिंक्स।"

    रूमी हैरानी से उनकी तरफ़ देखती है। "ड्रिंक... इसकी हिम्मत कैसे हुई... मैं इसकी नौकर..." रूमी सोचते-सोचते रुक जाती है जब उसे समझ आता है कि वह तो वाकई में उनकी नौकर है। उसे उनकी हर बात माननी ही पड़ेगी।

    रूमी साइड में लगे एक छोटे से बार की तरफ़ जाती है और दो गिलास ड्रिंक लेकर उनके पास खड़ी हो जाती है। दोनों उसके हाथ से गिलास ले लेते हैं। करिश्मा जान-बूझकर गिलास छोड़ देती है और वह गिलास रूमी के पैरों पर गिर जाता है, जिससे उसे बहुत दर्द होता है।

    "आआह..."

    "उप्प्स... सॉरी... गलती से मेरे हाथ से छूट गया..." करिश्मा अथर्व की तरफ़ देखकर बोलती है।

    "बेबी, मैं तुम्हारे गिलास से पी लूँ... मेरा गिर गया ना..."

    "ऑफ़ कोर्स माई लव..." अथर्व उसे अपना गिलास दे देता है और रूमी की तरफ़ देखकर बोलता है,

    "आँखें फाड़-फाड़ के क्या देख रही हो? फ़्लोर साफ़ करो।"

    अथर्व वहाँ से उठकर चला जाता है और करिश्मा वहीं बैठी रहती है और ड्रिंक एन्जॉय करती है। रूमी फ़्लोर साफ़ करने लगती है, तभी करिश्मा अपना पैर उसके हाथ पर रख देती है जिससे रूमी को बहुत दर्द होता है और उसकी आँखों से आँसू निकल आते हैं।

    रूमी को इस तरह देखकर वह मुस्कुराती है और धीरे से उसके पास आकर बोलती है,

    "दर्द हो रहा है ना... मुझे भी होता था जब मुझे हर छोटी से छोटी चीज़ के लिए तुम्हारे सामने भीख माँगनी पड़ती थी। तुम्हारे कपड़े, तुम्हारे खिलौने मुझे भीख में मिलते थे। मेरे पापा तुम्हारे घर के नौकर थे, इसीलिए तुम लोग हमें भीख देते थे ना... आज देखो तुम कहाँ और मैं कहाँ हूँ... आज मैं इस घर की मालकिन और तुम नौकर हो। अथर्व अब मेरा है, यह घर अब मेरा है... तुम्हारा सब कुछ अब मेरा है... और अथर्व की वाइफ़ की पोजीशन भी अब मेरी है... उसकी वाइफ़ मैं बनूँगी और तुम बनोगी उसकी रखैल..."

    करिश्मा की एक-एक बात रूमी को खंजर की तरह चुभ रही थी और वह उससे आँखें भी नहीं मिला पा रही थी। उसने हमेशा उसे अपनी बहन की तरह माना; उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि करिश्मा उससे इतनी ज़्यादा नफ़रत करती है।

    करिश्मा उठकर अथर्व के पास जाती है, जो बार पर अपने लिए ड्रिंक बना रहा था, और जाकर उसे पीछे से हग कर लेती है।

    "बेबी... आई लव यू सो सो मच..."

    अथर्व मुस्कुराता है, उसे 'लव यू टू' बोलता है और फिर उसे घर जाने के लिए बोलता है।

    "मुझे लगता है बहुत ज़्यादा रात हो गई। तुम्हें घर जाना चाहिए। मैं ड्राइवर को बोल देता हूँ, वह तुम्हें घर छोड़ देगा।"

    करिश्मा ऑब्जेक्शन करने की हिम्मत नहीं कर पाती क्योंकि वह जानती है कि अथर्व ने जो बोल दिया, वह बोल दिया। जो लोग उससे बहस करते हैं, उसे वह बिलकुल पसंद नहीं... और अथर्व को गुस्सा दिलाना वह अफ़ोर्ड नहीं कर सकती थी। तो वह चुपचाप मान जाती है और गाड़ी में अपने घर के लिए निकल जाती है। उसके जाते ही अथर्व की नज़र रूमी पर पड़ती है, जो वहाँ चुपचाप सर झुकाए खड़ी थी।

    अथर्व उसके पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक देखता है। वह पूरी भीगी हुई थी। उसके बालों से अभी भी पानी टपक रहा था। अथर्व उसके पास आता है और उसके हाथ में शराब का गिलास दे देता है और बोलता है,

    "इसे पियो, अभी के अभी।"

    रूमी को शराब की स्मेल भी पसंद नहीं थी। वह मना कर देती है।

    "नहीं... मैं नहीं पी सकती। मुझे यह पसंद नहीं है..." रूमी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोलती है।

    अथर्व अपनी भौंहें तानकर बोलता है,

    "क्या मैंने पूछा तुमसे कि तुम पीना पसंद करोगी या नहीं? मैंने रिक्वेस्ट नहीं की... आर्डर दिया है।"

    अथर्व उसके पास आकर उसका मुँह पकड़कर उसे जबरदस्ती पिलाने की कोशिश करता है, लेकिन गिलास के करीब आते ही रूमी थोड़ा झटपटाती है जिससे उसका हाथ गिलास से लगता है और गिलास ज़मीन पर गिरकर टूट जाता है।

    जिसपर अथर्व का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। वह उसके बालों को कसके पकड़ लेता है जिससे उसे बहुत दर्द होता है और वह रोने लगती है।

    "क्या तुम भूल गई हो कि मैं तुम्हारा मालिक हूँ? मुझे मना करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा।"

    अथर्व उसे खींचकर कमरे में ले जाता है।
    (क्रमशः)

  • 5. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 5

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    अथर्व उसे खींचकर रूम में ले जाता है और उसे जोर से धक्का देता है जिससे वो सीधा बिस्तर पर जाकर गिरती है... अथर्व दरवाजा बंद कर देता है..

    वो उसकी तरफ देखता है और उसे कमांडिंग टोन में बोलता है

    ""Seduce me...right nowwwww""

    अथर्व का इतना भयानक रूप देखकर रूमी डर से कांपने लगी थी... उसे आर्डर न मानते देख अथर्व उसके करीब आता है उसे बिस्तर से बाल पकड़ कर उठाता है... और एक झटके में उसके टॉप को फाड़ डालता है रूमी अपनी आखों को जोर से बंद कर लेती है, कुछ ही देर में दोनों के कपड़े जमीन पर बिखरे पड़े थे...

    अथर्व का 6 फुट का शरीर उसकी वेल बिल्ट मस्कुलर बॉडी उसका हैंडसम फेस देख कोई कोई भी अपना दिल हार सकता था... शहर की बहुत सारी लड़कियों के लिए उसके साथ एक रात भी बिताने को मिल जाए ये सपने जैसा ही था...

    लेकिन रूमी उनमे से नही थी उसने प्यार किया था वो भी सच्चे दिल से... उसका चेहरा देख कर नही उसका दिल देख कर वो दिल जिसकी हकीकत तो वो देख ही नहीं पाई...

    उसने सिर्फ वो देखा जो उसे दिखाया गया था...

    रूमी अंदर से इतनी ज्यादा टूट चुकी और डरी हुई होती है की वो एक पुतले की तरह खड़ी रहती है और कुछ भी नही करती...

    अथर्व उसे उठाकर बिस्तर पर पटक देता है और खुद भी उसके ऊपर चढ़ जाता है...

    वो उसे पागलों की तरफ किश करने लगता है लेकिन कुछ सेकण्ड्स में वो एकदम रुक जाता है और देखता है कि रूमी अपनी आखों को कसके बंद किये हुए पड़ी है...

    उसे इस तरफ लाश की तरह पड़ा हुआ देख उसका गुस्सा हद पार कर जाता है... और वो उसके ऊपर से खड़ा हो जाता है...

    ""लगता है तुम्हे मेरी बात समझ नही आई.. अच्छी बात है.. मै अभी हॉस्पिटल फ़ोन करके तुम्हारे भाई का ट्रीटमेंट रुकवा देता हूँ.""
    अपने भाई का नाम सुनते ही रूमी घबरा कर खड़ी हो जाती है.. अथर्व फ़ोन करने ही वाला होता है की वो उसका हाथ पकड़ लेती है.. "नही प्लीज भगवान् के लिए ऐसा मत करो.. तुम जैसा कहोगे मैं करूँगी प्लीज मेरे भाई का ट्रीटमेंट मत रुकवाओ.."" रूमी गिड़गिड़ाने लगती है.

    रूमी को इस तरह गिड़गिड़ाता देख उसका गुस्सा कुछ हद तक श्यानत हो जाता है... वो उसे पास आता है और बोलता है..

    ""मुझे लाषों के साथ सेक्स करने का कोई शोक नही है और ये बात तुम हमेशा याद रखना... मैं तुम्हारा मालिक हूं और एक अच्छे स्लेव को आना चाहिए की अपने मालिक को कैसे खुश करते है... ""

    ""I am sorry... तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ बताओ मुझे क्या करना है..." रूमी एक हारी हुई आवाज़ में बोलती है.

    "Good.. Very good.. Then make a Move. ""

    रूमी समझ जाती है और वो आगे बढ़कर अथर्व के होठों पर किस करने लगती है... अथर्व उसपर किसी भूखे दरिंदे की तरह टूट पड़ता है.

    रूमी अभी वर्जिन थी वो शादी से पहले से सब नहीं करना चाहती थी लेकिन देखो उसकी किस्मत... आज उसे क्या करना पड़ रहा है.

    उस इंसान का छूना आज इसे बेइंतहा दर्द दे रहा है जिसकी वो कभी हो जाना चाहती थी.. अथर्व का ये रूप उसके लिए बोहोत ही भयानक था ऐसा लग रहा था जैसे ये अथर्व नही कोई और ही है..

    जिन आँखों में उसने हमेशा अपने लिए प्यार और केयर देखि थी आज उन आँखों में गुस्सा था, नफरत थी, हवस थी..

    अथर्व अपनी दरिंदगी को कायम रखे हुए था... ये जानते हुए भी कि रूमी अभी वर्जिन है उसने कोई दया नहीं दिखाई...

    रूमी के दर्द की कोई सीमा ही नही थी वो लगातार चीखे जा रही थी लेकिन अथर्व ने तो जैसे कानों में रूई डाल रखी थी...

    अथर्व अपनी स्पीड को स्लो नहीं करता है बल्कि उससे भी ज्यादा तेज़ कर देता है, वो रूमी की तरफ देखता है
    रूमी की आँखे आँसुओं से भरी थी.. "दर्द हो रहा है मेरी जान.??? बोहोत दर्द हो रहा है न... अब इस दर्द की आदत डाल लो क्युकी ये दर्द ही तुम्हारी तकदीर है... मैं तुम्हे इतना दर्द दूंगा जिसकी कोई हद नही होगी...

    "तुम ऐसा क्यों कर रहे हो अथर्व... आखिर क्यों हम तो एक दूसरे से प्यार करते थे ना फिर क्यों मुझे इतनी तकलीफ दे रहे हो... "" ये जानते हुए भी कि जवाब क्या होगा रूमी अपने आप को पूछने से रोक नही पाई..

    ""प्यार और तुमसे... सवाल ही नहीं उठता... तुम तो सिर्फ मेरी जरूरतों को पूरा करने का जरिया हो मेरी जान... मेरे टाइम पास का सामान... "" रूमी को बहुत तकलीफ हो रही थी और अथर्व की आँखे भी गुस्से से लाल हो गयी थी।

    ""इसका मतलब हमारे बीच जो भी हुआ वो प्यार नहीं था... तुम सिर्फ मुझे इस्तेमाल करना चाहते थे... क्या कभी भी तुमने प्यार नही किया... क्यों किया तुमने ऐसा, क्यों तोड़ा मेरा दिल..."

    रूमी के इतने बेवकूफी भरे सवाल पर अथर्व हँसता है, उसकी हंसी शैतानी थी बहुत शैतानी.. ""मेरी माँ की दुर्दशा का जिम्मेदार है... तुम्हारा बाप, मेरे बाप की आत्महत्या के और मेरे छोटे भाई की मौत का जिम्मेदार है... तुम्हारा बाप... बोहोत गुरूर है ना उसे अपनी इज्जत पर, अपनी बेटी पर.. उसकी इज्जत को मेने अगर अपने पैरों तले न रोंदा तो मेरा नाम भी अथर्व वशिष्ठ नहीं...

    अथर्व की आवाज में उसके action मे उसका गुस्सा साफ दिख रहा था।

    ""तुम्हे जरूर कोई गलत फहमी हुई है अथर्व ऐसा नही हो सकता...

    ""Huh... ऐसा नहीं हो सकता !!! जिस प्रॉपर्टी पर वो बूढा कुंडली मार के बैठा था ना वो मेरे बाप की थी... मेरे बाप को सेक्स स्कैंडल के झूठे इल्जाम में फसाकर उनपर रेप केस तक लगवाया, तुम्हारे बाप ने... सारी प्रॉपर्टी माँ के नाम पर थी मेरे पापा के बेगुनाही के सबूत वो देगा ये बोलकर मेरी माँ से सारी प्रॉपर्टी अपने नाम पर कारवाई, तुम्हारे बाप ने...

    मेरे छोटे भाई को और मुझे किडनैप करवाया और फिर हमे चलती हुई गाड़ी से फिकवा दिया जिस वजह से मेरा छोटा भाई मर गया.. ये सब तुम्हारे बाप ने करवाया सिर्फ तुम्हारे बाप ने... उसने मुझसे मेरा परिवार और मेरा सारा बचपन छीन लिया...

    वो बूढ़ा मेरा गुनेहगार है मैं उसका बदला तुमसे लूंगा और हर रोज लूंगा... तुम्हारा हर दिन नरक के जेसा बदत्तर होगा...

    ये सब सुनकर रूमी को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था उसके पापा ने अपना सारा बिज़नेस उसके नाम पर चला रखा था वो सारा बिज़नेस उसके पापा का नही बल्कि अथर्व के पापा का था... आखिर क्यों किया होगा उसके पापा में ऐसा...

    अथर्व पूरी रात रूमी को सेक्सुअली हैरेस करता रहा... जैसे सेक्स नही बलत्कार हो रूमी बस दर्द से चीखती चिल्लाती रही... फाइनली कई घंटो के बाद अथर्व के अंदर का जानवर श्यानत हुआ और वो सो गया लेकिन रूमी की आँखों के आस पास नींद का नामोनिशान भी नहीं था...

    दर्द में पड़ी हुई सारी रात वो अथर्व की बताओ को सोचती रही और आखिरकार उसकी आखों भी भरी होने लगी... किसी ने ठीक ही कहा है रोने के बाद नींद सुकून भरी आती है और फाइनली उसकी भी आँख लग ही गयी..

    Be to continue
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  • 6. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 6

    Words: 1222

    Estimated Reading Time: 8 min

    अवस्थी मेंशन में...

    मिस्टर राहुल अवस्थी, मुँह से सीटी बजाते हुए, काले चश्मे पहने, हाथ में कार की चाबी घुमाते हुए, फटाफट रफ़्तार से सीढ़ियों से उतरते हुए आए। उनका बंगला भी कुछ कम नहीं था, बिलकुल अथर्व के बंगले जैसा राजमहल था। जहाँ घर के मेंबर्स से ज़्यादा तो नौकर थे।

    उन्होंने ब्लू जीन्स, ब्लैक शर्ट और ऊपर से लेदर का जैकेट पहना हुआ था। अथर्व के बाद एक ये इंसान था जिसके चार्म का जादू लगभग शहर की हर लड़की पर चलता था। राहुल दरवाजे की तरफ जा रहे थे, तभी पीछे से एक आवाज़ आई, जिसे सुनते ही राहुल के कदम रुक गए।

    "फिर निकल लिया... शहंशाह की तरह रात को सड़कों और क्लबों के धक्के खाने... एक मिनट घर में पैर नहीं टिकते तेरे..."

    राहुल पलटे और अपने बालों में हाथ फेरते हुए बोले, "मॉम आप जानती हैं ना, कोई शुभ काम के लिए जा रहा हो तो उसे पीछे से रोकते नहीं हैं।"

    "अच्छा, बताना जरा कौन-सा शुभ काम करने जा रहे हो..." पुष्पा अवस्थी राहुल के सामने आकर खड़ी हो गईं। उनके हाथ उनके सीने पर क्रॉस थे।

    "मॉम... आप तो जानती हैं आपका बेटा कितनी लड़कियों के दिलों की धड़कन है... मैं अगर नहीं गया और मुझे बिना देखे एकाध की धड़कन बंद हो गई तो..." राहुल अपने आप पर प्राउड करते हुए और स्टाइल मारते हुए बोला।

    पुष्पा ने राहुल का कान पकड़कर बोला, "अच्छा, बहुत स्टाइल मार रहा है, वो भी अपनी माँ के सामने... भूल गया कि नाक बहती थी तेरी, बिना कपड़ों के नंगा घूमता था तू बचपन में मेरे सामने, आज बड़ा हो गया तो हैंडसम ढूँढ हो गया है..."

    "आआह मॉम... दर्द हो रहा है... छोड़िए..." कान छुड़ाने के बाद राहुल बोला।

    "मॉम थोड़ा धीरे बोलो, हवाओं के भी कान होते हैं... अगर शहर की लड़कियों ने सुन लिया तो क्या इज़्ज़त रहेगी मेरी..."

    "अब चल और खाना खा, खाना खाए बिना कहीं नहीं जाना है... अब चल..." पुष्पा राहुल की कोहनी को खींचते हुए उसे खाने के टेबल की तरफ ले गईं। बेचारा राहुल भी बेचारा सा मुँह बनाकर पीछे-पीछे चल पड़ा।

    हरीश अवस्थी जहाँ बेचारा सा बनाकर पहले ही बैठे हुए थे। राहुल भी आकर साइड की चेयर पर बैठ गया।

    "Heyy dad... Good evening..."

    "Good evening... Good evening... आखिर आज मेरा शहंशाह पकड़ा ही गया... हाहाहाहा..." हरीश अवस्थी हँसते हुए बोले।

    "Come on dad... अब आप शुरू मत हो जाओ।" राहुल आँखें रोल करते हुए बोला।

    पुष्पा राहुल और हरीश को खाना परोसने लगीं। आज टिंडे और पालक की सब्जी बनाई थी, जिसे देखकर हरीश और राहुल मुँह बना लेते हैं।

    "टिंडे!!... फिर से...!!" दोनों साथ में बोले।

    "मॉम... आपको टिंडों से इतना प्यार क्यों है... हमारे पास इतना पैसा है हम रोज़ छप्पन भोग बनवा सकते हैं... फिर हर रोज़ ये सब घास-फूस क्यों..." राहुल रुँडा सा मुँह बनाकर बोला।

    "और नहीं तो क्या, ये रोज़ टिंडे, करेले, लौकी खाकर मेरे तो मुँह का टेस्ट ही चला गया है..." हरीश भी बोला।

    "चुपचाप खाओ दोनों... आवाज़ किए बिना... हर रोज़ बाहर का इतना अटंग-बटंग खाकर तबियत खराब हुई, तो मैं नहीं जागने वाली रात-रात भर देखभाल के लिए..." पुष्पा दोनों को आँख दिखाकर बोलीं।

    "डैड... आपको पूरी दुनिया में मॉम के अलावा कोई और लड़की नहीं मिली, शादी करने के लिए... आपकी बीवी एक दिन टिंडे-करेले खिला-खिलाकर मार डालेगी हमें..." राहुल हरीश की तरफ झुककर फुसफुसाकर बोला।

    "अरे मैं क्या करूँ... मुझसे तो किसी ने पूछा भी नहीं... तेरा दादा ही गया था इसे देखने... मैंने तो सुहागरात में जाकर इसका चेहरा देखा था..."

    "क्या बड़बड़ा रहे हो दोनों..." पुष्पा भौंहें चढ़ाकर बोलीं।

    "न... नहीं... कु... कुछ नहीं बस... टिंडों की तारीफ कर रहे थे... क्या गज़ब बनाए हैं..." हरीश थोड़ा घबराकर बोला।

    ओफ़्कौर्से, पुष्पा घर की लेडी डॉन थीं, उनके सामने भला किसकी जुबान खुल सकती है... दोनों बेचारे किस्मत के मारे, चुपचाप डिनर करने लगे।

    पुष्पा भी बैठकर खाना खाने लगीं।

    "राहुल... अथर्व आजकल कहाँ है, घर भी नहीं आया कई दिन से... वो ठीक तो है ना..." पुष्पा अपनी चिंता जताते हुए बोलीं।

    बचपन से ही उन्होंने अथर्व और राहुल को एक जैसा प्यार दिया है, तो दोनों ही उनके लिए एक समान हैं।

    "हाँ... तुम्हारी माँ ठीक कह रही है... अथर्व कई दिन से घर नहीं आया, बस कभी-कभार फ़ोन आ जाता है हाल-चाल पूछने को..." हरीश भी खाते-खाते बोला।

    "डैड उसने अभी-अभी टेकओवर किया है... आप तो जानते ही हैं कि उसे कितना ज़्यादा काम है... मैं भी ज़्यादा टाइम उसी की हेल्प में बिताता हूँ... एक बार चीज़ें मैनेज हो जाए तो सब पहले जैसा हो जाएगा..." राहुल जवाब दिया खाना खाते-खाते।

    "हाँ बिलकुल, जब तक सब सेट नहीं हो जाता तुम उसकी ही हेल्प करो, यहाँ मैं सब संभाल लूँगा..." हरीश बोला।

    "वो तो ठीक है... लेकिन अथर्व ने मना कर दिया मेरी हेल्प लेने से, वो तो मैंने जबरदस्ती की तब जाकर माना है वो भी बस कुछ वक़्त के लिए... वो बोलता है कि वो खुद संभाल लेगा, मुझे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है... लेकिन मैं चाहता हूँ कि मैं उसकी मदद करूँ..." राहुल खाना खाते-खाते बोला।

    "हम्म्म्म... मेरा बेटा अथर्व बहुत मेहनती है... फ़ाइनली उसे जो चाहिए था उसे मिल ही गया... आज शिवराज भाईसाहब की आत्मा को ज़रूर शांति मिली होगी... आखिर कितना कुछ सहा है बेचारे ने छोटी सी उम्र से ही..." पुष्पा थोड़ा उदास होकर बोलीं। हरीश और राहुल भी ऐग्री करते हैं।

    "अथर्व बहुत टैलेंटेड लड़का है... मुझे याद है किस तरह जब हमारी कंपनी डूबने वाली थी, तब उसने अपनी दिमाग और इंटेलिजेंस से हमारी कंपनी को डूबने से बचाया था और राहुल ने और उसने मिलकर हमारी कंपनी को टॉप पर पहुँचाया... आज सिर्फ़ उन दोनों की वजह से हम शहर के टॉप रईसों में एक हैं..."

    पुष्पा हरीश की बातों पर सहमति जताती हैं और राहुल के कंधे को थपथपाकर बोलीं, "मेरे दोनों बच्चे हीरे हैं हीरे, बस अब एक ही ख्वाहिश है कि इन्हें अच्छी-अच्छी लड़कियाँ मिल जाएँ और ये दोनों शादी करके मुझे जल्दी से ढेर सारे पोते-पोतियाँ दे दें..."

    अपनी माँ की ये बात सुनकर राहुल इरिटेटिंग टोन में बोला, "क्या मॉम आप भी जब देखो शादी-शादी... मुझे नहीं करनी कोई शादी..."

    पुष्पा कुछ बोलने वाली ही होती हैं कि हरीश उन्हें चुप रहने का इशारा करता है और वो चुप हो जाती हैं।

    राहुल खाना खत्म करके वहाँ से जाने लगा। "मैं जा रहा हूँ... माँ, डैड मुझे आने में देर हो जाएगी तो मेरा वेट मत करना, बाय बाय..." ये बोलकर राहुल घर से बाहर चला गया।

    और कार में बैठकर स्टार्ट करता है। हर बार शादी का नाम सुनते ही उसके पास्ट की कुछ पेनफुल मोमेंट्स उसकी आँखों के सामने फ़्लैश होने लगती हैं। वो गाड़ी के स्टीयरिंग व्हील को कसकर पकड़ता है। उसके चेहरे पर दर्द और गुस्से के भाव थे। सबकॉन्शियसली उसकी आँख से एक आँसू निकल जाता है जिसे पोछ वो गाड़ी लेकर चला जाता है। एक और स्लीपलेस नाईट...

  • 7. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 7

    Words: 1142

    Estimated Reading Time: 7 min

    राहुल बार में बैठा हुआ ड्रिंक कर रहा था। बार में बहुत जोर का म्यूजिक बज रहा था, जिस पर गाना चल रहा था।

    सब लोग शराब के नशे में झूमते हुए नाच रहे थे। इन सब में बहुत सी हॉट, सेक्सी, खूबसूरत लड़कियों की नज़र राहुल पर पड़ रही थी।

    बहुत सी लड़कियाँ राहुल के पास आ रही थीं, फ़्लर्ट कर रही थीं, नाचने के लिए पूछ रही थीं और अपना लक ट्राई कर रही थीं कि उसकी नज़र उन पर पड़े; ऐसे हैंडसम हंक के साथ एक रात भी बिताने को मिल जाए तो लड़कियाँ उसे अपनी खुशकिस्मती मान लेतीं। दुनिया जानती थी कि राहुल शहर का मशहूर प्लेबॉय है।

    कुछ देर वहाँ बैठे रहने के बाद, राहुल वहाँ से जाने के लिए निकला ही था कि तभी एक खूबसूरत लेडी, जिसकी भूरी आँखें, लाल होंठ, पाँच फ़ुट छह इंच ऊँचाई, परफेक्ट फ़िगर और कंधों तक के शॉर्ट हेयर थे, उससे टकरा गई।

    "ऊह, सॉरी... मैं..."

    राहुल बोलते-बोलते रुक गया जब उसने उस लड़की का चेहरा देखा। अनेक तरह के इमोशंस उसकी आँखों में दिख रहे थे, फिर वे एक इमोशन में बदल गए और वह था गुस्सा।

    वह लड़की एक बड़ी सी स्माइल के साथ राहुल को हग करती है।

    "राहुल... ओह माय गॉड... कैसे हो तुम?"

    राहुल इरिटेट होकर उसके पीछे झटका।

    "दूर हटो मुझसे... और तुम मुझे छूने की हिम्मत मत करना..."

    और राहुल वहाँ से जाने लगा, तभी आशिमा ने उसका हाथ पकड़कर बोला।

    "राहुल, अभी तक नाराज़ हो मुझसे? मैं कितनी बार तुमसे माफ़ी मांग चुकी हूँ, अब तो माफ़ कर दो। मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे।"

    "ओह, शट अप आशिमा! कुछ तो शर्म करो! इतना कुछ करने के बाद भी तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम मेरे सामने आ सको? वो काम करो जिसके लिए यहाँ आई हो, जाओ जाकर कोई नया बकरा ढूँढो।" राहुल गुस्से में बोला।

    ये जो लड़की सामने खड़ी थी, वो कभी राहुल की गर्लफ्रेंड हुआ करती थी। राहुल उससे ज़्यादा प्यार करता था। दोनों शादी तक करने वाले थे; चार साल का अच्छा-खासा रिलेशनशिप था इनका। फिर एक दिन उसने आशिमा को अपने ही किसी दोस्त के साथ सोते हुए पकड़ लिया।

    उस दिन राहुल का दिल ऐसा टूटा कि उसका प्यार से भरोसा ही उठ गया। आशिमा ने उसे बहुत सफ़ाई देने की कोशिश की, कि उसने जो किया वो नशे की हालत में किया, उससे बहुत बड़ी गलती हो गई।

    वह बार-बार माफ़ी मांगती रही, लेकिन राहुल ने उस दिन के बाद कभी उसकी तरफ़ पलटकर भी नहीं देखा। वह हमेशा उससे मिलने की कोशिश करती, लेकिन राहुल उसे अवॉइड करता जाता।

    "ऐसा क्यों बोल रहे हो राहुल? प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। तुम्हारे जाने के बाद मुझे रियलाइज़ हुआ कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती।" आशिमा आँखों में आँसू भरकर बोली।

    "तो मर जाओ!" राहुल ने अपने हाथों को छाती पर क्रॉस करके, कोल्डली उसकी तरफ़ देखते हुए, स्ट्रेट आवाज़ में बोला। आशिमा हैरानी से उसकी तरफ़ देखती रही।

    "क्या हुआ, मारो अब? वैसे भी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता तुम जीओ या मरो। और वैसे भी तुम क्या ही किसी के लिए मरोगी? तुम जैसी लड़कियाँ बस पैसों पर मरती हैं।"

    आशिमा की आँखों से आँसू टपकने लगे।

    "ऐसा मत बोलो राहुल, मैं सच में तुमसे प्यार करती हूँ।"

    राहुल को उसकी बात पर हँसी आ गई।

    "तुम जानती हो, तुम्हें तुम्हारी एक्टिंग के लिए तो अवार्ड मिलना चाहिए। कितनी रियल एक्टिंग करती हो।"

    राहुल की बातों से आशिमा का दिल टूटकर बिखर गया।

    "मैं एक्टिंग नहीं कर रही हूँ। मेरा भरोसा करो। मैं मानती हूँ मुझसे गलती हुई है। मैं ये भी जानती हूँ कि तुम नाराज़ हो मुझसे, पर राहुल..."

    राहुल आशिमा को बीच में ही टोककर बोला।

    "ना... ना... ना... तुम बोलने में गलती कर रही हो जान। मैं नाराज़ नहीं हूँ तुमसे।" राहुल उसके कान के करीब आकर, गुस्से भरी कोल्ड आवाज़ में बोला, "मैं नफ़रत करता हूँ तुमसे।" उसकी बात सुन आशिमा सन्न रह गई। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

    "मुझे घिन आती है तुमसे... मुझे घिन आती है अपने आप से, जो मैंने तुमसे प्यार किया। दोबारा कभी मेरी आँखों के सामने मत आना, वर्ना मैं खुद भी नहीं जानता कि मैं क्या कर बैठूँगा।"

    यह बोलकर राहुल गुस्से में वहाँ से चला गया। आशिमा अपनी आँखों में आँसू भरकर वहीं खड़ी रही और खुद से वादा किया।

    "मैं एक दिन फिर से तुम्हें अपना बना लूँगी राहुल, चाहे मुझे कितनी भी ज़िल्लत सहनी पड़े। मैं तुम्हें दोबारा पाकर ही रहूँगी।"

    राहुल क्लब के बाहर निकला और अपना माथा पकड़ लिया। उसके दिल की धड़कनें काफी तेज़ थीं। वह किसी तरह अपने आप को शांत करता है।

    इस लड़की की प्रेजेंस आज भी उसे बहुत इफ़ेक्ट करती थी। आखिर सच्चा प्यार तो उसका यही था।

    वह अपनी पॉकेट से सिगरेट निकाली और मुँह में रखकर लाइटर से उसे जलाया और एक गहरा कश लेकर धुआँ बाहर छोड़ा। कुछ देर वहीं आँखें बंद करके खड़ा रहा और सिगरेट फूँकता रहा।

    सिगरेट खत्म होने के बाद वह अपनी ब्लैक मर्सिडीज़ में बैठा और वहाँ से निकल गया।

    कुछ दूर चलने के बाद उसने देखा कि कुछ बदमाश लड़के घेरा बनाकर खड़े हैं और उनके बीच एक लड़की फँसी हुई है।

    ऐसा लग रहा था कि उन लड़कों ने उस लड़की को घेर रखा था और उसे छेड़ रहे थे। राहुल को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और उसने गाड़ी रोक ली।

    वह गाड़ी से उतरा और उनकी तरफ़ गया।

    सलवार-कमीज़ पहने हुए और गले में दुपट्टा लिए हुए एक मासूम सी, लगभग तेईस-चौबीस साल की खूबसूरत लड़की, जिसके लंबे घने काले बाल, काली आँखें, लाल होंठ, पाँच फ़ुट पाँच इंच ऊँचाई और गोर-चित्टे रंग थे, डरी-सहमी सी उन सभी भूखे भेड़ियों में खड़ी, अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही थी।

    उनमें से एक गुंडा बोला, "अरे, अकेले कहाँ जा रही हो मेरी जान, हमें भी ले चलो।"

    दूसरा बोला, "क्यों अपने नाज़ुक से पैरों को क्यों तकलीफ देती हो? चलो हम सब आपको अपनी गाड़ी में छोड़ दें।"

    लड़की घबराई हुई आवाज़ में बोली, "देखो, मुझे जाने दो... वरना..."

    "वरना क्या, डार्लिंग? मारोगी? ये लो मारो।" एक गुंडा अपना गाल आगे करके बोला।

    तभी उस गुंडे के गाल पर एक जोरदार घूँसा लगा, जिससे उसका जबड़ा हिल गया।

    "अब आया मज़ा!" राहुल की तरफ़ सब हैरानी से देख रहे थे, वो लड़की भी।

    एक गुंडा उसे मारने आगे बढ़ा तो राहुल ने उसे भी एक घूँसा पेल दिया जिससे वह जमीन पर गिर गया।

    फिर सभी गुंडे एक साथ उस पर अटैक करने आए। वह लड़की डर के मारे राहुल के पीछे छुप गई।

    (क्रमशः)

  • 8. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 8

    Words: 1255

    Estimated Reading Time: 8 min

    जैसे ही वे गुंडे उस पर हमला करने आये, राहुल ने अपनी कमर पर हाथ रख लिया जिससे उसकी जैकेट थोड़ी पीछे हो गई।

    राहुल की बेल्ट में टंगी बंदूक देखकर सभी गुंडे वहीं रुक गए। राहुल उनकी ओर देखकर मुस्कुराया। "आओ, क्या हुआ?"

    सभी गुंडे पीछे हट गए और डर के मारे वहाँ से भाग गए।

    राहुल अक्सर एक लीगल बंदूक अपने साथ रखता था। आखिर वह एक प्रसिद्ध व्यवसायी था, सुरक्षा तो ज़रूरी थी।

    "वो लोग चले गए हैं, अब तुम बाहर आ सकती हो।" राहुल ने अपने पीछे छिपी लड़की से कहा और वह लड़की उसके पीछे से सामने आ गई।

    उस लड़की को देखकर राहुल की नज़र एक पल के लिए उस पर अटकी। उसके दिल में एक अजीब सी हलचल हुई।

    लम्बे घने बाल, सलवार-सूट, गले में दुपट्टा, माथे पर बिंदिया, आँखों में काजल, हल्की गुलाबी लिपस्टिक, चेहरे पर मासूमियत; सादगी की चलती-फिरती मूर्ति।

    "मेरी मदद करने के लिए धन्यवाद।" उस लड़की की आवाज़ सुनकर राहुल तुरंत होश में आ गया।

    राहुल उस लड़की की ओर देखकर मुस्कुराया और बोला, "जी, कोई बात नहीं। मैंने वही किया जो मुझे करना चाहिए था।"

    "अगर आप समय पर नहीं आते तो पता नहीं ये लोग..." वह लड़की दुखी और घबराई सी आवाज़ में बोली।

    "आप चिंता मत कीजिये, वो लोग चले गए हैं। अब आप बिल्कुल सुरक्षित हैं। वैसे आप इस वक़्त यहाँ अकेली क्या कर रही हैं? आप जानती हैं ना ये जगह सुरक्षित नहीं है।"

    "जी, वो एक्चुअली आज मुझे काम से थोड़ा लेट हो गया था और कोई टैक्सी भी नहीं मिल रही थी, तो..." लड़की हिचकिचाती हुई आवाज़ में बोली।

    "ओह, अच्छा। चलो, मैं अपनी गाड़ी में आपको छोड़ देता हूँ।" राहुल यह बोलकर मुड़ने ही वाला था कि तभी वह लड़की रोक ली।

    "नहीं, आप चिंता मत कीजिये। मैं चली जाऊँगी। ज़्यादा दूर नहीं है यहाँ से मेरा घर।"

    "देखिये, वो गुंडे दोबारा आ सकते हैं। आपका अकेले जाना खतरनाक हो सकता है। आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं। मैं आपको सुरक्षित घर पहुँचा दूँगा।" राहुल जोर देकर बोला।

    लड़की कुछ देर सोची, फिर बोली, "ठीक है।" लड़की के मुँह से यह सुनकर पता नहीं क्यों राहुल का दिल नाचने लगा।

    वह फटाफट गाड़ी का दरवाज़ा खोला। लड़की अंदर पैसेंजर सीट पर बैठ गई। राहुल भी बैठ गया और दोनों चल दिए।

    रास्ते में दोनों बिलकुल चुपचाप थे। राहुल पहले बोला, "तुम अक्सर इसी रास्ते से आया करती हो?"

    वह लड़की राहुल की ओर देखकर बोली, "जी, वो एक्चुअली मैं दूसरे रास्ते से घर जाती हूँ। आज मजबूरी थी। मैं काम पर लेट हो गई थी और मुझे घर जल्द से जल्द पहुँचना था, तो मैंने यह छोटा रास्ता ले लिया। ऊपर से कोई रिक्शा या टैक्सी भी नहीं मिल रही थी, तो..."

    "वैसे कौन-कौन है आपके घर में?" राहुल को उसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानने की इच्छा होने लगी, तो वह धीरे-धीरे काफी कुछ पूछने लगा।

    "जी, मैं और मेरा छोटा भाई।" लड़की ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

    "और...?" राहुल हैरानी से पूछने लगा। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर राहुल की धड़कनें बढ़ गईं। उसकी स्माइल बेहद खूबसूरत थी।

    "और कोई नहीं, बस हम दोनों।" लड़की के चेहरे की स्माइल गायब हो गई यह जवाब देते हुए।

    "और आपके माँ, पापा? वो नहीं रहते आपके साथ...?" राहुल हैरानी से पूछा।

    "नहीं... मैं अनाथ हूँ। मेरे और मेरे छोटे भाई के अलावा इस दुनिया में हमारा कोई नहीं है।" यह बोलकर लड़की की आँखें नम हो गईं।

    उस लड़की की बात सुनकर राहुल सन्न रह गया। उसे उदास देखकर उसका दिल दर्द करने लगा।

    "आई एम सॉरी। तुम्हें दुखी करने का कोई इरादा नहीं था मेरा।" राहुल भी दुखी हो गया।

    "इट्स ओके..." लड़की एक उदासी भरी स्माइल देकर बोली।

    उस लड़की का चेहरा उतर सा गया। उसे देखकर राहुल को बहुत गिल्ट हुआ कि उसने उसका मूड खराब कर दिया। तो वह उसका मूड ठीक करने के लिए कार का एफएम रेडियो ऑन कर दिया। एक पुरानी मूवी का गाना बजने लगा।

    "अरे यार, ये कैसे लग गया..." यह बोलकर राहुल उस गाने को बदलने ही वाला था कि...

    "बजने दीजिये ना यही, मुझे ये बहुत पसंद है।" वह लड़की अचानक राहुल का हाथ पकड़कर उसे बदलने से रोकते हुए बोली। उसके हाथ का स्पर्श होते ही जैसे दोनों में बिजली का करंट सा दौड़ने लगा। वह लड़की तुरंत अपना हाथ हटा ली और शरमा गई।

    "आई... आई एम सॉरी..." वह लड़की नीचे देखते हुए अपने बालों को कान के पीछे करते हुए बोली।

    राहुल उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला,

    "लगता है आप पुरानी गानों की शौक़ीन हैं।"

    लड़की हल्का सा शरमाते हुए हाँ में सर हिलाई। और गाना बजने लगा, दोनों गाने का आनंद लेने लगे।

    ओ मेरे दिल के चैन...

    गाड़ी रुकिये प्लीज़... लड़की एकदम से बोली।

    "क्या हुआ...?" राहुल ब्रेक मारकर बोला।

    "वो यहाँ से अब मेरा घर एक गली में है, गाड़ी वहाँ नहीं जा पाएगी। मुझे पैदल जाना होगा। लिफ्ट के लिए थैंक्यू।"

    लड़की राहुल को एक प्यारी सी स्माइल देकर गाड़ी से उतर गई। उसे बाय बोलकर चली गई। राहुल उसे तब तक देखता रहा जब तक वह आँखों के सामने से ओझल नहीं हो गई। उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल थी।

    जैसे ही वह चली गई, अचानक उसकी स्माइल गायब हो गई और वहाँ... ओह शिट यार...वाले एक्सप्रेशन आ गए जब उसे याद आया कि उसने उसका नाम तो पूछा ही नहीं। पर अब क्या फायदा, अब तो वह गायब हो गई।

    वह उदास हो गया और रुँझा सा मुँह बनाकर गाड़ी स्टार्ट करके मोड़ा, तभी उसकी नज़र साइड वाली सीट पर पड़ी जिस पर कुछ देर पहले वह लड़की बैठी थी। उस सीट पर एक झुमका गिरा हुआ था जो शायद उसी लड़की का था और जल्दबाज़ी में गिर गया था। राहुल मुस्कुराया और उस झुमके को उठा लिया।

    "आई विश के हम दोबारा ज़रूर मिलें, मिस झुमके वाली।" राहुल उस झुमके को किस किया और अपनी पेंट की जेब में डाल लिया।

    वह गाड़ी मोड़ा और वहाँ से चला गया।

  • 9. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 9

    Words: 1084

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक छोटा सा, लगभग सात साल का बच्चा कब से दरवाज़े पर खड़ा किसी का इंतज़ार कर रहा था। उसकी निगाहें बार-बार एक ही रास्ते पर टिकी हुई थीं। वह किसी के इंतज़ार में था, शायद...

    तभी एक अधेड़ उम्र की औरत पीछे से आकर बोली,
    "आर्यन... बेटा, खाना खा लो। रिधिमा आ जाएगी।"

    "नहीं काकी... आप जानती हो मैं दीदी के बिना खाना नहीं खाता। इतनी देर से वो कभी नहीं होती। पता नहीं आज कहाँ रह गई।" आर्यन उदास सा मुँह बनाकर बोला। उसे अपनी दीदी को देखे बिना चैन नहीं आता था। वह हमेशा उसे लेकर चिंता में रहता था।

    "भगवान करे वो सही सलामत हो... उसके साथ कुछ..." प्रभा आंटी अपनी चिंता जताते हुए बोली।

    "कुछ नहीं होगा उन्हें। वो बिलकुल ठीक होगी। अभी बस आती ही होगी।" आर्यन बीच में ही काटकर बोला। उसे रिद्धिमा की बहुत टेंशन होने लगी थी अब। वह भगवान से दुआ करने लगा कि उसकी दीदी सही सलामत घर आ जाए।

    तभी उसका चेहरा खुशी से झूम उठा जब उसने सामने अपनी दीदी रिद्धिमा को आते हुए देखा।
    "दीदी... आ गई..." आर्यन दौड़कर गया और रिद्धिमा को गले से लगा लिया। रिद्धिमा को अपनी आँखों के सामने देखकर आर्यन को अब जाकर सुकून मिला।

    रिद्धिमा ने भी उसे कसकर गले से लगा लिया।
    "तू सोया नहीं अभी तक?" रिद्धिमा ने पूछा।

    "भला ऐसा कभी हो सकता है... कि तेरे घर आए बिना ये खा ले या सो जाए?" प्रभा आंटी आगे आकर बोली।

    "क्या!! इसने अभी तक खाना भी नहीं खाया?" रिद्धिमा हैरानी से पूछी। आर्यन अपने होठों को चबाने लगा।

    "नहीं, कब से दरवाज़े पर बैठे सिर्फ़ तेरी ही राह देख रहा था। अच्छा खाना रखा हुआ है अंदर, खा लेना। अब मैं चलती हूँ।" यह बोलकर प्रभा आंटी अपने घर को चली गई।

    प्रभा रिद्धिमा की पड़ोस में रहती थी। घर में रिद्धिमा और उसका भाई आर्यन ही रहते थे। सुबह रिद्धिमा काम पर जाती और आर्यन स्कूल। फिर रिद्धिमा शाम को लौटती थी। तब तक प्रभा आंटी ही उसका ख्याल रखती थी। प्रभा बहुत अच्छी औरत थी।

    रिद्धिमा आर्यन की कहने को तो बड़ी बहन थी, लेकिन असल में उसके लिए वही उसकी माँ थी।

    एक एक्सीडेंट में उनके पेरेंट्स मारे गए थे। वे भी इसी घर में रहते थे। उनके पास अब प्रॉपर्टी के नाम पर सिर्फ़ यह घर ही था।

    रिद्धिमा अपने भाई की पढ़ाई और घर का खर्चा चलाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ जॉब भी करती थी। इसीलिए अक्सर उसे घर आने में देर हो जाती थी।

    किस्मत ने बेचारी के साथ बड़े जुल्म किए थे। वह बहुत खूबसूरत थी, इसीलिए कभी-कभी तो लगता था कि उसकी खूबसूरती ही उसके लिए श्राप है।

    मोहल्ले का नामी दादा, यानी गुंडा, उस पर लालायित था। लेकिन रिद्धिमा उसकी तरफ़ देखती भी नहीं थी। वह बहुत ही घटिया किस्म का इंसान था।

    रघु... रघु बहुत ही नीच और घटिया था। लड़कियों को छेड़ना, लोगों को मारना-पीटना तो जैसे उसका पेशा था।

    रिद्धिमा उसकी नज़रों में बस चुकी थी। वह बहुत ट्राई करता था, लेकिन रिद्धिमा उसे इग्नोर करके आगे बढ़ जाती थी।

    लेकिन हर बार बेशर्मों की तरह वह चला ही आता। रिद्धिमा और आर्यन उससे बहुत दुखी थे।

    "आपको आने में इतना लेट कैसे हो गया? आपको पता है मुझे आपकी कितनी चिंता हो रही थी..." आर्यन रिद्धिमा से पूछा।

    "वो मुझे आज बॉस ने बहुत सारा काम दे दिया था, तो इसीलिए। सॉरी, मेरी वजह से तुम्हें इतनी टेंशन हुई।" रिद्धिमा उन बदमाश लड़कों वाली बात तो छुपाकर बोली। वह नहीं चाहती थी कि आर्यन को कुछ भी पता चले।

    दोनों अंदर आए और रिद्धिमा कपड़े बदलकर, खाना गर्म करके टेबल पर लगाती है। आर्यन भी अपने हाथ-मुँह धोकर डाइनिंग टेबल के पास आया और चेयर पर बैठ गया।

    रिद्धिमा आर्यन की प्लेट में खाना डाल रही थी, तभी उसकी नज़र रिद्धिमा के एक कान पर पड़ी। वह देखता है कि रिद्धिमा के एक कान में झुमका नहीं है।

    "दीदी, आपके कान का एक झुमका कहाँ गया?" आर्यन ने पूछा।

    आर्यन की बात सुनकर रिद्धिमा ने अपने कान को फटाक से हाथ लगाकर देखा कि उसके एक कान में झुमका नहीं है, जो शायद कहीं गिर गया था।

    "अरे नहीं! ये तो मेरा मनपसंद झुमका था! आखिर कहाँ खो गया..." रिद्धिमा बड़बड़ा रही थी।

    तभी उसे याद आया कि कहीं वह उस लड़के की गाड़ी में तो नहीं छूट गया? राहुल के बारे में सोचते ही रिद्धिमा के गाल शर्म से लाल हो गए।

    राहुल के साथ पूरे सफ़र में रिद्धिमा की धड़कन बहुत तेज़ थी। पता नहीं क्यों, लेकिन रिद्धिमा को बहुत अजीब सा एहसास अपने दिल में हो रहा था।

    वह गाड़ी में नज़रें चुरा-चुरा कर उसे देखती थी। उसने पहली बार कोई ऐसा लड़का देखा था जो उसकी इज़्ज़त बचाने के लिए लड़ा था, वरना तो सब उस बेचारी पर टूट पड़ना चाहते थे। उसे ख्यालों में खोया देख आर्यन ने उसे हिलाया, जिससे वह एकदम होश में आ गई।

    "दीदी... क्या हुआ? क्या सोच रही हो?"

    "नहीं, कुछ नहीं... झुमका शायद कहीं गिर गया होगा। तू खाना खा ले।" यह बोलकर रिद्धिमा उसे अपने हाथों से खिलाने लगी।

    दोनों भाई-बहन एक-दूसरे को खाना खिलाते हैं। फिर बर्तन साफ़ करने के बाद रिद्धिमा आर्यन को बेड पर लिटा देती है और उसे ब्लैंकेट से ढँककर सुला देती है। फिर वह कोने में लैंप की लाइट जलाकर किताब खोलकर बैठ जाती है।

    वह फोकस करने की कोशिश करती है, लेकिन आज उसका ध्यान किताबों में कहीं और ही था। राहुल का हैंडसम चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। थोड़ी देर पढ़ने की नाकाम कोशिश करने के बाद वह आखिरकार किताबों को साइड में रखकर अपने भाई के बगल में जाकर लेट जाती है।

    आर्यन सो चुका था, लेकिन रिद्धिमा की आँखें नींद से बगावत कर रही थीं। उसका दिमाग बार-बार राहुल की तरफ़ जा रहा था। फिर वह अपना वह हाथ देखती है जिससे उसने राहुल के हाथ को छुआ था।

    वह अपना हाथ देखती है और शर्मा जाती है। फिर थोड़ी देर अपने ख्यालों में टहलने के बाद आखिरकार उसे भी नींद आ जाती है।

  • 10. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 10

    Words: 1033

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह, जब रूमी सो रही थी, तभी अचानक किसी ने उसके मुँह पर जग भर पानी मारा। इससे उसकी नींद तुरंत खुल गई। रूमी हाँफते हुए एकदम से उठ बैठी और देखा कि अथर्व, सिर्फ अपनी कमर पर तौलिया लपेटे हुए, उसके सामने खड़ा था। उसकी आँखें बहुत गहरी थीं और चेहरे पर एक शैतानी सी मुस्कान थी।

    "गुड मॉर्निंग... मेरी जान... कैसी नींद आई फिर तुम्हें मेरे बिस्तर पर... ज़्यादा सुकून से तो नहीं सोई ना?"

    रूमी कुछ नहीं बोली, बस सिर झुकाए बैठी रही। बिस्तर और वह पूरी तरह गीले हो चुके थे। रूमी ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। वह ब्लैंकेट से अपने नंगे शरीर को ढँके हुए थी। इसे देखकर अथर्व बेशर्मी से बोला,

    "कल जो भी हुआ, उसके बाद अब भी तुम्हें मुझसे शर्म आ रही है जो तुम अपने बदन को मुझसे छिपा रही हो..."

    रूमी उसकी तरफ देखती है और हैरान होती है कि कोई इंसान इतना भी बेशर्म कैसे हो सकता है। अथर्व उसका ब्लैंकेट पकड़कर खींच लेता है, जिससे रूमी का सुंदर, निर्दोष, नंगा शरीर उसकी नज़र में आ जाता है।

    रूमी अपने हाथों से अपने शरीर को ढकने की कोशिश करती है। उसे इतना ज्यादा हड़बड़ाया हुआ देखकर अथर्व को बहुत मज़ा आता है। कुछ देर तक उसे निहारने के बाद वह उसके करीब आता है और उसके ठुड्डी को उठाता है, और उसकी आँखों में देखकर बहुत ठंडी आवाज़ में बोलता है,

    "तुम अब मेरी हो, तुम्हारी हर चीज़ पर मेरा हक़ है, सिर्फ़ मेरा... और मेरी ही चीज़ को मुझसे छिपाने की ज़रूरत नहीं। आज के बाद तुम कमरे में कपड़े नहीं पहनोगी, कभी नहीं। रात को हमेशा ऐसे ही रहोगी। मेरी इतनी खूबसूरत चीज़ यूँ कपड़ों में ढकी रहे तो मेरी नज़रों को ठंडक कैसे मिलेगी?"

    रूमी उसकी तरफ हैरान होकर देखती है। रूमी का खूबसूरत, भीगा हुआ बदन, उसके ठंड से काँपते हुए होंठों को देखकर,

    अथर्व काबू से बाहर होकर फिर एक बार उस पर चढ़ जाता है। रूमी कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वह फिर से इस शिकारी की गिरफ्त में आ चुकी थी।

    अथर्व एक बार फिर अपनी हैवानियत का सबूत देता है। रात का दर्द अभी तक उसे अपने आगोश में लपेटे हुए था; उससे वह आज़ाद भी नहीं हुई थी कि अथर्व ने उसे और नया दर्द दिया।

    थोड़ी देर बाद, रूमी तैयार होकर नीचे किचन में नाश्ता बनाने लगती है। अथर्व ने उसे आदेश दिया था कि आज के बाद उसका सारा काम वह करेगी और अगर उसने कोई भी गलती की तो उसका अंजाम उसे रात को भुगतना पड़ेगा।

    लेकिन उसकी हैवानियत देखकर लगता नहीं कि उसके लिए दिन और रात में कोई फ़र्क भी है। रूमी की ज़िंदगी बहुत मुश्किल होने वाली है। वह जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाने लगती है क्योंकि इसके बाद उसे अस्पताल भी जाना था, अपने भाई को देखने।

    कल रात के बाद और आज सुबह के सेशन के बाद रूमी चलने की हालत में भी नहीं थी; उसे काफ़ी दर्द हो रहा था।

    वह खाना टेबल पर लगाती है, तभी अथर्व वेल-ड्रेस्ड होकर आता है। ऑफिस में फॉर्मल सूट हो या कैज़ुअल कपड़े, या कुछ भी हो, उसकी खूबसूरती जानलेवा ही है। लड़कियाँ तो जैसे अपने दिल को हाथों में लिए उसके आस-पास भटकती रहती हैं।

    लेकिन अब रूमी के लिए ये सब कोई मायने नहीं रखता। अथर्व डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने लगता है।

    रूमी हिम्मत करके कुछ बोलती है,

    "अ... अथर्व..."

    अथर्व बिना उसकी तरफ देखे बोलता है,

    "हम्म्म्म..."

    "वो... मुझे अस्पताल जाना है, क्या मैं जा सकती हूँ?" रूमी हिम्मत करके बोलती है।

    अथर्व का ध्यान खाने की तरफ़ है। वह खाते-खाते बोलता है,

    "नहीं... तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगी।" उसकी आवाज़ बहुत ठंडी थी, लेकिन उससे भी ठंडा था उसका जवाब। कोई इंसान इतना पत्थरदिल कैसे हो सकता है? रूमी की आँखों में आँसू आ जाते हैं।

    "प्लीज़ अथर्व, मुझे जाने दो... आज उसे होश आने वाला है, वो जागते ही मेरे बारे में पूछेगा, प्लीज़ जाने दो..." उसके गिड़गिड़ाने पर भी अथर्व का जवाब नहीं बदलता।

    "मैंने कहा ना... नहीं, मतलब नहीं।"

    तुम्हारे लिए उसकी शक्ल देखने से ज़्यादा ज़रूरी उसका ठीक होना है ना? तो मेरी बात ना मानने की गलती कभी मत करना।

    रूमी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। उसका दिल इस वक़्त अथर्व को सिर्फ़ और सिर्फ़ गालियाँ ही दे रहा था।

    वह बेचैनी से अपने भाई को देखना चाहती थी, उसे गले से लगाना चाहती थी, लेकिन यह राक्षस...

    अथर्व नाश्ता करके उठ जाता है और ऑफिस के लिए निकलने लगता है। रूमी वहीं खड़ी रहती है। अपने पीछे ना आता देख वह उसकी तरफ़ देखता है और बोलता है,

    "इनविटेशन कार्ड छपवाऊँ... क्या तब आओगी तुम?" वह बहुत गुस्से और चिड़चिड़े स्वर में बोलता है।

    अथर्व की आवाज़ सुनते ही रूमी का ध्यान तुरंत उसकी तरफ़ जाता है और वह भागकर उसके पास खड़ी हो जाती है। फिर दोनों ऑफिस के लिए निकल जाते हैं।

    ऑफिस पहुँचते ही अथर्व गाड़ी से उतरता है और बिल्डिंग में प्रवेश करता है। रूमी उसके पीछे-पीछे चलती है, एक गार्ड की तरह, पर ऑफ़ कोर्स वह गार्ड नहीं थी। भला एक नाज़ुक सी, फूल सी, कोमल लड़की किसी हट्टे-कट्टे, सांड से शरीर वाले इंसान की गार्ड कैसे हो सकती है?

    उनके प्रवेश करते ही बिल्डिंग का माहौल ठंडा पड़ जाता है। अथर्व का आभा ही कुछ ऐसा था। कोई भी उसकी एक गुस्से भरी नज़र से ही अपनी पैंट गीली कर सकता था।

    पूरा स्टाफ़ अपनी कंप्यूटर या फ़ाइलों में घुस जाता है और काम करने लगता है। लड़कियाँ चुपके-चुपके अपने हैंडसम बॉस को ताड़ती रहती थीं।

    उसकी पर्सनालिटी और आभा ने सबके दिल पर छा गया था। वह भले ही खड़ूस था, लेकिन अगर रोज़ उसकी हैंडसम शक्ल एक बार देखने को मिल जाए तो इस नर्क में भी खुशी-खुशी जीने को तैयार थीं सभी लड़कियाँ।

    उनके ऑफिस में आते ही उसका पर्सनल असिस्टेंट आज का शेड्यूल लेकर उसके पास आता है और बताता है कि आज उन्हें कौन-कौन सी मीटिंग्स अटेंड करनी हैं। अथर्व पूरे शेड्यूल को चेक करता है। रूमी वहाँ चुपचाप सोफ़े पर बैठ जाती है।

  • 11. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 11

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    रूमी ने पूरे ऑफिस को ध्यान से देखा। यह वही ऑफिस था जो कभी उसके पापा का हुआ करता था, जहाँ वो और करिश्मा काम करती थीं और यह केबिन उसके पापा का था।

    जहाँ अथर्व एक कर्मचारी बनकर आया था और करिश्मा के अनुरोध पर पापा ने उसे नौकरी दी थी। अथर्व की व्यावसायिक कुशलता देखकर पापा बहुत खुश हुए थे। अथर्व के हुनर की वजह से कंपनी को असीम लाभ हुए, बहुत बड़े-बड़े सौदे, अनुबंध मिले।

    ऐसे ही करते-करते एक दिन अथर्व ने पापा का अच्छा-खासा विश्वास जीत लिया और मेरा दिल भी... अथर्व ने मेरे साथ भी प्यार का नाटक किया और मैं इतनी बेवकूफ थी कि मैंने मान भी लिया। पापा को अथर्व बहुत पसंद था, वे हम दोनों की शादी करना चाहते थे।

    अथर्व को पाकर मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं था, हमारी शादी होने वाली थी। शादी के दिन जब सब कोर्ट में अथर्व का इंतज़ार कर रहे थे, वह आया ही नहीं। मैं कोर्ट में उसका इंतज़ार करती रही दुल्हन के जोड़े में और वह यहाँ करिश्मा के साथ ऐश कर रहा था।

    पूरे दिन इंतज़ार करने के बाद जब पापा कंपनी पहुँचे तो उन्हें पता चला कि पूरी कंपनी अब अथर्व के नाम है। अब सब कुछ अथर्व के नाम पर था, कंपनी के बाहर उसी की नेम प्लेट थी।

    यह देखते ही पापा को बहुत बड़ा सदमा लगा। अथर्व ने पहले पापा का भरोसा और मेरा दिल जीता और फिर दोनों ही तोड़ दिए। पापा के भरोसे का फायदा उठाकर अथर्व ने पूरी संपत्ति धोखे से अपने नाम करवा ली।

    पापा को जब पता चला तो वे गुस्से से आग-बबूला हो गए और उन्होंने अथर्व पर हमला किया, जिससे अथर्व ने उन पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज करवा दिया।

    जिस ऑफिस में वह एक दिन काम मांगने आया था, आज उसी ऑफिस का मालिक बन बैठा है।

    करिश्मा और अथर्व ने मिलकर उसके पापा को बर्बाद किया। बहुत अच्छा विश्वासघात किया उस लड़की ने। जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया; जिसे कभी रूमी ने अपनी बहन माना था, अपनी हर चीज़ पर उसे पूरा हक दिया, कभी किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया।

    कंपनी का मालिक बनते ही अथर्व ने पूरे ऑफिस का लुक और स्टाफ दोनों बदल दिए, जैसे अतीत का नामोनिशान भी नहीं छोड़ा उसने।

    "किसकी इजाजत से बैठी हो तुम? क्या मैंने तुम्हें बैठने को बोला?"

    अथर्व की आवाज़ से रूमी तुरंत अपने ख्यालों से बाहर आ गई। वह अथर्व की तरफ देखती है और हड़बड़ाहट में खड़ी हो जाती है।

    "सॉरी..."

    उसके मुँह से बस इतना ही निकला और वह सर झुकाए खड़ी रह गई।

    अथर्व अपने असिस्टेंट को बाहर जाने का इशारा करता है और असिस्टेंट तुरंत वहाँ से चला जाता है।

    अथर्व अपनी कुर्सी से उठकर रूमी के पास आता है और उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है। रूमी थोड़ी घबरा जाती है और एक कदम पीछे हट जाती है। उसकी घबराहट देखकर अथर्व के होठों पर एक शैतानी मुस्कान आ जाती है।

    अथर्व उसकी कमर पकड़कर उसे अपने करीब खींचता है और रूमी उसके सीने से जा चिपकती है। अथर्व की पकड़ इतनी ज़ोर की होती है कि रूमी को दर्द होने लगता है।

    लेकिन रूमी कुछ नहीं बोलती, चुपचाप सब सह लेती है। वह अब यह जान चुकी है कि वह इस नरक से नहीं बच सकती, उसे अब इसकी आदत डालनी ही पड़ेगी।

    "कैसा लगा ऑफिस, डार्लिंग? मैंने रेनोवेट करवाया है। वो क्या है ना, मुझे मेरे ऑफिस में तुम्हारे बाप का एक नामोनिशान भी नहीं चाहिए था।"

    रूमी चुपचाप खड़ी रहती है और उसकी बातें सुनती है। अथर्व के दिल में उसके पापा के लिए कितनी नफ़रत थी, उसकी आँखों में साफ़ दिखती है।

    रूमी उसकी बाँहों में बेबस खड़ी थी, जैसे एक मासूम हिरनी किसी शेर के चंगुल में फँसी हो, जहाँ वह सिर्फ़ मौत का इंतज़ार ही कर सकती है, बचने की उम्मीद नहीं। रूमी भी इस वक़्त कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी, बहुत बेबस, बहुत लाचार।

    अथर्व उसके होठों की तरफ़ बढ़ता है, वह अचानक अपना चेहरा पीछे कर लेती है, जिसे देख अथर्व की आँखों में गुस्सा उतर आता है।

    अथर्व की आँखों में गुस्सा देख रूमी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुसीबत को आता देख रूमी तुरंत बात को संभालते हुए बोलती है, "अ... अथर्व, ये ऑफिस है, यहाँ कोई आ जाएगा..."

    अथर्व बहुत ही ठंडे स्वर में बोलता है, "बॉस... मुझे बॉस बुलाओ। मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड या पति नहीं हूँ जो मुझे मेरे नाम से बुला रही हो। तुम मेरी गुलाम हो और गुलाम बॉस को नाम से नहीं बुलाते, और यह मेरा ऑफिस है, यहाँ इंसान तो क्या, एक परिंदा भी मेरी मर्ज़ी के बिना पर नहीं मार सकता..."

    इतना बोलकर अथर्व रूमी के होठों पर टूट पड़ता है। किस जेंटल नहीं था, बहुत ज़्यादा कठोर था, बहुत ज़्यादा... पर रूमी सिवाय सहने के और क्या कर सकती थी? अथर्व ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ को बहुत ज़्यादा तेज़ कर लिया और एक मुट्ठी में उसके बालों को भी कस लिया।

    रूमी को दर्द तो हो रहा था, लेकिन वह विरोध नहीं कर सकती थी। यही अब उसकी किस्मत है, उसे इसे झेलना ही होगा, खुद के लिए नहीं सही, अपने छोटे भाई के लिए। रूमी अपनी आँखें कसकर बंद कर लेती है और उसकी तीव्रता को मिलाने की कोशिश करती है।

    अथर्व बहुत रफ़ हो रहा था, रूमी की तो जैसे साँसें ही रुकने लगती हैं। अथर्व जैसे किस नहीं कर रहा था, बल्कि उसे निगल रहा था। रूमी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह वह आज अथर्व से बच जाए।

    तभी अथर्व का फ़ोन बजता है, जिससे उसका ध्यान किस से हटकर फ़ोन की तरफ़ चला जाता है। रूमी शुक्रगुज़ार थी जिसने भी फ़ोन किया उसकी, वह बुरी तरह से हाँफ रही थी, अथर्व ने उसे साँस लेने का भी मौका नहीं दिया था।

    अपने फ़ोन पर इमरजेंसी नंबर देखते ही घबराहट में अथर्व तुरंत फ़ोन उठाता है।

    "व्हाट हैपन्ड... या, आई एम जस्ट कमिंग..."

    इमरजेंसी नंबर को किसी तरह से रूमी भी देख लेती है।

    अथर्व के चेहरे के अचानक बदले भाव देखकर रूमी भी दंग थी...

  • 12. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 12

    Words: 1035

    Estimated Reading Time: 7 min

    अथर्व को इस तरह अचानक परेशान और घबराया हुआ देखकर रूमी कुछ समझ नहीं पा रही थी। आखिर किसका फ़ोन था और वह इतना क्यों परेशान था? उसने आज पहली बार अथर्व के चेहरे पर इतनी घबराहट देखी थी।

    अथर्व ने रूमी को अपनी बाँहों से तुरंत आज़ाद कर दिया और तेज़ी से ऑफिस से, फिर बिल्डिंग से बाहर चला गया। रूमी चौंक गई। फिर उसने उस तरफ देखा जहाँ से अथर्व भागा था। रूमी को हमेशा उसके पीछे चलने का आदेश था, इसलिए वह भी भागकर उसके पीछे जाने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह इतनी तेज़ नहीं भाग पा रही थी। अथर्व बहुत तेज़ी से भागकर बिल्डिंग से निकल गया और गाड़ी में बैठकर चला गया। रूमी भी जितना हो सका उतना तेज़ भागती हुई आई। जैसे ही वह बिल्डिंग से बाहर निकली, उसने देखा कि अथर्व अपनी गाड़ी में बैठकर तेज़ी से वहाँ से निकल गया था।

    वह वहीं खड़ी रह गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अथर्व को अचानक क्या हो गया था। वह हैरानी से सोचने लगी...

    "ये इतनी जल्दी में कहाँ चला गया, और मुझे यहाँ अकेला छोड़ गया.... आखिर बात क्या है.... और ये इतना घबराया हुआ क्यों था?"

    वह सोच ही रही थी कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी उसके सामने आकर रुकी, जिससे राहुल निकला। रूमी ने उसे देखा। वह रूमी को देखकर मुस्कुराया, लेकिन रूमी का चेहरा सीधा ही रहा।

    "रूमी कैसी हो तुम और यहाँ बाहर क्यों खड़ी हो?" राहुल उसके पास आकर पूछा।

    "वो..... बॉस जल्दी में थे तो मुझे यहीं छोड़ गए..." रूमी सीधे चेहरे के साथ जवाब दिया। उसकी आँखों में थोड़ी सी उलझन थी। राहुल थोड़ा कन्फ्यूज हो गया कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अथर्व रूमी को यहाँ अकेला छोड़कर चला गया। कितना भी ज़रूरी काम हो, रूमी को ऐसे तो नहीं छोड़ेगा... उसे साथ ही रखेगा...

    राहुल को भी अब थोड़ी टेंशन हो गई, तो वह रूमी से फिर से पूछा।

    "क्या वो कुछ बताकर नहीं गया? हो सकता है कोई ज़रूरी मीटिंग निकल आई हो..."

    "पता नहीं। अचानक उनके पास एक कॉल आई, जिस पर इमरजेंसी नंबर लिखा हुआ था। बस वो कॉल अटेंड करते ही टेंशन में भाग गए...." रूमी थोड़ी उलझन में जवाब दिया।

    रूमी की बात सुनकर राहुल का मुँह फटा का फटा रह गया। उसकी आँखों में भी एक अजीब सी घबराहट, डर उतर आया।

    "क्या कहा? क्या नंबर था...?"

    "इमरजेंसी नंबर...." रूमी फिर से जवाब दिया। उसने राहुल के भाव भी देखे।

    "ओह शिट..." राहुल तुरंत भागकर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट कर दी। उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे ज़रूर पता है कि अथर्व कहाँ गया है।

    रूमी उसके व्यवहार से हैरान थी। "अब इसे क्या हो गया...." रूमी गाड़ी के पास आकर बोली। "क्या कोई प्रॉब्लम है? क्या मैं भी चलूँ साथ में...?"

    राहुल उसकी तरफ देखकर जवाब दिया। "नहीं तुम नहीं... और प्लीज़ अंदर असिस्टेंट से बोल देना कि आज अथर्व ऑफिस नहीं आएगा... तो सारी मीटिंग्स कैंसिल कर देना..."

    "कैंसिल...??? और मैं क्या करूँ यहाँ...?" रूमी हैरानी से पूछा।

    राहुल ने जवाब दिया, "तुम घर जाओ, अथर्व शाम तक आ जाएगा।"

    यह कहकर राहुल चला गया। रूमी वहाँ अकेली खड़ी होकर सोचने लगी। वह हैरानी से राहुल की जाती हुई गाड़ी को देख रही थी।

    "आखिर ऐसा क्या है उस नंबर में कि दोनों इतने टेंशन में भाग गए... ये आखिर गए कहाँ हैं...

    खैर मुझे क्या... मेरी तो जान छूटी, बॉस शाम को आएंगे, तब तक क्या मैं विजय से मिलने हॉस्पिटल चल जाऊँ? वो मेरा इंतज़ार कर रहा होगा??.. हाँ, ये सही रहेगा.... शाम से पहले मैं घर पहुँच जाऊँगी.... अथर्व को कुछ पता नहीं चलेगा...."

    रूमी असिस्टेंट को सूचित करने के बाद तुरंत हॉस्पिटल के लिए निकल गई। वह हॉस्पिटल पहुँचकर अपने भाई के वार्ड में गई जहाँ एक बूढ़ी औरत उसे सूप पिला रही थी। विजय को होश आ चुका था। रूमी को देखते ही विजय के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई।

    "दीदी..... आप आ गईं! मैं कब से आपका इंतज़ार कर रहा था....." विजय अपनी बाहें फैलाकर उसे गले लगाने के लिए बुलाया।

    अपने भाई को सीने से लगाकर जैसे रूमी का सारा दर्द चला गया। आखिर इससे ज़्यादा उसे चाहिए भी क्या था कि उसका भाई सही सलामत है।

    "आई मिस्ड यू विजय.. आई मिस्ड यू अ लॉट..." रूमी उसे हल्के से गले लगाती है क्योंकि उसकी अभी-अभी सर्जरी हुई है, वह कस नहीं सकती।

    "आई मिस्ड यू टू दीदी..." अपनी दीदी की बाँहों में आकर विजय का चेहरा और दिल खुशी से झूम उठा।

    "ये सुबह से तुम्हारे बारे में पूछ रहा था। जब से इसे होश आया है, बस तुझे मिलने की ज़िद कर रहा था।" पास में बैठी बूढ़ी औरत मुस्कराते हुए बोली।

    "थैंक यू सरोज आंटी! आपका बहुत-बहुत शुक्रिया! आपने मेरी गैरहाज़िरी में मेरे भाई का ख्याल रखा...." रूमी दिल से सरोज आंटी को धन्यवाद दिया।

    "अरे बेटा! विजय बहुत छोटा था, जब तुम्हारी माँ चल बसी। मैंने ही तो तुम दोनों को पाला है, मैं ख्याल नहीं रखूँगी तो और कौन रखेगा..."

    सरोज आंटी विजय और रूमी की नानी थीं। विजय को पैदा करते ही उनकी माँ चल बसी थीं, तो उनके पिता ने नानी को रख लिया था उनका पालन-पोषण करने के लिए।

    उन्होंने दोनों को बिलकुल अपने बच्चों की तरह पाला था। जब दोनों बड़े हो गए थे, तो उनका काम खत्म हो गया था और वे चली गई थीं।

    "आपको कैसे पता चला कि विजय यहाँ है?" रूमी उलझन में पूछती है।

    जिस पर वह जवाब देते हुए कहती है, "अरे बेटा! भला माँ से भी उसके बच्चों की तकलीफ़ छुप सकती है, बस पता चल गया... और जैसे ही पता चला मैं भागी-भागी यहाँ आई हूँ। तुम फ़िक्र मत करना, जब तक विजय यहाँ है मैं उसका पूरा ख्याल रखूंगी।"

    सरोज आंटी की बातों से रूमी से एक बहुत बड़ी टेंशन खत्म हो गई। उसे बहुत फ़िक्र हो रही थी कि अथर्व उसे आने नहीं देगा, तो वह अपने भाई का ख्याल कैसे रखेगी।

    क्रमशः

  • 13. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 13

    Words: 1055

    Estimated Reading Time: 7 min

    सरोज आंटी और विजय के साथ हँसी-मज़ाक करते-करते कब समय बीत गया, रूमी को एहसास ही नहीं हुआ।

    उसका ध्यान घड़ी पर तब गया जब नर्स विजय को शाम की दवाइयाँ खिलाने आई। रूमी फ़टाफ़ट घड़ी में समय चेक करती है।

    उसके पाँवों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई। उसके दिल की धड़कनें बढ़ गईं।

    "हे भगवान्, इतना समय हो गया, मुझे पता ही नहीं चला। अगर मुझसे पहले अथर्व घर पहुँच गया और उसे मैं वहाँ नहीं मिली, तो वो तो मेरी जान ही ले लेगा..." रूमी सोचती है, उसे घबराहट होने लगती है।

    रूमी को इस तरह परेशान देख सरोज आंटी उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछती हैं,

    "बेटा, क्या बात है? परेशान दिख रही हो। सब ठीक तो है ना?" विजय भी रूमी की तरफ देखता है।

    "ज...जी आंटी, मैं ठीक हूँ। अभी मुझे लेट हो रहा है, मैं बाद में आप लोगों से मिलती हूँ, अभी मुझे घर जाना पड़ेगा।"

    रूमी हड़बड़ाहट में बोलती है। उसे देख आंटी मुस्कुराकर बोलती है,

    "ठीक है बेटा, तुम जाओ और विजय की चिंता मत करना, मैं हूँ उसके पास।"

    "थैंक्यू आंटी, आप नहीं होतीं तो पता नहीं मैं क्या करती।"

    रूमी इमोशनल होकर उन्हें हग करती है और विजय को भी हग करके फ़टाफ़ट वहाँ से निकल जाती है।

    रूमी दौड़ती हुई हॉस्पिटल से निकलती है और सड़क पर पहुँचकर टैक्सी रोकने के लिए हाथ बढ़ाती है। उसे बहुत ज्यादा टेंशन हो रही थी। बार-बार अथर्व का गुस्से वाला चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था।

    रूमी को पसीना आने लगता है, वो प्रार्थना करने लगती है,

    "हे भगवान्, मुझ पर रहम करना। मेरी इज़्ज़त को तो तू बचा नहीं पाया, बस जान बचा लेना। किसी भी तरह अथर्व से पहले घर पहुँचा दे।"

    रूमी के लिए एक टैक्सी रुक जाती है। वो फटाफ़ट टैक्सी में बैठकर बंगले के लिए निकल पड़ती है।

    "भैया, प्लीज़ थोड़ा जल्दी करिए।"

    वो बार-बार ड्राइवर से तेज़ चलने के लिए बोलती है। आज पता नहीं क्यों उसे बहुत बुरी फीलिंग आ रही थी, जैसे आज उसकी खैर नहीं है। अगर अथर्व को वो घर पर नहीं मिली, तो भगवान जाने वो क्या करेगा।

    थोड़ी दूर चलने पर वो देखती है कि बहुत बुरा ट्रैफिक हो गया है। सारी गाड़ियाँ रुकी हुई हैं। जिसे देख रूमी का चेहरा उतर जाता है, उसके माथे पर चिंता की लकीरें फैल जाती हैं।

    "हे भगवान्, आखिर क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मेरे सातों जन्मों के पापों की सज़ा इसी जन्म में दोगे क्या?"

    रूमी गाड़ी से उतरकर पैदल चलने का फैसला करती है, क्योंकि ट्रैफिक को देखकर लग नहीं रहा था कि ये एक घंटे से पहले खुल पाएगा।

    वो वहाँ से पैदल ही भागती है। कभी गिरती, कभी संभलती हुई, बस पागलों की तरह भागे ही जा रही थी। आखिरकार आधे घंटे बाद वो बंगले पर पहुँच जाती है।

    वो भागकर अंदर जाती है। उसकी साँसें फूली हुई थीं और दिल की धड़कनें इतनी ज़्यादा तेज़ थीं कि डर लग रहा था कहीं रुक ही न जाएँ।

    दरवाज़े पर पहुँचते ही उसके कदम अचानक रुक जाते हैं। आँखें फट जाती हैं और दिल तो जैसे सीने से बाहर ही निकलकर गिरने वाला था।

    वो देखती है कि उसके सामने सोफ़े पर अथर्व बैठा हुआ था, जो शायद उसी का इंतज़ार कर रहा था।

    उसके चेहरे को देखकर लग रहा था आज तो रूमी पर आसमान गिरने वाला है। उसके चेहरे का गुस्सा देख रूमी को यमराज के दर्शन साफ़-साफ़ हो रहे थे।

    अथर्व के हाथ में शराब का गिलास था, आँखों में गुस्सा और चेहरे पर कोल्डनेस भरी हुई थी। डर के मारे रूमी के माथे पर पसीने की बूँदें छलकने लगती हैं।

    "कहाँ गई थी???" अथर्व उसे घूरते हुए बोलता है। उसकी निगाहें जैसे दरवाज़े की तरफ़ ही टिकी हुई थीं, उसके इंतज़ार में।

    "वो...म...म..." रूमी हकलाने लगती है।

    "मैंने पूछा कहाँ गई थी...बोलो..." अथर्व हाथ में पकड़ा हुआ गिलास फर्श पर फोड़ देता है। जिसे देख रूमी डर से काँपने लगती है।

    अथर्व उसके पास आकर उसके बालों को जोर से पकड़ता है। जिसे रूमी को बहुत दर्द होता है। "मैंने कुछ पूछा है, जवाब दो, कहाँ गई थी?"

    रूमी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। "मैं विजय से मिलने गई थी, आज ही उसे होश आया था। मेरा बहुत मन था उसे देखने का। सॉरी, मुझसे गलती हो गई।" रूमी रोते हुए बोलती है।

    "मैंने मना किया था ना...मेरी बात काटकर तुम उससे मिलने गईं...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...तुम्हें इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी।"

    अथर्व उसे घसीटता हुआ कमरे में ले जाता है और फिर से उसके कपड़े बुरी तरह फाड़ देता है। आज तो ऐसा लग रहा था कि वो सिर्फ़ रूमी से ही नहीं, किसी और बात से भी गुस्सा था और रूमी पर ही अपना सारा गुस्सा और फ्रस्ट्रेशन निकाल रहा था।

    लाचार और बेबस रूमी सिर्फ़ दर्द से तड़प ही रही थी। जब बात अथर्व के गुस्से की हो, तो उसे हैंडल ही नहीं किया जा सकता। वो एक भूखे दरिंदे की तरह टूट पड़ता है उस पर।

    "Atharv please I am sorry..." रूमी अथर्व से बार-बार माफ़ी मांगती है, लेकिन अथर्व पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वो अपनी हैवानियत पर कायम था।

    "तुमने जो किया उसके लिए माफ़ी नहीं, सिर्फ़ सज़ा है। मैं तुम्हारा मालिक हूँ। मेरी बात मानना और मुझे खुश रखना ही तुम्हारा काम है। इसी शर्त पर मैंने तुम्हारे भाई की जान बचाई थी, क्या तुम भूल गई हो?"

    He trusting continuously very harder and harder.... Faster and faster...

    अथर्व के हर एक झटके के साथ रूमी की जान निकल रही थी। बेचारे बिस्तर और रूमी दोनों की हालत ख़राब हो चुकी थी। आज का हाल तो कल से भी बुरा था।

    कई घंटों तक लगातार एक्सरसाइज़ के बाद आखिरकार अथर्व थोड़ा शांत हो जाता है और सो जाता है।

    "क्या हो गया है तुम्हें अथर्व? इतने कैसे बदल गए हो तुम? ऐसे क्यों बन गए हो? ऐसे तो नहीं थे तुम...कितने ज़्यादा अच्छे थे, फिर क्या हो गया है तुम्हें?" रूमी घंटों अपने नग्न शरीर को ब्लैंकेट में लपेटे, आँसू भरी आँखों से, सोते हुए अथर्व को देखती रही।

    ऐसे ही सोचते-सोचते रूमी की भी आँख लग गई और वो भी सो गई।

  • 14. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 14

    Words: 1056

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगले दिन कार्यालय में अथर्व लैपटॉप पर कार्यरत था। रूमी उसी कमरे में सोफ़े पर चुपचाप बैठी थी। तभी सहायक अंदर आया।

    "जी सर, आपने बुलाया..." सहायक हाथ जोड़कर अथर्व के सामने खड़ा हो गया।

    अथर्व लैपटॉप पर ही दृष्टि गड़ाए हुए बोला, "ये खन्ना के साथ मीटिंग फ़िक्स करो। उनके साथ आज मीटिंग करना ज़रूरी है।"

    सहायक थोड़ा हिचकिचाकर बोला, "लेकिन उनके साथ तो अगले हफ़्ते मीटिंग है ना सर, उससे पहले भी हमारी बहुत सारी मीटिंग्स हैं... आई थिंक..."

    "बॉस कौन है यहाँ?" अथर्व ने ठंडे भाव से सहायक की ओर देखते हुए पूछा।

    सहायक अथर्व के क्रोध को पहचान गया। वह अचानक बहुत घबरा गया। उसके माथे पर पसीना आने लगा और वह हकलाती हुई आवाज़ में बोला, "ज... जी... आप सर।"

    "मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम हो। तुमसे कितनी बार कहा है मैंने... जैसा कहा गया है वैसा करो। फ़ालतू अपना दिमाग और ज़बान मत चलाया करो, समझे?"

    रूमी, जो चुपचाप बैठी यह सब देख रही थी, तनावपूर्ण माहौल महसूस कर रही थी। अथर्व सिर्फ़ उसके साथ ही नहीं, यहाँ भी, सबके साथ बहुत कठोर था। अथर्व पहले ऐसा बिलकुल नहीं था। वह बहुत नर्म और जिंदादिल इंसान था। मान ना पड़ेगा क्या, एक्टिंग की उसने अपने असली चेहरे को छुपाने की...

    "सॉरी सर," सहायक घबराहट से बोला।

    "चले जाओ और जैसा मैंने कहा वैसा करो।" अथर्व ने आदेशात्मक लहजे में कहा।

    "जी, अभी कर देता हूँ..." सहायक बाहर भाग गया और बाहर निकलते ही राहत की साँस ली।

    उसके बाहर जाते ही अथर्व की नज़र रूमी पर पड़ी जो उसे ही देख रही थी। उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वह तुरंत अपनी नज़रें नीची कर लेती है।

    अथर्व ने अपनी आँखें सिकोड़कर बहुत ठंडी आवाज़ में कहा, "लगता है तुम कुछ ज़्यादा ही फ़्री हो। चलो, तुम्हें थोड़ा काम दिया जाए..."

    अथर्व ने फ़ाइलों का एक बंडल उसके सामने रखे टेबल पर फेंका। "ये कंप्लीट करो, अच्छे से पढ़कर... और कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

    रूमी ने हाँ में सर हिलाया और एक फ़ाइल उठाई। अथर्व अपनी कुर्सी पर फिर से बैठने के लिए मुड़ा।

    "हुह... तुमसे बुरा तो कोई है भी नहीं इस दुनिया में..." रूमी धीरे से बड़बड़ाई।

    अथर्व ने उसका बड़बड़ाना सुनकर कहा, "कुछ कहा तुमने?"

    "हे भगवान! इसने सुन तो नहीं लिया... ये तो मुझे चबा ही जाएगा... ये मेरे साथ ही क्यों होता है..." रूमी अचानक घबरा गई और हकलाती हुई बोली, "न... न... नहीं तो मैंने तो कुछ नहीं बो... बोला सर।"

    "अच्छा... तो क्या मेरे कान बज रहे हैं, तुम..." अथर्व कुछ बोल पाता इससे पहले ही दरवाज़ा खुला और करिश्मा एक बड़ी सी मुस्कान के साथ अंदर आई।

    "बेबी..." करिश्मा ने बाँहें फैलाकर अथर्व की ओर बढ़ते हुए उसे गले लगाया और गाल पर किस किया। "हाउ आर यू बेबी..."

    अथर्व के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसने न तो उसे गले लगाया और न ही किस किया। वह बस खड़ा रहा और सामान्य रूप से उत्तर दिया, "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" यह कहकर वह अपनी कुर्सी पर बैठ गया और लैपटॉप में काम करने लगा।

    उसके इस तरह के व्यवहार से करिश्मा को अच्छा नहीं लगा। वहीं दूसरी ओर, अथर्व के ऐसे बर्ताव से रूमी भी हैरान थी। बाकी सबके साथ तो ठीक है, लेकिन यह इसके साथ ऐसा क्यों बर्ताव कर रहा है? यह तो इसकी सो कॉल्ड गर्लफ्रेंड है ना...

    तभी करिश्मा मुस्कराते हुए अथर्व के पास आकर सामने वाली टेबल पर बैठ गई। उसने शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी और टेबल पर बैठने से उसकी गोरी-चिट्टी टांगें दिख रही थीं।

    वह जानबूझकर ऐसे बैठी थी ताकि अथर्व उसे नोटिस करे, लेकिन बेचारी की बदकिस्मती! अथर्व जब काम करता है तो वह और कुछ नहीं देखता।

    "अरे रूमी, तुम भी यहाँ हो? उह सॉरी, तुम कोने में थीं ना, इसीलिए मुझे दिखी नहीं... कैसी हो तुम? मेरे बेबी का ख्याल तो अच्छे से रख रही हो ना..." करिश्मा जानबूझकर यह बोलती है, उसे यह याद दिलाने के लिए कि अथर्व की ज़िन्दगी में उसकी क्या औक़ात है।

    करिश्मा की बातों को अनसुना करते हुए रूमी अपनी फ़ाइलों में व्यस्त रही।

    "मैंने पूछा कि तुम यहाँ किस लिए आई हो। तुम जानती हो ना, काम के टाइम मुझे कोई डिस्टर्ब करे, मुझे पसंद नहीं है।" अथर्व ने लैपटॉप में काम करते हुए सामान्य परन्तु भरी हुई आवाज़ में पूछा।

    "बेबी, मैं घर पर बोर हो रही थी, तो सोचा हम शॉपिंग पर चल पड़ते हैं।"

    उसके इतना बोलते ही अथर्व ने अपना कार्ड टेबल पर सरका दिया। "मुझे बहुत काम है, तुम खुद चली जाओ, हम साथ में फिर कभी चलेंगे।"

    "और तुमने वादा किया था कि तुम खुद मेरे लिए रिंग पसंद करके मुझे पहनाओगे।" यह बोलकर करिश्मा बेचारा सा मुँह बना लेती है।

    तभी सहायक अंदर आया। "सर, मीटिंग फ़िक्स हो गई है। आज शाम 5 बजे हेवनली स्टार मॉल में।"

    सहायक की बात सुनकर अथर्व करिश्मा की ओर देखकर बोला, "तुम्हें रिंग चाहिए ना? ठीक है, आज शाम 4 बजे मॉल चलते हैं।"

    यह सुनकर करिश्मा खुशी से उछल पड़ती है और अथर्व को जोर से गले लगा लेती है। अथर्व भी उसे पकड़ लेता है और तिरछी नज़रों से रूमी की ओर देखता है।

    रूमी का ध्यान फ़ाइलों में था। वह ऐसा दिखा रही थी कि उसे उनकी बातें सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि उनकी बातें सुनकर रूमी का दिल चकनाचूर हो गया था।

    रूमी ने भले ही जताया नहीं, लेकिन उसके दिल में दर्द तो हो रहा था... जिस इंसान से उसने इतना ज़्यादा प्यार किया, जिसे अपना सब कुछ माना, आज उस इंसान ने उसे कहीं का भी नहीं छोड़ा...

    और करिश्मा, जिसे उसने अपनी बहनों से भी बढ़कर माना था, उसने भी उसके दिल और विश्वास के हज़ारों टुकड़े कर दिए... करिश्मा और अथर्व धोखे और विश्वासघात का दूसरा नाम हैं।

    रूमी अपने आँसुओं को किसी तरह रोक लेती है, क्योंकि वह उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं होने देना चाहती कि उसे इन सब से फर्क पड़ता है।

  • 15. Tu ishq ❤️‍🔥 - Chapter 15

    Words: 1253

    Estimated Reading Time: 8 min

    अथर्व और करिश्मा शाम चार बजे हेवन्ली स्टार मॉल पहुँचे। करिश्मा ने नीले रंग की छोटी स्कर्ट पहन रखी थी और अथर्व ने ग्रे रंग का फॉर्मल सूट। रूमी उनसे थोड़ी पीछे आ रही थी; आखिरकार, उसके बॉस का आदेश था, हर वक्त उसकी आँखों के सामने रहने का।

    रूमी ने साधारण जीन्स और टॉप पहना था, हल्का सा मेकअप चेहरे पर। करिश्मा के विपरीत, जिसे देखकर लगता था जैसे उसने दस-दस परतें मेकअप पोती हों। रूमी हमेशा साधारण रहना पसंद करती थी; उसकी सादगी में ही उसकी खूबसूरती निखर कर आती थी।

    एंट्री गेट पर जाँच के बाद दोनों मॉल में दाखिल हुए। करिश्मा अथर्व के हाथों में हाथ डालकर चल रही थी, जबकि अथर्व एक हाथ में फ़ोन देखते हुए आगे बढ़ रहा था। अथर्व अपने काम में अक्सर बहुत व्यस्त रहता था; इसीलिए जब भी उन्हें साथ बाहर जाने का मौका मिलता, करिश्मा उससे चिपके रहने की कोशिश करती।

    जब भी करिश्मा उसे बाहर जाने, घूमने-फिरने, मूवी देखने या शॉपिंग करने के लिए कहती, अथर्व बस अपना क्रेडिट कार्ड उसके हाथ में थमा देता और काम में व्यस्त होने का बहाना बनाकर साथ चलने से मना कर देता।

    कई बार तो वह करिश्मा के फ़ोन कॉल और मैसेज भी अवॉयड कर देता। करिश्मा को बहुत गुस्सा आता, लेकिन चुप रहने के अलावा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी।

    आखिर कौन नहीं जानता था उसके गुस्से को? गुस्से में बोलते समय वह आग उगलता हुआ प्रतीत होता था। बदले की अपनी यात्रा के दौरान करिश्मा ने उसकी काफी मदद की थी; शायद यही कारण था कि अथर्व का गुस्सा उस पर कभी नहीं उतरा।

    वह करिश्मा के साथ बहुत तमीज से पेश आता था। आखिर वह उसका एहसानमंद था। उसने करिश्मा के हर ख्वाब को पूरा करने का वादा किया था। चाहे कुछ भी हो, अथर्व की खासियत थी कि जो कुछ उसे मिलता, वह उसे सूत समेत लौटा देता।

    इसलिए अथर्व ने करिश्मा को वह सब कुछ प्रदान किया जो उसने माँगा था: घर, पैसा, प्रॉपर्टी, गाड़ी, सब कुछ। लेकिन करिश्मा का इरादा कुछ और ही था। उसने अथर्व का साथ दिया क्योंकि वह रूमी और उसके पिता को बर्बाद करके पूरी प्रॉपर्टी की मालकिन खुद बनना चाहती थी।

    बचपन से ही रूमी हर चीज़ में करिश्मा को अपने साथ रखती थी। दोनों लगभग एक ही उम्र की थीं। रूमी का दिल और उसका कमरा करिश्मा के लिए हमेशा खुला रहता था। उसे हमेशा से एक बहन चाहिए थी; करिश्मा में उसे अपनी बहन दिखती थी।

    कपड़े, खिलौने, खाना, कमरा, यहाँ तक कि स्कूल और कॉलेज, जो कुछ भी रूमी को उसके पिता ने दिया, वह सब वह करिश्मा के साथ बाँटती थी।

    रूमी ने जिद करके करिश्मा का उसी स्कूल और उसी कॉलेज में एडमिशन करवाया। पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों उसके पिता की कंपनी में काम करने लगीं।

    रूमी ने जो कुछ भी करिश्मा के लिए किया, वह शायद कोई सगी बहन भी न करती। रूमी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि कब करिश्मा के दिल में उसके लिए इतनी नफरत घर कर गई। रूमी ने उस पर आँख बंद करके भरोसा किया, और करिश्मा ने उसके भरोसे की नींव को ही हिला दिया।

    थोड़ी देर घूमने के बाद अथर्व को एक कॉल आया; उसकी मीटिंग का समय हो गया था।

    "मैं जाता हूँ, मेरी मीटिंग का समय हो गया है। तुम शॉपिंग करो तब तक।"

    करिश्मा मुस्कुराकर हाँ में सिर हिलाई। जैसे ही वह जाने लगा, रूमी भी उसे फॉलो करने लगी। तभी वह पलटकर रूमी से बोला:

    "तुम यहीं रुक; करिश्मा के बैग उठाने में उसकी मदद करो। वहाँ तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है।"

    ये कहकर अथर्व वहाँ से चला गया।

    "व्हाट द हेल! मैं उसकी गुलाम हूँ क्या, इस एहसान फरामोश की नहीं! मुझे क्यों छोड़कर गया उसकी मदद के लिए?"

    रूमी को देखकर करिश्मा के चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान आ गई। आखिर अपनी प्यारी सी दोस्त को नीचा दिखाने का मौका वह कैसे छोड़ सकती थी? करिश्मा ने चुटकी बजाई और अपनी उंगली रूमी की ओर करके बोली:

    "हे यू स्लेव, फॉलो मी!"

    यह कहकर करिश्मा दुकान में चली गई। कोई और रास्ता न पाकर रूमी भी उसके पीछे अंदर चली गई।

    करिश्मा ने अथर्व के क्रेडिट कार्ड का जमकर मज़ा लिया। उसने खूब शॉपिंग की और अपने शॉपिंग के सारे बैग रूमी को पकड़ा दिए। रूमी के दोनों हाथों के लिए बैग बहुत ज़्यादा थे; वह मुश्किल से उन्हें संभाल पा रही थी।

    करिश्मा की तो जैसे भूख ही नहीं मिट रही थी; वह धड़ाधड़ शॉपिंग पर पैसा पानी की तरह बहा रही थी।

    अथर्व मीटिंग खत्म करके वापस आया और रूमी को बैग्स के साथ संघर्ष करते हुए देखा। वह एक बैग पकड़ती तो दूसरा छूट जाता, दूसरा पकड़ती तो तीसरा।

    तभी, चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए करिश्मा बोली:

    "बेबी, कैसी रही तुम्हारी मीटिंग?"

    "मीटिंग अच्छी थी। तुम्हारा अगर कुछ और लेना रह गया हो तो जल्दी ले लो, फिर मुझे निकलना है।" अथर्व बोला; उसकी आँखें अभी भी रूमी पर ही टिकी हुई थीं।

    "क्या बकवास है! अब इसे पूरा मॉल खरीदना है क्या? यहाँ मेरे लिए इतने बैग संभालना मुश्किल हो रहा है, और कैसे संभालूँगी?" रूमी उन्हें घूरते हुए चिड़चिड़े स्वर में अपने मन ही मन बड़बड़ा रही थी।

    अथर्व ने उसके चिड़चिड़े भाव को नोटिस कर लिया। उसने करिश्मा की कमर पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया और बोला:

    "ओह बेबी, इतने में क्या होगा? अभी तुमने लिया ही क्या है? ये पूरा मॉल अपना ही समझो, जो मन करे उठा लो। It's all yours... तुम्हारे बॉयफ्रेंड के पास पैसों की कोई कमी नहीं है।" अथर्व चुपके से रूमी की तरफ देख रहा था, जैसे वह उसके भावों को नोट कर रहा हो।

    अथर्व के इस व्यवहार से दोनों दंग थीं। करिश्मा दंग थी क्योंकि अथर्व ने आज पहली बार ऐसा कुछ किया था। आज से पहले सिर्फ़ वही थी जो उसके करीब जाने या उसे किस करने की पहल करती थी, और अथर्व का बहुत ही रूखा-सूखा रिस्पांस होता था, जैसे उसे कोई दिलचस्पी ही नहीं है और वह सिर्फ खुद को मजबूर कर रहा है।

    लेकिन आज पहली बार अथर्व ने उसे कमर से पकड़कर अपने इतना करीब खींचा था। करिश्मा का दिल खुशी से नाचने लगा।

    वहीं दूसरी तरफ, रूमी हैरान थी क्योंकि अब उसके पास इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह और भी बैग उठा सके। वह और भी ज़्यादा चिड़चिड़ी हो गई और सोचने लगी:

    "हँ... बड़ा आया पैसों का रौब दिखाने वाला! दूसरों के पैसों पर ऐयाशी करना तो कोई इन दोनों से सीखे! बेशर्म, बेहूदा, निर्लज्ज, दुराचारी, दुष्ट... आआअह्ह्ह! मन तो कर रहा है अभी के अभी मॉल से, इस बिल्डिंग से नीचे फेंक दूँ दोनों को..."

    रूमी को उन्हें ऐसे देखकर बहुत चिड़चिड़ाहट हो रही थी। लेकिन कुछ और भी था जो उसे महसूस हो रहा था, शायद जलन या कुछ और, मालूम नहीं। लेकिन दोनों को इतना करीब देखकर जैसे रूमी का सीना भारी हो रहा था, जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर रख दिया हो। उसे अपने सीने में दर्द महसूस हुआ।

    आखिर एक वक्त था जब यह इंसान उसके लिए बेइंतिहा मायने रखता था। आज देखो वक्त ने कैसी करवट ली है, सब कुछ पलटकर रख दिया।
    (क्रमशः)