Novel Cover Image

My owner

User Avatar

Dilan H

Comments

58

Views

3542

Ratings

350

Read Now

Description

एक बेहद खूबसूरत और मासूम लड़की। जिसकी मासूमियत ही है उसकी सबसे बड़ी दुश्मन। और बन गई विराग शेखावत दुनिया का हार्ट लेस इंसान की गुलाम। जिसने उसे खरीदा और हर रात उसे दर्द देता रहा बिना ये सोचे समझे की उस मासूम का क्या हाल होगा। तो जानना ये है क्यू किया...

Characters

Character Image

चार्वी।

Healer

Character Image

विराग शेखावत।

Warrior

Total Chapters (40)

Page 1 of 2

  • 1. My owner - Chapter 1

    Words: 546

    Estimated Reading Time: 4 min

    एक बड़े से कॉटेज में पूरी तरह अंधेरा छाया हुआ था। कुछ भी देख पाना नामुमकिन था।

    उसी अंधेरे में से एक रौबदार आवाज़ आई।

    "ब्लैक मास्टर, हमें उनका तो पता नहीं चला, पर एक कड़ी है, जिसके बारे में पता लगाया है।" ठीक उसी अंधेरे में गुम एक आदमी ने जवाब दिया।

    उस शख्स के कहने पर, वह व्यक्ति जो अंधेरे में किसी राजा की तरह बैठा हुआ था, तनकर खड़ा हुआ। "तो क्यों न इसी कड़ी को तोड़ा जाए?" इतना कहकर वह शख्स तिरछा मुस्कुराया और लंबे कदमों के साथ कॉटेज से बाहर निकल गया।

    उसके जाते ही, वह दूसरा शख्स, जो अभी अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था, गहरी साँस लेकर छोड़ी और बाहर की तरफ देखा, जहाँ से वह व्यक्ति गया था।

    अगले दिन:

    "तुम्हें जो समझाया, याद है न?" एक आदमी अपने सामने खड़ी लड़की से कहा।

    वह लड़की, जो देखने में छोटी लग रही थी, उसके घने, लंबे, हल्के-हल्के कर्ली बाल सिर्फ़ नीचे के बालों में थे। दूध जैसी सफ़ेद त्वचा, बड़ी-बड़ी आँखें, घनी पलकें और छोटे से होंठ उसके chubby face के साथ पाउट कर रहे थे।

    वह डरी-सहमी हुई, सिर झुकाकर खड़ी थी। उसका पूरा शरीर काँप रहा था। उसके खुले बाल उसकी आधी बॉडी को ढँके हुए थे।

    "तुम अभी तक इस मनहूस को समझा ही रहे हो?" पीछे से एक औरत आई, जिसकी उम्र 50 साल के आस-पास थी। वह बड़े ही घमंड के साथ वहाँ आई।

    उसकी आवाज़ सुनकर वह लड़का पलटा और उस औरत को देखते हुए कहा, "आपको पता है न, Mom, इस मामले में कोई रिस्क नहीं ले सकता। एक काम इससे अच्छे से नहीं होता, पता नहीं कहीं ये हमारा सारा प्लान न फ्लॉप कर दे।" वह लड़का उस औरत से अपने सामने खड़ी लड़की की शिकायत करते हुए कहा।

    "तुम शांत हो शान, मैं इस मनहूस को समझाती हूँ।" वह औरत उस लड़के, जिसका नाम शान था, से कहती है और उस लड़की के सामने आकर खड़ी हो गई। और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगी।

    वह लड़की इस समय ब्लैक कलर की नी-लेंथ ड्रेस पहने हुए थी, जो ऑफ-शोल्डर थी।

    "कान खोलकर सुन ले चार्वी, अगर तूने कुछ गड़बड़ की, तो पता है न मैं क्या करूँगी?"

    उस औरत की धमकी सुनकर चार्वी काँप गई। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और वह डरते हुए 'हाँ' में सिर हिलाई।

    वह औरत चार्वी को देखती है, फिर आगे कहती है, "जो सिखाया है, वही करना है और अपने मुँह से एक शब्द नहीं निकालना, समझी?"

    उसकी बात पर चार्वी 'हाँ' में सिर हिलाई।

    और अपनी बहुत ही धीमी, बारीक आवाज़ में कहती है, "व-वो मुझ-मुझे मारेंगे... आ-अगर मुझ-मुझे दर्द हुआ तो?" चार्वी की नज़रें अभी भी झुकी हुई थीं।

    "दर्द हुआ तो दर्द बर्दाश्त करना। अगर तूने कुछ भी गड़बड़ की, तो मैं तुझे मारूँगा! फिर पता है न, कितना दर्द होगा?" शान नफ़रत के साथ चार्वी से गुस्से में कहा।

    जिससे चार्वी सहम गई और बिना पल गँवाए सिर हिलाते हुए कहती है, "न-नहीं, नहीं! मुझ-मुझे मत मारना... आप जो कहोगे, मैं वै-वैसा ही करूँगी।" चार्वी डरते हुए कहती है।

    उसकी बात सुनकर वह औरत और शान एक-दूसरे को शैतानी मुस्कराहट के साथ देखते हैं और फिर वह औरत चार्वी का हाथ कसकर पकड़ती है और उसे खींचते हुए अपने साथ बाहर की तरफ ले जाने लगी।

  • 2. इंटिमेट। - Chapter 2

    Words: 881

    Estimated Reading Time: 6 min

    आगे।

    रात का समय एक बड़े से कमरा जो पुरी तरह ब्लैक कॉलर का था उसकी हर एक चीज़ ब्लैक थी। और ऊपर से वो पुरा कमर अंधेरे से भरा हुआ था जिसमे किसी को भी देख पाना बेहद मुश्किल था।

    पर उस कमरे में एक हलकी सी रेड लाइट जल रही थी जिससे बहुत ही कम उजाला था। वाही उस बेड के बीचो बिच चार्वी  पुरी तरह ने_क्ड लेटी हुई थी। उसके दोनो हाथ बेड के हेड से handcuffs से बंधे हुए थे।

    और दोनो पेर जो एक दूसरे से जुदा एक एक कोने मे " handcuffs से बंधे हुए थे। चार्वी की आँखों मे आंसु थे जाहिर सी बात थी उसके हाथ और पेर बंधे होने की वजह से दर्द कर रहे थे ऊपर से उसकी उम्र के साथ साथ हाईट में छोटी थी।

    कुछ देर बाद वाशरूम का डोर खुलता है और उसमे से एक काली परछाई कमरे में आती है जिसे देख चार्व की आँखों के सामने कुछ देर पहले वाला मंजर घूमने लगता है।

    कैसे उस शख्स ने उसके कपड़े बेरहमी से फाड़ दिये थे और उसे मारा भी था जिसे याद कर चार्वी की रूह अंदर तक कांप उठती है। और जिस वजह से ना चाहते हुए भी वो सुबकने लगती है।

    जिसकी आवाज़ उस शख्स के कानो मे अच्छे से पहुंच रही थी। जिसे सुन वो शख्स के चेहरे पर सैतानी स्माइल आ जाती है।

    "अभी तो मैने कुछ किया ही नहीं और तुम पहले ही रोना शुरु कर दी this is not fare. "

    और फिर चार्वी की तरफ कदम बढ़ा बेड के पास आकर अपनी कमर मे लिपटा ब्लैक टॉवल को वो निकाल कर फर्श पर फेंकता है और चार्वी के ऊपर आकर उसके चेहरे की तरफ झुकता है।

    उसकी गर्म नशीली साँसे जब चार्वी को अपने चेहरे पर महसूस होती है वो घबराते हुए अपनी आँखे मिंच लेती है।

    " क्या हुआ तुम तो छोटी ड्रेस पहन कर मुझे सेडयूज करने आई थी ना देखो मै हो गया।" वो अपनी गर्म साँसे चार्वी के चेहरे पर छोड़ते हुए कहता है।

    और उसकी गर्दन की तरफ झुक अपने होंठ चलाने लगता है। वाही चार्वी उस शख्स के टच से सहमी हुई थी जैसे जैसे उस शख्स के होंठ चार्वी के नेक पर चल रहे थे चार्वी का शरीर पर पसीने उतने ही तेजी से बढ़ रहे थे।

    "ahahah! " वो शख्स उसकी नैक पर अपने दाँत गड़ा देता है।

    और ऐसे ही अब उस शख्स के होंठ चार्वी के पूरे शरीर पर चलने लगते है और इसी के साथ साथ वो शख्स चार्वी को काट भी रहा था जिससे चार्वी दर्द से चिल्ला रही थी।

    वो चाह कर भी अपनी आवाज़ रोक नहीं पा रही थी उसके कानो मे उस औरत और शान की धमकी गुंज रही थी पर उससे दर्द बरदस्त नहीं हो रहा था। जिस वजह से ना चाहते हुए भी वो दर्द से रोने लगती है।

    "ahh ahh ahh न_ना_नहीं!" चार्वी के होंट पुरी तरह कांप रहे थे उसका पुरा चेहरा रोने से लाल हो गया था।

    पर कमरे मे अंधेरा होने की वजह से ना चार्वी उस शख्स को देख पा रही थी और ना ही उस शख्स ने अब तक चार्वी को देखा था। बस दोनो एक दूसरे के टच को फीक कर सकते थे।

    वक़्त के साथ साथ वो शख्स अब चार्वी के बॉडी का एक भी ऐसा हिस्सा नहीं छोड़ता है जहाँ उसने अपने दांतो से जख्म ना दिये हो।

    वाही चार्वी जिसे हद से ज्यादा दर्द हो रहा था वो रो रो कर उस शख्स को रोकने की कोशिश कर रही थी पर वो शख्स और भी ज्यादा उसे दर्द दे रहा था। ऊपर से चार्वी के हाथ पेर बंधे होने की वजह से वो मजबूर थी।

    "ah ahh ahh द_दर्द हो रहा है।" चार्वी रोते हुए कहती है।

    उसकी बात सुन वो शख्स चरवी के उभरे हुए पर काटता है।

    "अह्ह्ह मम्मा!"

    "क्या कहा दर्द हो रहा है? अभी तो वो दर्द ही नहीं दिया तुम्हे जिससे तुम मेरे निचे मोन करोगी।" 

    "अभी तो तुझे और तुझसे जुड़े लोगो को तो और दर्द सहना पड़ेगा। तुम लोगो को क्या लगा मुझसे छुप जाओगे और मै ढूंढ नहीं पाऊंगा? विराग शेखवात नाम है मेरे केहर से बच पाना नामुमकिन है।" 

    उसकी आवाज़ में इतनी क्रूल्टी थी जिसे सुन चार्वी का दिमाग कुछ पल के लिए ब्लेंक ही हो जाता है। उसकी धमकी सुन जैसे चार्वी के शरीर से प्राण ही छुट जाते है।

    "अह्ह्ह्ह!"

    चार्वी अभी ब्लैक थी की अचानक उसकी तेज चीख पूरे कमरे में गुंज उठती है। वाही विराग चार्वी मे समा चुका था और काफी रुडली होकर चार्वी को तकलीफ दे रहा था।

    वाही चार्वी जिसके हाथ पर बंधे हुए थे वो वैसे ही विराग के निचे दबी तड़प रही थी। पर उससे विराग को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो अब अपने स्पीड तेज कर देता है।

    "अह्ह्ह्ह म_मुम_मम्मा अह्ह्ह!" चार्वी सुबकते हुए रोने लगती है। 

    और देखते ही देखते विराग के साँसों की आवाज़ और चरवी के रोने की आवाज़ पूरे कमरे में वक़्त के साथ साथ तेज होने लगती है।

    विराग इतना रुड होता जा रहा था जिससे चार्वी अब बेहोशी की हालत मे पहुंच चुकी थी और देखते ही देखते वो बेहोश हो जाती है पर विराग नहीं रुकता और वो पुरी रात चार्वी के बेहोशी की हालत मे ही उसके साथ in_timate होने लगता है।

  • 3. दर्द। - Chapter 3

    Words: 528

    Estimated Reading Time: 4 min

    अगली सुबह, जब सूरज की किरणें चार्वी के चेहरे पर पड़ीं, उसने धीरे-धीरे अपनी फड़फड़ाती आँखें खोलीं। उसके सिर में बेहद तेज दर्द हो रहा था, जिससे उसकी आँखें बहुत मुश्किल से खुल पा रही थीं।

    उसकी बॉडी में भी असहनीय दर्द था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर की सारी हड्डियाँ बेरहमी से टूट चुकी हों।

    चार्वी को कल रात का सारा मंजर याद आया। याद करते ही उसके चेहरे पर डर नज़र आने लगा और वह जल्दी से बेड पर उठकर बैठ गई।

    "अह्ह्ह्ह!"

    बेड पर बैठते ही चार्वी को अपने निचले भाग में असहनीय दर्द हुआ। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और वह अपना हाथ अपने पेट पर रखकर रोने लगी।

    "Mam!"

    चार्वी रो ही रही थी कि उसके कानों में एक आवाज़ आई। वह एक पल के लिए घबरा गई और डरते हुए अपनी नज़रें दरवाज़े की तरफ उठाईं जहाँ एक सर्वेंट खड़ी थी।

    चार्वी उसे देखती रही, पर कुछ नहीं बोली। उसका पूरा चेहरा लाल हो चुका था, बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह। उसकी hazel eyes आँसुओं से डूब चुकी थीं।

    "मास्टर का ऑर्डर है, उनके आने से पहले आप पैलेस से चली जायें। बाहर गाड़ी खड़ी है, वो आपको आपके घर छोड़ देगी।" सर्वेंट की नज़रें झुकी हुई थीं। उसने बिल्कुल भी कोशिश नहीं की थी चार्वी को देखने की।

    इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई। चार्वी खामोशी से उसे जाते हुए देखती रही। फिर पूरे कमरे को और फिर खुद को देखा; उसके शरीर पर सिर्फ़ एक काला ब्लैंकेट था, एक भी कपड़ा नहीं।

    कुछ देर बाद, जैसे ही चार्वी बेड से उठने के लिए फर्श पर कदम रखा, उसका पूरा शरीर काँपने लगा। उसके पैर पूरी तरह सुन्न हो चुके थे; वह उन्हें महसूस ही नहीं कर पा रही थी।

    उसे अब अपनी हालत पर रोना आ गया। उसका पूरा शरीर टूट चुका था। हिम्मत करके, वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ाती हुई फर्श पर पड़े अपने कपड़े उठाकर देखती है, जो फट चुके थे।

    "ये तो फट गया? अब वो बुरी आंटी मुझे फिर मारेगी।" कहते हुए चार्वी रोने लगी।

    इतने में उसकी नज़र सामने मिरर पर गई। चार्वी ने खुद को देखा तो उसकी रूह काँप उठी। उसका पूरा शरीर दांतों के निशान से भर गया था और पूरी तरह लाल हो गया था।

    चार्वी की आँखों से और आँसू निकलने लगे, पर फिर उसने अपने आँसू पोछ लिए और फिर वही फटे हुए कपड़े पहन लिए क्योंकि उसके पास कोई और ऑप्शन नहीं था।

    चार्वी ने कपड़े पहनकर बेड की तरफ मुड़कर देखा। उसकी नज़र बेड पर रखे नोटों की गड्डियों पर पड़ी। इसे देखकर चार्वी के कानों में शान की आवाज़ गुंजने लगी।

    "तु वहाँ जायेगी और वो तेरे साथ जो करेगा, करने देना। रात को उसे तू अच्छे से खुश करना, तभी वो तुझे बहुत पैसे देगा। और याद रहे, अगर तुझे पैसा नहीं मिला तो तुझे घर आने की ज़रूरत नहीं।" शान की बातें याद करके चार्वी कुछ देर वहीं खड़ी रही।

    "क्या ये पैसे वही हैं जिसके बारे में शान जी ने कहा था?" चार्वी खुद से ही सवाल करती है। फिर कुछ पल खड़ी रहने के बाद, वह पैसे उठाकर कमरे से बाहर लड़खड़ाती हुई निकल गई।

  • 4. virgin - Chapter 4

    Words: 929

    Estimated Reading Time: 6 min

    कुछ देर बाद विराग उसी कमरे में वापस आया जहाँ कुछ देर पहले चार्वी थी। या यूँ कहें कि वह यह चेक करने आया था कि चार्वी गई या नहीं। कमरे में आकर उसे कमरा खाली दिखाई दिया। जिसे देखकर वह समझ गया कि चार्वी जा चुकी है।

    इस समय विराग के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह डार्क फेस के साथ पूरे कमरे को देखते हुए अपने कदम कमरे में बढ़ाया। अंदर आते ही अचानक उसकी नज़र बेड पर गई। जिसे देखकर उसके भाव बिगड़ गए।

    "Not bad, इसका मतलब तुम virgin थीं। अब तो और मज़ा आएगा।"

    विराग ने बेड पर वाइट चादर पर पड़े ब्लड स्टेन को देखकर कहा। इस समय उसके चेहरे पर डेविल स्माइल थी। बेड पर खून को देखते हुए उसे कल रात चार्वी के रोने और आह्ह्ह की आवाज़ें गुंजने लगीं।

    "अभी तो दर्द की शुरुआत हुई है। अभी तो ऐसी कई रातें मेरे साथ बितानी हैं और ऐसे ही रोना है।" इतना बोलकर वह जोर-जोर से हँसने लगा।

    उसकी आवाज़ पूरे कमरे में गुंज रही थी जिससे वहाँ का माहौल और भी खतरनाक हो गया।

    "अब तो सामने आना पड़ेगा। मैं भी देखता हूँ और कितने दिन छुप सकती हो।"

    बोलते हुए विराग के चेहरे पर डार्क एक्सप्रेशन आ गए। देखते ही देखते उसकी आँखों में खून उतर आया और उसके हाथ और गले में नसें तन गईं।

    "Game start now, अब खेल में मज़ा आएगा।"

    वहीं दूसरी तरफ,

    "पता नहीं कहाँ रह गई ये लड़की। अपना काम किया भी या नहीं अच्छे से, पता नहीं?" वह औरत, जो शान की माँ थी, हॉल में इधर-उधर चक्कर काटते हुए गुस्से में तमतमा रही थी।

    "Don't worry, Mom मुझे लगता है उसने अपना काम काफी अच्छे से किया होगा।" शान सोफे पर बैठकर फोन यूज़ कर रहा था। उसने कहा।

    शान की बात सुनकर वह औरत शान की तरफ पलटी। "अच्छा, तुम्हें कैसे पता? आज तक तुम्हें तो खुश नहीं कर पाई, पता नहीं उस शख्स को कैसे करेगी।"

    उस औरत के चेहरे पर चिढ़ साफ देखी जा सकती थी। उसकी बात सुनकर शान अपनी जगह से खड़ा हुआ और फोन को पॉकेट में रखते हुए कहा,

    "Come on, Mom आपको भी पता है। मुझे उसमें कोई इंटरेस्ट नहीं है। और भूलिए मत, आपने मेरी शादी उससे इसलिए करवाई थी ताकि ये सारी प्रॉपर्टी हम अपने नाम करवा लें, उसके 18 साल के होते ही। और हमने बिल्कुल ऐसा ही किया, तभी तो देखो इस घर की मालकिन होते हुए भी नौकरों की तरह जीती है और हम उसकी प्रॉपर्टी पर ऐश करते हैं।" कहते हुए शान के चेहरे पर जीतने वाली स्माइल थी।

    शान की बात सुनकर वह औरत अपनी नज़रें शान की तरफ करी जो उसे देखकर स्माइल कर रहा था। जिसे देखकर वह औरत भी मुस्कुरा दी।

    "हम्म, बात तो सही है। तभी तो इतने साल उसको अपने साथ रखना पड़ा। पर अब सोचती हूँ, चलो कुछ तो फायदा हुआ। एक तो उसकी प्रॉपर्टी तेरे नाम हो गई और दूसरा अब इससे हम मर्दों की रातें रंगीन करके पैसा कमा सकते हैं।" कहते हुए वह औरत शान को देखती है, फिर दोनों ताली मारकर हँसने लगते हैं।

    "पर मुझे ये समझ नहीं आ रहा? इसे तो हमने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखने दिया, तो उस शख्स को कैसे पता ये लड़की हमारे साथ रहती है? कौन है वो?" वह औरत शान को देखते हुए पूछती है।

    "पता नहीं, Mom मुझे तो एक कॉल आया था और कहा गया था अगर मैं चार्वी को उनके बताए गए एड्रेस पर भेज देता हूँ तो वो हमें इतना पैसा देंगे कि हमें मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। और हमें तो पैसों से मतलब है, इसलिए मैंने भी हाँ कर दी।" शान बड़े ही घमंड के साथ अपने बालों में हाथ फेरते हुए इस तरह कहता है जैसे उसने बहुत बड़ा काम किया हो।

    और फिर अपनी माँ को देखता है जो बड़े ही ध्यान से उसे देख रही थी।

    "क्या हुआ, Mom? ऐसे क्या देख रही हो?" शान अपनी आँखें छोटी करके पूछता है।

    "देख रही हूँ कि मैंने कितना कमीना बेटा पैदा किया है।"

    "आप पर ही गया हूँ, Mom आप भी कुछ कम नहीं हो। अरे भाई, आखिर मैं सीमा कपूर का बेटा हूँ, थोड़ा बहुत तो मुझमें भी असर आएगा।" शान अपनी Mom को देखते हुए तिरछी स्माइल करते हुए कहता है।

    उसकी बात पर सीमा कपूर भी उसका साथ देकर हँसने लगती है।

    कुछ देर दोनों ऐसे ही हँसते हैं और चार्वी का मज़ाक बनाते हुए उनके चेहरे पर अजीब सी स्माइल थी।

    "वैसे Mom मैं सोच रहा हूँ उसे डाइवोर्स दे दूँ?" कुछ देर सोचने के बाद शान कहता है।

    सीमा शान को देखती है।

    "वैसे भी हम उसकी ये प्रॉपर्टी लेना चाहते थे क्योंकि उसके सो-कॉल्ड माँ ने अपनी सारी प्रॉपर्टी इसे और इसके पति को बनाया था। इसलिए तो मैंने शादी की थी, पर अब मेरा इससे क्या फायदा? किसी काम की नहीं है ये मेरी। मेरी ज़रूरतें तो मेरी गर्लफ्रेंड्स पूरा कर देती हैं।"

    शान की बात सुन सीमा कुछ सोचकर कहती है,

    "वैसे बात तो तुम सही कर रहे हो। वैसे भी इससे हमारा काम तो निकल चुका है, अब ना ये हमारे काम की है। और आज तो वो पैसे भी लेकर आ रही है, उसके बाद उसे घर से निकाल देंगे।"

    सीमा और शान अपनी ही बातों पर खुश हो रहे थे और चार्वी के पैसे लाने का इंतज़ार कर रहे थे। उन्हें इस समय सिर्फ पैसों की फ़िक्र थी। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था कि चार्वी कैसी होगी या जो वे कर रहे हैं वह गलत है। वे बस पैसों के आगे पागल हो चुके थे।

  • 5. चोर। - Chapter 5

    Words: 1920

    Estimated Reading Time: 12 min

    कुछ देर बाद, एक कार शान के घर के बाहर आकर रुकी। चार्वी, कंपते हुए पैरों से कार से उतरी और खड़ी होकर उस घर को देखने लगी। वह घर जहाँ वह नौकरानी की तरह ना जाने कब से रह रही थी, उसे शायद याद भी नहीं था।

    चार्वी घर को देखती रही, फिर अपने हाथ में पकड़ी हुई पैसे की गड्डियों को, जिन्हें उसने पूरी जान लगाकर पकड़ा हुआ था।

    "ये मैं जाकर आंटी और शान जी को दे दूँगी, तो वो लोग मुझे नहीं मारेंगे।" चार्वी इसी बात से खुश हो गई। और फिर, लड़खड़ाते कदमों से अंदर की ओर बढ़ गई। उसके शरीर में जान बिल्कुल नहीं बची थी, पर फिर भी वह कभी दीवार तो कभी खंभे के सहारे अपने कदम आगे बढ़ाती रही।

    अंदर, सीमा और शान अपनी ही योजना बना रहे थे। उनकी नज़र चार्वी पर पड़ी जो अंदर आ रही थी। दोनों बड़े ही ध्यान से चार्वी को देखने लगे।

    चार्वी की चाल से लेकर उसके कपड़ों तक को देखते हुए, धीरे-धीरे दोनों के चेहरे पर शातिर मुस्कान आ गई।

    "आ गई तू?"

    सीमा ने अपनी मुस्कान गायब कर, गुस्से से भरे चेहरे के साथ चार्वी की ओर बढ़ा।

    उसकी आवाज़ सुनकर, चार्वी डर गई और उसके कदम वहीं रुक गए। उसकी पकड़ पैसे की गड्डियों पर ढीली पड़ गई।

    "अपना काम अच्छे से किया ना तूने? कोई ड्रामा तो नहीं किया?"

    सीमा ने काफी हर्ष से चार्वी से पूछा। चार्वी काँप रही थी। उसने अपनी नज़रें झुकाए हुए सिर हिलाया।

    सीमा कुछ नहीं बोली और फिर चार्वी के कपड़ों से लेकर उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगी। चार्वी के कपड़े हर जगह से फटे हुए थे। उसके घुटनों से नीचे तक के पैरों में दांतों के लाल और नीले निशान थे। उसके हाथ से लेकर गले तक हर जगह वो निशान इस बात की गवाही दे रहे थे कि रात को चार्वी के साथ क्या हुआ होगा।

    थोड़ी दूरी पर खड़ा शान, चार्वी को नहीं, बल्कि उसके हाथ में पकड़ी पैसे की गड्डी को देख रहा था। उसे देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई।

    सीमा कुछ कह पाती या चार्वी खुद को सम्भाल पाती, उससे पहले शान वहाँ आया और झटके से चार्वी के हाथ से पैसे की गड्डी छीन ली। उसके इस अचानक हरकत से चार्वी घबरा गई और दो कदम पीछे हटकर, लड़खड़ाते हुए, दीवार के सहारे खड़ी हो गई।

    उसमें इतनी जान तो थी नहीं कि वह बिना सहारे के खड़ी भी रह सके। जिस तरह से उसके पैर, यहाँ तक कि उसका पूरा शरीर काँप रहा था, कोई भी इस चीज़ का अंदाज़ा लगा ही सकता था।

    सीमा की नज़र शान पर गई जो अपनी चमकती आँखों के साथ उस पैसे की गड्डी को देख रहा था।

    "Mom, ये तो बहुत सारे पैसे हैं।" शान के पास चार पैसे की मोटी गड्डी थी, जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि कितने पैसे होंगे।

    सीमा की भी नज़र उस पैसे की गड्डी पर ही थी। उसे तो अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। क्या वाकई उन लोगों को चार्वी के बदले इतने पैसे मिले? क्या ये पॉसिबल था?

    सीमा के दिमाग में कुछ आया और वह पलटकर चार्वी को देखती है जो एक हाथ से दीवार को पकड़ी हुई थी और दूसरा हाथ उसके पेट पर था। और नज़रें झुकी हुई थीं, आँखों में भरा आँसू।

    "ए, सच-सच बता, ये पैसे तुझे दिए गए हैं ना? कहीं तूने चोरी तो नहीं की?" सीमा की आवाज़ चार्वी के कानों में गई।

    जिसे सुनकर कुछ पल के लिए चार्वी का दिमाग खाली हो गया। उसकी आँखों के सामने कुछ धुंधली सी तस्वीरें और किसी की आवाज़ गुंजने लगी।

    "ये लड़की चोर है।"

    "हाँ, सही कहा तुमने। पहले ये लड़की सिर्फ़ पागल थी, अब तो चोर भी हो गई।"

    "अरे, रहने दो, इससे बात मत करो। ये तो चोर है। मेरी Mom तो इससे कोसों दूर रहने को कहती है। वो कहती है इसकी माँ खूनी थी, तभी तो इसे छोड़कर चली गई।"

    ऐसी ना जाने कितने बच्चों की आवाज़ चार्वी के कानों में आने लगी। उसकी आँखों के सामने धुंधली सी तस्वीरें, जिसमें कई सारे बच्चे, एक बहुत ही छोटी बच्ची के ऊपर हँसते हुए कह रहे थे। और वो छोटी सी बच्ची एक जगह पर सिर झुकाए खड़ी रो रही थी। वो कहना चाहती थी, पर उसके होंठ काँप रहे थे।

    "देखो जरा इसके कपड़े देखो, कितने गंदे हैं और फटे हुए भी हैं। लगता है ये भी चोरी के होंगे।"

    इसी के साथ सभी एक-दूसरे को ताली देते हुए हँस पड़े।

    "नहीं-नहीं, म-म-मैं, मैं अच्-अच्छी बच्ची हूँ। चार्व-चार्वी चोर नहीं है।"

    चार्वी वहीं खड़ी, दोनों कानों पर हाथ रखकर, अपनी आँखें बंद कर, रोते हुए कहती रही। वह लगातार एक ही बात बोल रही थी। अब वह बुरी तरह काँपने लगी थी, जिस वजह से उसके पैर उसका साथ छोड़ देते हैं और वह वहीं फर्श पर गिर जाती है।

    उसकी आँखों से आँसू पानी की तरह बह रहे थे। वह कान पर हाथ रखकर एक ही बात दोहरा रही थी।

    जिसे सुनकर शान और सीमा, जो पैसे की चमक में खोए हुए थे, चार्वी को पैनिक अटैक करते हुए देखते हैं।

    "लो, शुरू हो गया इसका ड्रामा!" सीमा चार्वी को देखते हुए कहती है।

    "सब आपकी गलती है, Mom। आपको किसने कहा था इस पागल लड़की को घर में रखने को? और तो और, आपने इस लड़की से मेरी शादी भी करवा दी।" शान चार्वी को चिढ़ी हुई नज़रों से देखते हुए कहता है।

    जैसे चार्वी कोई इंसान नहीं, कोई गंदी चीज़ हो।

    शान की बात सुनकर, सीमा शान के सर को हल्का सा स्पर्श करते हुए कहती है।

    "जितनी जुबान चलाते हो, उतना दिमाग भी चलाया करो। भूलो मत, अभी जो तुम इस बड़े से घर पर आराम फरमा रहे हो, सुकून से जी रहे हो, सब इसकी वजह से। अगर मैं तुम्हारी शादी इससे नहीं करवाती, तो इसकी सारी प्रॉपर्टी उसकी हो जाती, जिससे इसकी शादी होती।"

    और फिर कुछ पल रुकने के बाद, चार्वी को देखती है जो फर्श पर बैठी, सिमट कर काँपते हुए एक ही बात दोहरा रही थी कि वह चोर नहीं है, वह अच्छी बच्ची है, उसने कुछ नहीं किया है।

    सीमा चार्वी को देखती है, फिर शान को, जो सीमा को बड़े ध्यान से देख रहा था।

    "भूलो मत, इसे रखना मेरी शौक नहीं, मजबूरी थी। तुम्हें पता है ना उस राज के बारे में? अगर उस समय मैंने इसे ना रखा होता, तो आज ना मैं यहाँ होती और ना तुम खुलकर ज़िंदगी जी रहे होते।" सीमा की आवाज़ और आँखों में भरी हुई नफ़रत थी।

    "वो सब तो ठीक है, Mom। अब इसका क्या करना है? 18 साल की तो ये ऑलरेडी हो चुकी है। दो दिन पहले हमें जो चाहिए था वो भी मिल चुका है। तो आपको नहीं लगता इसे अपने साथ रखना बेवकूफी होगी? क्योंकि अब ये हमारे किसी काम की नहीं।" कहते हुए शान चार्वी की तरफ देखता है। उसकी आँखों और चेहरे पर बिल्कुल भी चार्वी के लिए हमदर्दी नहीं दिख रही थी।

    और ना ही सीमा के चेहरे पर।

    शान चार्वी से नज़र हटाकर, पैसे की गड्डी को देखते हुए, तिरछा मुस्कुराते हुए कहता है।

    "और इन पैसों के बाद तो बिल्कुल नहीं। अब तो हमारे पास सब है और इसके पास कुछ भी नहीं। बेचारी, तरस आता है। अगर इसमें थोड़ा भी दिमाग होता, तो शायद ये आज अपनी इज़्ज़त बचा लेती।"

    इतना कहकर उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी। सीमा भी कहाँ पीछे थी। दोनों इस समय चार्वी को देख इस तरह मुस्कुरा रहे थे जैसे उन्हें उसकी बेबसी पर खुशी मिल रही हो।

    दूसरी तरफ़:

    विराग शर्टलेस, किंग साइज़ चेयर पर बैठा, अपने होंठों में सिगरेट का कश लेते हुए, किसी गहरी सोच में गुम था।

    उसका पूरा कमरा धुएँ से भरा हुआ था। आस-पास बीयर के साथ-साथ सिगरेट के भी बहुत सारे पैकेट फर्श पर पड़े थे।

    जिसे देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि विराग ना जाने कितने समय से नशा कर रहा है, कभी सिगरेट तो कभी बीयर का।

    उसकी हल्की नीली आँखें, जो इस समय लाल थीं, उसका चेहरा बिल्कुल सख्त था।

    वह गहरी सोच में गुम था। इतने में उसका फ़ोन रिंग हुआ और उसका ध्यान टूटा। ध्यान टूटते ही उसने एक नज़र फ़ोन पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखा।

    उसके बाद उसने कॉल पिक की।

    पिक करते ही दूसरी तरफ़ से कुछ कहा गया। जिसे सुनकर उसका चेहरा और डार्क और आँखें लाल होने लगीं।

    वो अपने फ़ोन पर कसी हुई पकड़ के साथ, दाँत पीसते हुए, गुस्से में बोला।

    "वो चाहे किसी भी दुनियाँ में छुपकर क्यों ना बैठी हो, वो मुझे मेरी आँखों के सामने चाहिए, वो भी ज़िंदा। ताकि मैं उसे इतनी बेरहमी से मौत दूँ, जिसके बारे में उसने कभी सोचा ही ना हो।" कहते हुए विराग के चेहरे पर बेहिसाब गुस्सा और नफ़रत था।

    उसकी बात पर दूसरी तरफ़ से कुछ कहा गया और उसके बाद विराग बिना कुछ बोले फ़ोन काट दिया। और वापस अपने हाथ में पकड़ी सिगरेट को अपने मुँह में भरकर कश लेने लगा।

    "सज़ा तो मिलेगी, चाहे वो तुम्हें मिले या उस लड़की को। खून के आँसू तो रोना ही पड़ेगा तुम्हें।" इतना बोलकर वो अपने किंग साइज़ सोफ़े पर पूरी तरह लीन होकर आँखें बंद कर लेता है।

    आँखें बंद करते ही उसके आँखों के कोनों से आँसू निकल गए। इस समय कमरे में सिर्फ़ विराग था और कमरे में उसकी साँसें और आवाज़ ही गुंज रही थी।

    शाम का वक़्त:

    "गुड़िया रानी!"

    एक औरत, जो काफ़ी बूढ़ी लग रही थी, लगभग 60 साल की, चार्वी को देखते हुए कहती है।

    चार्वी इस समय घर के बाहर, देहलीज़ पर सिमट कर बैठी, काँप रही थी। वह अभी भी उसी हालत में थी। बाहर का मौसम काफ़ी ठंडा था, जिस वजह से वो ठंड चार्वी को और भी ज़्यादा तकलीफ़ दे रही थी।

    वह बूढ़ी औरत जल्दी से चार्वी को देखकर उसके पास आती है और उसके पास बैठकर कहती है।

    "गुड़िया रानी, क्या हुआ? आप यहाँ क्यों बैठी हैं? और ये दरवाज़ा क्यों बंद है? बताओ, क्या फिर से सीमा मैडम ने आपको मारा?" उनकी आवाज़ में चार्वी के लिए फ़िक्र थी।

    पर वहीं चार्वी, जिसे कुछ होश ही नहीं था, और ना ही उसने उस बूढ़ी औरत की बात सुनी थी।

    वह बूढ़ी औरत चार्वी को देखती है और देखते ही समझ जाती है कि चार्वी को फिर पैनिक अटैक आया है और वह एक बार फिर खाली हो चुकी है। उसका दिमाग काम करना बंद कर चुका है।

    "गुड़िया रानी!" इस बार वह बूढ़ी औरत चार्वी के छोटे से चेहरे को अपने हाथों में थामकर अपनी तरफ़ करती है।

    चार्वी का चेहरा देखकर बूढ़ी औरत घबरा जाती है। क्योंकि चार्वी का चेहरा बहुत ज़्यादा गर्म था और रोने की वजह से उसका चेहरा और आँखें बिल्कुल खून की तरह लाल हो गई थीं।

    वहीं बूढ़ी औरत का स्पर्श महसूस करके चार्वी अपनी नज़रें उठाती है, अपने सामने बैठी औरत को देखती है और बिना एक पल गँवाए उसके सीने से लगकर उसे कस के पकड़कर रोने लगती है।

    "आजी!" कहते हुए चार्वी फूट-फूट कर बच्चों की तरह रोने लगती है।

    वह बूढ़ी औरत, जिसकी आँखें नम हो गई थीं, चार्वी के बालों पर हाथ फेरते हुए कहती है।

    "हाँ, गुड़िया रानी, आजी यहीं है। कहीं नहीं जा रही।"

    उसकी बात सुनकर चार्वी की पकड़ उस बूढ़ी औरत पर कस जाती है और वह सुबकते हुए रोना शुरू करती है।

    "आजी, चावी न-ने कु-कुछ न-नहीं कि-किया। चा-चावी चोर नहीं है। चावी अच्-अच्छी ब-बच्ची है ना आजी।"

    "हाँ, मेरा बच्चा, आप बहुत अच्छी बच्ची हैं। और किसने कहा आप चोर हैं? आप तो मासूम गुड़िया हैं ना।" बूढ़ी औरत चार्वी को प्यार से कहती है।

  • 6. मुझसे प्यार नहीं करता। - Chapter 6

    Words: 1488

    Estimated Reading Time: 9 min

    आगे।

    चार्वी उस ओल्ड रेडी से लिपट कर रो रही थी। चरवी को इस तरह रोता देख उन्हे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।

    "गुड़िया रानी क्या हुआ हमें बताओ ना हमें बहुत घबराहट हो रही है सब ठीक है ना? सीमा मैडम शान बाबा ने कुछ कहा है क्या आपको और इतनी ठंड मे बाहर क्यू बैठी हो?"

    वो ओल्ड रेडी चार्वी के लिए फिक्रमाद होते हुए कहती है।

    चार्वी जो ना जाने कब से रो रही थी अब उसके गले से आवाज़ भी निकलना मुश्किल था फिर भी वो हिम्मत कर बोलती है। " चावी न_ने स_सच मे चो_चोरी नहीं की वो वो पैसा मु_मुझे व_वो गंदे अंकल के पास मिला। व_वो अच्छे नहीं है उन_उन्होंने मा_मारा मु_मुझे बहुत दर्द हो रहा है।"

    चार्वी जिसकी आवाज़ बहुत ही ज्यादा टूटी फूटी निकल रही थी पर वो ओल्ड रेडी जो उसकी बात गोर से सुन रही थी जिसे सुन उन्हे अब चरवी की फ़िक्र हो जाती है। और वो चरवी को खुद से दूर कर उसके छोटे से मासूम चेहरे को अपने हाथों मे थाम कहती है।

    "क्या कहना चाह रही है अपनी आजी को बताओ। किसने दिये पैसे और कौन गन्दा किसने मारा?"

    ओल्ड रेडी के पूछने पर चार्वी सुबकाते हुए अपनी उखड़ी साँसों को कंट्रोल करते हुए कहती है।

    "व_वो अच्छे ना_नहीं है रा_रात को उन्होंने चावी को मारा चावी बहु_बहुत रो रही थी। चावी को अभ_अभी भी दर्द ह_हो रहा है।"

    ओल्ड रेडी चार्वी की बात बड़े ही ध्यान और गोर लगा कर सुन रही थी। उन्हे अब कुछ कुछ चार्वी की बात समझ आ रही थी वो अब चरवी के कपड़ो से लेकर उसके शरीर को नोटिस करने लगती है जिसे उन्होंने अब तक नहीं देखा था।

    चार्वी को फटे कपड़े और इतने मॉडल कपड़ो मे देख उनका अंदाजा सही लगने लगा अब उन्हे बेचैनी होने लगी क्युकी ऐसे कपड़ो मे उन्होंने आदि को आज नहीं देखा था और इस हालत में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था।

    वो इस घर मे पिछले दस सालो से काम कर रही थी।

    उनका अंदाजा यकीन मे तब बदलता है जब वो चार्वी के खुले पेरो गर्दन और हाथ को देखती है जहाँ अभी भी विराग के दिये हुए निशान थे। हलाकि की चार्वी के चेहरे पर एक भी निशान नहीं थे। पर उसका शरीर दगो से भर उठा था।

    वो बड़े ही ध्यान से चार्वी को देखती है। और बहुत ही धीमी आवाज़ में अपनी बेचैनी छुपाते हुए कहती है।

    "कहा दर्द हो रहा है?"

    उनके पूछने पर चार्वी अपने हाथों से अपने पेट के निचे हाथ ले जाकर कहती है। जहा उसे विराग की उस हरकत के बाद हो रहा था।

    चार्वी की बात सुन ओल्ड रेडी को तो जैसे झटका लगता है। जिस हालत मे चार्वी उनके सामने बैठी थी और जहाँ उसे दर्द हो रहा था इसका साफ मतलब था। जिसे सोच कर ही उनकी रूह कांप गई थी।

    वो कुछ नहीं कहती और खामोशी से अब अपने हाथ चार्वी के घुटनो के पास ले जाकर उसकी नी लेंथ ड्रेस को हलका सा ऊपर कर देखती है तो उनकी आँखों से आँसू निकल पढ़ते है।

    चार्वी की ड्रेस को जैसे ही वो हलका ऊपर करती है उनकी नज़र चार्वी के थाई पर पड़ती है जहाँ ब्लड उसके थाई पर जगह जगह लग सूखे हुए थे। जिसे देख अब उनका दिल जैसे फटने को हो जाता है।

    वो अपनी आंसू भरी आँखों से चार्वी को देखती है। और बिना एक पल गवाय तुरंत चार्वी को अपने सीने से लगा लेती है। अब उनकी आँखों से आंसु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। अब वो सारा माजरा समझ चुकी थी।

    उन्हे अब और कुछ जानने की ज़रूरत नहीं थी। वो अच्छे से जानती थी उस घर मे रह रहे लोगो को वो लोग पैसो के लिए कितना गिरे हुए है और कितना गिर सकते है।

    "बस बस मेरा बच्चा ऐसे नहीं रोते आजी है ना आपके पास जल्दी दर्द ठीक हो जायेगा।" चार्वी को रोता देख वो उसके बालो को सेहलाते हुए प्यार से कहती है।

    वो इस चीज़ का अन्दजा भी नहीं लगा पा रही थी की कल ऐसा क्या हुआ उनकी गैर मौजूदगी और चार्वी को कल किसके पास भेजा गया और उसे कितनी तकलीफ हुई होगी।

    चार्वी की हालत देख कर तो यहि लग रहा था कल चार्वी जहाँ भी थी जिसके पास भी वो इंसान तो नहीं था। वरना चार्वी जैसी मासूम और इतनी छोटी लड़की के साथ ऐसा तो बिल्कुल नहीं करता।

    "आ_आजी चावी को सब क्यू मार_मरते है। मा_मैने आ_आज उन गंदे अंकल क_के बहुत सारे पैसे भी दिये। फिर भी शान जी आ_और गंदी आंटी न_ने मुझ_मुझे मारा और मु_मुझे बाहर निकाल कर गेट भी बंद कर दिया। मु_मुझे क्य_क्यू वो लोग प्यार नहीं करते। " चार्वी उन ओल्ड रेडी के सीने से लगी शिकायत किये जा रही थी।

    पर उस बच्ची को तो पता ही नहीं था उसके साथ क्या हुआ है। उसे अभी भी सिर्फ यही फ़िक्र थी की सीमा और शान उसे क्यू प्यार नहीं करते।

    चार्वी की मासूमियत भरी शिकयता सुन ओल्ड रेडी का गला भर आ रहा था। उन्हे चार्वी की तकलीफ देखी नहीं जाती थी। उन्हे हमेशा लगता था वक़्त के साथ साथ शायद सब ठीक हो जायेगा। पर वो गलत थी वक़्त के साथ साथ तो और भी चार्वी के साथ बुरा होता जा रहा था। और आज जो हुआ चार्वी के साथ उस बारे में तो कभी उन्होंने सोचा ही नहीं था।

    "आजी है ना बेटा आपके पास आजी बहुत प्यार करती है। मेरा बच्चा।" ओल्ड रेडी आँखों मे आंसु लिए चरवी के बालो और पीठ को सेहला रही थी।

    पर अब उन्हे चार्वी की सबकने और रोने की आवाज़ नहीं आती है वो जब हलका सा चार्वी को खुद से दूर करती है तो देखती है चार्वी सो चुकी है। जिसे देख वो उसके माथे को चूमती है और वापस उसे अपने गले से लगा लेती है।

    "हमे माफ़ कर दो प्यारी गुड़िया आपकी ये आजी बहुत मजबूर है मै चाह कर भी आपको इस नर्क से नहीं निकाल सकती। मै तो खुद इनकी मोहताज हूँ। कभी कभी डर लगता है मेरे बाद क्या होगा आपका ये दुनियाँ बहुत जालिम है। आपने अभी दुनियाँ देखी नहीं आपका ये हाल बाहर की दुनियाँ इससे भी बुरी है। सीमा और शान जैसे ना जाने कितने लोग बाहर की दुनियाँ में आप जैसी मासूम लोगो का फयदा उठाने के लिए बैठे है।"

    ओल्ड रेडी लगातार चार्वी के बालो और पीठ को सेहला रही थी। वो एक नज़र उस घर को देखती है फिर नफरते भरे शब्दों के साथ कहती है।

    "तुम दोनो को अपने किये की सज़ा मिलेगी देखना। ऊपर वाले सब देख रहे है। किसी मासूम को इस तरह तकलीफ देकर तुम लोगो को लगता है बच जाओगे तो तुम लोगो की बहुत बड़ी गलती है। देखना एक दिन आएगा जब गुड़ियाँ रानी तुम लोगो से आज़ाद हो जायेगी। दुनियाँ ने तुम जैसे लोग है तो अच्छे लोग भी है। और मेरा दिल कहता एक दिन इस बच्ची की रक्षा करने वाला आएगा तब देखना तुम लोग कितना पास्ताओगे।"

    उस ओल्ड रेडी की आँखों से आँसू तो बह रहे थे पर जुबान मे बैठासा नफरत थी। वो नफरत से उस घर इस तरह देख रही थी जैसे उनका बस चलता तो उसके अंदर मौजूद दो लोगो की जान ले लेती। पर वो अपनी हालात और उम्र से मजबूर थी।

    और फिर वो एक नज़र चार्वी को देखती है जो ठंड के करण सिकुड़ती जा रही थी।

    वो उसके चेहरे पर हाथ फेरती है। " पता नहीं वो कौन माँ बाप थे जिसने इस बच्ची को इन जैसो के हवाले कर दिया। ये जानते हुए भी की ये बच्ची नॉर्मल नहीं है। मुझे तो कभी कभी खौफ आता है इस बच्ची के दर्द को देख कर की जिस दिन इसके दिल की अह लगेगी तो ना जाने वो मंजर कैसा होगा।"

    अगला दिन:-

    "मास्टर हमें पता चला है वो USA में कही छुपी हुई है।"

    विराग अपने काबिन मे बड़े ही रोबदार अंदाज़ मे बैठा सिगरेट पी रहा था। वाही उसके सामने एक आदमी सर झुकाय खड़ा कहता है।

    जिसकी बात सुन विराग अपनी हलकी नीली आँखों से इसे देखते हुए कहता है।

    "तो किसका इंतेज़ार है USA इतना बड़ा तो नहीं है की तुम लोग उसे ढूंढ ना पाओ।" विराग की आवाज़ मे एक देहसत थी जिसे सुन सामने खड़ा आदमी भी एक पर लिए डर जाता है।

    "मास्टर आप फ़िक्र मत कीजिये हमारे आदमी वहा पर पहले ही जा चुके है।"

    "gate out और अब उसकी खबर लेकर ही मेरे सामने अपनी शक्ल दिखाना वरना मै तुम्हे कही का नहीं छोडूंगा।" उस शख्स की बात खत्म होते ही विराग काफी ऊँची टोंन मे उससे कहता है जिसे सुन वो शख्स एक दो तीन होकर कैबिज से बाहर निकल जाता है।

    उसके जाने के बाद विराग अपनी चेयर से उठता है। और ग्लास वॉल के पास जाकर कुछ देर अपने सिगरेट के कश भरता है। उसके बाद अपना फोन पॉकेट से निकाल किसी को कॉल करता है।

    और फिर अपना ब्रेज़र उठा कैबिन से बाहर निकल जाता है।

  • 7. उसे ये चाहिए। - Chapter 7

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह हो चुकी थी। चार्वी, वहीँ डोर के पास ही, एक पतले से चादर पर सिकुड़ कर सोई हुई थी। वहीँ, उसके पास बैठी, ओल्ड रेडी गीले कपड़े की पट्टी कर रही थी चार्वी को।

    क्योंकि कल रात से ही चार्वी को बहुत तेज बुखार था और अब तक नहीं उतरा था। बुखार के कारण चार्वी कई बार बेहोश भी हो चुकी थी रात से अब तक, पर इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा।

    उस ओल्ड रेडी ने डोर खुलवाने की बहुत कोशिश की, पर अंदर से कोई नहीं बाहर आया।

    "पता नहीं कैसे लोग हैं? इस बच्ची के साथ बुरा करते हुए बिल्कुल दिल नहीं काँपता?" ओल्ड रेडी, चार्वी के माथे को टच करते हुए, कहती है।

    अब तक चार्वी का बुखार थोड़ा उतर चुका था। जिसे देख ओल्ड रेडी को गहरी सुकून की अनुभूति हुई।

    "गुड़िया रानी!"

    ओल्ड रेडी, प्यार से चार्वी के गालों को छूते हुए, कहती है।

    "हम्म्म्म।" चार्वी, जिसे बुखार था जिसके कारण उसे गहरी नींद आना नामुमकिन था, अपनी आँखें बंद किए हुए धीमी आवाज़ में कहती है।

    "बच्चे, उठ जाइए, सुबह हो गई है। चलिए, हम आपको हॉस्पिटल लेकर चलते हैं।"

    उस ओल्ड रेडी का इतना ही कहना था कि चार्वी अपनी आँखें जल्दी से खोलती है। उसके चेहरे पर डर और घबराहट साथ-साथ झलक उठती है।

    वह जल्दी से उठकर बैठती है और बिना एक पल गँवाए उस ओल्ड रेडी के सीने से जा लगती है और उन्हें कसकर पकड़ लेती है।

    "क्या हुआ गुड़िया रानी?" चार्वी की हरकत को देख ओल्ड रेडी थोड़ी घबरा जाती है।

    चार्वी, उन पर अपनी पकड़ बनाए हुए, धीमी और रोने जैसी आवाज़ में कहती है।

    "चा-चावी को नहीं जा-जाना है उन बुरे अंकल के पास। उन्होंने बा-बहुत मारा। वो अच्छे ना-नहीं हैं।" चार्वी कहते हुए रो पड़ती है।

    चार्वी के रोने से ओल्ड रेडी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। वह उसके बालों को सहलाते हुए, प्यार से कहती है।

    "नहीं गुड़िया, आपकी आजी आपको वहाँ क्यों ले जाएगी? हम तो आपको हॉस्पिट-" कहते हुए वह ओल्ड रेडी रुक जाती है।

    उन्हें अब एहसास होता है कि चार्वी क्यों घबरा गई। चार्वी ने तो कभी हॉस्पिटल देखा ही नहीं था और ना उसने कभी यह नाम सुना था। तभी हॉस्पिटल का नाम सुनकर चार्वी को लगा कि आजी उसे विराग के पास ले जाना चाहती है।

    जिसका एहसास होते ही ओल्ड रेडी चार्वी को खुद से दूर कर, उसके छोटे से चेहरे को अपने हाथों में थामकर कहती है।

    "आजी आपको कहीं नहीं ले जाएगी। आप डरो मत। मैं अभी आपके लिए कुछ खाने को लाती हूँ। कहीं से कुछ मिल तो जाएगा ही। आप यहीं रहना।" इतना बोलकर वह चार्वी का माथा चूमती है और फिर वहाँ से उठकर रोड की तरफ बढ़ जाती है।

    वहीं चार्वी, जिसकी बॉडी वीक हो चुकी थी, उसमें आँख खोलने की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी। वह अपनी आँखें बंद किए वापस वहीं लेट जाती है।

    "म-मम्मा, चा-चावी अच्छी है। चा-चावी को स-सब मारते हैं।"

    शाम का समय:

    "डॉक्टर, जल्दी करो, जो करना है, हमारे पास इतना टाइम नहीं है।"

    शान, अपने सामने फर्श पर पड़ी चार्वी को देखते हुए, डॉक्टर से कहता है।

    वहीं डॉक्टर, जो इस समय चार्वी का चेकअप कर रही थी, चार्वी को देखकर उसकी आँखें भी नम हो रही थीं। आखिर कैसे कोई इतनी छोटी बच्ची के साथ इस तरह बर्ताव कर सकता है?

    "मैंने इन्हें इंजेक्शन दे दिया है। एक घंटे में होश में आ जाएगी। और होश आते ही उन्हें कुछ खिला देना। उनकी हेल्थ अच्छी नहीं है अभी बिल्कुल भी। और बुखार काफी समय से होने की वजह से उनकी बॉडी पूरी तरह वीक हो चुकी है।"

    डॉक्टर अपनी बात कंप्लीट करती है, उससे पहले सीमा कहती है।

    "जितना कहा गया है, उतना करो। चेक कर लिया ना तुमने लड़की? अब चलो निकलो यहाँ से। बस इसे ऐसी दवा दो कि एक घंटे के अंदर ये होश में इंसानों की तरह आ जाए।" सीमा, गुस्से और सख्त अंदाज़ के साथ, डॉक्टर से कहती है।

    डॉक्टर खामोशी से कभी सीमा को, तो कभी शान और कभी तो ओल्ड रेडी को देख रही थी।

    वह तो यह समझ नहीं पा रही थी कि कहीं तो किसी को उस बच्ची की इतनी फ़िक्र है और किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा।

    "जी, मैंने इंजेक्शन दे दिया है। मैं इनके हेल्थ को ध्यान में रखते हुए बोल रही थी कि इन्हें खाना खिला देना। वरना इनकी यह कंडीशन और भी बढ़ सकती है।" डॉक्टर, स्पष्ट लहज़े में, साफ़-साफ़ सारी चीज़ें बोल देती है।

    "ओके!" कुछ पल की खामोशी को तोड़ते हुए शान बोलता है। उसकी बात सुन सीमा जी आँखें छोटी कर उसकी तरफ देखती हैं तो शान आँखों से शांत रहने को कहता है।

    वहीं डॉक्टर कुछ मेडिसिन लिखकर एक नज़र चार्वी को देख वहाँ से निकल जाती है।

    वह ओल्ड रेडी डॉक्टर को बाहर तक छोड़ने चली जाती है।

    "अब बताओ, क्यों किया तुमने ऐसा? डॉक्टर को क्यों बुलाया? मरने देते इसे।" डॉक्टर के जाते ही सीमा, शान के बाजू को पकड़कर अपनी तरफ घुमाते हुए कहती है।

    शान अपनी माँ को इतने गुस्से में देख गहरी साँस लेता है। "Mom, calm down। इसमें हमारा ही फायदा है।"

    "फायदा?"

    "कैसा फायदा?" सीमा, शान की बात पर कहती है।

    शान गहरी साँस लेता है और कहना शुरू करता है। "आज सुबह मुझे उसी नंबर से कॉल आया था। और कहा गया है कि चार्वी उन्हें चाहिए हर रात के लिए, जिसके लिए वो हमें बहुत सारे पैसे देने को तैयार है। और आज रात उन्हें यह चाहिए। और उसके लिए इसका ठीक होना ज़रूरी है हमारे लिए।" शान, फर्श पर बेजान बेहोश पड़ी चार्वी को देखते हुए, कहता है।

    "क्या?" सीमा को अपने कानों पर यकीन नहीं होता।

    "क्या तुम सच बोल रहे हो?" सीमा, हैरानी के साथ शान से कहती है।

    शान हाँ में सर हिलाता है। उसकी हाँ देख सीमा की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, पर कुछ सोचकर वह अपनी खुशी कंट्रोल कर एक नज़र चार्वी को देख शान से कहती है।

    "वो सब तो ठीक है, पर इस पागल लड़की में ऐसा क्या है जो वो शख्स इतने पैसे देने को तैयार है? और वो शख्स है कौन जिसे यह लड़की खुश कर पा रही है?" सीमा, कुछ सोचते हुए, शान से पूछती है।

  • 8. let's enjoy the pain. - Chapter 8

    Words: 1846

    Estimated Reading Time: 12 min

    V विला:-

    रात का समय था। कमरे में काफी अंधेरा था। उसी कमरे में दो लोगों की मदहोश कर देने वाली साँसों के साथ-साथ दर्द से भरी सिसकियों की आवाज़ भी गुंज रही थी। एक छोटी सी लड़की एक शख्स के नीचे बेड पर दबी सिसक-सिसक कर रो रही थी।

    उसके दोनों हाथ-पैर जंजीरों से बंधे हुए थे। वह दर्द से अपने हाथ-पैर नहीं हिला पा रही थी। उसके ऊपर जो शख्स था, वह कोई और नहीं, विराग था और वह छोटी सी लड़की चार्वी थी।

    अंधेरे के कारण दोनों में से किसी को भी एक-दूसरे का चेहरा नज़र नहीं आ रहा था। पर विराग अपनी नफरत में आकर चार्वी के छोटे से कोमल शरीर को दाँतों से, कभी नाखूनों से नोच रहा था।

    चार्वी का फीवर मेडिसिन की वजह से ख़त्म हो गया था, पर उसके बॉडी में अभी भी दर्द था। और ऊपर से विराग का दिया दर्द उससे बर्दाश्त से परे था। वह उसके नीचे दबी रो रही थी।

    "ahhhh छोड़ो…छोड़ दो…आप…गंदे…गंदे…अह्ह्ह्ह…मम्मा…गंदे हो।"

    चार्वी के गले से आवाज़ बड़ी मुश्किल से निकल रही थी।

    विराग के कानों में चार्वी की आवाज़ गयी तो उसने अपना चेहरा उठाकर चार्वी को देखने की कोशिश की। हाँ, वह अलग बात है कि दिख नहीं रहा था, पर वह अपने दाँत पीसते हुए अपना हाथ पीछे ले जाकर चार्वी के बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया।

    "aaa hhh!" चार्वी रोते हुए दर्द से करहा उठी।

    "क्या कहा? गन्दा हूँ मैं? हाँ।" विराग चार्वी के बालों पर अपनी पकड़ कसते हुए बोला।

    चार्वी रोते हुए हाँ में सिर हिलाते हुए बोली, "हाँ…आप…गंदे…हो…वो…गंदी आंटी की…अह्ह्ह…तरह…मुझे…बहुत…दुख…रहा है।" चार्वी बड़ी मुश्किल से अपने शब्द पूरे कर पाई।

    विराग की पकड़ चार्वी के बालों पर कसती जा रही थी। चार्वी की बातें सुन विराग ने दूसरे हाथ से उसके जबड़े को पकड़कर कहा,

    "अभी तो तुमने देखा ही नहीं मैं कितना गन्दा हूँ और कितना दर्द दे सकता हूँ तुम्हें। तुम्हें क्या लग रहा है, तुम्हें ये दर्द देकर मेरा हो जायेगा?"

    "No baby, तुम गलत सोच रही हो। जो तुमने और तुम्हारे परिवार ने किया है, उसकी कीमत तुम्हें चुकानी होगी। अभी तो तुम्हें mentally तोड़ना बाकी है। अभी तो तुम्हें इतना दर्द मिलेगा कि तुम्हें मांगने पर मौत भी नहीं मिलेगी। तेरे परिवार, तेरे माँ-बाप को दूसरों की इज़्ज़त को कुचलना अच्छा लगता है ना? अब देखता हूँ जब तेरी ही इज़्ज़त नहीं बचेगी, हर रात ऐसे ही तुझे अपने बिस्तर पर, अपने नीचे कुचलूँगा, तब देखता हूँ तब कहाँ जायेगा तेरा ये बनावटी इज़्ज़त।"

    विराग की आवाज़ में नफ़रत, गुस्सा, आग सब था। उसकी आवाज़ में इतनी बेरहमी थी कि कोई भी सुन ले तो रूह काँप जाए। ऊपर से उसकी पकड़ चार्वी के जबड़े और बालों पर इतनी ज़ोर से थी कि वह दर्द उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। और ना ही उसे विराग की एक भी बात समझ आयी थी। उसका दिमाग दर्द के कारण एक बार फिर ब्लैंक हो गया था। अब वह एकदम शांत हो गयी थी।

    उसकी आँखों से आँसू उसके तकिये को गीला कर रहे थे। पर उसकी बॉडी अब बिल्कुल ढीली हो गयी थी।

    विराग अपनी बात कहने के बाद झटके से चार्वी के बाल और जबड़े को छोड़ता है। और सीधा होकर अपने निज बल पर बैठ अपनी पैंट की चैन खोलते हुए कहता है,

    "Lets enjoy the pain."

    इतना बोलकर विराग वापस उसके ऊपर आता है और झटके से उसके अंदर समा जाता है। और उसने इतने hardly किया था जिससे उसे भी हलका सा दर्द हुआ। पर चार्वी, जो ब्लैंक हो चुकी थी, उसकी आवाज़ तो क्या एक सिसकी भी नहीं निकली।

    उसकी आवाज़ अपने कानों में ना सुन विराग अपनी एक भौं उठाता है। उसे थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि कुछ देर पहले उसके काटने और नोचने पर चार्वी इतना ज़्यादा रो और झटपटा रही थी, पर अभी ना चार्वी की बॉडी ने कोई रिएक्ट किया था और ना खुद चार्वी ने।

    "तो तुम मुझे उकसा रही हो कि मैं तुम्हारी सिसकियाँ भरी आवाज़ निकलने पर मजबूर कर दूँ?" विराग चार्वी के अंधेरे में ना दिखने वाले चेहरे को देखते हुए कहता है। यह बात से अनजान कि चार्वी अब रिएक्ट ही नहीं करेगी।

    फिर चेहरे पर घिन और नफ़रत भरी मुस्कराहट लिए कहता है, "As you wish। अब तुम्हारी इच्छा पूरी करना तो बनता है।"

    इतना बोलकर विराग अब अपने आप को move करने लगता है। और जितना ज़्यादा वह rude हो सकता था, वह rude होने लगता है। और अपने दोनों हाथों को चार्वी के उभरे हुए स्तनों पर रखकर दोनों हाथों से मसलते हुए अपने दाँतों से काटने लगता है।

    पर चार्वी अब बिलकुल restless हो चुकी थी। उसकी पलकें खुली हुई थीं, आँखों से आँसू बाहर निकल रहे थे, पर इस समय ना उसके होंठ दर्द के लिए खुल रहे थे और ना उसके चेहरे पर कोई इमोशन थे।

    वह बस बेजान सी लेटी हुई थी। और विराग अपनी सारी एनर्जी, गुस्सा, नफ़रत सब चार्वी पर निकाल रहा था। यहाँ तक कि अब उसकी आहें कमरे में गुंजना शुरू हो चुकी थीं, पर चार्वी वैसे के वैसे ही लेटी हुई थी।

    चार्वी का ना रिएक्ट करना विराग को भी थोड़ा अजीब लग रहा था। पर वह इस समय अपनी नफ़रत और दर्द देने में इतना बिज़ी था कि वह इन सब चीज़ों को साइड रखकर बस उसके साथ harsh हुआ जा रहा था।

    ऐसे ही रात बीतने लगती है। पर विराग का रुकने का नाम नहीं ले रहा था। हालाँकि वह इतना ज़्यादा rude हो गया था जिससे वह भी थक गया था, पर वह चार्वी को जैसे बिना दर्द दिए छोड़ना ही नहीं चाहता था। उसकी आहें और साँसों की आवाज़ उस पूरे कमरे में गुंज रही थी, पर चार्वी की नहीं।

    और गुंजती कैसे? पहले चार्वी ब्लैंक थी, अब वह बेहोश हो चुकी थी। और विराग इससे अनजान बस उसे दर्द देने की कोशिश कर रहा था।

    धीरे-धीरे रात बीत जाती है और सुबह के पाँच बजे विराग चार्वी से अलग होता है। और गहरी-गहरी साँसे लेकर चार्वी को देखने लगता है। बालकनी से आ रही हलकी सी सुनहरी रौशनी के कारण चार्वी का ज़्यादा नहीं, पर हलका सा खूबसूरत, चमकता चेहरा नज़र आ रहा था।

    आज पहली बार विराग ने चार्वी की झलक देखी थी। उसके बाद भी वह चार्वी से अपनी नज़रें हटा लेता है, जैसे उसे नफ़रत हो रही हो, वह जैसे उसका चेहरा देखना ही नहीं चाहता हो।

    वह गहरी-गहरी साँसे लेते हुए उसके ऊपर से उठता है। और अपनी पैंट पहनकर, बिना उसकी तरफ़ देखे, जंजीरों को खोलकर सीधा कमरे से बाहर निकल जाता है।

    दूसरी तरफ़:-

    "सीमा मैडम, शान सर, मेहरबानी करके दरवाज़ा खोल दीजिये। आप लोग ये सही नहीं कर रहे हैं। वो अभी बच्ची है, आप लोग अच्छे से जानते हैं। वो दुनियाँ से बहुत अलग है। मत कीजिये उसके साथ ऐसा, वो मासूम है।"

    ओल्ड रेडी एक कमरे में बंद थी। और उसका दरवाज़ा बाहर से बंद था, या यूँ कहें, बंद किया गया था।

    सीमा और शान ने उसे बंद किया था। रात में जब ओल्ड रेडी को पता चला कि वो लोग उसके साथ क्या करने वाले हैं, जिसके कारण वह चार्वी को बचाना चाहती थी और रोकना चाहती थी। उन्होंने रात में बहुत कोशिश की चार्वी को रोकने की, सीमा और शान को समझाने की, पर दोनों में से किसी ने उनकी नहीं सुनी और ऊपर से उन्हें कमरे में बंद कर दिया जिससे वे चार्वी की मदद ना कर पाएँ।

    और रात से ही वह ओल्ड रेडी दरवाज़ा खोलने की नाकाम कोशिश करती रही थी। वह पूरी रात सीमा और शान से दरवाज़ा खोलने की मिन्नतें करती रही थी। पर इसका कोई फायदा नहीं था। दोनों ही अपने-अपने कमरे में सुकून की नींद ले रहे थे।

    और यहाँ उस ओल्ड रेडी का बार-बार यह सोच-सोच कर दिल बैठता जा रहा था कि चार्वी कहाँ होगी? किस हाल में होगी? कौन है वह इंसान? कैसा है? वह उस पर रहम दिखायेगा या नहीं? और पता नहीं क्या-क्या।

    "भगवान के लिए आप लोग इतने पत्थर दिल मत बनिये। कम से कम उसकी तबियत पर तो रहम कर लो आप लोग। क्या बिगाड़ा है उस बच्ची ने आप दोनों का? उससे सब कुछ तो छीन लिया आप सबने उससे, अब क्यों उसे तकलीफ दे रहे हैं? वो अभी बहुत छोटी है, उसे नहीं पता है इन सब के बारे में, क्यों उस नन्ही सी जान के पीछे पड़े हो?" कहते हुए वह ओल्ड रेडी वहीं दरवाज़े के सहारे से होकर रोते हुए बैठ जाती है।

    और दरवाज़े पर हाथ मारते हुए कहती है, "भगवान से तो डरिये कम से कम। मैं आप लोगों के लिए कह रही हूँ, उस मासूम की ख़ातिर डरिये। उसकी हाय लग गयी तो कहीं के नहीं रहेंगे आप लोग।" वह ओल्ड रेडी कहते हुए रोये जा रही थी। उन्होंने हर मुमकिन कोशिश कर ली थी, पर कोई फायदा नहीं हुआ।

    वह अपने दोनों हाथ जोड़ती है और ऊपर सीलिंग को देखते हुए कहती है,

    "आप तो सब जानते हैं, फिर आप क्यों इतने कठोर बनकर बैठे हो, कन्हैया? आप तो सब जानते होंगे गुड़िया रानी के बारे में, उनकी हालत के बारे में। वो बहुत कमज़ोर है, दुनियाँ से नहीं लड़ सकती है। और ना ही यह ज़ालिम दुनियाँ उनके लिए बनी है। अब आप ही कुछ कर सकते हो कन्हैया, मेरी गुड़िया रानी की हिफ़ाज़त आपके हाथ में है। क्योंकि इस दुनियाँ में कोई भी नहीं है जो उस बच्ची को ज़ालिम दुनियाँ से बचा ले।"

    न्यू यॉर्क:-

    "क्या बात है? बड़ी खुश नज़र आ रही हो?" एक लड़की अपने सामने सोफ़े पर बैठी लड़की से पूछती है।

    वह लड़की, जो इस समय लैपटॉप पर अपने हाथ फटाफट चला रही थी, उसके चेहरे पर प्यारी सी स्माइल थी। बड़ी-बड़ी आँखें और आँखों पर बहुत ही खूबसूरत राउंड शेप का चश्मा था। गोरा रंग, गुलाबी होंठ और सिल्की घने हलके डार्क ब्राउन शाइनिंग स्ट्रेट हेयर जो उसके कंधे से नीचे और कमर से ऊपर थे।

    "खुशी की बात है तो खुश तो होगी ना। Finally मेरा इंडिया जाने का सपना पूरा हुआ। अब मैं इंडिया जा सकती हूँ।"

    "क्या सच में?" उस लड़की की बात सुन सामने खड़ी लड़की हैरान होते हुए पूछती है।

    और जल्दी से उस लड़की के बगल में जाकर बैठ जाती है। "क्या सच? तुम सच बोल रही हो ऐना? क्या सच में तुम्हारा वीज़ा अप्लाई हो गया?"

    उस लड़की की बात सुन ऐना मुस्कुराते हुए अपने बगल में बैठी लड़की को देखती है।

    "हाँ बेबिका, मेरा वीज़ा अप्लाई हो गया और मेरी जॉब के लिए भी ऑफ़िस वालों ने ऑप्शन दिए हैं। मैं वहाँ जाकर कंपनी में जॉब भी कर सकती हूँ।"

    ऐना की बात सुन बेबिका के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। वह ऐना को मुस्कुराते हुए देखती है और जिसकी आँखों में नमी भी थी, वह उसे साइड हग करते हुए कहती है,

    "I am so happy ऐना। Finally तेरा सपना पूरा हुआ। अब तू इंडिया जा सकती है। और देखना, जिस मकसद के साथ तू जा रही है, वह ज़रूर पूरा होगा।"

    बेबिका की बात पर ऐना मुस्कुरा देती है। "मेरी ज़िंदगी का एक ही मकसद है और उसी के लिए मैं इंडिया जा रही हूँ। मुझे जिसकी तलाश है, वह मेरी इंडिया में ही ख़त्म होगी। बहुत मेहनत की है आज के दिन के लिए।"

  • 9. she is not well. - Chapter 9

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    आगे।

    "जो कहना है कहो और दफा हो जाओ यहा से पता है ना मुझे डस्टर्बेन्स पसंद नहीं। फिर ऐसा क्या है जो तुम में इतनी हिम्मत आ गई। जान प्यारी नहीं है या हिम्मत आ गई?"

    विराग इस समय अपने स्टडी रूम में बैठा था फाइल्स रीड कर रहा था। पर मैड के डिस्टर्व करने से उसे बेहद गुस्सा आता है क्युकी विराग को बिल्कुल पसंद नहीं था कोई उसके space time मे उसे डिस्टर्ब करे।

    विराज की आवाज़ में काफी सख्ती थी। जिसे सुन उसके सामने खड़ी मैड की कपकपी छुट जाती है। उसकी तो जान ही निकल जाती है विराग की इतनी तेज आवाज़ सुन कर।

    " सुनाई देता है या बंद हो गया?" विराग की एक बार फिर आवाज़ सुन उस मैड की हालत खराब हो जाती है।

    अब तक मैड जो विराग की बातो से सहम सी गई थी एक बार फिर उसकी कड़क आवाज़ सुन वो खुद को संभालती है।

    और अपना सर झुका कर् हिम्मत कर कहती है। " म_मास्टर व_वो लड़की वो वो उठ नहीं र_रही है।" मैड बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा जर कहती है।

    उसकी बाते सुन विराग के फेस एक्सप्रेसशन थोड़े चेंज होते है। वो अपनी आँखे छोटी कर कड़क आवाज़ में पूछता है।

    " क्या मतलब उठ नहीं रही?"

    " मा_मैने बहुत उठाने की कोशिश की प_पर वो जाग ही नहीं रही है। ऊपर से उ_उनकी बॉडी काफी गर्म हो रखी है। शा_शायद उन्हे फीवर है।" विराज के कहते ही मैड अपनी धीमी आवाज़ में कहती है।

    विराग अभी भी वैसे ही खड़ा था उसका चेहरा सख्त और नज़रे पैनी हो गई थी पर उसके एक्सप्रेसशन अभी भी रुड थे।

    "call the doctor. "

    इतना बोल विराग अपने स्टडी रूम से बाहर निकल जाता है। मैड भी उसके निकलते ही गायब हो जाती है।

    विराग का स्टडी रूम फ़ीफ़थ फॉलोर पर था और उसका रूम फोर्थ फॉलोर पर। वो अपने स्टडी रूम से निकल लिफ्ट की तरफ बढ़ता है। उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेसशन नहीं थे पर उसके दिमाग मे कल रात की चीज़े घूम रही थी।

    उसे इस चीज़ का अंदाजा हो रहा था कल रात वो काफी हार्ड था। बेसक से चार्वी कोई रियेक्ट नहीं कर रही थी पर विराग पर उस चीज़ का असर हुआ था कल वो इतना ज्यादा हर्श हुआ था की वो खुद थक गया और उसे पैन होने लगा था।

    पर हैरानी उसे इस बात की हो रही थी। जो लड़की इतने दिनों से हलके से दर्द से तड़प उठती थी वो कल रात इतना दर्द के बात भी कोई रियेक्ट क्यू नहीं कर रही थी।

    वो यही सब सोचते हुए अपने लिफ्ट से बाहर निकलता है और उस कमरे की तरफ बढ़ने लगता है जिस कमरे मे वो कल रात था।

    वो उस कमरे के पास जाता है कमरे का डोर खुला था जिस वजह से वो सीधा अंदर जाता है। अंदर आते ही उसकी नज़र बेड पर सोई चार्वी पर जाती है जो अभी भी उसी हालत मे थी जिसमे उसने उसे कल छोड़ा था बस अभी उसके ऊपर ब्लैक ब्लेंकेट था जो उसके सीने से लेकर उसकी थाई तक ही था। शायद मैड से उसे हड़बड़ी मे डाला था।

    विराग अपने कदम उसकी तरफ बढ़ाने लगता है उसकी नज़र चरवी के चेहरे पर थी जो उसके बालो से ढका हुआ था जिस वजह से विराग को उसका चेहरा नहीं दिख रहा था।

    विराग बेड के पास आकर खड़ा होता है और उसके चेहरे से नज़रे हटा निचे की तरफ करने लगता है। अब उसको नज़रे चरवी के पूरे बॉडी पर घूम रही थी जहाँ उसकी बॉडी पुरी तरह से जख्मी थी जैसे किसी जानवर ने उसे बड़ी बेरहमी से नोचा और काटा हो।

    वो तो विराग था जो चार्वी को इस हालत मे देख कर भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आये थे। लेकिन पता नहीं क्यू उसके दिल मे अजीब सी बेचैनी शुरु हो गई थी। पर वो उसे पुरी तरह नज़र अंदाज़ कर रहा था।

    वरना उसकी जगह अगर कोई और होता तो अब तक चार्वी की ऐसी हालत देख सहम उठता।

    वो हलका सा झुकता है और अपने हाथ आगे बढ़ा चार्वी के ऊपर लिपटे ब्लेंकेट को उसके ऊपर से हटा वापस उसे अच्छे से ब्लेंकेट से कवर करता है। और उसके बाद अपने हाथ चार्वी के चेहरे पर बिखरे उसके बालो की तरफ बढ़ाता है।

    इससे पहले वो उसके बालो को उसके चेहरे से हटाता है या उसका चेहरा देख पाता उससे पहले दरवाजे पर दस्तक होती है।

    जिसका एहसास होते ही विराग के हाथ रुकते है और वो सीधा खड़ा हो पलट कर डोर की तरफ देखता है जहाँ एक रेडी डॉक्टर अपनी नज़रे झुकाय अदब के साथ खड़ी थी।

    "come in. "

    विराग की इजाज़त मिलते ही वो डॉक्टर जल्दी से अंदर आती है अंदर आते ही उसकी नज़र बेड पर लेती चार्वी पर पड़ती है जिसकी हालत देख डॉक्टर को अमदाजा था पर वो कुछ ना कहना ही बेहतर समझती है।

    "check her. " इतना बोल विराग कमरे से बाहर निकल जाता है।

    विराग के जाते ही वो डॉक्टर जो कब से साँसे रोक कर खड़ी थी। वो अब अपनी साँसे छोड़ गहरी साँसे लेती है। फिर चार्वी की तरफ देखती है।

    कुछ देर बाद डॉक्टर चार्वी को चेक कर कमरे से बाहर निकलती है। बाहर निकलते ही उसकी नज़र वाही कोरिडोर मे लगे बड़े से वाइन कलर के सोफे पर पढ़ती है जहा विराग आराम से बैठा फोन स्क्रॉल कर रहा था।

    " कर लिया चेक?" विराग अपने फोन को स्क्रॉल करते हुए अपनी ठंडी आवाज़ में डॉक्टर से कहता है।

    डॉक्टर अपने दो कदम आगे बढ़ा नज़रे झुका कहना शुरु करती है।

    " she is not well.

    उसकी बात सुन विराग अपने फोन से नज़रे हटा उस डॉक्टर को काफी खतरनाक अंदाज़ मे देखता है। जिससे एक पल के लिए उस डॉक्टर की साँसे अटक जाती है।

    "मैने तुमसे पूछा इस बारे में?"

    उसकी बात पर डॉक्टर ना में सर हिलाती है।

    " तो अपना मुँह बंद रखो। और ये बताओ होश मे कब तक आएगी वो लड़की।"

    " ए_एक घंटे म_में होश आ जायेगा।" विराग के पूछने पर डॉक्टर हिम्मत कर कहती है।

    "gate out. "

  • 10. क्या मै मर जाउंगी? - Chapter 10

    Words: 1658

    Estimated Reading Time: 10 min

    धीरे-धीरे एक हफ़्ता से ऊपर बीत गया। चार्वी की सेहत भी काफी ख़राब होने लगी थी। चार्वी उस समय शान के घर पर थी और हॉल में पोछा मार रही थी। उसकी आँखों से आँसू, जो ना जाने कब से लगातार बह रहे थे, फ़र्श पर गिर रहे थे। चार्वी की पूरी बॉडी काँप रही थी। ऊपर से उसका शरीर पूरा सफ़ेद पड़ चुका था, जैसे उसके शरीर में बिलकुल भी खून ना हो। आँखों के नीचे काले दाग आ चुके थे। उसका चूब्बी चेहरा पूरी तरह से मुरझा गया था। उसने उस समय एक सर्वेंट ड्रेस पहनी हुई थी जो उसके घुटनों तक की थी। जिससे उसके निचले हिस्से के ज़ख़्मों के निशान अच्छे से दिख रहे थे। उसके हाथ, गर्दन, हर जगह ज़ख़्मों के निशान थे।

    "गुड़िया रानी!"

    "गुड़िया रानी कहाँ हो?"

    ओल्ड रेडी चार्वी को आवाज़ लगाते हुए किचन से बाहर आई। वही चार्वी जो पोछा मार रही थी और अपने साथ हुए हादसों को याद कर रही थी। विराग का उसके प्रति नफ़रत और क्रूर होना चार्वी को अंदर तक डरा रहा था। उसे अब हर पल डर लगने लगा था विराग से। उसे हमेशा हर घड़ी यही डर लगता था कि कब उसके सामने विराग आ जाए और उसे तकलीफ दे। चार्वी अब तक समझ नहीं पाई थी कि उसके साथ क्या हो रहा था। बस उसे इतना पता था कि जो उसके साथ हो रहा था, वो अच्छा नहीं था और विराग उसे मारना चाहता था। तभी तो वो कितना भी रो ले, कितनी भी मरने वाली हालत में क्यों ना आ जाए, वो उसे ज़्यादा से ज़्यादा तकलीफ़ देता था।

    "गुड़िया रानी ये आप क्या कर रही हो?" वो ओल्ड रेडी चार्वी को काँपता और रोता देख बेचैनी से उसकी तरफ़ बढ़ी और जल्दी से उसके पास बैठ गई। और फिर उसके छोटे से चेहरे को थाम कर कहती है, "क्या है? आपको क्यों रो रही हो और ये पोछा आप क्यों मार रही हो? आपकी तबियत ख़राब है ना? छोड़िये इसे, चलिए उठिये।"

    ओल्ड रेडी चार्वी के आँसू साफ़ करते हुए उसे उठाने लगी, पर चार्वी ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया। तो वो ओल्ड रेडी ना समझी से उसकी तरफ़ देखती है।

    "क्या हुआ?"

    "न-नहीं नहीं शा-शान जी और और वो बुरी आंटी मरेंगे।" चार्वी सुबकाते हुए बड़ी मुश्किल से कहती है।

    "कोई नहीं मरेगा, हम हैं ना? चलिए उठिये, उन्हें पता है आप बीमार हैं।"

    "नहीं नहीं उन्होंने चार्वी से कहा है अगर घर अच्छे से साफ़ नहीं हुआ तो वो-वो मुझे मारेंगे और खाना भी नहीं देंगे।" चार्वी रोते हुए ओल्ड रेडी से शिकायत कर रही थी।

    फिर ओल्ड रेडी का हाथ और ज़ोर से पकड़कर बच्चों की तरह रोते हुए कहती है, "चार्वी को मार नहीं खाना चाहिए। चार्वी को बहुत भूख लगी हुई है। आज भी चार्वी को खाना नहीं मिला। चार्वी का पेट बहुत दुख रहा है। वो-वो बुरे अंकल भी बहुत मारते हैं और खाना भी नहीं देते। बहुत दर्द होता है आजी।"

    कहते हुए चार्वी बेहोश सी रोने लगती है। चार्वी की हालत देख आजी की आँखों में भी आँसू आ जाते हैं और वो जल्दी से उसे अपने गले से लगाकर, उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहती है, "माफ़ कर दो गुड़िया रानी अपनी आजी को। ये बुढ़िया बहुत मजबूर है बच्चे, मैं कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ आपके लिए। आपके दर्द का अंदाजा मैं कभी भी नहीं लगा पाऊँगी, पर आपको तकलीफ़ में देखकर खुद से घिन आती है मुझे। माफ़ कर दो अपनी आजी को, बहुत मजबूर है हम।" कहते हुए वो ओल्ड रेडी भी रोने लगती है।

    उनसे सच में चार्वी की हालत देखी नहीं जा रही थी। वो दिन पे दिन ज़िंदा लाश होती जा रही थी। उसके साथ क्या हो रहा था, वो सबसे अनजान थी। लेकिन वो बहुत तकलीफ़ में थी। उसका पूरा शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर हो गया था। जब वो घर पर रहती थी, तो शान और सीमा चार्वी को मारते और खाना नहीं देते थे। और विराग के पास जब जाती थी, वो उसे टॉर्चर करता था। कभी बेड पर, तो कभी उसे अंधेरे कमरे में बंद कर देता था, तो कभी बालकनी में ठंडी हवा में छोड़ देता था। विराग अलग-अलग तरीक़ों से चार्वी को टॉर्चर करता था।

    वहीं दूसरी तरफ़:

    "एक घंटे के अंदर मीटिंग रूम रेडी होना चाहिए। योंग ग्रुप से कहो विराग शेखावत को आज ही मीटिंग करनी है।"

    विराग अपने विला से बाहर आते हुए किसी से कॉल पर कहता है। इस समय उसका औरा हमेशा की तरह रूड था।

    "I don't care। विराग शेखावत अपने उसूलों पर चलता है और कोई मुझे अपने हिसाब से चलाए, आज तक कोई पैदा नहीं हुआ। तो कान खोलकर खुद भी सुनो और मिस्टर योंग को भी कह दो, अगर उन्हें मीटिंग करनी है तो आज होगी, वरना मेरी तरफ़ से डील cancel। Understand?" विराग आख़िरी शब्दों को धमकी के तौर पर कहता है। और अपना फ़ोन कट कर अपनी कार के पास आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ वहाँ से निकल जाता है।

    शान का घर:

    ओल्ड रेडी काफी देर तक चार्वी को अपने सीने से लगाए उसे समझा और हिम्मत दे रही थी, पर सच तो ये था कि वो खुद टूट चुकी थी। चार्वी का अब रोना बंद हो चुका था, पर उसकी आँखों में अभी भी आँसू थे और वो खामोशी से बस ओल्ड रेडी की बात सुन रही थी। कुछ देर बाद चार्वी ओल्ड रेडी से अलग होती है और अपनी मासूम आँखों से ओल्ड रेडी को देखने लगती है, जिनकी आँखों में आँसू थे। चार्वी अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उस ओल्ड रेडी के आँसू साफ़ करती है।

    "आजी आप मत रोओ, चार्वी ठीक है। चार्वी को दर्द नहीं हो रहा। रो मत, वरना चार्वी की तरह आपका भी सर दुखेगा।" चार्वी बड़ी मासूमियत के साथ बच्चों की तरह ओल्ड रेडी के आँसू पोछती है।

    ओल्ड रेडी से बर्दाश्त नहीं हो रहा था, पर वो खुद को सम्भालती है और हल्की-फुल्की मुस्कराहट के साथ चार्वी के माथे को चूमती है।

    "आजी नहीं रोएगी, आप भी मत रोओ, वरना सर दर्द करेगा ना।"

    चार्वी कुछ नहीं कहती है और कुछ सेकंड ओल्ड रेडी को देखने के बाद चार्वी कुछ सोचकर कहती है, "आजी क्या चार्वी मर जाएगी? जैसे वो छोटा सा पप्पी (पप्पी-डॉग का बच्चा) मर गया, क्या चार्वी भी मर जाएगी?"

    चार्वी का ये सवाल सुनते ही ओल्ड रेडी का दिल बैठ जाता है। वो हैरानी और परेशान नज़रों से चार्वी को देखने लगती है, जो अपने चेहरे पर दुनियाँ-जहाँ की मासूमियत लेकर दर्द में थी।

    "नहीं गुड़िया रानी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो? और किसने कहा आपसे ऐसा? ये बुरी बात होती है, ऐसा नहीं बोलते। अभी आप बहुत छोटी हो, अभी आपको पूरी दुनियाँ देखनी है, अभी आपको आपके हिस्से की ख़ुशी भी तो मिलनी है।" वो ओल्ड रेडी प्यार से चार्वी के छोटे से चेहरे को थामकर कहती है।

    चार्वी अपनी मासूम नज़रों से खामोशी से अपनी आजी को देखने लगती है, पर कुछ नहीं कहती है। चार्वी की आँखों में हज़ार सवाल थे जो आजी अच्छे से देख पा रही थी।

    "क्या हुआ?"

    ओल्ड रेडी के कहने पर चार्वी जैसे होश में आती है। शायद वो कुछ सोच रही थी। उनके कहने पर चार्वी कुछ पल खामोश रहने के बाद कहती है, "पर वहाँ बुरे अंकल के घर नहीं, नहीं बड़ा वाला घर पर ना एक अच्छी लड़की है, वो ही मुझे हमेशा बुरे अंकल के कमरे से बाहर लाती है। वो ना एक दूसरी अच्छी लड़की से बोल रही थी, वो बुरे अंकल चार्वी को मार देंगे। चार्वी बीमार है ना, तो वो सब बोल रहे थे, चार्वी को अगर बुरे अंकल ऐसे ही मारेंगे तो चार्वी मर जाएगी।" चार्वी की आवाज़ धीमी हो जाती है, उसके चेहरे पर उदासी घर कर लेती है।

    चार्वी की बातें सुन ओल्ड रेडी के आँसू, जो कुछ देर के लिए रुके थे, वो एक बार फिर बहने लगते हैं। उनके पास जवाब नहीं था। शायद वो सर्वेंट्स सही तो बोल रही थीं। चार्वी की जैसी हालत होती जा रही थी, जो अब ठीक से चल भी नहीं पाती थी, शायद उसे अब तकलीफ़ होने लगी थी चलने में। चार्वी अब ज्यादातर बैठकर ही हर काम करती थी क्योंकि अब वो खड़ी नहीं हो पाती थी और दो-तीन कदम चलते ही लड़खड़ाकर गिर जाती थी। बिलकुल किसी ना चलने वाले बच्चों की तरह।

    सच में अब तो उस ओल्ड रेडी को भी चार्वी के लिए डर लगने लगा था। अगर वो इसी तरह टॉर्चर होती रही, तो वो दिन दूर नहीं जब सच में वो मर जाएगी। और वो तो इतनी बदकिस्मत है कि उसकी लाश को ना तो कोई कंधा देगा और ना ही अग्नि। यूँ कहे तो उसे ऐसे ही लावारिस छोड़ दिया जाएगा।

    "क्या हुआ आजी? बोलो ना, चार्वी मर जाएगी?"

    ओल्ड रेडी को कुछ ना कहता देख चार्वी उनके हाथ को हिलाते हुए पूछती है। ओल्ड रेडी होश में आती है। चार्वी की आँखों और चेहरे पर वही मासूमियत अभी भी बरक़रार थी।

    "नहीं गुड़िया रानी, आपकी आजी है ना आपके पास, कुछ नहीं होगा आपको।"

    "इसका मतलब अब आप चार्वी को वो बुरे अंकल के पास नहीं जाएँगी ना? चार्वी को नहीं जाना है। आजी देखो रात होने वाली है, अब वो लोग चार्वी को बुरे अंकल के पास भेज देंगे। वो बहुत मारते हैं, दर्द होता है। देखो चार्वी के पैर भी अब दुखने लगे हैं, खड़ी भी नहीं हो पाती, गिर जाती है। अब क्या चार्वी के पैर कभी ठीक नहीं होंगे?" चार्वी की आँखों में बेहोशी से आँसू आ गए थे। उसकी आवाज़ में उसकी बातों में बहुत ज़्यादा दर्द था, जिसे शायद कोई समझ नहीं सकता था।

    "नहीं बेटा, आप जल्दी ठीक हो जाएँगी। हाँ, आजी अब आपको बुरे अंकल के पास नहीं जाने देगी। अब आपको कोई कुछ नहीं करेगा, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े।"

    "तो अब तुम रोकोगी चंदा?"

    ओल्ड रेडी, जिनका नाम चंदा था, उनके और चार्वी के कानों में एक काफी घमंडी और गुरूर भरी आवाज़ जाती है, जिसे सुन चार्वी डर जाती है, उसके साथ-साथ चंदा जी भी घबरा जाती है।

  • 11. दर्द। - Chapter 11

    Words: 2526

    Estimated Reading Time: 16 min

    "तो तुम रोकोगी चंदा?"

    ओल्ड रेडी ने अपनी बात कही। इतने में एक गुरुर भरी आवाज़ चार्वी और ओल्ड रेडी, जिनका नाम चंदा था, के कानों में गई।

    जिसे सुनकर चार्वी डर गई और जल्दी से वहीं बैठी हुई चंदा का पल्लू पकड़ लिया।

    चंदा जी ने एक नज़र चार्वी को देखा, फिर सामने सीढ़ियों के पास खड़ी सीमा को, जो उन दोनों को घूर रही थी।

    "जवाब नहीं दिया चंदा जी आपने? क्या अब आप हमारे साथ गद्दारी करेगी? भूलिए मत, आपने इस घर का नमक खाया है, थोड़ा तो क़र्ज़ उतारिए हमारा।" सीमा ने घमंड भरी आवाज़ में कहा और नीचे की तरफ आने लगी।

    वहीं चंदा जी उन्हें अपनी तरफ आता देख एक नज़र चार्वी को देखती हैं, जो बहुत डर गई थी और अपनी नज़रें नीचे किए हुए सिसक रही थी। उसे डर लग रहा था। उसे लग रहा था कि एक बार फिर सीमा जी उसे मारेंगी। अभी उसके ज़ख़्म भरे भी नहीं थे कि उसे और ज़ख़्म मिलेगा, यही सोचकर उसकी रूह अंदर तक कांप गई थी।

    चंदा जी ने चार्वी से अपना पल्लू छुड़वाया और फिर अपनी जगह से खड़ी होकर सम्मान के साथ खड़ी हुईं।

    सीमा बड़ी अकड़ और ऐटिटूड के साथ उनके सामने खड़ी होकर चार्वी को देखकर बोली,

    "तुझे पूरा घर साफ करने को कहा था ना? हुआ नहीं तुझसे। जल्दी कर, फिर तुझे रात को जाना भी है। कान खोलकर सुन ले, अगर शाम तक घर साफ नहीं हुआ तो भूल जा आज तुझे खाना मिलेगा।"

    "नहीं नहीं, चावी सब साफ़ कर देगी। चा-चावी को खाना दे दो, बहु-बहुत भूख लगी है।" चार्वी ने अपने पेट पर हाथ रखकर रोना शुरू कर दिया। कल से ही उस बच्ची ने कुछ नहीं खाया था और अब सीमा जी की धमकी सुनकर उसे लग रहा था कि आज भी उसे खाना नहीं मिलेगा। उसका रोना निकल गया।

    "good, खाना चाहिए तो फटाफट सब साफ़ कर।" सीमा चार्वी की बेबसी पर खुश होते हुए बोली।

    और फिर चंदा जी की तरफ देखती है जो उन्हें ही घिन और नफरत भरी नज़रों से देख रही थीं।

    सीमा के चेहरे पर मुस्कराहट थी। वो अपने दोनों हाथ अपने सीने पर बाँधकर बोली,

    "हम्म्म, तो आप क्या कह रही थीं? आप नमक हराम करेगी?"

    "क्यों कर रही है आप ऐसा?" चंदा जी ने सीमा की बात ख़त्म होते ही रूखेपन के साथ कहा।

    सीमा पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। वो वैसे ही खड़ी रही, मक्कारी भरी स्माइल लिए, कभी चंदा जी को देख रही थी तो कभी चार्वी को, जो बैठे हुए ही हलका-हलका खिसक-खिसक कर पोछा लगा रही थी। हालाँकि उसे काफी तकलीफ़ हो रही थी, पर उसे बहुत भूख लगी थी।

    सीमा पर अपनी बातों का असर ना होते देख चंदा जी ने अपनी आँखों में नमी लिए आगे कहा, "इतना पत्थर दिल कोई कैसे हो सकता है? आप भी तो एक माँ हैं। आपके पास भी तो एक बेटी है। सोचिए अगर कल को कोई उसके साथ भी ऐसा ही सुलूक करे जैसा आप इस बच्ची के साथ करती हैं तो कैसा लगेगा?"

    "चंदा!"

    चंदा जी की बात सुन सीमा का चेहरा गुस्से से भर उठा और वो चंदा जी पर चिल्ला उठी। सीमा के चिल्लाने की आवाज़ चार्वी तक गई जिससे वो कांपने लगी।

    "चा-चावी अच्छ-अच्छी चावी को कुछ नहीं होगा। चा-चावी को मार ना-नहीं पड़ेगी। डर-डरना नहीं, डरना नहीं चावी ना-नहीं रोयेगी। बुरी आंटी चा-चावी को नहीं मारेगी।" चार्वी वहीं अपना काम करते हुए मन में बोल रही थी। वो काफी डर गई थी। उसे डर था कहीं सीमा उसे न मारने लगे। उसकी आँखों के आँसू फर्श पर गिर रहे थे पर अफ़सोस किसी की भी नज़र उस पर नहीं थी।

    "क्या कहा तुमने? ज़्यादा हिम्मत आ गई है? हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मेरी बेटी को इस मनहूस से कंपेयर करने की? मेरी बेटी के पास मैं हूँ, उसकी माँ, इस मनहूस की तरह नहीं जिसकी माँ ने इसे कभी एक्सेप्ट ही नहीं किया और पैदा होते ही लावारिश की तरह छोड़ दिया। इसे तो शुक्र अदा करना चाहिए हमारा कि इसके बाप के मरने के बाद मेरे पति ने इसे सहारा दिया। और क्या हो गया इसके बदले में? इसने हमें यह घर दे दिया और हमारे लिए चार पैसे कमा रही है। इसमें बुरा क्या है? और ऐसी लड़की जो पागल हो, उसे इस काम के अलावा कोई काम मिल भी नहीं सकता। और वैसे भी मैं कभी ऐसा कुछ करने वाली ही नहीं जैसा इसकी माँ ने किया। मेरी बेटी के साथ मैं हूँ और उसके साथ कुछ गलत हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।"

    सीमा के इतने कड़वे शब्द चंदा जी के सीने को छलनी कर रहे थे। चंदा जी को सीमा को देख यकीन नहीं हो रहा था कि कोई औरत कैसे इतनी पत्थर दिल हो सकती है, जिसके लिए किसी मासूम की ज़िंदगी, इज़्ज़त की कोई फ़िक्र नहीं है।

    चंदा जी ने उसकी बात सुन अपनी खामोशी तोड़ी और अपनी नम आँखों से सीमा को देखते हुए कहा, "इतना घमंड अच्छा नहीं होता है मैम साहब। किसी के साथ बुरा करके अपने साथ अच्छा होने की उम्मीद कभी नहीं करनी चाहिए। और रही गुड़िया रानी की माँ की बात तो वो बहुत ही बदकिस्मत माँ होगी जो अपनी बच्ची को ऐसे मतलबी दुनियाँ में छोड़ दिया। पर इसमें इस बच्ची की क्या गलती है? देखिए इसकी हालत क्या है? आपको सच में इसकी हालत पर रहम नहीं आता? बहुत मासूम है ये, इसे दुनियादारी नहीं पता, ना ही ये बाहर की दुनियाँ को अच्छे से जानती है। इसके लिए जो कुछ है आप लोग ही हैं जो आप सब कहते हैं वो ये करती है। उसके बाद भी क्यों इस बच्ची को इतना दर्द देते हैं आप सब? ऐसे तो ये मर जाएगी।"

    "तो मर जाएगी, I don't care, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इसके जीने मरने से। मैं तो चाहती हूँ कल की मरती ये आज मर जाए।" सीमा ने नफ़रत भरे शब्दों के साथ कहा।

    जिसे सुनकर चार्वी के चलते हाथ रुक जाते हैं और वो खुद से बड़बड़ाते हुए कहती है,

    "चा-चावी सच में मर जा-जाएगी? चावी आ-आज मर जाएगी क्या? इसका मतलब आजी ने चावी को बहू बनाया। चावी भी पप्पी (पप्पी) की तरह मर जाएगी। आ-आजी गंदी है, आजी ने चावी से झूठ बोला, आजी सच में मर जाएगी।"

    चार्वी ने सिर्फ़ सीमा के मरने वाले शब्दों पर गौर किया था, जिसे सुनकर चार्वी खुद में बड़बड़ाना शुरू कर देती है। बेचारी मासूम चार्वी जिसे ये तक नहीं पता था मरना क्या होता है, उसने बस दो बार ये शब्द सुने थे, एक बार विराग के घर पर और अभी सीमा के मुँह से।

    "भगवान से तो डरिए मैम साहब। आपको थोड़ा भी अंदाज़ा है आप क्या बोल रही हैं? थोड़ा तो डरिए, भगवान से ना सही, कम से कम इस बच्ची के आँसुओं से, इसके मासूम दिल से निकली बद्दुआओं से। कहीं ऐसा ना हो भगवान ने इस बच्ची की तकलीफ़ों से भरे दिल की हाँय सुन ली तो उस कहर से आपको कोई नहीं बचा पाएगा।" चंदा जी आँखों में आँसू लिए कहती हैं।

    सीमा जो चंदा जी की बात बड़ी ही गौर से सुन रही थी, उनकी बात ख़त्म होते ही सीमा बोल पड़ी,

    "तो अब तुम मुझे बद्दुआ की धमकी दोगी? भूलो मत, नमक हमारा खाया है तुमने, इस मनहूस का नहीं। और इतनी हमदर्दी क्यों हो रही है तुम्हें? हाँ?"

    "एक मिनट, कहिए ऐसा तो नहीं कि आपका भी ईमान डगमगा गया इसके पैसों को देखकर? अगर ऐसा है तो टेंशन मत लीजिए। आज रात की कीमत जो इसे मिलेगी उसमें से कुछ पैसे आपको भी दे दूंगी। आप भी क्या याद रखेगी।" सीमा के शब्द इतने ज़हरीले थे जिसे सुन चंदा जी का खून खौल रहा था।

    अगर उन्होंने इस घर का नमक ना खाया होता तो अभी इसी वक़्त ये सीमा का खून कर देतीं, पर वो मजबूर थीं।

    "Mom! Mom!"

    सीमा आगे कुछ कहती या चंदा जी रिएक्ट करतीं, इतने में दोनों के कानों में आवाज़ गई। और दोनों मेन डोर की तरफ़ देखते हैं।

    शान चिल्लाते हुए जल्दी-जल्दी अंदर आता है।

    "शान, क्या हुआ? तुम इतना चिल्ला क्यों रहे हो?" शान को परेशान देख सीमा शान से पूछती है।

    शान चिढ़ी हुई नज़रों से चार्वी को देखता है, फिर सीमा को देख कहता है,

    "कहा था ना Mom, इस मनहूस के होते हुए हमारे साथ कुछ अच्छा नहीं होगा। फैला दिया इसने मनहूसियत।"

    और फिर गुस्से में चार्वी की तरफ़ बढ़ते हुए कहता है, "इसे तो छुड़ूँगा नहीं मैं।"

    वहीं चार्वी जो पहले ही सीमा से डरी हुई थी, अब शान को अपनी तरफ़ गुस्से में आता देख वो घबरा जाती है और खुद को बचाने के लिए वो अपनी जगह से खड़ी होने की कोशिश करती है, पर वो खुद को संभाल नहीं पाती और वहीं पोछे से पैर लगकर फर्श पर गिर जाती है जिस कारण सोफ़े टेबल का कोना उसके माथे के साइड जा लगता है जिससे उसे खून आने लगता है।

    "गुड़िया रानी!"

    चार्वी को गिरता देख चंदा जी जल्दी से उसके पास जाती हैं। चार्वी जल्दी से चंदा जी के सीने से जा लगती है और उन्हें कस के पकड़ अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में कहती है,

    "आजी, चा-चावी को बच-बचा लो। चावी को मार नहीं खाना। चावी ने कु-कुछ नहीं किया। आजी, मार नहीं पड़ेगी।" कहते हुए अब चार्वी डर से रोने लगती है। उसकी आँखें कल से रोने की वजह से पूरी तरह सूज चुकी थीं।

    "हाँ बच्चे, नहीं मारेगा कोई, आजी है ना।"

    चार्वी को तसल्ली देने के बाद चंदा जी शान की तरफ़ देखती हैं और कहती हैं, "ये आप क्या कर रहे हैं शान साहब? क्या किया है इस बच्ची ने अब?"

    वहीं शान उस तक पहुँचता उससे पहले सीमा उसका हाथ पकड़ रोकते हुए कहती है,

    "शांत हो जाओ तुम और पहले बताओ हुआ क्या है? क्या किया इसने?"

    सीमा के पूछने पर शान चार्वी से अपनी गुस्से भरी नज़रें हटा सीमा को देखता है और अपना फ़ोन निकाल सीमा के आगे करता है।

    "देखिए, पढ़िए अच्छे से क्या लिखा है। ये मैसेज आया है। इसमें लिखा है कि अब उस आदमी को इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। आज से हम इसे ना भेजें उसके पास।"

    "क्या?" शान की बात सुन सीमा की हैरानी बढ़ जाती है। और वो चार्वी को देखने लगती है जो चंदा जी के सीने से लग सिसक-सिसक कर रो और कांप रही थी।

    "हाँ, अच्छा-ख़ासा पैसे मिल रहे थे हमें, अब वो भी नहीं मिलेंगे। कहा था ना इसे ड्रग्स देकर भेजते हैं उस अनजान आदमी के पास। कम से कम खुश तो कर पाती, पर नहीं आपको तो इस पागल को ऐसे ही भेजना था। देखो, पता नहीं क्या करके आई है कि अब उस आदमी को इसकी कोई ज़रूरत नहीं।" शान अपने दाँत पीसते हुए कहता है।

    वहीं सीमा का तो पारा हाई हो जाता है। वो चार्वी की तरफ़ बढ़ गुस्से में उसका बाजू पकड़ जबरदस्ती खड़ी करते हुए कहती है,

    "ए, सच-सच बता क्या किया तूने उनके साथ? क्या तूने उनकी बात मानने से मना किया? सच सुनना है मुझे। समझाया था ना तुझे कि किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करना है। इतनी सी बात समझ नहीं आती तेरे दिमाग में।" सीमा पूरी तरह चार्वी को झिंझोड़ते हुए गुस्से और ऊँची आवाज़ के साथ कहती है।

    पर चार्वी एक शब्द नहीं कहती। वो सहमी हुई खड़ी रो रही थी। उसे नहीं समझ आ रहा था सीमा उससे क्या पूछ रही थी और उसने ऐसा क्या किया है।

    चार्वी को कुछ ना कहते देख सीमा और शान अब दोनों का पारा हाई हो जाता है।

    और शान चार्वी के पास आ सीमा से उसका बाजू छुड़वा अपनी तरफ़ कर उसके दोनों बाजू को पकड़ झिंझोड़ देता है।

    "Tell me, idiot! कुछ पूछ रहे हैं तुमसे। समझ नहीं आता क्या किया तूने उसके साथ? मुझे पक्का पता है तूने अपना ये ना चलने वाला दिमाग चलाया होगा उसके सामने, तभी उसने तुझे छोड़ा है। एक तो ज़िंदगी भर हमारे ऊपर बोझ बनकर रही और जब कर्ज़ चुकाने का समय आया तो तूने सारा प्लान फ़्लॉप कर दिया।"

    शान काफी गुस्से और नफ़रत के साथ चार्वी से बोल रहा था।

    "ये ऐसे नहीं मानेगी। फिर मार खानी है तुझे? अगर नहीं तो बता क्या करके आई है तू? तूने उसे खुश नहीं किया क्या? या रोना-धोना शुरू कर दिया था तूने?" सीमा चार्वी को अपनी तरफ़ घुमा गुस्से में कहती है।

    वहीं चार्वी पूरी तरह सहम चुकी थी। उसे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था वो लोग किस बारे में पूछ रहे हैं, पर इतना समझ गई थी कि वो उसके बुरे अंकल के बारे में बात कर रहे हैं।

    "मा-मैंने कुछ नहीं की-किया। सच्-सच्ची वो बु-बुरे अंकल से चा-चावी ने कुछ नहीं कहा। चावी को मत मारो। चावी सच बो-बोल रही है। कु-कुछ नहीं किया। छो-छोड़ दो।" चार्वी अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए रोते हुए कहती है। वो ऊपर से नीचे तक कांप उठी थी।

    वहीं चंदा जी जिनका दिल पहले ही बहुत घबरा रहा था, चार्वी की हालत देख वो बेचैन होने लगती हैं।

    वो जल्दी से सीमा जी और चार्वी के बीच आती हैं। "मैम साहब ये क्या कर रही हैं आप? छोड़ दीजिए, इसने कुछ नहीं किया है। इसकी तबियत ठीक नहीं है। मैं हाथ जोड़ती हूँ, बच्ची है वो, डर रही है। देखिए उसकी हालत।" चंदा जी अपनी पूरी कोशिश करती हैं चार्वी को उनसे छुड़वाने की।

    "मुझे फ़र्क नहीं पड़ता और वैसे भी अब ये हमारी किसी काम की नहीं। मरना है इसे तो मर जाए।" सीमा चंदा जी को दूर झटकते हुए कहती है।

    "शान, बाहर निकालो उस चंदा को। जब तक मैं इस मनहूस को देखती हूँ, आज इसकी चमड़ी इसके शरीर से अलग करके रहूँगी। बहुत पर आ गए हैं ना, बात समझ नहीं आती है इसे हमारी।" इतना कह वो चार्वी को खींच अपने साथ ले जाने लगती है।

    "नहीं नहीं, मैम साहब ऐसा मत कीजिए। भगवान से तो डरिए। छोटी बच्ची है वो, मत कीजिए।" चंदा जी शान से खुद को छुड़वाने की कोशिश करते हुए चिल्लाकर कहती हैं। पर शान उन्हें पकड़कर घर से बाहर करने लगता है।

    वहीं चार्वी वो फ़र्श पर गिरी हुई थी और सीमा उसका हाथ पकड़ फ़र्श पर ही घसीटते हुए ले जा रही थी।

    "आजी! आजी! चावी को मार नहीं खाना। आजी, बचा लो। आजी, दु-दुख रहा है।" चार्वी मदद मांगते हुए रो रही थी।

    वहीं शान चंदा को पकड़ हाउस से बाहर करता है और डोर लगा देता है।

    चंदा जी जल्दी से डोर के पास आ डोर पर हाथ मारते हुए रोते हुए गुहार लगाते हुए कहती हैं,

    "मैम साहब, छोड़ दीजिए गुड़िया रानी को। ऐसा मत कीजिए। शान साहब, आप तो रहम कीजिए। आपने तो शादी की है ना, उसकी रक्षा कीजिए। प्लीज़ छोड़ दीजिए।"

    "अह्ह्ह्ह आ-आजी न-नहीं अह्ह्ह्ह द-दर्द..."

    चंदा जी अभी बोल रही थीं कि उनके कानों में अंदर से चार्वी की चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आने लगती है, जो काफी दर्दनाक चीख थी, जिसे सुन चंदा जी भी अंदाज़ा नहीं लगा सकती थीं अंदर क्या हो रहा है।

    पर जो भी है, बहुत ख़ौफ़नाक है।

    "नहीं!" चंदा जी चार्वी की ऐसी आवाज़ सुन घबराते हुए कहती हैं।

    फिर ऊपर की तरफ़ देख हाथ जोड़ते हुए कहती हैं, "कन्हा, अब तुम ही कुछ करो। वो लोग उसे मार देंगे। तुम तो जानते हो ना वो नादान है अभी। ऐसा मत करो। थोड़ा तो तरस खाओ उस छोटी सी बच्ची पर।"

    "अह्ह्ह्हह्ह!"

  • 12. उसे बचा लो वो मर जायेगी। - Chapter 12

    Words: 1330

    Estimated Reading Time: 8 min

    "हम्म्म मिस्टर श्रावत के साथ आधे घंटे में मीटिंग अरेंज करो। I am come,"

    विराज ड्राइव करते हुए, कान में एअरबड के जरिये कॉल पर बात कर रहा था।

    "I don't care कैसे और कब करोगे, पर मुझे अभी आधे घंटे में सब अरेंज चाहिए। वरना मेरे पहुँचने से पहले अपना resignation letter देकर दफ़ा हो जाना।"

    इतना बोलकर, उस तरफ़ की बात सुने बिना विराग ने कॉल काट दी। और जैसे ही उसने अपना फ़ोन ऑफ किया और सामने देखा, अचानक उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए और उसने sudden ब्रेक लगाया।

    "F*ck," इसी के साथ झटके से उसने अपनी कार रोकी।

    और जल्दी से कार से बाहर निकलकर कार के आगे आया।

    "आप ठीक हैं?"

    विराग सड़क पर मुँह के बल गिरी औरत से पूछता है जो अभी उसकी गाड़ी के आगे आई थी। वह तो शुक्र है विराग ने सही समय पर ब्रेक लगा दिया, वरना वह उसकी कार के काफी पास थी।

    "देखिये, उठिये। मुझे लेट हो रहा है। आपको संभलकर चलना चाहिए था।" विराग, जिसे किसी से बात करना बिल्कुल नहीं आता था, उसे जो ठीक लगा बोला।

    वहीँ वह औरत, जैसे गिरी थी वैसे ही गिरी हुई थी। विराग देखता है कि वह कुछ नहीं बोल रही है, तो वह एक गहरी साँस लेता है।

    "Fine। आपके पास टाइम होगा, पर मेरे पास नहीं है।" इतना बोलकर विराग वापस अपनी कार की तरफ़ बढ़ने लगा।

    वह अभी दो कदम ही बढ़ा था कि अचानक उसके कदम रुक गए।

    "उस-उसे बचा लो। व-वो वो लोग मार-मार देंगे।"

    विराग के कानों में उस औरत की धीमी आवाज़ गयी। जिसे सुनकर विराग ने अपने कदम रोके और पलटा, तो वह औरत, जो कोई और नहीं चंदा जी थी, विराग के पैरों को पकड़कर लिपटी हुई थी।

    "What the? ये आप क्या कर रही हैं? Leave me," विराग थोड़ी झुंझलाहट के साथ अपना पैर उनसे छुड़वाने लगा।

    "उसे बचा लो। वो मासूम है। उसने कुछ नहीं किया। वो लोग उसे मार देंगे। वो अभी बहुत छोटी है।" चंदा जी उसके पैरों पर अपनी पकड़ और कसते हुए कहती हैं।

    लगभग दो घंटे से ऊपर हो चुके थे, पर उनकी मदद कोई भी नहीं कर रहा था। वह हर किसी से चार्वी के लिए मदद मांग रही थी, पर इस मतलबी दुनियाँ में कहाँ कोई किसी की मदद करने वाला था।

    चंदा जी का दिल बैठता ही जा रहा था। उनकी हालत भी बिगड़ चुकी थी, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी।

    "मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ। उसे बचा लीजिये। वो बच्ची है। अभी वो लोग बहुत बेरहम हैं, उसको छोड़ेंगे नहीं। वो लोग मार देंगे।" चंदा जी लगातार रोये जा रही थीं।

    वहीँ विराग खामोश चंदा जी की बातें सुन रहा था। चंदा जी को रोता देख और मदद मांगता देख, पता नहीं उसे क्या हुआ, उसे अपने अंदर बेचैनी और घबराहट शुरू हो जाती है।

    "भगवान के लिए बचा लीजिये। यहाँ कोई नहीं है जो मदद करने को तैयार है। आप लोग कैसे इंसान हैं? किसी मासूम की ज़िन्दगी से लोगों को क्यों मतलब नहीं होता? दो घंटे से लोगों से मदद मांग रही हूँ, पर कोई करने को तैयार नहीं है। प्लीज़ साहब, इस लाचार बेबस की मदद कर दीजिये। अगर मेरी गुड़िया रानी को कुछ हो गया, तो मैं ज़िन्दगी भर खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगी।"

    चंदा जी विराग के पैरों से और ज़्यादा लिपट जाती हैं और बैठकर रोये जा रही थीं। उनका दिल पल-पल बैठता जा रहा था। उनके आँसू जैसे दरिया बन चुके थे।

    "सब मेरी गलती है। सब मेरी। वो अपनी आजी से मदद मांगती रही और मैं मतलबी हो गई। उसने कहा था उसे इन लोगों के साथ नहीं रहना। मैं उसे इन लोगों से दूर ले जा सकती थी, बचा सकती थी, पर मैंने ऐसा नहीं किया।" चंदा जी विराग के पैरों को पकड़े हुए खुद को कोसती जा रही थी। उसे इन सब में अपनी गलती लग रही थी।

    वहीँ विराग, जो बस एकटक चंदा जी की बेबसी देख रहा था, ना जाने क्यों उसका दिल अब उसके उसूलों के ख़िलाफ़ जाने को कर रहा था।

    चंदा जी को देखते हुए उसके कानों में आवाज़ गुँजने लगती है। उसकी आँखों के सामने धुँधली सी तस्वीर आने लगती है।

    "मत करो ऐसा। मेरे साथ रहम करो। मैंने क्या बिगाड़ा है? मैं बेक़सूर हूँ। छोड़ दो।"

    जिसमें एक औरत अपने घुटनों के बल बैठकर अपने दोनों हाथ जोड़ रही थी और खुद को छुड़वाने की गुहार लगा रही थी। उसके कानों में उस औरत की आवाज़ और चीखें गुँजने लगती हैं।

    जिसे सुनकर विराग के हाथों में गले की नसें तनने लगती हैं और उसके हाथों की मुट्ठी कस जाती है।

    "नहीं छोड़ूँगा। किसी को नहीं। सबको हिसाब देना होगा। सबको।" विराग अपने दाँत पीसते हुए, चेहरे पर नफ़रत लिए कहता है।

    वहीँ चंदा जी, जो उसे पकड़े रोये जा रही थी, उसकी आवाज़ सुनकर खामोश हो जाती है और जल्दी से अपने आँसू पोछते हुए खड़ी होती है।

    "इसका मतलब आप मेरी मदद करेंगे? आप गुड़िया रानी को बचाएँगे?" चंदा जी उम्मीद भरी नज़रों के साथ देखते हुए पूछती हैं।

    चंदा जी की आवाज़ विराग के कानों में जाती है, तब वह होश में आता है। अब उसे एहसास होता है कि वह क्या बड़बड़ा रहा था। उसकी आँखें इस समय खून की तरह लाल थीं। वह गहरी साँस के साथ अपनी आँखें बंद करके खोलता है और चंदा जी की तरफ़ देखता है, जो उन्हें उम्मीद भरी नज़रों से देख रही थी।

    "बोलिये ना साहब, आप करेंगे ना मदद?"

    दूसरी तरफ़:

    "हाँ बाबा, पहुँच गई हूँ। अभी जस्ट एयरपोर्ट के बाहर आई हूँ। बस कैब पकड़ूँगी और कोई सस्ता होटल बुक करके आज रात का जुगाड़ बैठूँगी।"

    ऐना अपने कान पर फ़ोन लगाए, अपने बैग में कुछ ढूँढ़ते हुए कॉल पर बात कर रही थी।

    "Oh no," अचानक ऐना बोल पड़ती है।

    उसकी बात सुनकर दूसरी तरफ़ उसकी फ़्रेंड बेबिका कहती है, "क्या हुआ?"

    ऐना मुँह बनाकर रूखे मन से कहती है, "मैंने वो फ़ाइल न्यू यॉर्क में ही भूल गई।"

    "कौन सी? वो वाली जिसमें उसकी सारी इन्फ़ॉर्मेशन थी?"

    "हाँ, वही वाली। अब मैं कैसे पता करूँगी?" बेबिका के पूछने पर ऐना कहती है।

    ऐना को परेशान देख बेबिका आश्वस्त करती हुई कहती है,

    "अच्छा-अच्छा, तुम परेशान मत हो। मैं सारी डिटेल तुम्हें मेल कर दूँगी। बस तुम बता दो वो फ़ाइल कहाँ रखी है?"

    बेबिका अपनी बात कहती है, पर उसे दूसरी तरफ़ से कोई आवाज़ आती है, जिस कारण एक बार वह अपना फ़ोन अपने कान से हटाकर देखती है कि कहीं कट तो नहीं किया, पर कॉल अभी भी ऑन था।

    "हेलो, ऐना क्या हुआ? तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही?"

    कुछ पल की खामोशी को तोड़ते हुए ऐना एक बार फिर कहती है, "मुझे याद नहीं, मैंने वो फ़ाइल कहाँ रखी है।"

    "यार ऐना, कितनी बार कहा है अपनी चीज़ें तो याद रखा कर।"

    "अच्छा, कोई बात नहीं। जब तक तुम वहाँ पर अर्जेस्ट हो, जब तुम्हें याद आ जाये तो मुझे बता देना। Okay."

    बेबिका ऐना से कहती है। ऐना हाँ में जवाब देती है और जैसे ही फ़ोन काटने को होती है,

    "एक मिनट, एक मिनट।" बेबिका जल्दी से कहती है।

    "क्या हुआ?" ऐना कहती है।

    "क्या तूने आंटी को बताया था अपने इंडिया जाने के बारे में? अगर नहीं, तो तू जानती है ना आंटी को पता चला तो क्या होगा? अगर उन्होंने मुझसे पूछ लिया तो?" बेबिका परेशानी भरी आवाज़ में कहती है।

    वहीँ ऐना, जिसके चेहरे पर अभी तक सुकून था, बेबिका की बात सुनकर उसके एक्सप्रेशन ठंडे हो जाते हैं और गहरी साँस छोड़ते हुए कहती है, "मैंने मॉम को नहीं बताया है और ना तू उन्हें बतायेगी इस बारे में। और वो क्या करेगी क्या नहीं, I don't care। मैं डरती नहीं हूँ। And second बात, तू उन्हें आंसरएबल नहीं है, तो तुझे कोई ज़रूरत नहीं है अपना मुँह खोलने की।" ऐना काफी सीरियस टोन में कहती है।

    "पर!"

    "पर-वर कुछ नहीं। एक बार कह दिया ना, बस तू कुछ नहीं बतायेगी। समझी?"

    "हम्म्म, ओके।"

    "अच्छा, चल मैं अब रखती हूँ। होटल पहुँचकर कॉल करती हूँ।" ऐना कहती है और कॉल काट देती है।

  • 13. जख्मी हालत। - Chapter 13

    Words: 926

    Estimated Reading Time: 6 min

    city hospital:-

    विराग उस समय VIP वार्ड में OT के बाहर खड़ा था। उसकी नज़र जल रही रेड लाइट पर थी। वह इमोशनलेस होकर बस उसे देख रहा था।

    "उन लोगों ने अच्छा नहीं किया। इंसान नहीं, शैतान हैं वो लोग।"

    वाही चेयर पर बैठी चंदा जी बैठासा रो रही थीं। वहाँ विराग के कानों में आवाज़ तो जा रही थी, पर वह रिएक्ट नहीं कर रहा था।

    उस समय उसके दिमाग में कुछ घंटे पहले वाला दृश्य घूम रहा था; जब वह चंदा जी की मदद करने के लिए शान के घर की तरफ बढ़ा था।

    flashback:-

    "प्लीज साहब, जल्दी चलिए। उन लोगों ने पता नहीं क्या किया होगा मेरी बच्ची के साथ। दरवाज़ा भी नहीं खोल रहे हैं।"

    चंदा जी विराग के साथ बेचैनी भरी आवाज़ में बोल रही थीं। वहाँ विराग को मन नहीं था जाने का, पर पता नहीं उसका दिल चंदा जी की मदद करने की गवाही दे रहा था।

    कुछ देर में चंदा और विराग घर के बाहर रुकते हैं। "यही है घर। इसके अंदर ही है मेरी बच्ची।"

    "लेकिन ये तो बंद है?" चंदा जी की बात खत्म होते ही विराग पूरे घर को देखते हुए कहता है।

    "हाँ, उन लोगों ने बंद कर दिया और खोल भी नहीं रहे। आप कुछ कर सकते हैं। वो लोग अंदर उसे बहुत मार रहे होंगे।" चंदा जी विराग से मदद माँगते हुए कहती हैं।

    विराग कुछ देर बंद दरवाज़े को देखता है, और फिर दो कदम पीछे होकर चंदा जी को पीछे हटने का इशारा कर, एक झटके में दरवाज़े को तोड़ देता है।

    "गुड़िया रानी!"

    दरवाज़ा टूटते ही चंदा जी की एक तेज चीख निकल जाती है, और वो जल्दी से अंदर की तरफ भागती हैं।

    "गुड़िया रानी!" चंदा जी अंदर की तरफ भागते हुए कहती जा रही थीं।

    वहाँ विराग जिसकी नज़र सामने के नज़ारे पर पड़ी, हैरान रह जाता है।

    हॉल का फर्श खून से सन चुका था। और वहाँ छोटी सी चार्वी, जिसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था, उसका पूरा शरीर जख्मी था और निचले हिस्से से खून आ रहा था।

    चार्वी उस समय बेजान सी पड़ी हुई थी। चार्वी की ऐसी हालत देख कोई भी इस चीज़ का अंदाज़ा लगा सकता था कि उसके साथ क्या हुआ है और कितनी बेरहमी से उसे मारा गया है।

    विराग अभी भी दरवाज़े के पास खड़ा था, जिस वजह से वह चार्वी का चेहरा तो नहीं देख पा रहा था, पर उसकी बॉडी वह अच्छे से देख पा रहा था।

    "गुड़िया रानी! ये...ये क्या हो गया? आँखें खोलिए बच्चा! देखिए, आजी आ गई।" चंदा जी चार्वी के पास पहुँचकर जल्दी से उसके सर को अपनी गोद में रख, उसके चेहरे को थामकर बेचैनी के साथ कहती हैं।

    वहाँ चंदा जी की तो पूरी रूह काँप चुकी थी। चार्वी को देखकर उनकी पूरी बॉडी काँप रही थी, पर उन्हें सिर्फ़ चार्वी की फ़िक्र थी।

    "ये क्या हाल बना दिया इस बच्ची का उन जालिमों ने! भगवान कभी माफ़ नहीं करेगा।" चंदा जी रोते हुए कहती हैं।

    वहाँ विराग, जिसे आज तक किसी चीज़ से घबराहट, बेचैनी नहीं हुई थी, आज चार्वी को देख वो थक गया था। कुछ पल के लिए तो वह फ़्रीज़ ही हो गया था।

    पर चंदा जी के रोने से वह होश में आता है और जल्दी से अपना ब्लेज़र उतारकर उनकी तरफ़ बढ़ता है।

    "हमें हॉस्पिटल चलना चाहिए।" इतना कहते हुए वह चार्वी के ऊपर अपना ब्लेज़र डाल देता है जिससे उसकी बॉडी ढक जाती है।

    और फिर जैसे ही वह चार्वी को अपनी गोद में उठाने वाला होता है, उसकी नज़र चार्वी के चेहरे पर जाती है, जिसे देख उसकी आँखें और फेस एक्सप्रेशन पल भर में बदल जाते हैं।

    "ये तो...?" विराग चार्वी को देखते हुए मन में सवाल करता है। उसके दिमाग में चार्वी घूमने लगती है क्योंकि चार्वी ने अब तक विराग को नहीं देखा था, पर विराग ने दो बार चार्वी का चेहरा देख चुका था।

    और अभी चार्वी पर नज़र पड़ते ही उसे एहसास होता है कि यह वही लड़की है जो हर रात उसके पास आती है। पर उससे ज़्यादा हैरान वह इस बात पर था कि इसकी ऐसी हालत किसने की? और यह यहाँ क्या कर रही है?

    "साहब, खड़े क्या हैं? चलिए ना! देखिए क्या हालत कर दी है उन सबने इसकी।" चंदा जी विराग को खड़ा देख कहती हैं।

    विराग होश में आता है और चंदा जी को देखता है। फिर चार्वी को। उसके दिमाग में इस समय बहुत सारे सवाल थे, पर अभी सही समय नहीं था कुछ भी पूछने का।

    इसलिए विराग बिना कुछ बोले चंदा जी के साथ बाहर निकल जाता है।

    flashback end:-

    विराग का ध्यान अपने फ़ोन के रिंग से टूटता है। वह अपना फ़ोन जेब से निकालता है और आ रहे कॉलर आईडी को देख कान पर लगाकर कॉल पिक करता है।

    पिक करते ही दूसरी तरफ़ से कुछ कहा जाता है। "अच्छे से ख़ातिरदारी करो। जल्द ही मुलाक़ात होगी।" इतना बोलकर विराग फ़ोन काट देता है।

    "क्या ये लड़की वही है? अगर ये वही है तो इसकी ऐसी हालत कैसे?" विराग अपने मन में सो सवालों लिए हुए था।

    काफी देर खुद में उलझने के बाद विराग अपनी आँखें बंद करके खोलता है, एक गहरी साँस लेता है, फिर अपने कपड़े को देखता है जो चार्वी के खून से रंगे हुए थे।

    पर विराग इस चीज़ को इग्नोर करके चंदा जी की तरफ़ बढ़ता है और उनके सामने जाकर खड़ा हो जाता है।

    वहाँ चंदा जी जो अपना दिल थामे बैठी रो रही थीं, किसी परछाई को अपने पास महसूस कर अपनी नज़रें उठाकर देखती हैं तो सामने विराग होता है।

    "मुझे बात करनी है आपसे?"

  • 14. सच आया सामने। - Chapter 14

    Words: 1368

    Estimated Reading Time: 9 min

    "क्या जानना है आपको?" चंदा जी ने विराग से कहा। विराग और चंदा जी उस समय हॉस्पिटल के एक कमरे में मौजूद थे, जहाँ इन दोनों के अलावा कोई नहीं था।

    विराग, जो उनकी तरफ़ पीठ किये हुए था, चंदा जी की तरफ़ मुड़ा और ठंडेपन से कहा,

    "ये लड़की कौन है? और इसकी हालत कैसे हुई ये।"

    विराग के मुँह से चार्वी के बारे में सुनकर चंदा जी थोड़ी हैरानी से उसे देखती हैं। चंदा जी को कुछ न कहते देख विराग एक बार फिर कहता है, "शायद आपने सुना नहीं, मैंने कुछ पूछा है?" इस बार भी विराग की आवाज़ में बिल्कुल भी नरमी नहीं थी।

    चंदा जी कुछ पल खामोश रहती हैं और कुछ सोचने लगती हैं। "क्या करूँ? बता दूँ? हाँ, बता देती हूँ। शायद ये हमारी मदद कर सकते हैं जिससे मेरी गुड़िया रानी बच जाए? नहीं-नहीं, अगर ये भी शान और सीमा जी की तरह निकले तो नहीं-नहीं, एक और नर्क में उस बच्ची को नहीं डाल सकती।" काफी देर तक चंदा जी खुद में उलझी रहती हैं और मन में खुद से ही ना जाने कितने सवाल करती हैं।

    वहाँ खड़ा विराग उनके बोलने का इंतज़ार ही कर रहा था, अचानक विराग का फ़ोन वाइब्रेट होता है। शायद कोई मैसेज आया था।

    विराग फ़ोन देखता है, फिर उस मैसेज को ओपन करता है। कुछ ही पल में मैसेज देख विराग की आँखें खून की तरह लाल हो जाती हैं; उसकी पकड़ फ़ोन पर कस जाती है।

    "What the! ये कैसे हो सकता है?" विराग अपने जबड़े कसते हुए मन में कहता है।

    "इतना बड़ा धोखा, वो भी विराग शेखावत के साथ।" विराग फ़ोन को कुछ मिनट यूँ ही देखता है, फिर सामने खड़ी चंदा जी को देखता है; वो अभी भी कशमकश में खोई हुई थी।

    "इस लड़की का नाम क्या है?" इस बार विराग थोड़ी ऊँची और सख्त आवाज़ में कहता है।

    जिसे सुन चंदा जी, जो खोई हुई थीं, वो घबरा जाती हैं। वो अपनी नज़र उठाकर विराग को देखती हैं, जो काफी गुस्से में खड़ा था; उसकी आँखें, उसका चेहरा, सब इस समय बहुत ही रुद्र रूप ले रखा था।

    "चार्वी!"

    "What?" चंदा जी की बात पर थोड़ी हैरानी के साथ विराग कहता है।

    चंदा जी हाँ में सर हिलाती हैं। "चार्वी नाम है उसका।"

    "ये सीमा और अशोक कपूर की बेटी नहीं है?" विराग तुरंत ही सवाल करता है।

    सीमा और अशोक का नाम सुन चंदा जी को काफी हैरानी होती है और वो हैरान भरी नज़रों से विराग को देखने लगती हैं। आखिर ये कैसे जानता था सीमा और अशोक को?

    "ये कैसी बातें कर रहे हैं। सीमा मैडम की बेटी तो नेहा बिटिया है जो बाहर देश में पढ़ाई कर रही है। अगर ये उनकी बेटी होती तो आप ही बताइए, आज जो उनकी हालत है, कभी होती?" चंदा विराग से सवाल करती है।

    चंदा की बात सुन विराग के हाथों की मुट्ठियाँ कस जाती हैं और वो अपनी लाल जलती आँखों से कहता है, "तो ये कौन है?"

    "हमें नहीं पता ये बच्ची कौन है।" चंदा सीधे जवाब देती है।

    और फिर विराग को देख आगे कहती है, "आज से दस साल पहले जब मैं गाँव से शहर आई थी नौकरी की तलाश में, तब मुझे सीमा कपूर के यहाँ काम मिला। मैं वहाँ नौकरी करती हूँ। जब मैं वहाँ काम करने के लिए गई, तब मुझे वहाँ गुड़िया रानी मिली, जो एक कोने में बैठकर रो रही थी। और आज तक सिर्फ़ वो रो ही रही है।" कहते हुए चंदा जी की आँखों से आँसू निकलने लगे; उनकी आँखों के सामने वो दस साल बीतने लगे जिसमें चार्वी को सिर्फ़ दर्द मिला।

    वहाँ विराग काफी ध्यान से चंदा जी की बातें सुन रहा था और खामोश था, जैसे वो और जानना चाहता हो।

    चंदा जी अपने आँसू साफ़ करती हैं और आगे कहती हैं, "बहुत छोटी सी थी वो, शायद 7 या 8 साल की। उसके शरीर पर मारने के निशान थे। सीमा मैडम आये दिन उस बच्ची की मारती थीं। उसकी कोई गलती नहीं होती थी, फिर भी अपना सारा गुस्सा इस बच्ची पर उतारा जाता था। कभी-कभी तो उसकी हालत इतनी बुरी कर दी जाती थी कि वो हफ़्तों तक उठ नहीं पाती थी।"

    "तो आपने रोका नहीं कभी?" विराग अपने दाँत पिसते हुए कहता है। ना जाने क्यों चार्वी के बारे में सुन उसका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।

    चंदा जी विराग पर नज़रें करती हैं, फिर धीमी आवाज़ में कहती हैं, "मैंने बहुत कोशिश की उसे उन लोगों से बचा लूँ, पर मैं बहुत मजबूर औरत हूँ, जो अपनी गरीबी के आगे मजबूर थी। पर फिर भी मैं गुड़िया रानी को बचाने की कोशिश करती थी, पर मैं नहीं कर पाती थी। पहले तो सिर्फ़ सीमा मैडम ही उसे मारा करती थीं, पर फिर धीरे-धीरे जैसे-जैसे गुड़िया रानी बड़ी होती गई, शान बाबा भी उसे मारने लगे।" इस बार चंदा जी अपने आँसू रोक नहीं पाईं और धीरे-धीरे सारी चीज़ें उन्हें बता दीं।

    "मैंने आज तक सीमा और शान जैसा इंसान नहीं देखा। पहले तो उस बच्ची का घर अपने नाम करवाने के लिए अपने बेटे से शादी करवा दी, वो भी तब जब वो पूरी तरह से बालिग भी नहीं हुई थी। और उसके बाद उसे ही उसके घर में इस तरह रखा जाने लगा जैसे वो कोई गंदी चीज़ है।" वहाँ विराग की आँखें पूरी तरह लाल हो गई थीं।

    "इसका मतलब जो मैंने देखा वो सच है? ये वो नहीं है।" विराग धीरे से बड़बड़ाता है।

    और फिर चंदा जी अपने दोनों हाथ विराग के आगे जोड़ते हुए कहती हैं, "साहब, प्लीज़, आपका बहुत एहसान होगा, गुड़िया रानी को बचा लीजिये। वो बहुत छोटी है। वो लोग बिल्कुल अच्छे नहीं; उन लोगों ने तो पैसों के लिए उसे बेच भी दिया था। ये भी नहीं सोचा वो बच्ची बाकी सबसे अलग है, उसमें सबकी तरह समझ नहीं है।"

    विराग चंदा जी की बात गौर से सुन ही रहा था कि उसे चंदा जी की आख़िरी में कही गई बात पर थोड़े एक्सप्रेशन के साथ देखता है।

    वहाँ चंदा जी, जिनके चेहरे पर बेबसी थी, अब गुस्सा आ जाता है और वो थोड़े गुस्से के साथ कहती हैं, "मुझे तो गुस्सा आता है उस इंसान पर जो अपनी हवस मिटाने के लिए उस छोटी सी बच्ची का रेप करता रहा। उसे बिल्कुल दया नहीं आई उस बच्ची पर।"

    "रेप?" विराग बात दोहराता है।

    चंदा जी हाँ में सर हिलाती हैं। "हाँ, रेप। कोई तो आदमी था जो सीमा और शान बाबा को पैसे देता था चार्वी को उसके पास भेजने के लिए। और वो लोग पैसों के लालची लोग, उस बच्ची की हालत पर बिल्कुल तरस नहीं खाते थे।"

    विराग चंदा जी की बातें सुन दो पल के लिए तो जम जाता है। उसके जेहन में एक शब्द चल रहा था: रेप! क्या सच में उसने किसी मासूम का रेप कर दिया? शायद हाँ। अनजाने में ही सही, बदले की आग में अंधा होकर उसने किसी की ज़िंदगी खराब कर दी। और पता नहीं क्या-क्या विराग के दिमाग में चलने लगता है। उसे अब खुद पर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था कि वो ऐसा कैसे कर सकता है। और ऊपर से आज उसे जो कुछ भी चार्वी के बारे में पता चला वो बहुत ही दर्दनाक था।

    जिस चीज़ से वो सबसे ज़्यादा नफ़रत करता था, अनजाने में उसने वही किया। उसने रेप किया? क्या सच में वो इतना अंधा हो गया था? उस लड़की की दर्द भरी आवाज़ सुनकर भी वो उसे दर्द देता रहता था बिना किसी गिल्ट के। पर आज उसे गिल्ट हो रहा था।

    "वो लोग बुरे और उसे भी बुरी है उसकी माँ, जो उस छोटी सी बच्ची को किसी और के पास छोड़ दी, या शायद उन्हें गुड़िया रानी चाहिए ही नहीं थी।"

    चंदा जी की बात सुन विराग होश में आता है और चंदा जी को देख कुछ सोचकर कहता है, "तो उसकी कोई फैमिली तो होगी?"

    चंदा जी ना में सर हिलाती हैं। "नहीं, उनकी कोई फैमिली नहीं है। उन्हें अकेला ही देखा है और सीमा जी के मुँह से तो हमेशा यही सुना है कि उनकी माँ उन्हें जन्म ही नहीं देना चाहती थी, तभी तो पैदा होते ही छोड़कर चली गई।"

    "अह्ह्ह्हह!"

    वो अभी बोली ही रही थी कि अचानक वो कमरा सन्नाटे में पसर जाता है। विराग का चेहरा हैरानी से भर जाता है।

  • 15. गोली चलना। - Chapter 15

    Words: 973

    Estimated Reading Time: 6 min

    "बॉस, आप ठीक हैं ना? आपको कोई चोट तो नहीं लगी?"

    विराग का असिस्टेंट भागता हुआ विराग के पास आया। विराग अभी भी उस कमरे में मौजूद था। उसने अपने असिस्टेंट की कोई बात नहीं सुनी; उसकी नज़र बस फर्श पर गिरी चंदा जी पर थी।

    जिनके पेट से खून निकल रहा था। गोली, हाँ, गोली लगी थी। वह गोली जो विराग के लिए चली थी।

    "बॉस, हमारे आदमी उसके पीछे गए हैं। शुक्र है आप बच गए। वरना सिलेंसर के थ्रू टारगेट उसने आपको ही बनाया था।"

    "अभी इन सब का समय नहीं है। वीर, डॉक्टर को बुलाओ। उन्हें गोली लगी है।" विराग ने वीर से कहा; उसकी नज़र अभी भी फर्श पर थी।

    विराग की बात सुनकर वीर जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया।

    उसके जाने के बाद विराग जल्दी से उनके पास बैठा और उन्हें उठाने लगा। "आँखें बंद करना। अभी डॉक्टर्स आ रहे हैं।"

    "नाह-नहीं!" चंदा जी ने विराग को रोका।

    विराग चंदा जी को देखता है तो चंदा जी की आँखों में आँसू थे; उनके होंठ कांप रहे थे, पर फिर भी वो हिम्मत करके कहती हैं, "न-नहीं, मेरा ahhh समय आ गया है। पर मेरी गुड़िया रानी को बचा लीजिए। उसने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी है। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, उसे वापस सीमा और शान के पास मत भेजना। वो लोग उसे नहीं छोड़ेंगे। और अगर वो अकेली रही तो ये दुनिया उसे नहीं छोड़ेगी। वो बहुत मासूम है, बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह। उसे सही-गलत की समझ भी नहीं है। अह्ह्ह!" चंदा जी को बहुत तकलीफ हो रही थी। उनका एक हाथ अपने पेट पर रखा हुआ था जहाँ से खून बह रहा था।

    "आप अभी चुप रहिए। आप ठीक हो जाएँगी। ये सब बातें बाद में करते हैं।" इतना बोलकर वो चंदा जी को गोद में उठा लेता है।

    "न-नहीं, मुझे कहीं नहीं जाना। बस मुझे अपनी आखिरी साँस के समय एक वादा चाहिए।"

    "कैसा वादा?"

    "आ-आप उसका ध्यान रखेंगे। उसे कुछ नहीं होने देंगे। वो होश में आते ही सबसे पहले अपनी आजी को ढूँढ़ेगी। उसे कभी मत बताना कि उसकी आजी मर गई है। उसका मेरा अलावा कोई नहीं है। मैं जानती हूँ, आ-आप हमें नहीं जानते, पर मैं आपके अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकती। इस दुनिया ने सिर्फ उसे तकलीफ दी है। आप मत देना। अगर आप उसे अपने साथ नहीं रखेंगे तो उसे अकेला मत छोड़ना। उसे अनजान लोगों में डर लगता है।" इतना कहकर वो अपने साड़ी के पल्लू का छोर ढूँढ़ने लगती है।

    और फिर उसमें से एक पर्ची निकालकर विराग के आगे करती है। "इस-इसमें मेरे बेटे और बहू का पता है। मे-मेरी बच्ची को उन तक पहुँचा देना। एक वही है जो उसे संभाल सकते हैं।"

    विराग खामोशी से उनकी बात सुन रहा था और उन्हें आगे लेकर बढ़ रहा था। विराग को कुछ ना कहते देख, चंदा जी, जिनकी आँखें अब बंद होने को थीं, वो अपनी बेहद धीमी आवाज़ में कहती हैं, "आ-आप वादा कीजिए, उसे वापस नहीं भेजेंगे। वो बाकी बच्चों की तरह नहीं है। सब लोग उसे गलत बोलते और समझते हैं। वो एक असाधर..." इसी के साथ चंदा जी की आँखें बंद हो जाती हैं।

    विराग चंदा जी को देखता है और चिल्लाता है, "डॉक्टर कहाँ मर गए सब?"

    विराग के चिल्लाने पर वीर और डॉक्टर भाग कर आते हैं। "इन्हें कुछ नहीं होना चाहिए। इन्होंने विराग शेखावत पर लगने वाली गोली खुद खाई है।" विराग डॉक्टर्स से कहता है।

    और उन्हें ट्रॉली पर ले जाता है।

    इसके साथ ही डॉक्टर चंदा जी को ले जाते हैं। और वहीं दूसरी तरफ चार्वी की भी कोई खबर नहीं आई थी। विराग जो इसी सोच में था, एक ही दिन में उसके साथ दो बार हादसे हो चुके थे।

    कितना अजीब था ये सब।

    कुछ घंटे ऐसे ही निकल जाते हैं।

    OT से डॉक्टर बाहर आती है। विराग जो अभी वीर को कुछ कह रहा था, डॉक्टर को आता देख वो रुक जाता है।

    डॉक्टर विराग के सामने आकर रुकती है। "पेशेंट का कोई यहाँ मौजूद है?" डॉक्टर विराग और वीर को देखते हुए कहती है।

    "क्या हुआ? Everything is okay?" विराग हमेशा की तरह ठंडेपन से कहता है।

    "देखिए, उनकी कंडीशन के बारे में उनकी फैमिली से ही डिस्कस कर सकते हैं। हम आपको कुछ नहीं बता सकते। It's personal." डॉक्टर बिना डरे, बिना हिचके विराग को सीधा मना कर देती है।

    विराग डॉक्टर को देखता है पर कुछ नहीं कहता है। और क्या कहता? वो तो उस लड़की को अच्छे से जानता भी नहीं था।

    "जी, मैं उसका भाई हूँ।"

    वीर के मुँह से 'भाई' सुनकर विराग एक नज़र वीर को देखता है तो वीर मासूम सा मुँह बनाता है और धीरे से ना-सुना वाला सॉरी कहता है।

    जैसे वो कहना चाहता हो, अभी उसे इसके अलावा कुछ नहीं सूझा।

    डॉक्टर कुछ पल विराग और वीर को देखती है। "क्या हुआ डॉक्टर? वो ठीक है?" वीर डॉक्टर से कहता है।

    "आप आइए मेरे साथ।" डॉक्टर वीर से कहती है।

    "जो बात होगी, मेरे सामने होगी। सीधा-सीधा बताइए क्या बात है।" विराग अपने दाँत पीसते हुए सख्त आवाज़ में कहता है।

    जिसे सुनकर वीर और उस डॉक्टर के चलते कदम रुक जाते हैं। डॉक्टर एक पल के लिए सहम जाती है। वो अपनी घबराहट छिपाते हुए कहती है,

    "देखिए, हम आपको नहीं बता सकते।"

    "ठीक है, फिर मरने को तैयार हो जाओ।" इतना बोलकर विराग अपनी जेब से गन निकाल लेता है।

    जिसे देखकर डॉक्टर एक पल के लिए डर जाती है। "दे-देखिए, ये हॉस्पिटल है। आ-आप क्या कर रहे हैं?"

    वहीं विराग, जिसे खुद नहीं पता था उसे क्या हुआ, पर वो जानना चाहता था चार्वी के बारे में और उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था कि डॉक्टर ने उसे उसके बारे में बताने से मना कर दिया।

    विराग खामोश रहता है और अपनी गन लोड करने लगता है। डॉक्टर पूरी तरह डर चुकी थी; उसके पसीने से उसका चेहरा भींग चुका था।

    "म-मैं बताती हूँ।"

  • 16. अब्बॉर्शन। - Chapter 16

    Words: 765

    Estimated Reading Time: 5 min

    विराग चार्वी के पास बैठा उसे देख रहा था। चार्वी हॉस्पिटल बेड पर बेजान सी पड़ी हुई थी; उसके चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था। उसका पूरा शरीर पीला हो चुका था, जैसे उसके शरीर में खून का एक भी कतरा न बचा हो।

    आँखों के कोनों से अभी भी आँसू बह रहे थे, जो उसके कानों से होते हुए उसके बालों को भीगा रहे थे। चार्वी अभी भी बेहोश थी, पर शायद उसका दर्द इतना बड़ा था कि वह बेहोशी में भी उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

    विराग इमोशनलेस होकर चार्वी को देख रहा था। कुछ देर देखने के बाद उसने अपना फ़ोन निकाला और किसी को कॉल किया।

    "पेपर्स रेडी करवाओ।" इतना बोलकर उसने फ़ोन काट दिया और वापस चार्वी को देखने लगा।

    उसके जेहन में अभी भी कुछ देर पहले डॉक्टर की कही बात घूम रही थी।

    कुछ देर पहले वीर और विराग दोनों केबिन में बैठे थे, और उनके सामने वही डॉक्टर थी जिसने चार्वी का ऑपरेशन किया था।

    वह अपनी फ़ाइल टेबल पर रखती है और एक नज़र वीर और विराग को देखती है, जो उसके बोलने का इंतज़ार कर रहे थे।

    "तुम्हारे पास बहुत टाइम होगा, पर मेरे पास यहाँ वेस्ट करने के लिए बिल्कुल समय नहीं है। सो जो बोलना है, जल्दी कहो।" विराग का लहजा काफी रूड था।

    डॉक्टर वीर को देखती है, जो काफी शांत बैठा था। "क्या आपको पता था आपकी बहन प्रेग्नेंट थी?" डॉक्टर का यह कहना ही था कि वीर और विराग दोनों के एक्सप्रेशन बदल जाते हैं।

    वीर के एक्सप्रेशन तो फिर भी देखे जा सकते थे, पर विराग के देखना इतना आसान नहीं था। वीर कुछ नहीं कहता और एक नज़र विराग को देखता है, जैसे बोलना चाह रहा हो, 'क्या यह उसने किया है?' पर वह बोलता नहीं है।

    डॉक्टर वीर के बिहेवियर को अच्छे से नोटिस करती है। "देखिए, आपके चेहरे से लग रहा है कि आपको इस बारे में पता नहीं था। पर मैं आपको बता दूँ, वह दो वीक प्रेग्नेंट थी। उनकी उम्र भी काफी छोटी है; आई थिंक वो माइनर है। और उनका प्रेग्नेंट होना मतलब शायद उनका रेप हुआ हो।"

    "माइनर!" विराग और वीर दोनों के दिमाग में एक साथ यही बात हिंट करती है।

    पर यह कैसे हो सकता है? मतलब इतनी छोटी बच्ची के साथ ऐसा करने की सोच भी कैसे सकते हैं? क्या इन्हें माइनर और एडल्ट में फ़र्क नहीं पता? वीर के जेहन में बहुत सारे सवाल उमड़ने लगते हैं, जिसका जवाब उसके पास नहीं था।

    वहीं विराग, जिसके चेहरे से उसके एक्सप्रेशन पहचान पाना मुश्किल था, पर डॉक्टर की बात सुनकर उसे भी शॉक लगा था। उसके साथ इतना बड़ा धोखा हुआ और उसे पता भी नहीं चला? कैसे-कैसे हो गया? या वह अपनी नफ़रत में इतना अंधा हो चुका था कि वह सही-गलत देखना भूल चुका था?

    उस केबिन में कुछ देर के लिए खामोशी छा गई थी। "एक मिनट, प्रेग्नेंट थी का क्या मतलब?" वीर तुरंत कहता है।

    डॉक्टर वीर को देखती है, फिर विराग को, जो चुपचाप बैठा हुआ था। "जिस हालत में आप लोग उसे लेकर आए थे, उस कंडीशन में हमें उसका अबॉर्शन करना पड़ा, वरना उनकी जान को खतरा हो सकता था।"

    "कैसी हालत?" इस बार विराग कहता है। उसके एक्सप्रेशन पहले से बदले हुए थे; हालाँकि उसे अंदाज़ा था, पर वह डॉक्टर के मुँह से कन्फ़र्म करना चाहता था।

    डॉक्टर भी अब ज़्यादा टाइम वेस्ट ना करते हुए सब कुछ बताने लगती है। "जैसी उनकी कंडीशन थी, इससे साफ़ पता था कि कुछ घंटे पहले उनके साथ रेप किया गया; शायद कोई दरिंदा ही होगा, वरना किसी प्रेग्नेंट के साथ इतनी बेरहमी दिखाना और उसके प्राइवेट एरिया को डैमेज करना किसी इंसान का तो काम नहीं। हमने कोशिश की थी, पर उनकी ब्लीडिंग इतनी ज़्यादा हो रही थी कि हमें अबॉर्शन करना पड़ा, वरना उनकी बॉडी में पॉइज़न फैल सकता था।"

    डॉक्टर काफी केल्म होकर सब चीज़ें बता रही थी, वहीं वीर और विराग जब उसकी बात सुनते हैं, तो दोनों के गुस्से से मुट्ठी बंद हो जाती हैं। वहीं विराग के जेहन में बार-बार वह मंज़र घूमने लगता है जब वह चाँद जी की मदद के लिए गया था और चार्वी फ़र्श पर खून से सनी हुई, निर्वस्त्र थी। उसकी हालत देखकर अंदाज़ा तो उसे हो ही गया था कि कुछ तो गलत हुआ है उसके साथ, पर डॉक्टर की बात सुनकर उसे कन्फ़र्म हो गया था।

    "ओके, देन कुछ मेडिसिन है, उसे टाइम टू टाइम देते रहिए। और कुछ दिन उन्हें हॉस्पिटलाइज़्ड रहना पड़ेगा। बॉडी काफी वीक है।"

    "ओके!" वीर कहता है।

    पर विराग बिना कुछ बोले अपनी जगह से उठकर सीधा केबिन से बाहर निकल जाता है।

  • 17. चार्वी को आया होश। - Chapter 17

    Words: 790

    Estimated Reading Time: 5 min

    चार्वी ने अपनी आँखें बड़ी मुश्किल से खोलीं। उसका चेहरा पूरी तरह उतर गया था; आँखें रोने से खाली और सूज चुकी थीं।

    चार्वी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। सबसे पहले उसकी नज़र सीलिंग पर गई, जिसे वह कुछ देर देखती रही। पर अचानक उसे अपने साथ जो हुआ था, वह याद आया। उसे याद आते ही वह घबरा गई और जल्दी से उठकर बैठ गई।

    "Ahhhh!" चार्वी को अपने पूरे शरीर और हाथों में बहुत ज़ोर का दर्द हो रहा था।

    वह जैसे ही हॉस्पिटल बेड पर बैठी और अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाईं, उसने खुद को हॉस्पिटल गाउन में बेड पर पाया।

    "य-ये मैं कहाँ हूँ?" चार्वी ने खुद से कहा। वह बहुत डरी हुई थी, जो उसके चेहरे पर भी दिखाई दे रहा था।

    फिर उसने अपने हाथ की तरफ देखा, जहाँ ड्रिप लगा हुआ था। उसे देखकर उसकी आँखों में आँसू आने लगे। उसे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था। "य-य-ये क्या ह..." वह बिल्कुल बोल नहीं पा रही थी।

    यह सब उसके लिए नया था- यह हॉस्पिटल, यह बेड, ये कपड़े, यह ड्रिप। चार्वी ने आज तक कभी हॉस्पिटल का मुँह नहीं देखा था; वह इस जगह से बिल्कुल अनजान थी। जब भी वह बीमार हुई थी, डॉक्टर उसे घर पर चेक करने आते थे। इसके बावजूद वे उसे कोई दवा या इंजेक्शन नहीं देते थे। वजह थी सीमा और शान, जो बस डॉक्टर को इसलिए बुलाते थे ताकि उन्हें पता तो चले कि वह कब मरेगी; उनका तो बस यही चलता था कि कैसे उसे मार डालें।

    "आ-आजी! आजी!" चार्वी रोते हुए जोर-जोर से चिल्लाने लगी। वह पूरे कमरे को पागल की तरह बार-बार देखकर रो रही थी।

    वह जल्दी से अपने हाथ से ड्रिप निकालने लगी।

    "अरे! आप ये क्या कर रही हैं?" एक नर्स चार्वी के रोने की आवाज़ सुनकर जल्दी से अंदर आई।

    "ऐसा मत कीजिए, आपको दर्द होगा।" नर्स जल्दी से चार्वी का हाथ रोकते हुए बोली।

    अपने हाथ पर किसी का हाथ महसूस करके चार्वी डर गई और जल्दी से सामने नर्स को देखा। फिर थोड़ी घबराई हुई सी खिसकने लगी। "आ-आप?"

    "आपकी हेल्थ ठीक नहीं है। रुकिए, मैं सर को बुलाकर आती हूँ।" नर्स चार्वी का डरा हुआ चेहरा देख पा रही थी।

    "आ-आजी! मे-मेरी आ-आजी कहाँ है? मैं कि-किसी को न-नहीं जानती।" चार्वी अपनी नज़रें झुकाए हुए, धीमी-धीमी आवाज़ में बोल रही थी। उसकी पूरी बॉडी काँप रही थी।

    वही नर्स चार्वी को काफी ध्यान से देख रही थी। और जब उसकी बात सुनी, तो उसे हैरानी हुई। क्या उसे हेल्थ कोई इंसान लगता है?

    वह अभी चार्वी को देख ही रही थी कि अचानक उसकी नज़र सामने दरवाज़े के पास खड़े विराग पर गई, जो अभी-अभी अंदर आया था। उसकी नज़र चार्वी पर थी।

    "सर!"

    "अच्छा हुआ आप आ गए। इन्हें होश आ गया।" नर्स थोड़ा हिचकते हुए बोली।

    पर विराग एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा। "Gate out." विराग की आवाज़ सख्त थी। उसे सुनकर नर्स जल्दी से बाहर निकल गई।

    वही चार्वी इतनी ऊँची आवाज़ सुनकर सहम गई और वह बेड से चिपकने लगी। उसने एक बार भी विराग की तरफ नहीं देखा था। उसे अब डर लगने लगा था।

    "आ-आजी! चावी को डर लग रहा है।" चार्वी रोते हुए, धीमी आवाज़ में खुद से कह ही रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पास खड़ा है। जाहिर था, इस समय विराग के अलावा कोई और हो भी नहीं सकता था।

    विराग चार्वी के बेड के पास आ चुका था और वह अपनी इमोशनलेस आँखों के साथ चार्वी को देख रहा था। उसकी बॉडी काँप रही थी। उसका हाथ, जिस पर ड्रिप लगा हुआ था, उसमें से खून आ रहा था क्योंकि चार्वी उसे खींच रही थी।

    "च-चावी को और मार नहीं खाना है। आ-आजी! ड-डर लग रहा है।" चार्वी बेड से चिपकती हुई, रोते हुए, धीमी-धीमी आवाज़ में कह रही थी। वह खुद को रोने से रोक रही थी। उसे डर था कि अगर वह रोएगी तो कहीं उसके सामने खड़ा आदमी उसे हर्ट न कर दे।

    उसके पूरे बाल बिखर चुके थे; हाथ-पैर, पूरा शरीर सफ़ेद पड़ चुका था। एक दिन में चार्वी पहले से और भी ज़्यादा कमज़ोर हो गई थी।

    विराग चार्वी को देखने के साथ-साथ उसकी बातें भी सुन रहा था। "ये क्या बिहेवियर है? किसने कहा उठने को?" विराग की आवाज़ में बिल्कुल नर्मी नहीं थी।

    इसे सुनकर चार्वी सुबकते हुए सहम गई और डरते हुए अपना चेहरा उठाकर विराग को देखा।

    विराग की नज़रें सीधा चार्वी की मासूम, खूबसूरत, हल्की नीली आँखों पर चली गईं। वह इस समय बड़ी ही मासूमियत के साथ अपना सर उठाकर विराग को देख रही थी।

    उसने आज पहली बार उसे देखा था। वह नहीं जानती थी कि यह कौन है। शान, सीमा और चाँदा जी के अलावा हर चेहरा उसके लिए नया था।

    "आ-आप कौन हो?"

  • 18. रुड बिहेवियर। - Chapter 18

    Words: 752

    Estimated Reading Time: 5 min

    "आप कौन हो?" चार्वी विराग से डरते हुए कहती है।

    विराग की नज़र अभी भी उसके हाथों से निकल रहे ब्लड पर थी। वह आगे बढ़ा और साइड टेबल पर रखे कॉटन को उठाकर चार्वी के हाथों को पकड़ा।

    चार्वी काँप गई।

    "च-चावी ने कु-कुछ नहीं किया। आ-आप च-चावी को मत मारो।" चार्वी रोते हुए, अपने काँपते होंठों के साथ कहती है।

    विराग उसकी बात सुनकर अपनी नज़रें उठाता है और अपनी काली आँखों से चार्वी को देखता है, जो इस समय किसी छोटे से, डरे हुए, सहमी हुए पप्पी की तरह लग रही थी। उसे थोड़ा अजीब लगता है, पर वह वापस उसे इग्नोर करके उसके हाथ को थामता है और कॉटन से ड्रिप के आस-पास लगे ब्लड को साफ करने लगता है।

    "तुमसे किसी ने कहा था उठने को?" विराग कहता है और चार्वी को देखता है।

    चार्वी अपने हाथों को देखते हुए ना में सर हिला देती है।

    "आगे से बिना कहे उठने की कोशिश भी मत करना।" विराग काफी रूड था। चार्वी रोना चाहती थी, पर वह डर गई थी।

    "आ-आजी मे-मेरी आजी।" चार्वी धीमी आवाज़ में बुदबुदाती है। उसका सर झुका हुआ था।

    विराग को इस समय इरिटेशन हो रही थी। वह खुद से ही फ्रस्ट्रेटेड था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रहा है। वह यहाँ नहीं रुकना चाहता था, फिर भी कल से वह यहीं है। उसे इस लड़की पर गुस्सा करना था, पर कर नहीं पा रहा था। वह क्या कर रहा है, क्या करना चाहता है, सब उसकी सोच से परे था।

    विराग अपनी सर्द नज़रों से चार्वी को घूर रहा था। इतने में दरवाज़े पर नॉक होता है, और इतने में वीर अंदर आता है। विराग वीर को देखता है, जिसके हाथ में सूप का कटोरा था।

    "इसे होश आ गया?" वीर अंदर आते हुए कहता है, और फिर एक नज़र विराग, फिर चार्वी को देखता है।

    जहाँ चार्वी बिल्कुल सिमट कर बैठी सिसक रही थी, वहीं विराग उसे घूर रहा था। विराग को घूरता देख वीर ना-गवारी से सर हिलाता है। फिर चार्वी के पास जाकर खड़ा होता है।

    चार्वी डर से अपना सर नहीं उठाती। "हेल्लो!" वीर की आवाज़ काफी नर्म थी।

    पहली बार अपने सामने किसी की इतनी नर्म, शांत आवाज़ सुनकर चार्वी अपनी नज़रें उठाकर वीर को देखती है। वीर की नज़र भी चार्वी पर जाती है।

    उसकी नज़र तो उसकी मासूमियत पर ही ठहर जाती है। इतनी क्यूट आखिर कोई कैसे हो सकता है? मासूम चेहरा, गीली पलकें, लाल नाक, सफ़ेद चेहरा, जो बीमारी की हालत में भी खिल रहा था।

    "आ-आप आप च-चावी को जानते हो?" चार्वी की आवाज़ सुन वीर होश में आता है।

    "हाँ, बहुत अच्छे से। मैं तो तुम्हें जानता हूँ।" वीर प्यार से उसकी बातों का मुस्कुराते हुए जवाब देता है।

    चार्वी कुछ मिनट सोच में पड़ जाती है। वहीं विराग, कभी वीर को तो कभी चार्वी को घूर रहा था। वीर को चार्वी को सोच में डूबा देख विराग को देखता है और उसे आँखों से इशारा करता है।

    "क्या हुआ?" फिर वीर चार्वी को अभी भी सोचता हुआ देख पूछता है।

    वीर की बात पर चार्वी अपनी फड़फड़ाती आँखों से उसे देखती हुई कहती है, "आ-आप कौन हो?" सच में, जितनी मासूम वह थी, उससे भी प्यारी उसकी आवाज़ थी, जो वीर के कानों में किसी मधुर संगीत की तरह बज रही थी।

    "हम जो भी हों, तुम्हें जानने की ज़रूरत नहीं समझी।" वीर जवाब देता है, उससे पहले विराग अपनी रूड और एरेगेंट वॉइस में कहता है।

    जिसे सुनकर चार्वी को भूल चुकी थी कि उसे आस-पास विराग भी है, वह एक बार फिर सहम जाती है और थोड़ा पीछे हो जाती है।

    वहीं वीर को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है विराग का चार्वी से इस तरह बात करना। वह एक नज़र डरी-सहमी चार्वी को देखता है, फिर विराग को।

    "मैं अभी आता हूँ, फिर मैं आपको बताऊँगा मैं कौन हूँ, ठीक है।" वीर प्यार से उसके बालों में हाथ फेरता है। चार्वी अपना सर उठाने की हिम्मत नहीं करती।

    वीर उस सूप को वहीं टेबल पर रखकर विराग के पास आकर धीमी आवाज़ में कहता है, "मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

    विराग इमोशनल आँखों से वीर को देखता है। वीर कमरे से बाहर निकल जाता है। विराग चार्वी को देखता है, फिर वह भी चला जाता है। पर उसने दरवाज़ा इतनी ज़ोर से बंद किया था कि चार्वी काँप जाती है, और सिसकना बढ़ जाता है।

    "ब-बहुत दर्द हो रहा है। क-क्या ये भी म-मरेंगे?" चार्वी अपने पेट पर हाथ रखे खुद से कहती है। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे।

  • 19. चार्वी का सच। - Chapter 19

    Words: 945

    Estimated Reading Time: 6 min

    कुछ देर बाद विराग अंदर आया। उसकी नज़र बिस्तर पर सोई चार्वी पर पड़ी। फिर उसने साइड टेबल पर रखे सूप के कटोरे पर ध्यान दिया जो अभी भी वीर ने जिस तरह छोड़ा था, उसी तरह था।

    विराग चार्वी की ओर कदम बढ़ाया। और कुछ दूरी पर आकर खड़ा हो गया। उसने अपने पैंट की दोनों जेब में हाथ डाले और उसके मासूम चेहरे को देखने लगा, जिसकी मासूमियत अब खोने लगी थी। चेहरे पर डर की शिकन मौजूद थी; जैसे उसे सुकून की नींद की ज़रूरत हो।

    विराग चार्वी के चेहरे को देख रहा था। उसे कुछ देर पहले वीर की कही बातें याद आ रही थीं।

    "ये आप क्या कर रहे थे अंदर बॉस?" वीर विराग के सामने खड़ा था।

    विराग वीर को देखते हुए, अपनी एक भौंह उठाकर बोला, "इतनी इज़्ज़त तो कभी नहीं देते जितना अब दे रहे हो?"

    "अभी मैं आपका असिस्टेंट हूँ।" वीर उसी लहजे में बोला।

    "कब से? जहाँ तक मुझे पता है, तुम तो मेरे असिस्टेंट कम और बॉस ज़्यादा बने रहते हो।" विराग ताना मारते हुए बोला।

    "Shut up, विग।" वीर चिढ़ते हुए बोला।

    "In the same way." कहकर उसके चेहरे पर smirk मुस्कान थी।

    वीर अपनी आँखें छोटी करके विराग को देखने लगा। उसे उसकी हरकतों पर गुस्सा तो आया था, पर वह चुप ही रहना बेहतर समझता था।

    विराग उसे देखता रहा, फिर वहाँ से जाने लगा।

    "मेरी बात सुनकर जाओ।" वीर पीछे से बोला।

    विराग अपने कदम रोका और बिना बोले, अपनी हाथ में पहनी घड़ी को देखते हुए बोला, "पाँच मिनट हैं तुम्हारे पास।"

    विराग की पीठ अभी भी वीर की ओर थी। वीर विराग के आगे आया और एक फाइल उसके सामने रखी। विराग उसे देखता ही वीर बोला, "पढ़ो।"

    विराग वह फाइल ले ली और उसे खोलकर गौर से देखने लगा।

    "इसमें चार्वी की जानकारी है।" वीर विराग से बोला।

    विराग नज़र उठाकर सामने वीर को देखा। तो वीर बोला, "हम्म, इसका नाम चाँवी नहीं, चार्वी है। मेंटल प्रॉब्लम होने की वजह से वह शब्दों को अच्छे से बोल नहीं पाती।" वीर हाँ में सिर हिलाते हुए बोला।

    विराग के भाव बदल गए। "मेंटल कंडीशन?"

    "हम्म," वीर हाँ में सिर हिलाया, फिर आगे बोला, "इसका नाम चार्वी है। यह उस शख्स की बेटी नहीं है।" वीर की बात सुनकर विराग के भाव गंभीर हो गए।

    "क्या बकवास कर रहे हो? वह उसकी बीवी थी, तो यह लड़की उसकी बेटी कैसे नहीं हुई?" विराग की आँखों में गुस्सा उभर आया।

    "हम्म, मैं सही बोल रहा हूँ। इस फाइल में सब है, तुम चाहो तो पढ़ सकते हो। इसकी माँ उस इंसान की बीवी थी, पर चार्वी उसकी बेटी नहीं है।" वीर शांत स्वर में बोला।

    विराग थोड़े गुस्से से वीर को देख रहा था। वह कुछ बोलता, उससे पहले वीर आगे बोला, "चार्वी उस इंसान की पत्नी के पूर्व पति की बेटी है।"

    "What?" विराग बोला।

    वीर हाँ में सिर हिलाया और फिर एक और फाइल उसकी ओर देते हुए बोला, "इसमें चार्वी के पिता की सारी जानकारी है। उनकी पत्नी ने उन्हें धोखा दिया था और जब उसे पता चला कि वह प्रेग्नेंट है, तब वह चार्वी को अबॉर्ट करवाना चाहती थी। पर डॉक्टर ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि अगर वह ऐसा करती, तो उसकी जान को खतरा होता। जिसके बाद उसने उसे, ना चाहते हुए भी, जन्म दिया। और कुछ महीने बाद उसे किसी अनाथ आश्रम के बाहर छोड़कर चली गई। और जब इस बात का पता उसके पिता को चला, तो वह अपनी बेटी को अपने पास ले आए, पर कुछ दिनों बाद अचानक वह गायब हो गए। जिसके बाद चार्वी सीमा कपूर के साथ रहने लगी। उसके पिता रातों-रात अचानक कहाँ गायब हो गए, किसी को भी पता नहीं और ना ही यह कि वे दोनों कहाँ हैं।" वीर सारी बातें बता दी।

    और विराग गौर से उसकी बातें सुन रहा था। उसके हाथ में अभी भी वे दो फाइलें थीं, जिन्हें वह बारी-बारी से खोलकर देख और पढ़ रहा था।

    "ये तो वही है।" विराग उस फाइल को देखते हुए वीर से बोला। वीर हाँ में सिर हिलाया।

    "इम्पॉसिबल! ये अचानक कैसे गायब हो सकते हैं? ये तो मलेशिया में थे ना?"

    "नहीं, ये कभी मलेशिया गए ही नहीं। इनके बारे में गलत खबर फैली, या यूँ कहें, फैलाई गई थी। किसी को नहीं पता आज तक कि इनकी कोई पत्नी या बेटी है। और पिछले 18 साल से कोई नहीं जानता कि ये कहाँ हैं। मैंने बहुत कोशिश की पता करने की, पर मुझे सिर्फ़ चार्वी के बारे में ही पता चल पाया। पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ, पर जब मुझे यह तस्वीर मिली जिसमें चार्वी उनके साथ है, और यही फ़ोटो चार्वी के गले के लॉकेट में भी है। ये देखो।" वीर विराग से बोला और अपने हाथ में पकड़ी फ़ोटो और एक लॉकेट दिया।

    "ये मुझे उस दिन VR विला में मिला था, जब चार्वी पहली बार आई थी उस रात।"

    विराग को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था और ना ही आँखों पर। वह उस फ़ोटो और दिल के आकार के लॉकेट को, जो खुला हुआ था और जिसमें वही फ़ोटो थी जो उसके हाथ में थी, देख रहा था।

    वीर विराग को देखता रहा और विराग उस फ़ोटो और लॉकेट को कुछ देर तक देखता रहा। वहाँ पूरी ख़ामोशी थी। इसी के साथ विराग अपने ख़यालों से बाहर आया।

    और एक बार फिर चार्वी को देखा, जो अस्पताल के बिस्तर पर सोई हुई थी। उसने अपनी जेब से फ़ोन निकाला और किसी को कॉल किया। "कार रेडी है?" कहकर उसकी ठंडी नज़रें चार्वी पर ही थीं। इसी के साथ उसने फ़ोन काट दिया।

    और फिर दो कदम आगे बढ़कर, चार्वी को अपनी गोद में दुल्हन की तरह उठाकर उसे लेकर बाहर निकल गया।

  • 20. care. - Chapter 20

    Words: 1583

    Estimated Reading Time: 10 min

    चार्वी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उसका सिर दुख रहा था। वह बहुत मुश्किल से उठकर बैठी। उसके पेट और निचले हिस्से से लेकर पैरों तक दर्द कर रहे थे, जो उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।

    वह उठकर बैठी और अपने दोनों हाथों से अपनी दोनों आँखें रगड़ने लगी, बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह। आँखें रगड़ने के बाद चार्वी ने अपनी आँखें खोलीं और इधर-उधर देखने लगी। अचानक वह डर गई।

    "य-ये च-चार्वी कहाँ है?" चार्वी ने घबराई हुई आवाज़ में कहा, उस कमरे को देखते हुए जिसमें वह थी।

    पूरा कमरा ब्लैक थीम से भरा हुआ था, जिसे देखकर वह बहुत डर गई थी। वह सहमी हुई आँखों में आँसू लिए, कभी खुद को तो कभी पूरे कमरे को देख रही थी।

    "ये क-कितना गन्दा है। चावी य-यहाँ क्या कर रही है?" चार्वी ने मासूमियत के साथ खुद से कहा। वह अभी भी रोती हुई शक्ल बनाए हुए थी। इस बात से अनजान कि किसी की ठंडी नज़रें उसे ही घूर रही हैं, चार्वी खुद में बातें करते हुए बड़बड़ा रही थी।

    चार्वी जल्दी से बेड के कोने पर आई और नीचे उतरने लगी।

    "सोचना भी मत अगर तुम्हारे पैर नीचे पड़े तो पैरों को तोड़ने में मुझे समय नहीं लगेगा।" ठंडी और सख्त आवाज़ जैसे ही चार्वी के कानों में गई, चार्वी की पूरी रूह काँप गई। उसके पैर हवा में ही रुक गए।

    वह डरते हुए उस दिशा में देखती है जहाँ से आवाज़ आई थी। उसकी नज़र सोफे पर बैठे विराग पर पड़ी, जो अपने सख्त भाव के साथ उसे ही देख रहा था।

    विराग को देखकर चार्वी की साँसें भारी होने लगीं। वह जल्दी से अपने दोनों पैर ऊपर करके सिकुड़कर बैठ गई। विराग उसके सारे एक्शन नोटिस कर रहा था। उसने अपना लैपटॉप साइड में रखा, अपने अंदाज़ में खड़ा हुआ और चार्वी की तरफ बढ़ने लगा।

    चार्वी ने विराग की आहट सुनी और सहम गई। वह धीरे-धीरे बेड के हेड से जाकर चिपकने लगी। उसने अपने दोनों घुटने मोड़ लिए थे और उन्हें हग करते हुए उस पर पकड़ कस ली थी।

    वह बुरी तरह काँप रही थी।

    विराग बिल्कुल बेड के बेहद करीब आकर खड़ा हुआ। चार्वी की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी उसे नज़र उठाकर देखने की। वह किसी छोटे से पप्पी की तरह छिपने की कोशिश कर रही थी।

    "क-कुछ कुछ न-नहीं हो-होगा चा-चावी। अच-अच्छी ह-है। च-चावी न-नहीं रोयेगी। हाँ ब-बस थो-थोड़ा सा म-मार पड़ेगी।" चार्वी मंद-मंद बड़बड़ा रही थी। उसे डर था कि कहीं यह इंसान सीमा और शान की तरह इसे मारने ना लगे।

    विराग काफी ध्यान से उसके एक्शन्स और बिहेवियर को नोटिस कर रहा था।

    कुछ देर यूँ ही देखने के बाद, उसने अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस लेकर आँखें खोलीं। फिर अपने शर्ट की स्लीव्स को फोल्ड करते हुए, वह बेड पर चार्वी के सामने बैठ गया।

    चार्वी और ज़्यादा सिकुड़ गई।

    विराग ने उसे इग्नोर करते हुए साइड टेबल से एक बाउल उठाया और चार्वी के आगे करते हुए कहा,

    "पियो इसे।" विराग की आवाज़ हमेशा की तरह ठंडी थी। उसकी आवाज़ से चार्वी सहम उठी।

    विराग को उस पर बहुत तेज गुस्सा आया। पहली बार उसकी बात अनसुनी की गई थी।

    "सुना नहीं क्या कहा मैंने? पकड़ो और पियो इसे।" विराग लगभग चार्वी पर चिल्लाया।

    इसे सुनकर चार्वी की पूरी बॉडी सिहर उठी। उसकी आँखों में बसे आँसू बारी-बारी से उसके कपड़ों पर गिरने लगे। और ना चाहते हुए भी हिम्मत करके, वह यूँ ही बेड के हेड से चिपकी हुई, अपने काँपते हाथ आगे बढ़ाती है।

    उसके हाथ बहुत बुरी तरह काँप रहे थे। उसने हिम्मत करके अपने काँपते हाथों से उस बाउल को पकड़ा। अब बाउल चार्वी के हाथ में काफी तेज़ी से हिल रहा था, जैसे कभी भी गिर सकता हो।

    विराग अपनी सख्त नज़रों से चार्वी को देख रहा था, बिना कुछ बोले।

    "पियो इसे।" विराग ऑर्डर टोन में कहा।

    चार्वी ने एक बार भी ना तो बाउल को देखने की कोशिश की और ना ही विराग को। उसकी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं, हाथ काँप रहे थे, आँखों से आँसू बह रहे थे।

    वहीं डोर के पास वीर, जो शायद विराग से मिलने आया था, यह सब कुछ देख रहा था। विराग के रूड बिहेवियर से लेकर मासूम सी चार्वी के डर तक। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि विराग उसे इस तरह से ट्रीट कर रहा है।

    "लगता है तुमने सुनाई कम देता है, alright? मत पियो।" विराग सख्त लहज़े के साथ कहता है और अपना हाथ बाउल लेने के लिए बढ़ाता है। इतने में चार्वी रोने लगती है। उसे लगता है विराग उसे मारेगा।

    "न-नहीं चा-चावी पियेगी। च-चावी को म-मत मारो। च-चावी को ब-बहुत दु-दुख रहा है।" चार्वी आवाज़ के साथ रोने लगती है। उसके गले से आवाज़ हिचकियों के साथ निकल रही थी। वह बहुत ज्यादा सहम गई थी। उसकी आवाज़ में इतना दर्द था कि उसे सुनकर डोर के पास खड़ा वीर अपनी मुट्ठियाँ कस लेता है और अपनी आँखें बंद कर लेता है, जैसे वह दर्द भरी आवाज़ तकलीफ दे रही हो।

    विराग चार्वी का चेहरा बड़े ही ध्यान से देख रहा था, जो बुरी तरह से सफ़ेद पड़ गया था, जैसे उसके अंदर का पूरा खून सूख चुका हो। चार्वी को इस तरह और उसकी दर्द भरी आवाज़ सुनकर विराग को बेचैनी शुरू हो जाती है। ना जाने क्यों, उसे समझ नहीं आता, उसे अचानक क्या हो गया? इस तरह से तो उसे पहले कभी नहीं हुआ, पर अभी जैसे मानो उसके अंदर बहुत हलचल सी मच गई थी।

    वहीं चार्वी काँपते हाथों के साथ बाउल को अपने पास करती है और बाउल के अंदर के सूप को देखती है। जिसे देखकर उसकी आँखों से और भी ज़्यादा आँसू आने लगते हैं।

    "ये तो गन्दा पानी है।" चार्वी, जिसने आज पहली बार ऐसी कोई चीज़ देखी थी, जिस वजह से उसे लगता है कि यह कोई पानी है, और ऊपर से उस सूप का रंग हल्के पीले में था। चार्वी के लिए यह नया था, वह बहुत ही धीमी आवाज़ में खुद से कहती है।

    फिर विराग का गुस्सा याद करके, ना चाहते हुए भी, उस बाउल में रखे चम्मच से वह सूप को उठाती है। पर उससे पहले ही उसके हाथ काँपने की वजह से वह सूप वापस गिर जाता है। उसे बिल्कुल भी चम्मच पकड़ा नहीं जा रहा था। वह एक बार फिर कोशिश करती है और इस बार भी वह गिर जाता है।

    विराग बिना किसी एक्सप्रेशन के बैठा उसका सूप खत्म होने का इंतज़ार कर रहा था, पर शायद वह इंतज़ार ही करता रह जाएगा, क्योंकि चार्वी ने अभी तक एक बार भी उसे नहीं पिया था। ना जाने कितनी बार कोशिश करने के बाद भी वह नाकाम हो रही थी।

    वीर को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, और ऊपर से विराग पर गुस्सा भी आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्यों है? इतना रूड, इतना एगोस्टिक और इतना हार्टलेस।

    क्या उसे दिखाई नहीं दे रहा कि वह बच्ची उससे कितना ज़्यादा डरी हुई है, और कितना ज़्यादा रो और काँप रही है? क्या उसकी सिसकी भी उसके कानों तक नहीं पहुँच रही, जो वह अभी भी उसे इस तरह घूर रहा है?

    वीर चाहता था वह जाकर चार्वी की मदद करे। और जब उसे बर्दाश्त नहीं हुआ, तो उसने अपने कदम बढ़ाए ही थे कि वह वापस अपने कदम रोक लेता है और सामने देखने लगता है।

    जहाँ विराग अपना हाथ बढ़ाता है। चार्वी डर जाती है। "कुछ नहीं कर रहा। सिर्फ़ बाउल ले रहा हूँ।" विराग चार्वी के हाथों से उस बाउल को लेते हुए कहता है।

    चार्वी कुछ नहीं कहती और वापस से अपने दोनों हाथों को अपने पैरों से समेट लेती है। विराग एक गहरी साँस लेकर सूप चार्वी की तरफ़ बढ़ाता है।

    चार्वी हल्की सी नज़र उठाकर उसके हाथ में पकड़े चम्मच को देखती है जिसमें सूप था।

    "पियो।" विराग अभी भी उसी टोन में था।

    और चार्वी बहुत डरी हुई थी। वह कोई गलती नहीं करना चाहती थी जिस वजह से उसे मार पड़े। इसलिए वह थोड़ी ही आगे खिसककर, बड़ी मुश्किल से अपने काँपते होंठों को हल्का सा खोलकर अपने होंठ उस चम्मच में लगा देती है। और इसी के साथ विराग वह सूप चार्वी के मुँह में डाल देता है।

    चार्वी के मुँह में जैसे ही उसका टेस्ट जाता है, उसके एक्सप्रेशन्स हल्के से बदलते हैं। उसे इसका टेस्ट बुरा नहीं लगा था, या यूँ कहें उसने शायद पहली बार कुछ अलग सा पिया था, इसलिए उसे वह बेहतर लगा।

    विराग बिना कुछ बोले उसे सूप पिला रहा था और चार्वी धीरे-धीरे वह सूप पी रही थी। उसे भूख बहुत ज़्यादा लगी हुई थी।

    वीर डोर के पास खड़ा यह सब देख रहा था। उसे यकीन नहीं हुआ अपनी आँखों पर कि क्या विराग किसी को खाना खिला रहा है? आज पहली बार विराग को उसने ऐसे देखा था। पर अभी वह एक नज़र चार्वी को देखता है, जो बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह पी कम और गिरा ज़्यादा रही थी। उसका sky blue हॉस्पिटल गाउन सूप के दाग़ से छप चुका था, जिसका इरिटेशन विराग के चेहरे पर दिख रहा था। उसे बिल्कुल भी अपने आस-पास गंदगी पसंद नहीं थी।

    ना चाहते हुए भी वीर के चेहरे पर हल्की सी स्माइल आ जाती है। सूप पीते हुए चार्वी सच में किसी 3 साल की बच्ची की तरह लग रही थी, जिसे सिर्फ़ खाने से मतलब था और किसी चीज़ की खबर नहीं थी।

    "अभी भी बहुत कुछ है जो छुपा हुआ है?" वीर खुद से कहता है। उसकी नज़र अभी भी उन दोनों पर थी।

    "मुझे सच पता लगाना होगा।" वीर के एक्सप्रेशन्स नॉर्मल हो गए थे। अब वह वहाँ से चला जाता है।