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The House With Twelve Clocks

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Dev Srivastava

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एक लड़की, जिसकी पूरी जिंदगी अचानक से उजड़ जाती है। उसके पास रहने तक का ठिकाना नहीं होता, ऐसे समय में उसे मिलता है एक लेटर जो उसके लिए ऐसा था जैसे कि डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। उस लेटर में जिक्र था एक घर का, जिसमें रहने के लिए ना उसे कोई किरा...

Total Chapters (36)

Page 1 of 2

  • 1. Chapter 1 (Saumya weds Mayank)

    Words: 1514

    Estimated Reading Time: 10 min

       मुम्बई, सपनों का शहर! लोग कहते हैं कि ये शहर ना कभी सोता है, ना ही रूकता है और ना ही थकता है। यहां लोगों की जिंदगी भी इसी शहर की तरह है जो कभी नहीं रुकती।

       ये कहानी भी ऐसी ही एक लड़की की है जिसने अपनी जिंदगी में जिंदगी के कई रंग देखे लेकिन रुकना, वो तो उसने कभी सीखा ही नहीं था।

       मगर सवाल ये था कि कब तक, कब तक लड़ पाएगी वो इस शहर से, इस समाज से, अपनी जिंदगी से, अपने अपनों से और खुद से!


    _______________________



       सुबह का समय था जब सूरज पूरे मुम्बई शहर पर अपनी सुनहरी रोशनी बिखेर रहा था। बड़ी बड़ी इमारतों पर पड़ती वो रोशनी ऐसी लग रही थी मानो किसी ने इन इमारतों को सोने से मढ़ दिया हो।

       हर बालकनी में कोई न कोई ज़िंदगी करवट बदल रही थी। कोई चाय की चुस्कियों में, कोई सिगरेट के कश में, कोई भागती रेलगाड़ियों की आवाज़ में, और कोई एक गहरे सन्नाटे के बीच अपने आप से जूझ रहा था और सपने देख रहा था एक सुनहरे भविष्य के।

       इन्हीं दौड़ती भागती ज़िंदगियों के बीच, एक जोड़ी कदम इन इमारतों के बीच बने सड़कों के भूलभुलैए में आगे बढ़ते जा रहे थें उन पैरों में से एक पैर में एक मोटी और भारी सी पायल थी।

       इसी के साथ उन पैरों में आलता लगा हुआ था लेकिन उस आलते से गहरा रंग उस खून का था जो उस कीचड़ से सने हुए पैरों से बह रहे थें।

       वो कदम थे एक लड़की के जिने लाल रंग का शादी का जोड़ा पहना हुआ था। वो सिर से लेकर पाँव तक पसीने से नहाई हुई थी और उसके सिर से खून बह रहा था लेकिन वो तेजी से एक दिशा में बढ़ती जा रही थी मानों ये उसकी ज़िंदगी और मौत का सवाल हो।।

       उसे जल्द से जल्द कहीं पहुँचना हो और कुछ ही देर में वो अपनी मंजिल के सामने थी, जो था OpenSky Resort.

       उस रिजॉर्ट के गेट पर लिखा था, "Saumya weds Mayank!" और उसी के बगल में उस लड़की की फोटो थी एक लड़के के साथ।

       लड़की हांफते हुए उस रिजॉर्ट के गेट पर खड़ी थी। उसकी सांसें भारी थीं। हर कदम जैसे उसके भीतर की बेचैनी को और गहरा कर रहा था लेकिन उसने हिम्मत की और अपने कदम आगे, मंडप की ओर बढ़ाए।

       मगर जैसे ही वो वहां पहुंची, सामने का नजारा देख कर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी आँखों में नमी इकट्ठी होने लगी और होठों से निकला, "नहीं...!"

       जिस मंडप में उसे होना चाहिए था वहां उसकी जगह पर कोई और लड़की बैठी हुई थी और जिस वक्त सौम्या वहां पहुंची उसी वक्त सिंदूरदान की रस्म पूरी हुई थी।

       रस्म पूरी होते ही सबकी नज़रें सौम्या की तरफ घूम गईं। उसे वहां देख कर सभी लोग हैरान भी थें और नाराज़ भी। उनकी नजरों से ही झलक रहा था कि वहाँ मौजूद किसी भी शख्स के मन में सौम्या के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी।

       सबकी नजरों में सिर्फ गुस्सा झलक रहा था। सौम्या अपने सामने का नजारा देख कर टूट चुकी थी। उसके पैरों में जैसे जान ही ना बची हो और वो अपने घुटनों के बल आ गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे।

       वहीं वहाँ मौजूद लोगों में से एक महिला ने उसके आंसुओं को नजरंदाज करते हुए कहा, "अब क्यों आई है कुल्टा! जा, जिसके साथ भागी थी उसी के साथ रह।"

       ये सुन कर सौम्या ने कहा, "मैं किसी के साथ नहीं भागी थी।"

       उस महिला ने कहा, "हां, हां! अब उसने छोड़ दिया होगा, तो यहीं आकर अपना ये ड्रामा शुरू करेगी न!"

       सौम्या ने खड़े होकर कहा, "मैं कोई ड्रामा नहीं कर रही हूँ। मुझे किडनैप किया गया था।"

       उस महिला ने ड्रामा करते हुए टॉन्ट मार कर कहा, "हो! किडनैप किया गया था और इतनी आसानी से उन किडनैपर्स ने तुझे छोड़ भी दिया।"

       फिर उसने सौम्या की ओर देख कर अपनी कमर पर हाथ रख कर कहा, "क्या तू ये कहना चाहती है कि उनका मकसद यही था कि तेरी शादी ना हो।"

       सौम्या ने तुरंत कहा, "हां, हां!"

       उस महिला ने उस पर बरसते हुए कहा, "क्या हां! बकवास बंद कर अपनी।"

       सौम्या ने उसे अपनी बात पर यकीन दिलाते हुए कहा, "मां, मां, मैं सच बोल रही हूं।"

       फिर उसने अपने पिता की ओर देख कर कहा, "पापा, पापा! मेरी बातों का यकीन करिए। मैं, मैं शादी से नहीं भागी थी। मैं ये शादी करना चाहती थी।"

       उसके पिता ने अपनी नज़रें फेर कर कहा, "दूर हो जा मेरी नजरों से। मेरे दिल में और मेरे घर में, तेरे लिए कोई जगह नहीं है।"

       ये सुन कर सौम्या अविश्वास से उन्हें देखने लगी। उसने बेबसी से कहा, "पापा!"

       उसके पिता ने तेज आवाज में कहा, "मैंने बोला दूर हो जा मेरी नजरों से।"

       अपने पिता की नफरत देख कर सौम्या के अंदर जो बची खुची हिम्मत थी वो भी खत्म हो गई और वो बदहवास सी बेहोश होकर वहीं गिर गई।

       सौम्या के पिता ने कहा, "कोई पानी लाकर डालो इस पर और इसे दूर करो मेरी नजरों से।"

       तभी उसकी माँ ने कहा, "तुम लोग ही उठाओ इसे। मैं तो हाथ एक ना लगाऊं। ना जाने किन किन के साथ रात बीता कर आई..."

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में वहाँ मौजूद एक वृद्ध महिला ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा, "चुप करो तुम सब!"

       फिर उसने सौम्या की मां की ओर देख कर कहा, "और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी पोती के बारे में ऐसी बातें बोलने की!"

       सौम्या की मां ने कहा, "...पर माँ जी!"

       सौम्या की दादी ने कहा, "चुप, एकदम चुप!"

       फिर उन्होंने सबकी और देख कर कहा, "अब अगर किसी ने मेरी पोती को लेकर एक भी गलत बात बोली या कोई बकवास की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

       फिर उन्होंने कुछ लड़कों की ओर देख कर कहा, "ए, उठाओ इसे और मेरे कमरे में ले चलो।"



       कुछ देर बाद,

       सौम्या एक कमरे में बिस्तर पर सोई हुई थी। उसके सिर पर पत्ती बंधी हुई थी। उसकी दादी उसके पास ही बैठी हुई थीं। धीरे-धीरे सौम्या की आंखें फड़फड़ाईं और वो होश में आ गई।

       होश में आते ही सबसे पहला चेहरा जो उसने देखा वो उसकी उसकी दादी का था।

       उसने कमजोर आवाज में ही कहा, "दादी मां!"

       उन्होंने सौम्या के सिर पर हाथ फिरा कर कहा, "उठ गई बेटी! अब कैसी है तू?"

       सौम्या ने धीरे से कहा, "ठीक हूं, दादी मां।"

       फिर उसने बैठने की कोशिश की तो उसकी दादी ने उसे सहारा देकर बैठाया।

       सौम्या ने उम्मीद भरी नजरों से उनकी ओर देख कर कहा, "दादी मां, वो पापा!"

       उसकी दादी ने मुंह बना कर कहा, "छोड़ उसे। वो गधा पगला गया है।"

       ये सुन कर सौम्या का चेहरा और मुरझा गया तो उसकी दादी ने उसका हाथ पकड़ कर मजाकिया लहजे में कहा, "तू मेरी बात सुन। इन सबकी छोड़ और अपनी लाइफ एंजॉय कर।"

       सौम्या ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

       उसकी दादी ने कहा, "मतलब ये कि यहाँ से बाहर जा, दुनिया देख, नए नए लोगों से मिल, अपनी जिंदगी जी। तुझे देख कर पता है क्या कैसा लगता है!"

       सौम्या ने कहा, "कैसा लगता है?"

       उसकी दादी ने कहा, "ऐसा लगता है जैसे तू गाँव से पकड़ कर आई हो।"

       सौम्या ने मुंह बना कर कहा, "क्या दादी मां, आप मेरी इंसल्ट कर रहे हो।"

       उसकी दादी ने कहा, "आ हा, मेरी बातें इंसल्ट लग रही हैं देवी जी को और जब वो मां बेटी भरे समाज में तेरी इज्जत उछाल रही थीं तब नहीं!"

       इससे भी सौम्या के चेहरे के भाव नहीं बदलें तो उसकी दादी ने उसका सिर अपने सीने में छिपा कर कहा, "तू भोली है मेरी बच्ची, पर ये दुनिया कतई जालिम है। यहाँ भोले लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। यहाँ जीना है तो जो जैसा है उसे उसी की भाषा में जवाब देना सीखना होगा।"

       सौम्या ने भरी हुई आंखों के साथ उनकी ओर देख कर कहा,"पर मुझसे नहीं होता, दादी मां।"

       उसकी दादी ने कहा, "मुझे पता है और इसीलिए आज मैं तुझे वो दे रही हूँ जो सिर्फ तेरा है। उस पर तेरे अलावा कोई और अपना हक नहीं जता सकता।"

       सौम्या ने कौतूहल से उनकी ओर देख कर कहा, "ऐसा क्या है, दादी मां?"

       उसकी दादी ने एक पुरानी सी चाबी उसकी ओर बढ़ा दी।

       सौम्या ने वो चाबी अपने हाथ में ली, उसे ध्यान से देखा और फिर अपनी दादी की ओर देख कर कहा, "ये चाबी?"

       उसकी दादी ने बेड के पास रखे हुए एक छोटे से टेबल पर से एक तस्वीर उठा ली। उस तस्वीर में एक महिला एक छोटी सी बच्ची को लेकर खड़ी थी।

       सौम्या की दादी ने उस तस्वीर की ओर इशारा करके सौम्या से कहा, "ये तेरे मां के लॉकर की चाबी है जिसे आज तक मैंने भी खोल कर नहीं देखा क्योंकि ये उसकी आखिरी इच्छा थी कि ये लॉकर तू ही खोले और इसमें जो भी है वो तेरा है, सिर्फ और सिर्फ तेरा।"

       सौम्या ने जिज्ञासा के साथ कहा, "पर ऐसा क्या है इस लॉकर में?"

       उसकी दादी ने कहा, "अब ये तो तुझे वहां जाने पर ही पता चलेगा।"

      
    जारी है..

  • 2. Chapter 2 (अमानत नहीं, जिम्मेदारी!)

    Words: 1513

    Estimated Reading Time: 10 min

    अपनी दादी की बातें सुन कर सौम्या ने भरी हुई आंखों के साथ उनकी ओर देख कर कहा,"पर मुझसे नहीं होता, दादी मां।"

       उसकी दादी ने कहा, "मुझे पता है और इसीलिए आज मैं तुझे वो दे रही हूँ जो सिर्फ तेरा है। उस पर तेरे अलावा कोई और अपना हक नहीं जता सकता।"

       सौम्या ने कौतूहल से उनकी ओर देख कर कहा, "ऐसा क्या है, दादी मां?"

       उसकी दादी ने एक पुरानी सी चाबी उसकी ओर बढ़ा दी।

       सौम्या ने वो चाबी अपने हाथ में ली, उसे ध्यान से देखा और फिर अपनी दादी की ओर देख कर कहा, "ये चाबी?"

       उसकी दादी ने बेड के पास रखे हुए एक छोटे से टेबल पर से एक तस्वीर उठा ली। उस तस्वीर में एक महिला एक छोटी सी बच्ची को लेकर खड़ी थी।

       सौम्या की दादी ने उस तस्वीर की ओर इशारा करके सौम्या से कहा, "ये तेरे मां के लॉकर की चाबी है जिसे आज तक मैंने भी खोल कर नहीं देखा क्योंकि ये उसकी आखिरी इच्छा थी कि ये लॉकर तू ही खोले और इसमें जो भी है वो तेरा है, सिर्फ और सिर्फ तेरा।"

       सौम्या ने जिज्ञासा के साथ कहा, "पर ऐसा क्या है इस लॉकर में?"

       उसकी दादी ने कहा, "अब ये तो तुझे वहां जाने पर ही पता चलेगा।"

      

    सौम्या ने तुरंत बिस्तर से उठते हुए कहा, "तो मैं अभी के अभी वहां जाऊंगी।"

       उसकी दादी ना उसका हाथ पकड़ कर उसे वापस लिटाते हुए कहा, "नहीं, अभी नहीं। कल सुबह जाना।"

       सौम्या ने कहा, "पर क्यों, दादी मां? मैं आज भी तो जा सकती हूं।"

       उसकी दादी ने उसके सिर पर चपत लगा कर कहा, "हालत देख अपनी। सिर में चोट लगी है, शरीर कमजोर है। ऐसे में तुझे बैंक जाना है!"

       सौम्या ने कहा, "... पर दादी मां!"

       उसकी दादी ने कहा, "चुपचाप आराम कर। कल मैं खुद तुझे वहां ले चलूंगी।"

    अगले दिन,

       दोपहर का समय,

       सौम्या की कार उत्तम बैंक के सामने आकर रुकी। सौम्या ने अपनी गर्दन घुमा कर उस बैंक की तरफ देखा तो उसकी दादी ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा, "जा समू और लेकर अपनी मां की अमानत।"

       सौम्या ने उनकी ओर देख कर कहा, "आप भी साथ चलिए न, दादी मां!"

       उसकी दादी ने कहा, "नहीं, ये तेरी अमानत है और तू ही इसे लेकर आएगी।"

       सौम्या ने एक गहरी सांस ली और कार से उतर कर उस बैंक की ओर बढ़ गई। उसने रिसेप्शन पर जाकर अपनी मां का अकाउंट नंबर बताया तो वहाँ मौजूद सभी एम्पलाइज आंखें फाड़े उसे देखने लगे।

       रिसेप्शनिस्ट ने उसकी खबर मैनेजर को दी तो मैनेजर खुद सौम्या के पास आया।

       उसने सौम्या को देख कर कौतूहल के साथ कहा, "तुम, तुम शुभ्रा की बेटी हो!"

       सौम्या ने कहा, "जी!"

       मैनेजर ने उससे कहा, " मेरे पीछे आइए।"

       इतना बोल कर वो एक ओर बढ़ गया। सौम्या भी धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगी।

       मैनेजर ने आगे चलते हुए कहा, "तुम्हारी मां और मैं बहुत ही अच्छे दोस्त थे और मुझ पर भरोसा करके ही उसने ये सामान यहां, इस लॉकर में रखा था लेकिन इससे पहले कि तुम इसे देखो इतना याद रखना..."

       फिर उसने अपने कदम रोके और सौम्या की ओर देख कर कहा, "...कि ये सिर्फ उसकी अमानत नहीं, एक जिम्मेदारी है और ये तुम्हारी जिंदगी बदलने तक की ताकत रखती है।"

       सौम्या ने ध्यान से उसकी आंखों में देख कर कहा, "ऐसा भी क्या रखा है मां ने यहाँ?"

       मैनेजर ने उसे एक चाबी दी और फिर एक लॉकर की ओर इशारा करके कहा, "तुम खुद देख लो।"

       सौम्या वो चाबी लिये हुए उस लॉकर की ओर बढ़ गई।

       उसने कांपते हुए हाथों से वो चाबी उस लॉकर के की होल में डाल कर घुमाई और एक क्लिक के साथ वो लॉकर अनलॉक हो गया।

       सौम्या ने हौले से वो दरवाजा खोला और उसके सामने आया एक छोटा सा पुश्तैनी बॉक्स। सौम्या ने भारी सांसों के साथ वो बॉक्स उठाया और अपने पैंट की पॉकेट से वो चाबी निकाली जो उसकी दादी ने दी थी।

       वो उस चाबी को उस बॉक्स में लगाने ही वाली थी कि अचानक से उसने अपने हाथ रोक लिये। उसने वो चाबी वापस अपने पॉकेट में डाली। फिर वो उस बॉक्स लेकर बाहर आ गई।

       बाहर आते ही उसे वहाँ का मैनेजर फिर से दिखा। उसने सौम्या से कहा, "तो, क्या थी तुम्हारी मां की अमानत?"

       सौम्या ने बिना किसी भाव के कहा, "पता नहीं। मैंने अभी उसे खोला नहीं है।"

       मैनेजर ने कहा, "पर क्यों? तुम तो इसे अभी खोल सकती हो।"

       सौम्या ने कहा, "हां, मैं इसे अभी देख सकती हूं लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं इसे अपनी मां के सामने ही खोलूं।"

       मैनेजर ने अपनी आंखें छोटी करके कहा, "अपनी मां के सामने!"

       सौम्या ने हाँ में सिर हिला कर कहा, "हां!"

       मैनेजर ने नासमझी से कहा, "मैं कुछ समझा नहीं।"

       सौम्या जैसे किसी सपने से बाहर आई हो। उसने अपना सिर झटक कर कहा, "आपको समझने की जरूरत भी नहीं है। मुझे जो करना है, मैं खुद कर लूंगी।"

       इतना बोल कर वो बाहर की ओर बढ़ गई और वो मैनेजर पीछे से उसे देखा ही रह गया।

       कुछ देर बाद,

       सौम्या ने एक दरवाजे पर धक्का दिया जिससे वो दरवाजा खुल गया और दरवाजा खुलते ही उसके सामने था एक बड़ा सा कमरा। वो एक अंधेरा कमरा था जहां हर चीज पर धूल जमी हुई थी।

       उस जगह को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई बरसों से आया ही ना हो। सौम्या उस कमरे के अंदर आई और सामने लगी एक बड़ी सी तस्वीर, जो पूरी दीवार को ढके हुए थी, उसके सामने खड़ी हो गई।

       उसके एक हाथ में एक कपड़ा था और दूसरे हाथ में वही बॉक्स जो वो लॉकर से लेकर आई थी। उसने उस तस्वीर को अच्छे से साफ किया तो उसकी मां का चेहरा सामने आया जो किसी रानी की तरह बैठी हुई थीं। सौम्या ध्यान से उन्हें देखने लगी। उसकी आंखों में नमी थी।

       उसने अपनी मां की ओर देखते हुए कहा, "नाराज हो न मां! इतने सालों में मैं कभी आपके पास नहीं आई। लेकिन मैं क्या करती! ऐसा नहीं है कि मैं आपके पास आना नहीं चाहती थी लेकिन किसी ने मुझे यहां आने ही नहीं दिया।

       वो छोटी मां ने सबको यकीन दिला दिया कि आपको शांति नहीं मिली है क्योंकि आप...! पर मुझे पता था कि ऐसा कुछ भी नहीं है लेकिन उन्होंने मुझे भी...। खैर आपको तो सब पता है।

       इन बातों को छोड़ते हैं। अभी जो बात जरूरी है, उस पर फोकस करते हैं। कल मुझे पता चला कि आपने मेरे लिए कुछ छोड़ा है। क्या, ये मैं आपके सामने जानना चाहती थी।"

       इतना बोल कर उसने वो बॉक्स अपनी मां के सामने रखा और उसकी चाबी निकाली। उसने एक नज़र अपनी मां को देखा, मानो उनसे इजाजत मांग रही हो और फिर उस बॉक्स में वो चाबी लगा दी।

       जैसे ही वो बॉक्स खुला, उस कमरे की खिड़कियां अपने आप खुल गईं। वहाँ की हवा भारी हो गई, अंधेरा और गहरा हो गया था।

       ये सारे बदलाव सौम्या को भी महसूस हुए। उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी दौड़ गई लेकिन फिर भी उसने उस बॉक्स का ढक्कन हटाया और अगले ही पल उसकी आंखें रोशनी से चौंधिया गईं और उसने तुरंत अपने हाथ अपनी आंखों के सामने कर लिये।

       वो पूरा कमरा रोशनी से भर गया। कुछ पलों के बाद सौम्या ने अपनी आंखों पर से हाथ हटाए तो वो रोशनी उस बॉक्स में किसी चीज से आ रही थी।

       सौम्या ने उस बॉक्स में हाथ डाल कर देखा तो वो रोशनी एक लॉकेट से आ रही थी। जैसे ही सौम्या ने वो लॉकेट उठाया, उसकी रोशनी पूरी तरह गायब हो गई।

       सौम्या ने उस लॉकेट को ध्यान से देखा तो उसके पीछे एक अजीब सा निशान बना हुआ था। तीन घड़ियां, जो आपस में जुड़ी हुई थीं और उनके बीच की जगह में बनी हुई थी एक आंख।

       सौम्या ने उस निशान को देख कर कहा, "ये कैसा अजीब सा निशान है?"

       फिर उसने अपनी मां की ओर देख कर कहा, "और आपने ये मेरे लिए क्यों रखा है?"

       तभी उसकी नजर बॉक्स में पड़ी हुई दूसरी चीजों पर गई जिनमें एक डायरी, एक छोटी सी सिल्वर की पॉकेट वॉच जो चैन से जुड़ी हुई थी और एक पीला सा कागज का टुकड़ा पड़ा हुआ था जिस पर वक्त को मार साफ नजर आ रही थी।

       सौम्या ने वो कागज का टुकड़ा उठा कर उसे खोलना शुरू किया और वो कागज पूरा खुलते ही उसके सामने था एक नक्शा जो किसी जंगल से होकर गुजरता था और उसकी मंजिल थी एक पुरानी सी हवेली।

       ये सब देख कर सौम्या को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने एक नजर अपनी मां को देखा और फिर से उस नक्शे को।

    फिर उसने वो घड़ी उठाई। उसने उसे आगे पीछे, हर तरफ से देखा पर उसे अभी भी कुछ समझ नहीं आया।

    अंत में उसने उस डायरी को उठा कर खोला। जैसे ही वो डायरी खुली, उसके सामने एक पेंटिंग थी जो डायरी के दो पन्नों पर बनी हुई थी। उस पेंटिंग में एक बड़ी सी हवेली बनी हुई थी जो किसी जंगल के बीच थी।

      

      

       जारी है...

  • 3. Chapter 3 (कुंवर हवेली!)

    Words: 1511

    Estimated Reading Time: 10 min

    सौम्या ने अपने सामने रखे हुए बॉक्स में से वो कागज का टुकड़ा उठा कर उसे खोलना शुरू किया और वो कागज पूरा खुलते ही उसके सामने था एक नक्शा जो किसी जंगल से होकर गुजरता था और उसकी मंजिल थी एक पुरानी सी हवेली।

       ये सब देख कर सौम्या को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने एक नजर अपनी मां को देखा और फिर से उस नक्शे को।

    फिर उसने वो घड़ी उठाई। उसने उसे आगे पीछे, हर तरफ से देखा पर उसे अभी भी कुछ समझ नहीं आया।

    अंत में उसने उस डायरी को उठा कर खोला। जैसे ही वो डायरी खुली, उसके सामने एक पेंटिंग थी जो डायरी के दो पन्नों पर बनी हुई थी। उस पेंटिंग में एक बड़ी सी हवेली बनी हुई थी जो किसी जंगल के बीच थी।

    ये देख कर सौम्या के मन में सवाल आया, "तो क्या ये इसी हवेली तक पहुंचाने का रास्ता है?"                           

       फिर उसने अगला पन्ना पलटा तो उस पन्ने पर उसकी मां ने एक लेटर छोड़ा हुआ था। उस लेटर में लिखा था, "मेरी समू,

       जब तुम ये पढ़ रही होगी, मैं तुम्हारे पास नहीं होऊंगी

    लेकिन मैं तुम्हारे पास न होकर भी हमेशा तुम्हारे साथ हूं। तुम्हें लगा होगा कि इस लॉकर में मैंने कोई पुश्तैनी निशानी रखी होगी लेकिन मैंने अपनी अमानत के रूप में तुम्हारे लिए एक मकसद छोड़ा है।

    सबने मेरे बारे में तुम्हें यही बताया होगा कि मैं अजीब थी, मेरे काम अजीब थे और मेरी मौत, वो कैसे हुई वो भी किसी को पता नहीं और शायद सबने इसे आत्महत्या का नाम भी दे दिया हो लेकिन सच क्या है इसका पता तुम्हें लगाना होगा।

    जानती हूं, ये जिम्मेदारी बहुत बड़ी है लेकिन अब ये तुम्हें ही करना होगा। इस मकसद में तुम्हारी मदद ये लॉकेट, ये नक्शा और ये घड़ी करेंगे।

       ये कोई आम चीज़ें नहीं हैं, ये एक दायित्व हैं। ये तुम्हें तुम्हारी नियति तक ले जाएंगी। मुझे शुरू से पता था कि ना मेरी जिंदगी नॉर्मल है और ना तुम्हारी जिंदगी नॉर्मल होगी।

    मैं ये भी जानती थी कि मेरा समय सीमित है इसलिए मैंने इसे तुम्हारे लिए बचा कर रखा, क्योंकि तुम वो हो जो इसे संभाल सकती हो और अगर तुमने इसे नकारा तो ये तुम्हारी अगली पीढ़ी को भुगतना होगा।

       ये रास्ता कठिन होगा लेकिन तुम्हें से पार करना होगा मगर एक बात का खास ख्याल रखना, किसी पर भी भरोसा मत करना, अपने खून पर भी नहीं।

       यहाँ तक कि अगर कभी मैं भी तुम्हारे सामने आकर तुमसे कुछ कहूं और तुम्हारा मन कुछ और कहे तो उस वक्त मेरी बात पर भी भरोसा मत करना और अजनबियों की नजरों को कभी हल्के में मत लेना।

       तुम्हारी मां,

       शुभ्रा"

    अपनी मां की डायरी पढ़ कर सौम्या की आंखों से आंसू बहने लगे थें। उसने उस डायरी को अपने सीने से लगा कर अपनी आंखें बंद कर लीं।

       वो समझ चुकी थी कि उसकी मां की मौत सामान्य नहीं थी और ना ही उन्होंने आत्महत्या की थी जैसा कि उसे बचपन से बताया गया था।

       उसका बचपन छीन लेना किसी की चाल थी और ये हवेली सिर्फ एक विरासत नहीं, बल्कि एक युद्ध का निमंत्रण था।

       रात में,

       सौम्या एक बैग अपने कंधे पर लिये हुए अपने घर की चौखट पर खड़ी थी। उसके माता पिता, दादी सभी वहाँ मौजूद थें।

       सौम्या ने अपने माता पिता की ओर देख कर कहा, "मां, पापा मैंने कुछ गलत नहीं किया है लेकिन सच ये भी है कि ये बात साबित करने के लिए मेरे पास कोई सबूत नहीं है।

       इसलिए कोई भी मेरी बातों पर यकीन नहीं करेगा और जब तक मैं यहाँ आप लोगों के साथ रहूंगी तब तक समाज के लोग आप सबका भी जीना मुश्किल कर देंगे।"

       उसकी मां ने मुँह बना कर कहा, "बस, बस! ठहर जा। ये भूमिका मत बना। सीधे सीधे बता कि अब किसके साथ भाग रही है।"

       उसके शब्द सुनते ही सौम्या के तन बदन में आग लग गई। उसने उनकी आँखों में देखते हुए अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, "मैं ना तब किसी के साथ भागी थी और ना अब किसी के साथ भाग रही हूँ।"

       फिर उसने खुद को नॉर्मल करके कहा, "मैं बस ये नहीं चाहती कि मेरी वजह से आप सबको कोई परेशानी हो। इसलिए जब तक मैं खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर देती, तब तक मैं इस घर से और आप सबसे दूर रहूंगी।"

       उसने इतना ही कहा था कि उसकी मां ने उबासी लेते हुए अपने पति से कहा, "तुम ही सुनो इसकी फालतू की नौटंकी। मैं चली सोने।"

       इतना बोल कर वो अंदर चली गई।

       सौम्या ने अपने पिता के पैर छूते हुए कहा, "पापा, मैं जानती हूँ कि आप मुझसे नाराज़ हो पर अपनी समू को आशीर्वाद तो देंगे न ताकि वो खुद को सही साबित कर सके।"

       सौम्या के पिता ने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा, "मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है लेकिन वापस लौटना तो अपनी बेगुनाही का सबूत साथ लेकर लौटना।"

       अपने पिता के शब्द सुन कर सौम्या को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ। उसने अपनी गर्दन उठा कर अपने पिता को देखा और उसके मुँह से निकला, "पापा!"

       उसके पिता ने अपनी आँखें बंद करके अपने मन में ही कहा, "मैं जानता हूँ समू कि तू गलत नहीं है लेकिन ये बात तुझे साबित भी करनी होगी। मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी इस समाज में सिर उठा कर जिए और अगर उसके पहले मैं तेरे साथ पहले को तरह हो गया तो तेरे अंदर की ये आग बुझ जाएगी।

       इसलिए जब तक तू खुद को सही साबित करके मेरी दूसरी बीवी और समाज के ठेकेदारों के मुँह बंद नहीं कर देती तब तक मैं तेरे साथ पहले कि तरह नहीं हो सकता।

       फिर उन्होंने अपनी आंखें खोलीं और अपना मुंह फेर कर सौम्या से कहा, "जब अपनी बेगुनाही का सबूत मिल जाए, तभी अपनी शक्ल दिखाना मुझे।"

       ये देख कर सौम्या की आँखों में आंसू आने लगें लेकिन उसने उन्हें बहने नहीं दिया। उसने अपने आंसू पोंछे और उठ खड़ी हुई।

       फिर उसने अपने पिता से कहा, "ठीक है, पापा। अब मैं अपनी बेगुनाही का सबूत लेकर ही आऊंगी। वरना अपनी शक्ल भी नहीं दिखाऊंगी।"

       फिर उसने अपनी दादी के पैर छुए तो उन्होंने सौम्या को अपने सीने से लगा कर कहा, "अपना ख्याल रखना और जितना हो सके उतनी जल्दी वापस लौटना।"

       सौम्या ने उनसे अलग होकर कहा, "चलती हूं, दादी मां।"

       इतना बोल कर उसने अपना सामान उठाया और बाहर की ओर चल पड़ी। घर से बाहर निकलते ही उसने एक बार पलट कर अपने घर की ओर देखा।

       उसने अपने मन में खुद से ही कहा,"मैंने बोल तो दिया है कि मैं अपनी बेगुनाही का सबूत वापस लेकर लौटूंगी लेकिन मेरे लिए अभी मेरी मां की मौत का सच पता करना ज्यादा जरूरी है और मैं तब तक यहाँ नहीं लौटूंगी जब तक अपनी मां की मौत का सच ना पता कर लूं।"

       फिर वो पलट कर आगे बढ़ गई। अपने मन में अपने मकसद को पूरा करने की ठान कर सौम्या उस रास्ते पर चल पड़ी थी जिसकी ना ही मंजिल का पता था और ना ही रास्तों का। पता था तो सिर्फ इतना कि उसे ये रास्ता, ये सफर किसी भी हाल में पूरा करना है।

       उसने बस स्टैंड पर जाकर टिकट ली, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की। वो जाकर बस में बैठी और सब कुछ सोचते हुए उसकी आँखें बंद हो गईं लेकिन उसे क्या पता था कि कहीं और किसी और की आँखें खुल चुकी हैं।

       अगले दिन,

       दोपहर के समय,

       लंबी, थका देने वाली बस यात्रा के बाद जैसे ही बस प्रतापगढ़ के बस स्टैंड पर रुकी, हवा के ठंडे झोंके से सौम्या की आंखें अपने आप खुल गईं।

       उसके चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी लेकिन उसके इरादे इस थकान से कहीं ज्यादा मजबूत थें।

       उसने खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, धुंधले आसमान के नीचे एक छोटा सा कस्बा था जहाँ लोग अपने दिन की शुरुआत कर रहे थें। कोई चाय की दुकान पर बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था तो कोई अपने ऑफिस की ओर भाग रहा था।

       बस कंडक्टर ने जैसे ही कहा, "प्रतापगढ़!" सौम्या अपना सामान लेकर नीचे उतर कर बस स्टैंड से बाहर की ओर बढ़ गई।

       बाहर निकलते ही उसने एक ऑटो वाले से पूछा, "कुँवर हवेली चलेंगे?"

       ये सुन कर ऑटो वाले के चेहरे पर डर उभर आया। उसने तुरंत कहा, "नहीं।"

       और अपनी ऑटो आगे बढ़ा ली। सौम्या के लिए बात थोड़ी अजीब लगी लेकिन उसने अपना सिर झटका और आगे बढ़ कर दूसरे ऑटो वाले से यही बात पूछी।

       उस ऑटो वाले ने चौंक कर कहा, "कुँवर हवेली? वो तो अब वीरान पड़ी है बिटिया। वहाँ कोई रहता नहीं है।"

       सौम्या ने बिना किसी भाव के कहा, "जानती हूँ लेकिन मुझे वहीं जाना है।"

       ऑटो वाले ने कहा, "ठीक है। बैठो, छोड़ देता हूँ।"

       सौम्या बैठी और ऑटो धीमी गति से चल पड़ी। रास्ते में उसे लोग खेतों की ओर जाते दिखे, कुछ पुराने चाय के ठेले, बिजली के खंभों से लटकती ढीली-सी तारें और हर मोड़ पर जैसे किसी अधूरी कहानी की गूँज।

       सौम्या सूनी आँखों से सब कुछ देखते हुए आगे बढ़ रही थी।

    जारी है...

  • 4. The House With Twelve Clocks - Chapter 4

    Words: 1521

    Estimated Reading Time: 10 min

    सौम्या को ऑटो वाले की हरकत थोड़ी अजीब लगी लेकिन उसने अपना सिर झटका और आगे बढ़ कर दूसरे ऑटो वाले से यही बात पूछी।

       उस ऑटो वाले ने चौंक कर कहा, "कुँवर हवेली? वो तो अब वीरान पड़ी है बिटिया। वहाँ कोई रहता नहीं है।"

       सौम्या ने बिना किसी भाव के कहा, "जानती हूँ लेकिन मुझे वहीं जाना है।"

       ऑटो वाले ने कहा, "ठीक है। बैठो, छोड़ देता हूँ।"

       सौम्या बैठी और ऑटो धीमी गति से चल पड़ी। रास्ते में उसे लोग खेतों की ओर जाते दिखे, कुछ पुराने चाय के ठेले, बिजली के खंभों से लटकती ढीली-सी तारें और हर मोड़ पर जैसे किसी अधूरी कहानी की गूँज।

       सौम्या सूनी आँखों से सब कुछ देखते हुए आगे बढ़ रही थी। उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था और इन्हीं उलझनों के बीच कब वो कुँवर हवेली पहुंच गई, उसे पता भी नहीं चला।

       जैसे ही ऑटो कुँवर हवेली के सामने आकर रुकी, एक हवा का झोंका सौम्या को। छूकर निकल गया मानो किसी ने उसे स्पर्श किया हो। एक पल के लिए सौम्या की आंखें बंद हो गईं।

       ऑटो वाले ने कहा, "उतर जाओ बिटिया। आ गई तुम्हारी मंजिल।"

       सौम्या ने आँखें खोलीं, पैसे दिए और ऑटो से उतर गई। वो अपने सामने खड़ी उस बड़ी सी हवेली को देख रही थी जिसके सामने लोहे का गेट लगा हुआ था लेकिन अब उन पर जंग लग चुकी थी।

       उसके दोनों तरफ दो पत्थर के शेर थें पर गेट के तरह उनकी चमक भी धूमिल हो चुकी थी। वहाँ ना कोई ताला बन्द था और ना कोई किसी को रोकने वाला था।

       सौम्या ने अपना सामान रखा और गेट के पास जाकर अपने हाथ गेट पर रख दिए। उसने हल्का सा धक्का दिया और वो गेट भारी आवाज के साथ खुल गया।

       गेट खुलते ही उसके सामने थे सूखे हुए पेड़ों के झुंड। उनके अलावा ना ही वहाँ किसी हरे भरे पेड़ के निशान थे और ना ही किसी जिंदगी के।

       और उनके पीछे खड़ी थी सालों से वीरान पड़ी हुई वो हवेली जो कभी इस जगह की रौनक हुआ करती थी।

       सौम्या उन पेड़ों के बीच से होती हुई उस हवेली के मुख्य दरवाजे तक पहुंची। यहाँ भी कोई ताला नहीं था। सौम्या से उस दरवाजे को भी हल्के से पीछे धकेला और वो दरवाजा "चीं… चीं…" की आवाज़ करता हुआ धीरे-धीरे खुल गया।

       दरवाजा खुलते ही धूल का एक गुबार उससे बाहर निकला जिससे सौम्या तुरंत पीछे हट गई। कुछ पलों के बाद उसके अंदर झांका तो उसके सामने थे मकड़ी के जाले वो भी बिल्कुल घने।

       सौम्या ने पास में गिरी हुई एक सूखी टहनी उठाई और उससे वो जाले साफ करके आगे बढ़ गई। अंदर पूरी तरह से अंधेरा पसरा हुआ था, स्याह काला अंधेरा।

       सौम्या ने अंदर जाते ही अपना सामान एक साइड में रखा, अपना बैग उतारा और उस एक कैंडल निकाल कर जला लिया।

       फिर वो उसी कैंडल की रोशनी के सहारे उस हवेली में वो ढूंढने चल पड़ी जिसकी तलाश में वो यहाँ आई थी। वो सबसे पहले हॉल की दीवार के तरफ बढ़ी जहाँ एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी।

       सौम्या ने उस तस्वीर के नीचे की तरफ की धूल साफ की तो वहां लिखा हुआ नाम नजर आने लगा महाराज सूर्य देव सिंह राठौड़।

       सौम्या वो नाम देखते ही उस तस्वीर को छोड़ कर दूसरी ओर बढ़ गई। फिर उसने दूसरी तस्वीर के साथ भी यही किया।

    सौम्या हर तस्वीर के नीचे का नाम पढ़ कर आगे बढ़ती जाती। ऐसे करते करते 10-12 तस्वीरों के बाद उसे वो तस्वीर मिली जिसके नीचे वो नाम लिखा था जिसकी तलाश में वो आई थी, "महारानी अगस्त्या सिंह राठौड़!"

       वो नाम पढ़ते ही सौम्या मानो अपनी जगह पर जम सी गई। उसकी सांसें भारी हो गईं। उसने कांपते हुए हाथों के साथ कपड़ा उठाया और वो तस्वीर साफ की। धूल हटते ही वहाँ लगी हुई तस्वीर सामने आई।

       उस तस्वीर में एक महिला सिंहासन पर बिल्कुल किसी रानी के तरह बैठी हुई थी। उसने रानियों वाले ही कपड़े और आभूषण भी पहने हुए थे।

       उनके चेहरे लेकिन इन सबमें जो बात सबसे ज्यादा हैरान करने वाली थी वो ये कि महारानी अगस्त्या का चेहरा बिल्कुल शुभ्रा के तरह था।

       अगर किसी को इन दोनों के बारे में पता ना हो तो वो यही कहेगा कि महारानी अगस्त्या और शुभ्रा एक ही हैं।

       सौम्या ने महारानी अगस्त्या को देखते हुए कहा, "तो ये हैं मेरी नानी मां, यहाँ की महारानी अगस्त्या सिंह राठौड़! ये तो बिल्कुल मां के तरह दिखती थीं। नहीं, ये मां के तरह नहीं, मां इनके तरह दिखती थीं।"

       ये बोलते हुए उसकी आंखें थोड़ी सी नम हो गई थीं लेकिन उसने तुरंत अपनी आंखों को साफ किया और उस तस्वीर को वहां से हटाने लगी।

       उस तस्वीर के वहाँ से हटते ही वहाँ पर एक छोटा सा दरवाज़ा नजर आने लगा जिसकी लम्बाई मुश्किल से 10-15 इंच रही होगी।

       सौम्या ने अपनी उंगलियों से उस दरवाजे पर दो बार खटखटाया तो अंदर से ऐसी आवाज आई जैसे वो जगह खोखली हो।

       सौम्या ने खुद से ही कहा, "शायद यही वो जगह है।"

       इतना बोल कर उसने अपने बैग से वही चाबी निकाली जो उसे उस पुश्तैनी बॉक्स में मिली थी। उसने बड़े ध्यान से उस 15 इंच के दरवाजे को देखा और उसे की होल की बहुत ही पतली सी दरारें नजर आईं।

       उसने वहां की मिट्टी अच्छे से साफ की तब जाकर उसे वो की होल पूरी तरह से नजर आया। उसने वो चाबी वहां डाल कर घुमाई लेकिन चाबी घूमी ही नहीं।

       सौम्या ने कई बार कोशिश की लेकिन वो चाबी घूम ही नहीं रही थी। उसने चिढ़ कर कहा, "अब ये क्या सिर दर्द है यार! ये दरवाजा खुल क्यों नहीं रहा है?"

       ये बोलते हुए गलती से वो चाबी उल्टी दिशा में घूम गई और एक क्लिक की आवाज हुई। वो आवाज सुन कर सौम्या की आँखें चमक उठीं।

       पहले के समय में लोगों का दिमाग क्या मस्त काम करता था यार!"

       ये बोलते हुए उसने वो दरवाजा खोला लेकिन उसके  अंदर कुछ था ही नहीं।

       ऐसा कैसे हो सकता है। मां ने तो डायरी में इसी जगह का जिक्र किया था।

       ये बोलते हुए वो कल रात के बारे में याद करने लगी।

       Flashback

       सौम्या उस डायरी को अपने सीने से लगा कर बैठी हुई ही थी कि इतने में उसके दिमाग में एक ख्याल आया, "ये तो मां का सिर्फ एक लेटर था। मां ने अपनी डायरी में भी तो कुछ लिखा होगा वरना मेरे लिए ये डायरी रखने का क्या मतलब हुआ!"

       ये ख्याल आते ही उसने फौरन वो डायरी खुद से अलग की और उसे खोल कर देखने लगी लेकिन जैसा उसने सोचा था वैसा कुछ भी उस डायरी में नहीं था।

       उसने खुद से ही कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है! मां ने कुछ तो लिखा होगा अपनी डायरी में!"

       ये बोलते हुए वो डायरी के पन्नों को लगातार पलटते जा रही थी लेकिन वो पूरी डायरी खाली थी। पिछले 2 दिनों में जो कुछ भी हुआ और आज उसे जो पता चला वो सब उसके लिए बहुत ही बड़ी बात थी।

       ऊपर से उसके सिर पर चोट भी लगी थी। इस सबकी वजह से सौम्या का सिर दर्द होने लगा था। इन सबमें उसे एक उम्मीद की किरण नजर आई थी लेकिन अब वो भी धुंधली होती नजर आ रही थी।

       उसने अपनी मां की ओर देख कर कहा, "कुछ तो इशारा करो न मां। मैं कहाँ से शुरुआत करूं?"

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में उसके पसीने की एक बूंद उस डायरी पर गिरी। वहां इतनी खामोशी थी कि जैसे ही वो बूंद उस डायरी के पन्नों से जाकर लगी उससे होने वाली आवाज सीधे सौम्या के कानों में पड़ी।

       वो आवाज सुनते ही सौम्या ने अपनी नज़रें डायरी की ओर घुमाईं और फिर ऊपर की ओर देखा जहां सीलिंग पर कोई पंखा बंद था।

       उसने वापस अपनी नज़रें डायरी की ओर घुमाईं तो जहां पर उसका पसीना गिरा था वहां पर कुछ अक्षर नजर आने लगें।

       ये देख कर सौम्या के होठों पर मुस्कान आ गई। उसने अपनी मां की ओर देख कर कहा, "थैंक यू मां!"

       और फिर वो डायरी लेकर बाहर चली गई। उसने अपने कमरे में जाकर पानी और पेंटिंग ब्रश उठाई और उस डायरी के पूरे पन्ने पर पानी फैला दिया।

       पानी के कॉन्टैक्ट में आते ही सारे पन्नों पर लिखी हुई लाइंस नजर आने लगीं। फिर सौम्या ने उसे पढ़ना शुरू किया, "समू, मैं तेरे लिए मैंने जो चीजें छोड़ी हैं वो सिर्फ दिखावे के लिए हैं। असल में ये सारी। चीजें बेकार हैं।"

       ये पढ़ कर सौम्या के मुँह से निकला, "क्या!"

       लेकिन उसने आगे पढ़ना जारी रखा, "मैं जानती हूँ मेरी बच्ची कि ये जो कुछ भी तुझे पता चल रहा है वो सब तेरे लिए बहुत ही ज्यादा शॉकिंग है और इसके लिए आई एम सॉरी बेटा, वेरी वेरी सॉरी।

       लेकिन यही तेरी नियति है जो तेरे जन्म के पहले ही लिख दी गई थी और इसकी वजह है तेरी पुश्तें। तू किसी आम कुल से नहीं है। तू एक राजकुल से है।

       तेरी नानी मां, यानी मेरी मां प्रतापगढ़ की महारानी अगस्त्या सिंह राठौड़ थीं जो अपने कड़क स्वभाव और न्यायप्रियता के लिए जानी जाती थीं और मैं उस राजमहल की इकलौती संतान।

      

    जारी है...

  • 5. The House With Twelve Clocks - Chapter 5

    Words: 1507

    Estimated Reading Time: 10 min

    सौम्या ने ब्रश लेकर अपनी मां की डायरी के पूरे पन्ने पर पानी फैला दिया।

       पानी के कॉन्टैक्ट में आते ही सारे पन्नों पर लिखी हुई लाइंस नजर आने लगीं। फिर सौम्या ने उसे पढ़ना शुरू किया, "समू, मैं तेरे लिए मैंने जो चीजें छोड़ी हैं वो सिर्फ दिखावे के लिए हैं। असल में ये सारी। चीजें बेकार हैं।"

       ये पढ़ कर सौम्या के मुँह से निकला, "क्या!"

       लेकिन उसने आगे पढ़ना जारी रखा, "मैं जानती हूँ मेरी बच्ची कि ये जो कुछ भी तुझे पता चल रहा है वो सब तेरे लिए बहुत ही ज्यादा शॉकिंग है और इसके लिए आई एम सॉरी बेटा, वेरी वेरी सॉरी।

       लेकिन यही तेरी नियति है जो तेरे जन्म के पहले ही लिख दी गई थी और इसकी वजह है तेरी पुश्तें। तू किसी आम कुल से नहीं है। तू एक राजकुल से है।

       तेरी नानी मां, यानी मेरी मां प्रतापगढ़ की महारानी अगस्त्या सिंह राठौड़ थीं जो अपने कड़क स्वभाव और न्यायप्रियता के लिए जानी जाती थीं और मैं उस राजमहल की इकलौती संतान।

    मैं भारत से बाहर लंदन में पली बढ़ी। मेरी पढ़ाई लिखाई सब कुछ वहीं से हुई थी और वहीं पर मेरी मुलाकात तेरे पापा से हुई थी लेकिन तेरे पापा किसी राजघराने से नहीं थे इस वजह से हमारी शादी में प्रॉब्लम आ सकती थी।

       मैंने पूरी बात अपनी मां को बताई और वो हमारी शादी एक दूसरे से कराना चाहती थीं लेकिन कहते हैं न, खुशियों को नजर बहुत जल्दी लगती है। बस वही हुआ था हमारे साथ...।"

       इसी तरह से सौम्या वो डायरी पढ़ती चली गई और इस बीच हर पल उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे। कभी उसके होठों पर मुस्कान आ जाती तो कभी उसकी आंखों में आंसू और कभी उसकी आंखें हैंरानी से बड़ी हो जातीं।

       उस डायरी के आखिर में लिखा था, "बस इसीलिए मैंने और शायद किस्मत ने भी तुझे चुना इस मकसद को पूरा करने के लिए।

       अब सबसे जरूरी बात, तू ये करेगी कैसे। तो सबसे पहले तू जा उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में। वहाँ पर तुझे हमारी कुंवर हवेली मिलेगी। उस हवेली में हम सबकी तस्वीर होगी।

       मेरी तस्वीर शायद ना मिले पर बाकी सबकी जरूर मिलेगी और उन्हीं में एक तस्वीर होगी मेरी मां की जिनकी शक्ल हूबहू मेरे जैसी होगी इसलिए तुझे उन्हें पहचानने में ज्यादा तकलीफ नहीं होगी।

       जब तुझे वो तस्वीर मिल जाए तो उसके पीछे तुझे एक 15 इंच का दरवाजा मिलेगा। उस नक्शे के साथ मैंने जो चाबी रखी थी वो उसी दरवाजे की है।

       उसे खोलना तो तुझे बाकी की बातें पता चलेंगी कि तुझे आगे क्या करना होगा और तू अपने रास्ते पर आगे कैसे पढ़ेगी लेकिन एक बात याद रखना, उस हवेली तक पहुंचना तो आसान है।

       उस दरवाजे तक पहुंच कर वहाँ से वो चीजें लेना भी लेकिन उसके आगे का सफर बहुत कठिन होगा और अगर एक बार तो इस रास्ते पर आगे बढ़ गई तो वापस आने का कोई मौका नहीं होगा तेरे पास।

       Flashback - The End

       उन बातों को याद करके सौम्या ने कहा, "आपने तो कहा था कि यहाँ से मुझे मेरे आगे के रस्ते और सफर के बारे में जानकारी मिलेगी लेकिन यहां तो कुछ भी नहीं है।"

       इतना बोलते हुए उसने अपना हाथ उस दरवाजे से अन्दर डाला और उस छोटे से कमरे के दीवारों को छूने लगी और इसी बीच उसका हाथ लगा एक और छोटे दरवाजे से जो उस जगह के दाहिने हिस्से में बना हुआ था।

       सौम्या ने फुसफुसा कर कहा, "एक मिनिट, ये क्या है?"

       उसने कैंडल की रोशनी में अंदर की ओर झांका तो उसे वो दरवाजा दिखाई दिया। वो दरवाज़ा लगभग 8 इंच लंबा और 5 इंच चौड़ा था।

       सौम्या ने अपनी आँखें सिकोड़ कर कहा, "इतनी छोटी जगह में आखिर क्या छुपाया गया होगा?"

       ये कहते हुए सौम्या ने हल्के से दरवाज़े को धक्का दिया, लेकिन वो नहीं खुला। तभी उसे दरवाज़े के नीचे कुछ गोल सा महसूस हुआ। उसने मिट्टी को थोड़ा हटाया तो वहाँ एक पत्थर जैसी बटन थी।

    सौम्या ने खुद से ही कहा, "कहीं ये लॉकिंग मैकेनिज्म तो नहीं?"

       और अगले ही पल उसने वो बटन दबा दिया। एक क्लिक की हल्की आवाज हुई और वो छोटा दरवाज़ा खुद-ब-खुद धीरे-धीरे खुल गया।

    सौम्या ने अपना हाथ अंदर डाला और फिर वहां से जो भी चीज थी, उसे बाहर निकाला। वो एक लाल रंग के मख़मली कपड़े में लिपटा हुआ कुछ था।

       सौम्या ने बड़ी सावधानी से वो कपड़ा खोला।

    सौम्या कुंवर हवेली में अपनी नानी की तस्वीर के पीछे वाले दरवाजे के सामने थी। उसके हाथ में मखमली कपड़े में लिपटी हुई कोई चीज थी जिसका कपड़ा सौम्या ने हटा दिया।

    जैसे ही वो कपड़ा हटा, उसके नीचे एक दूसरा नक्शा नजर आया। हैरानी की बात ये थी कि इस नक्शे में कहीं पर कुछ भी डैमेज नहीं हुआ था। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि उसे अभी अभी बनाया गया हो।

       उसी नक्शे के साथ एक चाबी भी वहाँ मौजूद थी जो बिल्कुल नई चाबी के तरह चमक रही थी।

       सौम्या ने अपनी आँखें सिकोड़ कर कहा, "ये यहाँ ऐसे रखे जाने के बावजूद इतने नए कैसे हैं?"

       फिर उसने अपने सभी सवाल को साइड करते हुए अपना सिर झटक कर कहा, "खैर जो भी है, मुझे जो चाहिए था वो मिल गया। अब मुझे यहाँ से चलना चाहिए।"

       इतना बोल कर उसने अपना सामान उठाया और बाहर की ओर चल पड़ी। जैसे ही वो उस हवेली का दरवाजा पार करने वाले थे, चारों तरफ से एक आवाज गूंज उठी, "आयुष्मान भव:।"

       वो आवाज ऐसी थी जैसे कि सैकड़ों लोग एक साथ बोल रहे हों। वो आवाज सुन कर एक पल के लिए सौम्या अंदर तक कांप गई। उसकी सांसें तेज हो गई थीं हर पैर अपने आप दो कदम पीछे।

       होश में आते ही उसने अपनी आंखें बंद कीं और 4-5 लम्बी और गहरी सासें लीं। तब जाकर वो खुद को संभाल पाई। फिर उसने इधर-उधर देख कर खुद से ही कहा, "ये आवाज कहां से आई?"

       लेकिन वहां पर कोई भी नहीं था। ये देख कर सौम्या ने कहा, "ये हवेली सच में बहुत अजीब है। शायद इसी वजह से वो ऑटो वाला इस हवेली का नाम सुन कर डर गया था।"

       इतना बोल कर उसने अपने कदम बाहर निकाल लिये।

       शाम का समय,

       सौम्या एक जंगल के बाहर वो नक्शा खोल पर खड़ी थी जो उसे कुंवर हवेली में मिला था। उसने एक नजर उस नक्शे में उस जगह डाली जहाँ वो जंगल दिखाया गया था।

       फिर वो अपनी नज़रें उठा जंगल को देखने लगी। देखने से ही वो जंगल बिल्कुल काला नजर आ रहा था और उस पर शाम का समय।

       सौम्या जहां खड़ी थी वो जगह उस जंगल की सीमा से बाहर थी और वहाँ चांद की रोशनी हर तरफ फैली हुई थी लेकिन जहाँ से उस जंगल की सीमा शुरू हो रही थी वहाँ रोशनी का नामोनिशान तक नहीं था।

       सौम्या की हालत डर से बिल्कुल खराब हो चुकी थी। उसके पैर डर से कांप रहे थें।

       उसने सामने देखते हुए कहा, "ये कैसी खतरनाक जगह है! देख कर ही दिल डर से काँप रहा है। ना जाने अंदर और क्या क्या देखने को मिलेगा!"

       फिर उसने खुद को हिम्मत बंधाते हुए कहा, "नहीं समू, ये डरने का वक्त नहीं है। तुझे ये करना ही होगा, अपनी मां के लिए तुझे ये करना ही होगा।"

       इतना बोल कर उसने अपना दायां पैर उठाया और उस जंगल की बाउंड्री में रख दिया। ऐसा करते ही वो मानो एक साथ दो अलग-अलग दुनिया में खड़ी हो।

       क्योंकि उसका जो पैर अंदर था उस पर भी चांद की रोशनी का एक कतरा भी नहीं पड़ रहा था और जो पैर बाहर था वो साफ साफ नजर आ रहा था।

       ये सब देख कर सौम्या की हालत खराब हो रही थी लेकिन फिर भी उसने हिम्मत की और अपना दूसरा पैर भी अंदर कर लिया।

       अब उसके सामने था वो खौफनाक जंगल जहां रोशनी का एक कतरा तक नहीं था। था तो केवल स्याह अंधेरा जो मानो सब कुछ अपने अंदर निगल लेना चाहता हो।

       उस जंगल में किसी जानवर या किसी परिंदे के होने तक के संकेत नहीं दिख रहे थें। इसका मतलब था कि सौम्या इस वक्त इस पूरे जंगल में अकेली सजीव थी। उसने कांपते हुए अपने कदम अंदर की ओर बढ़ा दिए।

       वो कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि तभी अचानक पेड़ों के झुरमुट से एक छोटी बच्ची की हँसी सुनाई दी। वो हँसी तो बहुत धीमी थी लेकिन ऐसी थी मानो कह रही हो कि तेरा कामयाब होना नामुमकिन है।

       उस हँसी की आवाज से सौम्या की सांसें मानो रुक सी गई हों। उसने अपनी टॉर्च ऑन की और बिना कोई आवाज किए आगे बढ़ने लगी जिसमें वो बुरी तरह से नाकाम हो रही थी।

       क्योंकि जब जब उसके कदम नीचे गिरे हुए सूखे पत्तों पर पड़ते, वहाँ इतनी तेज आवाज होती की कोई मिलों दूर से भी उसे सुन ले और उन आवाजों को सुन कर सौम्या की खुद की हालत भी डर से खराब हो रही थी।

       उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपना अगला कदम बढ़ाया कि इतने में उसके कानों में उसके दादी की आवाज पड़ी, "समू...!"

      
    जारी है...

  • 6. The House With Twelve Clocks - Chapter 6

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    जंगल में सौम्या कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि तभी अचानक पेड़ों के झुरमुट से एक छोटी बच्ची की हँसी सुनाई दी। वो हँसी तो बहुत धीमी थी लेकिन ऐसी थी मानो कह रही हो कि तेरा कामयाब होना नामुमकिन है।

       उस हँसी की आवाज से सौम्या की सांसें मानो रुक सी गई हों। उसने अपनी टॉर्च ऑन की और बिना कोई आवाज किए आगे बढ़ने लगी जिसमें वो बुरी तरह से नाकाम हो रही थी।

       क्योंकि जब जब उसके कदम नीचे गिरे हुए सूखे पत्तों पर पड़ते, वहाँ इतनी तेज आवाज होती की कोई मिलों दूर से भी उसे सुन ले और उन आवाजों को सुन कर सौम्या की खुद की हालत भी डर से खराब हो रही थी।

       उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपना अगला कदम बढ़ाया कि इतने में उसके कानों में उसके दादी की आवाज पड़ी, "समू...!"

    वो आवाज सुनते ही सौम्या की सांसें तेज हो गईं और गर्दन उस दिशा में घूम गई जहाँ से वो आवाज आई थी।

       वो अपनी दादी को आवाज देने के लिए चीखने ही वाली थी कि इतने में उसकी मां का लॉकेट जो उसने अपने गले में पहना हुआ था वो चमकने लगा।

       उसकी रोशनी उस जंगल में दूर तक जा रही थी। सौम्या की चीख उसके गले में ही रह गई और उसका सारा ध्यान आपके लॉकेट पर चला गया।

       उसने वो लॉकेट पकड़ा और बड़े ध्यान से उसे देखने लगी कि इतने में उस लॉकेट से आवाज आई, "इस पूरे जंगल में तू अकेली है जो जिंदा है। इसलिए तुझे किसी की भी आवाज सुनाई दे तो उसका जवाब बिल्कुल भी मत देना।"

       उस आवाज को सुन कर सौम्या दो कदम पीछे हो गई। वो दहशत से उस लॉकेट को घूरे जा रही थी।

       तभी उस लॉकेट से फिर से एक आवाज आई, "क्या है? ऐसे घूर क्यों रही हो?"

       सौम्या ने कांपती आवाज में कहा, "तु, तु, तुम, तुम कौन, कौन हो और मे, मेरी, मेरी मदद क्यों कर रही हो?"

       उस लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "क्योंकि मैंने तेरी मां से वादा किया था कि जब तक तेरा मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक मैं तेरा साथ नहीं छोडूंगी।"

       सौम्या ने नासमझी से अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "मेरी मां से और मेरा मकसद?"

       उस आवाज ने कहा, "हां! तेरी मां का कोई एहसान है मुझ पर। बस उसी के बदले मैंने उसे ये वादा दिया था और रही बात कि मैं कौन हूँ तो वो भी वक्त आने पर पता चल ही जाएगा।

       लेकिन तब तक जो मैं कहती हूँ उसे हल्के में बिल्कुल भी मत लेना क्योंकि ऐसा करने की कीमत तुम्हें अपनी जान से भी चुकानी पड़ सकती है।"

       सौम्या ने तुरंत कहा, "अरे नहीं, मैं मानूंगी न आपकी बात। वैसे भी जहाँ कोई नहीं है वहाँ कोई तो मिला हेल्प करने वाला।"

       उस आवाज ने उसकी बातों को नजरंदाज करके कहा, "चलो, अब ज्यादा वक्त बर्बाद मत करो। जल्दी से अपना सामान उठाओ और आगे बढ़ो।"

       सौम्या ने हाँ में सिर हिला कर कहा, "हां!"

       और अपना सामान उठाने लगी कि इतने में उस आवाज ने फिर से कहा, "और एक बात कान खोल कर सुन लो।"

       सौम्या ने अपनी नज़रें वापस उस लॉकेट पर डालीं तो उस आवाज ने आगे कहा, "कुछ भी हो जाए, जब तक ये जंगल पार ना कर लो, पीछे मुड़ कर मत देखना।"

       सौम्या ने सोचते हुए कहा, "पीछे मुड़ कर मत देखना पर क्यों? अगर कोई जंगली जानवर हुआ तो?"

       इस बार उस लॉकेट से चिढ़ भरी आवाज आई, "तुम सच में शुभ्रा की ही बेटी हो न!"

       सौम्या ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्यों? आपको कोई शक है?"

       उस आवाज ने कहा, "बिल्कुल है क्योंकि शुभ्रा की बेटी इतनी बेवकूफ हो सकती है इसकी मैं कल्पना भी नहीं की थी।"

       सौम्या ने चिढ़ कर कहा, "ऐसी भी क्या बेवकूफी कर दी मैंने?"

       उस आवाज ने कहा, "मैंने अभी अभी ये बात बोली कि इस जंगल में सिर्फ तू ही है जिसमें जान है तो कोई जंगली जानवर तेरे पीछे कैसे हो सकता है?"

       अब जाकर सौम्या को रियलाइज हुआ कि उसने क्या गड़बड़ की है। उसने अपने होंठ सिकोड़ कर कहा, "ये भी है।"

       फिर उसने अपने ही सिर पर चपत लगा कर कहा, "लगता है डर की वजह से मेरा माइंड ब्लैंक हो गया है।"

       उस आवाज ने कहा, "तो जब दिमाग चल ही नहीं रहा है तो फालतू में चला क्यों रही है। जो बोल रही हूं, चुपचाप कर न!"

       सौम्या ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "ठीक है।"

       फिर वो सामने की ओर चल पड़ी। वो दो घंटे तक लगातार चलती रही और अब उसे भूख लग रही थी। पूरे रास्ते उसे किसी न किसी अपने की आवाज आती रही।

       कभी उसके पिता की, कभी उसकी मां की, कभी दादी की तो कभी उसी लॉकेट वाली आवाज लेकिन उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा।

       उसने आधे से ज्यादा जंगल पार कर लिया था लेकिन अब उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। भूख और प्यास से उसकी हालत खराब हो चुकी थी। ऐसा नहीं था कि उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था।

       उसने अच्छे से नाश्ता, लंच सब किया था और इस जंगल में आने से पहले भी खाकर ही आई थी लेकिन अब उसे बहुत ज्यादा भूख और प्यास लग रही थी जो उससे बर्दाश्त भी नहीं हो रही थी। वो हांफते हुए एक पत्थर पर बैठ गई।

       उसने अपना पेट पकड़ कर कहा, "क्या बात है! आज मुझे इतनी भूख क्यों लग रही है। नॉर्मली तो मैं 2 टाइम भी खाना ना खाऊं तो भी मुझे इतनी भूख नहीं लगती। फिर आज इतनी भूख क्यों लग रही है?"

       वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसे सामने की तरफ एक झोपड़ी दिखाई दी।

       उसे देख कर सौम्या के मन में सवाल आया, "झोपड़ी, वो भी इस वीरान जंगल में, कैसे?"

       इतना बोल कर वो उस झोपड़ी की ओर बढ़ने लगी कि इतने में उसके लॉकेट से फिर से आवाज आई, "रुक जाओ।"

       सौम्या ने झोपड़ी की ओर देखते हुए ही कहा, "पर क्यों?"

       उस आवाज ने कहा, "क्योंकि ये एक छलावा है।"

       सौम्या ने उसकी बातों का मतलब समझते हुए कहा, "मतलब...!"

       उस आवाज ने सौम्या की बात पूरी करते हुए कहा, "मतलब कि तुम्हारी भूख और ये झोपड़ी, ये सब एक छलावा है।"

       सौम्या ने चिढ़ कर कहा, "क्या है यार! लाइफ में इतनी सारी प्रॉब्लम्स कम हैं जो अब ये जंगल भी हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ गया है!"

       इतने में लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "ओ देवी, सपनों की दुनिया से निकल कर हकीकत में वापस आ जाओ। ये जंगल सिर्फ तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर रहा, ये सबके साथ ऐसा ही करता है तो खुद को ज्यादा इंपॉर्टेंट देना बंद करो।"

       सौम्या ने मुंह बना कर कहा, "यार! आप मेरी मदद करने के लिए हो या मेरी बेइज्जती करने के लिए?"

       उस आवाज ने आराम से कहा, "इरादा तो मदद करने का ही था लेकिन तुम्हारी हरकतें ही ऐसी है कि तुम्हारी बेइज्जती हो जाती है।"

       सौम्या फिर से कुछ कह ही वाली थी कि उसने अपना सिर झटक कर कहा, "आपसे न बातों में कोई जीत ही नहीं सकता।"

       उस आवाज ने कहा, "जब पता है कि जीत नहीं सकती तो ट्राई भी क्यों ही कर रही हो।"

       सौम्या ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "सॉरी! माय बैड।"

       उस आवाज ने कहा, "चलो, किसी काम में तो अच्छी हो।"

       सौम्या ने नासमझी से कहा, "कौन सा काम?"

       उस आवाज ने कहा, "अरे अपनी गलती मानना।"

       सौम्या ने अपने हाथ पर अपना माथा पीट कर कहा, "क्या करूं मैं आपका?"

       उस आवाज ने कहा, "तुम मेरा कुछ कर भी नहीं सकती इसलिए अपने दिमाग पर जोर डालना बंद करो।"

       सौम्या ने अपना सिर ना में हिला कर कहा, "चलें?"

       उस आवाज ने कहा, "चलो न! मैंने कब मना किया है। तुम ही अपना पेट पकड़ कर बैठ गई।"

       सौम्या फिर से कुछ बोलने ही वाली थी लेकिन उसने तुरंत अपने मुँह पर उंगली रख लिया और अपना सामान उठाने लगी।

       इस पर उस आवाज ने कहा, "अच्छी बात है।"

       सौम्या ने कन्फ्यूजन के साथ कहा, "क्या?"

       उस आवाज ने कहा, "अरे यही, जो तुमने अपने मुंह पर उंगली रख लिया। सबसे अच्छा काम किया तुमने।"

       कुछ देर बाद,

       सौम्या उस जंगल से बाहर आ चुकी थी। बस उसे वहाँ की सीमा पार करनी थी।

       उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ अपना कदम उस जंगल की सीमा से बाहर रखा और ऐसा करते ही उसके ऊपर उगते हुए सूर्य की पहली किरण पड़ी जिसका जंगल के अंदर उसे अंदाजा तक नहीं था।

       उसने खुद से ही कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है! मैं तो मुश्किल से दो ढाई घंटे ही चली हूं। फिर इतने ही समय पूरी रात कैसे बीत गई?"

       उसके लॉकेट की आवाज ने कहा, "वो इसलिए क्योंकि तुम्हें ऐसा लगा कि तुम दो ढाई घंटे ही चली हो। असल में तुम पूरी रात चली हो।"

       सौम्या ने सोचते हुए कहा, "यानी कि उस जंगल में...!"

       उस आवाज ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, "...समय की गति धीमी थी लेकिन असली दुनिया में समय अपनी रफ्तार से ही चल रहा था।"

      
      

    जारी है...

  • 7. The House With Twelve Clocks - Chapter 7

    Words: 1511

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही सौम्या ने अपना कदम उस जंगल की सीमा से बाहर रखा और उसके ऊपर उगते हुए सूर्य की पहली किरण पड़ी जिसका जंगल के अंदर उसे अंदाजा तक नहीं था।

       उसने खुद से ही कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है! मैं तो मुश्किल से दो ढाई घंटे ही चली हूं। फिर इतने ही समय पूरी रात कैसे बीत गई?"

       उसके लॉकेट की आवाज ने कहा, "वो इसलिए क्योंकि तुम्हें ऐसा लगा कि तुम दो ढाई घंटे ही चली हो। असल में तुम पूरी रात चली हो।"

       सौम्या ने सोचते हुए कहा, "यानी कि उस जंगल में...!"

       उस आवाज ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, "...समय की गति धीमी थी लेकिन असली दुनिया में समय अपनी रफ्तार से ही चल रहा था।"

       सौम्या ने सोचते हुए कहा, "यानी कि कल रात मुझे जो भूख लगी थी...!"

       उस आवाज ने कहा, "वो असली थी।"

       सौम्या ने तुरंत कहा, "और वो घर?"

       उस आवाज ने कहा, "वो छलावा था।"

       ये सुन कर सौम्या के हाथों की मुट्ठियां कस गईं। उसने अपने दांत पीसते हुए कहा, "काश आप फिजिकली मेरे सामने होतीं।"

    उस आवाज में आराम से कहा, "होती तो क्या कर लेती तुम?"

       सौम्या ने चिढ़ कर कहा, "कुछ नहीं।"

       फिर उसने बात पलटने के लिए कहा, "क्या अब मैं पीछे देख सकती हूं।"

       उस आवाज ने कहा, "शौक से देखा लेकिन जो नजारा तुम्हारे सामने होगा उसके लिए मुझे कुछ मत कहना।"

       सौम्या ने कौतूहल के साथ कहा, "ऐसा भी क्या है वहां?"

       उस आवाज ने आराम से कहा, "खुद देख लो। मुझसे क्यों पूछ रही हो?"

       सौम्या ने फ्रस्ट्रेट होकर कहा, "यार, आप कभी सीधे-सीधे जवाब नहीं दे सकती हैं क्या?"

       उस आवाज ने कहा, "तुम्हारे साथ रह कर तुम्हें गलत फैसले लेने और गलत रास्ते पर चलने से रोकना मेरी जिम्मेदारी है। बाकी तुमसे कैसे बात करनी है ये मेरी मर्जी है।"

       सौम्या ने अपना माथा पीट कर कहा, "अजीब सिर दर्द है, यार!"

       उस आवाज ने कहा, "हां, अजीब तो है लेकिन तुम्हारा ही है, तो झेलो अब।"

       सौम्या ने कहा, "हां, वो तो झेलना ही पड़ेगा लेकिन पहले वो तो देख लूं जो मुझे देखना था।"

       इतना बोल कर उसने पीछे की ओर पलट कर देखा तो जंगल अभी भी वैसा ही था लेकिन अब उसे वहां वो दिख रहा था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।

       उस जंगल में जहां से वो अभी-अभी बाहर आई थी और जिस जगह पर वो अभी 1 मिनट पहले खड़ी थी वहां पर हजारों की संख्या में अजीब अजीब तरह के जीव थें।

       कुछ भेड़ियों जितने बड़े थे पर उनसे ज्यादा खतरनाक, कुछ तो ऐसे थें मानो कच्चा ही चबा जाएंगे। कुछ तो इतने ज्यादा डरावने थें कि सौम्या को उल्टी ही आ गई।

       वो तुरंत दूसरी और पलट गई। उस लॉकेट से आवाज आई, "मैंने बोला था न!"

       सौम्या ने कहा, "मतलब आपको पता था!"

       उस आवाज ने कहा, "ऑफ कोर्स पता था।"

       सौम्या ने कहा, "फिर भी आपने मुझे नहीं बताया।"

       उस आवाज ने कहा, "जब मैंने तुम्हें पहले ही बोला था कि पलट कर पीछे मत देखना, फिर भी तुम्हें ही चुल मची थी कि पीछे देखना है तो उसमें मेरी क्या गलती?"

       सौम्या ने कहा, "आपने बोला था कि जंगल में पीछे पलट कर मत देखना और मैंने पीछे पलट कर देखने की बात जंगल से बाहर निकालने के बाद बोली थी।"

       उस आवाज ने कहा, "बालिके, एक बार ध्यान से अपने कदम देखो। तुम उस जंगल से सिर्फ दस कदम दूर हो।"

       इस बात का अहसास होते हैं सौम्या की सांसें तेज हो गईं।

       उसने अपने मन में खुद से ही कहा, "अगर मैं इस वक्त वहां होती तो ये सब मेरे साथ क्या करतें?"

       इस पर उस आवाज ने हंस कर कहा, "तुम वहां होती तो कुछ नहीं होता लेकिन अगर तुमने पीछे पलट कर देखा होता तो सोचो ये तुम्हारे साथ क्या करतें।"

       सौम्या ने कन्फ्यूजन के साथ कहा, "क्या मतलब?"

       उस आवाज ने कहा, "मतलब ये हमेशा से तुम्हारे पीछे थे।"

       सौम्या ने हैरानी के साथ कहा, "यानी कि इस जंगल में घुसने से लेकर इस जंगल बाहर निकलने तक, पूरे रस्ते ये मेरे पीछे ही थें।"

       उस आवाज ने कहा, "हां, तब तक ये तुम्हारे पीछे ही थे और मैंने इसलिए कहा था कि पीछे मुड़ कर मत देखना क्योंकि जैसे ही तुम उनकी तरफ देखती तुम उनका शिकार बन जाती।"

       ये सब जान कर सौम्या की आंखें बड़ी हो गईं। वो ये सोच कर ही अंदर तक कांप गई थी कि अगर वो पलट कर पीछे की ओर देख लेती तो उसका क्या होता।"

       वो अभी इस सबसे उबर भी नहीं पाई थी कि इतने में लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "अब ये शॉकिंग एक्सप्रेशन देना बंद करो और अपनी मंजिल की ओर बढ़ो। तुम्हारे पास समय बहुत कम है।"

       सौम्या ने तुरंत खुद को संभाला और अपना सिर हां में हिला कर आगे की ओर बढ़ चली।

       सबसे पहले उसने एक दुकान ढूंढ कर नाश्ता किया और फिर आगे बढ़ चली।

       कुछ देर बाद वो एक घर के सामने खड़ी थी जिसके नेम प्लेट पर लिखा हुआ था, "सौम्या शुभ्रा सिंह राठौड़!"

       उस नेम प्लेट को देख कर सौम्या ने कहा, "ये घर मेरे नाम पर है!"

       फिर उसने सोचते हुए कहा, "इन सब चीजों की प्लानिंग कब से की गई थी?"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "प्लानिंग कभी काम नहीं करती। तुम्हारा नाम यहां इसलिए है क्योंकि तुम शुभ्रा की बेटी होने के साथ साथ खुद में भी खास हो और तुम्हारे और तुम्हारे मकसद के बारे में तुमसे ज्यादा तुम्हारे माता-पिता को पता था।

       इसलिए तुम्हारा यहां आना तुम्हारे जन्म से पहले ही डिसाइड हो चुका था।"

       सौम्या ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं पागल हो जाऊंगी। पिछले दो-तीन दिनों में मुझे ऐसी ऐसी चीजें पता चली हैं जिनके बारे में ना मुझे बचपन से कोई आईडिया था और ना किसी ने मुझे बताया था।"

       उस आवाज ने कहा, "मैं जानती हूं सौम्या कि ये सब इतना आसान नहीं है लेकिन तुम्हारी नियति यही है। तुम नहीं जानती कि तुम क्या हो।"

       सौम्या ने फ्रस्ट्रेट होकर गुस्से से कहा, "अरे तो बताइए न मुझे, कौन हूं मैं? क्या हूं मैं? क्यों मुझे ये सब फेस करना पड़ रहा है?"

       उस आवाज ने कहा, "पता चल जाएगा, जल्द ही तुम्हें अपने सारे सवालों का जवाब पता चल जाएगा, लेकिन उसके लिए भी कोई कीमत देनी होगी।"

       सौम्या ने कहा, "और क्या है वो कीमत?"

       उस आवाज ने कहा, "अंदर चलो, जान जाओगी।"

       सौम्या ने एक गहरी सांस ली और अपने कदम अंदर की ओर बढ़ा दिये। उस घर के गेट पर कोई ताला नहीं था इसलिए सौम्या ने आसानी से गेट खोल लिया और आगे बढ़ गई।

       वो मुख्य दरवाजे की और बड़ी और उसे भी धक्का दिया लेकिन वो दरवाजा नहीं खुला। सौम्या ने देखा तो उस पर भी ताला नहीं था लेकिन वो दरवाजा हिल तक नहीं रहा था।

       सौम्या ने चिढ़ कर कहा, "अब ये मुसीबत कहां से आ गई। ये दरवाजा खुल क्यों नहीं रहा है।"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "ये दरवाजा खुलेगा लेकिन एक शर्त पर।"

       सौम्या ने सामने की ओर देख कर कहा, "और वो क्या है?"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "तुम्हें अपने खून की कुछ बूंदें इसके दरवाजे पर गिरानी होंगी।"

       ये सुन कर सौम्या ने हैरानी के साथ कहा, "व्हाट!"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "अब ये शॉकिंग रिएक्शन देना बंद करो और जल्दी से अपना खून यहां गिराओ।"

       सौम्या ने अपने पैरों को दो कदम पीछे लेते हुए कहा, "आप पागल वागल हो गई हैं क्या? मैं अपना खून क्यों बहाऊं?"

       उस आवाज ने कहा, "क्योंकि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है और भूलो मत। इसमें तुम्हारा स्वार्थ है। तुम्हें अपनी मां की मौत का सच जानना है।"

       सौम्या ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "मैं पागल हो जाऊंगी।"

       लॉकेट वाली आवाज ने हल्के से हंस कर कहा, "बस इतने में ही तुम पागल हो रही हो। अरे, ये तो बस शुरुआत है। आगे तो अभी पूरा रास्ता पड़ा हुआ है। तब ना जाने क्या-क्या देखोगी।"

       अब सौम्या से कुछ बोलते नहीं बन रहा था। उसने अपने बैग में हाथ डाला और कुछ ढूंढने लगी। 1 मिनट के अंदर उसने अपने बैग से एक छोटा सा चाकू निकाला और उसे खोल लिया।

       उसने अपने दाएं हाथ का अंगूठा सामने किया और फिर उस चाकू को देखा। वो उस चाकू को हल्के से अपने अंगूठे के पास ले आई लेकिन इससे पहले की वो चाकू उसके अंगूठे को छूता, उसने तुरंत अपना हाथ पीछे खींच लिया।

       उसने फिर से हिम्मत की और अपने अंगूठे को उस चाकू के पास ले आई लेकिन इस बार डर की वजह से वो चाकू ही उसके हाथ से छूट कर गिर गया।

       उसने जमीन पर बैठ कर कहा, "यार! ये नहीं होगा मुझसे।"

       अंगूठी वाली आवाज ने कहा, "तुम्हें ये करना ही होगा।"

       सौम्या ने कहा, "पर मैं कैसे काटूं अपने ही हाथ को?"

       अंगूठी वाली आवाज ने कड़क मिजाज में कहा, "यानी कि तुम्हारे अंदर अपनी मां की मौत का सच जानने की, अपने बारे में पता लगाने को इच्छा ही नहीं है।"

       सौम्या ने तुरंत उस लॉकेट की ओर देख कर कहा, "अरे, ऐसा नहीं है।"

      
    जारी है...

  • 8. The House With Twelve Clocks - Chapter 8

    Words: 1509

    Estimated Reading Time: 10 min

    सौम्या ने अपने दाएं हाथ का अंगूठा सामने किया और फिर उस चाकू को देखा। वो उस चाकू को हल्के से अपने अंगूठे के पास ले आई लेकिन इससे पहले की वो चाकू उसके अंगूठे को छूता, उसने तुरंत अपना हाथ पीछे खींच लिया।

       उसने फिर से हिम्मत की और अपने अंगूठे को उस चाकू के पास ले आई लेकिन इस बार डर की वजह से वो चाकू ही उसके हाथ से छूट कर गिर गया।

       उसने जमीन पर बैठ कर कहा, "यार! ये नहीं होगा मुझसे।"

       अंगूठी वाली आवाज ने कहा, "तुम्हें ये करना ही होगा।"

       सौम्या ने कहा, "पर मैं कैसे काटूं अपने ही हाथ को?"

       अंगूठी वाली आवाज ने कड़क मिजाज में कहा, "यानी कि तुम्हारे अंदर अपनी मां की मौत का सच जानने की, अपने बारे में पता लगाने को इच्छा ही नहीं है।"

       सौम्या ने तुरंत उस लॉकेट की ओर देख कर कहा, "अरे, ऐसा नहीं है।"

       उस आवाज ने दृढ़ता के साथ कहा, "अगर ऐसा नहीं है, अगर तुम सच में अपनी मां की मौत का सच जानना चाहती हो, अगर तुम्हें सच में अपने बारे में जानना है अभी के अभी ये चाकू उठाओ और अपने अंकुठे पर कट लगाओ।"

      

    सौम्या ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है। मैं करती हूँ।"

       इतना बोल कर उसने फिर से वो चाकू उठाया, अपनी आंखें बंद की और एक झटके से अपना दायां अंगूठा उस चाकू पर रगड़ दिया।

       और अगले ही पल उसके खून की कुछ बूंदें छिटक कर उस घर के दरवाजे पर और जमीन पर पड़ीं। जैसे ही वो बूंदें उस दरवाजे पर पड़ीं, वो दरवाजा "चर्र..." की आवाज के साथ अपने आप खुल गया।

       उस आवाज को सुन कर सौम्या ने एक झटके के साथ अपनी आंखें खोलीं और अपने सामने उस दरवाजे को खुला हुआ देख कर उसकी आंखों में एक अलग ही चमक आ गई।

       उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "खुल गया दरवाजा।"

       अब उसे अपना दर्द भी याद नहीं था। वो तुरंत उठी और अपना सामान लेकर अंदर की ओर बढ़ गई। वो पूरा घर अंधेरे से भरा हुआ था।

       सौम्या ने अंदर जाकर दरवाजे की साइड में हाथ रखा तो उसे स्विच बोर्ड मिल गया। उसने एक साथ सारी स्विचेस ऑन कर दीं। ऐसा होते ही वो पूरा घर रोशनी से जगमगा उठा।

       उस घर को देख कर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वहां कोई रहता ही नहीं था। वहां धूल का एक कतरा भी नहीं था और ना ही किसी दीवार में कोई सीलन थी।

       उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि अभी जल्दी ही इस घर को बनवाया गया है। उस घर में हर तरह की सुविधा थी जो एक आधुनिक घर में होती है। ये सब देख कर सौम्या के हैरानी की कोई सीमा नहीं थी।

       सौम्या ने चारों ओर घूम कर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उस घर की हर चीज को देखते हुए कहा, "क्या जगह है यार ये! मतलब इस घर को देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि यहां 25 सालों से कोई आया ही नहीं है।"

       तभी उसके दिमाग में कुछ खटका और उसने सोचते हुए कहा, "पर ऐसा कैसे?"

       तभी उसकी नजर एक दूसरे कमरे पर पड़ी जहां कोई रोशनी नहीं थी।

       सौम्या ने फिर से सोचते हुए कहा, "मैंने तो सारी स्विचेस ऑन कर दी थीं फिर यहां की लाइट्स क्यों नहीं जल रही हैं!"

       उसने उस कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा, "चल कर देखती हूँ।"

       उसने वहाँ जाकर उस कमरे का दरवाजा खोला और स्विच ढूंढ कर वहां की लाइट्स भी ऑन कर दीं। लाइट्स ऑन होते ही सौम्या के सामने जो नजारा था उसे देख कर उसका मुंह खुला का खुला रह गया।

       उसकी आंखों के सामने एक ही दीवार पर 12 घड़ियां लटकी हुई थीं। उन सभी का डिजाइन अलग था। उनमें बजा हुआ समय भी अलग था लेकिन एक बात अजीब थी और वो ये कि वो सारी घड़ियां रुकी हुई थीं।

       सौम्या ने इन बारीकियों पर ध्यान नहीं दिया था। उसने अपना सिर खुजाते हुए कहा, "क्या है यार ये! 12 घड़ियां, वो भी एक ही घर के एक ही कमरे में!"

       तभी उसने ये बात नोटिस की कि सारी घड़ियां रुकी हुई हैं, "लेकिन एक मिनट, ये सारी रुकी हुई क्यों हैं?"

       उसके सवाल का जवाब देते हुए लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "क्योंकि यही तो तुम्हारी पहेली हैं।"

       सौम्या ने अपनी आँखें सिकोड़ कर उस लॉकेट की ओर देख कर कहा, "क्या मतलब?"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "मतलब कि ये सारी घड़ियां साल के 12 महीनों की सूचक हैं और तुम्हारी 12 पहेलियां, जिन्हें पार करके ही तुम्हें तुम्हारे सवालों के जवाब मिलेंगे।

       सब कुछ जानने के लिए तुम्हें इन 12 घड़ियों की गुत्थी सुलझानी होगी।"

       सौम्या ने तुरंत अगला सवाल पूछा, "और वो होगा कैसे?"

       लॉकेट वाली आवाज ने चिढ़ के साथ कहा, "कभी खुद का भी दिमाग लगाओ यार। सब कुछ मैं ही बताऊं!"

       सौम्या ने ना में सिर हिलाया आगे बढ़ कर उन घड़ियों को बड़े ही ध्यान से देखने लगी। वो बड़े ही ध्यान से उन्हें देख रही थी।

       उसने सोचते हुए कहा, "इन घड़ियों को देख कर तीन बातें समझ में आ रही हैं। पहला, ये सभी रुकी हुई हैं, दूसरा इन सब में टाइम अलग-अलग हैं और तीसरा, इनका मुझसे कोई ना कोई कनेक्शन जरूर है।"

       इतना बोल कर उसने अपना हाथ पहली घड़ी की ओर बढ़ा दिया और जैसे ही उसका हाथ उस घड़ी से लगा, आस-पास सब कुछ हिलने लगा। कमरे की सारी चीजें हिलने लगीं, मानो भूकम्प आ गया हो।

       पास की टेबल पर रखा हुआ वास गिर कर टूट गया। सौम्या का सामान भी गिर पड़ा। ये सब देख कर सौम्या डर गई और वो अपना हाथ पीछे खींचने लगी।

       उसका हाथ उस घड़ी से हटने ही वाला था कि इतने में लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "नहीं, हाथ पीछे मत खींचना।"

       सौम्या के मुंह से नासमझी से निकला, "हां!"

       लेकिन उसने अपना हाथ पीछे नहीं खींचा और देखते ही देखते हैं वो पूरी जगह बदल गई। जहां अब तक रोशनी से भरा हुआ वो बड़ा सा कमरा था अब वहां एक छोटा सा कमरा था।

       बाहर झमाझम बारिश हो रही थी और खिड़की पर बारिश की बूंदे लगातार गिर रही थीं। उस कमरे में हर तरफ अंधेरा था सिवाय एक टेबल के जहां पर इस वक्त एक लड़की बैठी हुई थी।

       वो अपने टेबल पर अपना लैपटॉप खोल कर बैठी हुई थी और उसने अपने कानों में हेडफोन लगा रखा था। सौम्या कन्फ्यूजन के साथ उस लड़की को देखने लगी।

       वहीं वो लड़की बड़े ही ध्यान से अपना काम कर रही थी कि तभी उसकी उंगलियां जो लैपटॉप के की-बोर्ड पर चल रही थीं, अचानक से रुक गईं।

       उस लड़की ने तुरंत अपने हाथ पीछे किये और अपना हेडफोन पकड़ कर ध्यान से कुछ सुनने लगी। फिर उसने लैपटॉप में कुछ किया और फिर से ध्यान से कुछ सुनने लगी।

       कुछ देर बाद उसने अपना हेडफोन उतार कर कहा, "कैसी अजीब से आवाज है यार?"

       फिर उसने अपने डॉक्यूमेंट्स चेक करते हुए कहा, "ये कहां वाली रिकॉर्डिंग है। ये तो जंगल वाली रिकॉर्डिंग है।"

       फिर उसने सोचते हुए कहा, "लेकिन वहां तो ऐसी कोई आवाज नहीं थी। एक काम करती हूं, बाकी रिकॉर्डिंग्स में भी चेक करती हूं।"

       इतना बोल कर उसने फिर से अपना हेडफोन पहन लिया और लैपटॉप पर अपनी उंगलियां चलाने लगी।

       लगभग 10 मिनट बाद उसने अपना हेडफोन उतार कर रखते हुए, "ये आवाज तो हर रिकॉर्डिंग में आ रही है।"

       इतना बोल कर वो उठ खड़ी हुई और बाहर की ओर चल पड़ी। सौम्या उसके सामने ही खड़ी थी लेकिन वो लड़की उसके पार हो गई बिल्कुल ऐसे जैसे कि सौम्या वहां हो ही ना।

       सौम्या ने नासमझी से कहा, "ये कैसे हुआ? ये मेरे पार कैसे निकल गई?"

       लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "क्योंकि तुम भौतिक रूप से यहां नहीं हो, सिर्फ तुम्हारी आत्मा यहां है और अब से तुम इसकी जिंदगी जिओगी।"

       उस लॉकेट ने इतना ही कहा था कि सौम्या और उस लड़की, दोनों की ही आंखें एक साथ बंद हो गईं।

       फिर सौम्या की आँखें खुलीं तो वो सौम्या नहीं, तान्या थी। उसका सर दर्द से फट रहा था। उसके दिमाग में उस लड़की यानी तान्या के जिंदगी की यादें घूम रही थीं।

       तान्या एक साउंड इंजीनियर थी और फिल्मों के लिए साउंड एडिट करती थी। सौम्या जो अब तान्या थी वो अपना सिर पकड़ कर उठ बैठी। उसके दिमाग में खुद की और तान्या की यादें एक साथ clash कर रही थीं।

       कुछ देर तक वो उसी तरह से अपना सिर पकड़ कर बैठी रही। फिर वो उठ कर कमरे से बाहर निकली तो उसकी नजर घड़ी पर पड़ी जो सुबह के आठ का वक्त दिखा रही थी।

       तान्या ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा, "जहां तक मुझे याद है जब मैंने तान्या को देखा था तो उस वक्त रात के आठ या नौ बज रहे थे। फिर अभी सुबह के आठ कैसे बज रहे हैं और मेरे दिमाग में कल रात वाली याद कैसे नहीं है? क्या मैं समय में पीछे आई हूं?"

    फिर उसने फ्रस्ट्रेशन के साथ कहा, "क्या हो रहा है यार? लग रहा है कि मेरी जिंदगी इसी सबमें खत्म हो जाएगी।"


       जारी है...

  • 9. The House With Twelve Clocks - Chapter 9

    Words: 1508

    Estimated Reading Time: 10 min

    तान्या एक साउंड इंजीनियर थी और फिल्मों के लिए साउंड एडिट करती थी। सौम्या जो अब तान्या थी वो अपना सिर पकड़ कर उठ बैठी। उसके दिमाग में खुद की और तान्या की यादें एक साथ clash कर रही थीं।

       कुछ देर तक वो उसी तरह से अपना सिर पकड़ कर बैठी रही। फिर वो उठ कर कमरे से बाहर निकली तो उसकी नजर घड़ी पर पड़ी जो सुबह के आठ का वक्त दिखा रही थी।

       तान्या ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा, "जहां तक मुझे याद है जब मैंने तान्या को देखा था तो उस वक्त रात के आठ या नौ बज रहे थे। फिर अभी सुबह के आठ कैसे बज रहे हैं और मेरे दिमाग में कल रात वाली याद कैसे नहीं है? क्या मैं समय में पीछे आई हूं?"

    फिर उसने फ्रस्ट्रेशन के साथ कहा, "क्या हो रहा है यार? लग रहा है कि मेरी जिंदगी इसी सबमें खत्म हो जाएगी।"

    तभी लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "तुम अभी से हार कैसे मान सकती हो? अभी तो पहली ही घड़ी शुरू हुई है।"

       अब जाकर तान्या ने अपने गले में देखा जहां पर वो लॉकेट अभी भी था। उसने उस लॉकेट को पकड़ कर हैरानी के साथ कहा, "आप यहां भी!"

       लॉकेट वाली आवाज ने एक हंसी के साथ कहा, "ये समय की दीवारें मुझे नहीं रोक सकतीं। इसलिए तुम जहां भी, जिस भी समय में रहोगी, मुझे अपने साथ पाओगी।"

       तान्या ने हल्के से मुस्करा कर कहा, "मां ने बहुत ही सही साथी चुनी है मेरे लिए।"

       उस आवाज ने गर्व के साथ कहा, "सो तो है। आखिर, हीरे की परख एक जौहरी को ही होती है।"

       तान्या ने मुंह बना कर कहा, "बस, बस! ज्यादा अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की जरूरत नहीं है।"

       उस आवाज ने कहा, "हां हां, समझ गई जलकुलड़ी!"

       तान्या ने अपना सिर ना में हिला कर कहा, "आपका कुछ नहीं हो सकता।"

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में तान्या का फोन बज उठा। तान्या ने कॉल अटेंड करके अपने कान से लगाया तो सामने से किसी लड़की की आवाज आई, "तनु, कहां है तू? जल्दी आ। तू भूल गई, आज हमें बर्ड्स की साउंड रिकॉर्ड करनी है।"

       तान्या ने कहा, "मुझे सब याद है। तू निकल, मैं भी आती हूं।"

       सामने वाली लड़की ने कहा, "हां, जल्दी आ।"

       इतना बोल कर उसने कॉल कट कर दिया।

       तान्या ने भी बाथरूम की ओर जाते हुए खुद से कहा, "चल समू...!"

       फिर उसने खुद के ही सिर पर चपत लगा कर कहा, "समू नहीं, तनु! चल तनु, तू भी तैयार हो जा अपने इस नए सफ़र के लिए।"

       और इसी के साथ वो बाथरूम में घुस गई।

       कुछ देर बाद,

       तान्या अपनी कमर पर हाथ रखे हुए एक जंगल के सामने खड़ी थी। अपने साथ उसने कुछ इंस्ट्रूमेंट्स ले रखे थे। उसने अपना फोन निकाल कर समय देखा तो सुबह के ग्यारह रहे थे।

       समय देख कर उसने जैसे ही अपना फोन नीचे किया, एक और लड़की उसके बगल में आकर खड़ी हो गई। उसने भी कुछ इंस्ट्रूमेंट्स ले रखे थे।

       तान्या ने उसकी और देखे बिना ही कहा, "कोई मुझे देर से ना आने को बोल कर खुद देर से आया है।"

       दूसरी लड़की ने मुंह बना कर कहा, "तू अपनी ये टॉन्ट मारने वाली आदत कब बंद करेगी।"

       तान्या ने आराम से कहा, "जब तू अपनी ये लेट होने वाली आदत बंद कर देगी।"

       उस लड़की ने कहा, "मतलब कभी नहीं!"

       तान्या ने हल्के से हंस कर कहा, "वो तो तू बताएगी।"

       दूसरी लड़की ने अपना सिर ना में हिला कर कहा, "छोड़, तुझसे बात करना ही बेकार है।"

       उसकी बातें सुन कर सौम्या मुँह खोले उस लड़की की ओर देखने लगी। उसके दिमाग में अपनी और उस लॉकेट वाली आवाज के बीच होने वाली बातें चलने लगीं।

       वो इन बातों के बारे में सोच ही रही थी कि इतने में लॉकेट वाली आवाज ने कहा, "क्यों, लग रहा है न जैसे तू मेरी जगह और मैं उसकी जगह!"

       उसकी आवाज सुन कर तान्या की आंखें डर से बड़ी हो गईं। उसने तुरंत उस आवाज को चुप कराते हुए धीमी आवाज में कहा, "श... श...! चुप रहो। ये सुन लेगी।"

       उस आवाज में बेपरवाही से कहा, "मुझे तुम्हारे अलावा कोई नहीं सुन सकता।"

       तभी उस लड़की ने तान्या की ओर देख कर कहा, "क्या हुआ? किसे चुप करा रही है तू?"

       तान्या ने अनजान बनते हुए कहा, "चुप, मैं किसे चुप करा रही हूं? किसी को भी तो नहीं।"

       उस लड़की ने सौम्या के सिर पर हाथ रख कर कहा, "तेरी तबीयत तो ठीक है न!"

       तान्या ने उसका हाथ हटा कर कहा, "हां! मैं तो बिल्कुल ठीक हूं। मुझे क्या हुआ है!"

       दूसरी लड़की ने अभी भी उसे आशंका से देखते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस कुछ बहकी बहकी सी लग रही है।"

       तान्या ने बात टालते हुए कहा, "मतलब कुछ भी। चल, ये बकवास बंद कर और काम पर लग।"

       उसे लड़की ने भी कहा हां चल पहले काम कर लेते हैं।

       शाम का समय,

       तान्या अपने कमरे में बैठी हुई थी, उसी कमरे में जहां सौम्या ने उसे पहली बार देखा था। बाहर खिड़की पर बारिश की बूंदें गिर रही थीं, टिक टिक टिक! जैसे कोई पुराना संगीत बज रहा हो।

       तान्या हेडफोन लगा कर, अपनी नज़रें कंप्यूटर स्क्रीन पर गड़ा कर अपने काम में लगी हुई थी। वो एक इंडी फिल्म के लिए बैकग्राउंड स्कोर एडिट कर रही थी, एक सीन में बारिश, दूर से ट्रेन की आवाज़, हल्की हवा की सनसनाहट और साथ में चिड़ियों की धीमी आवाजें।

       उसके स्क्रीन पर चल रही साउंडवेव की लाइनें दिख रही थीं कि अचानक तान्या का हाथ रुक गया। उसने कुछ सुना, कुछ अजीब सा जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।

       उसने एक सेक्शन को रीप्ले किया।

       [Repeat Sound: 00:02:16 – 00:02:20]

       बारिश, हवा और फिर चिड़ियों की आवाज के साथ ही किसी की बहुत ही धीमी और काँपती हुई आवाज़, "हेल्प मी!"

       तान्या का दिल जैसे एक पल के लिए थम सा गया हो। उसके चेहरे पर डर के भाव थें। उसने फौरन उस साउंड फाइल को isolate किया, बाकी सब कुछ mute कर दिया, और बस उस हिस्से को बार-बार सुना जिसमें वो आवाज बार-बार एक ही बात बोल रही थी, “हेल्प मी...”

       ये आवाज सुन कर उसकी गर्दन अपने आप ही एक तस्वीर की ओर घूम गई जो उसके टेबल पर रखी हुई थी। उस तस्वीर में तान्या के साथ एक और लड़की थी जो उम्र में उससे कुछ बड़ी रही होगी और उसकी शक्ल तान्या से मिल रही थी।

       उसे देख कर तान्या के मुंह से अपने आप ही निकला, "अनाया दी!"

       फिर तान्या ने लड़खड़ाती जुबान में कहा, "ये, ये, ये तो, ये तो अनाया दी की आवाज है पर, पर ऐसा कैसे हो सकता है! वो तो, वो तो पांच साल पहले ही मर चुकी है!"

       इतना बोल कर उसने फिर से उस तस्वीर की ओर देखा। अब उसे वो तस्वीर देख कर भी डर लग रहा था।

       उसने तुरंत वो तस्वीर पलट कर रख दी और अपना हेडफोन भी उतार दिया। फिर उसने अपनी आंखें बंद कीं और चार से पांच बार गहरी सासें लीं तब जाकर उसका दिमाग थोड़ा स्थिर हुआ।

       फिर उसने अपनी आँखें खोल कर खुद से ही कहा, "तनु, ये डरने का वक्त नहीं है। ये बस तेरा वहम है।"

       ये सब बोल कर वो खुद को दिलासा देने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन इसका कुछ फायदा हो नहीं रहा था।

       उसने एक गहरी सांस लेकर कहा, "एक काम करते हैं। शायद ये आवाज सिर्फ इसी रिकॉर्डिंग में हो और किसी और की हो।

       बस मुझे ऐसा लग रहा है कि ये अनाया दी की आवाज है। आखिर उन्हें गए हुए पांच साल हो चुके हैं तो अब उनकी आवाज, ये किसी और की आवाज होगी।"

       इतना बोल कर उसने फिर से हेडफोन अपने कान से लगाए। फिर उसने लैपटॉप में एक दूसरी रिकॉर्डिंग प्ले की लेकिन इस रिकॉर्डिंग में भी उसे वही आवाज सुनाई दी, "हेल्प मी...!"

       इस बार वो आवाज सुन कर सौम्या अंदर तक हिल गई। वो तब से खुद को यही बात समझाए जा रही थी कि ये आवाज अनाया की नहीं है लेकिन अब ये कन्फर्म हो चुका था कि ये आवाज अनाया की ही है।

    उसने खुद से कहा, "नहीं, ये मेरा वहम नहीं है। ये सच है। ये, ये आवाज अनाया दी की ही है।"

       फिर उसने अपना सिर पकड़ कर कहा, "...पर ऐसा कैसे हो सकता है! उनकी आवाज... अब कैसे सुनाई दे रही है मुझे? क्या उन्हें मुक्ति नहीं मिली है?

       लेकिन अगर ऐसा है भी तो पिछले पांच सालों से वो शान्त कैसे थीं और आज अचानक से ये सब..."

       फिर उसने सोचते हुए कहा, "क्या मुझे उनसे कॉन्टैक्ट करना चाहिए, उनसे क्लूज मांगने चाहिए?"

       फिर अगले ही पल उसने कहा, "नहीं यार, इन मामलों में ऐसे जोश से काम नहीं लेना चाहिए लेकिन..."

       फिर उसने अपना मुँह लटका कर कहा, "...अब मैं करूं क्या?"

       वो अपनी ही उधेड़ बुन में लगी हुई थी, "क्या करूं? क्या करूं?"

       तभी उसके दिमाग में कुछ आया और उसने एक उम्मीद के साथ कहा, "हाँ, एक काम करती हूँ। तृष्णा को कॉल करती हूँ। वो जरूर मेरी मदद करेगी।"

      

       जारी है...

  • 10. The House With Twelve Clocks - Chapter 10

    Words: 1526

    Estimated Reading Time: 10 min

    तान्या ने श्योर होने के बाद खुद से कहा, "नहीं, ये मेरा वहम नहीं है। ये सच है। ये, ये आवाज अनाया दी की ही है।"

       फिर उसने अपना सिर पकड़ कर कहा, "...पर ऐसा कैसे हो सकता है! उनकी आवाज... अब कैसे सुनाई दे रही है मुझे? क्या उन्हें मुक्ति नहीं मिली है?

       लेकिन अगर ऐसा है भी तो पिछले पांच सालों से वो शान्त कैसे थीं और आज अचानक से ये सब..."

       फिर उसने सोचते हुए कहा, "क्या मुझे उनसे कॉन्टैक्ट करना चाहिए, उनसे क्लूज मांगने चाहिए?"

       फिर अगले ही पल उसने कहा, "नहीं यार, इन मामलों में ऐसे जोश से काम नहीं लेना चाहिए लेकिन..."

       फिर उसने अपना मुँह लटका कर कहा, "...अब मैं करूं क्या?"

       वो अपनी ही उधेड़ बुन में लगी हुई थी, "क्या करूं? क्या करूं?"

       तभी उसके दिमाग में कुछ आया और उसने एक उम्मीद के साथ कहा, "हाँ, एक काम करती हूँ। तृष्णा को कॉल करती हूँ। वो जरूर मेरी मदद करेगी।"

       इतना बोल कर उसने अपने फोन में त्रिशू नाम से सेव नम्बर पर कॉल कर दिया।

       कॉल दो रिंग के बाद ही आंसर हो गई और सामने से फिर से वही आवाज आई, "हेल्प मी...!"

       कॉल पर वो आवाज सुन कर तान्या की सांसें मानो रुक सी गई हों।

       उसने दहशत के साथ अपने फोन को अपने कान से अलग करके उसकी ओर देखा और फिर से वो फोन अपने कान से लगाया तो उस आवाज ने फिर से कहा, "हेल्प मी तान्या, हेल्प मी!"

       इस बार वो आवाज पहले से ज्यादा उग्र थी। उसे सुन कर तान्या की सांसें तेज हो गईं। उसका चेहरा पसीने से भीग गया और डर के मारे वो फोन उसके हाथ से छूट गया।

       वो डर के साथ उस फोन को घूरे जा रही थी कि इतने में वो कॉल आंसर हुआ और ये कॉल उसी लड़की ने आंसर किया जो दिन में तान्या के साथ चिड़ियों की आवाज रिकॉर्ड करने गई थी।

       उसने कॉल आंसर करके कहा, "क्या हुआ, तनु? इतनी रात गए कैसे याद किया?"

       लेकिन तान्या ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। उसकी सांसें अब भी तेज चल रही थीं जिनका शोर फोन के जरिए तृष्णा को भी सुनाई दे गया।

       उसने घबरा कर आशंका के साथ कहा, "तनु, क्या हुआ तुझे? तू, तू ठीक तो है न! तनु, कुछ बोल तनु!"

       तान्या को जब इस बात का यकीन हो गया कि कॉल पर अब तृष्णा ही है तो उसने फोन तुरंत अपने कान से लगा कर हड़बड़ाते हुए कहा, "त्रिशू! क्या, क्या तू, क्या तू यहाँ आ सकती है?"

       उसकी आवाज में डर साफ झलक रहा था।

       तृष्णा ने भी उसकी ऐसी आवाज सुन कर घबरा कर कहा, "क्या हुआ तनु? तू, तू इतनी घबराई हुई क्यों है?"

       तान्या ने उसी तरह से कहा, "त्रिशू, प्लीज जल्दी से आ जा।"

       तृष्णा ने कहा, "तनु! तू, तू रो मत। मैं, मैं अभी आती हूँ। तू टेंशन मत ले। मैं आ रही हूँ।"

       इतना बोल कर उसने कॉल कट किया और बाहर की ओर चल पड़ी।

       वहीं तान्या की आँखों से अब आंसू बहने लगे थें। उसने बहती हुई आँखों के साथ ही उस तस्वीर को उठाया जो उसके पलट दिया था और उसमें अनाया को देखने लगी।

       कुछ देर बाद,

       तृष्णा भागती हुई घर के अंदर आई। वो जैसे ही उस कमरे में पहुंची, उसकी नजर तान्या पर पड़ी जो अपने हाथ टेबल पर टिका कर अपनी गर्दन झुकाए हुए बैठी थी।

       तृष्णा दौड़ कर उसके पास गई। उसने तान्या को हिलाते हुए कहा, "तनु, तनु क्या हुआ तुझे?"

       तान्या ने अपनी गर्दन झुकाए हुए ही सामने की तस्वीर को प्वॉइंट करके कहा, "त्रिशू! वो, वो अनाया दी..."

       तृष्णा ने अपनी गर्दन उस तस्वीर की ओर घुमाई। फिर उसने तान्या की ओर देख कर कहा, "अनाया दी, तुझे उनकी याद आ रही है!"

       तान्या ने रोते हुए ही कहा, "नहीं, मैंने उनकी आवाज सुनी।"

       ये सुन कर तृष्णा की भौंहें सिकुड़ गईं। उसने नासमझी से कहा, "उनकी आवाज सुनी, पर कैसे?"

       तान्या ने लैपटॉप की ओर इशारा करके कहा, "वो उस रिकॉर्डिंग में!"

       तृष्णा ने लैपटॉप की ओर देखा तो उस पर अभी भी वो रिकॉर्डिंग ऑन थी जिसे तान्या सुन रही थी।

       उसने अपने चेहरे पर समझने के भाव लाते हुए कहा, "ओह, तो तूने उनकी उनकी आवाज रिकॉर्ड कर रखी है।"

       फिर उसने मजाकिया लहजे में अपना सिर पीट कर कहा, "तू भी न, जब रिकॉर्डिंग उनके आवाज की है तो उन्हीं की आवाज सुनेगी न!"

       तान्या ने चिढ़ कर तेज आवाज में कहा, "तू मेरी बात समझ क्यों नहीं रही है! मैंने उनके आवाज की कोई रिकॉर्डिंग नहीं रखी है।"

       तृष्णा ने अपने कंधे उचका कर कहा, "अरे तो किसी और ने कर दी होगी। इसमें कौन सी बड़ी बात है!"

       तान्या ने फ्रस्ट्रेशन के साथ कहा, "अरे तुम मेरी बात समझो। मैंने उनकी आवाज आज सुबह वाली रिकॉर्डिंग में सुनी है।"

       ये सुन कर तृष्णा का मुँह भी खुला का खुला रह गया।

       फिर उसने अपने भाव बदल कर हल्की चिढ़ के साथ कहा, "ये क्या बकवास कर रही है तू!"

       तान्या ने कहा, "मैं सच बोल रही हूं। मुझ पर यकीन नहीं तो तू खुद ही सुन कर देख ले।"

       अब तृष्णा के पास तान्या की बातों का कोई जवाब नहीं था। उसने एक नजर उस लैपटॉप को देखा फिर उस हेडफोन को और फिर तान्या को।

       फिर उसने हेडफोन उठाते हुए तान्या से कहा, "अगर ये कोई प्रैंक वगैरह हुआ न तनु, तो आई स्वीयर आई एम गोइंग टू किल यू!"

       तान्या ने चिढ़ कर कहा, "मार लेना मुझे, लेकिन पहले जो मैं बोल रही हूँ उसे एक बार सुन तो ले।"

       तृष्णा ने एक गहरी सांस ली और वो हेडफोन अपने कान पर लगा लिया। वो एकदम आराम से उस रिकॉर्डिंग को सुन रही थी कि अचानक से उसकी आंखें बड़ी हो गईं।

       वो डर और दहशत के भावों के साथ तान्या को देखने लगी। उसने अपने कानों से हेडफोन उतारे और अपने मुँह पर हाथ रख कर कहा, "ओ माय गॉड! ये कैसे हो सकता है?"

       तान्या ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "वही तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा है। उनकी आवाज मेरी रिकॉर्डिंग में वो भी इतने सालों बाद और वो भी हेल्प के लिए! आखिर उन्हें हमसे कैसी हेल्प चाहिए होगी।"

       उसकी बात सुन कर तृष्णा की भौंहें सिकुड़ गईं। उसने अपनी आंखें छोटी करके कहा, "हेल्प के लिए!"

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "हाँ, हेल्प के लिए! तूने कुछ और सुना क्या?"

       तृष्णा ने अपनी गर्दन ना में हिला कर कहा, "नहीं कुछ नहीं। वो मैं कह रही थी कि हमें किसी पंडित से बात करनी चाहिए।"

       तान्या ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तुझे लगता है कि वो हमारी हेल्प कर पाएंगे!"

       तृष्णा ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "तो क्या तेरे पास कोई और ऑप्शन है? कोई और है जो हमारी हेल्प कर पाएगा?"

       तान्या ने कहा, "नहीं, ऐसा तो कोई नहीं है।"

       तृष्णा ने अपना फोन उठाते हुए कहा, "तो मैं अपने गुरु जी को कॉल करके ये सब बताती हूँ।"

       तान्या ने कहा, "हां, तू उन्हें बता दे। मेरा तो दिमाग ही ही काम नहीं कर रहा। पूरा माइंड ब्लैंक हो चुका है।"

       तृष्णा ने उसके पास बैठ कर उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "मैं तेरी हालत समझ सकती हूं। तू रिलैक्स कर, तुझे आराम की जरूरत है। ये सब मैं देखती हूं।"

       तान्या ने हाँ में सिर हिला दिया तो तृष्णा अपना फोन लेकर दूसरी ओर चली गई।

       अगली सुबह,

       तान्या और तृष्णा, दोनों ही हॉल में बैठी हुई थीं। उनकी नज़रें घड़ी पर टिकी हुई थीं जो सुबह के दस बजे का समय दिखा रही थी, शायद वो किसी का इंतेज़ार कर रही थीं।

       तभी डोरबेल बजी तो तृष्णा तुरंत दरवाजे की ओर बढ़ गई। उसने दरवाजा खोला तो वहां पर एक 30-35 साल का आदमी खड़ा था। उसने सादा सा पैंट शर्ट पहना हुआ था।

       उन्हें देख कर तृष्णा ने अपने हाथ जोड़ कर थोड़ा सा झुकते हुए कहा, "प्रणाम अंकल!"

       उस आदमी ने अपना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में करके कहा, "आयुष्मान भव:!"

       तृष्णा ने साइड होते हुए कहा, "आइए, अंदर आइए।"

       कुछ देर बाद,

       उस आदमी ने हेडफोन अपने सिर पर से उतार कर एक तरफ रखा और अपनी आँखें बंद करके ध्यान लगाने लगें।

       कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और फिर तान्या की ओर देख कर अपना सिर ना में हिला कर कहा, "ये तुम्हारी बहन नहीं है।"

       तान्या ने उन्हें सवालिया नजरों से देखते हुए कहा, "फिर!"

       उस आदमी ने कहा, "ये उसकी कोई जानने वाली है।"

       तान्या ने नासमझी से कहा, "उनकी जानने वाली! पर वो मुझसे हेल्प क्यों मांग रही हैं?"

       उसे आदमी ने कुछ सोचते हुए कहा, "शायद वो तुम्हें जानती है या शायद तुम उसे जानती हो!"

       तान्या ने सोचते हुए कहा, "दी की कोई दोस्त जो मुझे जानती है या मैं जिसे जानती हूं। ऐसा तो कोई मुझे याद नहीं ।"

       उसके साथ-साथ कृष्णा भी सोचने लगी और कुछ ही समय बाद उसने कहा, "एक मिनट!"

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "क्या हुआ?"

       तृष्णा ने उसे याद दिलाते हुए कहा, "वो थी न!"

       तान्या ने कन्फ्यूजन के साथ कहा, "कौन?"

       तृष्णा ने कहा, "अरे वही यार जिसके बारे में तेरी दीदी हमेशा बात करती रहती थीं और कभी-कभी तू भी मुझे उनके बारे में बताया करती थी।"


    जारी है...

  • 11. The House With Twelve Clocks - Chapter 11

    Words: 1523

    Estimated Reading Time: 10 min

    तान्या ने अपनी पुरानी यादों को याद करते हुए कहा, "कौन, वो शांति दीदी!"

    तृष्णा ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, "हां, वो भी तो दी के साथ ही रहती थीं न!"

    तान्या ने कहा, "अरे हां, ये बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई!"

    तृष्णा ने कहा, "वो सब छोड़ और ये बता कि वो अभी कहां हैं।"

    ये सुन कर तान्या उसे अजीब तरीके से घूरने लगी। उसे खुद को ऐसे घूरते हुए देख कर तृष्णा ने कहा, "क्या हुआ? मुझे ऐसे क्यों घूर रही है?"

    तान्या ने चिढ़ कर कहा, "तू पागल है क्या?"

    तृष्णा ने मुंह खोले हुए कहा, "क्या हुआ?"

    तान्या ने अपने हाथ बांध कर कहा, "अभी अंकल ने बताया न कि ये उन्हीं की आवाज थी।"

    तृष्णा को अब एहसास हुआ कि तान्या उसे घूर क्यों रही थी। उसने अपने चेहरे पर समझदारी के भाव लाते हुए कहा, "यानी कि उनकी भी मौत हो चुकी है।"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "हां, उसकी भी मौत हो चुकी है और ये उसी की आत्मा है।"

    तान्या ने तुरंत सवाल करते हुए कहा, "पर ये मुझसे हेल्प क्यों मांग रही हैं?"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "क्योंकि तुम ही हो जिससे वो खुद बात करना चाहती है।"

    तान्या ने कहा, "पर आप लोगों को भी तो उनकी आवाज सुनाई दी थी न!"

    तृष्णा के अंकल तुरंत ने कहा, "तुमने क्या सुना था?"

    तान्या ने कहा, "हेल्प मी...!"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "और मुझे सुनाई दिया कि चले जाओ यहां से!"

    ये सुन कर तान्या की आँखें सिकुड़ गईं। वहीं तृष्णा ने भी तुरंत कहा, "मुझे भी यही सुनाई दिया था।"

    फिर उसने तान्या की ओर देख कर कहा, "यानी कि वो सिर्फ तुझसे बात करना चाहती हैं।"

    तान्या ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "पर मैं ही क्यों?"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "इस सवाल का जवाब तुम्हें खुद ढूंढना होगा।"

    तान्या ने उनकी ओर देख कर कहा, "तो क्या मुझे उनकी मदद करनी चाहिए?"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "तुम्हारे पास कोई और ऑप्शन नहीं है। तुम चाहो तो भी उसकी मदद करने से पीछे नहीं हट सकती।

    लेकिन इसका अंजाम क्या होगा, ये मैं भी नहीं बता सकता क्योंकि ये आत्मा बहुत ही शक्तिशाली है और बदले की आग में तड़प रही है।"

    तान्या ने तुरंत अगला सवाल करते हुए कहा, "बदले की आग में, पर क्यों?"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "ये तो उससे बात करके ही पता चलेगा।"

    ये सुन कर तान्या सोच में पड़ गई तो तृष्णा ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "तनु, मैं इतना ही कहूंगी कि जो करना, सोच समझ कर करना।"

    तान्या ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "मुझे ये करना ही होगा त्रिशू, क्योंकि वो मेरा पीछा इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी।"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "हां, वो तुम्हारा पीछा तब तक नहीं छोड़ेगी जब तक उसका काम नहीं हो जाता। इसीलिए मैंने कहा कि तुम्हारे पास कोई और ऑप्शन नहीं है।

    मैं बस तुमसे यही कहूंगा कि जब भी तुम्हें मेरी मदद की जरूरत होगी मैं वहां उपस्थित रहूंगा। बस तुम हर काम पूरी सावधानी से करना।"

    तान्या ने उनकी ओर देख कर कहा, "क्या आप मेरा उनसे कॉन्टैक्ट करा सकते हैं?"

    तृष्णा के अंकल ने कहा, "नहीं ये काम मैं नहीं कर सकता लेकिन मैं किसी ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो इस कार्य में तुम्हारी सहायता कर सकता है।"

    तान्या ने फौरन कहा, "कौन है वो?"

    कुछ के बाद,

    घर की डोर बेल बजी तो तृष्णा ने जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे के सामने एक आदमी खड़ा था जिसने नीले रंग की जींस के साथ काले रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी।

    साथ में उसने काले रंग का ओवरकोट पहना हुआ था और उस कोट की हुडी उसने अपने सिर पर डाली हुई थी।

    वो अपना एक हाथ दरवाजे की चौखट से लगा कर और दूसरा हाथ अपने पैंट की पॉकेट में डाल कर खड़ा था। उसकी गर्दन नीचे की ओर झुकी हुई थी और चेहरा मास्क से ढका हुआ था।

    तृष्णा ने उसे सवालिया नजरों के साथ देखते हुए कहा, "आप...!"

    उस आदमी ने आराम से, बिल्कुल भी हिले बिना कहा, "अनिरुद्ध पांडे जी ने मुझे बुलाया है।"

    तब जाकर तृष्णा को समझ में आया कि ये आदमी कौन है।

    उसने तुरंत साइड में होते हुए कहा, "ओह! आइए, अंदर आइए। अंकल यहीं हैं।"

    वो आदमी बिल्कुल आराम से अंदर आया अनिरुद्ध ने उसे देख कर कहा, "आओ अमृत, आओ।"

    अमृत आकर उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।

    तान्या ने कहा, "सर, वो..."

    उसने इतना ही कहा था कि अमृत ने उसकी बात काटते हुए कहा, "तुम्हें अपने बहन की दोस्त की आत्मा से कॉन्टैक्ट करना है, यही न!"

    तान्या ने हैरानी के साथ कहा, "हाँ, पर आपको कैसे पता?"

    अमृत ने गहरी आवाज में कहा, "हर बात के पीछे की वजह जानना जरूरी नहीं होता है। कुछ सवालों के जवाब न मिले तो ही बेहतर है।"

    तृष्णा ने तुरंत कहा, "सर, क्या आप हमारा कॉन्टैक्ट उनसे करा सकते हैं।"

    अमृत ने कहा, "यही मेरा काम है।"

    रात का समय,

    वो चारों उसी घर के एक कमरे में बैठे हुए थें। वहां चारों तरफ घना सन्नाटा पसरा हुआ था। पूरे कमरे में सिर्फ मोमबत्तियों की हल्की-हल्की लौ टिमटिमा रही थी।

    तान्या, तृष्णा, अनिरुद्ध और अमृत, सब गोल घेरे में बैठे हुए थें और उनके सामने भी कुछ कैंडल्स जल रही थीं।

    अमृत ने सबकी ओर देख कर कहा, "सभी लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ लीजिए।"

    सबने वैसा ही किया तो अमृत ने सबको चेतावनी देते हुए कहा, "जब तक मैं ना कहूं, कोई भी एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेगा।"

    इतना बोल कर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और धीमे स्वर में संस्कृत के कुछ मंत्र उच्चारित करने लगा।

    जैसे-जैसे उसके मंत्र तेज हो रहे थे वैसे-वैसे कमरे का तापमान गिरता जा रहा था। तान्या ने महसूस किया कि उसकी सांसें ठंडी पड़ रही हैं। मोमबत्तियों की लौ भी अजीब तरीके से कांपने लगी।

    तभी अमृत ने अपनी आंखें खोलीं और बेहद गंभीर स्वर में कहा, "वो यहीं है।"

    तान्या का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने अमृत की ओर देखा तो अमृत ने हल्के से हाँ में सिर हिला दिया।

    तान्या ने इधर उधर देखते हुए कांपती आवाज़ में सवाल पूछते हुए कहा, "शांति दीदी, क्या आप मुझे सुन सकती हैं?"

    कुछ पल सन्नाटा रहा। फिर कमरे के एक कोने से एक मद्धम सी आवाज़ आई, "तनु...!"

    तान्या की आंखें डर से फैल गईं। उसने तृष्णा का हाथ और भी कस कर पकड़ लिया।

    अमृत ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, "डरो मत, वो सिर्फ तुमसे बात करना चाहती है।"

    तान्या ने कांपती आवाज़ में कहा, "दीदी, आप मुझसे मदद क्यों मांग रही हैं?"

    उस आवाज़ में दर्द था जिसने आगे कहा, "मुझे न्याय दिलाओ तनु। मेरे धोखा हुआ है। मेरी मौत एक हादसा नहीं थी।"

    तान्या ने कहा, "...पर मैं आपकी मदद कैसे कर सकती हूं? मुझे तो कुछ भी नहीं पता।"

    इस बार उस आवाज ने कमरे के दूसरे कोने से कहा, "कर सकती हो, तुम ही कर सकती हो। एक बार अपनी बहन के और मेरे अतीत को खंगालो। तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे।"

    इतना बोल कर वहां से चली गई। तान्या को उसके जाने का कोई अंदाजा नहीं था। उसने फिर से कोई सवाल पूछना चाहा ही था कि अमृत ने कहा, "वो जा चुकी है।"

    तान्या ने टेंशन के साथ कहा, "अब क्या किया जाए? हम तो वापस वहीं आकर खड़े हो गए जहां से हमने शुरुआत की थी।"

    अमित ने फौरन कहा, "नहीं, इस बार हमारे पास क्लू है और वो क्लू है तुम्हारी बहन का अतीत।"

    तान्या ने सोचते हुए कहा, "अनाया दी का अतीत यानी वो समय जब अनाया दी और शांति दीदी एक साथ रहती थीं। यानी कि..."

    तृष्णा ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, " उनका हॉस्टल!"

    तान्या ने कहा, "यानी कि अब हमारी मंजिल है, उनका पुराना हॉस्टल!"

    अगली सुबह,

    तान्या अपने सामान के साथ दरवाजे पर खड़ी थी। उसके सामने तृष्णा खड़ी थी जो गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।

    तान्या ने उसे समझाते हुए कहा, "त्रिशू, बात को समझ। वहां मेरा जाना ही ठीक है। तू वहाँ जाकर क्या ही करेगी?"

    तृष्णा ने मुंह फेर कर कहा, "वो सब मुझे नहीं पता। मैं बस इतना जानती हूं कि मैं तेरे साथ चल रही हूं, मतलब चल रही हूं।"

    तान्या ने अनिरुद्ध की ओर देख कर कहा, "अंकल, प्लीज समझाइए इसे।"

    अनिरुद्ध ने तृष्णा से कहा, "बेटा, वो ठीक कह रही है। वहां उसका अकेले जाना ही सही है।"

    तृष्णा ने उनकी ओर देख कर फ्रस्ट्रेशन के साथ कहा, "और अगर इसे कुछ हो गया तो! क्या भरोसा है उस आत्मा का कि वो इसके साथ कुछ गलत नहीं करेगी। आखिर क्यों हम उसके बातों पर भरोसा कर रहे हैं?"

    अमृत ने ठंडी आवाज में कहा, "क्योंकि तान्या को ये काम करना ही होगा। अगर उसने ये काम नहीं किया तो वो आत्मा इसके लिए ज्यादा खतरनाक हो सकती है।"

    तृष्णा ने कहा, "तब तो अच्छा ही है अगर मैं इसके साथ जाऊं तो, एट लीस्ट कोई तो होगा जो जरूरत पड़ने पर इसकी हेल्प करेगा।

    अनिरुद्ध ने उसे समझाते हुए कहा, "तेरी बात सही है बेटा लेकिन..."

    उसने उतना ही कहा था कि अमृत ने उसे अपना हाथ दिखा कर चुप रहने का इशारा कर दिया।

    जारी है...

  • 12. The House With Twelve Clocks - Chapter 12

    Words: 1506

    Estimated Reading Time: 10 min

    अनिरुद्ध की बात सुन कर तृष्णा ने उनकी ओर देख कर फ्रस्ट्रेशन के साथ कहा, "और अगर इसे कुछ हो गया तो! क्या भरोसा है उस आत्मा का कि वो इसके साथ कुछ गलत नहीं करेगी। आखिर क्यों हम उसके बातों पर भरोसा कर रहे हैं?"

    अमृत ने ठंडी आवाज में कहा, "क्योंकि तान्या को ये काम करना ही होगा। अगर उसने ये काम नहीं किया तो वो आत्मा इसके लिए ज्यादा खतरनाक हो सकती है।"

    तृष्णा ने कहा, "तब तो अच्छा ही है अगर मैं इसके साथ जाऊं तो, एट लीस्ट कोई तो होगा जो जरूरत पड़ने पर इसकी हेल्प करेगा।

    अनिरुद्ध ने उसे समझाते हुए कहा, "तेरी बात सही है बेटा लेकिन..."

    उसने उतना ही कहा था कि अमृत ने उसे अपना हाथ दिखा कर चुप रहने का इशारा कर दिया।

    अमृत का इशारा बातें अनिरुद्ध चुप हो गया।

    वहीं अमृत ने तृष्णा की ओर देख कर गंभीरता के साथ कहा, "ठीक है। तुम इसके साथ जा सकती हो लेकिन याद रखना, ये खतरनाक हो सकता है।"

    तृष्णा ने दृढ़ता के साथ कहा, "खतरनाक है इसीलिए तो इसे अकेले नहीं जाने दे रही हूं।"

    अमृत ने हाँ में सिर हिला दिया तो अनिरुद्ध ने तृष्णा और तान्या के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "अपना ख्याल रखना और हमें टाइम टू टाइम अपडेट करते रहना।"

    उन हाँ में सिर हिलाया और झुक कर अनिरुद्ध के पैर छू लिये।"

    अनिरुद्ध ने उनके सिर पर हाथ रख कर कहा, "जिस मकसद के लिए जा रही हो, उसे पूरा करके ही लौटना।"

    कुछ देर बाद,

    तान्या और तृष्णा एक हॉस्टल के सामने खड़ी थीं। उन दोनों ने एक नजर उस हॉस्टल के गेट पर डाला और फिर एक दूसरे की ओर देखा। फिर उन दोनों ने हाँ में सिर हिलाया और अंदर की ओर बढ़ गईं।

    अंदर जाते ही वो वॉर्डन के ऑफिस की ओर चली गईं।

    वहां जाकर उन दोनों ने देखा कि वॉर्डन आराम से कुर्सी पर बैठी हुई थी। उसने अपने पैर टेबल पर रख कर, एक पैर के ऊपर दूसरा पैर कर रखा था और आराम से कुर्सी पर पसर कर अपना फोन चला रही थी।

    तान्या ने उसे धीरे से आवाज देते हुए कहा, "मैम!"

    लेकिन वॉर्डन ने जैसे उसे सुना ही ना हो। वो अभी भी अपने फोन में ही डूबी हुई थी। तान्या और तृष्णा ने एक दूसरे को देखा और फिर उस वॉर्डन की ओर।

    तान्या ने फिर से उसे आवाज देते हुए कहा, "मैम!"

    लेकिन फिर वही हुआ। तान्या ने उस वॉर्डन को ऐसे ही तीन से चार बार आवाज दी लेकिन वो तो जैसे किसी और ही दुनिया में थी। अब तृष्णा को गुस्सा रहा था।

    उसने अपने बैग से एक स्क्रू ड्राइवर निकाला और जोर से उस वॉर्डन के सामने पटक दिया। उस स्क्रू ड्राइवर के गिरने से जो आवाज हुई वो सुन कर वो वॉर्डन जैसे अचानक से होश में आई हो।

    उसने हड़बड़ा कर अपने पैर टेबल पर से हटाए और अपना फोन अपने सामने से हटाया। उसके अचानक से पैर हटाने की वजह से उसका बैलेंस बिगड़ गया और उसकी कुर्सी सरक गई जिसकी वजह से वो नीचे गिर पड़ी।

    उसने कराहते हुए कहा, "हाए मेरी कमर!"

    और इसी के साथ वो कराहते हुए उठ बैठी।

    उसने तान्या और तृष्णा को देखा और फिर चिढ़ कर कहा, "क्या काम है?"

    तभी उसकी नजर अपने सामने गिरे हुए स्क्रू ड्राइवर पर पड़ी। उसने गुस्से से कहा, "ये स्क्रू ड्राइवर किसका है?"

    तृष्णा ने मासूम सी शक्ल बना कर कहा, "मैम, वो मेरा ही है।"

    ये सुन कर वॉर्डन का पारा और ज्यादा चढ़ने लगा तो तृष्णा ने और भी ज्यादा मासूमियत अपने चेहरे पर लाते हुए कहा, "एक्चुअली, मेरी दोस्त आपको बुला रही थी और आप सुन नहीं रही थीं शायद आप कोई जरूरी काम कर रही थीं तो मैंने सोचा कि आपको कॉल करूं तो शायद आप सुन लें।

    इसीलिए मैं अपना फोन निकाल रही थी लेकिन इतने में मेरे बैग से ये स्क्रू ड्राइवर गिर गया।"

    वॉर्डन ने अपने मन में भुनभुनाते हुए कहा, "ये आज-कल के बच्चे भी ना!"

    और वो स्क्रू ड्राइवर वापस तृष्णा की ओर बढ़ा दिया। फिर उसने वापस से अपनी कुर्सी सही करके उस पर पर बैठते हुए कहा, "बोलो, क्या काम है?"

    तृष्णा ने तान्या की ओर देखा जो अपना मुंह खोले उसे ही देख रही थी।

    फिर उसने उसके कंधे पर हल्के से मार कर कहा, "तनु, मुझे क्या देख रही है! मैम को बता, क्या पूछना है तुझे।"

    उसकी बात सुन कर तान्या होश में आई। फिर उसने वॉर्डन की ओर देख कर कहा, "यहां पर अनाया दूबे और शान्ति शुक्ला का कमरा कौन सा था?"

    वॉर्डन जो पहले ही चिढ़ी हुई थी, उसने और ज्यादा चिढ़ के साथ अपनी गर्दन गोल में घुमाते हुए कहा, "कौन अनाया दूबे और शान्..."

    उसने इतना ही कहा था कि उसे कुछ याद आया और उसके शब्द जहां के तहां रुक गए।

    उसके भाव तुरंत बदल गएं। जहां अब तक गुस्सा और चिढ़ नजर आ रहा था वहीं अब उसके चेहरे पर डर और दहशत साफ झलक रही थी।

    उसने तुरंत तान्या और तृष्णा की ओर देख कर कहा, "क्या नाम लिया तुम दोनों ने?"

    तान्या ने अपने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, "अनाया दूबे और शान्ति शुक्ला!"

    उस वॉर्डन ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "कौन हो तुम और उनके बारे में कैसे जानती हो?"

    तृष्णा ने फौरन कहा, "हमें बस उनका कमरा देखना है।"

    वॉर्डन ने उन्हें डालते हुए कहा, "अरे वो दोनों पाँच साल पहले यहां रहती थीं। अब वो दोनों यहां नहीं रहतीं।"

    तृष्णा ने कहा, "देखिए, हमें सिर्फ उनका कमरा देखना है।"

    वॉर्डन ने अपने चेहरे पर अकड़ लाते हुए कहा, "अरे ऐसे कैसे? ये हॉस्टल पॉलिसी के खिलाफ है। हम किसी की भी इनफॉरमेशन ऐसे ही किसी बाहरी इंसान को नहीं दे सकते।"

    तान्या ने शांत आवाज में कहा, "मैम, हम कोई बाहरी नहीं हैं। हम उनकी बहनें हैं और हमें पता है कि अब वो यहां नहीं रहतीं क्योंकि वो जिंदा ही नहीं हैं। हमें बस उनका कमरा देखना है।"

    वॉर्डन ने कहा, "पर क्यों? ऐसा क्या है उस कमरे में?"

    तान्या ने रिक्वेस्टिंग टोन में कहा, "मैम, प्लीज! हमारी बात समझिए। ये हमारे लिए बहुत जरूरी है।"

    तृष्णा ने भी कहा, "बस एक बार हमें वो कमरा देख लेने दीजिए।"

    वॉर्डन ने तुरंत कहा, "लेकिन वहां कोई नहीं जाता।"

    तृष्णा ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "कोई जाता नहीं, पर क्यों?"

    इस बार वॉर्डन ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "क्योंकि वो कमरा हॉन्टेड है।"

    ये सुन कर तान्या और तृष्णा ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर उन दोनों के मुंह से एक साथ निकला, "हैं!"

    फिर तृष्णा ने उस वार्डन की ओर देख कर कहा, "क्या बकवास है ये?"

    वॉर्डन ने कहा, "बकवास नहीं, सच है ये। आज तक जो भी उस कमरे में रहने गया है, दो दिन से ज्यादा टिक नहीं पाया है।"

    तान्या ने तुरंत कहा, "क्यों? ऐसा भी क्या है उस कमरे में?"

    वॉर्डन ने खोए हुए बताना शुरू किया, "उन दोनों की मौत के बाद हॉस्टल में बहुत अफरा-तफरी मच गई थी। कई लड़कियाँ डर के मारे हॉस्टल छोड़ गई थीं।

    प्रिंसिपल और मैनेजमेंट ने इस सबको अफवाह बता कर मामला शांत करने की कोशिश की और इसके लिए हमें उस रूम को नॉर्मल साबित करना था।

    इसलिए कुछ ही हफ्तों बाद हमने उस कमरे में एक नई लड़की को शिफ्ट कर दिया जिसका नाम था, श्रुति वर्मा।

    तान्या और तृष्णा दोनों बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुन रही थीं।

    वहीं वॉर्डन ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "श्रुति पढ़ाई में तेज और बहुत ही समझदार लड़की थी, लेकिन थोड़ी अकेली सी रहती थी...

    Flashback

    श्रुति ने वॉर्डन सेबी कमरे की चाबी ली और उस ओर बढ़ गई। वो हॉस्टल में जहां से भी गुजर रही थी सब लोग उसे अजीब तरीके से घूर रहे थें जैसे दुनिया का आठवां अजूबा देख लिया हो।

    लेकिन श्रुति ने किसी पर भी ध्यान नहीं दिया। वो सबको नजरअंदाज कर उस कमरे तक चली गई।

    उसने चाबी की होल में डाल कर घुमाई तो दरवाजा एक क्लिक के साथ खुल गया। उसने दरवाजे को धक्का देकर खोला और आगे बढ़ गई। उसे कुछ भी अजीब नहीं लगा था।

    उसने दरवाजा बंद किया और अपना सामान सेट करने लगी।

    रात के दस बजे,

    श्रुति डिनर करके कमरे में आई। उसने दरवाजा लाक किया और फ्रेश होने चली गई। कुछ देर बाद वो वापस आई और पढ़ने के लिए अपने स्टडी टेबल पर बैठ गई।

    उसे पढ़ते हुए कुछ घंटे बीत गए और उसे अंदाजा भी नहीं हुआ कि कब रात के तीन बज गए। वो पूरी तरह पढ़ाई में डूबी हुई थी।

    वो कोई प्रॉब्लम सॉल्व ही कर रही थी कि इतने में उसके कानों में कुछ आवाज सुनाई दी। ये पानी गिरने की आवाज थी।

    वो आवाज सुन कर श्रुति ने अपनी कलम रोक दी। उसने अपनी गर्दन आवाज की दिशा में घुमाई तो वो आवाज बाथरूम से आ रही थी। वो आवाज ऐसी थी जैसे कि कोई नहा रहा हो।

    ये देख कर श्रुति की आँखें सिकुड़ गईं। उसे थोड़ा डर भी लगा लेकिन उसने हिम्मत करके अपने कदम आगे बढ़ाए और बाथरूम की ओर चल पड़ी।

    जारी है...

  • 13. The House With Twelve Clocks - Chapter 13

    Words: 1512

    Estimated Reading Time: 10 min

    रात के दस बजे,

    श्रुति डिनर करके कमरे में आई। उसने दरवाजा लाक किया और फ्रेश होने चली गई। कुछ देर बाद वो वापस आई और पढ़ने के लिए अपने स्टडी टेबल पर बैठ गई।

    उसे पढ़ते हुए कुछ घंटे बीत गए और उसे अंदाजा भी नहीं हुआ कि कब रात के तीन बज गए। वो पूरी तरह पढ़ाई में डूबी हुई थी।

    वो कोई प्रॉब्लम सॉल्व ही कर रही थी कि इतने में उसके कानों में कुछ आवाज सुनाई दी। ये पानी गिरने की आवाज थी।

    वो आवाज सुन कर श्रुति ने अपनी कलम रोक दी। उसने अपनी गर्दन आवाज की दिशा में घुमाई तो वो आवाज बाथरूम से आ रही थी। वो आवाज ऐसी थी जैसे कि कोई नहा रहा हो।

    ये देख कर श्रुति की आँखें सिकुड़ गईं। उसे थोड़ा डर भी लगा लेकिन उसने हिम्मत करके अपने कदम आगे बढ़ाए और बाथरूम की ओर चल पड़ी।

    बाथरूम के सामने पहुंच कर उसने हल्के से उसका नॉब पकड़ कर घुमाया लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा खोला, सामने कोई नहीं था। बस एक टैप खुली हुई थी जिससे निकलता हुआ पानी बाथटब को भर रहा था।

    ये देख कर श्रुति की आँखें सिकुड़ गईं। उसने खुद से ही कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छे से याद है कि नहाने के बाद मैंने टैप बंद किया था।"

    उसके मन में सवाल तो था लेकिन कोई जवाब नहीं और ऊपर से उसने हॉस्टल में सबकी बातें भी सुन रखी थीं इसलिए उसके दिमाग में अलग अलग ख्याल आ रहे थें।

    उसका सिर भारी होने लगा था इसलिए उसने अपने सारे ख्यालों को झटक कर कहा, "छोड़ो यार, हो सकता है मैंने ही खुला छोड़ दिया हो।"

    श्रुति ने सोचा कि उसने ही टैप खुला छोड़ दिया होगा इसलिए वो टैप बंद करके बाथरूम से बाहर आ गई।

       बाहर आकर उसने घड़ी देखी तो तीन बज कर दस मिनट हो रहे थे।

       उसने अपने सिर पर हाथ रख कर कहा, "ओ माय गॉड! तीन बज गए और मैं अब तक जाग रही हूं।"

       इतना बोल कर वो अपने टेबल को समेटने लगी। फिर वो बेड पर जाकर बिस्तर में घुस गई। कॉलेज स्टोरी थे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी।

       उसने खुद को समझाने की कोशिश तो की थी कि टैप उसने ही खुला छोड़ा था लेकिन उसका मन ये मानने को तैयार नहीं था। उसके मन में बार-बार यही सवाल आ रहा था कि टैप खुला कैसा था।

       फ्रस्ट्रेट होकर उसने खुद से ही कहा, "चल श्रुति बेटा! फिलहाल अभी के लिए सो जा। अब क्या हुआ है और क्या नहीं, ये तो कल सुबह ही पता होगा।"

       इतना बोल कर उसने चादर अपने मुंह पर चढ़ाई और आंखें बंद कर लीं। उसे आँखें बंद किए हुए अभी दस मिनट ही हुए थे कि उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके बगल में लेटा है। इस सोच से ही उसकी सांसें तेज हो गईं।

       उसने तुरंत चादर हटा कर अपने बगल में देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। ये देख कर उसकी जान में जान आई। वो अपने सीने पर हाथ रख कर आँखें बंद किए हुए गहरी सासें ले रही थी।

       इतने में उसका दूसरा हाथ उसके बगल वाली जगह पर सरक गया और उसकी आंखें अचानक से खुल गईं। उसने तुरंत अपनी गर्दन वापस उसी ओर घुमाई।

       उसने अपने हाथ वहाँ दो-तीन जगह थपथपाया और उसकी सांसें फिर से तेज हो गईं। वो जगह गर्म थी। इसका मतलब कि जरूर वहां कोई था।

       अब उसे घुटन सी हो रही थी जैसे वहाँ की हवा भी भारी हो गई हो। श्रुति ने तुरंत अपना फोन ढूंढा और उसमें हनुमान चालीसा चला कर अपने बगल में रख लिया।

       अब जाकर उसे थोड़ी शांति मिली। हवा भी अब हल्की हो गई थी। श्रुति ने एक गहरी सांस ली और आराम से सो गई।

       अगली सुबह,

       श्रुति उठी और तैयार होकर बाहर चली गई। हनुमान चालीसा चलाने के बाद उसे कोई प्रॉब्लम नहीं हुई थी।

    शाम में,

    श्रुति आराम से अपने टेबल पर बैठ कर पढ़ाई कर रही थी। इस वक्त उसका फोन बंद था और उसका पूरा ध्यान अपनी किताबों में था। तभी उसे ऐसा लगा जैसे कि कोई उसके पास खड़ा हो।

    उसने तुरंत अपनी गर्दन उस ओर घुमाई लेकिन वहां कोई नहीं था।

    उसने एक गहरी सांस ली और खुद से ही कहा, "श्रुति, तू कुछ ज्यादा ही सोच रही है। ये सब तेरा वहम है।"

    इतना बोल कर वो उठ खड़ी हुई और बाहर गैलेरी में चली गई।

    लगभग दस से पंद्रह मिनट के बाद वो कमरे में वापस आई और फिर से अपने स्टडी टेबल पर बैठ गई।

    उसने अपनी कॉपियां और किताबें खोल कर पढ़ना शुरू किया था। कुछ देर बाद उसने स्टिकी नोट्स उठाए और उन पर लिखने ही वाली थी कि फिर से उसकी आँखों में डर झलकने लगा।

    उसकी नज़रें अपने स्टिकी नोट्स पर टिकी हुई थीं और उन पर कुछ लिखा हुआ था। उन शब्दों को पढ़ कर श्रुति की सांसें फिर से तेज हो गईं।

    उन पर लिखा था, "जान प्यारी है जो चली जाओ यहां से।"

    श्रुति ने तुरंत अपना हाथ अपने फोन की ओर बढ़ाया और वॉर्डन को कॉल करने ही वाली थी कि इतने में उसके दिमाग में ख्याल आया, "नहीं, श्रुति! तू ऐसा नहीं कर सकती। मां बाबा ने बहुत मेहनत से तुझे यहां तक पहुंचाया है।

    दिन रात मेहनत करके तुझे पढ़ाया लिखाया, इस काबिल बनाया कि तू यहां आकर पढ़ सके और तू सिर्फ एक शक की वजह से उनकी मेहनत बर्बाद कर दे। नहीं, तू ऐसा नहीं कर सकती बिल्कुल भी नहीं।

    फिर उसने अपना फोन वापस वहीं रखते हुए कहा, "तू वॉर्डन को कॉल नहीं करेगी, बिल्कुल भी नहीं।"

    फिर वो वापस अपना काम करने लगी।

    रात में,

    श्रुति फिर से पढ़ाई करने बैठी थी। उसे पढ़ते हुए 3 घंटे हो चुके थे और अब उसे नींद आ रही थी। उसने अपने कॉपी किताब बंद किए, टेबल लैंप ऑफ की और जाकर बेड पर लेट गई।

    उसे इतनी तेज नींद आ रही थी कि लेटने के 2 मिनट के अंदर ही वो गहरी नींद में सो गई।

    रात के करीब तीन बजे,

    कुछ गिरने की बहुत जोर की आवाज श्रुति के कानों में पड़ी और उसकी आँखें खुल गईं। उसकी आँखों में अभी भी नहीं भरी हुई थी।

    उसने बंद आँखों के साथ ही खुद से कहा, "इतनी रात गए कौन से समान पटक रहा है!"

    उसने इतना ही कहा था कि उसके सामने की दीवार पर कुछ शब्द उभरे, "चली जाओ यहां से!"

    लेकिन श्रुति की आँखें तो अभी भी बंद थीं और वो दुबारा गहरी नींद में जा चुकी थी। तभी एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर आकर लगा। वो थप्पड़ पड़ते ही श्रुति का एक हाथ उसके उस गाल पर चला गया और उसकी आँखें एक पल में खुल गईं।

    उसकी आँखों में जो नींद थी वो भी पूरी तरह से उड़ चुकी थी। वो अपने गाल पर हाथ रखे हुए ही उठ बैठी अब उसके सामने वो शब्द थें।

    उसने वो शब्द पढ़े और अंदर तक कांप गई। उसने चीखते हुए कहा, "कौन हो तुम?"

    लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं आया। श्रुति ने फिर से कहा, "कौन हो तुम? और मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"

    सामने उसी दीवार पर फिर से खून से लिखे हुए शब्द उभरे, ""तुमने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा है और इसीलिए मैं तुम्हें मौका दे रही हूं। चली जाओ यहां से।"

    श्रुति ने कहा, "पर क्यों? क्या मकसद है तुम्हारा? क्या चाहती हो तुम?"

    दीवार पर फिर से शब्द उभरे, "अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो फिर अंजाम के लिए तैयार है जाना और फैसला सोच समझ कर लेना। तुम्हारे मां-बाप के लिए तुम जरूरी हो या वो पैसे जो उन्होंने यहां लगाए हैं!"

    श्रुति अब डर से कांप रही थी। वो समझ नहीं पा रही है कि अब वो क्या करे। उसने अपना फोन उठाया और किसी को कॉल करने लगी लेकिन इससे पहले की उसकी उंगलियां कॉल के ऑप्शन को टच करतीं उसने अपनी उंगलियों को हवा में ही रोक लिया।

    उसने तुरंत ऐप बदला और हनुमान चालीसा शुरू कर दी।

    अगले दिन,

    रात का समय,

    श्रुति जैसे ही डिनर करके कमरे में वापस आई एक बॉल आकर उसके हाथ पर लगा और उसका असर इतना जोरदार था कि वो श्रुति के हाथ के जिस हिस्से पर लगा था वो हिस्सा पूरी तरह से लाल हो गया था।

    श्रुति ने चीखते हुए कहा, "बंद करो ये सब। तुम कुछ भी क्यों न कर लो, मैं यहां से नहीं जाऊंगी।"

    इतना बोल कर उसने अपने बैग से अपना फोन निकाला और हनुमान चालीसा चलाने लगी लेकिन इस बार हनुमान चालीसा चला ही नहीं। कुछ चलना तो बहुत दूर की बात, उसका फोन ऑन तक नहीं हो रहा था।

    उसने कई बार कोशिश की कि उसका फोन ऑन हो जाए लेकिन सब बेकार था। उसका ध्यान अपने फोन में ही था कि अचानक, उसे एक ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ।

    इसी के साथ कमरे की सारी लाइट्स जलने और बुझने लगीं और फिर एकदम से बुझ गईं। अब श्रुति अंधेरे में खड़ी थी। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।

    इतने में उसके कानों में फुसफुसाती हुई आवाज पड़ी, "चली जाओ यहां से।"

    जारी है...

  • 14. The House With Twelve Clocks - Chapter 14

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगले दिन,

    रात का समय,

    श्रुति जैसे ही डिनर करके कमरे में वापस आई एक बॉल आकर उसके हाथ पर लगा और उसका असर इतना जोरदार था कि वो श्रुति के हाथ के जिस हिस्से पर लगा था वो हिस्सा पूरी तरह से लाल हो गया था।

    श्रुति ने चीखते हुए कहा, "बंद करो ये सब। तुम कुछ भी क्यों न कर लो, मैं यहां से नहीं जाऊंगी।"

    इतना बोल कर उसने अपने बैग से अपना फोन निकाला और हनुमान चालीसा चलाने लगी लेकिन इस बार हनुमान चालीसा चला ही नहीं। कुछ चलना तो बहुत दूर की बात, उसका फोन ऑन तक नहीं हो रहा था।

    उसने कई बार कोशिश की कि उसका फोन ऑन हो जाए लेकिन सब बेकार था। उसका ध्यान अपने फोन में ही था कि अचानक, उसे एक ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ।

    इसी के साथ कमरे की सारी लाइट्स जलने और बुझने लगीं और फिर एकदम से बुझ गईं। अब श्रुति अंधेरे में खड़ी थी। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।

    इतने में उसके कानों में फुसफुसाती हुई आवाज पड़ी, "चली जाओ यहां से।"

    फिर वही आवाज उसके दूसरे कान में पड़ी, "आखिरी मौका दे रही हूँ। चली जाओ यहां से।"

    श्रुति ने चीखने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज मानो गले में ही अटक गई हो। वो भागना चाहती थी, लेकिन उसके पैर जैसे जमीन से चिपक गए हों।

    तभी, कमरे की लाइट्स फिर से ऑन हो गईं। श्रुति ने देखा कि दीवार पर लिखे शब्द गायब हो चुके हैं और अब वो अकेली थी, शायद...।

    उसने एक गहरी सांस ली और फिर खुद से कहा, "श्रुति, यहां रहना खतरे से खाली नहीं है।"

    उसने सोचते हुए कहा, "एक काम करती हूं। अभी के लिए सब कुछ छोड़ कर सिर्फ सो जाती हूँ। सुबह वॉर्डन से बात कर लूंगी कि मुझे दूसरा कमरा दे दें।

    अब तक मेरे दिमाग पर पत्थर पड़े हुए थे जो मैं उनकी बातों में आकर यहां रहने के लिए तैयार हो गई थी लेकिन अपनी जान का रिस्क मैं नहीं ले सकती। अगर मुझे कुछ हो गया तो मां बाबा का क्या होगा, उनका ध्यान कौन रखेगा?

    और आज जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो मेरी हिम्मत बिल्कुल भी नहीं है इस कमरे में रहने की। अब मैं अपनी जान का रिस्क बिल्कुल नहीं ले सकती।

    कल ही मैं वॉर्डन से बात करती हूँ। उन्हें मुझे दूसरा कमरा देना ही होगा और अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो मेरे पास दूसरा तरीका है।"

    ये सब खुद से ही बोल कर श्रुति सोने चली गई और हैरानी की बात ये थी कि आज की रात ना ही उसने हनुमान चालीसा चलाया और ना ही कुछ और किया बल्कि उसका फोन अभी भी बंद था लेकिन आज की रात उसे कुछ भी ऐसा महसूस नहीं हुआ जो वो पिछली दो रातों से महसूस कर रही थी।"

    Flashback - The End

    वॉर्डन ने सब कुछ बताने के बाद तान्या और तृष्णा की ओर देख कर कहा, "इसी तरह वो उस कमरे में ठहरने वाली हर लड़की को भगा देती है।"

    तृष्णा ने सोचते हुए कहा, "इसका मतलब ये है कि वो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाती। बस, उस कमरे में रहने नहीं देती है।"

    वॉर्डन ने उसकी आंखों में देख कर कहा, "अगर तुम ऐसा सोचती हो तो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हो तुम।"

    तान्या ने अपनी आंखें छोटी करके नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

    वॉर्डन ने याद करते हुए कहा, "एक लड़की थी जिसने इतना सब सुनने के बाद भी उस कमरे में रहने की हिम्मत की थी। उसका कहना था कि वो किसी से नहीं डरती और ये भूत प्रेत सब बकवास बातें हैं।

    तान्या ने उसकी ओर देख कर आशंका के साथ कहा, "तो आपने उसे वहाँ रहने दिया।"

    वॉर्डन में आगे कहा, "हमने उसकी बात श्रुति से करवाई ताकि श्रुति अपना अनुभव उसके साथ शेयर करे और प्रियंका वहां रहने की जिद्द छोड़ दे।"

    तृष्णा ने सवाल करते हुए कहा, "तो क्या हुआ? प्रियंका मानी?

    वॉर्डन ने ना में सिर हिला कर कहा, "नहीं, उसने इस सबके बाद भी कहा कि अगर वहां कोई भूत प्रेत है तो भी वो किसी से नहीं डरती और वो उसी कमरे में रहेगी। थक हार कर हमें उसे वो कमरा देना ही पड़ा।"

    तान्या ने फिर से सवाल करते हुए कहा, "फिर उसके साथ क्या हुआ?"

    वॉर्डन ने कहा,"जिस दिन वो उस कमरे में गई, उसी रात उसने मुझे कॉल किया...

    Flashback

    वॉर्डन अपने कमरे में सोई हुई थी कि इतने में उसका फोन बज उठा। उसने समय देखा तो रात के तीन बज कर दस मिनट हो रहे थें।

    उसने बिस्तर से उठते हुए चिढ़ कर कहा, "इतनी रात गए कौन कॉल कर रहा है!"

    और बिना देखे ही फोन लेकर कॉल आंसर कर दिया।

    जैसे ही उसने फोन कान से लगाया, सामने से प्रियंका की घबराई हुई आवाज आई, "मैम, मैम...!"

    उसने इतना ही कहा था कि कॉल कट हो गया।

    वॉर्डन ने चिल्लाते हुए कहा, "हेलो हेलो!"

    लेकिन सामने से कॉल कट होने की आवाज सुन कर वो तुरंत अपने कमरे से बाहर की ओर दौड़ पड़ी।

    वो सबको जगाते हुए उस कमरे में पहुंची लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था। उसने दरवाजा पीटते हुए कहा, "प्रियंका, प्रियंका! दरवाजा खोलो।"

    लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई। तब तक कुछ लड़कियां भी वहां पहुंच चुकी थीं। उन सब ने वॉर्डन की ओर देख कर कहा, "क्या हुआ मैम? आप हम सबको जगाते हुए यहां क्यों आईं?"

    वॉर्डन ने घबराई हुई आवाज में कहा, "प्रियंका ने मुझे कॉल किया था लेकिन इससे पहले कि वो मुझे कुछ बता पाती, कॉल कट हो गया।"

    फिर उसने दरवाजे को पॉइंट करके कहा, "और अब वो कुछ जवाब भी नहीं दे रही है।"

    उनमें से एक लड़की ने वॉर्डन से परमिशन मांगते हुए कहा, "मैम! आप कहिए तो हम दरवाजा तोड़ दें?"

    वॉर्डन ने बेसुध होकर कहा, "दरवाजा तोड़ो या खोलो, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे बस वो लड़की जिंदा चाहिए। उसे कुछ हो गया तो सब कुछ मेरे सिर पर आएगा।"

    उस लड़की ने कहा, "ऐसा कुछ नहीं होगा मैम। हम अभी उसे बाहर निकालते हैं।"

    इतना बोल कर उसने वॉर्डन को साइड में बैठा दिया। फिर उसने दो-तीन लड़कियों की ओर देख कर हां में सिर हिलाया तो उन लड़कियों ने भी हाँ में सिर हिलाया और दरवाजा के सामने आ गई।

    उन सबने मिल कर दरवाजे पर अपनी बाजुओं से मारा तो 3-4 बार में दरवाजा खुल गया। दरवाजा खुलते ही उनकी नजर पड़ी प्रियंका पर जो जमीन पर बेहोश पड़ी हुई थी।

    उन लड़कियों ने उसे उठाया और दूसरे कमरे में लाकर बेड पर लिटा दिया। किसी ने पानी लाकर उसके मुँह पर कुछ छींटे मारे तब जाकर प्रियंका होश में आई।

    जैसे ही उसे होश आया, वो उसने घबराहट भरी आवाज में कहा, "मुझे छोड़ दी, छोड़ दो मुझे। मैं चली जाऊंगी यहां से। मुझे एक आखरी बार छोड़ दो।"

    ये कहते हुए उसने अपनी आँखें खोलीं। आंखें खोलने पर उसकी नजर बाकी सभी लड़कियों पर पड़ी जो अपनी सांसें रोके हुए उसे ही देख रही थीं।

    फिर उसकी नजर वॉर्डन पर पड़ी जो उसके पास ही बैठी हुई थी। प्रियंका उन्हें देखते ही उठ बैठी।

    उसने अपने हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, "मैम, मुझे यहाँ नहीं रहना मैम।"

    वॉर्डन ने उसके सिर पर हाथ रख कर कहा, "बेटा, हुआ क्या है?"

    प्रियंका का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसने अपनी उंगली कमरी की ओर घुमा कर कहा, "वो, वो मुझे मार डालेगी, मैम! वो मुझे मार डालेगी।"

    इस पर वार्डन कुछ कहती है उससे पहले ही एक लड़की ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "हुआ क्या है, ये बताओ पहले।"

    उसकी आवाज इतनी तेज थी कि प्रियंका डर से अपने बेड पर सिकुड़ गई। वॉर्डन ने तुरंत उसे अपने सीने से लगा लिया और फिर उस लड़की को घूर कर देखा तो उस लड़की ने अपनी आंखें घुमा लीं।

    फिर वॉर्डन ने प्रियंका की ओर देखा जिसका रोना और तेज हो चुका था। वॉर्डन ने एक गहरी सांस ली और फिर एक दूसरी लड़की से कहा, "जाओ, इसके लिए थोड़ा पानी लेकर आओ।"

    उस लड़की ने पानी की बॉटल उसकी ओर बढ़ा दी तो वार्डन ने प्रियंका को खुद से अलग किया और बॉटल खोल कर उसकी ओर बढ़ा कर कहा, "लो, पानी पी लो।"

    प्रियंका अभी भी डरी हुई थी। उसने एक ही बार में वो पूरी बॉटल खाली कर दी और गहरी सासें लेने लगी।

    फिर वार्डन ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, "बेटा, क्या हुआ है, ये तो बताओ।"

    प्रियंका ने सारी लड़कियों की ओर देखा जिनकी नजरें उसी पर टिकी हुई थीं।

    उसने अपनी नज़रें झुका कर हल्के से कहा, "वो एक्चुअली मैंने अपने दोस्तों से बेट लगाई थी कि मैं उस कमरे में पूरे एक हफ्ते तक रह कर दिखाऊंगी।"

    ये बोलते ही उसने अपनी आंखें कस कर बंद कर लीं। उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो बाकी सारी लड़कियों को फेस कर सके।

    वहीं उसकी बात सुनते ही वो सारी लड़कियां जिनकी आंखों में अब तक प्रियंका के लिए सांत्वना थी, अब गुस्सा उतर चुका था और वो सभी गुस्से से प्रियंका को घूरे जा रही थीं लेकिन वॉर्डन ने कोई रिएक्शन नहीं दिया।

    जारी है...

  • 15. The House With Twelve Clocks - Chapter 15

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    प्रियंका होश में आने के बाद भी डरी हुई थी। उसने एक ही बार में वो वॉर्डन की दी हुई पूरी बॉटल खाली कर दी और गहरी सासें लेने लगी।

    फिर वार्डन ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, "बेटा, क्या हुआ है, ये तो बताओ।"

    प्रियंका ने सारी लड़कियों की ओर देखा जिनकी नजरें उसी पर टिकी हुई थीं।

    उसने अपनी नज़रें झुका कर हल्के से कहा, "वो एक्चुअली मैंने अपने दोस्तों से बेट लगाई थी कि मैं उस कमरे में पूरे एक हफ्ते तक रह कर दिखाऊंगी।"

    ये बोलते ही उसने अपनी आंखें कस कर बंद कर लीं। उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो बाकी सारी लड़कियों को फेस कर सके।

    वहीं उसकी बात सुनते ही वो सारी लड़कियां जिनकी आंखों में अब तक प्रियंका के लिए सांत्वना थी, अब गुस्सा उतर चुका था और वो सभी गुस्से से प्रियंका को घूरे जा रही थीं लेकिन वॉर्डन ने कोई रिएक्शन नहीं दिया।

    उसने सबकी ओर देख कर अपना हाथ दिखा दिया कि कोई कुछ ना कहे। सारी लड़कियों ने उनकी ओर देखा और फिर मुँह बना कर अपने हाथों की मुट्ठियां बना कर हवा में दे मारी।

    फिर वॉर्डन ने प्रियंका से कहा, "डरो मत, बेटा। बोलो, क्या हुआ है।"

    प्रियंका ने बाकी सबकी ओर देखा और फिर वॉर्डन की ओर देख कर कहना शुरू किया, "मुझे ये बेट पूरी करनी थी और इसीलिए मैंने यही कमरा रहने के लिए मांगा था।

    मैंने सोचा था कि श्रुति ने जैसे हनुमान चालीसा चला कर खुद को प्रोटेक्ट किया था वैसे ही मैं भी 7 दिनों तक खुद को साफे रख लूंगी लेकिन मेरा सोचा हुआ सब कुछ धरा का धरा रह गया।

    जैसे ही मैं कमरे में आई वैसे ही मुझे सामने की दीवार पर उसका लिखा हुआ मैसेज मिला, "चली जाओ, यहां से। कहीं ऐसा ना हो कि तुम ये बेट तो जीत जाओ पर उसकी कीमत तुम्हें अपनी जान से चुकानी पड़े।"

    जैसे ही मैंने वो मैसेज पढ़ा, वैसे ही मेरे सिर पर एक हड्डी आकर गिरी जो किसी इंसान की थी।

    ये सुनते ही वहाँ मौजूद एक लड़की के मुँह से निकला, "ओ माय गॉड!"

    और उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। बाकी लड़कियों की आँखें भी डर से फैल गई थीं।

    प्रियंका ने भी उनका रिएक्शन देखा और फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "फिर भी मैंने हिम्मत की और सोने के लिए बेड पर चली गई। मैं नींद में सो रही थी लेकिन अभी कुछ देर पहले अचानक से मेरी नींद खुल गई, पर आंख नहीं।

    मैं बहुत कोशिश कर रही थी अपनी आंख खोलने की, चीखने की, चिल्लाने की, अपने हाथ पैर हिलाने की पर कुछ भी नहीं कर पा रही थी। मैंने बहुत मुश्किल से अपनी आंखें खोली तो वो मेरे सामने थी और मेरा गला दबा रही थी।"

    ये सुन कर सबकी सांसें रुक सी गईं।

    वहीं प्रियंका ने आगे कहा, "वो, वो दिखने में बहुत ज्यादा भयानक थी। उसके बाल उसके पूरे चेहरे पर बिखरे हुए थे। उसकी आँखें खून के तरह लाल थीं।

    जिस पल मैंने उसे देखा, ऐसा लगा जैसे अब मेरा आखिरी वक्त मेरे सामने खड़ा है। मैं खुद को उससे छुड़ाने के लिए अपने हाथ पैर मार रही थी और इसी बीच मेरा फोन मेरे हाथ में आ गया।"

    फिर उसने वॉर्डन की ओर देख कर कहा, "तब मैंने आपको कॉल किया पर इससे पहले कि मैं आपको कुछ भी बता पाती, मेरा फोन बंद हो गया और मेरी आँखें भी।"

    फिर उसने बाकी सबकी ओर देख कर कहा, "अगर आप लोगों ने आकर मेरी जान ना बचाई होती तो शायद, शायद मैं जिंदा भी नहीं बचती। इसलिए अब मैं यहाँ नहीं रह सकती। अगर मैं यहाँ रही तो इस बार वो पक्का मुझे खत्म करके ही मानेगी।"

    Flashback - The End

    अपनी बात पूरी करके वॉर्डन ने तान्या और तृष्णा की ओर देख कर कहा, "तो बताओ, अब भी देखना है तुम्हें वो कमरा?"

       तृष्णा ने कहा, "नहीं, अब वो कमरा हमें देखना नहीं है।"

       फिर उसने गहरी आवाज में कहा, "अब हमें वहाँ रहना है।"

       ये सुन कर वो वॉर्डन हक्की-बक्की रह गई। उसके मुंह से हैरानी के साथ निकला, "क्या! पागल-वागल तो नहीं हो गई हो न तुम दोनों?"

       इस बार तान्या ने भी तृष्णा के तरह ही गहरी आवाज में कहा, "जी नहीं, हम बिल्कुल ठीक हैं और हमें उस कमरे में ही रहना है।"

       वॉर्डन ने साफ शब्दों में कहा, "ऐसा नहीं हो सकता।"

       तान्या ने तुरंत कहा, "क्यों नहीं हो सकता?"

       वॉर्डन ने कहा, "क्योंकि अब वो पूरा फ्लोर ही बंद है।"

       तृष्णा ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "पूरा फ्लोर, पर फ्लोर क्यों बंद है?"

       वॉर्डन ने कहा, "क्योंकि उस इंसिडेंट के बाद से उस पूरे फ्लोर पर कोई ना कोई हादसे होने लगे थे।"

       तान्या ने सवाल करते हुए कहा, "कैसे हादसे?"

       वॉर्डन ने कहा, "कभी रात में सोते वक्त कोई किसी का गला दबा रहा होता, तो कभी कोई किसी का दरवाजा नॉक करके गायब हो जाता है।

       कभी किसी को अपने बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आती, तो कभी किसी के जोर-जोर से हंसने की आवाज आती और ऐसा कभी भी हो जाता था।"

       तृष्णा ने कुछ सोचते हुए कहा, "ये कमरा है किस फ्लोर पर?"

       वॉर्डन ने दहशत के साथ कहा, "थर्ड फ्लोर पर, कमरा नंबर 309।"

       उसका इतना ही कहना था कि तान्या और तृष्णा ने एक दूसरे की ओर देख कर हाँ में सिर हिलाया और फिर उठ कर बाहर की ओर बढ़ने लगीं।

       वॉर्डन ने उन्हें पीछे से आवाज देते हुए कहा, "कहां जा रही हो तुम दोनों?"

       उन दोनों ने अपने कदम जहाँ के तहां रोक लिये।

       फिर तृष्णा ने पीछे मुड़े बिना ही अपना सिर हल्के से पीछे की ओर घुमा कर कहा, "थर्ड फ्लोर पर।"

       वॉर्डन ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, "पर वहां जाना खतरे से खाली नहीं है।"

       तान्या ने हल्के से हँस कर कहा, "जब खतरे ने खुद हमें चुन लिया हो तो पीछे हटने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।"

       वॉर्डन ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "कहना क्या चाहती हो तुम दोनों?"

       तान्या ने गम्भीर आवाज में कहा, "हमारे यहां आने की वजह ही वो कमरा है हम उसके बारे में जानने ही यहां आए हैं।"

       वॉर्डन ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

       तान्या ने कहा, "मतलब!"

       फिर उसने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "वो आपको जल्द ही समझ आ जाएगा।"

       आगे की बात पूरी करते हुए तृष्णा ने कहा, "फिलहाल तो हमें चाबी दीजिए वरना हमारे पास लॉक तोड़ने का सामान भी है।"

       तान्या ने भीकहा, "...और उनमें से एक के दर्शन आप कर भी चुकी हैं।"

       वॉर्डन ने उन्हें घूरते हुए कहा, "तुम दोनों मुझे धमकी दे रही हो!"

       इस बार तृष्णा ने उसकी ओर पलट कर कहा, "धमकी नहीं, नॉर्मली बोल रहे हैं हम।"

       फिर तान्या ने भी पलट कर कहा, "धमकी दी होती तो आप अभी हमसे कुछ बोलने की हिम्मत भी नहीं कर पातीं।"

       उन दोनों की ही आंखें और आवाज, दोनों ही कुछ ज्यादा ही ठंडे थें और वो ठंडक उस वॉर्डन को अपने रीढ़ की हड्डी में भी महसूस हो रही थी।

       वहीं तृष्णा ने आगे आकर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा कर कहा, "अब आप चाबी दे रही हैं या हम अपने तरीके से वो कमरा खोल लें।"

       वॉर्डन ने अपना थूक निगल कर कहा, "रुक जाओ, देती हूँ।"

       इतना बोल कर उसने अपने ड्रॉवर से एक चाबी निकाली। इसउस चाबी को पकड़े हुए वार्डन के हाथ कांप रहे थे। उसने कांपते हाथों से ही वो चाबी तृष्णा की ओर बढ़ा दी।

       तृष्णा ने चाबी ली और फिर वो और तान्या बाहर आ गईं जहां हॉस्टल की बाकी लड़कियां उन्हें अजीब तरीके से घूर रही थीं। तान्या और तृष्णा ने उन सब को नजरंदाज किया और लिफ्ट की ओर बढ़ गईं।

       वहां जाकर तान्या ने सीधा थर्ड फ्लोर का बटन दबा दिया।

       लिफ़्ट ऊपर की ओर चल पड़ी और तृष्णा ने तान्या की ओर देख कर कहा, "क्या तुझे भी वही लग रहा है जो मुझे लग रहा है।"

       तान्या ने हाँ में सिर हिला कर कहा, "हाँ, जैसा इस वॉर्डन का नेचर है, उसके हिसाब से वो प्रियंका के साथ कुछ ज्यादा ही नरमी से पेश नहीं आ रही थी।"

       तृष्णा ने कहा, "...और हमारे यहां आने वाली बात पर भी वो राजी नहीं हो रही थी। जैसे कि वो चाह रही हो कि हम यहां ना आएं।"

       तान्या ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "तभी तो मैं उसके कैबिन में बॉयस रिकॉर्डर रख कर आई हूँ।"

       तृष्णा ने खुद को शाबाशी देते हुए कहा, "वाह! मेरी संगत का असर हो रहा है बच्ची पर, ग्रेट!"

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "अबे ओ, अपने मुँह मियां मिट्ठू। जमीन पर आ जा। ये तेरी संगत का असर नहीं, मेरा प्रेजेंस ऑफ माइंड है।"

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में लिफ्ट थर्ड फ्लोर पर थी। वो दोनों तुरंत सीरियस हो गईं। वो बाहर आईं तो पूरे फ्लोर पर सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं से किसी परिंदे के पर फड़फड़ाने तक की आवाज नहीं आ रही थी।

       उन दोनों ने एक गहरी सांस ली और उस कमरे की ओर बढ़ गईं जो था कमरा नंबर 309।

    जारी है...

  • 16. The House With Twelve Clocks - Chapter 16

    Words: 1521

    Estimated Reading Time: 10 min

       तृष्णा की बात सुन कर तान्या ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "तभी तो मैं उसके कैबिन में बॉयस रिकॉर्डर रख कर आई हूँ।"

       तृष्णा ने खुद को शाबाशी देते हुए कहा, "वाह! मेरी संगत का असर हो रहा है बच्ची पर, ग्रेट!"

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "अबे ओ, अपने मुँह मियां मिट्ठू। जमीन पर आ जा। ये तेरी संगत का असर नहीं, मेरा प्रेजेंस ऑफ माइंड है।"

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में लिफ्ट थर्ड फ्लोर पर थी। वो दोनों तुरंत सीरियस हो गईं। वो बाहर आईं तो पूरे फ्लोर पर सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं से किसी परिंदे के पर फड़फड़ाने तक की आवाज नहीं आ रही थी।

       उन दोनों ने एक गहरी सांस ली और उस कमरे की ओर बढ़ गईं जो था कमरा नंबर 309।

    ये कमरा फ्लोर के अंतिम छोर पर था। वो दोनों एक दूसरे का हाथ थामे हुए, बढ़ी हुई धड़कनों के साथ उस कमरे की ओर बढ़ रही थीं।

    उन दोनों ने वहां पहुंच कर एक दूसरे को देखा और फिर चाबी की होल में डाल कर घुमा दी। कमरा खुला लेकिन वहां कुछ भी अजीब नहीं था। पूरा कमरा साफ सुथरा था जैसे कि वहाँ अभी अभी साफ सफाई कराई गई हो।

       तृष्णा ने सामने देखते हुए कहा, "इजंट इट स्ट्रेंज? ये कमरा इतना साफ सुथरा कैसे हो सकता है!"

       तान्या ने भी कहा, "वही तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा है। दी की डेथ 5 साल पहले हुई थी और ये कमरा उसके दो-तीन महीने में बंद हो गया था। फिर यहां इतनी साफ सफाई कैसे?"

       तृष्णा ने सोचते हुए कहा, "इसका मतलब कि यहां कुछ तो हुआ था जिसके सबूत मिटाए गए हैं।"

       तान्या ने वो कमरा ध्यान से देखते हुए कहा, "मुझे भी ऐसा ही लगता है।"

       तृष्णा ने उसकी ओर देख कर कहा, "तो क्या ऐसे में हमें कोई भी सबूत मिलना पॉसिबल है?"

       तान्या ने कहा, "आई डोंट थिंक सो।"

       तृष्णा ने कहा, "फिर भी क्या बोलती है, एक बार चेक कर लें?"

       तान्या ने आराम से कमरे के अंदर जाते हुए कहा, "अब जब यहां तक आ ही गए हैं तो एक आखिरी कोशिश कर ही लेते हैं। वैसे भी लगता है किसी ने हमारे रहने के लिए ही इस कमरे की साफ सफाई कर रखी है।"

       तृष्णा ने उसकी बातों का मतलब समझते हुए अपनी आँखें बड़ी करके तान्या को देख कर कहा, "यानी कि ये सब..."

       तान्या ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हां, हां! वही, जो तू समझ रही ह।"

       तृष्णा के चेहरे के भाव तुरंत बदल गए। अब तक जहां हैरानी थी अब वहां एक अलग ही खुशी दिख रही थी।

       उसने भी एक बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "अगर उन्होंने हमें यहां तक बुला कर हमारे लिए इतना कुछ कर रखा है तो थोड़ी मेहनत तो हम भी कर ही सकते हैं और मुझे पक्का यकीन है हमें यहां से कुछ ना कुछ सवाल जरूर मिलेगा।"

       तान्या ने आराम से बेड पर बैठते हुए कहा, "तो वहां खड़ी-खड़ी क्या कर रही है। चल आ अंदर और बैठ इधर।"

       तृष्णा भी कमरे में आकर बेड पर बैठ गई तो तान्या ने उससे कहा, "एक काम कर, तू अनिरुद्ध अंकल और अमृत जी को अब तक की सिचुएशन समझा दे। तब तक मैं इस वार्डन के बारे में पता करती हूं।"

       कुछ देर बाद,

       तान्या बेड पर बैठी हुई कुछ काम कर रही थी और तृष्णा टेबल पर बैठ कर इस हॉस्टल की हिस्ट्री चेक कर रही थी कि इतने में किसी ने उस कमरे का दरवाजा खटखटाया।

       तान्या ने तृष्णा से कहा, "देख त्रिशू, हमारे लिए खाना आया होगा।"

       तृष्णा ने अपना लैपटॉप वैसे ही छोड़ा और दरवाजे की ओर बढ़ गई। उसने दरवाजा खोला तो उनके सामने वही वॉर्डन खड़ी थी।

       तृष्णा ने उसे देख कर बिल्कुल मासूम सी शक्ल बना कर कहा, "यस मैम!"

       वार्डन ने अंदर की ओर झांकते हुए कहा, "तुम दोनों के साथ कुछ हुआ तो नहीं न!"

       तृष्णा ने उसी मासूमियत के साथ कहा, "नहीं मैम, हमारे साथ क्या होगा! इतना अच्छा तो कमरा है और आपने इसे इतने अच्छे से साफ करवा रखा था, बिल्कुल जैसे कि अभी अभी सफाई ही है। सच में, देख कर मन खुश हो गया ।"

       तान्या ने भी वहां जाकर तृष्णा के बगल में खड़े होते हुए कहा, "हाँ, हमें तो कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी।"

       उनकी बातों वॉर्डन को समझ नहीं आईं। उसने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "ये कमरा, और साफ सुथरा! इस कमरे में तो 5 सालों से कोई आया ही नहीं। फिर ये कमरा साफ सुथरा कैसे था?"

       तान्या ने कहा, "अब ये हमें कैसे पता होगा, मैम! हमें तो ये कमरा साफ सुथरा ही मिला।"

    वॉर्डन को तान्या और तृष्णा की बातें समझ नहीं आईं।

       उसने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "ये कमरा, और साफ सुथरा! इस कमरे में तो 5 सालों से कोई आया ही नहीं। फिर ये कमरा साफ सुथरा कैसे था?"

       तान्या ने कहा, "अब ये हमें कैसे पता होगा, मैम! हमें तो ये कमरा साफ सुथरा ही मिला।"

       वॉर्डन ने कहा, "ठीक है। मैं बस तुम लोगों को ये बताने आई थी कि खाना तैयार है। तुम लोग आकर ज्वाइन कर सकती हो।"

       तृष्णा ने कहा, "थैंक यू सो मच मैम। वी विल बी देयर।"

       कुछ देर बाद,

       तान्या और तृष्णा हॉस्टल कैंटीन में बैठी हुई थीं। सारी लड़कियों उन्हें घूर-घूर कर देख रही थीं लेकिन वो दोनों आराम से अपने खाने में मस्त थीं।

       खाना खाते हुए ही तान्या ने तृष्णा से कहा, "तैयार हो जा। कोई हमसे मिलने आ रहा है।"

       तृष्णा ने नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

       तान्या ने कहा, "मैंने इस वार्डन की बातें सुनी जो इसने अपने कैबिन में बैठ कर कॉल पर किसी से कही थीं।"

       तृष्णा ने खुशी से उछल कर कहा, "मतलब हमारा प्लान काम कर गया।"

       तान्या ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "हाँ, हमने वहां पर वॉयस रिकॉर्डर छुपा कर सबसे सही काम किया था।"

       तृष्णा ने खड़े होते हुए एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "फिर चल, तैयारी करते हैं आने वाले मेहमान के स्वागत की।"

       तान्या ने भी खड़े होते हुए कहा, "हाँ, चल। "

       कुछ देर बाद,

       तान्या और तृष्णा के साथ अब तक कुछ भी पैरानॉर्मल नहीं हुआ था। वो दोनों आराम से बेड पर बैठ कर अपने अपने फोन में कुछ देख रही थीं कि इतने में उनके दरवाजे पर किसी ने नॉक किया।

       तान्या ने तृष्णा की ओर देख कर मुस्कराते हुएकहा, " चल, आ गए हमारे मेहमान।"

       इसके बाद वो दोनों बेड से उतरीं और दरवाजे के पास चली गईं।

       तान्या ने दरवाजा खोला तो उनके सामने एक लंबा सा आदमी खड़ा था। उसने काले रंग की पैंट के साथ सफेद रंग की शर्ट पहनी हुई थी। साथ में उसने काले रंग का सूट पहना हुआ था।

       उसके पैरों में काले रंग के जूते थे और सफेद हो चुके बाल सलीके से सेट थे। उसका चेहरा घमंड से भरा हुआ था जिन पर दाढ़ी अच्छे से सेट थी। उसका 6 फीट का शरीर भी अकड़ से तना हुआ था।

       उसकी उम्र करीब 45-50 साल रही होगी लेकिन उसने खुद को इतना फिट रखा था कि उस देख कर उसकी उम्र का अंदाज़ा लगा पाना बहुत है मुश्किल था।

       उसने तान्या और तृष्णा को देख कर गम्भीर आवाज में कहा, "कौन हो तुम दोनों और यहां रहने क्यों आई हो?"

       तान्या ने शांति से कहा, "सर, हम दोनों सिर्फ अपने काम के सिलसिले में..."

       उसने इतना ही कहा था कि तृष्णा ने उसे रोकते हुए कहा, "तू चुप कर। हर जगह सब कुछ बताना होता है तुझे!"

       फिर उसने उस आदमी की ओर देख कर कहा, "...और आप मिस्टर! आप हैं कौन जो हम आपके सवालों के जवाब दें?"

       उस आदमी ने अपना सूट ठीक करके ऐटिट्यूड के साथ कहा, "जिस हॉस्टल में तुम खड़ी हो न, उसका मालिक हूं मैं।"

       ये सुन कर तृष्णा ने कहा, "ओ, सॉरी सर, सॉरी!"

       फिर उसने दुनिया जहां की मासूमियत अपने चेहरे पर लाते हुए कहा, "हां, तो क्या पूछ रहे थें आप?"

       उस आदमी ने अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, "मैंने पूछा, कौन हो तुम दोनों और यहां क्या करने आई हो?"

       तृष्णा कुछ बोलने को हुई ही थी की तान्या ने उसका हाथ पकड़ लिया।

       तृष्णा ने उसकी और देखा तो तान्या ने उसे आंखें दिखाते हुए अपने दांत पीस कर कहा, "अब तू चुप कर।"

       फिर उसने उस आदमी की ओर देख कर कहा, "सर, हम किसी काम से कुछ दिनों के लिए यहां आए हैं। जैसे ही हमारा काम हो जाएगा, हम यहां से चले जाएंगे।"

       उस आदमी ने उन दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सवाल करते हुए कहा, "क्या काम करती हो तुम दोनों?"

       तान्या ने कहा, "हम साउंड इंजीनियर हैं और हम फिल्मों के लिए साउंड एडिट करते हैं।"

       उस आदमी ने तुरंत अगला सवाल करते हुए कहा, "तो इस काम के लिए यहां आने की क्या जरूरत थी?"

       इस बार तान्या ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा, "सर, हम आपके काम की रिस्पेक्ट करते हैं लेकिन हम आपके काम के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। वैसे ही आप हमारे काम के बारे में हमसे ज्यादा नहीं जानते हैं। इसलिए प्लीज हमें हमारा काम मत सिखाइए।"

      

       जारी है...

  • 17. The House With Twelve Clocks - Chapter 17

    Words: 1510

    Estimated Reading Time: 10 min

    तान्या के तृष्णा का हाथ पकड़ने पर तृष्णा ने उसकी ओर देखा तो तान्या ने उसे आंखें दिखाते हुए अपने दांत पीस कर कहा, "अब तू चुप कर।"

       फिर उसने उस आदमी की ओर देख कर कहा, "सर, हम किसी काम से कुछ दिनों के लिए यहां आए हैं। जैसे ही हमारा काम हो जाएगा, हम यहां से चले जाएंगे।"

       उस आदमी ने उन दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सवाल करते हुए कहा, "क्या काम करती हो तुम दोनों?"

       तान्या ने कहा, "हम साउंड इंजीनियर हैं और हम फिल्मों के लिए साउंड एडिट करते हैं।"

       उस आदमी ने तुरंत अगला सवाल करते हुए कहा, "तो इस काम के लिए यहां आने की क्या जरूरत थी?"

       इस बार तान्या ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा, "सर, हम आपके काम की रिस्पेक्ट करते हैं लेकिन हम आपके काम के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। वैसे ही आप हमारे काम के बारे में हमसे ज्यादा नहीं जानते हैं। इसलिए प्लीज हमें हमारा काम मत सिखाइए।"

    फिर तृष्णा ने अपने हाथ बांध कर कहा, "और जहां तक मुझे पता है, यहां पर कोई भी वर्किंग वुमन रह सकती है और आप किसी से भी मिलने आज तक यहां नहीं आयें, किसी से भी ऐसे सवाल जवाब नहीं किया गयाफिर हमें ये स्पेशल ट्रीटमेंट मिलने की कोई खास वजह?"

       ये सुन कर वो आदमी सकपका गया। फिर उसने बात टालते हुए कहा, "ऐसा कुछ नहीं है। वो तो वॉर्डन ने मुझे बताया कि पहली बार कोई इस कमरे में रहने के लिए आया है तो बस curiosity में मैं तुम दोनों से मिलने चला आया।"

       तृष्णा ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "हमसे मिलने या हमारी इंक्वायरी करने?"

       उस आदमी ने बात खत्म करते हुए कहा, "बस-बस, ज्यादा जबान चलाने की जरूरत नहीं है। अपना काम करो और जितना जल्दी हो सके ये कमरा खाली कर दो क्योंकि यहां रहना तुम लोगों के लिए खतरे से खाली नहीं है।"

       तान्या ने हल्के से झुक करकहा, "श्योर सर!"

       उस आदमी ने उन दोनों को देखते हुए अपने कदम लिफ्ट की ओर बढ़ा लिये।

       उसके जाने के बाद तान्या और तृष्णा वापस आकर अपने बेड पर बैठ गईं लेकिन जैसे ही वो दोनों बेड पर बैठीं उन्हें किसी की आवाज अपने कान में सुनाई दी, "यही है वो।"

       वो आवाज सुनते ही उन दोनों की सांसे रुक सी गईं। उन दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर तान्या ने तृष्णा से सवाल करते हुए कहा, "तुझे कुछ सुनाई दिया क्या?"

       तृष्णा ने कहा, "मतलब तुझे भी सुनाई दिया!"

       तान्या ने कहा, "हां!"

       तृष्णा ने सोचते हुए कहा, "यानी कि हमें इसी के बारे में पता करना है।"

       तान्या ने कहा, "तो चल, करते हैं पता ।"

    इतना बोल कर वो अपने काम में लग गईं।

       कुछ ही देर में उनके सामने उस आदमी की पूरी इनफॉरमेशन थी लेकिन सिर्फ वहीं इनफॉरमेशन जो इंटरनेट पर अवेलेबल थी।

       उस आदमी का नाम था यशवंत राणा। उसके ऐसे 4-5 हॉस्टल थे जिनमें सैकड़ों लड़कियां रहती थीं और सोसाइटी में उस आदमी की इमेज बहुत ही साफ सुथरी थी।

       वो दोनों उस आदमी की इनफार्मेशन देख ही रही थीं कि तभी उनकी नजर एक दूसरे चेहरे पर जाकर ठहर गई।

       उस पर नजर पड़ते ही तान्या और तृष्णा, दोनों ही गौर से उस चेहरे को देखने लगीं और कुछ ही पलों में उनके चेहरे पर हैरानी के भाव झलकने लगें।

       तृष्णा ने उस चेहरे को देखा जो कि एक 26-27 साल के लड़के का था। उसने ब्ल्यू कलर की डेनिम जींस के साथ सफेद रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था।

       साथ में उसने एक नीले रंग की ही डेनिम जैकेट डाल रखी थी। उसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी और बाल अच्छे से सेट थें जो उसके गोरे रंग पर जंच रहे थें। तृष्णा ने उसे देखा और फिर तान्या की ओर देखने लगी।

       तान्या ने उसकी नजरें खुद पर पाकर अपनी नजरें घुमा कर कहा, "क्या, मुझे क्या देख रही है? मुझे नहीं पता था कि ये इनका बेटा है।"

       तृष्णा ने तालियां बजाते हुए टॉन्ट मार कर कहा, "वाह बेटा! तू इसके साथ पिछले 6 सालों से रिलेशन में हैऔर तुझे ही नहीं पता कि तेरे बॉयफ्रेंड का बाप कौन है!"

       तान्या ने उसकी ओर देख कर चिढ़ के साथ कहा, "अब मैंने कभी उसके फैमिली के बारे में इतना ध्यान नहीं दिया और देखा जाए तो इसमें मेरी कोई गलती भी नहीं है क्योंकि उसे खुद अपनी फैमिली में रहना और उनके बारे में बात करना पसंद नहीं है।

       और मैं उसे उसकी फैमिली के बारे में याद दिला कर परेशान नहीं करना चाहती थी इसलिए इस बारे में कभी नहीं पूछा।"

       तृष्णा ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "लेकिन फिलहाल हमें उससे उसकी फैमिली के बारे में बात करनी ही होगी।"

       तान्या ने कहा, "पर इससे उसका क्या लेना देना यार!"

       तृष्णा ने उसके सिर पर चपत लगा कर कहा, "अबे यार, उसके बाप के बारे में पता करना है तो इस काम के लिए उससे बेहतर कौन है!"

       तान्या ने अपना सिर सहलाते हुए कहा, "ये भी सही है।"

       फिर उसने तान्या की ओर देख कर कहा, "तो अब?"

       तृष्णा ने कहा, "अब क्या, कॉल कर उसे और मिल उससे।"

       तान्या ने आस पास देखते हुए कहा, "यहां?"

       तृष्णा ने आराम से कहा, "तू उसे यहां भी बुला सकती है क्योंकि वो यहां का मालिक है तो उसे कोई नहीं रोकेगा।"

       तान्या ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "ठीक है। मैं अभी उसे कॉल करती हूँ।"

       कुछ देर बाद,

       वो लड़का दौड़ते हुए उस कमरे तक आया और आते ही तान्या को अपने सीने से लगा लिया। उसने तान्या को react करने का भी मौका नहीं दिया था। वो तो अपने हाथ हवा में किए  हुए स्तब्ध सी उसे देख रही थी।

       कुछ देर बाद उस लड़के ने तान्या को खुद से अलग किया और फिर तान्या और तृष्णा, दोनों को डाँटते हुए कहा, "तुम दोनों यहां क्या कर रही हो? और यहां आई तो आई, यही कमरा मिला यहां रुकने को?"

       उसके आवाज़ में डर साफ झलक रहा था।

       राघव को डरा हुआ देख कर तृष्णा ने सवाल के जवाब में एक नया सवाल करते हुए कहा, "क्यों, राघव? क्या हो गया अगर हम इस कमरे में रुक गए तो?"

       राघव ने चिढ़ के साथ कहा, "तुम पागल हो गई हो क्या? यहां रहना खतरे से खाली नहीं है।"

       इस बार तान्या ने कहा, "पर क्यों? आखिर ऐसा क्या है यहाँ?"

       राघव ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "अरे ये कमरा हॉन्टेड है यार!"

       ये सुनते ही तृष्णा ने चिढ़ कर कहा, "ये क्या बकवास कर रहे हो तुम! जहाँ तक मुझे पता है, तुम तो भूत प्रेत इस सबमें नहीं मानते थे, बल्कि तुम हम दोनों का मज़ाक बनाते थे कि हम इस सब बकवास में यकीन करते हैं फिर आज तुम ऐसे..."

       इसके आगे के शब्द उसने अधूरे छोड़ दिए। वहीं राघव बेड पर बैठ गया।

       उसने अपना सिर पकड़ कर कहा, "हाँ, एक समय था जब मैं इन सबमें नहीं मानता था और आज भी नहीं मानता अगर मैंने खुद कुछ ऐसा महसूस नहीं किया होता तो!"

       तृष्णा ने तुरन्त उसकी ओर देख कर कहा, "मतलब तुम्हें भी यहाँ कुछ फील हुआ है!"

       राघव ने तुरन्त अपनी गर्दन उसकी ओर घुमा कर कहा, "तुम्हें भी मतलब!"

       तान्या ने कहा, "मतलब..."

       लेकिन इससे पहले कि वो आगे कुछ कहती, तृष्णा ने कहा, "अरे इस हॉस्टल में बहुत सारी लड़कियों के बारे में कहते हैं न कि उन्होंने कुछ फील किया है, बस वही।"

       राघव ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "ओह...! तो तुम इस बारे में बात कर रही थी। मुझे लगा कि..."

       फिर उसने तान्या और तृष्णा की ओर देख कर कहा, "वैसे..., तुम दोनों को तो कुछ फील नहीं हुआ न!"

       तान्या ने आराम से कहा, "नहीं, हम दोनों तो यहाँ आराम से हैं।"

       राघव ने सामने देखते हुए कहा, "ये अच्छी बात है कि तुम दोनों ने ऐसा कुछ फील नहीं किया लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आगे भी सब ठीक ही रहेगा और तुम दोनों सेफ रहोगी।"

       फिर उसने तान्या का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "इसलिए मेरी बात मानो,और मेरे साथ चलो।"

       तान्या ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "पर हम तुम्हारे घर में, कैसे?"

       राघव ने एक भी पल सोचे बिना तुरन्त कहा, "क्या मतलब कैसे, मैं बोल दूंगा कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"

       ये सुन कर तान्या और तृष्णा, दोनों शॉक्ड रह गयीं और उनके मुँह से एक साथ निकला, "हैं!"

       राघव को अब जाकर एहसास हुआ कि वो डर और घबराहट में क्या बोल गया है। फिर भी वो अपनी बात से पलटा नहीं।

       उसने तान्या और तृष्णा के खुले ही मुँह को बंद करते हुए कहा, "हैं नहीं, हाँ!"

       फिर उसने खड़े होकर कहा, "तुम दोनों का जो भी काम है वो तुम लोग मेरे घर से कर लेना लेकिन तुम यहाँ नहीं रहोगी।"

       तान्या ने भी खड़े होकर कहा, "पर हमारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, राघव।"

       राघव ने उसके कंधों पर हाथ रख कर कहा, "मैं मानता हूँ कि तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है लेकिन इस बात की क्या गैरेन्टि है कि आगे भी कुछ नहीं होगा।"

      

      

       जारी है...

  • 18. The House With Twelve Clocks - Chapter 18

    Words: 1508

    Estimated Reading Time: 10 min

    राघव ने एक भी पल सोचे बिना अपने पिता, यशवंत राणा से कहा, "क्या मतलब कैसे, मैं बोल दूंगा कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"

       ये सुन कर तान्या और तृष्णा, दोनों शॉक्ड रह गयीं और उनके मुँह से एक साथ निकला, "हैं!"

       राघव को अब जाकर एहसास हुआ कि वो डर और घबराहट में क्या बोल गया है। फिर भी वो अपनी बात से पलटा नहीं।

       उसने तान्या और तृष्णा के खुले ही मुँह को बंद करते हुए कहा, "हैं नहीं, हाँ!"

       फिर उसने खड़े होकर कहा, "तुम दोनों का जो भी काम है वो तुम लोग मेरे घर से कर लेना लेकिन तुम यहाँ नहीं रहोगी।"

       तान्या ने भी खड़े होकर कहा, "पर हमारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, राघव।"

       राघव ने उसके कंधों पर हाथ रख कर कहा, "मैं मानता हूँ कि तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है लेकिन इस बात की क्या गैरेन्टि है कि आगे भी कुछ नहीं होगा।"

    तान्या ने कहा, "पर ऐसा भी क्या हुआ है यहां पर जो तुम ऐसे बिहेव कर रहे हो?"

       राघव ने खड़े होकर अपनी नज़रें फेर कर कहा, "वो तो मैं भी नहीं जानता।"

       तृष्णा भी खड़े होते हुए अपने हाथ बाँध कर कहा, "क्या सच में?"

       राघव ने चिढ़ कर कहा, "जानता तो बता नहीं देता!"

       इस बार तान्या ने कहा, "ठीक है। तुम जाओ, अगर हमें जरूरत पड़ेगी तो हम खुद तुम्हारे घर पर रहने के लिए तुम्हें कॉल करेंगे।"

        राघव ने झल्ला कर कहा, "पर रिस्क लेना ही क्यों है, यार! तुम दोनों अभी चलो न यहाँ से।"

    तान्या ने कहा, "नहीं राघव, इतने सालों में पहली बार किसी ने इस कमरे में रहने की हिम्मत की है। ऐसे में अगर हम अभी ही यहाँ से चले गएं तो इसका असर इस हॉस्टल के reputation पर पड़ेगा।"

       राघव ने उसके कंधे पकड़ कर उसे ज़ोर से हिला कर कहा, "मुझे यहाँ के reputation की नहीं, तुम्हारी फिक्र है। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो इस सो कॉल्ड reputation का क्या अचार डालूँगा मैं!"

       उसकी टेंशन देख कर तान्या से कुछ बोला ही नहीं जा रहा था।

       इसलिए तृष्णा ने  राघव के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "रिलैक्स राघव, रिलैक्स! कुछ नहीं हुआ हमें। हम बिल्कुल ठीक हैं।"

       उसकी बात सुन कर राघव ने तान्या को छोड़ दिया था इसलिए अब तक तान्या भी थोड़ी संभल चुकी थी।

       उसने भी कहा, "और रही बात यहाँ ना रहने की तो ठीक है, हम यहाँ नहीं रहेंगे। हम आज ही तुम्हारे घर शिफ्ट हो जाएंगे।"

       ये सुन कर राघव खुश हो गया लेकिन ये खुशी भी कुछ ही पलों की मेहमान थी क्योंकि अगले ही पल तान्या ने कहा, "लेकिन..."

       राघव ने उसकी ओर देख कर कहा, "लेकिन..."

       तान्या ने कहा, "हम तुम्हारे साथ चलेंगे लेकिन अभी नहीं, कुछ देर बाद।"

       राघव ने फिर से frustrate होते हुए कहा, "कुछ देर बाद क्यों? अभी क्यों नहीं?"

       तान्या ने उसके गाल पकड़ कर उसे मनाते हुए कहा, "क्योंकि हम अपना सारा सामान already अनपैक कर चुके हैं। अब उन्हें वापस पैक करने में थोड़ा टाइम तो लगेगा न!"

       राघव ने तुरन्त कहा, "कितनी देर?"

       ये सुन कर तान्या के मुँह से निकला, "क्या?"

       उसने इस सवाल की उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी।

       राघव ने फिर सेकहा, "कितनी देर में अपना सामान पैक कर लोगी तुम दोनों?"

    तान्या ने बेड पर बैठते हुए कहा, "ये कैसा सवाल है यार!"

       राघव ने एक गहरी सांस ली और फिर कहा, "देखो, मैं जानता हूँ कि मैं कुछ ज्यादा ही कंट्रॉलिंग हो रहा हूँ लेकिन मेरा यकीन मानो जब तक तुम लोग यहाँ रहोगी मेरा दिल बेचैन रहेगा।"

       फिर उसने अपने हाथ जोड़ कर कहा, "इसलिए प्लीज़! ये सब जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी पैक करके मुझे कॉल करो। मैं तुरंत तुम्हें लेने आ जाऊंगा।"

       तान्या ने कहा, "ठीक है, हम शाम तक तुम्हें कॉल कर देंगे।"

       राघव ने फिर से कहा, "कितने बजे?"

       इस बार तृष्णा ने उसे बाहर धकेलते हुए कहा, "पाँच बजे मेरे बाप! अब चल निकल यहाँ से।"

       राघव ने चिढ़ कर कहा, "तू चुप कर जलकुकड़ी।"

       ये सुन कर तृष्णा ने गुस्से के भावों के साथकहा, "क्या बोला तूने?"

       राघव ने अपने कन्धे उठा कर कहा, "जलकुकड़ी को जलकुकड़ी बोला और क्या!"

       तृष्णा ने अपने शर्ट की बाजुओं को मोड़ते हुए कहा, "और ज़रा ये बताने का कष्ट करेगा कि मैं किससे जली।"

       राघव ने मुँह बना कर कहा, "तू हम दोनों का प्यार देख कर जलती है

       तृष्णा ने उसके बाल पकड़ कर कहा, "सुन बे मेंढक, तुझसे जले मेरी जूती। बड़ा आया मुझे जलाने वाला।"

       फिर उसने उसे दरवाजे के बाहर करके कहा, "अब चल, निकल यहाँ से।"

       फिर उसने राघव को अपनी उंगली दिखाते हुए कहा, "...और पांच बजे के पहले दिख मत जइयो यहाँ। वरना झाड़ू से मार मार कर भगाऊंगी तुझे।"

       राघव ने अपना सूट ठीक करते हुए कहा, "अबे जा, बहुत आये राघव राणा को मारने वाले लेकिन किसी में भी इतना दम नहीं है।"

       तृष्णा ने आगे बढ़ते हुए कहा, "तुझे मैं दम दिखाऊँ! रुक जा, रुक तू मैं दम दिखाती हूँ तुझे।"

       इतने में तान्या ने आकर उसे पकड़ लिया लेकिन तृष्णा खुद को उससे छुड़ाने के लिए हाथ पैर मारने लगी।

       तान्या ने उस पर अपनी पकड़ कसते हुए कहा, "त्रिशू, क्या कर रही है! एट लीस्ट सिचुएशन तो देख लिया कर।"

       फिर उसने राघव की ओर देख कर कहा, "राघव, तुम जाओ वरना ये रुकने वाली नहीं है।"

       राघव ने लिफ्ट की ओर मुड़ते हुए कहा, "हाँ, तुम ही झेलो, अपनी इस जंगली बिल्ली को।"

       तृष्णा ने फिर से खुद को तान्या की पकड़ से छुड़ाते हुए कहा, "जंगली बिल्ली किसे बोला बे!"

       राघव ने उसकी ओर देख कर कहा, "तुझे जलकुकड़ी और किसे?"

       और लिफ्ट में चला गया।

       वहीं तृष्णा ने तान्या का हाथ हटा कर कहा, "तेरी तो!ठहर जा तू, ठहर जा।"

       इसी के साथ वो राघव के पीछे कमरे से बाहर आ गई लेकिन तब तक राघव लिफ्ट में जा चुका था।

       ये देख कर उसने अपने हाथ की मुट्ठी बना कर हवा में दे मारी। वहीं तान्या उसके बगल में आकर अपने हाथ बांध कर खड़ी हो गई।

       तृष्णा अंदर जाने के लिए पलटी तो तान्या को अपने सामने ऐसे देख कर उसने अपने कदम पीछे किए लेकिन उसका पैर फिसल गया जिससे वो पीछे की ओर गिरने लगी लेकिन इससे पहले कि वो गिरती, तान्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और खींच कर सीधा खड़ा कर दिया।

       तृष्णा ने एक गहरी सांस ली और फिर तान्या से कहा, "ये क्या हरकत थी?"

       तान्या ने फिर से अपने हाथ बाँध कर कहा, "अभी

    क्या कर रही थी तू?"

       तृष्णा ने अंजान बनते हुए कहा, "क्या? मैंने क्या किया?"

       तान्या ने कहा, "अभी राघव के साथ क्या कर रही थी तू?"

       तृष्णा ने कहा, "अच्छा वो!"

       फिर उसने तान्या का हाथ पकड़ा और उसे लेकर कमरे में खिड़की के पास ले आई।

       फिर उसने नीचे की ओर इशारा करके तान्या से कहा, "ये देख!"

       तान्या ने अपनी आँखें छोटी करके नीचे की ओर देखा तो उसकी नजरें राघव पर गईं, मुस्कुराते हुए बाहर जा रहा था। उसे मुस्कराते हुए देख कर तान्या के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई।

       तृष्णा ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर कहा, "वो बेचारा बहुत टेंशन में था। अब कम से कम मेरे बचपने के बारे में सोच कर, थोड़े समय के लिए ही सही, उसका ध्यान तो इस सब पर से हटा रहेगा।

       तान्या ने कहा, "ह्म्म्म! ये अच्छा किया तूने।"

       तृष्णा ने अपनी कॉलर उठा करकहा, "मैं हमेशा अच्छा ही करती हूँ। बस तुम्हीं लोग हो जो मेरी कद्र नहीं करते।"

       तान्या ने वापस कमरे में आते हुए कहा, "बस, बस! अब ये ड्रामा बंद कर और यहाँ तलाशी ले।"

       तृष्णा ने अपने चेहरे पर समझ के भाव लाते हुए कहा, "तो शाम तक का समय इसलिए लिया था तूने!"

       तान्या ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ!"

       फिर उसने तृष्णा का ध्यान वापस काम पर लाते हुए कहा, "चल, हो जा शुरू।"

       तृष्णा ने उसे रोकते हुए कहा, "एक मिनट!"

       तान्या ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "अब क्या हुआ?"

       तृष्णा ने उसे घूरते हुए कहा, "तूने उसके घर पर रहने के लिए हाँ क्यों बोला?"

       तान्या ने अपने हाथ बाँध कर कहा, "हमने राघव को किसलिए बुलाया था?"

       तृष्णा ने कहा, "ताकि उसके बाप के बारे में पता लगा सकें।"

       तान्या ने तुरन्त कहा, "Exactly!"

       अब जाकर तृष्णा को समझ आया कि तान्या ने यशवंत राणा के बारे में पता लगाने के लिए उस घर में जाने के लिए हाँ कहा था।

       उसने तान्या को शाबाशी देते हुए कहा, "ओ हो, तो दिमाग काम कर रहा है लड़की का!"

       तान्या ने अपनी बायीं भौंह उठा कर कहा, "ये बेज्जती थी या तारीफ?"

       तृष्णा ने आराम सेकहा, "तुझे क्या लगता है?"

       तान्या ने कहा, "दोनों।"

       तृष्णा ने अपने कन्धे उठा कर कहा, "तो दोनों समझ ले।"

       तान्या ने अपना सिर ना में हिला कर कहा, "सुधर जा त्रिशू, वरना बहुत पिटेगी मेरे हाथों।"

       तृष्णा ने ड्रामा करते हुए कहा, "तू मुझे मारेगी तू!"

       फिर उसने थूकने का एक्ट करते हुए कहा, "आ थू!"

       तान्या ने कहा, "चल चल नौटंकी, काम कर पहले।"

       तृष्णा ने कहा, "ह्म्म्म!"

      

       जारी है...

  • 19. The House With Twelve Clocks - Chapter 19

    Words: 1506

    Estimated Reading Time: 10 min

    तृष्णा ने तान्या की बात समझने के बाद उसे शाबाशी देते हुए कहा, "ओ हो, तो दिमाग काम कर रहा है लड़की का!"

       तान्या ने अपनी बायीं भौंह उठा कर कहा, "ये बेज्जती थी या तारीफ?"

       तृष्णा ने आराम सेकहा, "तुझे क्या लगता है?"

       तान्या ने कहा, "दोनों।"

       तृष्णा ने अपने कन्धे उठा कर कहा, "तो दोनों समझ ले।"

       तान्या ने अपना सिर ना में हिला कर कहा, "सुधर जा त्रिशू, वरना बहुत पिटेगी मेरे हाथों।"

       तृष्णा ने ड्रामा करते हुए कहा, "तू मुझे मारेगी तू!"

       फिर उसने थूकने का एक्ट करते हुए कहा, "आ थू!"

       तान्या ने कहा, "चल चल नौटंकी, काम कर पहले।"

       तृष्णा ने कहा, "ह्म्म्म!"

       इसके बाद वो दोनों उस पूरे कमरे को चेक करने लगीं लेकिन वो उस कमरे के किसी सामान को हाथ तक नहीं लगा रही थीं। वो चेक कर रही थीं उस कमरे की फर्श।

    वो दोनों ज़मीन पर अलग अलग जगह लेट गयीं और फर्श को दो उंगलियों से ठोंक कर उससे होने वाली आवाज़ को ध्यान से सुनने लगीं। कुछ देर बाद वो दोनों उठ खड़ी हुईं। उन्होंने पूरा कमरा इसी तरह से चेक कर लिया था।

       तान्या ने तृष्णा की ओर देख कर अपनी भौंहें उठाईं तो तृष्णा ने ना में सिर हिला दिया। फिर तृष्णा ने अपनी भौंहें उठाईं तो तान्या ने एक गहरी सांस लेकर ना में सिर हिला दिया।

       फिर उन दोनों ने ही एक गहरी सांस ली और अपनी पीछे वाली दीवार से पीठ लगा कर ज़मीन पर ही बैठ गयीं।

       तान्या ने अपना सिर पीछे दीवार से टिका दिया लेकिन उसका सिर दीवार से थोड़ा तेज लगा जिसे उसकी हल्की सी चीख निकल गयी, "आह...!"

       और वो अपना सिर पकड़ कर आगे हो गई। तृष्णा भी जल्दी से उसके पास आ गई।

       उसने तान्या को डांटते हुए कहा, "तुझसे देख कर नहीं बैठा जाता न! अब लगा ली चोट।"

       फिर उसने तान्या का सिर पकड़ते हुए कहा, "चल ला, दिखा कहाँ लगी है।"

       तान्या ने अपना सिर पीछे लेते हुए कहा, "कहीं नहीं लगी यार!"

       तृष्णा ने सीरियस होकर कहा, "तनु, इस मामले में मज़ाक नहीं।"

       तान्या ने कहा, "मैं मज़ाक नहीं कर रही यार! सच में नहीं लगी।"

       फिर उसने अपना सिर उसके सामने करके कहा, "ये देख!"

       तृष्णा ने देखा तो वहाँ कोई चोट नहीं थी।

       उसने हैरानी के साथ कहा, "पर ऐसा कैसे हो सकता है? तेरा सिर तो जोर से लगा था दीवार में।"

       तान्या ने कहा, "हाँ, ये तो है पर चोट लगी नहीं है।"

       उसने इतना ही कहा था कि इतने में तृष्णा ने कहा, "एक मिनट!"

       तान्या ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्या हुआ?"

       तृष्णा ने सोचते हुए कहा, "क्या तूने आवाज़ पर ध्यान दिया जब तेरा सिर दीवार पर लड़ा उस वक़्त?"

       तान्या ने ना में सिर हिला कर कहा, "नहीं, क्यों?"

       तृष्णा ने कहा, "नहीं, वहाँ की आवाज़ कुछ अलग थी।"

       तान्या ने कहा, "अलग मतलब?"

       और इसी के साथ उन दोनों की ही आँखों में चमक आ गई और उन दोनों ने एक साथ कहा, "मिल गया।"

       उन दोनों ने उस दीवार की ओर देखा, जहां पर तान्या को चोट लगी थी। तान्या ने उस दीवार के पास जाकर अपना कान उससे लगा दिया और तृष्णा ने दो उंगलियों से उस दीवार को खटखटाया।

       अगले ही पल तान्या ये दीवार से अलग होकर कहा, "जो हम ढूंढ रहे हैं, शायद वो यहीं है।"

       इस वक़्त उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी।

       तृष्णा ने कहा, "तो चल जल्दी कर। हमारे पास ज्यादा वक़्त नहीं है।"

       इसके बाद वो दोनों अपने अपने बैग से एक छोटी चाकू और एक स्क्रू ड्राइवर निकाल कर फिर से दीवार के पास आ गयीं।

      

       तृष्णा ने उसी जगह पर स्क्रू ड्राइवर रखा जहाँ तान्या को चोट लगी थी और प्लास्टर को हल्के-हल्के खुरचना शुरू कर दिया। तान्या भी उसकी मदद कर रही थी।

       दीवार की ऊपरी परत हटते ही उन्हें एक पतली सी लकड़ी की तह दिखने लगी, जैसे पुराने जमाने के अलमारी या खिड़की के पीछे छिपा हुआ तख्त। कुछ और खोदने के बाद वहां एक छोटी सी छुपी हुई जगह खुल गई।

       उस छेद में एक छोटा सा बॉक्स रखा हुआ था। उस बॉक्स को देखते ही तान्या और तृष्णा की आँखों में चमक आ गई। उन दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर उस बॉक्स को निकाल लिया।

       तान्या ने वो बॉक्स खोला तो उसमें एक पेन ड्राइव था।

       तान्या ने कहा, "हमें इसमें कोई न कोई सुराग जरूर मिलेगा।"

       इतना बोल कर वो लैपटॉप की ओर बढ़ी तो तृष्णा ने कहा, "देवी जी, पहले ये रायता समेट लें जो इसे ढूँढने में फैला है।"

       तान्या ने एक गहरी सांस ली और उसके पास आकर उस दीवार को फिर से पैक कराने लगी।

       इसके बाद वो दोनों लैपटॉप लेकर बैठे गयीं। तान्या ने वो पेन ड्राइव लैपटॉप से कनेक्ट किया और एक वीडियो चला दी।

       उस वीडियो में अनाया की रिकॉर्डिंग थी जिसमें उसने कहा था, "मेरा नाम अनाया है, अनाया ठाकुर। मैं इस हॉस्टल में रह कर जॉब करती थी और एक दिन मुझे लौटने में देर हो गई और इसी वजह से इस हॉस्टल का असली चेहरा मेरे सामने आया।

       ये हॉस्टल जिसे लोग ऐसे देखते हैं जैसे कोई मंदिर। जहां लोगों को लगता है कि अपने सपनों के पीछे भागने वाली लड़कियों की मदद की जाती है वहां ऐसा कुछ होता है जो इन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर देता है।

       यहां कुछ लड़कियों को सेलेक्ट किया जाता है उनकी सुंदरता के हिसाब से और फिर उनका यौन शोषण किया जाता है। उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ लड़कियों को दृग्स देकर उनके साथ गलत किया जाता है।

       और ये सब एक सुनियोजित गिरोह करता है जो लड़कियों को इस सबमें फंसा देता है और उनको कुछ पता चल जाए तो उनकी विडियो से ही उन्हें ब्लैकमेल भी करता था और फिर उनसे होश में रहते ही ये सब काम कराता है।

       अब आप सोच रहे होंगे कि एक हॉस्टल में ऐसा कैसे हो सकता है तो उसकी वजह ये है कि ये सब कोई बाहर का आदमी नहीं, बल्कि अंदर के ही लोग कर रहे हैं और इस सबका प्रूफ ये पेन ड्राइव ही है। आपको जो भी प्रूफ चाहिए सब कुछ इसमें मिल जाएगा।

       मुझे जब सच्चाई पता चली, तब मैंने खुद उसे उजागर करने की ठानी लेकिन मैं नहीं जानती थी कि इसका अंजाम मेरी मौत होगी। इस वक़्त भी वो लोग मेरे पीछे पड़े हुए हैं। मैं नहीं जानती कि आप कौन हैं क्योंकि जब तक आपको ये वीडियो मिलेगी तब तक मेरी मौत हो चुकी होगी।

       मेरी आपसे बस इतनी सी गुजारिश है कि अगर ये वीडियो किसी भी तरीके से आपको मिली है तो प्लीज़ इस हॉस्टल का सच दुनिया के सामने जरूर लाइये।"

       इसके बाद वो वीडियो खत्म हो गया। वो वीडियो देखते हुए तान्या की आँखों से आँसू बहने लगे थें।

       तृष्णा ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, "शांत हो जा तनु। ये वक़्त रोने का नहीं है। उन लोगों को रुलाने का है जिन्होंने अनाया दी का मर्डर किया है।

       तान्या ने एक गहरी सांस ली और फिर कहा, "अनाया दी हमसे मदद मांग रही हैं। वो हमें अपनी कहानी बता रही हैं ताकि हम उन्हें इंसाफ दिला सकें।"

       

       तृष्णा ने दूसरी वीडियो प्ले करते हुए कहा, "बाकी की विडियो भी देख लेते हैं, क्या पता यशवंत राणा जी के खिलाफ भी की सबूत मिल जाए।"

       उस वीडियो में कुछ लोग लड़कियों को बेहोशी की हालत में उनके कमरों में से बाहर लाते हुए दिखाई दिये जो  उन्हें लेकर बसेमेंट में जा रहे थें। कुछ देर बाद कुछ बड़े प्रोफाइल वाले लोग भी बसेमेंट में जाते हुए दिखाई दियें।

       कुछ देर बाद वो सभी लोग अपने कपड़े ठीक करते हुए बाहर निकलें और उनके बाद उन लड़कियों को बाहर निकाला गया जिनके कपड़े अस्त व्यस्त थें।

       ये सब देख कर तान्या और तृष्णा, दोनों का खून खौल गया।

       तृष्णा ने तान्या का फोन उसके हाथ में देकर कहा, "चल, राघव को कॉल कर। अब आगे का रास्ता उसके घर से होकर ही जाता है।"

       तान्या ने दृढ़ आवाज़ में कहा, "नहीं, अब हमें वहाँ नहीं, मीडिया में जाने की जरूरत है।"

       तृष्णा ने नासमझी से कहा, "मीडिया, पर वो क्यों?"

       तान्या ने चिढ़ कर कहा, "क्या मतलब क्यों? अनाया दी ने इसमें सारे प्रूफ दिये तो हैं। हमें बस मीडिया में जाना है, ये वीडियो टेलीकास्ट करानी है और बस, पुलिस ये कांड करने वालों को अरेस्ट कर लेगी।"

       उसकी बातें सुन कर तृष्णा ने अपना सिर पीट लिया।

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "अब तुझे क्या हुआ?"

       तृष्णा ने कहा, "तेरी बात सही है लेकिन इन वीडियोज में आधा ही सबूत है।"

       तान्या ने नासमझी से कहा, "आधा मतलब!"

       तृष्णा ने कहा, "आधा मतलब इन वीडियोज़ में बस इतना दिख रहा है कि लड़कियों को बेसमेंट ले जाया गया और वहाँ कुछ गलत हुआ। लेकिन ये प्रूफ नहीं है कि ये सब यशवंत राणा और उसके लोग ही करवा रहे थे।

       अगर हमने ये वीडियोज़ टेलीकास्ट करा भी दिये तो भी हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। पुलिस उनको सिर्फ इतना सबूत दिखा कर गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी, तो वो सबूत के अभाव में छूट जाएंगे।"

      

      

    जारी है...

  • 20. The House With Twelve Clocks - Chapter 20

    Words: 1520

    Estimated Reading Time: 10 min

    तान्या ने मीडिया में जाने की बात की तो तृष्णा ने नासमझी से कहा, "मीडिया, पर वो क्यों?"

       तान्या ने चिढ़ कर कहा, "क्या मतलब क्यों? अनाया दी ने इसमें सारे प्रूफ दिये तो हैं। हमें बस मीडिया में जाना है, ये वीडियो टेलीकास्ट करानी है और बस, पुलिस ये कांड करने वालों को अरेस्ट कर लेगी।"

       उसकी बातें सुन कर तृष्णा ने अपना सिर पीट लिया।

       तान्या ने उसकी ओर देख कर कहा, "अब तुझे क्या हुआ?"

       तृष्णा ने कहा, "तेरी बात सही है लेकिन इन वीडियोज में आधा ही सबूत है।"

       तान्या ने नासमझी से कहा, "आधा मतलब!"

       तृष्णा ने कहा, "आधा मतलब इन वीडियोज़ में बस इतना दिख रहा है कि लड़कियों को बेसमेंट ले जाया गया और वहाँ कुछ गलत हुआ। लेकिन ये प्रूफ नहीं है कि ये सब यशवंत राणा और उसके लोग ही करवा रहे थे।

       अगर हमने ये वीडियोज़ टेलीकास्ट करा भी दिये तो भी हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। पुलिस उनको सिर्फ इतना सबूत दिखा कर गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी, तो वो सबूत के अभाव में छूट जाएंगे।"

    तृष्णा की बात सुन कर तान्या ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "तो सबूत जुटाने के लिए हमें राणा हाउस जाना होगा।"

       तृष्णा ने कहा, "हाँ और किस्मत से हमें राघव ने खुद, सामने से ये ऑफर दिया है।"

       तान्या ने दृढ़ आवाज़ में कहा, "और हम इस मौके का फायदा जरूर उठाएंगे।"

       कुछ देर बाद,

       राघव भागता हुआ कमरे में आया। उसने तुरन्त तान्या के पास जाकर कहा, "क्या हुआ, तनु? तुम तुम ठीक तो हो!"

       तान्या जो गहरी साँसें ले रही थी उसने खुद को संभालते हुए कहा, "मैं, मैं ठीक हूँ राघव!"

       राघव ने फिर से सवाल करते हुए कहा, "पर हुआ क्या था? तुम्हारा कॉल ऐसे अचानक से आया।"

       तान्या और तृष्णा ने एक दूसरे की ओर देखा और उनकी आँखें मुस्करा दीं।

       Flashback

       तान्या ने दृढ़ आवाज़ में कहा, "और हम इस मौके का फायदा जरूर उठाएंगे।"

       तृष्णा ने उसका फोन उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "तो ये ले और कर राघव को कॉल।"

       तान्या ने ना में सिर हिला कर कहा, "नहीं, उसे कॉल मैं नहीं,..."

    फिर उसने अपनी भौहें उठा कर कहा, "तू करेगी।"

       तृष्णा ने नासमझी से कहा, "मैं!"

       तान्या ने हाँ मैं सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, तू!"

       तृष्णा ने नासमझी से कहा, "पर ऐसा क्यों?"

       तान्या ने कहा, "क्योंकि मैं बाथरूम में लॉक हो गयी हूँ। ना अंदर से दरवाजा लॉक है और ना बाहर से लेकिन फिर भी दरवाजा खुल नहीं रहा है।"

       तृष्णा ने कहा, "पर तू तो..."

    लेकिन इतने में उसके चेहरे के भाव बदल गएं। उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "ओह समझ गई।"

    फिर उसने हँसते हुए तान्या से कहा, "तू फालतू ही साउंड इंजीनियर बन गई यार तुझे तो फिल्मों का director होना चाहिए था।"

       तान्या ने अपना फोन तृष्णा की ओर बढ़ा कर कहा, "मेरी तारीफ बाद में कर लियो। पहले राघव को कॉल कर।"

       तृष्णा वो फोन लेकर राघव को कॉल करने लगी कि इतने में तान्या ने कहा, "रुक जा!"

       तृष्णा ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "अब क्या हुआ?"

    तान्या ने संकोच के साथ कहा, "यार उसे धोख़ा देना अच्छा नहीं लग रहा है।"

      तृष्णा ने टोंट मारते हुए कहा, "ओह, ऐसा क्या! तो एक काम करते हैं। उसे बता देते हैं कि हम उसके बाप के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए उसके घर आना चाहते हैं और वो खुशी खुशी हमें अपने घर ले जायेगा, है न!"

       इस पर तान्या ने कुछ नहीं कहा तो तृष्णा ने उसे समझाते हुए कहा, "तनु, मैं जानती हूँ कि तू बहुत प्यार करती है उससे और इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि वो भी तुझसे बहुत ज्यादा प्यार करता है लेकिन सच ये भी है कि यशवंत राणा बाप है उसका।"

    तान्या ने हाँ में सिर हिला कर कहा, "तू ठीक कह रही है। फिलहाल उस कुछ ना बताना ही ज्यादा सही है।"

    तृष्णा ने कहा, "तो उसे कॉल करूँ न!"

    तान्या ने कहा, "हाँ, कर।"'

    Flashback - The End

    तृष्णा ने कहा, "वो actually तनु बाथरूम में गई थी और पता नहीं कैसे पर दरवाजा लॉक हो गया था और समझ ये नहीं आ रहा है कि ना मैंने बाहर से डोर लॉक किया था और ना इसने अंदर से, फिर दरवाजा खुल क्यों नहीं रहा था।"

    फिर असने राधव की ओर देख कर कहा, "इस शहर मैं तुम्हारे अलावा और किसी को जानती भी नहीं, बस इसलिए मैंने बिना सोचे समझे सीधे तुम्हे कॉल कर दिया।

    राघव ने कहा, "अच्छा किया जो मुझे कॉल कर दिया। मैंने कहा था ना तुम लोगों से, ये कमरा हॉन्टेड है। यहाँ रहना तुम्हारे लिए सुरक्षित नहीं है, लेकिन तुम लोगों ने मेरी बात को नहीं मानी।"

    तान्याने इस उसकी ओर देख कर मासूमियत से कहा, "अब क्या तुम मुझे डाँटोगे।"

    उसका मासुम चेहरा देख कर राघव से कुछ बोल ही नहीं गया। उसने सिर्फ इतना कहा, "अपना सामान उठाओ और चलो मेरे साथ।"

    इतना बोल कर वो बाहर निकल गया।

    कुछ देर बाद…

    राघव की कार एक विशाल, ऑटोमैटिक गेट के सामने आकर रुकी।

    गेट पर सोने के रंग की कढ़ाई जैसा डिज़ाइन और उसके ऊपर "राणा एस्टेट" का नाम उकेरा हुआ था।

    दो गार्ड्स पूरी वर्दी में खड़े थे, हाथ में वॉकी-टॉकी और आँखों में सख्ती।

    गेट खुलते ही, सामने चौड़ी, सफ़ेद मार्बल की सड़क नज़र आई, जिसके दोनों तरफ हरे-भरे लॉन और इम्पोर्टेड फूलों की कतारें थीं।

    सड़क के किनारे-किनारे महंगी गाड़ियों की लाइन खड़ी थी — हर ब्रांड, हर मॉडल, बस सपनों में ही दिखने वाली।

    और फिर…

    राणा मेंशन।

    तीन मंज़िला, सफ़ेद और सुनहरे रंग का संगम, ऊँचे-ऊँचे पिलर्स और बीच में कांच का दरवाज़ा, जिसके पीछे से हल्की-सी क्रिस्टल झूमर की चमक झलक रही थी।

    खिड़कियों पर मोटे रेशमी परदे, जो दिन के उजाले में भी कसकर खींचे गए थे।

    तान्या ने गौर से देखा — सब कुछ परफेक्ट था, लेकिन… कुछ गड़बड़ भी।

    इतनी भव्यता के बावजूद, यहाँ एक अजीब-सी ख़ामोशी थी।

    जैसे महल हँस रहा हो, पर उसकी परछाइयों में कोई चीख दबकर रह गई हो।

    उसने मन ही मन सोचा,

    "जैसे लोग नकली मुस्कान ओढ़ लेते हैं… वैसे ही नकली है ये महल।"

       राघव ने तनु की ओर देख कर कहा, "आओ तनु, अंदर चलें।"

       राघव की आवाज़ सुन कर तान्या होश में आई। उसने हाँ में सिर हिलाया और राघव के पीछे अंदर की ओर बढ़ गई लेकिन तृष्णा आगे नहीं आई।

       कुछ दूर जाने के बाद तान्या ने ध्यान दिया कि तृष्णा उनके साथ नहीं है तो उसने पीछे की ओर पलट कर देख जहाँ तृष्णा अपना सामान लेकर खड़ी थी और राघव को घूरे जा रही थी।

       तान्या ने नासमझी से तृष्णा से कहा, "क्या हुआ त्रिशू, तू अंदर क्यों नहीं आ रही है?"

       तृष्णा ने मुंह बना कर कहा, "इस मेंढक ने तुझे अंदर बुलाया, मुझे थोड़ी तो मैं अंदर क्यों आऊँ?"

       तान्या ने अपने मन में ही कहा, "अबे ये क्या कर रही है ये तो स्क्रिप्ट में ही नहीं था।"

       वहीं राघव जो उनकी बात सुन चुका था उसने पलट कर तृष्णा से कहा, "आ जा जलकुकड़ि, तू भी आ जा।"

       तृष्णा ने अपनी कमर पर हाथ रख कर राघव को आँखें दिखाते हुए कहा, "तूने फिर मुझे जलकुकड़ि कहा!"

       राघव ने उसे याद दिलाते हुए कहा, "मुझे अभी अभी किसी ने मेंढक कहा था।"

       तृष्णा ने कहा, "हाँ तो, तू मेंढक है तो मेंढक ही बोलूँगी न!"

       राघव ने अपने कंधे उचका कर कहा, "हाँ तो, जलकुकड़ि को जलकुकड़ि बोलने में क्या जाता है!"

       तृष्णा ने कहा, "इसकी तो!"

       और आगे बढ़ी ही थी कि राघव ने कहा, "अबे नौटंकी सुधर जा और जल्दी से अंदर आ वरना मेरा एक इशारा और गेट बंद हो जाएगा।"

       तृष्णा ने अपने शर्ट की बाजुओं को कहा, "हिम्मत है तो तू गेट बंद करवा कर दिखा। तेरा भरता ना बनाया तो मैं भी तृष्णा सहाय नहीं।"

       राघव ने उसे और चिढ़ाते हुए कहा, "सहाय तो तू वैसे भी नहीं है। ज़रा बता तो, किसकी सहायता की है तूने!"

       तृष्णा ने तान्या की ओर देख कर कहा, "तनु इसे समझा दे, मेरे से ज्यादा ना उलझे, वरना इसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

       तान्या ने उन दोनों को घूरते हुए कहा, "उसके लिए अच्छा होगा या नहीं ये बाद में पता चलेगा लेकिन फिल्हाल के लिए अगर तुम दोनों चुप करके अंदर नहीं आये न, तो तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।"

       ये सुन कर राघव और तृष्णा, दोनों के मुंह से एक साथ निकला, "हाँ!"

       वो दोनों हैरानी से तान्या को देख रहे थें।

       वहीं तान्या ने अंदर की ओर मुड़ते हुए कहा, "हाँ, अब चलो अंदर।"

    उनकी बातें सुन कर वहाँ के गार्ड्स उन्हें अजीब नज़रों से देख रहे थें लेकिन किसी की भी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि वो राघव के साथ आ रही थीं।

       एक गार्ड ने धीरे से अपने बगल वाले गार्ड के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "अबे ये दोनों कौन हैं बे जो छोटे मालिक से इस तरह से बात कर रही हैं?"

       दूसरे गार्ड ने अपनी नज़रें उन तीनों की ओर किए हुए ही कहा, "पता नहीं यार! मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा है। छोटे मालिक से तो उनके खुद के घर में कोई इस तरह से बात नहीं करता और ये दोनों हम सबके सामने..."

    जारी है...