तुम अंधे हो क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता नैना किसी पर चिल्ला रही थी कि तभी नैना के पास एक लड़की आती है और बोलती है क्या हुआ नैना ऐसा बिहेवियर क्यों कर रही हो तुम देखना निशा यह लड़का कब से मुझसे बहस कर रहा है एक तो मुझसे टकराया और ऊपर से मुझे ही अक... तुम अंधे हो क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता नैना किसी पर चिल्ला रही थी कि तभी नैना के पास एक लड़की आती है और बोलती है क्या हुआ नैना ऐसा बिहेवियर क्यों कर रही हो तुम देखना निशा यह लड़का कब से मुझसे बहस कर रहा है एक तो मुझसे टकराया और ऊपर से मुझे ही अकड़ दिखा रहा है ओ हेलो मिस क्या लड़का लड़का लगा रखा है मेरा नाम विक्की है ओके क्या अजीब सा नाम है विक्की यह भी कोई नाम है तुम्हारा नैना टेढ़ा मुंह करते हुए उसे देख रही थी तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे नाम से अपने काम से कम रखो ओके
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नैना किसी पर चिल्ला रही थी। तभी नैना के पास एक लड़की आई और बोली, "क्या हुआ नैना? ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो तुम?"
"देखना निशा, यह लड़का कब से मुझसे बहस कर रहा है। एक तो मुझसे टकराया और ऊपर से मुझे ही अकड़ दिखा रहा है।"
"ओ हेलो मिस! क्या लड़का-लड़की लगा रखा है? मेरा नाम विक्की है, ओके?"
"क्या अजीब सा नाम है 'विक्की'! यह भी कोई नाम है तुम्हारा?" नैना टेढ़ा मुँह करते हुए उसे देख रही थी।
"तुम्हें क्या प्रॉब्लम है मेरे नाम से? अपने काम से कम रखो, ओके?"
"अरे निशा, छोड़ नैना इसे। चल, हमें देर हो रही है। नहीं तो माही हमें नहीं छोड़ेगी।"
"मैं नहीं जाऊंगी जब तक यह मुझे सॉरी नहीं कहता।"
"निशा, प्लीज! आप इसे सॉरी कहवा दो। नहीं तो यह यहीं पर खड़ी रहेगी और हम लोग कॉलेज के लिए लेट हो जाएँगे।"
"विक्की," निशा विक्की को देखते हुए प्यार से बोली, "क्यों नहीं? आपके लिए तो कुछ भी कर सकती हूँ। सॉरी बोलना कौन सी बड़ी बात है?"
विक्की निशा के साथ फ़्लर्ट करते हुए बोला।
"ओ मजनू! निकल यहाँ से! मेरी फ़्रेंड को भी नहीं छोड़ा तूने! तेरी तो..."
"नैना, छोड़ इसे और चल मेरे साथ। नहीं तो हम लेट हो जाएँगे। फिर क्लास के बाहर रुकना पड़ेगा।"
"ठीक है।"
निशा और नैना अपनी स्कूटी लेकर वहाँ से चली गईं, लेकिन विक्की निशा को ही देख रहा था।
"अरे भाई! यहाँ क्या कर रहे हैं तू? ऑफ़िस नहीं चलना तुझे? नहीं तो भाई तुझे जान से मार देंगे!" समर विक्की को देखते हुए बोला।
"हाँ, क्यों नहीं? चलो चलते हैं। एक नकचढ़ी लड़की मिल गई थी, सारा दिन ही खराब जाएगा आज मेरा।"
"कोई नहीं भाई! तेरे साथ तो रोज़ ऐसा ही होता रहता है। चल जल्दी, नहीं तो लेट हो जाएँगे।"
कुछ देर बाद विक्की और समर एक बिल्डिंग के सामने खड़े थे। जो देखने में काफी सुंदर लग रही थी। बिल्डिंग पूरी २० मंज़िल की थी।
"भाई, बाहर रहने का इरादा है क्या तेरा?" विक्की बोला, "चल, अंदर चलते हैं।"
"विक्की सर! समर सर! आप इतने लेट कैसे हो गए?" रीता भागते हुए विक्की और समर के पास आई।
"क्या हुआ रीता? तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो? क्या हो गया?"
"आज दक्ष सर बड़े गुस्से में हैं। पता नहीं क्यों। मुझे लगता है आप दोनों ने कुछ गड़बड़ की है।"
विक्की रीता को घूरते हुए बोला, "अच्छा? तुम्हें पता है कि गड़बड़ हमने ही की है? क्या पता तुमने ही कुछ किया हो जिस कारण भाई गुस्से में है?"
"सर, मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकती।"
"अच्छा? तुम्हें बड़ा पता है!"
विक्की गुस्से से रीता को देख रहा था।
"यार, यह सब छोड़ और चल। देखते हैं दक्ष को क्या हुआ है। नहीं तो वह आज हमें नहीं छोड़ेगा।"
"क्या हम अंदर आ जाएँ?" विक्की और समर दोनों साथ में बोले।
"हाँ।" अंदर से एक कठोर आवाज आई।
"तुम दोनों सुबह कहाँ चले गए थे? मैंने तुम दोनों को कुछ काम दिया था, वह हुआ कि नहीं?"
"विक्की सॉरी भाई, मैं भूल गया था। मैंने समर से कहा था..."
"तूने मुझे कौन सा काम कहा था? बे, मुझे कुछ पता नहीं है!"
दक्ष विक्की और समर को घूरते हुए बोला, "निकल जाओ मेरे केबिन से! और जब तक मैं ना कहूँ तो अंदर मत आना!"
ऐसा क्या हुआ कि दक्ष गुस्से में था, यह पता आगे के चैप्टर में चलेगा। तब तक के लिए पढ़ते रहिए मेरी स्टोरी।
दक्ष गुस्से में था।
विक्की ने कहा, "समर यार, तूने वो काम क्यों नहीं किया जो मैंने तुझे कहा था?"
समर ने कहा, "भाई, मैं भूल गया था। मुझे नहीं पता था कि वो काम दक्ष भाई ने दिया था। सॉरी।"
विक्की ने कहा, "अब क्या करें? हम दोनों को भाई ने तो ऑफिस से ही निकाल दिया। एक काम करते हैं, दोनों मिलकर जो काम दक्ष ने दिया था वही करते हैं पहले। ठीक है?"
दूसरी तरफ, कॉलेज में—
निशा नैना पर चिल्लाते हुए बोली, "नैना, तुझे क्या जरूरत है किसी अजनबी के साथ झगड़ा करने की? तुझे नहीं पता वो कैसे लोग हैं? मुझे देखकर लग रहा था, कोई रईस ज़्यादा हैं जो किसी पर भी अपना हुकुम चला सकते हैं। तुझे सोच-समझकर पंगा लेना चाहिए था।"
नैना ने कहा, "सॉरी यार, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैं क्या करूँ? और ये बता, माही कहाँ है? आजकल उसका कोई पता नहीं है। कॉलेज भी स्टार्ट हो गए और वो मैडम कहाँ गायब है? किसी को पता नहीं।"
पीछे से आते हुए माही ने कहा, "मेरी चुगली करना बंद करो। ओके?"
नैना ने मुँह फूलते हुए कहा, "नैना, हम तेरी चुगली नहीं कर रहे हैं। ओके? तू बता, तू कहाँ गायब थी इतने दिनों से? ना कोई मैसेज, ना कॉल। हम तो जैसे तेरे कुछ लगते ही नहीं।"
माही ने कहा, "सॉरी यार, मैं क्या करूँ? पापा ने मुझे कुछ दिन के लिए बुआ के घर भेजा था और आज ही आई हूँ। तो सोचा पहले कॉलेज ही जाऊँ। प्लीज सॉरी, गुस्सा मत करो।"
निशा ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा, "गुस्सा ना करें तो क्या करें? तुझे पता है आज ये नैना किसी से झगड़ा कर रही थी। अगर मैं टाइम पर ना पहुँचती तो वो इसे पक्का पुलिस के हवाले कर देता। कोई आम लोग नहीं लग रहे थे देखने से। कोई बिज़नेसमैन थे।"
नैना गुस्से से बोली, "तो मैं क्या करूँ? मैं थोड़ी ना टकराई थी उससे? वो लम्बू ही मुझसे टकराया था और स्कूटी को भी टक्कर उसने ही मेरी दी थी। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। ठीक है ना? ज़्यादा बकवास मत कर।"
माही ने कहा, "ये सब छोड़ो और क्लास में चलो। हम लोग बाद में देख लेंगे उन लोगों को। ठीक है? और वीर कहाँ पर है तेरा? वीर तुझे पता है? हमें तो वो बताता ही नहीं कि कहाँ पर आता-जाता है।"
माही ने कहा, "शट अप! बकवास बंद करो। अपनी वो मेरा वीर नहीं, हमारा फ्रेंड है। ओके? चलते हैं।"
इतना कहकर तीनों क्लास की ओर चली गईं।
दूसरी तरफ, दक्ष के ऑफिस में—
दक्ष ने कहा, "रीता, मैंने तुम्हें एक फाइल दी थी तैयार करने को। वो पूरी हुई या नहीं?"
रीता ने दक्ष को देखते हुए कहा, "सर, कंप्लीट हो गई।"
दक्ष ने कहा, "फाइल तो मेरा मुँह क्या देख रही हो? लेकर आओ। जाओ जल्दी से।"
इतना सुनते ही रीता केबिन से बाहर भाग गई।
रीता अपने आप से ही बातें कर रही थी, "यार, आज सर को क्या हुआ है? इतना भड़के क्यों रहे हैं? एक तो विक्की सर और समर सर पता नहीं क्या करते रहते हैं। मुझे फँसाकर चले गए।"
विक्की ने कहा, "भाई, क्या मैं अंदर आ जाऊँ?"
दक्ष ने कहा, "आ जाओ अंदर।"
विक्की ने कहा, "भाई, आपने जो काम दिया था वो हो गया और अब वो लोग इस कॉन्ट्रैक्ट को करने के लिए तैयार हैं।"
इतना सुनते ही दक्ष मुस्कुराने लगा।
दक्ष ने कहा, "मुझे पता था वो लोग मना कर ही नहीं सकते। और समर कहाँ पर है? उसका कुछ पता ही नहीं।"
विक्की ने कहा, "भाई, समर किसी काम से बाहर गया है। कुछ टाइम बाद आ जाएगा। ठीक है? जो और मैंने जो तुम्हें एक फाइल दी थी उसे कंप्लीट करो।"
विक्की ने मुँह बनाते हुए कहा, "क्या भाई? आप हमेशा मुझे ऑर्डर देते रहते हो? मैं आपका छोटा भाई हूँ। समर तो मुझसे बड़ा है, उससे भी कोई काम दिया करो।"
दक्ष ने कहा, "इतना कहा जाए, उतना किया करो और मेरे केबिन से निकलो।"
रीता ने केबिन का दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा, "मे आई कम इन सर?"
दक्ष ने कहा, "कम इन। आ जाओ।"
रीता ने कहा, "सर, जो फाइल आपने मुझे दी थी वो तो समर सर के पास है। उन्होंने कल रात मुझसे ले ली थी।"
दक्ष ने कहा, "व्हाट? तुम कैसे कर सकती हो? मैंने वो फाइल तुम्हें दी थी ना कि समर को?"
रीता ने कहा, "सॉरी सर, कल मुझे जल्दी जाना था तो मैं समर सर को दे दी। और अभी मेरी समर सर से बात हुई है, वो कुछ देर में आ जाएँगे। ठीक है? तब तक मेरे लिए एक ब्लैक कॉफी लेकर आओ।"
दक्ष ने अपना सर चेयर से दिखाते हुए कहा, "जी सर। अभी लेकर आई।"
इतना बोलते ही रीता केबिन से बाहर चली गई।
रीता दक्ष के लिए ब्लैक कॉफी लेकर केबिन में आई। "माय कमिंग सर," उसने कहा। "यस, कमिंग।" इतना सुनते ही रीता केबिन के अंदर गई।
रीता ने देखा कि दक्ष की गोद में एक लड़की बैठी है। वह काफी खूबसूरत थी, और उसने बहुत ज़्यादा मेकअप किया हुआ था।
"सर, आपकी कॉफ़ी," रीता ने कहा। "टेबल पर रख दो," दक्ष ने कहा, "और हाँ, जाते समय दरवाज़ा अच्छे से बंद कर देना। और किसी को भी अंदर मत आने देना, ख़ासकर समर और विक्की को।"
"जी सर," इतना कहकर रीता केबिन से बाहर निकल गई और दरवाज़े पर खड़ी होकर पहरेदारी करने लगी ताकि कोई अंदर न जाए।
कुछ देर बाद, लिसा ने दक्ष की गर्दन पर उँगलियाँ फेरते हुए कहा, "दक्ष, तुम्हें क्या हो गया है आजकल?"
दक्ष ने लिसा की कमर पर हाथ घुमाते हुए कहा, "मुझे क्या होगा? मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम बताओ, तुम्हें क्या काम है? और इस टाइम ऑफ़िस में क्या कर रही हो?"
"वह क्या है ना," लिसा ने कहा, "आज मेरा मन था तुम्हारे साथ कुछ टाइम स्पेंड करने का, तो आ गई तुमसे मिलने।"
"अच्छा, तो यहाँ पर टाइम स्पेंड करेगी?" दक्ष ने कहा। "हम कुछ और करते हैं।" इतना कहकर दक्ष लिसा को अपनी गोद में उठा लिया और केबिन में बने एक छोटे से बेडरूम में ले गया।
"दक्ष, प्लीज़, आज रुक मत जाना," लिसा ने दक्ष के गालों पर हाथ रखते हुए कहा, "जो करना है, करो। ओके?"
"तुम मुझे सहन नहीं कर पाओगी," दक्ष ने कहा। "ओके, देखते हैं कि मैं तुम्हें सहन कर सकता हूँ या नहीं। तुम शुरू तो करो।"
लिसा के इतना कहने पर ही दक्ष लिसा पर टूट पड़ा और पागलों की तरह उसे किस करने लगा।
"दक्ष, प्लीज़, थोड़े आराम से," लिसा ने कहा। "इतनी भी क्या जल्दी है? मैं यहीं पर हूँ।"
"मेरे पास आराम से करने का टाइम नहीं है," दक्ष ने कहा, "तो जो कर रहा हूँ, मुझे करने दो।"
इतना कहकर दक्ष ने लिसा की ड्रेस उसके शरीर से अलग कर दी और अपना कोट और पैंट उतार कर एक तरफ फेंक दिया। अब कमरे में सिर्फ़ लिसा के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी।
कुछ देर बाद, जब दक्ष रुका, तो उसने देखा कि लिसा बेहोश हो गई है।
"मैंने इससे पहले ही मना किया था," दक्ष ने कहा, "पर यह लड़की मेरी बात मानती ही नहीं।" दक्ष ने अपने कपड़े पहने और अपने केबिन की ओर चला गया।
कुछ देर बाद, विक्की और समर एक साथ बोले, "भाई, क्या हम अंदर आ जाएँ?"
"हाँ, आ जाओ," दक्ष ने कहा।
विक्की ने चारों ओर देखते हुए कहा, "भाई, मैंने सुना है कि यहाँ लिसा आई है। क्या यह सच है?"
"दक्ष ने कहा, "अपने काम से कम रखो और टाकाझाकी करना बंद करो। पहले यह बताओ कि जो फ़ाइल मैंने तुम्हें दी थी, वह तैयार हुई या नहीं?"
"क्या भाई, आप फ़ाइल के पीछे ही पड़े रहते हो?" विक्की ने कहा। "फ़ाइल तो कब की पूरी हो गई, और मैंने रीता को दे भी दी थी।"
दक्ष ने गुस्से से समर से कहा, "और समर, तुम कहाँ गए थे मुझे बिना बताए?"
"भाई, मुझे कुछ काम था," समर ने कहा। "डैड ने कहा था कि एक मीटिंग में हैंडल कर लूँ, तो मैं चला गया। सॉरी, मैंने आपको बताया नहीं।"
तीनों आपस में बात कर ही रहे थे कि तभी लिसा कमरे से बाहर निकली। लिसा को देखकर ऐसा लग रहा था कि उसके साथ कुछ हुआ है। समर और विक्की मुँह फाड़े लिसा को देख रहे थे। दक्ष आराम से बैठा था, उसे किसी बात का कोई फ़िक्र नहीं था।
"लिसा, तुम अभी जाओ और आराम करो," दक्ष ने कहा। "मैं तुमसे शाम को मिलता हूँ। ठीक है, बेबी?" लिसा ने दक्ष के गाल पर किस किया और केबिन से बाहर चली गई।
"भाई, क्या सच में लिसा आपकी गर्लफ़्रेंड है?" समर ने पूछा।
"हाँ," दक्ष ने कहा, "तो इसमें क्या हुआ? क्या तुम्हारी कोई गर्लफ़्रेंड नहीं है?"
"नहीं भाई," समर ने कहा, "मेरी तो कोई गर्लफ़्रेंड नहीं है। जब कोई बनती है, तो आपको देखते ही मुझे रिजेक्ट कर देती है।"
दक्ष मुस्कुराते हुए बोला, "तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं।"
"भाई, आपकी गलती क्या होगी?" समर ने कहा। "और हाँ, मॉम ने शाम को आपके घर बुलाया है, तो प्लीज़ टाइम से आ जाना। ठीक है?"
"ठीक है," दक्ष ने कहा। "तुम लोग जाओ। मुझे एक मीटिंग अटेंड करनी है। उसके बाद मैं सीधा शाम को घर मिलता हूँ।"
"ठीक है भाई," समर और विक्की दोनों साथ में बोले।
समर और विक्की, मैंने तुम दोनों से कहा था कि तुम दक्ष के साथ घर आना। तुम दोनों अकेले क्यों आए हो? दक्ष की माँ दोनों पर गुस्सा करते हुए बोली।
"मॉम, इसमें हमारी गलती नहीं है। भाई ने खुद कहा था कि वह शाम तक आ जाएँगे, तो हम आ गए।"
"ठीक है, ठीक है। जाओ और फ्रेश हो जाओ। तब तक मैं डिनर की तैयारी करती हूँ।"
"ओके मॉम, हम अभी आए।"
"दोनों भाई ही पागल हैं!" आरती जी किचन की ओर जाते हुए बोलीं।
"तो इसमें क्या हुआ? अभी दोनों छोटे हैं। जब बड़े हो जाएँगे, तो अपनी ज़िम्मेदारी समझ जाएँगे।" आरती जी दीपक जी को देखते हुए बोलीं। "यह अब बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हैं। आप दक्ष को ही देख लो, उसने आपका सारा बिज़नेस संभाल लिया है और यह दोनों निकम्मे, किसी काम के नहीं हैं।"
"छोड़ो ना आरती, तुम खाने की तैयारी करो। दक्ष आता ही होगा।"
"ठीक है, तब तक आप भी मुँह हाथ धो लीजिए।"
दूसरी तरफ, माही के घर में—
"माही, बेटा, मैंने तुमसे कहा था कि आज राशन लेकर आना। क्या तुम लेकर आई?"
"सॉरी माँ, मुझे पता नहीं था। मैंने राज को कहा था।" राज माही का छोटा भाई था।
"आरडी में भी भूल गया वह! क्या है ना, आज मैं अपने फ्रेंड के साथ कहीं घूमने गया था।"
"तू पागल है क्या!"
माही जो गुस्से से राज को घूर रही थी, बोली, "मुझे पैसे दे, मैं लेकर आती हूँ।" इतना कहकर माही ने राज से पैसे ले लिए और मार्केट की ओर चली गई।
कुछ दूर चलने के बाद, माही को लगा कि वहाँ पर वीर है। माही जोर से चिल्लाने लगी, "वीर! वीर!"
तभी वीर ने माही को देखा और हाथ हिलाते हुए बोला, "माही, इधर आओ।"
"क्या हुआ? तुम ऐसे क्यों चिल्ला रही थी?" वीर माही को देखते हुए बोला।
"कुछ नहीं, मुझे लगा तुम हो, इसलिए कन्फर्म करने के लिए आवाज़ लगा दी।"
"अच्छा, ऐसा था?"
"हाँ," माही बोली।
"और इतनी रात को कहाँ जा रही हो?"
"कुछ नहीं, घर का राशन लेने जा रही थी। मैंने राज से कहा था, पर वो घूमने के चक्कर में भूल गया। चलो कोई ना, मैं भी चलता हूँ तुम्हारे साथ। मेरी भी नाईट वॉक हो जाएगी। चलो चलते हैं।"
चलते-चलते दोनों राशन की दुकान पर पहुँच गए। "भैया, इस लिस्ट में जो-जो समान लिखा है, वह सब इसमें डाल दो।"
"ठीक है मैडम, आप 2 मिनट रुकिए।"
"माही, तुम आज कॉलेज गई थी?" वीर माही को देखते हुए बोला।
"हाँ, गई थी। और तुम क्यों नहीं गए?"
"अरे, तुम्हें पता है ना कि मेरे भाई की शादी है। इतने कामकाज हैं कि मौका ही नहीं मिल रहा कॉलेज जाने का। कल देखता हूँ, टाइम हुआ तो आ जाऊँगा।"
"कोई बात नहीं, अभी वैसे भी लेक्चर नहीं लग रहे।"
"मैडम, आपका समान।" दुकानदार बोला। "कितने हुए?"
"भैया, 510।" "यह लीजिए।"
"चलो माही, आगे एक आइसक्रीम की शॉप है, तो आइसक्रीम खाते हैं।"
"नहीं, मुझे घर जाना है। अभी खाना भी तो बनाऊँगी।"
"नहीं, बना लेना। पहले चलो।" इतना कहते ही वीर ने माही का हाथ पकड़ लिया और शॉप की तरफ़ चल दिया।
दूसरी तरफ़, दक्ष के घर में—
दक्ष अभी तक आया क्यों नहीं? आरती जी दरवाज़े की तरफ़ देखती रहीं।
"मॉम, भाई आ जाएँगे, आप टेंशन मत लो।" विक्की सीढ़ियों से उतरते हुए बोला।
"ठीक है। समर कहाँ पर है? उसे भी साथ ले आते।"
"मॉम, वह अभी आ रहा है। प्लीज़ आप खाना लगाओ, मुझे बहुत तेज भूख लगी है।"
"दक्ष को आने दो, सभी साथ में डिनर करेंगे।" आरती जी किचन में जाते हुए बोलीं।
"हेलो मॉम, भाई आ गए अब! आरती उतारो!" विक्की हँसते हुए बोला।
"अपना मुँह बंद कर!" आरती जी किचन में जाते हुए बोलीं।
"दक्ष, बेटा, जाओ और फ्रेश होकर जल्दी आओ। साथ में बैठकर डिनर करेंगे।"
"ओके।"
"समर कहाँ पर है?"
"भाई, मैं यहाँ हूँ और शायद पापा रूम में हैं। मैं अभी उन्हें बुलाकर लाता हूँ।"
"ठीक है, मैं भी अभी आया।" इतना कहकर दक्ष अपने रूम की ओर चला गया।
"समर, मैंने तुम्हें एक काम दिया था।" आरती जी समर को देखते हुए बोलीं।
"क्या मॉम? आप 24 घंटे एक ही बात बोलती रहती हो! 'मैंने काम दिया था, मैंने काम दिया था!' कभी विक्की को भी कह दिया करो।"
"ज़्यादा मत बोलो। ठीक है, मैंने तुमसे कहा था दीपक जी की दवाई लाने को। क्या तुम लेकर आए?"
"सॉरी मॉम, मैं भूल गया। अभी लेकर आता हूँ।"
"मुझे पता था कुछ ऐसा ही होने वाला है, तो मैंने पहले ही मँगवा ली!" आरती जी समर को गुस्से से देखते हुए बोलीं।
"आप मुझे ऐसा क्यों बोल रही थीं, जब आपने पहले ही मँगवा ली थी?" समर अपनी प्लेट में खाना परोसते हुए बोला।
"अरे, बातें छोड़ो और खाना खाओ।" दीपक जी सीढ़ियों से उतरते हुए बोले।
"अरे पापा, मैं खाना ही खा रहा था।"
"दक्ष कहाँ पर है?"
"आरती, वह अपने रूम में गया है। बस आने वाला है। आप बैठिए।"
"ठीक है, तुम भी बैठ जाओ।"
कुछ देर बाद दक्ष अपने रूम से बाहर आया और डायनिंग एरिया की तरफ़ चला गया।
"मॉम, मैंने सुना है कि कल आपकी फ़्रेंड की बेटी की शादी है, तो आप कहाँ जा रही हैं?"
"हाँ दक्ष, तुमने सही सुना। मैं जा रही हूँ और अगले महीने वापस लौटूँगी। तो आप एक काम करो, समर और विक्की को भी अपने साथ लेते जाओ। वैसे भी ये किसी काम के नहीं हैं।"
"नहीं, मैं इन्हें नहीं लेकर जाऊँगी। वहाँ पर भी कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर करेंगे दोनों भाई।"
"क्या मॉम? आप हम दोनों भाइयों के पीछे पड़ी रहती हो?" विक्की समर को देखते हुए बोला, जो खाना खाने में व्यस्त था।
"दीपक जी, खाना खाओ और चुपचाप सो जाओ। कल सुबह तुम्हारी मॉम को निकलना भी है।" इतना कहकर सभी चुपचाप खाना खाने लगे और खाना खाकर अपने रूम की ओर चले गए।
अथर्व उसे खींचकर रूम में ले जाता है और उसे जोर से धक्का देता है जिससे वो सीधा बिस्तर पर जाकर गिरती है... अथर्व दरवाजा बंद कर देता है..
वो उसकी तरफ देखता है और उसे कमांडिंग टोन में बोलता है
""Seduce me...right nowwwww""
अथर्व का इतना भयानक रूप देखकर रूमी डर से कांपने लगी थी... उसे आर्डर न मानते देख अथर्व उसके करीब आता है उसे बिस्तर से बाल पकड़ कर उठाता है... और एक झटके में उसके टॉप को फाड़ डालता है रूमी अपनी आखों को जोर से बंद कर लेती है, कुछ ही देर में दोनों के कपड़े जमीन पर बिखरे पड़े थे...
अथर्व का 6 फुट का शरीर उसकी वेल बिल्ट मस्कुलर बॉडी उसका हैंडसम फेस देख कोई कोई भी अपना दिल हार सकता था... शहर की बहुत सारी लड़कियों के लिए उसके साथ एक रात भी बिताने को मिल जाए ये सपने जैसा ही था...
लेकिन रूमी उनमे से नही थी उसने प्यार किया था वो भी सच्चे दिल से... उसका चेहरा देख कर नही उसका दिल देख कर वो दिल जिसकी हकीकत तो वो देख ही नहीं पाई...
उसने सिर्फ वो देखा जो उसे दिखाया गया था...
रूमी अंदर से इतनी ज्यादा टूट चुकी और डरी हुई होती है की वो एक पुतले की तरह खड़ी रहती है और कुछ भी नही करती...
अथर्व उसे उठाकर बिस्तर पर पटक देता है और खुद भी उसके ऊपर चढ़ जाता है...
वो उसे पागलों की तरफ किश करने लगता है लेकिन कुछ सेकण्ड्स में वो एकदम रुक जाता है और देखता है कि रूमी अपनी आखों को कसके बंद किये हुए पड़ी है...
उसे इस तरफ लाश की तरह पड़ा हुआ देख उसका गुस्सा हद पार कर जाता है... और वो उसके ऊपर से खड़ा हो जाता है...
""लगता है तुम्हे मेरी बात समझ नही आई.. अच्छी बात है.. मै अभी हॉस्पिटल फ़ोन करके तुम्हारे भाई का ट्रीटमेंट रुकवा देता हूँ.""
अपने भाई का नाम सुनते ही रूमी घबरा कर खड़ी हो जाती है.. अथर्व फ़ोन करने ही वाला होता है की वो उसका हाथ पकड़ लेती है.. "नही प्लीज भगवान् के लिए ऐसा मत करो.. तुम जैसा कहोगे मैं करूँगी प्लीज मेरे भाई का ट्रीटमेंट मत रुकवाओ.."" रूमी गिड़गिड़ाने लगती है.
रूमी को इस तरह गिड़गिड़ाता देख उसका गुस्सा कुछ हद तक श्यानत हो जाता है... वो उसे पास आता है और बोलता है..
""मुझे लाषों के साथ सेक्स करने का कोई शोक नही है और ये बात तुम हमेशा याद रखना... मैं तुम्हारा मालिक हूं और एक अच्छे स्लेव को आना चाहिए की अपने मालिक को कैसे खुश करते है... ""
""I am sorry... तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ बताओ मुझे क्या करना है..." रूमी एक हारी हुई आवाज़ में बोलती है.
"Good.. Very good.. Then make a Move. ""
रूमी समझ जाती है और वो आगे बढ़कर अथर्व के होठों पर किस करने लगती है... अथर्व उसपर किसी भूखे दरिंदे की तरह टूट पड़ता है.
रूमी अभी वर्जिन थी वो शादी से पहले से सब नहीं करना चाहती थी लेकिन देखो उसकी किस्मत... आज उसे क्या करना पड़ रहा है.
उस इंसान का छूना आज इसे बेइंतहा दर्द दे रहा है जिसकी वो कभी हो जाना चाहती थी.. अथर्व का ये रूप उसके लिए बोहोत ही भयानक था ऐसा लग रहा था जैसे ये अथर्व नही कोई और ही है..
जिन आँखों में उसने हमेशा अपने लिए प्यार और केयर देखि थी आज उन आँखों में गुस्सा था, नफरत थी, हवस थी..
अथर्व अपनी दरिंदगी को कायम रखे हुए था... ये जानते हुए भी कि रूमी अभी वर्जिन है उसने कोई दया नहीं दिखाई...
रूमी के दर्द की कोई सीमा ही नही थी वो लगातार चीखे जा रही थी लेकिन अथर्व ने तो जैसे कानों में रूई डाल रखी थी...
अथर्व अपनी स्पीड को स्लो नहीं करता है बल्कि उससे भी ज्यादा तेज़ कर देता है, वो रूमी की तरफ देखता है
रूमी की आँखे आँसुओं से भरी थी.. "दर्द हो रहा है मेरी जान.??? बोहोत दर्द हो रहा है न... अब इस दर्द की आदत डाल लो क्युकी ये दर्द ही तुम्हारी तकदीर है... मैं तुम्हे इतना दर्द दूंगा जिसकी कोई हद नही होगी...
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो अथर्व... आखिर क्यों हम तो एक दूसरे से प्यार करते थे ना फिर क्यों मुझे इतनी तकलीफ दे रहे हो... "" ये जानते हुए भी कि जवाब क्या होगा रूमी अपने आप को पूछने से रोक नही पाई..
""प्यार और तुमसे... सवाल ही नहीं उठता... तुम तो सिर्फ मेरी जरूरतों को पूरा करने का जरिया हो मेरी जान... मेरे टाइम पास का सामान... "" रूमी को बहुत तकलीफ हो रही थी और अथर्व की आँखे भी गुस्से से लाल हो गयी थी।
""इसका मतलब हमारे बीच जो भी हुआ वो प्यार नहीं था... तुम सिर्फ मुझे इस्तेमाल करना चाहते थे... क्या कभी भी तुमने प्यार नही किया... क्यों किया तुमने ऐसा, क्यों तोड़ा मेरा दिल..."
रूमी के इतने बेवकूफी भरे सवाल पर अथर्व हँसता है, उसकी हंसी शैतानी थी बहुत शैतानी.. ""मेरी माँ की दुर्दशा का जिम्मेदार है... तुम्हारा बाप, मेरे बाप की आत्महत्या के और मेरे छोटे भाई की मौत का जिम्मेदार है... तुम्हारा बाप... बोहोत गुरूर है ना उसे अपनी इज्जत पर, अपनी बेटी पर.. उसकी इज्जत को मेने अगर अपने पैरों तले न रोंदा तो मेरा नाम भी अथर्व वशिष्ठ नहीं...
अथर्व की आवाज में उसके action मे उसका गुस्सा साफ दिख रहा था।
""तुम्हे जरूर कोई गलत फहमी हुई है अथर्व ऐसा नही हो सकता...
""Huh... ऐसा नहीं हो सकता !!! जिस प्रॉपर्टी पर वो बूढा कुंडली मार के बैठा था ना वो मेरे बाप की थी... मेरे बाप को सेक्स स्कैंडल के झूठे इल्जाम में फसाकर उनपर रेप केस तक लगवाया, तुम्हारे बाप ने... सारी प्रॉपर्टी माँ के नाम पर थी मेरे पापा के बेगुनाही के सबूत वो देगा ये बोलकर मेरी माँ से सारी प्रॉपर्टी अपने नाम पर कारवाई, तुम्हारे बाप ने...
मेरे छोटे भाई को और मुझे किडनैप करवाया और फिर हमे चलती हुई गाड़ी से फिकवा दिया जिस वजह से मेरा छोटा भाई मर गया.. ये सब तुम्हारे बाप ने करवाया सिर्फ तुम्हारे बाप ने... उसने मुझसे मेरा परिवार और मेरा सारा बचपन छीन लिया...
वो बूढ़ा मेरा गुनेहगार है मैं उसका बदला तुमसे लूंगा और हर रोज लूंगा... तुम्हारा हर दिन नरक के जेसा बदत्तर होगा...
ये सब सुनकर रूमी को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था उसके पापा ने अपना सारा बिज़नेस उसके नाम पर चला रखा था वो सारा बिज़नेस उसके पापा का नही बल्कि अथर्व के पापा का था... आखिर क्यों किया होगा उसके पापा में ऐसा...
अथर्व पूरी रात रूमी को सेक्सुअली हैरेस करता रहा... जैसे सेक्स नही बलत्कार हो रूमी बस दर्द से चीखती चिल्लाती रही... फाइनली कई घंटो के बाद अथर्व के अंदर का जानवर श्यानत हुआ और वो सो गया लेकिन रूमी की आँखों के आस पास नींद का नामोनिशान भी नहीं था...
दर्द में पड़ी हुई सारी रात वो अथर्व की बताओ को सोचती रही और आखिरकार उसकी आखों भी भरी होने लगी... किसी ने ठीक ही कहा है रोने के बाद नींद सुकून भरी आती है और फाइनली उसकी भी आँख लग ही गयी..
Be to continue
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अवस्थी मेंशन में...
मिस्टर राहुल अवस्थी, मुँह से सीटी बजाते हुए, काले चश्मे पहने, हाथ में कार की चाबी घुमाते हुए, फटाफटा रफ़्तार से सीढ़ियों से उतरते हुए आए। उनका बंगला भी कुछ कम नहीं था, बिलकुल अथर्व के बंगले जैसा, राजमहल था। जहाँ घर के मेंबर्स से ज़्यादा तो नौकर थे।
उन्होंने ब्लू जीन्स, ब्लैक शर्ट और ऊपर से लेदर का जैकेट पहना हुआ था। अथर्व के बाद एक ये इंसान था जिसके चार्म का जादू लगभग शहर की हर लड़की पर चलता था। राहुल दरवाजे की तरफ जा रहे थे, तभी पीछे से एक आवाज़ आई, जिसे सुनते ही राहुल के कदम रुक गए।
"फिर निकल लिया... शहंशाह की तरह रात को सड़कों और क्लबों के धक्के खाने... एक मिनट घर में पैर नहीं टिकते तेरे..."
राहुल पलटे और अपने बालों में हाथ फेरते हुए बोले, "मॉम आप जानती हैं ना, कोई शुभ काम के लिए जा रहा हो तो उसे पीछे से रोकते नहीं हैं।"
"अच्छा, बताना जरा कौन-सा शुभ काम करने जा रहे हो..." पुष्पा अवस्थी राहुल के सामने आकर खड़ी हो गईं। उनके हाथ उनके सीने पर क्रॉस थे।
"मॉम... आप तो जानती हैं आपका बेटा कितनी लड़कियों के दिलों की धड़कन है... मैं अगर नहीं गया और मुझे बिना देखे एकाध की धड़कन बंद हो गई तो..." राहुल अपने आप पर प्राउड करते हुए और स्टाइल मारते हुए बोले।
पुष्पा राहुल का कान पकड़कर बोलीं, "अच्छा, बहुत स्टाइल मार रहा है, वो भी अपनी माँ के सामने... भूल गया कि नाक बहती थी तेरी, बिना कपड़ों के नंगा घूमता था तू बचपन में मेरे सामने, आज बड़ा हो गया तो हैंडसम ढूँढ हो गया है।"
"आआह मॉम... दर्द हो रहा है... छोड़िए..." कान छुड़वाने के बाद राहुल बोला।
"मॉम थोड़ा धीरे बोलो, हवाओं के भी कान होते हैं... अगर शहर की लड़कियों ने सुन लिया तो क्या इज़्ज़त रहेगी मेरी..."
"अब चल और खाना खा, खाना खाए बिना कहीं नहीं जाना है... अब चल..." पुष्पा राहुल की कोहनी खींचते हुए उसे खाने के टेबल की तरफ ले गईं। बेचारा राहुल भी बेचारा सा मुँह बनाकर पीछे-पीछे चल पड़ा।
हरीश अवस्थी पहले ही बेचारा सा बनकर बैठा हुआ था। राहुल भी आकर साइड की चेयर पर बैठ गया।
"Heyy dad... Good evening..."
"Good evening... Good evening... आखिर आज मेरा शहंशाह पकड़ा ही गया... हाहाहाहा..." हरीश अवस्थी हँसते हुए बोले।
"Come on dad... अब आप शुरू मत हो जाओ।" राहुल आँखें रोल करते हुए बोला।
पुष्पा राहुल और हरीश को खाना परोसने लगीं। आज टिंडे और पालक की सब्जी बनाई थी, जिसे देखकर हरीश और राहुल मुँह बना लेते हैं।
"टिंडे!!... फिर से...!!" दोनों साथ में बोले।
"मॉम... आपको टिंडों से इतना प्यार क्यों है... हमारे पास इतना पैसा है हम रोज़ छप्पन भोग बनवा सकते हैं... फिर हर रोज़ ये सब घास-फूस क्यों..." राहुल रुँडा सा मुँह बनाकर बोला।
"और नहीं तो क्या, ये रोज़ टिंडे, करेले, लौकी खाकर मेरे तो मुँह का टेस्ट ही चला गया है।" हरीश भी बोला।
"चुपचाप खाओ दोनों... आवाज़ किए बिना... हर रोज़ बाहर का इतना अटंग-बटंग खाकर तबियत खराब हुई, तो मैं नहीं जागने वाली रात-रात भर देखभाल के लिए..." पुष्पा दोनों को आँख दिखाकर बोलीं।
"डैड... आपको पूरी दुनिया में मॉम के अलावा कोई और लड़की नहीं मिली, शादी करने के लिए... आपकी बीवी एक दिन टिंडे-करेले खिला-खिलाकर मार डालेगी हमें।" राहुल हरीश की तरफ झुककर फुसफुसाकर बोला।
"अरे मैं क्या करूँ... मुझसे तो किसी ने पूछा भी नहीं... तेरा दादा ही गया था इसे देखने... मैंने तो सुहागरात में जाकर इसका चेहरा देखा था।"
"क्या बड़बड़ा रहे हो दोनों..." पुष्पा भौंहें चढ़ाकर बोलीं।
"न... नहीं... कु... कुछ नहीं बस... टिंडों की तारीफ कर रहे थे... क्या गज़ब बनाए हैं..." हरीश थोड़ा घबराकर बोला।
ओफ़्कौर्से, पुष्पा घर की लेडी डॉन थीं, उनके सामने भला किसकी जुबान खुल सकती है। दोनों बेचारे किस्मत के मारे, चुपचाप डिनर करने लगे।
पुष्पा भी बैठकर खाना खाने लगीं।
"राहुल... अथर्व आजकल कहाँ है, घर भी नहीं आया कई दिन से... वो ठीक तो है ना..." पुष्पा अपनी चिंता जताते हुए बोलीं।
बचपन से ही उन्होंने अथर्व और राहुल को एक जैसा प्यार दिया है, तो दोनों ही उनके लिए एक समान हैं।
"हाँ... तुम्हारी माँ ठीक कह रही है... अथर्व कई दिन से घर नहीं आया, बस कभी-कभार फ़ोन आ जाता है हाल-चाल पूछने को..." हरीश भी खाते-खाते बोला।
"डैड उसने अभी-अभी टेकओवर किया है... आप तो जानते ही हैं कि उसे कितना ज़्यादा काम है... मैं भी ज़्यादा टाइम उसी की हेल्प में बिताता हूँ... एक बार चीज़ें मैनेज हो जाएँ तो सब पहले जैसा हो जाएगा..." राहुल जवाब दिया खाना खाते-खाते।
"हाँ बिलकुल, जब तक सब सेट नहीं हो जाता तुम उसकी ही हेल्प करो, यहाँ मैं सब संभाल लूँगा।" हरीश बोला।
"वो तो ठीक है... लेकिन अथर्व ने मना कर दिया मेरी हेल्प लेने से, वो तो मैंने जबरदस्ती की तब जाकर माना है वो भी बस कुछ वक़्त के लिए... वो बोलता है कि वो खुद संभाल लेगा, मुझे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है... लेकिन मैं चाहता हूँ कि मैं उसकी मदद करूँ।" राहुल खाना खाते-खाते बोला।
"हम्म्म्म... मेरा बेटा अथर्व बहुत मेहनती है... फाइनली उसे जो चाहिए था उसे मिल ही गया... आज शिवराज भाईसाहब की आत्मा को ज़रूर शांति मिली होगी... आखिर कितना कुछ सहा है बेचारे ने छोटी सी उम्र से ही..." पुष्पा थोड़ा उदास होकर बोलीं। हरीश और राहुल भी एग्री करते हैं।
"अथर्व बहुत टैलेंटेड लड़का है... मुझे याद है किस तरह जब हमारी कंपनी डूबने वाली थी तब उसने अपनी दिमाग और इंटेलिजेंस से हमारी कंपनी को डूबने से बचाया था और राहुल ने और उसने मिलकर हमारी कंपनी को टॉप पर पहुँचाया... आज सिर्फ़ उन दोनों की वजह से हम शहर के टॉप रईसों में एक हैं..."
पुष्पा हरीश की बातों पर सहमति जताती हैं और राहुल के कंधे को थपथपाकर बोलीं, "मेरे दोनों बच्चे हीरे हैं हीरे, बस अब एक ही ख्वाहिश है कि इन्हें अच्छी-अच्छी लड़कियाँ मिल जाएँ और ये दोनों शादी करके मुझे जल्दी से ढेर सारे पोते-पोतियाँ दे दें।"
अपनी माँ की ये बात सुनकर राहुल इरीटेटिंग टोन में बोला, "क्या मॉम आप भी जब देखो शादी-शादी... मुझे नहीं करनी कोई शादी।"
पुष्पा कुछ बोलने वाली ही थीं कि हरीश उन्हें चुप रहने का इशारा करता है और वो चुप हो जाती हैं।
राहुल खाना खत्म करके वहाँ से जाने लगा। "मैं जा रहा हूँ... माँ, डैड मुझे आने में देर हो जाएगी तो मेरा वेट मत करना, बाय बाय..." ये बोलकर राहुल घर से बाहर चला गया।
और कार में बैठकर स्टार्ट करता है। हर बार शादी का नाम सुनते ही उसके पास्ट की कुछ पेनफुल मोमेंट्स उसकी आँखों के सामने फ्लैश होने लगती हैं। वो गाड़ी के स्टेरिंग व्हील को कसकर पकड़ता है। उसके चेहरे पर दर्द और गुस्से के भाव थे। सबकॉन्शियसली उसकी आँख से एक आँसू निकल जाता है जिसे पोंछे वो गाड़ी लेके चला जाता है। एक और स्लीपलेस नाईट...
राहुल बार में बैठा हुआ ड्रिंक कर रहा था। बार में बहुत जोर का म्यूजिक बज रहा था, जिस पर गाना चल रहा था।
सब लोग शराब के नशे में झूमते हुए डांस कर रहे थे। इन सब में बहुत सारी हॉट, सेक्सी, ब्यूटीफुल लड़कियों की नज़र राहुल पर पड़ती थी।
बहुत सारी लड़कियाँ राहुल के पास आती थीं, फ़्लर्ट करती थीं, डांस के लिए पूछती थीं, और अपना लक ट्राई करती थीं कि उसकी नज़र उन पर पड़े; ऐसे हैंडसम हंक के साथ एक रात भी बिताने को मिल जाए तो लड़कियाँ उसे अपनी खुशकिस्मती मान लेती थीं। दुनिया जानती थी कि Rahul is a famous playboy of the city.
कुछ देर वहाँ बैठे रहने के बाद, राहुल वहाँ से जाने के लिए निकला, कि तभी एक ब्यूटीफुल लेडी, जिसकी भूरी आँखें, लाल होंठ, 5’6” हाइट, परफेक्ट फिगर, कंधों तक के शार्ट हेयर थे, टकरा गई।
"Ooh sorry... I am..."
राहुल बोलते-बोलते रुक गया जब उसने उस लड़की का चेहरा देखा। अनेक तरह के इमोशंस उसकी आँखों में दिखे; फिर वो एक इमोशन में बदल गए, और वो था गुस्सा।
वो लड़की एक बड़ी सी स्माइल के साथ राहुल को हग करती है।
"राहुल... ओ माय गॉड... कैसे हो तुम..."
राहुल इरीटेट होकर उसके पीछे झटक गया।
"दूर हटो मुझसे... and don't you dare to touch me..."
और राहुल वहाँ से जाने लगा, तभी आशिमा उसका हाथ पकड़कर बोली।
"राहुल अभी तक नाराज़ हो मुझसे? मैं कितनी बार तुमसे माफी मांग चुकी हूँ, अब तो माफ़ कर दो। मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे..."
"ओह शट अप आशिमा... कुछ तो शर्म करो, इतना कुछ करने के बाद भी तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम मेरे सामने आ सको? वो काम करो जिसके लिए यहाँ आई हो, जाओ जाके कोई नया बकरा ढूँढो..." राहुल गुस्से में बोला।
ये जो लड़की सामने खड़ी थी, वो कभी राहुल की गर्लफ्रेंड हुआ करती थी। राहुल हद से भी ज़्यादा प्यार करता था उससे; दोनों शादी तक करने वाले थे, 4 साल का अच्छा-खासा रिलेशनशिप था इनका। फिर एक दिन उसने आशिमा को अपने ही किसी दोस्त के साथ सोते हुए पकड़ लिया।
उस दिन राहुल का दिल ऐसा टूटा कि उसका प्यार से भरोसा ही उठ गया। आशिमा ने उसे बहुत सफाइयाँ देने की कोशिश की, कि उसने जो किया, नशे की हालत में किया, उससे बहुत बड़ी गलती हो गई।
वो बार-बार माफ़ी मांगती रही, लेकिन राहुल ने इस दिन के बाद कभी उसकी तरफ़ पलटकर भी नहीं देखा। वो हमेशा उससे मिलने की कोशिश करती, लेकिन राहुल उसे अवॉयड करता जाता।
"ऐसा क्यों बोल रहे हो राहुल? प्लीज मुझे माफ़ कर दो। तुम्हारे जाने के बाद मुझे रियलाइज हुआ कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती..." आशिमा आँखों में आँसू भरकर बोली।
"तो मर जाओ..." राहुल अपने हाथों को छाती पर क्रॉस करके कोल्डली उसकी तरफ़ देखकर स्ट्रेट आवाज़ में बोला। आशिमा हैरानी से उसकी तरफ़ देखती है।
"क्या हुआ, मारो अब? वैसे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तुम जीओ या मरो। और वैसे भी तुम क्या ही किसी के लिए मरोगी? तुम जैसी लड़कियाँ बस पैसों पर मरती हैं..."
आशिमा की आँखों से आँसू टपकने लगे।
"ऐसा मत बोलो राहुल, मैं सच में तुमसे प्यार करती हूँ..."
राहुल को उसकी बात पर हँसी आ गई। "तुम जानती हो, तुम्हें तुम्हारी एक्टिंग के लिए तो अवार्ड मिलना चाहिए। कितनी रियल एक्टिंग करती हो..."
राहुल की बातों से आशिमा का दिल टूटकर बिखर गया।
"मैं एक्टिंग नहीं कर रही हूँ। मेरा भरोसा करो। मैं मानती हूँ मुझसे गलती हुई है। मैं ये भी जानती हूँ कि तुम नाराज़ हो मुझसे, पर राहुल..."
राहुल आशिमा को बीच में ही टोककर बोला।
"ना...ना...ना... तुम बोलने में गलती कर रही हो जान। मैं नाराज़ नहीं हूँ तुमसे।" राहुल उसके कान के करीब आकर गुस्से भरी कोल्ड आवाज़ में बोला। "मैं नफ़रत करता हूँ तुमसे..." उसकी बात सुन आशिमा सन्न रह गई। उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे।
"मुझे घिन आती है तुमसे... मुझे घिन आती है अपने आप से, जो मैंने तुमसे प्यार किया। दोबारा कभी मेरी आँखों के सामने मत आना... वर्ना मैं खुद भी नहीं जानता कि मैं क्या कर बैठूँगा..."
ये बोलकर राहुल गुस्से में वहाँ से चला गया। आशिमा अपनी आँखों में आँसू भर के वहीं खड़ी रही और खुद से वादा किया।
"मैं एक दिन फिर से तुम्हें अपना बना लूँगी राहुल... चाहे मुझे कितनी भी ज़िल्लत सहनी पड़े... मैं तुम्हें दोबारा पाकर ही रहूँगी..."
राहुल क्लब के बाहर निकला और अपना माथा पकड़ लिया। उसके दिल की धड़कनें काफी तेज़ थीं। वो किसी तरह अपने आप को शांत करता है।
इस लड़की की प्रेजेंस आज भी उसे बहुत इफ़ेक्ट करती है; आखिर सच्चा प्यार तो उसका था।
वो अपनी पॉकेट से सिगरेट निकाली और मुँह में रखकर लाइटर से उसे जलाया, और एक गहरा कश लेकर धुआँ बाहर छोड़ा। कुछ देर वहीं आँखें बंद करके खड़ा रहा और सिगरेट फूँकता रहा।
सिगरेट खत्म होने के बाद वो अपनी ब्लैक मर्सिडीज में बैठा और वहाँ से निकल गया।
कुछ दूर चलने के बाद वो देखता है कि कुछ बदमाश लड़के घेरा बनाकर खड़े हैं और उनके बीच एक लड़की फँसी हुई है।
ऐसा लग रहा था उन लड़कों ने उस लड़की को घेर रखा था और उसे छेड़ रहे थे। राहुल को ये देखकर बहुत गुस्सा आया और वो गाड़ी रोक ली।
वो गाड़ी से उतरा और उनकी तरफ़ गया।
सलवार-कमीज़ पहने हुए और गले में दुपट्टा लिए हुए एक मासूम सी लगभग 23-24 साल की खूबसूरत लड़की, जिसके लंबे घने काले बाल, काली आँखें, लाल होंठ, 5’5” हाइट, गोर-चीट्टे रंग थे, डरी-सहमी सी उन सभी भूखे भेड़ियों में खड़ी अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही थी।
उनमें से एक गुंडा बोला, "अरे अकेले कहाँ जा रही हो मेरी जान, हमें भी ले चलो..."
दूसरा बोला, "क्यों अपने नाज़ुक से पैरों को क्यों तकलीफ देती हो, चलो हम सब आपको अपनी गाड़ी में छोड़ दें..."
लड़की घबराई हुई आवाज़ में बोली, "देखो मुझे जाने दो... वरना..."
"वरना क्या डार्लिंग, मारोगी?? ये लो मारो..." एक गुंडा अपना गाल आगे करके बोला।
तभी उस गुंडे के गाल पर एक जोर का घूँसा आया जिससे उसका जबड़ा हिल गया।
"अब आया मज़ा..." राहुल की तरफ़ सब हैरानी से देख रहे थे, वो लड़की भी।
एक गुंडा उसे मारने आगे बढ़ा तो राहुल उसे भी एक घूँसा पेल दिया जिससे वो जमीन पर गिर गया।
फिर सभी गुंडे एक साथ उस पर अटैक करने आए। वो लड़की डर के मारे राहुल के पीछे छुप गई।
To be continued
वो गुंडे जैसे ही उस पर अटैक करने आए, राहुल ने अपनी कमर पर हाथ रख लिया जिससे उसकी जैकेट थोड़ी पीछे हो गई।
राहुल की बेल्ट में टंगी गन देखकर सभी गुंडे वहीं रुक गए। राहुल उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया। "आओ क्या हुआ?"
सभी गुंडे पीछे हट गए और वहाँ से डर के भाग गए।
राहुल अक्सर एक लीगल गन अपने साथ रखता था। आखिर, फ़ेमस बिज़नेसमैन जो है, सेक्युरिटी तो चाहिए।
"वो लोग चले गए हैं। अब तुम बाहर आ सकती हो।" राहुल ने अपने पीछे छुपी लड़की से कहा। और वो लड़की उसके पीछे से सामने आ गई।
उस लड़की को देखकर एक पल के लिए राहुल की नज़र उस पर ठहर गई। उसके दिल में अजीब सी हलचल हुई।
लम्बे घने बाल, सलवार सूट, गले में दुपट्टा, माथे पर बिंदिया, आँखों में काजल, हल्की गुलाबी लिपस्टिक, चेहरे पर मासूमियत... सादगी की चलती फिरती मूरत।
"मेरी मदद करने के लिए थैंक यू..." उस लड़की की आवाज़ सुनकर राहुल तुरंत होश में आया।
राहुल उस लड़की की तरफ देखकर मुस्कुराया और बोला, "जी कोई बात नहीं। मैंने वही किया जो मुझे करना चाहिए था।"
"अगर आप टाइम पर नहीं आते तो पता नहीं ये लोग..." वो लड़की दुखी और घबराई सी आवाज़ में बोली।
"आप चिंता मत कीजिये। वो लोग चले गए हैं, अब आप बिल्कुल सेफ हैं। वैसे आप इस वक़्त यहाँ अकेली क्या कर रही हैं? आप जानती हैं ना ये जगह सेफ नहीं है।"
"जी वो एक्चुअली आज मुझे काम से थोड़ा लेट हो गया था और कोई टैक्सी भी नहीं मिल रही थी तो..." लड़की हिचकिचाती हुई बोली।
"ओह अच्छा, चलो मैं अपनी गाड़ी में आपको छोड़ देता हूँ।" राहुल ये बोल कर मुड़ने ही वाला था, तभी वो लड़की रोक ली।
"नहीं, आप चिंता मत कीजिये। मैं चली जाऊँगी। ज़्यादा दूर नहीं है यहाँ से मेरा घर।"
"देखिये, वो गुंडे दोबारा आ सकते हैं। आपका अकेले जाना खतरनाक हो सकता है। आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं। मैं आपको सेफली घर पहुँचा दूँगा।" राहुल ज़िद करता है।
लड़की कुछ देर सोचती है फिर बोलती है, "ठीक है।" लड़की के मुँह से ये सुनकर पता नहीं क्यों राहुल का दिल नाचने लगा।
वो फटाफट गाड़ी का दरवाज़ा खोला। लड़की अंदर पैसेंजर सीट पर बैठ गई। राहुल भी बैठ गया और दोनों चल दिए।
रास्ते में दोनों बिलकुल चुपचाप थे। राहुल पहले बोला, "तुम अक्सर इसी रास्ते से आया करती हो?"
वो लड़की राहुल की तरफ देखकर बोली, "जी वो एक्चुअली मैं दूसरे रास्ते से घर जाती हूँ। आज मजबूरी थी। मैं काम पर लेट हो गई थी और मुझे घर जल्द से जल्द पहुँचना था तो मैंने ये छोटा रास्ता ले लिया। ऊपर से कोई रिक्शा या टैक्सी भी नहीं मिल रही थी तो..."
"वैसे कौन-कौन है आपके घर में?" राहुल को उसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानने की इच्छा होने लगी तो वो धीरे-धीरे काफी कुछ पूछने लगा।
"जी मैं और मेरा छोटा भाई।" लड़की ने मुस्कुराकर जवाब दिया।
"और...?" राहुल हैरानी से पूछने लगा। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख राहुल की धड़कनें बढ़ गईं। उसकी स्माइल बेहद खूबसूरत थी।
"और कोई नहीं, बस हम दोनों।" लड़की के चेहरे की स्माइल गायब हो गई यह जवाब देते हुए।
"और आपके माँ, पापा, वो नहीं रहते आपके साथ...?" राहुल हैरानी से पूछता है।
"नहीं... मैं अनाथ हूँ। मेरा और मेरे छोटे भाई का एक दूसरे के अलावा कोई नहीं है इस दुनिया में।" ये बोलकर लड़की की आँखें नम हो गईं।
उस लड़की की बात सुनकर राहुल सन्न रह गया। उसे उदास देख उसका दिल दर्द करने लगा।
"आई एम सॉरी। तुम्हें दुखी करने का कोई इरादा नहीं था मेरा।" राहुल भी दुखी हो गया।
"इट्स ओके..." लड़की एक उदासी भरी स्माइल देकर कहती है।
उस लड़की का चेहरा उतर सा गया। उसे देख राहुल को बहुत गिल्ट हुआ कि उसने उसका मूड खराब कर दिया। तो वो उसका मूड ठीक करने के लिए कार का एफएम रेडियो ऑन कर देता है। एक पुरानी मूवी का गाना बजने लगा।
"अरे यार ये कैसे लग गया..." ये बोलकर राहुल उस गाने को बदलने ही वाला था कि...
"बजने दीजिए ना यही। मुझे ये बहुत पसंद है..." वो लड़की अचानक राहुल का हाथ पकड़कर उसे चेंज करने से रोकते हुए बोली। उसके हाथ का स्पर्श करते ही जैसे दोनों में बिजली का करंट सा दौड़ने लगा। वो लड़की तुरंत अपना हाथ हटाती है और एम्बेर्रेसिंग फील करती है।
"आई... आई एम सॉरी..." वो लड़की नीचे देखते हुए अपने बालों को कान के पीछे करते हुए बोली।
राहुल उसकी तरफ देखकर मुस्कुराता हुआ बोला,
"लगता है आप पुरानी गानों की शौकीन हैं।"
लड़की हल्का सा शरमाते हुए हाँ में सर हिलाती है... और गाना बजने लगता है, दोनों गाने को एन्जॉय करने लगते हैं...
O mere, dil ke chain
O mere, dil ke chain
Chain aae mere dil ko duaa kijiye
O mere, dil ke chain
Chain aae mere dil ko duaa kijiye....
Apanaa hi saayaa dekh ke tum jaane ja-
haa sharamaa gae
Abhi to ye pehali manzil hal, tum to abhi
se ghabaraa gae
Meraa kyaa hogaa, socho to Jaraa Haay alse naa aanhe bharaa kijiye
O mere, dil ke chain
Chain aae mere dil ko duaa kijiye
Aapakaa aramaan aapakaa naam, meraa
taraanaa aur nahi
In jhukati palako ke sivaa, dil kaa thika- anaa aur nahi
Jachataa hi nahi aankho me koi
Dil tumako hi chaahe to kyaa kijiye
O mere, dil ke chain
Chain aae mere dil ko duaa kijiye
Yun to akelaa hi aqasar, gir ke sambhal sa- kataa hun mai
Tum jo pakad lo haath meraa, duniyaa ba- dal sakataa hun mai
Maagaa hai tumhe duniyaa ke liye
Ab kud hi sanam faisalaa kijiye
O mere, dil ke chain
Chain aae mere dil ko duaa kijiye
O mere, dil ke chain
O mere
"गाड़ी रोकिये प्लीज़..." लड़की एकदम से बोल देती है।
"क्या हुआ...?" राहुल ब्रेक मारकर कहता है।
"वो यहाँ से अब मेरा घर एक गली में है। गाड़ी वहाँ जा नहीं पाएगी। मुझे पैदल जाना होगा। लिफ्ट के लिए थैंक्यू।"
लड़की राहुल को एक प्यारी सी स्माइल देती है और गाड़ी से उतर जाती है। उसे बाय बोलकर चली जाती है। राहुल उसे तब तक देखता रहता है जब तक वो आँखों के सामने से ओझल नहीं होती। उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल थी।
जैसे ही वो चली गई, अचानक उसकी स्माइल गायब हो गई और वहाँ... ओह शिट यार......वाले एक्सप्रेशन आ गए जब उसे ये याद आया कि उसने उसका नाम तो पूछा ही नहीं। पर अब क्या फायदा? अब तो वो गायब हो गई।
वो उदास हो जाता है और रुँझा सा मुँह बनाकर गाड़ी स्टार्ट करके मोड़ता है, तभी उसकी नज़र साइड वाली सीट पर पड़ती है जिस पर कुछ देर पहले वो लड़की बैठी थी। उस सीट पर एक झुमका गिरा हुआ था जो शायद उसी लड़की का था और जल्दबाजी में गिर गया था। राहुल मुस्कुराता है और उस झुमके को उठा लेता है।
"आई विश के हम दोबारा ज़रूर मिलें मिस झुमके वाली..." राहुल उस झुमके को किस करता है और अपनी पेंट की जेब में डाल लेता है।
वो गाड़ी मोड़ता है और वहाँ से चला जाता है।
एक छोटा सा, लगभग 7 साल का बच्चा कब से दरवाजे पर खड़ा किसी का इंतज़ार कर रहा था। उसकी नज़रें बार-बार एक रास्ते पर टिकी हुई थीं। वह किसी के इंतज़ार में था, शायद…
तभी एक अधेड़ उम्र की औरत पीछे से आकर बोली, "आर्यन… बेटा, खाना खा लो। रिधिमा आ जाएगी।"
"नहीं काकी… आप जानती हो मैं दीदी के बिना खाना नहीं खाता। इतनी लेट तो वो कभी नहीं होती। पता नहीं आज कहाँ रह गई।" आर्यन उदास सा मुँह बनाकर बोला। उसे अपनी दीदी को देखे बिना चैन ही नहीं आता था। वह हमेशा उसे लेकर चिंता में रहता था।
"भगवान करे वो सही सलामत हो… उसके साथ कुछ…" प्रभा आंटी अपनी चिंता जताते हुए बोली।
"कुछ नहीं होगा उन्हें। वो बिलकुल ठीक होगी। अभी बस आती ही होगी।" आर्यन बीच में ही काटकर बोला। उसे रिद्धिमा की बहुत टेंशन होने लगी थी अब। वह भगवान से दुआ करने लगा कि उसकी दीदी सही सलामत घर आ जाए।
तभी उसका चेहरा खुशी से झूम उठा जब उसने सामने अपनी दीदी रिद्धिमा को आते हुए देखा। "दीदी… आ गई…" आर्यन दौड़कर गया और रिद्धिमा को गले से लगा लिया। रिद्धिमा को अपनी आँखों के सामने देखकर अब जाकर आर्यन को सुकून आया।
रिद्धिमा भी उसे कसकर गले से लगा ली। "तू सोया नहीं अभी तक?" रिद्धिमा पूछती है।
"भला ऐसा कभी हो सकता है… कि तेरे घर आए बिना ये खा ले या सो जाए?" प्रभा आंटी आगे आकर बोली।
"क्या!! इसने अभी तक खाना भी नहीं खाया?" रिद्धिमा हैरानी से पूछती है। आर्यन अपने होठों को चबाने लगा।
"नहीं। कब से दरवाजे पर बैठे सिर्फ़ तेरी ही राह देख रहा था… अच्छा खाना रखा हुआ है अंदर, खा लेना। अब मैं चलती हूँ।" ये बोलकर प्रभा आंटी अपने घर को चली गई।
प्रभा रिद्धिमा की पड़ोस में रहती थी। घर में रिद्धिमा और उसका भाई आर्यन ही रहते थे। सुबह रिद्धिमा काम पर जाती और आर्यन स्कूल। फिर रिद्धिमा शाम को लौटती थी। तब तक प्रभा आंटी ही उसका ख्याल रखती थी। प्रभा बहुत अच्छी औरत थी।
रिद्धिमा आर्यन की कहने को तो बड़ी बहन थी, लेकिन असल में उसके लिए वही उसकी माँ थी।
एक एक्सीडेंट में उनके पेरेंट्स मारे गए थे। वे भी इसी घर में रहते थे। उनके पास अब प्रॉपर्टी के नाम पर सिर्फ़ ये घर ही था।
रिद्धिमा अपने भाई की पढ़ाई और घर का खर्चा चलाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ जॉब भी करती थी। इसीलिए अक्सर उसे घर आने में देर हो जाती थी।
किस्मत ने बेचारी के साथ बड़े जुल्म किए थे। वह बहुत खूबसूरत थी, इसीलिए कभी-कभी तो लगता था कि उसकी खूबसूरती ही उसके लिए श्राप है।
मोहल्ले का नामी दादा, यानी गुंडा, उस पर लूटा था। लेकिन रिद्धिमा उसकी तरफ़ देखती भी नहीं थी। वह बहुत ही घटिया किस्म का इंसान था।
रघु… रघु बहुत ही नीच और घटिया था। लड़कियों को छेड़ना, लोगों को मारना-पीटना तो जैसे उसका पेशा था।
रिद्धिमा उसकी नज़रों में बस चुकी थी। वह बहुत ट्राई मारता था, लेकिन रिद्धिमा उसे इग्नोर करके आगे बढ़ जाती थी।
लेकिन हर बार बेशर्मों की तरह वह चला ही आता। रिद्धिमा और आर्यन उससे बहुत दुखी थे।
"आपको आने में इतना लेट कैसे हो गया? आपको पता है मुझे आपकी कितनी चिंता हो रही थी…" आर्यन रिद्धिमा से पूछता है।
"वो मुझे आज बॉस ने बहुत सारा काम दे दिया था, तो इसीलिए। सॉरी, मेरी वजह से तुम्हें इतनी टेंशन हुई।" रिद्धिमा उन बदमाश लड़कों वाली बात तो छुपाकर बोली। वह नहीं चाहती थी कि आर्यन को कुछ भी पता चले।
दोनों अंदर आते हैं और रिद्धिमा कपड़े बदलकर, खाना गर्म करके टेबल पर लगाती है। आर्यन भी अपने हाथ-मुँह धोकर डाइनिंग टेबल के पास आता है और चेयर पर बैठ जाता है।
रिद्धिमा आर्यन की प्लेट में खाना डालती है, तभी उसकी नज़र रिद्धिमा के एक कान पर पड़ती है। वह देखता है कि रिद्धिमा के एक कान में झुमका नहीं है।
"दीदी, आपके कान का एक झुमका कहाँ गया?" आर्यन पूछता है।
आर्यन की बात सुनकर रिद्धिमा अपने कान को फटाक से हाथ लगाकर देखती है कि उसके एक कान में झुमका नहीं है, जो शायद कहीं गिर गया है।
"अरे नहीं! ये तो मेरा मनपसंद झुमका था। आखिर कहाँ खो गया…" रिद्धिमा बड़बड़ाती है।
तभी वह सोचती है कि कहीं उस लड़के की गाड़ी में तो नहीं छूट गया। राहुल के बारे में सोचते ही रिद्धिमा के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं।
राहुल के साथ पूरे सफ़र में रिद्धिमा की धड़कन बहुत तेज़ थी। पता नहीं क्यों, लेकिन रिद्धिमा को बहुत अजीब सा एहसास अपने दिल में हो रहा था।
वह गाड़ी में नज़रें चुरा-चुरा कर उसे देखती है। उसने पहली बार कोई ऐसा लड़का देखा जो उसकी इज़्ज़त बचाने के लिए लड़ा, वरना तो सब उस बेचारी पर टूट पड़ना चाहते हैं। उसे ख्यालों में खोया देख आर्यन उसे हिलाता है, जिससे वह एकदम होश में आ जाती है।
"दीदी… क्या हुआ? क्या सोच रही हो?"
"नहीं, कुछ नहीं… झुमका शायद कहीं गिर गया होगा… तू खाना खा ले…" ये बोल रिद्धिमा उसे अपने हाथों से खिलाने लग जाती है।
दोनों भाई-बहन एक-दूसरे को खाना खिलाते हैं। फिर बर्तन साफ़ करने के बाद रिद्धिमा आर्यन को बेड पर लिटा देती है और उसे ब्लैकेट से ढँककर सुला देती है। फिर वह कोने में लैंप की लाइट जलाकर किताब खोलकर बैठ जाती है।
वह फ़ोकस करने की कोशिश करती है, लेकिन आज उसका ध्यान किताबों में कहीं और ही था।
राहुल का हैंडसम चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। थोड़ी देर पढ़ने की नाकाम कोशिश करने के बाद वह फ़ाइनली बुक्स को साइड में रखकर अपने भाई के बगल में जाकर लेट जाती है।
आर्यन सो चुका था, लेकिन रिद्धिमा की आँखें नींद से बगावत कर रही थीं। उसका दिमाग बार-बार राहुल की तरफ़ जा रहा था। फिर वह अपना वह हाथ देखती है जिससे उसने राहुल के हाथ को छुआ था।
वह अपना हाथ देखती है और शर्मा जाती है। फिर थोड़ी देर अपने ख्यालों में टहलने के बाद फ़ाइनली उसे भी नींद आ जाती है।
अगली सुबह, जब रूमी सो रही थी, तभी अचानक किसी ने उसके मुँह पर जग भर के पानी मारे। इससे उसकी नींद तुरंत खुल गई। रूमी हाँफते हुए एकदम से उठ गई और देखा कि अथर्व, सिर्फ अपनी कमर पर तौलिया लपेटे हुए, उसके सामने खड़ा था। उसकी आँखें बहुत डार्क थीं और चेहरे पर एक शैतानी सी मुस्कुराहट थी।
"Good morning.... Meri jaan.... कैसी नींद आई फिर तुम्हें मेरे बिस्तर पर.... ज़्यादा सुकून से तो नहीं सोई ना?"
रूमी कुछ नहीं बोली, बस सिर झुकाए बैठी हुई थी। बिस्तर और वह पूरी तरह गीले हो चुके थे। रूमी ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। वह ब्लैंकेट से अपने नंगे शरीर को ढके हुए थी। इसे देख अथर्व बेशर्मी से बोला,
"कल जो भी हुआ उसके बाद अब भी तुम्हें मुझसे शर्म आ रही है जो तुम अपनी बदन को मुझसे छिपा रही हो..."
रूमी उसकी तरफ देखती है और हैरान है कि कोई इंसान इतना भी बेशर्म कैसे हो सकता है। अथर्व उसका ब्लैंकेट पकड़कर खींच लेता है, जिससे रूमी का beautiful, flowless, naked शरीर उसकी नज़र में आ जाता है।
रूमी अपने हाथों से अपने शरीर को कवर करने की कोशिश करती है। उसे इतना ज़्यादा हड़बड़ाया हुआ देख अथर्व को बहुत मज़ा आता है। कुछ देर तक उसे निहारने के बाद वह उसके करीब आता है और उसके ठुड्डी को उठाता है, और उसकी आँखों में देखकर बहुत कोल्ड आवाज़ में बोलता है,
"तुम अब मेरी हो, तुम्हारी हर चीज़ पर मेरा हक़ है, सिर्फ़ मेरा... और मेरी ही चीज़ को मुझसे छिपाने की ज़रूरत नहीं। आज के बाद तुम कमरे में कपड़े नहीं पहनोगी, कभी नहीं। रात को हमेशा ऐसे ही रहोगी। मेरी इतनी खूबसूरत चीज़ यूँ कपड़ों में ढकी रहे तो मेरी नज़रों को ठंडक कैसे मिलेगी?"
रूमी उसकी तरफ हैरान होकर देखती है। रूमी का खूबसूरत, भीगा हुआ बदन, उसके ठंड से काँपते हुए होंठों को देख,
अथर्व कांट्रोल से बाहर होकर फिर एक बार उस पर चढ़ जाता है। रूमी कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वह फिर एक बार इस शिकारी की गिरफ्त में आ चुकी थी।
अथर्व एक बार फिर अपनी हैवानियत का सबूत देता है। रात का दर्द अभी तक उसे अपने आगोश में लपेटे हुए था; उससे वह आज़ाद भी नहीं हुई थी कि अथर्व ने उसे और नया दर्द दिया।
थोड़ी देर बाद, रूमी तैयार होकर नीचे किचन में नाश्ता बनाने लगती है। अथर्व ने उसे आदेश दिया था कि आज के बाद उसका सारा काम वह करेगी, और अगर उसने कोई भी गलती की तो उसका अंजाम उसे रात को भुगतना पड़ेगा।
लेकिन उसकी हैवानियत देखकर लगता नहीं कि उसके लिए दिन और रात में कोई फ़र्क भी है। रूमी की ज़िंदगी बहुत मुश्किल होने वाली है। वह जल्दी-जल्दी ब्रेकफ़ास्ट बनाने लगती है क्योंकि इसके बाद उसे हॉस्पिटल भी जाना था, अपने भाई को देखने।
कल रात के बाद और आज सुबह के अर्ली मॉर्निंग के सेशन के बाद रूमी चलने की हालत में भी नहीं थी; उसे काफ़ी दर्द हो रहा था।
वह खाना टेबल पर लगाती है, तभी अथर्व वेल-ड्रेस्ड होकर आता है। ऑफिस में फ़ॉर्मल सूट हो या कैज़ुअल क्लोथ्स, या कुछ भी हो, उसकी खूबसूरती जानलेवा ही है। लड़कियाँ तो जैसे अपने दिल को हाथों में लिए उसके आस-पास भटकती रहती हैं।
लेकिन अब रूमी के लिए ये सब कोई मायने नहीं रखता। अथर्व डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने लगता है।
रूमी हिम्मत करके कुछ बोलती है,
"अ... अथर्व..."
अथर्व बिना उसकी तरफ देखे बोलता है,
"हम्म्म्म..."
"वो... मुझे हॉस्पिटल जाना है, क्या मैं जा सकती हूँ...?" रूमी हिम्मत करके बोलती है।
अथर्व का ध्यान खाने की तरफ है; वह खाते-खाते बोलता है,
"नहीं... तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगी..." उसकी आवाज़ बहुत कोल्ड थी, लेकिन उससे भी कोल्ड था उसका जवाब। कोई इंसान इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता है? रूमी की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
"प्लीज़ अथर्व, मुझे जाने दो... आज उसे होश आने वाला है, वो जागते ही मेरे बारे में पूछेगा, प्लीज़ जाने दो..." उसके गिड़गिड़ाने पर भी अथर्व का जवाब नहीं बदलता।
"मैंने कहा ना... नहीं, मतलब नहीं..."
तुम्हारे लिए उसकी शक्ल देखने से ज़्यादा ज़रूरी उसका ठीक होना है ना? तो मेरी बात ना मानने की गलती कभी मत करना...
रूमी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। उसका दिल इस वक़्त अथर्व को सिर्फ़ और सिर्फ़ गालियाँ ही दे रहा था।
वह डेस्पेरेटली अपने भाई को देखना चाहती थी, उसे गले से लगाना चाहती थी, लेकिन यह मॉन्स्टर...
अथर्व नाश्ता करके उठ जाता है और ऑफिस के लिए निकलने लगता है। रूमी वहीं खड़ी रहती है। अपने पीछे ना आता देख वह उसकी तरफ देखता है और बोलता है,
"इनविटेशन कार्ड छपवाऊँ... क्या तब आओगी तुम...?" वह बहुत गुस्से और इरिटेटिंग टोन में बोलता है।
अथर्व की आवाज़ सुनते ही रूमी का ध्यान तुरंत उसकी तरफ जाता है और वह भागकर उसके पास खड़ी हो जाती है। फिर दोनों ऑफिस के लिए निकल जाते हैं।
ऑफिस पहुँचते ही अथर्व गाड़ी से उतरता है और बिल्डिंग में एंटर करता है। रूमी उसके पीछे-पीछे चलती है, एक गार्ड की तरह, पर ऑफ़ कोर्स वह गार्ड नहीं थी। भला एक नाज़ुक सी, फूली सी, कोमल लड़की किसी हट्टे-कट्टे, साँड़ से शरीर वाले इंसान की गार्ड कैसे हो सकती है?
उनके एंटर करते ही बिल्डिंग का माहौल ठंडा पड़ जाता है। अथर्व का औरा ही कुछ ऐसा था। कोई भी उसकी एक गुस्से भरी नज़र से ही अपनी पैंट गीली कर सकता था।
पूरा स्टाफ़ अपनी कंप्यूटर या फाइल्स में घुस जाता है और काम करने लगता है। लड़कियाँ चुपके-चुपके अपने हैंडसम बॉस को ताड़ती रहती थीं।
उसकी पर्सनालिटी और औरा ने सबके दिल पर छा गया था। वह भले ही खड़ूस था, लेकिन अगर रोज़ उसकी हैंडसम शक्ल एक बार देखने को मिल जाए तो इस नर्क में भी खुशी-खुशी जीने को तैयार थीं सभी लड़कियाँ।
उनके ऑफिस में आते ही उसका पर्सनल असिस्टेंट आज का शेड्यूल लेकर उसके पास आता है और बताता है कि आज उन्हें कौन-कौन सी मीटिंग्स अटेंड करनी हैं। अथर्व पूरा शेड्यूल चेक करता है। रूमी वहाँ चुपचाप सोफ़े पर बैठ जाती है।
रूमी ने पूरे ऑफिस को गौर से देखा। यह वही ऑफिस था जो कभी उसके पापा का हुआ करता था, जहाँ वो और करिश्मा काम करती थीं, और यह केबिन उसके पापा का था।
जहाँ अथर्व एक कर्मचारी बनकर आया था और करिश्मा के अनुरोध पर पापा ने उसे नौकरी दी थी। अथर्व की व्यावसायिक कुशलता देखकर पापा बहुत खुश हुए थे। अथर्व के टैलेंट की वजह से कंपनी को अपार लाभ हुए, बहुत बड़े-बड़े डील और कॉन्ट्रैक्ट मिले।
ऐसे ही करते-करते एक दिन अथर्व ने पापा का अच्छा-खासा विश्वास जीत लिया, और मेरा दिल भी। अथर्व ने मेरे साथ भी प्यार का नाटक किया, और मैं इतनी बेवकूफ थी कि मैंने मान भी लिया। पापा को अथर्व बहुत पसंद था, वे हम दोनों की शादी करना चाहते थे।
अथर्व को पाकर मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था, हमारी शादी होने वाली थी। शादी के दिन, जब सब कोर्ट में अथर्व का इंतज़ार कर रहे थे, वो आया ही नहीं। मैं कोर्ट में उसका इंतज़ार करती रही, दुल्हन के जोड़े में, और वो यहाँ करिश्मा के साथ ऐशो-आराम में मस्त था।
पूरे दिन इंतज़ार करने के बाद, जब पापा कंपनी पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि पूरी कंपनी अब अथर्व के नाम है। अब सब कुछ अथर्व के नाम पर था, कंपनी के बाहर उसी की नेम प्लेट थी।
ये देखते ही पापा को बहुत बड़ा सदमा लगा। अथर्व ने पहले पापा का भरोसा और मेरा दिल जीता, और फिर दोनों ही तोड़ दिए। पापा के भरोसे का फ़ायदा उठाकर अथर्व ने पूरी प्रॉपर्टी धोखे से अपने नाम करवा ली।
पापा को जब पता चला, तो वो गुस्से से आग-बबूला हो गए और उन्होंने अथर्व पर हमला किया, जिससे अथर्व ने उन पर अटेम्प्ट टू मर्डर के केस में फँसा दिया।
जिस ऑफिस में वो एक दिन काम मांगने आया था, आज उसी ऑफिस का मालिक बन बैठा है।
करिश्मा और अथर्व ने मिलकर उसके पापा को बर्बाद किया। बहुत अच्छा विश्वासघात किया उस लड़की ने। जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया; जिसे कभी रूमी ने अपनी बहन माना था, अपनी हर चीज पर उसे पूरा हक़ दिया, कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया।
कंपनी का मालिक बनते ही अथर्व ने पूरे ऑफिस का लुक और स्टाफ़ दोनों बदल दिए, जैसे अतीत का नामोनिशान भी नहीं छोड़ा उसने।
"किसकी इजाजत से बैठी हो तुम? क्या मैंने तुम्हें बैठने को बोला?"
अथर्व की आवाज़ से रूमी तुरंत अपने ख्यालों से बाहर आ गई। वो अथर्व की तरफ देखती है और हड़बड़ाहट में खड़ी हो जाती है।
"सॉरी..."
उसके मुँह से बस इतना ही निकला, और वो सर झुकाए खड़ी रह गई।
अथर्व ने अपने असिस्टेंट को बाहर जाने का इशारा किया, और असिस्टेंट तुरंत वहाँ से चला गया।
अथर्व अपनी चेयर से उठकर रूमी के पास आया और उसके सामने आकर खड़ा हो गया। रूमी थोड़ी घबरा गई और एक कदम पीछे हटी। उसकी घबराहट देखकर अथर्व के होठों पर एक शैतानी मुस्कान आ गई।
अथर्व ने उसकी कमर पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया, और रूमी उसके सीने से जा लगी। अथर्व की पकड़ इतनी ज़्यादा जोर की थी कि रूमी को दर्द होने लगा।
लेकिन रूमी कुछ नहीं बोली, चुपचाप सब सह लेती है। वो अब यह जान चुकी थी कि वो इस नरक से नहीं बच सकती, उसे अब इसकी आदत डालनी ही पड़ेगी।
"कैसा लगा ऑफिस, डार्लिंग? मैंने रेनोवेट करवाया है। वो क्या है ना, मुझे मेरे ऑफिस में तुम्हारे बाप का एक नामोनिशान भी नहीं चाहिए था।"
रूमी चुपचाप खड़ी रही और उसकी बातें सुनती रही। अथर्व के दिल में उसके पापा के लिए कितनी नफ़रत थी, उसकी आँखों में साफ़ दिखती थी।
रूमी उसकी बाँहों में बेबस खड़ी थी, जैसे एक मासूम हिरनी किसी शेर के चंगुल में फँसी हो, जहाँ वो सिर्फ़ मौत का इंतज़ार ही कर सकती है, बचने की उम्मीद नहीं। रूमी भी इस वक़्त कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी, बहुत बेबस, बहुत लाचार।
अथर्व उसके होठों की तरफ़ बढ़ा, वो अचानक अपना चेहरा पीछे कर लेती है, जिसे देख अथर्व की आँखों में गुस्सा उतर आया।
अथर्व की आँखों में गुस्सा देख रूमी के रोंगटे खड़े हो गए।
मुसीबत को आता देख रूमी तुरंत बात को संभालते हुए बोली, "अ... अथर्व, ये ऑफिस है, यहाँ कोई आ जाएगा..."
अथर्व बहुत ही कोल्ड टोन में बोला, "बॉस... मुझे बॉस बुलाओ। मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड या हसबैंड नहीं हूँ जो मुझे मेरे नाम से बुला रही हो। तुम मेरी स्लेव हो, और स्लेव्स बॉस को नाम से नहीं बुलाते। और ये मेरा ऑफिस है, यहाँ इंसान तो क्या, एक परिंदा भी मेरी मर्ज़ी के बिना पर नहीं मार सकता।"
इतना बोलकर अथर्व रूमी के होठों पर टूट पड़ा। किस जेंटल नहीं था, बहुत ज़्यादा हार्श था, बहुत ज़्यादा। पर रूमी सिवाय रेस्पॉन्स करने के और क्या कर सकती थी? अथर्व ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ को बहुत ज़्यादा तेज कर लिया और एक मुट्ठी में उसके बालों को भी कस लिया।
रूमी को दर्द तो हो रहा था, लेकिन वो प्रोटेस्ट नहीं कर सकती थी। यही अब उसकी किस्मत है, उसे इसे झेलना ही होगा, खुद के लिए ना सही, अपने छोटे भाई के लिए। रूमी अपनी आँखें कसके बंद कर लेती है और उसकी इंटेंसिटी को मैच करने की कोशिश करती है।
अथर्व बहुत रफ़ हो रहा था, रूमी की तो जैसे साँसें ही रुकने लगी थीं। अथर्व जैसे किस नहीं कर रहा था, बल्कि उसे निगल रहा था। रूमी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह वो आज अथर्व से बच जाए।
तभी अथर्व का फ़ोन बजा, जिससे उसका ध्यान किस से हटकर फ़ोन की तरफ़ चला गया। रूमी शुक्रगुज़ार थी जिसने भी फ़ोन किया उसकी, वो बुरी तरह से हाँफ रही थी, अथर्व ने उसे साँस लेने का भी मौका नहीं दिया था।
अपने फ़ोन पर इमरजेंसी नंबर देखते ही घबराहट में अथर्व तुरंत फ़ोन उठाता है।
"व्हाट हैपन्ड... या आई एम जस्ट कमिंग..."
इमरजेंसी नंबर को किसी तरह से रूमी भी देख लेती है।
अथर्व के चेहरे के अचानक बदले भाव देखकर रूमी भी दंग थी...
अथर्व को इस तरह से अचानक परेशान और घबराया हुआ देखकर, रूमी कुछ समझ नहीं पा रही थी। आखिर किसका फ़ोन था और वह इतना क्यों परेशान था? उसने आज पहली बार अथर्व के चेहरे पर इतनी घबराहट देखी थी।
अथर्व ने रूमी को अपनी बाँहों से तुरंत आज़ाद किया और तेज़ी से ऑफिस से, फिर बिल्डिंग से बाहर चला गया। रूमी चौंक गई। फिर उसने उस तरफ़ देखा जहाँ से अथर्व भागा था। रूमी को हमेशा उसके पीछे चलने का आर्डर था, इसलिए वह भी भागकर उसके पीछे जाने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह इतनी तेज़ नहीं भाग पा रही थी। अथर्व बहुत स्पीड से भागकर बिल्डिंग से निकल गया और गाड़ी में बैठकर चला गया। रूमी भी जितना हो सके उतना तेज़ भागती हुई आई। जैसे ही वह बिल्डिंग से बाहर निकली, उसने देखा कि अथर्व अपनी गाड़ी में बैठकर तेज़ी से वहाँ से निकल गया था।
वह वहीं खड़ी रह गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अथर्व को अचानक क्या हो गया है। वह हैरानी से सोचने लगी।
"ये इतनी जल्दी में कहाँ चला गया, और मुझे यहाँ अकेला छोड़ गया? आखिर बात क्या है? और ये इतना घबराया हुआ क्यों था?"
वह सोच ही रही थी कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी उसके सामने आकर रुकी, जिसमे से राहुल निकला। रूमी ने उसे देखा। वह रूमी को देखकर मुस्कुराया, लेकिन रूमी का चेहरा सीधा ही रहा।
"रूमी कैसी हो तुम? और यहाँ बाहर क्यों खड़ी हो?" राहुल उसके पास आकर पूछा।
"वो... बॉस जल्दी में थे, तो मुझे यहीं छोड़ गए।" रूमी सीधे चेहरे के साथ जवाब दिया। उसकी आँखों में थोड़ा कन्फ़्यूज़न था। राहुल थोड़ा कन्फ़्यूज़ हो गया कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अथर्व रूमी को यहाँ अकेला छोड़कर चला गया। कितना भी ज़रूरी काम हो, रूमी को ऐसे तो नहीं छोड़ेगा... उसे साथ ही रखेगा...
राहुल को भी अब थोड़ी टेंशन हो गई, तो उसने रूमी से फिर से पूछा।
"क्या वो कुछ बताकर नहीं गया? हो सकता है कोई ज़रूरी मीटिंग निकल आई हो।"
"पता नहीं। अचानक उनके पास एक कॉल आई, जिसपर इमरजेंसी नंबर लिखा हुआ था। बस वो कॉल अटेंड करते ही टेंशन में भाग गए।" रूमी थोड़े कन्फ़्यूज़न में जवाब दिया।
रूमी की बात सुनकर राहुल का मुँह फटा का फटा रह गया। उसकी आँखों में भी एक अजीब सी घबराहट और डर उतर आया।
"क्या कहा? क्या नंबर था? Emergency number...?" रूमी फिर से जवाब दिया। उसने राहुल के एक्सप्रेशन भी नोट किए।
"Oh shit!" राहुल तुरंत भागकर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट की। उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि उसे ज़रूर पता है कि अथर्व कहाँ गया है।
रूमी उसके बिहेवियर से शॉक्ड थी। "अब इसे क्या हो गया...?" रूमी गाड़ी के पास आकर बोली। "क्या कोई प्रॉब्लम है? क्या मैं भी चलूँ साथ में?"
राहुल उसकी तरफ़ देखकर जवाब दिया। "नहीं, तुम नहीं। और प्लीज़ अंदर असिस्टेंट से बोल देना कि आज अथर्व ऑफिस नहीं आएगा। तो सारी मीटिंग्स कैंसिल कर देना।"
"कैंसिल...? और मैं क्या करूँ यहाँ?" रूमी हैरानी से पूछा।
राहुल जवाब दिया, "तुम घर जाओ। अथर्व शाम तक आ जाएगा।"
यह बोलकर राहुल चला गया। रूमी वहाँ अकेली खड़ी होकर सोचने लगी। वह हैरानी से राहुल की जाती हुई गाड़ी को देख रही थी।
"आखिर ऐसा क्या है उस नंबर में, जो दोनों इतने टेंशन में भाग गए? ये आखिर गए कहाँ हैं? खैर मुझे क्या? मेरी तो जान छूटी। बॉस शाम को आएंगे, तब तक क्या मैं विजय से मिलने हॉस्पिटल चली जाऊँ? वो मेरा इंतज़ार कर रहा होगा। हाँ, ये सही रहेगा। शाम से पहले मैं घर पहुँच जाऊँगी। अथर्व को कुछ पता नहीं चलेगा।"
रूमी असिस्टेंट को इन्फ़ॉर्म करने के बाद तुरंत हॉस्पिटल के लिए निकल गई। वह हॉस्पिटल पहुँचकर अपने भाई के वार्ड में गई, जहाँ एक ओल्ड लेडी उसे सूप पिला रही थी। विजय को होश आ चुका था। रूमी को देखते ही विजय के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई।
"दीदी... आप आ गए! मैं कब से आपका इंतज़ार कर रहा था।" विजय अपनी बाहें फैलाकर उसे गले लगने के लिए बुलाया।
अपने भाई को सीने से लगाकर जैसे रूमी का सारा दर्द चला गया। आखिर इससे ज़्यादा उसे चाहिए भी क्या था कि उसका भाई सही-सलामत है।
"I missed you Vijay. I missed you a lot." रूमी उसे हल्के से गले लगाया, क्योंकि उसकी अभी-अभी सर्जरी हुई है, वह कस नहीं सकती थी।
"I missed you too Didi." अपनी दीदी की बाँहों में आकर विजय का चेहरा और दिल खुशी से झूम उठा।
"ये सुबह से तुम्हारे बारे में पूछ रहा था। जब से इसे होश आया है, बस तुम्हें मिलने की ज़िद कर रहा था।" पास में बैठी ओल्ड लेडी मुस्कान के साथ बोली।
"Thank you सरोज आंटी। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने मेरी गैरहाज़िरी में मेरे भाई का ख्याल रखा।" रूमी दिल से सरोज आंटी को थैंक्यू बोली।
"अरे बेटा, विजय बहुत छोटा था जब तुम्हारी माँ चल बसी। मैंने ही तो तुम दोनों को पाला है। मैं ख्याल नहीं रखूंगी तो और कौन रखेगा?"
सरोज आंटी विजय और रूमी की नैनी थीं। विजय को पैदा करते ही उनकी माँ चल बसी थीं, तो उनके पापा ने नैनी रख ली थी उनका पालन-पोषण करने के लिए। उन्होंने दोनों को बिलकुल अपने बच्चों की तरह पाला था। जब दोनों बड़े हो गए थे, तो उनका काम ख़त्म हो गया था और वो चली गई थीं।
"आपको कैसे पता चला कि विजय यहाँ है?" रूमी कन्फ़्यूज़न में पूछा।
जिसपर वह जवाब देते हुए कहती है, "अरे बेटा, भला माँ से भी उसके बच्चों की तकलीफ़ छुप सकती है? बस पता चल गया। और जैसे ही पता चला, मैं भागी-भागी यहाँ आई हूँ। तुम फ़िक्र मत करना। जब तक विजय यहाँ है, मैं उसका पूरा ख्याल रखूंगी।"
सरोज आंटी की बातों से रूमी से एक बहुत बड़ी टेंशन ख़त्म हो गई। उसे बहुत फ़िक्र हो रही थी कि अथर्व उसे आने नहीं देगा तो वह अपने भाई का ख्याल कैसे रखेगी।
सरोज आंटी और विजय के साथ हँसी-मजाक करते-करते कब समय बीत गया, रूमी को एहसास ही नहीं हुआ।
उसका ध्यान समय पर तब गया जब नर्स इवनिंग की दवाइयाँ विजय को खिलाने आई। रूमी फटाफट घड़ी में समय चेक करती है।
उसके पाँव के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई। उसे दिल की धड़कनें बढ़ गईं।
"हे भगवान, इतना समय हो गया, मुझे पता ही नहीं चला! अगर मुझसे पहले अथर्व घर पहुँच गया और उसे मैं वहाँ नहीं मिली, तो वो तो मेरी जान ही ले लेगा..." रूमी सोचती है, उसे घबराहट होने लगती है।
रूमी को इस तरह परेशान देख, सरोज आंटी उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछती हैं,
"बेटा, क्या बात है? परेशान दिख रही हो। सब ठीक तो है ना?" विजय भी रूमी की तरफ देखता है।
"ज...जी आंटी, मैं ठीक हूँ। अभी मुझे लेट हो रहा है, मैं बाद में आप लोगों से मिलती हूँ, अभी मुझे घर जाना पड़ेगा।"
रूमी हड़बड़ाहट में बोलती है। उसे देख आंटी मुस्कुराकर बोलती है,
"ठीक है बेटा, तुम जाओ। और विजय की चिंता मत करना, मैं हूँ उसके पास।"
"थैंक्यू आंटी, आप नहीं होतीं तो पता नहीं मैं क्या करती।"
रूमी इमोशनल होकर उन्हें हग करती है और विजय को भी हग करके फटाफट वहाँ से निकल जाती है।
रूमी दौड़ती हुई हॉस्पिटल से निकलती है और सड़क पर पहुँचकर टैक्सी रोकने के लिए हाथ बढ़ाती है। उसे बहुत ज़्यादा टेंशन हो रही थी। बार-बार अथर्व का गुस्से वाला चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था।
रूमी को पसीना आने लगता है, वह प्रार्थना करने लगती है।
"हे भगवान, मुझ पर रहम करना। मेरी इज़्ज़त को तो तू बचा नहीं पाया, बस जान बचा लेना। किसी भी तरह अथर्व से पहले घर पहुँचा दे।"
रूमी के लिए एक टैक्सी रुक जाती है। वह फटाफट टैक्सी में बैठकर बंगले के लिए निकल पड़ती है।
"भैया, प्लीज थोड़ा जल्दी करिए।"
वह बार-बार ड्राइवर से तेज़ चलने के लिए बोलती है। आज पता नहीं क्यों उसे बहुत बुरी फीलिंग आ रही थी, जैसे आज उसकी खैर नहीं है। अगर अथर्व को वह घर पर नहीं मिली, तो भगवान जाने वह क्या करेगा।
थोड़ी दूर चलने पर वह देखती है कि बहुत बुरा ट्रैफिक हो गया है। सारी गाड़ियाँ रुकी हुई हैं। जिसे देख रूमी का चेहरा उतर जाता है, उसके माथे पर चिंता की लकीरें फैल जाती हैं।
"हे भगवान, आखिर क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मेरे सातों जन्मों के पापों की सज़ा इसी जन्म में दोगे क्या?"
रूमी गाड़ी से उतरकर पैदल चलने का फैसला करती है, क्योंकि ट्रैफिक को देखकर लग नहीं रहा था कि यह एक घंटे से पहले खुल पाएगा।
वह वहाँ से पैदल ही भागती है। कभी गिरती, कभी संभलती हुई, बस पागलों की तरह भागे ही जा रही थी। आधे घंटे के बाद वह बंगले पर पहुँच जाती है।
वह भागकर अंदर जाती है। उसकी साँसें फूली हुई थीं और दिल की धड़कनें तो इतनी ज़्यादा तेज़ थीं कि डर लग रहा था कहीं रुक ही न जाएँ।
दरवाजे पर पहुँचते ही उसके कदम अचानक रुक जाते हैं। आँखें फट जाती हैं और दिल तो जैसे सीने से बाहर ही निकलकर गिरने वाला था।
वह देखती है कि उसके सामने सोफे पर अथर्व बैठा हुआ था, जो शायद उसी का इंतज़ार कर रहा था।
उसके चेहरे को देखकर लग रहा था आज तो रूमी पर आसमान गिरने वाला है। उसके चेहरे का गुस्सा देख रूमी को यमराज के दर्शन साफ़-साफ़ हो रहे थे।
अथर्व के हाथ में शराब का गिलास था, आँखों में गुस्सा और चेहरे पर कोल्डनेस भरी हुई थी। डर के मारे रूमी के माथे पर पसीने की बूँदें छलकने लगती हैं।
"कहाँ गई थी???" अथर्व उसे घूरते हुए बोलता है। उसकी नज़रें जैसे दरवाजे की तरफ ही टिकी हुई थीं, उसके इंतज़ार में।
"वो...म...म..." रूमी हकलाने लगती है।
"मैंने पूछा कहाँ गई थी...बोलो..." अथर्व हाथ में पकड़ा हुआ गिलास फर्श पर फोड़ देता है। जिसे देख रूमी डर से काँपने लगती है।
अथर्व उसके पास आकर उसके बालों को जोर से पकड़ता है, जिससे रूमी को बहुत दर्द होता है। "मैंने कुछ पूछा है, जवाब दो, कहाँ गई थी?"
रूमी की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। "मैं विजय से मिलने गई थी, आज ही उसे होश आया था। मेरा बहुत मन था उसे देखने का...सॉरी, मुझसे गलती हो गई।" रूमी रोते हुए बोलती है।
"मैंने मना किया था ना...मेरी बात को काटकर तुम उससे मिलने गई...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...तुम्हें इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी।"
अथर्व उसे घसीटता हुआ रूम में ले जाता है और फिर से उसके कपड़ों को बुरी तरह फाड़ देता है। आज तो ऐसा लग रहा था कि वह सिर्फ रूमी से ही नहीं, किसी और बात से भी गुस्सा था और रूमी पर ही अपना सारा गुस्सा और फ्रस्ट्रेशन निकाल रहा था।
लाचार और बेबस रूमी सिर्फ दर्द से तड़प ही रही थी। जब बात अथर्व के गुस्से की हो, तो उसे हैंडल ही नहीं किया जा सकता। वह एक भूखे दरिंदे की तरह टूट पड़ता है उस पर।
"Atharv please I am sorry..." रूमी अथर्व से बार-बार माफ़ी मांगती है, लेकिन अथर्व पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वह अपनी हैवानियत पर कायम था।
"तुमने जो किया उसके लिए माफ़ी नहीं, सिर्फ सज़ा है। मैं तुम्हारा मालिक हूँ। मेरी बात मानना और मुझे खुश रखना ही तुम्हारा काम है। इसी शर्त पर मैंने तुम्हारे भाई की जान बचाई थी, क्या तुम भूल गई हो?"
"He trusting continuously very harder and harder.... Faster and faster..."
अथर्व के हर एक झटके के साथ रूमी की जान निकल रही थी। बेचारे बिस्तर और रूमी दोनों की हालत खराब हो चुकी थी। आज का हाल तो कल से भी बुरा था।
कई घंटों तक लगातार एक्सरसाइज़ के बाद आखिरकार अथर्व थोड़ा शांत हो जाता है और सो जाता है।
"क्या हो गया है तुम्हें अथर्व? इतने कैसे बदल गए हो तुम? ऐसे क्यों बन गए हो? ऐसे तो नहीं थे तुम...कितने ज़्यादा अच्छे थे। फिर क्या हो गया है तुम्हें?" रूमी घंटों अपने नग्न शरीर को ब्लैंकेट में लपेटे, आँसू भरी आँखों से, सोते हुए अथर्व को देखती रही।
ऐसे ही सोचते-सोचते रूमी की भी आँख लग गई और वह भी सो गई।
अगले दिन ऑफिस में अथर्व लैपटॉप पर काम कर रहा था। रूमी उसी कमरे में सोफे पर चुपचाप बैठी थी। तभी असिस्टेंट अंदर आया।
"जी सर, आपने बुलाया...?" असिस्टेंट हाथ जोड़कर अथर्व के सामने खड़ा हो गया।
अथर्व लैपटॉप में नज़र गड़ाए हुए ही बोला, "ये खन्ना के साथ मीटिंग फ़िक्स करो। उनके साथ आज मीटिंग करना ज़रूरी है।"
असिस्टेंट थोड़ा हिचकिचाकर बोला, "लेकिन उनके साथ तो अगले हफ़्ते मीटिंग है ना सर, उससे पहले भी हमारी बहुत सारी मीटिंग्स हैं... I think..."
"बॉस कौन है यहाँ...?" अथर्व कोल्ड एक्सप्रेशन के साथ असिस्टेंट की तरफ़ देखकर पूछा।
असिस्टेंट अथर्व के गुस्से को महसूस कर लिया। वह अचानक बहुत नर्वस हो गया। उसके माथे पर पसीना आने लगा और वह हकलाती हुई आवाज़ में बोला, "ज... जी... आप सर।"
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम हो। तुमसे कितनी बार कहा है मैंने... जैसा कहा गया है वैसा करो। फ़ालतू अपना दिमाग और ज़बान मत चलाया करो, समझे...?"
रूमी, जो चुपचाप बैठी यह सब देख रही थी, तनाव का माहौल महसूस कर रही थी। अथर्व सिर्फ़ उसके साथ ही नहीं, यहाँ भी, सबके साथ बहुत कठोर था। अथर्व पास्ट में ऐसा बिल्कुल नहीं था। वह बहुत सॉफ्ट और जिंदादिल इंसान था। मान ना पड़ेगा क्या एक्टिंग की उसने अपने असली चेहरे को छिपाने की...?
"S... S... Sorry sir," असिस्टेंट ने घबराहट से कहा।
"Get lost and do as I said," अथर्व ने कमांडिंग टोन में कहा।
"जी, अभी कर देता हूँ..." असिस्टेंट बाहर भाग गया और बाहर निकलते ही चैन की साँस ली।
उसके बाहर जाते ही अथर्व की नज़र रूमी पर पड़ी जो उसे ही देख रही थी। अथर्व को अपनी तरफ़ देखते हुए देख, वह तुरंत अपनी नज़रें नीची कर लेती है।
अथर्व अपनी आँखें सिकोड़कर बहुत कोल्ड आवाज़ में बोला, "लगता है तुम कुछ ज़्यादा ही फ़्री हो। चलो, तुम्हें थोड़ा काम दिया जाए..."
अथर्व ने एक फ़ाइलों का बंडल उसके सामने रखे टेबल पर फेंका। "ये कम्प्लीट करो, अच्छे से पढ़कर... और कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
रूमी ने हाँ में सर हिलाया और एक फ़ाइल उठाई। अथर्व अपनी चेयर पर फिर से बैठने के लिए मुड़ा।
"Huh... तुमसे बुरा तो कोई है भी नहीं इस दुनिया में..." रूमी धीरे से बड़बड़ाती है।
अथर्व ने उसका बड़बड़ाना सुनकर कहा, "कुछ कहा तुमने...?"
"हे भगवान! इसने सुन तो नहीं लिया... ये तो मुझे चबा ही जाएगा... ये मेरे साथ ही क्यों होता है...?" रूमी अचानक नर्वस हो गई और हकलाती हुई बोली, "न... न... नहीं तो मैंने तो कुछ नहीं बो... बोला सर..."
"अच्छा... तो क्या मेरे कान बज रहे हैं, तुम..." अथर्व कुछ बोल पाता इससे पहले दरवाज़ा खुला और करिश्मा एक बड़ी सी स्माइल के साथ अंदर आई।
"Baaabbyyyy..." करिश्मा बाहें फैलाकर अथर्व की तरफ़ आई और उसे हग करके गाल पर एक किस किया। "How are you baby..."
अथर्व के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं था। वह न ही उसे हग करता है, न किस, बस खड़ा रहता है और नॉर्मली रिप्लाई देता है, "तुम यहाँ क्या कर रही हो...?" यह बोलकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और लैपटॉप में काम करने लगता है।
उसके इस तरह के बिहेवियर से करिश्मा को कुछ अच्छा नहीं लगा। वहीं दूसरी तरफ़ अथर्व के ऐसे बर्ताव से रूमी भी हैरान थी। बाकी सबके साथ तो ठीक है, लेकिन यह इसके साथ ऐसा क्यों बर्ताव कर रहा है? यह तो इसकी सो कॉल्ड गर्लफ्रेंड है ना...
तभी करिश्मा एक स्माइल के साथ अथर्व के पास आकर सामने वाली टेबल पर बैठ जाती है। उसने शॉर्ट स्कर्ट पहनी थी और टेबल पर बैठने से उसकी गोरी-चिट्टी टाँगें दिख रही थीं।
वह जान-बूझकर ऐसे बैठी थी ताकि अथर्व उसे नोट करे, लेकिन बेचारी की खराब किस्मत! अथर्व जब काम करता है तो वह और कुछ नहीं देखता।
"अरे रूमी, तुम भी यहाँ हो? उह, सॉरी, तुम कोने में थीं ना, इसीलिए मुझे दिखी नहीं... कैसी हो तुम? मेरे बेबी का ख्याल तो अच्छे से रख रही हो ना...?" करिश्मा जान-बूझकर यह बोलती है, उसे यह याद दिलाने के लिए कि अथर्व की लाइफ में उसकी क्या औक़ात है।
करिश्मा की बातों को इग्नोर कर रूमी अपनी फ़ाइलों में बिज़ी रहती है।
"मैंने पूछा कि तुम यहाँ किस लिए आई हो? तुम जानती हो ना, काम के टाइम मुझे कोई डिस्टर्ब करे, मुझे पसंद नहीं है..." अथर्व लैपटॉप में काम करते हुए नॉर्मल, पर भारी सी आवाज़ में पूछता है।
"बेबी, मैं घर पे बोर हो रही थी, तो सोचा हम शॉपिंग पर चल पड़ते हैं..."
उसके इतना बोलते ही अथर्व अपना कार्ड टेबल पर सरका देता है। "मुझे बहुत काम है, तुम खुद चली जाओ, हम साथ में फिर कभी चलेंगे।"
"और तुमने वादा किया था कि तुम खुद मेरे लिए रिंग पसंद करके मुझे पहनाओगे..." यह बोलकर करिश्मा बेचारा सा मुँह बना लेती है।
तभी असिस्टेंट अंदर आया। "सर, मीटिंग फ़िक्स हो गई है... आज शाम 5 बजे हेवन्ली स्टार मॉल में..."
असिस्टेंट की बात सुनकर अथर्व करिश्मा की तरफ़ देखकर बोलता है, "तुम्हें रिंग चाहिए ना? ठीक है, आज शाम 4 बजे मॉल चलते हैं।"
यह सुनकर करिश्मा खुशी से उछल पड़ती है और अथर्व को जोर से हग कर लेती है। अथर्व भी उसे पकड़ लेता है और तिरछी नज़रों से रूमी की तरफ़ देखता है।
रूमी का ध्यान फ़ाइलों में था। वह ऐसे जता रही थी कि उसे उनकी बातें सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि उनकी बातें सुनकर रूमी का दिल चकनाचूर हो गया था।
रूमी ने भले ही जताया नहीं, लेकिन उसके दिल में दर्द तो हो रहा था... जिस इंसान से उसने इतना ज़्यादा प्यार किया, जिसे अपना सब कुछ माना, आज उस इंसान ने उसे कहीं का भी नहीं छोड़ा...
और करिश्मा! उसे तो उसने अपनी बहनों से भी बढ़कर माना था, उसने भी उसके दिल और विश्वास के हज़ारों टुकड़े कर दिए... करिश्मा और अथर्व धोखे और विश्वासघात का दूसरा नाम हैं।
रूमी अपने आँसुओं को किसी तरह रोक लेती है क्योंकि वह उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं होने देना चाहती कि उसे इन सबसे फ़र्क पड़ता है।
अथर्व और करिश्मा शाम के 4 बजे हेवन्ली स्टार मॉल में पहुँचे। करिश्मा ने एक नीले रंग की शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी और अथर्व ने फॉर्मल ग्रे सूट। रूमी उनसे थोड़ी पीछे आ रही थी; आखिरकार, उसके बॉस का आदेश था कि वह हर वक्त उसकी आँखों के सामने रहे।
रूमी ने सामान्य जीन्स और टॉप पहना था, हल्का मेकअप चेहरे पर। करिश्मा के विपरीत, जिसे देखकर लगता था जैसे उसने दस-दस परतें मेकअप पोती हों। रूमी हमेशा साधारण रहना पसंद करती थी। उसकी सादगी में ही उसकी खूबसूरती निखर कर आती थी।
एंट्री गेट पर चेकिंग के बाद दोनों मॉल में दाखिल हुए। करिश्मा अथर्व के हाथों में हाथ डालकर चल रही थी, जबकि अथर्व अपने एक हाथ में फ़ोन चेक करता हुआ आगे बढ़ रहा था। अथर्व अपने काम में अक्सर बहुत व्यस्त रहता था। इसलिए जब भी उन्हें साथ बाहर जाने का मौका मिलता, करिश्मा उससे चिपके रहने की कोशिश करती थी।
जब भी करिश्मा उसे बाहर जाने, घूमने-फिरने, मूवी देखने, शॉपिंग करने आदि के लिए कहती, अथर्व बस अपना क्रेडिट कार्ड उसके हाथ में थमा देता और काम में व्यस्त होने का बहाना बनाकर उसके साथ चलने से मना कर देता।
कई बार तो वह करिश्मा के कॉल और मैसेज भी अवॉइड कर देता था। करिश्मा को बहुत गुस्सा आता था, लेकिन चुप रहने के अलावा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी।
आखिर कौन नहीं जानता था उसके गुस्से को? गुस्से में बोलता तो ऐसा लगता जैसे वह आग उगल रहा हो। बदले की उसकी यात्रा के दौरान करिश्मा ने उसकी काफी मदद की थी; शायद यही एक कारण था कि अथर्व का गुस्सा उस पर कभी नहीं उतरा।
वह करिश्मा से बहुत तमीज से पेश आता था। आखिर वह उसका एहसानमंद था। उसने करिश्मा के हर ख्वाब को पूरा करने का वादा किया था। चाहे कुछ भी हो, अथर्व की खासियत थी कि जो कुछ भी उसे मिलता, वह उसे सूत समेत लौटा देता था।
इसलिए अथर्व ने करिश्मा को वह सब कुछ उपलब्ध करवाया जो उसने माँगा था - घर, पैसा, प्रॉपर्टी, गाड़ी, सब कुछ। लेकिन करिश्मा का इरादा कुछ और ही था। उसने अथर्व का साथ दिया क्योंकि वह रूमी और उसके पापा को बर्बाद करके पूरी प्रॉपर्टी की मालकिन खुद बनना चाहती थी।
बचपन से ही रूमी हर चीज़ में करिश्मा को अपने साथ रखती थी। दोनों लगभग एक ही उम्र की थीं। रूमी का दिल और उसका कमरा करिश्मा के लिए हमेशा खुला रहता था। उसे हमेशा से ही एक बहन चाहिए थी; करिश्मा में उसे अपनी बहन दिखती थी।
कपड़े, खिलौने, खाना, कमरा, यहाँ तक कि स्कूल और कॉलेज, जो कुछ भी रूमी को उसके पापा ने उपलब्ध करवाया, वह सब वह करिश्मा के साथ शेयर करती थी।
रूमी ने जिद करके करिश्मा का अपने ही स्कूल और कॉलेज में एडमिशन करवाया। पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों उसके पापा की कंपनी में ही काम करने लगीं।
रूमी ने जो कुछ भी करिश्मा के लिए किया, वह तो शायद कोई सगी बहन भी न करती। रूमी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि कब करिश्मा के दिल में उसके लिए इतनी ज्यादा नफरत पनप गई। रूमी ने उस पर आँख बंद करके भरोसा किया, और करिश्मा ने उसके भरोसे की नींव तक को हिला दिया।
थोड़ी देर घूमने के बाद अथर्व को एक कॉल आया; उसकी मीटिंग का समय हो गया था।
"मैं जाता हूँ, मेरी मीटिंग का समय हो गया है। तुम शॉपिंग करो तब तक।"
करिश्मा एक मुस्कान के साथ हाँ में सिर हिलाती है। वह जाने लगा तो रूमी भी उसे फॉलो करने लगी। तभी वह पलटकर रूमी से बोला,
"तुम यहीं रुको। करिश्मा के बैग उठाने में उसकी मदद करो। वहाँ तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है।"
ये बोलकर अथर्व वहाँ से चला गया।
"What the hell... मैं उसकी गुलाम हूँ क्या, इस एहसान फरामोश की नहीं? मुझे क्यों छोड़कर गया इसकी मदद के लिए?"
रूमी को देखकर करिश्मा के चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान आ गई। आखिर अपनी प्यारी सी दोस्त को नीचा दिखाने का मौका वह कैसे छोड़ सकती थी? करिश्मा ने चुटकी बजाई और अपनी उंगली रूमी की तरफ करके बोली,
"हे यू स्लेव... फॉलो मी..."
ये बोलकर करिश्मा शॉप में चली गई। कोई और रास्ता न पाकर रूमी भी उसके पीछे अंदर चली गई।
करिश्मा ने अथर्व के क्रेडिट कार्ड का जमकर मज़ा लिया। उसने खूब शॉपिंग की और अपने शॉपिंग के सारे बैग रूमी को पकड़ा दिए। रूमी के दोनों हाथों के लिए बैग बहुत ज्यादा थे; वह मुश्किल से उन्हें संभाल पा रही थी।
करिश्मा की तो जैसे भूख ही खत्म नहीं हो रही थी; वह धड़ाधड़ शॉपिंग पर पैसा पानी की तरह बहा रही थी।
अथर्व मीटिंग खत्म करके वापस आया और रूमी को बैग्स के साथ संघर्ष करते हुए देखा। वह एक बैग पकड़ती तो दूसरा छूट जाता, दूसरा पकड़ती तो तीसरा।
तभी चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए करिश्मा बोली,
"बेबी... कैसी रही तुम्हारी मीटिंग?"
"मीटिंग अच्छी थी। तुम्हारा अगर कुछ और लेना रह गया तो जल्दी ले लो, फिर मुझे निकलना है।" अथर्व बोला; उसकी आँखें अभी भी रूमी पर ही टिकी हुई थीं।
"क्या बकवास है... अब इसे पूरा मॉल खरीदना है क्या? यहाँ मेरे लिए इन बैग्स को संभालना मुश्किल हो रहा है, और कैसे संभालूंगी..." रूमी उन्हें घूरते हुए चिड़चिड़े स्वर में अपने मन में ही बड़बड़ाती है।
अथर्व ने उसके चिड़चिड़े भाव को नोटिस कर लिया। उसने करिश्मा की कमर पकड़कर उसे अपने करीब खींच लिया और बोला,
"ओह बेबी, इतने में क्या होगा? अभी तुमने लिया ही क्या? ये पूरा का पूरा मॉल अपना ही समझो, जो मन करे उठा लो। It's all yours... तुम्हारे बॉयफ्रेंड के पास पैसों की कमी नहीं है।" अथर्व चुपके से रूमी की तरफ देख रहा था, जैसे वह उसके भावों को नोट कर रहा हो।
अथर्व के इस व्यवहार से दोनों दंग थीं। करिश्मा दंग थी क्योंकि अथर्व ने आज पहली बार ऐसा कुछ किया था। आज से पहले सिर्फ वही थी जो इसके करीब जाने या उसे किस करने की पहल करती थी, और अथर्व का बहुत रुखा-सुखा रिस्पांस ही होता था, जैसे उसे कोई दिलचस्पी ही न हो और वह सिर्फ खुद को मजबूर कर रहा हो।
लेकिन आज पहली बार अथर्व ने उसे कमर से पकड़कर अपने इतना करीब खींचा था। करिश्मा का दिल खुशी से नाचने लगा।
वहीं दूसरी तरफ, रूमी हैरान थी क्योंकि अब उसके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह और भी बैग उठा सके। वह और भी ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई और सोचने लगी,
"हँ... बड़ा आया पैसों का रौब दिखाने वाला... दूसरों के पैसों पर ऐयाशी करना तो कोई इन दोनों से सीखे। बेशर्म, बेहूदा, निर्लज्ज, दुराचारी, दुष्ट... आआअह्ह्ह... मन तो कर रहा है अभी के अभी मॉल से, इस बिल्डिंग से नीचे फेंक दूँ दोनों को..."
रूमी को उन्हें ऐसे देखकर बहुत ज्यादा चिड़चिड़ाहट हो रही थी। लेकिन कुछ और भी था जो उसे महसूस हो रहा था... शायद जलन, या कुछ और, मालूम नहीं... लेकिन दोनों को इतना करीब देखकर जैसे रूमी का सीना भारी हो रहा था... जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर रख दिया हो। उसे अपने सीने में दर्द महसूस हुआ।
आखिर एक वक्त था जब यह इंसान उसके लिए बेहद मायने रखता था। आज देखो वक्त ने कैसी करवट ली है, सब कुछ पलटकर रख दिया।
To be continued...
दोनों थोड़ी देर हाथों में हाथ डाले मॉल में घूमते रहे। वहीं उनके पीछे रूमी शॉपिंग बैग्स से कुश्ती करती हुई उनके पीछे-पीछे चलती रही। अथर्व जानबूझकर मॉल के चक्कर काट रहा था, रूमी को तंग करने के लिए। रूमी वाकई थक गई थी। एक तो उसके हाथ में इतने सारे बैग्स थे, ऊपर से उसने कुछ खाया भी नहीं कितने टाइम से।
तभी करिश्मा की नज़र ज्वेलरी शॉप पर पड़ी और वह खुशी से उछल पड़ी।
"अथर्व, वो देखो... ज्वेलरी शॉप! तुम्हें अपना वादा तो याद है ना? तुम मुझे रिंग दिलाने वाले थे..."
"ओफ़्कौर्से याद है। चलो, वादा पूरा करते हैं फिर..." अथर्व और करिश्मा अंदर चले गए।
रूमी भी अंदर जाने ही वाली थी कि तभी उसकी नज़र कुछ दूर खड़े तीन लोगों पर पड़ी जो उसे हाथ हिलाकर बुला रहे थे। ये तीनों समीर, कार्तिक, अनन्या—उसके कॉलेज फ्रेंड्स थे। रूमी के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई उन्हें देखकर और वह दौड़कर उनके पास गई।
"गाइस.... कैसे हो तुम सब? और तुम लोग यहां कैसे?" रूमी सबको और सब रूमी को प्यार वाली झप्पी देते हैं।
रूमी के हाथ में इतने सारे बैग्स देख अनन्या बोल पड़ी, "Ohoo... Shopping and all....."
"क्यों भाई, हम लोग मॉल नहीं आ सकते क्या?" कार्तिक मुस्कुराते हुए बोला।
रूमी हंसकर बोली, "हाँ बिलकुल आ सकते हो। बस आज अचानक तुम्हें देखा तो एक्ससिटेमेंट कंट्रोल नहीं हो रही। I missed you soo much guys।" रूमी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
तभी समीर उसके आंसू पोछते हुए कहा, "We also missed you a lot..... पुष्पा.... तू जानती है ना... आई हेट टीयर्स रे...." वह राजेश खन्ना जैसा स्टाइल मारकर बोला।
तभी सब दांत फाड़कर एक साथ हंस दिए। "तुम भी न, अभी भी वैसे ही हो, एक नंबर के नोटंकी।" रूमी हंसते हुए उसके कंधे पर हल्का सा हाथ मारकर बोली।
"वेल, जो टाइम के साथ रंग बदल दे वो समीर नहीं। क्यों सही कहा ना सेनोरिटा?" समीर शाहरुख का पोज मारकर बाहें फैलाकर बोला।
"अबे बस कर साले, सारा बॉलीवुड यहीं उतारेगा क्या?" समीर उसके पेट पर हल्का सा मुक्का मारते हुए बोला।
सभी फिर से हंस दिए। तभी अनन्या की नज़र करिश्मा और अथर्व पर पड़ी जो शॉप के बड़े से शीशे से साफ दिख रहे थे। करिश्मा नेकलेस पहनकर देख रही थी और अथर्व वहीं फोन में ध्यान लगाए खड़ा था।
"रूमी, वो करिश्मा और अथर्व ही हैं ना?" अनन्या की आवाज़ सुनकर सभी शॉप की तरफ देखने लगे।
"अरे हाँ, ये वही दोनों हैं।" समीर के मुंह से भी निकल गया।
कार्तिक हैरानी जताते हुए बोला, "ये यहां क्या कर रहे हैं? और मैंने सुना है दोनों शादी करने वाले हैं।"
समीर रूमी की तरफ देखता है जो चुपचाप नज़रें नीची करके खड़ी हुई थी। "रूमी, अथर्व से तो तुम शादी करने वाली थीं ना, फिर ये सब कैसे हुआ?"
समीर की बातों का कोई जवाब नहीं था रूमी के पास। वह कुछ नहीं बोली। तभी अनन्या बोल पड़ी,
"होना क्या था? बहका के ब्रेकअप करवा दिया होगा दोनों का और अब खुद उसकी गोद में जाकर चिपक गई। अब पता चला, क्यों मैं तुम दोनों को उससे बात करने के लिए मना करती थी। मुझे इस लड़की के लक्षण कभी सही नहीं लगे। जहां अमीर लड़का देखा, नहीं बस बिछ जाती थी। कुतिया कहीं की... आखिर दिखा ही दी औकात। नौकर की बेटी है ना, पैसा तो कभी देखा नहीं होगा। वो तो अपनी रूमी की दरियादिली थी जो इसे साथ रखती थी, वरना इसकी कहां किस्मत थी इतने बड़े कॉलेज में हम जैसे रईस बच्चों के साथ पढ़ने की। इसकी औकात तो लोगों के घर झाड़ू-पोछा करने की है। हरामजादी कुतिया कहीं की।"
अनन्या के अचानक फट पड़ने से सब हैरानी से उसके मुंह की तरफ देख रहे थे। फिर कार्तिक उसे बाहों में खींचते हुए कहा, "शांत हो जा मेरी मान, शांत। क्यों उसके लिए अपना खून जला रही हो?"
फिर समीर भी बोल पड़ा, "बात तो अनन्या की सही है। ऐसे लोग तो आस्तीन के सांप जैसे होते हैं जो पालता है उसे ही डस लेते हैं।"
कार्तिक अनन्या को अपनी बाहों से आज़ाद करते हुए रूमी की तरफ चिंतित नज़रों से देखते हुए बोला, "हाँ... पहले तो हमें यकीन ही नहीं हो रहा था, लेकिन फिर पापा ने बताया कि अंकल के साथ क्या हुआ। हमें बहुत अफ़सोस है कि हम तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाए।"
"हम यहां हैं अब तुम्हारे लिए। अगर तुम्हें किसी भी चीज़ की, कभी भी ज़रूरत हो, आधी रात को भी, याद रखना, we are just one phone call away from you...." अनन्या रूमी के कंधे पर हाथ रखकर बोली। समीर और कार्तिक भी हाँ में सर हिलाते हैं।
अपने दोस्तों का इतना सपोर्ट देख रूमी की आंखें भर आती हैं और वह उनका ग्रेटिट्यूड जताते हुए बोली, "मेरी इतनी चिंता करने के लिए थैंक्यू गाइस, लेकिन जो हुआ शायद तकदीर में वही होना लिखा था, भला तकदीर को कौन बदल सकता है।"
"मैं खुश हूं ये जानकर कि तुम लोग मेरी इतनी फ़िक्र करते हो, लेकिन ये लड़ाई मुझे खुद ही लड़नी पड़ेगी। कोई मेरी मदद नहीं कर सकता।"
सबकी आंखें नम हो जाती हैं। रूमी और अनन्या की आंखों से तो आंसू गिरने लगते हैं।
माहौल एकदम उदास सा हो जाता है। सब एकदम चुप से हो जाते हैं। तभी समीर माहौल की गंभीरता को समझते हुए सबका मूड लाइट करने के लिए बोला, "Ooh damm it....." समीर अपने माथे पर हाथ रखकर बोला जिससे सब उसकी तरफ देखने लगे।
"क्या हुआ?" कार्तिक समीर से पूछता है।
"अरे यार, मैं अपना स्विमिंग कॉस्ट्यूम घर भूल आया।"
"स्विमिंग कॉस्ट्यूम?" कार्तिक अनन्या हैरानी से पूछते हैं।
अनन्या कार्तिक की तरफ पलटकर बोली, "बेबी... क्या हम स्विमिंग करने जा रहे हैं?"
"नहीं तो, आज का ऐसा कोई प्लान नहीं था..." कार्तिक समीर की तरफ पलटकर पूछता है, "स्विमिंग कॉस्ट्यूम का क्या करेगा तू?"
"अरे ज़रूरत पड़ेगी ना तैरने के लिए, आखिर अभी यहां बाढ़ आने वाली है।" समीर उनकी तरफ देखकर बोला।
सब हैरानी से उसकी तरफ देखते हैं और एक साथ बोलते हैं, "बाढ़???"
"अबे क्या बक रहा है, भला यहां बाढ़ कैसे आ सकती है और क्यों आएगी?" कार्तिक पूछता है।
"अरे बाढ़ तो आएगी ना, अगर सबकी आंखों से ऐसे गंगा-जमुना बहती रही तो बाढ़ तो आ ही जाएगी ना।"
समीर की बात सुनकर तीनों 2 सेकंड का पॉज़ लेकर जोर-जोर से हंसने लगते हैं। माहौल को चिल देख समीर को थोड़ा सुकून मिलता है।
"तू ना समीर, आइटम है बिलकुल।" अनन्या हंसते हुए बोली। "हाँ, सही कहा।" रूमी भी हंसते हुए बोली।