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Twisted ties of love

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Aarya Rai

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मोहब्बत, धोखा और किस्मत के उस फैसले की कहानी, जो सबकुछ बदल देता है… प्रीति... एक मासूम, चुलबुली सी लड़की, जिसकी हँसी कभी पूरे घर को रौशन कर देती थी। जिसे ज़िंदगी से शिकायत नहीं थी, बस थोड़ा प्यार चाहिए था। पर किसे पता था कि उसका प्यार ही...

Total Chapters (229)

Page 1 of 12

  • 1. Twisted ties of love - Chapter 1

    Words: 2410

    Estimated Reading Time: 15 min

    दिल्ली, मधु विहार

    सुबह-सुबह का वक्त था। घड़ी सुबह के आठ बजा रही थी; जहाँ सब घरों में चहल-पहल थी, सब अपने-अपने कामों में लग चुके थे। औरतें अपनी दिनचर्या शुरू कर चुकी थीं, तो आदमी दफ्तर जाने को तैयार हो चुके थे। बच्चे स्कूल जा चुके थे। सूरज देवता सर पर चढ़ आये थे। जुलाई की कड़कती धूप बदन जलाने को तैयार थी।

    जहाँ बाकी घरों में सुबह की दौड़-भाग शुरू हो चुकी थी, वहीं एक घर में मातम पसरा हुआ था। बाहर दो गाड़ियाँ खड़ी थीं, और घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी; और हर कोई अंदर क्या हो रहा है, ये देखने की कोशिश में लगा था।

    घर की बाहरी साज- सज्जा देखकर लग रहा था जैसे कोई बड़ा फंक्शन हुआ हो; वही अंदर का माहौल बड़ा अजीब था। गेट से अंदर जाने पर, छोटे से आंगन में जहाँ सोफा सेट रखा हुआ था, और उस पर तीन-चार 40-50 साल के आदमी सर झुकाए मायूस से बैठे थे; जैसे उनका सब कुछ लूट गया हो।

    उनके सामने एक लड़का परेशान सा हाथ बाँधे यहाँ से वहाँ चक्कर काट रहा था। उसकी बाहों और माथे की नसें तनी हुई थीं, और चेहरा गुस्से से लाल था। ज़मीन पर बैठी औरतें विलाप कर रही थीं और माथा पीट-पीटकर रो रही थीं; जैसे कोई स्वर्गवासी हो गया हो।

    वहीं पहली मंजिल पर सबसे कोने वाले कमरे में एक लड़की बेड पर बैठी हुई थी। गोरा रंग, मासूमियत से भरा छोटा सा गोल चेहरा, मांग में भरा लाल सिंदूर दूर से ही चमक रहा था। माथे पर कुमकुम की छोटी सी बिंदी लगी थी। कानों में सोने के झुमके, हाथों में भरे-भरे चूड़ियाँ, बाहों पर लगी दुल्हन मेहँदी अभी छूटी नहीं थी; शायद नई-नई शादी हुई थी उसकी। लाल साड़ी पहने और सोलह श्रृंगार किए, वो लड़की नई-नवेली दुल्हन तो लग रही थी, पर उसकी हालत कुछ ठीक नहीं थी।

    दुल्हन वाला नूर नहीं था चेहरे पर, आँखें एकदम लाल थीं और सूजकर मोटी-मोटी हो गई थीं, चेहरा एकदम मुरझाया हुआ था और पीला पड़ गया था। गले में मंगलसूत्र किसी फाँसी के फंदे जैसे लटक रहा था; और अपने पैरों को मोड़कर सिमटकर बैठी वो लड़की अपने घुटनों पर अपना चेहरा टिकाए सामने की दीवार को एकटक घूर रही थी।

    उन आँखों में बेइंतेहा दर्द के साथ, रोष भी था, लब भींचे हुए थे; और चेहरे पर दुख के साथ-साथ अजीब सा गुस्सा और तड़प झलक रही थी। उसके सामने एक कागज़ रखा था, जो छत पर लगे पंखे की हवा के कारण फड़फड़ा रहा था।

    लड़की अभी दीवार को घूर ही रही थी कि तभी एक औरत, जिसकी उम्र कोई 50 के करीब थी, वो मुँह पर आँचल रखे रोते हुए वहाँ आई और प्रीति को अपने सीने से लगाए छाती पीट-पीटकर रोने लगी

    "हाए! क्या होगा अब मेरी बच्ची का..... ये क्या अनर्थ कर दिया भगवान ने....... किस गुनाह की सज़ा मिल रही है हमें और हमारी बेटी को.......... कैसा निर्मोही था जो हमारी बेटी को शादी के अगले ही दिन छोड़कर भाग गया........ ....."

    बिल्कुल सही सुना आपने; ये जो लड़की अब भी भावहीन सी सामने की दीवार को घूर रही थी, ये लड़की प्रीति थी, जिसकी शादी को अभी मुश्किल से तीन दिन ही हुए थे। शादी नहीं करना चाहती थी वह। कुछ सपने थे उसके, और पढ़-लिखकर वो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी; पर माँ-बाप की इच्छा के आगे उसकी एक नहीं चली। कॉलेज खत्म होने से पहले ही उसके लिए रिश्ते देखने शुरू कर दिए गए।

    बड़ा भाई था राजेश, शादी हो चुकी थी उसकी; और उसकी बीवी माधुरी को प्रीति फूटी आँख नहीं सुहाती थी, जबकि राजेश की जान बसती थी अपनी छोटी बहन में। बचपन से साथ खेले-कूदे बड़े हुए, हमेशा उसने प्रीति को हर मुश्किल से बचाने की कोशिश की; शादी की बात चलने पर उसने विरोध भी किया, पर उनके पिता धीरज जी ने साफ़ धमकी दी कि अगर वो उनके खिलाफ़ गया तो वो घर छोड़कर चले जाएँगे; जब इस घर में उनके फैसले की कोई अहमियत ही नहीं है, तो ऐसे घर में वो एक मिनट नहीं रहेंगे।

    बस फिर क्या होना था? माँ शकुंतला देवी ने राजेश को खूब पट्टी पढ़ाई कि वो जो कर रहे हैं, प्रीति के बेहतर भविष्य के लिए ही कर रहे हैं... माँ-बाप हैं उसके, तो कुछ गलत नहीं सोचेंगे अपनी बेटी के लिए। फिर माधुरी, जो चाहती ही थी कि प्रीति नाम की बला उसकी ज़िंदगी से जल्दी से जल्दी टल जाए, उसने भी खूब दबाव डाला; और आखिर में राजेश को भी झुकना पड़ा।

    प्रीति ने तो शादी के लिए पिटाई भी खाई थी; फिर माँ-बाप की इज़्ज़त की दुहाईयाँ देकर उसको मंडप पर बिठा दिया गया, और प्रीति ब्याह कर अपने ससुराल चली गई। जहाँ उसका बड़े ही भव्य स्वागत किया गया; आखिर चाँद सी बहू आई थी घर में, तो समारोह भी भव्य था और लोगों की खुशी भी देखने लायक थी।

    सभी रस्मों के होने के बाद प्रीति को उसके पति के कमरे में ले जाया गया। ....पति......प्रेम......नाम के अनुरूप ही व्यवहार रहा उसका प्रीति के साथ......शादी की पहली ही रात उसने प्रीति पर खूब प्रेम न्योछावर किया......ज़्यादा जान-पहचान नहीं थी दोनों की। फिर भी वो प्रीति के करीब जाने में ज़रा भी नहीं हिचका; और प्रीति तो जड़ बनी बैठी रही।

    माँ-बाप ने शादी करके लड़की नहीं, लड़की की सिर्फ़ लाश यहाँ भेजी थी; क्योंकि अपनी बेटी को तो उसके सपनों के साथ मंडप की हवन कुंड की आहुति में ही स्वाहा कर चुके थे।.......प्रीति मर चुकी थी; ज़िंदा था तो बस उसका शरीर, और बिना जान के जिस्म तो बस माटी का पुतला ही है, जिसके साथ प्रेम ने जो चाहा किया; पर प्रीति ने कुछ रिएक्ट नहीं किया। सुन्न सी उसकी बाहों में पड़ी रही।...

    विदाई से पहले माँ ने सिखाया था कि पति को खुश रखना अब से वही उसका परमेश्वर है; और उसी से उसका वजूद कायम है।.........उनकी सीख याद थी उसे; फिर जब उसके अपने माँ-बाप ने उसकी मर्ज़ी की परवाह नहीं की, तो एक अंजान से वो क्या ही उम्मीद रखती?.......अपनी माँ के कहे अनुसार उसने अपने पति-परमेश्वर की इच्छाओं की पूर्ति की, उसको संतुष्ट किया; और बिना इच्छा के उस पर अपना सर्वस्व लुटा दिया......

    पता नही प्रेम को उससे प्रेम था या बस उसके शरीर की चाहत थी, प्रीति के शरीर के एक उपभोग की वस्तु मात्र थी। शादी की पहली ही रात उसने प्रीति पर अपना ज़ोर आजमाया, बिना प्रीति की मर्ज़ी पूछे उसपर मालिकाना हक जताते हुए उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए , अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति की.......मन जुड़ न सके; पर शरीर का मिलन पहली रात ही हो गया; और अगले दिन सुबह ही प्रेम का सारा प्रेम हवा हो गया, और अपनी नई-नवेली दुल्हन को सुहाग की सेज पर अकेला छोड़कर वो सुबह की पहली बेला में ही घर से गायब हो गया।

    प्रीति को उसके इस त्याग और समर्पण का उपहार मिला एक कागज़ का टुकड़ा, जो उसके नाम प्रेम लिखकर छोड़ गया था; और वही टुकड़ा अभी उसके सामने फड़फड़ा रहा था।

    अगली सुबह प्रीति ने खुद को कमरे में अकेला पाया; पर कुछ रिएक्ट नहीं किया। वो जैसे ज़िंदा होकर भी ज़िंदा नहीं थी; और अब तो उसके पास कुछ बचा ही नहीं था, सब कुछ बर्बाद हो चुका था। उसके सपने, उसकी खुशियाँ, उसका वजूद, सब इस रिश्ते की भेंट चढ़ चुका था; पर अब भी खोने को कुछ बाकी था, और वो थी उसकी इज़्ज़त, उसका सम्मान.......

    प्रीति नई-नवेली बहू थी, तो उसको तैयार होने को कहा गया; और किसी यंत्र-चालित गुड़िया के तरह वो भी कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई। उसने गौर ही नहीं किया कि उसका पति प्रेम, जो रात को उस पर अपार प्रेम बरसा रहा था, वो शादी की अगली सुबह बिना बताए कहाँ गायब हो गया?.....उसको फ़र्क़ ही नहीं पड़ा इस बात से; और उसने अब खुद को इस परिवेश में ढालने का फैसला कर लिया।

    शादी हो चुकी थी, पति-पत्नी का संबंध बन चुका था उनके बीच; तो रिश्ते को स्वीकारने के अलावा अब कोई और रास्ता भी कहाँ था उसके पास? अपनी किस्मत को उसने अपने सर माथे पर रख लिया; पर यहाँ भी उसकी किस्मत ने उसको धोखा दे दिया।

    नहाकर बाहर आई; और जब ड्रेसिंग टेबल के पास पहुँची, तो वहाँ सिंदूरदान के नीचे रखे फड़फड़ाते कागज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा। प्रीति के चेहरे के भाव अब कुछ बदले; और वो पेपर उठाकर उसको पढ़ने लगी-

    'प्रीति मैं प्रेम... तुम्हें एक बहुत ज़रूरी बात बतानी थी। मैं तुमसे प्यार नहीं करता, और न ही कभी तुमसे शादी करना चाहता था। मुझे अपने ऑफिस की ही एक लड़की से प्यार है, और उसी से शादी करना चाहता था; पर मम्मी-पापा ने हमारे रिश्ते के लिए इंकार कर दिया, और उन्हें तुम पसंद आ गई। उनके दबाव में आकर मैंने तुमसे शादी की; पर मैं इस शादी को नहीं निभा सकता।.....

    मैं जा रहा हूँ। तुमसे मेरा कोई रिश्ता नहीं। मम्मी-पापा को उनके पसंद की बहू चाहिए थी, सो मिल गई; अब मैं अपने प्यार के साथ अपनी ज़िंदगी बिताने जा रहा हूँ, मेरी वापसी की राह मत देखना; क्योंकि मैं कभी लौटकर तुम्हारे पास नहीं आऊँगा। तुम चाहो तो मेरे घर में रह सकती हो; क्योंकि मैं अब लौटकर वापिस उस घर में कभी नहीं आने वाला।'

    बस इतना ही लिखा था उस कागज़ पर; और यही काफ़ी था प्रीति की दुनिया बर्बाद करने के लिए। अपना सब कुछ लुटाकर भी वो कुछ नहीं बचा सकी।

    मेहमानों से भरे घर में जब ये बात खुली, तो सारे घर में हाहाकार मच गया। प्रेम को ढूँढ़ा जाने लगा। औरतों का रोना-धोना शुरू हो गया। प्रेम की माँ गरिमा जी एक भली औरत थीं। बड़े अरमानों से अपने इकलौते बेटे की बहू घर लाई थीं; पर बेटे की इस हरकत ने उनका सर शर्म से झुका दिया। पर उन्होंने अपने उस धोखेबाज़ और फरेबी बेटे के जाने का दुख नहीं मनाया; बल्कि प्रीति को सांत्वना देने लगीं।

    अवधेश जी, प्रेम के पिता, पुलिस में कंप्लेन लिखा आए; और वो गुस्से से, भड़के हुए थे अपने बेटे की इस हरकत के कारण। मानसी, प्रेम की छोटी बहन, जो बारहवीं में थी, अपने भाई के लिए खूब चीख-पुकार कर रही थी; पर प्रीति के लिए उसको बुरा भी लग रहा था।

    जाने इन सज्जनों के घर वो धूर्त आदमी कैसे पैदा हो गया था? खैर, अब बेटे ने हर जगह थू-थू करवा ही दी थी उनकी; तो झेल रहे थे। औरतें जहाँ प्रीति के लिए दुख मना रही थीं, तो वहीं उसको भला-बुरा सुना भी रही थीं। प्रीति तो पत्थर बनी बैठी थी; जैसे उसे खुद का होश ही न हो।

    यहाँ लोग उसको सांत्वना कम दे रहे थे और उलाहना ज़्यादा दे रहे थे कि कैसी औरत है, अपने मर्द को खुद से बाँधकर नहीं रख सकी....शादी के अगले दिन ही पति दूसरी औरत के पास चला गया, तो ज़रूर इसी में कोई कमी होगी....ज़रूर उसकी ज़रूरतों का ध्यान नहीं रखा होगा....पति को संतुष्ट नहीं कर सकी होगी......लड़की में ही खोट है....अभागिनी है; घर में आते ही घर का बेटा घर छोड़कर चला गया.......बहू तो घर जोड़ती है; उसने तो बसा-बसाया घर उजाड़ दिया.........

    ऐसी जाने कितनी ही अनर्गल बातें वो खामोशी से सुनती रही। वो खुद नहीं समझ सकी कि आखिर उसकी गलती क्या थी?....किस कुसूर की सज़ा मिल रही थी उसे?....उसने तो उसका विरोध भी नहीं किया था; सारी रात वो अपनी मनमानी करता रहा; फिर भी उस पर ही क्यों उंगलियाँ उठ रही हैं?....किसी गुनाहगार की तरह सर झुकाए वो लोगों की बातें सुनती रही।

    दो दिन बीत गए। प्रेम नहीं मिला। दूर के रिश्तेदार दुख जताकर और प्रीति को उलाहने देकर अपने-अपने घर रवाना हो गए। प्रीति पत्थर की बन गई थी। न कुछ खाती और न ही बोलती; बस जिस बिस्तर पर उसका स्वाभिमान रौंदा गया था, उस पर सिमटकर बैठी रहती और उस पेपर को घूरती रहती।

    तीन दिन तो बात किसी तरह प्रीति के घर वालों से छुपा ली; पर चौथे दिन राजेश अपनी बहन को लेने पहुँच गया; और सब सारी बात उसके सामने आ गई।

    खूब हंगामा हुआ वहाँ, राजेश का गुस्सा सहन से बाहर जा चुका था। उसने अवधेश जी और गरिमा जी को बहुत सुनाया कि जब बेटा नहीं तैयार था, तो जबरदस्ती शादी करवाकर उसकी बहन की ज़िंदगी क्यों बर्बाद की?

    अपना गुनाह कबूलते हुए दोनों ने शर्मिंदगी से अपना सर झुका लिया। राजेश ने उसके बाद एक मिनट के लिए भी प्रीति को वहाँ नहीं रहने दिया। उसकी हँसती-खेलती बहन की ये हालत उसके बर्दाश्त से बाहर थी; और अंदर ही अंदर गुस्से से जल रहा था वो।

    कुछ देर पहले ही प्रीति अपने घर आई थी और अपने कमरे में बैठी फिर दीवार को घूर रही थी। उसकी खामोशी के पीछे एक तूफ़ान छुपा था, जो उसको अंदर ही अंदर तबाह कर रहा था; पर इससे सभी अंजान थे।

    उसके घर में मातम का माहौल था। हर कोई उसकी चिंता कर रहा था या सिर्फ़ दिखा रहा था। पर प्रीति भावहीन थी; जैसे उसे इन सबसे कोई फ़र्क़ ही न पड़ रहा हो। उसकी भाभी माधुरी ने भी दिखावे के खूब आँसू बहाए; पर मन ही मन प्रीति को खूब कोसा कि तीन दिन में वापिस चली आई; और अब तो जाने की कोई उम्मीद भी नहीं।

    घर में कुछ रिश्तेदार भी आए थे, जो शाम होते-होते रवाना हो गए। राकेश की तो हिम्मत नहीं हुई कि प्रीति से मिल ले या कुछ बात कर ले; क्योंकि कहीं न कहीं वो उसकी इस बर्बादी का ज़िम्मेदार खुद को ठहरा रहा था।

    प्रीति की ज़िंदगी हर तरफ़ से बर्बाद हो चुकी थी। सबसे विरक्त हो चुकी थी वो, ज़िंदगी से विमुख हो गई थी; ज़िंदा होकर भी ज़िंदा नहीं थी।

    कुछ वक्त पहले तक जिस लड़की की हँसी और शैतानी से ये आँगन खिलखिलाता था, जो आज़ाद पंछी के तरह यहाँ से वहाँ उड़ती रहती थी; अब एकदम से बिल्कुल खामोश हो गई थी।

    अजीब रंग दिखाए थे उसे ज़िंदगी ने......मायके वालों को भगाने की जल्दी थी, तो बिना मर्ज़ी के शादी करवा दी, पति शादी के अगले ही दिन छोड़कर चला गया, ससुराल से तीन दिन में दाना-पानी उठ गया; और अब वापिस उसी जगह आ गई थी जहाँ से उसकी बर्बादी का ये किस्सा शुरू हुआ था........

    अब देखना ये था कि क्या लिखा है उसकी किस्मत में? आगे उसके साथ क्या होने वाला था?....उसकी ज़िंदगी में अब खुशियाँ आने वाली थीं या अभी दुखों का सिलसिला जारी रहने वाला था.....कैसे संभाले प्रीति खुद को?.....क्या हालात के आगे हार जाएगी वो और मुँह मोड़ लेगी ज़िंदगी से; या सब भुलाकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू करेगी; ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी 'बदलते रिश्ते'।

  • 2. Twisted ties of love - Chapter 2

    Words: 1726

    Estimated Reading Time: 11 min

    प्रीति को अपने घर आए दस दिन हो चुके थे। इन दिनों उसकी तबियत ज़रा नासाज़ रहती थी। उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर रखा था। न ठीक से खाती-पीती, न कुछ बोलती, और न ही कमरे से बाहर निकलती।


    राजेश ने माधुरी को उसका ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी दी थी। और अच्छी पत्नी और बहू बनने का नाटक करते हुए वो उसका ख्याल रखने का प्रदर्शन भी करती, पर अकेले में उसको खूब खरी-खोटी सुनाती। पर प्रीति पलटकर कुछ नहीं कहती थी, जबकि ये उसका स्वभाव नहीं था... गलत कभी बर्दाश्त नहीं करती थी, पर अब तो हर कोई उसको ही गलत कहता था, तो सब सुन जाती थी।


    इन दिनों वो काफी कमज़ोर हो गई थी। फूल सा चेहरा मुरझा गया था, और गोरा रंग मलिन हो गया था। आँखें अंदर धँस गई थीं। उसने तो जैसे ज़िंदगी से मुख ही मोड़ लिया था। लबों को सिल लिए थे। शायद मरना चाहती थी वो, पर मौत इतनी आसानी से कहाँ मिलती है?


    गरिमा जी का कई बार फोन आया था, उसका हालचाल पूछने के लिए। राजेश का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं हुआ था, तो उसने सख्त मना किया था कि उनसे कोई संबंध नहीं रखेगा। फिर भी शकुंतला जी उनसे बात कर लेती थीं, और दोनों औरतें अपना दुखड़ा सुनाकर मन हल्का कर लेती थीं।


    पुलिस प्रेम को ढूँढ रही थी, और अब तो राजेश भी जी-जान लगाकर उसको ढूँढने के पीछे पड़ गया था। पर अब तक उसका कुछ पता नहीं चल सका था।


    प्रीति की बिगड़ती हालत देखकर राजेश परेशान था। इन दिनों उसको उल्टी की समस्या रहती थी, पेट में दर्द भी रहता था। पर सबको लगता था कि खाना न खाने की वजह से हो रहा है, इसलिए किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।


    शकुंतला जी किसी तरह उसको थोड़ा-बहुत खाना खिला दिया करती थीं। उसके सामने बैठकर उससे बात करने की कोशिश करती थीं, पर प्रीति न तो उन्हें देखती और न ही उसके मुख से एक शब्द ही निकलता था।


    पहले भी एक बार पेट में इंफेक्शन की वजह से प्रीति को ऐसी तकलीफ हुई थी, इसलिए राजेश को चिंता थी उसकी। सबने उसको रोकने की कोशिश की, पर दो दिन पहले वो प्रीति को हॉस्पिटल ले गया था, और वहाँ उसके टेस्ट और अल्ट्रासाउंड हुए, जिसकी रिपोर्ट आज आई थी।


    आज प्रीति साथ नहीं गई थी, बल्कि राजेश रिपोर्ट लेकर आया था, और वो रिपोर्ट उनके घर पर परमाणु बम बनकर बरसी थीं।


    शादी के अगले दिन पति भाग गया, ये क्या कम कलंक था उसके माथे पर, कि एक दिन की ब्याहता होते हुए वो गर्भवती हो गई।


    "बिल्कुल ठीक सुना आपने," राजेश ने कहा, "उस रात प्रेम ने जो प्रेम बरसाया था उस पर, उसके परिणामस्वरूप प्रीति प्रेग्नेंट हो गई थी।"


    सब सदमे में बैठे थे। राजेश आज फिर यहाँ से वहाँ चहलकदमी कर रहा था, और चेहरे पर परेशानी के भाव थे। वो तो प्रेम को जेल पहुँचाकर प्रीति को इस रिश्ते से आज़ाद करवाना चाहता था, पर यहाँ एक और बखेड़ा खड़ा हो गया था।


    माधुरी गुस्से से फुफकार रही थी। एक साल में वो खुशखबरी नहीं सुना सकी थी, और प्रीति एक रात में ही गर्भवती हो गई, जिस बात से वो बुरी तरह खीझ उठी।


    शकुंतला जी ने अलग रोना-धोना मचाया हुआ था। धीरज जी एक तरफ खड़े खामोशी से सब तमाशा देख रहे थे। उनकी इज़्ज़त उन्हें लुटती हुई सी नज़र आ रही थी।


    शकुंतला जी कुछ देर तो छाती पीट-पीटकर रोती रहीं, फिर माधुरी ने उनसे कुछ कहा, और वो गुस्से से फुफकारते हुए प्रीति के कमरे की तरफ़ बढ़ गई।


    प्रीति अपने हाथ में अपनी अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट पकड़े बैठी एकटक उसमें नज़र आ रहे बिंदु-नुमा आकृति को देख रही थी, जो प्रेम का बच्चा था। ये खबर उसके लिए भी किसी शॉक से कम नहीं थी, और वो अब भी सदमे में उस रिपोर्ट को घूर रही थी। तभी उसके कानों में शकुंतला जी की गुस्से भरी आवाज़ पड़ी—


    "कर आई अपना मुँह काला?... कर दी हमारी इज़्ज़त नीलाम?... शादी के अगले दिन ही पति छोड़कर भाग गया, ये क्या कम था, जो अब इस पाप को भी अपने साथ ले आई?"


    प्रीति ने चौंकते हुए उन्हें देखा, और आज इतने दिनों बाद उसके लब हिले, और धीमे से स्वर फूटे—


    "मैंने क्या किया है माँ?... मैंने कैसे आपकी इज़्ज़त नीलाम कर दी?... इस इज़्ज़त के लिए तो आप सबने मिलकर मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी... मैंने मुँह काला किया, या जबरदस्ती आप सबने मेरी शादी उस धोखेबाज़ से करवाई थी?... कैसे आप मेरे बच्चे को पाप की निशानी कह सकती हैं?"


    प्रीति का दिल रो पड़ा आज उनके इल्ज़ाम को सुनकर। गला रुँध गया, और वो डबडबाई आँखों से उन्हें देखने लगी। पर उसके आँसुओं का उन पर कोई असर ही नहीं हुआ, और न ही उन्हें उसका दर्द और उसकी तकलीफ दिखी। उन्होंने उसकी बातों को अनसुना करते हुए गुस्से में चिल्लाकर कहा—


    "ज़ुबान मत लड़ा हमसे... हमने जो किया था, तेरे भले के लिए किया था। तू अपना पति संभालकर नहीं रख सकी, और अगले दिन ही वो तुझे छोड़कर चला गया, तो इसमें किसी और का नहीं, तेरा दोष है..."


    "माँ..." प्रीति के लबों से धीमे से स्वर फूटे, पर शकुंतला जी फिर उस पर बरस पड़ीं—


    "हम पूछते हैं कि क्या ज़रूरत थी शादी की रात ही उस भगोड़े को अपने करीब आने देने की? ... थोड़ा भी सब्र नहीं हुआ तुमसे?... पहले तो शादी के नाम पर बहुत रोना-धोना मचाया हुआ था, और शादी की एक रात में ही उस भगोड़े के संग सो गई..."


    शकुंतला जी का कहा एक-एक शब्द प्रीति के सीने को भेदता जा रहा था। उनके शब्द कानों में जलते अंगारों से धधकने लगे थे। दर्द से आँखें बहने लगी थीं। एक झटके में उसकी खुद की माँ ने उसको हर चीज़ का दोषी करार दिया था।


    अब तक जो फ़िक्र, प्यार और परवाह वो दिखा रही थी, आज सब धोखा, छल, फरेब और दिखावा लगने लगा था प्रीति को। उसको अपनी आँखों और कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि सामने उसी की माँ खड़ी है, और अपने मुँह से ये सब कह रही है।


    शकुंतला जी की बातें सुनकर प्रीति स्तब्ध रह गई, और अविश्वास भरी नज़रों से उन्हें देखते हुए बोली—


    "माँ, ये आप कह रही हैं कि मुझसे सब्र नहीं किया गया?... आप इल्ज़ाम लगा रही हैं मुझ पर कि मैं पहले ही रात उस भगोड़े के साथ... भूल गई माँ, आपने ही कहा था कि पति जो करे, करने देना, अगर मना किया या उसको रोका, तो उसका मन खट्टा हो जाएगा मेरे प्रति, और रिश्ता बिगड़ जाएगा...


    आपने ही कहा था कि अपने पति को खुश रखना, अगर वो तुझसे संतुष्ट हुआ, तो कभी तुझसे दूर नहीं जाएगा? ... ये आपने ही कहा था माँ कि उसको पति होने के सब अधिकार देना, अगर ज़्यादा नखरे दिखाए, और उसने तुझे छोड़ दिया या यहाँ तेरी शिकायत आई, तो अच्छा नहीं होगा...


    कैसे भूल गई आप कि ये सब आपने ही सिखाया था मुझे, और मैंने वही किया जो आपने कहा था... उसने जो किया, मैंने करने दिया... अपनी आत्मा को मारकर उसको अपने शरीर पर अधिकार करने दिया... उसकी इच्छा पूरी की, फिर भी अगर मेरे साथ सब करने के बाद भी वो मुझे छोड़ गया, तो इसमें मेरा क्या दोष है?... अगर उसके वजह से मैं प्रेग्नेंट हो गई, तो इसमें मेरी क्या गलती है?... मैंने तो वही किया जो आपने कहा था..."


    प्रीति ये सब कहते हुए फफक-फफक कर रो पड़ी। इतने दिनों में मन में दबा दर्द आज आँसुओं के रास्ते बाहर आने लगा। शकुंतला जी तो उसकी बातें सुनकर चुप हो गईं, पर माधुरी तुरंत ही उसको ताना मारते हुए गुस्से में बोली—


    "हाँ, ठीक है, मम्मी जी ने कहा था कि पति को खुश रखना, पर उन्होंने ये तो नहीं कहा था कि शादी के अगले दिन ही बच्चा लेकर यहाँ आ जाना? पढ़ी-लिखी लड़की हो, प्रोटेक्शन इस्तेमाल कर लेती...


    माँ ने तुझे पति को खुश रखने को कहा, तो अगर तूने दामाद जी की इच्छाओं को पूरा किया होता, वो तुझसे संतुष्ट होता, तो कभी यूँ अगले दिन तुझे छोड़कर नहीं जाता... ज़रूर तू ही अपने पति को खुश नहीं कर सकी, तभी तो शादी के अगले दिन ही छोड़कर चला गया।


    मर्द तो होता ही छुट्टा साँड़ है, औरत को ही उसको अपने पास बाँधकर रखना होता है, ताकि उसका पति उसे छोड़कर किसी और औरत के पास न जाए, पर तू इतना भी नहीं कर सकी, और अब माँ को इन सबका दोषी ठहरा रही है..."


    इतने दिनों से जो ज़हर माधुरी अकेले में उगलती थी, आज शकुंतला जी के सामने उगल रही थी, और वो खामोशी से सब सुन रही थी।


    माधुरी अपने मन की भड़ास निकाल रही थी उस पर, और प्रीति भीगी आँखों से अपनी माँ को देख रही थी, जिनकी खामोशी प्रीति को ही गलत ठहरा रही थी।


    माधुरी इतने में भी चुप नहीं हुई। उसने विलाप करते हुए कहा—


    "इतनी बड़ी मुसीबत आ गई है घर पर... कितने धूमधाम से शादी की थी, पर इससे एक दिन भी अपनी शादी नहीं संभाली गई... पति छोड़कर भाग गया, और उसका बच्चा लेकर यहाँ आ गई हमारी छाती पर मूँग दलने... हमारी तो सारे समाज में थू-थू होगी... बड़ी बदनामी होगी...


    हमने तो सोचा था कि कुछ दिन में मामला ठंडा हो जाएगा, तो किसी तरह इस अभागिन का घर बसा देंगे, पर अब वो रास्ता भी बंद होता नज़र आ रहा है... एक तो पहले ही छोड़ी हुई औरत से कोई शादी नहीं करता, और अब ये बच्चा और आ गया... अब कोई एक छोड़ी हुई औरत, जिसका बच्चा भी हो, उससे शादी नहीं करेगा, और तू सारी ज़िंदगी हमारे सर का बोझ बनी रहेगी। इससे अच्छा होगा कि इस बच्चे को गिरा दिया जाए..."


    इसके बाद उसने शकुंतला जी को देखकर आगे कहना जारी रखा—"माँजी, मैं तो कहती हूँ यही सबसे सही रास्ता है। बात घर से बाहर जाए, और हमारी बदनामी हो, उससे पहले ही इस पाप को गिरा देते हैं, और फिर जल्दी से जल्दी प्रीति की शादी करवाकर उसको उसके घर भेज देंगे... प्रीति की ज़िंदगी भी सँवर जाएगी, उसका घर भी बस जाएगा, और घर की इज़्ज़त भी मिट्टी में मिलने से बच जाएगी..."


    माधुरी ज़ुबान में शहद घोलते हुए शकुंतला जी को अपनी बातों में फँसाने की कोशिश करने लगी।


    प्रीति अवाक सी उसको देखती ही रह गई। पाप की निशानी और अबॉर्शन की बात सुनकर प्रीति के अंदर दबा गुस्सा फूट पड़ा, और वो गुस्से से चीख पड़ी—


    "पाप की निशानी नहीं है ये!"


    जारी है...

  • 3. Twisted ties of love - Chapter 3

    Words: 1094

    Estimated Reading Time: 7 min

    "माँजी, मैं तो कहती हूँ यही सबसे सही रास्ता है। बात घर से बाहर जाए, और हमारी बदनामी हो, उससे पहले ही इस पाप को गिरा देते हैं, और जिस जल्दी से जल्दी प्रीति की शादी करवाकर उसको उसके घर भेज देंगे... प्रीति की ज़िंदगी भी सँवर जाएगी, उसका घर भी बस जाएगा, और घर की इज़्ज़त भी मिट्टी में मिलने से बच जाएगी..."

    माधुरी ने शहद घोलते हुए शकुंतला जी को अपनी बातों में फँसाने की कोशिश की। प्रीति अवाक सी उसे देखती रही। पाप की निशानी और अबॉर्शन की बात सुनकर प्रीति के अंदर दबा गुस्सा फूट पड़ा, और वह गुस्से से चीख पड़ी—

    "पाप की निशानी नहीं है ये!... अपने किसी आशिक के साथ बिना रिश्ते के रहकर नहीं आई हूँ मैं... शादी हुई है मेरी... जायज़ है मेरा बच्चा, नाजायज़ नहीं, जो आप उसे पाप की निशानी कह रहे हैं..."

    प्रीति का गुस्सा देखकर माधुरी कुछ सहम सी गईं, पर ज़ाहिर नहीं किया, और मीठे शब्दों में बोलीं—

    "प्रीति, ठीक है कि तुम्हारी शादी हुई थी, पर तुम्हारा पति शादी के अगले ही दिन तुम्हें बेसहारा छोड़कर भाग गया है। जब उसने तुम्हें ही नहीं अपनाया, तो तुम्हारे बच्चे को अपना नाम कभी नहीं देगा, और बिन बाप के नाम के बच्चे को दुनिया गंदी ही नज़र से देखती है, फिर तुम्हारे आगे तो अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है... हम सब तुम्हारे अपने हैं, जो कहेंगे, तुम्हारी भलाई के लिए ही कहेंगे। तुम्हें अबॉर्शन करवा लेना चाहिए, ताकि तेरी दोबारा शादी हो सके।"

    माधुरी जी अपनी मीठी-मीठी बातों में उसे बहलाने की कोशिश कर रही थीं, जिससे शकुंतला जी उनके बातों में आ जाएँ, और प्रीति भी उनके काबू में आ सके; पर ऐसा नहीं हुआ। उनके चुप होते ही प्रीति ने गुस्से से जलती निगाहों से उसे देखते हुए कहा—

    "मैं अबॉर्शन नहीं करवाऊँगी... एक बार मेरी ज़िंदगी बर्बाद करके सुकून नहीं मिला आप लोगों को, जो दोबारा वही सब करना चाहते हैं मेरे साथ?"

    "प्रीति, ये कौन सा तरीका है अपनी भाभी से बात करने का, और क्या गलत कहा माधुरी ने?... तेरा ही भला सोच रही है न वो?... अगर नहीं गिराएगी बच्चा, तो क्या करेगी इसके साथ?

    शादी के अगले दिन पति छोड़कर भाग गया, और अपने साथ ये बच्चा ले आई है, जानती भी है कि अगर लोगों को पता चलेगा, तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी हमारी?... क्या चाहती है तू कि सारी ज़िंदगी दुनिया के ताने सुने, और तेरे साथ-साथ उस भगोड़े के बच्चे को पालते रहें?"

    शकुंतला जी की बातों से प्रीति को गहरा आघात पहुँचा। वह उस दिन उसकी माँ नहीं थी; उन्हें उसका दर्द नज़र ही नहीं आ रहा था। उनके दिलों-दिमाग पर माधुरी जी की बातें हावी हो चुकी थीं, और अब उन्हें बस अपनी इज़्ज़त की परवाह थी, बेटी की नहीं। प्रीति के लबों पर दर्द भरी मुस्कान फैल गई—

    "मेरा भला सोच रहे हैं आप... भला ही तो किया था जो मेरी मर्ज़ी के बिना मेरी शादी उस धोखेबाज़ से करवाकर मेरी ज़िंदगी तबाह कर दी, अब आपको मेरा और भला करने की कोई ज़रूरत नहीं है... मैं अपना भला-बुरा खुद सोच सकती हूँ, आपके और भाभी के इस एहसान की कोई ज़रूरत नहीं मुझे...

    समझ गई हूँ मैं कि आपको चिंता मेरी नहीं, अपनी है... बल्कि अपनी और समाज की फ़िक्र सता रही है आपको... आप पर बोझ हूँ न मैं और मेरा बच्चा, इसलिए मेरे बच्चे को मारकर मेरी दूसरी शादी करवाकर इस बोझ से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आपको इतना कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है... मैं खुद आपके सर से इस बोझ को उतार दूँगी...

    मैं नहीं रहूँगी यहाँ। चली जाऊँगी आप सबसे बहुत दूर... समाज की चिंता है न आपको, तो कह दीजिएगा सबको कि मर गई आपकी बेटी, तब कोई आपकी इज़्ज़त पर कीचड़ नहीं उछालेगा..."

    प्रीति ने यह तो कह दिया, पर वह खुद समझ रही थी कि किस क़दर दर्द में थी वह अभी, कितनी तकलीफ हो रही थी उसे। आँखों में लाली उतर आई थी, पर उसने अपने आँसुओं को ज़हर के घूँट समझकर पी लिया। उसकी बात सुनकर माधुरी जी पर कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ा, पर शकुंतला जी स्तब्ध रह गईं।

    वही अंदर से आती चिल्लाने की आवाज़ें सुनकर राजेश वहाँ पहुँच गया था, और प्रीति की बात सुनकर अचंभित सा उसे देखने लगा था। उसने प्रीति के चुप होते ही हैरानी से कहा—

    "छोटी, तू ये क्या कह रही है?"

    प्रीति के कानों में जब राजेश की आवाज़ पड़ी, तो उसका सब्र जवाब दे गया। उसने भरी आँखों से राजेश को देखा, और रुँधे गले से बोली—

    "मेरी क्या गलती है भैया?... सब मुझे ही भला-बुरा कह रहे हैं, ऐसा क्या गलत किया है मैंने?... नहीं करना चाहती थी शादी, तो ज़बरदस्ती शादी करवा दी... कहा, पति जो करे, करने देना, और जब अब वो मेरे साथ इतना सब करके भी मुझे छोड़कर चला गया, तो हर कोई मुझे ही क्यों दोष दे रहा है?...

    औरत उपभोग की वस्तु नहीं है!... मैं क्या कोई चीज़ हूँ जो उसको संतुष्ट करती?... सब कह रहे हैं कि मुझ में ही कमी है, मैं ही उसको अपने पास बाँधकर नहीं रख सकी, तो क्या वो जानवर था जो मैं उसे जंजीरों में बाँधती रहती?... वो पहले से किसी और से प्यार करता था, सोच रखा था उसने सब पहले से, तो कैसे जबरदस्ती उसको अपने पास रखती?...

    सब मुझे कह रहे हैं कि मैं उसे खुश नहीं रख सकी, संतुष्ट नहीं कर सकी उसे, इसलिए मुझे छोड़कर चला गया वो... अपनी मनमर्ज़ी तो कर गया वो... सब तो खो दिया मैंने अपना, न चाहते हुए भी खुद पर उसको अधिकार दे तो दिया था मैंने, इससे ज़्यादा और क्या देती मैं उसे?... कैसे करती उसको खुश?...

    सब मुझे गलत कह रहे हैं, पर मेरी क्या गलती है इन सब में?... पति था न वो मेरा, तो अगर मैंने उसको नहीं रोका, तो कौन सा गलत काम कर दिया मैंने? अगर वही मैं रोक देती, और वो मुझे यहाँ फेंक जाता, तब भी सब मुझे ही गलत ठहराते...

    मैंने वही किया जो सबने कहा... गलती उसकी थी। जब उसको किसी और से प्यार था, तो मुझसे शादी ही नहीं करनी चाहिए थी, जब मुझे छोड़कर ही जाना था, तो नहीं आना था न मेरे करीब, पर कोई उसको कुछ नहीं कह रहा... सब बस मुझे दोष दे रहे हैं... कोई मेरा दर्द, मेरी तकलीफ नहीं समझ रहा... कोई मेरी तकलीफ नहीं समझ रहा..."

    प्रीति बिलख-बिलखकर रो पड़ी। उसकी बातें सुनकर शकुंतला जी के चेहरे के भाव कोमल हो गए। शायद अपनी बेटी का दुख सुनकर माँ की ममता जाग उठी थी, पर अब भी समाज क्या कहेगा, इसका डर उस प्यार पर भारी पड़ गया था।

  • 4. Twisted ties of love - Chapter 4

    Words: 1104

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति बिलख-बिलखकर रो पड़ी। उसकी बातें सुनकर शकुंतला जी के चेहरे के भाव कोमल हो गए। शायद अपनी बेटी का दुख सुनकर माँ की ममता जाग उठी थी, पर अब भी समाज क्या कहेगा, इसका डर उस प्यार पर भारी पड़ गया था।


    माधुरी को तो जैसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा था, और धीरज जी वापस जा चुके थे वहाँ से। राजेश अपनी बहन की यह हालत देख नहीं सका। उसने प्रीति को अपने सीने से लगा लिया, और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला—

    "तूने कुछ गलत नहीं किया बेटा... मेरी बहन कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकती... तेरा कोई दोष नहीं था... अब कोई तुझे कुसूरवार नहीं ठहराएगा... किसी चीज़ के लिए तुझ पर कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा... अब वही होगा जो तू चाहेगी...

    तुझे अबॉर्शन नहीं करवाना, तो कोई तुझे मजबूर नहीं करेगा... तुझे दूसरी शादी नहीं करनी, तो कोई तुझ पर प्रेशर नहीं बनाएगा... तुझे कहीं जाने की कोई ज़रूरत नहीं... ये घर जितना मेरा है, उतना तेरा भी है, और जब तक तेरा भाई ज़िंदा है, कोई तुझे इस घर से जाने को नहीं कहेगा... मैं उठाऊँगा तेरे और तेरे बच्चे की ज़िम्मेदारी... तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं।"


    राजेश की बात सुनकर माधुरी की त्योरियाँ चढ़ गईं। इसी बात का डर था उन्हें, इसलिए शकुंतला जी को बहका रही थी, और अपनी बातों में फँसाकर प्रीति से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाना चाहती थी; पर अब राजेश की बात सुनकर उनके छाती पर साँप लोट रहा था। उसका बस चलता, तो अभी प्रीति को डंक मारकर यहीं उसका काम तमाम कर देती।


    मन में इतना ज़हर भरा था प्रीति के प्रति, जो उसके चेहरे पर झलकने लगा था; पर राजेश के सामने वो कुछ ऐसा नहीं कहना चाहती थी, जिससे उन्हें उनके बुरे इरादों की भनक भी लगे, इसलिए ज़हर के घूँट पीकर खामोश रह गई। शकुंतला जी भी कुछ कह न सकीं।


    राजेश के सीने से लगी प्रीति अब भी सिसक रही थी। वहाँ सन्नाटा पसर गया था, और सन्नाटे में प्रीति की सिसकियों की आवाज़ गूंज रही थी। राजेश प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसको चुप करवाने की कोशिश कर रहा था।


    अभी कुछ देर ही हुई थी कि धीरज जी वहाँ आ गए। उन्होंने राजेश को देखकर गंभीरता से कहा—

    "हमने प्रीति के ससुराल में बात कर ली है। वे लोग इन्हें और इसके बच्चे को अपने पास रखने और सारी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार हैं, तो आप आज ही इन्हें इसके ससुराल छोड़ आएँ।

    वैसे भी गलती उनकी है, तो सज़ा हमारा परिवार क्यों भुगते?... उनका बेटा धोखा देकर भागा है, तो अब वही अपनी बहू और उसके बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाएँगे, और यही ठीक है। इससे दोनों परिवारों की इज़्ज़त बची रहेगी।"


    एक बार फिर अपनी बेटी के ऊपर इज़्ज़त को रखा गया, यह देखकर प्रीति के लबों पर बेबसी और दर्द भरी मुस्कान फैल गई। माधुरी और शकुंतला जी तो इस फ़ैसले से बड़ी खुश हुईं।


    माधुरी की तो जैसे मन की मुराद पूरी होने को थी; पर राजेश को धीरज जी का फ़ैसला बिल्कुल पसंद नहीं आया था, वो बिल्कुल इस बात का पक्षधर नहीं था कि बस घर की इज़्ज़त को बचाने के लिए प्रीति को उस घर वापस भेजा जाए। इसलिए उसने तुरंत ही ऐतराज़ जताते हुए कहा—

    "पापा, छोटी उस घर में नहीं जाएगी।"

    "मैं जाऊँगी भैया।" प्रीति ने एकदम से दृढ़ता से कहा, तो सब उसको देखने लगे। प्रीति ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहा—

    "मैं वापस जाऊँगी भैया... वहाँ भले ही सब अंजान हैं, पर मेरे अपनों से ज़्यादा साथ दिया है उन्होंने मेरा। उन्होंने मुझ में कमियाँ नहीं निकाली, अपने बेटे के जाने के लिए मुझे दोष नहीं दिया... उन्होंने झूठी सहानुभूति नहीं दिखाई मुझसे, बल्कि दिल से मेरा साथ दिया, मुझे संभाला; जबकि मेरे अपने यहाँ दो चेहरे लेकर घूम रहे हैं... मेरी हालत जो उनकी ही देन है, उस पर रोते भी हैं, और मुझे ही सबके लिए ज़िम्मेदार ठहरा कर कोसने से भी पीछे नहीं रहते।

    यहाँ तो मैं सब पर बोझ बन गई हूँ, इसलिए ये लोग मेरा अबॉर्शन करवाकर, मेरी दूसरी शादी करवाना चाहते हैं; इससे बेहतर तो मैं वहीं चली जाऊँ। कम से कम वहाँ वे मेरे बच्चे को मारने को तो नहीं कहेंगे, मुझ पर अपना फ़ैसला तो नहीं थोपेंगे, मेरे विधाता नहीं बनेंगे, मुझे दूसरी शादी करने को नहीं कहेंगे...

    मैं बोझ नहीं बनूँगी किसी पर भी। खुद से काम करके अपने और अपने बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाऊँगी, और वहाँ रहूँगी जहाँ क़द्र होगी हम दोनों की। लोग बोझ नहीं समझेंगे वहाँ हमें... वहाँ मुझे इज़्ज़त मिलेगी, जो यहाँ रहकर कभी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं यहाँ नहीं रहूँगी... Please आप मेरे फ़ैसले में मेरा साथ दे दीजिए... मैं अब एक पल भी यहाँ नहीं रहना चाहती... मुझे वापस वहाँ छोड़ आइए।"


    उसके शब्द दर्द से सने थे, और यह दर्द उसके अपनों का दिया था। उसका यह फ़ैसला उसकी तकलीफ को दर्शा रहा था, जो उसको यहाँ उसके अपने परिवार, अपनी माँ की कड़वी बातों से पहुँची थी। इतना सब सुनने और देखने के बाद उसके रिक्वेस्ट को राजेश ठुकरा नहीं सका। उसकी बातें सुनकर उसकी खुद की आँखें नम हो गईं। उसने प्रीति के सर पर हाथ रख दिया—

    "अगर तुम्हारा यही फ़ैसला है, और इसी में तुम्हारी खुशी है, तो मैं तुम्हें जबरदस्ती यहाँ रोकूँगा नहीं। तुम्हारे फ़ैसले में तुम्हारा साथ दूँगा; पर वहाँ जा रही हो, इसका मतलब यह नहीं कि इस घर से तुम्हारा रिश्ता टूट गया... और कोई नहीं, पर तेरा भाई अब भी ज़िंदा है, और जब भी तुझे मेरी ज़रूरत हो, बस एक बार मुझे बता देना, मैं आ जाऊँगा तेरे पास... मैंने हमेशा बस तेरा भला चाहा है, अब भी बस यही कहूँगा कि जहाँ रहो, खुश रहो..."


    प्रीति की आँखें छलक आईं। बैग पैक ही था। वह राजेश के साथ घर से निकल गई। पिछली बार जब गई थी, तो कितना रोई थी सबके गले लग-लगकर; पर इस बार उसकी आँखों से आँसू की एक बूँद नहीं निकली, और न वह किसी से मिली। एक शब्द नहीं कहा किसी से, पलटकर उन्हें या घर को देखा तक नहीं, जैसे सबसे नाता तोड़कर जा रही हो।


    आज उसने मन ही मन इस घर से जुड़े हर रिश्ते को तिलांजलि दे दी थी; एक राजेश ही रह गया था, जिसको वह अपनों में शामिल कर सकती थी; पर कब तक साथ देगा वह उसका?... उसकी शादी हो गई है, अपना परिवार बनेगा, तो नए रिश्तों के बीच शायद वह भी उसको भूल ही जाएगा; यही सोचकर प्रीति ने उसके प्रति भी नीरस बने रहने का फ़ैसला कर लिया था, और निकल पड़ी थी फिर उन्हीं रास्तों की तरफ़, जहाँ से उसकी ज़िंदगी का नया संघर्ष शुरू होने वाला था।

  • 5. Twisted ties of love - Chapter 5

    Words: 1994

    Estimated Reading Time: 12 min

    राजेश ने प्रीति के फैसले का सम्मान करते हुए उसे उसके ससुराल छोड़ दिया, पर स्वयं उस घर में कदम नहीं रखा। प्रीति को समझाकर, और उसका सामान बाहर गेट पर रखकर, वह दरवाज़े से ही लौट गया। उसे जाते देखकर, इतनी देर में पहली बार प्रीति की आँखों में नमी आई; पर उसने आँसुओं को बाहर आने की इजाज़त नहीं दी।

    खुद को मज़बूत बनाए रखते हुए, उसने अपने आँसू आँखों में ही सुखा लिए, और डोर बेल बजा दी। अंदर सब शायद उसी के इंतज़ार में बैठे थे। डोर बेल बजने के अगले ही पल दरवाज़ा खुल गया।

    सामने गरिमा जी खड़ी थीं। प्रीति ने आदर सहित अपनी सास के पैर छूने चाहे; पर उन्होंने बीच में ही उसे रोकते हुए, अपने सीने से लगा लिया। प्रीति उनके ममता भरे एहसास को महसूस करके भी शांत और गंभीर बनी रही; जबकि उसकी अवस्था देखकर गरिमा जी की आँखों से आँसू बरसने लगे। उन्होंने भारी गले से कहा—

    "ये क्या हाल बना लिया आपने अपना, बहू?"

    "मैं ठीक हूँ मम्मी जी।" प्रीति ने उनसे अलग होते हुए, बिना किसी भाव के जवाब दिया।

    गरिमा जी कुछ पल उसे खामोशी से देखती रहीं। उसकी हालत की ज़िम्मेदार कहीं न कहीं वो खुद भी थीं। बेहद शर्मिंदा थीं वो, प्रेम पर गुस्सा आ रहा था कि कैसे उनकी ही औलाद इतनी दुष्ट निकली, कि एक मासूम बच्ची की ज़िंदगी बर्बाद करके भाग गया वो। बेबस इतनी कि चाहकर भी प्रीति के लिए कुछ कर नहीं सकती थीं।

    उन्होंने खुद को संभाला, फिर प्रीति का सामान और उसे लेकर अंदर चली आईं। अवदेश जी वहीं थे। प्रीति की हालत देखकर वो भी सदमे में चले गए थे।

    जब शादी करके आई थी, तो कैसे खिला हुआ फूल लगती थी, और अब कैसे कुम्हला गया था उसका चेहरा। शरीर भी पहले से कमज़ोर लग रहा था। लग रहा था जैसे किसी बड़ी बीमारी से ग्रस्त हो। उन्हें भी उस बच्ची पर दया आने लगी; पर कर भी क्या सकते थे? उन्होंने एक नज़र गरिमा जी को देखा, फिर कमरे में चले गए। उनका इशारा समझते हुए, गरिमा जी ने प्यार से प्रीति के गाल को छूकर कहा—

    "प्रीति बेटा, आप अपने कमरे में जाइए, हम कुछ बनाकर लाते हैं आपके लिए। कितनी कमज़ोर हो गई है आप कुछ ही दिनों में। ऐसी हालत में आपको अपना ध्यान रखना चाहिए, इसलिए आप जाकर आराम करिए, हम आपके खाने को कुछ पौष्टिक बनाकर लाते हैं।"

    प्रीति खाने से इंकार करने वाली थी; पर उनकी बात सुनकर उसके ज़हन में उसके बच्चे का ख्याल आया, और वह कहते-कहते रुक गई। फिर उनकी बात पूरी होने के बाद, सहजता से बोली—

    "मम्मी जी, मैं उस कमरे में नहीं रहूँगी।"

    उसके मन की पीड़ा जो उसकी अपनी माँ नहीं समझ सकी, वो गरिमा जी समझ गईं। वो हौले से मुस्कुराईं, फिर मानसी को देखकर बोलीं— "मानसी बेटा, भाभी को अपने कमरे में ले जाओ।"

    मानसी ने तुरंत सिर हिलाया, और उसका सामान लेकर उसे अपने कमरे में लेकर चली गई। कुछ देर बाद गरिमा जी कमरे में आईं, और अपने हाथों से उसे खाना खिलाने लगीं; पर प्रीति ने उन्हें रोकते हुए कहा—

    "मैं खुद से खा लूँगी मम्मी।"

    "अच्छी बात है। आप खाना खाइए, और पूरा खत्म कीजिए। हम आपके लिए बादाम वाला दूध लेकर आते हैं।" गरिमा जी ने मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा, और वहाँ से चली गईं। प्रीति बेमन से निवाले गटकने लगी।

    कुछ देर बाद गरिमा जी फिर आईं, और उसे दूध पिलाने के बाद, उसे लिटाकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगीं। कुछ ही देर में प्रीति को नींद आ गई। जाने कितनी रातों से ठीक से सोई नहीं थी। जब गरिमा जी का ममता और स्नेह भरा हाथ सर पर आया, तो जल्दी ही वह नींद की आगोश में समा गई।

    गरिमा जी ने अपने आँसू पोंछे, और कमरे का दरवाज़ा हल्का बंद करते हुए कमरे से बाहर चली गईं। अवदेश जी पुलिस का फ़ोन आने पर पुलिस स्टेशन गए हुए थे। मानसी छत पर टहलते हुए अपनी दोस्त से बात कर रही थी। भाई के जाने से दुखी तो थी वह। इन दिनों घर का माहौल भी तनावपूर्ण था, तो अपनी सहेली से अपना दुख बाँट रही थी।

    गरिमा जी प्रीति को सुलाकर कमरे से बाहर निकली ही थी कि डोर बेल बज उठी। वह दरवाज़ा खोलने चली आईं। गेट खोला, तो सामने प्रेम की ही उम्र का एक लड़का खड़ा था। उसका रंग थोड़ा साँवला था, मगर चेहरा बेहद आकर्षक। तीखे नयन, नक्श और चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास झलक रहा था। कद, काठी मजबूत थी — हीरो जैसी बॉडी नहीं, पर पूरा बदन फिट और गठीला।

    चेहरे पर हल्की दाढ़ी, मूंछ थी, जो उसके लुक में एक खास सा चार्म जोड़ रही थी। उसने लाइट ब्लू शर्ट और कैमल कलर की पैंट पहन रखी थी, सिंपल फॉर्मल लुक में भी वह काफी स्मार्ट लग रहा था। उसकी गहरी भूरी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी।

    होठों पर एक शांत सी मुस्कान थी। जैसे ही उसकी नज़र गरिमा जी पर पड़ी, वह तुरंत मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा और प्यार से बोला — "मामी!" फिर उनके गले लग गया।

    यह था आयुष्मान उर्फ़ आयुष। अवदेश जी की बहन का बेटा। उनकी बहन और जीजा जी को मरे सालों बीत चुके हैं। उनके देहांत के बाद आयुष को उनके पिता के छोटे भाई ने अपने पास रखने से इंकार कर दिया, तब अवदेश जी अपने भांजे को अपने साथ अपने घर ले आए, और अपने जीजा जी और बहन की आखिरी निशानी, अपने बेटे को बहुत लाड़, प्यार और दुलार से पालने लगे।

    प्रेम और आयुष हमउम्र थे; पर आयुष बचपन से काफ़ी समझदार और दिमाग का बहुत तेज़ था। शांत, सरल स्वभाव का मालिक था वह, इसलिए अवदेश जी को बहुत प्रिय था। गरिमा जी का भी विशेष स्नेह प्राप्त था आयुष को।

    दोनों ने कभी उसे माता, पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। अपने बेटे जैसे पाला। उन्होंने ही उसकी पूरी ज़िम्मेदारी उठाई, और हर बार आयुष ने उनके सर को गर्व से ऊँचा किया।

    कॉलेज पूरा होने के बाद उसकी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया, और अच्छी जॉब के लिए बहुत धक्के खाने पड़े उसे; पर काबिल था वह। काफ़ी मेहनत और बहुत जगह धक्के खाने के बाद उसे गुड़गाँव की एक MNC में जॉब मिल गई, और बीते एक साल में जी तोड़ मेहनत करके उसने कंपनी में अपनी एक स्टेबल पोज़िशन भी बना ली है।

    बॉस के विश्वसनीय लोगों में शामिल हो चुका है, और यही वजह थी कि वह प्रेम भी शादी में नहीं आ सका था, क्योंकि तब बॉस के साथ आउट ऑफ़ इंडिया जाना पड़ा था उसे; पर लौटते ही सीधे वह यहाँ आया था, और काफ़ी खुश था, क्योंकि लगभग साल भर बाद लौटा था। शुरू में नई जॉब थी, तो आ नहीं सका, फिर मौक़ा नहीं मिला।

    शुरू में अपडाउन करता था; पर बहुत मुश्किल पड़ता था, इसलिए पहली सैलरी से और लोन लेकर उसने वहीं, वहीं ऑफ़िस के पास ही एक फ़्लैट ले लिया था, और एक साल में उसने लोन पे करके वह कर्ज़ भी अपने सर से उतार दिया है। पैकेज अच्छा था, जिसमें कुछ अपने पास रखता है, और बाकी यहाँ भेजता है। अगर गरिमा जी और अवदेश जी ने उसे बेटा बनाकर पाला, तो आयुष ने भी शुरू से ही एक बेटे की सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाईं।

    आज भी वह अपनी मामी कम माँ से मिलकर बहुत खुश था। पर उसे देखते ही गरिमा जी अपना सब्र खो बैठीं, और उसके गले से लगे रो पड़ीं; जिससे आयुष्मान ने चौंकते हुए उन्हें खुद से अलग किया, और उनके आँसू पोंछते हुए हैरान, परेशान सा बोला—

    "मामी, क्या हुआ आपको?... आप ऐसे रो क्यों रही हैं?... सब ठीक तो है यहाँ...?"

    आयुष्मान के सवाल को सुनकर गरिमा जी ने रोते हुए कहा— "कुछ भी ठीक नहीं बेटा... यहाँ कुछ भी ठीक नहीं... सब कुछ बर्बाद हो गया... हमारी सालों की बनाई इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई..."

    गरिमा जी की बातें सुनकर, और उन्हें यूँ रोते देखकर आयुष्मान और ज़्यादा परेशान हो गया। वह अपना सामान लिए उन्हें अंदर लेकर आया, और उन्हें सोफ़े पर बिठाकर उन्हें पानी पिलाया। जब वह कुछ शांत हुईं, तो उनका हाथ थामकर नीचे फ़र्श पर बैठ गया, और शांत स्वर में बोला—

    "मामी, क्या हुआ है?... आपको ऐसे मैंने पहले कभी नहीं देखा। प्रेम की शादी हुई है, तो आपको तो खुश होना चाहिए, फिर आप रो क्यों रही थीं?... क्या कुछ गलत हो गया है?... अगर कोई बात है, तो मुझे बताइए, क्या पता मैं कुछ कर सकूँ।"

    गरिमा जी कुछ पल खामोश सी उसे देखती रहीं, फिर रुँधे गले से बोलीं—"आप कुछ नहीं कर सकते बेटा... कोई इसमें कुछ नहीं कर सकता... हमारे एक गलत फ़ैसले ने एक मासूम की ज़िंदगी बर्बाद कर दी... प्रेम शादी करके अगले ही दिन घर छोड़कर भाग गया... उन्होंने हमारी परवरिश पर सवाल उठवा दिए, और उनके इस क़दम ने उस लड़की की ज़िंदगी बर्बाद कर दी, जिसे हम बहू बनाकर इस घर में लाए थे, और उनकी आज ये हालत है, उसके ज़िम्मेदार कहीं न कहीं हम हैं... कुसूरवार हम हैं; पर सज़ा वो बेचारी बच्ची भुगत रही है..."

    गरिमा जी की बात सुनकर आयुष्मान को झटका सा लगा। उसने चौंकते हुए कहा—"ये आप क्या कह रही हैं मामी?... ऐसा कैसे कर सकता है प्रेम...?"

    "उन्होंने ऐसा ही किया है बेटा। वो अपने ऑफ़िस की किसी लड़की को चाहते थे; पर आपके मामा उनके रिश्ते के ख़िलाफ़ थे। प्रेम शादी नहीं करना चाहता था; पर हम दोनों के दबाव में आकर उन्होंने शादी कर ली।

    हमने सोचा था शादी के बाद उनका मन बदल जाएगा, और वो प्रीति को अपना लेंगे; पर वो शादी की रात प्रीति के साथ बिताकर, अगली सुबह ही उसे छोड़कर भाग गए... उस बच्ची की पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी उन्होंने...

    अगर बस शादी हुई होती, और उन्होंने ऐसा क़दम उठाया होता, तो हम प्रीति की कहीं और शादी करवा देते; पर वो माँ बनने वाली है प्रेम के बच्चे की, और हम समझ नहीं पा रहे कि क्या करें...?"

    प्रीति नाम सुनकर आयुष्मान के चेहरे के भाव कुछ बदल से गए; पर फिर सहज हो गए। गरिमा जी की पूरी बात सुनने के बाद तो उसकी हैरानी का कोई ठिकाना ही नहीं रह गया था। वह अचंभित सा उन्हें देखते हुए बोला—

    "मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि प्रेम ऐसा कुछ कर सकता है।"

    "सोचा तो हमने भी नहीं था बेटे; पर उन्होंने हमारे विश्वास को तोड़ दिया। उस बच्ची का जीवन तबाह कर दिया उन्होंने। उन्हें माँ बनाकर जाने कहाँ छुपकर बैठे हैं, और यहाँ इस बच्ची की अवस्था इतनी दयनीय है कि हमसे देखा नहीं जाता। वो बच्चे को गिराने को तैयार नहीं, उनके परिवार वाले उन्हें रखना नहीं चाहते। प्रेम का कुछ पता नहीं; ऐसे में उस मासूम और उसके अंदर पल रही नन्ही सी जान का क्या होगा, ये चिंता हमें खाए जा रही है।"

    गरिमा जी की आँखें फिर नम हो गईं, तो आयुष्मान ने उन्हें संभालते हुए कहा—"आप रोइए मत मामी, और हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा। प्रेम कहाँ जाएगा भागकर?... जल्दी ही वह मिल जाएगा, और मैं उसे समझाऊँगा। उसे अपनी पत्नी और बच्चे को अपनाना ही होगा, यूँ अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकता वह... सब ठीक हो जाएगा मामी, बस आप हिम्मत रखिए।"

    आयुष्मान के सांत्वना देने पर गरिमा जी को कुछ संबल मिला। उन्होंने अपने आँसू पोंछे, फिर वहाँ से उठते हुए बोलीं—

    "बेटा, आज जाकर हाथ, मुँह धोकर फ़्रेश हो जाइए। इतनी दूर से आए हैं, थक गए होंगे। हम आपके लिए चाय, नाश्ता लेकर आते हैं।"

    गरिमा जी जैसे ही जाने को मुड़ीं, आयुष्मान ने तुरंत उन्हें रोकते हुए कहा—"नहीं मामी, अभी भूख नहीं है, तो अभी कुछ नहीं खाऊँगा। बस फ़्रेश होकर कुछ देर आराम करूँगा... वैसे मामी, मामा जी और मानसी कहाँ हैं?"

    "आपके मामा जी तो पुलिस स्टेशन गए हैं। आजकल वहीं के चक्कर काटते हैं, और मानसी छत पर होगी। जाकर मिल लीजिए। बीते दिन जो कुछ हुआ, उसके वजह से उदास सी रहने लगी है। आपको देखेंगी, तो खुश हो जाएंगी।"

    आयुष्मान ने सिर हिलाया, और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया।

  • 6. Twisted ties of love - Chapter 6

    Words: 1143

    Estimated Reading Time: 7 min

    मानसी छत पर घूमते हुए अपनी दोस्त से बात कर रही थी। तभी अचानक उसकी नज़र आयुष पर पड़ी। मानसी ने आयुष को देखते ही फ़ोन काटा और आकर सीधे उसके सीने से लग गई। भारी गले से बोली,

    "आयुष भैया, अच्छा हुआ आप आ गए। देखिए न क्या हो गया यहाँ। प्रेम भैया घर से भाग गए। भाभी को शादी के अगले ही दिन छोड़कर चले गए। उनका कहीं कुछ अता-पता नहीं। पता नहीं वो कहाँ चले गए हैं और वापिस ही नहीं आ रहे। आप उन्हें ढूँढ लाइए न और सब ठीक कर दीजिये।"

    मानसी अपने दोनों भाइयों के काफ़ी करीब थी। प्रेम के जाने का दुख उसे हुआ, पर आयुष के आने से एक उम्मीद मिली। आयुष ने भी अपनी बहन को अपने सीने से लगा लिया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोला,

    "मैं आ गया हूँ न। अब सब ठीक कर दूँगा। किसी को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। जल्दी ही प्रेम वापिस आ जाएगा और फिर सब ठीक हो जाएगा।"

    मानसी उसके आश्वासन पर कुछ शांत हो गई। कुछ देर दोनों भाई-बहन साथ रहे, फिर आयुष्मान फ़्रेश होने अपने रूम में चला गया।

    दोपहर से शाम हो गई। प्रीति अपने रूम से बात ही नहीं आई। अवधेश जी फिर आज खाली हाथ मायूस से लौटे, क्योंकि प्रेम का अब भी कहीं कुछ अता-पता नहीं था। आखिरी लोकेशन भी इसी घर की थी; उसके बाद फ़ोन बंद था, इसलिए उसको ढूँढना मुश्किल हो गया था।

    इस वक़्त सब डिनर के लिए साथ बैठे थे। आयुष्मान के आने से घर का मातम भरा माहौल कुछ बदला ज़रूर था, पर सबकी चिंता वैसी ही बनी हुई थी।

    सुबह से प्रीति अपने रूम में ही थी। इसलिए गरिमा जी ने मानसी को उसको खाने के लिए बुलाने भेजा। उन्होंने कहा कि सबके बीच रहेगी तो मन थोड़ा ठीक होगा। प्रीति पहले तो इंकार करती रही, फिर आखिर में मानसी उसको बाहर सबके बीच ले ही आई।

    मानसी जब घुमाकर उसको आयुष्मान के सामने लेकर आई और उसको अपने चेयर पर बिठाया, तब जाकर आयुष्मान की नज़र प्रीति के चेहरे पर पड़ी। इसके साथ ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह आँखें फाड़े स्तब्ध सा उसको देखने लगा। हल्के हिलते लबों से धीमी सी आवाज़ निकली,

    "प्रीति,"

    और दिमाग में कोई पुराना दृश्य घूम गया।


    फ्लैशबैक

    कॉलेज का नया सेशन शुरू हो चुका था। फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स पहली बार कॉलेज की दहलीज़ पर कदम रख रहे थे। स्कूल की छोटी-सी दुनिया से निकलकर अब वे एक नई और बड़ी ज़िंदगी की शुरुआत करने जा रहे थे। दिल में उत्साह था—नए लोगों से मिलने का, दोस्ती करने का और कुछ नया सीखने का।

    चारों ओर नई मुस्कानें बिखरी थीं। कुछ चेहरे उत्साहित थे, तो कुछ थोड़े उदास, शायद पुराने दोस्तों को पीछे छोड़कर आए थे, लेकिन नए रिश्ते बनाने को तैयार भी थे।

    कॉलेज का माहौल उस दिन कुछ अलग ही था। छुट्टियों के बाद पुराने दोस्त आपस में मिलकर हँसी-मज़ाक कर रहे थे। ग्रुप्स बन चुके थे और हर कोने में रौनक थी। क्लासेज तो बस नाम की थीं, आज असली क्लास तो गपशप की लगनी थी।

    उसी चहल-पहल के बीच, आयुष्मान अपने थर्ड ईयर की क्लास की ओर बढ़ रहा था। उसे पहले ही टाइम टेबल मिल चुका था, इसलिए वह कॉरिडोर से होकर सीधे अपने क्लासरूम की तरफ जा रहा था।

    तभी एक क्लास के पास से गुज़रते हुए, उसके कानों में किसी की खिलखिलाहट की मीठी आवाज़ पड़ी—जैसे कोई मधुर संगीत हो। अनजाने ही उसके कदम रुक गए। उसकी नज़रें खुद-ब-खुद उस आवाज़ की ओर मुड़ गईं और उसकी नज़र क्लास के अंदर उस लड़की पर जा ठहरी, जो पहली बेंच पर कुछ लड़कियों के बीच बैठी हँस रही थी।

    वह प्रीति थी।

    हाँ, वही प्रीति... लेकिन आज की प्रीति पहले से बिल्कुल अलग लग रही थी। उसने ब्लैक हाई-नेक टॉप पहना था और वाइट कार्गो पैंट। उसके बाल हाई पोनी में बंधे थे, लेकिन कुछ लटें उसके चेहरे पर ढीली होकर गिर रही थीं, जैसे जान-बूझकर उसकी मासूमियत को और भी निखार रही हों। उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी, और वह हँसी... जैसे रौशनी बिखेर रही हो।

    आयुष्मान बस उसे देखता ही रह गया। जैसे वक़्त थम गया हो। उसकी नज़रें उस पर टिक गईं और हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं।

    तभी अचानक प्रीति की नज़र उस पर पड़ी। किसी अजनबी को खुद को यूँ लगातार देखते देख वह थोड़ी चौंकी, उसकी हँसी थोड़ी थमी... लेकिन उसने गुस्सा नहीं किया। उल्टा, हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई—एक सधी हुई, मासूम मुस्कान।

    और उस एक मुस्कान ने... आयुष्मान का दिल जीत लिया।

    ठीक इसी वक़्त किसी ने आयुष्मान के कंधे पर हाथ रखा। साथ ही एक लड़के की आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया।

    "ओये आयुष, तू यहाँ खड़े होकर क्या कर रहा है यार?.... क्लास में नहीं चलना क्या?"

    आयुष्मान एकदम से हड़बड़ा गया और प्रीति पर से निगाहें हटाकर सर घुमाकर अपने बगल में खड़े लड़के को देखकर बोला,

    "हाँ... हाँ, जाना है न।"

    "तू इतना हड़बड़ा क्यों गया?....... क्या देख रहा था यहाँ खड़े होकर?"

    वह लड़का, जिसका नाम रौनक था और आयुष्मान का एकलौता दोस्त था जो स्कूल से कॉलेज तक उसके साथ रहा था।

    रौनक उसको शक भरी नज़रों से देखने लगा। आयुष्मान ने तुरंत जवाब दिया,

    "ऐसा कुछ भी नहीं.... चल, क्लास में चल।"

    इतना कहकर वह रौनक का हाथ पकड़कर आगे जाने लगा, पर पलटकर एक नज़र अंदर क्लास की तरफ़ देखा। रौनक ने भी उसकी निगाहों का पीछा किया। ठीक उसी वक़्त प्रीति आयुष्मान को देखकर मुस्कुरा दी। आयुष्मान ने तुरंत उस पर से निगाहें हटा दी और आगे बढ़ गया, पर रौनक के मन में शक का बीज पनप चुका था।

    अतीत की याद में गुम आयुष्मान अपने सामने बैठी प्रीति की मन ही मन उस दिन वाली प्रीति से तुलना करने लगा। यह प्रीति तो पहचान में ही नहीं आ रही थी। उदास, मुरझाया हुआ चेहरा, सुनी निगाहें जो अब भी हल्की सूजी हुई थीं, बेतरतीब से बंधे रूखे बाल, खामोश लब जिन पर पपड़ी पड़ चुकी थी, मांग में एकदम हल्का सा सिंदूर लगा हुआ था, गले में मंगलसूत्र झूल रहा था, मेहँदी लगभग छूट चुकी थी और कलाइयाँ सुनी थीं, हल्के गुलाबी रंग की सिंपल सी साड़ी पहनी हुई थी उसने।

    न तो उसे देखकर यह कहा जा सकता था कि उसकी कुछ ही दिनों पहले शादी हुई है और न ही वह पहले वाली प्रीति लग रही थी, जिसकी निश्छल हँसी ने आयुष्मान की निगाहों को उस पर ठहरने को मजबूर कर दिया था।

    इस प्रीति से प्रेम की शादी हुई है, यह जानकर आयुष्मान को अपने अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ और उसका दर्द चेहरे पर छलकने लगा। प्रीति की यह दयनीय हालत देखकर उसका मन तड़प उठा। वह आँखों में दर्द, तड़प, बेकरारी जैसे अनेकों भाव कैद किए एकटक प्रीति को देखने लगा, जबकि प्रीति ने उसके तरफ़ एक बार भी निगाहें नहीं उठाईं।

  • 7. Twisted ties of love - Chapter 7

    Words: 1832

    Estimated Reading Time: 11 min

    इस प्रीति से प्रेम की शादी हुई थी, यह जानकर आयुष्मान को अपने अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ और उसका दर्द चेहरे पर छलकने लगा। प्रीति की यह दयनीय हालत देखकर उसका मन तड़प उठा। वह आँखों में दर्द, तड़प, बेकरारी जैसे अनेकों भाव कैद किए एकटक प्रीति को देखने लगा, जबकि प्रीति ने उसकी तरफ़ एक बार भी निगाहें नहीं उठाईं।

    सब खाना शुरू कर चुके थे, पर आयुष्मान अब भी यूँ ही बैठा हुआ था। गरिमा जी की नज़र जब उस पर पड़ी, तो उन्होंने हैरानी से कहा,

    "आयुष बेटा, खाइए ना, आप बैठे क्यों हैं?"

    आयुष नाम सुनकर प्रीति की पलकें अनायास ही सामने की तरफ़ उठ गईं। जबकि आयुष्मान ने अब उस पर से निगाहें हटा ली थीं। उसने गरिमा जी को देखा और अपने मनोभावों को छुपाते हुए फीकी मुस्कान लबों पर सजाकर बोला,

    "बस खा ही रहा था मामी।"

    "मामी," ये शब्द प्रीति के कानों में गूँजा। सामने बैठे आयुष्मान को देखकर उसके चेहरे के भाव कुछ बदले ज़रूर, पर अगले ही पल वह चेहरा एक बार फिर भावहीन हो गया और सिर झुकाए धीरे-धीरे निवाले अपने गले से नीचे उतारने लगी।

    आयुष्मान ने भी दोबारा उसकी तरफ़ निगाहें नहीं उठाईं। खामोशी से नाश्ता करता रहा, फिर अपने कमरे में जाकर एक-एक करके प्रेम के दोस्तों को फ़ोन करके उसके बारे में पता करने लगा कि कहीं तो वह मिलेगा ही। किसी को तो उसके बारे में पता होगा।

    गरिमा जी प्रीति को सुलाकर अपने कमरे में चली आईं। मानसी के सोने के बाद प्रीति उठकर बैठ गई और बालकनी में आकर सुनी निगाहों से एकटक चाँद को देखने लगी। उसके दिलों-दिमाग में क्या चल रहा था, यह तो बस वही जानती थी।

    अगला दिन शुरू हुआ। प्रीति सारी रात सोई ही नहीं थी। सुबह के छह ही बजे थे कि बाहर से कुछ आवाज़ें आने लगीं, जिससे मानसी की भी नींद खुल गई और प्रीति के साथ वह भी बाहर चली आई। हॉल का नज़ारा देखकर दोनों के कदम ठिठक गए।

    इंस्पेक्टर के साथ दो कांस्टेबल खड़े थे, जिन्होंने प्रेम को पकड़ा हुआ था। उनके साथ एक लड़की भी थी, जिसका पेट कुछ बाहर लग रहा था। शायद वह प्रेग्नेंट थी और देखकर ऐसा लग रहा था जैसे शादीशुदा हो वह।

    प्रेम, जिसको पुलिस इतने दिनों से ढूँढ रही थी, आखिर पुलिस के हाथ आ ही गया था... असल में यह आयुष्मान की सारी रात की मेहनत का नतीजा था। प्रेम के लगभग सभी दोस्तों को जानता था वह। उसने सारी रात कोशिश की, तब जाकर उसके एक दोस्त से प्रेम के बारे में पता चला और आयुष्मान ने तुरंत पुलिस को इस बारे में बता दिया और वे सुबह-सुबह उसे और उसके साथ मौजूद लड़की को उठाकर सीधे वहाँ चले आए।

    आयुष्मान, गरिमा जी, अवधेश जी सब वहाँ मौजूद थे और ये आवाज़ें अवधेश जी की थीं, जो प्रेम पर चिल्ला रहे थे, पर वह एकदम खामोश खड़ा था।

    इंस्पेक्टर ने सबको बता दिया कि प्रेम कहाँ मिला। साथ ही उस लड़की का परिचय भी दिया, जो वर्षा थी, उसकी कलीग या यूँ कहें कि उसके होने वाले बच्चे की माँ, जिससे प्रीति से शादी के कुछ दिन पहले ही प्रेम ने शादी कर ली थी और देखकर लग रहा था जैसे लड़की 3-4 महीने प्रेग्नेंट है। मतलब उनकी शादी ही पहले से उस तरह का रिश्ता था उनके बीच। उसके बावजूद प्रेम ने प्रीति से शादी की और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, इस सच्चाई ने सबके होश उड़ा दिए थे। पीछे खड़ी प्रीति सब कुछ खामोशी से सुन रही थी।

    सारी सच्चाई जानने के बाद तो अवधेश जी का गुस्सा और ज़्यादा बढ़ चुका था। उन्होंने गुस्से में प्रेम के गाल पर ज़ोरदार चाँटा दे मारा। गरिमा जी मुँह पर ओढ़नी रखे फफक कर रो पड़ीं।

    सब सुनने के बाद प्रीति ने एक नज़र दूसरी तरफ़ खड़ी वर्षा को देखा, फिर प्रेम की तरफ़ निगाहें घुमाईं। सब सुनने के बाद प्रेम को देखते ही प्रीति के भावहीन चेहरे पर अनेकों भाव उमड़ने लगे और कदम प्रेम की तरफ़ बढ़ गए। वह ठीक प्रेम के सामने जाकर खड़ी हो गई।

    सबकी नज़रें अब उस पर ठहर गईं। असल में प्रेम अगर किसी का गुनाहगार था, तो वह प्रीति का था। किसी की ज़िंदगी पर उसके उठाए इस कदम का सबसे बुरा असर पड़ा था, तो वह प्रीति थी; किसी को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ दी थी उसने, तो वह प्रीति थी।

    असली गुनाहगार अगर वह किसी का था, तो वह प्रीति थी, तो कायदे से उससे सवाल करने का और उसको उसके गुनाह की सज़ा सुनाने का अगर किसी को सबसे ज़्यादा हक़ था, तो वह प्रीति को था।

    कुछ पल वहाँ गहरी खामोशी छाई रही। फिर प्रीति ने रोषपूर्ण नज़रों से उसे देखते हुए सवाल किया,

    "क्यों किया तुमने मेरे साथ ऐसा? अगर पहले से किसी और से प्यार था, नहीं करनी थी शादी तो इंकार कर देते। क्यों बांधा मुझे इस रिश्ते की बेड़ियों में? अगर पहले से सोच लिया था और शादी के अगले दिन छोड़कर ही जाना था तो नहीं आना चाहिए था मेरे करीब।

    जब पहले ही किसी और लड़की के साथ इतने आगे बढ़ चुके थे, उसके साथ ज़िंदगी बिताना चाहते थे तो क्यों की तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद? क्यों आए मेरे करीब? क्यों दिया मुझे इतना दर्द? क्यों मुझ पर इल्ज़ाम लगवा दिए? किस बात की दुश्मनी निकाली तुमने मुझसे और क्यों?"

    उसकी गुस्से भरी चीखों और इन सवालों में उसका दर्द झलक रहा था जो वह सह रही थी खामोशी से। जिसे महसूस करते हुए आयुष्मान के चेहरे पर दर्द उभर आया, पर प्रेम को तो उससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। उसने गहरी साँस छोड़ी और सहजता से जवाब दिया-

    "मुझे तुमसे कोई दुश्मनी नहीं थी। मैंने तो शादी से इंकार किया था, पर मम्मी-पापा नहीं माने और मुझे कसम देकर शादी के लिए मजबूर किया। उस रात नहीं आना चाहता था तुम्हारे करीब, पर तुम्हें देखकर मन मचल गया, बहक गया था मैं और हो गई मुझसे गलती..."

    वह अभी पूरी बात कह भी नहीं पाया था कि प्रीति ने ज़ोर का थप्पड़ उसके गाल पर दे मारा और गुस्से से चीखी-

    "गलती! मेरी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी तुमने और इस गुनाह को गलती कह रहे हो तुम? बहक गए थे मुझे देखकर... किसी और से प्यार करते थे, उसके साथ इतने आगे बढ़ चुके थे... फिर भी मुझे देखकर बहक गए थे?

    शर्म आती है यह कहते हुए तुम्हें? तुम्हारे ज़मीर ने धिक्कारा नहीं तुम्हें, किसी और का होते हुए मेरे इतने करीब आने पर? या अपनी हवस के आगे तुम्हें और कुछ नज़र ही नहीं आया? सोचा होगा ना कि शादी हो ही गई है, एक रात के लिए ही सही, साथ हो तो पूरा फ़ायदा उठाओ मौके का... यही चाहिए था तुम्हें इसलिए शादी की मुझसे, वरना इंकार करते अपने माँ-बाप को...

    पर तुमने शादी की मुझसे... अपनी चाहत और जिस्म की ज़रूरत पूरी करने के लिए तुमने मेरी पूरी ज़िंदगी खराब कर दी। इसका एहसास भी है तुम्हें? तुम तो खुश हो अपनी ज़िंदगी में... पहले से शादी की हुई थी तुमने तो मेरा तो कोई हक ही नहीं रहा तुम पर... रखैल बनाकर छोड़ दिया तुमने मुझे अपनी...

    वहाँ वह लड़की तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली है और यहाँ तुम्हारे स्वार्थ, धोखेबाज़ी और फरेब की निशानी मेरे अंदर पल रही है... और बेबसी देखो मेरी कि जिस इंसान से दुनिया में सबसे ज़्यादा नफ़रत है मुझे, उसके बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए मैंने अपना घर, अपना परिवार सब छोड़ दिया...

    क्या करूँ तुम्हारे तरह खुदगर्ज़ नहीं हूँ कि अपने स्वार्थ के लिए एक मासूम की ज़िंदगी बर्बाद कर दूँ... उससे जीने का हक छीन लूँ..."

    प्रीति की आँखें छलक आईं, पर उसने बड़ी ही बेरहमी से अपने आँसुओं को पोंछ लिया और रुँधे गले से आगे बोली-

    "सब गलती मेरी थी, नहीं खोने चाहिए थे मुझे अपने होश। अगर होश में होती तो कभी तुम्हें अपने आस-पास भी नहीं आने देती। पर गलती हो गई मुझसे, लेकिन अब किसी गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।

    मेरा और मेरे बच्चे का अब तुमसे कोई रिश्ता नहीं है। कोई बाप नहीं है उसका... कोई हक नहीं तुम्हारा उस पर या मुझ पर... उसकी सिर्फ़ माँ हूँ मैं, वही उसे जन्म भी देगी और पालेगी भी... तुम्हारे जैसे इंसान, जो इंसान कहलाने लायक ही नहीं, उसकी परछाई भी नहीं पड़ने दूँगी मैं अपने बच्चे पर...

    खुश हो ना तुम अपनी दुनिया में तो वहीं रहो और लौटकर कभी यहाँ मत आना। दूसरी शादी की थी ना तुमने मुझसे तो अब कोर्ट जाओगी तुम और यह शादी अमान्य घोषित होगी। सज़ा मिलेगी तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की और मुझे तुमसे और इन धोखे की बेड़ियों से आज़ादी मिलेगी..."

    सज़ा की बात सुनते ही वर्षा रोते हुए प्रीति के पास चली आई और उसके आगे हाथ जोड़ते हुए बोली- "सज़ा मत दिलाओ उसे... उसके लिए मैंने अपना घर-परिवार सब छोड़ दिया है... माँ बनने वाली हूँ मैं... अगर यह जेल चला गया तो मैं और मेरा बच्चा बेसहारा हो जाएँगे...

    मुझे नहीं पता था कि इतना बड़ा गुनाह कर रहा है यह मेरे पीठ पीछे... अगर पता होता तो मैं इसको कभी तुम्हारी ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करने देती। पर अब मैं चाहकर भी कुछ ठीक नहीं कर सकती... बहुत बड़ा गुनाह किया है प्रेम ने... उसके तरफ़ से मैं तुमसे माफ़ी माँगती हूँ... मेरे और मेरे बच्चे पर तरस खाकर प्रेम को छोड़ दो..."

    उसकी हालत देखकर प्रीति को उस पर तरस आ गया। आखिर अगर उसकी और उसके बच्चे की इन सब में कोई गलती नहीं थी तो वर्षा भी तो बेक़सूस थी और उसका बच्चा भी निर्दोष था। फिर प्रेम के गुनाहों की सज़ा उसे कैसे दे देती?

    आज उसके पास भले ही उसका अपना परिवार नहीं था, पर प्रेम के परिवार ने उसे सहारा दिया था। उसकी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार थे, उसके साथ खड़े थे, पर वर्षा तो बिल्कुल अकेली थी। अपना घर छोड़ चुकी थी और यहाँ कोई उसे अपनाने वाला नहीं था। ऐसे में अगर प्रेम को सज़ा होती है तो असली सज़ा वर्षा और उसका बच्चा भुगतेगा।

    वर्षा की बातों को ध्यान से सुनने और सोचने-समझने के बाद प्रीति ने जलती निगाहों से प्रेम को घूरते हुए कहा-

    "छोड़ रही हूँ तुम्हें सिर्फ़ तुम्हारी बीवी और बच्चे पर दया खाकर। मेरी सज़ा से भले ही बच जाओ तुम, पर मेरे साथ जो तुमने किया है उसकी सज़ा भगवान ज़रूर देंगे तुम्हें, यह याद रखना क्योंकि वह सबका हिसाब बराबर करते हैं...

    मुझे धोखे में रखकर शादी की थी ना तुमने मुझसे तो अब इस धोखे से जुड़े मतलबी रिश्ते का अंत मैं खुद करूँगी और उसके बाद तुम्हारा मुझ पर और मेरे बच्चे पर कोई हक नहीं रह जाएगा। और गलती से भी अगर तुम मेरे सामने आए तो मैं भूल जाऊँगी कि तुम इस बच्चे के बाप हो और उस हर दर्द का हिसाब लूँगी तुमसे जो तुम्हारे वजह से मुझे सहना पड़ा है...और कसम खाकर कहती हूँ, सह नहीं पाओगे तुम। इसलिए बेहतर होगा कि दोबारा पलटकर कभी इस तरफ़ मत आना और मुझसे और मेरे बच्चे से सौ क़दम की दूरी पर रहना।"

    प्रीति ने गुस्से में अपनी बात पूरी की और अपना फैसला सुनाकर वापिस कमरे में चली गई।

  • 8. Twisted ties of love - Chapter 8

    Words: 1194

    Estimated Reading Time: 8 min

    प्रीति ने गुस्से में अपनी बात पूरी की और अपना फैसला सुनाकर वापस कमरे में चली गई। इन हालातों में कोई समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे? सब स्तब्ध उसकी बातें सुनते रहे। जब प्रीति वहाँ से चली गई, तब अवदेश जी प्रेम के आगे आ खड़े हुए और सख्त लहज़े में बोले-

    "हम मानते हैं कि हमने आपको शादी के लिए मजबूर किया और यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी, जिसकी सज़ा हम आज भुगत रहे हैं। और आपने हमसे अपनी पहली शादी की बात छुपाकर, एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करके और प्रीति की ज़िंदगी बर्बाद करने का जो गुनाह किया है, उसकी सज़ा हम नहीं, भगवान देंगे आपको। तब आपको एहसास होगा कि कितना बड़ा पाप किया है आपने..."

    "प्रीति ने तो आपसे रिश्ता तोड़ ही दिया है और हम उनके हर फैसले में उनके साथ हैं... हम उन्हें इस घर में अपनी बहू बनाकर लाए थे, तो उनकी और उनके बच्चे की ज़िम्मेदारी हम उठाएँगे। पर अब आपके और आपकी इस पत्नी के लिए हमारे घर में कोई जगह नहीं है..."

    "हम आज इसी वक़्त आपसे अपने सभी रिश्ते तोड़ते हैं। आज से इस घर के दरवाज़े आपके लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद हैं... चले जाइए अपनी पत्नी को लेकर आप हमारी आँखों के सामने से और कभी दोबारा अपना चेहरा मत दिखाइएगा हमें... हम समझ लेंगे कि हमारा कोई बेटा था ही नहीं।"

    उन्होंने अपना फैसला सुनाया और नफ़रत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए वहाँ से चले गए। मानसी, जो उससे बहुत प्यार करती थी, उसे भी प्रेम की इस हरकत पर बड़ा गुस्सा आया। हिकारत भरी नज़रों से उसे देखते हुए वह गुस्से में उससे मुँह फेरकर वहाँ से चली गई। जो भयानक सच सामने आया, उसके बाद गरिमा जी कुछ कहने की हालत में नहीं थीं। उन्होंने बस रुँधे गले से इतना ही कहा-

    "आज आपने अपनी इस हरकत से हमारी परवरिश पर सवाल खड़े कर दिए... बेहद अफ़सोस के साथ हमें कहना पड़ रहा है कि हम आपको अच्छे संस्कार नहीं दे सके... अपने बेटे के असली चेहरे को न देख सके और उस मासूम की शादी आप जैसे धोखेबाज़ इंसान से करवाकर उसकी ज़िंदगी तबाह कर दी, जिसकी सज़ा हम ताउम्र भुगतेंगे, पर बचेंगे आप भी नहीं, यह याद रखिएगा..."

    "मनुष्य के कर्मों का फल उसे इसी जन्म में भुगतना होता है। आपके कर्म भी लौटकर आप तक ज़रूर आएंगे और जब भगवान की लाठी पड़ेगी, तब आपको अपने गुनाहों का एहसास होगा। पर उस दिन भी वापिस इस आँगन में मत आइएगा क्योंकि अब हमारा आपसे कोई संबंध नहीं..."

    "जो कभी हम मर गए, तो हमारा चेहरा भी देखने मत आइएगा, वरना हमारी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी... अब से हमारा एक ही बेटा है, आप कुछ नहीं लगते हमारे... जहाँ इतने दिनों छुपकर बैठे थे अपनी पत्नी को लेकर वापिस वहीं चले जाइए और दोबारा कभी हमें अपना चेहरा मत दिखाइएगा।"

    वह भी अपने आँसू पोंछते हुए वहाँ से चली गईं। आज प्रेम का पूरा परिवार उसके ख़िलाफ़ था। अब वहाँ बस आयुष्मान ही खड़ा था। जिन्होंने हमेशा उसे इतना प्यार दिया था, आज उन सबकी कड़वी बातों से प्रेम कुछ आहत था, पर अब भी उसे अपने गुनाहों का एहसास नहीं था।

    उसने अब अपनी आखिरी उम्मीद आयुष्मान की तरफ़ आस भरी नज़रों से देखते हुए कहा-

    "आयुष, तू तो मुझे सम..."

    उसने इतना ही कहा था कि एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर आकर लगा, जिससे उसका सर हल्का सा दूसरी तरफ़ लुढ़क गया। कान सुन्न हो गए और आँखें हैरानी से फैल गईं। उसने गाल पर हाथ रखे। जैसे ही सर उठाना चाहा, आयुष्मान ने उसके कॉलर को पकड़ते हुए गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा-

    "नाम मत ले तू अपनी गंदी ज़ुबान से मेरा... भाई समझा था मैंने तुझे, हमेशा तेरा साथ दिया, तेरी हर गलती को मामा-मामी से छुपाता रहा यह सोचकर कि बचपने में सब कर जाता था, पर बहुत गलत था मैं... बहुत गलत सोचा था मैंने तेरे बारे में... क्या समझा था मैंने तुझे और क्या निकला तू..."

    "छुपकर शादी की तूने सबसे... बाप बनने वाला है तू, फिर भी एक मासूम से शादी करके उसकी ज़िंदगी तबाह कर दी तूने... उसके साथ मनमानी की और अगली ही सुबह छोड़कर भाग गया उसे और तुझे अपने गुनाहों का एहसास तक नहीं..."

    "तू मेरा भाई क्या, इंसान कहलाने के भी काबिल नहीं... तुझ में और उन सड़क छाप आवारा लड़कों में कोई अंतर ही नहीं, जो राह चलती लड़की की आबरू लूटते हैं... तूने तो पति बनकर अपनी ही पत्नी की इज़्ज़त पर हाथ डाल दिया और अब ज़िम्मेदारी लेने से भी मुकर रहा है..."

    "जब मुझे सब पता चला था तो सोचा था कि तुझे समझा-बुझाकर वापिस ले आऊँगा और सब ठीक हो जाएगा, पर अब कभी कुछ ठीक नहीं होगा... तुझ जैसा आदमी उस लड़की का पति कहलाने के काबिल ही नहीं है। इसलिए अगर मेरे हाथों पिटना नहीं चाहता तो उठा अपनी पत्नी को और दफ़ा हो जा मेरी नज़रों के सामने से। अगर एक और पल यहाँ रुका तो गुस्से में मैं क्या कर जाऊँगा मुझे भी नहीं पता..."

    आयुष्मान ने झटके से उसे छोड़ दिया, जिससे प्रेम ज़मीन पर जा गिरा। वर्षा ने तुरंत आगे बढ़कर उसे उठाया। प्रेम ने आयुष्मान को देखा तो गुस्से से अंगारों सी धधकती लाल आँखों से उसे ही घूर रहा था और अपनी कॉलर को ठीक करते हुए बोला-

    "उस अनजान लड़की के लिए तू अपने भाई से ऐसे बिहेव कर रहा है ना तो दे उसका साथ। आज से मेरा तुझसे, उस परिवार से कोई रिश्ता नहीं... मुझे किसी की ज़रूरत नहीं... अब मैं दोबारा कभी इस चौखट पर कदम नहीं रखूँगा..."

    आयुष्मान के चेहरे के भाव ज़रा भी नहीं बदले, वह यूँ ही प्रेम को घूरता रहा। प्रेम वर्षा को लेकर बाहर चला गया तो आयुष्मान ने इंस्पेक्टर को बस उन पर नज़र रखने को कह दिया ताकि वे फिर से ग़ायब न हो जाएँ और दरवाज़ा बंद करके गुस्से में वहाँ से चला गया।

    प्रेम गुस्से में बाहर आया, फिर आगे बढ़ते हुए वर्षा की तरफ़ मुड़कर बोला- "तुम भी नाराज़ हो मुझसे, कुछ सुनाना चाहती हो मुझे?"

    वर्षा ने नम आँखों से उसे देखा और फ़ीकी, दर्द भरी मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोली- "मैं तुमसे नाराज़ होकर कहाँ जाऊँगी इस हालत में? और तुम्हें कुछ सुनाकर मुझे क्या मिलेगा? मेरी तो मजबूरी है कि ज़हर के घूँट पीकर, इतने लोगों की बददुआ लेकर भी तुम्हारे साथ ही रहना होगा। पर अगर तुमने फिर से ऐसे किसी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद की या मेरे अलावा किसी से संबंध बनाया तो मैं अपनी भी जान ले लूँगी और अपने बच्चे को भी ख़त्म कर दूँगी।"

    उसकी बात सुनकर प्रेम ने घबराकर कहा- "ऐसा मत कहो... मैं कभी ऐसी नौबत नहीं आने दूँगा... बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे और हमारे बच्चे से... तुम्हें चीट करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता... वो तो उस रात को पता नहीं मुझे क्या हो गया था... प्रीति को देखकर बहक गया था मैं, पर दोबारा ऐसी गलती कभी नहीं होगी... I promise."

    वर्षा उसकी बात सुनकर फ़ीका सा मुस्कुरा दी। उस पर विश्वास करने और उसके साथ रहने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं था उसके पास, तो चल दी उसके साथ।

  • 9. Twisted ties of love - Chapter 9

    Words: 1034

    Estimated Reading Time: 7 min

    दस दिन बीत चुके थे। प्रीति प्रेम के दिए धोखे से उबरने की कोशिश कर रही थी, सिर्फ़ अपने बच्चे के लिए। उसने राजेश को सब बताया था। राजेश को प्रेम की घिनौनी हरकत पर बहुत गुस्सा आया था। उसका बस चलता तो वह प्रेम को जान से मार देता, पर प्रीति ने उसे अपनी कसम देकर कुछ भी करने से रोक दिया था। उसने घर में किसी से बात नहीं की।


    राजेश को यह जानकर अच्छा लगा कि उस परिवार ने प्रीति का साथ दिया और उसके लिए अपने बेटे से रिश्ता तोड़ दिया। प्रीति का शादी खत्म करने का फैसला जानकर उसे कुछ सुकून मिला, पर साथ ही अपनी बहन के भविष्य की चिंता उसे सताने लगी।


    वह फ़िलहाल चुप ही रहा। पहले प्रीति इस सदमे से उबर जाए, कुछ संभल जाए, फिर वह उससे इस बारे में बात करेगा। राजेश से बात करके प्रीति को भी अच्छा लगा।


    इन दस दिनों में वह नॉर्मल रहने की कोशिश कर रही थी, पर चुपचाप ही रहती, जितनी ज़रूरत पड़ती उतना ही बोलती। गरिमा जी बहुत ध्यान रखती थीं उसका। मानसी के रूप में उसे एक छोटी बहन मिल गई थी और अवदेश जी पिता की कमी पूरी कर देते थे।


    अजीब बात थी, उसके अपने परिवार ने उसे ठुकरा दिया और गैर लोगों ने उसे अपना बना लिया। शायद यह उनकी आत्मग्लानि थी। कहीं न कहीं वे जानते थे कि आज प्रीति की जो हालत है, उसके ज़िम्मेदार वही हैं। हालाँकि प्रेम ने धोखे में उन्हें भी रखा था, पर प्रीति को उसकी पत्नी बनाकर तो वही लाए थे, इसलिए वे उसके दर्द के ज़िम्मेदार थे।


    इन दिनों प्रीति और आयुष्मान का कई बार आमना-सामना हुआ, पर प्रीति को देखकर कहीं से नहीं लगा कि वह उसे पहले से जानती है। आयुष्मान ने भी यह बात किसी को नहीं बताई। वह बस खामोशी से प्रीति को देखता था। प्रीति न उसके तरफ़ देखती और न ही कुछ कहती, बस खामोश सी खुद को अपनी ज़िंदगी की इस जंग को लड़ने के लिए तैयार करती रहती।


    आज सुबह सब कोर्ट से होकर आए थे, जहाँ राजेश भी आया था। प्रेम की यह दूसरी शादी थी जो प्रीति को धोखे में रखकर उसने की थी और उसके साथ शारीरिक संबंध भी बना लिए थे। इसके लिए प्रेम पर केस होने वाला था और सज़ा भी मिलती, साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ता, पर प्रीति ने इन सबसे साफ़ इंकार कर दिया। "मुझे उस आदमी के पैसे से एक फूटी कौड़ी नहीं चाहिए और न ही मैं उसे सज़ा दिलाना चाहती हूँ। मैं बस अपनी आज़ादी चाहती हूँ।"


    दूसरी शादी वैसे भी लीगली इनवैलिड ही थी, तो शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया और कानून के उल्लंघन के लिए प्रेम पर दो लाख का जुर्माना लगाया गया। जेल भी होती, पर वर्षा की हालत देखकर इसमें रियायत दे दी गई।


    प्रीति ने प्रेम के सामने अपनी माँग का सिंदूर पोंछकर उसका पहनाया मंगलसूत्र उसके मुँह पर मारा और गुस्से में वहाँ से निकल गई। प्रेम अपना यह अपमान किसी तरह बर्दाश्त कर गया और गुस्सा पीकर शांत रह गया। बाकी सब भी मुँह फेरकर वहाँ से चले गए।


    प्रीति को अब इस रिश्ते के बोझ से आज़ादी तो मिल गई थी, पर आगे का सफ़र आसान नहीं था। बहुत संघर्ष करना था उसे ताकि इस समाज में सर उठाकर इज़्ज़त से जी सके, और उसने खुद को इसके लिए तैयार भी कर लिया था।


    राजेश कोर्ट से ही वापिस चला गया और प्रीति बाकी सबके साथ घर लौट आई। घर आते ही वह अपने रूम में चली गई।


    आयुष्मान ने एक नज़र उसे देखा और अपने रूम में चला आया। अपनी बेबसी पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि प्रीति के दर्द, उसकी तकलीफ को समझते हुए उसके लिए कुछ नहीं कर पा रहा था वह, पर सच में कर ही क्या सकता था वह? कमरे में आते ही उसने गुस्से में दीवार पर मुक्का दे मारा और फिर अपने बालों में हाथ घुमाते हुए दूसरी तरफ़ चेहरा फेरकर बेबसी से अपनी आँखें बन्द कर लीं।


    अभी कुछ मिनट ही बीते थे कि उसके कानों में गरिमा जी की आवाज़ पड़ी-"आयुष।"


    आयुष्मान ने तुरंत अपने भाव नॉर्मल किए और उनकी तरफ़ पलटते हुए बोला-"जी मामी।"


    "बेटा, आज कुछ माँगे आज आपसे देंगे?"


    उनकी बात सुनकर आयुष्मान ने चौंकते हुए कहा-"क्या हुआ मामी? आप ऐसे क्यों बात कर रही हैं? आपने बहुत किया है मेरे लिए, आज मैं जो हूँ, जहाँ हूँ, सिर्फ़ आपके और मामा जी के बदौलत हूँ। अगर मैं आपके किसी काम आ गया तो मुझे बेहद खुशी होगी। आप बेझिझक कहिए, मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए?"


    गरिमा जी ने उसकी बात सुनकर ठंडी साँस छोड़ी और गंभीरता से बोलीं-"बेटा, प्रेम की हरकतों के बारे में तो आप सब जानते ही हो, हम तो इस स्थिति में हैं कि उसे भी ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि भले पूरी बात नहीं जानते थे हम, पर अपने बेटे की हरकतों के बारे में जानते हुए भी हमने ही उस पर दबाव बनाया। पर हमें लगा था कि शादी के बाद, प्यार का बुखार उसके सर से उतर जाएगा। वह घर-गृहस्थी में रम जाएगा...


    पर हमें या तुम्हारे मामा को इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उसने हमसे इतनी बातें छुपाई होंगी और ऐसा कुछ करेगा?... फिर भी हमारी ही गलती थी जो हमने प्रीति जैसी नेक लड़की को प्रेम की ज़िंदगी में जबरदस्ती शामिल करके उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।


    ऐसे तो हम उनकी और उनके बच्चे की सारी ज़िम्मेदारी निभा सकते हैं, पर बेटा, हम आज हैं, कल नहीं, ज़िंदगी का कोई भरोसा तो नहीं होता। और प्रेम की हरकतों को देखने के बाद हमें उस पर कोई भरोसा रह नहीं गया है।


    हमारे पीछे अगर उन्होंने प्रीति या उसके बच्चे के लिए मुश्किलें खड़ी की तो कोई नहीं होगा उनका सहारा बनने के लिए, फिर अभी उम्र ही क्या है उस बच्ची की ? ... सारी ज़िंदगी अकेले काटना आसान नहीं होगा, फिर उनके साथ एक बच्चे की भी ज़िंदगी जुड़ी है। इसलिए हम चाहते हैं कि आप उनका हाथ थाम लें, प्रेम से उनका रिश्ता तो आज खत्म हो ही चुका है, अब आप उनसे शादी करके उन्हें अपने साथ ले जाएँ।"

  • 10. Twisted ties of love - Chapter 10

    Words: 1077

    Estimated Reading Time: 7 min

    "अभी उम्र ही क्या है उस बच्ची की? ... सारी ज़िंदगी अकेले काटना आसान नहीं होगा, फिर उनके साथ एक बच्चे की भी ज़िंदगी जुड़ी है। इसलिए हम चाहते हैं कि आप उनका हाथ थाम लें। प्रेम से उनका रिश्ता तो आज खत्म हो ही चुका है, अब आप उनसे शादी करके उन्हें अपने साथ ले जाएँ।"

    गरिमा जी की बात सुनकर आयुष्मान बुरी तरह चौंक गया और आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखते हुए बोला-
    "ये आप क्या कह रही हैं मामी? ... रिश्ते में वो भाभी लगी मेरी... अगर मैंने उनसे शादी की तो लोग क्या कहेंगे?"

    गरिमा जी ने उसकी बात सुनकर गंभीरता से आगे कहा-
    "हमें लोग क्या कहेंगे, इस बात की चिंता नहीं है और न ही उनके कुछ कहने से कोई फ़र्क पड़ता है। वो तो आज भी कह ही रहे हैं, आगे भी कह लेंगे... हमें बस चिंता है तो प्रीति और उनके बच्चे की। हम उन्हें एक स्थाई, सुरक्षित भविष्य देना चाहते हैं। और जो आपने भाभी वाली बात कही तो आप प्रेम के सगे भाई नहीं और न ही आप शादी में शामिल थे तो आपके और प्रीति के बीच अब तक देवर-भाभी का रिश्ता पनपा ही नहीं है जो आप ये सोचकर हिचकिचाएँ..."

    "पर मामी, फिर भी... शादी..." आयुष्मान परेशान सा बोल ही रहा था कि गरिमा जी ने उसकी बात काटते हुए कहा-

    "बेटा, हम जानते हैं कि हमारी बात सुनकर आप हैरान हैं... ये भी जानते हैं कि बहुत ज़्यादा माँग रहे हैं आपसे... स्वार्थी हो रहे हैं, पर आपके अलावा अब हमें किसी पर भरोसा नहीं। अगर आपने प्रीति का हाथ थाम लिया तो हम उनके और उनके बच्चे की तरफ़ से निश्चिंत हो जाएँगे। प्रीति बहुत अच्छी और नेक बच्ची है बेटा, अभी उनकी हालत ठीक नहीं, पर माहौल बदलेगा तो वक़्त के साथ-साथ संभल जाएँगी।

    अपनी मामी की ये आखिरी इच्छा समझकर हमारी बात का मान रख लीजिए। हाथ जोड़ते हैं हम आपके आगे, उस मासूम बच्ची की ज़िंदगी बर्बाद होने से बचा लीजिए।"

    गरिमा जी ने उसके आगे हाथ जोड़ दिए। आयुष्मान ने तुरंत उनके हाथ को थामकर नीचे करते हुए कहा-
    "मामी, हाथ जोड़कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए... अगर मैं मान भी जाऊँ तो कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि प्रीति इस शादी के लिए नहीं मानेंगी।"

    "उनसे हम बात करेंगे बेटा, वो आपसे शादी ज़रूर करेंगी। आप बताइए कि क्या आप प्रीति का हाथ थामने के लिए तैयार हैं?"

    "क्या मामा जी की भी यही इच्छा है?" आयुष्मान ने उल्टा उन ही से सवाल कर लिया। गरिमा जी ने तुरंत हामी भरते हुए कहा-
    "हाँ बेटा, ये हम दोनों की इच्छा है। कई दिनों से इस बारे में सोच रहे थे और इंतज़ार कर रहे थे कि एक बार प्रेम से प्रीति का रिश्ता खत्म हो जाए तो आकर आपसे बात करेंगे।

    उन्होंने ही हमें आपसे बात करने के लिए भेजा है और हम चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी हम प्रीति की शादी आपसे करवाकर उन्हें यहाँ से दूर भेज दें क्योंकि जब तक वो यहाँ रहेंगी, बीती बातों को भुलाकर आगे नहीं बढ़ सकेंगी, पर परिवेश बदलेगा तो जल्दी संभल जाएँगी।"

    आयुष्मान ने गहराई से उनकी हर बात के बारे में सोचा। प्रीति के बारे में सोचा, फिर गहरी साँस छोड़ते हुए बोला-
    "अगर आपकी और मामा जी की यही इच्छा है तो मैं प्रीति जी से शादी करने के लिए तैयार हूँ।"

    उसका जवाब सुनकर गरिमा जी के सर से बहुत बड़ी चिंता टल गई। उन्होंने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा-
    "जुग-जुग जियो बेटा। भगवान आपकी हर मनोकामना पूर्ण करे और अगले जन्म में आप हमारी कोख से जन्म लेकर हमारी परवरिश पर लगे कलंक से हमें छुटकारा दिला दें... हम अभी प्रीति से जाकर बात करके आते हैं।"

    आयुष्मान ने सर हिला दिया तो गरिमा जी वहाँ से चली गईं। आयुष्मान बेड पर सर झुकाकर बैठ गया और अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया।

    गरिमा जी मानसी के कमरे में पहुँचीं जहाँ उसके साथ प्रीति भी रह रही थी। प्रीति बेड पर उदास सी बैठी शून्य में ताक रही थी। गरिमा जी उसके पास आकर बैठ गईं। उन्हें देखते ही प्रीति सीधी होकर बैठ गई और उन्हें देखने लगी। गरिमा जी ने उसकी हथेली थाम ली और प्यार से उसके गाल को छूकर बोलीं-

    "बहुत पसंद आई थीं आप हमें और बड़े शौक से हम आपको इस घर में प्रेम की पत्नी और हमारी बहू बनाकर लाए थे, पर तब हम कहाँ जानते थे कि हमारा ही बेटा छल करेगा हमारे साथ और उनके वजह से आपकी ज़िंदगी इस मोड़ पर आ जाएगी... आज आपको जब देखते हैं तो शर्मिंदगी से आपसे नज़रें मिलाने से कतराते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आपकी इस हालत के ज़िम्मेदार हम भी हैं।"

    उनकी बात सुनकर प्रीति भावुक हो गई। उसकी आँखों में नमी तैर गई और गला भर आया। उसने रुँधे गले से कहा-
    "नहीं मम्मी जी, मेरे साथ जो हो रहा है उसमें आप में से किसी का कोई दोष नहीं... मेरी किस्मत में जो लिखा है वही भोग रही हूँ मैं।

    मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है, बल्कि मैं तो भगवान को कोटि-कोटि नमन करती हूँ कि सास-ससुर के रूप में मुझे आपको और पापा जी को दिया। कितना साथ दिया आपने मेरा, कोई किसी गैर लड़की के लिए इतना नहीं करता, पर आपने मेरे लिए अपने बेटे से सभी रिश्ते तोड़ दिए।"

    "वो रिश्ते वो उस दिन खुद तोड़कर गए थे बेटा, जब शादी के अगले दिन आपको छोड़कर भाग गए थे और आप बहू बनकर ज़रूर इस घर में आई थीं, पर हमने आपको अपनी बेटी माना था और अपनी बेटी को इतनी तकलीफ़ में नहीं देखा जा रहा। हम चाहते हैं कि आप प्रेम को भुलाकर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ें... आयुष से शादी करके यहाँ से बहुत दूर चली जाएँ। बीती बातें भुलाकर आयुष के साथ अपनी एक नई दुनिया बसाएँ।"

    उनकी बात सुनकर प्रीति को सदमा सा लग गया। उसके घर में भी सब यही चाहते थे कि वो दूसरी शादी कर ले और उन्हीं सब से बचने के लिए वो यहाँ आई थी, पर यहाँ भी उसको यही कहा जा रहा था। जो प्रीति के कोमल मन को भेद गया, उस पर आयुष का नाम सुनकर तो उसकी हैरानी की कोई सीमा ही नहीं रह गई थी। उसने गरिमा जी के हाथ से अपना हाथ खींच लिया और नाराज़गी भरी निगाहों से उन्हें देखते हुए रुँधे गले से बोली-
    "मैं आप पर भी बोझ बन गई हूँ जो आप भी मेरी शादी आयुष जी से करवाकर अपने सर का बोझ उनके सर डालना चाहती हैं?"

  • 11. Twisted ties of love - Chapter 11

    Words: 1157

    Estimated Reading Time: 7 min

    "मैं आप पर भी बोझ बन गई हूँ, जो आप भी मेरी शादी आयुष जी से करवाकर अपने सर का बोझ उनके सर डालना चाहती हैं?"

    गरिमा जी उसकी बात सुनकर चौंक गईं। फिर तुरंत ही इंकार करते हुए बोलीं- "नहीं बेटा। भले हम आपको अपनी बहू बनाकर इस घर में लाए थे, पर आपको अपनी बेटी ही माना है। हमारी नज़रों में आप में और मानसी में कोई फ़र्क नहीं..."

    हम आपको प्रेम की पत्नी बनाकर इस घर में लाए थे और हमारे उस एक गलत फैसले के वजह से आपको बहुत तकलीफ़ सहनी पड़ी है। और हम नहीं चाहते कि आगे आपको या आपके बच्चे को और परेशानियों का सामना करना पड़े, या दोबारा प्रेम की बुरी नज़र आप पर पड़े... उनके वजह से आप अकेले, तन्हा ज़िंदगी काटें, ये नहीं चाहते हम। फिर अकेले एक बच्चे को जन्म देना और पालना आसान नहीं बेटा।

    "मैं अकेली कहाँ हूँ मम्मी जी, आप और पापा जी हैं ना मेरे साथ।"

    प्रीति ने तुरंत अपना तर्क उनके सामने रखा। जिसे सुनकर उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा-

    "हम हैं बेटा, पर हमारी उम्र हो गई है। वक़्त को किसने देखा है? आज हम हैं, कल नहीं होंगे, तब आपको और आपके बच्चे को कौन संभालेगा?"

    "मैं संभाल लूँगी मम्मी जी। ज़रूरी नहीं कि एक औरत हर बात के लिए किसी न किसी मर्द पर निर्भर रहे। वो अकेले भी अपनी ज़िंदगी अच्छे से बिता सकती है।"

    "हम आपकी बात समझते हैं बेटा। पर ये दुनिया अकेली औरत को सम्मान की नज़रों से नहीं देखती। अकेली औरत हर मर्द को मौका लगती है अपनी हवस मिटाने का। हम नहीं चाहते कि आपके या आपके बच्चे के साथ कुछ अनिष्ट हो, इसलिए आपसे विनती कर रहे हैं। आयुष से शादी कर लीजिए और उनके साथ अपनी नई दुनिया बसाइए..."

    वो आपका और बच्चे का बहुत ध्यान रखेंगे, आपको वो हर खुशी देंगे जो आपको नहीं मिल सकी। आपके बच्चे को पिता का नाम मिलेगा और प्रेम कभी दोबारा आपके या आपके बच्चे तक नहीं पहुँच सकेगा। माहौल बदलेगा तो आप भी जल्दी इन सब से उबर जाएँगी। आसान हो जाएगा आपके लिए भी आगे बढ़ना।

    अच्छे से सोचिए बेटा, इसी में आपका और आपके बच्चे का भला निहित है। हमें शाम तक जवाब दे दीजिएगा। आपकी शादी आज अमान्य घोषित हो चुकी है और अब हम जल्दी से जल्दी कानूनी तौर पर आप दोनों की शादी करवाना चाहते हैं... इंतज़ार करेंगे हम आपके जवाब का।

    गरिमा जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और वहाँ से चली गईं। पीछे रह गई प्रीति जो अपनी सोच में खो गई। पहले प्रेम से अनचाहे शादी, फिर उसका दिया धोखा, ये बच्चा, लोगों के इल्ज़ाम, उसके अपने परिवार का उसके प्रति व्यवहार, प्रेम की हकीकत और गरिमा जी की बातें, सब उसके दिमाग में घूमने लगीं।

    उसकी ज़िंदगी एक के बाद एक मुश्किल उसके सामने लाती जा रही थी। सब तो वो सह गई, पर एक बार फिर शादी, ये उसके मन में तूफ़ान को जन्म देने लगा, पर गरिमा जी की बातें गलत तो नहीं थीं।

    प्रीति काफ़ी देर तक सब बातों के बारे में सोचती रही। फिर उठकर कमरे से बाहर निकली और इतने दिनों में पहली बार उसने आयुष्मान के कमरे का रुख किया। जाने उसके दिलों-दिमाग में क्या चल रहा था और क्यों जा रही थी वो उसके रूम की तरफ़।

    दूसरे तरफ़ आयुष्मान भी गरिमा जी के जाने के बाद से वैसे ही बैठा हुआ था और सोच रहा था कि उसने सही फैसला लिया या नहीं?... आगे क्या होगा?... प्रीति का क्या फैसला होगा?... बहुत से सवाल थे जिनके जवाब ढूँढने की नाकाम सी कोशिश कर रहा था वह। इन सब सवालों और उलझनों में उलझे आयुष्मान को एहसास तक नहीं हुआ कि कितना वक़्त बीत गया उसको यूँ ही बैठे हुए।

    अचानक ही उसके रूम का दरवाज़ा खटखटाया गया और तब जाकर वो अपनी सोच से बाहर निकला। उसने तुरंत निगाहें गेट की तरफ़ घुमाईं। वहाँ खड़ी प्रीति को देखकर उसकी आँखें अविश्वास से फैल गईं। वही प्रीति ने सहजता से कहा-

    "बात करनी है मुझे आपसे।"

    आयुष्मान जो उसको अचानक यहाँ देखकर शॉक्ड रह गया था, प्रीति की बात सुनकर उसके चेहरे के भाव गंभीर हो गए। वो समझ गया था कि ज़रूर गरिमा जी उससे बात कर चुकी हैं, इसलिए वो यहाँ उसके पास आई है। वो उठकर खड़ा हो गया और बेड की तरफ़ इशारा करते हुए बोला-

    "हाँ, आओ बैठो।"

    प्रीति अंदर चली आई, पर बैठी नहीं। उसके सामने आकर खड़ी हो गई और उसके चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए गंभीरता से बोली-

    "आपने मम्मी जी के सामने मुझसे शादी करने का प्रस्ताव रखा है?"

    "नहीं, मामी ने ही मेरे सामने अपनी इच्छा प्रकट की थी और मैंने साफ़-साफ़ शब्दों में कह दिया है कि आपका जो फैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा।"

    आयुष्मान ने बिना किसी भाव के सहजता से जवाब दिया। जिसे सुनकर प्रीति ने अगला सवाल किया-

    "मतलब आपने अपने तरफ़ से शादी के लिए हाँ कह दिया?"

    "जी।"

    "क्यों?... मेरे बारे में सब जानते हुए, एक छोड़ी हुई औरत से शादी क्यों करना चाहते हो आप?"

    प्रीति के सवाल सुनकर आयुष्मान के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए-

    "छोड़ने के लिए किसी को अपनाना भी होता है और जहाँ तक मुझे पता है, प्रेम ने तुमसे शादी मामा-मामी के दबाव में आकर की थी और उसके बाद जो हुआ वो उसका खुद का स्वार्थ था। उसने बस तुम्हारे शरीर से अपनी ज़रूरत और इच्छा पूरी की थी, अपनाया नहीं था तुम्हें..."

    "हाँ, नहीं अपनाया था, पर मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ... फिर क्यों करना चाहते हैं मुझसे शादी?... तरस खा रहे हैं मेरी हालत पर या अपने भाई के गुनाह को सुधारने के लिए ये सब कर रहे हैं?"

    प्रीति के सवाल सुनकर आयुष्मान ने गहरी साँस छोड़ी और गंभीरता से बोला- "तुम बेसहारा नहीं हो। यहाँ तुम्हारा एक परिवार है। पढ़ी-लिखी लड़की हो जो आगे चलकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, उसको किसी की दया की ज़रूरत नहीं, तो तरस खाने का सवाल ही पैदा नहीं होता... और प्रेम ने गलती नहीं, गुनाह किया है... इतना बड़ा पाप किया जिसको सुधारना नामुमकिन है और मैं जो करने जा रहा हूँ उसकी वजह बिल्कुल नहीं है क्योंकि उससे अपना रिश्ता तोड़ चुका हूँ मैं..."

    अब रही बात ये कि तुम उसके बच्चे की माँ बनने वाली हो तो मेरी नज़रों में जो आदमी शादी के अगले दिन ही अपनी पत्नी को छोड़कर चला गया और बच्चे का पता चलने पर भी उसको तुमसे और उसके खुद के बच्चे से रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ा, उसको कोई हक़ नहीं तुम्हारा पति या इस बच्चे का बाप कहलाने का... इस बच्चे को दुनिया में लाने का फैसला तुम्हारा था तो ये सिर्फ़ तुम्हारा बच्चा हुआ और अगर हमारी शादी हुई तो मैं इस बच्चे को लीगली अडॉप्ट करूँगा और फिर ये हमारा बच्चा होगा।

    प्रीति कुछ पल स्तब्ध सी उसको देखती रह गई। फिर भारी गले से बोली- "सब जानकर भी क्यों शादी करना चाहते हैं आप मुझसे?"

  • 12. Twisted ties of love - Chapter 12

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति कुछ पल स्तब्ध सी उसको देखती रही। फिर भारी गले से बोली, "सब जानकर भी क्यों शादी करना चाहते हैं आप मुझसे?"

    "इसकी दो अहम वजहें हैं। पहली, मामा-मामी ने आज तक बहुत किया है मेरे लिए। मेरी नज़रों में उनका दर्जा मेरे माँ-बाप के बराबर है और आज पहली बार उन्होंने मुझसे कुछ माँगा है और मैं उन्हें खाली हाथ नहीं लौटा सकता।

    दूसरी वजह तुम खुद हो। देखो खुद को, कॉलेज टाइम पर क्या थी और अब क्या बन गई हो? जानता हूँ बहुत गलत हुआ है तुम्हारे साथ और मैं बस तुम्हें पहले वाली प्रीति के रूप में देखना चाहता हूँ। तुम्हारे सपने, तुम्हारी खुशियाँ, तुम्हारी खिलखिलाहट और शरारतें तुम्हें वापिस लौटाना चाहता हूँ। मैं उस प्रीति से शादी करके उसको अपनी ज़िंदगी में शामिल करना चाहता हूँ जिसको अपनी दुनिया में शामिल करने का ख़्वाब कभी मेरी आँखों ने देखा था..."

    तभी सोचा था मैंने कि एक बार सेटल हो जाऊँ, अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ, फिर मामा-मामी से बात करके तुम्हारे घर रिश्ता भेजूँगा, पर मैं वहाँ अपना करियर बनाने में उलझ गया और यहाँ इतना कुछ हो गया तुम्हारे साथ।

    कोई दबाव नहीं तुम पर और न ही तुम्हारी मजबूरी का फ़ायदा उठाकर मैं तुम्हें हासिल करना चाहता हूँ। ये तो बिल्कुल मत सोचना कि अगर तुमने मुझसे शादी कर ली तो जैसे प्रेम ने जबरदस्ती खुद को तुम पर थोपा, मैं वैसा कुछ करूँगा।

    मैं पहले भी कह चुका हूँ और अब फिर कह रहा हूँ कि मेरे तरफ़ से तुम पर कभी कोई दबाव नहीं रहेगा। हम इस बच्चे के माँ-बाप बनकर या दोस्त बनकर भी साथ रह सकते हैं। दुनिया की नज़र में पति-पत्नी होंगे, पर मैं पति का कोई हक़ नहीं माँगूँगा तुमसे। तुम्हें जितना वक़्त चाहिए होगा तुम ले सकती हो। मैं बस चाहता हूँ कि अब तुम मेरे सामने रहो, सुरक्षित और खुश रहो, तुम्हें वो हर खुशी मिले जो तुम डिज़र्व करती हो।

    आगे जो तुम्हारा फैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा। अगर तुम शादी से इंकार भी करती हो, तब भी अब मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा। एक दोस्त बनकर हर क़दम पर तुम्हारा साथ दूँगा और ऐसा करने से दुनिया की कोई ताकत मुझे नहीं रोक सकती... खुद तुम भी नहीं।"

    आयुष्मान संजीदगी से अपनी बात कह गया। उसके शब्दों में दृढ़ता साफ़ ज़ाहिर हो रही थी। उसका इतना बड़ा खुलासा सुनकर प्रीति शॉक सी रह गई थी। शायद आयुष्मान उसे चाहता है, ये अप्रत्याशित था उसके लिए। वो कुछ पल अचंभित सी उसको देखती रही, फिर बिना कुछ कहे वहाँ से चली गई।

    अपने रूम की बालकनी में खड़ी काफ़ी देर तक सब बातों के बारे में सोचती रही, पर जब खुद किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकी तो फिर राजेश को फ़ोन लगाकर सब बात बता दी। कुछ देर उससे बात की, फिर दोबारा अपनी सोच में गुम हो गई।

    शाम का वक़्त था। सब लिविंग रूम में मौजूद थे और सबकी निगाहें प्रीति पर टिकी थीं।

    "बेटा, क्या फैसला है आपका?" आखिर में गरिमा जी ने ही उससे सवाल किया। जिस पर प्रीति ने एक नज़र सबको देखा, फिर निगाहें झुकाते हुए बोली-

    "मम्मी जी, अपना फैसला सुनाने से पहले मैं आयुष्मान जी से अकेले में कुछ बात करना चाहती हूँ।"

    उसकी बात सुनकर सब एक-दूसरे के चेहरे देखने लगे। गरिमा जी ने परेशान निगाहों से आयुष्मान को देखा तो उसने अपनी पलकें झपकाते हुए उन्हें शांत रहने को कहा, फिर प्रीति को देखकर बोला-

    "चलिए।"

    इतना कहकर वो अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। प्रीति भी सर झुकाए उसके पीछे चलने लगी। कुछ पल बाद एक बार फिर दोनों आयुष्मान के रूम में थे। आयुष्मान ने अब उसको देखकर गंभीरता से सवाल किया-

    "बोलो, क्या बात करनी है आपको मुझसे?"

    प्रीति ने पलकें उठाकर उसको देखा और अपने आँचल को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए गंभीर स्वर में बोली, "मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ, पर पहले ही कुछ बातें साफ़ कर देना चाहती हूँ ताकि आगे चलकर आपको या मुझे कोई परेशानी ना हो।"

    इतना कहकर वो चुप हो गई तो आयुष्मान ने कहा, "बोलो, मैं सुन रहा हूँ।"

    प्रीति ने गहरी साँस फेफड़ों में भरते हुए आगे बात जारी की, "मैं ये शादी सिर्फ़ अपने बच्चे के लिए कर रही हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहती कि वो बिना बाप के नाम और प्यार के पले या कल को लोग उसके वजूद पर सवाल उठाएँ। प्रेम पर भी मुझे भरोसा नहीं। अगर आप कानूनी तौर पर मेरे बच्चे को अपना नाम देंगे तो प्रेम कभी मेरे बच्चे पर हक़ नहीं जता सकेगा।

    मैं शादी करूँगी, पर हमारे बीच पति-पत्नी वाला कोई रिश्ता नहीं होगा। आप इस बच्चे के बाप होंगे और मैं माँ, इससे ज़्यादा और कोई रिश्ता नहीं होगा हमारा... आप मुझ पर खुद को थोपने की कोशिश नहीं करोगे, मेरी इजाज़त के बिना कभी मेरे करीब आने की कोशिश नहीं करोगे... मुझे नहीं पता कि मैं कभी आपको और इस रिश्ते को अपना भी पाऊँगी या नहीं, हो सकता है कि शादी के बाद भी मैं कभी आपको पति होने का हक़ न दे सकूँ, आपकी इच्छाएँ और ज़रूरतें न पूरी कर सकूँ... तो आप सोच लीजिए कि अब भी शादी करेंगे मुझसे?"

    प्रीति अपनी बात कहकर अब चुप हो गई और परेशान निगाहों से उसको देखने लगी। आयुष्मान ने गंभीरता से उसकी पूरी बात सुनी, फिर हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोला-

    "अच्छा लगा ये जानकर कि आज भी मेरी तुम्हारी लाइफ़ में इतनी अहमियत तो है कि अपने दिल की बात बेझिझक मुझसे कह सको... मैंने तुम्हारी बात ध्यान से सुनी और बदले में बस इतना कहूँगा कि अपनी चाहत या ज़रूरत को पूरा करने के लिए मैं ये शादी नहीं कर रहा... मैं पति होने का हक़ भी नहीं जताऊँगा क्योंकि वो सब नहीं चाहिए मुझे...

    मुझे तुमसे बस एक चीज़ चाहिए, तुम्हारा विश्वास और तुम्हारा साथ... अपने दोस्त के रूप में मुझे अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लेना। अपना पति न सही, पर अपने बच्चे का बाप मान लेना... तुम मेरी आँखों के सामने रहोगी, इतना ही काफ़ी है मेरे लिए। मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है, मैं अब भी तुमसे शादी करना चाहता हूँ। क्या अब तुम्हारी हाँ है इस रिश्ते के लिए?"

  • 13. Twisted ties of love - Chapter 13

    Words: 1068

    Estimated Reading Time: 7 min

    "अच्छा लगा ये जानकर कि आज भी मेरी तुम्हारी लाइफ़ में इतनी अहमियत तो है कि अपने दिल की बात बेझिझक मुझसे कह सको..."

    मैंने तुम्हारी बात ध्यान से सुनी और बदले में बस इतना कहूँगा कि अपनी चाहत या ज़रूरत को पूरा करने के लिए मैं ये शादी नहीं कर रहा... मैं पति होने का हक़ भी नहीं जताऊँगा क्योंकि वो सब भी चाहिए मुझे...

    मुझे तुमसे बस एक चीज़ चाहिए, तुम्हारा विश्वास और तुम्हारा साथ... अपने दोस्त के रूप में मुझे अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लेना। अपना पति न सही, पर अपने बच्चे का बाप मान लेना... तुम मेरी आँखों के सामने रहोगी, इतना ही काफ़ी है मेरे लिए। मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है, मैं अब भी तुमसे शादी करना चाहता हूँ। क्या अब तुम्हारी हाँ है इस रिश्ते के लिए?

    प्रीति खामोशी से उसको देखती रही, फिर सर झुकाते हुए हाँ में सर हिला दिया। उसका फैसला सुनकर आयुष्मान के लबों पर हल्की मुस्कान फैल गई।

    "तो चलो, नीचे सब परेशान हो रहे होंगे।"

    प्रीति ने सर हिला दिया और दोनों नीचे चले आए। सबकी परेशान निगाहें उन दोनों पर टिकी थीं।

    आयुष्मान ने एक नज़र सबको देखा, फिर हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए बोला- "प्रीति और मेरे तरफ़ से शादी के लिए हाँ है।"

    उसका यह कहना था कि सबके चेहरों पर राहत और खुशी के भाव उभर आए। पर अभी यह खुशी अधूरी थी क्योंकि यह रिश्ता मजबूरी में जुड़ने जा रहा था। खैर, जो भी था, अब प्रीति की ज़िंदगी सँवर जाएगी, यह सोचकर सभी खुश थे।

    अवदेश जी ने प्रीति के घर पर भी सबको इस बारे में इन्फॉर्म कर दिया था। जाकर पंडित जी से बात कर आए थे और अगले दिन मंदिर में शादी करने का तय किया था। उसके बाद कोर्ट मैरिज करने वाले थे ताकि कानूनी तौर पर दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध जाएँ।

    प्रीति की दूसरी शादी की सुनकर माधुरी जली-भुनी हुई थी, पर दिखा नहीं रही थी। वहीं धीरज जी और शकुंतला जी सुकून में थे कि अब उनके घर की इज़्ज़त बनी रहेगी। उन्होंने अगले दिन आने से इंकार कर दिया था कि अब वह उनकी बहू है तो वह जो चाहे करे उसके साथ, उन्हें कोई ऐतराज नहीं, पर वह शादी में आ नहीं सकेंगे।

    शायद डर था उन्हें कि लोग प्रीति की उसके देवर से शादी का सुनकर बातें बनाएँगे और उनके घर की इज़्ज़त उछालेंगे, इसलिए इस बात को उन्होंने गुप्त रखने का फैसला किया, पर राजेश कह चुका था कि वह जाएगा।

    रात सबकी बेचैनी से कटी। अगले दिन सुबह हुई और राजेश, अवदेश जी के साथ मिलकर शादी की तैयारियों में जुट गया।

    आज फिर प्रीति को उसकी शादी के लिए सजाया जा रहा था, पर पिछली बार की तरह वह एकदम नीरस बनी हुई थी। कोई उमंग नहीं थी मन में, दिल में कोई ख्वाहिश नहीं थी, आँखों में आने वाले कल के सुनहरे सपने नहीं सज रहे थे, बल्कि अजीब सा सूनापन था। चेहरे पर खुशी नहीं, उदासी, बेबसी और मायूसी छाई हुई थी और अधरों पर मुस्कान के बजाय गहरी खामोशी अपना अधिकार जमाए बैठी थी।

    पिछली बार की तरह लहँगा पहनकर दुल्हन की तरह नहीं सजी थी वह। गरिमा जी की दी खूबसूरत सी लाल बनारसी साड़ी पहनी हुई थी उसने। बालों को मानसी ने खूबसूरत से जूड़े में बाँधकर उसको गजरे से सजा दिया था। बीच की माँग में माँगटिका पहना हुआ था। कानों में सोने के झुमके, गले में सोने का हार। दोनों कलाईयों में भरा-भरा चूड़ा पहना हुआ था। पैरों में पतली सी पायल थी। मेकअप के नाम पर बस आँखों में काजल था और होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक। वह तो इतना कुछ भी नहीं करना चाहती थी, पर गरिमा जी के कहने पर खामोशी से तैयार हो गई।

    दूसरे तरफ़ आयुष्मान सादे से क्रीम कलर के कुर्ते-पायजामा में था। दोनों ही अच्छे लग रहे थे, पर खुशी दोनों के चेहरों पर नहीं थी। सब उनके साथ तैयार होकर मंदिर पहुँचे, जहाँ पंडित जी पहले ही उनकी शादी करवाने को सज्ज बैठे थे। पहले उनकी वरमाला करवाई गई। उसके बाद शादी की रस्में शुरू हुईं।

    प्रीति को अपनी बेटी बनाकर राजेश ने अपनी बहन का कन्यादान किया। भाई का फ़र्ज़ भी उसी ने निभाया। देखते-देखते शादी की रस्में पूर्ण होती चली गईं और प्रीति आयुष्मान से इस अटूट बंधन में बंधती चली गई। सारे वक़्त प्रीति भावहीन सी बैठी रही। जो कहते वह कर देती, बिल्कुल ऐसे जैसे कोई कठपुतली हो।

    आयुष्मान ने उसकी माँग को एक बार फिर सिंदूर से सजा दिया। प्रीति की पलकें हल्की सी झपकीं और आँखों में नमी तैर गई। एक बार फिर मंगलसूत्र उसके वजूद से जुड़ गया जिसे उसने एक दिन पहले ही खुद से दूर किया था।

    शादी संपन्न हो चुकी थी। वकील वहीं मौजूद थीं। उन्होंने दोनों के मैरिज पेपर्स पर उनके साइन करवाए, फिर उन्हें मुबारकबाद देकर वहाँ से चली गईं। अवदेश जी ने दोनों के सर पर हाथ रखकर उन्हें और उनके रिश्ते को आशीर्वाद दिया। गरिमा जी ने उन्हें गले लगाकर ढेरों आशीर्वाद दिए। मानसी ने भी उन्हें विश किया। सबसे आखिर में राजेश आगे आया। आयुष्मान ने आदर सहित उसके पैर छू लिए, फिर राजेश ने उसे गले से लगाकर कहा-

    "बहुत विश्वास से अपनी बहन को आपको सौंप रहा हूँ, एक बार विश्वास टूट चुका है, अब आप मेरे विश्वास को टूटने मत दीजिएगा और प्रीति का ध्यान रखिएगा।"

    "आप निश्चिंत रहें भैया। मैं कभी आपके विश्वास को टूटने नहीं दूँगा... अब से प्रीति मेरी ज़िम्मेदारी है और मैं अपने तरफ़ से पूरी कोशिश करूँगा उन्हें खुश रखने की। आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगा।"

    आयुष्मान की बात सुनकर राजेश मुस्कुरा दिया, फिर प्रीति को अपने सीने से लगाकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोला-

    "हमेशा खुश रह। अब बीती बातों को भुलाकर आगे बढ़। इस नए रिश्ते को जोड़ लिया है तो अब इसको दिल से अपनाने और निभाने की कोशिश कर। यह रिश्ता तेरी ज़िंदगी में फिर से खुशियाँ लेकर आएगा, बस अब तू उन खुशियों को ठुकराइयों मत। अपने अतीत को कभी अपने आज और आने वाले कल पर हावी मत होने देना। आयुष्मान जी के साथ एक नई शुरुआत करना।"

    प्रीति उसकी बात सुनकर भावुक हो गई थी, पर उसने खुद को संभाल लिया और सहमति में सर हिला दिया। दोनों को आशीर्वाद देकर और आयुष्मान से उसका नंबर लेकर राजेश वापिस चला गया। बाकी सब भी घर लौट आए। कार में प्रीति और आयुष्मान साथ थे, पर दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई।

  • 14. Twisted ties of love - Chapter 14

    Words: 1004

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति सारे वक्त गुमसुम सी बैठी रही। आयुष्मान कभी उसे, कभी बाहर देखता रहा। घर पहुँचकर गरिमा जी ने दोनों की आरती उतारी। इससे प्रीति को पहली शादी में हुई रस्में याद आ गईं। मंदिर में जाकर भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद वह सीधे अपने कमरे में चली गई। बाकी सब उसे परेशान से देखते रह गए।


    खुद आयुष्मान भी उसके लिए परेशान था। पर सबको यूँ परेशान होते देखकर उसने फ़ीकी मुस्कान लबों पर सजाते हुए कहा-
    "सब अचानक हो गया है, तो आसान नहीं उनके लिए इसे एक्सेप्ट करना। थोड़ा तो वक्त लगेगा बीती बातें भुलाकर इस रिश्ते को अपनाने में।"


    उसकी बात बिल्कुल सही थी। प्रीति की मनोदशा से सभी वाकिफ़ थे। एक के बाद एक उसकी ज़िंदगी में इतने बदलाव होते जा रहे थे कि वह संभल भी नहीं पा रही थी। यह शादी तो कर ली थी, पर पहली शादी को अब तक भुला नहीं पाई थी। उस शादी से जो दर्द और ज़ख्म उसे मिला था, उसे इतनी जल्दी भुला पाना असंभव था। वक्त लगने वाला था, उसे वक्त देना था, वरना सब बिखर जाएगा। आयुष्मान कमरे में चेंज करने चला गया, जबकि बाकी सब वहीं लिविंग रूम में बैठ गए।


    दूसरे तरफ़ प्रीति अपने कमरे में गई और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े अपने ही अक्स को घूरने लगी। माँग में भरा सिंदूर और गले में पहना मंगलसूत्र उसे उसकी लाइफ की हकीकत का एहसास दिला रही थी, जिसको वह अभी पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाई थी। उसने अपने सर पर डाला दुपट्टा और उसके साथ बंधा आयुष्मान का दुपट्टा उतारकर बेड पर रख दिया। वरमाला भी उतार दी और धीरे-धीरे सब गहने उतारने के बाद अपने सादे कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई।


    आयुष्मान और प्रीति की शादी को एक हफ़्ता बीत गया था। प्रीति अब भी मानसी के साथ उसके कमरे में ही सोती थी। राजेश से बात भी हो जाती थी। अब वह सारा-सारा दिन कमरे में नहीं रहती थी। अपना मन बहलाने के लिए वह गरिमा जी के साथ काम में हाथ बँटा दिया करती थी। मानसी से भी कुछ बातें हो जाया करती थीं। प्रीति खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश करती थी, पर आयुष्मान से अब भी दूर रहती थी। दोनों की इन दिनों कोई बात नहीं हुई थी।


    आयुष्मान सारा दिन कमरे में रहता और लैपटॉप के ज़रिए अपना काम करता। जब खाने के लिए नीचे आता, बस तभी प्रीति से आमना-सामना होता। उस पर भी प्रीति उससे नज़रें नहीं मिलाती थी और न ही बात करती, बिल्कुल खामोश रहती।


    आयुष्मान समझ रहा था कि वह इस नए रिश्ते के वजह से असहज महसूस करती है, इसलिए उसे वक्त दे रहा था। प्रीति भले उससे बात नहीं करती थी, पर रहती सुहागन जैसे ही थी।


    रात का वक्त था। सब डिनर के लिए साथ बैठे थे और खाना शुरू कर रहे थे। तभी आयुष्मान ने सबको देखने के बाद गरिमा जी और अवदेश जी को देखकर कहा-
    "मामा जी, मामी, मुझे आप दोनों को एक ज़रूरी बात बतानी है।"


    दोनों ने उसकी बात सुनकर एक साथ निगाहें उठाकर उसे देखा।
    "बोलिए बेटा।"


    "मुझे कल वापिस जाना है।" जैसे ही आयुष्मान ने यह कहा, सब हैरानी से उसे देखने लगे। प्रीति जो निवाला मुँह में डालने जा रही थी, उसका हाथ हवा में ही रुक गया। परेशान निगाहें आयुष्मान की तरफ़ उठ गईं। उसकी परेशानी को समझते हुए आयुष्मान ने आगे कहा-
    "जाना ज़रूरी है, इसलिए मुझे जाना होगा, पर प्रीति जी जब तक चाहे यहाँ आप सबके साथ रह सकती है। जब उनका आने का मन हो मुझे बता दीजिएगा, मैं लेने आ जाऊँगा।"


    आयुष्मान ने प्रीति की प्रॉब्लम को उसके बिन कहे ही हल कर दिया, पर उसकी बात अवदेश जी को पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत ही इंकार करते हुए कहा-
    "नहीं बेटा, हमें आपका यह सुझाव ठीक नहीं लग रहा। आप दोनों की शादी हो चुकी है, ऐसे में आप दोनों का अलग-अलग रहना सही नहीं है। अगर आपको जाना है तो हम रोकेंगे नहीं आपको, पर हम यही कहेंगे कि आपको प्रीति बहू को भी अपने साथ लेकर जाना चाहिए।"


    अवदेश जी की बात का समर्थन करते हुए गरिमा जी ने आगे कहा-
    "आपके मामा जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं बेटा। भले किन्हीं हालातों में हुई हो, पर अब आप दोनों की शादी हो चुकी है। जहाँ आप जाएँगे, प्रीति आपके साथ ही जाएगी। साथ रहेंगे तभी तो एक-दूसरे को समझ पाएँगे और इस रिश्ते को निभा पाएँगे। हाँ, प्रीति का मन होगा तो बीच-बीच में उन्हें हम सब से मिलवाने ले आइएगा, पर अभी उन्हें यहाँ छोड़कर जाना ठीक नहीं होगा।"


    आयुष्मान ने ध्यान से उनकी बात सुनी, फिर परेशान सा बोला-
    "मैं आप दोनों की बात समझ रहा हूँ, पर अभी वह सहज नहीं है मेरे साथ।"


    "तो साथ रहेंगी, आपको जानेंगी, समझेंगी, तभी तो कम्फ़र्टेबल हो सकेंगी आपके साथ। अगर आप उन्हें यहाँ छोड़ जाएँगे और खुद इतनी दूर रहेंगे तो कहाँ से कॉम्फर्टेबल हो सकेंगी भाभी आपके साथ?" मानसी की बात और उसके सवाल ने आयुष्मान को निशब्द कर दिया। वह पहले तो परेशान सा सबको देखता रहा, फिर कुछ पल बाद कुछ कहने को हुआ, पर उससे पहले ही प्रीति, जो निगाहें झुकाए सबकी बात सुन रही थी, उसने उसकी तरफ़ उठाते हुए गंभीरता से कहा-
    "मैं साथ चलूँगी आपके।"


    आयुष्मान हैरान-परेशान सा उसे देखने लगा क्योंकि उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी। जबकि प्रीति ने अपनी बात कहकर वापिस पलकें झुका ली और खाना खाने लगी। उसकी बात से आयुष्मान भले हैरान था, पर बाकी सब खुश हो गए थे। मानसी ने तो तुरंत ही मुस्कुराकर कहा-
    "लीजिए भैया, अब तो भाभी ने भी कह दिया कि वह आपके साथ जाएँगी तो आपको उन्हें अपने साथ लेकर जाना ही होगा।"


    "हाँ, आयुष, प्रीति बहू का आपके साथ जाना ही ठीक है। आप बता दीजिए कब तक निकलेंगे, हम प्रीति का सामान और उनके खाने-पीने के लिए कुछ चीज़ें पैक कर देंगे।"


    "कल सुबह निकलूँगा मामी, शाम को एक ज़रूरी मीटिंग है।"


    "चलिए ठीक है, हम सब तैयारी कर लेंगे।"


    इसके बाद सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में चले गए।

  • 15. Twisted ties of love - Chapter 15

    Words: 2010

    Estimated Reading Time: 13 min

    आयुष ने सबकी इच्छा का मान रखते हुए प्रीति को साथ ले जाने के लिए हामी भर दी थी, पर कुछ परेशान था। बीते दिन प्रीति का जो व्यवहार था, उसे देखते हुए उस हिसाब से अभी प्रीति का उसके साथ जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं लग रहा था। इस वक्त वह बालकनी में खड़ा, परेशान सा इस बारे में सोच रहा था, तभी वहाँ अवदेश जी आ गए। आयुष उन्हें देखकर अपनी परेशानी छिपाते हुए फीका सा मुस्कुराया।

    "मामा जी आप यहाँ....."

    "हाँ, हमने सोचा आज अपने भांजे से कुछ बात की जाए, उनकी दुविधा को दूर किया जाए।"

    अवदेश जी की यह बात सुनकर आयुष्मान के चेहरे पर गंभीर भाव उभर आए। उसने मुँह लटकाते हुए कहा, "मामा जी आप देख रहे हैं ना, शादी को इतने दिन हो गए हैं, पर वह मुझसे बात करना तो दूर, देखती तक नहीं है मेरी तरफ। अब आप ही बताइए, ऐसे में उन्हें अगर अपने साथ लेकर गया तो वह बिल्कुल अकेली पड़ जाएंगी। यहाँ सबके बीच फिर भी थोड़ा खुलने लगी है, पर वहाँ बस हम दोनों ही होंगे, वह नहीं रह सकेंगी वहाँ मेरे साथ अकेले।....."

    "रह लेंगी बेटा। शुरू-शुरू में थोड़ी परेशानी होगी, पर वक्त के साथ संभल जाएंगी वह। आपने ही तो कहा था कि यह शादी उनकी मर्ज़ी नहीं, मजबूरी है और उनकी पहली शादी का अनुभव इतना खराब रहा है, उसके बाद थोड़ा वक्त तो लगेगा उन्हें इस रिश्ते और आपको अपनाने में, आप पर भरोसा करने में। और जब तक वह आपके साथ रहेंगी नहीं, आपको जानेंगी भी नहीं, समझेंगी नहीं, वह इस रिश्ते और आपको अपना भी नहीं पाएंगी।.....

    हम जानते हैं यह वक्त आपके और प्रीति बहु दोनों के लिए बहुत मुश्किल है। जिन परिस्थितियों से वह गुज़र रही है, उसमें आपको उनसे दूरी नहीं बनानी है, बल्कि उन्हें संभालने की कोशिश करनी है।.....पति हैं अब आप उनके, चाहे तो अपने प्यार और परवाह के जरिए उन्हें उनके अतीत से बाहर निकाल सकते हैं। फिर से हँसना, मुस्कुराना सिखा सकते हैं।.....

    प्रीति बहुत प्यारी बच्ची है बेटा, प्रेम की किस्मत में वह हीरा नहीं था, पर आप काबिल हैं उनके और इस वक्त उन्हें सबसे ज्यादा आपके साथ और प्यार की ज़रूरत है। खुद से दूर करना इस परेशानी का हल नहीं है, बल्कि साथ रहकर परिस्थितियों को सुधारना है आपको।.....

    आप बस कोशिश कीजिए उनके दिल तक पहुँचने की, उन्हें अपने साथ सहज करने की, बाकी सब अपने आप हो जाएगा। और विश्वास कीजिए हम पर, वह वक्त दूर नहीं जब आप दोनों ही पूरे दिल से इस रिश्ते को स्वीकार लेंगे।"

    आयुष्मान खामोशी से और बड़े ही ध्यान से उनकी बात सुनता रहा, फिर उसने सर हिला दिया। दोनों बड़े दिनों बाद यूँ साथ बैठे थे और अगले दिन आयुष्मान को जाना था, तो कुछ देर साथ बैठकर वह बातें करने लगे।


    दूसरे तरफ मानसी और गरिमा जी मिलकर प्रीति का सामान पैक कर रहे थे। उसका सामान पैक करने के बाद गरिमा जी उसके पास आकर बैठ गईं और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं,

    "बेटा, हम जानते हैं आप आयुष के साथ जाना नहीं चाहतीं, पर वह पति है आपके और अब जहाँ वह रहेंगे, वहीं रहना होगा आपको उनके साथ। आप दोनों को ही अब एक-दूसरे का सहारा बनना होगा, एक-दूसरे का ख्याल रखना होगा, एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी होगी, इस रिश्ते को निभाने में अपनी भागीदारी निभानी होगी।.....वक्त देना होगा एक-दूसरे को और देखिएगा, वक्त के साथ सब अपने आप ही ठीक हो जाएगा।.....

    आयुष बहुत अच्छा लड़का है, हमने उन्हें जन्म नहीं दिया, पर जानते हैं कि उनसे बेहतर जीवनसाथी आपको नहीं मिलता, उन पर विश्वास करते हैं कि वह आपको वह हर खुशी देंगे जो आपको मिलनी चाहिए थी, पर मिली नहीं, वह आपके और आपके बच्चे की ज़िंदगी सँवार देंगे। बस आप भी उन पर विश्वास करके उन्हें और इस रिश्ते को अपनाने की कोशिश कीजिए।

    बहुत समझदार है वह और जब आप उन्हें समझने लगेंगी, तो खुद जान जाएंगी कि हमने उन्हें ही क्यों चुना आपके लिए।.....हम आपको उनके साथ भेजना इसलिए चाहते हैं ताकि आप दोनों एक-दूसरे के साथ वक्त बिताएँ, एक-दूसरे को जानें, समझें और इस रिश्ते को निभाने की कोशिश करें।

    हम कोई दबाव नहीं डाल रहे आप पर, बस इतना कह रहे हैं कि वह एक ज़िम्मेदार पति बनेंगे, यह विश्वास है हमारा, आप भी बीती बातों को भुलाकर कोशिश कीजिएगा उनकी पत्नी बनने की, क्योंकि पति-पत्नी का रिश्ता बेहद खास होता है और आयुष के पास शुरू से रिश्तों का अभाव रहा है, पर जितने रिश्ते उनसे जुड़े हैं, वह उन्हें दिल से निभाते हैं और एक पत्नी का रिश्ता ऐसा है जो उनकी ज़िंदगी की हर कमी को दूर कर सकता है,

    क्योंकि हर रिश्ता वक्त के साथ साथ छोड़ देता है, पर पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ पूरी ज़िंदगी बितानी होती है, एक ज़िंदगी बाँटनी होती है, एक-दूसरे के सुख-दुख का सहारा बनना होता है, एक-दूसरे को संभालना होता है और उस रिश्ते की डोर को मज़बूती से थामे रखना होता है।.....बहुत नाज़ुक डोर होती है रिश्तों की, ज़रा सी लापरवाही से सब बिखर जाता है, उम्मीद करते हैं कि आप क़दर करेंगी इस रिश्ते की और आयुष का साथ देंगी इस रिश्ते को निभाने में।....."

    प्रीति खामोशी से उनकी बात सुनती रही, पर बोली कुछ नहीं। आखिर में गरिमा जी ने उसके सर को चूमते हुए कहा, "चलिए आप आराम कीजिए, हम आपके लिए लड्डू बना देते हैं, वहाँ खाया कीजिएगा, बच्चे के लिए अच्छा होता है।"

    प्रीति ने बस सर हिला दिया। गरिमा जी वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही मानसी प्रीति के पास चली आई।

    "भाभी, आपके लिए यह सब आसान नहीं, जानती हूँ, पर आयुष भाई बहुत अच्छे हैं। शायद दुनिया की हर लड़की पति के रूप में ऐसे ही लड़के की कल्पना करती होगी, पर वह आपको मिले हैं। आज उन्हें थोड़ा सा प्यार देंगी ना, तो वह आपको इतना प्यार करेंगे कि आपको उनके अलावा कुछ याद ही नहीं रहेगा।

    आप उनके तरफ एक कदम बढ़ाएँगी और बाकी का फ़ासला वह खुद तय करके आपके पास आ जाएँगे। वह आपको वह प्यार, वह इज़्ज़त, वह खुशियाँ देंगे जो प्रेम भाई कभी आपको नहीं दे पाते।.....आपके साथ जो हुआ बहुत गलत हुआ, पर पति के रूप में अब आपको आयुष भाई मिले हैं, यह खुशकिस्मती समझिए अपनी और उन्हें और इस रिश्ते को स्वीकार कर लीजिए।.....

    ज़्यादा कुछ मत कीजिए, बस उन्हें समझने और जानने की कोशिश कीजिए। देखिए, जैसे-जैसे आपको उन्हें गहराई से जानती-समझती जाएंगी, खुद दीवाने की तरह उनसे प्यार करने लगेंगी। वह हैं ही इतने अच्छे कि कोई भी उनके साथ थोड़ा वक्त बिता ले, तो बस उन्हीं का होकर रह जाए।

    फिर आपको उनके अलावा कुछ याद ही नहीं रहेगा और आज आप यहाँ से जाने का सोचकर उदास हैं, पर जल्दी ही वह वक्त आएगा जब आप उनसे दूर जाने का सोचकर ही बेचैन हो उठेंगी।.....चलिए अब आप आराम कीजिए, मैं मम्मी की मदद करने जाती हूँ।"

    मानसी तुरंत वहाँ से चली गई, पर पीछे छोड़ गई प्रीति को जो उसकी बातों में बुरी तरह उलझ चुकी थी। आयुष अंजान तो नहीं था उसके लिए। शायद जानती थी उसे, पर कभी सोचा नहीं था कि ज़िंदगी उसे इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी कि वह उसकी पत्नी बनकर उसके साथ उसके घर जाएगी। उसके साथ एक घर, एक कमरा, एक बिस्तर शेयर करेगी।

    यहाँ तो दोनों अलग-अलग कमरों में रहते थे, पर वहाँ तो साथ रहना होगा। माने न माने, पर पति के रूप में अब वह उसका है, पर क्या इतना आसान है अपनी ज़िंदगी में एक के बाद आए एक इतने बड़े बदलावों को स्वीकार करना?.....क्या इतना आसान है एक शादी की बुरी डरावनी यादों को भुलाकर दूसरी शादी को अपनाना?.....क्या इतना आसान है अपने अतीत को भुलाकर आगे बढ़ना, वह भी बस चंद दिनों में?.....नहीं, बिल्कुल भी आसान नहीं है। उसके लिए तो बिल्कुल भी आसान नहीं है।

    प्रीति अपनी ज़िंदगी की उलझनों में बुरी तरह उलझ चुकी थी और अपने ही विचारों से लड़ते हुए नींद की आगोश में चली गई थी।

    अगले दिन सुबह 11 बजे वह घर से निकलने वाले थे। दोनों का सामान कार में रखा जा चुका था। प्रीति गुलाबी रंग की साड़ी पहने तैयार थी। आयुष्मान भी तैयार था। आधी रात तक जागकर गरिमा जी ने प्रीति के लिए पौष्टिक गोंद के लड्डू के साथ ड्राई फ्रूट वाली नमकीन, मठरी, नमकपारे और कुछ चीजें तैयार कर दी थीं, जिन्हें कुछ दिन रखकर आराम से खाया जा सकता था। अचार का डब्बा भी रख दिया था।

    आयुष्मान को भी बारीकी से सब चीजें समझा दी थीं ताकि वह प्रीति का और बच्चे का ध्यान रख सके। प्रीति को भी बारीकी से सब चीजें समझा दी थीं ताकि वह अपना और बच्चे का ध्यान रख सके। राजेश भी आया था, पर घर से बाकी कोई नहीं आया था।

    प्रीति और आयुष्मान ने अवदेश जी, गरिमा जी और राजेश तीनों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। मानसी बारी-बारी दोनों के गले लगी, उसके बाद आयुष्मान ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और प्रीति उसके बगल में पैसेंजर सीट पर बैठ गई। कार आगे बढ़ गई और प्रीति आयुष्मान के साथ अपनी ज़िंदगी के इस नए सफ़र पर चल पड़ी, जो उसकी ज़िंदगी में क्या मोड़ लाने वाला था और उसको कहाँ लेकर जाने वाला था, यह वक्त के गर्भ में छुपा था।

    आयुष्मान ड्राइविंग कर रहा था और प्रीति खिड़की से सर लगाए, आँखें बंद किए खामोश सी बैठी थी। दोनों के बीच गहरी खामोशी छाई हुई थी। जाने कब यह खामोशी टूटेगी और उनकी बातें शुरू होंगी।

    ड्राइविंग करते हुए आयुष्मान बीच-बीच में उसको देख रहा था, पर प्रीति स्थिर बैठी हुई थी। यूँ ही कब दो घंटे बीत गए, दोनों में से किसी को मालूम ही नहीं चला। कार ने एक सोसाइटी के गेट के अंदर प्रवेश किया और पार्किंग में जाकर गाड़ी रुकी। आयुष्मान ने अब प्रीति की तरफ़ निगाहें घुमाते हुए कहा,

    "प्रीति, हम पहुँच गए।"

    प्रीति ने झट से अपनी आँखें खोलकर पहले आयुष्मान को देखा, फिर खिड़की से बाहर देखा तो सामने ही गार्डन में कुछ बच्चे खेलते नज़र आए और अनायास ही प्रीति के लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई, जो आयुष्मान को सुकून पहुँचा गई।

    वह हौले से मुस्कुराया और गाड़ी से बाहर निकल गया। डिग्गी से अपना पीठ पर टाँगने वाला ट्रेवलिंग बैग निकालकर टाँग लिया और प्रीति के दो-दो ट्रॉली बैग को भी बाहर निकाल दिया। सामान तो और भी था उसका, पर बस ज़रूरी सामान ही लाई थी और खाने-पीने का सामान था।

    वह बैग पकड़ने ही वाला था कि प्रीति वहाँ आ गई और उसको रोकते हुए बोली, "मैं अपना सामान खुद उठा लूँगी।"

    "इस हालत में तुम्हें भारी नहीं उठाना चाहिए और जब मैं हूँ तो तुम क्यों उठाओगी सामान? तुम बस अपना पर्स और खुद को संभालो, बाकी मैं संभाल लूँगा।"

    आयुष्मान ने सहजता से जवाब दिया और दोनों बैग संभालते हुए आगे बढ़ गया। प्रीति को कुछ कहने का मौका ही नहीं मिला। वह भी कंधे पर अपना पर्स टाँगे उसके पीछे-पीछे चलने लगी।

    दोनों लिफ्ट में आए, पर दूर-दूर खड़े रहे, जैसे अंजान हों एक-दूसरे के लिए। लिफ्ट फिफ्थ फ्लोर पर रुकी और आयुष्मान एक फ्लैट के सामने आकर रुका, जिसके साइड दीवार पर आयुष्मान खुराना नाम की चमचमाती नेम प्लेट लगी हुई थी।

    प्रीति नज़रें घुमाकर देखने लगी। उस फ़्लोर पर तीन फ्लैट बने थे, लिफ्ट-सीढ़ियाँ साइड में थीं। वह आस-पास देख ही रही थी कि उसके कानों में आयुष्मान की आवाज़ पड़ी, "आओ अंदर।"

    प्रीति ने तुरंत सामने देखा तो आयुष्मान दरवाज़ा खोल चुका था और बैग लेकर अंदर जा रहा था, पर अंदर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ था। अगले ही पल पूरा अपार्टमेंट रोशनी से जगमगा उठा, क्योंकि आयुष्मान लाइट्स ऑन कर चुका था। गेट से ड्राइंग रूम में रखा सोफा सेट नज़र आ रहा था। प्रीति कुछ अंदर चली आई और निगाहें घुमाकर फ्लैट को देखने लगी, साथ ही आयुष्मान की बातें भी सुनने लगी।


    Coming soon......

  • 16. Twisted ties of love - Chapter 16

    Words: 1237

    Estimated Reading Time: 8 min

    प्रीति ने तुरंत सामने देखा। आयुष्मान दरवाज़ा खोल चुका था और बैग लेकर अंदर जा रहा था। पर अंदर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ था।

    अगले ही पल पूरा अपार्टमेंट रोशनी से जगमगा उठा। आयुष्मान लाइट्स ऑन कर चुका था। गेट से ड्राइंग रूम में रखा सोफा सेट नज़र आ रहा था। प्रीति कुछ अंदर चली आई और निगाहें घुमाकर फ्लैट को देखने लगी। साथ ही, आयुष्मान की बातें भी सुनने लगी।

    "राइट साइड में ओपन किचन है, लेफ्ट साइड में बाथरूम, पूजा करने के लिए किचन के साथ छोटा सा मंदिर है। दो रूम हैं, एक में मैं रहता हूँ, दूसरा फिलहाल बंद है।"

    "वैसे तुम उस रूम में रह सकती हो, पर हम पति-पत्नी हैं, तो बेहतर होगा कि एक ही रूम में रहें। क्योंकि यहाँ मैं रहता भले अकेला था, पर सफाई के लिए मेड लगाई हुई है। और उसके सामने अगर हम अलग-अलग रहते हैं, तो ये बात पूरी सोसाइटी में फैलने में वक्त नहीं लगेगा। और मैं नहीं चाहता कि कोई हमारे रिश्ते पर सवाल उठाए या हमारे रिश्ते की हकीकत किसी के सामने आए।"

    "इससे बदनामी होगी, सो अलग, पर तुम पर और हमारे बच्चे पर भी सवाल खड़े हो जाएँगे, जो मैं बिल्कुल नहीं चाहता। तो सामान मेरे रूम में ही रख रहा हूँ। हाँ, रात में मैं दूसरे रूम में सो जाया करूँगा, तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी।"

    "रूम से अटैच्ड बाथरूम है और साथ में बालकनी भी है, जहाँ से गार्डन एरिया दिखता है, चाहो तो आकर देख सकती हो।"

    आयुष्मान सब बताते-बताते बैग लेकर एक रूम में घुस गया। प्रीति समझ गई कि वही आयुष्मान का रूम है, पर वो उसके पीछे नहीं गई। कुछ पल बाद वो गले में टाई पहने, हाथ में लैपटॉप का बैग और ब्लेज़र लेकर रूम से बाहर आया और प्रीति के पास आकर बोला,

    "मेरे पास अभी टाइम नहीं है, तो शॉर्ट में सब बता दिया है तुम्हें, देख लेना खुद से। कुछ देर में मेड आएगी, तो सफाई कर देगी और साथ में खाना भी बना देगी, टाइम से खा लेना। मेड की हेल्प से अपना सामान भी सेट कर लेना।"

    "मुझे लौटने में देर होगी, तो टाइम से खा-पीकर सो जाना। अगर ज़रूरत पड़े, तो फोन कर देना मुझे। और सबसे ज़रूरी बात ये है कि यहाँ अभी तुम किसी को जानती नहीं हो, तो किसी भी अंजान को घर में मत आने देना।.....ये लो, फ्लैट की चाबी और आकर गेट लॉक कर लो।"

    आयुष्मान ने उसके तरफ़ एक चाबी का छल्ला बढ़ा दिया। वो जितनी जल्दी सब बोल गया, प्रीति समझ गई कि वो जल्दबाज़ी में है। पहले तो वो आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरान-परेशान सी उसको देखती ही रह गई। फिर चाबी लेकर उसके पीछे चली आई।

    बाहर जाने से पहले आयुष्मान ने एक बार फिर उसको सब समझाया, फिर अपना ध्यान रखने को कहकर लिफ्ट की तरफ़ बढ़ गया। प्रीति कुछ देर पीछे खड़ी उसको देखती रही। पर जैसे ही आयुष्मान ने पलटकर उसको देखा, उसने तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया।

    आयुष्मान ने गहरी साँस छोड़ी और लिफ्ट में घुस गया। प्रीति गेट लॉक करके अंदर चली आई और एक बार फिर हॉल में नज़र घुमाई। सब कुछ व्यवस्थित था वहाँ और इतने दिन बंद रहने के बाद भी सब चमक रहा था।

    प्रीति कुछ पल ड्राइंग रूम की बड़ी सी विंडो के पास खड़ी रही, फिर किचन की तरफ़ बढ़ गई।

    ज़्यादा बड़ा किचन नहीं था, पर एक इंसान के लिए काफी था। वहाँ भी सब साफ़-सुथरा था। मॉड्यूलर किचन था, जहाँ पकाने के लिए ज़रूरत पड़ने वाली सभी उपकरण मौजूद थे। किचन को अच्छे से देखने के बाद प्रीति ने अब आयुष्मान के रूम की तरफ़ कदम बढ़ा दिए और दरवाज़े पर खड़ी होकर रूम को देखने लगी।

    रूम में बेड के सामने की दीवार पर कुछ तस्वीरें लगी हुई थीं। मानसी, अवदेश जी, गरिमा जी सब थे उन तस्वीरों में। प्रेम के साथ भी आयुष्मान की फ़ोटो थीं, जिन्हें देखकर उनके रिश्ते की गहराई का अंदाज़ा लगाया जा सकता था। पर अब वो रिश्ता टूट चुका था और कहीं न कहीं उसकी वजह वो खुद थी।

    प्रेम की फ़ोटो देखकर प्रीति का मन खट्टा हो गया। तभी उसकी नज़र एक पुरानी सी तस्वीर पर पड़ी। वो देखते ही समझ गई कि वो फ़ोटो आयुष्मान के मम्मी-पापा की थी, जिसमें छोटा आयुष्मान भी था।

    'कितना क्यूट लगता था वो बचपन में!' प्रीति मन ही मन ये सोच बैठी, फिर अपनी ही सोच पर हैरान हो गई और फ़ोटो पर से निगाहें फेर लीं। रूम में साइड में सारा लगेज रखा हुआ था।

    प्रीति ने कबर्ड का दरवाज़ा स्लाइड करके देखा। वहाँ आयुष्मान के कपड़े सलीके से सजाकर रखे गए थे। उसने दूसरे साइड का कबर्ड खोला तो वो खाली था, बस कुछ फाइल्स रखी हुई थीं वहाँ। प्रीति ने पूरे रूम को देखा, फिर काँच के दरवाज़े को स्लाइड करके बालकनी में चली आई। जहाँ कई सारे गमले रखे थे। काफी हरियाली थी वहाँ, रंग-बिरंगे फूल भी खिले थे।

    प्रीति उन्हें छू-छूकर देखने लगी, फिर बालकनी से नीचे देखने लगी। सच में वहाँ से गार्डन दिखता था, पर इतना ऊपर था कि सब छोटा-छोटा दिख रहा था।

    प्रीति नीचे खेलते बच्चों को देखकर मुस्कुराने लगी। कुछ वक्त गुज़रा और डोरबेल की आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। प्रीति को आयुष्मान की मेड के आने की बात याद आई और वो तुरंत रूम की तरफ़ बढ़ गई।

    दरवाज़ा खोलने ही वाली थी कि एक बार फिर आयुष्मान की बात मन में कौंध गई कि किसी को भी अंदर नहीं आने देना। उसने दरवाज़े के हॉल से झाँककर बाहर देखा तो कोई लेडी खड़ी थी, मतलब मेड ही होगी।

    ये सुनिश्चित करने के बाद उसने दरवाज़ा खोल दिया। मेड प्रीति को ऊपर से नीचे तक देखने लगी, फिर भौंह उठाकर बोली,

    "आप सर की मिसेज़ हैं?"

    प्रीति एकदम से तो जवाब नहीं दे सकी, फिर सहमति में सर हिला दिया। मेड अब उसको देखकर मुस्कुराकर बोली, "सर की पसंद तो अच्छी है, पर बहुत जल्दी में शादी हुई लगता है। हमें तो बताया भी नहीं। आज फ़ोन करके बताया कि अपनी मिसेज़ के साथ आ रहे हैं, तो काम करने आ जाएँ।"

    प्रीति उनकी बात पर फीका सा मुस्कुराकर रह गई। जबकि मेड बोलते-बोलते अंदर चली आई और सब चीजें झाड़-पोंछाकर साफ़ करते हुए उसको सोसाइटी, यहाँ के लोगों और आयुष्मान के पहले के दिनों के बारे में बताने लगी।

    प्रीति भी उसके साथ काम करवाने लगी, जिससे उसका टाइम पास हो गया। कुछ देर बाद गरिमा जी का फ़ोन आया तो उन्हें पहुँचने के बारे में बता दिया, कुछ देर बाद का, फिर राजेश से बात की और इन्हीं सब में दोपहर के २ बज गए। मेड अपना सब काम करके फ़्री हो चुकी थी। वो आयुष्मान के रूम में चली आई और प्रीति को देखकर बोली,

    "मैडम, खाना बना दिया है आपके लिए। रात के लिए भी बनाकर फ़्रिज में रख दिया है, गरम करके खा लीजिएगा। अच्छा, अब मैं चलती हूँ।"

    प्रीति ने सर हिलाया और जाकर दरवाज़ा वापस लॉक कर दिया। दोपहर हो चुकी थी और उसने सुबह का खाया हुआ था, तो भूख तो लगी ही थी। वो किचन में चली आई और खाना निकालकर हॉल में चली आई।

    खाली, अकेले बैठे बोर होती तो टीवी चलाकर बैठ गई, पर उस पर बस न्यूज़ और गेम्स के ही चैनल आ रहे थे, बाकी चैनल्स को सब्सक्राइब नहीं किया हुआ था। ये देखकर प्रीति ने बुरा सा मुँह बनाया और खाना खाने लगी। उसके बाद रूम में चली आई और कुछ ही देर में उसकी आँख लग गई।

  • 17. Twisted ties of love - Chapter 17

    Words: 1042

    Estimated Reading Time: 7 min

    शायद जगह बदलने का असर उस पर हो रहा था। प्रीति सुबह से ज़्यादा खुश नहीं थी, दुखी और उदास भी नहीं थी।

    दोपहर को वो सोई और सीधे रात को उठी। रात के 8 बज रहे थे, पर आयुष्मान अब तक नहीं आया था। प्रीति किचन गई, पर कुछ खाने का मन नहीं हुआ। खाना देखकर ही उसे उल्टी आने लगी और उल्टियों के बाद उसकी हालत पस्त हो गई। वो वापस बिस्तर पर गिर पड़ी।

    रात को करीब 10 बजे फ़्लैट का दरवाज़ा खुला और आयुष्मान अपार्टमेंट में आया। सारी लाइट्स ऑन थीं। ड्राइंग रूम खाली था और हर जगह गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।

    आयुष्मान पहले किचन में गया और चेक किया। सिंक में बस एक ही प्लेट रखी थी। बाकी खाना फ़्रिज में रखा था, मतलब उसने डिनर नहीं किया था। आयुष्मान ने अपने रूम की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। रूम में बिस्तर पर प्रीति अजीब ढंग से सोई हुई थी। आयुष्मान ने उसे जगाने का सोचा, फिर चुपचाप अपने कमरे की ओर निकल गया।

    दूसरे रूम में जाकर वो फ़्रेश हुआ और बिना खाए सो गया। अगले दिन सुबह उठकर उसने प्रीति के लिए नाश्ता बनाया। प्रीति उठी, पर आयुष्मान से कुछ नहीं बोली। खामोशी से उन्होंने नाश्ता किया। फिर आयुष्मान ऑफ़िस चला गया और प्रीति उस फ़्लैट पर अकेली रह गई। मेड टाइम पर आई और अपना काम करके चली गई। रात में जब आयुष्मान लौटा तो प्रीति सोती हुई मिली। आज फिर आधा-अधूरा खाया हुआ खाना किचन स्लैब पर रखा मिला।

    यूँ ही कुछ दिन बीत गए। इन दिनों प्रीति की तबियत अक्सर ख़राब रहती थी, इसलिए वो ठीक से खाना नहीं खा पाती थी और आयुष्मान को उसने कुछ नहीं बताया था। उनके बीच कोई ख़ास बात भी नहीं हुई। जब बोलता, आयुष्मान ही बोलता, प्रीति चुप रहती थी।

    सारा दिन ऑफ़िस में काम करने के बाद वो थका-हारा रात को लौटता, तो वो सोती मिलती। कभी खाना फ़्रिज में पड़ा मिलता, तो कभी आधा-अधूरा खाना किचन स्लैब पर पाया जाता। आज भी वही हुआ।

    इतने दिनों से आयुष्मान चुप रहता, उसे उसके तरीके से रहने देता, ताकि वो उसके साथ सहज हो सके। पर आज वो फ़्रेश होने के बाद वापस अपने रूम में आया। ताकि प्रीति को जगाकर खाना खिला सके, क्योंकि उसका रोज़-रोज़ यूँ भूखे सोना उसके और बच्चे के लिए बिल्कुल ठीक नहीं था।

    वो रूम में आया तो प्रीति अब भी बेढंगे तरीके से सो रही थी। आयुष्मान उसके पास आया और उसके गाल को हल्के से थपथपाते हुए बोला,

    "प्रीति....."

    प्रीति के कानों में जैसे ही ये आवाज़ पड़ी, वो एकदम से चौंककर उठ बैठी और पीछे की तरफ़ झुकी, घबराई निगाहों से उसे देखने लगी। उसके अचानक उठने से आयुष्मान खुद चौंक गया, पर जब उसकी नज़र प्रीति के डरे-सहमे, घबराए चेहरे पर पड़ी तो उसके चेहरे के भाव गंभीर हो गए। उसने अपना आगे बढ़ाया हाथ पीछे खींच लिया और नाराज़गी भरी निगाहों से उसे देखते हुए बोला,

    "क्या मुझसे इतना डरने और घबराने की वजह जान सकता हूँ मैं?.....जबसे तुमसे फिर से मुलाक़ात हुई है, तुम्हारा ऐसा ही बिहेवियर देख रहा हूँ। पहले तो ऐसे बिहेव करती थी, जैसे जानती ही नहीं मुझे, पर मैंने कुछ नहीं कहा, क्योंकि जानता था कि उस वक़्त तुम्हारी क्या मनोदशा रही होगी।.....

    तुम्हारी हर शर्त को मानकर शादी की तुमसे, ताकि तुम्हारी बिखरी ज़िंदगी को सँवार सकूँ, पर शादी के बाद तुम्हारा बिहेवियर ऐसा था, जैसे मैंने मजबूर किया तुम्हें इस रिश्ते को जोड़ने के लिए।.....मुझे लगातार इग्नोर करती रही, फिर भी मैं कुछ नहीं बोला, क्योंकि समझ सकता था कि जो तुम्हारे साथ हुआ, उसके बाद आसान नहीं था तुम्हारे लिए बीती बातों को भुलाकर इस रिश्ते को अपनाना और आगे बढ़ना।

    तो दिया मैंने तुम्हें वक़्त और वक़्त ही देना चाहता था तुम्हें, इसलिए अपने साथ यहाँ लाने को तैयार नहीं था मैं, पर तुमने आने के लिए हामी भरी, तब मैं तुम्हें यहाँ लेकर आया और यहाँ आकर भी तुम्हारा बिहेवियर वैसा का वैसा ही रहा।.....

    तुम मुझे बहुत अच्छे से जानती हो कि मैं उन लड़कों में से नहीं जो लड़की की मर्ज़ी के बिना उसके करीब आए और तुम तो पत्नी हो मेरी, वादा किया है मैंने तुमसे कि तुम्हारी इच्छा के ख़िलाफ़ कभी तुम पर अपना हक़ ज़ाहिर नहीं करूँगा, जब तक तुम्हारी सहमति नहीं होगी, कभी तुम पर पति होने के अधिकार नहीं जमाऊँगा। उसके बावजूद तुम इतना डर रही हो मुझसे।.....

    अगर तुम्हें मुझ पर अब विश्वास ही नहीं, तो मुझे नहीं लगता कि मैं अकेले ज़्यादा वक़्त तक इस रिश्ते को निभा सकूँगा या हम यहाँ साथ रह सकेंगे।.....पहले ही कहा था मैंने तुमसे कि मुझे बस तुम्हारा विश्वास और साथ चाहिए, पर अफ़सोस की तुम इस रिश्ते में तो बंध गईं, पर न मुझ पर विश्वास कर सकीं और न ही मेरा साथ निभा सकीं। पत्नी क्या, तुमने तो हमारी दोस्ती तक को भुला दिया, परायों जैसा बिहेव करती हो मेरे साथ।.....पहले हँसी-खुशी मेरे करीब चली आती थी और अब गलती से तुम्हें छू दूँ, तो ऐसे डरती हो मुझसे, जैसे कुछ गलत करने वाला हूँ मैं तुम्हारे साथ।.....

    मानता हूँ कि तुम्हारे साथ गलत हुआ, बहुत गलत हुआ, पर वो गलत मैंने तो नहीं किया, फिर सज़ा मुझे क्यों?.....क्या चाहा है मैंने तुमसे?.....बस इतना कि खुश रहो, जैसे पहले फ़्रीली रहती थी मेरे साथ, वैसे ही रहो, मुझ पर विश्वास करो और पति ना सही, एक सच्चे दोस्त के हैसियत से मुझे ज़िंदगी के इस सफ़र को अपने साथ तय करने दो। मुझसे अपने सुख-दुख बाँटो और बीती बातें भुलाकर आगे बढ़ो।.....

    पर तुम आज भी वही की वही अटकी हुई हो।.....गुमसुम सी रहती हो, बात करना तो दूर, गलती से अगर मेरे तरफ़ देख भी लो, तो चेहरा फेर लेती हो, शादी तो दूर, तुमने हमारी दोस्ती के रिश्ते को भी भुला दिया है।.....अगर तुम्हें ऐसे ही रहना है, तो मैं कल ही वापस छोड़ आऊँगा तुम्हें, वहाँ सबके साथ खुश और सुरक्षित रहना।.....

    रिश्ता नहीं तोड़ूँगा तुमसे, पत्नी रहोगी तुम मेरी और तुम्हारे बच्चे को मेरा नाम भी मिलेगा, पर अफ़सोस की तुम्हारे इस बिहेवियर के साथ मैं तुम्हारे साथ, एक घर में, एक छत के नीचे नहीं रह सकता, क्योंकि मैं तुम्हारी ये बेरुखी, परायों जैसा बिहेवियर और तुम्हारा यूँ मुझसे डरना अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता।....."

  • 18. Twisted ties of love - Chapter 18

    Words: 953

    Estimated Reading Time: 6 min

    "अगर तुम्हें ऐसे ही रहना है तो मैं कल ही वापस छोड़ आऊँगा तुम्हें, वहाँ सबके साथ खुश और सुरक्षित रहना। रिश्ता नहीं तोड़ूँगा तुमसे, पत्नी रहोगी तुम मेरी और तुम्हारे बच्चे को मेरा नाम भी मिलेगा, पर अफ़सोस की तुम्हारे इस बिहेवियर के साथ मैं तुम्हारे साथ, एक घर में, एक छत के नीचे नहीं रह सकता, क्योंकि मैं तुम्हारी ये बेरुखी, पराया बिहेवियर और तुम्हारा यूँ मुझसे डरना अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

    आयुष्मान ने इतने दिनों से उसके मन में जो भी भरा था, सब एक बार में बाहर निकाल दिया था। अब तक सब कुछ खामोशी से सहता आ रहा था, पर आज प्रीति को खुद से यूँ डरते देख, वह बर्दाश्त नहीं कर सका। उसकी घबराई निगाहें उसके दिल पर शूल सी चुभी थीं; उसके प्यार भरे दिल को प्रीति का उस पर अविश्वास दिखाना आहत कर गया था और रोकते-रोकते भी सब कह गया था उसने।

    ना चाहते हुए भी, प्रीति को खुद से दूर भेजने का फ़ैसला ले लिया था उसने और अपने मन के गुबार को बाहर निकालकर, अपना निर्णय सुनाकर, बिना एक पल वहाँ रुके, दरवाज़े की तरफ़ रुख़ कर लिया था।

    गुस्से में लंबे-लंबे डग भरते हुए, तेज़ कदमों से रूम से बाहर जाने लगा था वह, पर गेट पर पहुँचकर अचानक ही उसके आगे बढ़ते कदम ठहर गए थे। उसने बिना उसके तरफ़ पलटे हुए ही, कठोर आवाज़ में कहा,

    "मैं यहाँ सोते हुए तुम्हारा फ़ायदा उठाने नहीं आया था। आज फिर डिनर नहीं किया है तुमने और प्रेग्नेंसी में भूखे रहना ठीक नहीं, इसलिए बस जगाने आया था कि खाना खाकर सो जाओ। अब जाग गई हो तो खाना गरम कर देता हूँ, खाकर सो जाना और डरना मत, नहीं आऊँगा इस रूम में दोबारा, जब तक तुम यहाँ हो, दोबारा इस रूम में कदम तक नहीं रखूँगा।"

    इतना कहकर वह रूम से बाहर निकल गया था। प्रीति आँखें बड़ी-बड़ी करके, घबराई हुई सी उसको देखती ही रह गई थी और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।

    शायद इतने वक़्त में पहली बार आयुष्मान ने इस तरह उससे बात की थी, जो उसको चुभ गया था या कोई और बात थी जिसने उसको आहत किया था। आयुष्मान का कहा एक-एक शब्द उसके कानों में गूँज रहा था और आँखों के सामने वो सब पल घूम रहे थे, जब उसका और आयुष्मान का आमना-सामना हुआ था और उसने हर बार उसको बस नज़रअंदाज़ ही किया था। दुख में थी वह, तो शायद इन बातों पर ध्यान नहीं दे सकी थी कि अपने बिहेवियर से आयुष्मान के मन को ठेस पहुँचा रही थी।

    अब उसको सब साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था और वह समझ पा रही थी आयुष्मान के इस गुस्से और नाराज़गी के पीछे छुपे उसके दर्द और तकलीफ़ को। कहीं न कहीं प्रेम के गुनाहों की सज़ा जाने-अनजाने वह आयुष्मान को दे रही थी।

    अगर वह निर्दोष थी और उसके साथ गलत हुआ था, तो गलत तो वह भी नहीं था, पर वह उसके साथ गुनाहगारों जैसे सुलूक कर रही थी। अपने दुख से बाहर निकलकर कभी सोचा ही नहीं था कि वह खुद आयुष्मान को कितना दुख पहुँचा रही है? पर अब उसको अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था।

    प्रीति काफ़ी देर तक उसकी बातों के बारे में सोचती रही थी, फिर उठकर बाहर चली आई थी। आयुष्मान की बात याद करते हुए वह सीधे किचन में पहुँची थी, पर वहाँ आयुष्मान कहीं नहीं था। स्लैब पर एक प्लेट में खाना रखा हुआ था, जो गरम था। मतलब आयुष्मान खाना गरम करके गया था उसके लिए। प्रीति तुरंत उस रूम की तरफ़ बढ़ी थी, जहाँ पिछले कुछ दिनों से आयुष्मान सो रहा था, पर रूम, बाथरूम, बालकनी सब खाली थे।

    प्रीति ने पूरे फ़्लैट को छान मारा था, पर आयुष्मान कहीं नहीं था, मतलब वह फ़्लैट से चला गया था। प्रीति कुछ देर परेशान सी ड्राइंग रूम में टहलते हुए उसका इंतज़ार करती रही थी, पर आयुष्मान वापस नहीं आया था। प्रीति की तबियत वैसे ही ख़राब रहती थी और कमज़ोरी भी थी, तो उससे और खड़ा नहीं हुआ गया था वह, वहीं सोफ़े पर आकर पैर फैलाकर बैठ गई थी और आयुष्मान का इंतज़ार करते-करते कब उसकी आँखें लगी थीं, उसे एहसास ही नहीं हुआ था।

    दूसरे तरफ़ आयुष्मान आज काफ़ी विचलित था। एक तो प्रीति के बिहेवियर की वजह से हर्ट था वह और अब उसको खुद से दूर करने का फ़ैसला कर लिया था उसने, जो आसान नहीं था, पर शायद प्रीति के लिए यही सही था।

    प्रीति को भले उससे प्यार नहीं था, वह उनके पुराने रिश्ते को भी भुला चुकी थी और इसके लिए उससे शिकायत करना भी बेमानी था, क्योंकि वह पहले वाली प्रीति तो थी ही नहीं। वह तो खुद को, अपने रियल रूप को भी भूल चुकी थी, तो उस रूप से जुड़े लोगों को कैसे याद रखती?

    प्रीति को भले आयुष्मान से फ़र्क़ नहीं पड़ता था, पर वह तो चाहता था प्रीति को और किसी भी हाल में बस उसको खुश देखना चाहता था, जो खुशी उसको उसके साथ कहीं नज़र नहीं आ रही थी, इसलिए अपने दिन पर पत्थर रखकर उसने यह फ़ैसला लिया था कि प्रीति को वापस छोड़ आएगा और खुद को तैयार कर चुका था इसके लिए।

    फिर भी मन में टीस सी उठ रही थी। रात के इस पहर में सोसाइटी के पार्क में कोई भी नहीं था, पर आयुष्मान लैंप पोस्ट की उस मद्धम रोशनी में पार्क के बेंच पर बैठा हुआ था। आँखों में नींद का एक कतरा नहीं था उसके, सूनी निगाहें शून्य में ताकते हुए, जाने किसकी खोज कर रही थीं?

    प्रीति आयुष्मान का इंतज़ार करते-करते ही सो गई थी। अगली सुबह उसकी नींद खुली थी। अभी वह पूरी तरह से जागी भी नहीं थी, आँखों में नींद भरी हुई थी और वह अलसाई हुई सी सोफ़े को बेड समझकर करवट लेने लगी थी, पर वह बेड तो नहीं था, सोफ़ा था, जिससे करवट लेने पर वह नीचे गिरने लगी थी, पर किसी की मज़बूत बाँहों ने उसको थाम लिया था।

  • 19. Twisted ties of love - Chapter 19

    Words: 1199

    Estimated Reading Time: 8 min

    प्रीति आयुष्मान के इंतज़ार में सो गई थी। अगली सुबह उसकी नींद खुली। वो पूरी तरह जागी नहीं थी; आँखों में नींद भरी थी और वो अलसाई सी सोफ़े पर करवट लेने लगी। पर सोफ़ा बेड नहीं था, जिससे गिरने लगी वो, पर किसी की मज़बूत बाँहों ने उसे थाम लिया।

    ये आयुष्मान था। वो कुछ देर पहले ही लौटा था और हॉल में सोती प्रीति को देखकर वहीं रुक गया था, खामोशी से उसके चेहरे को निहार रहा था। क्योंकि अब उसे उससे दूर जाना था।

    प्रीति ने अधखुली, अलसाई आँखों से उसे देखा, फिर लबों पर हल्की मुस्कान सजाते हुए उसके सीने से अपना सर लगा लिया। पर आयुष्मान के चेहरे पर सख्त भाव बने रहे। उसने प्रीति को बाँहों में उठाकर कमरे की तरफ़ बढ़ा और उसे बेड पर लिटाकर कमरे से बाहर निकल गया।

    वो सीधे किचन में पहुँचा। स्लैब पर खाने की प्लेट वैसी ही रखी देखकर उसके चेहरे पर गहरी उदासी और मायूसी छा गई।


    दूसरी तरफ़, आयुष्मान के कमरे से बाहर आते ही प्रीति उठकर बैठ गई। उसने बेचैन निगाहों से चारों ओर देखा और खुद को कमरे में पाया। उसे याद आया कि रात को आयुष्मान का इंतज़ार करते-करते वो ड्राइंग रूम में सो गई थी, पर अब कमरे में है… मतलब आयुष्मान उसे यहाँ लाया था।

    ये बात उसके मन में बिजली सी कौंधी। वो झट से बेड से उतर गई और समय देखकर किचन की तरफ़ चल दी। किचन के एंट्रेंस पर पहुँचते ही आयुष्मान दिखाई दिया, जिसकी पीठ उसकी तरफ़ थी। आयुष्मान ब्रेकफ़ास्ट की तैयारी कर रहा था। तभी उसके कानों में प्रीति की नाराज़गी भरी आवाज़ पड़ी,

    "कहाँ थे आप कल सारी रात?"

    उसकी आवाज़ सुनकर आयुष्मान के हाथ रुक गए, पर वो उसकी तरफ़ नहीं मुड़ा। खुद को संभालते हुए, सहजता से बोला,

    "अच्छा हुआ तुम खुद से उठ गई। अब जाकर नहाकर तैयार हो जाओ और सामान वापस पैक कर लो। आज ही मैं तुम्हें वापस मामा जी के घर छोड़ आऊँगा।"

    आयुष्मान ने पलटकर उसे नहीं देखा, इससे प्रीति आहत हुई, और उसकी बात सुनकर उसका मन दुखी हो गया। उसकी आँखों में नमी आ गई और उसने धीमी पर दृढ़ आवाज़ में कहा,

    "मैं वापस नहीं जाऊँगी।"

    "क्यों नहीं जाओगी तुम वापस?" आयुष्मान ने उसकी तरफ़ मुड़ते हुए, हल्के गुस्से में सवाल किया। प्रीति ने रुँधे गले से कहा, "मैं पत्नी हूँ तुम्हारी, जहाँ तुम रहोगे, वहीं मैं रहूँगी।"

    "ओह्! तो तुम पत्नी हो मेरी, पर माना है आज से पहले कभी हमारे रिश्ते को?.....ये कैसी पत्नी हो तुम मेरी, कि मुझसे बात करना तो दूर, मेरा चेहरा देखना भी तुम्हें गँवारा नहीं है।.....कैसी पत्नी हो तुम मेरी, जो मुझे प्यार करना तो दूर, मुझ पर एतबार भी नहीं कर सकी, जो मेरे छूने भर से ऐसे डर जाती है, जैसे मैं तुम्हारा पति नहीं, कोई राह चलता आवारा लड़का हूँ, जो तुम्हारे साथ कुछ गलत करने वाला हूँ?.....

    ये कैसा रिश्ता है हमारा, जिसे इतने दिनों से मैं अकेला निभाने की कोशिश कर रहा हूँ?.....जबसे यहाँ आई हो, मैंने तुम्हें गुमसुम, उदास और खामोश ही देखा है। वहाँ रहती थी, तो मुझसे ना सही, कम से कम बाकी लोगों से तो बात कर लेती थी। तब कम से कम बिना किसी डर के, खुद को सुरक्षित महसूस करते हुए, सुकून से रह तो पाती थी तुम, पर यहाँ तो लगता है जैसे हर पल तुम्हें एक डर लगा रहता है कि कहीं मैं फ़ायदा ना उठा लूँ तुम्हारा।"

    आयुष्मान के चेहरे पर विषाद और क्रोध के भाव उभर आए थे और गुस्सा आवाज़ में झलकने लगा। उस गुस्से में मिला था एक अनकहा सा दर्द, जिसे समझना शायद अभी प्रीति के बस की बात नहीं थी, पर उसकी बातों का मतलब वो समझ रही थी। उसने तुरंत ही ऐतराज़ जताते हुए, भारी गले से कहा,

    "ऐसा नहीं है, आप गलत समझ रहे हैं मुझे।"

    "अच्छा, अगर मैं गलत हूँ, तो तुम बताओ मुझे कि सच क्या है? क्यों कल मेरे ज़रा से छूने भर से डर गई तुम?" आयुष्मान हाथ बाँधे और भौंह सिकोड़े उसके सामने खड़ा हो गया। प्रीति ने उसके सवाल का तुरंत जवाब दिया,

    "वो मैं कोई डरावना सपना देख रही थी। आपने अचानक पुकारा, बस इसलिए घबरा गई थी मैं, आपके छूने से नहीं डरी थी। और जब तक हकीकत और सपने में फ़र्क़ समझ पाती, आप नाराज़ हो गए। मुझे कुछ कहने का मौक़ा ही नहीं दिया और अपनी बात कहकर पता नहीं कहाँ चले गए थे आप। मैं आपका इंतज़ार करते-करते ही सो गई, पर आप नहीं लौटे।"

    आयुष्मान ने उसकी बात सुनी। जब उसे पता चला कि प्रीति उसके छूने से नहीं डरी है, तो सुकून सा मिला उसके घायल मन को। पर अब भी नाराज़गी पूरी तरह से मिटी नहीं थी। प्रीति के चुप होते ही उसने अगला सवाल पूछा,

    "चलो माना कि कल रात जो हुआ वो तुम्हारे सपने की वजह से था, पर इतने दिनों से जो तुम्हारा मेरे और हमारे रिश्ते के प्रति रवैया है, उसके बारे में क्या सफ़ाई दोगी तुम?.....शादी से पहले तो मैं समझ सकता हूँ कि जो तुम्हारे साथ हुआ, उसके वजह से अपने सेंसेस में नहीं थी तुम और शायद मुझे नहीं पहचान रही थी, ताकि कल को कोई हमारे रिश्ते पर सवाल ना उठाए। और शादी के बाद भी सब अचानक हुआ तो तुम्हें वक़्त चाहिए होगा, पर इतने दिन हो गए अब, लेकिन तुम्हारा बिहेवियर वैसे ही रूखा का रूखा है।....

    ऐसे लगता है जैसे मैंने तुम्हारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर, तुम्हें मजबूर किया हो इस शादी के लिए और अब तुम घुट-घुटकर मेरे साथ दिन काट रही हो।"

    "ये शादी मजबूरी ही थी मेरी.....आपने मजबूर नहीं किया था, पर थी तो मेरी मजबूरी ही.....अपनी पहली शादी से इतना बड़ा धोखा मिला है मुझे, उसके बाद आसान नहीं दूसरी शादी को अपनाना। ये बिहेवियर आपके लिए नहीं, खुद के लिए है.....सच ही कहा आपने कि घुट-घुटकर दिन काट रही हूँ मैं, क्योंकि अब जीने की चाह नहीं बची मुझमें.....

    अगर बच्चे की ज़िंदगी का सवाल ना होता, तो कब का खुद को ख़त्म कर चुकी होती, पर मेरी बेबसी और मजबूरी है कि आत्मा मर चुकी है मेरी, पर उसे इस देह को छोड़ने की इजाज़त नहीं है।.....वहाँ अपने वजह से उन लोगों को दुखी नहीं करना चाहती थी, जिन्होंने मेरे मुश्किल वक़्त में मेरा साथ दिया, इसलिए खुश रहने का झूठा दिखावा कर लेती थी। बोलती तो जवाब दे देती, कि कहीं मेरी ख़ामोशी उनके मन को आहत ना करे, पर आपके साथ वो नाटक नहीं कर पाती मैं।.....

    जानती हूँ, बहुत अच्छे हैं आप जो मुझे अपनाया आपने, पर मैं आपके काबिल नहीं हूँ। मैं चाहकर भी नहीं अपना पा रही आज की सच्चाई को कि मैं पत्नी हूँ आपकी.....नहीं कर पा रही खुश रहने का दिखावा, ज़िंदगी के प्रति नीरस और विरक्त हो चुकी हूँ मैं।.....आपसे नज़रें मिलाने से नहीं बच रही, बल्कि खुद से दूर भाग रही हूँ, क्योंकि आज खुद को देखती हूँ तो खुद से ख़ौफ़ आता है मुझे।....."

  • 20. Twisted ties of love - Chapter 20

    Words: 1742

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    "जानती हूँ, बहुत अच्छे हैं आप, जो मुझे अपनाया आपने, पर मैं आपके काबिल नहीं हूँ। मैं चाहकर भी नहीं अपना पा रही आज की सच्चाई को कि मैं पत्नी हूँ आपकी… नहीं कर पा रही खुश रहने का दिखावा, ज़िंदगी के प्रति नीरस हो चुकी हूँ मैं… आपसे नज़रें मिलाने से नहीं बच रही, बल्कि खुद से दूर भाग रही हूँ, क्योंकि आज खुद को देखती हूँ तो खुद से ख़ौफ़ आता है मुझे…"

    "नहीं रह पाती मैं आपके साथ सहज, क्योंकि मेरे और आपके बीच मेरे अतीत की दीवार बन चुकी है… मुझे नहीं समझ आता कि क्या करूँ, बस मन करता है कि कैद रहूँ, दुनिया से दूर, जहाँ कोई मुझे ना देख सके या मर जाऊँ और छुटकारा मिल जाए मुझे इस दर्द, इस तकलीफ़ और ज़िल्लत भरी ज़िंदगी से।"


    भावनाओं में बहकर प्रीति ने बहुत कुछ कह दिया था। अपने मन के दुख को शब्दों में बयाँ कर दिया था। उसके स्वर में नाउम्मीदी थी, जैसे ज़िंदगी से हार चुकी हो। खुद से ही मुँह मोड़ लिया हो और ज़िंदगी से मोह छोड़ चुकी हो। आवाज़ दर्द से सनी थी और शब्दों में उसकी विवशता, मायूसी, बेबसी झलक रही थी। अब क्या ही शिकायत करता वो उस लड़की से, जो खुद से ही ख़फ़ा हो चुकी हो।


    आयुष्मान को आज एक अलग पहलू समझने को मिला था। प्रीति के दिल के उस हिस्से को देखने को मिला था, जहाँ घोर अंधकार और निराशा पाँव पसारे बैठी हुई थी। आज सही मायनों में उसकी अवस्था और दर्द से रूबरू हो रहा था वह। बेचैन, व्याकुल निगाहें प्रीति पर टिकी थीं। उसने तड़पते हुए, बेबसी से कहा,

    "किसके लिए कर रही हो ये सब?… किसके लिए खुद को इतना तड़पा रही हो?… ऐसी नहीं थी तुम प्रीति, फिर जिन्हें तुम्हारी ज़रा भी परवाह नहीं, उनके लिए खुद को इतना क्यों बदल लिया तुमने?"

    "मैंने नहीं बदला खुद को, मेरे हालातों ने मुझे ऐसा बना दिया है। जिस प्रीति को आप जानते थे, वो तो उसी दिन मर गई थी, जब शादी ना करने की उसकी ज़िद पर उसके पिता ने उस पर हाथ उठाया था और उसे ज़िंदा लाश की तरह विवाह की वेदी पर बिठा दिया गया था। उसी हवनकुंड की अग्नि में मैंने अपनी आहुति दे दी थी और उस आग की लपटें ऐसी उठीं कि मेरा वर्तमान, भविष्य सब जलकर राख हो गया।"

    "तुम बीती बातें भुलाकर एक नई शुरुआत नहीं कर सकती? मेरे लिए ना सही, हमारे बच्चे के लिए।"

    "रोज़ कोशिश करती हूँ, पर नहीं कर पाती। नहीं भूल पाती कुछ भी… उस शादी ने मेरा वजूद मिटा दिया है… कितनी ही कोशिश करती हूँ, पर लोगों के लगाए इल्ज़ाम, उनके तानों को नहीं भूल पाती मैं… आपसे शादी करने के बाद भी मेरे चरित्र पर सवाल उठाए गए थे और बर्दाश्त नहीं होता मुझसे ये सब।"


    प्रीति की आँखें लबालब आँसुओं से भरी थीं। वो कितनी बेबस और लाचार नज़र आ रही थी इस वक़्त। अब ये देखा जा सकता था कि लोगों के उन बेबुनियाद इल्ज़ामों ने प्रीति को किस क़दर तोड़ दिया है। आयुष्मान उसके पास चला आया और उसकी हथेलियों को थामते हुए बोला,

    "मैं समझता हूँ तुम्हारे दर्द को, पर अब तो वो सब, वो लोग बहुत पीछे छूट गए हैं ना?… यहाँ कोई तुम्हारी पहली शादी के बारे में नहीं जानता… कोई तुम्हारे अतीत से परिचित नहीं है… यहाँ किसी को नहीं मालूम कि किन हालातों में हमारी शादी हुई है…"

    "तुम एक फ़्रेश स्टार्ट कर सकती हो मेरे साथ। कोशिश तो करो इस रिश्ते को अपनाने की, खुश रहने की, फिर वजह तुम्हें खुद मिल जाएगी… मैं ये नहीं कहता कि अपना पति मानो मुझे, पर कम से कम जैसे पहले सहज रहती थी, वैसे सहज रहने का प्रयास तो करो…"

    "भूल जाओ अतीत में जो होगा, सोचो कि अरेंज मैरिज है हमारी और अब हम दोनों को मिलकर दिल से एफ़र्ट्स करते हैं इस रिश्ते को निभाने की, एक-दूसरे के साथ कम्फ़र्टेबल होने की, ताकि जब हमारा बच्चा इस दुनिया में आए, तो उसे एक खुशहाल परिवार मिल सके, जहाँ उसके माँ-बाप के बीच प्यार भले ही ना हो, पर आपसी समझ और तालमेल इतनी हो कि कभी किसी को उनके रिश्ते पर सवाल उठाने का मौक़ा ना मिले और हमारे बच्चे को ये ना लगे कि उसके पैरेंट्स का एक-दूसरे के साथ रिश्ता ख़राब है…"

    "तुम्हें पता है, माँ-बाप के रिश्ते का सीधा असर पड़ता है बच्चे पर, इसलिए हमारे बच्चे के लिए हमें अपने रिश्ते को सुधारना होगा और ये मेरे अकेले की कोशिशों से नहीं होगा, बल्कि हम दोनों के साथ कोशिश करने से हमारे बीच के हालात सुधरेंगे… और अगर ये ऐसे ही चलता रहा, तो ना तुम खुश रह सकोगी और ना ही मैं और ना ही हमारा बच्चा हमारे साथ खुश रह सकेगा।"

    "तुमने पहली शादी अपने माँ-बाप की वजह से मजबूरी में की थी ना और दूसरी अपने बच्चे के लिए, पर अब अपने लिए, अपने अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने की, फिर से खुश रहने और अपनी ज़िंदगी अपने शर्तों पर जीने की कोशिश करो, क्योंकि जब तक तुम खुश नहीं रहोगी, खुद से जुड़े लोगों को भी कभी खुशी नहीं दे सकोगी…"

    "तो अब अपने और अपने बच्चे के लिए फिर से जीना शुरू करो… मैं साथ दूँगा तुम्हारा, पर कोशिश तुम्हें खुद करनी है… बोलो, करोगी ना कोशिश, फिर से पहले वाली हँसमुखी, खुशमिजाज़, चंचल प्रीति बनने की?"


    प्रीति, जो उसकी सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी, उसने सुबकते हुए सहमति में सर हिला दिया, फिर मुँह बिचकाते हुए बोली, "अब तो आप मुझे वापस छोड़ने नहीं जाएँगे ना?"

    आयुष्मान हौले से मुस्कुराया, फिर उसके आँसू पोंछते हुए बोला, "अगर तुम मेरे साथ खुश रहोगी, तो अपनी आखिरी साँस तक तुम्हें संभालकर अपने पास महफ़ूज़ रखूँगा, एक पल के लिए भी तुम्हें खुद से दूर नहीं करूँगा।"

    "मैं अब पूरी कोशिश करूँगी कि मेरे अतीत को हमारे बीच ना आने दूँ और पहले वाली प्रीति बन सकूँ।"


    आयुष्मान उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, फिर अचानक ही उसको कुछ याद आया और उसने भौंह उठाते हुए प्रीति से सवाल किया,

    "प्रीति, खाना क्यों नहीं खाती हो तुम? रोज़ देखता हूँ, रात का खाना या तो यूँ ही पड़ा रहता है या आधा-अधूरा ही खाया होता है तुमने, जबकि खाने को लेकर तो तुम बहुत पोज़ेसिव और सीरियस रहा करती थीं… दुनिया इधर की उधर हो जाए, पर खाने से कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं करती थी तुम।"


    उसका सवाल सुनकर प्रीति ने अपनी निगाहें झुका ली और धीमे स्वर में बोली, "वो प्रेग्नेंसी के बाद से खाना नहीं खाया जाता। उल्टी हो जाती है। बहुत मुश्किल से थोड़ा-बहुत ही खा पाती हूँ और कभी-कभी तो खाने की स्मेल से ही जी मतलने लगता है और इतनी उल्टी होती है कि उसके बाद उठने की भी हालत नहीं होती मेरी।"

    "तुम्हें शुरू से ये प्रॉब्लम है, तो तुमने डॉक्टर को नहीं दिखाया अब तक?" आयुष्मान ने एक बार फिर चौंकते हुए सवाल किया।

    "डॉक्टर के पास गए ही नहीं। शुरू में उल्टी और पेट दर्द की शिकायत पर भैया डॉक्टर के पास लेकर गए थे। पेट का अल्ट्रासाउंड हुआ तो प्रेग्नेंसी का पता चला। उसके बाद हालात ऐसे बने कि किसी को ध्यान ही नहीं रहा डॉक्टर के पास जाने का और मैंने किसी को बताया भी नहीं कि इतनी परेशानी होती है मुझे।"

    "मतलब तुमने अब तक अपने प्रॉपर टेस्ट वगैरह नहीं करवाए हैं?" आयुष्मान ने एक बार फिर चौंकते हुए सवाल किया, जिस पर प्रीति ने इंकार में सर हिला दिया और उसके जवाब पर आयुष्मान अचंभित सा उसको देखता ही रह गया।


    प्रीति का उतरा हुआ चेहरा देखकर उसने हालातों का अनुमान लगाया। जिन हालातों में उसकी प्रेग्नेंसी का पता चला था, कोई भी तो खुश नहीं रहा होगा, सभी टेंशन में थे, तो शायद इस तरफ़ किसी का ध्यान ना गया हो और खुद प्रीति किसी को अपने वजह से और परेशान नहीं करना चाहती होगी, इसलिए उसने भी किसी को कुछ नहीं बताया। उसको भी इतने दिनों बाद बता रही है, वो भी तब जब उसने उससे सवाल किया, वरना तो शायद उसको भी नहीं बताती।


    सब सोचने के बाद आयुष्मान ने एक गहरी साँस छोड़ी और एक बार फिर प्रीति के गाल को छूकर बोला, "अगर इतनी परेशानी हो रही थी तुम्हें, तो तुम्हें मुझे पहले ही बता देना चाहिए था। ख़ैर, कोई बात नहीं। जाओ तुम जाकर नहाकर तैयार हो जाओ, आज पहले तुम्हें डॉक्टर के पास लेकर जाऊँगा, फिर ऑफ़िस के लिए निकलूँगा।"


    प्रीति ने सर हिला दिया और वापस रूम में चली गई। आज दोनों ने एक-दूसरे के सामने अपना मन खोल दिया था, जिससे जो अनदेखी सी दीवार बन चुकी थी उनके बीच, वो ढह गई थी। कुछ हद तक तो प्रीति उसके साथ सहज हो चुकी थी, पर पूरी तरह से इस रिश्ते और आयुष्मान को अपनाने में अभी उसको वक़्त लगने वाला था।


    आयुष्मान ने भी अब सोच लिया था कि प्रीति को उसके अतीत से बाहर लाकर रहेगा और उसके मिले दर्द की बस एक ही दवा थी, उसका प्यार और अब वो प्यार से उसको संभालने वाला था।


    आयुष्मान ने पहले नाश्ता बनाया, फिर नहाने के लिए रूम में पहुँचा। रूम में एंट्री लेते ही उसकी नज़र ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी प्रीति पर चली गई, जो अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थी। उसने एक नज़र प्रीति को देखा, जिसकी पीठ उसके तरफ़ थी, पर सामने लगे मिरर में कुछ हद तक उसका अक्स नज़र आ रहा था, फिर कबर्ड की तरफ़ बढ़ गया। कदमों की आहट पर प्रीति ने पलटकर देखा तो उसे कबर्ड की तरफ़ जाता हुआ आयुष्मान नज़र आया।


    प्रीति उसको देखने लगी, जबकि आयुष्मान ने पलटकर दोबारा उसको नहीं देखा, वो अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। जब नहाकर बाहर निकला तो प्रीति वहाँ नहीं थी। आयुष्मान तैयार होकर अपनी कलाई पर वॉच पहनते हुए रूम से बाहर निकला और कदम किचन की तरफ़ बढ़ाने चाहे, पर उससे पहले ही नज़र किचन से बाहर आती प्रीति पर चली गई, जो हाथ में सब्ज़ी का बर्तन लिए हुए थी।


    घर में सादा-सा सूट पहनकर रहती थी। नई-नई शादी हुई थी, पर सिंदूर के अलावा कोई साज-शृंगार नहीं करती थी, पर आज थोड़ा तैयार हुई थी वो। हल्के नीले रंग की सिंपल सी साड़ी पहनी हुई थी। मांग में सिंदूर के साथ माथे पर छोटी सी बिंदी भी चमक रही थी। होंठों पर लिप्लॉस लगाया हुआ था। दोनों कलाइयों में दो-दो चूड़ियाँ डाली हुई थीं। गले में मौजूद मंगलसूत्र उनके रिश्ते को एक डोर में बाँधे हुए था। बस इतना ही किया था उसने, पर लग खूबसूरत रही थी।


    फ़ाइनली दोनों ने अपने मन की बात शब्दों में बयाँ कर दी, पर अब आगे क्या मोड़ लेगी उनकी ये कहानी, जानने के लिए पढ़ते रहिए "बदलते रिश्ते"।