When fate ties two strangers with an invisible thread of love... “झुमके का एक टुकड़ा उसके लहूलुहान हाथ में रह गया था... और वो लड़की—धुंध में जैसे गुम हो गई थी।” चारों तरफ़ गोलियों की आवाज़ें गूंज रही थीं। बर्फ़ीली पहाड़ियों में वो मि... When fate ties two strangers with an invisible thread of love... “झुमके का एक टुकड़ा उसके लहूलुहान हाथ में रह गया था... और वो लड़की—धुंध में जैसे गुम हो गई थी।” चारों तरफ़ गोलियों की आवाज़ें गूंज रही थीं। बर्फ़ीली पहाड़ियों में वो मिशन आख़िरी साँसें ले रहा था... लेकिन शिव की आँखों के सामने सिर्फ़ वो लड़की थी—डरी हुई, कांपती हुई, और फिर भी हिम्मत से भरी। वो उसे बचा चुका था... लेकिन उसका नाम तक नहीं जान पाया। बस एक चीज़ बची थी उसके पास—वो झुमका, जो उस लड़की के गिरते वक़्त टूट गया था। वो चेहरा... अब भी उसकी आँखों में था, लेकिन धुंधला। दिल में था... लेकिन बेनाम। उधर, गौरी को भी नहीं मालूम था कि उसका रक्षक कौन था। लेकिन उसके दिल के किसी कोने में उस अनजाने शख्स के लिए एक अजीब सी मोहब्बत घर कर चुकी थी—जिसने बिना कुछ माँगे, उसकी जान बचाई थी। वक़्त बीता। किस्मत ने खेल खेला। बिना चेहरा देखे, बिना नाम जाने... दो रूहों का रिश्ता तय हो गया। तस्वीरें बदलती रहीं, लेकिन दिल का जुड़ाव... पहले से ही लिखा हुआ था। --- और जब पहली बार मुलाक़ात हुई... शिव, जिसे इंकार करना था, ठिठक गया। क्योंकि उसके सामने वही लड़की खड़ी थी... जिसकी आँखों में वो झुमका अब भी चमक रहा था। --- “Bound by Hearts” एक ऐसी कहानी है जो बताती है—प्यार सिर्फ़ देख कर नहीं होता। कभी-कभी, एक दर्द, एक एहसास, एक अधूरी मुलाक़ात… ज़िंदगी बदल देती है।
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दिल्ली — करोल बाग।
शहर की हलचल से थोड़ी दूर, एक पुरानी लेकिन बेहद सजी-संवरी कोठी खामोशी से अपनी ही दुनिया में गुम थी।
अंदर कदम रखते ही सलीके से सजा बड़ा सा लिविंग रूम, हल्के भूरे रंग के सोफा सेट के ठीक सामने दीवार पर टंगा एक फ्लैट स्क्रीन टीवी। कमरे की बाईं तरफ़ एक बड़ा सा डाइनिंग टेबल रखा था, जिस पर अभी भी नाश्ते के बर्तन सजे हुए थे। दाईं तरफ़ ओपन किचन था, जहाँ से गर्म पराठों की महक पूरे घर में तैर रही थी।
ये घर सिर्फ ईंट और सीमेंट से नहीं, किसी ने अपने ख्वाबों, अपनी उम्मीदों और अपने जज़्बातों से इसे बनाया था।
सुबह का वक़्त था। लिविंग रूम में रखे सोफे पर अभी एक आदमी बैठा हुआ था, लगभग 40-45 के आस-पास की उम्र थी उनकी, आँखों पर चश्मे का पहरा था और वो पूरी तरह से न्यूज़पेपर में घुसे हुए थे, आस पास का उन्हें कोई होश नही था।
किचन में एक महिला खड़ी थी, जिनके चेहरे पर फ़्रस्टेशन साफ झलक रहा था। वो काम करते हुए बार बार बाहर झाँकती और चिढ़कर खुदमे ही बड़बड़ाने लगती।
जब काफी देर तक यही चलता रहा और उनसे और बर्दाश नही हुआ तो वो किचन से निकलकर बाहर चली आई और गुस्से से तमतमाए चेहरे के साथ उनके सामने आकर खड़ी हो गयी।
"आपको किसी चीज़ की टेंशन होती भी है कि नहीं? आज बेटी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं और आप हैं कि अपने अखबार मे नज़रें गड़ाए बेफिक्र बैठे हैं, जैसे आपकी नही पड़ोसी की बेटी को लड़का देखने आ रहे हों!"
उनकी बात सुनकर आदमी ने अब कहीं जाकर न्यूज़पेपर से अपनी नज़रों को हटाया और उन्हें असमंजस में देखने लगे। उनकी इस खामोशी से वो लेडी और भी ज़्यादा चिढ़ गयीं,
"जैसे बाप, वैसे ही बच्चे हो गए हैं। यहाँ इन्हें किसी बात की कोई फ़िक्र नहीं है। वहाँ इनकी लाडली अभी तक कुंभकरण की तरह सोने में लगी है। तीनों बाप, बेटे, बेटी मिलकर बस हमें परेशान करने का काम करते हैं!"
वो आगे कुछ कहती, उससे पहले ही उनके कानों में एक ठहरी हुई सी आवाज़ पड़ी, "भाग्यवान, पहले बता तो दीजिये कि आज किस बात पर आप हमें और हमारे बच्चों को कोस रही हैं?"
"बस यही रह गया है। आप बाप-बेटी मिलकर हमें तंग करते रहते हैं और जब शिकायत करो तो ऐसे बनकर दिखाते है जैसे कुछ जानते ही नहीं। पर हमें पता है कि आप सब जानबूझकर करते हैं।
बैठे रहिये यहीं यूँ ही। हम तो अपने नसीब में ही लिखवा के आए हैं, तभी ये जानते हुए कि यहाँ कोई हमारी सुनता नही, आपके और आपके बच्चों के पीछे अपना खून जलाते रहते है।"
" बात क्या हो गयी, कुछ तो बताइये।" उन आदमी ने कंफ्यूज निगाहो से उन्हे देखते हुए सवाल किया। लेडी ने आँखे तरेरकर उन्हे घूरा और चिढ़ते हुए बोली
"आप हमसे पूछ रहे हैं कि क्या हुआ है जैसे खुद कुछ जानते ही नही। आप बाप बेटी मिलकर हमें पागल करना चाहते हैं।
आप हैं कि कुछ करते नहीं हैं और बेटी है कि कुछ समझती नहीं है। बताओ भला ये कोई वक़्त है सोने का? कुंभकरण की तरह 12-12 बजे तक सोती रहती है। ज़िम्मेदारी नाम की तो कोई चीज़ नहीं है आपके और आपकी बेटी के अंदर।
बस हम अकेले ही सब सोचकर परेशान होते रहते हैं।
यहाँ भी सब हम ही संभाले और अब आपकी लाडली को उठाने भी हमें ही जाना पड़ेगा, वरना यहाँ लड़के वाले घर आ जाएँगे और आपकी बिटिया रानी की आँखें ही नहीं खुलेंगी।" इतना कहकर वो बड़बड़ाते हुए सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गयीं। बेचारे वो अंकल तो बस देखते ही रह गए। फिर उन्होंने सब बातों को परे झटक दिया और वापिस न्यूज़पेपर लेकर बैठ गए।
वो लेडी बड़बड़ाते हुए सीढ़ियों के दूसरे तरफ़ वाले कमरे के बाहर पहुँची, तो दरवाज़ा खुला देखकर वो गुस्से से सीधे अंदर चली गयीं। अंदर बेड पर एक 23-24 साल की लड़की चादर में लिपटी हुई उल्टी पड़ी हुई थी, चेहरा गेट की तरफ़ घुमाया हुआ था।
उसे देखकर लेडी ने अपना सर पकड़ लिया, फिर गुस्से में उसके पास चली गयी, "गौरी, जल्दी उठिये! ये कोई वक़्त है सोने का? चलिए, जल्दी उठिये, वक़्त नहीं है अब।"
ये कहते हुए उन्होंने उसके ऊपर से चादर हटाना चाहा, पर लड़की ने अपने चेहरे को चादर से ढकते हुए कहा, "सोने दीजिये न माँ, सारे हफ़्ते तो काम ही करते रहते हैं। एक संडे को ही तो आराम मिलता है और आप उसमें भी हमें सोने नहीं देती हैं।"
वो वापिस सो चुकी थी, ये देखकर उन लेडी ने अपना सर पीट लिया। एक बार फिर उन्होंने लड़की, मतलब गौरी को हिलाते हुए कहा, "गौरी बेटा, जल्दी उठिये। कुछ ही देर में लड़के वाले आते ही होंगे और आप हैं कि अभी तक सो रही हैं।"
उनके इतना कहते ही गौरी एकदम से उठकर बैठी। उसने अपनी आँखों को बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखते हुए हैरानी से कहा, "क्या कहा आपने? कौन आ रहा है?"
"हमारी लाडो को देखने लड़के वाले आ रहे हैं, बस कुछ ही देर में आ जाएँगे। अब आप उठ गयी हैं तो तैयार हो जाइये।"
उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूते हुए बड़े आराम से ये बात कही, पर उनकी बात सुनकर गौरी के चेहरे का रंग ही उड़ गया।
"क्यों आ रहे हैं वो? मैंने आपको साफ़-साफ़ कहा था न, मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी! और कोई मुझे क्यों देखने आएगा? मैं क्या एगज़ीबिशन मे लगा कोई शो पीस या पेंटिंग हूँ जो आप मुझे बेचना चाहते हैं और लड़के वाले आकर मुझे देखेंगे, जैसे समान खरीदने से पहले उन्हें चेक किया जाता है?
सब ठीक लगे तो खरीद लो और न लगे तो चलो कहीं और किसी और को देखने? मैंने पहले ही कहा था मुझे इन झंझटों में पड़ना ही नहीं है। बेकार में मुझे तंग करने के लिए आपने उन्हें बुला लिया। मैंने तो नहीं कहा था बुलाने को, तो अब आपने बिना मेरी मर्ज़ी के उन्हें बुलाया है तो इस झंझट से खुद ही संभालिये। मैं नहीं जाने वाली किसी के सामने, मैं तो आज जी भरकर सोने वाली हूँ।"
गौरी ने नाराज़गी दिखाते हुए उनका हाथ हटा दिया और वापिस पड़ गयी , उसने खुद को मुँह तक ढँक दिया।
लेडी ने अपना सर पकड़ लिया, फिर वापिस उसके ऊपर से चादर हटाते हुए बोली, "लाडो, ये कैसी ज़िद है? वो आपको देखने आ रहे हैं और आप हैं कि सोने में लगी हैं।"
"हाँ, तो संडे है तो मैं तो सोऊँगी ही। वैसे भी मैंने तो साफ़-साफ़ मना किया था न कि नहीं करनी मुझे शादी। पर आप ही मेरे पीछे पड़ी हुई हैं। आपने उन्हें मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर बुलाया है तो अब खुद ही भुगतिये इस मुसीबत को। मैं आपका साथ नहीं देने वाली," गौरी ने ज़िद करते हुए कहा और चादर को कस के पकड़ लिया।
लेडी ने अब हल्की सख़्ती और गुस्से से कहा, "हाँ, मत कीजिये शादी, सारी उम्र हमारे सर पर बैठी रहिये। दुनिया में ऐसी कौन सी लड़की है जो शादी नहीं करती? इतना अच्छा घर-परिवार है, लड़का भी इतना अच्छा है कि चिराग लेकर ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलेगा और आप हैं अपनी बेकार की ज़िद पकड़े बैठी हैं।
आपको पहले शादी नहीं करनी थी, अपने पैरों पर खड़ा होना था तो हमने कभी आपको मना नहीं किया। आपने जो चाहा वो करने दिया, पर अब आप हमारी दी छूट का ग़लत फ़ायदा उठा रही हैं। 25 की होने वाली हो, अगर अब भी तुम्हारा ब्याह नहीं करेंगे तो और कब करेंगे?
इतना अच्छा लड़का मिला है, मयंक के ससुराल से है। एक बार देख तो लीजिये। अगर आप यूँ ही सोती रहीं तो क्या कहेंगे हम उन्हें?"
उनकी बात सुनकर गौरी ने अंदर से ही कहा, "आप चाहे कुछ भी कहिये, पर मैं नहीं जाने वाली किसी के सामने। मुझे नहीं करनी ये शादी-वादी, मैं ऐसे ही बहुत खुश हूँ।"
उसकी इस ज़िद को देखकर उस लेडी के चेहरे पर गुस्सा साफ झलकने लगा था, पर वो कुछ कहती, उससे पहले ही उनकी नज़र गेट पर खड़े लड़के पर चली गयी।
लड़के की उम्र भी 27-28 के आस-पास की लग रही थी, लड़की की तरह ही गोरा रंग, लंबी हाइट, कमाल की बॉडी और उस पर हैंडसम सा चेहरा, लड़की के जैसे ही आकर्षक।
लड़के ने उन्हें देखकर अपनी पलकें झपका दीं, तो लेडी ने अपने जबड़े भींच लिए और बिना कुछ कहे जाने के कदम बढ़ा दिए। गेट के पास पहुँचकर उन्होंने धीरे से कहा, "समझा लीजिये अपनी लाडली बहन को। हमारी तो सुनती ही नहीं है। आपने और आपके पापा ने मिलकर इन्हें सर पर चढ़ाया हुआ है, तो अब आप ही समझाइये इन्हें। वरना अगर हम समझाने पर आएँ तो आप और आपके पापा दोनों को ही अच्छा नहीं लगेगा!"
उन्होंने हल्के गुस्से से गौरी को घूरा। वहीं उनकी बात सुनकर लड़के ने मुस्कुराकर कहा, "आप चिंता मत कीजिये, मैं उसे समझा देता हूँ, वो मान जाएगी।"
"यही अच्छा होगा उनके लिए," लेडी लगभग उन्हें वाॅर्न करते वहाँ से चली गयीं। उनकी बात सुनकर लड़के ने कुछ नहीं कहा, लेडी भी गुस्से से नीचे चली गयीं।
अब वो लड़का गौरी की तरफ़ बढ़ गया। उसके पास जाकर उसने उसके ऊपर से चादर हटाते हुए कहा, "गुड़िया, ये क्या ज़िद किये बैठी हो? लड़के वाले आते ही होंगे और आप हैं कि अभी तक सो ही रही हैं। चलो, उठकर तैयार हो जाओ।"
उनकी आवाज़ सुनकर गौरी ने चादर से अपना चेहरा बाहर निकालते हुए उसको देखा और उसकी बात सुनकर मुँह सूजाकर बोली, "भैया, आप भी माँ का साथ देने लगे? आप सब समझते क्यों नहीं? मुझे नहीं करनी ये शादी-वादी। मुझे अपनी सारी ज़िंदगी यूँ ही आप सबके सामने और अपने परिवार के पास रहना है।"
उसकी बात सुनकर लड़के ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "चलो ठीक है, कोई तुम्हें फ़ोर्स नहीं करेगा। अगर तुम्हें लड़का और उसका परिवार पसंद आ जाए, तभी हाँ करना। मिल तो लो?"
"मुझे शादी नहीं करनी भैया," गौरी ने भारी गले से कहा। उसकी आँखों में आँसू भर गए थे, जो अब उसके गाल को भिगाने लगे थे। उसको रोते देख लड़के ने उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए कहा, "पागल लड़की, अब इसमें रोने वाली क्या बात है? हम आज ही तो तुझे विदा नहीं कर रहे न? बस लड़के वाले ही तो आ रहे हैं तुम्हें देखने।"
"मुझे शादी नहीं करनी भैया, मैं हमेशा आप सबके साथ रहना चाहती हूँ। मुझे नहीं जाना किसी और के घर, मुझे हमेशा अपने घर में अपने परिवार के साथ रहना है।"
गौरी ने नम आँखों से उसे देख रही थी। उसकी बात सुनकर मयंक ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "इसमें उदास होने या रोने की क्या बात है? अभी तो बस देखने ही आ रहे हैं। अगर बात पक्की हुई, तब भी पहले लड़के को देखेंगे, सगाई होगी, उसके बाद कहीं जाकर बात शादी तक पहुँचेगी।
अगर बात पक्की होती है, मेरी शादी से पहले तेरी सगाई करवा देंगे, शादी तो बाद में होगी। पता है, जहाँ तक मैंने कृति से बात की है, लड़का बहुत अच्छा है, मुझे वो तुम्हारे लिए पसंद है। हाँ, अभी मिले नहीं हैं, पर तस्वीर देखी है मैंने। ऐसा लगता है जैसे महादेव ने तुम्हें और उन्हें एक-दूसरे के लिए ही बनाया है। पता है क्या नाम है लड़के का?"
गौरी ने बस ना में सर हिला दिया, तो मयंक ने मुस्कुराकर कहा, "शिवांश सिंह राठौर नाम है उनका। मैंने तुम्हें उनकी फ़ोटो भेजी थी, पर लगता है तुमने देखी नहीं। रुको, मैं दिखाता हूँ।"
इतना कहकर उसने अपने पॉकेट से फ़ोन निकाला और गैलरी से फ़ोटो ढूँढ़ने के बाद स्क्रीन उसकी तरफ़ घुमाकर मुस्कुराकर बोला, "लो देखो, उसके बाद बताना कि तुम्हें शादी करनी है या नहीं?"
गौरी कुछ देर सोचती रही, फिर उसने फ़ोन अपने हाथ में ले लिया। जैसे ही उसकी नज़र स्क्रीन पर पड़ी, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गयीं। उसने हैरानी से कहा, "ये है लड़का?"
Coming soon…
"ये है लड़का?"
गौरी की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके एक्सप्रेशन देखकर मयंक ने फोटो देखते हुए कहा, "हाँ, यही है शिवांश सिंह राठौर, Mr. समर राठौर का एकलौता बेटा। उसके पापा इनकम टैक्स ऑफिसर हैं। दो बहनें हैं, चित्रा और शिवांगी।
बड़ी बहन शिवांगी की शादी हो चुकी है और एक बेटा भी है, रुद्र। और छोटी बहन कॉलेज कर रही है। जहाँ तक मैंने पता किया है और तुम्हारी भाभी, मतलब कृतिका ने जो बताया है उस हिसाब से लड़का काफी अच्छा है, हैंडसम है, मॉडर्न सोच वाला है, लड़कियों से दूर ही रहता है क्योंकि उसके लिए बस दो चीजें ज़रूरी हैं- पहली उसकी फैमिली, दूसरा उसका फ़र्ज़। पर तू इसे देखकर ऐसे चौंक क्यों गई?"
मयंक ने बात पूरी करते हुए उसकी तरफ निगाह घुमाते हुए सवाल किया। गौरी अब भी फोटो को देख रही थी। उसने गौर से फोटो को देखते हुए कहा, "भैया, दो साल पहले जब कुछ टेरिरिस्ट कॉलेज कैंपस में घुस गए थे तब मैंने बताया था ना कि एक ऑफिसर ने हम सबको वहाँ से निकाला था और बहुत ही समझदारी से काम लेते हुए बिना किसी को नुकसान पहुँचाए, उन आतंकवादियों को पकड़ लिया था, तब यही तो थे जिन्होंने मुझे वहाँ से निकाला था।" (ये काल्पनिक है तो सीरियस न ले)
उसकी बात सुनकर मयंक के होंठों पर हल्की मुस्कान उभर आई, "तो यही है वो जिसको एक नज़र देखकर मेरी बहन उससे इतनी इम्प्रेस हो गई थी कि सारा दिन उसका गुणगान करके मेरे कान पका दिए थे।"
उसकी बात सुनकर गौरी ने फोन उसके हाथ पर पटक दिया और चिढ़कर बोली, "ऐसा भी कुछ नहीं है। आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं।"
"मैं तो मज़ाक कर रहा था। तू तो नाराज़ हो गई। अच्छा बाबा, सॉरी। अब से नहीं छेड़ूँगा तुझे। अब ये बता, अब तो तू तैयार हो जाएगी ना?"
मयंक ने उसके फुले हुए गालों को खींचते हुए गंभीरता से सवाल किया जिसे सुनकर गौरी सोच मे पड़ गयी, "ये भी आ रहे हैं क्या?"
"नहीं, वो यहाँ नहीं है। उसकी ड्यूटी कश्मीर में लगी हुई है। अभी बस उसकी फैमिली आ रही है तुझे देखने। अगर बात पक्की होगी तो मेरी शादी से पहले तुम्हारी सगाई करवा देंगे।
मुझे तो लड़का बहुत पसंद आया है। अगर तुझे कोई प्रॉब्लम न हो तो तू तैयार हो जा। अगर तू उन्हें पसंद आई तो आज ही रिश्ता पक्का हो जाएगा और मुझे तो पूरा विश्वास है कि मेरी गुड़िया उन्हें पहली नज़र में ही भा जाएगी। अब बता, तुझे लड़का पसंद है?"
उसकी बात सुनकर गौरी कुछ देर तक सोचती रही, फिर उसके गले से लगकर धीरे से बोली, "हम्म... पर मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करूँगी।"
जिस मासूमियत से गौरी ने ये कहा मयंक के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई। उसने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "शादी से पहले तुझे उसे जानने का पूरा मौका दिया जाएगा। आखिर शादी ज़िंदगी भर का बंधन होता है तो जब तक तुम्हारे और उसकी तरफ़ से हाँ नहीं हो जाती, शादी नहीं होगी।
वैसे भी अभी तो मेरी शादी में ही छह महीने का वक़्त है, उसके बाद कहीं जाकर तेरी शादी के बारे में सोचा जाएगा। चल अब जल्दी से नहाकर तैयार हो जा। ग्यारह बजे तक वो यहाँ पहुँच जाएँगे।"
मयंक ने उसके माथे को प्यार से चूम लिया और वहाँ से चला गया। गौरी होंठों पर प्यारी सी मुस्कान लिए उस दिन को याद करने लगी जब वो शिव से पहली बार मिली थी, पर जल्दी ही उसने अपना सर झटका और अपने सर पर चपत लगाते हुए बोली, "उनके बारे में बाद में सोच लेना, पहले जल्दी से तैयार हो जा, वरना माँ फिर से आ जाएँगी।"
इतना कहकर वो बाथरूम में भाग गई।
मयंक नीचे पहुँचा और कैलाश जी के पास बैठते हुए किचन की तरफ़ देखते हुए बोला, "माँ, एक अदरक वाली कड़क चाय दे दीजिये। सर बहुत दुख रहा है।"
"बस पाँच मिनट में लाई। पहले ये बताओ, तुम्हारी लाडली मानी या नहीं?"
आवाज़ किचन से आई थी। उनकी बात सुनकर मयंक ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा, "माँ, क्या मैं कुछ कहूँ और वो न करें, ऐसा कभी हुआ है जो आज होगा?"
"शुक्र है महादेव का जो वो मान गई। हम अभी उन्हें कपड़े देकर आते हैं।"
ज्योति जी ने गहरी साँस ली, उनकी बहुत बड़ी चिंता खत्म हो गयी थी। उन्होंने चाय चढ़ाई और भागी भागी नीचे के एक रूम में चली गईं।
उनकी ओलंपिक की दौड़ देखकर कैलाश जी ने मुस्कुराकर कहा, "लो हो गई इनकी भागादौड़ी शुरू।"
"अब हम तीनों को वही तो संभालती है। जब तक हम न चले जाएँ, उन्हें एक पल का भी चैन नहीं मिलता है। चलिए अब आप अपना न्यूज़पेपर पढ़िए। मैं लेकर आता हूँ अपने और आपके लिए गरमा गरम कड़क अदरक वाली चाय।"
मयंक ने मुस्कुराते हुए कहा और वहाँ से उठकर किचन में चला गया। दो मिनट बाद ही ज्योति जी हाथ में एक सुंदर सी ऑरेंज साड़ी और एक ज्वेलरी का बॉक्स लिए किचन में घुसीं तो उन्हें वहाँ देखकर उन्होंने हैरानी से कहा, "आप यहाँ क्यों आ गए? हम आ तो रहे थे।"
उनकी बात सुनकर मयंक ने उनकी तरफ़ देखा और उन्हें किचन से बाहर निकालते हुए बोला, "चाय मैं बना लूँगा। आप अकेले क्या क्या संभालेंगी? इसलिए अब आप गौरी के पास जाइए। मैं अभी सबके लिए चाय लेकर आता हूँ।"
उसने उन्हें बाहर निकाला और चाय बनाने में लग गया। ज्योति जी वहाँ से बाहर निकलीं तो कैलाश जी पर उनकी नज़र चली गई जो अब भी बड़े ही इत्मिनान से न्यूज़पेपर पढ़ रहे थे। उन्हें देखते ही ज्योति जी की आँखें चढ़ गयी,
"बस न्यूज़पेपर खंगालते रहिए। आपको देखकर कोई नहीं कह सकता कि आज आपकी बेटी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं। ऐसे इत्मिनान से बैठे हैं, ज़रा भी फ़िक्र ही नहीं है किसी चीज़ की।"
ज्योति जी का तंज सुनकर कैलाश जी ने न्यूज़पेपर एक तरफ़ रखा और खड़े होते हुए बोले, "लीजिए, रख दिया हमने न्यूज़पेपर। बताइए अब क्या हुकुम है हमारे लिए?"
उनके इतना कहते ही ज्योति जी ने एक लिस्ट उनके हाथों में थमाकर कहा, "जाइए बाज़ार से सब चीज़ें लेकर आइए और जल्दी आइएगा। नौ बजने को है और ग्यारह बजे तक वो सब आ जाएँगे।"
कैलाश जी ने लिस्ट देखी और अपना चश्मा उतारकर टेबल पर रखकर बाहर के लिए रवाना हो गए। ज्योति जी ने भी सीढ़ियों की तरफ़ कदम बढ़ा दिए।
वहीं रूम में गौरी फ़्रेश होकर बाहर आ चुकी थी और अब अपना वॉर्डरोब खोले अपने कपड़ों को देख रही थी।
कुछ देर बाद ज्योति जी ने रूम में कदम रखा तो आहट पाते ही गौरी ने पीछे पलटकर देखा और उन्हें वहाँ देखते ही जल्दी से बोली, "अच्छा हुआ माँ जो आप आ गईं। देखिए और बताइए क्या पहनूँ मैं? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। अगर ग़लत कपड़े पहन लिए तो आप सौ ताने सुनाएँगी। इसलिए अब आप खुद ही बता दीजिये तो मैं नहाने जाऊँ।"
वो नॉनस्टॉप बोले जा रही थी और जैसे ही वो चुप हुईं, ज्योति जी ने उसको वॉर्डरोब के सामने से हटाया और दरवाज़ा बंद करके उसके तरफ़ पलट गईं।
गौरी आँखे बड़ी बड़ी किये उन्हें हैरानी से देख रही थी।
गौरी उन्हें हैरानी से देख रही थी। वो कुछ बोलने जा ही रही थी कि ज्योति जी ने पहले ही कहना शुरु कर दिया, "अब फिर से अपनी बकबक शुरु मत कर देना। आज तुम्हें इनमें से कुछ भी नहीं पहनना है।"
फिर अपना हाथ आगे करके बोली, "आज तुम ये पहनोगी। तो जाकर जल्दी से नहाकर आओ। मैं तुम्हें तैयार कर देती हूँ। बोलो तो स्नेहा को बुलवा दूँ? तुम्हें तो कुछ आता नहीं है। वही तुम्हें तैयार कर देगी।"
गौरी ने उनके हाथ में साड़ी देखी तो उसकी आँखे फैल गयी। जैसे ही ज्योति जी चुप हुईं, उसने अतरंगी मुँह बनाते हुए कहा, "आप चाहती हैं मैं साड़ी पहनूँ?"
"ये मुँह तो तुम बनाओ मत, क्योंकि आज तुम्हें साड़ी ही पहननी है। पता है अगर दादी को पता चला कि आज तुमने सूट या जीन्स में देख लिया तो तुम्हारी साथ-साथ हमारी भी ख़ैर नहीं होगी। वैसे भी वो हमारे रिश्ते में समधी लगते हैं तो उन पर हमारा ग़लत असर नहीं पड़ना चाहिए। अब पकड़ो और जाकर नहाकर आओ।"
ज्योति जी ने उसके आड़े-तिरछे मुँह देखकर उसे झिड़क दिया देते हुए बोलीं, गौरी ने पहले उन्हें देखा फिर मुँह बनाकर साड़ी देखते हुए कहा, "पर मुझे साड़ी पहननी कहाँ आती है?"
ज्योति जी ने गहने का बॉक्स बेड पर रखा और ब्लाउज़ और पेटीकोट उसे थमाते हुए बोलीं, "लो जाकर नहाकर पहनकर आओ। साड़ी पहनाने के लिए हम हैं यहाँ। बस आकर एक बार आवाज़ लगा देना। और अब जल्दी बताओ, स्नेहा को बुला दूँ?"
"बुला लीजिये। बना देगी मुझे कार्टून। ऐसे तो आपको मैं अच्छी नहीं लगती।"
वो मुँह सड़ाते हुए बाथरूम में घुस गई तो ज्योति जी ने बाहर जाते हुए खुद से कहा, "ये लड़की भी कभी बदल नहीं सकती। जाने कैसे संभालेगी अपने घर-संसार को।"
ये वही चिंता थी जो दुनिया की हर माँ को होती है क्योंकि सबका मानना यही होता है कि उनकी बेटी को कुछ नहीं आता। इसलिए सबको यही चिंता सताती है कि शादी के बाद वो सब कैसे संभालेगी। वैसे उस समस्या को जगत माता चिंता घोषित कर ही देना चाहिए।
उन्हें भी गौरी के लिए वही चिंता सता रही थी जो हर माँ को होती है। वो यही सब सोचते हुए नीचे चली गईं। मयंक चाय बनाकर बाहर आया तो वहाँ किसी को न देखकर उसने ऊपर की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। रास्ते में ही उसे ज्योति जी मिल गईं तो उसने उनकी तरफ़ कप बढ़ाते हुए कहा, "ये लीजिये आपकी चाय। और पापा कहाँ हैं? अभी तक तो नीचे थे पर अब वहाँ नहीं हैं।"
ज्योति जी ने चाय लेते हुए कहा, "बाहर गए हैं। तुम ज़रा स्नेहा को फ़ोन करके आने को कह दो। मैं किचन का काम देख लेती हूँ।"
मयंक ने हाँ भरी और गौरी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। उसने कमरे में घुसते हुए कहा, "गौरी, चाय लोगी?"
उसके इतना कहते ही गौरी ने अंदर से ही झट से कहा, "आपने बनाई है?"
उसकी खनखनाती आवाज़ सुनकर मयंक के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई। उसने मुस्कुराकर कहा, "हाँ, मैंने बनाई है।"
उसके इतना कहते ही गौरी दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई और ट्रे से कप उठाते हुए बोली, "अब तो पहले चाय, उसके बाद बाकी सब।"
उसकी बात सुनकर मयंक को हँसी आ गई पर उसने खुद को कंट्रोल किया और मुस्कुराकर उसको देखने लगा। गौरी तो बड़े शौक से फूँक-फूँककर चाय पी रही थी और मयंक उसे बड़े प्यार से देख रहा था।
चाय पीते हुए जब गौरी की नज़र उस पर गई तो उसने उसका कप उठाकर उसको देते हुए कहा, "आप भी पीजिये ना, ठंडी हो जाएगी।"
मयंक ने अब कप लिया और मुस्कुराकर उसको अपने होंठों से लगा लिया तो गौरी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, "वैसे भैया, आप मुझे ऐसे देखकर क्या सोचकर मुस्कुरा रहे थे?"
उसके सवाल को सुनकर मयंक की मुस्कान बड़ी हो गई। उसने कप साइड रखा और उसके सर पर हाथ फेरने लगा तो गौरी अपनी आँखों को टिमटिमाते हुए उसे देखने लगी और अपने सवाल के जवाब का इंतज़ार करने लगी।
मयंक ने कुछ देर उसको देखते हुए कहा, "सोच रहा था वक़्त कितनी जल्दी बीत जाता है। ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात थी कि मेरी छोटी सी चंचल नदी जैसी शरारती बहन अपनी गुड़िया लेकर मेरे पास आती थी और उसकी शादी करवाने के लिए मुझे गुड़िया लाने को कहती थी, और आखिर में गुड़िया से उसकी शादी करवा देती थी और ऐसे खुश होती थी जैसे ज़िंदगी की सारी खुशी बस उस गुड़िया-गुड़िया के खेल में ही छुपी हो। और आज मेरी छोटी सी गुड़िया इतनी बड़ी हो गई है कि उसके अपने घर ले जाने अब एक सुंदर सा राजकुमार आने वाला है जो उसे..."
इतना कहकर वो चुप हो गया और गौरी को देखा जिसकी आँखें भर आई थीं। गौरी ने अपना सर झुका लिया तो मयंक ने आगे कहा, "अब तो मुझे उस राजकुमार का इंतज़ार है जो मेरी गुड़िया को राजकुमारी की तरह अपने पलकों पर बिठाकर रखेगा, उसकी हर शरारत को मुस्कुराकर सहेगा। महादेव, तेरे लिए ऐसा वर भेजे जो तुझे दुनिया की हर खुशी दे।"
"मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आप सब मुझे हमेशा ऐसे ही प्यार करते रहिएगा तो मैं दुनिया में कहीं भी क्यों न रहूँ, हर हाल में हमेशा खुश रहूँगी।"
गौरी ने अपनी भरी आँखों से उसे देखा, उसकी आँखों से आँसुओं की बूँद निकलकर उसके गालों पर लुढ़क गए। मयंक ने बड़े प्यार से उसके आँसुओं को साफ़ कर दिया,
"वो तो हम हमेशा ही करेंगे। चल अब रोना-धोना बंद कर। तुझ पर सूट नहीं करता। और चाय पी, वरना अगर माँ आ गई तो तेरे साथ-साथ मेरी भी क्लास लगा देंगी कि मेरी वजह से तू अब तक नहाने नहीं गई है।"
उसके बात सुनकर गौरी के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। उसने चाय पीते हुए मुस्कुराकर कहा, "ऐसा कभी नहीं होगा। मैं झट से चाय खत्म करके नहाने चली जाऊँगी।"
उसने अपनी चाय खत्म की और झट से बाथरूम में घुस गई। मयंक भी खाली कप ट्रे में रखकर वहाँ से निकल गया।
दिल्ली, द्वारका सेक्टर 8—शहर का एक हाई-फाई एरिया। वहीं एक शानदार मेंशन था, जिसके बड़े से गेट पर गोल्डन अक्षरों में लिखा था—"Rathor Mansion"। दूर से ही वो जगह किसी राजा-महाराजा के महल जैसी लगती थी, और पास जाने पर तो जैसे निगाहें ठहर जाती थीं।
गेट से अंदर जाते ही एक चौड़ी सी सड़क दोनों तरफ़ हरे-भरे गार्डन के बीच से निकलती थी। हर तरफ़ खूबसूरत फूल, करीने से कटे पेड़ और रंग-बिरंगे पौधे लगे थे। बाहर की हरियाली इतनी सुकून देने वाली थी कि बस वहीं बैठने का मन करे। मेंशन का अंदर और बाहर का लुक दोनों इतना शानदार था कि देखने वाले बस देखते रह जाएँ। एंटीक चीजों से सजा हुआ वो घर मॉडर्न और ट्रेडिशनल दोनों का परफेक्ट मिक्स था।
पीछे की तरफ़ एक बड़ा सा नीला पूल था, और एक साइड में बनी पार्किंग में लग्ज़री गाड़ियों की लाइन थी—चार-पाँच कारें और एक बाइक खड़ी थी।
मेंशन के अंदर इस वक़्त कुछ ज़्यादा ही हलचल थी। नौकर इधर-उधर दौड़ते फिर रहे थे। कोई डेकोरेशन में लगा था, कोई किचन से कुछ उठाकर ला रहा था। बीचोंबीच खड़ी थीं अनुराधा राठौर, घर की मालकिन, जो हर एक को अपने सख़्त अंदाज़ में काम समझा रही थीं। उनके पास खड़ी थी एक लड़की, खूबसूरत और सलीकेदार, शायद नई-नई बहू लग रही थी। उसके हाथ में एक लिस्ट थी और वो सामने रखे ढके हुए थालों की जांच कर रही थी।
पूरा माहौल थोड़ा हड़कंप वाला था। जैसे कोई बड़ा फंक्शन होने वाला हो।
तभी सामने से एक अंकल टाइप रौबदार इंसान अंदर आए। सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, चेहरे पर थोड़ी टेंशन और आँखों में गुस्सा झलक रहा था। अंदर का नज़ारा देखते ही उन्होंने आवाज़ लगाई—
"अनुराधा जी! ये क्या कर दिया आपने? हमारा राठौर मेंशन है या फिर किसी शादी का मंडप? घर को चिड़ियाघर बना दिया है आपने!"
"अनुराधा जी! ये क्या कर दिया आपने? हमारा राठौर मेंशन है या फिर किसी शादी का मंडप? घर को चिड़ियाघर बना दिया है आपने!"
उनके इतना कहते ही उस अनुराधा जी ने तिरछी नज़रों से उन्हें देखा तो अब उन्होंने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, "हमारा मतलब था कि हम सिर्फ़ लड़की देखने जा रहे हैं, फिर इतना सब करने की क्या ज़रूरत थी? अभी हम लड़की को देखेंगे, फिर वो शिव को देखने आएंगे, उसके बाद ही तो शगुन और इंगेजमेंट की बात होगी, तो इन सब की अभी क्या ज़रूरत है?"
उनकी बात सुनकर अनुराधा जी ने उन्हें घूरते हुए कहा, "हमने और आपने लड़की पहले ही देखी हुई है। हम आज इस रिश्ते को पक्का करने जा रहे हैं तो शगुन तो लेकर जाना ही होगा। और वैसे भी वो हमारी बेटी का ससुराल है तो हम वहाँ खाली हाथ कैसे जा सकते हैं?
रही बात उनके शिव को देखने की तो उन्हें देखने के लिए तो हमारी ही आँखें तरस जाती हैं। जाने कैसा निर्मोही बेटा है आपका, कभी एक पल को भी उन्हें अपने परिवार की याद नहीं आती है। इसलिए हमने सोच लिया है, बहुत आज़ादी मिल गई है उन्हें इसलिए किसी की फ़िक्र नहीं करते हैं।
पहले भी कितने बार लड़की देखी पर वो है कि हर बार बहाना बनाकर निकल जाते हैं। इसलिए इस बार हमने भी सोच लिया है, चाहे वो कुछ भी कहे पर उनके इस बार आने पर हम उनकी सगाई करवा ही देंगे। जितनी जल्दी शादी होगी उतनी जल्दी उन पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारी पड़ेगी और इसके बाद जाकर उन्हें परिवार की अहमियत समझ आएगी।
तब उन्हें याद रहा करेगा कि घर पर बात भी करनी होती है। अगर आपके बेटे के भरोसे रहें तो आपके कुँवर सा सारी ज़िंदगी कुँवारे ही बैठे रहेंगे। इसलिए अब तो हमें उनसे कुछ पूछना ही नहीं है, बस बताना है। हम भी देखते हैं कैसे बच पाते हैं वो इस बार।"
यहाँ उनकी बात ख़त्म हुई, ठीक इसके साथ ही पीछे से आवाज़ आई, "माँ सा, आप तो हमारे प्यारे साले साहब से काफ़ी ख़फ़ा लगती हैं पर ज़रा उनके नज़रिए से देखने की भी कोशिश कीजिए। वहाँ सरहद पर देश की रक्षा कर रहे हैं। आए दिन होने वाली उनकी बहादुरी के चर्चे आपका गौरव ही बढ़ा रहे हैं। अब इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी है उनके कंधों पर तो उन्हें वक़्त ही कहाँ मिलता होगा? और जब भी वक़्त मिलता है तो फ़ोन करते तो हैं ही वो।"
आवाज़ सुनकर सबने पीछे देखा तो एक 29-30 साल का आदमी खड़ा था। देखने में वो भी अच्छा था और बॉडी भी काफ़ी अच्छी थी। ये हैं हमारे प्यारे जीजाजी, राजवीर सिंह, दिल्ली के जाने-माने बिज़नेसमैन और हमारी शिवांगी जीजी के प्यारे पतिदेव। जो खुशमिजाज़ आदमी है। उनका एक पाँच साल का बेटा भी है, रुद्र सिंह।
वो भी दिल्ली में ही रहते हैं और फ़िलहाल यहाँ आए हैं ताकि अपने चहेते साले साहब के लिए लड़की देखने जा सकें। दोनों का रिश्ता जीजा-साले से बढ़कर दोस्त का है।
उनकी बात सुनकर सबकी नज़रें उनकी ओर घूम गयी। उनकी बात सुनकर माँ सा यानी अनुराधा जी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
"हम जानते हैं कि हमारे शिव देश की सेवा कर रहे हैं और हमें गर्व है कि हमने इतने काबिल, बहादुर और जाबाज़ बेटे को जन्म दिया है। जब-जब हम उनके किसी कारनामे का न्यूज़ सुनते हैं, हमें खुद पर मान होता है कि महादेव ने इस हीरे को जन्म देने का सौभाग्य हमें दिया है।
पर उनकी सब बातों के बीच हम ये बात नहीं भूल सकते कि वो शादी करना ही नहीं चाहते हैं। शादी के नाम से वो दूर भागते हैं। अब हम उन्हें सारी ज़िंदगी अकेला तो नहीं रहने दे सकते। उन्होंने अपने फ़र्ज़ को ही अपनी ज़िंदगी बना लिया है पर ये सही तो नहीं है। जिस दिन उनकी शादी हो जाएगी हम भी अपनी इस ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाएँगे।
उनके बेरंग ज़िंदगी में रंग भरने के लिए हमें जैसी लड़की की तलाश थी, गौरी बिल्कुल वैसी ही है। हमने कृतिका की सगाई में देखा था, उनके जैसी चंचल और खुशमिजाज़ लड़की ही हमारे संन्यासी बेटे को ज़िंदगी के रंगों से रूबरू करा सकती है। इसलिए हम दिल से चाहते हैं कि उनका और शिव का रिश्ता जुड़ जाए।"
इतना कहकर वो चुप हो गईं। समर जी ने उनके हाथ को अपने हाथ में थामकर कहा, "आप शिव के लिए इतना परेशान क्यों होती हैं? हमारा बेटा बहुत समझदार है और महादेव ने उनके लिए जिसे बनाया होगा वो उन तक पहुँच ही जाएगा।"
"आप माँ नहीं हैं इसलिए आप नहीं समझ सकते। जब तक अपने सब बच्चों को अपनी ज़िंदगी में सुखी नहीं देख लेते, हमें चैन नहीं मिलेगा। शिवांगी की अब हमें चिंता नहीं है, उन्हें संभालने के लिए दामाद ही है। बस अब शिव और मिहु को भी अच्छा जीवनसाथी मिल जाए तो हम भी निश्चिंत हो जाएँगे।"
अनुराधा जी ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए उनसे अपना हाथ छुड़ा लिया। जैसे ही वो चुप हुई एक मीठी सी नाराज़गी भरी आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, "माँ सा, आप भैया के बीच में हमें क्यों ला रही हैं?"
सबने पीछे मुड़कर देखा तो एक क्यूट सी 18-19 साल की लड़की मुँह फुलाए खड़ी थी। उसको देखकर अनुराधा जी ने मुस्कुराकर कहा, "बेटा, अभी ना सही पर कुछ सालों बाद तो हमें आपकी शादी के बारे में भी सोचना ही है। जब आप तीनों अपनी-अपनी गृहस्थी में रम जाएँगे तब जाकर हमारी चिंता ख़त्म होगी।"
उनकी बात सुनकर चित्रा का मुँह सूज गया , वो भागकर अपने बाबा के पास आ गई और मुँह बिचकाकर बोली, "देख लीजिये बाबा सा, माँ सा अभी से हमें घर से निकालने की तैयारी कर रही हैं।"
"आप अभी से दुखी क्यों हो रही हैं? पहले आपके भैया की शादी तो हो जाए। आपको पता है ना वो शादी के नाम से ही भागने लगते हैं। वो किसी लड़की को देखेंगे तब जाकर उन्हें कोई लड़की पसंद आएगी और उसके बाद कहीं जाकर उनकी शादी होगी। और आप तो हमारी छोटी सी लाडो हैं। अभी तो आपके ब्याह में बहुत वक़्त है। चलिए अब अपना मूड ठीक करिए। आज तो आप अपने जीजू से मिलने वाली हैं।"
समर जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, उनकी बात सुनकर चित्रा सब भूलकर मुस्कुरा उठी और एक्साइटेड होकर बोली, "हाँ बाबा, आज तो मयंक जीजू मिलेंगे और हम उनकी बहन को भी देखेंगे। अगर वो पसंद आई और उन्हें भी भैया पसंद आ गए तो आज ही हमें भाभी भी मिल जाएँगी।"
उसकी बात सुनकर जहाँ बाकी सबके चेहरे खिल उठे थे वहीं राजवीर जी के चेहरे पर परेशानी की रेखाएँ उभर आई थीं। उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, "माँ सा, अभी शिव यहाँ नहीं है। ऐसे में आप बिना उनकी मर्ज़ी जाने उनका रिश्ता पक्का कैसे कर सकती हैं? शादी तो ज़िंदगी भर का रिश्ता होता है, उसमें उनकी सहमति भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि हम सबकी। आखिर ज़िंदगी तो उन्हें ही बितानी होगी ना उनके साथ।"
"हम अपने बेटे को जानते हैं। वो अपनी माँ सा की बात कभी टाल ही नहीं सकते। और आप उनकी चिंता मत कीजिए। हमने गौरी को देखा है, वो हर रूप में शिव की अर्धांगिनी बनने के लायक है। जब शिव उन्हें देखेंगे, उसके बाद वो ना कर ही नहीं पाएँगे। ऐसी मोहिनी सूरत किसी को पसंद न आए ये तो हो ही नहीं सकता। चलिए अब बाकी बातें बाद में होंगी। अब हमें निकलना है तो तैयारी करने दीजिए।"
अनुराधा जी ने मुस्कुराते हुए अपनी बात पूरी की। जिसके आगे कोई कुछ कह न सका।
"बाबा सा, आज हम कहाँ जा रहे हैं?"
बड़ों के बीच एक बच्चे की आवाज़ गूंजी। नन्हा रुद्र दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। उसका सवाल सुनकर राजवीर जी नीचे झुके और मुस्कुराकर बोले, "आपके मामू के लिए दुल्हन देखने जा रहे हैं। आज आपको मामी मिलने के पूरे आसार हैं।"
उसकी बात सुनकर रुद्र उन्हें कन्फ़्यूज़ सा देखने लगा। उसको कुछ समझ ही नहीं आया तो अब राजवीर जी ने उसको गोद में उठाते हुए कहा, "जैसे आपकी माँ हमारे साथ रहती है, वैसे ही हम आपके मामू के साथ रहने के लिए एक लड़की लाने जा रहे हैं जो रिश्ते में आपकी मामी लगेंगी। देखने चलेंगे ना आप अपनी मामी को?"
अब उस बच्चे ने झट से हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "हाँ, हम भी जाएँगे और मामी को अपने साथ लेकर आ जाएँगे। फिर मामू भी कहीं नहीं जाएँगे।"
सिंघानिया हाउस में, गौरी नहाने गई हुई थी। वो लगभग एक घंटे बाद बाहर निकली, अपने गीले बालों को टॉवल से पोंछते हुए शीशे के सामने आकर खड़ी हो गई। उसने बस ब्लाउज़ और पेटीकोट पहना हुआ था। अपने बालों में टॉवल लपेटे और चुन्नी से खुद को ढकते हुए गेट की तरफ बढ़ ही थी कि उसके रूम का दरवाजा खुल गया।
ज्योति जी के साथ एक लड़की, मतलब गौरी की दोस्त स्नेहा अंदर आई। गौरी और स्नेहा की दोस्ती बचपन की थी और अभी भी दोनों एक ही कॉलेज में लेक्चरर हैं। बस जहाँ गौरी मैथ्स सब्जेक्ट पढ़ाती है, वहीं स्नेहा इकोनॉमिक्स पढ़ाती है।
गौरी उन्हें वहाँ देखकर अपनी जगह पर ही रुक गई।
"बेटा अब आप जल्दी से तैयार हो जाइए, स्नेहा आपकी मदद कर देगी। अगर हमारी ज़रूरत हो तो आवाज़ लगा लेना, तब तक हम ज़रा उनके खाने-पीने का इंतज़ाम देख लेते हैं।"
गौरी ने हामी भरी तो वो ज्योति जी वहाँ से चली गईं। अब वहाँ बस गौरी और स्नेहा ही थीं।
"क्या बात है कुँवरी सा, आज आपको देखने कुँवर सा आ रहे हैं और आपने अपनी बचपन की दोस्त को ये बताना तक ज़रूरी नहीं समझा? खूब दोस्ती निभाई जा रही है यहाँ तो, मुझे तो लगा था कि तुम मुझे सब बताती हो पर आज पता चला कि आपके तो भाव चढ़ गए हैं। अब आप अपनी बेस्ट फ्रेंड से इतनी बड़ी और इंपोर्टेंट बातें छुपाने लगी है?"
स्नेहा ने आँखे चढ़ाए नाराज़गी से उसको घूरने लगी। उसकी शिकायत सुनकर गौरी ने अपने बालों को टॉवल से आज़ाद करते हुए उखड़े अंदाज़ मे जवाब दिया, "तुझे बताने या छुपाने के लिए मुझे भी तो कोई बात मालूम होनी चाहिए। मुझे ही एक घंटे पहले ये शॉक मिला है ,और वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं तुमसे कभी कुछ छुपाती नहीं हूँ। रही बात लड़के वालों के आने की तो, जब पता चला उसके बाद ही तेरे पास फोन चला गया।"
गौरी ने मुँह बनाते हुए अपने बालों को झटका और अपने लंबे बालों को टॉवल से पोंछकर सुखाने लगी। स्नेहा ने अब अपनी नाराज़गी छोड़ी और शरारत से आँखे मटकाते हुए बोली, "अच्छा ये छोड़ और मुझे ये बता, तुमने अपने कुँवर सा की फोटो देखी? और आज वो आ रहे हैं या नहीं?"
स्नेहा तो काफी एक्साइटेड लग रही थी जबकि गौरी के चेहरे पर कुछ खास भाव झलक नहीं रहे थे।
"सबसे पहले तो वो मेरे कुँवरसा नहीं हैं और आज वो नहीं, उनकी फैमिली आ रही है। भाभी की बुआ का लड़का है। फोटो में तो ठीक ही लग रहा था, अब सच्चाई तो महादेव ही जाने। मैंने तो साफ इंकार कर दिया था पर भाई की बात टाल नहीं पाई इसलिए इस देखने-दिखाने के चक्कर में फंस गई।"
वो ऐसे दिखा रही थी जैसे उसे इस रिश्ते में कोई इंटरेस्ट ही नहीं था। स्नेहा का सारा एक्साइटमेंट फुस्स हो गया था। वो अपने दोनों हाथों पर अपनी हथेली रखकर मुँह फुलाए बेड पर आलती-पालती मारकर बैठ गई
"मुझे तो लगा था कि कुँवर सा ज़रूर पुराने ज़माने के राजकुमार जैसे होंगे, तेरे टक्कर के होंगे। जैसे तेरी सुंदरता का कोई पारावार नहीं है वैसे ही वो भी इतने हैंडसम होंगे कि जो देखे बस देखता ही रह जाए। पर यहाँ तो ऐसा कुछ है ही नहीं।"
गौरी ने अपने भीगे बालों को जूड़े में बाँधते हुए सरसरी नज़र स्नेहा पर डाली जो मुँह लटकाकर बैठी हुई थी और खुदमे ही कुछ कुछ बड़बड़ाए जा रही थी।
"ऐसा भी नहीं है, अच्छे दिखते हैं वो।"
गौरी ने जैसे ही ये कहा स्नेहा की आँखे शरारत से चमक उठी, "वो एंड ऑल ह। नोट बैड, तू तो अभी से अपने कुँवर सा की कुँवरी सा बन गई है।"
स्नेहा जानबूझकर शब्दों से उसे छेड़ने की कोशिश कर रही थी। गौरी ने उसको घूरकर देखा तो उसने अपनी बत्तीसी चमकाते हुए कहा, "अच्छा चल ठीक है अब गुस्सा मत कर, चल तुझे तैयार कर दूँ ताकि तेरे ससुराल वाले तुझे देखते ही पसंद कर लें। आखिर तेरे कुँवर सा के पास जाने के लिए उनकी मंज़ूरी ही तो सबसे ज्यादा मायने रखती है।"
उसकी बात सुनकर गौरी का मुँह बन गया पर अभी उसके पास लड़ने का वक़्त ही नहीं था तो एक अच्छी बच्ची की तरह चुपचाप खड़ी हो गई।
स्नेहा ने उसको साड़ी पहनाई और फिर उसको रेडी करने लगी। इन्हीं सब में वक़्त निकल गया। नीचे लड़के वालों के स्वागत की पूरी तैयारी हो गई थी, बस इंतज़ार था तो उनके आने का।
कुछ ही देर में घर के बाहर एक के बाद चार गाड़ियाँ आकर रुकीं। उनकी आवाज़ सुनकर कैलाश जी और मयंक(गौरी का भाई) बाहर निकल गए। तीन गाड़ियों से अनुराधा जी, समर जी, राजवीर जी, शिवांगी जी, रुद्र और चित्रा निकले। वहीं एक गाड़ी से एक आदमी और एक लड़का निकला। का आदमी सचदेव जी थे और उनके साथ समर्थ भी था, कृतिका का भाई और सचदेव जी का बेटा।
कृतिका ही वो लड़की थी जिससे मयंक की शादी हो रही थी और वो शिव के मामा की बेटी थी। दोनों की उम्र लगभग बराबर ही थी इसलिए उनका रिश्ता भाई-बहन से ज़्यादा दोस्त वाला था।
कैलाश जी ने और मयंक ने सबका स्वागत किया। बड़े एक-दूसरे के गले मिले, वहीं मयंक भी सार्थक और राजवीर जी के गले लगा। उनको अंदर लेकर जाया गया। सभी लिविंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गए जहाँ उनकी मेहमाननवाजी के सभी इंतज़ाम किये गए थे। ज्योति जी ने उन्हें चाय-नाश्ता दिया जिसमें स्नेहा उनकी मदद कर रही थी।
कुछ देर सब बातें करते रहे फिर अनुराधा जी ने ज्योति जी को देखते हुए कहा, "अब बातें तो होती रहेंगी, पहले आप गौरी को बुला दीजिए। हमें उन्हें ही देखना है और कुछ बातें भी करनी हैं। हमें तो वो पहले ही पसंद है। अगर वो भी शिव के लिए अपनी मंज़ूरी दे दे तो हम आज ही रोका करके उन्हें अपनी अमानत के तौर पर यहाँ छोड़ जाएँगे।"
"जी बिल्कुल, अभी बुलाते हैं उन्हें।"
इतना कहकर ज्योति जी वहाँ से चली गईं, स्नेहा भी उनके साथ चली गई।
वहीं गौरी सुबह से खुद को शांत रखने की पूरी कोशिश का रही थी। उसके लिए भी ये सब नया नया ही था। पहली बार ऐसे किसी के सामने जाने वाली थी। ये सब उसे जितना अजीब लग रहा था उतनी ही नर्वस्नेस भी फील हो रही थी। दिल की धड़कनें भी आज तेज़ थी और पेट मे अजीब सी हलचल हो रही थी, दिल घबरा रहा था। वो अपने रूम में बैठी बेचैनी से अपनी उंगलियों को आपस मे उलझाते हुए अपने बुलावे का इंतज़ार कर रही थी।
कुछ ही देर में दोनों वहाँ पहुँची तो गौरी को देखते ही ज्योति जी ने अपनी आँख से काजल निकालकर उसके कान के पीछे नज़र का टीका लगा दिया, "कितनी सुंदर लग रही है हमारी गुड़िया, किसी की नज़र न लगे आपको। चलिए आपका बुलावा आया है और हाँ, तुम आज मुँह मत चलाना, थोड़ा शांत रहना।"
गौरी ने एक शब्द नहीं कहा, बस नज़रें झुकाए खड़ी रही। उसने ऑरेंज कलर की सुंदर सी साड़ी पहनी हुई थी। मेकअप के नाम पर आँखों में काजल और होंठों पर लिपग्लॉस लगाया हुआ था। लंबे बालों को एक चोटी में गुँथा हुआ था जो एक तरफ से उसके कंधे से आगे आ रही थी। दोनों तरफ निकलती लटें उसके गालों पर झूल रही थीं। कानों में छोटे-छोटे गोल्ड के इयरिंग्स, गले में गोल्ड की चैन जिसमें महादेव का पेंडेंट डला हुआ था, एक हाथ में वॉच तो दूसरे में पतला सा ब्रेसलेट, और पैरों में पतली-पतली पायल। वो खूबसूरत इतनी थी कि सिंप्लिसिटी में भी कयामत ढा रही थी। ऊपर से उसकी झुकी नज़रें उसको और भी हसीन बना रही थी।
एक तरफ से ज्योति जी तो दूसरी तरफ से स्नेहा ने उसको पकड़ा हुआ था। वो तीनों नीचे पहुँचे। वहाँ मौजूद लोगों को देखकर गौरी की घबराहट और ज्यादा बढ़ गयी और उसने झट से अपनी पलकों को झुका लिया।
स्नेहा और ज्योति जी के साथ गौरी सबके पास पहुँची तो शिवांगी तुरंत उठकर उसके पास आ गई और उसके सामने आकर मुस्कुराकर बोली, "अगर ये रिश्ता जुड़ गया तो आप हमारी भाभी बनेंगी पर फ़िलहाल तो हम अपने भाई की तरफ़ से आपसे बात करना चाहते हैं।"
अनुराधा जी भी उठकर उसके पास आ गयी और उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा आप हमें उसी दिन पसंद आ गई थीं जब हमने कृतिका की सगाई में आपको देखा था। आज तो हम आपसे बात करने आए हैं ताकि आपकी मर्ज़ी जानकर हम इस रिश्ते के बारे में फ़ैसला ले सकें।
वैसे तो यहाँ शिव को होना चाहिए था पर उन्हें देखे हुए तो हमें ही छह महीने हो गए हैं। उनके पास वक़्त ही नहीं होता है, पर हम नहीं चाहते कि हमारे हाथ से इतना अच्छा रिश्ता निकल जाए।
हमने शिव की फोटो भेजी थी तो शायद आपने भी देखी ही होगी। अगर आप उनके बारे में कुछ भी पूछना चाहती हैं तो पूछ सकती हैं। चलिए पहले आप हमारे पास बैठिए, उसके बाद बात करते हैं।" उन्होंने उसको सोफे पर बिठाया और दोनों उसके दो तरफ़ बैठ गए। बेचारी गौरी अंजान लोगों के बीच फंस गयी थी। उसे ये सब बड़ा अजीब लग रहा था।
गौरी को इतना शांत देखकर राजवीर जी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "वैसे तो यहाँ बहुत लोग हैं जो आपको शिव के बारे में बताएँगे, लेकिन सबसे पहले हम दिल से एक बात कहना चाहते हैं।
शिवांश सिंह राठौर, हमारे शिव, एक ऐसी मज़बूत चट्टान हैं जो जब देश के दुश्मनों पर कहर बनकर टूटते हैं, तो उनमें ज़रा भी दया नहीं होती।
लेकिन जब बात अपने परिवार की आती है, तो वही शिव अपनों के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। उनके होते इस परिवार पर कोई आँच नहीं आ सकती। शिव दिल से बेहद साफ़ और सोच में बेहद गहरे इंसान हैं।
वो अपनी भावनाएँ ज़्यादा ज़ाहिर नहीं करते, दिल की बातें अक्सर अपने भीतर ही रखते हैं। अपनी खुशियाँ सबके साथ बाँटते हैं, लेकिन अपने दुखों को अकेले सहते हैं।
जिस लड़की का हाथ उनकी ज़िंदगी में आएगा, वो सच में बहुत किस्मत वाली होगी। हम दिल से दुआ करते हैं कि ये रिश्ता तय हो जाए, और अगर ऐसा होता है, तो न सिर्फ़ आप खुशकिस्मत होंगी, बल्कि शिव भी खुद को खुशनसीब समझेंगे कि उन्हें आप जैसी जीवनसाथी मिलेगी।"
वो इतना कहकर चुप हो गए तो शिवांगी जी ने सौम्य सी मुस्कान के साथ सवाल किया, "अच्छा पहले आप बताइए, आपने शिव की फोटो देखी है?"
उनका सवाल सुनकर गौरी ने मयंक को देखा तो उसने अपनी पलकें झपका दीं। गौरी ने अब नज़रें झुकाए हुए ही धीरे से कहा, "जी।"
"कैसे लगे आपको हमारे भैया, बहुत हैंडसम है ना? मेरे तो भैया फ़ेवरेट हैं, कितने दबंग लगते हैं देखने में।"
हमारी चित्रा मैडम इतनी देर से मुँह बंद किए बैठी थी। अब उससे और सब्र नहीं हुआ और उसने एक्साइटेड होकर बोल पड़ी। उसकी बात सुनकर सब मुस्कुराने लगे। गौरी अब भी शांति से नज़रें झुकाए बैठी थी।
उसे चुप देख अनुराधा जी ने गौरी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा आप चुप क्यों हैं? हम जानते हैं हमें शिव के साथ यहाँ आना चाहिए था ताकि आप उनसे बात करके उनको समझतीं और तब फ़ैसला करतीं, पर वो कब आएंगे हमें ये भी नहीं पता है। उनके लिए सबसे आगे उनका फ़र्ज़ आता है।
वैरागी बने हुए हैं वो और हमें अपने संन्यासी बेटे के लिए आप जैसी ही लड़की की तलाश थी जो उनकी खामोशी को भी शब्दों में पिरोने का हुनर रखती हो। आपकी ज़िंदादिली, चुलबुलापन देखकर हमारे दिल ने बस यही कहा था कि अगर हमारे बेटे की बेरंग ज़िंदगी में कोई रंग भर सकता है तो वो आप हैं। शिव भले ही यहाँ न हो पर आपको उनके बारे में जो भी पूछना हो आप पूछ सकती हैं।"
गौरी तो एकदम ब्लैंक थी, उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। उसने बेबसी से मयंक को देखा तो मयंक ने मुस्कुराकर कहा, "गुड़िया आपको जो भी पूछना हो आप पूछ सकती हैं बिना डरे, बिना घबराए।"
गौरी अब भी चुप ही रही तो अब समर जी ने कहना शुरू किया, "बेटा शिव को जानने के लिए आपको ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। वो एक खुली किताब की तरह है, जो उन्हें प्यार दे वो बदले में अपनी जान उन पर न्योछावर कर देते हैं। हाँ, हमारा बेटा थोड़ा बोलता कम है और लोगों से दूर ही रहता है, पर उनका दिल बहुत साफ़ है।
हम आपको दावे के साथ कह सकते हैं कि अगर आपने इस रिश्ते के लिए हाँ कहा तो आपको कभी अपने फ़ैसले पर पछताना नहीं पड़ेगा। हम आपसे बस एक चीज़ कहेंगे, हमारा बेटा आर्मी ऑफ़िसर है। हमारे पास कम और बॉर्डर पर ज़्यादा वक़्त बिताते हैं। उनकी जीवनसाथी बनकर हर हाल में उनका साथ देना आसान नहीं होगा क्योंकि वो नॉर्मल पति की तरह आपको अपना सारा वक़्त नहीं दे पाएँगे।
शायद यही वजह है कि वो शादी के नाम से भी दूर भागते हैं, पर हमने ज़िंदगी से एक चीज़ सीखी है, रिश्ते निभाने के लिए दिलों की नज़दीकी मायने रखती है। मीलों दूर रहकर भी अगर रिश्ते दिल से जुड़े हों तो उनमें कोई दूरी नहीं होती। कभी-कभी हमारे एक खुशी के पल के सहारे हम अपनी ज़िंदगी बिता देते हैं।
अगर आपने उनसे शादी का फ़ैसला लिया तो आपको बहुत सब्र रखना होगा, अपना दिल मज़बूत करना होगा। एक आर्मी ऑफ़िसर की वाइफ़ बनना आसान बात नहीं होती। इसलिए आप अच्छे से सोच लीजिए, अगर आप इस रिश्ते को निभा पाएँ और आपको शिव पसंद हो तभी हाँ कहिएगा।"
गौरी अब और भी ज़्यादा घबरा गई। सब सिर्फ शिव की ही बातें बता रहे थे उसे । जिसे न उसने देखा था और न जानती थी और यहाँ मौजूद हर शक्स बस उसकी तारीफ किये जा रहा था जिससे वो उलझती जा रही थी।
शिवांगी ने उसके एक्सप्रेशन देखे तो उसका हाथ थामकर प्यार से बोली, "चलिए हम आपको कुछ बातें बताते हैं शिव के बारे में। उन्होंने दिल्ली से अपनी स्कूलिंग की है। बचपन से उनका सपना था आर्मी ऑफ़िसर बनकर देश की सेवा करने का और उन्होंने अपने इसी सपने को अपनी ज़िंदगी बना ली।
हम उनकी बड़ी बहन हैं, पाला है हमने उन्हें। वो इतने शर्मीले और अंतर्मुखी हैं कि अपने दिल की बात कभी अपने चेहरे पर आने ही नहीं देते। अपने परिवार से इतना प्यार करते हैं कि उनके लिए अपनी जान तक दाव पर लगाने को तैयार रहते हैं। कोई छल-कपट नहीं है उनमें, एकदम साफ़ सोने सा दिल है उनका। सबको खुश देखकर उनकी खुशी में खुश हो जाते हैं पर इन सबसे उलट उनका गुस्सा इतना भयानक है कि जब वो गुस्से में होते हैं तो हम भी उनके पास जाने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं।
दूसरों की खुशी में अपनी खुशी तलाशते हैं, खुद से जुड़े लोगों और रिश्तों की बहुत इज़्ज़त करते हैं। ज़्यादा कुछ नहीं माँगते वो, बस प्यार माँगते हैं। अगर कोई उनके तरफ़ एक कदम बढ़ाए तो वो चार कदम बढ़ाते हैं। बहुत ही स्वीट हैं हमारे भाई, फोटो तो आपने देखी ही होगी, उनकी सादगी उनके चेहरे पर नज़र आती है।
अभी हमने उनसे शादी के बारे में बात नहीं की है फिर भी हमें पूरा विश्वास है कि वो इस रिश्ते के लिए मना नहीं करेंगे। अब आप भी एक बार सोच लीजिए क्या आप ज़िंदगी भर उनका साथ निभा पाएँगी? वैसे भी अभी हम उनकी शादी नहीं करवाएँगे, आप दोनों को एक-दूसरे को जानने का वक़्त भी मिलेगा। अभी तो आप बस इतना फ़ैसला ले लीजिए कि क्या आपको शिव पसंद है?"
वैसे भी अभी हम उनकी शादी नहीं करवाएँगे, आप दोनों को एक-दूसरे को जानने का वक़्त भी मिलेगा। अभी तो आप बस इतना फ़ैसला ले लीजिए कि क्या आपको शिव पसंद है?"
अब वो गौरी के चेहरे को देखने लगी। गौरी के लिए ये सिचुएशन और भी ख़राब हो गई थी। अगर लड़का आता तो बात करके कुछ कह भी देती , उससे अगर बात होती तो शायद कोई डीसीज़न ले भी लेती और तब सिचुएशन थोड़ी आसान हो जाती उसके लिए पर यहाँ तो उसकी पूरी फैमिली उसके सामने थी। जिस लड़के को उसने एक नज़र ढंग से देखा तक नहीं था , बस चंद बातें सुनकर उससे शादी करने का फ़ैसला ऐसे कैसे ले सकती थी वो?
गौरी सामने बैठे अपने मम्मी-पापा और भाई को देखने लगी , अब कैलाश जी उठकर उसके पास आ गए। उन्होंने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा तो गौरी की नज़रें झुक गईं। घबराहट में वो अपनी उंगलियों को आपस में उलझाए बैठी थी।
"बेटा हमें ये रिश्ता मंज़ूर है पर हमारे लिए आपकी मंज़ूरी सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। अगर आपको शिव पसंद हो तो बता दीजिए और अगर आपको कुछ और भी पूछना हो तो भी पूछ सकती है।"
गौरी एक पल को सोच में पड़ गई पर क्या पूछती वो? उसके लिए तो ये लड़का एक पहेली जैसा था, जानती ही क्या थी वो उसके बारे में? अंजान ही तो था।
गौरी सकुचाते हुए चुप्पी साधे बैठी थी जबकि सब उसके जवाब का इंतज़ार कर रहे थे। उसकी घबराहट देखते हुए ज्योति जी उसके पास आ गई थीं। उन्होंने उसको उठाया और उसके चेहरे को ऊपर करके प्यार से बोलीं, "लाड़ो बताइए क्या आपको ये रिश्ता मंज़ूर है?"
गौरी उनका सवाल सुनकर मयंक को देखने लगी थी। मयंक ने इशारों में सवाल किया और गौरी ने जवाब में अपनी पलकें झुका लीं। अपनी शैतान बहन का ये रूप देखकर उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई थी। उसका इशारा समझते ही उसका चेहरा खिल उठा था पर उसने अभी कुछ कहा नहीं।
वो गौरी के पास चला गया और उसके सर पर हाथ फेरने लगा तो गौरी सर उठाकर घबराई निगाहो से उसे देखने लगी।
"गुड़िया क्या आप इस रिश्ते से खुश हैं? शादी बहुत बड़ा फ़ैसला है इसलिए सोचकर बताइए क्या आप शिव के साथ अपनी सारी ज़िंदगी बिता सकती हैं?"
गौरी कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही। शिव की फैमिली,उसकी फैमिली सबकी कही बातें उसके दिलों दिमाग मे घूम रही थी और शिव का चेहरा आँखों के सामने आ रहा था।
सबको उसकी हाँ का इंतज़ार था और गौरी खुदमे ही उलझी हुई थी क्योंकि ये फैसला इतना भी आसान नही था उसके लिए।
गौरी ने अपनी आँखों को मूंद लिया,गहरी सांस छोड़ते हुए अपने दिल को शांत किया जो इतनी देर से बेचैनी से ज़ोरों से धड़क रहा था।
कुछ देर बाद उसने अपनी आँखे खोली। आँखों ही आँखों में मयंक को कुछ कहा पर मयंक ने उसको कहने का इशारा कर दिया। गौरी ने धीरे से हाँ में सर हिलाते हुए हाँ कहा तो मयंक के साथ-साथ बाकी सब भी खुश हो गए थे।
अनुराधा जी उसके पास आई तो मयंक पीछे हट गया। अनुराधा जी ने उसके गाल को प्यार से छूकर मुस्कुराकर कहा, "हमें पता था आपका जवाब हाँ ही होगा इसलिए हम पूरी तैयारी के साथ आए हैं। आज हम आपको अपनी बहू बनाकर ही जाएँगे। सगाई तो शिव के आने के बाद ही होगी पर तब तक के लिए हम आपको यहाँ अपनी अमानत के तौर पर छोड़ रहे हैं। जल्दी से जल्दी आपको ब्याह कर अपने घर ले जाएँगे।"
गौरी के दिल मे अजीब सी हलचल हुई और उसकी पलकें झुक गयी।
अनुराधा जी ने राजवीर जी को देखकर कहा, "दामाद जी ज़रा शगुन तो लेकर आइए, आज हम अपनी बहू को अपना बना ही लें, ताकि कोई और इस चाँद को अपने आँगन में ले जाने के सपने न देख सके।"
राजवीर जी उनकी बात सुनकर खड़े हो गए और मुस्कुराकर "जी माँसा" कहने के बाद उन्होंने सार्थक को देखा तो उसके साथ-साथ सचदेव जी और समर जी भी खड़े हो गए थे।
सभी बाहर गए और फिर अपने हाथों में वो बड़ी-बड़ी शाही थाल लेकर अंदर आ गए। मयंक ने तुरंत उनकी मदद की। सभी सामान गौरी के सामने वाले टेबल पर रखा गया। अनुराधा जी ने गौरी को सोफे पर बिठाया तो ज्योति जी ने उसके पल्लू से उसका सर ढक दिया।
शिवांगी जी की मदद से अनुराधा जी ने उसकी गोद में नारियल, फल-फूल, सोने का सिक्का रखा और उसके माथे पर टीका लगाने के बाद, उसके हाथों में एक जोड़ा और सोने के जड़े हुए कंगन रखते हुए मुस्कुराकर कहा,
"ये हमारे खानदानी कंगन हैं और आपकी सगाई का जोड़ा है। अभी हम आपको ये सब बस दे रहे हैं पर पहनाएँगे उस दिन जब शिव यहाँ होंगे। तब तक ये हमारी अमानत है आपके पास जो आपको ये एहसास दिलाएगा कि जल्दी ही हम अपने बेटे के साथ यहाँ आएंगे पूरे रीति रिवाज़ों के साथ आपको अपनी बहू बनाने। अब से इस चाँद पर हमारा हक़ हुआ।" उन्होंने उसके माथे को चूम लिया।
गौरी अब भी शर्माती हुई, सकुचाती हुई खुद में सिमटी हुई बैठी थी। बड़ा अजीब लग रहा था उसे ये सब। शिव शब्द उसके कानों मे गूंज रहा था, शादी के ज़िक्र से भी धड़कनें बढ़ गयी थी और खुदमे ही उलझन हो रही थी।
अनुराधा जी हटी तो अब शिवांगी जी उसके पास आ गईं और एक जड़े हुए सेट उसकी गोद में रखते हुए उसके गाल को प्यार से छूते हुए मुस्कुराकर बोलीं, "गौरी हमने तो आपका नाम सुनते ही आपको अपनी भाभी बनाने का फ़ैसला कर लिया था। आप शिव की पूरक हैं और हमें विश्वास है कि आप हमारे निर्मोही भाई को भी प्यार के खूबसूरत एहसासों से वाक़िफ़ करा देंगी।" उसकी बात सुनकर गौरी एकदम ख़ामोशी से बैठी थी।
अब राजवीर जी उसके सामने आ गए और उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "आप हमारे लिए हमारी बहन जैसी हैं। पता है शिव सिर्फ़ हमारे साले साहब नहीं हैं बल्कि हमारे दोस्त और हमारे छोटे भाई जैसे हैं। हमें बेहद खुशी है कि आपका रिश्ता हमारे प्यारे साले साहब से जुड़ गया है और हम आपको आश्वस्त करते हैं कि आप अपने इस फ़ैसले पर कभी पछताएँगी नहीं क्योंकि हमारे शिव शाक्षात् महादेव के प्रतिबिंब हैं और गौरी का स्थान तो हमेशा से शिव के पास ही होता है।
बहुत ही समझदार और डाउन टू अर्थ है शिव। उनके लिए आपके जैसी चंचल नदी की ही ज़रूरत थी पर गौरी हम आपसे एक बात कहना चाहेंगे, आप कभी खुद को बदलिएगा नहीं। जैसे आपका परिवार है वैसे ही आज से राठौर परिवार भी आपका हुआ। आपकी सिंप्लिसिटी ही आपकी सुंदरता है, इसे हमेशा बनाए रखिएगा।"
गौरी ने अब हाँ में सर हिला दिया था। रिश्ता पक्का हो गया था तो वहाँ सबका मुँह मीठा करवाया गया। गौरी को भी एक-एक करके सबने मिठाई खिलाई। वो भी चुप सी बैठी उनकी हर बात मानती गई। सबके नंबर ख़त्म हुए तो अब चित्रा उसके पास आ गई और उसके मुँह में मिठाई का टुकड़ा डालते हुए मुस्कुराकर बोली, "भाभी सा हमें तो आप बड़ी पसंद आई और देखिएगा भाई सा को भी आप बेहद पसंद आएंगी। आप बिल्कुल भाई सा के टक्कर की हैं, आपकी जोड़ी तो खूब जमेगी।"
उसने इतना कहा ही था कि अब तक सबको अपनी छोटी-छोटी आँखों से कंफ़्यूज़ से देखते हुए रुद्र उसके पास आ गया और उसके सूट को खींचते हुए बोला, "मासी मासी, यहाँ क्या हो रहा है? सब मिठाई खा रहे हैं, हमें भी मिठाई दीजिए ना।"
उसकी बात सुनकर चित्रा ने उसकी तरफ़ देखा और मिठाई का एक टुकड़ा उसके छोटे से मुँह में डाल दिया, "लीजिए आप भी मुँह मीठा कीजिए। हमारे नन्हे राजकुमार, आखिर आपके लिए मामी मिल गई है तो आपका मुँह मीठा करवाना तो बनता है।"
उसकी बात सुनकर रुद्र ने अपने छोटे से मुँह को गोल करके कहा, "कहाँ है मामी?"
उसकी बात सुनकर चित्रा ने गौरी की तरफ़ इशारा करके कहा, "ये हैं आपकी होने वाली मामी। अब बताइए आपको आपकी मामी पसंद आई?"
उसकी बात सुनकर रुद्र ने बड़ों की तरह गौरी को अच्छे से देखा और फिर गंभीरता से बोला, "मामा से पूछना पड़ेगा, मामी को घर लेकर चलते हैं फिर मामा आएंगे तो उनसे पूछकर बता देंगे।"
"आप तो पूरे के पूरे मामा के चमचे हो, खुदसे बताओ आपको आपकी मामी पसन्द आई या नही?"
चित्रा उसके गाल को खींचते हुए हंस पड़ी। रुद्र ने नाराज़गी से उसे घूरा फिर गौरी के चेहरे को टुकुर टुकुर देखते हुए बोला,"मामी बिल्कुल प्रिंसेस जैसी दिखती है, हम इन्हे अपने साथ लेकर चलेंगे, हम उनके साथ भी खेलेंगे जैसे मामा के साथ खेलते है।"
"मामी बिल्कुल प्रिंसेस जैसी दिखती है, हम इन्हे अपने साथ लेकर चलेंगे, हम उनके साथ भी खेलेंगे जैसे मामा के साथ खेलते है।"
"अभी आपकी मामी को यहीं रहना होगा। जब आपके मामा यहाँ आएंगे तब हम आपकी मामी को अपने साथ लेकर चलेंगे।"
राजवीर ने उसको अपनी गोद में उठाते हुए समझाया, रुद्र का मुह लटककर छोटा सा हो गया और वो उनकी गोद से नीचे उतरने के लिए मचलने लगा, "बाबा नीचे उतारिए ना, हमें मामी से इम्पॉर्टेन्ट बात करनी है।"
उसने इतनी गंभीरता से कहा कि उसकी बात सुनकर सबकी हँसी छूट गई। राजवीर ने उसे नीचे उतारा तो वो गौरी की गोद में चढ़ने लगा। ज्योति जी ने उसकी गोद से सभी चीज़ें उठाकर थाल में रखी तो रुद्र उसकी गोद में बैठ गया।
बाकी सब बातों में व्यस्त हो गए तो गौरी ने तुरंत ही उसके आगे हाथ बढ़ाकर कहा, "अच्छा बताइए आपके मामा बहुत गुस्सा करते हैं? अगर आपने सच बताया तो हम आपको मिठाई देंगे।"
उसकी बात सुनकर रुद्र ने लब-लपाती जीभ को अपने होंठों पर फिराया और फिर झट से बोला, "नहीं मामू बहुत अच्छे हैं, वो कभी गुस्सा नहीं करते और हमें बहुत प्यार करते हैं। हमें आप बहुत अच्छी लगीं, हम उन्हें कहेंगे कि वो आपको भी खूब सारा प्यार करें।"
उसकी बात सुनकर स्नेहा की हँसी छूट गई। उसने हँसते हुए गौरी से धीरे से कहा, "सोच जब बच्चा इतना चालाक है तो उसके मामा जी तो चालाकी के ब्रांड एंबेसडर होंगे, बहुत प्यार करेंगे तुमसे।"
वो उसका मज़ाक उड़ा रही थी। गौरी ने उसकी तरफ़ घूरकर देखा तो उसने अपनी बत्तीसी चमका दी। गौरी ने गुस्से में उसको घूरते हुए उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और रुद्र को मिठाई दी तो उसने उसके गाल पर किस कर दिया और उसकी गोद से उतरकर भाग गया।
"अभी इसी से काम चला ले, जब शिव जी आ जाएँ तो वही तेरा मुँह मीठा करवा देंगे, वो भी उनकी स्पेशल मिठाई से।"
स्नेहा फिर उसे छेड़ने से बाज़ न आई। उसकी बात सुनकर गौरी का गुस्से से बुरा हाल हो रहा था पर वो इतनी मजबूर थी कि कुछ बोल भी नहीं पा रही थी। सबके बीच कुछ बातें हुईं फिर सबने साथ में लंच किया। बेचारी गौरी तो ढंग से खाना तक नहीं खा पा रही थी।
वहाँ होने वाली बातों का केंद्र शिव था और उसके बारे में सुनते हुए वो मन ही मन उसकी कल्पना कर रही थी जिस वजह से उसका दिल आज उसके कंट्रोल से बाहर हो गया था और अपने नेचर से उलट आज वो बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था।
लंच ख़त्म हुआ तो सबने गौरी को आशीर्वाद दिया और फिर अपने समधियों और समधन के गले मिलने के बाद सब वहाँ से रुक़्सत हो गए।
"ओये! तुझे क्या हुआ?"
स्नेहा चौंकते हुए बोली और आँखे बड़ी बड़ी करके हैरानी से गौरी को देखने लगी जो गेस्ट के घर से बाहर निकलते ही
निढाल सी सोफे पर जा गिरी थी।
अब जाकर गौरी कुछ रिलेक्स हुई। अभी वो चैन की सांस ले ही रही थी कि स्नेहा की आवाज़ उसके कानों मे पड़ी और उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए।
"रुक जा बच्चू! बहुत उड़ रही थी न तब से, बहुत मजे ले रही थी मेरी मजबूरी के। अब देख मैं तेरा क्या हश्र करती हूँ?" गौरी ने आँखें खोलकर गुस्से से उसे घूरते हुए पिल्लो उठाकर उसके मुँह पर दे मारा पर स्नेहा फुर्ती से साइड हट गयी।
ये देखकर गौरी को त्योरिया चढ़ गयी उसने गुस्से से उस पर झपट्टा मारा तो स्नेहा तुरंत ही जान बचाते हुए भाग खड़ी हुई।
"आए हाए! कुँवरी सा! आपके ससुराल वाले क्या निकले! आपके तो रंग ढंग ही बदल गए। उनके सामने तो बड़ी शालीन और शांत जलेबी सी सीधी बनी बैठी थी और अब तो तुम चुड़ैल बनकर मेरे पीछे पड़ गई हो!"
"रुको तो स्नेहू! आज तुम्हारी खैर नहीं, बड़े मजे ले रही हो हमारे, अब देखो आज हम तुम्हारी सारी मस्ती निकालते हैं!"
"अरे वाह! मेरी गौरी तो अभी से अपने सासरे के रंग ढंग में ढलने लगी, बस एक मुलाकात और तुम्हारी तो बोली और भाषा ही बदल गई!" स्नेहा ने भागते हुए फिर उसे छेड़ा। बड़ा मज़ा आ रहा था उसे यूँ गौरी को तंग करने मे, गौरी भी चिढ़कर उसे पीटने के लिए उसके पीछे दौड़े जा रही थी पर जैसे ही स्नेहा कि आखिरी के शब्द उसके कानों मे पड़े, गौरी का ध्यान अपनी कही बात पर गया, उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए।
एक मीठा मीठा सा एहसास उसके दिल को छूकर गुज़रा जिसमे वो उलझकर रह गयी पर जैसे ही कानों मे स्नेहा के हँसी ठहाकों की आवाज़ पड़ी, सर झटकते हुए वो उसे पकड़ने उसके पीछे दौड़ गयी।
तभी गेट पर मयंक के साथ ज्योति जी और कैलाश जी ने कदम रखा तो स्नेहा भागकर उनके पीछे छुप गई, गौरी उनके सामने थी, अपनी साड़ी को एक हाथ से ऊपर उठाए और अपनी सैंडल को दूसरे हाथ में पकड़े वो उसे मारने की कोशिश कर रही थी।
उसका हुलिया और हरकत देखकर ज्योति जी गुस्से मे ने उसके हाथ से सैंडल छीन ली और उसकी हालत देखकर उसे डपट भी दिया।
"बड़ी हो जाइए गौरी! कब तक अपना बचपना लिए बैठी रहेंगी? इतना बड़ा संस्कारी घर परिवार मिला है आपको पर आपकी हरकतें हमें उलझन में डाले हुए हैं कि आप इन रिश्तों को निभा पाएंगी भी या नहीं।"
गौरी आँखे बड़ी बड़ी करके हैरानी से उन्हें देखने लगी। कैलाश जी ने एक नजर अपनी धर्मपत्नी को देखा फिर गौरी के सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर बोले, "हमें हमारी लाडो पर पूरा विश्वास है। वो हर रिश्ते का मान रखेंगी और बड़ी ही समझदारी से इन रिश्तों को संजोकर रखेंगी। हाँ, वो थोड़ी चंचल है पर आपने सुना नहीं उन्हें अपने बेटे के लिए ऐसी ही लड़की चाहिए थी जो उनके घर को अपनी शैतानियों से खिलखिलाकर हँसने पर मजबूर कर दे।
हमारी बेटी बहुत समझदार है वो किसी को शिकायत का मौका नहीं देंगी और अभी तो वो अपने बाबा के घर में है तो यहाँ उन्हें किसी बंधन में बँधकर रहने की ज़रूरत ही क्या है? हमें तो हमारी चंचल सी बहती नदी की अटखेलियाँ देखने में बहुत आनंद आता है, उनसे तो ये घर गुलज़ार है।"
उनकी बात सुनकर गौरी के होंठों पर मीठी सी मुस्कान फैल गयी जिससे ज्योति जी चिढ़ गयी।
" गौरी, कुछ पूछना है मुझे तुझसे"
गौरी सवलिया नज़रों से मयंक को देखने लगी। मयंक ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "गुड़िया! आपने ये फैसला सोच समझकर किया है ना? एक आर्मी ऑफिसर की अर्धांगिनी बनना इतना आसान नहीं है। बहुत हिम्मत, समझदारी और धैर्य रखना होगा तुम्हें और इस रिश्ते को अपने प्यार से सींचकर एक कोमल पौधे से मजबूत वृक्ष बनाना होगा, अपने इस नए रिश्ते की नींव को इतना मजबूत बनाना होगा कि बड़े से बड़े आंधी तूफान का सामना करने के बाद भी तुम्हारा शिव से रिश्ता वैसा का वैसा बना रहे, कोई भी समस्या आपके रिश्ते को नुकसान न पहुँचा सके।"
गौरी कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही फिर उसने बड़ी संजीदगी से पूछा....
गौरी कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही फिर उसने बड़ी संजीदगी से पूछा, "भैया! आपको अपनी बहन पर डाउट है कि वो इतनी स्ट्रांग नहीं है कि एक आर्मी ऑफिसर के साथ उसके सुख दुख में उसका साथ निभाते हुए अपनी ज़िंदगी को उसके नाम करके जी सके?"
उसका सवाल सुनकर मयंक मुस्कुरा दिया, "बिल्कुल नहीं, मैं जानता हूँ मेरी बहन जितनी चंचल और शैतान है उससे कहीं गुना ज्यादा समझदार है, वो अपनी ज़िंदगी का इतना बड़ा फैसला बिना कुछ सोचे नहीं करेगी, अगर उसने इस रिश्ते के लिए हाँ की है तो वो इस रिश्ते को पूरे दिल से निभाएगी और इन नए रिश्तों को कभी टूटकर बिखरने नहीं देगी।"
"मुझे नहीं पता भैया कि शिव कैसे हैं, मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानती पर मुझे आप पर और अपने महादेव पर पूरा विश्वास है, आपने कहा था ना कि आपको शिव मेरे लिए एकदम सही चॉइस लग रहे हैं तो वो मेरे लिए सही ही होंगे। आखिर महादेव ने गौरी की ज़िंदगी में शिव को भेजा है तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा।
मैं और कुछ तो नहीं जानती पर इतना कहूँगी कि मैं इस रिश्ते को पूरे दिल से निभाऊँगी और कभी किसी को अपने मम्मी पापा के दिए संस्कारों पर सवाल उठाने का मौका नहीं दूँगी।आप कहते हैं ना आपकी बहन बहुत स्ट्रांग है ,मैं इस रिश्ते को इतना मजबूत बनाने की कोशिश करूँगी कि अगर मैं टूट भी जाऊँ तब भी मेरा विश्वास और मेरी समर्पण कम न हो।"
गौरी ने भावुकतावश ये बात कही थी और उसकी बात सुनकर सबके चेहरे खिल उठे। अब ज्योति जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "लाडो! जाकर कपड़े बदल लो, हम आपका खाना आपके कमरे में भिजवाते हैं, जानते हैं तब सबके सामने आप कुछ खा नहीं पाई थी तो जाकर फ्रेश हो जाइएगा फिर खाना खाकर आराम कर लीजिएगा।"
उन्होंने स्नेहा को उसे लेकर जाने को कहा तो दोनों सहेलियाँ ऊपर चली गईं। शगुन के सामान को संभालकर रखने के बाद उन्होंने खाने की प्लेट लगाकर मयंक को थमा दी तो वो मुस्कुराकर ऊपर की ओर बढ़ गया।
रूम में जैसे ही गौरी अंदर आई उसने तुरंत ही स्नेहा पर झपट्टा मारा तो स्नेहा चीख़ कर दूसरी तरफ उछलते हुए बोली, "अरे जानेमन! ई काय गजब ढा रही हो तुम, अबॉय मोरा दिल निकलकर बाहर लुढ़क जातों!"
गौरी उसकी बात सुनकर उसके तरफ लपकते हुए बोली, "रुको! अभी बताती हूँ तुम्हें ,कितना परेशान कर रही थी तुम मुझे। मेरी हालत देखकर तुम्हारा हँसी नहीं रुक रही थी ना अब ज़रा अपनी बत्तीसी चमकाओ तो सही ,ना हमने तुम्हारी बत्तीसी निकालकर तुम्हारे हाथ में धर दी तो हमारा नाम भी गौरी सिंघानिया नहीं!"
उसकी बात सुनकर स्नेहा ने बेड की तरफ दौड़ते हुए कहा, "बस कुछ दिन इंतज़ार कर लो उसके बाद तुम गौरी सिंघानिया नहीं बल्कि Mrs. गौरी शिवांश सिंह राठौर बन जाओगी!"
वो उछलकर बेड पर चढ़ गई तो गौरी भी उसी तरफ भागी और "अभी बताती हूँ तुम्हें" कहते हुए उसने उसका हाथ पकड़कर खींच लिया, ना स्नेहा संभल पाई और ना ही गौरी ही बैलेंस बना पाई तो दोनों ही धड़ाम से बेड पर जा गिरी और एक सेकंड बाद ही दोनों खिलखिलाकर हँस उठीं।
दोनों उठकर बैठीं तो अब स्नेहा ने उसको अपने गले से लगाकर मुस्कुराकर कहा, "मैं बहुत खुश हूँ, सबको देखकर मैं इतना तो कह सकती हूँ कि जीजू बहुत अच्छे होंगे। जब उनका परिवार इतने अमीर होते हुए ही इतने सरल और साफ दिल है तो वो भी बहुत अच्छे होंगे और मेरी जानेमन को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करेंगे, आखिर मेरी जानेमन है ही इतनी स्पेशल कि वो उसे देखने के बाद खुद को उसके प्यार में डूबने से रोक ही नहीं पाएंगे।"
गौरी ने पलटकर कुछ नही कहा। स्नेहा अपनी ही धुन मे मग्न बोलती जा रही थी।
"पता है जब सब तुझसे तेरी मर्ज़ी पूछ रहे थे और तू चुप सी बैठी हुई थी तो एक पल को मैं घबरा ही गई थी, बचपन से ही तू हमेशा यही कहती थी कि तू कभी शादी नहीं करेगी, मुझे लगा कहीं तू मना ना कर दे पर जब तूने हाँ कहा मेरा मन किया मैं नाच-नाचकर पूरी दुनिया को ये बात चिल्ला-चिल्लाकर बता दूँ कि मेरी जानेमन ने शादी के लिए हाँ कर दी है। मैं तुझे बता नहीं सकती कितनी खुश हूँ मैं तेरे लिए।"
स्नेहा वाकई काफी खुश और एक्साइटेड लग रही थी। उसकी बात सुनकर गौरी के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई, "जानती हूँ तू मेरी खुशी से मुझसे भी ज्यादा तू खुश होती है।"
उसकी बात सुनकर स्नेहा उससे अलग हुई और कुछ सोचते हुए बोली, "वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई, रूम में तो तू इस रिश्ते के लिए मना कर रही थी फिर वहाँ जाकर ऐसा क्या हुआ जो तूने शादी के लिए हाँ कह दी, जबकि तू लड़के को जानती तक नहीं है?"
वो सवालिया नज़रों से उसे देखने लगी। उसकी बात सुनकर गौरी के मन में भी कई सवाल आए पर उसका जवाब उसे समझ नहीं आया तो उसने बेड पर से उठते हुए कहा, "मुझे नहीं पता, शायद सब मुझसे हाँ ही सुनना चाहते थे इसलिए निकल गया होगा मुँह से और वैसे भी उन्होंने कहा तो था शादी से पहले हमें एक दूसरे को जानने और समझने का मौका दिया जाएगा और भैया ने भी तो कहा था कि ये लड़का मेरे लिए बिल्कुल ठीक है इसलिए हाँ कह दिया होगा।"
"इतना विश्वास है अपने भैया पर?"
अचानक आई ये आवाज़ सुनकर दोनों लड़कियाँ चौंक गयी। अनायास ही उनकी नज़रें पीछे की तरफ मुड़ गईं। सामने मयंक खड़ा था, हाथों में ट्रे लिए और होंठों पर मुस्कान सजाए वो गौरी को देख रहा था।
"इतना विश्वास है अपने भैया पर?"
अचानक आई ये आवाज़ सुनकर दोनों लड़कियाँ चौंक गयी। अनायास ही उनकी नज़रें पीछे की तरफ मुड़ गईं। सामने मयंक खड़ा था, हाथों में ट्रे लिए और होंठों पर मुस्कान सजाए वो गौरी को देख रहा था।
गौरी उसके पास चली गई और उसके हाथ से ट्रे लेकर उसको टेबल पर रख दिया फिर खुद उसके गले से लगकर बोली, "मुझे आप पर खुद से भी ज्यादा विश्वास है, आप कभी गलती से भी मेरे बारे में कोई गलत फैसला नहीं ले सकते।"
मयंक का चेहरा खिल उठा था उसकी बात सुनकर। उसने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "लड़का सच में बहुत अच्छा है और उसका परिवार भी उतना ही अच्छा है, तुम वहाँ खुश रहोगी।"
उसकी बात सुनकर गौरी उसको सर उठाकर देखते हुए मुस्कुराकर बोली, "पता है मुझे, आखिर मेरे भैया ने मेरे लिए कुछ फैसला लिया है तो वो गलत कैसे हो सकता है? चलिए अब आप यहीं रुकिए, मैं बस यूँ गई यूँ चेंज करके आई उसके बाद आप मुझे अपने हाथों से खाना खिलाएँगे।"
मयंक ने हामी भरी तो वो कपड़े लेकर बाथरूम में भाग गई। स्नेहा ने भी खड़े होते हुए कहा, "भैया! अब मैं चलती हूँ, जल्दबाज़ी में आ गई थी। मम्मी पापा परेशान हो रहे होंगे।"
मयंक से परमिशन लेकर वो वहाँ से निकल गई, इसके साथ ही मयंक का फोन बजने लगा, उसने फोन निकालकर देखा तो स्क्रीन पर कृतिका कॉलिंग लिखा आ रहा था। नाम देखते ही उसके होंठों पर मुस्कान फैल गई, उसने फोन उठाते हुए कहा, "तो रानी साहिब को खबर मिल गई।"
उसकी बात सुनकर दूसरी तरफ से एक खनकती आवाज़ आई, "मुझसे कुछ छुप ही नहीं सकता, चलो अब गौरी को फोन दो। तुमसे तो मैं रात को बात करूँगी। अभी मुझे उससे बात करनी है।"
उसकी बात सुनकर मयंक ने बाथरूम के बंद दरवाज़े को देखते हुए कहा, "वो तो अभी मुमकिन नहीं है क्योंकि आपकी प्यारी ननद अभी बाथरूम में है।"
उसने ये कहा ही था कि बाथरूम का दरवाज़ा खुल गया तो मयंक ने मुस्कुराकर कहा, "लो आ गई जिससे आपको बात करनी है वो।"
"तो दो ना उसे फोन अभी तक खुद लेकर क्यों बैठे हो।"
कृतिका ने उतावलेपन से कहा। उसकी बात सुनकर मयंक का मुँह बन गया, "अगर तुम्हें उसी से बात करनी थी तो उसी को फोन कर लेती ना, जब एक सेकंड भी मुझसे बात करने में तुम्हें आफ़त आ रही थी तो मुझे फोन ही क्यों किया?"
बाथरूम से बाहर आते हुए गौरी के कानों मे ये शब्द पड़े तो उसकी आँखे हैरानी से फैल गयी, "क्या हुआ भैया? किस पर गुस्सा कर रहे हैं आप?"
"लो कर लो बात। तुमसे ही बात करनी है।" मयंक ने मोबाइल गौरी को ही पकड़ा दिया। उसे तो कुछ समझ ही नहीं आया, वो कन्फ्यूज सी कभी उसे देख रही थी तो कभी फोन को देखने लगी। मयंक ने उसे बात करने का इशारा कर दिया, गौरी ने अब फोन कान पर लगाते हुए कहा, "हैलो।"
उसके इतना कहते ही दूसरी तरफ से खनकती हुई आवाज़ आई, "तो मेरी प्यारी नंद ने मेरी भाभी बनने की तैयारी कर ली है।"
गौरी पल मे आवाज़ पहचान गयी, उसने मुँह फुलाकर कहा, "भाभी! आप मुझे छेड़ रही हैं।"
"अच्छा अब नहीं करती तुम्हें परेशान। चलो बताओ, तुमने शिव की फ़ोटो देखी थी?"
"Hmm."
एक बार फिर कृतिका की एक्साइटमेंट से भरी आवाज़ आई, "कैसा लगा तुम्हें मेरा भाई? बहुत हैंडसम है ना? सच अगर मैं उसकी बहन नहीं होती तो मैं ही उससे शादी कर लेती पर अब तो इसका चांस ही नहीं है। अब बताओ कैसा लगा तुम्हें मेरा भाई?"
उसकी बात सुनकर गौरी ने शिव को याद करते हुए कहा, "Hmm अच्छा है।"
"तुमने उससे शादी के लिए हाँ क्या सोचकर किया?"
कृतिका का सवाल सुनकर गौरी की नज़रे मयंक की ओर उठ गयी,"भैया और माँ-पापा सबकी यही मर्ज़ी थी।"
"मैं भी यही चाहती थी। वो लड़का लाइफ को कुछ समझता ही नहीं है, लड़कियों से ऐसे दूर भागता है जैसे वो चुड़ैल बनकर उससे चिपक जाएंगी, उस संयासी के लिए तुम्हारी जैसी लड़की की ही ज़रूरत है।
वैसे मैं तुम्हें एक सीक्रेट बताती हूँ, पता है सबको लगता है कि वो शर्मीले किस्म का लड़का है पर वो ऐसा है नहीं। बस अपने मम्मी-पापा के आगे कुछ कहता नहीं है। उनकी इतनी इज़्ज़त करता है कि बिना कुछ कहे उनकी हर बात मान लेता है, ऐसा लड़का शायद ही कोई दूसरा हो। भले ही तुमने आज शादी के लिए हाँ अपने परिवार के लिए किया हो पर एक बार तुम उसे समझने लगोगी या उससे मिलोगी तो तुम्हें उससे प्यार हो जाएगा।"
यहाँ कृतिका भी शिव पुराण सुना रही थी और सबका यही कहना था। उसकी बात सुनकर गौरी ने हल्का सा मुस्कुरा दी, "वो तो वक़्त ही बताएगा। फ़िलहाल तो आप अपने प्यार से बात कर लीजिए। भैया मुँह फुलाए खड़े हैं।"
इतना कहकर उसने हँसते हुए फोन मयंक को दिया तो मयंक ने कड़क आवाज़ में कहा, "अभी मैं बिज़ी हूँ। बाद में बात करता हूँ।"
इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया। गौरी आँखे बड़ी बड़ी करके हैरानी से उसे देखने लगी तो दूसरे तरफ कृतिका फ़ोन अपने सीने से लगाकर खिलखिला उठी, "उफ़्फ़! तुम्हारा गुस्सा, कितना मज़ा आता है तुम्हें चिढ़ाने में। अब तो तुम तभी मुझसे बात करोगे जब तुम्हारा गुस्सा ठंडा होगा। अब देखते हैं कितनी देर तक तुम मुझसे गुस्सा रह सकते हो।"
चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए बेड पर लेट गई।
"आ जाओ। तुम्हें खाना खिला दूँ।" मयंक ने फ़ोन अपने में रखते हुए निगाहें गौरी की ओर घुमाई, वो झट से बेड पर बैठ गयी, "भैया! आप भाभी से गुस्सा होने का नाटक कर रहे हैं ना?"
गौरी ने मुस्कुराते हुए सवाल किया, जिसे सुनकर मयंक की मुस्कान बड़ी हो गई। उसने एक निवाला उसकी तरफ बढ़ाकर कहा, "क्या करूँ? तुम्हारी भाभी पर कभी गुस्सा आता ही नहीं है तो झूठा गुस्सा ही दिखाना पड़ता है।"
"आप भाभी से बहुत प्यार करते हैं ना?" गौरी ने निवाला खाते हुए अगला सवाल किया और मयंक की आँखों के आगे कृतिका का चेहरा आ गया, "Hmm. पता है जब हमारा रिश्ता जुड़ा था तब हम एक दूसरे को जानते तक नहीं थे, जब मैं उसे देखने गया था तो उसके चेहरे से भी कहीं ज्यादा मुझे उसका नेचर पसंद आया था। धीरे-धीरे जैसे-जैसे हमारी बातचीत हुई, हमें एक दूसरे को समझने का मौका मिला सब बदलता चला गया। अब हम दोनों को ही एक दूसरे से प्यार करते हैं और हमारी शादी अरेंज कम और लव ज्यादा लगती है, देखना तेरा और शिव का रिश्ता भी ऐसा ही होगा।"
गौरी ने बस मुस्कुराकर दी और शिव के बारे मे सोचते हुए मन में कहा, "पता नहीं वो कैसे होंगे, आई होप कि वो मुझे भी ऐसे ही प्यार करे जैसे आप भाभी से करते हैं।"
उसके बाद दोनों ने यहाँ-वहाँ की ढेरों बात की और साथ में खाना भी खाया।
वही दूसरी तरफ राठौर फैमिली वहाँ से निकली तब उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। राजवीर जी शिवांगी जी के साथ रास्ते से ही अपने घर के लिए निकल गए थे, सार्थक भी अपने पापा के साथ राजौरी गार्डन अपने घर की तरफ बढ़ गया। वो सब भी घर पहुँचे। अब उन्हें इंतज़ार था तो शिव के कॉल का।
वही कश्मीर के पूँछ जिले के आर्मी बेस कैंप से कुछ दूरी पर घने जंगलों के बीच कुछ पत्तों की सरसराहट और आवाज़ें सुनाई दे रही थीं, और उन्हीं पत्तों की आवाज़ का पीछा करते हुए हमारे कुछ जवान उस जंगल में तैनात थे जिनका लक्ष्य उन दहशतगर्दों की कब्र इसी जंगल में खोदना था।
उन्हें अपने इंटेलिजेंस से पुख्ता खबर मिली थी कि सीमा पार से कुछ आतंकी हमारे देश में घुस आए हैं और उनका लक्ष्य हमारे आर्मी बेस पर हमला करके हमारे जवानों को नुकसान पहुँचाना और हमारे नागरिकों के दिल में अपने लिए दहशत को जन्म देना था।
वो बस ये दिखाना चाहते थे कि वो कुछ भी कर सकते हैं और इंडिया की जनता उनके निशाने पर है। पर शायद वो ये बात भूल गए थे कि भारत माता के वीर जवान वो बब्बर शेर हैं जो उन जैसे गीदड़ों को उनकी कब्र तक पहुँचाने का दमखम रखते हैं।
चाहे वो कितनी ही कोशिशें कर लें, कितनी ही चालाकी से काम लें पर हमारे वीर जवान उनकी हर साजिश को अपने अंजाम तक पहुँचने से पहले ही उनके साथ उनके नापाक इरादों को दफन कर देते हैं, वो चाहे भी तो कभी भारत माता के खिलाफ कुछ कर ही नहीं सकते।
आज भी कुछ ऐसा ही होने वाला था, पिछले कुछ दिनों से जंगल में कुछ संदिग्ध लोगों के आने-जाने की खबरें ज़ोरों पर थीं तो हमारे राजपुताना रेजिमेंट के स्पेशल फोर्स की एक टीम उनकी हर हरकत पर नज़र रखे हुए थी और आज उन्हें उनको उनके अंजाम तक पहुँचाने का काम करना था क्योंकि पहले तो बस लोग ही आते थे पर अब वहाँ हथियारों और विस्फोटकों को भारी मात्रा में लाया गया था और वो बस अपने प्लान को अंजाम देने की तैयारी ही कर रहे थे।
आज रात को वो अपना काम करने वाले थे। इस बात से अंजान कि आज हमारे शेर उनके शिकार को निकल चुके थे और अब उनका बच निकलना नामुमकिन ही था।
सुबह से दोपहर तक हमारे जवान उनके पीछे लगे हुए थे, जंगल में करीब पाँच से छः ठिकानों पर उन्होंने अपना शिविर लगाया हुआ था, उनको हथियार कहाँ से मिल रहे हैं यही देखने के लिए उन्हें यहाँ तक पहुँचाने का खतरा उठाया गया था।
दोपहर के लगभग 3 बज रहे थे, सभी आतंकवादी आराम करने अपने-अपने शिविर में घुसे हुए थे और कुछ बाहर गश्त लगा रहे थे, उनके शिविरों को घेरे हुए हमारे वीर जवान घात लगाए बैठे थे। वो सभी वॉकी-टॉकी से एक-दूसरे से कॉन्टैक्ट में थे, रायफल को अपने टारगेट पर साधे अपने लीडर के एक्शन के कमांड का इंतज़ार कर रहे थे।
वहाँ के सन्नाटे में अचानक ही उनके कानों में एक दमदार आवाज़ पड़ी, "रेडी कमांडोज़?"
इसके साथ ही सबने पूरे होश से पर धीरे से कहा, "यस सर!"
एक बार फिर उनके वॉकी-टॉकी से आवाज़ आई, "टारगेट सेट...?"
एक बार फिर वही होश भरा जवाब दिया गया, "यस सर!"
अब उन्हें कमांड देने वाले ने अपना निशाना साधते हुए कहा, "एक बात याद रखना हमें इन बदबूदार खुजली वाले कुत्तों का शिकार करना है पर इसमें मेरे एक भी शेर को एक खरोंच तक नहीं आनी चाहिए। हमें इन हरामखोरों को दिखाना है कि इस धरती ने ऐसे शूरवीरों को जन्म दिया है जो कभी इनके नापाक इरादों को कामयाब नहीं होने देंगे और ये हमारी माँ को क्या उनके शेरों को घायल तक नहीं कर सकते फिर हमारी माता पर प्रहार करना तो इनकी औकात से बाहर है!"
एक बार फिर सबने "यस सर!" कहा तो अब एक बार फिर वही दमदार आवाज़ उनके कानों में पड़ी, "हर हर महादेव, जय माँ भवानी!"
इसके साथ ही बाकी सबने भी पूरी ऊर्जा के साथ युद्धघोष दोहराकर जंग की शुरुआत कर दी। एक साथ ही कई गोलियाँ अपने टारगेट का शिकार कर चुकी थीं, उन्होंने सधे कदमों से आगे की तरफ बढ़ना शुरु कर दिया, गोलियों की आवाज़ से उन शिविरों में आराम फ़रमा रहे कुत्तों ने एक-एक करके बाहर आना शुरु कर दिया, हमारे वीर जवान बड़ी ही बहादुरी से उनका सामना करते हुए उन्हें मौत के घाट उतारते हुए आगे बढ़ रहे थे।
भयंकर मुठभेड़ के बाद उन सभी आतंकियों को ढेर कर दिया गया था, उन सभी के शवों की कब्र वही बन गई थी। वहाँ जमा हथियार गोला बारूद विस्फोटक सब जब्त किये जा चुके थे।
अपना काम ख़त्म करके पूरी टीम बेस में पहुँच चुकी थी और फ़्रेश होकर वो सभी अब आराम करने की तैयारी में थे, न्यूज़ में उनके कारनामों की खबर चल रही थी, हर शख्स उनकी बहादुरी और जाबाज़ी की तारीफ़ कर रहा था।
इस वक़्त पूरा राठौर परिवार ये न्यूज़ देख रहा था, इस टीम को लीड स्पेशल फोर्स कमांडो मेजर शिवांश सिंह राठौर कर रहे थे, न्यूज़ में उसकी समझदारी और बहादुरी के चर्चे हो रहे थे। अनुराधा जी और समर जी के चेहरे पर खुशी साफ़ देखी जा रही थी, आए दिन उनके बेटे की बहादुरी की खबरें न्यूज़ में तहलका मचाती रहती थीं और उन्हें अपने बेटे पर गर्व महसूस होता है।
आज भी गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया था। चित्रा ने न्यूज़ में दिखाई जाने वाली इस ऑपरेशन की फ़ुटेज में जैसे ही शिव को देखा जिसने आर्मी यूनिफ़ॉर्म पहना हुआ था, सर पर आर्मी की कैप, मुँह पर काला कपड़ा बाँधा हुआ था, बस आँखें ही नज़र आ रही थीं और हाथों में रायफल लिए हुए वो बब्बर शेर की तरह अपना शिकार किए जा रहा था, उसे देखते ही चित्रा ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा, "वो रहे भाई सा, कितने ढाँसू लग रहे हैं! एकदम एंग्री यंग मैन टाइप!"
उसकी बात सुनकर समर जी ने मुस्कुराकर कहा, "हमारा बेटा दुश्मनों के लिए साक्षात् महादेव का रूद्र रूप है जिसने बिना दया के उन्हें मौत के घाट उतारने के लिए ये वर्दी पहनी है, हमारे देश के जवानों ने एक बार फिर देश-पार बैठे हमारे देश के दुश्मनों को ये संदेशा भेज दिया है कि जो हमारे देश पर बुरी नज़र डालेंगे हमारे देश के जवान हर उस शक्स का ख़ात्मा कर देंगे।"
"हमारे बेटे को फ़ोन कीजिए, हमें उनसे बात करनी है।"
अनुराधा जी ने अपने आँसुओं को साफ़ करते हुए कहा, उनकी बात सुनते ही चित्रा अपना लैपटॉप लेकर वहाँ आ गई, उसने वीडियो कॉल की रिक्वेस्ट भेज दी और इंतज़ार करने लगी।
शिव अपने बेस कैंप के रूम में बाथरूम में था। बाहर उसी का एक साथी और दोस्त, आदित्य रंधावा जो उसके साथ उसी रूम में रहता था, वही रूम में उसका इंतज़ार कर रहा था। अचानक ही शिव के वायरलेस पर एक मैसेज आया जिसे सुनते ही आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा, "ओये! यारा! तेरे लिए मैसेज आया है। जल्दी बाहर आ!"
उसके इतना कहते ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला और शिव ने बाथरूम से बाहर कदम रखा, अब उसका एक अलग ही रूप नज़र आ रहा था, करीने से तराशे गए तीखे नैन-नक्ष, बेहद आकर्षक चेहरा जिस पर हल्की सी बियर्ड्स थी जिससे वो और भी ज़्यादा हैंडसम लग रहा था, गोरा रंग, उस पर काली शर्ट और कार्गो पैंट, हल्के बड़े सिल्की बाल जो फ़िलहाल गीले थे और उसके माथे पर बिखरकर उसको और भी ज़्यादा एडोरेबल लुक दे रहा था।
वो बेहद चार्मिंग लग रहा था, जिसके चार्म से किसी भी लड़की का बच निकलना लगभग नामुमकिन ही था, ऊपर से उसकी मैक्युलर बॉडी उसको और भी ज़्यादा स्टनिंग बना रही थी, उसमें कोई कमी नहीं थी, भगवान ने बड़ी ही फ़ुरसत से इस हीरे को तराशा था और उनकी मेहनत काबिलेतारीफ़ थी।
शिव ने आगे आते हुए तौलिया आदित्य की तरफ़ फेंकते हुए कहा, "क्या मैसेज आया है? वो भी बता दे।"
आदित्य ने झट से तौलिया कैच किया और दूसरी तरफ़ फेंकते हुए चिढ़कर बोला, "यार! कितनी बार कहा है मैंने तुझे कि ये गीला तौलिया मेरे मुँह पर मत मारा कर, मैं कोई कुर्सी या हैंगर नहीं हूँ!"
उसकी बात सुनकर शिव ने बेफिक्री से मुस्कुरा दिया , "चल अब बता भी, क्या मैसेज आया है?"
आदित्य ने मुँह बनाकर उसके तरफ़ फ़ोन फेंकते हुए कहा, "ले! फ़ोन कर ले घर पर। वायरलेस पर मैसेज आया है। अर्जेंट वीडियो कॉल की, ज़रूर तेरी माँसा को अपने लाडेसर की फ़िक्र हो रही होगी!"
"ले! फ़ोन कर ले घर पर। वायरलेस पर मैसेज आया है। अर्जेंट वीडियो कॉल की, ज़रूर तेरी माँसा को अपने लाडेसर की फ़िक्र हो रही होगी!"
इतना कहकर वो हँस दिया। शिव ने अपना फ़ोन कैच किया और इत्तेफ़ाक़ से अभी वहाँ नेटवर्क आ रहे थे जबकि ऐसा बहुत कम ही होता था। जम्मू में आने के बाद जैसे ही वो अपने बेस कैंप की तरफ़ बढ़ते हैं अक्सर वहाँ नेटवर्क की समस्या रहती ही है।
यही वजह है कि वो ज़्यादा अपने परिवार वालों से बात नहीं कर पाते और वो यहाँ व्यस्त भी इतने रहते हैं कि उन्हें ये सब याद ही नहीं रहता इसलिए जब भी कोई इमरजेंसी हो या उनके परिवार वालों को उनसे बात करनी हो तो वो मैसेज छोड़ देते हैं और फिर वायरलेस ऑपरेटर के थ्रू ही जवान तक अपने परिवार से बात करने का मैसेज पहुँचाया जाता है तब कहीं जाकर वो दो घड़ी अपने परिवार से बात कर पाते हैं।
शिव ने नेटवर्क देखे तो जल्दी से वीडियो कॉल की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली, वो अपने बेड पर बैठ गया, कुछ ही देर में स्क्रीन पर चित्रा दिखने लगी तो शिव के चेहरे पर मुस्कान फैल गई, उसने मुस्कुराकर कहा, "हैलो चुहिया!"
उसकी बात सुनकर चित्रा का मुँह बन गया। उसने मुँह सड़ाते हुए कहा, "मैं चुहिया नहीं हूँ! और मुझे आपसे बात भी नहीं करनी है, वो तो माँ सा को आपसे बात करनी थी इसलिए मुझे आपको कॉल करना पड़ा।"
इतना कहकर उसने स्क्रीन अनुराधा जी और समर जी की तरफ़ मोड़ दिया तो शिव ने मुस्कुराकर दोनों को ख़ैर-ख़बर पूछी, तो समर जी ने मुस्कुराकर कहा, "कॉन्ग्रैचुलेशन बेटा, एक बार फिर आपने अपने दुश्मनों के नापाक इरादों को परास्त कर दिया।"
उनकी बात सुनकर शिव बस मुस्कुराकर रह गया। अब अनुराधा जी ने उसके चेहरे को देखते हुए कहा, "कैसे हो बेटा जी? कितने कमज़ोर लग रहे हो, कभी अपनी माँसा की याद नहीं आती आपको? छः महीने हो गए हमें अपने लाडेसर को देखे हुए।"
ये कहते हुए उनकी आँखें नम हो गईं तो , शिव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "माँ सा, आपको मैं कभी भूलता ही कहाँ हूँ और आप बेवजह चिंता कर रही हैं। मैं ठीक हूँ, आप माँ हैं ना? आप मेरी इतनी चिंता करती हैं इसलिए आपको हमेशा ऐसा ही लगता है कि आपका बेटा कमज़ोर हो गया है और मैंने लीव एप्लीकेशन दी हुई है, आप तो जानती हैं इस बार मैं राखी पर आना चाहता हूँ इसलिए मैंने छः महीने से कोई छुट्टी नहीं ली है, लीव एप्लीकेशन एक्सेप्ट होते ही मैं आपके पास आ जाऊँगा।"
उसने इतना कहा ही था कि चित्रा ने झट से एक्साइटेड होकर कहा, "हाँ भैया! आप ना जल्दी से आ जाइए हमारे पास। आपके लिए एक सरप्राइज़ है!"
ये कहते हुए वो भी स्क्रीन के सामने आ गई, शिव ने अपनी आँखें चढ़ाते हुए पैनी निगाहो से उसे घूरा , "अभी-अभी किसी ने कहा था कि उसे मुझसे बात नहीं करनी?"
एक बार फिर चित्रा का मुँह बन गया, उसके अतरंगी मुँह देखकर शिव की हँसी छूट गयी ,जिससे वो और ज्यादा चिढ़ गयी।
"अच्छा अब मुँह सड़ाना बंद कर। वैसे ही चुहिया जैसी लगती है अब तो बंदरिया लग रही है!"
"भाई सा!" चित्रा ने गुस्से से नथुने फुलाए। शिव ने सौम्य सी मुस्कान के साथ कहा, "अच्छा अब गुस्सा छोड़ और बता क्या सरप्राइज़ है?"
चित्रा ने उसको देखकर मुँह बना लिया और तुनकते हुए बोली, "अब नहीं बताऊँगी मैं, मैं तो चुहिया हूँ ना! जाइए किसी इंसान से पूछ लीजिए!"
"अच्छा बाबा! सॉरी! अब बता भी दे।" शिव ने अपने कान पकड़े तब कहीं जाकर चित्रा का गुस्सा ठंडा हुआ, उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई और उसने रहस्यमयी अंदाज़ मे कहा, "आज हम भाभी के घर गए थे!"
"कौन सी भाभी के घर पहुँच गई तू?"
शिव के सवाल मे कन्फ्यूज़ साफ झलक रही थी, वही उसका सवाल चित्रा ने गुस्से से कहा, "भाई सा! हमारे कितने भैया हैं!"
"वैसे तो मैं अकेला हूँ ,पर और भी भाई हैं हमारे जो तेरे भैया ही लगेंगे।"
शिव का जवाब सुनकर चित्रा चिढ़ गयी और झल्लाते हुए बोली, "हम अपने सगे भाई की बात कर रहे हैं, आज हम भाभी सा के घर गए थे और उन्हें पसंद करके आपका रिश्ता पक्का करके आए हैं, बस आप जल्दी से यहाँ आ जाइए फिर हम आपकी सगाई भी करवा देंगे।"
आखिरी बात कहते हुए उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी, वही उसकी बात को समझते ही शिव का चेहरा फ़क़्क़ सफ़ेद पड़ गया था, जैसे ही चित्रा चुप हुई शिव ने घबराकर कहा, "क्या कहा तूने?"
उसका सवाल सुनकर अनुराधा जी ने मुस्कुराकर कहा, "हमने आपको कितनी बार लड़की देखने के लिए कहा पर आप हर बार बहाना बनाकर वापिस चले जाते थे, इस बार हमें इतनी अच्छी लड़की मिली कि हमसे इंतज़ार नहीं हुआ, अगर आपके भरोसे रहते तो ये रिश्ता भी हमारे हाथ से निकल जाता इसलिए हमने आपसे बिना पूछे ही लड़की को देखने का प्रोग्राम रख लिया।
हमें लड़की पहले से ही पसंद थी इसलिए हम आज ही आपका रिश्ता पक्का कर आए हैं, बस आप जल्दी से आ जाइए फिर हम आपकी सगाई करवा देंगे। और एक बात याद रखिए अगर आप इस महीने भी नहीं आए तो आप जब भी आएंगे हम आपसे बात ही नहीं करेंगे।"
शिव को सदमा सा लग गया था। उसे कुछ समझ ही नहीं आया। बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से बस इतना ही निकला, "माँसा! आपने हमसे पूछा भी नहीं..."
"माँसा! आपने हमसे पूछा भी नहीं..."
उसकी उदासी उसकी आवाज़ में झलक रही थी। अनुराधा जी ने मीठे स्वर में कहा, "शिव! हम आपकी माँसा हैं, आपको तो अपनी परवाह ही नहीं है, पर हम तो आपको नहीं भूल सकते, हमारा भी सपना है कि हमारे सभी बच्चे अपनी-अपनी ज़िंदगी में खुश रहें पर आप तो अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही नहीं चाहते हैं।
बेटा! आप सारी उम्र अकेले तो नहीं रह सकते, लड़की बहुत अच्छी है, हम सबने मिलकर अच्छे से जाँचने और परखने के बाद उन्हें हमारे घर की बहु बनाने का फैसला किया है और हमें विश्वास है कि हमारे बेटे हमारी इच्छा का मान रखेंगे।
लड़की बहुत अच्छी है, कृतिका की नन्द है, हमें वो उनकी सगाई से ही आपके लिए पसंद थी, जब सचदेव भाई सा ने हमें उनके लिए रिश्ता देखने की बात बताई तो हमसे इंतज़ार नहीं हुआ और हमने उन्हें देखने जाने का प्लान बना लिया। आप आइए तो सही, जब आप उन्हें देखेंगे तो आपको भी वो बहुत पसंद आएंगी, आपको अपनी माँसा पर विश्वास है ना शिव? हम कभी आपके लिए कोई गलत फैसला नहीं लेंगे।"
बेचारे शिव का चेहरा एकदम उतर गया था पर अपनी माँसा की आखिरी की बात सुनकर उसको अपने दिल की उदासी को अपनी मुस्कान के पीछे छिपाना ही पड़ा, ना चाहते हुए भी उसको मुस्कुराना ही पड़ा,
"हमें आप पर पूरा विश्वास है, हमारी माँसा का फैसला हमारे लिए कभी गलत हो ही नहीं सकता, जैसे ही हमारी लीव एप्लीकेशन एक्सेप्ट हो जाती है हम आपके पास आ जाएँगे, तब तक आप अपना और बाबा सा का ख़्याल रखिएगा और हमें याद करके रोइएगा नहीं। हमें हमारी माँ सा के चेहरे पर मुस्कान ही अच्छी लगती है, अब हम फ़ोन रखते हैं। बाद में बात करेंगे आपसे।"
उसने एक बार फिर दोनों को ख़ैर-ख़बर पूछी और फ़ोन रख दिया। उनकी बात को याद करके उसको अपने अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ, वो फ़ोन रखने जा ही रहा था कि एक बार फिर उसका फ़ोन बजने लगा, इस बार नाम झल्ली शो हो रहा था, उसने एक गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद करते हुए बोला, "हैलो।"
"ओये! मेरे शेर पुत्तर! की हाल है तेरे?" दूसरी तरफ़ से एक खनकती आवाज़ आई, शिव ने गंभीरता से कहा, "बोल! कैसे फ़ोन किया आज तूने मुझे?"
दूसरी तरफ़ कृतिका थी, दोनों का रिश्ता दोस्त जैसा ही था, उसके आवाज़ में झलकती उदासी वो झट से समझ गई और वो हल्का परेशान होते हुए बोली, "ओये! तुझे क्या हुआ? मुझे तो लगा था कि आज की कामयाबी के बाद तू बहुत खुश होगा पर तू तो परेशान लग रहा है।"
शिव ने अपनी परेशानी और उदासी को मुस्कान के पीछे छुपा लिया और हल्के मज़ाकिया अंदाज़ मे कहा, "ओये झल्ली! इतना दिमाग मत चला और बता क्या हुआ, तूने मुझे फ़ोन कैसे किया?"
"मुझे पूछना था तू कब आ रहा है? मेरे पास तेरे लिए एक सरप्राइज़ है।"
उसकी बात शिव ने बेबसी से अपनी आँखें बंद कर ली, जानता था वो इस सरप्राइज को जो उसके लिए किसी शॉक से कम नही था।
"लीव एप्लीकेशन एक्सेप्ट होते ही आ जाऊँगा और शायद तेरा सरप्राइज़ मुझे पता है।"
उसकी बात सुनकर कृतिका की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं, उसने हैरानी से कहा, "तुझे पता है आज तेरा रिश्ता पक्का हो गया है?"
"Hmm तेरी नंद है वो जिसको मेरे लिए पसंद किया गया है और इस बार मेरे आने पर सगाई करवाने की तैयारी चल रही है।"
शिव ने बिना किसी भाव के ही जवाब दिया, जिसे सुनकर कृतिका का मुँह छोटा सा हो गया। उसने मुँह फुलाकर कहा, "तेरी बुआ सा से बात हुई है ना?"
"Hmm, चल अब तुझसे बाद में बात करता हूँ।" इतना कहकर शिव ने बिना उसका जवाब सुने ही फ़ोन काट दिया । अभी उसका इस बारे मे बात करने का बिल्कुल भी मूड नही था।
कृतिका ने फ़ोन को हैरानी से देखते हुए कहा, "बिना बाय बोले ही काट दिया, इसे क्या हुआ जो इतना उदास साउंड कर रहा था।"
कृतिका ने ये सोचते हुए दोबारा फ़ोन लगा दिया पर उसका फ़ोन लगा ही नहीं।
वही शिव की कृतिका से की बात सुनकर आदित्य की आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं, शिव ने फ़ोन काटा और शांति से आँखें बंद किए बैठ गया, आदित्य तो जैसे इंतज़ार मे ही बैठा था वो छलकर उसके पास पहुँच गया और हैरानी से बोला, "ओये! ये क्या सुना मैंने? तेरी सगाई हो रही है?"
शिव ने उसकी बात सुनकर अपनी आँखें खोलकर उसे देखा, फिर वहाँ से खड़े होते हुए बोला, "Hmm माँसा ने किसी लड़की को देखा है मेरे लिए और क्योंकि मैं हर बार लड़की को देखने से पहले ही बहाना बनाकर वहाँ से निकल जाता था इसलिए उन्होंने मुझसे बिना पूछे ही रिश्ता पक्का कर दिया है और अब उन्हें मेरे आने का इंतज़ार है ताकि वो मेरी सगाई करवा सकें।"
शिव ने बिना किसी भाव से अपनी बात कही और बाहर जाने के लिए कदम बढ़ा दिये, उसकी बात सुनकर आदित्य शॉक्ड सा रह गया, जैसे ही शिव गेट पर पहुँचा आदित्य उसके पीछे भागते हुए बोला, "ओये! पर उस झुमके वाली क..."
वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही शिव ने उसकी बात काटकर कहा, "ये सब छोड़! चल! चाय पीते हैं।"
इतना कहकर वो बाहर निकल गया तो आदित्य भी उसके पीछे भाग गया और उसके पास पहुँचते ही वो कुछ कहने को हुआ पर शिव ने उसे कुछ कहने ही नहीं दिया और चाय लेकर बाहर पड़े बड़े से पत्थर पर बैठ गया और चाय की चुस्की भरने लगा।
आदित्य भी अपनी चाय लेकर वही पहुँच गया और उसके बगल के पत्थर पर बैठते हुए बोला, "ओये यार! मुझे तो लगा था कि तू उस झुमके वाली को पसंद करता है फिर अब ये लड़की और सगाई, ये चक्कर क्या चल रहा है?"
शिव ने उसकी बात सुनकर एक नज़र उसको देखा फिर ज़मीन में नज़रें गाड़कर बोला, "वो झुमके वाली कभी मेरे दिल में नहीं थी, मैं तो उसे जानता ही नहीं हूँ। हाँ मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था पर मैं माँ सा को मना भी नहीं कर सकता, अब जो रिश्ता जुड़ गया है उसे निभाना तो होगा ही।"
उसके आवाज़ में झलक रहे दर्द और उदासी को भाँपते हुए आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया, "देख! ये नाटक तू किसी और के सामने करियो, जानता है ना हम हमेशा साथ रहते हैं। जितना अपने परिवार के साथ नहीं रहते उतना एक-दूसरे के साथ रहते हैं, तू उस झुमके वाली को पसंद करता था और भले ही तू उसके बारे में कुछ ना जानता हो पर उसने तेरे दिल पर अपनी छाप छोड़ दी है और अब तू अपनी माँ सा की खुशी के लिए अपने प्यार को कुर्बान करने जा रहा है।
देख शिव, माँ सा तुझे बहुत प्यार करती है, तेरी खुशी में ही उनकी खुशी है। तूने अगर उन्हे कहा कि तुझे किसी और से प्यार है और उससे शादी करना चाहता है तो वो कभी मना नही करेंगी। इसलिए मेरी बात मान तो इस बार जब तू जाए तो एक बार उस लड़की को ढूँढने की कोशिश ज़रूर करियो।
एक मौका दियो अपने दिल को।
अगर तूने एक कोशिश भी नहीं की और इस रिश्ते में बंध गया तो तू कभी ना खुद खुश रह पाएगा और ना ही वो लड़की कभी खुश रह पाएगी जिससे तू अपनी माँ सा की खुशी के लिए शादी करने को तैयार हो गया है। जब तुम दोनों में से कोई खुश रहेगा ही नहीं तो तेरी फैमिली कैसे खुश रह पाएगी?
इसलिए मेरी मान तो एक बार उस लड़की को ढूँढने की कोशिश कर, अगर महादेव ने चाहा तो तुझे वो मिल जाएगी और तेरी खुशी के लिए माँ सा भी मान जाएंगी। पर अगर तूने एक कोशिश भी नहीं की तो तू कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाएगा और तेरे साथ-साथ बाकी सबको भी दुख मिलेगा।"
आदित्य एक सच्चे दोस्त जैसे उसे समझा रहा था और काफी सीरियस था,उसे फिक्र थी शिव की जिसे वो भी फील कर रहा था।
शिव ने उसकी तरफ़ देखा और हल्की मुस्कान के साथ बोला, "समझ गया महात्मा जी! आपने अनमोल ज्ञान के लिए ये तुच्छ प्राणी आपका तहे दिल से आभार प्रकट करता है।"
इतना कहकर वो हँस दिया तो आदित्य ने मुँह बना लिया, "भाड़ में जा! मुझे तुझे कुछ कहना ही नहीं है।"
आदित्य गुस्से में वापिस अपने रूम में जाकर घुस गया, शिव ने अपनी चाय ख़त्म की और अंदर चला गया। उसको देखते ही आदित्य गुस्से में मुँह फुलाए बाहर निकलने लगा, शिव उसके सामने खड़ा हो गया और उसको घूरते हुए कड़क आवाज़ में बोला, "ये लड़कियों की तरह मुँह बनाना बंद कर, तूने जो कहा मैं समझ गया और इस बार तेरे कहने पर मैं उसे ढूँढने की कोशिश ज़रूर करूँगा, चल अब अपना गुस्सा छोड़ और गले लग जा यारा!"
ये कहते हुए उसने अपनी बाहों को फैला दिया और मुस्कुराकर उसको देखने लगा तो वो भागकर उसके गले से लगकर मुस्कुराकर बोला, "मैं चाहंदा हां कि तैनू तेरा सच्चा प्यार मिल जाए।"
उसकी बात सुनकर शिव बस मुस्कुराकर रह गया। पर अब उसके दिल में एक तूफ़ान उठ गया था जो कब और कैसे शांत होगा ये तो महादेव ही जाने पर फ़िलहाल के लिए उसने अपनी फ़ीलिंग को दबा लिया था।आखिर यहाँ पर वो एक लड़का या कोई आम आदमी नहीं था वो देश का एक सिपाही था जिसके लिए सबसे पहले उसका देश और उसकी धरती माँ आती है। उसके फ़ीलिंग या फिर परिवार का यहाँ कोई काम ही नहीं था।
एक और जगह थी जहाँ पर लोग उसकी न्यूज़ सुनकर उसकी तारीफ कर रहे थे। जी हाँ, आप बिल्कुल सही समझे हैं। इस वक्त सिंघानिया हाउस में भी मयंक, ज्योति जी और कैलाश जी के साथ टीवी के सामने ही बैठा था और तीनों के चेहरे पर मुस्कान थी।
सुबह से तो सब अपने-अपने काम में बिजी थे। तो अक्सर कैलाश जी रात को डिनर से पहले न्यूज़ सुना करते थे जिसमें मयंक भी शामिल हो जाता था क्योंकि तब वो भी फ्री होता था और आज की न्यूज़ तो अगले दिन पेपर में पढ़ने को मिलती थी।
आज जब कैलाश जी ने न्यूज़ लगाया तो न्यूज़ में शिवांश सिंह राठौर की जाबाज़ी, सूझबूझ और देश के प्रति उनकी निष्ठा के चर्चे चल रहे थे। आज की उनकी और उनकी टीम की कामयाबी पर बातें की जा रही थी और साथ ही वीडियो भी चल रहा था।
शिव का नाम देखते ही कैलाश जी ने ज्योति जी को आवाज़ लगाते हुए जैसे ही कहा कि 'देखिए हमारे दामाद ने आज कितनी बड़ी कामयाबी हासिल की है।' वो तुरंत ही वहाँ आ गई थी और अब तीनों न्यूज़ सुन रहे थे।
गौरी तो अपने रूम में थी और कल के क्लास का शिड्यूल देख रही थी और साथ ही क्लास में पढ़ाए जाने वाले टॉपिक को रिवाइज कर रही थी। हर अच्छे टीचर की ये खासियत होती है, बच्चे भले ही अगली क्लास में पढ़ाए जाने वाले टॉपिक को न पढ़ें पर टीचर उसे पढ़कर आते हैं ताकि गलती से भी कोई पॉइंट स्किप न हो जाए।
गौरी ने अपना काम खत्म किया तब 7:30 हो रहे थे तो वो भी नीचे ही चली गई। अक्सर वो अपना काम जल्दी खत्म करके ज्योति जी की मदद करने जाती थी पर आज वो थोड़ा लेट हो गई थी।
वो नीचे आई तो हॉल में तीनों को इकट्ठा देख वो भी वही आ गई और उन्हें इतने गौर से न्यूज़ देखता देख कुछ चिढ़ सी गयी।
"ऐसा क्या देख रहे हैं आप सब? की सबके सब बस टीवी में घुसने को हो रखे हैं?"
ये कहते हुए वो वहाँ पहुँच गई तो मयंक ने उसको मुस्कुराकर देखा, फिर उसे अपने पास बिठाते हुए बोला, "तू खुद ही देख ले।"
उसकी बात गौरी ने टीवी की तरफ नज़रें घुमाते हुए कहा, "चलिए मैं भी देख ही लेती हूँ कि..."
ये कहते हुए वो अचानक चुप हो गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके टीवी की स्क्रीन को देखने लगी। उस पर शिव की आर्मी यूनिफॉर्म वाली फ़ोटो दिखाई जा रही थी जिसमें वो काफी अट्रैक्टिव लग रहा था।
गौरी तो उसको देखती ही रह गई थी तो मयंक ने उसके कान के पास जाकर धीरे से कहा, "क्या हुआ? अब नहीं बोलेगी कि हम जाने क्या बकवास देख रहे हैं? हमारे न्यूज़ देखने पर तो तू हमेशा चिढ़ जाती थी, फिर आज खुद देखने में कैसे खो गई?"
मयंक शरारती मुस्कान के साथ उसे देखने लगा। गौरी उसकी आवाज़ सुनकर चौंकते हुए होश मे लौटी और हड़बड़ाते हुए तुरंत स्क्रीन पर से अपनी नज़र हटा ली, "मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है आपकी न्यूज़ में। एक ही न्यूज़ बार-बार दिखाते रहते हैं और बाल की खाल निकालने के अलावा कुछ उन्हें आता ही कहाँ है इन्हें।(इसे ज़्यादा सीरियस न ले।)"
गौरी वहाँ से उठकर मुह बनाती हुई किचन में चली गई। स्लैब से टिककर उसने अपनी आँखें बंद की तो उसकी आँखों के सामने शिव की वही वर्दी वाली फ़ोटो आ गई। गौरी ने झटके से अपनी आँखें खोल ली , एक सांस मे पानी का पूरा ग्लास खाली कर दिया और उलझी हुई सी खुदमे बड़बड़ाने लगी।
"क्या है इस लड़के में, कोई जादू है क्या? जो जब से इसका नाम सुना है इसके अलावा कुछ न दिख रहा है ,न ही सुनाई दे रहा है। हे महादेव मुझे इस लड़के से दूर रखिए, कहीं इसके चक्कर में मैं पागल न हो जाऊँ।
पता नहीं कौन सा वशीकरण जानता है ये ,जो ना चाहते हुए भी उसका ख्याल दिल से जा ही नही रहा। मैं ही पागल थी जो इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी। मुझे तो शादी करनी ही नहीं थी। पता नहीं कैसे तब मेरे मुँह से हाँ निकल गया। नहीं ऐसे नहीं निकला, सब एक ही सवाल पूछ रहे थे, इतना प्रैशर था मुझपर तभी हड़बड़ी में निकल गया होगा।
पर अब क्या होगा? हे महादेव मैं आपको एक... नहीं, एक बहुत कम हो गया न ,चलिए दो... नहीं नहीं, अगर आप दो में भी नहीं माने तो?.... चलिए दस में डील डन करते हैं। आप कैसे भी करके इस रिश्ते को होने से रोक लीजिए Please,
अगर आपने ऐसा किया तो मैं आपको पूरे दस नारियल चढ़ाऊँगी। बस मुझे इस शादी से बचा लीजिए। शक्ल से तो काफ़ी खड़ूस लगता है। काश कि ये खुद ही इस रिश्ते से इंकार कर दे। पर भाभी ने कहा था कि ये कभी अपने मम्मी-पापा की बात नहीं टालता है।... चलिए जो भी हो आप कैसे भी करके बस इस रिश्ते को तोड़ दीजिए। मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी।"
गौरी खुदमे ही उलझी हुई सी अपने ख्यालों मे खोई थी जब अचानक ही उसके कानों में ज्योति जी की आवाज़ चली गई, "लाडो अंदर क्या कर रही हो? खाना लग गया है, आकर खाना खा लो।"
गौरी ने खुद को नॉर्मल किया और बाहर चली गई। खाने के वक्त भी सब शिव की ही चर्चा कर रहे थे, गौरी ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और वहाँ से उठकर भाग गई। पहले तो तीनों उसको हैरानी से देखने लगे, फिर तीनों ने एक-दूसरे को देखा और उनके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल फैल गई। उन्हें लगा वो शर्माकर चली गई है तो तीनों खुशी-खुशी बातें करते हुए खाना खाने लगे।
वही गौरी यहाँ से गुस्से में उठकर अपने रूम में पहुँची और जाकर बेड पर लेट कर उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की उसके सामने फिर से शिव का चेहरा आ गया। उसने झट से अपनी आँखें खोल ली और उठकर बैठते हुए बोली,
"क्या मुसीबत है यार? ये लड़का तो जैसे चिपकू गम लगाकर मेरे ख्यालों से चिपक गया है। नहीं गौरी, तू उसके बारे में ज़्यादा सोच रही है और घर में भी सब उसी की बात कर रहे हैं। सुबह से बस इसी के गुणगान सुन रही है न, इसलिए तेरे दिमाग में बस वही चल रहा है। तुझे अपना माइंड डाइवर्ट करना होगा। चल गाना चला और थोड़ा डांस कर ले, उसके बाद तुझे अच्छा लगेगा और इस चिपकू मानुष से भी तेरा पीछा छूट जाएगा।"
"क्या मुसीबत है यार? ये लड़का तो जैसे चिपकू गम लगाकर मेरे ख्यालों से चिपक गया है। नहीं गौरी, तू उसके बारे में ज़्यादा सोच रही है और घर में भी सब उसी की बात कर रहे हैं। सुबह से बस इसी के गुणगान सुन रही है न, इसलिए तेरे दिमाग में बस वही चल रहा है। तुझे अपना माइंड डाइवर्ट करना होगा। चल गाना चला और थोड़ा डांस कर ले, उसके बाद तुझे अच्छा लगेगा और इस चिपकू मानुष से भी तेरा पीछा छूट जाएगा।"
उसने ये कहते हुए अपने फ़ोन में गाना लगाया और गाना सुनते ही वो सब भूल गई। उसने पेपर को फ़ोल्ड करके माइक बनाया और गाते हुए अपने पैर थिरकाने लगी, साथ ही अपनी पतली कमर को मटकाते हुए नागिन की तरह बलखाते हुए डांस करने लगी।
कुछ देर गाना और डांस करने के बाद उसका मूड कुछ ठीक हुआ तो उसने FM चलाया और बेड पर लेट गई और जल्दी ही सो गई।
वही दूसरी तरफ शिव आधी रात तक अपने कमरे के बाहर पत्थर पर बैठे कुछ सोचता रहा। बाहर काफ़ी ठंड थी पर उसे किसी चीज़ का एहसास ही नहीं हो रहा था। आधी रात के बाद जब थकावट के वजह से उसकी आँखों ने और देर तक खुलने से इंकार कर दिया तो वो जाकर आदित्य के बगल में लेट गया और जल्दी ही उसे नींद आ गई।
अगली सुबह जब सूरज आसमान में अपनी रोशनी बिखेर रहा था तब गौरी को आँखें बंद किए हुए ही कुछ दिखने लगा।
एक कमरा जहाँ काफ़ी लड़के-लड़कियाँ थे, सबको नीचे बैठाया हुआ था, सबके चेहरे पर डर पसरा हुआ था। वहाँ कुछ नकाबपोश भी मौजूद थे जिनके हाथों में AK-47 थीं। वो उनका चेहरा काले कपड़े से ढका हुआ था, बस डरावनी आँखें ही नज़र आ रही थीं।
उनमें सबसे आगे गौरी बैठी हुई थी, सिंपल सा ब्लू प्रिंटेड कुर्ता और उसके नीचे गोल्डन लेगी, उसके साथ ही गोल्डन चुनरी थी जिसे एक तरफ से कंधे पर डाला हुआ था। बालों को गुथ कर एक चोटी में बाँधा हुआ था जो एक तरफ से उसके कंधे पर आ रही थी।
ना काजल ना ही कुछ और, एकदम सिंपल थी वो, फिर भी उसके चेहरे की सुंदरता सबको अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। वो भी डरी-सहमी हुई सी बैठी हुई थी, चेहरा पसीने से तर था। उसने जैसे ही देखा कि वो आदमी इकट्ठे होकर कुछ बात करने में बिजी हो गए हैं, उसने हिम्मत दिखाई और वहाँ से खिसकते हुए विंडो के बाहर झाँक कर देखा पर बाहर भी अंदर जैसे ही नकाबपोश आदमी यहाँ से वहाँ गश्त लगा रहे थे।
गौरी ये देख ही रही थी कि उसके कानों में एक गुस्से भरी आवाज़ पड़ी, "ए छोकरी, वहाँ क्या कर रही है तू? यहाँ से भागने की कोशिश कर रही है न? रुक, अभी बताते हैं। बड़ी होशियार बन रही है। सबसे पहले तुझे ही मारते हैं, इससे हमारा काम और भी आसान हो जाएगा और सरकार हमारी बात मानने पर मजबूर हो जाएगी।"
ये कहते हुए उसने अपने पास खड़े आदमी को देखकर कहा, "ए हाशिर, जा पकड़ ला उस लड़की को।"
उसके इतना कहते ही वो आदमी गौरी की तरफ बढ़ गया। गौरी की तो साँसें ही अटक गई थीं। डर के मारे उसका बुरा हाल था, मुँह खुलने को इंकार कर रहा था। पर जब उसने उस आदमी को अपने पास आते देखा तो उसने पीछे खिसकते हुए कहा, "न...नहीं...मैं भा...भागने की कोशिश नहीं कर रही थी। वो...वो मुझे माइनर अस्थमा है तो मेरा दम घुट रहा था...इसलिए बस फ्रेश एयर मतलब ताज़ी हवा ले रही थी।"
उसकी बात सुनकर उस आदमी ने गुस्से से उसको घूरते हुए कहा, "बहुत समझदार समझती है खुद को। हम बेवकूफ़ नहीं हैं, सब पता है। फ्रेश एयर चाहिए थी न? अभी तुझे मार देते हैं, उसके बाद लेती रहियो फ्रेश एयर।"
गौरी पीछे होते हुए दीवार से टकरा गई। वो छोड़ने के लिए रिक्वेस्ट करने लगी पर उस आदमी ने उसकी बाँह पकड़ी और खींचते हुए पहले वाले आदमी के पास ले गया। उस आदमी ने गौरी के सर पर गन पॉइंट करते हुए कहा, "हम तुझे इस रोज़ की परेशानी से छुटकारा ही दिला देते हैं। जब जान रहेगी ही नहीं तो दम किसका घुटेगा? वैसे भी तुम्हारी सरकार हमें तब तक सीरियसली नहीं लेती है जब तक हम तुम जैसे दो-चार हिंदुस्तानियों को मार कर तुम्हारी लाश उन्हें गिफ़्ट न कर दें।"
उसने ये कहते हुए ट्रिगर पर अपनी उंगली रखी और गोली चलने की आवाज़ के साथ सब स्टूडेंट्स की चीख निकल गई, "मै...म...म..."
गौरी की साँसें ही रुक गई थीं, आँखें भींची हुई थीं। वही बाकी सब भी बेहद डर गए थे। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली थीं। तभी उनके कानों में फायरिंग की आवाज़ पड़ गई। गौरी को जैसे ही एहसास हुआ कि किसी ने उसको पकड़कर खींचा है उसने तुरंत झटके से अपनी आँखें खोल लीं और इसके साथ ही वो चीख उठी, "बचा..."
उसके चीखने के साथ ही एक गोली चली और डर के मारे गौरी इस वक्त जिसके सीने से लगी हुई थी उसने उसके जैकेट में अपना मुँह छुपा लिया। वो इंसान झटके से गौरी को लिए हुए ही पीछे की तरफ झुक गया और झट से वापस सीधा खड़े होकर उसके पीछे खड़े आदमी को बिना देखे ही उसके भेजे के बीचों-बीच एक के बाद एक तीन गोलियाँ दाग दीं और नफ़रत से बोला, "You bastards! तुम्हारी जात की कुत्तों जैसी है, तुम्हें बस पीठ पीछे भौंकना आता है पर तुम ये भूल जाते हो कि इंडियन आर्मी बब्बर शेरों की फ़ौज है जिसका एक-एक सिपाही तुम जैसे खुजली वाले कुत्तों को तुम्हारे अंजाम तक पहुँचाने के लिए ही जी रहा है।"
उसने राउंड घूमते हुए एक-एक करके सभी नकाबपोश आदमियों को शूट कर दिया और अब उसको कवर करते हुए सेना के और भी जवान अंदर आए तो उस लड़के ने उन्हें देखते हुए कहा, "सबको सेफ़ली बाहर तक लेकर जाओ। किसी एक को भी एक खरोंच तक नहीं आनी चाहिए और अगर फिर से कोई कुत्ता तुम्हारे सामने आ जाए तो मार देना सालों को।"
उसकी कमांड सुनते ही उन सैनिकों ने सबको धीरे-धीरे बाहर निकाला। उनके आगे और उन्हें कवर करते हुए सैनिक उनके साथ ही जा रहे थे और रास्ते में जो भी उनके आगे आता वो उसे हमेशा के लिए दुनिया से ही हटा देते।
लगभग सभी निकल गए थे। इस बीच न ही उस लड़के का ध्यान गया कि गौरी अब भी उसके सीने में अपना सर छुपाए हुए खड़ी थी और उसने डर के मारे उसके जैकेट को कसके पकड़ा हुआ था।
गौरी तो गोलियों की आवाज़ से ही इतना डर गई थी कि ना उसे इस बात का होश था कि वो कहाँ और किस अवस्था में है और न ही उसे उस लड़के की कोई बात ही सुनाई दी थी।
जब सभी निकल गए, बस एकाध बच्चे और गौरी ही बच गई थी तो वहाँ से सबको बाहर निकालने वाले ऑफ़िसर ने उस लड़के को देखते हुए कहा, "सर इन मैडम को आप खुद लेकर चलेंगे?"
उसकी बात सुनकर अब जाकर उस लड़के ने उस लड़की की तरफ़ देखा जो उससे ऐसे चिपकी हुई थी जैसे वो एक शरीर और दो आत्मा हों। लड़के ने सामने खड़े जवान को देखा और फिर गौरी को देखकर बोला, "मिस अब आपको डरने की ज़रूरत नहीं है, आप अब सेफ़ हैं।"
उसकी बात सुनकर गौरी ने उसके सीने से हल्का सा अपना सिर बाहर निकाला और ऊपर देखते ही उसकी डरी-सहमी भूरी आँखें एक जोड़ी काली आँखों से टकरा गईं जो उसे ही देख रही थीं।
गौरी की बस आँखें ही उस लड़के को दिखीं पर गौरी ने उस लड़के का पूरा चेहरा देख लिया था और जैसे ही वो हैंडसम सा चेहरा उसकी नज़रों के सामने आया गौरी चीखते हुए कर उठकर बैठ गई।
गौरी सोते हुए अजीब सा सपना देख रही थी। सपने में जैसे ही उसने उस लड़के का चेहरा देखा, उसकी नींद खुल गई और वो उठकर बैठ गई।
पसीने से पूरी भीगी हुई थी वो, डर के मारे उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। उसने अपना पसीना अपनी चुनरी से पोंछते हुए कहा, "ये अचानक इतने सालों बाद ये सपना कैसे आ गया? बच गई वरना आज तो मेरी जान ही निकल गई होती।"
इतना कहते ही उसे शिव का चेहरा याद आया जिसे अभी ही उसने सपने में देखा था। ये याद आते ही गौरी की आँखें गुस्से से छोटी हो गईं।
"ये सब उन मिस्टर राठौर की वजह से हो रहा है। कल से सबने मुझे उनके नाम की माला जप-जपकर पागल किया हुआ है, तभी मुझे सपने में भी वही दिखे।
मिस्टर राठौर, तुम्हारी तो खैर नहीं। बड़े ही गंदे इंसान हो तुम। अगर उस दिन मुझे बचाना ही था तो बताकर करते जो करना था, ऐसे अचानक गोली चलाकर आप मुझे बचा रहे थे या मार रहे थे? तब तो मुझे ऑलमोस्ट हार्ट अटैक आते-आते बचा था, वो भी तुम्हारी वजह से।
तुम तो बंदूक और गोली से ऐसे खेल रहे थे जैसे बचपन में खिलौनों की जगह इन्हीं सबसे खेले थे, पर मैं तो तुम्हारी वजह से डर गई थी, जान निकलते-निकलते बची थी। रुको, अब जब मैं तुमसे मिलूँगी तो मैं इन सब का बदला लूँगी।"
अब उसने घड़ी देखी तो छह बज गए थे, तो उसने बेड से उठते हुए कहा, "चल गौरी, तैयार हो जा। अब उठ ही गई है तो पहले माँ की मदद कर देती हूँ, उसके बाद तैयार हो जाऊँगी।"
वो वॉशरूम में गई, फिर वो बाहर आकर अपने बालों को जुड़े में बाँधते हुए रूम से बाहर निकल गई। नीचे किचन में पहुँची तो किचन खाली देखकर उसने गैस पर बर्तन चढ़ाया और चाय बनाने लगी। वो चाय में अदरक डाल ही रही थी कि तभी उसके कानों में ज्योति जी की आवाज़ गई, "लाडो, आप यहाँ क्या कर रही हैं?"
उनकी आवाज़ सुनकर गौरी ने पीछे देखा तो ज्योति जी उसके पास आ चुकी थीं।
गौरी ने उन्हें देखकर मुस्कुरा दिया, "माँ, मैं आज जल्दी उठ गई थी तो मैंने सोचा आपकी मदद कर दूँ, पर आप यहाँ नहीं थीं तो मैंने सोचा कि मैं चाय ही बना दूँ।"
"आपको ये सब करने की ज़रूरत नहीं है, इसके लिए हम हैं ना? और जब आप अपने ससुराल जाएँगी तब तो सब आपको ही करना है, तो यहाँ तो आज हमारी लाडो की तरह रहिए। फिर आपको कॉलेज भी तो जाना है, अगर अभी काम करोगी तो थक जाओगी, फिर वहाँ अपने काम पर फ़ोकस नहीं कर पाओगी।" ज्योति जी ने प्यार से उसके गाल को छुआ।
उनकी बात सुनकर गौरी उदास हो गई, पर उसने जल्दी ही अपनी उदासी को छुपा लिया और चाय में अदरक डालते हुए मुस्कुराकर बोली, "चाय बना लूँ, फिर चली जाऊँगी।"
अब ज्योति जी भी अपने काम में लग गईं। गौरी ने चाय बनाई और एक कप उनको देकर वहाँ से चली गई। वो सबसे पहले अपने पापा के कमरे में गई तो कैलाश जी अपने जूते पहन रहे थे। गौरी उनके पास चली गई और मुस्कुराकर बोली, "गुड मॉर्निंग पापा।"
उसकी आवाज़ सुनकर कैलाश जी ने उसकी तरफ़ देखा और मुस्कुराकर बोले, "गुड मॉर्निंग बेटा। पर आज हमारी लाडो इतनी सुबह-सुबह कैसे जाग गई?"
"बस आज नींद जल्दी खुल गई तो सोचा आज कुछ काम किया जाए, और कुछ तो माँ ने करने नहीं दिया, पर चाय बनाई है मैंने। पीकर बताइए कैसी बनी है?"
गौरी के होंठों पर बिखरी मुस्कान ने उन्हें भी मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया।
"हमारी लाडो के हाथों में जादू है, वो कुछ बनाए और वो अच्छा न बने, ये तो कभी हो ही नही सकता। आज भी हमेशा की तरह चाय बहुत अच्छी बनी है। हमारा तो दिन बन जाता है जब आपके हाथों की चाय के साथ हमारी सुबह होती है। पर बेटा, इसकी आदत मत डालना हमें, जब आप ससुराल चली जाएँगी तो हम कैसे रह पाएँगे?"
ये कहते हुए वे उदास हो गए। गौरी की मुस्कान भी फ़ीकी पड़ गई, उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। पहले ज्योति जी और अब उसके पापा की बात, वो टूट गई थी। वो खुद को संभाल नहीं पाई और नम आँखों से उन्हें देखते हुए बोली, "पापा, आप सब मुझे भगाना क्यों चाहते हैं?"
कैलाश जी ने कप टेबल पर रखा और उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए बोले, "हम आपको क्यों भगाना चाहेंगे? आप तो हमारी रानी बिटिया हैं। जब हमें डॉक्टर ने कहा था कि हमें बेटी हुई है, तब हम खुशी से नाचने लगे थे। जब मयंक हुआ था तब भी हम इतने खुश नहीं हुए थे, जबकि वो हमारी पहली संतान थी।"
"तो पापा, आप सब मेरी शादी क्यों करवाना चाहते हैं? मुझे आप सबको छोड़कर कहीं नहीं जाना।" गौरी की आँखों में आँसू भर आए। कैलाश जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, शादी तो एक न एक दिन सबको ही करनी पड़ती है। हर इंसान को एक ऐसे इंसान की ज़रूरत होती है जो ज़िंदगी भर उसका साथ निभा सके। ये तो दुनिया की रीत है कि बेटी चाहे कितनी ही लाडली हो, एक न एक दिन उसको दुल्हन बनकर अपने बाबुल के घर को छोड़कर अपने पिया के घर जाना ही पड़ता है।
जाने किस बेदर्दी इंसान ने ये रीत बनाई है, ज़रूर वो इंसान नहीं होगा या उसे अपनी बेटी से प्यार ही नहीं होगा, तभी उसने ऐसा कठोर नियम बना दिया है। हम तो अगर उस पल की कल्पना भी कर लें जब हमारी नन्ही सी चिड़िया हमारे आँगन को सुन करके किसी और आँगन को अपनी खिलखिलाहट से चहकाने चली जाएँगी, तो हमारा कलेजा फटने लगता है।
बेटा, हम आपसे बहुत प्यार करते हैं, पर अपने स्वार्थ के लिए हम आपको सारी उम्र हमारे पास तो नहीं रख सकते ना? आपके जन्म के साथ ही हमने उस दिन के सपने बुन लिए थे जब हमारी लाडो शादी का लाल जोड़ा पहने हमारे सामने आएंगी। हमने कभी आपके विदाई की कल्पना तक नहीं की, पर आपको दुल्हन बनते देखने का ख्वाब आज भी हमारी आँखों में पलता है।
हमारी लाडो जब दुल्हन का लाल जोड़ा पहने हमारे सामने आएंगी, तब हमें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल जाएगी और हमारी लाडो इस दुनिया की सबसे खूबसूरत दुल्हन लगेंगी।"
"गौरी रोते हुए उन्हें देख रही थी, तो अब उन्होंने उसके आँसू साफ़ करते हुए कहा,"चलिए अब रोना बंद कीजिए। हमारी बेटी तो बड़ी समझदार है, फिर इतनी सी बात पर आप रो क्यों रही है? अभी तो आपकी शादी में बहुत वक़्त है और हम चाहते हैं कि हमारी लाडो हमेशा हँसती-मुस्कुराती रहे। आपकी मुस्कान हमारे दिल का सुकून है और आपके आँसू सीधे हमारे दिल पर लगते हैं। अब आप सोच लीजिए, आप अपने पापा को दर्द देना चाहती हैं या उन्हें खुशी देना चाहती हैं।"
उनकी बात सुनकर अब गौरी एकदम चुप हो गई और होंठों पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरते हुए बोली, "मैं हमेशा आपको खुश देखना चाहती हूँ, इसलिए अब मैं कभी रोऊँगी नहीं। चलिए आप चाय पीजिए, ठंडी हो जाएगी। मैं भैया को चाय देकर आती हूँ।"
कैलाश जी ने प्यार से उसके माथे को चूम लिया तो गौरी मुस्कुराकर वहाँ से बाहर निकल गई। उसके जाते ही कैलाश जी ने अपने आँखों के कोनों को साफ़ किया और मुस्कुराकर कप को अपने लबों से छुआ।
गौरी भी बाहर निकली तो उसकी आँखें नम हो गईं। उसने खुद को कंट्रोल किया और गुस्से से खुद से बोली, "ये सब तुम्हारी वजह से हो रहा है। तुम मिलो तो सही, मैंने तुम्हारे सारे बाल ही नोच लेने हैं, उसके बाद देखती हूँ कि कैसे तुम मुझसे शादी करते हो।"
अपने दिल में शिव को कोसते हुए वो मयंक के रूम तक पहुँची ही थी कि रूम से बाहर निकलते मयंक से टकराते-टकराते बची। उसने घबराकर पीछे हटते हुए कहा, "भैया, अभी मेरी चाय गिर जाती।"
उसने गुस्से से मयंक को देखा तो उसने अपने कान को पकड़ लिए, "सॉरी गुड़िया, मैंने तुझे देखा नहीं था। वैसे तू इस वक़्त यहाँ?"
गौरी ने उसके ऐसा करते ही ट्रे उसकी तरफ़ बढ़ाकर कहा, "चाय लाई थी मैं आपके लिए। अब प्लीज़ आप मत कहिएगा कि मैं बस कुछ वक़्त के लिए यहाँ हूँ, इसलिए आपको अपने हाथों की चाय की आदत न डालूँ। अगर आपने ऐसा कहा तो मैं शादी से इंकार कर दूँगी और कभी शादी करूँगी ही नहीं। इसके साथ ही मैं आपसे कभी बात भी नहीं करूँगी।"
वो गुस्से से उसे देखने लगी, जबकि उसकी बात सुनकर मयंक मुँह खोले हैरानी से उसे देख रहा था। वो जैसे ही चुप हुई, मयंक ने चौंकते हुए कहा, "मैं तो ऐसा कुछ कह ही नहीं रहा था, फिर तूने मुझे इतना सुनाया किस खुशी में? (फिर कुछ सोचते ही उसने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके उसको देखते हुए कहा,) तुझे माँ या पापा ने ऐसा कुछ कहा है क्या?"
एक बार फिर गौरी की आँखों में नमी तैर गई। उसने अपनी नज़रें झुकाकर हाँ में सर हिला दिया, क्योंकि अगर बोलती तो रो ही देती। उसने छिपाने की कोशिश तो की, पर मयंक ने उसकी आँसुओं से भरी आँखों को देख भी लिया था और वजह भी समझ गया था। उसने कुछ कहा नहीं, बस उसको एक तरफ़ से अपने सीने से लगा लिया तो गौरी सुबकते हुए बोली, "भैया, मुझे शादी नहीं करनी। मैं आप सबसे दूर नहीं जाना चाहती। मैं शादी नही करूँगी।"
इससे ज़्यादा वो कुछ कह नहीं पाई, पर उसकी सिसकियों की आवाज़ मयंक को साफ़ सुनाई दे रही थी। उसने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "ठीक है, मत करना तुम शादी। मैं मिस्टर राठौर को मना कर देता हूँ और साथ ही सचदेव पापा को भी कह देता हूँ कि मैं कृतिका से शादी नहीं कर पाऊँगा।"
उसने बड़ी सहजता से अपनी बात कही। पहले तो गौरी खुश हुई, पर जैसे ही उसने कृतिका वाली बात कही, गौरी हैरानी से सर उठाकर उसको देखने लगी।
मयंक ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए आगे कहा, "तुझे शादी नहीं करनी, क्योंकि उसके बाद तुम्हें हम सबसे दूर जाना होगा और तुम हमें इतना प्यार करती हो कि तुम हमें छोड़कर ना जाना पड़े, इसलिए तुम शादी ही नहीं करना चाहती तो कृतिका भी अपनी फैमिली से बहुत प्यार करती है, उसकी फैमिली भी उसको बहुत प्यार करती है।
अगर मैंने उससे शादी की तो उसे भी तो अपने परिवार को छोड़कर यहाँ मेरे पास आना होगा, अपने परिवार को छोड़कर मेरे परिवार को अपनाना होगा। वो भी अपने परिवार के साथ रहना चाहती होगी। जब मैं अपनी बहन को किसी दूसरे के घर नहीं भेज सकता तो किसी की बहन को उससे दूर कैसे कर सकता हूँ? इसलिए न तू शादी करेगी और न ही मैं करूँगा और हम सारी ज़िंदगी ऐसे ही साथ रहेंगे।"
मयंक मुस्कुराकर उसको देखने लगा। वहीं उसकी पूरी बात सुनकर गौरी उससे अलग हो गई और अपना सर झुकाकर बोली, "मैं शादी करूँगी भैया, आपको भाभी को मना करने की ज़रूरत नहीं है।"
मयंक की मुस्कान बड़ी हो गई। उसने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "गुड़िया, जैसे तुम हमसे बहुत प्यार करती हो, हम भी तुमसे बहुत प्यार करते हैं। तुम्हारे जाने से दुख हमें भी उतना ही होगा जितना तुम्हें होगा, पर बेटा, ये तो ज़िंदगी का एक पड़ाव है।
शादी करके लड़की नई जगह जाती है, पहले उसका एक परिवार था जो उसे बहुत प्यार करता है, शादी के बाद उसके दो-दो परिवार हो जाते हैं जो उसे अपनी पलकों पर बिठाकर रखते हैं। एक जीवनसाथी मिलता है जो हर दुख-हर सुख में उसका साथ निभाने का वचन देता है। और आपके लिए तो हमें ऐसा परिवार मिला है जो आपको उतना ही प्यार करेगा जितना हम करते हैं।
तुम भले ही यहाँ से चली जाओगी, पर ना ही तुम्हारा हमसे रिश्ता बदलेगा और ना ही हमारा तुम्हारे लिए प्यार बदलेगा। कुछ नए रिश्ते बनेंगे ज़रूर, पर पुराने टूटेंगे नहीं। चलो अब रोना छोड़ो और जल्दी से तैयार होकर आओ, आज हम दोनों पापा के साथ चलते हैं।"
गौरी ने उदास नज़रों से उसे देखा तो उसने इशारों में मुस्कुराने के लिए कह दिया। गौरी भी मुस्कुरा दी। मयंक ने कप लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो गौरी झट से पीछे हटते हुए बोली, "चाय ठंडी हो गई, मैं बना लाती हूँ दूसरी।"
मयंक ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराकर कहा, "चाय तो मैं तुम्हारे हाथों की पिऊँगा ही, पर पहले तुम जाकर चेंज करके आओ, जब पार्क से वापिस आएंगे तब पिलाना मुझे अपने हाथों की चाय।"
"ओके भैया।" गौरी मीठी सी मुस्कान होंठों पर बिखेरते हुए सर हिलाया और वहाँ से भाग गई।
मयंक ने भी एक गहरी साँस छोड़ी और अपने आँखों की नमी को छुपाते हुए नीचे चला गया। नीचे कैलाश जी पहले ही खड़े थे। उन्होंने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, "तो तुम्हें भी रुला दिया उन्होंने।"
उनकी बात सुनकर मयंक ने नाराज़गी से कहा, "उसने नहीं रुलाया, आपने और माँ ने मेरी गुड़िया को रुलाया है। उसके सामने ऐसी बातें मत किया कीजिए। जानते तो हैं आप, अब भी बच्ची है वो, कितनी इमोशनल है। आपकी और माँ की बात सुनकर उसने शादी से ही इंकार कर दिया था। बड़ी मुश्किल से समझाया है मैंने उसे। आगे से ऐसी बातें मत कीजिएगा, वो रोने लगती है।"
उसकी आँखें नम हो गईं तो कैलाश जी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुराकर कहा, "सॉरी बेटा, आगे से ध्यान रखेंगे।"
"पापा, ये विदाई की रस्म किसने बनाई है? क्या उसके पास दिल नहीं था?" मयंक की आँखों में नमी थी और चेहरे पर अपनी बहन से दूर होने का दुख।
उसकी बात सुनकर कैलाश जी ने उसको अपने गले लगा लिया, "बेटा, जो भी हो, अब सबको ये दर्द तो सहना ही पड़ता है और आप तो हमें कह रहे थे अगर अब उन्होंने आपकी बात सुनी तब वो नहीं रोएँगी?"
मयंक अब उनसे अलग हो गया और अपने आँसुओं को पोंछकर मुस्कुराया, "मैं उसे कभी कमज़ोर पड़ने ही नहीं दूँगा। वो मेरी ताकत है तो मैं उसकी कमज़ोरी कैसे बन सकता हूँ।"
उसकी बात सुनकर कैलाश जी भी मुस्कुरा उठे थे और किचन से बाहर आती ज्योति जी भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी थीं, जबकि आँखें तो उनकी भी नम हो गई थीं। वो वापिस किचन में चली गईं।
कैलाश जी ने मुस्कुराकर उसे देखते हुए पूछा, "आज जाना नहीं है आपको?"
"आज गुड़िया भी हमारे साथ जाएगी।"
मयंक की बात सुनकर कैलाश जी उसे हैरानी से देखने लगे तो उसने मुस्कुराकर कहा, "अगर यहाँ रही तो वही सब सोचकर दुखी होती रहेगी, इसलिए आज वो हमारे साथ जाएगी।"
अब कैलाश जी बस मुस्कुराकर रह गए। कुछ देर बाद टॉप और लोअर पहने गौरी ने वहाँ कदम रखा तो दोनों ही उस क्यूट सी लड़की को देखकर मुस्कुरा उठे, जो अब एक छोटी सी क्यूट सी बच्ची लग रही थी। वो उनके पास आई तो कैलाश जी ने मुस्कुराकर कहा, "चलिए, आज तो हमारी लाडो भी हमारे साथ चलेगी। अब तो हमें और भी अच्छा लगेगा बाहर जाकर।"
गौरी मुस्कुराकर उनके साथ चल दी। उसकी मुस्कान दोनों के चेहरे पर आई मुस्कान की वजह बन गई। बाहर जाकर बाकी दोनों ने तो जॉगिंग की, पर गौरी तो सारे वक़्त बस बक-बक करती रही और दोनों को परेशान करती रही, पर दोनों खुश थे।
एक घंटे बाद वे घर आए तो गौरी ने मयंक के लिए चाय बनाकर उसे दी, फिर सब तैयार हुए और साथ में ब्रेकफ़ास्ट करने के बाद अपने-अपने रास्ते पर निकल गए।
सारा दिन उनका काम में बीता। शाम को आते हुए गौरी को कृतिका का फ़ोन आ गया तो उसने स्कूटी चलाते हुए ही उससे बात की, और आज भी दोनों की बातों का केंद्र शिव ही था।
कृतिका उसे शिव के बारे में छोटी से बड़ी बातें बता रही थी और गौरी चुपचाप बड़े ही ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। रात को सोते हुए भी उसके दिमाग में शिव ही चल रहा था।
ऐसे ही दिन बीतने लगे। गौरी सारा दिन बिजी रहती, सुबह मयंक और कैलाश जी के साथ पार्क जाती, आते वक़्त कृतिका से बात करती और वो उसे शिव के बारे में बताती। गौरी भी अब उसकी बात इंटरेस्ट के साथ सुनती थी, उसे इंतज़ार रहता था कृतिका के फ़ोन का। रात को वो उसके बारे में सोचते हुए ही सो जाती थी।
अब वो उसके ख्याल से चिढ़ती नहीं थी, बल्कि शिव उसके होंठों पर छाई मुस्कान की वजह बनने लगा था। उसने उसे देखा नहीं था, उससे उसकी कभी बात भी नहीं हुई थी, पर फिर भी अब उसको शिव से जुड़ाव सा महसूस होता था।
आजकल न्यूज़ में भी उसकी ही खबर आती थी, क्योंकि उस मुठभेड़ के बाद उसने अपनी टीम के साथ मिलकर एक मिशन शुरू किया था जिसमें कर्नल रावत उन्हें लीड कर रहे थे। उनकी टीम सभी ऑपरेशन उनके अंडर ही करती थी।
उनके मिशन का लक्ष्य था देश के अंदर छुपे बैठे देशद्रोहियों को दुनिया के सामने बेनकाब करना, वो लोग जो दो चेहरे लगाकर घूमते हैं और हमारे ही देश में रहकर हमारे देश के विरुद्ध जाकर उन नापाक इरादों वाले आतंकवादियों की मदद करते हैं, हमारे ही देश में रहकर गद्दारी करते हैं और हमारे देश को बर्बाद करने का मंसूबा पालते हैं, उन दहशतगर्दों को पनाह देते हैं और उनकी मदद करते हैं, जिन्हें इंसान कहलाने का भी हक़ नहीं होता।
उनकी टीम ने देश के हर कोने से ऐसे दरिंदों को बेनकाब किया था जो हमारे देश के नागरिकों की जान को खतरे में डालते हैं। न्यूज़ में यही सब चल रहा था और उनके टीम की खूब तारीफ़ की जा रही थी।
इसके बीच शिव को किसी और बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं मिला था। वो अपनी टीम को लीड कर रहा था तो उसका दिन और रात इसी सब में बीतता था। वो शादी वाली बात भूल ही चुका था।
ऐसे ही एक महीना बीत गया। लगभग सभी लोगों को कानून के सामने ला दिया गया था और अब उनके खिलाफ़ स्ट्रिक्ट एक्शन लिए जा रहे थे। कर्नल रावत अपने जवानों के काम से गर्व महसूस कर रहे थे, उनके परिवार को भी उन पर नाज़ था।
अगस्त महीना शुरू हो चुका था। उनकी लिस्ट के हर एक आदमी को वे दुनिया के सामने बेनकाब कर चुके थे। बस एक ही रह गया था, वो कश्मीर का ही था और काफ़ी अमीर था। उसका रुतबा ऐसा था कि बिना पुख्ता सबूतों के उस पर हाथ डालना मतलब होता कश्मीर में आशांति फैलाना।
इसलिए अब उन्हें इंतज़ार था उसके खिलाफ़ सबूत मिलने का, पर वो अब अलर्ट हो गया था, इसलिए कुछ वक़्त के लिए उन्होंने इस ऑपरेशन को यहीं छोड़ दिया था और सभी अपने बेस कैंप लौट आए थे, जहाँ उनका बढ़िया स्वागत किया गया था।
खुद कर्नल रावत ने उनकी पीठ थपथपाकर उनको शाबाशी दी थी, पर तब शिव ने ये कहकर उन्हें चुप करवा दिया था कि अभी ये कामयाबी अधूरी है।
वो कल ही यहाँ लौटे थे। आज उन्हें छुट्टी मिली थी। आदित्य तो सुबह जल्दी उठ गया था, पर शिव रात भर जागता रह गया था क्योंकि यहाँ आते ही उसको सब बातें भी याद आ गई थीं।
शिव लगभग आठ बजे उठा था। वो बाथरूम में ही था कि आदित्य खुशी से उछलते हुए रूम में दाखिल हुआ और चिल्लाकर बोला, "शिव, बाहर आ यार, देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ। आज तो तू खुशी से भांगड़ा पाएगा।"
उसके इतना कहते ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला और बाथरूम से बाहर आते हुए शिव ने तौलिये से अपने बालों को पोंछते हुए सवाल किया, "ऐसा क्या लाया है तू मेरे लिए? मेरा तो पता नहीं, पर तू खुशी से बावला हो गया, तो अब बता भी दे क्या हुआ है?"
ये कहते हुए उसने तौलिया उसकी तरफ़ फेंकना चाहा तो उसके तौलिया फेंकने से पहले ही आदित्य ने अपना हाथ ऊपर करके तेज़ आवाज़ में कहा, "ख़बरदार जो आज तौलिया मेरे मुँह पर फेंका तो। अगर आज तूने मुझ पर तौलिया फेंका तो मैं तुझे ये इनवेलप नहीं दूँगा।"
उसकी बात सुनकर शिव के हाथ हवा में रह गए। वो चुप हुआ तो शिव ने अपना हाथ नीचे करते हुए कहा, "अच्छा, नहीं फेंक रहा तुझ पर तौलिया। अब बता क्या है इस इनवेलप में?"
अब जाकर आदित्य ने चैन की साँस ली और उसकी तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "एक गुड न्यूज़ है, तू खुद ही पढ़ ले क्या है इसमें।"
ये कहते हुए उसने इनवेलप को हवा में लहराना शुरू किया तो शिव ने कुछ देर उसको देखा, पर जब आदित्य ने उसे इनवेलप नहीं दिया तो उसने गुस्से में उसके मुँह पर गीला तौलिया डाल दिया और उसके हाथ से इनवेलप छीन लिया, "तू इसी लायक है। मेरी शराफ़त तेरे गले से नीचे नहीं उतरती।"
"अब पढ़कर दिखा क्या है इसमें?" उसने इनवेलप खोलना शुरू किया तो आदित्य ने तौलिया दूसरी तरफ़ फेंका और उसके हाथ से इनवेलप छीनकर भाग गया।
वो आगे-आगे भाग रहा था और शिव उसे देने को कहते हुए उसके पीछे-पीछे भाग रहा था। वे अपने रूम से निकलकर बेस कैंप के चक्कर काट रहे थे।
वहाँ आस-पास एक्सरसाइज़ और बाकी कामों में लगे देश के अन्य सिपाही उन दोनों को देखकर मुस्कुरा रहे थे। जब वो नहीं रुका तो शिव ने रुककर गुस्से से कहा, "जा रख ले उसे, मुझे नहीं पढ़ना।"
वो जाने लगा तो आदित्य ने इनवेलप को हवा में लहराते हुए कहा, "सोच ले, तेरा ही लेटर है। अगर नहीं पढ़ा तो तुझे बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।"
उसकी बात सुनकर शिव के बढ़ते कदम रुक गए। उसने मुड़कर गुस्से से उसको घूरा तो आदित्य ने इनवेलप को हवा में लहराते हुए अपनी बत्तीसें चमका दीं तो शिव ने दाँत पीसते हुए कहा, "तू तो गया काम से।"
इतना कहकर उसने उसके ऊपर झपट्टा मारा, पर आदित्य भी कहाँ कम था। उसने तुरंत अपने कदम आगे बढ़ा दिए और आगे भागते हुए पीछे मुड़कर उसको चिढ़ाते हुए बोला, "पहले पकड़कर तो दिखा, उसके बाद देखता हूँ क्या करता है तू मुझे।"
वो पीछे देखकर आगे भाग रहा था, शिव उसके पीछे चिल्लाते हुए भाग रहा था। अचानक ही वो भागते-भागते रुक गया तो आदित्य ने हँसते हुए कहा, "क्या हुआ मेरे बब्बर शेर, इतने में ही थक ग…"
आगे के शब्द उसके मुँह में ही रह गए। उसके मुँह से "हाय ओ रब्बा" निकल गया।
शिव ने अपनी आँखें बंद कर लीं। बेचारा आदित्य भागते-भागते मुँह के बल गिर गया था और वजह थी वो पीछे देखकर भागते हुए किसी से टकरा गया था और क्योंकि वो फ़ुल स्पीड में भाग रहा था, इसलिए बेचारा अचानक टक्कर होने से संभल नहीं पाया और ज़मीन पर मुँह के बल जा गिरा।
अब तक जो जवान उनके भाग-दौड़ी को देखकर मज़े ले रहे थे, अचानक ही वे सब सावधान की पोज़िशन में आ गए थे।
शिव ने एक आँख खोलकर नीचे पड़े आदित्य को देखा, फिर अपना सर झुकाकर स्टैंड अप वाली पोज़िशन में खड़ा हो गया। वहीं आदित्य ज़मीन पर से उठते हुए बोला, "कौन है बे, साला इंसान है या चट्टान?"
इतना कहकर जब उसने गुस्से से सामने देखा तो उसकी सारी हवा ही निकल गई। उसने हड़बड़ाहट में सैल्यूट करते हुए कहा, "सॉरी सर, मतलब जय हिंद सर।"
शिव ने अपनी आँखें बंद कर लीं। बेचारा आदित्य भागते-भागते मुँह के बल गिर गया था और वजह थी वो पीछे देखकर भागते हुए किसी से टकरा गया था। और क्योंकि वो फ़ुल स्पीड में भाग रहा था, इसलिए बेचारा अचानक टक्कर होने से संभल नहीं पाया और ज़मीन पर मुँह के बल जा गिरा।
अब तक जो जवान उनके भाग-दौड़ी को देखकर मज़े ले रहे थे, अचानक ही वे सब सावधान की पोज़िशन में आ गए थे। शिव ने एक आँख खोलकर नीचे पड़े आदित्य को देखा, फिर अपना सर झुकाकर स्टैंड अप वाली पोज़िशन में खड़ा हो गया। वहीं आदित्य ज़मीन पर से उठते हुए बोला, "कौन है बे, साला इंसान है या चट्टान?"
आदित्य गुस्से से चिल्लाया पर जैसे ही नज़र सामने गयी उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसने हड़बड़ाहट में सैल्यूट करते हुए कहा, "सॉरी सर, मतलब जय हिंद सर।"
सामने कर्नल रावत खड़े थे जो उसे ही घूर रहे थे। उन्होंने कड़क आवाज़ में कहा, "मेजर रंधावा, यहाँ क्या चल रहा था?"
उनकी बात सुनकर और उनका गुस्सा देखकर आदित्य ने एकदम भोला-भाला चेहरा बनाकर कहा, "सर, मैं तो रूम में था। वो तो मेजर शिवांश राठौर ही मुझे मारने पर उतारू हो गए, तो मुझे उनसे बचने के लिए भागना पड़ा और अचानक आपके सामने आने से मैं गिर गया, बस इसलिए गलती से मुँह से वो सब निकल गया। आई एम रियली वेरी वेरी सॉरी सर।"
अब उसने अपना सर झुका लिया। उसकी बात सुनकर अब कर्नल रावत ने शिव की तरफ़ नजरे घुमाते हुए सवाल किया, "मेजर शिवांश, आप इस बारे में क्या सफ़ाई पेश करना चाहेंगे?"
शिव ने जल्दी से कहा, "सर, मेरे नाम कोई पोस्ट आया है और मेजर रंधावा मुझे इनवेलप नहीं दे रहे थे। बस मैं वही इनवेलप उनसे लेने के लिए इनके पीछे भाग रहा था। आप बाकियों से पूछ सकते हैं, मैं सच कहा है।"
अब वो भी सर झुकाकर खड़ा हो गया, कर्नल रावत की तीखी नज़रों का निशाना एक बार फिर बेचारे मेजर रंधावा बन गए। उनकी नज़रों से बचने के लिए आदित्य ने तुरंत ही सफ़ाई देते हुए कहा, "सर, मेजर राठौर की आदत बहुत ख़राब है। वो जब भी नहाकर बाहर निकलते हैं तो अपना गीला तौलिया मेरे मुँह पर फेंक देते हैं। आज तो मैंने इन्हें वॉर्न भी किया था कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो मैं लेटर नहीं दूँगा, पर फिर भी उन्होंने गीला तौलिया मेरे मुँह पर दे मारा। बस इसलिए मैं इन्हें लेटर नहीं दे रहा था।"
शिव फिर से कुछ कहने को हुआ, पर उससे पहले ही उसके कानों में लोगों के हँसने की आवाज़ पड़ गई। उसने और आदित्य दोनों ने ही हैरानी से सर उठाकर देखा तो उनके आस-पास खड़े जवान हँस रहे थे।
उनको हँसता देख कर्नल रावत ने एक नज़र सबको घूरकर देखा तो सब की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई। वे तुरंत "सॉरी सर" कहकर वहाँ से भाग खड़े हुए।
अब वहाँ बस वे दोनों और कर्नल रावत खड़े थे। दोनों के सर झुके हुए थे। कर्नल रावत ने अब आदित्य को देखते हुए कहा, "वो लेटर दीजिए ऑफ़िसर।"
उनके इतना कहते ही आदित्य ने झट से इनवेलप उनकी तरफ़ बढ़ा दिया तो उन्होंने इनवेलप शिव की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "मेजर राठौर, लीजिए आपकी अमानत। और अब हमें अपने दोनों काबिल ऑफ़िसर्स से ये उम्मीद है कि आप दोबारा कभी ऐसी बचकानी हरकतें नहीं करेंगे। हँसी-मज़ाक़ के लिए हम मना नहीं करते, पर ऐसे सबके सामने अगर आप दोनों ऐसे गैर-ज़िम्मेदाराना हरकतें करेंगे तो हमारे बाकी के ऑफ़िसर्स क्या करेंगे?"
दोनों ने उन्हें सैल्यूट करते हुए कहा, "हम आपकी उम्मीद पर खरे उतरेंगे सर, आपको दोबारा शिकायत का मौका नहीं देंगे।"
अब कर्नल रावत के चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान फैल गई।
"हमें आपसे यही उम्मीद थी। (फिर उन्होंने शिव को देखते हुए कहा,) मेजर राठौर, अब आप अपना लेटर पढ़ सकते हैं, अब मेजर रंधावा आपको रोकेंगे नहीं।"
इतना कहकर वे हँस दिए तो दोनों के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। आदित्य उसे लेटर खोलने को कहने लगा। कर्नल रावत ने मुस्कुराकर उसे खोलने का इशारा किया तो शिव ने लेटर खोला और जब पढ़ने लगा, जब उसने लेटर पढ़ा तो एक पल को उसके चेहरे पर मुस्कान आई, पर फिर वो गायब हो गई।
आदित्य और कर्नल रावत ने उसे नोटिस कर लिया था। उसने लेटर इनवेलप में डाला तो उसकी उदासी देखकर कर्नल रावत ने सवाल किया, "क्या हुआ ऑफ़िसर्स? ऐसा क्या है इस इनवेलप में जिसके वजह से आप परेशान हो गए?"
शिव ने अब उन्हें देखते हुए कहा, "ऐसा नहीं है सर, वो मैंने लीव की एप्लीकेशन डाली थी, ताकि इस बार रक्षा बंधन पर अपनी बहनों को सरप्राइज़ दे सकूँ, तो उसी के एक्सेप्ट होने का लेटर आया है, पर अब हमारा एक मिशन चल रहा है जो अभी अधूरा है तो मैं ऐसे मिशन अधूरा छोड़कर तो नहीं जा सकता। बस इसलिए सोच रहा था कि उन्हें कैसे बताऊँगा कि इस साल भी उनका भाई उनके पास नहीं पहुँच पाएगा।"
उसकी बात सुनकर आदित्य भी उदास हो गया क्योंकि बात तो सही थी, पर उन्होंने तो इस बार के लिए कुछ और ही सोचा था जो अब हो नहीं सकता था।
शिव की बात सुनकर कर्नल रावत ने मुस्कुराकर कहा, "ऑफ़िसर, आपकी सोच जानकर मुझे बेहद खुशी हुई, पर अगर आप चाहें तो घर जा सकते हैं। हमारे अभी तक के एक्शन से ठाकुर अलर्ट हो गया है। अगर ऐसे में आप यहाँ से जाते हैं तो ये हमारे लिए बेनिफ़िशियल ही है।
आपके जाने की ख़बर उस तक भी पहुँच ही जाएगी और वो बेफ़िक्र हो जाएगा। ऐसे तो वो चुप रहेगा, जिसके वजह से हमारे के लिए उसको रंगे हाथों पकड़ना थोड़ा मुश्किल है, पर अगर आप जाते हैं तो वो केयरलेस हो जाएगा और फिर से अपने काम करना शुरू कर देगा। ऐसे में हमारे लिए उसको पकड़ना आसान हो जाएगा।
रक्षा बंधन परसों ही है, तब तक हम ठाकुर पर नज़र रखेंगे। वो इतनी जल्दी तो कुछ नहीं करेगा, पर दो-तीन दिन बाद वो फिर से अपने नापाक इरादों को पूरा करने की तैयारी शुरू ज़रूर करेगा। हमें जैसे ही उसकी किसी हरकत की ख़बर मिलेगी हम अपना आख़िरी शिकार भी कर लेंगे और अगर हमें हमारे जवान की ज़रूरत हुई तो हम आपको वापिस बुला लेंगे और हमें विश्वास है कि आप भी अपना फ़र्ज़ निभाने से पीछे नहीं हटेंगे।"
उनकी बात सुनकर आदित्य खुश हो गया, पर उसने कुछ कहा नहीं। शिव ने कर्नल रावत को देखते हुए कहा, "प्लान अच्छा है सर। अक्सर शिकार को अपने जाल में फँसाने के लिए उसे इस बात पर यकीन दिलाना पड़ता है कि अब उसको पकड़ने वाला कोई नहीं है। मैं जाने के लिए तैयार हूँ सर, पर मेरी एक शर्त है। जैसे ही उसके किसी हरकत की ख़बर मिले, आप तुरंत मुझे वापिस आने का ऑर्डर देंगे। वो मेरा शिकार है और उसे मैं ही उसके अंत तक पहुँचाना चाहता हूँ।"
उसकी बात सुनकर कर्नल रावत का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "हमें आपकी शर्त मंज़ूर है। वो आपका शिकार है तो जब तक आप वापिस नहीं आ जाते हम आपके शिकार पर अपनी नज़र रखेंगे और जैसे ही हमें कोई ख़बर मिलेगी हम तुरंत आपको आने का ऑर्डर दे देंगे।"
उनकी बात सुनकर शिव भी खुश हो गया। कर्नल रावत उसकी पीठ थपथपाते हुए वहाँ से चले गए। उनके जाते ही आदित्य ने उसके गले से लगकर कहा, "अब तू वापिस जा और अपनी उस झुमके वाली को ढूँढ़। मेरा दिल कहता है तुझे वो ज़रूर मिल जाएगी और जल्दी से गुड न्यूज़ लेकर वापिस आना। तेरे बिना मेरा दिल नहीं लगता है। अब तो तुझसे लड़ने-झगड़ने और तेरे तौलिये मेरे मुँह पर फेंकने की आदत हो गई है। जब तू नहीं होता तो मेरा तो दिन ही नहीं कटता है। ट्रेनिंग से पोस्टिंग तक सब साथ में किया, लड़े भी साथ, जीते भी साथ, इसलिए जल्दी वापिस आइयो, फिर उस ठाकुर के हाथ दोनों यार मिलकर काटेंगे।"
वो इमोशनल हो गया। शिव भी कुछ इमोशनल हो गया था क्योंकि दोनों ही ट्रेनिंग के वक़्त से साथ थे, काफ़ी गहरी दोस्ती थी उनकी।
शिव ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "जल्दी आऊँगा यारा, आख़िर उस ठाकुर को जहन्नुम पहुँचाना है, वो भी तेरे साथ मिलकर। जब तक मैं यहाँ न रहूँ अपना ख़्याल रखियो, याद रखियो मुझे मेरा यार ऐसा का ऐसा ही दिखना चाहिए।"
आदित्य अब उससे अलग होकर मुस्कुराकर बोला, "मैं नाइयों बदलना ओये, मैं तो तैनू ऐसे ही परेशान करना है। मैं तो तैनू कदे नहीं छोड़ना।"
अब शिव ने उसकी गर्दन दबोचते हुए कहा, "तू कभी नहीं सुधरेगा ना?"
आदित्य ने मुस्कुराकर कहा, "कदे नाइयों यारा।"
वो एक बार फिर हँस दिया तो शिव ने भी उसको छोड़ते हुए कहा, "चल जा, मुझे नहीं बहस करनी तुझसे, अभी हेडक्वार्टर जाकर इंफ़ॉर्म भी करना है, टाइम नहीं है मेरे पास तेरे लिए।"
उसकी बात सुनकर आदित्य ने उसकी गर्दन में अपनी बाँह लपेटते हुए कहा, "पर मेरे पास तो बस आज का ही टाइम है और इसी में मुझे तुझे इतना परेशान करना है कि जितने दिन तू यहाँ से दूर रहे, तुझे मेरी याद ना आए और मैं भी तेरे बिना रह पाऊँ।"
अब शिव ने उसका हाथ नहीं झटका, बल्कि उसके कंधे पर हाथ रखकर दोनों मुस्कुराकर वहाँ से निकल गए।
आज की ड्यूटी पूरी करने के बाद शिव ने अपने कल जाने की ख़बर हेडक्वार्टर जाकर दे दी थी, बस घर पर फ़ोन नहीं किया था। उन्होंने भी उसे फ़ोन नहीं किया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वो अपने मिशन में बिज़ी है तो अब उसका आना नहीं हो पाएगा।
शिव के रक्षा बंधन पर आने की ख़बर गौरी तक भी पहुँच गई थी, वो एक्साइटेड भी थी, पर जब कृतिका ने उसे कहा था कि अब उसका आना नामुमकिन है क्योंकि उसके लिए फ़र्ज़ सबसे आगे आता है। जब से उसने आर्मी ज्वाइन की है वो एक बार भी रक्षा बंधन पर वापिस नहीं आया था।
लगभग चार-पाँच साल हो गए थे उसे अपनी बहनों से अपनी कलाई पर राखी बँधवाए हुए। अब गौरी भी दुखी थी, पर कर भी क्या सकती थी सिवाय इंतज़ार के।
इन दिनों गौरी की भले ही शिव से बात नहीं होती थी, पर अनुराधा जी, शिवांगी और चित्रा तीनों से उसकी बात हो जाती थी और अब वो उन्हें समझने भी लगी थी।
आज का दिन कैसे बीता किसी को पता ही नहीं चला। अगली सुबह होते ही भोर की पहली किरण के साथ ही शिव अपने बेस कैंप से बाहर निकल गया था। पीठ पर छोटा सा पिट्ठू बैग लटकाए वो आदित्य के साथ बेस कैंप से कुछ दूरी पर बने बस स्टैंड तक पहुँचा और उसको बाय बोलकर और अपना ख़्याल रखने का कहकर वो वहाँ से निकल गया।
दोनों ही थोड़े उदास थे, पर एक-दूसरे को इसका एहसास नहीं होने दिया था। वहाँ से लोकल बस लेकर शिव श्रीनगर तक पहुँचा। वहाँ से सुबह सात बजे वाली ट्रेन लेकर वो दिल्ली के लिए रवाना हो गया। ट्रेन में खाली बैठा था।
अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया तो उसने अपना वॉलेट निकाला और उसमें ये एक झुमका अपने हाथ में लेकर उसे देखने लगा। उसे देखते हुए वो उस दिन के याद में खो गया जब उसे ये झुमका और झुमके वाली मिली थी।
To be continued…
फ्लैशबैक
करीब दो साल पहले शिव छुट्टी पर घर गया हुआ था। दोपहर का वक्त था; घर पर सब मौजूद थे। शिव न्यूज़ लगाकर बैठा था और साथ में चाय-पकौड़ों के साथ उनकी बातें भी चल रही थीं। अचानक ही ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगी, जिसने शिव का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।
शिव ने तुरंत नज़रें टीवी की ओर घुमाईं, टीवी पर न्यूज़ आ रही थी, दिल्ली के हंसराज कॉलेज में कुछ नकाबपोश संदिग्ध आदमी घुस गए थे।
वो आतंकवादी थे जिन्होंने कॉलेज में मौजूद बच्चों, टीचर्स और यहां तक कि उनके प्रिंसिपल तक को बंदी बना लिया था और अब मांग कर रहे थे अपने साथी, खालिस को छोड़ने की, जिसे करीब एक महीने पहले हमारे आर्मी के जाबाज़ सिपाहियों ने अपनी जान को दाव पर लगाकर पकड़ा था।
वो हमारे संसद भवन पर हमला करने के प्लान का मास्टरमाइंड था, पर हमारे देश के इंटेलिजेंस विभाग ने सही वक्त पर उसकी खबर देकर उनके प्लान पर पानी फेर दिया था (ये सभी चीजें काल्पनिक हैं) और उसको अपने शिकंजे में ले लिया था। पुलिस वहां पहुंच चुकी थी, पर अब अंदर जाया कैसे जाए, ये एक बड़ी समस्या थी।
अंदर बहुत से लोग थे, तो उनकी जान को खतरे में भी नहीं डाल सकते थे और उनकी बात भी नहीं मान सकते थे। न्यूज़ देखकर सभी परेशान हो गए।
शिव ने तुरंत किसी को फोन लगाया और खुद इस सिचुएशन को हैंडल करने की परमिशन मांगी। तब भी कर्नल रावत की सिफारिश पर उसको परमिशन दी गई थी क्योंकि उसका पास्ट रिकॉर्ड काफी अच्छा था। शिव तुरंत घर से बाहर जाने को हुआ तो अनुराधा जी ने घबराकर कहा, "बेटा, आप कहां जा रहे हैं?"
उनकी बात सुनकर शिव रुक गया। उसने पीछे मुड़कर उन्हें देखते हुए कहा, "मैं छुट्टी पर ज़रूर हूं मां, पर अपने फ़र्ज़ को निभाने से मैं पीछे नहीं हट सकता। आज मेरे देश को मेरी ज़रूरत है; अगर आज मैं नहीं गया तो मैं कभी खुद से नज़र नहीं मिला पाऊंगा।
आप चिंता मत कीजिए, मैं आपके बेटे को एक खरोंच तक नहीं आने दूंगा, पर मैं यहां हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकता। मुझे जाना ही होगा, और आपको मुझे आशीर्वाद देना चाहिए कि मैं अपने काम में कामयाब होकर लौटूं।"
उसने इतना कहकर जाकर दोनों के पैर छुए; दोनों ने उसे आशीर्वाद दिया। शिव ने बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया तो पीछे से अनुराधा जी ने कहा, "बेटा, महादेव आपको विजयी करें, हम उनसे यही प्रार्थना करेंगे कि आप सबको वहां से बचाकर निकाल पाएं, पर आपको ये याद रखना होगा, बाकी मां-बाप के बच्चों के साथ हमें भी हमारा बेटा सही-सलामत ही वापिस मिलना चाहिए।"
उनकी बात सुनकर शिव मुस्कुराया, फिर आगे कदम बढ़ाते हुए बोला, "शिवांश सिंह राठौर को मारने का दम-खम इन गीदड़ों में नहीं है मां, आपने शेर को जन्म दिया है जो गीदड़ों का शिकार करता है, उनका शिकार बनता नहीं है। और जब मेरे बाबा साहब और मां साहबा का आशीर्वाद और मेरे महादेव मेरे साथ हैं, मैं कभी हार ही नहीं सकता, तो आप चिंता न करें, आपको आपका बेटा वैसे ही वापिस मिलेगा जैसे वो जा रहा है।"
उसकी बात सुनकर समर जी मुस्कुरा उठे। अनुराधा जी मंदिर में जाकर महादेव की मूर्ति के सामने बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगीं; शिवांगी उनके साथ ही बैठ गई; चित्रा भी वहीं आ गई। लिविंग रूम में समर जी और राजवीर जी रह गए थे और साथ था ढाई साल का रुद्र। दोनों टीवी पर नज़रें टिकाए बैठे थे।
कुछ देर में आर्मी यूनिफॉर्म पहने, माथे पर काला कपड़ा बांधे और गालों पर काली तीन तिरछी लाइनें बनाए करीब 30 आर्मी के जवान वहां पहुंचे, जिनके आगे खड़ा था शिवांश सिंह राठौर, जिनसे सभी को काफी उम्मीदें थीं।
शिव ने वहीं दूसरी तरफ दौड़ लगा दी तो सभी चौंक उठे। शिव सामने वाली ऊंची बिल्डिंग की छत पर पहुंच गया था, जो कॉलेज के बैक साइड था। उसने बाइनोकुलर से अंदर का जायजा लिया और सब अच्छे से देखने के बाद नीचे पहुंच गया।
वहां जाकर उसने अपने जवानों को कुछ समझाया और उसके बाद बड़े ही दमदार आवाज में "हर हर महादेव" और "जय भवानी" के उद्घोष करके उन्होंने अपने जवानों के मानो बल को बढ़ाया। उनके साथ ही सभी सिपाही एक ही लय में एक नई ऊर्जा के साथ नारे लगाने लगे। फिर शुरू हुआ उनका ऑपरेशन।
सबसे पहले शिव दीवार फांदकर उस पर गया और वॉकी-टॉकी की मदद से रास्ता क्लीयर देखने के बाद सभी जवानों को अंदर आने को कह दिया।
कुछ ही सेकंड में सभी जवान कॉलेज के अंदर पहुंच चुके थे। अब उनके पहले से तय प्लान के मुताबिक, शिव ने आगे कदम बढ़ाया और सभी जवान उसको कवर करते हुए थोड़ा आगे पहुंच गए। आगे कॉलेज कैंपस था जो पूरा खाली पड़ा था।
यहां से टीम दो हिस्सों में बंट गई और शिव ने पहले ही कहा था कि किसी को कुछ होना नहीं चाहिए। शिव ने आगे से कॉलेज की बिल्डिंग में एंट्री ली और रास्ता देखते हुए संभलकर आगे बढ़ने लगा। उसके कुछ पीछे बाकी के चौदह सिपाही थे जो उसके "सब क्लीयर है" इशारा करने पर आगे बढ़ रहे थे ताकि वो सब एक साथ पकड़े न जा सकें।
कॉलेज में सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे में कदमों की आवाज आना भी खतरे को अपने पास बुलाने जैसे होता, इसलिए सभी ऑफिसर्स बड़े ही संभलकर आगे बढ़ रहे थे। ग्राउंड फ्लोर खाली था।
पहले शिव ने ऑडी का रुख किया; उसके ऑडी के बैक डोर से वहां घुसने का प्लान बनाया था जो कॉलेज की बिल्डिंग के अंदर से होकर जाता था। सामने के तरफ से उनकी दूसरी टीम वहां पहुंच रही थी। जैसे ही दोनों टीम अपनी-अपनी तय की लोकेशन पर पहुंच गईं।
शिव ने अंदर का जायजा लिया तो पूरा ऑडी स्टूडेंट्स और टीचर्स से भरा हुआ था। आगे से पीछे तक वो नकाबपोश आदमी गश्त लगा रहे थे और बाकी सभी डरे हुए से वहां बैठे हुए थे। शिव ने सबकी पोजीशन चेक की और मौका देखते ही एक्शन की कमांड दे दी।
आगे और पीछे से एक साथ हमला होने पर वो कुछ समझ ही नहीं पाए और हमारे वीर जवानों ने उन्हें ढेर कर दिया था।
वहां से सबको निकालने का ऑर्डर देकर शिव वापस अंदर चला गया। आधी टीम उन सबको पीछे के रास्ते से बाहर निकालने में लग गई। अब शिव ने बड़ी ही सावधानी से पहले ग्राउंड फ्लोर और फिर पूरा फर्स्ट फ्लोर चेक किया। यहां तक सब ठीक था।
अब वो पहुंचा सेकंड फ्लोर पर, सीढ़ियों पर ही उन्हें वो आदमी दिख गए। शिव ने सबको पीछे होने को कहा और जूते की आवाज की तो दोनों में से एक नकाबपोश उस तरफ आ गया।
शिव ने बड़ी सावधानी से उसका मुंह दबाया और उसके गले की ऐसी नस दबा दी जिससे बिना आवाज के वो वहीं ढेर हो गया। (ये टेक्निक सबको नहीं आती; कुछ स्पेशल फोर्स को ही ये सिखाया जाता है।)
अब शिव ऊपर बढ़ा तो पीछे से उसकी टीम तो उस आदमी को वहां से गायब कर दिया। सभी सधे कदमों से आगे बढ़े; बड़ी ही सावधानी से वो उन आदमियों को मारते हुए आगे बढ़ रहे थे।
एक रूम के बाहर जाकर शिव के कदम रुक गए। नज़र उस रूम की खिड़की पर पड़ी जो खुली थी तो उसने सावधानी से अंदर झांका और अंदर का नज़ारा देखकर उसकी आंखें आग सी धधकने लगीं।
अंदर एक लड़की थी जिसका चेहरा उसे नहीं दिख रहा था पर इतना पता चल रहा था कि वो लड़की उनसे उसे छोड़ने की रिक्वेस्ट कर रही थी जिसे वो सुन नहीं रहे थे। वहां इतने बच्चों को देखकर उसकी भौंहें तन गईं। उसने मौका देखा जब सबका ध्यान उस आदमी, जिसने उस लड़की पर बंदूक तानी हुई थी, उस पर था, तभी शिव ने धीरे से दरवाजा खोला।
उस वक्त कुछ बच्चों ने उसे देखा भी पर शिव ने पहले ही उन्हें चुप रहने का इशारा कर दिया और उसने उस आदमी की तरफ कदम बढ़ा दिए। गोली चलने की आवाज आई तो सभी "मैम" कहकर चीख उठे, पर उसके अगले ही पल वो आदमी, जिसने बंदूक तानी थी, वो ढेर हो गया था। गोली उसके माथे के बीचों-बीच लगी थी।
शिव शूटआउट स्पेशलिस्ट था; उसको इसमें मज़ा भी बहुत आता था और उसके जीवन का ये नियम था कि वो किसी को जिंदा छोड़ता ही नहीं था। सिचुएशन को ऐसा बना देता था कि उस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता था और देश के दुश्मन का खात्मा भी हो जाता था। इसमें कर्नल रावत उसके साथ होते थे क्योंकि वो भी जानते थे कि ऐसे लोगों को जिंदा छोड़कर वो फ्यूचर के लिए खतरे को बढ़ा रहे होंगे।
शिव ने बिना उस लड़की को देखे उसको अपनी ओर खींचा और उसने और उसके पीछे आए आर्मी ऑफिसर्स ने वहां मौजूद सभी नकाबपोशों को ढेर कर दिया था, जिनमें स्टूडेंट ने भी उनकी मदद की थी। उन्हीं की हेल्प की वजह से वो बिना किसी को नुकसान पहुंचाए उन सबको मार पाए थे।
गोलियों की आवाज से वो लड़की इतनी डर गई थी कि वो शिव से चिपक गई थी। शिव ने सबको बाहर निकालने का ऑर्डर दिया। इस बीच वो ये भूल गया कि एक लड़की अब भी उसके सीने से लगी हुई थी। उसने सबको सही से बाहर निकाला।
अब वो लड़की बची थी। जब एक ऑफिसर ने उससे सवाल किया कि "क्या वो खुद उस लड़की को लेकर आएगा?" तो उसने उस लड़की को देखा, फिर ऑफिसर को देखा जो उन्हें देखकर मुस्कुरा रहा था।
शिव ने तुरंत ही उस लड़की को देखते हुए कहा, "मिस, अब आपको डरने की ज़रूरत नहीं है, आप सेफ हैं।"
उसकी आवाज सुनकर लड़की ने अपनी डरी-सहमी नज़रों से उसे देखा। उसने अब भी अपना चेहरा उसके सीने में छुपाया हुआ था, बस उसकी आंखें ही नज़र आई थीं उसे। उसने उस लड़की की आंखों में डर देखा तो आराम से बोला, "अब आप सेफ हैं, आप उनके साथ बाहर जाइए, ये आपको सही-सलामत कॉलेज के बाहर छोड़ देंगे।"
इतना कहकर उसने उसको खुद से अलग करके उस ऑफिसर की तरफ बढ़ा दिया और जब तक उस लड़की ने पलटकर उसको देखा, वो वहां से गायब हो चुका था। पूरा कॉलेज चेक करने और सबको मारने के बाद शिव भी बाहर जाने लगा।
कुछ ऑफिसर्स अब भी उसके साथ थे। उनमें से एक की नज़र उसकी शर्ट पर चली गई तो उसने गौर से देखते हुए कहा, "सर, ये क्या है?"
उसका इशारा समझकर शिव ने भी खुद को देखा तो उसकी नज़र एक झुमके पर गई जो उसकी शर्ट में फंसा हुआ था। शिव ने झुमका निकाला और उसको देखने लगा तो दूसरे ऑफिसर ने मुस्कुराकर कहा, "सर, आपको ये झुमका कहां से मिल गया?"
उसका सवाल सुनकर शिव ने उन्हें देखते हुए कहा, "सबको बचाते हुए एक लड़की मुझसे टकरा गई थी, शायद उसी का ही होगा। वैसे हमारा मिशन पूरा हो गया है जो इस झुमके पर रिसर्च करना नहीं था।"
उसकी बात सुनकर सबकी बोलती बंद हो गई। सब आगे बढ़ गए तो उनकी नज़रों से बचकर शिव ने उस झुमके को देखा तो उसे उस लड़की की डरी-सहमी सी आंखें याद आ गईं। शिव ने होंठों ही होंठों में कहा, "डरपोक।"
उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। उसने वो झुमका अपने वॉलेट में डाल लिया और बाहर चला गया। तब भी उसकी सूझ-बूझ और बहादुरी की खूब तारीफ हुई थी।
सब सोचते हुए शिव अपनी सोच से बाहर तब आया जब उसके कानों में किसी की आवाज पड़ी, "की गल ऐ कक्के, वड्डी सोहणी मुस्कान है... लगदा ऐ इश्क़ दा चक्कर चाल रह्या ऐ।"
ये आवाज सुनकर शिव वर्तमान में लौट आया।
Coming soon..........
शिव अपनी सोच से बाहर तब आया जब उसके कानों में किसी की आवाज़ पड़ी, "की गल ऐ कक्के, वड्डी सोहणी मुस्कान है... लगदा ऐ इश्क़ दा चक्कर चाल रह्या ऐ।"
ये आवाज़ सुनकर शिव वर्तमान में लौट आया। उसने सामने देखा तो एक पगड़ी बांधे एक हट्टा-कट्टा आदमी बैठा हुआ था।
शिव अभी कैज़ुअल सी शर्ट और जीन्स पहने हुए थे। उसने उन्हें देखा और मुस्कुराकर जवाब दिया, "नहीं सरदार जी, साड़ी मुहब्बत तां साडा देश है... ते इश्क़ साड़ी वर्दी। फेर किसे होर दी लोड़ ही कित्थों?"
उसकी बात सुनकर उस सरदार जी ने मुस्कुराकर कहा, "बात ता प्यार दी है। जद तुन्हें देखके लगदा है कि कहानी हले शुरू नहीं होई, पर प्यार दी चिंगारी ता उठ चुकी है। चल कोई गल नहीं; रब करे तुन्हें तेरी सच्ची मुहब्बत जलदी मिल जावे।"
उनकी बात सुनकर शिव के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। उसने झुमका वापिस अपने वॉलेट के हवाले कर दिया और बाहर के नज़ारों के मज़े लेने लगा।
करीब 13-14 घंटे का सफर था; सुबह से रात के आठ बज गए थे, तब कहीं जाकर वो नई दिल्ली रेलवो स्टेशन पर उतरा। किसी को बताया तो नहीं था, तो वहां से घर के लिए कैब ले ली।
अब उसे इंतज़ार था घर पहुंचने का। दिल्ली के ट्रैफिक के बीच से निकलकर उसे अपने घर तक पहुंचने में उसे डेढ़-दो घंटे लग गए थे। जब वो घर के बाहर वाले गेट पर पहुंचा, तब करीब 10 बज चुके थे। उसने घड़ी देखी और फिर गार्ड को नमस्ते किया तो उसने दरवाजा खोल दिया।
शिव ने घर के अंदर कदम रखा और गलियारे से होते हुए अंदर वाले गेट तक पहुंचा तो दरवाजा खुला ही था और अंदर से बातों की आवाज़ आ रही थी। उसने कुछ देर गेट पर कान लगाकर अंदर से आती आवाज़ों को सुना, फिर कुछ सोचकर मुस्कुरा उठा और पीछे की तरफ कदम बढ़ा लिया।
वहां से बालकनी चढ़ते हुए वो घर के अंदर घुस गया। बड़े ही शांति से वो वहां से कूदते-फांदते हुए ऊपर के फ्लोर पर पहुंच गया। अपने रूम में जाकर अपना बैग रखा और अपना दिल्ली वाला नंबर, जो उसके लैपटॉप में डाला हुआ था, उसे अपने फोन में डालने के बाद उसने मुस्कुराकर समर जी को फोन लगा दिया।
नीचे सबके बीच बैठे समर जी का फोन रिंग जैसे ही हुआ, उन्होंने तुरंत फोन चेक किया क्योंकि काफी लेट हो गया था; इस वक्त फोन आना कुछ नॉर्मल सा नहीं लग रहा था।
जैसे ही उन्होंने नंबर देखा, उनकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वो हैरानी से फोन को देखने लगे और इतने में फोन कटकर एक बार फिर बजने लगा।
राजवीर जी उनके बगल में बैठे थे; अब उन्होंने भी स्क्रीन पर दिख रहे नंबर को देखा तो उनकी आंखें भी बड़ी-बड़ी हो गईं। उन्होंने जल्दी से फोन लिया और पिक करते हुए बोले, "शिव?"
उनकी आवाज़ सुनकर शिव के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई, "खम्माघड़ि जीजा सा।"
उसकी खुशी के भाव में डूबी मिठी खनकती आवाज़ सुनकर राजवीर जी के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।
"खम्माघड़ि साले साहब, लेकिन आप ये सब छोड़िए और ज़रा ये बताने का कष्ट कीजिए कि आप इस वक्त हैं कहां पर?"
जहां उनकी बात सुनकर सभी उनके पास आ गए थे और शिव, वो तो आज फूल मस्ती के मूड में थे। उसने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा, "क्या जीजा सा, आप भी हमारे जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं? भला इस वक्त हम अपने बेस कैंप में न होकर और कहां होंगे?
कितना मन था हमारा इस बार घर आने का, पर हमारी मजबूरी देखिए। इतनी मेहनत करने के बाद कहीं जाकर छुट्टी मिली थी, पर हमारा अधूरा ऑपरेशन हमारे आप सबके पास आने के रास्ते में बाधा बन गया। अब आप तो जानते ही हैं न, हमारे लिए हमारा देश सबसे पहले आता है। अभी फोन में नेटवर्क आ रहे थे और कल रक्षा बंधन भी है तो हमने सोचा चित्रा से बात कर लें, वो नाराज़ होगी हमसे, पर बाबा साहब का फोन आपने उठाया, मतलब आप भी घर पर ही हैं तो अब चित्रा के साथ-साथ, शिवांगी जीजी सा से भी बात हो जाएगी।"
उसने बड़े ही सफाई से झूठ कहा और उनकी बात सुनकर राजवीर जी इतने कंफ़्यूज हो गए कि उन्होंने तीन-चार बार नंबर चेक किया, फिर कहीं जाकर वो किसी नतीजे पर पहुंचे और उन्होंने आगे बढ़ते हुए कहा, "हम अभी आपकी बात आपकी जीजी सा से करवाते हैं। वो क्या है न, वो आपसे नाराज़ होकर अपने कमरे में चली गई है तो हम भी अब वहीं जा रहे हैं। पहले आप उन्हीं से बात कर लीजिए, फिर चित्रा को मना लीजिएगा।"
वो सधे कदमों से उसके कमरे की तरफ़ बढ़ गए, पर शिव भी कहां कम था। उसने फोन में ही उनकी आवाज़ से ही पता लगा लिया कि वो कहां जा रहे हैं।
जब राजवीर जी शिव के कमरे के बाहर पहुंचे तो उन्होंने बाहर से ही आवाज़ सुनी, पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई तो उन्होंने दरवाज़ा खोलकर अंदर झांककर देखा तो रूम पूरा खाली था। वो कुछ सेकंड चुप हो गए तो दूसरी तरफ से शिव ने मुस्कुराकर कहा, "क्या बात है जीजा सा, आपको जीजी सा तक पहुंचने में बहुत वक्त लग रहा है, इतने में तो फोन ही कट जाएगा।"
उसकी बात सुनकर राजवीर जी ने मन में कहा, "आप यहीं कहीं हैं, बस हमें परेशान कर रहे हैं। ठीक है, अगर आप हमारे साले साहब हैं, हम भी आपके जीजा सा हैं, आपको तो हम ढूंढकर ही रहेंगे।"
उन्होंने बालकनी में जाकर देखा तो वो भी खाली था। अब वो रूम से बाहर निकल गए और आस-पास आवाज़ को सुनने की कोशिश करते हुए बोले, "शिव, आपने हमें अभी तक ये नहीं बताया कि आपने शादी के लिए मां साहेब को हाँ किया या नहीं?"
उनकी बात सुनकर शिव ने दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा, "ये बात आपको हमसे पूछने की ज़रूरत है क्या जीजा सा?"
उसकी आवाज़ में छुपा दर्द राजवीर जी पल में भांप गए और उन्होंने एकदम गंभीर होकर कहा, "शिव, क्या आप इस रिश्ते से खुश नहीं हैं?"
शिव ने एक बार फिर मुस्कुराकर जवाब दिया, "आप सबकी खुशी में ही हमारी खुशी है और हम जानते हैं कि इस रिश्ते से आप सभी खुश हैं तो हम भला क्यों खुश नहीं होंगे?"
राजवीर जी ने अब ऊपर के फ्लोर पर हर जगह देख लिया तो उन्होंने सीढ़ियों से नीचे जाते हुए कहा, "शिव, हमने आपकी खुशी पूछी है। वैसे हम आपसे ये सवाल तब करेंगे जब आप एक बार गौरी से मिल लेंगे, क्योंकि जहां तक हम आपको जानते हैं, हमें पूरा विश्वास है कि गौरी आपको ज़रूर पसंद आएगी।"
शिव अब चुप रह गया। कुछ यहां-वहां की बात करते हुए राजवीर जी ने नीचे भी चेक किया; सब कंफ़्यूज से बस उन्हें ही देख रहे थे। अब उन्होंने गेट से बाहर कदम रखते हुए कहा, "शिव, हम जानते हैं आप यहीं हैं, राठौर मेंशन में, बस हमें तंग कर रहे हैं। हम आपको बता रहे हैं, आप अभी और इसी वक्त हमारे सामने आ जाइए, वरना हम आपसे बात नहीं करेंगे।"
उनके इतना कहते ही पीछे से आवाज़ आई, "इत्तो ज़ुल्म कोनी करो जीजा साहेब।"
आवाज़ सुनते ही राजवीर जी पलटे, उनके ठीक पीछे शिव खड़ा था। उन्हें देखते ही राजवीर जी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई। उन्होंने अपनी बाहों को फैलाकर कहा, "आ जाइए शिव, आपके गले लगने को हमारा दिल जाने कब से बेकरार है। कितनी ही बातें बतानी हैं हमें आपको, बस आपके आने का ही इंतज़ार था हमें और हम जानते थे कि आप आज या कल यहां ज़रूर आएंगे, इसलिए हम भी यहां आ गए।"
उनकी बात सुनकर शिव के चेहरे पर भी प्यारी सी मुस्कान फैल गई। उसने जाकर पहले उनके पैर छूकर खम्माघड़ि कहा, फिर राजवीर जी ने उन्हें अपने गले से लगाकर कहा, "जब-जब आप सही-सलामत घर लौटते हैं, तब तक हमें लगता है जैसे हमारा एक नया जन्म हो गया हो।"
दोनों गले लगे हुए ही थे कि तभी उनके कानों में अनुराधा जी की आवाज़ पड़ी, "....मदादेव.....महारा बेटा.....महारा लाडेसर.....शिव....."
अनुराधा जी तो उसे वहां देखकर इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह शब्द भी टुकड़ों में ही निकले। उनकी आवाज़ सुनकर दोनों ने पीछे देखा तो पीछे सभी खड़े थे और नम आंखों और होंठों पर मुस्कान सजाए उन्हें ही देख रहे थे।
शिव होंठों पर मुस्कान लिए अनुराधा जी की तरफ़ बढ़ गया और उनके पैर छूते हुए कहा, "खम्माघड़ि मां साहेब।"
अनुराधा जी ने उसके सर पर हाथ रखकर भारी गले से कहा, "महादेव आपको दीर्घायु दे.....आपकी हर इच्छा पूरी करे।"
उनकी बात सुनकर शिव सीधा खड़ा हुआ और उन्हें देखकर मुस्कुराकर बोला, "हम यहां आप सबके सामने हैं; हमारी सारी इच्छा तो महादेव ने पहले ही पूरी कर दी है।"
उसकी बात सुनकर अनुराधा जी ने मुस्कुराकर उसके माथे को चूम लिया। दोनों को बिज़ी देख समर जी ने अपना गला खंगालते हुए कहा, "हमारा भी बेटा इतने महीनों बाद ही लौटा है और हम भी उनका इंतज़ार कर रहे थे।"
To be continued…
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