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SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤

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Darshana Patel

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इस Story Mania प्लेटफॉर्म पर ये मेरी पहली कहानी है। उम्मीद करती हूँ, आप सबको पसंद आएगी! इस कहानी को अपना प्यार देते रहियेगा। ये कहानी है, शिवाय और मोहोब्बत की। जो है एक-दूसरे से दूर, फिर भी किस्मत ने उन्हे एक-दुसरे के सामने लाकर खडा कर दिया। ए...

Total Chapters (69)

Page 1 of 4

  • 1. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 1

    Words: 3020

    Estimated Reading Time: 19 min

    मोहोब्बत त्रिपाठी

    बड़ौदा, गुजरात

    वडोदरा, जिसे बड़ौदा भी कहा जाता है, भारत के गुजरात राज्य का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। गुजरात के उसी बड़ौदा शहर के एक बंगले में, जो ना ही ज़्यादा बड़ा था और ना ही इतना छोटा, उसकी सारी चीज़ों का काम बहुत ही खूबसूरत तरीके से किया गया था। वहाँ के गार्डन की देखभाल भी बहुत सुंदर तरीके से की गई थी। गार्डन भले ही ज़्यादा बड़ा नहीं था, पर बहुत खूबसूरत था। उसी घर के मेन गेट की दीवार पर एक बोर्ड पर सुंदर अक्षरों में लिखा हुआ था "त्रिपाठी निवास"।

    उस घर के अंदर का नज़ारा भी बहुत मनमोहक था। सारी चीज़ों को बहुत ही सलीके से सजाया गया था। घर के बाहर के हॉल में बैठकर कुछ लोग बातें कर रहे थे। तब उनमें से एक आदमी ने किचन की तरफ़ देखते हुए एक लड़की को आवाज़ देकर कहा, "माहू बेटा, जरा दो कप चाय लाना तो।"

    वही किचन में एक लड़की, जिसने स्ट्रिप्स वाली येलो टी-शर्ट, ब्लैक लॉन्ग स्कर्ट और गले में स्कार्फ लपेटा हुआ था और बालों की हाई पोनी बनाई हुई थी, कुछ बालों की लटें उसके गालों पर झूल रही थीं। जो गाना गुनगुनाती हुई खाना बना रही थी, वह आवाज़ देते हुए कहती है, "जी लाई बड़े पप्पा।" यह कहकर उसने एक पतीला लेकर उसमें पानी लेकर गैस ऑन करके चाय चढ़ाना शुरू कर दिया।

    वह लड़की इतनी हड़बड़ाहट में थी जैसे उसे और भी बहुत काम थे। तब उसका फ़ोन बजता है। वह लड़की किचन स्लैब से अपना फ़ोन उठाकर अपने कान पर रखते ही सामने से आवाज़ आई, "अरे जीजी, आप अभी तक आई नहीं? यहाँ कस्टमर मोहनथाल का ऑर्डर देने आया है और आपसे मिलना चाहते हैं, तो आप जरा बात कर लीजिये उनसे ताकि उन्हें तसल्ली हो जाए।"

    "हाँ हाँ शांतनु, मुझे याद है। मैं बस अभी आई। ये कुछ मेहमान आए हैं। उन्हें चाय-नाश्ता देकर बस अभी आई, ओके?" यह कहकर उसने कॉल कट कर दिया।

    तब उसके पास खड़ी औरत उसके सर पर हाथ रखकर कहती है, "बेटा, तू कितना काम करेगी! ला ये मैं कर देती हूँ। तू जाकर थोड़ा आराम कर। कल रात भी मिठाई के बॉक्स को पैक करके आने में देरी की वजह से ठीक से सो भी नहीं पाई थी।"

    "क्या मम्मी, मैं अगर काम करती हूँ तो क्या आप काम नहीं करती! पूरे घर का काम आप, चाची और बड़ी माँ ही तो करती हैं। मैं तो कभी-कभार ही शॉप से फ़्री होती हूँ तभी मदद कर देती हूँ। तो आराम तो आपको, चाची और बड़ी माँ को करना चाहिए।"

    तब दूसरी औरत (बड़ी माँ) पहली औरत को देखकर कहती है, "देख तो आराधना, कौन कहेगा कि हमारी ये गुड़िया इतनी बड़ी और समझदार हो गई है। जो अपनी माँ, चाची और बड़ी माँ से कितनी समझदारी वाली बातें कर रही है!"

    "हाँ देव्यानी जीजी, बेटियों को बड़े होने में देर ही कहाँ लगती है! पहले हमारी वेदिका हमें छोड़कर अपने ससुराल चली गई और अब हमारी ये गुड़िया भी कुछ समय में चली जाएगी।"

    देव्यानी (बड़ी माँ) हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "हम्म्म, यही तो बात है। बेटियों को बड़े होने में वक़्त ही कहाँ लगता है! कुछ ही समय में ये भी हमें छोड़कर चली जाएगी।" यह कहते हुए दोनों की आँखें नम हो जाती हैं।

    "अरे-अरे ये कहाँ से कहाँ पहुँच गई आप दोनों! मैंने तो सोच लिया है, मुझे शादी ही नहीं करनी ताकि आप सबको छोड़कर कहीं जाना ही ना पड़े, सिंपल।"

    तब उसकी चाची, जिसका नाम अर्पिता था, वह कहती है, "ओहो....देखो तो जरा। कहती है कि शादी नहीं करनी। भई शादी नहीं करेगी तो बेचारे हमारे जमाई समर्थ का क्या होगा जिससे सगाई करके बैठी है? हाँ, ये बात ज़रूर है कि अगर ये कहेगी कि घर जमाई बन जा तो वो बेचारा खुशी-खुशी बन जाएगा।"

    "क्या चाची आप भी, मुझे ऐसे चिढ़ाइए मत। बहुत जल्दी है आप सबको मुझे खुद से दूर करने की? जाओ, मैं आप में से किसी से बात नहीं करूँगी।" उसकी बात सुनकर तीनों औरतें हँसकर उसे गले लगा लेती हैं। वह लड़की भी मुस्कुरा देती है।


    कुछ देर बाद अर्पिता और वह लड़की चाय और नाश्ता लेकर बाहर हॉल में आ गए। तब वही सोफ़े पर बैठा आदमी, जो मेहमान बनकर आया है, वह उस लड़की के पिता से कहता है, "तो सुधीर भाई साहब, इस बार की सारी मिठाइयाँ आपकी दुकान से आएंगी। और एक बात, आपकी बेटी जो सजावट का काम जानती है तो उसे भी भेज देना। मेरे घर की इस शादी के सभी फ़ंक्शन की सजावट का सारा ज़िम्मा उसे ही लेना है।"

    सुधीर के सामने अपनी बात रखकर वह आदमी लड़की को देखकर कहता है, "क्यूँ मोहब्बत बिटिया, आओगी ना?"

    मोहब्बत मुस्कुराकर कुछ कह पाती, उससे पहले सुधीर मुस्कुराकर कहता है, "जी ये भी कोई कहने की बात है महेश भाई साहब। आपकी बेटी यानी हमारी बेटी। अरे ऐसी मिठाइयाँ भिजवाएँगे कि आपके सारे मेहमानों का पेट भर जाएगा पर मन नहीं। (फिर थोड़ा हिचकिचाकर) लेकिन सजावट की ज़िम्मेदारी मेरी बेटी को देना, आपको नहीं लगता ये रिस्की होगा? आपके मेहमान बड़े और ऊँचे खानदान वाले होंगे और उन्हें अगर मेरी बिटिया की करी हुई सजावट नहीं पसंद आई तो आपका नाम खराब होगा।"

    मोहब्बत भी सुधीर की बात समझते हुए हाँ में अपना सर हिला देती है।

    "अरे आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिये। मुझे बिटिया पर पूरा भरोसा है, वो कर लेगी। और देखिये, अगर उसकी की हुई सजावट वहाँ के आए हुए मेहमानों को पसंद आई तो उसे और भी ऑर्डर मिल सकते हैं। मुंबई से आ रही है ये बारात। ये मोहब्बत बिटिया के लिए अच्छा मौका है। आपको ये मौका छोड़ना नहीं चाहिए। क्या पता कब, कहाँ, कैसे किस्मत पलट जाए!"

    महेश भी एक मिडिल क्लास फैमिली से था, जिस वजह से बड़े-बड़े इवेंट वालों को बुलाकर इतना खर्चा अफोर्ड नहीं कर सकता था। इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना मोहब्बत को ये मौका देकर देखे!

    तब सुधीर के पास बैठे उसके बड़े भाई यशदीप जी कहते हैं, "महेश सही कह रहा है सुधीर। हमारी माहू ज़रूर जाएगी भी और अपनी कला ज़रूर दिखाएगी। हमें अपनी गुड़िया पर पूरा भरोसा है।"

    "ठीक है, तो आप सभी शादी में इनवाइटेड हैं और हाँ मोहब्बत बिटिया को जल्दी भेज देना। अब हम भी चलते हैं। और जगह भी कार्ड बाँटने जाना है। मिठाइयों की लिस्ट हम सीधा दुकान में ही भिजवा देंगे और रेडी होते ही भिजवा देना।"

    यह कहकर वह और उसके पास बैठा एक और आदमी वहाँ से उठकर दोनों के सामने हाथ जोड़कर निकल गए।

    उनके जाने के बाद सुधीर चिंता जताते हुए यशदीप जी से कहता है, "भाई साहब, क्या ये सही होगा? आपने हाँ क्यों कहा?"

    यशदीप जी मोहब्बत के पास आकर उसे साइड से गले लगाते हुए कहते हैं, "हाँ तो क्या तुम्हें शक है हमारी गुड़िया पर? पर हमें तो पूरा भरोसा है, वो कर लेगी। क्यूँ गुड़िया?" यह कहते हुए वो मोहब्बत को देख रहे थे।

    "जी बड़े पप्पा, ये भी कोई पूछने की बात है?"

    "वो तो ठीक है पर कोई गड़बड़ हो गई तो! लोग तो इसे ही दो बाते सुनाएँगे और मैं अपनी बच्ची पर किसी की ऊँची आवाज़ तक बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

    मोहब्बत उसके पास जाकर उसके दोनों गालों को पकड़कर हल्का खींचते हुए मुस्कुराकर कहती है, "अरे मेरे प्यारे-प्यारे पप्पा जी, जब तक मैं आपकी छत्रछाया में हूँ मुझे कोई आँच आ ही नहीं सकती। आप तो रहेंगे ही ना वहाँ मेरे साथ, फिर मुझे कैसा और किसका डर? अब आप ज़्यादा मत सोचिये ओके?"

    सुधीर हल्का मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ रखकर उसके सर को चूमकर कहता है, "अगर तुम खुश हो तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।"

    मोहब्बत खुश होकर उसके गले लग गई। सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

    मोहब्बत फिर कुछ याद आते ही अपने सर पर हाथ रखकर कहती है, "ओह नो, मुझे तो शॉप पर जाना है। शांतनु के चार बार फ़ोन आ चुके हैं, आती हूँ पप्पा...बाय।" यह कहकर वह भागते हुए अपने रूम में जाकर अपना बैग लेकर हड़बड़ाहट में निकल गई।

    यशदीप जी उसे जाते हुए देखकर नाँ में अपना सर हिलाकर मुस्कुराकर कहते हैं, "पता नहीं इतनी ताकत लाती कहाँ से है ये लड़की? घर के काम में भी मदद करती है, हमारे साथ शॉप भी संभालती है और साथ ही साथ छोटे-मोटे फ़ंक्शन में साज-सजावट भी कर लेती है।"

    "अब आप पर जो गई है भाई साहब। वो क्या कहता है हमारा अथर्व कि माही हमारे घर में बेटी के रूप में सामान्य लड़की नहीं बल्कि 100 हाथियों का बल लेकर गदाधारी लेडी भीम पैदा हुई है।"

    यह सुनकर सभी हँस दिए। सारी औरतें वहीं बाहर बैठकर बातें करने लगीं। यशदीप जी और सुधीर भी अब शॉप के लिए निकल गए।


    तो आइए जानते हैं त्रिपाठी परिवार के बारे में, जो रहते हैं बड़ौदा शहर में। जॉइंट फैमिली में रहने वाली मिडिल क्लास और सादगी से रहने वाली फैमिली है। जिनकी दो अपनी दुकानें हैं। एक मिठाई की दुकान जिसे सुधीर (मोहब्बत के पापा) और यशदीप जी (मोहब्बत के बड़े पापा) मिलकर संभालते हैं।

    वहीं उनकी ही मिठाई की शॉप के बाजू में उनकी एक और शॉप है किराने की जहाँ हर तरह का किराने का सामान मिलता है जिसे अमरदीप (मोहब्बत के चाचा) संभालते हैं।

    मोहब्बत त्रिपाठी, जैसा नाम वैसे ही गुण। सबको मोहब्बत करने वाली और सबके दिल में मोहब्बत भरने वाली लड़की। जो है 24 साल की, गोरा रंग, काले नैन-नक्ष, लंबे हल्के बरगंडी हेयर जो थोड़े कर्ली हैं।

    दिखने में किसी अप्सरा से कम नहीं। मन पानी की तरह साफ़ और स्वभाव से थोड़ी चंचल, मासूम, और दयालू पर एक बात उसने अपने बड़े पापा से सीखी है कि गलत कभी नहीं सहना चाहिए और उसी के चलते वह भले डरते हुए ही सही पर कई बार लोगों से भीड़ चुकी है। पर इसका मतलब ये भी नहीं है कि ये बहुत ज़्यादा बहादुर है।

    उसके परिवार में उसके बड़े पापा (यशदीप त्रिपाठी), बड़ी माँ (देव्यानी त्रिपाठी), माता-पिता (आराधना और सुधीर त्रिपाठी), चाचा-चाची (अमरदीप और अर्पिता त्रिपाठी)।

    यशदीप और देव्यानी की सिर्फ़ एक बेटी है वेदिका जो शादी करके अपने घर जा चुकी है।

    वहीं सुधीर और आराधना की एक बेटी मोहब्बत और दूसरा बेटा अथर्व जो मोहब्बत से बड़ा है। जो बैंगलोर में अपना एक छोटा-मोटा कैफ़े कम रेस्टोरेंट चलाता है, जो अच्छा-खासा चल रहा है। उसका भी एक पास्ट है जिसे भुलाने के लिए वो यहाँ से सबसे दूर चला गया था।

    अथर्व का बड़ौदा में काफ़ी बोल-बाला है। उसके रहते आज तक किसी ने मोहब्बत को सामने से छेड़ने की या उस पर गलत नज़रें उठाने की हिम्मत नहीं की।

    मोहब्बत में जान बसती है अथर्व की। इसी के चलते मोहब्बत उसी के नाम की धमकी देकर लोगों को डरा दिया करती है और खुद को बहादुर साबित कर देती थी। 😛

    वहीं अमरदीप और अर्पिता का भी एक बेटा है ओम त्रिपाठी जो अपना 12th कम्प्लीट कर अभी मुंबई की कॉलेज में फ़र्स्ट ईयर में कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है और वहीं होस्टल में भी रहता है।

    ओम हमेशा से शरारती रहा है। उसकी शरारत के चलते उसके परिवार वालों को कई बार लोगों की बातें सुननी पड़ती थीं। उसे बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ है यशदीप जी और देव्यानी जी का। वो छोटा था इसलिए सबका लाड़ पा ही लेता था पर फ़िलहाल सारे बच्चे बाहर होने की वजह से उन सबके हिस्से का लाड़-प्यार अपने बड़ों से मोहब्बत अकेली बटोर लेती थी।

    सभी की लाडली थी वो इस घर में। जिसकी आँखों में एक आँसू तक बर्दाश्त नहीं था किसी को।


    वहीं अहमदाबाद के एक होटल के कमरे में एक लड़की की सिसकियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। वह इस वक़्त किसी के साथ अपना बेड शेयर कर रही थी।

    AC ऑन होने के बावजूद भी दोनों पसीने से भीगे हुए कम्बल में एक-दूसरे की बाँहों में खोए हुए थे। दोनों एक-दूसरे के प्यार में डूबे हुए थे। उस लड़के की तेज बाइट से लड़की की चीख निकल जाती थी।

    कुछ देर बाद वो लड़का उससे दूर होकर उसके पास लेटकर ऊपर सीलिंग की ओर देखकर गहरी साँसें लेने लगता है।

    वही वो लड़की हल्के से ऊपर उठकर उस लड़के के सीने पर सर रखकर उसके सीने पर उंगली चलाते हुए कहती है, "ये सब कब तक चलेगा समर्थ? ऐसे रोज़-रोज़ छुपकर मिलना सही नहीं है। तुम कब अपनी फैमिली से बात करोगे हमारे बारे में?"

    समर्थ बिना उसकी बात का जवाब दिए साइड से सिगरेट लेकर उसे जलाकर कश लेते हुए सीधे मुद्दे पर आते हुए कहता है, "मुझे मोहब्बत से शादी करनी होगी, सना।"

    "ओह, तो क्या इतने साल की दोस्ती में तुम उससे प्यार कर बैठे हो?"

    समर्थ सिगरेट का कश लेते हुए कहता है, "नो सना। तुम जानती हो मैं उससे शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि वो मेरे पेरेंट्स की पसंद है। मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि मेरे पेरेंट्स ने कहा है कि अगर मैं मोहब्बत से शादी नहीं करूँगा तो वो मुझसे सारे रिश्ते तोड़ देंगे। उनसे रिश्ता तोड़ना मतलब सब कुछ छोड़ना। और मैं ये अफ़ोर्ड नहीं कर सकता। मैं अपनी फैमिली और अपनी प्रॉपर्टी दोनों में से किसी को नहीं छोड़ सकता।"

    "इसका मतलब है कि ये सब उस मोहब्बत की वजह से हो रहा है ना? उसकी तो मैं...."

    समर्थ बीच में रोककर तेज आवाज़ में कहता है, "जस्ट शटअप, सना। ख़बरदार अगर उसके बारे में कुछ भी ऐसा-वैसा कहा तो!"

    सना डरते हुए चुप होकर नम आँखों से उसे देखकर कहती है, "इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नहीं करते?"

    समर्थ सिगरेट नीचे फेंककर उसका चेहरा अपने हाथों में थामकर प्यार से कहता है, "नो सना, आई ओनली लव यू। मोहब्बत सिर्फ़ मेरी अच्छी दोस्त है क्योंकि हमारे पेरेंट्स एक-दूसरे के अच्छे दोस्त हैं। बचपन से ही मेरे डैड ने सुधीर अंकल से मोहब्बत को अपने घर की बहू बनाने का वादा कर दिया था। इन सब में मोहब्बत की तो कोई गलती भी नहीं है। वो तो बेचारी कुछ जानती भी नहीं है। उसने भी सिर्फ़ हमारे बड़ों का मान रखकर इस शादी के लिए हाँ की है। मोहब्बत बहुत अच्छी, पाक दिल और केयरिंग लड़की है। अगर मुझे तुमसे प्यार नहीं होता ना, तो मोहब्बत जैसी लड़की को लाइफ़ पार्टनर के रूप में पाकर मैं खुद को बहुत बड़ा किस्मत वाला समझता। पर द ट्रुथ इज़ कि वो सिर्फ़ मेरी दोस्त बन सकती है, मेरी बीवी नहीं। शादी के बाद मेरी ज़िंदगी में कुछ नहीं बदलेगा। तुम मेरे लिए मेरा पहला प्यार थी, हो और हमेशा रहोगी।"

    "क्या ये मोहब्बत के साथ धोखा नहीं होगा, समर्थ?"

    समर्थ मायूस होकर गहरी साँस लेकर कहता है, "जानता हूँ, बहुत बड़ा धोखा दे रहा हूँ मैं उसे, पर हम दोनों की फैमिली की खुशी के लिए मैं ये सब कर रहा हूँ। शादी के बाद मैं उसे सारी सच्चाई बता दूँगा, फिर उसका फ़ैसला होगा कि उसे आगे क्या करना है!"

    सना हाँ में अपना सर हिलाकर उसके सीने से लग जाती है। समर्थ उसे अपनी बाँहों में भरकर अपनी आँखें बंद कर देता है।

    वही सना अभी भी गहरी सोच में थी। वह मन ही मन कहती है, "रिश्ता चाहे जिस वजह से भी जुड़ रहा हो, पर धोखा तो धोखा होता है समर्थ। शादी के बाद कोई भी बीवी ये नहीं सह पाएगी कि उसका पति किसी और से नाता रखे। हे भगवान, कुछ ऐसा कीजिये कि ये शादी हो ही ना। मोहब्बत को कोई ऐसा मिल जाए जो उसे खुद से कभी दूर ना करे और उसे इतनी शिद्दत और जुनून वाला प्यार करे कि मोहब्बत चाहकर भी उससे कभी दूर ना हो पाए।"

    यही सब सोचकर वह समर्थ को देखकर मुस्कुराकर उसके गाल पर किस करके उससे लिपटकर अपनी आँखें बंद कर देती है।

  • 2. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 2

    Words: 2679

    Estimated Reading Time: 17 min

    मुंबई के एक जाने-माने 7 स्टार होटल के पार्टी हॉल में संगीत की हल्की धुन गूंज रही थी। पूरे हॉल को बेहद खूबसूरती से सजाया गया था और एक तरफ बहुत बड़ा स्टेज बनाया गया था जहाँ दो किंग चेयर्स बेहद खूबसूरती से सजी हुई थीं। उन पर दो लोग बैठे हुए थे। एक के चेहरे पर खुशी झलक रही थी, जबकि दूसरे के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, जैसे वह इन सब चीजों से चिढ़ रहा था।

    वह लड़की, जिसके हाथ में अभी-अभी उसके पास बैठे लड़के ने अंगूठी पहनाई थी, उस अंगूठी को देखकर खुशी से बोली, "I don't believe Shivaay that we are engaged!"

    उसके पास बैठा लड़का, बिना भाव से सामने देखते हुए बोला, "तो मत करो।" उसने इतना रूखा जवाब दिया जैसे उसे उसकी बात सुनकर कोई खुशी नहीं हुई थी।

    लड़की ने मुँह बनाकर कहा, "क्या शिवाय, आज हमारी सगाई हुई है और तुम्हारे चेहरे पर जरा सी भी खुशी नहीं है!"

    शिवाय रूखेपन से बोला, "तुम जानती हो क्या? मैं यह शादी सिर्फ और सिर्फ अपने दादा जी की जिद की वजह से कर रहा हूँ। मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि मुझसे किसी बात की उम्मीद मत रखना। हम सिर्फ दोस्त थे और हमेशा वही रहेंगे, इससे आगे और कुछ नहीं। मेरी तुम्हें लेकर कोई गलत सोच नहीं है।"

    शिवाय की बात सुनकर क्यारा मायूस हो गई और उसका हाथ थामकर प्यार से बोली, "What happened Shivaay? हमारे दादू-दादी एक-दूसरे के बेस्ट फ्रेंड्स हैं। उनकी वजह से हमारे पेरेंट्स भी फ्रेंड्स बने और We also are friends from childhood. हमारी जोड़ी परफेक्ट होगी। दोस्ती में भी और एक husband-wife के तौर पर भी। सोचो, मैं एक सेलिब्रिटी और तुम बिजनेस टायकून, हम बेस्ट कपल कहलाएँगे....तुम देखना।"

    तब शिवाय इस बात को अनसुना करके कहीं खो सा गया। उसकी आँखों के सामने कुछ धुंधली यादें ताज़ा हो गईं।

    "एक लड़की कहीं से आकर अचानक से उसके गले लग गई और फिर उससे अलग होकर उससे शिकायत करते हुए कुछ कहने लगी। उसकी आँखों में मासूमियत के साथ-साथ हल्का गुस्सा और प्यार झलक रहा था।"

    शिवाय अपने होश में आया और क्यारा को देखा, जो उसे हैरानी से देखकर बोली, "कहाँ खो गए शिवाय? मैं कब से बोल रही हूँ! तुम कुछ रिएक्ट ही नहीं कर रहे हो। क्या बात है, क्या सोच रहे थे?"

    शिवाय गहरी साँस लेकर वहाँ से उठते हुए बोला, "Nothing, I want to go." यह कहकर वह जाने लगा।

    क्यारा भी उठकर उसे रोकते हुए बोली, "What are you saying Shivaay?"

    उन दोनों को स्टेज से उतरते हुए देखकर एक औरत उनके पास आई और दोनों को बारी-बारी से सवालिया निगाहों से देखकर बोली, "क्या हुआ शिवू-क्यारा बेटा? तुम दोनों उठ क्यों गए? अभी हमारे कुछ करीबी मेहमान मिलने आ रहे हैं।"

    क्यारा मायूस सा चेहरा बनाते हुए बोली, "सासू मॉम, ये देखो ना शिवाय जा रहा है।"

    औरत सीरियस होकर शिवाय को देखने लगी। शिवाय चिढ़ते हुए बोला, "अब क्या है, मॉम? फंक्शन खत्म हो गया है। सगाई होनी थी, हो चुकी। नहीं मिलना मुझे किसी से, अब मुझे काम है। I have to go to the office."

    क्यारा उसे हैरानी से जाते हुए देखती रही कि कोई अपनी सगाई के दिन भी ऐसे-ऐसे फंक्शन बीच में छोड़कर जा सकता है!

    औरत (शिवाय की माँ) के कुछ बोलने से पहले ही एक और औरत उसके पास आकर शिवाय को देखकर हैरानी से बोली, "ये क्या शिवाय! आज के दिन तो काम को एक तरफ रख। सगाई तेरी ही है, जानता है ना तू! अरे ये तो तुमने सिर्फ घर के मेहमानों को ही बुलाने को कहा था, वरना तो आज न्यूज़पेपर के हर एक पन्ने पर और न्यूज़ चैनल पर एक ही हेडलाइन होती कि The Shivaay Singh Oberoi billionaire CEO की सगाई एक मशहूर सेलेब्रिटी की बेटी क्यारा महेश्वरी, जो खुद एक जानी-मानी अभिनेत्री है, के साथ हो चुकी है। अरे आज पूरे इंडिया में सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे ही चर्चे हो रहे होते। पर पता नहीं तुमने ये सगाई सीक्रेट क्यों रखी है, अभी तक?" यह कहकर वह मुस्कुराने लगी।

    शिवाय बिना भाव से उसे देखकर बोला, "मेरे लिए मेरा काम ज़्यादा ज़रूरी है, बुआ जी। मैं अपने काम को लेकर कोई लापरवाही नहीं करता। इस वक्त मुझे इस न्यूज़ को किसी के सामने बाँटने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। और रही बात मीडिया की तो मैं किसी के सामने दिखावा नहीं कर सकता और ना ही मुझे किसी के भी चर्चा का विषय बनने का कोई शौक है। जब सही वक्त आएगा तब खुद-ब-खुद सबको पता चल जाएगा, पर अभी सही वक्त नहीं है।"

    बुआ जी हाँ में अपना सिर हिलाकर बोलीं, "हाँ हाँ बेटा, पर..."

    उसे बीच में रोकते हुए एक लड़का, जो करीबन 30-31 साल का था, उनके पास आकर बोला, "अरे आप सब क्यों मेरे भाई के पीछे पड़े हुए हैं! वो जाना चाहता है तो उसे जाने दीजिए ना। सगाई होनी थी, हो चुकी ना, तो अब उसका यहाँ क्या काम? वैसे भी हम सबको पता है कि उसे ये सब तामझाम पसंद नहीं है।"

    शिवाय की माँ शिकायत करते हुए बोली, "हम्म्म, एक तेरी ही कमी थी, अब तू भी बोल दे। तूने ही इसे अपने सर पर चढ़ा रखा है, संस्कार।"

    संस्कार मुस्कुराकर ना में अपना सिर हिलाकर मज़ाकिया अंदाज़ में बोला, "अरे-अरे माँ, ये आप क्या कह रही हैं? मैं The great Shivaay Singh Oberoi को अपने सर पर बिठाऊँ! मेरी इतनी कहाँ औकात! मैं तो ठहरा एक सीधा-सीधा सा कॉलेज का प्रोफ़ेसर। मैं तो इनके सामने कुछ भी नहीं हूँ।"

    शिवाय उसे देखकर सीरियस होकर बोला, "भाई, प्लीज। ये सब बातें मत कीजिए। आई डोंट लाइक इट। आप मेरे लिए क्या हो ये आप भी नहीं जानते। आज की बात ये औकात की बात मेरे सामने कभी मत करना वरना...."

    संस्कार अपनी गलती मानते हुए बोला, "अरे शांत मेरे भाई, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था, तू तो सीरियस हो गया।"

    शिवाय उसे हल्का गुस्सा दिखाते हुए बोला, "और पहले आप ये बताइए, आपका कब तक यहाँ टाइमपास करने का इरादा है? घर पर भाभी अकेली है ना, तो उनके पास अभी आपका होना ज़्यादा ज़रूरी है। इस वक्त इस कंडीशन में उन्हें आपके साथ की ज़रूरत है और आप हैं कि..."

    संस्कार उसे रोकते हुए तुरंत बोला, "अरे मेरे भाई, आपकी उस पूजनीय भाभी जी ने ही मुझे ज़बरदस्ती यहाँ भेजा है। उनका कहना है कि उनके बेटे जैसे देवर की आज सगाई है तो वो खुद यहाँ आ नहीं सकती, पर मुझे तुम्हारे साथ ही रहना है। अब हेड कमांड का ऑर्डर मैं फॉलो नहीं करूँगा तब भी तुम मुझे ही सुनाओगे। अब तू ही बता, मैं बेचारा कहाँ जाऊँ? बीन पेंदे के लोटे की तरह यहाँ से वहाँ झूलता रहता हूँ। क्या ज़िन्दगी हो गई है मेरी, तुम दोनों देवर-भाभी के बीच में फँसकर!"

    शिवाय अपना सिर हिलाकर बोला, "ओके, अब तो सब हो गया ना तो बस अब आप भी घर चलिए। यहाँ ये सब संभालने के लिए सब हैं। इनसे ज़्यादा इस वक्त भाभी की केयर करना ज़रूरी है। डॉक्टर ने कहा है ना कि उनका ध्यान रखना है। अब वो तो सबका ख्याल रखेगी पर खुद का ख्याल तो उनसे रखा नहीं जाता। मैं नहीं चाहता कि इस बार आपकी इन आने वाली खुशियों को किसी की भी नज़र लगे।"

    संस्कार उसके कंधे को थपथपाते हुए बोला, "अरे जब तेरे जैसा भाई हो हमारे साथ तो हमारी खुशियों को किसी की नज़र कैसे लग सकती है! तू है ना अपनी भाभी का लाडला, मैं जानता हूँ तू अपनी भाभी, माँ और अपने आने वाले छोटे भतीजे या भतीजी को कुछ नहीं होने देगा। ठीक है, चल चलते हैं। रास्ते से मुझे वो क्या कहते हैं, बुढ़िया के बाल भी लेने हैं। मेडम को अचानक से बुढ़िया के बाल खाने की इच्छा हो गई है, बोलो। अब पता नहीं कौन सी बुढ़िया अपने बाल देने को तैयार होगी?" यह कहकर वह हल्का हँस दिया।

    उसकी बात पर बुआ जी हँसकर बोलीं, "क्या संस्कार बेटा, तुम भी अच्छा मज़ाक कर लेते हो।"

    संस्कार उसे टौंट कसते हुए बोला, "क्यों बुआ जी, मज़ाक करने का और लोगों को ताने मारने का हक सिर्फ आपका ही है? हम बच्चे मज़ाक नहीं कर सकते?"

    बुआ जी की मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई। तब संस्कार की माँ उसे गंभीर होकर बोली, "संस्कार ये क्या तरीका है अपनी बुआ से बात करने का?"

    संस्कार के कुछ बोलने से पहले शिवाय ने कहा, "भाई आप आ रहे हो या मैं जाऊँ?"

    संस्कार तुरंत उसका हाथ पकड़कर बोला, "अरे हाँ हाँ, चल जल्दी। कहीं शॉप बंद ना हो जाए!"

    शिवाय हाँ में अपना सिर हिलाकर बोला, "हाँ, पर वो कहीं से भी ऐसी-वैसी जगह से नहीं आएगी। वहाँ की सफाई का काम पहले मैं पूरा देखूँगा। फिर उन्हें मिलेगी ये candy floss."

    संस्कार उसकी बात मानते हुए बोला, "जो हुक्म मेरे आका, तुमसे आज तक कोई जीता है जो मैं जीतूँगा! चल अब।"

    संस्कार जानता था कि शिवाय बचपन से ही जिद्दी था। वह अपने मन की ही करेगा। शिवाय भी हल्का मुस्कुराते हुए उसके साथ जाने लगा। तब क्यारा उसे रोकते हुए उसकी बाजू पकड़कर बोली, "शिवाय तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो और वो भी हमारी सगाई वाले दिन? This is not fair," यह कहते हुए उसका चेहरा सीरियस था। न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था।

    शिवाय अपनी बाजू पर एक नज़र डाला और उसका हाथ हटाते हुए बोला, "मेरे भैया-भाभी मेरी दुनिया हैं क्यारा और उनके लिए मैं किसी को भी छोड़ सकता हूँ। Now leave me."

    कहकर वह वहाँ से निकल गया। संस्कार एक नज़र क्यारा के उतरे हुए चेहरे को देखकर फिर शिवाय के पीछे चला गया।

    क्यारा उस ओर देखते हुए मन ही मन बोली, "ये कानल (संस्कार की पत्नी) भाभी ने पता नहीं क्या जादू किया है तुम पर कि पूरे दिन बस तुम उसकी माला झपते रहते हो! अरे दुनिया में वो कोई नई-नई माँ बनने वाली है क्या, जो इतना ख़ातिरदारी कर रहे हो? इतना तो संस्कार भाई भी नहीं सोचते जितना तुम भाभी-भाभी करते हो! बस एक बार मैं शादी करके उस घर में आ जाऊँ, फिर ये तुम्हारा भाई-भाभी के पीछे-पीछे घूमना और उनकी माला झपना सब बंद। तुम्हारे और मेरे बीच कोई नहीं आ सकता।"

    क्यारा यह सब सोच ही रही थी तब शिवाय की माँ उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, "बेटा दिल छोटा मत करो। तुम तो बचपन से जानती हो ना उसे, वो कितना जिद्दी है! हमेशा अपने मन की करता है।"

    क्यारा उनका हाथ थामकर बेमन से मुस्कुराकर हाँ में अपना सिर हिला देती है और बिना कुछ कहे उसके पेरेंट्स के बुलाने पर वहाँ से चली जाती है।

    शिवाय की बुआ जी शिवाय की माँ के पास जाकर बोली, "ये ठीक नहीं हुआ अस्मिता भाभी। शिवाय को अब समझना होगा कि वो अब अकेला नहीं है। क्यारा को लेकर भी अब उसकी कुछ ज़िम्मेदारी है। ऐसे उस बच्ची को निराश नहीं कर सकता है। आज अपनी ही सगाई में अपनी होने वाली बीवी को ऐसे छोड़कर चला गया! ये कानल ने पता नहीं क्या जादू किया है जो संस्कार तो संस्कार पर ये शिवाय भी उसके गुणगान गाते हुए नहीं थकता। कहीं ऐसा ना हो इस कानल के कारण शिवाय क्यारा से दूर हो जाए!"

    अस्मिता (शिवाय की माँ) सीरियस होकर हाँ में अपना सिर हिलाकर बोली, "जानती हूँ पर मैं क्या करूँ, उर्वशी! वो किसी की सुनता ही कहाँ है! पर मैं शिवाय को उसकी मनमानी नहीं करने दूँगी। पहले ही संस्कार ने अपनी मर्ज़ी की करके हम सबकी इज़्ज़त को तार-तार कर दिया। पर इस बार ऑबरॉय खानदान की छोटी बहू सिर्फ और सिर्फ मेरी पसंद की ही आएगी।" यह कहते हुए उसकी आवाज़ में एक जिद थी।

    उर्वशी जले पर नमक छिड़कते हुए बोली, "वो तो ठीक है भाभी पर वो आपमें से किसी की सुने तब ना! ना वो आपकी सुनता है और ना ही भैया की, इतना जिद्दी जो है। वो सिर्फ अपनी दादी की और उससे भी ज़्यादा तो संस्कार और उस कानल बहू की सुनता है। बाकी हम सब तो जैसे उसके लिए कुछ है ही नहीं। आप संस्कार से ही बात कीजिए इस बारे में। एक वही है जो उसे समझा सकता है।"

    अस्मिता हाँ में अपना सिर हिलाकर फिर दोनों वहाँ से मेहमानों के बीच चली गईं।

    शिवाय सिंह ओबरॉय 27 साल का हैंडसम बॉय था, गोरा रंग, हल्की नीली आँखें, जिसमें एक ऐसा अजीब सा नशा था जो उसकी आँखों में देखते ही अपना सुध-बुध खो बैठे। मस्क्युलर परफेक्ट बॉडी। स्वभाव से जिद्दी, गुस्सैल और सनकी। ऑबरॉय परिवार का छोटा चिराग, जिस पर पूरे परिवार की उम्मीद जुड़ी हुई थी। वह इंडिया का सबसे टॉप बिजनेस मैन कहलाता था। हर कोई उसके साथ बिजनेस करने के सपने देख रहा था। ऐसा शायद ही कोई होगा जो उसे नहीं जानता होगा। अपनी कुछ मजबूरी की वजह से छोटी उम्र में उसने बिजनेस को अपने हाथों में लेकर आसमान की ऊँचाइयों को छू लिया था।

    फिर आते हैं संस्कार सिंह ओबरॉय, जो शिवाय का बड़ा भाई था। ऑबरॉय खानदान के बड़े चश्मों चिराग। गोरा रंग, काली गहरी आँखें, चंचल और दयालू स्वभाव। उसे फैमिली बिजनेस में कोई इंटरेस्ट नहीं था। वह एक प्रोफ़ेसर बनना चाहता था। इस वक्त वह एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर है। जिस वजह से आज भी उसके पिता, माँ, दादा जी सभी उससे उखड़े हुए और नाराज़ रहते हैं। उन्हें संस्कार से बहुत उम्मीदें थीं कि वह ऑबरॉय एम्पायर को संभालेगा, पर ऐसा नहीं हुआ।

    जिसकी वजह से शिवाय ने सिर्फ़ संस्कार के लिए, उसे अपने परिवार के सामने नीचा दिखाने से बचाने के लिए खुद ने बिजनेस जॉइन किया। उस पर संस्कार ने एक और गलती की, वह है अपनी पसंद की लड़की से शादी। उनके परिवार में कोई भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था।

    पर शिवाय की जिद के सामने सबको एक बार फिर हार मानकर संस्कार की जिद के सामने झुकना पड़ा।

    क्यारा से शादी की वजह भी यही थी कि उसके पिता और दादा ने शर्त रखी थी कि उसे क्यारा को अपनाना होगा, तभी संस्कार और कानल को इस घर में जगह मिलेगी। शिवाय अपने भाई की खुशी के लिए यह भी करने को मान गया था।

    अब आते हैं कानल सिंह ओबरॉय (संस्कार की पत्नी), जो एक गरीब परिवार से बिलॉन्ग करती थी। उसके पिता एक स्कूल में क्लर्क थे, जिस वजह से ऑबरॉय खानदान उन्हें अपने स्टेटस का नहीं मान रहे थे। पर शिवाय को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उसके लिए तो बस वो संस्कार से सच्चा प्यार करती थी, वही बहुत था।

    शिवाय और संस्कार की दो छोटी बहनें भी थीं, विद्या सिंह ओबरॉय और पहल सिंह ओबरॉय। दोनों शिवाय और संस्कार की लाड़ली थीं।

    कुसुमलता-ध्वनित सिंह ओबरॉय (ऑबरॉय परिवार के हेड, और दादा-दादी) और अस्मिता और अधिराज सिंह ओबरॉय (शिवाय, विद्या, पहल और संस्कार के माता-पिता) जो अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं, पर फिर भी उनके लिए अपने पुरखों का बनाया हुआ नाम ज़्यादा मायने रखता था, जिसे वो किसी की भी गलती की वजह से मिट्टी में नहीं मिलने देना चाहते थे।

    ऑबरॉय परिवार के बाकी और भी कैरेक्टर हैं, जो अधिराज के छोटे भाई-बहन और उनकी फैमिली; वे सब कहानी के आगे बढ़ते हुए दिखाए जाएँगे।

    क्या शिवाय कर पाएगा क्यारा से मोहब्बत? क्या उनकी ज़िंदगी में होगा सब नॉर्मल? क्या शिवाय निभा पाएगा इस रिश्ते को? क्या अस्मिता की जिद पूरी होगी अपनी छोटी बहू को लेकर? जानने के लिए पढ़ते रहें...

  • 3. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 3

    Words: 2689

    Estimated Reading Time: 17 min

    समजौते का रिश्ता!

    मुंबई के एक 7 स्टार होटल में शिवाय अपनी सगाई छोड़कर संस्कार के साथ चला गया था। इससे अस्मिता और उर्वशी दोनों परेशान थीं। क्यारा के माता-पिता को भी शिवाय की इस हरकत से काफी एम्बरेस फ़ील हुआ था, पर वे कुछ बोल नहीं पाए। सभी आए हुए रिश्तेदारों में कुसुुर-फुसुर शुरू हो चुकी थी।

    अस्मिता और उर्वशी बातें ही कर रहे थे, तभी एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हुआ और थोड़ा गुस्से में कहा, "ये क्या था अस्मिता? ये शिवाय अपनी ही सगाई छोड़कर कहाँ चला गया? उसे कोई अक्कल-वक्कल है या नहीं?"

    अस्मिता अपने पति अधिराज को देखकर निराशा से बोली, "जी वो, ऑफ़िस के काम का बोलकर चला गया। मैंने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, इनफेक्ट क्यारा ने भी कितना कहा, पर वो सुना तब ना।"

    अधिराज ने अपना सर लाचारी से हिलाकर कड़क आवाज में कहा, "ये लड़का आखिर कब सुधरेगा, अस्मिता? इस तरह से बिहेव करेगा अपनी होने वाली वाइफ के साथ! उसे समझना होगा कि अब वो अकेला नहीं है, उसकी जीवनसाथी अब उसके साथ है। जिम्मेदारी नाम की कोई चीज है या नहीं उसमें? सभी रिश्तेदारों में बातें बननी शुरू हो चुकी हैं। पापा भी कितने नाराज़ हुए हैं, उसकी इस हरकत से!"

    "तुझे और तेरे पापा को और आता ही क्या है, सिवाय मेरे बच्चों पर रोब जमाने के अलावा?" अधिराज की बात सुनकर उनके पीछे से आ रही एक बुजुर्ग महिला उनके पास आते हुए बोलीं। उनकी उम्र भले ही हो चुकी थी, पर चेहरे का नूर आज भी बरकरार था। वे थीं शिवाय की दादी कुसुमलता।

    अधिराज ने उन्हें देखकर कहा, "माँ, आप नहीं जानती ये..."

    इतना कहते ही कुसुमलता जी ने उसे बीच में रोककर कहा, "मैं सब जानती हूँ। काम होगा, चला गया होगा। उसमें इतना भड़कने की कोई ज़रूरत नहीं है। सगाई होनी थी, हो चुकी। अब क्या तुम सब जान लेकर मानोगे मेरे गुड्डू की!"

    उर्वशी चिढ़कर बोली, "माँ, ये आपने ही बिगाड़कर रखा है अपने इस गुड्डू को, इसीलिए उसे किसी चीज़ की कोई परवाह ही नहीं है। हम में से किसी की सुनता ही नहीं, बस अपनी मनमानी करता रहता है।"

    अस्मिता इस बात पर सहमति जताते हुए अपना सर हिलाकर बोली, "हाँ, उर्वशी सही कह रही है। ये आप ही के लाड़-प्यार का नतीजा है माँ, जो ये इतना जिद्दी है और किसी की नहीं सुनता।"

    कुसुमलता जी मुस्कुराकर बोलीं, "बिलकुल नहीं अस्मिता बहू। मेरे लाड़-प्यार से तो वो हर बार पिघल कर वो मॉम बन जाता है जिसे देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि उसे कभी गुस्सा भी आता होगा! उसके अंदर गुस्सा और घमंड तो तुम्हारे ससुरजी का आया है। तो उनसे बात करो, मुझे ब्लेम मत करो और खबरदार! कभी मेरे सामने मेरे किसी भी बच्चों की बुराई की तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

    यह कहकर वे तीनों को घूरते हुए चली गईं। तीनों ने लाचारी से अपना सर हिलाकर चुप रहना ही ठीक समझा। कुसुमलता जी से बहस करना आसान नहीं था उनके लिए।


    दूसरी ओर शिवाय और संस्कार कार में थे। शिवाय कार ड्राइव कर रहा था। अक्सर ऐसा ही होता था, दोनों भाई जब भी साथ में होते थे तो कार या तो शिवाय ड्राइव करता या संस्कार। उन्हें अपने बीच किसी ड्राइवर को लाना पसंद नहीं था। उनकी कार मुंबई की सड़कों पर तेज रफ्तार से चल रही थी।

    शिवाय को चुप-चुप और खोया हुआ देखकर संस्कार ने आखिरकार चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "चल बता क्या बात है?"

    शिवाय सवालिया नज़रों से उसे देखकर कहा, "क्या? कौन सी बात? कुछ भी तो नहीं?" फिर सामने देखने लगा।

    संस्कार सीरियस होकर उसे देखकर कहा, "तू खुश है इस रिश्ते से?"

    शिवाय सामने देखते हुए कहा, "ये कैसा सवाल है, भाई?"

    संस्कार हल्का गुस्सा करते हुए कहा, "जैसा भी हो तू बस जितना पूछा जाए उतना जवाब दे, समझा?"

    शिवाय कुछ नहीं बोला। तब संस्कार उसकी चुप्पी समझते हुए कहा, "हम्म्म...मतलब तू खुश नहीं है? तो क्यों कर रहा है ये सब? जब तू प्यार ही नहीं करता क्यारा से तो ये दिखावे की शादी क्यों? ऐसे ज़िंदगी नहीं काटी जाती मेरे भाई।"

    शिवाय बिना भाव से कहा, "मुझे इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। और कौन कहता है कि हर रिश्ते में प्यार होना ज़रूरी है और वैसे भी मैं प्यार-व्यापार पर भरोसा नहीं करता। सब कहने की बातें हैं। इस दुनिया में पैसा और शोहरत ही सब कुछ है। हाई क्लास स्टैंडर्ड ही मायने रखता है सबके लिए।"

    संस्कार उसकी बात पर कहा, "अच्छा तो क्यों आज भी उस दो साल पहले के एक छोटे से इंसिडेंट में खोया हुआ लगता है? सगाई की खुशी तेरे चेहरे पर क्यों नहीं दिख रही?"

    शिवाय अपना चेहरा खिड़की की ओर करके कहा, "ऐसा कुछ नहीं है भाई। मेरे लिए ये शादी दादू-दादी की खुशी का कारण है बस, ये ही बहुत है। क्यारा को मैं बचपन से जानता हूँ, उसे घर में सब बहुत पसंद करते हैं।"

    संस्कार तुरंत कहा, "और तेरी खुशी, तेरी पसंद का क्या?"

    शिवाय ने बिना ज़्यादा रिएक्ट किए कहा, "मैं भी खुश हूँ। क्यारा वेल एजुकेटेड है, एक बहुत बड़ी स्टार है, reputed फैमिली से बिलोंग करती है जैसा कि हमारे परिवार को चाहिए।"

    संस्कार चिढ़ते हुए झल्लाकर कहा, "झूठ, सब झूठ है। ये मन-गढ़ंत कहानी बनाना बंद कर। तू ये सब मेरे लिए कर रहा है ना, ताकि कोई मुझ पर उंगली ना उठा जाए?"

    शिवाय बिना कुछ कहे बस ड्राइव करता रहा। यह देखकर संस्कार अब आगे कुछ ना बोलकर खिड़की से बाहर देखते हुए मन ही मन कहता है, "तू सच से भाग रहा है मेरे भाई। तू भले ही प्यार पर भरोसा नहीं करता पर एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब तुझे किसी से शीद्दत वाला प्यार हो जाएगा। उसके दूर जाने से भी तू तड़प उठेगा। जब तू प्यार को समझेगा, तब तुझे सही मायने में इस चीज़ की क़द्र होगी। दुनिया में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। हे भगवान, बस एक ही प्रार्थना है कि जल्द से जल्द इस शादी के नाटक को शुरू होने से पहले कोई ऐसा चमत्कार कर दो कि मेरा भाई उस क्यारा के साथ इस समजौते की शादी से बच जाए।"

    कुछ देर बाद शिवाय और संस्कार एक शॉप पर कार रोककर कैंडी फ्लॉस लेने चले गए। जैसा कि शिवाय ने कहा था कि वो खुद शॉप की अच्छे से जांच करेगा फिर कुछ खरीदेगा और हुआ भी वही।

    वहीं वो शॉप वाले शिवाय को ऐसे देखकर घबराते हुए एक-दूसरे को देख रहे थे कि कहीं कोई गड़बड़ हुई तो शिवाय उन्हें छोड़ेगा नहीं। संस्कार का नेचर तो फिर भी फ्रेंडली था इसलिए उन्हें उनका कोई डर नहीं था।

    कुछ देर देखने के बाद संस्कार ने फ़ाइनली कंटालकर मज़ाकिया लहजे में पूछ ही लिया, "तो ACP प्रद्युमन साहब, हो गई आपकी सारी investigation?"

    शिवाय उसे देखकर सिर्फ़ कहा, "हम्म।" यह कहकर वह अपना फ़ोन चलाने लगा। तब संस्कार अपने नाखून चबाते हुए सोचते हुए कहा, "अब कौन से फ़्लेवर लूँ? पता नहीं कानल को कौन सा फ़्लेवर खाने की इच्छा होगी? मैंने तो पूछा ही नहीं।"

    शिवाय बिना कुछ सोचे शॉप वाले को देखकर कहा, "इसके जितने भी फ़्लेवर्स हैं सब पैक कर दो।" यह कहकर वह अपना कार्ड निकालकर उसे दे देता है।

    शॉप वाला हाँ में अपना सर हिलाकर अपने हेल्पर को ऑर्डर देता है और कार्ड स्वाइप करके शिवाय को वापस दे देता है।

    संस्कार अभी भी आँखें फाड़े उसे देख रहा था। शिवाय उन कैंडीज़ को लेकर संस्कार का हाथ पकड़कर उसके रिएक्शन को इग्नोर करके शॉप से बाहर जाने लगा।

    संस्कार उसे डाँटते हुए कहा, "तू क्या पागल हो गया है? इतने सारे लेने की क्या ज़रूरत थी? वो इतने नहीं खाने वाली है।" यह कहते हुए वो कार में बैठ गया।

    शिवाय कैंडीज़ संस्कार को देकर कार स्टार्ट करते हुए कहा, "उन्हें जो पसंद होगा, वो खाएँगी। बाकी बच जाए तो आप खा लेना।"

    संस्कार ना में अपना सर हिलाकर कहा, "तू...तू ना उसे बिगाड़ रहा है, मैं बता रहा हूँ शिवा।"

    शिवाय हल्का मुस्कुराकर कहा, "हम्म्म, तो! बेटा हूँ मैं उनका और उनकी हर इच्छा पूरी करना फ़र्ज़ है मेरा। अब आप चुप रहिए।"

    संस्कार अपना सर हिलाकर चुप होकर खिड़की से बाहर देखने लगा।


    कुछ देर बाद शिवाय की कार एक आलीशान बंगले के बड़े से गेट के अंदर आकर रुकी। जिसे देखकर ही किसी की भी आँखों में चमक आ जाए। चारों तरफ़ रोशनी, बड़ा सा खूबसूरत गार्डन, स्विमिंग एरिया, जिम, बड़ा सा पार्किंग सब कुछ था। ओवरऑल पूरा बंगला किसी महल से कम नहीं था। मेंशन के बाहर के एरिया में चारों तरफ़ हरियाली छाई हुई थी।

    वॉचमैन उनकी कार देखते ही भागता हुआ कार का दरवाज़ा खोलने लगा। शिवाय और संस्कार दोनों कार से उतरकर घर के अंदर जाने लगे।

    दोनों भाइयों को साथ में देखकर वहाँ काम कर रहे मैड्स के चेहरे पर मुस्कान आ गई। ऐसा बहुत ही कम होता था जब उन सबको शिवाय की मुस्कान देखने को मिलती थी। घर में पहुँचकर सबसे पहले दोनों संस्कार के रूम की तरफ़ चले गए।

    वहीं एक लड़की रूम में इधर-उधर टहल रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी चाह थी कुछ खाने की। वो चिढ़ते हुए खुद से बड़बड़ाई, "ये संस्कार भी ना, कब आएंगे कैंडी फ्लॉस लेकर? जब मूड चला जाएगा तब लाएंगे क्या?"

    दरवाज़े से आवाज़ आई, "ऐसा कभी हो सकता है कि मेरी भाभी कुछ माँगे और हाज़िर ना हो?" यह सुनकर वो लड़की चहकते हुए दरवाज़े की ओर मुड़ गई। जहाँ शिवाय और संस्कार खड़े मुस्कुरा रहे थे।

    यह थी कानल ऑबरॉय (संस्कार की पत्नी), 28 साल, गेहुँआ रंग, हल्की ब्राउन आँखें, गाल पर एक काला तिल जो उसकी सुंदरता को और बढ़ा रहा था।

    शिवाय और संस्कार को देखकर तेज़ कदमों से उनके पास जाने लगी कि दोनों ही तुरंत भागते हुए उसके पास जाकर उसे पकड़कर शिवाय डाँटने लगा, "क्या है ये भाभी? आराम से। पता है ना आपको? अब आपको अपना और भी ज़्यादा ध्यान रखना है। कुछ दिनों के लिए इस तरह का बचपना बंद कीजिए, प्लीज़।"

    संस्कार भी सहमति जताते हुए कहा, "हाँ कानू, शिवा सही कह रहा है। तुम प्लीज़ अपना ख्याल रखा करो। इस तरह से लापरवाही तुम्हारे और हमारे आने वाले बच्चे के लिए ठीक नहीं।"

    कानल अपनी गलती मानते हुए हँसकर बोली, "अच्छा बाबा, आई एम सॉरी। अब ऐसा नहीं करूँगी। वो कैंडी फ्लॉस देखी ना तो सब भूल ही गई...ही ही।"

    यह कहकर वह अपनी बत्तीस दिखाते हुए, आँखें टिमटिमाने लगी। यह देखकर संस्कार और शिवाय मुस्कुराकर ना में अपना सर हिला देते हैं और संस्कार उसके आगे सारी कैंडीज़ रखते हुए कहा, "लो अब जो पसंद है वो खा लो।"

    कानल अलग-अलग तरीके की कैंडीज़ देखकर शॉक होकर अपने गालों पर हाथ रखकर खुश होकर जोर से चीख पड़ी, "वाओ....इतनी सारी कैंडीज़! थैंक यू संस्कार।"

    संस्कार ना में अपना सर हिलाकर कहा, "नहीं-नहीं, ये मेरी तरफ़ से नहीं है। अपने इस लाडले देवर की तरफ़ से है ये। अब तुमने तो बताया नहीं कि तुम्हें कौन सा फ़्लेवर खाना था तो जनाब ने सभी फ़्लेवर ले लिए।"

    कानल शिवाय की बड़ाई करते हुए बोली, "राम जी तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ दें।"

    शिवाय अब वहाँ से उठकर जाते हुए हल्का मुस्कुराकर कहा, "आपके राम जी को और भी काम होते हैं भाभी, इसलिए वो मेरे पास कभी नहीं आएंगे, मेरी बात सुनने। चलिए अब आप दोनों कैंडीज़ एन्जॉय कीजिए, बाय।" यह कहकर वह वहाँ से चला गया।

    शिवाय की बात सुनकर और उसे जाते हुए देखकर कानल मायूस हो गई। उसकी मायूसी भांपते हुए संस्कार ने कहा, "उदास मत हो कानू, सब ठीक हो जाएगा।"

    कानल उसे देखकर चिंता से बोली, "कब ठीक होगा संस्कार? आज तो सगाई भी हो गई है। क्या हम दोनों नहीं जानते कि शिवा खुश नहीं है इस शादी से। वो बस हमारी गलती की वजह से खुद की ज़िंदगी बरबाद कर रहा है। पहले बिना अपनी मर्ज़ी के बेमन से बिज़नेस जॉइन करके और अब ये नाम की शादी करके।" उसका गला भर आया और आँखें नम हो गईं।

    संस्कार हाँ में अपना सर हिलाकर कहा, "आज भी जब-जब मुझे कोई अपने प्रोफ़ेशन को लेकर या हमारी इस तरह से की गई शादी को लेकर कुछ सुनाता है तो खून खौल उठता है उसका। मुझे कुछ ना सुनना पड़े इसलिए वो हमारे बड़ों की सारी विश पूरी कर रहा है। बिज़नेस मैन बनने तक तो चलो अच्छा ही था कि उसका करियर बन गया पर अब ये शादी? ये मुझे भी कुछ ठीक नहीं लगता।"

    कानल उसे हल्का डाँटते हुए बोली, "तो आप कुछ करते क्यों नहीं? उसने हमारी शादी के वक़्त हमें कितना सपोर्ट किया था, भूल गए?"

    संस्कार ना में अपना सर हिलाकर कहा, "कुछ नहीं भूला हूँ मैं कानू, पर बस सही वक़्त का इंतज़ार कर रहा हूँ।"

    "आप सही वक़्त का इंतज़ार करते रहिए पर मैं तो बस राम जी से यही प्रार्थना करती हूँ कि हमारे शिवा के अंधेरी ज़िंदगी में किसी को उजाला बनकर भेज दें। वो उसे प्यार का सही मतलब समझाए और उसे खुद के लिए भी जीना सिखाए।"

    कानल की बात पर संस्कार भी बस सर हिलाता रह गया। फिर संस्कार ने कानल का उखड़ा हुआ मूड ठीक करने के लिए इधर-उधर की और पार्टी की बातें सुनाते हुए कैंडी फ्लॉस खिलाना शुरू कर दिया।

    कानल भी उसे ज़बरदस्ती खिलाने लगी। इस ज़बरदस्ती के दौरान कैंडी फ्लॉस संस्कार के होंठों पर और नाक पर चिपक गई। जिसे देखकर कानल जोर से हँसने लगी। उसे देखकर संस्कार भी हँस दिया और अपना मुँह साफ़ करने लगा।


    बड़ौदा, गुजरात

    अगली सुबह

    एक दुकान के आगे एक लड़की जोर से चिल्ला रही थी। सभी आसपास की दुकान वाले जमा होकर हैरानी से ये सब देखने लगे और आपस में बातें करने लगे। सुबह का टाइम था इसलिए कस्टमर्स कोई इतना था नहीं। वो लड़की चिढ़कर उसके दुकान के बाहर रखे हुए बोर्ड को गिरा देती है।

    "ए लड़की पागल है क्या? ये क्या कर रही है तू? रुक अभी तेरे बड़े पापा को बुलाता हूँ।" एक दुकानदार अपनी दुकान के बाहर रखे बोर्ड को उठाते हुए तेज आवाज में कहा।

    "हाँ हाँ, तो बुलाओ ना। मैं भी देखती हूँ, आज आपकी दुकान को कौन बचाता है? मेरी शॉप का माल नकली होता है। ये सब बोलकर भड़का रहे हैं ना आप हमारे ग्राहकों को? तो अब देखो आपकी दुकान की कैसी बेंड बजती है!" यह कहकर वह वहाँ की सारी खाने की चीज़ों के पास जाने लगी।

    दुकानदार उसके आगे आकर अपने हाथों को साइड में फैलाकर उसे रोकते हुए कहा, "देख वहीं रुक जा। ये...ये क्या कर रही हो तुम? ये ही संस्कार है क्या तुम्हारे?"

    "आ.हा.हा, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी। हमसे दगाबाज़ी करके मुझ पर ही आँखें दिखा रहे हैं? रुकिए, मैं अभी वीर को ही कॉल करती हूँ। एक वही है जो आपको अच्छे से समझाएंगे।" लड़की ने 'अच्छे से' शब्द पर जोर देते हुए कहा और अपना फ़ोन निकालकर किसी को कॉल करने लगी।

    दुकानदार हड़बड़ाकर उसे रोककर कहा, "अ....अरे इसमें बेचारे अथर्व को क्यों बीच में ला रही है? उसका यहाँ क्या काम? हम आपस में जो भी बात है वो निपटा लेंगे ना!"

    पर लड़की मानने वाले में से नहीं थी। वो जबरन शॉप के अंदर जाने लगी।

    उतने में सुधीर, यशदीप जी और अमरदीप भागते हुए वहाँ आए और उस लड़की को पकड़ते हुए अमरदीप कहा, "माही क्या है ये बेटा, छोड़ इसे। ये क्या कर रही हो तुम?" ये मोहब्बत थी जो उस बेकरी वाले पर गुस्सा कर रही थी।

    मोहब्बत खुद को छुड़ाते हुए गुस्से में बोली, "मुझे छोड़िए चाचू, आपको नहीं पता। ये हमारे ग्राहकों को भड़काते हैं और कहते हैं कि हम अपनी मिठाइयों में यूज़ होने वाली सारी चीज़ें नकली इस्तेमाल करते हैं। इनकी हिम्मत कैसे हुई मेरे पापा और बड़े पापा पर उंगली उठाने की? मैं आज इनकी दुकान की बेंड बजा दूँगी।"

    यह सुनकर सुधीर, यशदीप जी और अमरदीप हैरान होकर उस दुकानदार को देखने लगे।

    अब मिलते हैं अगले पार्ट में।

    दो साल पहले की किस याद के बारे में बात कर रहा है संस्कार? क्या शिवाय इस शादी से पीछे हट पाएगा? क्या संस्कार और कानल की प्रार्थना रंग लाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहें.....

  • 4. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 4

    Words: 2538

    Estimated Reading Time: 16 min

    बडौदा, गुजरात

    सुबह-सुबह मोहब्बत एक दुकान वाले पर गुस्सा कर रही थी। आसपास के लोग इकट्ठे होकर बातें करने लगे थे। मोहब्बत उस दुकानदार की ओर किसी चीज़ को हाथ लगाने से पहले ही यशदीप जी, सुधीर और अमरदीप वहाँ पहुँच गए और अमरदीप ने उसे पकड़कर रोक लिया।

    मोहब्बत खुद को छुड़ाते हुए गुस्से में बोली, "मुझे छोड़िए चाचू, आपको नहीं पता। ये हमारे ग्राहकों को भड़काते हैं और कहते हैं कि हम अपनी मिठाइयों में नकली चीज़ें इस्तेमाल करते हैं। इनकी हिम्मत कैसे हुई मेरे पापा और बड़े पापा पर उंगली उठाने की? मैं आज इनकी दुकान की बेंड बजा दूँगी।"

    यह सुनकर यशदीप जी, अमरदीप और सुधीर हैरानी से दुकानदार को देखने लगे।

    सुधीर उस शॉप वाले को देखकर हैरान भाव से बोला, "अशोक, तुम ऐसी बातें फैला रहे हो हमारे खिलाफ?"

    अशोक कुछ बोल नहीं पा रहा था, उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ गिल्ट दिख रहा था।

    तब मोहब्बत ने नाराजगी जताते हुए कहा, "अरे ये क्या बोलेंगे पापा? मैं बताती हूँ, मुझे इनकी ही दुकान में काम करने वाले इस श्यामू ने कहा है कि अशोक काका ऐसी-ऐसी बातें फैला रहे हैं।"

    अमरदीप भी गुस्से में बोला, "शरम आनी चाहिए तुम्हें, अशोक। तुम हमारे पेट पर लात मार रहे हो? भूल गए, तुम्हारी इसी दुकान को खड़ा करने के लिए, वो मेरे बड़े भैया यशदीप भाई ही थे जिन्होंने तुम्हारी मदद की थी?"

    सुधीर ने भी गंभीर आवाज़ में कहा, "तुम ये अच्छी तरह से जानते हो अशोक कि मिठाइयों में इस्तेमाल होने वाला हमारा सारा मटेरियल एकदम शुद्ध होता है। इतने सालों से हम इस दुकान को चलाते आए हैं और तुम हम पर ऐसा झूठा इल्ज़ाम लगाते हो?"

    अशोक अपने हाथ जोड़कर बोला, "नहीं-नहीं सुधीर भाई, મને માફ કરીદો (मुझे माफ कर दीजिये)। मुझे पैसों की ज़रूरत थी इसलिए मैं बस कुछ पैसों के लालच में आ गया था। वो पीछे की गली वाले प्रताप ने मुझसे कहा था कि मैं आपके आने-जाने वाले हर ग्राहकों को ये बात बताऊँ ताकि आपके यहाँ के सारे ग्राहक वहाँ चले जाएँ।"

    यशदीप जी शांत लहजे में बोले, "उसने कहा और तुम मान गए, अशोक? अरे हमारा सालों का रिश्ता है। एक ही लाइन में हमारी दुकानें हैं और तुम किसी पराए के बहकावे में आकर अपने ही साथ छल करने चले थे।"

    तब भीड़ में वहाँ जमा हुए लोगों में से एक औरत की आवाज़ आई, "अरे, ऐसे धोखेबाज़ों की दुकान यहाँ नहीं होनी चाहिए। मेरी भी फूलों की दुकान है, कल को तो ये हम पर भी ऐसा ही कोई घटिया इल्ज़ाम लगाएगा।"

    एक आदमी, जिसका नाम शंकर था, वो भी सहमति जताते हुए बोला, "हाँ हाँ, यशदीप चाचा। आज इसने आपके साथ ऐसा किया है, कल हम सबके साथ भी ऐसा कर सकता है। इसकी दुकान यहाँ नहीं होनी चाहिए। ऐसे धोखेबाज़ों की यहाँ कोई जगह नहीं है। हटाओ, इसको...हटाओ।"

    सभी एक साथ बोलने लगे, "हाँ हाँ, हटाओ इसे....हटाओ इसे। इसकी यही सज़ा है।"

    अशोक को अपनी गलती का एहसास हो गया। वो यशदीप जी के पैरों में जा गिरा और रोते हुए बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये भाई साहब। वो घर पर बच्चा बीमार है और उसके ऑपरेशन के लिए 2,00,000 रुपयों की ज़रूरत थी। अब आप तो जानते हैं, आजकल धंधा भी ठीक से चलता नहीं है। अगर चलता भी है तो दुकान का किराया, घर के खर्चे, बच्चों की पढ़ाई, मैं सब मैनेज नहीं होता। मैं थोड़े ही पैसे जमा कर पाया था, एक साथ इतना पैसा नहीं था इसलिए मैं लालच में आकर ये गलती कर बैठा।" सभी खामोश होकर उसकी बातें सुनने लगे।

    यशदीप जी उसे कंधे से पकड़कर ऊपर उठाकर बोले, "अगर ऐसी बात थी तो हममें से किसी से भी बात करते। क्या हम मदद नहीं करते तुम्हारी? तुम्हारा बेटा, यानी हम सबका बेटा। अब उस प्रताप से लिए हुए पैसे उसे लौटा दो। और तुम्हारे बेटे के लिए इलाज का पैसा हम देंगे। हम मदद करेंगे तुम्हारी, तुम चिंता मत करो।"

    अशोक उनके गले लगकर रोने लगा। यशदीप जी मुस्कुराकर उसकी पीठ थपथपाते हैं। वहाँ खड़े सभी मुस्कुरा देते हैं।

    तब वही आदमी शंकर उनके पास आया और बोला, "तुम चिंता मत करो अशोक। तुम्हारे बेटे के इलाज के लिए हम सबसे जो बन पड़ा वो थोड़ा-थोड़ा मिलकर तुम्हें मदद करेंगे। कुछ नहीं होगा छोटू को। अरे भई पैसा ज़्यादा ना कमाया हो पर इंसानियत की नदियाँ बहती हैं हमारे यहाँ, (फिर सबको देखकर कहता है) क्यूँ भाइयों, सही कहा ना?"

    सभी जोर से खुशी-खुशी हाँ कहते हैं। इस तरह से इस बात का अंत हुआ। अशोक ने मुस्कुराकर नम आँखों से सबको देखकर अपने हाथ जोड़कर धन्यवाद किया और फिर सभी अपनी-अपनी दुकानों पर लौटने लगे।

    अमरदीप, सुधीर और यशदीप जी मोहब्बत को लेकर अपनी दुकान की तरफ़ जा रहे थे, तब अमरदीप मोहब्बत के सर पर टपली मारते हुए बोला, "और तुम क्या बार-बार हर किसी को अथर्व के नाम की धमकी देकर फ़ोन उठा लेती हो? क्या हमारा बच्चा गली का गुंडा है जो सबको उसके नाम की हुंकार देती हो?"

    मोहब्बत अपनी हल्की जीभ निकालकर बोली, "तो मैं भी कहाँ फ़ोन करने वाली थी, चाचू! वो तो बस ऐसे ही अशोक काका को थोड़ा डरा दिया। मैं जानती थी कि अशोक काका ऐसे नहीं थे पर उनके मुँह से उगलवाने के लिए ये सब किया।"

    यह कहकर वह अपना मुँह दबाकर हँस दी। सुधीर, यशदीप जी और अमरदीप हँसकर नाँ में अपना सर हिलाकर उसके साथ चलने लगे।


    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    कानल घर के हाल में सोफ़े पर अपनी दादी सास श्रीमती कुसुमलता ध्वनित सिंह ऑबरॉय के साथ बैठी थी। उनका नेचर फ्रेंडली था, वो ऊँच-नीच, जात-पात पर ज़्यादा नहीं सोचती थीं।

    बालों का बन, कुछ बाल सफ़ेद थे, आँखों पर चश्मा और उनके बात करने से ही उनके रुतबे का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।

    शुरू-शुरू में वो भी संस्कार के इस तरह से शादी करने से नाराज़ थीं पर फिर भी उन्हें संस्कार की पसंद पर नाज़ था। आखिरकार कुछ दिनों की नाराजगी के बाद उन्होंने खुशी-खुशी उन दोनों को एक्सेप्ट कर लिया था।

    "कानल बहू, ये जो लड्डू है ना। ये मेरी माँ मुझे बनाकर खिलाती थी। ये शरीर में ताकत, चेहरे पर ग्लो लाता है। गर्भवती स्त्री और उसके होने वाले बच्चे के लिए तो बहुत ही फ़ायदेमंद है।" कुसुमलता जी एक और लड्डू उसे देते हुए कहती हैं।

    कानल मुँह भरे लड्डू के साथ नाँ में अपना सर हिलाकर बोली, "नहीं दादी, अब बस हो गया। ऑलरेडी दो खा चुकी हूँ। अब नहीं खाया जाएगा और देखिए ना इसमें कितना सारा घी है। ऐसे तो मैं और मोटी हो जाऊँगी।"

    कुसुमलता जी उसे डाँटते हुए कहती हैं, "चुप कर, बड़ी आई मोटी होने वाली। तुम आजकल के बच्चे रोटी पर ज़रा सा भी ज़्यादा घी या मक्खन देख लो तो ऐसा मुँह बनाओगे कि क्या ही बताऊँ? अरे जब मैं माँ बनने वाली थी तब एक साथ चार से पाँच लड्डू खा जाती थी।"

    कानल उनके गाल हल्के से खींचकर उन्हें छेड़ते हुए बोली, "हाँ, तभी तो हमारी दादी आज भी स्वीट सिक्सटीन लग रही हैं। हाए किसी की नज़र ना लगे।"

    यह कहकर वह उनकी बालीयाँ ले लेती है। जिसे देखकर कुसुमलता जी शर्माते हुए मुस्कुराकर उसके गाल पर हल्की चपट लगाकर उसे झूठा गुस्सा करते हुए कहती हैं, "हट, पागल लड़की। चल पूरा कर इसे।" कानल मुँह बनाकर खाने लगी।

    उर्वशी घर के अंदर आते हुए बोली, "अरे वाह, क्या बात है माँ, लड्डू खिलाए जा रहे हैं अपनी पोती बहू को! खा लो-खा लो कानल बहू, बहुत हेल्दी है। वैसे भी तुम्हारे मायके में तो रोटी पर ही घी बड़ी मुश्किल से लगता होगा और ये ड्राई फ़्रूट्स तो शायद ही देखने को मिले होंगे।"

    कानल बिना कुछ कहे हल्का मुस्कुराकर अपनी नज़रें झुका लेती है। उसे आदत हो चुकी थी उर्वशी की कड़वी बातों को सुनने की। इसलिए वो कभी उनसे ज़बान नहीं लड़ती थी। बस वो बड़ी है ये सोचकर मुस्कुराते हुए सभी ताने सुन लेती थी।

    कुसुमलता जी चुप रहने वालों में से कहाँ? वो उसे सुनाते हुए कहती हैं, "तुम भूल गई उर्वशी कि गर्भवती स्त्री का ध्यान रखना उसके ससुराल वालों का फ़र्ज़ होता है अब तुम ये सब कैसे समझोगी? तुम तो यही बाजू में ही रहती हो, इसलिए ससुराल क्या होता है, सास का प्यार क्या होता है इसका अनुभव तो तुमने किया ही नहीं है। जब तुम यहाँ का घी-मक्खन भर-भर के खा सकती हो तो ये तो इस घर की बड़ी बहू है। इसका तो पूरा हक़ है। तुझे खाना है तो ये ले खा ले पर अब इस लड्डू में कड़वाहट घोलकर माहौल को ख़राब मत कर।"

    उर्वशी अपना मुँह बनाकर उनके हाथ से लड्डू लेकर खाने लगी। यह है उर्वशी संजय मेहरा, कुसुमलता और ध्वनित सिंह ऑबरॉय की बेटी। जो अधिराज से छोटी और अभिनव (शिवाय के चाचा) से बड़ी है। वो यही ऑबरॉय मेंशन के पास वाले ही आउटहाउस में अपने परिवार के साथ रहती है। उनके परिवार में एक बेटा-बहू (विनय और शनाया) और उनकी छोटी बेटी अमीषा मेहरा जो 6 साल की थी।

    पति संजय की डेथ के बाद से ध्वनित जी ने उसे अपने पास वाला आउटहाउस दे दिया था। वो भी काफ़ी बड़ा और खूबसूरत था। उर्वशी अपने सभी भतीजे-भतीजी से बहुत प्यार करती थी पर उसे कानल बिलकुल पसंद नहीं थी क्योंकि वो एक गरीब फैमिली से थी। वो स्टेटस को देखकर ही सबसे रिश्ते निभाया करती थी।

    कुसुमलता जी कानल का उतरा हुआ चेहरा देखकर उसका मन ठीक करने के लिए कहती हैं, "बेटा, वैसे अब चेकअप के लिए कब जाना है?"

    "दादी, वो एक हफ़्ते बाद जाना है, उसी दिन डॉक्टर डिलीवरी की डेट भी दे देगी।"

    कानल के कहने पर कुसुमलता जी खुश होकर कहती हैं, "चलो अच्छा है, बस भगवान जल्द से जल्द मेरे परपोते या परपोती को मेरी गोदी में डाल दे। पूरे पाँच सालों से इस दिन का इंतज़ार करती आई हूँ। इसी वजह से तो ज़िंदा हूँ ताकि अपने संस्कार और शिवाय के बच्चे देख सकूँ। बस एक बार उन्हें देख लिया फिर मर भी जाऊँ तो भी..."

    कुसुमलता जी की बात पर कानल बीच में ही उन्हें रोककर उनके कंधे पर सर रखकर नाराजगी से कहती है, "उम्म, दादी प्लीज ऐसा मत कहिए। अभी तो आपको अपने परपोते, पोतियों की भी शादी देखनी है और उसमें नाचना भी है।"

    यह सुनकर कुसुमलता जी उसके गाल को थपथपाकर हँसने लगी जिसे देखकर उर्वशी और कानल भी मुस्कुरा दीं।

    असल में संस्कार और कानल की शादी के पाँच साल बीत जाने के बाद भी कानल प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही थी। सारे मेडिकल चेकअप करवाए गए थे।

    सब कुछ नॉर्मल होने के बावजूद भी उन्हें ये खुशियाँ नसीब नहीं हुई थीं। इसी के चलते बाहर के लोगों ने कानल को माँ ना बनने पर काफ़ी ताने भी कसे थे। और आज पूरे पाँच साल बाद उनके घर इन खुशियों ने दस्तक दी थी।


    बडौदा, गुजरात

    त्रिपाठी की मिठाई की दुकान में आज काफ़ी चहल-पहल थी। मोहब्बत वहाँ हलवाई के साथ मिलकर शादी की मिठाइयाँ रेडी कर रही थी। उनके दुकान में तीन हलवाई रखे हुए थे। फिर अगर बाकी दिनों के बदले किसी दिन ज़्यादा काम होता तो मोहब्बत ही उनकी मदद कर लिया करती थी। मोहब्बत सभी चीज़ में नंबर वन थी। कुकिंग, सजावट, घर के हर काम में।

    सुधीर भी वहीं उनके पास खड़ा सब देख रहा था और इंस्ट्रक्शन दे रहा था, "शांतनु बेटा, शक्कर अच्छे से ध्यान से मिलाना। ना ही ज़्यादा मीठा होना चाहिए और ना ही कम। किसी भी तरह की कम्प्लेन नहीं आनी चाहिए।"

    ऑर्डर बड़ा है और उन्होंने हम पर भरोसा दिखाया है उस पर आँच नहीं आनी चाहिए।

    शांतनु एक बड़ी सी कढ़ाई में बड़े से करछुल से हिलाते हुए बोला, "अरे काका, चिंता मत कीजिए। ऐसी मिठाइयाँ बनेंगी कि आगे भी मेहमान हमारे यहाँ से ही मिठाइयाँ लेंगे।"

    सुधीर और मोहब्बत मुस्कुरा देते हैं। सभी का काम में वक़्त बीत गया।


    रात को मोहब्बत अपने बेड पर लेटी करवट ले रही थी। उसे नींद नहीं आ रही थी, तब कोई आकर उसके सर पर हाथ रखता है। मोहब्बत अपनी आँखें खोलकर अपनी माँ को देखती है तो मुस्कुराकर उसकी गोद में सर रख देती है।

    आराधना उसके सर को सहलाते हुए कहती है, "क्या हुआ बेटा, सोई नहीं अभी तक?"

    आराधना हमेशा सोने से पहले एक नज़र मोहब्बत को सोते हुए देख जाती पर आज उसे करवट बदलते हुए देखकर उसके पास आ गई।

    मोहब्बत बेचैन होते हुए बोली, "पता नहीं मम्मी, क्या हो रहा है? ऐसा लग रहा है जैसे कुछ होने वाला है। अजीब सी घबराहट हो रही है। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। ओमी और वीरे (अथर्व) तो ठीक होंगे ना?"

    आराधना उसे समझाते हुए कहती है, "ऐसा कुछ नहीं है बेटा, वो तुम दिन भर से दुकान के काम में बिज़ी थी ना इसलिए थकान की वजह से ऐसे विचार आ रहे हैं। वो दोनों भी ठीक हैं, अब ज़्यादा मत सोचो हम्म! सोने की कोशिश करो। फिर कल से शादी के फ़ंक्शन शुरू हो रहे हैं तो तुम्हें शादी में जल्दी भी जाना है। अपनी उन सहेलियों को बताया है कि नहीं?"

    मोहब्बत बंद आँखों से हाँ में अपना सर हिलाकर बोली, "हाँ हाँ मम्मी, बोल दिया है कि मुझे उनकी हेल्प चाहिए और वैसे भी महेश काका के वहाँ भी हेल्पर्स हैं ही तो हो जाएगा।"

    आराधना उसके सर को सहलाती रही और ऐसे ही उसे नींद आ गई। उसे सोता हुआ देखकर आराधना के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो उसे ठीक से लेटाकर कंबल ओढ़ाकर उसके सर को चूमकर चली गई।


    अगली सुबह

    मोहब्बत जल्दी ही अपनी सहेलियों के साथ महेश के घर के लिए निकल गई। वहीं सुधीर और यशदीप जी ने भी ऑर्डर के हिसाब से सारी मिठाइयों के बॉक्स और फ़रसाण महेश के वहाँ भिजवा दिया था।

    महेश के घर पहुँचते ही महेश ने मोहब्बत को देखकर तुरंत उसके पास आकर कहा, "आ गई बेटा? देखो तुम्हारा मँगवाया हुआ सारा सामान आ गया है और ये सब तुम्हारी मदद भी करेंगे। तो बेटा, अब लग जाओ काम पर। वैसे कल से मुझे ऐसा लग रहा है कि किस्मत चमकने वाली है तुम्हारी। क्या पता किसी बड़े शहर से बुलावा आ जाए!"

    मोहब्बत हँसकर बोली, "क्या काका आप भी, ये किस्मत फ़िल्मों में ही बदलती है। असल ज़िंदगी में तो बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता। मुझे तो बस अपना काम करना है, बाकी जैसे शिव जी की मर्ज़ी।"

    महेश हँसते हुए हाँ में अपना सर हिलाकर बोला, "हाँ, ये भी सही है। तो बेटा, अब मैं चलता हूँ। शाम से मेहमान आने लग जाएँगे। तो उनके रहने की तैयारियाँ भी देखनी है। मैं अभी चाय-नाश्ता भिजवाता हूँ।"

    "हाँ हाँ काका, आप जाइए। हम देख लेंगे यहाँ सब।"

    मोहब्बत के कहने पर महेश वहाँ से चला गया। मोहब्बत पहले तो पूरे घर को और बाहर गार्डन को अच्छे से देखने लगी। फिर सोचते हुए एक-एक करके सबको अपना आइडिया बताने लगी और इस तरह से वे सभी अपने कामों में लग गए। इसी तरह त्रिपाठी फैमिली लग गई इनकी शादी की सेलिब्रेशन में। दिन बीतने के साथ-साथ एक हफ़्ता बीतने ही वाला था।

  • 5. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 5

    Words: 2738

    Estimated Reading Time: 17 min

    मुंबई जाने का मौका


    मुंबई के गोरेगाँव के एक कॉलेज के कैंपस में कुछ लड़के ग्रुप में खड़े बातें कर रहे थे। तब एक लड़का कहता है, "हेय guys.... अब तो reading vacation मिल गया है तो सभी अपने-अपने घर चले जाएँगे!"

    दूसरा लड़का उसका साथ देते हुए कहता है, "हाँ यार विकी, बात तो अच्छी है पर फिर भी ये कॉलेज, ये हमारी मस्ती सब बहुत याद आएगा। और तू तो यही रहता है तो तेरा अच्छा है। हमें तो ट्रेन में परेशान होते हुए जाना पड़ेगा।"

    विकी तब तीसरे लड़के को देखकर कहता है, "अरे ओम त्रिपाठी जी, तेरा ध्यान कहाँ है भाई? कहाँ खोया हुआ है, क्या सोच रहा है?"

    ओम त्रिपाठी (अमरदीप का बेटा) उन दोनों को देखकर मुस्कुराकर कहता है, "नहीं, बस यही सोच रहा हूँ कि जब मैं बिना बताए एकदम से अपने घर में टपक पड़ूँगा तो सबके चेहरे के रिएक्शन देखने लायक होंगे। कितना सरप्राइज हो जाएँगे सब! स्पेशली मेरे बड़े पापा और बड़ी माँ।"

    विकी हैरानी से कहता है, "तो तूने अभी तक उन्हें बताया नहीं है कि तुम घर आ रहे हो?"

    ओम ना में अपना सर हिलाकर कहता है, "नहीं, ये सरप्राइज है सबके लिए। (फिर कुछ सोचकर) हेय क्यों ना सबके लिए कुछ शॉपिंग हो जाए? घरवाले भी खुश हो जाएँगे।"

    रोनक (दूसरा लड़का) खुश होकर कहता है, "ग्रेट आईडिया, चलते हैं। वैसे कहाँ जाएँगे?"

    ओम सोचते हुए कहता है, "यहाँ से तो पहले चलेंगे, और देखेंगे फिर कि कहाँ जाना है! जहाँ की चीजें समझ में आई, वहीं से शॉपिंग करेंगे।"

    विकी एक्साइटेड होकर कहता है, "डन, तो फिर मैं कार मँगवा लेता हूँ। उससे जाएँगे लॉन्ग ड्राइव पर और शॉपिंग पर भी। मजा आएगा।"

    ओम हैरानी से कहता है, "ये क्या कह रहे हो विकी! अभी हम under age हैं और ऐसे में बिना लाइसेंस के कार चलाना रिस्की होगा यार। नहीं-नहीं मुझे ये ठीक नहीं लग रहा है।"

    विकी उसे समझाते हुए कहता है, "हे कमॉन यार अब तू मूड स्पॉइल मत कर। अब हम बच्चे नहीं हैं। मेरे पास learning licence है, सो जस्ट चील ओके! तुझे भी तो कार ड्राइव करना आता है ना? तेरे अथर्व भाई ने जो सिखाई है।"

    ओम हाँ में अपना सर हिलाकर कहता है, "हाँ, पर उन्होंने मुझे स्ट्रिक्टली कहा है कि जब मैं २२-२३ साल का हो जाऊँ तब ही इन सबके बारे में सोचूँगा और उनका कहना भी सही है यार। अगर हमारी वजह से किसी को कुछ हो गया, तो मेरी तो बेंड बज जाएगी।"

    विकी चिढ़कर कहता है, "ओह प्लीज, ये ज्ञान की बातें अभी मत कर। आजकल तो सभी ड्राइव करते हैं। age कोई मायने नहीं रखती है। आम बात हो गई है।"

    ओम को फिर भी ये सब सही नहीं लग रहा था। तब रोनक भी साथ देते हुए उसे राजी करते हुए कहता है, "हाँ यार ओम, चलते हैं ना। कहाँ वो रिक्शा और टैक्सी के धक्के खाएँगे। खुद की कार में जाएँगे तो मज़ा आएगा।"

    विकी ओम को उम्मीद भरी नज़रों से देखकर कहता है, "बोल क्या कहता है?"

    ओम कई बार मना करता रहा पर फिर विकी और रोनक के बहुत फोर्स करने पर आखिरकार उसने हाँ करते हुए कहा, "ओके-ओके, हम कार से जाएँगे पर स्पीड नॉर्मल ही होनी चाहिए।"

    विकी उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे भरोसा दिलाते हुए कहता है, "अरे डोंट वरी ब्रो, तू ना डरता बहुत है। तेरा ये दोस्त मास्टर है कार चलाने में। बिना फालतू का डर मत। तो डन, परसों कॉलेज खत्म होते ही निकल जाएँगे। मैं कार लेकर ही आऊँगा परसों, फिर यहीं से निकल जाएँगे।"

    इतना कहकर फिर विकी और रोनक हूटिंग करने लगे। ओम को अभी भी थोड़ी घबराहट थी, पर फिर अपने सारे खयालों को साइड करके खुश हो गया। फिर तीनों अपनी क्लास के लिए चले गए।


    बड़ौदा, गुजरात

    मोहब्बत सोफे के पीछे खड़ी हुई सुधीर के सर पर बालों में ऑइल से मालिश कर रही थी। सुधीर सोफे पर बैठा आँखें बंद किए हुए हल्का मुस्कुरा रहा था।

    मोहब्बत के हाथ की मालिश से उन्हें बहुत सुकून मिलता था, जैसे उनके सर का सारा बोझ हल्का हो गया हो।

    तब यशदीप जी कहते हैं जो वहीं बैठे हुए थे, "महेश के यहाँ आए हुए सभी मेहमानों को हमारे यहाँ की सारी चीजें बहुत पसंद आई थीं। सभी बहुत तारीफ कर रहे थे।"

    मोहब्बत खुश होकर कहती है, "हाँ, बड़े पप्पा। मैंने तो कई लोगों को बातें करते हुए भी सुना था। बहुत गर्व महसूस हो रहा था, जब हमारी तैयार की हुई मिठाइयों और फरसाण की तारीफ हो रही थी।"

    अमरदीप मुस्कुराकर कहता है, "चलो अच्छा है, कि मेहनत रंग लाई मोठा भाई। वरना ऐसे बड़े-बड़े ऑर्डर तैयार करने में हमेशा कोई ना कोई चूक हो ही जाती है।"

    यशदीप जी ने कहा, "वैसे उन्होंने सारा पेमेंट भी कल कर दिया है और साथ ही साथ धन्यवाद भी कहा है।"

    सभी खुश होकर मुस्कुरा दिए। सभी बातों में लगे हुए थे, तब महेश अपने हाथ में दो एनवेलप लेकर मुस्कुराता हुआ वहाँ आता है।

    यशदीप जी उसे देखकर कहते हैं, "अरे महेश, आओ-आओ बैठो।"

    सुधीर भी अब अपनी आँखें खोलता है और सभी उसका स्वागत करते हैं। मोहब्बत अपने हाथों को धोने चली जाती है।

    महेश सोफे पर बैठकर खुशी के साथ कहता है, "वैसे आज तो बिना मुँह मीठा किए मैं यहाँ से नहीं जाने वाला हूँ, यशदीप भाई साहब।"

    सभी सवालिया नज़रों से उसे देखने लगे। तब महेश मोहब्बत को देखकर कहता है, "आओ बेटा, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

    मोहब्बत जो सोफे के पास खड़ी थी, वह यशदीप जी को देखती है तो वह हाँ में अपना सर हिला देते हैं। वह आकर महेश के पास बैठ गई। महेश एक एनवेलप उसकी ओर बढ़ाकर कहता है, "ये लो।"

    मोहब्बत कन्फ्यूज होकर कहती है, "ये क्या है काका?"

    "तुम्हारी मेहनत की भेंट।" महेश के ये कहने पर भी किसी को कुछ समझ नहीं आया। तब महेश ने फिर से कहा, "ये शादी में सारी सजावट जो तुमने की उसकी fees।"

    मोहब्बत ना में अपना सर हिलाकर कुछ बोलती, उससे पहले महेश उसे रोकते हुए कहता है, "चुप, कुछ मत बोलना। ये हक है तुम्हारा। और एक खुशखबरी भी लाया हूँ सबके लिए।"

    देव्यानी जी सवालिया नज़रों से उसे देखकर कहती हैं, "कैसी खुशखबरी महेश?"

    महेश वह दूसरा एनवेलप दिखाते हुए कहता है, "भाभी, मोहब्बत बिटिया के सपनों को उड़ान मिल गई है। जो सजावट उसने शादी में की थी, उसे देखकर हमारे सम्धी के खास दोस्त मिस्टर चौधरी ने मोहब्बत बिटिया को मुंबई में उनकी कंपनी में जॉब के लिए suggest किया है।" सभी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।

    सभी एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगे। वहीं मोहब्बत अपनी आँखें बड़ी किए महेश को ही देख रही थी।

    तब अर्पिता खुश होकर कहती है, "महेश भाई, आप सही कह रहे हैं ना? कहीं हम सबके साथ मज़ाक तो नहीं कर रहे हैं ना?"

    महेश मुस्कुराकर ना में अपना सर हिलाकर कहता है, "अरे नहीं भाभी, मैं ऐसा मज़ाक करूँगा क्या! ये देखिए मिस्टर चौधरी ने ये appointment letter भी मुझे दिया है। उनका कहना है कि जब बिना सीखे भी वह इतनी टैलेंटेड है तो जब काम सीखेगी तो कितनी बेहतर बन सकती है! इसलिए मोहब्बत बेटा वहाँ जाकर पहले काम सीखेगी, उनकी हेल्प भी करेगी और उन्होंने कहा कि वह इसे सैलरी भी देंगे।" सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। पर मोहब्बत अभी भी कुछ नहीं बोल रही थी।

    महेश ने फिर से कहा, "शादी में उन्होंने इसे बड़ी लगन, मेहनत और ईमानदारी से काम करते हुए देखा था और यही बात उन्हें भा गई। और जानते हैं, मिस्टर चौधरी की इवेंट कंपनी मुंबई की बड़ी-बड़ी कंपनियों में जानी जाती है। (फिर सुधीर को देखकर) सुधीर, मोहब्बत की किस्मत बदलने वाली है। अगर मेरी माने तो इस बात पर आप सबको विचार करना चाहिए। ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता। बेटा ये letter, तुम अपने साथ ले जाकर वहाँ दिखाओगी तब मिस्टर चौधरी तुमसे मिल जाएँगे और तुम्हें सारा काम समझा देंगे। इस पर कंपनी का ऐड्रेस, नाम, नंबर सब कुछ दिया है।" यह कहकर वह उस दूसरे एनवेलप को मोहब्बत को दे देता है।

    मोहब्बत बस एकटक उस एनवेलप को देख रही थी। अर्पिता तो इतनी खुश थी कि उठकर महेश के लिए चाय-नाश्ता लेकर आई। बाकी सब भी खुश थे। कुछ देर बाद महेश वहाँ से इजाज़त लेकर चला गया।

    अर्पिता मोहब्बत का हाथ पकड़कर उसे सोफे से उठाकर गोल-गोल घूमते हुए खुशी से चिल्लाकर कहती है, "अरे वाह! माही तूने तो कमाल कर दिया! मैं बहुत खुश हूँ तेरे लिए।" मोहब्बत हल्का मुस्कुरा देती है।

    देव्यानी जी मुस्कुराकर कहती हैं, "अरे-अरे आराम से अप्पू, दोनों गिर जाओगी।"

    सभी हँस देते हैं। तब मोहब्बत ने गहरी साँस लेकर कहा, "मुझे कहीं नहीं जाना।" सभी हैरानी से मोहब्बत को देखकर फिर एक-दूसरे को देखने लगे।


    ऑबरॉय मेंशन

    कानल अपने रूम में बैठी हुई फ्रूट्स खा रही थी। संस्कार उसकी मेडिकल फ़ाइल देखते हुए कहता है, "कानू, परसों तुम्हारा चेकअप है!"

    कानल अपना सर हिलाकर कहती है, "हाँ, मुझे पता है। आपको याद नहीं था ना?"

    संस्कार कुछ सोचते हुए कहता है, "याद था कानु, पर मैं श्योर नहीं था। इस वजह से मुझे उस दिन इम्पोर्टेन्ट लेक्चर के लिए कॉलेज में वक़्त लग जाएगा।"

    कानल इस बात को समझते हुए कहती है, "हाँ हाँ, तो कोई बात नहीं। मैं किसी और के साथ चली जाऊँगी। सुखी चाचा (ड्राइवर) है ना, और डॉक्टर से तो मैं अकेली भी मिल सकती हूँ।"

    संस्कार हैरानी से उसे देखकर कहता है, "पागल हो गई हो क्या? इस हाल में अकेली जाओगी? आठवाँ महीना बैठ चुका है, अब कोई लापरवाही नहीं चलेगी। घर में इतने सारे लोगों के होते हुए तुम्हें अकेले जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं माँ से बात करता हूँ।"

    तब दरवाज़े से आवाज़ आई, "आपका जाना ज़रूरी है तो कोई बात नहीं है भाई। मैं और शिखा जाएँगे भाभी के साथ।"

    दोनों ने आवाज़ की ओर देखा तो वहाँ शिवाय और उसके साथ अभिनव की छोटी बेटी शिखा खड़े थे।

    शिवाय और शिखा रूम में अंदर आते हैं। तब कानल ने कहा, "कोई बात नहीं शिवा, शिखा अकेली भी होगी तो भी चलेगा। तुम्हें काम होगा।"

    शिखा भी हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "हाँ भाई, भाभी सही कह रही है। मैं हूँ ना उनके साथ!"

    शिवाय मना करते हुए कहता है, "नो शिखा, मैं चलूँगा। मुझे ऐसे अकेला भेजना ठीक नहीं लग रहा है। मैं आ रहा हूँ & इट्स फाइनल।" यह कहकर वह बिना कुछ और सुने चला गया।

    संस्कार को भी चैन मिला यह सुनकर कि अब शिवाय साथ होगा तो कोई परेशानी नहीं होगी। वह कानल के पास जाकर उसकी फोरहेड पर किस करके अपनी कॉलेज के लिए निकल गया। शिखा वहीं बैठकर कानल से बातें करने लगी।


    त्रिपाठी निवास, बड़ौदा

    मोहब्बत की बात सुनकर सभी हैरानी से उसे देख रहे थे। तब अमरदीप उसके पास जाकर उससे कहता है, "ये क्या कह रही हो, माही बेटा?"

    मोहब्बत मुँह बनाकर सुधीर और यशदीप जी के पास उनके बीच सोफे पर बैठकर कहती है, "सही कह रही हूँ चाचु। मुझे नहीं जाना कोई मुंबई-वुंबई। मैं तो यहाँ अपनी "अन्नपूर्णा स्वीट शॉप" में ही खुश हूँ।"

    देव्यानी जी भी उसका साथ देते हुए कहती हैं, "हाँ हाँ, बिलकुल सही फैसला लिया है गुड़िया ने। मुझे भी ये मुंबई जाने का कुछ समझ नहीं आ रहा। अरे, ऐसे अकेले मैं भी अपनी बच्ची को नहीं भेजना चाहती।"

    यशदीप जी उसे टोककर कहते हैं, "एक मिनट देव्यानी, यहाँ बात कुछ और है। (फिर मोहब्बत को देखकर) सच बता बेटा, क्या बात है? क्यों नहीं जाना चाहती हो तुम? इतने अच्छे मौके को ऐसे ही क्यों गँवा रही हो?"

    मोहब्बत यशदीप जी की बाजू पकड़कर उनके कंधे पर सर रखकर कहती है, "मेरा मन नहीं कर रहा आप सबको ऐसे अकेला छोड़कर जाने का। ऑलरेडी वीर, वेदिका दी और ओमी भी जा चुके हैं और मैं भी आप सबको छोड़कर जाऊँ? Tch... मुझे नहीं जाना।"

    सभी को अब समझ आया कि मोहब्बत अपने बड़ों के लिए ही यह मौका अपने हाथ से गँवा रही है। तब सुधीर उसे समझाते हुए कहता है, "ओहो तो अब समझ में आया। तो तुम किसी और के लिए अपने सपनों को पंख देने से खुद को रोक रही हो?"

    मोहब्बत हैरानी से उसे देखकर शिकायत करते हुए कहती है, "ये क्या बोल रहे हैं आप, पप्पा? किसी और के लिए का क्या मतलब होता है? आप सब क्या मेरे लिए कोई और हैं? मैं आप सबकी कोई नहीं हूँ?" ये कहते हुए उसका गला भर आया और आँखें नम हो गईं।

    यशदीप जी ये देखकर सुधीर को डाँटते हुए कहते हैं, "रुला दिया ना मेरी बच्ची को? तुझे बात करनी ही नहीं आती। तू शांत रह थोड़ी देर के लिए, मैं बात कर रहा हूँ ना!"

    सुधीर अपना मुँह बनाकर शांत हो गया। ये देखकर अमरदीप मंद-मंद हँसने लगा, जिसे देखकर सुधीर उसे अपनी आँखें दिखा देता है। तो वह चुप हो गया।

    यशदीप जी मोहब्बत को देखते हैं जो सर झुकाकर बैठी थी। सुधीर की ऐसी बात ने उसे दुखी कर दिया था।

    यशदीप जी उसके सर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहते हैं, "देख बेटा, अपनों की चिंता करना बहुत अच्छी बात है पर उन्हीं अपनों के लिए अपने सपनों को भुलाना ये भी तो सही नहीं है। हम सब मानते हैं कि तुमने कभी हमसे दूर जाकर कुछ करने का ऐसा कोई सपना नहीं देखा पर किस्मत कब क्या कर जाए ये कोई नहीं जानता। ये सब जो भी होता है, ये सब ऊपर वाले की मर्ज़ी होती है। और उसकी मर्ज़ी पर हम सवाल उठाने वाले कौन होते हैं हम्म?"

    मोहब्बत हाँ में अपना सर हिलाकर कहती हैं, "आपकी बात सही है बड़े पप्पा, पर अगर मुझे कुछ करना है तो मैं यहाँ रहकर भी तो कुछ कर सकती हूँ ना? उसके लिए अपने अपनों को छोड़कर इतनी दूर जाना, ये मुझे सही नहीं लगता। और आप भी तो सोचिए, बड़ी माँ के घुटनों में अब भी दर्द रहता है तो उनका मालिश कौन करेगा? मम्मी और चाची अकेले सारा घर का काम करके थक नहीं जाएँगी? और आप और पप्पा शॉप कैसे अकेले मैनेज करेंगे? चाचु भी तो अपने स्टोर में अकेले हैं तो वह भी दो जगह भागदौड़ कैसे कर पाएँगे? तो मुझे तो यहाँ रहना ही है ना?"

    एक साथ मोहब्बत को इतना कुछ बोलते देख सभी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।

    यशदीप जी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, "अच्छा तो ये है तेरी परेशानी का कारण? तो ठीक है, मैं वादा करता हूँ कि किसी को काम के लिए ज़्यादा थकना नहीं पड़ेगा। शॉप में हम एक और वर्कर रख लेंगे और घर पर भी घर के कामकाज के लिए एक हेल्पर रख लेंगे ताकि इस घर की औरतों को ज़्यादा दिक्कत ना हो। और रही बात तुम्हारी बड़ी माँ के घुटने की मालिश की तो उनका ये गुलाम किस दिन काम आएगा?"

    ये कहकर वह अपना सर झुका लेते हैं, जिसे देखकर सब हँसने लगे। जिससे देव्यानी जी नाराज़गी जताते हुए कहती हैं, "क्या आप भी, ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? मैंने क्या कभी आपको गुलाम समझा है?"

    यशदीप जी रोमांटिक अंदाज़ में कहते हैं, "अब क्या ही कहें देव्यानी जी? हम तो आपको देखकर पहली नज़र में ही आपके गुलाम बन चुके थे।"

    मोहब्बत अपने मुँह पर हाथ रखकर हँसने लगी। बाकी सब भी हूटिंग करते हुए हँस दिए। देव्यानी जी भी शर्माते हुए हँसने लगीं।

    यशदीप जी मोहब्बत को देखकर कहते हैं, "अब बता बेटा, तेरी सारी समस्या का समाधान हो गया तो अब खुश?"

    मोहब्बत सोचने लगी। तब अमरदीप ने कहा, "हाँ और माही बेटा मुंबई कहाँ इतना दूर है जो हम मिल नहीं सकते? कभी तुम आ जाना छुट्टी लेकर तो कभी हम आ जाएँगे।"

    मोहब्बत काफी देर तक सोचकर फिर फाइनली हाँ कह देती है, जिससे सभी खुश हो जाते हैं। आखिर बच्चे को तरक्की करते हुए देखकर कौन से माता-पिता खुश नहीं होंगे! यही तो उनका सपना होता है कि उनके बच्चे बड़े होकर पढ़-लिखकर कुछ अच्छा अचीव करें।

    फाइनली सबने सोच लिया था कि मोहब्बत अब मुंबई जाएगी और कुछ सीखेगी। इसलिए अमरदीप ने मोहब्बत की कल रात की ट्रेन की टिकट भी बुक कर दी थी।

    जैसे कि मोहब्बत पहले भी एक बार मुंबई गई हुई थी, इसलिए उसे अकेले जाने में कोई झिझक या डर नहीं था। और इस वजह से उसने किसी को भी अपने साथ आने को मना कर दिया था। वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसकी वजह से परेशान हो।


    क्या ओम का इस तरह से बाहर जाना सही साबित होगा? क्या रंग लाएगी मोहब्बत की किस्मत सपनों के शहर मुंबई में? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें....

  • 6. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 6

    Words: 2927

    Estimated Reading Time: 18 min

    त्रिपाठी निवास, बडौदा

    मोहब्बत के मुंबई जाने की खुशी घर में थी क्योंकि उसे अगले दिन, यानी कल, मुंबई के लिए निकलना था। मोहब्बत को अपने परिवार को छोड़कर जाना थोड़ा दुखद था, पर काम करके अपने परिवार की मदद करने की खुशी भी थी। सभी हॉल में सोफे पर बैठकर बातें कर रहे थे। तभी मोहब्बत कुछ याद करते हुए अपने सर पर हाथ रखकर बोली, "ओह नो! हमने वीरे को तो इस बारे में कुछ बताया ही नहीं?"

    अमरदीप ने कहा, "कोई बात नहीं, बेटा। हम बता देंगे, उसे बाद में।"

    मोहब्बत ने ना में अपना सर हिलाकर कहा, "अरे नहीं चाचू, मैं वीरे की परमिशन के बिना कहीं नहीं जाऊँगी। आप जानते हैं ना कि मुंबई से उनकी कितनी बुरी यादें जुड़ी हुई हैं, और इस वजह से मुझे पूरा यकीन है कि वीरे मुझे नहीं जाने देंगे।"

    यशदीप जी ने उसे शांत कराते हुए कहा, "अरे, तो इसमें कौन सी बड़ी बात है! अभी बात कर ले अपने वीरे से और पूछ ले।"

    मोहब्बत ने हाँ में अपना सर हिलाकर अथर्व को कॉल किया और स्पीकर पर रख दिया। कुछ देर की रिंग के बाद वहाँ से एक शांत आवाज आई, "तो हमारी बच्ची को अपने वीरे की याद फाइनली आ ही गई?"

    "उम्म.. ऐसा कुछ नहीं है, वैसे भी याद उन्हें करना पड़ता है जिन्हें हम भूल जाएँ। ये तो आप ही हैं जो हमसे इतना दूर गए हुए हैं। अच्छा ये बताइए कि कैसे हैं आप, और कब वापस आ रहे हैं?" मोहब्बत ने पहले अपना मुँह बनाकर, फिर उसकी बात पर मुस्कुराकर जवाब दिया।

    अथर्व ने मुस्कुराकर कहा, "मैं ठीक हूँ और शायद हो सका तो इस संक्रांति पर घर आऊँगा। और बता, बाकी सब घर में कैसे हैं?"

    मोहब्बत के कुछ बोलने से पहले अर्पिता एक्साइटेड होकर बोली, "हम सब ठीक हैं, बच्चा। पता है, अथर्व? हमारी माही ने महेश भाई साहब के वहाँ जो सजावट का काम किया था, उसकी वो सजावट देखकर उनके संबंधी के दोस्त ने माही को अपने यहाँ जॉब का ऑफर दिया है। हमारी माही मुंबई जा रही है, मुंबई।"

    मोहब्बत ने अर्पिता को देखकर अपनी आँखें बड़ी करके फिर इशारा किया, जैसे कह रही हो, "ऐसे अचानक से क्यों बता दिया?"

    अर्पिता अपनी पलकें झपकाते हुए उसे शांत रहने का इशारा करती है। तब सामने से अथर्व की गंभीर आवाज आई, "ये मैं क्या सुन रहा हूँ, बच्ची?"

    "अगर आप कहेंगे तो मैं नहीं जाऊँगी, वीरे।" मोहब्बत ने शांत आवाज में कहा। अथर्व कुछ देर के लिए शांत हो गया, जिससे मोहब्बत को उसकी चिंता होने लगी थी।

    "अथर्व बेटा, कुछ तो बोलो। देखो, हम सब जानते हैं कि तुम इस बात से खुश नहीं हो पर ये मौका बहुत बड़ा है, तो उसे ऐसे गँवा देना सही नहीं होगा। बहुत मुश्किल से हम सबने माही को मनाया है। वो तो खुद ही मना कर रही थी।" अमरदीप ने अथर्व को समझाने की कोशिश की।

    आराधना ने शांत आवाज में समझाते हुए कहा, "तू जानता है ना, कि अगर तेरी जिस चीज के लिए ना होती है वो वैसा काम कभी नहीं करेगी। तो तू बता, क्या करना चाहिए उसे?"

    सभी के चेहरे पर एक चिंता की लकीर थी कि अथर्व का क्या फैसला होगा क्योंकि उसकी हाँ के बगैर मोहब्बत नहीं जाने वाली थी। तब अथर्व ने गहरी साँस लेकर ठंडे लहजे में कहा, "ठीक है। बच्ची जाएगी मुंबई। पर मेरी एक शर्त है।"

    "हाँ हाँ, उसे तुम्हारी सब शर्त मंजूर है। बताओ, क्या शर्त है?" अर्पिता ने जल्दबाजी में जवाब दे दिया। ये देखकर अमरदीप ने अपना सर पीटकर उसे शांत रहने को कहा। तब अथर्व ने कहा, "मेरी शर्त बच्ची को माननी है चाची, तो जवाब भी उसका होना चाहिए।" अर्पिता का मुँह बन गया।

    "हाँ, वीरे बोलो ना।" मोहब्बत ने तुरंत जवाब दिया।

    जिसे सुनकर अथर्व ने कहा, "वहाँ जाकर सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम अपने काम पर ध्यान दोगी, और किसी चीज़ में नहीं। किसी पर भी भरोसा नहीं करोगी। अकेले कहीं भी नहीं जाओगी। मुझे इन बड़े घर के लोगों पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है। ये अमीरज़ादे सिर्फ़ और सिर्फ़ लोगों के दिलों से खेलना और धोखा देना जानते हैं। मैं नहीं चाहता कि मेरी बहन किसी की भी जाल में फँस जाए।"

    "अ...हाँ, वीरे। आई प्रॉमिस मैं अकेली कहीं नहीं जाऊँगी और जिसे नहीं जानती उससे बात बिलकुल भी नहीं करूँगी और सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान दूँगी। ऑफ़िस के बाहर वालों से मेरा कोई लेना-देना नहीं होगा।" मोहब्बत ने अथर्व के मन का डर समझते हुए उसकी शर्त मान ली थी। हर परिवार को अपने बच्चों को ऐसे अनजान जगह भेजने का एक डर बना रहता है।

    मोहब्बत की बात पर अथर्व के चेहरे पर सुकून छा गया। वो हल्का मुस्कुराकर कहता है, "ओके, जाओ। और मन लगाकर काम करो। और वहाँ पहुँचते ही पहले मुझे कॉल करना, बाय।"

    "ओके, वीरे। थैंक यू, जय श्री कृष्ण। बाय।" मोहब्बत ने चहकते हुए यह कहकर कॉल काट दिया। सभी के चेहरे पर खुशी छा गई थी।


    शाम को देव्यानी जी, आराधना और अर्पिता खुशी-खुशी उसकी पैकिंग में लगी हुई थीं। मोहब्बत वहीं बैठी सबके चेहरे पर खुशी देखकर मुस्कुरा रही थी।

    आराधना उसकी ड्रेस सूटकेस में रखते हुए कहती है, "गुड़िया बेटा, सारी ड्रेस रखी हुई है पर अगर कभी ऐसा लगे कि कुछ और कपड़े लेने हैं तुम्हें तो वहाँ जाकर खरीद लेना, पैसों का सोचकर बिलकुल भी हिचकिचाना मत।"

    मोहब्बत उसके पास जाकर उसे पीछे से अपनी बाहों में लेकर उसके कंधे पर सर रखकर कहती है, "नहीं मम्मी, मुझे कोई नए कपड़ों की ज़रूरत नहीं है। इतने सारे तो हैं, और अगर ज़रूरत पड़ी तो सोचूँगी। आप चिंता मत कीजिए।"

    देव्यानी जी उसे देखकर मुस्कुराकर कहती है, "और हाँ, गुड़िया। तुम कल सुबह मंदिर हो आना। मैं चाहती हूँ कि तू अपनी आने वाली ज़िंदगी में भगवान के आशीर्वाद के साथ आगे बढ़े। बस मेरी तो यही प्रार्थना है कि तेरी आने वाली ज़िंदगी इतनी खुशियों से भरी हो कि तू इन खुशियों को समेटते-समेटते थक जाए पर तेरी ज़िंदगी में ये खुशियाँ कम ना हों।"

    मोहब्बत हाँ में अपना सर हिलाकर उनके गले लग जाती है। फिर कुछ समय बाद सभी डिनर करके अपने-अपने रूम में सोने चले गए।

    मोहब्बत बालकनी में खड़ी आसमान की ओर हल्की मुस्कान के साथ देख रही थी। तब सुधीर और आराधना उसके रूम में आकर उसके पास बालकनी में चले जाते हैं।

    सुधीर उसके सर पर हाथ रखकर कहता है, "क्या बात है, अभी तक सोया नहीं मेरा बच्चा?"

    मोहब्बत पलटकर दोनों को देखकर फिर सुधीर के सीने से लगकर आसमान की ओर देखकर कहती है, "बस नींद नहीं आ रही थी। एक बात पूछूँ, बच्चे इतने बड़े क्यों हो जाते हैं पप्पा? क्या कभी ऐसा नहीं होता कि हम हमेशा अपने मम्मी-पप्पा के पास उनकी गोद में उनकी परवरिश में रहें?"

    सुधीर उसके सर पर हाथ रखकर आसमान की ओर देखकर कहता है, "बच्चे चाहे जितने भी बड़े हो जाएँ बेटा पर माता-पिता के लिए हमेशा छोटे ही रहेंगे। माता-पिता की गोद तो हमेशा रहेगी उन्हें संभालने के लिए। चल आजा, आज मैं अपनी गुड़िया को लोरी सुनाऊँगा।"

    मोहब्बत खुश होकर उनके साथ जाते हुए कहती है, "पप्पा, वीरे से बात तो हो गई है पर मुंबई का नाम सुनकर वो गुस्सा तो नहीं होंगे ना मुझसे?" उसकी आवाज में अचानक से मायूसी छा गई।

    आराधना परेशान होकर कहती है, "मेरी भी यही चिंता है, जी। पहले ही इन मुंबई वालों की वजह से मेरे बेटे का दिल टूट चुका है। भले ही उसने ज़्यादा कुछ कहा नहीं, पर गुड़िया की वहाँ जाने की बात पर ज़रूर नाराज़ होगा।"

    सुधीर मोहब्बत के साथ बेड पर बैठकर गहरी साँस लेकर कहता है, "ऐसा कुछ नहीं होगा। जो बीत गया, वो अतीत था। हमारे अथर्व के लिए उसकी बहन की खुशियाँ ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं। हम एक बार फिर से बात करेंगे उससे। अब उस बारे में चिंता मत करो।"

    मोहब्बत अपने पिता की गोद में सर रखकर लेट गई और उसी के पास आराधना भी बैठी थी। सुधीर उसके सर को सहलाते हुए गुनगुनाने लगा,

    "मीठे मीठे सपनों में खो जा,
    रानी बेटी अब तू भी सो जा..सो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा,"

    (सुधीर की आवाज बहुत अच्छी थी। वो अपने ज़माने में कभी सिंगर बनना चाहता था पर उसका यह सपना अधूरा रह गया। और यही कला विरासत के तौर पर मोहब्बत को भी मिली थी। वो भी बहुत अच्छा गाती थी। मोहब्बत आराधना और सुधीर को ही मुस्कुराते हुए देख रही थी।)

    "मीठे मीठे सपनों में खो जा,
    रानी बेटी अब तू भी सो जा..सो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा,"

    (सुधीर मोहब्बत को देखते हुए आगे की लाइन गाता है, जिससे उसकी आँखों में नमी छा जाती है।)

    "सपनों का राजा, डोली लेके आये,
    प्यारी गुड़िया को संग ले जाए,
    माँ तेरी रो रोके याद करेगी,
    जो न आयी मिलने फरियाद करेगी,"

    (ये सुनकर आराधना की आँखें भी छलक उठीं। मोहब्बत दोनों का हाथ थामकर उस पर किस करके अपने सीने से लगाकर अपनी आँखें बंद कर देती है। अपने मम्मी-पप्पा को इमोशनल देखकर वो खुद को शांत रखने की कोशिश कर रही थी।)

    "अँसुओं से नैनों को भिगो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा..सो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा,"

    (सुधीर और आराधना देखते हैं कि मोहब्बत अब नींद में जा चुकी थी। दोनों उसे एकटक देख रहे थे। सुधीर गाते हुए उसकी फोरहेड को चूमकर फिर दोनों धीरे-धीरे अपना हाथ मोहब्बत के हाथ से छुड़ाते हैं।)

    "मीठे मीठे सपनों में खो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा..सो जा
    रानी बेटी अब तू भी सो जा...."

    सुधीर अब उसे ठीक से सुलाकर बेड से उठ जाता है। आराधना अपनी बच्ची को देखकर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरकर उसके सर को चूमकर उसे कंबल ओढ़ाकर दोनों उसे देखते हुए दरवाज़ा सटाकर बाहर निकलकर अपने रूम में चले गए।

    मोहब्बत अपनी आने वाली ज़िंदगी से अनजान बेफिक्र होकर सो रही थी।


    अगली सुबह

    मोहब्बत तैयार होकर मंदिर आई हुई थी। शिव जी और उमा जी की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करती है, "कल मैं अपने आने वाली नई ज़िंदगी की ओर कदम बढ़ा रही हूँ, शिव जी। आपका आशीर्वाद हर पल, हर घड़ी मेरे साथ तो होगा ना? बस हमें इतनी हिम्मत देना कि मैं और वीरे अपने परिवार की आँखों में बसी हर एक इच्छा को पूरा कर सकें। आज तक उन्होंने हम बच्चों के लिए बहुत कुछ किया है, बहुत सेक्रिफाइसेस किए हैं पर अब हम उनके सपने पूरे करना चाहते हैं, उन्हें सारी खुशियाँ देना चाहते हैं। आप इसमें अपना आशीर्वाद बनाए रखना।"

    यह कहकर वह अपना सर झुकाकर फिर पंडित जी से प्रसाद लेकर मंदिर से बाहर आने लगी। सीढ़ियों से उतरकर एक नज़र पीछे मुड़कर मंदिर को देखकर मुस्कुरा देती है और फिर जब वापस मुड़कर जाने लगी तब एक अघोरी बाबा उसके पास आए, "जय शिव शंभू।" उनकी आँखों में एक अनोखा तेज झलक रहा था।

    "जय भोलेनाथ, बाबा।" यह कहकर मोहब्बत उनके पैर छूती है। तब उसके स्पर्श से अघोरी बाबा उसके सर पर हाथ रखकर कहते हैं, "भोलेनाथ तेरा भला करे। नए रास्ते पर चल पड़ी हो, पर आने वाली ज़िंदगी सरल नहीं है पुत्री।"

    मोहब्बत कन्फ़्यूज होकर उन्हें देखती है, तब अघोरी बाबा फिर से आगे कहते हैं, "बहुत परीक्षाएँ लिखी हैं, जो आसान नहीं होंगी। बहुत सी कठिनाइयाँ हैं तेरे जीवन में पर अपने महादेव पर विश्वास रखना और हिम्मत से सबका सामना करना। भोलेनाथ हर डगर पर तेरे साथ है। लक्ष्मी है तू। तेरे कदम जिस घर में पड़ेंगे वो घर खुशियों से भर जाएगा और यही कड़ी बनाकर भोलेनाथ तुझे एक नई राह पर भेज रहे हैं।"

    मोहब्बत हैरानी से उन्हें देखने लगी, उसे समझ नहीं आया कि अघोरी बाबा ने उसे यह सब क्यों कहा? वो कन्फ़्यूज होकर कहती है, "क...क्या मतलब बाबा? शिव जी ने मुझे कहाँ भेजने का सोचा है?"

    उसके इतना यह पूछने पर अघोरी बाबा के चेहरे पर निश्छल मुस्कान आ गई। मोहब्बत आगे कुछ जान पाती कि पीछे से कुछ लोगों का जोर का शोर सुनाई दिया जिससे वो पीछे मुड़कर देखती है तो कुछ लोग भोलेनाथ का नाम जपते हुए मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। शायद कहीं से यात्री महादेव के दर्शन के लिए रथ लेकर आए हुए थे।

    मोहब्बत जैसे ही वापस से मुड़कर बाबा को देखती है, वहाँ कोई बाबा नहीं थे और अचानक से भक्तों की भीड़ होने लगी थी। मोहब्बत हैरानी से यहाँ-वहाँ नज़र घुमाते हुए उस बाबा को ढूँढने और पुकारने लगी पर उसे बाबा कहीं नहीं मिले। उसे लगा कि शायद यह कोई उसका भ्रम होगा। इसलिए वो अब गहरी साँस लेकर एक नज़र मंदिर को देखकर अपने हाथ जोड़कर वहाँ से ऑटो लेकर अपने घर के लिए निकल गई।


    त्रिपाठी निवास

    मोहब्बत के जाने का वक्त हो रहा था और साथ ही साथ उसे एक अजीब सी बेचैनी भी हो रही थी। शायद अपनों से दूर जाने के कारण।

    मोहब्बत अपनी हैंड बैग में अपना ज़रूरी सामान रख रही थी तब अर्पिता उसके पास एक डिब्बा लेकर आई और उसे सूटकेस में रखकर कहती है, "ये ले इसमें तेरे और ओम के लिए बेसन के लड्डू हैं। बहुत पसंद है ना तुम दोनों को?"

    मोहब्बत खुश होकर कहती है, "वाह, बेसन के लड्डू! थैंक यू चाची। पता है क्या? मुझे तो ना ये सोच-सोचकर ही मज़ा आ रहा है कि जब ओमी मुझे अचानक से अपने सामने देखेगा तो उसकी शक्ल पर कैसे बारह बजेंगे! मैं ना अपने फ़ोन में कैमरा ऑन रखूँगी फिर उसका फ़ोटो निकालकर आपको भेजूँगी, मज़ा आएगा।"

    सभी हँस देते हैं, तब देव्यानी जी ने कहा, "हाँ हाँ, और उस शैतान की पूछताछ भी वहाँ पर करती रहना कि वहाँ कोई शैतानी या किसी को परेशान तो नहीं करता है ना?"

    मोहब्बत मुस्कुराकर हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "हाँ, बड़ी माँ। मैं पता कर लूँगी, आप चिंता मत करो। अब तो हमारा ओमी काफ़ी सुधर गया है।"

    अर्पिता अपना सर लाचारी से हिलाकर कहती है, "वो अगर सुधर जाए ना, तो मैं भोलेनाथ के मंदिर जाकर उनके पसंद का प्रसाद चढ़ाऊँ! दिन-ब-दिन बस उसकी मस्तियाँ बढ़ती ही जा रही है। डर है कि उसकी वजह से कहीं हम सब एक दिन किसी बड़ी मुसीबत में ना पड़ जाएँ!"

    "संभल जाएगा, एक दिन। तू अब ज़्यादा मेरे बच्चे को कोस मत।" देव्यानी जी ने हल्की फटकार लगा दी जिससे अर्पिता अपना मुँह बनाकर चुप हो गई। तब सुधीर मोहब्बत के पीछे जाकर अपने हाथ आगे लाकर उसे गले में कुछ पहनाने लगे।

    मोहब्बत अपना सर झुकाकर देखती है, तो एक सोने की पतली चैन थी और उसमें छोटा सा खूबसूरत शिवलिंग के साथ एक त्रिशूल भी था, ऐसा पेंडेंट लगाया हुआ था। जो बहुत ही खूबसूरत लग रहा था, और साथ ही चमक रहा था।

    मोहब्बत को वो पेंडेंट बहुत पसंद आया था। वो मुड़कर सुधीर को देखकर हैरानी से कहती है, "ये मेरे लिए पप्पा, पर ये आपने कब बनवाया? और ये तो कितना महँगा भी होगा!"

    "शश्श...बस। ये हम सबकी तरफ़ से छोटा सा तोहफ़ा है और ये भोलेनाथ का आशीर्वाद समझ। ये हमेशा तेरे साथ रहेंगे और तेरी रक्षा करेंगे। पसंद आया?" सुधीर की बात पर मोहब्बत खुश होकर उसके गले लगकर कहती है, "हाँ पप्पा, ये बहुत खूबसूरत है और थैंक यू सो मच। मैं इसे हमेशा अपने पास संभालकर रखूँगी।" सुधीर ने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ रख दिया।

    यशदीप जी घड़ी में देखते हुए कहते हैं, "सुधीर-अमर (अमरदीप) अब माहि को लेकर जाओ। उसकी ट्रेन का वक्त होने आया है। वरना कहीं ट्रेन छूट ना जाए!"

    अमरदीप हाँ में अपना सर हिलाकर कहता है, "हाँ, मोटा भाई। वो शांतनु बस टैक्सी लेकर आता ही होगा।"

    तब दरवाज़े से आवाज आई, "आता होगा नहीं काका, आ गया। चलो-चलो अब जल्दी से वरना हमारी जीजी कहीं लेट ना हो जाए!" यह कहकर वह मोहब्बत का सामान लेकर घर से बाहर जाकर टैक्सी में रखने चला गया।

    मोहब्बत बारी-बारी सबके गले लगने लगी। सभी की आँखों में नमी आने लगी। तब सबको देखकर मोहब्बत भावुक होकर कहती है, "देखिए, अगर आपमें से कोई रोयेगा तो मैं कहीं नहीं जाऊँगी।"

    देव्यानी जी उसकी नमी साफ़ करते हुए कहती है, "कोई नहीं रोयेगा बस। चल अब खुशी-खुशी जा। और हमारी चिंता बिलकुल भी मत करना। वहाँ पहुँचते ही फ़ोन कर देना।"

    मोहब्बत हाँ में अपना सर हिलाकर उनके गले लग जाती है। फिर आराधना, अर्पिता, यशदीप जी के गले लगी। मोहब्बत की आँखें भी छलक उठती हैं पर वो अपने आँसू दिखाकर उन सबको दुखी नहीं करना चाहती थी।

    यशदीप जी उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर प्यार से कहते हैं, "खूब तरक्की कर और खुश रह। और हाँ कोई भी परेशानी हो तुरंत फ़ोन कर देना, किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो माँगने से हिचकिचाना मत।" मोहब्बत अपना सर हिला देती है। यशदीप जी उसके सर को चूम लेते हैं।

    मोहब्बत दरवाज़े से निकलते हुए एक नज़र पीछे मुड़कर अपने घर को देखती है और झुककर उसकी चौखट पर हाथ रखकर अपने सीने से लगाकर अपनी आँखें बंद कर देती है। फिर जाकर टैक्सी में पीछे सुधीर और अमरदीप के पास बैठ गई और खिड़की से सबको अपना हाथ हिलाते हुए बाय करने लगी। सभी उसे मुस्कुराते हुए विदा कर रहे थे, यह सोचकर कि वो एक नई मंज़िल की ओर चल पड़ी है।


    क्या कहना चाहते थे अघोरी बाबा? किन कठिनाइयों से भरी है मोहब्बत की ज़िंदगी? क्या यह सच था या सच में मोहब्बत का कोई भ्रम? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें...

  • 7. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 7

    Words: 2605

    Estimated Reading Time: 16 min

    त्रिपाठी निवास, बडौदा

    मोहब्बत अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाने के लिए तैयार थी। वह सुधीर और अमरदीप के साथ स्टेशन जाने के लिए निकल चुकी थी।

    टैक्सी के आँखों से ओझल होते ही सबकी आँखें नम हो गईं। अभी उनके सारे बच्चे यहाँ से वहाँ हो चुके थे। तब उनके पड़ोसी, जो मोहब्बत को विदाई देने आए थे, बोले, "अरे मायूस मत होइए, देखना माही बिटिया की किस्मत पलटने वाली है। अरे किसी-किसी को ही ऐसे मौके मिलते हैं मुंबई जाकर वहाँ काम सीखने का। यह तो बहुत ही अच्छी बात है।"

    सभी हल्का मुस्कुराकर, मायूस मन से घर के अंदर आने लगे। घर के अंदर आते ही यशदीप जी घर को देखकर बोले, "बच्चों के बगैर तो घर जैसे काटने को दौड़ता है। अब माहू भी चली गई, पता नहीं दिन कैसे बीतेंगे बच्चों के बिना?"

    आराधना उन्हें देखकर मुस्कुराकर बोली, "यह क्या भाई साहब, अब आप ही ऐसे भावुक हो जाएँगे तो कैसे चलेगा? जानते हैं ना गुड़िया ने क्या कहा था कि कोई भी उसके जाने के बाद दुखी नहीं होगा।"

    अर्पिता तुरंत जवाब देते हुए बोली, "हाँ, और मुंबई है ही कितना दूर! जब भी बच्चों की याद आएगी तो चले जाएँगे मिलने।"

    सभी सहमति जताते हुए हाँ में अपना सिर हिलाकर सोफे पर बैठ गए।

    टैक्सी में सुधीर नाराजगी से बोला, "बेटा तुमने हमें मुंबई आने से क्यों मना कर दिया? हमें आने देती, तुम्हें छोड़ने?"

    मोहब्बत उसके सीने से लगी प्यार से बोली, "अरे पापा, कोई ज़रूरत नहीं थी। मैं पहले भी तो आपके साथ गई हुई हूँ ना मुंबई, इसलिए कोई परेशानी नहीं होगी। क्यों ख़ामख़ा आपको यहाँ से वहाँ करना! मैं सब मैनेज कर लूँगी। बस अब वहाँ रहने का ठिकाना ढूँढना है।"

    अमरदीप ने कहा, "तुम्हें उस चौधरी साहब से ही बात करना। उनकी नज़र में ज़रूर कोई ठिकाना होगा ही।" मोहब्बत हाँ कह दी। कुछ देर में वे लोग रेलवे स्टेशन पहुँच गए।

    शांतनु सामान निकालकर सभी स्टेशन की ओर बढ़ने लगे। सभी प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े, ट्रेन की ही राह देख रहे थे। तब मोहब्बत शांतनु का हाथ पकड़कर बोली, "शांतनु, वादा कर कि तू सब संभाल लेगा। पापा, बड़े पापा और चाचू को जरा भी परेशानी नहीं होनी चाहिए किसी चीज़ को लेकर। और घर पर भी आते-जाते रहना ताकि मम्मी उन सबको भी अच्छा लगे। हमारी गैरहाज़िरी में यह समझ कि तू ही उस घर का बेटा है।"

    शांतनु उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर बोला, "अरे दीदी, यह भी कोई कहने की बात है! मैं सब संभाल लूँगा। आप बेफ़िक्र होकर जाओ। और वहाँ से कॉल करते रहना। यहाँ किसी बात की चिंता मत करना।" मोहब्बत अब चैन की साँस लेकर मुस्कुरा दी।

    अमरदीप घड़ी में देखते हुए बोला, "माही, बेटा समर्थ को बताया था ना कि ट्रेन कितने बजे की है? वह आया नहीं अभी तक?"

    मोहब्बत के कुछ बोलने से पहले आवाज़ आई, "अरे आपने याद किया और देखिए हम हाज़िर हो गए।"

    सबने पीछे मुड़कर देखा तो समर्थ, उसके माता-पिता और उसकी छोटी बहन वहाँ खड़े मुस्कुरा रहे थे।

    सभी उनके पास आने लगे। मोहब्बत समर्थ के माता-पिता के पास आकर उनके पैर छूती है। दोनों उसे आशीर्वाद देकर, फिर समर्थ के पिता बोले, "हमेशा खुश रह बेटा, और आगे बढ़। हम बहुत खुश हैं, तेरे इस फ़ैसले से।"

    समर्थ मज़ाकिया अंदाज़ में बोला, "वैसे पापा, अब तो हमारी मैडम का रुतबा ही कुछ और होगा। मुंबई जो जा रही है! मैं तो अब इनके सामने कुछ भी नहीं हूँ।"

    मोहब्बत नाराज़ होकर उसकी बाजू पर हल्का मारते हुए बोली, "उम्म...ऐसा मत कहो। ऐसा कुछ नहीं है, मैं जो हूँ हमेशा वही रहूँगी।"

    समर्थ मुस्कुराकर उसे साइड से गले लगाते हुए बोला, "जानता हूँ, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था। अपना ख्याल रखना और हाँ किसी भी बात की फ़िक्र मत करना। माँ-पापा (सुधीर-आराधना) के पास हम आते रहेंगे। तुम बस अपने काम में फ़ोकस करना, हम्म?" मोहब्बत मुस्कुराकर हाँ में अपना सिर हिलाकर उसके गले लग गई।

    ट्रेन के आते ही मोहब्बत बारी-बारी सबके गले लग गई। फिर समर्थ और शांतनु मोहब्बत का सामान लेकर उसके साथ ट्रेन में चढ़कर उसकी सीट ढूँढने लगे।

    सीट मिलते ही मोहब्बत सुधीर और अमरदीप को देखकर इमोशनल होकर उनके गले लगकर सिसक पड़ी।

    सुधीर और अमरदीप भी खुद को बड़ी मुश्किल से संभाल रहे थे। फिर उसे खुद से अलग कर, उसे समझा-बुझाकर उसके सर को चूमकर उसे उसकी सीट पर बिठा दिया। सभी उसे बाय कहकर ट्रेन से उतरकर उसे देखने लगे। मोहब्बत खिड़की से सबको देखकर नम आँखों से मुस्कुराकर उन्हें अलविदा कहने लगी।

    सुधीर खिड़की के वहाँ खड़े होकर उसे सब समझा रहे थे, जैसे हर माता-पिता बच्चों के उनसे दूर जाते वक़्त समझाते हैं।

    कुछ देर में ट्रेन चल पड़ी, जिससे मोहब्बत के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे उससे सब कुछ छूट रहा हो। सभी उसे अपना हाथ हिलाते हुए बाय कर रहे थे।

    मोहब्बत भी तब तक उन्हें देखती रही जब तक वह देख पा रही थी। जब वे उसकी आँखों से ओझल हो गए तब मोहब्बत खिड़की से सिर टिकाकर उन पीछे छूटे हुए रास्तों को देख रही थी।

    तब उसके दिमाग में सुबह वाले अघोरी बाबा की बातें घुँघुने लगीं, जिससे वह अपनी आँखें बंद करके खुद से बोली, "नहीं माही, ज़्यादा मत सोच। वह सिर्फ़ भ्रम था। देखा था ना कि वहाँ कोई नहीं था! हो जाता है कभी-कभी ऐसा। तुझे तो वहाँ बस अपने काम पर ध्यान देना है।" यह कहकर वह खुद को तसल्ली दे रही थी।

    कुछ देर बाद डिनर का टाइम होते ही आराधना के पैक किए हुए खाने को खोलकर मुस्कुराकर उसे देखने लगी, जिसमें थेपले, मिर्ची का अचार, लहसुन की चटनी और गुड़ था। उसके आस-पास सभी थे, पर सब अपने में बिज़ी थे। इसलिए मोहब्बत ने भी किसी पर ज़्यादा ध्यान ना देकर अपना खाना शुरू किया।

    खाना हो जाने के बाद घर से फ़ोन आने पर यह पूछने कि उसने खाना खाया या नहीं? मोहब्बत उन सबसे बातें करने लगी, फिर कुछ देर बाद अपनी सीट पर अपनी बैग से चादर निकालकर सीट पर बिछाकर गरम कम्बल लेकर सीट पर लेट गई। अभी ठंड की सीज़न भी चल रही थी।

    अगली सुबह

    बांद्रा स्टेशन, मुंबई

    फ़ाइनली मोहब्बत ने मुंबई के बांद्रा स्टेशन की ज़मीन पर अपना कदम रखा। वह अंगड़ाई लेते हुए स्टेशन को देखने लगी। उसे पता था कि उसे कहाँ जाना था, इसलिए सबसे पहले वह अपने सामान के साथ स्टेशन से बाहर निकल गई और खुद से बोली, "चल माही बेटा, सबसे पहले गरमागरम मसाले वाली चाय पीते हैं। उसके बाद बाकी सब काम।"

    बाहर आते ही वह थोड़ी दूरी पर चलते हुए एक चाय की टपरी देखती है, और वहाँ जाकर एक टेबल पर बैठकर अपने लिए चाय ऑर्डर करती है और अपना स्वेटर और गरम कैप निकालकर अपनी कॉलेज बैग, जिसे उसने कंधे पर टाँगा हुआ था, उसमें रख देती है।

    उसे वॉशरूम जाना था। अब वह अपना सामान किसी के भरोसे छोड़ नहीं सकती थी। इसलिए वॉशरूम का रास्ता पूछकर सामान को अपने साथ ही ले जाने लगी।

    तब उस शॉप का लड़का उसे देखकर बोला, "अरे दीदी, सामान यहीं साइड में रख दीजिए। मैं ध्यान रखूँगा। आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं।" अभी शॉप में इतने लोग भी नहीं थे।

    मोहब्बत सोच में पड़ जाती है। तब वह लड़का चाय बनाते हुए मुस्कुराकर बोला, "सब एक जैसे नहीं होते, दीदी। मैं जानता हूँ आप क्या सोच रही हैं, पर आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं।"

    मोहब्बत अपने ख्यालों को साइड कर हल्का मुस्कुराकर सामान वहीं रखकर पीछे की ओर वॉशरूम में चली गई।

    कुछ देर बाद वापस आकर फिर टेबल पर पड़ा जग पकड़कर साइड में जाकर उसमें से पानी लेकर अपने हाथों को धोकर, चेहरे पर पानी मारने लगी। फिर टेबल पर बैठकर बैग से रुमाल निकालकर अपना चेहरा पोछने लगी, तब उसका फ़ोन बजता है।

    मोहब्बत अपनी बैग से फ़ोन निकालकर 'पप्पा ❤' नाम देखकर मुस्कुराकर रिसीव करते हुए बोली, "जय श्री कृष्ण पापा, बस मैं अभी-अभी सेफ़ली पहुँच गई अच्छे से मुंबई। अभी बांद्रा में एक दुकान में बैठकर चाय पीने की तैयारी कर रही हूँ। पता है पापा, यहाँ हमारे गुजरात जैसी ठंडी बिलकुल भी नहीं है। मतलब ठंडी है, पर इतनी ज़्यादा नहीं है। मौसम अच्छा है यहाँ का, नॉर्मल।"

    सुधीर मुस्कुराकर बोला, "चलो अच्छा है। और सुन बेटा, महेश भाई साहब ने बात कर ली है चौधरी साहब से, इसलिए तुझे ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी वहाँ रहने की भी। क्योंकि उन्हीं की कंपनी का एक गेस्ट हाउस भी है जहाँ उनके कई सारे एम्प्लॉयी भी रहते हैं, तो उन्होंने तेरे लिए भी बात कर ली है।"

    मोहब्बत मुस्कुराकर बोली, "हाँ पापा, पर आपको इतनी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। अगर उनके गेस्ट हाउस में जगह नहीं भी मिली तो मैं कहीं भी रूम ढूँढ लेती।"

    सुधीर गहरी साँस लेकर बोला, "कैसे चिंता ना करे बेटा! एक तो तुमने हममें से किसी को अपने साथ आने नहीं दिया और नई जगह पर तू अकेले सब कैसे मैनेज करेगी? एक बार तू बस ठीक से वहाँ सेटल हो जाए, फिर कोई परेशानी नहीं होगी।"

    मोहब्बत जवाब दी, "ओके पापा, मैं बस चाय ख़त्म करके उनके कंपनी ही जा रही हूँ। फिर आपको आराम से कॉल करती हूँ। सबको मेरा प्यार देना, जय श्री कृष्ण।"

    सुधीर हाँ में अपना सिर हिलाकर बोला, "ठीक है बेटा, ध्यान रखना अपना। जय श्री कृष्ण, रखता हूँ।"

    यह कहकर वह कॉल कट कर देते हैं। मोहब्बत की चाय भी उतने में आती है, और वह चाय पीने लगी। वहाँ उस टपरी पर रेडियो में एक गाना बज रहा था, "शोला है या है बिजुरिया, दिल की बजरिया, बंबई नगरिया।"

    जिसे मोहब्बत हल्की मुस्कान के साथ बड़े आराम से सुनते हुए चाय और बिस्कुट का मज़ा ले रही थी।

    कुछ देर बाद उस लड़के को पैसे देकर वहाँ से निकलकर एक टैक्सी लेकर वह बांद्रा के ही चौधरी इवेंट्स के बारे में ड्राइवर को बताने लगी।

    ड्राइवर उस एड्रेस को सुनकर उसे बैठने को कहता है। मोहब्बत अपना सामान रखकर टैक्सी में बैठ गई। ड्राइवर टैक्सी स्टार्ट करके उसके बताए हुए पते पर निकल पड़ा।

    कुछ देर बाद मोहब्बत एक बड़ी सी बिल्डिंग के बाहर रुकी, जिस पर एक बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा था, "Chaudhary Events."

    मोहब्बत उसे देखकर गहरी साँस लेकर कंपनी के अंदर एंटर होती है और रिसेप्शनिस्ट के पास जाकर अपने बारे में बताकर उस अपॉइंटमेंट लेटर को दिखाने लगी।

    रिसेप्शनिस्ट ने उस लेटर को देखकर तुरंत रेस्पेक्टफुली कहा, "ओके, आप थोड़ी देर यहीं वेट करिए। मैं अभी सर को कॉल करके फिर आपको बताती हूँ।"

    मोहब्बत हल्का मुस्कुराकर हाँ में अपना सिर हिलाकर वहाँ साइड में लगी चेयर पर बैठ गई।

    थोड़ी देर बाद रिसेप्शनिस्ट के अपने बॉस से बात करने पर फिर वह मोहब्बत को केबिन में जाने का रास्ता बता देती है।

    मोहब्बत मिस्टर चौधरी के केबिन के बाहर आकर रुककर गहरी साँस लेकर डोर नॉक करती है। अंदर से कम इन की आवाज़ पर मोहब्बत डोर खोलकर अंदर आती है।

    विशेष चौधरी, जो एक ज़रूरी फ़ाइल रीड कर रहे थे, वह मोहब्बत को देखकर हल्का मुस्कुराकर बोले, "हल्लो मोहब्बत बेटा, वेलकम टू द चौधरी इवेंट्स....कम सिट।"

    मोहब्बत मुस्कुराकर चेयर पर बैठते हुए बोली, "थैंक यू सर।"

    मिस्टर चौधरी ने कहा, "मैं विशेष चौधरी, इस कंपनी का ओनर। तुम्हें महेश ने बताया ही होगा सब? (मोहब्बत हाँ में अपना सिर हिला देती है, फिर विशेष ने कहा,) तो कैसा रहा तुम्हारा सफ़र? आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?"

    मोहब्बत अपना सिर ना में हिलाकर बोली, "नहीं सर।"

    विशेष अब सीरियस फ़ेस के साथ प्रोफ़ेशनल होकर बोला, "देखो बेटा, इस इवेंट कंपनी में आज तक सबको उनकी काबिलियत देखकर ही जॉब दी गई है, सिफ़ारिश पर नहीं। और यही काबिलियत और काम को लेकर तुम्हारा जज़्बा मैंने तुममें देखा था। और तुम्हारी इसी मेहनत की इस कंपनी को ज़रूरत है। तुम जैसी वर्कहोलिक लड़की बहुत कम देखने को मिलती है। इसलिए मैं अपनी गारंटी पर तुम्हें यह जॉब दे रहा हूँ, मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी?"

    मोहब्बत पूरे कॉन्फ़िडेंट के साथ बोली, "आप निश्चिंत रहिए सर। मैं आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगी। मैं पूरी मेहनत और लगन से काम करूँगी।"

    विशेष खुशी के साथ बोला, "गुड, मुझे यही सुनना था।"

    विशेष अब एक बेल प्रेस करता है, तब एक लड़का, जो करीबन 30 से 31 साल का होगा, गेहूँआ रंग, आँखों पर ब्लैक फ़्रेम का चश्मा, हल्की पतली मूँछ, दिखने में मासूम लगता था, वह केबिन का डोर नॉक करके अंदर आता है।

    विशेष लड़के को देखकर फिर मोहब्बत से बोला, "यह यहाँ का मैनेजर शेखर है। सो, अब तुम जाओ शेखर के साथ। वह तुम्हें सारा काम समझाएगा भी और सिखाएगा भी। और अभी के लिए तुम पहले जाकर फ़्रेश हो जाओ। आज थोड़ा आराम कर लो। सफ़र से थक गई होंगी। शेखर तुम्हें गेस्ट हाउस में तुम्हारा रूम दिखा देगा। गुड लक फ़ॉर योर टुमॉरो।"

    मोहब्बत खुश होकर बोली, "थैंक यू सर, थैंक यू वेरी मच।"

    विशेष हाँ में अपना सिर हिलाकर अपनी फ़ाइल रीड करने लगा। मोहब्बत बाहर आकर अपना सामान लेकर मैनेजर शेखर के साथ चलने लगी।

    शेखर उसे लेकर चौधरी इवेंट्स बिल्डिंग के पास ही एक बड़ी सी पाँच माले की बिल्डिंग, जो गेस्ट हाउस था, वहाँ लेकर जाता है। शेखर आगे-आगे चल रहा था, और मोहब्बत उसके पीछे-पीछे।

    शेखर की चलने की स्पीड इतनी थी कि मोहब्बत को अपना सामान संभालते हुए उसके पीछे भागना पड़ता था। जिसकी वजह से उसे बहुत परेशानी हो रही थी।

    मोहब्बत मज़ाकिया अंदाज़ में उसके पीछे चलते हुए बोली, "आपके पैरों में घोड़े की नाल लगी है क्या?"

    शेखर एकदम से रुककर पीछे मुड़कर उसे देखने लगा। मोहब्बत भी एकदम से रुककर उसे देखने लगी। उसे लगा शायद उसे बुरा लगा होगा। अब उसे अपने कहे पर पछतावा हो रहा था।

    तब शेखर एकदम से हँसते हुए बोला, "हा हा हा...पता है क्या मैडम जी? यहाँ भी सब लोग ऐसा ही कहते हैं। पर क्या करें, अब आदत पड़ चुका है। चलो अब हम थोड़ा स्लो चलने की कोशिश करते हैं।" यह कहकर वह स्लो चलने लगा। जिसे देखकर मोहब्बत को हँसी आ गई।

    मोहब्बत उसके साथ चलकर हँसते हुए बोली, "ही ही...शेखर भैया, आप बहुत क्यूट हैं और फ़नी भी।"

    शेखर उसे देखकर हैरानी से बोला, "क्या कहा आपने मैडम जी, भैया?"

    मोहब्बत मुस्कुराकर हाँ में अपना सिर हिलाकर बोली, "हाँ भैया, और आप भी मुझे मैडम जी नहीं, मोहब्बत कहिए। मेरा नाम मोहब्बत है....मोहब्बत त्रिपाठी। मैं बड़ौदा से आई हूँ।"

    शेखर उसकी तारीफ़ करते हुए बोला, "अरे वाह! जैसा नाम वैसा भाव। ठीक है, तो तुम आज से हमारी बहिन। आओ, हम तुम्हारा रूम दिखाते हैं।"

    शेखर उसे उसके रूम में लेकर जाता है। जिसमें ऑलरेडी एक लड़की रहती थी। शेखर उसे रूम दिखाते हुए बोला, "ये लो मोहब्बत, यह रहा तुम्हारा कमरा। यहाँ एक और मैडम रहती है। वह इस वक़्त ऑफ़िस में है। तुम अभी आराम करो।"

    मोहब्बत हाँ में अपना सिर हिला देती है। शेखर वहाँ से चला जाता है। मोहब्बत नज़रें घुमाते हुए रूम को देखने लगी।

    रूम भले ही थोड़ा छोटा था, पर हवा और प्रकाश से भरा हुआ था। जहाँ दो कोने में एक-एक सिंगल बेड थे। दोनों तरफ़ एक-एक लकड़ी की अलमारी थी। उसी रूम में ही अटैच्ड बाथरूम और टॉयलेट था। वहाँ एक छोटी, पर बैठ सकने जैसी एक बालकनी भी थी।

    मोहब्बत एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अपने रूम को देखने लगी।

  • 8. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 8

    Words: 3082

    Estimated Reading Time: 19 min

    दिल ले गई कुडी गुजरात दी

    गेस्ट हाउस, मुंबई

    मोहब्बत आखिरकार मुंबई आ चुकी थी। विशेष चौधरी से मिलकर जॉब फाइनल होने के बाद, उनके कहने पर शेखर ने कंपनी के ही गेस्ट हाउस में उसे उसका कमरा दिखा दिया था।

    शेखर के जाने के बाद, मोहब्बत ने दरवाज़ा बंद किया और सबसे पहले अपनी फैमिली को वीडियो कॉल किया। उसने सबकुछ विस्तार से बताया और फिर अपना कमरा दिखाना शुरू किया।

    उसके चेहरे की खुशी देखकर यशदीप जी और सुधीर को भी तसल्ली हुई कि उन्होंने उसे वहाँ भेजकर कोई गलती नहीं की थी। अब बड़ौदा में भी सबको मोहब्बत को कमरा मिलने पर एक सुकून था कि वह सुरक्षित जगह पहुँच चुकी थी। उसके बाद उसने अथर्व को भी कॉल करके बता दिया कि वह सुरक्षित पहुँच चुकी है।

    कुछ देर बातचीत के बाद, मोहब्बत ने कॉल काटकर अपना बैग खोला। उसने उसमें से अपना नाइट सूट निकाला और बाथरूम में शॉवर लेने चली गई।

    कुछ देर बाद, बाथरूम से बाहर आकर टॉवल से अपना चेहरा पोछते हुए, थकी हुई आवाज़ में उसने कहा, "हाश! अब जाकर शांति मिली।"

    फिर उसने टॉवल को बालकनी में जाकर सुखाया, अंदर आई और अपनी तरफ़ का बेड ठीक करके उस पर लेट गई। उसे अपनी तरफ़ का बेड पता चल चुका था। दूसरे बेड पर पहले से ही उस लड़की के कपड़े पड़े थे। कुछ ही देर में, सफ़र की थकान की वजह से मोहब्बत की आँख लग गई।


    शाम को, फ़ोन की रिंग से मोहब्बत की आँखें खुलीं। उसने आँखें खोले बिना, दोनों बेड के बीच में पड़े टेबल की ओर हाथ बढ़ाया, अपना फ़ोन उठाया, रिसीव किया और कान पर लगाते हुए नींद भरी आवाज़ में कहा, "हल्लो, कौन?"

    सामने से एक चहकती हुई आवाज़ आई, "जाग जा...भूत जाग जा। कितना सोएगी? मुंबई सोने गई हो या काम सीखने?"

    मोहब्बत नींद में ही हल्का मुस्कुराकर बोली, "काम कल से शुरू करना है सेम (समर्थ)। इसलिए आज नींद ले ली अच्छे से। कल से तो भागम-भाग शुरू हो जाएगी। तुम बताओ, तुम कैसे हो? क्या कर रहे हो?"

    समर्थ अपने केबिन में बैठा, लैपटॉप में देखते हुए बोला, "मैं इस वक़्त कहाँ होऊँगा, ऑफ़िस में हूँ। तुमने तो पहुँचने के बाद मुझे कॉल किया नहीं, तो सोचा मैं ही पूछ लेता हूँ कि मेरी झल्ली ठीक-ठाक पहुँची कि नहीं? और ये बता, ऐसा क्या मुंबई का पानी चढ़ गया एक ही दिन में, जो वहाँ जाते ही मुझे भूल गई?" ये कहते हुए वह अपनी झूठी नाराज़गी जता रहा था।

    मोहब्बत उठकर बैठते हुए बोली, "ऐसा नहीं है सेम। मुझे कोई मुंबई का पानी नहीं चढ़ा। आज सुबह यहाँ पहुँची, फिर सीधा कंपनी आकर विशेष सर से मिली, जॉब फाइनल हुई और उन्हीं की कंपनी के गेस्ट हाउस में रूम भी मिल गया। पूरे दिन के सफ़र से थक गई थी, इसलिए लेटते ही सो गई। बस इस वजह से टाइम ही नहीं मिला कॉल करने का, सॉरी।"

    समर्थ मुस्कुराकर बोला, "कोई बात नहीं, मैं मज़ाक कर रहा था। And you know what, I am very happy कि तुम्हें जॉब भी मिल गई और खास करके मोस्ट इम्पोर्टन्ट ये कि रहने के लिए ठिकाना भी मिल गया, वरना यहाँ हमारे गुजरात में वो कहावत सुनी है ना कि...?"

    उसके आगे कुछ बोलने से पहले ही मोहब्बत झट से गुजराती में बोल पड़ी, "मुंबई मा रोटलो मळे, पण ओटलो ना मळे।" (मतलब कि मुंबई जैसे बड़े-बड़े शहरों में पेट भरने के लिए रोटी तो फिर भी मिल जाती है, पर रहने का ठिकाना मिलना बहुत मुश्किल है।)

    मोहब्बत की बात सुनकर समर्थ हँसकर बोला, "राइट।"

    मोहब्बत भी हँसने लगी, फिर उसकी हँसी फ़ीकी पड़ते ही वह धीरे से बोली, "एक बात पूछूँ सेम?"

    "हम्म्म, बोलो।" समर्थ ने लैपटॉप पर नज़रें घुमाते हुए कहा।

    "कुछ ही महीनों में हमारी शादी होने वाली है और मेरा इस तरह से तुम्हें छोड़कर आ जाना, तुम्हें भी शिकायत होती होगी ना मुझसे? हर लड़के की ख्वाइश होती है कि उसकी होने वाली जीवनसाथी उसे वक़्त दे। पर मैं अपने काम के चलते तुमसे मिलना तो दूर, पर ठीक से कॉल तक नहीं कर पाती, तो तुम्हें बुरा लगता होगा ना? तुम्हें भी लगता होगा ना कि तुम मुझ जैसी लड़की deserve नहीं करते?"

    मोहब्बत की इस बात पर समर्थ खामोश हो गया और मन ही मन कहता है, "तुम जैसी वाइफ़ पाना खुशकिस्मत वाली बात है माही। हाँ, एक दोस्त होने के नाते बुरा ज़रूर लगता है पर लाइफ़ पार्टनर के तौर पर नहीं क्योंकि मैं तुमसे प्यार नहीं करता। ये बात मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकता। मैं जानता हूँ, मैं तुम्हें अंधेरे में रख रहा हूँ पर मेरे इस एक सच से सारे रिश्ते बिखर जाएँगे। मैं अभी किसी को भी कुछ बताकर सब खराब नहीं करना चाहता।"

    तब उसे मोहब्बत की आवाज़ आई, "हेलो सेम, क्या हुआ? तुम सुन रहे हो, कहाँ खो गए? क्या तुम्हें मेरी किसी बात का बुरा लगा?"

    समर्थ अपने होश में आकर बोला, "ह..हाँ हाँ, मैं सुन रहा हूँ। और तुम ये क्या कुछ भी बोल रही हो? ऐसा कुछ नहीं है। मैं कॉल करूँ या तुम, क्या ही फ़र्क पड़ता है! हमारे बीच फ़ॉर्मेलिटी जैसा कुछ भी नहीं है और रही बात शादी की तो हमारी शादी जब होनी होगी हो जाएगी। इस वक़्त तुम अपने सपनों को नई राह दिखाओ और मन लगाकर काम करो। तुम्हें बड़ा बनते हुए देखकर मुझे और बाकी सबको बहुत खुशी होगी।"

    मोहब्बत घर से उसकी बातें सुन रही थी। समर्थ बात कर रहा था, तभी दरवाज़ा खटखटाया और उसका PA अंदर आकर उसे देखकर बोला, "सर वो मिस्टर विवेक के साथ आज आपकी मीटिंग थी, तो वो आपसे मिलने आए हुए हैं।"

    समर्थ ने हाँ में अपना सर हिलाया और फिर मोहब्बत से बोला, "ओके, माही। मैं अभी रखता हूँ, काम है तो जाना पड़ेगा। बाद में कॉल करूँगा। तुम अपना ध्यान रखना, बाय।"

    मोहब्बत ने भी बाय कहकर कॉल काट दिया। उसने भी मिस्टर विवेक वाली बात सुन ली थी। कॉल काटने के बाद, वह अपने बाएँ हाथ में पहनी हुई रिंग को देखती है जो समर्थ ने ही उसे पहनाई थी। फिर उसकी बातों को याद करते हुए मुस्कुराकर बेड पर खुशी से लुढ़क जाती है और शर्माते हुए तकिए में अपना चेहरा छुपा लेती है।


    करीबन 7 बजे उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। मोहब्बत जो बालकनी में खड़ी आसपास की जगह देख रही थी, वह अंदर आकर दरवाज़ा खोलती है तो सामने उसी की उम्र की एक लड़की उसे देखकर मुस्कुराकर कमरे के अंदर आती है।

    मोहब्बत भी बदले में मुस्कुरा देती है। तब वह लड़की अपना हैंड बैग ड्रेसिंग टेबल पर रखते हुए मोहब्बत को देखकर कहती है, "तुम ही हो ना वो नई एम्प्लॉयी, मुझे शेखर जी ने बताया।"

    मोहब्बत ने हाँ में अपना सर हिला दिया। वह लड़की अपनी ड्रेस लेकर बाथरूम में चली गई। मोहब्बत अब अपनी बैग से एक नॉवेल निकालकर अपने बेड पर बैठकर उसे पढ़ने लगी। उसे रोमांटिक, हॉरर और कॉमेडी नॉवेल पढ़ना बहुत पसंद था।

    कुछ देर बाद वह लड़की बाथरूम से बाहर आती है और फिर मोहब्बत के पास जाकर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहती है, "हेलो..मैं पम्मी, भटिंडा से। तुम मुझे पेम बुला सकती हो।"

    मोहब्बत भी उससे हाथ मिलाते हुए कहती है, "मैं मोहब्बत।"

    पम्मी झट से उसे देखकर हैरान होकर बोल पड़ी, "ए हाई ला, किसकी?"

    मोहब्बत अपनी आँखें बड़ी करके फिर हँसते हुए कहती है, "अरे नहीं-नहीं, मतलब कि मेरा नाम मोहब्बत है। मोहब्बत त्रिपाठी, बड़ौदा से।"

    पम्मी हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "ओह! मैं तो समझी तुम किसी की मोहब्बत हो! चलो छोड़ो ये बातें, यानी गुजरात की छोरी आई है यहाँ? ध्यान रखना, किसी का दिल-विल ना चुरा लो।" ये कहते हुए उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी।

    मोहब्बत कन्फ़्यूज़ होकर उसे देखने लगी, कि पम्मी मज़ाकिया अंदाज़ में कहती है, "अरे, वो गाना नहीं सुना? रुको, मैं सुनाती हूँ। (फिर अपना गला साफ़ करके गाने लगी,)

    इक मुंडा पंजाबी,
    जिदे नैन शराबी,

    (मोहब्बत हैरानी से उसे देखने लगी, पर उसे अच्छा लग रहा था कि पम्मी बहुत ही मिलनसार लड़की थी, बिलकुल मोहब्बत के जैसी ही।)

    इक मुंडा पंजाबी,
    जिदे नैन शराबी,
    ओहनू लव यू लव यू आख दी,

    हो दिल ले गई कुडी,

    (पम्मी अब गाना गुनगुनाते हुए नाचने लगी। भले ही उसका सुर बेसुरा था पर वो जिस तरह से मोहब्बत को चील करने की कोशिश कर रही थी, उससे मोहब्बत काफ़ी इम्प्रेस थी और उसे इस बात की खुशी थी कि उसे रूम पार्टनर के रूप में एक अच्छी दोस्त मिल गई थी। उसे नाचते हुए देखकर मोहब्बत को हँसी आ गई।)

    ओए. . .

    (पम्मी उसे हँसता हुआ देखकर अपना मुँह बनाकर कहती है, "हँस मत यार, जानती हूँ मेरा ये फटा हुआ स्पीकर बहुत ही बेसुरा है पर दिल से गा रही हूँ तो साथ दे दे। चल आजा, नाचते हैं।" ये कहकर वह उसका हाथ पकड़कर उसे बेड से उठाकर नाचते हुए फिर आगे गाने लगी। इस बार मोहब्बत भी उसके साथ खुशी-खुशी नाचने लगी। दोनों मस्ती में लग गई थीं।)

    दिल ले गई कुडी गुजरात दी,
    ओ दिल ले गई कुडी. .
    ओए होए. .
    दिल ले गई कुडी गुजरात दी,
    ओ दिल ले गई कुडी गुजरात दी. .।।"

    कुछ देर बाद दोनों हँसते हुए बेड पर बैठ गईं। तब पम्मी कहती है, "चल अच्छा है कि तू आ गई। बहुत अकेला महसूस कर रही थी। वैसे तुझे ऑफ़िस के सब रूल्स पता हैं ना? रूम का रेंट हर महीने हमारी सैलरी से कट जाएगा। ब्रेकफ़ास्ट और लंच तो कंपनी की तरफ़ से ऑफ़िस की कैंटीन में ही होगा पर डिनर हमें अपने पैसे से करना पड़ेगा। क्या अजीब रूल्स हैं यार?"

    मोहब्बत मुस्कुराते हुए कहती है, "हाँ, तो ठीक ही है ना। अरे, ऑफ़िस के इतना नज़दीक हमें रूम मिल गया। ये ही बहुत बड़ी बात है। सोचो अगर किसी और जगह हम PG पर रहते और वो ऑफ़िस से दूर पड़ता तो खर्चा बढ़ नहीं जाता?"

    पम्मी हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "हम्म्म, वैसे बात तो पते की है। पर अब डिनर का क्या करें, मुझे तो बहुत भूख लगी है। और आज ऑफ़िस में काम इतना था कि बाहर जाकर कुछ खाने की इच्छा ही नहीं हो रही है। चलो अच्छा है अब मुझे अकेले-अकेले खाना नहीं पड़ेगा। पर अभी का क्या करें?"

    मोहब्बत ने उसके प्रॉब्लम का सॉल्यूशन दे दिया, "अरे, तो बाहर क्यों जाना है? मेरी मम्मी ने थेपले, चटनी, और मिर्ची का अचार दिया है ना। वो आज के दिन के लिए चल जाएगा। चल खाते हैं।"

    पम्मी अपनी जीभ लपलपाते हुए कहती है, "अरे वाह! तो-तो मज़ा आ जाएगा। तू एक काम कर खाना निकाल, मैं अभी छाछ लेकर आई।"

    मोहब्बत हैरानी से उसे देखकर बोल पड़ी, "अरे, पर अभी कहाँ लेने जाओगी?"

    पम्मी अपनी चप्पल पहनते हुए कहती है, "अरे, गेस्ट हाउस से निकलते ही सामने शुभो दादा की दुकान पर दूध, छाछ, दही, मक्खन, घी, पनीर सब मिल जाता है। मैं बस अभी आई।"

    ये कहकर वह रूम से निकल गई। मोहब्बत उसे जाते हुए देखकर मुस्कुरा दी और अपनी बैग से खाने के डिब्बे निकालने लगी।

    कुछ देर में पम्मी के आते ही दोनों ने जी भर के खाने का स्वाद लिया और ढेर सारी बातें भी कीं। एक-दूसरे के बारे में जाना। और फिर रात को अपने-अपने बेड पर सो गईं।


    अगली सुबह

    मोहब्बत आज से अपनी ऑफ़िस ज्वाइन करने वाली थी। इसी खुशी में वह जल्दी उठकर तैयार भी हो गई थी। वैसे भी वह बड़ौदा में भी जल्दी उठ जाया करती थी, इसलिए उसे आदत थी।

    उसकी चूड़ियों की आवाज़ से पम्मी अपनी आँखें रगड़ते हुए उठकर बैठ जाती है और मोहब्बत को ड्रेसिंग टेबल के वहाँ बाल बनाते हुए देखती है तो उबासी लेते हुए कहती है, "अरे, तुम इंसान के रूप में मुर्गा बनकर पैदा हुई हो क्या, जो इतनी जल्दी उठ गई?"

    मोहब्बत मिरर से उसे देखकर हँसते हुए कहती है, "हम्म्म, ऐसा कह सकती हो। पर आज ऑफ़िस के पहले दिन की एक्साइटमेंट में जल्दी आँख खुल गई। चलो अब तुम भी तैयार हो जाओ।"

    पम्मी अपना मुँह बनाकर बेड से उतरते हुए अलसाई आवाज़ में कहती है, "ज़्यादा एक्साइटेड होने की ज़रूरत नहीं है। जब वो चौधरी काम का पोटला मथ्थे पर पटकेंगे ना तो सारी एक्साइटमेंट छू हो जाएगी। मुझे एक्सपीरियंस है, इसलिए बता रही हूँ वरना मैं किसी को ज़्यादा ज्ञान देती नहीं हूँ।" ये कहते हुए वह बाथरूम में चली गई। मोहब्बत उसे जाते हुए देखकर मुस्कुरा दी।

    कुछ समय बाद दोनों ही चौधरी इवेंट्स कंपनी के कैंटीन में बैठी नाश्ता कर रही थीं। दोनों चाय और बटर-ब्रेड खा रही थीं, तब दो-तीन लोग और उनके पास आ गए जो पम्मी के दोस्त थे। पम्मी ने उन सबको मोहब्बत से मिलवाया। अब मोहब्बत के अंदर जो अकेलेपन का डर सता रहा था, वह निकल गया था।

    नाश्ता ख़त्म होते ही सभी कंपनी की ओर काम पर चले गए। शेखर आकर मोहब्बत को उसकी डेस्क दिखाकर उसे सारा काम सिखाने लगा। कुछ वहाँ अच्छे भी थे, जो मोहब्बत की खूबसूरती की तारीफ़ कर रहे थे, तो कुछ लड़कियाँ ऐसी भी थीं जो जलन की वजह से उसे अजीब नज़रों से देख रही थीं। पर मोहब्बत ने किसी पर भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।


    ऑबरॉय मेंशन

    कानल को कल हॉस्पिटल चेकअप के लिए जाना था। वह अभी अपनी दादी सास के साथ गार्डन में टहल रही थी। उसे खुले पैर हरी घास में मॉर्निंग वॉक करना अच्छा लगता था। तब अस्मिता भी उनके पास आ गई और उनके साथ ही वॉक करने लगी।

    इस दौरान अस्मिता ने कानल से उसके चेकअप के बारे में सब पूछा। अस्मिता वैसे उन खड़ूस सासों में से बिलकुल भी नहीं थी, पर जिस तरह से संस्कार ने बिना किसी की मर्ज़ी से कानल से शादी की थी, इसलिए वह अपने बच्चों से थोड़ी नाराज़ ज़रूर थी। और इसी बात का फ़ायदा उठाकर उर्वशी हमेशा अस्मिता के मन में कानल के ख़िलाफ़ उसके कान भरती रहती थी। पर इसका यह मतलब बिलकुल नहीं था कि अस्मिता को संस्कार की पसंद पर कोई शक था।


    शिवाय अपने रूम में तैयार हो रहा था, तब उसका फ़ोन बजा। शिवाय अपनी शर्ट की बाजू को ऊपर चढ़ाते हुए अपने फ़ोन को देखता है और उसे रिसीव करके स्पीकर पर रखता है, "हम्म बोलो।"

    सामने से एक झिझक भरी आवाज़ आई, "सर वो जो पुणे वाली ज़मीन के बारे में आपने बात करी थी जहाँ आप नया प्रोजेक्ट शुरू करने का सोच रहे हैं, तो उन्होंने कल ही आपको वहाँ बुलाया है। तो हमें आज ही निकलना होगा।"

    शिवाय यह सुनकर गुस्सा हो जाता है और कहता है, "What the hell is this Sharad? मैंने कहा था ना कि कल के दिन कोई भी मीटिंग नहीं होनी चाहिए। मुझे कानल भाभी को लेकर जाना है, तो तुम इतनी बड़ी बात कैसे भूल सकते हो?"

    शिवाय की तेज आवाज़ से शरद के पसीने छूटने लगे। वह अपनी बात रखते हुए कहता है, "सर....सर आई नो, पर उन सब ने मुझे आज सुबह-सुबह ही ये न्यूज़ दी।"

    शिवाय बिना कुछ सोचे-समझे कह देता है, "फ़ाइन, कैंसिल दिस मीटिंग।" यह बात वहाँ आते हुए फ़ोन स्पीकर पर होने की वजह से संस्कार सुन लेता है।

    शरद अपनी आँखें बड़ी करके शॉक होकर कहता है, "सर, ये आप क्या कह रहे हैं? आपने इस प्रोजेक्ट में कितनी मेहनत की है! बस अब उसे शुरू होने की देर है। इससे तो करोड़ों का नुकसान हो जाएगा सर, आपकी इमेज भी ख़राब हो सकती है। प्लीज़ एक बार और सोच लीजिये।"

    शिवाय उसकी बात को काटते हुए कहता है, "मेरे लिए इस वक़्त जो इम्पोर्टन्ट है, उसके आगे ये प्रोजेक्ट कुछ भी नहीं है, शरद। मैं जानता हूँ मैं क्या कर रहा हूँ! Do as I say, & tell them that We will not come।"

    शरद भी चिंता में आ गया था। यह प्रोजेक्ट शिवाय की उस मेहनत का नतीजा था जिसे उसने दिन-रात जागकर रेडी किया था। उसे पता था कि यह प्रोजेक्ट ना होने पर शिवाय का नुकसान तो होगा ही, पर साथ ही साथ उसकी सारी मेहनत भी वेस्ट हो जाएगी।

    शरद कुछ कहता उससे पहले उसे एक आवाज़ सुनाई दी, "शरद, बता दो उन्हें कि मीटिंग कन्फ़र्म है। शिवा आ रहा है।" यह आवाज़ संस्कार की थी।

    शिवाय बिना भाव से उसे देखता है, संस्कार उसके एक्सप्रेशन को इग्नोर करके शरद से कहता है, "शरद, तुम जाने की तैयारी करो। शिवाय और तुम दोनों जाओगे और पूरी तरह से इस पर काम भी करोगे। & that's final।" इतना कहकर उसने बिना शरद की बात सुने कॉल काट दिया।

    शरद मुस्कुराकर खुद से ही कहता है, "एक संस्कार सर ही हैं जो शिवाय सर को समझा सकते हैं। अच्छा है जो उन्हें पता चल गया।"

    उसकी भी जो चिंता थी वह कम हो गई और वह अब पुणे जाने के लिए अपने काम में लग गया।


    वहीं कॉल काटते ही जब संस्कार देखता है तो शिवाय उसे ही देख रहा था। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे गुस्सा आ रहा था। तब संस्कार अपनी eye roll करते हुए कहता है, "क्या है, ऐसे घूरना बंद कर। भूल मत, मैं तुमसे बड़ा हूँ।"

    शिवाय थोड़ा गुस्से में कहता है, "ये क्या है भाई? आप जानते थे ना कि...."

    उसके इतना बोलने पर संस्कार ने टोककर कहा, "हाँ हाँ, मैं जानता हूँ पर देख, इस तरह से अपना नुकसान कराकर अगर तू कानल को लेकर जाएगा तो वह कभी नहीं मानेगी। तू आराम से जा, मैं चला जाऊँगा। मैं प्रिंसिपल से बात करता हूँ। मेरे बदले कोई और चला जाएगा।"

    "किसी को भी अपने काम से सेक्रिफ़ाइस करने की ज़रूरत नहीं है।" दरवाज़े से आ रही आवाज़ की ओर शिवाय और संस्कार का ध्यान चला गया। अस्मिता और कानल कमरे के अंदर आ रहे थे।

    अस्मिता ने दोनों को देखकर उन्हें समझाते हुए कहा, "तुम दोनों में से किसी को अपने काम को कैंसिल करने की ज़रूरत नहीं है। कानल के साथ मैं जाऊँगी। तुम दोनों अपने काम पर ध्यान दो।"

    कानल भी सहमति जताते हुए कहती है, "हाँ, संस्कार-शिवाय। माँ चलेगी मेरे साथ। अब आप दोनों को चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप आराम से अपने काम पर जाना।" संस्कार और शिवाय की चिंता अस्मिता ने दूर कर दी थी।

    शिवाय अब पुणे जाने की तैयारी करने लगा। उसने अपना सामान पैक कर दिया, जिसमें अस्मिता ने उसकी मदद की।

    कुछ देर बाद शरद के आते ही वह कानल को खुद का ध्यान रखने को कहकर शरद के साथ निकल गया।

    यहाँ संस्कार भी अब अपने कॉलेज के लिए निकल गया। कानल थोड़ा थकान महसूस कर रही थी, जिससे अस्मिता ने उसे आराम करने भेज दिया था।

    मिलते हैं अगले भाग में ✍

    क्या शिवाय और संस्कार का कानल के साथ ना जाना सही होगा? क्या अस्मिता रख पाएगी कानल का ध्यान? सारे सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें....

  • 9. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 9

    Words: 2805

    Estimated Reading Time: 17 min

    शिवाय शरद के साथ कार से पुणे के लिए निकला था। शिवाय कार में पीछे बैठा, खिड़की से बाहर का नज़ारा देखते हुए किसी सोच में था। तब अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ते हुए उसे हल्का सा कुछ चुभा। वह देखता है तो उसके हाथ में क्यारा की पहनाई गई रिंग थी।

    रिंग देखकर उसे संस्कार की बातें याद आने लगीं। "क्या तू खुश है इस रिश्ते से? तू खुश नहीं है, तो क्यों कर रहा है ये सब? जब तू प्यार ही नहीं करता क्यारा से तो ये दिखावे की शादी क्यों? ऐसे ज़िंदगी नहीं कटी जाती मेरे भाई।"

    शिवाय कुछ देर उस रिंग को देखता रहा, फिर गहरी साँस लेकर सीट पर पीछे अपना सिर टिकाकर अपनी आँखें बंद कर दीं।

    तब उसके सामने किसी की धुंधली तस्वीर दिखाई दी। जिससे उसके चेहरे पर अनायास ही एक हल्की मुस्कान आ गई।

    यह देखकर आगे पैसेंजर सीट पर बैठा शरद, मिरर से अपने सर को थोड़ी देर के लिए ही सही, शिवाय के चेहरे पर मुस्कान देखकर दंग रह गया। पर अब कैसे हिम्मत करके पूछता, इसलिए उसने चुप रहना ही सही समझा।

    शिवाय हमेशा से अपने काम को लेकर punctual और स्ट्रिक्ट रहता था।

    शिवाय अपने ख्यालों में गुम था कि उसका फ़ोन बजा। जिससे शिवाय अपनी होश में आकर अपनी आँखें खोलकर फ़ोन निकालकर देखता है, तो उसके चेहरे के भाव गंभीर हो जाते हैं।

    "हम्म, बोलो क्यारा। क्यों कॉल किया?" फ़ोन रिसीव करके शिवाय बिना भाव से कहता है। फ़ोन क्यारा का था, जो सामने से शिवाय को हमेशा वही करती थी।

    "अरे क्यों किया का क्या मतलब है शिवाय? हमारी सगाई हो चुकी है, अब हम कपल बनने वाले हैं। और इससे पहले हम दोस्त हैं तो क्या मैं ऐसे ही कॉल नहीं कर सकती?"

    क्यारा हैरानी से उसे जवाब देती है। शिवाय की बात से वह हमेशा दुखी हो जाती थी। जिससे शिवाय इरिटेट भरी आवाज़ में कहता है, "आई नो, बार-बार ये सब क्यों बोलती रहती हो? अब बताओ, क्या है? मैं बाहर हूँ अभी।"

    क्यारा ने कहा, "हाँ हाँ, मैं जानती हूँ कि तुम बाहर हो और पुणे जा रहे हो। उर्वशी बुआजी ने बताया मुझे। अभी पहुँचने में देर है तो सोचा तुमसे थोड़ी बातें कर लूँ। तुम तो कॉल करते नहीं पर कम से कम मैं कर रही हूँ तब तो ठीक से बात करो!" उसकी आवाज़ में शिकायत के साथ-साथ एक दर्द भी था।

    "सी क्यारा, तुम जानती हो कि मैं ऐसा ही हूँ। किसी के लिए भी मैं बदलने वाला नहीं हूँ। मेरे लिए मेरा काम सबसे ज़्यादा इम्पोर्टन्ट है। तुमने ये सब जानकर ही इस सगाई को माना है, राइट?" शिवाय ने अपनी ओर से सब क्लियर कर दिया था।

    क्यारा ने ज़्यादा बात को ना बढ़ाते हुए शांति से कहा, "अच्छा ठीक है, आई एम सॉरी। मैं तुम्हें हर्ट नहीं करना चाहती थी ये सब बोलकर। अच्छा बताओ, कब वापस आओगे?"

    शिवाय ने कहा, "आना अभी कुछ फ़िक्स नहीं है।"

    "ओके, जब वापस आ जाओगे तब फिर हम कहीं घूमने जाएँगे और इस बार तुम्हें टाइम निकालना ही होगा, बस। अब तुम इसे मेरी ज़िद समझो तो ज़िद ही सही।"

    क्यारा की ज़िद को सुनकर शिवाय ने अपनी आँखें बंद करके कहा, "ठीक है, मैं आता हूँ तब देखते हैं।"

    बस यह सुनने की देर थी कि क्यारा ने खुशी से कहा, "थैंक यू शिवाय। बस अब तुम जल्दी से अपना काम ख़त्म करके आ जाओ। मैं सोचती हूँ कि कहाँ जाना है, बाय।"

    शिवाय ने अब ज़्यादा ना कहते हुए सिर्फ़ हम्म कहकर कॉल कट कर दिया और सीट पर सिर टिकाकर अपनी आँखें बंद कर दीं।

    आगे बैठा शरद यह सब सुनकर एक नज़र मिरर से शिवाय को देखकर मायूस होकर मन ही मन कहता है, "बेचारे सर, पता नहीं कैसे अनचाहे रिश्ते में फँस चुके हैं? अगर दादा जी की रेपुटेशन का सवाल नहीं होता तो किसी की हिम्मत नहीं थी इन्हें मजबूर करने की।" कार ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली थी।


    अगले दिन कानल के चेकअप का दिन था। वह रेडी हो रही थी। संस्कार उसकी फ़ाइल वगैरा देते हुए अस्मिता को सब बता रहा था। संस्कार को आज काफ़ी घबराहट हो रही थी, जिसकी वजह उसे भी नहीं पता थी।

    इतने महीनों में संस्कार ही हमेशा कानल के साथ गया था पर आज उसके ज़रूरी काम की वजह से वह नहीं जा पा रहा था।

    अस्मिता उसके चेहरे पर आई हुई परेशानी को देखकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है, "चिंता मत करो, सब ठीक है। बस नॉर्मल चेकअप है। तुम तो बस अब घर में बच्चे की ज़िम्मेदारी लेने के लिए सज्ज हो जाओ, हम्म?" संस्कार मुस्कुराकर हाँ में अपना सिर हिला देता है।

    कुछ देर बाद अस्मिता और कानल ड्राइवर के साथ हॉस्पिटल के लिए निकल गईं। संस्कार अपने ख्यालों को साइड करके अपनी कॉलेज चला गया।


    गोरेगाँव में ओम और उसके फ्रेंड्स कॉलेज के एक-दो लेक्चर्स अटेंड करके अब बाहर जाने की तैयारी कर रहे थे। विकी के कहे अनुसार वह आज कार लेकर आया था। तीनों कार में बैठकर खुश होते हुए अपनी मंज़िल पर, शॉपिंग पर निकल पड़े थे।


    चौधरी इवेंट्स

    लंच टाइम होने पर मोहब्बत अपने काम से फ़्री होकर अपनी डेस्क से उठकर ओम को कॉल कर रही थी।

    आज वह उससे बात करके उससे मिलने जाने वाली थी। पर काफ़ी बार कॉल लगाने पर भी ओम अपना फ़ोन रिसीव नहीं कर रहा था।

    तब मोहब्बत चिंता करते हुए खुद से कहती है, "ये ओमी फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा है? आज तक तो ऐसा कभी नहीं किया।" उसने कई बार ट्राई किया पर कोई रिस्पॉन्ड नहीं आया।

    "हो सकता है, शायद कॉलेज में अपने लेक्चर्स में बिज़ी हो। चलो कोई नहीं, बाद में ट्राई करती हूँ।" अपने मन को तसल्ली देते हुए मोहब्बत ने अब कॉल करना बंद कर दिया।

    पम्मी मोहब्बत को आवाज़ देते हुए कहती हैं, "ए माही, क्या कर रही है, चलना? लंच के लिए सब वेट कर रहे हैं हमारा।"

    मोहब्बत हाँ में अपना सिर हिलाकर अपने फ़ोन को लेकर उसके साथ कैंटीन में चल पड़ी। दिन बीतता गया।


    पुणे

    रात को शिवाय पुणे की एक ग्रैंड और आलिशान होटल के एक रूम में बैठा हुआ अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। तब उसका फ़ोन बजा।

    शिवाय लैपटॉप से अपनी नज़र हटाते हुए फ़ोन को देखता है तो कॉल शिखा का था।

    शिवाय फ़ोन लेकर कॉल रिसीव करके कहता है, "हाँ, शिखा। हो गया भाभी का चेकअप?"

    तब उसे शिखा के रोने की आवाज़ आई। जिससे शिवाय हैरान होकर कहता है, "व्हाट हैपन्ड शिखा? तुम रो क्यों रही हो?" यह सुनकर शरद भी सवालिया नज़रों से शिवाय को देखने लगा।

    शिखा रोते हुए कहती है, "भाई, आप...आप प्लीज़ जल्दी से यहाँ आ जाइए।"

    "पर हुआ क्या है? भाभी और मॉम कहाँ हैं, फ़ोन दो उन्हें?" शिवाय ने चिंता जताते हुए कहा।

    "भाई इस वक़्त ह...हम सब हॉस्पिटल में हैं। आप प्लीज़, आ जाइएना। संस्कार भाई की हालत भी ठीक नहीं है। बड़े पापा (अधिराज), और पापा (अभिनव) भी नहीं हैं इस वक़्त।"

    शिखा ने शॉर्ट में ही काफ़ी कुछ बयाँ किया था जिससे शिवाय को अंदाज़ा हो गया था कि बात कानल और अस्मिता को लेकर ही है।

    "ठीक है, मैं....मैं अभी निकल रहा हूँ। तुम भाई का ख़्याल रखो। मैं आता हूँ, हम्म और रोना नहीं।" शिवाय ने तुरंत जाने की बात कर दी थी।

    शिवाय शरद को देखकर कहता है, "जेट रेडी करो शरद। हमें जल्द से जल्द निकलना होगा। और मीटिंग को पोस्टपोन कर दो। अगर वह तैयार नहीं तो डील कैंसल कर दो।" यह कहकर वह अपना लैपटॉप बंद करके बाथरूम में चेंज करने चला गया।

    शरद ने सबसे पहले एक प्राइवेट जेट रेडी करवाया। फिर उस मीटिंग को डिले करने को लेकर भी सबसे बात कर ली थी। और ड्राइवर से कह दिया था कि वह भी कार लेकर निकल जाए मुंबई के लिए।

    कुछ देर बाद शिवाय और शरद जेट में थे। वक़्त के साथ शिवाय की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। जैसा कि जेट से मुंबई आने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगा और कुछ ही पलों में वह शिखा के बताए हुए हॉस्पिटल पहुँच गया।

    रिसेप्शन पर पूछने पर उसने उसे बता दिया कि वे सब कहाँ पर हैं? ऑबरॉय खानदान का रुतबा ही इतना था कि सभी उन्हें देखते ही पहचान जाते थे।

    शिवाय भागते हुए OT की तरफ़ आ रहा था कि उसके क़दम अपनी माँ के सर पर और हाथ में आई चोट को देखकर जम गए।

    अस्मिता जो चेयर पर बैठी हुई थी, उसकी नज़र शिवाय पर पड़ते ही वह उठकर लड़खड़ाकर मुश्किल से भागते हुए उसके पास आई और उसके गले लगकर रोने लगी।

    शिवाय अपनी होश में आकर अस्मिता के सर पर हाथ रखकर कहता है, "ये सब क्या हुआ मॉम, ये चोट? औ....और भाभी कहाँ है?"

    अस्मिता को ठीक-ठाक देखने के बाद अब उसे कानल की चिंता ज़्यादा हो रही थी।

    शिखा उसके पास आई। वह काफ़ी घबराई हुई लग रही थी, वह शिवाय को देखकर कहती है, "वो....वो इनका एक्सीडेंट हो गया था भाई।"

    शिवाय हैरानी से कहता है, "एक्सीडेंट?"

    तब अस्मिता रोते हुए ना में अपना सिर हिलाकर कहती है, "मैं ख़्याल नहीं रख पाई उसका बेटा। मेरे सामने वह दर्द से तड़प रही थी और मैं कुछ नहीं कर पाई।"

    शिवाय उसके सर को सहलाते हुए कहता है, "नहीं मॉम, ऐसा मत कहिए। भाभी को कुछ नहीं होगा। इस वक़्त, कहाँ है वह?"

    शिखा OT की ओर इशारा करती है जहाँ संस्कार एकटक उस दरवाज़े पर हाथ रखकर देख रहा था। शिवाय अस्मिता को उर्वशी और शिखा के पास छोड़कर OT की तरफ़ संस्कार के पास जाने लगा।

    संस्कार की हालत देखकर शिवाय खुद को शांत करके उसके कंधे पर हाथ रखकर धीरे से कहता है, "भाई!"

    संस्कार जो अब तक हिम्मत बटोरे बैठा था, वह शिवाय की आवाज़ सुनकर पलटकर उसके गले लगकर बच्चों की तरह रो पड़ा।

    आज यह पहली बार था जब शिवाय ने अपने भाई को ऐसे देखा था। हमेशा हँसते-मुस्कुराते रहने वाला उसका भाई आज टूट सा गया था। यह देख उसके दिल के मानो हज़ारों टुकड़े हो गए थे।

    संस्कार को ऐसे देख शरद की आँखें भी छलक उठीं। संस्कार और शरद की बॉन्डिंग काफ़ी अच्छी थी। वह भले ही शिवाय का PA था पर संस्कार उसके लिए दोस्त से भी बढ़कर था।

    शिवाय उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहता है, "कुछ नहीं होगा भाभी और बेबी को भाई। आप चिंता मत कीजिए।"

    संस्कार रोते हुए कहता है, "सब मेरी गलती है, मुझे उसे अकेले नहीं जाने देना चाहिए था। मैं इतना लापरवाह कैसे हो गया आज?"

    अधिराज उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है, "संभालो खुद को माई सन, बेस्ट गायनेकोलॉजिस्ट कानल की ट्रीटमेंट कर रही है। देखना, कुछ नहीं होगा उसे।"

    अधिराज भी और क्या ही संभालता! आखिर अपने बच्चों की ज़िंदगी में प्रॉब्लम देखकर किन माता-पिता को दुख नहीं होगा!

    अधिराज और अभिनव शिवाय के आने से कुछ समय पहले ही वहाँ पहुँचे थे।

    काफ़ी समय बीत जाने पर OT की लाइट ऑफ़ हुई और दरवाज़ा खोलकर उसमें से दो लेडी बाहर आईं। सभी जो वहाँ लगी बेंच पर बैठे थे, वे उन्हें देखते ही उनके पास आ गए।

    संस्कार तुरंत लेडी डॉक्टर को देखकर बोल पड़ा, "शिवानी, क....कानल कैसी है?"

    डॉक्टर शिवानी अपने चेहरे पर लगा हुआ मास्क हटाकर शिवाय और संस्कार को देखकर कहती है, "वह ठीक है, पर...."

    वह भी आगे कहने से हिचकिचा रही थी। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी आगे कुछ भी बोलने की।

    अधिराज ने तुरंत कहा, "शिवानी बेटा, बताओ ना। सब ठीक तो है ना?"

    शिवानी गहरी साँस लेकर कहती है, "कानल भाभी ठीक है पर हम उनके बच्चे को नहीं बचा पाए।" यह सुनकर संस्कार के क़दम लड़खड़ा गए।

    अधिराज और अभिनव उसे संभालते हैं। उनकी आँखों में भी नमी आ गई। अस्मिता, उर्वशी, शिखा शॉक होकर अपने मुँह पर हाथ रखकर रोने लगीं।

    संस्कार शिवानी की बाजुओं को पकड़कर झंझोड़कर कहता है, "ये तुम क्या कह रही हो शिवानी? तुम जानती हो ना, कितने सालों बाद उसके जीवन में यह खुशी आई थी और...ये खुशी उससे छीन भी गई? भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं हो सकता, ये झूठ है ना, हँ...बोलो?" शिवाय उसे शिवानी से छुड़ाता है।

    शिवानी उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है, "भाई प्लीज़, संभालिए खुद को। मैं समझ सकती हूँ, ये सच कितना दर्दनाक है कानल भाभी और आप सबके लिए। पर जिस सिचुएशन में उन्हें यहाँ लाया गया था, उनमें हम बच्चे या माँ किसी एक को ही बचा सकते थे। इस एक्सीडेंट में भाभी के पेट पर मार लगने की वजह से अगर बच्चा बच भी जाता तो वह नॉर्मल लाइफ़ नहीं जी पाता।"

    संस्कार रोते हुए भगवान से शिकायत करने लगा, "क्यों? क्यों हुआ ये सब? पाँच साल से वह तड़प रही थी यह सुनने के लिए कि वह माँ बनने वाली है। लोगों के कितने ही तानों के बाद अब जाकर उसके जीवन में खुशियाँ आई थीं और उस खुशी को महसूस करने से पहले ही वह हमसे छीन गई, क्यों?"

    अपने बेटे को ऐसे देखकर अधिराज ने उसे कसके अपने गले से लगा लिया।

    शिवाय शिवानी को देखता है, जिसके चेहरे पर और भी बहुत कुछ था पर शायद बता नहीं पा रही थी।

    शिवाय उसे देखकर धीरे से कहता है, "क्या बात है शिवानी? कुछ हुआ है क्या?"

    शिवानी सबको देखकर गंभीरता से कहती है, "प्लीज़, आप आइए मेरे साथ। मुझे आप सबसे कानल भाभी को लेकर एक इम्पोर्टन्ट बात करनी है।" यह कहकर वह वहाँ से चली गई और सबके मन में एक डर छोड़ गई कि बात क्या होगी?

    शिखा को वहीं छोड़ बाकी सभी शिवानी के केबिन में आ गए। जहाँ शिवानी बैठी कानल की रिपोर्ट्स देख रही थी।

    शिवानी उन सबको देखकर उन्हें बैठने को कहती है। अधिराज और अस्मिता चेयर पर बैठ जाते हैं। बाकी सब आसपास खड़े थे। सबको बस यह जानना था कि अब शिवानी क्या कहने वाली है?

    अधिराज उसे देखकर कहता है, "क्या बात है शिवानी, तुमने हम सबको यहाँ क्यों बुलाया? सब ठीक है ना? देखो अगर ट्रीटमेंट के लिए किसी और बड़े डॉक्टर की ज़रूरत है तो बेझिझक बताओ। मैं दुनिया का बेस्ट से बेस्ट डॉक्टर को यहाँ हाज़िर कर दूँगा।"

    शिवानी ना में अपना सिर हिलाकर उसे शांत करवाते हुए हिचकिचाकर कहती है, "नहीं अंकल, ऐसी बात नहीं है। वो मैं यह कहना चाहती हूँ कि भाभी के इस एक्सीडेंट की वजह से उनका बच्चा तो नहीं रहा पर अब वह आगे भी कभी माँ नहीं बन सकती।"

    यह सुन सबकी आँखें फैल गईं। कुछ देर के लिए केबिन में सन्नाटा छा गया।

    शिवाय गुस्से में कहता है, "ये क्या बकवास कर रही हो तुम शिवानी? लगता है तुम अपनी डॉक्टर की सारी पढ़ाई भूल चुकी हो जो ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो। मैं अभी शौर्य को कॉल करके कहता हूँ कि सबसे पहले तुम्हारा इलाज करे।"

    शिवानी बिना भाव से कहती है, "ये कोई बकवास नहीं है शिवाय। ऑलरेडी भाभी का पहले भी कितनी ही बार मिस्केरेज हो चुका था और अब जब उन्होंने इस बार कंसीव किया था तभी मैंने पहले ही सबको बताया था कि इस बार गलती से भी कोई गलती नहीं होनी चाहिए क्योंकि अबकी बार अगर उन्होंने यह बच्चा खो दिया तो, वह आगे फिर कभी माँ नहीं बन पाएंगी। अब उनका गर्भाशय एक बच्चे को कैरी कर सके, उतना मज़बूत नहीं रहा। मैं आप सबको ये सब इसलिए बता रही हूँ ताकि आप सबको खुद को मज़बूत करना होगा तभी आप भाभी को संभाल पाएँगे।"

    संस्कार और शिवाय को याद आने लगा जब शिवानी ने कानल का ध्यान रखने के लिए उन्हें सख़्त हिदायत दी थी।

    संस्कार पीछे की ओर अपने क़दम बढ़ाते हुए दीवार से टिककर भरे गले से कहता है, "ये क्या कह रही हो तुम शिवानी? ये सुनकर तो वह ज़िंदा ज़िंदा मर जाएगी। मैं कैसे संभालूँगा उसे?"

    अस्मिता रोते हुए कहती है, "ये सब क्या हो गया? काश मैंने शिवू और संस्कार में से किसी को रोक लिया होता। कैसी माँ हूँ मैं? अपनी बहू और ग्रैंडचाइल्ड का ध्यान भी नहीं रख पाई।"

    उर्वशी उसे संभालते हुए कहती है, "संभालिए खुद को भाभी। इसमें आपकी भी क्या गलती है! वो कहते हैं ना कि भगवान के आगे किसकी चली है! शायद कानल बहू के नसीब में माँ बनने का सुख है ही नहीं।"

    शिवानी सबको देखकर कहती है, "प्लीज़, आप सब संभालिए खुद को। सबको यहाँ रुकने की ज़रूरत नहीं है। मैं हूँ यहाँ भाभी के पास। आप सब इस वक़्त अस्मिता आंटी को लेकर घर जाइए। इनकी हालत भी ठीक नहीं है।"

    शिवाय और संस्कार यहाँ रुककर बाकी सबको अधिराज घर लेकर चला गया। शरद भी उसके साथ ऑबरॉय मेंशन सबको लेकर निकल गया।

    कानल को अब ICU में शिफ़्ट कर दिया था। उसे होश आने में शायद सुबह हो सकती थी। शिवाय और संस्कार ने बाहर ही बेंच पर बैठकर पूरी रात निकाल दी।

    अब मिलते हैं अगले भाग में।

  • 10. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 10

    Words: 2841

    Estimated Reading Time: 18 min

    त्रिपाठी निवास, बडौदा

    अगली सुबह सभी डिनर टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे। तब देव्यानी जी ने कहा, "क्या हुआ आराधना, माही ओम से मिली भी या नहीं? माही का या ओम का फोन आया था? कहीं ऐसा तो नहीं कि दोनों भाई-बहन एक-दूसरे से मिलकर अब हमें भूल ही गए हैं?" सभी उनकी बात पर मुस्कुरा दिए।

    "हाँ, भाभी। वो बात हुई थी कल मेरी गुडिया से, तो उसने कहा कि ओम कॉल नहीं उठा रहा था। पता नहीं ये लड़का कहाँ होगा? बोल रही थी कि अब आज वो सीधे उसके कॉलेज जाने वाली है।"

    आराधना ने मुस्कुराकर जवाब दिया। सभी ने अपना सिर हिलाया। तभी अर्पिता की नज़र घर के दरवाज़े से आ रहे शख्स पर पड़ी। उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। वो हैरान भाव से उस ओर देखकर तेज आवाज़ में बोल पड़ी, "ओम!"

    सभी की नज़र उसकी नज़रों का पीछा करते हुए उस तरफ़ चली गई, जहाँ से ओम घर के अंदर आ रहा था।


    हॉस्पिटल, मुंबई

    कानल के एक्सीडेंट और उसके होने वाले बेबी की मौत की खबर ने सबको पूरी तरह से हिलाकर रख दिया था। जिस खुशी का सबको इतने समय से इंतज़ार था, वो खुशी इस परिवार से छिन चुकी थी। हॉस्पिटल में पूरी रात शिवाय और संस्कार की जागती आँखों से बीत गई।

    शिवाय ने एक पल के लिए भी अपने भाई को अकेला नहीं छोड़ा था। पर उन्हें क्या पता था कि एक और बुरी खबर उनका इंतज़ार कर रही थी।

    शिवाय अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए जब अपनी बाईं ओर देखता है, तो हैरान होकर झटसे चेयर से उठ जाता है।

    संस्कार उसे देखकर उसकी नज़रों का पीछा करते हुए देखता है, तो उसका भी यही हाल था।

    दोनों सामने की ओर भागते हुए जाने लगे। अधिराज, ध्वनित जी और अभिनव स्ट्रेचर के साथ तेज कदमों से चलते हुए हॉस्पिटल के अंदर आ रहे थे। उस स्ट्रेचर पर कुसुमलता जी लेटी हुई थीं, जो बेहोश थीं।

    शिवाय उनके पास पहुँचते ही कुसुमलता जी को देखकर उनका हाथ थामकर कहता है, "दादी...दादी क्या हुआ आपको?"

    कुसुमलता जी के कुछ ना बोलने पर शिवाय ने अधिराज से कहा, "क्या हुआ दादी को, डैड?"

    अधिराज की आँखें आँसुओं से भीगी हुई थीं। वो कहता है, "वो माँ-बच्चे वाली बात बर्दाश्त नहीं कर पाई और एकदम से बेहोश हो गई।"

    अधिराज और उर्वशी ने रात को घर जाकर कुसुमलता जी और ध्वनित जी की तबियत को ध्यान में रखते हुए उन्हें कुछ नहीं बताया था, पर सुबह होते ही उन्हें इस बारे में बताना ज़रूरी था। जिस वजह से कुसुमलता जी के बार-बार पूछने पर, जब उन्हें और ध्वनित जी को सब बताया गया, तब कुसुमलता जी इस खबर को सहन नहीं कर पाईं और उसी वक्त बेहोश होकर गिर पड़ीं। यह सदमा उनके लिए बहुत गहरा था।

    शिवाय जैसे ही दूसरी ओर देखकर डॉक्टर को आवाज़ देता है, वहाँ से एक नौजवान, जो शिवाय की ही उम्र का था, भागते हुए उनके पास आया और वार्ड बॉय को देखकर कहता है, "इन्हें जल्दी से इमरजेंसी में शिफ्ट करो, फ़ास्ट।"

    वार्ड बॉयज़ हाँ में अपना सिर हिलाकर स्ट्रेचर लेकर जाने लगे।

    डॉक्टर भी जाने को हुआ कि शिवाय ने झटसे उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे उम्मीद भरी नज़रों से देखकर कहा, "दादी को कुछ नहीं होना चाहिए, शौर्य।"

    उसकी आवाज़ में एक तरफ़ फ़िक्र भी थी और वार्निंग भी।

    शौर्य उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे संभालते हुए कहता है, "I will try my best Shivaay, प्लीज तुम यहाँ संभालो सबको।" ये कहकर वह जल्दी से चला गया।

    शौर्य शिवाय का बचपन का दोस्त था और डॉक्टर था। शौर्य के माता-पिता की एक एक्सीडेंट में डेथ हो चुकी थी, तब से शिवाय की फैमिली ही शौर्य की फैमिली थी।

    उसकी वाइफ शिवानी भी एक डॉक्टर थी, जो बेस्ट गायनेकॉलोजिस्ट थी। शिवानी भी उन्हीं के साथ कॉलेज में थी। तीनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।

    शौर्य और शिवानी को एक-दूसरे से प्यार हुआ और अभी उनकी हाल ही में एक-डेढ़ महीने पहले नई-नई शादी हुई थी।

    शिवाय अजीब सी सिचुएशन में फँस गया था। एक तरफ़ संस्कार को संभालना था तो दूसरी ओर बाकी परिवार वालों को। और ऐसे में उसका कमज़ोर पड़ना मानो पूरे परिवार का टूटकर बिखर जाना था।

    सभी यहाँ बाहर इधर-उधर घूमते हुए शौर्य की राह देख रहे थे। कुछ देर बाद शौर्य इमरजेंसी रूम से बाहर आता है। उसके चेहरे की निराशा देखकर सभी उसे उम्मीद भरी नज़रों से देखने लगे।

    शौर्य सब पर नज़र डालता है। उसके चेहरे पर भी निराशा के भाव थे। एक तरफ़ कानल की ये खबर और दूसरी तरफ़ कुसुमलता जी के बारे में बताने में वो हिचकिचा रहा था। तब ध्वनित जी ने कहा, "क्या हुआ शौर्य, सच-सच बताओ?"

    शौर्य ध्वनित जी की उम्र को लेकर भी चिंतित था। तब ध्वनित जी ने मज़बूत होकर फिर से कहा, "जो है साफ़-साफ़ बताओ बेटा। चिंता मत करो, ध्वनित ऑबरॉय इतना कमज़ोर नहीं कि कोई भी बुरी खबर उसे तोड़ पाए।"

    शौर्य ध्वनित जी को देखकर फिर शिवाय को देखकर कहता है, "वो...वो दादी को मेंटली सदमा लगा है जिससे वो कोमा में जा चुकी है।"

    ये कहकर उसने अपनी नज़रें झुका लीं। अधिराज, अभिनव, संस्कार तीनों की आँखें छलक उठीं ये सुनकर।

    एक ही दिन में उनके परिवार में कितना कुछ हो चुका था! वे तीनों ही नर्म दिल और इमोशनल जल्दी हो जाते थे। वहीं शिवाय और ध्वनित जी वैसे ही बिना कुछ रिएक्ट किए खड़े थे। अंदर ही अंदर तकलीफ़ उन्हें भी बहुत हो रही थी, पर इतनी आसानी से एक्सप्रेस नहीं कर पाते थे।

    ध्वनित जी बहुत मज़बूत कलेजा रखने वाले इंसान थे, जो जल्दी इमोशनल नहीं होते थे। वही खूबी शिवाय के अंदर भी थी, वो आज तक ज़्यादातर कभी इमोशनल नहीं हुआ।

    दोनों दादा-पोता एक जैसे थे। दोनों की आँखें भी हल्की नीली थीं। और स्वभाव भी दोनों का एक जैसा जिद्दी और गुस्सैल। और दिमाग वैसा ही तेज और मेहनत करने का एक अलग ही जुनून।

    पर शिवाय का पागलपन उनसे ज़्यादा था, जिसे किसी चीज़ की चाह हो वो उसे हासिल करके रहता था by hook or by crook. उसे ज़्यादातर लोग हार्टलेस इंसान कहते थे।

    ध्वनित जी ने गहरी साँस लेकर खुद को शांत करके कहा, "तो कब तक ठीक होगी मेरी कुसुम, शौर्य?"

    शौर्य उन्हें देखकर अपना सिर हिलाकर कहता है, "अभी कुछ कह नहीं सकते दादू। पर उम्मीद ज़रूर है। वो सब सुन सकती है पर कुछ रिएक्ट नहीं कर सकती, बोल नहीं सकती, देख नहीं सकती। कानल भाभी की इस खबर से उन्हें बहुत बड़ा गहरा सदमा लगा है। जिसकी वजह से उन्हें कोमा से बाहर आने में दिन भी लग सकते हैं, महीने भी और शायद साल भी।" ये कहकर वह चुप हो गया।

    शौर्य कुछ देर बाद हिचकिचाते हुए फिर से बोल पड़ा, "एक और बैड न्यूज़ है।"

    सभी उसकी ओर देखने लगे। तब वो कहता है, "सुखी काका (ड्राइवर), को हम बचा नहीं पाए। उन्हें जब यहाँ लाया गया था तब हालत बहुत ख़राब थी। उनकी बॉडी उनके परिवार को दे दी गई है।"

    सभी के चेहरे पर एक मायूसी ने जगह ले ली। दो मौत हो चुकी थी इस एक्सीडेंट की वजह से। एक उस बच्चे की जो इस दुनिया में अभी आया भी नहीं था और एक उनके वफ़ादार ड्राइवर सुखी की।

    सभी एक जगह खड़े थे। तब एक नर्स आकर उन्हें खबर देती है, "वो कानल मैडम को होश आ गया है। और आपको बुला रही है सर।" ये कहकर वह संस्कार को देखती है।

    शिवाय संस्कार के कंधे पर हाथ रखकर हाँ में अपना सिर हिला देता है। संस्कार ना में अपना सिर हिलाकर कहता है, "मैं...मैं उसे नहीं संभाल सकता शिवा। पता नहीं सच जानकर कैसे रिएक्ट करेगी? क्या कहूँगा मैं उससे?"

    ध्वनित जी उसके गाल पर हाथ रखकर कहते हैं, "भूल मत, मेरा पोता है तू। ऐसे डरने वालों में से नहीं है। जा और संभाल उसे। इस वक्त तू ही उसे संभाल सकता है। बता उसे कि कोई भी मुसीबत आ जाए पर हमें टूटना नहीं है। जा मेरे बच्चे।"

    अधिराज, अभिनव सभी उसे हिम्मत देने लगे। तब संस्कार खुद को शांत करके कानल के पास ICU में जाने लगा। ध्वनित जी, अभिनव और अधिराज कुसुमलता जी को देखने चले गए।

    वहीं शिवाय एक तरफ़ जाकर शरद को कॉल करके कड़क आवाज़ में कहता है, "मुझे इस एक्सीडेंट की पूरी डिटेल्स चाहिए, शरद। ये तुम कैसे करते हो, मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है।"

    सामने से शरद की आवाज़ आई, "हो जाएगा बॉस, बस कुछ वक्त का टाइम दे दीजिये।"

    शिवाय बिना कुछ कहे कॉल कट कर देता है। इस वक्त उसके मन में क्या चल रहा था, ये कोई नहीं जानता था।


    संस्कार के ICU में पहुँचते ही उसने देखा कि कानल बार-बार नर्स से एक ही सवाल कर रही थी और नर्स खामोश खड़ी थी। तभी कानल की नज़र सामने से आ रहे संस्कार पर पड़ी। वो उसे देखकर थोड़ा खुश होकर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा देती है।

    संस्कार अपने अंदर छुपे दर्द को ज़ाहिर ना करते हुए एक झूठी मुस्कान के साथ उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसके पास बेड पर बैठ गया। नर्स वहाँ से चली गई।

    संस्कार उसके गाल पर हाथ रखकर कहता है, "जान ही निकाल दी थी तुमने तो मेरी। अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता, ये सोचा है कभी!"

    कानल उसका हाथ थामकर मुस्कुराते हुए कहती है, "मैं आपको छोड़कर भला कैसे जा सकती हूँ! आपका प्यार मुझे कहीं जाने ही नहीं देगा। हमें कोई अलग कर सकता है क्या, हम्म?"

    संस्कार ना में अपना सिर हिलाकर उसके सर पर किस कर देता है और अपने गले से लगा लेता है। कानल के पूछने पर नर्स ने सिर्फ़ इतना बताया था कि उन्हें डॉक्टर सब जानकारी दे देगी।

    कानल उसके सीने से लगी ही अब एक्साइटमेंट में पूछती है, "अच्छा बताइए, लड़की हुई या लड़का?"

    संस्कार सामने की ओर एकटक देखने लगा। उसे उम्मीद थी कानल के इस सवाल की।

    कानल उसकी खामोशी को देखकर अपना सर उठाकर मुस्कुराकर कहती है, "मैं जानती हूँ, इस एक्सीडेंट की वजह से प्री-मेच्योर डिलीवरी हुई है ना, तो हमारा बेबी भी इस वक्त काफ़ी कमज़ोर होगा। पर कोई नहीं, हम मिलकर उसकी खूब केयर करेंगे। फिर दादी और माँ भी तो हैं ना! उन्हें तो कितना तजुरबा होगा! तो बताइए ना संस्कार, आपकी इच्छा पूरी हुई या मेरी? लड़की या लड़का?"

    संस्कार उसे एक नज़र देखकर अपनी नज़रें चुराने लगा। कानल को उसकी चुप्पी खलने लगी। वो बेचैन होकर कहती है, "संस्कार, क...कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं आप? बोलिए ना, कहाँ है हमारा बच्चा? और आपने ये अपनी क्या हालत बना ली है! ये आँखें, ये चेहरा क्यों मुरझा गया है हँ?" ये कहते हुए वो संस्कार के चेहरे पर हाथ फेर रही थी।

    संस्कार उसका हाथ थामकर प्यार से कहता है, "क...कानू, देखो जो मैं कहने जा रहा हूँ ना, तुम उसे ध्यान से सुनना हम्म!"

    कानल उसके हाथ पर अपनी पकड़ मज़बूत करके कहती है, "हाँ हाँ, संस्कार बोलिए ना। और जल्दी बताइएगा, फिर हमें अपने बच्चे को भी तो देखने जाना है ना, हम्म? कब से इंतज़ार कर रही हूँ उसकी एक झलक देखने के लिए, उसे अपनी गोद में लेकर अपने आँचल में समेटने का।"

    उसके चेहरे पर एक अलग ही चाह थी अपने बच्चे को अपने सीने से लगाने की।

    "कानू, प...पहले मेरी बात सुनो। देखो, तुम तो जानती हो ना कि जीना और मरना तो भाग्य की बात है। हमारे हाथों में कुछ नहीं है और भगवान जो भी करते हैं वो हमारे अच्छे के लिए करते हैं?"

    संस्कार की बात पर कानल नासमझी में कहती है, "हाँ, पर ये सब आप मुझे अभी क्यों समझा रहे हैं संस्कार? मुझे तो बस मेरे बच्चे को..." ये कहकर वह एकदम से रुक गई और कुछ सोचते हुए संस्कार को एकटक देखने लगी। जिसकी आँखों में नमी थी।

    कानल अपनी घबराहट को छुपाते हुए अपने पेट पर हाथ रखकर धीरे से कहती है, "हम...हमारा बच्चा कहाँ है संस्कार?"

    संस्कार उसकी बातों का जवाब नहीं दे पाया और अपना चेहरा फेर लिया।

    तब कानल ने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ओर करके उसकी आँखों में देखकर कहा, "कहाँ है हँ? ब....बच्चा है ना संस्कार?"

    जिस बात का उसे डर था, आखिरकार उसने उसे वो पूछ ही लिया।

    "द...देखो मेरी बात सुनो पहले। वो डॉक्टर ने...."

    संस्कार के इतना कहने पर उसे टोककर कानल बीच में ही उसकी बाजू पकड़कर हल्का झँझोड़ते हुए कहती है, "नहीं, मुझे बताइए आप पहले कि हमारा बच्चा कहाँ है? आप अलग-अलग बातें क्यों कर रहे हैं? आपके चेहरे पर बच्चे के आने की कोई खुशी क्यों नहीं है, बताइए ना?"

    संस्कार ने उसका चेहरा थामकर उसे बहुत समझाने की कोशिश करी। पर कानल अब कुछ भी और सुनने के मूड में नहीं थी। वो उसका हाथ झटककर उसके शर्ट की कॉलर पकड़कर चिल्लाकर कहती है, "मैंने कहा ना, बताइए मेरा बच्चा कहाँ है संस्कार, बोलिएए...?"

    संस्कार ने एक झटके में उसका चेहरा मज़बूती से पकड़कर चिल्लाकर कहा, "नहीं है, हमारा बच्चा। नहीं रहा वो। वो हमें छोड़कर जा चुका है। हमें मम्मा-पापा बुलाने वाला अब कभी नहीं आएगा, सुना तुमने? कभी नहीं आएगा वो, कभी नहीं...जा चुका है वो हमें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए।"

    ये कहकर वह उसके गले लगकर फफककर रोने लगा। वहीं शिवाय जो बाहर खड़ा था, वो ये सुनकर अपनी मुट्ठी भींच लेता है।


    त्रिपाठी निवास, बडौदा

    ओम को अपने सामने देखकर सभी एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगे और नाश्ता छोड़कर डिनर टेबल से उठकर उसके पास आने लगे।

    "ओम, तुम अचानक से यहाँ? हमें बताया भी नहीं?" अमरदीप ने उसके पास आकर हैरानी से देखकर कहा।

    ओम अपनी नज़रें चुराते हुए कहता है, "अ...हाँ पापा। वो कॉलेज से लीव मिली है कुछ दिनों के लिए, इसलिए सोचा आप सबको आकर सरप्राइज़ दे दूँ।"

    देव्यानी जी उसके पास आकर उसके चेहरे को अपने हाथों में भरकर मुस्कुराकर कहती हैं, "चलो अच्छा हुआ, पर एक बार बता तो देता। और ये क्या! कितना दुबला हो गया है! खाना नहीं मिलता है क्या वहाँ पर अच्छा?"

    "क्या बड़ी माँ, आप भी! इतना तो फ़िट दिख रहा हूँ।" ओम ने हल्की मुस्कराहट के साथ कहा और उनके गले लग गया। फिर बारी-बारी करके सबसे मिला।

    अमरदीप, सुधीर और यशदीप जी की निगाहें कब से उसके चेहरे को परख रही थीं। हमेशा के मुकाबले आज उन्हें ओम काफ़ी खोया-खोया सा लग रहा था।

    सुधीर उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है, "क्या बात है बेटा, कुछ बुझे-बुझे से लग रहे हो। कुछ हुआ है क्या?"

    "न...नहीं तो बड़े पापा, मैं एकदम ठीक हूँ।" ओम ने हड़बड़ाकर अपने चेहरे के भाव ठीक करते हुए कहा।

    अमरदीप शक भरी नज़रों से उसे देखकर कहता है, "लग तो नहीं रहे हो। सच-सच बता, अब क्या करके आया है तू?"

    ओम घबराई हुई नज़रों से उसे देखने लगा। वो कुछ कहता उससे पहले आराधना ने उन्हें टोककर कहा, "ओफ़ो, आप दोनों तो आते ही शुरू हो गए। कह तो रहा है कि उसके कॉलेज का वेकेशन है इसलिए आया है, फिर क्या ये जासूसी शुरू कर दी आप सबने। चैन से साँस तो लेने दीजिए। (फिर ओम को देखकर उसकी बाजू पकड़कर कहती है) आजा बेटा, चल फ़्रेश होकर आ और पहले नाश्ता कर ले, भूख लगी होगी ना!"

    "बड़ी माँ, दी कहाँ है? वो दिखाई नहीं दे रही है?" ओम घर में नज़र दौड़ाते हुए मोहब्बत को ढूँढने लगा।

    अर्पिता अपना सर हिलाकर कहती है, "वो बेचारी मुंबई आई हुई थी, तुझे सरप्राइज़ देने और तूने यहाँ आकर हम सबको सरप्राइज़ दे दिया।"

    ओम शॉक होकर कहता है, "क्या! माही दी...और मुंबई में? पर क्यों, कैसे और कब आई वो वहाँ?"

    देव्यानी जी उसे शांत कराते हुए हल्का मुस्कुराकर कहती हैं, "सब बताते हैं, जा पहले फ़्रेश हो जा फिर बात करते हैं।"

    ओम हाँ में अपना सिर हिलाकर वहाँ से अपने रूम की तरफ़ जाने लगा, जहाँ वो और अथर्व रहा करते थे।

    सभी नाश्ते टेबल पर फिर से बैठ गए और ओम का इंतज़ार करने लगे। वहीं ओम अपने रूम में आकर अपना बैग रखकर बेड पर एकदम से बैठकर उस पर लेट गया और ऊपर सीलिंग की ओर देखने लगा। तब उसकी आँखों के सामने कुछ चलने लगा, जैसे सच में उसे वो सब उसकी आँखों के सामने होते हुए दिख रहा हो।

    किसी ज़ोर की टक्कर की आवाज़ सुनकर ओम एकदम से होश में आया और चोंककर उठकर बैठ गया। उसके चेहरे पर डर साफ़-साफ़ दिख रहा था, डर के मारे उसके चेहरे पर पसीना आने लगा था।

    "न...नहीं, म...मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया था। वो...वो सब अनजाने में हो गया था। मेरी गलती नहीं थी। म...मैंने तो मना किया था, पर विकी नहीं माना। मैं गुनाहगार नहीं हूँ, मैंने कुछ नहीं किया।"

    ओम ने घबराते हुए काँपती आवाज़ में खुद से बात करते हुए अपने चेहरे पर आए हुए पसीने को पोछने लगा और उठकर बाथरूम में चला गया।

  • 11. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 11

    Words: 3169

    Estimated Reading Time: 20 min

    हादसा या गलती?

    हॉस्पिटल, मुंबई

    कानल के होश में आने पर उसने सबसे पहले अपने बच्चे के बारे में जानना चाहा, जिसका वह ना जाने कितने सालों से इंतज़ार कर रही थी। पर संस्कार जिस तरह से अलग-अलग और अजीब बातें कर रहा था, उससे कानल को शक होने लगा था। वह बार-बार अपने बच्चे के बारे में पूछती रही और संस्कार उसे समझाने में लगा हुआ था, पर कानल आज कुछ और सुनने के मूड में नहीं थी। उसे बस उसका बच्चा चाहिए था, उसकी जिद बढ़ती जा रही थी।

    संस्कार के ऐसे समझाने पर कानल उसका हाथ झटककर, उसके शर्ट की कॉलर पकड़कर चिल्लाकर कहती है, "मैंने कहा ना, बताइए मेरा बच्चा कहाँ है संस्कार? बोलिए..."

    संस्कार ने एक झटके में उसका चेहरा मजबूती से पकड़कर चिल्लाकर कहा, "नहीं है, हमारा बच्चा। नहीं रहा वह, कानु। वह हमें छोड़कर जा चुका है। हमें मम्मा-पापा बुलाने वाला अब कभी नहीं आएगा, सुना तुमने? कभी नहीं आएगा वह, कभी नहीं...। जा चुका है वह हमें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए।" यह कहकर वह उसके गले लगकर फफककर रोने लगा। वहीं शिवाय जो बाहर खड़ा था, वह यह सुनकर अपनी मुट्ठी भींच लेता है।

    जिस रूम में अभी कुछ देर पहले अपने बच्चे को लेकर कानल की चीखने की आवाज थी, वहाँ एकदम से सन्नाटा छा गया। सिर्फ संस्कार के सिसकने की आवाज आ रही थी।

    कानल की तो मानो पूरी दुनिया ही लूट गई थी। जिस दिन का वह पिछले पाँच सालों से इंतज़ार कर रही थी, ना जाने किन-किन लोगों के उसने कितने ताने सहे थे माँ ना बन पाने की वजह से!

    जिस बच्चे का वह इस दुनिया में आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, वह उससे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा चुका था। यह बात उसके कानों में पड़ते ही वह एकदम से खामोश हो गई, जैसे कोई पत्थर।

    संस्कार उसके सर से अपना सर जोड़कर भरे गले से कहता है, "भगवान ने उसका चेहरा देखने से पहले ही उसे हमसे वापस मांग लिया, जान। बस यह समझ लो कि, वह हमारे नसीब में था ही नहीं। देखो, तुम...तुम ज़्यादा मत सोचो। हम दोनों हैं ना एक-दूसरे के लिए! हमें किसी बच्चे की ज़रूरत नहीं है। हम ऐसे ही खुशी-खुशी एक-दूसरे के प्यार के सहारे जी लेंगे।"

    कानल की साँसें अचानक से तेज होने लगीं। वह खुद को संभाल नहीं पा रही थी। तब संस्कार ने घबराते हुए कहा, "कानु, क्या हो रहा है तुम्हें? शांत हो जाओ प्लीज़, सब...सब ठीक हो जाएगा।" यह कहते हुए वह उसका गाल थपथपाने लगा।

    कानल की तबियत को बिगड़ता हुआ देखकर संस्कार ने तेज आवाज से शिवाय को बुलाया। शिवाय भी जो बाहर खड़ा संस्कार का ही इंतज़ार कर रहा था, वह भागते हुए अंदर आया और कानल की तबियत को बिगड़ता देख शिवानी को बुलाने के लिए तुरंत वहाँ से चला जाता है।

    कुछ देर में शिवानी आकर उसे शांत करने के लिए injection लगा देती है। जिससे कुछ ही देर बाद उसके असर से कानल निढाल सी होकर संस्कार की बाहों में झुलने लगी। संस्कार ने उसे पकड़कर ठीक से बेड पर लेटा दिया।

    शिवाय संस्कार के कंधे पर हाथ रखकर कहता है, "अभी बाहर चलिए भाई, भाभी को रेस्ट की ज़रूरत है। वह ठीक हो जाएगी।" संस्कार अपने आँसू पोछते हुए कानल को देखते हुए बाहर चला गया।

    संस्कार बाहर आकर दीवार पर अपना हाथ मारते हुए गुस्से में कहता है, "क्यूँ-क्यूँ-क्यूँ...? क्यूँ हर बार उसके साथ ही यह सब होता है? और कितनी परीक्षा लिखी है उसकी किस्मत में? सब मेरी गलती है, मुझे उसे अकेले छोड़ना ही नहीं चाहिए था। सब मेरी गलती है, सब मेरी..."

    तब शिवाय उसका हाथ पकड़कर उसे अपने गले लगाकर थोड़े गुस्से में कहता है, "यह क्या कर रहे हैं, आप भाई? शांत हो जाइए, सब ठीक हो जाएगा। संभालिए खुद को।" संस्कार उसके गले लगकर रोने लगा।

    शिवाय की आँखें भी लाल हो चुकी थीं, अपने भाई की ऐसी हालत देखकर। वह उसके सर को सहलाते हुए मन ही मन कहता है, "आई प्रॉमिस भाई, इसके पीछे जिस किसी का भी हाथ है, मैं उसे छोड़ूँगा नहीं। जिस किसी की भी वजह से आज मेरे घर की खुशियाँ छीन गई हैं, उसे तो मैं ऐसी सज़ा दूँगा कि दोबारा जन्म लेने से भी सौ बार सोचेगा।" उसके दिल और दिमाग में जैसे एक जंग छिड़ गई थी।

    कुछ समय बाद शिवानी के बाहर आते ही संस्कार और शिवाय उसे देखने लगे। तब शिवानी ने कहा, "फिलहाल बेहोश है। अभी चिंता की ज़रूरत नहीं है। शिवाय, अभी के लिए सबको लेकर घर जाओ। कल से तुम और संस्कार भाई यहाँ पर हो। मैं हूँ यहाँ और अभी भाभी को होश आने में देर लगेगी।"

    शिवाय हाँ में अपना सर हिलाकर संस्कार को ले जाने लगा। संस्कार के काफी मना करने पर भी शिवाय ने उसकी एक ना सुनकर उसे अपने साथ लेकर बाकी परिवार वालों के साथ घर के लिए निकल गया।


    त्रिपाठी निवास, बड़ौदा

    ओम के अपने रूम से आते ही सभी ने अपना नाश्ता शुरू किया। अर्पिता ने ओम को मोहब्बत के job के बारे में सब बता दिया। यह सोचकर एक तरफ ओम खुश भी था और कहीं ना कहीं एक डर भी। ओम अपने ही ख्यालों में गुम था और प्लेट में चम्मच घुमाए जा रहा था।

    "ओम...ओम!" ओम एकदम से होश में आकर अपने सामने देखने लगा। तब देव्यानी जी हैरानी से उसे देखकर कहती हैं, "ध्यान कहाँ है, तेरा बेटा? तू ठीक तो है ना? इतना कहाँ खो गया था?"

    "अ...नहीं बड़ी माँ, वह बस अपने आने वाले फाइनल एग्ज़ाम्स के बारे में ही सोच रहा था, और कुछ नहीं।"

    ओम ने बात घुमाते हुए अपना नाश्ता शुरू किया। सबको यही लगा था कि कुछ ही महीनों में उसके एग्ज़ाम्स आने वाले हैं, इसलिए परेशान होगा। जिससे किसी को भी उस पर किसी तरह का ज़्यादा शक नहीं हुआ और सभी अपना नाश्ता करने लगे।


    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    शिवाय संस्कार को हॉल में लगे सोफे पर बिठाकर उसके पास बैठ जाता है। बाकी के सभी घरवाले भी वहाँ आने लगे और उसी वक़्त पुलिस भी उनके पास आ पहुँची।

    ध्वनिता जी ने गंभीर आवाज में कहा, "क्या पता चला है, इंस्पेक्टर? कौन है जिम्मेदार इस ऐक्सीडेंट के पीछे? उसे अभी तक पकड़ा क्यों नहीं? किस चीज़ का वेट कर रहे हो?"

    "वो सर, हमने CCTV फ़ुटेज मँगवाया है और इन सबमें टाइम तो लगता ही है। पर आप चिंता मत कीजिये हम..."

    इंस्पेक्टर के इतना कहते ही एक रौबदार आवाज आई, "ज़रूरत नहीं है, इंस्पेक्टर। इस केस को अभी के अभी क्लोज़ करो।"

    सभी हैरानी से शिवाय की ओर देखने लगे। तब शिवाय इंस्पेक्टर को देखकर सर्द आवाज में कहता है, "अब जो करूँगा, मैं खुद करूँगा। मुझे तुम्हारे department के किसी भी ऑफिसर की हेल्प की ज़रूरत नहीं है। वह जो कोई भी है उसे सज़ा मैं अपने हाथों से दूँगा।"

    इंस्पेक्टर हैरानी से शिवाय को देखते हुए कहता है, "पर सर, यह सब आप क्यों..."

    उसे टोककर बीच में ही शिवाय ने कहा, "यह मामला अब मेरे परिवार से जुड़ा हुआ है। मेरे परिवार के दो सदस्यों की ऑलरेडी मौत हो चुकी है। मेरी दादी और भाभी इस वक़्त ज़िंदगी से लड़ रही हैं। ज़्यादा से ज़्यादा क्या सज़ा देगा तुम्हारा कानून उसे, हम्म? तुम्हारे कानून पर मुझे रत्ती भर का भरोसा नहीं है। उस क्रिमिनल को सज़ा तो यह शिवाय देगा जो इतना बड़ा क्राइम करने के बाद भी इन सबको मरने के लिए छोड़कर भाग गया।"

    अधिराज ने सीरियस होकर कहा, "पुलिस को अपना काम करने दो, शिवाय।"

    "बिलकुल नहीं। वह जो कोई भी है, उसे मैं सज़ा दूँगा, यह नहीं। (फिर इंस्पेक्टर को देखकर कहता है) आप जा सकते हैं।"

    शिवाय की आवाज और उसके हाव-भाव के आगे इंस्पेक्टर के मुँह से आगे कोई आवाज नहीं निकली और वह हाँ में अपना सर हिलाकर वहाँ से चला गया।

    "बिलकुल सही कहा शिवाय ने। उसे तो सज़ा मिलनी ही चाहिए। वह जो कोई भी है, उसे तो भगवान कभी माफ़ नहीं करेगा। बेचारी हमारी कानल बहू का माँ बनने का सुख छीन लिया। पता नहीं, कहाँ छुपकर बैठा होगा?"

    उर्वशी ने गुस्सा जताते हुए कहा। सभी के चेहरे पर एक गुस्सा था उस अपराधी के बारे में सोचते हुए।

    शिवाय कुछ सोचकर वहाँ से उठकर जाते हुए कहता है, "भाई को रूम में ले जाइए चाचू, मैं बस कुछ देर में आया।" यह कहकर वह बिना और किसी को कुछ बताए वहाँ से चला गया।

    अभिनव संस्कार को उसके रूम में लेकर जाने लगा। बाकी सभी अपने-अपने रूम में मायूस मन से चले गए।


    त्रिपाठी निवास, बड़ौदा

    "क्या खबर है, विकी? कोई बड़ी बात तो नहीं हुई है ना? कुछ पता चला कि वह कौन थे?" ओम ने फ़ोन पर बात करते हुए घबराहट भरी आवाज में कहा।

    विकी ने शांत आवाज में कहा, "सुनने में आया है कि वह कार किसी बहुत बड़े परिवार के सदस्य की थी। जाँच-पड़ताल चालू है, पता नहीं आगे क्या होगा? मुझे भी बस इतना ही पता चला है।" उसकी आवाज में भी एक डर था।

    ओम ने हैरानी से कहा, "तो...तो क्या पुलिस भी इसमें इन्वॉल्व होगी?"

    "अब ऐक्सीडेंट केस है तो ऑफ कोर्स पुलिस केस तो होगा ही ना!"

    विकी ने चिढ़ते हुए कहा, जिसकी बात पर ओम ने थोड़े गुस्से में कहा, "इसलिए मैं मना कर रहा था कि कार से नहीं जाना। देखा ना क्या हो गया? पता नहीं उस ऐक्सीडेंट में कोई ज़िंदा भी होगा या नहीं?"

    "देख, तू बस शांत हो जा। हमें वहाँ किसी ने नहीं देखा। जब यह सब हुआ तब रोड खाली थी। तू अपने डर को ऐसे ही ज़ाहिर करता रहा ना, तो सबको पता चल जाएगा और ख़ामख़ा हम सबको जेल हो जाएगी। तू बस शांत रह।" विकी ने उसे समझाकर कहा।

    ओम रूम में इधर-उधर टहलते हुए कहता है, "कैसे शांत रहूँ? अगर हमारी वजह से किसी को कुछ हो गया ना तो..."

    उसके इतना कहते ही दरवाज़े से किसी की हैरान भरी आवाज आई, "तो? तो क्या?"

    ओम अपनी जगह पर जम गया और पलटकर दरवाज़े की ओर देखने लगा जहाँ अमरदीप खड़ा उसे देख रहा था, जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। घबराहट के मारे ओम के हाथों से फ़ोन छूटकर नीचे गिर गया। वह एकटक सहमी नज़रों से अमरदीप को देखने लगा, जो अब उसकी ओर बढ़ रहा था।

    ओम खुद को शांत करने की नाकाम कोशिश करने लगा। अमरदीप उसके सामने खड़े होकर सीरियस आवाज में कहता है, "सच-सच बता ओम, क्या हुआ है? यह किस बारे में बात हो रही थी? क्या करके आया है तू?"

    "क...कुछ भी तो नहीं पापा। वह मैं बस अपने दोस्त से बात कर रहा था और आप एकदम से आ गए तो..."

    उसके इतना कहते ही अमरदीप ने कहा, "अच्छा, तो इतना पसीना क्यों आ रहा है तुझे, वह भी इस मौसम में?"

    ओम अपने सर पर हाथ रखकर पसीना पोछने लगा जिससे अमरदीप गुस्से में उसका हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए रूम से बाहर ले जाने लगा।

    ओम अपना हाथ छुड़वाने की कोशिश करते हुए आवाज दे रहा था पर अमरदीप ने उसकी एक ना सुनी। उसकी आवाज से सभी घरवाले अपने रूम से बाहर निकल आए और हैरानी से उन दोनों को देखने लगे।

    अमरदीप हॉल में लाकर झटके से ओम का हाथ छोड़ देता है, जिससे ओम हल्का लड़खड़ा जाता है, जिसे देखकर सुधीर ने कहा, "अमर, यह क्या तरीका है, बच्चे के साथ पेश आने का?"

    "पूछिए इससे भाई, कि क्या करके आया है यह वहाँ?"

    सभी सवालिया नज़रों से अमरदीप को देखकर फिर ओम को देखने लगे जो नाँ में अपना सर हिला देता है, तब अमरदीप गुस्से में कहता है, "झूठ बोलने की कोशिश तो करना ही मत। मैंने अपने कानों से सुना है, जो तूने कहा।"

    "अरे ऐसा क्या सुना है, अब कुछ बोलेगा भी?"

    यशदीप जी ने झुंझलाकर कहा, तब अमरदीप ने तेज आवाज में कहा, "यह किसी से बात कर रहा था, किसी ऐक्सीडेंट के बारे में, मोटा भाई। पुलिस की भी बात हो रही थी, और यह सब बात करते वक़्त इसके चेहरे पर डर था जैसे कोई बहुत बड़ा गुनाह करके आया हो। पूछिए, इससे।"

    सभी हैरानी से ओम को देखने लगे, जो अब सर झुकाकर खड़ा था। देव्यानी जी ने शांत आवाज में कहा, "ओम, बेटा यह क्या कह रहे हैं तुम्हारे पापा? क्या यह सच है?"

    ओम कुछ नहीं बोल पाया, उसकी आँखें नम होने लगी थीं, जिसे देखकर यशदीप जी उसके सामने आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं, "हमने हमेशा तुम बच्चों को सही रास्ते पर चलना सिखाया है, मेरे बच्चे। तो आज भी उम्मीद करता हूँ, कि तू सच बोलेगा। बोल, क्या बात है? हम सब हैं ना तेरे साथ, बता क्या हुआ है, हम्म? यह किस बारे में बात कर रहा है अमर?"

    यशदीप जी की आवाज सुनकर ओम उनके गले लगकर रोने लगा। जिससे सभी शॉक होकर उसे देखकर फिर एक-दूसरे को देखने लगे। सभी को अब एक डर था कि कहीं उसके हाथों कुछ गलत तो नहीं हुआ?

    यशदीप जी ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "तू रो क्यों रहा है, ऐसा क्या हुआ है?"

    "आई एम सॉरी, बड़े पापा। वह म...मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।" ओम के इतना कहते ही सबके चेहरे पर खामोशी के साथ-साथ एक डर ने जगह ले ली।

    अर्पिता कुछ बोलने को हुई कि यशदीप जी ने अपना हाथ दिखाकर उसे शांत करते हुए ओम से फिर से पूछा, "किस गलती की बात कर रहे हो, बताओ मुझे? क्या किया है तुमने?"

    "वो...वो मैं यहाँ आने से पहले आप सबके लिए कुछ चीज़ें खरीदना चाहता था। इसलिए हम दोस्त शॉपिंग पर निकल पड़े। तब..." ओम अब एक-एक करके सारी बातें बताने लगा।


    ❤ फ़्लैशबैक ❤

    ओम और उसके साथी कॉलेज से निकलकर किसी अच्छी जगह पहुँच गए थे जहाँ सामान अच्छा भी मिलता हो और रीज़नेबल भाव में भी। ओम जानता था कि वह एक मिडिल क्लास फैमिली से था, इसलिए उसे सोच-समझकर खर्च करना था।

    पूरे दिन की शॉपिंग के बाद अब वे सब जब होस्टल की तरफ वापस आ रहे थे, तब विकी जो कार ड्राइव कर रहा था, वह ओम से मुस्कुराकर कहता है, "क्या ब्रो, ड्राइव करेगा?"

    "नहीं, यार। मन तो बहुत है पर लाइसेंस भी नहीं है तो मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता हूँ।" ओम ने अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हुए फिर थोड़ा मायूस हो गया।

    विकी उसके कंधे पर हाथ रखकर सामने देखते हुए कहता है, "अरे चील ब्रो, यहाँ कोई चेकिंग नहीं होगा, इसलिए लाइसेंस की फ़िक्र मत कर। मेरे पास भी कहाँ है लाइसेंस? और वैसे भी देख, रास्ते भी साफ़ हैं तो ऐक्सीडेंट के चांसेस भी नहीं हैं। चल आजा, अब ज़्यादा मत सोच। यही तो वक़्त है एन्जॉय करने का, फिर क्या बुढ़ा होकर ऐसी लाइफ जिएगा?" यह कहकर वह साइड में अपनी कार रोककर उसमें से उतरकर ओम को बैठने को कहता है।

    ओम को ड्राइविंग का बहुत शौक था, और यही वजह थी कि अथर्व ने स्पेशली अपने दोस्त से कार लेकर उसे ड्राइविंग सिखाई थी। ताकि मुसीबत के समय अगर वह घर पर मौजूद ना हो तो ओम सब संभाल सके।

    ओम ने अब अपने डर को साइड करके वह उतरकर ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गया और विकी पैसेंजर सीट पर। ओम गहरी साँस लेकर कार स्टार्ट करके आगे बढ़ने लगा।

    ओम की ड्राइविंग बहुत अच्छी थी। वह धीरे-धीरे से संभालकर ही कार ड्राइव कर रहा था, वहीं विकी और रोनक हँसी-मज़ाक कर रहे थे। ओम भी उनकी बातें सुनते हुए मुस्कुरा रहा था।

    तब विकी ने अपना फ़ोन निकालकर एक्साइटेड होकर कहा, "हेय, चलो एक सेल्फी हो जाए, सोशल मीडिया में डालेंगे तो ढेरों लाइक्स और कमेंट्स आएंगे। सबके सामने वट पड़ेगा हमारा।"

    "हाँ हाँ, चल और कुछ लोग तो जलकर राख भी हो जाएँगे।" रोनक भी चहकते हुए उसे कहने लगा। तब विकी ने अपना फ़्रंट केमेरा ऑन करके साइड करके तीनों का फ़ेस दिखे वैसे फ़ोन सामने कर दिया। पर ओम का ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ ड्राइविंग पर था जिस वजह से उसका चेहरा ठीक से नहीं दिख रहा था।

    "हे, ब्रो। थोड़ी देर के लिए यहाँ देख ले, वरना फ़ोटो बिगड़ जाएगी।" विकी के आवाज़ देने पर ओम ने कहा, "वो सुना नहीं तुम लोगों ने, नज़र हटी, दुर्घटना घटी। मैं रिस्क नहीं ले सकता।"

    रोनक बोरियत से कहता है, "अरे कुछ नहीं होगा, मेरे भाई। वैसे भी देख कोई ऐक्सीडेंट होने के चांस हैं ही नहीं। हमारे सिवा हैं ही कौन यहाँ! बस कुछ सेकंड्स की तो बात है। चल अब जल्दी, यहाँ देख ले।"

    दोनों के काफ़ी रिक्वेस्ट पर ओम ने फ़ाइनली विकी की ओर देखा। तीनों मुस्कुराकर फ़ोन पर केमेरा की ओर देख रहे थे। इस बात से बेख़बर कि उनकी इस लापरवाही से उनके हाथों से क्या कुछ हो सकता था!

    "वन, टू, थ्री...से हिप-हिप..." विकी के बोलने पर रोनक और ओम बोल पड़े, "हुर्रे..."

    विकी ने सेल्फी ले ली। तब ओम ने जैसे ही मुस्कुराते हुए सामने की ओर देखा तो उसकी मुस्कराहट शॉक में बदल गई। उनकी कार सामने बीच में बने डिवाइडर से टकराने वाली थी।

    ओम ने घबराते हुए खुद को बचाते हुए झटसे स्टीयरिंग घुमा दिया जिससे कार दूसरी तरफ़ के रास्ते पर चली गई जहाँ सामने से एक कार आ रही थी।

    विकी की कार को ऐसे अचानक से आता देख सामने वाली कार के ड्राइवर ने जल्दबाज़ी में स्टीयरिंग घुमा दिया जिससे उनकी कार सीधा डिवाइडर से जा लगी और टक्कर इतनी ज़ोर की थी कि कार अपना बैलेंस खो चुकी थी और पलट गई थी।

    उस कार के टकराने की आवाज से ओम ने एकदम से अपनी कार रोक दी और कार से उतरकर उस तरफ़ भागने लगा और देखता है कि वह कार बुरी तरह से डैमेज हुई थी।

    ओम हेल्प करने उस तरफ़ जाने लगा कि विकी ने खिड़की से देखते हुए उसे आवाज़ लगाई, "अबे इडियट क्या कर रहा है? चल निकल यहाँ से, अगर किसी ने देख लिया तो हम फँस जाएँगे।"

    "पागल हो गया है क्या? हमारी वजह से देख क्या हो गया? कहीं किसी को कुछ हो गया तो? हमें चलकर देखना चाहिए और उन्हें हॉस्पिटल ले जाना चाहिए।" ओम पलटकर हैरानी से उसे देखने लगा।

    रोनक भी झल्लाकर कहता है, "अबे मेरे सत्यवादी हरीशचंद्र, इस वक़्त दूसरों के नहीं, अपने बारे में सोच। अगर हम यहाँ रुके तो वाट लग जाएगी। चल जल्दी, बोलना।"

    ओम एक नज़र उस कार को देखकर दुखी मन से कहता है, "अरे पर वो..."

    "परवर कुछ नहीं, चल जल्दी। इससे पहले कि कोई यहाँ आ जाए। ख़ामख़ा मुसीबत में पड़ जाएँगे, चल जल्दी चल।"

    विकी की आवाज से ओम जल्दी से जाकर कार में बैठ गया और कार स्टार्ट करके वहाँ से निकल गया। इस बात से बेफ़िक्र होकर कि उनकी एक पल की मस्ती ने किसी से उनका कितना कुछ छीन गया था!

    वहीं जिस कार का ऐक्सीडेंट हुआ था, उसमें बिलकुल शांति थी। तीन लोग बेहोश और घायल पड़े हुए थे और वह कार इत्तेफ़ाक़ से किसी और की नहीं बल्कि ऑबरॉय की थी जिसमें कानल, अस्मिता और ड्राइवर सुखी था। 😢


    क्या असर होगा इस ऐक्सीडेंट से सबकी ज़िंदगी पर? क्या शिवाय पकड़ पाएगा गुनहगार को? क्या करेगा त्रिपाठी परिवार अब यह सच जानकर? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें...

  • 12. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 12

    Words: 2882

    Estimated Reading Time: 18 min

    ओम का गिल्ट

    त्रिपाठी निवास, बडौदा, गुजरात

    ओम घर आया था, पर वह एक बात सभी से छिपा रहा था और बुझा-बुझा सा रह रहा था। विकी से बात करते समय अमरदीप के कानों में कुछ बातें पड़ीं, और उसने ओम को सबके बीच ले गया। यशदीप जी के पूछने पर ओम ने सबको सारी बातें बतानी शुरू कर दी थीं।


    फ्लैशबैक जारी...

    ओम और उसके दोस्त होस्टल लौट रहे थे, तभी उनकी लापरवाही से एक बड़ा हादसा हो गया था। ओम और उसके दोस्त यह देखे बिना कि कार किसकी है, उसमें कौन है, कोई जिंदा है भी या नहीं, वहाँ से निकल गए थे।

    "ये...ये सही नहीं हुआ। हमें उन्हें अकेला छोड़कर नहीं आना चाहिए था। पता नहीं, कौन होंगे वो और किसी के साथ कुछ हो गया तो? मैं अभी भी कह रहा हूँ, हमें वापस चलकर देखना चाहिए।" ओम ने कार ड्राइव करते हुए, गबराई हुई आवाज़ में कहा। डर तीनों के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था।

    विकी चिढ़ी हुई आवाज़ में बोला, "पागल हो गया है क्या! अगर हम उनकी मदद करने जाते, तो उल्टा हमसे सवाल किए जाते। ऊपर से हम बिना लाइसेंस के ड्राइव कर रहे थे, उसका चार्ज अलग। देख ब्रो, मेरा दिमाग पहले ही काम करना बंद हो चुका है और ऊपर से तू ऐसी बातें करके और मत पका।"

    "तो इसका मतलब ये नहीं कि हम अपनी इंसानियत भूल जाएँ।" ओम ने भी तेज आवाज़ में, गुस्से में कहा।

    रोनक ने उसे समझाते हुए कहा, "अबे तेरे इंसानियत के चक्कर में हमारी बेंड बज जाती, उसका क्या!"

    "तो तुम लोगों को क्या लगता है, ऐसे भी किसी को पता नहीं चलेगा क्या!" ओम ने रियर मिरर से उसे घूरते हुए कहा। कुछ देर बाद वे तीनों होस्टल के मेन गेट के बाहर खड़े थे।

    ओम को निराश देखकर विकी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "देख, मैं मानता हूँ कि जो हुआ वो सही नहीं हुआ, पर अब इसमें कोई क्या कर सकता है! अगर हम उनके सामने नहीं आते, तब भी उनका एक्सीडेंट होना ही था, ये तो डेस्टिनी थी। जिसे कोई नहीं रोक सकता। और हमने कुछ जानबूझकर नहीं किया है। वो एक एक्सीडेंट था, बस। अब तू कल घर जा रहा है तो सबके साथ संक्रांत एन्जॉय कर। जो हुआ उसे भूल जा और इसके बारे में किसी से भी कुछ मत कहना।"

    ओम ने ज़्यादा कुछ ना बोलते हुए हाँ में अपना सिर हिला दिया। ओम और रोनक विकी के गले लगकर, अपना शॉपिंग का सामान लेकर होस्टल के अंदर चले गए। विकी उन्हें जाते हुए देखकर गहरी साँस लेकर, कार लेकर अपने घर चला गया।


    फ्लैशबैक ख़त्म

    घर में एक सन्नाटा छाया हुआ था। सभी ओम को शॉक भरी नज़रों से देख रहे थे। ओम अपना सिर झुकाए हुए सिसक रहा था।

    अमरदीप उसके पास आकर एक जोर का थप्पड़ मार दिया, जिससे ओम संभल नहीं पाया और फर्श पर गिर पड़ा।

    ओम अपने गाल पर हाथ रखकर, अपनी भरी हुई आँखों से अमरदीप को देखने लगा, जो उसे घूर रहा था।

    अस्मिता, देव्यानी जी और अर्पिता की आँखों में आँसू थे। आज तक उन्हें कभी अपने किसी भी बच्चे पर हाथ उठाने की नौबत नहीं आई थी। वहीं यशदीप जी और सुधीर के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।

    "नालायक, तेने आ शु कर्यु? (तुने ये क्या किया?) तुझे अंदाज़ा भी है तू कितना बड़ा अपराध करके आया है! अरे, इतना बड़ा एक्सीडेंट करके तू उन्हें वहीं छोड़ आया मरने के लिए? अगर उन्हें कुछ हो गया होगा तो?" अमरदीप ने उसकी बाजू पकड़कर उसे उठाकर, झकझोर कर कहा।

    ओम ने गिल्ट भरी आवाज़ में कहा, "म...मैंने उन सबसे कहा था पापा, पर वो मेरी बात नहीं माने। उन्होंने चलने के लिए कहा तो मैं...."

    "उन्होंने कहा और तू मान गया, डफोळ? वो तुझे कुएँ में कूदने के लिए कहेंगे तो क्या तू वो भी करेगा? घरवालों की अच्छी बातें तो तुझसे मानी नहीं जातीं और दोस्तों के अपराध में उनका साथ दे आया?" अर्पिता ने गुस्से में कहा।

    ओम अमरदीप की बाजू पकड़कर बोला, "आई एम सॉरी, पापा। मुझसे गलती हो गई। मैं आज के बाद कभी ऐसी कोई गलती नहीं करूँगा। बस एक बार मुझे माफ़ कर दीजिए।"

    अमरदीप ने दुखी आवाज़ में कहा, "आगे गलती का तो सवाल ही नहीं उठता बेटा, क्योंकि तूने जो किया है ना उसकी भरपाई ना जाने किस-किसको करनी होगी! हे भगवान, उस एक्सीडेंट में किसी की जान को कोई हानि ना पहुँची हो। वे सब सह-कुशल हों, वरना जिंदगी भर इस अपराध के बोझ से हम कभी निकल नहीं पाएँगे।"

    अमरदीप के मन में एक डर बैठ गया था, अब इस एक्सीडेंट को लेकर।

    "बड़े पापा, प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए। आप...आप कहिए ना पापा से कि वो मुझे माफ़ कर दें।" ओम आकर यशदीप जी के गले लग गया।

    यशदीप जी ने हल्के काँपते हाथों से उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "माफ़ी तुम्हें मिलेगी, पर तब जब सामने वाला इंसान तुम्हें माफ़ करेगा।" सभी सवालिया नज़रों से यशदीप जी को देखने लगे।

    ओम अपना सर उठाकर, आँसू भरी आँखों से यशदीप जी को देखने लगा। तब यशदीप जी ने ओम को देखकर, बिना भाव से कहा, "हम कल ही मुंबई जाएँगे और पुलिस को सब सच-सच बता देंगे। और उस परिवार से भी मिलेंगे जिनका एक्सीडेंट हुआ था।" सभी को यशदीप जी का फैसला सही लगा।

    ओम ने डरते हुए कहा, "न....नहीं बड़े पापा, अ...अगर किसी को कुछ हुआ होगा तो प...पुलिस तो मुझे सज़ा देगी।"

    "हाँ तो, अगर गलती की है तो सज़ा भुगतने का जिगर भी रख। मोटा भाई बिलकुल सही कह रहे हैं। हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकते।"

    अमरदीप ने ओम को घूरते हुए कहा। तब ओम गबराते हुए ना में अपना सर हिलाकर यशदीप जी से कहने लगा, "न...नहीं बड़े पापा, इसके सिवा आपको मुझे जो सज़ा देनी है, दे दीजिए, पर पुलिस के पास नहीं, प्लीज। म...मेरा करियर ख़राब हो जाएगा। मैं..मैं जेल नहीं जाना चाहता।"

    "ये ज़रूरी है बच्चा। मैंने आज तक कभी गलत का साथ नहीं दिया और आज भी नहीं दूँगा। तुम सबके लिए हमारा प्यार एक तरफ़ और हमारे उसूल एक तरफ़। अगर तू सही होगा तो कोई तुझे जेल नहीं भेजेगा। पर अगर हम आज सब सच जानकर भी छुपे रहे तो ज़रूर सज़ा के हक़दार कहलाएँगे।" यशदीप जी ने उसके गाल पर हाथ रखकर, बिना भाव से कहा।

    ओम देव्यानी जी के पास आकर उनका हाथ थामकर बोला, "बड़ी माँ, आप समझाइए ना इन सबको। मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया था।" देव्यानी जी आँसू भरी आँखों से यशदीप जी को देखने लगीं।

    "मैंने फैसला कर लिया है, कि हम कल जाएँगे, मतलब जाएँगे, बस। ओम, अब जाओ आराम करो। इस बारे में अब सीधा बात मुंबई पुलिस के सामने होगी।"

    ओम अब यशदीप जी के फैसले के आगे ज़्यादा कुछ नहीं बोल पाया और रोते हुए अपने रूम में भाग गया।

    "मैं क्या कहती हूँ जी, क्या ये सब करना..." देव्यानी जी के इतना कहने पर यशदीप जी ने गंभीर आवाज़ में कहा, "ज़रूरी है देव्यानी। अगर आज हमने उसकी इस गलती पर पर्दा डाल दिया तो आगे चलकर वो और बड़े-बड़े गुनाह करेगा। और ये कोई छोटी-मोटी गलती नहीं है, अपराध है। जिसका उसे डटकर सामना करना होगा।" ये कहकर वे घर से दुकान जाने के लिए निकल गए।

    सुधीर सबको देखकर बोला, "भाई साहब ने जो फैसला लिया है, वो सही है। यही हमारे ओम के लिए भी सही होगा।"

    अब अमरदीप और सुधीर भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े। अर्पिता रोते हुए देव्यानी के गले लग गई। आखिर कौन माँ अपने बच्चे को जेल जाते हुए देखना चाहेगी!

    देव्यानी जी उसके सर को सहलाते हुए उसे शांत कराने लगीं। आराधना भी आकर उनके गले लग गई। तीनों को अब ओम की चिंता हो रही थी।


    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    शिवाय घर पर आकर सीधा सोफ़े पर बैठकर, अपना सर पीछे टिकाकर कुछ सोचने लगा। वह कहाँ गया था, इस बात का किसी को पता नहीं था। तब अभिनव ने कहा, "कहाँ गया था शिवा?"

    "बस कुछ काम था चाचू, इसलिए हॉस्पिटल गया था। शिवानी ने कहा है कि कल हम भाभी को घर ला सकते हैं। कल सुबह उन्हें होश आ जाएगा।"

    शिवाय ये कहकर वहाँ से उठकर अपने रूम में जाने लगा। सभी उसे जाते हुए देख रहे थे। अब सभी को कानल के होश में आने का इंतज़ार था।


    शाम 5 बजे

    शिवाय के आदमी इस एक्सीडेंट के बारे में पता लगा रहे थे और उन्हें कुछ पता भी चला था। शरद के कॉल आने पर शिवाय घर पर ही रुका था। सभी उसे देख रहे थे, तब कुछ गार्ड्स घर के अंदर आकर शिवाय के सामने आकर खड़े हो जाते हैं। उनके साथ शरद भी था। वो धीरे से कहता है, "सर, गार्ड्स कुछ कहना चाहते हैं।"

    शिवाय जो सोफ़े से पीछे टिककर, अपनी आँखें बंद करके बैठा था, वो गहरी आवाज़ में सभी गार्ड्स से कहता है, "शुरू करो, और याद रहे कि बात अच्छी होनी चाहिए, नहीं तो तुममें से कोई इस घर से आज ज़िंदा वापस नहीं जाएगा।"

    गार्ड्स अपनी आँखें बड़ी करके शिवाय को देखकर, फिर डरते हुए एक-दूसरे को देखने लगे। अधिराज शिवाय का यह बिहेवियर देखकर अपना सर लाचारी से हिला देता है। उसे हमेशा से शिवाय का ऐसा बिहेवियर पसंद नहीं था।

    उनमें से एक गार्ड शिवाय से कहता है, "बॉस, उस कार चलाने वाले का पता चल गया है। उसका नाम ओम त्रिपाठी है। वो एक कॉलेज स्टूडेंट है।"

    शिवाय अपनी आँखें खोलकर उसे देखकर, कड़क आवाज़ में कहता है, "तो अब मुझे बताना होगा कि तुम्हें क्या करना था?"

    गार्ड तुरंत जवाब देता है, "नहीं-नहीं, बॉस हमने सब पता कर लिया है। वो लड़का यहाँ गोरेगाँव की ही कॉलेज में पढ़ता है। यहाँ मुंबई का नहीं है, होस्टल में रहता है। वो बड़ौदा से आया हुआ है। सर, हमने पता किया तब पता चला है कि वो लड़का उस दिन से ग़ायब है। और वो कार भी उसकी नहीं थी, उसने वो कार अपने दोस्त से ली थी। और उनके दोस्तों का कहना है कि मना करने के बावजूद वही कार लेकर गया था।" ये सुनकर सभी हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे।

    असल में, गार्ड्स को कार के मालिक के बारे में पता चलते ही वे विकी के घर जाकर खड़े हो गए थे। तब विकी के पिता के पूछने पर विकी ने डर के मारे सारा इल्ज़ाम ओम पर डालकर, खुद को और रोनक को इन सबसे आसानी से बाहर कर दिया था। अब सबकी नज़रों में सिर्फ़ और सिर्फ़ ओम त्रिपाठी दोषी था।

    ओम के ग़ायब होने की बात सुनकर शिवाय गुस्से में चिल्लाते हुए कहता है, "तो पता करो और उसे मेरे सामने लेकर आओ। ऐसे-कैसे ग़ायब हो सकता है!" ये कहते हुए वो गुस्से में अपने सामने पड़ी टेबल पर लात मार देता है।

    अभिनव उसे देखकर कहता है, "शिवाय, संभाल खुद को। शांत हो जा, बेटा।"

    "अरे कैसे संभालेगा! वो लड़का जिसकी वजह से हमारे घर की खुशियों को आग लग गई और वो आसानी से बाहर घूम रहा है। शिवाय मैं तो कहती हूँ तू उसे छोड़ना मत।" उर्वशी ने भी गुस्से में शिवाय को और भड़काते हुए कहा।

    शिवाय वहाँ से उठकर शरद को देखकर, गहरी आवाज़ में कहता है, "आई वांट हिम एट एनी कॉस्ट, शरद। इतना बड़ा गुनाह करके वो ऐसे बच नहीं सकता।"

    शरद हाँ में अपना सर हिलाकर, सीरियस होकर कहता है, "येस सर, हम कैसे भी करके उसका पता लगा लेंगे। आप चिंता मत कीजिए।" ये कहकर वह गार्ड्स के साथ निकल गया।

    शिवाय संस्कार के पास चला जाता है, तब अभिनव अधिराज को देखकर कहता है, "आपको क्या लगता है, भाई कि अगर वो मिल गया तो क्या करेगा शिवाय उसके साथ?"

    "पता नहीं, मुझे हमेशा से उसके गुस्से से प्रॉब्लम रही है। गुस्से में वो क्या कर बैठता है, उसका उसे खुद पता नहीं होता।" अधिराज के चेहरे पर शिवाय को लेकर एक चिंता थी।


    अगले दिन

    गेस्ट हाउस, मुंबई

    "क्या! ओमी वहाँ है, बड़ौदा में? पर वो वहाँ कब आया और क्यों?" मोहब्बत को आज ही पता चला था कि ओम गुजरात वापस अपने घर जा चुका था।

    आराधना ने शांत आवाज़ में कहा, "अ...बेटा वो, क्या है ना कि संक्रांत आ रही है और उसकी कॉलेज में छुट्टियाँ भी थीं तो यहाँ हमें सरप्राइज़ देने आया था।"

    "बोलो, मैं कल उसके कॉलेज जाने वाली थी, पर अचानक से एक इवेंट में जाने की वजह से नहीं जा पाई। सोचा था कि आज जाकर उसे चौंका दूँगी, पर ये तो उसने मुझे चौंका दिया। मिलने दो, अच्छे से ख़बर लूँगी मैं उस ओमी के बच्चे की।" मोहब्बत अपनी बात रखकर हल्का हँस दी।

    आराधना ने फिर कहा, "बेटा, वो हम सब कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं। तो हो सकता है तुझसे बात ना हो पाए, पर तू वादा कर कि तू अपना पूरा ध्यान रखेगी और कहीं भी अकेले बाहर नहीं जाएगी।"

    "क्या बात है मम्मी? आप इतनी बुझी हुई आवाज़ में क्यों बात कर रही हैं? सब ठीक तो है ना? आप सब मुझसे कुछ छिपा रहे हैं क्या? और बाहर कहाँ जा रहे हैं?" आराधना की बातों से मोहब्बत को अब कुछ ठीक नहीं लग रहा था।

    "वो ओम की तबीयत ठीक नहीं है, जिससे डॉक्टर ने ही कहा है कि कुछ दिन उसे कहीं खुली हवा में, इस भीड़-भाड़ से दूर ले जाएँ, ताकि वो थोड़ा अच्छा फील कर सके। पर तू मुझसे पहले कह कि तू अपना ध्यान रखेगी और अकेले कहीं नहीं जाएगी।"

    आराधना की बात पर मोहब्बत ने हैरान होकर कहा, "क्या हुआ ओमी को, मम्मी? अचानक से तबीयत ख़राब कैसे हुई और ये क्या बात हुई बाहर नहीं जाऊँ? कुछ हुआ है क्या? आप इतनी डरी-डरी सी क्यों लग रही हैं? सच-सच बताइए क्या हुआ है?"

    "अरे मेरा बच्चा, ज़्यादा मत सोच। शरीर है तो तबीयत तो बिगड़नी ही है। पर तू चिंता मत कर। वो बस तेरी चिंता होती रहती है ना, इसलिए तुम्हारी माँ ने ऐसा कहा।"

    सुधीर की बात पर मोहब्बत ने राहत की साँस ली और कहा, "ओह! तो ठीक। मैं तो डर ही गई थी कि अचानक से पता नहीं क्या हो गया? वैसे आप सब ठीक हो ना, पप्पा?"

    फ़ोन स्पीकर पर होने की वजह से सुधीर को मोहब्बत की बातों में शक़ महसूस हो गया था।

    मोहब्बत की बात पर सुधीर कुछ देर के लिए ख़ामोश हो गया और फिर शांत आवाज़ में कहता है, "हाँ हाँ, हम सब ठीक हैं और तू अपना अच्छे से ख़्याल रखेगी, समझी! और खुद को लेकर कोई लापरवाही नहीं। अगर नेटवर्क इश्यू की वजह से कभी हमारी बात ना भी हो पाए तो हमें लेकर डरना मत, हम सब सेफ़ जगह होंगे।"

    मोहब्बत मुस्कुराकर हाँ में अपना सर हिलाकर कहती है, "ओके, पप्पा। आप सब जाइए और एन्जॉय कीजिए। मुझे खुशी है कि आप सबने अपने लिए टाइम निकाला। ओमी और बाकी सबको मेरी याद और प्यार देना, जय श्री कृष्ण।"

    सुधीर ने अपनी आँखें बंद करके, भारी मन से कहा, "हाँ बेटा, जय श्री कृष्ण। (फिर मन ही मन कहता है) सॉरी बेटा। मजबूर हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है तुझसे ऐसे झूठ बोलकर, पर बहुत जल्द तुझसे मिलने आएंगे।" उसके कॉल कट करते ही उसकी आँखों से आँसू छलक उठे।

    आराधना उसके कंधे पर हाथ रखकर, भरे गले से कहती है, "क्या उससे इस तरह से सब छिपाना सही होगा? मेरा मन नहीं मान रहा, उसे वहाँ अकेला छोड़कर जाने का। उसे भी बुला लेते हैं ना यहाँ।"

    "तो क्या करूँ, आराधना! अभी-अभी तो वो अपने सपनों की तरफ़ आगे बढ़ी है और उसे इस झमेले में फँसाकर उसके सपनों को तोड़ दूँ? इस वक़्त ओम की जो हालत है, उससे हम उसे अकेला भी नहीं छोड़ सकते। तुमने सुना ना कि डॉक्टर ने क्या कहा है...? उसे इन सब स्ट्रेस से दूर ले जाना होगा, तभी वो खुद को संभाल पाएगा। वरना हम उसे खो देंगे। वैसे भी हमारी बच्ची वहाँ सेफ़ है, किसी को नहीं पता चलेगा कि वो ओम की बहन है, इसलिए उसे वहाँ काम करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। अब तुम सामान पैक करो। मैं शांतनु से मिलकर उससे सारी बातें कर देता हूँ।" सुधीर ये कहकर दुकान के लिए निकल गया।


    हॉस्पिटल

    संस्कार और शिवाय कानल को ले जाने के लिए आए हुए थे। तब शिवानी ने कहा, "भाभी स्ट्रेस में जा चुकी हैं भाई, पर इसका मतलब ये नहीं है कि वो ठीक नहीं होगी। पर अभी के लिए कुछ कह नहीं सकते। बस आप उनकी अच्छे से केयर करना और उनसे जितना हो सके बातें करते रहना और प्लीज अभी के लिए बच्चे को लेकर उनसे कोई बात मत करना।"

    शिवानी के कहने पर संस्कार हाँ में अपना सर हिलाकर, कानल को पकड़कर बेड से खड़ा करके बाहर ले जाने लगा। कानल जैसे एक पुतले की तरह हो गई थी, जिसे इस वक़्त कोई होश नहीं था। एकटक बस एक ही जगह पर देखती रहती थी। उसे गहरा सदमा लगा था।

    शिवाय हॉस्पिटल की सारी फ़ॉर्मेलिटी पूरी करके, फिर संस्कार और कानल के साथ घर के लिए निकल गया।

  • 13. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 13

    Words: 2703

    Estimated Reading Time: 17 min

    मोहोब्बत का किडनेप

    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    कानल के साथ-साथ ध्वनित जी कुसुमलता जी को भी घर ले आए थे। वे चाहते थे कि अब वह ठीक होगी या नहीं, यह किस्मत की बात थी, पर वह उनकी नज़र के सामने ही रहें। ताकि अपने परिवार के पास रहते हुए शायद उनमें कुछ सुधार आ जाए।

    शौर्य को भी यह बात ठीक लगी, इसलिए उसने भी इस बात पर हामी भर दी थी। उन्हें अपने रूम में बेड पर लेटाया गया था और हॉस्पिटल की सारी सुख-सुविधाएँ वहाँ मौजूद करवा दी गई थीं।

    यहाँ कानल भी इस वक्त अपने रूम में बेड पर लेटी हुई थी। दवाइयों के असर की वजह से सो रही थी। संस्कार उसके सिरहाने बैठकर उसके सर को सहलाते हुए उसे एकटक देख रहा था। तब उसे पुरानी बातें याद आने लगीं।


    "संस्कार, ये देखिए, ये कैसा बना है? अच्छा लगेगा ना हमारे बेबी पर?" कानल अपने हाथों में एक छोटा सा स्वेटर लिए खुश होकर उसे दिखा रही थी।

    संस्कार उसके सामने बैठकर उस स्वेटर को देखकर मुस्कुराकर कहता है, "हम्म, है तो बहुत क्यूट! पर ये बताओ, तुम्हें कैसे पता कि लड़का होगा या लड़की?"

    "अरे, तो लड़का हो या लड़की, ये दोनों पहन सकते हैं। जानते हैं? मेरी ना कब से इच्छा थी कि जब हमारा बेबी आएगा, तब मैं उसके लिए अपने हाथों से स्वेटर, मोजे वगैरह बनाऊँगी। हाए... पता नहीं वो दिन कब आएगा? मुझसे तो अब और इंतज़ार नहीं हो रहा है।"

    कानल ने उसे हाथ-पैरों के मोजे वगैरह सब दिखाते हुए खुश होकर कहा और फिर उन चीज़ों को अपने सीने से लगा लिया। उसके चेहरे की रौनक ही बता रही थी कि वह कितनी ज़्यादा तड़प रही थी अपने बच्चे को अपनी गोद में लेने के लिए।

    संस्कार हँसकर उसके हाथों से सारी चीज़ें लेकर उसे साइड में रखकर कानल को लेटाते हुए कहता है, "हाँ पता है तुम बहुत एक्साइटेड हो हमारे बेबी को ये सब पहनाने के लिए। और बस अभी कुछ ही दिनों में तुम्हारी ये इच्छा पूरी होने वाली है। अब बहुत हो गई बातें और चलो आराम करो।"
    कानल मुस्कुराकर अपनी आँखें बंद कर देती है।


    ये खूबसूरत यादें याद आते ही संस्कार वहाँ से उठकर क्लोसेट रूम में चला गया और कानल की अलमारी खोलकर उसमें रखे उस स्वेटर, मोजे वगैरह को अपने हाथों में लेकर उसे देखने लगा। उसकी आँखों में नमी आ गई।

    "जानते हो, ये सब तुम्हारी मम्मा ने बनाया था तुम्हारे लिए। बहुत सपने देखे थे तुम्हारे मम्मा-पापा ने तुम्हें लेकर। वो सारे सपने आज एक ही झटके में टूट गए, जो अब कभी पूरे नहीं होंगे। तुम्हारी मम्मा का हाल देख रहे हो ना, मैं नहीं देख सकता उसे ऐसे। तुम जहाँ भी हो, भगवान से प्रेय करना कि वो जल्दी से ठीक हो जाए। मम्मा-पापा always love you, बच्चा। आई एम सॉरी कि मैं आपका ख्याल नहीं रख पाया। आपको और आपकी मम्मा को ऐसे अकेला छोड़ दिया। हो सके तो अपने पापा को माफ़ कर देना। आई एम सॉरी...आई एम सॉरी माय बेबी।"

    कानल के हाथों से बनाई हुई उन चीज़ों को अपने सीने से लगाकर वह सिसकने लगा।

    शिवाय जो क्लोसेट रूम से बाहर खड़ा उसे ऐसे देखकर टूट सा गया था। आज अपने भाई-भाभी की ऐसी हालत देखकर उसका खून खौल रहा था।

    असल में वह संस्कार और कानल को देखने आया था, पर संस्कार को वहाँ ना पाकर क्लोसेट रूम में जा पहुँचा और उसकी बातें सुनने लगा। शिवाय बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गया।


    शिवाय इस वक्त अपने विला में था, जो उसका पर्सनल था। वह हमेशा से यहाँ रहना चाहता था, पर संस्कार की ज़िद की वजह से वह सबके साथ मेंशन में रहता था। पर आज उसी भाई को ऐसे देखकर उसे उस घर में घुटन सी हो रही थी। जिसकी वजह से वह आज यहाँ आया हुआ था।

    इस वक्त हॉल में सोफे पर बैठा हुआ पीछे सर टिकाकर एकटक ऊपर सीलिंग की ओर देख रहा था। जिस भाई-भाभी के चेहरे पर उसने हमेशा मुस्कराहट देखी थी, आज उनके चेहरे की सारी रौनक और खुशी गायब थी।

    तब गार्ड्स वहाँ आकर उसके पास खड़े होकर एक गार्ड कहता है, "बॉस, वो हमने पता करवाया है, उस ओम त्रिपाठी के बारे में। उसके कॉलेज से उसके घर का एड्रेस लेकर बड़ौदा में पता करवाया, पर हमारे इन्फॉर्मर को पता चला है कि वो...वो वहाँ ताला लगा हुआ है और घर में कोई नहीं है।" यह कहकर फिर गार्ड्स एक-दूसरे को देखने लगे।

    उसी वक्त शरद भी वहाँ आ पहुँचा, उसने भी सब सुन लिया था।

    गार्ड की बात सुनकर शिवाय उसको देखकर अपनी भौंहें हल्की सिकोड़कर कहता है, "What?"

    तब दूसरे गार्ड ने हामी भरते हुए कहता है, "हाँ, बॉस और आस-पड़ोस वालों में से भी किसी को कुछ भी नहीं पता कि वे सब अचानक से कहाँ चले गए हैं?"

    शिवाय का चेहरा डार्क हो गया और वह गुस्से में सभी गार्ड्स को घूरते हुए कहता है, "तो तुम सबको भी जीने का कोई हक नहीं है। जो मेरे काम को ठीक से ना कर पाए, वो मेरे किसी काम के नहीं हैं। Now goodbye."

    यह कहकर वह अपनी गन निकालकर उनकी तरफ पॉइंट करता है कि तीसरा गार्ड काँपते हुए बोल पड़ा, "स...सर...सर, पर हमें एक और बात पता चली है, सर।"

    शिवाय अपनी गन लोड करते हुए कहता है, "10 सेकंड्स हैं, बोलो जो बोलना है और अगर बात इम्पॉर्टेन्ट नहीं निकली तो तुम सब इसके आगे कुछ बोलने लायक नहीं बचोगे।"

    तीनों गार्ड्स एक-दूसरे को देखकर फिर पहला गार्ड कहता है, "बॉस, वहाँ के पड़ोसियों से एक ज़रूरी बात पता चली है कि उस लड़के की बहन इसी शहर में आई थी। अभी-अभी शायद तीन-चार दिन पहले उसने जॉब जॉइन की है। यही बांद्रा में मिस्टर चौधरी की इवेंट कंपनी में और उन्हीं की कंपनी के गेस्ट हाउस के एक रूम में रहती है। बॉस, मेन बात ये है कि वो अभी भी यहीं है।"

    शिवाय उन तीनों को बारी-बारी देखकर अपनी गन नीचे करके बिना भाव से कहता है, "इंटरेस्टिंग, अब प्यारी बहना को तो ज़रूर पता होगा कि उसका प्यारा भाई कहाँ है? लेकर आओ उसे यहाँ और याद रहे किसी को कानों-कान पता ना चले कि उसका किडनैप हुआ है। ऐसा ही लगना चाहिए कि वह अपनी मर्ज़ी से कहीं गई है।"

    गार्ड्स हाँ में अपना सर हिलाकर वहाँ से चले गए।

    शिवाय अपनी गन को देखकर गहरी आवाज़ में कहता है, "मेरे परिवार की खुशियों को उजाड़कर तुम्हारा परिवार खुश कैसे रह सकता है, ओम त्रिपाठी! कब तक छुपोगे? जब तुम्हारी अपनी बहन की लाश पहुँचेगी तुम्हारे दरवाज़े पर तब तो तुम्हें सामने आना ही होगा। तुम्हारे परिवार ने तुम्हें सिखाया नहीं, कि जो चीज़ हमारे ऐज में नहीं की जाती वो हमें नहीं करनी चाहिए? तो कोई बात नहीं, अब तुम्हें मैं बताऊँगा कि डिसीप्लिन क्या होता है? रूल्स एंड रेगुलेशन को कैसे फॉलो किया जाता है? तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारा पूरा परिवार सज़ा भुगतेगा क्योंकि उन्होंने एक क्रिमिनल का साथ दिया है। तुम्हें तकलीफ़ देकर तुम्हारे पूरे परिवार को खून के आँसू ना रुलाया तो मेरा नाम भी शिवाय सिंह ऑबरॉय नहीं। एंड आई विल मेक श्योर यू नेवर गेट रिड ऑफ़ दिस प्रॉब्लम्स।" यह कहकर वह एविल स्माइल कर देता है।

    शरद भी उसे देखकर अब उस लड़की यानी मोहोब्बत के लिए घबरा रहा था।


    Chaudhary Events

    यहाँ मोहोब्बत इन सब बातों से और अपने आने वाले कल से अनजान मैनेजर शेखर के साथ मिलकर पूरी लगन के साथ अपना काम सीख रही थी। वह बहुत खुश थी कि उसने इतने कम वक्त में बहुत कुछ सीख लिया था।

    मोहोब्बत इतनी टैलेंटेड थी कि शेखर को ज़्यादा मेहनत नहीं लगती थी उसे कुछ भी समझाने में।


    शाम के वक्त ऑफ़िस आवर्स खत्म होते ही मोहोब्बत अपने रूम में आ गई। तब पम्मी उसे देखकर कहती है, "माही, वैसे तू बता। कैसा लगा तुझे ये सपनों का शहर? क्या तेरे गुजरात वाली बात है इसमें?"

    "चाहे कहीं भी रह जाओ पर अपना घर तो अपना ही होता है। चाहे छोटा हो या बड़ा और वो घर अपना तब होता है जब परिवार साथ होता है। पर हाँ एक बात ज़रूर कहूँगी, तुम्हारे सवाल पर कि (फिर गाना गाकर नाचते हुए कहती है,)

    बम...बम...बम...बम बम्बई, बम्बई हमको जम गई,
    बम...बम...बम...बम बम्बई, बम्बई हमको जम गई,

    (पम्मी उसे हैरानी से देख रही थी, तब मोहोब्बत उसका हाथ पकड़कर उसे भी अपने साथ डांस में शामिल करके अब दोनों डांस करने लगे।)

    देख के यूँ बम्बई का नज़ारा दिल की धड़कन थम गई,

    बम...बम...बम...बम बम्बई, बम्बई हमको जम गई,
    बम...बम...बम...बम बम्बई, बम्बई हमको जम गई.."

    दोनों फिर एक-दूसरे को ताली देते हुए हँसने लगीं। तब पम्मी हैरानी से कहती है, "वाह! यार, तुम्हारी आवाज़ तो कितनी सुन्दर और सुरिली है!"

    "हम्म, बस ये समझ लो कि ये मुझे मेरे पप्पा से विरासत में मिली है। पता है मेरे पप्पा की आवाज़ भी बहुत अच्छी है। वो बहुत अच्छा गाते हैं। बचपन से लेकर अब तक हम सब भाई-बहन पप्पा से ही सारी लोरीयाँ सुनकर सोते हैं।"

    मोहोब्बत ने मुस्कुराकर अपने पापा सुधीर की तारीफ़ में गर्व से कहा, तब पम्मी ने शॉक होकर कहा, "अरे तो तुझे तो यहाँ नहीं स्टेज पर होना चाहिए। तुझे तो सिंगर होना चाहिए था, यार।"

    मोहोब्बत मुस्कुराकर ना में अपना सर हिलाकर कहती है, "नहीं, मैंने उसके बारे में कभी सोचा ही नहीं, बल्कि सोचना भी नहीं है। ये सेलेब्रिटी की दुनिया ना मुझे जरा कम ही समझ में आती है। मुझे नहीं बनना कोई सेलेब्रिटी, मैं यहाँ खुश हूँ अपनी दुनिया में।"

    पम्मी हाँ में अपना सर हिलाकर सहमति देकर कहती है, "चल ठीक है, ये बात भी तेरी सही है। वैसे एक बात कहूँ, तू गा तो बहुत अच्छा लेती है पर तेरा डांस...? सॉरी पर वो बहुत फनी था।" मोहोब्बत उसको देखती है तो पम्मी हँसने लगी।

    "हाँ, मुझे डांस इतना अच्छा नहीं आता। जैसा आता है वैसा कर लेती हूँ, टूटा-फूटा।" यह कहकर वह भी खुद का मज़ाक उड़ाते हुए हँसने लगी।

    हँसी-मज़ाक के बाद मोहोब्बत को अब भूख लगी थी, वह पम्मी को देखकर कहती है, "पेम, चलो ना कुछ खाकर आते हैं। तुम्हें भूख नहीं लगी क्या?"

    पम्मी अपने कपड़े डोरी पर से लेते हुए कहती है, "अरे तूने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। ज़िंदा रह पुतर, रब तेरा भला करे जो तूने पहले याद दिला दिया। चल खाऊ गली चलते हैं। मैं चेंज कर देती हूँ, तू भी तैयार हो जा।"

    मोहोब्बत हाँ में अपना सर हिलाकर अपनी बैग से अपने लिए ड्रेस निकालने लगी। काम की वजह से उसे अभी वक्त ही नहीं मिला था अपने सामान को अनपैक करने का।

    कुछ देर में दोनों तैयार होकर वहाँ से एक टैक्सी पकड़कर खाना खाने के लिए खाऊ गली की ओर निकल जाती हैं।

    मोहोब्बत ने मेरून कलर की चूड़ीदार स्लीव्ज़ ड्रेस और उस पर मेरून दुपट्टा डाला हुआ था। बालों की हाई पोनी बनाई हुई थी, कुछ लटें उसके गालों को छू रही थीं। कानों में मीडियम साइज़ के इयररिंग्स, हाथों में सिल्वर चूड़ियाँ, नाक में नोज़ पिन और वहीं पम्मी ने टी-शर्ट एंड जीन्स पहनी हुई थी।

    वहीं उनके निकलते ही उनके पीछे शिवाय के गार्ड्स, जो मोहोब्बत पर निगरानी रख रहे थे, उनमें से दो गार्ड्स गेस्ट हाउस में मोहोब्बत के रूम में चले गए और बाकी के कार लेकर मोहोब्बत और पम्मी के पीछे-पीछे।

    पूरी प्लानिंग के साथ सब हो रहा था। उन्होंने मोहोब्बत के बारे में सारी जानकारी इकट्ठी कर ली थी।

    शिवाय के गार्ड्स वेल ट्रेन्ड थे। कोई भी काम इतनी सफ़ाई से करते थे कि किसी को शक होने का सवाल ही नहीं होता था।

    मोहोब्बत और पम्मी अब खाऊ गली की हर एक फ़ूड शॉप और ठेले को देखते हुए आगे बढ़ रही थीं, तब पम्मी ने कहा, "बोल, क्या खाएगी?"

    "जो भी खाना है, चल जल्दी खाते हैं। खाने की खुशबू से अब मेरा मन ललचा रहा है। मन तो करता है कि यहाँ जो भी मिलता है सब एक साथ खा जाऊँ।" मोहोब्बत ने अपनी भूख को कंट्रोल करते हुए कहा।

    "ठीक है, चल पहले मैसूर मसाला डोसा ट्राई करते हैं और तेरी भूख को थोड़ा आराम देते हैं।" पम्मी ने हँसकर एक ठेले पर डोसा वाले अन्ना पर नज़र दौड़ाते हुए कहा।

    मोहोब्बत ने खुश होकर कहा, "नेकी और पूछ पूछ। चल-चल जल्दी।"

    दोनों ही उस तरफ पहले चली गईं। पम्मी ने अन्ना को एक मैसूर मसाला डोसा का ऑर्डर दिया। दोनों वहीं खड़े डोसा का इंतज़ार करते हुए बातें कर रही थीं। इस बात से अनजान कि कोई उनकी हर मूवमेंट पर नज़र रखे हुए था।

    कुछ देर में डोसा आते ही दोनों ने उसे आपस में शेयर करके खाना शुरू किया। उसके बाद भी उन्होंने और कई सारी खाने की चीज़ें एक-एक करके ट्राई करीं।

    आखिर में दोनों जब एक आइसक्रीम स्टॉल के पास खड़े आइसक्रीम खा रहे थे, तब पम्मी की नज़र कुछ दूरी पर एक मोबाइल शॉप पर पड़ी। जिन्हें देख पम्मी ने अपनी आइसक्रीम खत्म करते हुए मोहोब्बत से कहा, "माही, मेरा हो गया। मेरे फोन में बैलेंस खत्म हो गया है, तो रिचार्ज करवाकर आती हूँ। तुम तब तक अपनी आइसक्रीम फ़िनिश करो।"

    मोहोब्बत हाँ में अपना सर हिला देती है। पम्मी वहाँ से कुछ दूरी पर शॉप पर चली गई।


    थोड़ी देर बाद मोहोब्बत आइसक्रीम खत्म कर खाऊ गली से बाहर निकलकर उस शॉप की तरफ चल पड़ी जिस ओर पम्मी गई थी।

    तब एकदम से मोहोब्बत के आगे एक वैन आकर रुकती है और झटके से उसे कोई अंदर खींच लेता है। यह सब इतनी जल्दी से हुआ कि ना मोहोब्बत कुछ समझ पाई, ना रिएक्ट करके चीख पाई।

    वैन में बैठकर उसने अंदर का नज़ारा देखा तो उसके होश ही उड़ गए। अंदर तीन-चार ब्लैक कपड़ों में हट्टे-कट्टे गार्ड्स बैठे हुए थे।

    मोहोब्बत ने अपनी घबराहट को छिपाते हुए कहा, "क...कौन हो तुम सब? कहाँ लेकर जा रहे हो मुझे? देखो, छोड़ो मुझे वरना मैं चिल्लाऊँगी।"

    फिर भी गार्ड्स के कुछ ना रिएक्ट करने पर मोहोब्बत ने चिल्लाकर मदद के लिए पुकारना शुरू कर दिया कि एक गार्ड ने इरिटेट होकर उसके मुँह पर कपड़ा बाँध दिया।

    मोहोब्बत अपने हाथ-पैर मार रही थी, जिससे उन्होंने उसके हाथों को पीछे कमर से सटाकर उसे और पैरों को भी रस्सी से बाँध दिया। मोहोब्बत बस दबी हुई आवाज़ से छोड़ने के लिए आँखों से रिक्वेस्ट कर रही थी।

    उनमें से एक गार्ड अपने बाकी साथियों को कहता है, "वैसे क्या लगता है, बॉस क्या सज़ा देंगे इसे?"

    मोहोब्बत घौर से उनकी बातें सुन रही थी। आखिर वह जानना चाहती थी कि आखिर उसे किसने किडनैप करवाया है और क्यों?

    "अब हमारे बॉस कोई लड़कीबाज़ तो नहीं है। इसलिए मुझे लगता है इसे सीधा नर्क के दर्शन करवा देंगे।" यह सुनकर मोहोब्बत की तो जैसे सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई। वह अपनी आँखें बड़ी किए शॉक होकर उन सबको देखते हुए उनकी बातें सुनकर घबरा रही थी।

    "अरे नहीं रे पकिया, इतनी आसान मौत थोड़ी ना देंगे! अरे मुझे तो लगता है पहले तो इसके शरीर के एक-एक हिस्से की बोटी-बोटी करके फिर उसे कुत्तों को खिलाएँगे। वैसे भी बॉस का टॉर्चर पता है ना कितना ख़तरनाक होता है! हट्टे-कट्टे आदमी तक ना सह पाए, फिर ये तो बेचारी छुई-मुई सी सिंगल पसली लड़की कैसे सह पाएगी!"

    पहले गार्ड ने मोहोब्बत को डरते हुए देख उसे और डराते हुए कहा।

    गार्ड्स की बातें सुनकर मोहोब्बत की आँखें छलक उठीं। वह मन ही मन कहती है, "ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ? ये सब मुझे मार देंगे? मैं...मैं मर जाऊँगी क्या? पर मैंने किसका क्या बिगाड़ा है? क्या इन्हें पैसे चाहिए होंगे?"

    उसका दिल ये सब सोच-सोचकर घबरा रहा था। वह घबराई हुई नज़रों से बारी-बारी करके सब गार्ड्स को देख रही थी। तो वहीं सभी गार्ड्स उसकी शक्ल देखकर एक-दूसरे को देखकर मंद-मंद हँस रहे थे। उन्हें मज़ा आ रहा था मोहोब्बत को डराने में।


    कुछ देर बाद बांद्रा से बाहर निकलते ही शेरा ने दूसरे गार्ड्स को इशारा किया। जिसे समझकर पंकज (पकिया) ने एक काला कपड़ा निकाला और मोहोब्बत के चेहरे पर ढकने लगा। यह देखकर मोहोब्बत दबी हुई आवाज़ से ना में अपना सर बार-बार हिलाकर पीछे की ओर जाने लगी, पर पंकज ने उसका पूरा चेहरा कवर कर दिया। शायद इससे आगे का रास्ता वो नहीं चाहते थे कि मोहोब्बत देखे और समझ सके कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा था!

    क्या मोहोब्बत जान पाएगी अपनी इस किडनैपिंग की असली वजह? गार्ड्स के कहे अनुसार क्या सच में मोहोब्बत की जान को खतरा था? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें...

  • 14. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 14

    Words: 3114

    Estimated Reading Time: 19 min

    मोहब्बत और शिवाय का आमना-सामना

    शिवाय को पता चला कि ओम त्रिपाठी और उसका परिवार गायब था, पर ओम की बहन अभी भी उसी शहर में मौजूद थी। इस वजह से उसने अपने गार्ड्स को उसे लाने के लिए कह दिया था। उन्होंने इतनी बखूबी से मोहब्बत का अपहरण किया था कि किसी को भी इस बात पर शक होना संभव नहीं था।

    मोहब्बत और पम्मी खाना खाने के लिए बाहर आए थे। पम्मी के कुछ देर के लिए मोहब्बत से दूर जाते ही, शिवाय के गार्ड ने मोहब्बत का अपहरण कर लिया था।

    पम्मी ने अपने फ़ोन में रिचार्ज करवाकर, दुकान से बाहर निकलकर उसी आइसक्रीम वाले के यहाँ आकर मोहब्बत को ढूँढने लगी, पर उसे कहीं दिखाई नहीं दी। यहाँ-वहाँ देखते हुए, पम्मी कहती है, "अरे, ये कहाँ चली गई? मैंने तो कहा था यहीं खड़ी रहने को।" वह मोहब्बत को थोड़ा इधर-उधर चलकर खोज ही रही थी कि उसके फ़ोन में एक नोटिफ़िकेशन आया। जिससे पम्मी अपना फ़ोन देखकर उस मैसेज को पढ़ने लगी, जिसमें लिखा था, "पेम, मैं रूम में जा रही हूँ। मुझे आज ही बड़ौदा के लिए निकलना होगा। मेरे घर में कुछ प्रॉब्लम हो गई है, तो जाना पड़ेगा। अभी जल्दी में हूँ, इसलिए कुछ बता नहीं सकती। फ़्री होकर कॉल करूँगी, बाय।"

    "What is this! ये अचानक से ऐसा मैसेज? ऐसा क्या हो गया जो इतनी हड़बड़ी में निकल गई?" अपनी ही सोच में गुम पम्मी ने मोहब्बत को कॉल लगा दिया, पर उसका फ़ोन बंद आ रहा था, जिससे वह जल्दी से ऑटो लेकर गेस्ट हाउस के लिए निकल गई। उसे मोहब्बत की अब चिंता होने लगी थी। मोहब्बत का अपहरण करते ही शिवाय के गार्ड ने उसके फ़ोन से पम्मी को ऐसा मैसेज कर दिया था ताकि वह उसे कहीं और ढूँढ न पाए।

    ऑबरॉय मेंशन

    मेंशन में इस वक्त अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। उसी हॉल में सोफ़े पर अधिराज, अस्मिता, अभिनव, उर्वशी और केसर (अभिनव की पत्नी) बैठे हुए थे।

    "आप सबको क्या लगता है, शिवाय उस लड़की के साथ क्या करेगा? जिस तरह से शरद ने बताया है, शिवाय इतनी आसानी से चुप नहीं बैठेगा।" घर में छाई उस चुप्पी को तोड़ते हुए केसर ने चिंता से कहा।

    उर्वशी ने आसानी से कह दिया, "करना क्या है, केसर! अब अपराध किया है तो सजा तो मिलेगी। उसके भाई ने जो किया उसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए।"

    "पर जीजी, उसमें उस बेचारी की क्या गलती है? जो कुछ भी हुआ वो..." केसर के इतना कहते ही उर्वशी ने हैरानी से कहा, "बेचारी? वो तुम्हें बेचारी लगती है, केसर? अरे उसके भाई की वजह से हमारे परिवार में अजीब सा मातम छाया हुआ है। यहाँ माँ और कानल की हालत देखी है? और तुम हो कि उसकी चिंता कर रही हो!"

    "वो जो भी हो, बस शिवाय कुछ गलत न करे। अब इन सब बातों का कोई फ़ायदा नहीं है। उस लड़की को सजा देने से भी हमारे घर की खुशियाँ तो वापस नहीं आने वाली हैं, फिर ये सब करने का क्या फ़ायदा?" अधिराज ने बिना भाव से कहा और उठकर चला गया।

    उसे जाते हुए देखकर अस्मिता ने दर्द भरी आवाज में कहा, "क़सूर तो उस बच्चे का भी नहीं था, जिसे इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया गया।" ये कहते हुए उसकी आँखों से आँसू छलक उठे। केसर और उर्वशी उसे संभालने लगे।

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    वहीं कुछ देर बाद एक कार सुनसान एरिया में बने एक बड़े से बंगले के गेट के अंदर आकर रुकती है। जिसके मेन गेट पर बड़े और सुंदर अक्षरों में लिखा था "ROSE VILLA," जो ऑबरॉय मेंशन जितना ही खूबसूरत और आलीशान था। कार रुकते ही मोहब्बत को एहसास होता है कि ये सब उसे कहीं ले आए हैं। वह बार-बार छटपटाते हुए, खुद को छुड़ाने और मुँह से चीखने की कोशिश कर रही थी, पर मुँह बंधा होने की वजह से चीख उसके मुँह में अटक सी गई थी।

    गार्ड्स कार का गेट खोलकर, मोहब्बत के पैर खोलकर उसे कार से बाहर निकालकर, खींचते हुए घर के अंदर ले जाने लगे। मोहब्बत पूरी ताकत लगाकर चलने से खुद को रोक रही थी, पर उनकी ताकत के सामने वह कमज़ोर थी।

    तब गार्ड्स में से पंकज उसी हॉल के सोफ़े पर किंग की तरह बैठे शख्स को देखकर कहता है, "बॉस, यही है वो लड़की।"

    शख्स ने उस लड़की पर एक नज़र डालकर, उन सभी गार्ड्स को देखकर भारी आवाज में कहता है, "किसी को शक तो नहीं हुआ?"

    शेरा घमंड भरी आवाज में कहता है, "नहीं बॉस, हमने सारा इंतज़ाम कर दिया है। इसका सामान भी वैन में पड़ा है। इतनी प्लानिंग से इसे लाए हैं कि कोई इसे ढूँढने भी नहीं निकलेगा।"

    मोहब्बत जो ये सब सिर्फ़ सुन सकती थी, वह डरने लगती है कि ये लोग उसे कहाँ ले आए हैं और क्यों? और ये किस बॉस से बात कर रहे हैं, उस बॉस का उससे क्या लेना-देना हो सकता है? यही सारे सवालों को सोचते हुए वह खुद को छुड़ाने के लिए स्ट्रगल करने लगी और उम्म्म...उम्म्म की आवाज देने लगी। वह बार-बार अपना चेहरा इधर-उधर कर रही थी। चेहरा ढँका होने की वजह से उसे अब घुटन भी हो रही थी।

    जिससे शिवाय शेरा की तरफ़ इशारा करता है, जिसे देख वह आकर मोहब्बत के चेहरे पर से वह काला कपड़ा हटा देता है। जिससे रोशनी आँखों में पड़ते ही कुछ पल के लिए मोहब्बत की आँखें कस के बंद हो जाती हैं। वही उसका चेहरा जो शिवाय की ओर था।

    शिवाय अपनी नज़रें उठाकर उसे देखकर उसी पल जम सा जाता है। उसके चेहरे को देखकर शिवाय की आँखें हल्की छोटी हो जाती हैं। उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन भले न हो, पर उसके मन में बहुत सी उथल-पुथल चल रही थी।

    शेरा फिर मोहब्बत के मुँह पर बंधी पट्टी भी हटाता है, जिससे मोहब्बत गहरी साँस लेने लगती है, जो कब से उस कपड़े की वजह से घुट रही थी।

    "क...कौन हो तुम सब? मु...मुझे यहाँ क्यों लाए हो?" शांत होते ही अपनी आँखें खोलकर मोहब्बत ने अपने पीछे खड़े सभी गार्ड्स को देखते हुए पहला सवाल यही किया। उसकी आवाज से शिवाय अपने होश में आता है और उसका चेहरा, जो अब तक शांत था, वह गंभीर हो जाता है।

    "अब सवाल तुम नहीं, हमारे बॉस तुमसे करेंगे। इसलिए बस उतना ही बोलो, जितना पूछा जाए।" शेरा यह कहकर वहाँ से उठकर पीछे हो गया।

    मोहब्बत उसे पीछे जाते हुए देखकर फिर उनका सर, जिस तरह से सामने की ओर झुका हुआ था, उस तरफ कन्फ़्यूज़ होकर मुड़कर देखती है तो उसकी नज़रें शिवाय की नज़रों से जा मिलीं। दोनों की नज़रें एक पल के लिए एक-दूसरे में खो सी गई थीं। मोहब्बत की काली आँखें जैसे शिवाय की नीली आँखों में समा गई थीं।

    मोहब्बत अपनी होश में आकर उसे देखकर घबराते हुए कहती है, "कौन हो तु..." यह कहकर वह रुक गई। इतना बड़ा घर और अपने सामने शिवाय का ऐसा आउरा देखकर मोहब्बत की उसे "तुम" कहने की हिम्मत ही नहीं हुई। वह अपनी भूल को करेक्ट करते हुए कहती है, "क...कौन है आप? और मुझे यहाँ क्यों लाया गया है?"

    शिवाय भी जो कुछ पल के लिए अपने होश खो चुका था, वह अब अपनी नज़रें मोहब्बत के चेहरे से हटाकर शेरा से पूछता है, "क्या ये सच में वही है? अगर कोई भी गलती हुई तो..."

    "नहीं, बॉस। हमने पूरी जानकारी ली है। ये लड़की वही है। इसमें 1% का भी कोई शक नहीं है।" शिवाय की बात पर शेरा ने तुरंत बीच में जवाब दे दिया।

    शिवाय अब मोहब्बत को देखते हुए वहाँ से उठकर उसके पास आने लगा। जिसे देखकर मोहब्बत की साँसें अटक गईं और दिल की धड़कनें तेज होने लगीं।

    इस अजीब से शांत माहौल में उसके एक-एक करके बढ़ते हुए कदम और उसके ब्रांडेड शूज़ की आवाज मोहब्बत को और डरा रही थी। उसे अपने पास आता हुआ देख मोहब्बत इधर-उधर देखकर खुद में सिकुड़ने लगी।

    शिवाय उसके सामने रुककर अपने एक घुटने पर बैठकर उसे देखने लगा। शिवाय सबसे पहले उसका गिरा हुआ दुपट्टा लेकर उसे ओढ़ा देता है।

    मोहब्बत अपना सर उठाकर उसे देखने लगी, जिसकी नज़रें मोहब्बत के डरे हुए चेहरे पर ही टिकी हुई थीं।

    शिवाय की नज़रें बर्दाश्त न होने पर मोहब्बत ने अपनी नज़रें चुराते हुए हिम्मत करके कहा, "म...मैंने कुछ नहीं किया। मुझे मत मारना प्लीज़। वो...वो ये सब..." कहते हुए उसकी आँखों में नमी आ गई और गला भर आया। वैन में जो उसने गार्ड्स की बातें सुनी थीं, इस वजह से वह काफ़ी डर गई थी।

    मोहब्बत के इतना बोलते ही शिवाय ने अपनी उंगली उसके होंठों पर रखकर उसे चुप कराते हुए ठंडी आवाज में कहा, "शश्श्श...आवाज नहीं। जो मैं पूछने जा रहा हूँ उसका जवाब सीधे तरीके से बिना कोई ड्रामा किए और सच-सच देना।"

    उसकी ठंडी आवाज से मोहब्बत के डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए। अपने होंठों पर उसकी छुअन से वह शिवाय से थोड़ा पीछे की ओर हट जाती है।

    तब उनमें से बीच में एक गार्ड की आवाज आई, "हाँ, जो भी बॉस पूछे उसका सच-सच जवाब देना, वरना..."

    उसके बोलते ही शिवाय मोहब्बत को देखते हुए अपने दाँत पीसकर टेबल पर रखे फ़्रूट बास्केट में से चाकू उठाकर जटके से उस गार्ड की ओर फेंक देता है। जिससे चाकू उस गार्ड के बाजू से कट लगकर सामने बंधे पड़े डोर में घुस जाता है।

    गार्ड की हल्की चीख निकल जाती है, वह अपनी बाजू पकड़ कर दर्द के साथ उसे देखने लगा। मोहब्बत की भी हल्की चीख निकल गई और वह अपनी आँखें बड़ी किए डर के साथ उस गार्ड को और उस चोट से निकल रहे खून को देख रही थी। शिवाय के इस मूव से वह इतना तो समझ गई थी कि शिवाय कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं था। वह चाहे तो किसी को भी आसानी से मार सकता था।

    माइकल, जो सभी गार्ड्स का हेड था और शरद के पास खड़ा था, वह उसके कान के पास जाकर फुसफुसा कर कहता है, "इस बेवकूफ को ना, नया-नया जॉब क्या मिला तो पागल गया है साला! अरे कितनी बार बताया था कि बॉस के काम के बीच में अपनी ज़बान को थोड़ा आराम देने का, पर नहीं, सुनता ही नहीं है।"

    शरद हल्की मुस्कान के साथ वैसे ही फुसफुसाकर कहता है, "कोई बात नहीं, अब सबक़ मिल चुका है। आगे से ध्यान रखेगा।" यह सुनकर शरद और माइकल दोनों ही धीमी हँसी हँस देते हैं।

    शिवाय उस गार्ड को देखकर कड़क आवाज में कहता है, "नए हो इसलिए चाकू सिर्फ़ छूकर गया है। अगली बार बीच में बोले तो तब यह चाकू तुम्हारी ज़बान के आर-पार होगा।"

    मोहब्बत शॉक होकर शिवाय को तो कभी उस गार्ड को देख रही थी और सोच रही थी कि कहीं ये सब कोई बहुत बड़ी टीम तो नहीं है गुंडों की, जो लोगों को लूटते हैं?

    गार्ड अपनी बाजू पकड़े हल्की दर्द भरी आवाज में कहता है, "सॉरी...सॉरी बॉस, वो ज़्यादा फ़ॉर्म में आ गया था।" सभी गार्ड्स एक-दूसरे को देखकर दबी हुई हँसी हँसने लगे।

    शिवाय उसके पास खड़े पंकज को देखकर कहता है, "ले जाओ इसे।" पंकज हाँ में अपना सर हिलाकर उसकी पट्टी करने के लिए उसे वहाँ से ले गया।

    शिवाय जो अब मोहब्बत को देखता है, जो घबराई हुई उस गार्ड को ही जाते हुए देख रही थी। शिवाय माइकल को देखता है, माइकल अपना सर हिलाकर LED ऑन करता है।

    शिवाय मोहब्बत को देखकर तेज आवाज में कहता है, "Don't look there, see here."

    मोहब्बत चौंककर शिवाय की तरफ़ देखती है, फिर उसकी नज़र उस LED पर जाती है, जिसे वह हैरानी से देखने लगी। उस पर एक लड़के की तस्वीर थी, जो और कोई नहीं, उसका अपना भाई ओम त्रिपाठी था।

    शिवाय उसके चेहरे के एक्सप्रेशन को देखते हुए सवाल करता है, "क्या तुम इसे जानती हो?"

    मोहब्बत ओम की तस्वीर को कुछ देर देखकर फिर शिवाय को सवालिया नज़रों से देखकर कहती है, "क्यों...आप क्यों पूछ रहे हैं? क्या आप जानते हैं इसे?"

    माइकल और शरद अपनी आँखें बड़ी करके मोहब्बत को देखकर फिर एक-दूसरे को देखते हैं। बाकी सब गार्ड्स का भी यही हाल था। आज तक शिवाय के सवाल के बदले किसी ने सवाल नहीं किया था।

    शिवाय मोहब्बत की बात पर गुस्सा होकर कहता है, "सवाल के बदले सवाल नहीं होता। Tell me that you know him or not?"

    उसकी हल्की तेज आवाज से मोहब्बत ने घबराकर हाँ में अपना सर हिलाकर कहा, "हाँ...हाँ, वो भाई...भाई है मेरा।"

    शिवाय को बस यही सुनना था, वह कन्फ़र्म करना चाहता था। वह अब वहाँ से उठकर सबको देखता है। सभी वहाँ से एक-दूसरे को देखकर जाने लगे और मन में ये ढेरों सवाल पक रहे थे कि शिवाय इस लड़की का क्या हाल करेगा? यह देख मोहब्बत ने भी यहाँ से निकलना ही ठीक समझा। वह जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए जटके से उठकर वहाँ से भागने लगी कि शिवाय ने उसकी बाजू पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। मोहब्बत अपना सर उठाकर हैरानी से उसे देखने लगी।

    शिवाय अपना चेहरा उसकी तरफ़ करके उसे देखकर सर्द आवाज में कहता है, "तुम्हें जाने के लिए किसने कहा, हम्म?" यह कहते हुए उसकी पकड़ मोहब्बत की बाजू पर मज़बूत हो रही थी।

    मोहब्बत अपनी बाजू छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहती है, "मुझे जाने दीजिए प्लीज़। क्यों लाए हैं मुझे यहाँ? मैं तो नई-नई आई हूँ, यहाँ किसी को जानती भी नहीं, फिर मुझे क्यों पकड़ रखा है? देखिए, अगर आप कोई बहुत बड़े गुंडे हैं और आपकी गैंग है, जो लोगों को लूटती है, तो मैं आपको बता दूँ गुंडे दादा कि, मैं कोई करोड़पति घर की बेटी नहीं हूँ। मेरे पास आपको देने के लिए कोई पैसा नहीं है। अगर फिर भी चाहिए तो मेरी पहली सैलरी आने दीजिए, फिर मैं उसमें से आपको दो-तीन हज़ार दे दूँगी...हाँ।"

    मोहब्बत के मुँह से शिवाय के लिए "गुंडे दादा" शब्द सुनकर बाहर जाते हुए शरद और गार्ड्स के पैर शॉक की वजह से वहीं जम गए।

    शिवाय अपनी आँखें छोटी करके मोहब्बत को घूरने लगा। आज उसके मुँह पर कोई उसे "गुंडा दादा" बोल रहा था। वहीं उसकी मासूमियत भरी बात सुनकर वहाँ के गार्ड्स और शरद हँस रहे थे, पर मुड़कर देखने की किसी की भी हिम्मत नहीं थी।

    शिवाय उसकी बातों को इग्नोर करके उसे खींचते हुए सीढ़ियों से ऊपर ले जाने लगा। मोहब्बत खुद को छुड़ाने के लिए रिक्वेस्ट करती जा रही थी, "कहाँ ले जा रहे हैं मुझे? क्या किया है मैंने? गुंडे दादा प्लीज़, जाने दीजिए मुझे यहाँ से। मैंने क्या बिगाड़ा है आपका?"

    शिवाय रुककर उसे देखकर अपने दाँत पीसकर सर्द आवाज में कहता है, "Don't say that word."

    मोहब्बत को लगा "गुंडे दादा" सुनकर उसे गुस्सा आ रहा था, इसलिए वह अपनी गलती मानते हुए कहती है, "स...सॉरी, मेरा मतलब है गुंडे दादा नहीं...सर जी। मुझे...मुझे जाने दीजिए प्लीज़ सर जी। मैंने क्या बिगाड़ा है आपका?"

    शिवाय बिना भाव से उसे देखकर कहता है, "ये समझ लो कि तुम आज यहाँ जिस भी हालत में हो उसकी वजह सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा भाई है।"

    मोहब्बत हैरानी से उसे देख रही थी कि ओम का क्या लेना-देना था इससे?

    शिवाय इतना कहकर उसे खींचते हुए ले जाकर एक रूम में लाकर जटके से छोड़ देता है, जिससे मोहब्बत संभल नहीं पाती और नीचे गिर जाती है। वह अपना चेहरा पीछे फेरकर शिवाय को नम आँखों से देखने लगी।

    शिवाय उसे देखकर गंभीर आवाज में कहता है, "जब तक मैं वापस न आऊँ, चुप-चाप पड़ी रहो यहीं।" यह कहकर वह जाने लगा कि एकदम से रुककर मोहब्बत की तरफ़ पलटकर अपने कदम उसकी तरफ़ बढ़ा देता है।

    मोहब्बत यह देखकर घबराई हुई नज़रों से उसे देखकर सीधी बैठकर पीछे की ओर सरकने लगती है। शिवाय को अपने पास आता देख उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ ही पल बाद वह एक टेबल से टकरा जाती है, जिससे अब पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं था।

    शिवाय बिना भाव से उसकी तरफ़ बढ़कर उसके सामने अपने एक घुटने पर बैठकर बिना भाव से उसकी तरफ़ बढ़ने लगा। मोहब्बत उसे अपने करीब आते हुए देखकर और घबराने लगती है।

    शिवाय जैसे-जैसे उसके चेहरे की तरफ़ बढ़ रहा था, वैसे-वैसे मोहब्बत का दिल तेज रफ़्तार से धड़क रहा था, जिसका एहसास शिवाय को भी था। उसे अपने करीब आता देख मोहब्बत भरे गले से कहती है, "न...नहीं, दूर...दूर रहिए। पास मत आना मेरे।"

    शिवाय बिना उसकी बातों पर कुछ रिएक्ट करे उसके चेहरे के और करीब आ रहा था। मोहब्बत उसे देखकर पीछे टेबल में और सिकुड़ते हुए कहती है, "मैंने कहा ना दूर रहिए, सुनाई नहीं देता क्या?"

    शिवाय उसके चेहरे के एकदम पास आ गया कि मोहब्बत अपना चेहरा फेरकर अपनी आँखें कस के बंद करके जोर से चीख पड़ी, "आआ...मम्मीईई..."

    शिवाय उसकी गर्दन की ओर झुकने लगा। शिवाय की करीबी से मोहब्बत की बंध आँखों से आँसू छलक उठे। तब कुछ देर बाद उसे महसूस होता है, उसके हाथ में बंधी रस्सी ढीली पड़ रही है। वह अपनी आँखें खोलकर चेहरा फेरकर देखती है कि शिवाय उठकर रूम से बाहर जाने लगा था।

    मोहब्बत अपने हाथों से रस्सी को हटाती है और अपने हाथों की कलाइयों को देखती है जो छिल चुकी थीं, जिससे दर्द से हल्की सी सिसकी निकल जाती है।

    शिवाय जाते हुए रुककर बिना उसकी तरफ़ मुड़े कड़क आवाज में कहता है, "भागने जैसी बचकानी हरकत करने की सोचना भी मत। तुम अब यहाँ से आजाद मेरे साथ या मेरी मर्ज़ी से ही हो सकती हो।" यह कहकर वह वहाँ से दरवाज़ा बंद करके चला गया।

    मोहब्बत अपनी कलाइयों को देखकर रोने लगी। उसे अभी तक समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है और इसमें ओम कैसे शामिल है? क्या संबंध था ओम और शिवाय के बीच? यही सब सोचते हुए मोहब्बत अपनी चूड़ियाँ उतार देती है जो उसकी चोट पर उसे और दर्द दे रही थीं।

    फिर वह कलाइयों पर निकले हल्के खून को अपने दुपट्टे से साफ़ करने लगी। अपनी आँसू भरी आँखों से रूम को देखते हुए वहाँ से उठकर बालकनी का दरवाज़ा खोलने लगी, पर वह बंधा था। रूम का दरवाज़ा भी खोलने की कोशिश करने लगी, जिसे शिवाय बंध करके जा चुका था। फिर बाथरूम में जाकर नज़र दौड़ाती है जिसकी खिड़की काफ़ी ऊपर और छोटी थी जहाँ मोहब्बत का पहुँच पाना नामुमकिन था। फिर थक-हारकर बेमन से जहाँ बैठी थी वहीं वापस से बैठकर अपने घुटने मोड़कर अपने हाथों को रखकर, सर उसमें छुपाकर सिसकने लगी।


  • 15. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 15

    Words: 3296

    Estimated Reading Time: 20 min

    शिवाय ने मोहब्बत का अपहरण करवाकर उसे अपने विला के एक कमरे में कैद कर रखा था। उसने इतनी साफ-सफाई से यह सब करवाया था कि पम्मी को भी शक नहीं हुआ था। यहाँ तक कि चौधरी इवेंट्स में मोहब्बत की तरफ़ से लेटर फैक्स कर दिया था जिससे विशेष भी, जब वह लेटर देखेगा, तो उसे भी यही लगेगा कि मोहब्बत अपनी फैमिली प्रॉब्लम की वजह से वापस बड़ौदा जा चुकी थी।

    गेस्ट हाउस, बांद्रा, मुंबई

    पम्मी अपने कमरे में पहुँचकर चाबी, जिसे वे दोनों हमेशा कमरे के पास पड़े एक पौधे के गमले में रखती थीं, उसे लेकर दरवाज़ा खोलकर कमरे में आई और इधर-उधर देखने लगी। कमरे में अजीब सी शांति थी।

    पम्मी कमरे की सारी चीजों पर अपनी नज़र घुमाते हुए अच्छी तरह से ऑब्ज़र्व कर रही थी। पर उसे शक होने जैसा कुछ नज़र नहीं आ रहा था।

    बैड पर बैठकर वह खुद से कहती है, "कमाल है, कुछ देर पहले तक तो सब ठीक था फिर अचानक से ऐसी ख़बर? कुछ समझ में नहीं आ रहा कि सच में माही बड़ौदा गई है या फिर कोई प्रॉब्लम में तो नहीं फँस गई? क्या मुझे इस बारे में पुलिस की हेल्प लेनी चाहिए? पर पुलिस से कहूँगी क्या? उसका सामान वगैरह कुछ भी यहाँ नहीं है। पुलिस भी मेरी बात कैसे सुनेगी? फिर भी एक बार बात करने में क्या जाता है, कल ही जाती हूँ और बात करती हूँ।"

    पम्मी ने मन ही मन ठान लिया था कि वह एक बार तसल्ली ज़रूर करेगी ताकि उसे पक्का यकीन हो जाए कि मोहब्बत सच में बड़ौदा गई हुई है। फिर कपड़े बदलकर बैड पर इसी बारे में सोचते हुए सो गई।

    मोहब्बत के बिना अब उसका भी मन नहीं लग रहा था। इन कुछ ही दिनों में दोनों की बहुत अच्छी दोस्ती हो चुकी थी।

    रोज़ विला

    विला के दूसरे कमरे में एक रॉकिंग चेयर पर बैठा शिवाय अपना सर पीछे टिकाकर आँखें बंद किए बैठा था। उसकी चेयर आगे-पीछे झूल रही थी, जिसकी आवाज़ कमरे में गूंज रही थी। वह कुछ सोच रहा था। तब शिवाय के दिमाग में डॉक्टर शिवानी की बातें घूमने लगीं, जब वह उससे मिलने के लिए हॉस्पिटल गया था...

    "क्या बात है शिवानी? बताओ ना, भाभी को ठीक करने का कोई तो रास्ता होगा?"

    शिवाय और शिवानी इस वक़्त हॉस्पिटल में शिवानी के केबिन में बैठे हुए थे। तब शिवानी ने गहरी साँस लेकर कहा, "कानू भाभी को ट्रॉमा से बाहर निकालने का एक ही तरीका है, शिवाय। और वह है बच्चा। बच्चा ही एक उम्मीद है जो उनमें जान डाल सकता है। बस यह समझ लो कि बच्चा उनकी गोद में आते ही उनके सारे दर्द खत्म।"

    "पर यह कैसे पॉसिबल होगा शिवानी, जब कि भाभी तो..." इतना कहकर शिवाय चुप हो गया।

    "हम्म...जैसा कि वह अब माँ नहीं बन सकती तो, उसमें दो ऑप्शन बचते हैं। पहला यह कि बच्चा अडॉप्ट करो या फिर दूसरा रास्ता है सरोगेसी!"

    शिवाय शिवानी को देखते हुए गौर से उसकी बातें सुन रहा था। तब शिवानी ने फिर से आगे कहा, "जहाँ तक मुझे पता है, ऑबरॉय खानदान किसी बाहरी और पराए खून को कभी नहीं अपनाएगा। इससे तो एक ही ऑप्शन बचता है और वह है सरोगेसी।"

    तब उसने यही बात मेंशन में आकर संस्कार से की थी। तब संस्कार ने अपना फैसला सुना दिया था,

    "मुझे कोई बच्चा नहीं चाहिए, शिवा। अडॉप्ट करने के लिए हमारे परिवार वाले कभी तैयार नहीं होंगे। आखिर उनके रुतबे पर दाग तो लग जाएगा। और रही दूसरी बात, कल को अगर सरोगेसी से बच्चा हो भी गया लेकिन वह लड़की भी फ्रॉड निकली और हमारे बच्चे को लेकर कहीं चली गई तो! बार-बार मैं अपनी कानू को कोई झूठी होप देकर उसे दर्द नहीं देना चाहता। इसलिए मैंने सोच लिया है कि मुझे कोई बच्चा नहीं चाहिए। हम दोनों ही एक-दूसरे के लिए काफी हैं। मैं संभाल लूँगा अपनी कानू को। हमें किसी की ज़रूरत नहीं है।"

    यह सब याद आते ही शिवाय अपनी आँखें खोलता है जो हल्की लाल थीं। वह चेयर को एकदम से रोककर अपना फोन निकालकर शरद को कॉल करता है।

    काफ़ी रिंग जाने के बाद वहाँ से एक आलसी भरी आवाज़ आई, "अबे कौन है यार? रात को तो कम से कम चैन से सोने दो। एक तरफ़ ऑफ़िस में सर का ख़ौफ़ और अब तुम इतनी रात को परेशान कर रहे हो। कहीं भी चैन की साँस लेना लिखा ही नहीं है क्या? अब जो भी है वह बोलो, क्या बोलना है?"

    "अगले दो seconds में तुम्हारी नींद नहीं उड़ी तो मैं तुम्हें ऐसा सुलाऊँगा कि ज़िन्दगी भर के लिए सोते रह जाओगे।"

    शिवाय की कड़क आवाज़ से शरद हड़बड़ाकर तुरंत बेड पर बैठकर बोल पड़ा, "स...स...सॉरी सर, नींद उ....उड़ गई सर। मैं तो जाग ही रहा था। 😝 बताइये कैसे याद किया?"

    शिवाय उसे कुछ बताने लगा, जिसे सुनने के बाद शरद हक्का-बक्का रह गया। वह अपनी आँखें फाड़े बस गौर से शिवाय की बातें सुन रहा था।

    "समझ गए?" सारी बातें सुनने के बाद फिर शिवाय की यह आख़िरी बात सुनकर शरद अपनी सेन्स में आकर कहता है, "स....सर, क्या यह सब करना ज़रूरी है? मतलब कोई और भी तो रास्ता...."

    उसके यह कहते ही शिवाय ने कहा, "हाँ, ज़रूरी है। यह सही रास्ता है और मुझे सुबह तक वह चाहिए किसी भी क़ीमत पर। अब यह तुम कैसे करते हो, वह तुम जानो।" यह कहकर उसने कॉल कट कर दिया, शरद के मन में ढेरों सवाल पैदा कर दिए थे।

    कॉल कट होने के बाद शरद अपना सर खुजाते हुए कहता है, "सर सच में यह करेंगे पर इन सबका अंजाम क्या होगा यह नहीं सोचा उन्होंने! परिवार वाले क्या सोचेंगे उनके इस फैसले को देखकर?" फिर वह भी अपना सर झटककर अपने काम पर लग गया और फिर कुछ देर बाद सो गया।

    अगली सुबह

    शिवाय की पूरी रात जागती आँखों से बीत चुकी थी। वही मोहब्बत जिस कमरे में कैद थी, कुछ देर बाद उस कमरे का दरवाज़ा खुलता है।

    कोई शख़्स कमरे के अंदर बड़े रोब से आकर दीवार के वहाँ रखी टेबल के पास सोई हुई मोहब्बत को देखता है जो करवट बदलकर सिकुड़कर सोई हुई थी।

    फ़र्श पर सोने की वजह से उसे ठंड लग रही थी। जिससे उसने अपने बदन के ऊपरी हिस्से को चेहरे तक अपने दुपट्टे से ढँका हुआ था। सिर्फ़ उसकी बन्द आँखें दिख रही थीं। जबकि कमरे में बेड होने के बावजूद मोहब्बत फ़र्श पर सोई हुई थी।

    वह शख़्स कमरे में आकर साइड से चेयर लेकर मोहब्बत के ठीक सामने रखकर उस पर बैठ गया और अपने पैर पर पैर चढ़ाकर हाथों को फ़ोल्ड करके मोहब्बत को देखने लगा। जैसे उसके उठने का इंतज़ार कर रहा था।

    जहाँ मोहब्बत देर से सोने की वजह से गहरी नींद में थी। उसे ऐसे नींद में देखकर शख़्स ने उसे घूरते हुए धीरे से कहा, "मेरे परिवार का सुख-चैन चुराकर कितने आराम से सो रही हो ना तुम! But I swear, तुम्हारे चेहरे पर से इस सुख-चैन-नींद सबको हराम ना कर दिया तो मेरा नाम शिवाय सिंह ऑबरॉय नहीं।"

    कुछ देर बाद तब मोहब्बत कसमसाते हुए अपनी नाक को खुजाने लगी जिससे उसकी आँखें हल्की-हल्की झपकते हुए खुलने लगीं।

    आँखें पूरी तरह से खुलते ही अपने सामने बैठे हुए शिवाय को देखकर हड़बड़ाकर उठकर बैठ जाती है और अपना दुपट्टा ठीक से ओढ़ लेती है।

    "सो, उम्मीद है बहुत अच्छी नींद आई होगी इस कैद में?"

    शिवाय की टोन सुनकर मोहब्बत ने कहा, "प्लीज़, मुझे जाने दीजिये। क्यों लाए हैं मुझे यहाँ? मैंने क्या किया है? आप मुझे छोड़ दीजिये, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी।"

    उसका गला भर आया था। एक अनजान और डरावनी सुनसान जगह पर उसने पूरी रात बिता दी थी और अब यह भी नहीं पता था कि वह यहाँ से कभी निकल भी पाएगी या नहीं?

    शिवाय ने अपना पैर नीचे किया और कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें यहाँ से जाने दूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है।"

    "हाँ हाँ, म....मुझे मंज़ूर है। बताइये क्या काम करना होगा? घर की सफ़ाई या खाना बनाना?"

    जाने की बात सुनकर ही मोहब्बत ने सुकून की साँस लेते हुए अपनी तरह से शर्त को अज़्यूम कर लिया था। उसे लगा था कि यहाँ कोई मैड नज़र नहीं आ रहा था तो उसे इस टाइप का ही कोई काम दिया जाएगा।

    शिवाय अपने दाँत पीसते हुए कहता है, "Just shut up. तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हें यहाँ घर की साफ़-सफ़ाई करवाने लाया हूँ? सिर्फ़ मुझे मेरे एक सवाल का जवाब दे दो & I swear मैं खुद तुम्हें छोड़ने आऊँगा।"

    मोहब्बत उसे सवालिया नज़रों से देखने लगी कि ऐसा कौन सा जवाब है उसके पास, शिवाय के सवाल का? जिसे देकर वह आज़ाद हो सकती है?

    "तो बताओ, कहाँ है तुम्हारा वह भगोड़ा भाई?" शिवाय ने बिना समय वेस्ट किए सीधे मुद्दे की बात की।

    मोहब्बत हैरानी से उसे देखने लगी। अपने भाई के लिए यह शब्द सुनकर मोहब्बत ने भी थोड़े गुस्से में कहा, "भ...भगोड़ा? क्या...क्या मतलब है इसका? आप मेरे भाई के बारे में इस तरह से बात नहीं कर सकते। इज़्ज़त से बात कीजिये, बड़े हैं इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी बोलें उसके बारे में।"

    उसने घबराते हुए सब बोल तो दिया था पर मन ही मन डर भी बहुत था। पर अपने भाई के लिए ऐसा शब्द सुनना किसी भी बहन को गवारा नहीं था।

    शिवाय उसकी बात पर अपनी एक भौंह ऊपर उठाते हुए देखता है 🤨 और फिर कहता है, "इज़्ज़त? He don't deserve any respect और क्या तुम्हें सच में नहीं पता कि उसने क्या किया है?"

    मोहब्बत को अब शिवाय की बातें डरा रही थीं। वह शिवाय को देखकर एक डर से पूछती है, "क...क्या नहीं पता मुझे? क्या किया है उसने? क्या कॉलेज में उससे कोई गलती हुई है?"

    "बंद करो अपना यह नाटक। आई नो कि तुम्हें सब पता है, इसलिए यह बेचारी और मासूम बनने का दिखावा मेरे सामने तो करना ही मत। वरना अच्छा नहीं होगा।" मोहब्बत की बात पर शिवाय चेयर से उठकर गुस्से में चेयर को नीचे गिराकर चिल्लाते हुए कहता है।

    अब तक वह शांति से काम लेकर मोहब्बत से सब जानना चाहता था, उस पर गुस्सा नहीं करना चाहता था पर मोहब्बत की बातें सुनकर उसे ना चाहते हुए भी गुस्सा आ गया।

    मोहब्बत एकदम से चौंक गई और पीछे सरकने को हुई कि शिवाय ने झुककर उसके गालों को कसके पकड़कर सर्द आवाज़ में कहा, "मुझसे चालाकी महँगी पड़ेगी, मिस त्रिपाठी। इसलिए चुपचाप बता दो, कि वह कहाँ है वरना मैं अपनी पे आ गया तो तुम्हें भारी पड़ जाएगा।"

    मोहब्बत जिसे आज तक उसके घर में कभी किसी ने ऊँची आवाज़ तक नहीं की थी, क्योंकि वह हमेशा से संस्कारों में पली-बढ़ी थी। जिससे उसे डाँटने की कभी उसके बड़ों को ज़रूरत ही नहीं पड़ी। वह आज शिवाय का इस तरह से गुस्सा और चिल्लाना देखकर घबरा गई और रोने लगी।

    शिवाय अपने दाँत पीसते हुए जल्दी से उसका चेहरा छोड़ देता है। मोहब्बत अपने गालों पर हाथ रखकर सिसकते हुए कहती है, "आप...आप क्यों ढूँढ रहे हैं उसे? क्या किया है उसने?"

    "क्राइम किया है उसने। एक माँ की गोद सूनी हुई है उसकी वजह से। एक बच्चे को इस दुनिया में आने से पहले ही मार दिया उसने। मेरे हँसते-खेलते परिवार में मातम छा गया है उसकी वजह से। सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे उस भाई की वजह से।" शिवाय ने तेज आवाज़ में कहा।

    मोहब्बत शॉक थी उसकी बात पर। वह हैरानी से उसे देखकर कहती है, "नहीं, यह...यह झूठ है। वह कोई क्रिमिनल नहीं है। वह ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता, मैं जानती हूँ उसे बहुत अच्छे से। अरे बच्चा है वह, अभी। आपको ज़रूर कोई गलतफ़हमी हुई होगी।"

    शिवाय उसकी बातें सुनकर और उसे देखकर फिर एकदम से हँसने लगता है। उसकी हँसी कहीं से भी नॉर्मल नहीं थी। मोहब्बत हैरानी और एक डर के साथ शिवाय को देख रही थी।

    शिवाय अपनी हँसी रोककर गंभीर आवाज़ में कहता है, "बच्चा? बच्चा नहीं है वह, क्रिमिनल है जो क्राइम करते ही भाग गया यहाँ से। और उस पर तुम्हारी फैमिली ने भी उसे सपोर्ट किया है। उसे और उसके गुनाहों को छुपाया है। यह जानते हुए भी कि under age vehicle चलाना क्राइम है, फिर भी बिना किसी सेफ्टी रूल्स का ध्यान दिए निकल पड़ा?"

    "Vehicle? कौन सी vehicle? उसके पास तो कोई vehicle है ही नहीं। वह तो यहाँ होस्टल में पढ़ता है और...और इसमें मेरी फैमिली भी कुछ नहीं जानती है।"

    मोहब्बत की बार-बार दी हुई दलीलों से इरिटेट होकर शिवाय कहता है, "चलो मान लिया, कि उसने कुछ नहीं किया तो रातों-रात कहाँ गायब है वह और उसकी फैमिली, हम्म्म? उनका तो कोई अता-पता ही नहीं है?"

    मोहब्बत ना में अपना सर हिलाकर कहती है, "न...नहीं, वह गायब नहीं है। वह सब तो ओम संक्रांत की छुट्टियों में घर गया है, इसलिए सब उसे लेकर घूमने गए हैं।"

    मोहब्बत के इस सच से शिवाय ने अपनी भौंहें ऊपर उठाकर कहा, "अब तक तो तुम्हें कुछ भी नहीं पता था। तो अब, यह कैसे पता चला कि वह सब घूमने गए हैं?"

    "वो....वो मुझे..." मोहब्बत के इतना कहते ही शिवाय ने बीच में गहरी आवाज़ में कहा, "गलती कर दी तुम्हारी फैमिली ने, बहुत बड़ी गलती एक क्रिमिनल का साथ देकर। अगर यह सब अनजाने में हुआ होता तो शायद मैं माफ़ भी कर देता, पर क्राइम करने के बाद उसका पछतावा ना होना सबसे बड़ा क्राइम है। खुद तो भाग गए, पर तुम्हें यहाँ छोड़कर बहुत बड़ी बेवकूफ़ी की है उन्होंने। उन्हें क्या लगा था कि ओम त्रिपाठी को यहाँ से भगा देंगे तो शिवाय सिंह तुम तक नहीं पहुँचेगा? उसे तो बचा लिया, पर अब तुम्हें कौन बचाएगा मुझसे?"

    मोहब्बत के रोंगटे खड़े हो गए डर के मारे शिवाय की बातें सुनकर। वह भी अब जान चुकी थी कि वह जाने-अनजाने में बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ चुकी थी।

    ओम ने कोई क्राइम किया था या नहीं यह बाद की बात थी पर अगर उसे सच का पता लगाना है तो उसे पहले शिवाय की कैद से बाहर जाना था पर उसका रुतबा देखकर उसे नामुमकिन सा लग रहा था।

    "देखिये, प्लीज़ मुझे जाने दीजिये। मैं कह रही हूँ ना, मुझे सिर्फ़ यही पता है कि वह छुट्टियों में घर गया है। यह एक्सीडेंट वाली बात मुझे नहीं पता। इस बारे में मैं सच में कुछ नहीं जानती और मैं जानती हूँ मेरे परिवार को भी कुछ नहीं पता होगा। मैं अपने भाई को बहुत अच्छे से जानती हूँ। वह ऐसा कर ही नहीं सकता। आपको ज़रूर कोई गलतफ़हमी हुई हैं।"

    मोहब्बत ने अपनी तरह से शिवाय को समझाने की कोशिश करी, तब शिवाय ने बिना भाव से कहा, "सबूत है मेरे पास। ऐसे ही शिवाय किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगाता।"

    यह कहकर वह कमरे की एक दीवार पर लगा LED ऑन कर एक विडियो प्ले करता है जिसमें एक कार के बेकाबू होने की वजह से दूसरी कार का बहुत ही बुरी तरह से एक्सीडेंट हुआ था। यह एक्सीडेंट देख एक पल को मोहब्बत भी चौंक गई।

    उस बेकाबू हुई कार में से एक लड़का बाहर आकर जल्दी से उस एक्सीडेंट वाली कार के पास जाने को हुआ, पर कुछ देर उसे देखकर तुरंत वहाँ से भाग निकला और इन सब में वह लड़का और कोई नहीं ओम था।

    मोहब्बत शॉक थी यह सब देखकर। वह इस बात पर क्या कहे और क्या समझाए, उसे खुद समझ नहीं आ रहा था! इस विडियो के हिसाब से तो ओम ही दोषी था पर एक बहन का अपने भाई पर जो भरोसा था वह भी झुठलाया नहीं जा सकता था।

    "क्या कहना है अब और इन सब में, मिस त्रिपाठी? क्या अभी भी लगता है कि यह बच्चा innocent है?"

    शिवाय की इस बात पर मोहब्बत अपनी सेन्स में आकर उसे देखकर कहती है, "देखिये, मैं...मैं मानती हूँ कि आपके परिवार के साथ जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ है पर कभी-कभी आ...आँखों देखा भी गलत साबित होता है। मेरा भाई इतना बड़ा गुनाह कभी नहीं कर सकता है और अगर किया भी होता तो वह उन्हें उस हालत में अकेले मरने के लिए छोड़कर कभी नहीं जाएगा। आप प्लीज़ मेरी बात मानिये और अब मुझे जाने दीजिये। मैंने सब सच बता दिया ना आपको?"

    उसकी नम आँखें बार-बार शिवाय से रिक्वेस्ट कर रही थीं कि वह उसे बस अब यहाँ से जाने दे। तब उसने शिवाय के मुँह से कुछ ऐसा सुना जिसकी उसे उम्मीद बहुत कम थी, "ठीक है, जाने दूँगा।"

    यह सुनकर मोहब्बत के चेहरे पर एक सुकून छा गया जिसे शिवाय अच्छे से महसूस कर सकता था, पर अगले ही पल शिवाय ने अपना फोन निकाला और उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "यह लो, लगाओ फोन अपनी फैमिली में से किसी भी मेंबर को। दो चांस दे रहा हूँ तुम्हें। किसी को भी कॉल करो, उन्हें बुलाओ और कहो कि तुम्हें यहाँ से लेकर जाये। पर याद रहे, अगर इन दो कॉल के चलते तुम्हारी बात किसी से भी नहीं हो पाई तो ज़िन्दगी भर मेरी कैद में मेरे हिसाब से रहने के लिए तैयार हो जाओ।"

    "ज़िन्दगी भर की कैद" इस शब्द को सुनकर ही मोहब्बत का दिमाग सुन्न पड़ चुका था। वह कैसे और क्या करे कुछ भी सोच नहीं पा रही थी!

    इन कुछ घंटों में क्या कुछ हो गया था उसके साथ, वह भी बिना किसी गलती के। वह पूरी तरह से ब्लैंक हो चुकी थी।

    तब शिवाय की फिर से आवाज़ आई, "लगता है, तुम्हारा यहाँ से जाने का मूड नहीं है। तो नो प्रॉब्लम।" यह कहकर वह अपना फोन अपनी पॉकेट में रखने लगा कि मोहब्बत ने जल्दी से उसके हाथ से फोन छीनकर सबसे पहले अपने पापा सुधीर को कॉल लगाया।

    कॉल लगाते ही वहाँ से गुजराती में आवाज़ आई, "તમે જે નંબર નો સંપર્ક કરી રહ્યા છો, તે હાલ માં નેટવર્ક કવરેજ ક્ષેત્ર ની બાહર છે. કૃપા કરી થોડા સમય પછી પ્રયાસ કરો." (The number you are contacting is currently outside the coverage area. Please try again later.)

    यह सुनकर मोहब्बत भरे गले से फोन को देखकर कहती है, "पापा का फोन लग क्यों नहीं रहा? ब...बड़े पापा को करती हूँ।"

    ख़ुद से बड़बड़ाते हुए उसने यशदीप जी को कॉल लगाया पर वहाँ से भी इसी तरह का मेसेज पाकर वह झल्लाते हुए अब सोचकर ख़ुद से कहती है, "व....वीरे। हाँ, अब वही मेरी मदद करेगा।"

    सोचकर वह अब तीसरी बार अथर्व को कॉल करने लगी। वही शिवाय बिना किसी भाव से उसकी कोशिशों को देख रहा था। पर वह अथर्व को कॉल करती उससे पहले शिवाय ने उसके हाथ से फोन ले लिया और अपनी पॉकेट में डालकर कहा, "Two chances is over, now My turn. तो अब तुम्हें वही करना होगा जो मैं चाहूँगा। So get ready for whatever happens to you next."

    शिवाय उसकी आँखों में देखकर इस तरह से कहकर एक तरह का डर उसके दिल में पैदा करके वहाँ से निकल गया।

    दरवाज़ा बंद होते हुए देख मोहब्बत जल्दी से उठकर भागते हुए दरवाज़े के पास जाकर उसे पीटते हुए चिल्लाकर कहती है, "नहीं, प्लीज़...प्लीज़। दरवाज़ा खोलो, जाने दो मुझे। मुझे नहीं रहना यहाँ। प्लीज़ कोई खोलो ना दरवाज़ा। कोई है, Please open the door."

    शिवाय उसकी आवाज़ को सुनकर भी अनसुना करते हुए वहाँ से निकल गया।

    मोहब्बत ख़ुद के हाथों को आपस में रगड़ते हुए कहती है, "ये...ये सब क्या हो गया? यह कहाँ फँस गई मैं? क्या सच में ओम ने कुछ किया है और घर के सब उसे सपोर्ट....? नहीं-नहीं ए....ऐसा नहीं हो सकता। मैं...मैं जानती हूँ, मेरा ओम कोई भी गलत काम नहीं कर सकता। मेरी फैमिली ने कभी गलत बात का साथ नहीं दिया तो आज भी ऐसा कुछ नहीं करेंगे पर अब मैं क्या करूँ, मैं यहाँ से बाहर कैसे जाऊँगी? कहीं....कहीं सच में मैं यहाँ हमेशा के लिए कैद हो गई तो.... मैं क्या करूँगी?"

    यही सब सोच-सोचकर वह पूरे कमरे में इधर-उधर देखते हुए डर के मारे रोने लगी। इस वक़्त उसे यहाँ से बाहर निकलने का कोई भी रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था।

    अब मिलते हैं अगले भाग में ✍

  • 16. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 16

    Words: 2634

    Estimated Reading Time: 16 min

    अस्मिता आज मारिया के साथ मंदिर आई थी, अपने परिवार पर आई मुसीबतों को दूर करने के लिए भगवान से प्रार्थना करने।

    वह फर्श पर बैठी, अपनी आँखों में आँसू लिए, भगवान शिव की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर भरे गले से कहती है, "ये किस तरह की परीक्षा ले रहे हैं भगवान जी? मेरा संस्कार, जिसे आज कितने सालों बाद पापा बनने की खुशी नसीब हुई थी। वो खुशी उसे नसीब होने से पहले ही छिन गई। मेरी माँ जैसी सास आज इस हाल में है कि डॉक्टर तक कोई जवाब नहीं दे पा रहे। ये सब क्या हो गया मेरे परिवार के साथ? और मेरे बच्चों के साथ ही क्यों? पहले मेरी विद्या की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई और अब मेरा संस्कार। एक माँ कैसे अपने बच्चों को अपनी आँखों के सामने इस तरह से तकलीफ़ में देख सकती है! इससे तो अच्छा था, मुझे ही मौत आ जाती।" ये कहकर वह रोने लगी।

    अपने परिवार पर जो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, उससे अस्मिता बहुत टूट चुकी थी।

    मारिया को भी उसे देखकर बहुत तकलीफ़ हो रही थी। उसकी आँखों में भी आँसू थे। तब एक शांत आवाज़ आई, "भोलेनाथ के घर जो सच्चे मन से दुख, फ़रियाद और तकलीफ़ लेकर आता है, वो कभी खाली हाथ नहीं जाता। भोलेनाथ उसकी पुकार हमेशा सुनते हैं। सच्चे मन से की हुई तेरी प्रार्थना भी खाली नहीं जाएगी, बेटा।"

    अस्मिता अपना सिर उठाकर अपनी आँखें खोलकर आवाज़ की तरफ़ देखती है तो पाती है, वहाँ बस थोड़ी ही दूरी पर, भगवा रंग की धोती पहने और बदन पर गमछा डाले एक साधु के वेश में खड़ा शख्स उसकी तरफ़ पीठ किए, एक पेड़ के नीचे खड़े पक्षियों को धान डाल रहा था। अस्मिता वहाँ से उठकर उनकी तरफ़ बढ़ने लगी।

    अस्मिता उस शख्स के पास जाकर उसे देखती है, जिनके चेहरे पर धान डालते वक़्त हल्की निश्छल मुस्कान, शांत चेहरा और उस पर एक अलग ही नूर था।

    अस्मिता घौर से उन्हें देख रही थी। तब वो साधु महाराज उसे देखकर कहते हैं, "ईश्वर दुख देता है तो उसके पीछे कुछ अच्छाई का कारण भी ज़रूर होता है।"

    अस्मिता आँखों में आँसू के साथ कहती है, "कुछ अच्छा ही होना होता है तो ईश्वर दुख देते ही क्यों हैं? मेरे परिवार का आने वाला वंश मिट गया। अब आप ही बताइए, इसमें क्या अच्छाई छुपी हुई है बाबा?"

    "जीवन-मरण तो जीवन के वो दो सत्य हैं जिसे हर किसी को स्वीकार करना पड़ता है। जो आया है उसे एक ना एक दिन तो जाना ही है। किसी को पहले तो किसी को बाद में। बस ये समझ कि तेरे परिवार से जल्द ही एक ऐसी मज़बूत कड़ी जुड़ने जा रही है जो तेरे परिवार की सारी तकलीफ़ों को दूर करने की क्षमता रखती है। अरे उसका तो जन्म ही इसलिए हुआ है ताकि वो तेरे घर की लक्ष्मी बनकर आ सके।" साधु महाराज ने उसे समझाते हुए कहा।

    अस्मिता सवालिया नज़रों से उन्हें देखकर कहती है, "ऐसा कौन आने वाला है बाबा जो मेरे परिवार की खुशियों का कारण बनेगा?"

    साधु महाराज चंचल मुस्कान के साथ कहते हैं, "ये तो स्वयं भोलेनाथ जानते हैं। बस ये समझ कि एक वही है जो तेरे घर की खुशियों की चाबी है, जिसे पहचानना अब तेरे हाथ में है। बाकी तो जैसी प्रभु की इच्छा। उन्होंने जो भी सोचा होगा, वो जो भी करेंगे, वो तो होकर ही रहेगा, फिर चाहे उसमें कोई कितनी ही बाधाएँ क्यों ना लाए! इसलिए बिना किसी चिंता के घर जाओ बेटा, खुशियाँ जल्द ही तेरे द्वार पर अपने कदम बढ़ाएगी।"

    साधु महाराज की बात में, उनकी आवाज़ में एक अलग ही तेज था जिससे अस्मिता के मन में भी उम्मीद जाग उठी। वो अपना सिर हिलाकर साधु महाराज के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है।

    "ईश्वर तुम्हें खुश रखे। तुम्हारे परिवार का भला हो। तुम्हारे सारे सवालों के जवाब जल्द ही तुम्हें मिल जाएँ।" साधु महाराज ने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

    अस्मिता एक उम्मीद और सकून की साँस ले वहाँ से मारिया के साथ जाने लगी। कि सीढ़ियों के वहाँ पहुँचते ही एक बार पीछे मुड़कर उसी पेड़ के वहाँ देखती है तो वहाँ कोई नहीं था, सिवाय पक्षियों के।

    अस्मिता हैरानी से इधर-उधर देखते हुए महाराज को ढूँढने लगी, पर वो कहीं ना दिखने पर मंदिर में विराजे शिव जी की मूर्ति को देख अपने हाथ जोड़कर फिर वहाँ से चली गई।

    जाने-अनजाने में ही उसे साधु महाराज ने इशारा दे दिया था कि किसी न किसी रूप में उनके परिवार की खुशियाँ जल्द ही लौट आएंगी। पर वो खुशी कैसे और किस रूप में आएगी, क्या ये अस्मिता कभी जान पाएगी, ये तो आने वाला समय ही तय करेगा!


    पुलिस स्टेशन, बांद्रा

    "मेडम, क्यों खाली-खाली समय बर्बाद कर रही हैं आप अपना? अरे इस मैसेज से पक्का यकीन हो रहा है कि आपकी दोस्त सही-सलामत अपने घर पहुँच चुकी है तो फिर किस बात की तहकीकात करें हम?" एक कॉन्स्टेबल ने पम्मी को देखकर कहा।

    पम्मी अपना सिर हिलाकर कहती है, "हाँ, सर आपकी बात सही है, पर देखिए ना ऐसे अचानक से उसके घर से कॉल आ जाना और उसका मुझे बिना बताए ऐसे हड़बड़ी में चले जाना थोड़ा अजीब नहीं है? ऐसा भी तो हो सकता है ना कि किसी और ने उसके फ़ोन से मुझे मैसेज किया हो?"

    "अच्छा ठीक है, चलिए आपके कहने पर मैं FIR लिखकर उनकी जाँच शुरू भी कर दूँ, पर आप ही बताइए कि क्या उनकी इस शहर में किसी से दुश्मनी है?"

    कॉन्स्टेबल के पूछने पर पम्मी सोचते हुए ना में अपना सिर हिला देती है। तब कॉन्स्टेबल ने फिर से कहा, "तो फिर, ऐसे तुक्का लगाने का क्या फ़ायदा! देखिए मेडम, ज़िन्दगी है तो परेशानी आती-जाती रहती है और मुसीबतें अचानक ही आती हैं तो आ गया होगा उन्हें भी कोई काम, इसलिए बिना चिंता किए जाइए। वो ठीक ही होगी और अपने परिवार के पास होगी। ख़ामख़ा आपका और हमारा वक़्त बर्बाद मत कीजिए।"

    पम्मी मायूस मन से उठकर बाहर जाते हुए मन ही मन कहती है, "यहाँ से तो कोई मदद नहीं मिली। अब क्या करूँ मैं? उसके घर का नंबर भी तो नहीं है मेरे पास, बस अब तो यही इंतज़ार रहेगा कि वो फ़ोन ऑन करे और मेरी उससे बात हो जाए। भगवान बस वो जहाँ भी हो बस ठीक हो।"

    पम्मी अब बेमन से ऑटो लेकर अपने ऑफ़िस के लिए निकल गई।


    Rose Villa

    मोहब्बत की कल की रात डर की वजह से जागती आँखों से बीती थी। वो अपना सिर अपने घुटनों पर रखे एकटक फ़र्श को देख रही थी। वो बस कुछ भी करके शिवाय को कन्विंस करके यहाँ से निकलना चाहती थी। तब उसके रूम का दरवाज़ा खुलता है।

    मोहब्बत इतनी खोई हुई थी कि उसे पता ही नहीं चला कि कोई आया है। शिवाय दरवाज़े से अंदर आकर उसके सामने खड़ा होकर उसके आगे एक फ़ाइल बढ़ा देता है।

    शिवाय की मौजूदगी से मोहब्बत अपनी सेंस में आकर अपना सिर ऊपर करके पहले शिवाय को, फिर फ़ाइल को देखकर सवालिया नज़रों से कहती है, "ये...? ये क्या है?"

    शिवाय बिना भाव से उसे देखकर बोला, "पढ़ी-लिखी हो?"

    मोहब्बत कन्फ़्यूज़ भरे भाव से उसे देखने लगी। तब शिवाय ने फिर से कहा, "पढ़ी-लिखी हो या नहीं?" मोहब्बत हाँ में अपना सिर हिला देती है।

    शिवाय बिना टाइम वेस्ट किए कहता है, "So, Read & Sign these papers."

    मोहब्बत को घबराहट हो रही थी कि अब ये किस चीज़ के पेपर्स होंगे? वो फ़ाइल खोलकर उसे पढ़ने लगी। जैसे ही थोड़ा-बहुत पढ़ने लगी, उसकी आँखें शॉक की वजह से बड़ी हो गईं।

    कुछ देर तक मोहब्बत उन पेपरों को घूरती रही और फिर वहाँ से उठकर शिवाय को देखकर गुस्से में कहती है, "ये क्या बकवास है? दिमाग ख़राब हो गया है क्या आपका?"

    शिवाय ने गंभीर आवाज़ में कहा, "चुपचाप इन पेपर्स पर साइन करो। तुम्हारी बकवास सुनने में मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है।"

    मोहब्बत चिल्लाते हुए कहती है, "मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी। ये ग़लत है, आप इस तरह से अपनी बात नहीं मनवा सकते।" वो सारे पेपर्स को फाड़ने लगी।

    मोहब्बत ने उन पेपर्स को फाड़कर शिवाय के चेहरे पर फेंक दिए। जिसे देख शिवाय की आँखें पल भर के लिए बंद हो गईं और उसके चेहरे पर गुस्सा आने लगा। वो अपनी आँखें खोलकर मोहब्बत को घूरने लगा, जिससे सहमी हुई मोहब्बत दरवाज़े की तरफ़ भागने लगी जो आधा खुला था।

    वो भाग पाती, उससे पहले ही शिवाय उसकी बाज़ू पकड़ कर अपनी ओर खींचकर गुस्से में कहता है, "मुझसे बदतमीज़ी करने के लिए तुम्हें मैं ऐसी सज़ा दे सकता हूँ कि तुम ज़िन्दगी भर अफ़सोस करती फिरोगी। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उन पेपर्स को फाड़ने की!"

    "फाड़ूँगी...एक नहीं, ऐसे हज़ार कॉपियाँ भी लेकर आएंगे तो उसे भी फाड़ दूँगी। मैं आपकी ऐसी कोई भी बेहूदा बात नहीं मानूँगी।" मोहब्बत ने अपनी बाज़ू छुड़वाते हुए कहा।

    "क्या लगता है, मेरी पकड़ से छूटना इतना आसान है? आख़िरी बार कह रहा हूँ, चुपचाप उन पेपर्स पर साइन करो।" शिवाय उसकी कोशिश देखते हुए अपनी पकड़ मज़बूत करके कहता है।

    "नहीं...। नहीं करूँगी, मैं कोई साइन। आपको जो करना है, कर लीजिए। डरती नहीं हूँ मैं आपसे, समझे आप?" ये कहकर वह उसे धक्का देकर वहाँ से फिर से भागने लगी कि शिवाय उसका हाथ पकड़ कर उसे दीवार की तरफ़ धकेल देता है। उन दोनों की ये लड़ाई बढ़ती जा रही थी। दोनों अपनी ज़िद में अड़े हुए थे।

    मोहब्बत उसे धक्का देते हुए कहती है, "दूर हटिए, हाथ मत लगाना मुझे।"

    उसकी चिल्लाहट और बदतमीज़ी देखकर शिवाय ने अचानक ही गुस्से में मोहब्बत की बाज़ुओं को पकड़ कर उसे दीवार से सटाकर उसके होंठों पर अपने होंठ टिका दिए।

    मोहब्बत उसकी इस हरकत से एकदम से जम गई और डर के मारे उसकी आँखें फैल गईं। ये अजीब सा एहसास उसके लिए नया और पहली बार था।

    आज तक उसके साथ इस तरह से बिहेव किसी ने करना तो दूर किसी ने हाथ तक नहीं लगाया था।

    उसके और समर्थ के बीच भी सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता था। समर्थ तो वैसे भी किसी और से प्यार करता था। उसने कभी भी मोहब्बत को उस नज़र से नहीं देखा था।

    शिवाय तुरंत उससे दूर हो जाता है। भले ही ये किस नहीं थी पर ये एहसास दोनों के लिए अलग था।

    मोहब्बत हैरानी से उसे देखने लगी, वहीँ शिवाय उसकी दोनों बाज़ुओं को पकड़े उसके चेहरे के बेहद करीब होकर उसे घूर रहा था।

    मोहब्बत जो गीली पलकों से उसे देख रही थी, उसे जैसे ही ये बात समझ आई, उसने शिवाय को खुद से दूर धक्का दिया।

    शिवाय की इस हरकत से मोहब्बत काफ़ी हद तक डर गई, जिससे वो रोने लगी। बार-बार अपने आँसू और अपने होंठों को अपने दुपट्टे से पोछने लगी।

    शिवाय का सिर्फ़ अपने होंठों से उसके होंठों को छूना भी उसे अजीब सा एहसास करा गया था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी।

    फिर गुस्से में उसे देखकर काँपते हुए कहती है, "ये...ये क्या बदतमीज़ी है? ऐसी घटिया हरकत कैसे कर सकते हैं आप?" उसने अपना हाथ शिवाय पर मारने के लिए उठा दिया।

    शिवाय ने उसका हाथ हवा में ही रोकते हुए पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींचकर घुमाकर अपने सीने से उसकी पीठ लगा दी।

    और उसका वही पकड़ा हुआ हाथ लेकर उसके गले में लपेटकर उसके कान के पास झुककर सर्द आवाज़ में कहता है, "मैं और भी बहुत कुछ कर सकता हूँ और अगर तुम नहीं चाहती कि ये घटियापन और आगे बढ़े तो चुपचाप जो कह रहा हूँ वो करो।"

    बोलते हुए शिवाय के होंठ मोहब्बत के कान को छू रहे थे जिससे मोहब्बत सहम जाती है। उसकी कंपन शिवाय साफ़-साफ़ महसूस कर पा रहा था।

    "अपनी बात मनवाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते आप।" मोहब्बत ने उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करते हुए कहा।

    शिवाय उसके चेहरे को देखते हुए गंभीर आवाज़ में कहता है, "मैं अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या कर सकता हूँ इसका तो तुम दूर-दूर तक अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती। Last time I asking you, पेपर साइन करती हो या नहीं?"

    "मरते मर जाऊँगी पर आपकी ये वाहियात ज़िद कभी पूरी नहीं करूँगी।" मोहब्बत ने भी हिम्मत करके कहा। उसे भी शिवाय के सामने झुकना मंज़ूर नहीं था।

    शिवाय ने उसे एक झटके से छोड़ दिया जिससे मोहब्बत दीवार से जा लगी। वो मुड़कर शिवाय को देखती है जिसकी आँखें ये सुनकर गुस्से में भर गई थीं कि कोई लड़की उसे ऐटिट्यूड दिखा रही थी। जो करने की आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की थी। और ये बात उसके ईगो पर जा लगी।

    उसकी आँखें देखकर मोहब्बत घबरा गई और वो अपनी नज़रें झुका लेती है।

    शिवाय उसे लेकर इतना तो समझ चुका था कि उसकी आँखों में बेशक डर भरा है पर उसके अंदर एक छोटे बच्चे की तरह ज़िद भी छुपी हुई है। जो इतनी आसानी से नहीं छूटने वाली थी। ये देखकर तिरछी मुस्कान से उसे देखते हुए शिवाय ने फिर गुस्से में आवाज़ लगाई, "शरद।"

    मोहब्बत दीवार से लगी अपना सिर झुकाए खड़ी थी, उसे यही डर था कि अब ये कौन सा नया तुफ़ान लाएगा! शरद जल्दी से रूम में आता है और कहता है, "यस सर?"

    "ये किस तरह की मेहमाननवाज़ी है तुम्हारी? कुछ एंटरटेनमेंट दिखाओ हमारे मेहमान को, शरद। उन्हें किसी भी तरह से नहीं लगना चाहिए कि उनकी खातिरदारी यहाँ ठीक से नहीं हुई।" कहते हुए शिवाय उसकी थोड़ी दूरी पर पड़ी चेयर पर जाकर बैठ गया।

    शरद एक नज़र मोहब्बत को देख शिवाय को देखकर हाँ में अपना सिर हिलाकर अपनी जेब से फ़ोन निकालकर उसमें कुछ करने लगता है और फिर टीवी ऑन कर देता है।

    मोहब्बत चोर नज़रों से टीवी की ओर देखने लगी कि ये इंसान अब क्या उसे कोई मूवी दिखाएगा? पर टीवी पर चल रहे वीडियो को देखते हुए मोहब्बत के चेहरे के एक्सप्रेशन्स धीरे-धीरे बदलने लगे। ये देखकर शिवाय के चेहरे पर अजीब सी रहस्यमय मुस्कान आ गई।


    ऑबरॉय मेंशन

    अस्मिता उर्वशी और शिखा के साथ हॉल में बैठी हुई थी। तब मारिया सीढ़ियों से होते हुए किचन की तरफ़ जा रही थी कि अस्मिता ने उसे रोककर कहा, "कानल ने नाश्ता किया मारिया?"

    "जी मेडम, वो संस्कार बाबा ने मुश्किल से थोड़ा-बहुत खिला दिया है। पर उन्हें तो कोई होश कहाँ हैं! बस जो जैसा कहता है चुपचाप किसी चाबी के खिलौने की तरह किए जा रही है। देखकर बहुत बुरा फ़ील होता है मेडम।" ये कहते हुए उसकी आँखें भर आईं।

    अस्मिता अपनी नम आँखों को साफ़ करते हुए कहती है, "ठीक है, तुम जाओ।"

    मारिया वहाँ से चली गई। तब शिखा ने दुखी होकर कहा, "पता नहीं किसकी नज़र लग गई हमारी फैमिली को?"

    "अरे वो है ना, उस लड़की का भाई! ये सब उस लड़की के भाई की वजह से हुआ है। बस एक बार मिल जाए शिवाय को, तब पता चलेगा कि किससे दुश्मनी मोड ली है?"

    उर्वशी ने गुस्से में कहा। तब शिखा ने चिंता से कहा, "उसका जो होगा तब होगा, पर बेचारी उसकी बहन के साथ भाई पता नहीं क्या करेंगे? उसका तो कोई दोष भी नहीं है।"

    "अरे ऐसे कैसे नहीं है? तुम भोली हो मेरी बच्ची इसलिए तुझे सारी दुनिया ऐसी ही नज़र आती है। अरे जिसका भाई और परिवार ऐसा भगोड़ा निकला, उनके घर की बेटी कैसी होगी? मैं तो चाहती ही हूँ कि शिवाय उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दे।"

    उर्वशी ने शिखा को टोककर कहा। शिखा को मोहब्बत की चिंता हो रही थी। वहीं अस्मिता बिना कुछ कहे उर्वशी की बातें सुन रही थी। उसके चेहरे पर मोहब्बत को लेकर कोई दया की भावना या चिंता नहीं थी।

    "Hello everyone!" उनकी बातें चल ही रही थी कि तब घर के दरवाज़े से अंदर आते हुए किसी की आवाज़ आई। सभी की नज़र उस ओर गई। तब देखते हैं कि क्यारा मुस्कुराते हुए सबके पास आ रही थी।

  • 17. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 17

    Words: 3283

    Estimated Reading Time: 20 min

    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    अस्मिता, उर्वशी और शिखा हॉल में बैठकर बातें कर रही थीं। तभी क्यारा सबको आवाज़ देते हुए आई। सबकी नज़र उस पर पड़ते ही उर्वशी ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे क्यारा बेटा, आओ-आओ। कैसी हो तुम?"

    क्यारा आकर उसके गले लगकर बोली, "मैं ठीक हूँ बुआ जी, और आप कैसी हैं?"

    "हम भी ठीक ही हैं बेटा। घर के हालात तो तुम जानती ही हो? तुमसे कहाँ कुछ छुपा है!" उर्वशी ने भी उसे गले लगाकर कहा। फिर क्यारा अस्मिता के पास बैठकर उसके गले लगकर बोली, "हाँ बुआ जी, आई नो। (फिर अस्मिता को देखकर) पर सासु मॉम आपने ये क्या हाल बना रखा है अपना? कितनी दुबली हो गई हैं आप? अगर आप ही अपना ख्याल नहीं रखेंगी तो भाभी को कौन संभालेगा? अभी आपकी भी तबियत पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है, तो आपको भी आराम करना चाहिए था ना!"

    अस्मिता उसकी इस तरह से केयर करते देख हल्का मुस्कुराकर बोली, "हाँ बेटा, मैं बस अभी मंदिर से आई और सोचा कुछ देर यहीं बैठ जाऊँ। वैसे भी तुम्हारे पापा (अधिराज) और दादा जी (ध्वनित जी) आज गुरुद्वारा गए हैं, घर की सुख-शांति लौट आए इसकी अरदास करने। केसर बच्चों को लेकर पार्क गई है, तो सोचा कुछ देर उर्वशी और शिखा के साथ यहीं बैठ जाऊँ।"

    "ठीक है सासु मॉम, पर फिर भी प्लीज़ आराम करियेगा। और ये देखिये, मैं ये सब कानल भाभी और आपके लिए लाई हूँ ताकि आप दोनों ये हेल्दी फ्रूट्स और ड्राईफ्रूट्स खाकर जल्दी से ठीक हो जायें। मैं जानती हूँ भाभी पर जो बीत रही है, इन सब चीजों से वो ठीक तो नहीं हो पाएगी, पर बस मैं कोशिश तो कर सकती हूँ ना।" क्यारा ने उसका हाथ थामकर फिर वहाँ टेबल पर रखे दो बैग्स की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, जो ड्राइवर आकर छोड़ गया था।

    अस्मिता उसकी तरफ़ मुस्कुराते हुए देख रही थी। वह खुद को बहुत किस्मत वाली मान रही थी कि क्यारा इस घर में बहू बनकर आने से पहले ही सबके लिए कितना कुछ करती है!

    "हम्म्म, देखा भाभी, इसे कहते हैं संस्कार। अभी से हम सबके बारे में कितना सोचती है! बस अब जल्द से जल्द तुम इस घर में बहू बनकर आ जाओ। फिर देखना इस घर की खुशियाँ वापस से लौट आएंगी।" उर्वशी के तारीफ़ करने पर क्यारा शर्माते हुए मुस्कुरा दी।

    "अच्छा, मैं एक बार भाई-भाभी से मिलकर आती हूँ, फिर मुझे भी काम है थोड़ा, तो जल्द ही मिलने आऊँगी।"

    क्यारा के कहने पर अस्मिता ने हाँ में अपना सर हिलाकर कहा, "हाँ हाँ, बेटा जाओ। वो रूम में ही हैं। जाकर मिल लो।" क्यारा वहाँ से उठकर सीढ़ियों की ओर जाने लगी।

    कुछ देर बाद क्यारा संस्कार और कानल से मिलकर फिर अस्मिता, उर्वशी और शिखा के गले लगकर वहाँ से जाते हुए बोली, "अच्छा सासु मॉम, मैं चलती हूँ और आप सब अपना ख्याल रखना & don't take stress, ok?"

    अस्मिता उसके गाल पर हाथ रखकर उसके सर को चूमकर बोली, "हाँ बेटा, तुम भी अपना ख्याल रखना और ऐसे ही आते रहना। तुम्हें देखकर अच्छा लगता है।"

    क्यारा मुस्कुराकर वहाँ से बाहर निकलकर अपनी कार में बैठकर चली गई।

    उर्वशी खुशी से बोली, "इसके कुछ देर के लिए आने से भी दिल कितना हल्का हो गया ना भाभी? देखना जब शादी करके आएगी तो हमारे घर की सारी तकलीफ़ें, दुःख दूर हो जाएँगे। ये सच में हमारे घर की खुशियों की चाबी है।"

    ये कहकर वह उठकर अपने आउटहाउस चली गई। शिखा अपने रूम की ओर जाने लगी।

    उर्वशी की बात सुनकर अस्मिता को रह-रहकर उस मंदिर वाले साधु बाबा की बात याद आने लगी...

    "ये तो स्वयं शिव जानते हैं। बस ये समझो कि एक वही है जो तेरे घर की खुशियों की चाबी है, जिसे पहचानना तेरे हाथ में है। बाकी तो जैसी प्रभु की इच्छा। उन्होंने जो भी सोचा होगा, वो जो भी करेंगे वो तो होकर ही रहेगा, फिर चाहे उसमें कोई कितनी ही बाधाएँ क्यों ना लाए! इसलिए बिना किसी चिंता के घर जाओ बेटा, खुशियाँ जल्द ही तेरे द्वार पर अपने कदम बढ़ाएंगी।"

    "सच कहा तुमने उर्वशी। अब मेरी समझ में आ रहा है कि बाबा किस चाबी की बात कर रहे थे। क्यारा ही मेरे घर की वो लक्ष्मी है जो मेरे घर में आते ही उसे खुशियों से हरा-भरा कर देगी। अब इस आती हुई खुशी को मैं किसी को भी छीनने नहीं दूँगी।" ये सब मन ही मन सोचते हुए फिर वो भी अपने रूम में चली गई।


    Rose Villa

    वहीं शिवाय ने मोहोब्बत के पेपर साइन करने से मना कर देने पर अब उसे टीवी पर कुछ ऐसा दिखाया था, जिससे मोहोब्बत शॉक होकर टीवी की ओर एकटक देख रही थी।

    "ये...ये क्या है? ये तो..." विडियो को देखते ही मोहोब्बत हड़बड़ाते हुए बोली।

    "अभी भी नहीं समझी, मिस त्रिपाठी? नो प्रॉब्लम, मैं अभी तुम्हारी कन्फ्यूज़न दूर कर देता हूँ। ये है तुम त्रिपाठीज़ की वो दो शॉप्स जिसे बहुत ही मेहनत करके चलाया जा रहा है। जिनसे तुम्हारी फैमिली का गुज़ारा होता है।" मोहोब्बत के कहने पर शिवाय ने उसे रोककर बीच में कहा।

    मोहोब्बत टीवी की ओर देखकर फिर शिवाय को देखकर हैरानी से बोली, "प...पर ये GCB वहाँ क्या कर रहा है? और वो मेरे दुकान के वहाँ क्यों जा रहा है?"

    "अब उन शॉप्स को चलाने वाला तो कोई है नहीं। तुम्हारा परिवार तो भाग गया। तो मैंने सोचा कि क्यों ना इन शॉप्स को वहाँ से हटा दिया जाये! इसलिए ये दोनों शॉप्स अब वहाँ से हमेशा के लिए मिटा दी जाएंगी। और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि ये सब अचानक से कैसे हो गया!"

    शिवाय की बात पर मोहोब्बत अपनी आँखें बड़ी करके हैरानी से शिवाय को देखने लगी। जो दुकान उसके घर की कमाई का सहारा थी, उसके बड़ों की धरोहर थी। उसे ही शिवाय तोड़ने की बात कर रहा था।

    इस वक़्त सुधीर उन सबके वहाँ ना होते हुए भी शांतनु और मुकेश ने दोनों शॉप्स को बहुत अच्छे से संभाला हुआ था।

    मोहोब्बत फिर से टीवी की ओर देखने लगी, जहाँ GCB उसकी दोनों दुकानों के पास धीरे-धीरे बढ़ रही थी। ये देखकर मोहोब्बत जल्द से शरद के पास जाकर बोली, "इसे रुकवा दो। इस GCB को रोकिए ना, प्लीज़।"

    शरद मजबूर था, वह बस लाचार होकर कभी मोहोब्बत को तो कभी शिवाय को देख रहा था जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

    "प्लीज़, रुकवाइए ना इसे। आप ए...ऐसा कैसे कर सकते हैं? ये सिर्फ़ दुकान नहीं है, मेरे पप्पा, चाचू और बड़े पप्पा की ज़िन्दगी भर की मेहनत है। वो टूट जाएँगे इसे टूटते देखकर, प्लीज़ स्टॉप।"

    मोहोब्बत जान चुकी थी शरद इसमें कुछ नहीं कर सकता था, वह तुरंत शिवाय के पास आकर उससे रिक्वेस्ट करने लगी, पर यहाँ तो जैसे शिवाय के कानों तक मोहोब्बत की आवाज़, उसका दर्द पहुँच ही नहीं पा रहा था। वह बिना भाव से बस एकटक टीवी की ओर देख रहा था।

    पर फिर भी एक बात उसके दिमाग में बार-बार खटक रही थी कि इतना कुछ दिखाने के बाद भी मोहोब्बत अभी भी उसकी बात नहीं मान रही थी, जिससे उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

    "क्या चाहते हैं आप? क्यों कर रहे हैं आप ये सब? समझने की कोशिश कीजिये, मैं उन पेपर्स पर साइन नहीं कर सकती। मे...मेरी सगाई हो चुकी है और...और कुछ ही महीनों में मेरी शादी भी है। मैं...मैं किसी और की अमानत हूँ। प्लीज़, ये सब रोक दीजिये और मुझे जाने दीजिये।" मोहोब्बत ने भरे गले से अपनी सगाई की बात रखते हुए फिर से शिवाय को समझाने की कोशिश की।

    सगाई की बात सुनकर शिवाय उसकी तरफ़ देखने लगा, जैसे उसके कानों में ये बात किसी तीर की तरह चुभ सी गई हो।

    शरद भी हैरानी से मोहोब्बत को फिर शिवाय को देखने लगा कि अब जब मोहोब्बत की सगाई किसी और से हो चुकी थी तो उसके सर ये सब क्यों कर रहे थे? पर पूछने की हिम्मत उसमें कहाँ थी?

    मोहोब्बत की बात पर शिवाय उसे देखकर दाँत पीसते हुए सर्द आवाज़ में बोला, "मैं क्या चाहता हूँ और ये सब क्यों कर रहा हूँ ये मैं तुम्हें बताना ज़रूरी नहीं समझता और रही बात तुम्हारी किसी और से सगाई की तो द फैक्ट इज़ कि तुम इस वक़्त मेरे पास हो। तुम्हारी सगाई किससे हुई थी, किससे नहीं उससे मुझे कोई मतलब नहीं है।"

    उसका ध्यान फिर से टीवी की ओर चला गया। उसकी आँखों में इस वक़्त बेहद गुस्सा भर चुका था, जिसे वह बहुत मुश्किल से रोके रखा था।

    उसे इस वक़्त गुस्सा त्रिपाठी फैमिली पर आ रहा था या मोहोब्बत की सगाई वाली बात सुनकर ये वो खुद नहीं समझ पा रहा था।

    मोहोब्बत लाचारी से टीवी की ओर देखने लगी। उसे उम्मीद थी कि ये सुनकर शायद शिवाय का दिल पिघल जाए, पर उस बेचारी को क्या पता कि वह गलत जगह कोशिश कर रही थी।

    एक तरफ़ उसकी अपनी ज़िन्दगी थी जिसे उसे खुशी-खुशी समर्थ के साथ बितानी थी और दूसरी तरफ़ अपने परिवार की वो धरोहर जिसे खोकर वह अपने परिवार को भी हमेशा-हमेशा के लिए खो देगी। अजीब सी कश्मकश में फँसी हुई थी, वह इस वक़्त।

    अब जैसे ही GCB काफी नज़दीक पहुँचकर दुकान को कोई नुकसान करता, उससे पहले मोहोब्बत घबराकर जल्दी से शिवाय के पैरों पर गिरकर उसे पकड़ कर रोते हुए चिल्लाई, "नहीं-नहीं....प्लीज़। आप जो कहेंगे मैं वो करूँगी, प्लीज़ रोक दीजिये इसे। उन दुकानों को कुछ नहीं होना चाहिए।" यही तो सुनना था शिवाय को।

    उसके चेहरे पर जीत की तिरछी मुस्कान आ गई। वह मन ही मन कहता है, "आई नो इट कि तुम्हारी फैमिली तुम्हारी कमज़ोरी है। और इन्हीं की वजह से तुम्हारी ये अकड़ भी टूटी है।"

    शिवाय शरद की ओर देखता है। शरद हाँ में अपना सर हिलाकर अपने फ़ोन में कुछ करने लगा।

    शिवाय अब मोहोब्बत को देखता है जो अभी भी शिवाय का पैर पकड़े हुए अपनी आँखें बंद किए रो रही थी। उसकी हिम्मत नहीं थी अपनी दुकानों को ऐसे टूटते हुए देखने की।

    "पैर छोड़ो & look there. सब ठीक है।" शिवाय की शांत आवाज़ से मोहोब्बत अपनी आँखें खोलकर टीवी की ओर देखती है, जहाँ GCB अपना रास्ता बदलते हुए दूसरी तरफ़ जा रहा था।

    मोहोब्बत को एक राहत मिली यह देखकर। शरद टीवी ऑफ कर देता है और दूसरी फ़ाइल और पेन लाकर मोहोब्बत के आगे बढ़ा देता है।

    मोहोब्बत आँसू भरी आँखों से उस फ़ाइल को देखने लगी और अपने काँपते हुए हाथों से उसे ले लेती है। फिर पेन लेकर कुछ देर तक सोचती रही।

    अपने परिवार की खुशी को इम्पॉर्टेंस देते हुए अपनी खुशियों का गला घोंटकर रोते हुए उन पेपर्स पर साइन करने लगी। शरद को उसे रोता देख बहुत बुरा फ़ील हो रहा था, पर वह कुछ नहीं कर सकता था इसमें।

    साइन होते ही शिवाय ने उससे फ़ाइल लेकर मोहोब्बत की साइन और उसका नाम देखकर गहरी आवाज़ में कहा, "वेलकम टू द हेल ऑफ़ शिवाय सिंह ओबरॉय....मिसेज़ मोहोब्बत सिंह ओबरॉय।" ये पेपर कोई और नहीं बल्कि शिवाय और मोहोब्बत के मैरिज रजिस्ट्रेशन पेपर्स थे। जिससे आज लीगली मोहोब्बत शिवाय की पत्नी बन चुकी थी।

    उसकी ये गहरी बात मोहोब्बत के दिल में डर पैदा करने के लिए काफी था। वह रोते हुए बस ज़मीन को एकटक देख रही थी। बहुत बुरी तरह से फँस चुकी थी मोहोब्बत, वह भी बिना किसी गलती के।

    शिवाय के शरद को इशारा करने पर शरद फ़ाइल लेकर बाहर चला जाता है। अब रूम में सिर्फ़ मोहोब्बत और शिवाय थे। मोहोब्बत की सिसकियाँ रूम में सुनाई दे रही थीं।

    "रोने से कुछ नहीं होगा। ये समझ लो कि आज ये सब जो भी हुआ है इसकी वजह सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी फैमिली है। कोसना है तो अपनी किस्मत को कोसो, ये सोचकर कि तुम उस घर की बेटी हो।" उसे रोते देख शिवाय ने बिना भाव से कहा।

    कुछ देर में एक गार्ड अपने हाथों में मोहोब्बत का सामान लेकर आता है जो मोहोब्बत बड़ौदा से लाई थी। उसे रूम में रखकर वहाँ से चला जाता है।

    "रेडी होकर नीचे आ जाओ, तुम्हारे पास सिर्फ़ 20 मिनट हैं और अगर इन 20 मिनट में तुम नीचे नहीं आई तो मजबूरन मुझे आकर तुम्हें रेडी करना होगा जो शायद तुम्हें अच्छा ना लगे।" अपनी चेयर से उठकर शिवाय ने कहा और रूम से बाहर जाने लगा कि एकदम से रुककर पीछे मुड़कर उसे देखकर कहता है, "और हाँ, ये सुसाइड करने जैसी हरकतें करने के बारे में सोचना भी मत क्योंकि तुम्हें तड़पाने और दर्द देने का हक़ सिर्फ़ मेरा है। अगर ऐसी कोशिश भी की तो तुम्हारी फैमिली ऐसे खून के आँसू रोएगी जिसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं की होगी।"

    शिवाय ने उसे पहले ही वॉर्न कर दिया था जिससे मोहोब्बत चाहकर भी ये कदम ना उठा सके। ये कहकर शिवाय वहाँ से चला गया।

    उसके जाते ही मोहोब्बत अपना चेहरा अपने हाथों में छुपाकर और जोरों से रोने लगी। पर उसकी सिसकी सुनने वाला कोई नहीं था।

    कुछ देर बाद वह बेमन से उठकर अपना सामान लेकर उसमें से अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चली जाती है। शिवाय की धमकी से वह काफी डर चुकी थी और इस वक़्त उससे लड़ने की उसमें बिलकुल हिम्मत नहीं थी।

    करीबन 20 मिनट बाद वह रूम से निकलकर यहाँ-वहाँ देखते हुए कॉरिडोर से गुज़रते हुए सीढ़ियों के पास आ पहुँची और सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे जाने लगी।

    नीचे पहुँचते ही उसके कानों में एक रोबदार आवाज़ सुनाई दी, "यहाँ आओ।"

    मोहोब्बत अपनी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए देखने लगी तब उसकी नज़र डिनर टेबल पर बैठे शिवाय पर पड़ी। जिसकी इस वक़्त सिर्फ़ पीठ दिख रही थी। मोहोब्बत धीरे-धीरे कदमों से उसके पास जाने लगी।

    उसके डिनर टेबल के पास पहुँचते ही शिवाय अपना सर उठाकर उसे देखता है तो एक पल के लिए उसकी नज़रें मोहोब्बत के चेहरे पर थम जाती हैं।

    इस वक़्त मोहोब्बत ने वाइट फुल स्लीव्स शॉर्ट कुर्ती और ब्लू जीन्स पहना हुआ था जिसपर ब्लू स्कार्फ़ गले में लपेटा हुआ था। बालों की चोटी बनाकर आगे कंधे पर लाई हुई, रोने की वजह से लाल आँखें, गोरा चेहरा। उसकी सादगी से शिवाय की नज़रें उस पर से हट नहीं पाईं।

    "बैठो।" शिवाय ने अपनी सेंस में आकर उससे नज़रें हटाकर कहा।

    मोहोब्बत फिर भी ज्यों की त्यों खड़ी रही जिससे शिवाय ने कड़क और तेज आवाज़ में कहा, "बाते दोहराना मेरी आदत नहीं है, बैठो।"

    मोहोब्बत उसकी पास की चेयर छोड़कर दूसरी चेयर पर बैठ गई पर शिवाय ने इस पर ज़्यादा रिएक्ट ना करते हुए एक प्लेट उसके आगे बढ़ा दी।

    मोहोब्बत अपनी प्लेट को देखने लगी। भूख तो उसे भी बहुत लगी थी। सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था। पर उसका मन नहीं लग रहा था कुछ भी खाने का।

    वह जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोलने लगी कि शिवाय की आवाज़ आई, "नहीं खाना है, मन नहीं है। ऐसा कोई भी ड्रामा करने की ज़रूरत नहीं है। चुपचाप, खाना फ़िनिश करो।"

    मोहोब्बत हैरानी से उसे देखने लगी कि वह क्या कहना चाहती थी यह उसने कैसे जान लिया? वह बिना कुछ कहे अब खाना शुरू करती है।

    खाना खाते हुए उसे अपने परिवार की याद आ गई जिससे उसके आँसू छलक उठे। शिवाय खाते हुए जब उसकी ओर देखता है तो इरिटेट होकर कहता है, "खाना पसंद नहीं आया क्या? अब रो क्यों रही हो?"

    "म...मुझे मेरे मम्मी-पप्पा के पास जाना है। यहाँ नहीं रहना, प्लीज़ जाने दीजिये मुझे यहाँ से।" मोहोब्बत सिसकते हुए उसे बताने लगी, जिसे देखकर शिवाय गहरी साँस लेकर कहता है, "तुम्हारी ज़िन्दगी में अब सिर्फ़ एक ही इंसान से तुम्हारा रिश्ता है और वो हूँ मैं। बाकी अब किसी से भी तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए यहाँ से जाने का ख्याल तो अपने दिल और दिमाग से निकाल ही दो, खाना खाओ।"

    मोहोब्बत ना चाहते हुए भी रोते हुए खाने लगी। उसे पता था उसके मन की बात इस पत्थर दिल इंसान के मन पर कभी असर नहीं होगी।

    कुछ देर बाद खाना ख़त्म होते ही शिवाय मेन हॉल में खड़ा अपने फ़ोन में कुछ कर रहा था। मोहोब्बत वहाँ पड़े सोफ़े के किनारे पर मायूस होकर खड़ी थी। तब एक गार्ड मोहोब्बत का सामान लेकर घर से बाहर जाने लगा।

    मोहोब्बत सवालिया नज़रों से उस गार्ड को जाते हुए देख रही थी। तब शरद आकर शिवाय से कहता है, "सर, कार रेडी है।"

    शिवाय हम्म कहकर चलने लगा। मोहोब्बत वही खड़ी थी, तब शरद उसके पास आकर बड़े ही रेस्पेक्ट से कहता है, "चलिए मेम।"

    मोहोब्बत उसे देखकर उसके पीछे-पीछे चलने लगी। अब वह कहाँ जा रही थी उसे कुछ पता नहीं था।

    घर से बाहर आकर मोहोब्बत इधर-उधर नज़रें दौड़ाते हुए विला के बाहर का नज़ारा देखती है तो उसकी नज़रें एक पल को उस पर थम सी जाती हैं। इतना सुंदर नज़ारा था विला का कि उस पर से नज़रें हटाना मुश्किल था। आसपास हर तरफ़ हरियाली छाई हुई थी।

    शरद उसे शिवाय की कार के पास लाकर उसके लिए पीछे का डोर खोलता है।

    मोहोब्बत ये देखकर घबराते हुए शरद से पूछने लगी, "क...कहाँ लेकर जा रहे हैं मुझे? क्या ये मेरे टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिला देंगे?" उन गार्ड्स की बात याद आते ही मोहोब्बत को शिवाय पर शक होने लगा था।

    मोहोब्बत की बात सुनकर शरद हैरानी से उसे देखता है। वही शिवाय जो कार में अपनी जगह बैठा अपना फ़ोन चला रहा था, उसके हाथ रुक गए और पहले मोहोब्बत को देखता है जो शरद को डरी हुई नज़रों से देख रही थी।

    फिर वह अपनी पैनी नज़रें अपने गार्ड्स पर डालता है जो अपना चेहरा फेरकर अपनी हँसी छुपा रहे थे। शिवाय समझ जाता है कि ये उसके गार्ड्स की शरारत थी, मोहोब्बत को डराने की।

    शरद भी एक नज़र उन गार्ड्स पर डालकर अपना सर हिलाकर शिवाय को देखता है जो बिना भाव से उसे देख रहा था।

    तब शरद ने हल्की मुस्कान के साथ मोहोब्बत से प्यार से कहा, "ऐसा कुछ नहीं है मेम। अगर सर को ये करना होता तो वो आपसे शादी नहीं करते। आप बैठिये, कुछ देर में पता चल जाएगा।"

    शादी की बात सुनकर सभी गार्ड्स की आँखें शॉक के मारे बड़ी हो गईं। वे अपनी आँखें फाड़े पहले मोहोब्बत को फिर शिवाय को देखते हैं, जो अब उन्हें ही खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था।

    सारे गार्ड्स हड़बड़ा गए और बेचारे ये सोचने लगे कि अगर उन्हें पता होता कि ये उनकी लेडी बॉस बनने वाली है तो कभी उसके साथ ऐसा मज़ाक नहीं करते।

    शरद की बात सुनकर मोहोब्बत अब बिना कुछ कहे अंदर बैठ गई। शरद आगे पैसेंजर सीट पर बैठ गया। ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी। कुछ चुनिन्दा गार्ड्स भी उनके पीछे-पीछे दूसरी कार से जाने लगे, जो शिवाय के साथ रहते थे।

    मोहोब्बत खिड़की से सर टिकाकर बाहर का नज़ारा देखने लगी। उसे तो यकीन नहीं हो रहा था कि इन दो दिनों में उसके साथ कितना कुछ हो गया था!

    अभी भी उसे लग रहा था कि ये सब जो हुआ बस वो एक सपना हो और जब अपनी आँखें खोले तो वह अपने अपनों के पास हो और ठीक हो, पर ये सिर्फ़ उसका भ्रम था। हक़ीक़त तो ये थी कि अब वह ऐसे पिंजरे में कैद हो चुकी थी जहाँ से उसका निकलना नामुमकिन सा था। यही सब सोच-सोचकर उसकी आँखें फिर से छलक उठीं।

    शिवाय भी खिड़की से बाहर देखते हुए कुछ सोच रहा था। उसके मन में क्या था यह तो वही जानता था।

    अब उसे एक नई मुश्किल का सामना करना था और वो था उसके परिवार को मोहोब्बत से मिलवाना। वह जानता था कि मोहोब्बत को देखकर और उसकी सच्चाई जानकर सबके रिएक्शन कैसे होने वाले थे! अब जैसे उसे एक नए युद्ध की तैयारी करनी थी।

  • 18. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 18

    Words: 3252

    Estimated Reading Time: 20 min

    मोहोब्बत ऑबरॉय मेंशन में और अस्मिता का गुस्सा

    शिवाय ने अपनी बात मनवाने के लिए मोहोब्बत के परिवार की दुकानों को निशाना बनाया था, जिसकी वजह से मोहोब्बत ने हार मानकर विवाह पंजीकरण कागज़ों पर हस्ताक्षर कर दिए थे। दोनों अब कानूनी तौर पर पति-पत्नी बन चुके थे। शिवाय ने उससे शादी क्यों की थी, यह एक राज़ था! जिससे मोहोब्बत अभी भी अनजान थी। अब शिवाय उसे कहीं ले जा रहा था। दोनों कार में बैठे, पीछे छूटे हुए रास्तों को देखकर अपनी-अपनी सोच में गुम थे। रात भी धीरे-धीरे बढ़ रही थी।

    उनकी कार के पीछे कार में आ रहे सारे गार्ड अभी भी सदमे में थे। जबसे उन्होंने शरद के मुँह से मोहोब्बत और शिवाय की शादी की बात सुनी थी, उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि यह सच है।

    कार में छाई चुप्पी को तोड़ते हुए शेरा ने हैरानी से कहा, "मतलब, बॉस ने उस लड़की से सच में शादी कर ली है?"

    "Respect शेरा। भूलो मत, अब वो आप सबकी लेडी बॉस है।" माइकल ने कड़क आवाज़ में कहा।

    जिससे शेरा ने हाँ में अपना सर हिलाकर कहा, "हाँ हाँ, माइकल तुम्हारी बात सही है, पर ये सुनना बड़ा shocking था। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि बॉस ने शादी कर ली! मतलब कहाँ उन्होंने उसे सजा देने के लिए किडनैप करवाया था और कहाँ अचानक से ये शादी!"

    "हो सकता है यह शादी भी सजा के तौर पर ही की हो, पर जो भी हो मैं तो बहुत खुश हूँ। क्यारा मैडम बॉस के स्टेटस के बराबर की भले ही थीं, पर उनके टक्कर की नहीं थीं। वहीं हमारी लेडी बॉस बिल्कुल हमारे बॉस के टक्कर की है। इन दोनों की जोड़ी बेस्ट जोड़ी लग रही है। जैसे शिव और पार्वती।" पंकज ने खुश होते हुए कहा।

    शेरा ने चिंता से कहा, "यह बात तो सच है, पर सोचा है जब क्यारा मैडम को पता चलेगा तो क्या होगा?"

    "क्या होगा? ज़्यादा से ज़्यादा दो आँसू बहाएगी, चिल्लाएगी और थोड़ा ड्रामा करेगी। यही तो काम होता है इन सेलेब्रिटीज़ का। पर क्या लगता है कि इससे हमारे बॉस को कोई फ़र्क पड़ने वाला है?"

    एक और गार्ड, मंथन ने बिना किसी झिझक के कहा। जिससे सभी गार्ड हँसकर ना में अपना सर हिला देते हैं। वे सब भी खुश थे मोहोब्बत और शिवाय की जोड़ी को देखकर।


    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    डिनर के बाद सभी घर के हॉल में मौजूद थे। तब अभिनव ने कहा, "शिवाय कहाँ है, भैया? उसकी कोई खबर? दो दिन से उसका कोई अता-पता नहीं है।"

    अधिराज ने गहरी साँस लेकर कहा, "पता नहीं, वो कुछ बताता ही कहाँ है? जबसे उस एक्सीडेंट के क्लू में कुछ पता चला है, तबसे बदले का नया भूत सवार हो गया है जनाब पर। पता नहीं क्या करेगा उसके साथ?"

    "शिवाय का गुस्सा कैसा है, हम सब जानते हैं भाई साहब। अब भगवान ही बचाए उस बेचारी को।" केसर ने चिंता से कहा।

    "मेरी तो यह समझ नहीं आ रहा है कि आप सब उस लड़की के लिए इतने चिंतित क्यों हैं? अरे उसी की फैमिली की वजह से आज हमारे परिवार पर इतना बड़ा दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। मैं तो कहती हूँ शिवाय जो भी सजा दे वो उसी के लायक है। अरे उसकी फैमिली तो अपने बेटे को बचाने के लिए कहीं भाग गई, तो अब वो उसे सजा नहीं देगा तो क्या करेगा?"

    उर्वशी ने हैरानी से सबको देखकर कहा। उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था कि इन सब में मोहोब्बत का कोई कसूर था या नहीं!

    केसर ने उसे टोकते हुए कहा, "यह आप क्या कह रही हैं जीजी? इस तरह से तो शिवाय की गलती को और बढ़ावा देना हुआ। जो भी हुआ उसमें उस बच्ची का क्या दोष है? हो सकता है, उसे कुछ पता ही ना हो!"

    "केसर सही कह रही हैं, उर्वशी। माना कि शिवाय हर काम में, कोई भी फैसला लेने में हमेशा सही होता है, पर इसका मतलब यह नहीं कि वो आगे भी कभी गलत नहीं होगा। गलती इंसान से ही होती है और वो इंसान ही है, कोई भगवान नहीं।" अधिराज ने केसर की बात पर सहमति जताई।

    "आप सब तो बस मेरे बच्चे के ही पीछे पड़े हुए हैं। जिसकी वजह से आज हमारे घर में अशांति छाई हुई है, यह किसी को नहीं दिखता। (फिर अस्मिता को देखकर) आप ही बताइए भाभी, क्या मैं गलत कह रही हूँ?" उर्वशी ने शिवाय के पक्ष में बोलते हुए फिर अस्मिता से पूछा।

    अस्मिता बिना भाव से कहती है, "मैं बस इतना जानती हूँ कि उस लड़की के परिवार के किसी सदस्य की वजह से मेरे घर की खुशियों को नज़र लग गई और इसके लिए मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूंगी। जिसकी वजह से मेरे घर का चिराग रोशन होने से पहले ही बुझ गया। उम्मीद करती हूँ कि वो मेरे सामने तो कभी भी ना आए, वरना पता नहीं मेरे हाथों से क्या हो जाएगा!" वो अपनी बात बता ही रही थी कि लाइट चली गई।

    "अरे! यह लाइट को क्या हुआ अचानक से?" शनाया (उर्वशी की बहू) ने हैरानी से कहा।

    "पता नहीं, पर मैं अभी गार्ड से कहता हूँ जनरेटर ऑन करने को।" उर्वशी के बेटे विनय ने कहा और बाहर गार्ड को आवाज़ देते हुए चला गया।

    "देखा आप सबने? जिस लड़की की बातें करते ही घर में अंधेरा छा गया, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे परिवार पर एक बुरा साया है और कुछ नहीं। उसकी बात करते ही घर में जैसे मनुष्यता फैल गई।"

    अस्मिता ने अंधेरे को महसूस करते हुए कहा। कोई कुछ नहीं बोल पाता है। सबको पता था कि अस्मिता ऐसी नहीं है जो बेवजह किसी को बुरा-भला कहे। इन दिनों जो भी उसके परिवार में हुआ इससे उसके अंदर का गुस्सा है जो बाहर आ रहा है।

    "अरे क्या हुआ, लाइट अभी तक क्यों नहीं आई विनु (विनय)?" उर्वशी ने फिर से झल्लाते हुए कहा।

    "माँ, वो जनरेटर को भी पता नहीं क्या हुआ है? काम नहीं कर रहा। वो लोग कोशिश कर रहे हैं। कमाल है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।" विनय ने सोचते हुए कहा।

    "No problem, हम अभी candles जलाकर आते हैं।"

    शिखा ने कहा और पहल के साथ उठकर दोनों धीरे-धीरे किचन की ओर जाकर मारिया को आवाज़ देते हुए candles मँगवाने लगी। कुछ देर में कुछ candles से घर का हॉल रोशनी से जगमगा उठा। बच्चे उन candles को देखकर खुश हो रहे थे। तब संस्कार भी अपने रूम से निकलकर सबके बीच नीचे आ पहुँचा।

    "बेटा, कानू ठीक है?" अस्मिता के पूछने पर संस्कार हाँ में अपना सर हिलाकर कहता है, "हाँ माँ, वो सो रही है, पर यह लाइट को क्या हुआ है अचानक से और यह गार्ड क्या कर रहे हैं? जनरेटर क्यों ऑन नहीं कर रहे हैं?"

    "भैया, जनरेटर अचानक से बंद हो गया है, चालू नहीं हो रहा। वो लोग कोशिश कर रहे हैं।"

    शिखा के कहने पर संस्कार हाँ में अपना सर हिलाकर वहीं सबके साथ सोफ़े पर बैठ गया। सभी अब लाइट आने का इंतज़ार करने लगे।


    कुछ समय बाद एक कार बड़े से मेंशन के मेन गेट के अंदर आ रही थी। मेन गेट से मेंशन के बीच भी फ़ासला थोड़ा ज़्यादा था। मोहोब्बत हैरान रह गई इतने बड़े और आलीशान गेट को और अंदर के नज़ारे को देखकर। जैसे-जैसे कार मेंशन की तरफ़ बढ़ रही थी, मोहोब्बत की आँखें वहाँ के आसपास के अद्भुत नज़ारे को देखकर चौंधिया रही थीं।

    कुछ मिनट बाद कार मेंशन के ठीक सामने आकर रुकी। जहाँ का गार्ड भागते हुए आकर पहले शिवाय की ओर का दरवाज़ा खोलता है।

    शिवाय बाहर निकलकर पहले अपने घर को देखता है। मेंशन में पूरा अंधेरा नज़र आ रहा था, जिससे मोहोब्बत को भी घबराहट हो रही थी।

    "क्या हुआ यह अंधेरा कैसा है?" शिवाय ने पूछने पर गार्ड ने कहा, "बॉस, वो लाइट चली गई है।"

    "तो क्या जनरेटर ऑन कैसे करना है, यह भी मैं सिखाऊँ?" शिवाय ने गुस्से में उसे घूरकर कहा, तो गार्ड डरते हुए कहता है, "नहीं बॉस, वो जनरेटर भी काम नहीं कर रहा है। पता नहीं क्या हो गया है!"

    शिवाय सर्द आवाज़ में कहता है, "इतनी लापरवाही? लगता है तुम सब अब अपने काम से थक चुके हो इसलिए आराम चाहते हो?"

    गार्ड झट से बोल पड़ा, "नहीं-नहीं बॉस, ऐसा कुछ नहीं है। बस इलेक्ट्रीशियन कोशिश कर रहे हैं, अभी हो जाएगा।"

    वहीं मोहोब्बत अभी भी कार में बैठी मेंशन को सवालिया नज़रों से देख और सोच रही थी कि अब यह घर किसका है? क्या यह घर भी इसी सनकी इंसान का होगा?

    शरद ने उसकी साइड का दरवाज़ा खोलकर उसे आवाज़ दी। जिससे मोहोब्बत अपनी सेंस में आकर कार से बाहर आती है।

    शिवाय उसे लेकर घर के अंदर जाने लगा। शिवाय आगे-आगे और उसकी तेज रफ़्तार के कारण मोहोब्बत उससे थोड़ी दूरी पर चलकर उसके पीछे-पीछे आ रही थी। वहीं शरद भी उनके साथ ही था।

    शिवाय ने एक बार भी मुड़कर देखना ज़रूरी नहीं समझा कि मोहोब्बत उसके साथ है भी या नहीं?

    घर में बैठे सभी की नज़र घर के मेन डोर से आ रहे धुंधले चेहरे पर पड़ी जो घर के दरवाज़े की तरफ़ आ रहे थे। शिवाय आगे था इसलिए वो सबके पास पहले आ पहुँचा।

    मोहोब्बत धीरे-धीरे कदमों से आ रही थी, इसलिए वह पीछे छूट जाती है। तब अस्मिता ने शिवाय को देखकर राहत लेते हुए कहा, "शिवू, कहाँ था बेटा तू? तू ठीक है ना?" शिवाय को सही-सलामत देखकर अस्मिता को अब सुकून मिल रहा था।

    अस्मिता की बात पर शिवाय के कुछ बोलने से पहले उर्वशी दरवाज़े के वहाँ देखते हुए कहती है, "अरे शिवाय, यह कौन है जो घर में आ रहा है?"

    शिवाय पीछे मुड़कर दरवाज़े की ओर देखता है, तब उसे एहसास होता है कि मोहोब्बत उसके साथ नहीं थी।

    वहीं मोहोब्बत जैसे ही दरवाज़े के अंदर अपना पहला कदम रखती है कि लाइट आ जाती है। जिससे सभी की आँखें एक पल को बंद हो गईं और फिर सभी अपनी आँखें खोलकर मोहोब्बत पर नज़र पड़ते ही हैरानी से उसे देखने लगे, जो घर को देखते हुए बिना किसी पर ध्यान दिए आगे बढ़ रही थी।

    लाइट आते ही अमीषा (उर्वशी की पोती) मोहोब्बत को देखकर खुश होकर कहती है, "येएए...लाइट आ गई। देखो, यह दीदी (मोहोब्बत) लाइट लेकर आ गई। इनके आने से घर में रोशनी आ गई।"

    यही वो इशारा था जो अनजाने में एक छोटी सी बच्ची ने सबको दे दिया था कि अब उनके घर में उजाला होने वाला है।

    उसकी आवाज़ से मोहोब्बत अपना सर नीचे कर देखने लगी कि एक साथ इतने सारे लोगों को देखकर थोड़ी घबरा गई।

    तब वहाँ खेल रहे बच्चे उसके पास आकर एकदम से उसका हाथ पकड़कर उसे गोल-गोल घुमाकर चिल्लाने लगे। मोहोब्बत हैरान हो गई उन बच्चों को देखकर।

    उनमें तीन बच्चे थे। जिनका नाम था ध्रुव, अनन्या और अमीषा। ध्रुव और अनन्या अभिनव की बड़ी बेटी निकिता के बच्चे थे जो इस वक़्त अपने ननिहाल आए हुए थे।

    मोहोब्बत को घबराया हुआ देख विनय कहता है, "अरे बच्चों क्या कर रहे हो, छोड़ो उसे। गिर जाएगी वो। आते ही डरा दिया तुम सबने इस बेचारी को।"

    तीनों रुक जाते हैं, तब ध्रुव मोहोब्बत के चेहरे को देखकर एक्साइटेड होकर कहता है, "Who is She, Maamu?" यह कहकर वह शिवाय को देखता है।

    अनन्या ने मोहोब्बत को घूरकर देखकर खुश होकर शिवाय को छेड़ते हुए कहा, "मामु, क्या यह हमारी मामी है?"

    शिवाय बिना कुछ कहे बस मोहोब्बत को देख रहा था जो बच्चों को घूर रही थी। बच्चों की बात सुनकर सभी सोफ़े से उठकर शॉक होकर शिवाय को तो कभी मोहोब्बत को देखने लगे।

    मोहोब्बत ने जब सर उठाकर देखा और सबकी नज़र खुद पर महसूस की, जिससे वो शिवाय के पास आकर खड़ी हो जाती है।

    सभी एकटक मोहोब्बत को देख रहे थे, जिससे मोहोब्बत को बड़ा अजीब लग रहा था। वो अपनी नज़रें झुका लेती है।

    अमीषा उन दोनों के पास आकर शिवाय का हाथ पकड़कर मोहोब्बत की तारीफ़ में कहती है, "Wow! She looks very Pretty Chachu!"

    यह सुनकर शिवाय अपने पास खड़ी मोहोब्बत को फिर से देखने लगा जो अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी। मोहोब्बत सच में इतनी खूबसूरत थी कि कोई भी इस बात को नकार नहीं सकता था।

    "Ya Ami, (अमीषा) You're right. She is very beautiful. I think, I like her."

    ध्रुव अपने दोनों गालों पर हाथ रखकर अपनी आँखें बड़ी करके मोहोब्बत को एकटक देखकर खोए हुए अंदाज़ में कहता है। जैसे मोहोब्बत उसे बहुत ही पसंद आ गई हो।

    शिवाय ध्रुव की नौटंकी देखकर अपनी eye roll कर देता है। शरद जो सबसे पीछे खड़ा था, वो ध्रुव को देखकर हल्का हँस देता है।

    "बच्चों, बस चुप हो जाओ। बड़ों के बीच नहीं बोलते। जाओ अपने रूम में, चलो।"

    उर्वशी ने बच्चों को चुप कराते हुए हल्का डाँट दिया। उसे कुछ ख़ास पसंद नहीं आया, यूँ मोहोब्बत की तारीफ़ सुनना।

    ध्रुव, अमीषा और अनन्या अपना मुँह बनाकर उर्वशी को घूरने लगे और फिर मोहोब्बत को देखकर अमीषा कहती है, "हम आपसे बाद में मिलेंगे चाची, बाय।"

    मोहोब्बत हल्की अपनी नज़रें उठाकर उसे देखकर हिचकिचाते हुए मुस्कुरा दी।

    "उम्म...अमी, सुना नहीं? क्या कहा दादी ने?" शनाया ने भी उसे अपनी आँखें दिखा दीं।

    बच्चों का मन तो नहीं था पर उन्हें जाना पड़ा और वहाँ से जाने लगे, पर वे अपने रूम में ना जाकर एक पिलर के पीछे छिपकर सबको देखने लगे।

    अधिराज शिवाय को देखकर बिना भाव से कहता है, "यह कौन है शिवाय? अब कुछ बोलोगे भी?"

    उर्वशी जो कब से अजीब नज़रों से मोहोब्बत को नीचे से ऊपर देख रही थी, वो एकदम से बोल पड़ी, "एक मिनट...एक मिनट। शिवाय, क्या यह कामवाली है?"

    इस एक शब्द को सुनकर मोहोब्बत अपनी नज़र उठाकर उर्वशी को देखने लगी कि अब उसे इस घर में क्या यह दर्जा मिलेगा?

    मोहोब्बत शिवाय की ओर देखती है, जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। जैसे उसे इस बात से कोई फ़र्क ना पड़ा हो।

    शिवाय के कुछ ना बोलने पर ध्वनि जी अब शरद से पूछते हैं, "शरद, तुम बताओ।" वो जानते थे शिवाय जल्दी किसी के सवाल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता था।

    वहीं संस्कार एकटक कभी मोहोब्बत को तो कभी शिवाय के चेहरे को नोटिस कर रहा था।

    ध्वनि जी की बात सुनकर शरद बेचारा सा मुँह बना लेता है क्योंकि वो जानता था कि मोहोब्बत की सच्चाई जानने के बाद सबके रिएक्शन कैसे होने वाले थे! उसे मोहोब्बत की चिंता होने लगी।

    शरद एक नज़र शिवाय को देखकर फिर धीरे से कहता है, "दादा जी, वो यह...यह उस ओम त्रिपाठी की बहन है।"

    सभी शॉक होकर मोहोब्बत को देखने लगे कि उनके घर में मातम फैलाने वाले की बहन आज उसी घर में उनके सामने खड़ी थी!

    "तो यह है वो मनहूस, जिसके भाई की वजह से मेरे घर की खुशियाँ छीन गईं? अभी भी क्या बाकी रह गया है, जो अब तू आई है बिगाड़ने?"

    शरद की बात सुनकर सबसे पहले अस्मिता एकाएक गुस्से से भर गई। यह गुस्सा एक औरत का दूसरी औरत से नहीं था, बल्कि एक माँ का दर्द था जो अपने बच्चों को तकलीफ़ में देखकर गुस्से के रूप में बाहर निकल रहा था।

    अस्मिता का ऐसा गुस्सा और तेज आवाज़ से मोहोब्बत चौंक गई और कसके शिवाय की बाजू पकड़ ली।

    इस वक़्त इस अनजान घर में, अजनबी लोगों के बीच उसके लिए रक्षक कहो या भक्षक, दोनों शिवाय ही थे। इसलिए अस्मिता के गुस्से से डरकर उसके हाथों ने अपने-आप शिवाय का सहारा ढूँढ लिया।

    मोहोब्बत ही नहीं बल्कि पिलर के पीछे छिपे बच्चे भी आज अस्मिता के गुस्से को देखकर चौंक गए और फिर एक-दूसरे को देखने लगे। आज से पहले उन्होंने कभी अस्मिता को ऐसे नहीं देखा था।

    शिवाय अपनी बाजू को देखकर मोहोब्बत को देखता है जो डरी हुई और नम आँखों से अस्मिता को देख रही थी। शिवाय उसकी कंपन अच्छे से महसूस कर पा रहा था।

    मोहोब्बत को इस तरह से अपने बेटे के करीब देखकर अस्मिता को और गुस्सा आ गया, "हिम्मत कैसे हुई तेरी मेरे बेटे के करीब जाने की और उसे छूने की भी! मेरे बेटे का हाथ छोड़ और दूर रह उससे।"

    यह कहकर वह गुस्से में उसके पास आने लगी कि शिवाय ने तुरंत उसे रोकते हुए तेज आवाज़ में कहा, "मॉम, प्लीज़।"

    अस्मिता हैरानी से उसे देखने लगी कि कल तक जो खुद अपने भाई की खुशियों को उजाड़ने वाले को तबाह करने पर तुला हुआ था, आज वो उसे ही रोक रहा है!

    शिवाय मारिया को आवाज़ लगाता है। मारिया के आते ही शिवाय उसे देखकर बिना भाव से कहता है, "नेनी, इसे मेरे रूम में ले जाइए।"

    सभी को एक और झटका लगा। जो शिवाय अपने रूम में ज़्यादा देर किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकता था, यहाँ तक कि क्यारा को भी नहीं। आज वो एक अजनबी लड़की को उसके रूम में ले जाने को कह रहा था।

    मारिया मोहोब्बत के कंधे पर हाथ रखकर बड़े प्यार से कहती है, "Come my child...."

    फिर भी अभी तक मोहोब्बत ने शिवाय की बाजू को नहीं छोड़ा था। उसे डर था कि कहीं शिवाय उसे इन सबके बीच अकेला छोड़कर चला गया तो?

    तब उसे शिवाय की कड़क आवाज़ आई, "जाओ।"

    मोहोब्बत अपना सर उठाकर उसे देखने लगी। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। वहीं ध्वनि जी, संस्कार और अधिराज मोहोब्बत की आँखों में शिवाय का खौफ साफ़-साफ़ देख पा रहे थे।

    "आओ डीकरा। चलो मेरे साथ।" मारिया ने फिर से आवाज़ दी। मोहोब्बत उसकी आँखों में अपनापन महसूस कर शिवाय की बाजू छोड़कर उसके साथ जाने लगी।

    सभी हैरान नज़रों से उसे जाते हुए देख रहे थे। मारिया लिफ़्ट से होते हुए उसे लेकर चली गई।

    मोहोब्बत लिफ़्ट देखकर हैरान थी कि घर में भी लिफ़्ट होती है? यह घर है या कोई होटल? इसी ख्यालों में गुम वो कुछ देर में शिवाय के रूम में पहुँच गई।

    मारिया उसे रूम में छोड़कर जाते हुए कहती है, "अब तुम आराम करो, my child. कुछ चाहिए तो बता देना।"

    "आप...आप भी मेरे साथ यहीं रहिए ना प्लीज़।" मोहोब्बत ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया।

    मारिया के अच्छे और शांत बिहेवियर से मोहोब्बत खुद को उसके साथ सेफ़ महसूस कर रही थी।

    मारिया उसके चेहरे पर छाया हुआ डर समझ सकती थी। वो उसका हाथ थामकर मुस्कुराकर समझाते हुए कहती है, "चिंता मत करो माय चाइल्ड। मैं यहीं हूँ, तुम्हें कोई भी काम हो मुझे बुला लेना, हम्म।" यह कहकर वह उसके सर पर हाथ फेरकर, फिर दरवाज़ा सटाकर चली गई। वो चाहकर भी उसके साथ नहीं रुक सकती थी।

    मोहोब्बत वहीं लगे सोफ़े पर बैठकर अपने घुटनों को मोड़कर अपने हाथों को रख उसमें चेहरा छुपाकर रोने लगी।

    जिस तरह का उसके साथ बर्ताव हो रहा था, ऐसे बर्ताव को उसने अपनी ज़िंदगी में कभी फ़ेस नहीं किया था।

    आज इस घर में सबके चेहरे पर बस उसे खुद के लिए एक नफ़रत दिखाई दे रही थी, जिसकी वो हकदार बिल्कुल भी नहीं थी। हमेशा हँसती-मुस्कुराती मोहोब्बत की ज़िंदगी आज शांत और मायूस हो गई थी।

    मारिया अब नीचे आ चुकी थी। तब अस्मिता ने गुस्से से शिवाय को घूरकर कहा, "यह क्या है शिवू? यह लड़की मेरे घर में क्या कर रही है? क्यों लाए हो तुम उसे यहाँ?"

    "वो लड़की इस घर की बहू और मेरी वाइफ़ है, मॉम। She is Mrs. Mohobbat Shivaay Singh Oberoi." शिवाय गहरी साँस लेकर फ़ाइनली बोल ही देता है, जो उसे सबको बताना था।

    सभी की आँखें फटी की फटी रह गईं यह सुनकर। सभी शॉक होकर शिवाय को ही देख रहे थे और वहीं शिवाय बिना किसी गिल्ट के अपनी माँ अस्मिता को देख रहा था।

    अब मिलते हैं अगले भाग में।

    क्या सच जानकर ऑबरॉय फैमिली एक्सेप्ट करेगी मोहोब्बत को? क्या मोहोब्बत इतनी जल्दी हार मानकर इसको अपनी तक़दीर मान लेगी? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें....

  • 19. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 19

    Words: 3381

    Estimated Reading Time: 21 min

    ये लड़की इस घर में नहीं रहेगी...


    ऑबरॉय मेंशन में शिवाय ने मोहब्बत से शादी कर ली थी। उसने उसे अपने मेंशन में लाया था। सभी मोहब्बत को देखकर हैरान थे और सोच रहे थे कि यह कौन है? पर शरद के बताने पर कि यह ओम त्रिपाठी की बहन है, तब सबसे पहले अस्मिता गुस्से से भर गई। आखिरकार इन दिनों जो कुछ भी हुआ था, उससे उसका गुस्सा जायज था।

    अस्मिता के गुस्से के चलते शिवाय ने मारिया से कहकर मोहब्बत को अपने रूम में भेज दिया।

    अस्मिता ने गुस्से से शिवाय को घूरकर कहा, "ये क्या है शिवू? ये लड़की मेरे घर में क्या कर रही है? क्यों लाए हो तुम उसे यहां? और वो तुम्हारे रूम में क्यों रहेगी?"

    "वो इस घर की बहू और मेरी वाइफ है, मॉम। She is Mrs. Mohobbat Shivaay Singh Oberoi." शिवाय गहरी सांस लेकर आखिरकार बोल ही दिया।

    सभी की आँखें फटी की फटी रह गईं यह सुनकर। सभी शॉक होकर शिवाय को ही देख रहे थे और वही शिवाय बिना किसी गिल्ट के अपनी माँ अस्मिता को देख रहा था।

    केसर, शिखा, शनाया, पहल सबने शॉक होकर अपने मुँह पर हाथ रख दिया यह सुनकर। वे तीन बच्चे जो पिलर के पीछे छिपे थे, सबकी बातें सुन रहे थे, वे यह सुनकर खुशी से मुस्कुराकर एक-दूसरे को देखने लगे।

    कुछ देर के लिए मेंशन में इतना सन्नाटा पसरा गया, जैसे यह किसी खतरनाक तुफान के आने से पहले की शांति थी।

    शिवाय सबके चेहरे के एक्सप्रेशन को इग्नोर करते हुए वहाँ से जाने लगा कि एक भारी आवाज उसके कानों में सुनाई पड़ी, "अभी हमारे सवाल खत्म नहीं हुए हैं शिवाय। तुम तब तक यहाँ से नहीं जा सकते जब तक हमें हमारे सारे सवालों के सही जवाब ना मिल जाएँ।"

    ध्वनित जी की रोबदार आवाज सुनकर शिवाय के कदम रुक गए। वह मुड़कर उन्हें देखने लगा, ध्वनित जी को उसके चेहरे पर जरा सा भी पछतावा दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे।

    "पूछिए, क्या पूछना चाहते हैं?" यह कहकर वह अब सोफे पर बैठ गया क्योंकि उसे पता था अब उसके परिवार के सवाल इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाले हैं।

    "पहले तो यह बताओ, कि यह सब क्या है? इस शादी करने का क्या मतलब है?" अधिराज ने कड़क आवाज में पूछा, जिससे शिवाय बोरियत से कहता है, "इसमें मतलब क्या? बस मुझे उससे शादी करनी थी, तो मैंने कर दी, डैड।"

    सभी उसे हैरानी से देखने लगे।

    "पर यह लड़की तुम्हें मिली कहाँ से और क्या यह शादी उसने अपनी मर्जी से की है?" केसर को जिस बात का डर था, उसे जाहिर करते हुए पूछ लिया।

    "बताया था ना माइकल ने कि यह चौधरी इवेंट में वहाँ काम करती थी? और क्या फ़र्क पड़ता है कि इस शादी में उसकी मर्जी थी या नहीं, चाची? शादी होनी थी, हो चुकी है।" शिवाय के इस तरह के जवाब से किसी को भी उम्मीद नहीं थी।

    "इसका मतलब मेरा शक सही है। तुमने इस लड़की से जबरन, उसकी मर्जी के खिलाफ़ शादी की है। मैं तो उसे देखते ही समझ गया था। कितना डर था उसके चेहरे पर तुम्हारा! हमारे खानदान की इज़्ज़त का जरा भी ख्याल नहीं आया तुम्हें यह करते वक़्त? समझते क्या हो तुम खुद को? Look Shivaay, You are the billionaire CEO of Oberoi Empire और तुमसे यह मैं बिल्कुल भी एक्सपेक्ट नहीं करूँगा। वो लड़की इस घर में नहीं रह सकती। तुम अभी के अभी उसे छोड़ आओ।"

    अधिराज ने गुस्से में उस पर बरसते हुए अपना फ़रमान सुना दिया। शिवाय की बातें और उसकी हरकतें अब उन्हें गुस्सा दिला रही थीं।

    शिवाय उसकी आँखों में आँखें डालकर बिना भाव से कहता है, "वो कहीं नहीं जाएगी डैड, ना अभी और ना कभी भी। जब तक मैं नहीं चाहूँगा, वो मुझे और इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। चाहे मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती से, रहना उसे इसी घर में है।"

    "पागलपन बन्द करो अपना। तुम..." अधिराज के उसकी ओर बढ़कर, चिल्लाते हुए इतना कहते ही बीच में एक गंभीर आवाज आई।

    "वजह जान सकते हैं तुम्हारे यह करने की?" बाप-बेटे की इस सीरियस नोक-झोंक में आखिरकार ध्वनित जी को बीच में बोलना ही पड़ा।

    संस्कार भी ध्वनित जी की बात पर सहमति जताते हुए उसे एकटक देखकर कहता है, "हाँ, शिवा। बता, क्या वजह है तेरी उससे शादी की? तू तो उसे सजा देना चाहता था ना, तो सजा के तौर पर उसे पुलिस के हवाले कर देता, जिससे खुद-ब-खुद उसका परिवार हम सबके सामने हाजिर हो जाता। फिर यह सब करने का क्या मतलब है?"

    उसे शक था कि शिवाय बता कुछ और रहा है और उसकी आँखें बोल कुछ और रही थीं।

    शिवाय संस्कार को कुछ देर देखकर फिर कहता है, "वजह है भाई। वजह है आप, वजह है यह परिवार। आपने ही कहा था कि हमारा परिवार बच्चा अडॉप्ट करने के लिए कभी तैयार नहीं होगा और आपने सरोगेसी से भी बच्चा एक्सेप्ट करने से मना कर दिया और कहा, आपको कोई बच्चा नहीं चाहिए। पर इन सब में किसी ने भी मेरी भाभी के बारे में नहीं सोचा। वो इस वक़्त जिस सिचुएशन से गुज़र रही है, उसमें से उन्हें बाहर लाने का बस एक ही तरीका है और वो है उनका अपना बच्चा।" वह संस्कार से झूठ नहीं बोल सकता था, इसलिए उसने जो सच था वो कहा।

    सभी हैरानी के साथ-साथ सवालिया नज़रों से उसे देख रहे थे, तब उर्वशी ने सवालिया होकर पूछा, "क्या मतलब?"

    शिवाय ने सोफे से उठकर बिना किसी को देखे फिर से कहा, "मतलब यह कि मेरी भाभी की गोद सूनी नहीं रहेगी। उनका अपना बच्चा होगा और उस बच्चे का खून भी इसी खानदान का होगा। और उनकी सूनी गोद को हरी-भरी करने वाला वो बच्चा मेरा और मोहब्बत का होगा।"

    सबके चेहरे पर बारह बज चुके थे शिवाय की बात सुनकर। सब के सब आँखें फाड़े शिवाय को देख रहे थे। इस वक़्त सबको जैसे सदमा लग गया था।

    "ये...ये सब क्या बोल रहा है तू, शिवा?" संस्कार ने नम आँखों से हैरान एक्सप्रेशन से कहा।

    "हाँ भाई, मेरा और मोहब्बत का बच्चा। जो इसी खानदान का कहलाएगा, जिसके खून पर कोई सवाल नहीं करेगा और ना ही आपको इस बात के लिए डरने की ज़रूरत होगी कि उस बच्चे को कोई लेकर भाग जाएगा। भाभी की खुशियाँ मैं उन्हें दिलाकर रहूँगा। आप दोनों को मॉम-डैड कहने वाला ज़रूर आएगा। आप दोनों ने अपने बच्चे को लेकर जो-जो सपने देखे हैं, वो ज़रूर पूरे होंगे।"

    शिवाय ने उसके कंधों को थामकर उसकी आँखों से आँखें मिलाकर अपना फ़ैसला सुना दिया था।

    संस्कार की आँखें भर आईं, वह क्या कहे कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसका भाई यह सब उसके लिए कर रहा था? पर एक सवाल अभी भी उसके मन में था कि इन सबके लिए वही लड़की मोहब्बत ही क्यों?

    "तुम्हें अंदाज़ा भी है, तुम क्या बोल रहे हो शिवाय? चलो मान लिया, इस घर के कुछ उसूल हैं जिसकी वजह से सब बच्चा गोद लेने से मना कर देते। यह भी मान लिया कि संस्कार का डर भी गलत नहीं था। और तुम्हें तुम्हारा अपना बच्चा देना है, यह भी सही है पर अगर बच्चा देना भी है तो तुम और क्यारा क्यों नहीं? यह लड़की ही क्यों?"

    उर्वशी की बात गौर करने लायक थी इसलिए सब फिर से शिवाय को देखकर उसके जवाब का इंतज़ार करने लगे।

    शिवाय उसे देखकर गंभीर भाव से कहता है, "क्योंकि, दूसरी वजह यह भी है कि इस तरह से मैं उन त्रिपाठियों से बदला भी ले पाऊँगा। उनकी वजह से आज मेरी भाभी और मेरी दादी का यह हाल है। अब जब उनकी अपनी बेटी यहाँ तड़पेगी तो वहाँ उन्हें भी तड़पना होगा। बेटे को तो बचा लिया पर अपनी बेटी को मेरे चंगुल से मुक्त कभी नहीं कर पाएँगे।"

    सभी उसके जवाब से संतुष्ट थे भी और नहीं भी पर संस्कार को यह बात कहीं से भी सही नहीं लगी। वह महसूस कर पा रहा था शिवाय की यह बात मानने लायक नहीं लग रही थी। उसे पूरा यकीन था कि उर्वशी के इन सवालों पर वह सरासर झूठ बोल रहा था।

    "I hope सबको अपने जवाब मिल चुके हैं, now excuse me." यह कहकर वह जाने लगा कि अस्मिता की सर्द आवाज ने उसे फिर से रोक लिया, "वो लड़की इस घर में नहीं रहेगी, शिवू। मैं उसे एक पल के लिए भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। उसे यहाँ से जाना ही होगा।"

    शिवाय रुककर उसे देखकर गहरी आवाज में कहता है, "अगर वो इस घर से गई तो आपका शिवाय भी इस घर से जाएगा, मॉम।"

    अस्मिता हैरान और गीली पलकों से शिवाय को देख रही थी कि आज उसका बेटा एक लड़की के लिए अपनी ही माँ से बहस कर रहा था और अपने घर को छोड़ने की बात कर रहा था! सब देख पा रहे थे शिवाय की आँखों में मोहब्बत के लिए एक अलग ही जुनून।

    "अगर आप सबको उससे प्रॉब्लम है तो मैं उसे लेकर अपने विला चला जाऊँगा। फ़ैसला आपका है मॉम, आपको अपनी ज़िद प्यारी है या बेटा?"

    इतना कहकर वह जाने लगा कि अचानक से रुककर अपने हाथ की उंगली से अंगूठी निकालकर अस्मिता के हाथ में थमाते हुए कहता है, "ये क्यारा को लौटा दीजिएगा और कहिएगा कि अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" यह कहकर वह अब किसी को और कुछ भी कहे बिना चला गया।

    अस्मिता के कदम उसे जाते हुए देखकर डगमगा गए, जैसे उसकी शरीर में जान ही ना बची हो।

    अधिराज और संस्कार ने उसे संभाल लिया तब अस्मिता ने भरे गले से कहा, "देखा आप सबने? जिस लड़की ने अभी तक इस घर में ठीक से कदम तक नहीं रखा है उसके लिए आज हमारा शिवाय हमें छोड़ने की बात कर रहा है! उस लड़की के अशुभ कदम क्या पड़े, उसने हमसे हमारा शिवाय छीन लिया। इसने क्यारा से अपना रिश्ता तोड़ दिया, बिना यह जाने कि जब उसे इस बारे में पता चलेगा तो क्या बीतेगी उस बच्ची पर! यह मेरा शिवू नहीं है, राज (अधिराज)...यह मेरा शिवू नहीं है।" यह कहकर वह उसके सीने से लगकर रोने लगी।

    ध्वनित जी ने जिस तरह से शिवाय की आँखों में जिद देखी थी, वे जानते थे कि शिवाय अब जिस तरह से अपनी बात पर अड़ा है, वह उसे पूरा करके रहेगा। आखिरकार वह उन्हीं की परछाई था।

    अस्मिता की हालत पर वे इस वक़्त उसे क्या समझाएँ, वे खुद समझ नहीं पा रहे थे।

    "अस्मिता को ले जाओ अधिराज, उसे आराम की ज़रूरत है।" ध्वनित जी ने गहरी साँस लेकर कहा और वहाँ से अपने रूम में चले गए। अधिराज भी अस्मिता को सहारा देते हुए लेकर जाने लगा।

    बाकी सबके जाने के बाद अब वहाँ खड़ी उर्वशी, उसका परिवार, शिखा और पहल थे।

    पहल गुस्से में कहती है, "आज यह सब उस आई हुई लड़की की वजह से हुआ है। उसी की वजह से मेरे घर में सब दुखी है। I hate her...I just hate her।"

    अपने पैर पटककर वह भी अपने रूम में चली गई। बाकी सब भी मायूस होकर चले गए।

    शिवाय जैसे ही अपने रूम में आता है, उसे मोहब्बत के सिसकने की आवाज सुनाई देती है। जो सोफे पर सिमटकर बैठी हुई थी।

    वह अपना कोट निकालते हुए कहता है, "तुम्हारे आँसुओं से यहाँ किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। आगे बहुत ज़रूरत पड़ेगी इन्हें बहाने की, इसलिए चुपचाप सो जाओ। अभी मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए।"

    तब उसका फ़ोन बजता है, वह फ़ोन देखकर रूम से निकलकर स्टडी रूम में चला जाता है।

    मोहब्बत अपना सर उठाकर उसे जाते हुए देखती रही कि यह कितना पत्थर दिल इंसान है जिसे किसी की तकलीफ़ दिखाई नहीं देती! रोते हुए वह अपनी किस्मत को कोसते हुए वहीं सोफे पर लेट गई। और कुछ देर में रोते-रोते उसे नींद आ गई।


    करीबन देर रात को शिवाय अपने रूम में आता है और बाथरूम में चला जाता है। कुछ देर बाद चेंज करके आते ही बेड पर लेट गया और करवट बदलकर सामने सोफे पर सिकुड़कर सो रही मोहब्बत को देखने लगा।

    उसके चेहरे पर की थकान, आँसू के पड़े हुए निशान, मायूस चेहरा फिर भी बालकनी से आ रही चाँद की रोशनी में चमक रहा था।

    शिवाय को खुद पता नहीं था, वह कितनी देर तक यूँ ही उसे देखता रहा और फिर वैसे ही उसे देखते हुए नींद की आगोश में चला जाता है।


    अगली सुबह मोहब्बत गहरी नींद में थी कि एकदम से उसके चेहरे पर पानी की बौछार हुई जिससे वह हड़बड़ाते हुए "मम्मी..." का नाम लेते हुए चिल्लाकर उठकर तेज साँस लेते हुए खांसने लगी।

    उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा काफ़ी भीग चुका था। नींद उड़ते ही वह अपना चेहरा उठाकर देखती है तो शिवाय सोफे पर एक पैर रखे हुए अपनी जाँघ पर बाल्टी रखे उसे घूर रहा था।

    मोहब्बत हैरान और गुस्से से मिले-जुले भाव से उसे घूरने लगी।

    तब शिवाय ने ताना मारते हुए कड़क आवाज में कहा, "रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। अभी भी आँखों से आँखें मिलाने की हिम्मत है तुममें? इंटरेस्टिंग!"

    मोहब्बत ने अपनी नज़रें उससे फेर लीं। तब शिवाय ने फिर आगे कहा, "यहाँ आराम कराने के लिए नहीं लाया हूँ तुम्हें। उठो और मेरे लिए नाश्ता बनाओ। अब से मेरे सारे काम तुम ही करोगी।"

    मोहब्बत कुछ बोले बिना वैसे ही बैठी रही। खुद की बात को इग्नोर होता हुआ पाकर शिवाय गुस्से में बाल्टी वहीं फेंककर उसका हाथ पकड़कर उसे खींचकर उठाते हुए रूम से बाहर ले जाने लगा।

    मोहब्बत अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर नाकामयाब रही।

    वहीं घर के सभी नीचे डिनर टेबल पर नाश्ता करने बैठे थे, उन सबकी नज़र सीढ़ियों से आ रहे शिवाय और मोहब्बत पर पड़ी।

    शिवाय उसे खींचते हुए किचन में लाकर जटसे छोड़ दिया और मारिया से कहता है, "मेरा नाश्ता यह बनाएगी, नेनी।"

    "क्यों बाबा? उस बच्चे को क्यों तकलीफ़ देना? मैं हूँ ना, आप बोलो आपको क्या खाना है? मैं बना देता हूँ।" अब जब मोहब्बत ऑबरॉय परिवार की छोटी बहू थी, जिससे मारिया मना करते हुए बड़े प्यार से कहती है।

    "नो नेनी, नाश्ता तो यही बनाएगी। इस घर में रहकर मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ने नहीं लाया हूँ। आखिर मैं भी तो देखूँ कि इसके भागोड़े परिवार ने इसे क्या-क्या सिखाया है? कुछ बनाना जानती भी है या फिर बस सब के सब क्राइम करने और झूठ बोलने में एक्सपर्ट है?"

    शिवाय की बात पर मोहब्बत की मुट्ठियाँ आपस में कस गईं। उसकी आँखें भर आईं। एक तो वह खुद ही उसे जबरदस्ती लेकर आया था। वह बेचारी तो यहाँ आना भी नहीं चाहती थी और फिर भी उसे यह सब सुनना पड़ रहा था।

    मारिया बेचारी नज़रों से मोहब्बत को देखने लगी जो अपने स्कार्फ से अपनी गीली पलकों को बार-बार साफ़ कर रही थी।

    "और हाँ, सिर्फ़ 10 मिनट हैं तुम्हारे पास। मुझे मेरा ब्रेकफ़ास्ट रेडी चाहिए।"

    शिवाय मोहब्बत को घूरकर उसे ऑर्डर देकर चला गया। सभी उसे जाते हुए देखते रहे। सभी एक तरफ़ हैरान थे। जो कल रात को उसे लेकर घर छोड़ने की बात कर रहा था वो आज खुद इस लड़की के साथ इतना रूड था। फिर भी किसी ने ज़्यादा रिएक्ट ना करते हुए अपने नाश्ते पर ध्यान देने लगे। संस्कार लाचारी से उसे देखने लगा।

    मोहब्बत अब किचन में सब देखकर सोचने लगी कि 10 मिनट में क्या ही बनेगा? सब्ज़ियाँ काटने में भी कम से कम 4 से 6 मिनट तो लग जाते हैं। वह कुछ सोचकर एक बर्तन लेकर मारिया से पूछकर कुछ बनाने लगी।

    मारिया और बाकी के मैड्स उसके हाथ चलते देख हैरान थे। ऐसे तेज गति से वह काम कर रही थी, जैसे कि कोई प्रोफ़ेशनल कुक हो।

    शिवाय अपने कहे अनुसार ठीक 10 मिनट में तैयार होकर डिनर टेबल पर आकर बैठ हुआ था। वह हमेशा से टाइम का पंक्चुअल था।

    ग्रे कलर के सूट-पैंट में बहुत ही हैंडसम लग रहा था। उसे देखकर मोहब्बत अपने दोनों हाथों में उसका नाश्ता लिए उसके पास जाकर टेबल पर उसके सामने रख दिया।

    नाश्ता देखकर शिवाय की आँखें छोटी हो गईं। मोहब्बत नाश्ता रखते ही जाने लगी कि शिवाय की आवाज आई, "यह क्या है?"

    मोहब्बत रुककर शिवाय को घूरकर फिर नाश्ते को देखकर कहती है, "हमारे गुजरात में तो इसे Vegetable Toast Sandwich कहते हैं।"

    उसके इस जवाब से संस्कार जो शिवाय के पास बैठा था, वह हल्का हँस दिया।

    तब शिवाय ने मोहब्बत को घूरते हुए कहा, "तो यह बनाया है तुमने 10 मिनट में?"

    "10 मिनट में छप्पन भोग बनाना, यह सब फ़िल्मी बातें हैं। असल ज़िंदगी में किचन में जाकर पता चलता है कि सब्ज़ियाँ काटने में भी कम से कम 10 मिनट हो जाते हैं। आपने समय कम दिया था, तो इसमें यही बन सकता था।"

    शिवाय की बात पर मोहब्बत ने हिम्मत करके गहरी साँस लेकर एक साँस में सब कह दिया।

    मोहब्बत की बात पर जहाँ कुछ लोग ऐसे थे जो गुस्से से उसे घूर रहे थे, तो कुछ बिना कुछ कहे ऐसे ही बैठे थे। वहीं केसर, अभिनव, शिखा, संस्कार वे सब अपनी हँसी रोके बैठे थे।

    "और यह क्या, चाय? मैं चाय नहीं पीता।" शिवाय के चिढ़कर गुस्से से कहने पर मोहब्बत ने धीरे से कहा, "तो आपने बताया ही नहीं कि आप चाय नहीं, लोगों का खून पीते हैं?"

    शिखा यह सुनकर अब जोरों से हँसने लगी जिससे अस्मिता उसे घूरने लगी कि वह जटसे चुप हो गई।

    शिवाय को उसका उससे बहस करना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। उसने गुस्से में उस चाय का कप झटक दिया जिससे कप उल्टा गिरकर चाय उसमें से छलक उठी और उसके कुछ छींटे मोहब्बत के हाथ पर लग गए।

    जिससे मोहब्बत तुरंत पीछे अपने कदमों को लेते हुए अपने हाथ को सहलाने लगी। वह नम आँखों से उसे देखने लगी कि एक चाय देखकर इतना गुस्सा कौन करता है?

    शिवाय उसे घूरते हुए सर्द आवाज में कहता है, "जितनी तेज ज़बान चलती है ना तुम्हारी अगर उतने ही तेज हाथ चलाती तो नाश्ता अच्छे से रेडी हो पाता। पर नहीं, यह कैसे हो पाता? आखिर उन त्रिपाठियों का खून जो ठहरी। तो उन्हीं की तरह ही होगी, ढीठ और बदतमीज़।"

    उसे ताना मारकर अब मारिया को देखकर अपने लिए कॉफ़ी मँगवाता है।

    मोहब्बत बिना कुछ कहे उसे घूरते हुए वहाँ से जाने लगी कि पहल ने तंज कसते हुए कहा, "देखा मॉम, लोग कई बार अपनी औकात भूल जाते हैं। उन्हें लगा था कि यहाँ इतने बड़े घर में आकर मुफ़्त का खाना-पीना मिल जाएगा। पर देखो, उनका तो कहीं बैठना भी नसीब में नहीं है।"

    मोहब्बत उसकी बात पर रुककर पीछे मुड़कर एक नज़र उसे देख, फिर वहाँ से चली गई।

    "यह क्या तरीका है बात करने का छोटी? जितनी तुम हो उस हिसाब से बात किया करो। भूलो मत वह भाभी है तुम्हारी। आजकल बदतमीज़ी बहुत बढ़ गई है, तुम्हारी।"

    संस्कार के डाँट लगाने पर पहल ने कहा, "वो मेरी कोई नहीं है, भाई। जबकि वो शिवाय ब्रो की ही कोई नहीं है तो हमारी कैसे कुछ होगी? & You know what, I don't like her...I just hate her."

    पहल ने गुस्से में कहा, जिससे संस्कार शिवाय को देखने लगा जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह चुपचाप अपना नाश्ता कर रहा था। जैसे उसे कोई फ़र्क ही ना पड़ा हो।

    संस्कार अपना सर हिलाकर नाश्ता अधूरा छोड़कर वहाँ से उठकर जाने लगा कि अस्मिता की आवाज आई, "नाश्ते टेबल से बिना खाए नहीं उठते संस्कार।"

    "आप सब में इंसानियत नहीं होगी माँ, पर मुझ में है। मैं यह नहीं भूल सकता कि हमारे परिवार का एक सदस्य (मोहब्बत) अभी भी इस नाश्ते टेबल पर शामिल नहीं है और आप लोग तो इतनी बड़ी नाक वाले हैं कि मैं जानता हूँ उसके खाना ना खाने से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। मेरी चिंता मत कीजिए, मैं ठीक हूँ। यहाँ जो भी अभी-अभी ड्रामा हुआ है, उससे पेट ऑलरेडी भर गया मेरा।"

    यह कहकर वह मारिया से जाकर कुछ कहता है और लिफ़्ट की ओर जाने लगा। उसे मोहब्बत के साथ इस तरह का बर्ताव देखा नहीं गया था।

    ध्वनित जी सब कुछ अपनी आँखों से देख रहे थे पर उन्होंने किसी से कुछ कहना ज़रूरी नहीं समझा।

    शिवाय के हाथ संस्कार की बातें सुनकर खाते हुए रुक गए। फिर उसने भी खाया ना खाया और अपना हाथ-मुँह साफ़ करते हुए वहाँ से उठकर ऑफ़िस के लिए निकल गया।

    वहीं अस्मिता ने अपना सर पकड़ लिया, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि इन दिनों उसके घर में कितना कुछ हो रहा था!

    अब मिलते हैं अगले भाग में ✍

    क्या होगा जब मोहब्बत को पता चलेगा इस शादी के पीछे का शिवाय का मक़सद? क्या मोहब्बत यहीं रहकर इन सबके दिल में अपनी जगह बना पाएगी या इस घर से भाग जाएगी? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहे...

  • 20. SHIVAAY Ki Ankahi MOHOBBAT ❤ - Chapter 20

    Words: 3230

    Estimated Reading Time: 20 min

    ऑबरॉय मेंशन, मुंबई

    मोहोब्बत रूम में सोफे पर उल्टी लेटी सिसक रही थी। जिस तरह से बिना किसी गलती के उसके साथ बेरुखा व्यवहार हो रहा था और उसके परिवार को ताने मारे जा रहे थे, उससे वह खुद को बहुत टूटी हुई महसूस कर रही थी।

    अपने शहर में होकर तो वह सबसे थोड़ी-बहुत हिम्मत करके लड़ भी लेती, क्योंकि वहाँ उसे पता था कि उसके साथ उसका परिवार है। पर यहाँ इस अनजान शहर, अनजान जगह और अनजान लोगों के बीच आवाज उठाना उसके लिए बहुत मुश्किल था। ऊपर से शिवाय के गुस्से से वह ऑलरेडी काफी डर चुकी थी।

    कुछ देर बाद मोहोब्बत को अपने सर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसने अपना सर उठाकर देखा तो संस्कार वहाँ उसके सामने खड़ा था। मोहोब्बत झट से उठकर बैठ गई और अपने स्कार्फ से अपने आँसू साफ करने लगी।

    संस्कार उससे थोड़ी दूरी पर सोफे पर बैठ गया और नरमी से कहा, "जानता हूँ, ये सब जो हो रहा है वो नहीं होना चाहिए। शिवाय ने जो अभी-अभी नाश्ते की टेबल पर तुम्हारे साथ बर्ताव किया, वो नहीं करना चाहिए था। उसके लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ। वो दिल का बुरा नहीं है, बस उसे गुस्सा बहुत आता है। जिस पर उसका खुद का कोई बस नहीं है।"

    मोहोब्बत ने कुछ नहीं कहा, बस अपना सर झुकाए उसकी बातें सुन रही थी।

    तब मारिया नाश्ते की प्लेट लेकर रूम में आई। संस्कार ने यह देखकर कहा, "नाश्ता कर लो, किसी की भी वजह से खुद को नुकसान पहुँचाना सही बात नहीं है। अगर इस घर के लोगों का सामना करना है तो उसके लिए हिम्मत चाहिए होगी।"

    अपनी बात रखकर वह वहाँ से उठकर जाने लगा कि मोहोब्बत ने झट से उसका हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, "प्लीज, मुझे... मुझे मेरे घर जाना है। आप... आप समझाइए ना उन्हें। मुझे यहाँ नहीं रहना। मैं तो कुछ जानती भी नहीं हूँ। ये सब क्या हो रहा है, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है!"

    संस्कार को उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ। वह उसके पास बैठकर उसके आँसू पोछते हुए प्यार से कहा, "शश... बस-बस रोते नहीं। ऐसे प्यारे से चेहरे पर आँसू अच्छे नहीं लगते। तुम चिंता मत करो, मैं कोशिश करूँगा शिवाय को मनाने की। पर अभी फिलहाल तुम नाश्ता करो और बिल्कुल भी रोना नहीं।"

    संस्कार उसके सर पर हाथ रखकर एक नज़र मारिया को देख अब रूम से बाहर जाने लगा। मोहोब्बत जो उसकी बातें सुन रही थी, वह अपना चेहरा उठाकर उसे जाते हुए देखती रही।

    मारिया अब मोहोब्बत के पास आकर प्लेट उसके पास रखकर बोली, "ये संस्कार बाबा हैं, डिकरा, शिवाय बाबा के बड़े भाई। स्वभाव से बड़े सुलझे हुए और दयालु। शिवाय बाबा से एकदम उल्टे हैं। दोनों भाइयों की जान बसती है एक-दूसरे में। जब से कानल डिकरा के साथ वो हादसा हुआ है, तब से संस्कार बाबा शांत हो गए हैं वरना तो वो बहुत ही मज़ाक किसम के इंसान हैं। चलो, अब तुम नाश्ता कर लो। मैं बाद में आकर प्लेट लेकर जाती हूँ।" मारिया उसके सर पर हाथ सहलाकर चली गई।

    "तो क्या वो जिनका एक्सीडेंट हुआ और वो बच्चा खो दिया वो संस्कार भाई की ही वाइफ है? बहुत बुरा हुआ इनके साथ, पर इनकी वाइफ? वो कहाँ है, वो तो कहीं नज़र ही नहीं आ रही। संस्कार भाई अगर सर जी से बात करेंगे, तो शायद वो मान जाए! (फिर प्लेट में नाश्ते को देखने लगी) भाई ने सही कहा कि सामना करने के लिए हिम्मत चाहिए और उसके लिए मुझे खाना होगा। फिर मुझे यहाँ से भागना भी तो है और इसके लिए भी मुझे हिम्मत की ज़रूरत पड़ेगी।"

    मोहोब्बत ये सब सोचते हुए नाश्ते को देखकर अपने आँसू पोछकर उसे खाने लगी।

    ऑबरॉय एम्पायर

    शिवाय अपने ऑफिस में बैठा अपने लैपटॉप पर अपना काम कर रहा था पर उसका मन किसी काम में फोकस नहीं हो पा रहा था।

    उसके दिलो-दिमाग में बार-बार सुबह मोहोब्बत के साथ किया हुआ बर्ताव याद आ रहा था। वो जितना उसे सोचने से खुद को रोक रहा था, उतनी ज़्यादा उसे वो दिखाई दे रही थी जिससे उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

    "What the.... क्यों सोच रहा हूँ मैं उसके बारे में? मैंने उससे शादी सिर्फ और सिर्फ उसे दर्द देने के लिए, उसे परेशान करने के लिए की है। ताकि मैं अपनी भाभी के साथ हुए अन्याय का उन त्रिपाठियों से बदला ले सकूँ। नहीं सोचना मुझे तुम्हारे बारे में, समझी तुम! नहीं सोचना, I just hate you."

    शिवाय टेबल पर हाथ पटककर गुस्से में खुद से बातें करने लगा।

    तब शरद केबिन का दरवाज़ा नॉक करके अंदर आकर बोला, "सर वो ये मिस्टर मल्होत्रा वाला प्रोजेक्ट..." यह कहकर वह शिवाय के चेहरे पर गुस्सा देखकर ही चुप हो गया।

    "क्या हुआ सर? Is everything ok? आप कुछ गुस्से में लग रहे हैं?" शिवाय के गुस्से की वजह जानने के लिए शरद ने अपना थूक गटकते हुए हिम्मत करके पूछा।

    "नहीं तो। तुम्हें क्या लगता है, मैं पागल हूँ जो अकेला बिना वजह गुस्सा करूँगा? मुझे किसी बात से कोई फर्क पड़ता है, क्या? कुछ नहीं हुआ है मुझे, समझे?"

    शिवाय का इस तरह का एक्सप्लेनेशन सुनकर और उसे झल्लाते हुए देखकर शरद हड़बड़ाकर बोला, "न... नहीं सर। मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया। आई एम सॉरी सर, आप आराम कीजिये। मैं अभी आपके लिए कॉफ़ी भेजवाता हूँ।" उसे इस वक्त यहाँ से खिसकना ही ठीक लगा।

    शिवाय चेयर पर पीछे सर टिकाकर अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए खुद को शांत करने की कोशिश करने लगा।

    कुछ देर बाद प्यून आकर दरवाज़ा नॉक करने पर शिवाय कम इन कहा। प्यून कॉफ़ी रखकर चला गया।

    कॉफ़ी देखकर उसे सुबह मोहोब्बत की बनाई हुई चाय याद आ गई। फिर सारे ख्यालों को झटककर गहरी साँस लेकर कॉफ़ी का मग उठाकर उसे पीने लगा।

    कॉफ़ी पीने के बाद अब खुद को शांत करके अपने काम पर लग गया। ऐसे ही दिन बीतता रहा।


    रात 10 बजे

    यहाँ मेंशन में मोहोब्बत का आज का पूरा दिन कमरे में ही निकल गया। कोई उससे बात करना तो दूर उसे देखता तक नहीं था, जिस वजह से उसका भी बाहर जाने का मन नहीं किया।

    रात के खाने के बाद सभी अपने-अपने रूम में सोने जा चुके थे। शिवाय अभी तक घर नहीं आया था।

    मोहोब्बत के पास करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए अब वो रूम को अच्छे से देखने लगी, ताकि यहाँ से कैसे भागे जाए उसके बारे में सोच सके।

    पूरे रूम को देखते हुए वह बालकनी की तरफ जाने लगी। बालकनी का स्लाइडर ओपन करके बालकनी को देखती है तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं।

    "अरे बाप रे... ये क्या है? बालकनी है या मैदान? इतनी बड़ी बालकनी भी होती है क्या? इसमें तो और एक-दो रूम आ जाएँ।" मोहोब्बत बालकनी में जाते हुए उसे देखकर हैरानी से बोल पड़ी।

    मोहोब्बत देखती है बालकनी बहुत ही बड़ी और उसे इतने अच्छे से और बारीकी से खूबसूरत तरीके से सेट किया हुआ था।

    जिसके एक कोने में मीडियम सा सुंदर सा गार्डन था जहाँ कई तरह के पौधे लगे हुए थे। वहीं दो कुर्सियाँ और कॉफ़ी टेबल रखी हुई थी, वहाँ साइड में एक और सुंदर सा झूला भी था। उसके थोड़ी दूरी पर एक्सरसाइज के कुछ इक्विपमेंट्स रखे हुए थे।

    वहीं दूसरी ओर ग्लास रूफ़ शीट और उसके नीचे बेड लगाया हुआ था, साइड टेबल और कॉफ़ी टेबल भी था।

    तब घूमते हुए मोहोब्बत की नज़र बालकनी के तीसरे हिस्से पर पड़ी तो उसने शॉक होकर अपने मुँह पर हाथ रखकर कहा, "ये क्या? रूम की बालकनी में स्विमिंग पूल! आज तक घर के बाहर देखा और सुना था पर ऐसे रूम की बालकनी में स्विमिंग पूल कौन बनाता है? सोचो अगर कभी स्विमिंग पूल टूट गया और इसका पानी अंदर रूम में आ गया तो?" 😜

    वह अपनी सोच में खुद से बड़बड़ाकर फिर आखिर में ग्लास सीलिंग की ओर आती है और नीचे देखती है तो शॉक होकर अपने सीने पर हाथ रखकर कहती है, "ओ तेरी, इसकी हाइट तो बहुत है! अगर यहाँ से कूँदूंगी तो मैं गुजरात नहीं, सीधे ऊपर टपक जाऊंगी। अब कैसे निकलूंगी यहाँ से?"

    ये सोचकर वह मायूस होकर सीलिंग से थोड़ा नीचे की ओर झुककर यहाँ-वहाँ सब जगह देखने लगी कि उसके कानों में भारी आवाज आई, "भागने का रास्ता ढूँढ रही हो?"

    मोहोब्बत जो झुककर सीलिंग का मुआयना कर रही थी, शिवाय की आवाज सुनकर झट से सीधी खड़ी होकर वहीं जम गई और उसकी आँखें डर के मारे बड़ी हो गईं।

    जब वह बालकनी को अच्छे से देख रही थी, उसी वक्त शिवाय आ चुका था और फिर फ्रेश होकर उसे रूम में ना पाकर सीधा बालकनी में जा पहुँचा।

    शिवाय की आवाज से डरते हुए वह मन ही मन कहती है, "हे शिवजी, अब क्या जवाब दूँ? अगर पता चल गया कि वो जो सोच रहे हैं, मैं भी वही सोच रही हूँ तो...?"

    ये सब सोचते हुए वह अपनी घबराहट को छुपाते हुए धीरे-धीरे पीछे मुड़ती है कि एक कदम पीछे हो जाती है और सीलिंग से सट जाती है। शिवाय उसके ठीक पीछे काफी करीब खड़ा उसे बिना भाव से देख रहा था।

    मोहोब्बत की घबराहट उसके करीब होने से छुपने की जगह और बढ़ गई। वह अपने सीने पर हाथ रखकर खुद को शांत करने लगी।

    तब शिवाय ने उसके चेहरे के हर एक्सप्रेशन को गौर से नोट करते हुए गहरी आवाज में कहा, "सोचना भी मत। जो भी बेतुके ख्याल आ रहे हैं, उसे अपने दिमाग से निकाल देना।"

    "म... मैं ऐ... ऐसा कुछ नहीं सोच रही थी। मैं... मैं तो बस रूम देख रही थी और इस बालकनी को देखकर ख्याल आया कि बालकनी में स्विमिंग पूल बनाने का आईडिया किस बेवकूफ ने दिया था? अगर कभी ये टूट गया और इसका पानी रूम में आ गया तो?"

    मोहोब्बत अपने डर को छुपाते हुए एक साँस में कुछ भी बोलने लगी। जिसे सुनकर शिवाय उसे ऐसे देख रहा था जैसे वह किसी छोटे से बच्चे को देख रहा हो। इंफैक्ट वह यह सोच रहा था कि आजकल बच्चे भी ऐसा सवाल नहीं करते होंगे।

    दूसरी तरफ उसे इस बात पर गुस्सा भी आ रहा था कि मोहोब्बत ने उसे बेवकूफ कहा जबकि इस पूरे रूम का इंटीरियर शिवाय ने खुद अपनी पसंद से करवाया था।

    उसे शांति ज़्यादा पसंद थी जिस वजह से वो जब भी घर पर रहता, अपनी बालकनी के गार्डन में बैठा कॉफ़ी पीना या बुक पढ़ना पसंद करता और स्ट्रेस में रहता तो स्विमिंग करना।

    "यहाँ से जाने का ख्याल मन में ना लाओ तो ही अच्छा है वरना अच्छा नहीं होगा। और अब अपने इस छोटे से दिमाग को शांत रखो। ये मेरा रूम है, मुझे जैसे पसंद होगा वैसा रहेगा। मैंने तुमसे कोई राय नहीं माँगी।"

    शिवाय उसकी तरफ झुककर मोहोब्बत की दोनों तरफ अपने हाथ ले जाकर सीलिंग को पकड़ कर मोहोब्बत को देखकर कहता है। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे।

    "आप... आप थोड़ा दूर रहकर बात नहीं कर सकते? ऐसे मेरे पास मत आया कीजिये।" मोहोब्बत ने इधर-उधर देखते हुए सीलिंग से पीछे की तरफ झुककर कहा।

    मोहोब्बत की बात पर शिवाय के चेहरे पर डेविल मुस्कान आ गई, वह उसकी आँखों में देखकर कहता है, "चाहे जितनी भी दूर रहने की कोशिश कर लो। एक ना एक दिन तुम्हें मेरा होना ही है। मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। मेरा जब मन करेगा तुम्हारे पास आऊँगा भी और तुम्हें छुँऊँगा भी। रोक सको तो कोशिश करके देख लेना।"

    उसकी गहरी आवाज और आँखों में एक जुनून देख मोहोब्बत का दिल बैठ गया। उसकी नज़रों की तपिश महसूस ना कर पाने पर वह अपना सर झुका लेती है।

    "और ये क्या हाल बना रखा है? कल से इन्हीं कपड़ों में क्यों हो? चेंज क्यों नहीं किया तुमने?" शिवाय की नज़र मोहोब्बत की ड्रेस पर जाने पर उसे नीचे से ऊपर एक नज़र देखकर कड़क आवाज में कहता है।

    "नहीं करना मुझे चेंज। वो.... मुझे घ... घर जाना है। आप मुझे कब जाने देंगे?" मोहोब्बत ने उसकी बात पर जवाब ना देकर अपनी बात कही।

    "चुपचाप, अंदर जाओ और चेंज करो।" शिवाय ने उसकी बात को इग्नोर करके वहाँ से जाते हुए कहा कि मोहोब्बत ने इस बार गुस्से में चिल्लाकर कहा, "मैंने कहा ना कि मुझे नहीं रहना यहाँ। नहीं करना मुझे कोई चेंज। जाने दीजिये मुझे यहाँ से। क्यों रखा हुआ है मुझे यहाँ पर?"

    शिवाय झट से उसकी ओर मुड़कर उसके बालों को पकड़ कर अपने चेहरे के करीब उसका चेहरा करके सर्द आवाज में कहता है, "अपनी आवाज मेरे सामने ऊँची करने की कभी हिम्मत भी मत करना, वरना फिर कभी ये तीखी जुबान और कुछ बोलने लायक नहीं रहेगी। अब चुपचाप अंदर जाओ और चेंज करो, वरना चाहो तो मैं साथ चल सकता हूँ।"

    शिवाय के छोड़ते ही मोहोब्बत सहमी आँखों से उसे देखकर बेमन से वहाँ से जाने लगी।

    शिवाय अपना सर हिलाकर मुड़कर सीलिंग से टिककर कुछ देर वहीं खड़े होकर ठंडी हवा को महसूस करने लगा।

    कुछ देर बाद जब वह रूम में आया तो मोहोब्बत को सोफे पर बैठे देखकर उसकी आँखें छोटी हो जाती हैं।

    "लगता है तुम्हें एक बार में बात समझ नहीं आती? अब यहाँ क्यों बैठी हो, सच में चाहती हो कि मैं भी साथ में चलूँ?" शिवाय को बार-बार उसकी हरकतें गुस्सा दिला रही थीं।

    मोहोब्बत ने उसे देखकर धीरे से कहा, "वो नल खराब हो गया है। पानी नहीं आ रहा है, तो क्या करूँ?"

    दरअसल न्यू टेक्नोलॉजी का टैप था, जिससे मोहोब्बत को समझ ही नहीं आया कि उसे कैसे ऑन करना है?

    शिवाय उसकी बात पर गुस्से के साथ-साथ हैरान था कि यह लड़की उसके रूम की सारी चीजें क्यों तोड़ने और खराब करने पर तुली हुई है? जबकि उसके रूम की सारी चीजें ब्रांडेड थीं। 😄

    "What rubbish? तुम ये कहो कि तुम्हें टैप ऑन करना नहीं आता। मेरे रूम की कोई भी चीज़ ख़राब नहीं हो सकती। Come with me." ये कहकर वह बाथरूम में चला गया। मोहोब्बत कुछ सोचते हुए उठकर उसके पीछे-पीछे चली गई।

    बाथरूम में आकर शिवाय ने बाथटब का टैप ऑन किया जिससे तुरंत फ़ोर्स के साथ पानी उसमें से गिरने लगा।

    मोहोब्बत हैरानी से देखकर मन ही मन कहती है, "बोलो, अब इसे भी प्यार से छूना पड़ेगा तब जाकर ये साहब ऑन होते हैं? मेरे घर में तो ये ऐसे नल को गोल घुमाओ, और पानी धड़ाधड़ चालू। 😆 पता नहीं कैसे-कैसे अजीब तरह की चीजें निकली हैं आजकल!"

    टैप को घूरते हुए मोहोब्बत अपना मुँह बनाकर जब शिवाय को देखती है, जो उसे ही घूर रहा था। जिससे वह हड़बड़ा गई और अपनी नज़रें झुका ली।

    शिवाय वहाँ से दरवाज़ा सटाते हुए बाहर निकल गया। मोहोब्बत दरवाज़ा लॉक करके शॉवर लेने लगी।

    शिवाय अपने बेड पर बैठकर साइड के ड्रॉअर से सिगरेट निकालकर उसे जलाकर कश लेने लगा।

    तब कुछ देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खोलकर मोहोब्बत बाहर आती है। उसके गीले बाल टॉवल से हल्के सुखाए हुए थे। ब्लू कलर के कार्टून प्रिंटेड नाइट सूट में वह बड़ी ही क्यूट लग रही थी।

    शिवाय की नज़र उस पर तभी थम गई थी जब उसने बाथरूम के दरवाज़े खुलने की आवाज सुनी थी। उसकी नज़रों की तपिश मोहोब्बत अच्छे से महसूस कर पा रही थी।

    वह बिना उस पर ध्यान दिए अपनी नज़रें झुकाए सोफे की तरफ चल पड़ी कि उसके कानों में एक ठंडी आवाज आई, "यहाँ आओ।"

    ये सुनकर मोहोब्बत के कदम रुक गए और वह घबराहट के मारे अपनी टी-शर्ट को मुट्ठी में पकड़ लेती है।

    उसे डर था कि शिवाय उसे वहाँ बुलाकर उसके साथ कुछ करेगा तो नहीं! इसलिए उसने सोच लिया था कि वह सोफे पर ही सोएगी। तब उसे फिर से शिवाय ने पुकारा, "सुना नहीं?"

    मोहोब्बत अपनी साँसों को नॉर्मल करके उसे देखकर बोली, "क... क्या काम है?"

    उसके इस सवाल पर शिवाय उसे घूरकर देखता है जिससे मोहोब्बत अपने कदम उसकी तरफ बढ़ा देती है।

    बेड के पास खड़ी होकर उसके बोलने का इंतज़ार करने लगी कि शिवाय अपनी सिगरेट साइड टेबल पर रखे ग्लास ऐश ट्रे में डालकर बेड पर झुककर मोहोब्बत का हाथ पकड़ कर उसे बेड पर खींच लेता है। जिससे मोहोब्बत बेड पर गिर पड़ी।

    मोहोब्बत हैरानी से उसे देखने लगी, उसने सोच लिया था कि वह हरगिज़ शिवाय के आसपास भी नहीं भटकेगी। इसलिए जल्दी से उठने लगी कि उससे पहले ही शिवाय उसकी कमर कस कर अपने करीब खींच लेता है।

    मोहोब्बत छटपटाकर उससे दूर होते हुए बोली, "ये... ये आप क्या कर रहे हैं, छोड़िए मुझे। मैं... मैं सोफे पर सोऊँगी। मुझे यहाँ नहीं सोना।" पर शिवाय कहाँ उसकी सुनने वाला था!

    मोहोब्बत को हाथ-पैर चलाते हुए देखकर शिवाय उसके पैरों को ब्लॉक कर देता है और उसके ऊपर आकर उसके दोनों हाथों को पकड़ कर बेड पर प्रेस करके कहता है, "कोशिश करना बेकार है, इसलिए सो जाओ चुपचाप।"

    मोहोब्बत छटपटाकर घबराई हुई आवाज में बोली, "न... नहीं, म... मुझे वो य... यहाँ नहीं सोना, मैं... वो...."

    "लगता है तुम्हें नींद नहीं आ रही है! कोई बात नहीं, मैं मदद कर देता हूँ तुम्हारी सोने में।" शिवाय ने शांत मगर डरावनी आवाज में बीच में कहा।

    "न... नहीं, प्लीज।" मोहोब्बत उसकी बातों का मतलब समझते हुए झट से बोल पड़ी।

    "तो अब डिसाइड कर लो, यहाँ चुपचाप शांति से सोओगी या...." इतना कहकर अपनी बात को अधूरा छोड़कर वह उसके चेहरे के करीब बढ़ने लगा।

    ये देख मोहोब्बत झट से तेज आवाज में भरे गले से बोली, "नहीं-नहीं, मैं यहीं चुपचाप शांति से सो जाऊँगी, पक्का।"

    शिवाय रुककर उसे देखने लगा जिसकी आँखों में नमी छा गई थी। मोहोब्बत की बातों में छुपी मासूमियत और बचपने से शिवाय चाहकर भी उसे देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा था।

    शिवाय झुककर उसकी गर्दन में अपना चेहरा छुपाकर कहता है, "गुड, तो सो जाओ।"

    शिवाय की इस हरकत से मोहोब्बत सकपकाकर धीरे से बोली, "प... पहले आप ह... हटिये तो सही।"

    उसकी बात से शिवाय अपना सर उठाकर उसे बिना भाव से देखने लगा जिससे मोहोब्बत हड़बड़ाकर उसे समझाने को कोशिश करते हुए बोली, "नहीं, म... मतलब आप ऐसे ही सो गए तो मैं सुबह होते-होते अकड़ जाऊँगी और फिर उठ नहीं पाऊँगी ना।" शिवाय कुछ देर उसे देखता रहा।

    "मुझे जहाँ सोना है, मैं वहीं सोऊँगा। अब बिना बड़-बड़ किए चुपचाप सो जाओ।" कड़क आवाज में कहते हुए फिर से उसकी गर्दन में अपना चेहरा छुपा लिया। मोहोब्बत की खुशबू से वह उसकी तरफ खिंचा चला जा रहा था।

    तो वहीं शिवाय की करीबी से मोहोब्बत के दिल की धड़कन और साँसें तेज चल रही थीं और वहीं उसका शरीर भी काँप रहा था। शिवाय की गरम साँसें और होंठ वह अपने गले पर महसूस कर पा रही थी।

    तेज साँस लेने के बावजूद उसे घुटन सी हो रही थी। उसके शरीर की कंपन और तेज धड़कनें शिवाय साफ़-साफ़ महसूस कर पा रहा था।

    मोहोब्बत फिर भी खुद को छुड़ाने की धीरे-धीरे कोशिश कर रही थी। ऐसे तो उसे नींद आने से रही। वह अपने हाथों की कलाइयों को हल्के से हिलाते हुए शिवाय की पकड़ से छुड़ाना चाहती थी।

    उसे अभी भी हिलता हुआ महसूस कर शिवाय जो आँखें बंद किए हुए लेटा था वह उसकी गर्दन पर तेज बाइट कर देता है जिससे मोहोब्बत की अचानक से चीख निकल जाती है और उसका सिसकना शुरू हो जाता है।

    उसके हाथ शिवाय के हाथों में कैद होने की वजह से अपनी गर्दन पर की हुई बाइट को छूकर सहला भी नहीं सकती थी।

    शिवाय बिना कुछ रिएक्ट किए वैसे ही लेटा रहा और उसका रोना महसूस करता रहा। इसी तरह से सिसकते हुए कुछ देर बाद मोहोब्बत वैसे ही रोते हुए सो जाती है।

    अब मिलते हैं अगले भाग में ✍

    क्या संस्कार समझा पाएगा शिवाय को? क्या वह मोहोब्बत की मदद कर पाएगा? क्या मोहोब्बत यहाँ से भागने में कामयाब हो पाएगी? सारे सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहें....