"पिंजरा: नफरत से मोहब्बत तक का सफर" एक जबरन रिश्ते से शुरू होने वाली ऐसी कहानी है, जो नफरत, ग़लतफहमी और दर्द के साये में पनपती है। इनायत— एक खूबसूरत, जिद्दी और आत्मसम्मानी लड़की—अपनी मर्जी के खिलाफ आर्यन से शादी करने पर मजबूर हो जाती है। आर्यन— एक जु... "पिंजरा: नफरत से मोहब्बत तक का सफर" एक जबरन रिश्ते से शुरू होने वाली ऐसी कहानी है, जो नफरत, ग़लतफहमी और दर्द के साये में पनपती है। इनायत— एक खूबसूरत, जिद्दी और आत्मसम्मानी लड़की—अपनी मर्जी के खिलाफ आर्यन से शादी करने पर मजबूर हो जाती है। आर्यन— एक जुनूनी, दबंग और रहस्यमयी शख्स—दिखता तो सख्त है, लेकिन उसका दिल इनायत के नाम पर ही धड़कता है। पहली रात से ही इनायत को लगता है कि वो एक पिंजरे में कैद हो गई है, पर वो नहीं जानती कि इस रिश्ते के पीछे छुपी है एक ऐसी मोहब्बत, जो उसके हर ग़लतफहमी को चुपचाप सह रही है। क्या इनायत कभी समझ पाएगी आर्यन के सच्चे जज़्बातों को? क्या नफरत का ये पिंजरा कभी मोहब्बत की उड़ान बनने पाएगा? "पिंजरा" एक दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी है—जहाँ नफरत के नकाब के पीछे छुपी होती है एक बेपनाह मोहब्बत।
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डीयू (DU) कैम्पस, दिल्ली
"इनू... इनू," गार्गी हांफते हुए इनायत की क्लास में आई और बोली। उस समय लंच टाइम चल रहा था। इनायत अपने दोस्तों के साथ हँस-हँसकर बात कर रही थी। उसने अपना नाम सुनकर दरवाजे की ओर देखा। वहाँ गार्गी को देखकर वह अपनी जगह से उठी और गार्गी के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, "क्या हुआ गायु? तू इतनी जल्दबाजी में यहाँ क्यों आई...? (अपनी एक आइब्रो उठाकर 🤨) क्या किसी ने तुझे परेशान किया...? (गुस्से में अपने दाँत पिसाते हुए) आज उसकी खैर नहीं जिसने तुझे परेशान किया होगा... (उसका हाथ पकड़कर) तू चल, मैं देखती हूँ उसे! और दिखाती हूँ कि इनायत सिंह की बहन को परेशान करने का क्या अंजाम होता है।"
गार्गी, जिसकी साँसें भागने की वजह से अभी भी फूली हुई थी, इनायत उसे लेकर बाहर कॉरिडोर से होकर उसकी क्लास की ओर बढ़ने लगी। तभी गार्गी ने अपना हाथ उसके हाथ से झटक दिया और वहाँ खड़ी होकर बोली, "अरे यार! तू भी ना हर वक्त बस घोड़े पर ही सवार रहती है। पहले तू मुझे ये बता कि तेरा वो डब्बा कहाँ है जिससे लोग एक-दूसरे से बात करते हैं...?"
"ये रहा, पर क्या हुआ...?" इनायत ने अपनी पॉकेट से फोन निकाला और गार्गी के सामने कर बोली।
गार्गी ने इनायत का फोन अपने हाथ में लिया और उसे ऑन करने लगी, पर फोन बैटरी लो होने की वजह से स्विच ऑफ था। वह चिढ़कर बोली, "इनू, ये बंद है।"
"ओह, सॉरी। मैं कल रात चार्ज करना भूल गई।" इनायत मुस्कुराकर बोली। तो गार्गी उसे गुस्से में घूरने लगी।
"अच्छा, ये सब छोड़ ना यार! तू बता क्या बात है...?" इनायत गार्गी के दोनों कंधों को हल्का-सा दबाते हुए बोली। तो गार्गी को याद आया कि वह क्यों इनायत के पास आई थी। उसने अपने सिर पर हाथ मारा और बोली, "इनू, अभी मम्मी का कॉल आया था। वो बता रही थी कि नानू और बड़े मामू आए हैं, अभी थोड़ी देर पहले ही आए हैं, और वो तुम्हें घर बुला रहे हैं।"
गार्गी की बात सुनकर इनायत हैरान होकर बोली, "दादाजी और तायाजी आए हैं? पर क्यों...? और वो भी यूँ अचानक से।"
"ये बात मुझे नहीं पता कि क्यों आए हैं, पर मम्मी ने अभी हम दोनों को घर बुलाया है।" गार्गी बोली। तो इनायत कुछ सोचने लगी।
"अच्छा... तू गेट पास लेकर आ, तब तक मैं बैग लेकर आती हूँ।" कुछ देर सोचने के बाद जब कोई नतीजा नहीं निकला, तो इनायत ने सोचा कि घर जाकर ही पता लगाया जाए कि आखिर बात क्या है? यह बोलकर वह अपनी क्लासरूम की ओर बढ़ गई। वहीं गार्गी ऑफिस की ओर बढ़ गई थी गेट पास बनवाने।
फिर दोनों घर के लिए निकल गईं। लगभग आधे घंटे बाद दोनों घर पहुँचीं। घर के बाहर बहुत सारी बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ एक के बाद एक लगी हुई थीं। बहुत सारे हट्टे-कट्टे बॉडीगार्ड अपने हाथों में बड़ी-बड़ी गन लिए खड़े थे। इनायत अंदर ही अंदर बहुत डर रही थी। उसका तो मन ही नहीं कर रहा था कि वह अंदर जाए और अपने दादाजी और तायाजी से मिले। वह यहाँ दिल्ली में अपनी बुआ-फूफा के साथ रहती थी।
बड़ी हिम्मत करके वह अंदर आई। हॉल में रखे सोफ़े पर ही उसे अपने दादाजी और तायाजी बैठे हुए दिखाई दिए। उसने थूक अपने गले से नीचे उतारा।
"प्रणाम दादाजी, प्रणाम तायाजी।" इनायत बहुत ही कोमल आवाज़ में बोली। वीरेंद्र सिंह, यानी इनायत के दादाजी, और खुशवेंद्र सिंह, यानी इनायत के तायाजी, दोनों ने एक साथ इनायत की ओर देखा।
दोनों की आँखें इनायत को देखकर कठोर हो गईं। वीरेंद्र सिंह भारी आवाज़ में बोले, "ये कैसे बेहूदा कपड़े पहन रखे हैं इनायत, और तुम ये कपड़े पहनकर कॉलेज गई थी...?"
इस वक्त इनायत ने टॉप और जीन्स पहने हुए थे, जो शायद बाकियों की नज़रों में नॉर्मल हो सकता है, पर वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी की नज़रों में नहीं। क्योंकि वे थोड़े नहीं, बल्कि बहुत पुराने ख्यालातों के थे।
"अ.. आज... आज ही पहनकर गई थी पिताजी। इनायत ये कपड़े वरना हमेशा सूट-सलवार ही पहनकर जाती है।" लक्ष्मी जी, यानी इनायत की बुआ, बोलीं। तो खुशवेंद्र जी रोबीले अंदाज़ में बोले, "अभी के अभी जाकर दूसरे कपड़े पहनकर आओ, और हाँ, साथ में अपनी पैकिंग भी कर लेना। क्योंकि तुम हमारे साथ वापस भोपाल जा रही हो... हम यहाँ तुम्हें लेने आए हैं।"
खुशवेंद्र जी की यह बात सुनकर इनायत की जान तो मानो हलक में ही अटक गई थी। वह घबराई सी बोली, "...तायाजी, अभी मेरे कॉलेज की क्लासेस चल रही हैं।"
"ऑनलाइन क्लासेस भी होती हैं आजकल, ये प्रॉब्लम सॉल्व! और कुछ...?" खुशवेंद्र जी तुरंत बोले।
इनायत को समझ ही नहीं आया कि अब वह क्या ही कहे? वह मन मसोस कर रूम में आ गई। उसके पीछे-पीछे ही गार्गी और लक्ष्मी जी भी आ गईं।
इनायत धड़ाम से बेड पर बैठ गई, उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं। "वहाँ लोग जीते नहीं हैं बुआ, घुट-घुट कर मरते हैं... स्पेशली वहाँ की बहू और बेटियाँ। वह एक कैद है, मुझे वहाँ किसी चिड़िया की तरह कैद नहीं होना है। प्लीज दादाजी से बात कीजिये और उनसे थोड़ा समय और मांग लीजिये..." इनायत रुंधे गले से बोली। तो लक्ष्मी जी उसके सिर पर हाथ फेरकर बोलीं, "मैंने बात की थी अभी थोड़ी देर पहले, उन्होंने साफ मना कर दिया है। सॉरी इनू, पर तुम्हारी ये बुआ कुछ नहीं कर सकती अब..."
लक्ष्मी जी की यह बात सुनकर इनायत ने अपना चेहरा घुटनों में छुपा लिया। वह आज कितनी मजबूर थी, शायद कोई समझ पाए!
मजबूरन इनायत ने अपना सामान पैक किया और एक सिंपल सूट पहनकर बाहर आ गई।
"चले।" इनायत के बाहर आते ही खुशवेंद्र जी बोले। इनायत के पैर काँप उठे। उसने लाचारी से लक्ष्मी जी और गार्गी की तरफ देखा, जो खुद भी उसे ही देख रही थीं।
तभी गार्गी कुछ सोचकर वीरेंद्र जी के पास आकर बोली, "नानू... क्या कुछ दिन के लिए मैं भी चलू...?"
वीरेंद्र जी ने गार्गी की तरफ देखा और बस हाँ में सिर हिला दिया। गार्गी जल्दी से अपने रूम की तरफ दौड़ी और कुछ ही देर में अपना एक बैग पैक करके बाहर आ गई।
वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी लक्ष्मी जी और उनके पति, यानी कुशल जी से विदा लेकर बाहर चले आए। एक गार्ड ने इनायत और गार्गी का बैग गाड़ी में रखा।
"सब ठीक है इनू, ध्यान रखना अपना और गुस्सा तो बिलकुल नहीं...(फिर गार्गी की ओर देखते हुए) गार्गी, सम्भाल लेना बेटा इनू को।" लक्ष्मी जी बोलीं। तो गार्गी ने हाँ में सिर हिला दिया और बोली, "आप बेफिक्र हो जाइए, मैं ध्यान रखूंगी।"
"आप एक चिड़िया से कह रही हैं कि वह उस पिंजरे में जाकर ठीक रहेगी। (मॉक करते हुए) वह वही पिंजरा है जिसे मेरी बड़ी बहन ने तोड़ने की कोशिश की थी, जिसकी सज़ा उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। (बोलते हुए उसकी आँखें नम हो चुकी थीं) चाहे पिंजरा सोने का हीरे-मोती जड़ा ही क्यों ना हो, वो रहता पिंजरा ही है, जिसमें साँस लेने के लिए भी उसे (चिड़िया) पिंजरे के मालिक से पूछना पड़ता है।" इनायत बोली और वहाँ से सीधा जाकर गाड़ी में बैठ गई।
लक्ष्मी जी को इनायत के लिए बहुत बुरा लग रहा था। उन्होंने गार्गी की तरफ देखा और बोलीं, "जाओ!"
गार्गी दोनों के गले लगी और जाकर गाड़ी में बैठ गई। एक गाड़ी में वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी थे और एक गाड़ी में इनायत और गार्गी। बाकी दो-तीन गाड़ियों में बॉडीगार्ड्स थे।
गाड़ियाँ एक के पीछे एक बस रोड पर दौड़ रही थीं। इनायत बस रो रही थी क्योंकि अब उसे पता था कि उसके साथ क्या होने वाला है आगे... उसने अपना सिर गार्गी की गोद में रखा और अपनी आँखें बंद कर ली।
"ये पहरे, ये बंदिशें हम पर ही क्यों...? क्यों ये पिंजरे सिर्फ हमारे लिए? क्यों हमें सिर्फ एक चिड़िया समझकर कैद किया जाता है? क्यों इन खोखले रिश्तों की बेड़ियों में हमें ही बाँध दिया जाता है? क्यों हमसे कोई हमारी मर्ज़ी तक नहीं पूछता है। 🥺💔"
इनायत जैसे खुद में ही बुदबुदाई। गार्गी महसूस कर पा रही थी इनायत का दर्द, जो शब्द बनकर बाहर निकल रहा था।
क्रमशः
एक के बाद एक, सभी गाड़ियाँ एक लंबे सफ़र के बाद अपनी मंज़िल, यानी भोपाल, पहुँच गई थीं। वे सारी गाड़ियाँ एक बड़ी सी हवेली के अंदर आने के बाद रुकीं।
वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों गाड़ी से निकले और अंदर की ओर बढ़ गए। दो गार्ड्स ने आकर गार्गी और इनायत के लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोला। गार्गी तो आराम से निकल गई थी, पर इनायत के पैर लड़खड़ाने लगे थे। वह तो जल्दी से मौके पर गार्गी ने उसे संभाला।
"आराम से इनु! तुम ऐसे हिम्मत मत हारो," गार्गी बोली। इनायत ने भावहीन होकर उसकी तरफ़ देखा और बोली, "अब बस हार ही है आगे... हिम्मत जैसे शब्द यहाँ आकर काम नहीं करते।"
गार्गी कुछ नहीं बोली, दोनों अंदर की तरफ़ बढ़ गईं। वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों वीरेंद्र जी के रूम में चले गए थे। गार्गी और इनायत दोनों अंदर आईं। इनायत ने एक अजीब भय से उस हवेली को देखा। तभी उसके कानों में एक लड़के की आवाज़ पड़ी।
गार्गी और इनायत ने आवाज़ की दिशा में देखा तो वहाँ से ईशान, यानी इनायत का भाई, उन दोनों की तरफ़ बढ़ रहा था। उसकी उम्र यही कुछ 17-18 साल होगी।
"दीदी आप आ गईं... हम तो सुबह से आपका वेट कर रहे हैं, आप जानती हैं सुबह से मम्मी अपना मनपसंदीदा खाना बना रही है।" ईशान इनायत के पास आकर उससे लिपटा हुआ बोला। इनायत ने तुरंत उसे खुद से दूर धकेल दिया, जिससे ईशान संभल नहीं पाया और धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ा। गिरने से उसकी आह निकल गई।
"इनायत ये क्या कर रही है तू...? पागल है क्या, तेरा भाई है यह..." गार्गी इनायत को गुस्से में देखकर बोली और ईशान को सहारा देकर उठा दिया।
"मैं नहीं मानती इन रिश्तों को, यहाँ सिर्फ़ पापा की वजह से आई हूँ! मेरा रिश्ता सिर्फ़ उनसे ही है, बाकी किसी से नहीं..." इनायत गुस्से में बोली और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई।
"रुक जाओ इनायत..." एक औरत की जानी-पहचानी आवाज़ इनायत के कानों में टकराई, तो वह अपनी जगह पर ही रुक गई।
वह औरत चलकर उसके पास आई। इस वक़्त उसने एक ट्रेडिशनल साड़ी पहनी हुई थी, सिर पर पल्लू अच्छे से जमाया हुआ था, माथे के बीचों-बीच एक बड़ी सी लाल बिंदी लगाई हुई थी, मांग भरी हुई, हाथों में भरी चूड़ियाँ, गले में हार और मंगलसूत्र, जो उसे एक सुहागन होने का दर्जा दे रहे थे। चेहरा एकदम शांत, मानो पानी... उसने उसका हाथ पकड़कर बोला, "अपनी मम्मी से गले नहीं मिलोगी...?"
"क्या किया है आपने जो आप खुद को मेरी मम्मी बता रही है...?" इनायत व्यंग्य से हँसते हुए बोली। गार्गी और ईशान उन दोनों के पास ही आ गए थे।
वह औरत, यानी कावेरी जी, इनायत की यह बात सुनकर दर्द भरी मुस्कान मुस्कुराती हुई बोली, "सही कहा इनायत, कि मैंने क्या किया है... जो मैं खुद को तुम्हारी मम्मी कहूँ!"
"मैंने कुछ गलत नहीं कहा, खैर! मैं अपने रूम में जा रही हूँ..." यह कहकर इनायत बिना वहाँ रुके सीधा ही अपने रूम में चली गई।
"थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई है मामी, बाकी कुछ नहीं है, आप इसकी बात बिल्कुल दिल पर मत लेना..." गार्गी कावेरी जी के कंधे पर हाथ रख बोली। कावेरी जी फ़ीकी तरह मुस्कुराकर बोली, "मुझे बुरा ना लगे इस लिए बोल रही हो ना यह सब... शायद! इनायत ठीक ही तो है, मैंने क्या किया है उसके लिए... जब उसे एक माँ की ज़रूरत थी, वह मुझसे मदद माँगती थी पर उस समय मैं इतनी मजबूर थी कि उसके लिए कुछ नहीं कर पाई... और शायद! आगे भी कुछ नहीं कर सकती क्योंकि यहाँ मेरे फैसले नहीं बल्कि पिताजी और भाई साहब के ही फैसले मायने रखते हैं। यहाँ मेरी जगह सिर्फ़ एक नौकर के जितनी है, उससे ज़्यादा कुछ नहीं..."
ये बोलकर वह वहाँ से चली गई। गार्गी ने ईशान की तरफ़ देखा जो चुपचाप सब सुन रहा था।
"गार्गी दीदी, मम्मी और इनु दीदी के बीच यह कब तक चलेगा...?" ईशान दुखी सा होकर बोला। गार्गी ने अपनी गर्दन हिला दी थी, जैसे वह कह रही हो, "पता नहीं कब...?"
"जल्द से जल्द उन लोगों को यहाँ बुला लो ताकि रिश्ते की बात आगे बढ़ा सकें..." वीरेंद्र जी अपनी रौबदार आवाज़ में खुशवेंद्र जी से बोले। खुशवेंद्र जी ने हाँ में सिर हिला दिया था। वह बोले, "पिता जी! कल आने का बोल देता हूँ,"
"हम्म! आगे जैसा तुम्हें ठीक लगे, जब तक बात हमारे हाथ में है इसे यहाँ से इज़्ज़त के साथ विदा करना चाहता हूँ, वरना अगर देर की तो क्या पता यह भी बगावत पर उतर आए, इशिका की तरह... जैसे उसने हमारी इज़्ज़त को सरेआम उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वह तो वक़्त रहते हमने बात को दबा दिया था... अब आगे मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता हूँ इनायत के मामले में..." वीरेंद्र जी कुछ बीता याद करते हुए बोले।
"आप चिंता मुक्त हो जाइए पिता जी, समय रहते ही उसके पैरों में बेड़ियाँ डाल देंगे, फिर क्या ही कर पाएगी..." खुशवेंद्र जी बोले। कुछ टाइम और बात करने के बाद खुशवेंद्र जी वहाँ से अपने रूम में चले गए।
उसी समय रंधावा मेंशन में...
आर्यन जैसे ही अंदर आया तो उसे हॉल में ही बैठे हुए विनायक रंधावा मिल गए। वह मुस्कुराकर उनके पास ही बैठ गया और बोला, "दादाजी... क्या बात है आज तो बड़े अकेले से बैठे हैं, सब ठीक तो है ना...?"
"हम्म! बस एक बात तो लेकर थोड़ा परेशान हूँ।" विनायक जी बोले। आर्यन तुरंत बोला, "किस बात को लेकर परेशान है आप मुझे बताइए...?"
"अभी थोड़ी देर पहले ही खुशवेंद्र का फ़ोन आया था, वह कह रहा था कि... शादी की बात आगे बढ़ाते हैं... इनायत यहाँ आ गई है। और वह चाहते हैं कि जल्द-से-जल्द यह शादी हो जाए।" विनायक जी मुस्कुराकर बोले।
विनायक जी की यह बात सुनकर आर्यन का चेहरा खिल उठा, वह भी मुस्कुराकर बोला, "अरे इसमें परेशानी की क्या बात है यह तो खुशी की बात है...!!"
"हाँ खुशी की तो है पर... मैं यही सोच रहा हूँ कि इतनी जल्दी क्यों कर रहे हैं वह लोग...?"
"वह कोई जल्दी नहीं कर रहे हैं पापाजी, सालों पहले ही दोनों का रिश्ता तय हो गया था। जब ये दोनों (आर्यन और इनायत) पैदा ही हुए थे, तो अब समय आ गया है कि दोनों को शादी के बंधन में बाँध दिया जाए... सालों पहले ज़बान दी थी उनको... और यह बात सब बिरादरी वाले जानते हैं। और मुझे लगता है कि अब उस ज़बान पर अमल किया जाए।" दुष्यंत रंधावा, यानी आर्यन के पापा, वहाँ आते हुए बोले।
"हम्म! सही कह रहे हो तुम, क्योंकि हमारी आन, बान, शान पर कोई उंगली उठाये हमें हरगिज़ बर्दाश्त नहीं... हम कल चल रहे हैं वहाँ! तैयारी कर लो..." ये बोलकर विनायक जी वहाँ से अपनी मूँछों को ताव देते हुए अपने रूम की तरफ़ बढ़ गए। दुष्यंत जी जो कि अभी-अभी ऑफ़िस से आए थे, वह भी अपने रूम में चले गए थे।
आर्यन अपने ही ख्यालों में गुम वहाँ बैठा था, तभी उसके कानों में एक जानी-पहचानी सी आवाज़ पड़ी।
"देवरजी पानी!"
आर्यन ने अपनी नज़र उठाकर देखा तो वहाँ मालविका, यानी आर्यन की भाभी, हाथ में ट्रे लिए खड़ी थी। आर्यन ने मुस्कुराकर पानी का गिलास ले लिया, थोड़ा सा पानी पीकर आर्यन ने जैसे ही गिलास रखा, उसकी नज़र मालविका के चेहरे पर ठहर सी गई।
"ये चेहरे पर कैसे निशान हैं आपके...?" आर्यन ने सवाल किया तो मालविका हड़बड़ा सी गई। उसने जल्दी से अपने चेहरे को पल्लू से ढँका और बोली, "कुछ भी तो नहीं..."
यह बोलकर वह वहाँ से जल्दी से चली गई। आर्यन को उनका बिहेवियर बहुत अजीब लगा पर फिर उसने ज़्यादा गौर नहीं किया और वहाँ से उठकर अपने रूम में चला गया।
आर्यन की फ़ैमिली में, उसका दादाजी यानी विनायक रंधावा, पापा दुष्यंत रंधावा, माँ अश्विनी रंधावा, बड़ा भाई सिद्धांत रंधावा और उसकी पत्नी मालविका रंधावा, और एक छोटी बहन उमंग रंधावा, यह सभी थे।
आर्यन और उसके बड़े भाई, यानी सिद्धांत, दोनों ने ही पढ़ाई पूरी करके अपना फ़ैमिली बिज़नेस जॉइन कर लिया था। विनायक जी और दुष्यंत जी दोनों ही बड़े अभिमानी किस्म के इंसान थे, उनके लिए उनकी आन, बान, शान ही सब कुछ थी। उन दोनों का ही असर आर्यन और उसके बड़े भाई सिद्धांत में भी था।
क्रमशः
शाम का वक्त था। सिंह मेंशन में...
वीरेंद्र जी हेड ऑफ़ द फैमिली की चेयर पर बैठे थे। उनके पास खुशवेंद्र जी और ईशान भी बैठे थे। पूरी डाइनिंग टेबल खाली थी। केवल तीनों ही अपना डिनर कर रहे थे।
कावेरी जी किचन के दरवाजे पर खड़ी डाइनिंग टेबल की तरफ़ देख रही थीं। वे देख रही थीं कि कहीं किसी चीज़ की कमी तो नहीं है डाइनिंग टेबल पर...?
गार्गी उनके पास ही किचन में मौजूद थी। उसने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "पता नहीं आप सब यहाँ साथ बैठकर खाना क्यों नहीं खाते हैं...? वहाँ दिल्ली में हम तो सब एक साथ बैठकर खाना खाते हैं।"
"हमेशा से हमारे घर का यही नियम रहा है कि पहले घर के आदमी खाना खाएँगे और उसके बाद औरतें। और यह आज से नहीं, बल्कि बहुत सालों से चला आ रहा है। इसलिए बस हम भी इसी चीज़ का पालन कर रहे हैं..." कावेरी जी हल्का सा मुस्कुराकर गार्गी की तरफ़ देखकर बोलीं। और फिर गैस के पास आकर बड़ी सी पतीली में पक रहे खाने को चेक करने लगीं।
"21वीं शताब्दी में भी आप सब पुरानी और दकियानूसी रीति-रिवाज को चला रहे हैं। आजकल कोई नहीं करता है यह सब।" गार्गी उनके पास आकर मुँह बिगाड़कर बोली।
"मुझे किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं है। बस मुझे ये पता है कि हमारे घर में यही होता है तो बस..." कावेरी जी गार्गी के सिर पर हाथ रखकर बोलीं, जो मुँह टेढ़ा-मेढ़ा करके खड़ी थी।
"जाकर इनू को बुला लाओ, फिर तुम दोनों का भी खाना लगा देती हूँ, मैं..." कावेरी जी बोलीं।
"ठीक है, लाती हूँ बुलाकर..." गार्गी बोली और वहाँ से बाहर जाने लगी। तभी उसे सीढ़ियों से उतरती हुई इनायत दिख गई।
"लो आ गई इनू!" वह वापस से कावेरी जी की तरफ़ मुड़कर बोली। इनायत किचन में आई और चुपचाप कुछ बनाने लगी।
"इनू, मामीजी ने खाना बना दिया है, ये तुम क्या बना रही हो...?" गार्गी उसे देखकर बोली। तो इनायत बिना उसकी तरफ़ देखे बोली, "सूप बना रही हूँ! पापा के लिए..."
"मैंने बना दिया है...तुम वो लेकर चली जाओ।" कावेरी जी बोलीं। पर इनायत नहीं रुकी। उसने अपने हाथों से सूप बनाया और उसे एक बाउल में डालकर किचन से बाहर निकलकर अपने पापा के रूम की तरफ़ बढ़ गई।
कावेरी जी की आँखें नम हो गईं। गार्गी ने उनके कंधे पर हाथ रखा...तो कावेरी जी रुंधे गले से बोलीं, "पता नहीं, ये इनू ऐसा बर्ताव क्यों करती है, मेरे साथ...!!"
"सब ठीक हो जाएगा मामीजी..." गार्गी बुझी आवाज़ में बोली।
इनायत ने एक रूम का दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। बेड पर पवन जी लेटे हुए थे। वे एकटक बस सीलिंग को ही देख रहे थे।
इनायत उनके पास आई और हाथ में पकड़ा बाउल वहीं टेबल पर रखा। वह उनके पास बेड पर बैठ गई। पवन जी ने अपनी नज़रें इनायत की तरफ़ घुमाईं, तो उनकी आँखों में इनायत को देखकर आँसू आ गए। जो उनकी आँखों से निकलकर तकिये को भीगा गए।
इनायत ने होले से मुस्कुराकर उनके आँसू पोछे और उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, "कैसे हैं आप पापा, आपने अपनी इनू को मिस किया...?"
पवन जी ने अपनी पलकें झपका दी थीं। जैसे वे इनायत के सवाल का जवाब हाँ में दे रहे हों! इनायत के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट आ गई। पवन जी पैरालाइज़्ड थे। उसने पवन जी के सिर के पीछे थोड़ा ऊँचे पर तकिया लगाया और धीरे-धीरे उन्हें सूप पिलाने लगी।
सूप पिलाने के बाद इनायत ने पवन जी का चेहरा एक कपड़े से साफ़ किया और उठकर बोली, "अब आप आराम कीजिये...मैं आती हूँ!"
उसने बाउल उठाया और वहाँ से निकल गई। वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी डिनर के बाद अपने रूम में चले गए थे। ईशान, गार्गी और कावेरी जी वहीं बैठे थे।
"इनायत बीबी, ये आप मुझे दे दीजिये...और आप डिनर कर लीजिये..." एक सर्वेंट उसके हाथ से बाउल लेते हुए बोली। इनायत भी चुपचाप डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई और अपना डिनर करने लगी।
"कैसा बना है...?" कुछ देर बीतने पर कावेरी जी इनायत की तरफ़ देखकर बोलीं। पर इनायत ने कोई जवाब नहीं दिया।
"बहुत अच्छा बना है मामीजी, आपके हाथ में बहुत जादू है..." गार्गी खाना खाते हुए बोली। कावेरी जी फीकी तरह मुस्कुरा दीं और अपना डिनर करने लगीं।
डिनर के बाद इनायत और गार्गी अपने रूम में चली गईं। ईशान भी कावेरी जी को गुड नाईट बोलकर चला गया। कावेरी जी ने बचा हुआ काम देखा...फिर वे अपने रूम में आ गईं। उन्होंने पवन जी को दवाई दी और उनके पास बैठ गईं। उन्होंने अपने हाथ में उनका हाथ लिया और रुंधे गले से बोलीं, "आज भी नफ़रत करती है वह मुझसे...नहीं देखी जाती उसकी बेरुखी, नहीं होती बर्दाश्त। उस समय मैं कुछ नहीं कर पाई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आया था, उस समय की क्या करूँ और क्या नहीं...? आपकी हालत बिल्कुल ठीक नहीं थी। पर वह है कि कुछ समझने को तैयार नहीं है आज भी..."
कावेरी जी ने अपना माथा पवन जी के हाथ से लगाया और फफक कर रो पड़ीं। पवन जी की आँखें भी नम हो गईं।
गार्गी बेड पर सो रही थी और इनायत खिड़की पर बैठी थी। जब से यहाँ आई थी, साँस लेने में भी उसको दिक्कत हो रही थी। इस जगह की खुली हवा में भी उसका दम घुट रहा था।
उसने एक ठंडी आह भरी और उस काले आसमान की तरफ़ देखकर होले से बोली, "नहीं जाती की आगे क्या होगा, बस इतना जानती हूँ कि जो भी होगा मेरी मर्ज़ी के बिना ही होगा...और मैं खुद के लिए ही कुछ नहीं कर पाऊँगी!!"
"कब से बेकरार हैं मेरी आँखें तुम्हें खुद का होता देखने के लिए...मेरे दिल की बंजर ज़मीन तुम्हारे प्यार की बूंदों से भीगना चाहती है, अब और इंतज़ार नहीं हो रहा है! बस जल्द-से-जल्द तुम्हें खुद का बनाना है, और वो भी पूरे हक़ से..." आर्यन अपने रूम की बालकनी में खड़ा आसमान को देखता हुआ इनायत की यादों में खोया सा बोला। और फिर खुद ही मुस्कुरा दिया।
कुछ देर बाद वह अपने बेड पर आकर लेट गया था।
क्रमशः
सुबह का वक्त! सिंह मेंशन...
"आज विनायत जी, दुष्यंत, और आर्यन आ रहे हैं, शायद! शादी की तारीख ही रख दें...? इनायत को अच्छे से तैयार करवा देना और उनकी आवभगत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए... और इनायत को भी अच्छे से समझा दो कि उनके सामने तमीज़ से पेश आए... कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए..." वीरेंद्र जी अपने सामने खड़ी कावेरी जी की तरफ देखकर बोले।
"जी, पिताजी, आपने जैसे कहा है। मैं ध्यान रखूँगी..." कावेरी जी ने हां में सिर हिला दिया।
और वहाँ से इनायत के रूम की तरफ बढ़ गई।
"बाकी तुम देख लो," वीरेंद्र जी खुशवेंद्र जी से बोले। उन्होंने हां में सिर हिला दिया।
"इनायत, आज तुम्हें यह साड़ी पहननी है... आर्यन और उनके घर से आ रहे हैं आज शादी की तारीख पक्की करने।" रूम में आते ही कावेरी जी बेड पर बैठी इनायत से बोलीं और उसके पास अपने हाथ में पकड़ी हल्के गुलाबी रंग की बनारसी साड़ी रख दी।
एक पल के लिए इनायत हैरानी से उन्हें देखने लगी। वह बोलना चाहती थी, पर फिलहाल उसे शब्द नहीं मिल रहे थे। उसे पहले ही पता था कि उसके यहाँ आते ही यह सब होना था, पर इतनी जल्दी...? अरे, कल ही तो वह यहाँ आई थी...? और आज ही...
"गार्गी बेटा! इनु..."
"इनायत..." इनायत बेरुखी से बोली।
"गार्गी बेटा! इनायत को तैयार होने में हेल्प करना। तब तक मैं बाहर का देख लेती हूँ।" कावेरी जी ने अपने बोलने को सुधारा और बोली।
यह बोलकर वह वहाँ से बाहर चली गईं। गार्गी ने उस साड़ी को देखा और मुस्कुरा कर बोली, "अरे! वाह, क्या सुंदर साड़ी है... बहुत प्यारी लगेगी तुम पर!"
"गुस्सा मत दिलाओ यार! जानती हो ना कि मुझे कोई शादी नहीं करनी है, अभी मुझे मेरा करियर बनाना है।" इनायत चिढ़ कर बोली।
"अब यह बात तो तू शुरू से जानती है कि तेरा और आर्यन का एक दिन रिश्ता जुड़ना ही है, और वैसे भी अब तो फाइनल एग्जाम ही रहते हैं, उसके बाद..." गार्गी उसे परेशान करते हुए बोली।
"बकवास बंद कर यार!" इनायत गुस्से में चिल्लाती हुई बोली।
"अरे यार! अब यह क्या बात हुई, लड़का हैंडसम है, स्मार्ट है, चार्मिंग है... वेल सेटेल्ड है, और उससे भी बड़ी बात तू उसे बचपन से जानती है।" गार्गी बोली।
"जानती ही कितना हूँ उसे, जब भी मिली हूँ पार्टी या फिर फैमिली फंक्शन में ही मिली हूँ... और वह भी बस हाय!, हेलो... उससे ज़्यादा कुछ नहीं...? गायु, जब वह मेरे आस-पास रहता है ना तो बस मुझे घूरता ही रहता है... और उसका घूरना अजीब ही है।" इनायत पिछला कुछ सोचते हुए बोली।
"अब यह तो मैं नहीं जानती कि वह तुझे कैसे और किस तरह घूरता है, पर तेरी बातों से लगता है कि तुझे कोई ऑब्जेक्शन नहीं है इस शादी से, राइट...?" गार्गी उसकी गर्दन में अपनी बाहें लपेटी हुई बोली।
"मुझे शादी नहीं करनी यार अभी... मेरी ऐज ही अभी 21 है, मैं कैसे कर पाऊँगी...? अगर आज पॉसिबल हुआ तो मैं उससे बात करके, इस शादी से इनकार कर दूँगी।" इनायत गार्गी का हाथ अपने गले पर से हटाती हुई बोली।
गार्गी ने अपने कंधे उचाये और बोली, "आगे तेरी मर्ज़ी, पर यह बात याद रख... आखिरी फैसला तेरा नहीं होगा... बल्कि नानू का होगा।"
"जानती हूँ, पर मैं एक पिंजरे से दूसरे पिंजरे में कैद नहीं होना चाहती, मुझसे जो बन पड़ेगा मैं वह करूँगी..." इनायत पूरे विश्वास से बोली।
रंधावा मेंशन...
दोपहर को विनायत जी, दुष्यंत जी, और आर्यन सिंह मेंशन के लिए निकल गए थे। सिद्धांत उनके साथ ना जाकर ऑफिस चला गया था, उमंग कॉलेज चली गई थी। उनके जाने के बाद अश्विनी जी अपने बेटे सिद्धांत के रूम में आईं। उन्होंने देखा कि मालविका बेड पर लेटी हुई है।
वह उसके पास आई और उसके सिर पर हाथ रखकर थोड़े चिंतित स्वर में बोली, "सिद्धांत बता रहा था कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है।"
अश्विनी जी की आवाज सुनकर मालविका ने अपनी आँखें खोलीं और उन्हें देखकर उठने लगी...
"अरे माँजी आप, आह...." वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दर्द के मारे उसकी आह निकल गई।
"क्या हुआ...?"
"क...कुछ भी नहीं हुआ... आप बताइए ना कि कुछ काम था...?" मालविका अपने सफ़ेद पड़े चेहरे पर ज़बरदस्ती मुस्कान लाती हुई बोली। पर उसके चेहरे से साफ़ पता लग रहा था कि वह कितनी तकलीफ़ में है। दर्द साफ़ झलक रहा था उसके चेहरे पर।
"एक घर में होते हुए भी तुम मुझसे छुपा रही हो...? क्या छुपाने से दर्द कम हो जाता है...?" अश्विनी जी बिना किसी भाव के बोलीं।
"तो दर्द बता देने से भी तो कहाँ कम होता है माँजी...?" मालविका चेहरे पर दर्द भरी मुस्कान लिए बोली।
"लो, दवाई लगा देती हूँ, तेरे ज़ख्मों पर... शायद! थोड़े भर जाएँ...?" अश्विनी जी उसके ऊपर से कंबल हटाती हुई बोलीं।
"क्या फ़ायदा दवाई का जब हर रोज़ उन्हीं ज़ख्मों पर बार-बार चोट खानी है," मालविका अपना सिर बेड के सिरहाने से टिकाती हुई बोली। दो बूँद गर्म आँसू उसकी आँखों से निकलकर गाल पर लुढ़क गए थे।
मालविका के हर शब्द में उसका दर्द बयाँ हो रहा था जिसे अश्विनी जी बखूबी समझ रही थीं। उन्होंने पास के ही दरोवर से एक ऑइंटमेंट निकाली और मालविका के कंधे से साड़ी का पल्लू हटा दिया।
जगह-जगह काले और लाल निशान थे। कुछ पुराने तो कुछ नए, उन निशानों को देखकर लग रहा था कि वे काटने की वजह से हुए हैं। चेहरे पर एक तरफ़ 5 उंगलियों के लाल निशान मौजूद थे। और ऐसे ही पूरे शरीर पर... उसके शरीर पर वे निशान देखकर अश्विनी जी सिहर उठीं, उनसे तो देखे भी नहीं जा रहे थे जबकि उनका दर्द मालविका अपने तन पर सह रही थी।
"कभी सोचा नहीं था कि मेरा सिद्धांत, जिसे मैंने एक अच्छा इंसान बनने की सिख दी थी, वह ऐसा हो जाएगा...? इतना क्रूर, कि अपनी बीवी के साथ ही मार, पिटाई और फिर... (बोलते हुए वह रुक गईं, पर आँखों से अब तक रुके हुए आँसू गाल पर लुढ़क गए)..." अश्विनी जी बेबसी और शर्मिंदगी के साथ बोलीं। और धीरे-धीरे ऑइंटमेंट को मालविका के ज़ख्मों पर लगाने लगीं। ज़ख्मों पर लगती दवा उसके शरीर को जला रही थी, जिससे उसके मुँह से लगातार आह निकल रही थी।
"शादी... शादी के दो महीने पर ही इन्होंने हाथ उठाया था पहली बार, आपको नहीं बताया था। घर मम्मी को फ़ोन पर बताया तो जानती है उन्होंने क्या कहा था...?" मालविका दर्द को बर्दाश्त करती हुई बोली।
"जानती हूँ क्या ही कहा होगा, यह बात यूँ ही नहीं कही गई कि एक औरत ही, दूसरी औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है...!" अश्विनी जी उसके ज़ख्मों पर फूँक मारती हुई बोलीं।
"कहा कि, अब तेरी शादी हो गई है, तेरा पति तुझे मारे-पिटे, तुमसे कुछ भी करवाए, या तेरे साथ कुछ भी करे, उसका पूरा हक़ है, तुझ पर... तेरे जिस्म पर... आह... (दर्द में आँखें बंद करते हुए) अगर आइंदा यह बताने के लिए फ़ोन किया ना कि तेरे पति ने तुझे मारा है तो बेशक यहाँ फ़ोन मत करना... क्योंकि अब उसका हक़ है तुझ पर... और उस बात को अब एक साल हो चुका है, यानी कि शादी को एक साल हो चुका है, हर रात वह मुझे मारते हैं, पीटते हैं, और मेरी मर्ज़ी के बगैर मेरे करीब आते हैं... दर्द इतना होता है कि कभी-कभार सहन नहीं होता है माँजी..." मालविका रोते हुए बोली। उसे दर्द में देखकर अश्विनी जी के आँसू भी बह रहे थे।
"कोई वजह तो होगी ना बेटा...? जिस वजह से वह..."
"लड़का चाहिए... वारिस चाहिए इन्हें... कहाँ से दूँ...? मेरे हाथ में कहाँ है यह सब...? हर महीने आशा लगाती हूँ कि इस महीने खुशखबरी मिल जाए ताकि मुझे इस दर्द से राहत मिले, पर नहीं होता है माँजी, हर बार मेरी आशा ज्यों की त्यों रह जाती है। पता नहीं कहाँ कमी है जो मेरी कोख ही नहीं हर रही है, मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करती हूँ, पर फिर भी... निराशा ही हाथ लग रही है, और जबसे इन्होंने यह सुना है कि मेरी छोटी बहन, जिसकी शादी हमारी शादी के साथ ही हुई थी, उसके जुड़वा बच्चे हुए हैं, तबसे तो इनका गुस्सा कहर बनकर बरस रहा है मुझ पर..." मालविका बोली।
"अभी वक़्त ही कितना हुआ है, एक साल भी पूरा नहीं हुआ है... तो यह बच्चे की ज़िद...?" अश्विनी जी थोड़ा हैरानी के साथ बोलीं।
"शादी के दूसरे महीने से ही यही ज़िद है और अब एक साल होने को आया है, क्या करूँ...? कुछ समझ नहीं आता है...? अब और सह नहीं जाता है माँजी, आप बात कीजिए ना...? बच्चा देना या ना देना वह तो ऊपर वाले के हाथ में है, मैं कुछ नहीं कर सकती इसमें...? तो मुझ पर यह जुल्म ना करे यह... (हाथ जोड़कर) बात कीजिए प्लीज..." मालविका रोते हुए ही बोली।
"मैं... मैं करती हूँ बात, जब वह घर लौटेगा तब... अभी... अभी के लिए... तुम आराम करो, अगर ज़्यादा दर्द हो तो मुझे बताना, फिर डॉक्टर को फ़ोन करती हूँ।" अश्विनी जी उसके कंधे पर साड़ी का पल्लू डाल, उसके आँसू साफ़ करती हुई बोलीं।
उन्होंने मालविका को वापस लेटने में मदद की और फिर उसके रूम से बाहर निकल आईं। वे सीधा अपने रूम में आईं तो दरवाज़ा बंद करके वहीं फ़र्श पर बैठकर रो पड़ीं।
"मेरे दिए संस्कार, मेरी दी शिक्षा, सब बर्बाद हो गई... इन खोखली रीतियों के आगे... हो गई बर्बाद, हार गई मैं... मेरा विश्वास, सब... सब हार गया। यह तो अपने बाप-दादा पर ही निकले... जिनकी नज़रों में औरत सिर्फ़ घर सम्भालने और बच्चा पैदा कर इनका वंश चलाने का एक ज़रिया है। सिर्फ़ एक ज़रिया....."
क्रमशः
"बेटा, तैयार हो गई, इनायत..?" कावेरी जी किचन में आकर गार्गी से पूछ बैठीं।
गार्गी मुस्कुराकर बोली, "जी, हो गई हूँ तैयार और बहुत सुंदर लग रही हूँ।"
"मेरी दी की साड़ी पहनी है ना..?"
"जी, वही पहनी है।"
"अच्छा, ठीक है। अब तू उसे यहीं किचन में बुला ला, क्योंकि वह लोग बस आने ही वाले हैं।" कावेरी जी पानी के गिलासों को ट्रे में जमाती हुई बोलीं।
"जी, लाती हूँ बुलाकर।" यह बोलकर गार्गी इनायत के रूम की तरफ बढ़ गई।
रूम में इनायत ड्रेसिंग मिरर के सामने बैठी, खुद को भावहीन होकर देख रही थी। हल्की पिंक कलर की बनारसी साड़ी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। बालों को खुला छोड़ रखा था; मेकअप के नाम पर आँखों में गहरा काजल और होठों पर हल्की लाल लिपस्टिक, माथे पर छोटी सी काले रंग की बिंदी। गले में छोटा सा नेकलेस, जो कावेरी जी ने ही उसे पहनने को बोला था, उसी से मैचिंग कानों में इयररिंग्स थे।
"इनू! चल, मामाजी तुझे नीचे ही बुला रही हैं किचन में.." गार्गी रूम का दरवाजा खोलते ही बोली।
"ईशान कहाँ है..?" इनायत ड्रेसिंग मिरर के सामने से उठी और गार्गी की तरफ मुड़कर बोली।
"स्कूल गया है। मम्मी बता रही थीं कि आज उसका कोई टेस्ट है। वैसे, तू क्यों पूछ रही है उसके बारे में? जब वह तेरे आस-पास होता है, तब तो उससे अच्छे से बात तक नहीं करती और पीछे से उसके बारे में पूछ रही है..?" गार्गी अपने मुँह को टेढ़ा-मेढ़ा करके बोली।
इनायत कुछ नहीं बोली। गार्गी उसके पास आई और धीरे से उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर सहजता से बोली, "इनू!, अब छोड़ो पुरानी बातों को, पास्ट को पास्ट में ही रहने दो। क्यों अपना आज खराब कर रही है?"
"खराब मैं नहीं कर रही हूँ, खराब तुम्हारी मामी जी ने किया है। अगर वह उस दिन मेरा साथ दे देतीं ना, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। नफ़रत है मुझे उनसे। नफ़रत है उनके झूठे रिश्ते से। एहसान फ़रामोश लोग हैं ये, एहसान फ़रामोश लोगों के लिए मेरे दिल में कोई जगह नहीं है।" इनायत, गार्गी का हाथ अपने कंधे से हटाते हुए, हल्के गुस्से में बोली।
"तुम सिर्फ़ अपनी तरफ़ से सोच रही हो, पर उस समय मामी जी ने मामा जी, ईशान और तुम्हारे बारे में सोचा था, इसलिए उन्होंने झूठ बोला था। पर तुम.. तुम हो कि कुछ समझने को तैयार नहीं हो..?" गार्गी भड़कते हुए बोली।
"हाँ, नहीं समझना मुझे।" इनायत भी गुस्से में चिल्लाकर बोली और बेड पर बैठ गई। गार्गी ने गुस्से में इनायत की तरफ़ देखा और फिर बोली, "अब मैं बुलाने नहीं आऊँगी। जो तुम्हें करना है, वह करो..?"
यह बोलकर गार्गी रूम से निकल गई। इनायत ने खुद का गुस्सा शांत करने के लिए लंबी-लंबी साँसें लीं। जब वह नॉर्मल हुई, तो वह भी नीचे आ गई। अभी मेहमान नहीं आए थे; हॉल में सिर्फ़ वीरेंद्र जी बैठे थे।
इनायत किचन की तरफ़ बढ़ गई। वीरेंद्र जी की नज़र जब इनायत पर गई, तो वह उसे रोकते हुए बोले, "इधर आओ इनायत!"
इनायत जाना तो नहीं चाहती थी, पर फिर भी वह उनके पास आकर खड़ी हो गई। वीरेंद्र जी अपने रोबदार आवाज़ में बोले, "बहू ने तुम्हें सब बता ही दिया होगा पहले से ही कि आज वह लोग तुम्हारी और आर्यन की शादी की बात करने आ रहे हैं। मुझे शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए। अच्छे बच्चे की तरह उनके सामने पेश आना। अगर आर्यन तुमसे अकेले में बात करने की भी कहे, तो उसे बात करने देना, तुम कुछ मत कहना। समझ में आ रही है मेरी बात..?"
"जी दादाजी.. समझ गई हूँ मैं।" इनायत अपने हर शब्द पर ज़ोर देती हुई बोली और वहाँ से किचन में आ गई।
कुछ देर बाद विनायक जी, दुष्यंत जी और आर्यन वहाँ आ गए। खुशवेंद्र जी, जो अब तक अपने कमरे में बैठे थे, वह भी बाहर हॉल में आकर वीरेंद्र जी के पास ही बैठ गए। वे बैठकर इधर-उधर की बातें करने लगे। एक सर्वेंट ने आकर सभी को पानी दिया; उसके बाद इनायत हाथ में चाय की ट्रे लेकर बाहर आई।
"इनायत बेटा, सभी को नमस्ते करो..?" खुशवेंद्र जी ने जब देखा कि इनायत चुपचाप आकर वहाँ खड़ी हो गई, तो वे उनके सामने ज़बरदस्ती मुस्कुराकर बोले।
"नमस्ते दादाजी, नमस्ते अंकल।" इनायत विनायक जी और दुष्यंत जी की तरफ़ देखकर बोली और अपने हाथ में पकड़ी चाय की ट्रे को उनके सामने कर दिया।
विनायक जी और दुष्यंत जी हल्के से मुस्कुराए और "नमस्ते बेटा" बोलकर अपना-अपना चाय का कप उठा लिया। इनायत ने अपनी झुकी पलकों के साथ आर्यन के सामने भी ट्रे की; तो आर्यन ने भी उसकी तरफ़ देखते हुए कप उठा लिया।
इनायत ने सबको चाय दी और वापस किचन में आ गई। वहीं बाहर आर्यन ने दुष्यंत जी की तरफ़ कुछ इशारा किया, जिसे समझकर दुष्यंत जी खुशवेंद्र जी और वीरेंद्र जी की तरफ़ देखकर बोले, "अगर आप लोगों को बुरा ना लगे, तो बच्चों को आपस में बात करने देते हैं थोड़ी देर..?"
"इसकी क्या ज़रूरत है भाईसाहब?" खुशवेंद्र जी को यह बात कुछ अच्छी नहीं लगी थी, इसलिए वे बोले। पर वीरेंद्र जी को पहले से ही पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है, इसलिए वे बोले, "अरे, इसमें बुरा मनाने वाली कौन सी बात हुई? बिल्कुल मिल सकते हैं बच्चे आपस में। मैं इनायत को बोल देता हूँ, वह आर्यन को अपने रूम में ले जाए, ताकि वह दोनों आराम से बात कर सकें।"
खुशवेंद्र जी ने नाखुशी से वीरेंद्र जी की तरफ़ देखा। वीरेंद्र जी ने इनायत को बुलाया और आर्यन को अपने साथ कमरे में ले जाने को बोला। इनायत ने अपना सिर हाँ में हिलाया और आर्यन को अपने साथ अपने रूम में ले आई।
दोनों बेड पर एक-एक कोने पर बैठ गए। आर्यन बात शुरू करने की पहल करते हुए बोला, "बहुत सुंदर लग रही हो इस साड़ी में।"
"थैंकयू।" इनायत अपने कंधे पर साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई बोली, जो हल्का नीचे सरक गया था।
"हो गई तुम्हारी स्टडीज़..?" आर्यन ने सवाल किया। इस पर इनायत ना में सिर हिलाकर बोली, "अभी फाइनल ईयर के एग्ज़ाम रहते हैं, जो शायद 2 महीने बाद से शुरू होंगे।"
"ओह!"
एक बार फिर से वहाँ शांति छा गई। इनायत ने एक गहरी साँस ली और आर्यन की तरफ़ देखने लगी। इस वक़्त उसने व्हाइट कलर की शर्ट और ब्लैक कलर की फ़ॉर्मल पैंट पहनी हुई थी; बालों को सेट किया था; हल्की बियर्ड जो उसे काफ़ी हैंडसम बना रही थी। वह काफ़ी चार्मिंग लग रहा था। इनायत की नज़रों को खुद पर महसूस करके आर्यन ने भी उसकी तरफ़ देखा; दोनों की नज़रें मिलीं, पर इनायत ने बड़ी ही हड़बड़ी में अपनी नज़रें झुका लीं। यह देखकर वह बरबस ही मुस्कुरा दिया।
"कुछ कहना चाहती हो..?"
"अ.." इनायत ने चौंककर उसकी तरफ़ देखा, क्योंकि वह उससे सच में कुछ कहना चाहती थी, पर हिम्मत नहीं हो रही थी।
"तुम्हारे चेहरे से लग रहा है जैसे तुम मुझसे कुछ कहना चाहती हो..?" आर्यन गौर से उसके चेहरे को देखता हुआ बोला।
"हाँ, आर्यन, मुझे तुमसे कुछ कहना है!" इनायत बोली। आर्यन थोड़ा सा उसकी तरफ़ खिसक गया और बोला, "बेझिझक बोल दो...!!"
"मुझे यह शादी नहीं करनी..." इनायत एक गहरी साँस लेकर बोली।
क्रमशः
"मुझे यह शादी नहीं करनी..." इनायत ने एक गहरी साँस लेकर कहा।
आर्यन ने बिना कोई भाव बदले उसकी तरफ देखा और कहा, "क्यों नहीं करनी है शादी...?"
"क्योंकि, मेरी उम्र अभी सिर्फ 21 है।"
"मैं तुमसे सिर्फ दो साल ही बड़ा हूँ, मेरी 23 है बस... अगर तुम सोच रही हो कि फ़र्क है तो दो साल का कोई फ़र्क नहीं होता।" आर्यन बोला।
"नहीं, यह बात नहीं है मेरी शादी से मना करने की!"
"तो क्या है...?"
"मैं अभी अपना करियर बनाना चाहती हूँ। मैंने अपनी ज़िंदगी में करने के लिए बहुत कुछ सोचा है। मैं बड़ी अफ़सर बनना चाहती हूँ! अगर मैंने शादी की तो मैं ज़िम्मेदारियों, घर-परिवार और बच्चों में ही उलझकर रह जाऊँगी। मुझे नहीं बनना है हाउसवाइफ़! मुझे अपना सपना पूरा करना है। प्लीज़ आर्यन, हमारी दोस्ती के खातिर तुम इस रिश्ते के लिए मना कर दो, प्लीज़ (अपने हाथ जोड़कर)। नीचे जाकर कह दो कि तुम यह शादी नहीं करोगे क्योंकि तुमको मैं पसंद नहीं आई। यहाँ कोई मेरी बात नहीं सुन रहा है, सब ज़बरदस्ती लगे हैं मेरी शादी कराने के लिए। मेरी कोई भी मर्ज़ी नहीं है, बल्कि मुझ पर दबाव बनाया जा रहा है। तुम्हारी बहुत चलती है, मैंने देखा है। अगर तुम नीचे जाकर कहोगे तो कोई तुम्हारी बात नहीं टालेगा। प्लीज़ आर्यन!" इनायत बस बोलती जा रही थी। जो उसके मन में था, उसने आर्यन को बता दिया था।
आर्यन, जो कि ध्यान से उसकी सारी बात सुन रहा था, वह मुस्कुराया और बोला, "ओके, मैं मना कर दूँगा। अब खुश...?"
"क्या सच में...? तुम सच कह रहे हो?" इनायत ने अविश्वास से उसकी तरफ देखा। उसे नहीं लगा था कि आर्यन इतनी जल्दी मान जाएगा।
"हाँ, मैं सच ही कह रहा हूँ। मैं मना कर दूँगा सबको कि मुझे तुम पसंद नहीं हो और यह शादी नहीं होगी। तुम अपना सपना पूरा करो..." आर्यन मुस्कुराकर बोला।
"थैंकयू... थैंकयू सो मच!" इनायत खुश होकर बोली।
कुछ देर बाद दोनों नीचे आ गए। दुष्यंत जी ने जब इशारे से आर्यन से पूछा तो आर्यन ने बाद में बताने का कहा। वे सब खाना खाकर वापस अपने घर आ गए।
उनके जाने के बाद वीरेंद्र जी ने इनायत को बुलाया, तो इनायत भी चुपचाप उनके पास चली आई। तो वे बोले, "क्या बात की आर्यन ने...?"
"बस पढ़ाई से रिलेटेड ही कुछ सवाल किए थे।"
"और कुछ...?"
"नहीं, और कुछ तो कोई बात नहीं हुई।" इनायत झूठ बोलती हुई बोली। तो वीरेंद्र जी उसे जाने को बोला। इनायत के जाने के बाद खुशवेंद्र जी थोड़े परेशान से होकर बोले, "उन्होंने तो शादी की कोई तारीख ही नहीं फ़ाइनल की पिताजी...? कहीं ये अपनी बात से तो नहीं मुकर जाएँगे...?"
"विनायत जी ने कहा था कि शाम तक जवाब देंगे। तो अब बस शाम तक का और इंतज़ार कर लो।" वीरेंद्र जी बोले।
"आशा है कि अच्छी खबर ही सुनने को मिले।" खुशवेंद्र जी बोले।
इनायत वहाँ से सीधा अपने रूम में आई। गार्गी जो कि पहले से ही वहाँ बैठी उसका ही इंतज़ार कर रही थी। उसने जल्दी से दरवाज़े को बंद किया और इनायत का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बिठाया और बहुत ही ज़्यादा एक्साइटेड होती हुई बोली, "बता ना कि क्या-क्या बात की तुमने अपने दूल्हे से...?"
"जैसा तुम सोच रही हो वैसी कोई भी बात नहीं हुई है। मैंने उससे कहा कि मुझे शादी नहीं करनी है।" इनायत अपने कान में पहने झुमके को निकालती हुई बड़े आराम से बोली।
"क्या? तुमने शादी के लिए मना कर दिया...? और आर्यन... उसने क्या कहा...?" गार्गी हैरानी से बोली।
इनायत बेड से उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपने गले में पहना नेकलेस निकालती हुई बोली, "उसने कहा कि वो मना कर देगा!!"
"इतनी आसानी से, वो मान गया...?"
"हाँ, शायद! उसे मुझ पर दया आ गई होगी। मैंने उससे कहा कि मुझ पर शादी का दबाव बनाया जा रहा है, और मुझे शादी नहीं करनी है। तो उसने कहा कि ठीक है, मैं शादी के लिए खुद मना कर दूँगा!" इनायत ने नेकलेस को वहीं रखा और फिर वॉर्डरोब से अपने कपड़े लेकर चेंज करने चली गई।
"क्या इतनी जल्दी मान गया आर्यन...? यह बात कुछ जमी सी नहीं।" गार्गी सोचती हुई खुद से ही बोली।
कुछ देर बाद इनायत बाथरूम से बाहर आई और गार्गी के पास बैठ गई। "अब तो कोई शादी भी नहीं होगी यार! अब तो मैं वापस दिल्ली चलूँगी तेरे साथ... और अपनी पढ़ाई पर फ़ोकस करूँगी।" वह खुशी से बोली। यहाँ आने के बाद अब इनायत के चेहरे पर खुशी देखी थी गार्गी ने, वरना तो वह उदासी की मूरत बनकर घूम रही थी। इनायत को खुश देखकर गार्गी भी खुश हो गई, पर अंदर ही अंदर उसे कुछ डर सा ज़रूर था, जो कि अच्छा तो बिल्कुल नहीं था।
डिनर के बाद वीरेंद्र जी ने सबको हॉल में आने को बोला। तो सब वहीं आ गए।
"अभी थोड़ी देर पहले फ़ोन आया था विनायत जी का, (इनायत की तरफ़ देखते हुए) क्या कहा था तुमने आर्यन को...?" वीरेंद्र जी इनायत की तरफ़ शक भरे अंदाज़ में देखते हुए बोले।
"क...कुछ भी तो... तो नहीं बोला मैंने दादाजी," इनायत घबराई सी बोली।
"कुछ तो बोला है, इसीलिए वह लोग चाहते हैं कि..." (वीरेंद्र जी थोड़ा रुक गए और सबकी तरफ़ देखने लगे।)
इनायत अपने मन में खुश होकर बोली, "मुझे पता है यही बोला होगा कि हम यह शादी नहीं करेंगे! अब तो यहाँ से जल्दी ही पीछा छूट जाएगा।" पर वीरेंद्र जी की बात सुनकर इनायत की सारी खुशी धरी की धरी रह गई। वह वहाँ खड़ी-खड़ी ही पत्थर की मूर्ति बन चुकी थी।
"कि जल्द से जल्द यह शादी हो... विनायत जी बता रहे थे कि (इनायत की तरफ़ देखते हुए) तुमने आर्यन से कहा कि यह शादी जल्दी से हो जाए। उनको आर्यन ने बताया। ख़ैर! उन्होंने कहा है कि अगले महीने की 29 को शादी हो, यानी कि आज से एक महीना और 29 दिन बाद तुम्हारी शादी है। तो तैयारी करो, (कावेरी जी की तरफ़ देखकर) कल से ही सारी तैयारियाँ शुरू कर देना। जो हमारे ज़िम्मे काम हो वह भी बता देना। कोई कमी नहीं होनी चाहिए, आखिर सिंह परिवार की तीसरी पीढ़ी की पहली शादी है..." वीरेंद्र जी रौबदार अंदाज़ में बोले।
"जी पिताजी, आप चिंता मत कीजिए।" कावेरी जी बोली और फिर वहाँ से चली गई। वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों अपने-अपने रूम्स में चले गए। ईशान भी दीदी की शादी का सोचकर वहाँ से खुश होता हुआ चला गया।
गार्गी ने बेचैनी से इनायत की तरफ़ देखा जो किसी मूर्ति की तरह वहाँ खड़ी थी। आँसू अब तक उसके गालों पर आ चुके थे। वह शून्य भाव में एक तरफ़ देखे जा रही थी। गार्गी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी।
गार्गी ने जल्दी से उसे सम्भाला। इनायत ने भीगी पलकों से उसकी तरफ़ देखा और बोली, "उसने ऐसा क्यों किया...? उसने झूठ बोला, क्यों...? उसने मुझसे कहा था कि अगर मैं नहीं चाहती तो यह शादी नहीं होगी, पर... दादाजी ने यह क्यों कहा...?"
"यहाँ नहीं इनू! चल यार, रूम में चलते हैं, वरना किसी ने तुझे इस हाल में देख लिया ना तो बिना बात बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।" गार्गी उसे सम्भालकर उठाती हुई बोली।
इनायत भी उसका सहारा लेकर उठी और उसके साथ रूम में आ गई। कि तभी उसका फ़ोन बजा। उसने खुद को सम्भाला और फ़ोन, जो कि टेबल पर रखा था, वह उठाया और स्क्रीन पर देखा। वह एक अननोन नंबर था।
इनायत ने पहले तो काट दिया, पर जब फ़ोन दुबारा आया तो उसने रिसीव किया।
"हेलो, कौन...?"
"तुम्हारा होने वाला पतिदेव!" सामने से आर्यन हँसकर बोला।
क्रमशः
रंधावा हाउस! रात का वक्त था।
सभी अपने-अपने कमरों में जा चुके थे। अश्विनी जी सिद्धांत से बात करने के लिए हॉल में बैठी थीं। सिद्धांत कोई महत्वपूर्ण कॉल अटेंड करने गार्डन एरिया में गया हुआ था।
कुछ देर बाद, जैसे ही वह अंदर आया, उसने देखा कि अश्विनी जी हॉल में ही बैठी हैं। वह उनके पास गया और बोला, "क्या हुआ मम्मी? आप यहाँ अभी तक बैठी हैं...? सोना नहीं है क्या...?"
"बैठ, कुछ बात करनी है तुमसे!" अश्विनी जी ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा। वह चुपचाप बैठ गया।
"जी, कहिए क्या कहना है आपको...?" सिद्धांत ने अश्विनी जी को गंभीर देखकर कहा। क्योंकि वह जानता था कि अश्विनी जी उससे तभी बात करती थीं जब बात बहुत ज़रूरी होती थी। वरना तो वह खुद ही सब हैंडल कर लेती थीं।
"तुमने क्या हालत बना रखी है मालविका की?" उन्होंने सीधा सवाल किया। अश्विनी जी की बात सुनकर वह थोड़ा चौंककर उनकी तरफ देखा।
"आप कहना क्या चाहती हैं...?" उसने खुद को सामान्य करते हुए पूछा। अश्विनी जी ने उसकी तरफ देखा और रुँधे गले से बोलीं, "देखो सिद्धांत, ज़्यादा बातों को नहीं घुमाना पसंद मुझे। मैं साफ़-साफ़ और सीधा-सीधा कहना चाहती हूँ कि वह पत्नी है तुम्हारी... उसके साथ यह सब मत करो जो तुम कर रहे हो। उसे अच्छे से रखो और खुश... बच्चे का क्या होगा, यह भी तुम्हें..."
"मम्मी, यह मेरे और मेरी पत्नी के बीच का निजी मामला है, तो आप इसमें कुछ ना बोलें तो ही ठीक रहेगा। मुझे क्या करना है और क्या नहीं, यह मुझे आप नहीं बताएँगी। वह मुझे खुद देखना है।" सिद्धांत ने अश्विनी जी की बातों को बीच में ही काटते हुए कहा और वहाँ से उठकर जाने लगा। तभी अश्विनी जी ने उसे रोकते हुए कहा, "मैंने तुम्हें यह सब तो नहीं सिखाया था सिद्धु! तो तुम कैसे अपनी ही बीवी के साथ ऐसा बर्ताव कर सकते हो...?"
"मैंने बोला ना कि यह मेरा और मेरी पत्नी का निजी मामला है, आप बीच में ना पड़ें। मुझे पता है कि मुझे क्या करना है, तो अच्छा होगा कि आगे से आप मुझे ना समझाएँ कुछ भी और अपने काम से काम रखें।" सिद्धांत ने उनकी तरफ मुड़कर अपने हर एक शब्द पर ज़ोर देते हुए हल्के गुस्से में कहा।
अश्विनी जी हैरत में सिद्धांत की तरफ देख रही थीं। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब उनका सिद्धांत बोल रहा है, जिसे वह उसके बचपन से जानती थीं। जिसे उन्होंने पाला था, वह सिद्धांत। नहीं...नहीं...यह उनका सिद्धांत नहीं था। यह...
सिद्धांत वहाँ से जा चुका था, पर अश्विनी जी अभी भी हैरत में वहीं खड़ी थीं। सिद्धांत की बात सुनकर उन्हें झटका लगा था कि क्या अब उसकी नज़र में उसकी माँ की भी कोई वैल्यू नहीं...? उसकी बात की कोई वैल्यू नहीं...?
वह हताश सी वहीं सोफ़े पर बैठ गईं और अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपाकर फूट-फूट कर रोने लगीं।
वहीं सिद्धांत गुस्से में दनदनाता हुआ सीधा अपने कमरे में आया। मालविका कपड़ों की तह कर रही थी। उसे अब कुछ सही महसूस हो रहा था। वरना तो वह सुबह से ही बिस्तर पर बेजान सी पड़ी थी।
सिद्धांत ने गुस्से में दरवाज़ा बंद किया। दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ इतनी तेज थी कि मालविका को अपने कानों पर हाथ रखना पड़ा। सिद्धांत सीधा मालविका के सामने आकर खड़ा हुआ।
एक "सटाक" की आवाज़ पूरे कमरे में गूंज गई। मालविका अपने चेहरे पर हाथ रखे हुए थी, अब तक आँखें आँसुओं से भर चुकी थीं। उसने धीरे से अपनी आँखें उठाईं और सिद्धांत की तरफ देखा जो गुस्से में धधक रहा था।
"मै...मै...क्या...क्या किया...?" मालविका रुँधे गले से बोली।
सिद्धांत ने बड़ी बेरहमी से मालविका के पीछे से बाल पकड़े और उसका चेहरा ऊपर करते हुए गुस्से में बोला, "मेरी शिकायत तुमने मम्मी से की...? उनकी नज़रों में मुझे गिराना चाहती हो तुम... कमरे की बात को तुमने मम्मी के सामने खोलकर बहुत गलत किया मालविका...बहुत ही ज़्यादा गलत।"
"मैंने...मैंने कुछ नहीं बताया माँ जी को...बल्कि वह तो पहले से ही सब जानती हैं।" मालविका दर्द में चीख पड़ी।
"आवाज़ नीची!...वरना ज़ुबान खींच लूँगा, जाहिल औरत!..." सिद्धांत ने एक और थप्पड़ मालविका के चेहरे पर मार दिया और उसका जबड़ा पकड़कर बोला। मालविका का रोना और तेज हो गया।
अश्विनी जी जो कि हॉल में ही बैठी थीं, उन्हें जब मालविका के चिल्लाने की आवाज़ आई तो वह एकदम घबरा गईं। वह उठीं और जल्दी से अपने कदम सिद्धांत के कमरे की तरफ बढ़ा दिए। वह जैसे ही कमरे के बाहर पहुँचीं, अंदर से आ रही सिद्धांत के गुस्से से भरी आवाज़ें और मालविका के रोने की आवाज़ें, वह समझ चुकी थीं कि सिद्धांत अब अपना गुस्सा मालविका पर उतार रहा था।
अश्विनी जी का दिल तड़प उठा। जब उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह दरवाज़े को खुलवाने के लिए दरवाज़े को हाथ से पीटते हुए बोलीं, "सिद्धांत...सिद्धांत...सिद्धांत!...दरवाज़ा खोलो। मैं कहती हूँ दरवाज़ा खोलो अभी के अभी।"
सिद्धांत जिसने मालविका का हाथ मोड़कर उसकी पीठ से लगाया हुआ था, अश्विनी जी की आवाज़ सुनकर उसने झट से उसे छोड़ दिया। सिद्धांत की पकड़ से छूटते ही मालविका फर्श पर गिर पड़ी।
सिद्धांत ने जाकर आधा-सा दरवाज़ा खोला, पर अश्विनी जी ने सिद्धांत को धक्का दिया और पूरा दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गईं। उनकी नज़र मालविका पर रुक गई जो फर्श पर पड़ी थी। मालविका को यूँ देखकर वह हतप्रभ रह गईं।
"हेलो, कौन...?"
"तुम्हारा होने वाला पतिदेव..." सामने से आर्यन हँसकर बोला। आर्यन की आवाज़ सुनकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वह बेबस सी बोली, "तुमने झूठ बोला ना मुझे..."
"सॉरी इनायत, पर क्या करता, सामने से ना कहकर तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था। तुम्हारे उदास से चेहरे पर खुशी देखना चाहता था। जिसे देखने के लिए ही मैंने झूठ बोला।" आर्यन अपनी हँसी को रोककर इस बार थोड़ा सीरियस होकर बोला।
"मैंने तुम्हें बताई थी ना अपनी प्रॉब्लम की मुझ पर शादी का दबाव बनाया जा रहा है, मैं शादी नहीं करना चाहती हूँ। मैं कामयाब होना चाहती हूँ।" इनायत इस बार गुस्से में बोली क्योंकि यहाँ उसके जज़्बातों का मज़ाक बनाया जा रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि उसका यहाँ कोई वजूद था ही नहीं...?
"पर मैं करना चाहता हूँ शादी...हाँ, यह मुद्दे की बात कही तुमने...उम्म (सोचते हुए) तो क्या किया जाए...?" आर्यन बोला।
"अभी भी वक्त है आर्यन, समझो मेरी मजबूरी को..." इनायत गुस्से और बेबसी के मिलाजुले भावों के साथ बोली।
"शादी तो होकर ही रहेगी। और रही बात तुम्हारे कामयाब होने की तो... आफ्टर मैरिज आई विल फुल्ली सपोर्ट यू इन योर स्टडीज! एंड दैट्स माय प्रोमिस..." आर्यन धीरे से बोला।
आर्यन की यह बात सुनकर इनायत एक पल को कुछ बोल ही नहीं पाई। वह खुद सोच में पड़ गई थी कि अब क्या कहे...उसे आर्यन से ऐसे जवाब की कोई उम्मीद नहीं थी।
"नो आर्यन...मैं फिर भी शादी नहीं करूँगी।" इनायत बोली। गार्गी वहीं उनके पास बैठी हुई थी, उसे कुछ समझ तो नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों क्या बात कर रहे हैं, पर वह यह जान चुकी थी कि वह बात इनायत को बिल्कुल पसंद नहीं आई थी।
"कहीं तुम किसी और को तो पसंद नहीं करती...?" आर्यन के दिमाग में इस बार यह ख्याल आया तो उसने खुद को कंट्रोल कर उससे पूछ लिया था।
"यह क्या बकवास कर रहे हो...?" इनायत गुस्से में बेड से उठ खड़ी हुई।
"बकवास तो नहीं की, बल्कि एक सीधा-सा ही सवाल पूछा है कि क्या तुम किसी और को पसंद करती हो...? क्या यही रीज़न है तुम्हारा शादी ना करने का...? मुझे बस हाँ या ना में जवाब दो..."
"नहीं...नहीं करती हूँ मैं किसी और को पसंद...पर फिर भी मैं शादी नहीं करना चाहती हूँ। क्यों तुम लोगों की नज़रों में मेरी मर्ज़ी मायने नहीं रखती...? मैं...मैं...भी एक इंसान हूँ, जीता-जागता वजूद हूँ। कोई पंछी तो नहीं हूँ कि जिसे बेजुबान समझकर खुद की मर्ज़ी से कैद कर लिया जाए...? मुझे भी हाँ बोलना आता है, और आता है मुझे भी ना बोलना। पर फिर भी मेरे हाँ या ना की अहमियत नहीं...?" इस बार इनायत बोलते हुए रो पड़ी और फ़ोन काट दिया था। क्योंकि शायद! अब वह और बात नहीं करना चाहती थी उससे...
आर्यन जो कि बेड पर बैठा था, उसका दिल इनायत का रोना सुनकर कुछ नर्म पड़ गया था। वह महसूस कर सकता था उसकी लाचारी और बेबसी। पर इस वक्त वह इनायत के बारे में नहीं बल्कि खुद के बारे में सोच रहा था। हाँ, वह सेल्फिश होकर सोच रहा था। सिर्फ़ अपने पहलू से, ना कि इनायत के पहलू से...और शायद! वह सोचना भी नहीं चाहता था क्योंकि वह बस इनायत को पाना चाहता था, हाँ, वह उसे पसंद करता था, आज से नहीं बल्कि बचपन से...उसे बताया गया था कि आगे चलकर उसकी और इनायत की शादी होगी। इसलिए उसका दिल और दिमाग इनायत पर सेट हो चुका था। उसने नज़र भर किसी और लड़की की तरफ़ कभी नहीं देखा था, और जब इनायत दो साल पहले दिल्ली गई अपनी आगे की पढ़ाई के लिए, तब उसे एहसास हुआ कि वह उसे पसंद नहीं करता, बल्कि प्यार करता है, पर एकतरफ़ा प्यार...
हाँ, वह खुश था अपने उस एकतरफ़ा प्यार के साथ क्योंकि वह जानता था कि एक ना एक दिन तो इनायत को उसका ही होना है। वह निश्चित था।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और बेड पर अच्छे से लेट गया। कुछ सवाल थे जिनमें वह कुछ उलझा हुआ सा था।
वहीं इनायत गार्गी की गोद में अपना सिर रखे दहाड़े मारकर रो रही थी।
"लोग...लोग...यूँ ही कहते हैं कि लड़का और लड़की, मर्द और औरत, सब...सब...बराबर हैं, पर...पर...यह सब सिर्फ़ कहने मात्र है...अरे...ह...हकी...हकीकत...कोई...कोई मुझसे पूछे...पूछे तो...तो मैं दिखाऊँ उन्हें हकीकत!" वह रोते हुए बोली।
गार्गी की आँखें भी नम हो गई थीं। पर यहाँ वह खुद बेबस थी, तो वह उसके लिए क्या कर सकती थी...? कुछ भी नहीं 😔
क्रमशः
"मालविका..." यह कहते हुए अश्विनी जी मालविका की ओर बढ़ीं। उन्होंने उसे सम्भाला और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "मालविका! तुम ठीक हो बेटा, फ़िक्र मत करो... मैं हूँ यहाँ अब!"
अश्विनी जी का प्यार भरा स्पर्श मालविका की अब तक बची हुई हिम्मत तोड़ गया। वह उनसे लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी।
"उठो, यहाँ बैठो बेड पर..." अश्विनी जी उसे पकड़कर उठाते हुए बोलीं और मालविका को धीरे से बेड पर बिठा दिया। मालविका बस रोती जा रही थी।
"बस मेरा बच्चा रोता नहीं है। सब ठीक है, चुप जाओ बिल्कुल! मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, बस चुप।" अश्विनी जी मालविका को चुप करवाते हुए बोलीं, जबकि उनकी भी आँखें नम हो गई थीं।
"मम्मी आप यहाँ क्या कर रही हैं? आप जाकर अपने कमरे में सो जाइए!" सिद्धांत अश्विनी जी के पास आकर उनकी बाजू पकड़ते हुए बोला। तो अश्विनी जी ने गुस्से में उसका हाथ झटक दिया।
"तुमसे यह उम्मीद नहीं थी मुझे सिद्धांत! तुम इंसान हो या जल्लाद...? पत्नी है ये तुम्हारी..."
"हाँ तो हक है मेरा..." सिद्धांत भी गुस्से में बोला।
"हक है...? ब्याह कर लाए हो ना कि खरीद कर समझे।" अश्विनी जी बेड से उठते हुए बोलीं।
"बस कीजिये मम्मी, ये हमारे बीच का मसला है। तो आप इसमें ना आएँ तो ही ठीक रहेगा। मुझे पता है कि मुझे अपनी बीवी के साथ कैसे बर्ताव करना है। (मालविका की ओर गुस्से में देखते हुए) और जो भी मैं कर रहा हूँ ना, ये इसी लायक है... एक बच्चा तो दे नहीं सकती, बस ऐश में रहना है इसे, हर वक्त बहाने बनाती रहती है। कभी मोहतरमा के सिर दर्द है, कभी पेट दर्द है...? कभी बुखार है। मुझे तो लगता ही है कि ये नहीं चाहती कि मेरा बच्चा हो...?" सिद्धांत गुस्से में बोला।
वही, सिद्धांत की बात सुनकर मालविका फफक पड़ी थी। अरे! वो तो चाहती थी कि उसकी गोद हरी हो जाए, ताकि उसे सिद्धांत का ऐसा बर्ताव झेलना ना पड़े।
"क्या बच्चा-बच्चा लगा रखा है तुमने सिद्धांत...? ये अकेली इसकी कमी नहीं है शायद! तुममें ही कोई कमी हो इस लिए बच्चा..."
"बस कीजिये मम्मी, कुछ भी मत बोलिये। आप इसकी कमी को मुझ पर थोप रही हैं। मुझमें कोई कमी नहीं है, जो भी कमी है इसमें ही है..." सिद्धांत गुस्से में अश्विनी जी की बात को बीच में ही काटकर बोला और अश्विनी जी का हाथ पकड़कर उन्हें कमरे से बाहर करते हुए बोला, "अब आप जाइये, रात बहुत हो गई है। जाइये और जाकर सो जाइये।"
"सिद्धांत रुको... सिद्धांत रुको... मुझे मालविका के पास रहना है... मैं कहती हूँ रुक जाओ!" अश्विनी जी उसे रोकते हुए बोलीं, पर सिद्धांत ने उन्हें कमरे से बाहर निकाल दिया और फिर उनके मुँह पर ही दरवाज़ा बंद कर दिया।
"सिद्धांत कुछ मत करना..." अश्विनी जी दरवाज़ा पीटते हुए बोलीं। पर अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। अश्विनी जी हताश होकर वहाँ से अपने कमरे में चली गईं।
दरवाज़ा बंद करके सिद्धांत कुछ देर तो मालविका को ही गुस्से में घूरता रहा। वह डरी हुई सी, खुद में ही सिमटी हुई बेड पर बैठी थी। उसका पूरा बदन पत्ते की तरह काँप रहा था। वह तो डर रही थी कि अब पता नहीं सिद्धांत क्या करेगा...? कहीं फिर से तो नहीं मारेगा...?
सिद्धांत गुस्से में उसकी तरफ बढ़ा, पर फिर कुछ सोचकर दो कदम चलने के बाद वह रुक गया। उसने अपनी आँखें बंद कीं और गुस्से को शांत करने के लिए अपने हाथों की मुट्ठी बंद कर ली।
फिर वह वॉर्डरोब से कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। सिद्धांत के बाथरूम में जाते ही मालविका ने अपना हाथ पकड़ा, जो बहुत देर से दर्द कर रहा था।
"आह... माँ!!" वह अपने हाथ को धीरे से सहलाते हुए बोली और बड़े-बड़े आँसू उसकी आँखों से निकलकर बेड पर गिर गए।
कुछ देर में सिद्धांत कपड़े बदलकर आया और चुपचाप बेड पर आकर बैठ गया।
"लाइट बंद कर दो रूम की..." सिद्धांत कम्बल ओढ़ते हुए बोला और मालविका की तरफ पीठ करके लेट गया।
मालविका धीरे से बेड से उठी और स्विचबोर्ड के पास आकर रूम की लाइट बंद कर दी।
अगली सुबह
सिंह मेंशन...
खुशवेंद्र जी और वीरेंद्र जी दोनों किसी काम से बाहर गए थे। गार्गी, कावेरी जी और ईशान तीनों गार्डन में बैठे थे। ईशान के पीरियोडिक टेस्ट चल रहे थे, इसलिए आज प्रिपरेशन के लिए छुट्टी थी।
इनायत गुमसुम सी अपने रूम में बेड पर बैठी हुई थी और लगातार हाथ में पकड़े एक फ़ोटोफ़्रेम को देख रही थी। जिसमें वह अपनी बड़ी बहन इशिका के साथ थीं। दोनों काफी खुश लग रही थीं।
"दी..!! इन लोगों ने जैसे आपके साथ करना चाहा, आज ये सब मेरे साथ भी वैसा ही करना चाहते हैं...? पर मैं सच में ये शादी नहीं करना चाहती हूँ। ऐसा नहीं है कि आर्यन बुरा है, पर... मैं अभी तैयार नहीं हूँ। जानती हूँ मैं एक बार शादी हुई, उसके बाद कोई नहीं पढ़ने देगा आगे, घर, बच्चे, परिवार, पति बस यही होगा... कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूँ...? कोई भी मुझे समझने के लिए ही तैयार नहीं है...? और जो समझते थे वह इस हालत में नहीं है... पापा को इस हालत में देखकर बहुत बुरा लगता है दी..!! (गुस्से में) पर मैं कभी नहीं भूल सकती कि आज पापा की जो ये हालात हैं, उसके जिम्मेदार ये सब ही हैं, जो अपनों के भेष में साँप हैं। अपनी आँखों से देखा था कि कैसे ताया ने पापा के सिर पर मारा था, जिस वजह से आज पापा दूसरों पर मोहताज हैं... कभी माफ़ नहीं करूँगी, कभी भी नहीं..." इनायत अपने आँसू पोछकर बोली और उस फ़ोटोफ़्रेम को दर्ज़ में रख दिया।
और खुद अपने पापा के रूम में आ गई। पर रूम में आते ही सामने पवन जी को देखकर वह अचानक से घबरा गई।
क्रमशः
"पापा......आ!" इनायत चिल्लाते हुए अंदर की तरफ दौड़ी। पवन जी बेड से गिरने वाले थे, शायद! वे खुद से ही उठने की कोशिश कर रहे थे, पर इसमें वे नाकाम रहे।
इनायत ने जल्दी से पवन जी को संभाला और उन्हें वापस बेड पर अच्छे से लेटा दिया।
"पापा, पापा आप ठीक तो हैं ना..?" इनायत घबराई सी बोली। क्योंकि अगर वह सही समय पर यहां नहीं आती तो पवन जी बेड से गिर भी सकते थे और उन्हें चोट भी लग सकती थी।
पवन जी ने बस अपनी पलकें झपका दीं। तो इनायत भी उनके पास ही बैठ गई और बोली, "क्या चाहिए आपको, मुझे बता दीजिए।"
इनायत के इस सवाल पर पवन जी ने आँखों से ही कुछ इशारा किया था, पर इनायत उसे समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वे कहना क्या चाह रहे हैं...? तभी कुछ सोचकर इनायत बोली, "अच्छा आप रुकिए, मैं अभी बुलाकर लेकर आती हूँ।"
यह बोलकर इनायत भागकर बाहर चली गई। वह सीधा ही गार्डन में आई और थोड़ी हड़बड़ाहट और घबराहट के साथ बोली, "मम्मी! पापा कुछ कह रहे हैं, आप जल्दी चलिए...."
कावेरी जी, गार्गी और ईशान तीनों इनायत की तरफ देखने लगे। कावेरी जी की आँखों में आज एक अलग ही चमक थी, इनायत के मुँह से खुद के लिए 'मम्मी' सुनकर। और इनायत के मन में अभी सिर्फ अपने पापा का ही ख्याल था।
"क्या हुआ बेटा...?" कावेरी जी उठती हुई बोलीं। तो इनायत अंदर की तरफ इशारा करके बोली, "पापा को शायद कुछ कहना है...? उन्हें कुछ चाहिए है...?"
"ठीक है, मैं देखती हूँ।" कावेरी जी मुस्कुराकर बोलीं और अंदर की तरफ बढ़ गईं। उनके पीछे-पीछे ही इनायत, गार्गी और ईशान अंदर आ गए थे।
"क्या हुआ पवन जी....." कावेरी जी अंदर आते ही पवन जी के पास आकर बोलीं। तो पवन जी ने आँखों से ही कुछ इशारा किया, जिसे समझकर कावेरी जी इनायत, गार्गी और ईशान की तरफ देखकर बोलीं, "तुम तीनों बाहर जाओ... इन्हें वॉशरूम जाना है।"
तीनों ने हाँ में सिर हिलाया और बाहर चले गए। कावेरी जी ने दरवाजा बंद किया और पवन जी को सहारा देकर बाथरूम में ले आईं।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा। दोनों घरों में शादी की तैयारियाँ चल रही थीं। आर्यन खुश था, पर इनायत के लिए ये सब बहुत मुश्किल था। वह अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी। ना किसी से बात करती थी, ना अपने रूम से बाहर निकलती थी।
शादी से दो दिन पहले, सुबह करीब 5:00 बजे, इनायत के रूम में कुछ हलचल हो रही थी। बेड पर गार्गी अपना सिर पकड़े बैठी थी और इनायत एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर रही थी।
"इनू,,, एक बार फिर सोच ले, यह जो तू करने जा रही है बहुत गलत है। शादी को सिर्फ 2 दिन बचे हैं और तू आज यह कदम उठाने जा रही है।" गार्गी परेशान सी बोली।
"अब मेरे पास यहां से भागने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। मैं आपकी लाइफ ऐसे खराब नहीं कर सकती। जबरदस्ती मुझे किसी और के साथ बाँध देंगे ये लोग, पूरी ज़िंदगी बस रिग्रेट करती रह जाऊँगी मैं।" इनायत बैग की चैन को बंद करती हुई बोली।
"इनू,,,इनू,,,इनू! तू गलत कर रही है, मान जा मेरी बात, मत कर ये सब....." गार्गी बेड से उठी और उसके पास आकर उसे समझाती हुई बोली। पर इनायत जैसे कुछ समझना ही नहीं चाहती थी। इस वक्त वह तो बस यहां से कैसे-न-कैसे करके जाना चाहती थी।
"प्लीज गायू! थोड़ी सी और मदद कर दे मेरी। लक्ष्मी बुआ से मैंने बात कर ली है, मैं सीधा दिल्ली ही जाऊँगी। मैं नहीं कर सकती शादी, अगर मेरे पास कोई और भी रास्ता होता तो मैं ऐसे नहीं भागती..." गार्गी की तरफ देखकर इनायत बोली।
"ठीक है, पर ध्यान से...." गार्गी फीका सा मुस्कुराकर बोली।
"बाय!" इनायत गार्गी को हग करती हुई बोली और अपना बैग उठाकर धीरे से रूम से बाहर निकल गई। इनायत धीमे-धीमे कदमों से सीढ़ियों से होकर नीचे आई। इस वक्त पूरा सिंह मेंशन अंधेरे में डूबा हुआ था।
कुछ गार्ड्स बाहर तैनात थे, जो पहरा दे रहे थे। इनायत उनसे छुपते-छुपाते घर से बाहर निकल आई थी। घर से बाहर निकलते ही वह दौड़ पड़ी थी। भागते हुए उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था।
मेन रोड पर आने के बाद, वह रुक गई और अपनी साँसों को नॉर्मल करने लगी जो लगातार भागने की वजह से ऊपर-नीचे हो रही थीं।
"अब....अब....क्या करूँ...? कैसे जाऊँ रेलवे स्टेशन तक? इस टाइम तो कोई ऑटो भी नहीं मिलेगी मुझे... कैसे जाऊँ....." इनायत उस सुनसान सड़क को देखकर बोली, जहाँ सिर्फ अंधेरा ही था। फिर कुछ सोचकर वह नीचे झुकी और अपने शूज़ की लेसेस को कस लिया।
"अब दौड़कर ही वहाँ तक पहुँचना पड़ेगा, उसके अलग कोई रास्ता भी नहीं है...." वह खुद से ही बुदबुदाई और उस सड़क पर दौड़ पड़ी। जितना तेज भागना संभव था, उतना ही तेज वह भाग रही थी।
जहाँ कार, बस, या ऑटो से रेलवे स्टेशन का रास्ता आधे घंटे का था, वहीं इनायत ने दौड़कर 40 मिनट में वह रास्ता कवर कर लिया था। सुबह का वक्त था, तो रेलवे स्टेशन पर ज़्यादा लोग नहीं थे। कुछ लोग अपनी ट्रेन का वेट कर रहे थे, तो कुछ लोग इधर-उधर अपने प्लेटफार्म को चेक कर रहे थे।
"चलो, टाइम पर पहुँच गई इनू...अब जल्दी से टिकट ले...." वह टिकट काउंटर की तरफ बढ़ गई। उसने वहाँ से दिल्ली की टिकट ली और सीढ़ियों से होकर प्लेटफार्म नंबर 4 पर आ गई। और वहीं बेंच पर बैठकर ट्रेन का इंतज़ार करने लगी।
कुछ ही देर बाद दिल्ली जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 4 पर आकर रुकी। वह काफी देर तो वहीं बैठकर ट्रेन को देखती रही, शायद कुछ सोच रही थी...? फिर अगले ही पल वह अपना बैग लेकर उठी और ट्रेन में चढ़ने लगी, कि तभी किसी ने उसका हाथ बड़ी ही मजबूती से पकड़ लिया था। इनायत को जब महसूस हुआ कि किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया है, उसने झट से पीछे मुड़कर देखा... सामने खड़े शख्स को देखते ही इनायत का पूरा वजूद हिल गया। आँखों में एक डर उभर आया।
क्रमशः
"आ...आर्य...न...आर्यन...त...तुम...तुम यहाँ...?" इनायत अटकते हुए बोली।
वही आर्यन, जो अपने किसी रिश्तेदार को लेने रेलवे स्टेशन आया था, उसने जब इनायत को वहाँ देखा, उसे अपने बैग के साथ देखकर उसे समझने में देर नहीं लगी कि इनायत वहाँ से भागने की कोशिश कर रही है। इनायत के दूर जाने के ख्याल से ही आर्यन गुस्से में भड़क उठा था। जबकि २ दिन बाद उन दोनों की शादी थी, और वह वहाँ से भाग रही थी।
"तुम यहाँ से भागने की कोशिश कर रही हो...? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह ख्याल अपने दिमाग में लाने की...कि तुम यहाँ से भाग जाओगी आसानी से...?" आर्यन गुस्से में उसे वापस नीचे खींचता हुआ बोला।
"आर्यन....आर्यन प्लीज मेरा हाथ छोड़ो मुझे जाने दो, मुझे नहीं रुकना यहाँ प्लीज मुझे जाने दो...." इनायत आर्यन की पकड़ से अपना हाथ छुड़वाने की कोशिश करती हुई बोली। जबकि आर्यन का कोई भी इरादा नहीं था उसका हाथ छोड़ने का। उसने उसके हाथ पर अपनी पकड़ और मज़बूत कर ली।
"जाने दो मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं दूँगा यहाँ से किसी भी कीमत पर, अब चल रही हो मेरे साथ या फिर यहाँ से ही घसीटते हुए लेकर जाऊँ तुम्हें...?" आर्यन जलती नज़रों से इनायत को देखता हुआ बोला।
"प्लीज जाने दो मुझे, मुझे नहीं रहना यहाँ। प्लीज जाने दो...मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ, तुम कहो तो मैं तुम्हारे पैर भी पड़ लूँगी पर प्लीज मुझे यहाँ से जाने दो...." इनायत आर्यन के सामने गिड़गिड़ाती हुई बोली।
पर आर्यन ने उसकी एक न सुनी और उसे लगभग खींचते हुए अपने साथ लेकर जाने लगा। इनायत भी अपना पूरा जोर लगाए हुए थी और आर्यन भी अपना पूरा जोर लगाकर उसे अपने साथ खींच रहा था। ना आर्यन पीछे हटने को राजी था और ना इनायत आर्यन के साथ जाने को राजी थी। इस खींचातानी में इनायत का हाथ दर्द करने लगा था।
तभी वहाँ पास से ही गुज़र रहा एक अधेड़ उम्र का आदमी रुका और आर्यन की तरफ़ देखकर बोला, "अरे यह क्या बदतमीज़ी हो रही है यहाँ, जब वह लड़की तुम्हारे साथ नहीं जाना चाहती तो क्यों उसे जबरदस्ती खींच रहे हो अपने साथ...? देखो इसे कितना दर्द हो रहा है यूँ तुम्हारे खींचने से...?"
"आप होते कौन हैं हम दोनों के बीच बोलने वाले...? जाइये और जाकर अपना काम कीजिये।" आर्यन गुस्से में उन्हें घूरता हुआ बोला।
"एक तो चोरी और ऊपर से सीनाज़ोरी। वाह! भई वाह! रुको तुम, मैं अभी पुलिस को बुलाता हूँ।" वह आदमी भी तैश में आकर बोला।
"और क्या कहेंगे जब पुलिस आएगी...?" आर्यन बोला।
"बोलूँगा कि तुम इस लड़की के साथ जबरदस्ती कर रहे हो, फिर जब पड़ेंगे ना पुलिस के डंडे तब पता चलेगा तुम्हें...?" वह आदमी बोला। तो आर्यन मज़ाक करता हुआ बोला, "क्यों मियाँ-बीवी के बीच में पड़ रहे हैं अंकल...? जाइये और अपना काम कीजिये....."
"मियाँ-बीवी? क्या तुम मियाँ-बीवी हो...? पर देखकर तो नहीं लग रहा कि तुम दोनों मियाँ-बीवी हो...?" वह आदमी इनायत और आर्यन को गौर से देखता हुआ बोला।
"तो क्या अब गले में बोर्ड लटकाकर घूमूँ कि हाँ ये मेरी बीवी है और मैं इसका पति...?" आर्यन चिढ़कर बोला।
आर्यन की बात सुनकर वह आदमी मुँह बनाकर वहाँ से चला गया। आर्यन ने इनायत की तरफ़ देखा जो अपने आँसू पोछ रही थी।
"अब चुपचाप चल रही हो या दर्द में ही मज़ा आता है...?" आर्यन गुस्से में बोला।
"प्लीज आर्यन जाने दो मुझे...." इनायत एक आखिरी कोशिश करती हुई बोली क्योंकि वह अब समझ चुकी थी कि आर्यन के रहते हुए वह वहाँ से भाग नहीं सकती। क्योंकि आर्यन उसे जाने ही नहीं देगा।
"ना का मतलब समझ नहीं आता एक बारी में, मैं तुम्हें यहाँ से जाने नहीं दूँगा.... तुम क्या सोची कि सबको उल्लू बनाकर यहाँ से भाग जाओगी हाँ...? और हम बस खड़े रह जाएँगे, तुम गलत सोच रही थी। क्योंकि शादी तो होकर ही रहेगी।" आर्यन गुस्से में अपने दाँत पिसते हुए बोला। और फिर इनायत को लेकर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आया। उसने अपनी गाड़ी के पास आकर गाड़ी का दरवाज़ा खोला और लगभग इनायत को अंदर की तरफ़ धकेला। फिर वापस से दरवाज़ा बंद किया और खुद ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।
"आर्यन...मेरी बात...सुनो, जाने दो मुझे यहाँ से...प्लीज, अगर मैं यहाँ रही तो सच में मैं मर जाऊँगी...मर जाऊँगी मैं...!!" इनायत उसकी बाँह पकड़कर रोते हुए बोली।
तो आर्यन ने उसका हाथ अपनी बाँह से झटक दिया और गुस्से में उसे उंगली दिखाते हुए बोला, "बेहक मर जाओ पर यहीं....यहाँ से तो मैं कहीं जाने नहीं दूँगा।"
इनायत सन्न सी आर्यन को देख रही थी, अब उसे उससे नफ़रत हो रही थी। उसके पास यह गोल्डन चांस था यहाँ से और इस शादी से भागने का, पर आज आर्यन की वजह से वह गोल्डन चांस उसके हाथों से निकल गया था। अब क्या उसे सच में यह शादी करनी पड़ेगी...?
क्रमशः
वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों हॉल में बैठे चाय का मज़ा ले रहे थे। वहाँ का माहौल एकदम शांत था; इस शांत माहौल से पता चल रहा था कि किसी को भी अभी तक पता नहीं था कि इनायत घर पर नहीं थी।
किचन में, कावेरी जी अपना सिर पकड़े खड़ी थीं, और गार्गी भी बहुत टेंशन में लग रही थी।
"तुमने मुझे क्यों नहीं बताया कि इनायत घर छोड़कर जा रही है...? शायद मैं उसे रोक लेती। जितना आसान है यहाँ से भाग जाना, इस शादी से पीछा छुड़ाना उतना आसान नहीं है... (अपने कपाल को घिसते हुए) बहुत बड़ी गलती कर दी इनायत ने। यहाँ से भागकर पिताजी और भाईसाहब को पता चल गया तो नहीं पता वह इनायत के साथ क्या करेंगे...? मुझे तो बहुत डर लग रहा है।" कावेरी जी परेशान सी बोलीं। क्योंकि अभी-अभी गार्गी ने उन्हें सब कुछ बता दिया था, जिसे सुनने के बाद कावेरी जी का परेशान होना लाजिमी था। उन्हें डर लग रहा था कि कहीं अतीत एक बार फिर से खुद को ना दोहरा दे; कि एक बेटी वह पहले ही खो चुकी हैं, अब अपनी दूसरी बेटी को ना खो बैठें...? नहीं...नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है।
कावेरी जी ने डरते हुए अपनी लार अंदर निगली; आगे का सोचकर ही उनकी जान हलक में आ गई थी। पूरा बदन एक भय से कांप उठा था। तभी बाहर से कुछ शोर-शराबे की आवाज आई। कावेरी जी ने गार्गी की तरफ देखा, फिर दोनों किचन से बाहर की ओर भागीं।
दोनों जैसे ही बाहर आईं, दोनों हतप्रभ रह गईं। इनायत ज़मीन पर गिरी हुई थी। आर्यन गुस्से में उसके पास ही खड़ा था। वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों हैरत में यह सब देख रहे थे। दोनों ने अपने-अपने हाथ में पकड़ा चाय का कप टेबल पर रखा और उठ खड़े हुए।
"ये...ये सब क्या है...? ये इनायत..." वीरेंद्र जी सिचुएशन को समझने की कोशिश करते हुए बोले।
"भाग रही थी आपकी पोती!" आर्यन गुस्से में चिल्लाया। आर्यन की बात सुनकर वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों को ही झटका लगा।
कावेरी इनायत को उठाने के लिए उसकी तरफ दौड़ीं, पर वीरेंद्र जी ने हाथ दिखाकर उन्हें वहीं रोक दिया। कावेरी जी डर के वहीं रुक गईं। आँखों के सामने एक खौफनाक दृश्य घूम गया था।
"क्या ये सब जो आर्यन बोल रहा है वह सही है इनायत...?" वीरेंद्र जी रौबदार आवाज में बोले।
"द...दा...दादा...जी...मै...वो...." इनायत उठ खड़ी हुई और डरते हुए बोली। पर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोले।
"हाँ या ना...?" वह फिर से बोले।
"हाँ....हाँ...क्योंकि मैं ये शादी नहीं...नहीं...करना चाहती हूँ।" इनायत रोते हुए बोली। उसकी बात सुनकर आर्यन ने गुस्से में अपने हाथों की मुट्ठी कसी।
"सटाक" 👋
एक थप्पड़ की आवाज ने पूरे माहौल में सन्नाटा पसरा दिया। इनायत अपने गाल पर हाथ रखे, सर झुकाए खड़ी थी। उसके सामने ही खुशवेंद्र जी गुस्से में हाफ रहे थे। यह थप्पड़ इनायत को खुशवेंद्र जी ने मारा था।
"एक ने तो पूरी कोशिश की थी हमारे खानदान पर कालिख पोतने की...और अब तुम भी चली...? इसी वजह से हम चाहते हैं कि तुम्हारी शादी जल्द-से-जल्द हो...(कावेरी जी की ओर देखते हुए) ले जाओ इसे मेरे सामने से, वरना इसकी जान ले लूँगा आज मैं!" वह गुस्से में बोले।
कावेरी जी जल्दी से इनायत की ओर बढ़ीं। आर्यन हैरत में खुशवेंद्र जी की ओर देख रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अभी-अभी उन्होंने इनायत पर हाथ उठाया था, जबकि अच्छे पारिवारिक संबंध होने की वजह से आर्यन भी सारी बात जानता था। उसे महसूस हुआ कि यह थप्पड़ इनायत को नहीं, बल्कि उसे मारा गया है।
कावेरी जी इनायत के पास आईं और उसका हाथ पकड़कर उसे वहाँ से ले जाने लगीं, पर इनायत वहाँ से बिल्कुल भी नहीं हिली; वह रोते हुए खुशवेंद्र जी की तरफ एकटक देख रही थी। पर अगले ही पल उसके चेहरे पर नफरत और गुस्से के मिले-जुले भाव आ गए थे।
"ले लीजिए मेरी जान, एक बार में ही किस्सा खत्म कीजिए ना, क्यों तड़पा रहे हैं मुझे...? जैसे आपने इशिका दीदी का कत्ल किया था, वैसे ही कर दीजिए ना मेरा भी कत्ल! सजा तो फिर भी आपको नहीं होगी, क्योंकि पुलिस स्टेशन में भी तो आपके ही लोग हैं। कोई क्या उखाड़ेगा आपका...?" इनायत एक दर्द भरी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोली।
"चल यहाँ से इनायत...." कावेरी जी डरते हुए उसे वहाँ से ले जा रही थीं, पर इनायत वहाँ से हिलने को ही तैयार नहीं थी।
"ज़ुबान संभालकर बात कर...भूल मत कि तेरे सामने कौन खड़ा है।" वह इनायत को गुस्से में देखते हुए बोले थे। तभी वीरेंद्र जी अपनी भारी आवाज में बोले, "बहू ले जाओ इसे यहाँ से....."
"क्यों ले जायें...? हाँ, अब आपकी असलियत बता रही हूँ तो शर्म आ रही है..." इनायत कावेरी जी का हाथ अपनी बाह से झटककर वीरेंद्र जी की ओर देखकर बोली।
"इनायत....." वीरेंद्र जी गुस्से में गरजे। तो इनायत भी उतनी ही तेज आवाज में बोली, "मरने से डर नहीं लगता मुझे। आज तक चुप थी तो सिर्फ अपने पापा की वजह से... कुछ भी भूली नहीं हूँ मैं, सब याद है मुझे (उन दोनों की ओर उंगली करते हुए) आज मेरे पापा की जो हालत है ना, वह आप दोनों की वजह से है...इशिका दीदी हमारे साथ नहीं है, तो आप दोनों की वजह से! आप सबके लिए अपने बच्चों की खुशी नहीं, बल्कि अपना समाज में रुतबा ज़्यादा प्यारा है। आप सबके लिए अपनी झूठी आन-बान-शान प्यारी है। अरे! ऐसी झूठी शान को तो मैं सौ बार ठोकर मारूँ!......"
इनायत को अपने सामने बोलता देख वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों का खून खोल गया था। खुशवेंद्र जी ने एक बार फिर से इनायत को मारने के लिए अपना हाथ उठा दिया था, पर आर्यन ने फुर्ती दिखाकर उनका हाथ पकड़ लिया था।
"छोड़ो मेरा हाथ...आज...आज इस बदज़ुबान लड़की की जान ले लूँगा मैं, छोड़ो मेरा हाथ।" वह गुस्से में काँपते हुए बोले।
"आप बड़े हैं और आपको ऐसा व्यवहार शोभा नहीं देता अंकल जी...मेरी होने वाली बीवी है ये, और बीवी इज़्ज़त होती है। मैं यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूँगा कि कोई मेरी इज़्ज़त पर उंगली तक उठाए...(उनके हाथ को छोड़ते हुए) तो हाथ उठाना दूर की बात है! आप यह गलती एक बार कर चुके हैं। पहले नहीं बोला, पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा....." आर्यन सख्ती से बोला। जिसे सुनकर खुशवेंद्र जी और वीरेंद्र जी दोनों उसकी ओर ही देखने लगे थे। वहीं इनायत के कानों में अभी बोले गए आर्यन के शब्द बार-बार किसी रिपीट-टेप की तरह बज रहे थे।
"अब शादी दो दिन बाद नहीं, बल्कि कल ही होगी...." आर्यन एक बार फिर से बोला।
इनायत जो तब तक आर्यन की कही बातों के बारे में सोच रही थी, जब उसके कानों में आर्यन के ये शब्द पड़े तो उसको एक और झटका लगा।
"मै....मै....मै...ये शादी नहीं करूँगी।" यह बोलकर इनायत जल्दी से सीढ़ियों की ओर भागी। उसे यूँ भागता देख, गार्गी, कावेरी जी और आर्यन भी उसकी तरफ दौड़े। उन्हें डर था कि कहीं इनायत कुछ गलत कदम ना उठा ले।
क्रमशः
"इनायत...इनायत...दरवाजा खोलो बेटा!" कावेरी जी ने इनायत के कमरे का दरवाजा पीटते हुए कहा। इनायत ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था। उन्हें बहुत चिंता हो रही थी कि कहीं इनायत कोई गलत कदम न उठा ले।
"आंटी आप हटिए, मैं देखता हूँ!" आर्यन, जिसे खुद उसकी फिक्र हो रही थी, आगे आकर कावेरी जी से बोला। कावेरी जी ने बस हाँ में सिर हिलाया और दरवाजे के पास से हट गईं। गार्गी और ईशान दोनों एक तरफ खड़े थे और काफी डरे हुए थे।
"इनायत, दरवाजा खोलो अभी के अभी, वरना मैं दरवाजा तोड़ दूँगा..." आर्यन ने चेतावनी देते हुए कहा। पर इनायत ने दरवाजा नहीं खोला। कावेरी जी का दिल बैठता जा रहा था; ना इनायत दरवाजा खोल रही थी और ना ही कुछ बोल रही थी।
"हे भगवान, मेरी बच्ची की रक्षा करना..."
"इनायत, मैं आखिरी बार बोल रहा हूँ, दरवाजा खोलो, वरना मैं दरवाजा तोड़ दूँगा..." आर्यन गुस्से में दरवाजे पर अपना हाथ मारकर बोला।
"क्या हो गया? अगर नहीं खोल रही है तो, कुछ देर में खुद ही नॉर्मल हो जाएगी।" खुशवेंद्र जी वहाँ आते हुए बोले। उनके साथ ही वीरेंद्र जी भी आ गए थे।
"खुशवेंद्र! एकदम सही कह रहा है। तुम रहने दो...कुछ देर बाद खुद ही दरवाजा खोल देगी।" वीरेंद्र जी ने कहा। पर आर्यन ने कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी, मानो उसने उनकी बात सुनी ही ना हो। उसने उनकी बातों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया था।
"ठीक है, अगर तुम्हें दरवाजा नहीं खोलना, तो मैं अब दरवाजा तोड़ रहा हूँ..." आर्यन ने एक बार फिर दरवाजे पर हाथ मारकर कहा और फिर दरवाजे को अंदर की तरफ धकेलने लगा।
"अंकल, मदद कीजिये..." आर्यन ने खुशवेंद्र जी की ओर देखकर कहा। खुशवेंद्र जी ने वीरेंद्र जी की तरफ देखा। वीरेंद्र जी ने अपनी पलकें झपकाईं। खुशवेंद्र जी बेमन से दरवाजे को खोलने का प्रयास करने लगे।
चार-पाँच झटकों से ही दरवाजा खुल गया। आर्यन जल्दी से अंदर आया और एकदम हतप्रभ रह गया। इनायत बेड पर खड़ी होकर एक साड़ी को पंखे से बांधकर फंदा लगा रही थी। बाकी सब भी अंदर आ गए। आर्यन ने जल्दी से इनायत को पकड़ा, तो वह झटपटाने लगी।
"छोड़ो मुझे...म...मर...मर जाने दो...मरना है मुझे...छोड़ो..." इनायत ने गुस्से और बेबसी के मिले-जुले भाव के साथ कहा।
"इनायत, ऐसा क्यों कह रही हो बेटा?" कावेरी जी ने रोते हुए उसे पकड़कर कहा। इनायत ने गुस्से में उन्हें खुद से दूर धकेल दिया। गार्गी ने आकर उन्हें सम्भाला, वरना वे गिर जातीं।
"हाथ मत लगाइये मुझे..." इनायत गुस्से में चिल्लाई। वह बस खुद को छुड़वाने की कोशिश कर रही थी, पर आर्यन ने उसे नहीं छोड़ा। जब आर्यन से भी हैंडल नहीं हुआ, तो उसने उसे शांत करवाने के लिए उसे थप्पड़ मार दिया। इरादा उसे हर्ट करने का बिल्कुल नहीं था।
और ऐसा लगा कि तूफ़ान के बाद एकदम शांति फैल गई हो। इनायत अपने गाल पर हाथ रखकर आर्यन को अवाक सी देख रही थी। कावेरी जी ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया था। गार्गी और ईशान भी हैरत में आर्यन को ही देख रहे थे। वीरेंद्र जी चुपचाप खड़े थे, पर खुशवेंद्र जी ने मुस्कुराकर अपनी मूँछों को ताव जरूर दिया था। जैसे उन्हें आर्यन का इनायत पर हाथ उठाना अच्छा लगा हो। एक गर्व था उनकी मुस्कान में जो साफ़-साफ़ झलक रहा था।
"लोग ज़िंदगी जीने के लिए लड़ते हैं और तुम हो कि खुद की ज़िंदगी को खत्म कर रही थी। (उनकी दोनों बाजुओं को मजबूती से पकड़कर) शादी नहीं करनी...शादी नहीं करनी...क्या ज़िद है ये तुम्हारी? क्या दिक्कत है इनायत? प्रॉब्लम क्या है शादी करने में?" आर्यन गुस्से में बोला।
"क्योंकि मुझे शादी नहीं करनी..." इनायत ने सपाट लहजे में कहा, पर उसकी आवाज़ इस बार बहुत लो थी। उसकी बात सुनकर आर्यन की आँखें छोटी हो गई थीं।
"ये शादी तो होकर ही रहेगी...और अपने ये ड्रामे बंद कर...आज तो तुमने ये कर दिया, आगे से अगर खुद को खत्म करने के बारे में सोचा भी तो...(दाँत पीसते हुए) मुझे खुद नहीं पता कि मैं क्या कर जाऊँगा..." आर्यन ने इनायत को एक तरफ़ झटका और फिर वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी की तरफ़ देखकर कहा, "शादी की तैयारी कीजिये...कल ही होगी शादी...रिश्तेदारों के लिए बाद में रिसेप्शन रख देंगे। शादी पर मेहमानों को बुलाने की ज़रूरत नहीं। बस परिवार के लोग ही मौजूद रहेंगे।"
खुशवेंद्र जी आगे बढ़कर आर्यन के कंधे को थपथपाया और इनायत की तरफ़ देखकर उससे बोले, "ये हुई ना मर्दों वाली बात...अच्छा लगा मुझे तुम्हारा यूँ फैसला लेना। चिंता मत करो, जैसा तुमने कहा है वैसा ही होगा। शादी कल ही होगी।"
आर्यन ने पलटकर इनायत की तरफ़ देखा जो अब किसी बुत की तरह बेड पर बैठी थी और फिर वहाँ से निकल गया।
"बहु नज़र रखो इस पर..." वीरेंद्र जी ने कहा और फिर खुशवेंद्र जी के साथ वहाँ से निकल गए। ईशान धीरे से इनायत के पास आकर खड़ा हुआ और अपना हाथ उसकी ठुड्डी पर रखकर उसका चेहरा ऊपर किया। इनायत आँखों में आँसू लिए उसे देखने लगी।
कावेरी जी और गार्गी बस दूर खड़ी दोनों को ही देख रही थीं। ईशान ने अपना दूसरा हाथ इनायत के लाल हुए गाल पर रखा, तो इनायत ने दर्द से अपनी आँखें मूँद लीं।
"दी! दर्द हो रहा है बहुत?" ईशान ने नम आँखों के साथ कहा। इनायत टूटी सी उससे लिपट गई और फफक-फफक कर रो पड़ी।
क्रमशः
इनायत फर्श पर बैठी हुई, अंधेरे में देख रही थी। वहाँ एक हल्की सी रोशनी का कतरा भी नहीं था। बाहर आसमान में भी अंधेरा छाया हुआ था, जिससे प्रतीत हो रहा था कि रात हो गई है। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। गार्गी, हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट के साथ अंदर आई।
"ये तूने कमरे में इतना अंधेरा क्यों कर रखा है..? वह भी रात में...." कमरे में अंधेरा देखकर गार्गी बोली और खुद धीरे-धीरे अपने कदम स्विच बोर्ड की तरफ़ बढ़ा दिए। उसने लाइट ऑन की और फिर इनायत के पास आकर वहीं फर्श पर बैठ गई।
"ले, कुछ खा ले। तू सुबह से भूखी है, अगर ऐसे ही भूखी रही तो बीमार पड़ जाएगी..?" गार्गी ने खाने की प्लेट में रखी रोटी से एक टुकड़ा तोड़कर, उसे हल्का सा दाल में डुबाते हुए बोली और फिर उस निवाले को इनायत के सामने कर दिया। इनायत ने मुँह फेर लिया और उसका हाथ हटाती हुई बोली, "मेरा सच में मन नहीं है कुछ भी खाने का।"
"क्यों? दूसरों का गुस्सा खाने पर निकाल रही हो?"
"मैं कोई गुस्सा नहीं निकाल रही हूँ। सच में मन नहीं है। और प्लीज़ कोई ज़बरदस्ती मत कर।"
"अपने लिए ना सही, पर छोटे मामू के लिए ही खा ले।" गार्गी उदास सी बोली, क्योंकि वह जानती थी कि अब शायद ही इनायत खाने के लिए मना करे। और हुआ भी वही। इनायत ने भीगी पलकों से वह निवाला खा लिया। थोड़ा बहुत जैसा भी उसने खाया, गार्गी ने उसे खिला दिया। और फिर झूठे बर्तन लेकर नीचे चली गई।
कुछ देर बाद ही सिंह मेंशन पूरी तरह अंधेरे में डूब चुका था। इनायत और गार्गी बेड पर लेटी हुई थीं। गार्गी सो चुकी थी, पर इनायत... वह तो बस आँखें खोले अंधेरे में ही देख रही थी। यह अंधेरा उसे उस अंधेरे के आगे कुछ लग ही नहीं रहा था जो उसकी जिंदगी में ग्रहण बनकर आने वाला था। उसकी खुद की जिंदगी, किसी और के पराधीन होने वाली थी। फिर उसका कोई ज़ोर नहीं चलने वाला था उस पर... उसकी मर्ज़ी, उसकी 'हाँ' या 'ना' कुछ भी मायने ही नहीं रखने वाली थी। उसे एक सोने के पिंजरे से दूसरे सोने के पिंजरे में कैद किया जा रहा था।
"वह खूबसूरत पंछी जिसे लोग सजाकर रखना चाहते हैं,
पर क्या पंछी से पूछा कि वह सजना चाहता है?
नहीं, वह कैद नहीं होना चाहता, बल्कि आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहता है, चाह है खुलकर जिंदगी जीने की..
खुली हवा में साँस लेने की।
शायद! अब देर हो गई है बहुत।
अब कहाँ ये खुली हवाएँ नसीब में हैं।
घुटते हुए भी रहना पड़ेगा उस कैद में, क्योंकि पंछी की मर्ज़ी भला पूछता कौन है..?"
वह मन-ही-मन बोली। उसके शब्द मुँह से नहीं फूट रहे थे, वह बस मन-ही-मन सोच रही थी। हाँ, थी वह एक सुंदर पंछी, जिसके पंख काटकर उसे उड़ने को कहा जाए। मन बहुत है कि यहाँ से उड़ जाए, पर... याद आया कि उसके पंख हैं ही नहीं...? वह बेबस, लाचार बस खड़ी रह गई। 😔 हाँ, उसकी सिर्फ़ शादी हो रही थी, पर उसके लिए वह शादी नहीं थी... उसकी इच्छा के बगैर उसको बाँधा जा रहा था। उसे शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी, बस दिक्कत थी तो उस जेल जैसे माहौल से... उस पिंजरे जैसे घर से... वहाँ के लोगों की रूढ़िवादी सोच से...
"काश! कि एक आस होती मेरे पास, पर वह भी बड़ी बेरहमी से मुझसे छीन ली गई। (गुस्से में) आर्यन रंधावा... बहुत शौक है ना मुझे अपनी लाइफ़ में शामिल करने का, अब देखो... तुम अपने इस फैसले पर पछताओगे नहीं तो मेरा नाम इनायत सिंह नहीं... तुम्हें इतना मजबूर कर दूँगी कि तुम खुद मौत माँगोगे पर मौत आएगी नहीं... जैसे आज मैं तड़प रही हूँ ना, एक दिन तुम भी ऐसे ही तड़पोगे और उस दिन सुकून मिलेगा मेरी आँखों को... मेरे दिल को... जिस सरनेम पर इतना घमंड है ना, उसे चूर-चूर ना कर दिया तो कहना! मिट्टी भी नसीब नहीं होने दूँगी... मुझे लेकर तुम जो अरमान सजाए बैठे हो, उन्हें तार-तार कर दूँगी..." वह गुस्से और नफ़रत के मिले-जुले भाव के साथ बोली।
इनायत शादी के लाल जोड़े में लिपटी हुई, अपने कमरे में बैठी थी। उसके चेहरे पर शादी की कोई खुशी नहीं थी। उसके पास ही कावेरी जी, गार्गी खड़ी थी। वह उठी और वहाँ से जाने लगी तो गार्गी तुरंत उसके सामने आकर खड़ी हो गई।
"कहाँ जा रही हो..?"
"फ़िक्र मत कर, भागूँगी नहीं... पापा से मिलने जा रही हूँ।" वह बिना किसी भाव के बोली। तो गार्गी चुपचाप उसके आगे से हट गई। इनायत वहाँ से सीधा अपने पापा के कमरे में आ गई। कावेरी जी ने पवन जी को तैयार कर व्हीलचेयर पर बैठा दिया था।
इनायत ने अपने पापा को देखा... जो खुद उसे लाचार नज़रों से देख रहे थे। इनायत को शादी के जोड़े में देखकर उनकी आँखें भर आईं। कभी सोचा नहीं था कि अपनी लाड़ली बेटी को वह यूँ देखेंगे...? अगर आज वह ठीक होते तो शायद! वह अपनी बेटी के साथ यह नाइंसाफ़ी नहीं होने देते...
इनायत धीरे से चलकर उनके पास आई और उनके पैरों के पास ही बैठ गई। इनायत के चेहरे पर इस वक्त किसी भी प्रकार का कोई भाव नहीं था, ना खुशी थी ना उदासी। उसने धीरे से अपना सर पवन जी के घुटने पर रख दिया।
"पापा! आप कहते थे ना कि मेरे लिए आप एक राजकुमार ढूँढेंगे... देखिए आज, आपके ढूँढे बिना ही वह मुझे ब्याहने आ गया है... पर वह राजकुमार नहीं है... बिल्कुल नहीं है पापा... वह एक राक्षस है जो आपकी इनू को ले जाने आया है..." वह आँखों में आँसू लिए बोली। चेहरा अब भी भावहीन था, पर उसकी बातों में दर्द था, जिसे पवन जी अच्छी तरह समझ रहे थे, पर वह तो इतने लाचार थे कि अपनी बेटी के सिर पर हाथ तक नहीं रख सकते थे, ना ही बोलकर उसे दिलासा दे सकते थे। बेबसी से बस आँसू बहा रहे थे।
कुछ देर बाद गार्गी और कावेरी जी वहाँ आईं। आर्यन अपनी फैमिली के साथ आ गया था। गार्गी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और धीरे से बोली, "इनू! चल, बाहर पंडित जी बुला रहे हैं।"
गार्गी की आवाज़ सुन वह उठ खड़ी हुई और अपने आँसू साफ़ कर मुस्कुराकर बोली, "चलो... चलते हैं। वरना मुहूर्त निकल जाएगा मेरी बर्बादी का..."
"तू ऐसा क्यों बोल रही है इनू..!" गार्गी उसकी बाह पकड़कर बोली। तो इनायत मज़ाक करती हुई बोली, "क्योंकि इस शादी पर बर्बादी शब्द बहुत सूट हो रहा है..."
यह बोलकर इनायत खुद ही कमरे से बाहर निकल गई। गार्गी भी उसके पीछे-पीछे चल दी। कावेरी जी ने अपने आँसू पोछे। उन्होंने वीरेंद्र जी और खुशवेंद्र जी दोनों से बात की थी कि, "इनायत खुश नहीं है इस शादी के लिए, मैं क्या कहती हूँ कि अभी यह शादी रहने देते हैं, जब इनायत खुश होगी तब बात करते हैं।" पर खुशवेंद्र जी ने उन्हें दबे गुस्से में कहा था, "हमारे घर के फैसले अब एक औरत लेगी? इतने बुरे दिन नहीं आए हैं। घर में मर्द है, आज तो मुँह खोल दिया है, आगे से यह बात भूलना मत कि तुम इस घर की बहू हो... जिसकी सीमा सिर्फ़ बावर्चीखाने और बच्चों तक ही सीमित रहे तो ही अच्छा रहेगा।" उस समय वह आगे कुछ बोल ही नहीं पाई, क्योंकि वह जानती थी कि ये लोग सिर्फ़ अपनी मर्ज़ी करेंगे। कावेरी जी भी अपनी बेटी को खुश देखना चाहती थीं, पर वह उसकी खुशी के लिए कुछ नहीं कर सकती थीं। जो थोड़ी बहुत हिम्मत करके उन्होंने कहा था, उस पर भी उन्हें मर्द और औरत के बीच का फर्क बता दिया गया था... उन्होंने पवन जी की तरफ़ देखा और फिर उनका कॉलर ठीक कर उनकी व्हीलचेयर को धक्का लगाती हुई हॉल में आ गई।
हॉल में ही लॉन की तरफ़, छोटा सा मंडप लगाया गया था। पंडित जी हवन कुंड के पास बैठे थे और उनके सामने ही आर्यन गोल्डन कलर की शेरवानी पहने बैठा था। सिंह परिवार और रंधावा परिवार के सभी सदस्य वहीं पर मौजूद थे। अश्विनी जी ने आगे बढ़कर इनायत की बाँह पकड़ ली और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।
"बहुत प्यारी लग रही हो।" वह मुस्कुराकर बोली। पर इनायत ने कोई भी जवाब नहीं दिया, वह बस अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी। अश्विनी जी को यह बात खटकी ज़रूर थी, पर उन्हें लगा कि शायद! इनायत नर्वस हो रही है, जो कि हर लड़की को अपनी शादी पर होना लाज़मी सा है। उन्होंने मालविका की तरफ़ देखा और मुस्कुराकर बोली, "मालविका, वह लाल चुनरी देना जो शगुन वाली थाल में रखी है।"
"जी..." मालविका बोली और वहीं रखी शगुन की थाल से लाल चुनरी उठाकर अश्विनी जी को दे दी। अश्विनी जी ने भी मुस्कुराकर वह चुनरी इनायत के सिर पर डाल दी और फिर उसे आर्यन के साइड में बिठा दिया। उसके बाद वह अपनी बेटी उमंग के पास खड़ी हो गई।
क्रमशः
और जब पंडित जी ने कहा, "शादी संपन्न हुई। अब से आप दोनों पति-पत्नी हुए। घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर अपने मंगल जीवन की शुरुआत कीजिए। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप दोनों की जोड़ी यूँ ही सलामत रहे। आप दोनों के आगामी जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ हों,"
आर्यन ने मुस्कुराकर इनायत की तरफ देखा। इनायत वहाँ किसी पत्थर के बने बुत की तरह बिना प्रतिक्रिया बैठे थी। पंडित जी की बात सुनकर उसकी आँखों में पानी आया था, जो किसी ने नहीं देखा था। जैसे एक हारे हुए इंसान को महसूस होता है, बिल्कुल उसी तरह इनायत को भी महसूस हो रहा था। वह अपने ही परिवार वालों से हार चुकी थी। जब अपने ही अपने ना हुए तो गैरों से क्या ही उम्मीद रखी जाए...?
"मुबारक हो समधन जी..." अश्विनी जी कावेरी जी की तरफ देखकर मुस्कुराकर बोलीं। कावेरी जी ने भी फीका सा मुस्कुराया।
पंडित जी कुछ देर बाद अपनी दक्षिणा लेकर चले गए। आर्यन उठा और अपना हाथ इनायत की ओर बढ़ा दिया ताकि वह भी सहारा लेकर उठ सके। एक-दो सेकंड्स तो इनायत ने सुनी आँखों से आर्यन के हाथ की तरफ देखा। पर फिर उसने उसका हाथ नहीं पकड़ा और खुद से ही उठने लगी। भारी लहंगे होने की वजह से वह लड़खड़ा सी गई। उमंग, जो उसके पीछे ही खड़ी थी, ने जल्दी से इनायत को पकड़ लिया।
"अरे ध्यान से भाभी!" वह प्यार से और अपनेपन से बोली। उमंग के मुँह से खुद के लिए 'भाभी' सुनकर इनायत को एक अजीब सा एहसास हुआ। जो लड़की हमेशा से उसे उसके नाम से बुलाती थी, वह आज उसे भाभी कह रही थी...? उमंग और इनायत की उम्र लगभग समान ही थी। हाँ, इनायत कुछ महीने ही बड़ी थी उससे।
"मैं ठीक हूँ!" वह सही से खड़ी होकर बोली। तब उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया है। उसने आर्यन की तरफ देखा जो हल्के गुस्से में लग रहा था क्योंकि उसने उसका हाथ नहीं पकड़ा था। उसने उसके नाजुक से हाथ पर अपनी पकड़ और ज्यादा कस दी थी। जिससे उसे अब दर्द होना शुरू हो गया था। उसने कोशिश भी की कि आर्यन के हाथ से अपना हाथ छुड़ा ले, पर वह नहीं छुड़ा पाई।
उन दोनों ने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। सभी रस्मों में शाम हो गई थी। और जब विदाई का समय आया तो इनायत की आँखों से एक बूँद आँसू तक नहीं बहा। कावेरी जी का मन था कि वह एक बार इनायत के गले लगें, पर इनायत ने उन्हें ऐसा करने ही नहीं दिया।
"दीदी!" ईशान उसके पास आया और उससे लिपट गया। इनायत ने तुरंत उसे खुद से दूर कर दिया। आर्यन की फैमिली वाले इनायत के इस बर्ताव पर हैरत में उसे देख रहे थे। इस वक्त उन्हें इनायत कुछ समझ नहीं आ रही थी। पर कोई कुछ नहीं बोला।
उसे विदा करने के बाद सभी अंदर आ गए। ईशान कावेरी जी से लिपटा हुआ सुबक रहा था। गार्गी भी उसे चुप होने को कह रही थी। और जब खुशवेंद्र जी ने ईशान को यूँ देखा, उन्होंने उसे गुस्से में खुद के पास आने को कहा। वह डरते हुए उनके पास आ गया था।
"यह आँसू बहाना बंद करो! तू एक लड़का है और लड़के रोया नहीं करते हैं।... मर्द बनना सीखो... ना कि ये औरतों की तरह रोना..." वह गंभीरता से बोले।
"बच्चा है भाई साहब!" कावेरी जी धीरे से बोलीं। खुशवेंद्र जी ने कावेरी जी को घूरा और वहाँ से अपने कमरे में चले गए। वीरेंद्र जी भी सोफे से उठे और बोले, "बहु! किसी से कहकर मेरी चाय कमरे में भिजवा देना।"
"जी..." कावेरी जी बस इतना ही बोलीं।
"आप बहुत थक गई होगी ना? तो अब यहाँ बैठिए और आराम कीजिए..." उमंग इनायत से बोली। उमंग और मालविका दोनों उसे आर्यन के कमरे में ले आई थीं। इनायत भी बैठ गई। उसने उमंग की तरफ देखा और धीरे से बोली, "तुम मुझे आप... आप क्यों कह रही हो... जैसे पहले तुम कहती थीं वैसे ही कहो!"
"अब आप मेरी भाभी हैं..."
"तो क्या हुआ, हमारी उम्र तो सेम ही है।"
"पर नेग तो बड़ा है ना..." उमंग मुस्कुराकर बोली। और आगे इनायत कुछ कह नहीं पाई। कुछ देर बाद उमंग वहाँ से चली गई। मालविका, जो वहीं खड़ी थी, वह बस इनायत को एकटक देख रही थी। शायद! वह उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
"बैठिए ना..." इनायत थोड़ी असहज होकर बोली। तो मालविका हल्का सा मुस्कुराई और उसके पास ही बैठ गई।
"तुम मुझे दीदी बोल सकती हो..." मालविका उसका हाथ पकड़कर बहुत ही अपनेपन से बोली।
"जी..." वह धीरे से बोली।
"तुम शादी से खुश नहीं हो...?"
"ऐसा कुछ नहीं है..." इनायत चौंककर बोली।
"सब दिख रहा है कि कैसे है, खैर! आर्यन बहुत अच्छा है। और वह तुम्हें खुश भी रखेगा... मैं तो ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि तुम दोनों हमेशा खुश रहो..." मालविका सहजता से बोली। मालविका की इस बात पर इनायत बस चुप ही रही।
"मैं कुछ खाने के लिए लेकर आती हूँ।"
"नहीं..."
"क्यों...?"
"वह... दरअसल मुझे भूख नहीं है। आप रहने दीजिए..." इनायत तुरंत बोली। तो मालविका 'ओके' बोलकर उसका घूंघट ठीक किया और वहाँ से चली गई। मालविका के जाने के बाद उसकी आँखें खुद-ब-खुद नम हो गईं। आँसू उसकी आँखों से निकलकर उसके गालों को भिगोने लगे।
वह तो आज खुद के लिए ही कुछ नहीं कर पाई थी।
"कभी सोचा नहीं था कि अपनी ज़िंदगी में ऐसा दिन भी देखूँगी। उस दिन अगर तुम नहीं आते ना आर्यन, तो शायद! यहाँ से बहुत दूर चली गई होती मैं... सब जानते हुए भी जैसे तुमने मुझे नहीं समझा, ना अब तुम देखोगे अपने एक्शन का रिएक्शन..." वह रोते हुए ही खुद में बड़बड़ाई। कि तभी उसे दरवाजे के खुलने की आवाज आई। वह डरकर खुद में ही सिमट सी गई। बिना हक के वह उस पर इतना हक जता रहा था, वह कुछ कर भी नहीं पाई थी। और अब तो वह हक रखता था उस पर... तो अब क्या...? क्या वह अपना हक भी ले लेगा उसकी मर्जी की परवाह किए बगैर...?
ये सब सोचते हुए उसकी रूह काँप गई थी। और रोना तेज हो गया।
क्रमशः
इनायत खूबसूरती से दुल्हन के जोड़े में सजी हुई, बेड के बीचों-बीच लंबा सा घूंघट लिए बैठी थी। उस पूरे कमरे को भी सुहागरात के लिए सजाया गया था; भीनी-भीनी गुलाबों की महक और ऊपर से खुशबूदार मोमबत्तियों की खुशबू पूरे कमरे में फैली हुई थी।
आर्यन अंदर आया। उसने एक नज़र सामने बेड पर बैठी इनायत को देखा और मुस्कुराते हुए उसके पास आ गया।
"च्च.च्! तुमने कितनी कोशिश की...कि ये शादी ना हो...पर अफ़सोस की बात है कि तुम्हारी कोशिश नाकामयाब रही...और आज पूरे रीति-रिवाज से हमारी शादी हो ही गई।" आर्यन ने इनायत का घूंघट उसके सिर से हटाया और उसके आँसुओं से भरे चेहरे को देखते हुए बोला।
"पर ये आँसू अब क्यों, इनु...? आज तो खुशी का मौका है।" आर्यन ने इनायत के आँसू साफ़ करते हुए बोला। तो इनायत ने गुस्से में अपना चेहरा फेर लिया।
"उफ़्फ़! ये गुस्से में तुम्हारा यूँ नज़रें फेर लेना, तुम्हारी इन्हीं अदाओं का तो मैं बहुत पहले से कायल हूँ।" आर्यन ने अपने दिल पर हाथ रखकर बोला।
"स्टॉप दिस नॉनसेंस।" इनायत गुस्से में चिल्लाई।
"नॉनसेंस (हँसते हुए) मैं नहीं करता, बल्कि नॉनसेंस बातें तो तुम कर रही थीं शादी से पहले की...तुम ये शादी नहीं करोगी...? नहीं करोगी...? (इनायत का जबड़ा पकड़कर) अब बताओ, हो गई ना शादी...तुम कुछ नहीं कर पाई...? और आज तुम मेरे रूम में, मेरे बिस्तर पर, मिसेज़ इनायत आर्यन रंधावा बनकर बैठी हो। अब भाग के दिखाओ...(गुस्से में) बाहर की दुनिया देखने से भी तरसोगी...अगर मुझसे दूर जाने की हिम्मत की तो..." आर्यन गुस्से और गर्व से बोला।
"आह...तुम पागल हो आर्यन!" इनायत दर्द में बोली।
"अब तुम कुछ भी बोल सकती हो, क्योंकि तुम अब मेरी बीवी हो...तो इतना हक रखती हो यार!" आर्यन ने उसका जबड़ा छोड़ा और उसके चेहरे पर अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए बोला।
"गले में मंगलसूत्र, पैरों में पाजेब, मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर...ये सब मेरे लिए सिर्फ़ बेड़ियाँ हैं...उसके अलावा कुछ नहीं।" इनायत गुस्से और बेबसी में बोली।
"अगर तुम इन्हें बेड़ियाँ समझती हो तो वही सही...अब इन्हीं बेड़ियों का बोझ तुम्हें ज़िंदगी भर सहना है...और अभी तो सिर्फ़ शुरुआत है।" आर्यन बोला और ज़ोर-ज़ोर से हँस दिया।
आर्यन का यूँ हँसना इनायत को जहर लग रहा था। उसने रोते हुए अपनी आँखें कसके बंद कर लीं। तभी उसे एहसास हुआ कि आर्यन ने उसकी कलाई पकड़ी है। उसने झट से अपनी आँखें खोलीं और आर्यन की तरफ़ देखा, जो उसे कुछ अलग ही तरह देख रहा था।
इनायत घबराकर बोली, "नो...आर्यन।"
आर्यन बिना कुछ बोले बस मुस्कुरा रहा था। और उसकी मुस्कान इनायत के अंदर एक अलग ही खौफ़ पैदा कर रही थी। वह उसके हाथ से अपनी कलाई छुड़ाती हुई बोली, "छोड़ो मेरा हाथ...छोड़ो..."
"क्यों छोड़ू...? अब तो मेरा हक है...मैं तो अपना हक लेकर ही रहूँगा..." वह उसकी कलाई छोड़, उसकी बाहों को पकड़कर बोला और उसे खुद के करीब कर लिया। इनायत की जान तो मुँह में आ गई थी यह देखकर कि आर्यन उसके और करीब आ रहा है। उसने कसके अपनी आँखें बंद कर लीं। उसका पूरा शरीर थर-थर कांप रहा था।
आर्यन की गरम साँसें वह अपने चेहरे पर महसूस कर सकती थी। उसने अपने दुपट्टे को मुट्ठियों में दबा लिया था; वह बस आगे बंद किए कसमसा रही थी, पर छूट नहीं पा रही थी क्योंकि आर्यन ने उसे बहुत ही मज़बूती से जकड़ा हुआ था।
आर्यन उसके ऊपर और झुका, पर उसकी नज़रें सिर्फ़ इनायत की आँखों पर थीं जो वह कसके बंद किए हुए थीं। पर आँसू बह रहे थे। उसका दिल जैसे धड़कन ही भूल गया था। वह काफ़ी देर उसे यूँ ही देखता रहा।
"इतना डर...अच्छा नहीं अपने ही पति से..." वह उससे थोड़ा दूर हुआ और उसके आँसुओं को अपनी उंगली से साफ़ करते हुए बोला।
"अरे इनु, तुम इतना कांप क्यों रही हो यार! क्या हुआ...? मैं तो मज़ाक कर रहा था।" आर्यन उसे यूँ डरा देख बोला और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया। इनायत ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं तो आर्यन कुछ फ़िक्रमंद सा लगा।
"मैं तो तुम्हें थोड़ा परेशान कर रहा था यार! और तुम तो डर ही गई...खैर! कपड़े बदलो और सो जाओ। (उबासी लेता हुआ) मैं भी बहुत थक गया हूँ। बड़ी नींद आ रही है मुझे भी..." बोलकर वह बेड से उठा और अपनी अलमारी से कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गया।
इनायत हैरत में उसकी तरफ़ देखती रह गई। क्या ये वही आर्यन है जिसे वह जानती है...? या कुछ और...? वह तो अब तक डरी, सहमी हुई थी यह सोच-सोच कर कि कहीं आर्यन उसकी मर्ज़ी के बगैर हक न जताए, पर यहाँ तो वह उसे कपड़े बदलकर सोने को बोल रहा था। काफ़ी देर तो वह उलझी हुई यूँ ही बैठी रही। फिर गुस्से में अपना सिर झटक कर बोली, "मुझे क्या मतलब इससे...ना मुझे जानना है इसे..."
वह बोली और बेड से उठी, फिर अलमारी के पास आकर अपना सूटकेस खोला। उसमें से एक गहरे हरे रंग का सूट निकाला, जो बिलकुल प्लेन था पर दुपट्टा फ्लॉवर प्रिंट का था। उसने वापस से सूटकेस बंद कर दिया। तभी उसे बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। उसने अपनी नज़रें उठाकर देखा तो आर्यन सफ़ेद रंग की टीशर्ट और काला रंग लोअर पहने बाहर आया। वह अपने बालों में हाथ घुमाते हुए बेड के पास आया और वहीं से अपना फ़ोन उठाकर उसे चलाने लगा। और इस बीच उसने एक बार भी इनायत की तरफ़ नहीं देखा था। वहीं इनायत थोड़ी उलझी हुई सी बाथरूम में घुस गई। उसने अपने कपड़ों को वहीं हैंगर में टाँगा और दरवाजे के सहारे फर्श पर बैठ गई।
उसके साथ उम्मीद से विपरीत हो रहा था। जैसे वह सोच रही थी कि कहीं उसके साथ...ऐसा ना हो जाए। वैसा ना हो जाए। इतनी डरती, घबराई, सहमी सी थी, पर अब सिर्फ़ उलझन...ही...उलझन थी।
वह अपनी सोच में ना जाने कब तक डूबी ही रहती, अगर आर्यन उसे आवाज ना लगाता तो...
"अरे! आज वहीं सोने का इरादा है क्या...?"
और वह जल्दी से उठी और एक-एक करके उसने अपनी ज्वेलरी उतारी, फिर कपड़े बदलकर अपने लहंगे और ज्वेलरी को लेकर बाहर आ गई। उसने उसे वहीं रखी टेबल पर रखा और कमरे में नज़रें दौड़ाने लगी। तभी आर्यन, जो उसे ही देख रहा था, बोला, "मुहूर्त निकलवाना है सोने के लिए..."
"अ..."
"अ...उ...छोड़ो और आकर सो जाओ..." वह सख्ती से बोला। तो इनायत चुपचाप बेड पर आकर लेट गई। आर्यन भी करवट लेकर लेट गया। इनायत की तरफ़ उसकी पीठ थी। कुछ देर बाद इनायत को महसूस हुआ कि आर्यन सो चुका है। इसलिए वह धीरे से उठी। उसने एक बार कन्फर्म करने के लिए आर्यन को देखा, जो शायद सो चुका था।
वह धीरे से और बिना शोर के बेड से नीचे उतरी और होले-होले कदमों से दरवाजे की तरफ़ बढ़ गई। दरवाजे का हैंडल पकड़कर उसने धीरे से घुमाया...पर उसकी नज़र सोते हुए आर्यन पर थी। डर था कि कहीं वह आवाज सुनकर उठ ना जाए। वह कमरे से बाहर आई और बड़ी ही सावधानी से वापस दरवाजा बंद कर दिया।
वह होले-होले कदमों से आगे बढ़ी और सीढ़ियों से होकर नीचे आ गई। काफ़ी अंधेरा था वहाँ...पर फिर भी उसे अंधेरे से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था। वह मेन गेट के पास आई। कांपते हाथों से उसने दरवाजा खोला और बाहर निकल गई। पर बाहर आते ही उसके पाँव खुद-ब-खुद ठिठक गए क्योंकि मेन गेट से बाहर दो-तीन गार्ड्स हाथों में बड़ी-बड़ी गन लिए पहरा दे रहे थे। उनकी गन्स को देखकर इनायत ने थूक गटकया और हारकर वापस अंदर आ गई।
"ये घर नहीं है...बाकी सच में जेल है...जहाँ इंसान एक बार जो कैद हो जाए, फिर बाहर निकलने के कोई रास्ते नहीं हैं।" वह बड़बड़ा रही थी कि तभी ऊपर की तरफ़ से आवाज आई, जिसे सुनकर वह चौंक पड़ी।
"भागने की कोशिश कर रही हो मिसेज़ रंधावा...?"
...
...
...
क्रमशः
इनायत घबराकर ऊपर देखी तो आर्यन रेलिंग पर दोनों हाथ टिकाए, उसे मुस्कुराकर देख रहा था। डर के मारे इनायत ने अपने दुपट्टे को मुट्ठियों में जकड़ लिया।
आर्यन उसे देख नीचे आया और उसके बिल्कुल सामने खड़ा हो गया।
"हम्म, तो मिसेज रंधावा! आप भागना चाह रही हैं, यहाँ से...?" आर्यन थोड़ा मजाकिया अंदाज में बोला।
"न...नह...नही...मै...मै त..तो, भ...भुख लगी थी...किचन देख रही थी।" वह खड़े-खड़े बहाना बनाती हुई बोली। आर्यन ने उसे शक भरी निगाहों से देखा और दरवाजे की ओर हाथ करके बोला, "तो क्या तुम्हारे घर में किचन गार्डन में होता है...?"
"नही...घर में ही होता है।"
"तो फिर बाहर क्या करने गई थीं, गार्ड्स को गुड नाईट बोलने...?" आर्यन अपनी भौंहें चढ़ाकर बोला। इनायत कुछ बोल नहीं पाई। असल में वह मौका देखकर यहाँ से भागना चाह रही थी, पर अब...शायद! वह यहाँ से भाग भी पाए, थोड़ा नामुमकिन सा लग रहा था।
"आओ, तुम्हें किचन दिखाता हूँ मैं..." कहकर आर्यन किचन की ओर बढ़ गया। इनायत भी उसके पीछे-पीछे हो ली।
"हाँ, तो ये है हमारा किचन...." आर्यन लाइट ऑन करते हुए बोला। इनायत ने बस अपना सिर हिला दिया। आर्यन ने खुद इनायत के लिए प्लेट में खाना निकाला और उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, "ये लो और जाओ, रूम में जाकर खा लो...मैं आता हूँ।"
इनायत ने चुपचाप प्लेट ली और उसे लेकर बेमन से कमरे में चली गई। आर्यन ने किचन की लाइट ऑफ की और बाहर पहरा दे रहे गार्ड्स के पास गया। कुछ देर उन्हें समझाकर वापस कमरे में आया तो उसने देखा कि इनायत सो चुकी थी। उसने खाना हाथ तक नहीं लगाया था। आर्यन हल्का सा मुस्कुराया और अपने बालों में हाथ घुमाते हुए उसके बगल में आकर लेट गया। और ना जाने कब तक उसे निहारता रहा। जब उसकी आँखें नींद से भारी होने लगीं, तो उसने आगे बढ़कर उसकी मेहँदी लगी हथेलियों को चूम लिया।
"मुझे उस दिन का इंतज़ार है इनु! जब तुम खुद इस रिश्ते को एक्सेप्ट करोगी, वह भी दिल से...." वह उसके गाल पर प्यार से अपना हाथ रखकर बोला और फिर उससे थोड़ी दूरी बनाकर सो गया।
"भाभी...भाभी...." सुबह उमंग की आवाज से इनायत की नींद खुली। वह आँखें मलते हुए उठकर बैठी और अपनी साइड में देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। उमंग को लगा कि शायद वह आर्यन को देख रही थी। वह कमरे में लगे खिड़की के पर्दों को हटाते हुए बोली, "आर्यन भैया को सुबह-सुबह जॉगिंग पर जाने की आदत है। तो वह वहीं गए हैं। थोड़ी देर में आते ही होंगे...."
"हम्म!" इनायत इतना ही बोली और बेड से उठ गई। वह अपना दुपट्टा गले में डालते हुए उमंग से बोली, "वैसे तुम यहाँ...मेरा मतलब है कि इतनी सुबह-सुबह...?"
"हाँ, मैं आपको बुलाने आई थी। आज आपकी चूल्हा चढ़ाई की रस्म है ना...तो मम्मी बोल रही थी कि आपको तैयार करके नीचे ले आओ...वैसे हमारे घर में सब 5 बजे उठ जाते हैं। दादा जी को पसंद नहीं कि कोई देर तक सोए...." उमंग हल्का मुस्कुराकर बोली। इनायत बस सुन रही थी।
"जल्दी कीजिये भाभी...मम्मी ने आपको जल्दी लेकर आने को बोला था मुझे..." उमंग उसके पास आकर उसे थोड़ा जल्दी करने को बोलने लगी। इनायत चुपचाप बाथरूम में चली गई।
कुछ देर बाद उमंग इनायत को लेकर किचन में आई जहाँ अश्विनी जी और मालविका नाश्ता तैयार कर रही थीं। अश्विनी जी इनायत को देखकर मुस्कुराईं और उसकी बलाएँ लेते हुए बोलीं, "बहुत प्यारी लग रही हो..."
"हाँ, इनायत! ये महरून कलर बहुत जंच रहा है तुम्हारे ऊपर..." मालविका भी उसे देखकर बोली।
"थैंकयू..."
"खाने में क्या-क्या बनना आता है...?" अश्विनी जी बोलीं। इनायत बिना उनकी तरफ देखे बोली, "सब कुछ आता है..."
"अरे वाह!...ठीक है फिर जो तुम्हारा मन करे...वह बना लो...पर कुछ मीठा..." अश्विनी जी उसके सिर पर हाथ रखकर बोलीं।
"खीर...?"
"हाँ...हाँ...बिल्कुल खीर बना लो...पर उसमें कोई ड्राई फ्रूट मत डालना क्योंकि घर में किसी को पसंद नहीं है। सबको सादी खीर पसंद है।" अश्विनी जी उसे समझाते हुए बोलीं और फिर किसी काम के लिए किचन से बाहर चली गईं।
"उमंग!" मालविका उसकी तरफ देखकर बोली। उमंग तुरंत बोली, "जी भाभी..."
"बाहर से कुछ तुलसी के पत्ते ले आओ...दादाजी की चाय में डालने हैं।" मालविका बोली तो उमंग बाहर की ओर चली गई।
"सब कैसा रहा कल रात...?" मालविका चावल के डब्बे से चावल थाली में निकालते हुए बोली। इनायत थोड़ा हैरान होकर उसे देखने लगी। उसे हैरान देख वह मुस्कुराई, "अच्छा, ठीक है। रहने दो...जानती हूँ नई-नई शादी हुई है तो तुम्हें शर्म आ रही है। खैर! (चावल वाली थाली इनायत के सामने करते हुए) ये लो...मैंने चावल निकाल दिए हैं...दूध इस बड़े वाले भगोने में है...चीनी इस डिब्बे में...अगर और कुछ चाहिए तो मुझे बोल देना!"
"आप कहीं जा रही हैं...?"
"नहीं...मैं तो यहीं हूँ। क्यों, क्या हुआ...?" वह आटा निकालते हुए बोली। इनायत ने ना में सिर हिला दिया और खीर बनाने लगी।
दोनों अपने-अपने कामों में लग गईं। उमंग तुलसी के पत्ते रखकर चली गई। कुछ देर बाद आर्यन जॉगिंग से आया तो वह सीधा किचन में आ गया। वहाँ इनायत को काम करते देख उसके कदम दहलीज पर ही ठिठक गए। नई-नवेली दुल्हन की तरह सजी-धजी, वह शायद कुछ पका रही थी। वह अपनी निगाहें नहीं हटा पा रहा था उससे। ना जाने कब तक वह उसे यूँ ही देखता रहता अगर मालविका ने उसे आवाज ना दी होती।
"आर्यन..."
"ज...जी..." वह हड़बड़ाकर बोला जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो।
"सॉरी! तुम्हें थोड़ा इंतज़ार करना होगा अपने प्रोटीन शेक के लिए..." मालविका आटा गूँथते हुए बोली।
"इट्स ओके भाभी...आप रहने दीजिए...बल्कि आज से मेरे प्रोटीन शेक बनाने वाले काम से आपकी छुट्टी...." आर्यन इनायत के पास आकर खड़ा हुआ और मालविका की तरफ देखकर मुस्कुराकर बोला।
"क्यूँ...प्रोटीन शेक पीना छोड़ रहे हो...?" वह चौंककर बोली। आर्यन इनायत की तरफ देखकर बोला जो अपना काम कर रही थी, "प्रोटीन शेक छोड़ तो नहीं रहा हूँ पर आज से इसकी ड्यूटी मैं इनायत को देता हूँ। आज से हर रोज़ वह मेरे लिए बनाएगी..."
आर्यन के इस जवाब से मालविका बस हल्के से मुस्कुरा दी जबकि इनायत तुरंत बोली, "मैं नहीं बनाऊँगी किसी के लिए भी प्रोटीन शेक।"
मालविका इनायत का ऐसा खड़ा जवाब सुनकर उसे थोड़ा हैरत में देखने लगी। और तभी उसे रियलाइज़ हुआ कि वह जल्दी में क्या बोल गई। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। आर्यन मुस्कुरा उठा...
क्रमशः
"मेरा मतलब है कि मुझे बनाना नहीं आता ना, इसलिए मैंने ऐसा बोला..." खुद की बोली हुई बात संभालते हुए इनायत बोली। मालविका मुस्कुरा दी। "अच्छा... कोई बात नहीं, मैं सिखाती हूँ ना आज... ज्यादा मुश्किल नहीं है।"
"जी ठीक है।" इनायत घूरती नज़रों से आर्यन को देख मालविका से बोली। आर्यन मुस्कुरा दिया।
"भाभी... आप अपना काम कीजिये... मैं सिखा दूँगा इनायत को..." आर्यन बोला।
"ठीक है..." मालविका बोली और आटा गूँथना चालू रखा।
"देखो... बहुत सिंपल है। पहले एक गिलास दूध... दूध उबला हुआ नहीं लेना है... तो कच्चा दूध... ओके..." आर्यन इनायत को सिखाता हुआ बोला। इनायत बस सुन रही थी। मालविका दोनों को देखकर मुस्कुरा दी।
"दोनों हमेशा खुश रहें... बस भगवान... आर्यन को सिद्धांत मत बनने देना और इनायत को मालविका..." मालविका एक दर्द भरी मुस्कान के साथ अपने मन में बोली।
"अब आ गया समझे...? अब हर रोज यूँ ही बनाना है।" आर्यन अपने प्रोटीन शेक की एक सिप लेता हुआ इनायत की तरफ देखकर बोला। इनायत ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप खीर को संभालने लगी। आर्यन ने अपना शेक खत्म किया और कमरे में चला गया।
"खीर अच्छी थी बहु... पर अगली बार से ड्राई फ्रूट्स मत डालना..." विनायक जी इनायत को नेग देते हुए बोले। विनायक जी की यह बात सुनकर अश्विनी जी और मालविका दोनों ने इनायत को थोड़ा चौंक कर देखा था। क्योंकि अश्विनी जी ने इनायत को पहले ही बता दिया था कि यहाँ किसी को भी ड्राई फ्रूट्स पसंद नहीं है खीर में... सबको सादी खीर पसंद है। और जब उन्होंने यह बताया था तो मालविका भी वहीं मौजूद थी। तो क्या इनायत ने जानबूझकर डाले थे या उसे याद नहीं रहा था...? क्योंकि अभी तक तो खीर सिर्फ़ विनायक जी ने ही खाई थी।
"जी मुझे पता नहीं था... पर आगे से ध्यान रखूँगी..." इनायत ने सिर झुकाए उनके हाथ से नेग लिया और थोड़ा पीछे हटकर खड़ी हो गई।
"हम्म!" वह बस इतना ही बोले।
दुष्यंत जी और आर्यन अपना नाश्ता कर रहे थे। मालविका किचन के दरवाजे पर ही खड़ी थी कि उसे सिद्धांत की आवाज आई, जो शायद उसे ही बुला रहा था। उसकी आवाज सुनकर वह कमरे की तरफ भागी।
सिद्धांत गुस्से में कमरे में घूम रहा था। मालविका अंदर आई और तुरंत बोली, "जी..."
"मेरे कपड़े इस्त्री नहीं किये...? क्यों भई! किस खुशी में...? जान सकता हूँ। और ना जूते पॉलिश हैं... ऑफिस क्या पहनकर जाऊँ...? तुम्हारी साड़ी..." सिद्धांत गुस्से में मालविका का जबड़ा पकड़ते हुए बोला। वह दर्द से झटपटा उठी... आँखों में नमी उतर आई थी। बोलना थोड़ा मुश्किल हो रहा था क्योंकि सिद्धांत ने कसके उसका जबड़ा पकड़ा था, पर फिर भी वह थोड़ा रुक-रुक कर बोली, "श...शा...दी...थी तो...म...मु...झे...मुझे लगा...की आ...प...आप ऑ...फिस...ऑफिस नहीं जाये...गे..."
"मैंने कहा कि मैं ऑफिस नहीं जाऊँगा...? हाँ, बोलो..." सिद्धांत उसके जबड़े पर और दबाव बनाता हुआ अपने दाँत पीसकर बोला।
"न...नहीं...नहीं..." वह दर्द में बोली।
"तो... तो जब मैंने बोला ही नहीं... तो तुम्हें कैसे लग गया...? आज छोड़ रहा हूँ... पर आइंदा से अगर ऐसा किया ना तो सजा के लिए तैयार रहना..." सिद्धांत उसका जबड़ा छोड़ बोला। मालविका ने जल्दी से हाँ में सिर हिला दिया।
"अब जल्दी से मेरे कपड़ों को तैयार करो... ऑफिस जाना है, तुम्हारी तरह मुफ्त की नहीं खाना पसंद हूँ..." सिद्धांत बोला और बिना उसकी तरफ देखे बाथरूम में चला गया।
पीछे दो महीने से सिद्धांत ने ना उससे कोई बात की थी... सिवाये काम के... ना उस पर हाथ उठाया था... और ना ही बच्चे की कोई जिद की थी... सिद्धांत का ऐसा बर्ताव देखकर वह खुद हैरान थी... और शायद! उसे लगने लगा था कि वह बदल रहा था, पर आज के बर्ताव ने उसके शायद! को गलत साबित कर दिया था।
ये... ये इंसान कभी नहीं बदल सकता है। वह अपने आँसू पोछ जल्दी से वॉर्डरोब की तरफ बढ़ गई। सिद्धांत ने इतनी जोर से जबड़ा पकड़ा था कि दर्द से आँखें बार-बार नम हो रही थीं उसकी...
"कल रिसेप्शन पार्टी है। तो सारी तैयारियाँ अच्छे से होनी चाहिए... कोई कमी नहीं होनी चाहिए..." नाश्ते के बाद विनायक जी और दुष्यंत जी दोनों गार्डन में आ गए थे। चहलकदमी करते हुए विनायक जी बोले थे। दुष्यंत जी ने हाँ में सिर हिला दिया था। "आप चिंता मत कीजिये... सब तैयारियाँ हो रही हैं।"
"सभी को आज ही इनविटेशन मिल जाना चाहिए... वीरेंद्र जी को, मैं खुद से कह दूँगा।" विनायक जी बोले।
"जी... ठीक है... जैसा आपको ठीक लगे..." दुष्यंत जी बोले।
"इनायत! क्या तुम भूल गई थी... मैंने तुम्हें बताया तो था कि खीर में ड्राई फ्रूट्स नहीं डालने हैं।" अश्विनी जी डाइनिंग टेबल से बर्तन समेटते हुए इनायत से बोली, जो उनकी मदद कर रही थी।
"मुझे याद नहीं रहा..." इनायत अपना सिर झुकाए बोली। अश्विनी जी हल्का सा मुस्कुरा के बोली, "कोई बात नहीं... पर आगे से ध्यान देना। ठीक है।"
"जी..."
अश्विनी जी के साथ थोड़ा काम में हाथ बटाकर वह कमरे में आ गई। कमरे में आकर देखा तो आर्यन ने अपने बहुत सारे कपड़े बेड पर फैलाकर रखे थे। शायद वह कहीं जा रहा था इसलिए तैयार हो रहा था। फिर एक लाइट येलो कलर की शर्ट उठाई और खुद पर लगाकर आईने में देखने लगा।
"कैसी लग रही है...?" जब उसने देखा कि इनायत रूम में आ गई है तो वह उसकी तरफ मुड़कर बोला। पर इनायत ने उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया और बेड पर आकर बैठ गई।
"मैंने तुमसे पूछा है, कि कैसी लग रही है शर्ट..." इनायत द्वारा खुद को नजरअंदाज होते देख आर्यन अब उसके सामने आकर खड़ा हो गया था।
"पहननी तुम्हें है ना कि मुझे..." वह अपने सिर से दुपट्टा हटाकर उसे पीछे की तरफ फेंकती हुई थोड़ा लापरवाही वाले अंदाज़ में बोली।
"क्या तुम सवाल का सही जवाब नहीं दे सकती...?"
"मुझसे कोई सवाल ही मत करो... सिंपल!" वह उसकी आँखों से देखती हुई बोली। पर आर्यन को उसका यह अंदाज़ बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था। पर इस बार उसने उसे इग्नोर किया और तैयार होने लगा।
इनायत तिरछी नज़रों से उसे देखने लगी। आर्यन ने जैसे ही परफ्यूम लगाया, तो इनायत उसकी तरफ देखकर बोली, "कितनी ही कोशिश कर लो पर कहते हैं ना कि परफ्यूम लगाने से किरदार नहीं महकता है। तो तुम्हारा किरदार नहीं महकने वाला इससे... कोशिश बेकार है!!!"
"ज़रूरत भी नहीं बीवी! मुझे मेरा किरदार महकाने की... क्योंकि मैं जैसा हूँ, मैं संतुष्ट हूँ..." आर्यन तुरंत बोला और मुस्कुराकर वहाँ से चला गया। इनायत बस बड़बड़ाती रह गई।
क्रमशः
आर्यन के जाने के बाद इनायत ने फैले हुए बेड को देखा, जिस पर आर्यन के बहुत सारे कपड़े पड़े थे। इनायत ने गुस्से में उन सारे कपड़ों को इकट्ठा किया और वहीं रखी टेबल पर पटक दिया।
"ये खुद को क्या ज़िल्ल-ए-इलाही समझता है। आया बड़ा बेफ़िज़ूल इंसान...जिसे ये तक नहीं पता कि एक लड़की से बात कैसे करते हैं...एटीट्यूड हां एटीट्यूड...दो कौड़ी का इसका एटीट्यूड! गया भाड़ में...." इनायत गुस्से में हाँफती हुई, अपने दाँत पिसकर बोली।
तभी बाहर से किसी ने खटखटाया। इनायत ने जल्दी से खुद को सम्भाला और शांत किया। एक जबरदस्ती वाली मुस्कान अपने चेहरे पर चिपका ली। वह मुड़ी तो सामने अश्विनी जी हाथ में एक बड़ा सा बैग लिए खड़ी थीं।
"अरे आप...कुछ काम था तो मुझे बुला लिया होता...आपने आने की ज़हमत क्यों की..." इनायत बेड से अपना दुपट्टा उठाकर उसे अपने गले और सीने पर डालते हुए बोली।
"तो क्या हुआ बेटा जी...अगर मैंने थोड़ी ज़हमत कर दी तो...खैर! (हाथ में पकड़े उस बैग को इनायत की तरफ बढ़ाकर) ये जोड़ा है जो कल तुम्हें रिसेप्शन पार्टी में पहनना है।" अश्विनी जी मुस्कुराकर बोलीं। इनायत ने चुपचाप वह बैग लेकर वहीं बेड पर रख दिया। अश्विनी जी जाने के लिए मुड़ीं, पर उन्हें जैसे कुछ याद आया। वे वापस इनायत की तरफ मुड़ीं और बोलीं, "बेटा! एक बार ये लहँगा पहनकर देख लेना, फ़िटिंग वगैरा का...शायद! ब्लाउज़ लूज़ हो तुम्हें...मालविका ठीक कर देगी। क्योंकि वह जानती है ये सिलाई वगैरा का काम...तुम उससे कह देना या फिर मैं बोल दूँगी, ठीक है।"
"जी..." इनायत बस इतना ही बोली। अश्विनी जी वहाँ से चली गईं। आर्यन उमंग को शॉपिंग पर लेकर गया था क्योंकि वह खुद के लिए शॉपिंग नहीं कर पाई थी। सिद्धांत ऑफिस जा चुका था। दुष्यंत जी भी रिसेप्शन पार्टी की तैयारियाँ करवा रहे थे। जिसकी डेकोरेशन घर के पीछे मौजूद बड़े से गार्डन में की जा रही थी। उनके साथ वहाँ विनायत जी भी थे।
कुछ देर बाद इनायत के कमरे में मालविका आई। इनायत समझ गई थी कि मालविका को ज़रूर अश्विनी जी ने भेजा था। मालविका आकर उसके पास ही बैठ गई।
"पहनकर देख ली फ़िटिंग...?"
"जी...वो बस हल्का सा ही लूज़ है।" इनायत ब्लाउज़ को उठाकर उसके सामने रखकर बोली। मालविका मुस्कुराकर बोली, "अच्छा ठीक है। मैं ठीक कर देती हूँ...आओ मेरे साथ नीचे...वो क्या है ना कि सिलाई मशीन नीचे है और वो इतनी भारी है कि मुझसे तो नहीं उठने वाली थी। तो नीचे जाकर ही करना पड़ेगा।"
"ठीक है चलिए..." इनायत भी मुस्कुराकर बोली। दोनों नीचे आ गईं। इनायत वहीं बेड पर बैठ गई और मालविका नीचे फर्श पर बैठकर सिलाई मशीन की मदद से उसका ब्लाउज़ ठीक करने लगी।
"अभी आपने इतना मेकअप क्यों किया है...? सुबह तो नहीं किया था आपने...?" इनायत मालविका के चेहरे को गौर से देखकर बोली। जहाँ बहुत ज़्यादा मेकअप किया गया था। क्योंकि उसने सुबह देखा था उसे...उसने सुबह कोई भी मेकअप किया ही नहीं था।
इनायत के एक सवाल से मालविका अचानक हड़बड़ा सी गई। वह सोच ही नहीं रही थी कि क्या जवाब दे कि तभी इनायत आगे बोली, "ओह्ह शायद! भैया को पसंद है कि वह आपको हमेशा सजी-धजी देखे, इसलिए आपने मेकअप किया है ना...? मैं भी स्टुपिड हूँ।"
मालविका ने ज़बरदस्ती मुस्कुराकर हाँ में सिर हिला दिया। क्योंकि वही जानती थी कि इस मेकअप के पीछे उसने अपने रिश्ते की असल सच्चाई छिपाई हुई थी। सुबह सिद्धांत ने उसका जबड़ा इतनी ज़ोर से पकड़ा था कि दोनों तरफ़ लाल निशान बन गए थे। उन्हीं को छिपाने के लिए उसने इस मेकअप का सहारा लिया था। अचानक उसकी आँखें डबडबाने लगी थीं। इसलिए उसने जल्दी से अपना सिर नीचे किया और इनायत का ब्लाउज़ ठीक करने लगी।
इनायत को मालविका का बर्ताव कुछ अजीब सा लगा, पर फिर भी उसने आगे कुछ नहीं पूछा। क्योंकि वह वहाँ तक सोच ही नहीं पाई थी जहाँ एक अलग मालविका थी जिसके बदन पर पड़े निशान चीख-चीख कर उसका दर्द बयाँ करते थे, पर उन्हें कोई देखने वाला नहीं था।
कुछ देर बाद मालविका से अपना ब्लाउज़ ठीक करवाकर इनायत वापस अपने कमरे में आ गई। अब उसे थोड़ी थकान सी महसूस होने लगी थी और आँखें भी कुछ भारी-भारी सी लगने लगी थीं। इसलिए उसने ब्लाउज़ को वहीं टेबल पर पटका और बेड पर आकर लेट गई।
और बेड पर लेटते ही वह नींद के आगोश में चली गई। शाम को उसकी नींद दरवाजे की खटखटाहट से खुली। वह बेड से उठी और अपनी आँखों में हल्के से मलती हुई दरवाजे के पास आई और फिर दरवाज़ा खोला।
"इतनी देर से मैं........." आर्यन जो बहुत देर से दरवाज़े को खटखटा रहा था, और इनायत के ना खोलने पर वह गुस्से में आ चुका था। क्योंकि उसे लग रहा था कि इनायत उसे परेशान करने के लिए ही दरवाज़े को नहीं खोल रही है, जानबूझकर। पर जब इनायत ने आकर दरवाज़ा खोला तो आर्यन जैसे उस पर बरसने के लिए आतुर था। पर इनायत का उनींदा सा चेहरा देख उसके शब्द उसके गले में ही अटक कर रह गए। नींद से भरी उसकी वह आँखें जिन्हें वह ज़बरदस्ती खोलने की कोशिश कर रही थीं। बाल जो बिखरे हुए थे, जल्दबाज़ी में शायद! दुपट्टा भी लेना भूल गई थी। सूट एक तरफ़ कंधे से हल्का नीचे सरक गया था, जिसकी वजह से उसकी इनर स्ट्रिप दिखाई दे रही थी।
आर्यन अचंभित होकर उसे देख रहा था। उसे महसूस हुआ जैसे उसका गला अचानक सूख गया था। कि उसके कानों में इनायत की आवाज़ पड़ी, वह जैसे होश में आया।
"ऐसे क्यों देख रहे हो..." वह अपने सूट को कंधे से सही करते हुए उसे घूरती हुई बोली।
"क...कुछ...कुछ भी तो नहीं देख रहा..." बोलकर वह अंदर आ गया और आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा हो गया। इनायत ने दरवाज़ा बंद किया, बेड के पास आकर अपना दुपट्टा उठाया और उसे सही से गले में डाल लिया।
आर्यन ने अपने हाथ में पहनी घड़ी को उतारकर वहीं रख दिया और वॉर्डरोब की तरफ़ बढ़ गया। आर्यन की कुछ देर पहले वाली हरकत पर अब इनायत को गुस्सा आ रहा था कि वह कैसे उसे घूर कर देख रहा था।
"फ़रो कहीं का..." वह आर्यन को घूरती हुई हौले से बोली। पर आर्यन सुन चुका था। वह उसकी तरफ़ मुड़ा और अपने दोनों हाथों को सीने पर बाँधकर बोला, "क्या कहा, एक बार फिर कहो...?"
"सुन लिया ना, तो बस। हो तुम...एक नंबर के फ़रो इंसान..." इनायत गुस्से में उसकी आँखों में आँखें डालकर बोली।
"मैं तुम्हें कहाँ से फ़रो लगा..." वह उसकी तरफ़ बढ़ता हुआ बोला, चेहरे के एक्सप्रेशन्स कब कुछ बिगड़ चुके थे।
"दूर से ही बात करो। पास आने की ज़रूरत नहीं है..." इनायत उसे खुद के करीब आने से रोकती हुई बोली। पर आर्यन के ऊपर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ। वह उसके करीब आ गया। इनायत ने पीछे होना चाहा, पर पीछे बेड था, इसलिए वह अपना संतुलन खो बैठी और बेड पर गिर गई। गिरते वक़्त, कुछ सहारा ना मिला तो उसने आर्यन की कॉलर ही पकड़ ली। वह भी खुद को संभाल नहीं पाया और दोनों एक साथ बेड पर गिर पड़े।
अब हाल कुछ यूँ था कि इनायत नीचे थी और आर्यन उसके ऊपर! आर्यन से नज़दीकियाँ महसूस करते ही इनायत के बदन में जैसे एक सिहरन सी दौड़ गई। उसने जल्दी से उसके सीने पर अपने दोनों हाथों को रखा और उसे ऊपर की तरफ़ धकेलती हुई बोली, "हटो! मेरे ऊपर से...!!"
पर आर्यन टस से मस नहीं हुआ। बल्कि वह उसके चेहरे पर झुक गया। इनायत की तो साँसें ही थम गई थीं उस लम्हे में।
उसने कसके अपनी आँखें मूँद लीं। आर्यन उसकी हालत समझकर मुस्कुराया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसके चेहरे से बालों को हटाता हुआ, अपनी आवाज़ में थोड़ी मदहोशी लाता हुआ बोला, "मैं फ़रो हूँ! तो चलो दिखाता हूँ तुम्हें कि एक फ़रो इंसान क्या कर सकता है।"
क्रमशः
"हाँ, तुम बस यही कर सकते हो...हो ना फ़रो (नीच)," इनायत ने अपनी आँखें खोलीं, उसकी तरफ देखकर गुस्से में आग-बबूला होते हुए बोली।
"शायद! तुम्हें अंदाजा ही नहीं है कि आखिर मैं कर क्या सकता हूँ...? अपनी इस कैची जैसी ज़ुबान से मुझे उकसाने की कोशिश मत करो..." आर्यन ने उसके जबड़े को पकड़कर, उसके चेहरे को ऊपर करके बोला। हाँ, पर उसके लहजे में थोड़ा गुस्सा झलक रहा था।
"अंदाजा है और देख चुकी हूँ। अभी...कै...कैसे हवस भरी नज़रों से मुझे देख रहे थे...कैसे तुम्हारी राल टपक रही थी...अब तो मुझे तुम पर रत्ती भर भरोसा नहीं है।" इनायत गुस्से में उसे खुद के ऊपर से हटाने की कोशिश करती हुई बोली। जबकि उसकी हर कोशिश बेकार थी क्योंकि वह आर्यन को हिला भी नहीं पा रही थी।
"पहली बात तो मैंने कोई तुम्हें हवस (शब्द पर थोड़ा ज़ोर देकर) भरी नज़रों से नहीं देखा था। और दूसरी बात, तुम्हारी इनर स्ट्रिप खुद से दिख रही थी...तो बस दिख गई मुझे भी...और बीवी हो मेरी...देखी तो क्या...?" आर्यन ने उसकी आँखों में ही देखते हुए बोला।
"मुझे ना तुमसे कोई बात ही नहीं करनी है...अभी के अभी हटो मेरे ऊपर से...हटो।"
"नहीं हट रहा, क्या करूंगी...?" आर्यन ने शरारत के साथ उसके दोनों हाथों को पकड़कर ऊपर की तरफ किया और बेड पर दबाते हुए बोला।
"हटो..." वह कसमसाती हुई बोली।
"नहीं..."
"मैं चिल्लाऊँगी..."
"कोई नहीं आएगा..."
आर्यन की यह बात सुनकर, ना चाहते हुए भी इनायत की आँखें नम हो गई थीं। उसने वापस से अपनी आँखें बंद कीं और अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। उसकी आँखों में आई नमी देख आर्यन ने तुरंत उसे छोड़ दिया और उसके ऊपर से हट गया।
"सॉरी! इनायत...मैं तो बस थोड़ा मज़ाक कर रहा था, पर तुम तो रोने ही लग गई। आई एम रियली सॉरी!"
"हमारा रिश्ता अभी ऐसा नहीं है कि तुम मुझसे मज़ाक करो..." इनायत उठकर बैठ गई और अपना सिर नीचे कर रोने लगी।
"हाँ, तो शुरुआत तुमने की थी...क्यों बोला मुझे फ़रो!...मैं तो नहीं हूँ।" आर्यन ने उसका चेहरा अपने हाथ से ऊपर करके उसकी भीगी आँखों में देखकर बोला। पर इनायत कुछ नहीं बोली। क्योंकि वह इस वक्त मजबूर थी, ना कि मजबूत!...बेबस, लाचार थी कि उसे यहाँ रहना पड़ रहा है। वरना अगर उसके हाथ में बात होती तो शायद! वह यहाँ एक पल भी ना रुकती। वह बेशक, आर्यन को पसंद नहीं करती थी, पर...शादी हुई थी, वह इस बात को नकार नहीं सकती थी। यही बस उसके लिए अज़ाब साबित हो रहा था।
हाँ, वह सिर्फ दिखावा कर रही थी कि खुश है, पर वही जानती थी कि घुट रही थी वह अंदर ही अंदर। वह उठी और सीधा बाथरूम में चली गई। आर्यन ने उसे आवाज़ भी दी, पर इनायत की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। अब वह अपना सिर पकड़कर बेड पर बैठ गया था।
"इनायत! तुम मुझे इतना गलत क्यों समझ रही हो...मैं ऐसा नहीं हूँ (अपने बालों को हाथों में पकड़कर) जैसा तुम सोचती हो...आई लव यू इनु! बस तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ, हँसी-खुशी...ना जाने तुम कब समझोगी...कब सब ठीक होगा..." आर्यन निराश सा होकर खुद से ही बोल रहा था। वहीं अंदर इनायत बाथरूम के दरवाजे से पीठ टिकाए खड़ी थी, मुँह पर हाथ रखे...वह रो रही थी।
एक झटके में उसकी लाइफ! हमेशा-हमेशा के लिए बदल दी गई थी। कहाँ वह सोच रही थी कि आगे पढ़कर, बड़ी अफ़सर बनेगी। पर अब क्या...? अब तो साँस लेने के लिए दूसरे से पूछना पड़ रहा था उसे...और पूछना पड़ेगा पूरी लाइफ...
रोकर जब उसका मन हल्का हुआ तो वह मुँह धोकर बाहर आई। आर्यन रूम में नहीं था। शायद! वह नीचे चला गया था। इनायत ने खुद का हुलिया ठीक किया और वह भी नीचे आ गई। अश्विनी जी और मालविका रात के खाने की तैयारी कर रही थीं। वह भी उन दोनों के पास ही खड़ी हो गई।
"मैं कुछ मदद करूँ...?"
"अरे! नहीं...नहीं...बेटा, कल तो तुम हमारी यहाँ दुल्हन बनकर आई हो...और एक दिन की दुल्हन से काम करवाते क्या अच्छे लगेंगे हम..." अश्विनी जी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज में बोलीं। तो मालविका भी उनकी हाँ में हाँ मिलाती हुई बोली, "माँजी एकदम सही कह रही है इनायत! जब मैं आई थी ना, माँजी ने एक महीने तक मुझे काम नहीं करने दिया था।"
"पर दीदी...मुझे ऐसे खाली बैठने की आदत नहीं है।"
"मायके में भी समधन का हाथ बटाती थी काम में...?"
"नहीं...वहाँ तो पढ़ाई करती थी। तो कभी टाइम नहीं मिला। पर सीखा सब कुछ है..." इनायत बुझी सी आवाज़ में बोली।
"ओह्ह!" अश्विनी जी बस इतना ही बोलीं और फिर काम में बिजी हो गईं। इनायत मालविका के पास खड़ी हो गई तो मालविका सब्ज़ी काटती हुई उससे बोली, "तो अब नहीं पढ़ोगी...?"
"नहीं पता, अगर ये पढ़ाएँगे तो पढ़ लूँगी...नहीं तो मैं कोई उम्मीद लेकर नहीं आई हूँ यहाँ..." इनायत सहजता से बोली।
"तुम उम्मीद लगा सकती हो...क्योंकि जानती हूँ मैं...आर्यन उन सभी उम्मीदों को पूरा कर देगा।" मालविका मुस्कुराकर बोली।
"आप गलत सोचती हैं दीदी! आर्यन ऐसा नहीं है जैसा आप सोच रही हैं। वह बहुत बुरा है...बहुत...बहुत..." इनायत उनकी बात सुनकर मन में बोली क्योंकि सामने तो बोल नहीं पा रही थी। उसे कहीं खोया देख...मालविका उसे आवाज़ लगाती हुई बोली, "कहाँ खो गई...?"
"अ..क..कहीं भी तो नहीं..." इनायत जैसे होश में आई।
मालविका बस मुस्कुरा दी और अपना काम करने लगी। इनायत चुपचाप एक तरफ खड़ी हो गई।
रात के डिनर के बाद सब अपने-अपने रूम्स में चले गए। रूम में आते ही आर्यन सीधा बेड पर लेट गया और चेहरा तक चादर ओढ़ ली। इनायत भी चुपचाप लाइट बंद करके बेड पर लेट गई। दोनों एक-दूसरे की तरफ पीठ करके लेटे हुए थे। वहाँ इतनी शांति थी कि दीवार घड़ी के टिक...टिक...टिक की आवाज़ भी साफ़ सुनाई दे रही थी।
आर्यन और वह दोनों ही जाग रहे थे। पर बोल कोई नहीं रहा था, या शायद! उन्हें बोलने से ज़्यादा यह शांति भा रही थी। कुछ देर बीतने पर आर्यन को फ़ोन बज उठा। दोनों जैसे अपने ही ख्यालों से बाहर आए। आर्यन ने उठकर अपना फ़ोन टेबल से उठाया और स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखा, उसके माथे पर बल पड़ गए। तब तक इनायत ने भी उठकर लाइट ऑन कर दी थी।
"हेलो हाँ, ईशान..." आर्यन ने कॉल रिसीव की और फ़ोन कान पर लगाया। वहीँ आर्यन के मुँह से ईशान का नाम सुनकर उसके भी कान खड़े हो गए थे। वह खुद से ही बोली, "ईशान...ने इतनी रात को फ़ोन क्यों किया...? सब ठीक तो है ना...?"
"क्या, अभी...? अच्छा, ठीक है, फ़िक्र मत करो...मैं आ रहा हूँ।" आर्यन बोला और जल्दी से उठकर वॉर्डरोब की तरफ़ बढ़ गया। इनायत भी उसके पास आई और थोड़ा परेशान सी होकर बोली, "क...क्या कह रहा था...ईशान...? सब ठीक तो है ना...? पापा...पापा तो ठीक है ना...?"
"अंकल की तबियत खराब हो गई...हॉस्पिटल ले जाना पड़ा...मैं जा रहा हूँ देखने..." आर्यन अपनी जैकेट पहनता हुआ बोला। वहीं आर्यन की बात सुनकर इनायत को जैसे झटका लगा, 'क्या पापा की इतनी तबीयत खराब हो गई कि उन्हें ह...हो...हॉस्पिटल ले जाना पड़ा।'
उसके दिल को बेचैनी ने घेर लिया। वह आर्यन की बाह पकड़कर परेशान सी बोली, "आर्यन...आर्यन सुनो ना मुझे भी लेकर चलो...मुझे भी देखना है पापा को...प्लीज़...प्लीज़ ले चलो ना...(हाथ जोड़कर) मैं हाथ जोड़ती हूँ प्लीज़...(प्लीज़ पर ज़्यादा ज़ोर देते हुए)"
ये बोलते हुए उसकी आँखों में पानी आ गया था। आर्यन जो अचानक से चौंक पड़ा था क्योंकि इनायत ने आगे से बढ़कर उसकी बाह पकड़ी थी। पर फिर उसने खुद के जज़्बातों को अंदर ही कहीं दफ़न किया और बस हाँ में सिर हिला दिया। तो उसने उसकी बाह छोड़ दी और बाहर की तरफ़ बढ़ने लगी कि तभी आर्यन उसे रोकते हुए बोला, "इनायत!"
"हम्म..." वह ठिठक सी गई और पीछे मुड़कर देखा। उसे लगा कि अब आर्यन मना कर देगा...तो उसने ना में सिर हिला दिया। जिसे आर्यन समझ गया। वह उसके पास आया और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला, "ऐसे जाओगी...?"
"सॉरी!...मैं अभी आती हूँ, तुम कहीं जाना मत...मैं साथ चलूँगी..." इनायत बोली और जल्दी से वॉर्डरोब से एक सूट निकाला और बाथरूम में घुस गई।
उसने 2 मिनट भी नहीं लगाई थी कपड़े बदलने में...ये देखकर तो आर्यन खुद हैरत में था।
"चले..."
"हाँ, चलो..." आर्यन बोला और फिर दोनों हॉस्पिटल के लिए निकल गए।
क्रमशः
"डॉक्टर मेरे पापा कैसे हैं?" डॉक्टर के बाहर आते ही इनायत उनकी तरफ दौड़ी और थोड़ी चिंतित सी बोली।
"अब उनकी कंडीशन स्टेबल है। हमने इंजेक्शन लगा दिया है, अभी वह सो रहे हैं। सुबह तक डिस्चार्ज मिल जाएगा। तो आप उन्हें ले जा सकते हैं..." डॉक्टर बोले।
"उन्हें हुआ क्या था डॉक्टर...?" इनायत अपने पास खड़े खुशवेंद्र जी की तरफ देखकर बोली।
"शायद! उनकी दवाई स्किप हुई है। दैट्स व्हाई अचानक उन्हें स्ट्रोक आया था।" डॉक्टर बोले और फिर एक्सक्यूज मी बोलकर वहाँ से चले गए। वहीँ, डॉक्टर की बात सुनकर इनायत ने गुस्से में कावेरी जी की तरफ देखा जो वहीं दीवार के सहारे खड़ी सिसक रही थी। गार्गी ने संभाला हुआ था उन्हें।
"आप चाहती क्या हैं...? एक बार में ही बता दीजिए ना...क्यूँ...क्यूँ नहीं दी टाइम पर दवाई...अब आपको बोझ लगने लगे हैं क्या वह...मारना चाहती हैं उन्हें...हाँ बोलिए...? ताकि आपको आराम की ज़िंदगी मिले ना कोई ज़िम्मेदारी हो...हाँ?" इनायत उनके सामने खड़ी होकर गुस्से में बोली।
"ये कैसी बात कर रही है इनायत! होश में भी है क्या...?" गार्गी तुरंत बोली।
"तुम्हें बीच में बोलने के लिए नहीं बोला मैंने, तो चुप रहो... बात जब इस औरत से कर रही हूँ...तो तुझे इनकी पैरवी करने की ज़रूरत नहीं..." इनायत उसे हाथ दिखाकर बोली।
"इनायत ऐसा मत बोल बेटा....शादी के कामों में बिजी थी। तो शायद! भूल गयी...मैंने जानबूझकर ये सब नहीं किया...." कावेरी जी अपनी साड़ी के पल्लू को मुँह पर रख सिसकती हुई बोली।
"अपना ये झूठा नाटक बंद कीजिए...कि आपको फिक्र है पापा की...जबकि जानती हूँ कि कितनी फिक्र है आपको..." इनायत गुस्से में बोली।
"बेटा ऐसा नहीं है...."
"बस कीजिए...नहीं सुननी है आपकी कोई बकवास..." इनायत उनकी बात को बीच में ही काटकर बोली। आर्यन, जो काफी देर से चुपचाप एक तरफ खड़ा था, वह उसके पास आया और उसकी बाह पकड़कर धीरे से बोला, "ये क्या तरीका है बात करने का इनायत? तुम्हारी माँ है... और ये तुम्हारा कोई घर नहीं है, हॉस्पिटल है तो थोड़ा आराम से बात करो..."
इनायत कुछ नहीं बोली, बस गुस्से में उसे घूरने लगी। कि तभी खुशवेंद्र जी बोले, "आर्यन मुझे लगता है कि अब तुम दोनों को वापस घर चले जाना चाहिए... मैं हूँ यहाँ, सब संभाल लूँगा।"
"जी..." आर्यन बोला और इनायत को लेकर जाने लगा। तो इनायत उसकी पकड़ से अपनी बाह छुड़वाती हुई बोली, "मैं कहीं नहीं जाऊँगी...अपने पापा के पास रहना है मुझे...छोड़ो..."
"चलो...यहाँ बाकी सब हैं, वह संभाल लेंगे..." आर्यन लगभग उसे अपने साथ खींचता हुआ बोला। रात के करीब 1 बज रहे थे, जब वे दोनों वापस घर आए। रूम में आते ही इनायत ने आर्यन का कॉलर पकड़ा और गुस्से में बोली, "तुम खुद को समझते क्या हो... जो हर वक्त मुझ पर अपनी मर्ज़ी चलाते रहते हो..."
"तुम्हारा पति...समझता हूँ खुद को, तो इतना हक तो है ना मेरा कि, तुम पर थोड़ी मर्ज़ी चला सकूँ?" आर्यन मुस्कुराकर बोला और उसकी दोनों हाथों की कलाइयों को कसके पकड़ लिया। जिससे इनायत को दर्द हुआ तो उसने खुद ही उसका कॉलर छोड़ दिया।
"अगली बार से थोड़ा इज़्ज़त के साथ बात करना...मुझसे..." आर्यन उसके गाल को हल्के से थपथपाते हुए बोला और मुस्कुराकर बेड पर सोने के लिए लेट गया।
"डियर बीवी...ज़रा लाइट बंद कर देना, सोना है।" आर्यन खुद के ऊपर चादर तानकर बोला और दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गया।
इनायत ने गुस्से में लाइट बंद की और खुद भी बेड पर लेट गई। अब नींद तो उसे आ नहीं रही थी क्योंकि उसे अब भी पवन जी की फिक्र सता रही थी।
सुबह जब उठी तो रात भर ना सोने की वजह से उसकी आँखें लाल और सूजी हुई सी लग रही थीं। भोर के समय उसकी आँखें थोड़ी देर के लिए ही लगी थीं कि जब आर्यन वॉक के लिए गया तो उसने उसे जगा दिया था।
मालविका नाश्ता बना रही थी और वह फ्रिज के सहारे खड़ी उबासीयाँ ले रही थी।
"इनायत..." मालविका कुकर का ढक्कन बंद करती हुई उससे बोली। लेकिन उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। मालविका ने मुड़कर देखा तो वह आँखें बंद करके खड़ी थी। शायद! एक झपकी ले रही थी। उसे यूँ देखकर मालविका मुस्कुराई और उसके करीब आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उसका कंधा हिलाया। जिससे वह हड़बड़ा सी गई।
"क्या हुआ, ऐसे क्यों सो रही हो...रात भर सोई नहीं क्या...?" मालविका उसकी तरफ देखकर बोली। तो इनायत अपना दुपट्टा सिर पर सही से रखती हुई बोली, "जी...वह बस..."
"ठीक है...ठीक है...सब समझती हूँ...मैं भी शादीशुदा हूँ भई!...तो तुम्हें मुझे कुछ भी बताने की कोई ज़रूरत नहीं है...और ना ही किसी बहाने की ज़रूरत है।" मालविका हँसकर बोली और वापस से नाश्ता बनाने लगी। वहीं इनायत मालविका की बात के बारे में ही सोच रही थी कि आखिर उन्होंने ऐसा बोला क्यों कि...उसे जैसे ही उसकी बात का मतलब समझ आया, आँखें हैरानी से लगभग बड़ी-बड़ी हो गई थीं। वह जल्दी से बोली, "नहीं...नहीं...जैसा आप सोच रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है दीदी...."
"ओह! अच्छा..." मालविका थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ में बोली।
"जी...मैं सच कह रही हूँ। आप जैसा सोच रही हैं वैसा बिल्कुल भी नहीं है...बल्कि मेरी आँखें तो इसलिए लाल हैं कि मैं आर्यन के साथ...."
"बस...बस...आगे नहीं सुनना है मुझे...मैं समझ गई कि तुम क्या कहना चाह रही हो..." इनायत की बात को बीच में ही काटकर मालविका हँसते हुए बोली। तो इनायत ने अपना सिर पकड़ लिया। कि आखिर अब उसे कैसे समझाए कि जैसा वह सोच रही थी, ऐसा कुछ भी नहीं था।
वह आगे कुछ बोलती, या उन्हें समझाती कि बाहर से आर्यन की आवाज आई। जो शायद! वॉक से वापस आ गया था और अपना प्रोटीन शेक मांग रहा था। इनायत उसे बनाने में बिजी हो गई।
"मालविका एक बार जाकर देख तो सही कि इनायत तैयार हुई या नहीं...मेहमान आने शुरू हो जाएँगे बेटा..." अश्विनी जी मालविका के रूम में आकर बोलीं जो खुद तैयार हो रही थीं। विनायक जी, दुष्यंत जी, सिद्धांत, तीनों गार्डन में जा चुके थे जहाँ रिसेप्शन पार्टी का सारा इंतज़ाम किया गया था। कोई कमी नहीं छोड़ी थी उन्होंने किसी भी चीज़ में।
"माँजी बस एक मिनट, ये दुपट्टा सेट कर लूँ..." मालविका दुपट्टे को सिर पर रखकर बोली। तो अश्विनी जी ने उसके पास आकर अपनी आँखों से काजल निकालकर उसके कान के पीछे लगा दिया और प्यार से बोली, "बहुत प्यारी लग रही है...भगवान तुझे हर बुरी नज़र से बचाए..."
"आप भी बहुत प्यारी लग रही हैं...."
"अरे कहाँ, अब तो मेरी उम्र हो चली है..." अश्विनी जी हँसकर बोलीं।
"अरे...कहाँ उम्र हो चली है आपकी...अगर आप मेरे साइड में खड़ी हो जाएँ ना तो सब लोग यही कहेंगे कि हम दोनों बहनें हैं..." मालविका भी हँसकर बोली।
"बस ऐसे ही खुश रहा कर...बिल्कुल अच्छी नहीं लगती दुःखी..." मालविका को यूँ हँसता देखकर अश्विनी जी उसकी बलाएँ लेती हुई बोलीं।
"अच्छा ठीक है...मैं जा रही हूँ...शायद! उमंग भी चली गई होगी...तुम इनायत को तैयार करके ले आना..." वह बोलकर वहाँ से चली गईं और मालविका की आँखें भर आईं।
"इनायत...गुस्सा मत दिलाओ...और उठकर चुपचाप तैयार हो जाओ..." आर्यन गुस्से में चिल्लाया।
"मुझे जाना ही नहीं है तो तैयार क्यों होऊँ...?" इनायत बेड पर बैठी बड़े आराम से बोली कि आर्यन का पारा और चढ़ गया।
"सब समझ रहा हूँ कि क्या करना चाह रही हो तुम...हमारे परिवार का मज़ाक उड़ाना चाहती हो ना...पार्टी में ना जाकर...?"
"बिल्कुल...तुम हमेशा अपनी मर्ज़ी चलाते हो तो आज मैं अपनी मर्ज़ी चलाऊँगी, मुझे नहीं जाना है किसी भी पार्टी में...तुम अकेले ही जाओ...और अपने परिवार के साथ एन्जॉय करो..." इनायत मुस्कुराकर बोली।
"सब तुम्हारे लिए आए हैं, सब रंधावा खानदान की छोटी बहू को देखना चाहते हैं। अगर तुम नीचे नहीं जाओगी तो जानती भी हो कि... लोग क्या-क्या बातें बनाएँगे, कितनी बेइज़्ज़ती होगी, और मैं ये बिल्कुल नहीं चाहता कि ये सब हो। इसीलिए चुपचाप एक अच्छी बीवी की तरह मेरी बात सुनो और उठकर तैयार हो जाओ...." आर्यन खुद के गुस्से को दबाता हुआ बड़ी ही नरमी से बोला। लेकिन इनायत ने मुस्कुराकर ना में सिर हिला दिया।
"मतलब नहीं हो रही हो तैयार...?"
"बिल्कुल भी नहीं...."
"मैं ये आखिरी दफ़ा, प्यार से कह रहा हूँ कि...जल्दी से तैयार हो जाओ...और चलो मेरे साथ नीचे..."
"बिल्कुल भी नहीं...?"
"इनायत...ये सच में लास्ट बार है..." आर्यन उसे उंगली दिखाता हुआ बोला लेकिन इनायत कुछ नहीं बोली और उसकी चुप्पी का साफ़ मतलब था कि उसकी ना ही है।
"किस बात के इतने भाव खा रही हो हाँ...प्यार से बात कर रहा हूँ तो सिर पर ही चढ़ती जा रही हो..." आर्यन अब अपने गुस्से को और काबू ना रख पाया और उसकी दोनों बाहों को पकड़कर गुस्से में बोला।
"मैंने बोला कि तुम मुझसे प्यार से बात करो...."
"इनायत अब ये कुछ ज़्यादा ही हो रहा है। मैं नहीं चाहता कि मेरा हाथ उठे...और गुस्से में मैं तुम्हें हर्ट करूँ..."
"इसमें कौन सी नई बात है...(अपना गाल आगे करती हुई) लो और मारो...जैसे उस दिन मारा था...सह लूँगी...जैसे उस दिन सह लिया था।" इनायत आँखों में नमी लिए मुस्कुराकर बोली। कि तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खड़ी मालविका पर गई जो हैरानी से उन दोनों को ही देख रही थी। शायद! वे दोनों दरवाज़ा बंद करना भूल चुके थे।
"दीदी...आप..." इनायत बस इतनी ही बोली थी कि आर्यन ने जल्दी से उसे छोड़ा और थोड़ा दूर खड़ा हो गया।
क्रमशः