अद्रांक्ष सिंह शेरावत, जिसके नाम से आधी दुनिया काँपती थी। बिजनेस की दुनिया का बेताज बादशाह। अगर इन्हें एक बार जो पसंद आ जाए, तो वह किसी भी कीमत पर हासिल करता है। वहीं दूसरी तरफ है हमारी चुलबुली कामाक्षी, जो गंगा किनारे संगम नगरी में पली-बढ़ी। पर वही... अद्रांक्ष सिंह शेरावत, जिसके नाम से आधी दुनिया काँपती थी। बिजनेस की दुनिया का बेताज बादशाह। अगर इन्हें एक बार जो पसंद आ जाए, तो वह किसी भी कीमत पर हासिल करता है। वहीं दूसरी तरफ है हमारी चुलबुली कामाक्षी, जो गंगा किनारे संगम नगरी में पली-बढ़ी। पर वही अद्रांक्ष एक बदले की वजह से पूरे समाज के सामने कामाक्षी से जबरदस्ती शादी कर उसे जिल्लत सहने के लिए छोड़ देता है। उसे एक नजर भी नहीं देखता था। 2 साल बाद जब अद्रांक्ष और कामाक्षी का आमना-सामना होता है, तो अद्रांक्ष कामाक्षी की खूबसूरती का दीवाना हो जाता है। और उसे हर कीमत पर अपना बनाने की ठान लेता है। पर कौन है कामाक्षी? आखिर किस बदले की वजह से अद्रांक्ष ने कामाक्षी से शादी कर उसे छोड़ दिया था? जानने के लिए पढ़िए "Hukum sa
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राजस्थान जयपुर -
एक सुनसान जंगल में, जहाँ दूर-दूर तक सन्नाटा था, एक आदमी 5 साल की एक छोटी सी बच्ची को लेकर उस जंगल के रास्ते में चल रहा था। उस आदमी के चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। और डर की वजह से वो बार-बार अपने आसपास, आगे-पीछे देख रहा था और उस छोटी सी बच्ची को गोद में ऐसे कस के पकड़े हुए था मानो जैसे कोई उस आदमी से उस बच्ची को छीन लेगा।"
लालटेन की रोशनी से उस आदमी ने कुछ दूर चल कर उस बच्ची को गोद से नीचे उतार दिया और वहीं जमीन पर मौजूद सूखे पत्तों को हटाने लगा। वहां एक लोहे की जाली थी जिसके अंदर एक तहखाना था।
उस आदमी ने लोहे की जाली को ऊपर की ओर उठा लिया तो उसके नीचे एक सीढ़ी दिखायी दी। फिर उस आदमी ने बच्ची को गोद में लेकर आस-पास चारों तरफ एक बार फिर से देखा और उन सीढ़ियों से अंदर की ओर चला गया और अंदर से द्वार बंद कर दिया।
वो आदमी उस तहखाने के अंदर गया तो अंदर भी कुछ पहरेदार मौजूद थे। जो उस आदमी के आगे अपना सिर झुका रहे थे। लेकिन वो आदमी बिना कुछ कहे हीं उस बच्ची को लेकर अंदर की ओर चला जा रहा था। वो आदमी बच्ची को लेकर एक कमरे में चला गया जो पूरी तरह से अंधेरे में डूबा हुआ था। उस कमरे में बस एक मोमबत्ती हीं जल रही थी जिसकी वजह से एक परछाई नजर आ रही थी।
वो आदमी उस परछाई के करीब गया और बच्ची को गोदी से उतारते हुए कहा - "खम्मा घणी हुकुम सा!"
वो परछाई वाला आदमी जो एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठा शुन्य में देख रहा था।
उसने अपनी दमदार आवाज में कहा - "आप यहां क्यों आए हैं राणा? आपको पता नहीं क्या की आपका यहां आना आपके लिए और हमारी बच्ची के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है? फिर भी आप यहां क्यों आए?"
वो आदमी जिसका नाम राणा था उसने कहा - "क्या करूं हुकुम सा बाहर हमारे दुश्मनों ने उन लोगों को खत्म कर दिया! जो हमारी मदद कर रहे थे! राजकुमारी को उनसे बचाने के लिए अब हमारे पास यहां आने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था? हुकुम सा! अब हम क्या करें?"
फिर हुकुम सा ने अपनी शख्त आवाज में कहा - "आप इतनी जल्दी हार कैसे मान सकते हैं राणा? ये मत भूलिए कि आप की परवरिश हम ठाकुरों के यहां हुई है! और आपको हमने कभी हार मानना नहीं सिखाया! भले हीं अब हमारे अब वो हालात नहीं रहे? की हम अपने दुश्मन का सामना कर सकें! पर वो दिन बहुत जल्द आएगा जब हमें हमारी सियासत, हमारा पद, हमारी शान, रुतबा सब वापस मिलेगा और वो सब हमें हमारी बच्ची हीं दिलाएंगी।"
ये सुन राणा ने पूछा - "पर कैसे हुकुम सा?"
हुकुम सा राणा से कहते हैं - "ले जाइए इन्हें यहां से दूर, इस जगह से बहुत दूर। जहां हमारे दुश्मनों की परछाई तो क्या उनकी सोच भी ना पहुंच पाए और तैयार करिए इन्हें हमारे हर दुश्मनों का सामना करने के लिए क्योंकि अब हमारी बच्ची हीं हमें हमारा हक दिलाएंगी! और अपनी मासा के मौत का बदला लेंगी। ले जाइए इन्हें यहां से!"
और हुकुम सा ने अपने गले से एक कीमती मोतियों की हार उतारकर राणा को दे दी और कहा - "ये हमारी बच्ची की परवरिश के लिए।"
और उस बच्ची को अपने गले से लगा कर हुकुम सा ने कहा - "हमारी राजकुमारी, अब आपको राणा काका के साथ जाना होगा! क्योंकि अब हम से दूर रहने में हीं आपकी भलाई है!"
फिर हुकुम सा उस बच्ची के माथे पर किस कर के वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गए। और राणा को जाने का इशारा किया। जिसके बाद राणा उस बच्ची को लेकर वहाँ से चला गया।
हुकुम सा उसी कुर्सी पर वापस बैठकर सामने दीवार पर लगी एक बड़ी सी फोटो को निहारते हुए कहा - "हमें अकेला छोड़ कर क्यों चली गई हुकुम रानी सा? आप हीं तो हमारी ताकत थी और आप हमें इस तरह कमजोर बना कर चली गई आख़िर क्यों?"
कुछ देर बाद एक पहरेदार भागते हुए हुकुम सा के पास आया और सिर झुकाकर उसने कहा - "हुकुम सा बुरी खबर है हमें अभी पता चला है कि हमारे दुश्मनों ने राणा को पकड़ लिया है, और उन लोगो ने हमारी राजकुमारी को खाई..!
उसके आगे वो पहरेदार नहीं बोल पाया, पर हुकुम सा उस पहरेदार के बातों को बिना सुने हीं समझ गए कि आगे वो क्या कहना चाहता था। हुकुम सा ने उसे जाने का इशारा किया।
हुकुम सा ने वहीं कुर्सी पर अपना सिर टिका लिया। उस वक्त उनकी आँखें आंसुओं से भर चुकी थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने एक भी बूंद आंसू के बहने नहीं दिए और खुद से बातें करते हुए कहा - "वो दिन बहुत जल्द आएगा जिस दिन हमें हमारा खोया हुआ सम्मान मिलेगा, खोया हुआ परिवार मिलेगा, बहुत जल्द वो दिन भी आएगा"
15 साल बाद, मुंबई शहर में -
एक 60 मंजिल की बिल्डिंग जिसपर बड़े-बड़े अक्षरों में शेरावत इंडस्ट्री लिखा हुआ था। उस बिल्डिंग के अंदर एक मीटिंग रूम में मीटिंग चल रही थी और वहां मौजूद सारे एंप्लॉय की हालत खराब थी। डर की वजह से सब के पसीने छूट रहे थे, क्योंकि उस मीटिंग रूम में जो शख्स बैठा था उसे देख कर अच्छे-अच्छे लोगों की हालत पस्त हो जाती थी। वो सभी एम्पलाई उस शख्स के इतने करीब थे तो उनका डर से कांपना तो लाजमी था।
तभी उस शख्स के फोन में एक कॉल आयी पर मीटिंग की वजह से उसने कॉल अटेंड नहीं की पर कॉल काटने के बाद तुरंत हीं एक मैसेज आया। जब उस शख्स की निगाह उस मैसेज पर गयी तो उसके हाथों की मुट्ठियां कस गयी। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गयी। गुस्से की वजह से उसकी गर्दन और मूठ्ठियों की नसें उभरने लगी। और फिर वो शख्स मीटिंग कैंसिल बोल तुरंत हीं मीटिंग रूम से बाहर निकल गया।
जैसे हीं वो शख्स मीटींग रूम से बाहर गया, मीटिंग रूम में मौजूद सब लोगों ने एक राहत की साँस ली।
और जैसे हीं वो शक्स मीटिंग रूम से बाहर निकला उसके आस-पास बॉडीगार्ड्स ने उसे अच्छे से कवर कर लिया। बॉडीगार्ड्स फुल ब्लैक यूनिफॉर्म में, वेल ट्रेंड लग रहे थे। कुछ देर बाद वो शख्स बिल्डिंग के बाहर आया। तभी उसके आगे एक मर्सिडीज आकर रूकी और उसमें से ड्राइवर निकल कर आया और उसने जल्दी से उस गाड़ी का डोर ओपन किया।
वो शख्स उस गाड़ी में बैठ गया और फिर गाड़ी अपनी मंजिल की ओर चल दी।
उस गाड़ी के आगे-पीछे भी बॉडीगार्ड से भरी दो-दो गाड़ियां और चल रही थी। वो शख्स कोई और नहीं पूरे शेरावत इंडस्ट्री का सीईओ और राजस्थान का हुकुम सा अद्रांक्ष सिंह शेरावत था।
सिर्फ इतना ही नहीं उनका हर क्षेत्र मे बिजनेस फैला हुआ था। हर अमीर घर की लड़कियां उनको पाने की सपने देखती थी। पर अगर कोई लड़की उनके आस-पास गलती से भी भटक जाती तो वो उसे गायब करवा देते थे।
अद्रांक्ष देखने में एकदम हैंडसम, गूडलूकिंग था। उसकी आँखे नीली थी, पेट पर 8 पैक एप्स और फिट बॉडी थी। चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं होते थे और उनका रुतबा सब से हटकर एक राजा वाला था।
फिर वो गाड़ी एक हॉस्पिटल के सामने आकर रूकी और ड्राइवर ने जल्दी से उतरकर उस गाड़ी का डोर ओपन किया।
अद्रांक्ष गाड़ी से उतरा तभी उसके आस-पास फिर से बॉडीगार्ड ने कवर कर लिया। जब वो हॉस्पिटल के अंदर एंटर हुआ तो हॉस्पिटल में मौजूद हर कोई अद्रांक्ष सिंह शेरावत को देख दंग रह गए।
सब उसके जाने के लिए रास्ता खाली करके किनारे हो गए। कोई भी उसके आगे अपना सिर उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
जब अद्रांक्ष ऑपरेशन रूम के बाहर आकर खड़ा हुआ और डोर के शीशे से अंदर का नजारा देखा तो वहाँ एक 23 साल का शख्स लेटा था जो कि अद्रांक्ष का छोटा भाई रुद्राक्ष सिंह शेरावत था।
रुद्राक्ष पूरी तरह खून से लथपथ था और उसके आस-पास कुछ डॉक्टरों की टीम थी जो उसका ट्रीटमेंट करने में बिजी थी।
ये सब देख अद्रांक्ष के सिर पर खून सवार हो गया और उसके मुंह से बस कुछ शब्द निकलते हैं - "ये सब किसकी वजह से हुआ है?"
वहीं पर मौजूद दो और शख्स जो अद्रांक्ष के चाचा अमरेंद्र सिंह शेरावत के बेटे राजवीर सिंह शेरावत और रणवीर सिंह शेरावत थे। उनमें से राजवीर ने कहा - "भाई सा ये सब एक लड़की की वजह से हुआ है। रुद्राक्ष भाई जिस लड़की से प्यार करते थे। वो लड़की रुद्राक्ष भाई को छोड़कर किसी और से शादी करने जा रही है और इसी गम में रुद्राक्ष भाई सा ने आत्महत्या करने की कोशिश की है।"
इतना सुन अद्रांक्ष के हाथों की मूठ्ठियां कस गयी और उसने अपने पी ए अर्पित से कहा - "सिर्फ 20 मिनट है तुम्हारे पास, उस लड़की की सारी इनफार्मेशन मुझे चाहिए। अगर 20 मिनट में ये काम नहीं हुआ तो दोबारा इस शहर में नजर मत आना!"
इतना सुनते ही अर्पित की हालत खराब हो गई और उसने कांपते हुए कहा - "यस बॉस आपका काम हो जाएगा।"
अर्पित उस लड़की की इंफॉर्मेशन कलेक्ट करने चला गया। तो वहीं अद्रांक्ष अपने भाई, रणवीर और राजवीर के साथ एक प्राइवेट रूम में चला गया।
ये हॉस्पिटल शेरावत ग्रुप के अंडर आता था। तो इसीलिए हॉस्पिटल में शेरावत फैमिली के इलाज के लिए एक अलग हीं फ्लोर था जहां पर बाहर के किसी का आना सख्त मना था। उस फ्लोर पर सिर्फ शेरावत फैमिली के मेंबर का हीं इलाज होता था और वहां के डॉक्टर विदेशों से लाए गए थे।
प्राइवेट रूम में मौजूद रणवीर और राजवीर की भी हालत खराब हो रही थी क्योंकि उस वक्त अद्रांक्ष गुस्से से विंडो साइड पर खड़ा होकर सिगरेट के कश लगाए जा रहा था और उसकी आंखें एकदम आग उगलने वाली हो गई थी।
तभी अद्रांक्ष ने अपने भाइयों से पूछा - "इस बारे में महल मे किस-किस को पता है?"
राजवीर ने कहा - "भाई सा हम दोनों के अलावा फैमिली में किसी को भी अभी रुद्राक्ष भाई की हालत के बारे में नहीं पता!"
अद्रांक्ष ने दोनो की तरफ देखते हुए कहा - "पता भी नहीं चलना चाहिए, अगर महल से कोई भी रुद्राक्ष के बारे में पूछे तो बोल देना कि वो कुछ दिनों के लिए आउट ऑफ इंडिया गया है अगर भूल कर भी फैमिली में किसी को रुद्राक्ष की कंडीशन के बारे में पता चला तो तुम लोगो की ख़ैर नही!"
अद्रांक्ष अपने भाइयों से बोल हीं रहा था कि तभी उस प्राइवेट रूम में अद्रांक्ष का पीए अर्पित आया।
अद्रांक्ष जाकर सोफे पर बैठ गया। इस वक्त उसका रुतबा एकदम राजा की तरह लग रहा था। फिर अद्रांक्ष ने अर्पित को बोलने का इशारा किया।
इशारा पाकर अर्पित बोला - "उस लड़की का नाम वैदेही ठाकुर है और वो प्रयागराज में अपने परिवार के साथ रहती है। कुछ वक्त पहले हीं वो लड़की और रुद्राक्ष सर मिले थे, और रुद्राक्ष सर को उस लड़की से प्यार हो गया। उस लड़की को भी रुद्राक्ष सर से प्यार हो गया पर हाल ही में पता चला है कि वो लड़की रुद्राक्ष को छोड़कर वापस प्रयागराज चली गई और वो किसी और से शादी करने जा रही है! जब ये खबर रूद्राक्ष सर को पता चली तो उन्होंने अपनी जान देने की कोशिश की।"
इतना बोलकर अर्पित चुप हो गया और उस रूम का माहौल एकदम शांत हो गया क्योंकि धीरे धीरे अद्रांक्ष का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। तो वहीं राजवीर अपने मन में सोचते हुए खुद से बोला - "पता नहीं अब उस लड़की के साथ भाई क्या करने वाले हैं? भगवान हीं बचाए उस लड़की को भाई के प्रकोप से ।"
फिर अद्रांक्ष ने अपने पी ए अर्पित से कहा - "प्रयागराज जाने के लिए जेट तैयार करवाओ हम आज शाम को हीं प्रयागराज के लिए निकलेंगे।"
और इतना बोलकर अद्रांक्ष उस रूम से निकल बाहर चला गया। अद्रांक्ष वापस उस ऑपरेशन थिएटर के रूम के बाहर आ गया। इस समय डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर रूम के बाहर आ रहे थे।
जब डॉक्टर ने अद्रांक्ष सिंह सेरावत को देखा तो उन्हें देखकर एक बार उनके सामने सिर झुकाया और कहा - "हुकुम सा हमने उनकी जान तो बचा ली है लेकिन अगर उन्हें फिर से कोई शॉक लगा तो वो कोमा में जा सकते हैं। तो अच्छा यही होगा कि होश में आने के बाद उन्हें कोई मेंटल स्ट्रेस ना दिया जाए।"
और इतना बोलकर डॉक्टर चले गए।
थोड़ी हीं देर बाद रुद्राक्ष को एक वीआईपी रूम में शिफ्ट कर दिया गया। जब अद्रांक्ष उस रूम में गया तो उसने मशीन से घिरे हुए अपने भाई को देखा। अद्राक्ष ने उसके पास जाकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - "जिस लड़की की वजह से आपकी ये हालत हुई है, उस लड़की का मैं पूरे समाज के सामने जीना दुश्वार कर दूंगा। वो किसी के सामने सिर उठा कर चलने की हिम्मत भी नहीं कर पाएगी, ये मेरा आपसे वादा है छोटे।"
और फिर अद्रांक्ष रूम से बाहर निकल आया। उस रूम के बाहर आते हीं उसके बॉडीगार्ड्स उसके आगे-पीछे चलने लगे।
प्रयागराज जिसका दूसरा नाम था संगम नगरी है, जहां देश के कोने-कोने से लोग गंगा में स्नान करके अपने आप को पाप से मुक्त करने आते है और उसी गंगा किनारे रहती थी हमारी कामाक्षी।
मनकामेश्वर मंदिर जहां मन की हर मनो-कामना पूरी होती है वहाँ एक तरफ गंगा जी तो दूसरी तरफ सरस्वती घाट और उसी मंदिर में घंटियों के साथ एक मधुर आवाज भी गूंज रही थी जिसे सुनकर वहां मौजूद हर इंसान उस आवाज की ओर खिंचा चला जा रहा था।
सब लोग उस जगह इकट्ठा हो गए जहां से वो आवाज आ रही थी। वहां पर माता रानी की मूर्ति के सामने एक लड़की बैठकर भजन गा रही थी और उसके पीछे छोटे-बड़े बच्चे बैठे हुए उसके साथ भजन में ताल से ताल मिला रहे थे। वहां मौजूद सब लोग बस कुछ मधुर आवाज में हीं खोए जा रहे थे।
"तुमरे भवन में
जोत जागे मेरे पाप भागे
आनंद मंगल हो
ब्रह्मा जी वेद जप्पा
है तेरी द्वारे मैया
भाह्मा जी वे अम्बा
हे माता द्वारे जावा
ब्रह्मा जी वेद जप्पा
हैं तेरे द्वारे
मैया के द्वारे
मैया के द्वारे
तुमरे भवन में
जोत जागे मेरे पाप भागे
आनंद मंगल हो मेरी अम्बे
नारद गिरधर खड़े तेरे द्वारे माया
नारद हे मेरी अम्बे
नारद गिरधर खड़े तेरे द्वारे
क़ानूर बिन बजावे मैय्या के द्वारे
क़ानूर बिन बजावे मेरे माँ के द्वार
क़ानूर बिन बजावे अम्बा
तुमरे भवन में
हम्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म
हम्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म
हम्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म!"
जब थोड़ी देर बाद भजन खत्म हुआ तो वो लड़की माता रानी के पास से एक प्रसाद की थाल उठाते हुए वहां मौजूद सब को प्रसाद देने लगी। सब उसके सिर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद दे रहे थे। तभी एक शख्स ने आशीर्वाद देते हुए कहा - "खुश रहो कामाक्षी बिटिया अब तो तुम्हारी आवाज सुने बिना हमारी सुबह ही नहीं होती, तुम्हारी ये आवाज़ तो हम सबको यहां आने के लिए हमेशा मजबूर कर देती है।"
कामाक्षी उनकी बात पर हल्का सा मुस्करा दी और फिर दुसरे लोगों को प्रसाद बांटने लगी।
कामाक्षी शांत, सुशील और सर्वगुण संपन्न, हमेशा बड़ों का आदर करने वाली और लोगो की मदद करने वाली लड़की थी। वहां के लोगों की सुबह और शाम कामाक्षी की मधुर गीत से हीं होती थी। कामाक्षी दिन-रात बस लोगों की सेवा करने में हीं लगी रहती थी।
कामाक्षी खूबसूरत तो इतनी थी कि जैसे भगवान ने बड़ी फुर्सत से उसे तराशा हो। उसकी घनी पलके, समुंद्र जैसी नीली आंखें, दूध जैसे चमकती त्वचा, कमर तक लंबे बाल और एक लॉन्ग अनारकली सूट पर वन साइड दुपट्टा कामाक्षी की खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा था।
तभी एक 4 साल की छोटी सी लड़की ने कामाक्षी के पास आकर उसके दुपट्टे को खींचते हुए कहा - "दीदी-दीदी चलिए वरना बड़ी मां का बम ब्लास्ट हो जाएगा। बवाल आने वाला है तूफान, सुनामी आ जाएगी सुनामी।"
तभी कामाक्षी ने उस लड़की के पास झुकते हुए उसकी नाक को पकड़ कर कहा - "चुनमुन हमने आपसे कितनी बार कहा है कि आप सही से बोला करो। आप ये कैसी भाषा का इस्तेमाल करने लगी हो, हां। ये क्या है, बम ब्लास्ट, सुनामी? आप सीधे-सीधे हमसे नहीं बोल सकती थी कि चलिए वरना बड़ी मां का गुस्सा और भी बढ़ जाएगा हाँ! अब आइंदा से आप हमारे सामने ऐसे वर्ड का इस्तेमाल नहीं किया करेंगी समझी।"
और फिर चुनमुन की उंगली को पकड़ कामाक्षी अपने घर की तरफ चली गई, घर पर पहुंचने के बाद कामाक्षी ने चुपके से अपनी चप्पल एक साइड में उतार दी और दबे पाँव अंदर जाने की कोशिश करने लगी। जब वो आगन में पहुंची तभी साइड से एक आवाज आई - "तो आ गई महारानी साहिबा! गुलछर्रे उड़ा कर।"
कामाक्षी और चुनमुन एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चुपचाप नीचे सिर झुका बड़ी मां की डांट सुनने के लिए तैयार हो गई। बड़ी मा ने उन दोनों को सुनाते हुए कहा - "अगर तुम दोनों का ये घूमना फिरना हो गया हो तो जरा अपने पाँव घर पर भी टीका लीया करो! तुम्हें पता नहीं, कि इस वक्त घर में कितना काम फैला हुआ है? पर तुम लोगों को क्या? जब बाहर से फुरसत मिलेगी तभी तो पता चलेगा घर मे कितना काम हैं।"
बड़ी मां ने आगे कहा - "अब ये मूर्ती बन कर खड़ी क्यों हो? इतने सारे काम पड़े हैं आज सारे मेहमान आने शुरू हो जाएंगे। तो अच्छा होगा कि तुम लोग अपने काम में लग जाओ और हां मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए समझ गई। अब चुपचाप अंदर जाओ और काम करो!"
कामाक्षी और चुनमुन चुपचाप अंदर जाकर काम करने लगी। वहीं बड़ी मां ने एक सोफे पर बैठ कर खुद से हीं कहा - "पता नहीं कहां-कहां के लोग आ गए हैं यहां पर! मेरा बस चले तो अभी इन दोनों लवारिशों को उठा के घर के बाहर फेंक दूं।"
तभी बड़ी माँ के पीछे से एक आवाज आई - "किसे फेकने की बात हो रही है?"
जिसे सुनकर बड़ी मां ने हड़बड़ाते हुए अपना झूठ छुपा कर कहा - "अरे कु...कुछ भी तो नहीं, बस मैं यही कह रही थी कि शादी वाला घर है ना तो सामान भी बहुत हो गया हैं। बस वही सोच रहीं हूँ कि जो समान काम का नहीं हैं उसे उठाकर बाहर फेंक दूं!"
ये आवाज जिस शख्स की थी, वो कोई और नहीं मिस्टर अजीत ठाकुर थे। जिनका समाज में अच्छा नाम था। और वहां के लोग उनकी खूब इज्जत करते थे।
कामाक्षी अजित ठाकुर की मुंह बोली बेटी थी। जिसे उन्होंने एक आश्रम से गोद लिया था। उनकी पहले से भी एक बेटी थी जिसका नाम वैदेही ठाकुर था। उन्होंने कामाक्षी को भी अपना नाम दिया था।
चुनमुन जब छोटी सी नवजात बच्ची थी तभी कोई उसे मंदिर के सामने छोड़कर चला गया था। कमाक्षी हीं चुनमुन को वहां से उठाकर घर ले आई थी और अपने बड़े पापा से बात करके चुनमुन की जिम्मेदारी खुद ले ली थी।
इस वजह से बड़ी मां आराधना जी हमेशा कामाक्षी और चुनमुन से चिढ़ती थी। क्योंकि वो दोनों हीं उनकी औलाद नहीं थी।
आराधना जी ने अजित ठाकुर से कहा - "आज आप बड़ी जल्दी आ गए! आप बैठीए मैं अभी आपके लिए चाय, पानी कुछ लेकर आती हूं!"
और इतना बोलकर आराधना जी वहां से किचन की तरफ चली गई!
वहीं एक कमरे में वैदेही, जो एक कोने में बैठकर बस एक हीं फोटो को देख कर रो रही थी उसने खुद से बातें करते हुए कहा - "हमें माफ कर दीजिए रूद्र जी हमें पता है, कि हमने आपको छोड़कर बहुत बड़ी तकलीफ दी है, पर क्या करें एक तरफ हमारे बाबा हैं जिन्होंने हमें पाल-पोस कर बड़ा किया है, हमें इस काबिल बनाया है कि हम अपनी जिंदगी में कुछ भी कर सकते हैं। पर हम सिर्फ अपने लिए उनके मान-सम्मान को ठेस नहीं पहुंचा सकते है।
आपको नहीं पता कि हम आपसे कितना प्यार करते हैं लेकिन एक तरफ हमारे बाबा की इज्जत भी है जिसे हम नीलाम होते नहीं देख सकते। इसीलिए हमें उनके बताए हुए लड़के से शादी करनी पड़ रही है।"
वैदेही, रुद्र की फोटो को सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगी।
अद्रांक्ष प्रयागराज आने के लिए मुंबई से अपने प्राइवेट जेट पर बैठक निकल चुका था।
इधर जब कामाक्षी अपने घर पर काम कर रही थी तो चुनमुन ने अपने आस पास देख कर कामाक्षी के नजदीक आयी और धीरे से बोली - " दीदी ! आप सुनामी की इतनी पक पक सुनती क्यों हैं? चलिए ना हम लोग यहां से कहीं दूर भाग जाते हैं। "
तो कामाक्षी ने कहा - "ये क्या आदतें हो गई है आपकी? आप ये कैसे बोलने लगे हो बच्चा ? वो बड़ी है ना हमसे और वो हमारे अच्छे के लिए ही तो हमें डाटती है ना। तो क्यों आप उनकी बातों को इतना दिल से ले लेती हो और आइंदा से हमारे सामने ये भागने की बातें मत करिएगा और ये जो गली के बच्चों के साथ खेल खेल कर आपने जो उनकी ये टपोरी लैंग्वेज सीख ली है । इसे सुधार लीजिए वरना हम आपको आपकी जलेबियां नहीं खिलाएंगे।"
फिर चुनमुन कामाक्षी से मुंह बनाते हुए बोली - "दीदी आप बात बात पर हमारी जलेबियो को ही क्यों दांव पर लगा देते हो? हम आपसे आख़िरी बार कह रहे हैं, कि हमसे आप चाहे गुस्सा हो जाओ और चाहे दूर चली जाओ पर कभी हमारी जलेबियों को हमसे दूर मत करना! हम बता दे रहे हैं आपसे।"
इतना बोल चुनमुन गुस्से में अपना काम करने लगी। और ऐसे ही दोनो को काम करते-करते शाम हो गयी ।
फिर चुनमुन कामाक्षी से बोली - "दीदी! भूख लगी है चलो ना कुछ खाते हैं।"
तो कामाक्षी ने कहा - "हमारे बच्चे को भूख लगी है चलिए हम अभी आपको कुछ खिलाते है।"
और फिर दोनों किचन में चली गयी। शाम तक घर में मेहमान भी आ चुके थे।
इधर अराधना जी अपना काम करने में व्यस्त थी तभी उसके पीछे से एक औरत की आवाज आयी - " तो कैसी हो हमार छुटकी।"
अराधना जी ने पीछे पलट कर देखा तो अपनी जीजी को देख खुश होते हुए बोली - " अरे जीजी ! का बताएं तुमको ? तुम्हारी छुटकी कभी खुश रह सकी तुम्हारे बिना ! अब देखो तुम आए गई हो तो हमरी खुशी हमका वापस मिल ही जाएगी । "
अराधना जी की जीजी अनु जी बोली - " तो इसका मतलब अभी तक तुम्हारा उन लावारिसो से पीछा छूटा नहीं? "
तो अराधना जी ने कहा - " का करे जीजी? दोनो ऐसा पैर जमा के बैठी है! कि जाने का तो नाम ही नहीं लेती। कितनी कोशिश कर लिए कि ई दोनों घर छोड़कर भाग जाए। सच बताएं जीजी अगर एक बार इन दोनों से हमारा पीछा छूट जाए तो हम एक बार गंगा जी मे अच्छे से डुबकी जरूर लगाएंगे।"
ये सुनकर अनु जी बोली - " उसकी फिक्र तुम ना करो छुटकी, अब देखो अपनी अनु जीजी का कमाल अब हम आ गए हैं ना तो देखना, उन लावारिसो को फिर से लावारिस ना बनाया तो हमारा नाम भी अनु त्रिपाठी नहीं।"
वही कुछ दूरी पर खड़ी कामाक्षी ये सब सुन रही थी। वो घर के पीछे जाकर एक कोने में बैठ कर रोने लगी। तभी उसके कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ और जब उसने पीछे पलट कर देखा, तो वहां उसके बड़े पापा थे।
कामाक्षी अपने बड़े पापा के गले लग कर फूट-फुट कर रोने लगी और रोते हुए बोली - "आखिर क्यों बड़े पापा? हमारी क्या गलती है? हमें किस बात की इतनी सजा मिल रही है? गलती तो उनकी है ना जिन्होंने हमें जन्म देकर एक आश्रम में छोड़ दिया। अगर उन्हें हमें पालना नहीं था तो क्यों हमें जन्म दिया ? हमें कोख में ही मार देते क्यों हमें इस दुनिया में लाया? सिर्फ इस जिल्लत भरी जिंदगी जीने के लिए, लोगों के ताने सुनने के लिए , आखिर क्यों हमारे साथ ही क्यों होता है? आज तक हमने बड़ी मां की हर बात को सुन लिया पर अब नहीं बर्दाश्त होता बड़े पापा।"
और इतना बोलकर कामाक्षी खूब ज़ोर ज़ोर से रोने लगी तो बड़े पापा कामाक्षी के सिर पर हाथ सहलते हुए बोले- "शांत हो जाइए कामाक्षी, हमें पता है कि आपको बड़ी मां के बातें सुनकर इस वक्त कितना बुरा लग रहा होगा। पर आपको हौसला रखना होगा। देखिएगा एक दिन जरूर आएगा जिस दिन आपको किसी के भी ताने सहने की कोई जरूरत नहीं होगी तब सब आपको सम्मान और इज्जत देंगे।"
और फिर वो कामाक्षी को अपने से अलग करते हुए उसके आंसू पोंछकर बोले - "अब चलिए शांत हो जाइए क्योंकि हमें अपनी गुड़िया की आंखो में आंसू बिल्कुल पसंद नहीं। चलिए जल्दी से चुप हो जाइए वरना अगर चुनमुन में आपको ऐसे रोते हुए देख लिया तो आपको पता है ना कि वो कितनी बुरी तरह रोती है।"
फिर बड़े पापा कामाक्षी का गाल छूते हुए बोले - " तो इससे पहले कि वो आपको रोता हुआ देखें आप जल्दी से अपनी ये आंसू पोछिए और वैदेही के पास जाइए और उसे आज शाम के हल्दी फंक्शन के लिए तैयार होने में मदद कीजिए।"
और इतना बोलकर उसके बड़े पापा वहां से चले गए। कामाक्षी भी अपने आंसू पोंछकर वैदेही के रूम में वैदेही को तैयार कराने चली गयी।
इधर एक प्राइवेट एरिया में अद्रांक्ष की जेट लैंड कर चुकी थी। उस एरिया के आसपास सब बॉडीगार्ड ने अच्छे से कवर कर रखा था और तभी अद्रांक्ष अपने जेट से उतरा और उसके सामने एक ब्लैक BMW आकर रूकी। अद्रांक्ष उसमें बैठकर अपनी मंजिल की ओर चल दिया।
तभी अद्रांक्ष के फोन पर एक कॉल आयी जिसे देखकर उसने अपनी कार के आगे पैसेंजर सीट पर बैठे पि ए को एक नजर देखा तो उसके पि ए ने शीशे से ये देख कर अपनी नजरें झुका ली।
अद्राक्ष कॉल अटेंड करके बोला - "खम्मा घणी माशा "
और दूसरी तरफ से एक औरत की आवाज आयी - "तो अब हमारे हुकुम सा को फुर्सत मिल ही गई"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने पूछा - "हम कुछ समझे नहीं माशा?"
तो मा शा बोली - "यही कि जब हम आपसे इतने वक्त से बोल रहे थे कि हमारे साथ प्रयागराज चलकर एक बार भोलेनाथ के दर्शन कर लो, तब तो आप हमें ये कह कर टाल देते थे कि आप बहुत बिजी हैं और आपके पास वक्त नहीं और अब हमें बिना बताए कि प्रयागराज अकेले चले गए ।"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने कहा - "ऐसा नहीं है मा शा। वो हम किसी जरूरी काम से यहां आए हैं और कुछ नहीं।"
तो माशा बोली - "अच्छा ठीक है ! अगर आप जब वहां गए ही हैं तो , आप वहां मनकामेश्वर मंदिर जाकर एक बार दर्शन कर लीजिएगा। और खबरदार हमसे फिर से कोई बहाना बनाने की कोशिश नहीं, और झूठ तो हमसे बोलिएगा नहीं। क्योंकि हमें सब पता चल जाता है समझे।"
और इतना बोल कर मा सा ने फोन काट दिया। अद्रांक्ष फोन रखने के बाद अपने पीए से बोल - " गाड़ी मंदिर की तरफ ले चलो "
और फिर अद्रांक्ष पी ए को घूर कर आगे बोला - " तुम्हारा बोनश कट "
पि ए अर्पित ने जब अपने बोनस कटने की बात सुनी तो मन में ही बड़बड़ाया - "हे भोलेनाथ ये कहा हमें फंसा दिया आखिर किस जन्म का हमसे बदला ले रहे हैं आप? अगर वहां माशा को उनके बेटे का हाल-चाल ना दो तो वो हमें नौकरी से निकालने की धमकी देती है । और उन्हें उनके बेटे का पूरा पता देते रहो तो यहां उनका बेटा ही हमारी आधी पगार काट लेता है। हे भोलेनाथ! इन दोनों मां बेटों से मुझे बचा लो! मैं सच में आपको 51 सौ रुपए के लड्डू चढ़ाऊगा।"
गाड़ी थोड़ी ही देर बाद मंदिर के बाहर पहुँच गयी। अद्राक्ष के मंदिर जाने से पहले उसके सारे बॉडीगार्ड उस पूरे मंदिर को खाली करवाने लगे।
वहीं दूसरी तरफ जब कामाक्षी वैदेही को तैयार कर रही थी तो तभी उसके रूम में अनु मौसी आयी और कामाक्षी को एक हल्दी वाला बर्तन देते हुए बोली - "कामाक्षी बिटिया जा इसे ले जाकर एक बार माता रानी को स्पर्श करवा के ले आ।"
कामाक्षी वो हल्दी वाला बरतन लेकर मंदिर की ओर चली गयी।
इधर अद्राक्ष के बॉडीगार्ड पूरा मंदिर खाली करवा चुके थे। अद्राक्ष अपनी कार से बाहर आया और मंदिर के अंदर चला गया।
वही जब कामाक्षी मंदिर के बाहर पहुंचती है तो इतनी भीड़ देखकर दंग रह गयी। फिर उसने आसपास के लोगों से पूछा - "ये यहाँ इतनी भीड़ क्यों है? "
तो भीड़ में से एक आदमी बोला - " कुछ नहीं बड़े लोग है। और बड़े लोगो के चोचले देखो ना, अकेले दर्शन करना है तो पूरा मंदिर ही इन्होंने खाली करवा लिया और खुद अकेले ही दर्शन करने चले गए ।"
इतना सुन कर कामाक्षी अपने दुपट्टे को एक साइड कसके बांधते हुए गुस्से से बोली - " इन अमीरों को तो हम अभी बताते हैं। मंदिर क्या इनके पूर्वजों की देन है जो आकर अकेले ही अपना हक जमा रहे हैं? हम भी देखते हैं कैसे हम आम जनता को ये दर्शन करने से रोकते हैं ?"
इतना बोलते हुए कामाक्षी मंदिर की ओर चल दी। पर आगे जाकर एक बॉडीगार्ड ने उसे रोक लिया और बोला - "प्लीज मैम आप अभी अंदर नहीं जा सकती हो"
तो कामाक्षी बोली - "ओ हेलो मिस्टर ब्लैक! तुम जो भी हो? जाकर अपने बॉस से कह दो, ये मंदिर कोई उनके पूर्वजों का नहीं है जो यहां आकर अपना हक जमा रहे हैं ? और सबको चुपचाप अंदर आने दे वरना हम से बुरा कोई नहीं होगा।"
और इतना बोलकर कामाक्षी उस बॉडीगार्ड को साइड करके अंदर की ओर जाने लगी। तभी दूसरा बॉडीगार्ड उसके आगे आ गया और बोला - "प्लीज मैम, बीहेव योर सेल्फ। हमने आपसे कहा ना कि आप अंदर नहीं जा सकती ।"
कामाक्षी उस बाडीगार्ड की कॉलर पकड़कर बोली - "सुनो मिस्टर! अगर हमारी एक बार भी सनकी ना तो तुम और तुम्हारे बॉस सब यहां से कट लोगे। तो अच्छा होगा हमसे मत उलझो वरना हम क्या चीज है ये हमारे इलाहाबाद की हर गली का बच्चा-बच्चा जानता है। समझे ! "
और फिर कामाक्षी उस बाडीगार्ड को धक्का देकर अंदर की तरफ जाने लगी।
उन बॉडीगार्ड ने उसके साथ आगे कुछ नहीं किया, क्योंकि? उन्हें पहले से ही कहा गया था कि वो बच्चों और लेडीजो के साथ कभी कोई जबरदस्ती या मिस बिहेव नहीं करेंगे। इसीलिए बाडीगार्ड ने कामाक्षी को अंदर जाने से और नहीं रोका।
कामाक्षी जब अंदर पहुंची तो अंदर मंदिर के कुछ पंडितों के अलावा और कोई नहीं था। पूरे मंदिर में सन्नाटा था। ये देखकर कामाक्षी माता रानी की मूर्ति की तरफ जाने लगी। वो खुद से ही बड़बड़ाते हुए बोली - "बड़े आए हमें रोकने वाले। मिस्टर ब्लैक को पता नहीं है कि हम क्या चीज है? मिस्टर ब्लैक से तो मिल ही लिए अब सबसे बड़ा वाला बॉस कहां है? एक बार वो मिल जाए तो उसे भी अच्छे से सबक सिखा दे।"
वही मंदिर में अद्रांक्ष ने ये सब सुन लिया क्योंकि उसके कान में जो ब्लूटूथ लगा था उससे उसने बाहर मौजूद बॉडी कार्ड और कामाक्षी के बीच हुई सारी बहस सुन ली थी। और जब कामाक्षी मंदिर में बड़बड़ाते हुए आयी तो वो भी अद्रांक्ष ने सुन लिया था।
बस फर्क इतना था कि अद्रांक्ष कामाक्षी का चेहरा नहीं देख पाया था। क्योंकि उस वक्त कामाक्षी ने अपने सिर पर दुपट्टा डाल रखा था और आगे कुछ बालों की जुल्फों की वजह से वो उसे नहीं देख पाया। अद्रांक्ष खुद कामाक्षी की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगा और कामाक्षी इन सबसे बेखबर चली जा रही थी ।
कुछ ही कदम चलकर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के पीछे से उसका हाथ पकड़ कर झटके से उसे अपनी तरफ घूमाया। जिससे कामाक्षी के हाथ का हल्दी वाला बरतन हवा में उछल गया और सारी हल्दी अद्राक्ष और कामाक्षी की ऊपर गिर गयी। जिससे उन दोनों के चेहरे पर, और कपड़ो पर हल्दी लग गई।
जब कामाक्षी ने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोली तो देखा कि वो एक शख्स की बाहों में थी और उस सख्श का एक हाथ उसकी कमर और दुसरा हाथ उसकी गर्दन पर था।
कामाक्षी ने जब उस शख्स की आंखों में देखा तो कुछ पल के लिए उसकी नीली आंखों में खो गयी। वहीं अद्रांक्ष का भी यही हाल था। अद्रांक्ष ने भी जब कामाक्षी की आंखों में देखा तो वो भी उसकी नीली आंखों में खो सा गया।
तभी मंदिर में अचानक से खूब तेज हवाएं चलने लगी। पेड़ हिलने लगे और मंदिर में घंटियों की आवाज गूंजने लगी। तेज हवा के झोके से माता रानी की एक चुनरी उड़ कर अद्रांक्ष और कामाक्षी के ऊपर आ गयी।
कुछ देर बाद कामाक्षी ने होश में आते हुए उस शख्स को धक्का दिया और आस-पास बिखरी हुई हल्दी को देखकर अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोली - "हे महाकाल ! ये क्या अनर्थ करवा दिया हमसे ? दुल्हन की सारी हल्दी यहीं गिर गई अब तो बड़ी मां हमारा बहुत बुरा हाल करने वाली है। हे भोलेनाथ ! प्लीज अब बड़ी मां के प्रकोप से बचा लेना?"
ये सब खुद से बोलकर कामाक्षी जल्दी से उस मंदिर से भाग गयी। वहीं अद्रांक्ष को होश ही नहीं था कि उसके साथ अभी-अभी क्या हुआ? जब अर्पित ने अद्रांक्ष के पास आकर उसे आवाज़ दी तो अद्रांक्ष ने होश में आया। उसने अपने आसपास देखा। और अर्पित से पूछा - "वो लड़की कहां गई?"
अर्पित कन्फ्युजन में बोला - "सर कौन सी लड़की? और आप किस लड़की की बात कर रहे हैं?"
तो अद्रांक्ष बोला - "अरे वही लड़की जो अभी यहां आई थी अभी वो यहीं थी मेरे सामने पर इतनी जल्दी वो कहां जा सकती है?"
अर्पित जवाब देते हुए बोला - "अरे सर कैसी बातें कर रहे हैं आप? यहां पर कोई लड़की नहीं आई है और आप तो जानते ही हैं ना, इतनी सिक्योरिटी होने के बाद भी बाहर से भला कौन अंदर आ सकता है? ये जरूर आपका वहम होगा।"
अर्पित अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला - "पर सर आपके चेहरे पर और कपड़ों पर इतनी हल्दी कहां से लग गई?"
अद्रांक्ष ने अपने चेहरे को हाथों से छुआ और जब उसने अपने हाथ में हल्दी देखी तो अर्पित से बोला - "वो लड़की कहीं दूर नहीं गई होगी, वो लड़की यहीं-कहीं आस-पास होगी उसे ढुढो।"
ये सुनकर अर्पित अद्रांक्ष से बोला - "ठीक है सर! ये बताइए वो लड़की दिखती कैसी थी? कुछ तो आपको याद होगा।"
अद्रांक्ष याद करते हुए बोला - "नहीं मैं उसका चेहरा नहीं देख पाया क्योंकि उसके चेहरे पर भी हल्दी लग गई थी! तुम उस हल्दी वाली लड़की को ढूंढो मुझे वो किसी भी कीमत पर चाहिए।"
अर्पित अपने बॉस के मुंह से किसी लड़की का जिक्र सुनकर हैरान रह गया। और अद्रांक्ष भी मंदिर में दर्शन करके वहां से चल दिया।
तभी कामाक्षी भी पास की हीं दुकान पर जल्दी से एक और हल्दी का पैकेट लेकर मंदिर में वापस आ गयी। और फिर वहीं पानी से अपने आप को साफ करके माता रानी का दर्शन किया और वापस अपने घर की ओर चल दी।
उस वक्त कामाक्षी को रह-रहकर बस उसी शख्स का ख्याल आ रहा था। उसकी आंखों का वो तेज, उसके हाथों की पकड़ के सीन उसके दिमाग़ में घूम रहे थे।
दूसरी तरफ अद्रांक्ष जब होटल रूम में पहुंचा तो सीधा वॉशरूम चला गया। फिर शीशे में अपने आप को देखा तो उसके चेहरे और कपड़ो पर हल्दी लगी थी, जिसे देख कर उसे बार-बार बस उस लड़की का हीं ख्याल आ रहा था। उस लड़की की नीली आंखें, उस लड़की की मासूमियत, उसके लंबे बाल, और उन नीली आंखों में डर, कशिश और और प्यार की कमी, यही सब उसे याद आ रहा था ।
फिर थोड़ी देर बाद अद्रांक्ष बाथरूम से बाहर आकर बालकनी के साइड चला आया और रेलिंग के पास खड़ा होकर खुद से हीं बोला - "कौन हो तुम? आखिर क्यों सिर्फ एक मुलाकात में हीं तुम इस तरह मेरे मन में बस गई! मैंने तो तुम्हारा चेहरा भी अच्छे से नहीं देखा पर फिर भी लगता है कि तुम्हारी इन नीली आंखों को मैंने पहले भी देखा है पर क्यों? ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ? कौन हो तुम?"
यही सब सोचते-सोचते वो वापस अपने बेड पर आकर सो गया। वहीं कामाक्षी जब घर पहुंची तो वहां पहले से हीं सब हल्दी के लिए उसका इंतजार कर रहे थे। कामाक्षी के पहुँचते ही थोड़ी देर बाद हल्दी की रस्म शुरू हो गयी।
जहां पर सब लोग हल्दी के फंक्शन को अच्छे से इंजॉय कर रहे थे। वहीं वैदेही का इन सब में कोई मन नहीं लग रहा था और ये सब कामाक्षी ने भी नोटिस कर लिया था पर वो भी उसमें कुछ नहीं कर सकती थी। ऐसे हीं हल्दी वाला दिन भी बीत गया।
दूसरी सुबह शादी वाला दिन,,,
ठाकुर सदन में शादी की ज़ोरों-शोरों से तैयारियां हो रही थी। सब लोग किसी ना किसी काम में बिजी थे ऐसे हीं पूरा दिन बीत गया और रात के वक्त शादी में शामिल होने के लिए धीरे-धीरे मेहमान आने शुरू हो गए थे। कामाक्षी और कुछ लड़कियां मिलकर वैदेही को दुल्हन के रूप में सजा रही थी।
जब वैदेही पूरी तरह तैयार हो गयी तो बाकी लड़कियां भी वहां से चली गयी। और कामाक्षी भी चुनमुन को तैयार करने और खुद तैयार होने चली गयी।
इधर होटल में अद्रांक्ष अपने लैपटॉप में कुछ काम कर रहा था। वो अपने फोन से अर्पित को कॉल करके बोला - "गाड़ियां तैयार करवाओ कुछ देर में हम ठाकुर सदन के लिए निकल रहे हैं!"
इतना कहकर उसने फोन कट कर दिया। और फिर अपना सर सोफे पर टिका कर ऊपर की ओर देखते हुए अद्रांक्ष खुद से हीं बोला - "वैदही ठाकुर! अपनी जिंदगी के सबसे बुरे दिन देखने के लिए अब तैयार हो जाओ क्योंकि ये अद्रांक्ष सिंह शेरावत अब तुम्हारी जिंदगी को जहन्नुम बनने आ रहा है।"
इधर ठाकुर सदन में नीचे बारात आ चुकी थी, लड़के वालों की द्वार पूजा हो रही थी। तभी आराधना जी ने कामाक्षी से कहा - "बेटा जा और वैदेही को देख ले एक बार।"
कामाक्षी जब वैदेही के कमरे में गयी तो देखकर दंग रह गयी क्योंकि वहां पर वैदेही नहीं थी। वो वैदेही को हर जगह ढूंढने लगी पर उसे वैदेही कहीं नही मिली। उसने वैदेही को कई बार कॉल भी किया, पर कॉल भी नहीं लगी।
वहीं दूसरी तरफ वैदेही एक सिंपल से सूट सलवार में अपने चेहरे को ढक कर एक बस में बैठ गयी थी और खुद से मन हीं मन बोली - "हमें माफ कर दीजिएगा पापा हमें पता है हमारे इस कदम से आप के मान-सम्मान को बहुत ठेस पहुंचने वाली है पर क्या करें वहां रुद्राक्ष भी तो हमारे लिए जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं हम उन्हें ऐसे नहीं छोड़ सकते।"
तभी कुछ देर बाद बस चल दी और वैदेही मुंबई के लिए निकल गयी।
इधर ठाकुर सदन में जब कुछ देर बाद कामाक्षी नहीं आयी तो अनुराधा जी ने अपनी जीजी अनु को भेज दिया। जब अनु उस रूम में गयी और कामाक्षी को परेशान देखा तो उससे बोली - "वैदेही कहां है?"
कमाक्षी घबराते हुए बोली - "वैदेही दीदी कहीं नहीं मिल रही, पता नहीं वो कहां है? हमने उन्हें बहुत ढूंढने की कोशिश की पर उनका कुछ पता नहीं चल रहा।"
ये सब सुनकर अनु मौसी भी हैरान रह गयी। फिर कामाक्षी को देखते हुए एक शैतानी मुस्कुराहट अपने चेहरे पर लायी और कामाक्षी से बोली - "अरे बिटिया अब क्या होगा? ऐसे तो तुम्हारे बड़े बाबा की इज्जत नीलाम हो जाएगी सब उनके ऊपर थू - थू करेंगे और लड़के वाले वो तो पता नहीं राम जाने! लड़के वाले तो पता नहीं क्या हाल करने वाले हैं?"
ये सब सुन कामाक्षी और परेशान हो गयी। उसके चेहरे से पसीने छूटने लगे। फिर कामाक्षी अनु मौसी से बोली - "मौसी अब क्या करें? आप हीं बताइए क्योंकि हम नहीं चाहते कि बड़े पापा की इज्जत किसी तरह भी नीलाम हो हम उन्हें कभी बेइज्जत होते नहीं देख सकते!"
फिर अनु मौसी बोली - "अरे कुछ नहीं बिटिया तुम हो ना तुम बचा लो उनके मान-सम्मान को!"
कामाक्षी ने हैरानी से उन्हें देखते हुए पूछा - "मतलब हम कुछ समझे नहीं?"
अनु मौसी बोली - "कुछ नहीं, तुम ही दुल्हन के जोड़े में मंडप पर बैठ जाओ।"
इतना सुनकर कामाक्षी दंग रह गयी और हैरानी से बोली - "ये आप क्या कह रही हैं अनु मौसी? हम कैसे वैदेही दीदी की जगह ले सकते हैं? नहीं हम ऐसा हरगिज नहीं करेंगे।"
फिर अनु मौसी ने कहा - "तो ठीक है जाओ होने दो अपने बड़े पापा की इज्जत को नीलाम। वो तुम्हें एक अनाथ आश्रम से उठाकर यहां घर में लाए, अपना नाम दिया, एक परिवार का प्यार दिया, 2 वक्त की इज्जत की रोटी दी और तुम आज उनके लिए इतनी छोटी सी कुर्बानी भी नहीं दे सकती।"
फिर थोड़ा रुक कर एक्टिंग करते हुए अनु मौसी आगे बोली - "चलो कोई नहीं हम बाहर जाकर सबको बता देते हैं कि अब यहां कोई शादी नहीं होगी क्योंकि दुल्हन भाग गई है।"
इतना कहकर अनु मौसी धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ जाने लगी और अपनी उंगलियों से गिनती गिनने लगी - " 1, 2 , 3 ,4..."
तभी कामाक्षी अनु मौसी को रोकते हुए बोली - "रुक जाइए अनु मौसी!"
ये सुनकर अनु के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट फिर से आ गयी। और पीछे पलटते हुए कामाक्षी के पास जाकर अनु मौसी ने पूछा - "तो इसका मतलब तुम तैयार हो?"
कमाक्षी ने ना चाहते हुए भी अपना सिर हा में हिला दिया।
उसके बाद अनु मौसी दरवाजा बंद करके कामाक्षी को वैदेही के शादी का जोड़ा पहनाने लगी और थोड़ी हीं देर में कामाक्षी पूरी तरह से दुल्हन के रूप में तैयार हो गयी।
फिर अन्नू मौसी ने कामाक्षी के चेहरे पर एक लंबा सा घूंघट कर दिया जिससे कोई भी उसके चेहरे को ना देख पाए।
तभी अराधाना जी रूम में आयी और अनु मौसी से बोली - "कितनी देर से कहा है कि वैदेही को लेकर आओ पर तुम लोग क्या कर रही हो?"
फिर आरधना जी आस-पास देखते हुए कहती है - "ये कामाक्षी कहां मर गई? इसे हमने कब कहा था की वैदेही को एक बार देखकर हमें बता दें और अब देखो नीचे दुल्हन को बुलाने का समय भी हो गया है पर इस लड़की का कुछ पता हीं नहीं है।"
तभी अनु मौसी बोली - "अरे छुटकी चल, अब जाने भी दे। देख हमारी बिटिया अब तैयार हो गई है। चल इसे नीचे ले चलते हैं दूल्हे वाले भी तो अब इंतजार कर रहे होंगे ना।"
अनुराधा जी और अनू जी मिलकर कामाक्षी को नीचे ले आयी।
कामाक्षी का बुरा हाल हो रखा था उसे डर था कि उससे कुछ गलत ना हो जाए।
थोड़ी हीं देर बाद अनुराधा और अनू ने कामाक्षी को मंडप पर बैठा दिया। वहां पर पहले से हीं दूल्हा बैठा हुआ था। ये सब देख कर कामाक्षी के दिल की धड़कन और बढ़ गयी। कुछ देर बाद पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया।
तभी वहां 10 ब्लैक कार आकर रूकी और उसमें से जल्द हीं सारे बॉडीगार्ड उतर के मंडप से 10 कदम की दूरी पर खड़े हो गए। गर्ड्स ने उस मंडप को चारों ओर से कवर कर लिया
एक ड्राइवर ने अद्रांक्ष की कार का दरवाजा खोला और अद्रांक्ष उस कार से बाहर आया। उस शादी में मौजूद सब लोग अद्रांक्ष को वहां देख कर दंग रह गए! उनमें से कुछ लोगों को पता था कि ये शख्स कोई और नहीं बल्कि राजस्थान का हुकुम सा अद्रांक्ष सिंह शेरावत है।
अद्रांक्ष को देखकर उन लोगो ने अपना सिर झुका लिया और उनको देख कर बाकी लोगो ने भी अपना सिर झुका लिया। वही अजीत ठाकुर और अनुराधा जी ये सब हैरानी से देख रहे थे।
अद्रांक्ष चलकर मंडप के पास आया और कामाक्षी की कलाई पकड़कर उसे जबरदस्ती खड़ा किया। वो अपने चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट लाते हुए बोला - "तो तुम मेरे भाई की जिंदगी बर्बाद करके यहां किसी और के साथ अपनी नई जिंदगी आबाद करने चली हो? चलो मैं भी देखता हूं तुम कैसे अपनी नई जिंदगी में खुश रहती हो?"
इतना कहकर अद्रांक्ष ने अपने आदमियों को इशारा किया। जिसके बाद उसके कुछ बॉडीगार्ड ने उस दूल्हे को पकड़ कर उसके सिर पर बंदूक तान दी और अजीत ठाकुर और उनके परिवार पर भी बंदूक तान दी।
फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी से कहा - "तो चलो अब नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं!"
इतना कहकर अद्रांक्ष, कामाक्षी की कलाई पकड़ मंडप पर खुद बैठ गया और पंडित जी से मंत्र पढ़ने को बोला। ये सब देखकर कामाक्षी दंग रह गयी और वो अद्रांक्ष से अपना हाथ छुड़ाकर उठने की कोशिश करने लगी।
पर अद्रांक्ष ने कामाक्षी की कलाई इतनी कसके पकड़ी थी कि कामाक्षी के हाथ की चुड़ियाँ टूट कर उसके कलाई में चुभ रही थी जिससे खून भी निकल रहा था।
फिर अद्रांक्ष बोला - "अगर यहां से हिलने की भी कोशिश की तो ये जितने भी तुम्हारे अपने हैं उनमें से कोई जिंदा नहीं बचेगा। तो चुपचाप जो जैसे हो रहा है उसे होने दो।"
ये सब देखकर घुंघट के अंदर कामाक्षी की आंखो से आंसू निकालकर अद्रांक्ष के हाथों पर गिरने लगे। अद्रांक्ष अपने एक हाथ से उसकी घूंघट उठाने हीं वाला था पर तभी पंडित जी ने रोकते हुए कहा - "नहीं जजमान, जब तक विवाह संपन्न नहीं हो जाता तब तक वर-वधु का घूंघट नहीं हटा सकता।"
और इतना सुनकर अद्रांक्ष ने अपने हाथ पीछे कर लिए और थोड़ी हीं देर में शादी संपन्न हो गयी।
वहां मौजूद सब लोग ये नजारा देखकर दंग रह गए। जब शादी संपन्न हो गयी तो अद्रांक्ष मंडप से उठा और अजीत ठाकुर के पास जाकर उनसे बोला - "सो मिस्टर अजीत ठाकुर अब अपनी शादीशुदा बेटी का बोझ संभालने के लिए तैयार हो जाइए।"
फिर पीछे पलटकर अद्रांक्ष सब की तरफ देख कर बोला - "क्योंकि मैं अद्रांक्ष सिंह शेरावत कभी इस लड़की को अपनी बीवी नहीं स्वीकार करूंगा, भले हीं इससे मेरी शादी पूरे समाज के सामने हुई है पर ये! एक शादी शुदा छोड़ी हुई औरत कहलाएगी। इसे ना तो कभी एक पत्नी का दर्जा मिलेगा, ना ही एक बहू का, और ना हीं इसे कभी इसके पति का नाम मिलेगा। और यही इस लड़की की पूरी जिंदगी की सजा है जो अपने सिर पर इस बदनामी को लेकर जिएगी।"
इतना बोलकर अद्रांक्ष कार में बैठकर वहां से अपने बॉडी गार्ड के साथ निकल गया।
कामाक्षी मंडप पर ऐसे हीं बुत बनी बैठी थी। उसे समझ हीं नहीं आ रहा था कि इन कुछ पलों में उसके साथ क्या हुआ। एक पल में हीं उसकी पूरी दुनिया पलट गई थी और वो शख्स जिससे अभी-अभी सबके सामने उसकी शादी हुई! जिसे वो जानती तक भी नहीं थी, उसका चेहरा तक भी नहीं देखा था, वो शख्स उसे इतनी बड़ी सजा दे कर चला गया।
तभी बारातियों में से दूल्हे के पिता ने अजीत ठाकुर के पास आते हुए कहा - "ये क्या मजाक लगा रखा है ठाकुर? तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई एक ऐसी लड़की जिसका पहले से हीं किसी और के साथ चक्कर हो उसका हमारे बेटे से रिश्ता जोड़ने की। अच्छा हुआ वक्त रहते हमें पता चल गया, वरना आज तो अनर्थ हीं हो जाता।"
और इतना बोलकर वो भी वहां से अपने परिवार और बारात के साथ चले गए। शादी में मौजूद लोग भी तरह-तरह की बातें करते हुए धीरे-धीरे चले गए। वहां पर सिर्फ चार-पांच लोग हीं बचे थे। और इतनी बड़ी बदनामी होने के बाद अजीत ठाकुर को समझ हीं नहीं आ रहा था की क्या करें?
फिर वो गुस्से से कामाक्षी की तरफ आए और उसका हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए बोले - "आखिर क्यों? आखिर क्या कमी रह गई थी हमारी परवरिश में जो तुमने पूरे समाज के सामने हमारी इज्जत को नीलाम कर दिया? हां ...बोलो …!"
और इन्हीं सब में जब कामाक्षी का घूंघट हट गया और अजीत ठाकुर ने कामाक्षी का चेहरा देखा तो वो चुप हो गए। कामाक्षी को देखकर अजीत ठाकुर को एक और झटका लगा।
उन्होंने कामाक्षी से पूछा - "तुम यहां क्या कर रही हो और वैदेही कहां है? बोलो?"
इससे पहले कि कामाक्षी की कुछ बोलती, अनु जी आगे आकर बोली - "अरे ये क्या बोलेगी? मैं बताती हूं जीजा जी "
फिर अनु जी आगे बोली - "मैंने देखा है जीजा जी, इस कामाक्षी ने तो हमारी वैदेही को भगा दिया।"
इतना सुनकर कामाक्षी दंग रह गयी और इससे पहले वो बोलती अनु जी आगे बोली - "आपको पता है मैंने देखा था कि कैसे इसने वैदेही को भगाने में मदद की और खुद शादी का जोड़ा पहन कर बैठ गई। मैं इसे रोकने के लिए खुद वैदेही को ढूंढने गई थी पर तब तक वैदेही भाग चुकी थी और जब मैं वापस आई तो देखा कि ये पहले से ही मंडप पर बैठी थी। उस वक्त तो मैंने सोचा कि सबको बता दूं लेकिन क्या करूं जीजा जी आपकी इज्जत को देखते हुए मैंने उस वक्त कुछ नहीं कहा और चुप रह गई।"
अनु कामाक्षी को देखते हुए आगे बोली - "पर देखिए ना इस लावारिस को जीजा जी! इस लड़की ने तो अपना असली रूप दिखा हीं दिया। हमारी हीं बच्ची की जगह लेनी चाही। पर जैसी करनी वैसी भरनी! चली थी पटरानी बनने पर अब तो इसकी ऐसी फूटी किस्मत, की ना तो अब ये घर की रहेगी ना हीं घाट की। "
और इतना कहकर अनु मौसी चुप हो गयी। वहीं कामाक्षी अनु मौसी के मुंह से इतना सब सुन दंग रह गयी। उसे समझ हीं नहीं आ रहा था कि वो क्या करें क्योंकि अनु मौसी ने हीं उसे पहले दुल्हन बनाकर मंडप पर बैठने के लिए कहा था और अब खुद हीं उसे झूठी ठहरा रही थी।
कामाक्षी अपनी सफाई में बड़े पापा को कुछ बोलने चली की तभी बड़े पापा कामाक्षी को हाथ दिखाते हुए बोले - "बस कामाक्षी बस! हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी कि आप हमारे साथ ऐसा करेंगी। आप इतनी बड़ी धोखेबाज निकलेंगी हम सोच भी नहीं सकते थे। आपने हमारे हीं थाली में खाया और उसी में हीं छेद किया। आखिर क्यों किया ऐसा? क्या कमी थी हमारे प्यार में जो आपने हमें बदले में इतनी बड़ी बदनामी दे दी।अब हम कहां जाएंगे? किसे अपना मुंह दिखाएंगे? क्योंकि जिन दोनों बेटियों पर हमें अपना गुरुर हुआ करता था आज वही दोनों बेटियां हमारे मुंह पर कालिख पोत कर जा चुकी हैं।"
इतना बोलते हुए अजीत जी अपने सीने पर हाथ रखते हुए जमीन पर बैठ गए। अनु जी और आराधना जी भागकर अजीत ठाकुर के पास आयी।
कामाक्षी भी आगे बढ़ी पर अजीत ठाकुर हांपते हुए बोले - "नहीं हमें हाथ भी मत लगाइएगा कामाक्षी। क्योंकि हमें अब आपसे घिन हो रही है। चली जाइए यहां से ।"
इतना बोलकर अजीत ठाकुर वहीं बेहोश हो गए।
इतना सब देखकर आराधना जी हड़बड़ा गयी और गुस्से से कामाक्षी का हाथ पकड़ कर उसे उस शादी वाले स्थान से ले जाते हुए बाहर की ओर धकेल दी और बोली - "चली जाइए यहां से, पहले आप हमारी बेटी और अब हमारे पति के पीछे पड़ी हुई हैं। चली जाइए यहां से और दुबारा अपनी शक्ल भी मत दिखाइएगा। क्योंकि अब से आप हमारे लिए मर चुकी हैं।"
आराधना जी वहां से अंदर की ओर आयी और अंदर अराधना जी और अनु जी ने मिलकर अजीत जी को एक बेड पर लेटाया। फिर अराधना जी ने उन्हें उनकी दवाइयां दी।
उसके बाद आराधना जी कामाक्षी के कमरे में आयी और कामाक्षी का सारा सामान एक बैग में डाला और चुनमुन जो कि बेड पर सो रही थी उसे उठाते हुए उसका हाथ पकड़कर जबरदस्ती घर के बाहर लाकर कामाक्षी के पास धकेल दिया और बैग फेकते हुए बोली - "ये लीजिए अपना कचरा और इस लावारिस को और चली जाइए। आइंदा से अपनी शक्ल यहां पर मत दिखाइएगा।"
आराधना जी वापस अंदर चली गयी तो वहीं चुनमुन को कुछ समझ नही आ रहा था। उसने कामाक्षी की तरफ देखते हुए कहा - "दीदी क्या हुआ, आप रो क्यों रही हैं? और बड़ी मां ने हमें निकाल क्यों दिया? बोलिए ना दीदी।"
वहीं कामाक्षी इस सब से शॉक में थी। उसे कोई होश हीं नहीं था कि चुनमुन उसे कब से पुकार रही थी।
तभी जोरों से बारिश होने लगी, जब बारिश की कुछ बूंदें कामाक्षी की चेहरे पर पड़ी तो वो होश में आयी और चुनमुन को देखा जो उसे कब से पुकार रही थी। कामाक्षी चुनमुन के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी।
चुनमुन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हुआ? और बड़ी मां ने क्यों अचानक इतनी रात को घर से बाहर निकाल दिया।
कामाक्षी से शादी करके अपने भाई की हालत का बदला लेकर, अद्रांक्ष इस समय मुंबई वापस जाने के लिए अपने जेट पर बैठा हुआ था। उस वक्त उसके एक हाथ में सिगरेट थी। उसने अपना सिर पीछे सोफे पर टीका रखा था। रूक-रूक कर वो सिगरेट की कश लिए जा रहा था। उसकी आंखें बंद थी उस वक्त उसके ख्यालों में सिर्फ वही हल्दी वाली लड़की हीं चल रही थी।
तभी उसका पि ए अर्पित उसके पास आते हुए बोला - "सर! पता चला है कि अजीत ठाकुर को एक मिनी हार्ट अटैक आया है! और उनकी वाइफ ने अपनी हीं बेटी को घर से निकाल दिया है।"
इतना सुनने के बाद अद्रांक्ष के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी। फिर वो अपनी आंखें खोल कर अर्पित से बोला - "अच्छी खबर लाए हो! तुम्हारा बोनस डबल।"
ये सुनकर अर्पित के मन में लड्डू फूटने लगे। तभी अद्रांक्ष फिर से बोला - "पर एक शर्त पर, तुम्हें जल्द से जल्द वो हल्दी वाली लड़की खोजनी होगी? जब तक तुम मुझे उस लड़की की इंफॉर्मेशन लाकर नहीं दोगे तब-तक तुम्हारा बोनस पेंडिंग रहेगा।"
ये सुनने के बाद अर्पित अद्रांक्ष के रूम से बाहर जाते हुए मन में बोला - " हे महाकाल! ये कैसा मजाक लगा रखा है आपने हमसे? क्या हम आपको कोई बुड़बक नजर आते हैं? एक पल की खुशियों का लालच देकर दिन-रात की खुशी छीन लेते हैं। अरे काहे करते हैं आप हमारे साथ ऐसा? हमने पिछले जन्म में कौन सा कांड कर दिया है कि इस जन्म में आप हमसे उसका हिसाब चुकता करवा रहे है? अरे महाकाल थोड़ा तो रहम खाओ हम जैसे बच्चों पर। एक तो इ राक्षस के पास हमको काम दिला दिए हो और ऊपर से इतना टॉर्चर हम सह रहे हैं।"
अर्पित ऐसे हीं बड़बड़ाते हुए और महाकाल से अपनी शिकायत करते हुए चला गया।
दूसरे दिन,,, मुंबई हॉस्पिटल में ,,,
अद्रांक्ष अब मुम्बई पहुंच चुका था और सबसे पहले वो हॉस्पिटल अपने भाई रुद्राक्ष से मिलने पहुंचा। अद्रांक्ष के रूम में दाखिल होते हीं उसकी नजर वहाँ अंदर मौजूद एक लड़की पर गयी, जो पहले से हीं उसके भाई के इतनी करीब थी की जिसे देखकर अद्रांक्ष हैरान हो गया। वो लड़की रुद्राक्ष के बगल में बैठ कर रुद्राक्ष को अपने हाथों से सूप पिला रही थी।
अद्रांक्ष ने रूम में आते हुए उस लड़की को सवालिया नजरों से देखा। जिसे देखकर रुद्राक्ष ने अपने भाई अद्रांक्ष से कहा - "भाई सा आप यहां?"
तो अद्रांक्ष बोला - "क्यों हमें कहीं और होना चाहिए था क्या?"
अद्रांक्ष ये सब उस लड़की को देखते हुए कह रहा था। पर वो लड़की बस अपना पूरा ध्यान रुद्राक्ष को सूप पीलाने में दे रही थी।
फिर रुद्राक्ष, अद्रांक्ष को उस लड़की की तरफ घुरते हुए देखकर जल्दी से बोला - "भाई इनसे मिलिए, ये हैं वैदेही।"
रूद्राक्ष के मुंह से वैदेही नाम सुनकर अद्रांक्ष दंग रह गया और अपने मन में बोला - "जब ये यहां है तो फिर कल हमने शादी किससे की थी?"
फिर अद्रांक्ष, ने रुद्रांक्ष से पूछा - "पर ये तो आपको छोड़कर किसी और से शादी करने जा रही थी ना !तो यहां कैसे?"
तो इस बार वैदेही ने जवाब दिया - ''हां हुकुम सा! आपने सही कहा। मैं शादी करने जा रही थी पर मेरी एक फ्रेंड है जो इसी हॉस्पिटल में काम करती है, जब उसने मुझे फोन पर बताया कि रुद्राक्ष जी ने आत्महत्या करने की कोशिश की है! वो भी हमारे उनको छोड़कर चले जाने की वजह से तो ये जानने के बाद उसी वक्त शादी के ठीक पहले हीं हम वहां से भागकर यहां रुद्राक्ष जी के पास आ गए थे।"
वैदेही के मुह से इतना सुनकर अद्रांक्ष उसके आगे कुछ बोलने वाला था की तभी उसका फोन बजने लगा। उसने अपने फोन पर कॉलर आईडी देखी तो अर्पित का नाम फ्लैश हो रहा था। वो चुपचाप वैदेही से बिना कुछ बोले रुद्राक्ष के वार्ड के बाहर निकल आया।
बाहर आते हीं उसने फोन कॉल रीसीव की तो दूसरी तरफ से अर्पित बोला - "सर! हमें उस हल्दी वाली लड़की का पता चल गया! वो लड़की कोई और नहीं बल्कि वही थी जिससे आपने कल सबके सामने शादी की थी और उसे छोड़ कर आ गए। वो वैदेही नहीं बल्कि अजीत ठाकुर की गोद ली हुई बेटी थी। जो कल अपने घर की इज्जत बचाने के लिए, अपने बड़े पापा के मान सम्मान के लिए खुद दुल्हन बनकर मंडप पर बैठ गई थी।"
इतना सब सुनकर अद्रांक्ष के दिल में एक चुभन सी हुयी। उसके हाथों की मुठ्ठियाँ कस गयी और वो खुद सोच भी नहीं सकता था कि उसने जाने अनजाने में हीं कितनी बड़ी गलती कर दी थी। वो भी एक बेकसूर को इतनी बड़ी सजा देके।
फिर अद्रांक्ष अर्पित से बोला - "हमें किसी भी कीमत पर वो लड़की चाहिए? और तुरंत हमें उस लड़की की पूरी इंफॉर्मेशन दो!"
अद्रांक्ष अपना फोन कट कर के वहां से चला गया। तो वहीं उसके पीछे खड़ी वैदेही जो अद्रांक्ष की बातें सुन रही थी। जिसे सुनकर उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गयी और वो खुद से हीं बोली - "तो खेल शुरू हुकुम सा! अब आएगा असली मजा इस खेल में?"
और इतना कहकर वो वापस रुद्राक्ष के पास आ गयी।
वहीं जब अद्रांंक्ष अपने ऑफिस के केबिन में पहुंचा तो अर्पित एक फाइल लेकर उसके टेबल पर रखते हूए बोला - "सर इसमें उस लड़की की सारी इनफार्मेशन है।"
फिर अद्रांक्ष उस फाइल को उठाते हुए कामाक्षी की सारी डिटेल्स पढ़ने लगा, उसके बाद अर्पित से बोला - "इसमें उनकी फोटो क्यों नहीं है?"
तो अर्पित ने कहा - "सर वो लड़की...!"
अर्पित बोल ही रहा था कि तभी उसकी नज़र एक पल के लिए अद्रांक्ष पर चली गयी जो उसे जलती हुई आंखों से घुर रहा था। ये देखकर अर्पित चुप हो गया।
फिर अर्पित रूमाल से पसीना पोते हुए बोला - "हुकुम, हुकुम रानी सा की फोटो हमने ढूढ़ने की बहुत कोशिश की पर हमें नहीं मिली। यहां तक कि हमने अपने कुछ आदमी ठाकुर सदन भेजकर फोटो निकलवानी भी चाही पर वहां कुछ अलग हीं माहौल था। क्योंकि वहां पर वो घर पूरा खाली था और उस घर में कोई नहीं था। जब हमारे आदमियों ने आस-पास के लोगों से पूछा तो उन्हें भी कुछ पता नहीं था! कि ठाकुर के परिवार वाले रातों-रात कहां चले गए? और उसके बाद हमने आस-पड़ोस में भी हुकुम रानी सा की फोटो ढूंढने की कोशिश की पर हमें कहीं भी उनकी फोटो नहीं मिली।"
इतना सुनने के बाद अद्राक्ष ने अर्पित को जाने के लिए कहा। फिर उसके बाद अद्रांक्ष अपनी एक सिगरेट को जलाकर विंडो साइड पर खड़े होकर बाहर का नजारा देखते हुए खुद से बोला - "बहुत जल्द आप हमारे पास होंगी कामाक्षी। हमें नहीं पता कि आप दिखती कैसी हैं पर जो अनजाने में हमने आपके साथ किया है! वो सब हम ठीक करके हीं रहेंगे। हम आपको ढुंढ कर रहेंगे? आप दुनिया के जिस भी कोने में हो! हम आपको हासिल करके रहेंगे?"
फिर अपना फोन निकालकर अद्रांक्ष किसी को कॉल करते हुए बोला - "इस वैदेही ठाकुर पर नजर रखो और पता लगाओ ठाकुर फैमिली कहां गई है? और मुझे उस ठाकुर फैमिली की पूरी जन्मकुंडली चाहिए।"
और इतना बोलकर अद्रांक्ष ने फोन रख दिया।
इधर वैदेही हॉस्पिटल से निकल कर एक सूनसान जगह पर आयी जो कि एक कब्रिस्तान था। वहां आकर वो खड़ी हुयी तभी उसके पीछे कुछ आहट हुयी जैसे कि उसके पीछे कुछ लोग खड़े हो। जब वैदेही पीछे पलटी तो वो कोई और नहीं बल्कि ठाकुर अजीत, अनु और अराधना थे।
फिर वैदेही उन तीनों को नोटों से भरा हुआ बैग देकर बोली - "ये लो और इसके बाद तुम लोग कहीं भी नजर मत आना और अब जल्दी से यहां से जाओ! और हां याद रहे उस अद्रांक्ष सिंह शेरावत से हमेशा बच के रहना।"
इतना सुनकर वो लोग वहां से चले गए। तो वैदेही खुद से बोली - "जंग का आगाज हो चुका है अद्रांक्ष सिंह शेरावत अब अपनी बर्बादी के दिन गिनना शुरू कर दो। क्योंकि मैंने तुम पूरे शेरावत खानदान को धूल ना चटाई तो मेरा नाम वैदेही ठाकुर नहीं। तुम्हारी वजह से हमें अपने बाबा सा से दूर रहना पड़ा! आज चाह कर भी हम अपने बाबा सा से मिल भी नहीं सकते। तुम शेरावत की वजह से एक 5 साल की बच्ची जिसकी उम्र खेलने की थी! उस बच्ची को उसी नन्हीं सी उम्र में तलवार उठानी पड़ी, सिर्फ अपने ठाकुरों का मान-सम्मान वापस लाने के लिए।"
वैदेही खुद से बातें करते हुए आगे बोली - "पर बहुत जल्द वो दिन वापस आएगा जिस दिन सियासत अपने असली हकदार के हाथों में होगी। और जिस सियासत पर तुम राज कर रहे हो न! वो सियासत बहुत जल्द तुमसे छीन ली जाएगी।"
इतना बोलकर वैदेही अपने फोन में कामाक्षी की फोटो को देखते हुए बोली - "हमें माफ कर देना कामाक्षी हमें पता है कि हमने अपने बदले के लिए इन सब में तुम्हारा इस्तेमाल किया और तुम्हें इतने सालों तक ताने सुनने पड़े, तुम्हें इतनी जिल्लत सहनी पड़ी। पर क्या करें, अपने मकसद तक पहुंचने के लिए तुम तो क्या ऐसी हजारों लड़कियां कुर्बान? तुम तो सिर्फ एक जरिया थी हमारे मकसद तक पहुंचने का और अब वो बहुत जल्द पूरा होने वाला है। जब वो अद्रांक्ष सिंह शेरावत हमारे कदमों में होगा।"
फिर वैदेही ने अपने फोन से कामाक्षी की सारी फोटो डिलीट कर दी और वहां से चली गयी।
इधर दूसरी तरफ अर्पित अपने केबिन में बैठकर घड़ी की सुई में एक-एक सेकंड गिन रहा था और अपने फोन में कॉल आने का इंतजार कर रहा था। तभी उसके फोन पर कॉल आयी जो कॉल अद्रांक्ष की थी।
कॉल आते देखकर अर्पित के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उसने जल्दी से फोन उठाते हुए कान के पास लगा लिया। कॉल की दूसरी तरफ से अद्रांक्ष बोला - "हम किसी जरूरी काम से जा रहे हैं! तो ऑफिस की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है!"
और फिर अद्रांक्ष ने कॉल कट कर दिया। उसके बाद अर्पित बकायदा टेबल पर अपने एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रख कर चेयर पर पीछे की ओर झुक कर शान से बोला - "अब जाके लगता है ससुरा! कि हमको हमारी सांसे वापस मिली है वरना इस शख्स की छत्रछाया में तो हमको लगता है कि इन्होंने तो हमारी सांसे हीं पकड़ रखी है। भले हीं ये अपने काम की जिम्मेदारी हमारे ऊपर छोड़ गए हो? लेकिन इनको झेलने से अच्छा है इनके काम को हीं झेल लें। उससे हमें थोड़ी राहत मिलती है।"
फिर घड़ी की तरफ देखकर अर्पित आगे बोला - "पूरे हफ्ते के इसी दिन तो जाकर हमें 2 घंटे चैन से सांस लेने को मिलती है।"
फिर अर्पित थोड़ा उदास होते हुए बोला - "पर बिचारे उन लोगों का क्या हाल होता होगा जहां सर इन 2 घंटों के लिए जाते हैं और पता नहीं वो कौन सी ऐसी जगह है जहां बिना सिक्योरिटी के अकेले हीं चले जाते हैं। खैर हमारा क्या है चलो 2 घंटे अच्छे से मजे करते हैं। और हम उन लोगों की फिकर काहे करें? कौन सा वो लोग हमारी फिक्र करते होंगे।"
फिर अर्पित ने टेबल के नीचे छुपाए हुए अपने कुछ चिप्स के पैकेट और कोल्ड ड्रिंक को निकाल लिए और खाते हुए अच्छे से इंजॉय करने लगा।
इधर शहर से दूर एक सुनसान जंगल के बीच एक कोठरी थी जो देखने में बहुत हीं पुरानी लग रही थी। उस कोठरी के बाहर कुछ बॉडीगार्ड का कड़ा पहरा और उसी कोठरी के अंदर एक शख्स था जिसके हाथ बेड़ियों से बंधे थे और हवा में लटक रहे थे। उनकी उम्र 50 साल थी। उस शख्स के कपड़े एकदम पुराने-फटे, मैले और खून से लथपथ थे। उस शख्स की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, शरीर में जगह-जगह जख्म के निशान थे और वो शख्स बस धीरे-धीरे पानी-पानी बोले जा रहा था। उस शख्स के अंदर थोड़ी भी ताकत नहीं थी। जिससे वो अपने आप को थोड़ा भी हिला पाए।
तभी उस शख्स के ऊपर बाल्टी से बर्फ का पानी डाला गया। जब उसके ऊपर बर्फ का ठंडा पानी पड़ा तो उनका शरीर अकड़ने लगा और वो मुंह खोलकर हाफंते हुए तेजी से सांस लेने की कोशिश करने लगे।
फिर जब उन्होंने अपनी नजर उठाकर सामने की ओर देखने की कोशिश की तो रोशनी के बीच एक दुसरा शख्स आता हुआ दिखाई दे रहा था। जिसकी उम्र 22 साल थी।
वो शख्स अंदर आकर बेड़ियों में जकड़े हुए शख्स के चारों ओर चक्कर लगाकर हंसते हुए बोला - "राणा... राणा... राणा... आखिर मानना पड़ेगा तुम्हारी इस गुलामी को। मतलब 15 साल हो गये तुम्हे इस जगह कैद हुए पर इन 15 सालों में तुमने अपने मालिक के लिए अच्छी वफादारी निभाई है। दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी इस गुलामी को।"
फिर व़ो शख्स राणा के सामने खड़ा हुआ और अपना एक पैर राणा के कंधे पर रख दिया। और दूसरे हाथ में पकड़े बंदूक की नोक से राणा की चिन को ऊपर करते हुए बोला - "इन 15 सालों में आखिर क्या-क्या नहीं किया तुम्हारे साथ राणा। पर तुम...तुमने आजतक नही बताया की वो ठाकुर कहां छुप कर बैठा है? मन तो करता है इस बन्दूक की सारी गोलियां तुम्हारे भेजे में उतार दूं, पर वो क्या है ना, बाबा सा का हुक्म जो है वरना हमने तो कब का तुम्हें ख़त्म करने की अपनी ये इच्छा पूरी कर ली होती। खैर छोड़ो वैसे क्या कहा था तुमने कुछ सालों पहले! कि वो आएगी अपने बाबा सा के साथ हुए हर अन्याय का बदला लेगी। अपनी सियासत को हासिल करेगी, वगैरा-वगैरा!"
फिर वो शख्स अपने चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट लाते हुए आगे बोला - "कहां है वो? 15 साल हो गए पर आज तक कोई नहीं आया अपनी सियासत को हासिल करने। बहुत बड़ी-बड़ी डींगे हांक रहे थे ना तुम राणा।"
तभी राणा अपनी सारी ताकत इकट्ठा करके अपनी दमदार आवाज में बोलता है - "वो आ चुकी है शेरावत के पिल्ले, वो आ चुकी है। ये मत भूलो कि उसके अंदर ठाकुरों का खून है और तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारे बाप ने उसे 15 सालों पहले जब खाई में फेका था तो क्या वो मर गई होगी? नहीं इतनी आसानी से नहीं... क्योंकि उसके अंदर ठाकुरों का खून बह रहा है और अब वो एक घायल शेरनी बन के वापस लौटी है जो तुम सबको बर्बाद कर के रहेगी। भले आज सियासत पर तुम सबने अपना हुकुम जमा लिया हो लेकिन वो अपनी सियासत हासिल करके रहेगी।"
ये सुनकर वो शख्स ग़ुस्से में बोला - "तो ठीक है आने दो उसे, मैं भी देखता हूं कि उसके खून में कितनी गर्मी है जो हम शेरावत को बर्बाद करेगी। अगर हमने भी उसकी नाक अपने जूते न रगड़वाई तो हम भी दक्ष सिंह शेंरावत के वारिस नहीं।"
और इतना कहकर वो शख्स वहां से चला गया।
2 साल बाद राजस्थान
एक शख्स महल के अंदर एक आलीशान कमरे में सोफे पर आराम से बैठा था, उसके एक हाथ में शिगार, और दूसरे हाथ में एक शराब का ग्लास था। एक लड़की उस शख्स के गर्दन की मसाज कर रही थी। वो शख्स आंख बंद करके अपनी मसाज का आनंद ले रहा था तभी उस रूम में उस शख्स का एक वफादार आदमी आया।
वो आदमी अपना सिर झुका कर बोला - "खम्मा घणी बड़े मालिक"
फिर वो शख्स अपने मुंह से सिगार की एक लंबी कश लेने के बाद धुएँ को हवा में छोड़ते हुए उससे बोला - "कहो क्या खबर लाए हो जोरावर?"
जोरावर ने कहा - "बड़े मालिक जैसा कि आपने हमें उस ठाकुर की लड़की को ढूंढने के लिए कहा था! पर हम इन 2 सालों में उसे खोज पाने में नाकाम रहे!"
ये कहते हुए जोरावर बुरी तरह से कांप रहा था क्योंकि उसे पता था कि उसने अभी-अभी जो कहा है वो सुनके मालिक का गुस्सा बढ़ जाएगा।
तभी उस शख्स ने एक शराब की बोतल जोरावर के पैरों पर फेकते हुए कहा - "निकम्मे ! एक काम दिया था तुम्हें और वो भी तुम लोगों से नहीं हो पाया? 2 साल, 2 साल लगा दिए तुम लोगों ने, पर उस लड़की को तुम लोग ढुँढ नहीं पाए। बस एक जिम्मेदारी दी थी तुम लोगों को, और वो भी तुम लोगों से नहीं हो पाई। जाओ अब, और कुछ दिन तक हमें अपनी शक्ल मत दिखाना।"
फिर जोरावर वहां से चला गया और उसके जाने के बाद उस कमरे में मिस्टर अमरेंद्र सिंह शेरावत आये। वो वहीं सोफे पर बैठते हुए बोले - "अब बस भी करिए भाई सा, अब तो जाने दीजिए। उस ठाकुर को गुमनाम हुए 15 साल हो गए, और उसका वफादार कुत्ता वो राणा जो कि अब हमारे कब्जे में है, तो आप किस लिए इतना डर रहे हैं? सिर्फ उसकी उस लड़की के लिए। अरे जब 17 साल पहले वो ठाकुर हीं अपनी सियासत और अपने खानदान को हमसे नहीं बचा पाया तो उसकी वो औलाद हमारा क्या बिगाड़ लेगी?"
ये सुनकर वो शख्स जिसका नाम दक्ष सिंह सेरावत था वो अपनी रौबदार आवाज में बोला - "तुम नहीं समझोगे अमरेंद्र, अगर दुश्मन को जड़ से खत्म कर दिया जाए तभी ज्यादा अच्छा रहता है। क्योंकि वो कहते हैं ना अगर आग की एक भी चिंगारी इधर-उधर हो जाए तो वो सब कुछ जला कर राख कर देती है! और ये तो उस ठाकुर की औलाद है हम उसे ऐसे हीं नहीं जाने दे सकते। उसकी रगो में ठाकुर का खून बहता है वो इतनी आसानी से अपनी दुश्मनी नहीं भूलेगी। वो जरूर अपने बाप का बदला लेने आएगी। इसीलिए अच्छा होगा कि हम उसे खत्म कर दें, क्योंकि उसका जिंदा रहना हमारे और इस सियासत के लिए खतरे से खाली नहीं होगा।"
ये सुनकर अमरेंद्र ने कहा - "तो ठीक है फिर भाई सा इस बार मैं अपने आदमियों से उस ठाकुर की औलाद को ढूंढने के लिए कहता हूँ और मैं खुद उसे आपके कदमों में लाकर पटकूंगा।"
और ये कहकर अमरेंद्र वहां से चले गए।
शेरावत महल, राजस्थान जयपुर में,,,
महल दिखने में एकदम आलीशान था। शेरावत महल ना जाने कितने हीं वर्ष पुराना क्यों ना हो पर आज भी इसकी रौनक उतनी हीं बरकरार थी, जैसे की वो कोई नया महल हो।
शेरावत महल में जहां चारों तरफ बॉडी गार्ड का कड़ा पहरा था और एक परिंदा भी पर नही मार सकता था। इसी शेरावत महल को एक दुल्हन की तरह खूब सजाया जा रहा था क्योंकि इस शेरावत महल में यहां के छोटे कुंवर सा रुद्राक्ष सिंह शेरावत की शादी वैदेही ठाकुर होने जा रही थी।
शेरावत महल के अंदर चारों तरफ सिर्फ शादी की तैयारियां हो रही थी। हॉल के बीच में शेरावत फैमिली के लोग अपने लिए शहर के सबसे बड़े डिजाइनर द्वारा अपने-अपने कपड़े पसंद कर रहे थे। और उन्हीं में दो लड़कियां एक लहंगे को लेकर लड़ रही थी।
पहली लड़की बोली - "नहीं ये लहंगा हम लेंगे!"
दूसरी लड़की बोली - "पर इसे देखा तो हमने है ना!"
पहली लड़की बोली - "पर इस पर हाथ तो हमने रखा ना!"
दूसरी लड़की बोली - "नहीं ये लहंगा हमने पसंद किया है और भाई सा की शादी में ये लहंगा हम पहनेंगे!"
वो दोनों लड़कियां आपस में ऐसे हीं लड़ रही थी। तभी एक तीसरी लड़की की आवाज आयी - "चुप हो जाइए आप दोनों!"
वो तीसरी आवाज जिसकी थी वो उन दोनों लड़कियों के पास आते हुए बोली - "ये क्या आप दोनों बच्चों की तरह लड़े जा रही है? वो भी इस कपड़े के लिए। हां! ऐसी क्या खासियत है इस कपड़े में?"
फिर वो कपड़े के पास आके उस कपड़े को अपने हाथ में लेकर हॉल में भागने लगी और फिर भागते हुए बोली - "अब ये कपड़ा हमारा हुआ, इसे हम पहनेंगे भाई सा की शादी में!"
तीसरी लड़की की इस हरकत को देखकर वो दोनों लड़कियां गुस्से से बोली - "दीदी! इतना बड़ा धोखा, रूकिए अभी हम बताते हैं!"
एक साथ इतना बोलकर वो दोनों लड़कियां भी उस तीसरी लड़की के पीछे भागने लगी।
तभी सीढ़ी से एक 55 साल की औरत ने उतरते हुए अपनी शख्त आवाज में कहा -"ये क्या हो रहा है यहां पर?"
ये शख्त आवाज सुनकर वो तीनों लड़कियां चुप-चाप एक जगह खड़ी हो गयी और डर की वजह से उन्होंने अपना सिर झुका लिया।
फिर वो औरत उन लड़कियों के पास आकर बोली - "आप लोगों को कोई लाज शर्म है या वो भी भूल चुकी हो?"
फिर वो औरत तीसरी लड़की को देखते हुए आगे बोली - "और आप कृष्णा! आप तो इन दोनों से बड़ी है ना? तो क्या आपको ऐसी हरकतें शोभा देती है? आपको अपनी बहनों को डांटने और सुधारने के बजाय खुद उनके साथ ऐसी हरकतें कर रही हैं?"
कृष्णा के बाद वो औरत उन दोनों लड़कियों को देखते हुए आगे बोली - "और आप दोनों, क्या आप दोनों के पास कपड़े कम पड़ गए हैं जो एक कपड़े के लिए ऐसे बच्चों की तरह लड़े जा रही हो? तो अब सुनिए, जिस कपड़े के लिए आप दोनों लड़ रहीं हैं इस कपड़े को आप तीनों में से कोई नहीं पहनेगा और जाइए जाकर अपने लिए कोई और कपड़े पसंद कर लीजिए।"
ये सुनकर वो तीनों वहां दूसरे कपड़े पसंद करने चली गयी। ये औरत, गीतांजली सिंह शेरावत, दक्ष सिंह शेरावत की बीवी और शेरावत महल की बड़ी रानी सा थी। इनके तीन बच्चे थे सबसे बड़ा बेटा अद्रांक्ष सिंह शेरावत राजस्थान का हुकुम सा, दूसरा रुद्राक्ष सिंह शेरावत और तीसरी एक बेटी कृष्णा सिंह शेरावत थी।
तभी एक नौकर गीतांजली जी के पास आकर सिर झुकाकर बोला - "बड़ी रानी सा, वो बाहर कुछ शहर के सरपंच और प्रधान पति आए हुए हैं।"
गीतांजली जी बोली - "ठीक है आप उन्हें बैठाइए, जलपान करवाइए, हम आते हैं।"
और थोड़ी देर बाद जब गीतांजली जी उन सरपंच के पास पहुंची तो वहां मौजूद सारे सरपंच और प्रधान पति सब एक साथ उठकर गीतांजली जी के सामने सिर झूका कर बोले - "खम्मा घणी बड़ी रानी सा।"
उसके बाद गीतांजली जी ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए सबको बैठने का इशारा किया और फिर उसके बाद बोली - "बताइए आप सबका अचानक यहां कैसे आना हुआ?"
तो उनमें से एक सरपंच ने उठकर कहा - "बड़ी रानी सा ! जैसा कि हम सबने हीं मिलकर ये विचार किया है कि जिस दिन रुद्राक्ष कुंवर सा की शादी होगी, उसी दिन हम सब उनका हुकुम सा के पद के लिए राज्याभिषेक भी करेंगे क्योंकि इस वक्त हुकुम सा ने शादी नहीं की है और अगर कुंवर सा की शादी से पहले उन्होंने इस राज्य को हमारी हुकुम रानी सा से रूबरू नहीं करवाया, तो हमें मजबूरन हीं हुकुम सा के इस पद को उनके छोटे भाई रुद्राक्ष कुंवर सा को देना होगा।"
ये सुनकर गीतांजली जी बोली - "ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी। आप सब फिकर मत करिए, राजकुमार के शादी से पहले हीं आप लोग अपनी हुकुम रानी सा से रूबरू होंगे और ये हमारा आपसे वादा है। बहुत जल्द हीं आपके हुकुम सा, हुकुम रानी सा को लेके राजस्थान आएंगे।"
उसके बाद उन लोगों ने थोड़ी देर और चर्चा की। फिर वो सरपंच और प्रधानपति महल से चले गए। पर वहीं गीतांजली जी बाहर बगीचे में आकर एकांत में टहलने लगी।
तभी उनके पीछे से आते हुए उनकी देवरानी और अमरेंद्र सिंह शेरावत की बीवी, मीनाक्षी अमरेंद्र सिंह शेरावत बोली - "तो आप यहां हैं! हमें पता था कि आप यहीं होंगी।"
मीनाक्षी की आवाज़ सुनकर गीतांजली जी ने पीछे पलट कर मीनाक्षी जी से कहा - "आप यहां क्या कर रही हैं मीनाक्षी?"
तो मीनाक्षी जी बोली - "ये आप हमसे पूछ रहे हैं जीजी! आपकी आदत को हम जानते हैं! जब भी आप परेशान होती हैं तो इसी जगह आती हैं इसीलिए हम यहां आ गए।"
फिर मीनाक्षी जी ने आगे कहा - "आप सरपंच की बात को लेकर परेशान है ना। यही सोच रही है कि कहीं अद्रांक्ष का हुकुम सा का पद रुद्राक्ष कुंवर सा को न मिल जाए?"
ये सुनकर गीतांजली जी बोली - "तो क्या करें हम मीनाक्षी, 2 साल हो गए इन 2 सालों में हमने बहुत कोशिश की, कि अद्रांक्ष शादी कर लें! पर नहीं, उन्होंने हमारी एक भी नहीं सुनी और अब देखिए ना जिस बात का डर था वही हुआ। अब अगर जल्दी हीं रुद्राक्ष की शादी से पहले अद्रांक्ष ने अपनी हूकुम रानी सा को इस राज्य से रूबरू नहीं करवाया तो ये पद उनसे छीन कर रुद्राक्ष को दे दीया जाएगा और इसमें हम भी कुछ नहीं कर पाएंगे।"
फिर गीतांजली जी आगे बोली - "इसीलिए 2 साल पहले जब रुद्राक्ष ने हमसे वैदेही से शादी करने का जिक्र किया था तो हमने उनकी शादी को कुछ वक्त के लिए टाल दिया था, क्योंकि हम चाहते थे पहले अद्रांक्ष की शादी कर लें फिर उसके बाद हम खुद खुशी-खुशी रुद्राक्ष की शादी वैदेही से करवा देंगे। पर रुद्राक्ष ने जाने-अनजाने इतनी बड़ी गलती कर दी कि हमे मजबूरन हीं उनकी शादी करवानी पड़ रही है। अगर वैदेही की कोख में हमारे खानदान का वंश ना पल रहा होता तो हम जब तक अद्रांक्ष की शादी नहीं हो जाती तबतक इस शादी को हरगिश नहीं होने देते।"
गीतांजली जी थोड़ा रूककर बोली - "पर क्या करें वैदेही की कोख में पल रहे हमारे वंश को नाम देने के लिए अब हमें मजबूरन हीं ये शादी करवानी पड़ेगी। वरना वैदेही की कोख में पल रहे हमारे वंश को हीं जिल्लत सहनी पड़ेगी।"
मीनाक्षी जी दिलासा दिलाते हुए बोली - "आप फिकर मत करिए जीजी, देखिएगा अद्रांक्ष कुंवर सा जरूर ऐसा कुछ ना कुछ करेंगे कि उनसे उनका पद भी नही जाएगा और इस नई पीढ़ी को भी मान-सम्मान मिलेगा। और वैसे भी शादी को तो अभी 5 दिन बाकी है और हमारे अद्रांक्ष कुंवर सा के लिए तो इस राज्य के लिए एक हुकुम रानी सा लाने के लिए इतने दिन हीं बहुत है। हम माता रानी से विनती करेंगे कि वो जरूर कुछ ऐसा चमत्कार करें की सब ठीक हो जाए।"
ये सुनकर गीतांजली जी बोली - "काश कि आप जो कह रही है वो सच हो जाए!"
तो फिर मीनाक्षी जी आगे बोली - "तो ठीक है अब आप अपनी इन परेशानियों को दूर करिए और महल में वापस चलिए क्योंकि हमें अपने लिए कोई भी कपड़े पसंद नहीं आ रहे हैं अब आप हीं हमारे लिए कपड़े पसंद करिए।"
और फिर गीतांजली जी को लेकर मीनाक्षी जी महल में चली आयी जहां पर सब लोग पहले से ही थे।
तभी उन्हीं में राजवीर बोला - "वैसे बड़ी मा शा एक बात कहें आपसे?"
गीतांजली जी बोली - " हाँ बोलिए "
राजवीर ने आगे कहा - "यहां महल में तो शादी की सारी तैयारियां हो चुकी है पर हमारे जो दुल्हा-दुल्हन हैं वो तो अभी तक महल आए ही नहीं? आखिर कब आ रहे हैं हमारे दुल्हे राजा और हमारी नई भाभी सा?"
ये सुनकर गीतांजली जी बोली - "उनकी फिक्र आप मत कीजिए राजवीर। हमने रुद्राक्ष से बात कर ली है वो आज शाम तक हीं वैदेही के साथ आ जाएंगे।"
तो ये सुनकर कृष्णा बोली - "सिर्फ रुद्राक्ष भाई सा हीं आएंगे, क्या अद्रांक्ष भाई सा नहीं आ रहे?"
गीतांजली जी बताते हुए बोली - "हमने उनसे भी बात की है वो ठीक शादी के 1 दिन पहले हीं आएंगे क्योंकि वो आज हीं मुंबई से दिल्ली अपनी कुछ कंपनियों के काम को देखने जा रहे हैं और फिर उसके बाद हीं यहां आएंगे।"
मुंबई शेरावत इंडस्ट्रीज,,,
अद्रांक्ष अपने कैबिन मे विंडो साइड पर खड़ा होकर बाहर का नजारा देख रहा था। उस समय उसका एक हाथ पैंट की जेब में था और दूसरे हाथ में सिगरेट जल रही थी। वो खुद से हीं बोला - "कहां हैं कामाक्षी? आप आखिर कहां चली गई आप? आखिर उस रात हमसे जो अनजाने में इतनी बड़ी गलती हुई क्या आप हमें उसकी इतनी बड़ी सजा देंगी। प्लीज अब वापस आ जाइए क्योंकि हमारी ये आंखें तरस गई है आपकी उन आंखों को देखने के लिए। इन 2 सालों में कहां-कहां नहीं ढूँढा आपको पर हमें आपका कहीं कुछ भी पता नहीं चला?"
अद्रांक्ष ऐसे हीं आंखें बंद करके अपनी और कमाक्षी की पहली मुलाकात को याद कर रहा था। तभी उसके केबिन के डोर पे किसी के खटखटाने की आवाज आयी। अद्रांक्ष वैसे हीं खड़े रहते हुए बोला - " कम इन "
तभी उसके केबिन का डोर ओपन करके रुद्राक्ष और वैदेही अंदर आये। फिर अंदर आकर रुद्राक्ष रूठे हुए स्वर में बोला - "भाई सा! ये हम क्या सुन रहे हैं कि आप आज हमारे साथ वापस राजस्थान नहीं चल रहे?"
अद्रांक्ष ने रुद्राक्ष से कहा - "हां! आपने सही सुना, हम आज राजस्थान वापस नहीं जा रहे हैं। हम आपके शादी के ठीक 1 दिन पहले हीं राजस्थान आ जाएंगे।
रुद्राक्ष गुस्सा करते हुए बोला - "पर क्यों भाई सा आपने तो हमसे वादा किया था ना कि आप हमारे साथ हीं चल रहें हैं, तो अब अचानक से आप अपने वादे से कैसे मुकर सकते हैं?"
अद्रांक्ष रुद्राक्ष को समझाते हुए बोला - "हमें आज हीं दिल्ली जाना है क्योंकि वहां की कंपनी में कुछ प्रॉब्लम आ गई है और हम नहीं चाहते कि आपकी शादी तक वो प्रॉब्लम और बढ़ जाए इसीलिए हम उसे जल्द हीं निपटा कर राजस्थान आ जाएंगे।"
फिर रुद्राक्ष नाराज होते हुए बोला - "ठीक है अगर आप वक्त पर हमारे शादी में नहीं पहुंचे तो हम भी ये शादी नहीं करेंगे।"
और इतना बोलकर रुद्राक्ष केबिन के बाहर चला गया।
वैदेही जो केबिन में रुकी हुई थी! वो अद्रांक्ष की तरफ जाते हुए बोली - "कोशिश तो आपने बहुत की थी हुकुम सा कि आप हमें और रुद्राक्ष को अलग कर सके? लेकिन क्या हुआ देख लिया ना, अब हमारी शादी रुद्राक्ष कुंवर सा से होने जा रही है और आप चाह कर भी इस शादी को नहीं रोक सकते।"
वैदेही की बातें सुनकर अद्राक्ष अपने चेहरे पर एक डेविल मुस्कुराहट लाते हुए बोला - "अगर हम चाहें तो अभी आपको गायब करवा सकते हैं? लेकिन वो क्या है ना आपने अपने बदले के चक्कर में ये जो गिरी हुई हरकत की है, इसी वजह से हम अभी तक रुके हुए हैं क्यों कि आपकी कोख में हमारे खानदान का वंश पल रहा है! वरना आपका वो हाल होता कि आपकी आने वाली साथ पुस्तो की रुह हीं कांप जाती।"
वैदेही हंसते हुए बोली - "अच्छा सच में हुकुम सा! हम भी देखते हैं, कि आप हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? वैसे हुकुम सा अब आप ये मिस्टर शेरावत सुनने की आदत डाल लीजिए क्योंकि बहुत जल्द रुद्राक्ष जी हुकुम सा बनने वाले हैं और हम हुकुम रानी सा ! तो आपसे आपका ये पद बहुत जल्द छीन जाएगा।"
ये सुनकर अद्रांक्ष बोला - "दिन में सपने देखना छोड़ दीजिए वैदेही, वरना आपके सपने ऐसे टूटेंगे कि दोबारा कभी देख भी नहीं पाएंगी। क्योंकि राजस्थान की सियासत हमारी है, हमारी थी और हमारी ही रहेगी।"
वैदेही जवाब में तुरंत बोली - "वो तो वक्त हीं बताएगा हुकुम सा, की सियासत किसकी होगी? बस आप अपनी देखिए जो पिछले 2 सालों से अपनी हुकुम रानी सा को ढूंढ तो रहे हैं पर उन्हें मिली नहीं!"
थोड़ी देर चुप रहकर वैदेही आगे बोली - "कहीं ऐसा तो नहीं हुकुम सा, कि आप की हुकुम रानी सा इस दुनिया में ही ना हो तो…?"
वैदेही की बात सुन अद्रांक्ष गुस्से से वैदेही के गर्दन पकड़ते हुए अपनी आंखों से वैदेही को घूरकर बोला - "हमारे सब्र का इम्तिहान मत लो वैदेही, अगर हमने अपनी मर्यादा तोड़ दी ना तो तुम कहीं की नहीं रहोगी?"
वैदेही, अद्रांक्ष से अपनी गर्दन छुड़ाते हुए लंबी-लंबी सांसे लेने लगी और फिर अद्रांक्ष से बोली - "रह तो आप नहीं पा रहे हो कामाक्षी के बिना। वो लड़की जिसे आपने आज तक देखा नहीं सिर्फ उस लड़की के लिए इतनी तड़प।"
वैदेही थोड़ा रुक कर आगे बोली - "मानना पड़ेगा जो काम हम नहीं कर पाए वो काम उसने कर दिया। वरना सोचिए, कहाँ हम इस मकसद से आए थे, कि रुद्राक्ष की जगह आपको अपना निशाना बनाएगे, पर जब आप से हमारी बात नहीं बन सकी तो हमने रुद्राक्ष को अपना दूसरा निशाना बनाया! और देखिए ना कैसे रुद्राक्ष हमारे प्यार में इतना पागल है कि वो अपनी जान तक भी देने के लिए तैयार है।"
फिर वैदेही शैतानी मुस्कुराहट लिए हुए आगे बोली - "आपने तो ये 2 साल पहले देख हीं लिया था, और रही बात कामाक्षी कि उनका तो हमने सिर्फ इस्तेमाल किया था। उसे तो पता भी नहीं चला कि उनके साथ क्या होने वाला है? पर हमें पता था कि 2 साल पहले जब आपको अपने भाई की हालत के बारे में पता चलेगा तो आप जरूर हमारे बारे में पता करेंगे और वही हुआ आप प्रयागराज आए हमसे अपने भाई की हालत का बदला लेने पर वहां भी हमने अपनी हीं चाल चली।"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने पूछा - "कैसी चाल ?"
वैदेही बोली - "आपको क्या लगता है कामाक्षी और आपकी मुलाकात एक इत्तेफाक थी?"
अद्रांक्ष को कुछ समझ नहीं आया तो वो बोला - "मतलब हम कुछ समझे नहीं?"
तो वैदेही ने कहा - "कामाक्षी का मंदिर आना इत्तेफाक नहीं था वो हमारी सोची समझी साजिश थी। कि कामाक्षी का सामना आप से हो और हम चाहते थे कि मन्दिर में आप दोनों के बीच ऐसा कुछ हो जिससे समाज वाले आप दोनों पर लांछन लगाएं! पर वहां ऐसा कुछ नहीं हो पाया लेकिन एक चीज जरूर हुआ! वो था आप दोनों का टकराना!"
फिर वैदेही ने अद्रांक्ष को अपने फोन में अद्रांक्ष और कामाक्षी की पहली मुलाकात की मंदिर वाली फोटो दिखायी और बोली - "सोचिए हुकुम सा अगर ये फोटो हमने उस वक्त वहां मौजूद पूरे समाज के सामने दिखा दी होती तो क्या होता? तब आपको मजबूरन हीं सबके सामने कामाक्षी से शादी करनी पड़ती! क्योंकि एक मर्द का एक लड़की के साथ इतने करीब वो भी सुनसान जगह, लोगों के मन में तो अनेक सवाल पैदा करता ना?"
वैदेही ने फिर आगे कहा - "बस हमने वही सोच लिया था। पर हमें क्या पता था कि हमारी किस्मत इतनी अच्छी निकलेगी कि आप खुद हीं कामाक्षी से जबरदस्ती शादी कर लेंगे, और हमारे पहले मकसद को पूरा कर देंगे। और रही बात कामाक्षी की तो वो हमें भी नहीं पता कि कामाक्षी अब कहां है? क्योंकि अब तक तो हमारे दुश्मनों को ये पता चल गया होगा कि ठाकुर की बेटी जिंदा है और वापस आ चुकी है।"
वैदेही हँसते हुए बोली - "और जब वो सब ठाकुर की बेटी को ढूंढ लेंगे तो उन्हें सिर्फ कामाक्षी हीं मिलेगी क्योंकि सबको तो यही लगेगा ना कि हम अजीत ठाकुर की बेटी हैं और कामाक्षी उनकी मुंह बोली बेटी! जिसकी वजह से उन सबको लगेगा की कामाक्षी पुराने हुकुम सा, ठाकुर की बेटी है! और वो दुश्मन कामाक्षी को खत्म करके ठाकुर की आखिरी निशानी को भी मिटा देंगे तो हुआ ना ये हमारा एक तीर से दो निशाना?"
वैदेही थोड़ा रूककर आगे बोली - "एक तरफ हम अपने दुश्मनों से भी छुटकारा पा जाएगे और दूसरी तरफ आप चाह कर भी अपनी सियासत को हूकूम रानी सा से रूबरू नहीं करा पायेंगे, क्योंकि आप तो पहले से हीं शादीशुदा है और अब आप अपनी सियासत को बचाने के लिए दोबारा शादी कर भी नहीं सकते। सोचिए हमने आपको इतनी बुरी तरह फसाया कि अब ना तो आप अपने परिवार के खिलाफ जाकर इस शादी को रोक सकते हैं। और ना हीं सियासत के खिलाफ जाकर दूसरी शादी कर सकते हैं।"
वैदेही अपने आप पर गुरुर करते हुए बोली - और रही बात कामाक्षी की, तो इन 2 सालों में आप कामाक्षी को तो ढुंढ़ नहीं पाए तो अब इन 5 दिनों में क्या ढूंढ पाएंगे। तो हुकुम सा अच्छा हीं होगा जो हो रहा है उसे होने दीजिए इसी में आपकी भलाई है और चुपचाप हमारी और रुद्रांक्ष की शादी में आ जाइएगा बिना किसी रूकावट डाले।"
और फिर इतना कहकर वैदेही, अद्रांक्ष के केबिन से बाहर चली गयी।
वैदेही के जाने के बाद अद्रांक्ष खुद से बोला - "हमसे उलझ कर आपने बहुत बड़ी गलती कर दी वैदेही। बस एक बार हमें हमारी कामाक्षी मिल जाए फिर हम आपका वो हाल करेंगे कि आप सोच भी नहीं सकती?"
तभी उसके केबिन में अर्पित आते हुए बोला - "हुकुम सा वो दिल्ली जाने के लिए आपकी जेट तैयार है!"
फिर अद्रांक्ष अर्पित के साथ दिल्ली के लिए निकल गया।
इधर दिल्ली में,,,
शेरावत इंडस्ट्री का बिजनेस पूरे वर्ल्ड में फैला हुआ था। शेरावत इंडस्ट्री की एक ब्रांच दिल्ली में भी थी। और आज अद्रांक्ष अपने इसी ब्रांच में कंपनी की सारी कंडीशन जानने के लिए जाने वाला था।
शेरावत कंपनी के अंदर जहां एक मैनेजर अपने ऑफिस के सारे एम्प्लोयी को इकट्ठा करके उन्हें समझाते हुए बोला - "तुम सबको समझ में आ गया ना कि हमारे बिग बॉस यहां आने वाले हैं! तो तुम लोगों को मैंने जो जो कहा है ठीक वैसे हीं करना! किसी से कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए और हां भूल कर भी कोई अपने वर्क टाइम पर नजर उठा कर इधर-उधर नहीं देखेगा वरना वो अपनी नौकरी से हाथ धो बैठेगा सो अच्छा होगा तुम सब बिना कोई गलती किए अपने काम को मन लगाकर करना। अब तुम सब जा सकते हो।"
अपने मैनेजर की बात सुनकर सभी एम्पलाई चले गए क्योंकि उन सबको डर था, उनके बॉस आने वाले थे।
दिल्ली के एक फ्लैट में ,,,
फ़्लैट के लिविंग एरिया में पूरी तरह सामान बिखरा पड़ा था। तभी एक लड़की फ्लैट के मेन डोर को खोल कर अंदर आयी, तो अंदर का नजारा देखकर वो दंग रह गयी। फिर वो डोर लॉक करके किसी को खोजते हुए अंदर की ओर आकर बेड रूम में चली गयी। जब उसे बेडरूम में कोई नहीं दिखा तो वो बालकनी में आयी जहां एक 6 साल की लड़की गुस्से से मुंह फुलाए चेयर पर बैठी थी।
वो लड़की उस 6 साल की लड़की से बोली - "चुनमुन बच्चा हमने आपसे कितनी बार कहा है कि आप प्लीज घर का इतना बुरा हाल मत किया करिए फिर आप ऐसा क्यों करती हैं?"
उस लड़की की बातें सुनकर चुनमुन कुछ नहीं बोली तो वो लड़की फिर से चुनमुन से बोली - "तो आपको अच्छा लगता है कि आपकी कामाक्षी दीदी थक हार कर आए और फिर घर के काम करके फिर से थक जाए, तो ठीक है हम जा रहे हैं काम करने।"
कामाक्षी घर की सफाई करने के लिए वापस लिविंग एरिआ की ओर जाने लगी।
कामाक्षी को जाते देखकर चुनमुन चेयर से उठकर आयी और कामाक्षी से लिपटते हुए बोली - "दीदी! आप मत जाया करो ना बाहर! आप प्लीज मेरे साथ वक्त बिताया करो ना, अब तो आप दिन-दिन भर बाहर चले जाते हो और मुझे बस घर में बंद कर देते हो मुझे अच्छा नहीं लगता यहां बंद कमरों में अकेले।"
चुनमुन रोते हुए आगे बोली - " आप खुद हीं सोचो ना, हम जब 2 साल पहले प्रयागराज में थे! तो हम दिन भर मस्ती करते थे! पर यहां तो आप ऑफिस चली जाती हो और फिर आकर सो जाती हो! मुझे आपके साथ खेलना है पर आपके पास तो मेरे लिए वक्त ही नहीं है।"
फिर कामाक्षी झुकते हुए चुनमुन के आंसू पोछकर बोली - "सॉरी बच्चा, पर क्या करें? अगर हमें खाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा ना। आपकी फीस, हमारे फ्लैट का रेंट, और खाने पीने का सामान, इन सब चीज के लिए पैसे तो लगेंगे ना और उसके लिए तो मुझे बाहर काम करना हीं पड़ेगा ना। तो आप क्यों नहीं समझती?"
ये सुनकर चुनमुन बोली - "तो आप मुझे अपने साथ ले जाया करो ना। मैं भी आपके साथ रहूंगी।"
कामाक्षी बोली - "नहीं बच्चा मैं आपको वहां नहीं ले जा सकती क्योंकि आपको तो अभी रेस्ट करने की जरूरत है ना। डॉक्टर अंकल ने कहा है, तो इसलिए अभी आप रेस्ट कीजिये और प्लीज़ आप अपनी कामाक्षी दीदी की बात सुन लिया कीजिये।"
चुनमुन बोली - "नही दीदी अब मैं यहा रेस्ट कर-करके थक गई हूं मुझे बाहर जाना है, घूमना है, और ये कड़वी दवाइयां, ये मुझसे अब नहीं खाई जाती प्लीज दीदी ये कड़वी दवाइयां बंद करवा दो ना।"
कामाक्षी ने कहा - "बहुत जल्द कुछ वक्त बाद आपकी ये कड़वी दवाइयां बंद हो जाएगी ठीक है। अब आप चलिए जाइए रूम में आराम करिए क्योंकि हमें पता है आपने इस पूरे घर को फैलाते-फैलाते अपने आपको थका लिया होगा। अब रूम में जाइए आराम करिए हम अभी आपके लिए कुछ बना कर लाते हैं।"
ये सुनकर चुनमुन बोली - "नहीं मुझे आपके साथ काम करना है।"
तो कामाक्षी बोली - "हमने कहा ना आपसे, रूम में जाइए!"
ये सुन कर चुनमुन मुंह लटका कर रूम में चली गयी।
फिर कामाक्षी भी कुछ देर घर का काम की और फिर किचन में जाकर अपने और चुनमुन के लिए कुछ नूडल्स बना कर ले आयी। फिर चुनमुन को अपने हाथों से नूडल्स खिलाये और उसे दवाई देकर उसके पास हीं सो गयी।
जब आधी रात को चुनमुन सो गयी तो कामाक्षी उठकर बालकनी में आयी। और चांद को देखती रहती है, उस वक्त चांद की रोशनी में कामाक्षी एकदम खूबसूरत लग रही थी। उसकी मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, और चेहरे पर मासूमियत थी और वो आंखों में आंसू लिए बस चांद को निहारे जा रही थी।
कामाक्षी आसमान की ओर देखकर बोली - "आखिर क्यों? हमने ऐसी क्या गलती कर दी, कि हमें इतनी बड़ी सजा मिल रही है! अरे सजा भुगतने के लिए हम तो तैयार थे पर हमारी चुनमुन ने क्या बिगाड़ा था जो उसे भी हमारे साथ इतनी बुरी जिंदगी दे दी। हम तो जी रहे थे ना अपनी जिल्लत भरी जिंदगी के साथ! तो चुनमुन को क्यों इन सब चीजों में घसीट लिया?"
कामाक्षी फिर खुद से बातें करते हुए बोली - "आखिर उस नन्हीं सी जान ने आपका क्या बिगाड़ा था! जो आपने उसे इतनी नन्ही सी उम्र में हीं ऐसी बीमारी दे दी जिसके इलाज के लिए हीं ना तो हमारे पास पैसे हैं, और ना हीं हमारी इतनी हैसियत, कि हम अपनी नन्ही सी जान को बचा पाएं। आखिर क्यों?"
कामाक्षी खुद से बड़बड़ाते हुए बोली - "अगर आपको जान हीं लेनी है तो हमारी ले लीजिए पर प्लीज हमारी चुनमुन को एक नई जिंदगी दे दीजिए! क्योंकि हम हमारी चुनमुन को ऐसे धीरे-धीरे मरते हुए नहीं देख सकते। हम उनके बिना नहीं जी पाएंगे। अब वही तो हमारी एक जीने की उम्मीद हैं और आप हमसे हमारी जीने की उम्मीद हीं छीन रहे हैं।"
ये सब बोलते-बोलते कामाक्षी की आंखों में आंसू लगातार गिर रहे थे। उसकी आंखें रोने की वजह से लाल हो रही थी। उसके चेहरे पर दर्द साफ-साफ दिख रहा था।
फिर उसे रूम में चुनमुन की आवाज आयी जिसे सुनकर कामाक्षी जल्दी से अपने आंसू पोंछकर चुनमुन के पास आयी। चुनमुन दर्द से अपना पेट पकड़ के रो रही थी।
ये देखकर कामाक्षी ने जल्दी से चुनमुन को दवाई दे दी और एक दवा चुनमुन के पेट पर लगायी, जिससे थोड़ी हीं देर में चुनमुन को आराम मिल गयी और वो सो गयी।
ये सब देखकर कामाक्षी की आंखों से एक बार फिर आंसू गिरने लगे, पर कामाक्षी जल्दी से अपने आंसू पोछकर चुनमुन को अपने सीने से लगाकर सो गयी।
अगले दिन कामाक्षी सुबह जल्दी से उठी और घर का सारा काम निपटा कर, चुनमुन को उसकी मेडिसिन देकर ऑफिस के लिए निकल गयी।
वहीं दूसरी तरफ ऑफिस में सभी एम्पलाई की बुरी हालत थी क्योंकि अब तक जिस-जिस ने ऑफिस के काम में लापरवाही की थी उन सब को अद्रांक्ष ने काम से निकाल दिया था।
वहीं जब कामाक्षी ऑफिस पहुंची तो वहां का नजारा देख दंग रह गयी क्योंकि कुछ एंप्लॉय तो अपने-अपने सामान को पैक करके नम आंखों से ऑफिस के बाहर जा रहे थे।
कामाक्षी भी ये सब देखते हुए अपने क्लब साइड चली गयी जहां वो बच्चों को डांस सिखाती थी। कामाक्षी को यहां पर एक डांस टीचर की पोजीशन पर जॉब मिली थी और उस डांस क्लब में कामाक्षी से शहर के बड़े-बड़े बिजनेसमैन, पॉलीटिशियंस और सेलिब्रिटीज के बच्चे डांस सीखने आते थे।
कामाक्षी अपना काम मन लगाकर करती थी इसीलिए उसे अपनी जॉब जाने का कोई डर नहीं था। पर जिस तरह आज ऑफिस का माहौल था उस हिसाब से कामाक्षी बच्चों को डांस नहीं सिखा पा रही थी। इसीलिए वो थोड़ी देर ब्रेक लेकर रूम की विंडो साइड में खड़ी हो गयी, कि तभी उसकी नजर ऑफिस के पीछे गार्डन में गयी।
ये देखकर कामाक्षी सभी बच्चों से बोली - "चलो बच्चों मैं आज आप लोगों को बाहर डांस की प्रैक्टिस करवाऊंगी!"
ये सुनकर सब बच्चे खुश हो गए और खुशी-खुशी कामाक्षी के साथ पीछे गार्डन की तरफ चल दिए। गार्डन में पहुंचकर सभी बच्चो और कामाक्षी ने अपने डांस रिहर्सल के लिए अपनी-अपनी जगह ले ली और कामाक्षी के 5 तक गिनने के बाद सब बच्चों ने एक साथ अपना डांस गाने की धुन पर शुरु कर दिया।
"दिल ये बेचैन वे,
रस्ते पे नैन वे दिल ये बेचैन वे,
रस्ते पे नैन वे जिन्दड़ी बेहाल है,
सुर है ना ताल है,
आजा सांवरिया आ आ आ आ ताल से ताल मिला हो..
ताल से ताल मिला!"
वहीं अद्रांक्ष अपने केबिन में अपना सिर चेयर पर टिका कर आंख बंद करके बैठा हुआ था तभी उसके कान में एक धुन सुनाई दी।
अद्रांक्ष ने धुन सुनकर अपनी आंखें खोली, फिर अपने केबिन की विंडो के पास जाकर शीशे से नीचे की ओर देखा जहां नीचे कई छोटी-बड़ी लड़कियां डांस रिहर्सल कर रही थी।
तभी अद्रांक्ष के केबिन में उस ऑफिस का मैनेजर आया और उसने कुछ फाइल अद्रांक्ष की टेबल पर रखी और जब उसने अद्रांक्ष को शीशे से गार्डन की ओर देखते हुये पाया तो बोला - "सर वो सब तो हमारी हीं डांस क्लब की लड़किया हैं, असल में जो हमारी डांस क्लास की टीचर हैं, कभी -कभी जब उनका मन करता है तो वो पीछे गार्डेन में ही बच्चियों को डांस रिहर्सल करवाती हैं। ये हमारे डांस क्लब की बच्चियों को पसंद भी आता है।"
और इतना बोलकर मैनेजर अद्रांक्ष के केबिन से चला गया।
वही वो धुन सुनकर अद्रांक्ष के दिल में अजीब सी हलचल हो रही थी। उसे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था, और उसे एक अपनापन भी महसूस हो रहा था। फिर अद्रांक्ष ने लड़की का चेहरा देखने की कोशिश की पर ऊंचाई और नीचे बच्चियों की वजह से अद्रांक्ष उस लड़की का चेहरा नहीं देख पाया। जिसके बाद वो खुद केबिन से बाहर निकल-कर गार्डन एरिया की तरफ जाने लगा पर इस दौरान उसके बॉडीगार्ड भी उसके आगे-पीछे चल रहे थे! अद्रांक्ष के बाहर गार्डन एरिया में पहुंचते हीं बारिश होने लगी पर तब भी वो लड़कियां नहीं रुकी, क्योंकि उन्हें बारिश में डांस करना और भी अच्छा लग रहा था।
"दिल ये बेचैन वे,
रस्ते पे नैन वे,
जिन्दड़ी बेहाल है,
सुर है ना ताल है,
आजा सांवरिया आ आ आ आ ताल से ताल मिला हो,
ताल से ताल मिला!"
इस सब में लड़कियों के ग्रुप डांस की वजह से अद्रांक्ष, कामाक्षी का चेहरा नहीं देख पा रहा था। फिर वो गार्डेन के दूसरे छोर पर गया जहां से उसे कामाक्षी का चेहरा दिख गया। अद्रांक्ष, कामाक्षी के चेहरे को देखकर उसकी खूबसूरती में हीं खो गया। बारिश में उसका भीगा बदन, लंबे बाल, दूध से भी गोरी उसकी त्वचा अद्रांक्ष को उसकी ओर आकर्षित कर रही थी। अद्रांक्ष एक टक बस कामाक्षी को हीं देखता रह गया।
"सावन ने आज तो,
मुझको भिगो दिया हाय मेरी लाज ने,
मुझको डुबो दिया..
सावन ने आज तो,
मुझको भिगो दिया हाय मेरी लाज ने,
मुझको डुबो दिया..
ऐसी लगी झड़ी,
सोचूँ मैं ये खड़ी कुछ मैंने खो दिया,
क्या मैंने खो दिया..
चुप क्यूँ है बोल तू,
संग मेरे डोल तू
मेरी चाल से चाल मिला
ताल से ताल मिला ओ..
ताल से ताल मिला।"
तभी अद्रांक्ष की नजर जमीन पर गयी जहां उसे कुछ कांच के टुकड़े नजर आये और जिसे देखने के बाद अद्रांक्ष की नजर वहां सब के पैरों पर गयी। सभी लड़कियों ने अपने पैरों में डांस शूज पहन रखे थे पर कामाक्षी ने अपने पैरों में कोई भी शूज या चप्पल नहीं पहन रखी थी। जिससे उसके पैर में कांच गड़ सकती थी।
ये सेखकर ना चाहते हुए भी अद्रांक्ष कामाक्षी को कांच के टुकड़ों से बचाने के लिए अपने लंबे-लंबे पैरो से कामाक्षी के तरफ बढ़ा।
इस सब से अंजान कामाक्षी बस गोल-गोल घूम कर डांस कर रही थी। तभी उसका पैर डगमगाया और वो गिरने वाली हीं थी कि अद्रांक्ष ने उसे गिरने से बचाते हुए अपनी बाहों में थाम लिया। वहीं गिरने के डर की वजह से कामाक्षी ने अपनी आंखें कसके बंद कर ली। पर जब कामाक्षी को ये एहसास हुआ कि वो जमीन पर नहीं गिरी , तो उसने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोली।
कामाक्षी ने जब अपनी आंखें खोलकर अद्रांक्ष की आंखों में देखा तो दंग रह गयी। क्योंकि कामाक्षी भी इन 2 सालों में अद्रांक्ष की आंखों को कभी नहीं भूली थी। ना ही उसकी पहली बार मंदिर में हुई मुलाक़ात भूली थी।
वहीं दूसरी तरफ जब अद्रांक्ष ने भी कामाक्षी की आंखों में देखा तो वो तुरंत पहचान गया कि ये कोई और नहीं कामाक्षी हीं है। क्योंकि वो भी इन 2 सालों में कामाक्षी की आंखों को कभी नहीं भूला था! और उसने इन 2 सालों में इन्हीं आंखों वाली लड़की की तलाश की थी।
अद्रांक्ष, कामाक्षी को देखते हुए उसके खूबसूरती को नजदीक से निहारने लगा। उस वक्त बारिश की बूंदे अद्रांक्ष के ऊपर से होते हुए कामाक्षी के चेहरे पर गिर रही थी। और उनके चारों और सभी लड़कियां गोल-गोल घूम कर डांस करने में व्यस्त थी।
"माना अनजान है,
तू मेरे वास्ते,
माना अनजान हूँ,
मैं तेरे वास्ते,
मैं तुझको जान लूं,
तू मुझको जान ले,
आ दिल के पास आ..
इस दिल के रास्ते,
जो तेरा हाल है,
वो मेरा हाल है,
इस हाल से हाल मिला ओ..,
ताल से ताल मिला…हो,
ताल से ताल मिला!"
थोड़ी देर बाद जब कामाक्षी को होश आया तो उसने जल्दी से अद्रांक्ष को धक्का दे दिया और उस ग्राउंड से ऑफिस की तरफ भाग गयी।
वहीं अद्रांक्ष ये सब देखता रह गया और फिर आसमान की तरफ सिर उठाकर देखने लगा और अपनी बाहें फैला कर खुशी से बोला - "हमारी कामाक्षी मिल गई, मिल गई हमारी मोहब्बत! मिल गई हमारी जुनून! हमारी ताकत हिम्मत!"
इस वक्त अद्रांक्ष के चेहरे पर बारिश की बूदें गीर रही थी।
कामाक्षी जल्दी से ऑफिस से निकल कर अपने फ्लैट पर वापस आ गयी। उसने फ्लैट के अंदर पहुंचकर डोर को अंदर से बंद कर लिया और दरवाजे से सट कर बैठ गयी। कामाक्षी लंबी-लंबी सांसे ले रही थी। उस वक्त उसके कपड़े बारिश में पूरी तरह भीगे हुए थे।
तभी अंदर से चुनमुन कामाक्षी के पास आते हुए खुशी से बोली - "दीदी! आप आज इतनी जल्दी आ गए, आप मेरे लिए जल्दी आई हो?"
और फिर चुनमुन कामाक्षी के गले लग गयी। कामाक्षी को चुनमुन को गले लगा कर एक अलग हीं सुकून और शांती मिल रही थी। फिर वो अपने डर को कम करते हुए चुनमुन से बोली - "हां बच्चा मैं आपके लिए हीं ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर आयी हूँ, अब खुश?"
चुनमुन ने तुरंत पूछा - "पर दीदी आप इतनी भीगी क्यों हो, क्या आप बाहर बारिश में भीगते हुए आ रही थी?"
कामाक्षी बोली - "वो आते वक्त कैब नहीं मिली, और मेरे पास छाता भी नहीं था, इसीलिये बारिश में भीग गई। बच्चा आप चलो मैं चेंज कर आती हूं।"
कामाक्षी ने अंदर जाकर अपने कपड़े चेंज किए और किचन में चुनमुन के साथ कुकिंग करने लगी।
इधर ऑफिस में मैनेजर अद्रांक्ष को कामाक्षी की फाइल देते हुए बोला - "ये लीजिए सर! मिस कामाक्षी की फाइल।"
मैनेजर अद्रांक्ष से आगे बोला - "मिस कामाक्षी ने 2 साल पहले हीं यहां पर जॉइन किया था।"
उसके बाद अद्रांक्ष ने उस मैनेजर को जाने के लिए कहा। फिर अद्रांक्ष उस फाइल में कामाक्षी का एड्रेस देखते हुए खुद से बोला - "हम आ रहे हैं हुकुम रानी सा! आपको सम्मान के साथ वापस ले जाने!"
अद्रांक्ष फाइल लेकर ऑफिस के बाहर निकल गया।
वहीं दूसरी तरफ कामाक्षी भी चुनमुन के साथ डिनर खत्म करके, बालकनी में बैठकर चुनमुन को स्टोरी सुना रही थी। तभी उसके घर की डोर बेल बजी, जिसे सुन चुनमुन जल्दी से डोर ओपन करने चल दी। पर कामाक्षी ने उसे रोककर रूम में भेज दिया और खुद डोर खोलने आयी।
जब कामाक्षी ने डोर ओपन किया तो सामने अद्रांक्ष को देख दंग रह गयी और वो जल्दी से दरवाजा बंद करने लगी पर अद्रांक्ष ने अपना एक हाथ लगाकर दरवाजे को बंद होने से रोक लिया।
फिर वैसे हीं दरवाजे पर हाथ लगाएं अद्रांक्ष बोला - "हमें आपसे बात करनी है, दरवाजा खोलिए।"
कामाक्षी ने जवाब देते हुए कहा - "पर हम अजनबियों से बात नहीं करते, और ना हीं उन्हें अपने घर के अंदर आने देते हैं, तो आप चले जाइए यहां से।"
ये सुनकर अद्रांक्ष बोला - "दरवाजा खोलिए वरना हमारे पास अंदर आने के बहुत से तरीके हैं।"
फिर अद्रांक्ष झटके से दरवाजा खोलकर अंदर आ गया। तो कामाक्षी बोली - "आप हैं कौन? और ये क्या बदतमीजी है किसी के भी घर में जबरदस्ती घुसने की?"
अद्रांक्ष समझाते हुये बोला - "उसकी फिकर आप मत कीजिये। आपको थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा।"
फिर अद्रांक्ष, कामाक्षी के लिविंग एरिया को चारों तरफ घूम कर देखने लगा। ये देखकर कामाक्षी बोली - "आप बताएंगे भी और ये आप हमारे घर में ऐसे क्या घूम-घूम कर देख रहे हैं?"
तभी अद्रांक्ष को कामाक्षी के रूम से म्यूजिक की आवाज आयी! जिसे सुनकर वो कामाक्षी के रूम की तरफ बढ़ने लगा।
अद्रांक्ष को रूम की ओर जाते देखकर कामाक्षी उसके आगे आते हुए बोली - "ये क्या बदतमीजी है? पहले तो आप हमारे घर में जबरदस्ती आ गए और अब हमसे बिना पूछे हीं हमारे कमरे में भी जा रहे हैं? और आप हैं कौन? देखिए वापस चले जाइए वरना हम अभी पूलिस को कॉल करेंगे?"
अद्रांक्ष कामाक्षी की दोनों बाजुओं को पकड़कर अपने करीब करते हुए बोला - "तो आप सुनना चाहती है ना कि हम कौन हैं? तो सुनिए, हम पति हैं आपके, अद्रांक्ष सिंह शेरावत, नाम तो सुना ही होगा। तो बस उसी हक से आपके घर में आए हैं और आपके कमरे में भी जा रहे हैं। ये जानने, की इस वक्त आपके कमरे में आपके अलावा कौन है?"
और फिर अद्रांक्ष कामाक्षी को साइड करके कमरे की तरफ चल दिया।
कामाक्षी ये सब सुनकर दंग रह गयी थी। उसे 2 साल पहले की बातें याद आने लगी जब अद्रांक्ष ने उससे जबरदस्ती शादी की थी और सबके सामने बेइज्जत करके छोड़ कर चला गया था। बीती बातें याद करके कामाक्षी की आंखों से आंसू गिरने लगे।
अद्रांक्ष जब कामाक्षी के कमरे में पहुंचा तो कमरे में पहले से हीं लाइट डिम थी और कुछ नजर नहीं आ रहा था। तभी पीछे से कमरे का दरवाजा बंद हुआ और चुनमुन अद्रांक्ष के पैरो से लिपटते हुए बोली - "हमने डरा दिया आपको दीदी! हमने डरा दिया...ये !"
चुनमुन ने उस वक्त अद्रांक्ष के पैरों को पकड़ा था, तभी उसे ये एहसास हुआ कि उसने जिसे पकड़ा है वो उसकी कामाक्षी दीदी नहीं है तो चुनमन ने जल्दी से अद्रांक्ष के पैर को छोड़कर रूम की लाइट ऑन की।
लाइट ऑन करते ही चुनमुन ने अपनी कामाक्षी दीदी की जगह किसी अनजान शख्स को अपने कमरे में देखा तो वो बहुत हैरान हुयी।
अद्रांक्ष भी चुनमुन को देखकर हैरान था और मन में सोच रहा था - "इस घर में यह छोटी बच्ची क्या कर रही है और ये किसकी बच्ची है?"
तभी चुनमुन ने अद्रांक्ष से पूछा - "आप कौन हो? और मेरे घर में क्या कर रहे हो? और दीदी कहां है? बोलो ना आप यहां क्या कर रहे हो?"
अद्रांक्ष कुछ नहीं बोला तो चुनमुन बाहर की ओर भागी और बाहर पहुंच कर जोर से चीखी ...
चीखने की आवाज़ सुनकर अद्रांक्ष भी जल्दी से बाहर आ गया। बाहर कामाक्षी बेहोश होकर जमीन पर गिरी हुई थी, और गिरने की वजह से उसके सिर पर हल्की सी खरोच आ गई थी जहां से हल्का-हल्का खून भी निकल रहा था।
ये सब देखकर अद्रांक्ष बहुत हैरान हुआ। चुनमुन, कामाक्षी के पास बैठ कर रोते हुए बोली - "दीदी! उठो, दीदी आपको क्या हुआ? आपको ये चोट कैसे लगी?"
चुनमुन ऐसे हीं कामाक्षी के पास बैठ उसे उठाने की कोशिश कर रही थी। तभी अद्रांक्ष जल्दी से कामाक्षी के पास आया और उसे गोदी में उठाते हुए अंदर बेड पर ले जाकर लेटा दिया। और फिर रुम मे फर्स्ट एड बॉक्स ढुढने लगा।
चुनमुन अभी भी रो-रोकर कामाक्षी को उठाने की कोशिश कर रही थी। अद्रांक्ष ने फर्स्ट एड बॉक्स लाने के बाद डॉक्टर को भी कॉल कर दिया।
फिर अद्रांक्ष, कामाक्षी के पास बैठकर उसका फर्स्ट ऐड करने हीं जा रहा था तो चुनमुन ने अद्रांक्ष को धक्का देते हुए कहा - "आप बुरे हो, आप बहुत बुरे हो, आपने आते हीं मेरी कामाक्षी दीदी को चोट पहुंचाई। मैं आपको अपने दीदी के पास नहीं आने दूंगी आप दूर हो जाइए मेरी दीदी से।"
अद्रांक्ष, चुनमुन को पकड़ते हुए बोला - "शांत हो जाइए आप, आपकी दीदी को कुछ नहीं होगा बस उन्हें हल्की सी चोट आई है, देखिए उनके माथे से खून निकल रहा है ना, हमें बैंडेज करने दीजिए वरना उनका खून और बहेगा।"
अद्रांक्ष ने किसी तरह चुनमुन को शांत करके कामाक्षी के सिर पर बैंडेज लगायी। फिर कामाक्षी के सिरहाने बैठ कर अपने एक हाथ से कामाक्षी के सिर को सहलाने लगा और चुनमुन भी कामाक्षी की दूसरी साइड बैठकर अद्रांक्ष को घूरते हुए कामाक्षी के बालों पर अपने हाथ से सहला रही थी।
तभी कुछ देर बाद डॉक्टर भी आ गए। अद्रांक्ष ने डोर ओपन किया। फिर डॉक्टर अंदर आए और उन्होंने कामाक्षी को चेक किया और अद्रांक्ष से बोले - "डरने की कोई बात नहीं है बस थोड़ा स्ट्रेस, थकावट और कमजोरी की वजह से ये बेहोश हुई हैं, इन्हें अपने खान-पान पर ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। मैंने इन्हें इंजेक्शन लगा दिया है इन्हें अभी नहीं सुबह तक होश आएगा क्योंकि इन्हें अभी आराम की सख्त जरूरत है। आपको डरने की जरुरत नहीं है।"
उसके बाद डॉक्टर कुछ मेडिसिन देकर चला गया। डॉक्टर के जाने के बाद अद्रांक्ष, कामाक्षी के साइड में आकर बैठ गया।
चुनमुन, कामाक्षी के बगल में लेट गयी और अपना एक हाथ कामाक्षी की कमर पर रखते हुए अद्रांक्ष से बोली - "अब आप जाओगे, कि यहीं पर मेरी दीदी के पास रहने वाले हो?"
चुनमुन को अपनी कामाक्षी के इतने नजदीक लेटे हुए देख कर अद्रांक्ष को जलन हो रही थी। वो भी कामाक्षी के साइड में लेटते हुए बोला - "नहीं!...क्योंकि अब जाने की बारी आपकी है, हम अपनी कामाक्षी को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे समझी आप।"
चुनमुन ये सुनकर गुस्से से बैठते हूए अद्रांक्ष की तरफ उंगली करके बोली - "ओ हेलो! आप जो भी हो, आप ऐसे-कैसे हमारी दीदी के पास लेट सकते हो? और दीदी आपकी नहीं है, ये मेरी दीदी हैं तो आप उनसे दूर रहो!"
ये सुनकर अद्रांक्ष भी चुनमुन से उसी तरह बैठते हुए उंगली दिखा कर बोला - "तो सुनो! ये मेरी बीवी हैं, और ये आप नहीं डिसाइड करेंगी कि हम अपनी बीवी के पास सो सकते हैं कि नहीं समझी।"
चुनमुन ने तुरंत पूछा - "हम्म! ये बीवी क्या होती है?"
अद्रांक्ष समझाते हुए बोला - " बच्ची अभी आप बच्ची हो तो अच्छा रहेगा आप बच्ची हीं रहो! ज्यादा बड़ी मत बनो और चुपचाप सो जाओ, वरना उठाकर दूसरे रुम में शिफ्ट कर दूंगा। और बस आज तक साथ में लेट लो क्योंकि कल से तुम्हारी दीदी अब हमारे साथ रहने वाली हैं।"
अद्रांक्ष, कामाक्षी के बगल में लेट गया, वहीं चुनमुन फिर से कामाक्षी से और लिपट कर लेट गयी।
ये सब देख अद्रांक्ष का मन हुआ कि वो चुनमुन को अभी कामाक्षी से अलग कर दे और खुद कामाक्षी के करीब लेट जाए। पर वो ये सब कामाक्षी की मर्जी के बिना नहीं कर सकता था। इसीलिए वो कामाक्षी के पास हीं पर उससे अलग लेट गया। अद्रांक्ष को कामाक्षी के बदन की खुशबू महसूस हो रही थी और वो इतने करीब से कामाक्षी को सोते हुए देख रहा था।
आज अद्रांक्ष की आंखों में एक अलग हीं सुकून था। उसकी कामाक्षी 2 साल बाद उसके इतने करीब थी। इस वक्त अद्रांक्ष के मन में बस इतना हीं चल रहा था कि वो कामाक्षी को गले लगाकर खुद में समा ले, पर इन सबके लिए उसे अभी भी कुछ वक्त का इंतजार करना था।
अद्रांक्ष बस कामाक्षी को बिना पलक झपकाए निहारे जा रहा था। ऐसे ही थोड़ी देर बाद अद्रांक्ष भी नींद के आगोश में चला गया।
सुबह का वक्त ,,,
जब अद्रांक्ष की आंखें खुली तो उसने अपने आस-पास देखा। उसकी नज़र अपने बगल में लेती हुए कामाक्षी पर पड़ी। कामाक्षी चुनमुन से एकदम लिपट कर सो रही थी। इस वक्त कामाक्षी सोते हुए चुनमुन से भी छोटी बच्ची लग रही थी। ये सब देख कर अद्रांक्ष के चेहरे पर स्माइल आ गई।
इस वक्त उसे भी नहीं पता था कि उसके चेहरे पर स्माइल थी क्योंकि उन 2 सालों में कामाक्षी की तड़प में उसने हंसना हीं छोड़ दिया था। अद्रांक्ष को खुद भी ये नहीं पता चला कि कब कामाक्षी उनकी जिंदगी, मोहब्बत, सुकून सब बन गई।
अद्रांक्ष, कामाक्षी को अपने सामने देखकर एक अलग हीं सुकून महसूस कर रहा था। और उसने अपने मन में ठान लिया कि वो कामाक्षी को अपने आप से दूर बिल्कुल नहीं जाने देगा। उसकी आंखों में आंसू की एक भी बुंद नहीं आने देगा। कामाक्षी की जिंदगी को खुशीयों से भर देगा, और उसे दुनिया के हर ताने और दुश्मनों से बचाकर रखेगा।
ये सब सोचते हुए अद्रांक्ष बस कामाक्षी को निहार रहा था और वैसे हीं कामाक्षी को निहारते हुए अद्रांक्ष ने अपने होंठ कामाक्षी के सिर पर रख दिये।
अद्रांक्ष के इस स्पर्श से कामाक्षी जो गहरी नींद में थी, कशमशाने लगी। ये देख कर अद्रांक्ष, कामाक्षी से दूर हो गया और फिर उठकर वॉशरूम चला गया।
थोड़ी देर बाद जब अद्रांक्ष वापस आया तो, अद्रांक्ष की नजर कमरे में बैठी हुई चुनमुन पर गई। चुनमुन बेड पर हाथ बांध के बैठी अद्रांक्ष को देख रही थी।
जब अद्रांक्ष ने चुनमुन को अपनी तरफ घुरते हुए देखा, तो उसने नजदीक जाकर चुनमुन की नाक पकड़ कर कहा - "अब आप किस लिए गुस्सा हैं एंग्री गर्ल?"
चुनमुन अपनी नाक छुड़ाते हुए बोली - "पहली बात आप हमारी नाक नहीं पकड़ सकते ये हक सिर्फ हमारी दीदी का है और दूसरी बात आप अभी तक गए क्यों नहीं? और हमारी दीदी का बाथरूम कैसे यूज़ किया?"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने चुनमुन को गोदी में उठा लिया और बाहर लिविंग एरिया में ले आया। फिर उसे बैठाते हुए बोला - "वो इसलिए क्योंकि जो चीज आपकी दीदी की है अब वो हमारी भी है और जो चीज हमारी है वो आपकी दीदी की भी है।"
चुनमुन चौंकते हुए बोली - "पर दीदी तो हमारी है, तो क्या आप भी हमारे हो गए?"
तो अद्रांक्ष ने मुस्कुराते हुए कहा - "हां! और आप हमें जीजा जी कहकर बुला सकती हैं।"
फिर चुनमुन बोली - "तो आप हमें अंदर से यहां क्यों लेकर आए?"
अद्रांक्ष ने कहा - "वो इसलिए क्योंकि हम नहीं चाहते कि आपकी दीदी की नींद खराब हो और वैसे भी वो थकी हुई है ना उन्हें आराम की सख्त जरूरत है तो बस इसीलिए हम नहीं चाहते थे कि हम दोनों की वजह से कामाक्षी की नींद खराब हो!"
चुनमुन ने कहा - "ठीक है! पर मैं आपको जीजा जी नहीं बुलाऊंगी!"
तो अद्रांक्ष ने पूछा - "क्यों??"
चुनमुन ने कुछ सोचते हुए कहा - "मिस्टर हैंडसम! कैसा है?"
अद्रांक्ष ने कहा - "मतलब, हम कुछ समझे नहीं!"
चुनमुन ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा - "वो इसलिए क्योंकि आप हैंडसम हो! इसीलिए हमने सोचा कि हम आपको मिस्टर हैंडसम हीं कह कर बुलायेंगे।"
तो अद्रांक्ष ने स्माइल करते हुए कहा - "ठीक है आपका जो मन करें आप हमें वो कहकर बुलाइयेगा। अब चलिए जल्दी से हम दोनों मिलकर आपकी दीदी के लिए कुछ बनाते हैं।"
फिर अद्रांक्ष और चुनमुन दोनो किचन में चले गए।
जब कामाक्षी की नींद खुली तो उसने अपने आस-पास देखा, वहां चुनमुन नहीं थी। कामाक्षी को इस वक्त अद्रांक्ष का बिल्कुल भी ख्याल नहीं था। फिर वो रूम से बाहर आकर चुनमुन को ढूंढने लगी, और जब उसने किचन में देखा तो चुनमुन और अद्रांक्ष दोनों एक साथ मिलकर किचन में कुकिंग कर रहे थे। कामाक्षी ने उस वक्त चुनमुन के चेहरे पर हंसी देखी तो उसकी मुस्कुराहट में हीं खो गई।
चुनमुन ने कामाक्षी को देखा और वो दौड़ कर कामाक्षी के पास आ गई। उसने कामाक्षी से लिपटते हुए कहा - "दीदी आप उठ गई? अब आपको अपने सिर पर ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा न?"
चुनमुन की बात सुनते हीं कामाक्षी ने अपने सिर पर हाथ फेर कर देखा तो उसके सर में पट्टी बंधी हुई थी। फिर उसे याद आया की वो अद्रांक्ष की बातें सुनकर बेहोश हो गई थी और टेबल में उसका सिर टकराने की वजह से उसे चोट लग गई थी।
सोचते हुए कामाक्षी को अद्रांक्ष की बातों का ख्याल आया जो रात में अद्रांक्ष ने कामाक्षी से कहा था कि वो उसका पति है! वो सब याद करके कामाक्षी को अपनी बेज्जती और लोगों के ताने भी याद आये। ये सब याद करके कामाक्षी के सिर में तेज दर्द होने लगा और उसने अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ लिया।
कामाक्षी को दर्द में देखकर अद्रांक्ष भागकर कामाक्षी के पास आया और उसे पकड़ कर सोफे पर बिठाया। फिर उसने एक ग्लास पानी देकर कामाक्षी को शांत करने की कोशिश करने लगा।
चुनमुन ने कामाक्षी के पास आकर उससे कहा - "दीदी आपको पता है, जब रात में आप बेहोश हो गई थी, तो मिस्टर हैंडसम हीं आपको उठाकर अंदर बेड पर ले गए थे, और उन्होंने डॉक्टर को भी कॉल किया था।"
पर चुनमुन की बात पर कामाक्षी ने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया, उसका ध्यान बस पुरानी बातों में था। जब वो अपने ध्यान से बाहर आई, तो अद्रांक्ष को देखते ही कामाक्षी ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ ग्लास फर्श पर फेंक दिया। वो अद्रांक्ष को देखते हुए गुस्से से बोली - "आप क्यों आए हैं यहां वापस? ये देखने की हम जिंदा है कि मर गए। 2 साल पहले तो आप हमें मौत से भी बदतर जिंदगी देकर चले गए थे तो अब किस लिए आए हैं यहां? किस लिए?"
और कामाक्षी ने एक बार फिर अपना सिर पकड़ लिया।
ये सब देखकर अद्रांक्ष ने चुनमुन को अंदर रूम में जाने के लिए कहा, जिसके बाद चुनमुन चुपचाप अंदर चली गई।
अद्रांक्ष कामाक्षी को सोफे पर बिठाते हुए उसके दोनों हाथों को पकड़कर बोला - "हमें पता है कामाक्षी कि हमने 2 साल पहले बहुत बड़ी गलती की थी। हम वापस से उन सब चीजों को ठीक तो नहीं कर सकते लेकिन अब हम आने वाले कल को और आज को ठीक करना चाहते हैं। कामाक्षी, प्लीज आप हमारी पुरानी गलतियों को माफ कर दें और हमारे साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत करें।"
ये सुनकर कामाक्षी ने कहा - "अच्छा और आपको लगता है कि हम आपकी बात मान जाएंगे! नहीं हम हरगिज़ नहीं मानने वाले। हम ना तो आपके साथ जाएंगे और ना हीं आपके साथ रहेंगे। हम अपनी जिंदगी में खुश हैं तो प्लीज हमें हमारी जिंदगी में खुश रहने दीजिए, और चले जाइए यहां से हमें किसी की कोई जरूरत नहीं है।"
अद्रांक्ष ने कामाक्षी को समझाते हुए कहा - "हमें पता है कामाक्षी कि इस वक्त आपके अंदर ये 2 सालों का भरा हुआ गुस्सा है जो अभी हम पर निकल रहा है। हम सब बर्दाश्त कर लेंगे पर हम आपको अपने आपसे दूर नहीं जाने देंगे, और हम आप को अकेला बिल्कुल नहीं छोड़ने वाले, किसी भी कीमत पर।"
इतना बोलकर अद्रांक्ष किचन की ओर चला गया और फिर चुनमुन को आवाज देकर बाहर बुलाया। अद्रांक्ष ने डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट लगा दिया और कामाक्षी का हाथ पकड़कर उसे चेयर पर बैठा दिया। अद्रांक्ष ने उससे नाश्ता करने के लिए कहा। पर कामाक्षी उनमें से कुछ भी नहीं खा रही थी।
अद्रांक्ष ने कहा - "कामाक्षी चुपचाप खा लीजिए, हमारे सब्र का इम्तिहान मत लीजिए क्योंकि, आप पहले भी हमारा गुस्सा देख चुकी हैं और फिर से हमें वो वाला अद्रांक्ष सिंह शेरावत मत बनाइए जो अक्सर दुनिया वालों ने देखा है। हम इस वक्त आपके सामने नरमी से पेश आ रहे हैं तो इसका फायदा मत उठाइए चुपचाप नाश्ता कीजिए।"
ये कहते हुए वक्त अद्रांक्ष की आंखों में गुस्सा साफ दिख रहा था जिसे देखकर कामाक्षी भी एक पल के लिए डर गयी और वो धीरे-धीरे नाश्ता करने लगी। थोड़ी देर बाद जब तीनों का नाश्ता खत्म हो गया तो अद्रांक्ष ने कहा - "आप लोग अपना जरूरी सामान पैक कर लीजिए, क्योंकि अब हम आप दोनों को यहां से अपने साथ ले जाना चाहते हैं। और अब से आप दोनों हमारे साथ हीं रहेंगे हमारे महल में।"
महल का नाम सुनते हीं चुनमुन ने अपनी आंखें बड़ी करके हैरानी से पूछा - "मिस्टर हैंडसम वो वाला महल जो टीवी में होता है राजा वाला?"
तो अद्रांक्ष ने कहा - "हां! एंग्री गर्ल"
इतना सुन चुनमुन जल्दी से अंदर भागकर चली गई और अपना सामान पैक करने लगी। अद्रांक्ष उसे जाते हुये देखकर हंस दिया और फिर कामाक्षी से बोला - "आप भी जाइए और अपना सामान पैकिंग कर लीजिए।"
कामाक्षी ने इनकार करते हुए कहा - "हम कहीं नहीं जा रहे!"
अद्रांक्ष ने कहा - "तो ठीक है अगर आप नहीं जा रही तो हम आप को जबरदस्ती ले जाएंगे, पर आप हमारे साथ हीं जाएंगी!"
और इतना बोलकर अद्रांक्ष अंदर रुम की ओर चला गया जहां चुनमुन अपने बैग में अपने सारे टेडी बियर और टॉय जबरदस्ती भरने की कोशिश कर रही थी। जिसे देख अद्रांक्ष ने कहा - "आप ये सब रहने दीजिए ये सब वहाँ पर भी आपको मिल जाएगे। बस आप अपनी कुछ जरूरी चीजें हीं रखिए।"
चुनमुन ने कहा - "नहीं! हमारी सबसे जरूरी चीज तो यही है क्योंकि ये हमारी दीदी ने हमें लाकर दी है।"
ये सुनने के बाद कि वो सारे खिलौने कामाक्षी ने खरीदे थे, अद्रांक्ष भी चुनमुन की वो सारी चीजें पैक कराने लगा।
पैकिंग के बाद अद्रांक्ष की नजर कमरे पे गई जिसे बड़े हीं शानदार तरीके से सजाया गया था। फिर अद्रांक्ष दीवारों पर लगी तस्वीरों को गौर से देखने लगा, दीवार पर चुनमुन, कामाक्षी की ढेर सारी फोटो लगी हुई थी।
उस फोटो को देखकर कोई भी यही सोचता कि वो दोनो मां बेटी हैं, क्योंकि दोनों हीं साथ में बहोत अच्छी लग रही थी।
एक फोटो जिसमें कामाक्षी मुस्कुरा रही थी और चुनमुन, कामाक्षी के गालों पर किस कर रही थी। उस फोटो को देख अद्रांक्ष के चेहरे पर हंसी आ गई। फिर उस फोटो को दीवार से उतारते हुए अद्रांक्ष चुनमुन से बोला - "एंग्री गर्ल इस फोटो को भी पैक कर लीजिए हम ये भी अपने साथ ले चलेंगे।
अद्रांक्ष के कहने पर चुनमुन ने अपना सारा सामान पैक कर लिया। पर, उन सब बातों से कामाक्षी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो सोफे पर चुप-चाप बैठी हुई थी।
जब, अद्रांक्ष ने कामाक्षी को चुप-चाप सोफे पर बैठे हुए देखा तो उसने अपने पि ए अर्पित को कॉल करके वहां बुलाया। कुछ हीं देर में, अर्पित भागता हुआ आया तो अद्रांक्ष ने अर्पित को देखते हुए चुनमुन से कहा - "एंग्री गर्ल! अभी आप इनके साथ जाइए, हम आपकी कामाक्षी दीदी को लेकर आते हैं।"
चुनमुन ने पूछा - "आप पक्का दीदी को लेकर आओगे ना?"
अद्रांक्ष ने कहा - ''हां! हम आपकी दीदी को लेकर आएंगे!"
इससे पहले की अर्पित चुनमुन को लेकर जाता, कामाक्षी ने चुनमुन का हाथ पकड़ लिया और थोड़ी तेज आवाज में चुनमुन से बोली - "आप कहीं नहीं जा रही हैं, चुनमुन! , . चुपचाप अंदर जाइए और अपने सामान को वापस अपनी जगह पर रख दीजिए।"
ये देखकर अद्रांक्ष ने गुस्से में कामाक्षी के हाथ से चुनमुन का हाथ छुड़ाया और अर्पित को चुनमुन को ले जाने का इशारा किया। जिसके बाद अर्पित, चुनमुन को वहां से लेकर चला गया!
अर्पित और चुनमुन के चले जाने के बाद अद्रांक्ष ने दरवाजे को बंद कर दिया। तो कामाक्षी ने अद्रांक्ष को देखकर गुस्से से कहा - "ये क्या तरीका है आपका? आप हमारे साथ ऐसे जबरदस्ती कैसे कर सकते हैं? जब की हमने कह दिया है कि हमें आपके साथ नहीं जाना तो क्यों? क्यों हमारी बात नहीं मान रहे आप?"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने गुस्से से कामाक्षी के दोनों बाजुओं को पकड़ कर कहा - "क्योंकि, आप हमारी पत्नी और पूरे राजस्थान की हुकुम रानी सा है। तो आपको हमारे साथ वापस चलना हीं होगा।"
कामाक्षी ने उसी लहजे में अद्रांक्ष से गुस्से से कहा - "हम नहीं मानते, आपको अपना पति और ना ही हम कोई हुकुम रानी सा हैं! तो अच्छा यही होगा, की आप यहां से चले जाइए!"
इतना बोलकर कामाक्षी अंदर रूम में जाने लगी।
अद्रांक्ष को भी गुस्सा आ गया था। उसने कामाक्षी को पकड़ कर दीवार से सटाते हुए कहा - "तो ठीक है! अगर नहीं, मानती हमें अपना पति तो क्यों लगाती हैं ये सिंदूर? क्यों पहना है हमारे नाम का ये मंगलसूत्र? उतार दीजिए ना इन्हें, फेंक दीजिए निकालकर! क्यों जी रही हैं एक सुहागन की तरह आप?"
ये सुनकर कामाक्षी ने भी गुस्से से कहा - "क्योंकि, ये मंगलसूत्र और सिंदूर! हमें हमारी हकीकत याद दिलाता है, कि हम एक शादीशुदा छोड़ी हुई औरत हैं, जिसने सिर्फ दुनिया भर के ताने और बेज्जती हीं सही है। आपको क्या लगता है हुकुम सा, ये मंगलसूत्र, ये सिंदूर हमने शौख में पहन रखा है? नहीं! ये हमें हमारी किस्मत याद दिलाता है, वो किस्मत, जिसमें सिर्फ काली स्याही से हमारी जिंदगी में दर्द, तकलीफ और दुख लिखा गया है।"
ये सब कहते-कहते कामाक्षी का गला रूंध गया और वो फूट-फूटकर रोने लगी। अद्रांक्ष को कामाक्षी के आसूं देखकर, अंदर ही अंदर बहुत बुरा लगा। क्योंकि, उसने 2 साल पहले अनजाने में कामाक्षी के साथ बहुत बुरा किया था।
अद्रांक्ष ने अपने हाथों से कामाक्षी के आंसुओं को पोछते हुए कहा - "हमें माफ कर दीजिए, कामाक्षी! हमें नहीं पता था, की उस वक्त घूंघट में आप थी। अगर हमें इस बात का ज़रा सा भी अंदाजा होता, तो हम कभी आपके साथ इतना बड़ा अन्याय नहीं करते। हम खुद इन 2 सालों तक आपके बिना तड़पे हैं। इन 2 सालों को हमने कैसे काटा है, सिर्फ हम हीं जानते हैं। हर पल सिर्फ, आपको याद किया है, हर सुबह हमारी इस उम्मीद में होती थी, कि शायद आप हमें मिल जाएं।"
और इतना बोलकर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के माथे से अपना माथा से जोड़ लिया।
कामाक्षी ने बहुत मुश्किल से अपने रूंधे हुए गले से कहा - "आपको क्या पता हुकुम सा, आप तो बस जबरदस्ती अपनी ज़िद पूरी करके चले गए। पर उन रातों को हमने झेला है! आपको क्या पता, कैसे हमने हमारी चुनमुन को लेकर उन आधी रात में दर-दर की ठोकरें खाई है। हमारी नन्ही सी चुनमुन जो 2 दिनों तक हमारे साथ भूखे-प्यासे चलती चली गई। उसने एक बार भी नहीं कहा कि, मुझे भूख लगी है। वो नन्ही सी जान हमारे साथ इस उम्मीद में रहीं, कि एक दिन जरूर अच्छा दिन आएगा, जब हम एक साथ खुशी-खुशी इज्जत से रहेंगे। पर देखिए ना, आज जब हम दोनों अपनी जिंदगी में खुश हैं तो आप फिर आ गए हमारी जिंदगी में आंसू भरने।"
अद्रांक्ष, कामाक्षी को समझाते हुए बोला - "नहीं कामाक्षी! हम आपको दूनिया की हर खुशी देना चाहते हैं, जो आपको मिलनी चाहिए। हम आपको आपका हक, सम्मान सब देना चाहते हैं प्लीज कामाक्षी! हमारे साथ चलिए, हमारी सियासत अपनी हुकुम रानी सा का इंतजार कर रही है।"
फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी से अलग होकर उसके आंसू पोछे, और उसके माथे को बहुत हीं प्यार से चूमा। अद्रांक्ष के गर्म होंठों की छुअन से, कामाक्षी के बदन में एक सिहरन सी पैदा हो गई।
अद्रांक्ष ने कामाक्षी के माथे से होते हुए आंखों को भी बहुत प्यार से चुम लिया और फिर कामाक्षी के चेहरे को देखते हुए बोला - "चलिए, हुकुम रानी सा! क्योंकि, अब हम हमारी सियासत को और इंतजार नहीं करवाना चाहते।"
और फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी को गोदी में उठा लिया। अद्रांक्ष की इस हरकत से कामाक्षी हैरान रह गई। उसने हैरानी में अद्रांक्ष की गर्दन पर अपनी पकड़ बना ली। जिसे देख अद्रांक्ष के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
अद्रांक्ष, कामाक्षी को गोदी में लिये हुए हीं उस फ्लैट से बाहर निकल आया। उस वक्त कामाक्षी बस, अद्रांक्ष के चेहरे को हीं देखे जा रही थी।
अद्रांक्ष चलते हुए बिना कामाक्षी को देखे बोला - ''अब हमें इतना भी मत निहारिए हुकुम रानी सा! क्योंकि, अब से हम सिर्फ आपके हैं। आप आराम से पूरी जिंदगी, हमें ऐसे हीं निहारती रहिएगा। हम आपके पास हीं रहेंगे।"
अद्रांक्ष की बात सुनकर कामाक्षी ने जल्दी से अपनी नजरें दूसरी ओर फेर ली। उसके गाल शर्म से लाल हो गए।
कुछ देर बाद अद्रांक्ष बाहर अपनी गाड़ी के पास आ गया। जहां पहले से हीं कई गाड़ियां लाइन से खड़ी थी। साथ हीं बॉडीगार्ड् ने उस पूरे एरिया को कवर कर रखा था। वहां मौजूद सभी लोग ये देखकर दंग थे।
अर्पित दूसरी कार में बैठा था और चुनमुन उसकी गोद में सो गई थी। अर्पित ने बाहर अद्रांक्ष की बाहों में कामाक्षी को देखा तो जैसे उसकी आंखें हीं बाहर आ गई। अर्पित बार-बार अपनी आंखों को मसल कर अद्रांक्ष को हीं देख रहा था। वो अद्रांक्ष की तरफ देखकर अपने आप से हीं बोला - "हे भोलेनाथ ! क्या ये सच है? कहीं हम कोई सपना तो नहीं देख रहे हैं? मतलब हमारी हुकुम रानी सा ने ऐसा क्या जादू कर दिया की हुकुम सा, उन्हें गोदी में उठाकर लिए आ रहे हैं? वो भी सबके सामने। अरे महाकाल इ तो गजब हुई गवा अब तो हम आपको 51 सौ नहीं पूरे 11000 की लड्डू चढ़ाएंगे। हमारा पीछा जो छूटने वाला है, इन जुल्मी राजा से।"
अद्रांक्ष भी कामाक्षी को लेकर अपनी दूसरी गाड़ी में बैठ गया और सभी गाड़ियां अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी।
इधर राजस्थान में, गीतांजलि जी को पता चल चुका था कि अद्रांक्ष राजस्थान की हुकुम रानी सा को लेके आ रहे हैं, और ये सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना हीं नहीं रहा, उन्हें तो अपने बेटे रुद्राक्ष की शादी से ज्यादा खुशी सियासत की हुकुम रानी सा के आने से हो रही थी।
गीतांजलि जी अपने कमरे से बाहर निकल कर हॉल के बीचों-बीच आयी और सभी परिवार वालो और नौकरों को बुलाया। सबके आने के बाद उन्होंने सबसे कहा - "आप सब सियासत की हुकुम रानी सा का स्वागत करने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि हमें अभी अभी पता चला है कि अद्रांक्ष हमारी हुकुम रानी सा को लेकर आ रहे हैं।"
और फिर गीतांजलि जी ने नौकरों से कहा - "हमारी हुकुम रानी सा के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। पूरे राजस्थान को दुल्हन की तरह सजा दीजिए और राजस्थान के हर घर में मिठाई और कपड़े बटवाये जाए। हर जगह बस ढोल नगाड़े बजने चाहिए क्योंकि हमारे सियासत की हुकुम रानी सा आ रही हैं।"
इतना सुनने के बाद वहां मौजूद सभी लोग बहुत खुश हो गए। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अद्रांक्ष हुकुम सा अब सियासत की हुकुम रानी सा को लेकर वापस आ रहे हैं।
सब हंसी-खुशी अपनी-अपनी तैयारियों में लग गए पर उन सबके बीच वैदेही को जब ये पता चला तो उसके चेहरे की हवाइयां ही उड़ गई। उसने अंदर ही अंदर अपने गुस्से को दबा लिया। और फिर वो अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके खुद से बोली - "नहीं अद्रांक्ष सिंह शेरावत आप ऐसा नहीं कर सकते, आप हमारी इतने सालों की मेहनत को इस तरह से बर्बाद नहीं कर सकते। आपको नहीं पता हमने इस सियासत के लिए क्या-क्या किया है, और जब ये सियासत जल्द हीं हमारी होने वाली है तो आपने हमारी इस उम्मीद को भी तोड़ दिया और हमारी सारी चाल पर पानी फेर दिया। पर हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे, हमें कुछ तो करना होगा वरना ये सियासत हमारे हाथों से चली जाएगी।"
वैदेही ने अपना फोन उठाकर किसी को कॉल लगाया और कहा - "सुनो हुकुम सा पर नजर रखो और हमारी हुकुम रानी सा पर भी और जब भी मौका मिले तो हमारी हुकुम रानी सा को खत्म कर दो और याद रहे ये काम उनके राजस्थान पहुंचने से पहले हीं हो जाना चाहिए।"
इतना बोलकर वैदेही ने गुस्से से फोन काट दिया और टेंशन में इधर-उधर कमरे में टहलने लगी।
इधर गाड़ी में कामाक्षी, अद्रांक्ष की बाहों में ही सो गई थी और अद्रांक्ष बस कामाक्षी को अपनी बाहों में समेट कर उसे निहारे जा रहा था। फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के माथे पर किस करके मन में कहा - "अब हम आपकी आंखों में एक भी बूंद आंसू के नहीं आने देंगे हुकुम रानी सा। उस वैदेही की वजह से आपको इतना सब कुछ झेलना पड़ा, उनकी गलतियों की सजा आपको भुगतनी पड़ी। 2 सालों तक आपको दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। हम आपके आंसू की एक बूंद का हिसाब उस वैदेही से लेंगे, और वो दिन बहुत जल्द आएगा। बस एक बार वैदेही की कोख में पल रहा बच्चा इस दुनिया में आ जाए, फिर उस वैदेही को नर्क वाली जिंदगी हम दिखाएंगे।"
इस वक्त अद्रांक्ष की आंखों में खून सवार था। अगर कोई भी अद्रांक्ष को देखता तो जरूर वो खड़े-खड़े हीं कांपने लगता।
थोड़ी देर बाद गाड़ी अद्रांक्ष के एक विला के बाहर रूकी। वो विला भी देखने में एकदम आलीशान और बड़ा था चारों तरफ बॉडीगार्ड का कड़ा पहरा था।
गाड़ी रुकने के बाद अद्रांक्ष, कामाक्षी को अपनी गोद में उठाते हुए विला के अंदर चल दिया और कामाक्षी को ले जाकर अपने रूम में बेड पर आराम से लेटा दिया।
अर्पित, चुनमुन को गोदी में लेकर हॉल में खड़ा था। कुछ हीं देर बाद अद्रांक्ष नीचे आया, अर्पित अभी भी चुनमुन को गोद में लिए अद्रांक्ष के ऑर्डर का इंतजार कर रहा था।
अद्रांक्ष नीचे जाकर बिना कुछ बोले चुनमुन को अर्पित के गोद से लेकर अंदर चला गया। उसने चुनमुन को कामाक्षी के बगल में ही लेटा दिया।
फिर अद्रांक्ष वापस बाहर हॉल में आकर अपनी रौबदार आवाज में अर्पित से बोला - "विला की सिक्योरिटी डबल करवा दीजिए! क्योंकि हमें पता है अब तक हुकूम रानी सा के आने की खबर राजस्थान में पहुंच गई होगी। हमारे दुश्मनों के साथ-साथ वैदेही को भी पता चल गया होगा। हम नहीं चाहते कि कोई हमारी कामाक्षी को चोट पहुंचाए! इसलिए विला की सक्योरिटी डबल कर दीजिए। कोई अनजान शख्स भूलकर भी कामाक्षी के पास नहीं आना चाहिए और हां कल हम राजस्थान के लिए निकलेंगे तो आप उसके लिए भी सारी तैयारी कर लीजिएगा।"
और इतना बोलकर अद्रांक्ष अपने स्टडी रूम में चला गया।
वहीं राजस्थान में, एक महल जो सेरावत महल जितना बड़ा तो नहीं था पर फिर भी आलीशान था और बाहर बॉडी गार्ड का कड़ा पहरा था। उसी महल के अंदर एक आलीशान कमरे में एक शख्स जो बेड पर पेट के बल लेटा था जिसकी उम्र लगभग यही 22 होगी उस शख्स के बदन पर एक भी कपड़े नहीं थे। वो शख्स कमर तक ब्लैंकेट ओढ़ कर लेटा था।
उसका शख़्स का एक हाथ बगल में सो रही एक लड़की के कमर पर था। उस लड़की के बदन पर भी एक भी कपड़े नहीं थे। तभी उस शख्स के बगल में टेबल पर रखा फोन बज उठा। वो नींद में ही फोन उठाकर अपने कान के पास लगाया तो फोन की दूसरी तरफ से आदमी ने कहा - "मालिक एक बुरी खबर है पता चला है हुकुम सा राजस्थान की हुकुम रानी सा को राजस्थान ला रहे हैं!"
ये सुनते हीं उस शक्स की नींद एकदम गायब हो गई। उस शख्स ने जल्दी से उठ कर बैठते हुए हैरानी और गुस्से भरी आवाज में कहा - "क्या कह रहे हो तुम?"
दूसरी तरफ से आदमी ने कहा - "जी मालिक ये खबर आज हीं हमें पता चली है की हुकुम सा राजस्थान की हुकुम रानी सा को लेकर आ रहे हैं वो भी कल और इस खुशी में बड़ी रानी सा उनके स्वागत के लिए पूरे राजस्थान में मिठाई और कपड़े बटवा रही हैं, पूरे राजस्थान के कोने-कोने को दुल्हन की तरह सजाया भी जा रहा है।"
इतना सुन वो शख्स अपने गुस्से भरी आवाज में फोन पर हीं चिल्लाते हुए बोला - "तो अबतक तुम लोग क्या कर रहे हो? तुम लोग अपने काम में लग जाओ और याद रहे राजस्थान आने से पहले हीं हुकुम रानी सा का काम तमाम हो जाना चाहिए किसी भी कीमत पर हुकुम रानी सा राजस्थान में कदम ना रख पाएं।"
और इतना बोलकर उसने गुस्से से फोन फर्श पर हीं फेंक दिया।
तो इस आवाज से सो रही लड़की की नींद खुली। वो उठते हुए उस शख्स के कंधे पर अपना सिर रखकर अपनी मदहोश भरी आवाज में बोली - "क्या हुआ कुंवर सा आप सुबह-सुबह इतना गुस्सा क्यों हो गए?"
वो शख्स गुस्से से उस लड़की को दूर करते हुए बोला - "अपनी हद में रहो और हमारी ये फिक्र करना बंद करो!"
उस शख्स ने टेबल के पास पड़े कुछ नोटों की गड्डी उस लड़की के मुह पर फेंकते हुए कहा - ''ये लो अपनी कीमत और दफा हो जाओ यहां से।"
और फिर वो शख्स बेड से उठते हुए गुस्से से सीधा बाथरूम में चला गया।
बाथरूम में शावर के नीचे खड़े हुए गुस्से से लाल आँखें लिए दांतो को चबाते हुए बोला - "नहीं अद्रांक्ष सिंह शेरावत! नहीं। ये आपने ठीक नहीं किया, पहले हीं आपने हमसे हमारा इतना कुछ छीन लिया अब और नहीं! हम, हुकुम रानी सा के आ जाने की वजह से इस सियासत को नहीं खो सकते। इस सियासत पर हमारा हक था, है और रहेगा। हम अपनी इस सियासत को हासिल करके रहेंगे आपसे। आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लीजिए इस सियासत पर अपनी हुकूमत जमाने की, पर आने वाले वक्त में इस सियासत के हुकुम सा सिर्फ हम होंगे।"
वहीं कामाक्षी और चुनमुन साथ-साथ सो रही थी। तभी चुनमुन के पेट में फिर से दर्द होने लगा। वो दर्द के कारण जोर-जोर से रोने लगी। जिसे सुन कामाक्षी की नींद खुल गई और वो जल्दी से चुनमुन को अपनी गोदी में लेकर उसे शांत कराने की कोशिश करने लगी, दोनों बहनों की आवाज सुन अद्रांक्ष भी भागते हुए रूम में आया।
रूम में परेशान कामाक्षी रोती हुई चुनमुन को शांत कराने की कोशिश कर रही थी और साथ हीं चुनमुन अपने पेट पर हाथ से मल रही थी, कामाक्षी भी चुनमुन के दर्द को देख कर रोए जा रही थी।
ये सब देख अद्रांक्ष जल्दी से कामाक्षी के पास आते हुए बोला - "इन्हें क्या हुआ है? बताइए?"
फिर अद्रांक्ष कामाक्षी को शांत करते हुए आगे बोला - "आप प्लीज शांत हो जाइए कामाक्षी और हमें बताइए इन्हें क्या हुआ है?"
पर कामाक्षी को चुनमुन के दर्द के आगे कोई होश नहीं था तभी अद्रांक्ष जल्दी से अर्पित को कॉल करते हुए बोला - "तुरंत 5 मिनट के अंदर डॉक्टर की एक टीम हमारे विला में भेजिए"
और फिर फोन कट करके चुनमुन को गोदी में लेकर टहलने लगा और उसके पीठ पर हाथ फिराने लगा। उसके बाद चुनमुन धीरे-धीरे चुप होकर अद्रांक्ष के कंधे पर हीं सो गई!
ये सब देखकर कामाक्षी को थोड़ी राहत महसूस हुई।
फिर अद्रांक्ष, चुनमुन को आराम से लेटा दिया और कामाक्षी को रूम से बाहर ले जाकर दूसरे रूम में आया और कामाक्षी से पूछा - "कि अब हमें बताइए कामाक्षी, चुनमुन को क्या हुआ है? और आप क्यों रो रही हैं?"
कामाक्षी ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया और कहा - "हुकुम सा वो चुनमुन की किडनी खराब है, जब हमने उन्हें डॉक्टर को दिखाया तो हमें पता चला कि उनकी किडनीयां अब से नहीं बल्कि उनके जन्म से हीं खराब थी, और जब हमें ये बात पता चली तो हमने इसके इलाज के बारे में भी डॉक्टर से पता किया पर जब डॉक्टर ने बताया कि चुनमुन के इलाज के लिए नए किडनी डोनर चाहिए और उसके लिए अच्छी खासी कीमत भी चाहिए होगी तो ये सब सुनकर हमारी उम्मीद हीं टूट गई क्योंकि चुनमुन के इलाज के लिए ना तो हमारे पास में पैसे हैं, और ना हीं कोई हमारा अपना जो उन्हें अपनी किडनी दे सके?"
ये सब सुन अद्रांक्ष के दिल में एक चुभन सी हुयी और फिर अद्रांक्ष, कामाक्षी को गले लगाते हुए बोला - "कोई बात नहीं कामाक्षी अब हम हैं ना, हम हमारी चुनमुन का इलाज करवाएंगे और उनके लिए डोनर भी ढूंढ कर लाएंगे और देखिएगा हमारी चुनमुन बहुत जल्द ठीक हो जाएंगी तब उन्हें कोई दर्द सहने की जरूरत नहीं होगी!"
कामाक्षी ने पूछा - "क्या आप सच बोल रहे हैं हुकुम सा?"
अद्रांक्ष ने कामाक्षी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ते हुए उसकी आँखों में देख कर कहा - "तो क्या आपको हमारी बात पर विश्वास नहीं, हमने एक बार कहा ना कि हमारी चुनमुन को कुछ नहीं होगा आप देखिएगा हमारी चुनमुन एकदम ठीक हो जाएगी और वो एक नई जिंदगी जिएंगी। हम उसे हर वो चीज लाकर देंगे जिससे उन्हें खुशी मिले।"
अद्रांक्ष के मुह से चुनमुन के लिए ये सब सुनने के बाद कामाक्षी, अद्रांक्ष के गले लगकर रोते हुए बोली - "हमें नहीं पता कि हम आपका ये क़र्ज़ कैसे चुकाएंगे। लेकिन आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने हमारी चुनमुन के बारे में इतना...!"
इससे आगे कामाक्षी कुछ बोलती उससे पहले अद्रांक्ष बीच में हीं बोला - "नहीं कामाक्षी ये कोई हम एहसान नहीं कर रहे हैं हम ये हमारा फर्ज है, वो फर्ज जो हम अपनी बीवी के लिए कर रहे हैं, जो आप आज तक चुनमुन के लिए पूरा करती आई हैं, बस वही। जिस तरह आपने चुनमुन कि इतने सालों तक देखभाल की है अब से हम उनकी देखभाल करेंगे, और चुनमुन की सारी जिम्मेदारी अब हमारी होगी और आपको कोई जरूरत नहीं है हमें धन्यवाद कहने की समझ गई आप?"
अद्रांक्ष कामक्षी के गम को कम करने की कोशिश कर रहा था कि तभी बाहर अर्पित डॉक्टर्स की टीम को लेकर आ गया।
जिसके बाद अद्रांक्ष और कामाक्षी दोनों चुनमुन के पास चले गए जहाँ डॉक्टर चुनमुन को चेक कर रहे थे। डॉक्टर चेक करके अद्रांक्ष से बोले - "हुकुम सा इनके पास वक्त बहुत कम है हमें जल्दी अब इनका इलाज शुरू कर देना चाहिए क्योंकि इनकी दूसरी किडनी भी अब काम करना बंद कर रही है, हमें कल से हीं इनका ट्रीटमेंट शुरू कर देना चाहिए!"
ये सुनकर कामाक्षी घबरा गई और अद्रांक्ष ने कामाक्षी की घबराहट को महसूस करके उसके कंधे पर हाथ रख दिया और उसे सांत्वना दिया। फिर अद्रांक्ष ने डॉक्टर से कहा - "तो ठीक है आप सब इनका इलाज शुरू कीजिये और ध्यान रहे इन्हें कुछ भी नहीं होना चाहिए हमें हमारी चुनमुन सही सलामत मिलनी चाहिए एकदम ठीक होकर।"
तो डॉक्टर ने कहा - "उसकी फ़िक्र आप मत कीजिये हुकुम सा। हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे पर इनके इलाज के लिए हमें इन्हें विदेश ले जाना होगा क्योंकि इनकी अब जो कंडीशन है उस हिसाब से विदेश में मौजूद हमारे एक्सपर्ट डॉक्टर की टीम हीं इन्हें अब जल्द ठीक कर सकती है और वहां हमें जल्द हीं इनके लिए कोई डोनर भी मिल जाएगा!"
तो अद्रांक्ष ने कहा - "तो ठीक है आप आज हीं तैयारी कीजिये चुनमुन को ले जाने की।"
चुनमुन के जाने की खबर सुनकर कामाक्षी ने कहा - "ये क्या कह रहे हैं आप हुकुम सा? हम अपनी चुनमुन को अपने से दूर नहीं जाने देंगे।"
अद्रांक्ष ने कामाक्षी को समझाते हुए कहा - "प्लीज कामाक्षी बात मानिए, ये सब हम चुनमुन की भलाई के लिए हीं कर रहे हैं, अगर वो विदेश जाएंगी तभी वो जल्दी ठीक होकर वापस हमारे पास आ पाएंगी! तो आप प्लीज थोड़ा इंतजार कीजिए चुनमुन के लिए, फिर हमारी चुनमुन एकदम ठीक हो जाएगी।"
अद्रांक्ष कामाक्षी को समझा रहा था। उसने डॉक्टर को कुछ देर के लिए कमरे से बाहर जाने के लिए कहा जिसके बाद वो डॉक्टर्स की टीम नीचे चली गई!
कामाक्षी चुनमुन के होश में आने का इंतजार कर रही थी। ऐसे हीं कुछ देर इंतजार करने के बाद जब चुनमुन की नींद खुली तो वो अपने पास कामाक्षी को देखकर उसके गले लग कर बोली - "दीदी आपने इतनी देर क्यों लगा दी? आपको पता है मैं ना मै गाड़ी में आपका वेट करते-करते सो गई थी और मैंने सपने में देखा कि मैं आपसे दूर हो रही हूं।"
चुनमुन के मुंह से इतना सुन कामाक्षी चुनमुन को कस के पकड़ कर गले लगाते हुए रोने लगी!
ये देख चुनमुन, कामाक्षी से अलग हुई और उसके आंसू पोछ कर उससे बोली - "दीदी आप क्यों रो रहे हो? क्या मिस्टर हैंडसम ने आपको डाँटा है आप बताओ मैं अभी उनकी खबर लेती हूं?"
तभी अद्रांक्ष ने चुनमुन के पास बैठते हुए उससे कहा - "नहीं मिस एंग्री गर्ल, आपकी वो दीदी इसलिए रो रही है क्योंकि वो खुश है। ये सोच कर कि आप अब जल्दी से ठीक होने वाले हो।"
चूनमून ने चहकते हुए कहा - "क्या सच में! मैं ठीक हो जाऊंगी? मेरे टमी वाला कीटाणु निकल जाएगा, जिससे मेरे पेट में इतना दर्द होता है?"
अद्रांक्ष, चुनमुन के चेहरे पर आई चमक को देख मुस्कुराते हुए बोला - "हां! पर उसके लिए आपको डॉक्टर अंकल के साथ हॉस्पिटल में जाना होगा और वो आपके पेट से उस किटाणुओ को निकाल देंगे, उसके बाद आपके पेट में जो दर्द होता है ना वो ठीक हो जाएगा, समझी आप।"
चुनमुन ने पूछा - "तो दीदी भी हमारे साथ चलेंगी ना?"
अद्रांक्ष ने कहा - "नहीं! सिर्फ आप जा रही हैं और एक बार जब वहां आप का इलाज शुरू हो जाएगा, तो आपकी दीदी भी कुछ दिन में आपके पास आ जाएंगी क्योंकि अभी इस वक्त आपकी दीदी की यहां हमें सख्त जरूरत है इसलिए। फिर बहुत जल्द आपकी कामाक्षी दीदी आपके पास होंगी!"
चुनमुन ने इनकार करते हुए कहा - "नहीं हम दीदी के बिना नहीं रह पाएंगे और दीदी भी हमारे बिना नहीं रह पाएंगी हम कहीं नहीं जा रहे हैं!"
कामाक्षी ने चुनमुन को समझाते हुए कहा - "आपको जाना होगा और कुछ दिन मे जब वहां आपका इलाज शुरू हो जाएगा तो हम भी आपके पास आ जाएंगे और आपके मिस्टर हैंडसम है ना, वो हमें लेकर आएंगे तो आप प्लीज डॉक्टर अंकल के साथ चली जाइए!"
चुनमुन ने पूछा - ''आप पक्का आओगे ना? और आप मुझसे रोज कॉल में बात करना तभी हम जाएंगे वरना हम नहीं जाने वाले आपको छोड़कर!"
अद्रांक्ष ने तुरंत कहा - ''जरूर हम आपकी बात आपकी कामाक्षी दीदी से करवाएंगे पर अब आप अपने ये आंसू पोछिए और खुशी-खुशी जाइए ये ऐसे अपनी कामाक्षी दीदी को रूलाकर नहीं वरना हम आपके कामाक्षी दीदी को चुप नहीं करवा पाएंगे!"
और फिर अद्रांक्ष ने वहां से उठकर अपना फोन निकाला और अर्पित को कॉल किया। अर्पित बाहर पहले से हीं डॉक्टर के टीम के साथ चुनमुन को ले जाने के लिए रेडी था। जब अर्पित रूम में आया तो कामाक्षी ने चुनमुन का कुछ सामान अर्पित को दिया और खुद चुनमुन को बाहर तक लेकर आ गई, उसके बाद चुनमुन को एक गाड़ी में बैठा दिया।
चुनमुन के माथे पर किस करते हुए कामाक्षी ने कहा - "आप जाइए हम बहुत जल्द आपके पास आएंगे और डॉक्टर अंकल जो आपसे कहेंगे हर वो चीज करिएगा और लड़ाई किसी से नहीं और सारी दवाइयां चुपचाप खाती जाइएगा। खबरदार चीजें इधर-उधर कहीं फेंकी तो।"
और कामाक्षी ने गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया उसके बाद वो सब गाड़ियां वहां से चली गई!"
चुनमुन को खुद से दूर जाता देख कामाक्षी एक बार फिर से रोने लगी। कामाक्षी को रोते देखकर अद्रांक्ष आगे आकर कामाक्षी के आंसू पोछते हुए बोला - "चुप हो जाइए कामाक्षी! अब देखिएगा हमारी चुनमुन बहुत जल्द ठीक होकर वापस आ जाएगीं अब आप प्लीज मत रोइए!"
अद्रांक्ष कामाक्षी को शांत करवाते हुए कामाक्षी को साथ लेके अंदर चला गया और कामाक्षी को डाइनिंग टेबल पर बैठकर कामाक्षी के सामने वाली चेयर पर बैठ गया। फिर सर्वेंट को कुछ खाने के लिए लाने को कहा।
ये सुनकर सर्वेंट जल्दी से उनके आगे खाना रख कर चले गए तो अद्रांक्ष खुद अपने हाथों से कामाक्षी को खाना खिलाते हुए बोला - ''आप इसे खाइए कामाक्षी, क्योंकि आपने सुबह से कुछ खाया नहीं है!"
कामाक्षी ने अद्रांक्ष का चेहरा देखकर अद्रांक्ष के हाथों से खाना खा लिया। उस वक्त पर दोनों हीं एक-दूसरे को एकटक देख रहे थे। जब थोड़ी देर बाद खाना खत्म हुआ तो अद्रांक्ष अपने हाथ साफ करके कामाक्षी के पास आया और उसे अपनी गोद में उठा लिया।
ये देखकर कामाक्षी ने हैरानी से कहा - ''ये क्या कर रहे हैं आप? और हमे तुरंत नीचे उतारिए।"
अद्रांक्ष ने कहा - "नहीं आप अभी कमजोर हैं और आपको अभी आराम करने की सख्त जरूरत है! सुबह से रो-रो कर आपने अपनी पूरी एनर्जी खत्म हीं कर ली है। इसीलिए अब हम नहीं चाहते कि आप चलकर भी अपनी एनर्जी खत्म करें इसीलिए हम खुद आपको अपने कमरे में ले जा रहे हैं!"
कामाक्षी ने अद्रांक्ष की बातों को सुन मन में खुद से कहा - "ये कैसी बात कर रहे हैं, हॉल से रूम तक जाने में भी किसी की एनर्जी खत्म होती है क्या?"
तो अद्रांक्ष ने कहा - "हां!"
कामाक्षी ने अद्रांक्ष को टोकते हुए कहा - "1 मिनट हम तो अपने मन में बोल रहे थे ना, तो आप को कैसे सुनाई दिया?"
अद्रांक्ष ने कहा - "अब क्या करें जब आप मन में भी इतना तेज-तेज सोचेंगी तो हमें सुनाई देगा ही "
अद्रांक्ष ने रूम में आकर कामाक्षी को बेड पर लिटा दिया और खुद भी कामाक्षी के बगल में लेट गया। अद्रांक्ष को अपने इतने नजदीक देखकर कामाक्षी के दिल की धड़कनें बढ़ गई और उसने बेडसीट को मज़बूती से कर कर पकड़ लिया।
तभी अद्रांक्ष ने कामाक्षी के सिर को अपने एक हाथ की बाजू पर रखकर अपना दूसरा हाथ कामाक्षी की कमर पर रख दिया और उसके करीब आते हुए बोला - "अब इतना भी मत सोचिए हुकुम रानी, चुपचाप सो जाइए।"
और इतना बोलकर उसने कामाक्षी के माथे पर किस करके आंख बंद कर ली। वहीं कामाक्षी भी अद्रांक्ष के बारे में सोचते-सोचते सो गई।
रात का वक्त था और अद्रांक्ष के विला में पीछे की दीवार से कुछ लोग दीवार पार करके अंदर आने की कोशिश कर रहे थे। दीवाल पार करके उन्मे से एक ने अपने फोन पर कहा - "मालिक हम लोग अद्रांक्ष सिंह सेरावत के विला में आ गए हैं।"
तो फोन की दूसरी तरफ मौजूद शख्स ने कहा - "तो ठीक है अब जाओ और जाकर जल्दी से अपना काम खत्म करो।"
फिर वो आदमी अपना फोन विला के बाहर फेककर विला की तरफ बढ़ने लगा।
दूसरी तरफ रूम में जहां कामाक्षी और अद्रांक्ष एक साथ सो रहे थे तभी अद्रांक्ष का फोन बजा जिसे सुन उसकी नींद खुल गयी। अद्रांक्ष ने फोन उठाया तो कॉल की दूसरी तरफ की बातें सुनकर उसे ग़ुस्सा आने लगा और उसने फोन कट करके रख दिया। अद्रांक्ष कामाक्षी से अलग हुआ और आराम से कमरे के बाहर चला गया।
अद्रांक्ष के जाने के थोड़ी देर बाद कामाक्षी की भी नींद खुल गई। उसने जब अपने आस-पास अद्रांक्ष को देखा पर जब उसे अद्रांक्ष नहीं दिखा तो वो उठकर बाहर की ओर अद्रांक्ष को खोजने चली गई।
वहीं अद्रांक्ष अपने विला के पीछे साइड एक सोफे पर राजा की तरह बैठा था और उसके आसपास कई बॉडी गार्ड खड़े थे। इस वक्त अद्रांक्ष टेबल पर एक पैर के ऊपर दुसरा पैर रखकर, एक हाथ में बंदूक लिए, दूसरे हाथ से सिगरेट पीता हुआ सामने मौजूद उस शख्स को देख रहा था जो पूरी तरह से खून से लथपथ था। जिसे बॉडीगार्ड ने पकड़ रखा था।
उस वक्त अद्रांक्ष के पास के सारे बॉडीगार्ड गोलाई से उसे घेरे खड़े थे। उन सब के बीच सोफे पर बैठा अद्रांक्ष किसी राजा की तरह लग रहा था। उस वक्त अद्रांक्ष के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। कोई भी उस वक्त अद्रांक्ष का चेहरा देखकर बता हीं नहीं सकता था कि उसके मन में क्या चल रहा है।
फिर अद्रांक्ष उठते हुए टेबल पर पड़ा एक कटर और कपड़ा उठाकर उस शख्स के सामने झुकते हुए कहा - "तो बता किसके कहने पर यहां आया है?"
उस शख्स ने कुछ नहीं कहा क्योंकि उस शख्स को पहले से हीं कड़ी ट्रेनिंग दी गई थी। इसीलिए उस शख्स ने इतनी देर तक इतना टॉर्चर बर्दाश्त कर लिया था। लेकिन उसने ये नहीं बताया कि किस ने उसे कामाक्षी को मारने के लिए भेजा है?
फिर अद्रांक्ष ने वो कपड़ा उस शख्स के मुंह में ठुंसते हुए कहा - "चलो फिर ठीक है अगर तुम्हें अपना मुंह नहीं खोलना तो मैं अच्छे से तुम्हारा मुंह बंद कर देता हूं!" और उस कटर को लेकर उस शख्स की एक उंगली में रखकर दबा दिया!"
जिससे वो शख्स दर्द की वजह से तड़प कर रह गया और उसकी चीख मुंह के अंदर हीं रह गई, जहां उस कटर की वजह से उस शक्स की एक उंगली कट कर जमीन पर गिर गई थी!
फिर अद्रांक्ष ने उस शख्स के मुंह से कपड़ा निकाल कर कहा - "तो चलो अब बताओ किसने तुम्हें भेजा है?"
फिर भी जब वो शख्स नहीं बोला तो अद्रांक्ष इस बार उसकी दूसरी उंगली को कटर में रख दिया जिसे देख वो शख्स जल्दी से एक नाम बोला - "अधिराज सिंह!"
ये नाम सुनकर अद्रांक्ष की मुठ्ठीयां कस गई। उस नाम को सुनकर उसके सिर पर बस खून सवार हो गया और गुस्से से अद्रांक्ष ने उस शख्स के मुंह में बंदूक की नोक डालते हुए बंदुक की सारी गोलियां उसके मुंह में चला दी।
बंदूक में साइलेंसर लगे होने की वजह से बंदूक की आवाज कामाक्षी तक नहीं पहुंची।
पर कामाक्षी, अद्रांक्ष को ढूंढते ढूंढते विला के पीछे वाले गार्डन में आ गई थी और जब कामाक्षी की नजर वहां मौजूद अद्रांक्ष पर पड़ी। तो वो बस अद्रांक्ष को हीं देखे जा रही थी।
अद्रांक्ष को पहले हीं पता चल गया था कि कामाक्षी उधर आ रही है इसीलिए उसने अपने बॉडीगार्ड को कहकर वो जगह तुरंत खाली करवा दी थी और आराम से सोफे पर बैठ गया था जिससे कामाक्षी को उस वक्त जो कुछ भी हुआ उन सबकी भनक भी न लगी।
जब कामाक्षी की नजर वहां मौजूद अद्रांक्ष पर पड़ी तो बस अद्रांक्ष को हीं देखती रह गई और
अद्रांक्ष के करीब जाते हुए उससे बोली - "आप यहां क्यों सो रहे हैं हुकुम सा!"
कामाक्षी की आवाज़ सुनकर अद्रांक्ष जो सोफे पर आराम से अपने पैर टेबल पर रख कर पीछे की ओर सिर टिका कर आंख बंद किए हुए बैठा था। उसने आंख खोलकर कहा - "आप यहां इस वक्त?"
तो कामाक्षी ने फिर से पूछा - वही तो हम पूछ रहे हैं कि आप यहां क्या कर रहे हैं वो भी इतनी रात गए?"
ये सुनकर अद्रांक्ष ने कामाक्षी की कलाई पकड़ उसे गोद में बैठा कर कहा - "क्यों आपका हमारे बिना मन नहीं लग रहा था क्या जो आप यहां हमें ढूंढते ढूंढते हुए आ गई ?"
कामाक्षी ने इनकार करते हुए कहा - "ऐसा नहीं है हमें कोई शौक नहीं आपको ढूंढने का हम बस विला देख रहे थे और देखते-देखते विला के इस साइड आ गए बस।"
अद्रांक्ष ने कामाक्षी के चेहरे पर अपनी उंगली से सहलाते हुए कहा - "तो क्या आप सच बोल रही हैं? कि आप विला घूमते हुए यहां आई हैं या फिर हमारी याद आपको यहां तक ले आई !"
कामाक्षी ने झट से कहा - ''ऐसा कुछ भी नहीं है आप भी फालतू में कुछ ज्यादा मत सोचिए!"
और इतना बोलकर कामाक्षी अद्रांक्ष की गोद से उठने लगी, पर अद्रांक्ष ने उसे एक बार और खींच कर अपने करीब कर लिया और कामाक्षी की ओर देखकर बोला - "यहीं रहिए न कामाक्षी! हमारे पास हमारे इतने,,,"
और अद्रांक्ष ने कामाक्षी को अपने गले लगा लिया। फिर अपने हाथ से आहिस्ता-आहिस्ता कामाक्षी के पीठ पर सहलाते हुए अद्रांक्ष ने कहा - "आपको नहीं पता कामाक्षी कि इस सुकून को पाने के लिए हम कब से तड़प रहे थे। जब हमने पहली बार मंदिर में आपकी इन नीली आंखों को देखा था तभी से हम इन आंखों के दीवाने हो गए थे और इन्हीं आंखों को तलाशते रहे। बिना आपको देखे आपसे मोहब्बत करते रहे। हमें नहीं पता था कि आप कैसी दिखती थी, लेकिन हमें अपने ऊपर पूरा विश्वास था कि हम इन आंखों को ढुढंकर रहेंगे आप को पहचान कर रहेंगे।"
थोड़ा रूककर अद्रांक्ष कामाक्षी को देखकर आगे बोला - "देखीये ना जब हमने आपको देखा तो आपकी इन आंखों को देखते हीं पहचान गए कि आप ही हमारी कामाक्षी हैं वो कामाक्षी जिनका हमने इन 2 सालों से इंतजार किया है"
अद्रांक्ष जो कामाक्षी को अपने दिल की बातें बता रहा था कि तभी जोर से बादल गरजा जिसे सुन कामाक्षी ने अद्रांक्ष को कस के पकड़ लिया। ये देखकर अद्रांक्ष कामाक्षी से बोला - "देखिए ना कामाक्षी जब-जब हम मिले तब-तब मौसम ने एक अलग हीं इशारा किया, हमारी पहली मुलाकात में अचानक हवाओं का रुख बदलना! और दूसरी मुलाकात में तेज बारिश, जैसे कल बे मौसम बरसात और आज भी मौसम ने अपना रुख बदल हीं लिया है"
अद्रांक्ष के इतना बोलते हीं जोर से बारिश होने लगी। जिसे देखकर अद्रांक्ष खड़े होते हुए कामाक्षी से बोला - "अंदर चलिए कामाक्षी वरना अगर आप भीग गयी तो सर्दी हो जाएगी।"
ये बोलकर अद्रांक्ष, कामाक्षी का हाथ पकड़ चलने लगा पर कामाक्षी वहीं खड़ी रही। जब अद्रांक्ष ने पीछे मुड़के कामाक्षी से कहा - "चलिए कामाक्षी बारिश तेज हो रही है"
पर कामाक्षी ने तब भी अद्रांक्ष की कोई बात नहीं सुनी।
फिर कामाक्षी ने अद्रांक्ष से अपना हाथ छुड़ाकर गार्डन मे खुले आसमान के नीचे खड़ी हो गयी और उसने अपनी बाहें फैलाकर आसमान की ओर अपना चेहरा कर लिया। बारिश का पानी पूरी तरह से कामाक्षी को भीगा रहा था।
अद्रांक्ष जो पहले कामाक्षी को हैरानी से देख रहा था पर उसे बारिश के पानी में भीगते हुए देखकर बस उसकी खुबसुरती को देखता रह गया क्योंकि कामाक्षी के बारिश में भीगने की वजह से उसके बाल, उसके चेहरे, गर्दन और पीछे पीठ पर चिपक गए थे और कामाक्षी का सूट भीगकर उसके बदन से चिपक गया था।
अद्रांक्ष की नजरों से बेखबर कामाक्षी बारिश में भीगने का मजा ले रही थी। और कामाक्षी को देखते हुए अद्रांक्ष के कदम खुद हीं कामाक्षी की तरफ बढ़ने लगे। फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के ठीक पीछे से आकर अपने एक हाथ से कामाक्षी की कमर को पकड़ लिया और अपने दुसरे हाथ से कामाक्षी के बालों को एक साइड से आगे की ओर कर दिया। फिर कामाक्षी को अपने करीब करके अपने सीने से लगा लिया।
इस वक्त कामाक्षी की पीठ अद्रांक्ष के सीने से छु गई थी। अद्रांक्ष को अपने इतने करीब महसूस करके उसकी सांसें तेज हो गई। कामाक्षी की आंखें उस एहसास से अपने आप हीं बंद हो गई थी और उसके हाथों की मुठ्ठी में बंध गई थी।
तो वहीं अद्रांक्ष ने अपने गर्म होंठ को कामाक्षी की गर्दन पर रख दिया, जिसके बाद अद्रांक्ष कामाक्षी की गर्दन-पीठ हर जगह आहिस्ता-आहिस्ता चूमने लगा।
कामाक्षी अपनी आंखें बंद किए उन एहसासो में खो गई थी। फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी को झटके से पलटकर कामाक्षी का चेहरा अपनी तरफ किया तो अद्रांक्ष, ने कामाक्षी के चेहरे को देखा। कामाक्षी ने अपनी आंखों को कस के बंद कर रखा था। अद्रांक्ष ने अपने एक हाथ से कामाक्षी की कमर को पकड़ कर अपने और करीब कर लिया और दुसरे हाथ के उंगलियों से उसके चेहरे को सहलाते हुए उसके होठों को सहलाने लगा।
कामाक्षी के होंठ बारिश के पानी में भीगे एकदम गुलाबी और ठंडे थे। फिर अद्रांक्ष, कामाक्षी के चेहरे के करीब अपने चेहरे को ले गया। वो अपने होंठों को कामाक्षी के होठों से जोड़ने हीं वाला था की कामाक्षी को अपने चेहरे पर अद्रांक्ष की सांसे महसूस हुई और वो जल्दी से अपनी आंखें खोल कर अद्रांक्ष से दूर हो गई।
कामाक्षी पलट कर जाने हीं वाली थी कि अद्रांक्ष ने उसकी कलाई पकड़ ली। ये देखकर कामाक्षी की धड़कनें दुगनी तेजी से चलने लगी और अद्रांक्ष ने कामाक्षी के करीब आते हुए उसे अपनी गोद में उठा लिया।
कामाक्षी ने अपनी आंखें बंद करके अद्रांक्ष को कस के पकड़ लिया और उसके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। अद्रांक्ष कामाक्षी को गोद में लिए हुए गार्डन से विला की ओर चल दिया।
थोड़ी देर बाद जब अद्रांक्ष, कामाक्षी को लेकर अंदर विला तक आया और उसे रूम में ला कर अपनी गोद से उतारा और फिर अलमारी से अपनी शर्ट निकाल कामाक्षी को देते हुए बोला - "लिजिए ये और जाके अपने कपड़े बदल लिजिए।"
कामाक्षी उस शर्ट को देखते हुए बोली - "पर हुकुम सा हम तो अपने कपड़े लेकर आए है न तो हमे इसे पहनने की क्या जरूरत है। हम अभी जाके अपने कपड़े निकाल के पहन लेते हैं।"
इतना बोल कामाक्षी अपने बैग से कपड़े लेने चली गई तो अद्रांक्ष, कामाक्षी को रोकते हुए बोला - "उसकी कोई जरूरत नहीं हैं अपने बैग को पैक रहने दीजिए, उन्हे मत अनपैक करिए! अभी के लिए आप ये कपड़े पहन सकती हैं यहा पे हम दोनो के सिवा कोई नही है तो आपको झिझकने की कोई जरूरत नहीं है आप आराम से इन कपड़ो में रह सकती हैं।"
ये सुन कामाक्षी खुद से मन में बोली - "भले हीं यहां पे हम दोनो के सिवा कोई और नहीं है पर फिर भी हुकुम सा हम आपके सामने इन कपड़ो में कैसे रह सकते हैं?"
तो वहीं अद्रांक्ष ने कामाक्षी के मन की बात समझ गया, और उसने कामाक्षी की कलाई पकड़कर उसे अपने करीब करते हुए कामाक्षी की आंखों में देख कर बोला - "हुकुम रानी हम आपके पति हैं तो आपको हमारे सामने ऐसे शर्माने की जरूरत नही है! इससे पहले की इतनी देर तक भीगे होने की वजह से आपको सर्दी हो जाए आप जाइए और जल्दी से कपड़े बदल लिजिए वरना आपके पति होने के नाते ये काम हम भी कर सकते हैं।"
अद्रांक्ष की उंगलियां कामाक्षी के कमर में कसती जा रही थी जिसे महसूस करके कामाक्षी की सांसे फिर से तेज होने लगी।
इससे पहले की अद्रांक्ष, कामाक्षी के और करीब आता कामाक्षी ने जल्दी से दूर होते हुए वो शर्ट ले ली और चेंजिंग रूम में चली गई! ये देखकर अद्रांक्ष के चेहरे पर मुस्कान आ गई। और अद्रांक्ष भी अपने कपड़े लेकर चेंज करने चला गया।
जब थोड़ी देर बाद अद्रांक्ष चेंज करके आया और रूम में कामाक्षी को देखा तो वो अभी तक चेंज करके नहीं आई थी! ये देखकर अद्रांक्ष ने चेंजिंग रूम के बाहर आते हुए डोर नॉक करके कामाक्षी को आवाज दी तो अंदर कामाक्षी उस शर्ट में बाहर आने में झिझक रही थी।
जब अंदर से कामाक्षी की कोई आवाज नहीं आई तो अद्रांक्ष खुद हीं डोर ओपन करते हुए रूम के अंदर आ गया। रूम में आते ही जब अद्रांक्ष की नजर कामाक्षी पर गई तो उस वक्त कामाक्षी को देखकर अद्रांक्ष की नजर बस कामाक्षी पर हीं टीक गई।
कामाक्षी उस वक्त अद्रांक्ष के शर्ट में एकदम खूबसूरत लग रही थी और भीगने की वजह से उसके गालों पर लाली छाई हुई थी। बालो से अभी तक पानी टपक रहा था। अद्रांक्ष की सफेद शर्ट में कामाक्षी के घुठने तक के दूध जैसे गोरे पैर चमक रहे थे। कामाक्षी अपने सिर को शर्म से नीचे झुकाए खड़ी थी। कामाक्षी को देखकर मानो अद्रांक्ष कहीं खो सा गया।
कामाक्षी शर्ट को पकड़े हुए उसे घुटने के नीचे तक खींच रही थी। ये देखकर अद्रांक्ष कामाक्षी के करीब आया और उसके चेहरे को ऊपर की ओर किया। उसने कामाक्षी की आंखों मे देखा जो उस वक्त कामाक्षी ने शर्म से आंखे बंद की हुई थी! उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी की वो अपनी आंखे खोल कर अद्रांक्ष से नजर मिला पाए।
ये देखकर अद्रांक्ष के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो कामाक्षी को गोद में उठाते हुए चेंजिंग रूम से बाहर की ओर चल दिया। कामाक्षी अद्रांक्ष के इस हरकत से हैरान थी उसकी धड़कने इतनी तेज चलनें लगी थी की उन्हें अद्रांक्ष भी सुन सकता था।
फिर अद्रांक्ष ने वैसे हीं कामाक्षी को लेकर बेड पर आहिस्ता से लेटा दिया। कामाक्षी ने अभी भी अपनी आंखे नही खोली थी। ये देखकर अद्रांक्ष वहीं कामाक्षी के बगल लेट गया और कामाक्षी को अपनी बांहों में भर लिया। फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के कान में कहा - "इतना शर्माने की जरूरत नही है हुकुम रानी हम बिना आपके इजाजत के अभी ऐसा कुछ भी नही करने वाले, तो आप बेफिक्र हो कर आराम से सो जाइए इतना ज़्यादा मत सोचिए।"
अद्रांक्ष की बातें सुनकर कामाक्षी ने अपनी आंखे धीरे-धीरे खोलते हुए अद्रांक्ष को एक नजर देखा, जहां अद्रांक्ष की नीली आंखे कामाक्षी को हीं निहार रही थी। कामाक्षी अद्रांक्ष की नीली आंखों को देखकर मानो उसकी आंखों में गुम हो गई! और वैसे हीं अद्रांक्ष को देखते-देखते नींद के आगोश में चली गई ।
सुबह के समय जब अद्रांक्ष की नींद खुली तो उसने अपने पास सोई हुई कामाक्षी को देखा जो उससे लिपट कर सोई हुई थी। कामाक्षी का सिर अद्रांक्ष के कंधे पर और कामाक्षी का एक हाथ अद्रांक्ष के सीने पर था। वो देखकर अद्रांक्ष का मन हुआ कि वो बस वैसे हीं कामाक्षी को निहारता रहे पर उसे राजस्थान भी जाना था इसलिए वो जल्दी से उठा और कामाक्षी को भी उठाया।
जब कामाक्षी की नींद खुली तो अद्रांक्ष ने कहा - "कामाक्षी उठ जाइए और नहा लीजिए हमे आज राजस्थान के लिए भी निकलना हैं।"
जिसके बाद कामाक्षी बाथरूम में चली गई और अद्रांक्ष विला के दूसरे बाथरूम में चला गया।
थोड़ी देर बाद जब कामाक्षी बाथरुम से बाहर आई तो उसने एक सूट पहना हुआ था तभी अद्रांक्ष भी कमरे में आया तो उसके साथ पीछे कुछ सर्वेंट हाथों में बड़ी-बड़ी थाल लिए आ रहे थे जो लाल कपड़ों से ढके हुए थे। उनके साथ अद्रांक्ष के पीछे एक औरत आ रही थी जो लगभग 70 साल की थी और पूरे राजस्थानी लिबास में थी।
अद्रांक्ष अंदर आते हुए कामाक्षी से बोला - "इनसे मिलिए ये हैं हमारी दाई मां! इन्होंने हीं हमें और हमारे सभी भाई-बहनों को पाल पोस कर बड़ा किया है बचपन में ये हम सबका खूब ध्यान रखती थी।"
कामाक्षी ने अद्रांक्ष की बात सुनकर दाई मां के पैर छुए तो दाई मां कामाक्षी से बोली - "अरे ये क्या कर रही हैं हूकूम रानी सा? आप तो हुकुम रानी सा हैं और आप हमारे पैर छू रही हैं?"
कामाक्षी मुस्कुराते हुए दाई माँ से बोली - "तो क्या हुआ भले हीं मैं पद में बड़ी क्यों ना हूं पर आप तो उम्र में बड़ी हैं ना और अपने से बड़ों के तो हमेशा पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए!"
दाई मां ने कामाक्षी की ओर देखकर कहा - "मानना पड़ेगा हुकुम सा! हुकुम रानी तो आपकी बड़ी चोख्खी हैं। हुस्न से तो एकदम चांद का टुकड़ा है हीं और संस्कार और सर्वगुण संपन्न भी हैं हमारी हुकुम रानी सा।"
अद्रांक्ष दाई की तरफ देखकर स्माइल करते हुए बोला - "वो तो जब माशा कामाक्षी से मिलेंगी तो वही बताएंगी कि हमारी हुकुम रानी सा कैसी हैं?"
दाई मां ने कहा - "अच्छा ठीक है हुकुम सा आप जाइए और तैयार हो जाइये हम भी अपनी हुकुम रानी सा को तैयार करते हैं।"
अद्रांक्ष दूसरे कमरे में चला गया जहां पहले से हीं कुछ नौकर उसके लिए रॉयल कपड़े और शेरवानी लेकर मौजूद थे।
वहीं कामाक्षी के रूम में भी सर्वेंट सारे थाल रख कर चले गए और दाई मां कामाक्षी को तैयार करने लगी।
इधर अभिमन्यु सिंह के महल अभिमन्यु सिंह सोफे पर किसी राजा की तरह बैठा था और तभी उसका वफादार लखन आया और सिर झुकाकर कहा बोला - "बुरी खबर है मालिक !"
अभिमन्यु ने उसे आगे बोलने का इशारा किया तो लखन ने कहा - "मालिक हमने हमारे जिन आदमियों को अद्रांक्ष सिंह सेरावत के विला में हुकुम रानी सा को खत्म करने के लिए भेजा था उन्हें अद्रांक्ष सिंह सेरावत ने खत्म कर दिया।"
इतना कहने के बाद लाखन चुप हो गया तो अभिमन्यु ने उसे वहां से जाने का इशारा किया।
अभिमन्यु टेबल से अपनी शराब की ग्लास उठाकर महल की खिड़की की तरफ जाकर, बाहर के नजारे को देखते हुए खुद से बोला - "मानना पड़ेगा, तुम्हें अद्रांक्ष सिंह शेरावत ! तुम्हें पता था कि मैं जरूर कुछ ऐसा करने वाला हूं और इसलिए लिए तुमने पहले से हीं तैयारी कर ली थी खैर छोड़ो अब आ हीं रहे हो राजस्थान तो तुमसे और हुकुम रानी सा से एक मुलाकात तो बनती है।"
इधर दिल्ली में दाई मां ने कामाक्षी को पूरी तरह से राजस्थानी लिबास मे तैयार कर दिया था जब उन्होंने कामाक्षी को देखा तो अपनी उंगली से अपनी आंख का काजल लेकर कामाक्षी के कान के पीछे लगाते हुए बोली - "वाह हुकुम रानी सा आप तो इतनी सुंदर लग रही हैं कि कहीं हमारी हीं नजर आपको ना लग जाए!"
वहीं कामाक्षी जिसे एक राजस्थानी भारी सा लहंगा पहनाया गया था जो पूरा ऊपर से लेकर नीचे तक सोने के धागों और कीमती हीरे-मोती से जड़ा हुआ था। उन्होंने माथे पर मांग टीका, नाक में नथनी और गले में खानदानी हार और हाथ की कलाइयों में भर-भर के चूड़ियां पहनी थी और इन सब में कामाक्षी बला की खूबसूरत लग रही थी।
तभी उस कमरे में अद्रांक्ष भी आया जो एक रॉयल ग्रीन कलर की शेरवानी पहने हुए था। उसके एक हाथ में शाही तलवार थी और उसके पीछे एक नौकर थाल में पगड़ी लेकर अद्रांक्ष के पीछे आ रहा था।
जब अद्रांक्ष की नजर कामाक्षी पर गई तो वो भी उसकी खूबसूरती में एकदम खो सा गया। उस वक्त अद्रांक्ष का तो मन कर रहा था कि वो कामाक्षी को बस छुपा कर रख ले और कोई भी कामाक्षी को देख ना सके।
तभी दाई मां अद्रांक्ष को ख्यालों से वापस लाते हुए बोली - "अरे हुकुम सा कहां खो गए? चिंता मत कीजिये हमारी हूकूम रानी सा अब आपकी ही हैं। वो कहीं आपको छोड़कर कही नही जाएगी जो आप उन्हें ऐसे एक टक निहारे जा रहे हैं।"
अद्रांक्ष दाई माँ की बातें सुनकर उन्हें इनकार करते हुए बोला - "ऐसा कुछ नहीं है दाई मां!"
फिर दाई मां अद्रांक्ष को सोफे पर बैठने के लिए बोली और उन्होंने नौकर से थाल लेकर कामाक्षी के पास आकर उससे कहा - "लीजिए हुकुम रानी सा ये पगड़ी लेकर हुकुम सा के सिर पर अच्छे से पहना दीजिए।"
उसके बाद कामाक्षी उस थाल से पगड़ी उठाते हुए अद्रांक्ष के पास आकर उसके सिर पर अच्छे से पगड़ी पहनाने लगी। उसके बाद दाई मां ने कामाक्षी को भी अद्रांक्ष के बगल में बैठने को कहा! जिसके बाद दाई मां एक थाल से नोटों की गड्डियां उठाते हुए अद्रांक्ष और कामाक्षी के चारों तरफ घुमा कर नौकर को देते हुए बोली - "ये लीजिए और इन्हें जाकर गरीबों में बांट दीजिएगा।"
दाई माँ ने अद्रांक्ष को कुछ इशारा किया तो अद्रांक्ष खड़ा हुआ और एक चुनरी लेकर कामाक्षी को सिर से ओढ़ाते हुए उसकी नाक तक लंबा घूंघट कर दिया।
फिर दाई मां ने कहा - "अब चलिए हुकुम सा हमारा राजस्थान हमारी हुकुम रानी सा की एक झलक देखने के लिए बेताब है।"
और अद्रांक्ष कामाक्षी का हाथ थामे विला से बाहर की ओर चल दिया उस वक्त वहां पर मौजूद सारे बॉडीगार्ड-सर्वेंट सब लोगों ने ही शाही पोशाक पहन रखी थी। सबने ब्लैक कलर की शेरवानी और सिर पर लाल पगड़ी पहनी थी।
कामाक्षी और अद्रांक्ष विला के बाहर गार्डन एरिया में आए जहां पहले से हीं एक जेट खड़ा था जिसे फूलों से पूरी तरह से सजाया गया था। अद्रांक्ष कामाक्षी का हाथ थामे उसे जेट में अपने साथ ले गया। जेट को अंदर से भी फूलों से खूब सजाया गया था और थोड़ी हीं देर बाद वो जेट राजस्थान के लिए निकल गाया।
इधर आज पूरे राजस्थान के हर राज्य को खूब सजाया गया था। आज रास्ते हर एक गली हर एक रोड पर पूरी जमीन को फूलों से ढकी हुई थी और शेरावत महल में पूरे राजस्थान के हर राज्य से राज घराने के लोग आए हुए थे। और पुरी शेरावत फैमिली शाही कपड़ों में तैयार होकर मेहमानों की आवभगत करने में व्यस्त थी।
तभी एक कॉल आई, रणवीर ने फोन को उठाया तो दूसरी तरफ से दाई मां ने कहा - "कुवंर सा अपनी हूकूम रानी सा के स्वागत के लिए तैयार हो जाइये! हुकुम सा राजस्थान के लिए निकल चुके हैं।"
ये सुनने के बाद रणवीर ने पूरे महल में सबको बताते हुए कहा - "भाई सा राजस्थान के लिए दिल्ली से निकल चुके हैं।"
रणवीर के इतना बोलते ही महल के बाहर ढोल नगाड़े बजने शुरू हो गए और महल के अंदर राजस्थानी घूमर डांसर राजस्थानी गाने पर डांस करने लगी जिसे देखने के लिए वहां भीड़ भी जमा हो गई।
"केसरिया मोरे बालम पधारो
जी पधारो म्हारे देस
हे…
ढोल आयो रे
आयो रे आयो
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
फिर से अपने संग
बहार लेके आयो रे
आयो रे ढोल
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे!"
महल में सोफे पर बैठ कर शेरावत फैमिली राजस्थानी डांस देख रही थे की तभी कुछ और राजस्थानी डांसर ने आगे आकर वैदेही और कृष्णा को अपने साथ डांस के लिए खींच लिया।
वहीं वैदेही और कृष्णा भी अपने लहंगे की चुनरी को अपने नाक तक घुंघट करके उनके साथ डांस करने लगी और उनकी देखा-देखी रणवीर की दोनों बहने भक्ति और भव्याभी उन लोगों के पास जाकर राजस्थानी डांस करने लगी।
"मई साँची कहु साँची
मई साँची कहु रे
सच हो गए मेरे
सपने सुहाने सपने सुहाने
चैल भवर हो वीर
पायो रे हो ढोल
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
आयो ढोल हे हे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे!"
कुछ देर बाद महल के कुछ किलोमीटर दूर हीं अद्रांक्ष की जेट आकर रूकी और जहां पर उस मैदान को पूरा फूलों से सजाया हुआ था। तभी अद्रांक्ष, कामाक्षी का हाथ थामे जेट से नीचे उतरा। वहां पहले से हीं कुछ राजघरानों के लोग मौजूद थे।
जेट से उतरने के बाद अद्रांक्ष और कामाक्षी के आगे रॉयल गाड़ियां आकर रुकी और एक नौकर ने उस गाड़ी का दरवाजा खोला जिसके बाद अद्रांक्ष और कामाक्षी उस गाड़ी में बैठ गए और वो गाड़ी महल की ओर चल दी।
उस गाड़ी के आगे पीछे भी 15 गाड़ियां चल रही थी वो सब गाड़ियां भी रॉयल गाड़ियां थी और जब गाड़ियां महल की ओर चल रही थी तो पूरे रास्ते पर वहां के लोग अद्रांक्ष की गाड़ी पर फूल बरसा रहे थे वे सब लोग अद्रांक्ष और कामाक्षी की एक झलक पाने के लिए बेताब थे और वो रॉयल गाड़ियां धीरे-धीरे महल की ओर पहुंचने लगी।
महल में गीतांजलि जी सोफे पर बैठी थी तभी एक नौकर आकर उन्हें बोला - "रानी सा! हुकुम सा पधार चुके हैं!"
ये सुनकर गीतांजलि जी महल के द्वार की ओर चल दी उनके पीछे कुछ नौकर हाथ में स्वागत का सामान लिए उनके साथ चल रहे थे।
जब अद्रांक्ष की गाड़ी महल के बाहर आकर रुकी तभी एक नौकर ने आकर कार का दरवाजा खोला और अद्रांक्ष गाड़ी के बाहर आया। फिर अद्रांक्ष ने कामाक्षी के उतरने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया और कामाक्षी भी अद्रांक्ष का हाथ थाम कर गाड़ी के बाहर आयी। वो दोनो महल के मेन गेट से महल के द्वार की ओर चल दिए।
दोनो तरफ़ किनारे पर खड़े लोग उनके ऊपर फूलों की बारिश कर रहे थे और वे दोनों मेन द्वार पर पहुंच गए जहां गीतांजलि जी और राज घराने के लोग खड़े उनका इंतजार कर रहे थे।
उसके बाद गीतांजलि जी ने एक थाल लेकर अद्रांक्ष और कामाक्षी की आरती उतारी और अद्रांक्ष के माथे पर तिलक लगाकर चावल छिड़का और एक मिट्टी का प्याला जिसमें से धुआं निकल रहा था उस प्याले को लेकर अद्रांक्ष के ऊपर से नीचे गोलाई से घूमाने के बाद उसे भी एक थाल में रख दिया। फिर एक दूसरी थाल जमीन पर रखी जिसमें लाल रंग का आलता था।
उसके बाद कामाक्षी और अद्रांक्ष को अंदर आने के लिए कहा और कामाक्षी ने उस थाल में पैर रखकर जमीन पर धीरे-धीरे चलना शुरू किया। उस वक्त भी उनके ऊपर फूलों की वर्षा हो रही थी और जब वे दोनों हॉल के बीचो-बीच आ गए तो राजस्थानी डांसर अद्रांक्ष और कामाक्षी के चारों तरफ घूम-घूम कर डांस करने लगे। उस वक्त अद्रांक्ष और कामाक्षी एकदम बीच में थे जहां गोलाई से सारे राजस्थानी डांसर गोल-गोल घूम कर डांस कर रहे थे और उनमें कृष्णा, वैदेही, भक्ति, भव्याभी भी शामिल थी।
"साजन मेरे बिराजे घर
ढोल भी धम धम बजे
साजन मेरे बिराजे घर
ढोल भी धम धम बजे
मैं मीणा के सुर बजे
घूंघर छनन छनन
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
फिर से अपने संग
बहार लेके आयो रे
आयो रे ढोल हो
आयो ढोल हो ओ ओ
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे
ढोल आयो रे आयो
रे ढोल आयो रे!"