ये कहानी है इशानी की , इशानी की लाइफ तब बदल जाती है जब उसकी मॉम डैड के मौत हो जाती है और उसे भी मारने की कोशिश की जाती है ईशानी की तब मुलाकात होती है रुद्रांश सिंह राठौर से जो अंडरवर्ल्ड की दुनिया में माफिया किंग नाम से जाना जाता था.... आपको क्या... ये कहानी है इशानी की , इशानी की लाइफ तब बदल जाती है जब उसकी मॉम डैड के मौत हो जाती है और उसे भी मारने की कोशिश की जाती है ईशानी की तब मुलाकात होती है रुद्रांश सिंह राठौर से जो अंडरवर्ल्ड की दुनिया में माफिया किंग नाम से जाना जाता था.... आपको क्या लगता है क्या रुद्रांश इशानी की जान को बचा पाएगा ??? ओर कैसे पहुंची इशानी रुद्रांश के पास जाने के लिए नॉवेल के साथ बने रहिए...!
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राठौर फैमिली, नाम ही काफी है। भारत के सबसे ताकतवर और अमीर परिवारों में से एक, जिनकी जड़ें सिर्फ बिज़नेस तक सीमित नहीं थीं। इनकी पकड़ अंडरवर्ल्ड से लेकर राजनीति तक हर जगह थी। और इसी परिवार का वारिस था रुद्रांश राठौर। रुद्रांश का परिचय रुद्रांश, 24 साल का एक ऐसा इंसान था, जिसका चेहरा जितना शांत और ठंडा लगता था, उसके अंदर उतना ही खून खौलता था। उसकी आँखें—गहरी काली, जैसे किसी रहस्य का समंदर—जिसे देख लोग एक बार में ही समझ जाते थे कि सामने खड़े शेर से टकराना अपनी मौत को दावत देना है। उसके गुस्से के किस्से मशहूर थे। "रुद्रांश राठौर के सामने कोई एक बार खड़ा हो सकता है, लेकिन दूसरी बार खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता।" सुबह 10 बजे, मुंबई की सबसे ऊँची इमारत में राठौर एंटरप्राइजेस का बोर्ड मीटिंग हॉल। रुद्रांश अपने ऑफिस की चेयर पर बैठा हुआ था। उसके चारों तरफ बैठे लोग उसकी तरफ देखने की हिम्मत नहीं कर रहे थे। मीटिंग हॉल की घड़ी की टिक-टिक भी मानो रुक सी गई थी। एक क्लाइंट उसकी डील के पैसे समय पर ना चुका पाने के लिए सफाई देने की कोशिश कर रहा था। "म... मुझे थोड़ा और समय चाहिए, सर। मैं... मैं पूरा पैसा चुका दूंगा।" रुद्रांश ने धीरे से अपनी चेयर से उठते हुए कहा: "तुम्हें लगता है कि ये राठौर एंटरप्राइजेस है या कोई धर्मशाला?" उसने अपने सेकंड-इन-कमांड, विक्रम, की तरफ देखा। "विक्रम, इस आदमी को याद दिलाओ कि राठौर से वादे तोड़े नहीं जाते। और अगर तोड़े जाएं, तो उसके क्या अंजाम होते हैं।" क्लाइंट पसीने से तर हो गया। उसे समझ आ गया था कि उसकी लापरवाही की कीमत सिर्फ पैसे नहीं, उसकी जान भी हो सकती है। जंगल का हमला: शाम को, रुद्रांश एक मीटिंग के लिए अपने प्राइवेट कारवां के साथ जंगल के रास्ते से गुजर रहा था। चार एसयूवीज का काफिला था, हर कार में हथियारबंद बॉडीगाईस थे। तभी एक धमाका हुआ। सामने एक जीप ने सड़क ब्लॉक कर दी। चारों तरफ से गोलियां चलने लगीं। "सर, ये एम्बुश है! हमें यहाँ से निकलना होगा।" लेकिन रुद्रांश शांत था। उसने अपनी गाड़ी से उतरते हुए कहा: "जो लोग राठौर फैमिली पर हमला करने की हिम्मत करते हैं, उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि हम कभी हारते नहीं।" उसने अपनी गाड़ी से मशीन गन उठाई और अपने आदमी के साथ जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। कुछ ही मिनटों में हमलावरों की चीखें जंगल में गूंजने लगीं। हमले के बाद: रुद्रांश ने अपने कोट से खून पोंछते हुए कहा: "इन्हें जिंदा छोड़ दो। मेरे पास लाने का हुक्म दो। अब इनसे पूछूँगा कि मौत मांगने का कारण क्या था।" रुद्रांश की आँखों में अब भी वही जुनून और ठंडक थी। "राठौर से टकराने की हिम्मत करना, खुद को मिटाने के बराबर है।" दूसरा अध्याय: 'जंगल की गूंज' रुद्रांश राठौर, जंगल के बीचों-बीच अपनी गाड़ी से बाहर खड़ा था। चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा और अंधेरा था। उसकी आँखें अब भी उस ओर टिकी हुई थीं जहाँ से हमलावरों ने उस पर हमला किया था। हवा में बारूद की गंध अब भी तैर रही थी। "सर, हमले की जगह साफ कर दी गई है। आगे बढ़ना सुरक्षित है।" रुद्रांश ने बिना कुछ कहे अपनी गाड़ी की ओर कदम बढ़ाए। उसकी चाल में वही रुतबा और दबदबा था, जिसे देखकर दुश्मन कांपते थे। उसने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। जैसे ही उसने गाड़ी का इंजन चालू किया, अचानक उसके कानों में एक अजीब सी आवाज़ गूंजने लगी। "ये... क्या था?" वह ध्यान से सुनने लगा। आवाज़ धीरे-धीरे और स्पष्ट हो रही थी। यह किसी के रोने की आवाज़ थी—एक मासूम और डरी हुई चीख, जो हवा में कहीं दूर से आ रही थी। वह कुछ पल के लिए ठिठक गया। "विक्रम, क्या तुमने ये आवाज़ सुनी?" "नहीं, सर। कौन सी आवाज़?" रुद्रांश ने अपनी गाड़ी का इंजन बंद कर दिया। उसने अपनी जैकेट को ठीक किया और गाड़ी से उतरकर उस दिशा की ओर चलने लगा, जहाँ से आवाज़ आ रही थी। जंगल में चारों तरफ अंधेरा था। उसके कदमों की आवाज़ सूखी पत्तियों पर गूंज रही थी। लेकिन वह रुकने वाला नहीं था। कुछ ही देर बाद, वह एक घनी झाड़ियों के पास पहुँचा। उसने आवाज़ को और करीब से सुना। अब वह समझ गया था—यह एक छोटी बच्ची की रुलाई थी। "यहाँ कोई है। बाहर आओ।" कोई जवाब नहीं आया। उसने अपनी जेब से टॉर्च निकाली और झाड़ियों के अंदर रोशनी डाली। और फिर, उसकी आँखें ठहर गईं। झाड़ियों के पीछे, एक नन्ही सी लड़की दुबकी हुई बैठी थी। उसकी उम्र शायद 12 साल रही होगी। उसका चेहरा धूल से सना हुआ था, और उसकी आँखों में एक डरावनी चमक थी। वह कांप रही थी, जैसे ठंड और डर ने उसे जकड़ रखा हो। "तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रही हो?" लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस डरी हुई उसे देखती रही। "मैंने पूछा, तुम यहाँ क्या कर रही हो?" लड़की की आँखों से आँसू बहने लगे। उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि रुद्रांश को सुनने के लिए झुकना पड़ा। "उन्होंने... मेरी फैमिली को मार दिया। मुझे मारने के लिए भी... वो लोग... पीछे थे।" रुद्रांश के चेहरे पर एक पल के लिए भाव बदले। उसकी आँखों में गुस्से और दया का अजीब सा मिश्रण था। "कौन थे वो लोग?" लड़की ने बस सिर हिलाकर मना कर दिया, जैसे वह नाम लेने से भी डर रही हो। "अब तुम सुरक्षित हो। अगर किसी ने तुम्हारी तरफ आँख उठाकर भी देखा, तो वो आखिरी बार देखेगा।" उसने झाड़ियों से उस लड़की को बाहर निकाला और अपनी जैकेट उतारकर उसे ओढ़ा दी। "चुप रहो। मैं तुम्हें अपने साथ ले जा रहा हूँ।" रुद्रांश उस मासूम लड़की को अपनी गाड़ी में बिठाकर अपने मेंशन की तरफ बढ़ा। लेकिन उसके दिमाग में एक सवाल बार-बार गूंज रहा था—"कौन है ये लड़की, और इसके पीछे कौन लोग हैं?"
गाड़ी जंगल से निकलकर शहर की ओर बढ़ रही थी। रुद्रांश ड्राइविंग सीट पर था, और नन्ही लड़की उसके बगल में बैठी थी। उसकी आँखें डर और थकावट से भरी हुई थीं। ठंड के मारे उसके हाथ कांप रहे थे। रुद्रांश ने एक नज़र उसकी तरफ डाली।
रुद्रांश (धीमे मगर सख्त लहजे में):
"तुम्हारा नाम क्या है?"
लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप खिड़की के बाहर देखने लगी, जैसे उस सवाल का जवाब देना भी उसके लिए मुश्किल था।
रुद्रांश (थोड़ा गुस्से से):
"मैंने सवाल किया है, जवाब दो।"
लेकिन जैसे ही उसने लड़की की तरफ देखा, वह बेहोश हो गई। उसका सिर सीट पर झुक गया। रुद्रांश ने तेजी से गाड़ी रोकी।
रुद्रांश (हैरानी और हल्की झुंझलाहट से):
"अरे! अब ये क्या हो गया?"
उसने लड़की की नब्ज चेक की। उसकी साँसें धीमी थीं, लेकिन स्थिर थीं। वह सिर्फ थकी हुई और डरी हुई थी।
रुद्रांश (अपने आप से):
"शायद यह बच्ची सदमे में है।"
उसने गाड़ी का इंजन चालू किया और तेज़ी से अपने मेंशन की ओर बढ़ा।
राठौर मेंशन की भव्यता किसी महल से कम नहीं थी। बड़े-बड़े गेट, सुरक्षा के कड़े इंतजाम, और चारों ओर सन्नाटा था। रुद्रांश ने अपनी गाड़ी अंदर की ओर मोड़ी और मुख्य दरवाजे के सामने रोक दी।
जैसे ही उसने गाड़ी से बाहर कदम रखा, उसके वफादार सुरक्षाकर्मी और नौकर दौड़ते हुए उसकी ओर आए।
विक्रम:
"सर, आप ठीक हैं?"
रुद्रांश (कड़क आवाज़ में):
"ठीक हूँ। लेकिन यह लड़की ठीक नहीं है। इसे अंदर ले चलो।"
एक नौकर ने लड़की को उठाने की कोशिश की, लेकिन रुद्रांश ने उसे रोक दिया।
रुद्रांश (गुस्से में):
"हाथ लगाने की ज़रूरत नहीं। मैं खुद इसे लेकर जाऊँगा।"
उसने लड़की को अपनी बाहों में उठाया और सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ा। उसके कदमों में वही दबदबा था, जिसे देखकर नौकर सहम जाते थे।
रुद्रांश ने लड़की को बेड पर लिटाया और अपनी नौकरानी, गायत्री को बुलाया।
गायत्री:
"हुकुम, यह कौन है?"
रुद्रांश (सख्त लहजे में):
"यह पूछने का तुम्हें हक नहीं है। बस इसे संभालो। इसे खाना खिलाओ, और इसके कपड़े बदलने का इंतजाम करो। जब तक यह यहाँ है, इसकी पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है।"
गायत्री ने सिर झुका लिया।
गायत्री:
"जैसा आप कहें, हुकुम।"
रुद्रांश ने एक पल के लिए लड़की की ओर देखा। उसके चेहरे पर थकावट के निशान थे, लेकिन उसमें एक मासूमियत थी, जो शायद उसने बहुत कम देखी थी।
रुद्रांश (अपने आप से, धीरे से):
"तुम्हें यहाँ तक लाने वाले बहुत सोच-समझकर यह कदम उठाए होंगे। लेकिन अब, जब तुम मेरे पास हो, तो तुम्हारा हर दुश्मन मेरा दुश्मन होगा।"
उसने गायत्री को इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया। लेकिन उसके दिमाग में अब भी एक ही सवाल गूंज रहा था—"यह बच्ची कौन है, और इसके पीछे कौन लोग हैं?"
रुद्रांश की जिंदगी में यह पहला मौका था जब उसने किसी की इतनी परवाह की थी। लेकिन यह परवाह उसे कहाँ तक ले जाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
रुद्रांश के कमरे से बाहर निकलते ही उसकी मस्तिष्क में बहुत सारे सवाल घूमने लगे थे। वह जानता था कि वह लड़की कोई आम बच्ची नहीं है। उसकी मासूमियत के पीछे एक रहस्य था, और यह रहस्य उसे हर हाल में जानना था।
गायत्री ने कमरे का दरवाजा खोला और अंदर जाकर रुद्रांश को सूचित किया।
गायत्री:
"हुकुम, बच्ची को होश आ गया है।"
रुद्रांश (गंभीरता से):
"क्या वह ठीक है?"
गायत्री:
"जी हाँ, हुकुम। वह कुछ देर में पूरी तरह से होश में आ जाएगी।"
रुद्रांश ने सिर झुका लिया और फिर एक गहरी साँस ली। उसे अब यह जानने की ज़रूरत थी कि वह लड़की कौन थी। वह किसके लिए भागी थी, और कौन लोग उसके पीछे थे।
रुद्रांश ने एक गहरी निगाह से अपने नौकरों को देखा और आदेश दिया—
रुद्रांश:
"किसी भी हालत में, इस लड़की के बारे में कोई भी जानकारी जुटाओ। मुझे इस बारे में सब कुछ पता होना चाहिए।"
इसी दौरान, कमरे में...
इशानी की आँखों में हलका सा कांपन था। उसका सिर भारी था, और उसके शरीर में कमजोरी महसूस हो रही थी। जैसे ही वह होश में आई, उसने खुद को बिस्तर पर पाया। उसकी आँखों में घबराहट थी। उसे याद आया, वह कहाँ थी, और किस हालत में पहुँची थी।
इशानी (मुझे क्या हुआ? किधर हूँ मैं?)
उसने अपने चारों ओर देखा और बमुश्किल उठकर बैठने की कोशिश की। अचानक, कमरे का दरवाजा खुला और रुद्रांश अंदर आया। उसकी ठंडी और गंभीर नज़रों ने इशानी को असहज कर दिया।
रुद्रांश (सख्त आवाज में):
"तुम ठीक हो?"
इशानी चुप रही, लेकिन उसका चेहरा डर और उलझन से भरा हुआ था।
इशानी (धीरे से, खुद से):
"कहाँ हूँ मैं?"
रुद्रांश ने कदम बढ़ाए और उसके पास जाकर उसकी ओर देखा।
रुद्रांश (कड़क लहजे में):
"तुमने मेरा नाम नहीं लिया। क्या तुम मुझसे बात नहीं करना चाहोगी?"
इशानी ने कांपते हुए उसकी ओर देखा, लेकिन उसका डर धीरे-धीरे कम हो रहा था। उसने जैसे ही रुद्रांश की आँखों में देखा, उसे समझ में आया कि वह यहाँ उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
इशानी (धीरे से, हिचकिचाते हुए):
"म... मेरा नाम इशानी है।"
रुद्रांश को उसकी आवाज में एक डर था, लेकिन वह उसकी मासूमियत में खो गया। उसकी आँखें अब गहरी चिंताओं से भरी हुई थीं।
रुद्रांश (धीरे से):
"इशानी..."
इशानी ने सिर झुकाया, और उसकी नज़रें अब भी कांप रही थीं।
रुद्रांश (तलाशते हुए):
"तुम्हारे पीछे कौन लोग हैं, इशानी?"
इशानी के चेहरे पर एक कड़ी चुप्पी छा गई। वह कुछ नहीं बोली, लेकिन उसके अंदर एक डर था, जो अब और भी गहरा हो चुका था।
रुद्रांश अब भी उसका नाम जानकर और उसे सामने देखकर कुछ नहीं समझ पा रहा था। वह उसे किसी भी हालत में जाने नहीं देगा।
रुद्रांश (सख्त लहजे में, खुद से):
"तुम जो भी हो, तुम मेरे पास हो अब। और जब तक तुम मुझसे कुछ नहीं कहोगी, तब तक तुम्हारा हर एक कदम मेरी निगरानी में रहेगा।"
इशानी कुछ नहीं बोली, लेकिन उसकी आँखों में डर और चुप्पी का एक अजीब सा मिश्रण था।
रुद्रांश का मन गहरे रहस्यों में डूबा था। वह लड़की—इशानी—किसके लिए भागी थी, और क्यों उसके पीछे इतने लोग थे? इन सवालों के जवाब उसे किसी भी हाल में चाहिए थे। लेकिन इस बीच, एक और सवाल उसकी सोच में घर कर गया था—क्या उसे इशानी के मासूम चेहरे और उसके डर में कुछ और नजर आ रहा था?
रुद्रांश ने इशानी को दवा खिलाई और कुछ ही देर में इशानी सो गई। वह उसे एक नज़र देखकर अपने कमरे में चला गया।
कुछ देर बाद…
रुद्रांश अपने कमरे में अकेला बैठा था, उसकी आँखों में गहरी सोच की झलक थी। वह अपनी चिंता को शांत करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अनसुलझे रहस्य ने उसे और बेचैन कर दिया था। इशानी के बारे में जितनी अधिक जानकारी उसे मिल रही थी, उतनी ही वह उलझन में फँसता जा रहा था।
आज, उसने इशानी के बारे में कुछ और जानकारी जुटाने का निश्चय किया। वह जानता था कि वह छोटी लड़की किसी साधारण परिवार से नहीं थी। इशानी के परिवार से जुड़े रहस्यों ने उसे और गहरे सवालों में डाल दिया था।
रुद्रांश ने अपने सबसे भरोसेमंद आदमी, विक्रांत को बुलाया। विक्रांत वह था, जिस पर रुद्रांश आँख बंद करके भरोसा कर सकता था।
रुद्रांश (गंभीरता से):
"मुझे इशानी के बारे में सब कुछ चाहिए। उसके माता-पिता के बारे में। उन पर हमला क्यों हुआ, और कौन लोग जिम्मेदार हैं, यह मुझे पता चलना चाहिए।"
विक्रांत (संगीन लहजे में):
"जी, हुकुम।"
कुछ घंटों बाद…
विक्रांत ने रुद्रांश को कुछ दस्तावेज़ दिए। वह पूरी रिपोर्ट इशानी के पिता के बारे में थी। रुद्रांश ने उसे खोला और पढ़ने लगा। रिपोर्ट पढ़ते वक्त उसके चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आईं।
इशानी के पिता, कर्नल रणवीर सिंह, एक प्रतिष्ठित आर्मी ऑफिसर थे। उनकी मौत एक साजिश का परिणाम थी, जो किसी मंत्री और बड़े व्यवसायियों की मिलीभगत से हुई थी।
रुद्रांश (दस्तावेज़ पढ़ते हुए, गुस्से में):
"यह क्या हो रहा है? यह तो पूरी तरह से देशद्रोह है!"
रुद्रांश की आँखों में गहरी नफरत थी। रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नल रणवीर सिंह ने एक बहुत बड़ी साजिश का पर्दाफाश किया था। उन्होंने पता लगाया था कि कुछ उच्च स्तरीय मंत्री अपने निजी फायदे के लिए देश के रक्षा सामग्रियों को दूसरे देशों में तस्करी कर रहे थे। साथ ही, वह ड्रग्स तस्करी के नेटवर्क में भी शामिल थे। कर्नल ने इस घिनौनी साजिश के बारे में सबूत इकट्ठा कर लिए थे, जिससे वह इन सभी अपराधियों को बेनकाब करने वाले थे।
लेकिन, किसी ने यह सूचना उन लोगों तक पहुँचा दी। जैसे ही यह बात सामने आई, कर्नल रणवीर सिंह और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई।
रुद्रांश (आक्रोशित होते हुए, गहरी साँस भरते हुए):
"इसका मतलब… इशानी के माता-पिता को मारने की वजह सिर्फ यह थी कि वे उस साजिश को उजागर करने वाले थे!"
इशानी के लिए एक नई लड़ाई
रुद्रांश के मन में अब एक नया जुनून था। वह सिर्फ इशानी को बचाने का नहीं, बल्कि उस साजिश के पीछे खड़े लोगों को सबक सिखाने का भी मन बना चुका था।
रुद्रांश (ठंडी आवाज में, खुद से):
"इशानी के माता-पिता ने देश की सेवा की थी, और अब उनकी हत्या सिर्फ सत्ता की हवस के लिए की गई है। यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।"
रुद्रांश ने विक्रांत को आदेश दिया—
रुद्रांश:
"इशानी की सुरक्षा अब मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इसके साथ-साथ, उस साजिश को बेनकाब करने के लिए हम जो भी कदम उठाएँगे, वह बिना किसी डर के होंगे।"
रुद्रांश का फैसला:
रुद्रांश ने एक नई योजना बनाई। वह केवल इशानी को सुरक्षित नहीं रखना चाहता था, बल्कि वह उन लोगों को भी खत्म करना चाहता था जिन्होंने कर्नल रणवीर सिंह और उनकी पत्नी को मार डाला था। यह अब केवल एक निजी बदला नहीं था, बल्कि यह एक मिशन बन चुका था—देश की हिफ़ाज़त और न्याय की लड़ाई।
रुद्रांश (निर्धारित होकर):
"अब कोई भी नहीं बच सकता। जो लोग इशानी के परिवार को खत्म करने के जिम्मेदार हैं, वे सब मेरे निशाने पर हैं।"
रुद्रांश की आँखों में अब एक नया जुनून था, और वह किसी भी हालत में अपने लक्ष्य से भटकने वाला नहीं था। वह जानता था कि इशानी के माता-पिता का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
रात का सन्नाटा और रुद्रांश की उलझन
रात का समय था। हवेली के अंदर एक गहरी खामोशी थी। रुद्रांश अपने कमरे में अकेला बैठा था, उसकी आँखों में एक उलझन थी, जो उसे बेचैन कर रही थी। वह खुद से सवाल कर रहा था, खुद के दिल में एक गहरी दुविधा महसूस कर रहा था, जो उसकी सख्त और जंगली बाहरी दुनिया से पूरी तरह मेल नहीं खा रही थी।
वह खुद से ही बुदबुदाया,
"मैं क्यों यह सब महसूस कर रहा हूँ? यह छोटी सी बच्ची, इशानी… क्यों मैं उसके बारे में इतना सोच रहा हूँ?"
रुद्रांश का मन पूरी तरह से उलझन में था। वह जानता था कि वह एक माफिया लीडर है, जिसके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता। उसका दिल नहीं था, उसकी दुनिया बस ताकत और डर के इर्द-गिर्द घूमती थी। किसी से भी कोई गहरी भावनाएँ जुड़ी नहीं थीं, लेकिन फिर भी कुछ था, जो उसे इस छोटी सी लड़की के बारे में सोचने को मजबूर कर रहा था।
"क्यों मैं इस बच्ची के लिए ऐसा महसूस कर रहा हूँ? यह तो मेरे लिए कुछ भी नहीं है… यह बच्ची भी तो बस एक और आदमी की तरह है, जिसे मैं इस्तेमाल कर सकता हूँ… फिर क्यों…?"
वह खुद से सवाल करता है, लेकिन जवाब नहीं मिलता।
इसी सोच में डूबे हुए, रुद्रांश ने कमरे का दरवाज़ा हल्के से खोला। चुपके से इशानी के कमरे की ओर बढ़ा। दरवाज़े के पास पहुँचते ही उसकी आँखें इशानी की मासूमियत पर रुक गईं।
इशानी सो रही थी, उसकी नींद में एक अजीब सी शांति थी, जैसे वह दुनिया की सारी परेशानियों से दूर थी। रुद्रांश ने कुछ पल उस मासूम चेहरे को देखा, और फिर खुद से पूछा,
"क्या मैं इस लड़की के बारे में सोचकर अपने आप को कमज़ोर बना रहा हूँ?"
लेकिन फिर भी, कुछ था जो उसे इशानी के पास खींच रहा था।
रुद्रांश धीरे-धीरे उसके पास गया और उसके माथे पर एक हल्का सा चुम्बन भर दिया, जैसे वह खुद भी इस रिश्ते के बारे में न सोचते हुए कुछ कर बैठा हो।
"तुम मेरी दुनिया में क्यों आई हो, इशानी?"
यह सवाल रुद्रांश के दिल में गूंज रहा था, लेकिन उसके पास इसका कोई जवाब नहीं था।
फिर, वह चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया, लेकिन इस बार कुछ अलग था। उसका दिल भारी था, और वह खुद से ही उलझन में था। क्या यह सच में सिर्फ उसकी जिम्मेदारी थी, या फिर कुछ और था जो वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था?
अगली सुबह, इशानी का मौन और रुद्रांश की फिक्र
रुद्रांश की आँखें सुबह की पहली किरण के साथ खुलीं। रात की बेचैनी अब भी उसके दिल में थी। वह चुपचाप अपने कमरे से बाहर निकला और इशानी के कमरे की ओर बढ़ा। कमरे के पास पहुँचकर उसने हल्की आवाज़ें सुनीं। वह चुपके से दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया।
वह दरवाज़ा हल्के से खोलकर अंदर झाँका। इशानी का कमरा पहले से थोड़ा बदला हुआ था। इशानी सोई नहीं थी। उसकी मेड, गायत्री, उसके पास खड़ी थी। गायत्री इशानी के बालों को संवार रही थी और उसे नहलाकर नए कपड़े पहना रही थी।
रुद्रांश ने देखा कि इशानी ने खुद को बदला था, पर उसकी आँखों में वही शांति थी जो उसने पिछली रात देखी थी। उसकी आँखें शांत और दूर, कुछ सोचती हुई सी लग रही थीं। रुद्रांश के दिल में अजीब सी हलचल हुई। उसे पता था कि इशानी के साथ कुछ था, जो उसकी समझ से परे था।
रुद्रांश कमरे में घुसते हुए बोला,
"गायत्री, तुम जाओ। मैं इशानी से कुछ बात करना चाहता हूँ।"
गायत्री ने सिर झुकाकर कमरे से बाहर चली गई। रुद्रांश की नज़रें इशानी पर थीं। वह चुपचाप बालों में तेल लगा रही थी, जैसे उसकी आँखों में गहरी पीड़ा छिपी हो। इशानी ने उसे नहीं देखा, जैसे वह पूरी दुनिया से कट चुकी हो।
रुद्रांश उसके पास गया और धीरे से बोला,
"इशानी, तुम ठीक हो?"
इशानी की आँखों में गहरी उदासी थी, पर वह कुछ नहीं बोली। उसकी चुप्पी रुद्रांश को और चिंतित कर रही थी। उसे लगा कि वह शायद सब कुछ नहीं जानता, और यह चुप्पी इशानी के अंदर के दर्द को बयां कर रही थी।
रुद्रांश ने धीरे से उसकी चुप्पी तोड़ी,
"तुम खामोश क्यों हो? मुझे लगता है तुम कुछ छुपा रही हो।"
इशानी ने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखों में वही ठंडापन था, जो रुद्रांश को परेशान कर रहा था।
"क्या तुम कुछ कहना चाहती हो?" रुद्रांश ने पूछा, पर इशानी की आँखों में वही गहरी उदासी और चुप्पी बरकरार थी।
रुद्रांश गहरे सोच में डूब गया था। उसे पता था कि इशानी ने कुछ ऐसा देखा था, जिससे उसकी आत्मा तक हिल गई थी। वह उसकी आँखों में एक कहानी पढ़ सकता था, पर उसे यह कहानी जानने का साहस नहीं था।
वह चुपचाप खड़ा रहा, और इशानी की चुप्पी उसे और भी अजीब तरीके से परेशान कर रही थी।
रुद्रांश का इशानी के लिए डॉक्टर बुलाना
रुद्रांश की आँखें इशानी पर थीं, पर उसके दिल में बेचैनी थी। इशानी का मौन और उसकी आँखों में गहरी उदासी उसे परेशान कर रहे थे। उसे पता था कि यह चुप्पी क्षणिक नहीं थी। इशानी के अंदर कुछ था, जिसे वह समझ नहीं पा रहा था।
"मैं तुम्हारे लिए कुछ करता हूँ," रुद्रांश ने हल्के से कहा और अपना फोन निकाला। उसने एक दोस्त, एक सक्षम डॉक्टर, का नंबर डायल किया। वह उसे अच्छे से जानता था, और उसे पता था कि इशानी को किसी विशेषज्ञ की मदद की ज़रूरत है।
फोन रिसीव होते ही रुद्रांश ने डॉक्टर से कहा,
"सुधीर, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। एक लड़की है, इशानी... वो ठीक नहीं लग रही। मुझे लगता है उसे मानसिक परेशानी है। क्या तुम उसे देख सकते हो?"
डॉक्टर ने कहा,
"रुद्रांश, चिंता मत करो, मैं अभी आता हूँ। अगर ऐसा कुछ है, तो हमें जल्दी इलाज शुरू करना होगा।"
कुछ समय बाद, डॉक्टर सुधीर रुद्रांश के महल में पहुँचे। रुद्रांश उन्हें इशानी के कमरे तक ले गया, और इशानी को डॉक्टर के सामने बैठने को कहा। इशानी अब भी कुछ कहने के मूड में नहीं थी, उसकी आँखें वही शांत और उदास थीं।
डॉक्टर ने इशानी की हालत को ध्यान से देखा। वह उसकी आँखों, चाल-ढाल, और चेहरे के हर भाव को ध्यान से देख रहे थे। कुछ पल बाद, डॉक्टर सुधीर ने रुद्रांश से कहा,
"रुद्रांश, इस लड़की को गहरे मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है। यह सिर्फ थकान या तनाव का मामला नहीं है। यह डिप्रेशन की शुरुआत हो सकती है। उसे बहुत ज़्यादा मानसिक दबाव और आघात का सामना हुआ है।"
रुद्रांश की आँखों में चिंता थी।
"क्या उसे ठीक किया जा सकता है?" उसने धीमे से पूछा।
डॉक्टर ने गहरी सांस ली,
"रुद्रांश, यह समय की बात है। उसे पूरी देखभाल और प्यार की ज़रूरत है। उसे आराम करने देना होगा, और यह भी ज़रूरी है कि वह अपनी भावनाओं को बाहर निकाले। उसे तन्हाई से दूर रखने की ज़रूरत है, और सबसे ज़रूरी— वह अपने आसपास के लोगों से बहुत प्यार और सहारा महसूस करे।"
रुद्रांश के चेहरे पर चिंता और गुस्से के मिले-जुले भाव थे। उसे समझ आ गया था कि यह केवल इशानी का दुख नहीं था, बल्कि उसे मानसिक और भावनात्मक सहारे की सख्त ज़रूरत थी। रुद्रांश ने डॉक्टर से कहा,
"मैं उसे हर चीज़ दूँगा जो उसे चाहिए। तुम चिंता मत करो।"
डॉक्टर ने सिर झुकाया,
"यह सही समय पर लिया गया कदम है। देखभाल और समय के साथ वह बेहतर हो सकती है।"
रुद्रांश ने डॉक्टर को धन्यवाद दिया और उसे जाने दिया। अब रुद्रांश का ध्यान सिर्फ इशानी पर था। वह चाहता था कि वह ठीक हो जाए, पर यह भी जानता था कि इशानी की हालत इतनी आसानी से ठीक नहीं होने वाली थी। उसके दिल में एक अजीब सा दर्द था, और वह जानता था कि उसे इशानी के लिए कुछ करना होगा, क्योंकि अब वह उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था।
रुद्रांश के कमरे में हल्की शांति थी, पर उसके दिमाग में अनेक सवाल घूम रहे थे। वह इशानी के बारे में हर पल सोच रहा था। उसकी देखभाल में कोई कमी न रहे, यही उसकी चिंता थी। ऑफिस के कामों के बीच भी वह इशानी को अकेला छोड़ने को तैयार नहीं था।
आज भी रुद्रांश ऑफिस से जल्दी लौटा था। विक्रम, रुद्रांश का निष्ठावान असिस्टेंट, उसके पास आया और उसे इशानी की हालत के बारे में बताने लगा। विक्रम ने देखा कि रुद्रांश में कुछ अजीब सा बदलाव आ गया था। इशानी के बारे में वह जिस तरह सोचता था, वह पहले कभी नहीं था।
"रुद्रांश, क्या हो रहा है?" विक्रम ने सवाल किया, उसके चेहरे पर संजीदगी थी। "तुम पहले कभी इस तरह से किसी की देखभाल नहीं करते थे। इशानी के लिए तुम इतना क्यों फिक्रमंद हो?"
रुद्रांश ने विक्रम को नजरअंदाज करते हुए कहा, "तू समझ नहीं सकता। वह लड़की दर्द में है, और मुझे उसे ठीक करना है। उसकी मदद करना मेरी जिम्मेदारी है।"
"क्या तुम्हें खुद भी नहीं लगता कि कुछ और है?" विक्रम ने अपनी आँखों में एक हल्का सा चिढ़ा हुआ भाव लाते हुए कहा। "तुम जितना फिकर कर रहे हो, वह सिर्फ उसकी मदद के लिए नहीं है, कुछ और है, है ना?"
रुद्रांश ने विक्रम की बातों को नजरअंदाज किया और इशानी के कमरे की ओर देखा। वह उसकी हालत देखकर खुद को रोक नहीं पा रहा था। वह कुछ भी ऐसा नहीं चाहता था जो इशानी को और ज्यादा तकलीफ दे।
"मैं बस उसे ठीक देखना चाहता हूँ, विक्रम," रुद्रांश ने सख्त आवाज में कहा। "अब और कुछ सोचने की जरूरत नहीं है।"
"ठीक है, तुम जो चाहो, वही करो," विक्रम ने धीरे से सिर हिलाया, रुद्रांश की चिंता को महसूस करते हुए। "लेकिन याद रखना, यह सिर्फ किसी लड़की का इलाज नहीं है, यह कुछ और है। और अगर तुम इस पर ध्यान नहीं दोगे, तो यह तुम्हारे लिए और मुश्किल हो सकता है।"
रुद्रांश ने गहरी सांस ली, लेकिन वह विक्रम की बातों को नहीं समझ पा रहा था। उसे इशानी की मदद करने के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा था।
"ठीक है, लेकिन तुमसे उम्मीद है कि तुम खुद को खो मत देना," विक्रम ने फिर से रुद्रांश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
रुद्रांश ने एक पल के लिए विक्रम की बातों पर ध्यान दिया और फिर इशानी की तरफ देखा। उसकी परवाह करने का कारण शायद अभी भी उसे पूरी तरह से समझ नहीं आया था, लेकिन वह बस चाहता था कि इशानी ठीक हो जाए।
कुछ दिनों बाद, रुद्रांश की देखभाल और डॉक्टर की सलाह से इशानी की हालत में थोड़ा सुधार हुआ था। अब वह पहले से थोड़ी बेहतर महसूस कर रही थी, हालाँकि उसके चेहरे पर अभी भी शांति और चिंता की छाया थी। रुद्रांश ने किसी से ज्यादा बात नहीं की थी; सिर्फ इशानी की देखभाल में ही उसने पूरा समय बिताया था। इशानी को अच्छे से खाना खिलाना, उसकी पसंदीदा किताबें लाना, और उसे आराम देना रुद्रांश का काम बन चुका था।
एक दिन, रुद्रांश के दादा जी हवेली आए। रुद्रांश की दादी की तबियत खराब थी, और इसलिए वे कुछ समय के लिए यहाँ रहने वाले थे। रुद्रांश के दादा जी रथोर परिवार के सबसे सम्मानित सदस्य थे और उनकी मौजूदगी से हवेली में एक अलग सा माहौल था।
"दादा जी, आप यहाँ बैठिए," रुद्रांश ने कहा। "मैं अभी इशानी को लेकर आता हूँ। वह अब पहले से बेहतर महसूस कर रही है।"
रुद्रांश हवेली के अंदर इशानी के कमरे में पहुँचा। इशानी अब थोड़ी उठ बैठी थी; उसकी आँखों में थकावट के साथ-साथ कुछ उम्मीद भी थी। उसे देखकर रुद्रांश ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "कैसी हो अब?"
"ठीक हूँ... पर मुझे थोड़ा आराम चाहिए," इशानी ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा।
"तुमने डॉक्टर की बात मानी, यही अच्छी बात है," रुद्रांश ने इशानी के पास बैठते हुए कहा। "अब तुम्हें जल्दी ठीक होना है।"
इसी बीच रुद्रांश के दादा जी ने आकर इशानी का ध्यान खींचा। उन्होंने इशानी की तरफ बढ़ते हुए कहा, "बेटी, तुम ठीक हो ना?"
इशानी थोड़ा घबराई हुई नजरों से दादा जी को देख रही थी। रुद्रांश के दादा जी का रूप और उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। वे लंबे समय से रथोर परिवार के प्रमुख थे और उनकी नजरों में गहरी समझ और अनुभव था।
"जी, दादा जी," इशानी ने थोड़ी सी झिझक के साथ कहा। "मैं ठीक हूँ। धन्यवाद।"
"तुम्हारा नाम सुना है, बेटी," रुद्रांश के दादा जी ने मुस्कराते हुए कहा। "तुम एक बहादुर लड़की हो।" फिर उन्होंने रुद्रांश की तरफ देखा और कहा, "रुद्रांश, मैं जानता हूँ तुम कितनी फिक्र कर रहे हो, लेकिन क्या तुम जानते हो कि किसी की मदद करना एक कर्तव्य है? और जो तुम कर रहे हो, वह सही है।"
रुद्रांश ने सिर झुकाया; उसकी आँखों में एक अजीब सी भावना थी। वह जानता था कि दादा जी का विश्वास उसे बहुत ताकत दे रहा था, लेकिन कुछ था जो उसकी समझ से बाहर था। "मैं बस चाहता हूँ कि वह ठीक हो जाए," रुद्रांश ने हल्की सी आवाज में कहा।
"तुम्हारे पापा का बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाएगा," दादा जी ने फिर से इशानी की तरफ देखते हुए कहा। "तुम एक दिन अपने पिता का नाम रोशन करोगी, मुझे पूरा विश्वास है।"
इशानी की आँखों में आंसू थे, लेकिन उसने उन्हें जल्दी से पोंछ लिया। "मैं ऐसा ही चाहती हूँ, दादा जी," उसने धीरे से कहा।
रुद्रांश ने इशानी की तरफ देखा; उसके मन में फिर वही सवाल उठने लगे थे। "क्या वह सच में इस दर्द को पार कर पाएगी?" उसने सोचा। लेकिन उसे यकीन था कि वह हमेशा इशानी के साथ रहेगा, चाहे कुछ भी हो।
रुद्रांश की दादी ने इशानी की हालत देखकर गहरी साँस ली। "रुद्रांश, तुम्हें इशानी के लिए कुछ करना होगा। यह हालत ठीक नहीं है।"
रुद्रांश थोड़ी देर चुप रहा, फिर गंभीरता से बोला, "मैंने उसे बहुत समझाया, दादी, पर वह कुछ भी नहीं समझ पा रही है। उसकी खामोशी मुझे परेशान कर रही है।"
दादी ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "तुम्हें मिष्टी को बुलाना होगा। उसकी मासूमियत और चुलबुली आदतें इशानी को शायद थोड़ी राहत दें।"
रुद्रांश को दादी का सुझाव पसंद आया। "ठीक है, दादी। मैं उसे बुला लूँगा।"
रुद्रांश ने तुरंत मिष्टी को फोन किया। मिष्टी, रुद्रांश की भतीजी, हमेशा अपने चुलबुले अंदाज से सबका दिल जीतने वाली थी। वह जल्दी ही हवेली में पहुँच गई।
मिष्टी कमरे में आई और दरवाज़ा खोलते ही चौंक पड़ी। इशानी को देखकर वह कुछ सेकंड के लिए हैरान रह गई। इशानी वही इशानी थी, जिसे वह अपना सबसे अच्छा दोस्त मानती थी, लेकिन आज उसकी आँखों में गहरी उदासी थी।
"इशानी?" मिष्टी ने धीरे से पुकारा। उसकी आँखों में थोड़ी सी हैरानी और चिंता थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसकी प्यारी दोस्त इतनी चुप क्यों थी।
फिर वह इशानी के पास गई और प्यार से कहा, "तुम ठीक तो हो न?"
मिष्टी के चुलबुले अंदाज ने इशानी को थोड़ी राहत दी, लेकिन इशानी चुप रही। मिष्टी ने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा, "क्या तुम सो रही हो? मुझे तो लगा तुम मुझसे बातें करने में कभी नहीं थकती। देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आई हूँ!"
मिष्टी की चिढ़ाने वाली बातें और प्यारी मुस्कान इशानी को थोड़ी देर के लिए अपने पुराने दिनों की याद दिला गईं। मगर इशानी की खामोशी ज्यों की त्यों बनी रही।
इशानी ने धीरे से मिष्टी की ओर बढ़कर उसे गले लगा लिया। वह अपनी भावनाओं को छुपाने की कोशिश करती रही, लेकिन मिष्टी के गले लगते ही उसकी आँखों में हल्की सी नमी आ गई। इशानी ने मिष्टी को अपनी बाहों में कसकर पकड़ा, जैसे वह फिर से अपने पुराने वक्त में लौटना चाहती हो। लेकिन उसकी चुप्पी और भावनाओं को दबाए रखने की कोशिश ने उसे रोक लिया।
मिष्टी ने भी इशानी को गले लगा लिया और उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वह जानती थी कि इशानी अभी पूरी तरह से ठीक नहीं है, लेकिन वह जानती थी कि दोस्ती और प्यार के ये छोटे-छोटे पल ही इशानी को ठीक कर सकते थे।
रुद्रांश कमरे के बाहर खड़ा था और यह सब देख रहा था। उसने सोचा, "क्या मिष्टी का यह तरीका इशानी के लिए सही है?"
इशानी और मिष्टी की पुरानी दोस्ती ने एक नई शुरुआत की राह बनाई। रुद्रांश ने मन ही मन सोचा, "शायद उसे थोड़ी राहत मिल रही है।"
कमरे में हल्की सी खामोशी थी। मिष्टी ने जब इशानी को गले लगाया, तो एक पल के लिए सब कुछ ठहर सा गया। इशानी के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी, जो उसकी आँखों से झलक रही थी। वह एक मासूम बच्ची की तरह महसूस कर रही थी, जिसने अपनी दुनिया खो दी थी, और यह दर्द उसके छोटे से दिल में गहरे तक समा गया था।
मिष्टी ने इशानी को गले से हटाकर पूछा, "क्या हुआ इशानी? तुम कुछ बदल सी गई हो। पहले जैसी नहीं रही तुम।"
इशानी कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप खिड़की की ओर देखती रही। उसकी आँखों में काश और ग़म की गहरी छाया थी। वह सोच रही थी कि कैसे उसने अपनी माँ-पापा को खो दिया, और अब एक अजनबी दुनिया में अकेली है।
तभी रुद्रांश कमरे में आया। उसकी आँखों में जो चिंता और गुस्सा था, वह तुरंत इशानी के चेहरे पर पड़ते ही थोड़ा नरम पड़ा। उसने धीरे से इशानी को देखा, जो पूरी तरह से चुप थी, और फिर उस ओर कदम बढ़ाए।
रुद्रांश ने गहरी साँस ली, उसकी आवाज में हल्की घबराहट थी, "इशानी, तुम ठीक हो न?"
इशानी ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में आँसू थे, जिन्हें वह छुपा रही थी। रुद्रांश ने देखा और महसूस किया कि वह दर्द, जो इशानी अपने अंदर दबाए बैठी थी, अब फूटने वाला था।
रुद्रांश ने धीरे से इशानी को अपनी ओर खींचा और कहा, "तुम कमजोर नहीं हो, इशानी। तुम वो नहीं हो, जो तुम समझ रही हो। तुम्हारे पास बहुत ताकत है, जो तुम खुद भी नहीं जानती।"
इशानी की आँखों में डर और दर्द का मिलाजुला भाव था। वह धीरे से बोली, "मेरे पास अब कुछ नहीं बचा... मेरी माँ, मेरे पापा... वे अब नहीं हैं... और मैं... मैं अकेली हो गई हूँ।"
उसकी आवाज टूट रही थी, जैसे कोई बच्ची, जिसे अपने सबसे प्यारे लोगों को खोने के बाद बर्बाद महसूस हो रहा हो। रुद्रांश को लगा जैसे उसका दिल टूट गया। इशानी, जो अब तक एक मासूम बच्ची थी, वह इतनी बड़ी तकलीफ से गुजर रही थी, यह वह बिल्कुल नहीं समझ पा रहा था।
रुद्रांश ने इशानी को अपने पास खींचते हुए कहा, "तुम अकेली नहीं हो, इशानी। मैं हूँ तुम्हारे साथ। तुम्हारे पापा और मम्मी की तरह कोई और नहीं होगा, लेकिन तुम मुझे समझ सकती हो।"
इशानी ने सिर झुका लिया, आँसू अब उसके चेहरे से बह रहे थे। "मैंने उन्हें खो दिया... वो मुझे अकेला छोड़ गए..." उसके शब्द दिल को चीर देने वाले थे। रुद्रांश ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा, "तुम बिल्कुल अकेली नहीं हो, मैं हूँ तुम्हारे साथ। तुम कभी अकेली नहीं रहोगी।"
फिर रुद्रांश ने इशानी को गले लगा लिया। इशानी ने धीरे से उसकी बाहों में खुद को समेट लिया। यह उस दर्द और घबराहट को महसूस करने का पहला मौका था, जब इशानी ने महसूस किया कि वह अकेली नहीं है।
रुद्रांश की मौजूदगी ने उसे थोड़ा सुकून दिया था, लेकिन उसका दर्द अब भी कम नहीं हुआ था। उसकी मासूमियत और दर्द को देखकर रुद्रांश का दिल भी कांप रहा था, लेकिन वह जानता था कि उसे इस बच्ची को संभालने के लिए खुद को मजबूती से खड़ा करना होगा।
शाम का वक्त था। हवेली के हर कोने में खामोशी पसरी हुई थी। सूरज की आखिरी किरणें खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थीं। इशानी अपने बिस्तर पर बैठी थी; उसकी आँखें खाली थीं, जैसे उसकी मासूमियत कहीं खो गई हो।
रुद्रांश कमरे के दरवाजे पर खड़ा था, उसे देख रहा था। उसके हाथ में खाने की प्लेट थी। उसने एक गहरी सांस ली और धीरे-धीरे अंदर आया।
"कपकेक, दिनभर कुछ खाया भी है या ऐसे ही बैठी हो?" रुद्रांश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में छुपी चिंता साफ झलक रही थी।
इशानी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने सिर झुका लिया; उसकी छोटी-छोटी उंगलियां चादर को मोड़ रही थीं।
रुद्रांश ने प्लेट टेबल पर रखी और पास आकर बिस्तर पर बैठ गया। उसने धीरे से कहा, "अगर खाओगी नहीं तो ठीक कैसे होगी? और मुझे कोई बहाना नहीं सुनना।"
इशानी ने उसकी तरफ देखा; उसकी आँखों में आँसू थे। "कपकेक... मैं जानता हूँ कि ये सब सहना आसान नहीं है। लेकिन तुम्हें अपने लिए नहीं तो मेरे लिए खाना होगा।"
उसके इतना कहने पर, इशानी की आँखों से आँसू बह निकले। उसने धीरे-धीरे प्लेट की तरफ हाथ बढ़ाया। रुद्रांश ने उसे अपने हाथों से कौर बनाकर खिलाना शुरू कर दिया।
हर निवाला खिलाते हुए उसने कहा, "कपकेक, तुम्हें कमजोर पड़ने का हक नहीं है। तुम इस घर की जिम्मेदारी हो, और मैं तुम्हारा ख्याल हमेशा रखूंगा। समझीं?"
इशानी ने हल्की आवाज़ में कहा, "आप मुझे कपकेक क्यों बुला रहे हैं?"
रुद्रांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्योंकि तुम वैसी ही हो—मुलायम, मासूम और प्यारी।"
यह सुनकर, पहली बार इशानी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। रुद्रांश के चेहरे पर सुकून झलक रहा था। उस पल, उसने महसूस किया कि उसके लिए इशानी सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक अहसास बन गई थी।
चैप्टर: आठ साल बाद
आसमान में हल्की सी गड़गड़ाहट के साथ एक चमचमाता चॉपर शहर की सबसे ऊंची इमारत की छत पर उतरने लगा। पूरा इलाका जैसे थम सा गया था। हर कोई जानता था कि जब यह चॉपर उतरता है, तो कोई आम इंसान नहीं, बल्कि खुद ताकत और जुनून का दूसरा नाम उतरता है।
चॉपर का दरवाज़ा खुला, और अंदर से काले सूट में एक 30 साल का आदमी बाहर निकला। उसकी चाल में एक ऐसा रौब था कि कोई भी उसकी तरफ नजरें उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता था। वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि रुद्रांश राठौर था।
उसकी आँखें ठंडी, लेकिन गहरी थीं, जैसे किसी के दिल में झांक ले। चेहरा एकदम शांत, मगर उसमें एक ऐसा खिंचाव था जो किसी को भी झुका दे। उसके कदमों की आवाज़ जैसे पूरे माहौल को गूंजायमान कर रही थी। चारों तरफ सिक्योरिटी गार्ड्स उसकी तरफ झुकते हुए, उसे सलाम कर रहे थे।
"मिस्टर राठौर, सब तैयार है," एक आदमी झुककर बोला, जो उसकी टीम का हिस्सा था।
रुद्रांश ने बिना उसकी तरफ देखे, सिर्फ एक सिर हिलाया और कहा, "जहाँ तक मेरी नज़र जाती है, वहाँ तक सब कुछ परफेक्ट होना चाहिए।"
उसकी आवाज में एक ठंडक थी, जो सुनने वाले को काँपने पर मजबूर कर दे। वह अपनी बिल्डिंग की छत से शहर को देख रहा था। यह शहर, जहाँ उसने हर कोने पर अपनी छाप छोड़ी थी। आठ साल में, उसका नाम सिर्फ नाम नहीं, बल्कि एक डर बन चुका था।
रुद्रांश ने छत से नीचे देखते हुए अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखा। उसने हल्की आवाज़ में कहा, "आठ साल हो गए, लेकिन कुछ अधूरा है... और अब वह अधूरा हिस्सा पूरा करना है।"
उसकी आँखों में वही जुनून था, जो कभी बुझा नहीं था। तभी उसके पीछे खड़े उसके सबसे भरोसेमंद सहायक, विक्रम ने कहा, "सर, मिशन के अगले स्टेप्स तैयार हैं। बस आपका इशारा चाहिए।"
रुद्रांश ने बिना पीछे मुड़े कहा, "सब सही वक्त पर होगा, विक्रम। इस बार कोई भी रुद्रांश राठौर की प्लानिंग को नहीं समझ सकेगा।"
वह आदमी सिर्फ ताकत और पैसा नहीं, बल्कि एक सोच था। और अब, छह महीने बाद उसकी वापसी सिर्फ एक संकेत थी—कुछ बड़ा होने वाला था।
वह पिछले छह महीने से एक काम के सिलसिले में केरल गया था; आज ही वह मुंबई वापस लौटा था।
चैप्टर: इंतजार का अंत
रुद्रांश अपनी रौबदार चाल से छत के गेट की ओर बढ़ रहा था। उसके पीछे-पीछे विक्रम तेज़ी से चल रहा था, जैसे किसी सवाल का जवाब देने की तैयारी कर रहा हो।
रुद्रांश ने बिना रुके और बिना पीछे मुड़े पूछा, "वह कहाँ है?"
उसकी आवाज में इतनी सख्ती थी कि विक्रम के माथे पर पसीना छलक आया। उसने संभलते हुए जवाब दिया, "मैम, एक महीने से स्विट्ज़रलैंड गई हुई हैं, सर। कल सुबह तक वापस आ जाएंगी।"
रुद्रांश अचानक रुक गया। उसने धीरे से अपना सिर घुमाया और अपनी ठंडी, लेकिन गुस्से से भरी आँखों से विक्रम को देखा। "किसकी परमीशन लेकर गई थी?"
विक्रम थोड़ा झिझकते हुए बोला, "दादाजी की परमीशन से, सर। मिष्टी के साथ वेकेशन पर गई थीं।"
रुद्रांश की आँखों में गुस्से की लहर साफ झलक रही थी। उसकी आवाज़ और भी ठंडी हो गई। "मेरे बिना किसी को इजाज़त देने की ज़रूरत नहीं है, समझे? और उसे भी यह समझना चाहिए था।"
विक्रम ने धीमे स्वर में कहा, "जी, सर। लेकिन दादाजी ने कहा था कि... शायद मैम को थोड़ा आराम चाहिए।"
रुद्रांश ने अपनी नज़रें वापस सामने घुमाईं और बिना कुछ कहे तेज़ी से आगे बढ़ गया। लेकिन उसके चेहरे की सख्ती और उसकी आँखों में जलता जुनून साफ बता रहा था कि स्विट्ज़रलैंड की यह ट्रिप कोई आसान बात नहीं रहने वाली।
"कल सुबह जब वह लौटे, तो सबसे पहले मुझे खबर देना," रुद्रांश ने चलते-चलते विक्रम को आदेश दिया।
"जी, सर।"
विक्रम जानता था कि यह गुस्सा किसी और पर नहीं, बल्कि खुद उस शख्स पर निकलने वाला था जो रुद्रांश के लिए सबसे खास थी। उसने अपने मन में सोचा, "मैम को यह खबर सुनते ही शायद एक और हंगामे के लिए तैयार रहना पड़ेगा।"
रुद्रांश की चाल तेज़ थी, लेकिन उसके मन में कई सवाल घूम रहे थे। आखिर, वह कब से इंतज़ार कर रहा था। लेकिन यह इंतज़ार अब उसे भारी लगने लगा था।
आठ साल बीत चुके थे, लेकिन रुद्रांश राठौर के लिए वक्त जैसे थम गया था। हर बीता दिन उसकी जिंदगी का एक नया मिशन लेकर आया—ईशानी के माँ-बाप के कातिलों का अंत।
रुद्रांश ने इन सालों में अपनी ताकत, रुतबा और डर का ऐसा जाल बिछाया कि जो उसका नाम सुन ले, वह काँप जाता था। राठौर परिवार का नाम अब सिर्फ़ बिज़नेस की दुनिया में ही नहीं, बल्कि अंडरवर्ल्ड में भी और मज़बूत हो चुका था। मगर रुद्रांश का जुनून और गुस्सा सिर्फ़ एक ही चीज़ पर केंद्रित था—ईशानी के माँ-बाप को इंसाफ़ दिलाना।
जब रुद्रांश ने जाँच शुरू की, तो उसने पाया कि ईशानी के पिता, कर्नल राजवीर राणा, एक ईमानदार और निडर आर्मी ऑफ़िसर थे। उन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए न सिर्फ़ बॉर्डर पर जंग लड़ी थी, बल्कि देश के अंदर छिपे गद्दारों को भी बेनकाब करने की कोशिश की थी। कर्नल राणा ने कुछ बड़े मंत्रियों और बिज़नेसमैन की ड्रग्स और हथियारों की तस्करी की साज़िश पकड़ ली थी।
जब उन्होंने इस साज़िश के ख़िलाफ़ सबूत जुटाए और उसे उजागर करने की कोशिश की, तो उन्हें मार दिया गया। यह काम आसान नहीं था, क्योंकि कर्नल राणा एक कुशल योद्धा थे। लेकिन पैसे और ताकत के लालच में डूबे हुए इन लोगों ने उन्हें धोखे से ख़त्म कर दिया।
रुद्रांश ने उन सबूतों को इकट्ठा करना शुरू किया जो कर्नल राणा ने छोड़े थे। हर नाम, हर चेहरा, जो इस साज़िश में शामिल था, उसकी लिस्ट तैयार की गई। और फिर शुरू हुआ एक-एक करके उनका अंत।
पिछले आठ सालों में रुद्रांश ने उन सभी लोगों को ख़त्म कर दिया था जो सीधे इस हत्या में शामिल थे।
1. विक्रम राव: एक प्रभावशाली उद्योगपति, जिसने हथियारों की तस्करी की योजना बनाई थी। उसे एक जलते हुए गोदाम में बंद करके ख़त्म किया गया।
2. अजय मलिक: वह मंत्री जिसने तस्करी की सुरक्षा के लिए सरकारी समर्थन दिया था। उसे एक सुनसान इलाके में बेरहमी से मारा गया।
3. सुदर्शन नायर: वह बिचौलिया, जिसने कर्नल राणा को धोखे से उनके मिशन से भटकाया था। उसे रुद्रांश ने खुद अपने हाथों से गोली मारी।
मगर इन सबके बावजूद, रुद्रांश को अब तक उस मास्टरमाइंड का पता नहीं चल पाया था, जिसने इस साज़िश की जड़ें तैयार की थीं। यह एक ऐसा शख़्स था, जिसने पर्दे के पीछे से सब कुछ नियंत्रित किया था। रुद्रांश जानता था कि असली लड़ाई अभी बाकी थी।
ईशानी का ख़्याल
इन आठ सालों में, रुद्रांश ने ईशानी को हर मुमकिन खुशी देने की कोशिश की। वह उसका ध्यान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। मगर ईशानी की मासूमियत और ख़ामोशी अब भी उसके दिल में दर्द पैदा करती थी। ईशानी ने अपने माता-पिता को खोने के बाद खुद को अकेला महसूस किया। वह अब भी उस दर्द से पूरी तरह उबर नहीं पाई थी।
रुद्रांश जानता था कि उसका हर क़दम सिर्फ़ ईशानी के लिए था। उसकी ज़िंदगी अब सिर्फ़ बदले और ईशानी की खुशियों के इर्द-गिर्द घूम रही थी।
रुद्रांश अक्सर अपनी रातें जागते हुए बिताता, उन फ़ाइलों को देखते हुए जो इस साज़िश से जुड़ी थीं। उसकी आँखों में आग थी, और उसके दिल में सिर्फ़ एक ख़्याल—ईशानी को न्याय दिलाना।
"जो मेरे परिवार को तोड़ने की हिम्मत कर सकता है, वो अब मेरे गुस्से से बच नहीं सकता।" रुद्रांश की यह कसम अब उसकी ज़िंदगी का मक़सद बन चुकी थी।
अब भी, हर क़दम पर, वह नए सुराग ढूँढ रहा था। उसे पता था कि मास्टरमाइंड कहीं न कहीं अपनी अगली चाल की तैयारी कर रहा है। और जब वह उसे मिलेगा, तो रुद्रांश का गुस्सा और जुनून उसे ख़त्म करने में एक पल की भी देरी नहीं करेगा।
"जिस दिन मुझे वो मिलेगा, वो दिन उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा," रुद्रांश ने खुद से कहा।
रुद्रांश ने खुद को इन सालों में और भी मज़बूत बनाया था। अब, वह सिर्फ़ एक बिज़नेसमैन या माफ़िया डॉन नहीं था; वह एक ऐसा योद्धा था, जो हर हाल में अपने लक्ष्य को हासिल करने की कसम खा चुका था।
लेकिन क्या वह मास्टरमाइंड को पकड़ पाएगा? क्या ईशानी को अपने पिता का इंसाफ़ मिलेगा? कहानी अब उस मोड़ पर थी, जहाँ हर पल एक नई उलझन और एक नया ख़तरा लेकर आ रहा था।
रात के 10 बज चुके थे। हवेली के बड़े हॉल में रुद्रांश के क़दमों की आहट सुनाई दी। उसकी मौजूदगी से माहौल में एक अजीब सा सन्नाटा और ख़ौफ़ फैल गया। हवेली के कर्मचारियों ने सिर झुका लिया, जबकि दादा जी उसे आते देख ठंडे लेकिन सख़्त लहजे में बोले,
"इस वक़्त तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
रुद्रांश ने अपनी ठंडी लेकिन तीखी आवाज़ में जवाब दिया,
"आपसे कुछ बात करनी है, दादा जी। आप जानते हैं कि मैंने क्या पाया है? वो मास्टरमाइंड, जिसकी तलाश में मैं आठ साल से हूँ, अब भी हमारी पहुँच से बाहर है। मगर आपने ईशानी को मिष्टी के साथ छुट्टियाँ मनाने की इजाज़त कैसे दे दी?"
दादा जी ने गहरी साँस ली और कहा,
"रुद्रांश, तुम्हें अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ बदले के अलावा भी कुछ सोचना चाहिए। ईशानी के लिए ये ज़रूरी था। वो बच्ची अपनी ज़िंदगी को सामान्य करने की कोशिश कर रही है। उसे सुकून चाहिए, तुम्हारे जैसे गुस्से से भरे माहौल में नहीं।"
रुद्रांश ने गुस्से से कहा,
"सुकून? मुझे बदला चाहिए। उसके माता-पिता के गुनाहगार अब भी खुलेआम घूम रहे हैं। और आप चाहते हैं कि मैं शांत हो जाऊँ?"
दादा जी के चेहरे पर झलकते दर्द और निराशा ने माहौल को और भारी कर दिया।
"रुद्रांश, हर लड़ाई सिर्फ़ गुस्से से नहीं जीती जाती। तुम्हें यह समझना होगा। लेकिन मैं जानता हूँ, तुम मेरी बात नहीं मानोगे।"
रुद्रांश ने कोई जवाब नहीं दिया। वह गुस्से में कमरे से बाहर निकल गया और सीधा अपने कमरे की ओर चला गया।
रुद्रांश का कमरा हवेली का सबसे डरावना और रहस्यमयी हिस्सा था। कमरे के भीतर गहरी ख़ामोशी थी, जिसे सिर्फ़ बाहर की ठंडी हवा के झोंके तोड़ रहे थे।
दीवारों पर गहरे रंग की सजावट थी, और हर कोने में एक अनकहा रहस्य छिपा हुआ था। एक दीवार पर बड़ा सा पर्दा लगा हुआ था, जो पूरे कमरे में सबसे ज़्यादा रहस्यमय लग रहा था। लेकिन आज, रुद्रांश के चेहरे पर कुछ अलग था।
वह अपने गुस्से को थामे हुए वॉशरूम में गया और नहाने के बाद सिर्फ़ एक सफ़ेद तौलिए में कमरे से बाहर निकला। उसकी भीगी हुई काया और चेहरे पर मौजूद ठंडा गुस्सा उसकी सख़्त शख़्सियत को और निखार रहा था।
रुद्रांश धीमे क़दमों से उस दीवार के पास पहुँचा। उसने पर्दे की रस्सी पकड़ी और उसे झटके से खींच दिया। पर्दा हटते ही दीवार पर टंगी तस्वीर सामने आई।
यह एक ख़ूबसूरत लड़की की तस्वीर थी। वह लगभग 18 साल की लग रही थी, तस्वीर में उसकी मासूमियत और ख़ूबसूरती देखते ही बन रही थी। उसका चेहरा ऐसा था जैसे किसी गुड़िया को सजीव कर दिया गया हो।
रुद्रांश ने तस्वीर को देखा और उसकी आँखों में एक अजीब सा दर्द उभर आया।
"कपकेक," वह धीमे से बुदबुदाया।
यह तस्वीर ईशानी की थी, जिसे रुद्रांश ने खुद अपनी दीवार पर लगाया था। यह वह तस्वीर थी जब ईशानी ने पहली बार उसके घर में क़दम रखा था।
रुद्रांश ने गहरी साँस ली और तस्वीर की ओर देखते हुए बुदबुदाया,
"मैं क्यों करता हूँ तुम्हारी इतनी फ़िक्र? मैं एक माफ़िया हूँ, जिसे किसी से मतलब नहीं होना चाहिए। लेकिन तुम्हारी आँखों का दर्द मुझे क्यों परेशान करता है? तुम्हारी ख़ामोशी मेरे दिल पर बोझ क्यों डालती है?"
वह तस्वीर के सामने खड़ा रहा, उसकी आँखों में हज़ारों सवाल और मन में एक अजीब सी बेचैनी।
कमरे में हल्की हवा चलने लगी, लेकिन रुद्रांश के मन का तूफ़ान थमने का नाम नहीं ले रहा था।
"मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ, कपकेक। पर खुद को भी समझ नहीं पाता कि क्यों।"
कहानी जारी है
रुद्रांश की ज़िंदगी में अब भी कई सवाल थे। क्या ईशानी उसकी ज़िंदगी का वो हिस्सा बन चुकी थी, जिसे वह कभी नहीं छोड़ सकता? या फिर यह सब सिर्फ़ उसका जुनून था, जो उसकी ज़िंदगी की दिशा बदल रहा था?
रुद्रांश उस तस्वीर के सामने खड़ा था। तस्वीर में ईशानी मुस्कुरा रही थी; उसकी मासूमियत हर किसी को अपनी ओर खींचने के लिए काफी थी। लेकिन रुद्रांश की आँखों में जुनून की लपटें और गहरी होती जा रही थीं। वह तस्वीर को निहारते हुए खुद से सवाल कर रहा था, मगर जवाब भी खुद ही दे रहा था।
धीमी आवाज़ में उसने कहा,
"ईशानी... तुमने मुझे क्या बना दिया है? मैं, जो दिल और जज़्बातों से हमेशा ऊपर था, तुम्हारे लिए अपना आपा खो बैठा हूँ। इतने सालों तक तुम्हें खुद से दूर रखा, लेकिन अब और नहीं।"
उसने तस्वीर के पास जाकर अपनी उंगलियाँ हल्के से उसके फ्रेम पर फेरीं। उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में जुनून और पागलपन का अजीब सा मेल झलकने लगा।
"तुम अब वो मासूम ईशानी नहीं रहीं, जिसे मैं जानता था। आठ साल में तुम बदली हो, लेकिन मेरे लिए नहीं। तुम अब भी मेरी हो। तुमने जो खोया है, मैं वो सब तुम्हें वापस दूँगा। तुम मुझे समझो या नहीं, लेकिन तुम्हें मेरे साथ रहना ही होगा।"
रुद्रांश ने गहरी साँस ली और कमरे में पीछे की ओर कदम बढ़ाए। उसने बालों में हाथ फिराया, लेकिन उसकी बेचैनी ख़त्म नहीं हुई। उसकी आँखें अब भी तस्वीर पर टिकी थीं।
"तुम अब पहले जैसी मासूम नहीं हो, ईशानी। अब तुम और मिष्टी, दोनों 'आफ़त की पुड़िया' बन चुकी हो। वो चंचल हँसी, वो शरारतें—तुम दोनों जैसे एक-दूसरे की परछाई हो।"
उसने ठंडी साँस ली और अपने चेहरे को हाथों से ढँक लिया।
"लेकिन, कपकेक, तुम्हारी ये हँसी मेरी है। तुम्हारे सारे जज़्बात मेरे हैं। तुम इस घर को रौशन करती हो, और मुझे यकीन है कि तुम्हारी ज़िन्दगी में आई हर अंधेरी रात अब सिर्फ़ मेरे साथ ख़त्म होगी।"
वह तस्वीर के पास लौटा और धीमे स्वर में बोला,
"मैं जानता हूँ कि तुम्हारा दिल अब पहले जैसा नहीं रहा। लेकिन तुम चाहे कितनी भी बदल जाओ, मेरी दुनिया अब सिर्फ़ तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती है। तुम मेरी हो, और ये सच्चाई कोई नहीं बदल सकता।"
रुद्रांश तस्वीर की ओर देखता रहा। उसकी मुट्ठियाँ भींची हुई थीं, और उसके चेहरे पर एक ऐसा पागलपन झलक रहा था, जो किसी भी हद तक जाने को तैयार था।
"तुम्हें मेरी बनना ही होगा, ईशानी। चाहे ये दुनिया हमारे ख़िलाफ़ हो या किस्मत। कोई भी हमें अलग नहीं कर सकता।"
उसने तस्वीर को आख़िरी बार देखा, जैसे वह तस्वीर के ज़रिए ईशानी से वादा कर रहा हो।
"अब वक़्त आ गया है, कपकेक। तुम्हारी मासूमियत और तुम्हारी शरारतें मुझे परेशान करती हैं, लेकिन तुम्हें मुझे समझना ही होगा। और मैं तुम्हारे हर सवाल का जवाब बनकर तुम्हारे साथ रहूँगा।"
उसकी आँखों में जुनून की गहराई थी, और तस्वीर के सामने खड़ा वह शख़्स एक ऐसा माफ़िया था, जिसके लिए जुनून ही सबकुछ था।
क्या रुद्रांश का जुनून ईशानी को उसका बना पाएगा, या फिर यह जुनून उसकी और ईशानी की ज़िन्दगी में कोई नया तूफ़ान लेकर आएगा?
स्विट्ज़रलैंड के एक मशहूर बार का प्राइवेट रूम नीली और लाल रोशनी में चमक रहा था। कमरे का माहौल उत्साह और मस्ती से भरपूर था। लाउड म्यूज़िक की थिरकती बीट्स हर किसी के मूड को और हल्का कर रही थीं। कमरे में पाँच-छह लड़कियाँ थीं, सभी खूबसूरत और बिंदास। लड़कियों के साथ शर्टलेस लड़के थे, जिनके फिट बॉडी और चार्म से पूरा माहौल और गरम हो गया था।
मिष्टी और ईशानी इस ग्रुप की जान थीं। मिष्टी ने शॉर्ट रेड ड्रेस पहन रखी थी, जो उसकी चुलबुली पर्सनैलिटी को और हाईलाइट कर रही थी। उसकी आँखों में एक अलग चमक थी, और उसका हर एक्सप्रेशन मासूमियत और शरारत से भरा था। दूसरी ओर, ईशानी ने एक ब्लैक बॉडीकॉन ड्रेस पहनी थी, जो उसकी खूबसूरती को निखार रही थी। ईशानी के बाल खुले हुए थे, और उसकी चाल में एक अलग ही कॉन्फिडेंस था।
मिष्टी एक लड़के के पास खड़ी थी, जो उसके लिए ड्रिंक मिक्स कर रहा था। लड़के की मस्कुलर बॉडी पर उसके हाव-भाव झलक रहे थे। मिष्टी ने उसे चिढ़ाते हुए कहा,
"तुम्हारे एब्स तो देखे हैं, लेकिन जूस मिक्स करने का तरीका थोड़ा और अच्छा होना चाहिए।"
लड़का हँसते हुए बोला,
"तो तुम सिखाओगी?"
मिष्टी ने ड्रिंक का घूँट लिया और उसकी तरफ़ देखकर बोली,
"सिखाऊँगी भी, और चखाऊँगी भी!"
दूसरी ओर, ईशानी ने एक लड़के का हाथ पकड़कर उसे डांस फ़्लोर की तरफ़ खींच लिया। लड़के ने हैरान होकर कहा,
"अरे, मैं तो बस खड़ा था!"
ईशानी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"खड़े रहने के पैसे नहीं मिलते। डांस करो या बाहर जाओ!"
वो लड़का उसकी बात सुनकर हँस पड़ा और उसके साथ डांस करने लगा। डांस करते हुए ईशानी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा,
"तुम्हारे एब्स सही हैं, लेकिन ज़्यादा मेहनत करोगे तो बेहतर दिखोगे।"
डांस करते हुए मिष्टी ने ईशानी के पास आकर उसे गले लगाया।
"यार, तेरा ये डांस मूव तो मुझसे बेहतर है!"
ईशानी ने उसे हल्के से धक्का देते हुए कहा,
"अरे, तुझसे बेहतर कुछ नहीं। लेकिन फ़्लर्ट करना तुझसे ज़रूर सीख रही हूँ।"
मिष्टी ने हँसते हुए कहा,
"सीख मत, वरना ये लड़के हमारे बीच झगड़ा करवा देंगे।"
दोनों जोर से हँस पड़ीं और एक-दूसरे का हाथ पकड़कर डांस फ़्लोर पर झूमने लगीं। उनके आस-पास के लड़के भी उनके मूड और मस्ती का हिस्सा बन गए।
कमरे की हवा में सिर्फ़ मस्ती ही नहीं, बल्कि मासूमियत का भी तड़का था। मिष्टी और ईशानी की बॉन्डिंग इतनी मज़बूत थी कि उनकी हँसी और मज़ाक में एक बहन जैसी नज़दीकी झलकती थी।
मिष्टी ने वाइन का ग्लास उठाते हुए चिल्लाया,
"स्विट्ज़रलैंड का ये ट्रिप यादगार रहेगा, खासकर जब मैं अपनी 'आफ़त की पुड़िया' के साथ हूँ!"
ईशानी ने हँसते हुए उसका ग्लास क्लिंक किया और कहा,
"सच में! लेकिन देखना, ये लड़के हमसे दूर नहीं जा पाएँगे।"
दोनों ने जोर से हँसते हुए डांस फ़्लोर पर मस्ती करनी शुरू कर दी। उनकी मासूमियत और चुलबुलापन पूरे रूम का माहौल हल्का कर रहे थे।
क्या होगा आगे? दोनों बहनों जैसी मिष्टी और ईशानी की ये बेफ़िक्री और मस्ती का सिलसिला क्या किसी मुसीबत का कारण बनेगा? रुद्रांश को इनकी हरकतों के बारे में पता चलेगा तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी होगी?
सुबह की हल्की धूप कमरे में झाँक रही थी, किन्तु मिष्टी और इशानी गहरी नींद में सो रही थीं। पिछली रात की मस्ती का असर उनकी थकी हुई आँखों और धीमी साँसों में साफ़ झलक रहा था।
घड़ी की सुइयाँ आठ बजा रही थीं। मिष्टी ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और अपने फ़ोन पर नज़र डाली।
"ईशु! उठ! हमें फ़्लाइट के लिए देर हो रही है!" उसने इशानी को हिलाते हुए कहा।
इशानी ने करवट लेते हुए बड़बड़ाया,
"दो मिनट और सोने दे यार, सुबह-सुबह क्यों शोर मचा रही है?"
मिष्टी ने झट से इशानी के ऊपर तकिया फेंक दिया।
"अगर तू लेट हुई, तो फ़्लाइट छूट जाएगी और फिर तेरा वो 'मिस्टर अकड़ू' हमें मार डालेगा!"
दोनों किसी तरह जल्दी-जल्दी तैयार हुईं। इशानी ने अपनी फ़ेवरेट व्हाइट शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी, वहीं मिष्टी ने पिंक क्रॉप टॉप और डेनिम शॉर्ट्स पहने।
"चल, भाग! फ़्लाइट मिस हो गई, तो रुद्रांश चाचू हमें घर में घुसने नहीं देंगे!" मिष्टी ने चिल्लाते हुए कहा।
"तू उसे चाचू बुला सकती है, लेकिन मैं क्या बुलाऊँ? मुझे कुछ समझ नहीं आता!" इशानी ने जवाब दिया।
मिष्टी ने हँसते हुए कहा,
"कपकेक बुला, वही तो तुझे बुलाता है। वैसे, उसे तंग करने के लिए 'मिस्टर कूल' बुला सकती है!"
इशानी ने उसकी तरफ़ घूरते हुए कहा,
"अभी चुप कर और टैक्सी बुला!"
इंडिया में लौटना
फ़्लाइट के घंटों के सफ़र के बाद, दोनों ने आखिरकार इंडिया की धरती पर कदम रखा। लेकिन एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही विक्रम का फ़ोन आया।
"माँम, आप दोनों जल्दी से हवेली आइए। दादा जी और सर दोनों इंतज़ार कर रहे हैं," विक्रम की आवाज़ में हल्का सा तनाव था।
मिष्टी और इशानी ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा।
"रुद्रांश चाचू वापस आ गया!" मिष्टी ने कहा और उसकी आवाज़ में डर के साथ-साथ उत्सुकता भी थी।
इशानी ने ठंडी साँस लेते हुए कहा,
"अब हमारी खैर नहीं।"
हवेली में खौफ़ का माहौल
जैसे ही दोनों हवेली के गेट पर पहुँचीं, एक सन्नाटा छा गया। वहाँ का माहौल उनके दिलों की धड़कनें तेज कर रहा था। अंदर जाने से पहले मिष्टी ने इशानी का हाथ पकड़ा।
"तूने कभी सोचा है, रुद्रांश चाचू तुझे इतने प्यार से क्यों बुलाते हैं? कपकेक? यह नाम सुनकर मुझे लगता है कि तू उनकी कमज़ोरी है।"
इशानी ने उसे झिड़कते हुए कहा,
"पागल है क्या? तू ये सब दिमाग से निकाल। पहले चलकर देख तो, वो हमें कैसे डांटेगा।"
जैसे ही दोनों ने अंदर कदम रखा, रुद्रांश की गहरी और ठंडी आवाज़ ने उन्हें रोक दिया।
"किधर से आ रही हो तुम दोनों?"
हाल में...!
रुद्रांश सोफ़े पर बैठा था, और उसकी आँखों में वही तीखापन था, जो उसके खौफ़ और रुतबे को बयाँ करता था। उसने अपनी उंगलियाँ आपस में फँसाते हुए दोनों की तरफ़ देखा।
मिष्टी ने घबराकर कहा,
"चाचू, वो...हम तो बस...वो..."
रुद्रांश ने बीच में ही बात काटते हुए कहा,
"मुझे बहाने नहीं सुनने। मुझे ये बताओ कि मेरी परमिशन के बिना स्विट्ज़रलैंड जाने की हिम्मत कैसे हुई?"
इशानी ने उसकी तरफ़ घूरते हुए कहा,
"आपको हमारी हर चीज़ में दखल देने की ज़रूरत क्यों है? हम बच्चे नहीं हैं।"
रुद्रांश खड़ा हुआ और उसकी तरफ़ बढ़ा। उसके चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान थी।
"तुम्हें लगता है, मैं तुम्हें अकेला छोड़ सकता हूँ? कपकेक, तुम भूल रही हो कि मैं कौन हूँ। तुम्हारी हर साँस पर मेरा हक़ है।"
इशानी रुद्रांश के सामने खड़ी थी, उसकी आँखों में हल्की नमी और डर का मिला-जुला भाव था। लेकिन अपने गुस्से को छुपाने के लिए उसने धीरे से बुदबुदाया,
"मिस्टर अकड़ू कहीं के..."
उसके शब्द इतने धीमे थे कि उसने सोचा, रुद्रांश सुन नहीं पाएगा। लेकिन वह गलत थी। रुद्रांश के चेहरे पर तुरंत एक टेढ़ी मुस्कान आ गई। उसकी भूरी आँखों में एक अलग ही चमक थी।
वह धीरे-धीरे इशानी की तरफ़ बढ़ा और अपनी गहरी आवाज़ में बोला,
"क्या कहा तुमने? मिस्टर अकड़ू?"
इशानी की आँखें चौड़ी हो गईं। वह फ़ौरन अपने शब्दों को वापस लेने की कोशिश करने लगी,
"न-नहीं, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा..."
मगर रुद्रांश की मुस्कान और गहरी हो गई।
"तुम्हारे साहस की तो दाद देनी पड़ेगी, कपकेक। लगता है, स्विट्ज़रलैंड की हवा ने तुम्हें कुछ ज़्यादा ही छूट दे दी है। अब तुम्हें और तुम्हारी साथी मिष्टी को सज़ा देनी पड़ेगी।"
मिष्टी, जो कोने में चुपचाप खड़ी थी, अचानक चौकन्नी हो गई।
"सज़ा? कैसी सज़ा?" उसने घबराते हुए पूछा।
रुद्रांश ने उनकी तरफ़ देखते हुए कहा,
"आप दोनों को पूरा गार्डन साफ़ करना होगा। हर कोना। और मुझे शाम तक गार्डन बिल्कुल साफ़ चाहिए।"
मिष्टी और इशानी की आँखें बड़ी हो गईं।
"क्या? पूरे गार्डन की सफ़ाई?" मिष्टी ने झट से कहा।
रुद्रांश ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया,
"हाँ। और अगर शाम तक गार्डन साफ़ नहीं हुआ, तो सज़ा दोगुनी हो जाएगी।"
इशानी ने अपना गुस्सा छुपाने की कोशिश करते हुए तंज कसा,
"आपको और कोई काम नहीं है क्या? हमें तंग करना ही आपका मकसद है।"
रुद्रांश उसकी बात सुनकर थोड़ा झुका और उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
"तंग करना? कपकेक, तुमने तो अभी शुरुआत ही देखी है। और हाँ, अगर सफ़ाई ठीक से नहीं हुई, तो तुम दोनों को अगले हफ़्ते किचन का काम भी करना होगा।"
मिष्टी ने इशानी की तरफ़ देखा और धीरे से बुदबुदाई,
"ये आदमी सच में मिस्टर अकड़ू है। हमें ऐसे टॉर्चर करेगा, मैंने सोचा भी नहीं था।"
इशानी ने अपनी साँस छोड़ी और कहा,
"चुप रह, मिष्टी। पहले ये काम निपटाते हैं, फिर देखते हैं क्या करना है।"
दोनों गार्डन की तरफ़ बढ़ गईं। उनके चेहरों पर एक अजीब-सा डर और गुस्सा था, लेकिन वे जानती थीं कि रुद्रांश से बहस करने का कोई फ़ायदा नहीं।
आगे क्या होगा?
क्या इशानी और मिष्टी गार्डन की सफ़ाई पूरी कर पाएंगी, या उनकी सज़ा और भी मुश्किल हो जाएगी? और क्या रुद्रांश का यह जुनून इशानी को और परेशान करेगा? कहानी अब दिलचस्प मोड़ पर है!
इशानी और मिष्टी बाग़ की सफ़ाई में जुटी हुई थीं। तेज धूप में उनके माथे पर पसीने की बूँदें टपक रही थीं। दोनों ने झाड़ू और कूड़ेदान संभाल रखा था। इशानी ने झुंझलाते हुए कहा,
"ये सब उस मिस्टर अकड़ू की वजह से हो रहा है! सफ़ाई करो, सफ़ाई करो... क्या हम नौकर हैं?"
मिष्टी ने हँसते हुए जवाब दिया,
"इशु, अब आप ही ने उन्हें मिस्टर अकड़ू कहा, अब भुगतिए!"
इशानी ने झाड़ू ज़मीन पर पटक दिया और गुस्से में बोली,
"तुम ही हो जो हर जगह मुसीबत खड़ी कर देती हो! अगर हम बार में मस्ती नहीं कर रहे होते, तो यह दिन नहीं देखना पड़ता।"
मिष्टी ने नाटकीय अंदाज़ में कहा,
"अरे वाह! सारा इल्ज़ाम मुझ पर ही डाल दो। वैसे इशु, आपको मानना पड़ेगा कि वो बार के लड़के बहुत क्यूट थे।"
इशानी ने गुस्से से उसकी ओर देखा,
"बस करो, और जल्दी सफ़ाई करो। अगर शाम तक पूरा बाग़ साफ़ नहीं हुआ, तो पता नहीं वो मिस्टर अकड़ू क्या करेंगे।"
दोनों बहनें सफ़ाई में लगी रहीं, लेकिन उनकी हालत ख़राब हो गई।
रुद्रांश अपने ऑफिस में बैठा था। तभी विक्रम अंदर आया और उसे एक पैकेट थमाया।
"सर, ये स्विट्ज़रलैंड में हुए उनके बार वाले ड्रामे की तस्वीरें हैं।"
रुद्रांश ने पैकेट खोला और तस्वीरों को गौर से देखा। तस्वीरों में इशानी और मिष्टी को लड़कों के साथ मस्ती करते, नाचते और फ़्लर्ट करते हुए देखा जा सकता था। रुद्रांश के चेहरे पर गुस्से की लकीरें गहरी हो गईं।
उसने फ़ोन उठाया और नंबर डायल किया।
"एकांश, मुझे तुम्हारी तुरंत ज़रूरत है। कल मेरे मेंशन पर पहुँचो।"
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई,
"रुद्रांश, सब ठीक है? तुम इतने गुस्से में क्यों हो?"
रुद्रांश ने शांत लेकिन ख़तरनाक आवाज़ में कहा,
"कल मिलो, सब समझा दूँगा। और हाँ, अब मिष्टी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। तुम्हें उसे संभालना है।"
अगले दिन, एक काली लक्ज़री कार में एक हैंडसम और चार्मिंग शख़्स मेंशन के बाहर उतरा। उसने ब्लैक सूट पहना था, और उसकी पर्सनालिटी में एक रॉयल अट्रैक्शन था। वह और कोई नहीं, बल्कि एकांश ओबेरॉय था—रुद्रांश का बचपन का दोस्त और मिष्टी का होने वाला पति।
रुद्रांश मेंशन के दरवाज़े पर खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा था। एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा,
"तो, मुझे यहाँ क्यों बुलाया गया?"
रुद्रांश ने उसे अंदर बुलाते हुए कहा,
"पहले तुम अंदर आओ। तुम्हें कुछ दिखाना है।"
एकांश ने कन्फ़्यूज़न में सिर हिलाया और दोनों अंदर चले गए। रुद्रांश ने उसे तस्वीरें दिखाईं। एकांश ने तस्वीरें देखते ही हँसते हुए कहा,
"मिष्टी अभी भी वही पुरानी नटखट लड़की है। लेकिन इशानी...? ये काफ़ी चौंकाने वाला है।"
रुद्रांश ने गंभीर स्वर में कहा,
"तुम मिष्टी को हैंडल कर सकते हो, लेकिन इशानी मेरी ज़िम्मेदारी है। और मैं उसे लेकर बहुत सीरियस हूँ।"
एकांश ने मज़ाक में कहा,
"क्या तुम सच में सीरियस हो, या फिर तुम्हारा वो माफ़िया स्टाइल पोज़ है?"
रुद्रांश ने उसे घूरते हुए कहा,
"ये माफ़िया पोज़ नहीं है। ये मेरी ज़िंदगी की सच्चाई है।"
एकांश ने सिर हिलाते हुए कहा,
"ठीक है, भाई। मिष्टी को संभालने की कोशिश करूँगा, लेकिन इशानी के लिए तुम्हें ही कुछ करना होगा।"
इशानी और मिष्टी की हालत बाग़ की सफ़ाई के बाद बहुत ख़राब हो चुकी थी। दोनों बहनों ने रात भर नींद में कराहते हुए बिताई थी। सुबह होते ही उन्हें तेज बुखार हो गया था, जिसके चलते दोनों बिस्तर पर पड़ी हुई थीं। मिष्टी ने अपनी आँखें खोलने की कोशिश की, लेकिन बुखार के चलते उसका सिर भारी महसूस हो रहा था।
"इशु... मुझे बहुत बुरा लग रहा है," उसने धीमे से कहा।
इशानी ने अपनी आँखें खोले बिना जवाब दिया,
"मुझे भी, मिष्टी... शायद वो सफ़ाई का काम हमारी जान ले लेगा।"
नीचे हॉल में रुद्रांश और एकांश चाय पीते हुए बात कर रहे थे। तभी गायत्री ने आकर रुद्रांश को बताया,
"सर, इशानी और मिष्टी की तबीयत ख़राब हो गई है। दोनों को तेज बुखार है।"
यह सुनते ही रुद्रांश के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गईं। उसने चाय का कप मेज़ पर रखा और तुरंत खड़ा हो गया।
"मैं देखता हूँ। एकांश, तुम भी चलो। शायद तुम्हें भी अपनी होने वाली पत्नी की परवाह हो।"
एकांश ने हँसते हुए कहा,
"परवाह? अरे, वो नटखट मिष्टी मेरी ज़िम्मेदारी है। चलो देखते हैं।"
रुद्रांश और एकांश जब कमरे में पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि इशानी और मिष्टी दोनों ही सो रही थीं। उनके माथे पर पसीने की बूँदें थीं, और वे बहुत कमज़ोर लग रही थीं।
रुद्रांश ने धीमे स्वर में कहा,
"इशानी को ऐसे देखना अच्छा नहीं लग रहा। विक्रम, डॉक्टर को बुलाओ।"
विक्रम ने सिर हिलाते हुए तुरंत डॉक्टर को कॉल किया। वहीं, एकांश मिष्टी के पास जाकर बैठ गया। उसने मिष्टी का माथा छुआ और चौंकते हुए कहा,
"रुद्रांश, इसका तो बुखार बहुत तेज है। ये लड़की हमेशा मुसीबत में क्यों रहती है?"
रुद्रांश ने इशानी के पास जाकर उसका माथा छुआ। उसकी आँखों में नरमी आ गई। उसने पास रखे ठंडे पानी और तौलिये से उसका माथा पोछना शुरू किया।
"इशानी, तुम इतनी ज़िद्दी क्यों हो? खुद को तकलीफ़ देकर दूसरों को परेशानी में डालती हो।"
कुछ देर बाद, डॉक्टर आ गया और उसने दोनों का चेकअप किया। डॉक्टर ने कहा,
"फ़िलहाल घबराने की बात नहीं है। बस उन्हें आराम की ज़रूरत है और समय पर दवा देते रहिए।"
डॉक्टर के जाने के बाद रुद्रांश ने इशानी की तरफ़ देखा, जो अभी भी नींद में थी। उसने विक्रम को दवाइयाँ लाने के लिए भेजा और खुद उसकी देखभाल में लग गया।
दूसरी तरफ़, एकांश मिष्टी के पास बैठा था। उसने हँसते हुए कहा,
"मिष्टी, तुमने मुझे पहचानने में ग़लती की है। मैं तुम्हारे नख़रे उठाने के लिए नहीं बना, लेकिन अब लगता है कि मुझे यही करना पड़ेगा।"
कुछ घंटे बाद, मिष्टी की आँख खुली। उसने एकांश को अपने पास बैठे देखा और हैरान होकर पूछा,
"आप यहाँ क्या कर रहे हैं?"
एकांश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"तुम्हारी देखभाल करने आया हूँ। और अगर तुमने फिर से शैतानी की, तो तुम्हें इससे भी बड़ा बुखार हो जाएगा। समझी?"
मिष्टी ने नटखट अंदाज़ में कहा,
"मैंने क्या किया था? और वैसे भी, आप कौन होते हैं मुझे डाँटने वाले?"
"मैं तुम्हारा होने वाला पति हूँ। इतना हक़ तो बनता है," एकांश ने जवाब दिया।
वहीं, इशानी की आँखें भी धीरे-धीरे खुलीं। उसने रुद्रांश को अपने पास देखा और हैरान होकर पूछा,
"आप यहाँ क्यों हैं?"
रुद्रांश ने गंभीर स्वर में कहा,
"तुम्हें सही सलामत रखना मेरी ज़िम्मेदारी है। इसलिए बेकार की बातें मत करो और आराम करो।"
इशानी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"मिस्टर अकड़ू, आप इतने अच्छे कब से हो गए?"
रुद्रांश ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया, बस उसके सिर पर ठंडा पानी लगाना जारी रखा।
क्या होगा आगे? क्या रुद्रांश और एकांश का ख़्याल इन दोनों बहनों को उनके दिल के करीब लाएगा? और क्या इशानी और मिष्टी को इन माफ़िया स्टाइल के पुरुषों के नए रूप को समझने का मौक़ा मिलेगा?
कहानी जारी है...
मिष्टी अब बुखार से थोड़ी ठीक महसूस कर रही थी। वह अपने बिस्तर पर बैठी हुई थी, लेकिन अभी भी थकी हुई लग रही थी। उसी समय, एकांश कमरे में दाखिल हुआ, हाथ में फलों का कटोरा और एक चॉकलेट बार लिए हुए।
मिष्टी ने उसे देखते ही शरारती अंदाज में कहा,
"आप यहां बार-बार क्यों आ रहे हैं? मैं ठीक हूँ। वैसे भी, इतनी भी बीमार नहीं हूँ कि फल खा सकूँ। चॉकलेट दे दीजिये बस!"
एकांश ने हंसते हुए उसकी बात काटी,
"तुम्हारी ये शैतानियाँ ही तुम्हारी कमजोरी हैं। पहले फल खाओ, फिर चॉकलेट दूँगा।"
मिष्टी ने बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए कहा,
"नहीं, मुझे चॉकलेट चाहिए।"
एकांश ने गहरी साँस ली और कटोरा एक तरफ रखते हुए कहा,
"तुम वाकई एक बड़ी मुसीबत हो, मिष्टी। और तुम्हें पता है, मैं तुम्हें अब से कैंडी बुलाने वाला हूँ। तुम उतनी ही शरारती और मीठी हो जितनी एक कैंडी होती है।"
मिष्टी ने हैरानी से पूछा,
"कैंडी? यह तो अच्छा नाम है। लेकिन आपको कैसे पता चला कि मैं इतनी स्वीट हूँ?"
एकांश ने मज़ाक में कहा,
"तुम्हारे जैसी शैतान कोई स्वीट हो सकती है, यह मुझे यकीन दिलाने में वक़्त लगेगा। लेकिन फ़िलहाल, चुपचाप यह फल खाओ।"
मिष्टी ने आखिरकार फल खाना शुरू कर दिया, लेकिन बीच-बीच में अपने अंदाज में नखरे करती रही। जब वह खाने में उलझी हुई थी, एकांश ने धीरे से पूछा,
"मिष्टी, तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारी शादी कैसी होगी?"
मिष्टी ने ठहरकर उसकी ओर देखा और कहा,
"शादी? वह तो बड़ी बोरिंग चीज़ होती है। मुझे तो बस अपनी आज़ादी पसंद है। शादी करने का मतलब है कि मेरी ज़िंदगी में रूल्स आ जाएँगे। और मैं रूल्स फ़ॉलो नहीं करती!"
एकांश ने हँसते हुए कहा,
"तुम्हारे जैसी शरारती के साथ रूल्स कौन बनाएगा? अगर मैंने तुम्हें रूल्स दिए, तो तुम घर ही छोड़ दोगी।"
मिष्टी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा,
"तो, आप शादी में रूल्स नहीं बनाएँगे?"
एकांश ने धीरे से उसकी ओर झुकते हुए कहा,
"नहीं, लेकिन तुम्हारे जैसी शरारती कैंडी को संभालने के लिए प्यार से काम लेना पड़ेगा। और वैसे भी, रूल्स से ज़्यादा ज़रूरी है तुम्हारा दिल जीतना।"
मिष्टी के गाल लाल हो गए। उसने तुरंत मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया, लेकिन उसकी हल्की मुस्कान छुप नहीं पाई।
एकांश ने उसे पास बुलाते हुए कहा,
"तुम्हारे गाल इतने लाल क्यों हो रहे हैं? क्या बुखार फिर से बढ़ गया?"
मिष्टी ने हिचकिचाते हुए कहा,
"नहीं... वह तो बस... मुझे गर्मी लग रही है।"
एकांश ने हल्की मुस्कान के साथ उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया।
"कैंडी, तुम्हारी ये नटखट बातें मुझे और परेशान करती हैं। क्या तुम्हें पता है, तुम कितनी क्यूट हो?"
मिष्टी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन इससे पहले ही एकांश ने उसके माथे पर हल्की सी किस कर दी। मिष्टी पूरी तरह से हैरान हो गई और तुरंत अपने चेहरे को अपने हाथों से छुपा लिया।
एकांश ने उसकी शरारतभरी शर्म पर मुस्कुराते हुए कहा,
"अब यह मत कहना कि तुम्हें किस पसंद नहीं। वैसे भी, यह सिर्फ़ शुरुआत है।"
मिष्टी ने अपने हाथ हटाते हुए कहा,
"आप बहुत बदमाश हैं! मुझे ऐसे डराइए मत।"
एकांश ने मज़ाक में कहा,
"डराने का क्या काम? मैं तो सिर्फ़ अपनी कैंडी को और मीठा बना रहा हूँ।"
इशानी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, मगर उसकी आँखें खुली थीं। उसने गुस्से से तकिया अपने चेहरे पर रख लिया और बड़बड़ाने लगी,
"मुझे कोई दवाई नहीं चाहिए। मैं ठीक हूँ। यह मिस्टर अकड़ू हमेशा मुझे परेशान क्यों करते रहते हैं?"
तभी दरवाज़े पर धीमी दस्तक हुई, और रुद्रांश अंदर दाखिल हुआ। उसके हाथ में पानी का गिलास और दवाई थी। उसने गंभीर नज़रों से इशानी की ओर देखा और कहा,
"इशानी, अपनी हरकतें बंद करो। यह दवाई खानी ही पड़ेगी।"
इशानी ने तकिया हटाकर सीधा जवाब दिया,
"मैंने कहा ना, मुझे दवाई नहीं चाहिए। मैं ठीक हूँ!"
रुद्रांश ने ठंडी साँस ली और गहरी आवाज़ में कहा,
"कपकेक, आप मुझे परेशान करने में माहिर हो चुकी हैं। लेकिन इस बार आपकी शरारतें नहीं चलेंगी।"
इशानी ने चौंकते हुए पूछा,
"कपकेक? यह नया नाम क्यों दिया आपने?"
रुद्रांश मुस्कुराते हुए उसके पास बैठा और बोला,
"क्योंकि आप मेरी ज़िंदगी की सबसे मीठी और सबसे ज़िद्दी चीज़ हैं।"
इशानी ने मुँह बनाते हुए कहा,
"आपकी यह मीठी बातें मुझे दवाई खाने के लिए मजबूर नहीं कर सकतीं।"
रुद्रांश ने गंभीरता से कहा,
"ठीक है, अगर आप अपनी मर्ज़ी से दवाई नहीं खाएँगी, तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी।"
इशानी ने शरारतभरे अंदाज में जवाब दिया,
"मैं देखती हूँ, आप कैसे मुझे जबरदस्ती दवाई खिलाते हैं।"
रुद्रांश ने उसके पास जाकर उसे अपने मज़बूत हाथों से संभाल लिया। उसने प्यार भरी मगर सख्त आवाज़ में कहा,
"आप शायद भूल रही हैं कि मैं कौन हूँ। रुद्रांश कपूर से बहस करना किसी के बस की बात नहीं है।"
इशानी ने उसकी आँखों में देखा और चुपचाप बैठ गई। रुद्रांश ने धीरे से उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई और कहा,
"अब बिना कोई बहस किए, यह दवाई खा लीजिए।"
इशानी ने दवाई लेने से फिर भी इनकार किया। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ और कह पाती, रुद्रांश ने उसकी नाक दबाते हुए कहा,
"अगर आप साँस नहीं ले पाएँगी, तो बोलेंगी कैसे?"
इशानी ने हँसते हुए कहा,
"यह क्या हरकत है! आप इतने ड्रामेबाज़ क्यों हैं?"
रुद्रांश ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा,
"आपसे ज़्यादा ड्रामेबाज़ और कौन हो सकता है, कपकेक?"
आखिरकार, इशानी ने दवाई खा ली। लेकिन उसके चेहरे पर शिकन साफ़ दिख रही थी। उसने गुस्से में कहा,
"आप हमेशा जबरदस्ती क्यों करते हैं?"
रुद्रांश ने एक कोने में रखी कुर्सी पर बैठते हुए जवाब दिया,
"क्योंकि आप अपनी ज़िद से कभी बाज नहीं आतीं। और मैं आपको बीमार नहीं देख सकता। समझीं, कपकेक?"
इशानी ने धीरे से कहा,
"आप मुझे कपकेक क्यों बुला रहे हैं? और आपको मेरी इतनी परवाह क्यों है?"
रुद्रांश ने उसकी ओर झुकते हुए कहा,
"शायद इसलिए, क्योंकि आप मेरी ज़िंदगी की सबसे अनमोल चीज़ हैं। और हाँ, कपकेक, यह नाम आपके मीठे मगर ज़िद्दी स्वभाव के लिए है।"
इशानी ने शर्माते हुए कहा,
"मैं मीठी नहीं हूँ। आप मुझे ऐसे मत बुलाइए।"
रुद्रांश ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा,
"ठीक है, अब आप आराम करें। और हाँ, अगर फिर से दवाई न खाने की ज़िद की, तो अगली बार जबरदस्ती और बढ़ जाएगी।"
इशानी ने उसे घूरते हुए कहा,
"आप वाकई सबसे ज़िद्दी इंसान हैं!"
रुद्रांश मुस्कुराते हुए बाहर चला गया, लेकिन जाते-जाते उसने प्यार भरी नज़रों से इशानी की ओर देखा।
आगे क्या होगा? क्या इशानी रुद्रांश की देखभाल को समझ पाएगी, या फिर उनके बीच यह मीठी तकरार यूँ ही चलती रहेगी? और रुद्रांश के दिल में बढ़ती यह फ़ीलिंग्स क्या रंग लाएँगी?
कहानी जारी है...
सुबह का वक्त था। हवेली में एक अलग सी हलचल थी। रुद्रांश और एकांश दरवाज़े के पास खड़े थे। दोनों के चेहरों पर हल्की सी मुस्कान थी, क्योंकि आज दादाजी घर लौट रहे थे।
तभी एक कार हवेली के बाहर आकर रुकी। ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला, और एक सजीव और ऊर्जा से भरी हुई शख्सियत बाहर निकली। दादाजी, जिनके चेहरे पर हमेशा की तरह गर्मजोशी और हल्की मुस्कान थी, धीरे-धीरे अंदर आए। रुद्रांश ने तुरंत आगे बढ़कर उनका हाथ थाम लिया।
"दादाजी, आपका स्वागत है।"
दादाजी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले,
"रुद्रांश बेटा, ये क्या? तुमने तो मुझे फ़ोन भी नहीं किया। मेरी तबीयत का इतना ख्याल रखना ज़रूरी था क्या?"
रुद्रांश ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"दादाजी, ये हमारा फ़र्ज़ है। और वैसे भी, घर आपके बिना अधूरा लगता है।"
तभी एकांश ने आगे बढ़कर दादाजी के पैर छुए। दादाजी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा,
"अरे, एकांश बेटा! कितने दिनों बाद मिल रहे हो। और तुम तो और भी समझदार और ज़िम्मेदार लग रहे हो।"
एकांश ने हंसते हुए जवाब दिया,
"दादाजी, समझदार होना तो वक़्त की ज़रूरत है। लेकिन आपसे मिलकर हमेशा वही पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं।"
दादाजी ने हंसते हुए कहा,
"तो बताओ, हवेली में सब ठीक है ना? और मेरी पोतियों का क्या हाल है? मिष्टी और इशानी कैसी हैं?"
दादाजी, रुद्रांश, और एकांश हवेली के हॉल में बैठ गए। चाय का इंतज़ाम किया गया। दादाजी ने गहरी नज़र से रुद्रांश की ओर देखा और कहा,
"रुद्रांश, तुमने मुझे चिंता में डाल रखा है। तुम्हारा स्वभाव अब पहले से और गंभीर हो गया है। कोई खास बात है क्या?"
रुद्रांश ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"नहीं, दादाजी। सब कुछ ठीक है। बस, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं।"
दादाजी ने एकांश की ओर देखकर पूछा,
"और बेटा, तुम्हारा क्या हाल है? मिष्टी के साथ तुम्हारी सगाई कब की योजना है?"
एकांश थोड़ा झेंपते हुए बोला,
"दादाजी, वो... अभी तक कोई तारीख़ तय नहीं हुई है। लेकिन मिष्टी काफी शरारती है, उसे संभालना मेरे बस की बात नहीं।"
दादाजी ने ज़ोर से हंसते हुए कहा,
"अरे, मिष्टी को संभालने के लिए तुम्हारे जैसा ही कोई चाहिए। और मैं जानता हूँ कि तुम उसे अच्छे से संभालोगे। बस, उसे प्यार से समझाना।"
तभी रुद्रांश ने गंभीर होते हुए कहा,
"दादाजी, एकांश और मिष्टी की जोड़ी परफेक्ट है। मैं चाहता हूँ कि दोनों जल्दी से शादी करें।"
इशानी और मिष्टी, जो अब पहले से बेहतर महसूस कर रही थीं, सीढ़ियों के पास खड़ी होकर तीनों की बातचीत सुन रही थीं। मिष्टी ने धीरे से इशानी के कान में फुसफुसाया,
"दीदी, देखो ना! ये सब मेरी शादी की बात कर रहे हैं। और वो एकांश, दादाजी को कितना खुश कर रहा है।"
इशानी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"हाँ, और रुद्रांश तो जैसे तुम्हारी शादी जल्दी कराने की पूरी प्लानिंग कर चुका है।"
मिष्टी ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा,
"अगर मेरी शादी की बात हो रही है, तो आपकी भी होगी। मिस्टर अकड़ू कहीं न कहीं आपके लिए भी प्लान बना रहे होंगे।"
इशानी ने गुस्से में मिष्टी को घूरते हुए कहा,
"चुप रहो, मिष्टी। और वहाँ से चलो, इससे पहले कि कोई हमें देख ले।"
दादाजी ने रुद्रांश और एकांश की ओर देखते हुए कहा,
"ज़िन्दगी में प्यार और रिश्ते सबसे अहम होते हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों हमेशा खुश रहो और अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते रहो। मिष्टी और इशानी हमारी जान हैं, और उनका ख्याल रखना हमारा फ़र्ज़ है।"
रुद्रांश और एकांश ने एक स्वर में कहा,
"जी, दादाजी। हम हमेशा उनका ख्याल रखेंगे।"
मिष्टी और इशानी सीढ़ियों के पास खड़ी होकर दादाजी, रुद्रांश और एकांश की बातें सुन रही थीं। मिष्टी धीरे से हंसते हुए इशानी से बोली,
"देख, तेरे मिस्टर अकड़ू तेरी शादी की प्लानिंग कर रहे हैं। लगता है तुम्हारी शादी का कार्ड छपवाने की तैयारी हो रही है।"
इशानी ने झुंझलाकर उसकी ओर देखा और गुस्से में बोली,
"मिष्टी! अगर तुमने एक और शब्द बोला, तो मैं तुम्हारा मुँह बंद कर दूँगी।"
मिष्टी ने अपनी हँसी छुपाते हुए कहा,
"अरे, सच तो कह रही हूँ। वैसे तुम भी मन ही मन खुश हो, है ना?"
इशानी गुस्से में बोलने ही वाली थी कि तभी उनका कानाफ़ूसी भरा वार्तालाप सुन लिया गया। नीचे बैठे रुद्रांश ने उनकी आवाज़ पहचान ली। उसने धीरे से दादाजी और एकांश को इशारा किया और सिर उठाकर ऊपर देखा।
"तो, हमारे गुप्त जासूस वहीं छुपे हुए थे," रुद्रांश ने शांत लेकिन तीखे स्वर में कहा।
इशानी और मिष्टी, जो पहले ही पकड़े जाने के डर से सहम चुकी थीं, धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतर आईं।
नीचे आते ही इशानी ने बात संभालने के लिए एकांश की ओर देखा और मज़ाक में बोली,
"वैसे, जीजू, आपको और मिष्टी को तो छुपाने की ज़रूरत नहीं है। शादी की बात तो पक्की है, है ना?"
एकांश, जो अब तक बहुत शांत और कूल नज़र आ रहा था, मिष्टी की ओर देखकर शर्माने लगा। मिष्टी ने उसे कोहनी मारते हुए धीरे से कहा,
"ये सब आप दोनों की वजह से हुआ है। अब मैं क्या करूँ?"
दादाजी ने ठहाका लगाते हुए कहा,
"देखा! हमारी पोतियाँ भी अब हमारी बातें सुनकर मज़ाक उड़ाने लगी हैं।"
मिष्टी और एकांश के चेहरों पर हल्की सी लाली आ गई।
रुद्रांश ने गहरी नज़रों से इशानी की ओर देखा और तीखे स्वर में कहा,
"तो, मिस्टर अकड़ू? अब ये नया नाम रखा है मेरे लिए?"
इशानी ने अपनी गलती को छुपाने की कोशिश करते हुए कहा,
"वो... वो मैंने कुछ नहीं कहा। ये सब मिष्टी का काम है!"
मिष्टी ने तुरंत पलटकर कहा,
"दीदी! झूठ क्यों बोल रही हो? मैंने तो कुछ नहीं कहा।"
रुद्रांश ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा,
"अच्छा, कपकेक। अब तुम्हें सज़ा मिलनी चाहिए। लेकिन आज के लिए तुम्हें छोड़ देता हूँ, क्योंकि तुम अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हो।"
इशानी ने गुस्से में रुद्रांश को देखा, लेकिन कुछ कह नहीं पाई।
दादाजी ने मुस्कुराते हुए मिष्टी और एकांश की ओर देखा और कहा,
"मिष्टी, बेटा, एकांश तुम्हारे लिए परफेक्ट है। तुम दोनों जल्दी से शादी की तैयारियाँ शुरू कर दो।"
मिष्टी ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा,
"दादाजी, शादी की इतनी जल्दी क्या है? पहले ये बताइए, एकांश मुझे कैंडी क्यों कहते हैं?"
एकांश, जो अब तक शांत था, थोड़ा झेंपते हुए बोला,
"क्योंकि तुम उतनी ही मीठी और शरारती हो, जितनी एक कैंडी।"
मिष्टी ने यह सुनकर हंसते हुए कहा,
"तो, कैंडी हूँ? लेकिन मैं इतनी आसानी से आपकी नहीं बनने वाली।"
दादाजी और रुद्रांश हँसने लगे, जबकि एकांश ने शर्माते हुए उसकी शरारतों को सहा।
दादाजी ने सबको देखते हुए कहा,
"मुझे खुशी है कि मेरे लौटने के बाद घर का माहौल फिर से खुशहाल हो गया है। मिष्टी, एकांश, और रुद्रांश, तुम सभी मुझे गर्व महसूस कराते हो। लेकिन याद रखना, प्यार और रिश्ते सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हैं।"
मिष्टी और इशानी ने एक-दूसरे की ओर देखा और मुस्कुरा दीं। हवेली में खुशी का माहौल था, लेकिन रुद्रांश की आँखों में इशानी के लिए कुछ और ही भाव थे।
क्या रुद्रांश अपने दिल की बात इशानी से कह पाएगा? और मिष्टी और एकांश की कहानी क्या नया मोड़ लेगी? कहानी जारी है...
रुद्रांश अपने ऑफिस में बैठा था, जब विक्रम अंदर आया। उसका चेहरा गंभीर था।
"सर, हमें एक नई जानकारी मिली है। किसी ने हमारी एक बड़ी डील में दखल दिया है। यह वही शख्स है जो पहले भी आपके बिज़नेस में रुकावट डाल चुका है।"
रुद्रांश की नज़रें सख्त हो गईं। उसने अपने फोन को टेबल पर रख दिया और विक्रम की ओर देखा।
"नाम क्या है?"
विक्रम ने झिझकते हुए कहा,
"अर्जुन महादेव। वह इस समय शहर में है और आपके खिलाफ़ बड़ी प्लानिंग कर रहा है। वह आपके पुराने दुश्मनों में से एक है।"
रुद्रांश की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसने शांत लेकिन तीखे स्वर में कहा,
"अर्जुन महादेव... इस बार उससे निपटने का तरीका अलग होगा। उसके कदम मेरे शहर में पड़े हैं, इसका अंजाम उसे भुगतना पड़ेगा।"
दूसरी ओर, शहर के एक पॉश होटल में अर्जुन महादेव की एंट्री हुई। उसने ब्लैक सूट पहना हुआ था, और उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान थी। उसके पीछे उसके बॉडीगार्ड खड़े थे।
"तो, आखिरकार मुझे इस शहर में वह सब कुछ मिलेगा जो मैं चाहता हूँ। रुद्रांश राठौर को अब अपनी औक़ात दिखाने का वक़्त आ गया है।"
उसने अपने आदमी से कहा,
"मुझे इस शहर में उसकी हर कमज़ोरी का पता चाहिए। उसके परिवार, उसके बिज़नेस, और यहाँ तक कि उसकी निजी ज़िन्दगी। मुझे सब कुछ चाहिए।"
उसके आदमी ने सिर हिलाते हुए कहा,
"सर, हमें पता चला है कि उसके परिवार में दो लड़कियाँ हैं, इशानी और मिष्टी। वे दोनों उसके काफी करीब हैं।"
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा,
"तो, खेल यहीं से शुरू होगा। उसकी कमज़ोरी वही होगी, जिसे वह सबसे ज़्यादा प्यार करता है।"
रुद्रांश ने हवेली में कदम रखा। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थीं। इशानी और मिष्टी, जो अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थीं, लिविंग रूम में बैठकर बातें कर रही थीं।
मिष्टी ने उसे देखते ही मज़ाक में कहा,
"देखा, ईशु? तुम्हारे मिस्टर अकड़ू वापस आ गए हैं। लगता है, किसी ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया है।"
रुद्रांश ने उसकी बात को अनसुना करते हुए सीधे दादाजी के पास गया।
"दादाजी, हमें कुछ सुरक्षा बढ़ाने की ज़रूरत है। अर्जुन महादेव वापस आ चुका है।"
दादाजी ने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"तो वह फिर से हमारे खिलाफ़ चाल चल रहा है। रुद्रांश, क्या तुम्हें यकीन है कि वह हमें निशाना बनाएगा?"
रुद्रांश ने दृढ़ता से कहा,
"इस बार वह सिर्फ़ मुझे नहीं, बल्कि हमारे परिवार को भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा। लेकिन मैं उसे उसकी हद में रखूँगा।"
इशानी, जो अब तक शांत थी, अचानक बोली,
"रुद्रांश जी, यह अर्जुन महादेव कौन है? और वह हमें क्यों निशाना बनाएगा?"
रुद्रांश ने उसकी ओर देखा और गहरी आवाज़ में कहा,
"कपकेक, यह तुम्हारे समझने की बात नहीं है। बस इतना जान लो कि वह हमारा दुश्मन है और हमें उससे सावधान रहना होगा।"
मिष्टी ने चौंकते हुए कहा,
"दुश्मन? ईशू, यह तो फिल्म जैसा लग रहा है। कहीं वह हमें किडनैप तो नहीं कर लेगा?"
शाम का वक़्त था। रुद्रांश अपने दोस्तों के साथ एक प्राइवेट बार में बैठा हुआ था। विक्रम, एकांश, डॉ. करण (सर्जन), और एसीपी समीर मलिक—ये सभी वहाँ मौजूद थे।
रुद्रांश ने अपने गहरे स्वर में कहा,
"मेरे दुश्मन अब बहुत करीब आ चुके हैं। इस बार मैं उन्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ। मुझे तुम सबकी मदद चाहिए।"
डॉ. करण ने चिंतित होते हुए पूछा,
"क्या इशानी और मिष्टी को भी कोई खतरा है?"
रुद्रांश ने गंभीरता से सिर हिलाते हुए कहा,
"हाँ। इसलिए मैंने उन्हें घर में ही रहने का आदेश दिया है। अगर वे बाहर गईं तो मैं उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकता।"
समीर ने आश्वासन देते हुए कहा,
"तुम निश्चिंत रहो। मैं उनके आसपास सुरक्षा का इंतज़ाम करवा दूँगा।"
वहीं, एकांश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"और मिष्टी? क्या वह मेरी बात मानेंगी?"
रुद्रांश ने उसे चिढ़ाते हुए कहा,
"तुम्हें मिष्टी की फ़िक्र क्यों हो रही है, एकांश?"
एकांश ने अपनी बात संभालते हुए कहा,
"फ़िक्र नहीं, बस… वैसे ही पूछा।"
डॉ. करण ने हँसते हुए कहा,
"लगता है, एकांश ओबेरॉय इश्क़ के चक्कर में पड़ गए हैं।"
घर पर इशानी और मिष्टी थीं। इशानी और मिष्टी अब पहले से बेहतर महसूस कर रही थीं। वे दोनों लिविंग रूम में बैठकर बातें कर रही थीं। मिष्टी ने हँसते हुए कहा,
"ईशू, तेरे मिस्टर अकड़ू का प्लान देख रही हूँ मैं। वह तो सीधा शादी करवाने की प्लानिंग कर रहे हैं।"
इशानी ने उसे घूरते हुए कहा,
"चुप रहो, मिष्टी। ऐसा कुछ नहीं है। और वह मिस्टर अकड़ू नहीं, रुद्रांश हैं। अब उन्हें नाम से बुलाने की आदत डाल रही हूँ।"
मिष्टी ने उसकी चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा,
"अरे वाह! ईशू को प्यार हो गया। वैसे रुद्रांश का नाम तो तुम्हारे मुँह से अच्छा लगता है।"
इशानी ने गुस्से में एक कुशन उठाकर मिष्टी पर फेंक दिया। तभी उनकी इस बहस को दादा जी, रुद्रांश और एकांश ने सुन लिया। तीनों ने लिविंग रूम के दरवाज़े पर खड़े होकर उनकी बातें सुनते हुए हल्की मुस्कान दी।
दादाजी ने खांसते हुए कहा,
"क्या बातें चल रही हैं?"
इशानी और मिष्टी ने तुरंत अपनी जगह संभाली। मिष्टी ने इशानी की ओर इशारा करते हुए कहा,
"दादाजी, ईशू के मिस्टर रुद्रांश उन्हें शादी के लिए प्लान कर रहे हैं।"
रुद्रांश ने अपनी भौंहें उठाते हुए कहा,
"और तुम? तुमने क्या सोचा? क्या तुमने एकांश से बात की?"
यह सुनकर मिष्टी तुरंत शांत हो गई और शर्म से सिर झुका लिया। इशानी ने मुस्कुरा कर कहा,
"लगता है, मिष्टी को भी किसी का नाम बहुत पसंद आने लगा है।"
एकांश ने हल्का सा गला साफ़ करते हुए कहा,
"ठीक है, अब यह मज़ाक बंद करो। हमें कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।"
दादाजी ने सभी को बैठने का इशारा किया और बोले,
"अब समय आ गया है कि हम इस दुश्मन का सामना करें। रुद्रांश, तुम्हें हर कदम संभलकर उठाना होगा। और इशानी और मिष्टी को सुरक्षित रखना हमारी पहली प्राथमिकता है।"
क्या होगा आगे? रुद्रांश और उसके दोस्तों का अगला कदम क्या होगा? और क्या इशानी और मिष्टी इस दुश्मन से बच पाएँगी? कहानी में रोमांच और बढ़ने वाला है!
अंधेरे कमरे में, अर्जुन अपनी कुर्सी पर बैठा, गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसकी आँखों में शातिर मुस्कान थी। टेबल पर फैली कागज़ों की फाइलें और नक्शे इस बात का इशारा कर रहे थे कि वह कोई बड़ा कदम उठाने वाला था।
अर्जुन ने धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से टेबल पर हल्की थाप देते हुए कहा,
"रुद्रांश राठौर... तुमने मेरा सब कुछ बर्बाद किया। अब बारी मेरी है। मैं तुम्हारी दुनिया को बर्बाद करके रख दूँगा।"
उसने अपने सामने खड़ी लड़की की ओर देखा। काव्या, एक खूबसूरत और आत्मविश्वासी लड़की, अर्जुन के सामने खड़ी थी। उसने अर्जुन से कहा,
"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं तुम्हारे इस काम में कैसे मदद कर सकती हूँ।"
अर्जुन ने उसे घूरते हुए कहा,
"तुम्हें ज्यादा कुछ नहीं करना है। बस रुद्रांश की ज़िंदगी में दाखिल होना है। उसके करीब जाना है। उसकी कमज़ोरी बनना है। और जब वक़्त आए, तो उसे बर्बाद कर देना है।"
काव्या ने संकोच से पूछा,
"लेकिन अगर वह मुझ पर शक करेगा तो?"
अर्जुन ने ठंडी हंसी के साथ जवाब दिया,
"रुद्रांश को कमज़ोर बनाने के लिए मैं तुम्हें तैयार कर चुका हूँ। तुम बस अपना रोल निभाओ। बाकी मैं संभाल लूँगा।"
अगले दिन, रुद्रांश अपने ऑफिस में बैठा हुआ था। फाइलों की गहराई में डूबा, वह काम में व्यस्त था। तभी दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
"आइए," रुद्रांश ने बिना देखे ही कहा।
दरवाज़ा खुला, और एक लड़की अंदर दाखिल हुई। काव्या ने ब्लैक बिज़नेस सूट पहना हुआ था, और उसके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था।
"गुड मॉर्निंग, सर। मैं काव्या शर्मा हूँ, आपकी नई असिस्टेंट।"
रुद्रांश ने धीरे-धीरे नज़रें उठाईं और उसे देखा। उसकी आँखें काव्या के आत्मविश्वास और प्रोफेशनलिज़्म को परख रही थीं। उसने सिर हिलाते हुए कहा,
"गुड मॉर्निंग। उम्मीद है कि तुम यहाँ काम करने के लिए तैयार हो। तुम्हें मेरी उम्मीदों पर खरा उतरना होगा।"
काव्या ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,
"बिल्कुल, सर। मैं अपना बेस्ट दूँगी।"
विक्रम, जो कि रुद्रांश का हमेशा उसकी सुरक्षा का ध्यान रखता था, ने काव्या को पहली बार देखा। उसकी आँखों में हल्की शंका थी। उसने रुद्रांश के केबिन के बाहर खड़े होकर सोचा,
"यह लड़की कौन है? अचानक इतनी जल्दी ऑफिस में कैसे आई? मुझे इस पर नज़र रखनी होगी।"
इशानी अपने कमरे में बैठी हुई थी और एकटक खिड़की के बाहर देख रही थी। इशानी का दिल हलचल से भरा हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह रुद्रांश के लिए जो महसूस करती है, वह क्या है। उसका हर कदम, हर बात, हर आदेश कहीं न कहीं उसकी ज़िंदगी पर असर डाल रहा था।
वह जानती थी कि रुद्रांश एक ऐसा इंसान है, जो जो चाहता है, उसे हासिल करता है। और अब वह इशानी को अपनी ज़िंदगी में चाहता था। उसने जबरदस्ती नहीं की थी, लेकिन उसके शब्द और उसकी नज़रों में ऐसा विश्वास था, जिसे इशानी टाल नहीं पाई।
"शादी... रुद्रांश के साथ," उसने खुद से कहा।
यह ख़्याल उसके दिल में एक अजीब सी हलचल पैदा करता था। उसे डर भी लगता था, लेकिन कहीं न कहीं, वह यह भी जानती थी कि रुद्रांश उसके लिए कुछ भी कर सकता है।
वह याद करती है कि कैसे रुद्रांश ने उसकी तबियत ख़राब होने पर उसकी देखभाल की थी। उसकी कठोर बातें, उसका गुस्सा—सब सिर्फ़ इसीलिए था क्योंकि वह इशानी को सुरक्षित रखना चाहता था।
"शायद मैं उससे डरती हूँ, लेकिन..." उसने अपने दिल पर हाथ रखते हुए सोचा, "शायद मैं उससे प्यार करने लगी हूँ।"
रुद्रांश की शख़्सियत उसकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी थी। इशानी खुद को समझा नहीं पा रही थी कि वह क्यों उसकी हर बात को इतनी गंभीरता से लेती है। जब उसने कहा था कि वह उससे शादी करना चाहता है, इशानी ने बिना कुछ कहे हामी भर दी थी।
"क्या मैं इसीलिए राज़ी हुई क्योंकि मैं उससे डरती हूँ? या फिर... मेरे दिल ने इसे पहले ही मंज़ूर कर लिया है?"
इशानी जानती थी कि रुद्रांश की ज़िंदगी आसान नहीं है। लेकिन फिर भी, कहीं न कहीं, वह उसकी दुनिया का हिस्सा बनना चाहती थी।
"शायद रुद्रांश मेरे लिए ख़तरा नहीं है," उसने मुस्कुराते हुए सोचा।
"शायद वह मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सहारा है।"
यह ख़्याल उसके दिल को थोड़ा सुकून देता था, लेकिन साथ ही उसे रुद्रांश की नज़रों का सामना करने से भी डर लगता था। क्या वह कभी अपने दिल की बात रुद्रांश से कह पाएगी?
ये सवाल उसके मन में अभी भी था।
रुद्रांश अपने ऑफिस में बैठा हुआ था। उसके सामने विक्रम खड़ा था, और काव्या पास में खड़ी थी। आज की मीटिंग बहुत महत्वपूर्ण थी, इसलिए रुद्रांश ने काव्या को अपने साथ ले जाने का फ़ैसला किया था।
"विक्रम, रिपोर्ट तैयार है?" रुद्रांश ने गंभीरता से पूछा।
विक्रम ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी सर, सब कुछ रेडी है।"
रुद्रांश ने काव्या की ओर देखा और कहा, "तुम भी चलो। यह मीटिंग तुम्हारे लिए भी ज़रूरी है।"
काव्या के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। यह वही मौक़ा था, जिसका उसे इंतज़ार था।
मीटिंग शुरू हो चुकी थी। रुद्रांश और विक्रम गंभीरता से प्रेजेंटेशन पर ध्यान दे रहे थे। वहीं, काव्या की नज़रें बार-बार रुद्रांश पर टिक जाती थीं। वह हर मौक़े पर रुद्रांश के करीब बैठने या बोलने की कोशिश कर रही थी।
विक्रम ने यह सब नोटिस किया। उसने देखा कि काव्या का रवैया बहुत अलग था। वह जानबूझकर रुद्रांश के करीब जाने की कोशिश कर रही थी।
एक पल ऐसा आया जब काव्या ने रुद्रांश के पास फाइल देने के बहाने उसके बिल्कुल पास खड़े होकर कहा,
"सर, अगर आपको कुछ और चाहिए हो तो बताइए। मैं संभाल लूँगी।"
रुद्रांश ने बिना उसकी ओर देखे फाइल ले ली और ठंडी आवाज़ में कहा,
"बैठो, और काम पर ध्यान दो।"
मीटिंग ख़त्म होने के बाद, विक्रम ने रुद्रांश से अकेले में बात करने का सोचा।
"सर, क्या आप काव्या का बर्ताव नोटिस कर रहे हैं?" विक्रम ने धीमी आवाज़ में पूछा।
रुद्रांश ने एक नज़र विक्रम पर डाली और शांत स्वर में कहा,
"वह नई है, सीखने दो।"
लेकिन विक्रम को यह जवाब संतोषजनक नहीं लगा। उसने देखा था कि काव्या का मक़सद काम से ज़्यादा कुछ और था। वह बार-बार रुद्रांश के करीब आने की कोशिश कर रही थी, और यह बात विक्रम को खटक रही थी।
विक्रम को समझ नहीं आ रहा था कि रुद्रांश ने काव्या के इस व्यवहार पर कुछ क्यों नहीं कहा। क्या वह इसे नज़रअंदाज़ कर रहा था, या फिर वह कुछ और सोच रहा था?
काव्या ने रुद्रांश को निशाना बनाने के लिए जो योजना बनाई थी, वह धीरे-धीरे रंग ला रही थी। लेकिन रुद्रांश की ख़ामोशी इस बात का संकेत थी कि वह इस खेल में काव्या से दो कदम आगे था।
क्या रुद्रांश सचमुच काव्या के इरादों को समझ नहीं पा रहा था, या फिर वह पहले से ही सब जानता था?
कहानी जारी है...
वही शाम को दादा जी और इशानी घर के लॉन में बैठे थे। इशानी अपनी किताब पढ़ रही थी, जबकि दादा जी आराम से कुर्सी पर बैठे थे और उनकी आँखों में मस्ती की झलक थी।
इशानी ने देखा, दादा जी धीरे-धीरे खड़े हुए और एक कोने में जाकर कुछ छिपाने लगे। इशानी को कुछ अजीब लगा, और उसने अपनी किताब बंद कर दी।
"दादा जी, कहाँ जा रहे हैं आप?" इशानी ने थोड़ी शक्की नज़रों से पूछा।
"कुछ नहीं, बस थोड़ी ताजगी की हवा ले रहा हूँ," दादा जी ने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी जेब में कुछ छिपाया।
इशानी को अब पूरा यकीन हो गया था कि कुछ गड़बड़ है। उसने धीरे-धीरे दादा जी का पीछा करना शुरू किया। वह चुपके-चुपके उनके पीछे गई और देखा कि दादा जी अपने कमरे में जाकर कुछ निकाल रहे थे। इशानी ने झाँककर देखा, तो पाया कि दादा जी एक आइसक्रीम का पैक निकाल रहे थे।
"दादा जी, यह क्या कर रहे हैं आप?" इशानी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
दादा जी हड़बड़ी में आइसक्रीम छिपाने लगे, लेकिन इशानी ने उन्हें पकड़ लिया।
"क...क्या?" दादा जी ने थोड़ी शरमाते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस बच्चों की तरह थोड़ी खुशियों का मज़ा ले रहा था।"
इशानी हँसते हुए बोली, "दादा जी, आप कितने स्मार्ट हो। सोचते हैं कि हमें नहीं पता चलेगा?"
"बिलकुल नहीं! मैं तो बस थोड़ी मस्ती कर रहा था," दादा जी ने हलके से झूठ बोला और आइसक्रीम निकालते हुए कहा, "इशानी, तुम भी कभी बच्चों की तरह थोड़ी मस्ती कर लिया करो।"
इशानी ने हँसते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन इस बार तो आइसक्रीम मेरे साथ शेयर करनी पड़ेगी।"
दादा जी ने आइसक्रीम इशानी के हाथ में दी और कहा, "चलो, तुम मेरे साथ मस्ती करोगी तो मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा।"
दोनों ने मिलकर आइसक्रीम खाई और एक साथ मस्ती की, जैसे दो बच्चे। इस पल ने दादा जी और इशानी के बीच एक खास रिश्ता बना दिया, जो केवल प्यार और मस्ती से भरा था।
दूसरी तरफ, रात का समय था, और एकांश ओबेरॉय अपनी चमचमाती कार में मिष्टी को लेकर शहर के सबसे खूबसूरत रेस्तरां में पहुँचा। बाहर हल्की बारिश हो रही थी, जिससे मौसम में ठंडक और रोमांस का अहसास हो रहा था।
रेस्तरां का माहौल बेहद रोमांटिक था। चारों ओर धीमी रोशनी, मोमबत्तियाँ जल रही थीं, और हल्का म्यूजिक बज रहा था। मिष्टी, जिसने हल्के पिंक रंग की ड्रेस पहनी हुई थी, एक परी की तरह लग रही थी।
"वाह, एकांश, मुझे नहीं पता था कि आप इतने रोमांटिक भी हो सकते हैं," मिष्टी ने हँसते हुए कहा।
एकांश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
"जब बात तुम्हारी हो, तो मैं अपना सबसे अच्छा रूप दिखाने से पीछे नहीं हटता।"
दोनों टेबल पर बैठे, और एकांश ने वेटर को ऑर्डर दिया।
मिष्टी ने चुटकी लेते हुए कहा, "आपने मेरी पसंद के बिना ही ऑर्डर कर दिया? कहीं ऐसा न हो कि मैं खा ही न सकूँ।"
एकांश ने मजाकिया लहजे में कहा,
"तुम्हारी पसंद मुझे पहले से पता है, और अगर नहीं भी होती, तो मैं तुम्हारे नखरे उठाने के लिए हमेशा तैयार हूँ।"
मिष्टी ने उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुरा दिया।
"आप तो बहुत फ्लर्टी हो गए हैं आजकल," उसने छेड़ते हुए कहा।
एकांश ने उसके चेहरे की ओर देखते हुए जवाब दिया,
"तुम्हारे साथ रहने से ही तो सीख रहा हूँ।"
खाने के दौरान, एकांश बार-बार मिष्टी को देख रहा था। उसकी नज़रें मिष्टी के मासूम चेहरे पर टिक गई थीं।
"तुम्हें पता है, मिष्टी, जब तुम मुस्कुराती हो, तो ऐसा लगता है जैसे सारी दुनिया रुक गई हो," एकांश ने कहा।
मिष्टी थोड़ा शर्माते हुए बोली,
"आपकी बातों से तो ऐसा लग रहा है जैसे आप कोई फिल्मी हीरो हों।"
एकांश ने गहरी साँस ली और गंभीर होते हुए कहा,
"नहीं, मिष्टी। ये बातें दिल से निकल रही हैं। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
मिष्टी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कन्फ्यूज़न और जिज्ञासा थी।
एकांश ने जेब से एक खूबसूरत रिंग निकाली और मिष्टी के सामने घुटने पर बैठ गया। रेस्तरां में मौजूद सभी लोग इस नज़ारे को देख रहे थे।
"मिष्टी, तुम्हारे साथ बिताए हर पल ने मेरी ज़िन्दगी को खास बना दिया है। तुम मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त नहीं हो, तुम मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा हो। क्या तुम मेरी ज़िन्दगी में हमेशा के लिए शामिल होना चाहोगी? क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
मिष्टी का चेहरा आश्चर्य और खुशी से खिल उठा। उसने अपनी आँखों में हल्की नमी के साथ कहा,
"आप हमेशा इतनी परफेक्ट बातें कैसे कर लेते हैं? और... हाँ, मैं आपसे शादी करूँगी।"
एकांश ने रिंग मिष्टी की उंगली में पहनाई और खड़ा होकर उसे गले से लगा लिया। रेस्तरां तालियों की गूँज से भर गया।
मिष्टी ने हल्के से कहा,
"अब तो मैं आपको कैंडीलैंड का राजा बुलाऊँगी।"
एकांश ने हँसते हुए जवाब दिया,
"और तुम मेरी प्यारी क्वीन।"
दोनों की आँखों में प्यार और खुशी साफ झलक रही थी। यह उनका पहला कदम था, एक नए सफ़र की शुरुआत।
क्या यह रिश्ता हर चुनौती का सामना कर पाएगा? कहानी जारी है...
अगले दिन प्रातःकाल का समय था, और रुद्रांश, दादा जी, इशानी और मिष्टी साथ बैठकर नाश्ता कर रहे थे। मेज पर ताजे फल, पैनकेक, जूस और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन रखे हुए थे। दादा जी खुशमिजाज अंदाज में इशानी से कह रहे थे,
"बिलकुल तुमसे ही उम्मीद थी, इशानी, तुमने पैनकेक बिल्कुल सही बनाए हैं!"
इशानी मुस्कुराई और हल्का सा शरमाते हुए बोली,
"थैंक्स, दादा जी।"
वहीं मिष्टी हँसी में कहती है,
"पैनकेक बनाना तो बहुत आसान है, लेकिन दादी की पुरानी रेसिपी... वह तो कोई नहीं बना सकता।"
तभी दरवाजे की घंटी बजी। एक नौकर जाकर दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही काव्या अंदर आई। काव्या को देखकर रुद्रांश की नज़रें थोड़ी चौंकीं, जबकि इशानी का चेहरा भावहीन हो गया। काव्या ने आते ही कहा,
"गुड मॉर्निंग, रुद्रांश सर। मुझे फाइल चाहिए, कुछ जरूरी काम है।"
रुद्रांश ने बिना सोचे-समझे फाइल उठाई और काव्या की ओर बढ़ा दी, लेकिन तभी मिष्टी ने इशानी को धीरे से एक तरफ़ खींच लिया और उसके कान में कहा,
"इशानी, ध्यान रखना, ये लड़की मुझे सही नहीं लग रही है। तुम समझ रही हो न? रुद्रांश को थोड़ा संभाल कर रखना।"
इशानी का चेहरा गुस्से और जलन से भरा हुआ था। उसने मिष्टी की बात का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी नज़रें काव्या पर टिकी हुई थीं, जो रुद्रांश के पास खड़ी थी और उसे कुछ बातें समझा रही थी।
इशानी की आँखों में जलन और गुस्से की लकीरें साफ़ दिखने लगीं। वह काव्या और रुद्रांश के पास नहीं जाना चाहती थी, लेकिन उसकी निगाहें लगातार उन दोनों पर थीं। काव्या के साथ रुद्रांश का सहज व्यवहार इशानी को अच्छा नहीं लग रहा था।
जैसे ही इशानी ने देखा कि काव्या हँसते हुए रुद्रांश से बात कर रही थी, उसके अंदर कुछ हलचल सी हुई। उसका चेहरा लाल हो गया और उसने जल्दी से नाश्ते के लिए रखा हुआ जूस उठाया और गुस्से से पीने लगी।
यह देख रुद्रांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। इशानी का गुस्सा उसे अच्छा लगा, क्योंकि वह जानता था कि इशानी उसे लेकर थोड़ी possessive हो गई है। वह चुपचाप मुस्कराया और फिर काव्या से कहा,
"फाइल रख लो, काव्या।"
काव्या ने थैंक्स कहा और फिर वहाँ से चली गई।
"क्या तुम ठीक हो?" मिष्टी ने इशानी को देखा और मुस्कुराते हुए पूछा,
"तुम तो जैसे आग बबूला हो रही हो।"
इशानी ने गहरी साँस ली और कहा,
"कुछ नहीं, मिष्टी... बस थोड़ा सा गुस्सा आ गया।"
वहीँ दादा जी उन्हें ही देख रहे थे। उन्होंने हँसते हुए कहा,
"तुम दोनों की बातें कभी ख़त्म नहीं होतीं।"
वहीँ रुद्रांश को इशानी के गुस्से का कारण समझ आ चुका था, और उसकी मुस्कान अब धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
वहीँ इशानी गुस्से में अपने कमरे में चली गई। तब उसके दादा जी ने उसे देखकर कहा, "रुद्रांश, तुम्हारे माता-पिता और अनु साथ मिष्टी के माता-पिता और उसका भाई जल्दी ही यहाँ आने वाले हैं। मैंने एकांश के दादा जी से बात कर ली है और हमने उन दोनों की सगाई की तिथि निश्चित कर दी है। इसलिए घर में तैयारी शुरू कर दो और जितना हो सके इस बीच अपने पिता से बात करके अपने बीच की जितनी दूरियाँ हैं, उसे दूर कर दो।"
दादा जी की बात सुनकर रुद्रांश एकदम चुप था क्योंकि वह सोच रहा था कि कैसे उसके पिता ने इशानी को उसे छोड़ने को कहा था और इस वजह से उन दोनों के बीच थोड़ी सी बहस हो गई थी।
रुद्रांश के पिता ओमप्रकाश राठौर चाहते थे कि रुद्रांश उनकी पसंद की लड़की से शादी करे, मगर वह इशानी से शादी करना चाहता था। इस बात से वे नाराज़ थे।
रुद्रांश के पिता उसकी बात नहीं समझ रहे थे। वे चाहते थे कि रुद्रांश उनके मित्र की बेटी से शादी करे।
यह सब सोचते हुए रुद्रांश दादा जी से विदा लेकर वहाँ से चला गया। वह अपने ऑफिस के लिए निकल गया और वहाँ अपने काम में व्यस्त हो गया। इसी तरह एक हफ़्ता बीत गया और आज रुद्रांश का पूरा परिवार उसके घर आ चुका था। रुद्रांश के माता-पिता और मिष्टी के माता-पिता सभी लोग राजस्थान में रहा करते थे जहाँ पर उनकी हवेली थी। वे साथ में रहते थे, पर रुद्रांश अपने काम की वजह से मुंबई में रहता था और दादा जी भी उसके साथ ही रहते थे। उनका भी अपने बेटे के साथ ज्यादा नहीं बनता था।
वहीँ इशानी भी उनके पूरे परिवार से मिल चुकी थी, पर वह ज़्यादातर रुद्रांश के पिता से डरती थी और उनकी आने की बात सुनकर वह काफ़ी ज़्यादा डरी हुई थी और वह सोच रही थी कि कैसे वह लोगों का सामना करेगी, पर वह इस बात से खुश भी थी कि उनके साथ-साथ रुद्र, अनु, मयंक और अभय भी आने वाले थे।
रुद्र और अभय दोनों ही रुद्रांश के सगे भाई थे और रुद्रांश अभय से छोटा है। वहीँ रुद्र उन दोनों भाइयों से छोटा है। वहीँ मयंक मिष्टी का बड़ा भाई है, जोकि इशानी को पसंद करता है और अभी ये बात उसने किसी को नहीं बताई है।
तो मित्रों, आप लोगों की जल्दी ही मुलाक़ात रुद्रांश के पूरे परिवार से होगी और इस कहानी में आपको बहुत सारे जोड़े मिलने वाले हैं।
सुबह का वक्त था, सूरज की हल्की रोशनी कॉलेज कैंपस में फैल रही थी। मिष्टी और इशानी अपने नए सेमेस्टर की शुरुआत करने के लिए तैयार थीं। कॉलेज का माहौल हमेशा की तरह जीवंत था—छात्राओं की हंसी, बातें, और चहल-पहल हर जगह थी।
जैसे ही इशानी और मिष्टी कॉलेज के गेट पर पहुँचीं, इशानी ने मिष्टी की तरफ़ देखा और कहा,
“मिष्टी, मुझे नहीं लगता कि हम इस बार समय पर कक्षा तक पहुँच पाएँगी। देख, कितने सारे लोग गेट पर खड़े हैं!”
मिष्टी ने हँसते हुए कहा,
“ओह इशानी, तू हमेशा घबरा जाती है। तू मेरी संग है, चिंता की कोई बात नहीं!”
उनकी बातों के बीच अचानक चार आवाज़ें गूँजीं:
“अरे, हमारी रॉकस्टार्स यहाँ हैं!”
मिष्टी और इशानी ने पलटकर देखा तो उनकी गैंग वहाँ खड़ी थी।
वान्या मिश्रा: स्टाइल और क्लास की जीती-जागती मिसाल। हर वक़्त ट्रेंडी कपड़ों में और अपनी बातें हर किसी के लिए प्रेरणा। वान्या का आत्मविश्वास सबसे अलग था।
समायरा कपूर: स्मार्ट और सुलझी हुई। उसकी विश्लेषणात्मक सोच और व्यावहारिक दृष्टिकोण उसे ग्रुप की समस्या-समाधानकर्ता बनाता था।
ऋतिका अग्रवाल: हमेशा हँसती-मुस्कुराती रहने वाली। उसकी चुलबुली बातें और रचनात्मक विचार ग्रुप में जान डाल देते थे।
मीरा अग्निहोत्री: ग्रुप की पुस्तकप्रेमी लेकिन उतनी ही वफ़ादार। उसकी समझदारी और गहराई ने उसे सबका दिल जीत रखा था।
वान्या ने आते ही इशानी के कंधे पर एक हल्का सा थप्पड़ मारा और कहा,
“मैडम, आप लोग कॉलेज कब पहुँचीं? हमें क्यों नहीं बुलाया?”
मिष्टी ने मज़ाक में जवाब दिया,
“क्योंकि तुम्हारी नाटकीयता में हमें देर हो जाती!”
समायरा ने ठहाका लगाया और कहा,
“चलो, ये बताओ—आज की कक्षाओं से ज़्यादा क्या प्लान है?”
ऋतिका बोली,
“प्लान तो यही है कि आज कैंटीन पर सबकी ट्रीट होनी चाहिए। और हाँ, हम ‘गैंग ऑफ़ गर्ल्स’ का नया फोटोशूट भी करेंगे!”
मीरा ने मुस्कुराते हुए जोड़ा,
“और हाँ, इशानी, तेरी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी। आज तुझे भी हमारे साथ मस्ती करनी है!”
सब कैंटीन की तरफ़ बढ़े और अपनी पसंदीदा टेबल पर बैठ गए।
वान्या ने सबके लिए पिज्ज़ा ऑर्डर किया और कहा,
“देखो, अबकी बार कोई बहाना नहीं चलेगा। आज सब मेरी मर्ज़ी से खाएँगे।”
मिष्टी ने हँसते हुए जवाब दिया,
“पिज्ज़ा? मतलब आज फिर डाइट प्लान गया काम से!”
इशानी, जो अब तक शांत थी, ने मीरा की बात काटते हुए कहा,
“मीरा, ये पढ़ाकू टॉपिक्स छोड़। अब हम यहाँ आनंद लेने आए हैं, पढ़ाई का तनाव बाद में!”
मीरा ने नकली गुस्से में कहा,
“अरे, मैं तो वैसे ही चुप रहती हूँ। तुम लोग तो हर वक़्त मुझे निशाना बनाते हो!”
ऋतिका ने मीरा को चिढ़ाते हुए कहा,
“क्योंकि तू इतनी प्यारी है कि तुझे छेड़ना अच्छा लगता है!”
समायरा ने बात को बदलते हुए कहा,
“अब तक तो हमें गैंग का नाम बदल देना चाहिए। ‘फैब 6’ कैसा रहेगा?”
वान्या ने जवाब दिया,
“नहीं, ‘पागलपंती ब्रिगेड’ ज़्यादा सही रहेगा!”
इशानी ने अपने दोस्तों की तरफ़ देखा। उनकी बातचीत, उनकी हँसी, और वह गर्मजोशी—सब कुछ ऐसा था जैसे ये पल कभी ख़त्म न हो। मिष्टी ने इशानी के कान में फुसफुसाते हुए कहा,
“देखा, हमारी गैंग दुनिया की सबसे अच्छी है। कोई हमें अलग नहीं कर सकता।”
इशानी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“हाँ, और इस गैंग के बिना मेरी ज़िन्दगी अधूरी है।”
कॉलेज का हर कोना उनकी मस्ती और दोस्ती की गवाह था। इस ग्रुप ने साबित कर दिया कि असली दोस्ती हमेशा बनी रहती है, चाहे हालात जैसे भी हों।
वहीँ रुद्रांश अपने ऑफिस के प्राइवेट चैंबर में बैठा था, जब विक्रम ने दस्तक दी। उसकी आँखों में चिंता की झलक साफ़ झलक रही थी।
“बॉस, मुझे कुछ कहना है,” विक्रम ने गंभीर स्वर में कहा।
रुद्रांश ने अपनी चेयर से उठते हुए कहा,
“कह, विक्रम। क्या बात है?”
विक्रम ने धीमे से कहा,
“मुझे पता है कि काव्या का मकसद क्या है। वह यहाँ सिर्फ़ अपनी वफ़ादारी दिखाने नहीं आई। उसके पीछे इरादे छुपे हैं, और वह इरादे अर्जुन के हैं।”
रुद्रांश ने विक्रम की बात सुनी, लेकिन उसका चेहरा शांत रहा। उसने अपने होंठों पर एक छोटी सी मुस्कान के साथ कहा,
“मुझे सब पता है, विक्रम। लेकिन अभी मैं उसे कुछ नहीं करूँगा। अगर हम उस पर सीधा हमला करेंगे, तो अर्जुन सतर्क हो जाएगा। मैं चाहता हूँ कि उसे लगे, मैं काव्या के प्यार में गिर चुका हूँ। जब तक वह यह यकीन कर ले, हमें उसे खेल में शामिल करना होगा।”
विक्रम ने पूछा,
“लेकिन, बॉस, क्या यह जोखिम भरा नहीं है? अगर काव्या ने कोई चाल चली तो…”
रुद्रांश ने विक्रम की बात काटते हुए कहा,
“विक्रम, यह मेरी ज़िन्दगी का खेल है। अर्जुन मेरे परिवार और मेरे लोगों को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत कर चुका है। अब उसे हर चाल का हिसाब देना होगा। काव्या उसकी कमज़ोरी है, और मैं उसकी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने वाला हूँ।”
अगले दिन, काव्या ने रुद्रांश को एक एलीट पार्टी में अपने साथ चलने के लिए कहा। यह पार्टी शहर के सबसे बड़े व्यापारी के घर पर थी। रुद्रांश ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
पार्टी के माहौल में चारों तरफ़ रोशनी और संगीत था। रुद्रांश अपने दमदार व्यक्तित्व के साथ अंदर आया, और काव्या उसके साथ थी। काव्या ने लाल रंग की ड्रेस पहनी थी, जो बेहद आकर्षक थी। वह हर पल कोशिश कर रही थी कि रुद्रांश की निगाहें उससे हटें नहीं।
रुद्रांश शांत था, लेकिन उसकी आँखें हर हरकत को देख रही थीं। काव्या ने धीरे-धीरे रुद्रांश के करीब आने की कोशिश की।
“रुद्रांश, क्या आपको कभी लगा है कि कोई आपकी ज़िन्दगी को पूरा कर सकता है?” काव्या ने नज़दीक आकर पूछा।
रुद्रांश ने बिना भाव बदले कहा,
“हर चीज़ का एक समय होता है। शायद तुम सही कह रही हो।”
कुछ देर बाद, काव्या ने रुद्रांश को पेय पदार्थ पेश किया और डांस फ्लोर पर आने का आग्रह किया। जैसे ही दोनों डांस फ्लोर पर पहुँचे, काव्या ने जानबूझकर और करीब आने की कोशिश की।
उसने धीमी आवाज़ में कहा,
“रुद्रांश, क्या तुम महसूस नहीं करते कि मैं तुम्हारे लिए बनी हूँ?”
रुद्रांश ने ठंडी निगाहों से उसे देखा और कहा,
“हर बात को इतनी जल्दी समझने की कोशिश मत करो, काव्या।”
लेकिन काव्या ने अपनी सीमा लांघ दी। उसने रुद्रांश की टाई पकड़कर उसे और करीब खींचने की कोशिश की। यह देखकर रुद्रांश का चेहरा गंभीर हो गया। उसने तुरंत अपनी टाई झटके से छुड़ाई और कहा,
“काव्या, अपनी हद में रहो। मैं तुम्हारे इरादों से अच्छी तरह वाकिफ़ हूँ। लेकिन याद रखना, जो खेल तुम खेल रही हो, उसमें जीतने का सपना मत देखना।”
काव्या सन्न रह गई। रुद्रांश ने उसे वहीं छोड़ दिया और विक्रम को इशारा किया।
“विक्रम, यह लड़की जितनी चालाक है, उतनी ही कमज़ोर भी। इसे इस खेल का हिस्सा बनाए रखना है, लेकिन नज़र हमेशा मुझ पर रहेगी।”
विक्रम ने सिर हिलाया और कहा,
“बॉस, आप जैसा कहेंगे, वैसा ही होगा। लेकिन ये लड़की हमारे खिलाफ़ और बड़ी चाल चल सकती है।”
रुद्रांश ने मुस्कुराते हुए कहा,
“विक्रम, चाल कोई भी चले, आख़िरी चाल मेरी होगी।”
रुद्रांश ने गाड़ी में बैठते ही अर्जुन को कॉल किया।
“तुम्हारी प्यादी को मैंने अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर लिया है। अब अगला कदम तुम्हारा है। देखते हैं, तुम्हारा अगला दांव क्या होगा।”
दूसरी तरफ़ अर्जुन की आवाज़ में हल्की घबराहट थी। उसने कहा,
“रुद्रांश, खेल तो अभी शुरू हुआ है।”
लेकिन रुद्रांश की आँखों में वही ठंडक और जुनून था, जो हर जंग को जीतने के लिए काफी था।
रुद्रांश के सख्त निर्देशों के बावजूद, विक्रम ने महसूस किया कि अब काव्या को और मौके देना खतरनाक हो सकता है। काव्या ने जिस तरह से रुद्रांश को पार्टी में करीब आने की कोशिश की थी, वह विक्रम को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने चुपचाप अपने तरीके से काव्या का पर्दाफ़ाश करने का प्लान बना लिया।
अगली सुबह, विक्रम ने अपनी टीम के कुछ भरोसेमंद लोगों को काव्या की पृष्ठभूमि की गहराई से जाँच करने का आदेश दिया। कुछ ही घंटों में उसे काव्या और अर्जुन के बीच की बातचीत की रिकॉर्डिंग और तस्वीरें मिल गईं। काव्या की असलियत अब पूरी तरह से उजागर हो चुकी थी।
विक्रम ने यह सबूत लेकर रुद्रांश के पास जाने का फैसला किया।
विक्रम ने रुद्रांश के ऑफिस में कदम रखा।
“बॉस, मैं जानता हूँ आपने कहा था कि अभी काव्या को छूना नहीं है, लेकिन अब वक़्त आ गया है कि उसका खेल ख़त्म कर दिया जाए। ये रहे सबूत।”
विक्रम ने फ़ाइल और रिकॉर्डिंग्स रुद्रांश को दीं।
रुद्रांश ने सब कुछ ध्यान से देखा और सुना। उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी, लेकिन चेहरा उतना ही शांत।
“विक्रम, तुमने सही समय पर काम किया। अब वक़्त आ गया है कि अर्जुन को उसकी पहली गलती का एहसास कराया जाए,” रुद्रांश ने गहरी आवाज़ में कहा।
उसी शाम, रुद्रांश ने काव्या को अपने ऑफिस में बुलाया। काव्या को लग रहा था कि रुद्रांश अब उसके जाल में फँस गया है।
“काव्या, तुमने जो मेहनत की है, उसे सराहा जाना चाहिए,” रुद्रांश ने मुस्कुराते हुए कहा।
काव्या थोड़ी उलझन में पड़ गई, लेकिन फिर बोली,
“मुझे खुशी है कि आप मुझे समझने लगे हैं, रुद्रांश।”
तभी दरवाज़ा खुला, और विक्रम अंदर आया। उसने काव्या को घूरते हुए कहा,
“तुम्हारे खेल का समय ख़त्म हो गया है, काव्या।”
काव्या हड़बड़ा गई।
“तुम कहना क्या चाह रहे हो?”
रुद्रांश ने उसे ठंडे स्वर में कहा,
“तुम अर्जुन के लिए काम करती हो। ये सबूत हैं तुम्हारी साज़िश के। तुमने सोचा था कि मैं तुम्हारे जैसे प्यादे से हार जाऊँगा? तुम्हारे जैसे लोग मेरे रास्ते में सिर्फ़ वक़्त बर्बाद करते हैं, और तुम्हारे लिए मेरे पास वक़्त नहीं है।”
विक्रम ने काव्या को अपनी पकड़ में लिया और कहा,
“अब तुम अर्जुन के पास वापस जाओ और उसे बताओ कि उसका हर दांव नाकाम रहेगा। और हाँ, अगली बार किसी बेहतर खिलाड़ी को भेजना, क्योंकि तुम बहुत कमज़ोर थी।”
काव्या को ऑफिस से बाहर निकाल दिया गया। उसकी आँखों में डर और गुस्सा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी।
रुद्रांश ने विक्रम से कहा,
“अब अर्जुन को पता चलना चाहिए कि हम उसे कितनी गहराई से देख रहे हैं। अगला कदम हम उठाएँगे, और वह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।”
विक्रम ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया।
“बॉस, अगली चाल आपकी होगी, और जीत भी आपकी होगी।”
रुद्रांश की आँखों में वही ठंडा जुनून चमक रहा था, जो उसकी हर जंग को जीतने की गारंटी देता था।
रुद्रांश के मेंशन में आज कुछ अलग ही रौनक थी। राजस्थान से उनके माता-पिता, ओमप्रकाश राठौर और आरती राठौर, उनके भाई अभय और रुद्र, और बहन अनुष्का वापस लौट आए थे। साथ ही, रघव और रोशनी—रुद्रांश के चाचा-चाची, जो मिष्टी के माता-पिता थे, भी इस खुशी में शामिल हो गए।
रुद्रांश के चेहरे पर एक गंभीर सन्नाटा था। उनके पिता, ओमप्रकाश, उनसे नाराज़ दिख रहे थे, और यह बात रुद्रांश के करीबी लोग महसूस कर सकते थे।
ड्रॉइंग रूम में सब एक-दूसरे से मिल रहे थे। अनुष्का ने मिष्टी को गले लगाते हुए कहा,
"मिष्टी दी, तुम्हें पता है, मैंने तुम्हें कितना मिस किया!"
मिष्टी ने हंसते हुए जवाब दिया,
"दी क्यों बोल रही हो, हम तो एक ही उम्र के हैं।"
रुद्र ने चुटकी ली,
"बस मिष्टी, तुम सबकी फेवरेट हो। हमें तो पूछता ही कौन है!"
अभय ने मजाक में कहा,
"क्योंकि मिष्टी सबसे प्यारी है। और वैसे भी, वो रघव चाचा और रोशनी चाची की बेटी है, हमारी नहीं।"
इस पर मिष्टी ने झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा,
"अरे! तो मैं आपकी बहन नहीं हूं?"
सबके बीच हंसी का दौर चल रहा था, लेकिन रुद्रांश के चेहरे पर गहरी सोच झलक रही थी।
ओमप्रकाश ने रुद्रांश को इशारे से अपने पास बुलाया। वो लाइब्रेरी में गए, और दरवाजा बंद करते हुए उन्होंने कहा,
"रुद्रांश, मैंने सुना है तुम अपनी शादी का फैसला कर चुके हो।"
रुद्रांश ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा,
"जी, पापा।"
ओमप्रकाश ने गहरी सांस लेते हुए कहा,
"इशानी एक अच्छी लड़की है, लेकिन वो तुमसे बहुत छोटी है। क्या तुम्हें लगता है, ये रिश्ता सही रहेगा?"
रुद्रांश की आंखों में गंभीरता थी।
"पापा, उम्र का फर्क मायने नहीं रखता। मैं इशानी से शादी करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।"
ओमप्रकाश ने कड़ा स्वर अपनाते हुए कहा,
"लेकिन मैं नहीं चाहता कि तुम ये शादी करो। मैं जानता हूं तुमने हमेशा सही फैसले लिए हैं, लेकिन इस बार मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं।"
रुद्रांश चुप रहा। उसने पिता को जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी आंखों में नाराजगी साफ झलक रही थी।
इशानी का टूटा हुआ दिल
ड्रॉइंग रूम के पास, इशानी गलती से उनकी बातचीत सुन रही थी। ओमप्रकाश की बातों ने उसके दिल को तोड़ दिया। वो वहां से बिना किसी को कुछ बताए चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
मिष्टी, जो उसे देख रही थी, पीछे-पीछे गई।
"इशु, क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?"
इशानी ने आंसू पोंछते हुए कहा,
"कुछ नहीं, मिष्टी। बस... थोड़ा थक गई हूं।"
मिष्टी ने उसे गले लगाते हुए कहा,
"अगर कुछ भी परेशानी है, तो मुझे बताओ। तुम अकेली नहीं हो।"
बाकी परिवार हंसी-खुशी में व्यस्त था। रघव और रोशनी, जो मिष्टी के माता-पिता और रुद्रांश के चाचा-चाची थे, अपने भतीजों और भतीजियों के साथ मजाक कर रहे थे। अनुष्का और रुद्र, मिष्टी और अभय के साथ मिलकर खाने की योजना बना रहे थे।
लेकिन इस खुशी के माहौल में, रुद्रांश और इशानी दोनों के दिलों में एक अनकहा दर्द था।
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राठौर हवेली के लिविंग रूम में पूरे परिवार का जमावड़ा लगा हुआ था। अभय, रुद्र, अनुष्का, मिष्टी, और बाकी सभी लोग हंसी-मजाक और हल्की-फुल्की बातों में मग्न थे। ओमप्रकाश और रघव भी अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे, तो वहीं रोशनी और आरती बच्चों की नटखट बातों पर मुस्कुरा रही थीं।
( इशानी वहां पर नहीं थी और रुद्रांश बस दिखावे के लिए बैठा हुआ था )
इसी बीच दरवाजे पर एक तेज आवाज आई,
"भाईयों और बहनों, पेश है आप सबका लाडला, मयंक राठौर !"
सबने दरवाजे की ओर देखा। मयंक ने हाथ में गॉगल्स पहने हुए, बड़े स्टाइल में एंट्री की। उसने अपने कंधे पर बैग टांगा हुआ था और अपनी चाल में कुछ ऐसा नाटक भर दिया था कि हर कोई हंसी रोक नहीं पाया।
मिष्टी ने उसे देखते ही मजाक उड़ाते हुए कहा,
"भैया, ये क्या फैशन है? आप मॉडल बनने आए हो या कॉमेडियन?"
रुद्र ने मयंक की चाल की नकल करते हुए कहा,
"मयंक भैया, ये कौन-सी मूवी देखकर ऐसे एंट्री कर रहे हो? क्या 'शोले' का गब्बर बनने का सपना है?"
मयंक ने गॉगल्स उतारते हुए कहा,
"तुम बच्चों को क्या पता, ये क्लास है, क्लास! इसे कहते हैं एंट्री मारना। रुद्र, तुम्हारे जैसे बच्चों की समझ से बाहर है।"
मिष्टी ने हंसते हुए कहा,
"भैया, क्लास नहीं, इसे ओवरएक्टिंग कहते हैं। और वैसे भी, आपको देखकर लगता है जैसे आप फैशन शो में नहीं, बल्कि जोकर की ट्रेनिंग में जा रहे हैं।"
रुद्र ने ताली बजाते हुए कहा,
"वाह, मिष्टी दीदी! एकदम सही पकड़ा। भैया, आप न गॉगल्स के बिना अच्छे लगते हो। कृपा करके इसे उतार दो।"
मयंक ने नकली गुस्से में कहा,
"तुम दोनों मुझे बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। लेकिन याद रखना, मैं तुम दोनों का बड़ा हूं।"
मिष्टी ने चुटकी ली,
"बड़ा तो हूं, पर अक्ल के मामले में सबसे छोटा।"
रुद्र ने ठहाका लगाते हुए कहा,
"भैया, आप जब-जब एंट्री मारते हो, ऐसा लगता है कि हम कॉमेडी शो देख रहे हैं।"
मयंक ने अपने गॉगल्स जेब में रखते हुए कहा,
"अच्छा! अब जब मैं आया हूं, तो तुम्हारी असली औकात दिखाता हूं। रुको, रुद्र! तुम्हारी वो बचपन की फोटो निकालता हूं, जिसमें तुम बाथटब में रो रहे थे।"
रुद्र ने घबराते हुए कहा,
"भैया, वो मत निकालना! वो तो पुरानी बात है।"
मिष्टी ने मजाक उड़ाते हुए कहा,
"अरे, रुद्र! अब तो मयंक भैया तुम्हारी पोल खोलने वाले हैं।"
मयंक की मस्ती और उसके जवाबी पलटवार से पूरे लिविंग रूम में ठहाकों की गूंज थी। रुद्रांश और अभय, जो अब तक केवल देख और मुस्कुरा रहे थे, भी मयंक के मजाक से खुद को रोक नहीं पाए।
रुद्रांश ने मजाक में कहा,
"मयंक, तुम्हारी एंट्री तो धमाकेदार थी, लेकिन इस बार तुम मिष्टी और रुद्र के हाथों बुरी तरह फंस गए।"
मयंक ने अपनी शान में बात करते हुए कहा,
"अरे, भाई! मैं मयंक हूं। मजाक उड़ाना आसान है, लेकिन हर बार जीतता तो मैं ही हूं।"
आरती और रोशनी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"ये तीनों जहां होते हैं, वहां बोरियत का सवाल ही नहीं उठता।"
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इस तरह, मयंक की एंट्री ने पूरे परिवार के बीच हंसी और मस्ती का माहौल बना दिया। लेकिन क्या मयंक का मजाक उड़ाने का बदला वो मिष्टी और रुद्र से ले पाएगा? ये तो समय ही बताएगा!
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रात का सन्नाटा छाया हुआ था। हवेली की सारी रोशनियाँ बुझ चुकी थीं, पर इशानी की आँखों में नींद कोसों दूर थी। वह अपनी बालकनी में खड़ी थी, चाँद को देख रही थी, मगर उसकी आँखों में आँसू थे। आज दिन भर की बातें उसके दिल को बार-बार चुभ रही थीं।
रुद्रांश के पिता ने जो कहा था, वह उसे अंदर तक झकझोर गया था। उनकी बातों ने उसे यह एहसास दिला दिया था कि शायद वह रुद्रांश के लिए सही नहीं है।
"क्यों?" उसने खुद से सवाल किया।
"क्या मैं उसके लिए इतनी छोटी हूँ कि इस रिश्ते को निभाने के लायक भी नहीं? क्या मैं कभी उसे खुश नहीं कर पाऊँगी?"
उसका दिल तड़प रहा था। वह जानती थी कि वह रुद्रांश से प्यार करती है। मगर क्या यह प्यार सिर्फ उसकी तरफ से था?
इशानी ने अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और जोर से रोने लगी।
"क्यों मैं उससे इतना जुड़ गई? क्यों मेरी हर खुशी अब उसी से शुरू होती है और उसी पर खत्म?"
इशानी अपने दर्द में डूबी हुई थी, तभी उसे अपने कमरे के दरवाज़े की आहट सुनाई दी। उसने अपनी आँखों से आँसू पोंछने की कोशिश की, मगर तब तक रुद्रांश उसके पास आ चुका था।
"कपकेक, क्या हुआ?" रुद्रांश ने उसे ध्यान से देखा। उसकी आँखें लाल थीं, और चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था।
"तुम रो रही हो?"
इशानी ने तुरंत मुँह फेर लिया।
"कुछ नहीं। बस ऐसे ही।"
रुद्रांश ने उसकी कलाई पकड़कर उसे अपनी तरफ घुमाया।
"मुझे बेवकूफ मत बनाओ। मैं जानता हूँ कि कुछ तो हुआ है। बताओ, कपकेक।"
इशानी उसकी आँखों में देख रही थी। उसकी चिंता, उसकी परवाह साफ़ झलक रही थी।
"तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं," उसने धीमे स्वर में कहा।
"मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ। शायद मैं कभी नहीं थी।"
रुद्रांश का चेहरा गंभीर हो गया।
"तुम ऐसा क्यों सोच रही हो? और यह बात मेरे पापा ने कही है, मैं नहीं। मेरे लिए सिर्फ एक बात मायने रखती है—मैं क्या चाहता हूँ। और मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनो।"
"मगर रुद्रांश, तुम्हारे पापा—" इशानी ने बोलना चाहा, मगर रुद्रांश ने उसे बीच में रोक दिया।
"कपकेक, मेरे पापा को समझाना मेरी ज़िम्मेदारी है। तुम पर इन बातों का असर क्यों हो रहा है?"
इशानी का दिल और भी भर आया।
"क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, रुद्रांश। और मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें अपने परिवार के खिलाफ़ जाना पड़े।"
रुद्रांश कुछ पल के लिए खामोश रहा। फिर उसने उसके आँसू पोंछे और उसके कंधे पर हाथ रखा।
"तुम्हें मुझ पर भरोसा है?"
इशानी ने सिर हिलाया।
"तो फिर बस, इस बात को यहीं खत्म करो। मैं हर मुश्किल को संभाल लूँगा। तुम्हें सिर्फ़ मुझ पर और हमारे रिश्ते पर विश्वास करना है।"
रुद्रांश की बातें सुनकर इशानी का दिल थोड़ा हल्का हुआ। लेकिन उसकी आँखों में अब भी डर और असमंजस था। क्या उनका रिश्ता वाकई इन सब मुश्किलों को पार कर पाएगा?
रुद्रांश इशानी के कमरे से बाहर आ रहा था। उसका चेहरा गंभीर था और कदम भारी-भारी लग रहे थे। दरवाज़े को हल्का सा खटखटाने के बाद उसने कमरे से बाहर कदम रखा। बाहर का माहौल ठंडा और शांत था, लेकिन उसकी आत्मा अंदर से हलचल से भरी हुई थी। रुद्रांश के मन में एक जंग चल रही थी। उसे नहीं पता था कि वह क्या फैसला ले, लेकिन एक बात तय थी—वह इशानी को नहीं खोना चाहता था।
जैसे ही वह दालान में पहुँचा, उसकी मुलाक़ात उसकी माँ, आरती से हुई। आरती के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं, लेकिन उन्होंने रुद्रांश को देखा और उसकी आँखों में जो थका हुआ और परेशान सा भाव था, वह समझ गईं कि कुछ गलत हुआ है।
"रुद्रांश, तुम ठीक हो?" आरती ने सधे हुए शब्दों में पूछा। उसकी आवाज़ में चिंता और प्यार दोनों थे।
रुद्रांश ने हल्का सा सिर झुकाया और फिर सीधे माँ की आँखों में देखा। "हाँ, माँ... ठीक हूँ।" उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी, जैसे वह कुछ कहने से बच रहा हो।
आरती ने उसकी स्थिति को समझते हुए, उसे अपनी ओर खींच लिया। "मैं जानती हूँ कि तुम किसे चाहने लगे हो, लेकिन बेटा... क्या तुमने इस फैसले के बारे में अच्छे से सोचा है?"
रुद्रांश ने गहरी साँस ली और धीमे से बोला, "माँ, मैं ठीक से सोच रहा हूँ। यह सब मेरे लिए आसान नहीं है। लेकिन इशानी के बिना, मेरा जीवन अधूरा है।"
आरती का चेहरा एक पल के लिए गंभीर हो गया, फिर उन्होंने धीरे से उसकी कंधे पर हाथ रखा। "रुद्रांश, तुम समझ नहीं पा रहे हो कि इशानी की उम्र अभी इतनी नहीं है कि वह तुम्हारे साथ उस तरह का रिश्ता निभा सके। वह तुम्हारे लिए बहुत छोटी है। और तुम्हारे पापा ने जो कहा है, वह उनका अनुभव है। हम तुम्हारे भले के लिए सोच रहे हैं।"
रुद्रांश ने गुस्से में आकर अपना सिर झटक दिया। "माँ, यह मेरी ज़िन्दगी है! मुझे वह सब नहीं चाहिए जो पापा या आप चाहते हैं। मैं खुद को इशानी के बिना नहीं देख सकता।"
आरती ने चुपचाप उसकी आँखों में देखा। उनके चेहरे पर एक ठंडी सी मुस्कान थी, लेकिन गहरी सोच भी थी। "रुद्रांश, तुमसे एक अनुरोध है। मुझे उम्मीद है तुम इसे समझोगे। तुम वह लड़की, जिसे पापा ने चुना है, से शादी कर लो। वह तुम्हारे लिए अच्छा चुनाव है। मुझे पता है तुम अभी ठीक से नहीं समझ पा रहे हो, लेकिन इशानी... वह तुम्हारे लिए नहीं है।"
रुद्रांश की आँखों में एक दर्द था, जो उसने किसी से भी नहीं दिखाया। उसने अपनी माँ की बातों को मन ही मन सुना, लेकिन उसके दिल में इशानी के लिए एक जगह थी, जिसे वह नहीं छोड़ सकता था।
"माँ, मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं तुम्हारे कहने के बाद भी किसी और के बारे में नहीं सोचूँगा। लेकिन इशानी के बारे में, मेरी सोच नहीं बदल सकती।"
आरती ने गहरी साँस ली और उसे देखा, फिर धीरे से कहा, "ठीक है, बेटा... तुम्हें जो सही लगे, वह करो। लेकिन याद रखना, कोई भी फैसला लेते वक्त उसका असर हमेशा पूरे परिवार पर पड़ता है।"
रुद्रांश ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में एक हल्का सा गुस्सा और दर्द था, और फिर उसने चुपचाप अपनी माँ से नज़रें हटा दीं।
"मैं अपनी राह खुद चुनूँगा, माँ।"
आरती ने उसे देखते हुए एक और गहरी साँस ली। शायद वह जानती थी कि उसका बेटा किस रास्ते पर जा रहा था, लेकिन उसने उसे बिना और दबाव डाले अपना रास्ता चुनने दिया।
क्या रुद्रांश अपने परिवार की इच्छाओं को नज़रअंदाज़ कर इशानी के साथ अपना भविष्य बना पाएगा, या वह अपने परिवार की सलाह पर चलेगा?