ये कहानी है युवान सिंह राठौड़ और युवानिका सूर्यवंशी दोनो करते है एक दूसरे से बेहद इश्क लेकिन क्या एक झूठ से हो जाएगी दोनों की जिंदगी तबाह क्या होगा जब युवानिका के सामने आयेगा सच क्या दोनो हो जाएंगे जुदा या कुछ और ही मोड लगी इनके इश्क की ये कहानी, या... ये कहानी है युवान सिंह राठौड़ और युवानिका सूर्यवंशी दोनो करते है एक दूसरे से बेहद इश्क लेकिन क्या एक झूठ से हो जाएगी दोनों की जिंदगी तबाह क्या होगा जब युवानिका के सामने आयेगा सच क्या दोनो हो जाएंगे जुदा या कुछ और ही मोड लगी इनके इश्क की ये कहानी, या किसी और ही मोड पर चली जाएगी ये इश्क की एक अलग ही कहानी या होंगे दोनो एक साथ फिर से बदले की इस आग में दोनों भूल जाएंगे धोखे और दूरियों को, क्या युवनिका अपना बदला ले पाएगी जानने के लिए पढ़ते रहिए साजन —बेइंतेहा इश्क़
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एक लड़की बेड पर टेक लगाकर बैठी हुई थी, और उसी कमरे में आईने के सामने एक लड़का तैयार हो रहा था।
युवा: "कहीं जा रहे हैं आप?"
युवान: "ओह्हो युवा, फिर भूल गई क्या बताया था! ना, आज बहुत इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है, बहुत ज़रूरी।" उसने यह आईने में देखकर उस लड़की से कहा।
युवा: खड़े होकर बेड से उतरते हुए, "मत जाओ ना... जाना ज़रूरी है..."
युवान: जो अपने बाल सही कर रहा था, उसके हाथ हवा में ही रुक गए, और एक हाथ की मुट्ठी कसकर बंद कर ली।
"उस लड़की के पास जाकर, बैठो, उठो मत।"
युवा: "मैं ठीक हुं! अब दर्द नहीं है... पर प्लीज़ मत जाओ ना... पता नहीं आज अजीब सी बेचैनी हो रही है!!"
युवान: अपनी आँखें बंद कर उस लड़की को गले लगाकर, "अब ऐसे करोगी तो कैसे दूर जा पाऊँगा तुमसे..."
युवा: दुर?" दूर क्यों क्या बोल रहे हो युवान "
युवान: बात बदलते हुए, "हाँ, मतलब ऑफ़िस!!"
युवा: "मत जाओ ना, बहुत अजीब फीलिंग आ रही है, जैसे कुछ ठीक नहीं होगा... प्लीज़ युवान!!"
युवान: "ओह् मेरी युवा इतनी कमज़ोर है..."
युवा: "नहीं, बट आज नहीं प्लीज़ युवान।"
युवान: खड़े होकर जाते हुए, "ख़्याल रखना।"
युवा: "कब तक आ जाओगे?"
युवान: आँखें बंद करके, "रात तक आ जाऊँगा।"
युवा: "हम्म..." उठकर युवान के साथ नीचे तक आई जहाँ एक बुज़ुर्ग आदमी और एक लड़का पहले से बैठे हुए थे।
युवान: "काफ़ी काम है, युवा का ख़्याल रखना... कोई कमी मत होने देना।"
युवा: "बोल तो ऐसे रहे हैं जैसे पता नहीं कितने दिन के लिए जा रहे हैं!!"
युवान: स्माइल करके, "बाय, ख़्याल रखना।" इतना बोल उसने युवा के सर पर किस किया। "मिस यू युवा..."
युवा: "मिस यू, जल्दी आना..."
युवान: इतना बोल युवान वहाँ से चला गया।
कार्तिक ने युवा को देखा और कहा– "चलो भाभी, रूम में जाकर रेस्ट करो।"
युवा: "कैसे करूँ रेस्ट ये युवान मेरी बात नहीं सुन रहे, और मेरा मन बहुत घबरा रहा है! काका क्या करूँ?"
काका: "आ जाएगा शाम तक, बोलकर गया है ना। जाओ रेस्ट करो और हाँ, दवाई ले लेना।"
युवा: वहाँ से रूम में आई और दवाई लेकर बेड पर लेट गई। कब उसकी आँख लगी पता ही नहीं चला।
सुबह से रात हो गई थी। रात के दस बज चुके थे तभी अचानक युवा की आँख खुली। उसने टाइम देखा तो दस बज रहे थे।
युवा: "ओह्हो, युवान ने ज़रूर मुझे नहीं उठाया होगा। मैं भी ना, परेशान हूँ!" इतना बोल युवा ने रूम में देखा लेकिन युवान नहीं था।
युवा: नीचे आकर, "काका, कार्तिक भैया... युवान कहाँ है? अभी तक नहीं आए हैं..."
कार्तिक ने युवा की बात सुनी और कहा–" नहीं आया अभी तक...?"
युवा: अपने फ़ोन से फ़ोन लगाते हुए, "इसका तो फ़ोन भी नहीं लग रहा, फ़ोन बंद आ रहा है। देखा मैंने, कहा था ना मेरा मन अजीब था, लेकिन किसी को सुनना ही नहीं है!!"
काहितक: "आ जाएगा वो सुबह तक।"
युवा कार्तिक को देखते हुए, "सुबह तक आ जाएगा से क्या मतलब है? आप पुलिस को फोन कीजिए।" घबराते हुए।
कार्तिक ने युवा को देखा और कहा–" ""भाभी आप पहले बैठो... पुलिस कंप्लेंट नहीं लिखेगी ना 24 घंटे से पहले।"
युवा: "मुझे नहीं मालूम आर्यन भैया को करो... वो कर लेंगे मदद, उन्हें बुलाओ यहाँ... जल्दी फोन कीजिए।"
कार्तिक ने फोन किया तो थोड़ी देर में आर्यन घर आ गया। युवा ने जैसे ही उसे देखा तो उसके आगे हाथ जोड़कर कहा, आर्यन भैया देखिए ना, युवान का फोन नहीं लग रहा। प्लीज़ आप लोकेशन ट्रेस करो ना, ढूँढ़ो ना उसे।"
आर्यन ने युवा को देखा और मन में खुद से सोचने लगा, "क्या कर दिया युवान..." एक बार तो सोच लेता... मैं देखता हूँ युवा... रुको तुम..." इतना बोल आर्यन तुरंत बाहर आकर किसी को फोन करने लगा।
:आर्यन ने सामने से फोन उठाते ही कहा –" "क्या किया तूने ये...?"
दूसरी ओर से, "...कैसी है वो? जानता हूँ बहुत परेशान होंगी... ख़्याल रख और जो तुझे बताया है वो सब उसे बता देना..."
आयन ने दूसरी और से युवान की बात सुनकर कहा–" ""इतना पत्थर दिल इंसान कैसे हो सकता है तू युवान ...?"
दूसरी साइड से फोन कट चुका था। आर्यन वहाँ से निकल गया था।
रात से सुबह हो गई थी। युवा का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। सुबह सात बजे ही कार्तिक को आर्यन का फोन आया आर्यन की बात सुनकर कार्तिक के हाथ से फोन नीचे गिर गया।
युवा ने जैसे ही उसकी ओर देखा तो उसने फोन को कान के पास लगाया और कहा, "क्या हुआ आर्यन भैया बताइए ना?" "
आयन ने युवा की बात सुनी और बोला–" ""वो... हमें युवान की कार नैडिया वाली खाई में मिली है।" इतना सुनते ही युवा के हाथ से फोन गिर गया।
उसने तुरंत अपने कदम बाहर की ओर बढ़ा लिए। उसकी आँखों से आँसू बेशुमार बह रहे थे।
काका ने युवा को जाते देख कार्तिक से कहा–" ""चल जल्दी..." इतना बोल कार्तिक और काका दोनों बाहर आ गए और तीनों गाड़ी लेकर खाई के पास चले गए।
युवा: खाई के पास भागकर आई और नीचे देखते हुए जोर से चिल्लाई, "युवान... युवान... युवान! अगर ये मज़ाक है ना तुम्हारा तो मैं कभी माफ़ नहीं करूँगी तुम्हें... युवान!" इतना बोल उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
आयन: "बॉडी कहीं नहीं मिली।"
युवाने उस खाई की और देखते हुए कहा–" ""युवान प्लीज़ आ जाओ ना..." उसकी आवाज़ में इतना दर्द था कि सब को उसका दर्द महसूस हो रहा था। युवा जैसे ही उठी कि अचानक उसे चक्कर आ गए जिससे वो वहीं बेहोश हो गई।
आयन ने कार्तिक को देखा और कहा –" कार्तिक हॉस्पिटल लेकर चल युवा को जल्दी।"
थोड़ी देर में सब हॉस्पिटल में थे। सब बाहर ही डॉक्टर के आने का इंतज़ार कर रहे थे।
डॉक्टर रूम से बाहर आई और सबकी और देखकर बोली–* , "टेंशन लेने की बात नहीं है। कमज़ोरी और ज़्यादा स्ट्रेस लेने की वजह से इस टाइम में ये सब हो जाता है।"
कार्तिक ने डॉक्टर की बात सुनकर कहा–" ": "इस टाइम मतलब...?"
डॉक्टर7ने कार्तिक को देखा और कहा –" ""She is pregnant for a week और इस टाइम होना ये सब नॉर्मल है... पर ख़्याल रखना... बहुत कमज़ोर है... खाने-पीने का ख़्याल रखना। मैं इसे डाइट चार्ट बनाकर देती हूँ, वही फ़ॉलो करवाना।" स्ट्रेस मत लेने देना वरना इनकी जान भी जा सकती है,
कार्तिक ने जेसे ही सुना तो वो कभी आर्यन को तो कभी काका को देख रहा था। सब के चेहरे पर अजीब भाव थे।
युवा ने डॉक्टर की सभी बात सुन ली थी। उसकी आँखों से झर-झर आँसू आने लगे थे।
जयपुर....
विराटनगर
एक लड़की और एक लड़का, एक बड़े से पत्थर पर बैठे हुए थे।
लड़की ने अपना सिर उस लड़के के कंधे पर रखा हुआ था।
"तुम्हें याद है युवान, हमारी पहली मुलाक़ात कैसी थी?"
"येस युवा, उस मुलाक़ात को मैं कभी नहीं भूल सकता... मरते दम तक भी नहीं..."
युवा ने अपनी हथेली युवान के मुँह पर रखकर, अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा, "ऐसे मत बोलो!!"
युवान युवा को देख रहा था जिसकी आँखों में हल्की नमी आ चुकी थी। "पागल हो गई हो क्या? मुझे कुछ नहीं होने वाला ऐसे बोलने से!!"
युवा ने उसके कंधे पर अपना सिर रखकर, उसकी बाहों को अपने हाथों से पकड़ कर कहा, "हम्मम, तुम्हें मालूम है किसी का इश्क़ अधूरा इसलिए होता है क्योंकि उनके घर वाले नहीं मानते... तो किसी के ऊपर जात-पात का ठप्पा लग जाता है!!"
युवान ने उसकी उंगलियों में अपनी उंगलियाँ फँसाकर कहा, "लेकिन हमारा प्यार ऐसा नहीं है... सबसे अलग है...!! दुनियाँ की हर रस्मों-रिवाज से अलग!!"
"बिल्कुल... सबसे अलग, तभी तो पूरे एक साल से साथ हैं, लेकिन आप इस रिश्ते को कोई नाम ही नहीं दे रहे। पता नहीं क्या हो रहा है आपको... ना तो आपकी फैमिली में कोई है, ना मेरी है..."
युवान ने उसके हाथों से अपने हाथों को अलग करके, सामने आसमान में देखते हुए कहा, "तुम्हें मालूम है, मेरी फैमिली में कोई है या नहीं!!"
"हाँ, कोई नहीं है, मालूम है।"
युवान उससे दूर होकर, बहते पानी के पास आकर वहाँ खड़ा हो गया और उस पानी को लगातार अपनी आँखों से देखने लगा।
युवा अपने आप से बड़बड़ाते हुए बोली, "खुशी मिली तुझे युवी... कर दिया ना काम... युवान जी हो गए गुस्सा। अब मनाती डोल उनके पीछे बावली की तरह... हायो रे... सब काम करती है युवी, लेकिन इन महाराज को मानने के लिए तो... पता नहीं क्या पापड़ बेलने पड़ेंगे।" अपने सर पर चपत लगाकर बोली, "अब यहीं खड़ी होकर मनाएगी जा ना उसके पीछे मनाने..." इतना बोल युवा ने अपना दुपट्टा उठाया, जो कि पत्थर पर रखा हुआ था, और उस ओर भागने लगी जहाँ युवान खड़ा हुआ था।
युवा भागकर युवान के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, "युवान जी... सुनिए ना... देखिए ये पानी कितना अच्छा लग रहा है, इसमें खेलें ना..."
युवान ने जैसे ही युवा की बातें सुनी, तो उसे वहीं खड़े होकर घूरने लगा और हल्की सी नज़रों से देखकर कहा, "मिस युविका, तुम जा सकती हो, मैंने नहीं रोका तुम्हें..."
युवा खुद से बड़बड़ाते हुए बोली, "नाराज़ हो गए ये तो..." "हो जा बेटा शुरू... तू भी राजस्थानी छोरी है..." इतना बोल युवा युवान के पीछे आई और उसके कंधे पर हाथ रखकर, हल्का सा साइड से झुककर युवान को देखा और कहा,
"युवान जी... नाराज़ हैं? मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया था।"
युवान ने उसकी बाहों को पकड़कर, आगे करते हुए कहा, "युविका, तुम हर बार यही करती हो... एक साल में तुमने मुझसे कम से कम सौ बार ये पूछ लिया होगा कि मेरी फैमिली क्या है, कहाँ है, कौन है!!"
युवा मासूम सा चेहरा बनाकर बोली, "ठीक है बजरंग बली की कसम... कभी नहीं पूछूँगी आज के बाद कभी नहीं! हमारी जान की कसम..." इतना बोल युवा ने युवान को देखा और अपना दुपट्टा सही करके वहाँ से जाने लगी।
युवान ने उसे जाते देखा तो आगे बढ़कर उसकी कलाई पकड़ ली और अपने करीब लाकर कहा, "ज़्यादा दिमाग मत लगाओ राजस्थानी छोरी!"
"म्हारे को जाने दो...वरना..."
"वरना...नहीं, जाने दूँगा तो!!"
युवा ने अपने मुँह पर हाथ रखकर हँसते हुए कहा, "आपसे तो मेरी बोली, बोली भी कौन जावे?"
"हाँ, तो तुम हँसोगी मुझ पर...!! ज़्यादा हँसी तो सोच लो... मैं कुछ भी कर सकता हूँ। तुम एक लड़के के साथ हो!!"
युवा जोर से हँसते हुए बोली, "ये लो, बोल भी कौन रहा है जिसने एक साल में मुझे नज़र भर के ना देखा और तो और एक किस... " अपनी नज़रें नीचे करके बोली, "...नहीं किया आज तक!!"
युवान ने एक हाथ से उसके हाथ को पकड़कर और दूसरे हाथ से उसकी कमर पर रखकर अपने करीब करके कहा, "ओह, तो तुम्हें किस चाहिए... है ना!!"
"नहीं! नहीं... मैंने ऐसा नहीं बोला!!"
"अभी तो बोला तुमने कि मैंने तुम्हें एक साल में किस तक नहीं किया!!"
"क्योंकि आप औरों जैसे नहीं हैं जिनको सिर्फ़ जिस्म की चाह हो... इसलिए तो आप मुझे इतने पसंद हैं!" इतना बोल युवा युवान के सीने से लग गई।
युवान उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोला, "दस दिन बाद तुम्हारे लिए सरप्राइज़ है!!"
"म्हारे लिए...? क्या सरप्राइज़ है?"
"हाँ, बताऊँगा... लेकिन दस दिन बाद!!"
"ओके...अब चलें... बहुत टाइम हो गया!"
"घर चल रही हो ना?"
"नहीं, मैं मेरे घर जाऊँगी। आप जाओ घर। जिस दिन आप हमारे रिश्ते को नाम दोगे ना, ये कदम उस दिन आपके घर के दरवाज़े पार करेगा..."
"हाय...फ़िल्मी लाइन्स अच्छी बोलती है आप..."
"फ़िल्मी? रियली...?"
"येस..." इतना बोल युवान वहाँ से भाग गया।
युवा उसको भागता देखकर, अपनी आँखें बड़ी की और उसके पीछे भागते हुए बोली, "हमारी लाइन्स फ़िल्मी है... अभी बताते हैं आपको!!"
दोनों एक-दूसरे के पीछे काफ़ी देर से भाग रहे थे। अचानक युवा रुक गई तो भागकर आ रहा युवान उससे जल्दी में टकरा गया जिससे दोनों ही नहीं संभल पाए और ज़मीन पर गिर गए।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे, तभी कुछ लड़के उनके पास आए और युवा को देखकर कहा,
"इतने प्यार से हमें भी निहार लो मैडम... मज़ा हो जाएगा बस..."
युवान ने जैसे ही ये सुना, तो उसके हाथों की मुट्ठी बँध गई। उसने तुरंत युवा के पीठ पर हाथ रख लिया जहाँ से युवा की पीठ के कुर्ती के डिज़ाइन की वजह से साफ़ दिखाई दे रही थी।
युवान की इस हरकत से युवा ने युवान को देखा और उठने की कोशिश करने लगी तो एक लड़के ने अपना हाथ आगे किया और कहा,
"उससे छोड़ दो मैडम, हम हैं आप के लिए!!"
युवान ने युवा को आराम से खड़ा किया और खुद उन लड़कों की ओर जैसे ही बढ़ने को हुआ कि युवा ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया और अपनी गर्दन ना में हिला दीं।
लड़के बोले, "लगता है इसे भी हमारे साथ जाना है!!" इतना बोल पाँचों लड़कों ने हँसना शुरू कर दिया।
युवा की हाथों की मुट्ठी बँध गई थी। उसने एक नज़र युवान को देखा और एक स्माइल की और उन लड़कों के पास आ गई। लोगों की भीड़ लगना शुरू हो गई थी। सब खड़े होकर तमाशा देख रहे थे, तो कोई वीडियो बना रहा था, तो कोई आपस में बातें कर रहे थे।
"लगता है तुम्हें बड़ा शौक है लड़कियों को अपने साथ रखने का... मेरी माने ना तो एक बात बताऊँ... तुम्हारे साथ जितने भी छोरे हैं ना, इन सबको छोरी बना ले... तुम्हारी सारी प्रॉब्लम दूर हो जाएगी!!"
युवान साइड में खड़ा ये सब देखकर मुस्कुरा रहा था। मन में सोच रहा था, "गलत इंसान से पंगा ले लिया।"
एक आदमी युवान से बोला, "कैसे इंसान है? उस लड़की के साथ होकर भी उसकी मदद नहीं कर रहे... वो लड़के उसे परेशान कर रहे हैं ना!"
"आप इन्जॉय कीजिए..." इतना बोल युवान वापस सामने देखने लगा।
लड़का बोला, "ज़्यादा मत बोल, समझी ना... तू एक लड़की है और मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती... समझी ना!!"
"मैं तो डर गई तुम्हारे से..." इतना बोल युवा हल्का सा घूमी और पास में खड़े एक लड़के की कमर से बेल्ट लिया और उन लड़कों को मारने लगी।
अचानक हुए इस वार से एक लड़का खुद नीचे गिर गया और युवा उस दूसरे लड़के को बराबर मार रही थी।
युवा ने उस लड़के को मारा तो सब एक साथ उसकी ओर आ गए। युवा ने सबको देखा और एक को अपने हाथ से मारा और दूसरे को अपने पैर से मारने लगी।
उस लड़के को लात मारते हुए बोली, "तुम जैसे की वजह से लड़कियाँ कहीं सेफ नहीं हैं... तुम्हारी इन हरकतों की वजह से हमें ये सब सीखना पड़ता है..." इतना बोल युवा ने उस बेल्ट को अपने हाथों में मरोड़ा और उस लड़के को मारने लगी।
युवान की नज़र जैसे ही युवा पर गई तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने जल्दी से आगे आकर युवा को उसके कंधे से पकड़ा और पीछे करते हुए उसके हाथ से बेल्ट लेकर साइड में फेंक दिया।
"युवा...युवा...छोड़ो अब..." इतना बोल उसने युवा को सीने से लगा लिया।
"छोड़ो इसे तो मैं मार डालूँगी युवान!!"
युवान ने युवा को खुद से दूर करके कहा, "मार देना, लेकिन अभी नहीं..." इतना बोल उसने अपने जेब से रुमाल निकाला और युवा के हाथों में बाँधने लगा।
"डोंट वरी...युवान, ज़्यादा नहीं है।"
"लड़ाई करने की परमिशन दी है, खुद को चोट पहुँचाने की नहीं, समझी ना...युविका!!"
युवा उसकी ओर देखते हुए बोली, "ओये होये, फिर से गुस्सा म्हारे से... पर इस बार तो मैंने कोई गलती कोणी की।"
"युवा, बंद करो...हिंदी में बोला करो!"
"आप भी तो गुस्सा थे ना...तो बोल दिया मैंने राजस्थानी।"
युवान सबकी ओर देखकर बोला, "जाइए...जाइए, लाइव शो मनोरंजन ख़त्म हुआ।" इतना बोल युवान ने युवा का हाथ पकड़ा और वहाँ से चला गया।
क्रमशः...
युवा ने कहा, "डॉन्ट वरी, युवान शाांत है।"
युवान ने कहा, "लड़ाई करने की परमिशन दी है, खुद को चोट पहुँचाने की नहीं, समझी ना, युवा?"
युवा ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "ओह होय! फिर से गड़बड़ मुझसे... पर इस बार तो मैंने कोई गलती नहीं की।"
युवान ने कहा, "युवा, बंद करो... हिंदी में बोला करो।"
युवा ने कहा, "आप भी तो गड़बड़ थे ना... तो बोल दिया मैंने राजधानी!"
युवान ने सबकी ओर देखकर कहा, "जाइए, जाइए... लाइव शो मनोरंजन खत्म हुआ।" इतना बोलकर युवान ने युवा का हाथ पकड़ा और वहाँ से चला गया।
युवान युवा को एक तरफ ले जाकर खड़ा किया। उसके हाथ को छोड़कर वह उससे दूर हो गया और उसे देखते हुए थोड़े गुस्से में बोला,
युवान ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "उसे मारना था तो मारो ना, लेकिन खुद को चोट क्यों लाती हो? तुम्हें समझ नहीं आता क्या जो मैं बोलता हूँ?"
युवा ने कहा, "सॉरी, वो बस बेल्ट से हो गया युवान। जी ग़ुस्सा मत हो।"
युवान ने कहा, "तुम्हारा हर बार का नाटक है ये... देखो कितनी चोट आई है तुम्हें।"
युवा ने कहा, "ठीक हो जाएगा... आप मुझे घर छोड़ दीजिए। रात होने वाली है। घर पर प्रीत है... वो अकेली है।"
युवान ने कहा, "हम्मम, चलो। तुम यहां रुको, मैं बाइक लेकर आता हूँ।"
इतना बोलकर युवान वहाँ से थोड़ी दूरी पर अपनी बाइक लेने चला गया। युवा वहीं खड़ी होकर युवान का इंतज़ार करते हुए कुछ सोच रही थी कि तभी उसके फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया। उसने फ़ोन देखा और उठाकर बात करने लगी। युवा जैसे-जैसे बातें सुन रही थी, उसके चेहरे की मुस्कान बढ़ती जा रही थी। उसने बात की और "थैंक यू" बोलकर फ़ोन काट दिया। वापस उसने उस ओर देखा तो युवान बाइक लेकर वहाँ आ गया था।
युवान ने कहा, "आ जाओ।"
युवा युवान के पीछे बैठी और उसके कंधे पर हाथ रख लिया।
युवान ने अपनी बाइक वहाँ से स्टार्ट की और चला गया।
थोड़ी देर में युवान ने युवा को उसके घर लाकर उतारा और खुद भी उतर गया। उसने युवा के सर पर किस किया और उसका हाथ पकड़कर अंदर ले आया। उसके साथ चेयर पर बैठ गया और अपने हाथ से फ़ोन और चाबी टेबल पर रखी। युवा का हाथ देखकर कहा, "दवाई दो।"
युवा ने ड्रॉअर की ओर इशारा किया तो युवान ने टेबल के ड्रॉअर से दवाई का डिब्बा लिया और अपना रुमाल हटाकर उस पर डेटॉल से साफ़ किया और पट्टी कर दी।
युवान ने कहा, "अगर दर्द हो तो कॉल करना... डॉक्टर के पास चलेंगे।"
युवा ने कहा, "दर्द नहीं है।"
युवान ने खड़े होकर कहा, "मैंने बोला है ना, दर्द हो तो कॉल करना... मतलब करना... अगर तुमने झूठ बोला ना युवा, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
युवा खड़े होकर बोली, "पक्का।" इतना बोलकर युवा युवान के गले लग गई।
युवान ने उसे अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "टेक केयर... खाना खा लेना... बाय। मुझे कुछ काम है, रात को बात करता हूँ।"
इतना बोलकर युवान उसे बाय बोला और वहाँ से चला गया।
युवा ने घर में देखा और जोर से घूमते हुए आवाज़ लगाई, "प्रीत... प्रीत कहाँ है तू?"
प्रीत रूम से बाहर आते हुए बोली, "आ रही थी, बाथरूम में थी।"
युवा उछलते हुए बोली, "एक बहुत बड़ी गुड न्यूज़ है!"
प्रीत ने कहा, "क्या? युवान ने तुझे किस किया या कुछ और?"
युवा ने कहा, "शटअप... कहाँ की बात कहाँ ले जा रही है!"
प्रीत ने कहा, "मुझे पता नहीं... लगता है वो तुझसे कुछ छिपा रहा है। बंदा अपनी फैमिली के बारे में नहीं बताता, या कुछ भी नहीं बताता। और तो और, एक साल से तुम्हारे इस रिश्ते में उसने तुझे टच तो दूर, एक किस तक नहीं की।"
युवा ने कहा, "तू गलत सोच रही है।"
प्रीत ने कहा, "ठीक है, मैं गलत हूँ... तो ये बताओ, तुम दोनों एक साल से साथ हो ना, तो फिर वो इस रिश्ते को नाम क्यों नहीं देते... क्यों नहीं तुझसे शादी कर लेते?"
युवा ने कहा, "ऐसा नहीं है। हर लड़का एक जैसा नहीं होता जिसे सिर्फ़ जिस्म चाहिए हो या ज़रूरी है कि हर रिश्ते को कोई नाम चाहिए।"
प्रीत ने कहा, "ओह... ये सब फ़िल्मों या टीवी सीरियल या कहानियों में अच्छा लगता है। हर लड़के की अपनी इच्छाएँ होती हैं, ये तो तू भी जानती है।"
युवा ने उसके कंधे को पकड़कर, अपनी नज़रें चुराते हुए कहा, "जाने दे ना... कोई मुझ जैसी लड़की से प्यार करे, वो खुशी की बात है ना... वरना कोई मुझे..." अपनी बात को अधूरा छोड़कर।
प्रीत ने कहा, "मैं तुम्हारे प्यार पर उंगली नहीं उठा रही... बट फिर भी... तुझे बेहतर कोई नहीं जानता कि एक लड़के को क्या चाहिए। आई होप युवान तुम्हें हर खुशी दे।" इतना बोलते ही प्रीत जैसे ही जाने को हुई कि उसकी नज़र दरवाज़े पर गई तो वो एकटक वहाँ देखने लगी।
युवा ने जब प्रीत को यूँ एक जगह देखते देखा तो उसने पलटकर पीछे देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। युवा के पीछे दरवाज़े पर युवान खड़ा हुआ था, जो एकटक दोनों को देख रहा था।
युवा ने कहा, "युवान वो..."
युवान ने कहा, "सॉरी, मुझे ऐसे नहीं आना चाहिए था! वो यहाँ मेरा फ़ोन..." इतना बोलकर युवान चुप हो गया।
युवा ने अपने कदम आगे लिए तो युवान उससे पहले आगे आया और अंदर आकर उसने टेबल से फ़ोन उठाया और वहाँ से चला गया।
युवा ने एक नज़र प्रीत को देखा और वहाँ से युवान के पीछे चली गई।
युवान जैसे ही गाड़ी पर बैठा, तो युवा ने आकर गाड़ी की चाबी निकाल ली।
युवान ने कहा, "क्या है ये?"
युवा ने कहा, "युवान जी, मेरी बात तो सुनिए।"
युवान ने कहा, "अंदर जाओ... तुम्हारी ये गली मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, जाओ।"
युवा ने कहा, "चली जाऊँगी, लेकिन... जो आपने सुना वो सब सही नहीं था।"
युवान ने कहा, "डॉन्ट वरी... बेटा... मैं तुम्हें कभी गलत नहीं बोलूँगा।" उसके माथे को पकड़कर किस करके बोला, "फ़ोन पर बात कर लेना... अभी अंदर जाओ, रात बहुत हो गई है।"
युवा ने कहा, "पक्का गुस्सा नहीं है ना आप?"
युवान मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन हिलाते हुए बोला, "बिल्कुल नहीं।"
युवा ने कहा, "आप जाइए पहले, फिर मैं जाऊँगी।"
युवान ने कहा, "तुम जाओ युवा, फिर मैं जाऊँगा।"
युवा ने कहा, "ओके।" इतना बोलकर युवा वहाँ से अपने घर की ओर चली गई।
युवान ने उसे जाते देखा और गाड़ी स्टार्ट करके वहाँ से चला गया।
युवा घर आकर कपड़े बदल लिए और टॉवल से बाल साफ़ करके बेड पर रखे अपने फ़ोन को उठाया और युवान को फ़ोन किया, लेकिन युवान ने फ़ोन नहीं उठाया।
युवा ने अपने कदम किचन की ओर ले लिए जहाँ प्रीत किचन में खाना बना रही थी। युवा ने उसे देखा और खाना बनाने में उसकी हेल्प करने लगी।
थोड़ी देर में दोनों ने खाना खाया और रूम में आ गईं। युवा ने अपना फ़ोन देखा और साइड में रखकर अपनी आँखें बंद कर ली।
युवान अपने रूम की बालकनी में खड़ा हुआ था। उसके बगल में कार्तिक भी खड़ा हुआ था।
कार्तिक ने कहा, "वैसे युवा बड़ी अच्छी लड़की है।"
युवान ने कहा, "हम्मम... इन एक साल में वो न तो कभी मेरे करीब आने की कोशिश की और न ही कभी उसने मुझसे कभी कुछ माँगा... इनफैक्ट कभी उसने मुझसे किसी गिफ्ट की डिमांड नहीं की।"
कार्तिक ने कहा, "तो तेरा फ़ैसला सही है... अगर आगे जाकर कुछ प्रॉब्लम हुई, तो... उन लोगों ने कुछ कहा तो..."
युवान ने कहा, "मुझे उन लोगों से कोई मतलब नहीं है और अभी पता नहीं लगना चाहिए किसी को भी।"
कार्तिक ने कहा, "यार वो तो है लेकिन... अगर उन्हें पता लग गया तो..."
युवान ने कहा, "डॉन्ट वरी... कुछ नहीं करेंगे वो।"
कार्तिक ने कहा, "चल गुड नाईट... मुझे तो बहुत नींद आ रही है। और हाँ, वो ऑफ़िस में न्यू एम्प्लॉई का इंटरव्यू लिया था ना, वो सार्थक ने सेलेक्ट कर लिए।"
युवान ने कहा, "ओके।"
कार्तिक वहाँ से अपने रूम में चला गया। युवान भी बेड पर आकर लेट गया। उसने अपना फ़ोन देखा तो रात के बारह बज चुके थे। उसने अपना फ़ोन जैसे ही ऑन किया तो उसकी नज़र युवा के फ़ोन पर गई तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
वह जैसे ही फ़ोन करना चाहा तो उसने टाइम देखा, वापस फ़ोन रखकर सो गया।
क्रमशः...
अगली सुबह, युवी की आँख खुली तो आठ बज चुके थे। वह जल्दी से उठी और बेड पर बैठकर अपने पास रखे फ़ोन को देखा। युवान के दो मिस्ड कॉल थे।
युवी— ओफ़्फ़ो बाबा! अगर युवान को मालूम हुआ कि मैं इतनी देर तक सो रही हूँ, तो डाँट लगाएगा
इतना बोलकर युवी ने युवान को फ़ोन लगाया। दूसरी ओर से तुरंत ही फ़ोन उठ गया।
युवान ने जैसे ही फ़ोन उठाया, युवी कुछ नहीं बोली और चुपचाप युवान के बोलने का इंतज़ार करने लगी।
युवान— अब बोलो। क्या कर रही थी युवी?
युवी— मैं...मैं...किचन में थी!
युवान— जो अपने रूम में बेड पर बैठकर कुछ काम कर रहा था, उसने जैसे ही युवी की बात सुनी तो उसकी भौंहें तन गईं। उसने वापस कहा— सोकर उठी हो और बोल रही हो कि किचन में थी!
युवी— हाँ...नहीं (अपनी गर्दन को जल्दी से नीचा हिलाकर)— किसने बोला?
युवान— तुम्हारी आवाज़ ने।
युवी— हाँ, वो नींद नहीं खुली थी।
युवान— कोई बात नहीं। वैसे तुमने कल कॉल किया था ना? मैं बिजी था।
युवी— कोई बात नहीं।
युवान— ऑफ़िस... सॉरी... तुम्हें कहीं और ट्राई नहीं किया। मैं ट्राई करूँ कहीं?
युवी— नहीं, मैं खुद कर लूँगी। आप टेंशन मत लीजिये। वैसे मेरे पास आज आपके लिए एक सरप्राइज़ है!
युवान— बेड से उठते हुए— बताओ क्या सरप्राइज़ है?
युवी— बताया ना, सरप्राइज़ है!
युवान— ओके, मत बताओ। अच्छा, नाश्ता कर लेना। मैं ऑफ़िस जा रहा हूँ।
युवी— ओके बॉस, बाय!
युवान— बाय!
इतना बोलकर दोनों ने फ़ोन काट दिया। युवी ने अपना फ़ोन बेड पर रखा और बाथरूम में चली गई और आईने के सामने खुद को देखने लगी। बड़ी-बड़ी आँखें, गहरी पलकें, कमर से नीचे तक आते काले मोटे बाल, गोरा रंग, एकदम परफेक्ट थी युवी।
युवी— हाय राम! मैं तो भूल ही गई कि आज तो मुझे ही नाश्ता बनाना है। जल्दी कर युवी...वरना प्रीत तेरी ही पसलियाँ तोड़ देगी! आईने में खुद को देखते हुए— बेचारी से रोज कोई ना कोई बहाना बनाकर उससे ही बनवाती हूँ। पर आज तो वो माता मेरा कोई बहाना नहीं सुनेगी।
इतना बोलकर युवी ने जल्दी से पेस्ट किया और नहा-धोकर बाहर आ गई। उसने रूम से बाहर आकर देखा तो प्रीत सचमुच सोफ़े पर बैठी अपना फ़ोन देख रही थी।
युवी— मन में— बनाना तो पड़ेगा ना इससे बोलने से क्या फायदा? इतना बोलकर युवी ने अपने कदम किचन की ओर बढ़ाए। लेकिन जैसे ही युवी ने किचन में पैर रखा, उसके कानों में प्रीत की आवाज़ आई।
प्रीत— नाश्ता तैयार है। चल आकर , खा ले वही बहुत है मेरे लिए!
युवी— प्रीत के पास आकर उसके हाथ पकड़कर— तूने बना लिया? मैं बना लेती ना!
प्रीत— कब बनाती? टाइम देखा है तूने? नौ बजने में कुछ ही समय बाकी है और आज तेरा ऑफ़िस में पहला दिन है ना! और तुझे आज ही लेट होना है!
युवी— बिलकुल भी लेट नहीं होना! चल, चल, नाश्ता कर ले!
थोड़ी देर में दोनों ने नाश्ता किया और अपने-अपने ऑफ़िस के लिए निकल गईं।
जयपुर के ही विराटनगर में एक छोटा सा बंगला बना हुआ था जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में सिंह भवन लिखा हुआ था।
युवान सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए अपने शर्ट के बटन लगा रहा था।
युवान—"कार्तिक, चल जल्दी!"
कार्तिक— नीचे हॉल में सोफ़े पर बैठे हुए—"आजा युवान, तेरा ही इंतज़ार कर रहा हूँ। नाश्ता करके चलते हैं यार!"
युवान— ओके... युवान ने आज वाइट सिम्पल शर्ट और ग्रे पैंट पहना हुआ था, बालों को सही से सेट किया हुआ था और हाथ में ठीक-ठाक वॉच पहनी हुई थी।
दोनों आकर नाश्ता करने की टेबल पर बैठ गए। दोनों नाश्ता करने लगे। थोड़ी देर में नाश्ता करके दोनों कार से ऑफ़िस के लिए निकल गए।
कार्तिक— जल्दी चल यार, बॉस को मालूम हुआ ना तो पीटेगा साला मुझे!
युवान— मैंने तुझे कभी पीटा है??
कार्तिक— बॉस की बात कर रहा हूँ, जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा!
युवान— मुस्कुराते हुए— कोई ना, चल।
इतना बोलकर दोनों अंदर आ गए। युवान और कार्तिक दोनों अपना काम करने लगे।
युवी भी बिल्डिंग के नीचे आ गई थी। उसने टाइम देखा तो दस बजने में अभी बीस मिनट बाकी थे। युवी ने बिल्डिंग को देखा जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में "राठौड़ कंस्ट्रक्शन" लिखा हुआ था।
युवी—"हाय राम! इतनी बड़ी बिल्डिंग! हाँ, इसमें काम करने का हर किसी का सपना होता है!"
युवी अंदर आई तो उसने रिसेप्शन पर पूछा और अपने पर्स से एक लेटर निकालकर उस रिसेप्शनिस्ट को दिखा दिया।
लड़की— ओके मेम, आप यह से सेकंड फ्लोर पर जाइए और वहाँ आपको लेफ्ट में सार्थक सर का केबिन मिल जाएगा।
युवी— थैंक यू सो मच।
इतना बोलकर युवी वहाँ से लिफ्ट के पास आई तो लिफ्ट एकदम खाली थी। उसने लिफ्ट को छोड़कर सीढ़ियों से ऊपर चली गई। युवी जैसे ही सेकंड फ्लोर पर आई तो पूरे हॉल में शांति थी। सब एम्प्लॉय काम में लगे हुए थे। युवी ने सबको देखा और राइट में बने केबिन को देखा जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में "सीईओ राठौड़" लिखा हुआ था।
युवी—"आज तक किसी ने इसके सीईओ को नहीं देखा!" इतना बोलकर युवी उसके आगे से निकली तो उसके दिल की धड़कनें अचानक से तेज हो गईं।
युवी— अपने दिल पर हाथ रखकर— ऐसे तेज धड़कनें तो युवान के साथ होती हैं, लेकिन मैं ये कैसे भूल गई कि वो भी तो इसी कंपनी में काम करते हैं!
इतना बोलकर युवी लेफ्ट वाले केबिन के पास आई और केबिन को नॉक किया तो अंदर से आवाज़ आई जिसे सुनकर युवी अंदर चली गई।
टेबल पर एक नेमप्लेट रखी हुई थी जिस पर सार्थक देसाई नाम लिखा हुआ था।
युवी— हैलो सर!
सार्थक— गुड मॉर्निंग युविका तुम्हें तुम्हारा काम समझा देता हूँ और तुम्हारी सीट भी दिखा देता हूँ।
इतना बोलकर सार्थक युवी के साथ बाहर आ गया। उसने सबको युवी का नाम बताया और उसे उसकी जगह बता दी।
युवी भी वहीं बैठकर लैपटॉप पर कोई काम कर रही थी। सुबह से लेकर दोपहर हो गई थी। युवी अपने काम में मस्त लगी हुई थी। कुछ ही घंटों में उसने काफी लोगों से बात कर ली थी। उसके अच्छे स्वभाव की वजह से सब से जल्द ही घुल-मिल गई थी कि तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे युवान पर गई जो अपने फ़ोन में देखते हुए आ रहा था। उसके साथ ही कार्तिक भी आ रहा था।
युवी— युवान और कार्तिक भैया?? इतना बोलकर युवी खड़ी हुई और दोनों को देखने लगी। युवान ने ग्रे कलर का जैकेट पहना हुआ था।
युवान ने जैसे ही केबिन खोलने के लिए हाथ बढ़ाया कि उसकी नज़र अपने सामने से साइड में गई तो उसे युवी वहीं दिखाई दी।
युवान— लगातार युवी को देख रहा था।
युवी— युवान को देखकर बस मुस्कुरा रही थी।
कार्तिक— युवान के कंधे पर हाथ रखकर— चल ना अंदर?
युवान— युवी...
कार्तिक— ओह गॉड! पागल मत हो जाना! तुझे यहाँ भी युवी दिखाई दे रही है? यार, युवी यहाँ क्यों आएगी?
युवान— कार्तिक, युवी यहाँ क्या कर रही है?
कार्तिक ने युवान की नज़रों की साइड देखा तो उसे भी युवी नज़र आई जो दोनों को देखकर मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर अजीब भाव भी थे।
युवान ने कार्तिक को इशारा किया और अपना कोट खोलकर जैसे ही आगे बढ़ा कि उसे पहले युवी उसके पास आ गई और थोड़ा तेज, लेकिन आराम से कहा— सरप्राइज़ युवान!
युवान— जबरदस्ती मुस्कुराते हुए— तू...तुम यहाँ? यहाँ कैसे? अचानक तुम्हें कुछ काम था क्या?
युवी— ओफ़्फ़ो! बताया था ना कि सरप्राइज़ है! और यही सरप्राइज़ है कि मेरी जॉब यहीं लगी है! तुम्हारे इसी ऑफ़िस में!
युवान— कार्तिक को देखते हुए— व्हाट??
युवी— क्या हुआ? आपको खुशी नहीं हुई?
युवान— नहीं, वो अचानक बोला ना तुमने, इसलिए...खुशी तो होगी, ऑफकोर्स होगी!
कार्तिक— बट आपका इंटरव्यू किसने लिया?
युवी— सार्थक सर ने! उनका मैसेज कल ही आया था, तो मैंने तुम्हें बताया था ना कि सरप्राइज़ है! वैसे ये आपने किसका कोट पहना हुआ है?
युवान और कार्तिक ने दोनों ने एक-दूसरे को देखा और युवी की ओर देखा जो दोनों के बोलने का इंतज़ार कर रही थी।
युवी— क्या हुआ?
युवान— युवी, वो आज एक मीटिंग थी और मेरा कोट खराब हो गया था, बस इसलिए!
युवी— ओके (कुछ सोचकर)— लेकिन ये केबिन तो सीईओ सर का है ना, फिर आप दोनों इसके अंदर क्यों जा रहे थे?
कार्तिक— कितना दिमाग लगाती हो! युवान को कुछ काम था, इसलिए जा रहे थे!
युवी— मैंने सुना है वो यंग है, हैंडसम भी बहुत है। वो अंदर है तो एक बार मैं देख लूँ!
कार्तिक को युवी की बात पर हँसी आ रही थी, लेकिन युवान की भौंहें तन गई थीं। उसने अपने दोनों हाथ बाँधे और युवी को घूरने लगा।
युवी— घूर रहे हो! मैंने क्या गलत बोला? सब यही बोलते हैं, लोगों का सपना होता है यहाँ काम करने का। बाबा की मेहर से मुझे यहाँ जॉब तो मिली, वरना तो बहुत प्रॉब्लम थी लाइफ में!
युवान— मेरे होते हुए तुम उसकी इतनी तारीफ़ कर रही हो!
युवी— युवान के थोड़ा करीब आकर— ओह! आपको जलन हो रही है!
युवान— नहीं! बट तुम तारीफ़ भी नहीं कर सकती!
और अब कोई कुछ बोलता उससे पहले ही सार्थक वहाँ आया और उसने युवान को देखकर कहा— सर, वो मिस्टर भाटिया आपसे मिलना चाहते हैं। उन्हें एक बार आपसे मिलना है।
युवी— पीछे मुड़कर सार्थक को देख रही थी और उसके आगे खड़े कार्तिक लगातार सार्थक को बोलने के लिए मना कर रहा था।
युवान— सार्थक को घूरते हुए बस लगातार देख रहा था।
सार्थक— मन में, सॉरी! ओह गॉड! अब मैंने क्या कर दिया!
युवी— ये आपको सर क्यों बोल रहे हैं और किससे मिलने की बोल रहे थे? वो आपसे ही मिलना चाहते हैं!
युवान— कितने सवाल करती हो! अभी तुम घर जाओ, मैं तुम्हें सब शाम को बताता हूँ!
युवी— मुझे ऐसा तो लग रहा है जैसे आप सब मुझसे कुछ छिपा रहे हो!
युवान— युवी, ऐसा कुछ नहीं है। तुम अभी घर जाओ, मैं शाम को मिलता हूँ तुमसे।
युवी— बट अभी तो ऑफ़िस ऑफ होने में टाइम है ना!
युवान— मैं बोल रहा हूँ, चली जाओ! कोई कुछ नहीं बोलेगा!
युवी— युवान के हाथ पर हाथ रखकर— ओके! शाम को मिलना, बात करनी है मुझे!
सार्थक कभी युवी को देखा तो कभी युवान को। उसकी आँखें दोनों को देखकर हर पल में बड़ी-बड़ी हो रही थीं।
युवी वहाँ से अपने टेबल के पास आई और अपना पर्स लेकर वहाँ से चली गई।
क्रमशः
युवी— "बट अभी ऑफिस ऑफ होने में टाइम है ना!"
युवान— "मैं बोल रहा हूँ, चली जाओ। कोई कुछ नहीं बोलेगा!!"
युवी— (युवान के हाथ पर हाथ रखकर) "ओके! शाम को मिलना... बात करनी है मुझे!!"
सार्थक ने युवी को देखा, फिर युवान को। उसकी आँखें दोनों को देखकर पल में बड़ी-बड़ी हो रही थीं।
युवी वहाँ से अपने टेबल के पास आई और अपना पर्स लेकर वहाँ से चली गई।
युवी के जाते ही युवान ने सार्थक को घूरा और जोर से केबिन का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने अपने हाथ में पकड़े कोट को चेयर पर पटका और जोर से चिल्लाते हुए कहा—
युवान— "सार्थक.... सार्थक!!"
सार्थक ने अपना नाम सुना तो मानो उसकी साँसें ही अटक गई हों। सार्थक जल्दी से अंदर आया और हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।
यह केबिन साउंडप्रूफ था। अंदर से बाहर का सब कुछ देखा जा सकता था, लेकिन बाहर से अंदर का नहीं।
युवान— "किससे पूछकर तुमने युवी को सिलेक्ट किया है?!"
सार्थक— "बॉस, उसकी काबिलियत पर..."
युवान— "एक बार किसको सिलेक्ट करना है या नहीं, मुझसे पूछना होता है ना..."
सार्थक— "सॉरी बॉस," (कार्तिक की ओर इशारा करके)
युवान— (आँखें बंद करके गहरी साँस लेते हुए) "उसे फोन करो और जॉब से निकाल दो!!"
काजल— "तू पागल हो गया है युवान! तुम तो उसे अच्छे से जानते हो ना, युवी को। उसकी प्रॉब्लम भी जानते हो ना। अगर उसने रेंट नहीं दिया मकान का तो..."
युवान— "वो मैं सब देख लूँगा! उसके घर उसका रेज़िग्नेशन पहुँचा देना!"
सार्थक— "यस बॉस।" इतना बोलकर सार्थक वहाँ से चला गया।
युवान— (आँखें बंद करके कुछ सोचने लगा)
कार्तिक— "यह तुमने ठीक नहीं किया, युवान। तुम तो उससे प्यार करते हो ना, फिर भी उसकी एक भी प्रॉब्लम तुम्हें नहीं छिपी हुई, फिर भी..."
युवान— "तो उसे सब बता दूँ और अलग हो जाऊँ...? मैं घर जा रहा हूँ। शाम को मिलूँगा।" इतना बोलकर युवान ने एक नज़र केबिन को देखा और बाहर आ गया।
तभी उसकी नज़र एक लड़की पर गई जो उसी के पास आ रही थी।
लड़की— "युवान... इस पर सीईओ सर के साइन चाहिए थे।"
युवान— "काजल, वो अभी यहाँ नहीं है। कल करवा दूँगा। कार्तिक को दे देना फ़ाइल।"
काजल— "ओके युवान।" इतना बोलकर काजल वापस अपने काम में लग गई।
युवान बिल्डिंग से बाहर आया और पार्किंग से कार लेकर कहीं चला गया।
युवी भी घर आ चुकी थी। प्रीत अभी भी नहीं आई थी। युवी ने टाइम देखा तो पाँच बजने वाले थे। उसने अपने कदम रूम में लिए और जल्दी अपने कपड़े लिए और वाशरूम में चली गई।
थोड़ी देर बाद युवी बाहर आई तो उसने अपने बालों को टॉवल से साफ़ किया और जैसे ही आईने के सामने जाने को हुई कि उसके घर की किसी ने डोर बेल बजा दी।
युवी— "अभी कौन आया होगा?" इतना बोलकर युवी बाहर आकर जैसे ही दरवाज़ा खोला तो सामने एक लड़का खड़ा हुआ था।
युवी— "जी, बोलिए।"
लड़का— "यह लिफ़ाफ़ा आपके लिए है और यह फूल भी।"
युवी— (यह सब सुनकर समझ आ गया था कि यह किसने दिया है) "लेकर जाओ इसे। समझे ना? ना तुम जाने लायक रहोगे, ना वो मुझे यह सब दोबारा देने लायक।"
इतना बोलकर युवी ने जोर से दरवाज़ा बंद किया और अंदर आ गई। युवी बेड पर बैठकर कुछ सोच रही थी। वो अपनी सोच से बाहर आई और जल्दी से रेडी हो गई। उसने शॉर्ट पिंक कलर की कुर्ती और ब्लैक जींस पहना हुआ था और उस पर ब्लू कलर का जैकेट। बालों की ऊँची सी खुली हुई पोनी जो कि बंधे होने के बावजूद भी उसकी कमर से नीचे आ रही थी।
युवी— "चल अब, मुझे तो युवान से मिलना है।" इतना बोलकर युवी घर से बाहर आई और ऑटो देखने लगी। उसने ऑटो लिया और कल वाली जगह आकर उसी पत्थर पर बैठ गई। (मन में सोचते हुए) "पहली बार भी हम यहीं मिले थे... पर उस दिन का सोच के तो मुझे आज भी हँसी आ जाती है।"
युवान— "मुझे भी आती है जब तुमने मुझे थप्पड़ मारा था! वो भी बहुत जोर का।"
युवी ने आवाज़ सुनी तो उसने अपने एक हाथ को पीछे किया और युवान का हाथ पकड़कर अपने साइड में बिठा लिया।
युवी— "हाँ, बहुत जोर का लगा था।"
युवान— "बहुत जोर का!!"
युवी— "बट मेरी गलती थी। आप ही ऐसे अचानक बीच में आये थे।"
युवान— "लगता है तुम्हें याद नहीं, तुमने मुझे दो मारा था।"
युवी— "मुझे याद है, बताऊँ?"
युवान— (सामने देखकर मुस्कुराते हुए) "बिलकुल!" इतना बोलकर युवान ने अपना हाथ युवी के शोल्डर पर रख लिया। "वैसे आज बहुत खूबसूरत लग रही हो।"
युवी— "थैंक यू।" (याद करते हुए)
युवी आज यहीं बीच पर बैठी हुई थी। वो बड़े से पत्थर पर बैठकर अपने बारे में सोच रही थी जो कि उसके साथ हुआ था। उसकी आँखों में हल्की नमी थी, लेकिन सूर्य अस्त होने के समय पर सूर्य की तेज किरणें पानी में साफ़ झलक रही थीं जिससे युवी की आँखों से आँसू साफ़ नहीं दिखाई दे रहे थे।
युवी— "क्या मुसीबत है बाबा जी! मेरे साथ इतने धोखे हो रहे हैं। इतनी बड़ी फैमिली होने के बाद भी आज मेरे पास कहने को अपना एक नहीं है। यार, दुःख लिखो मेरी किस्मत में। लेकिन छप्पर फाड़कर काहे फेंक रहे हो? टूटने वालों में से तो मैं हूँ नहीं। हँसकर नहीं सह पाऊँगी तो रोकर सह लूँगी। लेकिन कम से कम एक-एक दुःख दिया करो, एक साथ दो-दो, तीन-तीन दुःख काहे फेंक रहे हो?" इतना बोलकर युवी जैसे ही चुप हुई तो उसके कानों में किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज़ आई। तो उसने अपनी गर्दन घुमाकर पीछे देखा तो एक लड़की भागते हुए आ रही थी और उसके पीछे कुछ लड़के पड़े हुए थे।
युवी वहाँ से खड़ी हुई और एक साइड आ गई। अचानक वो लड़की नीचे गिर गई। उसने अपने आस-पास देखा तो इतने लोग उसे देख रहे थे लेकिन कोई भी उसकी हेल्प करने को तैयार नहीं था।
लड़की— "प्लीज़... मुझे जाने दो! प्लीज़, कोई बचाओ ना!!"
युवी ने अपने हाथ की मुट्ठी बांध ली और उस लड़की को घुटनों के बल बैठकर उठाने लगी। युवी ने जींस की टॉप और एक जैकेट पहना हुआ था। उसने अपना गले में डाला स्कार्फ़ उस लड़की को दिया और उसे खड़ा कर दिया।
तो वही एक लड़का पत्थर पर बैठा हुआ था। उसने जैसे ही यह आवाज़ सुनी तो उसने अपनी आँखों के आँसू साफ़ किए और खड़ा होकर उसी ओर चला आया।
युवी— "तुम ठीक हो ना?"
लड़का— (जो कि कब से युवी को देख रहा था) वो उस लड़की के पास आकर बोला— "अगर अपनी भलाई चाहती है तो इस लड़की से दूर हो जा।"
युवी— "क्यों...? तुम्हारी बहन है क्या...?"
लड़का— "हे भगवान! ज्यादा मत बोल, समझी।"
युवी— "क्या हुआ? घर में बहन ना है?"
युवी ने जैसे ही यह बोला कि उस लड़के ने आगे आकर युवी का गला पकड़ लिया। युवी ने अपने एक पैर से उस लड़के को लात मारी और खुद से दूर कर दिया।
युवी— "और लड़कियों की तरह कमज़ोर नहीं हैं हम, जो खुद की रक्षा नहीं कर सकते। हमसे पंगा मतलब भगवान के पास जाने का रास्ता, समझा?"
युवी की बात सुनकर सारे लड़के उस पर हँसने लगे। तभी एक लड़का बोला— "बड़ी चर्बी चढ़ी है ना? हमें मारने की तो हाथ लगा के बता।" इतना बोलकर सभी लड़के एक साथ युवी को मारने लगे। युवी भी लगातार अपने हाथ, पैर, कोहनी से उन पर मार रही थी। कि तभी एक लड़का वहाँ आया तो उसे देखकर एक पीट रहे लड़के ने कहा— "बचाओ हमें! यह लड़की मार रही है। मार इसे!!"
युवी ने जैसे ही उस लड़के की बात सुनी तो उसने घूमकर अपने पीछे खड़े लड़के के गाल पर जोर से थप्पड़ मार दिया।
जैसे ही युवी ने घूमकर उस लड़के के गाल पर थप्पड़ मारा तो वो पीछे वाले सारे लड़के भाग गए।
युवी— (उस लड़के की कॉलर पकड़कर) "अबे ओए! लड़की छेड़ोगे...? तुम्हारी तो..." इतना बोलकर युवी ने उस लड़के को अपने थोड़ा करीब किया और उसे देखते हुए कहा— "अबे, दिखने में अच्छे-खासे घर से लगते हो और यह छिछोरी वाली हरकत करते हो? थोड़ा भी शर्म नहीं है?"
लड़का— (अपने हाथ से युवी के हाथ को पकड़कर) "पहला तो मेरा नाम युवान है। तो अबे-ओए ये सब बंद करो। और दूसरी बात, मैं न तो छिछोरा हूँ ना ऐसी कोई हरकत करता हूँ। और तीसरी बात, मैं उन लड़कों को नहीं जानता।"
युवी— "हाय राम! सब ऐसे ही बोलते हैं। मेरे मुँह पर पागल लिखा हुआ है क्या?"
युवान— "शटअप, ओके।" (युवी के हाथ को मरोड़कर) "आज तो सीधे छोड़ रहा हूँ। अगर तुम्हारी जगह और कोई होता ना तो यहाँ शायद अब तक नहीं होता वो।" इतना बोलकर युवान वहाँ से चला गया।
युवी अभी भी वहीं खड़ी हुई थी। उसकी नज़र सब पर गई तो उसने उस लड़की की ओर कदम बढ़ा लिए। "तुम ठीक हो ना?"
लड़की— "थैंक यू। अगर आज आप नहीं होतीं तो..."
युवी— "कुछ ना करते। अगर तुम एक बार खींचकर थप्पड़ लगाती ना तो कुछ नहीं करते। डरकर कब तक घर में रहोगी और ऐसे लोगों से डरोगी तो घर से बाहर भी नहीं निकल पाओगी।"
लड़का— "वैसे वो भैया तो इन दीदी की हेल्प करने आये थे! लेकिन आपने तो उन्हें ही धर दबोचा।"
युवी— "थैंक यू!" इतना बोलकर युवी वहाँ से उस लड़के के पीछे आई तो उसे युवान कहीं नहीं दिखाई दिया। लेकिन अचानक ही उसकी नज़र एक पत्थर पर गई तो वो भी भागकर युवान के पास चली गई।
क्रमशः
लड़की— थैंक यू.... अगर आज आप नहीं होतीं तो,,, शायद!!
युवी— कुछ नहीं करतीं, अगर तुम एक बार खींच कर थप्पड़ लगातीं ना तो कुछ नहीं करतीं, डर कर कब तक घर में रहोगी, और ऐसे लोगों से डरोगी तो घर से बाहर भी नहीं निकल पाओगी।
लड़का— वैसे वो भैया तो इन दीदी की हेल्प करने आए थे!
"लेकिन आप ने तो उन्हें ही धर दबोचा!!"
युवी— वो इनकी हेल्प करने आए थे! "हे भगवान! मैंने ये क्या कर दिया, मैंने तो उसे बिना बात के थप्पड़ लगा दिया।" लड़के की ओर देखकर "वैसे थैंक यू!"
इतना बोल युवी वहाँ से उस लड़के के पीछे आई तो उसे युवान कहीं नहीं दिखाई दिया। लेकिन अचानक ही उसकी नज़र एक पत्थर पर गई। तो वो भी भागकर युवान के पास चली गई।
युवान घुटनों पर अपने हाथ को रखकर सामने देख रहा था।
तभी युवी उसके बगल में आकर बैठी और सामने देखते हुए कहा, "सॉरी! सारी गलती मेरी नहीं है, थोड़ी सी तुम्हारी भी है।"
युवान— अभी भी सामने देख रहा था।
युवी— युवी गलती हो गई।
युवान— कौन युवी?
युवी— मेरा नाम.. मेरा नाम युवानिका है।
युवान— तो तुम सबको ऐसे ही थप्पड़ मारकर फिर बाद में सॉरी बोलती हो?
युवी— नहीं नहीं! वो तो बस गलती से, गलत समझकर हो गया।
युवान— तो मैं तुम्हें वो छिछोरा , टाइप, आवारा टाइप लगता हूँ?
युवी— सॉरी... हमसे गलती हो गई... वो हमने बिना सोचे-समझे आप पर थप्पड़ मार दिया।
युवान— इट्स ओके।
इतना बोल युवान जैसे ही सामने देखने लगा, उसकी नज़र युवी के हाथों पर गई। उसने उसके हाथ को जल्दी से पकड़कर कहा, "तुम्हें तो चोट लगी है।"
युवी— छोटी सी है, मिट जाएगी अपने आप से।
युवान— नहीं। कुछ घाव या तो भुलाए जाते हैं, या मरहम लगाकर भरे जाते हैं, लेकिन अपने आप ठीक कभी नहीं होते। अगर उन्हें खुला छोड़ दिया जाए तो उन पर हवा पानी लगकर वो और बढ़ जाते हैं।
ये सब बोलते हुए युवान ने अपने हाथ के रुमाल को युवी के हाथ पर बाँध दिया।
युवी— अपना हाथ देखकर... सामने देखते हुए... लगता है बड़े गम सीने में छिपाए बैठे हैं आप।
युवान— युवी की ओर हल्का सा देखकर मुस्कुराते हुए, "नहीं, मैं अपनी लाइफ में बहुत खुश हूँ। छोटे-मोटे दुख सबकी लाइफ में होते हैं, इसलिए।"
युवी— अच्छा, अब हम चलते हैं।
इतना बोल युवी उठकर चली गई।
अपनी सोच से बाहर आकर युवान की ओर देखते हुए, "देखो, मुझे हमारी पहली मुलाकात याद है आज भी..." और हमेशा रहेगी, मरते दम तक!
युवान— ये फ़ालतू की बातें नहीं करोगी तो तुम्हें खाना हजम नहीं होगा!
युवी— हँसते हुए, "अब मैंने क्या गलत बोला!"
युवान— "कुछ नहीं! वैसे तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुमने राठौर कंस्ट्रक्शन में इंटरव्यू दिया है?"
युवी— मैंने प्रीत के बोलने पर दिया था! मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं वहाँ सिलेक्ट हो जाऊँगी, लेकिन अब इतनी खुशी हो रही है ना, बता भी नहीं सकती! "बस एक बार पैसे आ जाएँ तो उस इंसान के मुँह पर फेंक कर मारूँगी और प्रीत को लेकर वो घर छोड़ दूँगी!"
युवान— मैं दे देता हूँ ना, मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, मैं देता हूँ उसे पैसे, तुम उसका मकान खाली कर दो, पर तुम्हें पता नहीं होता है, मुझसे पैसे क्यों नहीं लेती तुम? वो गली कितनी खराब है! ये तो तुम भी बहुत अच्छे से जानती हो!
युवी— हम्मम, बट मैं सब कर लूँगी... अच्छा, अब तो बताइए ना कि आप को सार्थक सर, सर-सर क्यों बोल रहे थे?
युवान— वो... वो... क्योंकि मैं सीईओ सर का असिस्टेंट हूँ ना, इसलिए उनका हर काम मैं ही करवाता हूँ, इसलिए सब सर ही बोलते हैं, लेकिन मैं और कार्तिक एक साथ रहते हैं ना, इसलिए एक-दूसरे को नहीं बोलते।
युवी— वाव! तो आपने उन्हें देखा होगा ना फिर?
युवान— हाँ...
युवी— अच्छा... फिर वो कौन मिलना चाहता था आपसे?
युवान— आज मेरी एक मीटिंग थी, तो वही क्लाइंट्स मिलना चाहते थे।
युवी— ओह, अच्छा...
युवान— हम्मम... कुछ सोचते हुए।
युवी— मुझे तो एक बार उस कंपनी के सीईओ से मिलना है, यार!
युवान— क्यों मिलना है? वो तो सोने का बना हुआ है जिससे तुम्हें मिलना है।
युवी— हाँ, मेरा तो क्या हर लड़की का ड्रीम है उससे मिलना। आपको मालूम है, उसकी लाइफ कितनी मस्त होगी, उसकी फैमिली होगी, इतनी बड़ी कंपनी का सीईओ है तो घमंड भी होगा ना, आपने तो देखा है ना उसे!
युवान— हम्मम...
युवी— युवान, क्या सरप्राइज़ है? बताओ ना!
युवान— युवा सरप्राइज़ है, वो भी दस दिन बाद।
युवी— अब दस दिन नहीं, नौ दिन ही हैं!
युवान— अब तुम्हें घर जाना चाहिए, प्रीत अकेली होगी ना?
युवी— हाँ, उसी की टेंशन होती है। उसने मेरे लिए इतना किया है, लेकिन मैंने आज तक कुछ नहीं किया उसके लिए।
युवान— कोई बात नहीं... वैसे मुझसे एक वादा करो।
युवी— कैसा वादा?
युवान— करो... अपना हाथ आगे करके...
युवी उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर, "मांगो।"
युवान— अभी नहीं। जब मांगने का सही समय आएगा, लेकिन तुम भूलना मत।
युवी— ठीक है, लेकिन आप भी वादा कीजिए कि हमेशा मेरे साथ रहोगे, मेरा साथ दोगे, हमेशा मेरे साथ रहोगे!
युवान— युवी की ओर देखते हुए, हम्मम, वादा रहा।
युवी— चलो अब मुझे सुबह ऑफिस भी जाना है।
इतना बोल दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर साथ चल रहे थे।
युवान— हम्मम, चलो।
युवान के बोलने से अचानक ही युवी रुक गई। तो युवान ने उसे देखा और पूछा, "क्या हुआ?"
युवी— अपने हाथ को युवान के गले और सर पर लगाकर... "आप ठीक हैं ना?"
युवान— मुझे क्या होगा?
युवी— तो फिर कब से "हम्मम"... "हम्मम" किए जा रहे हो!
युवान— अच्छा, सॉरी।
इतना बोल युवान और युवी दोनों ही वहाँ से बाइक लेकर चले गए।
युवान ने युवी को उसके घर के बाहर लाकर छोड़ा और युवी के अंदर जाने तक का वेट करने लगा। युवी जैसे ही उसे घर के अंदर घुसते हुए दिखाई दी, तो उसने अपने पॉकेट से फोन निकाला और वापस युवी को लगा दिया।
युवान— युवी... चलकर के डिनर करो और फिर सो जाना।
युवी जो कि प्रीत को देख रही थी, उसने फोन को कान के और कंधे के नीचे फँसाया और रूम में आकर कपड़े लेने लगी।
"कब तक पहुँच जाओगे?"
युवान— तुम रखो, मैं तुम्हें पहुँचकर कॉल करता हूँ।
इतना बोल युवान ने फोन कट किया और वहाँ से घर के लिए आ गया। थोड़ी देर में वो घर आया और कपड़े लेकर वाशरूम में चल गया।
थोड़ी देर में युवान नहाकर आया तो कार्तिक उसके रूम में बैठा हुआ था।
युवान— क्या हुआ?
कार्तिक— युवी का रिजाइनशन लेटर है। कल खुद अपने हाथों से उसे ये देना।
युवान— टॉवल से बाल साफ़ करते हुए... सार्थक को बोला था ना मैंने।
कार्तिक— उसने मुझे दिया था। साइन चाहिए ना सीईओ के, तो वो तो तुम ही करवाते हो ना!
युवान— बेड पर रख दे...
इतना बोल युवान ने टॉवल को चेयर पर रखा और कार्तिक की ओर देखकर कहा, "चलकर डिनर कर लें।"
दोनों नीचे आए और डिनर करके वापस अपने रूम में आ गए। युवान अपने लैपटॉप में काम कर रहा था।
तो वहीं युवी भी आज के बारे में सोच रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब ही दर्द था। उसने अपने आँसू साफ़ किए जो कि लेटे हुए लगातार सीलिंग घूरने से आ गए थे।
क्रमशः
युवी आज जल्दी उठ गई थी और खुले बालों से रसोई में खाना बना रही थी। उसने जल्दी-जल्दी नाश्ता तैयार किया और किचन की सफाई करके बाहर आई तो उसकी नज़र प्रीत पर गई जो अभी भी अपने फ़ोन में घुसी हुई थी।
"युवी ने एक नज़र प्रीत को देखा और वापस अपने कमरे में चली गई और तैयार होने लगी। वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और बाहर आई तो देखा प्रीत अभी भी फ़ोन में लगी हुई थी।
युवी— प्रीत, ये फ़ोन मैं फेंक दूँगी। सच में, कब से तू इसमें लगी हुई है? मैं बोल रही हूँ, प्रीत!
प्रीत— सॉरी, वो नमन का मैसेज आया था। यार, वो बिजी आत्मा है ना!
युवी— अपना बैग लेते हुए— तू और तेरा नमन... बस यही है, है ना! चल, ऑफ़िस जा रही हूँ मैं। लॉक करके जाना घर, चाबी लेकर जाना। अगर मैं पहले आऊँगी तो बीच पर चली जाऊँगी।
प्रीत— "ओके माता।"
इतना बोल युवी ने एक कदम ही बढ़ाया था कि तभी किसी ने डोर बेल बजाई। तो युवी ने एक नज़र दरवाजे की ओर देखा और प्रीत की ओर देखकर अपने कदम दरवाजे की ओर बढ़ा लिए।
युवी ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने खड़े एक लड़के को देखकर युवी की आँखें फिर से बड़ी हो गईं। उसने जल्दी से अपना गेट वापस बंद करना चाहा तो उस लड़के ने बीच में अपना हाथ दिया और युवी को घूरते हुए जोर से दरवाजा खोल दिया।
लड़का— "बेबी, इतना गुस्सा तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होता।"
इतना बोल उस लड़के ने जैसे ही युवी के कंधे पर हाथ रखना चाहा तो युवी हल्का सा पीछे हो गई।
युवी— "टच भी मत करो, अमर, वरना... तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा!"
अमर— "अच्छा, टच नहीं करूँगा। चल, ठीक है, टच नहीं कर रहा।" लेकिन युवी की कमर पर हाथ रखकर अपनी ओर खींचते हुए— "अब तो तुम वैसे भी मेरी होने वाली हो, है ना!"
युवी— उसको धक्का देकर खुद से दूर करते हुए— "शटअप! अभी पूरे दस दिन हैं मेरे पास, समझे ना? और ये सब फ़ालतू हरकतें बंद करो। वरना, मैंने अभी तुम्हें कुछ नहीं किया, वरना चलकर भी नहीं जा पाओगे यहाँ से।"
अमर— "मुझे हाथ लगाएगी?" इतना बोल अमर ने वापस युवी की कमर को पकड़ा और अपने करीब करके एक हाथ से उसके चेहरे को पकड़कर जबरदस्ती किस करने के लिए अपना चेहरा उसकी ओर करने लगा।
युवी लगातार उससे खुद को छुड़ा रही थी, लेकिन वह अमर उससे बस नहीं हो रहा था। उसने अपने पैर को जल्दी से मोड़कर उसके पैरों के बीच में बहुत जोर से मारा जिससे अमर एक झटके में ही युवी से दूर हो गया।
अमर— अपने पैरों को पकड़कर— "छोड़ूँगा नहीं तुम्हें, समझी ना? तुम्हें मैं अपनी बनाकर रहूँगा।"
युवी— उसे धक्का देते हुए— "सपना वो देखो जो पूरा हो, समझे ना?" इतना बोल उसने अमर का हाथ पकड़ा और धक्का देकर बाहर कर दिया।
प्रीत तो अभी भी अपनी जगह खड़ी हुई थी। उसकी आँखों से लगातार आँसू आ रहे थे। युवी ने उसे देखा तो उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा— "क्या हुआ, प्रीत? रो क्यों रही है? वो चला गया।"
प्रीत— रोते हुए— "काश उस दिन मैंने वो पेपर पढ़ लिए होते, युवी, तो आज तेरे साथ ये सब नहीं होता।"
युवी— "कुछ नहीं हुआ है, इसे हम देख लेंगे। चल, मूड ठीक कर और ऑफ़िस चल, मुझे भी जाना है!"
थोड़ी देर में दोनों ऑफ़िस के लिए निकल गई थीं। आज युवी थोड़ा लेट ऑफ़िस आई थी। उसकी नज़र सब एम्प्लॉयी पर गई तो वो भी सबसे हाय बोलने लगी। युवी को देखकर सार्थक को कल वाली सभी बातें याद आ गईं। उसने केबिन से देखा और बाहर आकर युवी के पास खड़ा हो गया।
युवी— "गुड मॉर्निंग सर!"
सार्थक— "गुड मॉर्निंग। आप लेट हैं आज!"
युवी— "सॉरी सर, आज बस..."
युवान— "आपका रेज़िग्नेशन लेटर रेडी है, मिस युवानिका!"
युवी ने जैसे ही सुना उसने सार्थक के पीछे देखा जहाँ युवान हाथ में एक लिफ़ाफ़ा लिए खड़ा हुआ था।
युवी— "रेज़िग्नेशन लेटर? बट युवान... सॉरी सर, मेरा तो आज दूसरा दिन ही है, और मैंने तो कोई गलती भी नहीं की, फिर ये?"
युवान— "मुझे नहीं मालूम, बट सर ने बोला है।"
सब लोग युवी को देख रहे थे। उसके लिए सबको बुरा लग रहा था। युवान को भी बुरा लग रहा था। उसने अपनी आँखें बंद कीं और युवी की ओर लिफ़ाफ़ा करते हुए कहा— "ये लो!"
युवी— आँखों में आँसू लिए— "बिना गलती के निकाल रहे हैं। यही है आपकी इस घटिया कंपनी की काबिलियत। मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी जब तक आप मुझे नहीं बता देते कि मेरी गलती क्या है।"
युवान— "आपसे अच्छी एम्प्लॉयी हायर की गई है कंपनी में।"
युवी— "ओह, मज़ाक लगा रखा है ना?" इतना बोल युवी ने उस लिफ़ाफ़े को लिया और खोलकर देखा और उसे फाड़ दिया। "आप लोग भूल रहे हैं, यहाँ पर जब हम कल आए थे, उसके बाद आपने हमसे कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया था। उसके हिसाब से हम यहाँ से एक साल पहले जॉब नहीं छोड़ सकते!"
युवान— "ये सर ने कैंसल कर दिया है। देखो युवा... देखो युवानिका... प्लीज, इसके खिलाफ़ जाने से तुम्हें जेल भी हो सकती है!"
युवी— रोते हुए— "ऐसा करके मेरी मुश्किलों को मत बढ़ाइए। वरना सच..." अपनी बातों को अधूरा छोड़कर— "...बहुत मुश्किल हो जाएगी!" इतना बोल युवी ने फाड़े हुए कागज़ को ऊपर करके फेंका और वहाँ से टेबल से अपना फ़ोन और बैग ले लिया।
सब लोग युवी को जाते हुए देख रहे थे। युवान भी चुपचाप खड़ा हुआ था। उसकी आँखों में एक अजीब सा भाव आ रहा था जो उसे खुद तकलीफ़ दे रहा था।
युवी—(मन में)— "एक बार काश तुमने भी कोशिश की होती, तो शायद सीईओ तुम्हारे बोलने पर मान जाते। काश! आज मेरी मुश्किल और बढ़ गई!"
लगता है आपकी कंपनी काबिलियत पर नहीं, पैसों पर इंसान को चुनती है। कौन कितने पैसे वाला है, उसका स्टेटस या बैकग्राउंड देखकर, राइट ना? ये सब बोलते हुए युवी रुककर वापस पीछे पलट गई थी।
युवान ने युवी की बातों से अपने हाथों की मुट्ठी कस ली। उसकी आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था।
युवी वहाँ से नीचे आ गई। उसने बिल्डिंग को देखा और कहा— "बिना वजह तुमने मुझसे मेरी लाइफ छीन ली। इस सीईओ से मिलने को बेचैन थी ना, लेकिन आज घिन आ रही है। काश मेरी जैसी प्रॉब्लम तुम... नहीं-नहीं, मेरी जैसी प्रॉब्लम भगवान किसी को ना दे!"
युवी ने एक ऑटो लिया और बीच पर आ गई। उसने खुद को देखा और जैसे ही उस पत्थर की ओर जाने को हुई कि उसे सामने ही पानी-पूरी का ठेला दिखाई दिया तो वह उसकी ओर ही चली गई।
युवी— "एक प्लेट लगा दो भैया।"
ठेले वाले ने युवी को गोलगप्पे खिलाने शुरू कर दिए तो युवी भी खाने लगी। सुबह से लेकर अब तक की सभी बातें उसके दिमाग में एक-एक करके घूमने लगीं। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
ठेले वाला— "मैडम, मिर्च लगी तो, मीठा पानी डाल दूँ?"
युवी— आह भरते हुए— "मिर्च डालिए ना। मैंने बोला तो नहीं ना मुझे मिर्च लग रही है।"
ठेले वाले ने उसे देखा और वापस से खिलाने लगा। युवी भी लगातार खाए जा रही थी और उसकी आँखों के आँसू बंद ही नहीं हो रहे थे। उसका पूरा चेहरा लाल पड़ गया था। उसकी आँखों से आँसू आ रहे थे।
युवी— "साला किस्मत ही फूटी है मेरी तो। सारे दुख मेरी ही किस्मत में लिखने थे क्या बाबा?" इतना बोल युवी ने जैसे ही मुँह में गोलगप्पा देना चाहा कि उससे पहले ही किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
युवी— "ये तो चैन से खाने दो मेरे को यार!" इतना बोल युवी ने जैसे ही अपना चेहरा ऊँचा किया और बगल में देखा तो युवान खड़ा हुआ उसे गुस्से से देख रहा था। उसके गुस्से वाले भाव को देखकर तो एक बार को युवी भी काँप गई। उसने धीरे से कहा— "खाने दो ना।"
युवान— अपने जेब से पैसे निकालकर दिए और युवी का हाथ पकड़कर ले गया— "ये सब क्या है, युवी? खुद को क्यों नुकसान पहुँचा रही हो? खुद को क्यों तकलीफ़ दे रही हो?"
युवी— युवान के सीने से लगते हुए— "युवान, ये सब क्या हो रहा है? मैंने क्या गलती की थी जो उन्होंने मुझे जॉब से निकाल दिया यार? तुम्हें मालूम है आज क्या हुआ!"
युवान— उसके बालों में हाथ फिरते हुए— "क्या हुआ युवा... बताओ ना!"
क्रमशः
युवी— "ये तो चैन से खाने दो मुझे, यार इतना बोलो।" युवी ने जैसे ही अपना चेहरा ऊँचा किया और बगल में देखा तो युवान खड़ा हुआ उसे घूर कर देख रहा था। उसके घूरने वाले भाव को देखकर तो एक बार को युवी भी काँप गई। उसने धीरे से कहा, "खाने दो ना!!"
युवान— अपने जेब से पैसे निकाल कर उस ठेले वाले को दिए और युवी का हाथ पकड़कर ले गया। "ये सब क्या है युवी? खुद को क्यों नुकसान पहुँचा रही हो? खुद को क्यों तकलीफ दे रही हो?!"
युवी— युवान के सीने से लगते हुए, "युवान, ये सब क्या हो रहा है? मैंने क्या गलती की थी जो उन्होंने मुझे जॉब से निकाल दिया यार, तुम्हें मालूम है आज क्या हुआ!"
युवान— उसके बालों में हाथ फेरते हुए, "क्या हुआ युवा... बताओ ना..."
युवी— "अमर घर आया था! युवान, बस अब दस दिन का टाइम है मेरे पास। मेरे पास पैसे भी नहीं हैं और तो और उसने आज मेरे साथ जबरदस्ती किस करने की भी कोशिश की..."
युवान— जो युवी की बातें सुन रहा था, उसने जैसे ही 'किस' का सुना तो उसके हाथों की मुट्ठी बँध गई। उसने कसकर अपने जबड़े भींचे और युवी को कंधे से पकड़कर कहा, "और तुमने उसे छूने दिया?! मैंने बोला था ना अगर वो कुछ करे तो उसे वहीं मार देना। अगर तुम उसे मार भी देतीं ना युवा, तो भी मैं तुम्हें कुछ नहीं होने देता!!"
युवा— "हम्मम, मुझे बहुत डर लग रहा है, मेरे लिए नहीं, प्रीत के लिए। मुझे उसे यहाँ से कहीं और शिफ्ट कर देना चाहिए।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है युवा, वो कुछ नहीं करेगा। डोंट वरी।" युवान ने उसके कंधे को पकड़कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
युवी— हम्मम, अपने एक हाथ से अपनी आँखों के आँसू साफ़ करते हुए।
युवान— "सॉरी, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया। मैंने बहुत कोशिश भी की थी लेकिन उन्होंने मेरी नहीं सुनी।"
युवी— "इट्स ओके। मेरी तो किस्मत ही खराब है। कभी कोई चीज़ नसीब नहीं हुई; ना फैमिली, ना उनका प्यार। मिले तो सबसे धोखे, पर प्रीत और तुम्हारी वजह से मैं आज भी ज़िंदा हूँ। वरना तो मैं कब का मर चुकी होती। मेरी खुद की फैमिली और मेरे साथ..."
युवान— "चुप हो जाओ युवा, भूल जाओ वो पुरानी बातों को।"
ऐसे ही दिन निकल रहे थे। युवा ने कई बार कोशिश की लेकिन उसकी जॉब किसी भी कंपनी में नहीं लग रही थी। उसने आखिरकार जॉब ना करने का फ़ैसला लिया और घर पर बैठ गई।
इन सब में पूरे दस दिन हो चुके थे। युवा सुबह किचन में काम कर रही थी कि तभी उसके फ़ोन में युवान का फ़ोन आया। युवान का नाम देखकर युवी के चेहरे पर स्माइल आ गई। उसने फ़ोन को कान और कंधे के बीच लगाया और कहा, "हाँ बोलो युवान।"
युवान— अपने रूम में कान के बीच फ़ोन लगाकर वॉच पहनते हुए, "हैप्पी बर्थडे युवा।"
युवी— "थैंक यू! बट बारह बजे से लेकर अब तक आप तीसरी बार बर्थडे विश कर चुके हैं।"
युवान— "अभी तो और भी करना है। सुनो, मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेजा है। शाम को वही पहन के रेडी होना, और हाँ, बालों को खुला रखना। अच्छी लगती हो। शाम को सरप्राइज़ के साथ मिलता हूँ।"
युवी— "हाय राम! ऐसे बोलने से तो दिल में धड़कन हो रही है!!"
युवान— "पागल... शाम को मिलता हूँ। कार्तिक तुम्हे शाम को पिक कर लेगा ।"
युवी— "ओके बाय।" इतना बोल युवी ने फ़ोन काट दिया और जल्दी से नाश्ता रेडी करके जोर से आवाज़ देते हुए बाहर आई। "ओह प्रीत आजा, तेनु मैं आज पराठे खिला... खिला.." (बीच में रुककर कुछ सोचते हुए)
प्रीत— युवी के पास आकर, "ओहो, मैं पंजाबी ज़रूर हूँ, तो मुझे तो पंजाबी बोलनी आती है, लेकिन तुझे नहीं समझी ना, तो तू रहने दे। चल बता, आज तूने क्या बनाया है?"
युवी— "तेरे पसंद के आलू के पराठे।"
प्रीत— "मेरी पसंद के? पर युवी, बर्थडे तेरा था! तो नाश्ता भी तेरी ही पसंद का होना था ना!"
युवी— "तो किसने कहा मुझे पराठे न पसंद? तू भी ना! चल अब ठंडे हो जाएँगे तो मज़ा नहीं आएगा।"
प्रीत जल्दी से टेबल पर बैठी और युवी ने जल्दी से पराठा रखा और दही लेकर जैसे ही खाने को हुई कि उसने अपने बगल में देखा तो युवी वहाँ नहीं थी।
प्रीत— "ओहो, अचार के बिना इस लड़की का खाना नहीं होता।"
युवी तब तक प्लेट में से लेकर पराठे के ऊपर अचार डालकर खाने लगी। उसने मज़े से पराठा खाया और प्रीत की ओर देखकर उठ गई।
सुबह से शाम हो गई थी। युवान ने जो सामान दिया था वो भी युवी के पास आ गया था। उसने बेड पर रखा सामान देखा और अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा, "ओह बाबा! मैं कैसे ये साड़ी मैनेज करूँगी? मैंने तो आज तक साड़ी का स भी नहीं पकड़ा तो ये साड़ी कैसे पहनूँ और ये प्रीत, पक्का इसे भी नहीं आती होगी साड़ी बाँधना।"
युवी ने जल्दी से बैग का सामान देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। बैग में युवी की ज़रूरत का हर सामान था। साड़ी भी काफ़ी महँगी लग रही थी।
युवी ने ब्लाउज पहना और उसे ध्यान से देखा तो पूरा ब्लाउज डीप बैक था, नीचे तीन डोरी थीं जिसे प्रीत ने बाँध दी थीं।
प्रीत— "साड़ी तो बड़ी खूबसूरत है, चल पहना देती हूँ।"
युवी— "तुझे आता है पहनाना?"
प्रीत— "हाँ।" इतना बोल प्रीत ने थोड़ी देर में युवी को फुल रेडी कर दिया था। युवी ने आईने में खुद को देखा तो एक पल को देखती ही रह गई। वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। युवी ने अपने बालों को एक साइड किया ही था कि उसके कानों में गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आई। तो प्रीत उसके रूम से बाहर आकर बाहर का दरवाज़ा खोला तो सामने कार्तिक खड़ा हुआ था।
कार्तिक ने प्रीत को देखा और कहा— "युवी, उसे बोलो मैं आया हूँ।"
प्रीत— "आप आइए ना अंदर, बैठिए। मैं तब तक युवी को देखकर आती हूँ। रेडी तो हो ही गई थी।"
कार्तिक— सोफ़े पर बैठते हुए, "जी बिल्कुल, बुला लीजिए।"
प्रीत युवी के रूम में आई तो युवी अपना फ़ोन देख रही थी। प्रीत ने उसे देखा और अपने सर पर एक चपत लगाकर कहा, "तेरा ना कुछ नहीं हो सकता युवी।"
"बस एक फ़ोटो ली है, ज़रूरी भी तो है ना, एक फ़ोटो का होना, याद करने के लिए।"
"हाँ, लेकिन बाहर कार्तिक आया है तुझे लेने। बाहर इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रीत ने कहा और वापस बाहर चली गई।
युवी भी कुछ देर में बाहर आ गई थी। कार्तिक ने उसे देखा तो उसका मुँह खुला ही रह गया। उसने युवी की ओर अपने क़दम बढ़ाए और धीरे से कहा, "हैप्पी बर्थडे युवी... बहुत खूबसूरत लग रही हो।"
"थैंक यू।" युवी ने बोला और कार्तिक की ओर चलने का इशारा किया।
प्रीत ने दोनों को जाने के लिए बोला और जैसे ही अंदर आने को हुई कि उसके कानों में युवी की आवाज़ आई।
युवी— "दरवाज़े खिड़की बंद कर लेना, मैं जल्दी आ जाऊँगी और किसी के लिए दरवाज़ा मत खोलना, मैं फ़ोन करूँगी, आऊँगी तब।"
प्रीत— "ओके बाबा, तू जा अब।"
कार्तिक और युवी दोनों कार में बैठकर निकल गए थे। कार्तिक आराम से कार चला रहा था लेकिन युवी उसे ऐसे देखकर बोरियत फील कर रही थी।
युवी— "ओफ्फो, आप बोलते नहीं हैं कार्तिक भैया।"
कार्तिक— "बोलता हूँ ना! हाँ, वो बात अलग है, आप जितना नहीं।"
युवी— "तो आपके बोलने का मतलब है मैं ज़्यादा बोलती हूँ।"
कार्तिक— मुस्कुराते हुए, "नहीं नहीं! मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा।"
युवी— "अच्छा, क्या सरप्राइज़ है, और हम कहाँ जा रहे हैं?"
कार्तिक— ड्राइविंग करते हुए, "थोड़ी देर और रुक जाइए, सब मालूम हो जाएगा कि क्या सरप्राइज़ है और हम कहाँ जा रहे हैं।"
युवी— मुँह बिगाड़ते हुए, "तो आप बताएँगे नहीं।"
कार्तिक— "नहीं!" इतना बोल थोड़ी देर में कार्तिक ने कार को रोका और युवी की ओर देखकर उसे बाहर आने का इशारा किया। युवी खुद की साड़ी को संभाले बाहर आई और आस-पास देखने लगी। चारों ओर अंधेरा था। उसने पलटकर पीछे देखा तो कार्तिक कार लेकर चला गया था।
युवी— "कार्तिक भैया चले गए? ऐसे कौन जाता है यार! माना मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, लेकिन रात हो गई है ना तो डर तो लगेगा ही। हूँ तो मैं भी इंसान ही ना।"
युवी ने अभी तक इतना ही बोला था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो युवी की हालत खराब हो गई। उसने जैसे ही चिल्लाने के लिए अपना मुँह खोलना चाहा कि किसी ने उसके मुँह पर भी हाथ रख लिया।
क्रमशः...
यूवी— काफ़ी देर हो गई भैया चले गए, ऐसे कौन जाता है यार! माना मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, लेकिन रात हो गई है ना!
तो डर तो लगेगा ही, हूँ तो मैं भी इंसान ही ना!
यूवी इतना ही बोल पाई थी कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। यूवी की हालत खराब हो गई। उसने जैसे ही चिल्लाने के लिए अपना मुँह खोला, किसी ने उसके मुँह पर भी हाथ रख लिया।
"!!" यूवी कुछ करती उससे पहले ही उसके कानों में युवान की आवाज़ आई। "मैं हूँ युवान।"
यूवी ने जैसे ही युवान की आवाज़ सुनी, उसने चैन की साँस ली। यूवी ने अपना हाथ युवान के हाथ से छूकर अपनी गर्दन से इशारा किया तो युवान ने तुरंत यूवी के मुँह से हाथ हटा लिया।
"सॉरी यूवी... इतना डर गया।" युवान ने यूवी को देखा जो अब काफी हद तक शांत हो चुकी थी।
"...आपने तो मुझे डरा ही दिया युवान।" इतना बोल यूवी ने युवान की ओर अपना चेहरा करके देखा तो युवान मुस्कुराते हुए उसे देखकर बोला।
"एक मिनट रुको!" इतना बोल युवान ने अपनी पॉकेट से एक लाल रंग की रिबन निकाली और उसे यूवी की आँखों पर बाँध दिया।
युवान ने जैसे ही यूवी की आँखें बाँधीं, यूवी ने उसके हाथ पकड़ लिए। युवान ने आँखें बाँधकर अपने हाथों से यूवी के हाथों को पकड़ा और धीरे से कहा, "चलो!"
दोनों धीरे-धीरे थोड़ी दूरी पर आए तो युवान ने रुककर कहा, "मैं अपनी आँखें खोल लूँ अब तो?"
"खोल लो।" युवान इतना बोला और उसके पीछे खड़ा हो गया।
यूवी ने अपनी आँखों से रिबन हटाई तो उसने देखा चारों ओर रंग-बिरंगी लाइट्स लगी हुई हैं। चारों ओर लाइट्स पर फूलों की बेल लगी हुई थी जिसमें छोटी-छोटी लटकन लगी हुई थीं जिनमें से अलग-अलग तरह की लाइट जल रही थी। यह नज़ारा बहुत खूबसूरत था। तभी यूवी की नज़र अपने सामने गई तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। बीच में एक बहुत बड़ा गुब्बारों का दिल बना हुआ था जो लाल रंग का था, उस पर भी लाइटिंग हुई थी। उसके ठीक नीचे जमीन पर ही एक छोटा सा दिल बना हुआ था।
यूवी— घूम-घूम कर देखते हुए—"युवान, ये सब कितना खूबसूरत लग रहा है!"
युवान— उसके कंधे के पास अपना चेहरा ले जाकर—"तुम्हें पसंद आया?"
यूवी— "बहुत... नहीं बहुत-बहुत ज़्यादा!" इतना बोल यूवी जैसे ही युवान की तरफ़ घूमी तो युवान यूवी को देखने लगा।
ब्लैक कलर की साड़ी में खुले बाल, हाथों में चूड़ियाँ, आँखों में काजल, लिपस्टिक, इन सब में यूवी बहुत खूबसूरत लग रही थी। युवान की नज़रें आज उस पर से हट ही नहीं रही थीं। यह बात यूवी भी समझ रही थी और इसी वजह से उसे शर्म आ रही थी जिसकी वजह से उसके गोरे-गोरे गाल लाल टमाटर की तरह हो गए थे।
युवान— यूवी की ठुड्डी को ऊँचा करके—"तुम शर्माती भी हो यूवी?"
यूवी— "नहीं, वो बस... आज पहली बार ये सब देखा ना इसलिए।"
युवान— उसकी कमर पर हाथ रखकर, अपनी ओर खींचते हुए—"हम्म तो तुम्हें मुझसे शर्म आ रही है या ये सब देख के?"
यूवी— "नहीं-नहीं आपसे नहीं आ रही।" यूवी ने ये इतना जल्दी बोला कि अब उसे खुद पर वापस शर्म आने लगी तो यूवी अपने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख लेती है।
युवान— उसे बहुत देर से देख रहा था। उसने धीरे-धीरे यूवी के हाथ उसके चेहरे के आगे से हटाए और उसके गाल पर अपना गाल लगाकर कहा, "बहुत खूबसूरत लग रही हो। किसी की भी नज़र न लगे!"
यूवी— "थैंक यू!"
युवान— यूवी को घुमाकर उसकी पीठ अपने सीने से लगा ली और उसके कान के पास आकर धीरे से बोला, "तुम्हारे लिए सरप्राइज़ है। आँखें बंद करो।"
यूवी— मुस्कुराते हुए—"फिर से आँखें बंद करूँ?"
युवान— "करो ना!"
यूवी ने अपनी आँखें बंद की और खड़ी हो गई। युवान जल्दी से वहाँ से साइड में हुआ और यूवी को पकड़कर एक चेयर पर बिठा दिया। यूवी के बैठते ही युवान ने अपनी पॉकेट से एक बॉक्स निकाला और उसे खोला तो उसके चेहरे पर स्माइल आ गई। उसमें बहुत खूबसूरत पायल थीं जो युवान ने यूवी के पैरों में पहना दीं।
यूवी— "अब खोलूँ ना आँखें?"
युवान— "हाँ।" युवान इतना बोल खड़ा हो गया।
यूवी ने अपनी आँखें खोलकर देखा तो युवान ने उसके पैरों में बहुत खूबसूरत डायमंड मोती वाली पायल पहनाई हुई थीं। उसे देखकर यूवी के चेहरे पर स्माइल आ गई। उसने अपने पैरों को आगे-पीछे किया और युवान की ओर देखकर कहा, "ये तो बहुत खूबसूरत हैं।"
"तुम्हारे लिए छोटा सा गिफ्ट था... बर्थडे का... हैप्पी बर्थडे, बेटा!" युवान ने यूवी को देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
"थैंक यू युवान... ये सच में बहुत खूबसूरत हैं।" यूवी ने एक नज़र युवान को देखा और अपनी पायल को देखकर कहा।
"एक और सरप्राइज़ है तुम्हारे लिए।" इतना बोल युवान तुरंत नीचे घुटनों के बल बैठ गया और अपने कोट की पॉकेट से एक अंगूठी निकालकर यूवी की ओर आगे हाथ करके कहा,
"तुम्हारी जैसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। कभी मुझसे किसी चीज की डिमांड नहीं करती, ना कभी महंगे तोहफ़ों की शौक़ीन हो। तुम्हें पहली बार देखकर ही प्यार हो गया था। तुम्हारी आँखों में सच में जादू है। हमारे प्यार के रिश्ते को एक साल से भी ज़्यादा हो गया है और मैं इसे अब आगे बढ़ाना चाहता हूँ। मैं हमारे रिश्ते को एक नाम देना चाहता हूँ। तुम्हारे साथ मेरे अब तक के सभी रिश्ते, दिन, रात सब खूबसूरत रहे हैं, लेकिन मैं अब हमारे रिश्ते को एक नाम देकर तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ। तुमसे दूर नहीं रह पाता मैं... क्या तुम मिसेज़ युवान सिंह बनोगी?"
यूवी हाथ बाँधे खड़ी युवान को कब से देख रही थी। उसने युवान को देखा और अपनी एक उंगली को अपने गाल पर रखकर धीरे से कहा, "सोच के बताएँगे।"
युवान ने जैसे ही सुना उसके चेहरे पर स्माइल आ गई। वो खड़ा हुआ और यूवी के चेहरे को ऊपर करके धीरे से कहा, "अब तुम्हें सोचने की ज़रूरत भी पड़ती है।"
यूवी— उसके गले में अपनी बाह डालकर—"आप के मामले में ये यूवी कुछ नहीं सोचती। मुझे मिसेज़ युवानिका युवान सिंह बनने में कोई प्रॉब्लम नहीं है।"
युवान ने जैसे ही सुना, उसके हाथ को पकड़कर उसकी उंगली में अंगूठी पहना दी। यूवी ने जैसे ही अंगूठी देखी, उसकी आँखें फिर खुली रह गईं। युवान ने यूवी को अपनी ओर घुमाकर लगाया और उसके गले में कुछ पहनाने लगा।
यूवी ने जैसे ही गर्दन नीचे करके उस पेंडेंट को देखा तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने तुरंत अपने हाथों से उसे उतारना चाहा तो युवान ने उसका हाथ पकड़ लिया।
युवान— "उतार क्यों रही हो? पसंद नहीं आया क्या यूवी?"
यूवी— "नहीं युवान, बहुत खूबसूरत है, लेकिन ये बहुत महंगा है, मैं इतना महंगा गिफ्ट नहीं ले सकती।"
युवान— उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर—"कुछ महंगा नहीं है, तुमसे ज़्यादा ये कीमती नहीं है... बेटा!"
यूवी— "नहीं युवान, हम मिडिल क्लास लोग हैं, हमारे पास ये सब अफोर्ड नहीं लगता और मुझे तो ये सब बिलकुल नहीं चाहिए। तुमने ये सब लाने की क्या ज़रूरत थी? ये सब डायमंड के हैं, मतलब जानते हैं आप? ये सब कितने के होंगे? इतना खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी युवान? आप मुझे कहीं रोड पर भी प्रपोज करते ना तो भी मैं इतना ही खुश होती। इतना खर्चा वो भी मुझ पर युवान! कितनी मेहनत करके तुम काम करते हो, तो सोचो तुमने ये सब मुझ पर! युवान, कितनी सैलरी से लिया है ये सब? देखो युवान, मुझे इन सब की कोई ज़रूरत नहीं है।" युवान का हाथ पकड़कर—"बस तुम हमेशा मेरे साथ रहना वही काफी है, नहीं चाहिए मुझे ये सब।" इतना बोल यूवी ने जैसे ही वापस उस पेंडेंट को उतारना चाहा, तभी युवान ने उसका हाथ पकड़ लिया।
क्रमशः
आप लोगों से बोलना नहीं बोलना बराबर है... लेकिन क्या करूँ मज़बूरी है। बाकी साथ देने के लिए थैंक यू।
रिया पराशर
युवान ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा, "कुछ महँगा नहीं है, तुमसे ज़्यादा ये कीमती नहीं है...!"
यूवी ने कहा, "नहीं युवान, हम मिडिल क्लास लोग हैं, हमारे पास ये सब अच्छा नहीं लगता, और मुझे तो ये सब बिल्कुल नहीं चाहिए। तुमने ये सब लाने की क्या ज़रूरत थी? ये सब डायमंड के हैं, मतलब जानते हैं आप? ये सब कितने का होगा? इतना खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी युवान? आप मुझे कहीं रोड पर भी प्रपोज़ करते ना, तो भी मैं इतना ही खुश होती! इतना खर्चा, वो भी मुझ पर युवान! कितनी मेहनत करके तुम काम करते हो, तो सोचो तुमने ये सब मुझ पर! युवान, कितनी सैलरी से लिया है ये सब... देखो युवान, मुझे इन सब की कोई ज़रूरत नहीं है।" यूवी ने युवान का हाथ पकड़कर कहा, "बस तुम हमेशा मेरे साथ रहना, वही काफी है। नहीं चाहिए मुझे ये सब।" इतना बोल यूवी ने जैसे ही वापस उस पैकेट को उतारना चाहा, तभी युवान ने उसका हाथ पकड़ लिया।
अब आगे
युवान ने कहा, "युवा... मैं तुम्हारे लिए इतना भी नहीं कर सकता अब... ये तुम्हारे लिए ज़्यादा नहीं है। इतना तो मैं तुम्हें दे ही सकता हूँ ना! एक साल में पहली बार मैं तुम्हें गिफ्ट दे रहा हूँ! और रही बात पैसों की तो तुम टेंशन मत लो, मैंने काफी टाइम से जोड़े थे कि तुम्हें गिफ्ट दे सकूँ!"
यूवी ने कहा, "वो बात नहीं है... लेकिन फिर भी... इतना महँगा..."
युवान ने उसके चेहरे को पकड़कर आँखों में देखते हुए कहा, "मेरी खुशी के लिए रख लो और हमेशा अपने पास रखना। ये तीनों चीज़ें हमारे प्यार की निशानी हैं!"
यूवी ने कहा, "हम्मम्म..." इतना बोल यूवी युवान के सीने से लग गई। "मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल है ये युवान! इतनी खुशी मुझे आज तक नहीं हुई, राठौर कंस्ट्रक्शन में जॉब मिलने से भी नहीं हुई थी जितनी खुशी आज हो रही है... लेकिन मेरी वजह से तुम्हारे इतने पैसे वेस्ट हो गए!"
युवान ने यूवी को खुद से दूर करके कहा, "तुम्हें एक बार समझ नहीं आता युवा! तुम्हारे लिए मेरी खुशी से ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट कुछ नहीं है!"
यूवी ने धीरे से, फिर से शर्माते हुए, युवान के पीछे जाकर उसकी पीठ से सीने पर हाथ लपेटे और उसकी पीठ पर अपना सर रखकर कहा, "सारी दुनिया में सबसे पहले आप आते हैं मेरे लिए। आप के लिए यूवी साँस लेना भी छोड़ सकती है, लेकिन ऐसा कोई काम नहीं करेगी। मुझे आपके गिफ्ट से कोई प्रॉब्लम नहीं है, बस वो तो मैंने यूँ ही बोल दिया था... थैंक यू युवान, ये सब बहुत अच्छा है।" "लाइफ में पहली बार ऐसे खुशियाँ मिल रही हैं, ना तो बस ऐसे रिएक्ट करूँ समझ नहीं आ रहा था!"
युवान ने यूवी के हाथों को पकड़कर अपने आगे करते हुए कहा, "मेरे लिए साँस छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। तुम तो मेरा बेस्ट फ़्रेंड हो ना! तो अकेले जीना आता है ना? कभी मैं तुमसे दूर चला जाऊँगा तो तुम रह लोगी ना मेरे बिना!"
यूवी ने युवान के मुँह पर हाथ रखकर कहा, "युवान, ये आप क्या बोल रहे हैं? अभी हमारा रिश्ता शुरू भी नहीं हुआ और आप अभी से दूर जाने की बात कर रहे हो!" यूवी की आँखों में हल्की नमी आ चुकी थी। "युवान, अगर आप मुझसे जिस पल भी दूर हुए ना, तो ये आपकी युवी वहीं मर जाएगी युवान! अगर तुम्हें ये सब बातें करनी हैं ना युवान, तो प्लीज़ मुझे यहाँ से जाने दो!"
युवान ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "मैं मज़ाक कर रहा था पागल, तुम्हारे बिना मैं भी नहीं रह सकता। तुम धड़कन हो मेरी!"
यूवी ने कहा, "तो ऐसी बातें करना ज़रूरी था? कितनी आसानी से बोल दिया आपने ये कि 'आप मज़ाक कर रहे थे', पर आपको पता है, आपके दो मिनट के बोले गए शब्दों से हज़ार बार मर चुकी थी मैं इतनी सी देर में, आपसे दूर जाने का ख्याल भी जान लेता है मेरी! तो प्लीज़ आज से ये फ़ालतू की बातें करना बंद कीजिए!"
युवान ने कहा, "सॉरी बाबा! माफ़ कर दो, कहीं नहीं जा रहा मैं।"
यूवी ने कहा, "मुझे नहीं भरोसा आप पर, वादा कीजिए कि कहीं नहीं जाएँगे मुझे छोड़कर।" इतना बोल यूवी ने अपना हाथ आगे कर दिया।
युवान अभी भी खड़ा यूवी को देख रहा था, उसके चेहरे के भाव ही बदल गए थे।
यूवी ने कहा, "कीजिए ना युवान वादा... युवान... युवान... क्या हुआ? सुन रहे हैं ना आप..." यूवी की आवाज़ युवान को सुनाई नहीं दे रही थी शायद। यूवी युवान को हिलाते हुए बोली, "क्या हुआ?"
युवान ने कहा, "ह... ह... हाँ... बोलो!"
यूवी ने कहा, "कब से आवाज़ दे रही हूँ युवान, कीजिए वादा!"
युवान ने यूवी के हाथ पर हाथ रखकर कहा, "वादा करता हूँ कभी तुम्हें कोई तकलीफ नहीं आने दूँगा। तुमसे पहले अगर कोई मुसीबत आएगी तो उसे मुझसे गुज़रकर जाना होगा... वादा करता हूँ कभी साथ नहीं छोड़ूँगा!"
यूवी ने कहा, "थैंक यू।" इतना बोल यूवी फिर से युवान के गले लग गई, लेकिन युवान अभी भी कुछ सोच रहा था, उसके चेहरे के भाव एकदम सख्त हो गए।
यूवी ने कहा, "अब घर चल रहे हैं ना हम?"
युवान ने यूवी को खुद से दूर करते हुए कहा, "बिल्कुल नहीं! अभी मेरा काम पूरा नहीं हुआ।" इतना बोल युवान ने यूवी का हाथ पकड़ा और उसे वहीं पास में लगी टेबल पर ले आया जहाँ एक बहुत बड़ा सा केक रखा हुआ था। उस केक के बगल में गुलाब का बहुत बड़ा बुके रखा हुआ था। युवान ने उसे उठाया और यूवी की ओर बढ़ाकर कहा, "तुम्हारे लिए ये गुलाब... जानता हूँ तुम इससे भी ज़्यादा खूबसूरत हो मेरे लिए!"
यूवी मुस्कुराते हुए अभी भी युवान को देख रही थी। उसने केक को देखा और मुँह बनाते हुए कहा, "हमें इसे कब काटेंगे युवान? वरना ये खराब हो जाएगा!"
युवान के चेहरे पर भी यूवी के ऐसे बोलने से स्माइल आ गई थी। उसने यूवी के हाथ में चाकू दिया और अपने आगे करके दोनों ने एक साथ केक काटा। यूवी ने युवान को खिलाया और युवान ने यूवी को खिलाया और थोड़ा सा उसके गाल पर भी लगा दिया।
यूवी ने कहा, "आह! ये क्या किया आपने युवान!"
युवान मुस्कुराते हुए बोला, "ओह सॉरी, मैं साफ़ कर देता हूँ।" इतना बोल युवान हल्का सा यूवी की ओर झुका और अपने होंठ उसके गाल पर रखकर किस कर दिया।
यूवी को जैसे ही किस का एहसास हुआ तो उसने अपनी साड़ी की पल्लू को कसकर पकड़ना शुरू कर दिया। उसकी तो शर्म के मारे हालत ही खराब हो गई।
युवान ने उसके चेहरे को ऊँचा करके कहा, "तुम अभी भी शर्मा रही हो? एक किस में तुम्हारी ये हालत है युवा... तो सोचो शादी के बाद तुम्हारा क्या होगा!"
यूवी ने युवान को हल्का सा धक्का देते हुए कहा, "आप भी ना युवान!"
युवान ने यूवी का हाथ पकड़ा और अपने करीब ले आया और उसके बालों को अपने हाथों से कान के पीछे करने लगा। यूवी ने युवान के ऐसे प्यार से छूने की वजह से अपनी पलकें नीचे झुका ली और अपने हाथों को युवान के सीने पर रख लिए।
क्रमशः
युवान ने यूवी के चेहरे को ऊँचा करके कहा, "तुम अभी भी शर्मा रही हो? इतनी किस स्थिति में तुम हो, यूवी! सोचो शादी के बाद तुम्हारा क्या होगा!"
यूवी ने युवान को हल्का सा धक्का देते हुए कहा, "आप भी ना, युवान!"
युवान ने यूवी का हाथ पकड़ा और अपने करीब खींच लिया। उसने उसके बालों को अपने हाथों से कान के पीछे करने लगा। यूवी ने युवान के इस तरह छूने की वजह से अपनी पलकें झुका लीं और अपने हाथ युवान के सीने पर रख लिए।
"आज तो एक किस मिल सकती है ना?" किस का नाम सुनते ही यूवी के दिल की धड़कनें तेज़ चलने लगीं, जिसे युवान आराम से सुन सकता था।
यूवी के कोई जवाब ना देने की वजह से युवान के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपनी दो उंगलियाँ हिलाकर कुछ इशारा किया। तभी दोनों पर गुलाब की पंखुड़ियों की बौछार होने लगी। यूवी पर जैसे ही गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरने लगीं, उसने युवान को देखा और उसे हल्का सा दूर हो गई। उसने अपने दोनों हाथ फैला लिए। यूवी उन पंखुड़ियों के साथ खेल रही थी और युवान टेबल से टेक लगाकर अपनी जेब में हाथ डाले खड़ा यूवी को देखकर मुस्कुरा रहा था। तभी युवान ने वापस कुछ इशारा किया और इस बार म्यूज़िक ऑन हो गया।
म्यूज़िक के शोर में यूवी अभी भी मगन थी। उसे मालूम ही नहीं हुआ कि कब युवान ने अपने दोनों हाथ उसकी कमर से पेट पर लपेट लिए।
"....युवान....." यूवी रुकती हुई बोली।
"क्या हुआ?" युवान ने इतना कहा और सामने देखने लगा।
यूवी ने युवान के सीने से लगते हुए कहा, "अब इतनी खुशियाँ भी मत डालो मेरी झोली में, युवान। मैं समेट ही नहीं पाऊँगी और किसी की नज़र लग जाएगी!"
युवान ने यूवी के गाल को छूते हुए कहा, "जब तक ये युवान साथ है ना, तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे, कुछ भी नहीं!"
यूवी ने कहा, "जानती हूँ, तभी तो नहीं डरती, तभी तो एक पल में आपको अपना अतीत बता दिया। तभी तो आपसे सब शेयर करती हूँ। जानती हूँ आप मुझे और खुद को कभी कुछ नहीं होने दोगे!"
युवान ने कहा, "तुम मेरे लिए सबसे पहले हो। तुम्हारे बिना युवान अधूरा है। तुम्हें मैं कभी कुछ नहीं होने दूँगा, कभी भी नहीं। अगर तुम्हारी जान बचाने के लिए भी मुझे तुमसे दूर जाना पड़ा ना, तो भी मैं खुशी-खुशी चला जाऊँगा!"
यूवी युवान से दूर होते हुए बोली, "कर दी ना फिर से वही बातें! युवान, आप बार-बार दूर जाने की बात बोलते हैं। इसलिए ही हमारे रिश्ते को नया नाम दे रहे हैं कि शादी करके आप मुझे अकेला छोड़कर चले जाएँगे!"
युवान मुस्कुराते हुए बोला, "यूवी, ये क्या बोल रही हो? मैं ऐसे थोड़े ना बोल रहा हूँ! क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है? क्या इस एक साल के रिश्ते में भरोसा नहीं है?"
यूवी ने कहा, "भरोसा! खुद से भी ज़्यादा है, युवान। साँसें हमारा साथ छोड़ सकती हैं, लेकिन हमें यकीन है आप कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेंगे। लेकिन युवान, डर लगता है हमारी लाइफ में कभी ऐसी कोई प्रॉब्लम ना आए जिससे हमें अलग होना पड़े!"
युवान ने यूवी से नज़रें हटाकर सामने देखते हुए कहा, "ऐसा कभी नहीं होगा यूवी, कभी नहीं!" युवान ने इतना बोलकर यूवी के कंधे पर अपना हाथ रख लिया।
यूवी ने युवान की ओर देखते हुए कहा, "ये दूर जाने की बात बोलते ही आपके चेहरे के भाव बदल जाते हैं। आप इतने बेचैन हो जाते हैं। आप ऐसे तब होते हैं जब बहुत प्रॉब्लम हो, और या तब जब मैं आपकी फैमिली के बारे में पूछ लेती हूँ।" इतना बोलकर यूवी थोड़ा सा आगे आई और उस गार्डन में जमीन पर बैठ गई।
युवान यूवी की सभी बातों को ध्यान से सुन रहा था। उसने अपने चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कान ली और यूवी से कहा, "इतना सा दिमाग है जिसे इतना चलाती हो, सर दर्द नहीं करता क्या?" इतना बोलकर युवान भी यूवी के पास आकर बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख लिया।
यूवी ने कहा, "मेरा दिमाग छोटा नहीं है!"
युवान ने उसकी नाक पर उंगली रखते हुए कहा, "बहुत छोटा तुम्हारा दिमाग है और उससे भी छोटी ये तुम्हारी नाक है, जो हर मामले में सबसे पहले घुसती है!"
यूवी ने कहा, "छोटी है तभी तो नहीं घुसती! मैं तो किसी के मामले में नहीं पड़ती!"
युवान ने कहा, "अरे तो तुमने उस दिन उन लड़कियों को इतना डाँटा था!"
यूवी ने इतनी जल्दी कहा, "क्योंकि वो आपको ताड़ रही थीं ना!" यूवी को अहसास हुआ तो उसने सवालिया नज़रों से युवान की ओर देखा और धीरे से अपनी साड़ी के पल्लू में उंगली फँसाकर कहा, "मैंने तो बस यूँ ही डाँट सुना दिया था!"
युवान ने कहा, "मेरे दिल को इतने जोर से भी मत धड़काओ!"
यूवी ने युवान को देखते हुए कहा, "मैं...मैंने क्या किया?"
युवान ने यूवी की आँखों में देखते हुए कहा, "ये बोलने जैसी हरकतें बंद करो, साड़ी का पल्लू हाथों से ही फाड़ना है क्या!" इतना बोलकर युवान यूवी की आँखों में देखते हुए उसकी ओर झुकने लगा। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। जैसे-जैसे युवान उसके ऊपर झुक रहा था, यूवी भी पीछे की ओर झुक रही थी। युवान के इतने करीब आने से ही यूवी के दिल की धड़कनें फिर से बढ़ गईं। यूवी को पता ही नहीं चला कि कब वह गार्डन में लेट गई, युवान भी उसके चेहरे के पास था, बिल्कुल... उसके यूवी के गाल पर किस...तो यूवी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। युवान ने एक नज़र यूवी को देखा जो आज बेहद खूबसूरत लग रही थी। आज युवान अपना सारा कंट्रोल खो रहा था। उसने धीरे से यूवी की आँखों पर किस किया और फिर सर पर। जैसे ही युवान यूवी के होंठों की ओर झुकने को हुआ, यूवी ने अपना हाथ युवान के मुँह पर रख दिया और उसकी आँखों में देखते हुए अपनी गर्दन को ना मँह हिला दिया।
युवान की नज़रें यूवी की नज़रों से मिलीं तो यूवी की आँखों में एक अलग ही घबराहट थी। युवान ने ध्यान से उसी आँखों को देखा तो वह तुरंत यूवी से दूर हो गया और उसकी ओर पीठ करके खड़ा हो गया। "सॉरी यूवी, मुझे ऐसे अचानक..."
यूवी ने युवान के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा, "कोई बात नहीं, युवान!"
युवान ने कहा, "हम्मम..." इतना बोलकर युवान वापस चाँद को देखने लगा।
यूवी ने युवान को ऐसे देखकर फिर से अजीब लगा तो उसने धीरे से युवान का हाथ पकड़कर सामने देखते हुए कहा, "ये चाँद कितना खूबसूरत लग रहा है ना, बिल्कुल हमारी तरह!"
युवान ने कहा, "सिर्फ़ उसका उजाला, बाकी उस पर दाग है और मेरी यूवी में कोई कमी या कोई दाग नहीं है!"
यूवी ने कहा, "कैसे नहीं है युवान, मुझ पर एक इतना बड़ा दाग लगा हुआ है।"
युवान ने कहा, "यूवी...फ़ालतू बात नहीं!"
यूवी ने युवान का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, "मुझे बहुत तेज भूख लगी है!"
युवान ने उसके चेहरे पर हाथ रखते हुए कहा, "पहले ही बोल देती होती! आ जाओ, मैं डिनर लगवाता हूँ!"
यूवी ने कहा, "हम यहीं डिनर करेंगे!"
युवान मुस्कुराते हुए बोला, "बिल्कुल! तुम पाँच मिनट बैठो, मैं अभी आया!" इतना बोलकर युवान वहाँ से चला गया।
यूवी ने खुद से कहा, "तुम्हें सब मालूम है मेरे बारे में, युवान। फिर भी तुम मुझे अपनाने को तैयार हो, लेकिन अगर तुम्हारी जगह कोई और होता ना, तो वो इंसान मुझे कभी नहीं अपनाता!"
थोड़ी देर में युवान आ गया। उसके कुछ देर बाद ही एक वेटर एक ट्रॉली लिए आया और टेबल पर डिनर रखकर चला गया।
यूवी ने टेबल के पास जाकर कहा, "वाह युवान! खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है!"
युवान उसके पास आकर एक चेयर आगे करके बोला, "यूवी, बैठो और जो मन करे वो खा लो!"
यूवी ने कहा, "वेरी फ़नी है युवान! आप बोल तो ऐसे रहे हैं जैसे ये सारा खाना मेरा फेवरेट हो!"
युवान दूसरी साइड आकर चेयर पर बैठते हुए बोला, "वो तो तुम देखो..." इतना बोलकर युवान ने एक गिलास पानी लिया और पीने लगा।
यूवी ने जैसे ही एक बाउल से ढक्कन हटाया तो उसने उसमें पनीर की सब्ज़ी दिखाई दी। यूवी ने फिर से एक और बर्तन में देखा, ऐसे करके उसने सभी बर्तनों में देखा तो सारा खाना यूवी की पसंद का था।
यूवी ने कहा, "युवान, ये सब हमारा फेवरेट है!"
युवान ने एक कटोरी में रसमलाई देते हुए कहा, "ये खाओ!"
यूवी ने एक बाइट जैसे ही खाने को मुँह में डाला कि उसकी नज़र युवान पर गई जो उसे देखते हुए मुस्कुरा रहा था।
यूवी ने कहा, "पहले आप खाइए!"
युवान ने कहा, "तुम खाओ ना, मैं खा लूँगा!"
यूवी ने कहा, "नहीं, साथ में ही खाते हैं ना।" इतना बोलकर यूवी टेबल से उठी और युवान के बगल में चेयर रखकर बैठ गई और अपने हाथों से पहले युवान को खिलाया और फिर खुद खाने लगी।
युवान ने भी एक बाइट उसे खिला दिया था कि तभी युवान के पास किसी का फ़ोन आया तो युवान ने फ़ोन को वहीं कान में लगा लिया और यूवी को चुप होने का इशारा कर दिया। यूवी अपने आप में मस्त होकर खाना खा रही थी। युवान की पूरी नज़र यूवी पर ही थी। यूवी ने एक नज़र युवान को देखा जो कि खाने को छोड़कर फ़ोन पर बात कर रहा था, तो यूवी ने अपने हाथों से युवान को खिलाना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में दोनों ने खाना खाया और वहाँ से बाहर जाने लगे कि तभी अचानक यूवी का पैर मुड़ गया, लेकिन गिरती उससे पहले ही युवान ने उसे अपने हाथों से पकड़ लिया और सही से खड़ा करके कहा,
युवान ने कहा, "तुम ठीक हो ना यूवी?"
यूवी वहीं खड़ी हुई थी। उसने कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ!"
इतना बोलकर यूवी एक कदम ही आगे बढ़ी थी कि अचानक ही रुक गई। उसने आँखें बड़ी करके देखा और खुद से धीरे से कहा, "इसे भी अभी होना था।"
युवान यूवी से आगे आ गया था, लेकिन उसने अपने बगल में देखा तो यूवी नहीं थी। उसने अपनी गर्दन पीछे की ओर वापस यूवी के पास आकर कहा, "क्या हुआ? तुम यहाँ ऐसे क्यों खड़ी हो? चलो अब रात हो गई।"
युवान ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "चलो भी, यूवी। बोलने जैसी हरकतें मत करो!"
यूवी ने कहा, "मैं नहीं चल सकती!"
युवान ने पूछा, "क्यों? क्या हुआ?"
यूवी ने नीचे देखते हुए कहा, "मेरी साड़ी खुल गई।" यूवी ने ये शब्द इतने मासूमियत से कहा था कि युवान के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
युवान ने कहा, "तो तुम ठीक कर लो, मैं इधर घूम जाता हूँ!"
यूवी ने कहा, "घूमने की बात नहीं है, मुझे ये पहनना नहीं आता, ये तो प्रीत ने पहनाई थी।"
युवान ने कहा, "तो तुम्हें नहीं पहनना था ना!"
यूवी ने कहा, "आपने इतने ज़ोर से दिया था ना!"
युवान ने कहा, "अरे रुको।" इतना बोलकर युवान यूवी के पास आया और उसके कंधे से पिन खोलकर नीचे के पेट्स को अपने हाथों से थोड़ा बहुत सही करके बनाया और उस पर पिन लगा दी और उसे यूवी को देकर कहा, "अब इसे पहन लो।"
यूवी ने पेट्स ली और उसे सही से डाल लिया, लेकिन उसका पेट साड़ी की वजह से हल्का सा फूल गया था।
यूवी ने कहा, "युवान, ये तो देखो कैसा लग रहा है!"
युवान ने यूवी को देखकर कहा, "अभी चलो कार में बैठ जाना। उसके बाद घर के बाहर ही उतरोगी ना, तो ऐसे कोई नहीं देखेगा!"
यूवी अभी भी कभी खुद को तो कभी साड़ी को देख रही थी। युवान ने काफी टाइम यूवी को देखा और आगे बढ़कर उसे गोद में उठा लिया और कार के पास लेकर कार में बिठा दिया।
थोड़ी ही देर में युवान ने यूवी को उसके घर के बाहर छोड़ दिया था। रात के दो बज रहे थे, गली की सड़क एकदम खाली और सुनसान थी। युवान ने वापस यूवी को गोद में उठाया और उसके घर के बाहर आ गया, लेकिन कोई था जो इन दोनों पर अपनी नज़रें बराबर बनाए हुए था।
यूवी ने प्रीत को बहुत कॉल किए, लेकिन काफी देर बाद प्रीत ने दरवाज़ा खोला तो युवान और यूवी दोनों अंदर आ गए। यूवी आकर सीधा सोफ़े पर बैठ गई।
युवान ने कहा, "प्रीत, गेट लॉक कर लो!"
यूवी खड़ी होकर बोली, "तू जा प्रीत, सो जा। मैं लॉक कर लूँगी।" यूवी के बोलते ही प्रीत अपने रूम में चली गई।
यूवी ने कहा, "युवान, रात बहुत हो गई है, रुक जाओ यहीं। इतना लेट जाना अच्छा नहीं है ना!"
युवान ने यूवी के चेहरे को अपने हाथ में लेकर कहा, "डॉन्ट वरी, कुछ नहीं होगा। थोड़ी देर में पहुँच जाऊँगा ना मैं।" इतना बोलकर युवान ने यूवी के माथे पर किस किया तो यूवी तुरंत युवान के सीने से लग गई।
युवान ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा, "चलो, आ जाओ। लॉक कर लो घर को।"
यूवी और युवान दोनों बाहर आ गए थे। यूवी ने दोनों हाथ गेट पर रख हुए थे। युवान पहुँचकर फ़ोन करने लगा।
युवान ने पूछा, "तब तक जगती रहोगी?"
यूवी ने कहा, "अगर कॉल नहीं किया ना, तो नींद नहीं आएगी।"
युवान ने कहा, "कर दूँगा। गेट लगाओ, जाओ।" इतना बोलकर यूवी ने गेट लगाया तो युवान वहाँ से चला गया।
यूवी भी रूम में आ गई थी। उसने डेस चेक की और थोड़ी देर बेड पर बैठ गई। काफी टाइम हो गया था, तीन बजने वाले थे, लेकिन युवान ने फ़ोन नहीं किया था।
यूवी ने फ़ोन देखा और युवान को फ़ोन किया तो उसका फ़ोन ऑफ़ आ रहा था। ये करके-करके ही यूवी की अचानक आँख लग गई।
क्रमशः
अगली सुबह
"जब युवी की आँख खुली, तो उसने सबसे पहले अपना फ़ोन देखा जिसमें युवान का कोई कॉल नहीं था।"
"जैसे ही युवी ने फ़ोन देखा, वह उठकर बैठ गई और युवान को फ़ोन लगा दिया।"
युवान का फ़ोन ऑफ आ रहा था, लेकिन युवी की चिंता हद से ज़्यादा बढ़ गई थी। उसने अपने पैर जल्दी से जमीन पर रखे और कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई। जल्दी से नहाकर आई और अपने फ़ोन से वापस युवान को फ़ोन लगाया तो उसका फ़ोन अभी भी बंद आ रहा था। इस बार युवी ने कार्तिक को कॉल किया।
कार्तिक अपने बेड पर आराम से सो रहा था। उसने अपने फ़ोन की आवाज़ सुनी, उठाकर देखा तो युवी का नाम देखकर उसने फ़ोन उठाया और कान के पास लाकर कहा,
"कार्तिक— हाँ युवी, बोलो।"
"युवी— अपने रूम की खिड़की के पास खड़ी होकर कार्तिक भैया, युवान कहाँ हैं? उनका फ़ोन ऑफ आ रहा है।"
"कार्तिक— रूम में होगा। मैं सोया था, तब तक तो आया नहीं था। अभी मैं तुम्हें थोड़ी देर में देखकर बताता हूँ, वह तुमसे बात कर लेगा।"
"युवी— ओके भैया, थैंक यू।"
"कार्तिक— इट्स ओके, बताता हूँ थोड़ी देर में..."
इतना बोलकर कार्तिक ने फ़ोन साइड में रखा और वापस सो गया।
युवी ने भी फ़ोन बेड पर रखकर बाहर आई तो देखा प्रीत नाश्ता बना रही थी।
"युवी— हाय हाय प्रीत! तू रहने दे, मैं बना लूँगी ना।"
प्रीत कढ़ाई में कुछ बना रही थी। उसने गैस बंद की और युवी की ओर देखकर कहा,
"रात को इतना लेट आई थी, तो मैंने सोचा तू लेट तक सोएगी, तो सोचा कि बना दूँ। खैर, बता ना, युवान ने क्या सरप्राइज़ दिया?"
"युवी— अपना पेंडेंट, रिंग और पायल दिखाते हुए... देख, उसने मुझे कितना महँगा गिफ्ट दिया है प्रीत! तुझे मालूम है, सब डायमंड का है, बहुत महँगा है। पता नहीं कितनी सैलरी इन सब में और मुझ पर बर्बाद की है।"
किचन से बर्तन लाकर डाइनिंग टेबल पर रखते हुए।
"प्रीत— ओहो! तेरे को क्या लगता है? मुझे तो लगता है उसने तुझे शादी के लिए भी ज़रूर बोला होगा।"
"युवी— हम्मम! उसने मुझे एकदम फ़िल्मी टाइप में प्रपोज़ किया है और सजावट...हाय राम! मैंने तो आज तक नहीं देखी। तुझे मालूम है कल उसने मुझे..."
युवी ने प्रीत को देखा और चुपचाप टेबल पर बैठ गई।
"चल, नाश्ता कर ले।"
"प्रीत— क्या हुआ? युवान ने किस कर दिया ?"
"युवी— चुप कर ना और नाश्ता कर! एक तो पहले से ही युवान का फ़ोन ऑफ आ रहा है, दूसरा मुझे कोई जॉब मिल नहीं रही, यार! और तीसरा, मुझे आज तो कैसे भी करके कोई न कोई जॉब ढूंढनी पड़ेगी।"
"प्रीत— तू टेंशन ना ले, वाहेगुरु है ना! वो सबकी सुनते हैं, तेरी भी ज़रूर सुनेंगे।"
"युवी— हम्मम! सबसे पहले बाबा के पास जाकर आती हूँ, फिर कोई जॉब के लिए जाऊँगी।"
"प्रीत— ठीक है। मैं रेडी होकर ऑफिस जा रही हूँ। ज़्यादा परेशान मत होना, मैं हूँ ना! अगर जॉब नहीं भी मिलती है तो डोंट वरी, हम मैनेज कर लेंगे ना!"
"युवी— वो तो ठीक है प्रीत, पर तुम्हें मालूम है, मुझे कहीं भी जॉब नहीं मिल रही।"
"प्रीत— मुझे भी यही समझ नहीं आ रहा। और तो और, जब से तू उस राठौर कंस्ट्रक्शन से निकली है ना, तुम्हें कहीं भी जॉब नहीं मिल रही।"
"युवी— वही तो लग रहा है जैसे कोई जानकर मुझे जॉब नहीं मिलने दे रहा।"
"प्रीत— कोई ना! चल, तू जा, मैं भी जा रही हूँ। और हाँ, बिना वजह किसी के लफ़ड़े में मत पड़ना और उस अमर से दूर रहना। अगर वो कुछ कहे तो चीज़ मेरी माँ शांति से सुन लेना...बाद में देख लेंगे उसे हम।"
थोड़ी देर में दोनों घर से बाहर आ गई थीं। प्रीत खड़ी हुई थी और युवी घर का लॉक कर रही थी कि तभी दोनों के कानों में अमर की आवाज़ आई।
"अमर— मैं छोड़ दूँ, तुम कहो तो।"
"युवी— उसकी ओर घूमकर... पहला तो मैं तुमसे कहना नहीं चाहूँगी, और दूसरा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है जो अब हमें छोड़ने की नौकरी करोगे।"
"अमर— मुस्कुराते हुए... तेरे यही तेवर मुझे बड़े भाते हैं! तेरे ये नखरे तुझे अपना बनाने पर मुझे बड़े मजबूर करते हैं..."
इतना बोल अमर जैसे ही युवी के फ़ेस को छूने के लिए हाथ बढ़ाया, कि तभी युवी ने जोर से उसे देखकर कहा,
"युवी— टच भी मत करना! वरना कसम बजरंग बली की! अब तक तुम हमारे मारपीट के किस्से सुन रहे हो, लेकिन आज उसका शिकार तुम खुद हो जाओगे।"
"अमर— तुम्हें तो मैं अपना बनाकर रहूँगा। जितना उड़ना है ना उड़ लो, बस कुछ दिन और, फिर तुम मेरे दिल, दिमाग़, घर और मेरे बिस्तर सब पर होगी। बहुत घमंड है ना तुझे अपने उस आशिक पर... देखना, तेरा साथ वो कभी नहीं देगा।"
"युवी— चुप एकदम! वरना यहीं मार-मार कर जिंदा गाड़ दूँगी।"
"अमर— देखते हैं..."
इतना बोल अमर वहाँ से चला गया। युवी ने अमर को घूरा और प्रीत का हाथ पकड़कर वहाँ से साइड में गली के बाहर आ गई और ऑटो में बैठ गई। युवी ने सीट से अपना सर लगाया और अपनी आँखें बंद कर लीं। प्रीत ने उसे देखा और अपना फ़ेस बाहर कर लिया। तभी उसकी आँखों में एक हल्का सा आँसू आ गया।
"युवी— प्रीत...क्या हुआ?"
प्रीत ने अपनी आँख साफ़ की और अपना चेहरा युवी की ओर किया तो देखा युवी अभी भी आँखें बंद करके बैठी हुई थी।
"प्रीत— नहीं, कुछ नहीं हुआ। चल, मंदिर आ गया।"
इतना बोल दोनों ऑटो से बाहर आ गईं। युवी ने प्रीत का हाथ पकड़ा और अंदर चली गई। यह जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बजरंग बली का मंदिर था। युवी ने मंदिर में आकर हाथ जोड़े और मन में बोलने लगी,
"युवी— मुझे कुछ नहीं चाहिए बाबा, बस युवान को कभी कुछ ना हो। अमर से तो हम निपट लेंगे, लेकिन युवान और मेरे रिश्ते को बनाए रखना बाबा।"
थोड़ी देर में दोनों नीचे आ गईं कि तभी युवी का पैर मुड़ गया तो वह वहीं साइड में एक सीढ़ी पर बैठ गई।
"प्रीत— क्या हुआ?"
"युवी— कुछ नहीं हुआ, हल्की सी चोट है, मिट जाएगी।"
"नहीं मिटेगी, नहीं मिटेगी। अभी तो चोट लगना बाकी है, सब कुछ पलटेगा, ज़िंदगी बदल जाएगी। जिसके साथ खुश रहने के लिए इतना कुछ कर रही है, वही तेरा कभी नहीं होगा, तू उसे कभी नहीं मिलेगी। झोली में तेरे दर्द होगा और तुझे पर साथ तेरा देगा वो..."
"प्रीत— क्या बोल रहे हो बाबा?"
"बाबा— खुश रहो..."
इतना बोल वह आदमी, जो एक साधु था, वहाँ से चला गया।
"युवी— ये सब क्या बोलकर गए हैं? मैंने अभी तो इतना कुछ माँगा है बाबा से युवान के लिए और ये पता नहीं क्या-क्या बोलकर गए हैं।"
"प्रीत— तू टेंशन मत ले, इनका तो काम ही है ये सब बोलने का।"
"युवी— हम्मम! चल, तू जा ऑफिस में। यहाँ से कोई जॉब के लिए चली जाऊँगी।"
"प्रीत— पक्का ना? तू कोई टेंशन ना लेगी?"
"युवी— अरे मेरी माँ, कुछ भी नहीं ले रही।"
"प्रीत— ठीक है, बाय..."
इतना बोल प्रीत वहाँ से ऑटो लेकर अपने ऑफिस के लिए निकल गई थी।
क्रमशः...
यूवी— ये सब बोल कर गए हैं, मैंने अभी तो इतना कुछ माँगा है बाबा से युवान के लिए और ये पता नहीं क्या बोल कर गए हैं!
प्रीत— तू टेंशन मत ले, इनका तो काम ही है ये सब बोलने का।
यूवी— हम्म। चल, तू जा ऑफिस। मैं यहां से किसी जॉब के लिए चलूँगी।
प्रीत— पक्का ना? तू कोई टेंशन नहीं लेगी?
यूवी— अरे, मेरी माँ कुछ भी नहीं ले रही।
प्रीत— ठीक है, बाय।
इतना बोल प्रीत वहाँ से ऑटो लेकर अपने ऑफिस के लिए निकल गई थी।
यूवी अभी भी वहीं बैठी हुई थी। उसने जल्दी से अपना फ़ोन निकाला और युवान को फ़ोन किया, जिसका फ़ोन अभी भी ऑफ आ रहा था।
यूवी— ऐसे फ़ोन बंद आ रहा है युवान का... कैसे बात करूँ? हाँ, उसके घर जाऊँ।
तो वही युवान अभी भी अपने बेड पर आराम से सो रहा था। उसने आँखें खोली और टाइम देखा तो सुबह के नौ बज चुके थे। युवान जल्दी से खड़ा हुआ और जल्दी से उठकर वाशरूम में चला गया। जब युवान बाहर आया तो उसने बेड पर अपना फ़ोन देखा, लेकिन उसे अपना फ़ोन वहाँ नहीं मिला। तो उसने साइड टेबल पर अपना फ़ोन देखा जहाँ फ़ोन अभी भी चार्जिंग पर लगा हुआ था। युवान ने फ़ोन देखा तो फ़ोन ऑफ था। युवान ने जैसे ही फ़ोन ऑन किया तो युवान के फ़ोन पर मैसेज बार-बार आ रहे थे। युवान ने तुरंत यूवी को फ़ोन लगा दिया।
युवान— हेलो, यूवी!
यूवी— मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे हुए युवान, आप ठीक हैं ना? मैं कब से फ़ोन कर रही हूँ, आपका फ़ोन ऑफ कैसे आ रहा था?
युवान— अरे बाबा, इतने सवाल एक साथ...? एक-एक के जवाब दूँगा ना! सॉरी यार, मुझे नींद आ रही थी इसलिए मैं फ़ोन करना भूल गया। शायद फ़ोन रात को ही ऑफ हो गया था, और अभी थोड़ी देर पहले सोकर उठा हूँ।
यूवी— कोई बात नहीं। अच्छा, बाय।
युवान— और रुको... कट मत करो... कहाँ हो तुम? इतनी आवाज कैसे आ रही है?
यूवी— मंदिर आई थी, तो यहीं हूँ।
युवान— घर कब तक आओगी?
यूवी— कोई जॉब ढूंढेंगे युवान, कुछ समझ नहीं आ रहा कि जॉब मिल ही नहीं रही। लग रहा है जैसे कोई हमारी जॉब जानबूझकर नहीं लगने दे रहा।
युवान— जो की शर्ट के बटन लगा रहा था। यूवी की बात सुनकर उसके हाथ वहीं रुक गए और चेहरे के भाव बदल गए। "ऐसा कोई क्योंकरेगा यार।"
यूवी— तो हमे जॉब मिल ही नहीं रही... युवान, ऐसे थोड़ा ना होता है!
युवान— कोई बात नहीं यूवी, अगर जॉब नहीं मिल रही तो।
यूवी— अच्छा नहीं लगता। प्रीत कितनी मेहनत कर रही है और मैं हूँ जो उस पर बोझ बन रही हूँ!
युवान— तुम कोई बोझ नहीं हो, समझी ना? डोंट वरी, तुम्हारा सारा खर्चा मैं कर लूँगा। अब तो खुश हो जाओ ना।
यूवी— अब आप पर भी बोझ बन जाऊँ!
युवान— हे भगवान, पागल! तुम मेरी होने वाली वाइफ हो तो तुम बोझ कैसे हुईं!
यूवी— अभी हुई तो नहीं हूँ ना, और ऊपर से वो अमर नाम का... उसने तो अपनी हरकतें हद से भी ज्यादा पार कर दी हैं!
युवान— उसने आज फिर कुछ किया?
यूवी— नहीं, बट फिर भी। अच्छा, देखो मैं शाम को बात करती हूँ... देखो, अभी किसी इंटरव्यू के लिए जाती हूँ।
युवान— रहने दो यूवी, परेशान मत हो, मैं कोशिश करूँगा।
यूवी— नहीं युवान, मुझे खुद कुछ करना है! मैं ढूँढ लूँगी।
युवान— ठीक है... ऑल द बेस्ट। तुम्हें कोई जॉब मिल जाए।
यूवी— हाँ युवान... वैसे भी बहुत जरूरी है उस अमर नाम की बला को हमे हमारी लाइफ से कोसों दूर फेंकना है!
युवान— उसको मैं ही डील कर लूँगा, यूवी तुम बस टेंशन लेना बंद करो... और कहाँ हो अभी?
यूवी— बताया ना!
युवान— है सॉरी, मैं भूल गया। तुम थोड़ी देर वहीं रहो, हम आते हैं वहाँ।
यूवी— अरे नहीं युवान, हम बस जा रहे हैं। जॉब के लिए। आप अपनी कंपनी में जाइए, वरना वो आपका खड़ूस सीईओ बिना वजह जैसे हमें निकाला वैसे आपको ना निकाल दे। जब से उस कंपनी से हटी हूँ ना युवान, तब से नौकरी नहीं मिल रही... बाय!
युवान— पता नहीं क्या हुआ... इतना बोल युवान ने अपना फ़ोन देखा तो उसने यूवी से वापस कहा, "अच्छा यूवी, एक अर्जेंट कॉल है, मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ, ध्यान रखना अपना।"
युवान ने फ़ोन कट किया और अपने फ़ोन पर आ रहे नाम को देखा और फ़ोन उठाकर बात करने लगा। उसने जैसे-जैसे सामने वाले की बात सुनी, उसके हाथों की मुट्ठियाँ भींच गईं।
युवान— देखिए, आप मुझसे बड़ी हैं इसलिए बता रहा हूँ, मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन आप में से कोई बीच में मत आएगा।
इतना बोल युवान ने अपना फ़ोन कट किया और जोर से बेड पर ही पटक कर रूम से बाहर बालकनी में आ गया। उसके चेहरे पर सख्त भाव थे, लेकिन आँखों में एक दर्द और एक अजीब सा भाव था। युवान की आँखें बिना रोए भी गुस्से से लाल हो गई थीं।
कार्तिक— अब क्या हुआ युवान? फिर से उन लोगों ने वही कहा...? तू इसलिए परेशान है ना?
उसके कंधे पर हाथ रखकर।
युवान— इन लोगों को बस एक ही प्रॉब्लम है, कार्तिक। कुछ समझ नहीं आता इनसे। इनकी लाइफ़ से, इनकी सब चीजों से दूर आ गया हूँ फिर भी ये लोग मुझे जीने नहीं दे रहे।
कार्तिक— भूल जा यार, तू दूर रह उनसे। यूवी के बारे में सोच युवान, अगर उसे मालूम हुआ तो...
युवान— अपने फेस के भाव को बदलकर, बोला, ना उसे जॉब कहीं नहीं मिलनी चाहिए। इनफैक्ट उसके बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए।
कार्तिक— हम्म। लेकिन जब उसे मालूम होगा कि तूने उसकी जॉब...
युवान— बीच में ही, उसे पता नहीं लगेगा कभी भी।
कार्तिक— इट विल बी गुड फॉर बोथ ऑफ़ यू अदरवाइज़।
युवान— हम्म। अच्छा, मीटिंग है आज कोई।
कार्तिक— हाँ, चल ना लेट हो जाएँगे।
दोनों थोड़ी देर में वहाँ से ऑफिस चले गए थे। आज युवान की एक मीटिंग थी जो लगभग चार घंटे चली थी। युवान को आज बिलकुल टाइम नहीं मिला। तो वहीं यूवी के पैरों में ऑलरेडी दर्द था। आज उसे एक भी जगह नौकरी नहीं मिली। भूखे पेट होने की वजह से यूवी की हालत ख़राब हो गई थी। उसने ऑटो लिया और घर चली गई।
युवान भी घर के लिए निकल गया था। आज उसका मूड बहुत ख़राब था। वो जैसे ही घर आया उसने चाय पी और लैपटॉप लेकर अपना काम करने लगा।
तो वहीं यूवी आकर सो गई थी। जब प्रीत ने उसे ऐसे देखा तो उसने उसे पूछा क्या हुआ तो उसने मना किया और बोली, "कुछ नहीं, थकान हो रही है और भूख नहीं है। तुम खाकर सो जाना, लगेगी तब मैं खा लूंगी।"
प्रीत— तू ठीक है ना यूवी?
यूवी— हाँ, मेरी माँ, मैं ठीक हूँ। बस थकान हो गई है और सोना है।
प्रीत— ओके, सो जा। कुछ चाहिए हो तो बताना।
इतना बोल प्रीत अपने रूम में चली गई।
तो वही युवान देर रात तक काम करके वहीं सोफ़े पर ही सो गया।
क्रमशः...
अगली सुबह, युवी सो रही थी। प्रीत अपने कमरे से बाहर आई और युवी के कमरे में आई। उसने देखा कि सुबह के आठ बज चुके थे और युवी अभी भी सो रही थी।
"चल युवी, उठ जा फटाफट, जल्दी कर ना यार।" प्रीत ने कहा।
"थोड़ी देर प्रीत… पता नहीं आज तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं लग रही।" युवी ने कहा।
प्रीत ने युवी के सर से ब्लैंकेट हटाकर उसके सर पर हाथ रखकर देखा। "हे भगवान! युवी, तुझे तो फीवर हो गया है!!"
"नहीं, मैं ठीक हूँ।" युवी ने कहा।
"सच? युवी, अगर कुछ अजीब लगे तो बता।" प्रीत ने कहा।
"सच में, मैं ठीक हूँ!!" युवी ने जोर देकर कहा।
"ठीक है, मैं नाश्ता रेडी करती हूँ, तू आ जाना।" इतना बोल प्रीत जाने ही वाली थी कि उसकी नज़र युवी के फ़ोन पर गई जो शायद साइलेंट पर था।
"लगता है युवी, तेरे फ़ोन पर किसी का फ़ोन आया था।" प्रीत ने कहा।
"नींद में ही… उठा ले, जिस किसी का भी हो।" युवी ने कहा।
प्रीत ने जैसे ही फ़ोन हाथ में लिया, उस पर 'युवान' का नाम फ़्लैश हो रहा था। प्रीत ने फ़ोन उठाया और कान के पास लगाकर कहा,
"युवान, युवी सो रही है।"
"इतना लेट तक? वो सो रही है? वो ठीक है ना?" युवान ने पूछा।
"वैसे तो ठीक है, लेकिन उसे फीवर हो रखा है।" प्रीत ने बताया।
"कैसे? अचानक कैसे हो गया? कब हुआ? उसने डॉक्टर को दिखाया? अच्छा, तुम उसका ध्यान रखो। मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ।" युवान ने कहा।
"हाँ, आ जाओ। वैसे भी ये युवी मेरी बात नहीं सुनेगी।" प्रीत ने कहा।
इतना बोलकर युवान ने फ़ोन काट दिया और जल्दी से तैयार होकर नीचे आ गया।
युवी सोकर उठी, लेकिन उसे सब अजीब लग रहा था। उसने अपने कदम बाथरूम में बढ़ाए और थोड़ी देर बाद नहा-धोकर आ गई। जैसे ही युवी बाहर आई, किसी ने घर की डोरबेल बजा दी।
"तू बैठ जा, मैं देखती हूँ।" इतना बोल प्रीत ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने अमर खड़ा हुआ था। अमर को देखकर प्रीत ने उसे घूरा, तो अमर ने उसे वापस घूरा और अंदर आ गया। प्रीत भी उसके पीछे-पीछे अंदर आ गई।
अमर और उसके साथ दो और लड़कों को देखकर युवी अपनी जगह से खड़ी हो गई।
"अरे अरे, अभी से इतनी इज़्ज़त? अपने पति को देखकर तुम खड़ी हो गई।" अमर सोफे पर बैठते हुए बोला।
"तुम… और मेरे पति… मैंने पहले भी कहा था, सपने वो देखो जो पूरे किए जा सकें। और तुम क्यों आए हो? क्या रह गया अब?" युवी ने कहा।
"ओफ्फो, 'स्वीटहार्ट' तुम्हें हमारी शादी के बारे में बताने आया हूँ।" अमर ने युवी का हाथ पकड़कर उसे सोफे पर बिठाते हुए कहा।
"शादी? तुम सच में पागल हो, और मैं नहीं करूँगी तुमसे शादी!" युवी ने कहा।
"क्योंकि तुमने मेरे पैसे नहीं दिए और उस कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से तुम मुझसे शादी करोगी।" अमर ने कहा।
"मैंने ऐसा कोई कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया।" युवी ने कहा।
"अच्छा, रियली? अपनी इस दोस्त से पूछो। इसने खुद गवाही दी है, और इसने ये भी लिखा है कि तू मुझसे शादी करने को रेडी है।" अमर ने युवी की बाजू पकड़कर कहा।
"उसके साइन दिखाओ पहले। उसने किए भी हैं या तुम सिर्फ़ झूठ बोल रहे हो। और अगर उसने साइन किया है ना, तो मैं शादी के लिए रेडी हूँ।" युवी ने हाथ बाँधकर कहा।
"ओह, तो तुम्हें एग्रीमेंट देखना है?" अमर मुस्कुराते हुए बोला।
"समझदार हो।" युवी ने अमर के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा।
अमर ने अपनी पॉकेट से एक कागज़ निकालकर युवी को दिया। "देख ले, तेरे और तेरी इस दोस्त दोनों के साइन हैं।"
युवी ने उस कागज़ को लिया और सोफे पर बैठकर उसे पढ़ने लगी। युवी की आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने इस कागज़ को पकड़ा और एक झटके में फाड़ दिया।
अमर ने जैसे ही युवी की ये हरकत देखी, उसने युवी को झटके से पकड़कर खड़ा किया और उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया।
"तेरी हिम्मत कैसे हुई इसे फाड़ने की?" अमर ने युवी के बाल पकड़ते हुए कहा।
"आह! मेरे बाल छोड़ो… समझें ना।" युवी ने कहा।
"तूझे मेरा होने से कोई नहीं रोक सकता, कोई नहीं।" अमर ने युवी का मुँह एक हाथ से दबाते हुए कहा। जैसे ही अमर युवी को अपने करीब लेने की कोशिश करने लगा, उसके मुँह पर एक जोरदार पंच पड़ा। अमर के हाथ युवी के ऊपर से ढीले हो गए।
युवी ने अमर को देखा और अपने बगल में देखा तो युवान खड़ा हुआ था। प्रीत भी युवी के पास आ गई थी।
"हाथ कैसे लगाया उसे?" युवान ने कहा और वापस अमर के मुँह पर एक जोरदार पंच मार दिया।
"तुझे क्यों इतना गुस्सा आ रहा है? देख, वो मेरी है। एक बार उसे मेरी बन जाने दे, उसके बाद तू उसे ले जाना।" अमर ने कहा।
"क्या बोला? हाथ लगाएगा उसे? जान ले लूँगा!!" युवान ने अपने पैर से अमर के पेट पर मारते हुए कहा।
युवी ने युवान को इतने गुस्से में देखा तो उसने आगे बढ़कर युवान का हाथ पकड़ लिया। "युवान, इसे छोड़ दो… हमें कुछ जान वान नहीं लेनी, युवान।"
"दूर हटो, युवी!" युवान ने कहा।
"युवान, प्लीज!" युवी ने कहा।
"मैंने कहा ना, दूर हटो युवी! तुम्हें समझ नहीं आता।" युवान ने कहा।
प्रीत ने युवी का हाथ पकड़कर उसे साइड में कर दिया। युवान अमर को लगातार मार रहा था और एक हाथ से उसके दोनों आदमियों को पकड़ रखा था। "बहुत शौक है ना तुझे हाथ लगाने का, और लड़कियों को परेशान करने का? हिम्मत है ना तो मुझसे उलझकर दिखा। जानता भी नहीं है तू कि मैं कौन हूँ। यहाँ खड़े-खड़े तुझे जेल भेज सकता हूँ!"
युवी युवान की बात सुनकर उसे ही देखने लगी।
अमर ने युवान को घूरा और उसके चेहरे पर एक जोरदार पंच मार दिया। जैसे ही युवान पीछे हुआ, युवी ने उसे पकड़ लिया। अमर ने अपना चेहरा एक हाथ से पूछा और युवान को देखकर कहा, "एक लड़की की मदद ले ली… वैसे कौन सा प्यार है… एक रात का… वैसे लड़की बड़े कमाल की है ये। बस एक रात। कहीं तुम भी तो इसके साथ पहले ही वो सब तो नहीं कर लिए? कहीं ये तेरी एक-दो दिन की रखैल तो नहीं है ना, जिसके लिए तू इतना परेशान हो रहा है? वैसे सच बता, तेरी ये लगती क्या है!!"
युवान, जो कब से अमर की बातें सुन रहा था, उसके गुस्से की वजह से आँखें लाल हो गई थीं। उसने कस के अपनी मुट्ठी बन्द की और जोरदार पंच वापस अमर के मुँह पर मार दिया जिससे अमर सीधे ज़मीन पर गिर गया। "तुझे जानना है ना ये मेरी कौन है? ये मेरी पत्नी है, समझे ना? और अगर इसके लिए तुमने एक और शब्द अपने मुँह से निकाला ना, तो यहीं जिंदा जला दूँगा! समझे ना!"
"प्लीज युवान, शांत हो जाओ।" युवी ने कहा।
"कह रहा हूँ कब से इससे दूर रहो! मार दो इसे, लेकिन नहीं!!" युवान ने युवी की बाजू को पकड़कर अपने करीब करते हुए कहा।
"युवान, दर्द हो रहा है।" युवी ने कहा।
युवान ने युवी को जोर से छोड़ा और अपने पैर से अमर को एक लात मारकर अपना हाथ जोर से पास की दीवार पर दे मारा।
"युवान… युवान!!" युवी ने पुकारा।
क्रमशः
युवान, जो कब से अमर की बातें सुन रहा था, उसकी ग़ुस्से की वजह से आँखें लाल हो गई थीं। उसने कसकर अपनी मुट्ठी बंद की और जोरदार पंच वापस अमर के मुँह पर मार दिया जिससे अमर सीधे जमीन पर गिर गया।
"तुझे जानना है ना ये मेरी कौन है? ये मेरी पत्नी है, समझे? और अगर इसके लिए तुमने एक और शब्द अपने मुँह से निकाला ना, तो यहीं जिंदा जला दूँगा! समझे?"
"युवान, शांत हो जाओ!" यूवी बोली।
युवान यूवी की बाजू को पकड़कर अपने करीब करते हुए बोला, "कब से कह रहा हूँ कब से... इससे दूर रहो, मार दो इसे, लेकिन नहीं!!"
"युवान, दर्द हो रहा है!!" यूवी ने कहा।
युवान ने यूवी को जोर से छोड़ा और अपने पैर से अमर को एक लात मारकर अपना हाथ जोर से पास की दीवार पर दे मारा।
"युवान..... युवान!!" यूवी चिल्लाई।
पास की दीवार कांच की होने की वजह से युवान के हाथ से खून निकलने लगा था। यूवी ने युवान को देखा तो उसने जल्दी से आगे बढ़कर युवान का हाथ पकड़ लिया।
"युवान, खून आ रहा है!"
युवान अपना हाथ छुड़वाते हुए बोला, "हाथ हटाओ।" इतना बोलकर युवान ने अमर को पकड़ा और उसे धक्का देते हुए बाहर निकाला और अपनी उंगली दिखाते हुए कहा, "दूर रह इससे, वरना मार दूँगा। मुझे खुद मालूम नहीं है!"
"तेरा वो हाल करूँगा ना कि इससे भी बुरा। कोई भी कभी नज़र उठाकर नहीं देखेगा!"
"छोड़ूँगा नहीं तुझे, समझा? अगर मैंने तेरी जान नहीं ली ना तो मेरा नाम भी अमर वैद नहीं!" अमर बोला।
"तुझसे जो बनता है ना, कर ले..." इतना बोलकर युवान अंदर आ गया। अमर भी वहाँ से चला गया।
अंदर आकर युवान ने यूवी की बाजू पकड़कर कहा, "तुम सच में पागल हो गई हो। मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है, अभी इसी वक्त तुम दोनों ये घर छोड़ रही हो!"
"युवान.... तुम्हें चोट लग गई है, देखो कितना खून निकल रहा है!" यूवी बोली।
युवान अपने हाथ को देखकर बोला, "इट्स ओके।" यूवी के चेहरे पर हाथ लगाकर बोला, "मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो?"
"युवान," यूवी ने कहा।
"प्लीज युवी जवाब दो। मैं तुम्हारे जवाब का इंतज़ार कर रहा हूँ। तुम्हें मैं अपना बनाना चाहता हूँ!" युवान बोला।
यूवी ने प्रीत की ओर देखा जो दोनों को देखकर मुस्कुरा रही थी। "मैं तैयार हूँ।" इतना बोलकर यूवी ने अपनी गर्दन नीचे कर ली।
"थैंक यू, युवी..." इतना बोलकर युवान ने यूवी के सर से अपना सर लगा लिया।
"प्लीज युवान," इतना बोलकर यूवी ने युवान को सोफे पर बिठाया और प्रीत को कुछ इशारा करके युवान के पास बैठ गई।
प्रीत वहाँ से अपने रूम में आई और जल्दी से रूम से फर्स्ट एड किट लेकर वापस बाहर आ गई। यूवी ने किट ली और उसमें से डेटॉल निकालकर युवान के हाथ को साफ करने लगी। जैसे-जैसे यूवी उसके ज़ख्म को साफ कर रही थी, वैसे-वैसे युवान के चेहरे के भाव बदल रहे थे। युवान का दर्द यूवी से भी देखा जा रहा था, उसकी आँखों से आँसू आने लगे थे, जो की युवान की हथेलियों को भीगों रहा था।
"युवी, तुम रो रही हो?" युवान ने पूछा।
"कितनी चोट लग गई युवान, देखो, दर्द हो रहा है ना?" यूवी बोली।
"मुस्कुराते हुए... अब तुम इतने प्यार से साफ करोगी तो दर्द नहीं होगा ना!" युवान ने कहा।
"बस बोलना बहुत आता है...." इतना बोलकर यूवी वापस युवान के हाथ पर पट्टी करने लगी।
थोड़ी ही देर में युवान खड़ा हुआ और दोनों को देखकर बोला, "शाम को रेडी रहना, हम मंदिर में शादी करेंगे, और सामान तुम्हारा थोड़ी देर में कार्तिक दे देगा।"
"ओके," यूवी ने कहा।
जैसे ही युवान जाने को हुआ कि अचानक वापस अंदर आया और यूवी को पकड़कर बोला, "तुम्हें तो फीवर था ना!!"
"नहीं... ऐसा... कुछ नहीं था! मैं ठीक हूँ!" यूवी ने कहा।
युवान उसके माथे और गले पर हाथ लगाकर बोला, "देखो, अभी भी फीवर है तुम्हें। समझी? अगर प्रीत ना बताती तो तुम तो बोलती ही नहीं मुझसे!"
"ज़्यादा कुछ नहीं था, इसलिए नहीं बताया मैंने!" यूवी बोली।
युवान यूवी से दूर होकर बोला, "ठीक है... प्रीत, इसे दवा दे देना... ये लो..." अपनी पॉकेट से टैबलेट्स देते हुए।
"ठीक है... और हाँ, तुम दोनों शाम को रेडी रहना...." इतना बोलकर युवान वहाँ से चला गया। युवान बाहर आया और अपनी गाड़ी में बैठकर क
कार्तिक को फ़ोन लगाया और उसे कुछ बताने लगा।
"तू सही तो कर रहा है... सोच ले युवान, कहीं तेरे एक फैसले से यूवी की ज़िन्दगी ना खराब हो जाए! इतनी जल्दी शादी यार युवान। एक बार उनसे बात करके अगर उन्होंने ऐसा कोई फैसला ले लिया जिससे तुम दोनों की ज़िन्दगी खराब हो गई तो..." कार्तिक बोला।
"जो बोला है वही कर ले, कार्तिक.. और हाँ, जितना सामान आएगा वो भी यूवी को दे दो लाकर!! और हाँ, कशिश की हेल्प ले लेना!!" युवान ने कहा।
"उसे भी बुलाऊँ??" कार्तिक ने पूछा।
"हम्मम। मैंने जिन-जिन का नाम बताया है, सबको बुला लेना... मंदिर में सब रेडी करवा लो!" युवान ने कहा।
"ओके... शाम को मिलते हैं!" कार्तिक ने कहा।
यूवी अभी भी अपने कमरे में बैठी कुछ सोच रही थी कि तभी प्रीत ने उसके आगे एक बैग रखा और कहा, "ले, शादी का सामान आ गया है!"
"अच्छा, रख दे यार... मुझे तो बहुत अजीब लग रहा है यार, प्रीत!" यूवी ने कहा।
प्रीत उसके बगल में बैठते हुए बोली, "क्यों अजीब लग रहा है? जब युवान ने रिश्ते को नाम नहीं दिया था तब तो तू रोज़ परेशान होती थी, फिर आज जब वो तुझसे शादी करना चाहता है तो तू क्यों परेशान है?"
"मुझे लगता है वो अमर की वजह से मुझसे शादी करना चाहता है... देखा ना तूने कैसे उसने सामने बोला उसके..." यूवी ने कहा।
"तो तुझे ये लगता है युवान तुझसे प्यार नहीं करता। वो अपने प्यार को नाम नहीं देना चाहता... तुझे भरोसा नहीं है उस पर..." प्रीत बोली।
"भरोसे की तो कोई बात ही नहीं है। खुद से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं, जानते हैं हम। युवान हमें कभी कोई तकलीफ नहीं होने देगा, कभी हमें चोट नहीं पहुँचाएगा!" यूवी ने कहा।
"बस तेरा यही विश्वास बनाए रखना। तुम दोनों में कभी कुछ भी दूरियाँ नहीं आएंगी। चल अब रेडी हो जा, पता नहीं किसी भी टाइम हमें जाना पड़े!" प्रीत बोली।
"हम्मम, मैं लहंगा पहनकर आती हूँ।" इतना बोलकर यूवी उठकर बाथरूम में चली गई। थोड़ी देर बाद आई तो प्रीत ने उसका हल्का सा मेकअप कर दिया था।
थोड़ी देर में युवान ने कार्तिक को फोन करके यूवी और प्रीत को लाने को बोल दिया और खुद मंदिर आ गया था। मंदिर में पंडित जी और युवान, कशिश और काका थे।
"युवान, कब तक आएंगे वो लोग? यहाँ का सारा काम हो गया!" कशिश ने कहा।
"हाँ, मैं फोन करता हूँ।" इतना बोलकर युवान थोड़ा आगे आया और जैसे ही कार्तिक को फोन करने को हुआ कि उसकी नज़र सामने गई जहाँ से यूवी दुल्हन के लाल जोड़े में आ रही थी। यूवी ने रेड कलर का लहंगा और पिंक कलर का दुपट्टा पहना हुआ था। मेकअप बहुत कम किया हुआ था, नाक में नथ और बालों का जूड़ा जिसमें टीका लगाया हुआ था।
युवान ने फ़ोन पॉकेट में रखा और यूवी के पास आ गया और उसका हाथ पकड़कर ले आया।
"जजमान, शुभ मुहूर्त हो गया है। आप दोनों यहाँ बैठ जाइए!" पंडित जी बोले।
"जी..." इतना बोलकर युवान ने यूवी का हाथ पकड़ा और वहाँ अग्नि के आगे आकर बैठ गया।
जैसे ही पंडित जी मंत्र पढ़ने के लिए अपना मुँह खोलते, उससे पहले ही किसी की आवाज से सब का ध्यान सीढ़ियों की ओर गया।
"ये शादी नहीं हो सकती!" जैसे ही ये आवाज सब के कानों में पड़ी तो सब ने उस ओर देखा। सब अपनी जगह से खड़े हो गए। सीढ़ियों पर पुलिस थी।
यूवी ने युवान की ओर देखा जो कि चुपचाप खड़ा हुआ था। यूवी तुरंत युवान के आगे आ गई।
"अरेस्ट करना है युवान सिंह को... इनके खिलाफ केस है..." लड़का बोला।
"कैसा केस? किसने किया? और... और युवान ने क्या किया है? बिना जुर्म के कैसे अरेस्ट करेंगे, बताना!" यूवी ने कहा।
क्रमशः
लड़का— "येस! उसने बहुत बड़ा जुर्म किया है। अकेले-अकेले, मेरे बिना शादी कर रहा है, ये तो कम जुर्म है!"
यूवी— कभी उस लड़के को देखती तो कभी युवान को। युवान ने अपने कदम उस लड़के की ओर बढ़ाए और उसके गले लग गया।
युवान— "गले लगते हुए... बड़ी जल्दी आ गया.... आर्यन' खेर ऐसे कौन बोलता है? देख वो कितनी डर गई!!"
आर्यन— यूवी की ओर देखते हुए... "हाँ, आ गया। और क्या करता ।" इतना बोल आर्यन यूवी के पास आया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, "मैंने सुना है तुम किसी से नहीं डरती... लेकिन तुम एक पुलिस वाले से डर गई!"
यूवी— मुस्कुराते हुए... "डरते तो सब ही हैं, सब इंसान डरते हैं, कोई किसी चीज़ से डरता है, तो कोई किसी को खोने से। तो मैं भी इंसान हूँ, डर गई थीं!"
आर्यन — "उफ्फ़! कोई तो समझदार आया हमारे युवांश की लाइफ में!"
युवांश का नाम सुनकर सब थोड़े हैरान थे। वहीं यूवी और प्रीत इस नाम को सुनकर अजीब सा लग रहा था। यूवी ने आर्यन की ओर देखा और कहा... "युवांश नहीं, युवान!"
आर्यन— "ओह! हाँ, मिस्टेक हो गई।" आर्यन ने यूवी की ओर देखकर इतना कहा और युवान को देखने लगा जो चुपचाप खड़ा दोनों की बातें सुन रहा था।
पंडित जी— "जजमान! शादी का शुभ मुहूर्त निकल रहा है। आप दोनों आ जाइए।" पंडित जी ने इतना कहा और मंडप पर बैठकर अग्नि में कुछ डालने लगे।
युवान ने यूवी का हाथ पकड़ा और सबके साथ आकर बैठ गया। सब लोग एक तरफ खड़े होकर दोनों की शादी की सारी विधियाँ देख रहे थे। सारी विधियाँ हो चुकी थीं। पंडित जी के बोलने पर युवान ने यूवी की मांग में सिंदूर भरा और फिर गले में मंगलसूत्र डाला। दोनों की शादी की विधि पूरी हो चुकी थी। युवान ने यूवी को काका के पैर छूने को कहा तो यूवी ने तुरंत उनके पैर छू लिए।
काका— "खुश रहिए बिटिया!"
युवान— "ये काका हैं, हमारे साथ ही रहते हैं। ये कशिश है, मेरी और कार्तिक की दोस्त, और ये आर्यन है, मेरा दोस्त।" युवान ने यूवी को सबसे मिलवा दिया था।
आर्यन— "अगर तुम्हें बुरा न लगे तो मैं यूवी को बहन बोल सकता हूँ।"
यूवी— "ओके... इसमें बुरा क्या लगेगा!!"
सब लोग एक साथ बातें कर रहे थे। प्रीत, कशिश और यूवी एक तरफ खड़ी होकर बातें कर रही थीं। प्रीत ने यूवी को गले लगाया और उसके हाथ को पकड़कर कहा... "खुश रहना। कोई प्रॉब्लम हो तो बताना। तुझे तेरी नई लाइफ के लिए बधाईयाँ!"
यूवी— "थैंक यू, प्रीत!"
प्रीत— "अब मैं चलती हूँ।"
यूवी ने जैसे ही प्रीत के जाने का सुना, उसने तुरंत युवान की ओर देखा जो सब से बात कर रहा था। "प्रीत, कहाँ जा रही है? घर मत जाना आज!"
प्रीत— "कोई बात नहीं यूवी, जाना तो है, आज नहीं तो कल, यार! और वैसे भी मैं देख लूँगी, कुछ दिन बाद चेंज कर दूँगी।"
यूवी लगातार युवान की ओर देख रही थी। युवान ने जैसे ही अपनी नज़रें यूवी की ओर घुमाईं तो यूवी ने उसे आने का इशारा किया। तो युवान तुरंत यूवी के पास आ गया।
युवान— "क्या हुआ युवा?"
यूवी— "देखो ना युवान, प्रीत जाने की बोल रही है। प्लीज़ युवान, उसे रोक लो ना, उसे आज तो मत जाने दो, पता नहीं वो..."
युवान— "प्रीत, तुम यहीं रुक जाओ। और हाँ, कल सुबह कार्तिक के साथ जाकर अपना और यूवी का सामान ले आना।"
प्रीत— "पर मैं आपके घर में कैसे?"
युवान— "मेरे घर में एक-दो दिन रह लेना, तब तक कार्तिक कोई फ्लैट देख लेगा, फिर वहाँ चली जाना। लेकिन युवा सही बोल रही है, तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नहीं है।"
प्रीत— "ओके!!"
युवान— "अब चलते हैं, शाम हो चुकी है।" युवान के बोलने से सब लोग मंदिर से कार के पास आ गए। एक कार में कार्तिक, काका, प्रीत और किश थीं, तो वहीं दूसरी कार में युवान और यूवी थे। युवान कार चला रहा था और यूवी चुपचाप बाहर देख रही थी।आर्यन अपनी कार से घर के लिए निकल गया था।
युवान— कार ड्राइव करते हुए... "तुम खुश नहीं हो युवा?"
यूवी— "ऐसा नहीं है युवान।" सामने देखते हुए... "आप खुश हैं ना? कहीं आपने किसी ज़बरदस्ती में तो ये फैसला नहीं ले लिया ना?"
युवान ने यूवी की बात जैसे ही सुनी तो अपनी कार को एक ब्रेक के साथ अचानक रोक दी और अपनी गर्दन यूवी की ओर घुमाकर कहा, "ये कैसा सवाल था युवा? मैंने ज़बरदस्ती में तुमसे शादी नहीं की है। मैंने तुम्हें कहा भी है शादी के लिए... इज़हार किया है तो शादी भी करूँगा ना!" और ये गलतफहमी जहाँ से भी तुम्हारे इस—" यूवी के माथे पर हाथ लगाकर —" छोटे से दिमाग के अंदर आई है ना, इसे वहीं से वापस निकाल दो। समझी ना आप मिसेज़ युवानिका युवान सिंह!"
यूवी ने अपना नाम युवान के नाम से जुड़ा हुआ सुना तो उसके चेहरे पर एक अलग ही स्माइल आ गई। "जल्दी चलाओ ना, मैं बहुत थक गई हूँ!"
युवान— सामने देखकर मुस्कुराते हुए... "ऐसा भी क्या काम किया है जो तुम थक गई?"
यूवी— थारे"
युवान— "प्लीज़ युवा, थोड़ी हिंदी बोल लो!"
यूवी— हँसते हुए... "ओके... ओके, आपसे शादी करके आई हूँ ना, तो थक गई!"
युवान— "वेरी फनी! हाँ, अच्छा जोक था! लेकिन मुझे हँसी बिल्कुल नहीं आई!"
यूवी— "ओफ्फो! तथारे जो हँसी कौन आई!"
युवान— "मैं... महा... "whatever it is" मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आई!"
यूवी— "ठीक है!"
युवान ने एक हाथ स्टीयरिंग से हटाया और यूवी की कमर में डाल लिया।
यूवी ने युवान को देखा, जिसे आज युवान से नज़रें मिलने में भी शर्म आ रही थी। उसने सामने देखते हुए धीरे से कहा... "ये सब बाद में कर लेना, घर लेकर चलो!"
युवान ने कुछ नहीं कहा और ड्राइविंग करने लगा। थोड़ी देर बाद युवान ने कार लाकर रोकी तो काव्या और बाकी सब पहले ही आ गए थे। दोनों भी कार से बाहर आ गए तो प्रीत और कशिश ने मिलकर दोनों का स्वागत किया और दोनों को अंदर ले आईं।
युवान— "कशिश, युवा को रूम में ले जाओ, इसे थोड़ा रेस्ट करने दो।"
कशिश— "हाँ, युवान।" इतना बोल कशिश ने यूवी का हाथ पकड़ा और उसे युवान के रूम में लाकर छोड़ दिया। "तुम रेस्ट करो यूवी, हम नीचे ही हैं, कुछ चाहिए हो तो बताना।"
यूवी— "ओके..." कशिश चली गई थी। यूवी घूमकर सारे रूम को देखकर कमर पर हाथ रखकर कहा... "रूम को देखकर तो लगता है मैं किसी बहुत अमीर घर में आ गई हूँ ना, कितने पैसे खर्च किए होंगे भगवान जाने, समझ नहीं आता। हमारे बेड और इस बेड पर अलग-अलग नींद आती है क्या..." इतना बोल यूवी बेड पर बैठ गई।
यूवी जैसे ही बेड पर बैठी कि उसे गद्दे पर बड़ा मज़ा आने लगा। उसने बेड से टेक लगाया ही था कि थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई।
वहीं सब नीचे बैठकर बातें कर रहे थे, सब एक साथ हँसी-मज़ाक में लगे हुए थे।
प्रीत— "इस यूवी को बड़ी नींद आ रही है।"
युवान— "सोने दो उसे, उसे फीवर था ना।"
प्रीत— "हाँ!"
क्रमशः
यूवी ने कमर पर हाथ रखकर कहा, "रूम को देखकर तो लगता है मैं किसी बहुत अमीर घर में आ गई हूँ। कितने पैसे खर्च किए होंगे भगवान जाने, समझ नहीं आता। हमारे बेड और इस बेड पर अलग-अलग नींद आती है।" इतना बोल यूवी बेड पर बैठ गई।
उसने बेड पर बैठते ही गद्दे पर बड़ा मज़ा आने लगा। बेड से टेक लगाया ही था कि थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई।
नीचे सब लोग बातें कर रहे थे, सब एक साथ हँसी-मज़ाक में लगे हुए थे।
"प्रीत— इस यूवी को बड़ी नींद आ रही है।"
"युवान— सोने दो उसे, उसे फीवर था ना।"
"प्रीत— हाँ!"
"किशश— क्या हुआ है यूवी को?"
"युवान— उसे फीवर था सुबह।"
"आयन— यूवी लड़की बड़ी अच्छी है, तुझे मालूम है युवान? मैंने उसे एक बार लड़कों की पिटाई करते देखा था।"
"कार्तिक— हाँ, तो बहुत डरपोक… आखिर जोड़ी भी किसकी है… पानी तूफान की!"
"युवान— व्हाट डू यू मीन? 'पानी तूफान'?"
कार्तिक ने विरोधाभासी तौर पर कहा, "पानी तूफान!" विरोधाभाष को उठाकर युवान पर फेंकते हुए बोला, "तुम तूफान और यूवी पानी की तरह हो।"
"मुझे तुम तूफान लग रहा हूँ, बता जरा?" इतना बोल युवान खड़ा हुआ और अपने पास रखे विरोधाभाष उठाकर जैसे कार्तिक पर फेंकने को हुआ कि कार्तिक पहले ही वहाँ से भागने लगा।
"रुक जा कार्तिक के बेटे, आज मैं तुझे नहीं छोडूँगा।" इतना बोल युवान कार्तिक के पीछे भागने लगा।
तभी यूवी की आँख खुली। उसने सामने टाइम देखा तो रात के आठ बज गए थे। उसने जल्दी से अपने सर पर हाथ रखा और सामने देखते हुए कहा, "हे भगवान! मैं कितना सोई हूँ, इतना लेट तक सोती रही। किसी ने मुझे उठाया तक नहीं।"
इतना बोल यूवी बेड से उठी और बाथरूम में चली गई। अपना मुँह धोकर बाहर आई और टेबल पर रखे तौलिए से चेहरा साफ़ किया और वहाँ से नीचे की ओर चली गई।
यूवी ने सीढ़ियों से नीचे देखा तो युवान और कार्तिक दोनों एक-दूसरे के पीछे भाग रहे थे। यूवी भी उन्हें देखते हुए नीचे आ गई।
"कार्तिक— अरे मेरे भाई, मैंने तो गलत बोला है।"
"युवान— अब बताऊँ तूने क्या गलत बोला? मैं तुझे तूफ़ान दिखाता हूँ ना।"
"कार्तिक— सॉरी भाई।"
"युवान— ठीक है।" इतना बोल युवान जैसे ही यूवी के बगल से सोफ़े की ओर जाने को हुआ कि अचानक ही उसका पैर यूवी के दुपट्टे पर रखा और फिसल गया। जिससे युवान ने यूवी की बाहों को पकड़ा और अपने करीब कर लिया। दोनों एक साथ नीचे गिर गए; युवान नीचे और ऊपर यूवी थी। यूवी के बालों का जुड़ा हल्का सा खुल गया था जो दोनों के चेहरे को कवर कर रहा था।
सब लोग दोनों को देख रहे थे। यूवी और युवान दोनों एक-दूसरे की आँखों में खोए हुए थे। युवान का हाथ यूवी की कमर पर और यूवी का हाथ युवान के सीने पर था।
"अरे-अरे! हमने इतना बड़ा रूम दिया है और तुम दोनों हम सब के सामने अपना रोमांस कर रहे हो।"
युवान और यूवी ने जैसे ही बातें सुनी तो दोनों तुरंत अलग होने को हुए कि उससे पहले ही यूवी का मंगलसूत्र युवान की शर्ट के बटन में उलझ गया।
"यूवी— वो… वो… मैं… मैं निकाल देती हूँ…" यूवी हड़बड़ाते हुए अपने मंगलसूत्र को खोल रही थी। उसके शर्म से मारे अजीब लग रहा था।
"युवान— यूवी के चेहरे को देखकर… यूवी… यूवी मैं कर देता हूँ, तुम रुको।" इतना बोल युवान ने एक हाथ से यूवी के हाथ को पकड़ा और खुद उसे सही करने लगा।
"कार्तिक— अरे भई! कब तक हम सिंगल लोग ऐसे रोमांस देखेंगे? भई, हम पर तरस खाओ और अपने रूम में जाओ।"
कार्तिक की बात सुनकर यूवी को शर्म आ रही थी, तो वहीं युवान कभी मंगलसूत्र निकालता तो कभी यूवी को देखता। कार्तिक की बात सुनकर सब के सब हँसने लगे, लेकिन किशश बार-बार कार्तिक को घूर रही थी। उसने अपने हाथ से कार्तिक के पेट पर कोहनी मारी और घूरते हुए कहा, "ओह! तो तुम सिंगल हो… है ना!"
किशश की बात सुनकर सबने दोनों को देखा। किशश ने वापस सबको घूरा और यूवी की ओर देखा जो उठने की कोशिश कर रही थी। किशश ने यूवी का हाथ पकड़ा और खड़ा कर दिया।
"युवान— चलो सब डिनर कर लो।"
"आयन— नहीं, तुम सब करो, मैं घर जा रहा हूँ।"
"युवान— पर खाना खाकर चले जाना ना आयन।"
"आयन— यार, मैं लेट हो जाऊँगा।"
"यूवी— पुलिस वाले होकर लेट होने से डर रहे हैं। आप प्लीज़ खाना खाकर चले जाना, भैया।"
"आयन— अब तुम इतने प्यार से भाई बोल रही हो तो मैं तुम्हारी बात ज़रूर मानूँगा। वरना सच में, मैं जाने वाला था।"
"कार्तिक— अरे भई! शादी किसी और की हुई है, और बदल कोई और ही गया है।"
"युवान— बस करो और चुपचाप डिनर करो।" ये सब बोलते हुए युवान के भाव बिल्कुल सख्त हो गए थे। वो वहाँ सबको छोड़कर डाइनिंग एरिया में चला गया।
"कार्तिक— लो बन गए हिटलर! चलो सब अब तो बोलने भी नहीं देगा।" कार्तिक इतना बोल सबको इशारा करके वहाँ से चला गया।
इसके पीछे सब लोग भी वहीं आ गए। युवान ने अभी तक यूवी को ध्यान से नहीं देखा था क्योंकि यूवी अभी भी दुल्हन के जोड़े में घूम रही थी और उसकी हालत फीवर की वजह से खराब लग रही थी।
"युवान— सब जल्दी से डिनर करो, और रूम में जाओ सोने।"
"आयन— येस, मैं भी आज यहीं हूँ… मैं सुबह जाऊँगा।" इतना बोल आयन खाना खाने लगा। सब लोग एक साथ खाना खा रहे थे, लेकिन यूवी बस खाने को घूर रही थी। उसने एक-दो बाइट खाया और उठकर खड़ी हो गई।
"युवान ने उसे देखा और कहा, "क्या हुआ यूवी? खाना क्यों नहीं खाया?"
"मेरा हो गया है। युवान— आप सब कीजिए।" इतना बोल यूवी वहाँ से उठकर रूम में चली गई।
"किशश— अरे इतना सा ही खाती है ये?"
"प्रीत— नहीं… लेकिन उसे फीवर है! तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि वो खाना खा ले। बस थोड़ा बहुत जबरदस्ती खिला दूँ तो खा लेती है।"
इतना बोल सब ने डिनर किया और अपने-अपने रूम में चले गए। प्रीत और किशश एक रूम में थीं, और आयन और कार्तिक आज एक रूम में थे।
युवान भी डिनर करके किचन में आया और एक टिफ़िन में यूवी के लिए खाना लिया और रूम में आ गया। उसने रूम में देखा तो यूवी वहाँ नहीं थी। युवान ने खाना टेबल पर रखा और सीधे बालकनी में आ गया। उसने देखा तो यूवी रेलिंग पर हाथ रखे खड़ी हुई थी।
"युवान— अंदर आओ यूवी, तुम्हें फीवर है ना।"
"यूवी— जी… नहीं है, हम ठीक हैं।"
युवान यूवी का हाथ पकड़कर अंदर लाया और बेड पर बिठा दिया। उसने टेबल से टिफ़िन ली और यूवी की ओर एक बाइट करके बोला, "चलो जल्दी-जल्दी मुँह खोलो।"
"मुझे नहीं खाना, मैंने खाया ना, सच में भूख नहीं है मुझे।" युवान ने उसे घूरा और उसके मुँह में एक बाइट जबरदस्ती डाल दिया। "मुझे ना सुनना पसंद नहीं है, तो जल्दी से खा लो।" युवान ने एक-दो बाइट यूवी को खिलाए, लेकिन यूवी ने हज़ार नाटक कर दिए।
युवान ने टिफ़िन रखी और यूवी को ध्यान से देखा जो अभी भी दुल्हन के जोड़े में थी। "ये क्या तुमने कपड़े चेंज नहीं किए, ऐसे ही घूम रही हो इन कपड़ों में।"
"यूवी— गद्दा नीचे करके… वो आज…"
"युवान— कुछ नहीं होगा, तुम्हें फीवर है ना, कोई फर्स्ट नाइट नहीं है।"
यूवी ने जैसे ही युवान की बात सुनी तो उसे कभी तो शर्म आई और कभी आँखें खोलकर अजीब से युवान को देखा और बेड पर से खड़ी होकर कहा, "मेरे कपड़े नहीं हैं इसलिए ऐसे घूम रही हूँ।"
युवान ने जैसे ही सुना तो उसे अपनी कही बात पर बहुत अजीब लगा। "ओह सॉरी, अभी तो किशश भी सो गई होगी। ऐसा करो, मेरे कपड़े पहन लो।"
"यूवी— हम्म… दे दीजिए।" इतना बोल यूवी अलमारी के पास आ गई। युवान ने अलमारी से कपड़े दिए और बेड पर आकर बैठ गया। यूवी भी वाशरूम में चली गई थी। थोड़ी देर बाद वो बाहर आई तो उसने सिर्फ़ युवान की एक ब्लैक कलर की टी-शर्ट पहना हुआ था और नीचे युवान का ही लोअर था जो यूवी पर काफी हद तक ढीला लग रहा था।
युवान की नज़र यूवी पर गई तो उसके फेस पर स्माइल आ गई। "अरे वाह! मेरी यूवी तो बिल्कुल डॉल जैसी लग रही है इन कपड़ों में।"
"यूवी— क्या आप मेरी तारीफ़ कर रहे हैं या मज़ाक बना रहे हैं।"
"युवान— लैपटॉप में देखते हुए… वैसे मैंने दोनों ही नहीं किया, बाकी जो तुम्हें ठीक लगे।"
"यूवी— युवान… तुम ना बहुत बुरे हो।" इतना बोल यूवी जैसे ही एक कदम चलने को हुई कि अचानक उसका बैलेंस बिगड़ा और वो सीधा जमीन पर गिर गई।
युवान ने यूवी को देखा और लैपटॉप साइड में रखकर जल्दी से यूवी के पास आया और उसे खड़ा किया। "लग गई क्या यूवी?" युवान की बात सुनकर यूवी ने उसे देखा और कहा, "ये कपड़ों में मेरा पैर उलझ गया था।"
"युवान— जब ये टी-शर्ट इतने घुटनों तक आ रही है तो तुम्हें ये लोअर पहनने की क्या ज़रूरत है? जाओ चेंज करके आकर सो जाओ, तुम्हें मेडिसिन भी लेनी है।"
यूवी ने युवान को देखा और वापस वाशरूम में चली गई। युवान भी लैपटॉप पर काम कर रहा था। थोड़ी देर में यूवी उसी के पास आकर बैठ गई और टेबल से अपनी दवाई लेकर वहीं सो गई। युवान अपने एक हाथ से यूवी के सर पर हाथ फेर रहा था और एक हाथ से लैपटॉप पर काम कर रहा था। थोड़ी ही देर में यूवी तो सो गई थी, लेकिन युवान अभी भी काम कर रहा था। थोड़ी देर में युवान ने लैपटॉप को रखा और यूवी को अपनी बाहों में लेकर सो गया।
क्रमशः…
युवा और युवान की शादी हो चुकी थी। कशिश भी अभी तक वहीं थी। कार्तिक और युवान अपने ऑफिस चले गए थे। प्रीत भी युवान के कहने पर वहीं रह गई थी; वह भी एक कंपनी में जॉब कर रही थी। युवा और युवान की लाइफ अच्छी चल रही थी। उनकी शादी को आज पूरे पन्द्रह दिन हो गए थे। लेकिन युवान इन पन्द्रह दिनों में एक बार भी युवी के थोड़ा भी करीब नहीं आया था! और यही बात आज युवी को बहुत परेशान कर रही थी!
युवी घर में अकेली थी। कशिश आज किसी काम से अपनी फ्रेंड के पास गई हुई थी। बाकी सब ऑफिस गए हुए थे।
युवी बेड पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी। तभी उसने बेड से उठकर अपनी अलमारी खोली और उसे सही करने लगी। थोड़ी देर बाद उसे सही करके उसने जैसे ही युवान की अलमारी देखी, तो उसे खोलने के लिए लॉक पर हाथ लगाया। युवी ने पाया कि युवान की अलमारी पर ताला लगा हुआ था।
"अजीब है युवान अपनी अलमारी पर ताला क्यों लगाता है?" इतना बोल युवी ने पास की रॉ खोली। उसमें एक चाबी रखी हुई थी। युवी ने उसे उठाया और उससे अलमारी खोली। उसने युवान की अलमारी देखी तो काफी सलीके से सारा सामान रखा हुआ था।
"सब तो सलीके से रखा है, लेकिन ये कागज़ ऐसे क्यों रखे हुए हैं! इन्हें मैं ही सही कर देती हूँ। वैसे भी कुछ देर में सब लोग आ जाएँगे, तब तक ठीक कर देती हूँ। युवान को अच्छा लगेगा ना!"
इतना बोल युवी ने जल्दी-जल्दी सभी कागज़ों को साफ-सुथरा रखा। तो उसकी नज़र एक पेपर पर गई जिस पर "युवांश सिंह राठौर" के सिग्नेचर थे।
"ये यहाँ क्या कर रहा है? ये तो राठौर कंपनी के सीईओ के साइन हैं ना! पता नहीं ये यहाँ..."
युवी इतना ही बोल पाई थी कि उसके हाथ से पेपर छीन लिया गया। पेपर छीनते देख युवी ने अपने बगल में देखा तो युवान खड़ा हुआ था।
"वो...ये!!"
"किसी से पूछकर अलमारी खोली? तुम्हें पता भी है इसमें मेरे कितने ज़रूरी सामान हैं? युवी, बिना पूछे किसी के सामान को हाथ नहीं लगाना होता है!"
युवी लगातार युवान को देख रही थी। उसने अपनी गर्दन नीचे की और धीरे से कहा, "सॉरी, अब नहीं होगा।" इतना बोल युवी ने युवान को देखा और वहाँ से बालकनी में चली गई।
युवान ने युवी की आँखों में हल्की नमी देख ली थी। उसने अपने हाथ में पकड़े पेपर को देखा और अलमारी खोलकर उसमें रख दिया। जैसे ही वह बालकनी की ओर बढ़ने को हुआ, उसका फोन बजने लगा।
जैसे ही युवान ने फोन पर दिख रहे नाम को देखा, उसने गुस्से से अपने दाँत पीसे और फोन को लेकर वहाँ से बाहर चला गया। उसने अपने कदम ऊपर टेरेस की ओर बढ़ा लिए। उसने अपना हाथ रेलिंग पर रखा और फोन को कान के लगाकर कहा,
"किस लिए फोन किया है?"
"अब हम आप को फोन भी नहीं कर सकते बेटा!"
"वही तो बोल रहा हूँ, बोलिए क्या काम है?"
(एक औरत की आवाज़ थी) "बेटा क्या एक माँ अपने बेटे से सिर्फ़ काम के लिए ही फोन कर सकती है! बहुत याद आती है हमें आपकी, और आप हमारा फोन तक नहीं उठाते। एक गलती की सज़ा आप हमें और खुद को क्यों दे रहे हैं? जिन्होंने गलती की है उनसे आप बात तक नहीं करते!"
"माँ प्लीज़... मेरा ऑलरेडी मूड ऑफ है तो प्लीज़ आप ये सब याद मत दिलाइए!"
"बेटा हमने सुना है! आपने..."
"येस मॉम, जो सुना है वही है। मैंने युवा से शादी कर ली... और मुझे जहाँ तक मालूम है ये बात आपके पति को भी मालूम हो गई होगी ना!"
"हम्मम्...उनके मुँह से सुनकर आए हैं बेटा। बहुत गुस्सा हो रहे हैं। बेटा, आपने ये जो फैसला लिया है, उससे उस लड़की की जान को कोई खतरा तो नहीं है ना? बेटा, जहाँ तक हमें लग रहा है ना, उसकी जान आपने खतरे में डाल दी है!"
"जब तक मैं हूँ उसे कुछ नहीं होगा। जो एक बार पहले हुआ था वो वापस कभी नहीं होगा माँ। मैं... मेरी युवा को कुछ नहीं होने दूँगा।"
"अच्छा लगा आपका उस लड़की के लिए इतना प्यार देखकर। नाम बताया आपने उनका?"
"युवा... युवान सिंह..."
"पूरा नाम नहीं बताया..."
"नहीं, उसकी ज़रूरत नहीं है..." ये सब बोलते हुए युवान के चेहरे का भाव एकदम सख्त हो गए थे।
"हम रखते हैं बेटा। अगर उन्हें पता लगा ना तो बिना बात तमाशा हो जाएगा। और हाँ बेटा, उस लड़की का ध्यान रखना... उसकी कोई गलती नहीं है... कहीं उसे इन सब में बिना बात की सज़ा मिल जाए..."
"हम्मम्...उनकी आदत है तमाशा करने की... वो भी बिना बात... लेकिन किसी ने भी कुछ भी किया ना तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँगा... और आप बेफ़िक्र रहिए... युवा को कुछ नहीं होगा... अच्छा अब हम रखते हैं..." इतना बोल युवान ने उस ओर से बिना कोई जवाब सुने फ़ोन रख दिया और वहीं दूसरी साइड खड़ा हो गया। "युवा से बहुत गलत तरह से बात की है, आज मैंने उसे बहुत परेशान किया होगा।" इतना बोल युवान ऊपर से नीचे आने लगा।
युवी रेलिंग पर हाथ रखकर खड़ी कुछ सोच रही थी। "पता नहीं युवान को क्या हुआ है? ऐसे कैसे बिहेव कर रहे हैं? ना करीब आ रहे हैं, यार कम से कम शादी के बाद एक किस..." इतना बोल युवी ने सामने देखा और आसमान में देखते हुए कहा, "क्या सच में आपने मेरी ज़िन्दगी में किसी का प्यार नहीं लिखा बाबा? क्या सच में मेरी किस्मत में किसी फैमिली का प्यार नहीं है? बाबा... सब कुछ तो आपने मुझसे दूर कर दिया!" युवी इतना ही बोल पाई थी कि तभी उसके सर पर कुछ आकर लगा।
अचानक कुछ लगने से युवी की बुरी तरह चीख निकल गई। उसने अपना हाथ तुरंत अपने सर से लगाया और सामने नीचे देखा। तभी वापस उसे कुछ और आकर लगा तो युवी की फिर एक बार जोरदार चीख निकली। युवी ने तुरंत अपना पहला हाथ हटाकर दूसरा लगा लिया।
युवी के चीखने की आवाज़ सुनकर युवान के कदम एक पल के लिए थिठक गए। उसने जल्दी से अपने कदम अपने रूम की ओर बढ़ा लिए। तो वहीं बाकी सब ने जैसे ही युवी के चीखने की आवाज़ सुनी तो सब ऊपर रूम की ओर दौड़ पड़े।
युवान जैसे ही रूम की बालकनी में आया तब तक सब लोग भी आ गए थे। युवी रेलिंग के सहारे बैठी हुई थी। प्रीत और युवान ने युवी को चेयर पर बिठाया तो युवान को उसके सर से आता खून साफ़ दिखाई दे रहा था। युवी ने युवान को देखकर अपना हाथ नीचे कर लिया था और दूसरे हाथ से पीछे दीवार को पकड़ लिया था।
"कौन था युवी?"
"पता नहीं... किसी ने पता नहीं कुछ फेंका तो उससे बस..." ये सब बोलते हुए युवी बुरी तरह काँप रही थी। उसकी आँखों से आँसू भी आने लगे थे।
"युवा...युवा...बेटा कुछ नहीं हुआ है...उसको अपने सीने से लगाकर, कार्तिक, आर्यन जाकर देखो कौन था!"
"हाँ..." इतना बोल कार्तिक और आर्यन रूम से चले गए।
"युवी के चेहरे पर हाथ रखकर... कुछ नहीं हुआ है, डोंट वरी... तुम तो ब्रेव हो ना फिर भी डर गई!"
"हकलाते हुए...क...क...कौन थे वो लोग युवान?"
"पता नहीं... कौन थे... कशिश फर्स्ट एड किट लाकर दो।"
कशिश जल्दी से युवान के रूम में गई और थोड़ी देर बाद हाथ में किट का डिब्बा लेकर बाहर आ गई। युवान ने दोनों को देखा और वहाँ से जाने का इशारा किया तो दोनों तुरंत वहाँ से चली गईं।
युवान ने रुई पर डेटॉल लिया और युवी के माथे पर फूंक मारकर लगाने लगा। जैसे-जैसे युवान रुई को उसके सर पर टच करता, युवी अपनी आँखें बंद कर लेती।
"दर्द हो रहा है ज्यादा...हम डॉक्टर के पास चलें!"
युवी अपने एक हाथ से युवान की पीठ पर रखकर उसकी शर्ट को कसकर पकड़ लिया और धीरे से अपनी गर्दन हिलाकर कहा, "नहीं, बट वो लोग..."
"श्ह्ह्ह्ह्ह..." उसके होठों पर अपनी उंगली रखकर... "इतना डरती हो? सबके सामने यूँ ही बहादुर बनती हो तुम!" इतना बोल युवान ने युवी के सर पर बैंडेज लगा दिया। "चलो अब रूम में..." इतना बोल युवान ने जैसे ही युवी का हाथ पकड़ा तो युवी की आह निकल गई। युवान ने तुरंत उसका हाथ देखा तो उसके हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था।
युवान युवी को घूरते हुए... "जब सर की चोट दिखा दी तो हाथ की क्यों छुपा रही हो! और ये कैसे लगी?"
क्रमशः
युवान ने श्ह्ह्ह्ह्… करते हुए अपनी उंगली युवी के होठों पर रखी। "इतना डरती हो? सबके सामने यूँ ही बहादुर बनती हो?"
"तुम…!" इतना ही बोल पाया युवान कि उसने युवी के सिर पर एक जोरदार डंडा मार दिया। "चलो अब रूम में…"
इतना बोलते ही युवान ने जैसे ही युवी का हाथ पकड़ा, युवी की आह निकल गई। युवान ने तुरंत उसका हाथ देखा तो उसमें कांच का एक टुकड़ा घुसा हुआ था।
युवान, युवी को घूरते हुए बोला, "जब सर की चोट दिखा दी तो हाथ की क्यों छुपा रही हो! और यह कैसे लगी?"
यूवी ने कहा, "आप डाँटते हो इतना… इसलिए नहीं बताया।"
युवान ने कहा, "अरे बाबा, मैं नहीं डाँट रहा…" उसने अपने कान पकड़ कर कहा, "सॉरी बाबा… चलो इसे भी मैं ठीक कर देता हूँ… वैसे, तुमने ना अपने पिता को कंपनी का काम छुड़वाकर डॉक्टर बनवा दिया।"
यूवी ने कहा, "मैंने कब बनवाया? लगी भी तो आपकी वजह से?"
युवान ने पूछा, "मेरी वजह से कैसे?"
यूवी ने कहा, "आप मुझे तब नहीं डाँटते ना, तो मैं कभी भी यहाँ बालकनी में नहीं आती।"
युवान ने कहा, "तो इसमें मेरी गलती है? अरे, कोई नहीं। मेरी सही लेकिन अब चलो।"
यूवी ने मुँह बनाते हुए कहा, "मुझे ना बहुत भूख लगी है।"
युवान ने युवी का हाथ पकड़कर ले जाते हुए कहा, "तो चलो फिर इंतज़ार किस चीज का है?" इतना बोलकर युवान ने युवी का हाथ पकड़ा और कमरे में ले आया। पलटकर जैसे ही दरवाज़ा बंद करने लगा, उसे बालकनी में कुछ दिखाई दिया। उसने युवी को देखा और कहा, "तुम चलो, मैं अभी आया। पाँच मिनट में।"
यूवी ने कहा, "हम्मम।" जल्दी आना।
इतना बोलकर युवी कमरे से बाहर चली गई। यूवी के जाते ही युवान ने बालकनी का दरवाज़ा खोला और बालकनी में आ गया। उसने जमीन पर पड़े एक थोड़े बड़े पत्थर को उठाया, जिस पर खून भी लगा हुआ था।
युवान ने कहा, "इस खून का बदला मैं लेकर रहूँगा। तुम जो कोई भी हो, मेरी युवी की आज जो हालत हुई है ना, आज जो वो डरी हुई थी ना, उसकी आँखों में दर्द था ना, उन सब का हिसाब लूँगा।" इतना बोलकर युवान ने नीचे देखा तो जमीन पर एक पेपर कुछ लिपटा हुआ पड़ा था, जिस पर भी हल्का सा खून लगा हुआ था।
युवान ने आगे बढ़कर उसे उठाया और पेपर खोला तो उसमें कुछ लिखा हुआ था। युवान ने चारों ओर देखा और उस पेपर को पढ़ने लगा। जैसे-जैसे युवान उस लेटर को पढ़ रहा था, वैसे-वैसे उसके आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई देने लगा। उसने कसकर अपनी मुट्ठी बंद की और आँखें भी कसकर बंद कर लीं। और जब युवान ने अपनी आँखें खोलीं तो उसकी आँखें एकदम लाल हो गई थीं।
युवान ने उस लेटर को देखा और कमरे में आ गया। उसने अलमारी खोली और इस लेटर को अलमारी में रखकर नीचे आ गया।
सब लोग एक साथ डाइनिंग टेबल पर बैठे युवान का ही इंतज़ार कर रहे थे। युवान भी सबके पास आकर बैठ गया। यूवी युवान के बगल में बैठी हुई थी। प्रीत और कशिश ने मिलकर डिनर सबको सर्व किया था। सब डिनर करने लगे थे। यूवी सबको देख रही थी। उसके दाएँ हाथ में चोट लगी थी इसलिए उससे खाया ही नहीं जा रहा था। यूवी ने चम्मच ली और उल्टे हाथ से खाने की कोशिश करने लगी, लेकिन उससे हो ही नहीं रहा था।
उसने अजीब सा मुँह किया ही था कि उसके आगे युवान ने अपनी चम्मच रख दी। यूवी ने देखा और स्माइल करके उसी चम्मच से खाने लगी।
युवान ने वापस खुद खाया और वापस एक बाइट उसी चम्मच से युवी को खिला दिया। थोड़ी देर में दोनों ने खाना खाया तो युवान ने टिश्यू से युवी का मुँह साफ़ किया और उसे पानी पिला दिया।
यूवी चुपचाप बैठी हुई थी और बड़ी सीधी-सादी हरकतें कर रही थी। युवान ने उसे आँख दिखाई तो यूवी चुपचाप बैठ गई।
युवान ने कहा, "चलो रूम में जाकर सो जाओ।"
यूवी ने कहा, "नहीं… मुझे नहीं सोना। हम सब बैठकर बातें करते हैं। मैं ना घबरा जाती हूँ। युवान, आज घर में कोई नहीं था इसलिए…" इतना बोलकर यूवी वहाँ से हॉल में सोफ़े पर आकर बैठ गई।
कशिश ने कहा, "तुम्हें आराम करना चाहिए युवी?"
यूवी ने कहा, "आराम यार! मैं ना सच में थक गई हूँ… अरे, ये बताओ आर्यन भैया, वो लोग कौन थे?"
यूवी का ऐसा सवाल सुनकर आर्यन , कार्तिक युवान, कशिश चारों ने एक-दूसरे की ओर देखा और वापस यूवी की ओर देखा।
यूवी ने कहा, "बताइए ना, एक-दूसरे को क्यों देख रहे हो? कौन था वो? किसने पत्थर मारा था? और युवान, उस पत्थर पर कुछ कागज़ जैसा भी था… मैं देखकर आती हूँ! मैं तो भूल ही गई थी!"
युवान ने कहा, "हिलना भी मत! कितना बोलने लगी हो! युवी, चुपचाप बैठ जाओ, और उसका पता अभी नहीं लगा। लगते ही बता दूँगा… शायद यह अमर का काम हो।"
यूवी ने कहा, "नहीं… कभी नहीं। मैं नहीं मानती। वो लोग कोई और ही थे! मुझे मालूम है युवान, अमर ऐसा कभी कुछ नहीं कर सकता।"
आर्यन ने कहा, "हे युवी, डोंट वरी, मैं हूँ ना। शायद तुम भूल गई कि मैं एक पुलिस वाला हूँ, इसलिए यह मुझ पर छोड़ दो।"
यूवी ने कहा, "ओके।"
थोड़ी देर सब लोग बैठकर बातें करने लगे। सब एक साथ बैठे, हँसी-मज़ाक कर रहे थे। थोड़ी देर में थकान की वजह से युवी, कशिश और प्रीत तीनों रूम चली गईं। युवान ने यूवी को आराम से सुलाया और ब्लैंकेट डालकर रूम की लाइट ऑफ की और अलमारी खोलकर वही लेटर लिया और रूम से बाहर आ गया।
उसने अपने कदम सीढ़ियों से नीचे के रूम की ओर बढ़ा लिए। उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो अंदर पहले से ही कार्तिक और आर्यन बैठे हुए थे।
आर्यन ने पूछा, "कुछ पता लगा किसने किया है?"
कार्तिक ने कहा, "हमें तो पता नहीं लगा। वो लोग जा चुके थे युवान।"
युवान ने कहा, "यह काम उस इंसान के अलावा कोई नहीं कर सकता। युवी पर पत्थर भी उसी ने ही मरवाया होगा अपने किसी आदमी से बोलकर। यह देखो, लेटर दिया है जिसमें साफ़ धमकी दी है कि मैं युवी से दूर हो जाऊँ, वरना वो लोग युवी को मार देंगे। मुझे शर्म आती है कि यह मेरे…" यार समझ नहीं आता, लोगों के लिए उनकी इज़्ज़त उनके बड़ों से ज़्यादा बड़ी होती है…।"
कार्तिक ने कहा, "मतलब युवी की जान ख़तरे में रहेगी।"
युवान ने कहा, "डोंट वरी, घर में वो सेफ़ है, लेकिन बाहर वो तुम्हारे या बॉडीगार्ड के साथ ही जाएगी।"
कार्तिक ने कहा, "लेकिन तुम उसे जानते नहीं हो। अगर उसे पता लगा ना कि हमने उसके पीछे बॉडीगार्ड लगा रखे हैं तो उसके सवाल शुरू हो जाएँगे।"
युवान ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम्मम। बहुत जिद्दी है।"
आर्यन ने कहा, "घर में कैसे सेफ़ हुई युवी? आज उस पर जो हमला हुआ है वो घर पर ही हम सब के होते हुए हुआ है तो… इसका क्या सबूत है कि वो अकेले रहकर घर में सुरक्षित रहेगी?"
कार्तिक ने कहा, "या राइट… आर्यन सही बोल रहा है युवान… कुछ सोचो।"
युवान ने कहा, "मैं फिर से एक बार नहीं हारना चाहता… फिर से वही सब नहीं देखना चाहता।"
कार्तिक ने कहा, "डोंट वरी, मैं उसके लिए बॉडीगार्ड्स कर देता हूँ।"
आर्यन ने कहा, "हम्मम और मैं कल सुबह उन लोगों को पकड़ता हूँ।"
युवान ने कहा, "उन्हें पकड़कर क्या करोगे…? जबकि हमें पहले से मालूम है कि यह किसका काम है।"
कार्तिक ने कहा, "हम्मम… यह भी है।"
युवान ने कहा, "हम्मम… जाओ जाकर सो जाओ। आगे का आगे देखेंगे।" इतना बोलकर युवान वहाँ से अपने रूम में चला गया।
कार्तिक ने कहा, "डर लगता है युवी के लिए। इसका एक फ़ैसला और दोनों की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी। मैं उसे पहले से जानता हूँ। अगर उन्हें पता ही लग गया तो युवी को कभी नहीं छोड़ेंगे। जो इंसान अपने पर रहम नहीं कर सकता, वो दूसरों पर क्या ही करेगा।"
आर्यन ने कहा, "लगता है इन लोगों की लड़ाई में उस लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद ना हो जाए… लेकिन युवान को कौन समझाए… इसने तो जैसे सुनना ही बंद कर दिया है। यह वापस क्यों अपने अतीत को दोहरा रहा है!"
कार्तिक ने कहा, "पता नहीं… हमें कुछ तो करना चाहिए।"
आर्यन ने कहा, "चल, रूम में चलते हैं। हम युवान को एक बार फिर समझाएंगे। आई थिंक वो युवी के लिए कुछ समझ पाए।"
कार्तिक ने कहा, "हम्मम, चल…" इतना बोलकर दोनों अपने रूम में चले गए।
युवान जैसे ही रूम में आया तो देखा यूवी बेड पर बैठी कोई बुक पढ़ रही थी। युवान ने उसे देखा और अलमारी से तौलिया लेते हुए कहा, "सोई नहीं युवी?"
यूवी ने युवान को देखा और बुक को साइड में रखते हुए कहा, "आपका ही इंतज़ार कर रही थी।"
युवान ने कहा, "मेरा इंतज़ार क्यों कर रही थी? मैंने तुमसे कहा था ना सो जाना।"
यूवी ने कहा, "अब मैं अपने पिता का इंतज़ार भी नहीं कर सकती।"
युवान मुस्कुराते हुए बोला, "बिलकुल कर सकती हो, तो थोड़ा और करो, मैं अभी आया।" इतना बोलकर युवान ने तौलिया लिया और बाथरूम में चला गया। थोड़ी देर बाद युवान अपना चेहरा साफ़ करते हुए आया और तौलिया को चेयर पर रखकर यूवी के बगल में बैठ गया। "तो तुम अपने पिता का इंतज़ार कर रही थी?"
"हाँ, कर तो आपका ही इंतज़ार रही थी! लेकिन आप को कोई फर्क नहीं पड़ता।" है ना? इतना बोलकर यूवी ने युवान की बाह पकड़कर उसके कंधे पर अपना सर रख लिया।
युवान ने उसे देखा और उसकी कमर पर हाथ रखकर अपने करीब ले लिया और यूवी की आँखों में देखने लगा। यूवी भी ऐसे अचानक युवान के करीब आने से उसके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। वो लगातार युवान की आँखों में देख रही थी। युवान ने धीरे-धीरे अपना चेहरा यूवी के होठों की ओर झुकाया ही था कि अचानक उसे कुछ याद आया और उसने एक झटके के साथ यूवी को खुद से दूर कर दिया।
युवान के ऐसे अचानक दूर करने से यूवी थोड़ी परेशान हो गई थी और थोड़ी शॉक्ड भी। उसने युवान को देखा और अपनी नज़रें फेर लीं।
युवान ने कहा, "सो जाओ युवी, मुझे नींद आ रही है।"
यूवी ने कहा, "हम्मम।" इतना बोलकर यूवी लेट गई और युवान की ओर पीठ कर ली। युवान भी सो गया था, लेकिन उसकी आँखों में नींद नहीं थी। वो लगातार कुछ सोच रहा था। तो वहीं यूवी की आँखों में आँसू आ रहे थे। उसने अपने हाथ से आँखें साफ़ की और अपनी आँखों को बलपूर्वक बंद कर लिया।
क्रमशः…
यूवी बेड पर बैठी हुई थी और अपने फ़ोन में कुछ देख रही थी। तभी उसने अपने फ़ोन को बड़े गौर से देखा और पास रखी टेबल पर अपनी नज़र डाली। वहाँ युवान का लैपटॉप रखा हुआ था।
युवान भी वहीं आईने के सामने तैयार हो रहा था। वह काफी देर से यूवी को देख रहा था। उसके चेहरे पर आ रहे भावों को युवान कब से देख रहा था।
यूवी ने अपना फ़ोन बेड पर रखा। जैसे ही उसने युवान के लैपटॉप की ओर अपना हाथ बढ़ाया, उससे पहले ही युवान ने जल्दी से आगे बढ़कर उसे उठा लिया।
युवान की इस हरकत को देख यूवी ने उसे घूरा और युवान की ओर देखकर कहा, "युवान! हमें आपका लैपटॉप चाहिए।"
"रियली सॉरी यूवी... मैं मेरा लैपटॉप नहीं दे सकता। मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है।"
"अजीब-अजीब हरकतें नहीं करते तुम???"
"यूवी को अजीब नज़रों से देखते हुए... मतलब...?"
"युवान, मैं बोल नहीं रही इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे दिखाई नहीं देता या मुझे बुरा नहीं लगता। शादी के बाद तुम्हारा बिहेवियर बदल गया है। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, तुम पर और तुम्हारी सभी चीजों पर हक़ भी रखती हूँ ना? फिर तुम मुझे खुद की चीज के हाथ नहीं लगाने देते? युवान, सच में मुझसे कोई कमी है, या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ?"
"अगर मैं सच में तुम्हारे लायक नहीं हूँ तो हम अलग हो सकते हैं युवान। अभी भी बता दो। तुम बिल्कुल बदल गए हो इन कुछ दिनों में...!" "तुम्हें देखकर लगता है जैसे तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो ना...!" "युवान, अगर ऐसा कुछ भी है ना, सब क्लियर कर लो, क्योंकि बाद में ऐसा न हो कि हमारे रिश्ते में सच में कुछ न बचे.... बता दो युवान...?"
जो कब से यूवी की बातें सुन रहा था, युवान ने अपने हाथ की मुट्ठी बंद कर रखी थी। उसने एक गहरी साँस ली और आगे बढ़कर यूवी का सर पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया। "कितना सोचती हो! ऐसा कुछ नहीं है बाबा... मैं कुछ नहीं छुपाऊँगा। मेरी लाइफ में और हमारे रिश्ते में कुछ नहीं होगा। और रही बात सामान को छूने की तो यूवी, इसमें मेरे ज़रूरी काम के कागज़ हैं। अगर इधर-उधर हो गया तो... और रही बात, मैं आज तक अकेला रहा हूँ, इसलिए ऐसे अपने सामान को किसी से शेयर नहीं किया... इसलिए थोड़ा अजीब लगता है...!" "बाकी तुम बहुत ज़्यादा सोच रही थी बाबा.... तुमसे दूर नहीं रहता मैं। मुझे लगा अचानक शादी होने से तुम थोड़ा परेशान होगी, इसलिए मैंने तुम्हें कभी अपने करीब आने के लिए फ़ोर्स नहीं किया।"
"हम्मम।"
"वैसे लैपटॉप से क्या काम था...?"
"कोई जॉब देख रही थी! उसकी वेबसाइट मोबाइल से ऑन नहीं हो रही थी, तो सोचा लैपटॉप से करके देखते हैं।"
युवान ने यूवी को सीधा खड़ा करके उसके चेहरे को हाथों में लेते हुए कहा, "मेरे होते हुए तुम्हें जॉब करने की क्या ज़रूरत है यार!"
"युवान, मुझे पहले ही जॉब नहीं मिल रही, ऊपर से आप ये बात मत बोलिए कि आप कमा रहे हैं तो मुझे जॉब करने की क्या ज़रूरत है... युवान, मैं आजकल की लड़की हूँ.... अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ। ऐसे अपने घरवालों या आपके पिता पर नहीं। इसलिए प्लीज़ युवान, आइंदा से ये तो मत ही बोलना कि आप जॉब कर रहे हैं तो मुझे जॉब की क्या ज़रूरत...!" "मैं फिर से बता रही हूँ, हम मिडिल क्लास लोग हैं युवान। एक इंसान की कमाई से सिर्फ़ घर चलता है, शौक पूरे नहीं होते.... अभी तो सिर्फ़ हमारी लाइफ शुरू हुई है... पूरा फ्यूचर है हमारे पास हमारा!!"
युवान ने यूवी के सर पर किस करते हुए कहा, "अच्छा लगा तुम्हें ये सब खुद के लिए करते देख... मेरे लिए, हमारे फ्यूचर के लिए ये सब सोचता देख।" "कभी-कभी लगता है, तुमसे प्यार और शादी करके, मेरी सारी खुशियाँ पूरी हो गईं, मेरी लाइफ़ में आने के लिए थैंक यू सो मच..." "बाबा, थैंक यू।" इतना बोल युवान ने यूवी के सर पर किस किया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "...शाम को मेरे साथ आइसक्रीम खाने चलोगी?"
"युवान को देखते हुए... हद है यार युवान, हम और आइसक्रीम के लिए मन कर दें, म lर जाएँगे। लेकिन जाने से पहले आइसक्रीम खाकर जाएँगे!"
"हँसते हुए.... तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती... तुम बुक हो... वो भी हर तरह से, हर जगह, हर तरफ से...!" "तुम युवान की थी, युवान की हो, युवान की ही रहोगी!"
"युवान के सीने से लगते हुए.... थैंक यू हमारी जैसी लड़की को इतना प्यार करने के लिए... इतनी ढेरों खुशियाँ हमारी झोली में भरने के लिए....! बस अब इन खुशियों को किसी की भी नज़र न लगे बाबा.... बस नज़र न लगे!"
"मन में" कैसे सच बताऊँ जब तुम्हें हकीकत मालूम हो तब तक देर न हो जाए यूवी कि हमारे अच्छे-खासे रिश्ते में दूरियाँ बन जाएँ... उनका कोई भी एक गलत कदम हमारे रिश्ते को बिगाड़ सकता है। युवान यूवी के बालों में हाथ फेर रहा था। उसने अपने हाथ यूवी की कमर पर रखे और हल्का सा प्रेशर बनाकर यूवी को हल्का सा ऊँचा किया और उसके होठों पर अपने होठ रख दिए। लेकिन कुछ ही देर में उसने यूवी के हाथों को छोड़ दिया।
यूवी की तो शर्म के मारे हालत ही ख़राब हो गई थी। उसने अभी तक एक बार भी युवान को नहीं देखा था।
"तुम्हें शर्म आ रही है यूवी... मुझसे? मुझसे कैसी शर्म? और वैसे भी हम दोनों पति-पत्नी हैं तो मुझसे मत शर्माओ....!!" "तुम्हारे गाल और नाक देखो कैसे टमाटर की तरह लाल हो गए हैं!"
युवान के बोलने पर यूवी ने पहले नाक को छुआ, फिर अपने गाल पर हाथ रखे और फिर युवान को देखा। युवान हल्का सा आगे आया और यूवी की नाक पर हल्का सा बाइट कर लिया।
"आह युवान! क्या कर रहे हो.... मुझे दर्द हुआ है ना!"
"अच्छा बाबा सॉरी.... चलो नाश्ता करते हैं फिर मुझे ऑफिस भी जाना है।"
"हाँ चलो...!" इतना बोल दोनों नीचे आ गए जहाँ सब हाल में बैठे हुए थे।
"उफ़्फ़! कब से वेट कर रहे हैं, भूख के मारे मेरे पेट में तो चूहे दौड़ रहे हैं यार!" "और तुम दोनों हो कि आने का नाम ही नहीं ले रहे थे!"
"हाँ वो युवान रेडी हो रहे थे।"
"यूवी को देखते हुए.... मैं रेडी हो रहा था या तुम मुझे होने नहीं दे रही थी!"
"युवान.... मस्त करो और ऑफिस जाओ... जब तुम ऑफिस में होते हो ना, घर में बहुत शांति होती है, बहुत सुकून मिलता है मुझे।"
"तो मुझसे शादी क्यों की, उस सुकून से कर लेती!"
"तुमने की है, मैंने नहीं... वैसे सोच रही हूँ, आइडिया बुरा नहीं है तुम्हारा.... क्या कहती हो कशिश ..?"
"बिलकुल! वैसे भी राज पर राज बने बैठे हैं ये महाशय, इससे अच्छा तुम सुकून से शादी कर लो!"
"डोंट वरी...." "यूवी सभी राजों पर से पर्दा गिरा देगी!"
"लगता है आज बातों से ही पेट भरने वाला है आप सबका?"
"मुझे लगी है भूख, लेकिन ये युवान कब से बातों में फँसा के रखा है मुझे!"
"यूवी को घूरते हुए.... मैंने कब फँसाया.... बताना ज़रा??"
"अपने एक हाथ में खाने की बाइट लेकर युवान के मुँह में डालते हुए.... गुस्सा नहीं होते पितादेव!" "जल्दी-जल्दी नाश्ता खत्म कीजिए और ऑफिस जाइए..... वरना वो चिम्पांज़ी.... आपको ऑफिस से बाहर कर देगा!"
"चिम्पांज़ी" नाम सुनकर सब यूवी को देख रहे थे। सबको ऐसे खुद को देखता देख यूवी ने चम्मच को कटोरी में रखा और वापस सबको देखते हुए कहा, "...चिम्पांज़ी को नहीं जानते आप सब???"
"सब एक साथ...." "कौन चिम्पांज़ी? कैसा चिम्पांज़ी? बात किसकी कर रही हो!"
"अरे वही चिम्पांज़ी, अरे वही बिना आँखों वाला इंसान जिसे हम में कमी दिखाई दी, हमारे काम और मेहनत को देखे बिना हमें निकाल दिया, और युवान का बॉस.... वो युवांश सिंह राठौर!" "उसी पागल बेअक़ल इंसान की बात कर रही हूँ, सच में वो हमारे सामने हो ना तो उसे यहीं मार-मार कर कचरा बना दें!"
कशिश कार्तिक और आर्यन तीनों लगातार युवान की ओर देख रहे थे, जिसका पूरा ध्यान बोलती हुई यूवी पर था। तीनों ने अपनी नज़रें युवान से हटाई और एक-दूसरे को देखकर बहुत तेज़-तेज़ हँसे।
युवान कब से यूवी की बक-बक सुन रहा था। उसने एक चम्मच लिया और यूवी के मुँह में डाल दिया।
अचानक युवान के ऐसे करने से यूवी ने अपना चेहरा युवान की ओर किया और उसे घूरते हुए देखने लगी।
"चुप हो जाओ... कितना बोलने लगी हो, मुँह दर्द नहीं करता!" "और मेरे सामने मेरे बॉस की बुराई कर रही थी!"
"तो आप और आपका बॉस मेरे ऊपर कोई कलेक्टर नहीं हैं... जिनसे मैं डर जाऊँ!"
To be continue.......