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My Devil Husband

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Kanchan Mehak Suthar

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"कोई फायदा नहीं खुद को चोट पहुंचाने का,उसके लिए मैं हूं मेरी जान,फिर क्यों मेरा काम तुम खुद कर रही हो?"इतना कह कर दूजे ही पल दुल्हन बनी उस लड़की को अयांश मेहरा ने गाड़ी के अंदर की धकेल दिया जिससे वो लड़की पीछे की तरफ जा गिरी और उसकी आह निकल पड़ी,वो दर्द...

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अयांश मेहरा

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अभिनव(अभि)

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वर्तिका

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विनित

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मालती

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आर्वी चतुर्वेदी

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Total Chapters (642)

Page 1 of 33

  • 1. My Devil Husband - Chapter 1

    Words: 1454

    Estimated Reading Time: 9 min

    मुंबई (महाराष्ट्र) एक काली, चमचमाती, लग्ज़ूरियस गाड़ी एक बड़े, आलीशान बंगले के सामने आकर रुकी। गाड़ी के लगातार तेज हॉर्न की आवाज़ से कुर्सी पर सो रहा गार्ड चौंक कर उठा। रात के दो बज रहे थे; ड्यूटी करते हुए कब उसकी आँख लग गई थी, उसे भी पता नहीं था। वह हड़बड़ाते हुए कुर्सी से उठा और डरते-घबराते हुए भागकर फट से मेन गेट खोला। गाड़ी अंदर चली गई। गार्ड गाड़ी की ओर देखते हुए थूक निगल गया और जल्दी से गेट बंद करते हुए खुद से बड़बड़ाया, "अ...अयांश सर, आज मरा मैं तो और मेरी नौकरी भी गई!" जैसे ही उसने गेट बंद कर पीछे मुड़ा, उसके सामने लाल शेरवानी पहने, सत्ताईस वर्षीय, हैंडसम, हॉट लड़का खड़ा था। उसकी नशीली आँखों में बेहद गुस्सा साफ़ झलक रहा था। हल्की दाढ़ी, हल्के भूरे बाल जो कुछ बिखरे हुए थे, माथे पर आये हुए थे। उस लुक में भी उसकी बेहद डैशिंग, परफेक्ट पर्सनैलिटी किसी को भी उस पर फिदा कर सकती थी। तभी उसने अपने बालों को पीछे की तरफ झटका और भौंहें सिकोड़ते हुए गार्ड पर गुस्से से चिल्लाया, "कहाँ मर गए थे? इतना टाइम लगता है क्या गेट खोलने में? पता है ना, जब मैं आऊँ तो मुझे फट से गेट खुला मिलना चाहिए! वेट करने की मुझे आदत नहीं और जो मुझे वेट करवाए, उसकी मुझे ज़रूरत नहीं! सो, गेट आउट!" गार्ड अयांश का गुस्सा देखकर डर गया और फट से अपने हाथ जोड़ लिए। अयांश की डाँट सुनकर गार्ड अपनी नज़रें भी झुका लेता है। वह बोलना चाह रहा था, पर उसके शब्द उसके मुँह में ही रह गए क्योंकि अयांश मेहरा के सामने बोलना और नज़रें मिलाकर बात करना आसान नहीं था। जिस शख्स की गलती हो, वह तो आँखों में आँखें डालकर बात नहीं कर सकता था, वरना अयांश मेहरा उसे नहीं छोड़ता; उसका क्या अंजाम होता, कोई नहीं जानता था! "आई से गेट आउट! कल से मुझे यहाँ दिखाई नहीं देना चाहिए! तुम समझे...? ड्यूटी के टाइम सो रहे थे? यहाँ सोने के लिए रखा है क्या मैंने तुम्हें...?" "एम सॉरी सर... मुझे माफ़ कर दीजिए! फिर से ऐसी गलती नहीं होगी! मुझे नौकरी से मत निकालिए! पता नहीं कैसे आँख लग गई! जानबूझकर नहीं किया साहब! पहली और आखरी गलती समझकर मुझे माफ़ कर दीजिए सर! आगे से कभी ऐसा नहीं होगा, कभी नहीं होगा! प्लीज़ सर!" अयांश के पैरों में पड़ा, पसीने से तर-बतर गार्ड, जिसके हाथ और होंठ दोनों काँप रहे थे, माफ़ी के लिए गिड़गिड़ाते हुए बोला। अयांश कुछ कहता, तभी उसकी गाड़ी से चिल्लाने की आवाज़ आई, जैसे कि कोई गाड़ी का शीशा पीट रहा हो! यह सुनकर अयांश ने मुड़कर गाड़ी की ओर देखा और अपने पैर गार्ड से छुड़ाकर गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोला, "जानबूझकर की हो या अनजाने में गलती, गलती गलती होती है, जिसकी कोई माफ़ी नहीं मेरी नज़र में! नेवर!" यह सुनकर गार्ड नीचे उठा और अपने हाथ से माथे पर आया पसीना पोंछते हुए खुद से बोला, "क्यों सो गया मैं? जबकि जानता हूँ इसका अंजाम... पत्थर भी पिघल जाए पैरों में पड़कर गिड़गिड़ाने पर, गलती मानने पर कोई भी थोड़ा रहम कर माफ़ कर दे, पर अयांश मेहरा नहीं! इनकी नज़र में गलती, गलती नहीं, गुनाह होती है और मुझसे गुनाह हो गया। हे भगवान! कुछ करो! मेरी नौकरी चली गई तो क्या करूँगा? यहाँ से जिसकी नौकरी चली गई, काम कहीं और मिलना बहुत मुश्किल है! अपने परिवार का खर्चा कैसे उठाऊँगा? कैसे संभालूँगा...? बस एक बार माफ़ करवा दो साहब से! फिर कसम से आज जैसी गलती नहीं होगी, कभी नहीं होगी! प्लीज़ भगवान!" अयांश गाड़ी के पास पहुँचा तो गाड़ी की पीछे वाली खिड़की से अंदर की ओर झाँका। चूड़ियों से भरे हाथ गाड़ी के शीशे को पीट रहे थे और यह बाहर से साफ़ नज़र आ रहा था कि अंदर से कोई लड़की शीशे पर बहुत तेज़ी से अपने हाथ मार रही थी। तभी अयांश ने एक ही झटके में खिड़की खोली, जिससे दुल्हन के जोड़े में बैठी लड़की बाहर की ओर गिरने लगी; अयांश ने उसे एक पल के लिए कंधों से पकड़ लिया। अयांश गाड़ी में उसकी ओर देखते हुए बोला, "कोई फ़ायदा नहीं खुद को चोट पहुँचाने का! उसके लिए मैं हूँ ना, मेरी जान! फिर क्यों मेरा काम तुम खुद कर रही हो?" इतना कहकर उसी पल उस लड़की को अयांश ने वापस गाड़ी के अंदर धकेल दिया, जिससे वह दुल्हन बनी लड़की पीछे की तरफ़ सीट पर जा गिरी और उसके मुँह से एक दर्द भरी आह निकल पड़ी। लेकिन यह देखकर भी अयांश के चेहरे के सख्त और गुस्से भरे एक्सप्रेशन ज्यों के त्यों बरकरार रहे। वह लड़की दर्द से कराह रही थी। तभी अयांश ने उससे कहा, "तुम्हारे दर्द की टीस से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला, ना ही तुम्हारी तकलीफ़ किसी से!!" यह सुनकर वह लड़की आह भरते हुए दर्द से कराहती हुई सीट से उठी। उसके दोनों हाथों पर रस्सी बंधी हुई थी। गाड़ी का शीशा पीटने की वजह से चूड़ियाँ टूटकर उसके हाथों में चुभ गई थीं, जिससे हाथ लहूलुहान हो गए थे। दर्द उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था और साथ में बेबसी भी नज़र आ रही थी। उसकी उम्र पच्चीस वर्ष थी, गोरा रंग, लाल होंठ जो दर्द की वजह से काँप रहे थे। उसने लाल शादी का जोड़ा पहना हुआ था; दुल्हन की तरह सजी-संवरी हुई थी; हाथों में लाल मेंहदी, शादी का चूड़ा, गले में मंगलसूत्र, माँग में सिंदूर, आँखों में काजल जो शायद उसके रोने पर थोड़ा बह गया था, पर फिर भी उसकी भूरी-सुनहरी बड़ी-बड़ी आँखें बहुत प्यारी लग रही थीं, पर उनमें नमी के साथ बहुत गुस्सा भी झलक रहा था। सर की चुनरी पीछे गिर चुकी थी, बालों का बना जूड़ा लूज़ हो गया था, जिससे कुछ उसके काले, घने बालों की लटें उसके माथे और गालों पर आ रही थीं। तभी वह अपने होठों को दाँतों से दबाते हुए आह भरकर अयांश की ओर गुस्से से देखते हुए चिल्लाई, "आ...आप खुद को समझते क्या हैं अयांश मेहरा? मैं कोई आपकी पसंद की चीज़ नहीं हूँ कि आप चाहें और उसे अपने घर ले आएँ! आप बहुत गलत कर रहे हैं, बहुत ज़्यादा गलत!!" वह लड़की बोल ही रही थी कि अयांश ने उसकी बाह पकड़कर उसे गाड़ी से खींचकर बाहर निकाला और अपनी गाड़ी से लगाकर उसके करीब होते हुए उसे कंधों से पकड़कर बोला, "अयांश मेहरा कभी गलत नहीं होता! आर यू अंडरस्टैंड आर्वी चतुर्वेदी!" तभी आर्वी ने उसे अपने रस्सी बंधे हाथों से पीछे धकेलकर उसे खुद से दूर कर दिया। अयांश संभलते हुए आर्वी की ओर देखते हुए चिल्लाया, "आर यू मेड!" आर्वी अयांश को अंगुली दिखाते हुए बोली, "पागल तो आप हो गए हैं! दूर रहिए मुझसे!" यह सुनकर अयांश हल्का सा मुस्कुराते हुए आर्वी की ओर झुका, "दूर तुमसे...? तुम रह सकती हो तो रह लो, बट मेरी करीबी के सिवाय तुम्हें कोई देख भी नहीं पाएगा, छूना तो दूर! और हिम्मत है तुम में मुझे रोकने की तो रोक लो, बट आई नो तुम कुछ नहीं कर सकती हो! सो जस्ट शट अप एंड कम विद मी आर्वी चतुर्वेदी!" आर्वी अयांश को घूरते हुए बोली, "नो... नो! क्या कहा था आपने? अयांश मेहरा गलत नहीं होता, उसे गलती बर्दाश्त नहीं होती यह वो... बट आप गलत हैं अयांश मेहरा! आप आज गलत हैं, आपने मेरे साथ गलत किया है। सबकी गलती नज़र आने वाले अयांश मेहरा को आज अपनी गलती नज़र नहीं आ रही है, जो किसी गुनाह से कम नहीं है! पर लगता है अपने टाइम अयांश मेहरा आँखों पर पट्टी बाँध लेता है, अपनी सोच-समझ की शक्ति खो देता है, अंधा-बहरा हो जाता है!" तभी अयांश आर्वी की बाह पकड़कर उस पर चिल्लाते हुए बोला, "आई से शट अप! वरना मुझे बुरा कोई नहीं होगा! पूरी दुनिया जानती है अयांश मेहरा गलत नहीं होता! सो जस्ट शट अप!" आर्वी अयांश को फिर पीछे धकेल देती है और उस पर गुस्से से चिल्लाते हुए बोली, "यू जस्ट शट अप एंड स्टॉप इट अयांश मेहरा! बस कीजिए! और आपसे बुरा कोई हो ही नहीं सकता है! क्या बिगाड़ा है मैंने आपका? मुझे जाने दीजिए! आप अपनी मर्ज़ी नहीं चला सकते हैं! मैं आपकी बिज़नेस की डील नहीं, ना ही आपकी पसंद की कोई चीज़ जिसे आप पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं! एम आर्वी चतुर्वेदी! आर्वी चतुर्वेदी जो आपके साथ रहना तो दूर, आपको देखना भी पसंद नहीं करती!" यह बोलकर आर्वी वहाँ से जाने लगी; अयांश ने उसकी बाह पकड़कर उसे फिर अपनी गाड़ी से लगा लिया। आर्वी गाड़ी से जोर से जा लगी, "आह!" अयांश आर्वी को छोड़ते हुए बोला, "कहाँ जाओगी तुम?" आर्वी संभलते हुए बोली, "कहीं भी, पर आपके साथ नहीं!" अयांश बोला, "मेरी परमिशन के बिना पॉसिबल ही नहीं कि तुम यहाँ से चली जाओगी!" आर्वी बोली, "डरती नहीं हूँ!" अयांश बोला, "तो डरना शुरू कर दो, बिकॉज़ एम यूअर डेविल हसबैंड!!" (क्रमशः)

  • 2. My Devil Husband - Chapter 2

    Words: 1537

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही अयांश ने कहा, "एम यूअर डेविल हसबैंड," आर्वी बोली- "आप मेरे कुछ नहीं! आप अपने रुतबे और गुस्से से सबको डरा सकते हैं, आर्वी चतुर्वेदी को नहीं, अयांश मेहरा!" (आँखों में आँखें डालकर) तभी अयांश ने उसे कंधों से कसकर पकड़ा- "तुम चाहो या ना चाहो, कुछ नहीं होने वाला! अयांश मेहरा जो चाहता है, वो होकर रहता है! या... तुम मेरी पसंद की चीज़ नहीं, नापसंद में हो तुम, और ये तुम जानती हो अच्छे से। आई हेट यू। और रही बात डील की, तो मैं कभी इतनी खराब डील नहीं करता बिज़नेस में। एनीवे, लिसिन मी, आर्वी चतुर्वेदी। चारों ओर नज़रें घुमाकर देख लो, ये अयांश मेहरा की बाउंड्री है, जो तुम्हारे लिए किसी लक्ष्मण रेखा से कम नहीं... नो, नो, अयांश रेखा, जिसे तुम पार करने की सोचोगी भी ना, तो तुम्हें मिलने वाले दर्द की लिमिट कम नहीं होगी, उल्टा दोगुना बढ़ जाएगी, जो शायद तुम सह ना पाओ! यहाँ से तुम जा पाओगी, मुझसे बच पाओगी, सोचना छोड़ दो, क्योंकि ये तुम्हारे ख्वाब में भी नहीं होगा, हकीकत तो दूर... इसलिए चुपचाप अंदर चलो। फालतू का ड्रामा मुझे नहीं चाहिए।" अयांश ने आर्वी के हाथ से रस्सी खोली और साइड में फेंक दी। आर्वी "हीश्शशश" करते हुए अपने हाथ झटकाती है, क्योंकि अयांश ने इतने ज़ोर से हाथों की रस्सी खोली कि आर्वी को बहुत दर्द हुआ। इतना कि वह अपनी आँखें भींच लेती है और होंठ दाँतों से दबा लेती है। तभी अयांश ने आर्वी के हाथों की ओर देखा, जिन पर काफ़ी चोट आई हुई थी- "कमाल है, आर्वी चतुर्वेदी! मुझसे जो मिल रहा है दर्द, उसमें कमी रह रही है क्या, जो खुद भरपाई कर रही हो, खुद को ही दर्द देकर!" आर्वी आँखें खोलकर अयांश की आँखों में आँखें डालते हुए बोली- "दर्द की बात कौन कर रहा है, बेदर्द इंसान! जिसे सिर्फ़ दूसरों को दर्द देना आता है, जिसे मलहम नाम की चीज़ का पता नहीं, उल्टा जख्मों पर नमक डालना बखूबी आता है!" यह सुनकर अयांश गुस्से से तिलमिला उठा और आर्वी का मुँह पकड़ते हुए बोला- "आदत डाल लो इस बेदर्द इंसान की, जिससे सिवाय दर्द के कुछ नहीं मिलेगा अब तुम्हारी ज़िंदगी में। दर्द ही दर्द होगा, चोट भी दर्द देगा, मलहम भी दर्द देगा!" (आर्वी का मुँह छोड़ते हुए) आर्वी बोली- "यहाँ रहूँगी तब ना... कोई पंछी नहीं हूँ, जिसे आप कैद कर लेंगे! आपकी नहीं चलेगी, अयांश मेहरा!!" तभी अयांश ने आर्वी का चेहरा कसकर अपने हाथों में भर लिया। आर्वी ने छुड़ाने की कोशिश की, पर नहीं छूट पाई- "बस ऐसे ही फड़फड़ाती रह जाओगी। मेरी थोड़ी सी पकड़ से खुद को तुम नहीं छुड़ा सकती हो। और तुम्हें क्या लगता है, तुम चली जाओगी यहाँ से? नो! अब यहीं रहना है। चाहे घर समझो या पिंजरा, तुम यहाँ कैद हो उम्र भर के लिए। इसे ही धरती समझो चलने के लिए, इसे ही उड़ान भरने का आसमान... वरना पंख कब कतरें जाएँगे, खुद भी नहीं जान पाओगी। तुम्हारी ज़िंदगी और मौत मेरे ही हाथों में है। सो चलो चुपचाप अंदर?" (आर्वी को छोड़ते हुए) आर्वी ना में सिर हिलाते हुए बोली- "नो, अयांश मेहरा, नो! मैं नहीं आऊँगी आपके साथ!" अयांश मुस्कुराते हुए बोला- "आ चुकी हो?" आर्वी बोली- "ज़बरदस्ती कर इतना खुश मत होइए! आपने कोई महान काम नहीं किया। ना पसंद में हूँ मैं आपकी, नफ़रत भी करते हैं, फिर क्यों आपने मेरे साथ ये सब किया है? क्यों मुझसे मेरी ज़िंदगी छीन ली? और क्यों आपने सक्षम को धोखा दिया है? मैं तो कुछ नहीं लगती थी आपकी, पर सक्षम, वो तो था ना आपका? फिर उसके साथ भी... उसे भी धोखा दे दिया आपने। उसके साथ भी गलत किया। एक बार भी सक्षम के बारे में नहीं सोचा? क्या बीत रही होगी उस पर आपका ये रूप देखकर? जिसको उसने खुद से ज़्यादा माना, वहीं उसके ऐसा करेगा? सक्षम ने सपने में भी नहीं सोचा होगा, पल भर में आपने उससे सब छीन लिया और ऐसा दर्द दिया है कि वो उम्र भर नहीं भर पाएगा। आज सक्षम को भी आप पर घिन आ रही होगी, सोच रहा होगा, थू थू कर रहा होगा अयांश मेहरा पर, जिस पर वो खुद से ज़्यादा भरोसा करता था, गर्व था जिस पर, उसी ने मेरा विश्वास तोड़ दिया! ... खुद को भगवान समझने वाला ये बेदर्द इंसान इतना बड़ा हैवान है आज जाना! मैंने नहीं सोचा था कि आप इस हद तक गिर जाएँगे, अयांश मेहरा!" आर्वी की ये बातें सुनकर अयांश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। उसने फिर आर्वी की बाहों को कसकर पकड़ा और अपने करीब कर धीरे से फुसफुसाते हुए बोला- "जो कहना है, कह लो। जो सोचना है, सोच लो। पर सच यही है अब कि तुमसे मैंने शादी की है। मैं तुम्हारा हसबैंड हूँ, तुम मेरी वाइफ... येस, मैं भगवान नहीं, हैवान हूँ, स्पेशली फॉर यू, माई वाइफ... वेलकम है तुम्हारा इस नरक में, जहाँ मैं चाहूँ वहीं होता है। जैसा कह रहा हूँ, वैसे रहोगी तो बेहतर होगा, थोड़े से चैन की साँस ले पाओगी। मेरी मानोगी तो ही, बट थोड़ी सी साँसें बाकी जीना दुर्भर होने वाला है तुम्हारा... खुशी कम, ग़म ज़्यादा, सुख कम, दुख ज़्यादा!" (डेविल मुस्कान के साथ) आर्वी अयांश की ओर देखते हुए बोली- "मरना मंज़ूर है मुझे, पर आपके साथ रहना, आपके घर में एक ही छत के नीचे... नेवर... नेवर, अयांश मेहरा! और आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि आपके साथ रहकर मेरे साथ क्या होगा... आपसे अच्छे की उम्मीद करना तो दूर की बात है, आपसे दूर रहने वालों को भी आप तकलीफ़ ही देते हैं। पास रहने वालों की तो क्या ही हालत होती होगी! आई नो, एक बेदर्द से सिवाय दर्द के कुछ हासिल नहीं होता। सो मैं तो सोच भी नहीं सकती कि आपके साथ मुझे चंद पल की चैन की साँस भी नसीब होगी। और ज़िंदगी तो आप दुर्भर कर ही चुके हैं मेरी। आपके साथ तिल-तिल कर जीने से अच्छा मुझे मौत आ जाए, इसी वक़्त आ जाए... मैं उससे खुश हो जाऊँगी, पर गलत इंसान के साथ नहीं रहूँगी... सुना? नहीं रहूँगी!" (चिल्लाते हुए) तभी अयांश ने आर्वी की बाहों को अपने हाथों से दबाया तो "हीश्शश्" करती वह अपनी आँखें भींच लेती है, क्योंकि उसे बहुत दर्द हो रहा था- "छोड़िए मुझे!" अपने होंठों को दाँतों से दबाते हुए आँखें खोलते हुए आर्वी ने कहा। अयांश उसे फिर गाड़ी की ओर धकेल देता है, जिससे वह गाड़ी पर जा गिरी- "आह... क्यों कर रहे हैं आप ऐसा?" (फिर अयांश की ओर देखते हुए) अयांश बोला- "अभी कहा ना, तुम्हारी ज़िंदगी भी और मौत भी मेरी मुट्ठी में है। अपनी चल रही साँसों को मेरी बदौलत समझो। तुम क्या, जब तक मैं ना चाहूँ, मौत तो क्या, कोई भी तुम्हें टच नहीं कर सकता है। सो ये मरने की बात तो मत ही करो। एंड मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता! सो चिल्लाना बंद करो, वरना ज़ुबान पर भी लगाम लगा दूँगा, जैसे तुम्हारी लाइफ़ पर लगी है। सब कुछ मेरे हाथों में है, यू नो। एंड रात भर तुम्हारी बकवास भी नहीं सुनने वाला... ना तुमसे पूछ रहा कि आओगी या नहीं... बता रहा हूँ, समझी... मेरी मानने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है तुम्हारे पास, आर्वी चतुर्वेदी। वो दरवाज़े नहीं खुलेंगे कभी (मेन गेट की ओर हाथ करते हुए), पर ये खुले हैं (घर के दरवाज़े की ओर हाथ करते हुए)। आना हो तो आ जाना, वरना मरो यहीं, यहीं तुम्हारी दुनिया है अब।" अयांश ने गार्ड को आवाज़ दी- "हे... इधर आओ!" जो अभी भी वहीं गेट के पास खड़ा था! गार्ड डरा-घबराया भागकर आया और नज़रें झुकाकर अयांश के सामने खड़ा हो गया। अयांश जोर से बोलते हुए कहा- "बस लास्ट चांस! नौकरी और जान प्यारी है तुम्हें अपनी, तो इस लड़की पर नज़र रखना, वरना... आई थिंक बताने की ज़रूरत नहीं है!" गार्ड ने बिना नज़रें उठाये हाँ में सिर हिलाया। "अब कोई गलती नहीं... जाओ, अच्छे से अपनी ड्यूटी करो!" अयांश ने गार्ड से कहा। यह सुनकर "जी साहब" कहते हुए गार्ड मेन गेट की ओर तेज़ी से बढ़ गया और खुद से मन ही मन जाते हुए बोला- "अब कोई गलती नहीं करूँगा। चलो, नौकरी बच गई... पर जान का ख़तरा है जो साहब ने कहा है, वो करना पड़ेगा... कौन है ये लड़की... मुझे क्या... मुझे ड्यूटी करनी है, नहीं तो अयांश मेहरा छोड़ेगा नहीं... सर का गुस्सा बहुत ख़तरनाक है!" (जाकर गेट के पास खड़े होते हुए) अयांश आर्वी को घूरकर वहाँ से जाने लगा कि आर्वी अयांश के सामने आकर उसे रोकते हुए अपने हाथ जोड़कर बोली- "जाने दीजिए मुझे यहाँ से, प्लीज़!" अयांश ने आर्वी के गाल पर हाथ रखा- "भूल जाओ!" आर्वी अयांश का हाथ अपने गाल से हटाते हुए पीछे हटते हुए बोली- "आप समझ क्यों नहीं रहे हैं? पत्थर दिल मत बनिए, अयांश मेहरा... भूल मैं नहीं, आप जाइए कि आप जो चाह रहे हैं, वो होगा। नहीं रहूँगी, नहीं चलेगी ज़्यादा आपकी मनमानी... आर्वी चतुर्वेदी नाम है मेरा... दुनिया को रखते होंगे आप अपने कदमों में, पर मुझ पर नहीं चलेगी आपकी, सुना आपने!" अयांश बोला- "आर्वी चतुर्वेदी नहीं... आर्वी अयांश मेहरा!" आर्वी बोली- "कभी नहीं!" अयांश बोला- "कोशिश कर लो, कर सकती हो तो। कोशिश की बजाय आदत डाल लोगी तो अच्छा रहेगा। और आज, अभी से, इसी पल से तुम आर्वी चतुर्वेदी नहीं, आर्वी अयांश मेहरा हो... आर्वी मेहरा, अंडरस्टैंड!" (क्रमशः)

  • 3. My Devil Husband - Chapter 3

    Words: 1657

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही अयांश ने आर्वी से कहा, "तुम आज से आर्वी चतुर्वेदी नहीं, आर्वी अयांश मेहरा हो। आर्वी मेहरा, समझी?" आर्वी ने कहा, "कतई नहीं! बिल्कुल नहीं!" वह दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाती हुई बोली। तभी अयांश मुस्कुराते हुए बोला, "बादाम नहीं खाए क्या कभी? या याददाश्त कमजोर है? चलो कोई बात नहीं, मैं हूँ ना याद दिलाने के लिए! और प्रॉमिस, भूलने भी नहीं दूँगा! अभी कुछ घंटे भी नहीं हुए हैं हमारी शादी को और तुम अभी से भूल गईं? यह तो गलत बात है, माय वाइफ़! ऐसे कैसे चलेगा? याद रखो अच्छे से, हमारी शादी आज ही हुई है। देखो, तुमने लाल जोड़ा पहना है, मैंने शेरवानी। शादी के कपड़े हैं हमारे, और हम यहाँ शादी करके ही आए हैं। तुम अपने ससुराल में हो, याद आया ना? हम्म, मिसेज़ मेहरा!" "शादी? कैसी शादी? झूठी शादी, धोखे से की शादी, जबरदस्ती की शादी! शादी का मतलब भी जानते हैं क्या आप? शादी दो लोगों की खुशी से, मन से, मर्ज़ी से जुड़ा एक प्यारा सा बंधन होता है, एक खूबसूरत सा ख्वाब, अहसास। जब दो लोग रस्में, कसमें, वादे निभाते हुए एक हो जाते हैं हमेशा-हमेशा के लिए। और आपको तो शादी सिर्फ़ मज़ाक लगती है! आपने जो शादी की है, वह बर्बादी है, छल किया, गलत किया है। और हाँ, जो मेरे लिए किसी बुरे ख्वाब से कम नहीं! और मैंने सीखा है, बुरे ख्वाब, बुरे ख्याल, बुरे लोगों से दूर रहो। आर्वी चतुर्वेदी बुरे सपने को कभी याद नहीं रखती, अयांश मेहरा!" आर्वी बोल ही रही थी कि तभी अयांश ने अपनी बाहें आर्वी की कमर में फँसाईं और उसे अपने करीब खींच लिया। अपने हाथ से आर्वी के बाल अपनी मुट्ठी में पकड़, उसका चेहरा अपने पास करते हुए बोला, "अब तुम्हें कुछ और याद भी नहीं रहेगा। बुरा ख्वाब और बुरा यह अयांश मेहरा तुम्हारे ज़हन में हर पल सवार रहेगा। तुम्हारी हर नस, रग-रग में सिर्फ़ मैं! चाहकर भी तुम नहीं भुला सकती हो, ना मुझे, ना हमारी आज हुई इस शादी को, चाहे जैसी भी हुई हो। और हाँ, जब लड़की की मांग में सिंदूर किसी के नाम का लग जाता है और गले में मंगलसूत्र जो ढाल देता है, तो वह उस शख्स की और उसका सरनेम उस लड़की से जुड़ जाता है। यही होता है ना शादी के बाद? सात फेरे लिए हैं मैंने तुम्हारे साथ। मैं तुम्हारा पति हूँ और तुम मिसेज़ मेहरा, मेरी पत्नी। इसका सबूत तुम्हारे गले का यह मंगलसूत्र और मांग का सिंदूर है, जो दोनों मेरे नाम के हैं। समझी?" आर्वी अयांश से दूर होने के लिए तड़प रही थी। अपने बाल छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, पर अयांश की बाहों की पकड़ इतनी मजबूत थी, उसने बाल भी कसकर पकड़े थे कि वह कसमसाती रह गई, पर छूट नहीं पाई। तभी अयांश ने बाल छोड़े और गर्दन पर हाथ रखकर आर्वी को अपने और करीब कर लिया। आर्वी अपनी आँखें भींच लेती है। "छो...छोड़िए मुझे!" "मेरे नाम से और मुझसे छूट नहीं पाओगी तुम, आर्वी मेहरा। अब तुम्हारे ख्वाबों में भी मैं ही रहूँगा, तुम्हारे ख्यालों में भी मैं। जहाँ देखोगी, जिसके बारे में सोचोगी, वह सिर्फ़ अयांश मेहरा होगा। इतना मजबूर कर दूँगा मैं तुम्हें कि तुम इसके अलावा कुछ नहीं कर पाओगी। और हाँ, यह तुम्हारी मांग का लाल सिंदूर खुशियों की सौगात नहीं, खतरे का निशान है, जो तुम अपनी मांग में रोज़ सजाओगी। याद दिलाता रहेगा तुम्हें, मुझसे खतरा है। और यह गले का मंगलसूत्र तुम्हें हमेशा अहसास दिलाएगा कि यह ऐसा फंदा है जो तुम्हारे गले से नहीं निकलेगा। राइट, मिसेज़ मेहरा!" आर्वी अपनी आँखें खोलते हुए बोली, "कैसे कोई इतना बेरहम हो सकता है? कैसे?" अयांश बोला, "बिकॉज़ आई एम योर डेविल हसबैंड!" आर्वी तड़पते हुए बोली, "आपको क्या लगता है? अब सब कुछ आपके हिसाब से होगा?" अयांश बोला, "क्या लगता है? ऐसा ही होगा! तुम्हारी साँसें भी मेरी मुट्ठी में, तुम्हारी सोच भी... तुम्हारे तन और मन दोनों पर भी मेरी चलेगी!" आर्वी बोली, "मुझे कठपुतली समझने की भूल मत कीजिए, अयांश मेहरा!" अयांश बोला, "मुझे हल्के में लेने की भूल तुम मत करना। तुम पर मुझे कभी रहम, कभी तरस नहीं आएगा!" यह सुन आर्वी की आँखें छलक गईं। वह सिसकते हुए बोली, "एक बेरहम से उम्मीद भी क्या की जा सकती है!" अयांश मुस्कुराते हुए बोला, "राइट, माय वाइफ़। इन्जॉय योर न्यू जर्नी विद मी। सुना है शादी के बाद खुशियाँ नसीब होती हैं, पर तुम तो वह बदनसीब हो जिसे मैं खैरात में भी खुशियाँ नहीं दूँगा!" यह सुन आर्वी ने गुस्से से अयांश के मुँह पर थूक दिया। "थू! खुशियाँ तो दूर, मैं आपसे भीख भी नहीं माँगूँगी!" आर्वी की इस हरकत ने अयांश को बहुत गुस्सा दिला दिया और उसने आर्वी को जोर से जमीन पर धकेल दिया। आर्वी धड़ाम से जमीन पर गिर गई। "आह!" अयांश आर्वी की ओर अंगुली करते हुए बोला, "तुम्हारी यही औक़ात है, बल्डि गर्ल!" और उसी वक़्त गुस्से की आग में तिलमिलाते हुए वहाँ से घर के अंदर चला गया। आर्वी जमीन पर गिरी तो उसकी चूड़ियाँ टूटीं, उसकी कलाई में चुभ गईं! और भी उसे चोट आई, बहुत दर्द होने लगा। पर वह वहीं जमीन पर पड़ी रोते हुए सिसकियाँ भरती रही, क्योंकि बाहरी चोट से ज़्यादा दर्द उसे अंदरूनी चोट का हो रहा था, जो अयांश और उसके कहे एक-एक लफ़्ज़ ने दिया था। उसका मन पूरी तरह छलनी कर दिया था अयांश की बेरहमी ने। अयांश तेज़ी से चलता हुआ अंदर गया तो अचानक उसके कदम हॉल के बीच रुक गए। उसने दायीं ओर गर्दन घुमाई, अपनी नज़र नीचे के सामने वाले कमरे पर डाली, जिसके दरवाज़े के बीच एक सत्तर के उम्र का बुज़ुर्ग खड़ा था। उसने सफ़ेद धोती-कुर्ता पहना था, आँखों पर गोल चश्मा, सफ़ेद सर के बाल, हाथ में छड़ी पकड़ी हुई थी! अयांश ने उनकी ओर देखा तो वह अयांश को देख मुड़कर वापस अपने कमरे में चले गए! उनकी छड़ी की आवाज़ अयांश को बाहर तक सुनाई पड़ रही थी। अयांश वहीं खड़ा कमरे की ओर देखता रहा। जैसे ही छड़ी की आवाज़ आना बंद हुई और उस कमरे की लाइट बंद हुई, वह वहाँ से सीढ़ियाँ चढ़ते ऊपर अपने कमरे में पहुँच गया। हाथ से जोर से धक्का देकर रूम का दरवाज़ा खोला, रूम में मध्यम सी लाइट जल रही थी! अयांश ने शेरवानी उतारकर रूम में जमीन पर फेंक दी और सीधा बाथरूम में चला गया और दीवार से दोनों हथेलियाँ लगाए सर झुका, शॉवर ऑन कर अयांश खड़ा हो गया। कुछ देर बाद शॉवर लेकर ब्लैक लोअर टी-शर्ट पहने अयांश बाथरूम से बाहर निकला। उसके बालों से पानी टपक रहा था, साथ उस मध्यम लाइट के बीच भी उसकी आँखों में बेहद गुस्सा दिखाई पड़ रहा था। कभी वह अपनी आँखें बड़ी कर रहा था, तो कभी भौंहें सिकोड़ रहा था। अपने दाँत भींचते हुए वह अपने कमरे में गुस्से से इधर-उधर चलने लगा। गुस्सा शायद आर्वी को लेकर था, उसकी थूकने वाली हरकत को लेकर था! तभी अयांश ने अपने गीले बालों को हाथों से पीछे किया और बेड पर जाकर ब्लैंकेट ओढ़ लेट गया। कुछ पल रूम की लाइट जलती रही, फिर अयांश हाथ बढ़ाकर लाइट बंद कर देता है। पूरे कमरे में शांति के साथ अंधेरा पसर गया। नीचे आर्वी लॉन में जमीन पर ही पड़ी थी। जमीन पर ही पड़ी आर्वी ने टसकते हुए अपनी आँखें खोलीं, अयांश के घर की ओर देखा और मन ही मन बोली, "क्यों किया इसका जवाब नहीं देंगे ये? नहीं बताएँगे कुछ? मेरे लिए जानना ज़रूरी है इनके लिए थोड़ी... मैंने ना कोई गलती की, ना गुनाह, फिर भी इतनी बड़ी सज़ा? अपनी ज़िद से मगरूर यह अयांश मेहरा मुझे नहीं जाने देगा यहाँ से, पर मुझे यहाँ नहीं रहना। जिसके भर पल के साथ से घुटन होती है, जिसके पास होने से घिन आती है, मुझे उसके घर में मुझे नहीं रहना। मेरी हार और अपनी जीत से खुश है ना आप? पर यह आपकी सबसे बड़ी हार है, सबसे बड़ी मिस्टेक।" कहते हुए आर्वी नीचे से अपनी हथेली टिकाकर उठने लगी कि वह फिर जमीन पर गिर गई। पर फिर भी वह हिम्मत कर, दर्द सहती हुई, आह भरती, टसकती नीचे से उठ खड़ी हुई और अपने हाथों से आँखों के किनारे साफ़ किए। और आसमान की ओर देखते हुए बोली, "बप्पा, क्यों बनाई तुमने यह दुनिया? दुनिया बनाई तो बनाई, इतने बेरहम, बेदर्द लोग क्यों बनाए? जिन्हें दूसरों को, क्या अपनों को भी दर्द देने में मज़ा आता है। एक बार भी जिसकी आत्मा उसे नहीं डाँटती कि अपनों को तो बख्श दे, गैर तो क्या शिकायत करे इनसे? ये तो अपने करीबी का भी बुरा हाल कर देते हैं। कैसे ऐसे लोगों को धरती पर भेजते हो? दूसरों का जीना मुश्किल में डाल देते हो, बप्पा? कहते हैं अच्छे लोगों के साथ आप कभी बुरा नहीं होने देते, फिर मेरी और सक्षम की इसमें क्या भलाई है? या हम अच्छे नहीं थे? कहते हैं जो होता है ऊपर वाले की मर्ज़ी से होता है, फिर ये नीचे वाले अपनी मर्ज़ी क्यों चलाते हैं? आप भगवान हो या ये इंसान जो खुद को ही भगवान मान बैठा है? फितरत जिसकी शैतान सी है! कौन सी परीक्षा ले रहे हो बप्पा हमारी? ज़रूरी होता है क्या अच्छे लोगों के बीच डेविल को लाना? और तो और कमाल है आपकी बनाई दुनिया में ऐसे घटिया लोग चैन से, खुशी से रहते हैं और औरों का सब कुछ छीन लेते हैं, ज़िंदगी, खुशियाँ, सुख-चैन... सब कुछ!" तभी आर्वी ने एक ही झटके में हाथ से खींच अपने गले का मंगलसूत्र निकाल लिया। "पहनूँगी तब फंदा होगा ना... नहीं चाहिए!" कहते हुए अपने दोनों हाथों से आर्वी ने मंगलसूत्र तोड़ फेंक दिया, जिसके सारे मोती बिखर गए! "नहीं चाहिए!" कहते हुए अपने हाथों से अपना सिंदूर पोछने लगी और चिल्लाते हुए बोली, "कोई मतलब नहीं है इस शादी का, इन सबका कोई मतलब नहीं! नहीं मानती मैं इस धोखे वाली झूठी शादी को, कोई मतलब नहीं इस सबका, मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता मेरे लिए ये सब। मैं जाऊँगी यहाँ से, अयांश मेहरा, इसी वक़्त!" और अपना भारी लहँगा सम्भालते हुए आर्वी मेन गेट की ओर भागने लगी कि तभी...? (क्रमशः)

  • 4. My Devil Husband - Chapter 4

    Words: 1792

    Estimated Reading Time: 11 min

    आर्वी अपना लहंगा संभालते हुए मुख्य द्वार की ओर भाग रही थी कि तभी वह लहंगे में फंसकर जोर से गिर पड़ी। "आह!" (चिल्लाते हुए)

    गार्ड ने आर्वी की ओर देखा, पर वह अपनी जगह से नहीं हिला। वह अयांश मेहरा से बहुत डरता था और उसका कुछ करना (यानी आर्वी की मदद करना) उसे खतरे में डाल सकता था। इसलिए वह अपनी जगह पर ही खड़ा रहा। उसे सिर्फ़ आर्वी पर नज़र रखने को कहा गया था और वह अयांश को कोई शिकायत का मौका नहीं देना चाहता था जिससे उसकी जान पर बन आती!

    आर्वी बड़ी मुश्किल से अपने उलझे लहंगे से खुद को निकालकर खड़ी हुई और दोनों ओर से हाथों से लहंगा थोड़ा ऊपर उठाकर मुख्य द्वार की ओर बढ़ी। मुख्य द्वार के पास तेज़ी से पहुँचकर आर्वी ने गार्ड से कहा, "भैया, प्लीज़ मुझे यहाँ से जाने दीजिए!"

    यह सुनकर गार्ड आर्वी की ओर देखते हुए बोला, "मैडम, आप अंदर जाइए!"

    आर्वी ने उसके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, "गेट खोल दीजिए ना... मैं यहाँ नहीं रह सकती, मुझे यहाँ से जाना है। प्लीज़ मेरी मदद कर दीजिए, मुझे यहाँ से जाने दीजिए। आपकी बहुत मेहरबानी होगी!"

    गार्ड ने अंदर की ओर हाथ करते हुए कहा, "आप अंदर जाइए मैडम, मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकता हूँ। आपके सामने ही अयांश सर ने मुझे आप पर नज़र रखने को कहा है और मैं उनकी बात नहीं टाल सकता हूँ। और आप कह रही हैं मैं आपको यहाँ से जाने दूँ!"

    यह सुनकर आर्वी गार्ड पर चिल्लाते हुए बोली, "मैं यहाँ मदद माँग रही हूँ आपसे, आप इंसानियत दिखाने की बजाय उस इंसान के आदेश पालन कर रहे हैं। आप भी जानते हैं वह कैसा है, फिर भी मेरी मदद करने से मना कर रहे हैं, आपके सामने ही... आपने देखा ना मेरे साथ उसका व्यवहार... जाने दीजिए, एक छोटी सी मदद कर दीजिए, प्लीज़ भैया!" (नम आँखों से)

    गार्ड ने आर्वी से नज़र हटाकर दूसरी ओर देखते हुए कहा, "मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ और ना ही मैंने कुछ देखा, ना ही सुना मैडम। प्लीज़ आप अंदर जाइए!"

    "जाने दीजिए मुझे यहाँ से, प्लीज़! मैं आपसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट कर रही हूँ। जबरदस्ती शादी की है उसने मुझसे और मुझे ऐसे घटिया इंसान के साथ नहीं रहना, मेरी ज़िंदगी का सवाल है भैया, प्लीज़!" आर्वी ने उसके आगे गिड़गिड़ाते हुए कहा।

    पर आर्वी की मदद के लिए की गई गुहार का उस गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ। वह ना कुछ बोला, ना ही गेट के सामने से हटा। तभी आर्वी ने उसे मदद नहीं करते देख, उसे अपने हाथों से पीछे धकेलते हुए कहा, "मैं यहाँ से जाऊँगी... नहीं चाहिए आपकी मदद!" कह आर्वी खुद ही गेट खोलने लगी तो गार्ड ने उसे बाहों से पकड़कर पीछे कर दिया और बोला, "मैडम, आप समझ क्यों नहीं रही हैं? अयांश सर ने आपको घर के अंदर आने की परमिशन दी है, घर से बाहर जाने की नहीं... अंदर जाइए, वरना मुझे अयांश सर को बुलाना होगा!"

    यह सुनकर आर्वी उस पर चिल्लाते हुए बोली, "आप भी बेदर्द इंसान के साथ काम कर बेदर्द हो गए क्या? आपका ज़मीर आपको नहीं धिक्कारता क्या? आपसे कोई मदद की भीख माँग रहा है और आप अपने उस अयांश मेहरा की बातें ही दोहरा रहे हैं... नहीं चाहिए मुझे उनकी परमिशन... मुझे जाना है यहाँ से, समझे आप? खोलिए गेट अभी!"

    गार्ड ने कहा, "आप क्यों जिद कर रही हैं मैडम? हम बेदर्द ना सही, पर यहाँ काम करते हैं तो मजबूर हो सकते हैं... अंदर जाइए, खुद के साथ मेरे लिए भी क्यों समस्या बढ़ाना चाहती हो? अयांश सर ने साफ़ साफ़ कहा है कि अगर मैंने उनके खिलाफ़ जाकर कुछ किया तो वो मुझे नहीं छोड़ेंगे!"

    गार्ड बोल ही रहा था तभी आर्वी घुटनों के बल रोते हुए वहीं गिर गई और हाथ जोड़ते हुए बोली, "प्लीज़ भैया, प्लीज़... आप समझो ना प्लीज़!"

    आर्वी को रोता, गिड़गिड़ाता और उसकी हालत देख गार्ड को उस पर तरस आने लगा, पर वह बेबस था, कुछ नहीं कर सकता था। इसलिए आर्वी के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिए मैडम, मेरे हाथ में कुछ नहीं... आप और मैं उनके खिलाफ़ जाएँगे तो हम दोनों की जान को खतरा है और मैंने आपको जाने दिया तो वो मुझे माफ़ नहीं करेंगे, सीधा साफ़ करवा देंगे... अयांश मेहरा उन्हें बर्दाश्त नहीं कोई उनका कहा टाले। मेरा भी परिवार है मैडम, उनका पेट पालने के लिए मैं यहाँ नौकरी करता हूँ... बड़ी मुश्किल से नौकरी जाते-जाते बची है मेरी और अगर मैंने आप जो कह रही हैं वो किया तो अंजाम बहुत बुरा होगा हम दोनों के लिए। मैं अपनी जान खतरे में नहीं डाल सकता, उनको एक पल नहीं लगेगा मेरी जान लेने को, फिर मेरे परिवार का क्या होगा? आप मुझे मेरी ड्यूटी करने दीजिए!" कहते हुए गार्ड मुँह फेरकर खड़ा हो गया।

    ये बातें सुन आर्वी ने नज़रें ऊपर उठाकर उसकी ओर देखा और अपने आँसू पोछते हुए मन ही मन नीचे से उठते हुए बोली, "सही तो कह रहे हैं ये आर्वी, तू अपनी जान बचाने के लिए इनकी जान खतरे में नहीं डाल सकती है... ये भी मजबूर हैं, इन्हें भी डर लगता है उनसे, करें भी कैसे मदद तेरी, चाहे भी तो नहीं कर सकते हैं! अयांश मेहरा की हैवानियत के आगे कहाँ किसी की इंसानियत बाहर आएगी?" कहते हुए आर्वी ने एक नज़र गेट पर डाली और फिर वहाँ से मुड़कर वापस लॉन की ओर बढ़ गई।

    गार्ड ने मुड़कर आर्वी की ओर देखा और मन ही मन खुद से बोला, "हे भगवान! मैं तो कुछ नहीं कर सकता हूँ पर आप तो कुछ कीजिए इनकी मदद, क्योंकि यहाँ तो अयांश मेहरा के अलावा किसी की नहीं चलेगी। इनकी थोड़ी सी मदद मेरे लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती है!" (बेचारी भरी नज़रों से आर्वी को जाते देख)

    आर्वी धीरे-धीरे चलते हुए लॉन के एक पेड़ के पास चली गई और उससे सटकर जमीन पर बैठ गई। "कैसे कोई इतना निर्दयी हो सकता है? सब पर ज़ुल्म करते हैं और कोई उनके आगे उफ़ भी नहीं कर सकता है। पर मैं आपकी जिद के आगे घुटने नहीं टेकूंगी अयांश मेहरा, नहीं हार मानूंगी, आपका जुल्म नहीं सहूंगी क्योंकि जुल्म करने वाले से ज़्यादा जुल्म सहने वाला गुनाहगार होता है। कोई समझे ना समझे पर मैं समझती हूँ और आपको मैं अपने साथ ज़्यादा गलत नहीं करने दूँगी, फिर चाहे जो भी हो जाए!" (नम आँखों से अयांश के घर की ओर देखते हुए)

    तभी आर्वी अपने घुटनों पर सिर रखकर बैठ गई और आँखें बंद कर अयांश से बचने के लिए सोचने लगी। सोचते-सोचते कुछ देर बाद उसकी आँख लग गई और वह वहीं पेड़ से सटकर सोती रही।

    दो घंटे बाद ही सुबह हो गई। रात का अंधेरा हटकर सुबह की लाली चारों ओर बिखरी हुई थी। थोड़ी-थोड़ी सुहावनी हवा चल रही थी। मार्च का महीना था, सुबह-सुबह थोड़ा ठंडा मौसम भी था। सुबह के पाँच बज रहे थे। गार्ड गेट पर खड़ा अपनी ड्यूटी कर रहा था। तभी अयांश अपना व्हाइट ट्रैक सूट, स्पोर्ट्स शूज़, आँखों पर काला चश्मा पहने, कानों में ब्लूटूथ लगाए अंदर से भागता हुआ बाहर आया। यह समय अयांश का अक्सर वॉकिंग और जिम जाने का था जो उसके डेली रूटीन में शामिल होता था। जैसे ही वह बाहर आया, उसकी नज़र आर्वी पर पड़ी जो वहीं पेड़ के पास जमीन पर ही घुटने पेट से लगाए दुबके सो रही थी। सुबह की ठंड में और ठंडी घास पर लेटी आर्वी नींद में थोड़ा-थोड़ा ठिठुर भी रही थी। अयांश के चेहरे पर बिल्कुल भी दया के भाव नहीं आए, आर्वी को उस हालत में देख वह थोड़ी दूरी पर सामान्य प्रतिक्रिया लिए खड़ा रहा। तभी अयांश ने अपनी आँखों से अपने बाएँ हाथ से चश्मा उतार आर्वी की ओर गुस्से से देखते हुए कहा, "तुम्हें मखमली बिस्तर रास नहीं आता ना माय वाइफ़? तुम्हारी औकात यही है!" (चश्मा पकड़े हाथ से ही जमीन की ओर इशारा करते हुए) और फिर वापस आँखों पर चश्मा चढ़ाकर बाहर की ओर बढ़ा। उसे आते देख गार्ड ने फट से गेट खोल दिया।

    अयांश उसके पास रुकते हुए बोला, "नज़र रखना, मैं वॉक पर जा रहा हूँ!"

    "जी साहब!" गार्ड ने नज़रें झुकाए हुए ही बोला और अयांश वहाँ से चला गया।

    गार्ड ने फिर जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया।

    अयांश एक घंटे बाद घर वापस लौटा। तो अयांश ने देखा कि आर्वी अभी तक वहीं सो रही है। यह देख अयांश खुद से मुस्कुराते हुए बोला, "कोई इतने चैन से कैसे सो सकता है, वो भी अभी तक? मेरे रहते नॉट पॉसिबल!" तभी अयांश की नज़र उसके ड्राइवर पर पड़ी जो उसकी गाड़ी धो रहा था। अयांश उसकी ओर बढ़ा और अपने आँखों से चश्मा उतार उसे पकड़ाते हुए उसके पास से पाइप ले लिया।

    ड्राइवर ने अयांश से पूछा, "सर?"

    अयांश ने उसकी ओर घूरकर देखा तो उसने अपनी नज़रें झुका ली और आर्वी की ओर पाइप हाथ में लिए बढ़ा। आर्वी के पास पहुँच उसकी ओर पाइप करते हुए खुद से बोला, "गुड मॉर्निंग विद बेड डे माय वाइफ़!" और उस पर पाइप चला दी।

    जैसे ही आर्वी पर पानी गिरा, अयांश की इस हरकत से अनजान वह चौंककर उठ बैठी। अचानक ही पानी गिरने और ऊपर से ठंडा पानी तो आर्वी सुबकियाँ भरने लगी। लगातार अयांश उस पर पानी गिराता रहा, वह सुबकियाँ भरते ठंडे पानी से बचने के लिए अपने हाथ आगे करने लगी पर ना बच पाई। तभी अपने हाथों के बीच से उसने लगातार अपनी पलकें झपकते सामने देखा तो अयांश डेविल मुस्कान होठों पर बिखेरे उस पर पानी गिरा रहा था। उसे देख साफ़ लग रहा था कि उसे कितना मज़ा आ रहा है। "क... क्या कर रहे हैं आप?" (कंपकपाते होठों से दबी आवाज़ में)

    पर अयांश कुछ नहीं बोला, पानी गिराना उसने लगातार आर्वी पर जारी रखा। उसने तभी गार्ड और ड्राइवर की ओर देखा जो हैरानी से अयांश की ओर देख रहे थे, पर तभी अयांश को भौंहें सिकोड़ते गुस्से से अपनी ओर देखते देख ड्राइवर गाड़ी पोछने में लग गया और गार्ड मुड़कर गेट की ओर अपनी ड्यूटी करने लगा।

    तभी आर्वी ठंडे पानी से ठिठुरते हुए नीचे से उठी और पीछे कदम लेते हुए अयांश पर चिल्लाते हुए बोली, "आपका दिमाग खराब हो गया है!"

    अयांश आर्वी की ओर बढ़ते हुए बोला, "मेरा तो पता नहीं, तुम्हारा तो सब खराब हो गया! यूअर ड्रीम्स, यूअर लाइफ़..." और फिर आर्वी पर मुस्कुराते हुए पानी गिराने लगा।

    आर्वी ठंडे पानी से बचने की कोशिश करते हुए बोली, "स्टॉप इट अयांश मेहरा!"

    अयांश बोला, "अभी तो शुरुआत है मिसेज़ मेहरा... आगे-आगे देखो तुम्हारी ख़ुशियों, तुम्हारी ख्वाइशों, तुम्हारे अरमानों पर कैसे पानी फेरता हूँ, यूअर डेविल हसबैंड, लाइक यू! जैसे अभी तुम पानी-पानी हो गई हो, वैसे सब पानी-पानी होकर बह जाएगा!" (हँसते हुए)

    तभी आर्वी ने खुद की ओर देखा, वह पूरी तरह भीग चुकी थी। उसके बालों से पानी पड़ रहा था, उसके कपड़े पूरे गीले हो चुके थे और अयांश उस पर अभी भी पानी गिराए जा रहा था। तभी आर्वी पेड़ के पीछे हो गई और गुस्से से बोली, "क्यों किया आपने ये सब?"

    तभी अयांश ने अपने हाथ में पकड़ी पाइप जमीन पर फेंक दी और आर्वी की ओर देखते हुए बोला, "कोई बड़े चैन से सो रहा था, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। जिसका सुख, चैन, नींद सब मैं छीनना चाहता हूँ, वो आराम से सोये कैसे हो सकता है? ऐसे नहीं होना चाहिए ना? मैं उठ चुका हूँ और मेरी वाइफ़ सोती रहे, ये तो गलत बात है ना? और गलती अयांश मेहरा कतई बर्दाश्त नहीं करता, समझी!" (भौंहें ऊपर चढ़ाते हुए)

    (क्रमशः)

  • 5. My Devil Husband - Chapter 5

    Words: 1518

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैसे ही अयांश ने कहा, "मैं उठ चुका हूँ और मेरी वाइफ़ सोती रहे, ये तो गलत बात है ना? और गलती अयांश मेहरा कतई बर्दाश्त नहीं करता, समझी!" (भौंहें ऊपर चढ़ाते हुए)


    आर्वी तब पेड़ के पीछे खड़ी थी। पर अयांश की यह बात सुनकर और देखकर कि अयांश के हाथ में पानी की पाइप नहीं है, वह अपने हाथों से अपनी बाहें मसलते हुए अयांश के सामने आई। भीगने से वह ठिठुर रही थी, होंठ भी उसके काँप रहे थे। वह अपने हाथों से अपनी बाहें बारी-बारी मसल रही थी! आर्वी की ऐसी हालत देख अयांश हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला, "चक चक चक!" (अफ़सोस जताते हुए)


    आर्वी अयांश की ओर देखते हुए बोली, "बड़े खुश हो रहे हैं ना आप यह सब करके? गलती आपको बर्दाश्त नहीं है ना? कल ही सबसे बड़ी गलती की है आपने और उसके बाद गलती पर गलती किए ही जा रहे हैं। पर अपना किया सबको सही ही लगता है। खुद को कौन गलत कहता है, मिस्टर मेहरा? और आप में तो इतनी हिम्मत भी नहीं है कि गलत कर गलती मान लें, क्योंकि उसके लिए तो खुद को गलत कहना होगा, झुकना होगा और यह सब अयांश मेहरा से कहाँ होगा। पर गलतफ़हमी भी मत रखिए कि आपकी इन हरकतों से आर्वी चतुर्वेदी डर जाएगी, आपके सामने झुक जाएगी, आपकी घटिया जिद के आगे पिघल जाएगी और आप जैसा चाहेंगे वैसा मैं करूँगी, नेवर मिस्टर मेहरा! आर्वी चतुर्वेदी अपनी गलती मानकर झुकने वालों में से है, पर बिना गलती किए गलत के आगे झुकने वालों में से नहीं। और क्या बोला आपने अभी? पति आप मेरे कभी नहीं, अयांश मेहरा देखिए! ना तो आपका डाला हुआ मंगलसूत्र है मेरे गले में और ना ही मेरी मांग में आपके नाम का सिंदूर।" (अपने माथे की ओर हाथ करते हुए) "ये देखिए!" (मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ अयांश के सामने करते हुए) "मेरे हाथों में मेरे प्यार के नाम की यह मेहँदी है।"


    यह सुनते ही अयांश ने आर्वी के गले की ओर देखा जिसमें मंगलसूत्र नहीं था और फिर मांग की ओर जिसमें सिंदूर भी नहीं था। कुछ तो आर्वी कल रात ही सिंदूर पोछ चुकी थी और बाकी अयांश ने पानी डाला तो धुल गया था!


    अयांश को अपनी ओर देखते देख आर्वी अपने हाथों की ओर देखते हुए फिर बोली, "आपसे जो शादी हुई है, जो आपने धोखे से की है, उसका कोई मतलब नहीं मेरे लिए, कोई मायने नहीं। मतलब है तो मुझे मेरे हाथ की इस मेहँदी से, जिसका रंग इतना गहरा है (देखिए) कि मेरे प्यार की गवाही दे रहा है और मायने रखता है तो मेरे लिए मेरा दिल, जिसने सिर्फ मेरे प्यार से नाता जोड़ा है! और हाँ, आपका जोड़ा झूठा रिश्ता उस दिल के रिश्ते को कभी नहीं तोड़ पाएगा, ना उसकी जगह ले पाएगा। आपके भरे सिंदूर की तरह मेरी मेहँदी का रंग कच्चा नहीं जो पानी डालने से धुल जाएगा। मेरे प्यार की डोर आपके डाले मंगलसूत्र जितनी नाजुक नहीं कि खींचते ही टूटकर बिखर जाएगी। आपकी कोई भी हरकत ना तो मेरे हाथों से मेहँदी का रंग उतार सकती है ना ही मेरे दिल से मेरे प्यार का रंग मिटा सकती है। और आपने तो सुना ही होगा ना कि जब कोई रंग पहले से चढ़ा हो तो दूसरा रंग चढ़ना बेहद मुश्किल है। जब पहले से ही किसी की बन चुकी हूँ तो आपकी कैसे हो सकती हूँ!" (अयांश की आँखों में आँखें डालकर)


    आर्वी की ये बातें अयांश का गुस्सा बढ़ा चुकी थीं। वह गुस्से से तिलमिलाते हुए आर्वी की ओर बढ़ा और उसे कंधों से पकड़कर पीछे पेड़ से लगा लिया! अयांश ने उसकी बाहें अपने हाथों में कसकर पकड़ी थीं, पर आर्वी उसकी पकड़ से हो रहे दर्द को दिखाने की बजाये मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखे जा रही थी, मानो उसे अयांश के दिए जा रहे दर्द-तकलीफ़ से कोई फ़र्क न पड़ रहा हो।


    तभी अयांश उसके करीब होते हुए अपने दाँत भींचते हुए गुस्से से बोला, "तुम्हें क्या लगता है? तुमने अभी जो कहा और जैसे तुम खुद को मुझे दिखा रही हो कि मैं कुछ भी करूँ तुम्हारे साथ, तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता! आर्वी, तुम इतनी स्ट्राँग नहीं हो जितनी तुम कोशिश कर रही हो बनने की। मेरे आगे तुम्हारी हर कोशिश बेकार होगी और फ़र्क मुझे नहीं पड़ेगा, ना पड़ रहा है कि तुम्हारे गले में मंगलसूत्र नहीं या तुम्हारी मांग में मेरे नाम का सिंदूर नहीं, क्योंकि यह मेरे लिए सब बकवास है। पर इस सब से तुम यह हकीक़त नहीं बदल पाओगी कि मैंने तुमसे शादी की है और मैं तुम्हारा पति हूँ। वैसे तो इन प्यार, शादी के नाम से मुझे बेहद नफ़रत है। मुझे ये रस्में वगैरह फ़ालतू की चीज़ें पसंद नहीं। मैंने अगर तुमसे शादी की है तो बस तुम्हें बंदिश में रखने के लिए। दुनिया ने देखा है इस शादी को तो तुम चाहो तो भी नहीं झुठला सकती हो और न कह सकती कि शादी नहीं हुई हमारी। हमारे इस रिश्ते को नकार नहीं पाओगी तुम, कभी नहीं, चाहे फिर जैसा भी हो यह रिश्ता, बेनाम हो, जो एक शादी के रिश्ते में होता है वह यहाँ न हो, पर अब सच यही है कि तुम अब आर्वी मेहरा हो और तुम्हारी नज़र में ना सही पूरी दुनिया की नज़र में मैं तुम्हारा पति हूँ और तुम मेरी पत्नी। और अब तुम मेरे पास हो और मुझे बस यही चाहिए, यू आर माइन। चाहता तो तुम्हें बिना शादी किए भी मैं यहाँ ला सकता था और मुझे कोई रोक भी नहीं पाता, पर मुझे मेरी रेपुटेशन बहुत प्यारी है और तुम्हारी वजह से मैं उस पर कोई आँच नहीं आने दे सकता था। एक बेचारी लड़की पर ऐसा जुल्म, यह वो लोगों को, मीडिया को मौका मिल जाता मुझ पर सवाल उठाने का और यू नो, मैं फ़ालतू लोगों को जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता। सो बस वो तमाशा किया शादी वाला और तुम मजबूर हो ही गई मेरे साथ आने को, राइट? और मैं खुद जो चाहता था वो हो गया, दैट्स इट!" (गुस्से से आर्वी को घूरते हुए)


    तभी आर्वी बोली, "तो... तो क्यों किया? क्यों की शादी? क्यों किया मुझे मजबूर? क्यों ज़बरदस्ती मुझे लेकर आए यहाँ? शादी एक खेल था ना? तो कैसे हुए आप मेरे पति? मैं आपकी पत्नी? खेल तो ख़त्म हो गया, जाने दो मुझे यहाँ से। और यहाँ तो दुनिया भी नहीं है तो किसे दिखा रहे हैं अब आप कि आपने मुझसे शादी की है? क्यों अपना हक़ जता रहे हैं? क्यों रहूँ मैं यहाँ?"


    अयांश तभी आर्वी को अपने और करीब करते हुए बोला, "बता नहीं रहा हूँ सिर्फ़ तुम्हें कि तुम पर मैंने एहसान किया है यह शादी करके, मेरा सरनेम दिया है तुम्हें। हमेशा यहीं कैद रखने के लिए, और यहीं रहना है इन चार दीवारों के बीच, चाहे जिस हालत में रहो और मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता। मेरी मर्ज़ी थी जो जैसा मैंने किया और आगे भी वैसे ही होगा जो मैं चाहूँगा। शादी का खेल ना खेलता तब भी तुम यहीं होतीं, माई वाइफ़। और उस खेल को अब सच मान लो। अब मैं यह खेल लाइफ़टाइम खेलने वाला हूँ तुम्हारे साथ। पता है क्यों? बड़ा मज़ा आ रहा है, इट्स वेरी इंटरेस्टिंग!" (मुस्कुराते हुए)


    आर्वी: "किस बात की सज़ा मुझे दे रहे हैं आप? दुनिया को दिखाने के लिए, अपनी रेपुटेशन के लिए वो तमाशा किया, पर किया क्यों? सब कुछ बता दिया, ये, वो, ऐसा है, वैसा है, आगे क्या होगा यह भी... पर जो हुआ उसका रीज़न भी बताओ ना!" (चिल्लाते हुए)


    अयांश: "इस सवाल के जवाब के लिए तुम तड़पती रह जाओगी, कभी नहीं मिलेगा। और हाँ, क्या कहा तुम्हारे दिल पर तुम्हारे प्यार का रंग चढ़ा है... तो सुनो, मेरा रंग तुम्हारे रोम-रोम पर चढ़ेगा। मेरा नाम तुम्हारी मेहँदी में बेशक फ़िलहाल न हो, क्योंकि तुम्हारी यह (आर्वी के हाथ अपने हाथ लेते हुए) मेहँदी का रंग सच में कच्चा है, आज नहीं तो कल उतर जाएगा आर्वी, पर मेरा रंग इतना कच्चा नहीं होगा। सो माई वाइफ़, मेरे रंग में रंगने के लिए रेडी हो जाओ। तुम्हारी रग-रग पर अब एक ही नाम होगा, अयांश मेहरा। तुम्हारी नस-नस में एक ही सुरूर रहेगा, अयांश मेहरा का, अंडरस्टैंड? जितनी जल्दी तुम यह बात समझ लो उतना ठीक रहेगा आर्वी। और हाँ, अब मैं हूँ सब कुछ तुम्हारा और तुम सिर्फ़ मेरी। किसी गैर का ज़िक्र तो क्या, ख्याल भी दिखाना ना तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तुम पर सिर्फ़ अयांश मेहरा का हक़ है और अयांश अपनी चीज़ें दूसरों को देना तो दूर, एक नज़र भी डालने नहीं देता किसी को भी। सो सब भूलकर, मुझे याद रखो, ओनली मुझे... और अपना यह फ़ालतू का ड्रामा बंद करो, प्यार वगैरह। सहारा लेना है तो किसी और को अपनी ताक़त बनाओ जो मुझसे लड़ने के लिए तुम काबिल हो सको। दिल, प्यार जैसी कमज़ोर चीज़ें मेरे आगे टिकने वाली भी नहीं। तुम्हारे और मेरे बीच अब कोई नहीं आ सकता है, यह ख्याल निकाल दो यहाँ से। जा पाओगी या कोई तुम्हें ले जाएगा मुझसे बचाकर? और एक बात जो तुम भी न जानती, तुम्हारे बारे में मैं बता देता हूँ, तुम दुनिया की सबसे कमज़ोर लड़की हो, सबसे कमज़ोर!"


    यह कहते हुए अयांश ने एक ही झटके में आर्वी को जोर से धक्का देते हुए छोड़ दिया कि वह पीछे पेड़ से जा लगी! आर्वी का सिर पेड़ से इतनी जोर से लगा कि उसकी आह निकल गई। उसकी बाहें भी पेड़ से टकरा गई थीं जिस वजह से खरोंच आने से आर्वी के हाथ पर चोट आ गई!


    (क्रमशः)

  • 6. My Devil Husband - Chapter 6

    Words: 1613

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्वी आह भरी और खुद को संभालते हुए अपने हाथों से सर मसला। उसकी आँखें नम थीं। उसने खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश की, दर्द छिपाकर मुस्कुराई, पर अयांश की घटिया बातें और बेरहम रवैया ने उसका दिल छलनी कर दिया था। अयांश का उसे 'कमजोर लड़की' कहना आर्वी के आँसुओं का बाँध तोड़ गया।


    "चक चक चक," अयांश ने आर्वी की ओर देखते हुए कहा, "क्या हुआ? कहाँ गई हिम्मत? कहाँ गई मुस्कराहट? सच चुभता है, और मेरा हर लफ्ज़ तुम्हें चुभेगा ही। ये बहुत गहरा जख्म देगा, ऐसा दर्द कि तुम्हारे आँसुओं से भी वो कम नहीं होगा। तुम कितनी भी मजबूत बनो, मुझसे नहीं जीत पाओगी!"


    आर्वी ने अपने गालों के आँसू पोछते हुए कहा, "आँसुओं से दर्द कम नहीं होता, बस मन हल्का हो जाता है। मेरी हिम्मत नहीं टूटी है। आपसे लड़ने के लिए मुझे किसी सहारे की ज़रूरत नहीं, मेरा मज़बूत इरादा ही काफी है। आप कुछ भी कर लीजिए, आपके कहने से मैं कमज़ोर नहीं होने वाली!"


    ये सुनकर अयांश मुस्कराया (एक शैतानी मुस्कान)। "तुम्हारे आँसू, तुम्हारी बेबसी... तुम्हारी हर चीज़ तुम्हारी कमज़ोरी है!"


    "मेरी हिम्मत टूटे या न टूटे, पर आपका घमंड ज़रूर टूटेगा, अयांश मेहरा!" आर्वी ने कहा।


    अयांश आर्वी को इस तरह बात करते देख उस पर चिल्लाया, "जस्ट शट अप एंड लिसिन! तुम्हारी किस्मत अब मैं लिखूँगा, माई वाईफ आर्वी मेहरा!"


    "आई एम नॉट आर्वी मेहरा, आई एम आर्वी चतुर्वेदी, और मैं अपनी किस्मत खुद लिखती हूँ!"


    ये सुनकर अयांश आर्वी के करीब आया और उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे अपने पास खींचा। "राइट वाईफ, तुम अपनी किस्मत खुद लिखती हो, और जो हुआ है, वो तुम्हारी ही करनी है। पर अब मैं लिखूँगा तुम्हारी किस्मत। तुम्हारा हर पल अयांश मेहरा द्वारा लिखा जाएगा। तुम बहुत खराब राइटर हो यार! अब देखना, तुम्हारी कहानी में कितना मज़ा आएगा, और वो मज़ा सिर्फ़ मुझे आएगा, द ग्रेट अयांश मेहरा को! अब मैं लिखूँगा, तो मज़ा भी मैं ही लूँगा, है ना?" उसने आर्वी के गीले बालों को उसके चेहरे से हटाते हुए कहा।


    आर्वी को अयांश का स्पर्श पसंद नहीं आया। वो खुद को उससे दूर करना चाहती थी, पर अयांश की पकड़ से छूट पाना मुश्किल था। आर्वी के कसमसाते देख अयांश मुस्कुरा रहा था। तभी उसकी नज़र आर्वी के हाथों पर गई, जिनसे वो अयांश को दूर करने की कोशिश कर रही थी। आर्वी के हाथों की मेंहदी में अयांश ने मेंहदी के बीच लिखे 'S' नाम पर देखा, जिससे उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसने आर्वी को छोड़ा और वहाँ से चला गया।


    आर्वी बहुत उदास हो गई और सोचने लगी, "कितना बुरा इंसान है! क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा है। ऐसा गंदा खेल खेला है अयांश मेहरा ने, पर क्यों? कैसे जानूँ? कैसे निकलूँ इस नर्क से? इस शख्स से दूर कैसे जाऊँ? नहीं रहा जाएगा ऐसे। मुझसे यहाँ कोई मदद को भी नहीं है। अगर माँगूँ भी मदद, तो मेरी मदद करने वाले खुद फँस जाएँगे।" वो गार्ड की ओर देखती हुई बोली। फिर उसने अपने हाथों की ओर देखा और दोनों हाथ जोड़कर अपनी मेंहदी को देखा। एक पल मेंहदी देख वो खुश हुई और दोनों हाथों के बीच लिखे 'S' शब्द की ओर देखते हुए बोली, "कहाँ हो तुम?"


    फिर खुद से मन ही मन बोली, "कितना अच्छा था सब! कितना खूबसूरत था! क्या-क्या नहीं सोचा था मैंने! शादी मेरी ज़िंदगी का एक नया मोड़ था, जिसके लिए मैं बहुत खुश, एक्साइटेड थी, और उस नए बदलाव का बेसब्री से इंतज़ार था। यकीन था कि शादी के बाद सब कुछ बहुत प्यारा होने वाला है। कितने ख़्वाब देखे थे जो हकीकत बनने वाले थे! पर ऐसा होगा, सोचा न था। ये तो मेरे सपने नहीं थे। ऐसा तो मैंने कोई ख़्वाब न संजोया था, न कुछ चाहा था, न माँगा था। शादी जो तेरे लिए आर्वी एक ब्यूटीफुल ड्रीम था, उस ड्रीम की हकीकत इतनी भयानक और बुरी होगी, ख़्याल में भी न सोचा था मैंने!"


    तभी अचानक पीछे से उसके हाथों पर कुछ गिरा। वो चौंक कर चीख उठी और हाथ झटकते हुए लहंगे में लड़खड़ा गई पीछे। उसके हाथ पर जो गिरा था, वो एक छिपकली थी। उसे देख वो चीखते हुए इधर-उधर कूदने लगी और "हीश्शश्श" करते हुए उसे दूर भगाने लगी। तभी एक और छिपकली उस पर आ गिरी और आर्वी डर के मारे फिर चीख उठी!


    पीछे खड़े अयांश ने उसकी बाह पकड़ उसे अपनी ओर घुमाया, पर आर्वी ने उसकी ओर नहीं देखा, बल्कि वापस पीछे मुड़कर डरी-सहमी सी छिपकली को देखने लगी। आर्वी छिपकली से बहुत डरती थी। उसका डर से बुरा हाल हो रहा था। वो "हीश्श" किए जा रही थी। एक छिपकली पेड़ पर चढ़ गई और दूसरी घास में चली गई। आर्वी डरी हुई निगाहों से उन्हें ढूंढ रही थी कहीं वापस न आ जाएँ। तभी अयांश पीछे खड़ा जोर से बोला, "तुम्हारे लहंगे पर छिपकली?"


    ये सुन आर्वी जोर से चीखी और घास से निकलकर फ्लोर पर आ गई, पर उसी वक्त पाईप से गिरे पानी के कारण फिसल कर धड़ाम से गिर गई। "आह!" (दर्द भरी जोर की चीख)


    गिरने से आर्वी की दोनों कोहनियाँ बुरी तरह छिल गईं और हाथ की चूड़ियाँ भी टूट गई थीं। ऐसी हालत देख किसी को भी उस पर तरस आ जाता। वहाँ मौजूद लोगों को तरस भी आ रहा था। गार्ड का तो मन हुआ कि जाकर आर्वी को उठाने में मदद कर दे, पर अयांश ने सबकी ओर एक बार घूरकर देखा तो सबने अपनी नज़रें आर्वी से हटा लीं और अपना काम करने लगे। पास में ये सब हो रहा था, पर अयांश के डर ने सबको बेखबर बना दिया था। सबका दिल बैठ रहा था आर्वी के साथ ये सब होते देख, पर अयांश मेहरा के आगे सब पत्थर दिल हो गए। अयांश की मौजूदगी ने किसी को भी आर्वी की ओर बढ़ने नहीं दिया।


    आर्वी बड़ी मुश्किल से नीचे से उठी और अपना लहंगा झाड़ा। लहंगा झाड़ते उसकी नज़र अयांश पर गई। वो हाथ बाँधे उसके सामने खड़ा था और मुस्कुरा भी रहा था।


    "ये हरकत भी आपकी ही है ना? और किसकी हो सकती है? आपसे न डरी तो आप छिपकली ले आए मुझे डराने के लिए!" आर्वी गुस्से से बोली (अचानक हुआ तो आर्वी समझ न पाई कि ये अयांश ने जानबूझकर किया है!)


    अयांश आर्वी की ओर बढ़ते हुए बोला, "कमाल की बात है! मैं जो तुम्हारे लिए बहुत खतरनाक हूँ, मुझसे डरने की बजाय तुम मामूली सी छिपकली से डरती हो, जिससे तुम्हें कोई नुकसान भी नहीं है। हद है! इंसान से डरती नहीं, छोटे से जानवर से डरती हो! सच में तुम लड़कियाँ भी ना! चक चक चक" (अफ़सोस जताते हुए)


    "आप और इंसान... हैवान हैं आप! मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था, ऐसी ओछी हरकत आप ही कर सकते हैं। एक पल लगा पेड़ से गिरी है, पर अब पता चला कि ये सब धरा आपका ही है!" आर्वी ने कहा।


    "येस माई वाईफ! तुम्हारे साथ जो होगा, वो मेरा किया ही होगा। डरपोक लड़की!" अयांश हँसते हुए बोला।


    "हाँ, डरती हूँ मैं छिपकली से, फ़ोबिया है मुझे, बट ओनली छिपकली से डर लगता है और किसी से नहीं। सच है ये छिपकली नुकसान नहीं पहुँचाती है, और जानवर अच्छे होते हैं इंसानों के अंदर छिपे हैवानों से। पर क्या करें, लोग अपनी इंसानियत छोड़ हैवानियत पर उतर आए हैं। पर अभी जो किया आपने, इसका ये मतलब मत निकालना कि मैं आपसे डर गई!" आर्वी ने अयांश को सुनाते हुए कहा।


    अयांश आर्वी के ओर करीब होते हुए बोला, "इंसान कहो या हैवान, मुझसे डरना शुरू कर दो तुम!"


    "कभी नहीं! मैं नहीं डरती आपसे!" आर्वी ने कहा।


    "रियली? अगर तुम्हें छिपकलियों से भरे कमरे में डाल दूँ, तब भी नहीं?" अयांश ने पूछा।


    ये सुन आर्वी की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं और उसने थूक निगला। भले ही छिपकली से उसे खतरा न हो, पर मन में छिपकली को लेकर डर फैला था। अयांश की ये बात सुन उसकी डर के मारे धड़कनें बढ़ने लगीं, क्योंकि वो जान चुकी थी अयांश जिद में कुछ भी कर सकता है। "क... क्या?" (लड़खड़ाती जुबान से)


    "वही जो तुमने सुना! मैं कुछ भी कर सकता हूँ, यू नो!" अयांश ने कहा।


    आर्वी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं...नहीं, आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे। प्लीज डोंट डू दिस!"


    अयांश आर्वी के चेहरे के सामने अपनी अंगुली घुमाते हुए बोला, "हाँ हाँ, यही डर देखना है मुझे जो छिपकली के नाम से है ना, वो अयांश के नाम से होना चाहिए। हर चीज़ मेरी होनी चाहिए, ख़्याल भी और डर भी!" उसने आर्वी की बाहें कसकर दबाते हुए कहा।


    आर्वी अपनी पलकें तेज़ी से झपकाने लगी। "आ...आप ऐसा नहीं करेंगे!"


    "अब मैं ऐसा ही करूँगा। चले वाईफ!" अयांश ने आर्वी की कलाई पकड़ उसे खींचकर वहाँ से ले जाने लगा। आर्वी ने अपने कदम रोकते हुए चिल्लाई, "नहीं! छोड़ो मुझे! प्लीज छोड़ो! बचाओ! बचाओ!" (चीखते-चिल्लाते हुए)


    तभी अयांश रुका और आर्वी को एक पल के लिए अपने करीब खींचा, और दूसरे ही पल अपने हाथ से उसका मुँह दबा दिया, जिससे उसकी आवाज़ निकलना बंद हो गई। वो "ऊम्म ऊम्म" कर रही थी, पर अयांश ने उसके मुँह से एक लफ़्ज़ नहीं निकलने दिया। "बिल्कुल चुप! एक लफ़्ज़ भी नहीं निकलना चाहिए!"


    ये कहते हुए अयांश ने आर्वी के मुँह से अपना हाथ हटा लिया। आर्वी खामोशी और नम आँखों से अयांश की ओर देख रही थी। तभी अयांश अपना चेहरा उसके पास लाते हुए बोला, "बड़ा शौक है ना अपने हाथ की मेंहदी पर प्राऊड करने का? बड़ा शौक है ना हाथों की मेंहदी को निहारने का? प्यार को याद करने का? फिर से करके देखना अब। तुम वो सब फिर से करना चाहती हो? मैं तुम्हें बताता हूँ कि अयांश मेहरा क्या कर सकता है!" उसने आर्वी की बाहें कसकर पकड़ते हुए कहा।


    अयांश ने इतनी जोर से बाहें पकड़ीं कि आर्वी ने अपनी आँखें मींच लीं। अयांश की सख्त पकड़ का दर्द आर्वी के चेहरे पर साफ़ झलक रहा था। उसकी आँखों के आँसू बहकर उसके गालों पर आ गए!!


    (क्रमशः)

  • 7. My Devil Husband - Chapter 7

    Words: 1605

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्वी के आँसुओं और सिसकियों को देख अयांश ने अपने हाथों की पकड़ थोड़ी ढीली की और आर्वी के पास झुककर फुसफुसाया— "अयांश मेहरा कुछ भी कर सकता है, ये बात अपने दिमाग में बिठा लो। तुम तो क्या, भगवान भी नहीं रोक सकता मुझे। देखो, मैं तुम्हारी सारी ख्वाइशें मार चुका हूँ, तुम्हारे सारे अरमान ख़त्म हो जाएँगे, जो तुमने आज तक चाहे हैं... सब कुछ। जो मेरा है, उसे मैं दूसरों का रहने नहीं देता। हर हाल में वो मेरा होकर रहता है, जिसके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ, समझी? तुम्हारी इस मेहंदी पर मेरे नाम का टैग न हो, पर तुम पर मेरा टैग लग चुका है, वो भी मेरे ही हाथों। जो कुछ दिन का नहीं... उम्र भर नहीं हटाऊँगा!"


    आर्वी ने अपनी आँखें बंद रखीं क्योंकि अयांश उसके बहुत करीब था। उसकी पकड़ से वह छूट नहीं सकती थी और उसकी निकटता सहन नहीं हो रही थी। तभी अयांश उसके दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए बोला—
    "देखो ना, माय वाइफ! अपने ये हाथ देखो। बस कुछ दिन और, फिर तुम्हारे इन हाथों में मैं खुद अपने नाम की मेहंदी लगाऊँगा। लाल रंग से भी गहरा रंग होगा फिर तुम्हारे हाथों का, ऐसा रंग... ऐसी मेहंदी तो आज तक किसी को नहीं लगी होगी, सिर्फ़ तुम्हें लगेगी। यू आर वेरी लकी! अब अयांश मेहरा तुम्हारी लाइफ में आया है तो ये सब पॉसिबल है। फिर सबसे कहना, 'अयांश जी ये मेरी मेहंदी देखो!' मुझे क्या, सबको दिखाना और बोलना, 'माय डेविल हसबैंड के नाम की मेहंदी है।' मोहब्बत में भी रंग ऐसा नहीं आता होगा, जितना मेरी नफ़रत का आएगा, मिसेज़ मेहरा तुम्हारे हाथों पर... वाव! कांग्रेचुलेशन आर्वी! ये सबसे डिफ़रेंट शादी मुबारक हो! और शादी का पहला तोहफ़ा तुम्हें मेरी ओर से मिलने वाले ये आँसू। दुनिया का हर पति अपनी पत्नी को खुशियाँ, एक्सपेंसिव चीज़ें देता होगा, मैं तुम्हें दर्द दूँगा, जो तुम्हें अहसास दिलाएँगे, तुम मेरी हो और मेरे ख़िलाफ़ नहीं जा सकती हो!" (आर्वी को खुद से दूर धक्का देते हुए)


    एक तो आर्वी को इतनी चोट आई थी, ऊपर से अयांश की उन बातों और बर्ताव ने उन जख्मों पर नमक छिड़क दिया।


    उस वक्त आर्वी के तन और मन पर दर्द हावी हो गया। उसकी हालत बहुत बुरी हो गई, मानो वह अंदर-अंदर टूट रही हो। वह उस दर्द का घूंट पी रही थी जो उसकी तकलीफ़ बढ़ा रहा था। उसकी आवाज़ दब चुकी थी; बस उसकी सिसकियाँ और साँसों का शोर सुनाई पड़ रहा था। आँखें अभी भी बंद थीं, आँसू बहना जारी रहे। तभी अयांश आर्वी को फिर बाहों में पकड़ते हुए बोला— "आई से आँखें खोलो, जस्ट नाउ!"


    पर खोले कैसे? बंद आँखों से वह सब सह रही थी, बर्दाश्त कर रही थी। अयांश को देखना तक नहीं चाहती थी, पर अयांश कहाँ तरस खाने वाला था? उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था, न आर्वी के आँसुओं से, न दर्द से। अयांश के चेहरे पर बस गुस्से के भाव थे। वह फिर उस पर जोर से चिल्लाया— "आँखें खोलो!"


    तभी आर्वी अयांश की ओर देखते हुए अपनी आँखें खोलीं और होंठ दाँतों से दबा लिए। अयांश ने आर्वी की आँखों की ओर देखा जो लाल हो चुकी थीं। यह देख वह आर्वी के आँसू अपने हाथों से पोंछते हुए बोला— "ये आँखें गुस्से से लाल हैं या रोने से, मिसेज़ मेहरा?" (आर्वी को अपने करीब करते हुए)


    तभी आर्वी अपना चेहरा पीछे कर लेती है और सिसकियाँ भरते हुए कहती है— "अ... अयांश मेहरा! जानकर अनजान बनना कोई आपसे सीखे। खुद जख्म देने वाला उन जख्मों की वजह मुझसे पूछ रहा है। शर्म कीजिए थोड़ी तो! आपको आपके किए का अहसास भी नहीं हो रहा। किस पत्थर के बने हैं आप? बुरे से बुरा जानवर भी रहम कर लेता है चोट पहुँचाने में, पर आप तो जानवर से बदतर हैं! इतने गिरे हुए हैं कि सिर्फ़ तकलीफ़ देना आता है दूसरों को... ऐसी हरकत सिर्फ़ अयांश मेहरा ही कर सकता है और इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। भले ही आपके डर से सब चुप बैठे हों, पर उनके अंदर से आपके लिए दुआ ही निकल रही होगी, आपकी शर्मनाक हरकतों पर!!"


    इतने सब के बाद भी आर्वी को ऐसे बोलते देख— अभी भी वह उसे सुना रही है, इतने दर्द के बाद भी उसमें इतनी हिम्मत है कि आँखों में आँखें डालकर जवाब दे रही है— जहाँ उसकी आवाज़ नहीं निकलनी चाहिए थी, वहाँ आर्वी उसे बुरा-भला कह रही है। खुद का दिया दर्द तो साफ़ दिख रहा है अयांश को आर्वी के चेहरे पर, पर अयांश का डर अभी भी नहीं है आर्वी की आँखों में। ये सब अयांश आर्वी को गुस्से से घूरते हुए सोचता है।


    आर्वी—"क्या सोच रहे हैं आप? यही ना कि डर क्यों नहीं... नहीं डरती मैं आपसे। आप मुझे दर्द दे सकते हैं, डर नहीं अयांश मेहरा। आपका दिया दर्द तो मैं सह लूँगी, पर इतने सब के बाद भी डर न पैदा कर पाएँ आप, ये न सह पाएगा अयांश मेहरा! राइट!" (अपने आँसू पोंछते हुए हल्का सा मुस्कुराते हुए)


    अयांश तभी आर्वी का मुँह पकड़ लेता है— "बहुत जुबान चल रही है ना? जस्ट शट अप! रस्सी जल गई पर बल न गया... एक पल नहीं लगेगा तुम्हारी ये जुबान काटकर फेंकने में!"


    ये सुनते ही आर्वी की आँखें फैल गईं। वह अयांश की ओर बड़ी-बड़ी आँखों से हैरानी से देखने लगी तो अयांश फिर बोला— "हैरानी क्यों हो रही है, वाइफ? अब तो जानना शुरू कर दो मुझे... न मुझे हरा सकती हो तुम, न मुझसे जीत सकती हो तुम। सो ये सब न करो तो ठीक रहेगा, क्योंकि मेरे आगे कुछ नहीं हो। न तुम मेरा कुछ बिगाड़ सकती हो, पर हाँ, मैं कुछ भी कर सकता हूँ तुम्हारे साथ। इसलिए जुबान बंद और ये आँखें नीचे। सो जो करना है, कहना है, सोच-समझकर, वरना अंजाम जिसका बहुत बुरा हो सकता है, जिसे सिर्फ़ तुम भुगतोगी। ये सिर्फ़ ट्रेलर था मिसेज़ मेहरा, पूरी फ़िल्म अभी बाक़ी है। हर चीज़ की इंतहा होती होगी, पर अयांश मेहरा से तुमको मिलने वाले दर्द का कभी-कभी अंत नहीं होगा! ये भूलना मत, और गर भूल भी जाओ ना तो एक नज़र खुद की हालत पर डाल लेना। मेरा दिया हुआ ये तोहफ़ा (चोटों की ओर इशारा करते हुए) तुम्हें भूलने नहीं देगा कि अब तुम अयांश की हो। अंडरस्टैंड? आई थिंक यू बेटर अंडरस्टैंड! और फिर भी न समझी तुम, और मेरे पास और भी रास्ते हैं।" कहकर अयांश ने आर्वी का मुँह छोड़ते हुए उसे धक्का दे दिया जिससे वह जमीन पर गिर गई— "आह!"


    अयांश उसी वक्त वहाँ से चला गया।


    आर्वी अयांश को जाते देख नीचे से उठी और एक नज़र अपने बाहों पर लगी चोटों की ओर देखी। आँखों से आँसू छलक कर उसके हाथों पर जा गिरे।


    अयांश अंदर की ओर जा रहा था, तभी उसकी नज़र सामने खड़े बुज़ुर्ग पर पड़ी। वह दादू कहते हुए उनके पास गया और मुस्कुराते हुए बोला— "गुड मॉर्निंग दादू!" (उनसे थोड़ी दूरी पर खड़ा होकर)


    (ये अयांश के दादा जी हैं, दिनकर मेहरा! मेहरा सदन में अयांश और सिर्फ़ उसके दादा जी रहते हैं और कुछ तीन-चार नौकर-चाकर, वो भी सिर्फ़ आदमी, जिन्हें अयांश ने अपने दादा जी के ख़्याल और घर के रखरखाव के लिए रखा हुआ है। जिनसे अयांश सिर्फ़ सुबह मिलता है, ऑफ़िस जाने से पहले, चाहे फिर अयांश उनके साथ ब्रेकफ़ास्ट करें या थोड़ी देर बात, बस इतनी सी मुलाक़ात होती है एक घर में रहने के बावजूद इन दादा-पोते की, क्योंकि फिर वह पूरा दिन अपने ऑफ़िस में बिज़ी रहता है, दिन के चौबीस घंटे और सप्ताह के सातों दिन, देर रात घर लौटता है, जिससे उसकी कभी तो दादा जी से मुलाक़ात हो जाती है तो कभी उसके आने से पहले दिनकर जी सो जाते हैं। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। दिनकर जी अयांश को अंशु बुलाते हैं तो अयांश उन्हें प्यार से दादू! पूरी दुनिया में सिर्फ़ दिनकर जी ही हैं जिनके साथ अयांश ज़्यादा सख़्त नहीं है, क्योंकि अयांश के लिए उसके दादू सब कुछ हैं और दिनकर जी का भी अयांश प्यारा और लाडला है, पर अयांश के ऐसे बर्ताव की वजह से वे अपना प्यार अयांश पर पूरा जता नहीं पाते और अयांश भी उनसे खुलकर कुछ नहीं कह पाता है। इसलिए नॉर्मल बातें होती हैं हमेशा दोनों के बीच... न वे पूछ पाते कुछ, न अयांश कुछ उन्हें बताता, पर दोनों एक-दूसरे के लिए बहुत इम्पॉर्टेंट हैं!)


    अयांश ने जैसे ही गुड मॉर्निंग कहा तो दिनकर जी उसकी ओर देखते हुए बोले— "किसकी गुड मॉर्निंग है आज अंशु, तुम्हारी या सबकी?"


    अयांश समझ गया कि दिनकर जी किस बारे में कह रहे हैं तो वह बोला— "चलिए दादू, ब्रेकफ़ास्ट का टाइम हो गया, फिर मुझे ऑफ़िस भी जाना है!"


    दिनकर जी—"कल रात से जो हो रहा है और अभी जो हुआ, उस बारे में तुमसे कुछ पूछने की इजाज़त है अंशु!"


    अयांश कुछ न बोला और वहाँ से जाने लगा तो दिनकर जी बोले— "पता था, नहीं बताओगे, क्योंकि अयांश मेहरा किसी को भी जवाब देना ज़रूरी नहीं समझता है ना!"


    ये सुन अयांश उनके सामने आया और मुस्कुराते हुए दिनकर जी के कंधों पर बाहें रखते हुए बोला— "कितनी बार कहा है, पूरी दुनिया से मेरी इस दुनिया को न तो कंपेयर किया कीजिए, क्योंकि वो सिर्फ़ भीड़ है और आप मेरी लाइफ़... अयांश मेहरा मैं सबके लिए हूँ, आपके लिए सिर्फ़ आपका अंशु। एंड दादू, आप ना ये डायलॉगबाज़ी मत किया करो, मैं नहीं पिघलने वाला, चाहे आप गैरों के लहजे अपनाकर मुझसे बात कर लो, क्योंकि मुझे आपको कुछ बताना होगा तो मैं खुद बता दूँगा, और जो हो रहा है उसका जवाब आपके पोते के पास नहीं है। आई होप आप बार-बार नहीं पूछेंगे... एनीवे, मैं रेडी होकर आता हूँ, आप भी अंदर आ जाइए।" कहकर अयांश अंदर चला गया।


    (क्रमशः)

  • 8. My Devil Husband - Chapter 8

    Words: 1369

    Estimated Reading Time: 9 min

    दिनकर जी ने मुड़कर अंदर की ओर देखा और फिर लॉन में खड़ी आर्वी की ओर देखा, जो अभी भी रो रही थी। दिनकर जी खुद से बोले- "समझ नहीं आता अंशु, तू क्यों ऐसा बन गया है? कुछ कह भी नहीं सकता, न पूछ सकता हूँ जब तक तू न चाहेगा, बताएगा भी नहीं। तुम्हें अपनी करनी होती है बस, और तू इकलौता है मेरा, और मैं नहीं चाहता तू मुझसे दूर हो। मेरी रोक-टोक पर भी तू नहीं मानेगा, मैं समझा-समझाकर थक गया। अब तो मैं भी हार गया। न जाने क्या हुआ है तेरे साथ, मुझे भी नहीं पता चलने देता कुछ। दूर भागता है जब भी कुछ जानना चाहूँ, जिसकी सजा तू खुद के साथ सबको देता है। माना कि किसी से बेटा तुम्हें मतलब नहीं, कोई लेना-देना नहीं, पर इतनी भी बेपरवाही अच्छी नहीं होती। और इस बार तो हद ही हो गई है। इस बच्ची के साथ क्या किया है तूने? है कौन ये?"

    तभी दिनकर जी ने, "राधे! ओ राधे!" कहते हुए किसी को आवाज़ लगाई। तभी एक आदमी अंदर से दौड़ा आया।

    वह घर का एक नौकर था, जिसका नाम राधे था, जो हमेशा दिनकर जी के साथ रहता था और सालों से इसी घर में काम कर रहा था। वह दिनकर जी के पास आकर बोला- "जी साहब?"

    दिनकर जी- "जल्दी जाकर पानी और फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ।"

    राधे (हैरानी से)- "दवाइयों वाला डिब्बा…… मालिक?"

    दिनकर जी (उसकी ओर देखते हुए)- "ऐसे क्या देख रहे हो? हाँ, दवाइयों वाला डिब्बा!"

    राधे- "पर मालिक?"

    दिनकर जी (उसकी ओर घूरते हुए)- "सच में अंधे हो या अंधे होने का नाटक कर रहे हो? रसोई की खिड़की से बाहर हुआ वो तमाशा देख चुके हो ना? फिर भी वजह पूछनी है? जो बोला है वो करो, जाकर!" (चिल्लाते हुए)

    यह सुनकर राधे ने अपनी नज़रें झुका लीं और वहीं खड़ा रहा। उसको ना जाते देख दिनकर जी ने अपनी छड़ी जोर से जमीन पर दे मारी। छड़ी की आवाज़ सुनते ही राधे (हाथ जोड़कर)- "मालिक, मैं आपको मना नहीं कर रहा हूँ, पर अयांश बाबा!" (डर से)

    दिनकर जी- "उसके सामने तुम सब अंधे बन जाते हो, नज़रें फेर लेते हो, तो क्या मेरे सामने तुम्हें बहरा बनना है? और हाँ, तुम सब डरते हो उससे, मैं नहीं डरता। और अभी के अभी जो बोला है वो करो, वरना मेरी लाठी और तुम्हारा सिर?"

    यह सुनते ही राधे अपना थूक निगलता है और लड़खड़ाती आवाज़ से बोला- "अभी…… अभी लाया!"

    "जल्दी!" दिनकर जी ने फिर छड़ी जमीन पर जोर से रखते हुए कहा। तो राधे "जी" कहते हुए अंदर की ओर भाग गया।

    दिनकर जी दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाते हुए बोले- "प्यार की भाषा किसी को समझ ही नहीं आती है। अयांश मेहरा के साथ रहकर सब उसके जैसे हो गए, और इन्हें अब भाषा भी उसी की समझ आती है!"

    "अजब-गजब है ये दोनों दादा-पोते। पूरी दुनिया पर इन दोनों की चल सकती है, पर एक-दूसरे पर नहीं। बड़े वाले जिद्दी…… अयांश बाबा से सब डरते हैं सिवाय मालिक के। और अयांश बाबा सबको काबू में रख सकते हैं। उनकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल पाता यहाँ पर। मालिक को वो कुछ नहीं कह सकते हैं…… और मालिक भी कुछ भी कर सकते हैं। मेरी तो समझ से ही बाहर है!" राधे अपना सर खुजाते हुए किचन की ओर बढ़ते हुए खुद से ही बोल रहा था कि तभी वह अयांश से जा टकराया।

    अयांश के हाथ में कॉफी मग था, जिससे कॉफी छलककर जमीन पर जा गिरी। "अंधे हो क्या?" (कॉफी मग गुस्से से फेंकते हुए, राधे पर चिल्लाते हुए)

    राधे (हाथ जोड़ते हुए)- "मा…… माफ़ करना अयांश बाबा…… वो!"

    अयांश- "क्या? वो देखकर नहीं चला जाता? तुमसे घुसे ही जा रहे हो, इडियट!"

    राधे (नज़रें झुकाए फट से)- "गलती हो गई, वो मैं जल्दी में था!"

    अयांश (गुस्से से)- "तुम्हारी कौन सी ट्रेन छूट रही थी जो तुम्हें मैं भी न दिखा!"

    राधे- "वो…… वो मालिक?" (बाहर की ओर हाथ करते हुए)

    अयांश- "क्या?"

    राधे (डरा सा)- "वो…?"

    अयांश (जोर से चिल्लाते हुए)- "बोलो?"

    "वो…… वो मालिक ने दवाइयों वाला डिब्बा मंगवाया है। बाहर जो लड़की है, उसकी मरहम-पट्टी करना चाहते हैं मालिक।" राधे नज़रें झुकाए एक ही साँस में बोलता है। तो अयांश उसकी ओर एक कदम बढ़ाते हुए- "बकवास!…… कोई ज़रूरत नहीं है उस लड़की पर दया दिखाने की, समझे!"

    तभी राधे डरकर पीछे हो गया और थूक निगलते हुए अयांश की ओर देखते हुए बोला- "अयांश बाबा, वो मालिक?"

    अयांश- "बोला ना…… नहीं! और तुम जाकर मेरे लिए कॉफी बनाओ, जो तुमने गिरा दी। गो!"

    तभी दिनकर जी अंदर आ गए और जमीन पर अपनी छड़ी बजाते हुए बोले- "जो काम राधे तुझे पहले बोला गया है, तू वही करेगा!"

    राधे ने फट से दरवाज़े की ओर देखा। अयांश भी दादू की ओर देखते हुए कहता है- "राधे, मेरी कॉफी!"

    राधे कभी दादू को देखता तो कभी अयांश को। तभी दिनकर जी बोले- "कॉफी बाद में भी दी जा सकती है। अयांश मेहरा को दया नहीं आती है तो इसका यह मतलब नहीं कि सब निर्दयी हैं यहाँ!"

    यह सुन अयांश राधे पर चिल्लाते हुए बोला- "तुम यहीं खड़े हो? आई से, गिव मी माई कॉफी जस्ट नाउ!"

    दिनकर जी भी चिल्लाते हुए बोले- "सुना नहीं तुमने? राधे, मैंने जो काम कहा था वो अभी करो। यह तो तुम्हें इस घर से नहीं निकाल सकता चाहकर भी, पर अगर तुमने मेरी नहीं मानी तो मैं तुम्हें अभी इस घर से धक्के देकर बाहर निकाल दूँगा!"

    यह सुनते ही, "अभी लाया मालिक," कहते हुए एक नज़र अयांश को देखकर राधे किचन की ओर भागकर चला गया। राधे को ऐसे जाते देख अयांश दिनकर जी की ओर देखते हुए बोला- "आप यह सही नहीं कर रहे हैं दादू!"

    दिनकर जी- "जो कर रहा हूँ उसे तू गलत भी नहीं कह सकता है अंशु, और ना मुझे रोक सकता है!"

    यह सुनकर उसी वक्त गुस्से से तिलमिलाते हुए अयांश वहाँ से ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ गया और दिनकर जी बाहर की ओर वापस चले गए।

    (राधे सालों से यहाँ इसलिए टिका था क्योंकि अयांश तो एक छोटी सी गलती पर भी उसे अपने घर से कब का निकाल देता, पर दिनकर जी उसे नहीं निकालने देते थे। सालों से साथ है, वफ़ादार है, तो दिनकर जी को राधे घर का सदस्य सा लगने लगा था। इसलिए राधे भी अयांश की बात कभी टाल देता और दिनकर जी की मान लेता, क्योंकि उनके आगे अयांश अपनी नहीं चला सकता था। और राधे को भी अपनी नौकरी प्यारी थी, इसलिए वह दिनकर जी की साइड रहता और अयांश गुस्सा करके रह जाता!)

    दिनकर जी बाहर आकर आर्वी के पास पहुँचे तो आर्वी ने अपनी आँखों के किनारे साफ़ कर उनकी ओर देखा। दिनकर जी ने एक नज़र आर्वी पर डाली और बोले- "कौन हो आप?"

    आर्वी अपने बारे में कुछ नहीं कहती है, वह सिर्फ़ उनसे पूछती है- "क्या आप मुझे यहाँ से जाने दे सकते हैं?"

    यह सुनकर दिनकर जी खामोश रहे। तो आर्वी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली- "नहीं ना…… तो क्या करेंगे आप जानकर हमारे बारे में कि हम कौन हैं? क्योंकि जो हमें यहाँ लेकर आया है वो तो हमारा वजूद ही ख़त्म करने पर तुला हुआ है!" (नम आँखों से)

    तभी दिनकर जी कुछ कहते, राधे वहाँ एक ट्रे में दवाइयों वाला डिब्बा और एक गिलास में पानी लेकर आया और पास आते ही बोला- "मालिक!"

    दिनकर जी (आर्वी की ओर इशारा करते हुए)- "पानी पिलाओ और ज़ख्मों में दवा लगाओ!"

    राधे आर्वी की ओर बढ़ने लगा कि आर्वी ने हाथ आगे कर राधे को रोक दिया- "नहीं चाहिए आपका कोई रहम!"

    दिनकर जी (आर्वी के हाथों की चोटों को देखते हुए)- "दवा लगवाकर पट्टी करवा लो, नहीं तो ये ज़ख्म ज़्यादा तकलीफ़ देंगे!"

    आर्वी उनकी ओर आते हुए कहती है- "कौन से ज़ख्म ज़्यादा तकलीफ़ देंगे? मन पर लगे या तन पर? बाहरी ज़ख्म तो माना ये दवा भर देगी, पर जो अंदरूनी हैं उनका क्या? क्या फ़ायदा होगा आपकी इस मदद का, इस दवा का? क्योंकि यह शुरुआत है। जिसने इतने दर्द, ज़ख्म दिए हैं वो फिर देगा। ये ज़ख्म सूखेंगे नहीं उससे पहले ही वो इनको फिर कुरेद देगा। पुराना ज़ख्म ठीक न होगा, फिर नया घाव मिल जाएगा मुझे? यह दवा आपकी बेअसर हो जाएगी। करनी ही है मदद, तरस आ रहा है हमारी तकलीफ़ पर, तो हमें पल भर के छुटकारे से अच्छा पूरी तरह से छुटकारा दिला दीजिये, जाने दीजिये हमें यहाँ से, निकालिये हमें यहाँ से। तब आपकी सही मायने में हमारी हेल्प और आपकी बहुत मेहरबानी होगी!" (नम आँखों से दिनकर जी के सामने हाथ जोड़ते हुए)

    यह सुनकर दिनकर जी की आँखें नम हो जाती हैं!

    आर्वी फिर बोली- "कर सकते हैं आप यह, हमें पूरी तरह इस दर्द-तकलीफ़ से निजात दिला सकते हैं!" (उम्मीद से दिनकर जी की ओर देखते हुए)

    (क्रमशः)

  • 9. My Devil Husband - Chapter 9

    Words: 1691

    Estimated Reading Time: 11 min

    जैसे ही आर्वी ने दिनकर जी से कहा कि क्या आप मुझे पूरी तरह से निजात दिला सकते हैं, तो दिनकर जी बिन कुछ कहे अपनी नज़रें झुका लेते हैं। तब आर्वी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा—
    "आपकी खामोशी ने जवाब दे दिया है। आप जा सकते हैं। हमें नहीं चाहिए किसी भी तरह की कोई हेल्प। ये भी ले जाइए!"
    (राधे के हाथ में पकड़ी ट्रे की ओर इशारा करते हुए)


    तभी राधे ने आर्वी से कहा—
    "आप ऐसा मत कहिए। अयांश बाबा के खिलाफ़ जाकर उनके दादा जी ने—मेरा मतलब मालिक ने—आपके लिए ये सब मँगवाया है। आप दवा लगा लीजिए। अयांश बाबा कुछ नहीं कहेंगे। आपके घाव भर जाएँगे, दर्द भी कम होगा!"


    आर्वी ने नम आँखों से दिनकर जी की ओर देखकर कहा—
    "ख़त्म तो नहीं होगा ना!"


    राधे—
    "पर..."


    तभी दिनकर जी अपना हाथ आगे कर राधे को चुप रहने को कहते हैं और आर्वी से बोलते हैं—
    "जो मदद कर सकता हूँ वो तो करने दो। वो तो जिद्दी है। तुम भी जिद्द में खुद को तकलीफ़ दे रही हो। वो नहीं समझ रहा है अच्छा-बुरा, पर बेटा तुम तो समझो?"


    आर्वी—
    "बहुत-बहुत मेहरबानी आपकी। आप मुझे समझा रहे हैं, मुझे कह रहे हैं, अच्छा-बुरा बता रहे हैं। तो आप तो दादा जी हैं ना उनके, बड़े हैं। तो आप उनसे क्यों कुछ नहीं कहते? वो मनमानी कर सकते हैं, पर आप उन्हें क्यों कुछ कह नहीं सकते? माफ़ करना, अगर आपने उनकी अच्छे से परवरिश की होती, अच्छे संस्कार दिए होते, तो आज वो ये ज्यादती ना करते और ना आपको यूँ अपने पोते के ख़िलाफ़ जाकर मदद करनी पड़ती। क्योंकि फिर वो ऐसा कुछ करते ही नहीं। क्या फ़ायदा आपका बड़े और उनका दादा ही होने का जब आप उन्हें रोक-टोक ही नहीं सकते ग़लत करने पर? शुरू से ही आपने बड़े होने का फ़र्ज़ निभाया होता, तो आज आपको भी ये दिन न देखना पड़ता। आपकी आँखों के सामने आपका पोता एक लड़की के साथ कितना बुरा कर रहा है। अच्छा तो आपको भी नहीं लगा होगा। लगता तो मुझ पर तरस ना आ रहा होता आपको और ये सब लेकर आप यहाँ ना होते (दवाइयों की ओर हाथ करते हुए)। और कैसे पोते हैं वो? उनके किए पर आपकी जुबान बंद और नज़रें झुक जाएँ!!"


    दिनकर जी कुछ बोलते, तभी पीछे से अयांश ने जोर से आवाज़ दी—
    "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दादू से इस तरह बात करने की!"


    सबने अयांश की ओर देखा। और गुस्से से आर्वी की ओर आते हुए अंगुली दिखाते हुए बोला—
    "जस्ट शट अप! तुम्हें मेरे दादू को थोड़ा रहम क्या आ गया? तुम तो ज्ञान ही देने लगी!"


    आर्वी—
    "जो कहा, सही कहा है अयांश मेहरा। आपके ख़िलाफ़ जाकर ये मेरे लिए दवा ला सकते हैं, तो आपके ख़िलाफ़ जाकर मुझे यहाँ से जाने देने की हिम्मत क्यों नहीं है इनमें? सच में बड़े हैं आपके? तो बड़े तो छोटों को समझाते हैं। इन्होंने तो चुप्पी साध रखी है। या आपके जैसे इन्हें भी तमाशा करना, देखना पसंद है। और हाँ, आपको इतनी ही अपने दादू की इज़्ज़त प्यारी और उनसे प्यार है, तो अपने ग़लत कारनामों से क्यों उनका सिर झुका रहे हैं? देखिए, मैं तो इनकी कोई नहीं लगती, फिर भी इनकी आँखें नम हैं मुझे तकलीफ़ में देखकर। पर जिसने तकलीफ़ दी, उसे कुछ न कह सकते? क्या मज़बूरी है इसके पीछे? और आप तो इनके अपने हैं जो ग़लत कर रहे हैं। सोचा है इनके मन पर क्या बीत रही होगी? या आपको सब पर अपना रौब दिखाने की आदत है? ये भी सबके जैसे डरते हैं आपसे। परायों का क्या सोचेगा अयांश मेहरा? अपनों का भी जो नहीं सोचता!!"


    ये सब सुनकर अयांश गुस्से से आर्वी की तरफ़ कदम बढ़ाता है। तभी दिनकर जी ने अपनी छड़ी जोर से ज़मीन पर दे मारी। अयांश अपनी नज़र आर्वी से हटाकर उनकी ओर देखता है। तब बोले—
    "सही कह रही हो तुम। इसकी जिद्द और अपने पोते के मोह में विवश हूँ। जो हो रहा है, वजह भी नहीं जानता हूँ। ये करता है जो भी, उस पर कभी मैं सवाल नहीं करता। मुझे नहीं पता था मेरा अंशु ऐसा भी करेगा। गुस्से से वाक़िफ़ हूँ इसके, पर ऐसा भी कर जाएगा, नहीं सोचा था। और आज जो किया है, उसका तो ये जवाब भी नहीं देगा। इसे आज ग़लत नहीं कह रहा, तो सही भी नहीं कह रहा हूँ मैं। सोचा अपने पोते के दिए ज़ख्मों पर दवा लगाकर कुछ तो अच्छा कर दूँ तुम्हारे साथ। ये तो पता नहीं क्यों और क्या सोचकर कर रहा है ये सब? पर इतना जान गया हूँ, ये अगर जिद्दी है, तो तुम भी महा जिद्दी हो?"
    इतना कह दिनकर जी ने अयांश की ओर देखा और उसी वक़्त वहाँ से चले गए।


    आर्वी उन्हें जाते हुए देख रही थी। तभी राधे हाथ में पकड़ी ट्रे की ओर इशारा करते हुए बोला—
    "ये?"


    तभी अयांश ने ट्रे पर जोर से हाथ मारा और वो राधे के हाथ से नीचे जा गिरी।
    "कोई ज़रूरत नहीं है इस पर रहम दिखाने की, कोई दवा लगाने की ना दादू को और ना ही तुम्हें! जाओ यहाँ से! फिर ये सब करते हुए इसके पास नज़र भी आए ना, तो तुझे छोडूँगा नहीं!"
    अयांश राधे पर चिल्लाया तो राधे उसी वक़्त वहाँ से भाग गया।


    आर्वी—
    "सही है, जैसा सोचा था, आप वैसे ही हैं, निर्दयी मिस्टर मेहरा!"


    तभी अयांश ने आर्वी की बाहें पकड़ी और गुस्से से कहा—
    "तुम्हें क्या लगता है मेरे दादू को ये सब कहोगी और उनका सहारा लेकर यहाँ से चली जाओगी? या उनके कहने पर मैं तुम्हें यहाँ से जाने दूँगा? नेवर आर्वी! ऐसा सोचकर तुम खुद को बेवकूफ़ बना रही हो। हाँ, मेरे दादू मेरे लिए सब कुछ हैं, मैं उनसे बहुत प्यार करता हूँ, उनके लिए कुछ भी कर सकता हूँ, उन्हें रोकता भी नहीं। अभी वो तुम्हारे लिए दवा लेकर आए और आगे भी लेकर आ सकते हैं, इसका ये मतलब मत निकालना मैं उनकी सुनूँगा तुम्हारे मामले में तो वैसे ही मैं किसी की भी नहीं सुनूँगा। मेरे दादू मेरी दुनिया हैं। आज के बाद इस तरीके से तुमने उनसे बात की या कुछ कहा, तो ये तुम्हारा डेविल हसबैंड तुम्हारे साथ क्या करेगा, तुम्हें अंदाजा नहीं। अभी बातों से काम ले रहा हूँ, आगे क्या करूँ मैं भी नहीं जानता। दवा की नहीं, दर्द की आदत डाल लो तुम। मेरे दादू से मैं खुद ऐसे बात नहीं करता, तो तुम कौन हो? तुम पर पूरा हक़ मेरा है और जो होगा मैं चाहूँगा वहीँ। सो आगे से अपने लेक्चर अपने पास रखना और मेरे दादू के सामने एक हाथ जितनी जुबान बंद, वरना मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा!"
    (एक ही साँस में बोलते हुए)


    आर्वी ने अयांश की ओर गुस्से से देखते हुए कहा—
    "दिख रहा है आपका व्यवहार आपके दादू के साथ। प्यार है, दुनिया है, ये है वो है। एनफ़ मिस्टर मेहरा! हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और!"


    तभी अयांश ने आर्वी को पीछे की तरफ़ झटक दिया और उसी वक़्त वहाँ से अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया।


    आर्वी अयांश को जाते देख कहती है—
    "कितना कॉम्प्लिकेटेड है ये इंसान! समझ से बाहर है। चाहता क्या है, करता क्या है, कुछ समझ नहीं आता है। इतना प्यार है, दुनिया है दादा जी, तो उन्हें ये सब करके कौन सी खुशी दे रहा है? और वो दादा जी इतना भी क्या मोह, जो ग़लत है जानकर भी थप्पड़ लगाना तो दूर, कुछ कह भी न सकते। सब डरते हैं इस डेविल कुमार से!"


    अयांश की गाड़ी बड़ी सी बिल्डिंग के सामने जाकर रुकी। अयांश गाड़ी से उतरा और बिल्डिंग के अंदर की ओर बढ़ा। जैसे-जैसे वो अंदर आ रहा था, सब उसे "हेलो सर" कहते हुए हाँ में सिर हिला रहे थे, पर अयांश सीधा आगे बढ़े जा रहा था, बिना किसी की तरफ़ देखे, बिना किसी को रिस्पांस दिए। जैसे ही अयांश लिफ़्ट की ओर बढ़ा, तभी पियॉन भागा उसके पास आया और लिफ़्ट का बटन दबाकर उसे खोल दिया। अयांश लिफ़्ट में गया और लिफ़्ट बंद करते हुए पियॉन से बोला—
    "वन कॉफ़ी!"


    पियॉन—
    "यस सर!"


    और अयांश लिफ़्ट से ऊपर सैंकिड फ्लोर पर अपने केबिन में चला गया। अयांश ने केबिन में जाते ही अपना कोट उतारा और चेयर पर डालकर जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया। तभी पियॉन उसके लिए कॉफ़ी लेकर आ गया। अंदर आते ही पियॉन ने कॉफ़ी टेबल पर रखी—
    "सर कॉफ़ी!"


    अयांश खिड़की से उसकी ओर आया और टेबल से कॉफ़ी मग उठाकर पियॉन से बोला—
    "सुनो, विनीत को अभी भेजो!"


    ये सुनकर पियॉन अयांश की ओर देखकर नज़रें झुका लेता है।


    अयांश कॉफ़ी मग टेबल पर छोड़ा और कहा—
    "व्हाट हैपन्ड?"


    पियॉन दबी सी आवाज़ में—
    "वो...वो सर, अभी विनीत सर आए नहीं हैं!"


    अयांश ये सुनते ही गुस्से से बोला—
    "अभी तक नहीं आया है? कॉल करो, जाकर उसे बोलो दस मिनट में ऑफ़िस पहुँचे, अदरवाइज़ अपनी छुट्टी समझे!"


    पियॉन—
    "सर वो...?"


    अयांश—
    "गेट आउट!"


    और पियॉन उसी वक़्त केबिन से चला गया।


    "पता नहीं सबने खुद को समझ क्या रखा है? ऑफ़िस है, घर नहीं! टाइम की तो कोई वैल्यू ही नहीं है!"
    कहते हुए अयांश ने वापस कॉफ़ी मग उठाया और जाकर खिड़की के पास खड़ा होकर कॉफ़ी पीने लगा। तभी फिर डोर नॉक हुआ—
    "मैं आई एम कमिंग सर!"


    अयांश बिना डोर की ओर देखे—
    "बड़ी जल्दी आ गए तुम। बचा ही ली तुमने आख़िरकार अपनी जॉब!"


    अयांश की ही उम्र का शख्स, जिसका नाम विनीत है, वो टेबल के सामने आकर खड़ा हो गया और बोला—
    "सॉरी सर! और जॉब बचाने की न बचाने की बात तो आपके हाथ में है। आप चाहे तो मुझे धक्के देकर अपने ऑफ़िस से निकाल सकते हैं, विदाउट रिजाइन लेटर!"


    अयांश उसकी ओर मुड़ते हुए—
    "ये घर है या ऑफ़िस?"


    विनीत अयांश की ओर देखते हुए फट से बोला—
    "ऑफ़िस!"


    अयांश उसकी ओर आते हुए—
    "तो घर समझने की भूल क्यों?"


    विनीत—
    "भूल हुई है सर, गलती नहीं। और भूल की तो माफ़ी मिल सकती है ना!"


    अयांश टेबल पर कॉफ़ी मग छोड़ते हुए—
    "वजह जान सकता हूँ लेट आने की?"


    विनीत—
    "जो सर आपने किया है, उसकी वजह आप बताएँ तो मैं भी बता सकता हूँ!"


    ये सुनते ही अयांश गुस्से से अपना एक कदम विनीत की ओर बढ़ाता है। तभी विनीत टेबल से कॉफ़ी मग उठाते हुए बोला—
    "बॉसगिरी बाद में झाड़ना, पहले कॉफ़ी पीने दे यार! कल से कुछ ठीक से खाया-पिया नहीं है। सुबह से एक घूँट पानी भी नहीं पिया है!"


    अयांश ने उसकी ओर गुस्से से देखा तो विनीत कॉफ़ी का घूँट भरते हुए—
    "पहले ये पी लूँ!"


    ये सुनकर अयांश ने ना में सिर हिलाया और उसी वक़्त अपने केबिन से चला गया। उसके जाते ही विनीत ने लम्बी सी साँस ली और मुँह से फूँकते हुए बोला—
    "बच गयी जॉब भी और मेरी जान भी! जंगल में शेर के पास-पास रहना बिलकुल ख़तरों से खाली नहीं है!"
    (थूक निगलते हुए)
    (क्रमशः)

  • 10. My Devil Husband - Chapter 10

    Words: 2128

    Estimated Reading Time: 13 min

    अयांश अपने कैबिन से निकलकर अपने ऑफिस की टेरिस पर चला गया। विनीत ने जल्दी से कॉफी खत्म की और वह भी अयांश के कैबिन से बाहर निकल गया।


    (मेहरा सदन)

    दिनकर जी हॉल में सोफे पर बैठे थे। तभी राधे उनके लिए चाय लेकर आ गया। चाय का कप दिनकर जी के सामने टेबल पर रखकर राधे बोला— "मालिक, आपकी चाय?"


    पर दिनकर जी को कुछ न कहते देख राधे ने ट्रे को टेबल पर रखा और उनके पैरों के पास बैठते हुए बोला— "क्या हुआ मालिक? काफी देर से देख रहा हूँ, आप कोई गहरी सोच में डूबे हैं। क्या सोच रहे हैं आप?"


    दिनकर जी यह सुनकर राधे की ओर देखते हैं। राधे हाथ जोड़ते हुए फिर बोला— "माफ़ करना मालिक, वो आप चिंता में दिखे तो पूछ लिया!"


    "चिंता में तो हूँ राधे," दिनकर जी राधे के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले।


    "बाहर वो लड़की है, उसको लेकर?" राधे ने कहा।


    "हम्म!" दिनकर जी ने बाहर की ओर देखकर हाँ में सिर हिलाया।


    राधे बाहर की ओर देखते हुए बोला— "हाँ मालिक! आपने दवा दी, पानी दिया, जूस, खाना सब भिजवाया, पर उसने साफ़ मना कर दिया। अंदर भी नहीं आ रही है, वहीं बैठी है और ना कुछ खा रही, ना पी रही है। पर आपके चिंता करने से क्या होगा जब वो मान ही नहीं रही है? आप यूँ परेशान होंगे और बीमार पड़ गये तो अयांश बाबा को अच्छा नहीं लगेगा!"


    दिनकर जी— "और जो तुम्हारा अयांश बाबा करता है, वो क्या सबको अच्छा लगता है!"


    यह सुनते ही राधे अपनी नज़रें झुका लेता है। तभी दिनकर जी मुस्कुरा उठे और चाय का कप उठाकर चाय पीने लगे।


    राधे हैरानी से उनकी ओर देखता है— "अभी आप चिंता में थे, अभी मुस्कुरा रहे हैं मालिक?"


    दिनकर जी— "खुश होऊँगा तो मुस्कुराऊँगा ही ना, रोऊँगा थोड़ी। हाँ, उस लड़की को लेकर चिंता में हूँ। पता नहीं कौन है और अंशु ने जो किया है, उसको लेकर परेशान भी हूँ। बस, अपने गुस्से के चलते कुछ गलत न कर बैठूँ। सही तो अब भी नहीं कर रहा है उस बच्ची के साथ, पर कुछ बहुत ज़्यादा गलत न हो जाए मेरे अंशु के हाथ से? इस बात का डर है।" (सोचते हुए)


    राधे झिझकते हुए— "मालिक..... परेशानी समझ सकता हूँ आपकी, पर आप खुश..... आप चाहते तो अयांश बाबा से कह सकते हैं उसे जाने दे यहाँ से और आप उसे जाने भी दे सकते हैं। अयांश बाबा आपको तो कुछ बताएँगे नहीं, आप उस लड़की की मदद नहीं करेंगे?" (सवाल भरी नज़र से उनको देखते हुए)


    दिनकर जी— "अंशु अगर जिद्दी है तो ये लड़की महा जिद्दी है राधे, हार मानने वालों में नहीं है, टक्कर की है तुम्हारे अयांश बाबा की। उसे मदद की ज़रूरत नहीं, खुद लड़ सकती है वो अपने लिए। मैंने देखी है हिम्मत उसकी आँखों में। हाँ, मैं मदद कर सकता हूँ, जा सकता हूँ उसके ख़िलाफ़, उस लड़की को निकाल सकता हूँ यहाँ से, पर मैंने अंशु की नज़र में एक जुनून देखा है उस लड़की को यहाँ रखने का। अभी थोड़ी देर पहले टीवी पर देखा ना, अखबार में छपी तस्वीर देखी ना उस लड़की और अपने अयांश बाबा की शादी की। अगर अब मैंने कुछ किया, इसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है उस लड़की के लिए। वो लड़की चली भी जाए मेरी मदद से तो वो उसे वापस ले आएगा। शादी इसलिए की है ताकि वो उसे यहाँ रख सके। बात क्या है ये तो नहीं जानते हम, पर अपने अंशु को तो जानते हैं। अपनी जिद, गुस्से में वो अपना आपा खो देता है। वाकिफ़ हैं हम दोनों। और तकलीफ न हो उस लड़की को, इसलिए कुछ नहीं कर रहा। चुप हो राधे!!"


    राधे हाँ में सिर हिलाते हुए— "समझ गया मालिक। आप उस लड़की को ज़्यादा तकलीफ़ न हो इसलिए ख़ामोश हैं। अयांश बाबा आपको तो कुछ कहेंगे नहीं, उनकी आप पर चलती नहीं, आप उनसे डरते नहीं। पर हर्जाना वो लड़की भर सकती है आपने उसे निकाला तो। पर आप खुश?"


    दिनकर जी— "तुझे सब जानना होता है क्या?"


    यह सुनते ही राधे फट से उनके पास से खड़ा हो गया और टेबल से ट्रे उठाकर वहाँ से जाने लगा। तभी दिनकर जी बोले— "रुको!"


    राधे नज़रें झुकाकर सामने खड़े होते हुए— "जी मालिक?"


    दिनकर जी चाय का कप टेबल पर रखते हुए— "सोचता था कौन लड़की आएगी मेरे अंशु की ज़िंदगी में, इस घर में? जिसे लड़कियाँ बिल्कुल नहीं पसंद? सोचता था मैं ये लड़का कभी शादी करेगा भी या नहीं? पर देखो, शादी कर खुद लड़की को इस घर में लेकर आ गया है। शादी के नाम से नफ़रत करने वाला लड़का, त्योहारों, रस्मों से चिढ़ने वाला लड़का, पूरी रस्मों-रिवाजों के साथ ब्याह करके आया है। देखा ना हमने टीवी पर। मैं नहीं जानता आगे क्या होगा। किस्मत इन दोनों को साथ लाई है राधे, रिश्ता जुड़ा इनका। अंजाम जो भी हो अब, पर ये अयांश मेहरा से न डरने वाली लड़की, आँखों में आँखें डालकर बात करने वाली लड़की, मेरे अंशु में कुछ तो सुधार ले ही आएगी, उसे कुछ तो बदल ही देगी। देखो, इस लड़की के लाइफ़ में आते ही मेरा पोता जो किसी शादी वगैरह में नहीं जाता, कल सेहरा बाँधकर खुद के मंडप में बैठा था! ज़्यादा कुछ नहीं तो रिश्तों पर भरोसा करना, रस्मों-रिवाजों पर विश्वास करना तो आ ही जाएगा। क्या पता हमेशा भागने वाला मेरा अंशु ठहर जाए, अपनी ज़िंदगी में खुश रहना सीख जाए। बस, यकीन सा करने को जी चाह रहा है कि ये लड़की मेरे अंशु को जीना सिखा दिखाए, इसलिए खुश हूँ क्योंकि मैं उसे खुश देखना चाहता हूँ!" (नम आँखों से हॉल में लगी अयांश मेहरा की तस्वीर की ओर देखते हुए)


    ये बातें सुनकर राधे की भी आँखें नम हो गईं। वो अपनी आँखों के किनारे साफ़ करते हुए बोला— "मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूँ मालिक। जो होता है अच्छे के लिए होता है। क्या पता ये जो हो रहा है इसमें भी अच्छा ही हो? अपने अयांश बाबा शेर हैं तो ये लड़की शेरनी। बहुत दहाड़ती है कि उनकी दहाड़ की गूंज कम हो जाती है!"


    दिनकर जी— "मेरे सामने कह रहे हो, उसके सामने मत बोल देना, पर वो शेर तुम्हें दबोच लेगा!"


    राधे ना में सिर हिलाते हुए— "ना ना मालिक, मरना नहीं जीना है मुझे। और मेरी तो जुबान उनके सामने वैसे भी नहीं निकलती। ये तो मैं आपके साथ थोड़ा बोल लेता हूँ, वरना मैं चुप हूँ। देखो, बिलकुल गूँगा!" (मुँह पर अँगुली रखते हुए)


    ये देख दिनकर जी थोड़े हँसते हुए अपनी छड़ी हाथ में लिए सोफे से उठे और अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए बोले— "बातें छोड़ो, काम करो। एक बार और चाय-पानी का जाओ पूछकर आओ। कभी तो मानेगी ही वो महाजिद्दी लड़की। हम ख्याल तो रख सकते हैं ना उसका!"


    राधे— "जी मालिक!!"


    दिनकर जी अपने कमरे में चले गए और राधे टेबल से चाय का कप ट्रे में रखकर किचन की ओर बढ़ गया।


    थोड़ी देर बाद विनीत भी टेरिस पर पहुँचा। अयांश उस वक्त रेलिंग पकड़े अपनी आँखें बंद किए हुए टेरिस पर खड़ा था। विनीत जैसे ही टेरिस पर आया तो अयांश ने कहा— "अगर कोई सवाल-जवाब करने आया हो तो अपने कदम वापस ले सकते हो तुम, क्योंकि मेरे पास कोई जवाब नहीं है इस वक्त।"


    यह सुनकर जो विनीत आहिस्ता-आहिस्ता अयांश की ओर आ रहा था, उसने अपने कदम वहीं रोक लिए और अपनी कमर पर दोनों हाथ टिकाते हुए पहले तो मुस्कुराया और फिर बोला— "तुझसे और सवाल-जवाब, ना बाबा ना, मरना थोड़ी है मुझे!"


    यह सुन अयांश ने फिर कहा— "तो क्यों आए हो? जाओ यहाँ से!" (बिना विनीत की ओर देखे)


    विनित अयांश की ओर आते हुए— "वो तो मैं यहाँ धूप सेकने आया था, सोचा अपने बॉस को कंपनी दे दूँ। मार्च आ गया, पर देखो ना सुबह-सुबह भी ठंड काफ़ी होती है और आज तो हवा भी चल रही है, सूरज दादा लूका-छिपी खेल रहे हैं बादलों के बीच, इस मध्यम सी धूप सेकने का मज़ा ही कुछ और है! आई लव इट!" (रेलिंग पकड़ आसमान की ओर देखते हुए)


    यह सुनते ही अयांश ने आँखें खोल विनीत की ओर देखा जो रेलिंग पकड़े उसकी ओर देख मुस्कुरा रहा था।


    "ये बतियाने की कोई ज़रूरत नहीं है और मैं यहाँ कोई धूप सेकने नहीं खड़ा हूँ!" अयांश विनीत की ओर घूरते हुए बोला।


    यह सुन विनीत अयांश की ओर देखते हुए कहता है— "तुझे पता कैसे चल जाता है मैं आ गया हूँ जबकि तुम्हारी तो पीठ होती है?" (भौंहें उठाते हुए)


    अयांश विनीत की ओर टेढ़ी नज़रों से देखते हुए बोला— "तेरे तरह गधा नहीं हूँ!"


    तभी विनीत मुस्कुराते हुए— "थैंक्यू फॉर माई तारीफ़ डार्लिंग, और हाँ अयांश मेहरा गधा, घोड़ा थोड़ी है जिसे सिर्फ़ सामने दिखाई दे। तुम तो चीता हो बॉस जो मुझे मेरी आहट से पहचान लेता है, भालू जैसे सूंघ लेता है वैसे मेरा परफ़्यूम बड़ा सेंट्रोग है, बाज़ सी तेज नज़र है जिसकी और उल्लू जैसी गर्दन जिसे आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे सब दिखाई देता है। एम प्राउड ऑफ़ यू मेरे दोस्त!" (मुस्कुराते हुए अयांश के कंधों पर अपने दोनों हाथ रखते हुए)


    "हो गई तेरी बकवास? लीव मी अलोन?" कहते हुए अयांश ने विनीत के हाथ झटक दिए और वहाँ से मुड़कर उस जगह आ गया जहाँ टेबल और दो चेयर रखे थे। अयांश ने टेबल पर रखे सिगरेट के पैकेट से सिगरेट निकाली और चेयर पर बैठ लाइटर से अपनी सिगरेट जलाई। लाइटर को टेबल पर फेंका और सिगरेट के कस भरने लगा।


    विनित वहीं रेलिंग के पास खड़ा अयांश की ओर देख रहा था। वह भी अयांश के पास आकर चेयर पर बैठ गया और सिगरेट निकालकर लाइटर उठाकर सिगरेट जलाने लगा कि अयांश ने उसके हाथ से सिगरेट और लाइटर दोनों छीन लिए।


    विनित अयांश से वापस सिगरेट माँगते हुए— "एक तो दे दो, दोस्त हूँ यार और इसमें तो कंपनी दे सकता हूँ। मुझे भी धुआँ उड़ाना आता है ऐसे!" (मुँह से फूँकने की एक्टिंग करते हुए)


    अयांश गुस्से से विनीत की ओर देखते हुए कहता है— "तुम जो करने की कोशिश कर रहे हो ना उसको करने की कोई ज़रूरत नहीं है। सिगरेट पिओगे? आज से पहले मुँह में लगाई है क्या?" (अपने कोट में लाइटर और सिगरेट डालते हुए)


    विनित— "नहीं लगाई, पर साथ तो दे सकता हूँ ना तेरी परेशानी में, तेरी तकलीफ़ में। समझ सकता हूँ तुझ पर इस वक्त जो बीत रही है।" विनीत आगे कुछ बोलता, तभी अयांश ने अपने हाथ की सिगरेट ज़मीन पर गिराई और उसे पैर से मसलते हुए बोला— "मुझे किसी के साथ की ज़रूरत नहीं है। परेशानी, तकलीफ़, दर्द जो मेरा है वो सिर्फ़ मेरा है, उसमें मुझे किसी की साझेदारी नहीं चाहिए। जो सिर्फ़ मेरा है उसमें कोई हिस्सेदार नहीं हो सकता है। अंडरस्टैंड!!"


    विनित— "तो खुशियों में क्यों शामिल करता है मुझे?"


    अयांश उसके कंधे पर हाथ रखते हुए— "खुशियाँ बाँटने से किसी के साथ बेशक वो बढ़ सकती हैं, पर तकलीफ़ बाँटने, बताने से वो कम नहीं होती है, सिर्फ़ झूठी ही तसल्ली मिलती है, लाइक मन हल्का हो गया, बेटर फ़ील हो गया। बाक़ी कोई बदलाव नहीं आता है। बस, पल भर के लिए ध्यान भटक जाता है, फिर वहीं सब होने लगता है, वहीं याद आता है। तो क्यों किसी से कुछ कहना जब रहना ही वैसे है, कुछ कम नहीं होना ना परेशानी ना कुछ और। और खुद का ही मज़ाक बनता है। हम खुद को ही बेवकूफ़ बनाते हैं। जो आपको सिर्फ़ कमज़ोर बनाता है, और अयांश मेहरा ये सब नहीं करता, कभी नहीं करता। अंडरस्टैंड!!"


    विनित— "यार.....!!"


    तभी अयांश अपना कोट झटकते हुए चेयर से उठा और वहाँ से जाते हुए बोला— "आज मीटिंग है ना, उसकी तैयारी करो जस्ट नाउ। फ़ालतू की बातें कर खुद का दिमाग और मेरा टाइम वेस्ट करने की कोई ज़रूरत नहीं है!"


    तभी विनीत बोला— "सुनो, वो तो तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त था ना, बचपन का!"


    यह सुन अयांश के कदम वहीं रुक गए और बिना विनीत की ओर देखे बोला— "गद्दार को दोस्त कहकर खुद को बदनाम मत करो? और हाँ, अब मेरा एक ही दोस्त है। उम्मीद है वो अपनी दुश्मनी अच्छे से निभाएगा!"


    यह सुन विनीत "हाँ, दुश्मनी" कहते थोड़ा हँसते हुए चेयर से उठा और अयांश की ओर आते हुए बोला— "डोंट वेरी अयांश मेहरा, मैं पीठ पीछे से नहीं, सामने से तुम पर वार करना पसंद करूँगा। और हाँ, मैंने सब हैंडल कर लिया है, मीडिया, प्रेस, जो कहा था तुमने। एवरीथिंग इज़ अंडर कंट्रोल!"


    अयांश ने थोड़ा मुड़कर विनीत की ओर देखा और कहा— "आई नो तुमने हैंडल कर लिया है, तभी तो कुछ पूछा नहीं!"


    विनित— "तुम पूछते नहीं और मुझे पूछने देते नहीं!"


    "तुम्हारी औक़ात नहीं है बेटा कुछ भी पूछने की," कह अयांश वहाँ से जाने ही लगा कि विनीत तपाक से बोल पड़ा— "आर्वी भाभी कैसी है?"


    यह सुनते ही अयांश ने विनीत की ओर घूमकर एक जोरदार मुक्का उसके मुँह पर जड़ दिया जिससे विनीत धड़ाम से ज़मीन पर जा गिरा।


    —"तेरे जैसा दोस्त तो मेरे किसी दुश्मन को भी न मिले!" कह अयांश वहाँ से उसी वक्त चला गया।


    विनित उसे आवाज़ देते हुए— "अरे दोस्त तेरा हूँ तो दुश्मन को कैसे मिलूँगा..... तेरे दुश्मन के भी हम दुश्मन ही बनने लायक हैं, दोस्त नहीं!"


    अयांश के जाते ही आह करते हुए विनीत गाल पर हाथ रखे ज़मीन से उठा और खुद से बोला— "आह बैल नहीं आ शेर। मुझे पंजा मार वाले काम हो जाते हैं कभी-कभी। पूरा जबड़ा हिलाकर रख दिया कमीने ने। आह! कितनी जोर से मारता है ये अयांश मेहरा। मार देगा। बट जब तक खुद न चाहेगा कुछ न बताएगा। इसकी जुबान के ताले की चाबी सिर्फ़ इसके पास ही है। काश इसके मुँह की डुप्लीकेट चाबी बन सकती, वो इसमें भरकर मैं सब जान लेता सबकुछ, पर नॉट पॉसिबल। इसे समझ पाना भी और इसके मुँह से कुछ उगलवाना भी!! (आऊच! गाल मसलते हुए)


    (क्रमशः)

  • 11. My Devil Husband - Chapter 11

    Words: 1488

    Estimated Reading Time: 9 min

    अयांश ने जिस मीटिंग की विनित को तैयारी करने को कहा, विनित ने फटाफट सब तैयार करवा लिया। क्लाइंट ऑफिस में आ चुके थे। विनित क्लाइंट से मिला और मैनेजर तरुण के साथ सबको कॉन्फ्रेंस रूम में भेज दिया। तरुण क्लाइंट को मीटिंग हॉल में बिठाकर बाहर आया, तो देखा विनित के चेहरे पर परेशानी झलक रही थी और वह वहीं इधर-उधर तेज़ी से चल रहा था।


    "व्हाट हैपन?" तरुण ने विनित के पास आकर पूछा।


    विनित ने रुककर उसकी ओर देखते हुए कहा, "अभी तक तो कुछ हैपन नहीं हुआ, बट अगर हमारा बॉस मीटिंग के लिए नहीं आया तो ज़रूर बहुत बड़ी हैपन हो जाएगी!"


    यह सुनते ही तरुण ने ऊपर के फ्लोर की ओर देखते हुए कहा, "व्हाट यू मीन सर?"


    विनित ने उसे घूरते हुए कहा, "यार, एक तो ना ये मेरे सामने अंग्रेज़ी कम बोलो। अयांश मेहरा की खामोशी से ज़्यादा तो मैनेजर साहब आपकी यह अंग्रेज़ी मेरा दिमाग खराब कर देती है। व्हाट हैपन, व्हाट यू मीन, व्हाई, हाय... इतनी तो मुझे अंग्रेज़ी बोतल भी नहीं चढ़ती जितनी आपकी यह अंग्रेज़ी 'ओ माई माता' कर देती है। एक तो परेशान, ऊपर से अंग्रेज़ी! बड़ा ही मुझ मासूम पर अत्याचार!"


    तभी मैनेजर तपाक से बोला, "यू ड्रिंक?"


    यह सुनते ही विनित मैनेजर को मुक्का दिखाने लगा कि वह फट से पीछे हो गया। "सॉरी सर, आई मीन मेरा मतलब आप पीते हो?"


    विनित: "हाँ, दूध, चाय, कॉफ़ी, पानी, जूस सब पीता हूँ और वह भी एक-आधा पैग, बट कभी-कभार। जो पूछ रहे हो, एनीवे इट्स ऑफिस, पर्सनल बात नहीं, सिर्फ़ प्रोफ़ेशनल!" (घूरते हुए)


    तरुण ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "तो जाइए सर, बॉस को लेकर आइए, क्लाइंट आ चुके हैं!" (कॉन्फ्रेंस रूम की ओर इशारा करते हुए)


    विनित ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "कहाँ से लेकर आऊँ?"


    तरुण हैरान होते हुए बोला, "मतलब सर?"


    विनित ने ऊपर की ओर इशारा करते हुए कहा, "हमारे बॉस अयांश मेहरा कैबिन में नहीं है, कैबिन में क्या, ऑफिस में भी नहीं है। ना फ़ोन उठा रहे हैं, ना मैसेज का रिप्लाई दे रहे हैं... पता हो कि वह कहाँ विराजमान हैं तो हाथ-पैर जोड़कर ले आऊँ!" (अपना माथा पीटते हुए)


    यह सुनते ही तरुण की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं और लड़खड़ाती आवाज़ में बोला, "क्...क्या बॉस ऑफिस में नहीं है?"


    विनित ने अपनी कमर पर हाथ टिकाते हुए बोला, "अभी मैंने कौन सी भाषा में बोला? जो कहा है उसका मतलब यही है कि अयांश मेहरा यहाँ नहीं है।"


    तरुण: "तो कहाँ है?"


    विनित: "ओएमजी... तुम जाओ यहाँ से! जवाब पता है फिर भी सवाल कर रहे हो। मुझे क्या पता कहाँ है?"


    तरुण: "सॉरी सर, बट जल्द सर को बुलाइए। पहले ही हम इन क्लाइंट को दो बार इस मीटिंग के लिए मना कर चुके हैं। पहले ही पोस्टपोन की थी तो क्लाइंट नाराज़ हो गए थे। आज ऐसा नहीं होना चाहिए, वरना बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। सब ऑफिस में आ चुके हैं, बॉस का वेट कर रहे हैं। बस मीटिंग हो और डील साइन हो, सब इस इंतज़ार में हैं... कुछ कीजिए ना विनित सर, प्रॉब्लम हो जाएगी आज अगर यह मीटिंग नहीं हुई। ऐसे बॉस कहाँ जा सकते हैं? उन्होंने ही यह मीटिंग अरेंज करने को कहा था ना, वह रेडी हैं, आप ही बोले और सब मैनेज किया गया है उस अकॉर्डिंग। क्लाइंट तक को बुला लिया गया है, बॉस को इस वक़्त ऑफिस में होना चाहिए था इस मीटिंग के लिए। वह इस वक़्त कहाँ जा सकते हैं!"


    तरुण के एक ही साँस में इतना बोलते देख विनित उस पर चिल्लाते हुए बोला, "स्टॉप इट!"


    यह सुनते ही तरुण ने अपने मुँह पर अँगुली रख ली। "सॉरी सर, वह टेंशन में?"


    विनित: "आई नो यार, मैं खुद परेशान हूँ, बट क्या करूँ? कहाँ तो अयांश ने ही था मीटिंग के लिए, उसी की हाँ पर सब रेडी है, अब खुद गायब है, बताकर भी नहीं गया... क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा है। प्रॉब्लम तो सच में हो जाएगी यह मीटिंग ना हुई तो। और बॉस के बिना तो होने से रही। आई होप जल्द आ जाए वह... यह मीटिंग और आज यह डील होना बहुत ज़रूरी है!"


    तरुण: "हाँ सर, बहुत ज़रूरी, अदरवाइज़ आपको भी पता है क्या होगा। कुछ कीजिए विनित सर!"


    विनित ने हाँ में सिर हिलाया और बोला, "मैं जाकर क्लाइंट को संभालता हूँ... तब तक तुम पेपर रेडी करो, फ़ाइल वगैरह निकालो... आई होप मैं क्लाइंट को हैंडल करूँ, तब तक हमारे माननीय बॉस आ जाएँ!"


    "जी सर," तरुण बोला और विनित वहाँ से कॉन्फ्रेंस रूम में चला गया। काफ़ी देर हो गई थी। कॉन्फ्रेंस रूम में विनित के साथ क्लाइंट भी अयांश के आने का वेट कर रहे थे। सबको वहाँ पहुँचे काफ़ी टाइम हो गया, आधे घंटे से भी ज़्यादा, पर अयांश अब तक नहीं आया था। विनित बार-बार अपनी हाथ की घड़ी और दरवाज़े की ओर देख रहा था।


    तभी मिस्टर कपूर ने विनित की ओर देखते हुए उससे कहा, "कहाँ है मिस्टर मेहरा? हम सब कब से वेट कर रहे हैं? एक तो यह मीटिंग एक हफ़्ते पहले होनी थी, पर आज रखी गई है और जिन्हें यहाँ होना चाहिए वह ही यहाँ नहीं है। पहले ही लेट है, अब और लेट! उन्हीं के कहने पर तुमने यह मीटिंग रखी है ना!"


    वहाँ मौजूद बाकी सब ने भी मिस्टर कपूर की हाँ में हाँ मिलाई और जवाब के लिए सबकी नज़र विनित पर चली गई।


    विनित ने मुस्कुराते हुए सबकी ओर देखा और बोला, "हाँ-हाँ मिस्टर कपूर, मीटिंग उन्हीं के कहने पर रखी गई है। बॉस वहीं हैं तो उन्हीं के कहने पर यह सब हुआ है, मैंने थोड़ी खुद से किया है!"


    मिस्टर कपूर फिर से बोले, "तो कहाँ है आपके बॉस? मीटिंग तो रख ली, पर लगता है उनके पास टाइम ही नहीं है मीटिंग करने का!"


    "हाँ, तभी तो देखो हमें कब से यहाँ बिठा रखा है। हम भी फ़्री नहीं होते हैं, हमें भी सौ काम होते हैं... सोचा आज मिस्टर मेहरा ने टाइम दिया तो पेंडिंग काम भी हो जाएगा। मिस्टर मेहरा का टाइम आसानी से मिलता भी तो नहीं है, पर मिस्टर मेहरा तो मिस्टर इंडिया ही बन बैठे हैं!" मिस्टर कपूर की बात से सहमत होते हुए मिस्टर अग्निहोत्री बोले।


    तभी विनित फिर से बोला, "अरे-अरे आप कैसी बातें कर रहे हैं? आ रहे हैं अयांश मेहरा... अभी आ जाएँगे थोड़ी देर में। थोड़ा तो पेशेंस रखिए। आप सब, मीटिंग भी होगी और डील भी!"


    मिस्टर कपूर: "अच्छा, पर उनके लेट होने की वजह क्या हो सकती है? हमें तो सुना है मिस्टर मेहरा अपने काम को लेकर बहुत सीरियस होते हैं!"


    मिस्टर अग्निहोत्री: "हाँ, और उन्होंने टाइम दे दिया, इट्स मीन पार्टनरशिप डन, पर आज तो वह अपने दिए टाइम पर खुद भी मौजूद नहीं हैं!"


    तभी विनित फट से बोला, "अरे आप सब शादीशुदा हैं, समझो ना! कल ही तो हमारे बॉस की शादी हुई है। अब तक तो ऑफिस और काम ही देखते थे, सब टाइम पर, और अब तो बीवी को भी देखना है। शादी के बाद ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है, फिर भी मीटिंग रखी है तो कभी-कभी मैनेज करने में थोड़ी मुश्किल हो जाती है ना... आप सब तो सिचुएशन समझो बंदे की! जहाँ बीवी के साथ हनीमून पर होना चाहिए, वहाँ इस मीटिंग को पहले रखा गया है। इट्स अर्जेंट ना... नया-नया है शादीशुदा जीवन हमारे बॉस का, तो थोड़ा तो तालमेल बिठाने में वक़्त लगेगा ना! बस थोड़ा इंतज़ार... आ रहे हैं अयांश मेहरा!!"


    यह सुनते ही सब शांत हो गए क्योंकि सब जानते थे! न्यूज़ चैनल, अख़बार, सब में सबने अयांश मेहरा की कल ही हुई शादी की हाइलाइट खबर आज सुबह देख ली थी।


    मिस्टर अग्निहोत्री मुस्कुराते हुए बोले, "आई अंडरस्टैंड... हम वेट करेंगे!"


    विनित: "थैंक यू सो मच!... अब देखो मेरी तो शादी हुई नहीं, पर आप सब तो अच्छे से जानते होंगे वाइफ़ के नखरे वगैरह... कल ही हुई शादी में आज छोड़कर आएगा तो बीवी नाराज़ होकर चली जाएगी। सोचो फिर घर बसने से पहले ही उजड़ जाएगा! पर कोशिश कर रहे हैं बॉस, बीवी का पल्लू छोड़ ऑफिस में आने की!" (बतीसी दिखाते हुए)


    यह सुनकर सब हँस पड़े। विनित की ऐसी बातों ने सिचुएशन कंट्रोल में कर ली थी। जो क्लाइंट अयांश के मौजूद न होने पर शिकायत कर रहे थे, वह अभी शांत बैठे थे। यह देख विनित ने चैन की साँस ली और अपना फ़ोन अपनी हथेली पर मारते हुए मन ही मन बोला, "आ जा यार, कहाँ हो... घर पर भी इस वक़्त नहीं हो सकते हो तुम। आई नो, वरना दादू से पूछ लेता, और अगर उनसे पूछूँ तो वह भी परेशान हो जाएँगे। फिर मेरी डबल वाट लग जानी है। दादू को परेशान किया तो?" (सोचते हुए)


    तभी मिस्टर कपूर ने विनित को आवाज़ दी, पर विनित का ध्यान दरवाज़े पर ही अटका था। तभी मिस्टर कपूर ने जोर से आवाज़ दी, "मिस्टर विनित!"


    यह सुनते ही विनित की तंद्रा टूटी। उसने फट से मिस्टर कपूर की ओर देखा। "येस... येस मिस्टर कपूर!!"


    मिस्टर कपूर: "वैसे तो हमने न्यूज़ देखी, आई मीन अयांश मेहरा की फ़ोटो विद वाइफ़... क्या नाम था... हम्म!"


    विनित: "वो... वो आर्वी मेहरा!"


    मिस्टर कपूर: "येस, नाम पढ़ा था... शादी के गेटअप में मिस्टर एंड मिसेज़ मेहरा का फ़ोटो जो अख़बार में छपा था और न्यूज़ चैनल वाले भी दिखा रहे थे, वो सेम पोज वाली फ़ोटो... पर ना शादी में किसी को इनवाइट किया, ना किसी को कोई खबर। सडनली शादी, इट्स स्ट्रेंज!"


    (दरअसल अयांश ने आर्वी से शादी करने के बाद एक दोनों की साथ में फ़ोटो खिंचवाई और मीडिया, प्रेस, सबसे बात कर विनित को बोल बस वहीं एक फ़ोटो शो करी, बाकी कुछ भी दुनिया के सामने नहीं आने दिया।)


    विनित हँसते हुए बोला, "शादी में तो मुझे भी नहीं बुलाया!"


    (क्रमशः)

  • 12. My Devil Husband - Chapter 12

    Words: 1349

    Estimated Reading Time: 9 min

    “शादी में तो मुझे भी नहीं बुलाया!” विनित ने यह कहा, मिस्टर अग्निहोत्री चौंक पड़े। “क्या?” और वहाँ बैठे छह-सात लोग एक-दूसरे की ओर देखने लगे।

    तब विनित बोला, “अरे इतनी हैरानी की क्या बात है? शादी की है मिस्टर मेहरा ने, कोई फिल्म शूट थोड़ी की है जिसका पहले ट्रेलर आए और फिर मूवी, जिसे हम सब देखें, ज़रूरी तो नहीं। उनकी शादी, उनकी पसंद। सिंपल सी शादी, फॉर्मेलिटीज़ फ्री। सो, लड़की पसंद आ गई, लड़का राजी, लड़की राजी, तो चट मंगनी पट ब्याह। क्या करते बनकर हम सब बराती? और सबके साथ खुशी बाँटने के लिए, सबके साथ अपनी शादी की बात भी तो शेयर कर दी। बस अब हमारा यही फर्ज़ है, हम तो दुआ करें। रब भला करे!” (हाथ जोड़, ऊपर छत की ओर देखते हुए)

    यह सुन सबने हाँ में सिर हिलाया। तभी मिस्टर अग्निहोत्री बोले, “शादी में ना सही, पर रिसेप्शन पार्टी तो होगी ना? उसमें तो इनवाइट करेंगे ना? आखिरकार टॉप बिज़नेसमैन और मोस्ट बैचलर अयांश मेहरा ने शादी जो कर ली है!”

    विनित: “अब उसका तो मैं क्या बोलूँ? जैसे हज़ारों लड़कियों के दिल टूटे हैं आज अयांश मेहरा की शादी की खबर सुनकर, वैसे हम सब के दिल भी टूट जाएँ। आखिरकार हम सब जानते हैं अयांश मेहरा पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ कभी मिक्स नहीं करता है। सो, एक रीज़न यह भी है कि उन्होंने शादी में ना बुलाया किसी को, है ना!”

    यह सुनते ही सब एक साथ बोले, “वेरी कॉम्प्लिकेटेड!”

    विनित: “हम्म, वेरी कॉम्प्लिकेटेड, टू मच कॉम्प्लिकेटेड! बट डोंट वरी, आप सबका मुँह मीठा करवाएँगे ना। आज की डील के बाद स्वीट भी होगी और और आपके टाइप की पार्टी भी उसी में ऐड कर देंगे। शादी पार्टी, बिज़नेस पार्टी, ओके!” (मुस्कुराते हुए)

    मिस्टर कपूर: “होप सो! वैसे सच में यकीन नहीं था मिस्टर मेहरा शादी करेंगे। सडनली! मीडिया में जिनके रोज़ चर्चे रहते हैं, उनकी शादी में मीडिया भी नहीं शामिल हो पाई!”

    यह सुन विनित अपना सर खुजाते हुए मन ही मन बोला, “मीडिया के हाथ तो कानून से भी लंबे होते हैं, उसे पहुँचने से कौन रोक पाता है? पर उनके हाथ कट जाते हैं अयांश मेहरा के हाथों, इसलिए बेचारों ने लंबे हाथ पीछे खिसका लिए!”

    तभी वहाँ मैनेजर तरुण आ गया। विनित ने इशारे से अयांश के बारे में पूछा, पर तरुण के चेहरे पर बारह बज गए। एक सेकंड न लगा समझने में कि अयांश का कुछ पता नहीं चला!

    तभी मिस्टर अग्निहोत्री बोले, “मैनेजर साहब, आप अपने बॉस की कुछ खबर लेकर आए हैं क्या? कब तक हमें यूँ ही बिठाए रखने का इरादा है? देखिए, एक घंटा हो गया है!”

    यह सुन तरुण और विनित ने एक-दूसरे की ओर देखा। तभी तरुण कुछ कहता कि विनित दरवाज़े की ओर देखते हुए फट से बोला, “बॉस आ गए!”

    और सबकी नज़र अयांश पर चली गई जो अपने फ़ोन पर नज़रें गड़ाए कॉन्फ़्रेंस रूम में चला आ रहा था। अयांश की ओर देख विनित मन ही मन बोला, “इतने नखरे और इतना इग्नोर! मेरी फ़्यूचर गर्लफ़्रेंड भी नहीं करेगी मेरे कॉल और मेरे मैसेज को जितना यह करता है। फ़ोन हाथ में चिपका हुआ है पर यह नहीं एक रिप्लाई भी दे देता है। पता नहीं क्या खाकर पैदा हुआ है। चाहे टेंशन में मेरी जान चली जाए पर यह मेरी जान अपनी मन की करने से बाज नहीं आता!”

    अयांश के अंदर आते ही सब अपनी चेयर से उठ गए! अयांश ने अपना फ़ोन टेबल पर फेंका और सबकी ओर देखते हुए कहा, “हेलो एवरीवन!”

    मिस्टर कपूर अयांश की ओर हाथ बढ़ाते हैं। अयांश हाथ मिलाता ही है कि मिस्टर कपूर ने कहा, “कांग्रेचुलेशन मिस्टर मेहरा!”

    अयांश हाथ छोड़, टेबल पर अपनी हथेली टिकाते हुए खड़ा होकर बोला, “मीटिंग तो होने दीजिए। अभी कहाँ हमारी डील हुई है!”

    मिस्टर अग्निहोत्री: “वो कांग्रेचुलेशन तो मीटिंग और डील के पेपर साइन होने के बाद ही कहेंगे। वो नहीं हो जाता तब तक तो कह भी नहीं सकते। आप पर डिपेंड है वो तो। और ये कांग्रेचुलेशन तो आपकी शादी के लिए है!”

    मिस्टर कपूर मुस्कुराते हुए: “हाँ, हम सब की तरफ़ से आपको शादी की बहुत-बहुत बधाई हो। सॉरी, मीटिंग की जल्दी में तोहफ़ा लाना भूल गए!”

    यह सुनते ही अयांश ने विनित और तरुण की ओर देखा तो तरुण फट से बोला, “मैं प्रोजेक्टर ऑन करता हूँ सर!”

    विनित: “मैं भी हेल्प करता हूँ।” और दोनों वहाँ से अयांश के पीछे लगे प्रोजेक्टर की ओर खिसक गए।

    तभी मिस्टर अग्निहोत्री अपना हाथ बढ़ाते हुए बोले, “वेरी वेरी कांग्रेचुलेशन मिस्टर मेहरा फॉर योर मैरिड लाइफ!”

    अयांश ने हाथ नहीं मिलाया और चेयर आगे खिसका कर उस पर बैठते हुए बोला, “हाथ मिलाना तो चलता रहेगा, पहले मीटिंग कर ली जाए। सिट!”

    बाकी सब के साथ मिस्टर अग्निहोत्री भी अपना हाथ नीचे कर वापस अपनी चेयर पर बैठ गए!

    मिस्टर कपूर: “हम तो कब से मीटिंग के लिए रेडी हैं मिस्टर मेहरा। आप ही लेट हैं!”

    अयांश यह सुन अपने हाथ में बंधी वॉच को घुमाते हुए: “तो आप चाहते हैं मैं लेट आने पर आपसे सॉरी बोलूँ?” (सबकी ओर देखते हुए)

    मिस्टर कपूर: “नो नो, वी आर अंडरस्टैंड!”

    मिस्टर अग्निहोत्री: “हाँ मिस्टर मेहरा, हम सब समझ सकते हैं। आखिरकार हम सबने भी तो शादी की है। टाइम ऊपर-नीचे हो जाता है!” (मुस्कुराते हुए)

    यह सुनते ही अयांश अपनी चेयर को पीछे की तरफ़ घुमाता है और विनित की ओर देखते हुए कहता है, “मिस्टर विनित!”

    विनित जो उसकी ओर पीठ किए खड़ा था, मन ही मन बोला, “मरा!”

    तरुण उसके कंधे पर हाथ रखते हुए: “सर बुला रहे हैं।” और खुद भी मुड़कर अयांश की ओर देखने लगा!

    विनित पलकें झपकाता और थूक निगलते हुए अयांश की ओर मुड़ा जो गुस्से से उसी को देख रहा था! पहले तो विनित हल्का सा मुस्कुराया और फिर अयांश की ओर आते हुए बोला, “सब रेडी है!” (आकर टेबल के पास खड़ा होते हुए)

    अयांश ने वापस अपनी चेयर सबकी ओर घुमा ली। तरुण विनित के पास आकर खड़ा होकर बोला, “स्टार्ट करें सर!”

    अयांश ने हाँ में सिर हिलाया ही कि तभी उसका फ़ोन बज गया! अयांश की नज़र फ़ोन पर पड़ी। फ़ोन की स्क्रीन पर ‘दादू’ नाम शो हो रहा था। मन ही मन ‘दादू’ बोलते हुए अयांश ने फट से चेयर वापस घुमाते हुए दूसरी तरफ़ कॉल रिसीव कर ली। “हाँ!”

    अयांश की इस हरकत पर सब अयांश की ओर देख विनीत की ओर देखते हैं तो विनित मुस्कुरा देता है क्योंकि सबका जो रिएक्शन था वो लाज़मी था। एक तो अयांश लेट और ऊपर से कॉल पर लग गया!

    “सब तुम्हें कब से कॉल कर रहे हैं अंशु, एक बार तो कॉल उठा लेना चाहिए ना!” आगे से दिनकर जी बोले!

    “सॉरी…वो बिजी था!” अयांश ने कहा!

    “हाँ, जानता हूँ तुम्हारे अर्जेंट काम और तुम्हारा बिज़ी होना जिसमें तुम मेरे सिवा किसी का फ़ोन नहीं लेते हो और ऐसे में मुझे ही फ़ोन करना पड़ रहा है। राधे तो कर करके थक गया तुम्हें फ़ोन और ऐसा ही रहा ना अंशु तो कभी मैं फ़ोन करने की हालत में न हुआ तो सोचो और यहाँ कुछ अर्जेंट हुआ तब क्या करेगा? तुम्हें तो फ़ोन औरों का उठाना नहीं होता?” आगे से दिनकर जी बोले!!

    “प्लीज़… दिनकर जी… मेरी फ़ोन न करने की हालत में हुआ…” वाली बात पर अयांश बोला और कहा, “सॉरी, आगे से ध्यान रखूँगा… क्या हुआ कहिए?”

    तभी दिनकर जी ने कुछ ऐसा कहा कि अयांश ‘व्हाट?’ कहते हुए फट से चेयर से उठा। “मैं अभी आ रहा हूँ।” कह अयांश ने फ़ोन काट दिया और वहाँ से जाने लगा कि विनित सामने आते हुए बोला, “क्या हुआ?”

    अयांश अपना फ़ोन अपने कोट में रखते हुए: “घर जा रहा हूँ।”

    तरुण: “बट सर, मीटिंग?”

    अयांश: “कैंसिल।”

    यह सुनते ही सब चेयर से उठ गए और हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखते हैं। तभी मिस्टर कपूर बोले, “ऐसे कैसे मिस्टर मेहरा? हम कब से वेट कर रहे हैं। आप ऐसे नहीं जा सकते हैं। यह मीटिंग भी तो ज़रूरी है!”

    अयांश उनकी ओर देखते हुए: “मेरी वाइफ़ से इम्पॉर्टेन्ट कुछ भी नहीं!”

    मिस्टर अग्निहोत्री: “आप ऐसा नहीं कर सकते हैं मिस्टर मेहरा… यह डील आज नहीं हुई तो हमें फिर से डिस्कस करना पड़ सकता है आपके साथ जो पार्टनरशिप करने वाले हैं उसको लेकर… आज की डेट में फ़ाइनल होना चाहिए। अदरवाइज़ आपको ही लॉस है। सोच लीजिए!”

    अयांश ने उनकी ओर एटीट्यूड से देखते हुए कहा, “सोचता मैं नहीं… आप सब सोचो। लॉस की मुझे कोई परवाह नहीं। और हाँ, आपको ज़्यादा ज़रूरत है मुझे नहीं। सो आपको जो डिसाइड करना है कर लीजिए। नो प्रॉब्लम। एंड नाउ बाय… इस मीटिंग से भी ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट कुछ और है इस वक़्त।” (विनित की ओर देखते हुए) कह अयांश वहाँ से भागते हुए चला गया!!

    और सब अयांश को जाते देखते रह गए!!!

    (क्रमशः)

  • 13. My Devil Husband - Chapter 13

    Words: 2019

    Estimated Reading Time: 13 min

    अयांश के चले जाने के बाद विनित ने सबकी ओर मुस्कुराते हुए देखा जो उसी ओर देख रहे थे। तब मिस्टर कपूर बोले- "व्हाट इज दिश? मिस्टर विनित!"

    विनित- "वो,,,,वो मिस्टर कपूर,,,,समझिए ना कल ही शादी हुई है उनकी, कुछ अर्जेंट काम, आई मीन एमरजेंसी आई होगी तभी जाना पड़ गया। वरना अयांश मेहरा कभी रखी हुई मीटिंग कैंसिल नहीं करते हैं,,,,डील आज नहीं तो कल हो जाएगी। डोंट वेरी!"

    तरूण हां में हां मिलाते हुए- "येस!"

    मिस्टर अग्निहोत्री- "अब हम क्या कर सकते हैं? पहले ही हमारा बहुत टाइम वेस्ट कर दिया है आप सबने,,,,खैर चलते हैं!"

    मिस्टर कपूर- "आखिरकार अयांश मेहरा को भी शादी नाम की चीज ने बदल कर रख ही दिया है। पहले ही दिन ये हाल है, आगे न जाने क्या होगा? जो नहीं सकता था वो होने लगा है,,,,अब तो नहीं लगता कि ये मीटिंग होने वाली है, डील तो दूर की बात!" (थोड़ा गुस्से से) और सब ना में सिर हिलाते हुए वहां से चले गये।

    उन्हें तरूण ने रोकने, समझाने की कोशिश की, यहां तक कि बाहर उनके पीछे भी गया, पर सब वहां से निकल गये। तरूण परेशान होकर वापस कॉन्फ्रेंस रूम में आया तो देखा विनित अपना सिर पकड़े चेयर पर बैठा था। तरूण ने विनित के पास आकर कहा- "सर अब क्या होगा?"

    विनित ने आह भरते हुए कहा- "वही होगा जो मंजूर अयांश मेहरा होगा!"

    तरूण- "बट सर,,,,ये बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है। अगर हमने इसे हाथ से जाने दिया तो बहुत बड़ा लॉस हो जाएगा हमें!!"

    विनित- "सुना नहीं जो अयांश मेहरा ने कहा, उन्हें लॉस की कोई परवाह नहीं है!"

    तरूण- "पर आपको तो है ना,,,,कैसी बातें कर रहे हैं आप?"

    विनित- "चिल यार, कुछ नहीं होगा,,,,अभी ये सब जो यहां से थोड़े गुस्से में नाराज होकर निकले हैं ना, जरूरत तो इनको भी है हमारे साथ काम करने की। आखिरकार इनको भी मार्केट में अपना स्टैंडर्ड हाई करना है, हमसे ज्यादा तो इनको जल्दी है इस डील के होने की,,,,ये इंतजार भी करेंगे और ये प्रोजेक्ट भी हमारे साथ ही करेंगे,,,,पीछे हटकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाले नहीं हैं मिस्टर कपूर एंड मिस्टर अग्निहोत्री। सो डोंट वेरी, कुछ नहीं होगा, हम सब हैंडल कर लेंगे!!" (हल्का सा मुस्कुराते हुए)

    यह सुन तरूण मुस्कुरा उठा और विनित की पास वाली चेयर पर बैठते हुए- "आई लाइक इट, यूअर पॉजिटिव थिंकिंग, यू आर वेरी ऑसम सर, सुपर्ब, माइंड ब्लोइंग!"

    यह सुनते ही विनित ने थोड़ा तरूण की ओर घूरा। तब तरूण फट से बोला- "मेरा मतलब जब आप जैसे महारथी हैं सब संभालने के लिए, कैसे कोई गड़बड़ हो सकती है सर,,,,मिस्टर कपूर और मिस्टर अग्निहोत्री के पास सिवाय बेबसी के कुछ नहीं था, इसलिए थोड़े गुस्से में बड़बड़ा कर चले गये, क्योंकि बॉस के आगे कहां किसी की चलती है,,,पर लौटकर आना तो यहीं है उनको,,,,देर-सवेर ही सही, ये मौका हाथ से जाने नहीं देंगे वो, है ना!"

    विनित तरूण का कंधा थपथपाते हुए- "वाह यार, बात तो सही कही, पर सबसे ज्यादा अच्छा लगा हिंदी में कही!" (हंसते हुए)

    तरूण खुश होते हुए- "थैंक्यू सर,,,,पर सर, अयांश सर ऐसे क्यों चले गये?"

    विनित सोचते हुए- "पता नहीं क्या हुआ होगा और अब पूछे भी कौन? जलती ज्वाला में कौन हाथ डाले!"

    तभी तरूण ने थोड़ा झिझकते हुए कहा- "एक बात तो है सर, मिस्टर कपूर ने जो कहा सही कहा,,,,जो नहीं हो सकता है वो होने लगा है। अब अयांश मेहरा बदल रहे हैं। शादी के बाद सब बदल जाते हैं, सुना था हमारे बॉस भी बदल जाएँगे, सोचा नहीं था मैंने!"

    विनित सोचते हुए बोला- "हाँ यार, देर रात घर जाने वाले हमारे बॉस भागकर घर चले गये, घर से आए एक फोन ने हिलाकर रख दिया,,,,शादी और बीवी ने एक ही रात में इतना बदल दिया,,,,ऐसा भुचाल है शादी,,,,मैं तो कभी नहीं करता, तुम भी मत करना,,,,सच ही है, लड़की आई जिंदगी में और बंदा पटरी से उतरा!"

    तरूण हंसते हुए- "सुना तो यही है, खैर,,,,सर, बॉस की ये शादी उनके गुस्से में भी बदलाव लाएगी क्या?"

    यह सुन विनित एकटक तरूण की ओर देखने लगा और कुछ ही पल में दोनों हाई-फाई करते हंस पड़े।

    तभी विनित मुंह पर अंगुली रखते हुए- "हीशशश, बॉस है वो हमारे!"

    तरूण- "जी सर,,,,पर आपके तो दोस्त हैं ना, तभी वो कहें ना कहें, आप सब संभाल लेते हैं, उनका गुस्सा भी झेल लेते हैं और उनके सामने भी जाकर खड़े हो जाते हैं, चाहे उनका मूड सही हो या नहीं,,,डर नहीं लगता आपको, उनका घूर कर देखना ही मेरी हालत पतली कर देता है!"

    विनित अयांश के बारे में सोचते हुए- "अभी बोला ना आपने, मैं दोस्त हूं और दोस्ती की है तो निभानी ही पड़ेगी,,,,और दोस्त हूं तो हैंडल करना पड़ेगा ना, चाहे फिर वो उसका गुस्सा हो,,,,रिश्ता चाहे जो भी हो परफेक्ट तभी है जब हम खूबियों के साथ उस शख्स की खामियों को भी अपना लेते हैं,,,,खामियां ऐसी कि उस पर उसकी खूबियां भारी पड़ जाती हैं, और खूबियां इतनी कि खामियां नजर ही नहीं आती हैं। डर तो लगता है मुझे भी, अब शेर से दोस्ती जो ठहरी, पर वफादारी है इस दोस्ती में, भले ही कितना ही गुस्सा हो, कितना ही नाराज हो वो इस मैमने पर (खुद की ओर इशारा करते) कभी पलटकर वार नहीं करेगा, पर अगर उस शेर को धोखा दिया, वफादारी छोड़ विश्वासघात किया, पीठ पीछे वार किया तो वो एक पल न लेगा, फाड़कर रख देगा,,,,ऐसा वार करेगा कि चित्थड़े चित्थड़े हो जाएँगे, कहीं का भी नहीं छोड़ेगा, ऐसा शेर है वो!!"

    यह सुन तरूण ने कहा- "आप सबसे ज्यादा जानते हैं ना बॉस को?"

    विनित ना में सिर हिलाते हुए- "१% भी नहीं!"

    तरूण- "दोस्त है फिर भी?"

    विनित- "उतना ही जानता हूं जितना जरूरी है। हाँ, मैं दोस्त हूं, पर अयांश मेहरा खुद को जानने का हद से ज्यादा किसी को भी मौका नहीं देता!"

    तरूण हैरान होते हुए- "ऐसा क्यों है सर,,,,सबको ना सही, पर दोस्तों से भी राज?"

    यह सुन विनित मन ही मन खुद से बोला- "दोस्तों से भी कुछ राज रखे जाने चाहिए मैनेजर साहब, वरना विनित भी सक्षम बनने की भूल कर सकता है और जिसका अंजाम बहुत खतरनाक होता है। दुश्मनों से ज्यादा डर दोस्तों से होता है, क्योंकि जो जितना खास होता है वो उतने ही गहरे घाव देता है!"

    तरूण विनित के सामने हाथ हिलाते हुए- "क्या सोचने लगे सर आप?"

    विनित हल्का सा मुस्कुराते हुए- "ये आप नहीं समझेंगे मैनेजर तरूण,,,,हम सब के सर के ऊपर से निकल जाएगा। हम समझना भी चाहेंगे तो जैसे हवाई जहाज़ निकल जाता है पल में सामने, फिर अचानक सब साफ़, वेरी कॉम्प्लिकेटेड पर्सनैलिटी है अयांश मेहरा। ऐसी किताब है वो, अगर हम पढ़ भी लें तो ना जान पाएँगे ना समझ पाएँगे। कोई नहीं है ऐसा जिसे अयांश मेहरा ने खुद को पढ़ने का मौका दिया हो,,,,इसलिए हमारे लिए राज ही सही है। आप दो पन्ने पढ़कर खुश रहिए, मैं चार पन्ने पढ़कर खुश रहूँ हमारे बॉस की शख्सियत के, इतना ही काफी है हमारे लिए, वरना ओ माई माता हो जानी है!" (हंसते हुए)

    तरूण मुस्कुराते हुए- "जी सर, जितना है ठीक है, अभी कम उलझे हैं, फिर और उलझ जाएँगे!"

    तभी विनित टेबल पर दोनों हथेलियाँ मारते हुए- "ओह हेल्लो, बॉस घर गये हैं, हम यहीं हैं, हमें संभालना है ऑफिस, बैठे क्या हो? चलो काम देखो!"

    "जी सर"....कहते हुए तरूण उसी वक्त चेयर से उठकर वहां से चला गया।

    विनित टेबल पर रखा स्पिनर उठाकर उसे घुमाते हुए मन ही मन बोला- "शादी या बर्बादी,,,,अयांश मेहरा में दिख रहे बदलाव की वजह सबको शादी दिख रही है, सबको लग रहा है जैसे उनकी शादी होती है जिसमें रिस्पांसिबिलिटी बढ़ जाती है, घर पर, बीवी के साथ टाइम स्पेंड करना जरूरी होता है वगैरह-वगैरह, पर कोई क्या जाने अयांश मेहरा और आर्वी चतुर्वेदी की इस शादी के पीछे का असली सच?"


    अयांश अपनी गाड़ी से जल्दी घर पहुँचा। गार्ड ने फट से मेन गेट खोला। अयांश गाड़ी अंदर ही ले गया और गाड़ी से निकलकर इधर-उधर देखा। उसे आर्वी वहाँ नज़र नहीं आती है तो वो गार्ड को आवाज़ देता है। गार्ड भागा-भागा अयांश के पास आता है।

    "क्या हुआ है यहां? और कहाँ है वो?" अयांश ने उसे गुस्से से घूरते हुए पूछा।

    गार्ड अंदर की ओर इशारा करते हुए- "साहब, अंदर है!"

    "नज़र रखने को कहा था ना, तुम्हें तो बाद में देखता हूँ!" अयांश उस पर चिल्लाते हुए बोला और तेज़ी से अंदर की ओर भागा। गार्ड भी डरा सा अयांश के पीछे-पीछे चला गया। उसे देख लग रहा था जैसे उसे अपने बचाव में सफाई देनी हो।

    जैसे ही अंदर पहुँचा तो देखा आर्वी सोफ़े पर लेटी थी और उसके सामने वाले सोफ़े पर दिनकर जी बैठे थे। राधे भी वहीं खड़ा था।

    "क्या हुआ इसे?" अयांश ने आर्वी की ओर देखकर पूछा।

    दिनकर जी- "हालत देखकर भी पता लग सकता है इसे क्या हुआ है?"

    अयांश ने राधे की ओर देखते हुए कहा- "तुम बताओ,,,ये बेहोश कैसे हो गई?"

    राधे- "वो अयांश बाबा, हम चाय देने गये थे पर मना कर दिया इन्होंने। पर जब दूसरी बार पानी लेकर गये तो देखा ये गार्डन में बेहोश पड़ी थी!"

    अयांश- "व्हाट?"

    तभी गार्ड सहमा सा बोला- "साहब, आपके जाने के बाद मैडम मेरे पास आकर बोली, जाने दो यहां से, पर मैंने मना कर दिया तो वापस गार्डन की ओर चली गई! मैंने चेक भी किया दो बार, पहले तो बैठी थी और दूसरी बार गार्डन में सो रही थी, मैंने सोचा सो रही है पर बाद में पता चला कि ये बेहोश हो गई है!"

    राधे- "हाँ अयांश बाबा, मुझे भी यही लगा सो रही है जब पानी लेकर गये, आवाज़ दी, न उठी तो संभाला और फिर मालिक को बताया कि ये बेहोश हो गई है और मालिक के कहने पर हम इनको अंदर ले आये!"

    यह सुन अयांश ने राधे और गार्ड की ओर देखा तो दोनों ने अपनी नज़रें झुका लीं। दिनकर जी को देख, आर्वी की ओर देख, गार्ड पर चिल्लाते हुए अयांश बोला- "सो रही है या बेहोश हो गई है, इसमें फ़र्क नज़र नहीं आता है क्या?"

    दिनकर जी- "नहीं आता है, दूर से तो बिलकुल नहीं। नज़र रखने को कहा था तुमने, छूकर देखने को नहीं। दूर से लेटा इंसान सोता हुआ नज़र आता है, पास जाओ तो समझ आता है बेहोश है या नींद में है। और ये सब चिल्लाना-डांटना बाद में, पहले इसे होश में लाओ?" (आर्वी की ओर देखते हुए)

    "राधे, पानी लेकर आओ?" अयांश बोला।

    राधे- "पानी छिड़का है अयांश बाबा, एक बार नहीं, चार बार!"

    अयांश चिल्लाते हुए- "सुना नहीं तुमने? पानी लाओ!"

    दिनकर जी- "पानी नहीं, डॉक्टर को बुलाओ, हालत देख इस बच्ची की, पानी के छींटे मारकर देख लिए हैं इसके चेहरे पर, मैंने खुद किया है, नहीं आया होश, समस्या बढ़े इससे पहले डॉक्टर के पास लेकर जाओ,,,मैंने तो फ़ोन किया था डॉक्टर को, पता नहीं क्यों नहीं आया अब तक?,,,,शादी की है तो ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाओ!"

    "डॉक्टर तो नहीं आएगा दादू, एंड इट्स फ़ाइनल, शादी मैंने की है, बीवी मेरी है तो ख्याल भी मैं ही रखूँगा।" कह अयांश आर्वी की ओर बढ़ा, उसे सोफ़े से उठाकर अपनी बाहों में लिया और राधे की ओर देखते हुए कहा- "पानी लेकर आओ जल्दी!"

    "जी अयांश बाबा!" कह राधे वहां से भागते चला गया।

    अयांश आर्वी को लेकर वहां से जाने लगा कि दिनकर जी छड़ी ज़मीन पर मारते हुए सोफ़े से उठ गये- "अंशु!"

    अयांश रुककर उनकी ओर देखते हुए बोला- "फ़िक्र मत कीजिए, कुछ नहीं होने दूँगा! इतनी जल्दी और इतनी आसान मौत नहीं आ सकती है इसे! (बाहों में ली बेहोश आर्वी की ओर देखते हुए)"

    अयांश वहां से आर्वी को लेकर ऊपर चला गया। दिनकर जी उसे जाते देखते रह गये। गार्ड भी वहां से बाहर चला गया।

    अयांश आर्वी को लेकर अपने रूम में पहुँचा और बेड पर लेटाया। तभी पानी से भरा जग और खाली गिलास रखी ट्रे हाथ में पकड़े राधे ऊपर पहुँचा- "अयांश बाबा, पानी!"

    "रख दो टेबल पर?" अयांश अपना कोट उतारते हुए बोला।

    राधे ने ट्रे को लाकर बेड के पास वाले टेबल पर रख दिया और अयांश की ओर देख, बेड पर लेटी आर्वी को देखने लगा।

    अयांश अपनी शर्ट की बाजू ऊपर चढ़ाते हुए- "क्या है? पानी रख दिया ना, जाओ यहां से!"

    "जी," राधे ने कहा और वहां से चला गया।

    अयांश ने अपनी शर्ट की बाजू फोल्ड की और आर्वी की ओर जाकर कहा- "माई वाइफ़, इतनी गहरी नींद में सोना अच्छी बात नहीं है। यू आर डेविल हसबैंड इज़ कम एट होम, चलो उठ जाओ, बहुत आराम फ़रमा लिया,,,,सुबह ही बताया था ना, पति जाग जाये और मेरी बीवी सोती रहे, अच्छा नहीं लगता है,,,मुझसे पहले कैसे सो सकती हो तुम? बड़ी जल्दी भूल जाती हो तुम, मिसेज़ मेहरा, फिर से याद दिलाना पड़ेगा।" कह अयांश ने एक पल में टेबल से पानी से भरा जग उठाया और दूसरे ही पल उसे पूरा आर्वी पर उँडेला (फ़ेंक) दिया।

    (क्रमशः)

  • 14. My Devil Husband - Chapter 14

    Words: 1810

    Estimated Reading Time: 11 min

    जैसे ही अयांश ने पानी से भरा जग आर्वी पर उँडेला, वह अचानक सुबकते हुए उठ खड़ी हुई। इतने जोर से पानी लगा कि वह होश में आ ही गई।

    "गुड मॉर्निंग वाइफी?" अयांश ने टेबल पर जग रखते हुए कहा।


    आर्वी के चेहरे पर पानी टपक रहा था। उसकी पलकें लगातार झपझप रही थीं। क्या हुआ, इस बात से अंजान आर्वी ने अपने चेहरे पर दोनों हाथों की हथेलियाँ फेरकर चेहरा साफ किया और अपने होंठ अंदर-बाहर करते हुए अयांश की ओर देखा जो हाथ बाँधे ठीक उसके सामने खड़ा था। आर्वी को अपनी ओर देखते देख अयांश बेड पर उसके सामने बैठ गया और बोला, "कितना सोती हो तुम, बड़ी वाली आलसी बीवी मिली है मुझे? देखो तुम्हें उठाने के लिए मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ती है!"


    यह सुन आर्वी ने एक नज़र अयांश की ओर एकटक देखा और फिर इधर-उधर कमरे की ओर देखते हुए कहा, "मैं...मैं कहाँ हूँ? मैं यहाँ कैसे आई?" (हैरान होते हुए)


    अयांश आर्वी के पास से खड़ा होते हुए बोला, "वैसे आइडिया अच्छा था तुम्हारा बेहोश होने वाला। तुम इस घर में नहीं आना चाहती थीं और अब देखो तुम बेडरूम में हो मेरे... अपनी ज़िद भी नहीं छोड़ी तुमने और अंदर भी आ गईं! और कैसे आईं? तुम्हारा डेविल हस्बैंड अपनी बेहोश वाइफ को अपनी बाहों में उठाकर यहाँ लेकर आया है!" (फट से आर्वी पर झुकते हुए)


    अयांश के पास आते ही आर्वी पीछे की तरफ झटके से हट गई। उसका सिर पीछे बेड से लगा। कि अयांश ने अपना हाथ सिर के पीछे लगा लिया। इस वक्त अयांश आर्वी के बहुत करीब था और धीरे से फुसफुसाते हुए बोला, "संभलकर मेरी जान, चोट लग जाएगी... वैसे बेहोश वाला ड्रामा करने की ज़रूरत नहीं थी मिसेज़ मेहरा, यह घर तुम्हारा ही है अब, खुद से ही चली आती अंदर।" (भौंहें उठाते हुए)


    तभी आर्वी अयांश को अपने हाथों से धक्का देकर पीछे कर देती है और बेड की दूसरी साइड उतरकर खड़ी हो जाती है। "मैंने कोई ड्रामा नहीं किया, मुझे तो पता ही नहीं चला मैं बेहोश हो गई थी!"


    अयांश बेड से उठकर आर्वी की ओर आते हुए बोला, "सच में तुम्हें पता ही नहीं चलता तुम्हारे साथ क्या होता है!"


    अयांश को अपनी ओर आते देख आर्वी बड़ी-बड़ी आँखें करके उसे देखने लगी और अपनी दोनों मुट्ठियों में अपना लहँगा जमा लेती है! अयांश के कदम अपनी ओर बढ़ते देख आर्वी घबराते हुए अपने कदम पीछे लेने लगी!


    अयांश आर्वी को यह सब करते देख मुस्कुराते हुए उसके करीब आ ही गया! आर्वी पीछे दीवार से जा लगी। "देखिए आप..." आर्वी कहती ही है कि अयांश आर्वी के चेहरे पर आए बालों को अपनी उंगलियों से पीछे करते हुए बोला, "क्या देखूँ?"


    आर्वी असहज महसूस कर रही थी। वह साइड होने लगी कि अयांश ने फट से अपनी बाँह आगे लाकर दीवार पर हाथ रख लिया। आर्वी दूसरी साइड से निकलने लगी कि अयांश ने दूसरा हाथ भी दीवार से लगा लिया! अब आर्वी अयांश की बाहों के बीच थी। थूक निगलते, लगातार पलकें झपकाते हुए अयांश की ओर देखती है तो अयांश दाएँ-बाएँ गर्दन हिलाकर वहाँ से हिलने से मना कर देता है!


    आर्वी लड़खड़ाती जुबान से, "ह...हटिए?"


    अयांश मुस्कुराते हुए, "क्यों?"


    आर्वी, "ये...ये आप सही नहीं कर रहे हैं!"


    अयांश आर्वी की ओर थोड़ा झुकते हुए, "गलत भी नहीं कर रहा हूँ, हक़ है मेरा! वैसे भी कल ही हमारी शादी हुई और तुमने मुझे करीब भी नहीं आने दिया। तुम्हारी ज़िद की वजह से कल रात मैंने अपनी सुहागरात भी नहीं मनाई। सोच रहा हूँ सुहाग दिन बना लूँ... हो सकता है ना ऐसा? तुम भी यहाँ, मैं भी यहाँ, अपने कमरे में..."


    अयांश बोल ही रहा था कि आर्वी उसे धक्का देकर खुद से दूर कर देती है और वहाँ से भागने लगी कि अयांश ने आर्वी की कलाई पकड़ ली और पीछे खींचकर वापस दीवार से लगा लिया। "कहाँ भाग रही हो?" (आर्वी को कंधों से पकड़ते हुए)


    आर्वी कसमसाते हुए, "छोड़िए मुझे?"


    अयांश, "अजीब लड़की हो तुम! जब चोट देता हूँ तो आँखों में आँखें डालकर बात करती हो बिना किसी डर के और जब करीब आता हूँ तो डरकर भागने लगती हो!"


    अयांश को घूरते हुए, अपने दाँत पीसते हुए आर्वी बोली, "आपका दिया हुआ बड़ा-सा बड़ा दर्द सहन कर सकती हूँ मिस्टर मेहरा, पर आपका स्पर्श बर्दाश्त नहीं होगा, घृणा आती है मुझे आपसे!"


    यह सुनते ही अयांश आर्वी के बाल अपने हाथ में पकड़ लेता है। "अच्छा!"


    आह... अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश करते हुए आर्वी बोली, "क्यों? सच बर्दाश्त नहीं होता क्या? हाँ, यह सच है, आपका स्पर्श ऐसा लगता है जैसे मैं सबसे गंदी और घटिया चीज़ के पास हूँ जहाँ साँस लेना भी दुष्कर हो जाता है!"


    और तभी अयांश गुस्से से तिलमिलाते हुए उसे बालों से पकड़ ही अपने बेड की ओर धकेलते हुए बोला, "अब घृणा आए या कुछ भी आए, अयांश मेहरा के स्पर्श के अलावा कोई स्पर्श तुम्हें छू भी नहीं सकेगा... और अब इस घर के अंदर आ ही चुकी हो तो पड़ी रहो कहीं किसी कोने में। मेरे आने से पहले मेरे इस कमरे से बाहर होनी चाहिए तुम, वरना तुम रोक नहीं पाओगी मुझे तुम्हारे करीब आने से... फिर मेरा स्पर्श तुम्हारी साँसों का चलना ही दुष्कर नहीं, तुम्हारा जीना भी दुष्कर कर देगा!" डेविल सी मुस्कान चेहरे पर बिखेर अयांश मेहरा अपना कोट उठाकर वहाँ से चला गया।


    उसे जाते देख आर्वी चिल्लाते हुए बोली, "मुझे कोई शौक़ नहीं है आपके कमरे में रहने का, ना ही आपके घर में रहने का... खुद ही लेकर आए हो, निकाल दो ना यहाँ से मुझे! क्यों कर रहे हो ऐसा मेरे साथ आप?" बेड से उठकर चिल्लाते-चिल्लाते आर्वी कमरे के दरवाजे तक गई और वहीं जमीन पर बिलखते हुए गिर पड़ी। "कभी दर्द देकर डराते हो, कभी अपनी घटिया बातों से... इतना बेरहम पत्थर दिल कोई कैसे हो सकता है!"


    अयांश सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे पहुँचा तो दिनकर ही उसे देख सोफ़े से उठ गए! अयांश रुककर उनकी ओर देखते हुए बोला, "होश आ गया है उसे... उसका चिल्लाना तो आप सुन ही चुके हैं। उसको लेकर दादू आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, उसके लिए मैं हूँ। आप जाकर आराम कीजिए, आकर मिलता हूँ आपसे। और हाँ, फिर भी तरस आए उस पर, अपनी करने का मन करे, तो राधे को बोलकर सेवा-पानी करवा देना। आखिरकार आपके पोते की बीवी है वो, थोड़ा फ़र्ज़ आप भी निभाइए... पर लगता नहीं दादू वो कुछ खाएगी। आपका पोता बड़ी ज़िद्दी बीवी लेकर आया है। मेरे वार का असर नहीं होता, आपके प्यार का क्या असर होगा... ज़ख्मों से पेट भर रही है और आँसू पी रही है। कल से आई थिंक फ़ेवरिट डिश बन गई है उसकी। खैर, फिर से बेहोश हो जाए तो मुझे डिस्टर्ब मत करना, उसको लेकर बस पानी दे मारना मुँह पर, होश में आ जाएगी। ओके, बाय..." कह अयांश वहाँ से बाहर की ओर बढ़ गया!


    अयांश बाहर पहुँचा ही कि विनीत से टकरा गया। "तुम यहाँ?"


    विनित, "हाँ, मैं यहाँ?"


    अयांश, "यहाँ क्या कर रहे हो?"


    विनित, "वो मैं... वो दादू, दादू से मिलने आया था!"


    अयांश, "सीरियस्ली!"


    विनित, "हम्म, और किसी से थोड़ी मिलने आया हूँ!"


    अयांश, "जितने स्मार्ट तुम बनने की कोशिश कर रहे हो, उतने हो नहीं!"


    विनित यह सुन अपनी गर्दन पर हाथ फेर हल्का सा मुस्कुराया और बोला, "अब सबसे स्मार्ट बंदे के सामने हम थोड़े-मोटे स्मार्टनेस वाले लोग कहाँ टिक पाते हैं! अब तुम जान ही गए हो तो तुम ही बता दो—दादू कैसे हैं?"


    अयांश, "ठीक है!"


    विनित, "गुड। और वो... दादू का राधे?"


    अयांश, "वो भी ठीक है!"


    विनित, "वेरी गुड। और आर्वी भाभी कैसी हैं?"


    जैसे ही विनीत ने यह कहा तो अयांश उसकी ओर गुस्से से देखता ही है कि विनीत बात बदलते बोला, "भाभी नहीं, वो लड़की कैसी है? वो दादू ने बताया कि वो बेहोश हो गई थी, तभी तुम्हें भागड़ मिटिंग छोड़कर घर आना पड़ा!"


    अयांश, "ओह, तो तुम यहाँ उसका हाल-चाल पूछने आए हो? वैसे दादू ने बताया या तुमने पूछा? और तुम्हें कुछ ज़्यादा ही परवाह नहीं हो रही!"


    विनित, "परवाह है ना तुम्हारी! अब तुम चले आए तो मैंने दादू से पूछा, तुम ठीक हो तो उन्होंने उसके बारे में भी मुझे बता दिया। और मैं पूछूँ या दादू बताएँ, बात तो एक ही है ना यार!"


    अयांश उसे घूरते हुए, "और तुम भागकर आ गए खबर लेने!"


    विनित ने हाँ-ना किया ही कि अयांश गुस्से से उस पर झपटा, पर वह पकड़ में आता इससे पहले ही विनीत अंदर की तरफ भाग गया। "घर आया हूँ तो दादू से मिल ही जाता हूँ!"


    "ऑफिस में मिलो!" अयांश ने खुद से कहा और गाड़ी लेकर वहाँ से निकल गया।


    विनीत अंदर पहुँचा तो दिनकर जी सोफ़े पर बैठे थे और राधे उनके पास खड़ा था। "हेलो दादू!" कहते हुए विनीत ने पास आकर दिनकर जी के पाँव छुए और सोफ़े पर बैठते हुए बोला, "क्या हुआ दादू? आप इतने परेशान क्यों लग रहे हो?"


    दिनकर जी उनकी ओर देखते हुए, "ये तुम्हारी जानकर अनजान बनने की आदत कब जाएगी!"


    यह सुनते ही विनीत नज़रें चुराने लगा तो दिनकर जी उसके हाथ पर हाथ रखते हुए बोले, "फ़िक्र मत कर, मैं कुछ नहीं कहता... जैसे तेरा दोस्त मुझे कुछ नहीं बताता, वैसे ही जब तक वो न चाहे तुम भी कुछ नहीं कहोगे। आखिरकार बॉस जो ठहरा तुम्हारा, उसका कहा थोड़ी टालोगे! जानता हूँ मैं, इसलिए नज़रें मत चुराओ, मैं तुमसे कुछ नहीं पूछने वाला जबकि मैं कुछ नहीं जानता और तुम कुछ न कुछ तो जानते ही हो!"


    विनित दिनकर जी की ओर देखते हुए, "ऐसा कुछ नहीं दादू!"


    दिनकर जी, "रहने दो!"


    विनित, "प्लीज़ दादू, आप टेंशन मत लीजिए। आप जानते हैं ना अयांश को, आप परेशान होते हैं तब उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है!"


    दिनकर जी, "और वो खुद परेशान करता है! उसका क्या? मुझे भी और उस लड़की को भी! (ऊपर की ओर देखते हुए) मैंने उस लड़की के लिए डॉक्टर को बुलाया था, वो बेहोश हो गई थी, उसे चोट आई है काफ़ी, पर पता चल रहा है अयांश ने डॉक्टर को घर आने से मना कर दिया, पता नहीं क्यों कर रहा है ऐसा!"


    विनित दिनकर जी के कंधे पर हाथ रखते हुए, "दादू, आप परेशान मत होइए, वो कर लेगा हैंडल!"


    दिनकर जी, "जाकर देखो उस लड़की की हालत! और अयांश को उस पर तरस भी नहीं आ रहा है!"


    विनित ऊपर की ओर देखते हुए, "मैं चाहकर भी उस लड़की को जाकर नहीं देख सकता दादू। खैर, सब ठीक हो जाएगा... राधे, दादू का ख्याल रखना, मैं ऑफिस जाता हूँ।" कहते हुए विनीत उसी वक्त वहाँ से उठकर चला गया। दिनकर जी उसे जाते देख ना में सिर हिलाते हुए बोले, "जैसा वो, वैसा ये बन गया, रंगत ना तो संगत का असर हो ही चुका है!"


    थोड़ी देर बाद आर्वी सीढ़ियों से चलते नीचे आई तो दिनकर जी उसकी ओर गए और बोले, "बेटा, कुछ तो खा लो, कम से कम पानी तो पी लो। कोई और तो तकलीफ दे ही रहा है तुम्हें, खुद को खुद ही तकलीफ मत दो!"


    आर्वी दिनकर जी की ओर देखते हुए, "वो कोई और आपका ही है और आप क्यों मेरी परवाह कर रहे हैं? आपके पोते को रास नहीं आएगा, तकलीफ तो है ही, थोड़ी और सही!" (हल्का सा मुस्कुराते हुए)


    दिनकर जी, "किस मिट्टी की बनी हो तुम?"


    आर्वी, "ऐसी मिट्टी से जिसे आपका पोता ना तोड़ सकता है और ना ही अपनी मर्ज़ी अनुसार ढाल सकता है... कोशिश भी करेगा तो करके देख ले, कुछ हासिल नहीं होगा। आर्वी चतुर्वेदी ऐसे साँचे में ढली हुई है कि कोई चाहकर भी उसे बदल नहीं सकता है!"


    आर्वी का बेबाक जवाब सुनकर दिनकर जी एकटक उसे देखते रह गए।

    (क्रमशः)

  • 15. My Devil Husband - Chapter 15

    Words: 2104

    Estimated Reading Time: 13 min

    दिनकर जी को अपनी ओर एकटक देखती हुई पाकर आर्वी ने कहा, “क्या हुआ?”


    दिनकर जी कुछ नहीं बोले, सिर हिलाकर मना कर दिया। आर्वी बाहर जाने लगी तो दिनकर जी बोले, “क्या हुआ? कहाँ जा रही हो?”


    आर्वी घर की ओर देखते हुए बोली, “घुटन हो रही है यहाँ। तो बाहर जा रही हूँ।”


    दिनकर जी बोले, “सुनो बेटा!”


    आर्वी उनकी ओर देखते हुए बोली, “फ़िक्र मत कीजिए आप, यही बाहर ही तो हैं हम। वैसे हमें इस दरवाज़े पार की इज़ाज़त तो है। आई थिंक यहाँ कोई सिक्योरिटी गार्ड भी नहीं है जो बाहर जाने से हमें रोके, जैसे बाहर मेन गेट पर है। अयांश मेहरा के अकॉर्डिंग हम इस घर के किसी भी कोने में जा सकते हैं, बस उनके कमरे और इस घर की सीमा से बाहर नहीं। तो जाएँ हम!” (बाहर की ओर हाथ करते हुए)


    यह सुनकर दिनकर जी ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा, “ठीक है, चली जाओ बाहर, मैं मना नहीं कर रहा हूँ। अच्छा सुनो, मैं तुम्हारे लिए कमरा तैयार करवा देता हूँ...”


    दिनकर जी इतना ही बोल पाए थे कि आर्वी ने कहा, “हमें ज़रूरत नहीं है,” और उसी वक़्त बाहर चली गईं। दिनकर जी उसे बाहर जाते हुए देख रहे थे, तभी वहाँ राधे आ गया। “मालिक, खाना लगा दूँ?”


    दिनकर जी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं!”


    राधे बोला, “क्यों मालिक? आपकी दवा का भी वक़्त हो रखा है। चलिए ना, कुछ खा लीजिए। सुबह नाश्ता भी ठीक से नहीं किया आपने?”


    दिनकर जी राधे की ओर देखते हुए बोले, “किसी के गले से एक घूँट पानी भी नीचे नहीं उतरा है और मैं खाना खा लूँ!”


    राधे बोला, “मालिक, अयांश बाबा को जानते हैं ना आप? आपको तो पता है किसी और की वजह से आपको अगर कुछ भी होता है तो वो उस शख्स का क्या हाल कर देते हैं... वो मैडम पहले ही तकलीफ़ में हैं। उसको लेकर आप परेशान हुए तो उनके लिए मुसीबत बढ़ जाएगी। और मैं टाइम पर आपको खाना न दूँ, दवा न दूँ तो मालिक, वो मेरी वाट लगा देंगे। आप कुछ कहते नहीं, मुझे नहीं छोड़ेंगे... चलिए ना मालिक, खा लीजिए खाना। अयांश बाबा का गुस्सा जानते हैं ना!!”


    दिनकर जी बोले, “जानता हूँ, और मैं खा लूँगा। खाना थोड़ी देर में मेरे कमरे में ले आना। अभी मैं जाकर थोड़ा आराम कर रहा हूँ। और हाँ सुनो, किसी को बोलकर एक कमरा तैयार करवा दो उसके लिए। कब तक बाहर रहेगी? और तुम ध्यान रखना, खा-पी तो नहीं रही है, कहीं फिर से बेहोश पड़ जाए!!”


    राधे ने कहा, “जी मालिक!” और दिनकर जी अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गए।


    अयांश अपने केबिन में चेयर पर बैठा, टेबल पर पेपरवेट को अपने हाथ से घुमा रहा था। किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसकी आँखों और चेहरे के एक्सप्रेशन से साफ़ झलक रहा था कि किसी बात को लेकर उसके अंदर का गुस्सा उबाल मार रहा है... क्रोध की इतनी आग कि कोई सामने आ जाए तो भस्म ही हो जाए। तभी अंदर ही अंदर उसे कुछ ऐसा चुभा कि हाथ में पकड़ा काँच का पेपरवेट ज़ोर से सामने दे मारा, जिससे सामने की खिड़की पर लगा शीशा टूट गया!


    खिड़की के शीशे के टूटने के शोर ने अयांश के अंदर के गुस्से को और ही बढ़ा दिया। ज़मीन पर बिखरे काँच के टूटे टुकड़ों की ओर देखते हुए वो बोला, “बरबाद कर दूँगा तुम्हें, तुम्हारा सब कुछ! इतना बरबाद, इतना बरबाद कि कभी आबाद नहीं हो पाएगा... इतना तड़पाऊँगा तुम्हें, इतना कि हर पल तुम्हारा मरने जैसा होगा, और चाहकर भी मौत भी नसीब नहीं होगी... अब तक सिर्फ़ तुमने अपनी ज़िन्दगी में वफ़ा देखी है, अब तुम नफ़रत देखना! इस नफ़रत की आग ऐसी होगी जिसमें सब जलेंगे, सब जो जो तुमसे जुड़े हैं! अयांश मेहरा हर चीज़ बड़ी शिद्दत से करता है, सो वेट एंड वॉच!” (दाँतों को पीसते हुए)


    आर्वी घुटनों पर बाँहें मोड़े, उन पर अपना सिर टिकाए, वहीं लॉन में चुपचाप बैठी थी और मेन गेट की ओर एकटक देखते हुए सोच रही थी, “कैसे निकला जाए यहाँ से? ये तो सच है मुझे खुद के अलावा यहाँ से कोई नहीं निकाल सकता है, पर मैं खुद क्या करूँ ऐसा कि मैं अयांश मेहरा की बनाई हुई इस अयांश रेखा से बाहर निकल पाऊँ? जब महाभारत देखी थी तो लगा था कि क्यों ये युद्ध होते हैं, क्यों? पर क्या पता था अपनी ज़िन्दगी में भी मुझे एक ऐसा युद्ध लड़ना पड़ेगा जो खुद के बचाव के लिए होगा, जो अपने स्वाभिमान को बचाने की लड़ाई होगी। यहाँ कोई नहीं आने वाला मदद के लिए। द्रोपदी भी मैं, अर्जुन भी मैं, कृष्ण भी मैं, यहाँ तक कि अभिमन्यु भी खुद को ही बनना पड़ेगा, तभी अयांश मेहरा का रचा ये नफ़रत से भरा चक्रव्यूह तोड़ पाऊँगी... कभी-कभी तो अपनी ज़िन्दगी भी ना महाभारत, रामायण से कम नहीं लगती है। कारावास से कम नहीं लग रहा है लंका! लगी है वो अलग। खैर, मिस्टर मेहरा, आर्वी चतुर्वेदी हूँ मैं, जिसने हारना तो नहीं सीखा। आपको जीतने का शौक है ना, तो मुझे भी हारना पसंद नहीं। सो नाउ वेट एंड वॉच!”


    तभी वहाँ दिनकर जी आ गए और बोले, “यही सोच रही हो ना कि कैसे ये गेट पार किया जाए?”


    यह सुनते ही आर्वी ने फट से ऊपर की ओर चेहरा कर दिनकर जी की ओर देखा और थूक निगलते हुए, बड़ी-बड़ी आँखों से हैरान होते हुए उन्हें देखते हुए नीचे से उनके सामने खड़ी हो गई और इधर-उधर देखने लगी, मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो!


    यह देख दिनकर जी मुस्कुराते हुए बोले, “घबराओ मत, मैं जानता हूँ इतना तो कि पिंजरे में कैद पंछी अक्सर उस पिंजरे से आज़ाद होने के बारे में ही सोचते हैं कि कब मौका मिले और निकल कर फुर्र हो जाएँ। आखिरकार सबको आज़ादी प्यारी होती है, हर कोई अपनी मर्ज़ी से उड़ान भरना चाहता है!”


    यह सुन आर्वी ने उनकी ओर देखते हुए कहा, “अजीब बात है, आप मिस्टर मेहरा के दादा जी हैं और मेरी साइड की बातें करते हैं। जब सही-गलत जानते ही हैं आप, तो सही को सही, ना सही पर गलत को गलत कह ही सकते हैं... ओह हाँ, पोता जो ठहरा, पोते का मोह कहाँ आपको कुछ करने देगा, चाहे फिर सामने किसी की ज़िन्दगी ही उजड़ रही हो। खैर, हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है, पर हाँ, गलत का साथ देने वाला गलत ही होता है!”


    दिनकर जी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोले, “तमाचा भी मार रही हो और चाहती हो रोएँ भी ना!”


    आर्वी बोली, “नहीं-नहीं, आप बड़े हैं। हमारी क्या मज़ाल हम ऐसा सोचें भी। हम तो ऊँची जुबान में बड़ों से बात भी नहीं करते हैं... बस गलत बर्दाश्त नहीं होता है और सच कहने की आदत है तो बोल लगते हैं। बड़ों का मान करना आता है। कोई बात बुरी लगी हो तो माफ़ करना (हाथ जोड़ते हुए), हमारी आपसे नहीं, आपके पोते से लड़ाई है!”


    दिनकर जी बोले, “सच कड़वा ज़रूर होता है, पर सच तो सच होता है ना बेटा... मज़बूरी, विवशता या कुछ और भी जो समझना है समझ लो। इससे ज़्यादा क्या कहें हम, और ना ही कह सकते हैं कुछ... सही कहा, गलत करने वाले से ज़्यादा गलत का साथ देने वाला होता है, और सहन करने वाला भी... पर मुझे मेरे पोते ने इस गलत में शामिल नहीं किया है। इसलिए जो मैं कर सकता हूँ... कर रहा हूँ। ये भी है कि मैं चाहकर भी तुम्हें उस गेट से बाहर नहीं निकाल सकता हूँ। वैसे अच्छी बात है ये कि तुम भी गलत सहन नहीं करने वाली हो। लड़ाई तुम्हारी है तो तुम्हें ही लड़नी होगी। यहाँ कोई सारथि नहीं बनेगा तुम्हारा। ये तो तुम जान चुकी हो ना? और अब तुमने कह ही दिया है लड़ाई मुझसे नहीं, मेरे पोते से है। और बड़ा भी हूँ तो मान लो मेरी बात?”


    आर्वी थोड़ी हैरानी से बोली, “कौन सी बात?”


    तभी राधे वहाँ खाना लेकर आ गया। “मालिक!”


    दिनकर जी ने राधे के हाथ की ओर इशारा करते हुए कहा, “माना कि जिद्दी हो, पर इतना कहा तो मान ही सकती हो। थोड़ी सी मदद करने दो, जो हमें भी चैन आ जाए। और अब देखो, तुम्हें यहाँ से भागना है, उसके लिए ताकत तो चाहिए। कुछ खाया-पिया न होगा तो कहाँ से ताकत आएगी... बहुत भागना पड़ेगा ताकि फिर पकड़ में ना आओ। और उसके लिए ये सब तो ज़रूरी है ना? वरना घर से दो कदम भी नहीं निकलोगी, फिर आकर इन चार दीवारी के बीच फँस जाओगी!”


    यह सुन आर्वी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, “जिद्दी तो आप भी हैं, खिला-पिलाकर ही मानेंगे आप हमें!”


    तभी राधे बोल पड़ा, “अब दादा जी किसके हैं? जिद्दी तो होने ही हैं!”


    यह सुनते ही दिनकर जी ने छड़ी ज़मीन पर पटकते हुए राधे को घूरा। तो माफ़ करना मालिक, कहते हुए राधे ने अपनी नज़रें झुका लीं!


    आर्वी मंद-मंद हँसने लगी। उसे देख दिनकर जी भी मुस्कुरा दिए। तभी आर्वी उनके पास आई और बोली, “आप इस युद्ध में हमारे सारथि न सही, पर अपना आशीर्वाद देकर हमारा थोड़ा साथ तो दे सकते हैं ना... भले ही आप उनके दादा जी हैं, पर इंसानियत के नाते अपना हाथ हमारे सर पर रख, हमारी हिम्मत तो बन सकते हैं ना!!”


    यह सुनकर राधे के साथ दिनकर जी भी उसकी ओर एकटक देखने लगे!


    “आपका नाम राधे है ना, बोल दीजिए अपने मालिक से, आप कि अगर आशीर्वाद देंगे, तभी हम कुछ खाएँगे, वरना हम खाना तो दूर, हाथ भी नहीं लगाएँगे!” दिनकर जी के सामने हाथ बाँधकर खड़े होते हुए आर्वी बोली!


    “मालिक?” राधे ने दिनकर जी से धीरे से कहा!!


    आर्वी की इन बातों ने दिनकर जी की आँखें नम कर दी थीं। वो हल्का सा मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला देते हैं!


    आर्वी आशीर्वाद लेने के लिए झुकते हुए बोली, “सुना है बड़ों का आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता, तो दे दीजिए जल्दी से अपना आशीर्वाद!” (ऊपर चेहरा कर मुस्कुराते हुए दिनकर जी की ओर देखते हुए)


    दिनकर जी ने आर्वी के सर पर अपना हाथ रख दिया। “थैंक्यू,” कहती हुई आर्वी आशीर्वाद लेकर उठ गई। तभी दिनकर जी ने अपना हाथ आर्वी के सामने बढ़ाया, “आओ?”


    आर्वी ने उनका हाथ पकड़ लिया और दिनकर जी उसे वहीं लॉन में लगे झूले के पास ले गए और आर्वी को बैठने को कहा, “बैठो!”


    आर्वी झूले पर बैठ गई और दिनकर जी भी उसके पास बैठ गए। राधे को इशारा किया तो राधे ने खाना बीच में रख दिया!


    “लो, खाओ खाना, अच्छे से!” दिनकर जी बोले!


    राधे वहीं साइड में खड़े होते हुए बोला, “हाँ, आप खाना खा लो। आप खाना खा लेगी तो मालिक भी अच्छे से खा लेंगे। आज इन्होंने बिलकुल भी अच्छे से नहीं खाया खाना... अच्छे से खाएँगे नहीं तो बीमार पड़ जाएँगे!”


    यह सुनते ही आर्वी ने दिनकर जी की ओर देखा तो दिनकर जी बोले, “ऐसा कुछ नहीं है, मैं खा चुका हूँ। और तुम, राधे, जाओ यहाँ से, तुम्हें जो काम बोला था वो करो!” (रौब से)


    राधे ने “जी” बोला और वहाँ से भाग गया!


    तभी आर्वी ने जूस का गिलास उठाया और दिनकर जी को थमाते हुए बोली, “आप ये पीजिए?”


    दिनकर जी बोले, “नहीं बेटा, तुम पीओ। वो तो यूँ ही कह रहा था।”


    आर्वी निवाला तोड़ते हुए बोली, “उन्होंने क्या कहा, क्या नहीं, हम ये सोच ही नहीं रहे हैं। हम तो चाहते हैं कि आप हमें कंपनी दें। अकेले खाया नहीं जाएगा ना, सुना ही होगा एक से भले दो (थोड़ा हँसते हुए)... अब अगर आप चाहते हैं ये निवाला मेरे हाथ का मेरे मुँह में जाए तो जल्दी से जूस पीजिए, वरना हम बीच में छोड़कर उठ जाएँगे!”


    “नहीं-नहीं, पी रहा हूँ,” कहते हुए दिनकर जी ने जूस का गिलास मुँह से लगाया और जैसे ही एक घूँट भरा ही कि उनकी आँखें भी छलक गईं!


    “क्या हुआ? आप ठीक हैं?” आर्वी फट से बोली!!


    “कुछ नहीं, तुम खाना खाओ!” कहते हुए दिनकर जी जूस पीने लगे!!


    आर्वी निवाला मुँह में रखते हुए बोली, “मुझे नहीं पता था कि आपके यहाँ जूस में मिर्ची डलती है कि पीते ही आँखों में पानी टपक पड़े... कहना खाने बनाने वाले से कि जूस में, सब्ज़ी में मिर्च डाला कर?”


    यह सुन दिनकर जी ने आर्वी की ओर देखा तो दूसरा निवाला तोड़ते हुए बोली, “तीखा कम है और मुझे तीखा पसंद है। पर अच्छा है ये भी। वैसे कहते हैं जो सीख देते हैं उन्हें खुद भी अमल करना चाहिए। आखिरकार ताकत की तो सबको ज़रूरत होती है ना!” (निवाला मुँह में डालते हुए भौंहें उचकाते हुए)


    “बहुत बोलती हो? खाना खाओ... मैं आता हूँ,” कहकर दिनकर जी ने आधा जूस से भरा गिलास ट्रे में रख दिया और वहाँ से उठकर अंदर की ओर चले गए!


    उन्हें जाते देख आर्वी खुद से बोली, “एक ही छत के नीचे रहने वाले दो लोग, जिनका खून का रिश्ता है, फिर भी ज़मीं-आसमान जितना अंतर। एक को तकलीफ़ दूर करके चैन मिलता है तो दूसरा तकलीफ़ देकर सकून पाता है... वैसे तो आपके यहाँ का अन्न का एक दाना भी मिस्टर मेहरा मेरे हलक से मुश्किल से उतर रहा है, पर इनका मान रखने के लिए हम खा भी रहे हैं। नहीं चाहते हमारी वजह से अनजाने में भी किसी को तकलीफ़ हो, ये बीमार पड़े, इन्हें हमारे कारण कोई भी मुश्किल हो, नहीं चाहते... एक आप हैं जानबूझकर तकलीफ़ देते हैं, पर सब आपके जैसे नहीं होते। आपके दादा जी भी आप जैसे नहीं हैं। भले ही इनसे हमारा कोई रिश्ता न हो, पर आज इंसानियत का तो इनसे रिश्ता बन ही गया... आपके खून के रिश्ते पर इंसानियत का रिश्ता भारी पड़ ही गया, मिस्टर अयांश मेहरा!” (हल्का सा मुस्कुराते हुए)

    (क्रमशः)

  • 16. My Devil Husband - Chapter 16

    Words: 2402

    Estimated Reading Time: 15 min

    आर्वी दिनकर जी को जाते देखती रही। जैसे ही वे ओझल हुए, आर्वी ने खाने की ओर देखा और नम आँखों से खाना खाने लगी।


    दिनकर जी अंदर जाकर सोफ़े पर बैठ गए। राधे वहीं हॉल में था; वह उनके पास चला आया और बोला— "मालिक, कुछ चाहिए?"


    दिनकर जी— "नहीं, राधे!"


    राधे बाहर की ओर इशारा करते हुए— "उन्होंने खा लिया खाना?"


    दिनकर जी— "खा रही है......खा लेगी। थोड़ा ज़्यादा, जितना भी, पर खा लेगी!"


    तभी राधे दिनकर जी के पास टेबल के करीब बैठते हुए बोला— "एक बात समझ में ना आई मालिक, आप पहले कह रहे थे ये लड़की अयांश बाबा को बदल देगी, किस्मत ने मिलाया है इनको तो वो उन्हें जीना सिखा देगी, सुधार कर देगी, ये सब कहा आपने और अभी आप बाहर कह कर आये हो कि खाओगी तभी यहां से भाग पाओगी, ताकत आएगी तभी लड़ पाओगी......आप उस लड़की को यहां रखना भी चाहते हो अयांश बाबा के लिए और उसे यहां से जाने की राह भी दिखाते हो? ऐसा क्यों बोला उसको?" (अपना सर खुजाते हुए)


    ये सुनकर दिनकर जी मुस्कुरा दिए और बोले— "वो तो मैंने यूँ ही कहा ताकि वो खाना खा ले। और राधे, उस लड़की का यहां रहना या न रहना, ये अब तुम्हारे अयांश बाबा के हाथ में है। और ये तो तुम भी जानते हो, अब आसान नहीं यहां से निकल पाना। हम निकाल दें या वो खुद जाए, यहां से निकलकर वो उसे वापस ले ही आएगा!"


    आर्वी ने थोड़ा खाना खाया और झूले से उठकर वापस मेन गेट वाली साइड चली गई। और सोचते हुए खुद से बोली— "बस एक बार यहां से निकल जाऊँ, फिर तो यहां वापस आने से रहा......यहां से निकलकर सक्षम के बारे में भी पता लगाना है। पता नहीं कहाँ होगा, कैसा होगा?!" (परेशान होते हुए)


    एक पुरानी मिल, जिसमें थोड़ी-बहुत ही लाइट थी, बाकी चारों ओर रात का घना अंधेरा फैला था। उस मध्यम सी रोशनी के बीच पाँच-छह गुंडे टाइप आदमी एक शख्स को घेरे खड़े थे। जो घुटनों के बल जमीन पर बैठा था, जिसके हाथ-पैर, मुँह सब रस्सियों से बंधे हुए थे और वो अपना सर झुकाए दर्द से आह भर रहा था। तभी वहाँ मौजूद एक आदमी का फ़ोन बजा, जो शायद उन गुंडों के ग्रुप का हेड था। उसने सबको शांत रहने का हाथ से इशारा किया और फ़ोन रिसीव करते हुए बोला— "जी साहब!"


    थोड़ी सी बात कर उसने फ़ोन काटकर जेब में रखा और अपने साथियों से बोला— "शुरू हो जाओ, ऑर्डर आ गया। इसे फिर से खुराक देने का!"


    ये सुनते ही रस्सियों से बंधे शख्स ने फट से अपना सिर ऊपर किया और उम्म-उम्म (मुँह से आवाज़ निकालते हुए) करते हुए ना में सिर हिलाने लगा। जिसकी आँखों में बेबसी, आँसू, दर्द सब दिखाई पड़ रहा था! सबने उसकी ओर देखा। तभी उनमें से एक आदमी बोला— "धीरू भाई, अभी एक घंटा भी नहीं हुआ है और अब फिर से?"


    "हाँ, तो हमें यही करने के लिए पैसे मिले हैं। अगर जान प्यारी है ना, तो लग जाओ बेटा काम पर, वरना इसकी जगह तुमको बिठाने में हमको एक पल की भी देरी नहीं लगेगी!" धीरू गुस्सायते हुए बोला।


    "माफ़ करना भाई!" वो आदमी कहता है और फिर धीरू के इशारे पर सबने डंडे उठाए और उस शख्स को डंडों से पीटने लगे! मुँह कितना जोर से बांधा हुआ था कि चीखने-चिल्लाने की आवाज़ भी उस शख्स की दबी सी रह गई!


    "बस, रुक जाओ! मारना नहीं है, ज़िंदा रखना है इसे अभी।" धीरू के कहते ही सब रुक गए और वो शख्स बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। तभी धीरू ने पानी से भरा जग टेबल से उठाया और उसने उस शख्स के मुँह पर जोर से दे मारा।


    वो होश में आ गया, पर उसकी आँखें अभी भी बंद थीं, जो उसने बेहिसाब दर्द को सहन करने के लिए भींच रखी थीं। धीरू उसके पास नीचे बैठा और अपने हाथों में उसके बाल पकड़कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और कहा— "अरे, होश में रह! होश में रहेगा तभी तो पता चलेगा दर्द का, जो तुझे देने के लिए हम सब ने इतनी मेहनत की है, जिसके लिए हमें ढेर सारा पैसा मिल रहा है। अगर तू ऐसे बेहोश हो जाएगा और तुझे अहसास ही नहीं होगा इस सबका, और अहसास नहीं होगा तो हमारी रोटी छिन जाएगी......तेरी वजह से ही तो हम दाल-रोटी खाने वाले पनीर खा रहे हैं, क्यों सही बोला ना?" (हँसते हुए अपने साथियों की ओर देखते हुए)


    "हाँ भाई, सही बोला!" कहते सब आदमी भी धीरू के साथ हँस पड़े। धीरू ने उस शख्स को झटके से छोड़ा और नीचे से उठते हुए बोला— "चलो रे, खाना लगाओ। इसको तो खुराक दे दी, अब हम भी पेट-पूजा कर लें, पेट में चूहों ने भगदड़ मचा रखी है। और हाँ, ध्यान रखना इसका, ना बेहोश हो पाए और ना सो पाए!" (ज़मीन पर पड़े उस शख्स की ओर देखते हुए जो दर्द से सिसक रहा था!)


    दो आदमी उसकी निगरानी के लिए वहाँ रुक गए और बाकी धीरू के साथ चले गए।


    अयांश अपने केबिन में चेयर पर बैठा था। तभी वहाँ विनित आ गया। विनित ने दरवाज़ा नॉक करते हुए कहा— "अंदर आ जाऊँ?"


    "मना करूँगा तो नहीं आएगा क्या?" अयांश बिना उसकी तरफ़ देखे बोले।


    विनित अंदर आते हुए— "अब दरवाज़े तक आकर क्या वापस जाना, आऊँगा ही अंदर। वैसे, घर क्यों नहीं गए?"


    अयांश विनित की ओर देखते हुए— "जवाब पता होते हुए भी सवाल करना ज़रूरी है!"


    विनित अयांश की पास वाली चेयर पर बैठते हुए— "हाँ, क्योंकि आज तू आधा घंटा लेट है। देख, ग्यारह बजने वाले हैं!" (अपनी घड़ी अयांश के सामने करते हुए)


    अयांश ने विनित का हाथ साइड किया और चेयर से उठा और जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया— "जाता तो देर रात ही हूँ!" (अपने हाथ पैंट की जेब में रखते हुए)


    विनित उठकर अयांश की ओर गया और उसके पास दीवार से सटकर हाथ बाँधे खड़ा होकर बोला— "कमाल की बात है ना, कोई दूसरा भी हमें दर्द देता है और फिर हम खुद को भी दर्द देते हैं......दर्द देने वालों को दर्द देना समझ आता है, पर खुद को भी दर्द देना?"


    अयांश विनित की ओर मुड़ा और कहा— "ये समझ में कभी नहीं आएगा तुम्हारे, क्योंकि तुम्हारी समझ से ही बाहर है। तो क्यों अपनी समझ लगाते हो? हम्म!"


    विनित— "मान लिया मेरी समझ से बाहर है तू भी और तुम्हारी बातें भी......तो तू ही बता दे मुझे क्या चल रहा है ये? जो तू कहता है मैं वो कर देता हूँ, कभी वजह भी नहीं पूछता और ना पूछनी मुझे। तू जो बोले मैं वो कर सकता हूँ, पर नहीं देखा जाता तुझे ऐसे अयांश......क्या जो तुम कर रहे हो, जैसे तुम जी रहे हो, उससे तुझे सुकून है?" (सवाल भरी नज़रों से अयांश को एकटक देखते हुए)


    ये सुन अयांश एक पल तो खामोश हो गया और दूसरे ही पल अयांश डेविल मुस्कान मुस्कुराते हुए— "हाँ, सुकून ही है मुझे, बहुत सुकून। और मैं ठीक हूँ, सो अपनी सवालबाजी बंद करो!"


    विनित ये जवाब पाकर इरिटेट होते हुए बोला— "क्या फ़ायदा मेरे सवाल करने का? तुझे जवाब तो देने नहीं होते?"


    अयांश— "जब पता है नहीं जवाब मिलेगा तो क्यों सवाल करते हो?"


    विनित— "तुझसे ना कभी दोस्ती करनी ही नहीं चाहिए थी मुझे! काश ये दोस्ती होती ही ना......पाँच साल हो गए हमें मिले, पर लगता है ना तुम मुझे समझ सकते हो? और ना तो तुम मुझे समझ आए हो?"


    अयांश वहाँ से जाकर वापस चेयर पर बैठ गया और बोला— "तो तुझे कौन सा इनविटेशन दिया था मैंने कि आकर दोस्त बन? क्या ज़रूरत थी बिज़नेस पार्टनर से मुझे अपना दोस्त समझने की? ना मैंने आकर तुझसे दोस्ती माँगी और ना तुझसे बोला कि मिस्टर विनित मुझसे दोस्ती करोगे?"


    विनित अयांश की ओर आते हुए— "तो मना कर देते, बिज़नेस पार्टनर ही रहो कह देते। सिर्फ़ बिज़नेस ही संभालता मैं, तेरे कांड नहीं। मेरी ही किस्मत फूटी थी जो तुझे दोस्त मान बैठा!"


    अयांश हँसते हुए— "तो अब मुझे क्यों दोष दे रहे हो? खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी......नहीं-नहीं, कुल्हाड़ी पर तुमने पैर मारा है सो भुगतो। दोस्ती या दुश्मनी लोग सोचते हैं कि उन्हें मेरा क्या बनना है, मेरे फ़ेवर में है तो दोस्त, मेरे अगेंस्ट है तो दुश्मन। यू नो, अयांश मेहरा सिर्फ़ रिटर्न देता है, साथ के बदले साथ और दर्द के बदले दर्द!" (एटीट्यूड वाले लहजे में)


    विनित अयांश की ओर आते हुए— "यस, आई नो। गिने-चुने कुछ ही लोग हैं तेरी पर्सनल लाइफ़ में, बाकी तो सारे प्रोफ़ेशनल में आते हैं। और मैं तो दोनों में आता हूँ ना, इसलिए कुछ बताता है मुझे और बहुत कुछ नहीं। कुछ को ही तेरा प्यार और साथ नसीब होता है, बाकियों के हिस्से में तो नफ़रत और दर्द ही आता है!"


    अयांश— "हाँ, तो जो जैसा बोयेगा वैसा तो पाएगा ना। और मेरे लिए सिर्फ़ दो ही लोग इम्पोर्टेन्ट हैं, औरों से मुझे मतलब भी नहीं, ये तुम जानते हो!" (बिना विनित की ओर देखे)


    विनित— "अब तो तेरी ज़िन्दगी में उन गिने-चुने लोगों में भी गिरावट आ गई है ना......एक बहुत ही खास घट गया, कहाँ रखा है उसे?"


    ये सुनते ही अयांश चेयर से उठ गया और विनित की कॉलर पकड़ते हुए बोला— "अपनी हद में रहे हो मिस्टर विनित, हद में......हद पार मत करो। जितना मैं चाहता हूँ, उतना ही कोई मेरी लाइफ़ में घुसता है, यू नो, सो डोंट क्रॉस योर लिमिट!"


    विनित— "मेरी जान, दोस्ती भी ऐसी होती है क्या?"


    ये सुन अयांश ने कॉलर छोड़ विनित को पीछे की तरफ़ झटक दिया और खुद टेबल पर हथेली रखकर खड़ा हो गया। विनित संभलकर बोला— "ओह हाँ, मैं तो भूल गया। अयांश मेहरा से जो दोस्ती है, अलग तो होगी ही ना......खुद की तकलीफ़ की एक उफ़्फ़ तक मुझ तक आने नहीं देता और मुझ पर आए मुश्किल तो ढाल बनकर खड़े हो जाते हो......खुद में और मुझमें इतना डिफ़ेंस क्यों? मुझे भी तो मौका दो। या बचपन की दोस्ती, पाँच साल की दोस्ती से ज़्यादा खास होती है?" (एकटक अयांश की ओर देखते हुए)


    तभी अयांश चेयर से अपना कोट उठाते हुए— "चलता हूँ घर......वाकई में देर हो रही है। दादू से कहा था आकर मिलता हूँ!"


    "ये सही है बात, बीच में छोड़कर भाग जाओ करते हो अयांश मेहरा?" विनित अयांश की ओर देखते हुए बोला।


    ये सुन अयांश विनित की ओर देखते हुए कहता है— "भाग नहीं रहा हूँ, जा रहा हूँ। कल ही शादी हुई है मेरी, है ना? मेरी वाइफ़ मेरा वेट कर रही है। अब तुम्हारी आर्वी भाभी को इंतज़ार करवाना अच्छी बात तो नहीं। (मुस्कुराते हुए) और सुनो, दोस्ती दोस्ती होती है, बचपन की या कुछ सालों की कोई मायने नहीं रखता है, बस निभाने वाला सही होना चाहिए। और जो तुमने बहुत अच्छे से निभाई है और ऐसे ही निभाता रह। मेरे अंदर झाँकने की कोशिश करेगा तो जलकर राख हो जाएगा। और अभी तुमने कहा ना, तुझ पर मुश्किल आए तो मैं ढाल बन जाता हूँ, तो बस मैं ही मेरे और तेरे बीच खड़ा हूँ। तेरे लिए जान दे भी सकता हूँ और अगर फ़ालतू बकवास की तो तेरी जान ले भी सकता हूँ!"


    इतना कह अयांश दरवाज़े की ओर बढ़ा कि विनित बोला— "झलन होती थी मुझे तेरी और उसकी दोस्ती से। उसकी जगह लेना चाहता था, वो तेरी हर बात में शामिल रहता था, बचपन से साथी था ना और स्पेशल भी। तो सोचता कि क्या मुझे वो सब नहीं मिल सकता है? मैं भी तो दोस्त हूँ, पर एक ही पल में जब जाना कि उसने गद्दारी की है तो मुझे मेरी उस सोच और उस चाह से नफ़रत हो रही है......नहीं जानना मुझे कि उसने क्या किया, नहीं लेनी उसकी जगह, बस जितना भी रख, जितना भी समझ, बस अपनी ज़िन्दगी में रख और कुछ नहीं चाहिए......ज़ताता नहीं, बताता नहीं तू, पर मुझे ये दोस्ती चाहिए!" (मुड़कर अयांश की ओर देखते हुए)


    अयांश की अभी भी उसकी ओर पीठ थी, वो बिना मुड़े बोला— "चाहता है रहना तो रह, बस कभी उसके जैसा बनने या उसकी जगह लेने का मत सोचना, वरना क्या हालत होगी ये सोचकर भी तुम्हारी रूह काँप उठेगी!"


    विनित ना में सिर हिलाते हुए— "नहीं-नहीं, मैं विनित ही ठीक हूँ और वहीं रहूँगा पक्का। नहीं पूछूँगा अब कुछ भी। जब तू बताएगा कुछ भी तो खुद ही बता देगा, पता है मुझे। मैं वेट करूँगा, कोई ना, वेट करूँगा। और वैसे भी तेरे सीने में बहुत सारे राज छिपे हैं और वो मैं जानूँ, इतनी मेरी औक़ात नहीं?"


    अयांश विनित की ओर मुड़ते हुए— "बड़ी जल्दी समझ गए, चलो अच्छा है। औक़ात में रहा करो। अब जाऊँ या कुछ और पूछना है?"


    विनित— "पूछना नहीं, कहना है। मुझे अगर बताने का मन हो जाए ना, तो उसके बारे में बताने से पहले आर्वी भाभी के बारे में बताना!" (बतीसी दिखाते हुए)


    ये सुनते ही अयांश का ध्यान पास ही टेबल पर पड़े काँच के फूलदान की ओर गया। अयांश ने उसे उठाया और विनित पर फेंक दिया!


    "नहीं......!" विनित चिल्लाया। विनित नीचे बैठ गया और फूलदान दीवार से जा लगा। विनित काँच के टुकड़ों को देखते हुए— "ओएमजी! बच गया, वरना मेरी खोपड़ी के भी इतने ही टुकड़े होते!" (थूक निगलते हुए)


    अयांश ने अपने हाथ में पकड़ा कोट फेंका और विनित की ओर बढ़ते हुए बोला— "वो तो अब भी होंगे। उन दोनों के बारे में तो बाद में जानना, पहले तुम्हें अपने बारे में बताता हूँ!"


    विनित डरकर टेबल की दूसरी साइड भागते हुए— "ये तो और भी मुश्किल है। पाँच सालों में ना जान पाया तेरे बारे में, पचासों साल लग जाएँगे तुम्हें समझने में। यार, मैं तो यूँ ही कह रहा था। एक तो ना ये तुम्हारा गुस्सा बड़ा खतरनाक है!"


    "अब भाग क्यों रहे हो इधर-उधर?" अयांश विनित को पकड़ते हुए बोला जो केबिन में इधर-उधर भाग रहा था।


    "यार, माफ़ कर दे, जुबान फिसल जाती है मेरी? प्लीज़, देखो मारना मत। पक्का नहीं कहूँगा, ज़िक्र भी नहीं करूँगा उनका, आर्वी भाभी को आर्वी भाभी भी नहीं बोलूँगा......मेरा मतलब उस लड़की को कुछ नहीं कहूँगा, माफ़ कर दे!" विनित लड़खड़ाती जुबान में बोला।


    अयांश उसकी ओर झपटने लगा कि विनित बचकर बाहर की ओर भाग गया और जाते-जाते बोलकर चला गया— "अब घर जा, कल ही शादी हुई है तेरी, तेरी बीवी इंतज़ार कर रही है। और बॉस, दोस्त की वाइफ़ भाभी ही होती है, तूने उसे वाइफ़ मान लिया तो मैंने भी आर्वी भाभी मान लिया है!"


    ये सुन अयांश दाँत पीसते हुए केबिन से बाहर निकला। इधर-उधर देखा तो विनित उसे नज़र नहीं आया। अयांश लिफ़्ट से नीचे पहुँचा, वहाँ भी उसे विनित दिखाई नहीं दिया— "गुस्सा भी दिलाता है और अपनी बातों से जले पर नमक छिड़कने वाला काम भी करता है......ऐसा कमीना दोस्त किसी को ना मिले......" अयांश बड़बड़ाते हुए ऑफ़िस से बाहर निकला और अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया।


    विनित ऑफ़िस की सीढ़ियों पर बैठा था। लम्बी साँस भरते हुए बोला— "बच गया, वरना आज तो मैं भगवान को प्यारा हो जाता। थैंक्स गॉड, ऑफ़िस की सीढ़ियाँ कोई यूज़ नहीं करता है, अयांश मेहरा तो बिल्कुल नहीं, वरना ना यहाँ छुप पाता और पकड़ा भी जाता। फिर शेर का पंजा और मेरी गर्दन!" (मुँह से फूँकते हुए)


    तभी विनित का फ़ोन रिंग किया, कोई नोटिफ़िकेशन आया होगा। विनित ने कोट से फ़ोन निकाला और फ़ोन की स्क्रीन की ओर देखकर कहा— "पुरानी मिल?"

    (क्रमशः)

  • 17. My Devil Husband - Chapter 17

    Words: 2295

    Estimated Reading Time: 14 min

    जैसे ही विनित को “पुरानी मिल” लिखा मैसेज आया, वह सीढ़ियों से खड़ा हो गया। तभी एक और मैसेज आया। उसे भी विनित ने पढ़ा—“जा मिल ले उससे। बहुत याद आ रही है ना तुझे, पर अगर उसके जैसा बनने का सोचा भी ना तो एक पल न लूंगा, सीधा जमीन में गाड़ दूंगा!”

    ये सुनकर विनित मुस्कुराया और एक मैसेज “सॉरी” टाइप कर दिया। अयांश गाड़ी में बैठा था। उसने विनित का सॉरी मैसेज पढ़ा और फोन साइड वाली सीट पर फेंक, गाड़ी स्टार्ट की और वहाँ से निकल गया।

    विनित ने अपना फोन जेब में रखते हुए कहा—“सुना था जिनसे जितनी ज़्यादा मोहब्बत होती है, उनसे नफ़रत भी उतनी ही शिद्दत से होती है… आज देख भी लिया। जल्द मिलूँगा तुमसे सक्षम वालिया!”


    दिनकर जी अपने कमरे में सो चुके थे। राधे भी अपने सारे काम निपटा चुका था, पर हॉल में, सीढ़ियों पर अलसाया-सा बैठा अयांश के घर आने का इंतज़ार कर रहा था। नींद भी आ रही थी, पर अयांश को खाना भी देना था; इसलिए चाहकर भी नहीं सो सकता था। इसलिए दरवाज़े पर निगाहें टिकाए हुए था। बारह से ऊपर का समय हो चुका था। आर्वी अभी भी घर के बाहर, लॉन में झूले पर बैठी थी। दिनकर जी ने कहा भी था अंदर आने को, पर वह नहीं मानी थी; इसलिए दिनकर जी ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा। आर्वी की आँखों में नींद तो बिलकुल नहीं थी। वह तो अपनी निगाहें मुख्य गेट पर टिकाए हुए थी।

    “जैसा वो पहले वाला गार्ड था, वैसा ही ये है…

    (एक दिन अलग गार्ड रहता ड्यूटी पर, दूसरे दिन दूसरा। पहले वाला जा चुका था और दूसरा ड्यूटी पर आ चुका था और उसे आर्वी की पूरी तरह चौकसी करके निगरानी रखने को कहा गया था!)… क्या अंतर होगा? मिस्टर मेहरा के यहाँ काम करने वाले सब उन्हीं के जैसे हो जाते हैं—बेरहम। बस एक बार ये गार्ड यहाँ से हट जाए, और गेट थोड़ा खुला मिल जाए, फिर मैं यहाँ से आजाद कैसे होऊँ? कोई तो रास्ता दिखाओ बप्पा! बस एक मौका दे दो, प्लीज़!”


    तभी गाड़ी के आने का हॉर्न सुनाई दिया। आर्वी फट से झूले से उठी और भागकर एक साइड जाकर छिप गई। गार्ड ने गेट खोला और अयांश की गाड़ी अंदर चली आई। अयांश गाड़ी से उतरा और अंदर चला गया।

    यही मौका है, आर्वी! कुछ कर! ये गेट फिर बंद हो इससे पहले यहाँ से निकल… आर्वी ने इधर-उधर देखा तो उसकी नज़र वहीं ज़मीन पर पड़े एक पत्थर पर गई। आर्वी ने पत्थर उठाया और पार्किंग एरिया में खड़ी गाड़ी पर फेंक दिया। जैसे ही पत्थर गाड़ी के शीशे से जा लगा, शीशा टूटने के शोर ने गार्ड का ध्यान उस ओर खींच लिया जो कि गेट बंद करने जा रहा था।

    “ये क्या हुआ?” कहते हुए गार्ड गेट बंद करना बीच में ही छोड़ उस ओर भागा। “कुछ तो हुआ है, देखना पड़ेगा। वरना साहब छोड़ेंगे नहीं। उनका गुस्सा भी तो कम नहीं है!”


    गार्ड को पार्किंग एरिया की ओर बढ़ते देख आर्वी मुस्कुराई और बोली—“भाग आर्वी! ये मौका फिर नहीं मिलेगा… गुड बाय, मिस्टर मेहरा!” (घर की ओर देखते हुए) और दूसरे ही पल आर्वी वहाँ से बिना कोई शोर किए गेट की ओर खिसक गई और वहाँ से निकल गई।


    गार्ड इधर-उधर देखते हुए—“क्या हुआ होगा? कुछ नज़र ही नहीं आ रहा था। कुछ तो टूटने की आवाज़ आई थी, पर कहाँ से? एक तो इतनी रात, इतनी गाड़ियों के बीच दिखाई भी नहीं पड़ रहा है कुछ। (अपना सर खुजाते हुए) सुबह ही देखना पड़ेगा। अभी कुछ नज़र भी नहीं आ रहा है।” कहते हुए वापस वह गेट की ओर बढ़ा। तभी उसकी नज़र लॉन के झूले पर पड़ी।

    “अरेँ, वो मैडम कहाँ गई? (इधर-उधर देखते हुए) यहाँ तो नहीं है। अंदर चली गई क्या? पर वो तो अंदर जाने को राजी ही नहीं थी। पर साहब भी तो गए, और सुनील (पहले वाले गार्ड का नाम) ने बताया था कि साहब की बीवी है ये, तो साहब ले गए होंगे उनको अंदर। हाँ, अंदर ही गए होंगे।” तभी उसको गेट का ख्याल आया और वह भागते हुए उस ओर गया और बंद करते हुए बोला—“ये बंद करना तो भूल ही गया। बीच में छोड़कर चला गया। साहब देख लेते तो शामत आ जाती।” कहते हुए उसने गेट को अच्छे से बंद किया और वहीं रखी चेयर पर जाकर बैठ गया और अपनी ड्यूटी करने लगा।


    अयांश अंदर पहुँचा तो देखा राधे की आँख लग चुकी थी। वह सीढ़ियों पर बैठा, अपनी हथेली गाल के लगाए खर्राटे ले रहा था। यह देख अयांश ने एक पल तो उसे देखकर रुका और दूसरे ही पल उसके सामने बैठते हुए बोला—“राधे!” (भारी सी आवाज़ में)


    यह सुनते ही राधे ने फट से अपनी आँखें खोली और जैसे ही देखा सामने उसके अयांश बैठा है, वह पीछे की तरफ जा गिरा। अयांश अपनी शर्ट की बाजू फोल्ड करते हुए नीचे से उठा और बोला—“क्या हो रहा है यहाँ?”


    राधे बड़ी-बड़ी आँखें कर, थोड़ा डरा-सहमा, अपना थूक निगलते हुए सीढ़ियों से उतरा और अयांश के सामने आकर नज़रें झुका, लड़खड़ाती जुबान में बोला—“वो… वो अयांश बाबा, आपका इंतज़ार कर रहा था!”


    “ऐसे सोकर?” अयांश ने कहा।


    “माफ़ करना अयांश बाबा, मैं जग ही रहा था, बस आँख लग गई!” राधे हाथ जोड़ते हुए बोला।


    अयांश—“मैंने कितनी बार कहा है तुम्हें कि तुम यहाँ दादू का ख्याल रखने के लिए हो, मेरे लिए जगने की ज़रूरत नहीं है। मैं अपना ख्याल रख सकता हूँ खुद!” (एटीट्यूड वाले लहजे में)


    राधे नज़रें झुकाए ही बोला—“जानता हूँ अयांश बाबा, पर मालिक ने कहा कि जब आप आ जाओ तो खाना लगा दूँ आपके लिए। सुबह भी आप खाकर नहीं गए थे कुछ, तो मालिक को आपकी चिंता हो रही थी और उनको मैंने कैसे टाल देता, तो बस आपके घर आने का इंतज़ार कर रहा था। बस एक झपकी लग गई!”


    अयांश डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ते हुए—“जल्दी खाना लगाओ और फिर जाकर सो जाओ!”


    “जी! अयांश बाबा।” कहते हुए राधे भागकर किचन की ओर चला गया। राधे खाना लेकर आया तो अयांश डाइनिंग टेबल पर बैठा था। राधे खाना अयांश के आगे रखते हुए—“अयांश बाबा, आपका खाना। मालिक ने सब आपके पसंद का बनवाया है—करेले की सब्ज़ी…”


    राधे बोल रहा था कि अयांश ने हाथ आगे कर उसे रोक दिया और वह चुपचाप पीछे होकर खड़ा हो गया। अयांश खाने की थाली की ओर देखते हुए—“दिख रहा है मुझे क्या बनाया है। दादू ने खाना खाया?”


    राधे—“जी!”


    अयांश—“दवा ली?”


    राधे—“जी!”


    अयांश—“सो गए?”


    राधे—“हाँ, थोड़ी देर पहले ही सो गए थे!”


    अयांश—“ठीक है। अब तुम जाओ और हाँ, मैं खाना खुद ले सकता हूँ अपना, तो मेरे लिए जगने की कोई ज़रूरत नहीं। कल से मुझे मिलने नहीं चाहिए सीढ़ियों पर सोते हुए। हमेशा कहता हूँ फिर भी नहीं मानते। इस बार नहीं माना तो फिर बताता हूँ, दादू भी नहीं बचा पाएँगे!” (राधे को घूरते हुए)


    राधे हाँ में गर्दन हिलाते हुए—“जी अयांश बाबा!”


    (जबकि राधे और अयांश दोनों जानते थे कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला था। अयांश राधे को मना करेगा, फिर भी वह जगेगा, क्योंकि वह अपने अयांश बाबा को हाँ कह सकता है, पर अपने मालिक दिनकर जी को नहीं। और अयांश से उसको दिनकर जी ही बचा सकते हैं। यह बात राधे जानता है, इसलिए अयांश की डाँट सुन लेता है राधे और दिनकर जी की साइड में रहता… इसलिए दिनकर जी के कहने पर इंतज़ार करता, खाना गरम करके देता, भले ही उसे अयांश के गुस्से से डर लगता, उसकी डाँट सुननी पड़ती… फ़िलहाल यही था। अयांश ने उसे डाँटकर मना किया और राधे ने झूठ-मूठ का हाँ में सिर हिला दिया।)


    अयांश—“अब खड़े क्यों हो जाओ यहाँ से?”


    राधे—“आपको कुछ और चाहिए?”


    अयांश—“मैं ले लूँगा!”


    यह कह अयांश खाना खाने ही लगा कि राधे अभी भी वहीं खड़ा था। देख अयांश ने नज़र उसकी ओर घुमाई तो वह फट से बोला—“जा रहा हूँ, जा रहा हूँ!”


    तभी अयांश—“सुनो, उसने कुछ खाया?”


    राधे—“किसने?”


    अयांश—“किसने?”


    राधे—“समझ गया… अभी तो नहीं खाया, पर दोपहर को खा लिया था मालिक के कहने पर थोड़ा। अभी भी कहा मालिक ने और मैंने भी पूछा, पर मना कर दिया उन्होंने!”


    अयांश निवाला तोड़ते हुए—“कोई ज़रूरत नहीं है इतना पूछने की। खाए तो खाए, वरना रहने दो। सर पर नहीं चढ़ाना है… वैसे कहाँ है अब वो? दादू ने कमरा तो तैयार करवा ही दिया होगा ना, तरस जो आ रहा था उनको उस पर!”


    राधे—“कमरा तो तैयार करवाया, पर इसके लिए भी मना कर दिया। अभी भी बाहर ही है!” (बाहर की ओर हाथ करते हुए)


    अयांश हाथ में पकड़ा रोटी का टुकड़ा थाली में छोड़ते हुए—“बाहर… पर मैं अभी आया, मुझे तो बाहर नहीं दिखी!”


    राधे—“बाहर ही है अयांश बाबा, झूले पर बैठी थी!”


    अयांश उस पर चिल्लाते हुए—“मैं झूले के सामने ही आया हूँ, नहीं दिखी वहाँ!” कहते हुए अयांश खुद ही उठा और तेज़ी से चलते हुए बाहर की ओर बढ़ा। राधे भी उसके पीछे भागकर चला गया। अयांश ने आर्वी को इधर-उधर देखा। “यही तो थी!” कहते हुए राधे ने भी ढूँढा, पर आर्वी उसे दिखाई न पड़ी। यहाँ होती तो दिखती, पर इस बात से अनजान अयांश की नज़र उसे ही तलाश रही थी। उसने गार्ड को आवाज़ लगाई—“इधर आओ!”


    गार्ड भागा, अयांश की ओर आया—“जी साहब!”


    तो राधे बोला—“वो यहाँ बैठी थी, वो कहाँ है?”


    अयांश—“कहाँ है?”


    गार्ड अंदर की ओर हाथ करते हुए—“अंदर?”


    राधे—“क्या? पर वो अंदर नहीं है, वो बाहर ही तो थी? यहाँ?” (झूले की ओर इशारा करते हुए)


    गार्ड—“हाँ, पर जब तक साहब ना आए, तब तक फिर वो यहाँ न दिखी। अंदर चली गई होगी साहब के साथ, मुझे लगा!”


    यह सुनते ही अयांश ने गुस्से से तिलमिलाते हुए गार्ड का कॉलर पकड़ा और चिल्लाते हुए बोला—“मेरे साथ अंदर नहीं गई वो! तुम्हें नज़र रखने को कहा था ना!”


    गार्ड डरा-सा—“मैं नज़र ही रख रहा था साहब!”


    अयांश—“तो कहाँ है?”


    यह देख राधे इधर-उधर देखते हुए मन ही मन बोला—“कहीं भाग तो नहीं गई!” (थूक निगलते हुए)


    “एक लड़की पर नज़र नहीं रख सकते हो तुम सब!” कहते हुए अयांश ने गार्ड और राधे की ओर गुस्से से घूरा तो दोनों ने नज़रें झुका लीं। अयांश गार्ड को छोड़ते हुए दोनों पर चिल्लाते हुए बोला—“ढूँढो जाकर कहाँ है, घर के हर कोने में! मुझे अभी मेरे सामने चाहिए… जस्ट नाउ!”


    “जी! जी साहब।” कहते हुए राधे अंदर की तरफ़ भागा और गार्ड बाहर के एरिये में आर्वी को ढूँढने लगा। अयांश गुस्से से अपनी कमर पर हाथ टिकाए आवाज़ देते हुए बोला—“आर्वी! जहाँ भी छुपी हो, बाहर आओ! अगर तुम सोच रही हो छुपकर बच जाओगी तो नहीं… बाहर आओ!” अयांश ने फिर आवाज़ देते हुए कहा और दूसरे ही पल लॉन में लगे पेड़ों की साइड जाते हुए खुद से बोला—“कहीं फिर से बेहोश तो नहीं हो गई?”


    अयांश के साथ गार्ड, राधे और बाकी नौकरों ने भी पूरा घर छान मारा। दिनकर जी भी शोर-शराबा सुन उठ गए थे। राधे ने उनको बताया—“कि वो पूरे घर में नहीं है!”


    यह सुनकर दिनकर जी भी बड़े हैरान हुए।


    राधे—“जी मालिक, अयांश बाबा बहुत गुस्से में है!”


    तभी अयांश अंदर की ओर आया तो राधे और बाकी नौकरों पर चिल्लाते हुए बोला—“मिली?”


    तो सब ना में सिर हिलाते हुए अपनी नज़रें झुकाकर खड़े हो गए।


    “पूरा घर छान मारा, ऐसे कैसे नहीं मिली? कहाँ गई? घर में इतने लोग हैं, किसी को तो पता होगा ना? कोई कह रहा है अंदर है, कोई बोल रहा है बाहर थी, तो अब कहाँ है?” अयांश ने गुस्से से कहा कि तभी उसकी नज़र दिनकर जी पर पड़ी। अयांश उनके सामने आया और बोला—“कहीं आपने तो?”


    दिनकर जी अयांश की ओर देखते हुए ना में सिर हिलाते हुए कहा—“नहीं… मैं ऐसा करके उसे और मुसीबत में नहीं डाल सकता था, तेरी कसम अंशु!”


    इतना सुनते ही अयांश ने दिनकर जी से कुछ नहीं कहा और दाँत पीसते हुए बोला—“आर्वी! तुमने ये ठीक नहीं किया!”


    तभी अंदर भागा हुआ गार्ड आया और हाँफते हुए बोला—“साहब, बाहर भी कहीं नहीं है। आसपास सब जगह देख ली!”


    यह सुन अयांश उसकी ओर बढ़ा—“तुमने गेट खुला छोड़ा था?”


    गार्ड—“नहीं साहब, मुझे सुनील कहकर गया था कि नज़र रखनी है। उन्होंने मुझे गेट खोलने को भी बोला था, पर मैंने नहीं खोला!”


    अयांश—“एक पल के लिए भी नहीं?”


    यह सुनते ही गार्ड के होश उड़ गए और वह हाथ जोड़ते हुए बोला—“साहब, माफ़ करना मुझे… वो जब आप आए, तब मैंने खुला छोड़ दिया था। मेरा मतलब थोड़ी देर बाद बंद किया, ज़्यादा नहीं थोड़ी… वो…” कहते हुए गार्ड ने शीशा टूटने की आवाज़ और जो हुआ सब अयांश को बता दिया और डरा अयांश के पैर पड़ते हुए बोला—“साहब, वो उस वजह से… फिर मैंने तुरंत बंद कर दिया था। मुझे लगा कि मैडम अंदर चली गई आपके साथ, फिर मैंने ध्यान नहीं दिया। गलती हो गई साहब, माफ़ कर दो?”


    अयांश ने “गलती माफ़!” कहते हुए उसे अपने पैर से धकेलते हुए खुद से दूर कर दिया—“तुम्हारी इस भूल की वजह से वो यहाँ से निकलकर भागने में कामयाब हो गई, पर नहीं, उसे मैं नहीं जाने दूँगा। आर्वी! तुमने ये ठीक नहीं किया! यहाँ से बाहर कदम रखकर, मेरे खिलाफ़ जाकर, मेरी न मानकर तुमने खुद की मुश्किलें और बढ़ा ली हैं। आ रहा हूँ मैं!” कहते हुए अयांश गुस्से से बाहर की ओर चला गया। दिनकर जी अयांश को आवाज़ देते रह गए—“अंशु! अंशु…” पर वह नहीं रुका।


    “नज़र रखनी चाहिए थी ना? तुम सबने लापरवाही करके ठीक नहीं किया।” दिनकर जी सबको डाँटते हुए बोले, पर सब नज़रें झुकाए खड़े थे।


    गार्ड नीचे से उठते हुए—“माफ़ कर दो मालिक, जानबूझकर नहीं किया!”


    राधे दिनकर जी की ओर आकर—“अब मालिक?”


    यह सुन दिनकर जी मन ही मन बोले—“ये ठीक नहीं किया तुमने यहाँ से भागकर। भगवान जाने अब क्या होगा?” (परेशान होते हुए)


    आर्वी भाग रही थी। तभी भागते-भागते खुद से खुश होते हुए बोली—“बहुत दूर आ गई हूँ उनके घर से! नहीं, जेल से! अब बस हाथ नहीं आना है उनके। क्या कहा था आपने? मैं वहाँ से निकलने का सोच भी नहीं सकती हूँ, पर मैं तो तोड़कर निकल आई आपका बनाया पिंजरा! अब आप सोचिए कि मैं कैसे निकल आई!” (मुस्कुराते हुए)


    अयांश आर्वी को ढूँढने के लिए अपनी गाड़ी लेकर निकल जाता है। गुस्से में गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए बोला—“खुश हो रही होगी ना मेरे घर से निकलकर, पर ये खुशी ज़्यादा देर तक नसीब नहीं होगी। तुम्हारी ये हरकत बहुत महँगी पड़ेगी तुम्हें आर्वी… रेडी रहो अब ऐसे पिंजरे में कैद होने के लिए जहाँ तुम्हें फड़फड़ाने की भी जगह नहीं मिलेगी… वेट माई वाइफ़! यूअर डेविल हसबैंड इज़ कम!!” (डेविल मुस्कान होठों पर लिए)

    (क्रमशः)

  • 18. My Devil Husband - Chapter 18

    Words: 1664

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्वी अयांश के घर से भाग गई और अयांश उसे वापस लाने के लिए उसे ढूँढने निकल गया। भागते-भागते आर्वी हांफ गई। सड़क के किनारे रुककर इधर-उधर देखते हुए बोली—

    "एक घंटे से भाग रही हूँ। यहाँ कोई मदद भी नहीं मिल सकती। पता नहीं, ये कौन-से रास्ते पर आ गई हूँ मैं। कुछ समझ नहीं आ रहा है। एक तो ये रात है, ना फोन है मेरे पास। और अगर मैंने किसी से बात की तो मेरे लिए मुसीबत बढ़ सकती है। मिस्टर मेहरा को किसी ने खबर दे दी तो… नो, नो! और रुक भी नहीं सकती हूँ मैं यहाँ। चल आर्वी, यहाँ से एक जगह तू नहीं रुक सकती। अब तक तो पता चल गया होगा मिस्टर मेहरा को कि मैं फ़रार हो गई हूँ। इससे पहले कि उनकी पकड़ में फिर आऊँ, उनकी पकड़ से बहुत दूर जाना है तुम्हें।" आर्वी ने अपना लहंगा संभाला और वहाँ से भागने लगी।

    तभी अचानक एक तेज़ी से आ रही गाड़ी के सामने आर्वी आ गई। सामने से आ रही गाड़ी की तेज़ लाइट और गाड़ी को तेज़ी से अपने करीब आते देख आर्वी चीखते हुए अपनी हथेली से अपना चेहरा ढँक लिया। गाड़ी आकर आर्वी से लगने से पहले ही किसी के हाथ ने आर्वी की बाह पकड़ उसे साइड में खींच लिया और गाड़ी वहाँ से निकल गई।

    तभी आर्वी ने फट से अपनी आँखें खोलीं और गाड़ी को वहाँ से जाते हुए देख बोली—

    "बच गई! कैसे चलाते हैं गाड़ी लोग! जहाँ ब्रेक लगाने चाहिए, वहाँ ऊपर चढ़ाने को उतारू रहते हैं। थैंक्यू बप्पा!" (मुँह से फूँकते हुए) और दूसरे ही पल, "थैंक्स" कहते हुए आर्वी ने पीछे मुड़कर उस शख्स की ओर देखा जिसने उसे बचाया था। तो आर्वी की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं।

    "वि…विनित!" (लड़खड़ाती जुबान से)

    विनित हाथ बाँधे आर्वी के सामने खड़ा होकर हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला—

    "हाय आर्वी भाभी!"

    "नहीं, नहीं…" कहते हुए आर्वी अपने कदम पीछे लेने लगी कि विनित बोला—

    "मत करो ऐसा, कोई फ़ायदा नहीं। जहाँ से भागकर आई हो, वहाँ ही जाना पड़ेगा। और सच कहूँ तो वहाँ से ऐसे भागकर सही नहीं किया आर्वी, तुमने!"

    आर्वी के कदम वहीं रुक गए और बोली—

    "ये आप कह रहे हैं सही किया या मैंने गलत? जबकि गलत का साथ देकर आप सबसे ज़्यादा गलत हैं विनित! और क्यों रहती मैं वहाँ? मुझे पता है मेरे लिए क्या सही है, क्या गलत। आपको बताने की ज़रूरत नहीं है। जो दोस्ती के मोह में अंधे बने हुए हैं!"

    तभी विनित बोला—

    "चलिए घर!"

    आर्वी बोली—

    "कभी नहीं!"

    विनित बोला—

    "आपको चलना होगा!"

    आर्वी बोली—

    "क्यों चलना होगा? बताइए मुझे। वहाँ वापस जाने के लिए मैं वहाँ से नहीं निकली हूँ विनित। मैं नहीं आऊँगी!"

    विनित बोला—

    "आपकी ज़िद आपके लिए खतरा बन सकती है!"

    आर्वी बोली—

    "खतरों से ही घिरी हूँ कल से। अब जाकर थोड़ी राहत मिली है। आप भी सुन लीजिए अच्छे से, मैं उस नर्क में फिर नहीं जाऊँगी। आपके दोस्त मिस्टर मेहरा जो चाहते हैं, वो कभी नहीं होगा। ये आप भी समझ लीजिए और उन्हें भी समझा दीजिएगा। और हाँ, जिस शिद्दत से बिना सही-गलत जाने या जानकर भी आप अपनी दोस्ती निभा रहे हैं, अपने दोस्त अयांश मेहरा को भी दोस्ती का थोड़ा पाठ पढ़ा देना। जो उन्हें पता चले दोस्ती में साथ दिया जाता है, धोखा नहीं!"

    इतना कह आर्वी वहाँ से जाने के लिए मुड़ी कि विनित भागकर उसके सामने आ गया और उसका रास्ता रोकते हुए बोला—

    "प्लीज चलिए… आपको मेरे साथ आना होगा!"

    आर्वी ने हैरान होते हुए कहा—

    "कैसे इंसान हैं आप? आप चाहते हैं मैं पल-पल मरने के लिए उस जगह चली जाऊँ? आप मारना ही चाहते हैं मुझे तो अभी बचाने का दिखावा क्यों किया? मर जाने देते उस गाड़ी के आगे आकर मुझे। क्या ज़रूरत थी मुझे खींचने की?"

    विनित बोला—

    "ऐसे कैसे मर जाने देता? आप भाभी हैं अब मेरी… मेरा फ़र्ज़ बनता है आपकी रक्षा करना!"

    आर्वी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली—

    "इंसानियत का फ़र्ज़ छोड़ रिश्तों का फ़र्ज़ निभाने चले हैं आप। भाभी… रहने दीजिए। उन्होंने तो की जबर्दस्ती शादी। हटिए मेरे रास्ते से और मुझे जाने दीजिए यहाँ से!"

    विनित ना में सिर हिलाते हुए बोला—

    "नहीं, नहीं, जाने नहीं दे सकता हूँ। और मैं दोनों ही फ़र्ज़ निभा रहा हूँ। इंसानियत का फ़र्ज़ आपको गाड़ी के आगे आने से बचाकर निभा दिया। और अब रिश्तों के फ़र्ज़ निभाने की बारी। अब आप ही सोचो आर्वी भाभी, आपको ना बचाता तो मेरा दोस्त अयांश मेहरा विधुर हो जाता। आज ही न्यूज़पेपर में ख़बर छपी है आपकी शादी की, और कल के न्यूज़पेपर में छपती— 'अयांश मेहरा की गाड़ी के आगे आकर डेथ हो गई उसी की वाइफ़ आर्वी मेहरा की।' अच्छा नहीं लगता ना ऐसे? कल ही शादी और आज मातम!" (सोचने की एक्टिंग करते हुए)

    आर्वी हैरान होते हुए बोली—

    "व्हाट यू मीन… गाड़ी मतलब?"

    तभी आर्वी के पीछे की ओर हाथ से इशारा कर विनित मुस्कुराते हुए बोला—

    "लीजिए भाभी, आ गए भैया! आई मीन, आपको मनाने आपके प्यारे सैयाँ!"

    ये सुनते ही आर्वी ने फट से पीछे मुड़कर देखा तो वही गाड़ी, जो थोड़ी देर पहले यहाँ से निकली थी, वहीं उनकी ओर आ रही थी! आर्वी मन ही मन खुद से बोली—

    "नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है!" (थूक निगलते हुए)

    तभी गाड़ी आर्वी के पास आकर रुक गई। अयांश ने गाड़ी का शीशा नीचे किया और डेविल मुस्कान होठों पर लिए खिड़की से बाहर हाथ निकाल, अंगुलियाँ हिलाते हुए बोला—

    "हाय माई डिअर वाइफ़ी!" (बिना आर्वी की ओर देखे)

    आर्वी अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से अयांश को हैरानी से देखते हुए अपने कदम पीछे लेने ही लगी कि अयांश अपने दोनों हाथ स्टीयरिंग पर रखते हुए टेढ़ी नज़र से आर्वी को देख बोला—

    "विनित, अपनी आर्वी भाभी से कहो, गाड़ी में आकर बैठे!!"

    विनित गाड़ी की ओर इशारा करते हुए बोला—

    "आर्वी भाभी, जाइए ना… खुद लेने आए हैं आपके पति आपको… गो!"

    आर्वी दोनों की ओर देखते हुए ना में सिर हिलाते हुए कहती है—

    "नेवर!"

    "मिसेज़ मेहरा, तुम गाड़ी में आकर बैठ रही हो या मैं गाड़ी से उतरकर तुम्हें गाड़ी में बिठाऊँ? जस्ट नाउ, अभी आकर गाड़ी में बैठो, मैं बार-बार नहीं कहूँगा!" अयांश ने गाड़ी के अंदर से ही थोड़ा गुस्से से कहा।

    विनित अयांश से बोला—

    "ओये, ठंडा रख यार! एक तो बीवी नाराज़ होकर घर से भाग आई और अब तुम गुस्सा करोगे तो मानेगी थोड़ी… प्यार से यार… आ रही है, आ रही है। जाइए आर्वी भाभी!"

    "ना तो मैं गाड़ी में बैठूँगी, ना ही मैं आपके साथ आऊँगी!" कहते हुए आर्वी वहाँ से भागने लगी कि विनित ने अपने दोनों हाथों से उसकी बाह पकड़ उसे रोक लिया।

    "प्लीज़ आर्वी भाभी… आप जितना भागेगी, उतनी ही आपको मुश्किल होगी!"

    "विनित, छोड़िए मुझे, जाने दीजिए प्लीज़, छोड़िए मुझे… मुझे नहीं जाना वहाँ। आप जानते हुए भी कि ये गलत है, फिर भी और गलत कर रहे हैं। छोड़ो मुझे?" आर्वी खुद को विनित से छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली।

    तभी अयांश बिना एक पल रुके गाड़ी से निकला और गाड़ी से सटकर खड़ा होते हुए बोला—

    "प्यार की भाषा नहीं, इसे मेरी भाषा समझ आती है!"

    ये सुन आर्वी ने अयांश की ओर देखा, जिसकी आँखों से आर्वी ने भागने वाली जो हरकत की, उसका गुस्सा साफ़ झलक रहा था। बस खुद को रोके खड़ा था! तभी विनित आर्वी को अयांश की ओर धकेलते हुए बोला—

    "तो जिसकी बीवी है, वहीँ संभाले!"

    आर्वी अयांश की ओर जा गिरी। आर्वी नीचे गिरने से पहले ही अयांश ने आर्वी को कंधों से कसकर पकड़ लिया और गुस्से भरी आँखों से एकटक आर्वी को देख बोला—

    "जो मेरी है… उसे मैं ही तो संभालूँगा, राईट मिसेज़ मेहरा!"

    आर्वी अयांश की पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए चिल्लाई—

    "छोड़ो मुझे! विनित, बचाओ हमें! छोड़ो!"

    तभी विनित ने अपने कोट से अपना चश्मा निकाला और आँखों पर चढ़ाकर "बाय गाइज़" कह वहाँ से चला गया। आर्वी उसे जाते देख चिल्लाते हुए बोली—

    "आप ऐसे नहीं जा सकते हैं विनित… नहीं जा सकते हैं। प्लीज़ रुकिए… आज हमारी जगह आपकी कोई बहन होती, तब भी क्या अपने गलत दोस्त का ही साथ देते? सौंप देते उस शख्स के हाथों में उसे जो बहुत ही घटिया है?" (अयांश से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए)

    आर्वी के चिल्लाने का विनित पर कुछ असर नहीं हुआ, वो चलता गया और चलते-चलते थोड़ी दूरी पर खड़ी अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गया।

    आर्वी "बचाओ, बचाओ!" चिल्ला रही होती है, तभी अयांश ने अपना हाथ आर्वी के मुँह पर रख दिया, जिससे उसकी आवाज़ उसके मुँह के अंदर ही दबकर रह गई। और खुद घूमकर आर्वी को अपनी जगह खड़ा कर, गाड़ी से सटकर खड़ा कर दिया और उस पर चिल्लाते हुए बोला—

    "जस्ट शट अप!"

    आर्वी ने तभी अयांश का हाथ काट दिया। अयांश ने अपना हाथ फट से झटकाया—

    "ब्लडी गर्ल!" (चिल्लाते हुए)

    उस वक़्त अयांश की पकड़ में आर्वी की एक बाह थी। आर्वी ने खुद को उससे छुड़ाया और अयांश को अपने हाथों से पीछे धकेल वहाँ से भागने को ही हुई, पर सफल होने से पहले ही फिर अयांश ने उसे बाजू से पकड़ वापस गाड़ी से लगा लिया।

    "जितना मुझसे दूर भागोगी, उतना तुम खुद को मेरे करीब पाओगी!" (बाहों को कसकर पकड़ अपने दाँत गुस्से से पीसते हुए)

    अयांश ने आर्वी को इतना कसकर पकड़ा था कि उस वक़्त आर्वी की नम हुई आँखों से आँसू लुढ़क कर उसके गाल पर आ गए।

    अयांश ने आर्वी के करीब आते हुए फिर अपनी बात दोहराई—

    "जितना मुझसे दूर जाने की कोशिश करोगी, उतना तुम मेरे पास आओगी। और आज तुमने मुझसे दूर भागकर, मेरे अगेंस्ट जाकर जो ये गुस्ताख़ी की है, उसकी सज़ा भुगतने को रेडी हो जाओ माई वाइफ़ी?"

    अयांश ने इतना कहा और आर्वी को एक पल छोड़, दूसरे ही पल एक ज़ोरदार चाँटा आर्वी के गाल पर जड़ दिया, जिससे आर्वी गाड़ी से चिपक गई।

    "आह…" आर्वी की एक ज़ोरदार चीख़ निकली! उसने संभलकर अपनी गाल पर हाथ रखे, नम आँखों और गुस्से वाले एक्सप्रेशन से अयांश की ओर देखा। तो अयांश ने वापस उसे बाहों से पकड़, उसके करीब होते हुए कहा—

    "वार्न किया था ना कि ऐसा कुछ मत करना जो मुझे पसंद न हो, और तुमने वही किया। बहुत होशियार समझती हो ना खुद को? देख ली करके होशियारी करके… दुनिया के किसी भी कोने में चलती जाती तुम अयांश मेहरा से नहीं बच पाती, कभी नहीं बच पाती!"

    अयांश की मार और तेज़ पकड़ से आर्वी की आँखों से आँसू बहने लगे और दर्द से उसकी सिसकियाँ सुनाई पड़ने लगीं। अयांश उसकी आँखों में गुस्से से झाँक रहा होता है, तभी आर्वी ने अपने होठों को अंदर लेकर दाँतों से भींच लिया और अपनी आँखों को कसकर मींच लिया।

    (क्रमशः)

  • 19. My Devil Husband - Chapter 19

    Words: 2335

    Estimated Reading Time: 15 min

    जैसे ही आर्वी ने अपनी आँखें मींचीं, अयांश जो उसकी ओर देख रहा था, आर्वी की सिसकियाँ और चेहरे से झलक रहे दर्द ने उसे बेचैन कर दिया। उसने पल भर के लिए अपनी आँखें बंद कीं और दूसरे ही पल आर्वी को छोड़कर उसकी ओर पीठ करके खड़ा हो गया।


    जैसे ही आर्वी ने महसूस किया कि अयांश उसे छोड़ चुका है, उसने आह भरते हुए अपनी आँखें खोलीं। उसकी आँखों में कैद आँसू तुरंत बहकर उसके गालों पर आ गए। उन्हें पोंछते हुए आर्वी दर्द भरी आवाज़ में बोली- "काश हम आपसे कभी मिले ही न होते। वो पल हमारी ज़िंदगी में कभी न आता जब हमारा आपसे सामना हुआ था!"


    तभी अयांश आर्वी की ओर मुड़ा और बोला- "सामना तो हो चुका है तुम्हारा मुझसे, सामना ही नहीं, तुम भी मेरी हो चुकी हो। काश कि अब कोई गुंजाइश नहीं। और हाँ, सच कहूँ तो वो पल जब मैं तुमसे मिला, मेरी लाइफ़ का सबसे मनहूस पल था!"


    और फिर उसी पल दोनों गुस्से भरी निगाहों से एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे, जिनमें एक-दूसरे के प्रति साफ़ नफ़रत ही नफ़रत झलक रही थी।


    (अतीत में)

    अयांश मेहरा, एक जाना-पहचाना नाम, जिसका नाम टॉप बिज़नेसमैन की लिस्ट में सबसे ऊपर आता है। वह बिज़नेस टाइकून में नंबर वन है, मेहरा इंडस्ट्रीज़ का इकलौता वारिस और CEO है। कुछ ही सालों में उसने अपनी खूब मेहनत से अपना स्टेटस बहुत हाई कर लिया था कि हर कोई उसके साथ काम करना चाहता था। पर अयांश मेहरा उसे ही चुनता था जो उसके साथ वफ़ादार रहे। वफ़ादारी निभाने वालों को अयांश मेहरा ऊँचाइयों तक ले जाता था, और धोखा देने वालों को पलभर में मिट्टी में मिला देता था। जितना वह हैंडसम दिखाई पड़ता था, उससे ज़्यादा देखने वालों को उसमें एटीट्यूड नज़र आता था। दूसरों की छोटी सी भी गलती उसे बर्दाश्त नहीं होती थी, वजह उसका हाई लेवल वाला गुस्सा।


    उसे हर चीज़ परफेक्ट चाहिए होती थी, जिसमें बिल्कुल कमी न हो। उसे किसी से कोई मतलब नहीं, ना किसी के इमोशन से फर्क पड़ता था। सबसे ज़्यादा मतलब वह खुद से रखता था और उम्मीद भी सिर्फ़ खुद से। उसका मानना था कि दूसरों से उम्मीद मतलब आपकी हार। इसलिए भरोसा वह सबसे ज़्यादा खुद पर ही करता था। जो उसे सही लगता था, वही डिसीज़न लेता था। खुद के फैसलों और ज़िंदगी में वह हद से ज़्यादा किसी को घुसने नहीं देता था। जितना वह चाहता था, लोग उसे उतना ही जानते थे, सिर्फ़ जानते थे। समझ पाना किसी के बस की बात नहीं थी। वेरी कॉम्प्लिकेटेड पर्सन था द ग्रेट अयांश मेहरा, पर्सनल और प्रोफ़ेशनल लाइफ़ अलग रखने वाला, काम ख़त्म, रिश्ते ख़त्म!


    वह काम तक रिलेशन मेलजोल रखता था लोगों से। अगर कोई अयांश से रिश्ता रखना चाहे या प्रोफ़ेशनल से पर्सनल होना चाहे, तो अयांश मेहरा का बस एक ही जवाब रहता था- "प्रोफ़ेशनली एवर, पर्सनली नेवर। मतलब काम हुआ तो श्योर, अदरवाइज़ आप अपने रास्ते और मैं अपने।" इतना सा जवाब सबको चुप करवा देता था। दुनिया भर में अयांश के नाम की और मार्केट में उसके काम की, यानी बिज़नेस की क्या वैल्यू है, ये तो सब लोग जानते थे, बट रियल लाइफ़ कैसी है अयांश मेहरा की, इस बात से सब अंजान!


    जितना अयांश मेहरा ने चाहा, उतना ही लोगों ने उसे जाना, उससे ज़्यादा वह कभी कुछ सो नहीं करता था। अयांश ने ही यह बिज़नेस अपनी स्टडी के बाद शुरू किया और खुद ही उसे बीते सालों में टॉप तक पहुँचाया। अयांश के मॉम-डैड दोनों ही नहीं थे। दिनकर जी ने ही उसे पढ़ाया और पाला था, जो अयांश के लिए सबसे ख़ास था। प्यार के नाम पर उसके पास उसके दादू थे और यार के नाम पर सक्षम और विनित। सक्षम उसका बचपन का दोस्त था और विनित अयांश का कॉलेज टाइम का फ्रेंड।


    अयांश की नज़र में फैमिली, रिश्तों के नाम पर बस यही लोग थे जिन पर वह खुद से बाद विश्वास रखता था। किसी से कुछ न कहने वाला, इन तीनों से कुछ न कुछ कह ही देता था अयांश मेहरा। वह न ज़्यादा बोलने वाला, कहें तो ऐसा खामोश रहने वाला शख़्स जो अपने राज़ छिपाए रखने में माहिर था। उसे किसी से मतलब नहीं था सिवाय अपने काम के। सक्षम और विनित में सक्षम अयांश के बहुत करीब था। कहें तो जिससे अयांश अपने हर फैसले, हर बात, दिनकर जी और विनित से ज़्यादा शेयर करता था। जान बसती थी सक्षम में अयांश की और विनित की अयांश में। जितना अयांश सक्षम को मानता था, उतना ही ख़ास विनित अयांश को समझता था। विनित जो अयांश के साथ परछाई बनकर रहता था, तो सक्षम को अयांश अपनी ज़िंदगी जैसा मानता था। सक्षम वालिया, विनित कुमार, दोनों दोस्त भी और मेहरा इंडस्ट्रीज़ में MD के साथ-साथ बिज़नेस पार्टनर भी थे। मतलब मेहरा इंडस्ट्री संभालते थे, तीनों साथ में बिज़नेस करते थे।


    अयांश अपने ऑफ़िस के कैबिन में बैठा था, तभी विनित उसके कैबिन में आया।
    "मे आई!"


    अयांश- "या!"


    विनित अंदर आया और अयांश के सामने आकर टेबल पर हथेली रखकर खड़ा होकर बोला- "क्या बात है? आज बड़े खुश नज़र आ रहे हो!"


    अयांश विनित की ओर देखते हुए- "पूछ तो ऐसे रहे हो मिस्टर विनित, जैसे जानते नहीं हो?"


    विनित- "तो चले एयरपोर्ट... मेरी सौतन को लाने!"


    अयांश- "या चलो!"


    विनित बड़बड़ाते हुए- "एक-दो महीने बाद आ जाता, इतनी भी क्या जल्दी थी आने की!"


    अयांश चेयर से उठते हुए- "क्या बोला?"


    विनित ने फट से दाएँ-बाएँ सिर हिलाया- "कुछ नहीं बॉस... चलें!"


    अयांश आगे चलते हुए बोला- "मैंने सुन लिया। और हाँ, एक महीने बाद ही आ रहा है!"


    विनित अयांश के पीछे जाते हुए मन ही मन बोला- "महीने बाद आए या महीने पहले, टपक तो रहा है ना... खैर मुझे क्या?"


    अयांश आगे चलते हुए- "जल्दी चलो और डोंट वेरी। उसके आने से तुम्हारी जगह नहीं हिलने वाली है, वो अपनी जगह, तुम अपनी!"


    विनित मुस्कुराते हुए- "आई नो एंड रिमेम्बर बॉस, मैं परछाई हूँ। जहाँ-जहाँ जाओगे, वहाँ मुझे साथ पाओगे!"


    अयांश- "और वो क्या है?"


    विनित अयांश से आगे बढ़कर तेज़ी से चलते हुए- "उससे मुझे क्या!"


    इतना कहकर विनित अयांश से आगे चला गया और लिफ्ट ओपन की। अयांश ने विनित की इस हरकत पर ना में सिर हिलाया और दोनों लिफ्ट से नीचे आकर एयरपोर्ट के लिए निकल गए।


    अयांश और विनित दोनों एयरपोर्ट पहुँचे। अयांश गाड़ी से उतरते हुए बोला- "हम टाइम पर आए हैं ना!"


    विनित ड्राइविंग सीट पर बैठा अपनी घड़ी की ओर देखकर बोला- "टाइम से पहले ही आए हैं बॉस, और दोस्त आपका आ रहा है, मेरा नहीं। तो आप घड़ियाँ गिनिए, मुझे न कहो बार-बार टाइम देखने को!"


    यह सुनकर अयांश ने अपनी कमर पर दोनों हाथ टिकाए और विनित की ओर देखने लगा। अयांश को अपनी तरफ घूरते देख, बत्तीस दिखाते हुए फट से बोला- "क्या हुआ बॉस?"


    अयांश- "ऐसा क्यों लग रहा है कि कुछ जल रहा है?"


    विनित मन ही मन- "सीने में मेरे खुद आग लगाकर मेरा महबूब मुझसे पूछता है क्या जल रहा है, वाह... मेरा दिल जल रहा है!"


    अयांश विनित के एक्सप्रेशन नोट करते हुए- "मन ही मन बोलने से अच्छा है साफ़-साफ़ बोल दो!"


    विनित लड़खड़ाती जुबान से- "वो... वो... वो... ना गाड़ी का इंजन जल रहा है, अब जलेगा ही ना। अयांश मेहरा की जो गाड़ी है, जैसे अयांश मेहरा का दिमाग गर्म रहता है, वैसे ही इस गाड़ी का इंजन... उफ़!"


    यह सुनते ही अयांश ने अपने हाथ के इशारे से बोला- "गाड़ी से बाहर निकलो?"


    विनित- "बाहर... अंदर ही ठीक हूँ ना!"


    अयांश- "देखो, बाहर निकलो, अभी?"


    विनित अपने हाथ अपने सीने पर रखते हुए- "माफ़ कर दे यार... मैं ठीक हूँ यहाँ, तुम जाओ, मैं वेट कर रहा हूँ गाड़ी में ही... ले आओ अपने दोस्त को!" (मुस्कुराते हुए)


    अयांश विनित को घूरते हुए- "तो तुम बाहर नहीं निकलोगे?"


    विनित थूक निगलते हुए- "बॉस, जो बोलेगा करना ही पड़ेगा!"


    अयांश- "तो आओ बाहर!"


    विनित ने अयांश की ओर देखते हुए गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकला और थोड़ा मुस्कुराते, थोड़ा घबराते हुए बोला- "प... प्लीज़!"


    अयांश विनित के थोड़ा करीब होते हुए- "पहले बोलते हो और फिर डरते हो?"


    विनित अपने कदम थोड़े पीछे लेते हुए- "ज़ुबान है, फिसल जाती है!"


    अयांश ने तभी विनित के कंधे पर हाथ रखा कि विनित अपने कंधे की ओर देख फिर अयांश को देख अपनी पलकें झपकाने लगा। तो अयांश विनित के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोला- "चलो, आज कुछ नहीं कहता तुम्हें!"


    विनित- "क्यों?"


    अयांश अपने हाथ बाँधकर गाड़ी से सटकर खड़ा होकर बोला- "आज मैं खुश हूँ, सो!"


    विनित- "ओह, और खुशी की वजह वो सक्षम... देखो, अगर उस वजह से मुझे बख्श रहे हो डाँटने-मारने से, तो कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी उस जान के नाम का एहसान। चाहो तो एक-दो मुक्के मार लो, चलेगा!"


    अयांश हैरान होते हुए- "आर यू मेड?"


    विनित- "येस, एम मेड!"


    "सीरियसली... तुम्हें प्रॉब्लम क्या है उससे?" अयांश बोला।


    "वो खुद प्रॉब्लम है," विनित तपाक से बोल पड़ा। तो अयांश विनित की कॉलर पकड़ते हुए- "जस्ट शट अप, और अपनी ज़ुबान पर लगाम दो!"


    विनित अयांश की ओर देखते हुए- "उसके लिए तुम मेरी कॉलर पकड़ लेते हो, क्या मेरे लिए उसकी कॉलर पकड़ सकते हो?"


    यह सुनते ही अयांश ने विनित की कॉलर छोड़ दी और शर्ट सही कर पीछे हो गया। तभी विनित मुस्कुराते हुए आगे चलते हुए बोला- "इसलिए उसे मेरी सौतन कहता हूँ। चलो, आती होगी तुम्हारी जान!"


    अयांश वहीं खड़ा मन ही मन बोला- "जताता नहीं हूँ इसका, ये मतलब तो नहीं कि चाहता नहीं हूँ। तुम्हारे लिए अगर मुझे मेरी जान भी देनी पड़े तो दे दूँगा!"


    तभी विनित पीछे मुड़ा और अयांश के पास आकर बोला- "क्या हुआ? चलो!"


    अयांश ने विनित की ओर एकटक देखा तो विनित हँसते हुए बोला- "मेरे मज़ाक को सीरियस लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। पहले ही तुम इतने सीरियस टाइप बंदे हो और सीरियस हो गए तो हैंडल करना मुश्किल हो जाएगा... चिल, मेरी तो ज़ुबान है ही ऐसी, फिसल जाती है!"


    "किसी दिन मेरे हाथों मर जाओगे," अयांश ने कहा तो विनित बोला- "तेरे लिए तो मैं खुद मर जाऊँ। अब चलो महाराज!" (आगे की ओर हाथ करते हुए)


    और फिर दोनों एयरपोर्ट के अंदर की ओर बढ़ गए।


    वेटिंग एरिया में अयांश और विनित दोनों सक्षम की फ़्लाइट का वेट कर रहे थे जो आने ही वाली थी। थोड़ी देर में ही फ़्लाइट आ जाती है पर सक्षम का कोई अता-पता नहीं। अयांश हैरान होते हुए विनित से बोला- "फ़्लाइट तो आ गई, वो कहाँ रह गया?"


    विनित इधर-उधर देखते हुए- "इस फ़्लाइट से आया होगा तो अब तक यहाँ आ जाना चाहिए था!"


    अयांश- "व्हाट यू मीन?"


    विनित- "इसी फ़्लाइट से आने वाला था क्या?"


    अयांश- "हाँ, इसी फ़्लाइट से आने वाला था!"


    विनित- "तो फिर आया क्यों नहीं?"


    यह सुन अयांश ने वेटिंग एरिया से निकलकर सक्षम को फ़ोन लगाया, पर सक्षम फ़ोन नहीं उठाता है। अयांश फिर सक्षम को फ़ोन लगाता है, उसने फिर भी कॉल नहीं उठाई! अयांश को परेशान देख विनित बोला- "क्या हुआ?"


    "आने वाला था, आया नहीं, और कॉल भी नहीं उठा रहा है?" अयांश फ़ोन की ओर देखते हुए बोला।


    "तो परेशान क्यों हो रहे हो इतना?" विनित ने अयांश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।


    अयांश ने अपना कंधा झटक दिया और विनित की ओर गुस्से से देखते हुए बोला- "अब तेरी तरह उसके न आने पर खुश तो नहीं हो सकता हूँ ना!"


    "ओह, हैलो। उसके आने पर मैं खुश होऊँ या ना होऊँ, पर तुम जानते हो उसके आने पर तुम खुश होते हो और इस बात से मैं बहुत खुश होता हूँ... लाओ, फ़ोन दो, मैं ट्राई करता हूँ।" कहते हुए विनित ने अयांश के हाथ से उसका फ़ोन लिया और साइड में होकर सक्षम को फ़ोन लगाने का ट्राई करने लगा।


    सक्षम ने एक बार भी फ़ोन नहीं उठाया। अयांश इस बात को लेकर परेशान हो रहा था तो विनित अयांश को लेकर परेशान। तभी अयांश के फ़ोन पर मैसेज आया जिसे विनित ने पढ़ा तो मुस्कुराते हुए अयांश की ओर मुड़ते हुए बोला- "सारी दुनिया अयांश मेहरा के लिए रुक जाती है पर वो किसी के लिए नहीं रुकता, सिवाय एक के। सब जिसका इंतज़ार करते हैं, वो अयांश मेहरा बस एक शख़्स का इंतज़ार करता है। खुद उसे एयरपोर्ट लेने आता है और उस शख़्स को फुर्सत ही नहीं कि 'नहीं आ रहा हूँ' एक कॉल करके बता दे, जबकि जानबूझकर करता है वो ऐसा और उसकी इस हरकत पर अयांश मेहरा ऊफ़ तक नहीं करता!" (अयांश का फ़ोन उसकी ओर बढ़ाते हुए)


    यह सुनते ही अयांश ने अपना फ़ोन लिया और सक्षम का आया मैसेज पढ़ा- "आज नहीं, कल आ रहा हूँ। आज अर्जेंट काम आ गया जिसे करके ही आऊँगा। बिज़ी था तो बता न पाया... बाद में कॉल करता हूँ, ओके!"


    यह मैसेज पढ़ते ही अयांश ने अपना फ़ोन कोट की जेब में डाला और एयरपोर्ट के बाहर की ओर बढ़ गया। विनित उसके पीछे चलते हुए- "इतनी भी क्या जल्दी थी आने की? सिर्फ़ आने की टाइमिंग से चले आए लेने, पूछ तो लेते कि आ भी रहे हो या नहीं!"


    अयांश कुछ नहीं बोला, बस तेज़ी से चला जा रहा था, तभी किसी से टकरा गया। जिससे टकराया वो कोई और नहीं, आर्वी चतुर्वेदी थी! दोनों की भिड़ंत होते ही दोनों लड़खड़ाए। आर्वी गिरने लगी कि अयांश की बाहों ने उसे थाम लिया। आर्वी अयांश की बाहों में थी और अयांश उसकी तरफ़ एकटक देखे जा रहा था। विनित के साथ आते-जाते लोग उन दोनों को देखे जा रहे थे, पर अयांश और आर्वी की नज़रें एक-दूसरे पर ही ठहरी थीं। तभी "ओह, हैलो!" कहते हुए आर्वी अयांश के कंधों को पकड़कर उसकी बाहों से उठी और उस पर चिल्लाते हुए बोली- "मिस्टर, देखकर चलो! तुफ़ान के जैसे उड़े ही जा रहे हो और संग में दूसरों को भी उड़ाए जा रहे हो। आँखें हैं ना? अंधे तो हो नहीं हो आप कि सामने से आता नहीं आती इतनी बड़ी (खुद की ओर इशारा करते हुए) लड़की भी दिखाई न दी। अभी खुद भी गिरते और मुझे भी गिराते, हड्डियाँ टूटती वो अलग!"


    पर अयांश बुत बना, बिना पलकें झपकाए, बिना हिले एकटक आर्वी के चेहरे को ही निहारे जा रहा था। मानों उसकी निगाहें बस आर्वी पर ठहर ही गई हों। आसपास का कुछ भी ख्याल अयांश को न रहा। आर्वी जो बोले जा रही थी, उस पर भी उसने कोई ध्यान नहीं दिया। उसकी नज़रें आर्वी से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं। मोस्ट बैचलर बंदा, जिस पर हज़ारों लड़कियाँ मरती हैं, हज़ारों दीवानी हैं जिसकी, जिसकी एक झलक पर मर-मिटने को तैयार हो जाती हैं और अयांश उन्हें देखे, ये हमेशा चाह रखती हैं। पर जो अयांश मेहरा किसी लड़की को एक नज़र भी कभी नहीं देखता, आज वो एक चेहरा अपने सामने देख खो सा ही गया। आर्वी की एक झलक में अपने होश ही गँवा बैठा। जिसे देख सबके दिल की धड़कनें बढ़ जाएँ, आज उसकी धड़कनें बेहिसाब बढ़ रही थीं... जिससे उस वक़्त वो खुद भी था अंजान!!


    (क्रमशः)

  • 20. My Devil Husband - Chapter 20

    Words: 1752

    Estimated Reading Time: 11 min

    आर्वी जैसे ही बोलना बंद किया और देखा कि अयांश कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था, तो वह उसके थोड़ा करीब आई और हाथ हिलाते हुए बोली—
    "ओह हेलो! अंधे के साथ आप बहरे भी हो क्या?"

    पर अयांश ने फिर भी कुछ नहीं कहा। आर्वी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से हैरान होकर अपनी गर्दन थोड़ी बाईं ओर झुकाकर एक पल अयांश को देखा और दूसरे ही पल सिर हिलाते हुए बोली—
    "पक्का ही पागल इंसान है। ना बोलता है ना कुछ कहता है। अंधा-बहरा सब है। गलती पर सॉरी कहना तो दूर... बस देखे ही जा रहा है!"

    तभी विनित आगे आया और थोड़ा झुककर अयांश की ओर देखते हुए बोला—
    "सही कहा आपने। (आर्वी की ओर देखकर) आज तो अंधा-बहरा सब हो गया मेरा बॉस! (वापस अयांश की ओर देखकर)"

    तभी आर्वी ने विनित की ओर देखते हुए कहा—
    "ये आपके साथ है?" (अयांश की ओर हाथ से इशारा करते हुए)

    विनित ने तुरंत सिर हिलाया। आर्वी फिर बोली—
    "इनका ऊपर का माला हिल चुका है। (दिमाग की तरफ़ अंगुली गोल घुमाते हुए) संभालिए इनको और यहां से ले जाकर किसी अच्छे डॉक्टर से जल्द इलाज करवाइए!"

    "जी," विनित ने तपाक से कहा। आर्वी अयांश की ओर देखकर सिर हिलाती हुई अपना ट्रॉली बैग उठाया और वहाँ से चली गई। जाते-जाते जैसे ही वह घूमी, आर्वी के लम्बे बाल अयांश के चेहरे को छूकर चले गए, जिससे वह अपनी पलकें झपकाने को मजबूर हो गया।

    अयांश की पलकें फड़फड़ाईं। विनित को अयांश की ऐसी हालत पर बहुत हँसी आ रही थी क्योंकि उसे अयांश से ऐसी उम्मीद नहीं थी। मतलब, ऐसा भी हो सकता है, विनित ने कभी नहीं सोचा था और उसे अच्छा भी लग रहा था। आज पहली बार उसने अपने दोस्त को किसी लड़की को इतने गौर से देखते देखा था। जो अयांश मेहरा कॉलेज के समय से लेकर अब तक किसी भी लड़की पर फिदा नहीं हुआ, मोस्ट बैचलर बंदा अयांश मेहरा की नज़र आज पहली बार किसी लड़की पर टिकी थी। इस बात की विनित को बहुत खुशी हो रही थी। तभी अपनी हँसी दबाते हुए विनित ने अयांश का कंधा लगाते हुए कहा—
    "क्या इरादा है बॉस?"

    अयांश ने विनित की ओर देखा और "शट अप" कहा। फिर सामने देखा तो आर्वी उसके सामने से ओझल हो चुकी थी। अयांश की निगाहों ने मानो उसे ढूँढना चाहा, पर तभी विनित अयांश की दूसरी तरफ़ आकर कंधा लगाते हुए बोला—
    "चली गईं... वैसे क्या बात है यार? जो अयांश मेहरा हर लड़की को इग्नोर कर देता है, आज पहली बार बड़ी शिद्दत से उस लड़की को गौर से देख रहा था। पसंद आ गई क्या? कहीं पहली नज़र वाला प्यार तो नहीं हो गया मेरे बॉस को?" (एक्साइटेड होकर अयांश की ओर देखते हुए)

    अयांश विनित को घूर रहा था। कुछ कहने को हुआ कि उससे पहले ही विनित फिर बोल पड़ा—
    "हर लड़की तमन्ना रखती है अयांश मेहरा उन्हें एक नज़र देखें, पर जो सबको इग्नोर कर देता है, सबके दिल तोड़, सबके अरमानों पर पल भर में पानी फेर देता है, वो अयांश मेहरा आज उस लड़की को इग्नोर करना तो दूर, उससे नज़रें भी नहीं हटा पाया। कुछ तो अलग बात है उस लड़की में, कुछ तो खास है उस लड़की में जिसने अयांश मेहरा जैसे सख्त बंदे को पिघला दिया, मतलब उस पर ठहरने को मजबूर कर ही दिया!" (सोचने की एक्टिंग करते हुए)

    "हो गया तेरा, अपने लॉजिक लगाना बंद करो, और चलो!" इतना कहकर अयांश जाने ही लगा कि फट से विनित ने आगे आकर अपनी बाहें फैलाकर उसे रोक लिया और बोला—
    "इतनी भी क्या जल्दी है जाने की? सोचो फिर आ गई तो... अरे यार, लॉजिक नहीं मैजिक बोलो! जो आज हुआ है तेरे साथ वो किसी मैजिक से कम नहीं। वैसे लड़की सच में कमाल की थी। अक्सर लड़कियां तेरे सामने खामोश हो जाती हैं, तुझे खामोशी से निहारने लगती हैं, आज तू उस लड़की के साथ वो सब कर रहा था, वो बोले ही जा रही थी। सब लड़कियां तेरी दीवानी हैं पर वो तुझे दीवाना बनाकर चली गई। तेरे दो बोल सुनने को लड़कियां तरस जाती हैं, चाहती हैं तू उनसे बात करे और वो लड़की तुझे कितना सुनाकर चली गई! यहां तक कि डांटकर चली गई! जिस अयांश मेहरा के सामने किसी की जुबान नहीं खुलती, यहां तक कि मेरी भी, वो इतना कुछ बोल गई तुझे अच्छा-बुरा सब, तुमने एक लफ़्ज़ भी नहीं कहा! सबकी बोलती बंद करवाने वाले अयांश मेहरा की आज उस लड़की के सामने बोलती बंद हो गई... ओह! तो ये होता है प्यार..." विनित बोल ही रहा था कि अयांश ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और अपने हाथ से मुँह दबाते हुए बोला—
    "तू चुप ना हुआ ना तो तेरी बोलती बंद हो जाएगी, तू कुछ भी बोलने लायक नहीं रहेगा, सो नाउ शट अप!"

    इतना कहकर अयांश ने विनित को पीछे थोड़ा झटका देकर छोड़ दिया तो विनित खांसते हुए बोला—
    "जान पे तेरी बन आई उस महोतरमा को देख और मेरी जान लेने पर तू तुला हुआ है... कमाल है साला! कोई इज़्ज़त ही नहीं!"

    विनित की नौटंकी देख अयांश ने सिर हिलाया और "तुम नहीं सुधरोगे," कहते हुए आगे बढ़ गया। विनित उसके पीछे भागते हुए बोला—
    "हम सुधरने वाली चीज नहीं हैं। खैर, वैसे मुझे ना उसका नाम पता कुछ तो लेना चाहिए था... काश ले लेता!" (थोड़ा अफ़सोस जताते हुए)

    अयांश चलते-चलते—
    "क्यों?"

    विनित—
    "क्या क्यों? दूसरी मुलाक़ात के लिए... अब नाम पूछ लेते तो तू उसे उसके नाम से याद करता, पता, नंबर ले लेते तो मिलने बुला लेता। अब तो सिर्फ़ झलक ही याद रहेगी और कुछ नहीं उसकी तुम्हें!"

    "मिलना लिखा होगा तो फिर मिल जाएगी?" अयांश ने कहा।

    "क्या बात है? तू किस्मत की बात कर रहा है?" विनित बोला।

    "नहीं! प्लानिंग की... किस्मत जैसी चीजों को अयांश मेहरा नहीं मानता और ये मुलाक़ात भी तो बिना प्लानिंग के हुई है तो क्यों एड्रेस लेकर नेक्स्ट मुलाक़ात की प्लानिंग करनी? मिलना होगा तो हो जाएगी मुलाक़ात!" अयांश ने चलते-चलते विनित की ओर देखते हुए कहा।

    "ओह... वाव! मतलब तू फिर मिलना चाहता है उससे? चाहेगा क्यों नहीं? होश उड़ा देने वाली अदा जो थी उसमें, जो पहली ही मुलाक़ात में मेरे दोस्त को फिदा करके चली गईं... और क्या बात है? हर काम प्लानिंग से करने वाला अयांश मेहरा आज प्लानिंग के ख़िलाफ़ की बात कर रहा है!" विनित ने चलते-चलते अयांश का कंधा थपथपाते हुए कहा। (हँसते हुए)

    यह सुनकर अयांश वहीं रुक गया और विनित को गुस्से से अपनी अंगुली दिखाते हुए—
    "शट अप!"

    पर विनित कहाँ चुप रहने वाला था? वह फिर बोल पड़ा—
    "मुझे तो शट अप कह देगा पर अपनी नज़रों को कैसे कहेगा शट अप जो अब उसे ढूँढना चाहेगी? अपने दिल को कैसे शट अप बोलेगा जो उससे फिर मिलने का अरमान करेगा?" (भौंहें ऊपर उठाते हुए)

    यह सुन अयांश ने विनित का कॉलर पकड़ लिया और अपने करीब करते हुए बोला—
    "चुप! बिल्कुल चुप! अपने मन से कहानी बनाना बंद कर, वरना सोच ले तेरा क्या होगा!"

    एयरपोर्ट पर मौजूद लोग उन्हें देखने लगे तो विनित सबकी ओर देखकर बोला—
    "माना कि तू मेरा जान मेरा जानेमन है, पर यार पब्लिक प्लेस है, थोड़ा तो रहम! सरेआम बदनामी हो जाएगी, मेरे प्यार की यूँ तो धज्जियाँ मत उड़ाओ! देखो, सब देख रहे हैं, लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में? बोलेंगे छी-छी! कोई शर्म नहीं... अभी रहने दो, बाद में अपना प्यार जता देना, प्लीज़ मेरे यार, दिलदार, सदाबहार!" (मासूमियत से)

    यह सुन अयांश ने एक पल मुँह से फूँक मारी और दूसरे ही पल विनित को धक्का देकर छोड़ दिया जिससे वह जमीन पर गिर गया।

    विनित अपनी बाजू मसलते हुए—
    "आह... क्या कर रहा है!"

    अयांश—
    "वहीं जिसके तू लायक है!"

    विनित अपना हाथ बढ़ाते हुए—
    "हाथ तो दो?"

    अयांश—
    "बकवास करेगा?"

    विनित ने ना में सिर हिलाया और अयांश ने उसे हाथ देकर ऊपर खींच खड़ा कर लिया।

    "थैंक्स यार," विनित ने अपना कोट सही करते हुए कहा।

    अयांश—
    "अब चुपचाप चलो मेरे साथ, ओके!"

    "ओके..." तभी विनित जोर से बोला, "यार वो लड़की वापस आ गई!" इतना सुनते ही अयांश ने फट से उस ओर देखा जिस ओर विनित ने इशारा किया।

    पर वो कोई लड़की नहीं थी। विनित ताली बजाते हुए जोर से हँसा और अयांश से दूर होते हुए बोला—
    "हालत देख अपनी! तू तो गया यार, क्या होगा अब तेरा!"

    "ऐसा कुछ नहीं है और हाँ, मेरा नहीं तेरा सोच अब क्या होगा?" कहते हुए अयांश विनित की ओर झपटा कि विनित एयरपोर्ट से बाहर की ओर भाग गया। अयांश भी उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागकर चला गया।

    आर्वी एयरपोर्ट से निकलकर ऑटो लेकर अपने घर पहुँची। घर के दरवाज़े के पास आकर आर्वी ने डोरबेल बजाई पर किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। आर्वी ने फिर डोरबेल बजाई, पर इस बार भी दरवाज़ा नहीं खुला। तो आर्वी अपना माथा पीटते हुए खुद से बोली—
    "ये अभि दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रहा है? अंदर कर क्या रहा है? पता नहीं आज का दिन ही कैसा है, परेशान करके रख दिया। एक तो फ़्लाइट लेट वाला चक्कर, फिर वो एयरपोर्ट पर उस पागल शख्स से भिड़ंत होना, ना कुछ बोला ना ही हिला। देखने में तो अच्छे-खासे घर से लग रहा था पर हरकतें ओएमजी... देख तो ऐसे रहा था मुझे जैसे मैं महारानी विक्टोरिया हूँ। हूँ! खैर, और फिर ऑटो नहीं मिला, मिला भी तो उसने बड़ा वाला चार्ज लगा दिया और अब अपने ही घर के बाहर खड़ी हूँ इंतज़ार में कि कब ये महान दरवाज़ा खुले। पर खुलेगा तब ना जब अंदर महान प्राणी है आकर वो खोलेगा... हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है बप्पा? बैंड बज जाती है मेरी तो!" कहती आर्वी फिर डोरबेल बजाने को हुई कि तभी दरवाज़ा खुल गया।

    सामने खड़ा लड़का, जो बहुत ही प्यारा और क्यूट था, उसने "हेलो आर्वी," कहते हुए अपना हाथ हिला दिया। वो आर्वी की ही उम्र का अभिनव (अभि) था, जिसने ब्लैक बनियान और व्हाइट लोअर पहना था। चेहरे पर उसके बिखरे बाल आए हुए थे जिनसे उसकी खुशी से चमक रही आँखें साफ़ दिखाई पड़ रही थीं। वो खुशी शायद आर्वी को सामने देखने पर थी। और होंठों पर उसकी एक बहुत ही प्यारी सी स्माइल थी जो उसकी खुशी को बखूबी जाहिर कर रही थी। पर आर्वी उसके हेलो का रिप्लाई न देकर दरवाज़े से सटकर खड़े होकर बोली—
    "इतना टाइम लगता है दरवाज़ा ओपन करने में!"

    अभि अपने कान पकड़ते हुए—
    "सॉरी यार, वो बाथरूम में था!"

    आर्वी—
    "तुम होते कब नहीं बाथरूम में अभि!"

    अभि अपनी गर्दन पर हाथ फेरते हुए बोला—
    "हम्म, जब ऑलरेडी पहले से कोई बाथरूम में हो!" (सोचते हुए)

    ये सुनते ही आर्वी हँस पड़ी और अपना हाथ बढ़ाकर अभि का सर सहलाते हुए बोली—
    "पागल!"

    अभि मुस्कुराते हुए—
    "वो तो मैं हूँ और अब तुम आ गई तो मेरा महापागल होना तय है!"

    "अच्छा जी!" आर्वी ने अभि को घूरते हुए कहा तो अभि ने कहा—
    "घूरना बाद में, पहले मिल तो लो मुझसे मेरी जान!" कहकर अभि ने आर्वी को अपनी ओर खींचकर फट से अपने गले लगा लिया।

    आर्वी खुश होकर अभि को हग करते हुए बोली—
    "तुमसे नहीं मिलूंगी तो किससे मिलूंगी यार? एक तुम ही तो हो मेरा सच्चा प्यार!"

    (क्रमशः)