शेरावत खानदान पाँच वारिस रीदांक्ष, वेधांत, तनिष्क, दर्शन और त्रिशूल जिनकी एकता अटूट थी, एक दूसरे के लिए जान देने और लेने को तैयार थे। लेकिन एक रात की अनहोनी और एक इल्जाम ने उनकी जिंदगी बदल दी। नतीजा? संस्कृति जिसका दिल किसी और के लिए धड़कता थामजबूरन... शेरावत खानदान पाँच वारिस रीदांक्ष, वेधांत, तनिष्क, दर्शन और त्रिशूल जिनकी एकता अटूट थी, एक दूसरे के लिए जान देने और लेने को तैयार थे। लेकिन एक रात की अनहोनी और एक इल्जाम ने उनकी जिंदगी बदल दी। नतीजा? संस्कृति जिसका दिल किसी और के लिए धड़कता थामजबूरन इन पाँचों की पत्नी बनी। दूसरी ओर, मिराक्ष माहेश्वर, जिसकी दुनिया उसकी माँ और उसकी मोहब्बत संस्कृति थी। लेकिन किस्मत ने दोनों को उससे छीन लिया। समाज ने उसे नाजायज नाम दिया था जो असल में सियासत का वो राजा था जो अपनी सिंहासन से अंजान था । तो संस्कृति को पाँच भाइयों से शादी क्यों करनी पड़ी? और क्यों है मिराक्ष अपनी सियासत से अंजान?
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ठकराल पैलेस जहां चारों तरफ रोशनी की चकाचौंध थी और पैलेस में हर जगह हाई सिक्योरिटी और हर तरफ मीडिया छाई हुई थी। तो वही ठकराल पैलेस के अंदर सब जगह VIP गेस्ट मौजूद थे।
और हर तरफ नौकर चाकर जो VIP गेस्ट के खातिरदारी में लगे हुए थे क्योंकि आज मिस्टर संग्राम ठकराल के बड़े पोते का जन्मदिन था और इसीलिए आज उन्होंने अपनी पोते के जन्मदिन के लिए शानदार पार्टी रखी हुई थी और आज पार्टी में पूरी दुनिया से मौजूद हर एक VIP गेस्ट आया हुआ था जहां चारों तरफ आज सिर्फ ठकराल फैमिली और उनके दोनों पोते के बारे में चर्चा हो रही थी।
तभी एक गेस्ट ने कहा,, “ मानना पड़ेगा, पार्टी तो बहुत शानदार रखी है मिस्टर ठकराल ने अपने पोते के जन्मदिन की!”
दूसरे आदमी ने कहा,, “ हां आखिरकार वो रखे भी क्यों ना आखिरकार क्योंकि उनके पोते ने हीं उनका नाम जो किया है वैसे तो पहले से उनका बेटा ही था। जो सिर्फ ब्लैक वर्ल्ड माफिया वर्ल्ड में राज करता था, पर अब तो उनका पोता सिर्फ माफिया वार्ड में ही नहीं पूरी बिजनेस की दुनिया में भी राज करते हैं जो कभी रात के राजा हुआ करते थे। तो आज दिन के उजाले में भी राज करते हैं ।”
जहां ये सुन दूसरा आदमी एक शिप लिए ओर हल्का सा मुस्कुरा दिया।
वही ठकराल पैलेस के बाहर कई सारी रोल्स-रॉयस आकर के रूकी जिसमें सेंं ब्लैक कलर के सूट में एक शख्स अपनी गाड़ी से बाहर आया और उसके बाहर आते ही कई सारे गार्ड एक लाइन से खड़े होकर उसके लिए रास्ता बनाकर खड़े हो गए और वो शख्श अपने कदम बढ़ाकर के पैलेस के अंदर की ओर चल दिया।
वहीं अंदर जहां मिस्टर संग्राम मीडिया के साथ लगे हुए थे तभी एक गार्ड ने आकर के उनसे कहा - “ सर मिस्टर शाश्वत आ चुके हैं!”
और यह सुनकर मिस्टर संग्राम के चेहरे पर एक गर्व वाली मुस्कुराहट आ गई वो मीडिया को साइड करते हुए अपने पोते से मिलने के लिए चल दिए और जवब गेट के पास पहुंचे।
तो उनके सामने एक हट्टा-कट्टा का लड़का जिसकी उम्र यही 25 साल की थी वो आगे बढ़कर के अपने दादा के पैरों को छुआ।
मिस्टर संग्राम उसे आशीर्वाद देते हुए कहा,, “ जुग जुग जियो मेरे शेर!”
और इतना बोल वो अपने पोते को सीने से लगा लिए तो वही सारी मीडिया जो मिस्टर संग्राम और शाश्वत के पास आकर के उनके फोटोग्राफ्स और इंटरव्यू लेने लग गई ।
तभी वहीं मौजूद गेस्ट आपस में बात करते हुए बोले - “ इनका बड़ा पोता तो आ गया पर छोटा पोता कहां है? वो कहीं नजर नहीं आ रहा, कहीं ऐसा तो नहीं डर की वजह से छुपा हुआ हो, क्योंकि सुनने में तो आया है कि वो बहुत डरपोक टाइप का इंसान है वो दुनिया के सामने कम आता है ।”
जहां यह सुनकर उसके साथ खड़े बाकी लोग मुस्कुरा दिए , पर उन लोग की नजर पैलेस की सीढ़िया पर गई ।
जहां पर एक ठीक शाश्वत की उम्र का ही लड़का जिसकी उम्र यही 24 साल की रही होगी वो भी उतरकर आ रहा था उसे वक्त उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था उसके बाल बिखरे हुए थे और आंखों पर मोटे ग्लास के चश्मे लगे हुए थे और उसने ढीली शर्ट पहनी हुई थी। जिसकी बाजु उसकी उंगलियां तक आ रहे थे और पेंट को उसने अपने कमर के ऊपर तक चढ़ाया हुआ था और वो अपने चश्मे को ठीक करते हुए नीचे आया।
वही जब मिस्टर संग्राम की नजर भी सिढ़ी से आते हुए अपने दूसरे पोते पर गई तो उनके चेहरे से मुस्कुराहट पल भर में गायब हो गई और एक शर्मिंदगी ने अपनी जगह बना ली।
जब शाश्वत की नजर भी सिढ़ीओ पर गई वो, तो वहां उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो मीडिया वालों को साइड करके अपने भाई से मिलने के लिए उसकी ओर चल दिया और आगे बढ़ते हुए अपने भाई को सीने से लगा लिया।
तो उसका छोटा भाई भी साथ-साथ को गले लगाते हुए कहा,, “ आपको हैप्पी बर्थडे भैया !”
शाश्वत मुस्कुराते हुए बोला - “ थैंक यू मेरे छोटे शेर, मुझे अच्छा लगा तुम इस तरह यहां सब के सामने आए सात्विक”
ये सुन सात्विक मुस्कुराते हुए कहा - “ अब आपने हमसे जन्मदिन के मौके पर हमसे यही तोहफा मांगा था, तो हमें आपको यह तोहफा देना ही था इसलिए हिम्मत जुटाकर आ गए यहां सबके सामने।”
जिसके बाद शाश्वत सात्विक का हाथ थामते हुए वहां स्टेज की ओर चल दिया और उसके बाद उन लोगों की मीडिया इंटरव्यू के बाद केक कटिंग सेरेमनी हो गई और इसके बाद वो सभी लोग अपने आए हुए सारे VIP गेस्ट से मिलने लगे और शाश्वत भी बाकी इन्वेस्टर और बिजनेसमैन से सात्विक को मिलवाने लगा।
लोग के बीच जब वो दोनों थे कि तभी उनके कान में लोगों के बीच होती हुई अफवाह सुनाई दी जो हमेशा से वो सुनते आए हैं जिनकी वजह से संग्राम ठकराल हमेशा अपने छोटे पोते से शर्मिंदा रहते , उनका छोटा बेटा हमेशा की तरह एक डरपोक और एक कलंक है ठकराल खानदान पर, जिसे कुछ नहीं आता जो इंसान तो क्या एक चूहा बिल्ली से भी डर जाए ।
जहां सब लोग बस सात्विक की बुराई और उसकी ही गॉसिप में लग गए थे और यह बात आग की तरह पूरे पार्टी में फैल चुकी थी और इसी बारे में बात करने लगे थे।
जहां यह सब बातें जब दोनों भाई के कान में पड़ी तो उनमें से सात्विक ने शर्मिंदगी से अपना सर झुका लिया उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपने भाई या दादा सा से नजर मिला सके क्योंकि आज उसकी ही लक्षणों की वजह से पूरी पार्टी खराब हो चुकी थी।
यह सब सुनकर शाश्वत के चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आया था उसकी आंखें गुस्से से पूरी तरह लाल हो चुकी थी मानो अगर किसी ने उसे थोड़ा भी छेड़ा तो वो तुरंत उस शख्श की जान ले लेगा।
जहां दूर खड़े संग्राम अपने बड़े पोते का यह रूप देखकर सहम से गए थे क्योंकि उन्हें अंदाजा था कि उनके बड़े पोते का गुस्सा कितना खतरनाक है और वो बस मन ही मन यही चाह रहे थे कि आज उनका बड़ा पोता अपने गुस्से पर कंट्रोल कर ले और इस पार्टी में कुछ भी गड़बड़ ना हो ।
शाश्वत जिसके कानों में अभी भी वो सब बाते सुनाई दे रही थी तो वो अपने गार्डों को बुलाते हुए उन सबको आर्डर देते हुए कहा,,, “ कौन है जो ऐसी अफवाहें फैला रहा है कि मेरा भाई डरपोक है, जाओ पकड़ कर ले आओ उन लोगों को सीसीटीवी फुटेज चेक करो और उस इंसान को मेरे घुटनों के सामने लाओ, जो यहां पर पार्टी करने कम और फालतू बातें करने आया है।”
शाश्वत का यह आर्डर सुनते ही उसके गार्ड तुरंत ही चले गए उसके बाद शाश्वत अपने भाई की ओर एक नजर देखा जो वहां पर डरा सहम सा कांप रहा था और इसकी नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी।
शाश्वत उसे इस हालत में देखकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए सात्विक से कहा,,, “ छोटे अब जाइए अपने कमरे में ..!”
जहां सात्विक जो सिर्फ डरते हुए अपना सर हां में हिला दिया और वहां से जाने लगा। उस वक्त उसकी नज़रें नीचे थी इसलिए उसे अपने सामने कुछ नजर नहीं आ रहा था।
और इसी बीच वो एक लड़की से टकरा गया जो कि वहां पर आई हुई एक VIP गेस्ट थी और सात्विक के टकराने की वजह से उस लड़की के ब्रांडेड ड्रेस पर वाइन गिर गया था और वो गुस्से से आग बुबला हो उठी।
और ये देख वो सात्विक पर चिल्लाते हुए बोली - “ अंधे हो क्या दिखाई नहीं देता, देखकर नहीं चल सकते, तुम्हारी वजह से मेरी इतनी ब्रांडेड ड्रेस खराब हो गई है idiot duffer.”
इतना बोलकर वो लड़की सात्विक की ओर मारने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि पलक झपकते ही सात्विक ने उसी लड़की का हाथ थाम कर हवा में ही रोक लिया और अपना सर तिरछा करते हुए चेहरे पर एक सनकी और डरावनी स्माइल लिए उस लड़की से कहा - “ मैं डफर नहीं हूं, मैं इडियट नहीं हूं !”
वो लड़की सात्विक से अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली - “ तुम डफर हो एक नंबर के इडियट हो और डरपोक भी हो, तभी तो देखो कहां मेरे सामने यह इस तरह से थर-थर काप रहे हो, तुम छोड़ो मेरा हाथ बेवकूफ।”
उसने इतना कहा ही था कि सात्विक ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाते हुए उसे लड़की को गर्दन को कस के दबोच लिया जिससे उस लड़की की सांस गले में ही अटक गई पर वो सात्विक से खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर सात्विक के ताकत के आगे वो कुछ भी नहीं थी।
सात्विक जो अपने सनकपन से उसे देखते हुए कहा - “ डफर हू ना अब तुम देखो, यह डफर यह इडियट तुम्हारे साथ क्या करता है ? “
इतना बोलकर उस लड़की को वही फर्श पर गिरा दिया और उसके पास झुकते हुए उसकी आंखों में देखते हुए एक डेविल स्माइल करते हुए उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भरकर के उसे घसीट करके ले जाने लगा।
जहां वहां आए सारे VIP गेस्ट यह नजारा देकर सहम से गए थे उन्होंने सोचा नहीं था कि अभी भी डरपोक लड़के के बारे में ऐसी अफवाह फैल रही थी ऐसा साइको भी हो सकता है और इतना खतरनाक भी हो सकता है।
तो वही संग्राम सिंह जो अपने छोटे पोते का यह रूप देखकर जल्दी से शाश्वत के पास जाते हुए उससे बोले - “ उसे रुको इससे पहले की उसका यह रूप यहां सबके सामने आए, उसे रुको शाश्वत।”
जहां शाश्वत ने कहा - “ नहीं दादा सा अब नहीं, अब हमने बहुत रोक सात्विक को , अब इन लोगों को भी पता चलना चाहिए कि आखिर असल में है क्या हमारा छोटा भाई उन्हें भी सात्विक का असली रूप देखना चाहिए ताकि आज के बाद किसी की हिम्मत ना हो, सात्विक के बारे में उल्टा-पुल्टा कुछ भी बोलने की।”
जहां यह सुनकर संग्राम भी अब शाश्वत के आगे कुछ नहीं बोल पाए।
दूसरी तरफ सात्विक जो उस लड़की को घसीटते हुए वहीं एक सोफे के पीछे ले आया और उन सभी गार्डों को अपनी आंखें दिखा करके बस एक ही इसारा किया।
जिसके बाद वो सभी गार्ड जो उस एरिया से सभी गेस्ट को हटाते हुए एक लाइन से दीवार बना करके खड़े हो गए और सात्विक अपनी शर्ट को उतारते हुए चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान लिए कहा -
“ अब तुम्हारी चीख यहां सबको बताएगी कि मैं कौन हूं!”
उसके बाद सात्विक ने नीचे झुकते हुए उसे लड़की के कपड़े भी फाड़ कर हवा में लहरा दिए और नीचे झुक कर उस लड़की के साथ जबरदस्ती करने लगा जिसकी वजह से उस लड़की की चीख जो वहां पूरे हॉल में गूंज रही थी।
और वहां आया हुआ हर एक गेस्ट जो इस चीख को पूरी तरह से सहम चुका था उन गार्ड के खड़े होने की वजह से उन्हें वहां का कुछ भी नजारा ज्यादा साफ दिखाई नहीं दे रहा था पर वो साफ-साफ उस चीख को सुन सकते थे कि आखिरकार वो कितनी दर्दनाक थी , और सात्विक जो एक जीता जागता दरिंदा हैवान था जो ऐसी घिनौनी हरकत कर सकता है।
वहां आए हुए सभी मेहमानों के सामने कर रहा था और उसका यह रूप देखकर हर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कोई अब उसके खिलाफ उसके बारे में बुरा भला सुन सके।
तो वही शाश्वत जो अपने भाई का इस रूप को देखा और वहां आए हुए सभी मेहमानों के चेहरे पर डर को देख उसके चेहरे पर एक जंग जीत लेने वाली मुस्कराहट थी मानो जिससे आज उसे अपने भाई से उसके जन्मदिन का तोहफा मिल गया हो।
प्रयागराज कुंभ नगरी
जहां पर चारों तरफ महाकुंभ मेला आने की खुशी में हर तरफ जोर-जोर से तैयारी चल रहे थे। तो वहीं पर एक जगह गंगा किनारे जहां कहीं सारे आदमी एक लाइन से खड़े थे, तो कुछ आदमियों ने और सब ने एक ही तरह के कपड़े पहने हुए थे मानो जिससे वह किसी के लिए काम करते हो।
और उन लोगों ने एक 55 साल के आदमी को कस के पकड़ा हुआ था जो पूरी तरह से घायल था और चिख चिल्ला रहा था “छोड़ दो उसे छोड़ दो मेरे बेटे को” पर वो पूरी तरह से लाचार था क्योंकि उन सभी ने उसे कस के पकड़ा हुआ था और वो चाह कर भी उन लोगों से खुद को छुड़ा नहीं पा रहा था।
इस तरफ से जहां गंगा किनारे पानी में जहां सब की निगाहें झुकी हुई थी और वहां पर बस एक अलग सी खामोशी और शांति पसरी हुई थी पर उन्हें शांति और सन्नाटे में पानी में कुछ बुलबुलो की आवाज आ रही थी कि तभी अचानक उस पानी से वह बुलबुले आना भी बंद हो गए । ।
और एक शख्स जो उस पानी से बाहर निकाला , पानी में रहने के बावजूद है उसके माथे ,का लाल रंग का तिलक मिटा नहीं था, उसकी आंखे तिलक के सामान एकदम लाल थी गुस्से से , और उसका गठीला बदन और उसका रुतबा ऐसा की हर कोई उसे नजरे भी ना मिला पाए ।
इसके बाद वो शख्स उस पानी से निकल कर के पानी के बाहर आ गया पर उसके पीछे दो लाश पानी में तैरने लगी और यह देख वो घायल आदमी जो चिल्ला रहा था वो उन दो लाशों को पानी में तैरता हुआ देख एकदम से स्तब्ध रह गया और बाकी के गार्ड ने उस आदमी के हाथ को छोड़ दिया और वह जमीन पर दर्द से गिर पड़ा।
तो वही शख्स जो पानी से बाहर आया था उसके पानी से बाहर आते ही एक औरत जल्दी से आगे बढ़कर उसके पैर पर पकड़ते हुए बोली - “ आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मिराक्ष बाबा आज अपने असल मायने में इंसाफ किया है मेरी बेटी के बलात्कारों को मौत के घाट उतार कर आज मेरी को बेटी को इंसाफ मिल गया ।”
यह देख वो शख्स जिसका नाम मिराक्ष था वो झुकते हुए उस औरत को उठाते हुए कहा - “ इसमें आपको शुक्रिया बोलने की कोई जरूरत नहीं थी भले ही समय रहते मैं उसके लिए कुछ नहीं कर पाया उस बचा नहीं पाया पर वो मेरी बहन जैसी थी और आने वाले समय में अगर कोई ओर भी अगर किसी भी लकड़ी की तरफ आंख उठा कर की भी देखेगा ना, तो हम उसे ऐसे ही जिंदा मार देंगे ।”
इतना बोल वो मिराक्ष अपने आदमियों को उस औरत की जिम्मेदारी देकर वहां से चल दिया।
जहां सामने पहले ही एक जीप उसके लिए रेडी थी और मिराक्ष उस जीप में बैठ गया और ड्राइविंग से पर बैठा हुआ लड़का जो वहां का नजारा देखते हुए अपनी बड़ी आंखें करते हुए कहा - “ मानना पड़ेगा मिराक्ष बाबू कुछ तो बात है आप में तभी तो पूरा प्रयागराज आपसे थर-थर करता है।”
यह सुनकर मिराक्ष बिना ड्राइविंग सीट की ओर अपनी नजर घूमाए बिना सामने देखते हुए कहा - “ चंदन हमसे ज्यादा बकैती मत करो चुपचाप गाड़ी चलाओ, हमें हवेली , जाना है वरना जिस तरह से पूरा प्रयागराज हमसे थर-थर कपता है ना, अभी तुम हमसे कापना शुरू कर दोगे समझे ।”
जहां यह सुनकर चंदन सहम गया और वो चुपचाप सामने देखकर गाड़ी स्टार्ट कर वहां से चल दिया।
कुछ देर बाद ,,,
मिराक्ष की गाड़ी एक हवेली के सामने आकर के रुकी और मिराक्ष अपनी जीप से उतरते हुए हवेली की ओर चल दिया , और उसके साथ-साथ चंदन भी उसके पीछे चलने लगा पर वो दोनों जैसे ही हवेली के दरवाजे तक पहुंचते …
तभी उनके सामने एक लड़की उनका रास्ता रोकते हुए मुंह बनाकर के बोली - “ सो फाइनली, आप दोनों आ गए इंसाफ करके!”
जिस पर चंदन उसे किनारे करते हुए बोला “ हम कुछ भी करके आए, उसे तुम्हें कोई मतलब नहीं है मिश्री की बच्ची ।”
इतना बोल वो मिश्री को साइड करके अंदर जा रहा था।
इस पर मिश्री मुंह बनाते हुए चंदन से बोली “ हमसे अच्छे से बात करिए वरना अगर हमने बड़ी मां को बता दिया ना, कि आप फिर से हमारे साथ बदतमीजी कर रहे है तो वो आपकी अच्छे से क्लास लगाएंगे।”
उसके बाद मिश्री मिराक्ष की ओर मुड़के उससे बोली “ और आप भाई सा, आप कहां गायब थे और मासा ने आपसे कितनी बार कहा है कि इन लोगों के मामलों में पढ़ना बंद कर दीजिए। खामखां में आप भी तो उसमें नई परेशानी पाल लेंगे, मासा हमेशा से आपको इन सब चीजों से दूर रखती आई है पर आप क्यों उन लोगों से उलझ रहे हैं और दुश्मनी मोल ले रहे हैं।”
सब सुनते हुए मिराक्ष ने मिश्री को जवाब देते हुए कहा - “ जो कोई भी अगर किसी लड़की के ऊपर आंख उठाकर देखेगा, तो मैं उसका यही हाल करूंगा चाहे वो लड़की आप हो या कोई गैर ।,”
यह बोल मिराक्ष वहां से अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था।
इस पर मिश्री ने कहा -” तो ठीक है जाइए, यही बात आप जाकर के बड़ी मासा को समझा दीजिए, सुबह से उन्होंने कुछ खाया भी नहीं है जब से उन्हें आपकी बात पता चली है, अब जाइए जाकर उन्हें मनाइए और कुछ खिलाइए वरना आप तो जानते हैं ना, आपकी प्यारी डॉक्टर मां का क्या हाल होने वाला है अगर उन्होंने टाइम पर खाना नहीं खाया तो।”
यह सुनते ही मिराक्ष के कदम अपनी जगह रुक गया और पीछे से मिश्री की ओर देखते हुए बोला - “ क्या मासा ने कुछ नहीं खाया?”
जिस पर मिश्री को मुंह बनाते हुए बोली - “ हां उन्होंने कुछ नहीं खाया है और सुबह से ही संस्कृति दीदी भी पता नहीं कहां गायब है? कहीं नजर भी नहीं आ रही है, आपके बाद एक वही तो है जिनकी बात मासा सुनती है पर आज दोनों के दोनों गायब हो पड़े हैं ।”
यह सुनकर मिराक्ष ने आगे चंदन से कहा - ‘’ चंदन अब तुम जाओ देखो संस्कृति कहां है? बाकी मैं मासा को देखता हूं।”
इतना बोल और मिराक्ष ने आगे मिश्री से कहा - “ और आप खाना लेकर मासा के कमरे में आइए ।”
इतना बोलकर मिरिक्ष वहां से कमरे में चला गया।
ठकराल पैलेस
जहां पर वहां आए हुए सारे VIP गेस्ट डरे साहमें थे क्योंकि वहां का मंजर ही कुछ इस कदर भयानक था कि हर कोई वो नजारा देखकर डर जाए, जहां उन सबके आंखों में अभी भी लकड़ी की चीख सुनाई दे रही थी और उन सब की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो लोग अपनी आंखें खोल कर वहां का नजारा देख पाए।
तभी अचानक उनके कानों में वो चीख सुनाई देना बंद हो गई और जब सबने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल करके देखा, तो सामने सात्विक जो पसीने में लथपत अपना वही शर्ट पहनते हुए उसके बटन बंद कर रहा था।
और उसे इस रूप में देखकर उन लोगों में से किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह सीधा-साधा भोला सा देखने वाला लड़का इतना भी खतरनाक हो सकता है।
इसके बाद सात्विक वहां से बिना किसी को देखें चुपचाप सीढ़ीओ से होते हुए ओर होकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
तो वही वो गार्ड जो सोफे के पीछे से लड़की पड़ी थी उस पर सफेद चादर डाल कर लें जा रहे थे । पर उस चादर में खून के दाग साफ नजर आ रहे थे ।
पल उन गार्ड ने पल भर में उस जगह को एकदम क्लीन कर दिया मानो जैसे वहां कुछ हुआ ही ना हो ।
तो वही वो सब के बाद शाश्वत ने सभी गेस्ट का ध्यान अपनी ओर करते हुए सबसे कहा - “ सो मेरे आए हुए सभी गेस्ट, मैं बस यही चाहता हूं कि आप सब लोगों ने जो यहां पर देखा वो भूल जाइएगा वरना आप सब जानते हैं कि अगर किसी ने भी यहां की बातें बाहर की या अपना मुंह खोला, तो अंजाम क्या हो सकता है।”
और उसके बाद शाश्वत वहां आए मीडिया वालों की ओर देखकर के उन लोगों से कहा - “ और आप सब भी अगर आप लोगों को भी अपनी जान प्यारी है , तो अपनी हैडलाइन और ब्रेकिंग न्यूज़ पर जरा ध्यान दीजिएगा, गलती से भी मेरे भाई के बारे में कुछ गलत मत लिख दीजिएगा।”
शाश्वत इतना बोलकर से बाहर की ओर चल दिया और उसके साथ उसके गार्ड भी थे।
वही संग्राम ठकराल जो अपने दोनों पोते का यह रूप देखकर थोड़ा सा सहम से गए थे पर उन्होंने जल्दी ही माहौल को संभालते हुए पार्टी खत्म होने का बोलकर सबको जाने को बोल दिया।
मुंबई शहर Graveyard place
इस वक्त वहां पर कई सारे लोग ब्लैक सूट पहने लोग मौजूद थे मानो शायद वो किसी की शोक में आए हुए हो, जहां सामने एक बड़े से स्टैचू को एक फोटो लगी हुई थी और उसके सामने कई सारे कैंडल जल रहे थे और ठीक उसके सामने ब्लैक सूट पहने एक आदमी जो उस फोटो को देख उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे ।
तभी अचानक वहां पर कई सारी गाड़ियां उस Graveyard के बाहर आकर के रुकी, उन गाड़ियों में से कई सारे गार्ड ने एक लाइन से निकलकर अपनी अपनी जगह खड़े हो गए और एक गार्ड ने कार का डोर ओपन किया।
जिसमें से एक शख्स निकला जिसने व्हाइट कलर का कस्टमाइज्ड फिटिंग सूट पहना हुआ था और वो अपनी गाड़ी से उतरते ही अपनी आंख पर पहने हुए ग्लासेस को ठीक करके चलने लगा। उसके बाल उसके कान के नीचे तक लंबे थे उसने हाफ पॉनी भी बनाई हुई थी । उस लूक में वो किसी माफिया से कम नहीं लग रहा था। उसका औरा एकदम खतरनाक था।
जहां उसके आते ही वहां उसेश Graveyard में मौजूद सभी लोग उस शख्स को देखकर उसके लिए रास्ता बनकर खड़े हो गए वो लंबे बाल वाला लड़का ठीक फोटो के सामने आकर उस आदमी के बगल खड़ा हो गया और फोटो को देख चेहरे पर तिरछी मुस्कुराहट लिए कहा - “ बड़ी छोटी उम्र में तुम्हें छोड़कर चला गया तुम्हारा बेटा soo sad, यह देखकर बहुत बुरा लगा।”
ये सुन उसके बगल खड़ा आदमी जब नजर उठा कर सामने देखा, तो उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आने लगा और वो गुस्से से उस शख्स का नाम लेते हुए बोला - “ रीदांक्ष सिंह शेरावत तुम यहां, तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम मेरे बेटे को मारने के बाद, मेरे इलाके में कदम रख रहे हो।”
ये सुन रीदांक्ष के चेहरे पर कुटिल मुस्कुराहट लिए उस आदमी की ओर देख कहा - “ देखो सलीम मै तो तुम्हारे शोक में शामिल होने आया था और तुम्हारी दी हुई किमती चीज तुम्हें लौटने आया था, जिसे तुमने मुझे मारने के लिए भेजा था ।
और फिर से दोबारा वही गलती की थी पर एक बात मैं तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं रीदांक्ष सिंह शेरावत हूं मैं , मुझे तुम्हारा यह शो कॉल मरा हुआ बेटा तो क्या तुम्हारा मर चुका बाप भी नहीं मार सकता,
मौत मुझे छूकर निकल जाती है और मुझे कभी गले नहीं लगती,
तो तुमने कैसे सोच लिया कि तुम्हारा यह जवान बेटा मुझे हाथ भी लगा पाता , एक बार जो मेरे खिलाफ जाता है ना, मैं सिर्फ उसे सबक नहीं सिखाता, हमेशा के लिए उसका वजूद मिटा देता हूं समझे।”
तो यह बोलकर रीदांक्ष ने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाल कर अपने होठों के बीच दबा लिया।
तभी पास खड़ा उसका एक गार्ड जल्दी से आगे बढ़ाकर रीदांक्ष की होंठों के बीच दबे हुए सिगरेट को जला दिया और फिर रीदांक्ष सिगरेट को अपनी उंगलियों में फंसा कर एक लंबा कस लेने के बाद कहा - “खैर अपना तोहफा नहीं देखोगे तुम्हारे बेटे की मौत की खुशी में, मैं तुम्हारे लिए तोहफा लेकर के आया हूं।”
इतना बोल रीदांक्ष ने पास खड़े गार्ड की ओर इशारा किया और उसके गार्ड जो सामने के रास्ते से एक ताबूत लिए आ रहे थे अब वो ताबूत उन लोगों ने सलीम के सामने रख दिया।
सलीम के सामने देख कर आंखों में डर और घबराहट साफ नजर आ रही थी और उसने घबराहट भरी नजरों से एक नजर उस ताबूत को देख रीदांक्ष से कहा - “ क्या है इसमें, क्या है इस ताबूत में ?”
रीदांक्ष सिगरेट के लंबे कस लेते हुए धुआ को सलीम के मुंह में छोड़ते हुए कहा - “तुम्हारा तोहफा जो तुमने दिया था वही मैं लौटा रहा हूं क्योंकि मुझे ऐसी सस्ती चीज पसंद नहीं आती, शायद तुम खुद खोल कर देख लो ।”
रीदांक्ष के इतना कहते ही सलीम घबराहट से जल्दी ही ताबूत को खोलने लगा और जैसे ही उसने ताबूत खोला तो उसके अंदर एक आदमी लेट पड़ा था पर वो जिंदा था उसके मुंह पर टेप और हाथ बंधे हुए थे।
यह देख सलीम ओर मुंह से निकला “ छोटे! छोटे तू इस हाल में!”
इतना बोल सलीम आगे बढ़कर अपने भाई को उस ताबूत उसे निकाल पता।
कि रीदांक्ष के गार्ड उसके सर पर गन पॉइंट करके खड़े हो गए और रीदांक्ष सलीम को इस तरह से डरा सहमा देख आगे कहा - “अपने बेटे की मौत के बाद, अपने भाई को भी भेज दिया मेरे पास मरने के लिए पर देखो मैं कितना अच्छा हूं तुम्हारे भाई को मारा नहीं उसे जिंदा रखा है और जिंदा तुम्हारे पास ले आया ।”
यह बोलते हुए रीदांक्ष सलीम के आसपास गोल-गोल घूमने लगा।
सलीम रीदांक्ष की ओर देखते हुए कहा - “ छोड़ दो मेरे भाई को हटाओ अपने यह गार्ड, हां में मानता हूं कि मैंने गलती की है मुझे तुमसे नहीं उलझना चाहिए था और ना हीं तुम्हारे खिलाफ जाना चाहिए था, अब मैं अपनी गलती मानता हूं मुझे बक्ष दो ।”
पर रीदांक्ष जो ठीक सलीम के सामने आकर। घुरते हुए उसकी आंखों में देखते हुए कहा - “ हरगिज नहीं मैंने कहा ना, मैं सबक नहीं सिखाता उन्हें खत्म करता हूं, तो बस वही हाल अब तुम्हारा होगा और तुम्हारे इस भाई का।”
रीदांक्ष ने इतना बोला ही था कि सलीम की आंखें डर से बड़ी हो गई और उसने डरते हुए देखा और बोला - “ तुम तुम क्या करने वाले हो?”
जिस पर रीदांक्ष सलीम को बिना कोई जवाब दिए बस चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट लिए उसे देखता रहा।
तो वही रीदांक्ष के गार्ड जो उस ताबूत को फिर से बंद करके उठाकर ले जाने लगे जहां उस ताबूत के अंदर से से चिखने की आवाज़ आ रही थी।
तो वही यह सब देखकर सलीम भी रीदांक्ष के आगे झुकते हुए हाथ जोड़ करके उसे विनती करने लगा था पर रीदांक्ष को सलीम की इस हरकत से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
और वही वह गार्ड उस ताबुत को ले जाकर के वही मिट्टी के एक बड़े से गड्ढे में डाल करके उस ताबूत को मिट्टी से ढकने लगे ।
और यह देख सलीम भी खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा पर गार्ड उसे भी ले जाकर के एक दूसरे गड्ढे में डाल दिए।
इस दौरान सलीम जब वहां से निकलने की कोशिश कर रहा था कि गार्ड ने उसके पैरों में गोलियां चला दी ।
जिससे सलीम दर्द से चीख उठा और कुछ नहीं कर सका।
उसके बाद उन गार्ड ने उसकी गड्ढे में भी मिट्टी दाना शुरू कर दिया
कुछ देर में सलीम जो जिंदा जमीन पर गाढ़ दिया गया था ।
वही वहां पर आए हुए कुछ लोग जो सलीम के खास आदमी थे वो सभी वह नजारा देखकर पूरी तरह से सहम चुके थे उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि रीदांक्ष सिंह शेरावत इतना खतरनाक है कि वह यहां इतने लोगों के बीच में दो लोग को जिंदा गाढ़ सकता है और यह सब देखकर उनमें से किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कुछ भी बोलते रोकने की ।
जिसके बाद रीदांक्ष 1 मिनट उन सब की ओर देखते हुए कहा - “ अगर सबको जिंदा रहना है, तो अपना मुंह बंद रखना वरना यही हाल तुम सबका भी होगा ।”
इतना बोलकर रीदांक्ष वहां से अपने गार्ड के साथ चला गया और जाकर के अपनी कार में बैठ गया ।
कार में बैठते ही उसने सामने की सीट पर बैठे अपनी मैनेजर से कहा - “ जेट रेडी करो, मुझे आज ही राजस्थान वापस निकालना है ।”
जहां यह सुन उस मैनेजर में सिर्फ हां में सर हिलाते हुए कहा - “ ओके सर !”
प्रयागराज
मिराक्ष जब अपनी मासा के कमरे में पहुंचा, वो कमरे में आते ही चारों ओर नजर घुमा करके देखा, उसे कमरे की बालकनी के पास उसकी मासा चेयर पर बैठी हुई नजर आई,
वो उस ओर अपने कदम बढ़ा दिया, इसके बाद वो ठीक अपनी मासा के सामने आकर के घुटने के बल बैठते हुए उनके दोनों हाथों को थाम करके बोला “ यह हम क्या सुन रहे हैं मासा, कि आपने सुबह से अभी तक कुछ खाया नहीं ।”
सामने चेयर पर बैठी हुई वो औरत जो कोई ओर नहीं कजरी थी, उस वक्त उसने व्हाइट एंड गोल्डन कांबिनेशन की बॉर्डर वाली साड़ी पहनी हुई थी और बालों का जुड़ा बनाया हुआ था, कुछ लटे जो अभी तक उसके गाल को छु रहे थे और चेहरे पर वही मासुमियत जो पहले हुआ करती थी ।
कजरी मिराक्ष से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली “ चले जाइए आप यहां से, हमें कोई बात नहीं करनी आपसे ?”
मिराक्ष एक बार फिर कजरी का हाथ थामते हुए बोला “ अब बता दीजिए ना मासा, क्या हुआ है आपक़ो? क्यों खाना नहीं खाया आपने सुबह से अभी तक , शाम होने को आई है और आप अभी तक भूखी है, चलिए जल्दी से खाना खा लीजिए वरना बीमार पड़ जाएंगे आप।”
कजरी मिराक्ष की ओर देखकर नाराजगी भरे लहजे से बोली “ आप क्या हमारी बात मानते हैं, क्या आप हमारी बात सुनते हैं, जो हम अब आपकी सुन ले। हां क्या जरूरत थी लोगों के लिए न्याय करने की, क्या जरूरत थी उन बुरे लोगों से जाकर के भिड़ने की, वो मजबूर मां बाप जाते पुलिस के पास, जाते कोर्ट के पास, जाते अपनी बेटी के इंसाफ के लिए पर आपके पास क्यों आए वो और आप क्यों उनके लिए चले गए उन लोगों से दुश्मनी मोल लेने।”
यह सुनकर मिराक्ष कजरी को मानते हुए कहा “ बस इतनी सी बात, आप इस बात से नाराज है कि हमसे फिर से किसी के साथ बुरा होते देखा नहीं क्या और हम उन लोगों को उनका सबक सिखाने चले गए ।”
कजरी ने कहा “ हमें उन चीजों से फर्क नहीं पड़ता है मिराक्ष, हमें डर है कि सिर्फ आपको खोने से, हम नहीं चाहते कि आप ऐसे इस तरह से लोगों से दुश्मनी मोल ले और हर जगह आपके दुश्मन पैदा हो, एक बार इंसान दुश्मन बन गए, वो उसे पूरी जिंदगी से सकुन से नहीं रहने देते ।”
मिराक्ष ने कहा “ उसकी फिक्र आप मत करिए मासा, कि आपका बेटा इतना भी बुरा नहीं है कि जो हर वक्त हर जगह दुश्मन ही बना ले, तो मासा आप हमारी फिक्र आप छोड़ दीजिए क्योंकि कि हम हैं ही इतने खास की कोई हमसे भिड़े या हमारे अपनों की तरफ आंख उठा करके देखें या हमसे दुश्मनी का रिश्ता बनाएं क्योंकि हम आपके प्यारे से बेटा हैं ना, जिसे हर कोई पसंद करता है और प्यार करता है।”
जहां यह सुन कजरी मुंह बनाते हुए बोली “ अभी आप बातें बदल रहे हैं मिराक्ष, मीठी-मीठी बातेओ से हम इस बार नहीं मानने वाले, हम इस बार सच में आपसे गुस्सा है और नाराज है और हम इतनी आसानी से आपको नहीं माफ करेंगे ।”
मिराक्ष मुस्कुराते हुए कहा “ ठीक है अगर आप हमें माफ नहीं करना चाहती, मत करिए कोई बात नहीं, पर प्लीज मासा खाना खा लीजिए अगर आप खाना नहीं खायेगे, हमें यूं अकेले आपकी बिना खाना खाना पड़ेगा आपके सामने वो भी लजीज खाना, तो आप हमारा साथ दे दीजिए।”
जिस पर कजरी मुंह बनाते हुए बोली “ हां कितने बुरे हैं आप, यहां आपके कारण हम सुबह से भूखे है और आप हमारे सामने खुद खाना खाने की बात कर रहे हैं, क्या आपको थोड़ा सा भी हमसे प्यार नहीं ।”
जिस पर मिराक्ष ने कहा “ हां मासा प्यार है आपसे, पर वो क्या है ना प्यार करने के लिए भी एनर्जी चाहिए होती है, इसलिए पहले खाना खा ले फिर उसके बाद आपको मानना भी है, आपके गुस्से को भी काम करना है आखिर पता नहीं कितना समय लग जाए, आपको मनाने में।”
कजरी उसके कान पकड़के मड़ोडते हुए बोली “ नालायक! आप पूरी तरह से बिगड़ चुके हो, आप हमसे प्यार ही नहीं करते अगर करते आप ऐसे इस तरह से हमें नाराज नहीं करते और हमारी हर बात मानते हैं पर नहीं आपको सिर्फ अपने मन की करनी होती है ना ।”
इतना बोलकर कजरी उसका कान छोड़ते हुए चेयर से उठ करके बालकनी की ओर जाकर रेलिंग के पास खड़ी हो गई। उस वक्त तक उसकी आंखें नम हो गई थी।
यह सब देख मिराक्ष अपनी जगह से उठते हुए कजरी के पास आकर उसे पीछे से गले लगा कर कजरी के कंधे पर सर रखते हुए कहा “ मासा आप जानती हैं ना हमें, कि आपके बिना हम पानी का एक बूंद तक नहीं निगल सकते और भला खाना हम कैसे खाएंगे, चलिए ।
कजरी ने आगे कहा -” एक शर्त पर अगर आप हमसे वादा करेंगे कि आइंदा से आप यह समाज सेवा बंद कर देंगे, और लोगों की मदद करने के लिए दूसरों से नहीं लड़ेंगे, तब हम जरूर खाना खा लेंगे।
मिराक्ष ने आगे कहा -” अब गुस्सा छोड़ दीजिए पर , और रही बात आपके शर्त की तो हम आपकी सारी बातें मानने को तैयार हैं, पर अभी के लिए हम वादा नहीं कर सकते, फिर क्या पता चले, कल को अगर किसी ने हमारी मिश्री और संस्कृति को छेड़ा , तब हमारा खुद पर काबू नहीं रहेगा ना, भले ही दुनिया भर की लड़कियों के लिए नहीं पर अपनी मां बहन और प्यार इन तीनों की रक्षा के लिए हम लोगों से लड़ सकते हैं ना ।”
ये सुन कजरी फिर मिराक्ष से नाराज होते हुए बोली “ कुछ नहीं हो सकता जाइए जाकर करिए समाज सेवा आपको कुछ चीज बताना ही बेकार है ।”
इतना बोल वो वहां से जाने वाली थी कि तभी अचानक उसके कान में एक मधुर गीत सुनाई दिया, जिसकी वजह से वो गीत सुनते हुए अपनी जगह रुक गई और उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट सी आ गई।
वहीं दूसरी तरफ मिराक्ष उसके कान में भी वो गीत सुनाई दिया और वो बालकनी की पीछे की ओर मुड़कर हवेली के पीछे बने मंदिर की
ओर देखने लगा जहां से यह आवाज आ रही थी।
मन बसिया, ओ, कान्हा
रंग रसिया, ओ, कान्हा
हवेली के पीछे मंदिर
जहां पर एक लड़की जिसके लंबे-लंबे बाल कमर तक लहरा रहे थे और उसने ऑरेंज और ब्लू कलर के कॉन्बिनेशन का अनारकली सूट पहन रखा था, जिसमें वह वाकई बेहद खूबसूरत लग रही थी और वो मंदिर में मूर्ति के सामने बैठकर आरती की थाल तैयार कर रही थी।
वहीं आसपास मौजूद पंडित जो उसकी इस मधुर आवाज को सुनते हुए आपस में बात करते हुए बोले - “ लो भाई हो गई शाम, चलो चलो अब पूजा की तैयारी शुरू कर दो, यहां हम सबको शाम की आरती के लिए समय देखने की जरूरत भी नहीं पड़ती आखिरकार संस्कृति बिटिया की आवाज ही इतनी मधुर है कि बस उसकी आवाज से ही पता चल जाता है कि हां भाई शाम की पूजा का समय हो गया है ।”
पहले पंडित भी दुसरे पंडित की बात सुनकर मुस्कुरा दिए और बाकी तैयारी में लग गए।
पवन प्रभाती जग को जगाती
भँवरें भी करते है गुंजन
पंख पसारे उड़े पखेरूँ
सिंदूरी-सिंदूरी आँगन
यह आवाज सुनकर कजरी वापस बालकनी पर रेलिंग के पास आते हुए मिराक्ष से बोली “ बस एक यही है जिनकी आवाज सुनकर ही हमारा गुस्सा छूमंतर हो जाता है ।”
यह सुन कर मिराक्ष के चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कराहट लिए बोला “ हां-हां आखिरकार हमारे बीवी जो है, हमारी संस्कृति!”
जहां यह सुनते ही कजरी की आंखें सिकुड़ गई और वो मिराक्ष की ओर देखते हुए एक बार फिर उसके कान पकड़ते हुए बोली “ अच्छा जी अभी आपकी शादी नहीं हुई और अभी से आपने उन्हें अपनी बीवी और हमारी बहू बना दिया।”
मिराक्ष कजरी से अपना कान छुड़ाने की कोशिश करते हुए चेहरे पर दर्द की सिकन लिए कहा - “ हां मासा! अब हम प्यार करते हैं इतना उनसे कि हमने उन्हें दिल से अपनी बीवी मान लिया है , और पहली बाद ये शादी वादी सिर्फ दिखावा है इस दुनिया के लिए, ।”
मंगल-मंगल, बेला मंगल
सौरभ-सौरभ सारा भुवन
इन चरणों में फूल चढ़ाने
आई तेरी राधा, मोहन
राजस्थान शेरावत महल
जहां पर सभी नौकर सार्वेट अपने-अपने काम में लगे हुए थे कि तभी उन सब को भी अपने कान में एक मधुर गीत सुनाई थी और ये आवाज सुनते ही सबके चेहरे पर जो एक डर छाया रहता था वो तुरंत पल भर में गायब हो गया और एक सुकून के सास लेते हुए उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
एक नौकर ने दूसरे नौकर से कहा “ अरे यह आवाज, यह आवाज बड़ी मानकीन की है, क्या वो महल आई है और आई कब हमको पता क्यों नहीं चला?”
जिस पर दूसरे नौकर ने कहा “ अरे अब यह मत भुलो की रीदांक्ष बाबा और अद्रिका बाई सा की सगाई हो चुकी है, अब पूरा हक बनता है कि अद्रिका बाई सा का इस महल में कभी भी आ जा सकती हैं।”
इतना बोलते हुए वो सभी नौकर आपस में बात करते हुए महल के मंदिर वाले एरिया तक आ गए थे ।
जहां पर इस वक्त वहां पर एक लड़की जो ब्लू कलर की साड़ी पहने और बालों का जुड़ा बनाएं मंदिर के सामने आरती कर रही थी सारे नौकर आकर वहां पर आकर के खड़े हो गए थे।
मन बसिया, ओ, कान्हा
रंग रसिया, ओ, कान्हा
वही प्रयागराज में बालकनी की ओर कजरी मंदिर की ओर देखते हुए मिराक्ष से बोली “ इतना प्यार करते हैं आप संस्कृति से !”
जिस पर मिराक्ष ने कहा “ हा माना हम उस , बहुत चाहते हैं अपनी जान से भी ज्यादा!”
कजरी ने कहा “ अगर हम कहें अगर हम आप दोनों की शादी के खिलाफ हो जाए और आप दोनों के रिश्ते को ना अपनाए तो!”
जहां यह सुन एक पल के लिए मिराक्ष के चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो गई, फिर वो कजरी की ओर देख करके बोला “ आप हमारी सांसे है माशा और संस्कृति हमारी धड़कन और अगर इन दोनों में से कोई भी हमसे दूर हुआ ना, सच में हम सिर्फ जिंदा लाश रहेंगे और हमें पता है कि आप अपने बेटे को हमेशा खुश देखेंगी, ना कि ऐसे बेजान सा, आप कभी हमारे और संस्कृति के रिश्ते के खिलाफ नहीं जा सकती। कभी भी नहीं ।”
कजरी ने मुस्कुराते हुए बोली “ अब हमें समझ नहीं आ रहा है कि हम संस्कृति पर गर्व करें कि आप पर, जहां एक तरफ हमारा बेटा जो इतना स्वाभिमानी है जो अपनी मासा और अपनी मोहब्बत को इतनी अहमियत देता है, वही एक संस्कृति है जिसे हमारा बेटा उसके जीवन साथी के रूप में मिलने वाला है।”
मिराक्ष ने कहा “ हां अब हम है ही इतने कमाल के, की सब हमारी तारीफ करते थकेंगे थोड़ी ना।”
जहां यह सुन कजरी मुंह बनाते हुए बोली “ हां हां बस अब ज्यादा बनने की जरूरत नहीं है ।”
जिसके बाद वो दोनों ही एक साथ खड़े होकर हंसते मुस्कुराते हुए फिर से मंदिर की ओर देखते हुए संस्कृति की उसे मधुर आवाज को सुनने लगें…।
मैं बाँवरिया सुधबुध भूली
मुझ को लागी तेरी लगन
तेरे द्वारे साँझ सखा रे
तेरा नाम जपे मेरा मन
जो है मेरा, सब है तेरा
तुझ पे है ये जीवन अर्पण
इन चरणों मे फूल चढ़ाने
आई तेरी राधा, मोहन।
मन बसिया, ओ, कान्हा
रंग रसिया, ओ, कान्हा
शेरावत महल में अद्रिका मंदिर में पूजा करने के बाद आरती की थाल लिए सभी नौकर को दिखाते हुए महल के हर एक कोने में दिया देने लगी और उसके साथ-साथ सारे नौकर भी पीछे-पीछे चल रहे थे और कुछ देर बाद फिर वो मंदिर में वापस आकर के आरती की थाल रख सभी को प्रसाद देती है ।
और उन सबको एक नजर देखते हुए एक नौकर से बोली “ यह आज महल इतना खाली क्यों है? सब गए कहां? कि आज हमारी आरती में भी कोई नहीं आया।”
एक नौकर ने जवाब देते हुए कहा “ हुकुम सा, किसी काम से दूसरे शहर गए हुए हैं, उन्होंने कहा है कि उनको आते हुए रात हो सकती है और बड़े मालिक रींदाक्ष बाबा वो भी मुंबई गए हैं, वो कुछ घंटे में वापस आ भी जाएंगे और रही बात बाकी नवाबजादों की ( राजकुमारों की ), आप जानती है ना, जब महल में हुकुम सा और बड़े मालिक नहीं होते, उनको आजादी मिल जाती है इसीलिए वो सब उनकी गैर मौजूदगी में निकल गये, महल से घूमने फिरने मस्ती करने।”
इस पर अद्रिका ने कहा “ हो गया कल्याण, अपने पांचो लाडले राजकुमारों को खबर करिए की महल में हम आए हैं और इससे पहले की दादा सा रीदांक्ष जी के महल वापस आने से पहले यहां पांचों महल वापस आ जाए वरना आज हम भी उनकी आने वाली शामत आने से नहीं रोक पाएंगे, इनके दादा सा के गुस्से या रीदांक्ष के गुस्से से,!”
जहां नौकर ने कहा “ जी मालकिन! हम जल्दी यह काम करते हैं!”
इतना बोल वो नौकर वहां से जाने ही वाले थे कि अद्रिका ने कहा “ 1 मिनट अब आप सब हमें बड़ी मालकिन बोलना बंद कर दीजिए , बहुत ज्यादा हम शेरावत खानदान की बहू बनने वाले हैं तो अब हमें बड़ी बहुरानी बोलने की आदत डाल लीजीए ।”
नौकर ने कहा - “ हां-हां जरूर हम सबको बहुत इंतजार है कि जल्द से जल्द इस महल में आ पाए और इस महल को खुशियों से भर दे ।”
इस पर अद्रिका मुस्कुरा दी और वहां से वो किचन की तरफ चली गई, सबके लिए रात का खाना बनाने की तैयारी करने।
वही प्रयागराज में मिराक्ष और कजरी एक साथ खड़े उस आवाज को सुन रहे थे वो बस चुपचाप खड़े थे पर उन्हें पता भी नहीं चला कि कब उनके कान में वो गीत आना बंद हो चुकी थी और वो बस चुपचाप संस्कृति के ख्यालों में खोए हुए थे।
मिराक्ष जो अपने साथ संस्कृति की शादी और एक नए जीवन के सपने बुन रहा था।
वही कजरी जो अपने बेटे और बहू की आने वाली खुशियों के बारे में सोच रही थी ।
ऐसे ही कुछ देर बीत जाने के बाद । कजरी को कुछ ध्यान आया और उसने मिराक्ष के कहा -” वैसे आपने मिश्री को कहीं देखा , पता नहीं वो कहां हैं? सहोदर देर से कहीं दिख नहीं रही ।
जिस पर मिराक्ष ने कहा -” तो कोई बात नहीं मासा वो जहां कही भी होंगी आ जाएंगी , आप उनके बारे में परेशान मत होइए,
रात का समय था, और एक घर चारों तरफ से आग की लपटों में घिरा हुआ था। उस घर के अंदर, लिविंग एरिया में एक औरत और आदमी चेयर से बंधे हुए थे। उनके शरीर पर कई घावों के निशान साफ नजर आ रहे थे, और दोनों बुरी तरह से बेहोश थे।
तभी अचानक उस महिला को होश आया। उसने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं और चारों ओर देखा। आग की लपटों से घिरा घर और हर जगह धधकती आग को देखकर वह पूरी तरह घबरा गई।
उसी वक्त, उसने सामने अपने पति को भी बेहोश और कुर्सी से बंधा हुआ देखा। उसे देखकर महिला और ज्यादा घबराई। उसने कांपते हुए अपने पति को आवाज लगाई, "अशोक जी! अशोक! उठिए... उठिए अशोक जी! हमें यहां से निकलना होगा।"
वह अपने पति को बार-बार आवाज देती रही और हिम्मत करने को कहती रही, लेकिन उसके सामने उसका पति अशोक जो कुछ रिएक्ट नहीं रहा था ।
यह सब देखकर वह औरत किसी तरह अपने हाथों में बंधी हुई रस्सियों को अपने दांतों से धीरे-धीरे खोलने लगी। बड़ी मुश्किल से, आखिरकार उसने रस्सियों को खोल दिया और अपनी जगह से उठ खड़ी हुई। उठते ही उसने एक बार फिर अपने पति अशोक को जगाने की कोशिश की, उसे बार-बार हिला कर उठाने लगी। लेकिन अशोक कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था, वह अब भी बेहोश था।
फिर वह औरत ने इधर-उधर देखा और तेजी से फैसला लेते हुए एक कमरे की ओर भागी। रास्ते में उसके सामने आग की तेज लपटें थीं, लेकिन वह किसी तरह उन लपटों से बचते हुए आगे बढ़ती रही। कमरे में दाखिल होते ही उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन उसे वहां कोई नजर नहीं आया।
तभी अचानक उसे कमरे के कोने से कुछ सिसकारियां जैसी आवाज सुनाई दी। यह आवाज सुनते ही वह तुरंत उस कोने की ओर दौड़ी। जब वह कोने में पहुंची, तो देखा कि वहां उसकी पांच साल की बच्ची सहमी हुई बैठी थी। बच्ची बेहद डरी हुई थी और चारों तरफ आग की लपटें धीरे-धीरे फैल रही थीं।
यह सब देखकर प्रतिज्ञा तुरंत उस बच्ची की ओर बढ़ी और उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी बच्ची, जो डरी और घबराहट से कांप रही थी। वो प्रतिज्ञा के सीने से चिपकते हुए, उसने कहा, "मम्मी.. मम्मी, जल्दी यहां से निकलो! मुझे बहुत डर लग रहा है।"
प्रतिज्ञा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "हां, मिस्टी, हम निकलेंगे। मैं तुम्हें यहां से सही सलामत निकालूंगी। तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी।" इतना कहकर, प्रतिज्ञा ने रास्ता बनाते हुए आग की लपटों से बचते हुए कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की।
बाहर आते ही, प्रतिज्ञा ने एक बार फिर अपने पति अशोक को जगाने की कोशिश की, लेकिन अशोक अब भी बेहोश पड़ा था। उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी। प्रतिज्ञा को अब हालात की गंभीरता का अंदाजा हो रहा था। उसने जल्दी से अपनी बच्ची को सुरक्षित निकालने का फैसला किया।
मिस्टी को गोद में लिए, प्रतिज्ञा तेजी से घर के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ी। लेकिन जैसे ही वह दरवाजे के पास पहुंची, उसने देखा कि वहां की चौखट पर आग की लपटें बुरी तरह फैल चुकी थीं। आग इतनी तेजी से बढ़ी थी कि उस रास्ते से बाहर निकलना अब नामुमकिन हो चुका था।
प्रतिज्ञा का दिल धड़कने तेज होने लगी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह तुरंत दूसरा रास्ता ढूंढ़ने लगी और फिर घर के पीछे वाले दरवाजे की ओर भागी, उम्मीद थी कि वह रास्ता अब भी सुरक्षित होगा।
इस दौरान प्रतिज्ञा खुद को और अपनी बेटी मिस्टी को किसी तरह आग की लपटों से बचा रही थी। चारों ओर आग की लपटें तेजी से फैल रही थीं, और वे दोनों मुश्किल से आगे बढ़ पा रहे थे। तभी एक जलता हुआ पिलर अचानक प्रतिज्ञा के सिर पर आ गिरा। पिलर का वजन और जलन इतनी तेज थी कि प्रतिज्ञा अपनी बेटी के साथ जोर से जमीन पर गिर पड़ी। गिरते ही प्रतिज्ञा के सिर से खून बहने लगा, और वह दर्द से कराहते हुए तेज आवाज में चीख उठी।
मिस्टी ने तुरंत खुद को संभाला और घबराते हुए अपनी माँ के हाथ को जोर से पकड़ लिया। वह रोते हुए बोली, "मम्मी.. मम्मी, जल्दी चलो, यहां से बाहर निकलो! मुझे बहुत डर लग रहा है इस आग से।"
प्रतिज्ञा ने दर्द के बावजूद खुद को उठाने की कोशिश की, लेकिन उसकी हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वह उठ नहीं पा रही थी। उसकी पूरी ताकत जवाब दे चुकी थी। चारों ओर तेजी से फैलती आग को देखकर, प्रतिज्ञा ने घबराते हुए अपनी बेटी से कहा, "बेटा, जल्दी से बाहर भाग जाओ। हम तुम्हारे पापा को लेकर आते हैं। हम भी जल्दी आ जाएंगे। तुम अभी बाहर निकल जाओ।"
मिस्टी यह सुनकर रोने लगी और अपनी माँ को छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। वह बोली, "मम्मी.. म, मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगी। मुझे आपके साथ रहना है।"
प्रतिज्ञा की आंखों में आँसू थे, लेकिन उसने खुद को हिम्मत दी और मिस्टी को समझाने की कोशिश की, "बेटा, तुम्हें अब बाहर जाना होगा। मम्मी को कुछ नहीं होगा, मैं तुम्हारे पापा को लेकर आ रही हूँ। बस तुम जल्दी से बाहर जाओ, प्लीज!"
प्रतिज्ञा ने मिस्टी को पीछे के दरवाजे की ओर इशारा किया, जहां से बाहर निकलने का एकमात्र सेफ रास्ता था। मिस्टी के मन में डर और असमंजस था, लेकिन अपनी माँ की हालत देखकर उसे समझ में आ गया कि उसे अब बाहर जाना होगा। वह ना चाहते हुए भी उठी, आँसू भरी आँखों से अपनी माँ को आखिरी बार देखते हुए घर के पीछे के दरवाजे की ओर भागने लगी।
मिस्टी जैसे-तैसे करके घर के बाहर आ गई और जलते हुए घर को देखने लगी। उसकी आँखों में भय और दुख था। उसकी माँ, प्रतिज्ञा, अब भी अंदर थी, जमीन पर गिरी हुई और दर्द से कराह रही थी। प्रतिज्ञा ने कई बार उठने की कोशिश की, लेकिन उसकी चोटें इतनी गंभीर थीं कि वह बार-बार गिर जाती थी।
तभी अचानक, एक जोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना तेज था कि घर की खिड़कियाँ और दरवाजे बुरी तरह से हिल गए। कुछ आग की लपटे मिष्टी तक भी आयी पर इससे पहले कि वो घूम के पीछे हो पाती की उसके शरीर के एक हिस्से मे आग ने अपनी छाप छोड़ दी थी l
जिससे मिष्टी जलन की वजह से चीख उठी l पर किसी तरह वो खुद को सम्भाल के घर की तरफ देखा तो मिस्टी की आँखों के सामने उसकी माँ प्रतिज्ञा आग की लपटों में घिर गई। प्रतिज्ञा की चीखें धीरे-धीरे आग की भयानक गरज में खो गईं, और वह लपटों में कहीं गुम हो गई।
यह सब देखकर मिस्टी के दिल में डर और दुख का एक सैलाब उमड़ पड़ा। वह जोर से चीख उठी, "मम्मी….!" उसकी चीख दर्द और बेबसी से भरी थी। आग के डरावना सिन ने उसे अंदर तक हिला कर रख दिया। अपने मां को लपटों में खोते हुए देखना उसके लिए असहनीय था।
वह अपनी चीख के साथ ही वहीँ जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ी, और चारों तरफ बस आग की तेज लपटें और घर का मलबा ही रह गया।
15 साल बाद वही घर, जो कभी खुशियों से भरा हुआ था, अब पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका था। आग की वजह से घर का हर कोना काला पड़ चुका था। दीवारें टूट चुकी थीं, छत गिर चुकी थी, और चारों तरफ झाड़ियाँ उग आई थीं। अब वह घर एक डरावना और वीरान खंडहर बन चुका था, जिसे शायद ही कोई देखना चाहता।
लेकिन, ठीक उसी खंडहर के सामने एक 20 साल की लड़की खड़ी थी। उसकी आंखें उस जले हुए घर पर टिकी थीं, जो कभी उसका परिवार था। लड़की ने आपने पूरे बदन को पूरी तरह से खुद को ढक रखा था। उसने लंबी आस्तीन वाले कपड़े पहने थे, और गरमी के बावजूद भी उसने अपने दुपट्टे को कसकर अपने गले के चारों ओर लपेट रखा था। उसके खुले बाल उसकी कमर तक लहरा रहे थे, लेकिन उन्होंने उसके चेहरे का एक हिस्सा भी ढक रखा था, खासकर उसके गाल की एक तरफ।
लड़की ने उस घर को देखा, जहां उसकी यादें बसी हुई थीं। उसकी आँखों में गहरी उदासी और गुस्सा झलक रहा था। वह घर को देखते हुए धीरे-धीरे खुद से बुदबुदाई, "15 साल... 15 साल हो गए, मम्मी उस हादसे को 15 साल बीत गए, पर आज तक हम ये पता नहीं लगा पाए कि आखिर वह कौन था जिसने मुझे आपसे, पापा से, और हमारी सारी खुशियों से हमेशा के लिए छीन लिया।"
उसकी आवाज में दर्द और बेबसी साफ झलक रही थी। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वह खुद को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रही थी। लड़की ने गहरी सांस ली, और फिर एक नजर उस खंडहर पर डालते हुए मन ही मन संकल्प लिया कि वह उस रात के पीछे छिपे राज़ को जरूर उजागर करेगी।
"हो न हो, एक न एक दिन हम उसका पता लगाकर रहेंगे," यह कहते हुए वह लड़की, जिसका नाम मिश्री था, अपनी आँखों में आए आँसू पोंछकर खंडहर की ओर आखिरी बार देखती है और वहां से चल पड़ती है।
वह अपने घर जाने के बजाय सीधे गंगा घाट की ओर चली गई। घाट पर पहुँचते ही उसने चारों ओर देखा—हर जगह शांत और वीरान माहौल था। अंधेरे में ही वह घाट के किनारे बैठ गई, उसकी आँखें नदी की शांत लहरों पर टिकी थीं, मानो वो कुछ सोच रही हो।
तभी, वहां से गुजरते हुए एक पंडित जी ने उसे घाट पर अकेले बैठे देखा। पंडित जी ने उसे पहचान लिया और आवाज लगाई, "अरे मिश्री बिटिया, इतनी रात को तुम यहां क्या कर रही हो?"
मिश्री ने उनकी आवाज सुनते ही उनकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "कुछ नहीं, काका। बस मन नहीं लग रहा था, तो यहां आकर बैठ गई।"
पंडित जी ने मिश्री की ओर देख कर एक समझ भरी मुस्कान दी और बोले, "हां बिटिया, पर जल्दी चली जाना। वैसे भी रात का वक्त होने वाला है, अकेले मत रहना यहां।"
मिश्री ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी, काका। जरूर।"
इसके बाद पंडित जी वहां से चले गए, लेकिन मिश्री अब भी घाट के किनारे बैठी रही, अपनी ही सोचों में खोई हुई।
वही घाट पर बैठी हुई मिश्री अपने हाथ में बंधी हुई एक ताबीज को ध्यान से देखने लगी। ताबीज को देखते ही उसके गमगीन चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। उसकी आँखों में अतीत की यादें तैरने लगीं, और वह उन पुराने पलों में खो गई, जो अब सिर्फ उसकी यादों में बचे थे।
फ्लैशबैक
पांच साल का एक प्यारा सा लड़का, जिसका नाम चिराग था, मिश्री के हाथ में ताबीज बांध रहा था।
मासूमियत से मिश्री ने चिराग की ओर देखा और बोली, "यह क्या? ये तो आपका ताबीज है, चिराग बाबू। तो आप हमें क्यों दे रहे हैं?"
चिराग ने मुस्कुराते हुए मिश्री के कलाई पर ताबीज बांधते हुए कहा, "अरे, मैं तो लड़का हूँ न, इसलिए अपनी सुरक्षा खुद कर सकता हूँ। लेकिन अब तो मैं यहां से जा रहा हूँ, इसलिए अपनी ताबीज तुम्हें दे रहा हूँ। तुम्हें अपनी केयर करनी होगी, समझी? और हाँ, मुझे भूलना मत। मैं जल्दी वापस आऊंगा, पक्का!"
मिश्री ने मुंह बनाते हुए कहा, "हम तो आपको कभी नहीं भूलेंगे, पर आपका भरोसा नहीं है। अगर आप हमें भूल गए तो?"
यह सुनकर चिराग ने उसकी ओर शरारत भरी नज़रों से देखा और आत्मविश्वास से बोला, "हरगिज़ नहीं! मैं तो मरते दम तक तुम्हें नहीं भूलूंगा।"
चिराग की बातों पर मिश्री कुछ न कह सकी, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान जरूर थी। तभी अचानक, चिराग की तरफ से आवाज आई, "अच्छा, अब मैं चला। बाबा सा हमें बुला रहे हैं।" यह कहते ही चिराग जल्दी से भागता हुआ वहां से चला गया।
मिश्री उसे जाते हुए देखती रही, उसकी नन्हीं आँखों में उदासी तैर रही थी। चिराग सीधे जाकर कई गाड़ियों में से एक में बैठ गया, जहाँ उसकी फैमिली भी बैठी थी। फिर धीरे-धीरे गाड़ियों का काफिला वहां से निकल गया।
मिश्री ने चिराग को जाते हुए देखा और उसकी आँखों में आँसू भर आए। वह वहीं खड़ी रही, उसकी नजरें चिराग को दूर जाते हुए देखती रहीं। उसके हाथ की कलाई पर बंधा ताबीज उसे उस वादे की याद दिला रहा था। उसने अपनी कलाई की ताबीज को छूते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हम आपको कभी नहीं भूलेंगे, चिराग।"
फ्लैशबैक में खोई हुई मिश्री, अपनी कलाई पर बंधी ताबीज को देख रही थी। वह उन पुरानी यादों में डूबी हुई थी, जब चिराग ने उसे ये ताबीज दी थी। खुद से बुदबुदाते हुए उसने कहा, "आपने कहा था कि आप वापस आएंगे, लेकिन देखिए, समय के साथ सब बदल जाता है। 15 साल बीत गए, और इन सालों में आपने एक बार भी पलटकर इस शहर की ओर नहीं देखा।"
इतना कहकर मिश्री अपने विचारों से बाहर निकली और धीरे-धीरे उठ खड़ी हुई। थोड़ी देर बाद वह अपनी हवेली पहुँची
शेरावत महल में …
जहां पर अद्रिका किचन में आकर के सब की आज रात का खाना बनाने की तैयारी करने लगी थी । उसे और इस तरह से काम करता देखा सारे नौकर लाइन से खड़े थे।
उसे रोकते हुए एक नौकर ने कहा “ बड़ी मालकिन! यह क्या कर रही है आप, बड़ी मालकिन प्लीज ऐसा मत करिए अगर महल में कोई आ गया और किसी ने देख लिया कि आज का खाना आप इस तरह से बना लिया, हम लोग की शामत आ जाएगी।”
अद्रिका सभी नौकर की ओर देख उन सबको को आर्डर देते हुए बोली “ क्या कह रहे हैं आप लोग, एक तरफ से आप सब हमें मालकिन भी बोलते हैं और हमारी बातें नहीं मानते, जब हमने कहा कि हमें चुपचाप खाना बनाने दीजिए, बनाने दीजिए ना हमें और आप सब जाइए जाकर के बाकी का काम करिए आज महल में खाना हम बनाएंगे।”
जिस पर एक नोकर डरते हुए कहा “ प्लीस मालकिन थोड़ी बात मानिए अगर हुकुम सा या , रीदांक्ष बाबा ने देख लिया वह हम सबको काम से निकाल देंगे ।”
जिस पर अद्रिका ने कहा “कुछ नहीं होगा, हम होने वाली बहू है इस महल के , और उन में से कोई हमारी बात भला न माने ऐसा हो सकता है क्या, वो किसी को भी कोई काम से नहीं निकालेंगे। चुपचाप आप सब जाइए अपना काम करिए और हमें अपना काम करने दीजिए अगर अब आप लोगों ने हमारी बात नहीं मानी तो हम सच दादा सा के कहने से, पहले हम आप सब को आपके काम से निकाल देंगे ।”
जहां यह सब सुनकर नौकरों उन सबको अद्रिका की बात माननी पड़ी और वह सब अपने-अपने काम के लिए चले पर कुछ नौकरानियां मदद के लिए वहां पर मौजूद थी और वो सब उसके काम में मदद कर रही थी और हाथ बता रही थी कि तभी एक नौकरानी ने अद्रिका से कहा “ एक बात पूछे आपसे बड़ी मालकिन !”
जिस पर अद्रिका ने काम करते हुए बोली - “ पूछिए।”
नौकरानी ने कहा “ हम सब इतने सालों से यहां पर काम कर रहे हैं यहां पर सिर्फ मर्दों के अलावा कोई औरत नहीं है तो इन सबके अकेले आप रह लेंगी, जहां पर कोई औरत ही ना हो।”
ये सुन एक पल रुक कर अद्रिका ने जवाब देते हुए कहा “ आप भूल रहीं है की, इस महल में सिर्फ मर्द ही नहीं, एक औरत ओर है और शांभवी वो भी यहां पर है ना ।”
जिस पर नौकरानी ने कहा “ नहीं, वो भले ही यहां के लाडली राजकुमारी है पर हुकुम सा अपनी खानदानी दुश्मनी के चलते उनको भी, इतने सालों से विदेश में रखा है उनकी पढ़ाई के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए और वैसे भी अगर आपकी शादी के बाद वो आ भी गई, कुछ वक्त बाद क्या पता उनकी भी शादी हो जाए और वो भी अपने ससुराल चली जाए, तब आप फिर अकेले पड़ जाएंगे ना, बड़ी मालकिन।”
इस पर अद्रिका ने कहा “ वो है, भले ही कुछ पल के लिए हमें शांभवी का साथ मिले पर वो भी चली जाएंगे पर यह मत भूलिए कि इस महल में 5 ओर लोग भी हैं रीदांक्ष के बाद उनके वो पांच लाडले बिगड़े हुए भाई भी हैं और आने वाले वक्त में उनकी भी शादी हो जायेगी, उनकी भी पत्नी आएगी, तब फिर से यह महल में हरा भरा हो जाएगा ना, तब कहां रहे हम सिर्फ अकेले तब हमारी इतनी पांच देवरानीया हो जाएंगे और हम इस महल की बड़ी बहु रानी यहां हमारा हुक्म होगा उन सभी पर, सोचिए कितना मजा आएगा तब, जब यह महल फिर से पहले जैसा हरा भरा हो जाएगा और इस सुनसान सन्नाटे की जगह पर लोगों की चहल पहल होगी।”
वो सब सुन नौकरानी ने कहा “ हां वो आपने सही कहा बड़ी मालकिन पर हमें नहीं लगता कि हमारे जो पांच राजकुमार है और उनके जो लक्षण है उनको देखकर कोई लड़की भला शादी करना चाहेगी भी क्योंकि सब एक से बढ़कर के एक जो हैं।”
यह सब सुनकर अद्रिका नाराज होते हुए नौकरानी से बोली “ आप ऐसा कैसे बोल सकती हैं हमारे होने वाले देवर के बारे में, क्योंकि जिंदगी में कभी कोई लड़की नहीं आएगी, इतने भी भोले नहीं है वो सब ।”
नौकरानी सर झुकाते हुए बोलीक्ष” माफ करें बड़ी मालकिन पर क्या करें पूरा राजस्थान जानता है कि शेरावत खानदान के पांच राजकुमार कैसे हैं और वो सब जानते हुए भला ओर कौन ही अपनी बेटी का हाथ इन पांचो में से किसी एक को देगा, जो सच है वही सच हमने बोला है ।”
ये सुनकर एक पल के लिए अद्रिका भी सोच में पड़ गई और उसने आगे कहा “ हां यह तो है पर फिलहाल मत भूलिए कि इस महल में इतने सालों से कोई औरत नहीं है और बिना औरत के, बिना उसकी परवरिश की, तो इन सब का ऐसा होना लाजमी है तो चिंता मत करिए, एक बार हम यहां पर आ गए, रीदांक्ष जी की पत्नी बनकर तो हम उन पांचों को सुधार देंगे ।
और वैसे भी यह मत भूलिए की इन पांचो में तीन ही थोड़े बिगड़े हुए और जिद्दी किस्म के हैं बाकी सबसे छोटे वाले वो त्रिशूल और सत्या वो दोनों इतने भी बिगड़े नहीं है उन दोनों में बचपना तो कूट-कूट कर भरा है और जो अपने बड़े भाई सा के भक्त भक्त को इतनी भी होते नहीं है, फिलहाल अगर कोई है तो वो है बहुत जिद्दी और वो है दर्शन जो एक बार जो चीज ठान लेता हैं वो करके ही रहते हैं,
इस पर नोकरानी बोली “ अब पता नहीं आप ही देख लीजिए इस समय रीदांक्ष और दादा सा की गैर मौजूदगी में पता नहीं, ये पांचो कहां होंगे और दर्शन पता नहीं कहां अपनी जीद पूरी कर रहे होंगे ।”
जहां इस वक्त अद्रिका और नौकरानी आपस में पांचो भाइयों की बातें कर ही रही थी।
हवेली में दाखिल होते ही मिश्री ने देखा कि हॉल के बीचों-बीच कजरी खड़ी थीं, जो शायद उसका इंतजार कर रही थीं। गोल्डन साड़ी में लिपटीं कजरी की नजर जैसे ही मिश्री पर पड़ी, उनके चेहरे पर राहत भरी मुस्कान आ गई, लेकिन लहजा वही सख्त था।
"कहाँ चली गई थी, मिश्री? और ये भी कोई वक्त है आने का? तुम्हें होश भी है कि तुम कितनी देर तक बाहर रहती हो?" कजरी ने तेज स्वर में कहा।
मिश्री ने हल्की मुस्कान के साथ कजरी के पास जाकर उन्हें गले लगा लिया। "बस भी करिए, बड़ी मासा! और कितनी फिक्र करेंगी हमारी? हम तो हमेशा टाइम पर ही आते हैं। अगर इतनी ही चिंता करनी है, तो अपने उस लाडले की करिए, जो कब कहाँ जाता है, किसी को कुछ पता ही नहीं चलता।"
"अच्छा, बहुत हो गई तेरी बातें। अब चल, खाना खा ले।" कजरी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।
डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ते ही उनकी नजर मिराक्ष पर पड़ी, जो पहले से ही वहाँ बैठा था। मिश्री को देखते ही उसने चुटकी ली, "लो, कबाब में हड्डी आ ही गई!"
मिश्री ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा, "हाँ हाँ, हमें भी कोई शौक नहीं है तुम्हारे सामने बैठने का। बस मासा ने बुला लिया, वरना हम तो अपने कमरे में आराम कर रहे होते।"
मिराक्ष ने मुस्कुराते हुए खाना परोसते हुए कहा, "वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दें, वो हमारी मासा हैं, तुम्हारी नहीं!"
मिश्री ने कजरी का हाथ पकड़ते हुए उन्हें अपने पास बैठा लिया और मिराक्ष को चिढ़ाते हुए बोली, "हाँ हाँ, उन्होंने हमें जन्म नहीं दिया, लेकिन हमें बचपन से पाला-पोसा है। जितना हक उनका तुम पर है, उतना ही हम पर भी है। ज्यादा अपना-पराया मत किया करो, नहीं तो हमने संस्कृति को बता दिया, फिर अपनी होने वाली बीवी से डंडे खाने के लिए तैयार रहना!"
संस्कृति का नाम सुनते ही मिराक्ष ने उसे घूरा, "कोई जरूरत नहीं उसे कुछ भी बताने की!"
मिश्री ने कजरी से शिकायत करते हुए कहा, "देखिए मासा! ये आपके सामने तो शेर बनते हैं, लेकिन संस्कृति के सामने बिलकुल भीगी बिल्ली हो जाते हैं!"
कजरी ने हल्का हँसते हुए मिराक्ष की ओर देखा और बोलीं, "अच्छी बात है, कम से कम किसी से तो डरते हैं। और वैसे भी, संस्कृति पर हमें पूरा भरोसा है कि वो हमेशा मिराक्ष का साथ देगी और उसे सही राह दिखाएगी।"
मिराक्ष ने एक कौर खाते हुए कहा, "मासा, ऐसी बातें मत किया करिए! हम अभी से कह रहे हैं, आप और संस्कृति दोनों ही हमेशा हमारे साथ रहेंगी। कोई हमसे दूर नहीं होने वाला!"
इसके बाद, हल्की-फुल्की नोकझोंक के साथ तीनों ने साथ बैठकर खाना खाया,
जयपुर
वहीं दूसरी तरफ छोटे से घर के बाहर आकर के कई सारी गाड़ियां आकर के रुकी जिसमें से ड्राइवर सीट पर बैठे हुए शक्स ने कहा “ लीजिए दर्शन जी आ गए अपकी मंजिल, अब चलिए चलकर थोड़ा अंदर दस्तक भी दे के आते हैं आखिरकार इन लोगों ने आपकी बात को इनकार करने की इतनी बड़ी गलती की है अब थोड़ा तो उनको उसका अंजाम मिलना बनता है ना।”
जिस पर उसके बगल वाली सीट पर बैठे हुए दर्शन जिसकी आंखों में गुस्सा साफ नजर आ रहा था उसके हाथों की मुट्ठियां बंधी हुई थी और माथे गर्दन पर गुस्से की वजह से ऊपरी हुई नशे साफ-साफ दिख रही दे रही थी और वो एक झटके में अपनी जीप से उतरते हुए उसे घर के बाहर आकर के गुस्से से कहा “ यह अपने अच्छा नहीं किया, आपने हमारी बात इनकार करने की कोशिश की है, अब देखिए इसका क्या अंजाम होता है।”
इतना बोल दर्शन उसे घर के अंदर चल गया, उसके साथ आए हुए उसके सारे गार्ड भी एक लाइन से उस घर के बाहर ही उस घर को चारों तरफ से घैर कर खड़े हो गए।
वहीं घर के अंदर जहां शायद मेहमान आए हुए थे और वहीं मेहमान नवाजी हो रही थी और वहां का नजारा देखकर के लग रहा था शायद किसी लड़की को देखने लड़के वाले आए हुए थे, वही एक आदमी जो जो मेहमानों आए हुए मेहमानों की खातिरदारी में लगा हुआ था और जैसे ही उसकी नजर दरवाजे पर खड़े गुस्से से आज बाबूलाल दर्शन पड़ गई ।
तो मानो उसकी सास गले में ही अटक गई उसके हाथ में पड़ी हुई नाश्ते की प्लेट छूट कर जमीन पर गिर गई तो वहीं उसे इस तरह से डरा सहमा देख वहां मौजूद बाकी सब की नजर भी दरवाजे की उड़ गई।
दरवाजे की ओर देख आए हुए मेहमानों को तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा पर वहां मौजूद घर वाले उनके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था ।
दर्शन अंदर आते हुए अपनी हाथ में पड़ी हुए बंदूक को लोड करते हुए आगे बढ़कर उस आदमी के सिर पर रखते हुए गुस्से से कहा “ मैंने कहा था ना कि वो सिर्फ मेरी है, तो तेरी हिम्मत कैसे हुई उसकी शादी कहीं ओर करवाने की या उसके लिए लड़के देखने की ।”
जहां दर्शन का यह रूप देखकर वो आदमी बहुत ज्यादा डर गया, उसकी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि तभी दो हाथों ने दर्शन की कॉलर को पकड़कर खींचते हुए अपनी ओर घुमा दिया और उसके गाल पर जोर को झापड़ झड़ते हुए जड़ दिया।
जिससे दर्शन का सर एक ओर झुक गया।
वही दरवाजे पर खड़े उसके गार्ड ये देखकर जैसे ही जल्दी से अंदर आते हुए वहां मौजूद एक शख्स पर बंदूक तानकर खड़े हो गए पर दर्शन ने उन सभी को हाथ दिखा करके रोक दिया और अपना गर्दन करते हुए सामने खड़ी उसे लड़की को देखा,
जिसने उसे अभी-अभी झापड़ मारा था उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था वो बेहद गुस्से में लग रही थी पर उसे गुस्से में भी उसकी एक अलग ही खूबसूरती छाई हुई थी, खुबसूरत आंखें घनी पलके और दूध जैसा उसका बदन और उसे व्हाइट कलर की अनारकली सूट में बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही थी।
उसके सामने खड़ी उस लड़की की खूबसूरती को देख दर्शन, जिसे उसकी इस हरकत पर गुस्सा आना चाहिए था पर उसके उलट चेहरे पर देख स्माइल लिए उसे एक तक देखने लगा।
तो वही दर्शन की इस हरकत को देख वो लड़की दर्शन की कॉलर को पकड़ते हुए बोली “ आपको एक बार में समझ नहीं आया, हमनें आपसे कहा था ना कि हमारी जिंदगी से चले जाइए, छोड़ दीजिए हमारा पीछा, क्यों पड़े हैं हमारे पीछे, क्यों हमे सकुन से जीने नहीं दे रहे हैं, आप फिर से यहां पर आ गए ।”
तो उसके इन सवालों पर दर्शन ने बस छोटा सा जवाब देते हुए कहा “ प्यार करते हैं आपसे !”
और यह बोल उसके चेहरे पर फिर से मुस्कुराहट आ गई।
तो वही वह आदमी अपनी बेटी की इस हरकत को देख उसे पीछे करते हुए कहा “ प्रथा बिटिया यह तुमने क्या किया, तुमने कुंवर सा पर हाथ उठा दिया, अरे तुम्हें पता है ना अगर इस बारे में शेरावत खानदान को पता चला कि तुमने उनके भाई पर हाथ उठाया है, तो वो हम सबको रातों-रात गायब कर देंगे ।”
जिस पर प्रथा ने भी गुस्से से कहा “ तो अच्छा तो है ना बाबा, कर दे गायब वैसे भी इस घुटन भरी जिंदगी से हम तंग आ चुके हैं, जहां हम चैन की सांस भी नहीं ले सकते, जहां इस इंसान ने हमारा चैन हराम कर दिया है, ना हम बाहर सकुन से जा सकते हैं, ना हम घर के अंदर सुकून से रह सकते हैं, तो उससे अच्छा है कि हम एक बार में ही खत्म हो जाए, कम से इस सनकी इंसान से छुटकारा तो मिलेगा ।”
इतना कुछ बोलने के बाद प्रथा आगे और कुछ बोल पाती कि तभी दर्शन उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा “ नहीं हमने कहा था ना, कि आप सिर्फ हमारी हैं हमारे सिवा आप पर किसी का हक नहीं, किसी का हक नहीं मौत का भी नहीं, ऐसे कैसे इतनी आसानी से आपको हम अपनी जिंदगी से चले जाने दे हरगिज नहीं, हमने आपको वक्त दिया था कि आप हमें जाने, हमें समझे और हमें प्यार करें पर नहीं उसके बावजूद भी आप हमसे दूर रही हमारे बारे में हमारे नजदीक आने की कोशिश भी नहीं की, पर कोई ना अगर आप की तरफ से प्यार नहीं, हमारा एक तरफा प्यार ही बहुत है हमारे इस रिश्ते के लिए,,,
बस भले ही आपको हमसे जितनी नफरत करनी है कर लीजिए पर हमारा प्यार और बढ़ता रहेगा आपके लिए और हां हमसे बचने के लिए इन फालतू लोगों को बुलाना बंद कर दीजिए क्योंकि हम आपकी शादी कहीं और किसी भी हाल में होने नहीं देंगे, आप सिर्फ हमारी हैं सिर्फ हमारी ।”
और यह बोल दर्शन ने वहीं बैठे आए हुए मेहमान में जो लड़का था उसके पैर पर गोली चला दी और यह देख उस लड़के के मुंह से चिख निकल गई
उसके बाद दर्शन ने उस लड़की के बाप से कहा “ और हां सुन लीजिए आप आइंदा से अगली बार से मेरी इजाजत के बिना फिर से ऐसी कोई हरकत की ना, सच कह रहा हूं इस बार सिर्फ खाली हाथ जा रहा हूं। अगली बार मुझे देर नहीं लगेगी अपनी प्रथा को अपने साथ ले जाने में, बस एक बार दादा सा को आने दीजिए, फिर जल्दी ही हम हमारी शादी के बारे में बात करेंगे और उसके बाद पूरी रीती रिवाज से हमारी और प्रथा की शादी होगी और प्रथा हमारी होंगी।”
ये बोलते हुए दर्शन की आंखों में एक अलग ही दीवानगी नजर आ रही थी मानो वो प्रथा को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता हो ।
वही प्रथा जिसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था, जिसे दर्शन की कही गई किसी भी बात से कोई फर्क ही नहीं पढ़ रहा हो, उसके चेहरे पर दर्शन के लिए नफरत साफ नजर आ रही थी।
उसके बाद दर्शन वहां से चुपचाप चला गया।
वही उस आदमी ने लड़की के पिता जिनका नाम धीरेंद्र कश्यप था उन्होंने आए हुए मेहमानों के सामने हाथ जोड़ करके माफी मांगते हुए कहा “ हमें माफ कर दीजिए, आपकी बेटे के पैर के इलाज हम करवा देंगे पर हम यह रिश्ता नहीं कर सकते।”
वही आए हुए मेहमानों पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था जिनमें से उस लड़के के बाप ने कहा ‘ हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है वैसे भी आज तुम्हारी बेटी के वजह से मेरे बेटे के पैर में यह गोली लगी है, हम इसका हिसाब लेकर के रहेंगे।”
इतना बोलकर वो आदमी अपने बेटे को और परिवार के साथ वहां से चला गया।
और दर्शन घर से बाहर आते ही अपनी गाड़ियों में बैठ गया और उसके सारे गार्ड भी अपनी गाड़ी में बैठ गए ।
ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए शख्स ने कहा “ वाकई मनना पड़ेगा आपका प्यार कुछ ज्यादा ही परवान नहीं चढ़ रहा है, यह जानते हुए कि वो लड़की आपको रत्ती भर भाव नहीं देती, आपसे इतनी नफरत करती है उसके बावजूद भी आप उसके पीछे इतने पागल है ।”
जिस पर दर्शन ने ड्राइविंग सिट पर बैठे हुए अपने खास आदमी से कहा “ रजत तुम भी जानते हो की शुरू से लेकर आज तक दादा सा भाई सा ने हमारी हर जिद को पुरा किया है और शायद यही वजह है कि हम इतनी जिद्दी हैं और हमें जो चीज पसंद आती है वो हम किसी भी कीमत पर हासिल कर लेते हैं , और प्रथा भी उन्हीं में से एक है, भले ही प्रथा हमें ना पसंद करती हो कोई बात नहीं पर हमारा उन्हें पसंद करना ही काफी है और देखिएगा बहुत जल्द वो हमारी होगी, हमारी पत्नी प्रथा दर्शन सिंह शेरावत ।”
यह बोलते हुए दर्शन के चेहरे पर एक जंग जीत लेने वाली मुस्कुराहट थी।
वही उसकी इस मुस्कुराहट को देख रजत ने खुद में बुदबुदाते हुए कहा “ आखिर पता नहीं क्या होगा इस दीवानें का दिन पर दिन यह प्रथा के लिए पागल होता जा रहा है, भगवान ही बचाए प्रथा को इस जिद्दी इंसान से !” इतना बोलकर रजत ने गाड़ी स्टार्ट कर ली।
दूसरी जगह एक फैक्ट्री वहां पर सारे वर्कर्स जो अपनी जगह चुपचाप डरे सहमे में खड़े थे वहां का सारा काम थोप पड़ा हुआ था, कुछ चीज इधर-उधर बिखरी हुई थी ।
वही ठीक उस फैक्ट्री के हाॅल के एकदम बीचो बीच जहां पर एक शख्स चेयर पर किसी राजा की तरह बैठा हुआ था और ठीक उसके आसपास कई सारे गार्ड की लाइन लगी हुई थी।
ठीक उस शख्श के सामने घुटने के बाल एक आदमी हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा “ वेधांत मलिक, बस कुछ दिन का समय दे दीजिए, मैं जल्दी आपका कर्जा लौटा दूंगा, इस बार भी धंधे में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है इसलिए मैं आपका यह कर्ज दे नही कर पाया हूं, हमें बस थोड़ा सा और वक्त दे दीजिए।”
जिस पर सामने उस चेयर पर बैठे हुए वेधांत जिसका ओरा इतना खतरनाक था कि वहां मौजूद सभी लोग उससे डरे सहमे हुए थे उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था वो अपने हाथ में पकड़ी हुए बंदूक के साथ उसे घूमाते हुए खेल रहा था और अपने सामने बैठे हुए आदमी के बातों को सुन रहा था।
फिर वेधांत ने कहा “ और कितना समय चाहिए तुम्हें, इतना समय दे दिया है मैंने पर अब नहीं, अब मुझे आज अपना पैसा वापस चाहिए वरना इस फैक्ट्री को मेरे नाम करो।”
यह सुन वो आदमी रोते हुए वेधांत के पैर पकड़ करके कहा “ मालिक थोड़ा सा रहम करिए, यह फैक्ट्री मेरी रोजी रोटी है अगर मैं इसे आपके नाम कर दिया तो मैं रास्ते पर आ जाऊंगा, मेरे बीवी बच्चे सब भूखे मर जाएंगे, थोड़ा रहम करिए।”
जिस पर वेधांत गुस्से से उस आदमी के बाल को पकड़कर उसके सर को अपनी ओर करते हुए कहा “ आई डोंट केयर! मुझे नहीं फर्क पड़ता कि तुम लोग भूखे मरो या जिओ या रास्ते पर जाकर कटोरी लेकर भीख भी मांगो पर आज आज या मेरे पैसे दे दो या फिर इन पेपर्स पर साइन कर दो।”
उसके इतना बोलते ही पास खड़ा वेधांत ने अपने पीछे आवाज देते हुए कहा “ राज पेपर लेकर आओ!”
इतना सुनते ही उसका खास आदमी राज जो हाथ में डॉक्यूमेंट लिए वेधांत के हाथ में थमा दिया और वेधांत वो पेपर उस आदमी के सामने करते हुए कहा “ साइन करो इस पर!”
जिसमें वो आदमी कई बार वेधांत के आगे हाथ जोड़कर उसे मनाने की कोशिश किया पर वेधांत जो पूरी तरह से उसके सामने कठोर बना हुआ था मानो उसकी उसे आदमी के आंसुओं से वेधांत को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो और आखिर में मजबूर में उस आदमी को साइन करना ही पड़ा।
साइन होने के बाद वेधांत उस डॉक्यूमेंट को देखकर वेधांत के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान आ गई और वो अपनी जगह से उठाते हुए उन डॉक्यूमेंट को फाड़ते हुए राज से कहा “ इस जगह को खाली करवाओ और जला दो!”
जहां यह सुनकर राज पूरी तरह से हैरान रह गया कि क्या वेधांत सच में ऐसा कर रहा है, एक तो उसने इतनी मुश्किल से इस फैक्ट्री को अपने नाम करवाया और अब इस फैक्ट्री को जलाकर राख कर रहा है।
जहां ये सोच राज ने एक बार फिर कंफर्म करने के लिए वेधांत से कहा “ आर यू सिरियस सर! क्या सच में ,”
जिस पर वेधांत रुक कर पीछे मुड़ते हुए राज को अपनी ठंडी निगाहों से देख कहा “ क्या सुनाई नहीं दिया कि मैंने क्या कहा!”
यह सुनते ही राज जल्दी से हां मे अपना सिर हिलाते हुए कहा “ ओके !”
जिसके बाद वेधांत वहां से बाहर जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया।
वही राज और बाकी की गार्ड ने 2 मिनट में उस फैक्ट्री को पूरी तरह से खाली करवा दिया था सारे वर्कर और वो आदमी उस फैक्ट्री के बाहर खड़े थे और पल भर में ही सारे गार्ड ने उस फैक्ट्री को केरोसिन डाल करके हर तरफ से आग लगा दिया और यह सब देख उस फैक्ट्री का वो मालिक वहीं जमीन पर बैठकर फूट फूटकर रोने लगा।
और फिर वेधांत अपने गार्ड के साथ उस जगह से चल दिया।
दूसरी तरफ एक बंजारन बस्ती ,,।
जहां पर हर तरफ सिर्फ नाचे और गाने की ही आवाज आ रही थी जहां पर हर एक घर पर हर एक बंजारन सिर्फ अपनी नाच कर रिहर्सल कर रही थी, कोई अपनी आवाज का,,
वही ठीक एक बड़े से कोठरी के आगे कई सारी गाड़ियां लाइन से खड़ी थी और ठीक गाड़ी के पास दो लड़के खड़े थे और आसपास की बंजारन के पास से गुजरते हुए उन्हें देखते हुए जा रही थी।
और ये सब देखकर वो दोनों ही लड़के बस सहमे हुए नजर आ रहे थे मानो उनके सामने वो औरतें नहीं जैसे कोई राक्षस हो, जो उन्हें खा जाएंगे ।
तभी एक लड़के ने कहा “ त्रिशूल अब हम क्या करें, यह तनिष्क का बच्चा इतनी देर से अंदर गया हुआ है और अभी तक बाहर नहीं आया और हम लोग यहां उसके इंतजार में इतनी देर से खड़े हैं आखिर समझ नहीं आ रहा है कि अब हम करें तो करें क्या ।”
जिस पर त्रिशूल ने कहा “ ये बात आपने सही की सत्या पर अब क्या कर सकते हैं इंतजार के अलावा क्योंकि तनिष्क है ही ऐसे कि उनको ना अकेला छोड़ा जा सकता है और ना ही उनके साथ हम लोग अंदर जा सकते हैं, अब हम खुद परेशान है कि आखिरकार क्या करें।”
त्रिशूल ने आगे कहा “ हां वह है पर एक काम करते हैं ना, हम दोनों चले ना अंदर चलकर तनिष्क को बुला लेते हैं वैसे भी इतनी देर हो गए वो अभी तक नहीं आए हैं ।”
सत्या अपनी आंखें बड़ी करके उसे देखते हुए कहा “ नहीं नहीं हम ऐसी जगह बिल्कुल कदम नहीं रखेंगे वो तो तनिष्क के लिए, हम यहां पर आ गए ताकि समय पर हम लोग के साथ वो वापस महल चल सके वरना हम इस जगह पर कदम भी ना रखें।”
त्रिशूल ने कहा “ हां-हां वो सब ठीक है पर आप इस जगह को इतना बुरा भी मत बनाइए , यह बंजारन बस्ती है, ना की कोई तवायफ की बस्ती, जो यहां पर आकर हम दोनों पूरी तरह से अशुद्ध हो जाए।”
जिस पर सत्या ने कहा “ हां हां भले ही यह बंजारन बस्ती है पर यह मत भूलिए की यहां पर औरतों और लड़कियां भी है ना और आपको याद है ना भाई सा ने साफ मना किया है और लड़कियों से दूर रहना है, बस हम भाई सा के रूल को फॉलो कर रहे हैं और इन लोगों से दूरी बनाए हुए हैं , आपको क्या लगता है अगर हम दोनों अंदर जाएंगे, क्या वहां बच पाएंगे वहां पर और न जाने कितनी सारी लड़कियां होंगी और वो सब हम दोनों भाइयों के करीब आ गई ।
तब भाई सा से किया हुआ वादा भी टूट जाएगा और हम उनसे नजर भी नहीं मिल पाएंगे इसलिए हमे ऐशा बिल्कुल नहीं करेंगे तनिष्क भाई सा को बाहर आने में जितना समय लेना है ले ले पर हम अंदर नहीं जाएंगे हम चले कार के अंदर बैठने।”
इतना बोलकर सत्या जाकर की गाड़ी में बैठ गया।
यही सब देखकर त्रिशूल अपना सर पकड़ते हुए कहा “ यह और भाई सा का भक्त , इसका बस चले अगर भाई सा इसे कह दे कि हां रात नहीं दिन है ये दिन समझ करके काम में लग जाए, पता नहीं क्या होगा इसका?”
इतना बोलकर त्रिशूल भी वही गाड़ी के अंदर जाकर के बैठ गया।
वहीं उस कोठरी के अंदर जहां पर सारे बॉडीगार्ड लाइन से खड़े थे पर उस वक्त उन सब का चेहरा दरवाजे की तरफ था, ठीक वही सामने एक सोफा जहां पर तनिष्क किसी राजा की तरह बैठा हुआ था और ठीक उसके सामने एक गोलाकार के बड़े से सोफे में जिसमें एक लड़की हाथ में वीणा लिए उस बजाते हुए मधुर गीत गा रही थी और उस आवाज को सुनते हुए तनिष्क बस आंख बंद करके उन आवाजों में खोया हुआ था ।
तनिष्क बस उस मधुर आवाज में खोया हुआ था कि तभी अचानक उसके कान में वो मधुबन धुन आना बंद हो गई और जैसे ही यह हुआ उसने अपनी आंखें खोल कर सामने कि ओर देखा,, जहां बड़े से सोफे पर बैठी उस लड़की ने अपना गाना खत्म कर दिया था और यह देख तनिष्क अपनी जगह से उठते हुए ताली बजाते हुए उस लड़की की ओर कदम बढ़ाते हुए कहा “ वाह मानना पड़ेगा आवाज हो तो आपके जैसे इतनी सुरीली, इतनी अच्छी है कि दुनिया भर के शोर शराबो से कोई परेशान इंसान को सिर्फ आपके पास आकर आपकी इस आवाज को सुनकर ही सुकून मिल सकता है अमृत ।”
सामने बैठी वो लड़की जिसका नाम अमृत था जिसके लंबे काले बाल जिसके उसने चोटी बना रखी थी जो कमर तक लंबी थी और उसने व्हाइट और रेड कलर के कॉन्बिनेशन का एक बॉर्डर वाला लहंगा चुनरी पहना हुआ था आगे से कुछ लटे उसके गालों को छु रही थी माथे पर लाल बड़ी सी बिंदी, आंखों में सुरमा जिसमे वो भला की खूबसूरत लग रही थी।
तनिष्क आगे आते हुए जैसे ही अमृत के हाथ को थाम कर आगे करते हुए खुद अपना सिर झुकाकर जैसे ही अमृत के हाथ को अपने होठों से छूने वाला था कि तभी अमृत ने झट से अपना हाथ पीछे खींच लिया।
और यह देख अमृत की इस हरकत से तनिष्क अपनी नजर उठा कर अमृत को देखने लगा जैसे वो आगे जानना चाहता हो कि आखिरकर उसने ऐसा क्यों किया? अपना हाथ पीछे क्यों कर लिया?
उसके बाद आकर अमृत ने कहा “ माफ करें कुंवर सा पर यह मत भूलिए कि आप महल के रहने वाले कुंवर सा और हम इस बंजारन बस्ती के बंजारन इस तरह से आपका हमें हाथ लगाना शोभा नहीं देता, आप हमारा गीत सुनने के लिए यहां तक आते हैं यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। अब हमारा काम खत्म हुआ अब आप जा सकते हैं कुंवर सा।”
जिस पर तनिष्क एक बार फिर अमृत का हाथ पकड़ कर आगे खुद के करीब करते हुए कहा “ जब हम यहां आने में कोई भेदभाव नहीं करते, तो आप क्यों हम में भेदभाव करती है अमृत, हमारे लिए सब बराबर है कोई ऊंचा नीचा नहीं है ना कोई बड़ा-छोटा है समझी आप ।”
इतना बोलते हुए तनिष्क अपने जेब से एक से हीरे से जुड़ा हुआ कंगन निकाल करके अमृत के हाथ में पहना दिया।
ये देख अमृत की आंखें हैंरानी से बड़ी हो गई और वो अपना हाथ छुड़ाते हुए कंगन निकालते हुए बोली “ यह क्या किया आपने, इतना कीमती कंगन हमें कैसे दे सकते हैं ।”
तनिष्क अमृत को रोकते हुए कहा “ रहने दीजिए आपके हाथ में ज्यादा खूबसूरत लग रहे हैं इसलिए हमने यह आपको दिया है, इसे रहने दीजिए। यह हमारी तरफ से आपके लिए तोहफा है, इसे स्वीकार कर लीजिए।”
अमृत ने कहा “पर नहीं कुंवर सा यह बहुत महंगा है, हमसे नहीं होगा , हम नहीं ले सकते यह, आप प्लीज इसे वापस ले जाइए ।”
जिस पर तनिष्क उसे आंख दिखाते हुए कहा “ हमने कहा ना, यह रखिए!”
जहां तनिष्क की उभरती हुई नसों को देख अमृत सहम सी गई और वो ना चाह कर भी उस कंगन लेना पड़ा।
इसके बाद तनिष्क ने कहा “ ठीक है अब हम चलते हैं फिलहाल अपना ध्यान रखिएगा और हां आपको याद है ना, हमारी सर्त कि हमारे सिवा आपका गाना कोई ओर नहीं सुन सकता, आप जब तक हम यहां नहीं है तब तक आप खुद को समय दीजिए बाकी यहां के लोगों को नहीं।”
इतना बोलकर तनिष्क हल्की सी मुस्कान लिए वहां से चल दिया उसके साथ उसके पीछे वहां मौजूद गार्ड भी चल दिए।
जहां बाहर त्रिशूल और सत्या दोनों ही बेसब्री से तनिष्क का इंतजार कर रहे थे उसे आता देख दोनों की जान में जान आई और तनिष्क आते ही उनकी कार की आगे वाली सीट पर बैठ गया और ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर वहां से चल दिया।
शेरावत महल
जहां महल के बाहर कई सारी गाड़ियां आकर रुकी गार्ड अपनी गाड़ी से निकलते हुए एक लाइन से खड़े हो गए एक गार्ड जल्दी से आगे आते हुए रीदांक्ष की कार का डोर ओपन किया जिसमें से रीदांक्ष अपनी गाड़ी से निकल करके महल के अंदर की ओर चल दिया।
वही महल में किचन में जहां पर अद्रिका खाना बना रही थी कि तभी एक नौकरानी भाग करके आई और आद्रिका से बोली “ छोटी मालकिन बड़े मालिक आ गए रीदांक्ष बाबा सा!”
यह सुनते ही अद्रिका के चेहरे पर बड़ी से मुस्कान आ गई और उसने कहा “ ठीक है हम यहां पर आए हैं इस बारे में रीदांक्ष जी कोई बताइएगा नहीं।”
इतना बोलकर अद्रिका किचन से बाहर निकल करके एक पीलर के पीछे छुप गई ।
वहीं पर रीदांक्ष महल में अंदर हाॅल में आया जहां पर सारे नौकर उसके आते ही एक लाइन से खड़े हो गए थे महल में चारों तरफ सन्नाटा देख रीदांक्ष रुकते हुए एक नौकर से कहा “ कि बाकी सब लोग कहां गए महल में इतना खालीपन क्यों है?”
जिस पर एक नौकर आगे बढ़ते हुए सर झुकाए हुए कहा “ बड़े मालिक आप नहीं थे ना इसलिए वो लोग महल से निकल गए ।”
यह सुन रीदांक्ष की आंख तन गई उसके बाद रीदांक्ष ने आगे कहा “ और दादा सा वो कहां है? “
नौकर ने कहा “ वो किसी काम से दूसरे शहर गए हैं।”
यह सुन रीदांक्ष हां में सिर हिला करके हिला दिया और उसके बाद आगे कहा “ ठीक है जब यह सब आ जाए, हमें बता दीजिएगा ।”
इतना बोल कर रीदांक्ष अपने कमरे की ओर चल दिया।
वही अद्रिका भी चुपके-चुपके बिना रीदांक्ष की नजरों में आए उसके पीछे कमरे के बाहर तक आ गई रीदांक्ष अपने कमरे में जा चुका था पर अद्रिका जो दबे पांव चुपके से उसके कमरे के दरवाजे को खोलकर कमरे में आ चुकी थी पर इससे पहले कि वो पीछे से रीदांक्ष को सरप्राइज दे पाती।
कि रीदांक्ष जो अपने काम में इतना तेज था कि कब वो अपने ब्लेजर को साइड में रख करके वॉशरूम फ्रेश होने चला
गया और यह देख अद्रिका का मुंह लटक सा गया।
जब अद्रिका कमरे में आई तो रीदांक्ष पहले ही वाशरुम में जा चुका था।
ये सब देख उसका मुंह लटक गया और वो वॉशरूम की ओर दरवाजे के पास जाकर दरवाजे पर अपना हाथ मारते ठहर गई और अपना हाथ नीचे कर पीछे मुड़ते हुए बोली “ इतना अच्छा मौका हमारे हाथ से चला गया, अब पता नहीं कब तक रीदांक्ष जी बाहर निकलेंगे और कब हमें उन्हें सरप्राइज देंगे, अब या तो उनके लिए यहां पर इंतजार करें या फिर नीचे जाकर के खाना रेडी करे।”
इतना खुद से बोल करके वहां से जाने ही वाली थी कि तभी अचानक पीछे से वॉशरूम का डोर ओपन हुआ और रीदांक्ष के मजबूत हाथ ने अद्रिका की नाजुक सी कमर को पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचते हुए पीछे की वॉल से सटा दिया और अद्रिका को दीवार से सटाकर खड़ा करते हुए खुद उसके सामने आ खड़ा हुआ।
ये सब इतनी तेजी से हुआ की अद्रिका को संभलने का समय भी नहीं मिला और जब तक उसने खुद को संभाल कर सामने की ओर देखा, तो वहां पर रीदांक्ष था जिसकी आंखों में शरारत और चेहरे पर मुस्कान साफ नजर आ रही थी।
और रीदांक्ष को इस तरह से देख अद्रिका ने मुंह बनाते हुए बोली “ कि क्या रीदांक्ष आपने इस बार फिर से हमारा सरप्राइज खराब कर दिया, हमने कितनी कोशिश की थी कि आपको भनक बिना पढ़े कि हम इस महल आए हुए हैं और यहां पर कमरे में , पर नहीं हर बार आपको कैसे पता चल जाता है।”
तो रीदांक्ष उसके करीब आते हुए उसके चेहरे पर आए हुए जुल्फों को कान के पीछे करते हुए और उसके जुड़े पिन को निकलते हुए बोला “ सायद फुल देंगे कि हम आपके एहसास को आंख बंद करके भी महसूस कर सकते हैं यह तो सिर्फ चुटकी का काम था कि आप हमारे पीछे दबे पांव आए और हमें पता भी ना चले।”
अद्रिका झूठा गुस्सा करते हुए उसके सीने पर मुक्का मारते हुए उसे खुद से दूर करते हुए बोली “ हट जाइए दूर, आप बहुत बुरे हैं आप तो हमारा दिल रखने के लिए भी हमारे सामने नाटक भी नहीं कर सकते कि आपको हमारे बारे में नहीं पता पर नहीं आपको तो आदत है, हमें रंगे हाथ पकड़ने की खैर हम चले।”
इतना बोल अद्रिका का वहां से जाने वाली थी कि रीदांक्ष उसे फिर पकड़ते हुए अपने करीब करते हुए कहा “ अरे कहां चली आप, थोड़ी सी हमारी मदद कर दीजिए ।”
इतना बोलते हुए रीदांक्ष ने वॉशरूम की ओर इशारा किया।
यह सुनते ही अद्रिका का मुह हैरानी से खुला का खुला रह गया उसने हैरानी से कहा “ हां कितने बुरे हैं आप, दूर हो जाइए हमसे हमें आपकी नियत ना ठीक नहीं लग रही है, छोड़िए हमें बहुत सारा काम है हमें जाने दीजिए।”
इतना बोलकर अद्रिका उससे खुद को छुड़ाकर जाने वाली थी।
उज्जैन, महाकाल की नगरी। यहां की सड़कों पर एक स्पोर्ट्स कार फुल स्पीड में हवा से बातें करती हुई दौड़ रही थी। उस स्पोर्ट्स कार की वजह से आसपास की जितनी भी गाड़ियां थीं, वे जल्दी सब किनारे हो जाती थीं। अचानक से जो भी कार के नजदीक आता, वो टक्कर और चिंगारियों का सामना कर सकता था। लोग आसपास आ-जा रहे थे, मगर वो सभी पूरी तरह से दहशत में थे। वह स्पोर्ट्स कार बिना किसी डर के, फुल स्पीड में उन खाली सड़कों पर बेतहाशा दौड़ी जा रही थी।
तभी आगे एक चौराहा आया। चौराहे के ठीक सामने से एक बड़ी ट्रक गुजर रही थी, और स्पोर्ट्स कार उसी ट्रक की ओर तेजी से बढ़ रही थी। वहां मौजूद सभी लोग यह देखकर हैरान थे। सबके ज़हन में एक डर समा गया था, पर स्पोर्ट्स कार, ट्रक को सामने देखकर भी नहीं रुक रही थी। तभी, जैसे ही ट्रक ड्राइवर की नज़र उस स्पोर्ट्स कार पर पड़ी, उसने जल्दी से ट्रक की स्पीड बढ़ाकर उसे आगे बढ़ा दिया।
स्पोर्ट्स कार, ट्रक के पीछे से टकराते हुए आगे जाकर रुक गई। उस वक्त कार में बैठे शख्स के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान उभर आई। उसने स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए कहा, "हाय रे मेरी फूटी किस्मत! आज भी मौत को छूकर निकल गया। आखिर कब आएगा वो दिन, जब मैं मौत को गले लगा पाऊंगा?" उस समय usne डेनिम jacket jeans अंदर व्हाइट टी शर्ट पहनी हुयी थी l
वह शख्स खुद से इतना बोल ही रहा था कि तभी उसका फोन बज उठा। उसने फोन की ओर देखा तो उसमें "बड़े बाबा" का नाम फ्लैश हो रहा था। इस नाम को देखते ही शख्स ने खुद से कहा, "बस, इनके ही कॉल का इंतजार था। आखिरकार मेरी कोई भी राइड इनके कॉल के बिना अधूरी कैसे हो सकती है।" इतना बोलते हुए उसने फोन उठाया।
दूसरी तरफ से एक भारी और गुस्से भरी आवाज आई। बड़े बाबा गुस्से से भड़कते हुए बोले, "चिराग, ये क्या है? आज फिर से तुम अपनी स्पोर्ट्स कार लेकर निकल गए, और वो भी फुल स्पीड में? तुम्हें होश भी है? तुरंत महल वापस आओ!" इतना बोलते ही कॉल कट हो गया।
चिराग ने अपने फोन को कान से दूर करते हुए उसकी ओर देखा और कहा, "फिर से वही लेक्चर! खैर, अब तो मुझे इसकी आदत हो गई है।" इतना कहकर चिराग ने अपनी कार का यू-टर्न लिया और फिर से फुल स्पीड में महल की ओर चल दिया।
कुछ देर बाद, जब चिराग की कार महल के अंदर दाखिल हुई, वह महल बेहद शानदार और खूबसूरत दिख रहा था। चारों तरफ सिक्योरिटी थी और हर तरफ गार्ड्स तैनात थे। चिराग ने अपनी कार को पार्किंग में लगाया और जल्द ही महल के अंदर पहुंचा।
अंदर जाते ही, उसने देखा कि उसके बड़े बाबा, जो उज्जैन के महाराज विक्रम सिंह राजपूत थे, गुस्से से तमतमाते हुए उसका इंतजार कर रहे थे। पास में उसकी बड़ी मां भी परेशान हाल में बैठी थीं। उनके पास ही एक और लड़की खड़ी थी, जिसके चेहरे पर भी परेशानी साफ झलक रही थी।
जैसे ही विक्रम सिंह की नज़र चिराग पर पड़ी, वे गुस्से से बोले, "आखिरकार तुम्हें कोई बात एक बार में समझ में क्यों नहीं आती, चिराग? तुम चाहते क्या हो? हम एक ही बात बार-बार कहकर थक चुके हैं, लेकिन तुम क्यों बार-बार वही गलती कर रहे हो?"
चिराग ने एक शब्द में जवाब दिया, "मौत।" इतना कहकर हल्की मुस्कान लिए चिराग चुप हो गया।
यह सुनते ही विक्रम सिंह ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "आखिरकार क्या हो गया है तुम्हें? लोग जिंदगी जीने के लिए तरसते हैं और एक तुम हो, जो दिन-रात मौत को पाने के लिए 100 तरीके आजमाते रहते हो!"
चिराग, जो अब सोफे के कॉर्नर पर बैठा हुआ था, आराम से बोला, "तो क्या करूं, जीकर? सब कुछ तो मिल चुका है न बड़े बाबा सा! अब मेरे पास जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा। जीने के लिए एक मकसद चाहिए होता है, और मेरे पास वो मकसद नहीं है। इसलिए मैंने मौत को अपना मकसद बना लिया है। बस एक बार मौत मि9ल जाएं, तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।"
विक्रम सिंह परेशानी में वहीं सोफे पर बैठ गए और बोले, "आखिर क्या करें हम तुम्हारा? तुम क्यों नहीं समझते, चिराग? जिंदगी अनमोल होती है, अपनी जिंदगी को दांव पर मत लगाओ। हमने पहले ही अपने छोटे भाई और जवान बेटे को खो दिया है। अब तुम्हें खोने की हिम्मत हममें नहीं है। तुम ही हमारे जीने का सहारा हो। अगर तुम्हें कुछ हो गया, तो हमारा क्या होगा?"
चिराग, जो अब विक्रम सिंह के पास जाकर झुका था, ने कहा, "चिंता मत कीजिए, बड़े बाबा सा! कुछ नहीं होगा मुझे। वैसे भी इतने सालों में अगर गिनें, तो मैंने 657 बार कोशिश की है मरने की। पर देखिए ना, अभी तक कुछ भी नहीं हुआ। हर बार बस मौत को छूकर वापस आ जाता हूं। मौत मुझे छूकर निकल जाती है और आज तक मैं सही-सलामत हूं। तो आपको क्या लगता है, मुझे इतनी आसानी से कुछ हो जाएगा?"
इतना कहकर चिराग ने मुस्कुराते हुए अपने बाबा के हाथ थामे और कहा, "लोगों को जिंदगी चाहिए, और मुझे मौत। लोगों को जिंदगी आसानी से मिलती नहीं, और मुझे मौत मिलती नहीं। आप मत चिंता कीजिए, आपके बुढ़ापे का सहारा तो मैं ही हूं। आपकी मौत को भी मैं जी लूंगा।"
चिराग मुस्कुराते हुए वहां से मुड़कर अपने कमरे की ओर चला गया। विक्रम सिंह पूरी तरह से परेशान हो गए थे। आखिर अब वे करें भी तो क्या?
तभी मानवी, जो पास में बैठी थी, उठकर विक्रम सिंह के पास आई और बोली, "एक काम करते हैं। हम चिराग को प्रयागराज भेज देते हैं। क्या पता वहां जाकर, अपनी पुरानी यादों को याद करके, उसके मन से यह ख्याल निकल जाए।"
यह सुनकर विक्रम सिंह बोले, "बिल्कुल नहीं! हमें नहीं लगता कि उसे वहां भेजना सही होगा। क्या तुम भूल गई हो, मानवी? सालों पहले शिवांश, सिया, आदित्य और चुनमुन एक हादसे में उसी शहर में मारे गए थे। उन सबके बावजूद भी, चिराग को वहां भेजना ठीक नहीं होगा। मैं उसे वहां कभी नहीं भेजूंगा।"
इतना कहकर विक्रम सिंह वहां से चले गए।
रीदांक्ष उस पर अपनी पकड़ कसते हुए कहा “ हां सही कहा आपने बूरे तो है हम पर आपके लिए, अब आप है ही इतनी शरारती की थोड़ा तो हमें आपके साथ बुरा बनना पड़ेगा ना और वैसे भी यह हमारे साथ वॉशरूम जाने में कैसे शर्माहट, होने वाली बीवी है आप, आज नहीं तो कल आपको हमारे साथ इसी कमरे में रहना है।”
जिस पर अद्रिका का रीदांक्ष से दूरी बनाते हुए बोली “ हां हां होने वाली बीवी है हम आपकी पर बीवी बनी नहीं है समझे आप, तो अभी के लिए हमसे दूरी बनाकर रखें छोटे हुकुम सा क्योंकि जब तक हमारी शादी नहीं हो जाती तब तक आपके पास कोई लाइसेंस नहीं है हमारे करीब आने का ।”
इतना बोलकर अद्रिका वहां से जाने लगीं।
रीदांक्ष का पीछे अद्रिका की ओर मुड़ते हुए कहा “ अच्छा तो आपके पास लाइसेंस है इस महल में आने का और हम सब पर हुकुम जमाने का !,”
अद्रिका अपनी जगह रुक कर चेहरे पर मुस्कान लिए पीछे मुड़ रीदांक्ष को जवाब देते हुए बोली “ हां है और यह लाइसेंस हमें खुद दादा सा ने दिया है खैर हम चले अपना काम करेंने और आप भी जल्दी से फ्रेश होकर आ जाइए हम खाना लगते हैं आपका ।”
इतना बोलकर अद्रिका वहां से चली गई और रीदांक्ष मुस्कुराते हुए वॉशरूम में चला गया।
दूसरी तरफ प्रयागराज शाम का वक्त,,
जहां पर गंगा घाट किनारे शाम की आरती हो रही थी और मिराक्ष उसी जगह से कुछ दूरी पर खड़ा चुपचाप वहां हो रही गंगा आरती को देख रहा था और ऐसे ही वक्त बीत जाने के बाद गंगा आरती भी खत्म हो गई और धीरे-धीरे वहां भीड़ भी खत्म हो गई थी पर मिराक्ष अभी भी वहां पर खड़ा था।
तभी पीछे से मिराक्ष के कंधे पर किसी ने हाथ रखते हुए कहा “ आपने तो कहा था कि आप अभी यहां नहीं आएंगे, तो अब क्या कर रहे हैं आप?”
जहां उस वक्त मिराक्ष का चेहरा थोड़ा सा उतरा हुआ नजर आ रहा था उसकी आंखों में मनो कोई खालीपन सा हो पर तभी यह आवाज सुनते ही मिराक्ष ने जवाब दिया “ वो आज भी नहीं आए, वो नहीं आए संस्कृति!”
इतना बोल मिराक्ष वही घाट पर बनी हुई सीढ़ीओ पर ही बैठ गया।
तभी उसके पीछे से उसके किनारे आते हुए संस्कृति भी उसके बगल बैठ गई और मिराक्ष का हाथ थमते हुए बोली “ आखिर कब तक आप उनका इंतजार करेंगे मिराक्ष, 15 साल हो चुके हैं उस दिन को बीते और तब से आज तक इसी वक्त इसी जगह आप रोज आकर उनका इंतजार करते हैं।”
मिराक्ष जो इस वक्त तक उसने अपने इमोशंस को रोका हुआ था कि उसकी आंखों से एक बूंद आंसू झलक पड़ा, उसने अपने आंसुओं को पोछते हुए कहा “ तो क्या करें हम उन्होंने कहा था कि वो हमें नाम देंगे, हमारे हिस्से का हक देंगे मेरी मां को मान-सम्मान देंगे पर नहीं वो गायब हो गए और छोड़ चले गए, ठीक उसे तरह जैसे सालों पहले मेरी मासा को छोड़ दिया।
तो ठीक 15 साल पहले मुझे और मेरी मासा को एक बार फिर छोड़ कर चले गए और इन 15 सालों में एक बार भी पीछे मुड़कर के नहीं देखा कि आखिरकार उनका बेटा कैसा है उनकी पत्नी कैसी है हम लोग जिंदा है या हम मर गए,।
उनके इतने बड़े धोखे के बावजूद भी रोज हम पागल की तरह यहां पर आकर उनका इंतजार करते हैं, इस उम्मीद में है कि एक दिन तो वापस आएंगे, कम से कम हमारे बाबा सा बन कर ना सही पर हमारी मां के पति तो बनकर आ जाए, हमारी मां जो सालों से सुहागन तो है पर उन्हें खुद नहीं पता कि उनके पति कहां है ,
इतना बोल मिनाक्षी एक पल रुककर आगे कहा -” नहीं चाहिए हमें उनका नाम, ना दे मुझे वो हमारे हिस्से का हक अगर उनके लिए उनके परिवार नाम दौलत शोहरत वो सब कुछ आता है।
तो ठीक है हमें कुछ भी नहीं चाहिए पर उन्हें हमारी मासा को अपनाना चाहिए था उन्हें मान सम्मान इज्जत हक सब कुछ देना चाहिए था पर नहीं वो आए ओर चले गए बिना बताए और हमारे हिस्से में छोड़ दिया सिर्फ इंतजार इस घाट पर आखिर कब तक हम उनका इंतजार करें।”
यह सब बोलते हुए मिराक्ष एक पल संस्कृति का चेहरा देख खामोश हो गया।
तो वही संस्कृति ने आगे कहा “ क्या हुआ अब चुप क्यों हो गए बोलिए मिराक्ष!”
इस पर मिराक्ष ने कहा “ नही नहीं बोलना अब हमें, हम भी थक चुके हैं क्या आप नहीं थकती रोज हमारी यही बातें सुनकर।”
जिस पर संस्कृति उसे समझाते हुए कहा “ नहीं मिराक्ष बिल्कुल नहीं हमें तो आपकी आदत सी हो गई है दिन भर आप कहीं भी बिजी हो पर इस वक्त आप यहीं पर मिलेंगे और आप अपनी मन की बातें सिर्फ हमसे कहेंगे, तो बस इसीलिए हम आ जाते हैं क्योंकि हमें आपकी इन बातों की और आपके इस इंतजार की आदत हो गई है और हम बिल्कुल नहीं थकते आपकी यह सारी बातें सुनकर के, बल्कि हमें अच्छा लगता है कि आप अपने दिल की बातें हमसे बताते हैं अपनी भड़ास निकालते हैं, कम से कम आप हमें इस काबिल तो समझते हैं और यही हमारे लिए बहुत है मिराक्ष ।”
ये सब सुन मिराक्ष के चेहरे पर जो छाई हुई उदासी थी वो धीरे-धीरे गायब होने लगी और उसने संस्कृति का हाथ थामते हुए कहा “ आप तो हमें छोड़कर नहीं जाएंगे ना संस्कृति, जिस तरह से वो हमें और मासा को छोड़कर चले गए।”
तो संस्कृति मुस्कुराते हुए बोली “ ऐसा भला हो सकता है क्या ? कभी हम आपको क्यों छोड़ करके जाएंगे, छोड़कर जाए आपके दुश्मन, हमें तो आपके साथ रहना है हमेशा, पूरी जिंदगी आपको परेशान करना है आप पर हुकुम चलना है और ऐसे इतनी आसानी से हम आपको नहीं छोड़कर जाने वाले समझ मिराक्ष बाबू ।”
इतना बोलते हुए संस्कृति ने मिराक्ष की नाक पकड़ लीं।
जहां यह देख मिराक्ष अपनी नाक छुड़ाते हुए कहा “ हमने आपसे कितनी बार कहा है कि आप हमारी नाक मत पकड़ा करिए, हमें नहीं पसंद ।”
जिस पर संस्कृति बोली “ हां-हां हमने आपकी नाक पकड़ी है ना की किसी और की, वैसे भी हम जानते हैं एक हम ही तो है, जिसे इतनी इजाजत है जो आपको परेशान कर सकते हैं वरना बाकियों में इतनी हिम्मत कहां जो मिराक्ष महेश्वर को तंग कर सके, उसे अपनी मौत थोड़ी ना प्यारी है जो आपको छुएगा आपकी नाक को पकड़ेगा।”
मिराक्ष संस्कृति की आंखों में देखते हुए बोला “ हां सिर्फ आप ही है संस्कृति जिसे इतनी आज़ादी है कि आप हमें तंग कर सकती है और प्यार कर सकती है वरना आपके अलावा किसी और में इतनी हिम्मत नहीं कि हम पर नजर उठा कर भी देख सके, हम उनकी जान ना ले ले जो हम पर बुरी नजर डाली।”
यह सुन संस्कृति हंसते हुए बोली “ लगता है आपको खुद से ज्यादा प्यार है, तभी तो आप जब देखो तब अपनी तारीफ करते रहते हैं, अरे थोड़ा प्यार हमसे भी कर लीजिए कहीं ऐसा ना हो कि कोई ओर हमें उड़ा कर ले जाए।”
जहां यह सुनते ही मिराक्ष जल्दी से संस्कृति के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा” हरगिज़ नहीं वो दिन कभी नहीं आएगा कि आपके हिस्से में हमारे सिवा किसी और का नाम हो, हम खुद के सिवा किसी और गैर मर्द को आपकी जिंदगी में सोच भी नहीं सकते, तो ऐसा ख्याल अपने दिमाग में भी नहीं आने दीजिएगा संस्कृति ।”
संस्कृति मिराक्ष का हाथ अपने मुंह से हटाते हुए उसे प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली “ इतना प्यार करते हैं आप हमसे!”
तमिराक्ष ने कहा “ हां खुद से भी ज्यादा अब आप खुद जान सकती हैं जो इंसान खुद से इतना प्यार करता है और जब वो किसी और को खुद से ज्यादा प्यार कर रहा है तो उसका प्यार कितनी हद पार होगा।”
जहां यह सुन संस्कृति आगे बढ़कर मिराक्ष के गले से लग गई ।
इसके बाद संस्कृत में आगे कहा “ तो इंतजार किस बात का है मिराक्ष, क्यों है ये दूरियां ? चलिए ना बड़े पापा से मांग लीजिए हमारा हाथ इससे पहले की देर हो जाए ।”
यह सुनते ही मिराक्ष का मुंह बन गया और वो संस्कृति का खुद से अलग करते हुए कहा “ आपने भी किस इंसान का नाम ले लिया इतने अच्छे मौके पर , हमारे प्यार के दुश्मन का जो हमें देखना पसंद नहीं करते वो भला आपका हाथ हमें कैसे देंगे, भूल जाइए उनको ,रही बात हमारी शादी की तो हमें आपका हाथ मांगने के लिए उनसे इजाजत की जरूरत नहीं है जिस दिन हमारा मन हुआ उस दिन हम आपका हाथ खुद थामेंगे और महादेव के सामने जाकर पूरे रीति रिवाज से शादी कर लेंगे समझी आप, तो आइंदा से हमारे सामने अपने उस खडूस बड़े बाबा की जिक्र मत किया करिए समझी आप ।”
संस्कृति ने कहा “ ठीक है बाबा नहीं करूंगी उनका जिक्र फिलहाल अब आप हवेली चलेंगे रात होने को आई है चलिए वरना मासा परेशान होंगे आपके लिए।”
इसके बाद मिराक्ष हां में सर हिला दिया और
दोनों ही उस जगह से उठ खड़े होकर एक दूसरे का हाथ थामें वहां से हवेली की ओर चल दिए।
उज्जैन, महाकाल की नगरी। यहां की सड़कों पर एक स्पोर्ट्स कार फुल स्पीड में हवा से बातें करती हुई दौड़ रही थी। उस स्पोर्ट्स कार की वजह से आसपास की जितनी भी गाड़ियां थीं, वे जल्दी सब किनारे हो जाती थीं। अचानक से जो भी कार के नजदीक आता, वो टक्कर और चिंगारियों का सामना कर सकता था। लोग आसपास आ-जा रहे थे, मगर वो सभी पूरी तरह से दहशत में थे। वह स्पोर्ट्स कार बिना किसी डर के, फुल स्पीड में उन खाली सड़कों पर बेतहाशा दौड़ी जा रही थी।
तभी आगे एक चौराहा आया। चौराहे के ठीक सामने से एक बड़ी ट्रक गुजर रही थी, और स्पोर्ट्स कार उसी ट्रक की ओर तेजी से बढ़ रही थी। वहां मौजूद सभी लोग यह देखकर हैरान थे। सबके ज़हन में एक डर समा गया था, पर स्पोर्ट्स कार, ट्रक को सामने देखकर भी नहीं रुक रही थी। तभी, जैसे ही ट्रक ड्राइवर की नज़र उस स्पोर्ट्स कार पर पड़ी, उसने जल्दी से ट्रक की स्पीड बढ़ाकर उसे आगे बढ़ा दिया।
स्पोर्ट्स कार, ट्रक के पीछे से टकराते हुए आगे जाकर रुक गई। उस वक्त कार में बैठे शख्स के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान उभर आई। उसने स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए कहा, "हाय रे मेरी फूटी किस्मत! आज भी मौत को छूकर निकल गया। आखिर कब आएगा वो दिन, जब मैं मौत को गले लगा पाऊंगा?" उस समय usne डेनिम jacket jeans अंदर व्हाइट टी शर्ट पहनी हुयी थी l
वह शख्स खुद से इतना बोल ही रहा था कि तभी उसका फोन बज उठा। उसने फोन की ओर देखा तो उसमें "बड़े बाबा" का नाम फ्लैश हो रहा था। इस नाम को देखते ही शख्स ने खुद से कहा, "बस, इनके ही कॉल का इंतजार था। आखिरकार मेरी कोई भी राइड इनके कॉल के बिना अधूरी कैसे हो सकती है।" इतना बोलते हुए उसने फोन उठाया।
दूसरी तरफ से एक भारी और गुस्से भरी आवाज आई। बड़े बाबा गुस्से से भड़कते हुए बोले, "चिराग, ये क्या है? आज फिर से तुम अपनी स्पोर्ट्स कार लेकर निकल गए, और वो भी फुल स्पीड में? तुम्हें होश भी है? तुरंत महल वापस आओ!" इतना बोलते ही कॉल कट हो गया।
चिराग ने अपने फोन को कान से दूर करते हुए उसकी ओर देखा और कहा, "फिर से वही लेक्चर! खैर, अब तो मुझे इसकी आदत हो गई है।" इतना कहकर चिराग ने अपनी कार का यू-टर्न लिया और फिर से फुल स्पीड में महल की ओर चल दिया।
कुछ देर बाद, जब चिराग की कार महल के अंदर दाखिल हुई, वह महल बेहद शानदार और खूबसूरत दिख रहा था। चारों तरफ सिक्योरिटी थी और हर तरफ गार्ड्स तैनात थे। चिराग ने अपनी कार को पार्किंग में लगाया और जल्द ही महल के अंदर पहुंचा।
अंदर जाते ही, उसने देखा कि उसके बड़े बाबा, जो उज्जैन के महाराज विक्रम सिंह राजपूत थे, गुस्से से तमतमाते हुए उसका इंतजार कर रहे थे। पास में उसकी बड़ी मां भी परेशान हाल में बैठी थीं। उनके पास ही एक और लड़की खड़ी थी, जिसके चेहरे पर भी परेशानी साफ झलक रही थी।
जैसे ही विक्रम सिंह की नज़र चिराग पर पड़ी, वे गुस्से से बोले, "आखिरकार तुम्हें कोई बात एक बार में समझ में क्यों नहीं आती, चिराग? तुम चाहते क्या हो? हम एक ही बात बार-बार कहकर थक चुके हैं, लेकिन तुम क्यों बार-बार वही गलती कर रहे हो?"
चिराग ने एक शब्द में जवाब दिया, "मौत।" इतना कहकर हल्की मुस्कान लिए चिराग चुप हो गया।
यह सुनते ही विक्रम सिंह ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "आखिरकार क्या हो गया है तुम्हें? लोग जिंदगी जीने के लिए तरसते हैं और एक तुम हो, जो दिन-रात मौत को पाने के लिए 100 तरीके आजमाते रहते हो!"
चिराग, जो अब सोफे के कॉर्नर पर बैठा हुआ था, आराम से बोला, "तो क्या करूं, जीकर? सब कुछ तो मिल चुका है न बड़े बाबा सा! अब मेरे पास जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा। जीने के लिए एक मकसद चाहिए होता है, और मेरे पास वो मकसद नहीं है। इसलिए मैंने मौत को अपना मकसद बना लिया है। बस एक बार मौत मि9ल जाएं, तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।"
विक्रम सिंह परेशानी में वहीं सोफे पर बैठ गए और बोले, "आखिर क्या करें हम तुम्हारा? तुम क्यों नहीं समझते, चिराग? जिंदगी अनमोल होती है, अपनी जिंदगी को दांव पर मत लगाओ। हमने पहले ही अपने छोटे भाई और जवान बेटे को खो दिया है। अब तुम्हें खोने की हिम्मत हममें नहीं है। तुम ही हमारे जीने का सहारा हो। अगर तुम्हें कुछ हो गया, तो हमारा क्या होगा?"
चिराग, जो अब विक्रम सिंह के पास जाकर झुका था, ने कहा, "चिंता मत कीजिए, बड़े बाबा सा! कुछ नहीं होगा मुझे। वैसे भी इतने सालों में अगर गिनें, तो मैंने 657 बार कोशिश की है मरने की। पर देखिए ना, अभी तक कुछ भी नहीं हुआ। हर बार बस मौत को छूकर वापस आ जाता हूं। मौत मुझे छूकर निकल जाती है और आज तक मैं सही-सलामत हूं। तो आपको क्या लगता है, मुझे इतनी आसानी से कुछ हो जाएगा?"
इतना कहकर चिराग ने मुस्कुराते हुए अपने बाबा के हाथ थामे और कहा, "लोगों को जिंदगी चाहिए, और मुझे मौत। लोगों को जिंदगी आसानी से मिलती नहीं, और मुझे मौत मिलती नहीं। आप मत चिंता कीजिए, आपके बुढ़ापे का सहारा तो मैं ही हूं। आपकी मौत को भी मैं जी लूंगा।"
चिराग मुस्कुराते हुए वहां से मुड़कर अपने कमरे की ओर चला गया। विक्रम सिंह पूरी तरह से परेशान हो गए थे। आखिर अब वे करें भी तो क्या?
तभी मानवी, जो पास में बैठी थी, उठकर विक्रम सिंह के पास आई और बोली, "एक काम करते हैं। हम चिराग को प्रयागराज भेज देते हैं। क्या पता वहां जाकर, अपनी पुरानी यादों को याद करके, उसके मन से यह ख्याल निकल जाए।"
यह सुनकर विक्रम सिंह बोले, "बिल्कुल नहीं! हमें नहीं लगता कि उसे वहां भेजना सही होगा। क्या तुम भूल गई हो, मानवी? सालों पहले शिवांश, सिया, आदित्य और चुनमुन एक हादसे में उसी शहर में मारे गए थे। उन सबके बावजूद भी, चिराग को वहां भेजना ठीक नहीं होगा। मैं उसे वहां कभी नहीं भेजूंगा।"
इतना कहकर विक्रम सिंह वहां से चले गए।
विक्रम के जाने के बाद, माधवी जी के चेहरे पर चिंता और परेशानी साफ दिखाई दे रही थी। उनकी तनी हुई भौहें और उखड़ी हुई सांसें यह बता रही थीं कि वे किसी गहरे विचार में डूबी हैं।
वहीं, पास खड़ी शिवि , जो माधवी जी की बेचैनी को देख रही थी, धीरे-धीरे उनके पास आई और प्यार भरी आवाज में बोली, "दादी सा, मुझे एक बात समझ नहीं आ रही है। आप हमेशा चाहती हैं कि चिराग भैया प्रयागराज जाएं, क्योंकि आपको लगता है कि वहां जाकर वे ठीक हो जाएंगे। लेकिन हर बार दादा सा आपकी बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। आखिर ऐसा भी क्या है प्रयागराज में, जो आपको लगता है कि चिराग भैया वहां जाकर ठीक हो जाएंगे, पर दादा सा इसे मंजूर नहीं कर रहे?"
इतना कहते हुए शिवि माधवी जी के पास सोफे पर बैठ गई और उनके जवाब का इंतजार करने लगी। माधवी जी ने गहरी सांस ली और फिर धीरे से शिवि की ओर देखा।
"आपको पता नहीं है, शिवि । सालों पहले, तुम्हारे काका सा, आदित्य, इसी शहर में जाकर बसे थे। उन्होंने वहीं आपकी काकी, चुनमुन, से शादी की थी और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की थी। यहीं पर चिराग का जन्म हुआ था। इसीलिए, उस शहर से खासकर चिराग का बहुत गहरा लगाव है।
पर कुछ कारणों से आदित्य और चुनमुन वापस इस महल में लौट आए। लेकिन चिराग हमेशा से प्रयागराज जाने की जिद करता रहा, पर कभी भी वह वहां नहीं जा सका। फिर, कुछ हादसों में चुनमुन की मौत हो गई, और उसके बाद से आदित्य और चिराग पूरी तरह टूट गए और फिर वो दोनों अकेले रह गए।"
माधवी जी के शब्दों में दर्द थी। वह धीमी आवाज में आगे कहने लगीं, "उस समय, आदित्य को भी लगा था कि वह शहर उनके लिए सही होगा, और एक बार फिर से उन्होंने वहां जाकर बसने का फैसला किया। इसके बाद से, आदित्य केवल कुछ जरूरी कामों और पारिवार फंक्शन के लिए ही चिराग को लेकर वापस आते थे, वरना नहीं।
पर फिर एक हादसे में, जब शेरावत खानदान भी उस शहर में गया और आपके बाबा सा भी वहां गए, सबकी जान चली गई। बस उसी दिन से विक्रम जी ने चिराग को वापस यहां ले आए और उसे कभी वहां नहीं जाने दिया। विक्रम जी को लगता है कि उस शहर ने उनसे सब कुछ छीन लिया उनके बेटे और उनके भाई आदित्य को भी।"
माधवी जी की आवाज भारी हो चली थी, और शिवि ध्यान से उनकी बातों को सुन रही थी। माधवी जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "पर चिराग हमेशा से जिद करता रहा कि उसे प्रयागराज जाना है। विक्रम जी उसे वहां जाने नहीं देना चाहते। पर हमें पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि अगर एक बार चिराग वहां जाएगा और उन पुरानी यादों को जीएगा, तो खुद को बार-बार मौत के मुंह में डालने की उसकी जिद खत्म हो जाएगी। वह जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की कोशिश करेगा, ना कि बार-बार मौत को गले लगाने की।"
माधवी जी की आंखों में एक उम्मीद की किरण झलक रही थी। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, "भले ही चिराग के पास अब उसकी मां और पिता नहीं हैं, पर प्रयागराज में उनकी यादें जरूर हैं। उन यादों के सहारे, शायद चिराग को एक नई जिंदगी की उम्मीद मिल सकती है उसे शहर में उनकी यादें तो है जिनके साथ चिराग को जीने की एक उम्मीद मिल सकती है।"
यह सुनकर शिवि भी गहरी सोच में पड़ गई। कुछ देर तक चुप रहने के बाद, वह बोली, "दादी सा, अगर ऐसा हो तो हम क्यों न दादा सा को इस बात के लिए मना लें? हो सकता है वे मान जाएं और चिराग भैया को जाने की इजाजत दे दें।"
माधवी जी ने उदास होकर सिर हिलाते हुए कहा, "अरे, नहीं शिवि । वह कभी नहीं मानेंगे। तुम क्या सोचती हो, हमने इतने सालों में कोशिश नहीं की? हमने कई बार कोशिश की है, पर हमारी सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। यहां तक कि खुद चिराग भी कई बार प्रयागराज भागने की कोशिश कर चुका है, पर वह कभी वहां पहुंच नहीं सका। तुम्हारे दादा सा की नजरें हर वक्त चिराग पर रहती हैं।"
शिवि ने माधवी जी की बात को ध्यान से सुना और फिर आत्मविश्वास से बोली, "दादी सा, हम फिर भी कोशिश करेंगे। अब हम इस महल में वापस आ गए हैं। इतने सालों तक हमें पढ़ाई और सुरक्षा के कारण यहां से दूर रखा गया था, पर अब जब हम यहां हैं, तो हम चिराग भैया को ठीक करेंगे और दादा सा को भी मना लेंगे। देखिएगा, एक बार वह इजाजत देंगे, तो चिराग भैया प्रयागराज जाकर वहां से पूरी तरह ठीक होकर लौटेंगे।"
शिवि की बात सुनकर माधवी जी के चेहरे पर थोड़ी राहत की मुस्कान आ गई। लेकिन तभी घड़ी की ओर नजर डालते हुए उनके चेहरे की मुस्कान तुरंत चिंता में बदल गई। उन्होंने अपना सिर थामते हुए कहा, "अरे, देखो शिवि ! तुम्हारे चक्कर में हम चिराग की दवाई देना ही भूल गए। तुम्हें पता है ना, अगर उन्हें समय पर दवाई नहीं मिली, तो उनका क्या हाल होगा?"
शिवि ने तुरंत जवाब दिया, "हां, दादी सा, हमें पता है। एक काम करते हैं, आज हम उन्हें दवाई दे देते हैं।"
माधवी जी ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, शिवि । अभी तुम्हारा चिराग के सामने जाना ठीक नहीं होगा। तुम उनसे ज्यादा घुली मिली भी नहीं हो। बेहतर होगा, तुम दूर रहो उनसे। हम खुद जाकर उन्हें दवाई दे देंगे।"
शिवि ने फिर से आग्रह करते हुए कहा, "दादी सा, प्लीज! हमें जाने दीजिए। आखिर अपने काका सा का ख्याल हम नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा?"
माधवी जी कुछ देर तक सोचती रहीं, फिर धीरे से बोलीं, "ठीक है, शिवि । तुम ही जाओ। हम दवाई तुम्हें दे देंगे।"
इतना कहकर माधवी जी उठीं और शिवि के साथ चल पड़ीं। दूसरी तरफ, चिराग अपने कमरे में, वॉशरूम के अंदर, शावर के नीचे खड़ा था। पानी की बूंदें उसके पूरे बदन को भिगो रही थीं, और वह गहरे ख्यालों में डूबा हुआ था।
तभी अचानक चिराग के सिर पर तेज दर्द हुआ और दर्द की वजह से चिराग ने अपने दोनों हाथों से सर को पकड़ लिया और दर्द को बर्दाश्त करने लगा पर उसका दर्द जो कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
जिसकी वजह से चिराग किसी तरह शावर को बंद करके एक टॉवल को लपेट वॉशरूम से बाहर आया और उस वक्त उसने अपने सर को दर्द की वजह से सर पकड़ा हुआ था और कमरे में आकर बेड के साइड ड्रॉ को किसी तरह ओपन करके एक मेडिसिन की डीब्बी को निकाला पर जैसे ही वह उसे ओपन करके उसमें से मेडिसिंस लेने वाला था कि उसके हाथ से वह डीब्बी छूट कर जमीन पर गिर गई और सारी मेडिसिंस वह वहीं जमीन पर बिखर गई।
यह सब देख चिराग जैसे ही झुक कर मेडिसिन को उठा रहा था पर उसका सर घूम रहा था उसकी आंखों के सामने का मंजर पूरी तरह से धुंधला होता जा रहा था और एक पल के लिए मानो उसकी आंखों के सामने पूरी तरह से काला घना अंधेरा छा गया।
वही शिवि एक ट्रे में कुछ स्नैक्स, पानी और चिराग की मेडिसिंस लिए कमरे में दाखिल हुई और चारों ओर देख बोली, “कहा है आप।”
इतना बोल उसकी नजर बेड के पास गई जहां पर चिराग सर पर हाथ रख शांति से बैठा हुआ था उस वक्त चिराग के बाल पूरी तरह से भिगे हुए थे पर उसने किसी तरह कपड़े पहन लिए थे ब्लैक पेंट और वाइट टी-शर्ट उसके बालों से पानी अभी भी टपक रहा था।
और उसे देख शिवि अपने कदम आगे बढ़ते हुए धीमी आवाज में बोली, “ आप ऐसे क्यों बैठे हैं शांति से और आपके बाल भिगे हुए हैं क्या आपने शाॅवर के बाद अच्छे से अपने बाल को पोछा नहीं है, आप इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं कम से कम अपने बालों को सुखा तो लेते हैं वरना इतनी रात के आपको सर्दी लग जाएगी।”
इतना बोलते हुए शिवि वही साइड में आकर टेबल पर ट्रे को रखा था और दूसरे ड्रॉ से हेयर ड्रायर निकल रही थी और वह निकाल कर जैसे ही चिराग के पास आई और हेयर ड्रायर को कनेक्ट करके जैसे ही चिराग के बालों को हेयर ड्रायर से ड्राई करने ही वाली थी कि तभी चिराग जो उसकी ओर अपना सर कर उसकी कलाई को कस के पकड़ लिया।
यह देख शिवि पूरी तरह से सहम गई और चिराग के चेहरे को देख उसने अपना कदम पीछे कर लिए क्योंकि उस वक्त चिराग की आंखें गुस्से से लाल और चेहरा पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था और शिवि की कलाई को पकड़े कस के दबाते हुए कहा, “हिम्मत भी कैसे हुई मेरे कमरे में आने की ?” इतना बोलकर चिराग ने झटके से शिवि का हाथ छोड़ दिया।
जिससे शिवि दो कदम पीछे की ओर लड़खड़ा गई इससे पहले कि वो गिर पाती की तभी एक टेबल के सहारे से उसने खुद को संभाल लिया और फिर खुद को संभालते हुए किसी तरह चिराग से बोली, “काका सा हम तो बस वह आपके लिए यह दवाइयां लेकर आए थे, दादी सा ने कहा था कि आप समय पर दवाई खा ले।”
यह सुन चिराग की नजर टेबल पर पड़े मेडिसिन पर गई और वह चिराग आगे कदम बढ़ाते हुए टेबल के पास आकर उसे ट्रे को उठाकर हवा में लहराते हुए फर्श पर फेंक दिया।
जिसकी टूटने की आवाज से शिवि सहम गई और पूरी तरह से डर गई वो डरते हुए चिराग को समझाने की कोशिश करते बोली, “काका सा! आप ठीक तो है ना, यह क्या हो गया है आपको?”
इस पर चिराग जो आसपास कमरे के चारों नजर घुमा करके गुस्से से बोला, “यहां इतना उजाला क्यों है? यह सारे लाइट ऑन क्यों है यहां पर बंद करों सबको।” इतना बोलकर चिराग जल्दी से सारे लाइट के स्विच के पास जाकर सभी लाइट्स को ऑफ करने लगा।
यहां तक की कुछ रोशनी जो चांद की रोशनी बालकनी से अंदर आ रही थी तो वो जल्दी से सभी पर्दे लगाने लगा। चिराग यह सब काम इतनी जल्दी से पर्दे लगने के बजाय टूटकर फर्श पर गिर गए थे और यह सब देख चिराग को ओर उलझन बेचैनी हो रही थी वह जल्दी से जल्दी कमरे में अंधेरा करने के लिए दरवाजे खिड़की सबको बंद करने लगा पर फिर भी कहीं ना कहीं से उजाला आ रहा था।
यह सब देखकर चिराग को और बैचेनी होने लगी वह अपने माथे पर जोर उंगलियों से रब करते हुए कहा, “ यहां इतना उजाला क्यों आ रहा है, यहां जल्दी अंधेरा करो।”
वहीं शिवि भी जो चिराग की हालत देख पूरी तरह से हैरान थी वो जल्दी से चिराग के पास जाते हुए बोली, “काका सा संभालिए खुद को, क्या हो गया है आपको?”
चिराग ने शिवि को धक्का देकर के वही एक कोने में जाकर अपनी आंखों पर हाथ रखते हुए कहा, “जल्दी से अंधेरा करो, मुझे डर लग रहा है उजाले से, तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा है जल्दी से यहां पर सारी रोशनी को खत्म करो, मुझे उलझन हो रही है।” यह सब बोलते हुए चिराग अजीब सी हरकतें करने लगा था।
तो वही इन तेज आवाज को सुनकर माधवी जी जल्दी से कमरे में आ पहुंची और चिराग की ऐसी हालत को देख बोली, “ हे ! भगवान आखिरकार जिसका डर था वही हुआ!” और उसके बाद उन्होंने जल्दी नौकरों को आवाज दिया और जल्दी से शिवि के पास भाग कर आए।
शिवि जो माधवी को देखकर जल्दी से उन्हें पकड़ते हुए बोली, "दादी सा क्या हुआ है यह का कासा ऐसी हरकतें क्यूं कर थे?”
तो माधवी ने कहा, “ अभी आप यहां से जाइए!”
इस पर शिवि ने कहा, “नहीं दादी सा! हमें जानना है काका सा को क्या हुआ है?”
इस पर माधवी ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, “हमने कहा ना आप जाइए, हम आपको कुछ देर बाद में बता देंगे पहले अभी चिराग का हालत ठीक करना जरूरी है।”
जहां यह सुनकर शिवि ना चाहते हुए भी वहां से निकल गई।
वही तब तक नौकर भी आ गए नौकर आते ही चिराग को पकड़कर उसे उठाकर बेड पर ले गए।
चिराग जो नौकरो से छूटने की कोशिश कर रहा था अपने सारे ताकत इकट्ठा करके नौकरी को धक्का दे रहा था पर किसी तरह नौकर चिराग को काबू कर रहे थे।
तभी माधवी जी जल्दी से जा करके एक दूसरे ड्रॉ में से एक लिक्विड मेडिसिन निकाल करके चिराग के पास आई और नौकर को चिराग को अच्छे से पकड़ने का इशारा कर उसके मुंह में वह लिक्विड मेडिसिन डाल दीं।
इसके बाद चिराग जो कुछ देर तक छटपटाने और हिलने के बाद पूरी तरह से शांत और गहरी नींद में चला गया।
यह देख माधवी जी को राहत महसूस हुई और उसके बाद वह कमरे की हालत देखकर के नौकरों को बोली, “ यहां के हालात जल्द से जल्द ठीक करिए और हां याद रहे सारे खिड़की दरवाजे अच्छे से बंद कर दीजिएगा और लाइट भी अच्छे से बंद कर दीजिएगा।” इतना बोलकर माधवी जी कमरे से बाहर निकल गई।
वहीं बाहर पहले ही शिवि उनके आने का इंतजार कर रहे थे और उनको देखकर शिवि माधवी जी का रास्ता रोकते हुए बोली, “वह सब क्या था दादी सा, काका सा को क्या हुआ है और वह ऐसी अजीब हरकतें क्यों कर रहे थे?”
जिस पर माधवी जी एक लंबी राहत की सांस ली और बोली, “हमारे कमरे में आइए!” इतना बोलकर माधवी जी वहां से चल दीं और ठीक उनके पीछे-पीछे शिवि भी जब माधवी जी अपने कमरे में आई।
शिवि जो अभी तक उसको अपने सवालों का जवाब जानना चाहती थी और उन्हें बस सवालिया नजरों से देखे जा रही थी।
एक लंबी सांस लेकर माधवी जी ने कहा, “हमने आपको रोका था ना, शिवि की आप मत जाइए चिराग के कमरे में, उन्हें उनकी दवाइयां देने पर नहीं आपने नहीं सुना और आपने कहा कि आप वक्त से पहले उन्हें दवाइयां दे देंगे और देखा क्या हुआ नतीजा हुआ।”
जिस पर शिवि ने कहा, “पर हमें तो लगा था कि यह बस उनकी नॉर्मल कुछ मेडिसिन होगी पर यह हुआ क्या है उनको और उनकी ऐसी हालत क्यों है वैसे अजीब अजीब हरकतें क्यों कर रहे थे, जब कुछ देर पहले तो वह पूरी तरह से ठीक थे ना दादी सा।”
जिस पर माधवी जी ने कहा, “हां सही कहा पर हमने जो आपको बीती बातें बताई है , यह सब सिर्फ उन्हीं का नतीजा है शिवि, चिराग को मल्टीप्ल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है अभी जिस चिराग से आप मिलकर आई हैं असल में वह सिर्फ एक डरे सहमें हुए इंसान है जो अपने गुस्से में किसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं,
इस हाल में वह अपने सामने वाले किसी भी इंसान को नहीं पहचानते ना कि हमें ना कि अपने दादा सा तक को भी नहीं, वह बस अपने इस रूप में किसी के साथ क्या कुछ कर जाए उन्हें खुद भी होश नहीं है और समय पर अगर उन्हें उनकी मेडिसिन नहीं मिलती,।
तो उनका यही हाल होता है वह अजीब सी हरकतें करते हैं। किसी को नहीं पहचानते और बस खुद को अंधेरे में कैद कर लेते हैं और जैसे ही उनको दवाइयां दे दी जाए तो और उनको आराम मिल जाए तो उन्हें अपने इस हाल के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता कि आखिरकार वह कब क्या कर रहे होते हैं।”
यह सब सुनकर शिवि ने आगे कहा, “और यह सब हुआ कैसे उन्हें?”
जिस पर माधवी जी ने आगे कहा, “आदित्य की मौत बस जब से चिराग ने अपने बाबा सा को खोया है तब से उनका यह हाल हुआ है, सालों पहले चुनमुन की मौत की बात आदित्य अपने बेटे को लेकर इतने ज्यादा पजेसिव हो गए थे वह नहीं चाहते थे कि वह अपने बेटे को भी खो दे।
इसीलिए उन्होंने दिन रात बस चिराग को एक कमरे में कैद कर लिया, बाहर निकालने के आजादी उनसे छीन ली। उन्हें डर था कि कहीं वह चिराग को भी अपनी पत्नी की तरह न खो दे,
जहां चिराग बस हर वक्त बंद कमरे में कैद रहता था अंधेरे में और जब हम सबको यहां लगता था कि प्रयागराज जाकर चिराग बहुत खुश है अपने बाबा सा के साथ पर नहीं। उसके साथ बहुत गलत हुआ आदित्य ने चिराग की सुरक्षा के लिए इतनी ज्यादा किया, उन्होंने चिराग को कैद करके बस दिमागी रूप से पूरी तरह अपाहिज कर दिया और एक दिन उनकी मौत तो हो गई।”
जिसके बाद चिराग ने खुद को अंधेरे कमरे में कैद कर लिया इसके बाद आपके दादा सा ने चिराग का इलाज किसी तरह करवाया इसके बाद वह ठीक तो हुए पर पूरी तरह नहीं हुए और यही वजह है कि अगर समय पर उन्हें उनकी दवाइयां ना मिले, तो बस ऐसी अजीबो-गरीब हरकतें करने लगते हैं और उन्हें अपना बीता हुआ पल ज्यादा याद भी नहीं रहता।
माध्वी जी के मुंह से सारी सच्चाई सुनकर के शिवी पूरी तरह से हैरान थी उसने सोचा भी नहीं था कि दिन के उजाले में चिराग जो सबके सामने इतना नॉर्मल रहता है कुछ वक्त तक दवाइयां ना मिलने पर उसकी हालत कुछ इस कदर हो जाती है।
इसके बाद माधवी जी ने कहा, “खैर रात बहुत हो गई है आप जाइए और जाकर के अपने कमरे में सो जाइए और हां इस बात का ध्यान रहे इस बारे में कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए, यह बात सिर्फ हम और इस महल की दीवारों तक ही सीमित रहनी चाहिए।”
जिस पर शिवी ने कहा, “इसकी फिकर आप मत करिए दादी सा, ऐसा कुछ भी नहीं होगा।” इतना बोलने के बाद वो उसके कमरे से चली गई।