प्रेम कहानी जो खुद को पूरा करने के लिए जिंदगी और मौत की मौहताज नहीं है!! यह प्रेम की एक ऐसी दास्तान है, जो एक जन्म में तो अधूरी रह गई, मगर उसके प्यार में इतनी सच्चाई थी... के भगवान को भी उसको अपने इस प्यार को पूरा करने के लिए दूसरा जन्म देना पड़ता... प्रेम कहानी जो खुद को पूरा करने के लिए जिंदगी और मौत की मौहताज नहीं है!! यह प्रेम की एक ऐसी दास्तान है, जो एक जन्म में तो अधूरी रह गई, मगर उसके प्यार में इतनी सच्चाई थी... के भगवान को भी उसको अपने इस प्यार को पूरा करने के लिए दूसरा जन्म देना पड़ता है 👀 मीरा नाम की एक लड़की जो मुंबई के भाग दौड़ में हर पल कुछ यादों से झूझती रहती थी..... मुंबई के हर गली गली उसको कुछ याद दिलाती थी, जैसे हर रास्ता उसको बताना चाहता हो कि वह अपनी मंजिल को पूरा करने के लिए जन्म ली है.... आखिर कैसे मिलेगी वह अपनी मोहब्बत से दोबारा जन्म में 🥹💖
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मुंबई—यह शहर जो कभी नहीं रुकता, कभी नहीं थमता। इसकी हर गली और हर समंदर की लहर अपने अंदर अनगिनत कहानियाँ समेटे हुए है। यह शहर सपनों का भी है, और टूटे हुए दिलों का भी। और यहीं से शुरू होती है आर्यन और मीरा की कहानी—एक ऐसी कहानी जो समय के चक्र व्यू में कहीं खो गई थी, मगर अधूरी रहकर भी अमर हो गई।
मुंबई मे...... 👀
बारिश का मौसम था और मुंबई की सड़कें एकदम क्लासिक अंदाज़ में पानी-पानी हो रही थीं। मीरा वर्मा, जो कि एक जर्नलिस्ट थी, पेडर रोड के एक छोटे से चायवाले के पास रुकी।
“भैया, एक कटिंग देना, थोड़ा स्ट्रॉन्ग बनाना,” उसने अपने बालों से पानी झटकते हुए कहा।
तभी वहाँ एक और बंदा पहले से खड़ा था—आर्यन मल्होत्रा। उसके हाथ में कुछ किताबें थीं और वह चायवाले से उधार माँगने की फिराक में था।
“भाई, चाय उधार मिल सकती है? इस बार सच में पक्का वापस कर दूँगा।”
चायवाले ने उसे घूरा, फिर मीरा की ओर देखा, “मैडम, आप चाहे तो इनकी चाय स्पॉन्सर कर सकती हैं।”
मीरा ने भौंहें चढ़ाईं, “बिल्कुल नहीं। मैं किसी अनजान आदमी की चाय क्यों स्पॉन्सर करूँ?”
आर्यन मुस्कराया, “देखिए, चाय स्पॉन्सर करने से पुण्य मिलता है। आप चाहें तो इसका इन्वेस्टमेंट मान सकती हैं, कल को अगर मेरी किताब सुपरहिट हो गई, तो मैं आपको धन्यवाद में फ्री कॉपी दे दूँगा।”
मीरा ने उसकी किताब पर नज़र डाली—‘Rebirth to love again' उसने हल्की मुस्कान के साथ चायवाले को पैसे दिए, “ठीक है, मगर किताब फ्री नहीं, साइन की हुई कॉपी चाहिए।”
आर्यन ने अपनी किताब का एक पन्ना फाड़कर उस पर साइन किया और मीरा को थमाया, “लो, अभी तो एमर्जेंसी में बस इतना ही अफॉर्ड कर सकता हूँ।”
मीरा ने किताब का पन्ना लिया, मगर जैसे ही उसने आर्यन की लिखावट देखी, उसे एक अजीब-सा एहसास हुआ। उसके दिमाग में कुछ धुंधली यादें आने लगीं—एक पुराना रेलवे स्टेशन, धुआँ, एक ट्रेन जो धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, और कोई उसका नाम पुकार रहा था।
“मीरा... ट्रेन छूट जाएगी!”
वह एकदम झटका खाकर होश में आई। सामने आर्यन खड़ा था, “क्या हुआ? चाय में चीनी ज़्यादा पड़ गई क्या?”
मीरा ने सिर झटका, “नहीं… कुछ नहीं।” मगर उसके चेहरे पर हल्की घबराहट थी।
इसके कुछ दिन बाद, मीरा को एक आर्ट एग्ज़िबिशन में जाना पड़ा, जहाँ नए लेखकों और कलाकारों की प्रदर्शनी लगी थी। वहाँ उसने फिर से आर्यन को देखा, जो अपनी किताबों का स्टॉल लगाए खड़ा था।
“अरे! तुम यहाँ?” मीरा ने चौंकते हुए पूछा।
आर्यन ने मुस्कराकर जवाब दिया, “हाँ, मैं writer हूँ, और यह एग्ज़िबिशन है। तो मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ, यह उतना भी अजीब नहीं है। मगर तुम यहाँ?”
“मुझे आर्ट पसंद है।”
आर्यन ने ठंडी सांस ली, “अच्छा है। आर्ट और इतिहास का गहरा नाता है, वैसे तुमने मेरी किताब पढ़ी?”
मीरा ने सिर हिलाया, “हाँ… और कुछ कहानियाँ अजीब तरीके से जानी-पहचानी लगीं। जैसे मैंने इन्हें पहले कहीं देखा हो, या… जिया हो।”
आर्यन का चेहरा गंभीर हो गया। “शायद कुछ कहानियाँ सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं होतीं, कुछ को जीना पड़ता है।”
मीरा उसकी आँखों में देख रही थी, और उसे सच में लग रहा था कि यह सिर्फ कोई अजनबी नहीं, बल्कि कोई बहुत जाना-पहचाना इंसान.... नहीं मै कुछ जादा ही सोच रही हूँ
उस दिन की मुलाकात को वह नजरअंदाज कर देती है...
कुछ दिन तक आर्यन उसे कहीं नजर नहीं आता, पर वो उसकी किताबें पढ़ लिया करती थी.... और हर पन्ने में उसको कुछ अजीब एहसास होता था जैसे यह कहानी उसकी अपनी जिंदगी से जुड़ी हो ||
एक हफ्ते बाद--
सुबह के 9 बज रहे थे। मुंबई की लाइफलाइन—लोकल ट्रेन—पहले ही ठसाठस भरी हुई थी। मीरा किसी तरह प्लॅटफॉर्म तक पहुँची और सामने ट्रेन खड़ी देख दौड़ पड़ी। तभी पीछे से एक आवाज़ आई, “अरे रुक जाओ! मर जाओगी!”
मीरा ने मुड़कर देखा—आर्यन। हाथ में एक बैग था और चेहरा ऐसा था जैसे अभी-अभी कुंभ के मेले से निकलकर आया हो।
“तुम फिर?” मीरा ने भौंहें चढ़ाईं।
“अरे ये मेरा डेली रूट है, तुम यहाँ क्या कर रही हो?”
“ऑफिस जा रही हूँ, और वैसे भी ये ट्रेन मेरी बुक नहीं है, जो तुमसे पूछ के चढ़ूँ।” मीरा ने मुँह टेढ़ा किया।
लेकिन ट्रेन के दरवाज़े पर खड़ी भीड़ ने मीरा को अंदर खींच लिया, और साथ में आर्यन भी अंदर आ गिरा।
“अरे भाई, आराम से! ये क्या कर रहे हो?” आर्यन ने खुद को सँभालते हुए कहा।
“कर क्या रही हूँ? मुझे खुद नहीं पता! ये ट्रेन वाले वर्कआउट का पैसा लेते है मुझे देखो कैसे इस ट्रेन के धक्के खा खा कर मॉडल बन गई हूं 🥲
आर्यन हँस पड़ा। “तुम्हें देख के लग नहीं रहा।”
मेरा थोड़ा चीढ़ते हुए कहती है, क्या मतलब मैं सुंदर नहीं लगती
आर्यन सवाल पर थोड़ा हिचकिचाते हुए कहता है..
अरे अरे...! न...नहीं मेरा मतलब यह नहीं है
और वह मीरा को उपर से नीचे तक देखते हुए कहता है
" तुम हो सुंदर"
ऐसा लग रहा है जैसे मेरी कहानी की किरदार मेरे सामने आ गई हो...
थोड़े ही देर में मीरा का स्टॉपेज आ जाता है.. वही मीरा जो आर्यन मे बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं दिखाई और वहां से मुंह टेढ़ा करके उसे बिना बाय बोले चली जाती है
ऑफिस के लंच टाइम मे मिरा जो थोड़ी देर के लिए बाहर कैफे शॉप में आती है
मेरा जो जैसे ही कैफे शॉप के अंदर पहुंचती है...
उसकी नजर जो काउंटर पर हो रहे शोर पर चले जाती ह, पहले तो वह इस शोर को नजरअंदाज करना चाहती थी मगर उसके कानों में जाने पहचाने आवाज गूंज जाती है वह देखते हैं कि आर्यन जो काउंटर पर पैसे को लेकर झिक-झिक कर रहा है...
आर्यन को देखकर उसकी आंखें बड़ी हो जाती है... और वह खुद से ही केहती है क्या यह शख्स मेरा पीछा कर रहा है👀
मामला सिर्फ ₹100 का था.... परेशान होकर मीरा जो अपने चेयर से उठकर काउंटर पर पहुंचती है और आर्यन के बदले ₹100 बहुत दे देती है ||
आर्यन जैसे ही मीरा को देखता है.....
वह उससे चौंकते हुए पूछता है
“तुम सच में मेरा पीछा कर रही हो, है ना?”
“व्हाट...?? मैं स्टाकर नहीं हूँ, मीरा ने गुस्से मे कहा क्योंकि यह सवाल तो उसे आर्यन से करना था
वह आर्यन से कहती है... तुम बताओ तुम उस हर जगह पर कैसे पहुंच जाते हो जहां मैं होती हूं 👀
आर्यन जो उसकी बात पर थोड़ा हंसते हुए बोलता है...
शायद तुम काफी खुश किस्मत हो... जो यू मेरे जैसे हैंडसम लड़के से बार-बार मुलाकात हो रही है ||
लड़कियां मरती है मुझसे बात करने के लिए, लेकिन मैं उन्हें जरा भी भाव नहीं देता ||
और तुमसे तुम्हें खुद बात कर रहा हूं, आज जाकर मंदिर में प्रसाद जरूर चढ़ाना 😝
आर्यन जो काभी मजाकिया मूड में था मगर मीरा नहीं...
वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी, वह आर्यन से कहती है...
“एक बात बताओ, कभी तुम्हें ऐसा लगा है कि तुम किसी को पहली बार मिलने के बावजूद जानते हो?”
आर्यन ने हल्का-सा हँसते हुए कहा, “ये कोई हिंदी फिल्म का डायलॉग लग रहा है।”
“सीरियसली पूछ रही हूँ।” मीरा ने उसकी आँखों में देख कर कहा
आर्यन थोड़ा गंभीर हो गया। “हाँ, कभी-कभी ऐसा लगता है। जैसे कुछ लोग हमें पुराने से लगते हैं, बिना किसी वजह के।”
मीरा कुछ सोचने लगी। क्या ये वही एहसास था जो उसे बार-बार हो रहा था? क्या आर्यन से उसका कुछ पुराना कनेक्शन था? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था?
उस रात मीरा को फिर वही सपना आया—रेलवे स्टेशन, धुआँ, और कोई उसे बुला रहा था।
“मीरा... ट्रेन छूट जाएगी!”
मीरा अचानक चौंककर उठ कर बैठी।
“फिर वही सपना?” उसने अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए सोचा।
क्या ये सिर्फ इत्तेफाक था या उसके पिछले जन्म का कोई अनसुलझा राज़?