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Obsessed Aashiq

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यह कहानी है प्रेम की, एक जुनूनी आशिक, जिसकी दुनिया में कोई भी चीज उसकी जिद से परे नहीं थी। जो भी वह चाहता, उसे पा लेता—लेकिन फिर उसकी ज़िंदगी में आई आशा, एक सादगी और सिद्धांतों की मूरत। प्रेम का दिल आशा के लिए धड़कने लगा, मगर किस्मत ने एक ऐसा खे...

Total Chapters (28)

Page 1 of 2

  • 1. a room for rest - Chapter 1

    Words: 510

    Estimated Reading Time: 4 min

    बेहद थकी हुई आवाज़ में, कंगना ने अपने हाथों के कंगन ऊपर-नीचे करते हुए अपनी माँ को दिन भर की चुनौतियों के बारे में बताया। "इधर-उधर सर्च करने के बाद आखिरकार मुझे पता चला कि मुंबई जैसे जटिल शहर में नौकरी ढूँढना आसान है, पर रहने के लिए घर ढूँढना बहुत मुश्किल होता है।" उसकी माँ ने निराश आवाज़ में कहा, "ना चाह देखो, ना दिल देखो। ना मेहनत देखो, ना मुश्किल देखो। तुम सफ़र में अपने आगे निकल जाओ, बस रास्ता देखो, बस मंज़िल देखो।" कंगना को अपनी माँ का यह सहारा काफी था, सारे दिन की थकान मिटाने के लिए। कंगना ने सवाल किया, "माँ, इतनी अच्छी बात आप उदास आवाज़ में क्यों कह रही हो? क्या दादी ने फिर कुछ कहा?" उसकी माँ हँसने लगी और हँसते-हँसते बस इतना ही बोली, "कुछ नहीं कहा बेटा।" कंगना समझ गई कि यह "कुछ नहीं" ही बहुत कुछ है। कंगना एक ऐसी लाचार लड़की थी जिसका इस दुनिया में अपनी माँ और अंधे भाई के सिवा कोई सहारा नहीं था। बाकी जो भी लोग थे, वे सिर्फ़ ताना देने का काम करते थे। अपनी पारिवारिक समस्याओं को साथ लेकर, कंगना मेहनत से आगे बढ़ती गई और उसने अपने सपनों की ओर पहला कदम बढ़ा दिया। कंगना एक प्यारी सी लड़की थी, जिसका शरीर कमज़ोर नज़र आता था, पर दिमाग मज़बूत था। अपने सपनों को लेकर, अपने शहर निज़ामाबाद से कई किलोमीटर दूर मुंबई की जानी-मानी यूनिवर्सिटी, "द बिज़नेस स्टार्स" में स्कॉलरशिप हासिल करके, उसने अपनी प्यारी माँ और शरारती भाई का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था। उसने अपनी अब तक की पढ़ाई निज़ामाबाद में ही पूरी की थी और शायद उसकी काबिलियत से खुश होकर ऊपर वाले ने उसे यहाँ पढ़ाई पूरी करने का मौक़ा दिया था। पर विजय की राह में कठिनाइयाँ बहुत होती हैं। मुंबई में उसने जिस घर को चुना था, वहाँ के मालिक के बेटे 'विजय' की शादी तय हो गई थी, इसलिए उसे वहाँ से जाना पड़ा। सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि कंगना को कुछ समझने का मौक़ा ही नहीं मिला। उसके पास बहुत कम वक़्त बचा था जिसमें उसे रहने की जगह ढूँढनी थी। कंगना आज यूनिवर्सिटी नहीं जा पाई। वह सारा दिन घर की तलाश करती रही और आखिरकार उसे एक घर मिल गया। एक बड़े से काले रंग के बोर्ड पर सफ़ेद रंग से लिखा हुआ था, "Room for rent"। यह पढ़ते ही कंगना ने अपने 5G फ़ोन से नीचे दिए गए नंबर पर कॉल किया और घर के मालिक से बात करने लगी। वह घर का मालिक एक रूखे स्वभाव का व्यक्ति था। उसने कहा कि कंगना को वहाँ एक कमरे के लिए 7000 रुपये प्रति महीना देने होंगे। कंगना के लिए इतने पैसे हर महीने खर्च करना बहुत बड़ी बात थी, पर उसके खाते में अभी 16000 रुपये थे, जो उसने एक बुक शॉप में पार्ट-टाइम जॉब करके कमाए थे। लेकिन उस बुक शॉप के मालिक की बेटी, जो अमेरिका में रहती थी, को एक बच्चा हुआ था। इसलिए वह उसे मिलने अमेरिका चले गए थे और साथ ही अपनी दुकान भी बंद कर दी थी।

  • 2. Obsessed Aashiq - Chapter 2

    Words: 540

    Estimated Reading Time: 4 min

    कंगना के पास कोई नौकरी नहीं थी और उसे अपना खर्चा उठाने के साथ-साथ अपने परिवार को भी पैसे भेजना था। पिताजी की मृत्यु के बाद से उनके परिवार को एक के बाद एक सदमे झेलने पड़ रहे थे। पैसों की कमी ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी थी। लेकिन कंगना नसीब की ठोकरों को खाकर गिरने वालों में से नहीं, बल्कि मुश्किल रास्तों पर चलना सिखने वालों में से थी।

    कंगना इतने पैसे खर्च नहीं करना चाहती थी, लेकिन उसे कमरे की ज़रूरत थी। उसने समझदारी से मकान मालिक से कमरा देखने की अनुमति माँगी। मकान मालिक ने उसे अंदर आने को कहा।

    वह एक छोटी सी, काले रंग की गेट से अंदर गई। वहाँ लाइट नहीं थी, और अभी-अभी स्ट्रीट लाइट जल रही थी क्योंकि सूरज ढल गया था।

    मकान मालिक एक गिर्दा, मोटा और साँवले रंग का व्यक्ति था, जिसने बनियान पहनी हुई थी और लूंगी बँधी हुई थी, बिल्कुल तमिलों की तरह; पर वह तमिल नहीं था।

    उसने कंगना को कमरा दिखाया। कमरा ऐसा था मानो महीनों से साफ न किया गया हो। इसकी सफाई में दो घंटे लग सकते थे, और कंगना को अपना सामान भी यहाँ लाना होगा। वक्त और पैसा, दोनों बर्बाद।

    जब तक कंगना कमरे की जांच कर रही थी, तब तक वह मकान मालिक उसकी खूबसूरती की जांच कर रहा था। कंगना के काले बाल उसकी कमर तक थे, जिन्हें उसने एक चोटी में बाँध रखा था।

    उसने बेहद सादा, नीले रंग का कुर्ता-पजामा पहना हुआ था, जो अंधेरे में सफ़ेद सा लग रहा था।

    वह बेहद सादे लुक में भी खूबसूरत लग रही थी। उसके अति सुंदर चेहरे पर मेकअप नहीं था, पर उसकी प्यारी सी आँखों पर हमेशा चश्मा लगा रहता था।

    ज्यादा पढ़ने की वजह से उसकी आँखें कमज़ोर हो गई थीं, लेकिन इतनी कमज़ोर नहीं कि वह किसी की बुरी नज़र को न पहचान सके।

    कंगना को एहसास हो गया था कि वह इस कमरे को तो साफ कर लेगी, पर इस मकान मालिक के मन में जो गंदगी भरी हुई है, उसे साफ नहीं कर सकती।

    कंगना ने कहा, "मुझे यह कमरा पसंद नहीं।"

    तभी उस मकान मालिक ने कहा, "पर मुझे तुम पसंद हो।"

    अनजान शहर में, अनजान गली के, अनजान व्यक्ति से बहस करना कोई समझदारी का काम नहीं था। इसलिए वह वहाँ से चुपके से निकल गई।

  • 3. Obsessed Aashiq - Chapter 3

    Words: 516

    Estimated Reading Time: 4 min

    वह रास्ते में उस इंसान के व्यवहार से पहले ही गुस्से में थी और घर न मिलने की वजह से परेशान भी थी। वह रोड पर, फुटपाथ के नजदीक चल रही थी। काश, वह फुटपाथ पर चलती तो सुरक्षित रहती, पर अचानक उसकी परेशानी बढ़ गई। एक तेज रफ्तार बाइक उसके हाथ से टकराकर निकल गई और उसे बहुत गहरी चोट लग गई, उस कठोर बाइक चालक की वजह से।

    वह बाइक वाला उसके सामने रुक गया और अपना हेलमेट निकालकर कंगना को देखने लगा। नौजवान सा, बॉडीबिल्डर, जिसके चेहरे पर किसी मासूम सी लड़की को चोट पहुँचाने का बिल्कुल अफ़सोस नहीं था, वह बाइक पर बैठा उसे देख रहा था।

    कंगना इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दे पाई क्योंकि हाथ पर लगी चोट का दर्द इतना तीव्र था कि वह वहीं सड़क पर घुटनों के बल बैठ गई। लोग उस गाड़ी चालक को बुरा-भला कह रहे थे, जब तक उन्होंने उसका चेहरा नहीं देखा था। पर उसका चेहरा देखकर वे लोग खामोश होकर वहाँ से चले गए।

    कंगना ने अपना हाथ पकड़ा हुआ था, जिसकी शायद हड्डी टूट गई थी। कंगना ने बड़े गुस्से में कहा, "तुम पक्का अंधे हो!"

    उतने में वह लड़का अपनी गाड़ी से किसी फिल्मी अंदाज में उतरकर उसके आँखों के सामने आकर ठहर गया और उसने कंगना का दुपट्टा छीन लिया। आखिर क्या इरादा लेकर आया है यह अजनबी नौजवान कंगना की ज़िन्दगी में?

    भूरे चमड़े की जैकेट पहना नौजवान सा दिखने वाला, हैंडसम या डैशिंग लड़का अपनी मोटरबाइक से बड़ी ही शान से उतरा और कंगना के आँखों के सामने आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर सभी लोग वहाँ से चले गए, जैसे वह कोई गैंगस्टर हो।

    कंगना दर्द से तड़प रही थी कि उसने बड़ी फुर्ती से उसका दुपट्टा छीन लिया। कंगना बस अपने दर्द को भुलाकर उसके इस बदतमीज़ अंदाज का विरोध करना शुरू करने ही वाली थी कि उसने महसूस किया कि इतने सुनसान इलाके में जहाँ कई सारे लोग थे, अब कोई नहीं है।

    उस लड़के की नियत बुरी नहीं थी, लेकिन तरीका बुरा था। उसने उसके दुपट्टे से उसके हाथ को, किसी प्रोफेशनल डॉक्टर की तरह, मात्र दुपट्टे से एक फ्रैक्चर जैसा सहारा दिया, जो उसके बुरी तरह टूटे हाथ को सहारा दे रहा था।

    इन सब चीजों को देखकर कंगना ने कुछ नहीं कहा और उस बदतमीज़ लड़के ने कंगना के प्यारे से चेहरे को देखकर, गर्व भरी आवाज़ से, जिसमें शक्ति और आवारगी दिखती थी, कहा, "तुम बच्चों की तरह नाटक मत करो। ज़्यादा चोट नहीं लगी है। फिर भी, साथ चलो, मैं तुम्हें हॉस्पिटल छोड़ दूँगा।"

  • 4. Obsessed Aashiq - Chapter 4

    Words: 546

    Estimated Reading Time: 4 min

    कंगना यहां के अधिकांश रास्तों से अनजान थी क्योंकि उसने इस जमीन पर पिछले सप्ताह ही कदम रखा था। वह दर्द से झटपटाना चाहती थी, पर अपनी सीमित सहनशक्ति को उस लड़के के सामने नहीं दिखाना चाहती थी।

    उसे कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा और उसने उसकी बाइक पर बैठकर जाने का फैसला किया।

    आदत के अनुसार, उस लड़के ने रेसिंग बाइक की तेज गति पकड़ी, जो कंगना के लिए किसी अंधेरे कमरे में अकेले बैठकर उच्च-रेटेड हॉरर मूवी देखने जैसा था। इससे वह डर गई और उसने उस लड़के का मज़बूत कंधा पकड़ लिया। इस बर्ताव से उस लड़के को महसूस हुआ कि उसके पीछे बैठी लड़की ने कभी इतनी रफ़्तार का अनुभव नहीं किया है।

    उस लड़के ने बाइक की गति धीमी की। कंगना ने उसका कंधा नहीं छोड़ा। शायद वह उसे सहारे की तरह इस्तेमाल कर रही थी, पर उसका स्पर्श उस लड़के के घमंडी दिल की गहराइयों में भावनाएँ जगा रहा था।

    वे लोग एक निजी अस्पताल पहुँचे। उसकी चमक-दमक देखकर लगता था कि वहाँ का स्टाफ़ मरीज़ की समस्या पूछने से पहले पैसों के बारे में पूछेगा।

    उस लड़के ने कंगना को अस्पताल के अंदर तक छोड़ा। उसने रिसेप्शन पर भुगतान कर दिया। प्रवेश शुल्क कुल पंद्रह सौ रुपये थे, जो उसके लिए मामूली थे। हिस्ट्री कार्ड पर उसने कंगना का नहीं, अपना नंबर लिखवाया और अटेंडर विकल्प पर उसने 'पति/पत्नी' पर निशान लगाया। यह दर्शाता था कि उसका धड़कता हुआ दिल अपनी धड़कनों को कंगना के लिए तेज़ करना शुरू कर चुका था, जिसका नाम उसे प्रिस्क्रिप्शन के ज़रिए पता चला - 'कंगना'।

    वह उसके पास आया जब उसका उपचार चल रहा था। नर्स उसका फ्रैक्चर लगभग जोड़ ही चुकी थी। उसे देखकर कंगना उस पर बरस पड़ी। "इतना बड़ा फ्रैक्चर मुझे जिंदगी में कभी नहीं आया! तुमको लाइसेंस किसने दिया? बताओ? मैं उसका गला दबा दूँगी!"

    वह उसके बरसते गुस्से को प्यासे प्रेमी की तरह पी रहा था। तभी कंगना ने कहा, "इतने महँगे अस्पताल में मुझे लाने की क्या ज़रूरत थी? अब इसका खर्चा कौन उठायेगा? वैसे, गलती तुम्हारी है, तो तुम्हें ही सारा बिल देना होगा।"

    वो लड़का, उसकी मुस्कराहट लेकर, बेशर्म अंदाज़ में उसके करीब आते हुए बोला, "तुम फ़िक्र मत करो। मैं तुम्हारे इलाज का खर्चा ही नहीं, मैं तुम्हारे घर का खर्चा भी उठाने को तैयार हूँ।"

    कंगना उससे दूर हटते हुए उसे अपनी उंगली दिखाकर बोली, "देखो तुम..." वो लड़का उसकी बात काटते हुए बोला, "देख तो मैं तुम्हें कब से रहा हूँ, और कितने नज़दीक आकर देखूँ?"

    कंगना को उसकी हरकतों से चिढ़ आने लगी और उस लड़के को कंगना को परेशान करने में मज़ा आने लगा। कंगना ने अपना आपा खो दिया।

    क्रमशः...

  • 5. Obsessed Aashiq - Chapter 5

    Words: 547

    Estimated Reading Time: 4 min

    और वह उसे कुछ कहने ही वाली थी कि उसके पास खड़ी नर्स ने डरी हुई आवाज़ में कंगना के करीब जाकर कहा, "तुम इसे कुछ भी मत बोलो। यह तुम्हारी जान ले सकता है। यह बहुत खतरनाक आदमी है।"

    नर्स की यह बात कहते ही कंगना शांत हो गई और उसके मन में यकीन समा गया कि यह एक गैंगस्टर है, जिससे सारा मुंबई शहर डरता है।

    वह लड़का कंगना के पास आकर कहने लगा, "तुम्हें पता है क्या? तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारा नाम ‘कंगना’ बड़ी ही सोच-समझकर रखा है क्योंकि उन्हें पता था कि आगे चलकर तुम्हारा प्रिय हमसफर कौन बनने वाला है।"

    कंगना ने कहा, "माफ़ करना, पर आपकी बातें मुझे आपका मुँह तोड़ने पर मजबूर कर सकती हैं।" कंगना की बात सुनकर लड़के को निराशा हुई। उसने कहा, "नहीं, नहीं मेरी कंगना..."

    यह कहते-कहते वह लड़का उसके बहुत करीब आ गया और उसने अपनी बात जारी रखी, "तुम्हारा नाम कंगना है और तुम्हें सुहाग के कंगन तो मैं ही पहनाऊँगा।"

    "वैसे मुझे तो सारे मुंबई शहर में आवारा अरुण के नाम से जानते हैं लोग, लेकिन आज के बाद दुनिया मुझे आशिक अरुण के नाम से जानेगी। मुझे AA बुलाओ।"

    कंगना डरी हुई आवाज़ में उससे दूर जाते हुए सवाल करने लगी, "तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? मैं तुम्हें AA नहीं, गो-गो बुलाऊँगी। अब मेरे जीवन से चले जाओ।" तभी अरुण उन दोनों के बीच की सारी दूरियाँ मिटाकर उसके गाल को किस कर देता है।

    कंगना कुछ समझ नहीं पाई और अरुण ने कहा, "मैं यहाँ से तो चला जाऊँगा, लेकिन तुम्हारी ज़िन्दगी से नहीं। अब तुम्हारी ज़िन्दगी मेरी है।"

    अरुण जिसे भी पसंद कर लेता है, उस चीज़ को हासिल करके ही रहता है। यही अरुण का जुनून है।" वह इतना कहकर मुस्कुराते हुए चला गया, लेकिन क्या वह कंगना की ज़िन्दगी से भी चला गया? शायद नहीं।

    क्या कंगना अरुण की ज़िद को मानने वालों में से है? या उनकी ज़िन्दगी में कोई और भी आएगा? यह प्यार के नाम पर लगी जुनून की चिंगारी कितने दिनों तक जलने वाली है?

  • 6. Obsessed Aashiq - Chapter 6

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    चाँद की रोशनी में, सितारों की बजाय नीले, लाल और गुलाबी रंग की लाइटों से जगमगाती दो मंजिला इमारत सभी को आकर्षित कर रही थी। तरह-तरह की खुशबू से महकता वह मकान, मानो कोई परफ्यूम शॉप हो।

    सभी लोग सुंदर और शानदार कपड़े पहने, अपनी-अपनी खुशियों में मग्न थे। सबसे ज़्यादा खुशी मेहता साहब को हो रही थी, जो अपनी इकलौती लाड़ली बेटी खुशी की सगाई की तैयारियों की जाँच कर रहे थे।

    मेहता साहब एक गरीब परिवार से आते थे। उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी रावत परिवार के लिए वफ़ादारी से काम किया, फिर भी वे इतने पैसे नहीं जुटा पाए जिससे वे अपनी इकलौती लाड़ली बेटी की शादी किसी अमीर परिवार में धूमधाम से करा पाते।

    पर शायद इसीलिए उन्हें रावत परिवार से कर्ज़ लेना पड़ा। उन्होंने रावत परिवार को ईमानदार माना था, लेकिन शायद रावत परिवार ईमानदारी के नाम से सिर्फ़ मशहूर था, और असलियत में इंसाफ़ से कोसों दूर।

    सभी लोग बहुत खुश थे। खुशी अपने सच्चे प्यार करण के साथ इस सगाई के कुछ समय बाद शादी और विदाई के लिए उत्सुक थी। खुशी और करण कॉलेज के दोस्त थे। अपना-अपना करियर बनाने निकले थे, लेकिन खुशी के पिता की गरीबी के कारण खुशी मास्टर्स नहीं कर पाई, जबकि करण चार्टर्ड अकाउंटेंट बन गया था।

    वे दोनों एक-दूसरे से सच्ची मोहब्बत करते थे, लेकिन करण की माँ शिल्पा जी अति लालची थीं। वे एक ऐसी लड़की की तलाश में थीं जो उन्हें खूब सारा पैसा दहेज़ के नाम पर दिला सके।

    तो क्या? बस, जब मेहता साहब को खुशी ने अपनी इच्छा बताई, तब अपनी बेटी की ख्वाहिश के लिए मेहता साहब ने कर्ज़ ले लिया। लेकिन इस बात के बारे में किसी को नहीं पता था। जब तक इस खुशहाल माहौल को दुःख से भरने, एक काला कोट और पैंट पहने, मुश्किल से तीस साल का लगने वाला व्यक्ति, अपने कदम मेहता निवास में नहीं ले आया।

    यह रावत बिज़नेस सीरीज़ का मालिक, आयुष रावत था, जो यहाँ अपनी ही रची हुई साज़िश के तहत इस सगाई को दुःख में तब्दील करने आया था।

    आयुष एक बिज़नेस का प्रतीक था, और मात्र मुंबई ही नहीं, पूरे देश में उसका बिज़नेस फैला हुआ था। लेकिन मुंबई में तो हर कोई आयुष का चेहरा पहचानता था। इस इलाके में वह शाहरुख खान से भी ज़्यादा जाना-माना चेहरा था। पर वह यहाँ क्यों आया था?

  • 7. Obsessed Aashiq - Chapter 7

    Words: 515

    Estimated Reading Time: 4 min

    मेहता साहब ने आयुष का पास जाकर बड़ी खुशी से स्वागत किया। आयुष ने इधर-उधर की सजावट देखकर शान से कहा, "मैं यहाँ तुम्हारी बेटी की सगाई की खुशियाँ मनाने नहीं आया हूँ, बल्कि अपना दिया गया पैसा वापस लेने आया हूँ।"

    यह बात सुनकर मेहता जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। बदकिस्मती से, यह बात करण की लालची माँ, शिल्पा जी के कानों तक पहुँच गई। शिल्पा जी ने सवाल किया, "कैसा पैसा? क्या इनसे आपने पैसे लिए हैं?" शिल्पा के पति उन्हें चुप कराना चाहते थे, लेकिन वे अपनी पत्नी से ज़्यादा डरते थे, इसलिए उन्होंने खामोशी अख्तियार कर ली।

    आयुष ने कहा, "मिस्टर मेहता, आपने मुझसे 25 लाख रुपये उधार लिए थे। अपनी बेटी की शादी के लिए। और बदले में आपने अपना एक छोटा-सा मकान गिरवी रखा था, जिसे आप अब फंक्शन हॉल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।"

    "और आपने जिन कागज़ों पर अपने हस्ताक्षर किए थे, उनमें यह लिखा था कि आप 10 दिन के अंदर 25 लाख रुपये लौटा देंगे, लेकिन आज 11वाँ दिन है।"

    आयुष इतना कहकर मुस्कुराया। मेहता जी घबरा गए, क्योंकि उन्हें ठीक से पढ़ना नहीं आता था। इसलिए उन्होंने पूरे दस्तावेज़ पढ़ने की बजाय आयुष पर भरोसा करके अपना मकान गिरवी रख दिया था।

    मेहता साहब आयुष की ओर जाकर धीमी आवाज़ में कुछ कहने वाले थे कि शिल्पा जी का लाउडस्पीकर फट गया।

    वह अपने कठपुतली बेटे को वहाँ से उठाकर जाते हुए कहने लगी, "तुम लोग तो भिखारी हो! इसलिए मैं अपने पढ़े-लिखे बेटे का अनमोल रिश्ता तुम्हारी भिखारी सी बेटी से नहीं कराना चाहती, जिसका घर भी कहीं गिरवी पड़ा हो।"

    शिल्पा जी वहाँ से अपने बेटे का हाथ पकड़कर जाने लगीं, पर बीच में ही करण ने उनका हाथ झटक दिया। शायद वह अपनी सच्ची मोहब्बत की सगाई बर्बाद नहीं करना चाहता था।

    पर करण एक ऐसा लड़का था जो सारी दुनिया को बाद में और अपनी माँ के आदेशों को पहले तरजीह देता था। लेकिन आज उसे क्या हुआ? आज पहली बार उसने अपनी माँ को, इशारों-इशारों में ही सही, किसी बात के लिए मना किया।

    करण उनको मना रहा था कि खुशी की ज़िन्दगी इस प्रकार से खराब न करें, पर शिल्पा जी उसकी बात मानने को तैयार नहीं थीं। शिल्पा जी अपने बेटे का हाथ पकड़कर वहाँ से चली गईं। करण के पिता अपनी बीवी का विरोध नहीं कर पाए। और मेहता साहब ने उन्हें रोकने की भी कोशिश नहीं की।

  • 8. Obsessed Aashiq - Chapter 8

    Words: 513

    Estimated Reading Time: 4 min

    शिल्पा जी को केवल एक बहाना चाहिए था। जैसे ही उन्हें अवसर मिला, वे अपने बेटे और पति के साथ गाड़ी में बैठकर तुरंत वहाँ से चली गईं, मानो वे इसी मौके के इंतज़ार में थीं।

    मेहता जी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था और खुशी आयुष को नम आँखों से देख रही थी जो उसकी सगाई में दखल देकर, उसे एक दुःखद पीड़ा देकर, वहाँ से जा रहा था। अब उसे अपने पैसे याद नहीं आ रहे थे, जब उसकी दुनिया उजड़ गई थी।

    तभी मेहता जी अपने कई मेहमानों को हँसता हुआ वहाँ से जाते देखकर अपनी बेटी की ओर मुड़े।

    अपनी जान से प्यारी बेटी को आँसुओं में देखकर मेहता जी के सीने में टीस उठी और वे सीना पकड़कर फर्श पर गिर पड़े जहाँ गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई थीं।

    आखिर एक बड़े बिज़नेसमैन को एक गरीब व्यक्ति के साथ इतनी छोटी सोच वाला काम करने की क्या ज़रूरत थी? आयुष क्या चाहता था?

    आयुष अपनी कार में बैठा, खिड़की के बाहर देखकर मुस्कुरा रहा था क्योंकि उसकी योजना के अनुसार उसने अपने गद्दार को सबक सिखा दिया था। बहुत ही अच्छा सबक सिखा दिया था।

    तभी उसने एक एम्बुलेंस को उस रास्ते जाते देखा जिस रास्ते से उसकी कार आ रही थी। उसकी मुस्कराहट और भी बढ़ गई।

    उसे बिना वजह मुस्कुराते हुए देखकर उसके ड्राइवर ने उससे उसकी मुस्कराहट की वजह जानने की कोशिश की। आयुष ने अपनी मुस्कराहट को कम करते हुए वजह बताने से परहेज़ किया। लेकिन इतने वफ़ादार शख्स से आयुष ने किस बात का बदला लिया होगा? वजह जो भी हो, उसके बदले ने उसे इमरजेंसी तक पहुँचा दिया था, जिसके लिए वह एम्बुलेंस आई थी।

    आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) के बाहर खुशी अपने मंगनी के खूबसूरत, गुलाबी रंग के लहंगे में, जेवरों से घिरी, आधी रात में बेजान सी, एक बेंच पर बैठी हुई, अपने प्यार को पाने का मौका गँवाने पर और अपने पिता को अपनी ख्वाहिश बताकर आईसीयू तक पहुँचाने पर ग़म मना रही थी और अपने मामा-मामी के तानों को सह रही थी।

    खुशी की मामी खुशी को हमेशा कहती थी कि करण उससे बेहद मोहब्बत करता है पर उसकी माँ उन दोनों के इश्क़ में हमेशा दुश्मन बनकर लगी रहेगी। उनकी बात को ना सुनते हुए खुशी ने अपने पिता से अपनी इच्छा का जिक्र किया, जो कि उसकी गलती थी।

    खुशी की मामी: "अगर तुम उस लड़के से शादी करने की ज़िद नहीं करतीं तो तुम्हारे पिता को कर्ज़ लेने की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ती।"

    खुशी के मामा: "अभी पछताने से क्या फ़ायदा होगा? तुम्हारे पिताजी को तो तुमने अस्पताल का रास्ता दिखा दिया। अब सारा खर्चा मुझे ही उठाना होगा।" उन्होंने अपने सिर पर हाथ रख लिया।

    खुशी की मामी: "बस पैदा होते ही तुमने अपनी माँ की जान ले ली और अब अपने पिता की जान लेने पर तुली हो।"

  • 9. Obsessed Aashiq - Chapter 9

    Words: 509

    Estimated Reading Time: 4 min

    खुशी की ज़िंदगी एक पल में बर्बादी की देहलीज़ पर आ गई थी। खुशी अपने मामा-मामी के तानों को और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह उदासी लेकर अस्पताल में एक बेजान-सी वॉक करके अपना ग़म हल्का करना चाहती थी। वह बगैर किसी अनुमान के इधर-उधर फिर रही थी कि एक लड़की उससे टकरा गई और उसका फ़ोन खुशी से गिर गया।


    हाँ, यह जल्दबाज़ी में आती लड़की हिमालय से ऊँची हिम्मत रखने वाली कंगना थी, जिसे अरुण यहाँ एक घंटे पहले लाया था। उसके हाथ पर फ़्रैक्चर लग चुका था। बस अब कंगना अपनी रफ़्तार का अनुमान न लगाकर तेज़ी से अपने घर की ओर वापस जा रही थी। गलती कंगना की होने के बावजूद भी खुशी बड़े दुख के साथ उससे माफ़ी माँग रही थी।

    "माफ़ी मत माँगो," कंगना ने कहा और वहाँ से अपना फ़ोन उठाकर चली गई।


    खुशी सोच रही थी कि अपने अक्सर तकलीफ़ देते हैं, पर माफ़ी नहीं देते। हाँ, ऐसा अक्सर होता है कि अपने तकलीफ़ देते हैं, पर ज़रूरी नहीं कि उनकी नियत बुरी हो।


    रात के 11:00 बजे, सड़क पर कंगना डरी हुई चल रही थी, मानो जैसे उसकी हिम्मत काँप रही हो। अब हाथ के दर्द के मारे उसके पास कोई चारा नहीं बचा था, सिवाय वापस उसी घर में जाकर एक दिन बिताने के, जहाँ के मकान मालिक ने उसे उसी रात खाली करके जाने के लिए कहा था।


    कंगना घर में वापस चली गई। वह जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर जा रही थी तभी बीच में वह मकान मालिक से बिलकुल ख़िस्मती से टकरा गई। रात बहुत थी, इसलिए मकान मालिक ने कंगना से कोई सवाल नहीं किया और कंगना ने उन्हें सवाल करने का मौक़ा न देते हुए अपने कमरे में जल्दी चली गई।


    अगले दिन, मोबाइल की घंटी ने कंगना को जगाया। स्क्रीन पर जो नंबर दिख रहा था, वह जाना-पहचाना नहीं था। कंगना ने फ़ोन उठाया।

    "हेलो, कौन है?"

    एक अनजान पर जानी-पहचानी सी आवाज़ ने कहा, "कंगना डियर, खाना खा लिया क्या?"

    इससे पहले कि कंगना कुछ कहती, उस आवाज़ ने जारी रखा, "अगर नहीं खाया तो मशरूम सलाद के साथ नाश्ते में कुछ न्यूट्रिटिव भेज दूँगा। एड्रेस बस भेज दो, कंगना डियर।"


    कंगना को उससे बहस करना बेकार लग रहा था। वह पहचान चुकी थी कि यह अरुण है, नहीं-नहीं, आवारा अरुण। तो कंगना ने फ़ोन काट दिया। पर अरुण जैसे ढीठ आदमी को कौन समझाए। अरुण ने फिर कंगना को फ़ोन लगाया, पर कंगना ने बगैर वक़्त गँवाए उसका नंबर ब्लॉक कर दिया और खुद की समझदारी पर नाज़ करने लगी।

  • 10. Obsessed Aashiq - Chapter 10

    Words: 521

    Estimated Reading Time: 4 min

    वह जल्दी तैयार होकर अपनी यूनिवर्सिटी के लिए जा रही थी, पर रास्ते में ही मकान मालिक ने उसे रोक लिया। कंगना को मालूम था कि वह किस बारे में बात करेंगे; इसलिए उसने उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए, "मैं बिज़ी हूँ," कहकर वहाँ से चल दिया। कंगना ने मकान मालिक को नज़रअंदाज़ तो कर दिया, पर शायद मुसीबत को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

    जाते-जाते ही कंगना को एक अनजान नंबर से कॉल आई। कंगना को लगा कि यह उसकी यूनिवर्सिटी की लेक्चरर होगी, जिसने असाइनमेंट के बारे में पूछने के लिए फोन किया है; पर ज़रूरी नहीं कि हमेशा जैसा लगता है, वैसा ही सच हो। इस बार भी यह आशिक अरुण था, जिसने अपने नौकर का फ़ोन छीनकर कॉल किया था।

    कंगना ने फ़ोन उठाया तो सामने से आवाज़ आई, "अय मेरी जान, मेरी जानेमन! मत कर मुझ पर ऐसा सितम। बस जा मेरे दिल की वायु में, बदल दे हमारा मौसम। परेशान हूँ बहुत तेरे इंतज़ार में, नसीब ने आपको हमसे मिलाया है तो बस बन जाओ आप..."

    उसकी फ़ालतू बकवास काटकर कंगना ने फ़ोन रख दिया और स्विच ऑफ़ कर दिया। क्योंकि उसे पता था कि अगर वह इस नंबर को भी ब्लॉक करेगी तो यह शैतान दोबारा किसी और नंबर से उसे कॉल करेगा। कंगना यूनिवर्सिटी चली गई।

    यूनिवर्सिटी का लेक्चर अटेंड करने के बाद, हर एक क्लास का पूर्ण रूप से अनुभव किया। कुछ सीखी गई बातें, तो कुछ परेशानियाँ अपने दिमाग में रखकर, घर के रास्ते कदम बढ़ा रही थी कंगना।

    पर इस बार कोई गाड़ी नहीं, बल्कि एक काले रंग की, वेल-पॉलिश्ड कार धीमी रफ़्तार से उसके पास आकर ठहर गई। कंगना ने एक नज़र उस पर डाली। फ्रंट सीट का आईना धीरे से नीचे होने लगा और जैसे ही उसने उस कार चालक की आँखों को देखा,

    वह अपने कदम दौड़ाकर अपने घर की ओर तेज़ी से भागने लगी और जैसे ही वह भागी, वह कार भी उसके पीछे किसी अनजान साये की तरह आने लगी।

    उस गाड़ी की गति कंगना की गति के समान थी। पर कंगना ने दिमाग लगाया और एक पतली सी गली में चली गई। यूँ कह लो कि वह पतली गली पकड़कर भाग गई, पर वह कार उस पतली गली में नहीं जा पाई।

    पर शायद वह कार चालक कंगना को ऐसे ही नहीं जाने दे सकता था; इसलिए वह अपनी महँगी गाड़ी से उतरा। काला सूट-पैंट पहने, टाई को गले में सजाए यह अपना अरुण था। जिसे देखकर लग रहा था कि यह अभी-अभी किसी मीटिंग से आया है, पर यह हमारी कंगना से क्या चाहता है? जो एक अनजान साये की तरह उसका पीछा कर रहा है?

    क्रमशः

  • 11. Obsessed Aashiq - Chapter 11

    Words: 524

    Estimated Reading Time: 4 min

    अरुण से बचकर भागते-भागते शाम ढल गई थी। कंगना उससे अपनी जान छुड़ाते-छुड़ाते कहाँ आ गई, उसे खुद नहीं मालूम था। वह इस शहर में नई थी, इसलिए उसे यहाँ के ज़्यादा रास्तों के बारे में जानकारी नहीं थी।

    आखिर क्यों, जब एक इंसान अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होता है, तो दूसरे उसे परेशान करने आ जाते हैं? वह इंसान दूसरों की ज़िंदगी में एक पल के लिए भी दखल नहीं देता, लेकिन लोग उसकी ज़िंदगी को अपनी जागीर समझकर अपनी चलाने लग जाते हैं। लेकिन ऐसा कौन सा इंसान होता है, सिवाय इस A A के?

    ऐसे ही कहीं बातें सोचते-सोचते वह एक अनजान गली में आ गई जहाँ उसे डर के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा था। तभी पीछे से उसके लटकते हुए हल्के गुलाबी रंग के दुपट्टे को किसी ने खींचा।

    कंगना समझ गई कि यह वही लड़का अरुण होगा, लेकिन नसीब की करनी अक्सर समझदार को भी बेवकूफ साबित कर देती है। कंगना का दुपट्टा इस बार अरुण ने नहीं, बल्कि किसी और ही आदमी ने पकड़ा था, जो सागर की महक अपने साँसों में लेकर एक आवारा लफ़्फ़ाज़ से कम नहीं लग रहा था। उसकी शर्ट के बटन भी खुले हुए थे।

    वह कंगना का दुपट्टा छोड़कर उसका हाथ अपने ज़बरदस्ती में लेने लगा। कंगना ने खुद को सुरक्षित करने की कोशिश की और इससे पहले कि वह लड़का उसके ज़्यादा करीब आता, अरुण ने उसे मुक्का मार दिया।

    हाँ, अरुण, हमारी कहानी का हीरो, हमारी हीरोइन कंगना को बचाने आया था। बस, पंगा शुरू! इधर-उधर से उस आवारा लड़के के साथियों ने अरुण को घेर लिया और कंगना मौका देखकर भागने ही वाली थी, पर उन लड़कों ने कंगना को पकड़ लिया। अरुण अपने फ़ाइटिंग स्किल का उपयोग करते हुए उन लड़कों को लगातार लात और घूँसे मार रहा था और पीछे से उसके साथी अरुण पर हमला कर रहे थे।

    उनमें से एक लड़का स्टील की रॉड उठाकर अरुण की ओर बढ़ने लगा, पर कंगना की चीख ने अरुण को आगाह कर दिया कि उसके पीछे खतरा है। कंगना की चीख ने उस लड़के का हमला नाकाम कर दिया। बिल्कुल फ़िल्मी अंदाज़ में अरुण ने उससे रॉड छीन ली और उन चारों लड़कों को पीटने लगा। वे सभी वहाँ से दम दबाकर भाग निकले।

    अरुण ने अपनी निगाहें घुमाकर देखा तो कंगना डरी हुई उसके पीछे थी। अरुण बड़े ही प्रेम से उसके माथे को चूमकर बोला, "चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ।" कंगना कोई और रास्ता न पाकर इस बार भी उसके साथ अपने घर की ओर चली। जैसे ही रास्ता खत्म हुआ, कंगना अरुण के साथ उसकी गाड़ी में एक क्षण भी और गुजारने की बजाय अपने घर की ओर दौड़कर चली गई।

  • 12. Obsessed Aashiq - Chapter 12

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    वह उस मकान के पहले तल पर गई जहाँ वह रहती थी। अरुण उसे बालकनी में देख रहा था। उसने देखा कि कंगना अपने कमरे के अंदर नहीं गई। कंगना के कमरे पर ताला लगा हुआ था और मकान मालिक बाहर था। इसे देखकर कंगना वहीं रुक गई थी।

    अरुण ने उसे उस व्यक्ति से बहस करते देखा और वहाँ गया। वह व्यक्ति कंगना से कह रहा था, "तुमने कहा था कि कल रात कोई और कमरा ढूँढकर यहाँ से चली जाओगी, लेकिन आज सुबह भी तुम मुझसे बात करने की बजाय मुझे नज़रअंदाज़ करके चली गईं।"

    "तुमने कमरे पर ताला नहीं लगाया था और तुम्हारी वजह से मेरा बहुत काम रुक गया। इसलिए मैंने तुम्हारा जो भी सामान था, वो कूड़े में फेंक दिया। अब तुम्हें यहाँ रहने की कोई ज़रूरत नहीं है, कंगना।"

    कंगना हैरानी से मकान मालिक को देख रही थी। उसके सामानों में ज़्यादा कुछ नहीं था; कुछ कम्बल और कपड़े थे, पर वो उसका सामान ही तो था जिसे उस आदमी ने उसकी मर्ज़ी के बिना फेंक दिया था।

    इस वक़्त वहाँ अरुण आ गया। मकान मालिक अरुण को देखते ही शांत हो गया। अरुण वहाँ बड़े स्टाइल से आया और मकान मालिक से कहा, "इतनी सुंदर औरत के साथ आप इतनी बर्बरता से कैसे पेश आ सकते हैं?"

    इससे पहले कि मकान मालिक कुछ कहता, कंगना उस पर बरस पड़ी, "आख़िर इन्होंने मुझ पर कौन सी बर्बरता दिखाई है? और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे सुंदर, हसीन और... कुछ भी कहने की?" अपने सवाल का जवाब खुद ही देते हुए कंगना वहाँ से चली गई।

    अरुण उसका पीछा करते हुए उसे रोकने लगा। इस बार उसने उसका दुपट्टा पकड़कर खींचा। कंगना ने दुपट्टा जकड़ रखा था और अरुण की ज़िद न सह पाकर, दुपट्टे के साथ ही उसके ऊपर गिर पड़ी।

    दोनों इतने करीब थे कि वे एक-दूसरे की साँसों की गर्मी महसूस कर सकते थे। लेकिन अरुण के इस झटके से कंगना के फ्रैक्चर पर दर्द होने लगा।

    तकलीफ़ सहते हुए, और एक अनजान शहर में किसी ऐसे आदमी से पंगा न लेने का मन बनाते हुए, जिससे यहाँ सभी डरते थे, कंगना ने उसे दूर हटाते हुए नर्म शब्दों में कहा,

    "प्लीज़, मेरा पीछा छोड़ दो। तुम्हारी वजह से मेरी रहने की जगह भी चली गई और मुझे कोई और घर भी नहीं मिला।" उसकी आँखों में नाराज़गी झलक रही थी। उदासी के बादल कंगना को घेर रहे थे।

  • 13. Obsessed Aashiq - Chapter 13

    Words: 548

    Estimated Reading Time: 4 min

    यह देखकर अरुण ने इस बार बड़े तमीज़ से कहा, "कंगना, मेरी वजह से यह सब हुआ है ना? और मेरी वजह से तुम्हारे हाथ पर चोट आई है। इसलिए तुम मेरी गाड़ी में बैठो। मैं तुम्हारे लिए कोई जगह ढूँढ़ दूँगा।"

    उसकी बात सुनकर कंगना को लगा कि उसे उसकी गाड़ी में बैठ जाना चाहिए, क्योंकि वह बेहद थकी हुई थी। वे दोनों गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी चलते ही अरुण इधर-उधर किराए के लिए घर की तलाश में निकल गया। पर इधर-उधर देखने से ज़्यादा वह कंगना की खूबसूरती को जाँच रहा था।

    कुछ देर बाद, जब अरुण ने एक नज़र कंगना पर डाली, तो वह फ्रंट सीट पर थकी हुई सो गई थी। वह इतने सुकून से सो रही थी, जैसे कि वह बस नींद की तलाश में ही थी। उसकी नींद न खराब करते हुए, अरुण ने गाड़ी एक ऐसी जगह के किनारे पार्क कर दी जहाँ पर लोगों की आवाजाही नहीं थी, ताकि हलचल कंगना को न जगाए।

    दोपहर पाँच बजे से रात के दस बज गए। अरुण कंगना के प्यारे से चेहरे को देखते हुए सो गया था। कंगना की आँखें थोड़ी सी खुलीं, पर उस पर नींद हावी हो चुकी थी, इसलिए वह फिर सो गई। क्या वह यह एक रात एक अजनबी के साथ गुजारने वाली है? क्या होगा जब उसकी नींद टूटेगी?

    क्या अरुण शांत रहने वाले लड़कों में से है? हरगिज नहीं!

    झील सी गहरी नींद में डूबी कंगना के हाथ को किसी ने पकड़ा हुआ था। थोड़ी-बहुत हलचल महसूस करने के बाद कंगना की मज़बूत नींद आखिरकार टूट गई। सितारों जैसे दो आँखें जैसे ही उसने खोलीं, उसने देखा कि वह एक बड़े से कमरे में, एक बड़े से बिस्तर पर सो रही थी और एक डॉक्टर उसका हाथ पकड़े हुए, उसका बी.पी. (Blood Pressure) नापने की कोशिश कर रही थी। वह थोड़ी बड़ी उम्र की डॉक्टर थी, जिसके सिर के आगे वाले बाल सफ़ेद होना शुरू हो चुके थे।

    कंगना को जागता हुआ देखकर उस डॉक्टर ने कहा, "आपको बहुत ज़्यादा बुखार और कमज़ोरी है। आप अपना ख्याल रखें, वरना हॉस्पिटल के चक्कर काटने पड़ेंगे। डॉक्टर होने के नाते मैं आपको साइकोलॉजिस्ट के पास जाने की सलाह दूँगी, क्योंकि आप अपना ध्यान बिल्कुल नहीं रख रही हैं। एक टूटा हाथ लेकर ज़्यादा हलचल करना, यानी कि अपनी हड्डी को और नुकसान पहुँचाना... ऐसा कोई सही दिमाग वाला इंसान तो नहीं करता।"

    बिन माँगी सलाह देकर, कंगना को कुछ दवाइयाँ लिखकर प्रिस्क्रिप्शन थमाकर और साइकोलॉजिस्ट का कार्ड देकर डॉक्टर वहाँ से चली गई।

  • 14. Obsessed Aashiq - Chapter 14

    Words: 508

    Estimated Reading Time: 4 min

    कंगना ने उस प्रिस्क्रिप्शन को वहीं छोड़ दिया और सिर पकड़कर पिछली रात हुई घटनाओं को याद करने की नाकाम कोशिश करने लगी। उसे इतना तो याद था कि वह किसी कमरे में, किसी अनजान कमरे में थी।

    तभी उसे लगा कि सोच-विचार करने से ज़्यादा ज़रूरी है वहाँ से निकलना। तभी उसने महसूस किया कि उसका दुपट्टा उसके पास नहीं, बल्कि बेड के पास पड़े सोफे पर पड़ा हुआ है।

    यह देखकर वह सोचने लगी कि आखिर उसका दुपट्टा सोफे पर क्या कर रहा है। यह सोच-सोचकर उसके सिर में और भी ज़्यादा दर्द होने लगा। उस लड़के ने पिछली रात उसके साथ क्या किया होगा? पर दिमाग को लोहे की तरह मज़बूत बनाकर कंगना उठी, अपना दुपट्टा मुँह पर ढँककर वहाँ से जाने लगी।

    बड़े कमरे को पार करते ही उसके सामने सीढ़ियाँ आ गईं। वह जल्दी-जल्दी उतरकर वहाँ से तेज़ी से भाग रही थी कि तेज़ी से आते हुए एक व्यक्ति से जा टकराई। "उसे टकराने की आदत है।"

    काले रंग का सूट पहने वह आयुष रावत था। उसे देखकर लगता था कि वह किसी ज़रूरी काम से जा रहा था, पर किसी चीज़ को लेने के लिए वह वापस दौड़ता हुआ आया और कंगना से जा टकराया।

    कंगना ने उसे सवाल करने का मौका न देते हुए वहाँ से भाग गई। उसे भागता हुआ देखकर आयुष को बहुत अजीब लगा, पर उसने सोचा कि वह कोई कामवाली होगी। लेकिन उसके पास यह सब सोचने का वक्त नहीं था।

    आयुष ने कंगना का चेहरा तो नहीं देखा, पर कंगना ने उसका चेहरा देख लिया था। लेकिन वह इस वक्त उसे नहीं पहचानती थी, पर जल्दी ही उसे पहचान लेगी।

    वहाँ से भागने के बाद, जब वह मुख्य द्वार के बाहर गई, तब कंगना की घुटन भरी साँसों को शांत होने का मौका मिला। तभी उसे याद आया कि अरुण की गाड़ी में उसका फ़ोन और उसका बैग, जिसमें कॉलेज की आईडी, किताबें और बहुत-सा ज़रूरी सामान था, रह गया है। अरुण की गाड़ी या अरुण खुद वहाँ नज़र नहीं आ रहा था। हर बार ज़िन्दगी इतना क्यों आज़माती है, जिससे एक इंसान की उम्मीदें टूटने लगती हैं?

    शहर के दूसरी तरफ़, खुशी के पिता उसे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए थे। बचपन में माँ और जवानी में पिता को खोकर, जीने की उम्मीद खुशी खोने लगी थी। उसके मामा और मामी भी उसे ही कसूरवार ठहरा रहे थे।

    सभी कहने लगे थे कि खुशी ने अपने माता-पिता को खा लिया है, पर वह कोई राक्षस तो नहीं थी। हर दिन पूजा करती, किसी भी बुरे काम की ओर नज़र नहीं डालती, यह खुशी इतनी सीधी-सादी लड़की थी जिसने कभी बुरे काम की ओर नज़र नहीं डाली। तो कोई इसे इतना बुरा-भला कैसे कह सकता है? पर लोग हमेशा कमज़ोर पर ही जुल्म करते हैं।

  • 15. Obsessed Aashiq - Chapter 15

    Words: 530

    Estimated Reading Time: 4 min

    खुशी के दिल में आयुष के प्रति बदले की आग भड़क रही थी, पर उसके पिता की मौत के बाद आती लगातार मुसीबतों की ठंडी हवाओं ने उस आग को काबू में रखा था।

    पर कभी तो वह आग फिर भड़केगी और जब उसकी बदले की आग में शायद पूरा रावत निवास जल उठेगा। लेकिन अभी तो उस आलीशान रावत निवास के बाहर सुबह से बुखार में तपती कंगना अरुण का इंतजार कर रही थी।

    तभी अरुण की गाड़ी उसके विला में चली गई। उसको देखकर गुस्से में बेकाबू कंगना उसके पीछे अंदर गई और रास्ते में किसी ने उसे नहीं रोका। क्योंकि वह पिछली रात अरुण की गाड़ी से निकली थी और सभी कर्मचारी समझ रहे थे कि वह अरुण की कोई दोस्त है। (#gf)

    कंगना, बिना किसी डर या खौफ के, अरुण के पास गई जो गाड़ी से उतर ही रहा था। उसने उसे देखकर कहा, "वह! कंगना, तुम अब तक यहीं हो? मुझे लगा कि तुम चली गई होगी। पर ठीक है। मेरी मोहब्बत ने तुम्हें यहां रोक रखा, ना?"

    कंगना की आँखें बुखार से कम, पर गुस्से से ज़्यादा लाल थीं। उसने अरुण को एक थप्पड़ जड़ दिया। उसके थप्पड़ की आवाज़ यूँ तो नहीं गूँजी कि लोगों को वह थप्पड़ बहुत जोर का लगे, पर उस थप्पड़ की आवाज़ अरुण के दिल और दिमाग में गूँजने लगी।

    अरुण उसे बिना पलक झपकाए देखने लगा। अपने गुस्से का इज़हार थप्पड़ से करने के बाद, शब्दों की लड़ाई छेड़ने से अच्छा समझकर, कंगना अपना बैग अरुण की SUV में से ले ली (जो कि अभी भी उसकी गाड़ी में ही मौजूद था)।

    वह वहाँ से तेज कदमों से चली गई और अरुण के दिल में अब तक उसके थप्पड़ की आवाज़ गूँज रही थी। मानो जैसे यह आवाज़ मोहब्बत की ज्योति को बुझाकर किसी नफ़रत की चिंगारी को जलाकर ही दम लेगी। पर क्या यह चिंगारी कंगना की ज़िंदगी में आग लगाकर उसके सपनों को राख कर देगी? या इस आग में सिर्फ़ अरुण का दिल ही जलेगा? क्या यहाँ कोई और भी आएगा इस आग को लगने से पहले ही बुझाने के लिए?

    कहाँ जाए इस पापी दुनिया में यह अकेली जान? कंगना के पास अभी रहने को घर नहीं था और उस मकान मालिक ने उसका सारा सामान भंगार में भेज दिया था (गैरकानूनी रूप से)। पर कंगना उसके ख़िलाफ़ कंप्लेंट करके किसी से पंगा नहीं लेना चाहती थी।

  • 16. Obsessed Aashiq - Chapter 16

    Words: 518

    Estimated Reading Time: 4 min

    उसे बस सुकून चाहिए था। कंगना को भी बस एक रहने की जगह चाहिए थी, और शाम का वक्त हो गया था। कंगना ने अपने एक-एक दोस्त को फोन करके तंग आ गई थी, पर सभी ने कह दिया कि उनके पास कंगना के लिए जगह नहीं है। तब हार मानकर कंगना ने अपनी उस दोस्त को फोन मिलाया जो उसका कॉल पिछले दो हफ़्तों से नहीं उठा रही थी। पर आज किस्मत से उसने कॉल उठा लिया। उठाते ही उसकी दोस्त ने कहा, "मीना की प्रिय कंगना जी, आपने मुझे कैसे याद किया? अब कौन सी नई मुसीबत अपने साथ ले आई हो कंगना?"

    कंगना ने उसके रेडियो जैसी आवाज़ सुनकर कहा, "क्या तुम कभी सीरियस नहीं रह सकती? तुम मेरा फोन दो हफ़्तों से नहीं उठा रही थी मीना?"

    मीना ने कहा, "मेरी प्यारी दोस्त, मैं तुम्हारा फोन क्यों नहीं उठाऊँगी भला? मुझे तुमसे कोई दुश्मनी है क्या? पर मेरा फोन टूट गया था और नया फोन मुझे लेना नहीं था, इसलिए मैंने उस फोन को रिपेयर के लिए भेज दिया था। और कल रात ही वह आख़िरकार लौट आया। और तुम हमेशा सीरियस क्यों रहती हो? बताओ, क्या परेशानी लाई हो इस वक़्त? वैसे, तुम्हारी वजह से मैं बैठे-बैठे कंसलटेंट बन गई हूँ, जो हमेशा तुम्हें अच्छे-अच्छे राय देती रहती हूँ।"

    कंगना रोते हुए बोली, "मेरी ज़िन्दगी बस परेशानियों से भरी हुई है मीना।"

    मीना ने कहा, "अच्छा बाबा, अब रोना शुरू मत करो और बताओ क्या हुआ?"

    कंगना ने अपने आँसू पोछकर अपनी परेशानी बताई। यह सुनकर मीना ने कहा, "बस इतनी सी बात? तुम्हें घर चाहिए ना? तो तुम मेरे यहाँ भी आकर रह सकती थी, पर मेरा घर तुम्हारी यूनिवर्सिटी से बहुत दूर है। पर फ़िक्र मत करो, मैं किसी ऐसे इंसान को जानती हूँ जिसको किराएदार चाहिए।"

    कंगना उत्सुकता से पूछने लगी, "बताओ वह कौन है?"

    मीना ने धीमी आवाज़ में कहा, "मैं बता तो दूँगी, पर वह घर का मालिक थोड़ा सा बांतलक है।"

    कंगना ने पूछा, "अब यह बांतलक क्या होता है?"

    मीनाक्षी ने कहा, "असल में वह इतने सवाल करते रहते हैं, इतनी ज़्यादा बात करते हैं कि हम लोगों ने उनका नाम बांतलक रख दिया है।"

    कंगना को अभी उसकी बातें सर के ऊपर से गुज़र रही थीं, पर उसके पास और कोई चारा नहीं था। इसलिए उसने कहा, "तुम उनका पता दे दो। मुझे बस एक कमरे की सबसे सस्ती जगह की ज़रूरत है। बाकी वह कितने भी सवाल करें, मैं उसे बर्दाश्त कर लूँगी।"

  • 17. Obsessed Aashiq - Chapter 17

    Words: 585

    Estimated Reading Time: 4 min

    मीना ने उनका पता दिया और कंगना थोड़ी देर में वहाँ पहुँच गई। वह घर एक दो मंजिला इमारत थी।

    वहाँ प्रवेश द्वार पर एक प्यारा-सा छोटा किचन गार्डन था, जिसे देखकर लगता था कि मकान मालिक की पत्नी ने उसे अपने हाथों से तैयार किया था।

    कंगना को यह जगह बहुत अच्छी लगी। कंगना प्रवेश द्वार से अंदर गई और वहाँ के मालिक को पुकारा। एक बूढ़ा, लुंगी पहना हुआ आदमी, जिसके सिर पर चाँद चमक रहा था और उस चाँद को घेरे हुए कुछ सफ़ेद बाल थे, चिड़चिड़ाता हुआ बोला, "कौन है?"

    "क्या यहाँ कोई कमरा खाली है?" कंगना ने थोड़ी डरी-सहमी आवाज़ में पूछा।

    "यहाँ कोई कमरा खाली नहीं है। यह कोई मैदान नहीं है जो यहाँ कुछ भी खाली हो। यहाँ सभी कमरे भरे हुए हैं।" आदमी ने कहा।

    कंगना को मीना की बात याद आई कि इनको सब 'बातूनी' क्यों बुलाते हैं। कंगना ने सोचा कि इस इंसान की बातों पर सच में रोक लग जानी चाहिए, पर यह सब सोचना फिजूल है। इसलिए कंगना ने बड़े धैर्य के साथ कहा, "क्या मुझे यहाँ कोई कमरा किराये से मिलेगा?"

    "यहाँ तुम्हें सिर्फ़ कमरा ही नहीं, उसके साथ अटैच्ड वॉशरूम भी मिलेगा।" उस आदमी ने कहा।

    "अच्छा, मेरा मतलब वही था। क्या आप मुझे कमरा दिखा सकते हैं?" कंगना ने पूछा।

    "माफ़ी चाहता हूँ, मोहतरमा। मैं आपको नहीं दिखा सकता। आपको खुद अपनी आँखों से देखना होगा।" वह आदमी बोला।

    इस इंसान से बहस करना, बातों के उलटे मतलब निकालकर बहस करने के बराबर था। इसलिए कंगना ने इस वक्त धैर्य से काम लिया। उसको वह कमरा अच्छा लगा। फिर कंगना ने पूछा, "इसका किराया कितना होगा?"

    "इसका किराया जितना है, उतना ही है। पर तुम कितना दे सकती हो? मुझे वक्त पर पेमेंट चाहिए।" आदमी ने कहा।

    "पहले आप किराया तो बता दीजिए।" कंगना ने कहा। कंगना का सब्र का बांध टूट रहा था क्योंकि वह पिछले पन्द्रह मिनट से इन्हीं की बातें सुन रही थी। काम कम और बातें ज़्यादा।

    "इसका किराया ज़्यादा नहीं, पर बस पाँच हज़ार प्रति महीना है और मेंटेनेंस शून्य रुपये।" आदमी ने कहा।

    कंगना के चेहरे पर खिलखिलाहट भरी मुस्कान आई। वह खुश थी कि उसे इतना अच्छा घर कम कीमत में मिल गया। बस उसके मकान मालिक की किटकिट उसे हर दिन बर्दाश्त करनी होगी, और कुछ नहीं। पर न जाने उसकी खुशी को सीमा देने कौन सी नई बाधा आएगी?

    क्योंकि दूसरी तरफ, रावत निवास की छत पर आर्मचेयर पर बैठा अरुण, खुले आसमान में, अकेले पर आजाद चाँद को देख रहा था।

    अरुण के हाथ में एक वाइन ग्लास था और पास पड़े हुए टेबल पर एक खाली वाइन की बोतल, जो बताती थी कि उसने पूरी बोतल खत्म कर दी थी। अरुण की आँखें सूर्ख रंग में रंग चुकी थीं। शायद वह किसी की नफ़रत में या किसी की याद में रोया था।

    उसके चेहरे को देखकर लगता था कि उसे शाम वाला कंगना का थप्पड़ अब तक दर्द दे रहा है। अरुण ने अपने पास वाली टेबल पर ग्लास मार दिया, जिससे वह ग्लास टूट गया और छन सी आवाज़ गूँजने लगी।

    उस आवाज़ को दबाते हुए, अरुण ने दाँत पीसते हुए कहा, "कंगना! तुम अरुण की नहीं हो सकती, तो याद रखना, मैं तुम्हें किसी और का नहीं होने दूँगा!!"

    अब क्या करेगा अरुण हमारी कंगना के साथ? जानने के लिए बने रहिए...

  • 18. Obsessed Aashiq - Chapter 18

    Words: 541

    Estimated Reading Time: 4 min

    आलीशान रावत निवास में एक बड़े कमरे में, सिंगल बेड पर आयुष रावत पिछले दिन की थकान मिटाने सो रहा था। सूरज की किरणों ने उसकी नींद तोड़ दी। आँखें खुलते ही आयुष ने अपने फ़ोन में अनरीड मैसेज देखे।

    उनमें से एक मैसेज उसके करीबी दोस्त का था, जिसमें लिखा था, "फ़ोन उठाओ, मुझे ज़रूरी बात करनी है।" आयुष को लगा यह मैसेज तब आया होगा जब वह मीटिंग में अपना फ़ोन स्विच ऑफ करके व्यस्त था।

    आयुष ने अपने दोस्त समीर को कॉल किया। समीर न केवल आयुष का दोस्त था, बल्कि उसके फैले हुए इंटरप्राइजेज़ का CEO भी था; पर इस बार समीर ने आयुष को किसी बिज़नेस इश्यू के लिए फ़ोन नहीं किया था।

    फ़ोन उठाते ही आयुष ने कहा, "हाँ? कौन सी ज़रूरी बात करनी है? अगर डाइनिंग रेस्टोरेंट के बारे में कहना है तो मुझे नहीं सुनना।"

    समीर आयुष की बात काटते हुए बोला, "आयुष, तुममें इतना गुमान कैसे आ गया, यार? तेरे पिता इंसानियत को सबसे पहले तरज़ीह देते थे और बदला लेने से सख्त नफ़रत करते थे। वे कहा करते थे कि अगर हर कोई बदला लेने लगे, तो सबसे पहले एक माँ ही अपने बच्चों से बदला लेगी, पैदाइश के वक़्त उसे बेतहाशा दर्द देने के लिए।"

    "इसीलिए तो उनके इन उसूलों की वजह से उन्होंने एक होटल से शुरुआत की और बस तीन होटल ही खड़े कर पाए," आयुष ने बीच में बोला, "यह बात अलग है कि उन्होंने यह रावत निवास भी खरीदा था, पर मैंने हमारे रेस्टोरेंट, होटल, फ़ूड प्रोडक्ट्स और नए इंटरप्राइजेज़ की स्थापना न केवल मुंबई बल्कि सारे देश में की है और जल्द विदेश में भी हमारा नाम और काम होगा। अब पॉइंट पर आओ।"

    समीर बोला, "ठीक है, मैं पॉइंट पर आता हूँ। तुमने हमारे पुराने एम्प्लॉई को सिर्फ़ शक की बुनियाद पर बदनाम कर दिया और उनकी बेटी की सगाई में तमाशा करके उनकी बेटी की सगाई तुड़वा दी। इसीलिए दो दिन पहले ICU में उनकी डेथ हो गई।"

    आयुष अपने बिस्तर से उठकर बोला, "सही हुआ। आख़िर मिस्टर मेहता को मेरे दुश्मनों के पास जाने की क्या ज़रूरत थी?"

    समीर परेशान होकर बोला, "वह बस डाइनिंग रेस्टोरेंट वाले के पास गए थे और किसी को नहीं पता कि उन्होंने क्या बात की।"

    आयुष अपना फ़ोन डेस्क पर रखकर पुश-अप्स करने लगा। उसने अपने पुश-अप्स रोककर कहा, "हाँ! मेहता वहाँ आधा घंटे तक था और न जाने उसने हमारी कितनी पोल खोली है। इसलिए उसे जाल में फँसाने के लिए मैंने बड़ी प्यार से उसके घर को गिरवी रखकर उसे पैसे दिए, ताकि वह अपनी बेटी की सगाई और शादी के लिए बेफ़िक्र हो जाए और मैं उसकी सगाई तुड़वाकर उसे दुगनी फ़िक्र में डाल दूँ।"

    क्रमशः

  • 19. Obsessed Aashiq - Chapter 19

    Words: 503

    Estimated Reading Time: 4 min

    समीर ने उसे रोकते हुए कहा, "तू क्या बोल रहा है यार? उनकी उम्र तुझसे बड़ी थी, रिस्पेक्ट से बात कर।"


    आयुष ने उसकी बात अनसुनी कर पुश-अप्स लगाना फिर शुरू कर दिया।


    समीर बोला, "तुमने बिलकुल सही नहीं किया दोस्त। तुम अपने स्वार्थ के लिए जिस तरह अपराध कर रहे हो ना, एक दिन तो जरूर फँसोगे। मुझे अच्छे से पता है कि तुझे यह सब करना किसने सिखाया है।"


    आयुष पुश-अप्स रोककर बोला, "तुझे पता है ना, लेकिन यह बात याद रखना, मैं जिसकी सुनकर यह सब कर रहा हूँ, अगर मेरा मन चाहा तो मैं उनकी सुनना भी बंद कर दूँगा। और अपराध उनसे होते हैं जिनकी जेब हल्की होती है। मेरे दोस्त, मेरी जेब हल्की नहीं है और मैं बाबा की तरह अपनी जेब को हल्की नहीं होने दूँगा।"


    आयुष मुस्कुराया। समीर ने उससे बहस न करते हुए फोन काट दिया। पर क्या आयुष यह समझ रहा था कि वह पैसे के दम पर इंसाफ़ को खरीद लेगा? शायद वह भूल गया था कि इंसाफ़ इंसान नहीं देता, लेकिन इंसान को बनाने वाला देता है।


    आयुष फ्रेश होकर, अपना सूट पहना, जल्दी से नाश्ता किया और अपनी गाड़ी की ओर जा रहा था। वहाँ पहुँचते ही उसके पी.ए. ने उसे रोककर कहा,


    "अब आपको यूनिवर्सिटी जाकर बिज़नेस स्टूडेंट्स को भाषण देना है, अपनी मीटिंग अटेंड करनी है, अपनी पुरानी होटल का दौरा करना है सर, और इन सब के चलते हो सकता है कि आपको वॉशरूम जाने का भी वक्त न मिले।"


    यह बहुत जरूरी बात सुनते-सुनते जब आयुष ने यह आखिरी फालतू सी बात सुनी, तो उसने पलटकर सवाल किया, "फालतू की बातें बंद करो और बताओ कि अरुण कहाँ है?"


    पी.ए. ने कहा, "अरुण सर रात में छत पर ही सो गए थे, इसलिए नौकरों ने उन्हें उनके कमरे में सुला दिया है। उन्होंने काफी शराब पी थी। लगता है कि किसी लड़की का चक्कर है।"


    आयुष गाड़ी में बैठकर बोला, "लड़की का चक्कर तो उसको हमेशा से ही है।" फिर वह सोचने लगा—अगर वह लड़कियों का दीवाना नहीं होता, तो अपना एम.बी.बी.एस. जर्मनी में पूरा कर लेता, पर हमेशा गलत काम ही करता है वह।


    उसकी गाड़ी अपनी मंज़िल पर पहुँच गई। यूनिवर्सिटी के स्टेज पर पहुँचकर आयुष ने अपने भाषण की शुरुआत की। उसके भाषण में कुछ मोटिवेशन और कुछ टिप्स स्टूडेंट्स को दिए गए।


    वहाँ कई लोग थे, पर वहाँ बैठी एक लड़की आयुष के चेहरे को देखकर ही पहचान गई। वह कंगना थी, जो पहचान गई कि पिछले दिन अरुण के घर से भागते-भागते जिससे वह टकराई थी, वह आयुष रावत ही था।


    किस्मत भी कंगना का साथ छोड़ चुकी थी, इसलिए बदकिस्मती से उसे फ्रंट सीट मिली। पर वह थोड़ी संतुष्ट थी कि उसने अपना चेहरा ढँक रखा था। इस वक्त तो आयुष उसे नहीं पहचानेगा। पर क्या हुआ? आयुष भाषण देते-देते रुक गया और कंगना को ही देखने लगा।

  • 20. Obsessed Aashiq - Chapter 20

    Words: 523

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    कंगना का दिल खौफ से भर गया, पर आयुष ने उसे नहीं पहचाना था। वह सोच रहा था—ये कितनी खूबसूरत है! पर यहाँ इससे भी ज़्यादा हसीन लड़कियाँ हैं, लेकिन इसकी बात ही कुछ और है।

    ऐसा लगता है कि मेरा इसके साथ कोई बंधन है। शायद पिछले जन्म का? अरे, क्या सोच रहा हूँ मैं? अरे, क्या कर रहा हूँ मैं!! उसे एहसास हो गया कि वहाँ ठहरे सभी लोग उसे ही देख रहे हैं क्योंकि वह बस कंगना को ही देखता जा रहा था।

    एक छात्र ने टाली बजाकर कहा, "Mr. Ayush, you are now trapped in love!"

    आयुष मुस्कुराकर अपनी स्पीच अधूरी रख वहाँ से तेज कदमों से निकल गया।

    कंगना हैरान होकर उसे देखने लगी कि आखिर आयुष, इतना बड़ा बिज़नेसमैन, उसे ही क्यों देख रहा है? क्या उसने उसे पहचान लिया? लोगों ने कहना शुरू कर दिया, "आयुष का दिल किसी का हो गया।"

    जल्द से जल्द अपनी गाड़ी में बैठने के इरादे से, तेज कदमों के साथ आयुष गाड़ी की ओर बढ़ रहा था, पर यह उसकी बदकिस्मती थी या उसकी लोकप्रियता, मीडिया ने उसे घेर लिया।

    पत्रकार कई सारे सवालों की लिस्ट लेकर आए थे, पर स्पीच के दौरान आयुष ने जो किया, उसने उन पत्रकारों को अपने सवाल भूलने पर मजबूर कर दिया।

    इतने में एक पत्रकार उससे पूछने लगा, "क्या आप उस लड़की को जानते हैं जिसको आप अपनी स्पीच के दौरान देख रहे थे?"

    आयुष इस बात को नज़रअंदाज़ करके दूसरे पत्रकार के सवाल का जवाब देना चाहता था, पर कहते हैं ना कि पत्रकारों को हर एक चीज़ में मिर्च-मसाला डालने की आदत है। एक पत्रकार ने पूछा, "क्या अब हम उस लड़की को अपनी भाभी समझे?" उतने में आयुष का दिमाग फिर गया, पर अपने गुस्से को काबू करके वह झूठ बोलने लगा, "मैं उस लड़की की ओर इसलिए देख रहा था क्योंकि वह अपने हाथ पर फ्रैक्चर रखकर भी यूनिवर्सिटी आई है। ऐसे लोगों की वजह से ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। ऐसे लोग ही सवालों के सही जवाब देकर पास होते हैं और यूनिवर्सिटी, माँ-बाप और देश का नाम रोशन करते हैं। वहीं कुछ लोग बस सवालों पर सवाल करते रहते हैं।" (वह अपना निशाना मीडिया को बना रहा था) इतनी बात कहकर आयुष अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से चला गया।


    दूसरी ओर, अपने बिस्तर से उठता अरुण लंच टाइम में ब्रेकफास्ट करना चाह रहा था। बिस्तर से उठकर वह किचन की ओर अपनी माँ को आवाज़ देते हुए गया, पर उसकी माँ का कोई जवाब नहीं आया। उसकी माँ के बजाय एक बूढ़ी नौकरानी ने कहा, "अरुण साहब, मेमसाहब तो अस्पताल में हैं, पर कोई बात नहीं, मैं आपको खाना परोस दूँगी।"