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मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 सात साल की दूरी, और एक पल की मुलाकात — क्या खत्म हो पाएगा वो अधूरा हिसाब?"

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7 साल का लंबा समय , कुछ जख्म कभी नहीं भरते। शौर्य प्रताप सिंह जो एक सफल बिजनेसमैन है,अचानक एक रेस्टोरेंट में अनोखी वर्मा से टकरा जाता है। वही अनोखी वर्मा जो कभी उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा थी। वह उसे एक वेट्रेस के रूप में देखता है। दोनों का ही एक दूसर...

Total Chapters (60)

Page 1 of 3

  • 1. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 1

    Words: 1297

    Estimated Reading Time: 8 min

    शोर्य आज अपने दोस्त अरमान मेहता से मिलने केलोना आया था और उसका दोस्त उसे होटल में ले आया था।

    "यह होटल इंडियन खाने के लिए फेमस है," उसने कहा।

    "तो मुझे जहां पर भी इंडियन खाना ही खिलाओगे? मुझे तो लगा था तुम मुझे कहीं और लेकर जाओगे," शौर्य ने होटल में प्रवेश करते हुए अपने दोस्त से कहा।

    "जहां का खाना खाकर तो देखो, सच कहता हूँ, इतना टेस्टी होता है कि पूछो मत। बिल्कुल घर के खाने जैसा।"

    "अगर घर का खाना इतना ही पसंद है तो शादी क्यों नहीं कर लेते?" शौर्य ने कहा।

    "बात तो तुम्हारी सही है। मगर शादी के बाद पता चला उसका खाना भी मुझे बनाना पड़ रहा है। यार, मज़ाक की बात है। मुझे शादी के बंधन में नहीं बंधना। जब शादी के बिना सब मिल जाए, फिर चाहे वह टेस्टी खाना हो या कुछ और, फिर शादी किस लिए करना?" अरमान ने हँसकर कहा।

    "मगर तुमने शादी क्यों नहीं की? तुम तो शादी कर सकते थे।"

    "क्यों? मुझे हर चीज शादी के बिना नहीं मिल सकती? अगर तुम्हें शादी के बिना सब कुछ मिल सकता है..." अपनी चेयर खींचकर बैठते हुए शौर्य ने कहा।

    तभी उसकी नज़र सामने दूसरे टेबल पर ऑर्डर लेती हुई एक लड़की पर गई। वह उसे देखकर हैरान हुआ। वह वहाँ एक वेट्रेस के रूप में थी। वह क्या बात कर रहा था, वह भूल गया।

    "क्या हुआ?" अरमान ने उससे पूछा।

    "तुम शादी की बात कर रहे थे।"

    "कर रहा हूँ। शादी, इंगेजमेंट मेरी हो चुकी है। मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था, मगर मॉम नहीं मान रही।" उसने कहा, मगर उसकी नज़र उस लड़की पर ही थी। वह वहाँ से ऑर्डर लेकर जा चुकी थी और थोड़ी ही देर में उन्होंने जो ऑर्डर किया था, वह खाना लेकर उसे टेबल पर पहुँचा दिया गया था। शौर्य की नज़रें, ना चाहते हुए भी, उस पर थीं। उसे देखकर शौर्य का मूड खराब हो गया था। पूरे 7 साल के बाद वह उसे देख रहा था।

    "अगर तुम शादी कर लोगे तो तुम्हारी इतनी सारी गर्लफ्रेंड का क्या होगा? हमें तुम्हारी ख़बरें मिलती रहती हैं। ऐसा मत सोचना कि हमें नहीं पता।"

    उनके ऑर्डर के बाद उनका खाना भी आ चुका था। शौर्य का मूड पूरा खराब था। उसे खाना नहीं खाया जा रहा था। वह उसे गुस्से में देख रहा था।

    उसका रंग तो उतना ही गोरा था, मगर चेहरे पर पहले जैसी रौनक नहीं थी। वह कभी भी पतली नहीं थी, वह भरे हुए शरीर की थी, मगर आज काफी पतली दिखाई दे रही थी। उसके लंबे बाल अब छोटे थे। पोनी की शक्ल में उसने बालों को बाँधा हुआ था। उसकी आँखें हल्के भूरे रंग की थीं। वह वैसी ही थी, मगर आँखों के नीचे हल्के-हल्के काले धब्बे होने लगे थे। मेकअप के नाम पर एक लिपस्टिक थी और उसका ध्यान पूरा अपने काम पर था।

    "तुम इसी के काबिल थे, एक वेट्रेस बनने के," शौर्य ने अपने मन में नफ़रत से कहा।

    शौर्य का ध्यान ना तो अरमान की बातों पर था और ना ही खाने पर। उसका पूरा ध्यान इस लड़की पर ही था। लड़की से ज़्यादा यह कहना सही होगा कि वह एक 27 साल की औरत बन गई थी। अचानक उस लड़की का ध्यान भी शौर्य की तरफ़ गया। क्या पता उस लड़की ने शौर्य को पहचाना या नहीं, मगर उसके चेहरे से नहीं लगा कि शौर्य को वह पहचान गई।

    "मैं तो वैसा ही हूँ।" यह बात सच थी। शौर्य पिछले 7 सालों में बिल्कुल भी चेंज नहीं हुआ था। वह तो और भी हैंडसम हो गया था। एटीट्यूड और स्टाइल और भी ज़्यादा हो गया था। उसे जो कोई लड़की पहली बार देखे, उस पर दिल हार जाए। यह बात अलग थी कि वह किसी पर दिल नहीं हारता था।

    "अच्छी बात है, मुझे नहीं पहचाना," उसने अपने मन में सोचा।

    "अरे यार, तुमने तो कुछ खाया ही नहीं। इतना टेस्टी खाना है!"

    थोड़ी देर में वे लोग उठकर वहाँ से चले गए।

    "तुम्हारा मूड क्यों खराब हो गया? अभी तो तुम बिल्कुल ठीक थे जब हम आए थे," अरमान ने उसके अचानक बदले मूड को देखकर पूछा।

    "नहीं, बस ऐसे ही मेरा सिर दर्द होने लगा," शौर्य ने बहाना बनाया। "वापस जाने के लिए घर चलते हैं। थोड़ी देर रेस्ट करेंगे।"

    "ठीक है, अभी घर जाकर रेस्ट करते हैं। फिर शाम को पार्टी भी है, वहाँ पर चलेंगे। वैसे मेरा शहर तुम्हें अच्छा लगा?"

    "अच्छा है! मैं एक बार कॉलेज टाइम पर आया था। भीड़-भाड़ से दूर शहर तो बहुत खूबसूरत है," शौर्य मुस्कुराकर बोला।

    "जहाँ की गर्मी है, तो और भी खूबसूरत होती है," अरमान केलोना की तारीफ़ करने लगा, और उसका ध्यान तो उसकी बातों पर नहीं था।

    "मेरे दोस्त के घर पर पार्टी है। कुछ पुराने दोस्तों से मिलेंगे और तुम्हारा मूड भी ठीक हो जाएगा," अरमान ने कहा।

    शौर्य का मूड नहीं था, मगर वह फिर भी चला गया।

    "मैं उसके बारे में सोचकर क्यों परेशान हो रहा हूँ?" शौर्य ने अपने आप से कहा।

    शाम को वे दोनों दोस्त तैयार होकर चले गए थे। वहाँ पर उसके दोस्त के घर में पार्टी थी। उनके पहुँचने से पहले ही पार्टी शुरू हो चुकी थी।

    अरमान ने शौर्य को अपने दोस्त से मिलाया।

    "इन्हें कौन नहीं जानता, शौर्य प्रताप सिंह," अरमान के दोस्त रोहित शर्मा ने कहा। "बिजनेस टाइकून शौर्य प्रताप।"

    "अच्छा, मुझे नहीं पता था। मुझे लोग जितना जानते हैं..." शौर्य ने कहा।

    "इंडिया में होटल इंडस्ट्री पर आपका राज है, और मेरा भी, जहाँ पर होटल का बिज़नेस है, छोटा ही सही," उसने कहा।

    "आज हम लोग तुम्हारे ही होटल पर खाना खाने गए थे," अरमान कहने लगा।

    "अच्छा, तो मुझे क्यों नहीं मिले? मैं दिन भर होटल में ही था।"

    तभी रोहित ने एक वेटर को ड्रिंक लाने का इशारा किया। एक वेट्रेस वहाँ ड्रिंक लेकर आई। जैसे ही शौर्य गिलास उठाने लगा, वह वही थी जिसे उसने होटल में देखा था। उन दोनों की नज़रें मिलीं। उस लड़की ने तीनों के आगे ड्रिंक रखीं। तीनों ने गिलास उठा लिए और वह वहाँ से चली गई।

    शौर्य का पूरा ध्यान उस लड़की पर ही था। जैसे ही अरमान और रोहित बातों में बिज़ी हुए, शौर्य वहाँ तक पहुँच गया जहाँ पर वह काउंटर पर ड्रिंक बना रही थी।

    "तो कनाडा में आजकल तुम यह काम कर रही हो?" उसकी बात पर अनोखी ने उसकी तरफ़ देखा।

    "इस काम में मुझे मर्दों के बीच रहने को मिल जाता है। कोई ना कोई अमीर बकरा भी फँस जाता है, इसलिए यह काम मेरा फेवरेट है। दिन को होटल में काम करती हूँ, रातों को किसी को फँसा लेती हूँ," अनोखी ने मुस्कुराकर कहा और वहाँ से ट्रे उठाकर वहाँ से जाने लगी।

    शौर्य ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "देखिए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आपने मेरा हाथ पकड़ा है। आपको तो पता है मैं कैसी हूँ, मगर आप तो इज़्ज़तदार हैं। आपकी बदनामी होगी।"

    शौर्य ने उसका हाथ छोड़ दिया और वह वहाँ से चली गई।

    एक और वेट्रेस लड़की उसके पास पहुँची।

    "अनोखी, क्या हुआ? वह तुम्हारा हाथ क्यों पकड़ रहा था?"

    "छोड़ यार, बस कितना टाइम रह गया? मेरी तबीयत ठीक नहीं है! मैं घर जाना चाहती हूँ।"

    "तुम घर कैसे जाओगी? हम लोग पेमेंट ले चुके हैं इसकी। सही बात है, हम काम छोड़कर भी नहीं जा सकते।"

    वह अनोखी फिर वहाँ काम करने लगी।

    उसे उम्मीद नहीं थी कि आज दोपहर के बाद फिर उसकी शौर्य से मुलाक़ात होगी। अनोखी का भी मूड पूरा खराब था।


    कौन है अनोखी और शौर्य का उससे क्या रिश्ता है? मैं नई सीरीज शुरू कर रही हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।

  • 2. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 2

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    शोर्य ने उसका हाथ छोड़ दिया और वह वहाँ से चली गई।

    एक और वेट्रेस लड़की उसके पास पहुँची।
    "अनोखी, क्या हुआ? वह तुम्हारा हाथ क्यों पकड़ रहा था?"

    "छोड़ यार, बस कितना टाइम रह गया! मेरी तबीयत ठीक नहीं है! मैं घर जाना चाहती हूँ।"

    "तुम घर कैसे जाओगी? हम लोगों ने पेमेंट ले लिया है इसकी। सही बात है, हम काम छोड़कर भी नहीं जा सकते।"

    वह अनोखी फिर वहाँ काम करने लगी।

    उसे उम्मीद नहीं थी कि आज दोपहर के बाद फिर उसकी शौर्य से मुलाक़ात होगी। अनोखी का भी मूड पूरा ख़राब था।

    अनोखी वापस अपने काम पर लग गई थी। वह जानती थी उसने पैसे लिए हैं तो काम करना होगा। शौर्य का ध्यान उस पर था। वह कैसे काम कर रही थी। "मुझे देखकर इसके दिल में कोई फीलिंग ही नहीं थी। शायद उसने मुझे कभी मिस किया ही नहीं है।" उसे देखकर शौर्य का मूड ख़राब हो रहा था। "जबकि मुझे पता है वह कैसी है। फिर भी मैं ऐसा उसके बारे में क्यों सोच रहा हूँ?"

    शौर्य ड्रिंक पर ड्रिंक कर रहा था। अरमान भी उसे देखकर हैरान था।
    "क्या बात है शौर्य? दोपहर से देख रहा हूँ। तुम परेशान हो। तुम तो इसलिए यहाँ आए थे कि जहाँ तुम्हें कोई नहीं जानता, थोड़े दिन आराम से गुज़ारोगे। थक गए हो तुम काम करते-करते। मगर यह क्या? तुम तो जैसे होश में ही नहीं रहना चाहते।" अरमान को फ़िक्र हुई।

    "मैं जा रहा हूँ पार्टी से।" कहता हुआ शौर्य वहाँ से जाने लगा।

    "हम दोनों साथ ही चलते हैं।"

    "नहीं, तुम पार्टी में रहो। मैं सुबह आऊँगा घर पर।"

    "तो इस वक़्त कहाँ जा रहे हो तुम?"

    "किसी के साथ अपॉइंटमेंट है।" कहते हुए शौर्य मुस्कुराया।

    "ठीक है।" अरमान भी हँस पड़ा और फिर वह वहाँ से निकल गया। शौर्य ने एक टैक्सी रोकी और वहाँ होटल में चला गया।

    शौर्य होटल में पहुँचा। वह और पीना चाहता था क्योंकि अनोखी को देखकर उसका मूड ख़राब था और वह थोड़ी देर में ड्रिंक भी पहुँच गई थी और एक खूबसूरत लड़की भी, जिसने ब्लैक कलर की शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई थी जो उसका बदन छुपा नहीं बल्कि दिखा रही थी।

    "तुम लेट हो।" शौर्य उसे देखते बोला।

    "आपने मुझे पहले याद किया होता तो मैं पहले पहुँच जाती। आप ही की कॉल लेट आई, इसीलिए मुझे टाइम लग गया पहुँचने।" वह कहने लगी।

    उसने शॉर्ट ड्रेस के ऊपर जो जैकेट पहनी हुई थी, वह उतार दी और वह शौर्य के लिए ड्रिंक बनाने लगी।
    "यह लीजिये, मेरे हाथों से भी पीजिये।" उस लड़की ने कहा।

    वह बिलकुल शौर्य के साथ लगकर बैठ गई थी। उसने शौर्य से कहा, "देखिये, आज की रात आपको हमेशा याद रहेगी। आपको कोई रिग्रेट नहीं होगा मुझ पर पैसे ख़र्च करने का।"

    कहते हुए वह शौर्य को किस करने लगी। उसने अपने जूते उतारे और शौर्य की गोद में बैठ गई और अपनी ड्रेस की आगे की ज़िप खोल दी।

    शौर्य पहले ही बहुत ड्रिंक कर चुका था और अभी भी कर रहा था। वह लड़की जो उसके सामने खड़ी थी, उसमें अनोखी दिखाई दी।

    "तुम...जहाँ...क्या कर रही हो?" शौर्य ने उससे कहा। उसने उस लड़की, जिसे वह अनोखी समझ रहा था, उसे पकड़कर दीवार के साथ लगा दिया और उसे बहुत बुरी तरह से किस करने लगा।

    वह लड़की, जिसका काम ही यही था, उसका बहुत तरह के कस्टमर से वास्ता पड़ता था, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा था।

    "क्या कर रहे हो?" उस लड़की ने कहा, मगर शौर्य ने उसे नहीं सुना। उसे सिर्फ़ उस लड़की में अनोखी नज़र आ रही थी।
    "यही तो तुम्हें पसंद है। यही तो तुम चाहती हो।" कहते हुए शौर्य ने उसे बेड पर गिरा दिया।

    "छोड़िये मुझे।" वह लड़की कहने लगी, मगर जैसे अनोखी का गुस्सा था, वह उस पर उतार रहा था। वह उस पर जबरदस्ती पर आ गया था। वह उसकी बात नहीं सुन रहा था; उसके साथ बहुत बुरी तरह से पेश आ रहा था।

    सुबह उसकी आँख खुली। क्या उसका सिर बहुत भारी था! उसे रात की अपनी हरकत याद आई और उसने आसपास देखा; वह लड़की सामने सोफ़े पर बैठी हुई थी। उसे देखकर वह उठकर बैठ गया।
    "सॉरी, क्या नाम है तुम्हारा?"

    "मेरा हाल देख रहे हो और यह अनोखी कौन है जिसका गुस्सा आपने मुझ पर उतारा है? मुझे इसके डबल पैसे चाहिए।"

    "ठीक है, मैं अभी तुम्हारे अकाउंट में ट्रांसफ़र कर देता हूँ।" शौर्य ने डबल से भी ज़्यादा पैसे उसके अकाउंट में ट्रांसफ़र कर दिए थे। फ़ोन पर मैसेज देखकर वह लड़की खुश हो गई।

    "इतने पैसों में तो तुम मेरे साथ जो कर सकते हो, अभी भी मैं तैयार हूँ! कौन थी अनोखी, यह तो मुझे बता दो। तुमने रात को मुझे अनोखी समझ लिया।"

    "यह तुम्हारे मतलब की बात नहीं है। तुम्हें पैसे मिले, तुम्हारी शिकायत ख़त्म। जाओ जहाँ से। अगर फिर ज़रूरत हो मुझे फ़ोन करना।" वह लड़की वहाँ से चली गई।

    उसका मूड कल जितना ही ख़राब था। अभी तो उसका सर भी बहुत दर्द कर रहा था। उसने रात को इतनी पी ली थी कि उसे होश भी नहीं रहा था। शौर्य ड्रिंक करता था, मगर इतनी नहीं जितनी उसने रात की थी। शायद अनोखी को देखकर वह बहुत ज़्यादा डिस्टर्ब हो गया था।

    वैसे शौर्य हमेशा से ऐसा नहीं था; न शराब, न सिगरेट, लड़की, सेक्सी चीजों की बुरी आदत नहीं थी, मगर एक धोखे ने उसे ऐसा बना दिया था।

    उसने सिगरेट निकाल ली और उसे पीने लगा। तभी उसके फ़ोन पर अरमान की कॉल आ गई थी।
    "कहाँ हो तुम? टाइम देखो क्या हुआ है? तुम्हारी वजह से मैं काम पर भी नहीं गया और तुम ही गायब हो।" अरमान ने कहा।


    कौन है अनोखी? क्या रिश्ता है शौर्य का अनोखी से? वह उस पर गुस्सा क्यों है?

  • 3. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 3

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसने सिगरेट निकाली और उसे पीने लगा। तभी उसके फ़ोन पर अरमान की कॉल आई।

    "कहाँ हो तुम?"

    "टाइम देखो क्या हुआ है। तुम्हारी वजह से मैं काम पर भी नहीं गया और तुम ही गायब हो।" अरमान ने कहा।

    "तुम्हें कौन सा खुद काम करना है? तुम्हारा खुद का शॉपिंग मॉल है, वही तो जाना है। काम छोड़ने की एक्टिंग मत करो।" शौर्य ने अरमान से कहा।

    "मुझे थोड़ा सा टाइम लगेगा आने में। तुम काम पर चले जाओ।" शौर्य ने अरमान से कहा।

    "तुम गाड़ी तो ले जाते? खुद की गाड़ी भी नहीं लेकर आए और रात भी टैक्सी से निकल गए। मैं घर पर गाड़ी छोड़कर जा रहा हूँ, तुम जब चाहो गाड़ी उठा लेना।"

    "कोई बात नहीं, यहाँ मुझे कौन जानता है? इसीलिए तो यहाँ आया हूँ। आराम से टैक्सी में घूम रहा हूँ।" शौर्य ने उसे कहा।

    शौर्य प्रताप सिंह राणा, जिसका संबंध राजस्थान के एक रॉयल फैमिली से था, अपने घर का सबसे छोटा बेटा था। लापरवाह, प्लेबॉय, मगर जब से उसने बिज़नेस संभाला था, उसने बहुत तरक्की की थी। उसने गिरते हुए राणा बिज़नेस को बहुत अच्छे से संभाला था।

    उनके खानदान के खर्चे बेशुमार थे। राजवाड़ा खानदान से थे तो उसके बाप और चाचा, ताया; पूरे आराम पसंद थे। मगर अब आमदनी नहीं रही थी। कोई रियायत भी नहीं थी जो उनके पास थी; वह धीरे-धीरे खत्म हो रहा था। इन्हीं खर्चों की लड़ाई में पूरा खानदान अलग-अलग हो गया। उसके पिता तीन भाई थे—एक उसके पिता से बड़ा और एक छोटा। तीनों अलग-अलग हो गए थे।

    शौर्य के खुद के भी दो बड़े भाई और एक छोटी बहन थी। जब उसने बिज़नेस ज्वाइन किया, उसके दो बड़े भाई जो उसके बिज़नेस में आने से पहले ही बिज़नेस देख रहे थे, उनके कुछ कपड़े की मिलें थीं। शौर्य को कपड़े इंडस्ट्री में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने राणा खानदान की हवेलियाँ, जो अलग-अलग शहरों में पड़ी थीं और उनमें से एक तो महल ही था, उसे होटल में बदल दिया था। उसने केवल अपनी हवेलियों को ही होटल में नहीं बदला था, बल्कि इंडिया के शहरों में पड़ी हुई पुरानी हवेलियाँ उनके मालिकों से खरीदीं और उन्हें होटल में तब्दील किया।

    जब वह काम करता, पूरी तरह से उसमें डूब जाता था। हाँ, यह बात अलग थी कि वह लड़कियों का शौकीन था। उसे रोज़ कोई न कोई लड़की चाहिए थी। यह बात उसकी फैमिली भी जानती थी क्योंकि शौर्य के दम पर ही राणा फैमिली का बिज़नेस था, तो किसी की हिम्मत नहीं थी कि शौर्य को कोई कुछ कह सके। पूरी फैमिली उसके गुस्से से डरती थी। सिर्फ़ उसकी बहन, जो उसे उम्र में छोटी थी, वही थी जो उससे बात कर सकती थी। अपनी माँ की उसने हमेशा इज़्ज़त की थी।

    शौर्य ने अपने परिवार के दबाव की वजह से सगाई कर ली थी। उनकी फैमिली का मानना था कि शादी के बाद शौर्य सुधर जाएगा। वह लड़की भी शौर्य की हकीकत जानती थी, मगर फिर भी उसने जानते हुए सगाई की—वह भी यही सोचती थी कि शादी के बाद शौर्य सिर्फ़ उसका हो जाएगा। वह इतने बड़े अंपायर की मालकिन होगी।

    शौर्य के होटल इंडिया में थे; प्रदेश में उसने काम शुरू नहीं किया था। बस वह छुट्टियाँ बिताने आया था इस छोटे से कस्बे में, जहाँ पर शांति थी और उसे कोई नहीं जानता था। शौर्य उस होटल से निकला और वह टैक्सी लेकर अरमान के घर जाने की जगह उसे होटल में चला गया जहाँ अनोखी काम करती थी।

    अनोखी ने भी उसे देख लिया था। उसने ऑर्डर लेने के लिए अपने साथ वाली लड़की को भेज दिया।

    "जहाँ एक लड़की काम करती है, अनोखी। वह कहाँ है? वह दूसरे कस्टमर का ऑर्डर ले रही है। आप बताइए क्या लेंगे?"

    "उस लड़की को भेजो। मेरा ऑर्डर लेने के लिए उसी को भेजो।" शौर्य ने कहा।

    "जी ठीक है।" परेशान होकर वह वहाँ से चली गई।

    शौर्य ने देखा कि अनोखी वॉशरूम उनकी तरफ़ जा रही है। वह उसके पीछे चला गया। वॉशरूम साइड उस टाइम कोई नहीं था। उसने आगे होकर अनोखी की बाजू को पकड़ लिया और उसे वॉशरूम की दीवार के साथ लगा दिया।

    "यह क्या बदतमीज़ी है?" अनोखी ने उसे कहा।

    "मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ और तुम मुझे भाग रही हो।"

    "देखो मिस्टर, आप जो भी हैं, मुझे जाने दीजिए। वरना मैं शोर मचाऊँगी।"

    "क्या कहोगी? वैसे तुम्हारे बारे में ये लोग भी तो जानते होंगे। मैं कह दूँगा कि मैंने तुम्हें पूरे पैसे दिए हैं, मगर तुम तो भाग रही हो।"

    "क्या बदतमीज़ी है, छोड़ो मुझे!" मगर वह उसकी बात नहीं सुन रहा था।

    "अच्छा, आज रात के लिए क्या प्राइस है तुम्हारा?" शौर्य ने उससे कहा।

    "मेरा जो भी प्राइस हो, मैं अवेलेबल नहीं हूँ आज रात के लिए।" अनोखी ने उसे कहा।

    "क्यों?"

    "मैं किसी और से पैसे ले चुकी हूँ।"

    "मैं उससे डबल दूँगा। बताओ कितने पैसे हैं? मेरा फेवरेट कस्टमर हूँ। मुझे ज़्यादा पैसे नहीं चाहिए।" अनोखी ने कहा।

    अब छोड़ो मुझे! मगर शौर्य ने उसकी बात नहीं सुनी और वह उससे जबरदस्ती किस करने लगा। अनोखी अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। वह उसके होंठों को किस करने लगा।

    अनोखी ने छूटने की बहुत कोशिश की, मगर अनोखी छूट नहीं पा रही थी। जब शौर्य को खुद भी साँस लेना मुश्किल हुआ तो उसने अनोखी के होंठों को छोड़ा। अनोखी ने उसे दूर धक्का दिया। वह जल्दी से वहाँ से भाग गई।

    "क्या हुआ?" उसके साथ जो लड़की थी, रिया ने पूछा।

    "नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं घर जाना चाहती हूँ।"

    उसने मैनेजर से छुट्टी ली और वहाँ से चली गई।

    शौर्य ने अनोखी को रेस्टोरेंट से निकलते देख लिया था। उसने उसके पीछे जाने की कोशिश की, मगर उसे पता नहीं चला कि वह किस तरफ़ चली गई।

    शौर्य को अनोखी पर इतना गुस्सा क्यों है?

    कौन है अनोखी जिसका शौर्य पीछा कर रहा है?

    क्या रिश्ता है इन दोनों के बीच?

  • 4. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 4

    Words: 1115

    Estimated Reading Time: 7 min

    अनोखी ने छूटने की बहुत कोशिश की, मगर छूट नहीं पा रही थी। जब शौर्य को खुद भी साँस आना बंद हो गया, तब उसने अनोखी के होठों को छोड़ा। अनोखी ने उसे दूर धक्का दिया और जल्दी से वहाँ से भाग गई।

    "क्या हुआ?" उसके साथ जो लड़की थी, रिया ने पूछा।

    "नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं घर जाना चाहती हूँ।"

    उसने मैनेजर से छुट्टी ली और वहाँ से चली गई।

    शौर्य ने अनोखी को रेस्टोरेंट से निकलते देखा था। उसने उसके पीछे जाने की कोशिश की, मगर उसे पता नहीं चला कि वह किस तरफ चली गई।

    वह अरमान के घर की तरफ जाने लगा। उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। घर के पास जो सुपरमार्केट थी, घर जाने से पहले वह उस तरफ चला गया। उसे भूख लगने लगी थी। रेस्टोरेंट में से तो वह अनोखी के पीछे ऐसे ही निकल आया था। उसने देखा, वहाँ पर एक छोटा सा रेस्टोरेंट था, साथ में बेकरी का सामान भी मिलता था। शौर्य ने सैंडविच का ऑर्डर दिया और वहीं बैठ गया।

    "तुम हर चीज नहीं खा सकते। मैं तुमसे बड़ी हूँ, मेरी बात मानो।"

    "क्या हमेशा कहती हो तुम बड़ी हो? इतनी बड़ी भी नहीं हो, सिर्फ दो मिनट का फर्क है। इस चॉकलेट से मुझे कुछ नहीं होगा, समझी तुम?"

    दो बच्चे आपस में लड़ाई कर रहे थे। शौर्य, जो वहाँ चेयर पर बैठा सैंडविच खा रहा था, उसका ध्यान वहाँ कुछ सामान खरीद रहे बच्चों पर गया। शौर्य का मूड खराब था, मगर उन दोनों बच्चों को देखते हुए वह मुस्कुराने लगा। दोनों बच्चों की उम्र तकरीबन छह साल के आसपास होगी; दोनों बच्चे एक ही उम्र के लग रहे थे। किसी इंडियन फैमिली के थे, इसीलिए जब वे आपस में बात करते थे, तो हिंदी बोलते थे।

    उन दोनों बच्चों ने थोड़ी सी बहस की। आखिर में छोटे लड़के को अपनी बहन की बात माननी पड़ी और वे सामान लेकर वहाँ से जाने लगे। तब तक शौर्य ने भी सैंडविच खत्म कर लिया था। वह भी उनके पीछे वहाँ से बाहर निकल गया।

    "तुम लोग यहीं रहते हो?" शौर्य ने उनसे पूछा।

    शौर्य के बुलाने पर उन दोनों बच्चों ने अपने पीछे की तरफ देखा। वे दोनों बच्चे शौर्य की तरफ देख रहे थे; उनके चेहरों पर थोड़े से हैरानी के भाव थे। फिर दोनों बच्चों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराए।

    "हमारा घर यहीं पास ही है।" जो छोटी लड़की थी, उसने कहा।

    "क्या नाम है तुम लोगों का?" शौर्य ने कहा।

    "मेरा नाम शुवी है।" लड़की ने कहा।

    "और तुम्हारा क्या नाम है?" शौर्य ने उस लड़के से पूछा।

    "मेरा नाम अनिक है।" वह लड़का बोला।

    "बहुत प्यारे नाम हैं।" शौर्य का मूड बच्चों को देखकर ठीक हो गया था।

    "सचमुच बच्चे कितने मासूम और प्यारे होते हैं।" वह बच्चों के बारे में सोचता हुआ वहाँ से चला गया। उसने वहाँ सैंडविच खा लिया था, मगर वह अच्छी सी चाय पीना चाहता था। इसलिए उसने किचन में जाकर खुद के लिए चाय बनाई। अरमान का जो फ़्लैट था, वह सेकंड फ़्लोर पर था। वह उसकी टैरिस पर जाकर बैठ गया।

    उसने देखा, वही बच्चे सामने वाले घर के अंदर जा रहे थे। "यह तो वही हैं।" उसका मन किया उन बच्चों को बुलाने का, मगर उन बच्चों ने उसे नहीं देखा, वे अंदर चले गए थे।

    वह अनोखी के बारे में सोचने लगा। अनोखी वेट्रेस का काम क्यों कर रही है? अगर वह सचमुच वैसी है जैसा वह कहती है, तो उसे पैसों की क्या कमी थी? इन सात सालों में बहुत कुछ बदल गया था। वह अनोखी के बारे में ही सोच रहा था। वह दिन में भी काम कर रही थी और रात में भी, क्योंकि उसने उसे सुबह रेस्टोरेंट में मिला था और शाम को पार्टी में।

    वह इतना बेवकूफ़ तो नहीं था कि उसके बारे में समझ न सके। रात को गुस्से में था, इसलिए ज़्यादा नहीं सोच पाया था। अनोखी को देखकर उसे बहुत गुस्सा आया था, मगर अब उसका मन शांत था, खासकर दो प्यारे बच्चों को देखने के बाद।

    मगर कितनी बेशर्मी से बात कर रही थी, जैसे उसे किसी बात का कोई फ़र्क नहीं पड़ता। झूठ तो वह क्यों बोलेगी? मगर दिन में वह रेस्टोरेंट में काम करती है, फिर पार्टियों में भी वेट्रेस का काम करती है। "मुझे तुम्हारे बारे में जानना है, अनोखी शर्मा।" उसने अंदर से अपना लैपटॉप उठाया और अनोखी नाम पर सर्च करने लगा।

    उसे अनोखी का अकाउंट तो मिला, मगर सिर्फ़ वही जो उसके कॉलेज तक का था। कितने सालों से इस अकाउंट पर कोई अपडेट नहीं थी। हो सकता है उसका कोई नया अकाउंट हो और अनोखी शर्मा की जगह कोई और सरनेम हो गया हो। उसने शादी कर ली हो। वह अनोखी के बारे में सोच रहा था। "शादी तो उसने ज़रूर कर ली होगी, उसी से।" उसे कितने साल पहले वाली घटना याद आ गई। उसका मूड फिर खराब हो गया। अगर उसने उससे शादी कर ली हो, तो फिर उसे दिन-रात काम करने की क्या ज़रूरत? इतने सालों बाद अनोखी का मिलना उसे बहुत बड़े दर्द में डाल गया था।

    शौर्य अनोखी की प्रोफ़ाइल चेक ही कर रहा था, उसका फ़ोन बजने लगा। उसकी मंगेतर, रूही का फ़ोन था। वह उठाना नहीं चाहता था, मगर जब दूसरी बार फ़ोन आया, तो उसने उठा लिया।

    "कहाँ हो, डार्लिंग तुम?" वह पूछने लगी।

    "मैं इस टाइम देश से बाहर हूँ। मैंने बताया था।"

    "हाँ, मगर मुझे भी साथ ले जाते। इस बहाने से हम दोनों थोड़ा टाइम स्पेंड कर लेते। क्या मैं तुम्हें खूबसूरत नहीं लगती? तुम्हारा मन नहीं चाहता मेरे साथ अकेले वक्त बिताने का?"

    "कोई बात नहीं, नेक्स्ट टाइम तुम्हें साथ ले आऊँगा।"

    थोड़ी देर शौर्य ने उससे बात की और फिर फ़ोन काट दिया।

    इतने में वह दोनों बच्चे फिर अपने घर से बाहर निकल आए थे। इस बार उनके साथ एक ओल्ड लेडी थी। शौर्य का मन उनसे बात करने को हुआ। वह बच्चे इधर-उधर देखते हुए जा रहे थे; उनकी नज़र ऊपर की तरफ गई।

    तो शौर्य ने अपना हाथ हिला दिया। बदले में बच्चों ने भी "हाय" किया। शौर्य ने अपना लैपटॉप वहीं रखा और बच्चों से मिलने के लिए नीचे जाने लगा। बच्चों ने अभी रोड ही क्रॉस की थी कि शौर्य वहाँ पहुँच गया।

    "अरे, तुम लोग तो यहीं रहते हो!"

    "आप तो बिल्कुल हमारे पास रहते हैं।" उन दोनों बच्चों से बात करते देखा, उस ओल्ड लेडी ने शौर्य की तरफ देखा।

    "आंटी जी, हमारे फ्रेंड हैं, हमें पहले मिले थे बेकरी में, अब यहाँ पर मिले हैं।" शुभी ने कहा।

    "दोनों आपके बच्चे हैं?" शौर्य ने लेडी से पूछा।

    "नहीं, मेरे नहीं हैं। हमारे घर में जो किरायेदार रहते हैं, उनमें से एक के हैं। मगर अक्सर वे मेरे पास छोड़ जाती हैं, काम पर जाती है।"

  • 5. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 5

    Words: 1084

    Estimated Reading Time: 7 min

    अरे, तुम लोग तो यहीं रहते हो!

    आप तो बिल्कुल हमारे पास रहते हैं। उन दोनों बच्चों से बात करते हुए उस वृद्ध महिला ने शौर्य की ओर देखा।

    "आंटी, ये हमारे दोस्त हैं। हमें पहले बेकरी में मिले थे। अब यहाँ मिले हैं," शुभी ने कहा।

    "दोनों आपके बच्चे हैं?" शौर्य ने वृद्ध महिला से पूछा।

    "नहीं, मेरे नहीं हैं। हमारे घर में जो किरायेदार रहते हैं, उनमें से एक के हैं। मगर अक्सर वो मेरे पास छोड़ जाती है। काम पर जाती है।"

    "तो तुम लोग कहाँ जा रहे हो इस वक्त?" शौर्य ने कहा।

    "हम लोग पार्क जा रहे हैं। हमने आंटी से कहा कि हमें बाहर जाना है," शुभी ने बताया।

    "अच्छा, मैं भी तुम लोगों के साथ चलता हूँ।" शौर्य को बच्चों का साथ अच्छा लगा था और वह अनोखी को भूलना चाहता था, जिसने इतने सालों बाद उसकी ज़िन्दगी में आकर उसे परेशान कर दिया था।

    वहाँ पास में ही पार्क था। सर्दियाँ ख़त्म हो रही थीं और गर्मियाँ भी शुरू नहीं हुई थीं। मौसम सुहावना था; वैसे भी, जहाँ का मौसम सुहावना हो, वहाँ चला था। वे चारों ही पार्क में चले गए। वहाँ पर वृद्ध महिला की कुछ और सहेलियाँ मिल गईं; वह उनसे बातें करने लगीं। शुभी खेलने लगी। शौर्य एक बेंच पर बैठ गया और अनीक उसके पास आकर बैठ गया।

    "तुम नहीं खेलोगे? शुभी दोस्तों से खेलने लगी है," शौर्य ने उसे कहा।

    "समझा, तुम्हें बैठना पसंद है। देखो, बच्चों को इस उम्र में खूब खेलना चाहिए," शौर्य उसे समझाने लगा।

    "नहीं, अंकल, मैं नहीं खेल सकता। मुझे डॉक्टर ने मना किया है।"

    "क्यों?" शौर्य ने हैरान होकर पूछा। तभी शुभी भागती हुई आई।

    "अंकल, इसके हार्ट में होल है। इसे डॉक्टर ने खेलने से मना किया है।"

    "इसका तो इलाज हो जाता है। आजकल के समय में यह कोई बड़ी बात नहीं है। तुम्हारे माता-पिता ने इसका ऑपरेशन क्यों नहीं करवाया?"

    "मॉम इसके लिए पैसे इकट्ठा कर रही है। वह दिन-रात काम करती है इसके लिए," शुभी बता रही थी।

    "और तुम्हारे पिता? " उसकी बात पर शुभी और अनीक ने एक-दूसरे की ओर देखा, मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। "तुम्हारे पिता तुम लोगों के साथ नहीं रहते? कहाँ हैं वे?"

    अनीक बोलने वाला था, मगर शुभी शौर्य से कहने लगी, "अंकल, आप यहीं पर रहेंगे?"

    "नहीं, बेटा, थोड़े दिनों के लिए आया हूँ यहाँ। रेस्ट करना चाहता था। अब देखो ना, मुझे तुम जैसे दो दोस्त मिल गए। तो हो सकता है, मैं थोड़े दिन और रह जाऊँ।"

    शुभी बात करते हुए शौर्य के बिल्कुल साथ बैठ गई थी। दोनों बच्चे उसके बगल में बैठे हुए थे। शौर्य देख रहा था कि बच्चे उसके साथ बहुत सहज हैं। वह वृद्ध महिला, जिसने दोनों बच्चों को शौर्य के साथ बैठे देखा, वहाँ पर आई।

    "घर में तो तुम लोग अपनी मॉम से कह रहे थे कि तुम लोगों को खेलना है, तो मैं तुम्हें ले आई। अब तुम यहाँ बैठे हो और अंकल को भी कोई काम होगा, तुम दोनों तो ऐसे चिपक गए हो।"

    "आंटी," शौर्य ने वृद्ध महिला से कहा, "आंटी, क्या प्रॉब्लम है अनीक को? यह खेल क्यों नहीं सकता? कह रहा है, इसके हार्ट में होल है।"

    "हाँ, बेटा, जन्म से ही इसे इसी समस्या से जूझना पड़ रहा है। इसका ऑपरेशन होगा, शायद एक से ज़्यादा," उस वृद्ध महिला ने बताया।

    "करवा लेना चाहिए। इससे पहले कि देर हो जाए।"

    "इसके लिए पैसे चाहिए, बेटा। इसकी माँ इसके लिए पैसे इकट्ठा कर रही है। दिन-रात काम करती है।"

    "मगर कनाडा में तो इलाज मुफ़्त है। वह किसलिए पैसे इकट्ठा कर रही है?"

    "इन लोगों के पास यहाँ की नागरिकता नहीं है, बेटा। इसलिए इसके इलाज पर पैसे लगेंगे। इसकी माँ सोच रही है कि वह यहाँ पैसे इकट्ठे करेगी और फिर इसका इलाज भारत जाकर करवाएगी। बड़ी प्यारी लड़की है इसकी माँ; इन दोनों बच्चों के लिए जी रही है।"

    "और इन लोगों के पिता? मतलब, उस लड़की का पति? अगर तलाक हो गया, फिर भी उसे अपने बच्चों के इलाज की ज़िम्मेदारी तो लेनी चाहिए।"

    "अब आजकल के ज़माने का पता ही है तुम्हें, बेटा। उसने कभी नहीं बताया इनके पिता के बारे में, और ना ही मैंने कभी पूछा। सीधी सी बात है, अगर उसे ज़िम्मेदारी उठानी होती, तो वह कभी आता। दो साल से यहाँ है, कभी नहीं आया वह। वही लड़की माँ और पिता है," वह बताने लगी।

    "कोई बात नहीं, आंटी। आप अपनी सहेली से बातें कीजिए; दोनों मेरे पास हैं। मैं फ्री हूँ; मुझे कोई काम ही नहीं है," शौर्य ने कहा।

    "आप घबराइए मत। मैं आपके पड़ोस में रहता हूँ। अरमान, मैं उसका दोस्त हूँ।"

    "अच्छा, अच्छा, वह लम्बे बालों वाला लड़का। अच्छा है, उसका वहाँ पर किराने की दुकान है। जानती हूँ मैं उसे।"

    "आंटी, मैं उसी का दोस्त हूँ।" आंटी अपनी सहेली के पास चली गई थी। शुभी उठकर शौर्य की गोद में आकर बैठ गई। "अंकल, आप हमेशा के लिए यहीं रह जाएँ।"

    "अच्छा, ठीक है, रह जाऊँगा।"

    "तुम लोगों ने अपने पिता को कभी नहीं देखा?" शौर्य फिर पूछने लगा।

    असल में वह अनीक के ऑपरेशन के लिए उसकी माँ की मदद के बारे में सोचने लगा था। उसे बच्चे बहुत प्यारे लगे थे।

    "मैं तुम लोगों की माँ से मिलना चाहता हूँ।"

    "क्यों?" शुभी, जो उसकी गोद में बैठ गई थी, जल्दी से उतर गई।

    "क्यों? प्रॉब्लम क्या है अगर मैं तुम लोगों की माँ से मिलूँगा?" उसकी बात पर शुभी और अनीक ने एक-दूसरे की ओर देखा।

    "क्यों? तुम लोगों ने अपने पिता को भी देखा है?" शौर्य ने ऐसे ही पूछ लिया।

    "हमने तो खुद पहली बार देखा है। मॉम तो बस उनकी तस्वीर देखकर रोती रहती है।"

    "अच्छा, क्या कहती है?"

    "हमारे सामने नहीं देखती। मॉम के फ़ोन में डैड की एक तस्वीर है। मॉम समझती है कि हमें नहीं पता, और हम लोग जब गेम खेलते हैं, तो चुपके से उनकी तस्वीर देख लेते हैं।"

    "हाँ," अनीक ने भी शुभी की हाँ में हाँ मिलाई थी।

    "तो तुम लोगों ने मॉम से पूछते नहीं कि वह क्यों रोती है? आप लोगों को पूछना चाहिए।"

    "पूछा था एक बार। वह और भी ज़्यादा रोने लगी थी। उसके बाद हम लोगों ने पूछना छोड़ दिया।"

    "अच्छा, तो तुम लोगों ने तस्वीर देखी है। तो इसका मतलब तुम्हारी माँ अभी भी उन्हें याद करती है, जबकि वह छोड़कर जा चुके हैं।"

    "हाँ, तो कैसे दिखते हैं तुम लोगों के पापा?"

    "आप जैसे," शुभी ने धीरे से कहा।

    शुभी ने ऐसा क्यों कहा कि उसके पिता शौर्य जैसे दिखते हैं?

    कौन हैं शुभी और अनीक?

    क्या रिश्ता है शौर्य से शुभी और अनीक का?

  • 6. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 6

    Words: 1097

    Estimated Reading Time: 7 min

    अच्छा, तो तुम लोगों ने तस्वीर देखी है। इसका मतलब तुम्हारी माँ अभी भी उन्हें याद करती हैं, जबकि वे छोड़कर जा चुके हैं।


    हाँ, तो कैसे दिखते हैं तुम लोगों के पापा?


    "आप जैसे," शुभी ने धीरे से कहा।


    "क्या कहा?" शौर्य को उसकी बात समझ नहीं आई थी।


    शुभी ने अपनी बात बदलते हुए कहा, "चलो अंकल, हम खेलते हैं।"


    वह उन दोनों के साथ उठकर चला गया था। कितना समय वह दोनों बच्चों के साथ खेलता रहा! वह हर बात भूल गया था; अपने अंदर का गुस्सा, नफ़रत, हर बात जो उसे परेशान करती थी।


    "चलो बच्चों, बहुत समय हो गया। तुम्हारी मॉम का फ़ोन भी आ गया है, खाने के लिए बुला रही हैं तुम दोनों को," उस ओल्ड लेडी ने कहा।


    "चलो अंकल, आप भी हमारे साथ चलो," अनीक ने कहा। "साथ में खाना खाएँगे।" बच्चे चाहते थे कि वह उनके साथ घर चले।


    "नहीं बेटा, मुझे काम है। तुम चलो।"


    शौर्य उन दोनों को छोड़कर वापस रेस्टोरेंट में जाने के बारे में सोच रहा था। वह अनोखी के बारे में पता करना चाहता था; वह कहाँ रहती है, वो एड्रेस पता करना चाहता था। वह टैक्सी लेकर वापस रेस्टोरेंट चला गया। दोनों बच्चे आंटी के साथ घर चले गए थे। रेस्टोरेंट में शौर्य मैनेजर के पास गया।


    "आपके यहाँ एक लड़की अनोखी काम करती है। उससे मिलना है।"


    "वह आज छुट्टी पर है," मैनेजर ने कहा।


    "मुझे उसका एड्रेस दे दीजिए। मैं घर पर चला जाऊँगा।"


    "देखिए, हमारे यहाँ पर इतने कस्टमर आते हैं। हम किसी को अपने एम्पलाइज के बारे में नहीं बताते। इसलिए मैं आपको उनका एड्रेस नहीं बता सकता," मैनेजर ने साफ़-साफ़ मना कर दिया।


    "वह मेरी फ्रेंड है," शौर्य ने कहा।


    "अगर आपकी फ्रेंड है तो फ़ोन नंबर होगा आपके पास। आप उन्हें फ़ोन कर लीजिए। प्लीज़, मुझे काम है," मैनेजर वहाँ से चला गया।


    "सॉरी," वह समझ गया था कि वह अनोखी का एड्रेस नहीं देगा। अगर शौर्य चाहता तो अपने तरीके से उसके बारे में पूरी डिटेल निकलवा सकता था, मगर उसने इससे ज़्यादा कोशिश नहीं की। "कल मिल जाएगी," यह सोचते हुए वह वहाँ से बाहर निकल गया था।


    इंडिया में एक होटल के कमरे में, एक औरत, जिसकी उम्र 60 साल के आसपास होगी, वह खिड़की के पास खड़ी थी। उसने रेड कलर की बनारसी साड़ी पहनी थी और कीमती ज्वेलरी उसके बदन पर थी। उसके सामने दो लड़कियाँ सोफ़े पर बैठी हुई थीं।


    "तो इसे समझा दिया है। क्या काम है?" उसने उनमें से एक लड़की से कहा।


    "मैडम, आप बिल्कुल फ़िक्र मत करो। जैसे आपने कहा है, वैसे ही होगा।"


    "शौर्य में और कोई कमी नहीं है। शौर्य प्रताप सिंह राणा हर चीज़ में परफ़ेक्ट है। बस उसे किसी ने धोखा दिया था, एक लड़की ने उसे गुस्सा दिलाया। वह गुस्सा हर रात किसी लड़की पर निकलता है। लड़कियाँ ही उसकी कमज़ोरी हैं। मैं इसीलिए तुम्हें इस कंपनी में मॉडल का काम दे रही हूँ; ताकि तुम उसके करीब जाओ, उसके दिल में उतरना है, उससे दोस्ती करनी है। वह लड़कियों को एक रात बाद अपने पास नहीं आने देता; उसे किसी में दिलचस्पी नहीं बनती। मगर मुझे लगता है तुम ऐसा कर लोगी," उस औरत ने कहा।


    "मैडम, आप बिल्कुल फ़िक्र मत करो। यह मेरी छोटी बहन जैसा आप लोग चाहेंगे वैसा ही करेगी। इसकी खूबसूरती तो आप देख ही रहे हैं।"


    "इसीलिए तो तुम्हें कंपनी की मॉडलिंग का काम दिलाया है। बहुत खूबसूरत हो तुम। 19 साल की उम्र है तुम्हारी, देख लेना बहुत ऊपर तक जाओगी। मगर जो मैंने कहा है वह काम हो जाना चाहिए।"


    "मैडम, यह कर लेगी।"


    "अलीना, तुम ही बात करोगी। इससे भी तो कहो कि यह बात करे।"


    "देखिए मैडम, निया बोलती नहीं, करके दिखाती है," जो लड़की साथ बैठी थी उसने कहा। "देखते जाइए, अगर मैंने उसे अपना एडिट ना बना लिया तो मेरा नाम निया शर्मा नहीं।" इस खूबसूरती को तो आप देख ही रहे हैं। उस औरत ने निया की तरफ़ देखा, जिसने रेड कलर की शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई थी। वह मुस्कुराई, "इसीलिए तो मैं तुम्हें चुना है।"


    शौर्य की छोटी बहन कृपा जल्दी से कॉलेज के अंदर जा रही थी। वह गुस्से में दिख रही थी। वह कॉलेज में किसी को ढूँढते हुए कैंटीन में पहुँची। वहाँ पर एक लड़का बैठा हुआ था; वह फ़ोन पर कुछ देख रहा था और उसके एक हाथ में कोल्ड ड्रिंक थी।


    "तो तुम यहाँ बैठे हो! मैं तुम्हें पूरे कॉलेज में ढूँढ चुकी हूँ," वह उसके पास बैठ गई।


    "डार्लिंग, तुम आ गई! मैं तुम्हारा ही तो वेट कर रहा था," लड़के सिद्धार्थ ने कहा।


    "हमारा फ़ाइनल ईयर है। थोड़ा पढ़ाई की तरफ़ भी तो ध्यान दो। अगर पढ़ोगे नहीं तो काम नहीं मिलेगा; अगर काम नहीं मिलेगा तो मेरे घर वाले शादी के लिए कैसे मानेंगे?"


    "देखते जाओ बेबी, वह बिल्कुल मान जाएँगे। क्यों फ़िक्र करती हो तुम? अगर मैंने तुम्हें पटा लिया है तो मैं उन्हें भी पटा लूँगा," सिद्धार्थ ने कहा।


    "बस रहने दो। बातें करवा लो तुमसे जितनी।" कृपा का गुस्सा चला गया था और वह हँसकर उससे बातें करने लगी थी।


    कृपा राणा खानदान की सबसे छोटी बेटी थी; पूरे परिवार की लाड़ली, जिस चीज़ पर हाथ रख दे, उसे मिल जाती थी। थोड़ी नकचढ़ी, गुस्से वाली, उसे प्यार हुआ था एक ग़रीब लड़के सिद्धार्थ खन्ना से; वह किसी भी कीमत पर उससे शादी करना चाहती थी। मगर सिद्धार्थ का पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं था। थोड़ी देर वह बातें कर रहे थे।


    "हम लोग क्लास लगाने चलें। पीरियड का टाइम होने वाला है।"


    "हाँ बेबी, चलो," सिद्धार्थ ने कहा।


    तभी सिद्धार्थ का फ़ोन आया। सिद्धार्थ ने फ़ोन की बेल बजते ही नंबर देखा और फ़ोन काट दिया।


    "उठा लेते फ़ोन, किसका था?" कृपा ने कहा।


    "फ़ालतू कंपनी का था," उसने कहा।


    सिद्धार्थ ने फ़ोन काट दिया तो उसके फ़ोन पर किसी का मैसेज आया।


    "फ़ोन नहीं उठा रहे। क्या चिड़िया तुम्हारे साथ है सिद्धार्थ?"


    वह नंबर देखकर मुस्कुराया और उसने कृपा को बिना बताए उसकी तस्वीर खींची और सेंड कर दी और उसने लिखा, "चिड़िया मेरे सामने है।"


    "तो कब फँसा रहे हो? तो उसके प्यार में वीडियो कब डाल रहे हो? उसे पिंजरे में कब डालोगे?" वापस मैसेज आया था।


    "टाइम आने दो ब्रो। जैसा तुमने चाहते हो वैसे ही तो हो रहा है," सिद्धार्थ ने टाइप करके भेज दिया था।


    "किससे चैट कर रहे हो? चलो ना सिद्धार्थ, क्लास पीरियड लगाने चलते हैं।" वह दोनों क्लासरूम की तरफ़ चले गए थे।

  • 7. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 7

    Words: 1228

    Estimated Reading Time: 8 min

    वह नंबर देखकर मुस्कुराया और उसने कृपा को बिना बताए उसकी तस्वीर खींची और भेज दी। उसने लिखा, "चिड़िया मेरे सामने है।"

    "तो कब फँसा रहे हो?"

    "तो उसके प्यार में वीडियो कब डाल रहे हो?"

    "उसे पिंजरे में कब डालोगे?" वापस मैसेज आया था।

    "टाइम आने दो ब्रो।"

    "जैसा तुमने चाहते हो वैसे ही तो हो रहा है।" सिद्धार्थ ने टाइप करके भेज दिया था।

    "किससे चैट कर रहे हो?"

    "चलो ना सिद्धार्थ, क्लास पीरियड लगाने चलते हैं।" वे दोनों क्लासरूम की तरफ चल दिए थे।


    शौर्य के खिलाफ प्लान बना रहे थे, इस बात से अनजान वह अनोखी के पीछे लगा हुआ था। वह उसे देखकर जल रहा था। बच्चों से मिलने के बाद वह काफी खुश था। उसने अरमान के आने से पहले खाना बना लिया था। जब शाम को अरमान घर आया, शौर्य उसी का इंतज़ार कर रहा था।

    "क्या बात है? तुम घर पर हो?" अरमान ने उसे कहा।

    "आज नहीं गया किसी गर्लफ्रेंड के पास।"

    "मुझे लगा था किसी के साथ होंगे तुम आज रात।"

    "आज सोचा रात तेरे साथ बताऊँगा।" शौर्य ने मज़ाक किया।

    "एक बात कहूँ शौर्य।"

    "तुम शादी करो, सेटल हो जाओ।"

    "तुम तो ऐसे ही नहीं थे, जैसे तुम हो गए हो। हम लोग कॉलेज में चाहे साथ नहीं थे, पर फिर भी हम एक-दूसरे को जानते थे। तुम ऐसे क्यों हो गए? यह शराब, लड़कियाँ, क्यों जला रहे हो खुद को? जिसने तुम्हें धोखा दिया वह तो ज़िन्दगी में खुश होगी, आगे बढ़ चुकी होगी। तुम क्यों जल रहे हो?" अरमान उसे समझाने लगा।

    "छोड़ ना यार, कोई और बात करते हैं।"

    "जहाँ पर मुझे दो बच्चे मिले, बड़े प्यारे थे।" वह खुश होकर बता रहा था।

    "शुभी और अनिक।" अरमान ने कहा।

    "तो तुम जानते हो।"

    "शुभी से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती है।"

    "हाँ, अनिक को कोई प्रॉब्लम है। उसी वजह से वह थोड़ा कम आता है, खेलता भी नहीं है। शुभी तो पूरी शैतान है।" अरमान कहने लगा।

    "शुभी की आँखें भी तो तुम्हारे जैसी हैं ना।"


    तभी अरमान के फ़्लैट पर बेल बजी। अरमान उठकर देखने चला गया। देखा तो सामने शुभी खड़ी हुई थी।

    "अंकल, मैं आ जाऊँ?"

    "आओ ना बेटा।" अरमान ने मुस्कुराकर कहा।

    "वह अंकल कहाँ हैं, जो आपके यहाँ रहने के लिए आए हैं?" उसने पूछा।

    "वह अंदर है।"

    शौर्य ने शुभी की आवाज़ पहचान ली थी। उसके हाथ में ड्रिंक का ग्लास था। वह उसने साइड पर छुपा दिया। वह बच्चों के सामने नहीं, ऐसे आना चाहता था।

    "क्या बात है प्रिंसेस तुम?" शौर्य ने उसे कहा। वह उठकर शुभी के पास चला गया था। शुभी के हाथ में कोई सामान पकड़ा हुआ था।

    "यह क्या है?" अरमान ने पूछा।

    "मैं उन अंकल के लिए खीर लेकर आई हूँ। आज मॉम ने बनाई थी।" शुभी ने कहा।

    "मेरे लिए नहीं लाई।" अरमान ने कहा।

    "आपको भी चाहिए।" शुभी ने कहा।

    "ठीक है, तुम अपने उन अंकल को ही दे दो।" अरमान मुस्कुराया। शुभी के पास कटोरी थी और उसे किसी चीज़ से ढँका हुआ था।

    "मॉम ने बनाई है, बहुत टेस्टी है।"

    "तो तुम्हारी मम्मी ने भेजी है?" शौर्य वह कटोरी पकड़ने लगा।

    "नहीं। मॉम ने मुझे मेरे हिस्से की खाने के लिए दी थी। मैं चुपके से ले आई। मुझे लगा आपको भी पसंद होगी।"

    "मैं चम्मच लेकर आती हूँ आपके किचन से।" शुभी भागकर किचन में गई और वहाँ से चम्मच उठा लाई और आकर शौर्य के पास सोफ़े पर बैठ गई।

    "तुम खाओ बेटा।" शौर्य उसके मुँह में डालने लगा।

    "नहीं अंकल, मैं तो और खा लूँगी घर पर। आप खाओ, बहुत टेस्टी है।"

    अरमान उन दोनों को बैठे हुए देख रहा था। तभी अरमान के फ़ोन पर बेल हुई। अरमान ने नंबर देखते हुए फ़ोन उठाया। "आ जाओ, मैं घर पर ही हूँ।" उसने दरवाज़ा खोल दिया था। एक लड़का, जिसके हाथ में सामान पड़ा हुआ था, वह अंदर आया।

    "जहाँ रख दो।" अरमान ने उसे इशारा किया। उस लड़के के हाथ में जो पैकेट थे, उसने रख दिए।

    "अब तुम जाओ।" वह अरमान के ग्रोसरी स्टोर से आया था और मांग कर कोई सामान चाहिए था घर के लिए, वही बोलकर आया था।

    उसने सामान रखा और वह जाने लगा। फिर उसने शौर्य की तरफ़ देखा और साथ ही शुभी की तरफ़।

    "मुझे पानी मिलेगा?" उस लड़के ने अरमान से कहा। अरमान ने उसे पानी दिया। वह पानी पीता हुआ शौर्य और शुभी की तरफ़ देखने लगा। शौर्य भी उस लड़के से बात करने लगा।

    "आपकी बेटी बड़ी प्यारी है।" उसने शौर्य से कहा।

    "क्या?" शौर्य ने उसे कहा।

    "मैंने कहा आपकी बेटी बहुत प्यारी है।"

    "यह मेरी बेटी है, तुम्हें कैसे पता?" शौर्य ने कहा।

    "देखिए ना, आप दोनों की शक्ल कितनी मिलती है। आँखें तो बिल्कुल सेम हैं।"

    शौर्य ने भी शुभी की तरफ़ ध्यान दिया। शौर्य की आँखें ग्रीन कलर की थीं और वैसे ही हल्के ग्रीन कलर की आँखें शुभी की थीं। शौर्य जैसा ही साँवला रंग था उसका, जबकि अनिक का रंग बहुत गोरा था। वह लड़का चला गया था, मगर शौर्य को यह कहना, "आपकी बेटी बड़ी प्यारी है," शौर्य को अच्छा लगा।

    "उन अंकल को लगा तू मेरी बेटी हो।" शौर्य उसे हँसने लगा।

    "तो मैं आपको डैड कह सकती हूँ।"

    शौर्य उसकी बात से हैरान हुआ।

    "मगर तुम्हारी माँ मारेगी तुम्हें। पता है ना तुम्हारी मॉम का?" अरमान ने कहा।

    "क्यों? इसकी मॉम क्यों मारेगी?" शौर्य ने पूछा।

    "एक्चुअली, दो साल पहले ये लोग जहाँ पर आए थे...काफी सिन्सियर औरत है इसकी माँ। दिन-रात काम कर रही है इसके भाई की ज़िन्दगी बचाने के लिए। जहाँ पर कोई आया था, उन्होंने इसकी मॉम को भी प्रपोज़ किया और इसे बच्चों से भी दोस्ती करने की कोशिश की। बच्चों से कहा कि वह उसे डैड कहे। इतनी बुरी तरह से उसे सुनाया इसकी मॉम ने, वह फिर कभी नज़र नहीं आया और इन दोनों को भी डाँट पड़ी कि किसी से भी दोस्ती कर लेते हो।"

    "अच्छा।" वह मुस्कुराया।

    "तो फिर अपनी माँ के सामने मत कहना। मेरे मार पड़ेगी।" शौर्य ने पूरी खीर खत्म कर दी थी। उसे बहुत पसंद आई थी।

    "अपनी मॉम को थैंक्स कहना।"

    शुभी भी जाने लगी तो उसने कहा, "आप मुझे थैंक्स कहिए। मैं कहूँगी कि मैं उसे छोटे डॉग को खिलाकर आई हूँ।" वह वहाँ से चली गई थी।

    उसके जाने के बाद शौर्य मुस्कुराकर उसी के बारे में सोच रहा था।

    "सचमुच डैड होने की फीलिंग ले रहे हो। शादी कर लो, खुद के बच्चे पैदा करो। डैड का खेल दूसरों के बच्चों से खेलकर कब तक ऐसे खुश होंगे?"


    शौर्य का मूड आज बहुत ठीक था।

    "चलो, मैंने खाना बनाया है। खाना खाते हैं।"

    "आज पीनी नहीं है।" अरमान ने कहा।

    "आज डैड बनने की खुशी में नहीं पिएँगे।" शौर्य ने हँसकर कहा। दोनों दोस्त खाना खाने लगे थे।

    क्या कहीं शुभी सचमुच शौर्य की बेटी तो नहीं?

    कौन है शुभी की माँ जो अपने बेटे को बचाने के लिए दिन-रात काम कर रही है?

    क्या होने वाला है आगे?

  • 8. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 8

    Words: 1201

    Estimated Reading Time: 8 min

    शौर्य का मूड आज बहुत ठीक था।

    "चलो, मैंने खाना बनाया है। खाना खाते हैं।"

    "आज पीनी नहीं है।" अरमान ने कहा।

    "आज डैड बनने की खुशी में नहीं पियेंगे।" शौर्य ने हंसकर कहा।

    दोनों दोस्त खाना खाने लगे।

    शौर्य ने जल्दी खाना खाया और वह जल्दी सोने चला गया। वह इंडिया वापस जाने के बारे में सोच रहा था।

    "सही बात है, जिसने मेरी परवाह नहीं की, मैं उसके लिए क्यों परवाह कर रहा हूँ?" वह सोचने लगा।

    "मैं कल सुबह चला जाऊँगा।" उसने अरमान से कहा।

    "तुम जहाँ रहे, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। हम दोनों की फाइनेंसियल लेवल में इतना फर्क है, फिर भी तुम मुझे इतना अच्छा दोस्त मानते हो।" अरमान कहने लगा।

    "तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे तुम गरीब हो!" शौर्य ने हंसकर कहा।

    "मैं गरीब नहीं हूँ, पर तुम्हारे जितना अमीर नहीं। एक मेरा ग्रॉसरी स्टोर है, और तुम ठहरे इंडिया के मोस्ट एलिजिबल बैचलर बिज़नेस टायकून।"

    शौर्य उसकी बात पर हंसने लगा। वह जल्दी सोने चला गया। अगली सुबह वह जल्दी उठकर नहाकर तैयार हो चुका था। उसने चाय पीते हुए अरमान से कहा,

    "मैं अनीक के ऑपरेशन में हेल्प करना चाहता हूँ, उसका इलाज हो सके।"

    "यह तो बहुत अच्छी बात है।" अरमान ने कहा।

    "मैं चाहता हूँ कि उस बच्चे का ऑपरेशन हो जाए। मैं उसके पूरे ट्रीटमेंट का खर्चा उठा सकता हूँ, उठाना चाहता हूँ। जहाँ तक हो सके, मैं किसी डॉक्टर से बात भी कर लूँगा।"

    "ठीक है, अच्छी बात है। तो तुम्हें उसकी मॉम से बात करनी चाहिए। वह काम पर चली जाएगी। मिलो उसे।"

    "ठीक है, मैं सामने वाली बिल्डिंग में जा रहा हूँ। ऊपर रहती है या नीचे उसकी फैमिली?"

    "नहीं, ऊपर तो मकान मालिक और उसकी फैमिली रहती है। नीचे जो तीन बेडरूम हैं, तीन अलग-अलग लड़कियों ने किराए पर लिए हुए हैं। तो उनमें से एक रूम शुभी की फैमिली के पास है।"

    "कोई बात नहीं, बच्चे घर पर ही होंगे, मैं जाकर मिल लेता हूँ।"

    शौर्य वहाँ से निकल गया। वह सामने वाली बिल्डिंग की निचली फ्लोर पर गया और उसने बेल बजाई। थोड़ी ही देर में दरवाज़ा खुला; एक १९-२० साल की लड़की ने दरवाज़ा खोला।

    "जी, कहिए? किसे मिलना है?" उसने पूछा।

    "जहाँ पर बच्चे रहते हैं ना, शुभी और अनीक..." इससे पहले वह लड़की बोलती,

    "अंकल, आओ।" शुभी ने हाथ पकड़कर शौर्य को अंदर ले गई।

    "आप हमसे मिलने आए हैं?"

    "हाँ, बेटा। तुम लोगों की मॉम कहाँ है? मुझे उनसे मिलना है।"

    "हमारी मॉम..."

    "कौन है शुभी?" किचन से आवाज़ आई और एक औरत किचन से बाहर निकली।

    "मॉम, देखो कौन आया है।" शुभी ने कहा।

    उस औरत और शौर्य ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। दोनों हैरान रह गए। वह औरत कोई और नहीं, अनोखी थी।

    "शुभी, तुम कमरे में चलो।" उसने कहा।

    "मॉम..." शुभी कहने लगी।

    "तुम्हें सुनाई नहीं दिया?" वह गुस्से में थी।

    शुभी ना चाहते हुए भी कमरे में चली गई।

    "वह तुम्हारे बच्चे हैं।" शौर्य ने उसे कहा।

    "चल गया पता। उस तरफ़ जा सकते हो।" शौर्य वहाँ से बाहर जाने लगा।

    फिर वह रुक गया। "अनीक भी तुम्हारा बेटा है।"

    "मुझे नहीं लगता कि इस बात को किसी को कुछ कहने की ज़रूरत है।" अनोखी ने कहा।

    "मैं तो इसलिए आया था कि मुझे उसकी बीमारी का पता चला, मैं उसकी हेल्प करना चाहता था।" शोर्य को अनीक की फ़िक्र थी।

    "अब तो पता चल गया ना! यह मेरे बच्चे हैं, तो अब तो तुम्हें उनकी शक्ल देखना भी पसंद नहीं होगा।" अनोखी ने बड़े रूड तरीके से कहा। शौर्य गुस्से से वहाँ से चला गया। उसके जाते ही अनोखी सोफ़े पर बैठ गई। उसने सिर पकड़ लिया।

    तब शुभी बाहर आ गई। "अपने अंकल को क्यों भगा दिया, मामा? यह वही अंकल है ना, जिसकी तस्वीर देखकर आप रोती हैं?"

    "मैं क्यों रोऊँगी किसी की तस्वीर देखकर? और कोई ज़रूरत नहीं तुम्हें किसी के साथ दोस्ती करने की। मैंने क्या समझाया था तुम्हें?" अनोखी काम पर जाने के लिए तैयार थी, मगर अब उसने जाना कैंसिल कर दिया। वह बच्चों के पास घर पर ही रहना चाहती थी।

    वह नहीं चाहती थी कि शोर्य उसे मिले। शोर्य वापस चला गया।

    "क्या हुआ? तुम वापस कितनी जल्दी आ गए?" अरमान ने उसे देखकर कहा जो काम पर जाने को तैयार था।

    "वह वही है। वह उसके बच्चे हैं।" शोर्य ने कहा।

    "किसके? कौन?" अरमान को समझ नहीं आई थी। "वही है? क्या कह रहे हो तुम?" अरमान को उसकी बात समझ नहीं आई थी।

    "उन बच्चों की माँ वही लड़की है जिसने मुझे धोखा दिया था।" शोर्य ने कहा।

    "तुम कह रहे हो कि अनोखी ने तुम्हें धोखा दिया? मैं नहीं मानता। देखो, जिस तरह से मुझे उस लड़की के बारे में पता है, जो तुम्हारी लाइफ में थी, जिसके बारे में मैंने बातें सुनी हैं, और यह लड़की अनोखी...का कैरेक्टर बिल्कुल मैच नहीं करता। दो साल से मेरे सामने है। जहाँ से सीधा रेस्टोरेंट, रेस्टोरेंट से घर। कई बार रात को पार्टी में भी काम कर लेती है। एक-एक मिनट काम करती है, अपने बच्चों के लिए पैसे इकट्ठे कर रही है। उन दोनों का अच्छा इंसान बनाना चाहती है। उसे मैंने कभी सजते-संवरते नहीं देखा। उन्हीं पुराने कपड़ों में है वह। दो साल से मुझे नहीं लगता उसने कभी नए कपड़े खरीदे होंगे, कभी किसी से बात की होगी। तुम क्या कह रहे हो? कहीं से दोनों तुम्हारे बच्चे तो नहीं?"

    "क्या कह रहे हो तुम?" शोर्य ने उसे कहा।

    "तुम लोग कितने साल पहले अलग हुए थे?" अरमान ने कहा।

    "यही कोई ७ साल होने वाले होंगे।" शोर्य ने कहा।

    "और जब बच्चे की उम्र तकरीबन ६ साल की है। अगर पूरी तरह से पता किया जाए तो उतनी ही उम्र है इनकी। देखो, शुभी की शक्ल तुमसे कितनी मिलती है और..."

    "उसने मुझे वहाँ पर डैड भी कहा। मैंने उससे पूछा था कि उसके डैड के बारे में, तो उसने कहा कि आप जैसे हैं। तब मुझे उसकी बात समझ नहीं आई। हो सकता है..."

    "तुम पता करो अनोखी से।"

    "नहीं, वह मेरे बच्चे नहीं हैं।" शोर्य ने कहा। "मैं जानता हूँ अनोखी को, जिस औरत ने मुझे धोखा दिया, जिसे मैं रंगे हाथ पकड़ा था। वह इतना बड़ा धोखा, जिसने मेरी पूरी ज़िन्दगी बदल दी। वह मेरा वहम नहीं था। वह मेरे बच्चे नहीं हैं।" शोर्य उदास बैठा हुआ था।

    रात तक जो उसका मूड सही था, बिल्कुल खराब हो गया था।

    "मगर मैं फिर भी हेल्प करना चाहता हूँ।" शोर्य ने कहा।

    क्या अनोखी ही वही लड़की है जिसने शोर्य को धोखा दिया? क्या शुभी और अनीक शौर्य के बच्चे हैं? क्या सच्चाई है उनके रिश्ते की? क्या अनोखी हेल्प लेगी शोर्य से?

  • 9. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 9

    Words: 1110

    Estimated Reading Time: 7 min

    शौर्य वापस जाने के बारे में सोच रहा था। अब उसे नई परेशानी ने घेर लिया था। वह आया तो जहाँ छुट्टियाँ बिताने वाला था, मगर उसकी ज़िन्दगी उलट-पुलट हो गई थी। शुभी और अनीक, अनोखी के बच्चे थे। वही अनोखी जिससे उसने कभी शादी की थी। यह बात अलग थी कि उनकी यह शादी एक महीना भी नहीं चली थी। एक महीने में ही उसने अनोखी का असली रंग देख लिया था और उस दिन वह गुस्से में घर से निकल गया था। जब वापस आया, वह घर में नहीं थी और 7 साल बाद आज वह अनोखी को देख रहा था।

    उसके दिमाग में यह बात घूम रही थी कि अनोखी ने इन 7 सालों में ज़रूर किसी और से शादी कर ली होगी। शादी नहीं भी की होगी तो वैसे भी वे किसी और के बच्चे हो सकते थे। उसके नहीं। मगर उसका दिल शुभी और अनीक की तरफ़ खींच रहा था। शुभी का प्यारा सा चेहरा उसके सामने आ जाता। उसे अनीक की फ़िक्र होने लगती। वह बीमार था।

    अरमान उसे छोड़कर अपने स्टोर नहीं गया था। वे दोनों घर पर ही थे और वह शौर्य का हाल समझ रहा था।

    "तुम क्यों ऐसे परेशान हो?"

    "तुम सीधी-सीधी बात करो अनोखी से। अगर वे तुम्हारे बच्चे हैं तो जो तुम चाहते हो, उनकी हेल्प करना चाहते हो, हेल्प करो। मगर बच्चों की कस्टडी चाहते हो तो उससे बात करो।" अरमान ने उसे कहा।

    अरमान की बात उसे सही लगी। उसे अनोखी से खुलकर बात करनी चाहिए थी। वह कमरे से उठा।

    "मैं उससे बात करने जा रहा हूँ।" शौर्य ने कहा।

    "इस वक़्त तो वह घर पर नहीं होगी, रेस्टोरेंट में होगी।" अरमान कहने लगा।

    "कोई बात नहीं।" उसने कहा। "देखता हूँ मैं।"

    शौर्य ने उसके फ्लैट की घंटी बजाई। मगर किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। तभी मकान मालकिन ऊपर से आई।

    "लॉक है, इस वक़्त कोई नहीं है यहाँ पर। तुम्हें अनोखी से मिलना है?" जो मकान मालकिन थी, वही ओल्ड लेडी थी।

    "मैं रेस्टोरेंट जा रहा हूँ।" कहते हुए शौर्य जाने लगा।

    "अनोखी तो हॉस्पिटल में है।" उसे ओल्ड लेडी ने कहा।

    "क्यों? क्या हुआ?" शौर्य ने पूछा।

    "अनीक की तबीयत खराब हो गई है। वह उसे हॉस्पिटल ले गई है।"

    "क्यों? क्या हुआ?" शौर्य ने घबराकर पूछा।

    "सुबह को आपके जाते ही वह बेहोश हो गया।" उस लेडी ने बताया।

    "कौन से हॉस्पिटल? मुझे एड्रेस बता सकती हैं?" ओल्ड लेडी ने हॉस्पिटल का एड्रेस बताया। यह शहर वैसे भी ज़्यादा बड़ा नहीं था। वह कुछ मिनट में ही उस अस्पताल पहुँच गया।

    जैसे ही वह अस्पताल के अंदर गया, वहाँ अनोखी लोगों के साथ एक बेंच पर बैठी हुई थी। उसके साथ उसकी गोद में शुभी सिर रखकर बैठी थी।

    शौर्य ने वहाँ बैठी हुई अनोखी को देखा। उसने फेड हुई पुरानी जींस, शर्ट और उसके ऊपर एक जैकेट पहनी हुई थी। बालों को ऐसे ही इकट्ठा करके जुड़ा सा बनाया था। चेहरा उदास, परेशान, बिना किसी मेकअप के।

    शौर्य उसके पास पहुँचा। अनोखी ने अभी भी उसे नहीं देखा था।

    "क्या हुआ अनीक को?" शौर्य ने पूछा।

    शुभी, जो अनोखी की गोद में आँखें बंद करके बैठी थी, एकदम आँखें खोली।

    "डैड, आप आ गए।" उसने कहा।

    "शुभी!" अनोखी ने उसे इतना कहा।

    "अंकल, आप यहाँ?" शुभी ने बात बदली।

    "अनीक कहाँ है और क्या हुआ उसे?" शौर्य ने फिर कहा।

    "वह ठीक है। अब तुम यहाँ से जाओ। यहाँ तमाशा मत करो। मेरी लाइफ में पहले ही बहुत प्रॉब्लम है। प्लीज़, और प्रॉब्लम क्रिएट मत करो।" अनोखी ने उसे कहा।

    "अनीक कहाँ है?" उसने पूछा।

    "वह सामने वार्ड में है। वह इमरजेंसी में है।"

    शौर्य इमरजेंसी की तरफ़ चला गया। वह मशीनों से घिरा हुआ सो रहा था। उसे ऐसे देखकर शौर्य को बहुत तकलीफ़ हुई। वह बिना अनोखी से बात किए डॉक्टर से मिलने चला गया। डॉक्टर ने उसे बताया कि स्ट्रेस की वजह से इसकी प्रॉब्लम बढ़ गई है। वैसे भी इसके हार्ट में होल है। ऑपरेट करना ज़रूरी हो रहा है।

    डॉक्टर से बात करके शौर्य वहाँ से बाहर आया।

    "इसे हम किसी बड़े हॉस्पिटल में शिफ़्ट कर देते हैं, जहाँ पर इसका ट्रीटमेंट हो सके। मेरी डॉक्टर से बात हुई है, इसका ऑपरेशन जल्दी हो तो अच्छी बात है।" शौर्य ने अनोखी से कहा।

    "आपने डॉक्टर से बात की, इस बात के लिए आपका शुक्रिया। यह हमारी ज़िन्दगी है, हमारी लाइफ़ है। हम देख लेंगे। अब आप यहाँ से जा सकते हैं।" अनोखी ने उसे कहा।

    वह उठकर डॉक्टर के केबिन की तरफ़ जाने लगी। वह डॉक्टर के केबिन के अंदर चली गई थी, जब कि अनोखी ने शुभी को बाहर खड़ा कर दिया था। वह नहीं चाहती थी कि डॉक्टर उसके सामने बात करें।

    शौर्य शुभी के पास गया।

    "क्या सुबह मेरे आने के बाद अनीक बेहोश हो गया?"

    "हाँ अंकल। आपके जाने के बाद पता नहीं उसे क्या हुआ, वह अचानक गिर गया। मॉम बहुत परेशान है।" शौर्य उसके पास अपने घुटनों पर बैठ गया। वह उसके गले लग गई।

    "आपके आने से क्या हो गया? अनीक की तबीयत खराब हो गई। मॉम बहुत परेशान है। अब तो मॉम काम पर भी नहीं जा सकती उसे छोड़कर। अगर मॉम काम नहीं करेगी तो उसका इलाज कैसे होगा? मॉम सही कहती है, अगर आप हमारे क़रीब रहेंगे तो सिर्फ़ परेशानी होगी।" छोटी सी शुभी ने शौर्य से कहा।

    "क्या बेटा, तुम्हें लगता है मैं तुम्हारा सच में डैड हूँ?" शौर्य ने उसके चेहरे पर प्यार से हाथ लगाते हुए कहा।

    उसकी बात पर शुभी मुस्कुराई।

    "लगता क्या है? मुझे और अनीक को पता है आप हमारे डैड हैं। प्लीज़ आप जाओ। मॉम आएगी। वह अनीक को लेकर बहुत ज़्यादा परेशान है। आपको देखेगी तो परेशानी और बढ़ जाएगी। जाइए आप।"

    उसकी बात सुनकर शौर्य वहाँ से जाने लगा। वह अपने मन में कोई फैसला लेने लगा। वह वहीं एक बेंच पर बैठ गया था। अनोखी और शुभी वहाँ से वापस आ रहे थे।

    "अच्छा, मैं तुम्हें कुछ खिला देती हूँ।" अनोखी ने शुभी से कहा।

    "चलो मामा, आप भी कुछ खा लो। आपने तो सुबह से बिलकुल कुछ नहीं खाया। मैंने तो सुबह घर पर भी खा लिया था।" शुभी कह रही थी।

    क्या सचमुच में ये शौर्य के ही बच्चे हैं?

    अब शौर्य का अगला कदम क्या होगा?

  • 10. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 10

    Words: 1050

    Estimated Reading Time: 7 min

    शौर्य ने उसकी बात सुनकर वहाँ से जाने का फैसला किया। वह एक बेंच पर बैठ गया। अनोखी और शुभी बहन के साथ वापस आ रही थीं।

    "अच्छा, मैं तुम्हें कुछ खिला देती हूँ," अनोखी ने शुभी से कहा।

    "चलो मामा, आप भी कुछ खा लो। आपने तो सुबह से बिल्कुल कुछ नहीं खाया।"

    "मैंने तो सुबह घर पर भी खा लिया था।"

    "तुम इतनी परेशान क्यों हो बेटा? फिक्र मत करो, वो ठीक हो जाएगा। यह कैसा चेहरा बनाया है?" अनोखी ने शुभी से कहा। "चलो, मेरा बेटा क्या खाएगा?" वो शुभी का हाथ पकड़कर अस्पताल की कैंटीन की ओर जाने लगी।

    शौर्य पहले ही कैंटीन में बैठा हुआ था। उसने भी सुबह से कुछ नहीं खाया था। अनोखी ने कैंटीन से दो बर्गर लिए और दोनों माँ-बेटी वहाँ बैठ गईं। अनोखी शुभी को खिलाने लगी।

    "मामा," अनोखी ने कहा।

    "हाँ, क्या हुआ बेटा?"

    "अब तो डैड आ गए हैं। क्या वे हमारी हेल्प नहीं कर सकते? आपसे बात तो करो एक बार।"

    "तुम्हें किसने कहा कि वे तुम्हारे डैड हैं? मैंने कभी कहा तुम लोगों से? पता नहीं तुम दोनों के दिमाग में क्या चल रहा है। यही सब सोचने का नतीजा है कि अनिक अस्पताल में इस हाल में है," अनोखी ने कहा।

    "मामा, मैंने और अनिक ने आप दोनों की बातें सुन ली थीं। आप उस दिन आंटी से बात कर रही थीं। आपने जो नाम बताया था डैड का, और साथ में उनकी तस्वीर दिखाई थी। ऐसा क्या है जो मैं नहीं जानती? ऐसा मत समझना कि मैं छोटी हूँ।"

    "मैंने कब कहा तुम छोटी हो? मेरा बेटा 6 साल से ऊपर हो चुका है," अनोखी ने लाड से कहा।

    अनोखी और शुभी की बातें सुनकर शौर्य थोड़ी दूर वहीं बैठा हुआ था, यह बात उन दोनों को पता नहीं थी। वह दोनों माँ-बेटी वहाँ से उठकर चली गईं। शौर्य अनोखी और शुभी को जाते हुए देख रहा था। उसने अनोखी को गौर से देखा: पुराने कपड़े, बालों को रबर बैंड से बस ऐसे ही बांधा हुआ था, पैरों में पुराने स्पोर्ट्स शूज।

    शुभी के कपड़े थोड़े ठीक थे। अनोखी के चेहरे पर ना कोई मेकअप था। परेशानी में उसका चेहरा और भी उदास लग रहा था।

    "मैं तुझे अपनी रानी बनाकर रखना चाहता था।"

    "इस हाल की जिम्मेदार तुम खुद हो," शौर्य ने अपने मन में उसे देखकर सोचा।

    शौर्य के दिल में भी एक अजीब सा दर्द हुआ था अनोखी की इस हालत को देखकर। वह वहाँ से उठा और उसने अपने एक दोस्त को, जिसकी गिनती इंडिया के टॉप लॉयर में होती थी, फोन लगाया।

    "कैसे हो शौर्य? बड़े दिनों बाद याद किया। कहाँ हो आजकल?" सिकंदर गोयल ने फोन उठाते ही कहा।

    "मैं इस समय देश से बाहर हूँ।"

    "तो किसके साथ छुट्टियाँ मना रहे हो?" सिकंदर ने हँसते हुए पूछा, क्योंकि उसे शौर्य के बारे में हर बात पता थी।

    "आया तो अकेला ही था छुट्टियाँ मनाने। जहाँ मुझे अनोखी मिल गई।"

    "इतने सालों के बाद! लगता है पुराना प्यार फिर जाग पड़ा है," सिकंदर गोयल ने हँसकर कहा।

    वे दोनों पुराने दोस्त थे। यह बात अलग थी कि सिकंदर गोयल शौर्य से तकरीबन दो-तीन साल बड़ा था, मगर इनकी दोस्ती बहुत पुरानी थी। स्कूल से ही, जब सिकंदर शौर्य का सीनियर था, तब से वे साथ थे और सिकंदर को शौर्य के वर्तमान और अतीत के बारे में हर बात पता थी।

    वो उसे अनिक और शुभी के बारे में बताता है।

    "तो तुम्हें पक्का यकीन है कि वे तुम्हारे बच्चे हैं?"

    "मुझे पक्का यकीन है।"

    "मेरी बात मानो, डीएनए टेस्ट कराओ। वैसे, तुम लोगों की शादी का कोई रिकॉर्ड है?" सिकंदर ने उससे पूछा। "हम उसी बेस पर ही तो कस्टडी मांगेंगे।"

    "नहीं, हम दोनों ने मंदिर में शादी की थी। अब तो कोई तस्वीर भी नहीं होगी उसकी। 7 साल हो चुके हैं। हमारी शादी रजिस्टर नहीं हुई और एक महीने में उसका असली रंग सामने आ गया। वह मुझे छोड़कर चली गई।"

    "फिर कानूनी तो कोई तरीका नहीं है कि तुम उनके बच्चों की कस्टडी ले सको। मगर..."

    "क्या मगर?" शौर्य ने पूछा।

    "तुम पैसों की बात करो। जैसा तुम कह रहे हो, वह एक वेट्रेस का काम करती है। तुम उससे कहो कि जितना वह मांगे, तुम उतना पैसा दोगे, मगर वह तुम्हें तुम्हारे बच्चे वापस लौटा दे। तुम उससे बात तो करो। वह कहती क्या है? ऐसा भी हो सकता है कि वह बच्चे तुम्हारे ना हों। उसने जानबूझकर बच्चों को तुम्हारे पीछे लगाया हो," सिकंदर गोयल कहने लगा।

    "वह मुझसे बात नहीं करना चाहती है। मेरा बेटा बहुत सीरियस है अस्पताल में। वह उसके इलाज के लिए दिन-रात काम कर रही है। मैंने आसपास के लोगों से जितनी अनोखी के बारे में बात की, कोई उसे बुरा नहीं कह रहा। सब कहते हैं अच्छी लड़की है," शौर्य ने बताया।

    "तुम एक बार अनोखी से बात करो। हम फिर बात करेंगे कि आगे क्या करना है। तुम डीएनए टेस्ट जरूर कराओ," सिकंदर ने उससे कहा। "डीएनए रिपोर्ट हमारे बहुत काम आएगी।"

    "ठीक है," शौर्य कहने लगा।

    सिकंदर गोयल अपने ऑफिस में बैठा शौर्य से बात कर रहा था। टाइम देखते हुए वो अपने ऑफिस से निकला। उसे घर जाना था। सिकंदर खन्ना इंडिया के टॉप लॉयर में आता है, जिसकी खुद की लॉ फर्म है। उसके बारे में माना जाता है कि जो केस वो लेता है, वह कभी नहीं हारता। इसलिए उसका कोई केस लेना जीतने की गारंटी माना जाता है। उतना ही उसमें एटीट्यूड और गुस्सा है। सभी उसके जानने वाले उसके गुस्से से डरते हैं।

    वह अपने घर का बड़ा बेटा है, जिसने अभी तक शादी नहीं की। उसके दो छोटे भाई हैं, जिनकी शादी हो चुकी है और उसके दूसरे नंबर के भाई की साली से उसकी सगाई हो चुकी है, जो उसने घर वालों के दबाव के कारण की है।

    दोनों बच्चों की डीएनए रिपोर्ट शौर्य से मैच करेगी।

    कहीं अनोखी की कोई चाल तो नहीं है?

    अब शौर्य का अगला कदम क्या होगा?

    सिकंदर गोयल शौर्य की कितनी मदद करेगा?

  • 11. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 11

    Words: 1107

    Estimated Reading Time: 7 min

    शौर्य ने कहा, "ठीक है।"

    सिकंदर गोयल अपने कार्यालय में बैठा शौर्य से बात कर रहा था। समय देखकर वह अपने कार्यालय से निकला। उसे घर जाना था। सिकंदर खन्ना इंडिया के शीर्ष वकीलों में आता था। जिसकी खुद की लॉ फर्म थी। उसके बारे में माना जाता था कि जो केस वह लेता था, वह कभी नहीं हारता था। इसलिए उसका कोई केस लेना जीतने की गारंटी माना जाता था। उतना ही उसमें अहंकार और गुस्सा था। सभी उसके परिचित उसके गुस्से से डरते थे।

    वह अपने घर का बड़ा बेटा था, जिसने अभी तक शादी नहीं की थी। उसके दो छोटे भाई थे, जिनकी शादी हो चुकी थी और अपने दूसरे नंबर के भाई की पत्नी से उसकी सगाई हो चुकी थी, जो उसने घरवालों के दबाव के कारण की थी।

    ऐसा नहीं था कि उसे शादी से समस्या थी। समस्या यह थी कि वह बहुत व्यस्त रहता था। वह सोचता था कि अगर वह शादी करेगा तो उसका तलाक पक्का है। वह स्वयं एक क्रिमिनल वकील था, लेकिन उसकी लॉ फर्म में हर तरह के केस आते थे। उसके दोनों छोटे भाई भी वकील थे और उसके साथ ही लॉ फर्म में काम करते थे, मगर वे इतने कामयाब नहीं थे। इसके अलावा उनके कुछ शोरूम थे, जो किराए पर थे, और भी काफी प्रॉपर्टी थी। ये अच्छे खासे पैसे वाले लोग थे।

    जैसे ही ड्राइवर ने घर के अंदर जाकर गाड़ी रोकी, सिकंदर गाड़ी से उतरने लगा।

    "सर," उसके ड्राइवर राकेश ने कहा।

    "क्या हुआ?" सिकंदर ने कहा।

    "सर, मुझे दो दिन की छुट्टी चाहिए।" वह डरता हुआ बोला। उसे पता था कि सिकंदर को कितना काम रहता है और उसे ड्राइवर की कितनी ज़रूरत होती है।

    "किसलिए?" सिकंदर ने परेशान होकर कहा।

    "मेरी बीवी को मायके जाना है। उसने कहा है कि अगर मैं उसके साथ नहीं गया तो वह अकेली चली जाएगी और फिर कभी नहीं आएगी। बच्चों को भी साथ ले जाएगी। हर बार वह अकेली जाती है।" उसने कहा।

    "ठीक है भाई, छुट्टी है तुम्हारी।" सिकंदर गोयल गाड़ी से उतरा।

    "इसीलिए मैं शादी नहीं करना चाहता था। मगर मेरे घरवालों के दिमाग़ खराब हो गए हैं। अब दो भाइयों की शादी हो चुकी है, उनके बच्चे होंगे, उनके साथ बिजी रहेंगे। बस मॉम और डैड को तो मेरी शादी करनी है और ऊपर से दादी को वह लड़की भी नहीं पसंद, जिससे मेरी सगाई हुई है।" सोचता हुआ सिकंदर गोयल घर के अंदर जा रहा था।

    वह सीधा अपने कमरे में गया। अपने कपड़े बदल दिए। पीछे ही चाय लेकर नौकर आ गया था।

    "ऐसा करो, मेरी चाय मेरे ऑफिस में ले आओ।" वह वापस नीचे आने लगा क्योंकि उसका ऑफिस नीचे ही बना हुआ था।

    उसके ऑफिस का एक दरवाज़ा लॉन की तरफ खुलता था और एक हॉल में खुलता था। ऑफिस के बाहर बैठने के लिए जगह भी बनी हुई थी, जहाँ पर वह अक्सर काम करता था। वह एरिया, जहाँ पर लॉन का दरवाज़ा खुलता था, थोड़ा शांत था। घर के लोग भी इधर ज़्यादा नहीं आते थे और घर के मेन गेट से भी सीधा पड़ता था। बाहर से कोई क्लाइंट मिलने आना हो तो वह सीधा ऑफिस में आ सकता था। वह अपने ऑफिस के अंदर गया, मगर वह अंदर बैठने की जगह लॉन साइड का दरवाज़ा खोलता हुआ बाहर आकर बैठ गया, जहाँ पर उसकी कुर्सी रखी हुई थी और एक टेबल, जहाँ पर नौकर ने चाय लाकर रख दी थी। वह चाय पीता हुआ अपना काम करने लगा।

    थोड़ी देर बाद, किसी ने कहा, "थोड़ी देर रेस्ट कर लेते हैं।" उसने सर उठाकर देखा। दादी उसके पास आई थी।

    "आ जाओ दादी।" उसने कहा।

    "तुम खुद भी आ जाया करो दादी से मिलने। यह क्या बात हुई? आते ही तुम जहाँ चले आये। परिवार के साथ वक्त गुज़ारा करो। अभी तो तुम्हारी दादी ज़िंदा है।"

    "वह क्या है कि दादी, मुझे काम बहुत था।" सिकंदर ने कहा।

    "पहले मुझे लगता था कि तुम्हारे लिए मैं कोई ऐसी लड़की ढूँढ लूँगी जो तुम्हारा ध्यान रखेगी। मगर जो लड़की तेरी माँ-बाप ने तेरे लिए पसंद की है, वह क्या ख्याल रखेगी तुम्हारा?" दादी ने कहा।

    "क्या आप क्यों नाराज़ होती हो? मैं खुश हूँ।" सिकंदर ने कहा।

    "मुझसे कुछ नहीं छुपता, एक तुम्हारी माँ है। पता नहीं उसने उस लड़की में क्या देखा।"

    "दादी, भाभी आ जाएंगी, उसकी बहन है, फिर वह सुरेश से मुँह फुला लेगी।"

    "आज तो घर में मेहमान भी आए हुए हैं।" दादी ने बताया।

    "अच्छा, कौन है दादी?" सिकंदर ने चाय पीते हुए पूछा। उसकी बात पर दादी का चेहरा थोड़ा उदास हो गया।

    "आपको अच्छा नहीं लगा उनका आना?" सिकंदर ने मुस्कुराकर कहा।

    "नहीं बेटा, बात वह नहीं है। बस किसी बच्चे के माँ-बाप उसे छोड़कर ना जाएँ।"

    "क्यों? आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"

    "तुम्हारी सुनंदा भाभी के मायके वाले आए हैं। साथ में उसके मामा की बेटी भी आई है।"

    "तो?" सिकंदर ने पूछा। वह चाहे किसी और से बातें बहुत कम करता था, मगर दादी की हर बात दिलचस्पी से सुनता था। अगर उसे दिलचस्पी ना भी हो, कम से कम दादी को यही दिखाता कि वह इंटरेस्ट ले रहा है।

    "शायद तुमने देखा हो समर की शादी के टाइम उसे। उसके माँ-बाप नहीं हैं, इन्हीं के पास रहती है। अब सुनंदा पैठ से है तो उसे अपनी सेवा के लिए बुलाया है। कह रही थी तुम्हारी शादी भी है अगले महीने तो घर में काम बढ़ जाएगा, इसीलिए उसे बुला लिया।"

    "तो आप क्यों उदास हो रही हैं? आते ही उसे काम पर लगा दिया। उस लड़की के मुँह में तो जुबान ही नहीं है। जैसी सुनंदा उसकी माँ भी वैसी ही है। वैसे भी जिसकी माँ नहीं होती, वह अकेला तो हो ही जाता है, कम बोलता है। तुम भी तो ऐसा ही हो।"

    "मेरी माँ ने उन्होंने कभी फर्क तो नहीं किया हमारे बीच में।" सिकंदर ने कहा।

    "मगर वह तुम्हें वैसे अपनापन भी नहीं दे सकी, जैसे अपने दोनों बच्चों समर और सुरेश से करती है।"

    "दादी, आप तो ऐसे ही।" सिकंदर दादी को समझाने लगा। क्योंकि सिकंदर की माँ उसे जन्म देते ही दुनिया से चली गई थी और मिसेज़ गोयल, जिसे वह मॉम कहता था, उसकी सौतेली माँ थी। ऐसा नहीं था कि उसने कभी सिकंदर के साथ फर्क किया था, मगर सिकंदर उनके साथ कभी ऐसा घुल-मिल भी नहीं सका था।

  • 12. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 12

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरी माँ ने हमारे बीच कभी फर्क नहीं किया। सिकंदर ने कहा।

    मगर वह तुम्हें वैसे अपनापन नहीं दे सकी, जैसे अपने दोनों बच्चों, समर और सुरेश से करती थी।

    "दादी, आप तो ऐसे ही हैं," सिकंदर दादी को समझाने लगा। क्योंकि सिकंदर की माँ उसे जन्म देते ही दुनिया से चली गई थी और मिसेज़ गोयल, जिसे वह मॉम कहता था, उसकी सौतेली माँ थी। ऐसा नहीं था कि उसने कभी सिकंदर के साथ फर्क किया हो, मगर सिकंदर उनके साथ कभी ऐसा घुल-मिल नहीं सका था।

    अनीक को होश आ गया था। उसकी स्थिति स्थिर थी। शौर्य ने डॉक्टर से बात करके अनीक का डीएनए टेस्टिंग के लिए भेज दिया था। मगर शौर्य ने अपने मन में एक फैसला ले लिया था।

    "रिपोर्ट जो भी हो, मैं उसे ऐसे नहीं छोड़ सकता। अनीक को फौरन इलाज की ज़रूरत है। अनोखी की लापरवाही उसकी जान ले सकती है।"

    शौर्य अनोखी के पास पहुँचा, जो अस्पताल के लोन में शुभी को गोद में लिए बैठी थी।

    "मुझे तुमसे बात करनी है," उसने अनोखी से कहा।

    उसे देखकर अनोखी अपनी जगह से खड़ी हो गई।

    "कहो," कहते हुए अनोखी ने शुभी की ओर भी देखा जो उसके पास थी। अगर वह वहाँ नहीं होती, तो वह शायद शौर्य से बात भी ना करती।

    "मैंने सारा अरेंजमेंट कर दिया है। हम अनीक को ले जा रहे हैं। उसे इलाज की ज़रूरत है। उसका ऑपरेशन होना बहुत ज़रूरी है। यह अस्पताल छोटा है, यहाँ नहीं हो सकता।"

    उसकी बात सुनकर अनोखी कुछ कहने ही वाली थी कि उससे पहले शौर्य ने फिर कहा,

    "जो हमारी लड़ाई है, वह अपनी जगह है। मैं तुम्हें जिंदगी में कभी माफ़ नहीं कर सकता। पर मैं जानता हूँ कि ये दोनों मेरे ही बच्चे हैं और मैं अपने बच्चों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकता। तुम्हारी गलतियों की सज़ा मेरे बच्चे कभी नहीं भुगतेंगे। अगर तुम सीधा नहीं मानोगी, तो भी मैं अनीक को यहाँ से ले जाऊँगा। तुम भी चुपचाप चलो। मैंने डॉक्टर से बिल बनवा लिया है। उनका बिल पे हो चुका है। तुम साइन करो। तुम यह मत समझना कि तुम्हारे साइन के बिना मैं उसे नहीं ले जा सकता। मैं कुछ भी कर सकता हूँ। समझी तुम?"

    शौर्य की बात से अनोखी शौर्य की तरफ़ देखते हुए सोचने लगी।

    "चलो शुभी, चलते हैं," अनोखी को सोचते देखकर शौर्य ने शुभी का हाथ पकड़ लिया।

    "चलो शुभ, चलते हैं।"

    अनोखी उनके साथ ही आ गई थी। अनोखी जानती थी कि इस समय अनीक को इलाज की ज़रूरत है और उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि अपने बच्चे का इलाज कर सके। इसलिए वह चुपचाप शौर्य की बात मान गई थी। एक घंटे में अनीक को लेकर वे उस शहर से निकल गए थे। वे वहाँ पास के किसी बड़े शहर ले जा रहे थे।

    अस्पताल पहुँचने से पहले ही तैयारी हो चुकी थी। अनीक के एक नहीं, उसके लगातार दो-तीन ऑपरेशन होने थे। उसकी हार्ट की प्रॉब्लम ज़्यादा थी।

    अगले दिन शाम तक अनीक का ऑपरेशन हो गया था और वह ठीक-ठाक था। अनीक इमरजेंसी वार्ड में ही था। उसे बेहद केयरफुली अलग रखा गया था। शौर्य और अनोखी को ऑपरेशन के बाद अभी तक उसके पास जाने की इजाजत नहीं मिली थी। अस्पताल में ही अनोखी और शुभ के लिए शौर्य ने अलग से प्राइवेट रूम का इंतज़ाम किया हुआ था, जहाँ पर वे दोनों ठहरे थे।

    शौर्य अनोखी के पास आया। उसने देखा कि शुभी सो रही थी, जबकि अनोखी उसी चेयर पर किसी सोच में बैठी थी। उसने दो दिन से वही कपड़े पहने हुए थे। बिखरे हुए बाल, उदास चेहरा, अनोखी की उदास आँखें... शौर्य को उसे इस तरह से देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था। उसकी आँखों के आगे दस साल पहले वाली अनोखी, जो अपने पापा के साथ उसके घर आया करती थी, याद आ गई।

    उसके घर में एंटर करते ही सबको पता चल जाता था कि अनोखी आई है। उसके पापा, डैड के साथ अपना काम करने लगते और वह आते ही मॉम के साथ बात करना शुरू कर देती। कितनी देर छोटी-छोटी बातें करती रहती! जितना बोलती थी, उससे ज़्यादा हँसती थी।

    शौर्य ने उसे कितनी बार टोका कि अपनी बात पूरी किया करो, बीच में क्यों हँसती हो!

    "देखो आंटी, इसे मेरा हँसना बिल्कुल पसंद नहीं," उसकी बात पर वह अक्सर मॉम से शिकायत करती।

    "क्या हाल बना लिया है तुमने अनोखी," उसे देखकर शौर्य ने अपने मन में सोचा।

    अनोखी ने शौर्य की तरफ़ देखा।

    "फ़िक्र मत करो, अब ठीक है। अनीक ख़तरे से बाहर है। मगर उसकी अभी एक सर्जरी और होगी थोड़े दिनों के बाद। तुम भी रेस्ट कर लो।"

    "नहीं, मैं ठीक हूँ। आप शुभ के साथ सो लीजिए। मुझे नींद नहीं आ रही।" वह उठकर कमरे से बाहर जाने लगी।

    "बाहर ठंड है," शौर्य ने उसे कहा। "मुझे तुमसे बात करनी थी। बैठ जाओ।"

    अनोखी आकर बैठ गई।

    "इन दोनों का पिता मैं ही हूँ। ठीक कहा ना मैंने?"

    "हाँ," अनोखी ने अपना सिर झुकाया।

    "मुझे अपने दोनों बच्चे चाहिए।"

    "क्या!" अनोखी ने एकदम से कहा। "मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी फैमिली को यह बातें ठीक लगेंगी। तुम्हारी बीवी इन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगी।"

    "मेरी कोई शादी नहीं हुई," उसने कहा।

    "आप शादी करो। बच्चे हो जाएँगे।"

    "मैं नहीं दे सकती।"

    "याद रखो, मैं कोर्ट जाऊँगा। मैं छोड़ूँगा नहीं। और क्या है? तुम्हारे पास इलाज तक नहीं करवा सकती तुम! कैसी ज़िंदगी दे रही हो तुम इनको?" शौर्य ने कहा।

    बोलते-बोलते उसकी आवाज़ ऊँची हो गई थी, मगर शुभी ना उठ जाए, इसलिए वह धीरे बोलने लगा।

    "एक बार दूसरा ऑपरेशन होने के बाद हम लोग इंडिया जा रहे हैं। वहाँ जाकर तुम मुझे इन दोनों की कस्टडी दोगी।"

    "मगर तुम्हारे माँ-बाप इन्हें कभी स्वीकार नहीं करेंगे। कैसे मानेंगे कि ये बच्चे आपके हैं?"

    "अनीक का सही तरीके से इलाज हो जाएगा।"

    शौर्य दोनों बच्चों को अनोखी से लेगा।

    अनोखी का अगला क्या होगा?

  • 13. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 13

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    याद रखो, मैं कोर्ट जाऊँगा। मैं छोडूँगा नहीं। और क्या है? तुम्हारे पास इलाज तक नहीं करवा सकती तुम? कैसी जिंदगी दे रही हो तुम इनको? शौर्य ने कहा।

    बोलते-बोलते उसकी आवाज़ ऊँची हो गई थी, मगर शायद शुभी ना उठ जाए, इसलिए वह धीरे बोलने लगा। "एक बार दूसरा ऑपरेशन होने के बाद हम लोग इंडिया जा रहे हैं। वहाँ जाकर तुम मुझे इन दोनों की कस्टडी दोगी।"

    "मगर तुम्हारे माँ-बाप इन्हें कभी स्वीकार नहीं करेंगे। कैसे मानेंगे ये बच्चे आपके हैं?"

    "बिल्कुल मानेंगे, जब मैं बताऊँगा ये दोनों मेरे बच्चे हैं। वे स्वीकार जरूर करेंगे।"

    "हम लोग कितने दिनों के लिए साथ थे? मुश्किल से एक महीना, और फिर आप लोगों ने मुझे किसी और के साथ देख लिया था। कोई नहीं मानेगा। इस बात पर तो पूरा यकीन मुझे भी नहीं है। आपने मेरी हेल्प की है। आपके पैसे धीरे-धीरे चुका दूँगी। आप इमोशनल मत होइए। ये आपके बच्चे नहीं हैं।" अनोखी ने बहुत क्लीयरली कहा।

    "अपनी बेवफाई की कहानी बड़े आराम से सुना रही हो। कोई रिग्रेट नहीं है ना तुम्हें?" शौर्य ने उसे ताना मारा।

    "कई बातों का रिग्रेट है मुझे। मैंने जिंदगी में एक बहुत बड़ी गलती की है, जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी। उस गलती ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। मुझे इंसानों में फर्क नहीं आता था। अब उस बात को करने का कोई फायदा नहीं। मैं उस बात को भूल जाना चाहती हूँ। प्लीज़ आप भी इस बात से निकलिए कि ये आपके बच्चे हैं।" अनोखी कह रही थी।

    "मुझे नफ़रत है अनोखी, तुमसे नफ़रत! मगर ये बच्चे मेरे हैं और मैं नहीं छोड़ने वाला। मेरे पास सबूत भी पहुँचने वाला है। मैंने डीएनए टेस्ट दिया है, तब तुम नहीं मुकर सकोगी।" शौर्य गुस्से में वहाँ से चला गया।

    बात सच हुई थी। उस डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आ गई थी। अनीक उसका बेटा था। दोनों ट्विन्स थे, तो दोनों उसके बच्चे थे। "तुम जैसी औरत के पास मैं अपने बच्चे नहीं छोड़ सकता। ले जाऊँगा। मुझे अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी देनी है, अच्छे इंसान बनाना है।" शौर्य बच्चों के बारे में ही सोच रहा था।

    कुर्सी पर बैठी अनोखी उसकी और शौर्य की पहली मुलाक़ात के बारे में सोच रही थी। अनोखी की माँ उसके बचपन में चली गई थी। उसके पिता अकेले थे। उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, मगर वह एक छोटी बच्ची की देखभाल नहीं कर सकते थे। इसीलिए उसे अपनी नानी के पास भेज दिया था।

    अनोखी अपने ननिहाल में, नाना और नानी के पास बड़ी होने लगी। प्लस टू तक स्कूल उसने वहीं किया। फिर वह कॉलेज की पढ़ाई के लिए उसके पिता उसे वापस ले आए। अनोखी के पिता शौर्य के घर में काम करते थे; वे उनकी जमीनों का हिसाब-किताब संभालते थे। उसके पिता का काम ऑफिस में न होकर घर में होता था।

    जब अनोखी वापस आई, तो अपने पिता के साथ अक्सर शौर्य के घर चली जाती। शौर्य की मॉम के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। वह शौर्य के बड़े भाइयों से तो मिल चुकी थी, मगर अभी तक शौर्य से उसकी मुलाक़ात नहीं हुई थी।

    शौर्य एमबीए कर रहा था। जब अनोखी घर आती, तो वह घर से बाहर होता था। एक दिन छुट्टी थी और शौर्य किचन में आया। वह बाहर से खेलकर आया था; उसके पैरों में मिट्टी थी और वह खुद पसीने से भरा हुआ था। जैसे ही वह किचन में फ़्रिज खोलने लगा, पानी पीने के लिए, अनोखी, जो पहले से किचन में मौजूद थी, उसने कहा, "कौन हो तुम और इतने गंदे किचन में क्यों आए? बाहर चलो।" अनोखी ने उसे डाँट दिया।

    "तुम कौन हो और मुझ पर ऐसे हुक्म कैसे चला सकती हो?" शौर्य उसे जवाब दे रहा था, मगर शौर्य की नज़र अनोखी के चेहरे पर रुक गई थी। गोरा रंग, भूरी आँखें और काले बाल, जिसमें ब्राउनिश रंग झलकता था। लम्बे बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे और वह उसे डाँटते हुए अपने हाथ से बालों को पीछे कर रही थी। "सुनाई नहीं दिया क्या? चलो जहाँ से आए हो।" उसने शौर्य से फिर कहा।

    शौर्य का ध्यान एकदम टूटा और वह किचन से बाहर आ गया। "मोम, कहाँ हो?" वो चिल्लाया। "क्या हुआ?" उसकी मॉम, रीना, जो वहीं हाल में बैठी थी, उसके पास आई। "ये लड़की कौन है और मुझे किचन से क्यों निकाल रही है?" "ये तुम्हारे मुनीम अंकल की बेटी है।" "अच्छा, तो तुम वही हो। आजकल मॉम तुम्हारी ही बातें करती है।" शौर्य उसे कहने लगा।

    "देखो आंटी, इतना गंदा किचन में सीधा आ गया। क्या ऐसे किचन में आना चाहिए? जो चीज चाहिए, तुम हमसे मांगो और नहा-धोकर आओ।"

    शौर्य ऊपर अपने कमरे में चला गया और अनोखी किचन में काम करने लगी। "मॉम," शुभी ने कहा। अनोखी अपने अतीत से निकलकर वर्तमान में आ गई थी। "क्या हुआ बेटा?" अनोखी भागकर शुभी के पास आई। "मॉम, आप मेरे पास हो। डैड कहाँ है?" "वह बाहर है, अनीक के पास हैं। तुम डरो मत, सो जाओ।" अनोखी वापस उसे सुलाने लगी थी।

    अनीक की तबीयत में सुधार होने लगा था। उसके दूसरे ऑपरेशन से पहले उसे थोड़े दिन आराम की ज़रूरत थी। शौर्य ने एक फ़्लैट किराए पर ले लिया, जहाँ पर उसने अनोखी को बच्चों के साथ आने के लिए कहा।

    "हम कहाँ जा रहे हैं?" जब अस्पताल से छुट्टी मिली, अनोखी ने पूछा।

    "अभी अनीक को थोड़े दिन आराम चाहिए होगा। फिर इसका एक और ऑपरेशन होगा। मैंने एक फ़्लैट किराए पर लिया है, जहाँ पर हम रहेंगे।" उसकी बात पर अनोखी उसकी तरफ़ देखने लगी। "एक बार मेरे साथ चलो। मैं बच्चों के सामने बात नहीं कर सकता। फिर बात करूँगा तुमसे।"

    अनोखी के पास भी कोई ऑप्शन नहीं था। कोई जगह भी नहीं थी जहाँ पर वह अनीक को लेकर जा सकती। इसलिए वह चुपचाप उसके साथ चली गई थी।

    "बहुत अच्छा घर है!" घर के अंदर आते ही शुभी खुश हो गई। अनीक को शौर्य ने अपनी गोद में उठाया हुआ था। उसने शौर्य ने बेड पर लिटा दिया। "मामा, अब हम यहीं रहेंगे ना?" शुभी खुश होती हुई पूछने लगी। बेड पर लेटे हुए अनीक ने भी अपनी मॉम की तरफ़ देखा।

  • 14. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 14

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    अनोखी के पास कोई विकल्प नहीं था। कोई ऐसी जगह भी नहीं थी जहाँ वह अनीक को ले जा सकती। इसलिए वह चुपचाप उसके साथ चली गई।

    बहुत अच्छा घर है। घर के अंदर आते ही शुभी खुश हो गई। अनीक को शौर्य अपनी गोद में उठाए हुए था। उसने अनीक को बेड पर लिटा दिया।

    "मामा, अब हम यहीं रहेंगे ना?" शुभी खुश होते हुए पूछने लगी।

    बेड पर लेटे हुए अनीक ने भी अपनी माँ की तरफ देखा।

    "हाँ," अनोखी ने धीरे से कहा। अनीक और शुभी दोनों खुश थे।

    खाना बनाने के लिए शोर्य ने मेड का इंतज़ाम कर लिया था, मगर उसे प्रॉपर इंडियन खाना बनाना नहीं आता था। इसलिए अनोखी उसके साथ किचन में लगी हुई थी। शोर्य कपड़े बदलकर अनीक और शुभी के पास आकर बैठ गया। अनीक तो आराम कर रहा था। शुभी अपनी माँ के फ़ोन पर गेम खेल रही थी।

    "क्या हो रहा है?" उसने शुभी से कहा।

    "गेम खेल रही हूँ। आपके फ़ोन पर कोई गेम है? मैं आपके फ़ोन पर खेल सकती हूँ?" शुभी ने पूछा।

    शौर्य ने अपना फ़ोन अपनी जेब से निकाला।

    "ठीक है, खेलो। मगर उससे पहले गेम डाउनलोड करनी पड़ेगी। मेरे फ़ोन पर तो कोई गेम नहीं खेलता था। अच्छा, तो गेम का नाम बताओ, मैं डाउनलोड कर देता हूँ।"

    शौर्य ने शुभी के लिए गेम डाउनलोड किया और उसे अपना फ़ोन दे दिया। अनोखी का फ़ोन साइड में पड़ा था।

    "इसका पासवर्ड क्या है?" शौर्य ने फ़ोन उठाते हुए कहा।

    "माँ के फ़ोन को लॉक नहीं होता, खुला है।"

    जैसे ही उसने फ़ोन ऑन किया, वह खुल गया। वह उसकी कॉल लिस्ट चेक करने लगा।

    2-4 नंबर थे उसमें। एक तो होटल मैनेजर के नाम से था। एक शायद उसकी काम करने वाली लड़की रिया का था। एक उसकी लैंडलॉर्ड लेडी का था।

    "तुम्हारी माँ की और मेरी तस्वीर कहाँ है?" शौर्य ने अनोखी की फ़ोटो गैलरी खोल ली थी। उसमें केवल अनीक और शुभी, या फिर दोनों की पिक्चर थीं। किसी तस्वीर में दोनों के साथ अनोखी भी थी। सभी तस्वीरों में अनोखी बिल्कुल सिंपल थी।

    "तुम्हारी माँ अकेली तस्वीर नहीं खिंचवाती," उसने कहा।

    "माँ को पिक्चर खिंचवाना बिल्कुल पसंद नहीं," शुभी ने कहा। उसकी बात पर शौर्य ने हैरानी से उसे देखा।

    शुभी ने फ़ोन पकड़ा और उसमें से शोर्य और अनोखी की पिक्चर्स निकाल कर दिखाईं। वे बहुत पुरानी पिक्चर थीं, शायद उन दोनों की शादी से भी पहले की। शौर्य ने दोनों की तस्वीर को देखा।

    "तुम्हें ये कैसे पता कि माँ के साथ मेरे ही डैड हैं?" शोर्य ने उसे पूछने लगा।

    "माँ अकेले में अक्सर आपकी तस्वीर देखकर रोती है। हमने माँ की आंटी के साथ बातें भी सुन ली थीं। तो हमें पता चला कि आप हमारे डैड हैं," शुभी बता रही थी।

    "आप डिस्टर्ब मत करो। मुझे गेम खेलने दो।"

    "ठीक है, तुम गेम खेलो," शोर्य ने कहा। उसने अनीक की तरफ देखा। वह सो रहा था। वह उसे उठाकर लिविंग रूम में आ गया। सामने किचन में अनोखी काम कर रही थी। जैसा वह अनोखी के बारे में जानता था, वैसा तो दिखाई नहीं दे रहा था। जब से वह आए थे, उसका फ़ोन शुभी के पास था। किसी का उसे फ़ोन नहीं आया था।

    फ़ोन लॉक भी नहीं करती थी। प्राइवेसी के नाम पर भी उसके पास कुछ नहीं था! बच्चे उसकी जिंदगी थे। शोर्य बहुत ज़्यादा कन्फ़्यूज़ था। अनोखी किचन से बाहर निकली। उसने देखा सामने रुका हुआ शोर्य उसे ही देख रहा है। उसे देखकर वह बाहर की तरफ जाने लगा। अनोखी कमरे में चली गई।

    "चलो शुभी, खाना खा लो। अनीक किस वक्त सो गया? ऐसे भी खाना खिलाना है," अनोखी कहने लगी।

    "मामा, आप खाना लगाओ। मैं डैड को बुलाती हूँ," शुभी उठकर आ गई थी।

    वह दोनों खाना खाने लगे। उन दोनों को खाना मेड ही खिला रही थी। अनोखी किचन में थी।

    "माँ आप भी आ जाओ," शुभी कहने लगी।

    "तुम खाओ बेटा, मैं आती हूँ," अनोखी ने कहा। शोर्य समझ गया था कि वह उसके साथ नहीं खाना चाहती।

    रात को शोर्य अलग कमरे में था, तो वह तीनों एक कमरे में। बहुत देर तक शोर्य अनोखी के बारे में सोचता रहा था। उससे तब गलती हो गई होगी। बच्चों के साथ उसने उसे अपनाया नहीं होगा। हो सकता है उसे अपनी गलती का एहसास हो गया। इसीलिए इसने किसी से नाता न रखा हो। मतलब साफ़ है, अब वह सिर्फ़ बच्चों के लिए जी रही है। ऐसे ही सोचते हुए शोर्य की रात गुज़र गई थी।

    उसके उठने से पहले अनोखी उठ चुकी थी। वह चाय का कप पकड़े लिविंग रूम में बैठी हुई थी। शोर्य को लिविंग रूम में आता देखकर वह खड़ी हो गई।

    "मैं आपके लिए चाय ले आती हूँ," कहती हुई वह किचन में चली गई। थोड़ी ही देर में चाय का कप लेकर शोर्य को देखकर खुद कमरे में चली गई थी। उन्हें कई दिन रुके हुए कई दिन हो गए थे, मगर अनोखी उसे पूरी तरह से इग्नोर कर रही थी। वह उसके खाने-पीने का ख्याल तो ज़रूर करती थी, मगर उसके पास एक बार भी नहीं बैठी थी।

    "क्या हो रहा है?" शोर्य ने किचन में शोर होता देखकर पूछा।

    "आप मैगी खाओगे? मैंने माँ से मैगी बनाने को कहा है," शुभी कहने लगी। "माँ बहुत टेस्टी मैगी बनाती है, सब्जियाँ डालकर।"

    "बच्चे तो सब्जियों से भागते हैं, तुम्हें सब्जियाँ पसंद हैं? अगर माँ बनाए तो," शुभी जो किचन की स्लैब पर बैठी थी, उसने कहा।

    "ठीक है, मैं भी खा लूँगा।"

    मैगी बनाते-बनाते अचानक अनोखी का हाथ पैन को लग गया।

    "क्या हुआ माँ?" शोर्य ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "ये तो जल गया," उसने उसका हाथ पकड़कर सिंक में पानी के नीचे कर दिया। मगर अनोखी ने अपना हाथ वापस खींच लिया।

    "कोई बात नहीं, इतनी सी बात से मुझे दर्द नहीं होता।"

  • 15. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 15

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    बच्चे तो सब्जियों से भागते हैं, तुम्हें सब्जियां पसंद हैं?

    “अगर मॉम बनाएँ तो,” शुभी ने कहा, जो किचन की स्लैब पर बैठी थी।

    “ठीक है, मैं भी खा लूँगा।”

    मैगी बनाते बनाते अचानक अनोखी का हाथ पैन को लग गया।

    “क्या हुआ, मामा?” शौर्य ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    “यह तो जल गया।” उसने उसका हाथ पकड़कर सिंक में पानी के नीचे कर दिया।

    मगर अनोखी ने अपना हाथ वापस खींच लिया।

    “कोई बात नहीं, इतनी सी बात से मुझे दर्द नहीं होता।”

    इस बात पर शौर्य ने अनोखी के चेहरे की तरफ देखा। “क्या यह वही लड़की है जिसे मैं कभी जानता था? क्योंकि यह वह तो बिल्कुल भी नहीं है। इसे तस्वीर खिंचाना नहीं पसंद; आग से इसका हाथ नहीं जलता; इसे दर्द नहीं होता।” वह उसका हाथ छोड़ता हुआ किचन से बाहर आया और लिविंग रूम का दरवाजा खोलकर बाहर टेरिस पर आकर बैठ गया।

    वह उस अनोखी को याद कर रहा था जिसे उसने बेहद प्यार किया था। वह अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने कमरे से बाहर अपनी बालकनी में आया, क्योंकि बाहर लॉन में अनोखी शोर मचा रही थी और उसे बहुत गुस्सा आ रहा था!

    वह घर में काम करने वाली मेड से कह रही थी, “आंटी, मेरी इन फूलों के साथ तस्वीर खींचो।” उस मेड ने तस्वीर तो खींच दी, मगर तस्वीर बिल्कुल भी अच्छी नहीं आई थी। एक तो उसे खींचने वाले को तस्वीर खींचनी नहीं आ रही थी, दूसरा अनोखी के फोन के कैमरे की क्वालिटी अच्छी नहीं थी।

    “क्या करती हो, बेटा? छोड़ो इन तस्वीरों को।” अनोखी के पापा, जो वहीं थे, ने कहा।

    “नहीं, कितने अच्छे फूल हैं! मैं तो आज इसीलिए आपके साथ आई हूँ; मैं तस्वीर खिंचवा लूँगी।”

    उसके पापा शौर्य के डैड से मिलने अंदर चले गए थे। शौर्य अनोखी को देखता हुआ नीचे आ गया था; असल में वह उससे लड़ने के लिए आया था।

    “तुम्हारी जैसी शक्ल होगी, वैसी ही तस्वीर आएंगी ना! कितने अच्छे फूल हैं, इन फूलों की तस्वीर तो अच्छी आती है।”

    “प्लीज, तुम मेरी तस्वीर खींच दो। तुम्हारे पास फोन होगा, उसकी तो कैमरा क्वालिटी भी अच्छी होगी।” क्योंकि शौर्य से तस्वीर खिंचवानी थी, तो उसके साथ लड़ने की जगह आराम से बात कर रही थी।

    “खींच दो, शौर्य। वो कह रही है तुम्हें।” शौर्य का बड़ा भाई, जो इस टाइम लॉन में आया था, ने शौर्य से कहा।

    “तुम खुद के फोन से तस्वीर खींचना मेरी।” शौर्य ने उसकी कई तस्वीरें खींचीं।

    “तुम मेरे फोन पर सेंड कर दो।” अनोखी ने कहा।

    “मगर मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं है।” शौर्य ने कहा।

    अनोखी ने उसे अपना नंबर बताया और शौर्य ने उसकी तस्वीर सेंड कर दी थी।

    “और हाँ, मेरी सारी तस्वीरें अपने फोन में मत रखना। अभी डिलीट करो।” अनोखी ने अपनी ट्यून बदलते हुए कहा।

    “तुम्हारी तस्वीरों का मैं क्या करूँगा?” शौर्य ने उसके सामने उसकी तस्वीर डिलीट कर दी थी।

    हाँ, यह बात अलग थी कि उसने रात को वापस रिकवर कर ली थी। वह उनकी तस्वीरों को देखता रहा था।

    “डैड, मैगी बन गई है।” शुभी शौर्य के पीछे आई।

    वह वापस चला गया और डाइनिंग टेबल पर बैठकर मैगी खाने लगा था।

    तभी उसके फोन पर सिकंदर का फोन आ गया।

    “हाँ, कैसे हो?” सिकंदर ने शौर्य से पूछा।

    “मैं ठीक हूँ।”

    “कैसे रहा अनीक का ऑपरेशन? हमारी बात ही नहीं हो सकी।” वह कहने लगा।

    “वो ठीक है। उसका एक ऑपरेशन और रहता है।”

    “इस वक्त कहाँ है अनीक?” वह पूछने लगा।

    शौर्य उठकर बाहर अपने कमरे में आ गया; वो अनोखी के सामने बात नहीं करना चाहता था।

    “मैंने घर लेकर शौर्य और शुभ को वहाँ रखा है। और अनोखी, उसने आसानी से आने दिया बच्चों को?” सिकंदर ने पूछा।

    “वह भी अभी साथ में है, क्योंकि अभी अनीक को उसकी ज़रूरत है।”

    “तुमने बिल्कुल ठीक किया। और जो तुम्हें मैंने कहा था, वह बात भी करो उससे। उसे कितने पैसे चाहिए, वह दे दो और बच्चे अपने रख लो, क्योंकि तुम्हारा कानूनी तौर पर बच्चे लेना मुश्किल है।”

    “वह नहीं मान रही। मैंने बात की थी उसके साथ।”

    “क्यों? क्या कहती है? जो और मांग रही है, दे दो। बच्चों से ज़्यादा कुछ नहीं।” सिकंदर उसे समझाने लगा।

    “उसे कुछ नहीं चाहिए। मैं क्या बताऊँ तुम्हें? वह अनोखी तो वह है ही नहीं, शौर्य जिसे जानता था।” शौर्य सिकंदर को अनोखी के बारे में बताने लगा।

    “ऐसा भी तो हो सकता है उसे अपनी गलती का एहसास हो गया हो। लोग बदल जाते हैं। देखो, बच्चों को तुम दोनों की ज़रूरत है। कोई उनके माँ नहीं बन सकता और ना कोई उनका पिता। तुम उन दोनों के लिए फिर से साथ हो जाओ, आगे बढ़ जाओ ज़िंदगी में। मेरी बात को सोचना ज़रूर। दोनों बच्चे बहुत छोटे हैं, उन्हें माँ की बहुत ज़रूरत है।” वह जानता था कि एक बच्चे की लाइफ में माँ की क्या अहमियत होती है, माँ के बिना बच्चे कैसे हो जाते हैं।

    “मैं भी ऐसा ही सोच रहा हूँ। अगर वह मुझसे माफ़ी मांगती है तो मैं उसे अपना लूँगा। मैंने उसे कभी बहुत चाहा था, बहुत प्यार किया था, अपनी जान से ज़्यादा।”

    “बिल्कुल ऐसा ही करना।” सिकंदर, जो अपने ऑफिस में बैठा था, उसका ध्यान शीशे की दीवार से बाहर लॉन में गया। एक खूबसूरत सी सिंपल लड़की एक छोटे डॉग के बच्चे को पकड़ रही थी। वह उसे पकड़कर वहीं बैठ गई थी। बैठकर उसने अपने बालों को खोला और अपने बाल ऑफिस के मिरर में ठीक करने लगी। मिरर में ऑफिस से बाहर दिखता था, मगर बाहर से अंदर नहीं दिखता था। वह लड़की भी इस बात से अनजान थी कि कोई उसे देख रहा है।

  • 16. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 16

    Words: 956

    Estimated Reading Time: 6 min

    सिकंदर अपने ऑफिस में बैठा था। उसका ध्यान शीशे की दीवार से बाहर लॉन में गया। एक खूबसूरत, सीधी-सादी लड़की एक छोटे डॉग के बच्चे को पकड़ रही थी। वह उसे पकड़कर वहीं बैठ गई। बैठकर उसने अपने बालों को खोला और अपने बाल ऑफिस के मिरर में ठीक करने लगी। मिरर में ऑफिस से बाहर दिखता था, मगर बाहर से अंदर नहीं। वह लड़की इस बात से अनजान थी कि कोई उसे देख रहा है।

    गोरा रंग, काली-काली आँखें, गुलाबी होंठ, होंठों के नीचे गड्ढे और घुंघराले बाल जो खोलने से उसके चेहरे पर आ गए थे। ना कोई चेहरे पर मेकअप था, ना लिपस्टिक, ना काजल; सिंपल सा सूट पहना हुआ था, प्यारी सी स्माइल थी। उस लड़की की चौबीस साल की उम्र होगी। सिकंदर उसे देख तो कई दिनों से रहा था। कई दिनों से वह इस घर में थी। उसकी बड़ी भाभी की बहन थी, कनक नाम था उसका।

    चाहे वह कई दिनों से उसे देख रहा था, मगर उन दोनों के एक बार भी बात नहीं हुई थी। पूरा दिन घर के कामों में लगी रहती, ऐसा कहकर सिकंदर की भाभी सुनंदा उसे पूरा दिन कोई न कोई काम कराती रहती।

    सिकंदर अभी भी उसे देख रहा था। घर में छोटा डॉग था जो शायद भाग रहा था। वह उसे पकड़ रही थी। वह वापस डॉग को पकड़ते हुए वहाँ से चली गई।

    अनीक का दूसरा ऑपरेशन था। इस ऑपरेशन के बाद अनीक को बिल्कुल ठीक हो जाना था। शौर्य उसके ऑपरेशन को लेकर परेशान हो रहा था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। वह देख रहा था, आज अनोखी सुबह जल्दी उठी हुई है। उसने भगवान के आगे प्रार्थना की। अनोखी का स्ट्रेस भी उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था।

    वे चारों हॉस्पिटल गए। आज का ऑपरेशन ज़्यादा लंबा नहीं था, थोड़ी ही देर में हो गया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका ऑपरेशन बिल्कुल ठीक हो गया। अनीक खतरे से बाहर है। थोड़ी ही देर में उसे होश आ जाएगा।

    "चलो, कुछ खा लेते हैं। तुम्हें भूख लगी होगी," शौर्य ने शुभी से कहा।

    "डैड, अब तो अनीक बिल्कुल ठीक हो जाएगा ना?"

    "बिल्कुल बेटा," शुभी उसके साथ खड़ी हो गई, मगर अनोखी वहीं बैठी रही।

    "चलो अनोखी, तुम भी कुछ खा लो," शौर्य ने उसे कहने लगा।

    "मेरा फास्ट है आज। मैं रात को ही खाऊँगी।"

    "क्यों?" शौर्य ने उससे पूछा।

    "अनीक के लिए व्रत रखा है आज मैंने। आप लोग जाओ।" वे दोनों कैंटीन की तरफ़ बढ़ गए थे, मगर अनोखी वहीं बैठी रही।

    वह उन दोनों को जाते हुए देख रही थी। शुभी कितनी खुश थी! शौर्य थोड़े दिनों से बच्चों के साथ था, मगर जो अनोखी उनको इतने सालों में नहीं दे सकी थी, शौर्य ने उसे वह सब दे दिया था—नए कपड़े, खिलौने और अनीक के इलाज के लिए वह जी जान से लगी थी, मगर नहीं करा सकी।

    अगर बच्चे शौर्य के साथ रहेंगे तो वह उन्हें अच्छी ज़िन्दगी देगा। वह बच्चों को मांग भी रहा था। अनोखी उन दोनों बाप-बेटी को जाते हुए देखकर सोचती रही। अनोखी कितनी खुश थी शौर्य के साथ! वह अपने डैड के साथ रहना चाहती थी। अनोखी बैठी बच्चों के बारे में ही सोच रही थी।

    थोड़ी ही देर में शुभी और शौर्य वापस आ गए थे।

    "मॉम, हम आपके लिए पीने को कॉफ़ी लाये हैं। कॉफ़ी पी लो," शुभी के हाथ में कॉफ़ी थी।

    "नहीं, मुझे नहीं पीना," अनोखी ने मना किया।

    "यह क्या बात हुई मॉम?" वह उसके पास बैठ गई। साथ में शौर्य भी बैठ गया था।

    "आप कुछ खाओ मत, पी तो लो," वह फिर कहने लगी।

    "नहीं बेटा, मेरा व्रत है। शाम को पियूँगी।" शुभी उन दोनों के बीच में बैठी थी। थोड़ी देर बैठने के बाद वह वहाँ से खड़ी हो गई।

    "मैं अभी आती हूँ।"

    "कहाँ जा रही हो?" अनोखी ने उसे पूछने लगी।

    "मॉम, मैं चॉकलेट लेकर आ रही हूँ।"

    "मगर पैसे?" अनोखी ने उसे कहने लगी।

    "मेरे पास हैं। डैड ने दिए हैं।" अनोखी वापस कैंटीन की तरफ़ चली गई।

    अब शौर्य और अनोखी दोनों ही अकेले थे।

    "अनीक अब ठीक है। डॉक्टर ने कहा है उसे एक-दो दिन में छुट्टी मिल जाएगी और दो-चार दिन हम लोग फ्लैट पर रुकने के बाद हम इंडिया चले जाएँगे। मैं तुझे माफ़ करने को तैयार हूँ बच्चों के लिए। हम लोग साथ रह सकते हैं, क्योंकि बच्चों को हम दोनों की ज़रूरत है। मैं हर बात भूलने को तैयार हूँ इन दोनों के लिए," शौर्य ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा।

    उसकी बात पर अनोखी ने भी उसके चेहरे की तरफ़ देखा।

    "मगर मैंने तो माफ़ी नहीं मांगी। माफ़ करने के लिए माफ़ी भी मांगनी पड़ती है," अनोखी धीरे से बोली।

    शौर्य भी उसी के चेहरे की तरफ़ देख रहा था।

    "तो मांग लो," उसने कहा।

    "मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।" अनोखी वहाँ से उठकर शुभी के पीछे, जिस तरफ़ वह गई थी, उस तरफ़ जाने लगी।

    उसे इस तरह इग्नोर करने से शौर्य को बहुत गुस्सा आया।

    "एक तो गलती की है, ऊपर से कोई पछतावा भी नहीं है। कैसी औरत है! मगर मैं अपने बच्चों को इसके पास नहीं छोड़ सकता, चाहे मुझे जो करना पड़े।" शौर्य गुस्से में वहाँ से उठकर हॉस्पिटल से बाहर चला गया।

  • 17. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 17

    Words: 1054

    Estimated Reading Time: 7 min

    शोर्य भी उसी के चेहरे की तरफ देख रहा था। "तो मांग लो," उसने कहा।

    मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। अनोखी वहाँ से उठकर शुभी के पीछे, जिस तरफ वह गई थी, उस तरफ जाने लगी। उसे इस तरह इग्नोर करने से शोर्य को बहुत गुस्सा आया।

    एक तो गलती की है, ऊपर से कोई पछतावा भी नहीं है। "कैसी औरत है! मगर मैं अपने बच्चे इसके पास नहीं छोड़ सकता, चाहे मुझे जो करना पड़े," शोर्य गुस्से में वहाँ से उठकर हॉस्पिटल से बाहर चला गया।


    रात को, समय पर पूरी फैमिली एक साथ खाना खा रही थी। सिकंदर सभी के बाद वहाँ आकर बैठ गया।

    "काम कैसा चल रहा है?" उसके डैड ने पूछना शुरू किया। उसके डैड भी प्रैक्टिस किया करते थे, मगर आजकल उन्होंने काम छोड़ दिया था। यह लॉ फर्म उन्होंने ही शुरू की थी।

    "अच्छा चल रहा है, डैड।"

    "और तुम दोनों की वकालत कैसी चल रही है?" उसके डैडी ने उसके दोनों छोटे भाइयों से पूछा।

    "आपको पता है, डैड। तलाक के केस कैसे हैंडल करता हूँ, मगर हमेशा औरतों की ही जीत होती है। और मेरे क्लाइंट ज्यादातर आदमी हैं," समर ने कहा।

    "और तुम्हारे पास क्या बहाना है?" उसके डैड ने सुरेश से पूछा। "तुम तो तलाक के केस हैंडल नहीं करते।"

    सुरेश ने अपने वाइफ की तरफ देखा, फिर अपने डैड की तरफ देखने लगा। "प्रॉपर्टी के मसले आजकल इतने उलझे हुए हैं कि पूछो मत।"


    "अब डाइनिंग टेबल पर भी क्या काम की बातें होंगी!" उसकी दादी ने टोकना शुरू किया।

    "कनक, तुम भी तो बैठ जाओ बेटा हमारे साथ," कनक, जो सभी को खाना सर्व कर रही थी, उसे दादी माँ ने कहा।

    "नहीं, दादी माँ, मैं बाद में कर लूँगी। मैं हेल्प कर देती हूँ खाना सर्व करने में।"

    "बिल्कुल, उसे काम करने दो," उसकी भाभी, सिकंदर की भाभी सुनंदा बोली।

    जैसे ही कनक सिकंदर की प्लेट में सब्जी डालने लगी, तो उसने चम्मच पकड़ लिया। "नहीं, मैं खुद ले लूँगा।" मगर उसका पूरा ध्यान उस पर था। उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि उस लड़की से हर टाइम काम कराया जाता है।

    "सिकंदर, नीनू आ रही है। कल आ जाएगी। उसे शादी की शॉपिंग के लिए बुलाया है, तो उसे अपनी मर्जी की शॉपिंग करा देना," उसकी छोटी भाभी ने कहा।

    "आपको पता है मेरे पास इतना टाइम कहाँ होता है कि मैं शॉपिंग कर सकूँ और वैसे भी मुझे दो-तीन दिन के लिए बाहर जाना है काम के सिलसिले में।"

    "ऐसा कैसे चलेगा? अब फैमिली के लिए टाइम निकालना शुरू करो," उसकी मॉम ने उसे टोका।

    "काम बहुत इम्पॉर्टेंट है। मेरा जाना बहुत जरूरी है," सिकंदर ने अपनी मॉम से कहा।

    "कोई बात नहीं। वह कई दिन यहाँ पर रहेगी," उसकी भाभी रूपा ने कहा।


    सिकंदर अपनी मॉम की बात का जवाब दे रहा था, मगर उसका ध्यान सामने किचन में से सब्जी का बाऊल लेकर आती हुई कनक पर था। जो पूरे ध्यान से सब्जी का डोंगा उठाकर ला रही थी। ना चाहते हुए भी वह सिकंदर का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी।


    सिकंदर खाना छोड़कर बीच में ही उठने लगा।

    "यह क्या है? तुमने खाना नहीं खाया?" दादी माँ ने कहा।

    "मेरा हो गया। मेरा क्लाइंट आ गया है, उसका मैसेज है। वह ऑफिस में बैठा है," सिकंदर ऑफिस की तरफ जाने लगा। उसने जाते हुए घर के नौकर रामू की तरफ देखा। "ऑफिस में तीन कप चाय भेज दो।" वह ऑफिस में चला गया था।

    थोड़ी ही देर में किसी ने ऑफिस का दरवाज़ा खटखटाया। सिकंदर समझ गया कि चाय आई है।

    "आ जाओ," सिकंदर ने कहा।

    दरवाज़ा खोलती हुई कनक अंदर गई।

    "तुम? रामू कहाँ है?" वह कहने लगा।

    "उसे दीदी ने काम दिया है। मुझे भेजा है उसने।"


    "ठीक है। यहीं रख दो।" सिकंदर को कनक का नौकरों की तरह चाय लेकर आना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। वह उसे देखकर ही खाना छोड़कर आया था।

    चाय रखने के बाद कनक ने सर्व करने के लिए चाय का कप उठाने लगा।

    "तुम जाओ," सिकंदर ने कहा।

    "रामू काका ने कहा था कि चाय सर्व करनी है," कनक ने डरते-डरते कहा।

    "कोई बात नहीं, मैं कर लूँगा," सिकंदर ने गुस्से के इंप्रेशन से कहा।

    वह वहाँ से बाहर आ गई। "तुम इतनी जल्दी आ गई?" सुनंदा ने उससे कहा।

    "मुझे उन्होंने भेज दिया। वह बोले, वह खुद कर लेंगे और मुझ पर गुस्सा हो रहे थे।"

    "वह ऐसा ही है, उसे हर कोई पसंद नहीं आता," सुनंदा कहने लगी।

    "सही बात है। उसकी और नीनू की शादी हो जाए, फिर नीनू उसे ठीक करेंगी," रूपा ने हँसकर कहा। दोनों वहाँ हाल में रह गई थीं, बाकी फैमिली मेंबर वहाँ से जा चुके थे।

    "मुझे नीनू की फ़िक्र है। वह एक प्यारी लड़की है। वह इतना रूखा-सूखा है। क्या नीनू उसके साथ ठीक रहेगी?" सुनंदा ने फ़िक्र जताया।

    "शादी के बाद नीनू ठीक कर लेगी। पक्का सिकंदर नीनू के इशारों पर नाचेगा। मुझे पक्का यकीन है," रूपा कहने लगी।

    "कनक, हम दोनों के लिए चाय बना लो। अच्छी सी चाय बनाना," सुनंदा ने कनक से कहा।

    तभी सिकंदर वहाँ अपने ऑफिस से निकलकर हाल में आया। "मैं आप दोनों से एक बात कहना चाहता हूँ। मैं किसी काम के लिए कहूँ, तो जिसे मैं कहता हूँ वही आए, किसी और को भेजने की ज़रूरत नहीं है।"

    "उसे काम था तो मैंने इसलिए भेज दिया। आगे से ऐसा नहीं होगा। पता है मुझे, इसे कुशल नहीं आता," सुनंदा कहने लगी।

    सिकंदर ऊपर अपने कमरे की तरफ जाने लगा। कनक वहीं साइड पर खड़ी हुई उनकी सभी की बातें सुन रही थी। वह भागकर अपने कमरे में, जो किचन के साथ था, उसमें गई और बाहर का दरवाज़ा खोलते हुए बाहर लॉन में जाकर बैठ गई। सिकंदर भी अपने कमरे में गया। वह नहाने चला गया और फ्रेश होकर आया। बाहर बालकनी में आकर बैठ गया। उसका कमरा जिस साइड किचन था, उसी साइड ऊपर बना हुआ था। वह अपनी बालकनी से नीचे देखा तो थोड़ी सी दूर, कमरे के बाहर घास पर बैठी हुई दिखी। वह अपना सिर घुटनों में दिए बैठी थी।

    सिकंदर कितनी देर उसे ऐसे देखता रहा। "मैं चाहकर भी तुम्हारी हेल्प नहीं कर सकता।"

  • 18. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 18

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    सिकंदर अपने कमरे की ओर जाने लगा। कनक वहीं, एक तरफ़ खड़ी होकर उनकी बातें सुन रही थी। वह भागकर अपने कमरे में गई, जो किचन के साथ था। बाहर का दरवाजा खोलकर, वह लॉन में जाकर बैठ गई। सिकंदर भी अपने कमरे में गया। वह नहाने गया और फ्रेश होकर आया। बाहर बालकनी में आकर बैठ गया। उसका कमरा किचन के उसी तरफ़ ऊपर बना हुआ था। बालकनी से उसने नीचे देखा तो थोड़ी दूर पर, कमरे के बाहर घास पर, कनक बैठी हुई दिखी। उसने अपने सिर को घुटनों में रखा हुआ था।

    सिकंदर कितनी देर तक उसे देखता रहा। "मैं चाहकर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता," उसने अपने मन में कहा।

    थोड़ी देर बैठने के बाद वह अपनी जगह से उठी। वहीं एक तरफ़ छोटे कुत्ते का पिंजरा था। उसने जाकर वह पिंजरा खोला और प्यार से कुत्ते को उठाकर बैठ गई। वह इस बात से अनजान थी कि कोई उसे कितने ध्यान और प्यार से देख रहा है।

    सिकंदर उसे लगातार देखता रहा। लॉन में चलती हवा से उसके बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे। सिकंदर का मन कर रहा था कि उसके बालों को अपने हाथ से साइड कर दे। वह उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। जब वह उठकर अंदर आ गई, तो सिकंदर भी अपने कमरे में आ गया था।

    उसने केस की फाइल उठाई और उसे पढ़ने लगा। काम करते-करते जब वह थक गया, तब उसका मन किया कि वह कॉफी बना ले। जैसे ही वह किचन में पहुँचा, वहाँ कनक पहले से मौजूद थी। उसे देखकर वह साइड हो गई। उसने एक कटोरी गैस पर रखी हुई थी। वह उसे उठाने लगी।

    "तुम्हारा हाथ जल जाएगा,"
    "ध्यान से करो," सिकंदर ने उसे बोला। उसने अपने दुपट्टे से कटोरी उठाई और बाहर की ओर जाने लगी।

    "इतनी रात को तुम इसका क्या करोगी?" सिकंदर पूछे बिना नहीं रह सका। सिकंदर, जो हमेशा बहुत कम बात करता था, बिना बुलाए नहीं बोलता था, वह कनक से सवाल पूछ रहा था।

    "दीदी के पैर दुख रहे हैं। उन्होंने कहा है पैरों की मालिश के लिए गर्म तेल लाने को।"

    "इतनी रात को?" सिकंदर ने फोन का समय देखते हुए कहा। वह उसकी बात का जवाब दिए बिना वहाँ से चली गई और वह भी कमरे में जाने लगा।


    ऑपरेशन को कई दिन हो चुके थे और अब अनीक ठीक था। वह काफी अच्छा महसूस कर रहा था। अनोखी ने अनीक को दूध पिलाने के बाद शुभी से कहा, "शुभी, अब तुम भी ब्रेकफास्ट करो।"

    "मॉम, मेरा बिल्कुल भी मन नहीं है।"

    "ठीक है, थोड़ी देर बाद खा लेना। वैसे मैंने तुम्हारे पसंद का पराठा बनाया है।"

    "आप भी ब्रेकफास्ट कर लीजिए," कमरे में अनीक के पास आया शौर्य बोला। अनोखी ने शौर्य से कहा, "मुझे तुमसे बात करनी है।"

    "मुझे तुमसे बात करनी है," शौर्य ने अनोखी से कहा।
    "बेटा, तुम भाई का ख्याल रखो। मुझे तुम्हारी माँ से ज़रूरी बात करनी है।" शौर्य कमरे से बाहर आ गया और अनोखी उसके पीछे।

    वे दोनों लिविंग रूम में सोफे पर बैठ गए।

    "आज हम लोग इंडिया जा रहे हैं। हम सब की टिकटें कन्फर्म हो चुकी हैं। अब अनीक का इलाज हो चुका है, तो इतने दिन यहाँ मैं नहीं रह सकता। मेरा बिज़नेस है।"

    "आप जाइए, हमें जाने की क्या ज़रूरत?" अनोखी ने कहा।

    "तुम्हें साथ में ले जाने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। मगर बच्चों को मैं किसी हाल में नहीं छोडूँगा। वे मेरे बच्चे हैं। जल्दी से तैयारी करो, और मैं तुमसे सवाल नहीं पूछ रहा, बता रहा हूँ। दोपहर के बाद हमारी फ्लाइट है।" इतना कहकर शौर्य वहाँ से निकल गया और अनोखी उसे देखती रही।

    उसके जाने के बाद अनोखी काफी देर तक बैठी सोचती रही। थोड़ी देर सोचने के बाद वह कमरे में आ गई जहाँ शुभी और अनीक दोनों बिस्तर पर बैठे हुए थे। उसने उन दोनों को देखा और अपने मन में कोई फैसला किया।

    उसने अपनी एक दोस्त को बहुत दिनों बाद फोन किया। उसकी दोस्त ने कहा, "तुमने इतने दिनों से फोन ही नहीं किया और मुझे भी टाइम नहीं मिला।"

    "मैं शौर्य के साथ हूँ।" अनोखी ने कहा।

    "हो तो सब ठीक हो गया। यह तो अच्छी बात है कि तुम दोनों साथ में हो।"


    उसे अपने बच्चों के बारे में पता चल चुका था, तो वह उन दोनों बच्चों को साथ रखना चाहता था।

    "क्या मतलब, दोनों बच्चों को साथ रखना चाहता है?" लीना ने कहा।

    "जिस औरत ने उसके साथ बेवफ़ाई की है, वह उस औरत को भी साथ रख सकता है अपने बच्चों के लिए। उसने मुझसे माफ़ी माँगने को भी कहा था, जो मैंने नहीं माँगी। फिर भी वह मुझे अपने साथ चलने को कह रहा है।"

    "तो?" लीना ने कहा।

    "मैं इंडिया तो आ रही हूँ, मगर उसके साथ नहीं रहूँगी। मैं तुम्हारे पास आऊँगी।"

    "और बच्चे?" लीना ने सवाल किया।

    "तुम अच्छे से जानती हो। मुझे उसके घरवाले कभी स्वीकार नहीं करेंगे। तब उन्होंने मुझे नहीं बख्शा। अब तो मैं जानती हूँ कि वे मुझसे कितनी नफ़रत करते हैं। मुझे लगता है उनकी प्रॉब्लम मुझसे थी। ये बच्चे तो शौर्य के हैं। अगर मैं बच्चों के साथ रही तो... मेरे बच्चों को शायद मुसीबतों का सामना करना पड़े। क्योंकि मेरे होते हुए वे बच्चों को स्वीकार नहीं करेंगे। बच्चे मेरे पास रहें तो मैं नहीं चाहती मेरे बच्चों की किस्मत मेरी जैसी हो। एक गरीब माँ क्या दे सकती है? अगर वे अपने अमीर बाप के साथ रहेंगे तो उनकी ज़िन्दगी आराम से गुज़रेगी। तो मैंने फैसला किया है, मैं उन दोनों को शौर्य के पास छोड़ दूँगी। वह उन दोनों को बहुत चाहता है। उनके लिए तो वह मुझे माफ़ करने को भी तैयार है।"

    "जैसा तुम्हें अच्छा लगे। मैं तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूँ। आ जाओ मेरे पास तुम।" लीना ने कहा।

  • 19. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 19

    Words: 1127

    Estimated Reading Time: 7 min

    लीना ने कहा, "जैसा तुम्हें अच्छा लगे। मैं तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूँ। आ जाओ मेरे पास तुम।"

    वह बच्चों और अनोखी को लेकर इंडिया आ गया था। जैसे ही वे लोग एयरपोर्ट से बाहर निकले, शौर्य की गाड़ी वहाँ इंतज़ार कर रही थी।

    शौर्य ने कहा, "चलो अनोखी।"

    अनोखी ने दोनों बच्चों को गाड़ी में बिठाया और खुद नीचे उतर आई। शौर्य आगे की सीट पर बैठ चुका था। उसने उसे नीचे उतरे हुए देखा। वह नीचे उतर आया।

    "क्या हुआ अनोखी? कुछ रह गया क्या?" उसे लगा वह इसीलिए उतरी है क्योंकि उसका सामान रह गया।

    "मैं अपनी ज़िंदगी तुम्हें सौंप रही हूँ। अब दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी आपकी है। मेरा फ़ोन नंबर आपके पास है। इंडिया में व्हाट्सएप नंबर चलेगा मेरा, उस नंबर पर। अगर कोई बच्चों के लिए कभी बात करना चाहे तो मुझसे बात कर लेना। उनको कैसे संभालना है यह आपको देखना है। मैं आपके साथ नहीं आ रही हूँ। मैं जा रही हूँ। मैं अपनी ज़िंदगी आजादी से जीना चाहती हूँ। इतने सालों से मैं इन दोनों की ज़िम्मेदारी उठा रही हूँ। अब आप उठाओ।"

    कहते हुए अनोखी वहाँ खड़ी हुई टैक्सी में बैठ गई और वहाँ से चली गई। शौर्य हैरान-परेशान उसे देखता रहा।

    "कैसी औरत है!"

    वह वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठ गया।

    दोनों बच्चों ने शौर्य को अकेले गाड़ी में बैठे देखकर पूछा, "मोम कहाँ हैं?"

    "तुम्हारी मॉम को कोई काम है, वह फिर आ जाएगी।" शौर्य ने उनसे झूठ बोला क्योंकि उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया।

    वे लोग घर की तरफ़ जाने लगे।

    "क्या इसे सच में बच्चों से कोई प्यार नहीं? क्यों नहीं आई वो मेरे साथ में?" उसके दिमाग में बहुत से सवाल घूम रहे थे, मगर इस वक़्त उसके पास कोई जवाब नहीं था। बच्चे उसके पास थे। वह इस बात को लेकर बहुत खुश था।

    शाम को जैसे ही थका-हारा सिकंदर घर आया, बाहर लॉन में सभी इकट्ठे बैठे थे। वह अपनी गाड़ी से उतरता हुआ उनके पास आया। उसके दोनों भाई, दोनों भाभियाँ, उसकी मॉम और साथ में उसके भाई की साली नीनू और उसके मॉम-डैड सभी बैठे हुए थे। सिकंदर उन सभी से आकर मिला।

    नीनू ने सिकंदर से मिलते हुए कहा, "मैं आप ही का इंतज़ार कर रही थी।"

    सिकंदर ने कहा, "आप लोग बैठिए। मैं अभी चेंज करके आता हूँ।" वह अंदर जाने लगा।

    नीनू भी उसके पीछे जाने लगी। उसने कहा, "मैं आपके साथ चलूँ।" वह उसके साथ कमरे में जाना चाहती थी।

    "बस मैं दो मिनट में आ आता हूँ। ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा। आप सभी के पास बैठो।" वह उसे साथ नहीं ले जाना चाहता था।

    नीनू, जो उसके साथ जाना चाहती थी, वह वापस आ गई।

    नीनू का मूड खराब था। उसने सभी के सामने कहा, "क्या आप लोगों को लगता है कि इसे मुझसे शादी में कोई इंटरेस्ट है? क्या यह आदमी मुझे खुश रख सकेगा?"

    सिकंदर की माम बोली, "ऐसा नहीं कहते बेटा। थका हुआ आया है, अभी आ जाएगा।"

    सिकंदर के हाथ में कोई फ़ाइल थी। वह फ़ाइल पर रात को काम करने वाला था, इसीलिए वह उसे ऑफ़िस में रखने चला गया। उसने ऑफ़िस में जाकर देखा, उसके ऑफ़िस की सामने की दीवार पर जो बुक-सेल्फ़ थी, वहाँ पर किसी ने उसकी किताबों से छेड़छाड़ की थी। उसे बहुत बुरा लगा।

    वह बाहर आया। "रामू काका!" उसने आवाज़ लगाई।

    रामू काका ने पूछा, "क्या हुआ बेटा?"

    वह काफी गुस्से में था। "मेरे ऑफ़िस में कौन आया था? मेरा सामान किसने छेड़ा है?"

    रामू काका डरता हुआ बोल रहा था, "वह क्या है कि..."

    तभी कमरे से दादी मां बाहर आईं और उसके साथ कनक भी थी।

    "कनक को कोई बुक चाहिए थी। वह शायद ऊपर रखी हुई थी, इसे दिखाई दे गई। इसने मुझसे कहा कि दादी मुझे वह बुक चाहिए पढ़ने के लिए, तो मैं इसके साथ ही... उसने वह बुक निकाली और शायद तभी कोई तुम्हारी किताब इधर-उधर हो गई होगी। अब ठीक है ना?" दादी मां ने उसे गुस्से से कहा। "छोटी सी बात का कितना बड़ा बतंगड़ बनाते हो सिकंदर तुम!"

    तभी कनक अपने रूम में गई और थोड़ी ही देर बाद वह बुक उठाकर वापस आ गई।

    कनक ने डरते हुए बोला, "सॉरी, मैंने ली थी।"

    "तुम्हें लिटरेचर में दिलचस्पी है?" वह किसी इंग्लिश के लेखक की बुक थी।

    दादी मां ने फिर कहा, "देखो, लड़की को कुछ मत कहना।"

    सिकंदर ने मुस्कुराकर कहा, "ठीक है, नहीं कहूँगा।" दादी मां को इतना यकीन था कि वह उसकी बात कभी नहीं टालता।

    "मेरे साथ आओ।" उसने कनक से कहा। वह अंदर जाकर एक बुक्स की अलमारी खोलता है। "इसमें लिटरेचर की बुक्स हैं। हिंदी, इंग्लिश और भी लैंग्वेज में मिल जाएंगी। जब चाहे पढ़ सकती हो। जो बुक निकालो, उसे अपनी जगह पर रखना।" कहता हुआ वह वहाँ से बाहर जाने लगा।

    कनक ने डरते-डरते पूछा, "तो मैं यह बुक ले लूँ?" जो उसके हाथ में थी।

    "ले सकती हो।"

    सिकंदर के ऐसे कहने पर उसके चेहरे पर एक स्माइल आ गई। सिकंदर की नज़र कनक के मुस्कुराते हुए होठों पर गई। उसके गुलाबी होंठ और होंठों के नीचे तिल... एक पल के लिए वह उन्हें देखता हुआ दुनिया भूल गया।

    कनक ने कहा, "शुक्रिया।" कहते हुए कनक कमरे से बाहर जाने लगी। उसके बोलने से सिकंदर को होश आया।

    "मैं भी क्या सोच रहा था! कहाँ देख रहा था?" सिकंदर ने अपने आप से कहा। "सिकंदर, वो तेरी किस्मत नहीं है! नहीं है तेरी किस्मत में वह!" अपने आप को कहता हुआ रूम में जाने लगा।

    वह ऊपर चला गया था, तभी उसकी माम अंदर आई।

    "क्या हुआ सिकंदर? किस पर गुस्सा हो रहा था? बाहर आवाज़ आ रही थी।"

    कनक बात बताने लगी, "मैंने बुक ली थी उनकी अलमारी से।"

    नीनू, जो उसकी मॉम के पीछे आई थी, उसने कहा, "एक किताब को लेकर इतना बड़ा इशू!"

    उसकी मॉम ने कहा, "चलो बेटा, कोई बात नहीं, तुम उसके बुक्स को हाथ मत लगाया करो। वह ऐसा ही है। अगर तुम्हें वो कुछ कह दिया हो तो गुस्सा मत होना।" उसकी मॉम को यकीन था कि ज़रूर सिकंदर उस पर गुस्सा हुआ होगा।

    खाने के टाइम पर नीनू ने सिकंदर से पूछा, "कल हम लोग शॉपिंग पर चल रहे हैं तो आप चलेंगे ना हमारे साथ?"

    "मेरा तो मुश्किल है, मेरा केस है कोर्ट में। मगर मैं तो इसलिए आई हूँ कि आपकी पसंद के कपड़े खरीद सकूँ। मैं कोशिश करूँगा कि आ जाऊँ।" सिकंदर ने बात खत्म की।

    नीनू उससे बात करने की कोशिश करती रही।

  • 20. मेरी जिंदगी में आते 🍁🍁 - Chapter 20

    Words: 1082

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    कल हम लोग शॉपिंग पर जा रहे थे, तो आप चलेंगे ना हमारे साथ?

    खाने के समय नीनू ने सिकंदर से पूछा।

    "मेरा तो मुश्किल है, मेरा केस है कोर्ट में।"

    "मगर मैं तो इसलिए आई हूँ कि आपकी पसंद के कपड़े खरीद सकूँ।"

    "मैं कोशिश करूँगा कि आ जाऊँ।" सिकंदर ने बात खत्म की।

    उसकी बात से नीनू उदास हो गई थी।

    "कैसे नहीं आएगा? थोड़ा लेट आ जाएगा।" उसकी माँ ने कहा। क्योंकि वह देख रही थी सिकंदर नीनू की बातों का थोड़े से शब्दों में जवाब दे रहा था।

    खाना खाने के बाद सिकंदर अपनी जगह से उठने लगा।

    "आ रहे हो ना सिकंदर तुम?" उसकी माँ ने फिर कहा।

    "जी मोम, मैं आ जाऊँगा।" वह अपने ऑफिस की तरफ जाने लगा।

    "रुको ना सिकंदर, हम आइसक्रीम खाने चलते हैं।" नीनू कहने लगी।

    "आइसक्रीम तो घर पर होगी फ्रिज में।" सिकंदर ने कहा।

    "भाई, इतना भी क्या सीधा जवाब देना? अब वो तुम्हारे साथ सिर्फ़ आइसक्रीम खाने थोड़ी जाएगी। कुछ वक़्त आप लोगों को अकेले गुज़ारना चाहिए।" सुरेश ने कहा।

    "चलो ऐसा करते हैं, सभी साथ में चले जाओ। सभी की आउटिंग हो जाएगी।" उसकी माँ ने बात संभालने की कोशिश की, क्योंकि उसे पता था कि सिकंदर नीनू को नहीं ले जाएगा।

    "अब हम बच्चों के बीच क्या करेंगे?" मिस्टर गोयल खाना खा रहे थे, उन्होंने कहा।

    "तो मैं कौन सा जा रही हूँ उनके साथ में? मैं तो बच्चों के लिए कह रही हूँ।"

    सिकंदर को ना चाहते हुए भी जाना पड़ा। उसके दोनों भाई, भाभियाँ, नीनू, सभी बाहर की तरफ़ जाने लगे।

    "तुम भी तो जाओ।" दादी, जो वहीं बैठी थी, उसने कनक से कहा, जो किचन में सामान वापस रख रही थी।

    "मैं क्या करूँगी?" उसने मना किया।

    "तुम भी आ जाओ।" नीनू ने उसे कहा।

    नीनू के कहने पर उसने अपनी बहन की तरफ़ देखा। उसने भी आँखों से उसे आने का इशारा किया, तो वह अपना दुपट्टा, जो उसने एक साइड पर बाँधा हुआ था, उसे खोलती हुई उन लोगों के साथ जाने लगी।

    सिकंदर ने गाड़ी निकाली तो मीनू उसके साथ आगे की सीट पर आ गई। अभी पाँच लोग और रहते थे। "मुझे लगता है एक गाड़ी और निकालनी चाहिए।"

    समर गाड़ी निकालकर ले आया।

    कनक समर की गाड़ी की तरफ़ बैठने के लिए जाने लगी।

    "वह लोग गाड़ी में दो ही तो हैं। तुम उनके साथ चली जाओ।" सुनंदा ने उसे उन लोगों की गाड़ी में भेज दिया था।

    वो डरते हुए गाड़ी के पास आई। सिकंदर ने शीशा नीचे किया।

    "बैठ जाओ।" उसको गाड़ी के पास ऐसे खड़े देखकर उसने कहा।

    वह सभी लोग आइसक्रीम पार्लर की तरफ़ जा रहे थे।

    "बाहर कितना सुहावना मौसम है।" नीनू कहने लगी। बहुत ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। "शीशे नीचे करो ना गाड़ी के।" उसने सिकंदर से कहा।

    "बाहर से डस्ट भी आएगी।" सिकंदर कहने लगा।

    "कोई अच्छा सा गाना तो लगाओ।" नीनू ने उससे कहा।

    सिकंदर का ध्यान पीछे की तरफ़ गया। शीशा नीचे होने की वजह से कनक के घुंघराले बाल उसके पूरे चेहरे पर आ गए थे और वह उन्हें पीछे कर रही थी। बाल तो साइड पर बैठी नीनू के भी आगे आ रहे थे, मगर सिकंदर को वह नहीं दिख रही थी। उसे वह लड़की, जो पीछे बैठी थी, आईने में से वह उसे ही देख रहा था, जो अपने बालों को संभालने की कोशिश कर रही थी। एक तो उसके बाल घुंघराले थे और जो हवा की वजह से उसे बहुत तंग कर रहे थे। सिकंदर को उसके बालों से ही जलन हो रही थी। वह बहुत ध्यान से फ्रंट मिरर से उसे देख रहा था। नीनू किसी बात पर बोलती जा रही थी, मगर उसका ध्यान उसकी बातों में कहाँ था? वह तो पीछे बैठी लड़की, जो अपने बालों में उलझी हुई थी, उसी में उलझा हुआ था।

    तभी सिकंदर का फ़ोन बजा।

    "आपका फ़ोन बज रहा है।" मीनू ने कहा। सिकंदर को एकदम से होश आया। उसने फ़ोन उठाया।

    "आइसक्रीम पार्लर पीछे रह गया है भाई। आप कहाँ जा रहे हो?" सुरेश का फ़ोन था। उसने ध्यान ही नहीं दिया था कि वह आइसक्रीम पार्लर छोड़कर आगे बढ़ गया।

    "क्या कह रहे थे भाई?" नीनू ने कहा।

    "आइसक्रीम पार्लर पीछे रह गया है।" उसने गाड़ी बैक की। वह वापस चले गए थे।

    सभी अंदर जाकर बैठ गए। "सभी अपना-अपना फ़्लेवर बताओ।" समर कहने लगा। सभी ने अपना-अपना फ़्लेवर बताया और ऑर्डर दे दिया।

    आइसक्रीम खाते हुए सिकंदर बीच-बीच में कनक को देख रहा था। आइसक्रीम खाते हुए कनक के होठों पर आइसक्रीम लग गई थी।

    उसका ध्यान उसके नेचुरल पिंक होठों के ऊपर लगी हुई आइसक्रीम पर था। वह अपनी जगह से उठा और कनक के एक साइड वाली चेयर, जो खाली थी, उस पर बैठ गया। कनक ने उसकी तरफ़ देखा। सिकंदर ने आगे बढ़कर उसके होठों पर लगी हुई आइसक्रीम पर अपने होठ रख दिए।

    "सिकंदर!" तभी किसी ने कहा।

    सिकंदर को एकदम झटका सा लगा और उसके हाथ से आइसक्रीम छूट गई।

    "क्या हुआ भाई? आप ऐसे क्यों घबरा गए?" समर ने सिकंदर से कहा।

    "नहीं, कुछ नहीं, बस ऐसे ही गिर गई।" वह अपनी जगह से खड़ा होने लगा।

    "मैं वॉशरूम जाकर आता हूँ।" वह पार्लर में बनी हुई वॉशरूम में चला गया। वहाँ जाकर कितनी देर अपने दिल पर हाथ रखकर खड़ा रहा।

    "क्या हो रहा है मुझे? वह मेरे दिल और दिमाग पर सवार होती जा रही है। मैं ऐसे पागल नहीं हो सकता।"

    थोड़ी देर बाद वह अपने आप को स्थिर करता हुआ बाहर आया।

    "आप ठीक तो हैं ना भाई?" क्योंकि सिकंदर के चेहरे का रंग अभी भी उड़ा हुआ था।

    "मेरी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं लग रही। हमें घर चलना चाहिए। और ये लो चाबी, तुम गाड़ी चलाना।" वो आराम से पीछे बैठ गया था। वह आगे भी नहीं बैठा क्योंकि वह अभी तक खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था। उसकी शादी होने वाली थी, थोड़े ही दिन उसकी शादी में रह गए थे और वो उस लड़की की तरफ़ खिंचता जा रहा था, जबकि वह जानता था वह लड़की उसकी तकदीर में नहीं है।

    वो उसकी तकदीर नहीं बन सकती, क्योंकि यह रिश्ता तोड़ना नामुमकिन था। उसके भाई की वाइफ़ की बहन थी। अगर वह मना करता तो उनके साथ-साथ भाई के साथ भी रिश्तों पर फ़र्क पड़ता। यह बात उसके माँ-बाप को भी अच्छी नहीं लगती।