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जाने दिल में कब से है तु

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Kusum Sharma

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सुबह-सुबह अख़बार पढते गोवर्धन जी अपनी पत्नी हेमा से बोले " आज ये मोहल्ले में जीप किसकी है ???और ये भजन ???....  " हेमा चाय का कप लेकर आते हुए  " कल भी आए थे...हम मंदिर गए हुए थे !....शहर के कुछ लड़के हैं जो गौशाला के लिए घर-घर से रोटी ,गुड़ और घास...

Total Chapters (30)

Page 1 of 2

  • 1. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 1

    Words: 808

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह-सुबह अखबार पढ़ते हुए गोवर्धन जी ने अपनी पत्नी हेमा से कहा, "आज ये मोहल्ले में जीप किसकी है? और ये भजन...?"

    हेमा चाय का कप लेकर आते हुए बोली, "कल भी आए थे...हम मंदिर गए हुए थे! शहर के कुछ लड़के हैं जो गौशाला के लिए घर-घर से रोटी, गुड़ और घास लेकर जाते हैं!"

    गोवर्धन ने चाय का कप रखकर अखबार के पन्ने पलटे और बोले, "चार दिन का बुखार है, फिर कोई नहीं आएगा..."

    हेमा पास बैठकर चाय का घूंट भरते हुए बोली, "आपने अपनी लड़की को देखा है? वह कहाँ है! भजन मंडली की माता बनी बैठी है! मजाल है कोई कह दे इंजीनियर है! मुझे तो इसकी चिंता रहती है, पता नहीं कैसा लड़का मिलेगा इसको?"

    तभी बाहर गेट बजा और एक लड़के ने कहा, "आंटी, रोटी, घास, गुड़ कुछ है तो दे दो..."

    हेमा किचन की तरफ जाते हुए बोली, "आई बेटा..."

    हेमा ने लड़के को रोटी देते हुए कहा, "बेटा, नए हो क्या इस शहर में?"

    लड़के ने कहा, "जी नहीं आंटी, लेकिन मेरी जॉब बाहर विदेश में थी, अब यहीं सेटल हो गया हूँ!"

    हेमा ने कहा, "रोज आने का इरादा है क्या? तब तो हम कुछ बनाकर तैयार रखें!"

    लड़के ने कहा, "जी आंटी, अभी तक तो इरादा यही है! निस्वार्थ भाव से सेवा करने का! जिंदगी यूँ ही बीत जाएगी, कुछ समय इन बेजुबानों के लिए निकाल लें तो कुछ नहीं जाएगा!"

    हेमा खुश होकर बोली, "जीते रहो बेटा..."

    लड़का चला गया और हेमा अंदर आकर चाय पीने लगी। वह लड़के कुछ दूर मेन रोड पर आकर पानी पीने के लिए रुके। चारों ने बोतल निकालकर पानी पी ही रहा था कि तभी उनके कानों में भजन की आवाज सुनाई दी।

    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल
    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल
    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल
    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल

    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल
    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल
    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल
    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल
    (जया किशोरी)

    आवाज सुनकर लड़के के हाथ रुक गए और उसने अपने दोस्त को देखकर कहा, "ये आवाज कहीं सुनी है...?"

    दूसरे लड़के ने कहा, "सुनी होगी! बहुत से सिंगर हैं आजकल, नए-नए भजन गायक आ रहे हैं..."

    लड़के ने दोस्त को बोतल देकर कहा, "नहीं यार, मैंने इसको कहीं सुना है, मैं अभी देखकर आ रहा हूँ!"

    पीछे से एक आवाज आई, "अरे यार! प्रभातफेरी में उसे कहाँ ढूँढेगा? यहाँ बहुत सी लड़कियाँ, लेडीज आती हैं, सब भजन गाती हैं!"

    लड़का उस आवाज वाली लड़की को ढूँढने लगा, लेकिन वह उसे कहीं दिखाई नहीं दी! सब लड़कियों और औरतों के सिर पर पल्लू था। तभी भजन बदल गया! कोई और गाने लगा! लड़का फिर भी उस लड़की को ढूँढने की कोशिश कर रहा था।

    जब उसे कुछ समझ न आया तो वह अपने दोस्त के पास वापस आ गया और गाड़ी लेकर चला गया। लड़के का दोस्त गाड़ी में बैठकर ड्राइव करते हुए बोला, "क्या था उस आवाज में, हम तो रोजाना सुनते हैं। आज कोई पहली बार नहीं है, कितने सालों से प्रभातफेरी निकल रही है।"

    लड़के ने वापस से पानी पीते हुए कहा, "मैंने उस आवाज को कहीं और सुना है!"

    उस लड़के के दिमाग में हलचल मच गई कि उसने उस आवाज को कहीं तो सुना है...मगर कहाँ? पर उसे याद नहीं आ रहा था!

    हेमा गोवर्धन जी के साथ कुछ देर बातें की और चाय के बर्तन उठाकर अंदर जाने लगी, तभी मेन डोर खुला! हेमा जी बोलीं, "लो, आपकी लाडली आ गई है! भगवान की सेवा करके..."

    गोवर्धन जी पास रखी चेयर को देखते हुए बोले, "आओ पलभा, यहाँ बैठो आकर...एक कप चाय मेरे लिए भी बना देना!"

    पलभा ने पसीना पोंछते हुए कहा, "मम्मी, बिल्कुल नहीं! अभी एक कप चाय पी है ना, फिर डायबिटीज बढ़ जाएगी!"

    गोवर्धन जी मुस्कुराकर बोले, "अरे, मैं तो अपनी बेटी का साथ देने के लिए पी रहा हूँ!"

    पलभा साबुन से हाथ धोते हुए बोली, "नहीं, चाहिए ना...मुझे किसी का साथ नहीं चाहिए, सिवाय आप दोनों के..."

    हेमा किचन से बोली, "इतनी चिंता मत किया कर...मैं हूँ ना..."

    दूसरी तरफ,

    एक लड़का घर पहुँचते ही अपनी माँ से बोला, "क्या नया शौक पाला है...एक तेरे दादाजी तेरी शादी की जल्दी मचा रहे हैं..."

    लड़के ने हाथ धोकर रूमाल से हाथ साफ करते हुए कहा, "माँ, अभी एक-दो साल रुक जाओ..."

    माँ खीजकर बोली, "जा जाकर नहा ले! भगवान का आशीर्वाद ले और नाश्ता कर ले..."

    लड़का ऊपर अपने रूम में आया और कपड़े लेकर सीधा वॉशरूम में चला गया! वह वॉशरूम में शॉवर के नीचे खड़ा आवाज को सोचता रहा! जब उसकी समझ से बाहर हुआ तो बाहर आकर ड्रेस पहनकर तैयार हो नीचे आ गया!

    क्रमशः

  • 2. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 2

    Words: 864

    Estimated Reading Time: 6 min

    लड़का ऊपर अपने कमरे में गया और कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। बाथरूम में शॉवर के नीचे खड़ा वह आवाज़ को सोचता रहा। जब वह समझ से बाहर हुआ, तो बाहर आकर कपड़े पहनकर नीचे आ गया।

    भगवान के आगे हाथ जोड़कर, उसने नाश्ते की टेबल पर आकर नाश्ता करना शुरू कर दिया। मधुसूदन पास आकर बैठते हुए बोले, "क्या सोचा है, सांची?"

    सव्यसाची पोहे चम्मच से हिलाकर ठंडे करते हुए बोला, "पड़ोसी अपनी दुकान हमें दे रहे हैं, तो ऑफिस अच्छे से बन जाएगा।"

    मधुसूदन बोले, "उसने मना कर दिया।"

    सव्यसाची पोहे ठंडे होने के बावजूद भी चम्मच उसमें मार रहा था। "मुंहमांगी कीमत पर..."

    "नहीं मान रहा है... एक बार अपने शोरूम के ऊपर देख लो। मैं किसी दलाल से बात करता हूँ।" इतना कहकर मधुसूदन नाश्ता खत्म करके अपनी मोटरसाइकिल पर चले गए।

    शुभिका पास बैठी, पोहे में टोमैटो सॉस मिलाकर खा रही थी।

    नीतू किचन से आई तो बोली, "आप दोनों साथ बैठकर नाश्ता और खाना मत खाया करो। आपकी बातें खत्म नहीं होतीं और खाना ठंडा हो जाता है।"

    मधुसूदन मुस्कुराकर बोले, "अच्छा बाबा, ठीक है। आगे से दोनों बात नहीं करेंगे।"

    नीतू चिढ़कर बोली, "मैंने बात करने के लिए मना नहीं किया है। खाना खाते वक्त बात नहीं करनी चाहिए।"

    शुभिका बोली, "ओहो, मम्मी-पापा यही बात कह रहे हैं। बात मत बढ़ाओ।"

    नीतू शुभिका को डाँटकर बोली, "तू चुप रह, अपने पापा की लाड़ली। जब देखो तब उनकी साइड लेती रहती है!"

    सांची ने फटाफट नाश्ता किया और नीतू को कंधे से पकड़कर, डायनिंग चेयर पर बैठते हुए बोला, "पहले आप नाश्ता कीजिए, बाद में बहस करना।"

    नीतू बोली, "आज मेरा उपवास है।"

    यह सुनकर तीनों, बाप, बेटी और बेटा, नाराज़ से नीतू को देखने लगे।

    "मम्मी, कितने उपवास करती हो..." दोनों एक साथ बोले।

    मधुसूदन खड़े होकर बोले, "नीतू, बीमार हो जाओगी।"

    शुभिका अंदर गई और एक गिलास दूध में ठंडाई मिलाकर नीतू के सामने रख दिया। सांची पास बैठा, दूध पीने का इशारा करने लगा। नीतू ने मन मारकर गिलास मुँह से लगा लिया।

    सव्यसाची अपने ऑफिस को तैयार करवाने के लिए इंटीरियर से बात करने लगा। कुछ देर में अपना लैपटॉप लेकर अपने कमरे में काम करने चला गया। जॉब छोड़कर तो आ गया, लेकिन कंपनी उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी, इसलिए वर्क फ्रॉम होम की डील करके घर आ गया था।

    रात को घड़ी ने आठ बजाए तो सांची ने एफएम चालू किया। एफएम चालू होते ही एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी।

    "राधे-राधे मित्रों, मैं धरा, आपके सामने आपका प्रिय कार्यक्रम 'स्वर संगम' लेकर उपस्थित हूँ!... बात से पहले मुलाकात..."

    जाने कब रात होगी
    तुमसे जाने कब बात होगी
    हर उजाले के बाद रात होगी
    इन तन्हाइयों में भी कोई बात होगी...

    जिन पलों में होती है गुफ्तगू
    उनमें मिलते हैं खुद से
    खालीपन बांटते हैं खुद के साथ
    जाने वह कब मुलाकात होगी
    ख्वाबों की बरसात होगी...

    फिर कोई नया ख्वाब आएगा
    बहा ले जाएगा अपनी दुनिया में
    अपरिचित दुनिया में कोई अपना सा
    जाने कब उससे बात होगी
    जाने कब रात होगी... kusum

    "मुझे ध्यान से सुनने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार!"

    सांची ने जब धरा को सुना, तो आवाज़ उसके जहन में बस गई। "हो न हो, सुबह धरा ही थी..." कल फिर से देखते हैं।

    तभी एफएम पर गाना चल पड़ा।

    मुझे तेरे जैसी लड़की मिल जाए तो क्या बात हो...
    मुझे तेरे जैसी लड़की मिल जाए तो क्या बात हो...
    कभी पास बुलाए कभी छुप के सताए
    मेरा दिल धड़काए... मेरा चैन चुराए...

    गाना खत्म होते ही धरा नेक्स्ट कॉल अटेंड करते हुए बोली, "सर्वप्रथम आपका शुभनाम बताइए... फिर गाना..."

    "हाय धरा, मैं आपका बहुत बड़ा फैन हूँ! मेरा नाम अकबर इलाहाबादी है... गाने की बजाय आपकी कशिश भरी आवाज़ ज़्यादा पसंद है!"

    धरा उसकी बात से चिढ़ गई थी। "जी, प्रशंसा के लिए आपका धन्यवाद। आपकी पसंद का कोई गाना..."

    अकबर बोला, "आप अपनी पसंद से सुना दीजिए!"

    धरा बोली, "जी ज़रूर..."

    लेकर हम दीवाना दिल, फिरते हैं मंजिल-मंजिल
    लेकर हम दीवाना दिल, फिरते हैं मंजिल-मंजिल
    कहीं तो प्यारे किसी किनारे
    मिल जाओ तुम अंधेरे उजाले...

    सांची ने कॉल लगाकर अपनी पसंद का गाना सुनने के बजाय आज उसने भजन की फ़रमाइश कर दी। धरा के पास बैठा अकुल चौंका और इशारे से सँटका हुआ। अकुल से पूछा तो धरा ने दो मिनट में भजन सुना दिया।

    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल...
    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल...
    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल...
    कृष्ण गोविंद गोविंद गोपाल नंदलाल...
    हे गोपाल नंदलाल हे गोपाल नंदलाल...

    धरा खुद इस भजन में खो जाती थी। अकुल ने हाथ लगाकर धरा को टाइम बताया। इस एक घंटे में उसने अपना प्रोग्राम खत्म कर लिया।

    आवाज़ सुनकर सांची को विश्वास हुआ कि धरा इसी शहर में रहती है। कल ज़रूर उसे ढूँढ लेगा। सांची कल सुबह का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। कहते हैं इंतज़ार की घड़ियाँ लंबी होती हैं, वही सांची के साथ भी हो रहा था, इसलिए वह अपना लैपटॉप लेकर बैठ गया।

    क्रमशः

  • 3. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 3

    Words: 865

    Estimated Reading Time: 6 min

    आवाज़ सुनकर सांची को विश्वास हुआ कि धरा इसी शहर में रहती है! कल ज़रूर उसे ढूँढ लेगा! सांची कल सुबह का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा।

    सुबह सांची तैयार होकर चला गया, लेकिन आज वह आवाज़ सुनाई नहीं दी।
    सांची का दोस्त, "अरे यार, क्यों परेशान है तू?"

    सांची, "आरजे धरा को जानता है?"

    दोस्त, "आजकल बहुत से आरजे बन गए हैं, किस-किस को सुने?"

    सांची, "एक बार उसको सुन...उसकी आवाज़ में कशिश है!"

    कुछ सोचते हुए, "अगर आज यहाँ नहीं है तो आज शाम को प्रोग्राम में भी नहीं आएगी! फिर डिसाइड हो जाएगा, वो यहाँ की है या नहीं।"

    दोस्त, "चल काम कर, तेरे चक्कर में मैं पागल हो जाऊँगा!"

    रात को प्रोग्राम शुरू हुआ तो आज होस्ट अकुल था।
    सांची, "अब इसे ढूँढना पड़ेगा।"

    अकुल ने प्रोग्राम ख़त्म करने के बाद कॉल लगाकर कहा, "अरे यार, तुम क्या चली गई! प्रोग्राम की बेंड बजा दी! सब तरफ़ तुम्हारी ही डिमांड है...और जो शायरी बोलती हो...उसके लिए तो...बस क्या ही कहूँ! और सुन, आज एक ने पूछ लिया तुम शादीशुदा हो या कुंवारी।"

    सामने से, "अकुल, तुम जानते हो...शौक को पूरा करने के लिए कर रही हूँ! बस कुछ दिन के लिए अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हूँ! फिर अपनी लाइफ़ में बिज़ी हो जाऊँगी...पापा ने अब तक पूरी-पूरी रिश्तेदारी में कह दिया है कि अच्छा लड़का हो तो हमें बताएँ!"

    अकुल हैरानी से, "अरे यार, इतनी जल्दी...तुम्हारे नाम से एफबी पर फ़ैन पेज बना है...तुम्हारी सब नज़्मों को लिखा गया है!"

    "हाँ, तो उन्होंने अपना वादा निभाया और मेरे इंजीनियरिंग के सपने को पूरा किया है तो मैं भी उनकी इच्छा का सम्मान करूँ! फ़ैन सब चार दिन के हैं...नया मिलते ही भूल जाएँगे!"

    अकुल परेशान, "तुम कब आ रही हो?"

    "कल, ओके बाय।"

    अकुल सोच में डूब गया। चाहकर भी अपना इज़हार नहीं कर पाया। उसका इस तरह बिहेव भी अच्छा नहीं लगा।

    सांची अपना काम करके लैपटॉप बंद किया और सोचने लगा। कुछ देर बाद उठकर खाना खाने चला गया। सुबह अपना काम करके आ गया, लेकिन उसी आवाज़ को सुनने के लिए तरस गया।

    आठ बज गए थे। प्रोग्राम शुरू हो गया। एक बार मन नहीं किया, फिर भी सांची ने मन मारकर एफ़एम चालू किया।

    हे वृन्दावन बिहारी, हे कृष्ण मुरारी
    सुनियो अरज़ हमारी, प्रभुजी सुनियो अरज़ हमारी...

    हे वासुदेव, हे तारणहारी
    आए चरनन तोरे, राखो लाज हमारी...

    हे बंशीधर बनवारी, हे गोवर्धन गिरधारी
    दरिया ए दुनिया में संभारो पतवार हमारी...

    हे कन्हैया विषधर, हे चक्रधारी
    बन जाओ तारणहार, डूब न जाए नाव हमारी...

    हे गोविंद-गोपाल, हे त्रिपुरारी
    सुख-दुःख के चक्र मिटाओ, शरण लगाओ तिहारी...
    (कुसुम)

    सांची ने जब धरा की आवाज़ सुनी तो गदगद हो गया।

    आज वृन्दावन ठाकुर जी के दर्शन करके कृतार्थ हो गई! अवसरवादी होना कभी-कभार अच्छा होता है और इसलिए हमने अपने जीवन को सफल बनाने के लिए लाभ उठाया!

    "अब कार्यक्रम की शुरुआत की जाए! पहली कॉल मनीष जी की है!"

    "हैलो मनीष जी, आपका हमारे कार्यक्रम 'स्वर संगम' में स्वागत है! चलिए शीघ्र ही अपनी पसंद से अवगत करवाएँ!"

    मनीष, "कल आपको बहुत मिस किया!...आप जो नज़्म बोलते हो...पूरे प्रोग्राम में अच्छा लगता है!..."

    धरा, "आपका आभार।"

    मनीष, "होठों पे बस तेरा नाम है..."

    अकुल ने चिढ़कर कॉल काट दी। धरा ने अकुल को घूरकर गाना चला दिया। लास्ट कॉल देखकर धरा धीरे से बोली, "अकुल, ये वही लड़का है जो फ़ॉरेन में जॉब करता है!"

    अकुल, "कॉल तो उठा ले..."

    धरा, "सव्यसाची, आपका हमारे कार्यक्रम में हार्दिक स्वागत है! अपनी पसंद का गाना कहिए..."

    सांची,
    "अथाह सागर सी तुम
    जिसकी लहरों को जीतना है!"

    धरा अचानक से, "जी..."

    सव्यसाची, "दो लाइन आपके लिए थीं..."

    धरा ने अकुल को इशारा किया। धरा, "धन्यवाद, अपनी पसंद बताइए..."

    "तुमसे मिलने की तमन्ना है...प्यार" सांची

    धरा बीच में काटकर, "जी, समझ गई..."

    कॉल काटकर गाना चला दिया। प्रोग्राम खत्म करके बाहर निकलते हुए, "अकुल, बस आज लास्ट था...मुझे सैलरी भी नहीं चाहिए, बॉस को कह देना!...अब दिन छोटे होने लगे हैं...मम्मी-पापा को अच्छा नहीं लगता है इतनी रात में घर से बाहर रहना!...बस इतने में मैं खुश हूँ..."

    अकुल, "मैं घर आकर बात करूँ..."

    "नहीं, अकुल, पापा की इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं कर सकती!"

    अकुल गौर से देखकर, "तुम्हारी जैसी मर्ज़ी।"

    धरा, "अकुल, एक बात और...वादा करो किसी से भी मेरा नंबर...नाम शेयर नहीं करोगे!..."

    अकुल, "आई प्रॉमिस...एक बात मेरी भी माननी होगी..."

    धरा सवालिया नज़रों से देखने लगी। अकुल, "केन आई हग यू..."

    धरा झिझक कर, "अकुल..."

    अकुल ने करीब आकर गले लगा लिया! धरा जल्दी से दूर हो गई! अकुल धरा का दोस्त था, लेकिन धरा अपनी हद में रहती आई थी...एक अनुशासित जीवन...

    क्रमशः

  • 4. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 4

    Words: 728

    Estimated Reading Time: 5 min

    अकुल ने करीब आकर गले लगा लिया। धरा जल्दी से दूर हो गई। अकुल धरा का दोस्त था, लेकिन धरा अपनी हद में ही रही थी; एक अनुशासित जीवन।

    अकुल को अच्छा नहीं लगा, लेकिन धरा की इच्छा के विरुद्ध कुछ करना भी नहीं चाहता था।
    "बस एक बात...शायद शो बंद हो जाए! तुम्हारे आने से शो ने नई ऊंचाइयों को छुआ है!"

    "नहीं, अकुल, चाहे कुछ भी हो...और वैसे भी मेरा इंटरव्यू क्लियर हो गया है! जॉब के लिए जा रही हूँ..."

    अकुल आगे बढ़कर बोला, "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...चलो, घर छोड़ दूँ..."

    "नहीं, मेरी दोस्त यहीं कंप्यूटर सेंटर पर काम करती है, उसके साथ चली जाऊँगी..."

    अकुल चिढ़कर बोला, "यार, कभी कुछ करने का मौका ही नहीं देती..."

    "मेरी शादी में आकर काम कर लेना..." धरा हँसकर बोली।

    अकुल को गुस्सा आया, लेकिन धरा की हँसी के आगे वह रफ़ूचक्कर हो गया। दोनों अपने-अपने रास्ते हो लिए।


    सांची डाइनिंग चेयर पर बैठकर अपने पापा के साथ शोरूम के ऊपर बनने वाले ऑफिस की डिजाइनिंग डिस्कस करने लगा। सांची की छोटी बहन शुभिका, भाई और पापा के आगे प्लेट रखते हुए बोली, "क्या भाई! डाइनिंग टेबल पर भी आप ऑफिस की ही बातें लगे रहते हो!"

    अनीता ने शुभिका की बात में सहमति जताई।

    आज फिर प्रभात फेरी के पास से गुजरा, लेकिन कोई और ही भजन गा रहा था। सांची ने इग्नोर किया, लेकिन कुछ देर बाद उसके कान तरंगित हुए।

    इक आस तुम्हारी है, विश्वास तुम्हारा है...
    इक आस तुम्हारी है, विश्वास तुम्हारा है...
    अब तेरे सिवा बाबा कब कौन हमारा है...
    इक आस तुम्हारी है, विश्वास तुम्हारा है...
    अब तेरे सिवा बाबा कब कौन हमारा है...
    (संजय मित्तल)

    सांची खुद को रोक न पाया। वापस से अपने दोस्त को जीप घुमाने के लिए कहा।

    सांची जब तक पहुँचा, भजन बंद हो चुका था। माइक लिए तीस-पैंतीस साल की औरत खड़ी थी, जबकि एक खांसती लड़की को पानी पिला रहे थे, उसकी पीठ को सहला रहे थे; शायद तेज खांसी उठी हो। सांची ने उसे इग्नोर किया।

    सांची ने उस औरत के हाथ में माइक देखकर उदास होकर वापस लौट आया। उदास सांची को देखकर दोस्त बोला, "अब क्या हुआ??? ऐसे मुँह क्यों लटका रखा है..."

    सांची बोला, "कुछ नहीं यार, तूने सही कहा था! वह आवाज धरा की नहीं है, कोई और ही है!"

    दोस्त गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला, "अरे, उदास क्यों हो रहा है...दुनिया बहुत बड़ी है...कहीं आवाज, कहीं चेहरे, कुछ ना कुछ सेम हो ही जाता है..."

    सांची बोला, "ह्म्म्म्म," लेकिन उसका मन मानने को तैयार नहीं था।

    पलभा घर पहुँची तो गोवर्धन जी उसी के साथ सामने पार्क से घूमकर घर आए थे। हेमा जी चाय रखते हुए बोलीं, "दोनों बाप-बेटी हाथ धोकर आ जाओ, चाय तैयार है!"

    पलभा बोली, "आज पापा चाय में लेट हो गए???"

    गोवर्धन जी बोले, "तुम्हारी माँ उठने में लेट हो गई! इसी चक्कर में मैं बाहर घूमने चला गया और साथ में तुम दो-चार दिन बाद चली जाओगी, सोचा कि साथ ही चाय पिएंगे!"

    पलभा अपने पापा के प्यार पर मुस्कुरा दी। उन दोनों का संसार पलभा ही थी। एक मिडिल क्लास फैमिली, जिनके सारे सपने अपने परिवार के भरण-पोषण और अच्छी परवरिश में सिमट कर रहते हैं। समाज में अपने व्यवहार से गोवर्धन जी ने जहाँ अपनी छवि कायम की, हेमा जी एक कुशल ग्रहणी थीं और पलभा में भी संस्कार संचित किए थे। वहीं पलभा ने हर कक्षा में पढ़ाई में अव्वल रहकर शहर में छात्र सम्मान प्राप्त किया था।

    धरा से ध्यान हटाकर सांची ने अपने ऑफिस और बिज़नेस की तरफ़ लगा दिया। उसके अंदर दस-बारह एंप्लोई थे। अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिए बस एक जुनून सवार हो गया था और उसने अपनी पूरी एनर्जी लगा दी। धरा के प्रोग्राम बंद करने के बाद उसने एफ़एम सुनना छोड़ दिया। कभी-कभार एफ़बी पर फ़ैन पेज को चेक कर लिया करता था। उसकी रिकॉर्डेड आवाज़ को सुन लिया करता था।

    एक महीने बाद पलभा के पास गोवर्धन जी की कॉल आई कि ऐसे लड़के वाले देखने के लिए आ रहे हैं। पलभा बेचैनी से भर गई, लेकिन उसे अपने पिता की इच्छा को पूरा करना ही था।

    क्रमशः

  • 5. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 5

    Words: 777

    Estimated Reading Time: 5 min

    एक महीने बाद, गोवर्धन जी का पलभा को फ़ोन आया कि लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं। पलभा बेचैनी से भर गई, लेकिन उसे अपने पिता की इच्छा पूरी करनी ही थी।

    पलभा ने शुक्रवार रात को घर आने के लिए कहा और समय बीतने पर घर आने की तैयारी करने लगी। उसने अपने मन को समझा लिया था। वह मन को मज़बूत कर घर के लिए निकल गई।

    शनिवार का दिन घर परिवार और रिश्तेदारों से भरा हुआ था। वह दिन पलभा का रिश्तेदारों के साथ गुज़रा। उसे देखने आए लड़के से, छत पर एकांत में मिलने का मौका मिला। वह उसे ऐसे ही तो नहीं जाने दे सकती थी। इस बात का फायदा उठाते हुए, उसने हितेन के सामने लगभग एक साल बाद ही शादी करने को कहा!

    "पलभा जी......आप कारण बता दीजिए शादी में इतना लंबे टाइम तक रोकने का?" हितेन हैरान था।

    पलभा सहज होकर बोली, क्योंकि उसे उस दिन ऐसी वैसी कोई बात नज़र नहीं आई थी; वह एक संस्कारी लड़के की तरह बात कर रहा था। पलभा उंगली में अपने दुपट्टे को उलझाते हुए बोली, "पापा ने अपना घर बेचकर मार्केट में अपनी शॉप खरीदी! उसके साथ ही लोन लेना पड़ा। मैं चाहती हूँ कि गोविंद जी की कृपा से उनका लोन उतर जाए।"

    "वो तो शादी के बाद भी हो सकता है....." हितेन उसकी परेशानी दूर करते हुए बोला।

    "आप साथ दें, लेकिन आपके घरवाले..." पलभा परेशान सी हुई।

    "आपको कोई कुछ नहीं कहेगा....सब फ़्री माइंड हैं....." हितेन अपने मददगार स्वभाव का परिचय देते हुए बोला।

    "शादी में खर्च तो होगा ही, उसका क्या?" पलभा अपनी दूसरी समस्या हितेन के आगे रखते हुए बोली।

    "दो दिन बाद ही कोर्ट मैरिज कर लेते हैं।" हितेन सहजता का भाव लिए हुए मुस्कुराकर बोला।

    पलभा ने घनी पलकें उठाकर हितेन को आश्चर्य से देखा।

    "अरे नहीं! मम्मी-पापा के अरमान सब मुझे ही पूरे करने हैं। उनकी पूरी दुनिया मैं ही हूँ, तो शादी उनके हिसाब से होगी। आप समझ सकते हैं।" पलभा संभल कर बोली।

    हितेन ने पलभा का हाथ अपने हाथ में लिया तो वह चौंक गई!

    "सब टेंशन दूर करो और शादी के लिए हाँ कर दो। तुम्हारा एक रुपया भी नहीं लगेगा।" हितेन आश्वासन देते हुए बोला।

    इस हाथ पकड़ने पर पलभा ने चौंक कर हाथ पीछे खींच लिया। हितेन के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, क्योंकि लड़की का बिना सूचना या अहसास के छूना असहज होना लाज़मी था। दोनों कुछ देर टहलते रहे और अपने बारे में बातें करते रहे।

    हितेन और पलभा नीचे आए तो गोवर्धन जी ने पहले ही पंडित जी से शादी का मुहूर्त पूछ लिया था, जो कि तीन महीने बाद का निकला था। सबने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाई दी। इस तरह अचानक सब कुछ अच्छा होना पलभा को किसी सपने की तरह लग रहा था। कहीं अचानक से सपना टूट गया तो...... फिर करता नहीं लाकर, उसने किसी अनहोनी के ख्याल को झटक दिया।

    हितेन पलभा के साथ रिश्ता पक्का होने के बाद घर आया और सब काम करने के बाद किसी से फ़ोन पर बात करते हुए बोला, "बॉस, आपका काम हो गया है। अब शादी करने को कहोगे तो मुझसे नहीं होगी उस लड़की के साथ, अब आगे और कुछ आइडिया हो तो बता देना।"

    "इतनी जल्दी क्या है, अभी वो गई क्या?" बॉस हितेन के साथ कूल होकर बोला।

    "गई होगी मुझे क्या?" हितेन झुंझलाहट में बोला।

    "तुम्हें हर खबर पता होनी चाहिए, समझे....वो इतनी मॉडर्न नहीं है! दो बात प्यार से बोल दोगे तो भी खुश हो जाएगी और इस शहर में रहकर किसी और लड़की के साथ नज़र नहीं आओगे!.....समझे.....जो करना बाहर जाकर करना!" बॉस बोला।

    "ओके बॉस! उसके लिए माया चाहिए।" हितेन ने अपनी इच्छा जाहिर की।

    "माया पहुँच जाएगी और अगले कदम के लिए तैयार रहना!" बॉस ने आश्वासन दिया।

    "ओके......" हितेन ने कहा।

    पलभा हितेन के रवैये से खुश थी। उसने सोचा नहीं था कि इतना समझदार हमसफ़र मिलेगा।

    हितेन से उसकी कभी-कभी बात भी हो जाती थी। उसके प्यार भरे बोल सुनकर पलभा को अपनी किस्मत पर गर्व होने लगता था!

    सव्यसाची का ऑफिस बनकर तैयार हो चुका था, जिसके उद्घाटन के लिए वह अपने दादाजी को लेकर आया था! सव्यसाची के पापा पाँच बहनों में सबसे छोटे और इकलौते बेटे होने के कारण अपने पोते सव्यसाची पर बहुत मोह रखते थे! उनका मान रखने के लिए सव्यसाची ने उनके कर-कमलों से ऑफिस का उद्घाटन करवाया!

    एक भव्य समारोह में ऑफिस खोला गया! उनके पड़ोसी को छोड़कर सब बड़े नामी-गिरामी लोग उपस्थित हुए! बस एक-दूसरे में बच्चों की तरह कमियाँ ही निकालते रहे थे!

    क्रमशः

  • 6. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 6

    Words: 715

    Estimated Reading Time: 5 min

    एक भव्य समारोह में सव्यसाची ने अपना ऑफिस खोला था। उनके पड़ोसी को छोड़कर सभी बड़े नामी-गिरामी लोग उपस्थित थे। बस एक-दूसरे में बच्चों की तरह कमियाँ ही निकालते रहे थे।

    सव्यसाची ने अपने ऑफिस को संभाल लिया था। साथ ही बड़ी बिल्डिंग के लिए जगह तलाशने लगा था। उनका पड़ोसी मान जाता तो वह अपने शोरूम को तोड़कर दोनों जगह मिलाकर बड़ी बिल्डिंग खड़ी कर सकता था। कभी-कभी काश... ही रह जाता है।

    शादी को डेढ़ महीना रह गया था। पलभा माँ के ज़बरदस्ती कहने पर आई हुई थी। शनिवार को माँ-बेटी बातें कर रही थीं। साथ में हेमा जी उसके सर में तेल की मालिश करते हुए बोलीं, "हितेन ठीक है ना... पलभा..."

    पलभा आँखें बंद किए हुए बोली, "हाँ माँ, मेरी हर बात मान लेते हैं... पिछले दिनों कहा कि तुमसे मिलने आ जाऊँ, मेरे मना करने पर रुक गया! माँ, सब सपना लग रहा है। आज के टाइम में ऐसा लड़का मिलना मुश्किल है!"

    हेमा बोलीं, "अब कैसे भी करके शादी के काम अच्छे से हो जाएँ, साथ में सब परिवार वाले आ जाएँ तो बात बन जाएगी। वरना सब एक तो बात बनाएँगे, ऊपर से कहीं बात बिगाड़ ही ना दें, यह भी डर तुम्हें रात दिन सताता रहता है!"

    पलभा आँखें बंद करके बोली, "कृष्ण कन्हैया सब अच्छा करेंगे!"

    हेमा उंगलियों से चँपी करते हुए बोली, "मैं सोच रही हूँ, कल झूलेलाल मंदिर जाकर आऊँ!"

    पलभा को मालिश से सिर में आराम मिल रहा था। "ह्म्म्म्म," बोली वह।

    बारिश के मौसम को देखते हुए गोवर्धन जी आज जल्दी ही साढ़े सात बजे घर आ गए थे। तभी अकुल भी आ गया। डोर बेल बजते ही बाहर पलभा ने देखा और हैरान हुई।

    पलभा बोली, "अकुल तुम इस टाइम?? मौसम भी खराब हो रहा है..."

    अकुल आगे बढ़कर गोवर्धन जी के पैर छूकर बोला, "आगे से जा रहा था!... सोचा मिलता चलूँ!... बस मिलने ही आया था। साथ में तुम्हारी दोस्त कीर्ति को छोड़ने आया था... कंप्यूटर सेंटर के बाहर अकेली खड़ी थी!"

    पलभा खड़ी होकर बोली, "अरे ऐसे कैसे इतने दिन बाद... दिन क्या साल ही हो गया है... चाय-नाश्ता करके जाना... खाना भी तैयार है अगर खाना चाहो तो..."

    अकुल बाहर जाते हुए बोला, "फिर किसी दिन..."

    पलभा पीछे आते हुए बोली, "वादा..."

    बाहर हवा तेज थी, बादल कम हो गए थे।

    पलभा बोली, "देखो तुम्हारे मना करने पर मौसम भी साफ हो गया!"

    अकुल हँसा और बाइक लेकर निकल गया। अकुल ने एक बार फिर आरजे की सीट के लिए उसे आने को कहा था। मना करके पलभा अंदर आकर अपनी माँ को किचन में मदद करने लगी। कुछ ही देर में हितेन आया और पलभा के साथ पास ही के रेस्टोरेंट में जाने की इजाज़त माँगी।

    गोवर्धन जी मना करते इससे पहले ही हेमा ने हामी भर दी और हिदायत दी कि पास ही के रेस्टोरेंट में ही जाएँ। पलभा तैयार होने चली गई। गोवर्धन जी पानी लाने के लिए चले गए।

    हितेन कॉल लगाकर बोला, "बॉस, प्लान सक्सेसफुल हो गया है। बाहर जाने के लिए तैयार हूँ!... अब आप अपना देख लेना..."

    बॉस बोला, "हाईवे पर पहुँचकर कॉल करना..."

    गोवर्धन जी पानी लेकर आए तो हितेन बात बदलकर बोला, "सर, आज आपका काम नहीं हो सकता। फिलहाल होने वाली वाइफ के साथ डिनर डेट है!... एक घंटा बाद कॉल करना!"

    हितेन ने कॉल कट कर पानी पिया और टाइम देखकर बोला, "पलभा को कहिए जल्दी करे! आज सैटरडे है, रेस्टोरेंट की बुकिंग फुल हो जाएगी!"

    पलभा अचानक से हितेन के आने पर कन्फ्यूज हो गई थी। आनन-फानन में जो सूट आगे आया पहन कर नीचे आई, फिर भी उसे आठ बज गए तैयार होने में। पलभा ने सोचा भी नहीं था कि कभी उसके होने वाला पति उसे डिनर डेट पर ले जाएगा।

    मिडिल क्लास लड़कियों के सपने भी मिडिल क्लास ही होते हैं। अगर कोई प्यार से गिफ्ट दे तो भी खुश हो जाती है, यही गिफ्ट उसका पति दे तो खुशी में चार चाँद लग जाते हैं।

    हितेन के साथ अपने माँ-बाप को बाय करके हितेन के साथ खूबसूरत डिनर डेट पर चली गई। पास के सब रेस्टोरेंट फुल थे। हितेन शहर से बाहर की ओर चल पड़ा।

    क्रमशः

  • 7. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 7

    Words: 713

    Estimated Reading Time: 5 min

    हितेन के साथ अपनी माँ-बाप को बताकर नीतू हितेन के साथ एक खूबसूरत डिनर डेट पर गई थी। पास के सभी रेस्टोरेंट भरे हुए थे। हितेन शहर से बाहर की ओर चल पड़ा।


    नीतू रसोई से, "सांची, चाय बना दूँ?"


    सांची घर के अंदर आते हुए, "नहीं माँ, दीक्षांत के दस कॉल आ चुके हैं! और उसका जन्मदिन का गिफ्ट भी नहीं लिया है..."


    सांची सीधा अपने कमरे में गया और जल्दी से नहाकर बाहर आया। आईने के सामने खड़ा होकर फटाफट बाल बनाने लगा।


    शुभिका कंधे पर कोहनी रखते हुए, "भाई, आज पक्का कोई चुड़ैल चिपकने वाली है!"


    "पार्टी में कोई चुड़ैल नहीं है! चल हट..." कोहनी हटाकर परफ्यूम लगाते हुए सांची।


    शुभिका नज़र उतारते हुए मजाकिया लहजे में, "सड़क पर बहुत भागती है चुड़ैल।"


    सांची हैंकी और मोबाइल रखकर सीधा खड़ा हुआ, खुद को एक नज़र देखकर बाइक की चाबी उठाकर जाने लगा।


    शुभिका, "भाई, गाड़ी ले जाओ..."


    सांची, "मौसम खराब है, गाड़ी बीच में रुक जाएगी... बाइक ठीक है!"


    "लेकिन आप भीग जाओगे..." पीछे-पीछे आते हुए शुभिका।


    सांची बाहर निकलते हुए, "मेरी माँ जाने दे... अभी हवा चलने से कुछ ठीक है... जल्दी पहुँच जाऊँगा!"


    सांची बाइक लेकर मार्केट आया और गिफ्ट लिया। बाइक को शहर से बाहर हाईवे पर ग्रीन गार्डन पैलेस की तरफ घुमाया। दस मिनट ही चला था कि तेज झमाझम बारिश शुरू हो गई!


    फ़िलहाल ऐसा लग रहा था कि आज ही पूरी बारिश होगी। इंद्रदेव आज अपने रौद्र रूप में थे।


    सांची गुस्से में बड़बड़ाते हुए बाइक चलाते हुए, "साल भर की बारिश भी आज ही आएगी... और मैं जल्दी नहीं निकल सकता! मीटिंग कल भी हो सकती थी... नहीं, बॉस जो ठहरा!"


    पलभा सहमकर, "हितेन, आप इतनी बारिश में शहर से बाहर जा रहे हैं!"


    हितेन मज़ाक में, "अरे इतना डरना क्या है? कहीं होटल में एक रात बिता लेंगे!"


    पलभा गुस्से में, "हितेन जी, मैं उसूलों पर चलती हूँ! मुझे कहीं नहीं जाना है, मुझे मेरे घर छोड़ दीजिए!"


    हितेन ने गाड़ी नहीं रोकी। पलभा हितेन का हाथ पकड़कर हिलाने लगी, "हितेन, आप गलत कर रहे हैं... गाड़ी रोकिए।"


    हितेन गुस्से में, हाईवे खाली देखकर गाड़ी रोक दी। पलभा का मुँह पकड़कर, "कोई नहीं पूछता आजकल... तुम किससे रिलेशनशिप में हो! सब चलता है!"


    पलभा ने हाथ झटककर हितेन को थप्पड़ मार दिया, "तुम जैसे लोगों की सोच ने माहौल खराब किया है! तुम अपने संस्कार भूल चुके हो, इसलिए तुम्हारी नज़र में सब ऐसे हैं..."


    हितेन को गुस्सा आया और उसने पलभा का सिर पीछे से पकड़कर उस पर झुकने लगा। पलभा की डर से आँखें फैल गईं और घबराहट में भी दिमाग लगा रही थी।


    पलभा ने दूसरा हाथ पकड़कर जोर से काट लिया और गाड़ी का गेट खोलकर बाहर भागी। सामने से आती बाइक एकदम से रुकी। सांची का फ़ोन बज रहा था। साथ में पलभा को बचाने के लिए बाइक एकदम से स्लिप हुई। सांची गिरते हुए बचा और संभलकर बाइक से उतरा। फ़ोन दीक्षांत का था, देखते ही कट हो गया।


    अचानक से पलभा उसके गले लग गई, "प्लीज बचा लीजिए..."


    हितेन फ़ोन निकालकर, "बॉस, मैं जा रहा हूँ, आपका काम हो गया है..."


    गुस्से में चिल्लाते हुए सांची, "मेरी बाइक शहर के बीच में रुक गई है और तुम कह रहा है कि काम हो गया है..."


    हितेन स्तब्ध होकर पीछे देखने लगा, "फिर वो कौन है जिसके गले लगी है!"


    बॉस, "अरे जो कोई भी है, फ़ोटो खींच लो, काम आएगी... अब कुछ और सोचता हूँ! फ़ोटो खींचो और उनका पीछा करो, क्या पता कब से उसके दिल में कोई हो... नाटक कर रही हो!"


    सांची हेलमेट उतारकर पलभा को दूर करते हुए, "अरे दूर हटो! और ये क्या, मरने चली थी आप...?"


    हेलमेट में सांची को पलभा की बात सुनी नहीं थी। तेज बारिश और हवा के साथ बादलों की गर्जन भी अपने जोश पर थी। हितेन ने पलभा की सांची के साथ फ़ोटो अलग-अलग एंगल से ली, जिसमें सांची का चेहरा साफ़ नज़र आ रहा था और पलभा का साइड फेस। हितेन वहाँ से चला गया।

    क्रमशः

  • 8. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 8

    Words: 958

    Estimated Reading Time: 6 min

    हेलमेट में सांची को पलभा की बात सुनी नहीं थी। तेज बारिश और हवा के साथ बादलों की गर्जन भी अपने जोश पर थी। हितेन ने पलभा और सांची की अलग-अलग एंगल से फोटो लीं, जिसमें सांची का चेहरा साफ नज़र आ रहा था और पलभा का साइड फेस। हितेन वहाँ से चला गया।


    सांची गुस्से में पलभा को दूर करके बोली, "दिमाग खराब है आपका! खुद मरती, मुझे भी साथ घसीट कर ले जाती... लगा होगा यह तो ऐसे जाएगा नहीं..."


    पलभा रो रही थी। हिम्मत करके भाग आई थी, लेकिन उसके हाथ-पैर कंपित हो रहे थे। पलभा ने पीछे देखा; हितेन की गाड़ी दूर जाती हुई दिखाई दे रही थी। पलभा सांची के डांटने पर होश में आई तो ध्यान आया कि वह क्या कर चुकी है।


    सांची के सूखे बाल और मुँह बारिश में भीग चुके थे। ऊपर की ओर देखकर बोली, "हे शनिदेव! आपकी कृपा इस तरह होगी... मुझे पता ही नहीं था, वरना मैं ना आती..."


    हेलमेट बाइक पर रखकर, सांची बाइक स्टार्ट करने लगा। पलभा डरकर बोली, "प्लीज़ मेरी हेल्प करेंगे... मुझे शहर छोड़ देंगे!"


    बाइक से उतरकर, सांची ने आगे वाले टायर पर गुस्से में ठोकर मारी, लेकिन दो मिनट में गिर गया। "मम्मी!" बोलकर वह चिल्ला उठा। टायर को कुछ नहीं हुआ, लेकिन उसके अंगूठे और उंगलियों पर चोट लग गई और घुटने से पैर पकड़कर वह घूम गया।


    पलभा परेशान होकर बोली, "ऐसे करोगे तो लगेगी ही ना! दिखाइए अपना जूता खोलकर... कहीं ज़्यादा तो नहीं लगी!"


    सांची ने पैर छोड़कर अपनी पंक्चर बाइक को देखते हुए कहा, "गुड़ खिलाने से मरे तो जहर क्यों ज़रूरी है ना... इसलिए केयरिंग नेचर दिखा रही हो ना..."


    पलभा हैरान सी कमर पर हाथ लगाकर बोली, "अरे सिम्पैथी भी होती है... आप तो ऐसे टोंट मार रहे हैं जैसे आपका अकाउंट हैक कर लिया हो..."


    सांची बहस न करके बाइक लेकर चल पड़ा। पलभा अपने इग्नोर किए जाने पर चिढ़ गई, लेकिन गुस्सा भी नहीं कर सकती थी। इस सुनसान इलाके में यहां कोई नहीं था और बारिश में दोनों भीग रहे थे। पलभा सांची के पीछे-पीछे चल पड़ी।


    पलभा ने पूछा, "आप इधर कहाँ जा रहे हैं, शहर तो उधर है!"


    सांची चिढ़कर बोला, "आगे चलकर एक नरक का द्वार है! तुम दोनों को वहीं छोड़कर आ रहा हूँ। कम से कम जिधर भी जाऊँगा, चैन से तो जा सकूँगा!"


    पलभा अचंभित होकर रुक गई और आगे-पीछे देखते हुए बोली, "दोनों कौन??? मुझे तो कोई तीसरा नज़र नहीं आ रहा... मुझे तो इस शहर में रहते हुए इतने साल हो गए हैं, कहीं नहीं दिखा और ना ही किसी से सुना..."


    सांची खीझ निकालते हुए बोला, "एक तो मेरे हाथ में जो गधा गाड़ी है!... इन फैक्ट वह भी इससे अच्छी होगी और दूसरी तुम!"


    पलभा डरकर जल्दी से अपनी हील बजाते हुए भागकर सांची के पास आ गई। हवा तेज थी; बारिश में दुपट्टा भी गीला होकर चिपक गया था।


    बारिश में चलते हुए सांची हांफकर रुक गया और बोला, "तुम जैसे लोगों के लिए अभी-अभी रिक्वेस्ट करके भगवान जी से बनवाया गया है!"


    पलभा को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ रहा था। मन किया कि उसका मुँह अभी नोच ले, लेकिन क्या करे, मजबूरी में गधे को बाप बनाना पड़ता है!


    दोनों बारिश में चलते रहे। लगभग पंद्रह मिनट चलने के बाद उन्हें एक होटल दिखाई दिया। सांची उसी ओर चल पड़ा।


    होटल के बाहर बाइक खड़ी करके वह अंदर गया और अपने लिए रूम बुक करने के लिए कहा।


    पीछे खड़ी पलभा की ओर देखकर रिसेप्शनिस्ट ने पूछा, "हस्बैंड-वाइफ...? नाम बताइए... आइडेंटिटी दिखाइए..."


    सांची और पलभा एक साथ बोले, "नहीं..."


    रिसेप्शनिस्ट ने घूरकर देखा, "फिर यहाँ आपके लिए कोई जगह नहीं है! एक रूम में दोनों में से कोई एक रह सकता है!"


    सांची पलभा का हाथ पकड़कर बाहर ले आया। सांची बोला, "अब बोलो क्या करना है???"


    पलभा हाथ झटककर गुस्से में बोली, "ये क्या कर रहे हो??? हिम्मत कैसे हुई हाथ पकड़ने की..."


    सांची गुस्से में जाते हुए बोला, "बैठी रहो, मैं ऐसे नहीं रह सकता। अपनी अकड़ अपने पास संभालकर रखो! जो तुम सिम्पैथी की बात कर रही थी ना... वही थी!... ज़्यादा खुद को एंजल मत समझो..."


    पलभा ने कुछ सोचा, फिर भागकर गेट में एंटर करते हुए सांची के हाथ में हाथ डालकर बोली, "अरे आप तो नाराज़ हो गए! चलिए चलकर रिसेप्शनिस्ट से बात कीजिए, बिना आईडी के चल जाएगा क्या???"


    सांची ने पलभा का बदला हुआ रूप देखा और एक फेक स्माइल दी।


    रिसेप्शनिस्ट नाराज़गी से बोली, "अभी तो तुम कह रहे थे कि दोनों हस्बैंड-वाइफ नहीं हो और अभी हस्बैंड-वाइफ हो गए! मैं यह रिस्क नहीं ले सकती! अभी पीछे ही इस होटल पर कार्रवाई की गई है!"


    पलभा दिमाग लगाते हुए बोली, "मैम, आप गलत समझ रही हैं। हमने हस्बैंड-वाइफ के लिए मना नहीं किया था! हमारे पास आईडी नहीं है, उसके लिए मना किया था और मोबाइल दोनों के पानी में भीग चुके हैं!"


    रिसेप्शनिस्ट बोली, "फिर भी मैं यह रिस्क नहीं ले सकती..."


    सांची रिक्वेस्ट करते हुए बोला, "प्लीज़ मैम, एक कॉल कर सकता हूँ बेसिक फ़ोन से या अपना मोबाइल दे दीजिए!"


    रिसेप्शनिस्ट ने रिस्क लेते हुए फ़ोन दे दिया, लेकिन उसके सामने ही खड़े होकर बात करने को कहा। सांची को अब इनडायरेक्टली अपने दोस्त को समझाना था। वहीं दूसरी तरफ पलभा एक रूम में सांची के साथ रहने से घबरा रही थी।

    क्रमशः

  • 9. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 9

    Words: 903

    Estimated Reading Time: 6 min

    रिसेप्शनिस्ट ने जोखिम उठाते हुए सांची को फोन दे दिया, किन्तु उसे अपने सामने ही खड़े होकर बात करने को कहा। सांची को अब परोक्ष रूप से अपने दोस्त को समझाना था। वहीं दूसरी ओर, पलभा सांची के साथ एक कमरे में रहने से घबरा रही थी।

    सांची ने दीक्षांत को कॉल लगाई तो रिसेप्शनिस्ट ने उसे रिकॉर्डिंग पर करने को कहा। दोनों हिचकिचाए, लेकिन मजबूरीवश करना पड़ा। अनजान नंबर देखकर दीक्षांत का मन एक बार तो कॉल उठाने का नहीं हुआ, फिर इतनी रात में इमरजेंसी समझकर कॉल उठाई।

    दीक्षांत: "हैलो..."

    सांची (फटाफट बोलते हुए): "हैलो दीक्षांत, मैं सव्यसाची...मैं और तेरी भाभी तेरी बर्थडे पार्टी अटेंड करने के लिए आ रहे थे...बारिश में फँस गए हैं, बाइक भी पंचर हो गई है!...होटल में एक रूम चाहिए...बोल ना, हम हस्बैंड वाइफ हैं...और एड्रेस भी बता तेरा-मेरा..."

    दीक्षांत (शॉक्ड होकर): "ओ तेरी! तेरी शादी...हँअअअअ..."

    सांची (बात संभालते हुए): "मुझे पता है तू नाराज है हमारी लव मैरिज से...पार्टी नहीं दी है ना अभी तक...भाई तू जो मांगेगा वो दूंगा, लेकिन रिसेप्शनिस्ट को बोल दे कि हम दोनों पति-पत्नी हैं!"

    दीक्षांत (खीज कर): "कल सुबह ये मत बोलना कि तेरे बच्चे भी हैं...तेरी शादी का शॉक उतरेगा नहीं है..."

    सांची (समझाते हुए): "बात को समझ यार..."

    रिसेप्शनिस्ट ने फोन छीनकर स्पीकर पर कर दिया: "हेलो मिस्टर, आप बताते हैं या नहीं कि ये दोनों हस्बैंड वाइफ हैं?"

    दीक्षांत (यकायक अपने दोस्त की बात समझकर): "जी मैम, ये मेरा दोस्त है...और ये..."

    पलभा (बीच में ही): "हैलो दीक्षांत जी, मैं पलभा...विश यू वेरी हैप्पी बर्थडे..."

    दीक्षांत (कुछ पल रुककर, फिर जल्दी से): "थैंक यू भाभी...कैसे हो आप..."

    पलभा: "मैं ठीक हूँ...आई एम वेरी सॉरी...हम दोनों आ नहीं सकते आपकी बर्थडे पार्टी में...मौसम ने सब खराब कर दिया..."

    दीक्षांत (बनावटी बातें करते हुए): "कोई बात नहीं भाभी, आप कल आ जाना। अभी रेस्ट कीजिए और मैम, आपको बिलीव हो गया है तो रूम दे दीजिए!"

    रिसेप्शनिस्ट ने कॉल काटकर सांची को ग्राउंड फ्लोर के रूम की चाबी दे दी।

    सांची ने गेट खोला ही था कि पलभा बोली: "बत्ती बार..."

    सांची ने लाइट जलाकर पलभा को हैरानी से देखा: "व्हाट इज दिस?"

    पलभा (हिचकिचाहट में): "कुछ नहीं...लाइट जलाने के लिए कह रही थी!"

    पलभा अंदर आई और पंखा चलाकर अपने पहने हुए कपड़े सुखाने के लिए उसके नीचे खड़ी हो गई। सांची ने एक नज़र देखा और खिड़की की तरफ़ बढ़ गया, फिर कुछ सोचकर वॉशरूम की तरफ़ गया।

    वापस खिड़की के पास आकर बाहर देखते हुए: "अंदर जाकर चेंज कर सकती हो...बाथरोब है..."

    पलभा (अपने दुपट्टे को पंखे के नीचे लहराते हुए): "छीईईई...किसी का यूज किया हुआ हो सकता है..."

    सांची ने पलभा की नासमझी पर गर्दन हिलाकर कहा: "सेवन स्टार होटल में पहली बार आई हो?"

    पलभा (अपने काम में मग्न): "हाँ, तो..."

    सांची: "वो क्या है ना...यहाँ सब कुछ नया रखा जाता है जिसकी वसूली हमसे की जाती है..."

    पलभा (एकदम से चौंककर): "फिर तो मैं बिल्कुल यूज नहीं करूंगी...मेरे पास इतने रुपये नहीं हैं...आज जो यहाँ रुकी हूँ वो भी मजबूरी में...इसका भी अफ़सोस रहेगा..."

    हितेन की हरकत याद कर वह एकदम से चुप हो गई। चेहरे पर उदासी छा गई।

    सांची ने एक नज़र देखा: "अब यूज़ करो न करो...उसका पैसा तो देना ही पड़ेगा!"

    पलभा का मुँह खुला का खुला रह गया: "हँअअ...पर ये तो सरासर नाइंसाफी है..."

    सांची (हाथ बांधकर खड़ा होकर बाहर की ओर देखते हुए): "पहले एक बार अपनी हालत देख लो!"

    पलभा ने देखा कि उसका प्योर शिफॉन का सूट सिकुड़न से छोटा हो गया है और जोर से बोली: "हाय राम! मेरा इतना महँगा सूट खराब हो गया!"

    सांची उसके सूट के राग अलापने पर हैरत में पड़ गया और उसकी नासमझी पर एक बार फिर से गर्दन हिलाई। कुछ देर उसके सूट की महिमा सुनता रहा, फिर उसके नज़दीक आकर उसका मुँह बंद करते हुए: "चुप! एकदम चुप...अब अगर इस सूट का एक बार और नाम लिया तो..."

    पलभा (उसका हाथ हटाकर): "ये क्या बदतमीज़ी है...बाहर बीवी बोल दिया तो सच मान लिया क्या?"

    सांची (उसकी ग्रे आँखों में देखकर): "कुछ देर और इस सूट में खड़ी रही तो..." सांची रुक गया।

    पलभा (झेंपकर): "तो?"

    सांची (मुड़कर जाते हुए): "गो क्विक!"

    पलभा (एक खुद को देखा, फिर हड़बड़ाहट में अंदर जाते हुए गुस्से के साथ): "माण्हूं कुता..."

    सांची: "कुछ कहा? और हिंदी में बात करो ना..."

    पलभा (वॉशरूम की ओर जाते हुए): "हिंदी नहीं...सिंधी है ये..."

    सांची: "फिर चाहे गाली ही क्यों ना निकाल दो...कोई फर्क नहीं पड़ता..."

    पलभा (खुद में ही): "अभी वही किया है..."

    सांची ने नहीं सुना। पलभा के जाते ही वह पंखे के नीचे खड़ा हो गया...पूरे कमरे में पानी हो गया था! कमरे में घड़ी नहीं थी। इधर-उधर देखकर घड़ी की अहमियत समझते हुए सांची सोचने लगा: "ये रात कैसे कटेगी!"

    सांची कमरे से बाहर आया, रिसेप्शनिस्ट को कॉफी और कुछ खाने का ऑर्डर दिया...साथ में एक एक्स्ट्रा तौलिया और बाथरोब ले आया! वापस पंखे के नीचे खड़ा हो गया।

    पलभा रोते हुए बाहर आई...सांची ने हैरत से उसकी ओर देखा।

    क्रमशः

  • 10. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 10

    Words: 911

    Estimated Reading Time: 6 min

    सांची कमरे से बाहर आया। उसने रिसेप्शनिस्ट को कॉफी और कुछ खाने का ऑर्डर दिया। साथ ही एक अतिरिक्त तौलिया और बाथरोब भी माँगा। फिर वह पंखे के नीचे खड़ा हो गया।

    पलभा रोती हुई बाहर आई। सांची ने हैरानी से उसकी ओर देखा।

    "अब क्या हुआ?" सांची चिढ़कर बोला।

    "मेरा सूट फट गया... इतना महँगा था..." पलभा ने आँसू पोंछते हुए कहा।

    "हाँ, पता है। कानपुर से लाई थी, अपनी पॉकेट मनी बचाकर... पूरे कानपुर के मार्केट में आखिरी दुकान से..." सांची ने उसकी बात काटते हुए कहा।

    "तुम मज़ाक उड़ा रहे हो..." पलभा रोते हुए घूरकर बोली।

    "भिखारी..." सांची ने भी घूर कर कहा।

    पलभा अचंभित हुई। बात समझने पर वह सांची को मारने दौड़ी, लेकिन फर्श पर पड़े पानी में फिसल गई। गिरती हुई पलभा को देखकर भी सांची ने पहले तो मदद करने से मना कर दिया। उसने मन ही मन सोच लिया था कि मदद नहीं करेगा। लेकिन सब इतनी जल्दी हुआ कि सोचते ही उसने मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया।

    सांची ने कमर में हाथ डालकर उसे सीधा किया। पलभा की घबराहट से उसकी आँखें बंद हो गईं। सांची ने गौर से देखा; पलभा की आँखें बंद थीं। उसने अपने सीने से अपनी गीली शर्ट कसकर पकड़ रखी थी। उसके लम्बे नाखून सीने पर चुभ रहे थे। उसके गीले, बिखरे बाल, पतले गुलाबी होंठ जो बारिश में गीले होकर और भी गुलाबी हो गए थे, तराशकर बनाई गई मीन जैसी आँखें, बारिश में भीगने के बाद खिली कली सी लग रही थीं। चेहरे से मासूम दिखती पलभा साँसों की लय को ठीक कर रही थी, धड़कनों को संयमित करते हुए पलभा एक मिनट तक आँखें बंद किए खड़ी रही।

    अगर मौसम की बेईमानी और पलभा की सुंदरता उसे होश खोने पर मजबूर कर रही थी।

    डोर पर खड़े वेटर ने नॉक किया तो सांची होश में आया और पलभा ने आँखें खोलीं। खुद को इतने करीब पाकर पलभा बिजली के झटके से अलग हुई।

    "क्या साहब जी, गेट बंद कर लेते..." वेटर ट्रे अंदर लाते हुए बोला।

    दोनों एक-दूसरे से दूर हो गए। वेटर कॉफी और सैंडविच देकर चला गया। सांची ने गेट बंद किया। पलभा को कॉफी और सैंडविच देखकर भूख का एहसास हुआ। पलभा ट्रे की ओर बढ़ी।

    सांची ने पलभा की हिल्स को हटाया जिस पर पलभा गिरने से बची थी। वरना वह पीछे गिरकर चोटिल हो जाती। सांची ने छेड़ते हुए कहा, "रुको... इसका चार्ज लगेगा..."

    पलभा रुक गई। सांची वॉशरूम की ओर जाते हुए खुद से ही गर्दन हिलाकर बोला, "बेवकूफ लड़की।"

    सांची ने गेट बंद करते हुए कहा, "चलो खा लो, तुम भी क्या याद रखोगी, मेरे दोस्त की बर्थडे पार्टी समझकर ही खा लो।"

    "तुम्हारा एहसान नहीं चाहिए, मैं पे कर दूँगी।" पलभा ने गेट को घूरते हुए कहा।

    पलभा खाते हुए ध्यान आया तो उसने गेट बंद करके सव्यसाची पर चिल्लाया, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई... मुझे इस तरह पकड़ने की..."

    सांची हँसकर जोर से बोला, "अपनी पत्नी को पकड़ा था, किसी गैर को नहीं।"

    पलभा चिढ़कर सिन्धी में बोली, "हीउ हद हूशियार छोक्रो आहे..." (लड़का बड़ा ही होशियार है!)

    सांची ने अंदर ही अंदर मस्ती में कहा, "क्या बोल रही हो? मुझे भी तो समझाओ।"

    "भर-भर के गालियाँ निकाल रही हूँ!" पलभा चिढ़कर बोली।

    सांची जोर से हँसा। उसकी चिढ़ और बढ़ गई।

    पलभा ने फटाफट कॉफी और सैंडविच खा लिया और बेड पर कंबल ओढ़कर फैलकर लेट गई, जैसे कोई दूसरा न सो सके।

    सांची बाहर आया तो पलभा को फैलकर कंबल से मुँह ढँककर सोते हुए पाया। वह मुस्कुरा उठा और फटाफट कॉफी की ओर बढ़ा। मौसम में ठंडक आ गई थी।

    सांची पूरी रात नहीं सो सका था। उसकी आँखों के सामने पलभा घूम रही थी। उसका यूँ करीब आना सांची की धड़कनें बढ़ा रहा था। अगर वह वेटर न आता तो शायद वह उसे चूम लेता। उसने भगवान को धन्यवाद दिया कि उसने उसे गलती करने से बचा लिया और पलभा के सामने वह गलत साबित नहीं हुआ।

    सुबह देर तक उसकी आँख खुली रही। समय का पता नहीं था। वह बाहर आया तो मौसम साफ था। उसने रिसेप्शनिस्ट से फ़ोन पर बात करने का अनुरोध किया। दीक्षांत को कॉल कर होटल आने और साथ में दोनों के लिए कपड़े लाने के लिए कहा। सांची आने लगा तो रिसेप्शनिस्ट ने पलभा का पर्स दिया, कि कोई देकर गया है।

    सांची को हैरानी हुई कि पलभा का पर्स इस तरह कौन दे गया। सांची ने पूछा भी कि उसे कैसे पता चला कि यह बैग उसका है। रिसेप्शनिस्ट ने उसी के सवाल में फँसा दिया कि अपनी पत्नी का पर्स नहीं पहचानता? वह टाल-मटोल करके वहाँ से आ तो गया, लेकिन शक अपनी जगह था।

    सांची ने पर्स चेक किया तो पलभा की अपनी माँ-बाप के साथ फ़ोटो, दो हज़ार रुपये और मोबाइल मिला। उसने उसे वैसे ही रख दिया।

    सांची ने पानी से भरे हाथ से पलभा के मुँह पर छिड़का। हड़बड़ी में वह उठ बैठी। "बारिश... फिर से बारिश..."

    "महारानी! उठ जाइए।" सांची चिढ़कर बोला।

    "एक दास को अपनी सीमा में रहना चाहिए। इस तरह महारानी को परेशान नहीं करते।" पलभा ने उसी लहजे में कहा।

    सांची ने उसकी बात का मज़ाक उड़ाया, "सीमा मिलने तो दो... फिर सीमा में ही रहेंगे..."

    पलभा मन ही मन चिढ़ गई, "बांदरू..." (बंदर)

    सांची बाहर आकर दीक्षांत का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर में दीक्षांत सामान लेकर आया। वह सांची को देखकर हैरान था, लेकिन वहाँ कुछ कहना सही नहीं समझा। वह रिसेप्शन पर खड़ा होकर इंतज़ार करने लगा। आज रविवार था, मतलब ऑफिस की छुट्टी।

    क्रमशः

  • 11. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 11

    Words: 814

    Estimated Reading Time: 5 min

    सांची बाहर आकर दीक्षांत का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर में दीक्षांत सामान लेकर आया। वह सांची को देखकर हैरान था, लेकिन वहाँ कुछ कहना सही नहीं समझा और पेमेंट करके रिसेप्शन पर खड़ा हो गया, उन दोनों के इंतज़ार में। आज रविवार था, मतलब ऑफिस की छुट्टी!

    पलभा ने अपना पर्स देखकर खुशी हुई और घर बात करने के लिए फोन निकाला, तो बैटरी डेड थी। इतने में सांची ने ड्रेस दे दी और खुद किसी दूसरे कमरे में बदलने चला गया। उसे भी घर जाने की जल्दी थी। दिन के ग्यारह बजने को थे। सब इंतज़ार कर रहे होंगे और फोन भी बेहोश हो गया था।

    सांची और पलभा बाहर आए तो दीक्षांत उन्हें ही देख रहा था। पलभा ने एक साइड ब्रॉच लगाकर दुपट्टा सेट किया हुआ था। सांची ने उसे चलने का इशारा किया। वह गाड़ी में आकर बैठ गई। तभी उसे आवाज़ सुनकर हैरानी हुई।

    "हाय पलभा..."

    पीछे बैठी पलभा चौंकी और मन में सोची, "ये कैसे जानता है?" वह हैरानी से देखने लगी।

    दीक्षांत पलभा की तरफ़ गर्दन घुमाकर बोला, "आई एम दीक्षांत।"

    पलभा सवालिया नज़रों से देखते हुए होठों पर बुदबुदाई, "दीक्षांत?"

    दीक्षांत अपना पूरा परिचय देते हुए बोला, "सांची का दोस्त...कल रात फ़ोन पर आपने बर्थडे विश किया था।"

    पलभा ने याद करके कहा, "ओह...सॉरी...मिले नहीं हैं ना..."

    सांची ने दीक्षांत की गाड़ी की तरफ़ इशारा करते हुए सीधे बाहर देखते हुए पलभा से पूछा, "घर का एड्रेस?"

    पलभा ने दीक्षांत को घर का एड्रेस दिया। सांची हैरत से एकदम पीछे देखा, फिर आगे देखने लगा। दीक्षांत ने धरा की एफ़एम की रिकॉर्डिंग चला दी।

    जाने कब रात होगी
    तुमसे जाने कब बात होगी
    हर उजाले के बाद रात होगी
    इन तन्हाइयों में भी कोई बात होगी...
    जिन पलों में होती है गुफ्तगू
    उनमें मिलते हैं खुद से
    खालीपन बांटते हैं खुद के साथ
    जाने वह कब मुलाकात होगी
    ख्वाबों की बरसात होगी...
    फिर कोई नया ख्वाब आएगा
    बहा ले जाएगा अपनी दुनिया में
    अपरिचित दुनिया में कोई अपना सा
    जाने कब उससे बात होगी
    जाने कब रात होगी...(कुसुम)

    पलभा अचंभित हुई और उसके साथ ही खांसी उठ गई। सांची ने पानी की बोतल दी। पानी पीकर पलभा ने कहा, "इसे बंद कीजिए।"

    सांची स्तब्ध होकर बोला, "क्यों? वॉइस कितनी स्वीट है।"

    पलभा मना करते हुए बोली, "मुझे ये सब नहीं पसंद है।"

    सांची ने तीखा जवाब दिया, "गाड़ी के मालिक को जब पसंद है, तुम्हें ऑब्जेक्शन नहीं होना चाहिए।"

    पलभा उनको गौर से देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा उठी। सांची उसके हर शब्द के साथ लिप-सिंक कर रहा था, जैसे रटा हुआ हो। फिर उसने इग्नोर करते हुए बाहर देखने लगी। उसे भूख भी लग आई थी। अब तो बस इस बात का इंतज़ार था कि वह कब घर पहुँचे और कुछ खाए। फिर मम्मी-पापा को हितेन की करतूत भी बतानी है।

    "तु किथे आहीं???" (तु कहाँ थी???) एक लड़की ने पलभा से गाड़ी से उतरते ही सवाल कर दिया।

    "मां पराब्लम आहे...पण मा पिउ किथे..." पलभा ने उसे लड़की को परेशान देखकर जवाब दिया।

    लड़की परेशान सी बोली, "धर्मशाला...तु इनके साथ वहीं चली जा, आज हितेन भी आया हुआ है, बहुत गुस्से में लग रहा है और बहस कर रहा था। अपने कुछ बड़े आदमी भी लाया था।"

    लड़की ने जल्दी में बात बता दी। गाड़ी बैक करते हुए, पलभा ने दीक्षांत को धर्मशाला छोड़ने के लिए कहा। तो सांची ने मुँह बनाया और मना करने लगा, लेकिन उससे पहले दीक्षांत ने हाँ कर दी।

    सांची ने चिढ़कर कहा, "आपसे उम्मीद है कि अब पीछा छोड़ देगी।"

    पलभा हैरत और खीज से बोली, "मुझे भी शौक नहीं है, लेकिन..."

    पलभा बोलते हुए बीच में रुक गई, फिर बात का रुख मोड़कर बोली, "आपको परेशान करने में मज़ा आता है...इसलिए पीछे पड़ी हूँ।"

    गाड़ी कुछ देर में धर्मशाला के आगे रुकी। तभी दो आदमी आवाज़ लगाकर बोले, "भैया देखो आ गई है, अपने यार के साथ..."

    पलभा जैसे ही गाड़ी में से उतरी, तो उसे घरवालों के साथ कुछ दूसरे लोगों ने घेर लिया। पलभा हैरानी से देखने लगी। तभी दो आदमी आए और सांची को भी आने के लिए कहा। दीक्षांत को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह सब असमंजस में देख रहा था।

    हितेन गुस्से में सांची से बोला, "ओये, गाड़ी से बाहर निकल, तू ही है ना जिसके साथ होटल में रुकी थी।"

    वह उनकी तरफ़ आकर खड़ा हो गया। दीक्षांत और सांची दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे। गाड़ी का दरवाज़ा खोलते ही हितेन सांची पर हाथ उठा दिया और हाथ पकड़कर खींचकर ले जाने लगा।

    पलभा हितेन की हरकत से स्तब्ध रह गई। दीक्षांत को कुछ समझ नहीं आया, तो उसने मधुसूदन को कॉल कर धर्मशाला आने के लिए कहा। सांची हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, जबकि हितेन के साथी उसे घेर रखे थे। वह चाहता तो हितेन को...

    क्रमशः

  • 12. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 12

    Words: 967

    Estimated Reading Time: 6 min

    पलभा स्तब्ध रह गई। दीक्षांत को कुछ समझ न आया, तो उसने मधुसूदन को कॉल कर धर्मशाला आने के लिए कहा। सांची हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, जबकि हितेन के साथी उसे घेर रखे थे।

    दीक्षांत बीच में आकर सांची को छोड़ने के लिए कहा।

    "अरे हम चल रहे हैं.....आप इसका हाथ छोड़िए!" दीक्षांत ने कहा।

    हितेन ने दीक्षांत को धक्का दिया। वह गिरा नहीं, संभल गया था। उसी वक्त सांची ने हितेन को मुक्का मार दिया। हितेन का जबड़ा हिल गया। उसके साथी उसकी ओर बढ़े, तो सुलह के लिए आए लोगों ने बीच-बचाव किया और सबको अंदर ले आए। वहाँ का माहौल देख पलभा डर गई।

    पलभा अंदर आई तो उसके माँ-बाप अपने परिवार वालों के साथ एक तरफ खड़े थे। पलभा उनकी ओर आ गई।

    हितेन सबके सामने सांची को इशारा करते हुए बोला, "अच्छे से देख लीजिए, यही है ना वो लड़का....."

    सांची, पलभा और दीक्षांत हैरान खड़े थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है।

    सांची ने जेब में हाथ डालकर पूछा, "कोई बताएगा कि यहाँ क्यों लाया गया है....."

    पलभा के चाचा ने कुछ फ़ोटो उसके आगे रख दीं। जिन्हें देखकर सांची और दीक्षांत के चेहरे के भाव बदल गए।

    दूसरी तरफ, पलभा की माँ हेमा सख्ती से बोलीं, "पलभा कल हितेन के साथ गई थी ना, तो अब क्यों और कहाँ से आ रही है!....."

    "अम्मा ये हितेन अच्छा नहीं है.....कल रात इसने..." पलभा ने कहा।

    "जबरदस्ती करने की कोशिश की....होटल ले जा रहा था!......इसका चक्कर चल रहा है....." हेमा ने कहा।

    "हाँ....अम्मा....." पलभा ने कहा।

    हेमा ने एक जोरदार चाँटा उसके गाल पर मारा। पूरे माहौल में सन्नाटा छा गया। पलभा सदमे में थी।

    हेमा ने दूसरे गाल पर भी थप्पड़ मारते हुए रोते हुए कहा, "हितेन से शादी नहीं करनी थी तो हमसे कहती। इस तरह इज़्ज़त उछालकर क्या मिला....."

    "अम्मा ऐसा क्या किया है मैंने....." पलभा रोते हुए बोली।

    पलभा की कज़िन ने उसे फ़ोटो दिखाते हुए कहा, "देखो कारनामे....अपने, कह दो गलत है.......

    पलभा हैरत से फ़ोटो देख रही थी। जिसमें वो हितेन से बचने के लिए बारिश में सांची के गले लगी हुई थी। दूसरी फ़ोटो होटल के बाहर की थी जिसमें उसने सांची के हाथ में हाथ डाला हुआ था। तीसरी फ़ोटो रूम के अंदर की थी जब सांची ने उसे गिरने से बचाने के लिए अपने करीब खींचा था।

    पलभा ने सांची की तरफ देखा। दोनों सदमे में थे। पलभा एकदम से बोली, "अम्मा ये सच नहीं है....वो बस....."

    हितेन के जबड़े में दर्द था, फिर भी उसने जोर से कहा, "आप सभी रुकिए....मैं अभी भी गलत हूँ ना......"

    हितेन ने सांची से उसका नाम पूछा और कॉल लगाकर बोला, "हैलो....होटल अंबर से बोल रहे हैं.......

    दीक्षांत सदमे में सांची को देख रहा था, जबकि सांची ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया था।

    "यस सर, आपकी क्या हेल्प कर सकती हूँ?" रिसेप्शनिस्ट ने कहा।

    "कल रात तेज बारिश में भीगते हुए आए थे होटल में....पलभा और सव्यसाची......नाम है उनका..." हितेन ने कहा।

    दो मिनट बाद रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "हाँ, दोनों हसबैंड वाइफ! बड़ा ही क्यूट कपल है.......हाँ, उनकी बाइक यहीं खड़ी है अभी तक........कुछ देर पहले ही गए हैं......"

    हितेन के फेंके जाल में पलभा फँस चुकी थी। हितेन किसी के आने का इंतज़ार कर रहा था। सब पलभा को नफ़रत भरी निगाहों से देख रहे थे।

    "अम्मा जो दिख रहा है वैसा कुछ नहीं है!" पलभा अपनी माँ के गले लगकर बोली।

    "सब गलत है, लेकिन वो होटल वाली गलत है....." हेमा ने उसे दूर करते हुए कहा।

    "नहीं....पर अम्मा मेरी बात तो सुन....." पलभा ने कहा।

    "इतना सब कुछ देखने-सुनने के बाद भी कुछ बाकी रह गया क्या?" पलभा के परिवार की औरतें बोलीं।

    पलभा अपनी सुनवाई न होते देख अपने पिता की ओर गई। "पापा मेरी बात एक बार सुन लीजिए!......"

    "क्या सुनाओगी....अपनी प्रेम कथा क्या......" हितेन ने दर्द सहते हुए कहा।

    आँखों में आँसू लिए पलभा गुस्से और दर्द से चीख पड़ी, "बस करो.....अपने कैरेक्टर को छुपाने के लिए ऐसा किया ना.....इतने बड़े फरेबी.......तुम गए नहीं थे वहाँ से......खुद की करतूत को ढकने के लिए मेरे खिलाफ़ साज़िश कर रहे थे!......वहीं आस-पास रहकर जासूसी कर रहे थे....."

    "तुम खुद कैरेक्टरलेस हो....समझी....यहाँ तो एक ही है.....बाहर रहकर क्या-कुछ न किया होगा!" हितेन ने कहा।

    सांची कितनी देर से सब सुन रहा था! पलभा के पास आकर उसने उसका ब्रोच निकालकर अपने अंगूठे को चीर कर पलभा की मांग में सिंदूर भर दिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि सब अचंभित रह गए।

    वह हितेन के सामने खड़ा होकर बोला, "वो लड़की इतनी देर से सफ़ाई दे रही है, नहीं सुन रहा था...."

    चारों तरफ़ देखकर उसने कहा, "आप सब भी अंधे हो गए.....है ना....अब बोलकर दिखाओ....जिसे जो पूछना है.....जवाब मैं दूँगा......"

    पलभा खड़ी सदमे में रो रही थी।

    हितेन ने उंगली दिखाते हुए कहा, "मुझे तो पहले से ही शक था इसके कैरेक्टर पर......जिसने अपने माँ-बाप को धोखे में रखा...अच्छा हुआ कि पता चल गया इस कैरेक्टरलेस लड़की का....."

    हितेन के दूसरे गाल पर मुक्का आया, तो वह कराह उठा। "कहा था ना ज़बान संभालकर बोलना....." कहकर उसी गाल पर एक मुक्का और मार दिया। हितेन के मुँह से खून की धार बह चली। उसके साथ आए लोग उसे फ़टाफ़ट वहाँ से ले गए।

    "हम ब्राह्मण हैं......" पलभा के परिवार वाले बोले।

    सांची ने बात काटते हुए कहा, "आप सिंधी में हो, मैं हिंदी में हूँ!"

    "उस बाहर वाले ने जो दिखाया....सब सच...लेकिन इसके आँसू नहीं दिखे....अरे नकली...असली....कुछ तो पता चलता है......लेकिन नहीं.....वो इंसानों को पता चलते हैं, आपसे उम्मीद बेकार है......" सांची ने कहा।

    सांची चुप हुआ तो उसके कंधे पर मधुसूदन का हाथ आया। मधुसूदन अपने बेटे की सोच-समझ पर इतराए। मधुसूदन को देखकर गोवर्धन हैरान हुए। कुछ मिनट देखकर उन्हें तकलीफ़ हुई और उन्होंने सीने पर हाथ रख लिया।

    क्रमशः

  • 13. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 13

    Words: 825

    Estimated Reading Time: 5 min

    सांची के चुप होने पर मधुसूदन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। मधुसूदन अपने बेटे की समझदारी पर इतराए। गोवर्धन मधुसूदन को देखकर हैरान हुए; कुछ मिनट देखने के बाद उन्हें तकलीफ हुई और उन्होंने सीने पर हाथ रख लिया, जैसे सदमा लगा हो।

    गोवर्धन देखते-देखते एक तरफ़ गिर पड़े और वहाँ खड़े लोगों ने उन्हें घेर लिया। पलभा रोते हुए चीखते हुए उनकी ओर भागने लगी, तो सांची ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया।

    पलभा अचंभित खड़ी अपने और सांची के हाथ को देख रही थी। सांची ने ना में गर्दन हिलाई और उसका हाथ पकड़कर बाहर ले जाने लगा, लेकिन वह अपने पिता के पास जाने की जिद में थी।

    पलभा रोते हुए सांची से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, "मेरा हाथ छोड़ो...वो पापा...मुझे पापा से मिलना है... मेरे पापा को कुछ हुआ है, बात समझो।"

    सांची ने पलभा का हाथ छोड़कर कहा, "याद रखना, तुम्हें वहाँ कोई तुम्हें नज़दीक नहीं जाने देगा।"

    पलभा सांची की बात सुनकर रुक गई। मधुसूदन के कहने पर सांची आगे चला गया। दीक्षांत पलभा के पास आकर बोला, "भाभी, चलिए।"

    भरी आँखों से पलभा ने दीक्षांत को हैरत से देखा। दीक्षांत ने कहा, "भाभी, मैं आपके पापा का ध्यान रखूँगा और शाम तक आपको मिलवाने ले आऊँगा। अभी चलो, माहौल और बिगड़ जाएगा।"

    दीक्षांत के समझाने पर पलभा उसके साथ चल दी। मधुसूदन घर की तरफ़ निकल गए, जबकि सांची बाहर खड़ा इंतज़ार कर रहा था। दीक्षांत ने पलभा के लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोला, जबकि सांची पहले ही बैठ चुका था।

    पलभा पीछे बैठी रो रही थी और मुड़कर पीछे देख रही थी, इस आस में कि कोई उसे रोकने आएगा। दीक्षांत और सांची ने बैक मिरर से पलभा को देखा, मगर कुछ नहीं कहा।

    अचानक गाड़ी रुकी, तो पलभा को होश आया। अभी तक उसका रोना बंद नहीं हुआ था। वह हैरत से इधर-उधर देखने लगी कि यह शहर का कौन सा हिस्सा था?

    दीक्षांत पीछे मुड़कर देखते हुए बोला, "भाभी, घर आ गए हैं?"

    पलभा अभी भी हैरान थी। सांची की माँ नीतू बाहर आकर पलभा को अंदर ले गई। परेशानी उनके चेहरे पर भी साफ़ झलक रही थी। सांची दीक्षांत के साथ काम का बहाना बनाकर ऑफिस आ गया।

    बैचैनी में चक्कर काटते हुए सांची से दीक्षांत बोला, "अब क्या हुआ? बता ना, क्यों इतना बेचैन है?"

    सांची उसके पास टेबल के सहारे खड़ा होकर बोला, "हितेन उसके चरित्र पर सवाल उठा रहा था। कहीं सच में..."

    दीक्षांत बीच में बात काटकर बोला, "मुझे ये हितेन ही गड़बड़ लगा। सोच जरा, कमरे में तुम दोनों नज़दीक आए, वो उसकी पिक...तुझे नहीं लगा ये उसकी जासूसी करवा रहा था? उसने मेन रोड पर पिक ले ली, ये बात समझ आ रही है, लेकिन रूम में प्राइवेसी होती है। कोई आएगा तो दरवाज़ा खटखटाकर आएगा, या फिर सोच, रूम में स्पाई कैमरा हो, कोई आया हो जब तुम करीब हो, जरा दिमाग पर ज़ोर डालकर सोच।"

    सांची सोचकर बोला, "हाँ...वेटर...लेकिन नज़दीक नहीं आया वो तो पलभा गिरने वाली थी, बस उसी चक्कर में...मेरा मन नहीं था...लेकिन बेढंगे तरीके से पड़ी हील उसकी पीठ में लगी, तब हेल्प की और ये सब हो गया।"

    दीक्षांत चाबी उठाकर आगे चलते हुए बोला, "चल, होटल...जल्दी कहीं वो निकल जाए।"

    सांची भी उसके पीछे चल दिया।

    पलभा को शुभिका के साथ भेजकर नीतू ने मधुसूदन से धीरे से कहा, "आप ऐसे ही किसी लड़की को उठाकर ले आए और घर की बहू बना दिया है।"

    मधुसूदन अपने कमरे में जाते हुए बोले, "ऐसे ही नहीं है, वो लड़की गोवर्धन की बेटी है।"

    नीतू फटी आँखों से देखते हुए बोली, "हँअ...ये उस अहंकारी की लड़की है। आपको पता है ना वो अड़ियल आदमी, जिसे सांची के ऑफिस के लिए आपने जमीन के लिए दुगुनी रकम पेश की, फिर भी नहीं माना था, भगवान ऐसा पड़ोसी किसी को न दे।"

    मधुसूदन नाराज़गी से बोले, "नीतू...उसकी तबियत ठीक नहीं है, जैसे मुझे देखकर उसे सदमा लगा है। मैं जैसे सोच रहा हूँ, वैसे ही गलतफ़हमी न हो जाए।"

    नीतू कुछ सोचकर बोली, "आप इसका उल्टा सोचकर देखिए। कहीं उसने अपनी बेटी को मोहरा बनाया हो।"

    मधुसूदन मुड़कर बोले, "जिस तरह ये लड़की अपने परिवार और रिश्तेदारों के सामने सफ़ाई दे रही थी, उससे लगा नहीं।"

    नीतू मुँह बनाकर किचन में जाते हुए बोली, "सब आपको सही लगते हैं, दुनिया बड़ी तेज है।"

    मधुसूदन हँसकर बोले, "सब पत्नियों की यही समस्या है, उनका पति उन्हें बुद्धू लगता है।"

    नीतू कुछ नहीं बोली और चाय बनाने लगी।

    "हाय, मैं शुभिका...और तुम...", शुभिका ने पानी का गिलास पलभा की ओर बढ़ाते हुए कहा।

    पलभा सोफ़े पर सिकुड़ी सी बैठी थी। उसके दिमाग में वही सब घूम रहा था और रह-रह कर आँखों से आँसू बह रहे थे।

    शुभिका ने दोबारा आवाज़ लगाई। पलभा होश में आई और आँसू साफ़ करके शुभिका को देखा। शुभिका ने पानी लेने का इशारा किया। पलभा ने पानी पीकर गिलास साइड टेबल पर रख दिया।

    सांची और दीक्षांत वहाँ पहुँचे तब तक वेटर गायब था। सब ने वेटर का नाम और लिस्ट चेक की, लेकिन उनमें से कोई नहीं था। दीक्षांत और सांची दोनों ही हैरान थे।

    क्रमशः

  • 14. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 14

    Words: 756

    Estimated Reading Time: 5 min

    सांची और दीक्षांत के पहुँचने पर वेटर गायब था। उन्होंने वेटरों की पूरी सूची जाँच की, पर कोई नहीं मिला। दीक्षांत और सांची दोनों हैरान थे।

    उन्होंने देखा कि सीसीटीवी फुटेज भी गायब थी। सांची ने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, "पुलिस की मदद लें?"

    सांची सोचते हुए बोला, "सोच रहा हूँ, पहले घर पर बात कर लूँ।"

    तभी सांची का फ़ोन बज उठा। घर से आये कॉल को देखकर उसने बात की और जल्दी ही दीक्षांत को घर चलने को कहा। दीक्षांत सांची को घर के बाहर छोड़कर चला गया, सांची ने उसे घर आने को कहा, पर वो अस्पताल जाकर पलभा के पिता का हालचाल जानने चला गया।

    हितेन अस्पताल में बेड रेस्ट पर था। उसके सामने खड़ा एक आदमी गुस्से में बोला, "मन तो कर रहा है उस लड़के का अधूरा काम पूरा कर दूँ। तेरा जबड़ा निकालकर हाथ में दे दूँ।"

    हितेन बिस्तर पर लेटा अपना सिर ना में हिला रहा था। उसके साथ वाले आदमी ने पूरी बात बता दी थी।

    उस आदमी को थप्पड़ मारते हुए उसने कहा, "उसे रोका नहीं जा सकता था? या उस शादी को मानने से इनकार कर देते।"

    वह झल्लाकर बोला, "कुछ भी करके पलभा को रोका जा सकता था। (गुस्से से मुट्ठी बंद करके) आज पलभा मेरी होती, वो मेरे इतने सालों की इंतज़ार थी। तुम लोगों ने सब बर्बाद कर दिया।"

    दूसरा आदमी बोला, "बॉस.....किसी को पता ही नहीं लगने दिया कि वो लड़का इस तरह खेल जाएगा। हम आपका ही इंतज़ार कर रहे थे। हम सोचे थे कि वो लड़की को घर छोड़कर वहाँ से निकल जाएगा और धर्मशाला में आपकी एंट्री पूरा मामला शांत कर देगी।"

    बॉस उस पर भी चिढ़कर बोला, "तुम खुद को होशियार समझते थे ना?"

    वह आदमी कुछ नहीं बोला। बॉस ने चेक हितेन की तरफ फेंकते हुए कहा, "अब इस शहर में नज़र नहीं आओगे! समझे.......मैं खुद ही कुछ करता हूँ। पलभा को ऐसे किसी और का नहीं होने दूँगा।"

    बॉस आदमी की तरफ मुड़कर बोला, "तुरंत इसका सामान ले आओ और इसे यहाँ से ले जाओ।"


    सांची घर आया तो एक नया फरमान जारी था। गाँव जाकर उसे पलभा के साथ रीति-रिवाज से शादी करनी होगी। उसकी बड़ी बुआ जी आई हुई थीं। घर में कोई न कोई मंत्रणा कर रहा था और बड़ी बुआ जी वो रोल निभा रही थीं। उसका माथा ठनका, उसने सबको अनदेखा करते हुए ऊपर जाने की कोशिश की, लेकिन झिझक कर बाहर ही रुक गया। कुछ पल रुककर सोचता रहा, परन्तु उसका मन नहीं माना और पलभा से पूछने के लिए अपने कमरे में आया। वो वहाँ नहीं दिखी तो उसने शुभिका के कमरे का रुख किया।

    पलभा सोफ़े पर एक कोने में बैठी थी, रो-रोकर चेहरा बिगाड़ रखा था, आँसुओं की धार ने अपने निशान छोड़ दिए थे।

    सांची दूर से ही बोला, "पलभा...आई एम सॉरी..."

    पलभा ने अचानक सांची के बोलने पर चौंककर देखा और खड़ी हो गई। फिर कुछ सोचकर सांची के पास आकर उसकी शर्ट पकड़कर गुस्से और झुंझलाहट में बोली, "ये सब करके सच में दोषी बना दिया तुमने, कोई कुछ कह रहा था तो मैं जवाब देती ना। आज नहीं तो कल मान जाते...."

    सांची बिना हाव-भाव के बोला, "आर यू श्योर? सब सही हो जाता! नहीं, कुछ सही नहीं होता...दोगली मानसिकता के लोग ताने मारकर मरने पर मजबूर कर देते, सबको तुमने देखा ना..."

    शर्ट पकड़े पलभा सांची के सीने पर सिर रखकर फूट-फूटकर रो पड़ी। सांची उसे दूर करते हुए बोला, "पलभा...मेरी बात ध्यान से सुनो...."

    पलभा ने भीगी पलकों से देखा। सांची ने सोफ़े पर बैठने का इशारा किया।

    सांची पास बैठकर बोला, "इफ यू डोंट माइंड पलभा.....घर में दादा जी को हमारे बारे में सब पता चल गया है!.....वो चाहते हैं कि शादी रीति-रिवाज से हो!.....तुम चाहो तो...."

    पलभा भरी आँखों से बोली, "मेरे चाहने से कुछ होता तो आज यहाँ इस तरह बात नहीं कर रहे होते। अपने मम्मी-पापा के साथ होती, अब तो वैसे भी सबकी नज़र में तुम्हारी पत्नी हूँ। चाहे रीति-रिवाज का निर्वहन हो या न हो। तुम तैयारी कर सकते हो लेकिन मेंटली प्रिपेयर होने में टाइम लगेगा।"

    सांची उठकर जाते हुए बोला, "मुझे भी।"

    सांची जाते हुए मन में गिल्ट से बोला, "आई एम सॉरी धरा...."

    शाम को सात बजे दीक्षांत ने गाड़ी से निकलकर हॉर्न दिया। सांची ने ऊपर खिड़की से देखा और शुभिका के कमरे में आकर पलभा को अस्पताल चलने के लिए कहा।

    क्रमशः

  • 15. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 15

    Words: 758

    Estimated Reading Time: 5 min

    शाम को सात बजे दीक्षांत ने गाड़ी से निकल कर हार्न दिया !
    सांची ने ऊपर खिड़की से देखा और शुभिका के रूम में आकर पलभा को हॉस्पिटल चलने के लिए कहा ! पलभा यह सुन दुपट्टा सही करते हुए सांची के साथ चल दी

    नीचे शुभिका सोफे पर बैठी प्रोग्राम देख रही थी" मम्मी दूध वाला आया है....... बेचारा कब से हॉर्न बजा रहा है जाकर दूध ले लो ना..... मैं इतना तेज होरन कौन बजाता है एक बार मैं सुन रहा है ना...."

    नीतू फोन पर बिजी थी ,जब  नीतू का रिस्पांस नहीं आया तो शुभिका " अरे मम्मी ले लो ना.... आज कान फोड़कर ही रहेगा..... रोजाना तो ऐसे नहीं बजाता......."

    सांची ने उसकी नासमझी से सर हिलाया और उसके सिर पर चपत लगाकर " कार का हॉर्न है......दीक्षांत है पागल....."

    शुभिका सिर सहला कर " हां तो यह दूधवाला भी हर तीसरे दिन हॉर्न बदले रखता है ! इसमें मेरी क्या गलती....."

    पलभा वहीं खड़ी मुस्कुरा रही थी ! सांची नीतू को किचन में हॉस्पिटल जाने का बोल बाहर आ गया ! शुभिका ने पलभा को वहीं सोफे पर कॉमेडी सीरियल देखने के लिए बैठा लिया ! पलभा को अजीब लग रहा था !

    सांची किचन से सीधा मधुसूदन जी से बात कर बाहर आया और पलभा से चलने के लिए कहा तभी हॉर्न बज उठा !
    " हे भगवान ये कान फोड़ू हॉर्न.......भाई आप जाइए....." कान पर हाथ रख कर शुभिका बोली

    सांची आगे जाते हुए " जा रहा हूं ना...... "

    बाहर आ दीक्षांत से " रुक जा अब......सुन रहा है ! "

    पलभा के लिए पीछे का गेट खोल कर खुद आगे बैठने लगा !
    दीक्षांत हंसकर " तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी शादी नई-नई है !"

    सांची पलभा की ओर देखकर " शट अप......"

    सांची को लगा कि पलभा क्या सोचेगी......पलभा कुछ दूरी पर थी !

    हॉस्पिटल में दीक्षांत ने पलभा से उसके पापा का नाम पता कर रिसेप्शन पर उनके बारे में पूछताछ की ! पलभा घबराई हुई थी क्योंकि इन सब की भागीदार वही थी उसके कारण ही सब कुछ हुआ था! उसकी मम्मी की क्या हालत होगी यह सोच कर कि वह  कांप उठी !

    कुछ दूर गैलरी में आगे चलने पर दीक्षांत को उसके चाचा जी मिल गए थे ! उन्होंने पीछे पलभा को देखकर आगे जाने से रोक दिया ! पलभा की नजरे जम गई ! वह एकटक अपनी मम्मी को देखे जा रही थी जिनका रो रो कर बुरा हाल हो गया शायद वह खुद को संभालने की स्थिति में नहीं थी

    उनकी हालत देखकर पलभा अपने चाचा की बात को इग्नोर कर आगे बढ़ी !.....सांची ने उसे रोक दिया ! पलभा सांची के रोकने पर पनियाती आंखों से सांची को देख कर " मम्मी की हालत देखो !..... "

    सांची " कहीं तुम्हें देखकर हो और ज्यादा खराब ना हो जाए इसलिए बेहतर है घर चलो ! "

    पलभा दुविधा में जड़ हो  गई उसे समझ में नहीं आया वह क्या करें ! ........

    दीक्षांत नहीं उसके चाचा जी से ही गोवर्धन जी की तबीयत पूछ कर पलभा को घर चलने के लिए कहा ! पलभा जो एक पल अपने मम्मी के बिना नहीं रह पाती थी आज उसे दूर से ही देखकर तसल्ली करनी पड़ रही है !

    पलभा आंसू साफ कर के वहीं से वापस मुड़ गई ! सांची ने कुछ नहीं कहा.......परिस्थिति ही ऐसी थी कि उसे समझ में नहीं आया क्या कहे......क्या करें.......

    सांची ने दीक्षांत को अंदर आने के लिए कहा लेकिन उसने इस वक्त पलभा को संभालने का इशारा किया और चला गया ! सांची और पलभा घर पहुंचे तो सामने मधुसूदन जी मिल गए......पलभा को दुखी देख कुछ नहीं कहा और शुभिका को इशारा कर अपने रूम में ले जाने के लिए कहा !


    शुभिका पलभा को अपने रूम में ले आई और पानी का गिलास आगे कर दिया ! पलभा ने नहीं लिया तो वहीं स्टूल पर रख कर उसके पास सोफे पर बैठ गई ! 

    शुभिका ने गर्दन झुकाए रोती पलभा के कंधे पर हाथ रख दिया तो सानिध्य पाकर गले लगकर रो दी ! शुभिका को कुछ समझ नहीं आया !

    शुभिका पीठ सहला कर " भाभी सब ठीक हो जाएगा..... वक्त खराब है ना.......चुप हो जाइए......"

    पलभा रोते हुए " बस एक बार पापा को देखना चाहती थी..... बस एक बार.......मम्मी की हालत खराब है.....मैं क्या करुं ऐसा सब ठीक हो जाए......."

    शुभिका भी भावुक हो गई " थोड़ा सा इंतजार........"

    पलभा सिसकने लगी थी ! शुभिका ने उसे पानी पिलाया और शांत होने के लिए कहा ! सांची गेट पर खड़ा था लेकिन सब देख वापिस मुड़ गया !

    क्रमशः*****

  • 16. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 16

    Words: 749

    Estimated Reading Time: 5 min

    पलभा सिसकने लगी थी। शुभिका ने उसे पानी पिलाया और शांत होने के लिए कहा। सांची सांची गेट पर खड़ा था, लेकिन वह सब देखकर वापिस मुड़ गया।

    सांची कमरे में आकर बेचैन सा चक्कर काट रहा था। वह उलझन में था। उसके सपनों में कोई और थी, मगर किस्मत में किसको लिख दिया था। उसे अब बीते वक्त पर अफ़सोस हो रहा था।

    "कहाँ वो धरा को ढूँढ रहा था? और ये सब हो गया। जाने क्या होगा इस रिश्ते का? कैसे निभा पाऊँगा? या खरा नहीं उतरा तो? शायद नहीं... किंतु निभाना पड़ेगा। अब धरा को छोड़ना होगा, भूलना होगा उसकी आवाज को... सब मुझसे कैसे होगा?" खिड़की के पास खड़े सांची ने यह सोचकर आँखें बंद कर लीं।

    कुछ देर बाद शुभिका अपना और पलभा का खाना ऊपर ले आई। पलभा मना कर रही थी, लेकिन शुभिका के आगे एक न चली। रात में सोते वक्त भी शुभिका अपने बारे में बताती रही और इनही बातों के बीच बताया कि कुछ ही दिनों में भाई की कंपनी से इंटर्नशिप करने का सोचा है। शुभिका की बातों में थकी हुई पलभा सो गई।

    सांची कमरे में आकर कई देर तक खिड़की के पास खड़ा रहा और घटनाक्रम को सोचने लगा। किस तरह से क्या घट जाता है, इंसान को पता नहीं चलता। जाने जिंदगी में किस तरह के मोड़ आ जाते हैं और चाहकर भी वह नहीं कर पाते जो कभी सोचा होता है। उसका दिमाग फटने लगा था, इसलिए वह नींद की दवा लेकर सो गया।

    मधुसूदन नीतू को समझाते हुए बोले, "गोवर्धन की तबीयत पहले से ठीक है, लेकिन उसके मन में जो इमेज बनी है ना... उस हिसाब से वह हमारी किसी भी बात पर विश्वास नहीं करेगा और अब तो अपनी बेटी को भी घर में नहीं आने देगा।"

    नीतू तुनक कर कंबल फैलाते हुए बोली, "हमने ठेका ले रखा है विश्वास दिलाने का, करे तो करे ना करे तो हमारे बला से..."

    मधुसूदन चप्पल निकालकर बिस्तर पर पैर लम्बे करके बैठते हुए बोले, "तुम तो कम से कम इस लहजे में बात मत करो, समय आने पर सब ठीक हो जाएगा। अभी उस बच्ची का हाल देखो, वो ना इधर की है ना उधर की है। उसे शुभिका की तरह रखो।"

    नीतू अपना अलमारी से नाइटगाउन निकालते हुए बोली, "अभी घर में आई भी नहीं... पक्ष लेना शुरू... हमारे घर का लहजा... रीति... खान-पान सब सिखाना पड़ेगा कि नहीं... और रही बात शुभिका की, उसके चप्पल से कुटाई कर दूँ तो नहीं बोलेगी। उसकी भी कर दूँ क्या?... बहू को कहाँ कुछ कह सकते हैं। सास तो ना बोले तो भी मरी... बोले तो मरी।"

    मधुसूदन हँसकर बोले, "सच में नीतू, तुम बहस में जीतने नहीं दोगी।"

    नीतू वॉशरूम की ओर जाते हुए बोली, "माँ के सामने मत बोल देना, सबके सामने बखिया उधेड़ देगी।"

    फिर अपनी सास की नकल करते हुए बोली, "जोरू का गुलाम..."

    सुबह सांची को उठता न देख शुभिका ने ऑफिस की चाबी ली और जाने लगी, तो पलभा झिझक से बोली, "मैं भी साथ चलूँ?"

    शुभिका उसका हाथ पकड़कर स्नेह से बोली, "आप भैया के पास जाइए और जैसे ही उठे उन्हें ऑफिस भेज देना। आज मार्केट चलना है आपके लिए शॉपिंग।"

    पलभा ने हैरानी से शुभिका को देखा, फिर शुभिका के पहने हुए सूट को देखा जो कि उसके ढीला था। शुभिका हेल्दी थी।

    शुभिका हँसकर बोली, "भाभी, शादी के लिए भी शॉपिंग करनी है। मेरी ड्रेस आप पर अनफिट है।"

    पलभा ने पहले खुद को देखा, फिर पलकें झपकाईं और शुभिका के साथ सांची के कमरे में चली गई।

    शुभिका ने देखा, सब एम्प्लॉई अपने-अपने काम में लगे थे। शुभिका ने जैसे ही सांची के केबिन का गेट खोलने लगा, तभी अंदर से अपने आप ही खुल गया और सामने आते लड़के से उसकी टक्कर हो गई।

    लड़के के हाथ में कुछ दस्तावेज़ और फोटोज़ थीं जो कि केबिन के अंदर बिखर गईं। उन फोटोज़ को देखकर शुभिका बिफर पड़ी।

    "तुम ही हो ना जिसने भैया-भाभी के साथ यह गेम खेला है। आज भैया के केबिन तक पहुँच गए, तुम्हें चाहिए क्या? ब्लैकमेल करने आए हो? तुम्हें छोड़ूँगी नहीं।"

    लड़के ने जब शुभिका की बातें सुनीं, तो उसने केबिन के अंदर खींचकर फटाफट उसके मुँह पर हाथ रख दिया। शुभिका उसकी हरकत पर आँखें निकालकर डराने के लहजे में हैरानी से देखने लगी, साथ ही अपनी गर्दन भी हिलाती जा रही थी।

    लेकिन लड़के पर कोई असर नहीं हुआ और उसने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए। शुभिका भी खुद को सुरक्षित करने के लिए अपने पैर मारने लगी। लड़का इन सब हरकतों से बेअसर था।

    क्रमशः

  • 17. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 17

    Words: 746

    Estimated Reading Time: 5 min

    लेकिन लड़के पर कोई असर न हुआ और उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए। शुभिका खुद को बचाने के लिए अपने पैर मारने लगी। लड़का इन सब हरकतों से बेअसर था।

    शुभिका अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ रही थी।

    " चुप हो जा.....मेरी दादी.....सबके सामने बेइज्जती करवा कर रहेगी।" कहकर लड़के ने अपने एक पैर से उसके पैरों को कंट्रोल मे लेना चाहा तो दोनो साथ आ गिरे।

    शुभिका ये सब देख स्तब्ध हुई और लड़के के हथेली को काट लिया। लड़का बात कहे या उसे कंट्रोल करे.......उसे समझ नहीं आया, उसके काटने पर दीक्षांत ने हाथ को झटका तो शूभिका ने खुल कर सांस ली।

    शुभिका रुक-रुक कर " साले.....कु.....  "

    उस लड़के ने फिर से मुंह पर हाथ रख कर " चुप,एक शब्द और नहीं।"

    शुभिका हैरानी से देखते हुए हाथ हटाकर " मैं  इस कंपनी के ऑनर की सिस्टर हूं,तुम्हे तो मैं अभी देखती हूं।"

    "अभी क्या कर रही हो?" दीक्षांत ने ताना मारा।

    "यू चीप......"शुभिका दांत पीसकर

    " चीप मुझे कह रही हो जिस कंडीशन में है ना कोई भी देख कर कहेगा कि लड़की डोरे डाल रही है।" लड़का हल्का हंसकर

    शुभिका ऊपर से हटकर खड़ी हो " वैसे तुम चोरी करने के इरादे से आए हो ना..."

    शुभिका फोन निकालकर " अभी पुलिस को बुलाती हूं......  "

    वह लड़का फोन छीन कर " दीक्षांत नाम है मेरा....."

    शुभिका हैरानी से मुंह खोले खड़ी देखती रही फिर फाइल उठाकर मारते लगी। दीक्षांत को समझने का मौका नहीं मिला  और एक दो बार फाइल की मार पड़ी फिर भागकर टेबल के दूसरी ओर आ गया।

    " हे देवी ! किस अपराध का दंड है ये......"दीक्षांत

    शुभिका हांफ कर फाइल मेज पर रख वहीं चेयर पर बैठते हुए  " पहले नहीं बता सकते थे।"

    दीक्षांत ने दोंनो हाथों की उंगलियों को अपने बालों में फसा लिया और झल्लाकर बोला "  आई एम सॉरी... "

    शुभिका पानी लेकर पीते हुए " ऐसे सॉरी कौन बोलता है?"

    दीक्षांत घूर कर " मैं.... "

    इतना बोल कर शुभिका का फोन आगे कर दिया और अपने केबिन में चला गया। दीक्षांत अपनी चेयर पर बालों में उंगलियां फंसाये बैठा ही था कि शुभिका फिर से आ धमकी।

    दीक्षांत मन में " ये मोटी अब यहां क्यों आई है ?"

    शुभिका उंगली से इशारा कर " वो फोटोज इधर दो...... "

    दीक्षांत हैरान सा " तुम क्या करोगी ?"

    शुभिका सोच कर " आचार तो सभी बनाते हैं मैं मुरब्बा बनाऊँगी। ओके! "

    दीक्षांत ने घूरा तो शुभिका भोलेपन से बोली" क्यों अच्छा नहीं लगा ?..." 

    दीक्षांत फटकार कर " जाओ यहां से......बिना मतलब का दिमाग खराब कर रही हो।"

    इतना बोल कर दीक्षांत अपनी फाइल खोल कर बैठ गया। शुभिका हैरानी से " हंअअ......"

    दीक्षांत धमकी देकर " अब जा रही हो या नहीं....."

    शुभिका ने फिर से तर्जनी दिखाकर " तुम दे रहे हो या नहीं....."

    "वैसे तुम इस केबिन में क्या कर रही हो? भाई के दोस्त पर डोरे डालना अच्छी बात नहीं है।" दीक्षांत ने नजरें फाइल पर चली गई। वह मन ही मन हंसकर "पीछा छुड़ाने का तरीका अच्छा है।"

    "क्या बोल रहे हो और कौन देख रहा है?" शुभिका सोच में पड़ गई।

    "कोई देखे या न देखे। दुनिया उल्टा पहले सोचती है सीधा बाद में" दीक्षांत नजरें उठाकर गंभीरतापूर्वक बोला।

    "देखो तुम मुझसे फालतू की बात करके डरा रहे हो।" वैसे ही उंगली दिखाकर बोली।शुभिका घबरा रही थी मगर दीक्षांत को दिखाना नहीं चाहती थी।

    दीक्षांत शुभिका के उंगली दिखाने से चिढ़ गया और खड़ा होकर उसकी उंगली पकड़कर टेबल के आर पार होने के बावजूद करीब खींच लिया और दांत पीसकर " अबकी बार उंगली दिखाई ना तो भिंडी समझकर खाने में देर नहीं लगेगी। "

    शुभिका गोल छोटी आंखों से दीक्षांत को देखते हुए अपनी उंगली खींच ली।.उसकी करीबी से शुभिका को अजीब सा अह्सास भी हुआ साथ में उंगली में दर्द भी.....एकदम से उंगली को नचाते हुए गुस्से में घूर कर केबिन से बाहर निकल गई।

    सांची के इनोग्रेशन पर शुभिका बीमार थी इसलिए नहीं आ सकी और दीक्षांत को जानती नहीं थी।

    पलभा सांची के उठने का वेट करती कभी रूम में चक्कर लगाती....कभी फोन चलाकर टाइम पास कर रही थी.....फ्री बैठने की आदि नहीं थी......नीचे भी जाने का सोचा लेकिन नीतू के व्यवहार का सोच रुक गई ! कुछ देर बाद मधुसूदन जी सांची के रूम में आए खिड़की के पास खड़ी गुमसुम सी बाहर के दृश्य को देख रही थी।

    मधुसूदन जी सांची को सोया देखकर वापस जाने लगे फिर कुछ सोचकर पलभा के पास आए और हालचाल पूछ कर चले गए।

    क्रमशः*****

  • 18. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 18

    Words: 843

    Estimated Reading Time: 6 min

    मधुसूदन जी सांची को सोया देखकर वापस जाने लगे। वे पलभा के पास आए और हालचाल पूछकर चले गए। पलभा वहीं खड़ी रही।

    कुछ देर बाद सांची ने आँखें खोलीं, लेकिन पलकें नींद से बोझिल थीं। उसने वापस आँखें बंद कर लीं। दिमाग में आया कि आज ऑफिस जाना है। फिर उसने साइड टेबल पर रखे फोन को उठाकर समय देखा। जल्दी में उठकर कमरे से निकलते हुए कहा, "माँ, आज उठाया नहीं! दोपहर होने को है!"

    पलभा को वहाँ खड़े देखकर वह ठिठक गया। मुड़कर उसके पास आया और बोला, "पलभा, तुम यहाँ?"

    सांची की आवाज सुनकर पलभा अचानक मुड़ी और बोली, "शुभिका ऑफिस गई है। इसलिए यहाँ आ गई। आंटी की हेल्प करवा देती, लेकिन..."

    सांची ने कहा, "इट्स ओके। ज्यादा लगेगा तो सिब्बो हेल्प करवा देगी। टेंशन फ्री रहो।"

    पलभा ने कहा, "हमारे घर में काम खुद ही करते हैं ना..."

    सांची ने कहा, "नहीं, यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।"

    सांची अपनी ड्रेस लेकर वॉशरूम में घुस गया। पलभा वहीं खड़ी बाहर रेहड़ी वाले से सब्जी लेती औरतों को देखती रही। वे औरतें रेहड़ी वाले से सब्जी के मोलभाव को लेकर बहस कर रही थीं। उन्हें देखकर उसकी मम्मी और उनके साथ मोहल्ले की औरतों की याद आ गई। उसकी चाची और ताई मम्मी के साथ मिलकर रेहड़ी वाले से बहस करती थीं और जब तक दो-चार रुपये कम न कर दे तब तक उसके साथ लगे रहती थीं!

    सांची कब तैयार होकर उसके पास आया, उसे पता ही नहीं चला। और उसकी आँखें भीग गईं।

    सांची बाजू का बटन बंद करते हुए बोला, "कुछ दिन में मामला शांत हो जाएगा। मनमुटाव भी कम हो जाएँगे। तब अपने मम्मी-पापा से मिल लेना। चलो नीचे खाने के लिए।"

    पलभा उदास सी आवाज़ में बोली, "मन नहीं है।"

    सांची जाते हुए बोला, "सबके बीच नहीं तो सिब्बो यहीं दे जाएगी। भूखे रहने से कुछ नहीं होगा।"

    पलभा उसे जाता देखती रही।

    सांची ऑफिस पहुँचा तो शुभिका को देखकर हैरान हुआ। वह टेबल पर सिर रखकर सो रही थी। उसकी नासमझी पर गर्दन हिलाकर उसने हल्की तेज आवाज़ में कहा, "शुभिका... शुभिका, कांग्रेचुलेशन।"

    शुभिका हड़बड़ाहट में इधर-उधर देखते हुए बोली, "क्या हुआ... क्या हुआ?"

    सांची साइड में पड़ी एक फाइल उठाकर बोला, "तुम्हारी लगन और मेहनत से एस.एस. कंपनी ऊँचाई पर पहुँच गई है।"

    शुभिका सांची को घूरते हुए बोली, "हाँ तो कांग्रेचुलेशन।"

    सांची ने कहा, "सीट छोड़। बेचारी चेयर।"

    शुभिका को पता था कि वह उसके मोटे होने पर बोल रहा है।

    "इतनी भी नाजुक नहीं है। मेरे जैसी दो बैठ जाएँ तो भी सही-सलामत रहेगी!" शुभिका खड़ी होकर बोली।

    सांची ने कहा, "घर जा। माँ मार्केट जाने के लिए कह रही थी।"

    शुभिका वहाँ से निकल गई। बीच में दीक्षांत का केबिन देखकर उसके दिल-दिमाग में एक फोटो आई। उसने झाँककर उसके केबिन में देखा, कोई नहीं था। फटाफट अंदर आकर उसने ड्रॉवर में फोटो देखने लगी। उसे बस बारिश वाली फोटो लेनी थी। ड्रॉवर में ऊपर ही फोटो मिल गई। पहले तो उसने अपने पर्स में डालने का सोचा, लेकिन नहीं। फिर कुछ सोचकर उसने बारिश वाली फोटो को अपनी गैलरी में सेव कर लिया।

    शुभिका खड़ी फोटो देख रही थी। उसकी पीठ डोर की तरफ थी ताकि किसी को पता न चले कि वह क्या कर रही है। वह गौर से फोटो देख रही थी कि तभी पीछे से उसके हाथ से फोटो छीन ली गई।

    घबराकर शुभिका ने पीछे देखा और आँखें सिकोड़कर बोली, "तुम?"

    दीक्षांत आँखें दिखाकर बोला, "तुम चोरनी।"

    शुभिका कमर पर हाथ रखकर बोली, "मेरे भाई-भाभी की फोटो है। समझे तुम?"

    दीक्षांत फोटो फोल्डर में डालते हुए बोला, "मेरे दोस्त और उसकी बीवी की है! मेरी भी भाभी है।"

    शुभिका चुपचाप जाने लगी। दीक्षांत ने मुड़कर गहरी साँस ली और कहा, "बला टली।"

    दीक्षांत अपनी चेयर पर बैठने के लिए मुड़ा। सामने शुभिका खड़ी मुस्कुरा रही थी। चोरी पकड़े जाने पर वह दूसरी तरफ देखने लगा। शुभिका ने मौके का फायदा उठाया और उसके पैर पर पैर मारकर भाग निकली।

    अचानक हुए इस हमले पर दीक्षांत ने अपना पैर पकड़ लिया और जोर से चिल्लाया, "मोटी तोड़कर रख दिया!"

    तब तक शुभिका भाग गई थी।

    रेड-ब्लैक कॉम्बिनेशन में एक ड्रेस चुनते हुए शुभिका ने कहा, "मम्मी, देखो कितनी अच्छी लग रही है। यही ड्रेस लेंगे।"

    नीतू भी एक बार उसके रूप-सौंदर्य में खो गईं। फिर संभलकर बोलीं, "नहीं, ब्लैक-ब्लू के लिए तुम्हारे दादा जी ने सख्त मना किया है।"

    शुभिका मनमाना कर रह गई, फिर खुद के लिए एक ड्रेस चुन ली। उसने ऑफ-व्हाइट और मेहरून कलर का लहंगा निकाला तो नीतू ने व्हाइट लेने से मना कर दिया।

    शुभिका चिढ़कर बोली, "मम्मी, कुछ तो नया हो..."

    नीतू ने कहा, "मार अभी खानी है या घर जाकर... उम्र भर अपनी पसंद का ही पहनना है! घिस नहीं जाओगी बड़ों के कहे अनुसार कर लोगी। अभी घर में और भी शादियाँ होंगी, तब अपनी मर्ज़ी से चलियो। समझी?"

    पलभा ने कोहनी मारकर चुप रहने का इशारा किया। शुभिका दूसरे रंग का लहंगा ड्रेस देखने लगी। पलभा को नए माहौल से घबराहट हो रही थी। तरह-तरह के विचार उसके दिमाग में डेरा डाले हुए थे।

    क्रमशः

  • 19. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 19

    Words: 778

    Estimated Reading Time: 5 min

    पलभा ने कोहनी मारकर चुप रहने का इशारा किया। शुभिका दूसरे रंग का लहंगा-चोली देखने लगी। पलभा को नए माहौल से घबराहट हो रही थी। तरह-तरह के विचार उसके दिमाग में डेरा डाले हुए थे।

    वह अपने परिवार के रीति-रिवाज जानती थी, लेकिन यहाँ तो सब कुछ अलग था! वेश नया, परिवेश नया।

    पलभा, शुभिका, नीतू और मधुसूदन के साथ गाँव आई थी। गाँव के बाहर ही एक तालाब था। पक्षी उसके किनारे बैठे पानी पी रहे थे, कुछ अठखेलियाँ खेल रहे थे। गाँव में ईंट से बनी सड़कें थीं, घरों में हरे पेड़ थे, और सबके घरों के बाहर या भीतर पशुधन बंधा हुआ था। वातावरण ही अलग था। पलभा उत्सुकतावश सब देख रही थी। सड़कों पर बच्चे खेल रहे थे।

    देखते-देखते पलभा की गाड़ी कब रुकी, उसे पता नहीं चला।

    शुभिका ने आवाज लगाई, "बिहारी, गाड़ी का सामान निकाल ले।" मधुसूदन ने भी कहा, "हाँ, निकाल ले।"

    दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए। नीतू ने अपने सर को पल्लू से ढँककर शुभिका से पलभा को सामने वाले घर में ले जाने को कहा और खुद पुराने डिजाइन के बड़े घर में चली गई।

    शुभिका पलभा को लेकर सामने वाले घर में आई तो छोटे दादाजी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। पलभा को पैर छूने के लिए कहा गया। रसोई घर से एक वृद्धा निकलकर आई।

    "आ गई शुभ? कैसी है तू?"

    शुभिका मुस्कुराकर गले में हाथ डालकर बोली, "छोटी दादी, मैं ठीक हूँ। आप बताइए?"

    दादी ने गाल पर हाथ रखकर कहा, "मैं ठीक हूँ।"

    तभी माला जपते छोटे दादा बोले, "काहे की ठीक है? शुगर बढ़ रही है। कहना मानती नहीं है।"

    शुभिका दादी से दूर होकर बोली, "छोटी दादी..."

    दादी बोलीं, "काहे का शुगर बढ़ा है? डॉक्टर को पैसे कमाने हैं। कुछ नहीं हुआ है। और क्या बात लेकर बैठ गए? नई बहू आई है। उसे देखने दो जी भर के। उसे चाय बनाकर दूँ, थकी होगी।"

    शुभिका पलभा को अंदर बरामदे में लाकर बोली, "वो रामप्यारी नहीं है क्या?"

    छोटी दादी बोलीं, "उसके यहाँ पोता हुआ है, वहीं उलझी हुई है। कल नामकरण हो जाएगा। साथ में उसकी मझली बेटी भी आ जाएगी।"

    पलभा बैठी उनकी बातें सुन रही थी। शुभिका रसोई में चाय बनाने लगी। छोटी दादी पलभा के पास आईं। पल्लू की साड़ी पहने, हल्की झुकी कमर और आँखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा पहने, पलभा को गौर से देख रही थीं। फिर गौर से देखकर चश्मा साफ करते हुए रसोई में गईं और कुछ ही सेकेंड में वापस आईं। मुट्ठी में कुछ था। पलभा के सिर के चारों तरफ फेरकर चुपचाप आंगन में जलते चूल्हे में डाल दिया।

    दादाजी आंगन में बैठे एकदम से बोले, "मिर्च का बास कर दिया घर भर में। बैठने भी देगी आराम से।"

    शुभिका चाय ले आई और बड़ी चाय की कटोरी उनके आगे रख दी। दादी चूल्हे में आग ठीक करते हुए बोलीं, "मेरी पतोहू है ही इतनी सुंदर। जिसकी भी नजर पड़ी होगी, एक बार भीतर तक जली जरूर होगी। पंडित जी, पतोहू इतनी सुंदर है कि किसी की हाय न लग जाए!"

    शुभिका चाय की बड़ी कटोरी रखते हुए बोली, "दादी, चाय ठंडी हो रही है।"

    फिर एक गिलास पलभा को देकर बोली, "एडजस्ट हो जाएगा ना? छोटी दादी के पास कप नहीं है।"

    पलभा ने गर्दन हिलाई और चाय पीने लगी। सब चाय पी ही रहे थे कि बाहर खुले गेट से अंदर एक लड़की आई।

    "शुभ, कहाँ है तू?"

    शुभिका ने चाय का गिलास साइड स्टूल पर रखकर कहा, "अंदर आजा सोना।"

    सोना भागकर बरामदे में आई और शुभिका के गले लग गई।

    शुभिका बोली, "कैसे है तू? और तेरा मियाँ? मियाँ जी की फौज? आजा, चाय पी।"

    सोना मुस्कुराकर बोली, "सब ठीक है।"

    छोटी दादी बोलीं, "चाय पीनी है?"

    "नहीं नानी, माँमी के साथ पीकर आई हूँ।" सोना पलभा को देखते हुए बोली।

    "आपकी ननद ये अकेली नहीं है, मैं भी हूँ?" सोना पलभा के पास चारपाई पर बैठते हुए बोली।

    पलभा कुछ नहीं बोली। शुभिका बोली, "भाभी, ऐसे चुप मत बैठो। अभी तीन जेठानी और एक देवरानी, अभी दो देवर एक ननद बाकी है। हमारे दादाजी का परिवार नहीं, भरापूरा खेत है!"

    कहकर शुभिका हँसी तो सोना ने भी साथ दिया। इसके साथ पलभा भी मुस्कुराई। छोटी दादी जोर से बोलीं, "ए सोना, जीजी को बोल दे, थोड़ा मीठा बना लेवे। शुभ बहू को ऊपर ले जा, कमर टूट गई होगी।"

    पलभा स्तब्ध सी शुभिका को देखकर अपनी कमर पर हाथ लगाया। इशारे में यह तो सही है!

    क्रमशः

  • 20. जाने दिल में कब से है तु - Chapter 20

    Words: 850

    Estimated Reading Time: 6 min

    पलभा स्तब्ध सी शुभिका को देखकर अपनी कमर पर हाथ रखा और इशारे में कहा, "ये तो सही है!" शुभिका और सोना दोनों हँस पड़ीं।

    "छोटी दादी आराम करने के लिए कह रही हैं!" शुभिका ने कहा।

    पलभा ने समझने वाले अंदाज में गर्दन हिलाई। सोना के गले में मंगलसूत्र, माँग टीका, सिन्दूर देखकर ही पता लग रहा था कि उसकी शादी हो गई है; पर जिस अल्हड़पन से वह बातें कर रही थी, उससे पता चल रहा था कि वह शुभिका की ही हमउम्र है।

    सोना ने उसे बड़ी नानी से मिलने को कहा। "कब से वो आपकी राह तक रही हैं!"

    शुभिका के जाने के बाद बरामदे के पीछे दो कमरे और बीच से सीधी सीढ़ियाँ थीं। ऊपर का हिस्सा भी वैसा ही बना हुआ था। पलभा कमरे में आई तो दो सिंगल बेड थे। एक टेबल बीच में, दीवार के पास रखा था, जिस पर एक लैंप था। एक तरफ आगे के बरामदे में खुलने वाली बड़ी खिड़कियाँ थीं, तो दूसरी तरफ अलमारी थी जिसमें सामान रखा हुआ था। कमरे में एक तरफ ऊपर की तरफ टाँड बनी हुई थी। प्रॉपर गाँव के हिसाब से कमरा था।

    पलभा आकर लेट गई। उसे कमर में दर्द हुआ, शायद बैठे रहने से। सोना वहीं बैठकर अपने बारे में बताने लगी कि वह साँची की तीसरे नंबर की बुआ के लड़के से विवाहित है और उसकी शादी कुछ महीने पहले ही हुई है। उसकी बातें सुनते-सुनते पलभा की आँखें नींद से बोझिल हो गईं और उसे पता नहीं चला कब आँख लग गई। सोना उसे वहीं लेटे हुए छोड़कर घर आ गई।

    पलभा को हलचल सुनाई दी तो उसने आँखें खोलीं। उसने देखा कि सभी बाहर खड़े थे और अपनी बातों में मस्त थे। पलभा घबराहट में चौंक कर उठी।

    "अरे, ऐसे क्यों उठी?" एक ने कहा।

    शुभिका की नज़रें उसे खोजने लगीं। शुभिका पीछे से खाना लेकर आई और खाने को कहा। सबके सामने खाने से उसे अटपटा लग रहा था। शुभिका ने उसकी भावना समझकर उसके साथ ही खाने के लिए बैठ गई। पलभा ने जैसे-तैसे करके खाना खाया। शुभिका ने सबका परिचय दिया। हाथ में मेहँदी का शंकु लिए एक ने आगे आकर पलभा की उंगलियों पर मेहँदी लगाने लगी।

    सब साँची के नाम पर उसे छेड़ रही थीं और वह बदले में फीका सा मुस्कुरा रही थी। सबके जाने के बाद उसने अपने हाथ पर लगी मेहँदी को देखना शुरू किया। उसकी आँखों में आँसू झिलमिला आए। शुभिका ने जब देखा तो उसका भी मन भावुक हो गया। कौन बेटी नहीं चाहेगी कि उसके माता-पिता उसकी शादी में शामिल हों और अपनी राजकुमारी को दुल्हन बनता देखें? एक खास दिन जो एक लड़की के लिए महत्वपूर्ण होता है, उतना ही उसके माता-पिता के लिए भी होता है। "मैं खुद भी उनकी तरह...नहीं...नहीं..." यह सोचकर शुभिका पलभा की ओर आई और मेहँदी चेक करने लगी। वह हल्की सूख चुकी थी।

    शुभिका ने हाथ बढ़ाकर पलभा की पलकों से आँसू अपने अंगूठों से साफ कर दिए। पलभा को शुभिका में एक अच्छी सहेली मिल गई थी। अभी तक जितना जाना था शुभिका को, ननद-भाभी वाला रिश्ता शायद ही बने। पलभा इसी रिश्ते से डरती थी। परिवार में उसने अपनी कज़िन और उसकी भाभी को लड़ते हुए देखा था। फिर वह खुद में सोचती, "क्यों छोटी-छोटी बातों के कारण लड़ते हैं?"

    यह सोच उसे अपनी किस्मत पर रश्क हो रहा था। कुछ पल शुभिका को देखती रही। शुभिका के पूछने पर पलभा ने मुस्कुराकर कहा, "यू आर एडोरेबल...क्यूट...लवेबल..."

    "बस तीन दिन तक...फिर ननद का रौब देखोगी आप...फिर आपके एक-एक काम में नुक्स निकालूंगी..." शुभिका ने कहा, मूँछों पर ताव देने की एक्टिंग करते हुए।

    पलभा हँसी तो शुभिका भी हँस पड़ी।

    सुबह सब तैयार थे। कीर्तन वालों की मंडली आ चुकी थी। पलभा और सव्यसाची के हाथों से पूजा करवाने तथा विवाह का प्रोग्राम बिना किसी विघ्न-बाधा के सम्पन्न करवाने के लिए भगवद् स्तुति का कार्यक्रम रखा गया था।

    शुभिका पीच कलर के सूट में तैयार थी, जबकि पलभा ने पर्पल कलर की सिल्क साड़ी पहनी थी, जो उसकी भाभी (बुआ के बेटे की पत्नी) ने पहनाई थी। पहली बार साड़ी पहनी थी। "कहीं गिर न जाऊँ...कहीं साड़ी खुल न जाए..."

    पलभा झिझक कर बोली, "भाभी, पिन अच्छे से लगाई है ना? कहीं मैं गिर न जाऊँ...कहीं साड़ी..."

    शुभिका हँसी, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा! मैं हूँ ना..."

    कुछ ही मिनट में सोना आई, "शुभ, जल्दी चलो...बड़े नाना जी डाँटेंगे..."

    सोना ने साड़ी पहनी थी। पलभा को देखकर बोली, "भाभी, नज़र न लगे..."

    "देवर जी पीस ही ऐसा ढूँढ़ कर लाए हैं...हाथ लगाने से मैली हो जाए..." बड़ी भाभी ने कहकर काजल का टीका लगाया।

    पलभा को सबके बीच सुनकर अजीब सा लगा। कुछ देर में बड़े घर में आकर साँची के पास गद्दे पर बैठ गई। संकल्प के लिए साँची के हाथ के नीचे अपना हाथ रखा, फिर साँची ने फिर से पलभा का हाथ पकड़ा...पलभा के हाथ में कंपन बढ़ गई।

    क्रमशः