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My Awesome

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Neha Shah

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एक नशीली रात के बाद awesome और उत्कर्ष बंध जाते हैं एक अनचाहे रिश्ते में। awesome जो एक हार्टलेस लड़की थी, जिसके अपने हीं कुछ राज और जख्म थे, वही उत्कर्ष उसका टीचर था। जो सिर्फ कुछ वक्त के लिए उसकी जिंदगी में आया था पर किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि दोनों...

Total Chapters (13)

Page 1 of 1

  • 1. My Awesome - Chapter 2

    Words: 1946

    Estimated Reading Time: 12 min

    Turkey,


    Seven Star Hotel,


     एक बड़े और अंधेरे कमरे में, एक 25 साल का लड़का सोफे पर बैठा हुआ था। उसकी काली पोशाक और हाथ में थमी गन से उसका दबदबा साफ झलक रहा था। उसके चेहरे पर गुस्से की आग थी। अपने दूसरी हाथ में पकड़ी शराब से भरी गिलास को उसने ज़मीन पर पटकते हुए गुस्से से चिल्लाया और कहा,


    "तुम दोनों से एक मामूली सा काम तक नहीं हो पाया! इतनी चालाकी से मैंने Awesome को ड्रग्स दिया था, और तुम बेवकूफों की वजह से वो मेरे हाथ से फिसल गई। तुम दोनों से कुछ पल उस पर नजर भी नहीं रखी गई”। 


    उसके सामने घुटनों के बल बैठे दो आदमी डर से पसीने में डूबे हुए थे। उनमें से एक ने कांपती आवाज़ में सफाई देने की कोशिश की, "हमने पूरी कोशिश की थी, डॉन। पर... पर एक लड़की अचानक हमारे सामने आ गई। उसके हाथ की ड्रिंक हमारे ऊपर गिर गई, और बस... बस उसी पल हमारी नजरें Awesome से हट गईं। जब तक हमने संभलने की कोशिश की, वो हवा की तरह गायब हो चुकी थी।"


    सोफे पर बैठा आदमी—जिसे सब 'कॉर्न' कहकर बुलाते थे—गुस्से से उठ खड़ा हुआ। उसकी आंखें जलती हुई अंगारों जैसी थीं। उसने बिना एक पल गंवाए अपनी गन उठाई और दोनों आदमियों पर गोलियां दाग दीं। गोली की आवाज़ के साथ कमरे में सन्नाटा पसर गया। बाकी लोग, जो दीवारों के पास खड़े थे, डर से कांपने लगे।


    कॉर्न ने अपने दांत पीसते हुए कहा, "तुम सब सुन लो! अगर Awesome मुझे वापस नहीं मिली, तो तुम सबका भी यही हाल होगा। मैंने इतनी मेहनत से उसे ड्रग्स दिया था, और तुम सबने मेरी मेहनत पर पानी फेर दिया। अब चाहे जमीन खंगालनी पड़े या आसमान, वो लड़की और उसका साथी मुझे चाहिए।"


    तभी दरवाजे से एक आदमी अंदर घबराते हुए दाखिल हुआ। उसने पसीना पोंछते हुए कहा, "कॉर्न, हमने पूरे होटल को छान मारा, पर Awesome और उसके साथ आया लड़का कहीं भी नहीं मिले। ऐसा लगता है जैसे वो दोनों होटल से जा चुके हैं।"


    कॉर्न ने एक पल के लिए उसकी तरफ घूरा, फिर अपने आदमियों को आदेश देते हुए चिल्लाया, "जाओ! शहर का कोना-कोना छान डालो। चाहे किसी की जान लेनी पड़े, पर Awesome मुझे चाहिए! अगर वो मुझे नहीं मिली, तो अगली गोली तुम सबकी होगी!"


    सभी आदमियों ने डर के मारे जल्दी-जल्दी सिर हिलाया और बिना एक पल गंवाए कमरे से बाहर निकल गए। कॉर्न ने गहरी सांस लेते हुए अपनी घड़ी पर नजर डाली। वह धीरे-धीरे बड़बड़ाया,


    “Awesome को ड्रग्स दिए हुए तीस मिनट हो चुके हैं। अब तक तो वो पूरी तरह नशे में डूब चुकी होगी। मैंने उसे जो ड्रग्स दिलवाया था, उसका इलाज सिर्फ एक है... सिर्फ एक। कहीं ऐसा न हो कि वो किसी और की हो जाए या कोई उसका गलत फायदा उठा ले। लेकिन नहीं... वो Awesome है। इतनी आसानी से किसी को खुद पर हावी नहीं होने देगी। पर वो लड़का... वो लड़का कौन था? वह उसके साथ क्या कर रहा था?”


    कॉर्न के माथे पर गुस्से और चिंता की लकीरें गहरी हो गईं। उसकी आंखों में सवाल और बेचैनी साफ झलक रही थी। सोचते-सोचते उसने दरवाजे के पास खड़े अपने सबसे भरोसेमंद आदमी, अपने सीक्रेटली बल्ला की तरफ देखा। उसकी आवाज में अब एक सख्त आदेश था।


    “Awesome के साथ जो लड़का आया था, मुझे उसकी पूरी जानकारी चाहिए। उसका नाम, उसकी पहचान, वो कहां से आया, सबकुछ।”


    बल्ला ने तुरंत सिर झुकाया और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया। कॉर्न ने उसे जाते हुए देखा और फिर अपनी जगह पर बैठते हुए खुद से बड़बड़ाने लगा,


    “कहां गई तुम, Awesome? आखिर कहां ढूंढूं तुम्हें? मैं जानता हूं, तुम इतनी आसानी से पकड़ में नहीं आओगी। पर मैं भी वो इंसान नहीं, जो हार मान ले। तुम्हें ढूंढ कर अपना बनाना ही होगा। सिर्फ तभी मैं अपना बदला पूरा कर पाऊंगा। तुम चाहे जहां भी छिपी हो, मैं तुम्हें ढूंढ निकालूंगा। ये मेरा वादा है, Awesome। तुम मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी।”


    उसकी आंखों में जुनून और पागलपन की चिंगारी जल रही थी। 




    "मैं कुछ नहीं सुनना चाहता, तुम किसी भी तरह एक डॉक्टर का इंतज़ाम करो! हम उन्हें इस तरह तड़पते हुए नहीं देख सकते। इसका कोई तो इलाज होगा, कुछ तो होगा जिससे उनके दर्द को कम किया जा सके!"


    23 साल का एक लड़का फ़ोन पर जोर-जोर से बोल रहा था। उसकी आवाज़ में जितना गुस्सा था, उतनी ही बेचैनी और बेबसी झलक रही थी।


    उसकी आंखों पर नजर का चश्मा चढ़ा था, जो उसे गंभीर लेकिन आकर्षक बनाता था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी उसकी शख्सियत को और निखार रही थी। माथे पर घने काले बाल बिखरे हुए थे। उसने गहरे रंग की शर्ट और पेंट पहन रखी थी।


    वो लड़का जितना हैंडसम था, उतना ही मासूम और प्यारा भी दिख रहा था। लेकिन इस वक्त उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें और बेचैनी उसकी मासूमियत पर हावी थीं।


    कॉल के दूसरे तरफ से किसी लड़के की घबराती आवाज़ आई, "आप समझ नहीं रहे हो भाई, मैंने बहुत कोशिश कर ली पर इस वक्त किसी डॉक्टर को होटल के अंदर ले कर आना उनके लिए और आपके लिए, दोनों के लिए, बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है। कॉन के आदमी हर जगह फैले हुए हैं, सब आपको और उन्हें ढूंढ रहे हैं। इतनी मुश्किल से मैंने उन्हें यकीन दिलावाया है कि आप उनके साथ होटल से बाहर निकल चुके हों अगर कॉन को खबर लग गई की आप लोग अभी भी होटल में ही तो..."


    वो लड़का गुस्से से उसकी बात बीच में काटते हुए बोला, "तो क्या? तुम यहां नहीं हो इस लिए उनकी हालत देख नहीं रहे हो, उनकी बहुत बुरी हालत हो चुकी है, कुछ करो, तुम डॉक्टर हो, कुछ तो बताओ जिससे वो ठीक हो सके।"


    उस लड़के ने अटकते हुए कहा, "भाई, उन्हें हाई डोज़ दिया गया है, अगर उन्हें जल्द से जल्द कोई हेल्प करने वाला नहीं मिला तो कल सुबह तक शायद वो..."


    उसकी बात सुनते ही इस लड़के की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं, तभी उसे अपने पीछे से कुछ गिरने की आवाज़ आई। उसने पलट कर देखा तो एक लड़की अपने कपड़े उतारने की कोशिश कर रही थी। उसे देख इस लड़के ने अफसोस से अपनी आंखें बंद कर लीं फिर बिना कुछ कहे कॉल कट कर बालकनी से कमरे के अंदर आ गया।


    लड़के को देख वो लड़की लड़खड़ाते कदमों से उसके पास आने लगी कि अचानक उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो गिरने को हुई, पर उसके गिरने से पहले लड़के ने उसे अपनी मजबूत बाहों में पकड़ लिया।


    वो लड़की उसके बाहों में झूलते हुए उसे देख रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सा दर्द झलक रहा था। उसकी लाइट ग्रीन आँखें लाल हो आईं थीं।


    उसने उम्मीद भरी नजरों से लड़के को देखा और धीरे से बोली, "हेल्प करोगे उत्कर्ष?"


    उस लड़की की आवाज़ में उसका दर्द झलक रहा था। इस लड़की को ड्रग्स का हाई डोज़ दिया गया था, जिसका इलाज फिलहाल सिर्फ फिजिकल नीड से ही हो सकता था।


    उत्कर्ष ने एक गहरी सांस ली और एक बार फिर कोशिश करते हुए कहा, " आप खुद पर काबू करने की कोशिश कीजिए। थोड़ी देर में हमारे लोग यहां पहुंच जाएंगे। मैं आपको हॉस्पिटल ले जाऊंगा। सब ठीक हो जाएगा।"


    लेकिन वह लड़की, जो नशे में पूरी तरह डूबी हुई थी, अपने ही होश में नहीं थी। वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। अचानक उसने उत्कर्ष की पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश की और पलटकर गुस्से और दर्द भरी आवाज में चिल्लाई, "जाओ! निकल जाओ यहां से! मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं। मैं... मैं अपना ख्याल खुद रख लूंगी!"


    उसके शब्दों में हिम्मत थी, लेकिन उसका शरीर उसके खिलाफ बगावत कर रहा था। उसने जैसे ही एक कदम आगे बढ़ाया, एक बार फिर उसका संतुलन बिगड़ गया। वह गिरने ही वाली थी कि उत्कर्ष ने तुरंत पीछे से उसे संभाल लिया। उसके हाथों में उस लड़की का तपता हुआ शरीर महसूस हुआ। उसका कमजोर होता शरीर उसकी हालत को साफ बयां कर रहा था।


    लड़की ने खुद को संभालने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी हालत उसे धोखा दे रही थी। वह छटपटाई, लेकिन फिर भी खुद को स्थिर नहीं कर पाई। उत्कर्ष उसकी स्थिति देखकर परेशान था। वह जानता था कि इस लड़की को तुरंत मदद की जरूरत है, लेकिन हालात ऐसे थे कि वह खुद भी बेबस था।


    उसने धीरे से कहा, "आपकी हालत ठीक नहीं है। मुझे पता है, आप मजबूत हैं, लेकिन इस वक्त आप अकेले ये सब नहीं संभाल पाएंगी।"


    लड़की ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। उसकी सांसें तेज हो रही थीं, और वह अपने भीतर के दर्द और नशे से लड़ने की कोशिश कर रही थी। उत्कर्ष उसके करीब होने के बावजूद खुद को असहाय महसूस कर रहा था। 


    उत्कर्ष ने उसकी आँखों में देखा जहां इस वक्त एक अजीब सी बेबसी और दर्द नजर आ रहा था। उत्कर्ष उस लड़की के साथ वैसा कुछ नहीं करना चाहता था, पर फिलहाल उसके पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था।

    आखिर कार उत्कर्ष ने हार मान ली और उसकी की मदद करने की ठान ली। 

    उत्कर्ष ने अपनी आँखें बंद कीं और मन ही मन बोला, "I'm sorry पर मेरे पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है, उम्मीद करता हूँ तुम शायद मेरी बात समझ सकोगी और मुझे माफ़ कर दोगी आरुषि।"


    इतना कह कर उत्कर्ष ने आँखें खोल कर अपने सामने खड़ी लड़की को देखा, जिसने बहुत मुश्किल से खुद को कंट्रोल कर रखा था। वो उम्मीद भरी नजरों से उसे ही देख रही थी, जैसे उसके जवाब का इंतजार कर रही हो।


    उस लड़की को देख उत्कर्ष ने झटके से उसे अपनी गोद में उठा लिया और बेड की तरफ बढ़ गया। उसके ऐसा करते ही उस लड़की ने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दीं और उसके सीने में अपना चेहरा छिपा लिया।


    थोड़ी देर बाद कमरे के फर्श पर दोनों के कपड़े फैले हुए थे और दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह से खो चुके थे।


    करीब दो घंटे बाद उत्कर्ष ने उस लड़की को देखा, जो सुकून से सो रही थी, पर उत्कर्ष की आँखों से जैसे नींद गायब हो चुकी थी। उसके चेहरे और सीने पर लड़की के नाखूनों के निशान थे, जो उसकी वाइल्डनेस को बयां कर रहे थे।


    उत्कर्ष ने उस लड़की को एक नजर देखा फिर अपनी शर्ट उठा कर उसे पहना दी। फिर खुद उसके पास ही लेट गया और उसका चेहरा देखते हुए कहा, "शायद आज की रात हमारी आखिरी रात है, न जाने आज की रात हमारी किस्मत में कैसा मोड़ लाने वाली है, शायद आज के बाद आप कभी सुकून की नींद नहीं सो पाओगी, awesome. और ना ही कभी मुझे सुकून की नींद आ पाएगी। अब सब किस्मत के भरोसे है। पता नहीं कल सुबह आप क्या करने वाली हैं। जब आप खुद को इस तरह देखोगी तो कैसे रिएक्ट करोगी?”


    मैं उसे क्या जवाब दूंगा? कैसे समझा पाऊंगा ये सारी बाते? कैसे फैस करूंगा मैं उन्हें?”


    उत्कर्ष खुद से ही सवाल जवाब करते हुए awesome को निहार रहा था जो गहरी नींद में सो रही थी। 

    उत्कर्ष के मन में हजारों सवाल उठ रहे थे। वो कल क्या जवाब देगा awesome को। अगर awesome को आज की बात याद न रही तो क्या होगा?

    और सब से खास बात आरुषि, जो उसका सालों से इंतेज़ार कर रही हैं। वो उसे क्या जवाब देगा। कैसे कह पाएगा कि उसने उसका हक किसी और को दे दिया।


    इन सब सवालों को सोचते हुए उत्कर्ष के सिर में दर्द होने लगा। उसने अपना सिर पकड़ा और धीरे धीरे दबाने लगा ताकि उसे थोड़ा आराम मिल सकें। 


    इसी तरह रात के किस पहर उसकी आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला और वो उसी तरह awesome के साथ, उसके पास सो गया। 

  • 2. My Awesome - Chapter 2

    Words: 2095

    Estimated Reading Time: 13 min

    तुर्की,

    अगली सुबह,

    खिड़कियों से छनकर आती सूरज की नरम रोशनी जब ऑसम की पलकों पर पड़ी, तो उसकी आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसने हल्के से अपनी आँखें मला और उठने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसकी हरकत हुई, उसके पूरे शरीर में एक तीखा दर्द दौड़ गया।

    दर्द के एहसास ने उसे झकझोर दिया। उसने झटके से अपनी आँखें खोलीं और अपने ऊपर नजर डाली। खुद को देखते ही उसकी साँसें थम गईं। उसकी आँखें हैरानी से चौड़ी हो गईं, और एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सब कुछ रुक गया हो।

    कुछ क्षणों तक वो स्तब्ध बैठी रही, जैसे उसके आसपास की दुनिया का वजूद ही खत्म हो गया हो। तभी पास ही लेटे उत्कर्ष की भी आँखें खुलीं।

    जैसे ही उसने ऑसम को इस हालत में देखा, वह घबराकर तेजी से उठ बैठा। उसने उसकी फिक्र करते हुए पूछा,
    "आप ठीक हैं? आपको कैसा लग रहा है अब?"

    लेकिन ऑसम ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप सिर झुकाए, खुद को देखती रही। उसके बदन पर बस एक ढीली-ढाली शर्ट थी, और कमरे की बिखरी हालत देखकर उसे सब समझने में देर नहीं लगी थी।

    पलभर के लिए ऑसम को ऐसा लगा जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। उसके दिमाग में कल रात के धुंधले दृश्य तैरने लगे थे।

    उसे इस तरह खामोश देख उत्कर्ष की घबराहट बढ़ने लगी थी। वह जानता था कि सामने बैठी लड़की कोई मामूली लड़की नहीं थी। लेकिन आखिर वह सिर्फ अठारह साल की थी। इतनी छोटी उम्र में ऐसा कुछ... और इस तरह से... उसे अंदर तक हिला सकता था।

    कुछ पल की चुप्पी के बाद उत्कर्ष ने हिम्मत जुटाई और एक बार फिर से कहा,
    "प्लीज, मुझे गलत मत समझिए," वह फुसफुसाया। "मेरे बस में कुछ नहीं था। आप कल रात नशे में थीं और... और आपने ही..."

    उसके शब्द अधूरे रह गए। तभी ऑसम की धीमी लेकिन सख्त आवाज आई
    "निकलो यहां से।"

    उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों झलक रहे थे। उत्कर्ष ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा, लेकिन वह कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका। उसकी सख्त आवाज ने उसे चुप करा दिया।
    उत्कर्ष धीरे-धीरे उठा और अपना फोन उठा लिया। जैसे ही वह कमरे से बाहर जाने को हुआ, पीछे से ऑसम की सख्त आवाज आई,
    "कॉर्न के बारे में पता करो। मुझे एक घंटे में उसकी लोकेशन चाहिए।"

    उत्कर्ष ने बिना किसी सवाल के सिर हिलाया और तेज़ कदमों से कमरे से बाहर निकल गया। दरवाजा बंद होते ही ऑसम की पकड़ अपनी चादर पर कस गई। उसने गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं, मानो अपने भीतर के दर्द को दबाने की कोशिश कर रही हो।

    दूसरी तरफ, कॉर्न अपने आलीशान विला में गुस्से से भरा बैठा था। उसकी आँखें लाल थीं, और हाथ में पकड़ा ड्रिंक गुस्से में बार-बार झटके से हिल रहा था। उसके सामने बल्ला खड़ा था, जो उत्कर्ष की जानकारी देते हुए घबराया हुआ लग रहा था।

    कॉर्न ने गहरी आवाज में पूछा,
    "अगर उत्कर्ष ऑसम का टीचर था, तो वो उसके साथ कल की पार्टी में क्यों आया था?"

    बल्ला ने सिर झुकाकर जवाब दिया,
    "ऑसम के दादाजी ने उसे ऑसम के साथ भेजा था। शायद उन्हें किसी खतरे का अंदाजा था।"

    कॉर्न ने यह सुनकर एक पल के लिए सोचा। उसका माथा हल्का सा सिकुड़ गया, और फिर उसने गंभीर स्वर में पूछा,
    "और कुछ? उसके बारे में और क्या पता चला?"

    बल्ला ने सिर हिलाते हुए कहा,
    "हां, एक और अहम बात पता चली है। उत्कर्ष और आरुषि राजपूत का रिश्ता तय था। मिस्टर राजपूत उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद उनकी शादी करवाने वाले थे। आरुषि, उत्कर्ष को पसंद करती है।"

    कॉर्न ने यह सुनते ही चौंककर अपना गिलास टेबल पर पटक दिया। उसकी आँखों में हैरानी और अविश्वास साफ झलक रहा था।
    "आरुषि राजपूत और उत्कर्ष का रिश्ता? आरुषि को ऑसम के बारे में पता है? और... क्या ऑसम को इसके बारे में कुछ मालूम है?"

    बल्ला ने शांत भाव से जवाब दिया,
    "हां, आरुषि ऑसम को जानती है, लेकिन कभी मिली नहीं है। और आप भी जानते हैं, ऑसम को राजपूत परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। वह उन्हें देखना तक पसंद नहीं करती। मुझे नहीं लगता कि उसे आरुषि और उत्कर्ष के रिश्ते के बारे में कोई जानकारी होगी।"

    कॉर्न की आँखें चमक उठी थीं। उसके दिमाग में कुछ चल रहा था। उसने बल्ला की ओर गहरी नजरों से देखा और फिर अपने ड्रिंक को एक ही घूँट में खत्म कर दिया।
    "दिलचस्प... बहुत दिलचस्प," वह धीमी आवाज में बुदबुदाया।

    कॉर्न के दिमाग में कोई गहरी चाल चल रही थी। उसकी तिरछी मुस्कान उसके इरादों की गवाही दे रही थी। वह धीरे से बोला,
    "देखते हैं अब क्या होता है... जब आरुषि को पता चलेगा कि उसके प्यार को उसकी सौतेली बहन ने उससे छीन लिया है।"

    उसने अपने ड्रिंक को घूंट भरा और कुर्सी पर पीछे झुकते हुए आगे कहा,
    "कल रात ऑसम मेरे जाल से बच गई थी, लेकिन अब मैं ऐसा जाल बिछाऊंगा कि वो चाहकर भी उससे बाहर नहीं निकल पाएगी।"

    उसकी बातें खत्म ही हुई थीं कि तभी उसका फोन बज उठा। उसने बल्ला को इशारा किया। बल्ला ने कॉल रिसीव की और कुछ देर सुनने के बाद धीमी आवाज में बोला,
    "कॉर्न, ऑसम आपसे बात करना चाहती हैं।"

    ऑसम का नाम सुनते ही कॉर्न के होठों पर एक शैतानी मुस्कुराहट फैल गई। उसने फोन अपने हाथ में लिया, मुस्कान को गहरा किया और बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि तभी बाहर से एक जोरदार धमाके की आवाज आई।

    धमाके की आवाज सुनते ही कॉर्न कुछ पल के लिए सन्न रह गया। उसने बल्ला की ओर सवालिया नजरों से देखा। तभी फोन से ऑसम की शांत लेकिन तीखी आवाज आई,
    "तुम्हारा रिटर्न गिफ्ट था, कॉर्न। और यह तो बस शुरुआत है। टीवी ऑन करके न्यूज़ तो देख लो।"

    कॉर्न के माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं। उसने बल्ला को तुरंत इशारा किया। बल्ला ने हड़बड़ाते हुए टीवी ऑन किया। स्क्रीन पर नजर पड़ते ही कॉर्न की आँखें चौड़ी हो गईं। न्यूज़ चैनल पर उसकी सबसे बड़ी फैक्ट्री धू-धू कर जलती हुई दिख रही थी। आग इतनी भयंकर थी कि दमकल की गाड़ियाँ भी उसे बुझाने में असफल थीं।

    कॉर्न गुस्से से तमतमाता हुआ झटके से खड़ा हुआ। उसने बल्ला की तरफ खतरनाक नजरों से देखा। बल्ला ने सिर झुका लिया, जैसे वह पहले से ही अपनी गलती समझ चुका हो।

    इसी बीच, कॉर्न का फोन फिर बज उठा। बल्ला ने कॉल रिसीव की, और कुछ देर बात सुनने के बाद फोन काटते हुए घबराहट में कहा,
    "कॉर्न, खबर आई है कि हमारी दो और फैक्ट्रियों में आग लग चुकी है। पूरा सामान जलकर राख हो गया है।"

    कॉर्न गुस्से और झल्लाहट में चीखने ही वाला था कि तभी फोन पर फिर से ऑसम की आवाज गूँजी—इस बार पहले से ज्यादा ठंडी और धारदार।

    "ये तो बस शुरुआत है, कॉर्न। मैंने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी कि मुझसे पंगा मत लेना। लेकिन तुम्हें समझने में वक्त लगता है, है ना?"

    कॉर्न की मुट्ठियाँ गुस्से से भिंच गईं। उसकी साँसें तेज हो गईं। ऑसम की आवाज ने जैसे उसकी हर चाल को एक-एक करके नाकाम कर दिया था।

    ऑसम ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,
    "अब हर कदम सोच-समझकर चलना, वरना तुम्हारी ये छोटी-सी दुनिया पल भर में खत्म हो जाएगी।"

    कॉर्न के हाथ कांप रहे थे, और उसकी आँखों में जलती फैक्ट्रियों का अक्स झलक रहा था। दूसरी तरफ, ऑसम का चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखों में एक ठंडा तूफान साफ नजर आ रहा था।

    ऑसम ने कॉल कट किया और फोन साइड पर रख दिया। वह सोफे पर पैर पर पैर चढ़ाए आराम से बैठी थी। उसके हाथ में कॉफी मग था, और उसकी आँखों में एक खामोशी भरी सख्ती झलक रही थी। उसके सामने उत्कर्ष और उसका कजिन, आविन, खड़े थे। आविन मेडिकल का स्टूडेंट था, लेकिन इस वक्त उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ चुके थे।

    ऑसम ने धीरे-से कॉफी का घूंट लिया और बेपरवाही से पूछा,
    "कल रात के बारे में दादू को खबर मिली है या नहीं?"

    आविन ने घबराहट में तुरंत जवाब दिया,
    "नहीं, बॉस। अब तक उन्हें कुछ नहीं पता। कल रात हमारे लोग वक्त पर पहुँच गए थे, जिससे कॉर्न और उसके आदमियों को भागना पड़ा था। अभी इस बारे में सिर्फ हम तीनों और कॉर्न के कुछ आदमियों को ही पता है। किसी और को खबर नहीं हुई है।"

    ऑसम ने उसकी बात सुनते हुए मग को टेबल पर रखा। उसने ठंडी आवाज में कहा,
    "खबर होनी भी नहीं चाहिए। कॉर्न के साथ काम करने वाले आधे से ज़्यादा लोगों को खत्म कर दो। और ये ध्यान रहे कि वो गलती से भी कल रात की बात दादू तक नहीं पहुँचाएँ।"

    आविन ने थोड़ी झिझक के साथ कहा,
    "पर... अगर उन को पता चल गया तो?"

    ऑसम ने उसकी ओर देखा, उसकी नजरों में बेफिक्री और सख्ती का अजीब सा भाव था। उसने शांत भाव में जवाब दिया,
    "तो? तो तुम्हारा भाई ज़िंदा नहीं रहेगा। और क्या।"

    उसके शब्द सुन आविन और उत्कर्ष का चेहरा फक से पड़ गया। वह और उत्कर्ष एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगे थे। उत्कर्ष का डर से गला सूखने लगा था।

    आखिरकार, उत्कर्ष ने अपनी हिम्मत जुटाई और थोड़ा हकलाते हुए कहा,
    "लेकिन... इन सब में मेरी क्या गलती है? मैंने जान-बूझकर कुछ नहीं किया था। कल रात आप ही मेरे करीब आई थीं... और मुझसे मदद मांगी थी।"

    उसकी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि ऑसम ने अपनी पलकों को हल्के से उठाया और सीधे उसकी ओर देखा। उसकी निगाहों में इतनी सख्ती और ठंडापन था कि उत्कर्ष के शब्द गले में ही अटक गए। वह एकदम से चुप हो गया, मानो उसके भीतर की सारी हिम्मत किसी ने खींच ली हो।

    कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। ऑसम ने फिर से कॉफी का घूंट लिया, जैसे कुछ हुआ ही न हो, और शांत आवाज में बोली,
    "जो हुआ, वो हुआ। अब जो होगा, वो मेरी शर्तों पर होगा। तुम दोनों अब मेरी बात ध्यान से सुनो। कोई भी चूक हुई, तो अंजाम तुम्हारे लिए बेहतर नहीं होगा। समझे?"

    आविन और उत्कर्ष ने सहमति में सिर हिलाया, लेकिन उनके चेहरे पर खौफ साफ झलक रहा था।

    कमरे से बाहर निकलते ही उत्कर्ष ने गहरी सांस ली और धीरे से बड़बड़ाया,
    "अजीब लड़की है। सब कुछ याद है उसे, फिर भी थैंक्स तक नहीं कह सकती। ऊपर से ऐसे घूरती है जैसे अभी अपनी आँखों से ही मार डालेगी।"

    आविन हंसते हुए बोला,
    "क्या भाई, आप भी कमाल करते हो। तीन साल से उन्हें पढ़ा रहे हो, और अब तक समझ नहीं पाए?"

    उत्कर्ष झुंझलाते हुए बोला,
    "समझा इंसान को जाता है।"

    आविन ने झट से जवाब दिया,
    "अरे! इंसान से क्या मतलब है? आप क्या ऑसम को इंसान नहीं मानते?"

    उत्कर्ष ने उसे एक तीखी नजर से देखा और कहा,
    "वो इंसान नहीं, शैतान है। लड़की है सिर्फ अठारह साल की, लेकिन उसके कारनामे... ओह गॉड! मैंने तीन साल में उसे कभी भी मुस्कुराते हुए नहीं देखा।"

    आविन ठहाका लगाते हुए बोला,
    "तो आप चाहते हो कि वो मुस्कुराए? वैसे आपकी ये ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होगी। ऑसम कभी नहीं मुस्कुराती। वैसे अब आप क्या करेंगे?"

    "मैं क्या करूंगा मतलब?" उत्कर्ष ने उलझन में पूछा।

    आविन ने मजाकिया अंदाज में कहा,
    "मतलब ये कि आपने अपनी वर्जिनिटी खो दी है। अब अपनी मंगेतर को क्या बताओगे? और अगर बॉस को पता चल गया तो?"

    उत्कर्ष के चेहरे पर मायूसी छा गई। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा,
    "इंडिया वापस जाकर खुद ही मंगनी तोड़ दूंगा। कैसे और क्या कहकर करूँगा, ये तो पता नहीं, लेकिन करना पड़ेगा। और जहां तक बॉस की बात है, तो अगर उन्हें पता चला, तो वो सिर्फ तेरे जरिए पता चलेगा। इसलिए अपनी जुबान बंद रखना। भूलकर भी दादाजी के सामने कुछ मत कहना। अगर उन्हें ज़रा भी भनक लग गई, तो ऑसम को भी सब पता चल जाएगा। फिर वो कुछ करे या न करे, ये 'ऑसम' नाम की आफत हमारी जान जरूर ले लेगी।"

    आविन ने तुरंत सिर हिलाया और कहा,
    "भाई, मेरी तरफ से सब चुप रहेगा।"

    उत्कर्ष ने राहत की सांस ली और कहा,
    "मैं अपना सारा काम जल्द से जल्द खत्म कर दूंगा। फाइल्स ऑसम को सौंपूंगा और फिर हमेशा के लिए यहां से चला जाऊंगा। कहीं दूर... ऐसी जगह जहाँ इन सबका साया तक मुझ पर न पड़े।"

    आविन ने मुस्कान दबाते हुए कहा,
    "सही प्लान है। बस उम्मीद है कि ऑसम को ये प्लान पता न चले, वरना आपके दूर जाने से पहले ही आपकी कहानी खत्म हो जाएगी।"

    उत्कर्ष ने उसकी बात पर सिर हिलाया और तेज कदमों से आगे बढ़ गया, अब एक पल भी वहां रुकना उसके लिए और मुश्किल होता जा रहा था।

  • 3. My Awesome - Chapter 3

    Words: 1982

    Estimated Reading Time: 12 min

    तुर्की,

    दो महीने बाद,

    उत्कर्ष अपने कैबिन में बैठा फाइल्स तैयार कर रहा था। वह जल्दी से अपना काम खत्म करके सबकुछ छोड़कर चले जाना चाहता था। तभी उसका फोन बजा। उसने स्क्रीन पर फ्लैश हो रहे नाम को देखा और गहरी सांस लेते हुए कॉल रिसीव की।

    "दादाजी, मुझे और कुछ नहीं सुनना है," उसने सीधे कहा। "मैं बस ये जॉब छोड़ना चाहता हूं। और यही मेरा आखिरी फैसला है।"

    दूसरी तरफ से उसके दादाजी की शांत लेकिन चिंतित आवाज आई,
    "लेकिन क्यों, बेटा? अचानक ऐसा क्या हो गया कि तुम ये जिद करने लगे?"

    उत्कर्ष ने हाथ में पकड़ी फाइल बंद करते हुए कहा,
    "दादाजी, मैंने पहले ही कहा था कि मुझे इस जॉब में कोई इंट्रेस्ट नहीं है। मैं तो अपना म्यूजिक स्टूडियो खोलना चाहता था। बस कुछ पैसे जुटाने के लिए पार्ट-टाइम जॉब करना चाहता था। लेकिन आपने जिद करके मुझे इस ‘ऑसम’ नाम की आफत के साथ बाँध दिया।"

    उसकी आवाज में हल्का झुंझलाहट थी।
    "मैं कहीं और जॉब करता तो भी आराम से पैसे कमा लेता। लेकिन नहीं! आपको तो हमेशा मुझे अपनी आँखों के सामने रखना था। पहले ऑसम को पढ़ाने की ड्यूटी दी, फिर उसे सीक्रेटली प्रोटेक्ट करने की। पर अब बस बहुत हुआ। मैंने अपना काम खत्म कर दिया है। अब मैं अपने सपनों पर ध्यान देना चाहता हूँ। और इसलिए, इस जॉब से रिजाइन कर रहा हूँ। बाकी की बातें घर आकर कर लूँगा।"

    इतना कहकर उसने बिना किसी और सफाई का इंतजार किए कॉल कट कर दी। उसके चेहरे पर बेचैनी और झुंझलाहट दोनों साफ झलक रहे थे। उसने फाइल्स उठाईं और पास रखे अपने रेजिनेशन लेटर को देखा फिर उसे भी उठा कर कैबिन से बाहर निकल गया।

    वह सीधा ऑसम के कैबिन के पास पहुँचा। दरवाजे के सामने खड़े होकर उसने एक पल के लिए खुद को शांत करने की कोशिश की। उस रात के बाद उसने ऑसम के सामने जाना लगभग बंद ही कर दिया था। उसे हर बार उसका सामना करना बेहद अजीब लगता था। उसके लिए ये सब बहुत अक्वॉर्ड था।

    दो महीनों में उसने अपने ज्यादातर काम अपने कैबिन या घर से निपटाए थे। ऑसम से जितनी दूरी बना सकता था, उतनी बनाई। लेकिन अब, सब खत्म करने से पहले, उसे उसका सामना करना ही था। उसने गहरी सांस ली और हाथ दरवाजे पर ले जाकर रुक गया।

    अंदर जाने से पहले उसने खुद से कहा,
    "यह आखिरी बार है। इसके बाद मैं इस जगह और इसकी परछाई से भी दूर हो जाऊंगा।"

    उसने हल्के से दरवाजा खटखटाया और भीतर जाने का इंतजार करने लगा।
    ऑफिस में दो महीने से उत्कर्ष और ऑसम का आमना-सामना केवल मीटिंग्स में होता था। लेकिन इन पलों में भी उत्कर्ष ने कभी नजरें उठा कर उसकी तरफ देखने की कोशिश नहीं की। वहीं, ऑसम हमेशा की तरह नॉर्मल और अपने काम में व्यस्त नजर आती थी, मानो कुछ हुआ ही न हो।

    उस दिन उत्कर्ष ने भारी दिल से ऑसम के केबिन की ओर कदम बढ़ाए। गहरी सांस लेते हुए उसने दरवाजा खटखटाया और अंदर आ गया। लेकिन अंदर ऑसम नजर नहीं आई। वह उसे आवाज देने ही वाला था कि वॉशरूम की ओर से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं।

    आ रही आवाजें सुन वो एक दम से घबरा गया। उसने जल्दी से टेबल पर फाइल रखी और तेजी से वॉशरूम की तरफ भागा। वहां पहुँचते ही उसकी नजर ऑसम पर पड़ी, जो वॉमिट कर रही थी। यह देखकर उत्कर्ष एक पल के लिए वहीं फ्रिज हो गया था, उसके दिमाग में हजारों सवाल उठने लगे थे और उसका शरीर जैसे सुन्न पड़ गया था, लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाला और तेजी से उसके पास पहुँच गया।

    "आप ठीक हैं? क्या हुआ आपको?" उसने चिंता से पूछा। फिर हड़बड़ाते हुए बोला, "आप... कहीं आप प्रेग्नेंट तो नहीं हैं?"

    उसके अचानक पूछे इस सवाल पर ऑसम को जैसे झटका लगा। वह तेजी से पलटी और हैरानी से उसे देखने लगी। उसकी आँखों में सवाल और झुंझलाहट साफ झलक रही थी।

    उत्कर्ष ने अपनी घबराहट को छिपाने की कोशिश करते हुए जल्दी से कहा,
    "मेरा मतलब... दो महीने हो गए हैं... और, जब लड़कियां इस तरह से वॉमिट करती हैं, तो... मैं बस अंदाज़ा लगा रहा था।"

    ऑसम ने गहरी सांस ली, अपना हाथ झटकते हुए हल्के गुस्से में बोली,
    "अपना दिमाग लगाना बंद करो। मैं ठीक हूँ। कुछ नहीं हुआ है।"

    इसके बाद उसने अपना चेहरा धोया, टिशू से पोंछा, और बिना एक शब्द कहे वॉशरूम से निकलकर केबिन में आ गई।

    उत्कर्ष वहीं कुछ पल खड़ा रहा, उसके दिल की धड़कन तेज थी। फिर उसने फोन निकाला और आविन को कुछ मैसेज सैंड के दिया।

    उसने फोन जेब में रखा और केबिन में आ गया। अंदर पहुँचकर उसने देखा कि ऑसम अपनी चेयर पर सिर टिकाए बैठी थी। उसकी आँखें बंद थीं और चेहरा थका हुआ लग रहा था।

    उत्कर्ष ने अपने डर और झिझक को नजरअंदाज करते हुए साहस जुटाया और धीरे से बोला,
    "आपको इस महीने पीरियड्स आए हैं?"

    उसकी बात सुनते ही ऑसम की आँखें खुलीं और उसने धीरे-धीरे उसकी तरफ देखा। उसकी नजरों में एक सख्ती थी जो उत्कर्ष को भीतर तक महसूस हुई। उसने गहरी आवाज में कहा,
    "तुम्हें ये सवाल पूछने की हिम्मत कैसे हुई?"

    उत्कर्ष ने एक पल के लिए नजरें झुका लीं, लेकिन फिर बोला,
    "मैं बस आपकी सेहत को लेकर चिंतित हूँ। अगर कुछ गड़बड़ है, तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए।"

    ऑसम ने कुछ पल उसे देखा, फिर अपने सिर को पीछे टिकाया और धीरे से कहा,
    "मेरी सेहत की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं अपना ख्याल खुद रख सकती हूँ।"

    उत्कर्ष ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि अचानक आविन ने धड़ाम से दरवाजा खोला और लगभग गिरते-पड़ते अंदर आ गया। उसने हांफते हुए सीधा टेबल पर हाथ रखा और उत्साहित स्वर में बोला,
    "आप क्या प्रेग्नेंट हैं? मैं सच में चाचा बनने वाला हूं!"

    उसकी बात सुनते ही उत्कर्ष ने अपना सिर पीट लिया था, वहीं, ऑसम की भौंहें गुस्से से सिकुड़ गईं थीं।

    वह दांत भींचते हुए आविन को घूरकर बोली,
    "तुम दोनों का दिमाग खराब हो गया है क्या? यहां से निकलो! नहीं तो इसी दीवार में चुनवा दूंगी दोनों को। "

    उसकी धमकी सुनते ही उत्कर्ष और आविन दोनों सीधे खड़े हो गए, जैसे स्कूल में टीचर से डांट खा रहे हों। दोनों जाने को पलटे ही थे कि ऑसम ने ठहरने का इशारा करते हुए कहा,
    "रुको। आविन, तुम यहीं रुको।"

    इस पर उत्कर्ष भी रुक गया और ऑसम की तरफ पलटकर उसे देखने लगा। वह कुछ सोचने के लिए अपनी कुर्सी पर गहरी सांस लेते हुए बैठ गई। उसने माथे पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा,
    "मुझे वाकई इस मंथ पीरियड्स नहीं आए हैं... और कुछ दिनों से थकान भी महसूस हो रही है। तो क्या वाकई ये हो सकता है कि...?"

    "कि आप प्रेग्नेंट हो!" आविन ने उसकी बात पूरी करते हुए एक्साइडटेट हो कर कहा।

    ऑसम ने आविन की ओर झुंझलाहट भरी नजर डाली लेकिन कुछ नहीं कहा। वह शांत होकर गहरी सोच में डूब गई।

    आविन ने कहा, “आप कुछ देर रुकिए मैं अभी आता हूं”। कह कर वो फुल स्पीड में बाहर भाग गया और कुछ पल बाद उसी स्पीड से अंदर आ गया।

    उसने अपनी पॉकेट से प्रेग्नेंसी किट निकाली और टेबल पर रखते हुए बोला,
    "आप एक बार चेक कर लो और कंफर्म कर लो।"

    ऑसम ने एक नजर किट पर डाली, फिर आविन की ओर देखा। और फिर बिना कुछ कहे वह किट उठाकर वॉशरूम में चली गई।

    उसके अंदर जाते ही उत्कर्ष बेचैनी से कमरे में चक्कर काटने लगा। उसे देखकर आविन हंसी रोक नहीं पाया और मजाकिया अंदाज में बोला,
    "भाई, आप इतना क्यों परेशान हो रहे हो? कहीं आप खुश तो नहीं हो? वैसे 23 साल की उम्र में बाप बनने वाले हो... वाह भाई, आप तो काफी तेज निकले!"

    उसके इस मजाक पर उत्कर्ष ने गुस्से में उसे घूरा।
    "एक शब्द और निकाला तो तुझे मैं खुद दीवार में चुनवा दूंगा!" उत्कर्ष ने दबी आवाज में कहा।

    आविन ने तुरंत चुप रहना ही बेहतर समझा, लेकिन चेहरे पर हंसी दबाने की नाकाम कोशिश साफ नजर आ रही थी।

    दोनों चुपचाप इंतजार कर रहे थे, जबकि वॉशरूम के दरवाजे के पीछे से ऑसम की कोई हरकत सुनाई नहीं दे रही थी। उत्कर्ष का दिल तेजी से धड़क रहा था। अगर टेस्ट पॉजिटिव हुआ तो क्या? उसके दिमाग में हजारों सवाल दौड़ रहे थे।

    कुछ देर बाद वॉशरूम का दरवाजा खुला, और ऑसम बाहर आई। उसके हाथ में किट थी, और चेहरा बिल्कुल खाली। उसने किट को टेबल पर रखा और धीरे से बोली,
    "निगेटिव। अब चैन से काम करोगे, या और तमाशा करना है?"

    उत्कर्ष और आविन ने एक-दूसरे को राहत की सांस लेते हुए देखा। उत्कर्ष ने हल्के से सिर झुका लिया, जबकि आविन ने हंसी दबाते हुए कहा,
    "मैंने तो पहले ही कहा था, ऐसा कुछ नहीं होगा। बस चेक करना जरूरी था।"

    ऑसम ने उसे घूरते हुए कहा,
    "आविन, अगली बार ऐसी बेवकूफी मत करना। और अब दोनों निकलो यहां से। मेरे पास तुम्हारी इन हरकतों के लिए वक्त नहीं है”।

    अगले पल दोनों केबिन से बाहर खड़े थे। । बाहर आते ही उत्कर्ष ने आविन को हल्का सा धक्का दिया और गुस्से में फुसफुसाया,
    "तेरा दिमाग है या नहीं? ये सब करने की जरूरत क्या थी?"

    आविन मुस्कुराते हुए बोला,
    "भाई, दिमाग नहीं है तो ही तो आपका भाई और दोस्त हूं।"

    उत्कर्ष ने थके हुए स्वर में कहा,
    "खैर, जो भी हो, अब ये सब खत्म करो। मैं यहां से जल्द से जल्द निकलना चाहता हूं।"

    उत्कर्ष और आविन के कदम जैसे ही केबिन से बाहर निकले, अंदर से किसी चीज़ गिरने की तेज आवाज आई। दोनों ठिठक गए और एक पल के लिए हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे।

    "ये क्या था?" उत्कर्ष ने पूछा।

    आविन ने कंधे उचकाए और कहा, "चलो, देखते हैं।"

    दोनों तेज कदमों से केबिन के अंदर पहुंचे। अंदर का नज़ारा देखकर उनके होश उड़ गए। ऑसम फर्श पर बेसुध पड़ी थी।

    "ऑसम!" उत्कर्ष घबराते हुए भागा और झट से उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसकी सांसें तेज हो गईं, और वह उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा।
    "ऑसम, सुनो... उठो। क्या हुआ तुम्हें?"

    उत्कर्ष के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। तभी आविन ने अचानक प्रेग्नेंसी किट उठाई और उसे उत्कर्ष के सामने करते हुए अटकते हुए बोला,
    "भ... भाई, ये देखो!"

    उत्कर्ष ने किट की ओर देखा। किट पर दो पिंक लाइन साफ दिख रही थीं। उसका दिल जैसे एक पल के लिए धड़कना भूल गया।

    "पॉजिटिव?" उसने बुदबुदाते हुए कहा।

    आविन ने भी घबराए हुए पूछा,
    "भाई, अगर ये सच में प्रेग्नेंट थीं, तो इन्होंने झूठ क्यों कहा? हमें बताया क्यों नहीं?"

    उत्कर्ष ने ऑसम के चेहरे पर नजर टिकाई। उसका चेहरा पीला पड़ गया था, और हल्की थकान की लकीरें अब भी दिख रही थीं। कुछ देर के लिए वह बस उसे देखता रहा, फिर गहरी सांस लेते हुए बोला,
    "इसकी वजहें जो भी हों, पहले इसे होश में लाना जरूरी है। इन सब बातों का जवाब बाद में मिलेगा। फिलहाल इसे चेक करो।"

    आविन ने झट से ऑसम की नब्ज चैक की और थोड़ा सीरियस टोन में कहा,
    "भाई, इनकी तबीयत सही नहीं लग रही। हमें इन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाना चाहिए।"

    उत्कर्ष ने एक पल भी देर नहीं की। उसने आविन को आदेश दिया,
    "कार निकलो। जल्दी करो।"

    आविन ने सिर हिलाया और तेजी से बाहर की ओर भागा। उत्कर्ष ने ऑसम को अपनी बाहों में संभालते हुए धीरे-धीरे उठाया। उसकी नज़र अब भी ऑसम के चेहरे पर थी। उसके दिमाग में हजारों सवाल थे—क्या ऑसम सच में प्रेग्नेंट थी? उसने झूठ क्यों कहा? और अगर यह सच है, तो वह इन सब का सामना कैसे करेगा?

    "ऑसम, मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा," उसने awesome का चेहरा देखते हुए धीरे से कहा। Awesome का मुरझाया चेहरा देख उसका दिल अंदर से घबरा गया था। वो मन ही मन प्राथना कर रहा था कि वो बिल्कुल ठीक हो। यहीं सब सोचते हुए वह उसे लेकर केबिन से बाहर निकल गया।

  • 4. My Awesome - Chapter 4

    Words: 1957

    Estimated Reading Time: 12 min

    तुर्की,


    हॉस्पिटल,


    उत्कर्ष कैबिन में बेचैनी से इधर-उधर चक्कर लगा रहा था। आविन एक कुर्सी पर बैठा उसे गौर से देख रहा था। आखिरकार, आविन से रहा नहीं गया और उसने कहा,

    "भाई, आप इतना टेंशन क्यों ले रहे हो? उन्हें कुछ नहीं होगा। प्रेग्नेंसी में अक्सर लड़कियां बेहोश हो जाती हैं। ये नॉर्मल बात है।"


    उत्कर्ष ठहर गया। उसकी आंखों में चिंता साफ झलक रही थी। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा,

    "लड़कियों की बात और होती है, आविन। पर आसम... वो सिर्फ अठारह साल की है। इतनी कम उम्र में ये सब झेल रही है। सबसे बड़ी बात, वो कभी इतनी कमजोर नहीं थी। पर अब... अब उसकी हालत देखकर डर लग रहा है। इन दो महीनों में उसकी चमक जैसे कहीं खो गई है। चेहरे पर मायूसी और थकान ही नजर आती है।"


    आविन ने समझाने की कोशिश की,

    "आपको उनकी फिक्र हो रही है, ये अच्छी बात है। पर खुद को इतना दोष क्यों दे रहे हो?"


    उत्कर्ष ने कंधे झुकाते हुए कहा,

    "कैसे न करूं फिक्र, आविन? ये सब कहीं न कहीं मेरी वजह से हुआ है। मुझे उनका खयाल रखना चाहिए था। दादा जी और बड़े सर ने मुझे उनके साथ इसीलिए भेजा था कि मैं उनकी मदद करूं, उनका खयाल रखूं । पर मैं... मैं उनका साथ नहीं दे पाया। और उस दिन... मुझे खुद पर काबू रखना चाहिए था। पर मैंने..."


    वो इतना कहते-कहते रुक गया। उसकी आवाज कांपने लगी और उसने शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लिया।

    आविन ने कुछ पल उसकी ओर देखा, लेकिन इस बार वो भी चुप था। शायद उसके पास कहने को कुछ नहीं बचा था।


    कुछ देर बाद, कैबिन का दरवाजा खुला। डॉक्टर बाहर आईं। वो वही डॉक्टर थीं, जो बचपन से आसम की सेहत का ख्याल रखती आ रही थीं। उन्होंने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए एक नज़र उत्कर्ष पर डाली। उनके पीछे आसम धीमे कदमों से बाहर आई।


    डॉक्टर को आते देख उत्कर्ष झट से पास की कुर्सी पर बैठ गया। वहीं, आविन आसम को देखकर तुरंत खड़ा हो गया। आसम ने उसकी कुर्सी संभाली और पास रखा पानी का गिलास उठाकर धीरे-धीरे पीने लगी।


    कमरे में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया। उत्कर्ष के चेहरे पर राहत और बेचैनी का मिला-जुला भाव था। वो आसम को देखे जा रहा था, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।


    डॉक्टर ने एक नजर आसम पर डाली और फिर उत्कर्ष की ओर मुड़ीं। गंभीर आवाज में उन्होंने पूछा,

    "She is pregnant. इस बच्चे का बाप कौन है? उसे बुलाओ, मुझे उससे बात करनी है।"


    उनका सवाल सुनते ही आविन ने बिना सोचे-समझे अपनी उंगली से उत्कर्ष की ओर इशारा कर दिया। डॉक्टर ने जब उत्कर्ष की ओर देखा, तो उनकी आंखें अविश्वास और हैरानी से बड़ी हो गईं। उन्होंने कहा,

    "तुम? उत्कर्ष... तुम आसम के बच्चे के पिता हो?"


    उत्कर्ष का शर्म से सिर झुका गया था  डॉक्टर उसे पहचानती थीं। वह पिछले तीन सालों में कुछ मौकों पर उनसे मिल चुकी थीं और जानती थीं कि उत्कर्ष कौन है। लेकिन आज की situation देखकर उनका विश्वास डगमगा गया था।


    उत्कर्ष के मन में उथल-पुथल मच गई। उसे यकीन था कि डॉक्टर क्या सोच रही होंगी। उसने मन ही मन कहा, "पक्का इन्हें लग रहा होगा कि मैं एक गोल्ड डिगर हूं, जिसने पैसों के लिए ये सब किया। लेकिन इन्हें कैसे बताऊं कि मैं खुद भी इस सिचुएशन में फंसा हुआ हूं। मैंने तो सिर्फ मदद करनी चाही थी, लेकिन..."


    उसने आंखें बंद कर लीं। अफसोस उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।


    डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "अगर तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो, तो भी खुद पर थोड़ा तो कंट्रोल रखना चाहिए था । उत्कर्ष, तुमसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी। कम से कम उसकी उम्र का तो ख्याल रख लेते।"


    उत्कर्ष का सिर शर्म से झुका हुआ था। वह इतना शर्म महसूस कर रहा था कि उसे लग रहा था, धरती फट जाए और वह उसमें समा जाए।


    डॉक्टर ने उसकी ओर देखा और थोड़ा डांटते हुए कहा, "अब सिर झुकाने का क्या फायदा? उस वक्त शर्म आ जाती तो आज यह नौबत नहीं आती। थोड़ा सोच-समझ लिया होता तो आज हालात ऐसे न होते।"


    उन्होंने एक पल के लिए रुककर, तिरछी नजरों से ऑसम को भी देखा। डॉक्टर के लिए यह बात पचाना मुश्किल हो रहा था कि ऑसम, जो इतनी जिम्मेदार और सख्त मिजाज लड़की थी, ऐसी हरकत कर सकती है।


    वह अब भी उन दोनों को तीखी नजरों से देखती रहीं, मानो उनकी खामोशी से जवाब मांग रही हों।


    आविन ने माहौल को थोड़ा संभालने की कोशिश की और कहा,

    "डॉक्टर, आप भाई को इस तरह मत देखिए। उनकी गलती नहीं है। वो सब अचानक हो गया था। असल में... बॉस को ड्रग्स दिया गया था, और भाई ने तो बस मदद करनी चाही थी। पर..."


    आविन के पूरी बात बताने पर डॉक्टर ने गहरी सांस लेते हुए आविन की बात पूरी सुनी। फिर उन्होंने गंभीरता से कहा,

    "हम्म, समझ गई। पर अब क्या? आसम दो महीने से प्रेग्नेंट है। तुम दोनों ने इसके बारे में क्या सोचा है?"


    अभी किसी ने कुछ जवाब दिया भी नहीं था कि आसम ने सीधा कहा,

    "अबॉर्शन।"


    उसका जवाब सुनते ही उत्कर्ष चौंक गया। उसने तुरंत सिर घुमाया और आसम को देखने लगा। ये तो उसने सोचा ही नहीं था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आसम ने इतनी जल्दी इतना बड़ा फैसला ले लिया होगा।


    उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पता नहीं क्यों, लेकिन आसम का यह फैसला उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया था। वह उसकी आंखों में झांक रहा था, पर कुछ बोल नहीं पा रहा था। 


    डॉक्टर ने शांत लेकिन गंभीर आवाज में कहा,

    "अबॉर्शन कराना आसान नहीं है, आसम। तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है। तुम दो महीने की प्रेग्नेंट हो और पिछले कुछ वक्त से तुम्हारा शरीर भी बहुत कमजोर हो गया है। तुम ठीक से अपनी डाइट नहीं ले रही। ऐसे में अबॉर्शन का रिस्क है। और अगर ये कराया गया, तो हो सकता है कि तुम कभी मां न बन सको।"


     डॉक्टर की बात सुनकर आसम ने अपनी निगाहें झुका लीं थी। उत्कर्ष, जो अब तक खुद को दोष दे रहा था, उसके अंदर एक बार फिर से दूफ़ान उठने लगा था।


    कमरे में भारी सन्नाटा पसरा हुआ था। कुछ पलों की चुप्पी के बाद, आसम ने ठंडे स्वर में कहा,

    "मुझे फर्क नहीं पड़ता। आप अबॉर्शन की तैयारी कीजिए।"


    डॉक्टर ने एक नजर उत्कर्ष पर डाली और गंभीर लहजे में बोलीं,

    "तुम दोनों एक बार ठंडे दिमाग से सोच लो। ये बहुत बड़ा फैसला है। जल्दबाजी ठीक नहीं है। ऐसे कितने लोग हैं जो बच्चे के लिए तरसते हैं, और तुम लोग हो कि—"


    डॉक्टर की बात खत्म होने से पहले ही आसम ने उन्हें बीच में टोक दिया। उसकी आवाज में वही ठंडापन था,

    "जो कहा है, वही कीजिए। अबॉर्शन की तैयारी करें। मुझे इस बच्चे से जल्द से जल्द छुटकारा चाहिए।"


    "छुटकारा?" उत्कर्ष ने उसकी ओर घूरते हुए पूछा। उसकी आवाज हल्के गुस्से से कांप रही थी।

    "छुटकारा से आपका क्या मतलब है, आसम?"


    आसम ने उसकी तरफ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। उत्कर्ष ने गहरी सांस ली और अपनी आवाज को काबू में रखने की कोशिश करते हुए कहा,

    "आपने सुना न, डॉक्टर ने क्या कहा। अबॉर्शन के बाद हो सकता है कि आप कभी दुबारा मां न बन सकें। अगर ऐसा हुआ तो आप क्या करेंगी? मैं मानता हूं कि इस सबमें मेरी गलती है। मुझे आपकी सुरक्षा का बेहतर ध्यान रखना चाहिए था। लेकिन अबॉर्शन करवाकर मैं एक और गलती नहीं कर सकता।"


    आसम ने शांत निगाहों से उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में कोई भाव नहीं झलक रहा था। वह कुछ पल चुप रही, फिर ठंडे स्वर में बोली,

    "तो तुम क्या करना चाहते हो? तुम जानते हो, तुम क्या कह रहे हो?"


    उत्कर्ष ने बिना हिचकिचाहट के कहा,

    "हां, मैं जानता हूं। मैंने हर शब्द सोच-समझकर कहा है। आप जानती हैं, मैं अनाथ हूं। मेरा सगा कोई नहीं है। दादा जी ने मुझे गोद लिया था। और अब, जब मुझे अपने खून का रिश्ता मिल रहा है, तो मैं उसे इतनी आसानी से जाने नहीं दे सकता।"


    आसम ने उसकी बात सुनी और उसकी आंखों में झांकते हुए तीखी आवाज में पूछा,

    "तो तुम्हारी इस ख्वाहिश के लिए मैं अपनी बलि दे दूं?"


    Awesome ने इस तरह कहा था कि उसकी बात पर  आविन के चेहरे पर अचानक एक मुस्कान आ गई। वह अपनी हंसी रोक नहीं सका और हल्के से हंस पड़ा, लेकिन तुरंत ही उसने अपना मुंह हाथों से ढक लिया।


    डॉक्टर ने आविन को एक सख्त नजर से देखा और कहा,

    "ये मजाक का वक्त नहीं है।"


     उत्कर्ष और आसम एक-दूसरे को देख रहे थे, जैसे उनकी आंखों से कोई बिना बोले लड़ाई चल रही हो। पर उत्कर्ष ने मानो ठान ली थी कि अब वो ये बच्चा इस दुनिया में का कर रहेगा। 


    आसम ने गहरी सांस ली, मानो खुद को काबू में रखने की कोशिश कर रही हो। उसकी आंखों में ठंडा पर गहरा आक्रोश था। उसने कहा,

    "ठीक से बताओ, तुम कहना क्या चाहते हो?"


    उत्कर्ष कुछ पल चुप रहा, फिर ठंडे भाव से बोला,

    "आप अबॉर्शन मत करवाइए। अगर आप बच्चा नहीं संभालना चाहती हैं, तो उसके जन्म के बाद मुझे दे दीजिए। मैं अपने बच्चे को संभाल लूंगा।"


    उसकी बात सुनते ही आसम की मुट्ठी कसकर भींच गई। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसने कठोर स्वर में कहा,

    "और मेरे दादू से क्या कहोगे? वो तुम्हें जान से मार देंगे। जानते हो न, वो कितने खतरनाक इंसान हैं?"


    उत्कर्ष के माथे पर हल्का पसीना झलकने लगा। उसे आसम के दादा जी की सख्ती और क्रूरता का पूरा अंदाजा था। लेकिन फिर भी उसने गहरी सांस ली और हिम्मत जुटाते हुए कहा,

    "जो सच है, वही कहूंगा। जो होगा, देखा जाएगा। पर मुझे ये बच्चा चाहिए। मैं वादा करता हूं, मैं और मेरा बच्चा कभी आपको परेशान नहीं करेंगे। अगर फ्यूचर में आपकी जिंदगी में कोई और आए, तो आप खुशी-खुशी उसके साथ जा सकती हैं। मैं या मेरा बच्चा आपकी जिंदगी में दखल नहीं देंगे।"


    आसम की आंखें और सख्त हो गईं। गुस्से से उसकी नसें उभर आई थीं। उसका पूरा शरीर जैसे उसकी भावनाओं को बयां कर रहा था। लेकिन उत्कर्ष इन सबका अंदाजा नहीं लगा पाया। वह अपनी सोच में डूबा, सिर्फ अपनी बात पर अड़ा हुआ था।


    उत्कर्ष को एहसास नहीं था कि वह इस वक्त आसम से क्या कह रहा है और इन बातों का उनके भविष्य पर कितना गहरा असर पड़ सकता है। Awesome उत्कर्ष से कुछ भी कहने के बजाय, सिर्फ उसे चुपचाप घूरती रही।


    आसम ने सबकुछ सुनने के बाद गहरी सांस ली और शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा,

    "ठीक है। हम आज ही दादू से इस बारे में बात करेंगे। लेकिन उससे पहले हमें कोर्ट मैरिज करनी होगी।"


    उत्कर्ष चौंक गया। उसने फौरन पूछा,

    "कोर्ट मैरिज? इसका मतलब... आप अबॉर्शन नहीं करवाएंगी?"


    आसम ने हल्का-सा सिर हिलाकर न में जवाब दिया और आगे कहा,

    "नहीं। लेकिन सबसे पहले हमें शादी करनी होगी। कोर्ट मैरिज के बाद ही हम दादू को सब कुछ बताएंगे। फिर जो होगा, वो देखा जाएगा।"


    उत्कर्ष कुछ पल चुप खड़ा रहा। उसकी आंखों में असमंजस और घबराहट का साया साफ झलक रहा था। उसने आखिरकार सिर हिलाकर हामी भर दी। पर उसका दिल अंदर ही अंदर तेज़ी से धड़क रहा था।


    कहने को तो उसने कह दिया था, "जो होगा, देखा जाएगा," लेकिन वह जानता था कि आसम के दादू से निपटना कोई आसान काम नहीं था। वह तुर्की के सबसे ताकतवर और खतरनाक लोगों में से एक थे। उत्कर्ष के मन में तरह-तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं, लेकिन उसने खुद को संभाला।


    अब सबकुछ तय हो चुका था। शादी के बाद दादू से बात होगी। लेकिन उत्कर्ष को एहसास था कि ये सिर्फ शुरुआत थी। असली लड़ाई तो तब शुरू होगी, जब इस खबर का सामना आसम के दादा जी से होगा।

  • 5. My Awesome - Chapter 5

    Words: 2308

    Estimated Reading Time: 14 min

    तुर्की,

    डॉक्टर से मिलने के बाद उत्कर्ष और Awesome अपने पैलेस लौट आए थे। सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं। टेबल पर तैयार किए गए दस्तावेज़ सलीके से रखे हुए थे।

    Awesome ने उत्कर्ष को साइन करने का इशारा किया। उत्कर्ष आगे बढ़ा, पेन उठाया, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र पेपर्स पर गई, उसका हाथ पल भर के लिए रुक गया। उसकी आँखों में एक अजीब सी उलझन थी।

    Awesome और आविन, दोनों ही उसकी ओर देखने लगे। उत्कर्ष ने आँखें बंद कीं और मन ही मन बुदबुदाया—

    "सॉरी, आरुषि... मैं जानता हूँ कि मैं तुम्हारा दिल और भरोसा तोड़ रहा हूँ, लेकिन मैं मजबूर हूँ..."

    एक गहरी साँस लेते हुए उसने आँखें खोलीं और झिझकते हुए दस्तावेज़ों पर साइन कर दिए।

    Awesome ने भी बिना देर किए अपने दस्तखत कर दिए। आविन ने पेपर्स उठाए और अपने एक आदमी को सौंपते हुए सख्त लहज़े में कहा,

    "आज ही ये शादी रजिस्टर हो जानी चाहिए, समझे?"

    वह आदमी सिर झुकाकर हामी भरते हुए तेज़ी से बाहर निकल गया।

    तभी बाहर गाड़ियों के रुकने की आवाज़ गूंजी।

    आवाज़ सुनते ही उत्कर्ष और आविन की आँखें डर और बेचैनी से एक-दूसरे को देखने लगी। वे अच्छी तरह जानते थे कि ये गाड़ियाँ किसकी थीं।

    Awesome ने एक गहरी साँस ली और दरवाज़े की ओर देखा। दरवाज़ा खुला, और भीतर एक 65 साल के करीब एक प्रभावशाली शख़्स दाख़िल हुए। उनके पीछे लगभग उसी उम्र का एक और आदमी चल रहा था।

    Awesome तुरंत खड़ी हो गई।

    पहले आने वाले आदमी कोई और नहीं, बल्कि Awesome के दादा जी थे।

    काले रंग का शानदार कोट-पैंट पहने, गले में एक महँगा स्कार्फ डाले हुए, उनकी आँखों में गहरी चमक थी। उनका ओरा ही ऐसा था कि कोई भी उन्हें देखकर ठिठक जाए। उनकी उपस्थिति भर से कमरा जैसे भारी हो गया था।

    कोई भी उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।

    अभिजीत ओबेरॉय भारी कदमों से चलते हुए कमरे में आए और सीधे बड़े सोफे पर बैठ गए। उनके साथ आए आदमी को देखकर उत्कर्ष की साँसें तेज़ हो गईं। वह कोई और नहीं बल्कि मिस्टर रमा थे—उत्कर्ष के दादा जी, जिन्होंने उसे गोद लिया था। वहीं, आविन उनकी बेटी का बेटा, यानी उनका नातिन था।

    Awesome के दादा जी, मिस्टर अभिजीत ओबेरॉय, तुर्की के जाने-माने बिजनेसमैन थे। लेकिन उनकी पहचान सिर्फ़ एक बड़े बिज़नेस मेंस की नहीं थी—वह माफिया के भी किंग थे। या यूँ कहें कि पूरा माफिया उनके इशारों पर चलता था।

    अभिजीत ने अपनी पैनी नज़रों से Awesome को देखा, फिर अपनी गहरी आवाज़ में बोले—

    "Awesome, तुम आज हॉस्पिटल गई थी?"

    Awesome ने बिना किसी हड़बड़ाहट के हल्का-सा सिर हिलाया और कहा, "हाँ।"

    अभिजीत की आँखें सिकुड़ गईं। उन्होंने तुरंत दूसरा सवाल दाग़ा—

    "क्यों?"

    उत्कर्ष की साँसें अटकने लगीं थी। वो बेचारगी से एवं की तरफ देख रहा था। आविन ने उसकी नजरों को खुद पर पा कर अपने कंधे उचका दिए थे, जैसे कहना चाहता हो, “मैं क्या करूं भाई? प्लीज मुझ से कोई उम्मीद मत रखिए। मैं इसमें कोई हेलो नहीं कर सकता”।

    उत्कर्ष ने अफसोस से अपनी आँखें बंद कर ली थीं । वह बचपन से अभिजीत को जानता था, उनके रौब और कहानियों को सुनकर ही बड़ा हुआ था। उन्हें देखकर ही उसके शरीर में सिहरन दौड़ जाती थी।

    आविन धीरे से उत्कर्ष के कान में फुसफुसाया, "भाई, घबराओ मत। हिम्मत रखो। राम का नाम लो। Awesome ने ज़रूर कुछ सोचा होगा। वो सब कुछ सँभाल लेगी। सीधा थोड़ी कहेगी कि—"

    आविन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कमरे में गूँजती Awesome की ठंडी, लेकिन दृढ़ आवाज़ ने सबको चौंका दिया—

    "I'm pregnant।"

    उसके ये शब्द सुनते ही कमरा एक अजीब से सन्नाटे से भर गया और सबकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई।

    "प्रेग्नेंसी की वजह से बेहोश हो गई थी, इसलिए कन्फर्म करने डॉक्टर के पास गई थी।" उसने अपनी बात पूरी करते हुए कहा।

    उत्कर्ष की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऑसम इतनी बड़ी बात इतनी आसानी और आराम से अपने दादा जी को बता देगी।

    वह अभी भी अवाक् था, जैसे उसके कानों को अपनी ही सुनाई बातों पर यकीन न हो रहा हो।

    अभिजीत और रमा सन्न रह गए। उनके लिए यह मानना इंपॉसिबल था। अभिजीत की आँखें गुस्से से लाल हो गईं, जबड़े भिंच गए। उन्होंने दाँत पीसते हुए भारी आवाज़ में पूछा—

    "कौन है वो? किसका खून अपनी कोख में लिए घूम रही हो तुम?"

    ऑसम की आँखों में अब भी अजीब-सी शांति थी। उसने बिना हिचकिचाए सिर्फ एक नाम लिया—

    "उत्कर्ष।"

    जैसे ही यह नाम कमरे में गूंजा, अभिजीत और रमा को जैसे किसी ने जोर का करंट लगा दिया। दोनों की निगाहें अविश्वास से सीधे उत्कर्ष पर टिक गईं।

    एक पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया। फिर, अभिजीत गुस्से से भड़क उठे। वह झटके से खड़े हुए और उनकी गरजती आवाज़ पूरे घर में गूंज गई—

    "हमारे ही घर में रहकर, हमारे टुकड़ों पर पलकर, हमारी बेटी पर बुरी नज़र डालने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"

    उनकी आँखों में नफरत और गुस्से की आग जल रही थी।

    "हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो तुझे अपने परिवार का हिस्सा समझा। लेकिन चिंता मत कर, हम अपनी गलती अभी सुधार लेंगे—तुम्हारी जान लेकर!"

    इतना कहकर उन्होंने झटके से अपनी पिस्तौल निकाल ली।

    रमा और आविन की साँसें थम गईं। दोनों कुछ समझ पाते, इससे पहले ही अभिजीत ने गण प्वाइंट के दिया। पर इस से पहले की वो शूट करते awesome उत्कर्ष के ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई।

    उत्कर्ष तो अभी जगह पर ही फ्रिज हो गया था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे या क्या करे।

    ऑसम को इस तरह आगे आते देख अभिजीत गुस्से से बौखला उठे। उनकी गरजती आवाज़ पूरे कमरे में गूंज गई—

    "हट जाओ, ऑसम! इसे जीने का कोई हक़ नहीं है! इस लड़के ने मेरे भरोसे का गलत इस्तेमाल किया है! मैंने इसे तुम्हारी कुछ वक्त के लिए ज़िम्मेदारी क्या सौंपी, इसने तो खुद को इस घर का मालिक ही समझ लिया!"

    उनकी आँखों में आग धधक रही थी।

    उत्कर्ष अब भी सिर झुकाए खड़ा था। उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था। उसके खिलाफ जितने भी शब्द बोले जा रहे थे, वो चुपचाप सहता रहा।

    कमरे में सन्नाटा था, लेकिन हवा भारी हो चुकी थी। सभी की निगाहें उत्कर्ष और ऑसम पर जमी थीं—पर शक और अविश्वास से भरी हुई थी। घर के सारे नौकर भी कोने में डरे सहमे सिर झुकाए खड़े थे। किसी को भी इस सच पर यकीन नहीं हो रहा था।

    रमा ने हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ते हुए कहा,

    "सर, मैं... मैं अपने पोते की तरफ से आपसे माफ़ी मांगता हूँ। प्लीज, उसकी जान मत लीजिए।"

    उनकी आवाज़ में गुहार थी, विनती थी, आँसू थे।

    लेकिन अभिजीत का चेहरा जरा भी नहीं पिघला। उनका गुस्सा और बढ़ गया। उन्होंने रमा की ओर देखा और ठंडी, मगर सख्त आवाज़ में बोले—

    "रमा, तुम मेरे साथ साठ सालों से हो। हमारा बचपन से रिश्ता है। तुमने मुझे कभी धोखा नहीं दिया... लेकिन इस लड़के ने? इसने तुम्हें भी धोखा दिया है!"

    वह एक पल को रुके, लेकिन उनकी नफरत भरी नजर उत्कर्ष से हटने का नाम नहीं ले रही थी।

    "तुमने इसे अपना नाम दिया, अपने घर में पनाह दी, एक अच्छी ज़िंदगी दी... लेकिन ये खुदगर्ज़ निकला। हमने उंगली पकड़ाई, और इसने सिर पर चढ़ने के सपने देखने शुरू कर दिए!"

    रमा का चेहरा दर्द से भर गया, लेकिन वह कुछ नहीं बोले।

    "और तुम मत भूलो, रमा—मैं तुम्हारा और हमारी दोस्ती का इज्जत करता हूँ, लेकिन इस लड़के के लिए मैं अपने फैसले से पीछे नहीं हटूंगा। तुम इस मामले से दूर ही रहो। अगर ये तुम्हारा सगा पोता भी होता, तब भी मैं इसे माफ़ नहीं करता!"

    कमरे में सन्नाटा खिंच गया।

    फिर अभिजीत के शब्द ज़हर बनकर हवा में घुल गए—

    "और वैसे भी... ये तो उस गंदे खून की निशानी है, जो कभी किसी का नहीं हो सका!"

    उनकी आवाज़ में इतनी नफरत थी कि पूरा कमरा जैसे थर्रा गया।

    "मैंने सोचा था कि ये अपनी माँ जैसा सीधा, भोला और ईमानदार होगा... लेकिन नहीं! आज इसने साबित कर दिया कि ये अपने बाप की तरह ही धोखेबाज़ और पीठ में छुरा घोंपने वाला इंसान है!"

    उनकी बात जैसे उत्कर्ष के कानों में सुई की तरह चुभने लगे थे। उसके अंदर कुछ टूट सा गया था।

    उसने अपने बचपन में अपनी माँ-बाप की कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन कभी किसी ने इतने खुले शब्दों में ये सच उसके सामने नहीं रखा था।

    आज पहली बार उसने अपने कानों से ये सब सुना था।

    उसका सिर अब भी झुका हुआ था, लेकिन उसकी आँखें भर आई थीं। वो रोना नहीं चाहता था, लेकिन उसके अंदर कुछ ऐसा था जो उसे अंदर से कुचल रहा था।

    आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि वो इस घर का हिस्सा कभी था ही नहीं।

    उत्कर्ष का दिल अंदर ही अंदर रो रहा था। आज फिर उसे अपने वजूद से नफरत हो रही थी। उसने कभी नहीं चाहा था कि हालात इस मोड़ पर आ जाएँ, कि जिन लोगों को वह अपना मानता था, वही उसके होने पर सवाल उठाएँ। वह बस सिर झुकाए चुपचाप सबकी बातें सुन रहा था।

    लेकिन तभी, उसकी दुनिया जैसे ठहर गई और उसके कानो में awesome की शांत और मीठी सी आवाज आई,

    "I love him, Dadu."

    ऑसम के ये शब्द सुन, उत्कर्ष की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसने झटके से सिर उठाया और ऑसम की ओर देखा।

    Awesome की नज़रें सीधी अभिजीत से टकरा रही थीं, बेखौफ और निडर।

    आविन और रमा की आँखों में अविश्वास झलक आया। वे भी स्तब्ध रह गए। लेकिन अभिजीत का गुस्सा और भड़क उठा। उनकी मुट्ठियाँ कस गईं, चेहरा गुस्से से लाल हो गया।

    "ऑसम!" उनका आवाज गरज उठी। "तुम्हें इन सब में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है! तुम्हारी उम्र अभी इतनी नहीं हुई कि तुम ऐसे फैसले ले सको!"

    उन्होंने सख्त लहजे में आगे कहा—

    "कल ही डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लो और इस बच्चे को अबॉर्ट करवाओ। तुम सिर्फ अठारह साल की हो, तुम्हें अभी बहुत कुछ हासिल करना है! इस बच्चे के लिए... इस लड़के के लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने की जरूरत नहीं है!"

    लेकिन ऑसम की आँखों में कोई डर नहीं था। उसने उसी मजबूती से जवाब दिया—

    "मैं अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर रही, दादू।"

    उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी जो पहले कभी नहीं दिखी थी।

    "आप भी जानते हैं कि मेरी ज़िंदगी का अपना एक मकसद है। और मैं उस मकसद के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूँ।"

    फिर उसने एक गहरी सांस ली और आगे कहा—

    "यह बच्चा मेरे और उत्कर्ष के प्यार की निशानी नहीं है..."

    कमरे में एक बार फिर गहरा सन्नाटा छा गया।

    उत्कर्ष ने उसे हैरानी से देखा। वो उसकी बात समझ नहीं पा रहा था।

    "मैंने अब तक अपने दिल की बात इसे कभी नहीं कही थी," ऑसम ने कहा, उसकी आँखों में थोड़ी सच्चाई नजर आ रही थी। पर उत्कर्ष को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

    अभिजीत का धैर्य अब जवाब दे रहा था। उन्होंने गुस्से से दहाड़ते हुए पूछा—

    "तो फिर ये बच्चा कैसे आया?"

    ऑसम ने उनकी आँखों में आँखें डालकर जवाब दिया—

    "आप किस्मत की एक अजीब खेल समझ सकते हैं दादू।"

    वह रुकी, उसकी आँखों में हल्की नमी थी, लेकिन उसकी आवाज़ में कोई कंपन नहीं था।

    "दो महीने पहले, पार्टी में कॉर्न ने मुझे ड्रग्स दे दिए थे। उस हालत में मुझे किसी की जरूरत थी। अगर उस रात उत्कर्ष मेरी मदद नहीं करता, तो शायद आज मैं यहाँ आपके सामने खड़ी भी नहीं होती।"

    अभिजीत और रमा अवाक् रह गए।

    उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। वे बस ऑसम को देखते रह गए।

    ऑसम ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,

    "हम आज अबॉर्शन करवाने गए थे, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि अगर मैंने अभी अबॉर्शन करवाया, तो शायद मैं दोबारा माँ नहीं बन पाऊँगी।"

    "मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता," उसने दृढ़ता से कहा। "लेकिन कल को आपको ही अपना वारिस चाहिए होगा। आपको ही मेरी संतान की जरूरत पड़ेगी। इसी कारण मैंने डॉक्टर की बात मानी और…"

    वह एक पल को रुकी, फिर सीधा अभिजीत की आँखों में देखते हुए बोली—

    "मैंने उत्कर्ष के साथ शादी कर ली।"

    अभिजीत को जैसे सुनाई ही नहीं दिया हो। वह अविश्वास से फटी आँखों से उसे देखने लगे।

    "शादी कर ली?" उनकी आवाज़ में हैरानी थी।

    ऑसम ने सिर हिलाया।

    "हाँ, आज ही हमारी शादी हुई है। और मैंने फैसला कर लिया है—मैं इस बच्चे को जन्म दूँगी। और आप मेरे बच्चे के पिता को नहीं मारेंगे!"

    उसकी आँखों में अडिग विश्वास था, जैसे उसने जो ठान लिया, वह पत्थर की लकीर हो।

    अभिजीत के चेहरे की कठोरता बढ़ती जा रही थी, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहते, ऑसम ने आगे कहा,

    "आपने एक बार कहा था कि अगर मैं आपका बिजनेस सँभालूँगी, तो आप मेरी ज़िंदगी के फैसलों में दखल नहीं देंगे।"

    अभिजीत ठिठक गए।

    उनके दिमाग में वह पुरानी बातचीत कौंध गई जब उन्होंने ऑसम से यह शर्त रखी थी।

    और वह जानते थे—ऑसम जो कह रही थी, वह सच था। उन्होंने अपने नाम को बरकरार रखने के लिए awesome का सहारा लिया था और उस से ये वादा किया था वो उसके पर्सनल मामलों में कभी नहीं पड़ेंगे।

    ऑसम ने उनकी खामोशी को अपने पक्ष में भाँप लिया और आगे कहा,

    "हम फिर से शादी करेंगे, एक ग्रैंड वेडिंग, जिसमें आप अपने दोस्तों और बिजनेस पार्टनर्स को बुला सकते हैं। सबको यही लगेगा कि मैं और उत्कर्ष एक-दूसरे से प्यार करते हैं और इसलिए हमने शादी की है।"

    वह एक पल को रुकी, फिर पूरे कमरे में नजर दौड़ाई।

    "किसी को भी सच्चाई का पता नहीं चलेगा।"

    उसने धीरे-धीरे सारे नौकरों की तरफ देखा।

    सभी ने एक साथ सिर झुका लिया।

    इसका मतलब साफ था—अब यह राज किसी के सामने नहीं खुलेगा। कोई भी दुबारा इस बारे में बात तक नहीं कर सकता था।

    अभिजीत बेसुध से सोफे पर बैठ गए और अपना सिर सहलाने लगे।

  • 6. My Awesome - Chapter 6

    Words: 2107

    Estimated Reading Time: 13 min

    तुर्की,

    कमरे में गहरा सन्नाटा था। सभी अभिजीत के फैसले का इंतजार कर रहे थे।

    लेकिन उत्कर्ष की नज़रें तो बस ऑसम पर टिकी थीं।

    वह बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रहा था।

    उसके मन में सवालों का तूफान था—

    "इन्होंने झूठ क्यों बोला कि ये मुझसे प्यार करती हैं? ये सब आखिर क्यों कहा? क्या जरूरत थी यह सब कहने की?"

    लेकिन उसके सवालों का जवाब उसे तभी मिला, जब अभिजीत ने कुछ पल के बाद ऑसम की आँखों में देखा और सीधा सीधा पूछा,

    "तुम सच में उत्कर्ष से प्यार करती हो?"

    "अगर ऐसा नहीं है, तो मुझे सच बताओ।" अभिजीत की आवाज़ में नर्मी थी, लेकिन शब्दों में वही पुराना प्रभाव। "मैं तुम्हारे और तुम्हारे बच्चे के लिए एक ऐसा लड़का ढूँढूँगा जो तुम दोनों की पूरी जिम्मेदारी लेगा। एक ऐसा शख्स जिसका नाम और रुतबा हमारे बराबर का होगा।"

    वह रुके और फिर सख्त आवाज़ में बोले—

    "तुम्हें सिर्फ इस बच्चे के लिए उत्कर्ष से शादी करने और मुझसे झूठ बोलने की जरूरत नहीं है, ऑसम।"

    उनकी यह बात सुनकर उत्कर्ष को झटका लगा।

    "ओह…" उसने मन ही मन सोचा। "तो इसीलिए ऑसम ने झूठ कहा था कि वह मुझसे प्यार करती है। उसे पता था कि सर ऐसा ही कहेंगे… और अगर ऐसा हुआ, तो यह बच्चा मुझ तक कभी नहीं आ पाएगा।"

    उसने गहरी साँस ली और फिर अपनी नज़रें ऑसम पर टिका दीं।

    अब वह उसके जवाब का इंतजार कर रहा था।

    लेकिन ऑसम की आँखों में न तो झिझक थी, न डर।

    वह वैसे ही शांत और आत्मविश्वास से भरी खड़ी थी।

    और फिर उसने बिना रुके, बिना हिचकिचाए कहा—

    "मैंने झूठ नहीं कहा है आपसे, मुझे उत्कर्ष से प्यार है। और मैं इसके साथ ही शादी करूँगी।"

    उसने आगे बढ़कर दृढ़ता से कहा—

    "ये इस बच्चे की पूरी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है। और अगर इसने फ्यूचर में कभी भी मुझे धोखा देने की कोशिश की…"

    वह रुकी, उसकी आँखों में अब वही पुरानी चिंगारी जल रही थी।

    "तो उसी पल मैं इसके सीने में सारी गोलियाँ दाग दूँगी।”

    उसकी बात खत्म होते ही उत्कर्ष ने उसकी ओर हैरानी से देखा। उत्कर्ष की आँखें फटी की फटी रह गईं थीं।

    उसने खुद से कहा, "ये सब कहने और मुझे डराने की क्या जरूरत थी? ये सब नहीं भी कहती तब भी शायद सर मान ही जाते"

    उसकी आविन पर नज़र पड़ी, जो मुँह दबाए हँस रहा था।

    उसे हंसता देख उत्कर्ष का जी चाहा कि अभी उसके पास जाकर दो-चार जमा दे, पर उसने अपने इमोशन्स को कंट्रोल किया और सीधा खड़ा रहा।

    अभिजीत कुछ पल गहरी सोच में डूबे रहे, फिर उन्होंने अपना फैसला सबको बताते हुए कहा,

    "ठीक है, रमा। इनकी शादी की तैयारी करो। जो भी शुभ मुहूर्त निकले, उसी दिन शादी कर दी जाएगी।पर उत्कर्ष एक बात याद रखना। मैं तुम्हे awesome की जिम्मेदारी सौंफ रहा हूं। तुम्हें इसका भी पूरा खयाल रखना है। अगर कभी मुझे कोई शिकायत सुनने को मिली तो…”

    अभिजीत के मुँह से ये सुनकर सबने राहत की साँस ली। उत्कर्ष के दिल में तो डर का सैलाब उठने लगा था। पर उसने धीरे से हां में सिर हिला दिया था। उसके लिए तो यही खुशी की बात थी कि अब उसका बच्चा इस दुनिया में किसी मुसीबत और उलझन के बिना खुशी खुशी आ सकता था।

    कई लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई, लेकिन ऑसम का चेहरा अब भी वैसा ही शांत था। उसकी आँखों में न खुशी थी, न संतोष—बस वही ठहरी हुई शांति। इससे जैसे उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो।

    थोड़ी देर बाद सब अपने-अपने कमरों में चले गए।

    कुछ देर बाद उत्कर्ष सिर झुकाए अपने कमरे में खड़ा था, और रमा परेशानी से उसके सामने कमरे में चक्कर काट रहे थे।

    आविन भी एक तरफ खड़ा सब देख रहा था।

    जब उससे नहीं रहा गया, तो उसने आखिरकार पूछ ही लिया—

    "नानू, अब आपको क्या हुआ? आप क्यों इतने परेशान हो रहे हैं? अब तो सब ठीक हो चुका है!"

    रमा एक पल के लिए रुके, फिर गहरी साँस लेते हुए बोले—

    "नहीं… अब सब कुछ और उलझ चुका है।"

    उन्होंने उत्कर्ष की तरफ देखा और बोले—

    "तुम नहीं जानते कि तुम किस दलदल में फँस चुके हो, बेटा। तुम ऑसम और उसके परिवार के बारे में कुछ भी नहीं जानते।"

    उत्कर्ष ने भौंहें चढ़ाईं।

    "मतलब?"

    रमा ने एक पल को उसकी आँखों में देखा, फिर जैसे खुद को रोक लिया।

    "कुछ नहीं," उन्होंने जल्दी से कहा।

    लेकिन उत्कर्ष उनकी झिझक पकड़ चुका था।

    रमा ने नज़रें चुरा लीं और बोले—

    "बस इतना समझ लो कि ये शादी तुम्हारे लिए आसान नहीं होगी। और सबसे बड़ा सच… वो जो तुम अब तक नहीं जानते…"

    वो बोलते-बोलते एकदम से चुप हो गए।

    उनका गला सूख गया था।

    उन्होंने खुद को संभाला और मन ही मन कहा—

    "नहीं… अभी नहीं। अभी उसे आरुषि और ऑसम के रिश्ते के बारे में नहीं बताना चाहिए। अगर उसे अभी पता चला तो शायद वह ऑसम से शादी करने के लिए कभी राज़ी नहीं होगा, पर जब awesome और आरुषि को इस बारे में पता चलेगा तब क्या होगा?”

    उन्होंने एक गहरी साँस ली और बोले—

    "अभी कुछ मत पूछो, उत्कर्ष। बस मेरी एक बात मान लो—अपने कदम सोच-समझकर रखना।"

    उत्कर्ष ने उन्हें ध्यान से देखा। वो अब तक इतना तो समझ चुका था कि कुछ तो है जो रमा उससे छिपा रहे थे।

    "क्या?"

    "क्या ऐसा कुछ है जो मुझे नहीं पता?" उत्कर्ष ने उनकी आंखों में देखते हुए पूछा।

    लेकिन रमा ने कोई जवाब नहीं दिया।

    आविन ने रमा को देखते हुए कहा,

    "आप क्या कहने वाले थे, नानू? अपनी बात पूरी तो कीजिए।"

    रमा ने हल्का सिर झटका और गहरी साँस लेते हुए बोले,

    "छोड़ो… जब वक्त आएगा, तब तुम्हें खुद ही सब पता चल जाएगा।"

    फिर उन्होंने उत्कर्ष की तरफ देखा और गंभीर स्वर में कहा,

    "लेकिन उससे पहले तुम्हें ऑसम के बारे में कुछ बातें जान लेनी चाहिए, उत्कर्ष।"

    उत्कर्ष और आविन ने एक-दूसरे की तरफ देखा।

    रमा ने आगे कहा,

    "तुमने उसकी मदद करके अच्छा किया। तुमने उसकी जान बचा ली, उसकी ज़िंदगी और बर्बाद होने से रोक ली… वरना अगर वो कॉर्न के हाथों लग जाती, तो शायद अब तक पूरी तरह खत्म हो चुकी होती।"

    रमा की बात सुनकर उत्कर्ष और आविन दोनों चौंक गए।

    उत्कर्ष ने फौरन पूछा, "मतलब क्या है दादू? ये कॉर्न कौन है? और वो ऑसम के पीछे क्यों पड़ा था?"

    आविन भी हैरानी से बोला, "और आप ये क्यों कह रहे हैं कि उसकी ज़िंदगी और खराब हो सकती थी? इतनी बड़ी हवेली, इतना पैसा, इतना बड़ा नाम—ऑसम के पास क्या नहीं है?"

    रमा हल्की मुस्कान के साथ बोले,

    "बेटा, जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है।"

    "ऑसम के पास सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है।"

    "तुमने कभी अभिजीत सर को उसके साथ बैठकर दो बातें करते देखा है? कभी उसे उनके साथ खाना खाते देखा है? कभी उसके पेरेंट्स के बारे में सुना है?"

    रमा के सवाल सुनकर उत्कर्ष सोच में पड़ गया।

    वाकई, उसने तीन सालों में कभी भी ऑसम को अभिजीत के साथ हँसते-बोलते नहीं देखा था।

    कभी किसी फैमिली डिनर में उसे बैठते नहीं देखा था।

    वह हमेशा अलग-थलग रहती थी…बिल्कुल एक अजनबी की तरह।

    उसने धीमी आवाज़ में कहा, "उनके पेरेंट्स कहाँ हैं? वो कभी उनसे मिलने क्यों नहीं आते? क्या वो… इस दुनिया में नहीं हैं?"

    रमा ने फीकी मुस्कान के साथ कहा,

    "वो होकर भी नहीं हैं, बेटा।"

    फिर उन्होंने एक ठंडी साँस ली और बोले,

    "ऑसम अगर उन्हें मरा हुआ मान लेती, तो शायद ज़्यादा बेहतर होता… लेकिन वो उनके लिए अपने दिल में सिर्फ़ नफरत लिए बैठी है।"

    उत्कर्ष और आविन को अब महसूस हो रहा था कि ऑसम की ज़िंदगी उतनी चमकदार नहीं है, जितनी बाहर से दिखती है…

    रमा की बातें सुनकर उत्कर्ष की आँखों में और भी सवाल उठने लगे थे। उसने सिर झुका लिया, लेकिन रमा ने अपनी बात जारी रखी।

    "आज से अठारह साल पहले, जब ऑसम का जन्म हुआ था, उसी दिन एक भयंकर आग ने उनकी जिंदगी बदल दी थी। इस आग ने उनकी माँ आराधना को हमसे छीन लिया था। आराधना के जाने के बाद, उनके पिता अनुराग टूट गए थे।"

    रमा की आवाज़ धीमी हो गई।

    "अनुराग को ऐसा लगा जैसे ऑसम के जन्म के साथ ही उनकी आराधना उनसे दूर हो गई। उसे लगा कि ऑसम उसकी पत्नी की मौत का कारण है। और उसी दिन उसने ऑसम को अपने घर से बाहर निकाल दिया था।"

    उत्कर्ष और आविन चुपचाप सुन रहे थे।

    "उस समय मैं और अभिजीत उसके घर गए थे। अभिजीत को अपना वारिस चाहिए था, इसलिए उन्होंने ऑसम को अपनी जिम्मेदारी बना और उसे हमारे साथ यहाँ ले आए।"

    रमा ने एक गहरी साँस ली और फिर कहा,

    "अनुराग को कभी माफिया की दुनिया में कोई रुचि नहीं थी। वह शांत और शांति से जीने वाला व्यक्ति था, लेकिन अभिजीत का स्वभाव अलग था। अभिजीत ने ऑसम को पाला, लेकिन कभी उसे अपनी बेटी की तरह नहीं अपनाया। अभिजीत अपने नाम और रुतबे से ज्यादा प्यार करते है। उन्होंने ऑसम को अपनाया, लेकिन कभी उसे वह प्यार नहीं दिया, जिसकी वह हकदार थी।"

    उत्कर्ष को इस सबकी कल्पना भी नहीं थी। वह चुपचाप सुन रहा था, और उसके मन में एक और सवाल उमड़ा।

    "कॉर्न के दादा और अभिजीत के बीच ये खींचतान बहुत पुरानी है। अभिजीत ने कॉर्न के दादा को मात दी थी, लेकिन कॉर्न के पिता ने बदला लेने की कोशिश की, जो वह सफल नहीं हो पाए। और अब, उसी तरह कॉर्न उन सबके पीछे पड़ा है, जिससे तुम्हें भी सावधान रहना होगा।"

    रमा ने फिर से उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा,

    "उत्कर्ष, तुम अब तक जो कुछ भी जान पाए हो, वह आधी बात है। जब वक्त आएगा, मैं तुम्हें सब कुछ विस्तार से समझाऊँगा। बस तुम यह ध्यान रखना कि ऑसम को कभी अकेला मत छोड़ना। हमेशा उसके साथ खड़े रहना, उसे समझने की कोशिश करना, क्योंकि वह अब तक बहुत कुछ सह चुकी है।"

    उत्कर्ष गहरी सोच में पड़ गया। उसे अब समझ में आ रहा था कि ऑसम की ज़िंदगी उतनी सरल नहीं थी जितनी वह सोचता था। वह सच में उसे सही तरीके से समझने की कोशिश करेगा, और उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।

    रात का समय था, पर उत्कर्ष के आंखों में नींद नहीं थी । वह बार-बार "Awesome" के बारे में सोच रहा था। रमा ने जो कुछ भी बताया था, उससे उत्कर्ष के मन में और भी सवालों की लहर उठ गई थी। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

    वह बार-बार बिस्तर पर करवट बदल रहा था, लेकिन नींद आना मुश्किल था। अंत में उसने खुद को शांत करने के लिए कमरे से बाहर निकलने का फैसला किया। गार्डन में ठंडी हवा का एक झोंका उसे कुछ राहत दे सकता था।

    गार्डन में कदम रखते ही उसकी नजरें अचानक Awesome के कमरे की रोशन खिड़की पर जा पड़ी। वह धीरे-धीरे उसके कमरे के पास आया और देखा कि Awesome अपनी बालकनी में खड़ी थी।

    उसे देख उत्कर्ष की नज़रें उस पर ही ठहर गईं। उसकी आँखें जैसे Awesome के रूप और हाव-भाव में खो गईं।

    Awesome ने काले रंग का सटल नाइट सूट पहन रखा था। उसके लंबे बाल हवाओं में लहरा रहे थे, और उसकी आँखें चाँद की ओर थीं, जैसे पूरी दुनिया से बेखबर वो खुद से ही कुछ सवाल जवाब कर रही हो।

    उत्कर्ष ने आज पहली बार उसे इस तरह देखा था। उसका रंग दूध जैसा सफेद था, एक छोटा और प्यारा चेहरा, लंबे काले बाल, और सबसे खास उसकी ग्रीन आँखें।

    उत्कर्ष ने अब तक कभी भी उसे इस तरह से नहीं देखा था। अक्सर वह अपने बालों को एक पूनी टेल में बांध कर रखती थी, और काले रंग के कपड़े पहनती थी, जो उस पर बहुत सूट करते थे। लेकिन आज, शायद उसने कुछ और देखा था, या फिर आज उसने पहली बार ठीक से गौर किया था। शायद यही वजह थी कि आज Awesome की खूबसूरती कुछ और ही नजर आ रही थी।

    उसकी नजरों से बेखर awesome की आँखें चांद को निहार रही थी , मानो वो खुद से ही सवाल जवाब कर रही हो।

    थोड़ी देर बाद awesome ने अपनी पलके झुका ली और चांद से नजरे हटा कर अंदर जाने को मुड़ी कि उसकी नजर भी उत्कर्ष पर पड़ी।

    दोनों की आँखें आपस में टकराईं, और एक दूसरे पर ही थम गई।

    कुछ पल बाद awesome ने धीरे-धीरे कमरे की ओर रुख किया, लेकिन उसका हाथ अपने पेट पर आ गया था।

    उत्कर्ष ने उसे देखा था, उसकी आँखों ने कुछ पढ़ लिया था। दर्द की हल्की लकीरें जो awesome के चेहरे पर उभर आई थीं, इसे याद कर उत्कर्ष के दिल में कुछ खटका।

    फिर वो एक दम से बिना एक पल गवाए, तेजी से उसके कमरे की ओर भाग पड़ा….

  • 7. My Awesome - Chapter 7

    Words: 2035

    Estimated Reading Time: 13 min

    तुर्की,

    उत्कर्ष घबराते हुए भागता हुआ आया और बिना रुके सीधे Awesome के कमरे में घुस गया। इस वक्त Awesome बेड पर पेट के बल लेटी हुई थी, शायद वह सोने की कोशिश कर रही थी।

    उसे इस तरह लेटा देख उत्कर्ष के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गईं। वह तेजी से उसके पास पहुँचा और हल्के से उसे छूते हुए बोला, "आप ठीक तो हैं? पेट में दर्द हो रहा है क्या? डॉक्टर के पास चलें? मैं तुरंत ले चलता हूँ!"

    उत्कर्ष की आवाज में घबराहट साफ झलक रही थी। अचानक उसे अपने कमरे में और इतने करीब देखकर Awesome हड़बड़ा कर उठ बैठी। वह कुछ पलों तक उसे हैरानी से देखती रही, फिर हल्के गुस्से में बोली, "तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और बिना नॉक किए अंदर कैसे आ गए?"

    लेकिन उत्कर्ष को उसकी नाराज़गी से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह बेफिक्री से बोला, "ये सब छोड़िए, पहले ये बताइए कि आपको हुआ क्या है? दर्द ज्यादा हो रहा है?"

    Awesome ने गहरी सांस ली और खुद को संयत करते हुए कहा, "पहले तुम शांत हो जाओ, और इतनी घबराहट मत दिखाओ। कुछ ज्यादा नहीं हुआ है।"

    उत्कर्ष थोड़ा सीधा होकर बैठ गया, लेकिन उसकी आँखों में चिंता अभी भी साफ झलक रही थी। Awesome ने एक नजर उसे देखा और फिर धीमे से कहा, "बस हल्का दर्द है, कोई बड़ी बात नहीं।"

    लेकिन उसकी बात सुनते ही उत्कर्ष फिर से बेचैन हो गया, "यही तो मैं कह रहा हूँ! अगर दर्द हो रहा है तो डॉक्टर के पास चलते हैं, आप बहस मत कीजिए।"

    इतना कहते ही उसने बिना कुछ सोचे समझे Awesome का हाथ पकड़ लिया और उठने लगा।

    Awesome ने झट से उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया और नरम लहजे में बोली, "उत्कर्ष, इतनी जल्दी घबराने की जरूरत नहीं है। यह सब मेरे लिए नॉर्मल है, कुछ ही देर में ठीक हो जाएगा।"

    उसकी आवाज में आत्मविश्वास था, जिससे उत्कर्ष थोड़ा शांत हुआ, लेकिन उसकी आँखों में अब भी वही चिंता बनी हुई थी। उत्कर्ष अब भी यह सोच रहा था कि क्या सच में सब ठीक है या नहीं।

    तभी, उसकी निगाह पास रखी खाने की प्लेट पर टिक गई। आधा से ज्यादा खाना वैसे ही पड़ा था। खाने को देख वो समझ गया कि Awesome ने ठीक से खाया ही नहीं है।

    उसका माथा सिकुड़ गया। उसने हल्की चिंता से पूछा, "आपने खाना ठीक से क्यों नहीं खाया?"

    Awesome करवट लेते हुए आँखें बंद कर बोली, "मन नहीं कर रहा। अब जाओ, मुझे सोना है।"

    उत्कर्ष कुछ पलों तक उसे देखता रहा, फिर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चला गया।

    जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, Awesome ने तकिए को कसकर पकड़ लिया और अपनी आँखें भींच लीं।

    बीस मिनट बाद...

    कमरे में हल्की रोशनी थी। Awesome की आँखें अभी भी बंद थीं जब दरवाजे की हल्की आवाज़ आई।

    उत्कर्ष वापस आ चुका था। इस बार उसके हाथ में एक सूप से भरा बाउल था। वह उसके पास बैठते हुए हल्की, लेकिन सख्त आवाज़ में बोला, "Awesome, उठ जाइए और गरमा-गरम सूप पी लीजिए। आपको अच्छा लगेगा।"

    Awesome ने आँखें खोलीं और उसकी ओर देखा। उसकी नजर बाउल पर गई, जिससे बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। वह चुपचाप उठकर बैठ गई और बिना कुछ कहे उत्कर्ष के हाथ से बाउल ले लिया।

    जैसे ही उसने पहला चम्मच लिया, गर्माहट उसके अंदर तक उतर गई। सूप के टेस्ट और खुशबू ने उसे थोड़ा सुकून दिया था।

    उत्कर्ष उसे ध्यान से देख रहा था, शायद यह चेक करने के लिए कि वह सच में सूप पी रही है या नहीं।

    कुछ पल बाद, Awesome ने हल्की नाराजगी से कहा, "मुझे देखना बंद करोगे तुम?"

    उत्कर्ष झेंप गया और तुरंत अपनी नजरें घुमा लीं। वह गला साफ करते हुए बोला, "आप कुछ कहती क्यों नहीं हैं? अगर कोई परेशानी हो तो शेयर किया कीजिए।"

    Awesome ने धीरे से सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में एक अनकहा सवाल था, लेकिन वह चुप रही।

    उत्कर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "आपके मूड स्विंग कर रहे हैं। प्रेग्नेंसी में ऐसा होना नॉर्मल है, लेकिन आपको इस हालत में भूखा नहीं रहना चाहिए। आपके और बेबी के लिए यह अच्छा नहीं है।"

    Awesome ने उसकी बात सुनी, लेकिन बदले में कुछ नहीं कहा।

    उत्कर्ष ने आगे कहा, "अगर आपको नॉर्मल खाना अच्छा नहीं लगता या खाने का मन नहीं करता, तो मुझे बताइए। मैं आपके लिए कुछ बना दिया करूंगा। जो भी आपका मन करे। लेकिन बिना खाए रहना सही नहीं है।"

    उसकी आवाज में सच्ची फिक्र थी।

    Awesome ने धीरे से बाउल नीचे रखा और एक पल के लिए उसे देखा। उसके होंठ हिले, मानो कुछ कहना चाहती हो, लेकिन फिर चुप रही।

    उत्कर्ष बस यही चाहता था कि वह ठीक रहे। और वह तब तक उसका ख्याल रखेगा, जब तक उसे उसकी जरूरत होगी।

    फिर Awesome ने अपना सूप का बाउल उठाया और बस अपना सूप पीने लगी।

    सूप खत्म करने के बाद उत्कर्ष ने उसकी दवाई निकालकर दी और एक गिलास पानी थमाया। Awesome ने बिना कुछ बोले पानी का गिलास पकड़ा, दवाई ली और निगल गई।

    उत्कर्ष ने उसे धीरे से बेड पर लिटाया और कंबल ओढ़ाने लगा। यह देखकर Awesome हल्का सा चिढ़ते हुए बोली, "इन सबकी जरूरत नहीं है! मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ, समझे?"

    उत्कर्ष ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी आँखों में झाँका और बड़े ही प्यार से बोला, "छोटी बच्ची नहीं हो, लेकिन एक छोटी बच्ची की माँ तो बनने वाली हो, है ना?"

    उसकी इस बात पर Awesome कुछ पलों तक चुप रही, फिर हल्का सा भौंहें चढ़ाते हुए बोली, "तुम्हें कैसे इतना यकीन है कि बेटी ही होगी? बेटा भी तो हो सकता है!"

    उत्कर्ष ने उसकी बात पर सिर हिलाया और एक मीठी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "नहीं, मुझे पूरा यकीन है। मुझे बेटी ही होगी… एक प्यारी सी बेटी।"

    Awesome ने आँखें छोटी कीं और उसे घूरते हुए बोली, "एक्सक्यूज़ मी! वो मेरी भी बेटी होगी। नौ महीने मेरे पेट में रहेगी, तो ज़ाहिर है कि कुछ गुण मेरे जैसे भी होंगे! और तुम देखना… वो बहुत खतरनाक होगी। पूरी दुनिया उसके नाम से काँप उठेगी!"

    उत्कर्ष उसकी बात पर हँस पड़ा। उसे लगा कि Awesome बस मज़ाक कर रही थी… लेकिन वह नहीं जानता था कि जो वो कह रही थी, वह सच होने वाला था।

    उन दोनों की इच्छा पूरी होने वाली थी। उनकी बेटी जितनी मासूम दिखेगी, उतनी ही खतरनाक भी होगी।

    उत्कर्ष ने सिर हिलाया और उठकर जाने ही वाला था कि अचानक दरवाजे पर रुक गया। कुछ सोचते हुए वह हल्की आवाज़ में बोला, "अगर आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो… मैं यहीं सो जाऊँ?"

    Awesome ने आँखें खोलकर उसे देखा, तो उत्कर्ष जल्दी से सफाई देने लगा, "मेरा मतलब… सोफे पर! डॉक्टर ने कहा था कि आपका खास ध्यान रखना है। आप अभी बहुत कमजोर हैं, और अगर रात में फिर से बेहोश हो गईं तो? तो क्या होगा"

    उसने एक हल्की मुस्कान के साथ आगे कहा, "मैं बस यहीं सोफे पर सो जाऊँगा। शादी के बाद भी वहीं सोया करूँगा… आपके करीब नहीं आऊँगा।"

    Awesome उसकी बात चुपचाप सुनती रही। फिर बिना कुछ कहे हल्का सा सिर हिला दिया और करवट बदलकर आँखें बंद कर लीं।

    उत्कर्ष ने दरवाज़ा लॉक किया और सोफे पर आकर लेट गया। कुछ ही देर में उसे भी नींद आ गई, और वो गहरी नींद में सो गया।

    कुछ दिन बाद…

    शादी का मंडप सजा था। चारों तरफ रोशनी की जगमगाहट और मंत्रोच्चार की गूंज थी। मंडप के बीचों-बीच Awesome और उत्कर्ष अग्नि के सामने बैठे थे, पवित्र अग्नि में आहुति दे रहे थे।

    उत्कर्ष ने सफेद शेरवानी पहनी थी, जिसमें वह बेहद हैंडसम लग रहा था। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक अजीब सी बेचैनी और उलझन झलक रही थी।

    वहीं Awesome ने लाल रंग का हैवी ब्राइडल लहंगा पहना था। गहनों और मेकअप से सजी वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। उसकी हर अदा, हर नजर, हर झलक दिलों को धड़काने वाली थी। वह सच में कहर ढा रही थी।

    जैसा कि Awesome ने कहा था, अभिजीत ने अपने सारे दोस्तों और बिजनेस पार्टनर्स को इस शादी में बुलाया था। सबको यही पता था कि यह एक लव मैरिज है—Awesome और उत्कर्ष की प्रेम कहानी का खूबसूरत अंजाम।

    लेकिन यह अंजाम नहीं था… यह तो बस एक नई शुरुआत थी।

    पंडित जी ने फेरों के लिए खड़ा होने को कहा। उत्कर्ष तुरंत खड़ा हो गया, लेकिन जैसे ही Awesome उठने लगी, उसका सिर चकरा गया। उसके कदम लड़खड़ा गए, और वह गिरने ही वाली थी कि इससे पहले ही उत्कर्ष ने तेजी से उसे अपनी बाहों में थाम लिया।

    Awesome की आँखें कुछ पल के लिए बंद हो गई थीं। उसे इस हालत में देख सब घबरा गए। अभिजीत ने भी उसे देखा, और उनकी पकड़ अपने हाथ में पकड़ी ड्रिंक पर कस गई। उनकी निगाहें Awesome पर टिकी थीं, उनकी आंखे थोड़ी गुस्से से भर आई थी।

    थोड़ी देर बाद Awesome ने धीरे से आँखें खोलीं और खुद को उत्कर्ष की बाहों में पाया। उसने उत्कर्ष की आँखों में देखा, और इससे पहले कि वह कुछ कहती, उत्कर्ष ने झटके से उसे गोद में उठा लिया और फेरों के लिए आगे बढ़ गया।

    Awesome ने उसके गले में अपनी बाहें डाल दीं और चुपचाप उसे देखने लगी। उसके चेहरे पर हल्की थकान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।

    इधर, अभिजीत ने स्थिति को सँभालने के लिए जबरदस्ती मुस्कुराते हुए अपने आस-पास खड़े लोगों से कहा, "शादी में इतनी रस्में होती हैं कि कोई भी थक सकता है। Awesome भी थोड़ी थक गई है।"

    सबने सहमति में सिर हिलाया और फिर फेरों की ओर देखने लगे। सामने खड़े हर शख्स की नज़र उत्कर्ष और Awesome पर थी—एक परफेक्ट कपल, जो एक पवित्र बंधन में बंधने जा रहा था। दोनों के चेहरे पर शांति थी, लेकिन दूर किसी कोने में बैठा कोई था, जिसकी आँखों में गुस्से की आग धधक रही थी।

    दूसरी तरफ...

    एक बड़े स्क्रीन पर उत्कर्ष और Awesome को देखते हुए, कॉर्न का खून खौल रहा था। उसने गुस्से से सामने रखी टेबल पर जोर से पैर मारा और दाँत पीसते हुए कहा,

    "ये तुमने अच्छा नहीं किया, Awesome! तुम्हें मेरी होना चाहिए था! तुम पर सिर्फ मेरा हक होना चाहिए था!"

    उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं। वह उठकर स्क्रीन के और करीब आ गया, उत्कर्ष को घूरते हुए बुदबुदाया,

    "अगर उस दिन ये लड़का बीच में नहीं आता, तो आज मैं वहाँ होता। Awesome को मुझसे छीनने का बदला मैं ज़रूर लूँगा, उत्कर्ष… छोड़ूँगा नहीं तुम्हें!"

    उसकी मुट्ठियाँ कस गईं, चेहरे की नसें खिंच गईं, और उसकी आँखों में जलती हुई नफरत साफ झलक रही थी।

    "सोचा था तुमसे शादी करके एक अच्छी ज़िंदगी जीऊँगा, अपनी खानदानी दुश्मनी को भूल जाऊँगा... लेकिन नहीं! तुमने उत्कर्ष से शादी करके बहुत बड़ी गलती कर दी। बस एक मौका... और मैं तुम दोनों से तुम्हारी सारी खुशियाँ छीन लूँगा!"

    उसकी आँखों में नफरत, जुनून और बदले की आग जल रही थी।

    कॉर्न के इरादों से बेखबर, उत्कर्ष और Awesome अपने फेरों की आखिरी आहुति दे रहे थे। पंडित जी ने पवित्र मंत्र का चाप खत्म करते हुए कहा,

    "आज से आप दोनों पति-पत्नी हुए। एक-दूसरे का साथ कभी मत छोड़िएगा।"

    उत्कर्ष और Awesome ने एक-दूसरे की आँखों में देखा। दोनों की आँखें इस वक्त एक दूसरे से कुछ कहना और कुछ पूछना चाहती थी पर किसी ने भी साफ तौर पर एक दूसरे से कुछ नहीं कहा और अपनी अपनी नजरे फेर ली।

    वो नहीं जानते थे कि उनकी यह खामोशी उनके जिंदगी में क्या मोड़ ला सकता था। उनके बीच कितनी दूरियां आ सकती थीं।

    Awesome ने एक गहरी सांस ली और हल्के से पलके झुका कर अपने पेट के तरफ देखा। वहीं उत्कर्ष ने भी एक राहत की सांस लेते हुए खुद से कहा, “मैं अपनी बच्ची को हर वो खुशियां दूंगा जिसकी वो हकदार होगी। उसे एक बेहतर जिंदगी और अच्छा इंसान बनाऊंगा, बस मुझे इसके अलावा और कुछ नहीं चाहिए। मेरी बेटी बस सही सलामत इस दुनिया में, मेरी गोद में आ जाए”।

    अभिजीत दोनों को देख रहे थे। उनके चेहरे पर एक जंग जीतने वाली मुस्कान थी। उन्होंने मन में कहा, “मेरा वारिस आने वाला है। वो जो मेरे इस रुतबे को कायम रखेगा। मेरा नाम और रौशन करेगा। मेरी कुर्सी संभालेगा और पूरी दुनिया पर राज करेगा..”।

  • 8. My Awesome - Chapter 8

    Words: 2555

    Estimated Reading Time: 16 min

    Five years later,

    जयपुर।

    एक लड़की अपने घुटनों के बीच सिर छिपाए ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। उसके एक औरत और एक लड़किय खड़ी थीं, जो उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थीं, पर उसकी सिसकियाँ थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं।




    वो माध्यम उम्र की औरत, जो उसकी माँ थी, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली,

    “बेटा, खुद को संभालो। देखो, क्या हालत बना ली है तुमने अपनी। कुछ नहीं होगा उसे। भगवान पर भरोसा रखो।”




    लड़की ने रोते हुए ना में सिर हिलाया और दर्द भरे आवाज में बोली,

    “कैसे शांत हो जाऊँ, माँ? अगर उसे कुछ हो गया, तो मैं जीते जी मर जाऊँगी। मैं उसके बिना नहीं जी सकती। प्लीज, आप कुछ करो न। उसे ढूँढ लाओ, कहीं से भी… प्लीज!”




    लड़की की बात सुनकर उसकी माँ और साथ खड़ी लड़की की आँखें भी भर आईं। पाँच घंटे हो चुके थे और वह लड़की लगातार फफक-फफक कर रो रही थी। आसपास के लोग उसे समझाने और चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसका ग़म कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
    तभी साथ खड़ी लड़की, जो उसकी दोस्त थी। वो उसे समझाते हुए बोली, “रोने से कुछ नहीं होगा, हिम्मत से काम रखो। रो कर अपनी तबियत खराब मत करो। सब गए हैं न उसे ढूंढने, वो जल्द ही मिल जाएगा”।



    तभी बाहर से गाड़ियों के रुकने की आवाज़ आई।




    आवाज़ सुनते ही रो रही लड़की ने झट से सिर उठाया। उसकी आँखों में एक उम्मीद की चमक आई। वह तेज़ी से खड़ी हुई और कमरे से बाहर की ओर भागी।




    उसके पीछे बाकी वो दोनों भी कमरे से बाहर आ गए। वह घर बेहद बड़ा और आलीशान था। घर के बड़े दरवाजे से कुछ लोग अंदर आ रहे थे।




    लड़की भागते हुए सीधे एक माध्यम उम्र के व्यक्ति के पास पहुँची और उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी। वह व्यक्ति, जो उसके पिता थे, उसे सीने से लगाकर कसकर बाँध लिया। प्यार से उसके बाल सहलाते हुए उन्होंने कहा,

    “मैं हूँ न, प्रिंसेस। अपने डैड पर थोड़ा तो भरोसा रखो। मैं उसे सही-सलामत दुनिया के किसी भी कोने से ढूँढकर तुम्हारे पास ले आऊँगा। उसे कुछ नहीं होगा।"

    लड़की ने रोते-रोते उनके सीने से सिर उठाया और आँसुओं से भीगी आवाज़ में बोली,

    “डैड, आपने पिछली बार भी यही कहा था। लेकिन आपने मेरे प्यार को मुझसे दूर जाने दिया। आपने वादा किया था कि मेरी शादी उससे हीे कराएँगे। पर आपने अपना वादा नहीं निभाया। आपने उसे किसी और का होने दिया।"

    यह कहते-कहते उसका गला रुंध गया। वह फिर से उनकी बाहों में सिसक पड़ी।

    लड़की की बात सून उसके डैड के चहरे पर गुस्से की एक ठंडी परत जम गई थी, पर वहां कोई और भी था जिसकी आंखों में हल्का लाल रंग उभर आया था। वो बेहद गुस्से से उस लड़की को घूर रहा था जैसे उसकी बाते उसे अंदर तक चुभ रही हो।




    अनुराग सिंह राजपूत, जो आमतौर पर हर स्थिति में खुद को मजबूत और नियंत्रण में रखा करते थे, आज शायद पहली बार खुद को बेबस और हारा हुआ महसूस कर रहे थे।

    उन्होंने कुछ कहना चाहा कि वो लड़की बीच में ही उन्हें रोकते हुए बोली “नहीं डैड इस बार नहीं, अगर वो मुझे नहीं मिला तो मैं मर जाऊंगी। आप इंडिया के टॉप पावरफुल बिजनेस मैन में से एक हैं डैड, आप अनुराग सिंह राजपूत हो। क्या आप अपनी बेटी की जिंदगी लौटा नहीं सकते डैड? प्लीज डैड प्लीज कुछ कीजिए, उसे सही सलामत वापस ले आइए"।

    आरुषि की हर बात जैसे हथौड़े की तरह अनुराग के दिल पर लग रही थी। उन्होंने कुछ कहना चाहा कि पीछे से आवाज आई

    "आरुषि, बच्चा हम कोशिश कर रहे है, बहुत जल्द उसे वापस ले आएंगे, तुम खुद को संभालो, कुछ नहीं होगा उसे।"

    आरुषि ने आवाज सुन कर उस शख्स के तरफ देखा। वो आरुषि के बड़े भाई कबीर सिंह राजपूत थे। कबीर को देख, आरुषि और उसकी मां के साथ आई लड़की धीरे से किचन के तरफ चली गई और दरवाजे पर खड़ी हो कर सबको देखने लगी।

    कबीर के आंखों में एक विश्वास था पर आरुषि की तकलीफ कम नहीं हो रही थी। उसके लिए तो हर पल जैसे एक साल सा महसूस हो रहा था।




    "कबीर भाई मुझ से और इंतजार नहीं होता। पांच घंटे गुजर चुके हैं अगर उसने डैड से दुश्मनी के कारण उसके साथ कुछ.. अगर उसने उसे..."

    आरुषि अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई और घुटनों के बल गिर कर फुट फूट कर रोने लगी।




    उसे इस तरह रोते देख कर अनुराग की मुट्ठियां गुस्से से कस गई थी। उनकी आंखों में एक ज्वाला फुट उठी थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो उस इंसान को जिंदा जला देंगे जिसने उसकी बेटी की ये हालत कर दी थी।




    तभी अनुराग की पत्नी, आभा जी, ने शांत लेकिन एक अजीब सा दर्द भरी आवाज़ में कहा,

    “अनुराग… इतना सब हो जाने के बाद भी आप और क्या सोच रहे हैं? क्या आप चाहते हैं कि इससे भी बुरा हो? मेरी बात मानिए… उन से मदद मांगिए”।




    आभा की बात सुनते ही पूरे कमरे में एक अजीब-सी चुप्पी छा गई। हर कोई साँस थामे खड़ा था। यहाँ तक कि रोती हुई आरुषि की सिसकियाँ भी थम गईं। आभा की आँखों में भी आँसू थे। वह जानती थीं कि जिस व्यक्ति का जिक्र उन्होंने किया है, उसका नाम लेना भी अनुराग को कतई पसंद नहीं।




    आरुषि ने सहमे हुए कदम बढ़ाए और अनुराग का हाथ पकड़कर अपने सिर पर रखा। उसकी आवाज़ दर्द और बेबसी से कांप रही थी।

    “डैड, आपको मेरी कसम है। प्लीज, मां की बात मान लीजिए। उनसे मदद मांगिए। मैं जानती हूँ, वो हमारी मदद ज़रूर करेंगी। इस वक़्त हमारी मदद करने वाला कोई और नहीं है। प्लीज, डैड… प्लीज।”

    अनुराग का चेहरा पत्थर जैसा सख्त हो गया। जिस व्यक्ति की बात हो रही थी, उसका नाम भर लेने से ही उनके माथे की नसें तन गईं। उनकी आँखों में गुस्से और अपमान की लहरें उमड़ने लगीं। लेकिन उस पल, उनके लिए सबसे अहम था अपनी बेटी की तकलीफ़। आरुषि के आँसू उनके दिल को तोड़ रहे थे।




    उन्होंने आरुषि की तरफ देखा। उसकी आँखों में मासूमियत और उम्मीद का सैलाब था। अनुराग ने गहरी साँस ली और, बहुत मुश्किल से, धीरे-धीरे सिर हिला दिया।




    “ठीक है,” उन्होंने शांत लेकिन थकी हुई आवाज़ में कहा।




    उनके इस जवाब के साथ ही पूरे हॉल में हलचल मच गई। कुछ लोग हैरान थे, कुछ निश्चिंत। लेकिन अनुराग की गंभीरता ने किसी को भी कुछ कहने का साहस नहीं दिया।




    कुछ ही मिनटों बाद, सभी लोग हॉल में जमा थे। अनुराग सोफे पर बैठे हुए थे, और बाकी सब उनकी तरफ देख रहे थे। उनकी आँखें अब भी गुस्से से भरी थीं, लेकिन उनके भीतर चल रहे तूफ़ान का अंदाज़ा सिर्फ वही लगा सकते थे, जो उन्हें करीब से जानते थे।




    हॉल में भारी सन्नाटा था। आभा ने अनुराग के कंधे पर हाथ रखा, मानो उनका साहस बढ़ाने की कोशिश कर रही हो। अनुराग ने फोन उठाया, कुछ देर तक उसे देखा, फिर एक नंबर डायल किया और कबीर के तरफ फोन बढ़ा दिया।

    कबीर ने फोन को तुरंत वहां रखे बड़े से LED टीवी से कनेक्ट कर दिया और वापस आ कर अपनी जगह पर खड़ा हो गया।

    सभी की नज़रें उनकी तरफ टिक गईं। कोई आवाज़ नहीं थी, बस एक अजीब-सी बेचैनी हवा में तैर रही थी। जब दूसरे तरफ से वीडियो कॉल रिसीव हुई तो सामने एक बॉडीगार्ड दिखा।

    उसे देख अनुराग ने शांत भाव से कहा "मुझे बात करनी है, उस से बात करवाओ मेरी"।

    अनुराग की बात सून बॉडीगार्ड कुछ पल के लिए हैरान रह गया था पर फिर वो जल्दी से अपने सेंस में आया और भागते हुए एक कमरे की तरफ जाने लगा।

    कमरे के पास पहुंच कर, उसने हल्के हाथों से दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर से कोई हलचल नहीं हुई, तो उसने एक बार और कोशिश की। अनुराग और बाकी लोग बेचैनी से दरवाजे को ताक रहे थे।

    थोड़ी देर बाद अंदर से एक ठंडी, गंभीर आवाज आई, "आओ।" बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और धीरे-धीरे अंदर दाखिल हुआ। वीडियो ऑन था, इसलिए अनुराग और बाकियों की नजरें स्क्रीन पर गड़ी हुई थीं, जहां कमरे का दृश्य साफ दिख रहा था।


    वो कमरा काफी बड़ा था, पर हर कोने में बिखरी किताबें और फाइलें इसकी अहमियत बयां कर रही थीं। बीच में एक सोफा सेट और छोटी सी कांच की टेबल रखी थी। दाईं ओर एक बड़ी स्टडी टेबल पर लैपटॉप और कई फाइलें फैली हुई थीं। एक खिड़की खुली थी, जिससे अंदर आती हल्की हवा पर्दों को हिला रही थी।




    खिड़की के पास, ब्लैक जींस और फुल-स्लीव टॉप पहने एक लड़की खड़ी थी। उसके लंबे, हल्के घुंघराले बाल कमर तक गिर रहे थे। हाथ में एक फाइल थी, जिसमें वो पूरी तल्लीनता से खोई हुई थी। उसका चेहरा खिड़की की तरफ था, जैसे वो कमरे की हर बात से बेखबर हो।




    जब अनुराग की नजर उस लड़की पर पड़ी, तो उसके सख्त चेहरे पर एक पल के लिए नर्मी आई। बाकी लोग भी जैसे सांसें थामे, उसे देखते रह गए। लेकिन फिर, जैसे अनुराग के जेहन में कोई पुरानी याद बिजली की तरह कौंधी हो, उनका चेहरा अचानक कठोर और गुस्से से भर गया।




    इधर, लड़की अपनी फाइल में खोई हुई थी। उसने बिना पीछे देखे ही कहा, "क्या बात है? कुछ कहना था तुम्हें?"




    बॉडीगार्ड, जो अब तक दरवाजे के पास खड़ा था, अचानक नर्वस हो गया। माथे पर पसीना झलकने लगा। उसने हल्के स्वर में कहा, "बॉस, आपके लिए एक वीडियो कॉल है। वो लाइन पर हैं।"




    लड़की ने यह सुनकर धीरे-धीरे पीछे मुड़कर उसकी ओर देखा। उसकी सवालिया नजरें बॉडीगार्ड पर टिक गईं। "कौन है?" उसने शांत लेकिन ठंडी आवाज में पूछा।




    बॉडीगार्ड ने सिर झुकाकर मोबाइल फोन लड़की की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही उसकी नजर स्क्रीन पर पड़ी, उसके चेहरे के भाव बदल गए। कुछ पल के लिए वह अपनी जगह पर ही फ्रिज हो गई, और उसकी आंखें मोबाइल स्क्रीन पर टिक गईं। दूसरी ओर, जब अनुराग और बाकी लोगों की नजरें लड़की के चेहरे पर पड़ीं, तो वे भी चौंक गए।




    आभा ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया, जैसे उसने कुछ ऐसा देख लिया हो, जिसे देखने तक की उसने कभी उम्मीद भी न की थी। अनुराग की आंखें भी हल्की चौड़ी हो गई थीं, जैसे कोई पुराना चेहरा उसके अतीत की परछाइयों से उभर आया हो।




    लड़की ने कुछ पल अनुराग को यूं ही देखा, फिर उसने अपने इमोशन कंट्रोल करते हुए बॉडीगार्ड की ओर कुछ इशारा किया। बॉडीगार्ड ने झट से सिर हिलाया और फोन को कमरे में रखे बड़े स्क्रीन से कनेक्ट कर दिया। इसके बाद, वह धीरे-धीरे कमरे से बाहर चला गया, दरवाजा पीछे से बंद कर दिया।




    लड़की के चेहरे पर कोई ख़ास भाव नहीं था, लेकिन उसकी ग्रीन आईज, दूधिया सफेदी लिए रंगत, छोटा सा चहरा, और आंखों के गहरे काजल ने उसे मिस्टीरियस और बहुत एक्ट्रेक्टिव लुक दे रहा था। गले में एक छोटा-सा पेंडेंट और कलाई पर एक ब्रैंडेड वॉच उसे एलिगेंट भी बना रहा था। वो लड़की बहुत खूबसूरत थी पर उसकी खूबसूरती से ज्यादा उसका एटीट्यूट लोगों को उसकी और खींचता था।




    अनुराग ने कुछ पल उसे देखा, फिर अपने अंदर उभरते भावों को दबाते हुए, उसने सीधा कहा, "मुझे तुमसे एक हेल्प चाहिए।"




    लड़की ने भौंहें हल्की सिकोड़ते हुए कहा, "हेल्प? कैसी हेल्प?"




    अनुराग कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसके पीछे से आरुषि की रोने की आवाज आई। आरुषि घबराई हुई उसकी ओर दौड़कर आई और कांपती आवाज में बोली, "दी, मेरा बच्चा... मेरे बच्चे को किसी ने किडनैप कर लिया है। पांच घंटे हो गए, पर वो अब तक नहीं मिला।"




    आरुषि का रोना अब हिचकियों में बदल चुका था। वह हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाई, "प्लीज, उसे ढूंढ दो, दी। मेरा बच्चा सिर्फ दस दिन का है। अगर उसे कुछ हो गया, तो मैं जीते जी मर जाऊंगी। प्लीज, दी... मैं आपके सामने हाथ जोड़ती हूं।"




    लड़की ने एक गहरी सांस ली। उसका चेहरा अब भी एक्सप्रेशन लैस था, लेकिन उसकी आंखों में हल्का-सा कुछ झलका, जैसे कहीं एक पुराना दर्द फिर से उभर आया हो। उसने आरुषि को देखा, फिर अनुराग की ओर देखा। कुछ पल चुप्पी छाई रही, फिर उसने धीमी आवाज में पूछा, "किसी पर सक है? कोई ऐसा दुश्मन जो ये सब कर सकता हो?”

    आरुषि ने कांपती आवाज में ना में सिर हिलाते हुए कहा, “मेरा कोई दुश्मन नहीं है, लेकिन डैड के कई दुश्मन हैं। हो सकता है उनके किसी दुश्मन ने मेरे बच्चे का किडनैप किया हो। पर वो कौन हो सकता है, मुझे कुछ पता नहीं।”




    लड़की ने अनुराग की ओर देखा। अनुराग ने भी सिर हिलाकर कहा, “मुझे भी नहीं पता। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मेरे किस दुश्मन ने ऐसा किया है।”




    उनकी बात सुन वो लड़की कुछ सोचने लगी थी। तभी आभा, आरुषि के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए नम आंखों से बोली, “आप जयपुर क्यों नहीं आ जातीं awesome? अगर आप यहां होंगी तो शायद बच्चे को जल्दी ढूंढा जा सके।”




    हां ये कोई और नहीं awesome थी। जो अनुराग को एक अजीब सी कशिश भरी आंखों से देख रही थीं।
    ऑसम ने आभा की ओर देखा। आभा की आंखों में रिक्वेस्ट थी जैसे वो उसे दिल से जयपुर बुला रही हो। उसने फिर अनुराग की ओर देखा। अनुराग ने सिर झुका लिया, मानो इस बार उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था।




    ऑसम ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि तभी उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया गया। दरवाजा खुला, और करीब चार साल की एक प्यारी-सी बच्ची दौड़ते हुए अंदर आई। उसके पीछे उत्कर्ष भी कमरे के अंदर आया।




    बच्ची ने सीधे ऑसम के पास जाकर अपनी ट्रॉफी आगे बढ़ाई और चहकते हुए बोली, “मम्मा, देखो! मैंने आज का कंपटीशन जीत लिया। मैं फिर से फर्स्ट आई!”




    ऑसम ने उसे एक नजर देखा और बिना किसी एक्सप्रेशन के शांत आवाज में कहा, “गुड। जाओ, जाकर अपनी ड्रेस चेंज कर लो।”




    बच्ची थोड़ा रुककर उत्कर्ष की ओर देखने लगी। उत्कर्ष मुस्कुराते हुए उसके पास आया, उसका हाथ थामा और बोला, "आन्या, माय एंजल, चलो, स्कूल की यूनिफॉर्म बदलनी है। फिर लंच भी करना है, याद है न?"




    आन्या ने हां में सिर हिलाया और उत्कर्ष की गोद में चढ़ गई। उत्कर्ष उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए कमरे से बाहर चला गया।


    उनके जाने के बाद ऑसम ने आभा की ओर देखा और कहा, “ठीक है, मैं कल ही जयपुर आ रही हूं।”


    इतना कहकर उसने कॉल खत्म करने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि आभा ने जल्दी से कहा, “वो बच्ची और वो आदमी कौन थे? क्या आपने शादी कर ली है?


    ऑसम ने बिना किसी झिझक के सिर हिलाया और कहा, "हां। वो मेरी बेटी थी, और वो मेरे हसबैंड हैं।"


    कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। अनुराग, आभा और बाकी लोग उत्कर्ष और उस बच्ची को देखकर चुप हो गए थे। पर उत्कर्ष, उस पर तो जैसे सबकी नजरें टिक गई थीं। आरुषि भी आंखे फाड़े उसे देख रही थीं। वहीं एक लड़का बस उसे ही देखे जा रहा था। उस लड़के के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई थी।

    आभा ने थोड़ा लड़खड़ाते हुए कहा, “अपनी बेटी और पति को भी साथ लेकर आइएगा। कुछ दिनों बाद आराधना दीदी की बरसी है। अगर आप अपने परिवार के साथ आएंगी, तो उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।”


    ऑसम ने आभा की बात सुनी, लेकिन कुछ नहीं कहा। उसने सिर्फ हल्के से सिर हिलाया और कॉल काट दी।

  • 9. My Awesome - Chapter 9

    Words: 2288

    Estimated Reading Time: 14 min

    तुर्की,

    आन्या मुंह फुलाए बेड पर आलथी-पालथी मारकर बैठी थी। उसकी भौंहें तनी हुई थीं, और उसकी आँखों में शिकायत साफ झलक रही थी। उत्कर्ष फर्श पर घुटनों के बल बैठा, उसकी ओर देख रहा था।




    वो प्यार से बोला, "बेटा, मम्मा बिजी थीं, इसीलिए उन्होंने आपकी तारीफ नहीं की। इसमें नाराज होने वाली क्या बात है?"




    आन्या ने उसे घूरते हुए कहा, "डेडा, don’t be smart। मम्मा के पास मेरे लिए कभी टाइम नहीं होता। वो हमेशा इतनी बिजी रहती हैं कि मेरी तरफ देखती भी नहीं हैं!"




    उसकी ये बातें सुनकर उत्कर्ष का दिल टूट गया। ये पहली बार नहीं था जब उसने आन्या के मुंह से ये सुना हो। उसे पता था कि आंन्या को यह बात बहुत खलती थी कि उसकी मम्मा, ऑसम, उसके साथ न तो ज्यादा वक्त बिताती थीं, न खेलती थीं, और न ही उससे खुलकर बातें करती थीं।




    आन्या का ख्याल पूरी तरह से उत्कर्ष ही रखता था। वही उसे खाना खिलाता, उसके साथ खेलता, उसका होमवर्क करवाता और उसकी बातें सुनता। लेकिन यह सब भी शायद मम्मा की कमी को पूरी तरह भर नहीं पाता था।




    आन्या ने उत्कर्ष के उदास चेहरे को देखा और उसके करीब आकर उसका चेहरा अपने छोटे-छोटे हाथों में थाम लिया। उसने मासूमियत से कहा, "डेडा, आप sad मत हो। मैं जानती हूं मम्मा मुझ से और आपसे प्यार नहीं करतीं।"




    उसकी यह बात सुनकर उत्कर्ष का दिल और भारी हो गया। उसने तुरंत उसे अपनी बाहों में भर लिया और बेड पर ले जाकर अपनी गोद में बिठा लिया। उसके छोटे सिर को सहलाते हुए उसने नर्मी से कहा, "ऐंजल, ऐसा मत सोचो। किसने कहा कि मम्मा आपको और मुझे प्यार नहीं करतीं? मम्मा हमसे बहुत प्यार करती हैं, बेटा। बस उनका काम बहुत बड़ा है। तुम्हें पता है न, वो कितनी बड़ी बिजनेस वूमन हैं और तुम्हारे बड़े नानू का सारा काम भी वही संभालती हैं। इसीलिए उनके पास वक्त की कमी हो जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो आपको प्यार नहीं करतीं।"




    आन्या ने उसकी बात ध्यान से सुनी, फिर चुपचाप उसकी गोद से उतरकर वॉशरूम की तरफ चल दी। आन्या को इस तरह देख कर उत्कर्ष को बहुत बुरा लगता था पर शायद वो भी इसमें कुछ नहीं कर सकता था।




    चार साल की छोटी सी आन्या के पास ढेर सारा पैसा, नौकर चाकर और जान से भी ज्यादा प्यार करने वाला डैड, उत्कर्ष था, पर उसे एक मां का प्यार चाहिए था, जो उसके पास, उसके सामने रहती थीं पर उसकी तरफ कभी ध्यान से देखा तक नहीं करती थी।




    उत्कर्ष ने एक गहरी सांस ली, फिर खड़ा होते हुए कहा, “एंजल, चेंज कर लेना और लंच कर लो, ओके? मैं जा रहा हूं।”




    वॉशरूम से कोई जवाब नहीं आया। उसने पल भर के लिए दरवाजे को देखा, फिर सिर हिलाते हुए कमरे से बाहर निकल गया।




    वो सीधा awesome के कमरे में आया, जहां ऑसम मिरर के सामने खड़ी थी। वो अपने बाल सेट कर रही थी। उसने कपड़े बदल लिए थे और शायद कहीं बाहर जाने की तैयारी में थी।




    उत्कर्ष दरवाजे के पास ही ठहर गया। ऑसम ने मिरर में उसे देखा, फिर अपने बाल संवारने लगी। फिर घड़ी बांधते हुए उसने बिना उसकी ओर देखे कहा, "कल हम जयपुर जा रहे हैं। हमारी जेट रेडी करवा दो।"




    जयपुर का नाम सुनते ही उत्कर्ष एक पल के लिए ठिठक गया। उसकी आँखों में कुछ पुरानी यादें तैर गईं। वह सोच में पड़ गया, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोला, “जी। पर ‘हम’ मतलब... क्या मुझे भी आपके साथ आना होगा?”




    ऑसम ने डायमंड इयररिंग पहनते हुए मिरर में उसकी ओर देखा। उसने शांत लेकिन ऑर्डर देने वाले लहजे में कहा , “सिर्फ तुम ही नहीं, आन्या को भी आना है। उसका भी बैग पैक करवा देना।”




    यह सुनकर उत्कर्ष के माथे पर हल्की शिकन आ गई। ऑसम की बात उसे अजीब लगी। वह पिछले आठ सालों से ऑसम के साथ काम कर रहा था। उसका सेक्रेटरी होने के नाते, उसने हमेशा उनके शेड्यूल और प्लान्स को करीब से देखा था। लेकिन आज तक उसने ऑसम को इंडिया जाते नहीं देखा था।




    खासतौर पर ‘जयपुर’ का नाम सुनते ही जैसे कोई पुरानी परछाईं उसकी यादों में उभरने लगी थी। उसने थोड़ा हिचकते हुए पूछा, “जयपुर? वहां आपकी फैमिली रहती है, हे ना”

    उसके कहते ही awesome के मुंह से हल्की सिसकी निकल गई “आह..”।




    .उत्कर्ष ने देखा कि ऑसम के इयररिंग ठीक से नहीं पहने हुए थे और वे उसके कानों में चुभ रहे थे। वह तुरंत आगे बढ़ा और बिना कुछ कहे उसे ठीक से पहनाने लगा।




    ऑसम ने एक नज़र उस पर डाली, फिर अपनी नजरें फेर लीं। दोनो एक दूसरे के बेहद करीब खड़े थे पर शायद पास हो कर भी कोसों दूर थे।




    उत्कर्ष ने इयररिंग को ध्यान से ठीक किया, फिर चार कदम पीछे हटते हुए कहा, "बल्किट की मीटिंग के सारे पेपर तैयार हैं। सब कुछ कार में रखवा दिया है।"




    ऑसम ने हल्के से सिर हिलाया और मिरर में खुद को एक बार देखा। उसके चेहरे पर वही सख्त भाव थे, जो उसे दूसरों से अलग बनाते थे। उसने जाने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन दरवाजे तक पहुंचते ही अचानक रुक गई।




    उसकी पीठ अब भी उत्कर्ष की ओर थी। कुछ पल तक उसने कुछ नहीं कहा। फिर उसकी गहरी और ठंडी आवाज सुनाई दी, “मेरी कोई फैमिली नहीं है। इतना समझ लो कि जयपुर हम सिर्फ बिज़नेस के लिए जा रहे हैं। प्रॉफिट के लिए।”




    यह कहने के बाद वह बिना पीछे देखे दरवाजे से बाहर निकल गई। उत्कर्ष,




    उसकी आंखें दरवाजे पर टिक गईं, लेकिन उसका मन कहीं और भटकने लगा। "प्रॉफिट के लिए?" उसने खुद से कहा। उसे awesome की बात ठीक से समझ नहीं आई थी।




    उसने बहुत पहले बातों बातों में सुना था कि awesome की फैमिली इंडिया, राजस्थान में रहती हैं पर जयपुर रहती है, वो ये नहीं जानता था।

    उत्कर्ष जयपुर नहीं जाना चाहता था पर वो awesome को मना भी नहीं कर सकता था। उसने खुद से कहा “नहीं, शायद मैं ज्यादा सोच रहा हूं। जयपुर में कई सारे बड़े घराने रहते हैं, ऐसा थोड़ी है कि इनकी फैमिली और उनकी फैमिली एक ही होगी”।




    उसने सिर झटका और दिमाग में आ रहे खयालों को एक किनारा कर कमरे से बाहर निकल गया।

    रात का वक्त,




    ऑसम देर रात की मीटिंग खत्म करके अपने आलीशान बंगले में लौटी। आधी रात हो रही थी इस लिए सारी लाइट ऑफ थी बस कुछ डिम लाईट जल रहे थे।




    वो अंदर आई तो उसकी नजर सीढ़ियों के पास खड़े उत्कर्ष पर पड़ी। उसे देख उसने बिना कुछ कहे अपना बैग उसकी ओर बढ़ा दिया। उत्कर्ष ने चुपचाप बैग थाम लिया। ऑसम सीढ़ियां चढ़ने लगी, और हमेशा की तरह उत्कर्ष उसके पीछे चल दिया।




    सीढ़ियां चढ़ते हुए उत्कर्ष ने उसकी तरफ देखा और हल्की आवाज़ में कहा,

    "सारी मीटिंग्स next week पोस्टपोन कर दी हैं। मिस्टर सहगल से बात हो गई है, वो आपकी गैर-मौजूदगी में सब संभाल लेंगे। आन्या सो चुकी है और हमारे बैग्स पैक हो गए हैं। पर…"




    ऑसम ने उसकी अधूरी बात काटते हुए कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर जाते हुए कहा,

    "पर क्या?"


    उत्कर्ष भी उसके पीछे कमरे में आ गया और धीरे से दरवाज़ा बंद करते हुए बोला,

    "सर का फोन आया था। वो आपके बारे में पूछ रहे थे, लेकिन मैंने उन्हें जयपुर जाने की बात नहीं बताई।"




    ऑसम ने अपनी घड़ी उतारते हुए जवाब दिया,

    "उन्हें बताने की ज़रूरत भी नहीं है।"




    वह पलटी और उत्कर्ष की ओर देखा। उसकी आंखें उत्कर्ष की हल्की बेचैनी को देख ली थी।

    "कुछ और कहना या पूछना है?" उसने सख्ती से पूछा।




    उत्कर्ष एक पल के लिए सोच में डूबा, फिर तुरंत संभलते हुए कहा,

    "नहीं, और कुछ नहीं। बस... आन्या को लग रहा है कि हम फैमिली ट्रिप पर जा रहे हैं। वो बहुत एक्साइटेड है।"

    ऑसम ने शांत भाव से कहा,

    "उसे संभालना तुम्हारा काम है, उत्कर्ष। मैं उसे और तुम्हें अपने साथ नहीं ले कर नहीं जाती, लेकिन वहां तुम्हें कुछ ज़रूरी काम करने हैं। और आन्या तुम्हारे बिना रह नहीं सकती। उसे यहां अकेला छोड़ना भी सही नहीं होगा। मेरे दुश्मन हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं और मैं मेरे दुश्मनों को कोई मौका नहीं देना चाहती”।




    उसकी बात पर उत्कर्ष ने मन में कहा “क्या वाकई आपको अपनी बेटी से जरा भी प्यार नहीं है?”




    उसने बस धीरे से सिर हिलाया और पूछा “कॉफी लाऊं..”?




    Awesome न में सिर हिलाते हुए बोली “नहीं! मुझे सोना है कल सुबह जयपुर के लिए भी निकलना है”




    उत्कर्ष ने ओके कहा फिर उसका बैग उसकी जगह पर रख चुप चाप कमरे से निकल गया।




    उसके जाने के बाद awesome कुछ पल दरवाजे को ही देखती रही फिर पलके झुका कर वाशरूम में चली गई।




    इधर उत्कर्ष, आन्या के कमरे में आ गया था। आन्या का बेड किसी प्रिंसेस की तरह राउंड सेव में था। उसका कमरा भी काफी बड़ा और खूबसूरत था।




    आन्या पर नजर पड़ते ही उत्कर्ष के चहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आ गई थी। वो आन्या के पास आया और उसके बगल में लेट कर उसके सिर को प्यार से सहलाने लगा।




    आन्या गहरी नींद में सो रही थी। उत्कर्ष ने कुछ पल उसका सिर सहलाया फिर उसे अपनी गोद में ले कर सो गया।
    ये पिछले कई सालों से होता आ रहा था। उत्कर्ष, नाम के लिए awesome का पति था। आन्या के दुनिया में आने के बाद दोनों कुछ ही दिन एक कमरे में रहे थे पर उसके साथ उत्कर्ष , आन्या के साथ उसके कमरे में ही रहने लगा था।


    वहीं दूसरी तरफ जयपुर में जैसे ही आरुषि

    अपने कमरे के दरवाजे पर आई की उसके पैरों के पास एक पेपरवेट आ कर गिरा।


    आरुषि डर कर पीछे हट गई थी। उसने एक नज़र सामने खड़े अपने पति को देखा जो हल्के अंधेरे में उसकी ओर पीठ किए खड़ा था। वह दरवाजा बंद कर अंदर आ गई। उसने पेपरवेट उठाया और अपने पति के पास आई जो अपनी टेबल पर कुछ ढूंढ रहा था।




    आरुषि ने पीछे से कहा “ये पेपरवेट अभी मेरे पैर के पास आ कर गिरा है। अभी मुझे इस से चोट लग सकती थी।”

    उसका पति जो पेपर ढूंढने का नाटक कर रहा था। उसने पीछे पलट कर उसे देखा और अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए बोला “पर चोट लगी तो नही न। अगर लगती तो तुम्हें पता चलता है कि चोट लगने पर कितना दर्द होता है”।




    कहते हुए उसने उसके हाथ से पेपरवेट छीन लिया और टेबल पर रख कर बेड पर लेट गया।




    आरुषि को उसकी बात समझ नहीं आई थी। वो उसके पास आई और धीमी आवाज में बोली “आप गुस्से में हो क्या? आप फिक्र मत कीजिए awesome दीदी हमारे बच्चे को जरूर ढूंढ देगी। मां ने बहुत सारे किस्से बताए हैं उनके बारे में। उनके लिए ये काम चुटकी बजाने जैसा है। देखना है वो बहुत जल्द हमारे बच्चे को सही सलामत ढूंढ कर का देगी।”

    आरुषि की बात सुनकर उसका पति, कुछ पल के लिए चुप रहा। फिर उसने धीरे से कहा,

    "मैं जानता हूं तुम्हारी बहन ऑसम को। मैं उनसेे पहले भी मिल चुका हूं। अगर तुम आज मिस्टर राजपूत से ऑसम से मदद मांगने को न कहतीं, तो मैं खुद जाकर उनसे मदद मांगता। अब सिर्फ वही है जो मेरे बच्चे को मुझे लौटा सकती है।"


    उसकी आवाज में छिपा ताना आरुषि से छिपा नहीं रहा। उसने पलकों को झुका लिया और हल्की आवाज में कहा,

    "मेरे डैड ने भी बहुत कोशिश की थी हमारे आरूष को ढूंढने की... पर वो नहीं मिला।"




    उसके पति ने उसकी बात काटते हुए झुंझलाहट भरे आवाज में कहा,

    "ओह प्लीज़, अब चुप हो जाओ। मुझे पता है तुम्हारे डैड ने कितना कुछ किया है अपनी प्रिंसेस के लिए। तुम उनकी जान हो, इसलिए तुम्हारी खुशी के लिए उन्होंने तुम्हें अब तक अपने घर में रखा है। और मुझे भी यहां कैदी बना दिया है।"




    आरुषि की आंखें भर आईं, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए नम आवाज में कहा,

    "आप गलत समझते हैं। मेरे डैड ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। आपने ही कहा था कि आपके परिवार में आपके दादा जी और एक भाई को छोड़ कर कोई नहीं है और वो दोनों भी इंडिया से बाहर रहते हैं। आप हमेशा अकेले रहते थे, इसलिए उन्होंने कहा था कि हम दोनों यहीं रहें। वो आपको घरजमाई बनाकर नहीं रखना चाहते थे। आप खुद इतने बड़े डॉक्टर हैं। डैड बस ये चाहते थे कि हम दोनों एक परिवार के साथ रहे ताकि किसी सहारे की कमी न हो।"


    उसके पति ने उसकी तरफ देखा, लेकिन कुछ नहीं बोला। उसकी आंखों में एक अजीब सा गुस्सा और बेचैनी झलक रही थी। आरुषि का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन वह जानती थी कि इस बहस का कोई अंत नहीं है।

    कुछ पल के खामोशी के बाद आरुषि ने हिम्मत करते हुए पूछा "आप awesome दी को कैसे जानते हो? मतलब आपने कहा कि आप उनसे मिल चुके हैं। पर वो तो कभी इंडिया आई ही नहीं है। उनका जन्म यहीं हुआ था पर जन्म के अगले दिन ही वो हमेशा के लिए इंडिया छोड़ कर चली गई थी"।

    उसके पति ने उसकी बात सुन आरुषि को देखा। आरुषि कितनी भोली और प्यारी थी। वो बहुत खूसबूरत थी और साथ ही बहुत मासूम भी।

    आज से पांच साल पहले उसे आरुषि के इसी मासूमियत से तो प्यार हो गया था पर आज शायद उसे इसी मासूमियत से नफरत सी होने लगी थी।

    उसने कहा "तुम ये सब जान कर क्या करोगी। जाओ और जा कर तैयारी करो। तुम्हारी बड़ी बहन जो पहली बार इंडिया लौटने वाली है। वैसे तुम्हे तो उसके लौटने से ज्यादा खुशी उसके साथ आ रहे लोगों से होगी"।




    उस की बात सून आरुषि बस उसे देखती रह गई। उसके पास शायद कहने को कुछ नहीं था इस लिए वो चुप चाप वाशरूम में चली गई और वहां बैठ कर रोने लगी।

  • 10. My Awesome - Chapter 10

    Words: 3009

    Estimated Reading Time: 19 min

    जयपुर,

    राजपूत भवन,


    भवन में सुबह से ही हलचल मची हुई थी। आभा जी ने सुबह से ही सभी नौकरों को काम पर लगा दिया था, और खुद रसोई में खड़ी एक के बाद एक व्यंजन तैयार करने में जुटी थीं। उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, मानो किसी खास दिन का इंतजार खत्म होने वाला हो।




    तभी आरुषि किचन में आई। मां को इतना व्यस्त देखकर वह मुस्कुराई और चुटकी लेते हुए बोली,

    "मां, आप तो awesome दी के आने की खुशी में पूरी रसोई खाली करने पर तुली हुई हैं। सुबह से ही इतनी मेहनत कर रही हैं, और पूरे घर को भी काम पर लगा दिया। सच में, ये सब सिर्फ दी के लिए?"




    आभा जी हल्के से मुस्कराईं, कुछ कहने ही वाली थीं कि कबीर हाथ में चॉकलेट का बाउल लिए अंदर आया। वह चॉकलेट मिक्स करते हुए बोला,

    "आरुषि, तुम भी अपने हाथ से कुछ खास बना लो। कौन जाने उन को तुम्हारा बनाया खाना पसंद आ जाए।"




    आरुषि ने हंसते हुए सिर हिलाया और जाने को मुड़ी ही थी कि आभा जी ने उसका हाथ पकड़ लिया। उनका चेहरा एकदम गंभीर हो गया था। वो प्यार से उसके गाल पर हाथ रखते हुए बोली,

    "आरुषि, बेटा, ऐसा मत सोचना कि हमें तुम्हारी फिक्र नहीं है और हम आरुष के लिए चिंतित नहीं है। तुम तो जानती हो, वो कितने सालों बाद यहां आ रही हैं। और यह भी कि उस दिन क्या हुआ था... हम सब बस कोशिश कर रहे हैं कि वह हमारे साथ सहज महसूस करें। हमारा परिवार जो बिखर गया था, उसे फिर से पूरा करने की उम्मीद है।"




    आरुषि उनकी बात सुनकर कुछ पल चुप रही, फिर उनका हाथ थामते हुए धीरे से बोली,

    "मां, मुझे पता है। और मैं भी चाहती हूं कि हमारा अधूरा परिवार फिर से पूरा हो जाए। आप चिंता मत कीजिए, सब ठीक होगा।"




    आभा जी की आंखों में नमी झलक पड़ी थी। उन्होंने मुस्कुरा कर उसके गाल पर थपकी दी फिर अपने काम में लग गई। तभी उन्हें जैसे कुछ याद आया और वह बोली, “आरुषि, सुबह से तुम्हारी दोस्त नजर नहीं आ रही है। कहां है वो..?”


    कबीर जो चॉकलेट मिक्स कर रहा था, उसके हाथ एक दम से रुक गए थे। आरुषि अपने काम में लगते हुए बोली, “मां उसे कुछ काम आ गया था इस लिए वो सुबह सुबह ही अपने गांव चली गई। कुछ दिन में वापस आ जाएगी”।
    आभा जी ने सिर हिलाया और अपने काम में लग। वहीं कबीर अब भी किसी सोच में डूबा रह गया था।

    थोड़ी देर बाद राजपूत भवन के ऊपर हेलीकॉप्टर की गूंज सुनाई देने लगी। आवाज ने पूरे घर में खलबली मचा दी। सभी लोग काम छोड़कर बाहर की ओर दौड़ पड़े। आभा जी ने भी जल्दी से एक नौकर को आरती की थाल लाने का इशारा किया।


    आसमान में घूमता विशाल हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे नीचे आने लगा। लैंडिंग के वक्त उठती धूल और हवा से माहौल में हल्की बेचैनी भर गई। जैसे ही हेलीकॉप्टर रुका, उसकी खिड़की का दरवाजा खुला। सबकी निगाहें बस उसी पर टिक गईं।


    अनुराग की नजरें तो जैसे दरवाजे से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। उनके चेहरे पर इंतजार और बेचैनी के मिले-जुले भाव साफ झलक रहे थे।




    और फिर वो उतरीं।




    काले शेड्स, ब्लैक जीन्स, फुल-स्लीव टॉप, और लंबी ब्लैक जैकेट में लिपटी, उसके लंबे बाल हवा में लहराते हुए किसी फिल्मी सीन जैसा एहसास करा रहे थे।

    Awesome, उस की पेसनेलिल्टी कॉन्फिडेंस से भरी हुई थी, और चेहरे पर एक मिस्टीरियस ठहराव था। वह किसी क्वीन से कम नहीं लग रही थी। उसकी खूबसूरती और आत्मविश्वास उसे औरों से सब से अलग बनाता था।

    उसे देख कर नौकर-चाकरों के बीच हलचल मच गई थी। कुछ लोग फुसफुसाते हुए एक-दूसरे से awesome के बारे में बाते करने लगे थे।




    उसके ठीक पीछे उत्कर्ष हेलीकॉप्टर से बाहर आया। अपनी गोद में सोई हुई छोटी सी आन्या को संभाले हुए। उत्कर्ष ने सिंपल जीन्स और शर्ट के साथ हल्के रंग का ब्रेज़र पहना था। उसका शांत चहरा एक सुकून भरा एहसास दिला रही थी।




    आन्या, जो शायद सफर की थकान से गहरी नींद में थी, अपना सिर उत्कर्ष के कंधे पर टिकाए हुई थी। उसके काले सिल्की बालों में एक छोटा सा प्यारा पिन लगा था। उसने हल्के रंग की टॉप और स्कर्ट पहन रखी थी, जिसमें वह किसी गुड़िया जैसी लग रही थी।




    आभा जी ने आरती की थाल हाथ में पकड़ ली और अनुराग की आंखों में एक हल्की सी नमी उतर आई, जिसे उन्होंने बड़ी आसानी से सबकी नजरों से छिपा लिया।




    आरुषि की नजर जैसे ही उत्कर्ष पर पड़ी, वह ठिठक गई। उसकी आंखें मानो पल भर के लिए वहीं थम गईं। वह उसे देखती रही, जैसे बीते वक्त की सारी यादें एक झटके में सामने आ खड़ी हुई हों।




    उधर, उत्कर्ष ने भी आरुषि को देखा। उसकी नजरें भी जैसे आरुषि के चेहरे पर ठहर गईं, लेकिन अगले ही पल उसका चेहरा बदल गया। उसकी आंखों में हल्की सी झिझक और शर्म दिखाई देने लगी। उत्कर्ष ने चारों ओर नजरें घुमाईं, मानो किसी बहाने से खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हो। उसने देखा कि अनुराग और कबीर पास ही खड़े थे, उनकी गंभीर निगाहें उसकी ओर थीं। उत्कर्ष ने तुरंत सिर झुका लिया। उसके भीतर जैसे हिम्मत ही नहीं बची थी, कि वह अनुराग और आरुषि का सामना कर सके।




    लेकिन किस्मत ने आज उसे उन्हीं के सामने ला खड़ा किया था।




    कुछ दूरी पर खड़ा आरुषि का पति, चुपचाप यह सब देख रहा था। उसकी नजरें आरुषि से एक पल के लिए भी नहीं हट रही थीं। आरुषि ने थोड़ी देर बाद उत्कर्ष से अपनी नजरें हटा लीं, लेकिन उसके पति के दिल में एक अजीब सी आग जल चुकी थी। उसकी आंखों में जलन और गुस्से का मिला-जुला भाव साफ झलक रहा था।


    उसके हाथ अपने आप मुट्ठियों में कस गए। हर नस जैसे खिंच रही थी, लेकिन उसने खुद को किसी तरह शांत रखा। यह सही समय नहीं था। वह वहीं खड़ा रहा, बाहर से शांत लेकिन भीतर से उबलते ज्वालामुखी की तरह।

    Awesome, उत्कर्ष और आन्या बड़े से दरवाजे के पास आए जहां आभा जी आरती की थाल लिए खड़ी थी।




    Awesome को देख एक बार फिर से उनकी आंखे भर आई थी। उनके चहरे पर एक दर्द झलक रहा था पर उनके होठों पर एक सुकून से भरी मुस्कान तैर रही थी।




    वो जल्दी से एक कदम आगे आई और थाली से कुंकुम उठा कर awesome के माथे पर लगाने को हुई की awesome ने अपने कदम पीछे खींच लिए।




    Awesome के कदम पीछे हटते ही माहौल में एक असहज सन्नाटा पसर गया। आभा जी का बढ़ा हुआ हाथ रुक गया, और उनकी आंखों की नमी अब छलकने को थी। उनके चेहरे पर दर्द और निराशा साफ झलक रही थी, लेकिन उन्होंने खुद को तुरंत संभाल लिया।




    उन्होंने अपने दर्द से भरे कांपते आवाज में कहा,

    "बेटा, घर लौटने पर स्वागत करने का ये हमारा तरीका है। परंपरा है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।"




    Awesome ने उनकी बात पर शांत भाव से कहा “ये आपकी परंपरा है मेरी नहीं mrs rajput. मैं यहां सिर्फ एक डील करने आई हूं। न मैं आपके परिवार का हिस्सा हूं और न ही बनना चाहती हूं”।

    डील सुन कर अनुराग की आंखे गहरी हो गई और वो awesome को सवालिया निगाहों से देखने लगे।

    पीछे खड़ा उत्कर्ष उसकी बात सुन उसे देखने लगा। उसने मन में कहा “गहरे घाव जल्दी नहीं भरते। पर इतनी भी क्या नाराजगी। ये लड़की इंसान है कि नहीं। इसे आभा आंटी के आसू नहीं दिखते क्या? और डील? कैसी डील? अपनी फैमिली से कैसी डील करनी है इन्हें?"

    तभी आन्या अपनी आंखे मलते हुए जाग गई। उसने उत्कर्ष को देखा तो नींद भरी आवाज में पूछा, “डेडा, नानू नानी का घर आ गया क्या?”

    उत्कर्ष ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए प्यार से सिर हिलाकर बोला, "हां एंजल, देखो सामने।"


    आन्या ने जैसे ही सामने देखा, उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान खिल गई। वह उत्कर्ष की गोद से फुर्ती से उतरकर दौड़ती हुई आभा जी के पास पहुंची और झुककर उनके पैर छू लिए।




    आभा जी यह देख मुस्कुरा उठीं। उन्होंने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "अरे वाह, आप तो बहुत प्यारी और संस्कारी हैं, आन्या। ये बड़ों के पैर छूना किसने सिखाया आपको?"




    आन्या ने अपनी मीठी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "डेडा ने, नानी मां।"

    आन्या के मुंह से नानी मां सुनकर आभा जी की मुस्कान और गहरी हो गई। उन्होंने उत्कर्ष की ओर एक नजर देखा और फिर झुककर आन्या के माथे पर तिलक लगाते हुए बोलीं, "सदा खुश रहो, बेटा।"




    आन्या ने खुशी से उनकी ओर देखा और फिर दौड़ती हुई अनुराग के पास पहुंच गई। अनुराग उसे तिरछी नजरों से देख रहे थे। छोटी सी आन्या इतनी प्यारी थी कि कोई भी उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था।




    आन्या ने झुककर उनके पैर छुए। अनुराग ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। यह देख awesome की आंखे डार्क होने लगी और उत्कर्ष का मन अपना सिर पीटने को करने लगा।




    उसने मन ही मन सोचा, “आज समझ आया कि awesome में इतनी अकड़ी हुई क्यों हैं। पूरी तरह अपने बाप अनुराग सिंह राजपूत पर जो गई हैं”। उत्कर्ष ने एक झलक अनुराग की ओर देखा और मन ही मन कहा, “अब तो किसी DNA टेस्ट की जरूरत भी नहीं, ऐसे ही पता चल गया ये इनकी ही बेटी हैं”।




    अनुराग के कुछ न कहने पर आन्या ने उन्हें ध्यान से देखा, फिर अपना एक हाथ कमर पर रखकर दूसरे हाथ से उन्हें पास आने का इशारा किया।




    अनुराग उसकी हरकत देखकर थोड़ा चौंके, लेकिन झुककर उसके करीब आ गए। आन्या ने उनकी ओर मासूमियत से देखते हुए कहा, "नानू, आपको बड़े नानू ने ये नहीं सिखाया कि जब कोई पैर छुए तो उसे आशीर्वाद देना चाहिए? ऐसे घूरने से काम नहीं चलेगा, आर्शीवाद दीजिए।"




    उसकी मासूम और तीखी बात सुनकर अनुराग हैरानी से उसे देखते रह गए। आसपास खड़े आभा जी और बाकी घरवालो के साथ नौकरे भी मुंह छिपा कर हंसने लगे थे। ।




    अनुराग ने एक लंबी सांस ली और हल्के से सिर हिलाते हुए कहा, "हम्म... खुश रहो।"




    उनके आशीर्वाद देते ही आन्या के चेहरे पर एक प्राउड वाली स्माइल आ गई। वह मुस्कुराते हुए तुरंत कबीर के पास पहुंची। वह जैसे ही उनके पैर छूने के लिए झुकी, कबीर ने उसे झट से गोद में उठा लिया।




    "मामा के पैर नहीं छूते, एंजल," कबीर ने उसके गाल प्यार से पिंच करते हुए कहा।




    आन्या ने झट से अपनी भौंहें चढ़ाईं और बोली, "मामू, आप मुझे आन्या बुलाइए। मुझे एंजल सिर्फ डेडा बुलाते हैं।"




    आन्या की यह बात सुनकर कबीर मुस्कुरा उठे। उन्होंने उसे प्यार से देखा और सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है, आन्या।"




    तभी आन्या की नजर आविन पर पड़ी। उसे देखते ही उसकी आंखें चमक उठीं और वह खुशी से चिल्ला उठी, "आविन चाचू! आप यहां?"




    आन्या की आवाज सुनकर सभी ने आविन की ओर देखा। आविन ने सबकी निगाहों को नज़रअंदाज़ किया और सीधे आन्या के पास जाकर उसे गोद में उठा लिया।




    उत्कर्ष, जो आविन को देख रहा था, मन ही मन सोचने लगा, “ये यहां क्या कर रहा है?”




    इसी बीच, आन्या ने अपनी मासूमियत भरे सवाल के साथ कहा, "चाचू, आप यहां क्या कर रहे हो?"




    आविन ने मुस्कुराते हुए उसे प्यार से जवाब दिया, "बेटा, ये मेरा ससुराल है। मैं तुम्हारी मौसी का हसबैंड हूं।"




    आविन की बात सून उत्कर्ष के चहरे का रंग बदल गया था। उसकी भौहें सिकुड़ गई और वो आविन को घूरने लगा।




    आन्या ने एक्साइडेट होकर पूछा, "मतलब आप चाचू के साथ-साथ मौसा जी भी हो?"




    आविन ने हंसते हुए सिर हिलाया। यह सुनकर आन्या की नजर आरुषि पर गई। आरुषि ने भी आन्या को देखकर मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया और उस से बाते करने लगी।

    उसने पूछा, “आप हम सबको कैसे जानती हो आन्या..?”

    आन्या ने मीठी सी आवाज में कहा, “रमा नानू ने आप सबकी फोटो दिखाई थी और आप सबके बारे में बताया था”।
    उसकी बात सुन उत्कर्ष मन में बोला, “बच्ची को सब बता दिया पर मुझे कुछ नहीं बताया। अगर बता देते तो मैं कभी यहां नहीं आता, पर एक मिनट उन्होंने आन्या को कब बताया होगा। हमारे यहां आने की खबर तो उन्हें भी नहीं है। शायद पहले कभी बातों बातों में बताया हो” उत्कर्ष ने सोचते हुए कहा और उन्हें देखने लगा।


    उसी समय आभा जी की नजर ऑसम पर पड़ी, जो चुपचाप अपने फोन में कुछ देख रही थी। आभा जी ने खुद को हल्का सा चपत लगाते हुए कहा, "अरे, मैं भी न! आन्या से मिलने की खुशी में सबको बैठने को कहना ही भूल गई। आइए, अंदर चलिए सब।"




    ऑसम ने फोन से नजर हटाई और बिना कुछ कहे उत्कर्ष के साथ अंदर चल दी। उसकी चाल और आत्मविश्वास ऐसा था कि हॉल में मौजूद हर कोई एक पल के लिए उसकी ओर देखने लगा।




    थोड़ी देर बाद सभी लोग हॉल में इकट्ठे हो गए। माहौल खुशनुमा था, लेकिन हर किसी के मन में ढेर सारे सवाल थे। आभा जी और बाकी घरवाले उत्कर्ष और ऑसम से बात करना चाहते थे, लेकिन ऑसम का ओरा ऐसा था कि किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ पूछने की।



    तभी आरुषि, जो अब खुद को रोक नहीं पा रही थी, अपने आंसुओं को मुश्किल से संभालते हुए बोली, "दी... मेरे आरुष को..."




    उसने इतना ही कहा था कि ऑसम ने उसकी बात बीच में काटते हुए सख्त आवाज में कहा, "मैं तुम्हारे बेटे को ढूंढने ही यहां आई हूं। लेकिन मैं एक बिज़नेसवूमन हूं। फ्री में कोई काम नहीं करती। चलो, एक डील करते हैं। मुझे जो चाहिए, वो तुम मुझे दे दो, और बदले में मैं तुम्हारे बेटे को ढूंढकर तुम्हारे पास ला दूंगी।"




    आरुषि उसकी बात सुनकर नासमझी और हैरानी से उसे देखने लगी। अनुराग और कबीर भी अविश्वास भरी नजरों से ऑसम को देख रहे थे। हॉल में अचानक खामोशी छा गई थी।




    आविन ने गंभीर स्वर में कहा, "भाभी, आखिर आपको क्या चाहिए? आपके पास तो पहले से ही सब कुछ है।"




    ऑसम ने उसकी ओर एक पल देखा, फिर अपनी नजरें घुमाते हुए अनुराग की तरफ देखकर ठंडे स्वर में बोली, "मुझे ये राजपूत भवन चाहिए।"




    उसके शब्द गूंजते ही अनुराग झटके से अपनी जगह से खड़े हो गए। उनकी आंखों में गुस्से और हैरानी का मिला-जुला भाव था। बाकी घरवालों भी हैरानी से उसे देख रहे थे।




    उत्कर्ष खुद स्तब्ध रह गया। उसका मन सवालों से घिर गया था। ऑसम, जिसके पास राजपूत भवन से भी बड़े-बड़े महल, विला, और फार्महाउस हैं, आखिर उसे इस भवन की क्या जरूरत है?




    हॉल में हर कोई ऑसम की ओर देख रहा था, मानो उसके इरादों को समझने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन ऑसम के चेहरे पर गहरी शांति और ठंडा आत्मविश्वास था। उसने सबको ऐसे देखा, जैसे यह डील सिर्फ उसकी शर्तों पर होगी और कोई सवाल करने की गुंजाइश नहीं है।




    अनुराग गुस्से में खड़े होकर बोले, "तुम जानती भी हो, तुम क्या मांग रही हो?"




    ऑसम ने अपने सीधी बात करते हुए कहा, "हां, जानती हूं, मिस्टर राजपूत। अब फैसला आपके हाथ में है। अगर आप मुझे ये भवन देते हैं, तो बदले में मैं आपकी बेटी के बेटे को ढूंढकर ले आऊंगी। वरना..." उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, लेकिन उसकी ठंडे स्वर में कही गई बात का मतलब सब समझ गए थे।




    हॉल में सन्नाटा छा गया। अनुराग के चेहरे पर गुस्सा और बेबसी साफ झलक रही थी। आरुषि ने अपनी नम आंखों से अनुराग की ओर देखा और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। सब जानते थे कि यह भवन सिर्फ एक इमारत नहीं था। यह अनुराग का दिल था, जिसमें उनकी पहली पत्नी आराधना जी की यादें बसी हुई थीं। अनुराग इस भवन को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकते थे, यहां तक कि अपनी खुद की बेटी, अपने खून ऑसम को भी नहीं दे सकता था।




    आभा जी ने चुपचाप ऑसम और उत्कर्ष का सामान एक कमरे में रखवा दिया। आन्या के लिए भी एक प्यारा सा कमरा तैयार किया गया, जहां आभा जी उसका सामान सजा रही थीं और आन्या उनके साथ ही मस्ती कर रही थी।

    उधर, ऑसम अपने कमरे में आई और अपने कोट को उतारकर शर्ट के बटन खोलने लगीी कि उत्कर्ष अचानक दरवाजा खोल कर कमरे में आ गया।


    "तुम!" ऑसम के हाथ रुक गए।

    उत्कर्ष को एहसास हुआ कि उसने बिना नॉक किए अंदर आकर गलती की है। उसने झट से नजरें फेर लीं और पलटकर खड़ा हो गया। "सॉरी... मुझे ऐसे नहीं आना चाहिए था। आप चेंज कर लीजिए, मैं बाद में आता हूं," उसने जल्दी से कहा।




    ऑसम ने बिना रुके शर्ट के बटन खोलते हुए कहा, "कहो, क्या कहने आए हो।"


    उत्कर्ष, जो जानता था कि ऑसम अपने कपड़े बदल रही हैं। वोी उसकी ओर पीठ किए खड़ा रहा। उसने कहा, "मैं आपको ये बताने आया था कि शायद अनुराग अंकल आपको ये भवन कभी नहीं देंगे। ये भवन उनके लिए बहुत खास है। ये उनकी पहली पत्नी और आपकी मां की यादों से भरा हुआ है।"


    ऑसम ने एक ढीली टी-शर्ट पहनते हुए ठंडे भाव से कहा, "यही वजह है कि मैंने इसे मांगा है।"




    उत्कर्ष ने यह सुनकर हैरानी से उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में सवाल थे, लेकिन ऑसम ने हल्की मिस्टीरियस मुस्कान के साथ कहा, "तुम इस पर ध्यान मत दो। तुम्हें दो काम करने हैं। पहला, इस भवन के पेपर तैयार करवाओ। क्योंकि मैं प्यार से या जबरदस्ती, ये भवन लेकर रहूंगी। और दूसरा, आरुषि के बेटे का पता लगाओ। उससे बात करो और information ी इकट्ठा करके मुझे बताओ।"




    उत्कर्ष को ऑसम के इरादे कुछ सही नहीं लग रहे थे। लेकिन उसे यह भी पता था कि सवाल करना शायद उसका अधिकार नहीं था। उसने सिर हिलाया और जाने के लिए पलटा ही था कि ऑसम ने अचानक पूछ लिया, "वैसे, तुमने मिस्टर राजपूत को अंकल क्यों कहा? तुम उन्हें पहले से जानते हो?"




    उसके सवाल ने उत्कर्ष को रोक दिया। उसने पलटकर ऑसम को देखा, लेकिन कुछ कहने से पहले ही रुक गया। ऑसम अब उसकी आंखों में सीधे देख रही थी। उत्कर्ष उसका सवाल सुन सोच में पड़ गया कि उसे क्या कहना चाहिए। क्या उसे सच बता देना चाहिए? या फिर कोई झूठा बहाना करना चाहिए?

  • 11. My Awesome - Chapter 11

    Words: 2539

    Estimated Reading Time: 16 min

    जयपुर,


    उत्कर्ष गहरी उलझन में था। Awesome के सवालों का जवाब देना आसान नहीं था। सच बोलना उसे मुश्किल लग रहा था, और झूठ बोलने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं थी। वह जानता था कि awesome झूठ को तुरंत पकड़ लेती है, और ऐसे में झूठ बोलने की कोशिश करना सिर्फ बेवकूफी है।

    कुछ पल सोचने के बाद उसने ठान लिया कि सच ही बताएगा। "आज नहीं तो कल, इन्हें तो सब पता चल ही जाएगा। बेहतर है कि मैं खुद ही सच बता दूं,"।


    इतना सोच कर वह कुछ कहने ही वाला था कि तभी आभा जी छोटी आन्या के साथ कमरे में आ गईं। आन्या तेजी से दौड़ते हुए आई और उत्कर्ष के पैरों से लिपट गई।




    दरवाजे पर खड़ी आभा जी हल्की मुस्कान के साथ बोलीं, “खाना लग गया है। आप लोग आकर खा लीजिए, फिर थोड़ा आराम कर लीजिए। इतनी दूर से आए हैं, थक गए होंगे।”


    Awesome ने बिना कुछ कहे हल्के से सिर हिलाया और वॉशरूम की तरफ चली गई। उसके जाते ही उत्कर्ष ने आभा जी की ओर देखा और कुछ कहना चाहा, लेकिन उन्होंने उसे हाथ उठाकर रोकते हुए कहा, “बाद में बात करेंगे, उत्कर्ष। अभी आओ, अपनी आन्या को खाना खिला दो। ये कह रही थी कि ये तो सिर्फ तुम्हारे हाथ से ही खाना खाएगी।”


    आभा जी की बात सुनकर उत्कर्ष मुस्कुराया और सिर हिला कर "ठीक है" के साथ आन्या को गोद में उठा लिया।


    सभी लोग डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे। हमेशा की तरह उत्कर्ष छोटी आन्या को अपने हाथों से खिला रहा था। आरुषि चुपचाप अपनी प्लेट में ताकते हुए खाना खा रही थी। उसकी सूजी हुई आंखें उस रोने का सबूत थीं, जिसे वह किसी के सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी। वह इस समय वहां आना नहीं चाहती थी, पर राजपूत भवन का नियम था—खाने के वक्त हर किसी को टेबल पर आना ही होता था।

    कबीर ने उत्कर्ष और आन्या को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा, “आन्या, तुम हमेशा अपने डैड के हाथों से ही खाती हो क्या?”

    आन्या ने अपनी मीठी सी आवाज में जवाब दिया, “हां मामू, पर जब डेडा बिजी होते हैं, तो मैं खुद से खा लेती हूं। आन्या गुड गर्ल है, नखरे नहीं करती।”




    उसकी मासूमियत भरी बात सुनकर कबीर हंस पड़े। उन्होंने प्यार से कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है, बेटा। लेकिन अगर डेडा बिजी हों, तो मम्मा के हाथ से क्यों नहीं खा लेती? मम्मा से डर लगता है क्या?”




    कबीर के सवाल पर आन्या का चेहरा अचानक मुरझा गया। उसकी आवाज बुझी हुई थी, मानो उसने कोई बड़ा दर्द अपने छोटे से दिल में दबा रखा हो। वह धीरे-से बोली, “मम्मा तो मुझे देखती भी नहीं हैं। वो तो दिन-रात बस काम, काम, और काम करती रहती हैं। उनके पास तो मेरे साथ बात करने का भी टाइम नहीं होता। इसलिए मैं उन्हें कुछ नहीं बोलती। डेडा ही मेरा खयाल रखते हैं... और मुझसे बहुत सारा प्यार करते हैं।”




    उसकी बात सुनकर टेबल पर एक सन्नाटा सा छा गया । अनुराग और बाकी लोग थोड़ा असहज महसूस कर रहे थे। माहौल में एक अजीब-सी छुपी फेल गई थी।

    ये बात किसी को समझ नहीं आ रही थी कि awesome और आन्या का रिश्ता भला ऐसा क्यों था। कहीं इन सबके पीछे की वजह वो लोग ही तो नहीं थे।

    कबीर ने उत्कर्ष की ओर देखा और सीधा सवाल किया, “तुम्हारी और awesome की शादी कब और कैसे हुई? क्या तुम दोनों ने लव मैरिज की थी?”




    लव मैरिज का जिक्र सुनते ही आविन, जो चावल खा रहा था, अचानक खांसने लगा। उसका चेहरा लाल पड़ गया।


    आरुषि ने यह देखा तो झट से अपनी जगह से उठी। उसने पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाया और उसकी पीठ सहलाने लगी। आविन ने कुछ घूंट पानी पिया और खांसना थोड़ा शांत हुआ। लेकिन फिर, किसी को भी देखे बिना, उसने आरुषि का हाथ झटक दिया।




    यह सब होते हुए उत्कर्ष चुपचाप देख रहा था। उसने हर चीज़ नोटिस की। एक पल के लिए उसने आरुषि और आविन की ओर देखा, फिर अपनी नजरें नीचे कर लीं। माहौल को संभालते हुए उसने धीरे से कहा, “हमारी शादी पांच साल पहले हुई थी।”




    अनुराग ने अपनी गहरी, सख्त आवाज में पूछा, “लेकिन क्या ये शादी लव मैरिज थी? तुम उससे प्यार करते हो, या वो तुमसे प्यार करती है?”


    अनुराग ने बेहद कड़क लहजे मे पूछा था पर उत्कर्ष के पास इसका कोई जवाब नहीं था, या था लेकिन वह यह सबके सामने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। उसने अपने मन में सोचा, “प्यार? किसी को किसी से प्यार नहीं है। ये सब तो बस मेरी बेवकूफी का नतीजा था। मैंने तो सिर्फ उसकी मदद करनी चाही थी, और बदले में जिंदगीभर की कैद मिल गई।”


    वह एक पल के लिए रुका, फिर उसने अपनी गोद में बैठी आन्या को देखा। उसकी मासूमियत भरी मुस्कान ने उत्कर्ष के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान ला दी। उसने कहा, “अगर ये नहीं होती, तो हम दोनों भी कभी साथ नहीं होते।”


    उत्कर्ष कुछ और कहना चाहता था, लेकिन तभी उसकी नजर सीढ़ियों से नीचे उतर रही awesome पर पड़ी। वह शांत लेकिन बेहद गंभीर चेहरा लिए नीचे आ रही थी।




    उसे देखकर उत्कर्ष ने चुप रहना ही बेहतर समझा। बाकी सब भी उसे देख शांत हो गए यहां तक कि अनुराग ने भी दोबारा कुछ नहीं कहा।

    Awesome नीचे आई और एक चेयर पर बैठ गई। उसे देख आभा जी फौरन उसके सामने बीस से ज्यादा तरह के खाने की आइटम रखती गई।




    Awesome की नजर जब इतने सारे खानों पर पड़ी, तो आभा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं आपकी पसंद-नापसंद नहीं जानती, इसलिए जो मुझे ठीक लगा, वो सब बना दिया। आप आज मुझे अपनी पसंद और नापसंद बता देना, ताकि रात से उसी का ध्यान रखकर खाना बनाया करूं।”




    Awesome ने अपनी शांत, ठंडी नजरें आभा जी पर डालीं और बिना कुछ कहे चम्मच उठाई। उसने चावल में राजमा मिलाते हुए हल्की आवाज में कहा, “शायद इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। मुझे अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। अगर यह भवन मुझे नहीं दिया गया, तो मैं उस बच्चे को ढूंढने में अपना टाइम वेस्ट नहीं करूंगी।"




    यह सुनते ही अनुराग का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह झटके से खड़े हो गए और awesome को घूरते हुए बोले, “तुम भूल रही हो कि तुम किसके सामने बैठी हो। अपने पिता के साथ डील करोगी? अपनी बहन के बेटे की कोई फिक्र नहीं है तुम्हें?”

    अनुराग के चिल्लाने से सब घबरा गए थे। सब एक दम शांत हो कर उन्हें देखने लगे। आन्या भी उत्कर्ष के सीने से लग गई और उत्कर्ष ने उसे अपने सीने में छुपा लिया।

    लेकिन Awesome ने बिना डरे अपनी पलकों को उठाया और अनुराग की आंखों में आंखें डालते हुए तीखे अंदाज में कहा,

    “पिता? कौन पिता, मिस्टर राजपूत? वह जिसने मेरे जन्म के बाद ही मुझे छोड़ दिया था? जिसने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ दिए थे और मुझे बीच सड़क पर फेंक दिया था?

    For your kind information, मिस्टर राजपूत, मेरा कोई पिता नहीं है, और न ही कोई परिवार। जिस दिन आपने मुझसे सारे रिश्ते तोड़े थे, उसी दिन मेरे लिए आप हमेशा के लिए मर गए थे। अब मेरे सामने सिर्फ एक बिज़नेस मैन—मिस्टर अनुराग सिंह राजपूत—बैठा है, जिसके साथ मैं सिर्फ डील करने आई हूं, रिश्ता जोड़ने नहीं।”




    Awesome की कड़वी और ठंडी बातों ने कमरे को सन्नाटे में डाल दिया। वहां खड़े नौकर भी अपनी जगह जम गए, जैसे पत्थर बन गए हों।




    अनुराग स्तब्ध रह गए। उनकी आंखें awesome पर टिकी थीं। वह व्यक्ति, जिसे उन्होंने अपनी औलाद समझने से इनकार कर दिया था, आज उनके सामने खड़ा होकर उन्हें मरा हुआ कह रहा था।




    Awesome ने चम्मच नीचे रखी और शांति से उठ खड़ी हुई। उसने एक आखिरी नजर अनुराग पर डाली, फिर बोली,

    “मेरे लिए यह सिर्फ एक बिज़नेस डील है। अगर आपके पास मेरे सवाल का जवाब नहीं है, तो मैं भी अपना वक़्त बर्बाद नहीं करूंगी। अब आप जवाब दीजिए क्या आप मुझे ये भवन देंगे या मैं वापस लौट जाऊं?

    अनुराग का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। उनकी आँखें जैसे शोले बरसा रही थीं, और उनका पूरा शरीर गुस्से से कांप रहा था। तभी आभा जी ने आगे बढ़कर उनकी पीठ सहलाई और उन्हें शांत करने की कोशिश करते हुए बोलीं, "आप शांत हो जाइए, अनुराग। गुस्से से कुछ हल नहीं निकलेगा। ठंडे दिमाग से काम लीजिए।"




    लेकिन अनुराग के सब्र का बाँध टूट चुका था। उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "आभा, आप देख रही हैं इस लड़की को? ये किस तरह मेरी आँखों में आँखें डालकर बात कर रही है! किस कदर घमंड से लबरेज़ है ये! मैं अनुराग सिंह राजपूत हूँ। मेरे सामने बड़े से बड़ा नेता सिर झुकाता है, अदब से बात करता है। और ये लड़की!"




    Awesome ने ठंडे लहज़े में जवाब दिया, "मेरा नाम Awesome है, मिस्टर राजपूत। मेरा नाम और मेरे सामने इज्जत से पेश आइए । आपके नकली रोब-दाब का मुझ पर कोई असर नहीं होने वाला। हाँ, आपके सामने कई लोग झुकते होंगे, लेकिन जिस इंसान के सामने आप झुकते हैं, वो मेरे सामने झुकता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप मुझसे बतमीज़ी करने की कोशिश न करें, वरना अंजाम आपकी सोच से भी परे होगा।"



    उत्कर्ष और बाकी सभी लोग बाप-बेटी के इस तीखे जंग को सांस रोककर देख रहे थे। किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे बीच में दखल दे सकें।




    अनुराग और Awesome एक-दूसरे को घूर रहे थे। फर्क सिर्फ इतना था कि अनुराग की आँखों में आग थी, जबकि Awesome का चेहरा एकदम एक्सप्रेशन लैस था।


    इतने में आरुषि उठी और अपने आँसू पोंछते हुए चुपचाप जाने लगी। आविन उसे जाते हुए देख रहा था, लेकिन शायद इस वक्त वह भी कुछ नहीं कर सकता था।




    तभी अनुराग की नजर आरुषि पर पड़ी। उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं, एक गहरी साँस ली, और खुद को शांत करते हुए बोला, "ठीक है, तुम्हें यह भवन चाहिए ना? मैं इसे तुम्हारे नाम कर दूँगा।"




    अनुराग की आवाज सुनते ही आरुषि के कदम ठिठक गए। वहीं, ऑसम के चेहरे पर एक विनिंग स्माइल आ गई।




    आरुषि ने अचानक दौड़ते हुए अनुराग को गले लगा लिया और फूट-फूटकर रोने लगी। अनुराग ने उसे संभालते हुए कहा, "रो मत, प्रिंसेस। हमारा आरुष जल्द ही हमारे पास होगा। मैं उसे वापस लाने के लिए कुछ भी करूंगा”।


    इसके बाद, उसने ऑसम की ओर देखा और गंभीर स्वर में कहा, "मैं तुम्हें यह भवन दूँगा, लेकिन उसकी एक शर्त है। पहले तुम्हें आरुष को सही-सलामत यहाँ लाना होगा।"




    ऑसम ने उसकी आँखों में सीधे देखते हुए आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा, "शर्त मंजूर है, मिस्टर राजपूत। मैं आरुष को जल्द ही ढूँढ़कर ले आऊँगी।"




    इतना कहकर वह वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गई और सबको नजरअंदाज कर, नाश्ता करने लगी।




    अनुराग ने उसे एक पल के लिए घूरा, फिर गुस्से से वहाँ से निकल गया।




    उधर, उत्कर्ष जो यह सब देख रहा था, मन ही मन सोचने लगा, "इतनी गहरी नफरत इसके दिल में होगी, मैंने सोचा भी नहीं था। खैर, मुझे इन सबसे क्या लेना-देना। या नहीं, दादू ने सही कहा था मैं एक दलदल में फंस चुका हूं। ये सब बहुत उलझा हुआ है, पता नहीं कभी मैं इसे सुलझा पाऊंगा कि नहीं”।


    उसने एक गहरी सांस ली और आन्या को खिलाने में लग गया।


    सभी लोग अपने-अपने कमरों में लौट चुके थे। ऑसम भी अपने कमरे में आकर लैपटॉप पर काम करने लगी। थोड़ी देर उत्कर्ष अंदर आया। वह दरवाजे पर कुछ पल रुका, फिर उसके सामने खड़ा होकर बोला, "आपने मुझे बुलाया?"




    ऑसम ने बिना नजरें हटाए लैपटॉप की स्क्रीन पर फोकस करते हुए पूछा, "तुमने आरुषि से बात की? उससे पूछा कि आरुष का किडनैप कैसे और कब हुआ?"




    उत्कर्ष ने थोड़ा झिझकते हुए सिर झुका लिया और कहा, "अभी तक बात नहीं की है, लेकिन जल्द ही कर लूंगा।"




    उत्कर्ष की बात सुन ऑसम ने उसकी ओर देखा। उत्कर्ष ने सिर झुका लिया था। वो जानता था awesome को देर पसंद नहीं है पर शायद वो आरुषि से बात नहीं करना चाहता था या फिर उस से बच रहा था इस लिए उसने अब तक उस से बात नहीं की थी।




    Awesome ने तीखे आवाज में कहा, "तुम यहाँ पिकनिक मनाने नहीं आए हो, उत्कर्ष। बेहतर होगा कि अपने काम पर ध्यान दो। तुम्हे उसकी फिक्र नहीं है क्या? वह बच्चा सिर्फ आरुषि का बेटा नहीं, तुम्हारे भाई का बेटा भी है।"




    उत्कर्ष ने धीरे से सिर उठाया और उसकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया, "और आपकी बहन का भी।"




    उसके इस जवाब पर ऑसम कुछ पल के लिए चुप हो गई। उसकी आँखों में हल्का सा बदलाव आया, जैसे कोई पुराना घाव फिर से उभर आया हो। लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए सख्त अंदाज में कहा, "मैं एक ही बात बार-बार रिपीट नहीं करती, जानते हो न। इस परिवार से मेरा कोई रिश्ता नहीं है। ये बात जितनी जल्दी दिमाग में बैठा लो, उतना ही अच्छा होगा।"




    उत्कर्ष ने गहरी सांस ली और शांत आवाज़ में कहा, "तो फिर क्या मैं आन्या से कह दूँ कि वह मिस्टर राजपूत को 'नानू' कहना बंद कर दे? आखिर हमारी बेटी किसी अजनबी इंसान से रिश्ता क्यों जोड़े? किसी पराए को नानू क्यों कहे?"




    उत्कर्ष की बात सुनकर ऑसम के चेहरे पर सख्ती की जगह खामोशी आ गई। उसके पास कोई जवाब नहीं था। मानो उसके दिल और दिमाग के बीच एक जंग चल रही हो।




    ऑसम की खामोशी देखकर उत्कर्ष ने एक ठंडी आह भरी और शांत भाव से कहा, "यह आपका पारिवारिक मामला है, और मैं इसमें दखल नहीं दूँगा। आपको मेरी बेटी आन्या के सामने बड़ों से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए।"




    ऑसम ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। उत्कर्ष ने बात जारी रखते हुए कहा, "वह छोटी है, उसके खेलने-कूदने और सीखने की उम्र है। इस तरह के माहौल का उस पर गलत असर पड़ सकता है। अगर आपको ऐसी कोई बात करनी हो, तो अगली बार उसे कमरे से बाहर भेज दीजिएगा।"




    “ तुम मुझे ऑर्डर दे रहे हो?" Awesome ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।




    उत्कर्ष ने अपनी नजरें झुका लीं और शांत भाव से जवाब दिया, "आप इसे ऑर्डर नहीं, एक रिक्वेस्ट समझ सकती हैं।"




    कुछ पल की खामोशी के बाद ऑसम ने ठंडे स्वर में कहा, "मिस्टर राजपूत के दुश्मनों की पूरी लिस्ट तैयार करो। ध्यान रहे, कोई भी नाम छूटना नहीं चाहिए।"




    उत्कर्ष ने हल्का सिर हिलाकर हामी भरी, लेकिन ऑसम की बात यहीं खत्म नहीं हुई। उसने अपने शब्दों को और गंभीर बनाते हुए कहा, "और एक और बात—आज से 23 साल पहले इस भवन में आग लगी थी। मुझे उसकी पूरी जानकारी चाहिए। हर छोटी से छोटी डिटेल निकालो, लेकिन यह बात किसी और को पता नहीं चलनी चाहिए। किसी तीसरे व्यक्ति को भनक तक नहीं लगनी चाहिए कि तुम 23 साल पुरानी इस घटना की तहकीकात कर रहे हो।"




    उत्कर्ष के मन में कुछ सवाल उठे पर उसने कुछ नहीं पूछा। इस आग के बारे में पांच साल पहले रमा ने भी जिक्र किया था।

    कुछ सोच कर वो कपबोर्ड के पास गया और वहां से अपने कपड़े निकाल कर वाशरूम में चला गया।




    उसके जाते ही awesome ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए धीमी आवाज में कहा “फिर से ब्लैक शर्ट ले कर गया है। इसके पास कोई दूसरी शर्ट नहीं है क्या”?

    ( please like or comments किया कीजिए, इस से ही लिखने का मन होता 😇)

  • 12. My Awesome - Chapter 12

    Words: 2225

    Estimated Reading Time: 14 min

    जयपुर,

    थोड़ी देर बाद उत्कर्ष नहा कर कमरे में आया और मिरर के सामने खड़ा हो कर अपने गीले बालों को टॉवेल से सुखाने लगा।


    गिले बालों और काले रंग के शर्ट में उत्कर्ष और भी ज्यादा हैंडसम और एक्ट्रेटिव लग रहा था। ऐसा की किसी की भी नजरे उस पर टिक सकती थी




    तभी उत्कर्ष को एहसास हुआ कि जैसे कोई उसे देख रहा हो। उसने हल्के से पलट कर Awesome की ओर देखा। वह अपने लैपटॉप पर झुकी हुई ईमेल चैक कर रही थी।

    उसकी नज़रे लैपटॉप पर टिकी देख उत्कर्ष वापस मिरर की ओर देखने लगा। उसने अपने बालों को सेट करना शुरू किया। ब्लैक शर्ट और लोअर में वह और भी ज्यादा दिलकश लग रहा था। उसकी परफेक्ट हाइट और टोन्ड बॉडी उसे ऐसा बना रही थी कि कोई भी उसके करीब आने की ख्वाहिश कर बैठे।




    तभी एक बार फिर से उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी की नजरें उसके हर मूवमेंट पर टिकी हुई हैं और कोई उसे बड़े गौर से देख रहा है।




    ये महसूस कर उसने फिर से धीरे से पलट कर awesome को देखा। पर awesome की नज़रे तो अब भी अपने लैपटॉप स्क्रीन पर जमी हुई थी।



    उत्कर्ष उसे देख खुद में बड़बड़ाया, “ये तो लैपटॉप देख रही है फिर मुझे कौन देख रहा है। मुझे गलत फेमी हो रही है कि क्या? की मुझे देख रहा है, वैसे भी इस कमरे में हम दोनों के अलावा और कोई नहीं है और ये मुझे देखे ऐसा हो नहीं सकता। शायद मैं ही ज्यादा सोच रहा हूं”।




    उसने अपने कंधे उचकाए और फिर से मिरर के तरफ पलट गया। उसके पलटते ही awesome ने अपनी नजरे उठाई और उसे देखने लगी। इस वक्त awesome की आंखों में एक चमक थी और होठों पर न के बराबर मुस्कान।

    वो बहुत ध्यान से उत्कर्ष के चहरे को देख रही थी जैसे उसके हर एक पल को अपनी आंखों में बसा रही हो।




    उत्कर्ष गुनगुनाते हुए मिरर के सामने खड़ा अपने बाल सेट कर रहा था, तभी दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक हुई। आवाज सुनकर उसने टॉवेल नीचे रखा और दरवाजे की ओर बढ़ा।




    दरवाजा खोलने पर उसने सामने आविन और आरुषि को खड़ा पाया। दोनों के चेहरे पर हल्की-सी उलझन थी। उत्कर्ष ने भौहें उठाते हुए इशारे में पूछा, "तुम दोनों इस वक्त यहाँ?"




    आविन ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया, "भाभी ने बुलाया है हमें। उन्हें शायद कुछ बात करनी है।"




    उत्कर्ष ने एक पल के लिए पीछे मुड़कर कमरे की ओर देखा। Awesome पहले ही लैपटॉप बंद कर रही थी। उसने शांत भाव से कहा, "उन्हें अंदर ले आओ। मैंने ही बुलाया है।"




    उसकी बात सुनते ही उत्कर्ष की भौहें हल्की सी तनीं। उसने थोड़ी नाराजगी से उसे देखा और मन ही मन कहा, "मैं खुद बात करने जाने वाला था। इन्हें यहीं बुलाने की क्या जरूरत थी?"




    जवाब में Awesome ने तिरछी निगाहों से उसे देखा, जैसे उसके ख्याल पढ़ लिए हों। उसने हल्की सख्ती से कहा, "ज़रूरत थी, तभी बुलाया है।" इसके बाद वह बेफिक्री से सोफे पर जाकर बैठ गई।




    उत्कर्ष ने उसकी बात पर चुपचाप सिर हिलाया और दरवाजे से हट गया। आविन और आरुषि कमरे में दाखिल हुए और सीधे Awesome के सामने जाकर खड़े हो गए।




    Awesome ने दोनों को एक पल के लिए गहराई से देखा। उसके चेहरे पर शांति थी, लेकिन आवाज में एक गंभीरता थी। उसने सीधा सवाल किया, "आरुष के बारे में बताओ। उसका किडनैप कब और कैसे हुआ?"




    आरुष का नाम सुनते ही आरुषि की आंखें भर आईं। दर्द उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। वह खुद को रोक नहीं पाई और सिसकने लगी।




    उसे रोता देख उत्कर्ष ने टेबल से टिशू का पैकेट उठाया। उसके पास जाकर उसने टिशू आगे बढ़ाते हुए नर्मी से कहा, "रोने से कुछ नहीं बदलेगा। खुद को संभालो। रोने से आरुष वापस नहीं आएगा। हमें मजबूत रहना होगा।"




    आरुषि ने उसकी बात सुनी और धीरे-से सिर हिलाया। उसने टिशू लिया और अपनी आंखें पोंछते हुए गहरी सांस ली।




    लेकिन यह देखकर आविन और Awesome के एक्सप्रेशन बदल गए थे। दोनों की भौहें सिकुड़ गईं थीं। दोनो ही उत्कर्ष को बुरी तरह घूरने लगे थे।




    उत्कर्ष को ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोई जलती निगाहें उसकी ओर टिकी हुई हों। उसने पलटकर देखा तो आविन और Awesome उसे घूर रहे थे। उत्कर्ष ने हैरानी से उन्हें देखा, मानो पूछ रहा हो, "क्या हुआ? मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो?"




    लेकिन दोनों ने उसे इग्नोर कर दिया और आरुषि की ओर ध्यान से देखने। आरुषि ने गहरी सांस ली, खुद को शांत किया और बोलना शुरू किया, "कल मैं आरुष को गार्डन में घुमा रही थी। तभी एक सर्वेंट मेरे पास आया और कहा कि मेरे लिए एक कॉल आई है। उसकी बात सुनकर मैंने आरुष को कुछ देर संभालने के लिए कहा और अंदर चली गई।




    लेकिन अंदर जाकर पता चला कि मेरे लिए कोई कॉल नहीं आई थी। जैसे ही ये समझ आया, मैं तुरंत गार्डन की ओर भागी। वहां पहुंचकर देखा कि वो सर्वेंट और मेरा आरुष दोनों गायब थे। मैंने गार्ड्स से पूछा, बाकी सर्वेंट्स से भी, लेकिन कोई भी उस सर्वेंट को पहचानता तक नहीं था। सबने यही कहा कि वो सिर्फ कल के लिए एक दूसरे सर्वेंट की जगह पर आया था।"




    आरुषि की बात सुनकर कमरे में कुछ पल की खामोशी छा गई। Awesome उसकी बात सुन कुछ सोच रही थी, फिर उसने उत्कर्ष की ओर देखा और सख्त लहजे में कहा, "सारे कैमरे चेक करो। हर एक फुटेज ध्यान से देखो। हमें पता लगाना होगा कि वो सर्वेंट कौन था। भवन से किडनैपिंग हुई है तो सबूत भी भवन में ही मिलेगा।”




    तभी आविन बोला “अनुराग अंकल ने सारी फुटेज चैक करवाई थी पर कोई सबूत नहीं मिला था। सारे कैमरे उस वक्त बंद थे। आरुष को जिसने भी किडनैप किया है बहुत सोच समझ कर किडनैप किया है”।




    आविन की बात सुनते ही awesome का चहरा सख्त हो गया। वो बोली “अगर ऐसा है तो इसका मतलब किडनैप करने वाला mr राजपूत के दुश्मन के साथ साथ तुम्हारा भी दुश्मन है आरुषि”।




    आरुषि चौंकते हुए बोली “मेरा दुश्मन! पर मेरा तो कोई दुश्मन नहीं है दी”।




    Awesome किसी गहरी सोच में खोई हुई बोली, “कभी कभी दुश्मन कब बन जाते है हमे पता ही नहीं चलता है। 24 घंटे हो चुके है पर अब तक कोई कॉल नहीं आया है इसका मतलब दो चीज है, एक या तो किडनैपर तुम्हे बुरी तरह डरा कर कुछ देर में कॉल करेगा और अपनी डिमांड रखेगा या दूसरा, वो डायरेक्ट आरुष की बॉडी यहां भेजेगा”।




    Awesome की बात पूरी होते ही आरुषि के रुके आसू एक बार फिर से बहने लगे। वो अपने बच्चे के लिए घबरा गई और जोर जोर से रोने लगी। आविन उसे शांत करनवाने की कोशिश कर रहा था। उत्कर्ष भी उसे चुप करवा रहा था पर awesome उसके दिमाग में तो जैसे कुछ और ही खतरनाक चल रहा था।

    रात का वक्त,


    डिनर खत्म करने के बाद उत्कर्ष हमेशा की तरह आन्या के पास उसके कमरे में सोने आ गया। कमरे में कदम रखते ही उसने देखा कि आभा जी, आन्या को गोद में लेकर किसी बात पर खिलखिला रही थीं।




    उत्कर्ष को देखकर आन्या की आंखों में चमक आ गई। वो चहकते हुए बोली, "डेडा, आज मैं नानी मां और नानू के साथ उनके कमरे में सोने जा रही हूं!"




    उत्कर्ष ने उसकी बात सुनकर हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। इस पर आभा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "उत्कर्ष, आन्या ने बताया कि तुम हर रात इसके साथ ही सोते हो। बच्चों से इतना प्यार करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन थोड़ा प्यार अपनी पत्नी के लिए भी बचा कर रखना चाहिए।"




    थोड़ा रुककर उन्होंने गंभीर होते हुए आगे कहा, "वैसे भी Awesome को कभी किसी का प्यार नहीं मिला। तुम्हें ही उसे उसके हिस्से का प्यार देना चाहिए। समझ रहे हो न मेरी बात?"




    उत्कर्ष को उनकी बात समझ आ रही थी। उसने उनकी बातो पर कुछ कहना चाहा पर फिर कुछ सोच कर खुद को रोक लिया। उसने चुपचाप सिर हिलाया और आन्या के पास जाकर उसके माथे पर किस करते हुए कहा, "गुड नाइट, एंजल।"




    आन्या ने भी उसकी बात पर खुश होते हुए उसके गाल पर एक नन्हा-सा किस दिया और बोली, "गुड नाइट, डेडा।"




    आभा जी ने भी उत्कर्ष को गुड नाइट कहा और आन्या के साथ कमरे से जाने लगीं। तभी दरवाजे पर रुकते हुए उन्होंने पीछे मुड़कर कहा, "उत्कर्ष, चलो, यहां अकेले क्या करोगे?"


    उत्कर्ष ने एक पल के लिए कुछ कहना चाहा लेकिन फिर से चुप रह गया।




    उत्कर्ष ने सिर हिलाया और आभा जी और आन्या के साथ कमरे से बाहर निकल आया। तीनों धीरे-धीरे चलते हुए अपने-अपने कमरे की ओर बढ़ने लगे।




    आभा जी ने चलते-चलते मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे तो लगा था कि तुमसे फिर कभी मुलाकात नहीं हो पाएगी। लेकिन देखो किस्मत ने क्या खेल दिखाया—अब तुम हमारे दामाद हो। सच कहूं तो, जब पहली बार तुम्हें देखा था, तभी सोच लिया था कि तुम जैसे लड़के को ही अपना दामाद बनाऊंगी। आखिर तुम जैसा अच्छा लड़का कहां मिलेगा!"




    उत्कर्ष उनकी बातों पर हल्के से मुस्कुरा दिया, तभी आन्या ने शरारती अंदाज़ में अपनी मीठी आवाज़ में कहा, "अच्छा और हैंडसम भी कहो न, नानी मां! मेरे डेडा बहुत हैंडसम हैं, उनके जैसा बंदा आपको पूरे ब्रह्मांड में नहीं मिलेगा।"




    आन्या की बात सुनकर आभा जी की आंखें बड़ी हो गई, और उत्कर्ष के चेहरे पर एक शर्म से भरी मुस्कान तैर आई। आन्या कहने को चार साल की थी पर वो उसकी बातें अच्छे अच्छों को झुका देती थी।

    आभा जी ने उसकी बातों पर हामी भरते हुए कहा, "हां, आन्या, इसमें तो कोई शक नहीं। इतना हैंडसम दामाद तो हर किसी की किस्मत में नहीं लिखा होता है!"




    तीनों हंसते-बोलते हुए awesome के कमरे तक पहुंचे। आभा जी ने कमरे के बाहर रुककर उत्कर्ष से कहा, "अच्छा भई, अब तुम आराम करो। गुड नाइट!" और फिर उसे अंदर जाने का इशारा किया।




    उत्कर्ष ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, जैसे कह रहा हो, "हां, बहुत आराम करने वाला हूं।" कमरे में घुसते ही उसने दरवाजा बंद किया और पीठ दरवाजे से टिकाकर खड़ा हो गया। फिर एक लंबी सांस लेते हुए मन ही मन बोला, "कमरे में आ तो गया हूं, पर अब असली युद्ध शुरू होगा।




    कैसे बताऊं आंटी आपकी इस बेटी के साथ रहना कितना मुश्किल है”।




    तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुला और awesome बाहर आई। उसे देख उत्कर्ष की धड़कने डबल स्पीड से भागने लगी। उसका मन यहीं धरती में समा जाने को कर रहा था। उसके लिए awesome के साथ एक कमरे में रहना बहुत अजीब था।




    Awesome ने जब उत्कर्ष को देखा, तो उसने पूछा, "तुम यहां क्या कर रहे हो? आज आन्या के कमरे में सोने नहीं गए?"




    उत्कर्ष ने अपनी तेज़ धड़कनों को काबू करते हुए जवाब दिया, "एंजल, आभा आंटी के साथ उनके कमरे में सोने गई है । आभा आंटी ने ही मुझे यहां सोने को कहा और मुझे खुद यहां कमरे तक छोड़कर गईं।"




    Awesome ने उसे एक पल के लिए देखा, फिर मिरर के सामने जा खड़ी हुई। उत्कर्ष ने गहरी सांस ली और धीरे से जा कर सोफे पर बैठ गया।




    Awesome ने अपने बालों का मेसी बन बनाते हुए पूछा, "तुमने मिस्टर राजपूत के दुश्मनों की लिस्ट निकाली?"




    उत्कर्ष, उसका सवाल सुन सीरियस हो कर बोला, "उनके दुश्मनों की लिस्ट बहुत लंबी है। बड़े-बड़े बिज़नेसमैन और कई पॉलिटिशियन भी उनकी दुश्मनी में शामिल हैं।"




    Awesome ने कुछ पल के लिए चुप्पी साध ली। फिर कुछ सोच कर उसने कहा, "आरुषि के बारे में पता करो। उसकी कॉलेज लाइफ, उसके दोस्तों और खासकर किसी ऐसे लड़के के बारे में जिसे उसने कभी रिजेक्ट किया हो या जिसका दिल उसने तोड़ा हो।"




    उत्कर्ष ने सिर हिलाकर ओके कहा, फिर वह खुद से बुदबुदाया, "उसका दिल तो मैंने ही तोड़ा था आपसे शादी करके। शायद उसकी किस्मत में खुशियां नहीं लिखी है।"




    "तुमने कुछ कहा?” Awesome ने मिरर में उसे देखते हुए पूछा।

    उत्कर्ष ने तुरंत चौंककर न में सिर हिलाया और बोला, "नहीं। मैं यहीं सो जाता हूं। आप भी सो जाइए। गुड नाइट।"




    Awesome ने हल्के से सिर हिलाया और बेड पर लेट गई। उत्कर्ष भी सोफे पर लेट गया, पर दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी।




    थोड़ी देर बाद उत्कर्ष ने अपनी आंखे खोली और चुपके से Awesome की तरफ देखा।

    कमरे की मध्यम रौशनी में awesome का शांत चहरा चमक रहा था। उसका आधा ब्लैंकेट बेड से नीचे गिर चुका था। ये देख उत्कर्ष ने सिर हिलाया और कहा, “ये लड़की आज भी उसी तरह सोती है। पता नहीं कब ठीक से सोना सीखेगी?”
    कहते हुए वो सोफे से उठ कर उसके पास चला आया।




    उसने हल्के हाथों से बिना कोई आवाज किए, धीरे से ब्लैंकेट उठा कर awesome को अच्छे से ओढ़ा दिया फिर सीधा खड़ा हो कर उसे देखने लगा।




    Awesome को निहारते हुए उत्कर्ष के दिमाग में आभा जी कही बात घूम गई, “awesome को तो किसी का प्यार नसीब नहीं हुआ, पर तुम उसे उसके हिस्से का प्यार जरूर देना”।




    उत्कर्ष , awesome के शांत चहरे को देखते हुए मन में बोला, “प्यार! प्यार तो मुझे भी चाहिए था पर मिला क्या, कुछ भी नहीं। अगर मैं इस से प्यार करने की कोशिश भी करु तब भी शायद ये कभी न करे। कहने को हम पांच साल से पति पत्नी हैं, आठ सालों से एक दुसरे के साथ काम कर रहे हैं पर हमारा रिश्ता अब भी अजनबियों की तरह है। हम अब भी एक दूसरे के लिए कोई इंपॉर्टेंस नहीं रखते”।

  • 13. My Awesome - Chapter 13

    Words: 2409

    Estimated Reading Time: 15 min

    जयपुर,

    आन्या ने अनुराग को परेशान कर रखा था। वो आभा जी से कंटिन्यू बाते किए जा रही थी। अनुराग अब इरिटेट हो चुके थे। उन्होंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, “अब बस भी करो। कितना बोलती हो तुम। तुम्हारे मुंह में दर्द नहीं होता है क्या?”

    आन्या ने क्यूट सा फेस बना कर उन्हें देखा और कहा, “बोलने से भी मुंह में दर्द होता है क्या नानू। बोलने से तो प्यास लगती है, दर्द थोड़ी होता है। आप इतने बड़े हो और आपको इतना भी नहीं पता” ये कह वो अपने मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगी।

    आभा जी भी हंसने लगी थी। उन्होंने पहली बार अनुराग की बोलती बंद होते देखा था। अनुराग ने एक नजर उसे देखा और धीरे से कहा, “आज ये सोने नहीं देगी मुझे..”।

    आभा जी बोली, “नाराज मत होइए, सो जाइए। बच्ची है जल्दी सो जाएगी”। अनुराग ने न में सिर हिलाया और बेड पर लेट गए। तभी उसका फोन रिंग हुआ।

    उन्होंने कॉल रिसीव की और दूसरी तरफ की बात सुनी तो उनकी आंखे बड़ी हो गई और वो तेज कदमों से बाहर निकल गए।


    इधर उत्कर्ष awesome को निहार रहा था। कुछ देर बाद उसने सिर हिलाया और सोफे के तरफ जाने लगा कि अचानक उनके कमरे का दरवाज़ा कोई खटखटाने लगा।

    उत्कर्ष ने वक्त देखा तो रात के 12 बजने को आए थे। ये देख उसके एक्सप्रेशन सीरियस हो गए। उसने awesome को देखा जो उठ बैठी थी और अपने पिल्लों के नीचे से गण निकाल रही थीं।

    Awesome ने तकिए के नीचे से अपनी पिस्तौल निकाली और उसे लोड करने लगी। उत्कर्ष के माथे पर पसीना छलक आया था। ऐसा नहीं था कि उसने पहली बार गण देखा हो। पिछले आठ सालों में, और खासकर इन पांच सालों में, उसने न जाने क्या-क्या देखा था। लेकिन Awesome का यह अंदाज़... यह कुछ और ही था।



    उसने मन ही मन सोचा, "इस लड़की को अपने परिवार पर भी भरोसा नहीं है। गण तो ऐसे पकड़ रखी है, जैसे अभी यहां खून की नदियां बहा देगी।"



    Awesome ने इशारे से उत्कर्ष को दरवाजा खोलने को कहा। वह धीमे सिर हिलाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ा। दरवाजे तक पहुंचकर उसने धीरे से बाहर झांका।



    Awesome का पूरा ध्यान दरवाजे पर था। उसकी गण हर स्थिति के लिए तैयार थी। अगर ज़रा भी कुछ गलत होने का अंदेशा हुआ, तो वह सीधे फायर कर देती।



    लेकिन दरवाजे के बाहर खड़े शख्स को देखकर उत्कर्ष की आंखें चौड़ी हो गईं। उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभर आए। उसने धीमे से कहा,

    "आप? इस वक्त यहां?"



    दरवाजे पर अनुराग और कबीर खड़े थे। वह कुछ कहने ही वाले थे कि उनकी नजर Awesome के हाथ में पकड़ी गण पर पड़ी। अनुराग का चेहरा कठोर हो गया।

    "तुम्हें हमारे सिक्योरिटी प्रोटोकॉल पर भरोसा नहीं है, जो खुद गण लेकर तैयार खड़ी हो?" अनुराग ने सख्ती से कहा।



    Awesome ने उनकी ओर एक ठंडी नज़र डाली, फिर बिना कोई हड़बड़ी दिखाए गण वापस तकिए के नीचे सरकाते हुए बोली,

    "मुझे आप पर भरोसा नहीं है। और भरोसा करूं भी क्यों? आप भरोसे के लायक ही नहीं हैं।"



    उसकी बात सुन अनुराग का चेहरा और कठोर हो गया।



    उत्कर्ष ने सिचुएशन को संभालने की कोशिश करते हुए कहा,

    "इस वक्त आप यहां आए हैं, तो कोई जरूरी बात होगी?



    पर अनुराग की नजरें अब भी Awesome पर जमी हुई थीं।

    अनुराग ने गंभीर आवाज़ में कहा, "हां, एक कॉल आई है। वह न केवल मुझसे, बल्कि Awesome से भी बात करना चाहता है। मुझे शक है कि यह किडनैपर का कॉल है। लेकिन सबसे अजीब बात यह है कि वह Awesome को कैसे जानता है?"



    अनुराग की बात सुनकर Awesome के होंठों पर एक मिस्टीरियस स्माइल उभर आई। वह हल्के से बुदबुदाई, "तो मेरा शक सही निकला। इन सबके पीछे तुम ही हो।"



    उत्कर्ष भी सोच में पड़ गया। आखिर ऐसा कौन हो सकता है, जो अनुराग और Awesome दोनों के बारे में जानता हो?



    अनुराग ने अपनी बात पूरी कर कबीर के साथ जाने को हुए, लेकिन तभी उनकी और कबीर की नज़र सोफे पर पड़ी। वहां पड़े तकिए और चादर को देखकर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उत्कर्ष सोफे पर सो रहा था।



    दोनो ने एक पल उत्कर्ष और awesome की ओर देखा और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चले गए।



    अनुराग और कबीर के जाते ही Awesome बेड से उतरी। उसने अपने कपड़े ठीक किए और फोन उठाते हुए कमरे से निकलने लगी। उत्कर्ष ने भी जल्दी से उसका पीछा किया और चलते-चलते कहा,

    "इसका मतलब जो कोई भी है, वह Mr. राजपूत के साथ-साथ आपका भी दुश्मन है। लेकिन उसे आपके और Mr. राजपूत के बारे में कैसे पता चल सकता है? क्या वह Mr. राजपूत का पुराना दुश्मन है?"



    Awesome ने बिना रुके, शांत लेकिन सधी हुई आवाज़ में कहा,

    "पुराना नहीं, खानदानी दुश्मन है। उसे मेरे बारे में सब कुछ शुरू से पता है। Mr. राजपूत से बदला लेने के लिए उसने पहले मुझे अपना मोहरा बनाना चाहा था। लेकिन उस वक्त तुम मेरे साथ थे, इसीलिए मैं उसके जाल से बच निकली।"



    उत्कर्ष ने हैरानी से पूछा, "तो इसका मतलब अब वो?"



    Awesome ने उसकी बात पर हल्की मुस्कान के साथ कहा,

    "अब वह आरुषि को अपने खेल का मोहरा बना रहा है। ताकि Mr. राजपूत को अपनी मुट्ठी में कर सके।"



    उत्कर्ष ने गंभीर होते हुए कहा, "तो अब क्या करेंगे?"



    Awesome ने उसकी ओर पलटकर देखा। उसकी आंखों में अजीब सी चमक थी, जैसे वह हर चाल पहले ही सोच चुकी हो।

    "अब खेल उसी के तरीके से खेलेंगे। लेकिन इस बार, शिकारी मैं बनूंगी।"



    हॉल में सभी लोग इकट्ठे थे। आरुषि का रो-रोकर बुरा हाल हो चुका था। आभा जी उसे संभालने की भरसक कोशिश कर रही थीं, लेकिन आरुषि के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।



    सबके आने पर छोटी आन्या भी उठ गई थी और सबके साथ वहीं खड़ी थी। उसने जैसे ही उत्कर्ष को देखा, वह अपनी आंखें मलते हुए उसके पास चली आई।



    उत्कर्ष ने उसे गोद में उठा लिया और उसके सिर को अपने कंधे से टिकाकर धीरे-धीरे सहलाने लगा।



    हॉल में सबकी निगाहें टीवी स्क्रीन पर थीं। स्क्रीन पर एक वीडियो कॉल ऑन थी, लेकिन फिलहाल वहां कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था।

    Awesome ने आगे बढ़कर स्क्रीन के सामने खड़े होते हुए सिगरेट जलाई। उसने गहरी सांस भरते हुए धुएं का छल्ला हवा में उछाला और ठंडे भाव में कहा,

    "आधी रात को क्यों परेशान कर रहे हो? कोई खास वजह है या यूं ही?"



    उसकी आवाज सुनते ही स्क्रीन के दूसरी तरफ बैठे अंधेरे में छिपे शख्स के चेहरे पर एक धीमी मुस्कान फैल गई। उसकी आंखें लगातार Awesome को निहार रही थीं। वह शांत लेकिन तीखे अंदाज में बोला,

    "तुम्हें देखने का मन हो रहा था, Awesome। जानता हूं, आधी रात में तुम और भी ज्यादा खूबसूरत लगती हो।"



    उसकी बात सुनकर अनुराग और कबीर की मुट्ठियां गुस्से से भिंच गईं। उनकी आंखों में क्रोध की लाली साफ झलक रही थी। वहीं उत्कर्ष ध्यान से स्क्रीन को घूर रहा था, लेकिन उसे कुछ भी साफ नजर नहीं आ रहा था।



    Awesome ने तिरछी मुस्कान के साथ जवाब दिया,

    "काश मैं भी तुम्हारे लिए ऐसा कुछ कह पाती। लेकिन अफ़सोस, तुम्हारा आधा चेहरा तो मेरे पति ने खराब कर दिया है।"



    उसके इस जवाब ने कमरे में सन्नाटा खींच दिया। उत्कर्ष की आंखें चौड़ी हो गईं। वहीं आविन, जो अब तक शांत था, शॉक्ड रह गया। वह धीमे कदमों से उत्कर्ष के पास आया और बमुश्किल फुसफुसाते हुए बोला,

    "इसका मतलब... यह वही है। इसने ही मेरे बच्चे का किडनैप किया है।"

    उत्कर्ष उसको तिरछी नजर से घूरते हुए बोला, “तू तो अपना मुंह बंद रख। यहां शादी कर के एक बच्चे का बाप बना बैठा है और हमें कोई खबर ही नहीं है”।

    आविन ने अपने दांत दिखाए और स्क्रीन की तरह देखने लगा।

    Awesome ने सिगरेट का आखिरी कश लिया और स्क्रीन की ओर झुकते हुए धीमी, लेकिन घातक आवाज़ में कहा,

    "तो खेल शुरू करेंगे, बताओ आरुष के बदले तुम्हें मुझ से और mr राजपूत से क्या चाहिए?”



    वो शख्स उसकी बात पर शैतानी मुस्कुराहट के साथ बोला, “तुम्हारा पति उत्कर्ष, या तुम्हारी बेटी आन्या”

    "तुम्हारा पति उत्कर्ष या तुम्हारी बेटी आन्या?"


    कॉर्न की बात सुनते ही awesome की आँखें डार्क हो गई। वहीं उत्कर्ष ने आन्या को अपनी बाहों में और कसकर भींच लिया।



    अनुराग और कबीर से अब रहा नहीं गया। अनुराग गुस्से में गरजते हुए बोले,

    "तुम हो कौन? क्या समझते हो खुद को? जानते भी हो तुम किससे टकराने की कोशिश कर रहे हो?"



    कबीर ने तीखे लहजे में कहा,

    "अगर तुम्हारी दुश्मनी हमसे है तो सीधे हमसे लड़ो। इस मासूम बच्ची और उत्कर्ष का इसमें क्या कसूर? इन्हें क्यों घसीट रहे हो अपनी नफरत में?"



    कॉर्न ने एक शैतानी मुस्कान के साथ कहा,

    "कसूर? इन दोनों का ही सबसे बड़ा कसूर है! अगर उस रात उत्कर्ष awesome के कमरे में नहीं जाता, तो आज awesome मेरी होती... और आन्या मेरी बेटी होती"



    उसकी बात सुनकर सब शॉक्ड रह गए। कमरे में एक सन्नाटा छा गया। Awesome की ग्रीन आईज थोड़ी और ज्यादा डार्क हो गई, जैसे किसी पुराने जख्म की टीस फिर से उठ गई हो।



    उत्कर्ष ने गहरी सांस लेते हुए शांत भाव से कहा,

    "कॉर्न, तुम्हारी दुश्मनी मुझसे है। जो भी करना है, मुझसे करो। मेरी बेटी और आरुष को इस सब में मत घसीटो। इनका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। ये दोनों अभी बच्चे हैं”।

    कॉर्न ने हंसते हुए कहा,

    "ऐसे कैसे नहीं है, उत्कर्ष? यह बच्ची ही वो वजह है, जिसकी वजह से तुम दोनों ने शादी की। अगर यह नहीं होती, तो तुम और awesome कभी साथ नहीं होते। यह बच्ची ही वो कारण है जिसने मेरे सारे सपनों को तबाह कर दिया। अब मैं इसे तुमसे छीन लूंगा। यही मेरा बदला होगा।"



    उसकी बात ने कमरे का तापमान और बढ़ा दिया। उत्कर्ष ने एक बार फिर अपनी बेटी को गले से लगाया और गुस्से से कॉर्न को देखा।

    "तुम जो करना चाहते हो, कर लो। लेकिन मेरी बेटी को कोई आंच नहीं आने दूंगा। चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।"



    कॉर्न की शैतानी मुस्कान और गहरी हो गई। वो यही तो चाहता था जो कि हो रहा था।



    उत्कर्ष ने awesome की ओर देखा, इस उम्मीद से कि वह कुछ कहेगी। लेकिन उसकी उम्मीदों के उल्ट, awesome एकदम शांत खड़ी थी।



    Awesome की इस खामोशी ने उत्कर्ष का गुस्सा और भड़का दिया, लेकिन उसने अपने भीतर के उफान को किसी तरह दबा लिया और एक बार फिर कॉर्न की ओर देखने लगा।



    कॉर्न ने अपनी शैतानी मुस्कान के साथ कहा,

    "तो बताओ, awesome। आरुष के बदले तुम मुझे क्या दोगी? अपना पति... या अपनी बेटी?"



    सभी की नजरें अब awesome पर टिक गईं। सब उसके जवाब का इंतजार कर रहे थे। Awesome ने तिरछी नजर से अपनी बेटी आन्या की ओर देखा। आन्या उत्कर्ष की गोद में गहरी नींद में सो रही थी।



    फिर, एक ठंडी और कठोर आवाज में, awesome ने कहा,

    "आन्या। तुम आन्या को ले जा सकते हो।"



    यह सुनते ही कमरे में मौजूद सभी लोगों के होश उड़ गए। यहां तक कि उत्कर्ष भी सन्न रह गया। वह यकीन नहीं कर पा रहा था कि awesome ने सचमुच यह कहा है।



    भला कौन-सी मां अपने बच्चे को दांव पर लगा सकती है? लेकिन awesome ने यह कर दिखा था।



    उत्कर्ष ने अविश्वास से आसमां की ओर देखा। उसकी पकड़ अचानक ढीली पड़ गई, और उसकी आंखों में कई सवाल थे जिसका जवाब सिर्फ awesome ही दे सकती थीं।



    कॉर्न शैतानी मुस्कुराहट के साथ बोला,

    "इंट्रेस्टिंग। मैंने सोचा था कि तुम अपने पति को बचाने के लिए ऐसा करोगी। लेकिन तुमने अपनी बेटी को दांव पर लगा दिया। लगता है तुम्हे अपनी बेटी से ज्यादा अपने पति से प्यार है”।



    आरुषि कमरे के एक कोने में बैठी, बताशा रोए जा रही थी। उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था और उसकी सिसकियां कमरे की खामोशी को चीर रही थीं। तभी आविन कमरे में दाखिल हुआ। उसे इस हालत में देखकर उसने पास आकर कहा,

    "अब क्यों रो रही हो, आरुषि? हमारा बच्चा तो अब हमारे पास आने वाला है। खुश होनी चाहिए तुम्हें।"



    लेकिन उसकी आवाज में नाराजगी और ठंडापन साफ झलक रहा था। आरुषि को लगा जैसे वह उसे ताने दे रहा हो। वह और जोर से रो पड़ी और बोली,

    "सॉरी, आविन। मुझे सच में नहीं पता था कि मेरी एक गलती से इतना बड़ा तूफान आ जाएगा। दीदी को अपनी बेटी खोने की नौबत आ जाएगी... सब मेरी वजह से हुआ है।"



    आविन के दिमाग में इस वक्त कुछ और ही चल रहा था। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा,

    "आरुषि, अब रोना बंद करो और शांत हो जाओ। जो होना था, वह हो चुका। अब आगे की सोचो। सुनो, मैं भाई और भाभी के पास जाऊंगा और साफ-साफ कह दूंगा कि हमें आरुष नहीं चाहिए। वो आन्या को कहीं नहीं भेजेंगे, तुम नहीं जानती भाई आन्या से कितना प्यार करते हैं। अगर उसे कुछ भी हुआ तो भाभी और उनकी जिंदगी नफरत से भर जाएगी।”


    यह सुनकर आरुषि के दिल की धड़कन रुक-सी गई। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। वह आरुष को खोना नहीं चाहती थी। आरुष उसकी पहली औलाद था, उसकी जान था। लेकिन उसे यह भी पता था कि इस पूरे हालात की वजह वही है।



    उसने भारी मन से सिर हिला दिया और अपने आंसू पोछने की कोशिश करने लगी। लेकिन उसकी आंखों में अभी भी दर्द और पछतावा साफ दिख रहा था।



    आविन ने उसकी ओर देखा, एक पल के लिए उसकी भी नजरें नरम पड़ीं, लेकिन वह जल्दी ही अपने ख्यालों में लौट आया। उसने ठंडी सांस भरते हुए कहा,

    "हम सुबह इस बारे में बात करेंगे। अब सोने की कोशिश करो।"



    इतना कहकर वह बालकनी में चला गया। आरुषि बिस्तर पर बैठी, अपने मुंह पर हाथ रखकर, आवाज दबाकर रोती रही। उसका दिल टुकड़े-टुकड़े हो रहा था। वो आविन के गले लग कर फुट फूट कर रोना चाहती थी पर शायद उनके रिश्ते ने आरुषि को ये हक नहीं दिया था।



    दूसरी तरफ awesome कमरे में जैसे ही आई, उत्कर्ष उसके सामने आ कर खड़ा हो गया। उसकी काली आंखें इस वक्त लाल हो चुकी थी। वो बहुत गुस्से से awesome को देख रहा था।



    उसने awesome की आंखों में देखते हुए कहा, “आपको किसने हक दिया मेरी बेटी का सौदा करने का? वो मेरी बेटी है आपकी नही? मैं अपनी आन्या को कहीं नहीं जाने दूंगा, उस कॉर्न के पास तो बिल्कुल भी नहीं”।

    Awesome ने कुछ पल उसकी आंखों में देखा फिर बिना कोई जवाब दिए जाने को पलट गई पर तभी उत्कर्ष ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया।