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यह कहानी है जय राज सिंघानिया और जानवी गुप्ता की — दो अनजाने लोगों की जो न ज़िंदगी से मेल खाते हैं, न एक-दूसरे से। जय राज सिंघानिया, 32 वर्षीय तलाकशुदा बिज़नेसमैन, सिंघानिया इंडस्ट्री का मालिक, एक 5 साल के बेटे का सिंगल पिता — रिश्तों में ठगा ह... यह कहानी है जय राज सिंघानिया और जानवी गुप्ता की — दो अनजाने लोगों की जो न ज़िंदगी से मेल खाते हैं, न एक-दूसरे से। जय राज सिंघानिया, 32 वर्षीय तलाकशुदा बिज़नेसमैन, सिंघानिया इंडस्ट्री का मालिक, एक 5 साल के बेटे का सिंगल पिता — रिश्तों में ठगा हुआ, और दोबारा शादी के नाम से ही चिढ़ता हुआ इंसान। वो अब प्यार और रिश्तों में यकीन नहीं करता। दूसरी तरफ है जानवी गुप्ता, सिर्फ 19 साल की एक मासूम, सीधी-सादी लड़की, जो अपने माता-पिता को खोने के बाद चाचा चाची के घर पली-बढ़ी है। वो अब भी प्यार और अपनापन चाहती है, लेकिन उसकी किस्मत उसे ऐसे रास्ते पर ले आती है जहाँ उसे एक ऐसे शख्स से शादी करनी पड़ती है जिसे वो जानती तक नहीं। दोनों अपने-अपने परिवारों के दबाव में आकर एक ऐसे रिश्ते के लिए हामी भरते हैं जिसमें न मुलाकात होती है, न जान-पहचान। लेकिन सब कुछ टूट जाता है उस दिन — जब शादी से ठीक पहले जानवी, जय राज को एक और औरत के साथ होटल में देख लेती है। उसका दिल शादी से पहले ही टूट जाता है। और फिर शुरू होती है एक बेमेल रिश्ते की अनकही यात्रा...
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अलीशा से शादी तुमने अपनी मर्ज़ी से की थी। हमें तो वो कभी पसंद नहीं थी। तुमने जो चाहा, वही किया... मगर हमने तुम्हें कभी नहीं रोका। अब तो मान जाओ मेरी बात, दुश्मन नहीं हूँ मैं तुम्हारा। हमेशा मनमानी करते हो तुम।”
राजन सिंघानिया की आवाज़ में नाराज़गी से ज़्यादा थकावट थी। उन्होंने सामने खड़े अपने बेटे जयराज सिंघानिया की ओर देखा, जो हमेशा की तरह अपनी ही सोच में अड़ा हुआ था।
जय अपनी जगह पर चुपचाप खड़ा रहा, मगर उसकी आँखों में वो सवाल साफ़ दिख रहे थे जिनके जवाब शायद उसके पास भी नहीं थे।
“आप मेरी शादी के पीछे क्यों पड़े हैं, डैड?” जय ने धीमी मगर तीखी आवाज़ में कहा, “मुझे नहीं करनी कोई शादी। क्यों आप मुझे शांति से नहीं जीने देते? युग की परवाह है मुझे। आप समझते क्यों नहीं? जब उसकी अपनी माँ, उसकी माँ नहीं बन सकी… तो अब कौन उसकी माँ बनेगा? और क्यों?”
राजन गुस्से में आगे बढ़े, “युग की फिक्र तुम छोड़ो। वो अब हमारा बेटा है — तुम्हारी माँ और मेरे लिए वही सब कुछ है। उसकी परवरिश की ज़िम्मेदारी हमारी है, तुम्हारी नहीं। मगर मैं तुम्हें यूँ अकेला नहीं छोड़ सकता, जैसे युग हमारा बेटा है, वैसे ही तुम भी हो। तुम्हारी फिक्र करना मेरा हक़ है।”
राजन ने एक हल्की हँसी के साथ आँखें बंद कीं और फिर तेज़ी से पलटते हुए बोला, “अगर आप मेरी बात नहीं मान सकते, तो मुझे ‘डैड’ कहने की भी कोई ज़रूरत नहीं।”
जय उठकर चलने ही वाला था कि पीछे से फिर आवाज़ आई — “बहुत हो गया जय… मत मानो मेरी बात, लेकिन एक बात याद रखना…”
जय वहीं रुक गया, मगर बिना मुड़े ही जवाब दिया, “वो लड़की मुझसे बहुत छोटी है, डैड। सिर्फ़ उन्नीस साल की है। एक बच्ची जैसी लड़की मेरे साथ कैसे एडजस्ट करेगी? मैं बत्तीस का हूँ — क्या कम से कम इतनी समझदारी नहीं दिखा सकता कि उसकी उम्र देखूँ?”
राजन ने गंभीरता से उसकी बात सुनी, फिर शांत स्वर में बोले, “तुम्हारी माँ मुझसे नौ साल छोटी है। और देखो, हमने कितना कुछ साथ में पार किया। उम्र का फ़र्क़ इतना मायने नहीं रखता जितना सोच का मेल। और मुझे पता है… उस लड़की की सोच मजबूत है।”
जय ने निराश भाव से सिर झुकाया। “पिछले एक महीने से आप इसी विषय पर मुझसे बात कर रहे हैं… चलिए मान लिया, आप जीत गए। मैं तैयार हूँ शादी के लिए।”
राजन के चेहरे पर पहली बार संतोष की झलक आई। “तो फिर शाम को लड़की से मिलने चलते हैं।”
“नहीं, मैं मिलने नहीं जाऊँगा। शादी जिस दिन होनी है, मुझे बता दीजिएगा। मैं समय पर पहुँच जाऊँगा। बस एक बात याद रखें — शादी के बाद मुझे किसी बात के लिए टोका नहीं जाएगा। मैं जो करूँगा, अपनी मर्जी से करूँगा। और अगर कुछ गलत हो, तो उसका इल्ज़ाम भी मुझ पर नहीं आएगा।”
कहकर वह गुस्से में कमरे से बाहर चला गया।
राजन चुपचाप खड़े रहे। तभी जया — उनकी पत्नी और जय की माँ — पास आईं और चिंतित स्वर में बोलीं, “क्या यह सही होगा? वह लड़का गुस्सैल है, ज़िद्दी है… क्या एक मासूम सी लड़की उसके साथ खुश रह पाएगी? एक बार फिर सोच लीजिए, राजन। पहली शादी भी तो इसने अपनी मर्जी से की थी, और देखिए, क्या नतीजा हुआ।”
राजन ने उसकी ओर देखा और मुस्कराते हुए कहा, “मैंने बहुत सोच-समझकर फैसला लिया है, जया। मैंने उसे बचपन से देखा है… मजबूत, समझदार, सुलझी हुई लड़की है वो। जयराज जैसा जिद्दी लड़का उसके साथ बदल जाएगा। और उसे भी एक ऐसा ही साथी चाहिए — जो प्यार न सही, लेकिन सच्चाई से भरा हो।”
जया ने सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर चिंता अब भी साफ़ झलक रही थी।
राजन की आँखों में एक सपना था — एक ऐसा रिश्ता, जो ज़िद और ज़ख्म के उस पार एक नए आसमान की ओर ले जाए।
जयराज सिंघानिया, सिंघानिया खानदान के बड़े बेटे थे। उम्र 32 साल, क़द छह फीट से ज़्यादा, सांवला रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, चेहरे पर दाढ़ी और बड़ी-बड़ी मूँछें। उन्हें अपने काम से बहुत प्यार था।
कई साल पहले उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय मॉडल से शादी की थी। उनका रिश्ता ज़्यादा देर नहीं चला। एक बच्चे को जन्म देने के बाद वह मॉडल जयराज को छोड़कर चली गई क्योंकि उसे अपने करियर से प्यार था। जयराज के साथ रहने के लिए उसे अपने करियर से समझौता करना पड़ रहा था। एक बच्चे की माँ तो वह हरगिज़ कहलाना नहीं चाहती थी।
उसे आजादी प्यारी थी और वह आजादी के साथ रहना चाहती थी। युग को छोड़कर वह चली गई और फिर कभी वापस नहीं आई। जय को अपने बेटे युग से बेहद प्यार था। वह अपने काम की वजह से उसे पूरा ध्यान नहीं दे पाता था, इसलिए उसकी माँ जया ही उसके बेटे की देखभाल करती थी।
इसके अलावा, उसके दो छोटे भाई समर सिंघानिया और ऋषभ सिंघानिया थे। दोनों की शादी हो चुकी थी।
समर सिंघानिया की पत्नी रेखा ज़िदगी की तीखी थी और बोलते हुए किसी का लिहाज़ नहीं करती थी। समर खुद भी उससे डरता था। ऋषभ की पत्नी माला ज़िदगी की मीठी मगर बहुत तेज-तर्रार लड़की थी।
समर सिंघानिया का एक बेटा अंश था, तो ऋषभ सिंघानिया की एक बेटी निशा थी। ये तीनों बच्चे एक ही उम्र के थे और तीनों प्ले स्कूल जाते थे।
रेखा और माला दोनों चाहती थीं कि उनकी छोटी बहन से जय की शादी हो। इसलिए वे अक्सर अपनी बहनों को घर बुला लेती थीं। उन्हें जय के आस-पास रहने के लिए कहती थीं। यह बात अलग थी कि जय ने कभी किसी में दिलचस्पी नहीं ली।
जयराज सिंघानिया कभी एक खुशमिजाज नौजवान हुआ करता था। मगर धीरे-धीरे वह बहुत बदल चुका था। अलीशा के बाद वह किसी के साथ भी रिश्ते में नहीं पड़ा था। ना ही उसे शादी करने में कोई दिलचस्पी थी। वह मानता था कि अगर वह शादी करता है तो शायद युग के लिए अच्छा नहीं होगा और वह भी किसी के साथ एडजस्ट नहीं कर पाएगा।
अपनी ज़रूरत के लिए उसके वन-नाइट स्टैंड तो काफ़ी रहे। मगर वे सिर्फ़ एक रात के लिए ही थे, उसके बाद उसने उनकी तरफ़ मुड़कर नहीं देखा।
वह अपने पिता की इस बात से परेशान था कि 32 साल के नौजवान के लिए 19 साल की लड़की, क्या यह सही रहेगा? वह शादी किसी भी हालत में नहीं करना चाहता था। मगर उसे अपने पिता के आगे झुकना पड़ा।
"वैसे आपको एक बार और सोच लेना चाहिए," जया ने अपने पति राजन से कहा।
"मैंने बहुत सोच-समझकर फ़ैसला किया है। तुम जानवी को जानती हो। मुझे वह लड़की पसंद है।"
"मैं जानवी को जानती हूँ। इसीलिए कह रही हूँ। जानवी एक हवा का झोंका है। एक खुशमिजाज लड़की, इतने दुखों में भी खुश रहती है। जब वह हँसती है तो पूरा घर हँसने लगता है।"
"तो क्या लगता है हमारा बेटा और वह दोनों खुश रहेंगे? मुझे जानवी की भी फ़िक्र है।"
"फ़िक्र मत करो। जय जानवी को बहुत खुश रखेगा। पलकों पर बिठाकर। क्या तुम्हें नहीं लगता हमारे बेटे को भी एक ठंडी हवा के झोंके की ज़रूरत है?"
"आपकी बातें मुझे समझ नहीं आतीं," जया ने कहा।
"तो क्या उसकी फैमिली मानेगी जय के लिए? उनकी उम्र में इतना फ़र्क है।"
"मेरी जानवी के दादा से बात हो गई है। वह तैयार हैं और जानवी कभी अपने दादा की बात नहीं मानती। जैसा वे कहेंगे, वैसा ही करेगी। तुम अच्छे से जानती हो।"
"सही बात है। बिन माँ-बाप की बच्ची से कौन पूछेगा उसकी चॉइस?"
"इसीलिए तो जानवी को अपने घर ले आ रहा हूँ। वह मेरे स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है। तुम बन जाना उसकी माँ।"
"हाँ, मुझे भी लगता है। जय की पत्नी और उसके बेटे दोनों की माँ मुझे ही बनना पड़ेगा," जया ने मुस्कुराकर कहा। उसे अपने पति के फ़ैसले, जय और जानवी की शादी का, समझ नहीं आ रहा था।
नीली आँखों वाली लड़की, जिसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। शायद ही किसी ने उसे उदास देखा हो। हँसती-खेलती, मुस्कुराती वह लड़की, जो एक हवा का झोंका थी; जिसके पास से गुज़र जाए, उसे गुदगुदा दे।
हमेशा खुश रहती थी। किसी ने उसे कोई बात सुनाई भी, तो उसने कभी मोड़कर जवाब नहीं दिया। मगर उसकी ज़िन्दगी में बहुत बड़ा दर्द था।
उसके बचपन में ही उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी। बिज़नेस में बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। उसके पिता, राजेश गुप्ता, दिवालिया हो गए थे। उन्होंने शराब के नशे में अपनी पत्नी और खुद को गोली मार ली थी। उस समय जानवी घर पर नहीं थी; नहीं तो शायद वह जानवी को भी गोली मार देते। उनकी मौत के बाद उसके दादा-दादी उसे अपने साथ ले आए थे।
उसके दादा-दादी उसके पिता के बड़े भाई के परिवार के साथ रहते थे। जानवी अपने अंकल और आंटी के साथ रहती थी, जिनकी खुद की दो बेटियाँ और एक बेटा था। उसकी दादी इस दुनिया से जा चुकी थी और उसके दादाजी भी बीमार रहते थे। वे चाहते थे कि किसी अच्छे परिवार में जानवी की शादी कर दें, क्योंकि जानवी उनकी ज़िम्मेदारी थी और उसे छोड़कर उनके लिए मरना भी आसान नहीं था।
उसके दादाजी को उसकी बहुत चिंता थी। जानवी के लिए रिश्ते भी आए थे, मगर वे उसके दादाजी को पसंद नहीं आए थे। उसके दादाजी जानवी को किसी सुरक्षित हाथों में छोड़ना चाहते थे। जानवी 19 साल की हो चुकी थी, मगर उसमें बचपना बहुत था। ऐसा भी कह सकते हैं कि इसी बचपन के पीछे उसने अपने सारे दुःख-दर्द छुपाए हुए थे।
जानवी के दादाजी अपने लॉन में बैठे हुए थे। उनके पास ही राजन सिंघानिया और उनकी पत्नी जया आई हुई थीं। वे लोग बातें कर रहे थे। तभी जानवी की आंटी, तनु गुप्ता, एक नौकरानी के साथ अंदर से लॉन में आईं। नौकरानी के हाथ में चाय की ट्रे पकड़ी हुई थी।
"कैसी हैं जया जी आप?"
"बहुत दिनों बाद मिलना हुआ।" तनु ने जया से कहा।
"हम आपसे कुछ मांगने आए हैं।" जवाब में राजन सिंघानिया कहने लगे।
"क्या हुआ? आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"
"आप हुक्म कीजिए।"
"हमें जय के लिए आपके घर की बेटी चाहिए।" राजन जी ने कहा।
उनकी बात सुनकर तनु हैरान हो गई।
"सचमुच! हमें भला क्या एतराज हो सकता है? सोनिया अभी एमबीए कर रही है। पढ़कर भी उसे क्या करना है? आप कहो तो हम कल शादी कर देंगे।" तनु ने कहा, क्योंकि उसे लगा कि उसकी बड़ी बेटी सोनिया के लिए रिश्ता आया है।
"हमें सोनिया नहीं, जानवी चाहिए।" जया ने मुस्कुराकर कहा।
"मेरी उनसे बात हो चुकी है। उन्हें हमारी जानवी पसंद है।" दादाजी कहने लगे।
तनु गुप्ता के चेहरे का रंग ही उड़ गया।
"देखिए, एक तो वह छोटी है। फिर इसके अंकल से भी बात करनी होगी।"
"मुझे, मैंने उन्हें फोन कर दिया है। वे आते ही होंगे।" राजन सिंघानिया ने कहा।
तनु, जो अब तक खुश थी, अब उसका मूड खराब हो चुका था।
"आपको नहीं लगता जानवी और जय की उम्र में बहुत ज़्यादा फर्क है?"
तभी घर में एक गाड़ी आई। उस गाड़ी में से जानवी के अंकल, सोमनाथ गुप्ता, उतरे। वे जाकर जया और राजन सिंघानिया से मिले।
"मेरी बात हो चुकी है। उन्हें जानवी पसंद है।" सोमनाथ गुप्ता ने कहा।
"ज़रा आप मेरी बात सुनेंगे।" तनु कहने लगी।
"जाइए, आप भाभी जी से बात कर लीजिए।" राजन सिंघानिया ने कहा।
तनु और सोमनाथ उठकर दोनों अंदर चले गए।
अब बाहर दादाजी, जया और राजन थे।
"अब इस औरत को तो जानवी के लिए इतना अच्छा घर-बार कभी पसंद नहीं आएगा।"
"बात तो उसकी बिल्कुल ठीक है। जानवी और जय की उम्र में बहुत फर्क है।" जया ने कहा।
"मगर मुझे पता है... इस छोटी बच्ची को मैं आप लोगों को सौंप रहा हूँ, क्योंकि किसी भी वक़्त मेरी आँखें बंद हो सकती हैं। मेरे जाने के बाद उसे देखने वाला कोई नहीं होगा।"
"बिल्कुल, मेरे बेटे को भी जानवी जैसी ही लड़की की ज़रूरत है। सबसे बड़ी बात, वह मेरे स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है। मैं उसे अपनी बेटी की तरह रखूँगा और जया के बारे में तो आप जानते ही हैं।" राजन ने कहा।
"बिल्कुल, असल में मुझे थोड़ा जय के बारे में सोचकर डर लगता है। फिर सोचता हूँ, आखिर है तो वह इसका ही बेटा। जितना प्यारा और मीठा स्वभाव जया का है, कोई तो असर उसमें भी होगा। मैं उम्मीद करता हूँ हमारा किया गया फैसला जानवी और जय दोनों के लिए बहुत ठीक रहेगा।"
"आप शादी के लिए हाँ कह रहे हैं? पागल हो गए हैं क्या? जहाँ पर हमारी सोनिया की बात करते हैं।" तनु ने कहा।
"नहीं, उन्हें सोनिया का रिश्ता नहीं चाहिए। उन्हें जानवी ही चाहिए। तुम नहीं जानती जयराज सिंघानिया को। बहुत अजीब सा आदमी है। मुझे सोनिया के लिए डर लगता है। सोनिया उसके साथ नहीं निभा सकती। इतना सनकी आदमी है, उसे तो कभी किसी ने हँसते हुए भी नहीं देखा। सोनिया उसके साथ एक दिन भी नहीं रह सकती। बिज़नेस के सिलसिले में मैं उससे बहुत बार मिला हूँ। हर किसी से तो वह अच्छे से बात भी नहीं करता। जानवी की शादी हो जाने दो, खुद देख लेना तुम।" सोमनाथ ने कहा।
"और उसका एक बच्चा है, सोनिया कैसे संभालेगी उसे? जानवी की शादी हो जाने दो, हमारे रिश्तेदारी होते ही हमें बहुत बड़ा कांटेक्ट मिल रहा है। सोनिया के लिए और बहुत से लड़के हैं मेरी नज़र में।"
नहीं, उन्हें सोनिया का रिश्ता नहीं चाहिए। उन्हें जानवी ही चाहिए।
"तुम नहीं जानती जयराज सिंघानिया को," सोमनाथ ने कहा, "बहुत अजीब सा आदमी है। मुझे सोनिया के लिए डर लगता है। सोनिया उसके साथ नहीं निभा सकती। इतना सनकी आदमी है, उसे तो कभी किसी ने हँसते हुए भी नहीं देखा। सोनिया उसके साथ एक दिन भी नहीं रह सकती। बिज़नेस के सिलसिले में मैं उससे बहुत बार मिला हूँ। हर किसी से तो वह अच्छे से बात भी नहीं करता। जानवी की शादी हो जाने दो, खुद देख लेना तुम।"
और उसका एक बच्चा है, सोनिया कैसे संभालेगी उसे? "जानवी की शादी हो जाने दो, हमारे रिश्तेदारी होते ही हमें बहुत बड़ा कांटेक्ट मिल रहा है। सोनिया के लिए और बहुत से लड़के हैं मेरी नज़र में।"
दादा जी, जया और राजन बातें कर रहे थे। तभी एक लड़की बाहर से भागती हुई आई।
"धीरे चलो, धीरे। ऐसे क्यों भाग रही हो? क्या हुआ?" दादाजी इसकी हालत देखकर अपनी जगह से खड़े हो गए। जया और राजन भी उसकी तरफ देखने लगे।
क्योंकि जो लड़की भाग कर आ रही थी, उसकी जीन्स घुटने से फटी हुई थी और घुटने से खून निकल रहा था। साथ में उसकी कुहनी पर भी चोट के निशान थे। मगर उसने हाथ में कुछ पकड़ा हुआ था।
"यह क्या है, बेटा?" दादाजी ने घबरा कर पूछा।
उसने अपने घुटनों की तरफ देखा। "मैं अमरूद के पेड़ पर चढ़ गई थी, उसकी टहनी ज़्यादा स्ट्रांग नहीं थी, वह टूट गई। नीचे गिरने की वजह से चोट लग गई।" उसने अपने हाथ का अमरूद खाते हुए कहा। "सिक्योरिटी गार्ड मेरे पीछे पड़ गया था, उस वजह से मुझे दीवार फाँदनी पड़ी।"
तभी सोमनाथ और उसकी पत्नी तनु भी वापस बाहर आ गए थे। उन्होंने पूरी बात सुन ली।
"क्या कहेंगे कि हम तुम्हें खाने को नहीं देते जो तुम चोरी करती हो?" तनु ने कहा।
"आंटी, इसे चोरी नहीं कहते। पता है अमरूद के पेड़ पर चढ़ना कितना अच्छा लगता है! और हाँ, उसे घर का जो सिक्योरिटी गार्ड है, उस बेचारे को ज़रूर मुश्किल हो जाती है। मैं उसके लिए सैंडविच लेकर जाती हूँ, उससे माफी माँगने के लिए।"
"तो तुम ऐसा करती ही क्यों हो जो तुम्हें माफ़ी माँगनी पड़े?" जया ने उसे कहा।
"आंटी, आपने कभी किया है ऐसा?" जानवी ने जया से पूछा।
उसकी बात पर जया ने राजन की तरफ देखा। "नहीं बेटा, हम दोनों ने तो ऐसा कभी नहीं किया।"
"तो करके देखिए, कितना मज़ा आता है!"
"मगर तुम्हारी चोट?"
"दो दिन में ठीक हो जाएगी। इसके ऊपर मैंने मिट्टी डाल ली थी," जानवी ने लापरवाही से कहा।
"मिट्टी डालने से इंफ़ेक्शन हो जाती है," तनु कहने लगी।
"मगर मुझे नहीं होती, आंटी!" वह हँस कर अंदर जाने लगी।
"रुको, बेटा," दादाजी ने कहा। "बैठो जहाँ पर।"
वह वापस आकर बैठ गई। "बेटा, ये तुमसे मिलने के लिए आए हैं, तुम्हारे राजन अंकल और जया आंटी।"
"किसलिए?" जानवी ने कहा।
"मैंने तुम्हें बताया था ना कि मैंने तुम्हारे लिए राजन अंकल का बेटा पसंद किया है। इन्हें तुम अपने लिए पसंद हो।"
"मैंने आपसे कह दिया था कि जो आपको अच्छा लगे वैसे ही कीजिए," जानवी ने अमरूद खाते हुए लापरवाही से कहा।
जय अपने हाथ से कंगन उतारती है और जानवी को पहनाने लगती है। "यह क्या है, आंटी जी?"
"शगुन के कंगन हैं, बेटा," उसने मुस्कुरा कर कहा। साथ ही वह अपने पर्स से एक अंगूठी निकालती है और जानवी के हाथ में पहना देती है।
"जय इस टाइम इंडिया में नहीं है। वह कल आएगा तो उसने मुझसे कहा कि मॉम आप ही अंगूठी पहना देना, तो इसलिए मैंने पहना दी।" जय उसका हाथ पकड़ कर, जिसमें मिट्टी और खून भी लगा हुआ था, उसमें अंगूठी पहना देती है। जानवी ने एक नज़र अंगूठी की तरफ देखा।
"अगर जय इस टाइम इंडिया में नहीं था तो आप उसके बेटे को ही साथ ले आते, वो जानवी से भी मिल लेता। आखिर जी उसकी माँ बनने वाली है," तनु ने जानबूझकर कहा।
चाहे जो भी हो, वो जानवी का रिश्ता एक इतने बड़े बिज़नेसमैन के साथ होता नहीं देख सकती थी। उसकी बात पर जया और राजन ने जानवी के चेहरे की तरफ देखा।
"सही बात है, आप युग को ले आते, मैं उससे मिल लेती," जानवी ने लापरवाही से कहा।
"तो मुझे उसका नाम पता है?" तनु ने जानवी से सवाल किया।
"दादाजी ने बताया था मुझे उसके बारे में।"
"तो मैं फिर कल मिल लेना," जया ने कहा।
"कल? कल आप लोग उसे लेकर आ रहे हैं?" जानवी कहने लगी।
"अब परसों संडे को शादी हो रही है, तो कल तुम अपने लिए लहँगा पसंद करने आ रही हो, मैं उसे भी साथ ले आऊँगी," जया ने कहा।
सही बात है, आप युग को ले आते।
"मैं उससे मिल लेती," जानवी ने लापरवाही से कहा।
"तो मैं उसका नाम पता है?" तनु ने जानवी से सवाल किया।
"दादाजी ने बताया था मुझे उसके बारे में।"
"मैं तो फिर कल मिल लेना," जया ने कहा।
"कल? कल आप लोग उसे लेकर आ रहे हैं?" जानवी कहने लगी।
"अब परसों संडे को शादी हो रही है। तो कल तुम अपने लिए लहंगा पसंद करने आ रही हो, मैं उसे भी साथ ले आऊंगी," जया ने कहा।
"परसों शादी?" जानवी ने हैरानी से पूछा।
"मतलब दो ही दिन रहते हैं," तनु भी कहने लगी।
"हाँ, संडे को जय फरी होगा। उसी दिन ही शादी होगी। पांडे जी ने शुभ मुहूर्त निकाला है। अब शादी में देर नहीं होनी चाहिए, इसलिए," राजन ने जवाब दिया।
थोड़ी देर बैठने के बाद राजन और जया चले गए। सोमनाथ भी वहाँ से उठकर अंदर चला गया और तनु उसके पीछे चली गई।
"यह क्या हो रहा है? शादी फिक्स हो चुकी है। एक मैं ही हूँ जिस घर में क्या हो रहा है, उसके बारे में पता नहीं होता। आप एक बार मुझसे बात तो कर सकते थे! मेरी तो कोई वैल्यू ही नहीं है आपकी नजर में। जानवी की जगह सोनिया होनी चाहिए थी। बस मुझे नहीं पता, मुझे मेरी सोनिया की शादी करनी है।"
"क्यों पागल बन रही हो? जयराज सिंघानिया कोई लड़का नहीं है। वह 32 साल का आदमी है, एक बेटे का बाप। वह कैसा आदमी है, तुम सोच भी नहीं सकती। मैं तुम्हें बता चुका हूँ उसके बारे में। हमारी बेटी के लिए वह किसी भी तरह से सही नहीं था। अब दादाजी को वह जानवी के पसंद हैं और उन्हें राजन और जयंत दोनों दोस्त थे। वह जानवी की शादी अपने बेटे से इसलिए कर रहे हैं! वह जानते हैं जानवी के आगे-पीछे कोई नहीं। तो उसे वहाँ रहना ही पड़ेगा। उसके माँ-बाप बहुत चालाक हैं, उन्होंने जानबूझकर जानवी को चुना है। और कोई रास्ता नहीं होगा जानवी के पास। वरना जय के लिए तो कोई लड़कियों की थोड़ी कमी थी?" सोमनाथ तनु को समझा रहा था।
अब दादी और जानवी अकेले थे। दादाजी ने उसका हाथ पकड़ा।
"तुम अपने दादाजी पर यकीन करो, बेटा। मैं कोई ऐसा फैसला नहीं करूँगा जो मेरी बेटी के दुख का कारण बने। तुम मुझे अपने दोनों बेटों से ज्यादा अजीज हो। मैं तुम्हें दुख नहीं दे सकता। मानता हूँ अभी तुम्हारी शादी की उम्र नहीं है। तुम्हें अभी पढ़ना है। मगर मेरे पास टाइम नहीं है अभी। तुम अपने घर चली जाओ, मेरे लिए इस दुनिया से जाना आसान हो जाएगा। अगर मुझे कुछ हो गया तो मुझे किसी पर यकीन नहीं।"
"पता है मुझे। आप मेरे लिए कोई फैसला गलत कर ही नहीं सकते। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?" उसने कहा, "और ऐसी बातें मत कीजिए, वरना मैं गुस्सा हो जाऊँगी।"
"नहीं, बेटा, तुमने मुझे वापस कोई सवाल नहीं किया। मैंने ऐसा क्यों किया? तुमसे उम्र में बड़े, एक बच्चे के बाप के साथ तुम्हारी शादी कर रहा हूँ। मगर मैं तुझे सेफ हाथों में सौंप रहा हूँ। जय बहुत अच्छा इंसान है। फूलों की तरह रखेगा वह तुम्हें।"
"मुझे आप पर पूरा यकीन है। मुझे जरूरत ही नहीं है। आज मुझे मेरी सहेलियों से मिलना है। एग्जाम के बाद कॉलेज स्टार्ट होने वाले हैं। उन लोगों ने मुझे कैफे में बुलाया है। मैं चली जाऊँ," जानवी ने कहा।
"जाओ, चली जाओ। हाँ, मगर पहले कपड़े बदल लो," उन्होंने जानवी की तरफ देखा। वह जानवी की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे।
"बिल्कुल, अब ऐसे थोड़ी जाऊँगी मैं!" वह वहाँ से उठकर अंदर गई। थोड़ी ही देर बाद कपड़े बदलकर बाहर आई।
अब उसने क्रीम रंग का कुर्ता और प्लाज़ो पहना था। बालों को उसने खुला छोड़ा हुआ था। होंठों पर लिपस्टिक और आँखों में काजल, बिना दुपट्टे के, हाथ में फ़ोन पड़े, वह बाहर की तरफ जाने लगी। उसके मन के अंदर क्या था, उसे देखकर कोई जान नहीं सकता था।
"तुम कहाँ जा रही हो?" उसकी आंटी पूछने लगी।
"बेटा, मेरी दवाइयाँ ले कर आनी थी। मैंने ही भेजा है इसे। तुम्हें पता है मेरी दवाइयाँ पूरा शहर पार करके मिलती हैं। टाइम लग जाता है आने-जाने में," दादाजी ने कहा। उसकी आंटी अपने कमरे में चली गई।
उसके दादाजी ने उसके हाथ में पैसे पकड़ते हुए कहा, "यह दवाइयों के लिए।" उन्होंने मुस्कुराकर कहा।
वह अपने घर से थोड़ी दूर जाकर एक ऑटो लेती है। ऑटो लेकर वह कैफ़े पहुँचती है। वहाँ पर उसकी दो सहेलियाँ पहले से बैठी हुई थीं।
"तुम लेट हो," उन्होंने कहा।
"मैं आ तो पहले जाती, मगर मेरी सगाई होने लगी तो मुझे टाइम लग गया," उसने लापरवाही से कहा।
उसकी दोनों सहेलियों, प्रीति और रेणुका को लगा कि उन्होंने गलत सुना।
"क्या कह रही हो तुम? तुम्हारी सगाई?"
"यह देखो," वह अपने हाथ की रिंग और कड़े दिखाती है।
"इतना बड़ा डायमंड!" रेणुका ने कहा।
"आजकल सगाई में सभी डायमंड की रिंग पहनाते हैं। इसमें क्या है?" जानवी ने लापरवाही से कहा।
"तुम नहीं जानती। हमारा ज्वेलरी का कारोबार है। इसकी कीमत कितनी है कि तुम सोच भी नहीं सकती। अभी न्यू कलेक्शन लॉन्च हुआ है एक टॉप ज्वेलरी ब्रांड का। हमारे यहाँ भी इसकी कॉपी बन रही है! अगर कॉपी की कीमत इतनी है तो ओरिजिनल की कितनी होगी?" रेणुका कहने लगी।
"तुम्हारे कड़े भी बहुत खूबसूरत हैं। हमारे जीजू कौन हैं? किसके साथ सगाई की तुमने?" वह आपस में बातें कर रही हैं।
तभी उस कैफ़े में एक आदमी, जिसके चेहरे पर मास्क है और आँखों में गॉगल्स लगे हुए हैं, इंटर करता है।
आजकल सगाई में सभी डायमंड की रिंग पहनाते हैं।
"इसमें क्या है?" जानवी ने लापरवाही से कहा।
"तुम नहीं जानती। हमारा ज्वेलरी का कारोबार है। इसकी कीमत कितनी है, कि तुम सोच भी नहीं सकती। अभी न्यू कलेक्शन लॉन्च हुआ है एक टॉप ज्वैलरी ब्रांड का। हमारे यहाँ भी इसकी कॉपी बन रही है! अगर कॉपी की कीमत इतनी है, तो ओरिजिनल की कितनी होगी?" रेणुका कहने लगी।
"तुम्हारे कड़े भी बहुत खूबसूरत हैं।"
"हमारे जीजू कौन हैं? किसके साथ सगाई की तुमने?" वह आपस में बातें कर रही थीं।
तभी उस कैफे में एक आदमी, जिसके चेहरे पर मास्क था और आँखों में गॉगल्स लगे हुए थे, आया।
"मेरी गाड़ी खराब हो गई है! मैं इंटरनेशनल कैफे में बैठा हूँ। वहीं पर गाड़ी भेज दो।" उस आदमी ने वहाँ चेयर पर बैठते ही किसी को फोन पर कहा।
उसने अपनी गॉगल्स उतार कर टेबल पर रख दी थीं, लेकिन अपने चेहरे का मास्क नहीं उतारा था। असल में जयराज सिंघानिया अपने किसी काम की वजह से अकेले ही गाड़ी उठाकर आया था। उसके साथ न तो ड्राइवर था, न ही उसकी सिक्योरिटी। उसकी गाड़ी खराब हो गई थी। वह चेहरे पर मास्क लगाए हुए कैफे में आकर बैठ गया था। वह अपनी सिक्योरिटी की वजह से कहीं अकेले आने-जाने में काफी सावधान रहता था।
तभी वेटर उसके पास आया। उसने कॉफ़ी ऑर्डर की और अपने फ़ोन को देखने लगा। तभी उसका ध्यान पीछे बातें कर रही लड़कियों की तरफ़ गया, क्योंकि उनमें से किसी लड़की ने जयराज सिंघानिया कहा था। वह उनकी बातें ध्यान से सुनने लगा।
"उसका नाम क्या है? यह तो बताओ और कैसे दिखते हैं?"
"जयराज सिंघानिया नाम है उसका।" जानवी ने बताया।
"वह कैसा दिखता है, मुझे नहीं पता।"
"तुमने बिना देखे सगाई कर ली?" प्रीति ने हैरानी से कहा। "तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?"
"हो सकता है वह हैंडसम न हो, कोई काला-कलूटा हुआ तो।" रेणुका ने कहा।
"ऐसा भी तो हो सकता है कि वह बहुत हैंडसम हो।" प्रीति ने कहा।
"पता है तुम लोगों को, जब मेरे रिश्ते की बात चली, एक मल्टी-बिलियनियर का रिश्ता मेरे लिए आया है और उसकी माँ और डैड की ख्वाहिश है कि वह मुझे बहू बनाना चाहते हैं। मैं तो हैरान रह गई। कौन है जो मेरा दीवाना बना हुआ है? किसको मुझसे प्यार हो गया, जिसने अपनी मॉम-डैड को मेरे घर भेजा?"
उसकी बातें सुनकर जयराज काफी हैरान हो रहा था। "यह लड़की कितना झूठ बोल रही है। इस लड़की के साथ मेरे मॉम-डैड मेरी शादी करना चाहते हैं।" उसे जानवी की बात सुनने के बाद उससे नफ़रत महसूस होने लगी।
"मैं तो इतनी शॉकिंग थी कि मेरे साथ सचमुच ऐसा हो सकता है।" जानवी ने कहा।
"तुम्हारे साथ ऐसा क्यों नहीं हो सकता? इतनी खूबसूरत और प्यारी हो।" रेणुका ने कहा।
"मेरी पूरी बात तो सुनो।" जानवी ने रेणुका को टोका।
अब जय का पूरा ध्यान जानवी की बातों पर था। जय की पीठ उन लड़कियों की तरफ़ थी।
"मगर मैं तब रिलैक्स हुई जब मुझे पता चला, वो एक 32 साल का तलाकशुदा आदमी है, जिसका 5 साल का बेटा है। क्योंकि नॉर्मल चीज मेरी लाइफ़ में नहीं हो सकती। तुम लोगों को अच्छे से पता है, नॉर्मल चीजें तो मेरे साथ हो नहीं सकती।"
"तुमने मना क्यों नहीं किया? तुम सिर्फ़ 19 साल की हो। अभी सेकंड ईयर के एग्ज़ाम दिए हैं, अभी फ़ाइनल में जा रही हो। तो तुम इतने बड़े आदमी के साथ शादी क्यों कर रही हो? माना उस आदमी को पसंद आ गई हो, इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम उसके साथ शादी के लिए तैयार हो जाओगी?" रेणुका ने गुस्से से कहा। "सिर्फ़ उसने तुम्हें पसंद कर लिया इसलिए?"
"किसने कहा तुम्हें कि मुझे किसी ने पसंद किया है? यह प्यार, पसंद, रिस्पेक्ट, यह तीन शब्द, क्या तुम्हें लगता है मेरी किस्मत में हैं? मॉम-डैड के सुसाइड के साथ ही मेरी ज़िंदगी में ऐसी चीजों ने भी सुसाइड कर लिया।" जानवी ने हँसते हुए कहा। "अगर उसे कोई दिलचस्पी होती मेरे साथ शादी में, तो खुद आता, एक बार मिलता मुझे। उसकी माँ ने कंगन और अंगूठी पहना दी। अब इतनी बेवकूफ़ तो नहीं हूँ कि यह सब नहीं समझती। शायद उसकी फैमिली उसकी शादी करना चाहती है और उसके मॉम-डैड मुझे बचपन से जानते हैं। फिर दादाजी की बीमार रहते हैं, मेरी ज़िम्मेदारी उन पर है। उनका मरना भी मुश्किल कर दिया है मैंने। उनके मरने के लिए रास्ता क्लियर कर दिया कि वह चैन से मर सकें। उनकी जान भी मुझ में ही अटकी हुई है।"
"यह क्या है?" रेणुका ने उसे कहा।
प्रीति और रेणुका दोनों के उदास होकर जानवी की तरफ़ देखने लगे।
"तुम लोगों के चेहरे क्यों उतरे हुए हैं? उसका नाम गूगल पर सर्च करके उसकी तस्वीर नहीं देखेंगे? आख़िर इतना बड़ा बिज़नेसमैन है, उसकी पिक्चर्स तो ज़रूर होंगी। मैं तो सगाई के बाद सीधा तुम लोगों के पास आ गई। सोचा तुम लोगों के साथ देखूँगी और तुम लोग इतनी उदास हो गईं।"
जानवी अपना फ़ोन निकालती है।
"यह तेरे फ़ोन की स्क्रीन कैसे टूट गई?" रेणुका ने उसे कहा।
"मैं अमरूद के पेड़ पर चढ़ गई थी। उसकी टहनी मज़बूत नहीं थी। वह टूट गई। मैं गिर गई। मेरे घुटने पर चोट है, मेरी कुहनी में भी चोट लगी है और मेरे फ़ोन की स्क्रीन टूट गई।"
"कोई सीधा काम तो करने से रही।" प्रीति उस पर गुस्सा हुई।
"कोई बात नहीं, मैं आते हुए ठीक करा कर ले जाऊँगी।"
"अच्छा, क्या नाम बताया था तुमने उसका?" रेणुका ने उससे पूछा।
"जयराज सिंघानिया।" जानवी ने कहा।
जैसे ही रेणुका गूगल पर जयराज सिंघानिया लिखती है, जय की बहुत सारी पिक्चर्स शो होने लगती हैं।
जानवी अपना फोन निकाला।
"यह तेरे फोन की स्क्रीन कैसे टूट गई?" रेणुका ने कहा।
"मैं अमरूद के पेड़ पर चढ़ गई थी। उसकी टहनी मजबूत नहीं थी। वह टूट गई। मैं गिर गई। मेरे घुटने पर चोट है। मेरी कुहनी में भी चोट लगी है और मेरे फोन की स्क्रीन टूट गई।"
"कोई सीधा काम तो करने से रही!" प्रीति उस पर गुस्सा हुई।
"कोई बात नहीं, मैं आते हुए ठीक करा कर ले जाऊँगी।"
"अच्छा, क्या नाम बताया था तुमने उसका?" रेणुका ने पूछा।
"जय राज सिंघानिया।" जानवी ने कहा।
जैसे ही रेणुका ने गूगल पर "जयराज सिंघानिया" लिखा, जय की बहुत सारी तस्वीरें दिखाई देने लगीं।
तीनों ने ध्यान से देखना शुरू कर दिया।
"अरे यार, यह तो बहुत हैंडसम है और इसकी उम्र भी कम लग रही है। तुम कह रही हो 32 साल का है?" प्रीति ने कहा।
"कहीं से उसकी पुरानी तस्वीर ना हो। इन पिक्चर्स की डेट चेक करो।" जानवी ने कहा।
"यह देखो, यह तो कितने साल पुरानी तस्वीरें हैं। उसकी नई तस्वीर खोल कर देखो।" प्रीति ने उन तस्वीरों में से एक तस्वीर पर क्लिक किया। "यह तस्वीर अब किसी इवेंट की ली हुई है। इसकी दाढ़ी और मूंछे कितनी बड़ी-बड़ी हैं!" रेणुका ने कहा।
"वैसे हैंडसम तो बहुत है। कोई शक नहीं, इसके एब्स देखो, शर्ट में भी दिखाई दे रहे हैं! और इसके गर्दन की नसें देखीं? कैसी खड़ी है और बाजू की भी। पता है, ऐसे आदमी बहुत हॉट और अट्रैक्टिव लगते हैं।" प्रीति ने कहा।
"हॉट तो वो है, मगर जानवी इससे कितनी छोटी है।" अब दोनों सहेलियों ने जानवी की चिंता करना शुरू कर दिया।
"तुम लोग क्यों स्ट्रेस लेते हो? छोड़ो इस बात को। अब हमें चलना चाहिए।"
जय राज सिंघानिया उनकी बातें सुन रहा था। उसने मास्क उतारा, अपनी कॉफी खत्म की और फिर से मास्क लगा लिया। तभी उसे एक आदमी का फोन आया कि बाहर गाड़ी आ चुकी है। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ। उसने उन लड़कियों की तरफ देखने की कोशिश की। सामने वाली दो लड़कियों का चेहरा तो दिखाई दे रहा था, मगर जिस लड़की को वह देखना चाहता था, उसकी पीठ दिख रही थी। वह चाह कर भी जानवी को नहीं देख पाया।
फिर जय को जाना था तो वह चला गया, मगर उसे जानवी में दिलचस्पी ज़रूर होने लगी थी। तीनों सहेलियाँ बैठी हुई अभी भी बात कर रही थीं।
तभी रेणुका के फोन पर उसके भाई का फोन आया।
"हाँ, कहो भाई।" उसने कहा।
"मेरा एक काम है। तुम्हें करना है।"
"हाँ, कहिए।"
"मैं तुम्हें एक ज्वेलरी का सेट भेज रहा हूँ। वह किसी होटल में किसी मॉडल को देना है। उसको वह सेट देते हुए तुम एक वीडियो और फोटो खींच लेना, ताकि हम अपनी पेज पर एडवरटाइजमेंट कर सकें। इसीलिए मैं तुम्हें भेज रहा हूँ। मुझे पता है तुम इस काम में माहिर हो।"
"फ़िक्र मत करो भाई। इस काम में तो मैं माहिर हूँ, पता है। मैं तुम्हें होटल का एड्रेस और उसका रूम नंबर सेंड करता हूँ। तुम जाकर रिसेप्शन पर बात कर लेना।" उसके भाई ने कहा।
"बोलो, मेरे साथ चलोगी तुम दोनों?" रेणुका ने कहा। "इतनी फेमस मॉडल से मिलने का मौका है।"
"बिल्कुल चलेंगे, इतनी फेमस मॉडल है, सुना है उसकी फिल्म भी आ रही है।"
तीनों सहेलियाँ साथ में जाने के लिए वहाँ से बाहर आ गईं। रेणुका के पास अपनी गाड़ी थी, तो वे रेणुका की गाड़ी में ही जाने लगीं। होटल के काउंटर पर जाकर वे दिशा खन्ना के बारे में पूछती हैं। होटल की रिसेप्शनिस्ट दिशा खन्ना से फोन करके उसके गेस्ट के बारे में बताती है और उसे कमरे में ही भेजने को कह देती है।
वह एक वेटर को साथ में उन्हें कमरे तक छोड़ने को भेज देती है क्योंकि वे प्राइवेट गेस्ट थे और हर किसी को वहाँ पर जाने की इजाजत नहीं थी।
"देखिए, मैं आप तीन लोग नहीं जा सकती। एक यहाँ रुक जाइए।" प्रीति रुक गई। जानवी और रेणुका दोनों चली गईं। उनके दरवाजे पर दस्तक देने से दिशा खन्ना दरवाजा खोलती हैं। उन्हें देखकर रेणुका और जानवी खुश हो जाती हैं।
"मैं जौड़ा ज्वेलर्स की तरफ से आई हूँ।" रेणुका ने कहा।
दिशा ज्वेलरी बॉक्स खोल कर देखती है। डायमंड का बहुत खूबसूरत नेकलेस था।
"मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आप इतनी सुंदर हैं, असल में तो आप उससे भी ज़्यादा सुंदर दिखती हैं।" जानवी ने कहा।
"क्या ज्वेलरी देते हुए एक तस्वीर खींच सकती हूँ? हमारे स्टोर के लिए काम आएगी।" रेणुका ने कहा।
"बिल्कुल।" दिशा ने कहा।
तभी एकदम से कमरे के बाथरूम का दरवाजा खुलता है। उसमें से एक आदमी बाहर आता है। उसे देखकर जानवी और रेणुका एक-दूसरे की तरफ हैरानी से देखती हैं।
"जयराज आप भी आ जाओ ना, हमारी तस्वीर में। आप ही ने तो मुझे यह गिफ्ट किया है।"
जानवी के चेहरे का रंग उड़ गया था और साथ में रेणुका का भी। जयराज अभी तक साइड पर खड़ी लड़कियों की तरफ नहीं देख रहा था।
"मैं गिफ्ट देता हूँ, सबको बताने के लिए थोड़ी कि मैं तुम्हें गिफ्ट दे रहा हूँ।" जयराज ने मना किया।
"प्लीज, डार्लिंग, आ जाओ। मास्क लगा लो। हर तरफ़ मेरे मिस्ट्री मैन की चर्चा होने लगेगी।" दिशा ने हँसकर कहा।
"तुम्हें गिफ्ट पसंद है तो बात खत्म।" उसने साफ़-साफ़ तस्वीर खींचाने से मना कर दिया।
"क्या जय, डार्लिंग, तुम मास्क लगा लो।"
तभी जय की नज़र साइड में खड़ी लड़कियों पर जाती है।
"अब हम चलते हैं।" रेणुका ने कहा। वह जानवी का हाथ खींच कर उसे बाहर ले आई।
जय ने रेणुका को पहचान लिया। यह वही कैफ़े वाली लड़की थी।
"तुम्हें गिफ्ट पसंद है तो बात खत्म।" उसने साफ़-साफ़ तस्वीर खींचने से मना कर दिया।
"क्या जय डार्लिंग, तुम मास्क लगा लो।"
तभी जय की नज़र साइड में खड़ी लड़कियों पर गई।
"अब हम चलते हैं।" रेणुका ने कहा। वह जानवी का हाथ खींचकर उसे बाहर ले आई।
जय ने रेणुका को पहचान लिया। यह वही कैफ़े वाली लड़की थी। उसके साथ जो लड़की थी, जय उसे पहली बार देख रहा था। जब जानवी चेयर पर बैठी हुई थी, तो उसने जानवी के कपड़ों की तरफ़ भी ध्यान नहीं दिया था।
"क्या साथ में जानवी थी?" जय ने अपने आप से कहा।
"ये लड़कियां तो ऐसे ही चली गईं।" दिशा ने कहा। "तस्वीर खींचने को कह रही थीं। लगता है आपको देखकर डर गईं।"
"ठीक है, मैं भी चलता हूँ।" जय ने कहा।
"मगर तुम तो अभी आए थे! अभी तो हमने प्यार भी नहीं किया। तुमने तो मुझे अपना गिफ्ट दे दिया, अभी मुझे भी तो खुश करने दो।" उसने जय के गले में अपनी बाहें डाल दीं।
"मेरा मूड नहीं है।" उसने एकदम से अपने गले से दिशा की बाहें निकालीं।
दिशा ने वापस उसके गले में अपनी बाहें डाल दीं।
"जय डार्लिंग," उसने कहा।
अब दिशा की हरकत से जय को गुस्सा आ गया। उसने दिशा की बाहों को फिर अपने गले से निकाला और उसे बेड पर धक्का दे दिया।
"अपनी लिमिट में रहो!" वह गुस्से से बोला।
बिना दिशा की तरफ़ देखे, उसने अपना मास्क और गॉगल्स साइड टेबल से उठाए और कमरे से बाहर निकल गया।
उन लड़कियों ने एक लिफ़्ट ली थी, तो वह दूसरी लिफ़्ट से नीचे जाने लगा। जब तक वह हाल में पहुँचा, लड़कियाँ हाल में नहीं थीं। वह आराम से बाहर गया। वहाँ होटल के गेट के एंट्री की एक साइड पर फ़्लावर्स और गमलों के लिए थोड़ी ऊँची जगह बनी हुई थी। जानवी वहाँ बैठी थी और दोनों उसके पास झुकी हुई थीं।
"जानवी, तुम ठीक तो हो ना?" प्रीति ने पूछा।
"अच्छी बात है कि तुम अपनी दवाई अपने साथ रखती हो। पता नहीं तुम्हारे साथ ही ऐसा क्यों होता है। मेरे मन में कहीं ना कहीं ये ख्याल था कि जय अगर तुमसे बड़ा है, तो क्या हुआ? शायद वो तुम्हारी परवाह करेगा। मैं सोचती थी, अब वह तुमसे नहीं मिला तो कोई बात नहीं, मगर जब शादी के बाद वह तुम्हें जानेगा, तो तुम जैसी लड़की पाकर वह खुश होगा। उसकी लाइफ़ में तुम्हारी इम्पोर्टेंस होगी। शायद तुम्हारी दवाइयाँ भी छूट जाएँगी।" रेणुका ने कहा।
"तुम क्यों फ़िक्र करती हो यार? मैं बिलकुल ठीक हूँ।" जानवी वहाँ से खड़ी हो गई।
"अब जाकर तुम कह देना और बता देना।"
"कोई ज़रूरत नहीं है। उससे शादी करने की।" प्रीति ने कहा।
"बिलकुल, अब तो गुंजाइश की कोई बात ही नहीं है कि तुम मुझे शादी करो। अपने दादाजी को सारी बात बता देना।" रेणुका ने कहा।
"तुम लोग अच्छे से जानती हो। ऐसा नहीं हो सकता। मैं शादी के लिए मना नहीं कर सकता।"
"मगर क्यों?" उसकी दोनों सहेलियाँ गुस्से में थीं।
इस बात से अनजान, होटल के दरवाज़े पर खड़ा जय उनकी बातें सुन रहा था।
"ज़िन्दगी में मैंने दादाजी को मेरे लिए पहली बार इतना रिलैक्स देखा है। कभी वह मेरे लिए अंकल से लड़ते हैं, कभी आंटी से लड़ते हैं, कभी उनके बच्चों से, और वह इतने खुश हैं, मैं बता नहीं सकती।"
"कोई बात नहीं, शादी होने दो। देखते हैं क्या लिखा है मेरी किस्मत में। चलो अब चलते हैं।" मुस्कुराती हुई जानवी भी उनके आगे होकर चलने लगी। वह तीनों वहाँ से चली गईं। जय भी उनके बाद पार्किंग एरिया में गया और अपनी गाड़ी में बैठा।
जानवी शाम को घर पहुँची। तीनों सहेलियाँ प्रीति के घर चली गई थीं। वह लोग वहीं बैठी रहीं।
"अब तो शादी होने वाली है। कोई आने-जाने का टाइम होना चाहिए। फ़िक्र होनी चाहिए तुम्हें।" उसकी आंटी ने उसे देखते हुए कहा।
"आंटी, मैं, रेणुका और प्रीति हम साथ में थे। बातों में हमें टाइम ही पता नहीं चला। इसलिए थोड़ी सी देर हो गई।"
"आज तुमने पार्टी भी दी होगी! इतने बड़े मल्टी-बलेनियर से तुम्हारी शादी हो रही है, सभी सहेलियों को बता रही होगी।" सोनिया भी अपनी माँ के साथ खड़ी थी, उसने कहा। "मगर ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है। वह तुमसे इतना बड़ा है और और भी बहुत कुछ सुना है मैंने उसके बारे में।" सोनिया सोफ़े पर बैठ गई। "तुम जैसी लड़की उसके साथ बिलकुल मैच नहीं करती। कपड़े पहनने का तरीका तुम्हें नहीं है, बात करने का तरीका तुम्हें नहीं है, सबसे बड़ी बात तुम उसके साथ कभी अच्छी नहीं लगोगी। देख लेना, वह तुम्हारी तरफ़ देखेगा भी कहीं नहीं।"
जानवी ने उन लोगों को कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
"ये तो लगता है हमसे बात भी करना नहीं चाहती। किसी बात का जवाब भी नहीं दे रही। अभी से इसमें इतना नखरा है।" सोनिया की छोटी बहन तानिया कहने लगी। "अब वैसे शादी के बाद तो तुम्हें ये घर छोटा लगने लगेगा। तब तो तुम यहाँ आएगी ही नहीं।" तान्या भी चुप नहीं हो रही थी।
सोनिया जानवी से २ साल बड़ी थी, तो तानिया जानवी की उम्र की थी। तानिया से छोटा उनका एक भाई था। ऐसा नहीं था कि ये कोई गरीब लोग थे। जानवी के अंकल सोमनाथ की अपनी रेडीमेड कपड़े की फैक्ट्री थी और काफी अच्छे खाते-पीते लोग थे। मगर जयराज सिंघानिया के सामने उनकी कोई हैसियत नहीं थी।
अब जानवी उन तीनों को इग्नोर करती हुई अपने कमरे में चली गई। मूड उसका पहले ही बहुत ज़्यादा ख़राब था और उन्होंने अपनी बातों से उसका दिल और दुखाया था। उसने अपनी प्लाज़ो की पैंट में से अपनी दवाई फिर निकाली और उस दवाई की दो गोलियाँ निकालकर अपने मुँह में रख लीं। फिर उसने जोर-जोर से साँस ली, अपनी आँखों में आए हुए पानी को साफ़ किया। फिर थोड़ी देर में जैसे दवाई का असर हुआ, वह रिलैक्स हो गई।
अब जानवी उन तीनों को अनदेखा करते हुए अपने कमरे में चली गई। उसका मूड पहले ही बहुत खराब था और उन्होंने अपनी बातों से उसका दिल और दुखाया था।
उसने अपनी प्लाज़ो की पैंट से अपनी दवा निकाली, दो गोलियाँ मुँह में रख लीं और जोर-जोर से साँस ली। आँखों में आए आँसुओं को पोंछते हुए उसने थोड़ी देर बाद दवा का असर महसूस किया और वह शांत हो गई।
उसे अपने दादा जी की आवाज़ सुनाई दी। वे उसे बुला रहे थे। "जानवी, कहाँ हो तुम?"
वह अपने कमरे से बाहर आई। उसके दादा जी हाल में आ गए थे जहाँ सोनिया, तानिया और उसकी चाची बैठी हुई थीं।
"आपने मुझे बुलाया?" वह उनके पास आकर बैठ गई।
"हाँ बेटा। कल ही दिन है हमारे पास शॉपिंग के लिए। तो कल चलेंगे शॉपिंग करने। तुम्हारी सास ने एक स्टोर पर बुलाया है तुम्हें, तुम्हें वहीं जाना है। उसके बाद अपने लिए समान हमारी तरफ से भी ले लेना। तुम तीनों भी इसके साथ चली जाना," दादा जी ने उन तीनों माँ-बेटी से कहा।
"मैं तो कल फ्री नहीं हूँ," तनु ने कहा।
"और हमारे भी कॉलेज हैं," उन दोनों ने भी साफ़ मना कर दिया।
"कोई बात नहीं दादाजी, मेरी सहेलियाँ हैं, मैं उनके साथ चली जाऊँगी। आप क्यों टेंशन लेते हो?" जानवी मुस्कुरा कर बोली। "आपको पता है चाची जी की कल डॉक्टर से अपॉइंटमेंट हैं और उनके कॉलेज में टेस्ट चल रहे हैं।"
"ठीक है, जैसा तुम लोगों को अच्छा लगे," दादा जी ने कहा।
जानवी अगली सुबह जल्दी-जल्दी तैयार होकर घर से निकली। उसने अपने साथ अपनी दोनों सहेलियों रेणुका और प्रीति को बुला लिया था। वह अपनी ससुराल के अलावा अपनी खुद की तरफ़ से भी कपड़े लेने वाली थी। उसके दादा जी ने उसे अपना कार्ड दिया था; उन्होंने उसकी शादी के लिए पैसे इकट्ठा करके रखे थे, उसी से वह ज्वैलरी और कपड़े खरीदने वाली थी।
वह तीनों उस फ़ेमस डिजाइनर के स्टोर पर पहुँची जहाँ उन्हें जया ने बुलाया था। वह तीनों सहेलियाँ पहले ही पहुँच चुकी थीं, जबकि अभी तक जय राज की फैमिली से कोई नहीं आया था। वह शादी की ड्रेस देख रही थी, तभी जया वहाँ आई। उसके साथ उसकी दोनों छोटी बहुएँ रेखा और माला भी थीं।
वह दोनों जानवी से मिलीं। "हमारी तो बहुत चाहत थी कि हम अपनी होने वाली जेठानी से मिलें, पता तो चले जेठ जी किससे शादी कर रहे हैं," रेखा ने कहा।
"चलो, शादी की ड्रेस ट्राई करो बेटा," जया ने उसे कहा।
"मैंने ड्रेस देख ली है, मैं आपको पहनकर दिखा देती हूँ," जानवी ने कहा।
जानवी वह लहँगा पहनकर आई। "मुझे यह पसंद है और मैंने साड़ियाँ भी देख ली हैं।"
"हमारे आने से पहले ही तुमने काम कर लिया? इतनी जल्दी?" माला कहने लगी।
"असल में मुझे अपने टेलर के यहाँ भी जाना है। मैंने कुछ शादी के लिए ड्रेस सिलवाने हैं। उसने कहा है कि जल्दी आकर दे जाना।"
"मगर जय आ रहा है, थोड़ी देर में पहुँचने वाला है," जया ने कहा।
"मगर क्या जेठ जी पहुँचेंगे? टाइम होगा उनके पास?" रेखा जानबूझकर कहने लगी। "इन कामों में उन्हें इंटरेस्ट नहीं।"
"उन्हें तो शादी में भी इंटरेस्ट नहीं," माला ने कहा।
"मेरा काम ख़त्म हो गया है। मुझे जाना पड़ेगा। आज ही का तो दिन है, कल शादी है। मुझे शॉपिंग भी करनी है। चाची जी और मेरी बहनें स्टोर पर मेरा इंतज़ार कर रही हैं।"
जानवी एक घंटे में पूरा काम निपटाकर स्टोर से बाहर निकल चुकी थी। रेखा और माला हैरानी से उसे देख रही थीं।
"तुमने झूठ क्यों बोला? कौन तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है?" प्रीति ने कहा।
"मैं जय के सामने नहीं आना चाहती थी, इसलिए ज़रूरी था वहाँ से निकलना।"
"और जब कल शादी होगी तब क्या करोगी? और तुम क्यों भाग रही हो? भागना तो उसको चाहिए जिसने गलती की है। तुमने क्या किया?"
"देखो प्लीज़, मैं पहले ही सुबह से दो बार दवा खा चुकी हूँ। मुझे स्ट्रेस मत दो। वह दोनों क्या कम थीं जो अब तुम शुरू हो गईं।" जानवी पहले घर से परेशान होकर आई थी, फिर वह रेखा और माला की वजह से परेशान हुई।
"तो कैसे रहोगी तुम उसे घर में? तुम्हारी देवरानियाँ तो बहुत बोलती हैं," रेणुका ने कहा।
"बिल्कुल सोनिया तानिया जैसी लगीं मुझे," प्रीति ने कहा।
"देखा जाएगा जो होगा। अभी मुझे शॉपिंग करनी है। चलें।" वह तीनों चली गईं।
एक घंटे बाद जय राज उस डिजाइनर के स्टोर पर पहुँचा। जब वह पहुँचा तो रेखा और माला दोनों अपने लिए कपड़े देख रही थीं।
"आ गए तुम," जया ने उसे कहा।
जयराज ने इधर-उधर देखा, मगर उसे जानवी कहीं नहीं दिखी।
"भाई, आपकी बीवी तो कपड़े सेलेक्ट करके चली गई। आप लेट हो गए। ऐसा लगा जैसे वह कोई काम निपटा रही हो। हमें लगा नहीं था कि आप आयेंगे भाई, वरना हम उसे रोक लेते," रेखा कहने लगी।
"चलो ठीक है। मैं चलता हूँ, मुझे काम है। मैं अपना काम छोड़कर आया था।" जय वहाँ से बाहर निकल गया।
वह समझ गया था कि वह उसका सामना नहीं करना चाहती और एक घंटे में कौन सी लड़की होगी शादी का लहँगा और शादी की साड़ियाँ सभी काम करके चली जाए। उसे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं। वैसे भी वह उनकी बातें सुन चुका था।
"चलो अच्छी बात है। तुम अपने आप को मानसिक तौर पर खुद ही तैयार कर रही हो हालात के लिए।"
वह वापस अपने आप ऑफिस की तरफ़ जाने लगा।
समझ गया था कि वह उसका सामना नहीं करना चाहती और एक घंटे में कौन सी लड़की होगी? शादी का लहँगा और शादी की साड़ियाँ, सभी काम करके चली जाएगी। उसे शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं था। वैसे भी, वह उनकी बातें सुन चुका था।
चलो, अच्छी बात है। तुम अपने आप को मानसिक तौर पर खुद ही हालात के लिए तैयार कर रही हो।
वह वापस अपने ऑफिस की तरफ़ जाने लगा। जय राज कभी भी कहीं अकेला नहीं जाता था। अक्सर उसके पीछे सिक्योरिटी की गाड़ियाँ होती थीं जो सावधानी के साथ उसके साथ चलती थीं। उसकी खुद की गाड़ी में सिर्फ़ ड्राइवर ही होता था। वह अभी ऑफिस पहुँचा ही था कि उसका असिस्टेंट बताने लगा-
"सर, उस होटल वाली पार्टी के साथ एग्रीमेंट साइन करना है। उसके लिए वह आपसे होटल में मिलना चाहते हैं।"
"यहीं ऑफिस में बुला लेते।" जयराज ने कहा।
"मैंने कहा था, मगर उन्होंने कहा कि वह उन्हें वह होटल बहुत पसंद है। उनका खुद का होटल है, तो वहीं पर बात करेंगे।"
"ठीक है।" जयराज फिर बाहर होटल जाने के लिए निकल गया। जय होटल की पार्किंग से पहले ही, होटल के आगे गाड़ी से उतर गया। उसने ड्राइवर को गाड़ी पार्किंग में लगाने के लिए कहा और खुद अंदर जाने लगा। थोड़ी ही देर में उसका डील का काम खत्म हो गया। वह होटल से बाहर आया और उसने अपने ड्राइवर को गाड़ी पार्किंग से बाहर, होटल के सामने लाने को कहा।
वह गाड़ी का इंतज़ार करता हुआ आसपास देखने लगा। रोड क्रॉस करने के बाद सामने कुछ खाने-पीने के सामान की स्टॉल लगी हुई थीं। वह तीनों सहेलियाँ वहीं पर खड़ी हुई, गोलगप्पे खा रही थीं।
"इस लड़की के पास लहँगा सेलेक्ट करने के लिए तो टाइम नहीं है। सड़क पर खड़े होकर गोलगप्पे खा सकती हैं।"
तभी उसकी गाड़ी आ गई। जय का पूरा ध्यान उन तीनों लड़कियों पर ही था। वह क्या बातें कर रही थीं, जय को साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था, मगर तीनों इतनी जोर-जोर से हँस रही थीं। वह उन्हीं की तरफ़ देखता हुआ गाड़ी में बैठने लगा।
वह जानवी को ही देख रहा था। जानवी ने हँसते हुए जैसे ही मुँह में पानी पूरी का पीस रखा, उसे खांसी आई और जो उसने पानी पूरी का पीस डाला था, वह उसकी खांसी के साथ बाहर आ गया। मगर उसकी खांसते हुए भी हँसी बंद नहीं हो रही थी, और वह दोनों लड़कियाँ भी उसके साथ हँस रही थीं। अब वह अपनी पानी पूरी खाना छोड़कर उसकी पीठ सहलाने लगीं।
वह समझता था कि ये तीनों सहेलियाँ एक-दूसरे के लिए बहुत खास हैं। वह अभी भी उनकी तरफ़ देख रहा था। जयराज अपने असिस्टेंट की वेट कर रहा था जो कि अंदर से कोई डॉक्यूमेंट लेकर आ रहा था।
जानवी ने पानी पिया। खांसी की वजह से उसकी आँखों में पानी था। उसने आँखें साफ़ कीं, मगर इस बुरी कंडीशन में भी उसकी हँसी नहीं रुक रही थी। उसकी इस हालात पर जयराज को पहले थोड़ा अजीब लगा, फिर वह मुस्कुराया। इसके बारे में उसे खुद भी पता नहीं था।
उसके असिस्टेंट ने गाड़ी में बैठते हुए कहा-
"चलिए सर।"
जयराज, जिसका पूरा ध्यान जानवी की तरफ़ था, एकदम से होश में आया-
"हाँ, चलो।"
असिस्टेंट भी बाहर देखने की कोशिश करने लगा कि आखिर क्या था जिस वजह से जयराज उसे इतनी देर वेट करने के बाद भी गुस्सा नहीं हुआ था और वह मुस्कुरा भी रहा था।
वह लोग वहाँ से निकल गए थे। जयराज के फ़ोन पर घर से फ़ोन आने लगा। उसकी बेटे युग की नैनी, रीता का फ़ोन था।
"क्या हुआ रीता?" उसने फ़ोन उठाते ही कहा।
"आप युग से बात करो।"
"क्या हुआ बेटा? आंटी को क्यों तंग कर रहे हो?" जयराज ने युग से कहा।
"दादी माँ ने मुझसे प्रॉमिस किया था कि आज वह मुझे मामा से मिलाने ले जाएँगी, मगर वह मुझे साथ नहीं ले गईं। इसीलिए मैं बहुत गुस्सा हूँ।"
"ठीक है, कोई बात नहीं। मुझे लगता है आज तुम्हारी मामा नहीं आई होंगी। कल मिल लेना उससे।"
"सभी सिर्फ़ बहाने बनाते हैं। कोई मुझे मेरी मामा से नहीं मिलाता।" वह गुस्से में कह रहा था।
"पक्का प्रॉमिस है। कल हम लोग अच्छे से तैयार होकर चलेंगे तुम्हारी मामा को लेने। आप मेरी आंटी से बात कराओ बेटा।"
युग को अच्छे से खाना खिला दो।" वह नैनी को समझा रहा था।
"क्या हुआ सर? आप काफी परेशान हैं।" उसके असिस्टेंट, मिस्टर मेहता ने पूछा।
"युग को मॉम ने सपने दिखा दिए हैं। अगर पूरे नहीं हुए तो क्या होगा?"
"मगर हुआ क्या? कोई प्रॉब्लम हो गई है सर?"
"युग अपनी मामा से मिलना चाहता है। कल उसने बात सुन ली थी शॉपिंग की, तो आज उसे भी जानवी से मिलना था, तो उसी के लिए जिद कर रहा है।"
"तो इसमें प्रॉब्लम क्या है? वह मैडम से कल मिल सकता है।"
"बात उससे मिलने की नहीं है। मगर समझो, कोई उसकी माँ कैसे बन सकती है? और क्या लगता है तुम्हें? एक उन्नीस साल की जो भी लड़की, जो खुद बच्ची है, वह उसकी माँ बनेगी? माँ बनना बहुत ज़िम्मेदारी का काम होता है। उसके लिए बहुत पेशेंस चाहिए होता है और मुझे पता है मेरी माँ जैसी। कोई और वैसा कैसे बन जाएगा? सोचो, तुम्हारी भी तो माँ होगी। मुझे इस छोटे बच्चे की बहुत फ़िक्र होती है। शादी के बाद प्रॉब्लम और बढ़ जाएगी।"
"देखिए सर, कई बातें हमें वक़्त पर छोड़ देनी चाहिए। अगर युग की किस्मत में माँ का प्यार लिखा होगा, तो उसे मिल जाएगा। यह बिज़नेस नहीं है, ज़िन्दगी है। हर काम सोच-समझकर नहीं कर सकते हैं।"
"यह बात तो तुम्हारी ठीक है। मैं अलीशा से शादी भी सोच-समझकर की थी। मैं उससे प्यार करता था, दीवाना था उसका। उसकी हर बात मुझे पसंद थी। मगर देखो, उसने मुझे भी छोड़ दिया और अपने बच्चे को भी पलट कर नहीं देखा। उसे तो यह भी नहीं पता, वह ज़िंदा है या मर गया।"
जय का अलीशा के साथ शादी का अनुभव बहुत बुरा था। वह लोग लगभग एक साल तक साथ रहे और यह एक साल दोनों ने नर्क जैसा गुज़ारा था।
यह बात तो तुम्हारी ठीक है।
मैंने अलीशा से शादी सोच-समझकर की थी। मैं उससे प्यार करता था, दीवाना था उसका। उसकी हर बात मुझे पसंद थी। मगर देखो, उसने मुझे भी छोड़ दिया और अपने बच्चे को भी पलटकर नहीं देखा। उसे तो यह भी नहीं पता, वह जिंदा है या मर गया।
जय का अलीशा के साथ शादी का अनुभव बहुत बुरा था। वे लोग लगभग एक साल तक साथ रहे और यह एक साल दोनों ने नर्क जैसा गुजारा था।
अलीशा एक मॉडल थी। वह ब्रिटिश माता-पिता की संतान थी। एक भारतीय लड़के के साथ एडजस्ट करना उसके लिए बहुत मुश्किल था। वहीं जयराज अलीशा पर पहली ही नज़र में मर मिटा था। उसे पाने के लिए उसने उसे बहुत से गिफ्ट भेजे। हर तरह से उसे पाने की कोशिश की और जल्दी ही उसने शादी के लिए प्रपोज किया। शादी के बाद वह इंडिया नहीं रहना चाहती थी क्योंकि उसका करियर बाहर था।
जयराज को अपना काम बहुत प्यार था। वह अपने काम में लगा हर बात भूल जाता। अलीशा और जयराज के बीच जो आकर्षण था, वह जल्दी ही गुस्से और लड़ाई में बदल गया। अलीशा को अपनी आजादी चाहिए थी, तो जय अपने काम पर ध्यान देना चाहता था। शादी के एक महीने बाद अलीशा को पता चला कि वह गर्भवती है।
वह अबॉर्शन करवाना चाहती थी। मगर जय को बच्चा चाहिए था। एक दिन उसकी और जयराज की बहुत बुरी तरह से लड़ाई हुई। उसने कहा, "जब बच्चा पैदा होने वाला होगा, तो मैं तुम्हें मैसेज कर दूँगी। तुम आकर उसे ले जाना। मैं उससे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती।" उसने जय से तलाक माँगा था।
जयराज उसे सिर्फ़ एक ही शर्त पर तलाक देने के लिए राजी हुआ था कि वह उसके बच्चे को उसे सौंप देगी। जय युग को पैदा होते ही ले आया। जय को अपना बच्चा मिल गया। अलीशा को तलाक और पैसे। उसके बाद अलीशा और जयराज का कभी आमना-सामना नहीं हुआ।
अगली सुबह गुप्ता परिवार और सिंघानिया परिवार दोनों ही बहुत बिजी थे। शादी पहले कोर्ट में होनी थी और फिर सिंघानिया हाउस में उनके फेरे होने थे।
जयराज ने अपनी माँ से कहा,
"जब शादी कोर्ट में हो रही है, तो घर पर फेरे किस लिए?"
मगर उसकी माँ-बाप ने उसकी बात नहीं मानी थी।
जानवी सुबह-सुबह ही पार्लर चली गई और उसकी दोनों सहेलियाँ उसके साथ थीं। ज़्यादा लोग शादी में नहीं आने वाले थे और खास तौर पर कोर्ट में तो बिल्कुल घर के ही लोग थे। जानवी अपने दादा और सहेलियों के साथ कोर्ट पहुँच चुकी थी, जबकि सोमनाथ गुप्ता अपनी बेटियों और पत्नी के साथ उनके पीछे आ गए थे।
उनके पहुँचने से पहले राजन सिंघानिया और उसकी पत्नी जया अपने दोनों छोटे बेटे और बहू के साथ मौजूद थे, जबकि जयराज अभी नहीं पहुँचा था। जैसे ही जानवी गाड़ी से उतरी, जया और राजन खुद बाहर आए।
"आओ बेटा।" जया उसकी गाड़ी से उतरने में मदद करने लगी।
अपनी सास के पीछे रेखा और माला भी आ गई थीं।
जैसे ही जानवी गाड़ी से उतरी, रेखा ने जानवी को देखते हुए कहा,
"मुझे तो लगा तुम दोनों ही लेट आओगे। मगर आप तो आ गईं। जेठ जी अभी तक नहीं पहुँचे।"
"कोई फोन करके पूछ लो। उनका इरादा ना बदल गया हो।" माला ने कहा।
राजन और जया ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
"तुम दोनों जानवी को अंदर ले जाओ।" राजन ने उन दोनों से कहा।
प्रीति और रेणुका एक-दूसरे की तरफ देखती हुई वे भी उनके पीछे आ गईं। रजिस्ट्रार के ऑफिस के बाहर वे सभी लोग जयराज का इंतज़ार कर रहे थे, मगर जय नहीं पहुँचा था।
"आज के दिन तो जेठ जी आ जाते। बेचारी लड़की उसके लिए तो तैयार होकर आई है।" रेखा कहने लगी।
"आ जाएँगे, उन्हें कौन सा तैयार होना है? जैसे वे ऑफिस गए हैं, वैसे ही तो आएंगे।" माला ने कहा।
"तो क्या वे आज के दिन भी ऑफिस से सीधा आएंगे?" रेखा ने कहा।
"कौन सी वो खुश होकर शादी कर रही है? ज़बरदस्ती की शादी है। इंसान एक ही बार बड़े चाव से शादी करता है। जेठ जी वह कर चुके हैं। उनकी पहली शादी के टाइम नहीं देखा? वो कितने खुश थे!" माला ने जानबूझकर कहा।
वे दोनों कुछ न बोल रही थीं। उन्हें हमेशा दूसरों का दिल दुखाने में बहुत मज़ा आता था। उन्हें इस बात का भी गुस्सा था कि अपनी छोटी बहनों को छोड़कर जय ने जानवी से शादी कर रहा था।
"समर, तुम फोन करके तो पूछो। वो कहाँ है?" राजन ने समर से कहा।
"मैं कई बार फोन लगा चुका हूँ। मगर उनका फोन ऑफ है।" समर ने कहा।
"मालूम नहीं भाई ने फोन क्यों बंद किया है।"
"तो तुम मिस्टर मेहता को फोन लगाकर पूछो। वो उसके साथ होगा।" राजन ने कहा।
जैसे ही समर ने मिस्टर मेहता को फोन लगाया, तभी किसी ने वहाँ पर कहा, "जयराज सिंघानिया की गाड़ी आ गई है।"
जानवी वहाँ अपनी दोनों सहेलियों के साथ चुपचाप एक जगह बैठी हुई थी। उसे बहुत घबराहट हो रही थी क्योंकि माला और रेखा जानबूझकर उसे कुछ न कुछ सुना रही थीं। दूसरी तरफ तानिया और सोनिया, वे दोनों खुश हो रही थीं कि जय अभी तक नहीं आया था। रेणुका जानवी का हाथ पकड़कर बैठी थी।
"तुम तो बिल्कुल ठंडी हो रही हो।" प्रीति ने जानवी से कहा।
जानवी एक नज़र अपने दादाजी की तरफ देख लेती है। वे एक साइड पर चेयर पर बैठे थे। वे अपने चेहरे से काफी रिलैक्स फील कर रहे थे।
तभी जय अंदर आता है और उसके साथ ही उसका बेटा युग भी था। सभी की नज़र जयराज सिंघानिया पर जाती है। उसने क्रीम रंग की शेरवानी पहनी हुई थी और उसके साथ मैच करती शेरवानी ही युग ने पहनी थी।
तुम तो बिल्कुल ठंडी हो रही हो। प्रीति ने जानवी से कहा।
जानवी ने एक नज़र अपने दादाजी की तरफ़ देखी। वे एक किनारे कुर्सी पर बैठे थे। वे अपने चेहरे से काफी रिलैक्स महसूस कर रहे थे।
तभी जय अंदर आया और उसके साथ उसका बेटा युग भी था। सभी की नज़र जय राज सिंघानिया पर गई। उसने क्रीम रंग की शेरवानी पहनी हुई थी और उसके साथ मैच करती शेरवानी युग ने भी पहनी थी।
सभी की नज़रें जयराज सिंघानिया पर गईं। क्रीम रंग की शेरवानी में वह बेहद हैंडसम लग रहा था। उसने अपने आँखों से गॉगल्स उतारे।
"मेरी मामा कहाँ है?" युग ने अंदर आते ही सवाल किया।
"तुम्हारी मामा उधर है।" राजन सिंघानिया ने जवाब दिया।
वह जय की उंगली छोड़कर, वहाँ एक कोने की तरफ़ जाने लगा। वहाँ कुर्सी पर जानवी भी बैठी थी। युग उसके नज़दीक पहुँचा तो जानवी ने एक मुस्कान के साथ उसकी तरफ़ देखा।
"आप मेरी मामा हो?" उसने बहुत प्यार से पूछा।
जानवी ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिला दिया।
"फिर चलो हम घर चलते हैं।" युग ने उसका हाथ पकड़ा।
"पहले हम तुम्हारे डैड से शादी तो करवा दें तुम्हारी मामा की।" जया ने मुस्कुराकर कहा।
उस कमरे में सभी लोग उन दोनों की तरफ़ देख रहे थे।
"अच्छा! अभी तक शादी नहीं हुई?"
"ठीक है तो चलो शादी करते हैं।" उसने जानवी से कहा।
जयराज आते ही सीधा रजिस्ट्रार ऑफिस के अंदर चला गया था। राजन और जया जानवी को साथ लेकर ऑफिस के अंदर जाने लगे। युग ने जानवी की उंगली पकड़ी हुई थी। जय और जानवी को छोड़कर, जय के माता-पिता और जानवी के दादाजी अंदर आए थे। जैसे ही उन दोनों ने साइन किए...
"मुबारक हो! आप दोनों पति-पत्नी हुए।" मैरिज रजिस्ट्रार ने कहा।
जयराज ने उसकी बात पर हल्की मुस्कान दी। उसने जानवी की तरफ़ देखा। वह नज़र झुकाए खड़ी हुई थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह सब लोग ऑफिस से बाहर आए। असिस्टेंट, मिस्टर मेहता, सबको मिठाई खिलाने लगा।
"सर, आगे का क्या प्रोग्राम है?" उसने जय से कहा।
"मॉम से पूछो। मुझे नहीं पता।" वह कहने लगा।
"अब हम मॉम को लेकर घर जाएँगे।" बीच में युग बोलने लगा। उसे डर था कि कहीं जानवी यहीं न रुक जाए।
जय सिंघानिया के घर पर उन दोनों के फेरों की रस्म का इंतज़ाम किया हुआ था और साथ थोड़े मेहमान भी आमंत्रित थे। मीडिया को बिल्कुल दूर रखा गया था।
वह लोग जैसे ही ऑफिस से बाहर सड़क पर आए...
"दादी मामा, अब तो आप मेरी मामा डैड के साथ ही जाएँगी।" युग कहने लगा।
"हाँ बेटा, हाँ।" जया ने जवाब दिया।
रेणुका और प्रीति दोनों जानवी के साथ थीं।
"आप दोनों कौन हैं? मेरी मामा के साथ क्यों हैं?" युग दोनों से कहने लगा।
"जी, तुम्हारी मॉम की सहेलियाँ हैं। ये दोनों तुम्हारी मौसी लगती हैं।" जया ने मुस्कुराकर कहा।
"आपके नाम क्या हैं?" युग पूछने लगा।
"ये रेणुका मौसी और प्रीति मौसी।" जानवी ने उसे धीरे से कहा।
जब जानवी युग से बात कर रही थी, उस समय जय जो थोड़ी सी दूर खड़ा था, अपने असिस्टेंट से बात कर रहा था। उसने जानवी और युग की तरफ़ देखा।
वह दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े हुए थे। दोनों के ही चेहरों पर मुस्कान थी।
"तो प्रीति मासी और रेणुका मासी, आप दोनों भी हमारे साथ ही जाएँगी।"
"हम तो आपके मामा की बेस्ट फ्रेंड हैं, तो हमें साथ जाना चाहिए।"
"देखो, मेरी भी बेस्ट फ्रेंड है। मगर वह मेरे घर पर नहीं आती। बस मेरे स्कूल से वह अपने घर चली जाती है, मैं अपने घर आ जाता हूँ।" युग जानवी को छोड़कर किसी और को साथ नहीं ले जाना चाहता था।
उसकी बात पर जानवी, रेणुका और प्रीति तीनों हँसने लगीं।
"तो क्या तुम हमें साथ लेकर नहीं जाओगे?" प्रीति ने उसे कहा।
युग ने जानवी की तरफ़ देखा।
"मामा, क्या करना है? आपकी बेस्ट फ्रेंड कह रही हैं हमारे साथ ही जाएँगी।"
"जैसा तुम्हें अच्छा लगे।" जानवी ने उसे मुस्कुराकर कहा। प्रीति और रेणुका हँस रही थीं। प्रीति ने उसे गोद में उठा लिया।
तभी जया उन लोगों के पास आई।
"अभी तुम्हारे मामा-डैड की शादी बीच में रहती है। पूरी नहीं हुई अभी। सिर्फ़ कोर्ट में तो साइन हुए हैं। अभी पंडित जी इनको फेरे करवाएँगे और उसके बाद सभी अपने-अपने घर चले जाएँगे। अगर मामा की बेस्ट फ्रेंड को जाने के लिए कहोगे, मामा को बुरा लगेगा।"
"ठीक है, आप दोनों भी आ जाओ। मगर गाड़ी में तो मैं, डैड और मामा, हम तीनों ही जाएँगे। आप दूसरी गाड़ी में आ जाओ।"
फिर वह भागता हुआ जयराज के पास गया।
"क्या डैड, अब हम घर चलें मामा को लेकर? आप अंकल से बातें फिर भी कर सकते हो।"
"क्या बात है युग, आपको बहुत जल्दी है?" मिस्टर मेहता कहने लगा।
"और नहीं तो क्या? कितनी मुश्किल से मामा मिली है! अब हम घर ले जाएँ।" युग ने जय का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले आने लगा।
"डैड, आप गाड़ी ड्राइव करोगे। मामा आपके साथ बैठेंगी और मैं आप दोनों के पीछे, बीच में बैठूँगा।" जैसे हमेशा सभी बच्चे बैठते हैं। युग अंश और निशा की बात कर रहा था, क्योंकि जब भी वह अपने पेरेंट्स के साथ बाहर जाते थे तो ऐसे ही बैठते थे।
"आप अपने बेटे की फ़रमाइश पूरी कर दो।" राजन ने जय से कहा।
"ठीक है, चलो।"
जय के ड्राइवर ने गाड़ी ऑफिस के बिल्कुल सामने आकर लगा दी। जय ने उसे आँख से इशारा किया। वह चला गया। जया जानवी को जय की गाड़ी के पास ले आई। उसके साथ रेणुका और प्रीति भी थीं। युग को लगा कि रेणुका और प्रीति भी उनके साथ गाड़ी में न बैठ जाएँ।
"आप दूसरी गाड़ी में आ जाना। मैं ड्राइवर अंकल से कहता हूँ, वह आपको ले आएँगे।"
"ठीक है, नहीं आएँगे हम लोग तुम्हारे साथ। दूसरी गाड़ी में आ जाते हैं।" प्रीति ने मुस्कुराकर कहा। अब युग गाड़ी खोलकर पिछली सीट पर बैठ गया था। जय ड्राइविंग सीट पर बैठने लगा।
जय के ड्राइवर ने गाड़ी ऑफिस के ठीक सामने रोक दी। जय ने उसे आँख से इशारा किया; वह चला गया। जया जानवी को जय की गाड़ी तक ले आई। उसके साथ रेणुका और प्रीति भी थीं। युग को लगा कि रेणुका और प्रीति भी उनके साथ गाड़ी में बैठ जाएँगी।
"आप दूसरी गाड़ी में आ जाना। मैं ड्राइवर अंकल से कहता हूँ, वह आपको ले आएंगे।"
"ठीक है, नहीं आएंगे हम लोग तुम्हारे साथ। दूसरी गाड़ी में आ जाते हैं।" प्रीति ने मुस्कुराकर कहा। अब युग गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर पिछली सीट पर बैठ गया था। जय ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
जानवी गाड़ी में बैठ चुकी थी। जय भी गाड़ी में बैठ गया था। युग पीछे बैठा हुआ था। जया और राजन जानवी को गाड़ी में बिठाने के बाद घर की ओर निकल गए थे। वे अपने साथ अपनी दोनों छोटी बहूएँ और दोनों बेटे भी ले गए थे। वे चाहते थे कि जानवी के घर पहुँचने से पहले स्वागत के लिए पूरा परिवार घर में मौजूद हो।
मिस्टर मेहता अपनी गाड़ी से रेणुका और प्रीति के पास आकर रुके।
"आप इधर आ जाएँगी। मुझे सर ने आप लोगों को बिठाने के लिए कहा है।"
रेणुका और प्रीति एक-दूसरे की तरफ़ देखती हुई गाड़ी में बैठने लगीं।
"मैं आपका ड्राइवर नहीं हूँ। एक लड़की को आगे आना होगा।" मिस्टर मेहता ने उन दोनों की तरफ़ देखते हुए कहा।
रेणुका गाड़ी में पीछे बैठ चुकी थी। प्रीति अभी रुकी हुई थी। वह गाड़ी में आगे आकर बैठ गई। सोमनाथ गुप्ता का परिवार एक गाड़ी में था और वे लोग भी जय और जानवी की गाड़ी को पीछे छोड़ते हुए आगे जा चुके थे। अब वहाँ पर मिस्टर मेहता और जय की गाड़ी थीं। वे दोनों आगे-पीछे चल रही थीं। जय ने गाड़ी चलाते हुए एक नज़र जानवी की तरफ़ देखा जो बाहर की तरफ़ देख रही थी।
"मामा, मैंने अपने सब फ्रेंड्स को बता दिया है कि मेरी मामा आने वाली है। वह हमेशा हम लोगों के साथ रहेंगी।" युग बैठते ही बोल पड़ा था।
युग के कहने पर जानवी ने पीछे उसकी तरफ़ मुस्कुराकर देखा।
"तो फिर आपके दोस्त आज नहीं आए?" जानवी ने कहा।
"बिल्कुल, मैं तो सभी को इनवाइट करना चाहता था, मगर दादी माँ ने किसी को बुलाने नहीं दिया। मैं अपने सारे फ्रेंड्स को पार्टी करना चाहता हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि मैं एक दिन सभी को घर पर इनवाइट करूँ।"
"ठीक है, डैड।"
"ओके। जैसे मेरे प्रिंस को अच्छा लगे।" जय ने उसे कहा।
"मामा, आप तो हमेशा अब हमारे ही साथ रहोगी।"
जानवी ने जवाब नहीं दिया। जय ने जानवी की तरफ़ एक नज़र देखा। उसका चेहरा अजीब सा हो रहा था। उसका हाथ उसके सिर पर था।
"तुम ठीक हो?" जय ने गाड़ी धीरे करते हुए कहा।
"आप गाड़ी रोकेंगे।" जानवी ने मुश्किल से कहा।
जय ने एकदम से गाड़ी रोक दी। जानवी ने अपनी साइड का दरवाज़ा खोला और वह बाहर की तरफ़ झुक गई। उसने साँस लेने की कोशिश की, मगर उसका जी मतला रहा था। उसे उल्टी जैसा महसूस हो रहा था। तब तक जय भी उतर कर उसके पास आ गया था। उसने जानवी को कंधों से पकड़ा।
जानवी के अंदर से पीला पानी जैसी उल्टी आई। उसने फिर अपना चेहरा अंदर किया।
"तुम ठीक हो?" जय ने पूछा। उसने जानवी के हाथ में अपना रुमाल दे दिया।
वह रुमाल लेकर अपना मुँह साफ़ करने लगी। जय ने हाथ बढ़ाकर उसके नाक में पहनी हुई नथनी उतार दी और गाड़ी के दरवाज़े में से उसने पानी की बोतल निकाली और जानवी को देने लगा। उसकी इस हरकत से जानवी काफी हैरान हुई। उनकी गाड़ी रुकी देखकर मिस्टर मेहता ने भी गाड़ी रोक दी थी। साथ ही जय का सिक्योरिटी हेड भी अपनी गाड़ी से नीचे उतर आया था।
मेहता के साथ प्रीति और रेणुका भी उतर गई थीं।
"क्या हुआ सर?" मिस्टर मेहता ने पूछा।
रेणुका और प्रीति जानवी के पास आ गईं।
"तुम्हें दवाई तो नहीं चाहिए?" रेणुका पूछने लगी।
"सुबह से तुमने कुछ खाया है?" जय, जो अब गाड़ी के अंदर बैठ चुका था (जबकि रेणुका, प्रीति और मिस्टर मेहता बाहर खड़े थे), अपने सिक्योरिटी हेड को दूर से ही इशारा कर दिया था। वह वहीं से वापस चला गया।
"तुमने सुबह से कुछ खाया है?" जय ने फिर सवाल किया।
"नहीं।" जानवी ने धीरे से कहा।
"और दवाई कितनी बार खा चुकी हो?"
"दो बार।" प्रीति के मुँह से निकल गया।
"तुम लोग कैसी सहेलियाँ हो! दवाइयाँ खिला रही हो! उसे खाने के लिए तो पूछ लो! खाली पेट और टेंशन की वजह से हुआ है। दवाई कभी खाली पेट नहीं खाई जाती। तुम लोग बैठो गाड़ी में। डॉक्टर को फोन करता हूँ, वह हमारे आने से पहले घर पहुँच जाएगा।"
वे दोनों भी मिस्टर मेहता के साथ पीछे जाने लगीं।
"रुको।" जय ने उनसे कहा। "इसी गाड़ी में आ जाओ। जानवी को तुम्हारी ज़रूरत हो सकती है।"
वह दोनों इस गाड़ी में आ गई थीं। युग घबराया हुआ जानवी को देख रहा था।
"क्या हुआ मामा को?" युग ने कहा।
"तुम्हारी मामा तुम्हारे जैसी है।" जय अभी भी गुस्से में था।
"जब मेरी मामा है तो मुझ जैसी ही होगी।" युग ने भी गुस्से में जवाब दिया।
"मैं ठीक हूँ।" जानवी ने युग की तरफ़ देखकर कहा।
वहीं पर रेणुका और प्रीति एक-दूसरे की तरफ़ हैरानी से देख रही थीं कि दवाई वाली बात जय को पता है। उसके गुस्से में भी कहीं न कहीं उन दोनों सहेलियों को प्यार दिख रहा था।
तभी जय के फ़ोन पर मिस्टर मेहता का फ़ोन आया। जय जो गाड़ी चला रहा था, उसका फ़ोन गाड़ी में स्टैंड पर रखा हुआ था। उसने फ़ोन स्पीकर पर लगाया।
"सर, मैंने डॉक्टर को घर पहुँचने के लिए कह दिया है। जब तक हम घर पहुँचेंगे, वह उससे पहले पहुँच जाएगा।"
"ठीक है।"
जय ने गाड़ी के शीशे नीचे कर दिए जिससे जानवी को ताज़ी हवा मिल सके।
जानवी अपनी आँखें बंद किए हुए पीछे की सीट पर सिर झुकाकर बैठी थी।
"अगर उल्टी जैसा फील हो तो बता देना।" जय ने कहा।
प्रीति, जो जानवी के पीछे बैठी हुई थी, उसने जानवी के कंधे पर हाथ रखा हुआ था। घर ज़्यादा दूर नहीं था, वे थोड़ी ही देर में घर पहुँच चुके थे।
जय ने गाड़ी के शीशे नीचे कर दिए ताकि जानवी को ताज़ी हवा मिल सके। जानवी अपनी आँखें बंद किए हुए, पीछे की सीट पर करवट लेकर बैठी थी।
"अगर उल्टी जैसा फील हो तो बता देना," जय ने कहा।
प्रीति, जो जानवी के पीछे बैठी थी, ने जानवी के कंधे पर हाथ रखा हुआ था। घर ज़्यादा दूर नहीं था; वे थोड़ी ही देर में घर पहुँच गए थे।
युग बहुत घबराया हुआ था। वह पूरे रास्ते बार-बार पूछता रहा, "मामा, आप ठीक हो?"
गाड़ियाँ शहर के पाश एरिया में पहुँचीं जहाँ सिंघानिया मेंशन था। घर का बड़ा सा गेट पहले से खुला था। सामने चार मंजिला बड़ा सा मेंशन दिखाई दे रहा था। वह कितना आलीशान था, इसके लिए शब्द नहीं थे।
जयराज की गाड़ी अंदर आई और उसके बाद मिस्टर मेहता की गाड़ी। सिक्योरिटी की गाड़ियाँ पहला गेट छोड़कर आगे चली गईं जहाँ सिंघानिया मेंशन का दूसरा गेट था। उसी गेट से जय और मिस्टर मेहता की गाड़ी अंदर गई थी। गेट नंबर वन तुरंत बंद कर दिया गया।
जैसे ही गाड़ी रुकी, जानवी बाहर की तरफ़ देखने लगी। जय अपनी गाड़ी से उतरा। अपना दरवाज़ा बंद करने से पहले उसने जानवी की तरफ़ देखा।
"तुम ठीक हो?"
"जी," जानवी ने धीरे से कहा।
"हम लोग घर पहुँच चुके हैं। डॉक्टर भी आ गया होगा।"
उनकी गाड़ी देखकर जया, रेखा और माला गाड़ी तक आ गईं।
"क्या बात है बेटा? तुम लोगों को थोड़ा टाइम लग गया। रास्ता तो इतना लंबा नहीं था," जया ने पूछा।
"जानवी की तबीयत खराब हो गई थी। इसलिए हमें रुकना पड़ा," जय ने जवाब दिया।
"क्यों? क्या हुआ?" अबकी बार रेखा ने पूछा।
मगर जय ने जवाब देने की जगह दूसरी तरफ़ चल दिया।
रेखा और माला ने जानवी का दरवाज़ा खोला। तब तक तानिया और सोनिया भी वहाँ आ गई थीं।
"नीचे आ जाओ," उन्होंने कहा। प्रीति, रेणुका और युग तीनों पिछली सीट से बाहर आए।
"तुम दोनों भी इनके साथ ही थीं?" माला ने हैरानी से रेणुका और प्रीति की तरफ़ देखा। "वैसे जेठ जी अपने साथ किसी को भी बैठने नहीं देते।"
तभी एक साड़ी पहनी हुई महिला वहाँ आई।
"मैडम की तबीयत ठीक नहीं है। पहले इन्हें डॉक्टर को दिखाना है," उसने कहा। "पहले अंदर लेकर चलते हैं।"
"मगर अंदर तो फेरों के बाद लेकर जाना है। इनका गृह प्रवेश होगा," रेखा ने कहा।
"हाँ, मुझे पता है। इसीलिए जो बाहर का गेस्ट रूम है, इन्हें लेकर आने को कहा है। वहीं पर डॉक्टर है।"
फिर उसने प्रीति और रेणुका की तरफ़ देखा। "आप लोग भी आ जाएं।"
युग जानवी की उंगली पकड़े हुए था। वे चारों कमरे में चले गए। रेखा और माला ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। जैसे ही जानवी ड्राइंग रूम में गई, वहाँ सोफ़े पर डॉक्टर बैठा हुआ था। जय उसी के साथ था और मिस्टर मेहता भी वहीं थे। उन्हें देखते ही मिस्टर मेहता और जय दोनों उठकर दूसरे दरवाज़े से बाहर चले गए। वे चारों सोफ़े पर बैठ गए।
"मैडम, आपको कैसा फील हो रहा है?"
"थोड़ा-थोड़ा जी घबरा रहा है," जानवी ने बताया।
"आपका ब्लड प्रेशर भी थोड़ा बढ़ा हुआ है। शादी की टेंशन की वजह से ऐसा हो गया। कोई बड़ी बात नहीं है। आप कुछ खाने के बाद मेडिसिन ले लें, अच्छा फील करेंगी," डॉक्टर ने कहा।
इतनी देर में एक औरत अपने हाथ में ट्रे लेकर वहाँ आई। उसमें जूस और सैंडविच था।
"आप मामा के लिए लाए हो?" युग ने उससे पूछा जो वहाँ सोफ़े पर बैठा हुआ था।
उसकी बात पर सविता ने मुस्कुराकर हाँ कहा। युग ने उसका गिलास उठाया। "मामा, आप इसे खत्म कर दो।"
जानवी ने उसके हाथ से जूस का गिलास पकड़ा और पीने लगी। उसके बाद उसने सैंडविच भी खा लिया और फिर मेडिसिन ली।
प्रीति का ध्यान जयराज पर था जो ड्राइंग रूम के दूसरे दरवाज़े के पास खड़ा हुआ किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था, मगर वह जानवी की तरफ़ देख रहा था। डॉक्टर मेडिसिन देकर चला गया और जय भी कमरे से बाहर निकल गया।
"बेटा, थोड़ी देर में फेरे हैं," तभी जया वहाँ आई।
युग जानवी के साथ चिपका हुआ बैठा था। जैसे ही वह अकेले हुए, प्रीति शुरू हो गई।
"हम तो ऐसे ही घबरा रहे थे। जीजू तो जानवी को बहुत चाहते हैं।"
उसकी बात पर रेणुका और जानवी ने उसकी तरफ़ देखा।
"लगता है दिमाग तुम्हारा खराब हो गया," रेणुका ने जवाब दिया।
"देखा नहीं कितनी केयर कर रहा है। वो वहाँ पीछे खड़ा हुआ था। डॉक्टर के जाने के साथ ही बाहर गया है। उसे कितनी फ़िक्र थी कि जानवी ने कुछ भी नहीं खाया। और उस दिन हमने होटल में देखा था। तुम तो नीचे थीं, मगर मैं और जानवी तो वहीं पर थीं," रेणुका कहने लगी।
"हाँ, यह बात भी सच है। वैसे तुम रात को जय से पूछना," प्रीति ने कहा।
"क्या?" जानवी घबराते हुए बोली।
"हाँ, जब तुम दोनों अकेले होंगे।"
"देख, मुझे पहले ही बहुत घबराहट हो रही है। अब ऐसी बातें बोलकर और घबराहट कर दोगी मुझे।"
तभी रेखा और माला सविता के साथ अंदर आईं।
"चलिए मैडम, आपका इंतज़ार हो रहा है," सविता ने कहा।
रेखा और माला जानवी को लेकर बाहर लॉन में, जहाँ फेरों की रस्म होनी थी, ले गईं। युग जानवी का हाथ पकड़कर चल रहा था।
थोड़ी ही देर में फेरे खत्म हुए। जय ने जानवी को सिंदूर और मंगलसूत्र पहनाया। उसके बाद जो थोड़े मेहमान आए थे, जय उनसे मिलने लगा। जानवी को वहीं सोफ़े पर बैठा दिया गया। सभी लोग उससे मिल रहे थे, मगर युग उसके साथ परमानेंट चिपका हुआ था। वहाँ खाना खाने के बाद सभी लोग जाने लगे। जानवी के दादाजी ने भी उसे आशीर्वाद देकर अपनी फैमिली के साथ चले गए। प्रीति और रेणुका भी चली गईं।
शाम तक सभी लोग जा चुके थे और जानवी को अंदर हाल में बैठा दिया गया था।
"अब जानवी को इसके कमरे में भेज देना चाहिए," जया ने कहा।
"मगर अभी तो सारी रस्में नहीं हुईं," रेखा ने कहा। वह किचन से मेहँदी के साथ आ रही थी; उसने बड़ा बर्तन उठाया हुआ था।
"अभी तो इसमें हमारे जेठ जी और जेठानी जी रिंग खोजेंगे। फिर ही तो पता चलेगा कि किसकी चलेगी।"
वह जानवी के सामने टेबल पर वह बर्तन रखती है। जया को डर था कि जय कोई रस्म नहीं करेगा, इसीलिए वह किसी की भी रस्म के लिए जय को कंपेल नहीं करना चाहती थी। फिर भी उसने कहा, "जय, आ जाओ।"
मगर वह उसकी बात का जवाब ना देते हुए ऊपर की तरफ़ जाने लगा।
वो जानवी के सामने टेबल पर बर्तन रखी। जया को डर था कि जय कोई रस्म नहीं करेगा। इसीलिए वह किसी की भी रस्म के लिए जय को मजबूर नहीं करना चाहती थी। फिर भी उसने कहा, "जय, आ जाओ।"
मगर वो उसकी बात का जवाब ना देते हुए ऊपर की तरफ जाने लगा। रेखा और माला एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराईं।
"लगता है जेठ जी को सुनाई नहीं दिया," माला ने कहा। "वह ऊपर की तरफ चले गए।"
"अब उनकी कौन सी पहली शादी है?" माला ने कहा। "उन्हें क्या फर्क पड़ता है इन रस्मों से? वैसे भी इस उम्र में यह सब बातें अच्छी कहाँ लगती हैं? इन बातों की भी एक उम्र होती है।"
"यह तुम क्या बोल रही हो?" जया ने थोड़े गुस्से से कहा।
"नहीं, मम्मी जी, सही बात है। दीदी, आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए," माला ने रेखा से कहा। "उसे शादी में जेठ जी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था। मैं तो आई थी शादी में। मैंने तो अटेंड की थी वह शादी। उसी के बाद तो हमारी शादी हुई थी। वह तो फिर अंग्रेजन थीं; उसे इन सब चीजों में कोई इंटरेस्ट नहीं था। विदेश में शादी हुई थी और वह भी चर्च में। जेठ जी बहुत ज्यादा खुश थे; उनकी खुशी तो देखने वाली थी।"
माला और रेखा दोनों जानबूझकर जानवी को तंग कर रही थीं। क्योंकि बिज़नेस में जयराज की ही चलती थी। वह सारा बिज़नेस वही हैंडल करता था और उन्हें लगता था कि अब जानवी भी घर पर चलेगी, जो वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी।
"इस पानी का क्या करना है?" युग ने पूछा।
"इसमें से रिंग निकालनी है। जो पहले ढूंढेगा, सभी बातें उसी की मानी जाएंगी।"
जानवी नज़रें झुकाए हुए पानी में जो फूल थे उनकी तरफ देख रही थी। उसे तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। वह उसे जय की ज़िंदगी में और फैमिली में उसकी हैसियत बता रही थी; पूरी फैमिली के सामने जय का रस्में इग्नोर करके जाना।
"मामा, हम गेम खेलें," युग ने कहा।
जानवी ने युग की तरफ देखा और मुस्कुराई। "चलो खेलते हैं।"
वह दोनों उसमें रिंग ढूंढने लगे। जानवी भी ढूंढने का नाटक करती रही और युग को रिंग मिल गई।
"देखो मामा, मुझे मिली है! तो अब आपको मेरी हर बात माननी पड़ेगी!" युग बहुत खुश था।
"ठीक है," जानवी ने उसकी निश्चल हँसी को देखकर कहा। उसे सचमुच उस पर बहुत प्यार आ रहा था। वो बिन माँ का बच्चा था और माँ के बिना ज़िंदगी कैसी होती है, वह जानती थी। उसके तो माँ-डैड दोनों ही नहीं थे।
युग उन लोगों के पास आकर मुस्कुराने लगा। तब तक घर के दूसरे मेम्बर भी वहाँ आकर बैठ गए थे। वह भी वहाँ बैठकर मुस्कुराने लगे। युग खुश होकर अपनी जीतने के बारे में बता रहा था।
"जय कहाँ है?" राजन इधर-उधर देखते हुए पूछने लगा।
"जेठ जी तो ऊपर चले गए," माला ने जवाब दिया।
राजन जय को फ़ोन लगाने लगा।
तभी पीछे से आवाज़ आई, "आप मुझे फ़ोन किस लिए लगा रहे हैं, डैड?"
सभी पीछे से सीढ़ी की तरफ देखा। जय ने कपड़े चेंज कर लिए थे। उसने जींस और टी-शर्ट पहनी हुई थी।
"हम लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं," राजन ने कहा।
जय जाकर जानवी के पास सोफ़े पर बैठ गया। एक साइड उसके युग बैठा हुआ था।
"क्या करना है?" उसने सभी की तरफ देखते हुए पूछा।
"करना क्या है? रिंग ढूँढो! जिसे रिंग मिलेगी, पूरी लाइफ़ उसी की मर्ज़ी चलेगी!" राजन ने हँसकर कहा।
"देखो डैड, मैं जीता हूँ! अब मामा को तो हमेशा मेरी बात माननी पड़ेगी!" युग रिंग अपने हाथ में पकड़े बैठा था।
"ठीक है, अब मुझे भी तुम्हारी मामा को हराना है। फिर तुम्हारी मामा को मेरी भी हर बात माननी पड़ेगी," जय ने प्यार से कहा।
"बिल्कुल भी नहीं! मेरी माम ही जीतेगी और हम आपको हरा देंगे! ठीक है मामा," युग ने अपने हाथ की रिंग उस बर्तन में गिरा दी।
जय जिस तरीके से बात कर रहा था, जानवी सुनकर काफी हैरान हो रही थी। उसने चाहे एक बार भी नज़र उठाकर जय की तरफ़ नहीं देखा था, ना ही उसके मन में जय के लिए ऐसी कोई फीलिंग थी। पर सभी परिवारिक मेम्बरों के बीच अब उसे अपनी स्थिति अटपटी नहीं लग रही थी।
युग अपनी जगह से उठकर टेबल की दूसरी तरफ़ आकर खड़ा हो गया था। जय और जानवी सोफ़े पर बैठे थे। रेखा की बात पर जय और जानवी दोनों बर्तन में रिंग ढूँढने लगे। युग भी रिंग ढूँढने लगा। रिंग युग को मिल गई।
"मामा, आप जीत गए!" उसने जानवी को रिंग पकड़ा दी। "अब डैड को आपकी हर बात माननी पड़ेगी।"
"तुम तो पार्टी बदल गए!" जय ने हँसकर युग के गाल पर हाथ रखा।
युग जाकर वापस जानवी के पास बैठ गया। "ठीक है, अब तो हो गई रस्में," जय वहाँ से खड़ा होने लगा।
"नहीं, अभी तो और भी हैं," रेखा ने कहा।
"सॉरी, बहुत टाइम हो चुका है और बहुत थकावट हो रही है। युग, जाओ मॉम को ऊपर ले जाओ।"
तभी सविता वहाँ आती है। "चलिए मैडम, मैं ऊपर आपके कमरे में छोड़ देती हूँ।" जानवी ने जया की तरफ़ देखा।
जया ने उसे आँख से जाने का इशारा कर दिया। वह लोग सीढ़ी की तरफ़ जाने लगे।
"रुको, लिफ़्ट से जाओ!" जय ने ऊँची आवाज़ में कहा।
"चलिए मैडम, उधर से लिफ़्ट है। उधर से चलते हैं।" वह लिफ़्ट से ऊपर जाने लगे।
जानवी को सचमुच बहुत थकावट हो गई थी। वह रेस्ट करना चाहती थी।
लिफ़्ट से वह तीनों टॉप फ्लोर पर पहुँचते हैं। लिफ़्ट से जैसे ही जानवी ने उस फ्लोर पर प्रवेश किया, यह फ्लोर सचमुच बहुत शानदार था; ग्राउंड फ्लोर से बहुत डिफरेंट और मॉडर्न था। जानवी आस-पास देखते हुए जा रही थी। "इधर चलिए, आपका कमरा है," सविता ने कहा।
चलिए, मैडम को लिफ़्ट की ओर ले चलते हैं। वह लिफ़्ट से ऊपर जाने लगे।
जानवी को सचमुच बहुत थकावट हो गई थी। वह रेस्ट करना चाहती थी।
लिफ़्ट से वे तीनों टॉप फ्लोर पर पहुँचे। लिफ़्ट से जैसे ही जानवी ने उस फ्लोर पर प्रवेश किया, यह फ्लोर सचमुच बहुत शानदार था; ग्राउंड फ्लोर से बहुत अलग और आधुनिक था। जानवी आस-पास देखते हुए जा रही थी।
"इधर चलिए, आपका कमरा है," सविता ने कहा।
उधर, नीचे हॉल में सभी उठ चुके थे। सिर्फ़ रेखा और माला सोफ़े पर बैठी हुई थीं।
"क्या लगता है, जेठ जी उसे चाहते हैं?" रेखा ने कहा।
"अपनी मॉम को ऊपर ले जाओ। वो कैसे बोल रहा था! उस दिन तो मुझे शादी नहीं करनी। बहुत शोर मचा रहे थे!"
"इसका कारण मैं जानती हूँ," माला ने कहा।
"क्या?" रेखा ने उसकी ओर हैरानी से देखा।
"आज उनकी सुहागरात है। एक 32 साल के आदमी को 19 साल की लड़की मिली है। इस रात को जाने दो, फिर देखेंगे इनके प्यार को।"
दोनों बातें करती हुई हँस रही थीं।
जानवी अपने कमरे में पहुँची। वह उस कमरे को देखते ही रह गई। यह मेंशन का सबसे शानदार कमरा था; बहुत बड़ा और बहुत खूबसूरत।
"मैडम, ये आपका कमरा है। अगर आपको कुछ चाहिए होगा तो आप उस इंटरकॉम पर बता दीजिये। अभी आपको कुछ चाहिए हो तो मुझसे कह सकती हैं।"
जानवी उससे कहना नहीं चाहती थी, मगर उसने सुबह के सैंडविच के बाद कुछ भी नहीं खाया था। उसे बहुत भूख लग रही थी।
"मुझे भी," युग ने साथ में ही कहा।
"आपको स्नैक्स चाहिए या खाना ही भिजवा दूँ?" वह समय देखते हुए कहने लगी, क्योंकि अभी शाम के 6:00 बज रहे थे।
"मेरे लिए खाना ही भिजवा दे।"
वह वहाँ से चली गई और जानवी कमरा देखने लगी। जिस साइड दरवाजे से वह अंदर आई थी, उस साइड किंग साइज़ का बहुत बड़ा बिस्तर लगा हुआ था और उसके पीछे जय राज के साथ युग की फ़ोटो लगी थी; जिसमें छोटा सा युग जय की गोद में था। वह उसे तस्वीर को देखते ही रह गई; जय उसमें बहुत हैंडसम लग रहा था।
सामने की पूरी दीवार कांच की थी और साथ में बालकनी की ओर स्लाइडिंग डोर था। इस वक़्त उस पर पर्दा लगा हुआ था। एक साइड पर ड्रेसिंग रूम बना हुआ था और ड्रेसिंग रूम के अंदर से ही बाथरूम की ओर दरवाज़ा जाता था। एक दीवार के साथ युग का कमरा था; एक दरवाज़ा जो युग के कमरे में खुलता था।
सामने कांच की दीवार के साथ ही सोफ़ा लगा हुआ था; वहाँ पर एक बड़ा सोफ़ा और दो छोटे सोफ़े थे, बीच में कांच का टेबल। जानवी और युग दोनों ही वहाँ बैठ गए थे। जानवी ने अपनी आँखें बंद करके पीछे सोफ़े की बैक से टेक लगा ली।
"मामा, आप ठीक हो?" युग ने पूछा।
"मैं ठीक हूँ," उसने कहा।
वह उसके साथ लग गया था।
"मैं बहुत थक गई हूँ," वह कहने लगी।
"मैं भी। आज सुबह जल्दी उठा हूँ।"
वे दोनों छोटी-छोटी बातें कर रहे थे। युग का साथ होना उसे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि उसकी वजह से ना तो वह कोई फालतू की बात सोच पाई थी और उसे अकेलापन भी महसूस नहीं हुआ था।
इतने में सविता घर के दो नौकरों के साथ खाना लेकर वहीं आ गई।
घर के नौकर चले गए, मगर सविता वहीं रुक गई थी। उसने ही उन दोनों को खाना खिलाया। उनका खाना खिलाने के बाद वह वहाँ से चली गई। जानवी ने अपना दुपट्टा और गहने, युग ने अपनी शेरवानी उतार कर रख दिए; उसका कुर्ता और पायजामा रह गया। वे दोनों ऐसे ही जाकर बिस्तर पर लेट गए। युग उससे सवाल कर रहा था; वह जवाब दे रही थी।
जय जो अपनी स्टडी में था, वह स्टडी में बैठा काम कर रहा था। उसने समय देखा; रात के 10:00 बज चुके थे। वह समय देखकर काम ख़त्म करके वहाँ से उठा गया। वह कुछ सोचता हुआ कमरे की ओर जाने लगा।
जैसे ही वह दरवाज़ा खोलकर अंदर गया, वह कमरे का नज़ारा देखकर थोड़ा परेशान हो गया। कमरे की सारी लाइट जल रही थी; सामने जो एलईडी थी वह ऑन थी, जिस पर फुल वॉल्यूम के साथ गाने चल रहे थे। जानवी का दुपट्टा और युग की शेरवानी दोनों सोफ़े पर पड़े थे; वे दोनों गहरी नींद में सो रहे थे। जानवी के गहने साइड टेबल पर रखे थे।
जय को यह इधर-उधर होना बिल्कुल भी पसंद नहीं था; हर चीज उसकी सही जगह पर होती थी। पहले तो एक था, अब दूसरा हो गया। वह जय की जैकेट और जानवी का दुपट्टा सोफ़े से उठाता हुआ ड्रेसिंग रूम में चला गया।
"दोनों ने कपड़े चेंज नहीं किये हैं," वह मन में सोचता हुआ अपने कपड़े चेंज करने लगा। "सीरियसली, इतने शोर में भी इस लड़की को नींद आ गई!" वह ना चाहते हुए भी मुस्कुराया। "बचपना इसका गया नहीं और मुझसे शादी कर दी!"
जय अपने कपड़े चेंज करके आ चुका था। उसने फिर उन दोनों की ओर देखा। दोनों के ऊपर ही ब्लैंकेट नहीं था; दोनों इकट्ठे हुए पड़े थे; ऐसी स्थिति में उन्हें ठंड लग रही होगी। जय ने ब्लैंकेट निकाला और दोनों के ऊपर दिया। वह लाइट साफ़ करता हुआ युग की साइड आ गया।
जय का चेहरा युग की ओर था। उसने सोते हुए, नाइट लैम्प की रोशनी में जानवी की ओर देखा। "क्या मेरा शादी करने का डिसीज़न सही है?"
पता नहीं कब उसका हाथ जानवी के चेहरे पर चला गया। उसने उसके गाल पर आए हुए बालों को साइड किया। उसके दिल में भी अजीब सा सुकून उतरा था। वह भी आँखें बंद करके सोने लगा। आज पहली बार उसे भी अपना कमरा भरा-भरा लग रहा था; उसे ऐसा लग रहा था कि उसके कमरे का ही नहीं, उसकी ज़िन्दगी का सूनापन भी दूर हो गया था।
जय ने कपड़े बदलकर आ चुका था। उसने फिर उन दोनों की ओर देखा। दोनों के ऊपर कंबल नहीं था। दोनों एक साथ सोए पड़े थे। ठंड लगने की वजह से जय ने कंबल निकाला और दोनों के ऊपर डाल दिया। वह लाइट साफ़ करते हुए युग के पास आ गया।
जय का चेहरा युग की ओर था। उसने सोते हुए, नाइट लैंप की रोशनी में, जानवी की ओर देखा।
"क्या मेरा शादी करने का फैसला सही है?"
पता नहीं कब उसका हाथ जानवी के चेहरे पर चला गया। उसने उसके गाल पर आए बालों को साइड किया। उसके दिल में भी एक अजीब सा सुकून उतरा था। वह भी आँखें बंद करके सोने लगा। आज पहली बार उसे अपना कमरा भरा-भरा लग रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि उसके कमरे का ही नहीं, उसकी ज़िन्दगी का सूनापन भी दूर हो गया था।
"ये उम्र मुझसे बहुत छोटी है।"
"क्या हम एक-दूसरे को सही से समझ पाएँगे?"
"इससे पहले मुझे कोशिश करनी पड़ेगी, इसे समझने की।"
"युग इसमें अपनी माँ ढूँढ रहा है।"
"क्या एक उन्नीस साल की लड़की के लिए माँ बनना इतना आसान होगा?"
"मानता हूँ, इसके हालात भी हालात ठीक नहीं रहे।"
"इसे भी प्यार और केयर की ज़रूरत है।"
वह आँखें बंद करके जानवी के बारे में सोच रहा था। असल में, जब जय ने जानवी को होटल में पहली बार देखा था और वह माडल के साथ जय को देखकर, उसकी आँखों में जो जय ने देखा था, उसकी वो आँखें जय को अंदर तक बेचैन कर गई थीं। जय को सच में लगा कि जो वह कर रहा है, वह जानवी के साथ धोखा है।
होटल से निकलते हुए उसने जानवी के बारे में पता करवाया था। जो उसे जानवी के बारे में पता चला, उसे काफी दुख हुआ। एक बिन माँ-बाप की बच्ची, एक दादा की ज़िम्मेदारी, और वो डिप्रेशन की दवाएँ खा रही है।
ऐसा नहीं था कि जय को जानवी से पहली ही नज़र में प्यार हो गया। लेकिन वो उसे अच्छी लगी थी। वो उसके साथ ज़िन्दगी जीने के बारे में सोचने लगा था। मगर वह साथ ही उसकी और अपनी उम्र से भी डरता था। वैसे भी, शादी का उसका पहला अनुभव अच्छा नहीं रहा था। जैसे जानवी को किसी की ज़रूरत थी, वैसे ही जय को भी किसी के साथ की ज़रूरत थी।
सुबह जानवी की आँख खुली। उसने आराम से आँखें खोलते हुए ऊपर की तरफ देखा।
"मैं कहाँ हूँ?" वह आस-पास देखने लगी।
उसकी नज़र सामने सोफे पर बैठे जयराज पर गई। जो आराम से नाश्ता कर रहा था। वह नहाकर तैयार हो चुका था। उसे देखते ही एकदम याद आया कि उसकी तो शादी हो गई थी। वह एकदम उठकर बैठ गई। उसके ब्लाउज़ की डोरियाँ ढीली हो गई थीं और उसका ब्लाउज़ कंधे से आगे आया हुआ था।
उसने अपने ब्लाउज़ को ठीक करते हुए कंबल लिया और आस-पास अपना दुपट्टा देखने लगी। जय की नज़र उसके गोरे कंधे पर गई, मगर वह अनदेखा करते हुए बोला,
"तुम्हारा दुपट्टा ड्रेसिंग रूम में है।"
वह अपना नाश्ता छोड़कर ड्रेसिंग रूम में गया और उसका दुपट्टा उठाकर उसके पास लाया। जानवी ने शर्मिंदा होकर अपनी नज़र नीची की और अपना दुपट्टा पकड़ने लगी।
"गुड मॉर्निंग," जय ने कहा।
"गुड मॉर्निंग," जानवी धीरे से बोली। क्योंकि वह अपनी शादी की पहली सुबह ही काफी अजीब स्थिति में थी और जय के सामने काफी शर्मिंदा महसूस कर रही थी। उसका बचपना पहले ही दिन बाहर आ गया था। उसे इस बात का काफी पछतावा था कि उसने कपड़े नहीं बदले थे।
शीशे वाले पर्दे साइड थे और धूप अंदर आ रही थी। सीधी सी बात थी कि काफी समय हो चुका था। जानवी अपना दुपट्टा अपने ऊपर लेती हुई उठने लगी।
"सॉरी, मेरी आँख नहीं खुली," जानवी ने धीरे से जय से कहा। वह बाथरूम की ओर जाने लगी।
युग चैन से सो रहा था। जानवी के उठने से वह थोड़ा हिला। जानवी बाथरूम से बाहर आ गई थी। उसके कपड़ों का सूटकेस वैसे ही पड़ा था। वह उसे खोलने लगी। आवाज़ सुनकर जय ड्रेसिंग रूम में गया।
"क्या चाहिए?" उसने पूछा।
"मैं बदलने के लिए कपड़े देख रही हूँ।"
"पहले तुम चाय पी लो। फिर नहाकर बदल लेना।"
वह उसके साथ ही ड्रेसिंग रूम से बाहर आ गई। वह सोफे पर बैठकर चाय पीने लगी। जय इंटरकॉम पर सविता को बुलाता है।
"बहुत देर हो गई, आपको मुझे उठा देना चाहिए था। आंटी मेरी वेट कर रही होंगी।"
"कोई बात नहीं, तुम आराम से तैयार हो जाओ। यहीं नाश्ता कर लेना। सभी लेट उठते हैं। मैंने कह दिया है कि तुम लेट आओगी।"
जानवी चुपचाप उसकी बातें सुनती रही। इतने में दरवाज़ा खटखटाया। जय ने उठकर दरवाज़ा खोला। सविता आई थी।
"सविता, मैडम को कपड़े और जो सामान चाहिए वो दे दो और साथ में इनके सामान बता दो और जो भी इनके सूटकेस हैं, उन्हें खोलकर कपड़े अलमारी में सेट कर दो। इन्हें और भी मदद चाहिए होगी, वो भी कर देना।"
जय अपना नाश्ता कर चुका था। वह वहाँ से खड़ा हो गया। उसने फिर जानवी की ओर देखते हुए कहा, "तुम नहाकर तैयार हो जाओ। फिर यहीं तुम्हारा नाश्ता आ जाएगा।"
"ठीक है," जानवी ने कहा।
जय कमरे से बाहर चला गया। जय के जाते ही जानवी को चैन की साँस आई।
"चलिए मैडम, आप नहा लीजिए।" सविता जानवी के साथ ड्रेसिंग रूम में चली गई। उसने जानवी की अलमारियाँ खोलकर उसके कपड़े दिखाए, जिनकी शॉपिंग जय ने शादी के समय की थी।
थोड़ी ही देर में जानवी नहाकर तैयार हो चुकी थी। सविता ने साड़ी पहनने में उसकी मदद की। उसके लिए नाश्ता भी वहीं आ गया। तब तक युग भी उठ गया था और वह उठते ही जानवी के साथ नाश्ता करने लगा। नाश्ता करने के बाद जानवी ने बालकनी का दरवाज़ा खोलकर बाहर देखा।
टेरेस पर एक छोटे आकार का स्विमिंग पूल बना हुआ था और उसके साथ ही वहाँ बैठने के लिए एक सोफ़ा सेट भी लगा हुआ था।
"यह बहुत खूबसूरत है," जानवी ने सविता से कहा।
"यह जो टॉप फ्लोर है, यह जय सर का है। जहाँ पर उनके गेस्ट आते हैं, वह रहते हैं। युग का रूम भी साथ ही है। और दो बेडरूम और हैं जहाँ घर का कोई फैमिली मेंबर ऊपर नहीं आता। इस फ्लोर को मैं और मेरे पति दोनों देखते हैं। पूरे घर से बिल्कुल अलग है। इसे जय सर ने अपने हिसाब से बनवाया था। एक और टॉप फ्लोर है, वहाँ पर पार्टियाँ होती हैं। ग्राउंड फ्लोर पर बड़े सर और मैडम रहते हैं। सेकंड फ्लोर पर समर सर और ऋशव सर रहते हैं। इस फ्लोर पर आपको छोटी सी किचन भी मिल जाएगी और बैठने के लिए छोटा सा लिविंग एरिया भी है। किचन में आप अगर खुद के लिए चाय वगैरह बनाना चाहो तो बना सकते हो और आपको जो भी चाहिए होगा, मैं हूँ यहीं पर। आपकी सेवा के लिए जय सर ने मेरी ड्यूटी लगाई है।" सविता ने एक-एक करके उसे हर चीज़ के बारे में बता दिया था।
यह जो टॉप फ़्लोर है, यह जय सर का है जहाँ उनके मेहमान रहते थे। युग का कमरा भी यहीं था, और दो बेडरूम और थे। घर का कोई परिवार का सदस्य ऊपर नहीं आता था। इस फ़्लोर को मैं और मेरे पति दोनों देखते थे। पूरे घर से बिल्कुल अलग था। इसे जय सर ने अपने हिसाब से बनवाया था। एक ऊपर टॉप फ़्लोर और था जहाँ पार्टियाँ होती थीं। ग्राउंड फ़्लोर पर बड़े सर और मैडम रहते थे। सेकंड फ़्लोर पर समीर सर और शशांक सर रहते थे। इस फ़्लोर पर आपको एक छोटी-सी किचन भी मिल जाएगी और बैठने के लिए छोटा सा लिविंग एरिया भी है। किचन में आप अगर खुद के लिए चाय वगैरह बनाना चाहें तो बना सकते हैं, और आपको जो भी चाहिए होगा। मैं यहीं हूँ, आपकी सेवा के लिए जय सर ने मेरी ड्यूटी लगाई थी। सविता ने एक-एक करके उसे हर चीज़ के बारे में बता दिया था।
जानवी जय के कमरे के बाहर टेरेस पर खड़ी हुई, चारों तरफ़ देख रही थी। वहाँ से मेंशन की बैक साइड दिखाई दे रही थी। सामने सर्वेंट के क्वार्टर्स थे, गाड़ियों के लिए गैरेज था और साथ ही वहाँ से पूरा शहर दिखाई दे रहा था। उसे चारों तरफ़ देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। वहाँ बहुत अच्छी हवा चल रही थी और काफी ऊँचाई पर था।
उसका फ़ोन, जो अंदर पड़ा था, रिंग हुआ। वह अंदर जाने लगी, तब तक सविता उसका फ़ोन लेकर उसके पास आ गई। रेणुका का फ़ोन था।
"तुम ठीक हो जानवी?" रेणुका ने फ़िक्र करते हुए पूछा।
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ।" जानवी की आवाज़ बहुत कम्फ़र्टेबल थी।
"सचमुच मुझे तुम्हारी बहुत फ़िक्र हो रही थी। तुम अकेली हो क्या? जहाँ पर बात तो कर सकती हो।"
"हाँ, मैं अभी कमरे के बाहर टेरेस पर खड़ी हूँ।"
"तुम्हारा पहला दिन है, तो तुम्हारे ससुराल वालों के साथ होगी।"
"नहीं, अभी मुझे नीचे जाना है। मैंने अभी ब्रेकफ़ास्ट किया है।"
"वैसे तुम्हारी रात कैसी गुज़री? जय का स्वभाव कैसा लगा तुम्हें? तुम्हारे साथ उसका व्यवहार तो अच्छा है।" प्रीति ने पूछा।
"मालूम नहीं, मैं और युग तो टीवी देखते हुए सो गए थे। पता नहीं किस वक़्त आए और जब मेरी आँख खुली तो वो आराम से ब्रेकफ़ास्ट कर रहे थे। वह ब्रेकफ़ास्ट करके बाहर चले गए। मेरी हेल्प के लिए सविता को भेज दिया।"
"तो मतलब वह तुम्हें इग्नोर कर रहा है? उसकी लाइफ़ में तुम्हारी इम्पॉर्टेंस नहीं है? क्या लगता है तुम्हें?"
उसकी बात सुनकर जानवी हँसने लगी।
"मैंने अभी कुछ भी नहीं सोचा। मैं अपने दिमाग पर बिल्कुल भी बोझ नहीं डालना चाहती। फ़िलहाल मेरी सुबह काफी अच्छी है और मैं इसे एन्जॉय करना चाहती हूँ। मुझे लगता है मुझे नीचे जाना है।" जानवी ने कहा। थोड़ी देर बात करने के बाद जानवी ने फ़ोन काट दिया।
युग, जो उसके पास बाहर सोफ़े पर आकर बैठ गया था, उसकी नैनी भी आ गई थी। तभी दरवाज़ा उसके कमरे में खटखटाया। जया उसे कमरे में ना देखकर बाहर टेरेस पर आई।
"गुड मॉर्निंग आंटी।" कहते हुए जानवी जया के पैर छूने लगी।
"जय की तरह मॉम कहो मुझे।" जया उसे गले से लगाते हुए बोली।
"तुम्हारे दादाजी आज तुम्हें पग-फेरों के लिए लेने आने वाले हैं। शाम को जय तुम्हें ले आएगा।" जया ने कहा।
वह उसके साथ नीचे आई। घर के सभी पुरुष काम पर चले गए थे, सिर्फ़ औरतें ही थीं।
"आज तो तुम्हें पग-फेरों के लिए जाना होगा।" माला ने कहा।
"हाँ, मेरे दादाजी मुझे लेने आएंगे।"
"और शाम को तो तुम आज ही वापस आओगी।" रेखा ने कहा।
"यह कैसी बात हुई? शाम को जय ले आएगा इसे।" जया ने कहा।
"मगर आज तो वह शहर से बाहर जाने वाले हैं। उनकी मीटिंग है किसी के साथ। पता नहीं रात को किस पहर आएंगे।"
जया को भी अचानक याद आया कि जय को जाना था।
"तो हम लोग आ जाएँगे तुम्हें लेने।" जया ने कहा।
थोड़ी ही देर में उसके दादाजी आ गए और वह उसे लेकर चले गए।
उसके घर पहुँचते ही उसकी चाची और दोनों बेटियाँ उसके पास आ गईं।
"कैसे लगी तुम्हारी ससुराल वाले तुम्हें?" उसकी चाची ने पूछा।
"जी, अच्छे हैं।"
"तुम तो इतने अमीर लोगों में चली गई हो। अब अपनी बहनों के लिए भी वहाँ कोई अच्छा-सा रिश्ता देखो। जब शाम को दामाद जी आएंगे मैं उनसे भी कहूँगी।" उसकी चाची ने कहा।
"वो शायद ना आएँ। मॉम और डैड आएंगे मुझे लेने।" जानवी ने धीरे से कहा।
उसकी बात पर सोनिया और तनु एक-दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कुराईं।
"तो वह तुम्हें पसंद नहीं करता। अगर वह तुम्हें पसंद करता है तो शादी के अगले दिन थोड़ी काम पर ऐसे जाता? फिर तो तुम लोग हनीमून पर भी कहीं नहीं जा रहे। मैं तो समझी थी कि तुम स्विट्ज़रलैंड जैसी जगह पर जाओगी हनीमून के लिए। आप किसे कह रहे हैं माम? हम लोगों की शादी के लिए जिसकी खुद की शादी पता नहीं कितने दिन चलेगी।" सोनिया ने कहा।
उसकी बातों से जानवी का मन खराब हो गया। वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में जाने लगी।
"तुम कहाँ जा रही हो?" हाल के सोफ़े पर से उठते हुए देखकर उसकी चाची ने कहा।
"मैं अपने कमरे में जा रही हूँ।"
"कौन सा कमरा? वह तो हमने स्टोर रूम बना दिया है। फ़ालतू सामान पड़ा था, वह रखा है उसमें।"
जानवी ने उसे हैरानी से देखा। उसे घर आए एक ही दिन हुआ था, उसका मन बहुत खराब हो रहा था। जय उसे लेने नहीं आएगा। पहले माला और रेखा ने सुनाया था और अब ये लोग उसे सुना रहे थे। अभी उसे घर पहुँचे हुए एक घंटा ही हुआ था। चाय पीने के बाद वह लोग बातें ही कर रहे थे कि उसे वहाँ पर घबराहट होने लगी। वह अपनी दवा देखने के लिए अपना पर्स उठा रही थी, तभी बाहर से घर का नौकर भागता हुआ आया।
"मैडम, बाहर दामाद बाबू आए हैं। उन्होंने जानवी दीदी को जल्दी से आने को कहा है।"
जानवी को लगा कि उसने गलत सुना है।
मैडम, बाहर दामाद बाबू आए हैं। उन्होंने जानवी दीदी को जल्दी आने को कहा है।
जानवी को लगा उसने गलत सुना है। जानवी को सुनकर काफी हैरानी हुई। वह उठकर बाहर लॉन में देखने लगी। सामने ही लॉन में दादाजी के पास जय बैठा हुआ था और अपनी घड़ी देख रहा था। तभी उसकी नज़र जानवी पर पड़ गई। उसने हाल के दरवाज़े पर खड़ी जानवी को देखा।
वह अपनी जगह से खड़ा होता हुआ उसकी तरफ आने लगा।
"प्लीज जानवी, जल्दी करो। मेरी बहुत ज़रूरी मीटिंग है। मुझे शहर से बाहर जाना है," उसने कहा।
दादा जी भी उसके पीछे ही आ गए थे।
"बेटा, जानवी अभी तो आई थी। एक घंटा मुश्किल से हुआ है।"
"दादा जी, हम फिर आ जाएँगे। मैं शाम को लेट हो जाऊँगा, तो मुझे लगा कि मैं इसे अभी ले जाता हूँ।"
"दामाद जी अब पहली बार आए हैं, गिफ्ट देने हैं। मुझे लगा मैं जाकर ले आऊँगी। शाम तक यह हमारे पास है," जानवी की चाची ने कहा।
"जब जानवी नेक्स्ट टाइम आएगी, तब आप गिफ्ट्स दे दीजिए। अभी मुझे जाना है।"
"मगर चाय पी जाते," दादाजी ने उससे कहा।
"ठीक है, जानवी, मैं भी दादाजी के साथ बाहर चाय पी रहा हूँ। प्लीज जल्दी से आ जाओ।"
जानवी, जो अपनी दवाई ढूँढ रही थी, वह इस बात को भूल गई। वह जल्दी से अपने कमरे में गई। उसने अपनी बुक्स लीं और थोड़ा बहुत सामान, उसकी शादी से पहले का जो वह लेना चाहती थी, उसने सब एक बैग में डाल दिया। जब तक वह बाहर आई, जय चाय पी चुका था। वह भी जहाँ से जल्दी से जल्दी जाना चाहती थी।
नौकर ने सामान गाड़ी में रखा। जानवी बैठने के लिए पीछे का दरवाज़ा खोलने लगी।
"ड्राइवर नहीं है। आगे आ जाओ," कहता हुआ जय खुद भी गाड़ी का अगला दरवाज़ा खोलता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठ गया था। थोड़ी ही देर में वे वहाँ से निकल गए थे। जानवी जाते हुए वहाँ से बाहर देख रही थी।
हर बार जब कोई कहता है कि जय ऐसा नहीं करेगा, उसे ऐसा करना चाहिए था, वह हर बार आ जाता है और उसकी इज़्ज़त बनी रहती है। चाहे कल की रस्में थीं और आज जैसे उसकी चाची और बहनें कह रही थीं, उसे काफी अच्छा लगा था। उसने गाड़ी चलाते हुए जय की तरफ एक नज़र देखा। फिर अचानक से होटल वाली घटना याद आ गई। उसका मन कुसैला हो गया। थोड़ी देर पहले जो जानवी की खुशी थी, वह अचानक से उदास हो गई।
जय चाहे गाड़ी चला रहा था, मगर उसका ध्यान जानवी के चेहरे पर था। जो थोड़ी देर पहले उसकी आँखों में खुशी थी, अब अचानक से उसकी आँखों में एक उदासी छा गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था। पहले उसे लगा था कि वह उसके साथ आने से खुश है। अगर वह खुश थी, फिर यह उदासी क्यों?
उसका मन चाहता था कि वह जानवी से पूछे, मगर उसने चुप रहना ही बेहतर समझा क्योंकि अभी तक उनका रिश्ता ऐसा नहीं था कि जानवी उसे अपने मन की बात बता सके। मगर उसका ऐसा उदास चेहरा देखकर जय को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था। उसकी नीली आँखें जो पहले चमक रही थीं, वे अचानक ही बुझ गई थीं।
"तुम्हें घर छोड़ने के बाद मुझे ऑफिस जाना है। मुझे काम है, मैं रात को लेट हो जाऊँगा," जय ने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
जानवी ने उसकी तरफ देखा।
"जी, ठीक है," उसने धीरे से कहा।
"आप युग को साथ ले आते," जानवी कहने लगी।
"मैं सीधा ऑफिस से आ रहा हूँ। वह घर पर है। मुझे उसके इतने फोन आ चुके हैं कि हम मामा को लेकर जल्दी आ जाओ। देखो जानवी, मैं तुम्हें बिल्कुल भी नहीं कहता कि तुम युग की सारी ज़िम्मेदारी उठाओ। प्लीज, थोड़े दिन वह तुम्हारे साथ ज़्यादा रहेगा। धीरे-धीरे उसे लगेगा कि तुम यहीं हो, तो फिर खुद में बिज़ी हो जाएगा। प्लीज, तुम बुरा मत मानना, जैसे भी हो उसे थोड़े दिनों से तुम्हारा साथ चाहिए।"
"कैसी बातें करते हैं! मुझे खुद उसकी कंपनी पसंद है," जानवी ने कहा।
युग की बात करते हुए जानवी की आँखें भी चमक रही थीं। जय ने उसकी आँखों की तरफ देखा। उसे अच्छा लगा था कि युग के नाम पर जानवी का मुरझाया चेहरा खिल गया।
उसका दिल तो जानवी और युग की नज़दीकी से खुश था, मगर उसका दिमाग घबरा रहा था कि शायद जानवी को यह सब ज़्यादा दिन अच्छा न लगे, क्योंकि किसी बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाना बहुत बड़ा काम था।
जैसे ही वे मेंशन के अंदर हाल में पहुँचे, रेखा और माला, जो दोनों हाल में ही बैठी हुई थीं, उन्हें देखकर हैरान हो गईं।
"तुम्हें गए, कितना ही टाइम हुआ?" रेखा ने उसे कहा।
"बिल्कुल, जानवी जेठ जी तो ले आए!" माला भी कहने लगी।
"उम्र में तुम दोनों इससे बड़ी हो, मगर रिश्ते में तुम दोनों इससे छोटी हो। इस बात का ख्याल रखो और मुझे नहीं लगता कि तुम दोनों को इसे 'तुम' कहना चाहिए और अपनी बड़ी जेठानी का नाम नहीं लिया जाता। मैं अपने दोनों भाइयों से काफी साल बड़ा हूँ, तो प्लीज इस बात का ख्याल रखो," जय ने रूडली कहा। "मुझे बाहर जाना है, इसलिए मैं जानवी को ले आया।" फिर वह जानवी की तरफ मुड़ा। "ठीक है जान, मैं जा रहा हूँ। शाम को लेट आऊँगा।" उसने जानवी की तरफ झुक कर उसकी गाल पर किस किया और बाहर निकल गया।
उसकी इस हरकत से जानवी एकदम से स्टैचू हो गई। जय की इस हरकत की वजह से उसके दिल ने एक बीट मिस की थी।
"जेठानी जी, जेठ जी चले गए। अब आप क्या देख रही हैं?" माला ने उसे कहा। "मैं आपके लिए चाय मँगवाती हूँ," माला कहने लगी।
"आप मेरा नाम ले सकते हैं," जानवी ने कहा।
"नहीं, जेठ जी गुस्सा होंगे, अगर आपका नाम लिया तो।"
"सही बात है, जय का गुस्सा बहुत बुरा है," जया जो कमरे से बाहर आ रही थी, उसने कहा।
"तुम्हें लेने कब चला गया, उसने बताया ही नहीं मुझे। गिफ्ट भेजने थे तुम्हारे घर। जब अगली बार जाओगी तो ले जाना। मैंने जय से फोन पर बात की थी और बताया था कि शाम को लेने जाना था। वह तो तुम्हें अभी ले आया," जया खुश थी।
मगर रेखा और माला दोनों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था कि जय जानवी को इतनी इम्पॉर्टेंस दे रहा था। तभी सविता और उसका पति विनोद वहाँ आते हैं। विनोद के हाथ में जानवी का सामान था। वह उसे लेकर ऊपर चला गया।
"मैडम, आप भी आ जाओ," सविता ने कहा। जानवी भी उसके साथ जाने लगी।
जय ने उसे लेने कब आना था, उसने मुझे बताया ही नहीं। गिफ्ट भेजने थे तुम्हारे घर; जब अगली बार जाओगी, तो ले जाना। मैंने जय से फ़ोन पर बात की थी और बताया था कि शाम को उसे लेने जाना था। वह तो तुम्हें अभी ले आया। जया खुश थी।
मगर रेखा और माला दोनों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि जय जानवी को इतनी इम्पॉर्टेंस दे रहा था। तभी सविता और उसका पति विनोद वहाँ आते हैं। विनोद के हाथ में जानवी का सामान था। वह उसे लेकर ऊपर चला गया।
"मैडम, आप भी आ जाओ," सविता ने कहा। जानवी उसके साथ जाने लगी।
जय जाकर गाड़ी में बैठ गया। उसने जानवी को गुडबाय किस किया था; वह सभी के सामने यह दिखाना चाहता था कि उन दोनों का रिश्ता नॉर्मल है। क्योंकि विनोद और सविता उसे घर की हर बात बताते थे। इन दोनों से घर में क्या चल रहा था, उसकी हर बात जय तक पहुँच जाती थी। उन दोनों के रिश्ते को लेकर उसकी दोनों छोटी भाई की पत्नियाँ बहुत गॉसिप कर रही थीं। इन पर रोक लगाना ज़रूरी था, खास तौर पर युग के लिए। युग बहुत खुशमिजाज था, और ऐसी जरा सी भी कोई बात उसे उदास कर सकती थी।
जानवी को किस करने के बाद जय खुश था। उसके दिल में भी हलचल हुई थी। ऐसी फीलिंग उसे कभी नहीं आई थी। उसका अलीशा से भी रिश्ता रहा था, और आज भी, चाहे वह नाइट स्टैंड ही सही, उसके कई लड़कियों के साथ रिश्ते थे। मगर यह फीलिंग बहुत अलग थी, जो उसे खुशी दे रही थी।
जानवी लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करते हुए ऊपर गई। वह जाते हुए मेंशन को देख रही थी। ग्राउंड फ्लोर सबसे बड़ी थी और उसमें तकरीबन आठ बेडरूम थे। इसके अलावा एक बहुत बड़ा ड्राइंग रूम, एक बड़ा हाल और एक बड़ा किचन थे, और साथ ही राजन का ऑफिस भी। मिडिल फ्लोर पर भी तकरीबन छह बेडरूम बने हुए थे। लिविंग एरिया के साथ-साथ वहाँ पर एक ऑफिस भी बना हुआ था। पहले जय का रूम भी इसी फ्लोर पर था। शादी के बाद टॉप फ्लोर बनवाई थी, जो बिल्कुल मॉडर्न और अपडेटेड थी। तकरीबन ऊपर चार बेडरूम थे, जिसमें से जय का रूम सबसे बड़ा था और उसके साथ ही युग का रूम था, जो काफी छोटा था। उसके कमरे का दरवाज़ा बाहर बालकनी की तरफ़ नहीं खुलता था, क्योंकि जय युग की हर तरह से सुरक्षा चाहता था।
इसके अलावा एक ऑफिस और एक जिम बना हुआ था। एक छोटा लिविंग रूम था, जो किचन के बिल्कुल सामने था। एक टेरेस एरिया जय के कमरे के बाहर था, और लिविंग एरिया का दरवाज़ा भी बाहर टेरेस की दूसरी तरफ़ खुलता था। वहाँ पर खूब सारे फूल लगे हुए थे और एक झूला रखा हुआ था। मेंशन की टेरेस पर पार्टी करने का प्रबंध किया गया था।
जानवी आस-पास देखते हुए ऊपर जा रही थी। जैसे ही वह अपनी फ्लोर पर पहुँची, उसे "यह सब मेरा है" का एहसास हुआ, क्योंकि सविता ने उसे बता दिया था कि यह फ्लोर जय सर की है।
"आंटी, मेरे लिए एक कप चाय बना दो," जानवी ने सविता से कहा।
"हाँ, दूध ज़्यादा डालना।"
"मुझे वह काली चाय नहीं पसंद।"
"ठीक है, मैडम," वह मुस्कुरा कर कहती है।
उसे कहीं युग नज़र नहीं आया।
"युग कहाँ है?" वह किचन में सविता के पीछे चली गई।
"उसे जया मैडम ने उसकी नानी के साथ बाहर भेजा है। वह बार-बार पूछ रहा था आप कब आएंगी।"
चाय पीने के बाद जानवी ने साड़ी चेंज करके सूट पहन लिया। थोड़ी देर बाद जया भी उसके पास आई, उसके साथ युग भी था। जया थोड़ी देर बाद चली गई। युग वहीं जानवी के पास रह गया। अब जानवी के दिमाग में एक बात और चल रही थी कि मैं जय सिंघानिया को क्या कहकर बुलाऊँगी। रेखा और माला ने जानवी का नाम लिया था, तो उन्हें कितनी डाँट पड़ी थी! जय जानवी से कितना बड़ा है!
"युग, तुम्हारे डैड को सभी क्या कहकर बुलाते हैं?"
"मैं तो 'डैड' 😁 कहता हूँ," वह मुस्कुराकर कहने लगा।
"और तुम्हारे दोनों चाचू क्या कहते हैं?"
"वह दोनों 'चाचू भाई' कहकर बुलाते हैं।"
"और दोनों चाचियाँ?"
"वह 'जेठ जी' कहती हैं," युग ने कहा।
"और मॉम-डैड तो उसे कुछ भी कह सकते हैं," जानवी ने अपने मन में सोचा।
अब जानवी के लिए प्रॉब्लम थी कि वह जय को क्या कहकर बुलाएगी। जब वह दोनों साथ रहेंगे, बात तो करनी पड़ेगी ना!
ऐसे ही शाम हो चुकी थी। जानवी और युग नीचे लॉन में जया के साथ बैठे हुए थे। इतने में जानवी को प्रीति का फ़ोन आ गया, क्योंकि जानवी ने पहले प्रीति को फ़ोन किया था, मगर तब प्रीति ने फ़ोन नहीं उठाया था।
"हाँ, क्या हुआ? पहुँच गई ससुराल?" प्रीति ने फ़ोन उठाते ही कहा।
"हाँ, सुबह ही आ गई थी।"
"अच्छा, तुमने मैसेज डाला था, इसीलिए हम लोग घर नहीं आए।"
"मेरी एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है," जानवी, जो वहाँ से उठकर साइड पर बात करने लगी थी, ने कहा, "मैं जयराज सिंघानिया को क्या कहकर बुलाऊँ?"
"यह कैसा सवाल हुआ?" प्रीति ने उससे कहा, "पति है वह तुम्हारा, जो मर्ज़ी कहो। जानू 😁 सोना 😜 बाबू 😁।"
"सीधी-सीधी बात करो मुझसे! थप्पड़ खाओगी!" जानवी ने गुस्से से बोला।
तभी जया ने उसे बुलाया। जानवी ने फ़ोन होल्ड पर करते हुए कहा,
"क्या हुआ, मॉम?"
"बेटा, तुम आराम से ऊपर जाकर बात कर लो। मैं भी अंदर जा रही हूँ।" युग और जया अंदर चले गए। जानवी भी ऊपर अपने रूम की तरफ़ जाने लगी और साथ ही प्रीति से बात कर रही थी।
जानवी ने उसे आज सुबह वाली बात बताई।
"मतलब तुम उसका नाम नहीं ले सकती? तुम्हारे कहने का मतलब यही है?" प्रीति ने कहा।
"वैसे तुम उसकी वाइफ हो। चाहे छोटी सही, मगर 'जयराज' कह सकती हो," प्रीति ने सोचते हुए जवाब दिया।
"मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं क्या कहकर बुलाऊँ?"
"तो 'सर'😜 कह दो," प्रीति ने उसे सोचकर कहा।
"नहीं, वह क्या मेरे प्रोफ़ेसर हैं, जो मैं 'सर' कहूँगी?" जानवी, जो कमरे के बाहर टेरेस पर पूल के किनारे बैठी हुई थी, ने कहा।
"तो 'मिस्टर जयराज सिंघानिया' कहो। पूरा नाम ले लेना।"
"मिस्टर जयराज सिंघानिया नहीं। मैं सोचती हूँ मैं 'मिस्टर सिंघानिया' कहकर बुलाऊँगी।"
"एक तरीका और भी है, तुम जैसे मेरी माँ बुलाती है। सुनो जी, ऐसे बोलना," प्रीति ने मज़ाक किया।
"मुझे ऐसे बुलाना नहीं आता," जानवी ने साफ़-साफ़ कहा।
जानवी इस बात से अनजान थी कि उसकी स्टूपिड सी बातें जय, जो कमरे में आ चुका था (जिसकी आज की मीटिंग कैंसिल हो चुकी थी), को सुनाई दे रही थीं और वह अकेला हँस रहा था।
"तो ठीक है, मैं 'मिस्टर सिंघानिया' ही कहूँगी," कहकर जानवी ने फ़ोन काट दिया। जय जो अकेले ही हँस रहा था, वह जानवी के अंदर आने से पहले ही कमरे से बाहर आ गया। वह नहीं दिखाना चाहता था कि उसने जानवी की बातें सुनी हैं। वह हँसता हुआ वापस नीचे आ गया।
"तुम्हें लगता है मेरा फैसला गलत है?" जय, जो अपनी शर्ट के बाजू फोल्ड करते हुए नीचे आ रहा था और साथ में हँस भी रहा था, उसे देखकर राजन ने जया से कहा।
"सही बात है! मेरा यह खड़ूस बेटा, जो कभी नहीं हँसता था, देखो कैसे अकेला ही हँसते हुए आ रहा है।"
"क्या बात है? हमें भी बता दो, अकेले-अकेले हँस रहे हो," राजन ने जय से कहा।
"डैड, कोई ऐसी बात नहीं है। मुझे कॉफ़ी चाहिए," उसने अपनी मॉम से कहा।
"भाई, कॉफ़ी के लिए अपनी बीवी से कहो। मेरी बीवी से क्यों कह रहे हो?" राजन कहने लगा।
"मानता हूँ, मुझे आपकी वाइफ़ है, मगर मेरी मॉम भी है। भूलिए मत," जय ने जवाब दिया।
वह तीनों हँसते हुए कॉफ़ी पीने लगे। जय ने उन्हें नहीं बताया था कि उसे किस बात पर हँसी आ रही थी। बात करने के बाद जानवी भी नीचे आ गई। वह जय को वहाँ बैठे देखकर काफ़ी हैरान थी, क्योंकि जय की तो आज मीटिंग थी। वह लेट आने वाला था।
"आओ बेटा, आओ," राजन ने उसे देखकर कहा।