स्नेहा शर्मा की ज़िंदगी उस दिन पूरी तरह बदल जाती है, जब उसकी शादी के दिन उसका होने वाला दूल्हा रणवीर खन्ना, उसे मंडप में छोड़कर अपनी गर्लफ्रेंड से शादी कर लेता है। स्नेहा टूट जाती है, उसकी दुनिया बिखर जाती है। मगर हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि उसी खन्ना... स्नेहा शर्मा की ज़िंदगी उस दिन पूरी तरह बदल जाती है, जब उसकी शादी के दिन उसका होने वाला दूल्हा रणवीर खन्ना, उसे मंडप में छोड़कर अपनी गर्लफ्रेंड से शादी कर लेता है। स्नेहा टूट जाती है, उसकी दुनिया बिखर जाती है। मगर हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि उसी खन्ना फैमिली में, उसके अंकल के बेटे सिकंदर खन्ना से उसकी शादी करवा दी जाती है। सिकंदर खन्ना... एक नाम जो ताकत, गुस्से और एटीट्यूड का दूसरा नाम है। उसके माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं, और उसने ज़िंदगी में किसी के सामने अपनी कमजोरी कभी नहीं दिखाई। स्नेहा से उसकी पहली मुलाकात ही टकराव से शुरू होती है। सिकंदर मानता है कि वह स्नेहा से नफरत करता है, मगर हकीकत यह है कि उसके दिल में उसके लिए बेहद गहरा प्यार है। लेकिन यह प्यार... लफ्ज़ों में बयां करना उसके लिए सबसे मुश्किल है। उसकी जुबान पर गुस्सा है, दिल में तूफ़ान है। क्या सिकंदर कभी स्नेहा से अपने दिल की बात कह पाएगा? क्या स्नेहा अपने टूटे हुए भरोसे को जोड़कर सिकंदर के प्यार को अपनाएगी? या यह रिश्ता सिर्फ नाम का बनकर रह जाएगा? रिश्तों की सच्चाई, एहसासों की गहराई और दो दिलों की जंग को दिखाती यह कहानी आपको हर लफ्ज़ के साथ जोड़े रखेगी। अरेंज्ड मैरिज से शुरू होने वाला इंटेंस लव स्टोरी ट्रैक। एक एरोगेंट, साइलेंट लवर हीरो जो प्यार जताना नहीं जानता।
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वह लोग सुबह दो-तीन बजे दिल्ली पहुँचे थे। रतन जी ने कहा, "...बच्चों को होटल में ठहरा देते हैं...कल आराम से इन लोगों का गृह प्रवेश हो जाएगा...अभी बच्चे थके होंगे..."
इससे पहले रवि जी ने कहा, "सैम बोला,...मेरी दो घंटे बाद फ़्लाइट है...मुझे मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना है..."
"मगर आज तो तुम्हारी शादी हुई है...तुम अभी क्यों ऑस्ट्रेलिया जा रहे हो...?"
"...शादी का पहले पता नहीं था ना...मगर मीटिंग का तो पता था...यह मीटिंग अटेंड न करने से हमारा कितना नुकसान हो सकता है चाचा जी, आप अच्छे से जानते हैं..."
सैम के बोलने के तरीके और उसके चेहरे पर दिख रहे गुस्से को देखकर रवि जी ने कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा। स्नेहा भी उसका चेहरा और एटीट्यूड देख रही थी।
"...ऐसा करो, सीधा घर ही चलते हैं...वहाँ तुम एक बार बच्चों का गृह प्रवेश कर देना...फिर सैम चला जाएगा..."
वह लोग सीधे घर पहुँच गए थे। रत्ना जी ने सबका गृह प्रवेश करा दिया था। मगर सैम ने किसी भी चीज़ में दिलचस्पी नहीं ली थी। जितना ज़रूरी था, उसने उतना ही किया था और उसने एक बार भी स्नेहा की तरफ़ आँख नहीं उठाई थी।
रत्ना जी ने चारों को हाल में बिठा दिया था। थोड़ी देर बाद सैम खड़ा हो गया। "...मुझे जाने की तैयारी करनी है...मेरी फ़्लाइट है..."
वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला गया था। स्नेहा चुपचाप वहीं बैठी हुई थी। उसकी समझ में बहुत कुछ आ गया था। उसके सामने सोफ़े पर रणवीर और दिव्या एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे, आँखों ही आँखों में इशारे कर रहे थे। स्नेहा उन दोनों को देख रही थी और उनके चेहरों पर दिख रही खुशी को भी।
"...चलो बच्चों, अपने कमरों में आराम कर लो...और रत्ना, तुम स्नेहा को उसके कमरे में छोड़ आना..."
रणवीर और दिव्या अपने कमरे की तरफ़ चले गए थे। रत्ना स्नेहा को उसके कमरे में छोड़ने चली गई। "...बेटा, तुम उदास मत होना...सैम का स्वभाव गुस्से वाला ज़रूर है...मगर वह बहुत प्यारा लड़का है...तुम्हें वह समझेगा और बहुत प्यार से रखेगा..." रत्ना उसे समझाने लगी।
स्नेहा ने कुछ नहीं कहा। वह उनकी बातें सुनती रही। थोड़ी देर बाद रत्ना नीचे आ गई थी। उनके जाते ही स्नेहा अपने बिस्तर पर गिर पड़ी और जोर-जोर से रोने लगी। आज उसकी कितनी बेइज़्ज़ती हुई थी। वह कैसे इस रिश्ते में बंध गई थी, जहाँ सामने वाला उसे देखना भी पसंद नहीं करता था। बहुत देर तक वह रोती रही।
सिकंदर खन्ना और स्नेहा शर्मा, जो दोनों एक-दूसरे से बहुत अलग थे। अलग माहौल में उनकी परवरिश हुई थी। स्नेहा शर्मा, पटियाला के शिव कुमार शर्मा की लाडली बेटी, एक मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखती थी। वहीं सिकंदर खन्ना, जिसके माँ-बाप नहीं थे। उसके चाचा-चाची ने उसे पाला था। उसे ज़िन्दगी में वह प्यार कभी नहीं मिला जो स्नेहा को अपने माँ-बाप से मिला था। इसी वजह से वह एक गुस्से वाला और एटीट्यूड से भरा हुआ नौजवान था, जिसे सिर्फ़ अपने काम से प्यार था। शादी में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। इन दोनों को मजबूरी में शादी करनी पड़ी थी।
कैसे होगा इन दोनों का मिलन? मगर कोई नहीं जानता था कि सैम को तो स्नेहा से पहली नज़र में ही प्यार हो गया था।
"...देखो, जो मैं कह रहा हूँ...करना तो तुम्हें वैसा ही पड़ेगा...याद रखो...वरना मैं तुम्हें पूरी जायदाद से बेदखल कर दूँगा...मेरी इस बात को तुम सीरियसली लेना...ऐसे मत समझ लेना मुझे..." रवि खन्ना गुस्से से बोल रहे थे।
"...मगर डैड, जिसको मैं जानता नहीं हूँ...जिन्दगी में कभी मिला नहीं...मैं उससे शादी नहीं कर सकता...आपको अच्छी तरह से पता है कि मैं किसी और को पसंद करता हूँ...आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं...?" रवि खन्ना के बेटे रणबीर खन्ना ने कहा।
"...यह ठीक कह रहा है...आप इसकी मर्ज़ी के बिना इसकी शादी के बारे में कैसे सोच सकते हैं...कौन सी दुनिया में रहते हैं आप...आपका कभी समझ में नहीं आया..." रणवीर की माँ रत्ना जी बोलीं।
"...तुम लोग अच्छे से जानते हो...जब हम लोग पटियाला में रहते थे...शिव की वाइफ़ तो तुम्हारी बहुत अच्छी सहेली थी...तो अब टाइम आ गया है...हम लोग उनसे मिलने के लिए पटियाला जा रहे हैं...तुम लोगों की आपस में कभी बात नहीं हुई...मगर हम दोनों दोस्तों की बात होती रहती है...मैं कौन सा कह रहा हूँ कि शादी ही करनी है...एक बार इन बच्चों को मिल तो लेना चाहिए..." रवि जी बोले।
"...मुझे पता है, जब इतने बड़े बिज़नेसमैन के बेटे से उनकी बेटी की शादी होने की बात होगी...वह तो एक मिनट में हाँ कह देंगे...मुझे तो वहाँ जाने से ही डर लग रहा है..."
"...अगर तुम ही ऐसा बोलोगी तो शादी के लिए वो कैसे हाँ कहेगा? और जिस लड़की से ये शादी करना चाहता है...उसको भी मैं अच्छे से जानता हूँ...वह भी हमारे पैसे की ही पीछे है...मुझे उनके बारे में हर बात पता है..."
उनकी बात सुनकर नीचे आता हुआ सिकंदर बोला, "...क्या बात है चाचू? किस बात पर सुबह-सुबह बहस हो रही है...?"
"...कोई बात नहीं बेटा..." "...फिर भी क्या बात है? आप मुझे बताएँ, मैं आपकी प्रॉब्लम सॉल्व कर दूँगा..."
"...तुम्हें याद होगा जब हम पटियाला में रहते थे...हाँ पापा, मुझे अच्छे से याद है, चाहे मैं उस वक़्त बहुत छोटा था..." "...तब मेरे दोस्त शिव कुमार, जो कॉलेज में लेक्चरर था, उसकी बेटी के साथ बचपन में इसकी शादी तय की थी...अब उस बात को आगे बढ़ाने का टाइम हो गया है...और ये माँ-बेटा मेरी बात ही नहीं सुन रहे..."
"...मुझे लगता है आज के ज़माने में ऐसी शादियाँ नहीं होती...आपको पहले का टाइम नहीं है...अगर ये शादी जबरदस्ती हो भी जाती है...तो कितने दिन चलेगी...मैं सीधी बात कहने में यकीन रखता हूँ..." सिकंदर ने कहा।
"...तुम्हारी बात ठीक है...मगर एक बार मिल तो सकते हैं..." "...बिल्कुल मिलना चाहिए...वैसे क्या नाम था उस लड़की का?...मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है..."
"...स्नेहा...स्नेहा नाम है उसका..." रवि खन्ना ने कहा।
"...बहुत मोटी हुआ करती थी वह...राइट चाचू..." सिकंदर याद करते हुए बोला।
"...पापा, आप उसकी मोटी लड़की की बात कर रहे हैं...अब वह पूरी टुनटुन हो गई होगी...माँ, समझाएँ पापा को...ऐसे नहीं हो सकता..." रणबीर अपनी माँ से बोला।
रवि खन्ना, दिल्ली के एक शीर्ष व्यवसायी थे। उनके बड़े भाई रविन्द्र खन्ना और उनकी पत्नी सुनीता खन्ना की कई साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनका बेटा, सिकंदर खन्ना, अपने चाचा-चाची, रवि खन्ना और उनकी पत्नी रत्ना खन्ना के पास ही पला-बढ़ा था।
रवि खन्ना और रत्ना खन्ना का एक बेटा, रणवीर खन्ना था। रवि और रविन्द्र खन्ना दोनों ने पटियाला से आकर अपना व्यवसाय शुरू किया था और उसमें बहुत सफल हुए थे। दिल्ली के सफल व्यवसायियों में उन दोनों भाइयों का नाम लिया जाता था। रविन्द्र खन्ना के निधन के बाद, उनका बेटा सिकंदर खन्ना अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद व्यवसाय में शामिल हो गया और कम उम्र में ही काफी नाम कमाया। वह अपने गुस्से, रवैये और काम के प्रति लगन के लिए जाना जाता था।
रणवीर खन्ना, एक मस्तमौला लड़का था, जिसकी काम में कोई रुचि नहीं थी। पार्टी करना, घूमना और शराब पीना उसके शौक थे। उसकी एक प्रेमिका भी थी, दिशा कपूर, जो एक व्यवसायी की बेटी थी।
रवि खन्ना का पटियाला में एक दोस्त था, शिव कुमार शर्मा। शिव कुमार शर्मा, रवि खन्ना और रविन्द्र खन्ना के कॉलेज के दोस्त थे और तीनों में बहुत अच्छी मेलजोल थी। शिव कुमार का एक बेटा और एक बेटी थी। जब रणवीर और शिव कुमार शर्मा की बेटी स्नेहप्रीत छोटे थे, तब दोनों परिवारों में यह बात हुई थी कि जब बच्चे बड़े होंगे, तो उनकी शादी कर दी जाएगी और उनकी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाएगी। अब वह समय आ गया था; बच्चे बड़े हो चुके थे और शादी योग्य भी।
परन्तु, जैसे-जैसे बच्चे बड़े हुए, हालात बदल गए। शिव कुमार की बेटी अपने पिता की बात मानती थी, परन्तु रणवीर खन्ना किसी के कहने वाला नहीं था। सिकंदर खन्ना का तो अभी शादी का कोई इरादा ही नहीं था; वह अपने व्यवसाय को भारत से बाहर फैलाना चाहता था और दिन-रात उसमें लगा हुआ था। चलिए देखते हैं कि किसकी शादी किससे होती है और उनकी ज़िन्दगी में क्या होता है।
ना तो रणवीर स्नेहप्रीत से शादी के लिए तैयार था, ना ही रत्ना और ना ही सिकंदर इसके पक्ष में थे। रणवीर को तो कोई और लड़की पसंद थी और वह उसी से शादी करना चाहता था।
सिकंदर ने अपने चाचा से कहा, "...इतनी जल्दी क्या है...रणवीर की शादी की...अभी वह सिर्फ़ 25 का हुआ है...उसे थोड़ा काम करने दो...व्यवसाय में उसकी रुचि बढ़ने दो..."
रत्ना जी को स्नेहप्रीत अपनी बहू के रूप में कभी पसंद नहीं आया। वह उस मध्यमवर्गीय लड़की को कभी अपनी बहू नहीं बनाना चाहती थी। रत्ना जी सोचती थीं, "...स्नेहा बचपन में इतनी मोटी थी...अब कैसी दिखती होगी..."
परन्तु रवि खन्ना के आगे किसी की नहीं चलती थी। रवि खन्ना ने कह दिया था, "...अगर रत्ना और रणवीर उसके साथ पटियाला नहीं जाएँगे...तो वह उनको अपनी जायदाद से बेदखल कर देगा।" रत्ना जी और रणवीर दोनों रवि के गुस्से को जानते थे, इसलिए उन्होंने पटियाला जाने के लिए हाँ कह दी।
"भाई, प्लीज़ आप भी मेरे साथ चलो पटियाला..." रवि ने सिकंदर से कहा।
"...मेरा क्या काम वहाँ पर रणवीर...मुझे बहुत काम है...तुम लोग जाओ, लड़की तो तुम दोनों को देखनी है...शादी तो तुम्हें करनी है..." सिकंदर ने कहा।
"...प्लीज़ सैम भाई...आप होंगे तो आपकी बात तो डैड मानते हैं...शायद मैं बच जाऊँ...वरना पक्का पापा मेरी वहाँ से शादी करके ही लाएँगे..." रणवीर सिकंदर से मिन्नत कर रहा था। "...पापा सिर्फ़ आपकी बात मानते हैं...आपके गुस्से से भी पापा डरते हैं। अगर पापा सीधे से नहीं मानेंगे, आप तो उन्हें धमका भी सकते हैं..."
जब रणवीर ने सिकंदर का पीछा नहीं छोड़ा, तो उसने जाने के लिए हाँ कर दी। असल में, सिकंदर खन्ना का गुस्सा प्रसिद्ध था। जब तक वह सह सकता था, वह चुप रहता था, परन्तु अगर बात उसके दिल पर लगती, चाहे वह व्यवसाय हो या रिश्ते, वह किसी की नहीं सुनता था। इसलिए रवि खन्ना भी व्यवसाय में उसके फैसलों को मानता था। वह एक अच्छा इंसान था, परन्तु बहुत जिद्दी था। इसी वजह से उसने व्यवसाय में इतनी तरक्की की थी। उसका लड़कियों से कोई वास्ता नहीं था; वह लड़कियों से दूर रहता था।
वह अपने चाचा-चाची के साथ रह रहा था, परन्तु उसने अपने लिए अलग घर बनवाना शुरू कर दिया था, क्योंकि वह अपनी ज़िन्दगी में किसी का दखल पसंद नहीं करता था। बहुत जल्दी वह वहाँ से शिफ्ट होकर अपने नए घर में जाने वाला था। उसके जाने से रत्ना मन ही मन खुश भी थी, परन्तु वह ऐसा दिखाती नहीं थी।
उसका लड़कियों से कोई वास्ता नहीं था। वह लड़कियों से दूर रहता था, भले ही वह अपने चाचा-चाची के साथ रह रहा था। मगर उसने अपना घर तैयार करवाना शुरू कर दिया था क्योंकि वह अपनी ज़िन्दगी में किसी का दखल पसंद नहीं करता था। बहुत जल्दी वह वहाँ से शिफ्ट होकर अपने नए घर जाने वाला था। उसके जाने से रत्ना अपने मन में बहुत खुश थी, मगर वह ऐसा दिखाती नहीं थी।
रणवीर की बहुत मिन्नतें करने के बाद सैम उसके साथ पटियाला जाने के लिए तैयार हो गया था। रणवीर मन ही मन सिकंदर खन्ना से ईर्ष्या करता था, मगर यह बात वह दिखाता नहीं था। रणवीर और रत्ना दोनों ही सैम खन्ना से जलते थे क्योंकि वह अपने काम में सफल था और रत्ना का पति रवि खन्ना सैम की हर बात मानते थे। वह हर बात पर रणवीर की तुलना सैम से करते थे। यह बात रत्ना और रणवीर दोनों को पसंद नहीं थी, मगर वे यह बात जताते नहीं थे।
रात को, जब सभी लोग नाश्ता करने के लिए इकट्ठा हुए, तो सिकंदर खन्ना रवि खन्ना से बोला,
“चाचू, आप और चाची जी पटियाला के लिए निकल जाएँ। मैं और रणवीर कल सुबह जल्दी निकलेंगे। मुझे थोड़ा काम है। मैं भी आपके साथ पटियाला चलूँगा। मैं काम से थक गया हूँ, थोड़ा वहाँ पर रेस्ट कर लूँगा।”
“यह तो बहुत अच्छी बात है बेटा। वैसे भी हम लोग पटियाला के हैं। वहाँ पर हमारा घर भी है, वह चाहे बहुत समय से बंद पड़ा है। मैंने शिव से कह दिया है कि वह घर की साफ़-सफ़ाई करवा दे। वह घर ज़्यादा बड़ा तो नहीं, फिर भी तुम्हें अच्छा लगेगा। तुम्हारे माँ-बाप की यादें हैं वहाँ पर।”
“सही बात है चाचू।”
“हम आज ही निकल जाएँगे। तुम लोग कल आ जाना।”
“ठीक है, हम लोग कल अर्ली मॉर्निंग निकलेंगे। वैसे भी दिल्ली से पटियाला का रास्ता इतना लंबा भी नहीं है।” सिकंदर खन्ना ने कहा।
“हम तो फ़्लाइट से जाएँगे।” रवि ने कहा।
“आप फ़्लाइट से चले जाएँ, मगर चाचू हम दोनों तो गाड़ी से आएंगे।”
“ठीक है। जैसे तुम लोगों की मर्ज़ी। मैं तुम्हारी वजह से रणवीर को यहाँ छोड़कर जा रहा हूँ। मुझे पता है तुम इसको ले ही आओगे।” रवि खन्ना ने कहा।
“हमारे आने से पहले आप घर को अच्छे से सेट कर लेना।” रणवीर बोला। तो फिर उन सबका प्लान बन गया था। रवि खन्ना जी और उनकी पत्नी रत्ना जी आज ही निकलने वाले थे। सिकंदर खन्ना और रणवीर खन्ना अगले दिन जल्दी, अर्ली मॉर्निंग अपनी गाड़ी से जाने वाले थे।
“रात को जल्दी घर वापस आ जाना। हम लोग तभी सुबह जल्दी निकल सकेंगे।” सैम ने शाम को रणवीर को फ़ोन किया।
“भाई, आप फ़िक्र मत करो, मैं जल्दी आ जाऊँगा।”
“आ जाऊँगा नहीं, अभी घर आ जाओ। मैं घर पहुँचने वाला हूँ।” सैम ने कहा।
“आप इतनी जल्दी घर आ रहे हैं?”
“बिल्कुल। पटियाला जाने की तैयारी भी तो करनी है। मेरा ऑफ़िस में काम ख़त्म था, इसलिए मैं घर आ गया।”
“ठीक है भाई, मैं आ रहा हूँ।” रणवीर क्लब में था। उसका कोई इरादा नहीं था आने का, मगर फिर भी उसे जल्दी आना पड़ा क्योंकि सैम तो उसी की वजह से पटियाला जा रहा था। वे दोनों ही शाम को घर जल्दी वापस आ गए। सैम तो जल्दी खाना खाकर सोने चला गया, मगर रणवीर अपने कमरे में बैठकर पीता रहा और रात को लेट सोया।
सुबह सैम ने उसे जल्दी जगा दिया था।
“भाई, इतनी जल्दी क्या है उठने की? दिन को आराम से चलेंगे हम।”
“अगर तुम्हें मुझे साथ में पटियाला लेकर जाना है तो अभी उठ जाओ, वरना मेरा प्रोग्राम कैंसिल है।” सिकंदर ने उससे कहा। ना चाहते हुए भी रणवीर को जल्दी उठना पड़ा।
“चलो, गाड़ी स्टार्ट करो।” सिकंदर रणवीर से बोला।
“हम ड्राइवर लेकर नहीं जा रहे क्या?”
“बिल्कुल नहीं, हम दोनों ही जा रहे हैं। वहाँ पर ड्राइवर की कोई ज़रूरत नहीं है।”
वे दोनों दिल्ली से पटियाला के लिए निकल गए थे। थोड़ी देर तो रणवीर ने गाड़ी चलाई, मगर रात को वह लेट सोया था, तो उसे नींद आने लगी।
“तुम साइड पर बैठकर सो जाओ, मैं चलाता हूँ।” सैम बोला। सैम यह बात अच्छी तरह समझता था कि रणवीर गाड़ी का एक्सीडेंट कर देगा, जिस तरह से वह गाड़ी चला रहा था।
"गाड़ी स्टार्ट करो..." सिकंदर ने रणवीर से कहा।
"...हम ड्राइवर लेकर नहीं जा रहे क्या..."
"...बिल्कुल नहीं... हम दोनों ही जा रहे हैं वहाँ पर... ड्राइवर की कोई ज़रूरत नहीं..."
वे दोनों दिल्ली से पटियाला के लिए निकल गए थे। थोड़ी देर तो रणवीर गाड़ी चलाता रहा, मगर वह रात को लेट सोया था, उसे नींद आने लगी।
"...तुम साइड पर बैठकर सो जाओ... मैं चलाता हूँ गाड़ी..." सैम ने कहा। सैम यह बात अच्छे से समझता था कि जिस तरह रणवीर गाड़ी चला रहा था, वह एक्सीडेंट कर देगा।
दिल्ली से पटियाला का रास्ता तकरीबन 4 से 5 घंटे का है। पूरे रास्ते रणवीर सोता रहा और सैम ने ही गाड़ी चलाई।
"...इस लड़के का कुछ नहीं हो सकता... पूरे रास्ते एक बार भी नहीं कहा कि गाड़ी मैं चलाता हूँ भाई... आप रेस्ट कर लो..." गाड़ी चलाता हुआ सैम सोच रहा था।
असल में, सिकंदर और रणवीर में यही फर्क था। सिकंदर खन्ना दिल का साफ़ नौजवान था। सिकंदर खन्ना में जुनून बहुत था। जिस काम के लिए वह सोच लेता था, उसे करना ही था; वह पीछे नहीं हटता था। रणवीर ने कभी किसी काम को सीरियसली नहीं लिया था। मौज-मस्ती करना ही उसका मकसद था।
सैम, रणवीर से 2 साल बड़ा था। रणवीर तकरीबन 25 साल का था तो सैम 27 साल का। चार साल पहले ही सिकंदर खन्ना ने बिज़नेस में पैर रखा था और काफी कामयाब हुआ था। अपने माँ-बाप की मौत के बाद उसके चाचा ने उसे बोर्डिंग में डाल दिया था। वहाँ पर उसकी पढ़ाई-लिखाई तो अच्छी हुई और साथ ही उसकी अकेलेपन से भी दोस्ती हो गई थी।
उसने हॉस्टल में रहकर अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। पढ़ाई-लिखाई में तो वह अच्छा था, साथ में स्पोर्ट्स में भी। मगर साथ ही वह जिद्दी और गुस्से वाला भी बन गया था। उसने स्कूल में ज़्यादा दोस्त नहीं बनाए थे। एक-दो से ज़्यादा उसकी किसी के साथ दोस्ती नहीं हुई थी।
उसके चाचा जी उसे प्यार करते थे, यह बात वह जानता था। मगर उसकी चाची उसे पसंद नहीं करती थी, यह भी उसे पता था। स्कूल के बाद वह कॉलेज चला गया। वह हॉस्टल में ही रहा। फिर उसने MBA विदेश से कंप्लीट की थी। उसने अपने माँ-बाप के बाद का समय लगभग अकेले ही गुज़ारा था, तो उसे अकेले रहना पसंद था। वह ज़्यादा टोका-टाकी पसंद नहीं करता था। जो उसके मन में आता, वह करना पसंद करता था।
वह अपने चाचा जी की बात मानता था। मगर उसके चाचा जी भी समझते थे कि सैम कितना गुस्से वाला है, मगर साथ ही वह कितना उसूलों वाला इंसान था। शायद जैसे उसके पिता थे, वह वैसा ही था। फैमिली के नाम पर उसके पास कोई नहीं था; उसे पता था। वह अपने पिता के बिज़नेस को बहुत ऊपर ले जाना चाहता था। इसी जुनून के साथ वह चल रहा था।
वह कब जाता है, कब वापस आता है, उसे कोई पूछे, यह बातें उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थीं। पहले 2 साल उसने अपने चाचा जी के नीचे काम किया और बिज़नेस की बारीकियाँ सीखी थीं और अब वह पूरा बिज़नेस संभाल रहा था। उसके चाचा जी भी उस पर पूरा यकीन करते थे। वे उसे कुछ नहीं पूछते थे।
लगातार गाड़ी चलाते हुए सैम थक गया। उसने पटियाला के बाहर एक ढाबे पर गाड़ी रोक दी। उसके गाड़ी रोकने से रणवीर उठ गया; उसकी नींद खुल गई।
"...क्या हुआ भाई... हम पहुँच गए क्या..."
"...अजीब आदमी हो तुम... मैं इतने टाइम से गाड़ी चला रहा हूँ... एक बार भी नहीं उठे... काफी टाइम हो चुका है... सुबह के चले हुए हैं हम... ढाबे पर कुछ खा-पीकर चलते हैं... अब तो भूख भी लग चुकी है..."
वे दोनों ढाबे पर उतर गए। वहाँ पर नाश्ता करने के बाद वे फिर चलने लगे। वे नाश्ता करके गाड़ी में बैठे ही थे, बस गाड़ी स्टार्ट ही की थी कि एक लड़की ने सीधा उनकी गाड़ी में स्कूटी ठोक दी। वह लड़की खुद स्कूटी के साथ नीचे गिर पड़ी थी।
उस लड़की के गाड़ी को ठोकने पर सैम जल्दी से गाड़ी से नीचे उतरा। गाड़ी की अगली लाइट टूट गई थी और गाड़ी पर काफी निशान भी पड़ गए थे। उसने सामने लड़की पर ध्यान नहीं दिया; वह अपनी गाड़ी देखने लगा।
"...कैसे आदमी हो आप... एक लड़की गिरी पड़ी है... उसे उठने में हेल्प तो कर दो..." उस लड़की ने कहा, क्योंकि वह लड़की नीचे थी, उसके ऊपर स्कूटी थी और वह लड़की खुद नहीं उठ पा रही थी।
"...जब स्कूटी चलानी नहीं आती है तो उसे चलती ही क्यों हो... मेरी पूरी गाड़ी तोड़ दी तुमने..." सैम गुस्से से बोला। और साथ ही स्कूटी साइड पर करके उसने लड़की को उठने में मदद करने लगा।
"...जब स्कूटी चलाना नहीं आता... तो उसे चलाती ही क्यों हो?... मेरी पूरी गाड़ी तोड़ दी तुमने..." सैम गुस्से से बोला और स्कूटी साइड में करके, उसने लड़की को उठने में मदद की।
"...जब किसी को मदद देनी हो... तब गुस्सा नहीं करना चाहिए... बिना गुस्से के मदद करनी चाहिए... हमेशा आराम से बिना गुस्से के मदद करनी चाहिए..." वह लड़की उठते हुए बोली।
"...मेरी गाड़ी तोड़ने के बाद तुम मुझे लेक्चर दे रही हो..." सैम को और गुस्सा आ गया। वह लड़की झुककर टूटी हुई गाड़ी देखने लगी।
"...बहुत हो गया सियापा... मैंने इतनी कोशिश की कि स्कूटी साइड से निकालूँ... मगर पता ही नहीं चला कि मैं गाड़ी से टकरा गई..." वह लड़की बोली।
"...पता है कितनी महंगी गाड़ी है..."
"...गाड़ी तो ज़रूर महंगी होगी... पर अकेली लाइट ही तो टूटी है... थोड़े से निशान पड़े हैं..."
"...पता है इसका सामान कितना महंगा आता है..." सैम को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस लड़की का क्या करे। वह अजीब से जवाब दे रही थी।
"...हाँ, यह बात तो आपकी ठीक ही होगी... इसके ठीक कराने में पैसे लगेंगे..."
"...अब इसके पैसे निकालो ठीक करने के..."
"...पैसे तो मेरे पास नहीं हैं... मैं तो अपनी सहेली के साथ आई थी..."
"...मुझे नहीं पता... अभी के अभी मेरी गाड़ी ठीक कराओ... और उसके पैसे दो..." सैम गुस्से में था।
वह लड़की अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़ी थी। उसने पटियाला सलवार के साथ ऊँचा कुर्ता पहना हुआ था और गले में दुपट्टा था। चेहरे पर मासूमियत और भोलापन था। बड़ी-बड़ी काली आँखें, आँखों में काजल, गोरा रंग, होठों पर पिंक लिपस्टिक, मोतियों से सफेद दांत और गालों में प्यारे से गड्ढे। बहुत सुंदर और मासूम लड़की थी और सादगी उसके चेहरे से झलक रही थी। उसने बालों में एक चोटी बनाई हुई थी। थोड़ा सोचने के बाद उसने अपने हाथों में डाले हुए कंगन उतारे।
"...देखो मेरे पास कुछ और तो नहीं है... ये कंगन हैं... तुम इसे बेचकर अपनी गाड़ी जो मिस्त्री गाड़ी ठीक करेगा, उन्हें दे देना..." सैम उसे आँखें दिखाने लगा।
"...अच्छा, नुकसान तो ज़्यादा है... इससे पूरा नहीं होगा... मैं समझ गई... इसलिए तुम गुस्से में हो..." उस लड़की ने अपने गले में से चेन भी उतार ली।
"...देखो, तुम गुस्सा ना करो... ये चेन भी ले लो... पर मेरे घर ना बताना... क्योंकि ये पता चला गया कि मैंने एक्सीडेंट किया है... मेरी माँ तो मुझे मारेगी... वो मुझे हर बार कहती है कि तू स्कूटी ना चलाया कर..."
उसे लड़की से बात करते हुए अपना सिर पीट रहा था। सचमुच उसने सोचा नहीं था कि पटियाला में एंटर करने से पहले ही उसके साथ ऐसा होने वाला है। वह लड़की से बात ही कर रहा था कि ढाबे के अंदर से एक लड़की हाथ में सामान उठाकर बाहर आ गई। वह उस लड़की को खड़ा देखकर बोली, "...क्या करती है... मैं तुझे कितनी बार कहती हूँ कि स्कूटी ना चलाया कर... तोड़ दी तुमने उनकी गाड़ी... और मेरी स्कूटी भी..."
उसके साथ एक और लड़की देखकर सैम ने सोचा, "...अब इसकी कमी थी... यह भी आ गई..."
"...मैं तुझे स्कूटी चलाना सिखा दूँगी... फिर चलाना..." अंदर से आई हुई लड़की एक्सीडेंट करने वाली लड़की से बोली।
"...इसका मतलब इसे बिल्कुल भी स्कूटी चलाना नहीं आती..." सैम ने कहा।
"...नहीं... इसे तो मैं अभी सिखा रही हूँ... जल्दी ही सीख जाएगी..."
सैम को लगा, "...कहाँ मैं इन लड़कियों से अपना सिर मार रहा हूँ..." उसने अपने हाथ में पकड़े हुए कंगन और चेन एक्सीडेंट वाली लड़की के हाथ में दिए।
"...ये रखो... मुझे नहीं चाहिए... मैं खुद ही गाड़ी ठीक करा लूँगा..." सैम ने उसे सामान दिया और गाड़ी लेकर वहाँ से निकल गया।
रणवीर उसे देखकर हँस रहा था, "...भाई आप तो दो लड़कियों के बीच फँस गए थे... वैसे भाई मैं वहाँ की लड़की के साथ शादी कैसे करूँगा?... आप खुद ही सोचो... इनका और हमारा कितना फर्क है..." रणवीर सैम से बोला।
"...ज़रूरी तो नहीं हर लड़की ऐसी हो... वह लड़की तुम्हारे जैसी भी हो सकती है... मिलने से पहले कोई अंदाज़ा मत लगाओ... और फिर चाचा जी का बहुत मन है तुम्हारे साथ उसकी शादी का... फिर तुम जानो कि क्या करना है... मैं किसी की लाइफ में दखल नहीं देता... तुम चाहते थे कि मैं तुम्हारे साथ चलूँ... मैं जहाँ तक आ गया... फिर तुम अपनी माँ से बात कर सकते हो... वह तो तुम्हारा साथ देगी..." सैम ने कहा।
"...ऐसा करो चाचा जी को फ़ोन करके लोकेशन मँगवा लो... हमें जाना आसान हो जाएगा..." "...ठीक है... मैं डैड को फ़ोन करके कहता हूँ कि हमें लोकेशन भेज दे..."
वह बात ही कर रहे थे कि रणबीर के डैड का फ़ोन आ गया। फ़ोन उठाते ही रणवीर ने कहा, "...डैड आप हमें लोकेशन भेज दे..." "...ठीक है... तुम लोग आ जाओ..."
रणवीर और सैम बहुत समय बाद पटियाला आ रहे थे। बचपन में वे यहीं रहते थे, परंतु बाद में कभी नहीं आए थे। इसलिए उन्हें अपने घर का पता नहीं था। सैम ने रणवीर से कहा, "ऐसा करो, चाचा जी को फोन करके लोकेशन मंगवा लो। हमें जाना आसान हो जाएगा।"
रणवीर ने कहा, "...ठीक है...मैं डैड को फोन करके कहता हूँ कि हमें लोकेशन भेज दें..." उनकी बातचीत के दौरान ही रणवीर के पिता का फोन आ गया। उसने अपने पिता से लोकेशन भेजने को कहा।
लोकेशन के अनुसार वे सही जगह पहुँच गए थे। रणवीर ने आसपास देखते हुए कहा, "...लोकेशन के हिसाब से हम ठीक पहुँच गए हैं...लग रहा है हम ठीक पहुँच गए..."
सैम ने कहा, "...बहुत सालों के बाद यहाँ आए हैं...मैं बहुत छोटा था...जब हम यहाँ से गए थे...पहचान ही नहीं आ रहा मुझे तो कुछ... इतने सालों में बहुत ज्यादा बदल गया है।"
वे लोग गाड़ी रोककर इधर-उधर देख ही रहे थे कि रवि खन्ना घर के बाहर आ गए। उन्होंने कहा, "...आ जाओ बच्चों...अपने ही घर के सामने हो तुम लोग..."
रणवीर गाड़ी से उतरते हुए बोला, "...डैड हम लोग बहुत थक चुके हैं...सुबह जल्दी के चले हुए हैं हम..."
रवि खन्ना ने कहा, "...तुम सारे रास्ते सो कर आए हो...और तुम थक गए हो...सो कर...मुझे लगा तुम तो बिल्कुल फ्रेश उठोगे सोने के बाद..."
रणवीर बोला, "...सही बात है...मैं तो सारे रास्ते सो कर आया हूँ...गाड़ी तो भाई ने चलाई है..." वे घर के अंदर जाते हुए एक-दूसरे से बात कर रहे थे।
उन्हें देखकर रत्ना जी बोलीं, "...तुम लोगों को भूख लगी होगी...सुबह जल्दी के उठे हुए हो तुम लोग...मैं अभी खाना लगवाती हूँ..."
रणवीर ने कहा, "...नहीं मॉम हमने ढाबे पर ब्रेकफास्ट कर लिया था...इसलिए हमें कोई भूख नहीं है..."
रत्ना जी बोलीं, "...अच्छा तुम लोगों ने रास्ते में खा लिया था...ठीक है मैं तुम लोगों के लिए चाय बनाती हूँ..."
सैम ने कहा, "...चाचू मेरा कमरा कौन सा है? प्लीज आप मुझे जल्दी बता दीजिये...मैं बहुत थका हुआ हूँ..."
रवि ने ऊपर सीढ़ियों की ओर इशारा करते हुए कहा, "...वही जो कमरा तुम्हारे मॉम डैड का था...तुम उसी कमरे में ठहर जाओ...तुम्हें वैसे भी वहाँ पर अच्छा लगेगा...तुम्हारे मॉम डैड की यादें हैं वहाँ पर...और फिर तुम छोटे होते भी वहीं पर रहते थे..."
सैम ने कहा, "...रणवीर गाड़ी से सामान तो निकाला ही नहीं...कपड़ों के बिना चेंज कैसे करेंगे..." वह वापस बाहर जाने लगा।
रवि जी बोले, "...कोई बात नहीं...सामान मैं निकाल देता हूँ...तुम रहने दो सैम थके हुए हो..."
सैम ने कहा, "...नहीं चाचू आप थोड़ी निकालोगे मेरे होते हुए..." वह गया और अपना और रणवीर दोनों का बैग निकाल लाया।
रवि जी ने पूछा, "...वैसे तुम्हारी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है क्या? आगे से गाड़ी की लाइट टूटी हुई है और आगे काफी निशान भी पड़े हैं..."
रणवीर एक्सीडेंट वाली बात बताने लगा, "...एक लड़की ने स्कूटी से सीधा गाड़ी में टक्कर मार दी...देखने वाला था...भाई उस पर गुस्सा हो रहा था...और वह कितनी अजीब-अजीब बातें कर रही थी...मुझे तो इन दोनों को देखकर हँसी आ रही थी...अगर हम थोड़ी देर में वहाँ से नहीं निकलते तो भाई का दिमाग खराब हो जाना था..."
रवि जी ने पूछा, "...क्या हुआ सैम...किसने टक्कर मार दी गाड़ी में...यह तो तुम्हारी फेवरेट गाड़ी थी...गुस्सा तो आना ही था तुम्हें..."
सैम ने कहा, "...कुछ नहीं चाचू मैं आपको फिर बताऊँगा...इस टाइम मैं बहुत थका हुआ हूँ...आराम करना चाहता हूँ...पहले ही उस लड़की ने मेरा बहुत दिमाग खराब किया हुआ है..." उसने अपना बैग लिया और ऊपर के कमरे की तरफ चला गया।
वह जाते ही बेड पर गिर पड़ा। वह बहुत थका हुआ था। उसे कमरे में जाकर अपने माँ-बाप की याद आने लगी। कितने साल हो गए थे उन्हें गए हुए। वह अपने माँ-बाप के बारे में सोचता हुआ वैसे ही सो गया। शायद रास्ते की थकावट थी, वह कितना लंबा सफ़र गाड़ी चलाकर आया था।
सैम ने रणवीर को उठाते हुए कहा, "...भाई उठो...कहाँ हो आप...कहीं सपने में फिर वही लड़की तो नहीं आई जिसने गाड़ी ठोकी थी..."
रणवीर ने कहा, "...बहुत टाइम तक सो गया...क्या टाइम हुआ है...?"
सैम ने कहा, "...शाम हो चुकी है...चलो हमें लड़की वालों के घर जाना है...मॉम डैड तैयार हैं...आपको बुला रहे हैं..."
सैम ने कहा, "...तुम लोग जाओ...मुझे क्या करना है वहाँ...मुझे लैपटॉप पर काम करना है...प्लीज रणवीर मैं जाने वाला नहीं हूँ...तुम लोग चले जाओ...मेरी क्या ज़रूरत है वहाँ पर..."
सैम ने कहा, "...देखो भैया मुझे ऐसा अकेला मत छोड़ो...प्लीज मेरे साथ चलो...मुझे पटियाला की लड़कियों से डर लगता है...एक से तो हम पहले ही मिल चुके हैं..."
रणवीर ने कहा, "...ठीक है तुम चलो...मैं 10 मिनट में तैयार होकर पहुँचता हूँ...ऐसे तो तुम मानोगे नहीं..." रणवीर कमरे से बाहर आ गया और वह तैयार होने लगा।
गाड़ी में बैठते हुए सैम बोला, "...चाचू आप अभी तक उन्हें एक बार भी नहीं मिले...आप लोग कल के आए हुए हैं...उन्हें आपसे मिलने आना चाहिए था..."
रवि जी ने कहा, "...हम लोग लड़की से नहीं मिले...शिव कुमार जी और उनकी वाइफ तो कल आए थे...मगर उनकी बेटी नहीं आई थी उनके साथ...आज मैं तुम दोनों को उसे मिलाने लेकर जा रहा हूँ...बहुत प्यारी बच्ची है...पहली बार में ही दिल में उतर जाती है...उससे मिलकर तुम सभी खुश हो जाओगे..."
रत्ना जी गुस्से में थीं, "...आपको तो हर लड़की ही प्यारी लगती है...अपने बेटे को छोड़कर दूसरों की लड़कियाँ तो अच्छी लगती हैं आपको...मगर याद रखो अगर मुझे पसंद नहीं आई...मैं अपने बेटे की शादी नहीं करूँगी उससे...और इसको आप मेरी केवल धमकी मत समझना...मैं अपने बेटे की शादी अपनी ही मर्ज़ी से करूँगी...यह आपका बिज़नेस नहीं है...जहाँ पर आपकी मर्ज़ी चले..." उसका बिल्कुल भी मन नहीं था वहाँ पर जाने का, मगर यह बात उसे भी पता थी। जाना तो उसे पड़ेगा ही क्योंकि रवि जी ऐसा चाहते हैं।
रणवीर को वह लड़की पसंद आएगी?
सैम उन लोगों के साथ जा रहा है। आखिर सैम के साथ क्या होने वाला है?
क्या रत्ना जी शादी के लिए मान जाएँगी?
रणवीर और सैम को पटियाला में अपने पुराने घर का पता नहीं था, इसलिए उन्होंने रणवीर के पिता से लोकेशन मंगवाई। वे अपने घर पहुँच गए जहाँ रवि खन्ना और रत्ना जी ने उनका स्वागत किया। थके होने के बावजूद, उन्होंने ढाबे पर नाश्ता किया था। सैम को उसका पुराना कमरा दिया गया, जो उसके माता-पिता का था। रवि जी ने गाड़ी के आगे के नुकसान के बारे में पूछा, जिस पर रणवीर ने एक लड़की द्वारा स्कूटी से टक्कर मारने की घटना बताई। सैम ने थकावट के कारण उस बारे में बाद में बताने को कहा और सोने चला गया।
बाद में, सैम ने रणवीर को शाम होने की याद दिलाई और बताया कि उन्हें लड़की वालों से मिलने जाना है। सैम पहले तो जाने से मना कर देता है, लेकिन रणवीर के कहने पर तैयार हो जाता है। गाड़ी में, सैम रवि जी से पूछता है कि वे अभी तक लड़की से क्यों नहीं मिले। रवि जी बताते हैं कि लड़की के माता-पिता आए थे, पर वह नहीं आई थी, और वह आज सैम और रणवीर से मिलेगी। रत्ना जी इस बात से नाराज़ हैं और कहती हैं कि वह अपनी मर्ज़ी से अपने बेटे की शादी करेंगी।
अब Next
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रत्ना जी गुस्से में थीं। उनका वहाँ जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर उन्हें पता था, जाना तो पड़ेगा ही। इसलिए वे सभी लोग शिव कुमार के घर की ओर चल पड़े।
जब रवि खन्ना जी ने शिव कुमार शर्मा जी के घर के आगे गाड़ी रोकी, तो सिकंदर बोला, "...तो यह है उनका घर... घर तो अच्छा बना हुआ है..." वह घर देखकर बोला।
"...यह उनकी कोठी है... छोटी सी फैमिली है उनकी... वे लोग यहीं रहते हैं... अच्छे लोग हैं... आप सभी को मिलकर अच्छा लगेगा..." रवि खन्ना जी बोले।
"...एक कोठी से कुछ नहीं होता... बस सिर्फ कॉलेज में लेक्चरर हैं... और इतना बड़ा बिजनेस में हमारा... उनका और हमारा कोई मुकाबला नहीं..." रत्ना जी कहने लगीं।
सब बातें कर रहे थे, मगर रणवीर खन्ना चुप था।
"...तुम क्यों नहीं बोलते? चुप क्यों हो? हम लोग तुम्हारे लिए लड़की देखने आए हैं..."
"...मेरे बोलने का क्या फायदा? डैड मेरी कौन सी बात सुनने वाले हैं? सिर्फ माम ही मुझे समझती है... नहीं करनी इस स्नेहा प्रीत से शादी... शादी तो मैं जिससे प्यार करता हूँ, उसी से करूँगा... वैसे भी वो अपने मॉम-डैड की अकेली बेटी है... इतने बड़े बिज़नेसमैन की बेटी है..." रणवीर अपनी मॉम से धीरे-धीरे बात कर रहा था।
"...तुम दोनों माँ-बेटा अब गाड़ी से उतरो... गाड़ी में बैठकर ही बातें करते रहोगे क्या? जो बातें रह गई हैं, अंदर जाकर कर लेना..." रवि खन्ना के कहने से वे दोनों गाड़ी से नीचे उतरे। तभी शिवकुमार शर्मा जी और उनकी पत्नी स्वीटी शर्मा जी आ गए। वे उनसे मिलकर बोले, "...हम आप ही का इंतज़ार कर रहे थे... आपने थोड़ा ज़्यादा ही समय लगा दिया आने में..."
अंदर जाकर वे सभी ड्राइंग रूम में बैठ गए। सिकंदर को देखकर शिवकुमार जी बोले, "...यह सिकंदर है ना, बड़े भाई साहब का बेटा... बेटा, तुम्हारे पापा और मैं... दोनों कभी बहुत अच्छे दोस्त थे... तुम्हारी मॉम और तुम्हारे डैड को मैं बहुत अच्छे से जानता था... उनकी शादी कराने में मेरा बहुत बड़ा हाथ था... तुम्हें देखकर अच्छा लग रहा है, बिल्कुल तुम्हारे डैड की झलक है तुममें, वही चेहरा, वही नैन-नक्श..."
ऐसे ही वे लोग कितनी देर तक बातें करते रहे। चाय पीने के बाद रवि जी कहने लगे, "...स्नेहा बिटिया कहाँ है? वह नहीं आई अभी तक? बुला लेते हैं उसको यहीं पर... बच्चे आपस में मिल लें..."
"...बस आती ही होगी... जरा अपनी सहेली के यहाँ गई हुई थी... बस आने ही वाली होगी... स्वीटी, जरा उससे फोन करके जल्दी आने को कहो..."
"...लगता है स्नेहा आ गई..." स्वीटी शर्मा जी ने कहा, क्योंकि बाहर से आवाज़ आ रही थी। वे उठकर बाहर चली गईं और दस-बीस मिनट बाद स्वीटी जी के साथ एक लड़की आई। उस लड़की को देखकर सिकंदर और रणवीर हैरान रह गए। वह कोई लड़की और नहीं, बल्कि स्कूटी वाली थी, जिसने सिकंदर की गाड़ी का टायर तोड़ दिया था।
"...यह यहाँ पर क्या कर रही है? अब मेरी गाड़ी तोड़कर इसका मन नहीं भरा... जो हमारे पीछे यहाँ तक आ गई... अब क्या मेरी जान लेने का भी इरादा है इसका...?" सिकंदर धीरे से रणवीर से बोला।
"...भाई, मुझे लगता है... यह स्नेहा प्रीत है... इसीलिए आई है... हम लोग इसी के घर में बैठे हैं..." रणवीर सिकंदर को कहने लगा।
वह सबसे मिलकर वहीं बैठ गई और ऐसा चेहरा दिखा रही थी, जैसे वह पहले नहीं जानती। आज उसने पिंक कलर का अनारकली सूट पहना हुआ था। चेहरे पर हल्का मेकअप और खुले बालों में पहले से भी ज़्यादा सुंदर लग रही थी। उसकी काजल से सजी हुई काली आँखें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं।
"...बेटा, आजकल तुम क्या कर रही हो...?" रवि जी स्नेहा से पूछते हैं।
"....जी, मेरा अभी ग्रेजुएशन कंप्लीट हुआ है... अभी बस रिजल्ट थोड़े दिनों में आने वाला है..."
"...कौन से सब्जेक्ट से की है तुमने ग्रेजुएशन...?" रत्ना जी ने पूछा।
"...जी, मैंने आर्ट्स से ग्रेजुएशन की है... जी, मेरे पास इंग्लिश लिटरेचर, पोल साइंस और इकोनॉमिक्स थे..."
"...अब आगे क्या करने का इरादा है तुम्हारा...?" रवि जी ने पूछा।
"...अब मैं फैशन डिजाइनिंग का डिप्लोमा करना चाहती हूँ..." स्नेहा ने बताया।
रवि जी और रत्ना जी छोटी-छोटी बातें पूछते रहे। वह उनके जवाब देती रही।
"...स्नेहा, रणवीर पहली दफ़ा आया है... इसे अपना घर नहीं दिखाओगी...?" रवि जी कहने लगे।
"....हाँ, हाँ बेटा बिलकुल... चलो, रणवीर को अपना घर दिखा लो..." स्वीटी जी भी कहने लगीं। रवि जी ने रणवीर को आँख से इशारा कर दिया खड़ा होने के लिए। रणवीर नहीं चाहता था, फिर भी खड़ा हो गया। उसने सिकंदर से भी कहा, "...चलो भाई, आप भी साथ में आ जाओ... आप भी तो पहली बार आए हैं..."
"...हाँ सिकंदर बेटा, तुम भी चले जाओ इनके साथ..." रवि जी ने सिकंदर को भी साथ जाने के लिए कह दिया था।
सिकंदर ने आस-पास देखा। वह खड़ा हो गया। वे तीनों उठकर वहाँ से बाहर आ गए।
"...चलिए, सबसे पहले मैं आपको हमारे घर की छत दिखाकर लाती हूँ..." यह कहते हुए स्नेहा उनके आगे चलने लगी। रवि और सिकंदर उसके पीछे जा रहे थे। छत के ऊपर जाते ही स्नेहा बोली, "...देखो मिस्टर रणवीर खन्ना, तुसीं रिश्ते करण तो मना कर सकदे हो... मेनू सारा कुछ पता है..." उसकी बात सुनकर रणवीर ने कहा, "...मतलब...? मुझे तुम्हारी बात समझ नहीं आई..."
"...मेनू पता तुसीं किसे नूं बहुत पसंद करदे हो, और उस दे नाल ब्याह करना चाहते हो..."
"...अगर तुम्हें यह सब पता है... तुम मना कर दो... शायद चाचा जी इसकी बात नहीं मानेंगे..." सिकंदर ने कहा।
"...अपने मम्मा-पापा को मना नहीं कर सकदी... वह जैसे कहेंगे, मैं वैसा ही करूँगी... मैं ना नहीं करूँगी... मैं हाँ कह चुकी हूँ..."
क्या स्नेहा पहले से रणवीर और सिकंदर को जानती थी?
क्या रणवीर शादी के लिए मना करेगा?
अब स्नेहा क्या करेगी?
रणवीर और सैम पटियाला में अपने पुराने घर पहुँचते हैं, जहाँ रवि खन्ना और रत्ना जी उनका स्वागत करते हैं। सैम को उसका पुराना कमरा दिया जाता है। सैम थकावट के कारण गाड़ी के नुकसान के बारे में बाद में बताने को कहता है। बाद में, सैम रणवीर को याद दिलाता है कि उन्हें लड़की वालों से मिलने जाना है। रवि जी बताते हैं कि लड़की के माता-पिता आए थे, पर वह नहीं आई थी, और वह आज सैम और रणवीर से मिलेगी। रत्ना जी नाराज़ हैं कि वह अपनी मर्ज़ी से अपने बेटे की शादी करेंगी।
सभी शिव कुमार शर्मा के घर जाते हैं। रत्ना जी कोठी देखकर कहती हैं कि उनका कोई मुकाबला नहीं है। रणवीर अपनी माँ से कहता है कि वह स्नेहा प्रीत से शादी नहीं करना चाहता, बल्कि जिससे प्यार करता है उसी से करेगा। शिवकुमार जी सिकंदर से मिलते हैं और उसकी तारीफ करते हैं। चाय के बाद, रवि जी स्नेहा को बुलाने को कहते हैं। स्नेहा आती है और सिकंदर और रणवीर उसे देखकर हैरान रह जाते हैं, क्योंकि वह वही लड़की है जिसने सिकंदर की गाड़ी को टक्कर मारी थी।
स्नेहा सबसे मिलती है और फिर रणवीर को घर दिखाने ले जाती है। छत पर, स्नेहा रणवीर से कहती है कि उसे पता है कि वह किसी और से प्यार करता है और उससे शादी नहीं करना चाहता। वह बताती है कि वह अपने माता-पिता को मना नहीं कर सकती और उसने शादी के लिए हाँ कह दिया है।
अब Next
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"...मैं जानती हूँ तुम किससे बहुत प्यार करती हो... और उससे शादी करना चाहती हो..."। "...क्या तुम हिंदी में बात कर सकती हो? नीचे तो तुम अच्छे से हिंदी बोल रही थी... मुझे तुम्हारी आधी बातें समझ नहीं आ रही हैं..." रणवीर ने कहा।
"...क्यों? आपको पंजाबी नहीं आती क्या? आप लोग यहीं के तो हो..."
"...आती तो है... मगर अच्छी तरह से नहीं... और वैसे भी बहुत साल हो गए यहाँ से गए हुए... भाई तो विदेश से पढ़कर आया है..." रणवीर बोला।
"...ठीक है... मैं हिंदी में बात करूँगी..." स्नेहा ने कहा। "...मैं यह कह रही थी... मुझे पता है कि रणवीर जी आप किसी से प्यार करते हैं... और उससे शादी करना चाहते हैं... इसलिए आप शादी के लिए ना कह सकते हो..."
"...अगर तुम्हें सब कुछ पता है... तो तुम ही ना कह दो... शायद चाचा इस बात को ना माने..." सैम बोला।
"...मैं शादी के लिए ना नहीं कह सकती... क्योंकि मैंने मामा-पापा को शादी के लिए हाँ कह दिया है... अब मैं ना नहीं कह सकती... ना तो आपको ही कहना पड़ेगा... वैसे भी आप किसी और से प्यार करते हैं... मैं नहीं... इसलिए आप ही ना कहो..." स्नेहा बोली।
"...चलो, छोड़ो इस बात को... सबसे पहले मुझे यह बताओ... तुम रणवीर के बारे में इतना कुछ कैसे जानती हो? यह किसी से प्यार करता है... यह तुम्हें कैसे पता है? और जब तुम्हें पता था कि रणवीर किसी और से प्यार करता है... तो तुमने शादी के लिए हाँ क्यों कहा? दूसरी बात, जब तुमने हमें पहचान लिया था... तुमने हमें वहाँ पर क्यों नहीं बताया... जब तुमने स्कूटी से मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट किया था..."
"...ज़रा धीरे बोलो... एक्सीडेंट वाली बात मेरी मम्मी को पता नहीं चलनी चाहिए... वरना मुझे बहुत मार पड़ेगी..." स्नेहा धीरे से बोली।
"...ठीक है... धीरे बोलूँगा मैं... मगर मेरी बात का जवाब तो दो..." सैम स्नेहा से बोला।
"...तो सबसे पहले मैं दूसरी बात का जवाब दूँगी... मैं आपको नहीं जानती थी... मैंने सिर्फ रणवीर जी की फोटो देखी थी... तब मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता था... जब मैंने स्कूटी से आपकी गाड़ी ठोकी थी... तब मैंने सिर्फ आपको देखा था... रणवीर जी गाड़ी के अंदर थे... मेरा तो ध्यान ही नहीं था... मगर मेरी सहेली, जो मेरे साथ थी... उसने इनको देख लिया था... आपके जाने के बाद उसने मुझसे बोला कि जिस लड़के का मेरे लिए रिश्ता आया है... वो वही था... तो उसने मुझसे इनका नाम पूछा... तो तब बात खत्म हो गई... मैं घर आ गई... मगर आज ही, एक घंटे पहले उसका फोन आया और उसने मुझे अपने घर बुलाया... उसने रणवीर जी की इंस्टाग्राम की प्रोफ़ाइल खोली थी... वहाँ पर उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड के साथ अपनी फोटोज़ डाली हुई थीं... उसी ने मुझे बताया कि रणवीर जी की गर्लफ्रेंड है... तो मुझे पता चल गया... मैं अभी वहीं से आ रही हूँ... मुझे पहले नहीं पता था... अब तो समझ गए ना आप सारी बात... मुझे कैसे पता चला... अब मैंने बिना जाने हाँ बोल दिया है... मेरी माँ को एक हार्ट अटैक आ चुका है... मेरी ना कहने से दूसरा आ सकता है... वरना अगर मेरी माँ बीमार नहीं होती तो शायद मेरी शादी की भी जल्दी नहीं होती... अभी तो मैंने ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है... मुझे तो आगे पढ़ना था... पापा अभी मेरी शादी नहीं करना चाहते... मगर माँ की बीमारी की वजह से सभी मेरी शादी की जल्दी कर रहे हैं... अगर कुछ और पूछना हो तो आप मुझसे पूछ सकते हैं... जो बात थी वो मैंने बता दी..." स्नेहा यह बोलकर चुप हो गई।
"...अब स्नेहा ने तो अपनी सारी बात बता दी... अब रणवीर तुम कैसे ना कहोगे? यह तुम्हारी प्रॉब्लम है..." सैम रणवीर से कहने लगा।
"...मैं तो भाई... ना ही कह रहा हूँ... मगर मेरी कोई सुन ही नहीं रहा... वैसे भी मुझे इस पटियाला की लड़की से शादी नहीं करनी..."
"...पटियाला की लड़की कौन सी तुमसे शादी करती है? मगर मैं ना नहीं बोल सकती... इसलिए तुम बोल दो..." स्नेहा को रणवीर की बात से गुस्सा आया था। यह उसकी बात से साफ़ दिख रहा था।
"...अब तुम दोनों लड़ाई मत करते बैठ जाना... तुम दोनों को ही एक-दूसरे से शादी करने में कोई इंटरेस्ट नहीं है... इस बात का सॉल्यूशन निकालो..."
"...सॉल्यूशन तो भाई आप निकालो... आप पापा से कहो... और सारी बात खत्म कर दो... इसीलिए तो मैं आपको साथ लेकर आया हूँ..."
"...मैं कोशिश करके देखता हूँ... अगर मेरी बात किसी ने सुनी तो..."
"...अब हम नीचे चलें... बहुत देर हो गई है हमें..." स्नेहा ने उन दोनों से कहा। स्नेहा के चेहरे पर गुस्सा था। यह बात सैम देख रहा था।
रणवीर आगे चल गया था। स्नेहा और सैम दोनों सीढ़ियों पर रुककर बात करने लगे।
“क्यों? अगर इसकी तरफ़ से ना होगा, तो तुम्हारी माँ की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा?”
“तो उन्हें झटका नहीं लगेगा। क्योंकि अगर मैं मना करती हूँ, तो माँ को लगेगा मेरी बेटी मेरी बात नहीं मान रही है, इतना अच्छा रिश्ता ऐसे ही छोड़ रही है। बस, मैं ऐसा नहीं कर सकती।”
“कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम्हारा कहीं और प्यार है? अगर रणवीर इस रिश्ते से मना कर देगा, तो तुम वहाँ शादी कर सकोगी?” सैम ने अपना शक जाहिर किया।
“काश ऐसा होता तो! मेरी माँ-बाप मेरी वही शादी कर देते। उन्होंने मुझसे पूछा था, मगर मुझे कोई पसंद ही नहीं आया आज तक।”
“कभी तुम्हारे कॉलेज में किसी लड़के ने तुम्हें प्रपोज नहीं किया? दिखने में तो सुन्दर हो।” सैम ने कहा।
“प्रपोज तो किया था, फर्स्ट ईयर में। कई लड़कों ने प्रपोज किया था। मैंने उनकी इतनी बुरी तरह से पिटाई की कि फाइनल ईयर तक फिर मुझे किसी ने प्रपोज नहीं किया। अब तो मुझे पछतावा भी होता है कि मैंने उन विचारों को इतनी बुरी तरह से क्यों पीटा।” स्नेहा ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
“तुम दोनों क्या बातें कर रहे हो? आ जाओ आप लोग।” रणवीर ने उन दोनों से कहा। वे तीनों इकट्ठे ड्राइंग रूम में दाखिल हुए।
“तो बच्चों, फिर कैसी रही तुम लोगों की मीटिंग? अभी तुम लोगों को एक-दूसरे से और मिलना चाहिए। रणवीर, तुम कल पटियाला घुमाना। पटियाला में रणवीर को बहुत सारी जगहें देखने को मिलेंगी। पटियाला शाही शहर है, राजाओं-महाराजाओं का। रॉयल सिटी कहते हैं इसे।” रवि जी रणवीर से कहने लगे।
“क्यों स्नेहा, ठीक है ना? तुम इसे घुमाओगी ना पटियाला?”
“जी, अंकल, ज़रूर दिखाऊँगी मैं पटियाला।”
वे सभी लोग बातें करते रहे। सैम का उन सबकी बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं था।
“चाचा जी, मुझे कुछ काम है। मैं घर वापस जा रहा हूँ।”
“नहीं बेटा, ऐसे नहीं। आज शाम का खाना खाने के बाद ही जाना।” स्नेहा की माँ ने कहा।
“सही बात है बेटा। खाना तो हम लोग खाकर ही जाएँगे।” सैम को ना चाहते हुए भी वहाँ पर रुकना पड़ा।
खाने के समय रणवीर किसी से चैट करता रहा। यह बात स्नेहा के माँ-बाप भी देख रहे थे। रवि जी और उनकी पत्नी रत्ना जी भी। खाना खाने के बाद वे सभी जाने लगे।
“सच में आंटी, खाना बहुत टेस्टी था। बहुत दिनों बाद ऐसा खाना खाया।” जाने से पहले सैम स्नेहा की माँ स्वीटी जी से बोला।
“मैं तो कहती हूँ बेटा, तुम सब रोज खाना खाने आया करो। हमें भी अच्छा लगेगा।”
“कोई बात नहीं आंटी, ज़रूर आऊँगा।”
वे सभी चले गए थे। उनके जाने के बाद स्वीटी जी स्नेहा से बोलीं,
“कैसा लगा तुम्हें लड़का?”
“वैसा ही, जैसे लड़के होते हैं।”
“तुम सीधा जवाब भी दे सकती हो। मेरे कहने का मतलब है क्या तुम्हें लड़का पसंद आया?” स्वीटी जी ने गुस्से से कहा।
“माँ, आप गुस्सा क्यों होती हो? आप ही तो कहती हैं शादियाँ तो ऊपर से बनकर आती हैं। अगर मेरी शादी उसके साथ ऊपर से बनी है, तो वह मुझे पसंद है।” कहकर वह अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।
“इस लड़की का कुछ नहीं हो सकता। सीधा जवाब तो मुझे कभी देती ही नहीं।”
“तुम उस पर क्यों गुस्सा हो रही हो? उसने शादी के लिए हाँ कह तो दी है। उसका मज़ाक करने का स्वभाव है, तुम्हें पता है।”
“तुम्हारी बेटी के खिलाफ़ मैं कुछ बोलूँ, यह बात तो तुम्हें पसंद ही नहीं है।” अब स्वीटी शिव कुमार जी पर गुस्सा होने लगी थी।
“अब तुम स्नेहा को छोड़कर मेरे पीछे हो गई हो। यह बात गलत है।” शिव कुमार जी स्वीटी के पास आते हुए बोले।
“मैं तो कहता हूँ बच्चों की शादी हम बाद में कर लेंगे। पहले हम दोनों ही फिर दूसरी बार शादी कर लें।”
“आपको भी कभी-कभी क्या हो जाता है।”
“होना क्या है? अगर किसी की इतनी खूबसूरत बीवी सामने होगी, तो दूसरी बार शादी का मन तो करेगा ही।”
“तुम्हारी बेटी की शादी की बात चल रही है। कुछ तो सयाने हो जाइए।”
“मुझे लगा मेरी शादी की बात चल रही है।” शिवकुमार जी ने स्वीटी के गले में बाहें डाल दीं।
तभी अंदर से भागती हुई स्नेहा बाहर आई।
“सॉरी! सॉरी! मैंने कुछ नहीं देखा।” वह आँखें बंद करके बाहर की तरफ़ जाने लगी।
“अब तुम कहाँ जा रही हो?”
“बस दो मिनट! माँ, मैं आता हूँ।” स्वीटी बाहर चली गई।
“घर में तुम्हारी जवान बेटी है। कुछ तो देख लिया करो! जब मन करता है तुम रोमांस करने लगते हो।” स्वीटी शिव कुमार जी पर और गुस्सा होने लगी।
“क्या करूँ? तुम्हारे गुस्से पर प्यार ही इतना आता है।”
“इन बाप-बेटी का कुछ नहीं हो सकता।” कहते हुए स्वीटी किचन की तरफ़ जाने लगी।
क्या रणवीर और स्नेहा की शादी हो पाएगी? क्या स्वीटी को इस शादी से इनकार है? क्या वह यह बात अपनी माँ-बाप को बता पाएगी? क्या उसके माँ-बाप रणवीर और उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में जान पाएँगे?
स्नेहा भागती हुई अंदर से बाहर आई। "सॉरी... सॉरी... मैंने कुछ नहीं देखा..." उसने आँखें बंद करके बाहर जाने की कोशिश की।
"...अब तुम कहाँ जा रही हो...?"
"...बस दो मिनट... मॉम, मैं आता हूँ..." स्वीटी बाहर चली गई।
"...घर में तुम्हारी जवान बेटी है... कुछ तो देख लिया करो... जब मन करता है आप रोमांस करने लगते हैं..." स्वीटी शिव कुमार जी पर और गुस्सा होने लगी।
"...क्या करूँ... तुम्हारे गुस्से पर प्यार ही इतना आता है..."
"...इन बाप-बेटी का कुछ नहीं हो सकता..." कहते हुए स्वीटी किचन की ओर जाने लगी।
"...सच में खाना बहुत टेस्टी था... बहुत दिनों बाद असली पंजाबी खाना खाया... साग... राजमा... क्या बने हुए थे... तुमने तो यह सब बनाना छोड़ ही दिया..." रवि जी रत्ना जी से बोले।
"...पंजाब छोड़ने के साथ ही पंजाबी खाना भी छूट गया..." रवि जी अपने घर में जाते हुए बोले।
"...चाचू, आप सही कह रहे हैं... खाना बहुत टेस्टी था, मुझे भी बहुत अच्छा लगा... उनके हाथ का बना खाना खाकर मुझे मॉम की याद आ गई..." दोनों स्वीटी जी के बने खाने की तारीफ़ कर रहे थे।
रवि जी और सिकंदर दोनों लॉबी में ही बैठ गए। मगर रणवीर और रत्ना अपने-अपने कमरे में चले गए थे। "...मुझे चाय चाहिए थी... लगता है तुम्हारी चाची तो चली गई... सोने के लिए..."
"...कोई बात नहीं चाचू... मैं चाय बनाकर लाता हूँ..." सैम दो कप चाय बना लाया।
"...यह रही चाचू चाय... मुझे भी नींद आ रही है... मैं जा रहा हूँ..." वह अपना कप लेकर कमरे की ओर जाने लगा। "...थोड़ी देर मेरे साथ बात कर सकते हो सैम... बैठ जाओ मेरे पास..."
"...हाँ चाचू, क्या बात है... कहिए..."
"...मुझे तुम्हारी मदद चाहिए..."
"...किस बात के लिए...?"
"...तुम स्नेहप्रीत से आज मिल चुके हो... दिखने में कितनी सुन्दर है... और मुझे समझदार भी लगी वह लड़की... मैं चाहता हूँ हर हाल में उसकी शादी रणवीर से हो जाए... मगर मुझे रणवीर अभी भी शादी में इंटरेस्टेड नहीं लगा..."
"...जब रणवीर इंटरेस्टेड नहीं है तो आप शादी जबरदस्ती मत कीजिए... मेरी बात मानिए... यह बात आप उस पर छोड़ दीजिए... कि वह शादी करना चाहता है या नहीं... आपको स्नेहा अच्छी लगी... इसलिए आपने रणवीर को स्नेहा से मिलवा दिया... इसके बाद का फैसला रणवीर का खुद का होना चाहिए... मुझे ऐसा लगता है..." सैम अपने चाचा जी को समझा रहा था।
"...नहीं, अगर मैंने उसे ऐसे ही छोड़ दिया... तो वह पक्का उस लड़की से शादी कर लेगा... वह लोग कोई अच्छे लोग नहीं हैं... देखी है मैंने वह लड़की पार्टियों में... वो हमारे खानदान के काबिल नहीं है... इतना खुलापन लड़कियों के लिए अच्छा नहीं... यह बात रणवीर नहीं समझता... मैं चाहता हूँ रणवीर स्नेहा से शादी कर ले... मैंने शिव से बात करके... इन दोनों के कल घूमने का प्रोग्राम बनाया है... मैं चाहता हूँ... तुम भी इनके साथ चलो... और रणवीर को भी अच्छे से समझाओ... मैं चाहता हूँ हर हाल में रणवीर की शादी स्नेहा से हो जाए..."
"...चाचू, मैं इनके बीच क्या करूँगा... इन दोनों को अकेले टाइम स्पेंड करने दीजिए... मेरा जाना ठीक नहीं है..."
"...नहीं, अकेले नहीं... अगर रणवीर अकेले गया तो मुझे पता है... यह क्या कहेगा उससे... मैं चाहता हूँ... तुम इसके साथ रहो... इसी बहाने से तुम भी पटियाला घूम लोगे..."
"...ठीक है... चाचा जी, अगर आप चाहते हैं तो मैं चला जाऊँगा इसके साथ..." सैम का बिल्कुल भी मन नहीं था उन दोनों के साथ जाने का, मगर वह अपने चाचा जी को मना नहीं कर सका।
अगली सुबह ब्रेकफास्ट के टेबल पर वह तीनों बैठे हुए थे। मगर अभी रणवीर नहीं उठा था। "...रत्ना, रणवीर को भी उठा दो... हमारे साथ ब्रेकफास्ट कर लेगा..."
"...वह उठ जाएगा... सोने दो अभी... कहाँ कौन सा उसे ऑफिस जाना है... आराम करने दो..."
"...हम पटियाला आराम के लिए नहीं आए... मैंने शिव कुमार से कह दिया था... कि सुबह रणवीर स्नेहप्रीत को लेने आएगा... फिर ये दोनों घूमने जाएँगे... दोनों कुछ टाइम साथ बिता लेंगे..."
"...आपने मुझे नहीं बताया..." रत्ना जी गुस्सा होने लगीं।
"...मैं बताना चाहता था... मगर तुम रात पहले ही सो गई थी... अगर बच्चे मिलेंगे फिर ही तो एक-दूसरे को जानेंगे... आखिर इनको पूरी जिंदगी साथ रहना है..."
"...आप तो ऐसी बातें कर रहे हैं... जैसे इनकी अभी के अभी शादी होने वाली है..."
"...इनकी, जहाँ से हम शादी करके ही लेकर जाएँगे..."
"...क्या कह रहे हैं... चाचा जी आप...?" रत्ना जी के साथ-साथ सिकंदर भी हैरान हो गया था।
"...बिल्कुल ठीक कह रहा हूँ मैं... हम लोग एक हफ्ते में शादी करके ही लेकर जाएँगे... रणवीर के साथ-साथ स्नेहप्रीत भी हमारे साथ चलेगी..."
उनकी बात सुनकर रणवीर भी हैरान हो गया था, जो उनके पास ही आ रहा था। "...डैड, आप यह क्या कह रहे हैं... मेरी शादी... और आपने मुझसे पूछा भी नहीं... आपने बिना पूछे मेरी शादी पक्की कर दी..."
"...बाकी बातें छोड़ो... आज सैम भी तुम्हारे साथ जा रहा है... स्नेहप्रीत के साथ बाहर घूमने के लिए... जो वह तुम्हें पटियाला घुमा देगी... और तुम उसे जान भी लोगे..." रवि जी यह कहकर ब्रेकफास्ट की टेबल से खड़े हो गए थे।
"...माँ, माँ, मैं नहीं करने वाला उस लड़की से शादी..." रणवीर अपनी माँ से बोला। वह बहुत गुस्से में था।
"...रणवीर, ऐसा करो... आज तो तुम जो उसके साथ घूमने चले जाओ... फिर मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूँ... अगर तुम नहीं गए... और उनका गुस्सा बढ़ गया... फिर तो वह मेरी बात भी नहीं सुनेंगे..."
"...ठीक है, आज जा रहा हूँ मैं उस लड़की के साथ घूमने... मगर आप डैड से बात करो... मैं दिव्या से ही शादी करूँगा... मैं उससे प्यार करता हूँ..." रणवीर ने साथ-साथ कह दिया था।
आगे रणवीर क्या करने वाला है? क्या सचमुच इसी हफ्ते स्नेहा की शादी रणवीर से हो जाएगी? अब रत्ना जी क्या करेंगी?
"...मॉम, मैं नहीं करने वाला उस लड़की से शादी..." रणवीर अपनी मॉम से बोल रहा था। वह बहुत गुस्से में था। "...रणवीर, ऐसा करो...आज तो तुम उसके साथ घूमने चले जाओ...फिर मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूँ...अगर तुम नहीं गए तो उनका गुस्सा बढ़ जाएगा...फिर तो वे मेरी बात भी नहीं सुनेंगे..."
"...ठीक है...आज जा रहा हूँ मैं उस लड़की के साथ घूमने...मगर आप डैड से बात करो...मैं शादी सिर्फ़ दिव्या से ही करूँगा...मैं उससे प्यार करता हूँ..." उसने अपनी मॉम से साफ़-साफ़ कह दिया था।
ना चाहते हुए भी रणवीर स्नेहप्रीत को लेने के लिए जाने लगा था। सैम भी उसके साथ था। उसने सैम से कहा, "...चलो भाई...आप भी चलो मेरे साथ..." सैम को उसके चाचा जी ने पहले ही जाने के लिए कह दिया था। वह उसके साथ जाने के लिए मान गया।
स्नेहप्रीत के घर तक जाते हुए रणवीर बिल्कुल चुप था। "...क्या बात है रणवीर, इतने चुप क्यों हो...आज तुम बिल्कुल नहीं बोल रहे..." सैम ने कहा।
"...भाई, मैं बहुत परेशान हूँ...मुझे नहीं करनी है उस स्नेहप्रीत से शादी...आप डैड से बात क्यों नहीं करते..." "...मैंने कोशिश की थी बात करने की...चाचा जी ने मगर मेरी बात नहीं सुनी..."
"...आप बड़े हैं...पहले आपकी शादी होनी चाहिए...वे लोग मेरी शादी के पीछे क्यों पड़े हैं..."
उसकी बात सुनकर सैम मुस्कुरा दिया। "...क्योंकि मुझे शादी नहीं करनी है...किसी से भी नहीं...मैं अभी कई सालों में शादी नहीं करने वाला..."
"...आप शादी क्यों नहीं करने वाले भाई...किसी ने आपका दिल तोड़ दिया क्या..."
"...क्योंकि मुझे अपने बिज़नेस को बहुत फैलाना है...वैसे तो हमारा बिज़नेस अब भी काफी बड़ा है...मगर मैं इसे देश के बाहर भी फैलाना चाहता हूँ...मैं चाहता हूँ कि सिकंदर खन्ना की गिनती एशिया के टॉप बिज़नेसमैन में हो जाए..." यह बात कहकर सैम हँसने लगा।
"...आप एशिया के टॉप बिज़नेसमैन बनना चाहते हैं...इस बात का शादी से क्या वास्ता...वह तो आप शादी के बाद भी बन सकते हैं..." रणवीर ने कहा।
"...क्योंकि शादी के बाद आप पर किसी की ज़िम्मेदारी होती है...अगर शादी हो जाएगी तो बीवी पूछेगी...इतनी रात हो गई...घर नहीं आए...मुझे बाजार जाना है...मुझे शॉपिंग करनी है...तुम साथ में चलो...बच्चे भी होंगे...मेरे साथ जहाँ चलो...मेरे लिए वह करो...उसकी सारी ज़िम्मेदारी होगी...मैंने चाचा जी को देखा है...चाची जी दिन में तीन बार फ़ोन करके पूछती हैं...आप कब आ रहे हो...मुझे किसी को जवाब नहीं देना है कि मैं कब आ रहा हूँ...कब जा रहा हूँ...ऐसे बिज़नेस नहीं बढ़ाए जाते...मैं अगर कोई बात अपने दिमाग में सोचता हूँ...तो मैं उसे पूरा कर सकता हूँ...शादी के बाद तो बीवी का भी दखल हो जाता है...जब मैं एक बार काम करना शुरू करता हूँ तो...मुझे मेरे काम में किसी का दखल पसंद नहीं...और मेरे गुस्से को कौन झेलेगा...कोई लड़की मेरे साथ दो दिन नहीं काट सकती...तुम्हें मेरे गुस्से का पता है...वह तो चाची जी हैं...जो चाचा जी के गुस्से को झेल रही हैं...वरना आजकल की लड़कियाँ नहीं झेलती किसी के गुस्से को...मुझे रोज़ की लड़ाइयाँ और तमाशे नहीं चाहिए...मैंने अपने दोस्तों को देखा है...पहले तो बड़ी खुशी से शादी की...अब तलाक होने जा रहे हैं...और फिर जब तलाक होता है...तो बच्चे बीच में आ जाते हैं...किसी को माँ नहीं मिलती...किसी को बाप नहीं मिलता...इसलिए सबसे अच्छी बात यही है कि शादी ही मत करो...कम से कम अभी के कुछ साल तो मैं शादी नहीं करने वाला..." सैम उसे अपने प्लान बता रहा था।
"...लेकिन भाई, तुम जो सोचते हो...वह कर लोगे...मुझे देखो, मैं दिव्या से शादी करना चाहता हूँ...और डैड मेरी शादी इस पटियाला की लड़की से करना चाहते हैं...जो मैं कभी नहीं करने वाला..."
"...अगर तुम मुझे प्यार-मोहब्बत छोड़कर अपने काम की तरफ़ ध्यान देते तो शायद चाचू तुम्हारी शादी की जल्दी नहीं करते...तुम मुझे शराब पीकर जो लड़ाइयाँ-झगड़ा करते हो...उनको तुम्हारी हर बात पता है...अपनी आदतें बदलो रणवीर...ऐसे काम नहीं चलेगा..." सैम रणवीर को समझा रहा था।
"...सोचो भाई, अगर आपकी शादी स्नेहा से हो जाए तो..." रणवीर सैम से हँसने लगा।
"...उसका और मेरा कोई मैच नहीं...वह कितना बोलती है...पता है ना...एक बार शुरू होती है तो फिर रुकती ही नहीं है...उस दिन जब गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था...उसमें और मुझमें बहुत फ़र्क है...वैसे भी उसके साथ तुम्हारी शादी तय हुई है...मेरी नहीं...जो बात होनी नहीं, वह बात नहीं करते..." सैम रणवीर से कहने लगा। "...भाई, मैं तो मज़ाक कर रहा था...आप तो गुस्सा ही हो चले..."
"...सोचो भाई...अगर आपकी शादी स्नेहा से हो जाए..." रणवीर सैम से हँसने लगा।
"...उसका और मेरा कोई मैच नहीं। वो कितनी बोलती है...पता है ना...एक बार शुरू होती है...तो फिर रुकती ही नहीं। उस दिन जब गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था...उसमें और मुझमें बहुत फर्क है। वैसे भी उसके साथ तुम्हारी शादी तय हुई है...मेरी नहीं। और जो बात होनी ही नहीं है...वह बात कहते नहीं।" सैम रणवीर से कहने लगा।
"...भाई मैं तो मज़ाक कर रहा था...आप तो गुस्सा ही हो चले..."
रणवीर ने शिव कुमार शर्मा जी के घर के आगे गाड़ी रोक दी। "...चलो भाई उतरों। तुम जाकर स्नेहा को बुला लो...मैं यहीं गाड़ी में ठीक हूँ।"
"...नहीं भाई आप भी आओ मेरे साथ।" अभी वे दोनों उतर ही रहे थे कि स्नेहा अपने माँ और डैड के साथ घर से बाहर आ गई।
उन दोनों को देखकर रणवीर और सैम दोनों गाड़ी से बाहर आ गए थे। "...आओ बेटा घर के अंदर चलो...चाय पीकर जाना..." स्वीटी उनसे कहने लगी।
"...नहीं आंटी हम चलते हैं...पहले ही काफी टाइम हो गया..." रणवीर बोला।
"...ऐसा करो तुम दोनों जाओ...घूमने के लिए...मैं यहीं आंटी जी के हाथ की बनी हुई चाय पीता हूँ..." सैम बोला।
"...भाई ऐसे कैसे...आपको भी तो शहर घूमना था...फिर आपको काम भी था...आप भी हमारे साथ चलो..."
"...सैम को चाय पीनी है तो उन्हें यहीं रुक जाने दो...तुम दोनों चले जाओ..." स्वीटी जी ने कहा।
"...सही बात है आंटी...मैं यहीं पर रुक जाता हूँ..." सैम बोला।
रणवीर ने आकर सैम का हाथ पकड़ लिया। "...चलो भाई चले..."
"...चलो ठीक है आंटी...आपके हाथ की चाय मैं फिर कभी पी लूँगा..." स्नेहा गाड़ी की पिछली सीट पर बैठने लगी।
"...स्नेहा तुम आगे आ जाओ...पीछे मैं बैठ जाऊँगा...तुम दोनों आगे ही बैठो...साथ में बात भी कर लोगे..." सैम ने कहा।
"...नहीं आप ही आगे बैठो...मैं पीछे ही ठीक हूँ..." वह उन दोनों की नौटंकी देखते हुए पीछे ही बैठ गई थी।
"...मुझे तो लगा था कि रणवीर जी आपने अपने डैड से बात कर ली होगी...मगर जब सुबह ही उनका फोन आ गया...कि आप दोनों मुझे लेने आ रहे हो तो...मुझे समझ नहीं आया...क्या आपने उनसे बात नहीं की...जब आपकी कोई गर्लफ्रेंड है...और आपको उसी से शादी करनी है...आप अपने डैड से क्यों नहीं कहते..." स्नेहा गाड़ी में बैठते ही कहने लगी।
"...देखो यह बात गलत है...जब आपकी गर्लफ्रेंड है तो आप मुझे क्यों घुमा रहे हैं...मुझे सीधी-सीधी और क्लियर बातें पसंद हैं...मैं आपसे पूछ रही हूँ और...आप हैं जवाब ही नहीं दे रहे...देखिए आपकी यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं है..." स्नेहा नॉनस्टॉप बोल रही थी।
"...वह जवाब तब देगा अगर तुम उसे बात करने का मौका दोगी...तुम खुद ही बोल रही हो...उसे बोलने ही नहीं दे रही..." सैम स्नेहा से बोला।
स्नेहा उसकी बात सुनकर चुप कर गई। "...थैंक गॉड भाई...इसीलिए मैं आपको साथ लाया हूँ...नहीं तो मेरी टर्न ही नहीं आती बात करने की..."
"...अब तुम स्नेहप्रीत मत बनो...सीधी-सीधी बात बताओ...जो वह पूछ रही है..." सैम रणवीर से गुस्से से बोला। क्योंकि रणवीर और स्नेहा की बातें सुनकर उसका सिर दुखने लगा था।
"...हाँ बताओ...आपने अपने डैड से बात क्यों नहीं की..." स्नेहा फिर बोली।
"...मैंने अपनी माँ से बात की है...उन्होंने कहा है कि वे आज मेरे डैड से बात करेंगी...शायद मेरे वहाँ आने के बाद वे बात कर लें..." "...तो आप सीधा भी तो कह सकते थे अपने डैड से कि आपको मुझसे शादी नहीं करनी...आपको किसी और से शादी करनी है..."
"...नहीं वे बहुत गुस्से वाले हैं...मैं उनसे नहीं कह सकता..."
"...अगर ये नहीं कह सकता तो...तुम क्यों नहीं कह देती अपने डैड से...डैड से नहीं तो...माँ से कह दो..." सैम ने स्नेहा से कहा।
"...मैं अपनी माँ से नहीं अपने डैड से कह सकती हूँ...वे मेरी बात सुन भी लेंगे और...मान भी जाएँगे...मगर मैं अपनी माँ की वजह से चुप हूँ...क्योंकि जब बात मेरी माँ को पता चलेगी कि मैंने शादी के लिए मना कर दिया...तो इसका उन्हें शौक लग सकता है...इसलिए मैं चुप हूँ...वरना मेरे पापा तो मेरी हर बात मानते हैं...जैसा मैं कहती हूँ वे हमेशा वैसा ही करते हैं...माँ कहती है कि...उन्होंने मुझे बिगाड़ दिया...माँ क्या हमारे सभी रिश्तेदार यही कहते हैं कि...शिव कुमार शर्मा ने अपनी बेटी स्नेहा को पूरा बिगाड़ कर रखा है...यह लड़की अगर ऐसा ही रहेगी...यह लड़की तो तुम्हारे हाथ से निकल जाएगी..."
"...बस अब तुम चुप करो...हमें पता चल गया कि तुम अपने घर पर बात नहीं कर सकती..." सैम ने फिर स्नेहा को टोका।
"...तो अब एक ही रास्ता है रणवीर...तुम ही बात करो घर में...वरना तुम दोनों की शादी हो जाएगी...फिर दोनों लड़ते रहना शादी के बाद..." सैम दोनों से बोला।
"...सही बात है..."
"...और वैसे भी हमारे घर में कितनी शांति है...घर में कोई रहता भी है पता नहीं चलता...अगर तुम दोनों की शादी हो गई और स्नेहा हमारे घर में आ गई...तो लोग हमारे घर को अनाउंसमेंट सेंटर समझने लगेंगे...जहाँ पर हर टाइम शोर-शराबा रहता है...पूरी शांति भंग हो जाएगी...और घर में हमारे किसी की बोलने की टर्न नहीं आएगी...सिर्फ यही बोलेगी...घर में केवल इसी की आवाज़ सुनाई देगी...इसलिए तुम अपने डैड से बात करो...समझे..." सैम रणवीर को समझा रहा था।
"...आपके कहने का मतलब है...मैं बहुत ज़्यादा बोलती हूँ...मेरे पापा कहते हैं...स्नेहा की आवाज़ कितनी अच्छी है...जब स्नेहा बोलती है तो पूरे घर में रौनक आ जाती है...और आप मेरे ही सामने मेरी बुराई कर रहे हैं...ऐसे लोग मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं..." स्नेहा सैम पर गुस्सा होने लगी।
स्नेहा सैम पर गुस्सा होने लगी। "आपके कहने का मतलब है मैं बहुत ज़्यादा बोलती हूँ? मेरे पापा कहते हैं, स्नेहा की आवाज़ कितनी अच्छी है, कितनी मीठी है! जब स्नेहा बोलती है तो पूरे घर में रौनक आ जाती है! और आप मेरे ही सामने मेरी बुराई कर रहे हैं! ऐसे लोग मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।"
"रणवीर जी, आप इन्हें साथ में क्यों लेकर आए? इन्हें मॉम के पास ही छोड़ आते। जब माम चाय के साथ ज़बरदस्ती पकौड़े खिलाती, तब पता चलता..."
"तुम्हारे कहने का मतलब है तुम्हारी माम चाय और पकौड़े अच्छे नहीं बनाती?" सैम ने कहा।
"मेरी मॉम चाय और पकौड़े बहुत अच्छे बनाती है। मगर जब कोई उनकी तारीफ़ कर देता है, तो वह उन्हें ज़बरदस्ती इतना खिलाती है कि सामने वाला पछताने लगता है। आपने कल उनके खाने की तारीफ़ की थी ना? तो आज उनकी चाय की भी तारीफ़ करते, और जब आप हमारे पीछे अकेले होते, तो मॉम आपको ज़बरदस्ती खिलाती, तब ठीक आता।" यह कहकर वह अपना गुस्सा दिखा रही थी।
"मैं भाई को दिल्ली साथ में इसलिए लेकर आया था कि यह हमारी शादी तुड़वाने में हमारी हेल्प करेंगे।"
"तो अब तक आपने हमारी कोई हेल्प नहीं की।" रणवीर ने शिकायत की।
"मुझे एक बात समझ नहीं आ रही कि मेरी सहेली ने आप में ऐसा क्या देखा? वह आपकी दीवानी बनी हुई है।" स्नेहा ने सैम से कहा।
"तुम अपनी किस सहेली की बात कर रही हो?" रणवीर उसे पूछने लगा।
"वही जो... जब स्कूटी के साथ गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था... उस दिन मेरे साथ जो लड़की थी... उसका नाम निशा है। जब से उसने आपके भाई को देखा है, वह इनकी दीवानी बनी हुई है। वह पूरे सोशल मीडिया पर इनकी प्रोफ़ाइल ढूँढ रही है, मगर नहीं मिली। आज उसने मुझे स्पेशल कहा है... मुझे पूछूँ कि उनकी कोई गर्लफ्रेंड है या नहीं... मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं उसको कैसे बताऊँ कि दूर रह इस इंसान से तो बात करने का भी फायदा नहीं... इसे तो मेरा बोलना भी पसंद नहीं है।" स्नेहा अभी भी चुप नहीं हो रही थी। उसे सैम पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
"रणवीर, मुझे ऐसा लग रहा है कि चाचा जी तुम्हारी शादी स्कूल जाती हुई छोटी बच्ची से करने जा रहे हैं, जो पेंसिल और रेज़र के लिए लड़ाई करती है।"
"मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ! मैं अभी 19 की हो जाऊँगी, अपने इस जन्मदिन पर।"
"तुम सिर्फ़ 19 की हो और यह 25 का है। तुम दोनों में तो उम्र का ही इतना फ़र्क है।"
"तो सही बात है भाई, यह तो बहुत छोटी है।" रणबीर भी बोला।
"मैं इसी बात को लेकर मॉम को कहता हूँ कि वह डैड से कहें... लड़की की उम्र बहुत कम है... अब इतने छोटे बच्चों की शादी नहीं हो सकती।" रणवीर बात कर ही रहा था कि तभी स्नेहा का फ़ोन बजने लगा।
स्नेहा के फ़ोन उठाते ही निशा बोली, "स्नेहा, बधाई हो तुम्हें! तुम्हारी शादी फ़िक्स हो गई है।"
"तुम्हें कैसे पता कि मेरी शादी फ़िक्स हो गई है?"
"मैंनू किवें पता... मैंनू पता होगा... मैं तेरे घर बैठी हूँ... रणवीर के पापा भी यहीं पर हैं... उन्होंने कल सगाई और शनिवार के दिन तुम दोनों की शादी... और फिर तुम दिल्ली..."
"क्या बात कर रही हो?" स्नेहा ने कहा।
"तुम अभी जीजू के साथ अपना टाइम स्पेंड करो... मैं बाद में फ़ोन करूँगी।"
"लौ हो गया सियापा! मैंनू पहला ही पता सी यही होना है!" फ़ोन काटते ही स्नेहा बोली।
"क्यों? क्या हुआ? किसका फ़ोन था? क्या हुआ?" सैम ने उससे पूछा।
"मेरी और रणवीर जी की शादी फ़िक्स हो गई है। परसों सगाई है और शनिवार की शादी।"
"क्या कह रही हो तुम?" स्नेहा की बात सुनकर रणवीर बोला।
"अभी मेरी सहेली ने बताया मुझे... आपके डैड अभी हमारे घर में बैठे हुए हैं... वह भी वहीं पर है..." स्नेहा की बात सुनकर रणवीर ने गाड़ी रोक दी।
उसने अपनी मॉम को फ़ोन लगाया। "मॉम, कहाँ हो आप इस वक़्त?"
"बेटा, मैं बाज़ार आई हुई हूँ। मुझे कुछ पटियाला से फुलकारियाँ लेनी थीं। मैं वही ले रही हूँ।"
"आपको पता है डैड कहाँ है इस वक़्त?"
"घर पर थे जब मैं आई थी। अभी भी घर पर ही होंगे। और कहाँ जाएँगे?" रत्ना जी ने कहा।
"वह इस टाइम स्नेहा के घर में है... और मेरी शादी फ़िक्स हो रही है... आप करते रहो शॉपिंग... देख लेना माम, मैं शादी नहीं करने वाला। और जो भी कुछ हो रहा है इसकी वजह आप होंगी!" रणवीर ने गुस्से से फ़ोन काट दिया था।
"गुस्से से कुछ नहीं होने वाला। अभी भी टाइम है। आप अपने डैड से बात कर लो। गुस्से से काम बिगड़ जाता है। हमेशा ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए।" स्नेहा रणवीर को समझाने लगी।
"ठंडे दिमाग से काम तुम भी तो ले सकती हो। तुम क्यों नहीं बात करती अपने पापा से? तुम्हारे पापा तो तुम्हारी बात सुन भी लेंगे।"
"मेरे पापा तो सुन भी लेंगे, मगर मैं अपनी मॉम का क्या करूँ? वह बीमार है। सभी रिश्तेदार पापा से पहले ही कहते हैं, 'तुम कुड़ी को बिगाड़ रहे हो। यह कुड़ी तुम्हारे हाथ से निकल जाएगी। देख लेना, यह तुम्हारी मर्ज़ी से कभी शादी नहीं करेंगी।' मैं अपने मॉम और पापा का सिर नहीं झुका सकती।"
"चाहे तो इसके लिए तुम्हें किसी के साथ भी शादी करनी पड़े।" सैम ने कहा।
"चाहे मुझे जो भी करना पड़े, मगर मेरे पापा को यह नहीं लगना चाहिए कि उन्होंने मुझसे ज़्यादा प्यार किया, इसलिए यह सब हुआ। वह जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूँगी। वह मुझे बहुत ज़्यादा प्यार करते हैं। मेरे लिए तो वह कुछ भी कर सकते हैं।" स्नेहा बोली।
"अब आपको ही कुछ करना है। भाई, आप करो ना कुछ।" रणवीर ने सैम से कहा।
"मैं क्या करूँ?"
"मुझे शादी दिव्या से ही करनी है। एक बात साफ़ है। अब मैं डैड का क्या करूँ? बच्चों की तरह मेरे पीछे पड़कर मुझे जहाँ भेज दिया और खुद चले गए मेरी शादी की डेट फ़िक्स करने..." रणवीर को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?
"...मैं क्या करूँ... मगर मुझे शादी दिव्या से ही करनी है... मैं डैड का क्या करूँ... मुझे जहाँ भेज दिया और खुद चले कि मेरी शादी की डेट फिक्स करने..." रणवीर को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
"...तुम मेरी बात मानो, तुम चाचा जी से साफ़-साफ़ बात कर लो... कि तुम इस लड़की के साथ शादी नहीं करना चाहते..." सैम रणवीर से कहने लगा।
"...मैं डैड को ही फोन करके कहता हूँ..."
"...यह बात सही नहीं होगी... फोन पर मत कहो तुम... चाचा जी के साथ घर पर बात करो... अगर तुम आराम से बात करोगे, बिना गुस्सा किए, तो शायद वह तुम्हारी बात सुन लेंगे..." सैम रणवीर को समझा रहा था कि उसे अपने डैड से कैसे बात करनी चाहिए।
रणवीर ने अपने डैड को फोन लगाया। "...डैड, मुझे आपसे बात करनी है... आप इस वक़्त कहाँ हैं..."
"...मैं इस वक़्त शिवकुमार जी के घर पर हूँ... जल्दी ही घर आ रहा हूँ... मुझे तुम्हें खुशखबरी सुनानी है... तुम लोग घूम आए क्या... स्नेहा ने तुम्हें पटियाला शहर दिखा दिया..."
"...डैड, मैं आकर बताता हूँ..." रणवीर ने गाड़ी वापस मोड़ ली थी।
उन्होंने स्नेहा को घर के दरवाज़े के आगे छोड़ा। जब स्नेहा गाड़ी से उतरने लगी तो वह बोली, "...मैं जिंदगी में आप लोगों से फिर कभी ना मिलूँ... भगवान करे ऐसा हो जाए..."
रणवीर ने तो कुछ नहीं कहा, मगर सैम बोल पड़ा। "...हम भी यही सोचते हैं कि... तुम हमें फिर कभी ना मिलो... हम आज ही पटियाला से चले जाएँ... रणवीर का तो मुझे पता नहीं... मगर मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहता..." वे दोनों नहीं जानते थे कि तकदीर उन्हें हमेशा के लिए मिलाने वाली थी।
स्नेहा अपने घर चली गई थी। और रणवीर ने गाड़ी आगे बढ़ा ली थी।
रणवीर और सैम घर पहुँचे और उनके आने से पहले रवि जी भी घर वापस आ चुके थे। वे लाबी में बैठे हुए थे। रवि जी रणवीर और सैम को देखकर चहक कर बोले, "...अच्छा हुआ बच्चों, तुम वापस आ गए... मुझे तुम लोगों को खुशखबरी सुनानी है... मैंने तुम्हारी और स्नेहा की शादी पक्की कर दी है... परसों तुम लोगों की सगाई है... और शनिवार को, मतलब तीन दिन बाद, शादी..."
अपने डैड की बात सुनकर रणवीर सिकंदर की तरफ़ देखने लगा।
"...तुम सिकंदर की तरफ़ क्या देख रहे हो... मुझे पता है... तुम कहोगे इतनी जल्दी तैयारी कैसे होगी... देखो, स्नेहा की मॉम की तबीयत ठीक नहीं रहती... इसके लिए शादी सादगी के साथ होगी... बस परसों घर-घर के लोग होंगे... तुम दोनों की सगाई कर देंगे... और फिर शादी पर भी तामझाम नहीं होने वाला... बस शिवकुमार जी की तरफ़ से थोड़े से लोग होंगे... उनके रिश्तेदार होंगे... सादगी से तुम दोनों की शादी हो जाएगी... हम लोग दिल्ली जाकर रिसेप्शन करेंगे धूमधाम से... शिवकुमार जी तो कह रहे थे कि हम शादी के लिए थोड़े महीने रुक जाएँ... सगाई अभी कर देते हैं... वे बहुत धूमधाम से स्नेहा की शादी करना चाहते थे... मैंने उनसे कहा कि कोई बात नहीं... हम लोग रिसेप्शन धूमधाम से करेंगे... आप बस हमें अपनी बेटी दे दो..."
"...डैड, मुझे नहीं करनी शादी..." रणवीर की यह बात सुनकर रवि के चेहरे का रंग बदल गया।
वह गुस्से में बोला, "...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की... तुम्हारी शादी स्नेहा से ही होगी... एक बात याद रखो... अगर तुम उससे शादी नहीं करोगे... तो मैं तुम्हें बेदख़ल करता हूँ..."
"...तो और किस दोगे आप अपनी जायदाद... अपने बेटे को तो बेदख़ल कर दोगे..." घर के अंदर आती हुई रत्ना जी बोलीं।
"...जो कोई मेरी बात नहीं मानेगा वह मेरे साथ घर में नहीं रहेगा... इसलिए जैसा मैं कहूँगा वैसा ही होगा..." इतना कहकर रवि जी अपने कमरे में चले गए।
सैम उनके पीछे उनके कमरे तक गया। "...चाचा जी, आपको रणवीर की बात सुननी चाहिए... कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं होना चाहिए... यह रणवीर और स्नेहा की ज़िन्दगी का सवाल है... अगर वे दोनों एक-दूसरे को पसंद नहीं करेंगे... तो ज़िन्दगी साथ कैसे गुज़ारेंगे..."
"...मैंने तुम्हारी चाची जी को शादी के पहले नहीं देखा था... शादी की रात को ही देखा था... और साथ रह रहे हैं या नहीं... और फिर तुम्हारी मॉम-डैड की कौन सी लव मैरिज थी... भैया और भाभी में तो इतना प्यार था कि भैया भाभी के बिना साँस तक नहीं लेते थे... माँ-बाप जो फैसला करते हैं... बहुत सोच समझकर करते हैं..."
सैम तो उन्हें समझाने गया था, मगर उन्होंने सैम को ही समझाकर भेज दिया था। लाबी में रत्ना जी और रणवीर मुँह लटकाकर बैठे हुए थे। सैम उनके पास वापस आ गया। वह भी उनके पास आकर बैठ गया।
"...मैंने कोशिश की चाचा जी से कहकर शादी रोकने की... मगर वे नहीं रुक रहे..."
"...कोई बात नहीं भाई... मैं ही सोचता हूँ कि शादी कैसे रोकनी है..." "...तुम शादी कैसे रोकोगे... तुम्हारे डैड तुम्हें जायदाद से भी बेदख़ल कर देंगे..."
"...मगर मॉम, मैं शादी भी नहीं कर सकता..."
"...मेरी बात मानो, एक बार चुपचाप शादी कर लो... फिर उसके बाद देखते हैं क्या करना है... क्योंकि तुम्हारे डैड का मुझे अच्छे से पता है... वे तुम्हें सचमुच जायदाद से बेदख़ल कर देंगे... कम से कम एक बार सगाई तो करो..."
रणवीर सगाई करने के लिए मान गया था। उसे डर था उसके पापा सच में उसे जायदाद से निकाल देंगे। उधर स्नेहा परेशान थी। क्योंकि उसे रणवीर के बारे में सारी बात पता थी। जो लड़का किसी और से प्यार करता था, वह उसके साथ शादी नहीं करना चाहती थी। वैसे भी वह पटियाला छोड़कर दिल्ली नहीं जाना चाहती थी। उसकी इच्छा अपनी मॉम-पापा से दूर जाने की नहीं थी। फिर वह आगे पढ़ना भी चाहती थी। मगर वह समझ रही थी कि अब वह कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि अगर वह कुछ बोली तो उसकी मॉम की तबीयत ख़राब हो जाएगी।
"...क्या बात है, आज मेरी प्रिंसेस इतनी चुप क्यों है..." उसे ऐसा चुप बैठा देखकर शिवकुमार जी उसे कहने लगे। जो उसके मन में था, वह बात उसने अपने मन में दबा लिया।
वह बात बदलकर बोली, "...पापा, क्या मैं बहुत ज़्यादा बोलती हूँ..."
"...कौन कहता है कि मेरी प्रिंसेस बोलती है... मेरी प्रिंसेस घर में रौनक लगाकर रखती है... अगर मेरी प्रिंसेस चुप हो जाए तो चाँद-तारे खिलना छोड़ दें... दुनिया में अँधेरा हो जाए..." वे कहने लगे थे।
"...अब उससे शादी करके ससुराल जाना है... उसे यह बताओ... लड़कियों को ससुराल में कैसे रहना चाहिए... बल्कि आप तो उसे कह रहे हैं कि अगर वह चुप कर जाती है तो दुनिया में अँधेरा हो जाएगा..." स्वीटी जी दोनों बाप-बेटी के पास आते हुए बोलीं।
"...कौन कहता है कि मेरी प्रिंसेस बोलती है... मेरी प्रिंसेस घर में रौनक लगाकर रखती है... अगर मेरी प्रिंसेस चुप हो जाए तो चांद तारे खिलना छोड़ दें... दुनिया में अंधेरा हो जाए..." वो कहने लगे थे।
"...अब उससे शादी करके ससुराल जाना है... उसे यह बताओ... लड़कियों को ससुराल में कैसे रहना चाहिए... बल्कि आप तो उसे कह रहे हैं कि अगर वह चुप कर जाती है तो दुनिया में अंधेरा हो जाएगा..." स्वीटी जी दोनों बाप-बेटी के पास आते हुए बोलीं।
ऐसा नहीं था कि स्वीटी जी को स्नेहा से प्यार नहीं था। वह उसकी लाडली बेटी थी, मगर स्वीटी जी चाहती थीं कि उनकी बेटी ससुराल में रहने के तौर-तरीके सीखे। अगर वह ऐसे ही रही तो ससुराल में उसका समय कैसे बीतेगा?
"...मॉम, आप लोगों ने मेरी सगाई तो फिक्स कर दी है... क्या मेरी सगाई में मेरा छोटा भाई नहीं आ पाएगा...?"
"...हाँ बेटा, वह सगाई में तो नहीं आ पाएगा... मगर शादी वाले दिन तक आ जाएगा..."
स्नेहा का एक छोटा भाई साहिल दीप शर्मा था, जो अपनी पढ़ाई के लिए हॉस्टल में रहता था। "...सगाई की बात तो ठीक है माम... मगर आप मेरी शादी के लिए इतना जल्दी क्यों कर रही हैं?... वैसे अभी मेरी उम्र ही क्या है..." स्नेहा अपनी मॉम से पूछने लगी।
"...बेटा, वह क्या है कि... मेरी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं रहती... फिर उन्होंने खुद ही कह दिया... हम लोग शादी भी अभी कर लेते हैं... तुम उन्हें अच्छी ही इतनी लगी... तो मैंने इसलिए हाँ कह दी..." अब स्नेहा उन्हें क्या बताएँ कि रणबीर तो किसी और को पसंद करता है? वह चाह कर भी अपनी मॉम को यह बात नहीं बता सकती थी।
असल में स्वीटी जी की हालत बहुत खराब थी। डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन करना था और डॉक्टर ने कह दिया था कि ऑपरेशन के दौरान कुछ भी हो सकता है। वे अपनी ऑपरेशन से पहले स्नेहा की शादी करना चाहती थीं। शिवकुमार शर्मा जी भी अपनी बेटी की शादी के लिए इसीलिए मान गए थे क्योंकि वे स्वीटी की इस इच्छा को पूरा करना चाहते थे। शिवकुमार जी अपनी पत्नी स्वीटी से बहुत प्यार करते थे। वे नहीं चाहते थे कि ऐसा कुछ हो जो उनकी पत्नी की इच्छा के खिलाफ हो। इसलिए वे ना चाहते हुए भी स्नेहा की शादी में जल्दबाजी कर रहे थे। वरना वे अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहते थे।
"...कल शॉपिंग पर सुबह हम जल्दी चलेंगे... तुम्हें अपनी सगाई में पहनने के लिए ड्रेस भी खरीदनी होगी..." शिव कुमार जी बोले।
"...ठीक है पापा... हम लोग जल्दी चले जाएँगे..." स्नेहा ने कहा।
"...स्नेहा, तुम अपनी उस बुटीक वाली फ्रेंड से बात करो... उसके पास कोई अच्छा सा लहंगा सगाई में पहनने वाला तैयार हो तो... हम वहीं से ले लेंगे..." स्वीटी जी कहने लगीं।
"...उस दिन जब मैं अपना सूट लेने गई थी... उसके पास तो एक बहुत अच्छी ड्रेस देखी थी मैंने..."
"...ठीक है माम, मैं उसको फोन करती हूँ... उसके पास कुछ होगा तो वह मुझे उसकी पिक्चर भेज देगी..."
वे दोनों बाप-बेटी बात करने लगे। स्वीटी जी उनसे बात करके अपने कमरे में चली गईं। "...बेटा, क्या बात है... तुम्हें अपनी सगाई की खुशी नहीं है क्या..." शिव कुमार जी बोले, "...तुम्हारे चेहरे पर खुशी दिखाई नहीं दे रही मुझे... तुम खुश नहीं हो इस सगाई से..."
"...पापा, ऐसी बात नहीं है... आप लोगों से दूर जाने का दुख है... अब मैं एक ही हफ्ते में यहाँ से चली जाऊँगी..." वो अपने पापा के गले लग गई।
"...हम आएँगे ना तुमसे मिलने जल्दी-जल्दी... ऐसी उदास नहीं होती बेटा... तुम्हें रणवीर पसंद तो है ना..." शिवकुमार जी ने पूछा।
"...हाँ पापा, कैसी बातें कर रहे हैं आप... बिल्कुल पसंद है..." ना चाहते हुए भी स्नेहा को यह बात कहनी पड़ रही थी क्योंकि उसकी माँ शादी से खुश थी और वह उनका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। स्नेहा को अपनी माँ की हालत का पता था।
उधर रणवीर रात को सैम के पास चला गया। "...भाई, कुछ तो करो... मुझे उस लड़की के साथ शादी नहीं करनी... सच कहता हूँ... मुझे वह लड़की ही पसंद नहीं है..."
"...अब मैं क्या कर सकता हूँ... मैंने चाचा जी से बात करने की बहुत कोशिश की... मगर वे मेरी बात नहीं सुन रहे हैं... पता नहीं क्या है उस लड़की में... जो हर हाल में वे तुम्हारी शादी उससे करना चाहते हैं... मुझे नहीं लगता... तुम सगाई और शादी से भाग सकते हो... सोच लो, चाचा जी तुम्हें प्रॉपर्टी से बेदखल कर देंगे..."
"...मॉम ने मुझसे कहा है कि मैं एक बार सगाई कर लूँ... शादी की बात बाद में देखी जाएगी..."
"...तो फिर सगाई तो कर रहे हो ना तुम..." सैम ने रणबीर से पूछा।
"...सगाई तो मैं कर रहा हूँ... मगर शादी का नहीं पता क्या होगा... मुझे तो वह लड़की भी बहुत चालाक लगती है... जब उसे सारी बात पता है... कि मैं किसी और से प्यार करता हूँ... फिर भी वह मुझसे शादी करने को तैयार है..."
"...बात तो तुम्हारी सही है रणवीर... वह शक्ल से ही भोली दिखती है... पर है नहीं... इतना पैसावाला अमीर लड़का उसे मिल रहा है... एक बार शादी हो जाए... फिर अगर तलाक भी होता है... तो भी उसे अच्छे खासे पैसे मिल जाएँगे... इसीलिए वह शादी के लिए मान रही है... चाचा जी यह बात नहीं समझ रहे... उन्हें लगता है यह लड़की सीधी-सादी है, शादी होगी..."
वे दोनों स्नेहा के बारे में बात कर रहे थे। उन दोनों को लग रहा था स्नेहा पैसे की लालची और चालबाज लड़की है जो रणबीर के बारे में सारी बात जानते हुए भी शादी करने को तैयार हो गई है। रणवीर और सैम को असली बात नहीं पता थी कि स्वीटी जी की हालत बहुत खराब है। उनका दिल का ऑपरेशन होने वाला है जो बहुत रिस्की है। इसीलिए शिव कुमार शर्मा जी अपनी बेटी की शादी में जल्दबाजी कर रहे थे।
रवि जी को अपनी बहू के रूप में ऐसी ही सीधी-सादी लड़की चाहिए थी। इसीलिए वे बहुत जल्दी रणवीर की शादी करना चाहते थे। अगर रणवीर एक बार पटियाला से गया तो फिर कभी शादी करने के लिए वहाँ नहीं आएगा। यह बात रवि जी को पता थी।
रवि जी को अपनी बहू के रूप में ऐसी ही सीधी-साधी लड़की चाहिए थी। इसलिए वे जल्दी रणवीर की शादी करना चाहते थे। अगर रणवीर एक बार पटियाला से गया तो फिर कभी शादी करने के लिए वहाँ नहीं आएगा। यह बात रवि जी को पता थी।
स्नेहा रात को अपने बिस्तर पर लेटी हुई अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे रणवीर के बारे में पता था। वह जानती थी कि वह किसी और से प्यार करता है। उसे यह भी पता था कि रणवीर उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करता। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? "मैं यह सब क्यों सोच रही हूँ... इस समय मेरी ज़िन्दगी से ज़्यादा मेरी माँ की ज़िन्दगी मुझे प्यारी है... मैं उनके लिए कुछ भी कर सकती हूँ... फिर यह भी हो सकता है कि रणवीर के पास कोई प्लान हो..." स्नेहा ने सोचा।
उधर, अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ रणवीर अपनी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा था। "...अब तुम ही बताओ... क्या करूँ मैं... मेरा उस लड़की से पीछा नहीं छूट रहा है..."
"...मेरे पास एक प्लान है... अगर तुम मेरी बात मानो तो..." आगे से दिव्या ने कहा।
"...हाँ बोलो... क्या प्लान है तुम्हारे पास...?" "...तो ठीक है, सुनो..." दिव्या ने उसे अपना प्लान बताया।
दिव्या की बात सुनने के बाद रणवीर ने कहा, "...मगर मेरे पापा ने मुझे ज़्यादाद से बेदखल कर दिया तो... उन्होंने मुझसे यही कहा है... अगर मैं उनकी बात नहीं मानूँगा तो... मुझे मेरी प्रॉपर्टी नहीं मिलेगी..."
"...तुम उसकी फ़िक्र मत करो... कोई माँ-बाप अपनी औलाद को बेदखल नहीं कर सकता... जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही करेंगे..."
"...ठीक है..." रणवीर मान गया। "...तुम एक बार सगाई कर लो... फिर देखते हैं हमें क्या करना है..." रणवीर सगाई करने के लिए मान गया था।
सैम लैपटॉप लेकर अपना काम कर रहा था। उसे वहाँ से जाने की बहुत जल्दी थी। उसका सारा काम रुका हुआ था। उसकी ज़िन्दगी के बहुत सारे प्लान थे। उसे इंडिया का नहीं, एशिया का नंबर वन बिज़नेसमैन बनना था। इसके लिए वह बहुत दिन-रात मेहनत कर रहा था। पटियाला में जो दिन बीत रहे थे, उसे लग रहा था कि उसके काम का बहुत नुकसान हो रहा है। वह तो एक-दो दिन के लिए ही आया था, मगर यहाँ आकर फँस गया था।
"...चालाक लड़की की वजह से देरी हो रही है... उस लड़की को अच्छे से पता है... वह हर बात जानती है... कि उसका और रणवीर का रिश्ता कभी पूरा नहीं होगा... फिर भी शादी कर रही है... सिर्फ़ पैसों के लिए... दिखने में वह मासूम सी और छोटी सी लगती है... मगर शैतान की नानी है... उसे स्नेहा से नफ़रत हो रही है..."
रवि जी ने अपने मन में रणवीर और स्नेहा की शादी का पूरा प्लान बना लिया था। एक दिन छोड़कर उन दोनों की सगाई होनी थी और शनिवार को शादी। जाते हुए वे लोग स्नेहा को साथ लेकर जाएँगे। यह रवि जी ने सोच लिया था। उसे अपनी बेटी और बीवी के दिमाग में क्या चल रहा है, इस बात का अच्छे से पता था। मगर उसे लगता था कि स्नेहा ही उसके परिवार के लिए एक सही लड़की है। एक बार स्नेहा उनके घर चली जाए, वह रणवीर और उसकी पत्नी रत्ना दोनों को ही अच्छी लगने लगेगी।
रवि जी का मानना था कि उनका आज तक कोई फैसला गलत नहीं हुआ और आज भी नहीं होगा। वे तो सैम की भी शादी करना चाहते थे। मगर सैम का स्वभाव उन्हें पता था। वह एक ज़िद्दी लड़का था और वह हमेशा अपनी मनमानी ही करता था। सबसे बड़ी बात, उसका ध्यान बिज़नेस की तरफ़ था। रणवीर और सैम में बहुत ज़्यादा फ़र्क़ था। यह बात रवि जी को पता थी।
रवि जी की पत्नी रत्ना जी को स्नेहा बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी। उसे लगता था कि एक छोटे घर की, छोटे शहर की लड़की उनके बेटे के लिए सही नहीं है। असल में उसे दिव्या पसंद थी। अगर रणवीर दिव्या से शादी करना चाहता है, तो रत्ना को उससे कोई प्रॉब्लम नहीं थी। अब जब रवि जी रणवीर और स्नेहा की शादी करना चाहते थे, तो रत्ना जी को इस बात का बहुत गुस्सा था। मगर वह अच्छे से जानती थी कि उसका पति उसकी बात कभी नहीं मानेगा। रवि जी के गुस्से के बारे में उसे अच्छे से पता था।
दिव्या, रणवीर की गर्लफ्रेंड, एक अमीर बाप की बेटी थी। उनका अपना बहुत बड़ा बिज़नेस था। दिव्या के डैड को भी रणवीर पसंद थे। मगर असलियत में उनका उसके डैड के ऊपर बहुत सारा कर्ज़ था, जिसको चुकाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। वे लोग बर्बाद होने की कगार पर थे। अगर इस समय दिव्या और रणवीर की शादी हो जाती है, तो उनका नाम रवि खन्ना के नाम के साथ जुड़ जाता, तो बहुत फ़ायदा होना था उन लोगों को इस बात का। इसलिए हर हाल में वे बाप-बेटी यह चाहते थे कि रणवीर की दिव्या से शादी हो जाए। अब जब रवि जी स्नेहा और रणवीर की शादी करना चाहते थे, तो इस बात से उन्हें बहुत प्रॉब्लम थी। वे किसी भी तरह रणवीर और दिव्या की शादी करवा देना चाहते थे।
दिव्या के डैड, दविंदर कुमार, किसी जमाने के बहुत बड़े बिज़नेसमैन थे। मगर धीरे-धीरे उनके बिज़नेस में उनको बहुत नुकसान होने लगा। इसका कारण खुद की गलत आदतें थीं। फिर उन पर इतना कर्ज़ हो गया कि वह चुकाया नहीं जा सका। तब किसी पार्टी में उन्होंने रणवीर खन्ना को देखा तो उनके दिमाग में प्लान आया। उन्होंने अपनी बेटी को रणवीर के पीछे लगा दिया। अगर उनकी बेटी की शादी रणवीर खन्ना से किसी भी हाल में हो जाए तो उनका बिज़नेस बच सकता है।
दिव्या के पिता दविंदर कुमार अपने समय के बहुत बड़े बिजनेसमैन थे। मगर धीरे-धीरे उनके बिजनेस को बहुत नुकसान हुआ। इसका कारण उनकी खुद की गलत आदतें थीं। फिर उन पर इतना कर्ज हो गया कि उसे चुकाना मुश्किल था। तब किसी पार्टी में उन्होंने रणबीर खन्ना को देखा। उनके दिमाग में एक योजना आई। उन्होंने अपनी बेटी को रणबीर के पीछे लगा दिया। अगर उनकी बेटी की शादी रणबीर खन्ना से हो जाए, तो उनका बिजनेस बच सकता था।
अगले दिन सुबह स्वीटी जी ने स्नेहा को जल्दी उठा दिया।
"माँ, मुझे इतनी जल्दी नहीं उठना है... थोड़ी देर सोने दो ना..."
"नहीं स्नेहा, उठो... कल को तेरी सगाई है... आज ही सारी तैयारी करनी है। सगाई की ही नहीं, शादी की लिए भी शॉपिंग करनी है... दिन ही कितने हैं... सगाई और शादी में..." स्वीटी जी यह कहकर स्नेहा को जागने लगीं।
सगाई और शादी का सुनकर स्नेहा चुपचाप उठ गई। उसे ऐसे चुप देखकर स्वीटी जी ने कहा,
"...क्या हुआ? क्या हुआ सोनू... तो ऐसे ही उठ गई..."
"...आप उठा रही हो माँ... तो मुझे उठना ही है..."
"...यह मेरी बेटी इतनी आज्ञाकारी कैसे हो गई..." उसने लाड़ से कहा।
"...अब तो मैं आपके पास थोड़े ही दिनों के लिए हूँ माँ, इसलिए..."
"...भाई, दोनों माँ-बेटी ही एक-दूसरे पर प्यार लुटाओगे... मेरा नंबर भी आएगा... क्या पापा, आप भी आ जाओ..." स्नेहा ने शिव कुमार जी से कहा।
"...जल्दी उठो स्नेहा बेटा... आज हम लोग शॉपिंग के लिए जा रहे हैं... बहुत सारी शॉपिंग करनी है हमें... समय तो बिल्कुल भी नहीं है..." स्वीटी जी और शिव कुमार जी शादी की बातें कर रहे थे। मगर स्नेहा का ध्यान रणवीर की गर्लफ्रेंड में अटका हुआ था।
"...अभी रणवीर के परिवार को अपने घर बता देना चाहिए कि उसे मुझसे नहीं, किसी और से शादी करनी है... मेरे घर में यह नाटक तभी बंद होगा..." स्नेहा सोचने लगी।
"...बस माँ, मैं जल्दी से तैयार होती हूँ..." स्नेहा जल्दी से उठ गई।
"...आज तुम कोई अच्छा सा सूट पहनना..."
"...क्यों माँ? किस लिए..."
"...तुम्हारी सास और तुम्हारे होने वाले ससुर भी शायद आ जाएँ... रवि भाई साहब कह रहे थे कि शॉपिंग के दौरान वे भी आ जाएँगे... उनको भी तो तुम्हारे लिए शॉपिंग करनी है..."
"...ठीक है... ठीक है माँ... कोई बात नहीं, मैं कोई खूबसूरत सा सूट पहनूँगी..."
शिव कुमार जी और स्वीटी जी उसके कमरे से बाहर चले गए। स्नेहा अपनी अलमारी खोलकर देखने लगी।
"...क्या पहनूँ आज मैं..." उसे ऑरेंज कलर का प्लाजो सूट पसंद आ गया था। शर्ट का कलर ऑरेंज और प्लाजो का व्हाइट था। ऑरेंज और व्हाइट के कॉम्बिनेशन में खूबसूरत सा दुपट्टा था।
"...यही पहन लेती हूँ... यह सूट अच्छा लगेगा मुझ पर..."
"...माँ, सबसे पहले अपनी फ्रेंड के बुटीक पर जाना है मुझे... उसके पास भी बहुत खूबसूरत सूट होते हैं... और मैं वैसे भी उसे दो सूट दिए थे वर्क करने के लिए... वह तैयार हो गए होंगे..."
"...ठीक है बेटा... देख लो... तुम्हारी फ्रेंड आ रही है क्या..."
"...हाँ, मैंने उससे कहा था कि वह आ जाएगी... मैंने भी उससे कहा कि मुझे तुम्हारी हेल्प की ज़रूरत है... आप लोग शादी के लिए इतना जल्दी कर रहे हैं... वरना सूट तो मैं खुद ही तैयार करवा लेती... मुझे अपने सूट खुद तैयार करवाना बहुत पसंद है... मैं अपनी पसंद का कपड़ा लेकर... उस पर अपनी पसंद की कढ़ाई कराती हूँ... और आपको पता है मुझे स्टिचिंग आती भी है... और मैं अपनी पसंद की ही स्टिचिंग कराती हूँ..."
"...बेटा, फिर चाहे जो मर्ज़ी करना... अभी हमें जल्दी है... तो तुम खुद तैयार करने की बजाय सूट खरीद लो... और फिर तुम्हें साड़ियाँ भी खरीदनी होंगी... वहाँ दिल्ली में तो सब लोग साड़ियाँ पहनते हैं... तुमने देखा है ना रत्ना जी भी साड़ी पहनती हैं... वह पंजाब नहीं है... जहाँ पर लोग सूट ही पहनते हैं..."
"...पता है पापा, मुझे साड़ी पहनना बिल्कुल पसंद नहीं... मुझे तो सूट ही अच्छे लगते हैं..."
"...शादी के बाद चाहे सूट पहन लेना... मगर साड़ियाँ खरीदनी तो पड़ेंगी ना..." स्वीटी जी बोलीं।
स्नेहा सोचने लगी, मैंने तो रणवीर का नंबर ही नहीं लिया। वरना उसे फोन करके कहती कि "...इस ड्रामा को रोको... मुझे ऐसे सूट-साड़ियाँ खरीदने पड़े हैं... शॉपिंग का क्या करूँगी मैं..." स्नेहा अपने आप से बात कर रही थी।
स्नेहा ने बुटीक से कुछ अपने लिए सूट खरीद लिए। फिर स्नेहा अपनी माँ और पापा के साथ एक बड़ी साड़ियों की दुकान पर चली गई। स्नेहा साड़ियाँ देख रही थी।
"...मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है... इसमें से कौन सी अच्छी है... कौन सी नहीं..." स्नेहा ने कहा।
"...यह देखो ना... यह खरीद लो... वह लाल साड़ी कितनी सुंदर है..." शिव कुमार जी बोले। तभी स्वीटी जी की नज़र दुकान में आते हुए रवि जी, रत्ना जी, रणवीर और सैम पर गई। वे चारों दुकान के अंदर आ रहे थे।
"...तुम्हारे ससुराल वाले भी आ गए..." स्वीटी जी ने कहा। स्नेहा और शिव कुमार जी पलटकर उन लोगों की तरफ देखने लगे। उन लोगों को देखकर स्नेहा को राहत की साँस आई।
"...अब शॉपिंग बंद कर देंगे... यह लोग आ गए हैं..."
"...चलो आप ही बताओ... इनमें से साड़ियाँ कौन सी अच्छी है..." स्वीटी जी ने उनसे कहा। वे सभी आपस में मिलने के बाद साड़ियाँ देखने लगे। "...मुझे तो लगा था कि शॉपिंग रोक देंगे... यह तो खुद ही साड़ियाँ खरीदने लगे..." स्नेहा सोचने लगी।
उन लोगों ने वहाँ से शॉपिंग कर ली।
"...चलिए कहीं पर हम लोग लंच करते हैं..." वे लोग लंच के लिए होटल में चले गए।
"...ऐसा करो बच्चों, तुम तीनों अलग टेबल पर बैठ जाओ..." रवि जी ने कहा।
स्नेहा, सैम और रणवीर अलग टेबल पर बैठ गए थे। अकेले में सबसे पहले स्नेहा रणवीर से बोली,
"...अभी तक अपने-अपने माँ-बाप को नहीं बताया कि आपको मुझसे शादी नहीं करनी है..."
"...नहीं..."
"...क्यों नहीं बताया... आप बता दीजिए..."
"...इसकी बात कोई नहीं सुनने वाला..." सैम ने कहा।
"...तो फिर आप बता दो ना..."
"...वैसे तो तुम इतना बोलती हो... अपने घर तुम ही बता दो यह बात... तुम शादी के लिए मना कर दो..." सैम ने स्नेहा से कहा।
"...मैं पहले ही बता चुकी हूँ, मैं मना नहीं कर सकती..."
"...अब आप दोनों लड़ने मत लग जाना... वैसे तुम दोनों आज सेम कलर के कपड़े पहनकर आए हो..." रणवीर ने कहा।
सैम और स्नेहा ने एक-दूसरे के कपड़ों पर ध्यान दिया। सैम ने ऑरेंज टी-शर्ट पहनी हुई थी। हाफ बाजू की टी-शर्ट में उसके मजबूत बाजू दिखाई दे रहे थे और उस फिट टी-शर्ट में उसके शरीर के सारे कट नज़र आ रहे थे। वह ऑरेंज टी-शर्ट में बहुत अट्रैक्टिव लग रहा था। इससे पहले स्नेहा ने सैम पर ध्यान नहीं दिया था। बस एक नज़र उसे देखती ही रह गई थी। सैम की नज़र भी स्नेहा पर ठहर गई थी।
रणवीर ने कहा, “अब तुम दोनों लड़ने मत लग जाना... वैसे तुम दोनों ने सेम कलर के कपड़े पहने हुए हैं...” स्नेह और सैम ने एक-दूसरे के कपड़ों पर ध्यान दिया। सैम ने ऑरेंज टीशर्ट पहनी हुई थी। हाफ बाजू की टीशर्ट में उसके मजबूत बाजू दिखाई दे रहे थे। उसकी फिट टीशर्ट में उसकी एक्सरसाइज की हुई बॉडी के सारे कट नुमाया हो रहे थे। वह बहुत आकर्षक लग रहा था। वह सचमुच किसी भी लड़की के ख्वाबों का राजकुमार था।
सिकंदर खन्ना, जिसे सब सैम कहते थे, 6 फीट 1 इंच लंबा था। उसका गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श, भूरी आँखें और हल्के भूरे बाल थे। वह हल्की-हल्की दाढ़ी रखता था, जो पूरी तरह से काली नहीं थी। उसकी एक्सरसाइज की हुई मस्कुलर बॉडी थी। सचमुच वह लड़कियों के ख्वाबों का राजकुमार था। स्नेहा की नज़र अपने आप उस पर ठहर गई थी।
स्नेहा ने भी ऑरेंज कुर्ता पहना था और उसने मेकअप के नाम पर सिर्फ़ अपनी आँखों में मोटा-मोटा काजल लगाया हुआ था, जो उसकी काजल वाली आँखों को बहुत ही आकर्षक बना रहा था। ना तो उसने चेहरे पर कुछ लगाया था और ना ही होठों पर। उसके बाल खुले हुए थे। वह बहुत सुंदर लग रही थी। सैम चाहे बहुत सी लड़कियों से मिला हो, मगर शायद ही उसने कभी किसी को ऐसे देखा हो। सैम की नज़रें भी स्नेहा के चेहरे पर रुक गई थीं। वह उसकी मोटी-मोटी आँखों में एकदम डूबने लगा था। दोनों एक-दूसरे की आँखों में जैसे खो गए थे। रणवीर उनके पास बैठा अपना फ़ोन देखने में व्यस्त था।
तभी वेटर ने आकर उनके पास ट्रे रखी।
वेटर बोला, "...हाँ सर, कुछ और लेकर आऊँ...?" वेटर की आवाज से सैम और स्नेहा दोनों को होश आया।
स्नेहा को अपने आप पर शर्म आ रही थी। उसने कहा, "...स्नेहा, तूं पागल तो नहीं हो गई... कहाँ देख रही है... ऐसे बेशर्मी से भरी नज़रों से किसी लड़के को ऐसे कौन देखता है... तुमने आज तक नहीं ऐसे किसी को देखा..."
उधर, सैम भी अपने आप को बहुत बुरा महसूस कर रहा था। वह सोच रहा था, "...इस लड़की को मेकअप तक करना नहीं आता... ऐसे ही उठकर चली आई... क्या ज़रूरत थी सैम, तुझे उसके चेहरे को ऐसे देखने की... मुझे लगता है... इसे कोई काला जादू आता है... जो इन मोटी-मोटी काली-काली आँखों से करती है... इसीलिए तो इतना सारा काजल डालकर आई है... जब कोई और मेकअप नहीं किया, तो काजल डालने की क्या ज़रूरत थी..." वह स्नेहा की आँखों में खो गया था। वह इस बात को मानने को तैयार नहीं था।
उसने अपने मन ही मन सारा दोष स्नेहा पर डाल दिया था कि वह कोई काला जादू जानती है। काला जादू तो नहीं, मगर काजल वाली आँखों का जादू ज़रूर था।
वह सोचता रहा, "...अब यह सोच रही होगी... रणवीर तो इससे शादी करेगा नहीं... इसको लगता है, अब जब इसकी शादी रणवीर से नहीं हो सकती... तो यह शायद मुझे फँसाना चाहती है... इसीलिए यह बिना मेकअप के आई है... क्योंकि इसे पता है, मुझे ज़्यादा मेकअप पसंद नहीं है... ठीक है कि मुझे लड़कियों की काजल वाली आँखें अच्छी लगती हैं... इसका मतलब यह थोड़ी ना है कि मुझे फँसा लेगी... मगर इसे कैसे पता चला कि मुझे काजल वाली आँखें शुरू से ही बहुत पसंद हैं... मुझे लगता है... काले जादू से इसे सब पता चल जाता है... इसीलिए इसे रणवीर और उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में पता चला... सोशल मीडिया का तो इसने बहाना बना दिया..."
रणवीर ने सैम को बड़बड़ाते देखकर कहा, "...भाई, आप क्या बोल रहे हो... जरा ऊँची बोलो ना... मुझे समझ नहीं आ रहा..."
सैम ने कहा, "...नहीं... नहीं... कुछ नहीं... कुछ नहीं..." स्नेहा वहाँ से उठकर अपनी माँ-बाप के पास चली गई थी।
स्नेहा बोली, "...मैं जहाँ बैठ जाऊँ... आप लोगों के पास..."
रवि जी बोले, "...हाँ... हाँ बेटा, आओ बैठो... मगर तुम उन दोनों के पास से क्यों चली आई...?"
स्नेहा ने कहा, "...बस मेरा मन किया कि मैं आपसे बातें करूँ... इसलिए मैं आ गई..."
अब वह क्या-क्या बताती कि उसने क्या किया है? स्नेहा को अपने आप पर बहुत शर्म आ रही थी। उसे यह भी पता चल गया था कि सैम को पता चल गया है कि वह उसे देख रही थी। उधर यही हाल सैम का था। उसे लगा स्नेहा को भी पता चल गया है कि वह उसे देख रहा था।
वह अभी भी अपने आप से गुस्सा था। उसने कहा, "...क्या ज़रूरत थी देखने की..." दोनों सिर्फ़ अपने-अपने बारे में सोच रहे थे। दूसरा भी उन्हें देख रहा था, इस बात का उन्हें होश ही नहीं था। सैम भी खड़ा हो गया।
रणवीर ने सैम से पूछा, "...भाई, आप कहाँ जा रहे हो...?"
सैम ने कहा, "...मुझे कुछ काम है..."
रणवीर हैरान होकर बोला, "...जहाँ पर आपका क्या काम हो सकता है...?"
सैम ने रणवीर की बात नहीं सुनी और वह वहाँ से चला गया। सैम होटल से ही बाहर चला गया था। उसने अपने चाचा जी को मैसेज कर दिया था कि उसे कुछ काम है। असल में वह स्नेहा का सामना नहीं करना चाहता था।
सैम के चले जाने से स्नेहा ने चैन की साँस ली। उसने कहा, "...शुक्र है वो चला गया..." रणवीर भी उठकर उन सभी के पास आ गया था।
रणवीर बोला, "...मैं वहाँ पर अकेला रह गया था... मैं भी आप ही के पास बैठ जाता हूँ..."
रवि जी बोले, "...हाँ बेटा, तुम भी बैठो..." रवि जी को लग रहा था कि रणवीर स्नेहा के पीछे वहाँ तक आया है। मगर असली बात कुछ और थी, जो असली बात थी, उसके बारे में स्नेहा और सैम ही जानते थे।
उन्होंने कहा, "...बहन जी, अब कल बच्चों की सगाई है... उसकी तैयारी भी करनी है..."
उन्होंने कहा, "...तैयारी आपको क्या करनी है... सिर्फ़ हम तीनों होंगे और आप होंगे..."
शिवकुमार जी ने कहा, "...नहीं, हमारी तरफ़ से तो कई रिश्तेदार और भी आ रहे हैं... स्नेहा के चाचा जी और कई और रिश्तेदार भी आ रहे हैं... जो पटियाला में ही रहते हैं... वे आ जाएँगे उस दिन..."
उन्होंने कहा, "...चलो ठीक है... कल दोनों बच्चों की सगाई हो जाए... और संडे को शादी... फिर हम स्नेहा बिटिया को साथ में ले जाएँगे... हमारे घर में भी रौनक हो जाएगी..."
"...बहन जी, कल बच्चों की सगाई है... उसकी तैयारी भी करनी है..."
"...तैयारी आपको क्या करनी है... सिर्फ हम तीनों होंगे... और आप होंगे..."
"...नहीं, हमारी तरफ से तो कई रिश्तेदार और भी आ रहे हैं..." शिवकुमार जी ने कहा। "...स्नेहा के चाचा जी और कोई रिश्तेदार भी आ रहे हैं... जो पटियाला में रहते हैं... वे उस दिन आ जाएँगे..."
"...चलो ठीक है... कल दोनों बच्चों की सगाई हो जाए... और संडे को शादी... फिर हम स्नेहा बिटिया को साथ ले जाएँगे... हमारे घर में भी रौनक आ जाएगी..." रवि जी कहने लगे।
रवि जी की बात सुनकर रत्ना जी मुस्कुराईं। उसकी मुस्कान झूठी थी क्योंकि वह अपने बेटे के चेहरे की तरफ देख रही थी। जिसके चेहरे पर बिल्कुल भी खुशी नहीं थी। मगर वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी। उसे पता था कि उसका पति उसकी बात नहीं मानेगा। थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद, वे सभी वहाँ से खड़े हो गए। वे सब लोग अपने-अपने घर की तरफ चले गए।
रात को खाना खाते हुए स्नेहा सोच रही थी, "...आखिर रणवीर अपने घर क्यों नहीं बता रहा... उसे समझ नहीं आ रहा था... कि वह ऐसा क्यों कर रहा है... जब तक रणवीर अपने घर पर बात नहीं करेगा... तब तक उन दोनों के घरवाले उनकी शादी के लिए बहुत सीरियस हो जाएँगे... रणवीर को जल्दी से जल्दी अपने घर बता देना चाहिए..."
"...तुम्हारा ध्यान कहाँ है...?" शिवकुमार जी बोले।
"...तुम वैसे ही प्लेट लेकर बैठी हो... तुमने तो कुछ खाया ही नहीं... अच्छा समझा... तुम्हारी सगाई हो रही है... और फिर शादी करके तुम दिल्ली चली जाओगी... इसी बात को लेकर सोच रही हो... दिल्ली कौन सा दूर है... पटियाला से हम तुमसे मिलने आया करेंगे... मैं तो सोच रहा हूँ कि मैं अपना ट्रांसफर दिल्ली ही कर लूँगा... और हम लोग दिल्ली शिफ्ट हो जाएँगे... तुम्हारे बिना थोड़ी ना मेरा मन लगेगा... फिर साहिल को भी हॉस्टल से नहीं रहना पड़ेगा... उसे हम दिल्ली पढ़ने लगा देंगे..."
"...नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।... साहिल चंडीगढ़ में पढ़ता है... उसे वहीं पढ़ने दो, उसके करियर का सवाल है, ऐसे थोड़ी ना... हम उसकी पढ़ाई खराब नहीं कर सकते हैं..." स्नेहा बोली।
"...अभी तो मेरी सगाई हो रही है... कौन सी शादी है...?" "...तीन-चार दिन बाद तुम्हारी शादी है..."
"...अभी तीन-चार दिन तो हैं ना..." स्नेहा ने कहा। स्नेहा को लगा था शायद तब तक रणवीर अपने घर बता देगा और उसकी शादी यहीं पर रुक जाएगी।
उधर, रात को रणवीर सैम के कमरे में गया। "...भाई, आप बात करो ना डैड से... मुझे सगाई और शादी नहीं करनी है स्नेहा से... अब आप ही बात करो डैड से..."
"...मैंने कोशिश की थी, मेरी बात नहीं मान रहे हैं... मुझे तुम्हारे लिए वह लड़की बिल्कुल भी पसंद नहीं..."
"...सही बात है... चलो ऐसा करते हैं... हम लोग एक बार फिर कोशिश करके देखते हैं..." रणवीर ने कहा।
वे दोनों रवि जी से बात करने के लिए लॉबी में आ गए थे। रवि जी और उनकी पत्नी रत्ना जी लॉबी में ही बैठे हुए थे। "...आओ आओ दोनों भाई, क्या कर रहे हो...?"
"...चाचू, हमें आपसे कोई बात करनी थी..."
"...हाँ, कहो, क्या बात है... सीधे-सीधे कहो, क्या कहना है तुम्हें...?"
"...रणवीर स्नेहा के साथ शादी नहीं करना चाहता... यह किसी और को पसंद करता है... मुझे लगता है आपको इसकी बात मान लेनी चाहिए..." सैम कहने लगा।
"...तो यह साथ लेकर आया है तुम्हें... मैं इससे पहले भी कह चुका हूँ और अब भी कहता हूँ... अगर इसे मेरी जायदाद चाहिए... तो इसे स्नेहा के साथ शादी करनी होगी... वरना यह किसी के साथ भी शादी कर सकता है... मेरी तरफ से कोई जबरदस्ती नहीं है इसके साथ..." इतना कहकर रवि जी खड़े होकर अपने कमरे में चले गए।
"...तुम्हारे पापा सच में तुम्हें जायदाद से बेदखल कर देंगे... एक बार शादी कर लो तुम स्नेहा से... बाद में तलाक ले लेंगे... मुझे और कोई रास्ता नहीं दिख रहा है... तुम्हें तुम्हारे पापा के गुस्से का पता है... उसे लड़की ने पता नहीं तुम्हारे डैड पर क्या जादू किया है..." रत्ना जी रणवीर को समझाने लगीं।
रणवीर और सैम दोनों समझ गए थे कि रवि जी उनकी बात नहीं मानने वाले। वे दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए। सैम को स्नेहा पर गुस्सा आ रहा था।
"...जब उसे पता है... वह अपने घर पर क्यों नहीं कहती... क्यों रणवीर के साथ सगाई कर रही है... बहुत चालक लड़की है वह... वह रणवीर के साथ शादी करके एक हाई प्रोफाइल लाइफ जीने का सपना देख रही है... मुझे नफरत है ऐसी लड़कियों से..." सैम अपने आप से कह रहा था।
"...जब से सैम स्नेहा के चेहरे में खो गया था... उसकी आँखों में डूब गया था... वह उससे और भी नफरत करने लगा था..." उसे लगता था कि स्नेहा उसे भी जाल में फँसाने की कोशिश कर रही है। "...अब सैम को कौन बताए... स्नेहा ने कुछ नहीं किया... वह खुद ही डूबा था उसकी काजल की आँखों में..." स्नेहा पर दोषारोपण से सच्चाई बदलने वाली नहीं है।
स्नेहा के बारे में सोचते-सोचते सैम सो गया था। रात को सपना भी उसे स्नेहा का ही आ रहा था। सपने में सैम की किसी के साथ शादी हो रही थी। शादी के बाद वह उस लड़की का घूंघट उठाकर देखने लगता है। जब वह घूंघट उठाता है, तो देखता है कि वह लड़की स्नेहा थी।
झट से सैम की आँख खुल गई। "...मुझे लगता है उस लड़की को सचमुच कोई काला जादू आता है... अब तो वह मेरे सपने में भी आने लगी है..." वह उठकर बैठ गया था। उसने उठकर थोड़ा सा पानी पिया। वह फिर लेटकर सोने की कोशिश करने लगा था। मगर नींद उसकी आँखों से दूर थी।
"...मैं तो कल सगाई में ही नहीं जाऊँगा... उसकी आँखों से जितना हो सके दूर रहना है..." सैम अपने आप को समझा रहा था।
"...मैं तो कल सगाई में नहीं जाऊँगा... उसकी आँखों से जितना हो सके दूर रहना है..." सैम अपने आप को समझा रहा था। सैम अपने आप से कह रहा था, "...वह स्नेह की आँखों से दूर रहेगा..."
मगर जब वह अपनी आँखें बंद करता, तो ऐसा लगता कि वह उसे मोटी-मोटी कजरारी आँखों से गुस्से से देख रही है। वह आँखें खोल लेता।
"...यह क्या हो गया है मुझे... वह वहाँ पर कैसे आ सकती है..." यह सोचते हुए वह फिर अपनी आँखें बंद करता, तो फिर उसे लगता कि वह मोटी-मोटी कजरारी आँखें मुस्कुरा रही हैं। दो आँखें ही उसके आगे घूम रही थीं। वह उठकर बैठ गया।
"...मैंने सुना है... कई लोग जादू करते हैं... यह पक्का अपनी आँखों से जादू करती है..." वह बहुत अपसेट हो गया था। उसने अपना ब्लांकेट उठाया और ब्लांकेट उठाकर अपने कमरे से बाहर आ गया। वह लाबी में सोफे पर आकर लेट गया और अपने आप को ब्लांकेट से बिल्कुल कवर कर लिया।
थोड़ी देर बाद किसी ने उसका ब्लांकेट खींचा। मगर वह नहीं उठा। फिर किसी ने हल्के से उसका ब्लांकेट खींचा। वह उठ गया। देखा, सामने स्नेहा थी।
स्नेहा की आँखों में बहुत गुस्सा था। "...यह मेरे सोने की जगह थी... तुम कैसे सो गए यहाँ..." वह गुस्से से बोली।
"...मेरे घर में तुम्हारी जगह कैसे हो सकती है..." सैम ने स्नेहा से कहा। स्नेहा ने सोफे से कुशन उठाया और जोर से उसके सर पर मारा। सैम की आँख खुल गई थी। उसने आस-पास देखा, कहीं भी स्नेहा नहीं थी। वह सिर पकड़कर बैठ गया। "मुझे सपना आ रहा था।"
"...तो सपना देख रहा था... वह लड़की सचमुच मुझे पागल कर देगी... निकलती क्यों नहीं है मेरे दिमाग से..." वह उठकर बैठ गया। उसे रणवीर पर भी गुस्सा आ गया। "...क्या ज़रूरत थी रणवीर को कहने की... तुम लोगों ने एक से कपड़े पहने हैं... अगर ना मैं उसके कपड़ों की तरफ़ देखता... ना उसकी आँखों की तरफ़ देखता... ना मेरा यह हाल होता..." ऐसे ही सुबह हो गई थी।
रवि जी ने सभी को तैयार होने के लिए कह दिया था। "...सभी जल्दी करो... तैयार हो जाओ..." मगर सैम तैयार नहीं हुआ था। वह घर में ऐसे ही घूम रहा था।
"...जाना नहीं है क्या..."
"...चाचू, मुझे आज कुछ काम था... आप लोग चलिए... मैं बाद में पहुँच जाऊँगा..."
"...हम तो पहले ही चार लोग हैं... उसमें से तुम भी कम हो जाओगे... तो क्या होगा... तुम्हें रणवीर के साथ रहना चाहिए..." रवि जी उसे साथ लेकर जाने की ज़िद करने लगे। वह भी मान गया था साथ जाने के लिए।
रणवीर की सगाई के लिए कोई शॉपिंग तो की नहीं थी। वह साथ लाए हुए कपड़े देखने लगा। उसने देखा, नेवी ब्लू कलर का सूट निकाला।
"...आज यह ही पहन लेता हूँ..." वह तैयार होते हुए सोच रहा था। "...आज उस लड़की की तरफ़ तो देखना ही नहीं है... बहुत चालाक लड़की है..."
नेवी कलर का सूट और वाइट शर्ट, जेल से सेट किए हुए बाल, हल्की दाढ़ी। उसे देखकर तो किसी का भी दिल धड़क जाए। मगर बेचारा इस टाइम अपना दिल संभाल रहा था। उस लड़की से डरकर, जो उसका दिल चुरा चुकी थी। उसका तो उसे एहसास भी नहीं था।
उसे घबराहट हो रही थी। उसका दिल बेचैन था क्योंकि उसे स्नेहा से प्यार हो गया था। मगर वह जिद्दी और गुस्से वाला भला कैसे मान जाता कि उसे स्नेहा जैसी प्यारी लड़की से प्यार है। वह उसकी आँखों में डूब चुका है। अब चैन तो तभी मिलेगा जब वह कजरारी आँखों वाली लड़की उसकी हो जाएगी। मगर अब उसे कौन समझाए?
वह तैयार होकर रणवीर के पास गया। "...तुम अभी तक तैयार नहीं हुए... ऐसे ही बैठे हो..."
"...मेरा बिल्कुल मन नहीं कर रहा उस लड़की के साथ सगाई करने का..."
"...देखो जो तुम्हें करना है... वह फैसला तुम्हारा होगा... मगर चाचू का फैसला तुम अच्छे से जानते हो ना..." ना चाहते हुए भी रणवीर तैयार हो गया था।
रत्ना जी और रवि जी भी तैयार थे। वे लोग स्नेहा के घर के लिए निकल गए थे। वहाँ उनके पहुँचने से पहले ही घर में पूरी तैयारी हो चुकी थी। उनके कुछ रिश्तेदार आ चुके थे। सचमुच घर में कोई सगाई है, ऐसा माहौल लग रहा था।
स्वीटी जी ने ऑरेंज कलर की साड़ी पहनी हुई थी। जब स्वीटी जी कमरे से तैयार होकर निकली तो शिवकुमार जी उसके पीछे चले गए।
"...अगर उनको गलतफहमी हो गई कि... स्नेहा तुम हो तो... मैं क्या करूँगा..." शिवकुमार जी उसके पास आते हुए कहने लगे।
"...आप शुरू हो गए... आज आपकी बेटी की सगाई है... थोड़ी तो शर्म किया करो..."
"...अपनी बीवी के साथ रोमांस करने के लिए शर्म क्यों आएगी... तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दिया था... पूरी दुनिया के सामने मैंने तुमसे शादी की थी... फिर मैं शर्म क्यों करूँ..."
"...मैं आपके साथ बहस में नहीं आ सकती... आप देखो क्या अरेंजमेंट हो रहे हैं... रत्ना जी और उनकी फैमिली भी आने वाली होगी... आपकी बेटी की सगाई है... थोड़े दिनों में शादी हो जाएगी... थोड़े तो संभल जाओ..." स्वीटी जी गुस्से से बोल रही थीं।
"...अब क्या करें? तुम्हारे इसी गुस्से पर तो प्यार आता है..." शिवकुमार जी की यह बात सुनकर स्वीटी अपना सर हिलाती हुई दूसरी तरफ़ चली गई।
"...कोई मौका ही नहीं देखते... कब कहाँ क्या करना है... जब देखो शुरू हो जाते हैं..." वह अपने आप से कहते हुए जा रही थी। तभी रवि खन्ना जी और उनकी फैमिली आ गई थी।
स्वीटी जी और शिवकुमार जी उनके स्वागत के लिए दरवाजे पर आ गए थे। शिवकुमार जी और स्वीटी जी सब से मिलकर बहुत खुश हुए। सभी अंदर आ चुके थे। बातें करते हुए रत्ना जी बोलीं, "...मुझे कहीं स्नेहा दिखाई नहीं दे रही है..."
"...स्नेहा पार्लर गई है... बस आती ही होगी... अभी भेजा है किसी को उसे लेने के लिए..." तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा।
"...मुझे लगता है कि स्नेहा आ गई।...चलो बच्चों, तुम तो... उसे तुम दोनों तो सगाई के टाइम पर ही मिलना... मगर हम दोनों तो उससे पहले मिल सकते हैं..." रवि जी बोले।
स्नेहा अंदर चली गई थी। सैम और रणवीर ने उसकी पीठ ही देखी थी। उसने नेवी ब्लू कलर का लहँगा पहना हुआ था। नेवी ब्लू कलर के साथ पीच कलर का दुपट्टा था। जब स्नेहा जा रही थी तो उसे पीछे से देखकर सैम के दिमाग में आया, "इसका और मेरा कलर तो आज फिर सेम है। इस लड़की के पास सचमुच कोई काला जादू है जो उसे सब कुछ पहले ही पता चल जाता है।" वह परेशान बैठा था।
सैम के चेहरे पर १२ बजे घड़ी की सूईयाँ थीं। उसका सच चेहरा देखकर रणवीर ने उससे बोला, "...भाई, ज़बरदस्ती सगाई मेरी हो रही है... आपकी नहीं... आपका चेहरा ऐसा क्यों हो रहा है..." उसकी यह सुनकर सैम हड़बड़ा गया था।
"...नहीं, बस मुझे काम की टेंशन हो रही है... मैं जल्दी से जल्दी दिल्ली जाना चाहता हूँ..."
"...आपको अपने काम और बिज़नेस की पड़ी है... जहाँ मेरी ज़िन्दगी का मसला उलझा हुआ है... कैसे भाई हो आप..."
"...मैं इसमें क्या कर सकता हूँ... तुम्हारी ज़िन्दगी है... तुम जानो..."
"...भाई, आप इतने सेल्फिश कब से हो गए..." रणवीर उससे नाराज़ होकर बैठ गया था। रणवीर उठकर दूसरे सोफे पर बैठ गया था।
सैम उठकर उसके पास आ गया, "...ठीक है बाबा, कहीं नहीं जाने वाला मैं... अब खुश..."
वे दोनों ही चुपचाप बैठ गए थे। अब कोई सैम को कैसे समझाए कि स्नेहा उसके दिल और दिमाग पर छा गई है। वह उसकी तरफ़ अनजाने में झुक रहा है।