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Reborn Of My Dazzling Wifey

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कार्तिक का चेहरा गुस्से से जल रहा था : "सोचना भी मत तुम्हारी इन दो कौड़ी की हरकतों से में seduce हो जाऊंगा या तुम्हें प्यार करूंगा" सावी कलाई से खून टपक रहा था,sarcastically मुस्कुराते हुए: प्यार,,,hunh.. जिस आदमी ने शादी के 3 सालों में अपनी बीवी...

Total Chapters (21)

Page 1 of 2

  • 1. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 1

    Words: 1547

    Estimated Reading Time: 10 min

    गंगटोक, सिक्किम की हरी-भरी वादियों और ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ एक शहर था, जिसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। शाम का समय था, और दो पर्वतों के बीच ढलता हुआ सूरज आसमान को सोने की परत से रंग रहा था। नन्हे पक्षी अपने घरों की ओर लौट रहे थे, उनकी चहचहाहट हवा में गूंज रही थी। हवा में ताजगी और फूलों की खुशबू थी। सूरज की आखिरी किरणें कंचनजंगा की पहाड़ियों के पीछे छिप रही थीं, जैसे वे एक सुनहरी रात को अलविदा कह रही हों। यह नजारा किसी महान कलाकार की पेंटिंग जैसा था, जिसमें नारंगी, पीले और लाल रंगों का अद्भुत संगम था। पहाड़ों की चोटियों पर पड़ती सूरज की आखिरी किरणें स्वर्ग का एहसास करा रही थीं। हवा में बहती हल्की ठंडक, पक्षियों की मधुर चहचहाहट, और धीरे-धीरे गहराता आसमान, गंगटोक के इस नज़ारे को और भी जादुई बना रहे थे।

    दूसरी ओर, एक आलीशान मेंशन, जो किसी महल से कम नहीं था, अपनी शानो-शौकत से जगमगा रहा था। मेंशन के हाल में अनेक कीमती सामान रखे थे, और बीच में एक विशाल कांच का झूमर टंगा हुआ था। हर जगह नौकर साफ-सफाई में लगे हुए थे। मेंशन की बाहरी दीवारें सफेद और सुनहरे रंग की थीं, जिन पर सुंदर नक्काशी की गई थी। यह घर पुराने और नए जमाने की वास्तुकला का अनोखा संगम था। बड़ा मुख्य द्वार, जिससे प्रवेश करते ही एक विशाल हाल में पहुँचा जाता था। हाल में चारों ओर महंगी पेंटिंग और शाही फर्नीचर रखा था। ऊँची छत पर लटकते झूमर रौशनी में और भी खूबसूरत लग रहे थे।

    ऊपर के एक मंजिल पर, एक विशाल मास्टर बेडरूम था, जहाँ आराम से पन्द्रह लोग रह सकते थे। यहाँ भी कीमती सामान और तस्वीरें थीं। एक विशाल किंग साइज़ बेड और एक बड़ी बालकनी थी, जहाँ से घर के बाग और दूर पहाड़ों का मनमोहक नज़ारा दिखाई देता था।

    यहाँ एक खूबसूरत लड़की, बेबी पिंक रंग की साड़ी में, ढलते हुए सूरज को देख रही थी। हवा में ठंडक थी, और ढलते सूरज की रोशनी उस पर पड़ रही थी, जिससे वह किसी देवी जैसी लग रही थी। पर इतने सुंदर माहौल में भी वह अपने अंदर कुछ अधूरापन महसूस कर रही थी। उसकी झील जैसी आँखें और काँपते हुए होंठ उसके मन की पीड़ा बयाँ कर रहे थे। उसके लहराते बाल जैसे सुकून की तलाश में थे।

    लड़की का शरीर किसी मॉडल जैसा था, उसकी सुंदरता चाँदनी को भी मात देती थी। उसकी आँखों में नूर, और एक मासूम सा चेहरा था।

    वह लड़की गहरे विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक उसे एक औरत की आवाज़ सुनाई दी।

    "सावी, सावी! कहाँ मर गई?"

    आवाज़ सुनते ही लड़की की आँखें नम हो गईं, और वह पीछे मुड़ी। वह सहम सी गई और गहरी साँसें लेने लगी। उसकी आँखें भर आई थीं।

    "ह...हाँ, माँ जी, अभी आई," वह मुश्किल से बोल पाई।

    वह जल्दी-जल्दी कमरे से बाहर निकली और भागती हुई सीढ़ियों से नीचे हाल में आ गई। उसके पायल की छन-छन पूरे घर में गूंज रही थी। नीचे पहुँचकर वह एक जगह सर झुकाए खड़ी हो गई, जहाँ एक अधेड़ उम्र की औरत सोफ़े पर बैठी थी, जो तीखी नज़रों से उसे घूर रही थी।

    औरत ने तेज आवाज़ में कहा, "क्या है? सारा दिन आराम करके तेरा जी नहीं भरता? हर वक़्त अपने कमरे में घुसी रहती है। पता नहीं सारा दिन क्या करती रहती है कमरे में? हुन्न!"

    सावी घबराकर बोली, "नहीं, माँ जी, आप गलत समझ रही हैं। मैं...मैं अपना सब काम करके ही...कुछ देर पहले कमरे में गई हूँ।"

    सावी इतना ही कह पाई थी कि औरत जोर से चिल्लाई, "तेरी इतनी हिम्मत हो गई मुझसे जुबान लड़ाएगी? भूल गई है क्या मैं कौन हूँ?"

    सावी ने कुछ नहीं कहा, वह सर झुकाए जमीन को देखती रही। जवाब ना मिलने पर औरत फिर चिल्लाई, "क्या तेरी जुबान को अब जंग लग गया है जो खुल नहीं रही है? अब तक तो बड़ी जुबान चल रही थी, कुछ पूछा मैंने, जवाब दे उसका!"

    सावी बहुत डर गई थी।

    "नहीं, माँ जी, मैं कैसे भूल सकती हूँ कि आप मेरी सासू माँ हैं। बस मैं जा ही रही हूँ रात के खाने की तैयारी करने," बोली सावी।

    इतना कहकर सावी ने अपने सिर पर पल्लू रखा और किचन की ओर जाने लगी। तभी उसकी सासू माँ ने अपनी भौहें चढ़ाते हुए कहा, "संस्कार नाम की चीज तो इस लड़की में है ही नहीं। पता नहीं इसके माँ-बाप ने इसे क्या सिखाकर भेजा है। कोई भी काम इसे ढंग से आता नहीं। पता नहीं यह कलमुही कहाँ से और कैसे मेरे घर की बहू बन गई। पता नहीं क्या देखकर मेरे बेटे ने इससे शादी की?"

    सासू माँ लगातार उसे ताने सुना रही थी। सावी अपनी आँखों से आँसू पोंछती हुई किचन में चली गई, पर सासू माँ बाहर से उसे ताने सुनाती रही। सावी सासू माँ के तानों को अनसुना कर खाना बनाने में लग गई।

    हाल में, सासू माँ एक कुटिल मुस्कान के साथ खुद से बोली, "क्या सोचकर शादी की थी इसने मेरे बेटे से? कि इतने बड़े घर में आकर शादी करेगी तो कोई काम-धाम नहीं करना पड़ेगा? इसकी यह ख्वाहिश मैं कभी पूरी नहीं होने दूंगी। सोचा था कि किसी अच्छे घर की लड़की से अपने इकलौते बेटे की शादी करके चैन से अपनी बची हुई जिंदगी जीऊंगी। मगर जब से यह आई है, सुकून की जिंदगी क्या, मेरा सुख-चैन ही छीन लिया है। पूरे दिन बस कमरे में पड़ी रहती है और सोती रहती है। सत्यानाश कर दिया है इसने हमारे वंश का। इतने सालों में मुझे एक पोते का सुख भी नहीं दे पाई। एक पति तक संभाल नहीं पा रही है, मेरा घर क्या संभालेगी? पनौती कहीं की!"

    फिर मिसेज़ रावत किचन के दरवाज़े के पास आकर खड़ी हो गई और घूर कर सावी को देखने लगी। "फ़ालतू कामों में तो सारा दिन उलझी रहती है लेकिन अपने पति को खुश नहीं रख सकती। अरे करमजली, तेरी शादी मेरे बेटे से इसलिए नहीं कराई थी कि तू मुझे दादी होने का सुख भी न दे सके। क्या तुझे कभी मन में नहीं आता अपने पति को खुश रखने का ख्याल? या माँ बनने का मन नहीं होता? कैसी औरत है, अपने पति को रिझा भी नहीं सकती। तू मुझे एक पोता नहीं दे सकती है। कहीं तेरे में कोई खोट तो नहीं या किसी और आदमी के साथ..."


    सासु माँ के मुँह से ये शब्द निकले तो काम कर रही लड़की के हाथ रुक गए। सावी इतनी देर से चुपचाप अपनी सासू माँ के ताने सुन रही थी, जो उसके कानों में पिघले हुए शीशे की तरह लग रहे थे। मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन जैसे ही उन्होंने उसके चरित्र पर सवाल किया, वह सहन नहीं कर सकी। आँसू भरी आँखों से उसने उनकी ओर देखते हुए कहा, "माँ जी, आप कुछ भी कहिए, मगर मेरे चरित्र पर सवाल उठाने का आपको कोई हक नहीं है। माना कि वह मेरे करीब नहीं आते, पर इसका मतलब यह नहीं कि इसमें सिर्फ मेरी गलती है।"

    उसकी इतनी सी बात सुनकर उसकी सासू माँ गुस्से से चीखी और उसके पास आई। उसने उसके बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया और जोर से खींचते हुए बोली, "करमजली तेरी इतनी हिम्मत? तू मुझसे जुबान लड़ाएगी? सच-सच बता, तेरे में ही कोई खोट है। अरे थोड़ी शर्म कर ले। इतने सालों की शादी के बाद भी...?" उसने सावी को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए एक टेढ़ी मुस्कान दी। फिर उसने ताने देना शुरू कर दिए। सावी दर्द से कराह रही थी और बार-बार छोड़ने को कह रही थी, मगर मिसेज़ रावत को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उनकी बातें उसके दिल के हज़ार टुकड़े कर रही थीं, मगर वह कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। सासू माँ लगातार ताने सुनाती रहीं।

    जी भरकर ताने सुनाने के बाद मिसेज़ रावत ने उसे झटके से छोड़ दिया और चली गई। सावी ने खुद को संभाला और अपने आँसू पोंछते हुए खाना बनाने में लग गई। जल्दी ही उसने अपने पति के पसंदीदा खाने की सारी चीज़ें बना लीं। अब वह एक सुंदर सा केक तैयार कर रही थी, क्योंकि आज सावी और कार्तिक की तीसरी सालगिरह थी। लगभग दो घंटे बाद सावी पूरा खाना बनाकर तैयार हो चुकी थी। उसने बहुत सी स्वादिष्ट डिशेज़ बनाई थीं, जिनमें कुछ तुरंत बनने वाली डिशेज़ भी थीं।

    वह अपने हाथों से केक को बहुत ही खूबसूरती और प्यार से तैयार कर रही थी और उसके होठों पर एक खूबसूरत मुस्कान थी। उसने खुद से कहा, "कार्तिक, आज हमारी एनिवर्सरी मैं इतनी खास बनाऊँगी कि पूरी ज़िन्दगी हमें याद रहेगी। देखना, आज का दिन कितना खास होगा। आज हमारा पूरी तरह मिलन होगा। देखती हूँ, मेरा कार्तिक आज कैसे दूर रहता है मुझसे।" केक को पूरी तरह तैयार करने के बाद उसने उसे बड़ी सावधानी से फ्रिज में रखा और किचन से निकलकर अपने कमरे में चली गई।

    अपने कमरे में आते ही वह पूरे कमरे को गौर से देखने लगी और हल्की सी मुस्कान के साथ सफाई करने लगी। पर्दे और बेडशीट हटाकर नए पर्दे और बेडशीट लगाने लगी। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिछा दीं और पूरे कमरे को रंग-बिरंगी लाइट्स से सजाया। उसने पूरे कमरे को गोल्डन कलर की थीम पर सजाया।


    कौन है सावी? कौन है यह बूढ़ी औरत जो सावी को इतना भला-बुरा कह रही है? और क्यों सावी इस औरत की बातें चुपचाप सुन रही है?

  • 2. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 2

    Words: 1508

    Estimated Reading Time: 10 min

    हर हर महादेव दोस्तों।



    लगभग एक घंटे बाद सावी आईने के सामने खड़ी थी और अपने आप को देख रही थी। उसने रेड वाइन कलर की नेट वाली साड़ी पहनी हुई थी। हाथों में रेड वाइन कलर की मैचिंग चूड़ियाँ, मैचिंग इयररिंग्स और वाइन कलर की लिपस्टिक। चेहरे पर हल्का सा मेकअप था, गले में एक प्यारा सा पतला पेंडेंट वाली चैन के साथ मंगलसूत्र और सीधी मांग में लंबा सा सिंदूर। यह सब उस पर बेहद खूबसूरत लग रहा था। उस नेट की साड़ी में उसकी दूध जैसी पतली कमर साफ़ दिख रही थी। उसका लचीला बदन किसी को भी मोह सकता था, उसके काले तीखे नैन आँखों का मेकअप करने से और भी आकर्षक लग रहे थे। उसकी खूबसूरती ऐसी थी कि चाँद भी शर्मा जाए, वह चाँद से भी ज़्यादा खूबसूरत और बेदाग थी।

    ऐसा लग रहा था कि कोई परी ज़मीन पर उतर आई हो। सावी ने गहरी साँस लेते हुए अपनी आँखें बंद कीं, फिर झटके से खोलकर पूरे कमरे को देखने लगी, जिसे उसने प्यार से सजाया था। रेड और गोल्डन कलर के तकिए सोफे और बिस्तर पर सजे हुए थे।

    नीचे रेड कलर की मुलायम कालीन बिछी हुई थी। पूरे कमरे में खुशबूदार अगरबत्ती की महक आ रही थी। टेबल और कई जगहों पर रेनबो कैंडल्स भी जली हुई थीं और कमरे में व्हाइट कलर की एक अलग लाइट जल रही थी। बेड के ऊपर "माय लव कार्तिक" लिखा हुआ था। यह सारा नज़ारा किसी खूबसूरत पल से कम नहीं था। सावी इस खूबसूरती को अपने अंदर उतार रही थी।

    दरवाज़े के पास खड़ी नौकरानी अंदर का नज़ारा देखकर मंत्रमुग्ध हो गई थी। इतना खूबसूरत नज़ारा देखकर उसकी नज़रें कमरे से हट नहीं रही थीं। फिर वह वापस अपने काम पर चली गई।

    कुछ देर बाद सावी किचन में आई और पहले अपनी सासू माँ को खाना दिया। फिर उस सुंदर केक को, जो उसने अपने हाथों से बनाया था, अपने कमरे में लाकर टेबल पर रख दिया और टेबल के आस-पास गुलाब की पंखुड़ियाँ सजा दीं।

    इस समय सावी के होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। वह सोफे पर बैठी और सोचने लगी, "आज तो मैं आपका दिल जीतकर ही रहूँगी, चाहे कुछ भी हो जाए। आज सारी दूरियाँ मिटा दूँगी, जिसके बाद हमारे बीच सिर्फ और सिर्फ प्यार रहेगा।" यह सारी बातें सोचते हुए सावी के होठों की मुस्कान और भी बड़ी हो गई और वह कार्तिक का इंतज़ार करने लगी।

    सावी को इंतज़ार नहीं हो रहा था, उसकी नज़र बार-बार घड़ी पर जा रही थी। बेचैनी से वह कुछ देर कमरे में टहलने लगी। वह कार्तिक को फोन करके पूछना चाहती थी कि उसे कितनी देर लगेगी। मगर उसे इतना भी हक नहीं था कि वह अपने पति को कॉल करके उसके बारे में कुछ पूछ सके। इसलिए उसके पास बस इंतज़ार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वह फिर से सोफे पर बैठ गई और खुद से बोली, "कार्तिक, आप कब आएंगे? देखिए, मैं कब से आपका इंतज़ार कर रही हूँ। जल्दी आ जाइए ना, मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा अब।"

    धीरे-धीरे रात के दस बज चुके थे। अब तक सोफे पर बैठे-बैठे सावी की आँख लग चुकी थी, मगर कार्तिक का अब तक कोई पता नहीं था।

    लगभग रात के ग्यारह बजे एक बीएमडब्ल्यू कार तेज़ी से उस मेंशन के बाहर आकर रुकी। कार का दरवाज़ा खुला और एक आदमी अपने हाथों में ब्लेज़र लिए लड़खड़ाते कदमों से मेंशन के अंदर आने लगा। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था, हरी आँखें नशीली थीं, जिससे साफ़ पता चल रहा था कि उस आदमी ने बहुत ज़्यादा शराब पी थी। मगर इससे उसकी आकर्षक शख्सियत में कोई कमी नहीं आई थी। वह लड़खड़ाते कदमों से मेंशन के अंदर चला गया और अपने कमरे में जाने की बजाय वह दूसरी मंज़िल के स्टडी रूम में चला गया। कार की आवाज़ से सावी की आँखें खुल गईं और वह समझ गई कि कार्तिक आ गया है।

    जैसे ही वह स्टडी रूम में गया, उसने अपना ब्लेज़र सोफे पर फेंक दिया और पैर क्रॉस करके आँखें बंद करके बैठ गया। सावी कमरे से बाहर आकर कार्तिक को पूरे घर में ढूँढ़ रही थी। लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि वह स्टडी रूम में है, तो वह तुरंत पानी का गिलास लेकर वहाँ चली गई।

    वह जाकर देखती है कि कार्तिक सोफे पर बैठे हुए हैं। उसने पानी का गिलास कॉफी टेबल पर रखा और कहा, "कहाँ रह गए थे? आपका इंतज़ार कर रही थी।" वह झुककर कार्तिक के जूते निकालने लगी, मगर कार्तिक ने अपनी आँखें नहीं खोलीं। सावी फिर से उठी और बोली, "लगता है आज आपने ज़्यादा शराब पी ली है। कोई बात नहीं, अब आप आराम से बैठिए, मैं खाना लेकर आती हूँ।" बोलकर वह तुरंत कमरे से बाहर चली गई, मगर कार्तिक ने एक बार भी नज़रें नहीं उठाईं। उसने अपनी आँखें बंद रखी हुई थीं, मगर सावी के जाते ही वह कॉफी टेबल को देखने लगा।

    नीचे किचन में सावी खाना सर्व करने लगी। अपने पति के लिए उसने उसकी सभी पसंदीदा चीज़ें बनाई थीं और मुस्कुराते हुए खाना लेकर ऊपर जाने लगी।


    सावी ने अपनी आँखों में ढेर सारे सपने सजाए और स्टडी रूम की ओर बढ़ी। वह लिफ़्ट से सेकंड फ्लोर पर गई और जैसे ही स्टडी रूम के दरवाज़े पर पहुँची, उसने देखा कि कार्तिक उसी तरह सोफ़े पर बैठा था। यह देखकर वह कार्तिक के पास गई और पहले खाना कॉफ़ी टेबल पर रखा। फिर उसने कार्तिक के कंधे को पकड़कर कहा, "उठिए ना कार्तिक, देखिए डिनर तैयार है। आज आपकी सभी फ़ेवरेट डिशेस बनाई हैं, जल्दी से खा लीजिए वरना खाना ठंडा हो जाएगा।" कहकर वह दूर हट गई और एक प्यारी सी मुस्कान लिए कार्तिक को देखने लगी।

    कार्तिक ने अपनी आँखें खोलीं और सीधे बैठ गया। सामने पड़े खाने को देखने लगा। तभी सावी को अचानक कुछ याद आया और वह अपने माथे पर हाथ मारते हुए बोली, "अरे रे, सॉरी कार्तिक, मैं आपका फ़ेवरेट गाजर का हलवा लाना तो भूल ही गई। आप खाना शुरू कीजिए, मैं अभी लेकर आती हूँ।" बोलकर वह तुरंत नीचे किचन की ओर चली गई।

    कार्तिक अभी भी उसी तरह खाना देख रहा था। जब सावी फिर से कमरे में आई तो उसने देखा कार्तिक ने हाथ में स्पून पकड़ा हुआ था और वह उसे अपने मुँह के पास ले जाने ही वाला था। यह देखकर सावी के चेहरे की मुस्कान और भी बड़ी हो गई। और उसने अपने कदम आगे बढ़ाए। लेकिन तभी कार्तिक ने उस स्पून को जोर से दीवार पर फेंका और एक झटके में सारा खाना जमीन पर फेंक दिया। कॉफ़ी टेबल को लात मारकर गिरा दिया। यह देखकर सावी को कुछ समझ नहीं आया। एक पल को उसके कदम थोड़े लड़खड़ा गए, मगर उसने तुरंत ही खुद को संभाल लिया और वह कार्तिक के पास चली गई।

    जमीन पर फैला खाना देखकर सावी के दिल में बेहद दर्द हुआ। मगर उसने अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी और डरते हुए बोली, "का, कार्तिक, ये क्या आपने किया? आपने खाना क्यों फेंक दिया? क्या मैंने कोई गलती कर दी? आज तो मैंने आपकी सभी फ़ेवरेट डिशेस बनाई थीं, इतने प्यार से। क्या आपको यह नहीं खाना था? देखिए मैंने तो आपके लिए गाजर का हलवा भी बनाया है।" कहते हुए उसने हलवे का बाउल कार्तिक के आगे कर दिया। कार्तिक ने अगले ही पल उसे भी हाथ मारकर जमीन पर गिरा दिया। डर के कारण सावी ने अपने कदम पीछे ले लिए। वह काफी डर चुकी थी कार्तिक की जलती नशीली निगाहों और उसकी हरकतों से।

    उसने आज व्हाइट कलर की शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी हुई थी। दिखने में वह किसी मॉडल से कम नहीं था, लेकिन उसका बिहेवियर और उसकी ग्रीन आँखें उसके शैतान होने का सबूत थीं।

    कार्तिक अपनी नशीली आँखों से अपनी पत्नी को ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े गौर से देख रहा था। कुछ देर तक उसे घूरने के बाद उसने अपनी आँखें घुमाते हुए खड़ा हुआ और अपने हाथ पॉकेट में डालकर धीमे कदमों से चलते हुए वॉल से अटैच टेबल पर रखे हुए फ़्लावर वास को हाथ में उठाया, जिसमें खूबसूरत ऑर्किड के फूल लगे हुए थे। सावी सहमी खड़ी थी, उसे घबराहट हो रही थी।

    कार्तिक की हरकतों को देख रही सावी ने देखा कि कार्तिक ने अचानक झटके से उस फ़्लावर वास को सावी की ओर फेंक दिया। यह देख सावी चीखते हुए दो कदम पीछे हट गई और उसकी आँखों से लगातार आँसू बहने लगे।

    कार्तिक दांत पीसते हुए बोला, "कितनी बार कहा है, मुझे तुम्हारे हाथ का खाना नहीं पसंद। फिर भी बार-बार क्यों आ जाती हो ये सब लेकर? मेरे घर में इतने बड़े शेफ़ हैं, मुझे सिर्फ़ उनका खाना पसंद है। नौकरों तक को खाना बनाने की permission नहीं है, तो तुम क्यों करती हो ये सब?"

    यह कहते हुए वह उन ऑर्किड के फूलों को बुरी तरह अपने पैरों तले मसलने लगा। यह सावी को बेहद दुःख पहुँचा रहा था, क्योंकि वह सावी के फ़ेवरेट फूल थे। यह जानते हुए भी कार्तिक बड़ी बेरहमी से यह सब कर रहा था।


    तो क्या लगता है आपको? सावी कामयाब होगी अपने पति का दिल जीतने में? जानने के लिए बने रहिए अगले भाग में!!

  • 3. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 3

    Words: 1573

    Estimated Reading Time: 10 min

    अपनी बात खत्म करने के बाद वह फ़ौरन उस कमरे से निकलकर अपने मास्टर बेडरूम में चला गया। बाहर खड़े नौकर कार्तिक के बाहर जाते ही तरह-तरह की बातें करने लगे और सावी का मज़ाक उड़ाने लगे। सावी की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने अपनी ताकत बटोरी और उन नौकरों की बातों को नज़रअंदाज़ किया।

    "कितनी बेशर्म लड़की है, अपने पति को संभाल तक नहीं पाती, खाना तक अच्छे से नहीं खिला पाती। उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल नहीं रखती। इतनी बेइज़्ज़ती सहने के बाद भी बार-बार उसके पास आ जाती है, अपनी बेइज़्ज़ती करवाने। पता नहीं अपने आप को क्या समझती है, सच में इस घर की मालकिन समझती है। इसकी हैसियत तो हमसे भी कम है," नौकर आपस में फुसफुसा रहे थे।

    एक बार फिर सावी की आँखें भर आईं। अब कार्तिक स्टडी रूम से बाहर निकल गया और चौथे फ्लोर पर बने मास्टर बेडरूम की तरफ़ चल पड़ा। उसने जैसे ही अपने कमरे का गेट ओपन किया, उसने देखा कि कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था। यह देखकर उसकी आँखें छोटी हो गईं। फिर वह अपने लड़खड़ाते कदमों के साथ कमरे के अंदर आया और लाइट्स ऑन कर दीं। लाइट्स ऑन होते ही उसने कमरे को अपनी गहरी हरी आँखों से स्कैन करना शुरू किया। वहाँ का नज़ारा देखकर वह कुछ सेकंड्स के लिए वैसे ही खड़ा रहा।

    कार्तिक की नज़रें कुछ पल को ठहर सी गई थीं, मगर तभी उसने अपने हाथों की कस के मुट्ठी बना ली जिससे उसकी हरी नसें तुरंत तन गईं। उसका चेहरा इस वक़्त बेहद भयानक लग रहा था, जो किसी मॉन्स्टर से कम नहीं लग रहा था। अब उसकी आँखों में खून उतर आया था और गुस्से का तो कोई ठिकाना ही नहीं था।

    वह नए कर्टन को खींचकर निकालने और फाड़ने लगा। लाइट्स और वहाँ की गई डेकोरेशन सब कुछ तहस-नहस करने में लग गया। खुशबूदार अगरबत्ती और मोमबत्ती को उसने उखाड़कर अपने पैरों तले मसल दिया। गुलाब की पंखुड़ियों से सजे बेड को देखकर तो उसका खून खोलने लगा। उसने बिना एक भी पल सोचे बेडशीट को जमीन पर फेंक दिया और कमरे में तोड़-फोड़ मचाने लगा।

    फिर उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं, जैसे उनमें खून उतर आया हो। वह पूरी तरह से बेकाबू हो गया और कमरे में जो भी चीजें उसकी नज़रों के सामने आईं, उन्हें तहस-नहस करने लगा। उसके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था, मानो एक तूफ़ान का गुबार उस पूरे कमरे में छा गया हो।

    इसी के साथ ही उसका गुस्सा आसमान पर पहुँच गया जब उसकी नज़र टेबल पर पड़े सुंदर केक पर गई, जिस पर बड़ी खूबसूरती से लिखा था "माय लव, हैप्पी वेडिंग एनिवर्सरी।" कुछ सेकंड्स के लिए वह उसे देखता रहा, फिर अपने आपे से बाहर हो गया और दांत पीसते हुए उस केक को उठाकर बेरहमी से दीवार पर फेंक दिया। तभी उसके कानों में किसी की जोर से चीखने की आवाज़ आई, "नहीं! रुक जाइए!" और कमरे के अंदर आ रही सावी दौड़ते हुए अपने पति कार्तिक के पास पहुँची। वह अपनी भरी आँखों से पूरे कमरे को देख रही थी। कार्तिक उसे अंगारों भरी आँखों से देख रहा था और उसके चेहरे पर एक डेविल स्माइल भी थी।

    अपने सामने कमरे का यह नज़ारा देखकर सावी का दिल बुरी तरह दर्द कर रहा था। उसने आज कितने प्यार से और न जाने कितने ख्वाब लेकर इस कमरे को सजाया था, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने पति के लिए। लेकिन जिसके लिए उसने इतनी सारी तैयारियाँ कीं, उसी के हाथों सब बर्बाद होते देख उसके आँसू नहीं रुक रहे थे। उसका छोटा सा मासूम चेहरा पूरी तरह लाल पड़ चुका था। यह देखकर साफ़ पता चल रहा था कि वह कितने दर्द में थी और कितनी मुश्किल से खुद को संभाले हुए थी।

    मगर कार्तिक का मन इससे भी नहीं भरा और वह बाकी सामान को भी फेंकने लगा। उसने सावी पर चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें समझ नहीं आता? मुझे तुम्हारी ये बेकार की चीजें नहीं चाहिए! तुमसे और तुम्हारे इन फ़ालतू के एफ़र्ट्स से मुझे नफ़रत है!"

    सावी की आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। वह जानती थी कि उसने कितना प्यार और मेहनत से सब कुछ तैयार किया था, मगर उसका सब बेकार हो गया। वह काँपते हुए बोली, "कार्तिक, प्लीज़... ऐसा मत कीजिए। मैं सिर्फ़ आपके लिए सब कुछ कर रही थी।"

    सावी को उन नौकरों की बातें साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थीं, जो उसे काफी तकलीफ़ पहुँचा रही थीं। लेकिन उसने खुद को संभाला और उन्हें इग्नोर किया और अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

    कार्तिक ने उसकी बात को अनसुना कर कमरे की सजावट तहस-नहस करना जारी रखा। उसने मेज पर रखा फूलदान उठाकर जमीन पर दे मारा और उसे टुकड़ों में बदल दिया। सावी असहाय सी खड़ी थी, अपने पति के क्रूर व्यवहार को देखकर। उसका दिल टुकड़ों में बंट चुका था, और वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।

    तभी, कुछ समझ नहीं आने पर, उसने कार्तिक का हाथ पकड़ लिया। कार्तिक ने अपनी जलती निगाहों से सावी के हाथ की तरफ देखा और फिर दांत पीसते हुए बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की? तुम्हें मैंने मना किया था ना, मुझे टच नहीं करने के लिए। क्या तुम्हें एक बार में कोई बात समझ में नहीं आती? मेरे मना करने के बावजूद भी यह सब किया।" कहते हुए उसने अपने कदम सावी के और करीब कर लिए जिससे वह और भी ज्यादा सहम गई।

    कार्तिक उसके पास आया और उसे पीछे की तरफ जोर से धक्का दे दिया। वह दीवार से टकरा गई और गिरते-गिरते बची। पर उसके एल्बो में हल्की चोट लग गई, जिससे उसके मुंह से हल्की सी कराह निकल पड़ी। मगर इससे कार्तिक को कोई फर्क नहीं पड़ा, ना ही उसके गुस्से में कोई कमी आई।

    सावी दर्द से कराहते हुए दीवार के सहारे खड़ी होने की कोशिश करने लगी। उसकी आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे। उसने कांपती आवाज में कहा, "कार्तिक, मैंने यह सब सिर्फ आपके लिए किया था। हमारी एनिवर्सरी के लिए।"

    लेकिन कार्तिक की आंखों में नफरत और गुस्से के सिवा कुछ नहीं था। उसने कहा, "तुम्हारी ये ड्रामेबाजी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। तुम्हारी शक्ल से ही मुझे नफरत है।" कहते हुए उसने कमरे में रखे बचे हुए सामान को भी तहस-नहस करना शुरू कर दिया।

    सावी सोचने लगी कि आखिर उसने क्या गलती की है, जो उसे इतनी सजा मिल रही है। उसके सपनों का महल एक-एक करके टूट रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी।

    सावी ने खुद को संभालते हुए किसी तरह खड़ी हो गई और कार्तिक को समझाने की कोशिश करने लगी। "देखिए कार्तिक, आज हमारी तीसरी वेडिंग एनिवर्सरी है और मैंने इसीलिए इतना सब कुछ किया ताकि मैं आपको खुश कर सकूँ। हर चीज आज आपकी पसंद की थी, चाहे वो डिनर हो या हमारे रूम की डेकोरेशन। इसलिए प्लीज ऐसा मत करिए। आप कहेंगे तो मैं यह सब फिर कभी नहीं करूंगी, पर अब ऐसे तोड़फोड़ मत करिए।"

    उसकी आंखों में आंसू थे पर उसने फिर भी हिम्मत जुटाकर कहा, "मैंने इतनी मेहनत से यह सब किया था ताकि आज मैं आपको सब कुछ भूलाकर अपने पुराने प्यार की याद दिला सकूँ। एहसास करा सकूँ कि आप मुझसे कितना प्यार करते थे और मैं आपसे कितना प्यार करती हूँ। हम दोनों पूरी तरह से एक-दूसरे के हो जाएँ। इन तीन सालों की दूरियां हसीन लम्हों में बदल जाएँ। जो वेडिंग नाइट तीन साल पहले अधूरी रह गई थी, आज मैं उसे पूरा करना चाहती थी। देखिए कार्तिक, यह सब मैंने आपके ही लिए तो किया था।"

    पर कार्तिक के चेहरे पर कोई असर नहीं दिखा। सावी के शब्द मानो दीवार से टकराकर वापस आ रहे थे। उसने कहा, "अब आप क्या कर रहे हैं? क्या हो चुका है आपको? आप ऐसे कैसे बदल सकते हैं? मैं वही सावी हूँ जिसे आपने बेइंतहा प्यार किया था कभी। जिसकी आँखों में आप एक बूंद आँसू भी नहीं देख सकते थे। जिसके शरीर पर एक खरोच भी बर्दाश्त नहीं थी आपको। मगर आज, आज आप उसके आँसू की वजह बन गए हैं, खुद बार-बार चोट पहुँचा रहे हैं।"

    सावी के चेहरे और शब्दों में दर्द और निराशा साफ नज़र आ रही थी। वह कार्तिक के कंधे को जोर-जोर से झकझोरते हुए कह रही थी, "ऐसे कैसे हो गए हैं आप? मुझसे एक साल के लिए दूर क्या गए, अब वह बनकर आ गए जो कभी थे ही नहीं। इन हरी आँखों में जिसके लिए बेइंतहा प्यार था कभी, अब सिर्फ़ नफ़रत दिखती है। ऐसा क्यों? जवाब दीजिए, क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा? मैंने क्या गलती की थी? क्या बिगाड़ा है मैंने आपका? आप मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?" कहते हुए सावी जोर-जोर से कार्तिक के कंधे को झकझोरने लगी।

    कार्तिक की आँखों में गुस्सा और उसकी हरकतों में हिंसा की झलक थी। उसकी मुट्ठियाँ कसकर बंद हो गई थीं और वह अपनी लाल पड़ चुकी हरी आँखों से सावी को घूर रहा था। उसने सावी के हाथ को अपने कंधे से झटक दिया और उसकी कलाई को पकड़कर उसकी कमर के पीछे कस दिया। फिर उसने दांत पीसते हुए उसके कान में कहा, "तुम्हारी इतनी औकात नहीं कि कार्तिक रावत से सवाल कर सको। और तुमने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब दूँगा? आखिर किससे पूछकर यह सब किया मेरे लिए?"



    क्यों करता है कार्तिक अपनी ही बीवी से इतनी नफ़रत? आखिर क्या है, ऐसा जो सावी की सासू माँ भी उसे पसंद नहीं करती? अब क्या करेगा कार्तिक सावी के साथ? जानने के लिए मिलते हैं अगले भाग में!!

  • 4. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 4

    Words: 1507

    Estimated Reading Time: 10 min

    सावि को बेहद दर्द हो रहा था। मगर अब उसने दांत पीसते हुए अपनी पीड़ा सहते हुए कहा, "ओह अच्छा, तो अब यह दिन आ गए हैं, कि मुझे अपने पति के लिए कुछ करने के लिए, उनकी या किसी और की परमिशन लेनी पड़ेगी, ना! यही कहना चाहते हैं आप, कार्तिक!!"

    कार्तिक का चेहरा गुस्से से जल रहा था। वह दांत पीसते हुए बोला, "तुम कोई नहीं होती मुझसे सवाल करने वाली! और सही बात, कुछ करने की तो सोचना भी मत, तुम्हारी इन दो कौड़ी की हरकतों से मैं seduce हो जाऊँगा या तुम्हें प्यार करूँगा! तुम जैसी लड़कियों की इतनी हैसियत नहीं कि मेरा प्यार पा सकें।"

    सावी की कलाई से खून टपक रहा था। वह व्यंग्यात्मक मुस्कराहट के साथ बोली, "प्यार...हुँह... सही कहा आपने!! जिस आदमी ने शादी के तीन सालों में अपनी बीवी के साथ एक रात भी ढंग से नहीं बिताई हो, उसके लिए seduce और प्यार जैसे शब्द औकात से बाहर हैं।"

    कार्तिक लाल आँखों से बोला, "Don't cross your limits, भूलो मत मैं तुम्हारा पति हूँ!"

    सावी हँसकर मजाक उड़ाते हुए बोली, "पति...ये मेरी जिंदगी का सबसे बदसूरत सच है। जिस इंसान ने कभी अपनी बीवी को बीवी होने का सुख नहीं दिया, ऐसे इंसान को मैं पति तो क्या! मर्द भी नहीं समझती।"

    आगे, जलती हुई आँखों से देखते हुए बोली, "मगर आप चिंता मत करिए मिस्टर रायजादा, मैं अपने लिए ऐसा आदमी ढूँढूँगी! जो सचमुच का मर्द हो और इतने सालों से जल रही मेरी बदन की आग को बुझाए और मेरी रूह तक को छू जाए।"

    यह सुन कार्तिक गुस्से से बौखला कर बोला, "बहुत आग लगी है, ना, तुम्हारे इस जिस्म में? प्यार चाहिए ना तुम्हें? सुहागरात मनानी है? आओ, आज ऐसे प्यार करूँगा तुम्हें, कि तुम्हारी रूह तक कांपेगी दोबारा प्यार करने से!!" कहते हुए कार्तिक ने उसे हाथ पकड़ कर जोर से धक्का दिया जिससे सावी दीवार से टकरा गई और उसकी चूड़ियाँ उसके हाथों में टूट कर चुभ गईं... कार्तिक उसे अपनी गहरी खतरनाक आँखों से मुस्कुरा कर देख रहा था।

    सावी दीवार से टकरा गई, उसके हाथ से खून बह रहा था, और जोर से हँसते हुए बोली, "आप जैसे घटिया इंसान से इन हरकतों के अलावा और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती। क्योंकि आप जैसे आदमी ही पूरे मर्द जात पर कलंक हैं।"

    कार्तिक सनक भरे अंदाज में हँसते हुए उसे घसीटकर ले जाने लगा और बोला, "आओ आज तुम्हें दिखाता हूँ, मैं किस लेवल का घटिया आदमी हूँ!!"

    सावी का दिल अब तेज़ी से धड़कने लगा था, घबराहट उसके वजूद पर हावी हो रही थी, और दर्द भी लगातार बढ़ता जा रहा था। उसे अच्छे से एहसास था कि उसने क्या कहा था और इसका अंजाम क्या हो सकता था। पर अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले, क्या करे। इतने समय से अपने अंदर की तकलीफें, लोगों के ताने, और कार्तिक के बदले हुए बर्ताव से परेशान होकर उसने गुस्से में वह सब कह तो दिया था, लेकिन हकीकत में वह ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी।

    नहीं, वह ऐसी लड़की बिल्कुल भी नहीं थी। वह तो मुश्किल से ही किसी को जवाब देती थी या किसी से ऊँची आवाज़ में बात करती थी। मगर आज न जाने उसे क्या हो गया था। जो शब्द उसने कार्तिक के लिए कहे, असल में ऐसा कुछ नहीं सोचती थी वह कार्तिक के बारे में।

    हाँ, वह उसे बहुत प्यार करती थी, और उससे वही उम्मीदें रखती थी, जो हर लड़की अपने पति और अपने प्यार से रखती है। मगर जो गलत शब्द उसने कार्तिक के लिए इस्तेमाल किए, वे उसके दिल से नहीं कहे थे। कहना तो क्या, ऐसा अपने सपने में भी नहीं सोच सकती थी। हकीकत में, वह ऐसा कुछ भी महसूस नहीं करती थी।

    तभी, "आह्ह्ह, कार्तिक, ये क्या कर रहे हैं आप?" सावी ने दर्द से कराहा। फिर उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर कार्तिक को धक्का दिया और खुद को उसके हाथ से छुड़ाकर भाग कर बेड के पीछे गई। फिर जमीन पर बैठकर घुटनों में अपना मुँह छिपाकर फफक-फफक कर रोने लगी। उसकी दर्द भरी सिसकियाँ कमरे में गूंज रही थीं, पर कार्तिक के दिल पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसने बस एक नज़र सावी पर डाली और नज़रें फेर लीं। मगर सावी की इस हरकत से कार्तिक का गुस्सा और बढ़ गया था।

    कुछ सोचते हुए कार्तिक एक-एक कदम उसके करीब बढ़ता गया। अब तक सावी भी खुद को संभालते हुए खड़ी हो चुकी थी।

    कार्तिक बोला, "बताता हूँ तुम्हें मैं क्या कर रहा हूँ, बहुत जल्द बताता हूँ।"

    उसकी गुस्से से भरी लाल आँखें और चेहरे पर मॉन्स्टर वाली स्माइल देखकर सावी ठीक से खड़ी नहीं रह पा रही थी। वह दीवार से और भी ज्यादा सिमटने की कोशिश कर रही थी।

    "न...नहीं कार्तिक, प्लीज मेरे पास मत आइए, प्लीज, प्लीज दूर रहिए मुझसे।"

    कार्तिक ने एक शैतानी हँसी के साथ कहा, "अरे, ऐसे कैसे? पति हूँ तुम्हारा, तुमसे दूर कैसे रह सकता हूँ? वैसे भी, प्यार चाहिए तुम्हें मेरा, आज एनिवर्सरी हमारी है। चलो, इसे सेलिब्रेट करते हैं, वाइफी! हम आज के दिन को इतना स्पेशल बनाते हैं कि अगले जन्म तक भी नहीं भूल पाओगी। और अभी तो मुझे तुम्हें अपना घटियापन दिखाना है और मर्दानगी भी!"

    कहते हुए वह सावी के और भी करीब आ गया और उसके दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़कर दीवार की ओर तेजी से दबा दिया।

    "आह्ह, कार्तिक, प्लीज, छोड़िए मुझे, दूर रहिए मुझसे, मैंने वह सब बस गुस्से में कह दिया था, ऐसा कुछ नहीं है।" सावी दर्द से तड़प उठी। उसके हाथ पहले ही चूड़ियों के टूटने के कारण घायल थे और अब कार्तिक की बेरहमी से उसका दर्द और भी बढ़ गया था। उसकी आँखों में आँसू भर आए और वह खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी, पर कार्तिक ने उसकी एक न सुनी और उसे और भी ज़्यादा दर्द देने लगा।

    सावी की चीखें और दर्द भरी कराहें कमरे में गूंज रही थीं, पर कार्तिक की नफरत और क्रूरता का कोई अंत नहीं था। सावी के लिए, यह एक ऐसा डरावना सपना जैसा था जिससे वह किसी भी तरह बच निकलना चाहती थी, पर उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।

    कार्तिक की आवाज में नफरत और गुस्से से भरा हुआ था। वह दाँत पीसते हुए बोला, "बहुत शौक है ना तुम्हें मेरे नजदीक आने का, सुहागरात मनाने का? अपने प्यार को पूरा करना है ना तुम्हें, पूरी तरह एक होना है ना? बहुत आग है ना तुम्हारे अंदर? बहुत हिम्मत आ गई है ना तुम्हारे अंदर? चलो, आज की रात तुम्हारी सारी ख्वाहिशें मैं पूरी करता हूँ। आखिर मेरे होते हुए तुम्हें दूसरे मर्दों के पास जाने की बात भी दिमाग में कैसे आई!!"

    सावी ने जैसे ही अपने पति के मुँह से ऐसी बातें सुनीं, वह रोते हुए अपना सर ना में हिलाने लगी।

    "नहीं, नहीं, आप गलत समझ रहे हैं," सावी कांपते हुए होठों से बोलने की कोशिश कर रही थी, पर वह इतनी डरी हुई थी कि ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी।

    कार्तिक उसकी बात सुनकर खतरनाक हँसी हँसने लगा। उसकी हँसी इस वक्त कमरे के शांत माहौल में दिल को कंपा देने वाली लग रही थी। फिर वह अचानक से रुका और बोला, "मैं क्या समझ रहा हूँ, क्या नहीं, वह तो अब मैं समझ ही चुका हूँ। और अब मैं क्या समझाऊँ, वह तुम्हें भी तो दिखाना ज़रूरी है ना? दिखाता हूँ तुम्हें अच्छे से कि मैं क्या समझा हूँ। तुम्हारा पति होने के नाते मुझे तुम्हारी सभी ख्वाहिशें पूरी करनी चाहिए ना? आई एम रियली सॉरी, वाइफी, आज तक तुम्हारी ख्वाहिशें अधूरी रखने के लिए। आज के बाद तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी। इट्स माई प्रॉमिस, कार्तिक रावत का तुमसे वादा है वाइफी, तुम्हें मुझसे अब कोई शिकायत नहीं रहेगी।"

    कहते हुए वह सावी पर झुका और अपने होंठ उसके होठों से मिला दिए। वह उसके होठों पर बड़ी बेरहमी से किस करने और काटने लगा। यह पहली बार था जब शादी के बाद कार्तिक उसके इतना करीब आया था, पर प्यार से नहीं, नफरत से। सावी को काफी दर्द हो रहा था, पर वह चिल्ला भी नहीं पा रही थी। कुछ देर तक बिना रुके किस करने के बाद वह उससे अलग हुआ और सावी को ऊपर से नीचे तक देखने लगा।


    सावी के होंठ सूज गए थे और उसके चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था। उसकी आँखों में आँसू भर आए थे और वह पूरी तरह टूट चुकी थी। कार्तिक ने उसकी दर्द की परवाह किए बिना उसे एक बार फिर से कसकर पकड़ लिया और उसे बिस्तर की तरफ खींचने लगा। सावी का दिल तेजी से धड़कने लगा, और उसकी चीखें कमरे में गूंजने लगीं, क्योंकि कार्तिक ने अब तक जो कुछ भी किया था, उसकी क्रूरता ने उसे और भी ज्यादा डरा दिया था।

    उसने एक आखिरी बार कोशिश की, "प्लीज, कार्तिक, मुझे छोड़ दो। मैं आपसे प्यार करती हूँ, बदले में आपसे भी प्यार चाहती हूँ पर इस तरह नहीं। मैंने पता नहीं कैसे वह सब कह दिया, पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। प्लीज, मुझे मत छूइए।"




    तो आगे क्या होने वाला है, जानने के लिए बने रहें मेरे साथ इस कहानी में!!

  • 5. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 5

    Words: 1572

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक ने उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए उसे बिस्तर पर धकेल दिया और उसके ऊपर झुक गया। सावी ने अपनी पूरी ताकत से उसे दूर करने की कोशिश की, पर कार्तिक की ताकत के सामने वह कमज़ोर पड़ गई। उसके चेहरे से लेकर गर्दन तक किस और काट रहा था, उसकी चीखें और कराहें कमरे में गूंजती रहीं, पर कार्तिक के लिए वे केवल एक बैकग्राउंड म्यूज़िक की तरह थीं, जिससे उसका गुस्सा और भी बढ़ गया था। वह एक बार फिर उसके होठों पर आ गया और बिना रुके उसके होठों को चूसने और चाटने लगा। करीब २० मिनट तक लगातार किस करने के बाद उसने उसे छोड़ा।

    सावी अब भी जोर-जोर से साँस लेती हुई खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। कुछ मिनट पहले उसे ऐसा एहसास हुआ था कि वह मरने वाली है, पर वह ज़िंदा बच गई। कार्तिक फिर से ऊपर से नीचे तक उसे देखते हुए उसके पास आया और अपने दाँत भींचते हुए बोला, "मना किया था ना तुम्हें मेरे सामने इस रंग के कपड़े पहनकर मत आना? नहीं समझ आया ना तुम्हें? कितने अच्छे से समझाया था, मैंने? कोई बात नहीं, अब मैं तुम्हें और अच्छे से समझाऊँगा कि तुम्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है।"

    सावी इस वक्त बैठी हुई थी। उसने उसे जोर से पीछे की ओर धक्का दिया। सावी खिसकते हुए अपने हाथ जोड़कर बेड पर पीछे हटने लगी और कहने लगी, "कार्तिक, प्लीज अब बस कीजिए। रुक जाइए ना, बहुत हो चुका। अब मैं और नहीं सह सकती। प्लीज, वहीं रुक जाइए। कार्तिक, मेरे करीब मत आइए प्लीज। कार्तिक, ऐसा क्यों कर रहे हैं आप? आखिर मैंने क्या बिगाड़ा है आपका? मैं आपकी बीवी हूँ, अपना फ़र्ज़ निभा रही थी। मैं अपनी गलती की आपसे दिल से माफ़ी माँगती हूँ कार्तिक, आई एम रियली रियली सॉरी!!"

    कार्तिक सावी की बातें सुनकर किसी साइको की तरह मुस्कुराते हुए बोला, "क्या बीवी हो, तुम मेरी!! तुम्हारा फ़र्स्ट नाइट तो हुआ ही नहीं। ओह माई डियर वाइफी, सच में, तुम इस दुनिया की सबसे अच्छी बीवी हो। मुझे तुम्हारे साथ यह नहीं करना चाहिए था। और चिंता मत करो, तुम्हारा सब मैंने एक्सेप्ट कर लिया है। पर मुझे अपना फ़र्ज़ निभाना है। पति होने का फ़र्ज़!!"

    उसने सावी को फिर से बेड पर धकेल दिया और उसके ऊपर झुक गया। "तुम्हें शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगा।"

    "तुम्हारा सुहागरात मनाने का सपना आज मैं पूरा करना चाहता हूँ? तुम्हें बताऊँगा मैं आज की सुहागरात मनाना आखिर होता क्या है?" कार्तिक यह सब बहुत ही खतरनाक तरीके से बार-बार बोल रहा था। जिससे वह किसी साइको से कम नहीं लग रहा था। जैसे उसके दिलो-दिमाग में बस यही शब्द गूंज रहे थे। जो उसके अल्फ़ाज़ों के ज़रिए साफ़-साफ़ बयाँ हो रहे थे।

    इसी के साथ ही वह बेड पर सावी के करीब भी जाने लगा। वह जैसे उसके करीब जाता, सावी खुद में ही सिमटी हुई बेड के और पीछे खिसकती जा रही थी। इसी तरह वह बैठकर हेडबोर्ड तक आ गई थी। स्थिति इस हद तक बिगड़ गई थी कि वह कार्तिक और हेडबोर्ड के बीच फँस चुकी थी, ना अब वह आगे जा सकती थी और ना पीछे आ सकती थी।

    तभी कार्तिक ने अचानक से उसके पैरों को जोर से खींचा, जिससे वह बेड पर सीधी लेट गई और घबराहट के कारण उसकी जोर से चीख निकल पड़ी । 'चिल्लाओ मत, प्यारी बीवी, अभी तो ऐसी बहुत सारी चीखे निकलनी बाकी हैं । इन्हें संभाल कर रखो, सारी रात उनकी जरूरत पड़ने वाली है,' कहते हुए वह जोर-जोर से हंसने लगा । फिर अचानक से कार्तिक ने सावी के बालों को पीछे से पकड़ कर कसकर खींचा, जिससे उसका चेहरा ऊपर की तरफ हो गया ।


    साबी की आंखें दर्द की वजह से बंद हो गई और झर झर गिरने लगे, क्योंकि कार्तिक ने बहुत जोर से उसके बालों को खींच रखा था । 'आह, दर्द हो रहा है, प्लीज छोड़ दीजिए मुझे,' साबी कराहते हुए सिर्फ इतना बोल पाए, अब उसमें कुछ बोलने की भी हिम्मत बाकी नहीं बची थी । 'नहीं, नहीं, बीवी, चलो ना, सुहागरात मनाते हैं, मुझे बहुत मन है।" बोलते हुए कार्तिक ने अपना दूसरा हाथ साबी की कमर पर रखा और उसकी बॉडी को खुद से एकदम चिपका लिया । एक बार फिर बड़ी बेरहमी से उसके होठों को अपने होठों में भर लिया ।



    "साबी दर्द से चिल्ला भी नहीं पा रही थी । उसका पति, उसका प्यार कार्तिक, उसकी होठों को वेहेशी तरीके से काट रहा था । लगभग दस मिनट तक उसके होठों पर अपनी हैवानियत दिखाने के बाद, उसने उसके बालों को पकड़कर बिस्तर पर पलट दिया । सावी मुंह के बल जाकर बिस्तर पर पड़ी हुई थी । फिर भी वह जल्दी से बिस्तर से खड़ी हुई और डरी हुई नजरों से कार्तिक की तरफ देखने लगी, जो इस समय किसी हैवान से कम नहीं लग रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे खुद हैवान उसका गला दबाने के लिए उसके सामने खड़ा हो । सावी को अपनी रीढ़ की हड्डी तक में कपकपाहट महसूस हो रही थी ।

    कार्तिक अब थोड़ा उठा और अपने शर्ट के बटन खोलने लगा । सभी बटन खोल लेने के बाद वह फिर से साबी के करीब आ गया । उसे कांपता हुआ देखकर, 'अब डर क्यों रही हो? सुहागरात मनाना है ना अपने पति के साथ? इसलिए आज इतनी तैयारी की थी?' बोलते हुए वह आदमी बिस्तर के पास आ गया । वह बार-बार एक ही लाइन को रिपीट कर रहा था, किसी साइको की तरह जैसे उसके दिमाग में यह बात चढ़ गई थी, जिसे वह बार-बार दोहराया जा रहा था । सावी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें । तभी कार्तिक ने उसे हाथ पकड़कर बिस्तर पर धक्का दिया । वह पीठ के बल इस समय बेड पर गिरी हुई थी और लगातार रोए जा रही थी । उसकी पूरी बॉडी डर के कारण कांप रही थी।

    कार्तिक सावी के कंधे पर से पल्लू हटाने लगा और बेरहमी से उसके कॉलर बोन पर काटने लगा । 'आहहहह! उम्मममम! नहींईईईई!' सावी जोर से चीख चिल्ला रही थी । कमरे का दरवाजा खुला था, क्योंकि इन सब के चक्कर में वे दोनों दरवाजा बंद करना भूल गए थे । लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि कमरे के आस पास भी भटक सके । बाहर खड़े बॉडीगार्ड और नौकर उस लड़की की चीखें सुन पा रहे थे । सबको पता था कि अंदर क्या हो रहा है, मगर इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ।"

    वही बाहर कोई था जो ये सब होते हुए देखकर सुकून से मुस्कुरा रहा था । आखिर यही तो चाहती थी, मैं ।


    रूम मे, "चिल्लाओ और चिल्लाओ! तुम्हारी ये चीखे मुझे सुकून पहुंच रही है । आखिरी चीखें ही तो मेरे प्यार का एहसास है, जो तुम्हारे मुंह से निकल रहा है । आज तुम्हारा ऐसा हाल करूंगा कि तुझे सुहागरात का नाम भी नहीं लेना चाहोगी । सपने में भी डर लगेगा!" बोलते हुए, कार्तिक उसके हर बॉडी पार्ट्स पर बेरहमी से काटने लगा । इस समय उसने सावी के दोनों हाथों को पकड़कर बेड पर धस दिए थे और अपने पूरे शरीर का भार उस पर डाल दिया था, जिससे वह और भी ज्यादा बेबस हो गई थी ।

    "नहीं! प्लीज मुझे छोड़ दीजिए!" कार्तिक प्लीज शांत हो जाइए, मैं कभी दोबारा ऐसा कुछ नहीं करूंगी, प्लीज कार्तिक, छोड़ दीजिए, बहुत तकलीफ हो रही है, इससे मुझे ।" वह एक बार फिर चिल्लाई, लेकिन कार्तिक सुनने को तैयार नहीं था ।


    वह धीरे-धीरे उसके कपड़े उतारने लगा और कमरे की लाइट बंद कर दी । फिर बेड से साइड हटकर उसकी साड़ी को अपने हाथों में लिया और अपनी पॉकेट से लाइटर निकालकर उस साड़ी में आग लगा दी । सावी को दिखाते हुए बोला, "देखा, आज के बाद मेरे आगे कभी यह कलर मत पहनना, वरना इससे भी बुरा हाल होगा । साबी की आंखे बाहर आने को हों गई। उसका दिल धक्क से रह गया । उसे समझ नहीं आया, आखिर कब उसका कार्तिक इस हद तक बदल गया, उसकी आंखों के सामने। जिसे अपने ही पसंदीदा रंग से इतनी नफरत हो गई। सॉरी खुद को बहुत लाचार महसूस कर रही थी तू वो पूरी तरह खुद को पूरी तरह बेबस महसूस कर रही थी। कार्तिक के आगे, अपनी किस्मत के आगे!


    कार्तिक, प्लीज शांत हो जाइए!" कहते हुए वो कांपते हुए होठों से आगे बोली, "पर आपको तो यह कलर मुझ पर बहुत पसंद था, ना? आप हमेशा कहते थे कि मुझे इस कलर में देखकर आपको बहुत खुशी होती है । अब क्या हो गया आपको, कार्तिक?"



    सावी ने यह कह ही रही थी, "हां बात तो बिल्कुल सही है तुम्हारी!" कहते हुए कार्तिक ने वहां पास ही में टेबल पर पड़े जग के पानी को उस लगभग पूरी जल चुकी साड़ी पर डाल दिया और आगे बोला, "लेकिन अब नफरत है मुझे, नफरत। तुम्हे इस रंग में देखकर घिन आती है l, मुझे तुमसे और इस रंग से भी। आज के बाद कभी मेरे आगे साड़ी मत पहनना समझी तुम? और हां आज के बाद, ना ही तुम मेरी पसंद का खाना बनाओगी, ना ही तुम मेरे पसंद के कोई भी चीज या कोई भी काम करोगी । मुझे घिन आती है तुमसे और तुम्हारी किए गए हर एक काम से ।" सावी को ये सब सुनकर अब खुद से ही घिन आ रही थी ।








    तो क्या लगता है, क्या होने वाला है आगे कहानी में? जानने के लिए बने रहें मेरे साथ, अगले भाग में!!!

  • 6. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 6

    Words: 1532

    Estimated Reading Time: 10 min

    🙏🏻हर हर महादेव दोस्तो 📿






    वह बेडशीट को अपने मुट्ठी में कसकर भींचते हुए उसे खींचने लगी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । वह गुस्सा करें, रोएं, चिल्लाएं या आखिर क्या करें । इसका कारण उसे समझ भी नहीं आ रहा था । सावी अपनी सोच में गुम ही थी, कि उसे पता ही नहीं चला कब कार्तिक उसके करीब आया और उसकी कमर को पकड़कर जोर से मसल दिया । जिससे उसकी पूरी बॉडी ऊपर की तरफ उठ गई । उसकी आंखों के दोनों कोनों से आंसू बह रहे थे । उसे लग रहा था जैसे उसकी बॉडी से उसकी आत्मा को अलग किया जा रहा हो ।



    मगर कुछ देर बाद वो शांत पड़ गई, यह सावी की आखिरी चीख साबित हुई । वह बस बहते हुए आंसुओं के साथ सीलिंग की तरफ देखती रही और कार्तिक उसके साथ सब कुछ करता रहा । कार्तिक का हर एक मूव उसे बेहद दर्द पंहुचा रहा था, पर वो किसी बेजान लाश की तरह बेड पर पड़ी रही, कोई हरकत नहीं कर रही थी । वही कार्तिक को उसकी हालत से अनजान अपने में ही मग्न था । उसे कुछ होश नहीं रह गया था । वह बिना किसी रहम के बहुत ही क्रूल्टी के साथ समा रहा था ।

    सावी की सांसें जैसे रुक सी गई थीं । उसे अपनी निचली बॉडी में बहुत दर्द महसूस हो रहा था, जैसे वह कुछ ही पलों में मर जाएगी । उसे यह दर्द बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था ।

    देखते ही देखते उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह बेहोश हो गई । तब भी कार्तिक को होश नहीं आया, उसका मगर अचानक से कार्तिक उसकी तरफ देखकर जोर-जोर से हंसने लगा, "क्या हुआ बीवी, इतनी जल्दी बेहोश हो गई? मुझे सहन नहीं कर सकती? कुछ देर पहले तो मेरे नजदीक आने की बात कर रही थी । वैसे तुम्हारा बदन तो बहुत ही रसीला है, मजा आ गया इसे मसल कर," अहहह मैंने गलती कर दी इतने दिन तुमसे दूर रह कर ये सब तो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था । लेकिन कोई बात नहीं, अब से तुम भी यही और मैं भी रोज करेंगे ये सब, बड़ी बेशर्मी से कहने के बाद वह जोर-जोर से राक्षसों की तरह हसते हुए हैवानियत की सारी हदें पार करने लगा ।

    उसने तब तक सावी को नहीं छोड़ा, जब तक उसका मन नहीं भर गया । सुबह के 4:00 बज चुके थे जब वह रुका और साबी को छोड़कर उस के बाजू में लेट गया । नशे के कारण वह भी थोड़ी देर में ही सो गया । लेकिन उसके बगल में सोई सावी के बेजान शरीर में अब कोई हलचल नहीं थी ।



    वह अंधेरी काली रात बीत चुकी थी। आज एक नई सुबह ने दस्तक दी थी। खिड़कियाँ खुली थीं और पर्दे, जो कल रात कार्तिक ने निकाल फेंके थे, इस वजह से सीधी धूप कार्तिक के मुँह पर आ रही थी। कसमसाते हुए उसने अपनी आँखें खोलीं; उसकी नज़र सीधा अपने बगल में सो रही सावी पर पड़ी। उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और फिर अंगड़ाई लेते हुए उठ गया। घड़ी की ओर उसकी नज़र गई तो सुबह के ग्यारह बज चुके थे। यह देखकर वह थोड़ा हैरान हुआ क्योंकि वह सुबह जल्दी उठने वालों में से था। तभी अचानक उसे बीती रात याद आ गई।

    उसका दिल धड़कने लगा और उसने तुरंत पलट कर सावी की ओर देखा। इस वक्त सावी पर एक सफ़ेद रंग का ब्लैंकेट पड़ा हुआ था और उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। उसने ब्लैंकेट हटाकर देखा तो उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उसका दिल धक्क से रह गया; उसका पूरा बदन और हाथ बुरी तरह काम में लगे थे। अपने सामने के नज़ारे पर उसे बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था। उसने घबराहट के कारण एक पल के लिए कसकर अपनी आँखें मीन लीं।

    फिर हिम्मत करके उसने अपनी आँखें खोलीं और सामने देखने लगा। वहाँ बेडशीट पर जगह-जगह खून के धब्बे लगे हुए थे। सावी के बदन पर जगह-जगह चोटें थीं जहाँ से खून निकलकर सूख चुका था। कहीं नीले तो कहीं बैंगनी रंग के नोचने और काटने के निशान थे, तो कहीं चोट के। कहीं जोर से पकड़ने के तो कहीं किसी चीज़ के चुभने के निशान थे। इस तरह उसकी पूरी बॉडी चोट के निशानों से भरी हुई थी।

    कार्तिक से यह सब देखा नहीं गया। एक पल के लिए उसने छूने की भी कोशिश की, पर वह नहीं कर पाया। इसलिए उसने एक बार फिर से सावी को ब्लैंकेट से कवर कर दिया। उसकी आँखों में पछतावे के आँसू थे, लेकिन अब यह पछतावा सावी के दर्द को कम नहीं कर सकता था।

    वह पलट कर बालकनी की ओर चला गया और अपना हाथ जोर से दीवार पर मारा। अपने बालों को हाथों से नोचते हुए वह जोर से चीखा, "आह्ह्ह्ह, ये सब क्या हो गया मुझसे? इतनी बड़ी गलती मैं कैसे कर सकता हूँ?" कहते हुए वह लंबी-लंबी साँसें लेने लगा। कुछ मिनट खुद को शांत करने के बाद उसने एक सिगरेट जलाई। इस वक्त उसका चेहरा दर्द, परेशानी और फ्रस्ट्रेशन से भरा हुआ था। रेलिंग पर रखे हाथ कपकपा रहे थे। सिगरेट के लंबे-लंबे कश भरते हुए वह अपने अंदर की आग को शांत करने की कोशिश कर रहा था। मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

    करीब तीस मिनट बाद वह वापस कमरे में लौटा। इस वक्त उसने सिर्फ़ एक लोअर पहना हुआ था। उसने देखा सावी अब तक वैसे ही पड़ी हुई थी। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था और शरीर बेजान हो चुका था। एक नज़र देखकर वह सीधा वॉशरूम की तरफ चल दिया। बीस मिनट बाद वह वॉशरूम से बाहर आया। इस समय उसने अपनी बॉडी पर सिर्फ़ एक तौलिया लपेट रखा था। उसके बालों से पानी अभी टपक रहा था। ड्रेसिंग रूम की तरफ़ जाते हुए उसकी नज़र सावी की ओर ही थी।

    पन्द्रह मिनट बाद वह कैजुअल टी-शर्ट और लोअर में बाहर आया और वॉशरूम में जाकर टैप बंद किया, जो बाहर आते वक्त उसने चालू कर दिया था। फिर टेम्परेचर चेक किया तो पानी हल्का गर्म था जिसे आसानी से कोई भी सहन कर सकता था। वह बाथरूम के बाहर खड़ा होकर सोचने लगा कि अब क्या करेगा? क्योंकि बेटी राज, जो उसने हरकत की थी, उसके कारण अब तो उसे सावी को छूने में भी डर लग रहा था।

    अचानक, उसके दिमाग में एक ख्याल आया। उसने सोचा, "अगर सावी ठीक हो गई तो क्या वह मुझे माफ़ करेगी?" यह सवाल उसे भीतर तक झकझोर गया। उसकी आँखों में एक बार फिर आँसू भर आए, मगर उसने अपना सर झटका। क्योंकि इस वक्त यह सब सोचने का कोई फ़ायदा नहीं था; फ़िलहाल कुछ और ज़रूरी था - सावी की सेहत। यह सोच वो सावी की ओर बढ़ा और जल्दी से उसके पास आ गया।

    उसे अपनी बाहों में उठाकर बाथरूम में ले जाकर बाथटब में लिटा दिया। सावी को कुछ देर के लिए उसी तरह बाथटब में छोड़ दिया ताकि गर्म पानी के एहसास से उसकी बॉडी का दर्द थोड़ा कम हो सके। और वैसे भी, इस वक्त कार्तिक को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए, इसलिए उसने जो दिमाग में आया वो किया। वह वापस रूम में आ गया और खुद ही रूम को क्लीन करने लगा, जैसे वह पश्चाताप कर रहा हो, जो भी उसने किया था। जितनी ही मेहनत से सावी ने इस रूम को सजाया था, उसने उतने ही बेरहमी से उस रूम को तहस-नहस किया था और अब उतनी ही मेहनत से उसे पूरी तरह साफ कर रहा था। उसने सब कुछ क्लीन करने के बाद एक नज़र पूरे रूम पर डाली और वापस से बाथरूम की ओर बढ़ गया। रूम को क्लीन करते हुए उसे पैंतालीस मिनट हो चुके थे।

    वह धीरे से बाथरूम का गेट खोलकर अंदर गया। सावी के पास पहुँचकर वह धीरे-धीरे उसकी बॉडी को साफ करने लगा। सावी को वह इतनी नजाकत से छू रहा था, कि वह जैसे कोई मॉम की गुड़िया हो और अगर उसने जरा भी जोर लगाया तो वह टूट जाएगी।

    इस दौरान कार्तिक की आँखों में जो दर्द दिखाई दे रहा था, उसे बयाँ कर पाना मुश्किल था। उसने अब तक एक लफ़्ज़ भी नहीं कहा था, मगर अंदर ही अंदर उसका दिल जल रहा था। सावी को अच्छे से साफ करने के बाद उसने कुछ देर तक उसे टब में ही पड़े रहने दिया ताकि उसकी बॉडी थोड़ा रिलैक्स महसूस कर सके। इस दौरान उसने सर्वेंट को बुलाकर रूम से सारा कचरा साफ करवा दिया था।

    पन्द्रह मिनट बाद वह सावी को एक लाल रंग के तौलिये में लपेटकर वापस रूम में लेकर आया और उसे आहिस्ता से बेड पर लिटा दिया। मगर इस दौरान उसने एक बार भी ध्यान नहीं दिया कि सावी ने अब तक कोई हलचल नहीं की थी। वह कुछ देर तक उसके सर को बड़े आराम से सहलाता रहा। इस वक्त वह पिछली रात के कार्तिक से बिलकुल ही अलग दिख रहा था। अगर इस वक्त सावी होश में होती, तो वह इन सब पर विश्वास ही ना कर पाती।



    क्यों कर रहा है कार्तिक यह सब ? आखिर क्या रिश्ता था, उन लोगों के बीच सावी किस वक्त की बातें कर रही है? क्यों करता है कार्तिक इतनी नफरत सावी से?

  • 7. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 7

    Words: 1504

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक को सब को करते हुए लगभग डेढ़ घंटे बीत गए थे। उसे ऑफ़िस जाने के लिए काफ़ी लेट हो रहा था, इसलिए अब उसने बिना एक भी पल गँवाए अपने थ्री पीस सूट में रेडी हुआ। फिर नज़र भर के सावी को देखकर उसके माथे पर झुका। मगर जैसे ही उसके होंठ सावी के माथे को छूने वाले थे, वह झटके से पीछे हट गया। फिर अपनी घड़ी पहनते हुए वह रूम से बाहर निकल आया। नीचे हॉल में आकर कार्तिक ने पहले सर्वेंट्स को कुछ इंस्ट्रक्शन्स दिए और अपने रेंज रोवर से ऑफ़िस की ओर निकल गया। अब तक गंगटोक का मौसम थोड़ा बदल चुका था। सर्द हवाएँ बहनी शुरू हो रही थीं। ऐसा लग रहा था कि तेज बर्फबारी कभी भी शुरू हो जाएगी।

    शाम के लगभग सात बज चुके थे। हर तरफ़ कोहरा और बर्फ थी। ऐसा लग रहा था जैसे पूरे गंगटोक ने बर्फ की चादर ओढ़ रखी है। तभी अचानक पिछले चौदह-पन्द्रह घंटे से बेहोश सावी ने दर्द से कराहते हुए अपनी आँखें खोलीं। आँखें खोलते ही उसे अपनी निचली बॉडी में बेतहाशा दर्द का एहसास हुआ। उसे याद आने लगा कि कल रात उसके साथ क्या-क्या हुआ था। सीलिंग को देखते हुए उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। वह किसी तरह खुद को संभालते हुए बेड पर उठकर बैठ गई। कल रात उसकी ज़िंदगी की सबसे हसीन रात साबित होने वाली थी। उसने कल के लिए न जाने क्या-क्या सपने सजाए थे। उसे लगा था कि कम से कम कल के दिन तो कार्तिक अच्छे से बिहेव करेगा, मगर हुआ इसका बिलकुल उल्टा। यह उसकी ज़िंदगी की सबसे भयानक काली रात साबित हुई।

    यह सब सोचते ही सावी के आँसू और तेज़ी से बहने लगे। उसे अपने शरीर के हर एक हिस्से में बहुत दर्द हो रहा था। मगर किसी तरह खुद को संभालते हुए वह बेड से खड़ी हुई। उसकी चीख निकल पड़ी इस दर्द को महसूस करते हुए, लेकिन उसके दर्द को सुनने वाला वहाँ कोई मौजूद नहीं था। किसी तरह खुद को संभालते हुए वह अपनी वॉर्डरोब की तरफ़ गई और एक सिंपल सी नाइटी निकाल कर पहन ली। फिर धीरे कदमों से चलते हुए, बालकनी में आ गई।

    साबी बालकनी में आई और देखा, मौसम बेहद सुहावना था। बाहर बर्फ जमकर गिर रही थी। रात हो चुकी थी। सावी को स्नोफॉल बहुत पसंद था; बर्फबारी देख उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई।

    "जिन्हें अपना समझा उन्होंने तो नहीं, पर कम से कम इस मौसम ने तो मेरा साथ दे ही दिया," आसमान की ओर देखते हुए वह बोली।

    फिर वह बिना देर किए ऊपर टेरेस पर चली गई। उसे इस बर्फ को अपने ऊपर महसूस करना था। उसे इतना दर्द हो रहा था कि वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, खासकर निचले हिस्से में। फिर भी, वह जा रही थी। आखिर, बस यही बर्फ का मौसम था जो उसके अकेलेपन में सुकून का एहसास दिलाता था। बचपन से ही अनाथ सावी, जब भी दुखी होती, बाहर हो रही स्नोफॉल को देखकर खुश हो जाया करती थी।

    छत पर पहुँचकर, उसने दीवार के सहारे एक कोने में बैठकर आसमान की ओर देखना शुरू किया। कुछ देर देखने के बाद वह बोली, "चलो, कोई तो है मेरे इस अकेलेपन में मेरा साथ देने वाला। आज की रात मेरी जिंदगी की आखिरी रात है जिसमें हो रही स्नोफॉल देखकर मुझे बहुत खुशी मिल रही है, भगवान जी। लेकिन मैं आपसे अपने कुछ सवालों का जवाब जानना चाहती हूँ। आखिर क्यों, क्यों मेरे साथ ऐसा हुआ? क्या गलती की थी मैंने जो मुझे यह दिन देखना पड़ा? मैं तो बस प्यार चाहती थी, न? वह भी नहीं दिया गया।" यह कहते हुए उसकी लाल आँखें और उसमें बसा सूनापन उसके दर्द की गवाही दे रहा था।

    वह आगे बोली, "बचपन से अनाथ थी, फिर एक दिन आई मेरी जिंदगी में कार्तिक, जिन्होंने मुझे थोड़े ही समय में इतनी खुशियाँ दीं कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था। शादी करने और बड़े-बड़े सपने दिखाए।" कहते हुए वह उस पल में खो गई थी। उसे याद आने लगा कि किस तरह उसकी हल्की सी कराह पर भी कार्तिक बेचैन हो जाया करते थे। उसकी हर छोटी-बड़ी चीज़ का ख्याल खुद रखते थे।

    ये सब सोचते हुए वो आगे बोली, "फिर अचानक से एक दिन वह मुझसे दूर चले गए, बिना कुछ बताए। इंतजार करते-करते मैं थक चुकी थी। मैंने उनके लौटने की आशा ही छोड़ दी थी क्योंकि इस बीच उन्होंने मुझे एक बार भी कॉल नहीं किया। ऐसा नहीं था कि मैं अब उनका इंतजार नहीं कर सकती थी, बस मुझे ये लगने लगा कि उनका मुझसे दूर ही रहना ठीक है। आखिर, मैं उनके स्टेटस के आसपास भी नहीं आती थी। कहाँ वे किसी प्रिंस से कम नहीं थे। ऐसे में अगर वे किसी और को पसंद कर भी लेते तो क्या ही गलत था? क्योंकि उन्होंने मुझे बताया था कि उन पर कितना प्रेशर है शादी का। पर मुझे उनके प्यार पर इतना यकीन था कि मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि वे मेरे अलावा किसी लड़की की तरफ देख भी सकते हैं। फिर उस रात....." कहते हुए उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी। उसकी आँखें और भी दर्द से भर उठीं। आँसू, जो एक पल को नहीं रुके थे, वे और तेजी से बहने लगे।




    सावी की बातें बर्फ की ठंडक में गूँज रही थीं। वह अपने दर्द और गम को शब्दों में पिरोने की कोशिश कर रही थी। उसके आँसू जैसे बर्फ पर गिरकर और भी ठंडक फैला रहे थे। एक पल के लिए उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी सारी तकलीफें उस ठंडी हवा के हवाले कर दीं। उसे लगा जैसे उसके सारे दर्द और तकलीफें इस बर्फीली रात में घुलकर कहीं गायब हो जाएँगी।

    सावी ने अपनी आँखें खोलीं और आसमान की ओर देखते हुए बोली, "काश, ये बर्फ मेरे सारे दर्द को अपने साथ बहा ले जाए। मैं भी उस बर्फ की तरह ही सफेद और शांत हो जाऊँ।" उसकी आवाज में दर्द और अकेलापन साफ झलक रहा था। वह अपने दर्द से लड़ते हुए भी अपने अंदर की शांति को तलाश रही थी।

    फिर उसने मुस्कुराते हुए आगे कहा, "फिर एक दिन वह लौटकर आए मेरी जिंदगी में। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि खुश हूँ या झगड़ा करूँ या प्यार करूँ। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही उन्होंने मुझसे शादी कर ली। उन्होंने ना कोई सवाल किया, ना जवाब दिया, न ही मुझे कुछ जानने का मौका दिया। पर जैसे ही उन्होंने मुझसे शादी के लिए कहा, मुझे ऐसा लगा कि उस पल में मैंने सब कुछ पा लिया।"

    "उन्होंने मुझसे शादी की और हम साथ रहने लगे, पर वह बदल चुके थे। वह ना मेरे करीब आते, ना मुझे एक नजर देखते। यहाँ तक कि उन्होंने इस बीच मुझसे एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की। इन तीन सालों में मैंने कभी उस तरह से उनके करीब आने की कोशिश नहीं की, न ही उनसे कभी कुछ मांगा। बस हर वह काम करती जो उन्हें पसंद था, जिससे उन्हें खुशी मिल सके और मैं उनके दिल में वापस अपनी जगह बना सकूँ। मैं अपना बेस्ट देना चाहती थी इस रिश्ते में, अपना पत्नी धर्म निभाकर।"

    "पर इस बीच वक्त बितने के साथ में अंदर ही अंदर घुट रही थी।"

    "क्योंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ जैसा मैं चाहती थी। १% भी वैसा कुछ नहीं हुआ। ऊपर से सासू माँ के ताने मेरे घर में कदम रखने के पहले दिन से ही शुरू हो गए। वह मुझे नौकरों से भी बदतर ट्रीट करती थीं। मुझे समझ नहीं आया कि आखिर मैंने गलती क्या की है, पर मैं फिर भी सब कुछ सहती रही, उन्हें अपनी माँ की तरह मानती रही। मगर कल हद हो गई। उन्होंने मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की, इतना भी मैंने बर्दाश्त कर लिया। पर उन्होंने मेरे कैरेक्टर पर सवाल किया। उनकी हिम्मत भी कैसे हुई ऐसा कुछ बोलने की? कार्तिक के अलावा किसी लड़के के बारे में सोचा तक नहीं आज तक।"

    यह सब कहते हुए उसके चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। उसके ऊपर बर्फ इकट्ठा हो चुकी थी, मगर उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। लग रहा था jaise शरीर उसका पत्थर का हो चुका है। फिर वह आगे बोली, "यह सब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने उनसे तो कुछ नहीं कहा, पर मैंने ठान लिया था कि उनका पोता की ख्वाहिश मैं पूरी तो नहीं कर सकती। मगर एक कोशिश जरूर करूंगी ताकि अपने ऊपर लगाए इस दाग को हटा सकूँ। इस वजह से मैंने इतना सब कुछ किया, कार्तिक को खुश करने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे क्या दिया?" कहते हुए उसके चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान थी और वह खुद को ऊपर से नीचे तक देखने लगी।

    "मुझे लगा था कि शायद मेरे प्यार और समर्पण से उनका दिल पिघल जाएगा। मगर नहीं, उन्होंने मुझे और ज्यादा तोड़ा, मेरे self respect को कुचल दिया। मैंने हर वह चीज़ की जिससे उनका दिल जीत सकूँ, मगर हर बार मैं असफल रही। उनकी बेरुखी और मेरी सासू माँ के ताने मेरी हर कोशिश को नाकाम कर देते।"

  • 8. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 8

    Words: 1558

    Estimated Reading Time: 10 min

    वह अपनी जगह से उठी और छत के किनारे आकर बर्फ की चादर पर अपनी उंगलियां फिराने लगी। "जानते हो, ये बर्फ भी कितनी अजीब होती है। जितनी ठंडी दिखती है, उतनी ही कठोर भी होती है। लेकिन जब ये पिघलती है, तो सब कुछ बहा ले जाती है। काश, मैं भी इस बर्फ की तरह हो पाती। ठंडी, कठोर, लेकिन अंत में पिघलकर सब कुछ बहा ले जाने वाली।"

    सावी ने अपनी आँखें बंद कीं और एक लंबी साँस ली। "भगवान जी, अगर आप कहीं हो, तो मेरी बस एक ही गुजारिश है। मुझे इस दर्द से मुक्ति दिला दो। मैं अब और नहीं सह सकती।" उसके चेहरे पर थकान और दर्द साफ झलक रहे थे। उसने आसमान की ओर देखते हुए कहा, "शायद यही मेरी नियति थी।"

    "कल रात मेरी कोशिशों का नतीजा ये निकला कि उन्होंने बहुत अच्छी प्यार की निशानी दी है मुझे," सावी ने खुद से कहा। "अगर उन्हें यही सब करना था मेरे साथ, तो क्यों, क्यों आए हो मेरे करीब? छोड़कर चले तो गए थे, फिर वापस क्यों आए मेरे पास? क्यों मुझसे शादी और मेरी जिंदगी को नर्क बनाने की कोशिश की?" उसकी आवाज़ में दर्द और गुस्सा स्पष्ट था।

    सावी ने धीरे-धीरे खुद को संभालते हुए कहा, "मगर मैं तो बस अपनी थर्ड एनिवर्सरी की रात को यादगार बनाना चाहती थी, क्योंकि मुझे पता था कि यह मेरी जिंदगी की आखिरी एनिवर्सरी होने वाली है।" कहते हुए उसे याद आने लगा कि उस दिन दोपहर में जब वह डॉक्टर के पास गई थी, तब उन्होंने उसे रिपोर्ट्स देते हुए क्या कहा था।

    saavi अपने दर्द से लड़ते हुए स्नोफॉल में छत पर बैठी थी। वह पिछले दिनों डॉक्टर से मिलने और चेकअप करवाने के बाद डॉक्टर की बातें याद कर रही थी।

    फ्लैशबैक.....

    हॉस्पिटल में डॉक्टर ने कहा, "मिस सावी, जैसा कि हमने आपको पहले बताया था, रिपोर्ट्स ने स्पष्ट कर दिया है कि आपके पास बहुत कम वक्त बचा है। जितना हो सके, अपना ख्याल रखिए।" यह सुनकर सावी के होंठ कांपने लगे। वह कांपते हुए होंठों से बोलने की कोशिश करते हुए पूछने लगी, "डॉक्टर, मुझे क्या हुआ है? क्या है इन रिपोर्ट्स में? क्या आप मुझे स्पष्ट बता सकते हैं? मुझे बहुत डर लग रहा है। आप मेरे साथ कोई मजाक तो नहीं कर रहे, ना? मुझे यह कैसे हो सकता है? मैं तो एकदम फिट और फाइन थी।"

    डॉक्टर शांत लहजे में सावी को समझाने की कोशिश करते हुए बोले, "देखिए मिस सावी, आपकी रिपोर्ट्स बिल्कुल सही हैं और मैं कुछ गलत नहीं कह रहा हूँ। आपको लास्ट स्टेज कैंसर है। इसे चाहकर भी ट्रीट नहीं किया जा सकता। हम अगर इसका ट्रीटमेंट करने की कोशिश भी करें, तो भी 90% चांस है कि आपकी मौत हो जाएगी। बल्कि ऑपरेशन के बाद तो और भी ज्यादा रिस्क है। ऑपरेशन सफल भी रहा, तो भी आपकी बॉडी काफी कमजोर है। हम इंतजार भी करें आपके फिट होने का, तब भी आपकी जान बच पाना मुश्किल है। कीमो के भी आपको हैवी doses देने पड़ेंगे और कीमो को टॉलरेट करना भी इतना आसान नहीं है। ऑलरेडी आपकी बॉडी ठीक कंडीशन में नहीं है और इस पर अभी हम आपको किमो के हैवी दोसेस देंगे तो यह आपके लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। और सबसे बड़ी बात, आपकी मेंटल कंडीशन भी ठीक नहीं है। आखिर ऐसा क्या हो रहा है आपके साथ जो आप फिजिकल और मेंटली दोनों तरह से अनस्टेबल हो चुकी हैं?"

    फिर डॉक्टर ने छोटा सा पोज लिया और कुछ देर तक सावी के चेहरे को गौर से देखा। उसके बाद अपनी बात जारी रखते हुए बोले, "मिसेज रावत, हमें नहीं पता कि आपकी लाइफ में क्या चल रहा है, लेकिन स्टिल आपके पास जीने के कुछ ही दिन और बचे हैं। तो मैं आपको सलाह दूंगा कि खुलकर जीइए। जो आपका दिल करे वह करिए। मैं आपको किसी भी तरह का सदमा देना या फिर हर्ट नहीं करना चाहता। मगर एक डॉक्टर होने के नाते सच से रूबरू कराना मेरा कर्तव्य है। इसलिए अपनों के साथ रहिए, ज्यादा वक्त उनके साथ बिताइए और आखिर में यही कहूंगा कि खुश रहने की कोशिश करिए।"

    ये सब सुनकर सावी लड़खड़ाते हुए कदमों से वहाँ से उठ खड़ी हुई। बदहवास सी क्लीनिक से बाहर जाने लगी। उसे कोई होश नहीं था। रिपोर्ट्स को उसने डॉक्टर के पास ही छोड़ दिया था। डॉक्टर ने उसे काफी आवाज दी, पर उसे तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। वह अपने घर की ओर लौट रही थी। लौटते ही वह अपने रूम में जाकर बालकनी में खड़ी हो गई। उसके कानों में बार-बार डॉक्टर की बातें घूम रही थीं। "आखिर कैसे? उसकी जिंदगी इतनी जल्दी खत्म हो सकती है? अभी तो उसने ठीक से जीना भी शुरू नहीं किया था।"

    यही सब सोच रही थी कि तभी नीचे से उसकी सासू माँ की जोर-जोर से उसे बुलाने की आवाज आने लगी।

    फ्लैशबैक एंड.....

    यह सब याद करके वह अपने आप को संभालते हुए सोचने लगी, "मैंने सोचा था कि शायद कार्तिक को खुश करके, उनके दिल में अपनी जगह बना सकूंगी। पर अब यह भी संभव नहीं है।" उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, और वह सोच रही थी, "भगवान, आखिर मैंने ऐसा क्या किया था जो मुझे यह दिन देखना पड़ा?"

    उसने आसमान से बर्फ को गिरते हुए देखा। "शायद यही मेरा आखिरी सुकून है। यह बर्फ, यह ठंड, यह अकेलापन... यह सब मुझे सुकून देता है। पर अब और नहीं। मुझे अब इस दर्द से आजादी चाहिए।" उसने एक गहरी साँस ली और आसमान की ओर देखते हुए कहा, "भगवान जी, मुझे अब इस दर्द से आजादी दे दो। मुझे अब और सहन नहीं होता।"

    यह सब सोचते हुए उसकी आँखों से अब भी आँसू बह रहे थे और चेहरे पर अभी भी मुस्कान बनी हुई थी। "कार्तिक, इसीलिए मैंने कोशिश की थी आपके लिए, मेरे लिए, हमारे प्यार के लिए। मगर सब बर्बाद हो गया। तुम्हें तो मुझसे प्यार कभी था ही नहीं। तुम तो मुझसे नफरत करते थे, बेपनाह नफरत," कहते हुए उसके चेहरे पर गुस्सा आ गया, और उसकी आँखें लाल हो गईं। उसने अपने हाथ में जो बर्फ का बॉल ले रखा था, उसे गुस्से में दीवार पर फेंक दिया। "नफरत करते हो ना तुम मुझसे, बेइंतहा नफरत है ना? ठीक है, मैं कल मरने वाली थी, मगर आज मर जाऊंगी। मैं तुम्हारी जिंदगी से इतनी दूर चली जाऊंगी कि चाहकर भी तुम सावी से कभी नहीं मिल पाओगे। तुम्हारे साथ बिताया हर एक पल मेरे लिए बहुत यादगार था, भले ही दर्द ही क्यों न हो। क्योंकि जिंदगी की असली खुशी क्या होती है, यह भी तुमने ही मुझे दिखाया था। अच्छी-बुरी सभी मेरी यादें तुमसे ही हैं और अब मैं इन्हीं यादों को अपने साथ लेकर जा रही हूँ।"

    कहते हुए उसने अपने हाथ में पकड़ी एक चाकू आगे कर दी और उसे गौर से देखने लगी। "हाँ, बस! बस बहुत हुआ। अब मुझे नहीं जीना है। यह जिंदगी हर दिन मरने से अच्छा, मैं आज ही मर जाऊंगी। ऐसा नहीं है कि मैं कोई लूजर हूँ या अपनी जिंदगी से हार गई हूँ। बस अब मैं अपने कारण किसी को भी और परेशान नहीं करना चाहती। मेरे लिए और बाकी सभी के लिए यही अच्छा होगा कि मैं इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दूँ। वैसे भी ज्यादा दिन नहीं हैं मेरे पास," कहते हुए उसने आसमान की ओर देखा और एक लंबी स्माइल कर दी।

    आसमान में देखते हुए ही उसने चाकू तेजी से अपनी कलाई पर चला दिया। खून की तेज धार उसके हाथ से निकल पड़ी। उसने 'उफ्फ' तक ना किया। उसने अपने होंठ भींच रखे थे, मुट्ठियाँ कसकर बंद की थीं, और दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रही थी। उसने चाकू को छत से दूर फेंक दिया ताकि किसी को भी इस बारे में पता ना चल सके। इस वक्त, तीखी ठंड के कारण वह पूरी तरह से जम चुकी थी, पर फिर भी उसमें इतनी हिम्मत थी कि अपनी ही जान लेने की हिम्मत कर सके। और कुछ ही सेकंड में वह बर्फ पर बेहोश पड़ गई थी। हाँ, आखिरकार सावी ने अपनी जान ले ली थी। नीला पड़ चुका उसके बदन में शायद गिनती की ही साँसें बची थीं।

    लगभग एक घंटे बाद मेंशन का केयरटेकर सावी को ढूंढते हुए टेरेस पर पहुँचा। "सावी, सावी! कहाँ है तू? कहाँ मर गई? एक तो काम-काज कुछ है नहीं इसको, ऊपर से नखरे 50 दिखाने होते हैं। सर ने भी पता नहीं क्यों इसे रखा घर में। सावी जिंदा भी है या नहीं?" यह सब बोलते और चिल्लाते हुए वह सावी को ढूंढ रहा था। तभी उसका पैर किसी चीज से जोर से टकराया जो पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई थी। वहाँ बस एक हाथ थोड़ा सा दिख रहा था। उसे देखते ही उसकी चीख निकल गई... "आआआ!"

    उसकी चीख सुनते ही बाकी सभी सर्वेंट्स भी उसके पास पहुँच गए। उन सभी ने डरते हुए देखने की कोशिश की तो वहाँ एक बॉडी पड़ी हुई थी। जिसे देखते ही वे सब डरे सहमे हुए नीचे भाग गए, क्योंकि उस बॉडी में कोई मूवमेंट नहीं था। इसे देखकर आसानी से समझ आ रहा था कि यह एक लाश है। इसलिए वे सभी डर गए थे। घर में इस वक्त न मिसेज रावत थीं और न ही कार्तिक था। उन लोगों ने वापस छत पर जाने की हिम्मत नहीं की।






    तो आखिर डॉक्टर ने क्या कहा था साबी से, जानने के लिए मिलते हैं अगले भाग में!!

  • 9. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 9

    Words: 1522

    Estimated Reading Time: 10 min

    आसमान में सफेद रंग के बादल गहरे भूरे रंग में बदल चुके थे। सर्द हवाएँ और भी तेज हो चुकी थीं। तभी आसमान में जोर से बिजली कड़कती है, जिससे छत पर पड़ी सावी की बॉडी 2-3 इंच तक हवा में उठती है और एक सेकंड के लिए अपनी आँखें खोलती है। फिर एक बार फिर बेहोश हो जाती है।

    जब घर के बटलर को बाकी सर्वेंट्स से सावी की डेड बॉडी के टेरेस पर होने का पता चला, तो उसने उन लोगों को खूब डाँटा और बिना एक भी पल की देरी किए वह छत पर भागा। वहाँ जाकर उसने सबसे पहले बर्फ हटाकर सावी को देखा, जो बहुत धीरे-धीरे साँस ले रही थी। वह बाकी नौकरों की मदद से उसे नीचे लाने लगा और कार्तिक को भी कॉल कर दिया।

    कार्तिक को जब कॉल मिली, तो वह तुरंत मेंशन की ओर रवाना हो गया। सावी की हालत गंभीर थी और उसे फौरन मेडिकल मदद की जरूरत थी। बटलर और नौकरों ने सावी को धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे लाया और मास्टर बेडरूम में लेटा दिया।

    रात के करीब 10:00 बजे का वक्त हो रहा था । रावत मेंशन के मास्टर बेडरूम में बेड पर एक लड़की बेजान सी हालत में लेटी हुई थी । कार्तिक ने सावी के पास बैठकर उसका हाथ थाम लिया । "सावी, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा," उसने बुदबुदाते हुए कहा, उसकी आंखों में चिंता साफ झलक रही थी । तभी साबी के पास में एक फीमेल डॉक्टर भी आ गई । डॉक्टर ने कार्तिक को बाहर जाने के लिए कहा, "मिस्टर कार्तिक, प्लीज आप कुछ देर के लिए बाहर जाएं। मुझे इनका फुल बॉडी चेकअप करना है । काफी निशान हैं उनकी बॉडी पर, देखना होगा आखिर बात क्या है ।"

    कहते हुए वह अधेड़ उम्र की डॉक्टर कार्तिक को घूर रही थी । यह देख कार्तिक को गुस्सा तो बहुत आया, मगर वक्त की नजाकत को समझते हुए उसने अपने होंठ भींच लिए । मगर कुछ बोला नहीं और रूम से बाहर चला गया, साथ में दरवाजा भी बंद कर लिया । इस वक्त वह काफी ज्यादा परेशान था क्योंकि जिस हालत में सावी उसे मिली थी, वह लगभग मौत के करीब थी । उसका पूरा शरीर ठंड से नीला पड़ चुका था । वह रूम के बाहर ही चक्कर काटने लगा ।

    30 मिनट बाद डॉक्टर ने कार्तिक को अंदर बुलाया और बोलने लगी, "मिस्टर कार्तिक, प्लीज कम इन ।" जैसे ही कार्तिक उनके सामने खड़ा हुआ । उन्होंने खुद को शांत रखते हुए बड़ी आंखों से उसे देखते हुए कहा, "मिस्टर कार्तिक, क्या आप जानते हैं कि आपकी बीवी किस हालत में है? उनकी बॉडी पर इतने सारे निशान हैं और आपने उनके साथ मैरिटल रेप किया है । उनकी हालत इतनी खराब है कि सही वक्त पर ट्रीटमेंट ना किया जाता तो उनकी मौत भी हो सकती थी । अभी भी वह बहुत अच्छी कंडीशन में नहीं हैं । आपकी बीवी कोई खिलौना नहीं है जो आपने उनके साथ यह सब किया । आप तो पढ़े-लिखे और समझदार इंसान हैं ।"

    डॉक्टर की बातें सुनकर कार्तिक को बेहद गुस्सा आ गया। उसने झल्लाते हुए कहा, "जस्ट शट अप! शट योर माउथ अप डॉक्टर ! मैंने आपसे ज्ञान देने को नहीं कहा है । यहां पर जिस काम के लिए बुलाया है, वह काम कीजिए और चलती बनिए यहां से । वह मेरी बीवी है, मेरी मर्जी । मैं उसके साथ चाहे जैसे भी रहूं, इट्स नॉन ऑफ योर बिजनेस । और एक बात, अगर आप को अपने पेशे से प्यार है तो अपना यह भाषण और फालतू का ज्ञान अपने पास ही रखिएगा । ज्यादा ज्ञान देने की जरूरत नहीं है मुझे । समझी आप? इसलिए अपना काम कीजिए और बाहर निकलिए यहां से ।"

    डॉक्टर को कार्तिक के ऊपर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था । उन्हें लगा कि इस इंसान को खड़े-खड़े गोली मार दें । मगर उनके अंदर अब कार्तिक के सामने सर उठाने तक की हिम्मत नहीं बची थी । उन्होंने बिना कुछ कहे एक बार और सावी को चेक किया और कुछ मेडिसिंस लिखकर पर्ची साइड टेबल पर रख दी । फिर फौरन रूम से बाहर चली गईं ।
    कार्तिक सावी के पास जाकर उसका हाथ पकड़कर बैठ गया । उसने उसके हाथ पर किस करते हुए कहा, "आई'एम रियली सॉरी, सावी । सॉरी, मैं यह सब नहीं करना चाहता था । मैंने यह सब नशे में किया । मुझे पता था कि अगर मैं तुम्हारे करीब आया तो ऐसे ही बिहेव करूंगा । इसलिए तो इतने वक्त से तुमसे दूर भागता था । कैसे समझाऊं तुम्हें कि मेरे ऊपर क्या बीतती है तुम्हें इस हालत में देखकर?" कहते हुए उसकी आंखों से दो बूँदें सावी के हाथ पर गिर पड़ीं । सावी की उंगलियां हल्की सी हिल गईं । कार्तिक ने एक नजर उसे देखा और फिर उसका हाथ आहिस्ता से बेड पर रखकर दूर हो गया । कुछ सेकंड उसे देखने के बाद डॉक्टर की कही बाते याद आई की साबी को जल्दी होश नही आयेगा ।

    सावी की बॉडी अभी भी काफी ठंडी थी, और इतना कमजोर होने के कारण ठंड में रहना उसके लिए बहुत खतरनाक था । कार्तिक ने सबसे पहले जाकर रूम का हीटर ऑन किया और उसे फुल कर दिया । उसने सावी को 3-4 ब्लैंकेट ओढ़ा दिए, फिर अपनी शर्ट उतारी और ब्लैंकेट के अंदर आ गया । उसने सावी के भी सभी कपड़े निकाल दिए थे, फिर उसे खुद से सटा लिया । वह कभी सावी के हाथों को रब करता, तो कभी उसकी बॉडी तब करते हुए उसे गर्माहट देने की कोशिश कर रहा था ।

    कुछ देर ऐसे करने के बाद उसने सावी को अपने ऊपर लिटा लिया और उसे ऐसे चिपकाया जैसे वे दोनों एक शरीर में एक जान हों । दोनों के पैर आपस में बुरी तरह उलझ चुके थे । कार्तिक अपनी बॉडी की गर्माहट से सावी की ठंडी पड़ चुकी बॉडी को गर्म कर रहा था । उसके हाथ सावी की बैक को तेजी से रगड़ रहे थे, ताकि उसकी बॉडी में गर्माहट आए और उसकी कंडीशन बेहतर हो सके ।

    सावी धीरे-धीरे गर्माहट महसूस करने लगी । उसकी सांसें कुछ सामान्य होने लगीं। कार्तिक उसे कस कर पकड़ते हुए बुदबुदाया, "सावी, मुझे माफ कर दो । मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता । तुम मेरी जान हो ।"

    उसने सावी को और भी मजबूती से अपने पास खींच लिया, उसकी गर्माहट सावी के शरीर में समा रही थी । सावी की हालत धीरे-धीरे स्थिर हो रही थी ।


    कार्तिक ने पूरी रात सावी की देखभाल की, एक पल को भी उसे खुद से अलग नहीं किया । सावी की हालत भी काफी हद तक बेहतर हो चुकी थी । अपने आगोश में सावी को लिए हुए, कार्तिक भी सो चुका था । हालांकि उसे गहरी नींद नहीं आई थी, लेकिन थके होने के कारण उसकी हल्की सी आंख लग गई थी ।

    पर्दे से छनकर आती सूरज की तेज किरणों से परेशान होते हुए उसने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं । सावी उसकी बाहों के घेरे में उसके सीने से सिर लगाए, बदन से लिपटी हुई थी । दोनों के बदन आपस में पूरी तरह उलझे हुए थे । सावी का एक हाथ कार्तिक की गर्दन में था, तो दूसरा हाथ कार्तिक के हाथ के साथ उसकी उंगलियों में उलझा हुआ था । वहीं, कार्तिक का दूसरा हाथ सावी की कमर पर था, जिसे वह हल्के-हल्के सहला रहा था ।

    तभी उसके कानों में किसी चीज की आवाज आने लगी । उसने टेबल की ओर देखा तो उसका फोन वाइब्रेट हो रहा था । कार्तिक ने एक नजर सावी की ओर देखा, जो अब भी उसके सीने से सिर लगाए सो रही थी, और अपना हाथ उठाकर कॉल रिसीव किया । दूसरी ओर से आवाज आई, "बॉस, हमें उसका पता चल चुका है, साथ ही उस जगह का भी जहां उसने उन लोगो को कैद करके रखा है । तो बस अब आप ऑर्डर करिए, हम सब पूरी तरह रेडी हैं ।"

    कार्तिक ने उसकी पूरी बात ध्यान से सुनी और सिर्फ इतना कहा, "Hmm, ok." कार्तिक का जवाब सुनकर दूसरी ओर का आदमी समझ चुका था कि उसे आगे क्या करना है। कार्तिक ने फोन काट दिया और कुछ देर सावी को अपनी बाहों में लिए उसी तरह लेटा रहा ।

    कुछ देर बाद सावी की आंखें खुलीं । उसने धीरे-धीरे इधर-उधर देखा और फिर कार्तिक की ओर नजर डाली।

    सावी ने धीमे से कहा, "कार्तिक...तुमने मेरी जान बचाई। क्यों?"

    कार्तिक गहरी सांस लेते हुए कुछ सोचते हुए बोल पड़ा, " मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता, सावी ।" चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े तुम कभी मुझे छोड़ कर नही जा सकती । फिर कार्तिक ने सावी के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा, "मैंने कभी तुमसे नफरत नहीं की, सावी। मेरे पास अपने कारण थे, जो मैंने कभी तुम्हें नहीं बताए । लेकिन..... ।" उसने अपने शब्दो को अधूरा छोड़ दिया और नजरे फेर ली ।


    इसके बाद कार्तिक ने धीरे-धीरे सावी को आराम से लिटा दिया और कमरे से बाहर निकल गया । उसने अपनी टीम को फोन कर कुछ इंस्ट्रक्शनस दिए और फिर वापस सावी के पास आकर बैठ गया । और उसके सर को सहलाते रहा ।

  • 10. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 10

    Words: 1587

    Estimated Reading Time: 10 min

    कुछ देर बाद कार्तिक ने घड़ी की ओर देखा, तो 10 बज चुके थे । अब उसे ऑफिस जाने के लिए लेट हो रहा था । वैसे तो सावी की हालत को देखते हुए वह आज नहीं जाना चाहता था, पर आज का दिन बेहद इंपॉर्टेंट था । उसका जाना बहुत जरूरी था, वरना उसका पूरा प्लान चौपट हो जाता और काफी नुकसान भी उठाना पड़ता, जो वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था । इसलिए उसने सावी को आहिस्ता से अपने साइड में लिटाया और कुछ देर उसे देखते हुए उसके सिर को सहलाने लगा । सावी के चेहरे पर फैले हुए सुकून को देखकर उसके दिल को राहत मिल रही थी । फिर वह बिस्तर से उठ गया और सीधा वाशरूम में फ्रेश होने चला गया ।

    इस समय भी उसने सिर्फ एक पैंट पहना हुआ था । उसकी अपर बॉडी पूरी लाल पड़ चुकी थी, जिस पर ढेर सारे रैशेस हो गए थे, जिन्हें देखकर लगता था कि अभी खून निकल आएगा । उसने अपने सीने को हल्के से उंगलियों से टच किया । ऐसा करते ही उसके हाथों की मुठ्ठियां बंध गईं और उसने अपनी आंखें मिच लीं, क्योंकि इन रैशेस को टच करने से उसे बेतहाशा दर्द हो रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बॉडी पर जलते अंगारे फेंक दिए हों । फिर वह आईने में खुद को देखते हुए मुस्कुराया, "वैसे ये सब तो बहुत कम है, उसके आगे जो तूने सावी के साथ किया, तेरे साथ तो इससे भी कहीं ज्यादा बुरा होना था ।" कहते हुए उसने बिना किसी इमोशन के बेरहमी से अपने घावों को रगड़ना शुरू कर दिया, जैसे उसे इससे कोई फर्क ही न पड़ता हो ।


    कार्तिक की बॉडी पर रैशेस होने की वजह यह थी कि कल रात उसने सावी की बॉडी को गर्म रखने के लिए रूम का temperature काफी ज्यादा बढ़ा दिया था और उसके साथ खुद भी साबी को उधाये उन 2-3 ब्लैंकेट में चला गया था । ऊपर से सावी को खुद से चिपका लिया था । इतनी ज्यादा Heat से उसकी बॉडी पर ऐसे रैशेस हो गए थे ।

    जैसे ही कार्तिक फ्रेश होकर बाहर निकला, सावी अब भी सो रही थी । उसने उसके पास जाकर उसे एक बार फिर देखा और धीरे से उसके माथे पर एक किस किया । फिर अपने कपड़े पहनने लगा । तैयार होकर उसने एक बार फिर सावी को देखा और ऑफिस के लिए निकल गया ।

    रूम से बाहर निकलते ही वह लिफ्ट में चला गया और नीचे जाने लगा । जैसे ही उसने लिफ्ट से बाहर अपने कदम हाल में रखे, मिसेज रावत जो सोफे पर बैठी कॉफी पी रही थीं, उसे देख बोल पड़ीं, "अरे, मेरा बेटा उठ गया । तुम कहां रहते हो दो दिन से, एक बार भी अपनी मां से मिलने नहीं आए ।"

    कार्तिक ने उन्हें बस एक नजर देखा और बोला, "गुड मॉर्निंग, मॉम," बोलते हुए उनके पास जाकर बैठ गया । और अपने सूट का एक बटन खोलते हुए आगे बोला, "काफी लेट घर आया था और थक गया था, तो मैं सोने चला गया । नेक्स्ट मॉर्निंग भी लेट उठा । आपके बारे में पूछा तो सर्वेंट्स से पता चला कि आप किट्टी पार्टी के लिए गई हैं ।" ये सब वह उन्हें घूरते हुए कह रहा था । जिस पर कामिनी जी अपनी नजरें इधर-उधर करने लगीं और बोलीं, "हां, वो मैं बेटा..."

    कार्तिक ने उनकी बात खत्म होने से पहले एक बार फिर बोल पड़ा, "देख रहा हूं मॉम, कुछ ज्यादा ही किट्टी पार्टियां हो रही हैं आपकी ।" इस पर वह झेंप गईं और बात बदलते हुए बोलीं, "अरे बेटा, तुम भी ये सब क्या लेके बैठ गए । चलो, हम ब्रेकफास्ट करते हैं । एक तो करमजाली तुम्हारी वो मनहूस बीवी, उसे तो बस सारा दिन सोने को कह दो । ऐसा नहीं होता कि एक बार भी रूम से बाहर आके कुछ काम धाम कर ले या मेरे साथ ही बैठ के थोड़ी सेवा या बातें ही कर ले । पता नहीं क्या करती रहती है । इसका तो..."

    वह इतना बोल ही पाईं थीं कि कार्तिक अपने दांत किटकिटाते हुए उठ खड़ा हुआ और सामने की ओर गुस्से भरी नजरों से देखते हुए अपने दोनों हाथ अपने पॉकेट में डालते हुए बोला, "इनफ इज इनफ, बस भी करिए मॉम । आप अपने काम से काम रखिए । वैसे भी आपको तो सिर्फ अपनी किट्टी पार्टियों से मतलब होता है । घर में कोई करे या मरे, आपको उसकी कोई होश नहीं होती है, ना । जब आपको इन सब से कोई मतलब नहीं है । सावी कैसी है, जिंदा भी है या मर गई, तो आपको इससे भी कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि वो क्या करती है, क्या नहीं । फिर वो चाहे अपने रूम में रहे या घर से बाहर किसी क्लब में ।"

    कहते हुए उसकी तेज नजरों से कामिनी को अपनी रीढ़ की हड्डी तक में कपकपाहट महसूस हो रही थी । जिस वजह से उनके मुंह से एक शब्द भी ना निकला और उन्होंने सहमी निगाहों से कार्तिक को देखते हुए बस किसी तरह हां में अपना सर हिला दिया । और मन में बोलने लगी, आखिर इस बैल बुद्धि को अचानक क्या हो गया ? ये मुझसे ऐसे कैसे बाते कर रहा था सोचते हुए उनका दिमाग गुस्से से पागल होते हुए दांत पीसकर जाते हुए कार्तिक को देखते हुए बोली, "इस नखरिली के खून में ज्यादा जोश आ गया है, कुछ ज्यादा उछल रही है । इसके पर कुतरकर कुछ परमानेंट इलाज करना होगा ।" कहते हुए उनका चेहरा बहुत डरवाना लग रहा था ।

    इसके बाद कार्तिक अपने ऑफिस चला गया । इसी तरह दिन बीत चुके थे, सावी की हालत में काफी हद तक सुधार हो चुका था मगर उसे होश नहीं आया था । आधी रात का समय हो रहा था । अचानक से खिड़कियां खुल गईं और जोरदार ठंडी हवाएं रूम के अंदर आने लगीं । पर्दे हवा में लहराने लगे और खिड़कियां बार-बार खुलने और बंद होने लगीं । माहौल कुछ ऐसा हो चला था जैसे तूफान आ रहा हो ।

    कार्तिक जो सुबह ऑफिस के निकल तो था पर दिल बेचैन होने के कर्म घर लौट आया था और अपने स्टडी रूम में बैठा था, फाइलों में डूबा हुआ । खिड़कियों की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ । उसने सिर उठाया और खिड़की की ओर देखा । "ये क्या हो रहा है?" उसने खुद से बड़बड़ाया और उठकर खिड़की की ओर बढ़ा ।

    जैसे ही वह खिड़की बंद करने के लिए आगे बढ़ा, उसे अचानक से साबी का ध्यान आया और वो अपने रूम में चले गया । जाकर उसने देखा तो ऊसे सावी की ओर से एक हल्की आवाज सुनाई दी । वह तुरंत पलटा और बेडरूम की ओर दौड़ा । सावी की हालत ने उसे लगातार चिंता में डाले रखा था । जब वो उसके थोड़ा पास गया, तो उसने देखा कि सावी बेड पर हलचल कर रही थी ।

    "सावी?" उसने धीरे से पुकारा, मगर सावी की आंखें अब भी बंद थीं । लेकिन उसकी उंगलियां धीरे-धीरे हिल रही थीं । कार्तिक ने बेड के पास जाकर उसके हाथ को थाम लिया ।

    उसने ध्यान दिया कि सावी का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था । उसने एक हाथ से उसके माथे को छुआ । "सावी, क्या तुम सुन सकती हो?" उसने कोमलता से पूछा ।

    सावी की पलकों ने धीरे-धीरे हलचल की और उसने धीरे-धीरे आंखें खोलीं । उसकी नजरें धुंधली थीं, इसलिए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । "म, मैं, कौन, कहा..." उसने कमजोर सी आवाज में कहा ।

    कार्तिक की आंखे चमक गई । हालकी अभी भी उसका चेहरा एक्सप्रेशन लेस ही था । "सावी, are you Ok, get up see its me kartik ?" उसने धीमी आवाज में कहा ।

    सावी अपना सर इधर उधर हिला रही थी । "What happened? मुझे कुछ याद नहीं आ रहा, क्या अब भी वो मेरे पीछे है" उसने कमजोर सी आवाज में आंखे बंद किए हुए ही कहा । जैसे वो अब भी होश में ना हो ।

    "Everything is fine, सावी । you just relax ।" कार्तिक ने सिर सहलाते हुए कहा । "तुम्हारी हालत बहुत खराब थी, लेकिन अब तुम ठीक हो जाओगी ।"

    सावी ने गहरी गहरी सांस लेंने लगी जैसे काफी थक गई हो । कार्तिक ने उसका हाथ पकड़ते हुए बुदबुदाया, "तुम्हें ऐसे कुछ नही होने दूंगा इतनी जल्दी अभी तो बहुत कुछ बाकी है । लेकिन अब तुम ठीक हो जाओगी ।"

    तभी खिड़कियां फिर से ज़ोर-ज़ोर से खुलने और बंद होने लगीं । कार्तिक ने खिड़कियों की ओर देखा और फिर से सावी की ओर मुड़ा । "मैं अभी आता हूं," उसने धीरे से कहा और खिड़कियों को बंद करने के लिए कदम बढ़ाया ।

    जैसे ही उसने खिड़कियां बंद कीं, उसे एहसास हुआ कि कमरे में एक अजीब सी ठंडक फैल रही है । ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनजानी शक्ति कमरे में मौजूद हो कुछ अजनबी सा एहसास उस रूम में मौजूद हो । कार्तिक ने अपने अंदर एक अजीब सी बेचैनी महसूस की, लेकिन उसने उसे नजरअंदाज किया और सावी के पास लौट आया ।

    "ये तूफान भी जल्दी ही थम जाएगा," उसने । बाहर हो रही बर्फबारी देखते हुए खुद से कहा और सावी के बगल में बैठकर उसके माथे को सहलाने लगा । उसने जैसे मन ही मन बोहोत कुछ थाम लिया था ।

    अब आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या करेगी कामिनी साबी के साथ? कैसे एहसास और बेचैनी है जो कार्तिक खुद में महसूस करके परेशान है ? और साबी ऐसेक्यों बोल रह है? उसे कब होश आएगा?

  • 11. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 11

    Words: 1618

    Estimated Reading Time: 10 min

    तभी खिड़कियां फिर से जोर-जोर से खुलने और बंद होने लगीं। कार्तिक ने खिड़कियों की ओर देखा और फिर से सावी की ओर मुड़ा।

    "मैं अभी आता हूँ," उसने धीरे से कहा और खिड़कियों को बंद करने के लिए कदम बढ़ाया।

    जैसे ही उसने खिड़कियाँ बंद कीं, उसे एहसास हुआ कि कमरे में एक अजीब सी ठंडक फैल रही है। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनजानी शक्ति कमरे में मौजूद हो, कुछ अजनबी सा एहसास उस कमरे में मौजूद हो। कार्तिक ने अपने अंदर एक अजीब सी बेचैनी महसूस की, लेकिन उसने उसे नज़रअंदाज़ किया और सावी के पास लौट आया।

    "ये तूफ़ान भी जल्दी ही थम जाएगा," उसने बाहर हो रही बर्फबारी देखते हुए खुद से कहा और सावी के बगल में बैठकर उसके माथे को सहलाने लगा। उसने जैसे मन ही मन बहुत कुछ थाम लिया था।

    तभी उसका फ़ोन बजने लगा। उसने कॉल उठाकर देखा तो यह कॉल उसके मैनेजर का था। उसने फ़ौरन कॉल पिक करते हुए जैसे ही कान पर लगाया, दूसरी ओर से घबराई हुई आवाज़ आई,

    "हेलो बॉस, जल्दी आइए। यह बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है। प्लीज़, बॉस, अगर आप अभी के अभी नहीं आए तो सब बर्बाद हो जाएगा।"

    कार्तिक के मैनेजर की घबराई हुई आवाज़ सुनकर वह फ़ौरन अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और एक नज़र सावी को देखकर तेज कदमों से बाहर चला गया। उसके माथे पर सिलवटें पड़ चुकी थीं, मगर चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं था। वह समझ चुका था, ज़रूर कोई बहुत बड़ी बात है, तभी उसका मैनेजर इस तरह से बात कर रहा है। वरना वह तो इतना स्मार्ट था कि कार्तिक को उसे कोई भी बात बोलने या समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, ना ही वह कभी इस तरह से बात करता था।

    कार्तिक के गए एक घंटा भी नहीं बीता था कि बेड पर पड़ी सावी इधर-उधर मचलने लगी। अचानक, पूरे दिन से बेहोश सावी की आँखें एकदम से खुल गईं। उसने दो-तीन बार अपनी पलकें झपकाईं और टिमटिमाती आँखों से शॉकड़ एक्सप्रेशन के साथ इधर-उधर पूरे कमरे को देखने लगी। अभी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह इधर-उधर हाथ मारने लगी, जैसे कुछ तलाश रही हो। फिर वह धीरे-धीरे बेड पर उठकर बैठ गई। मगर अभी भी वह कुछ ढूँढ ही रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ मिलेगा। बेचैनी से इधर-उधर अपनी नज़र घुमाते हुए वह बार-बार वही चीज ढूँढ रही थी, जैसे अगर वह ना मिला तो वह अभी के अभी मर जाएगी।

    तभी उसकी नज़र साइड टेबल पर रखे कांच के जग पर गई जिसमें पानी भरा हुआ था। यह देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई और उसने बिना एक भी पल की देरी किए गिलास में पानी निकाला और एक साँस में गटागट पी गई। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह जन्मों की प्यासी हो। पानी पीकर उसने गिलास नीचे रखा और चैन की साँस ली। उसने आहिस्ता से बेड की क्राउन से अपना सर टिकाया और पूरे कमरे को अपनी तेज नज़रों से स्कैन करने लगी। अभी भी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

    तभी उसके दिमाग में कुछ आया और उसने अपने हाथ पर चिमटी काटी।

    "आह्ह्ह्!" उसे तेज दर्द का एहसास हुआ और उसने उस जगह को सहलाते हुए खुद से बोली,

    "क्या यूवी, तू भी एक नंबर की पागल है। कोई खुद को इतनी तेज़ से चिमटी काटता है क्या?"

    वह फिर से अपने आस-पास की चीजों को देखती लगी, जैसे हर चीज को पहली बार देख रही हो। कमरे की दीवारों पर लगी पेंटिंग्स, खिड़कियों से आती हल्की रोशनी, और फर्श पर बिछे हुए कारपेट को देखते हुए उसकी नज़रें धीरे-धीरे स्थिर होने लगीं। उसने गहरी साँस ली और अपनी कंडीशन को समझने की कोशिश की।

    "यह सब क्या हो रहा है?" उसने बुदबुदाते हुए कहा। "मुझे यहां कौन लाया? कैसे पहुँची मैं यहां?"

    उसके दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे, लेकिन जवाब कहीं नहीं मिल रहा था। तभी उसकी आँखों में चमक आ गई। वह उस जगह को, जो लाल पड़ चुकी थी, ध्यान से देखते हुए खुद से बोली,

    "क्या मतलब है इसका? मैं अभी भी जिंदा हूँ, मैं मरी नहीं!" कहते हुए उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। "देखा, आखिरकार मैंने खुद को बचा ही लिया। आ गई लड़कर मौत से। यूवी नाम है मेरा, जब तक मैं न चाहूँ, मौत भी मेरा कुछ नहीं कर सकती।" कहते हुए उसने धीरे-धीरे अपने पैरों को बेड से नीचे लटकाया और खड़ी होने की कोशिश की। उसकी टाँगें अभी भी कमज़ोर थीं। फिर भी किसी तरह वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई, मगर उसके कदम थोड़े लड़खड़ा गए।

    "यूवी, तू इतनी कमज़ोर कब से हो गई? मतलब, ये क्या है? तू ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही है। क्या हो गया तुझे? कहीं उन्होंने कुछ खिला-पिला तो नहीं दिया?" उसने खुद को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला, "अगर ऐसा हुआ है तो बस मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी, घर में घुसकर जान लूंगी इन लोगों की।"

    बोलते हुए उसका ध्यान खुद पर गया कि उसने गाउन पहन रखा था।

    "अरे, यह क्या पहन लिया? और यह कमरा भी तेरा नहीं है। आखिर ये सब चल क्या रहा है?" कहते हुए उसकी नज़र सामने ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी और वह फ़ौरन उसकी तरफ़ चली गई। जब उसने खुद को मिरर में देखा, तो वह एक बार फिर लड़खड़ा गई और अपने मुँह पर हाथ रख लिया।

    "ओह, यूवी, ये... यह कौन है? यह तू है? नहीं, नहीं, ये मैं नहीं हूँ। ये किसी और की बॉडी है। यह सब हो क्या रहा है?"

    उसे विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए उसने खुद को इधर-उधर टच करना शुरू कर दिया और फिर अपने रिफ्लेक्शन को मिरर में टच करने की कोशिश की। यह सब करके पता चल रहा था कि वह वही है। उसने अपना सिर पकड़ लिया और एक बार फिर लड़खड़ा गई क्योंकि उसका सिर तेज़ी से घूम रहा था और पैर कांप रहे थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, इसलिए वह अपना सिर पकड़े हुए ही कमरे से बाहर जाने लगी।

    "मुझे यहां से बाहर जाना होगा," खुद से कहते हुए वह धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी। उसने दरवाज़ा खोला और बाहर के हाल में कदम रखा। वहाँ की ठंडी हवा ने उसे थोड़ा और होश में ला दिया। उसने अपने कदमों को तेज किया और नीचे जाने लगी, यह सोचते हुए कि शायद उसे अपने सवालों के जवाब मिल जाएँ।

    वह अभी तीसरे फ्लोर की गैलरी में ही थी कि तभी वहाँ मौजूद नौकरों ने उसे देख लिया और तरह-तरह की बातें करने लगे।

    "देखो तो, कितनी बेशर्म और बेहया औरत है। कितनी बेशर्मी से यहां नीचे उतरकर आ गई है। इसे तो मर जाना चाहिए था, मगर देखो, ज़िंदा घूम रही है हमारे बीच। मैडम इसकी एक पैसे की इज़्ज़त नहीं करतीं और न ही सर इसे बिलकुल भी भाव देते हैं। फिर भी अब तक इस घर में पड़ी हुई है। यह नहीं कि घर छोड़कर चली जाए। या कहीं किसी गंदे नाले में डूब मरे। अपनी मनहूस शक्ल लेकर यहां से वहाँ घूमती रहती है, जब देखो तब..."

    ऐसी अजीब-अजीब बातें सावी के बारे में हो रही थीं, मगर वह उन सभी की बातों पर ध्यान नहीं दे रही थी क्योंकि उसके सिर में जोरदार दर्द हो रहा था, जिसे वह सहन भी नहीं कर पा रही थी। इसी के चलते उसका सिर चकरा गया और वह बेहोश होने लगी। खुशनसीबी से पास ही एक सोफ़ा पड़ा हुआ था और वह उस पर ही गिर पड़ी।

    इस पर नौकरों ने एक बार फिर उल्टा-सीधा बोलना शुरू कर दिया।

    "देखो, इसे तो बेहोश होने का भी नाटक करना आता है। कहीं ये चुड़ैल हमें फँसाने की कोशिश तो नहीं कर रही?"

    "छी, कैसी घटिया गिरी हुई औरत है, ये। न जाने कब इस घर से जाएगी।"

    लेकिन इस सबके बीच, सावी की बेहोशी और दर्द ने उसे बाकी सब चीजों से दूर कर दिया।

    तभी घर का बटलर वहाँ आ गया। उसने उन सभी सर्वेंट्स को डाँटते हुए कहा,

    "तुम लोगों को समझ नहीं आता? यहाँ खड़े होकर क्या तमाशा कर रहे हो? घर में और कोई काम नहीं है क्या? जाओ, जाकर सब अपना-अपना काम करो। अगर बड़ी मैडम ने देखा ना, तो तुम सभी की खैर नहीं।"

    उसकी फटकार सुनकर सभी तुरंत अपने-अपने काम पर लौट गए।

    एक सर्वेंट उस फ्लोर की सफ़ाई कर रही थी। पिछले चालीस मिनट से वह उसी फ्लोर और उस फ्लोर के सभी कमरों की सफ़ाई कर रही थी। मगर सावी को अब तक होश नहीं आया था। वह उसे देखते हुए दाँत पीसकर बोली,

    "कमीनी कहीं की। मैडम को काम कुछ नहीं आता, बस अच्छी-अच्छी चीजें चाहिए। एक नंबर की फ़ालतू इंसान है, मगर देखो कितने ऐश और आराम से जी रही है। इतना बड़ा कमरा दे रखा है रहने के लिए और तो और सर जैसे हस्बैंड मिले हैं... उफ़्फ़... कितने हॉट और हैंडसम हैं। उनकी तो कोई बात ही नहीं है। उन्हें देखकर लगता है, क्या ऐसे लड़के तो दुनिया में एक्ज़िस्ट भी करते होंगे? पर पता नहीं कहाँ से उन्होंने इस मनहूस से शादी कर ली।"

    कहते हुए वह घिन भरी नज़रों से सावी को देख रही थी और फिर ऊपर उसके कमरे की क्लीनिंग करने चली गई।

  • 12. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 12

    Words: 1608

    Estimated Reading Time: 10 min

    तभी एक तेज दर्द के साथ सावी के कराहने की आवाज आई। उसने अपना सिर थामे, दर्द से तड़पते हुए अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलीं।

    "आहह्हह... ये दर्द, ये दर्द तो मेरी जान ही ले लेगा," कहते हुए उसने अपनी आँखें पूरी खोलीं और ऊपर सीलिंग की तरफ देखने लगी। उसके दिमाग में कुछ देर पहले जो उसने बेहोशी में देखा और महसूस किया, वह सब याद आ रहा था। सावी की पिछली यादों को याद करते हुए उसका दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था।

    उसके चेहरे पर कई भाव आते और जाते रहे।

    "क्या सच में... ये सब मैंने देखा था? ये सब हुआ था?" सावी के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी। तभी उसे अपने हाथों पर कुछ महसूस हुआ; उसने देखा कि उसके हाथों में एक अजीब सी गर्माहट आ रही थी।

    "क्या ये... क्या ये सच में हो रहा है? या फिर मैं बस...?" उसने खुद से कहा और उठने की कोशिश की, लेकिन दर्द ने उसे वापस सोफे पर गिरा दिया।

    "अब क्या करूँ? मुझे यहाँ से बाहर निकलना होगा। लेकिन... कैसे?" सावी ने सोचा; उसके दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे। पर मुझे यह से बाहर जाना ही क्यों है?? अच्छी खासी साबी की बॉडी और घर मिला है पर जो भी हुआ, सावी के साथ बहुत बुरा हुआ। कोई इतना भोला और मासूम कैसे हो सकता है? पर कोई बात नहीं, अब मैं आ गई हूँ। देखती हूँ अब कोई क्या करता है।

    फिर कुछ सोचते हुए उसके चेहरे पर एक शातिर सी मुस्कान आ गई।

    "यूवी, यूवी, यूवी... I'm proud of you, baby. कितनी होशियार हो तुम। मौत खड़ी थी तुम्हारे आगे, पर तुम उसके सामने से भी जिंदा बच आ गई। बेशक ये तेरी नई जिंदगी है, नया शरीर है, नई पहचान है, पर तू है तो वही यूवी ना," कहते हुए वह हँस पड़ी और आगे बोली,

    "I'm back, I'm back," कहते हुए वह रुक गई और कुछ सोचते हुए ऊपर देखने लगी और बोली,

    "क्या यार, God जी, मतलब मुझे टाइम में इतनी पीछे भेज दिया आपने कि अब मुझे dialogues भी पुराने जमाने की देने होंगे। वो तो भला हो मेरी इंटेलिजेंस, curiosity और नॉलेज का जो मैंने उन सड़े हुए बॉलीवुड फिल्म की सारी मूवीस देख ली थीं, बोरिंग से इंडियन ड्रामा... रसोड़े में कौन था, वाली कोकिला बहन को भी मैंने पूरा देखा है। हाँ मानती हूँ, मैंने मजाक उड़ाने के लिए ही देखा था, बट मैंने इसी के साथ सब सिखा और जाना हुआ है तो मैं इस वक्त में भी अच्छे से सरवाइव कर सकती हूँ।"

    तभी उसके दिमाग के दूसरे साइड से एक आवाज आई,

    "चल झूठी, इतना फेक मत। एक नंबर की बेवकूफ और ढक्कन इंसान है तू। तुझे भी बहुत अच्छे से पता है कि तेरे पास करने के लिए कोई और काम नहीं था इसलिए तो मूवीस और सीरियल्स देखी थीं। कम से कम खुद से, भगवान से और भगवान जी से तो झूठ ना बोला कर।"

    ये सुनकर युवी के चेहरे पर एक अजीब सी स्माइल आ गई और वह बोली, "भाई तू यहां तो मेरी बेइज्जती मत कर। मैं 21st सेंचुरी में आ गई हूँ, यह हमारा टाइम नहीं है, ठीक है? तेरा मुँह बंद रख और मुझे थोड़ा यहाँ के लोगों जैसा रह लेने दे। पर एक बात तो बता, अब किसे सुनाऊँ मैं अपने dialogues? This is not fair, God जी," कहते हुए उसने सिर झुकाकर एक प्यारा सा pout बना लिया।

    फिर अचानक जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो, उसने 440 वोल्ट की स्माइल के साथ सिर उठाया और बोली,

    "पर आप और मेरा ये खडूस माइंड तो मेरे परमानेंट लिस्नर हो ही। फिर मुझे किस चीज़ की फिकर? तो सुनिए गौर से, I'm back, I'm back, जानी! एक नई जिंदगी में, एक नई पहचान और कुछ नए मकसद के साथ। कुछ तो नया होगा ही इस लाइफ में। चलो देखेंगे क्या होता है। ये यूवी उर्फ़ सावी क्या-क्या करती है। फिकर नॉट, ऊपर वाले, अब आपका काम थोड़ा कम होने वाला है क्योंकि युवी उर्फ़, ये नई सावी अपनी मुसीबतों से खुद लड़ती है। छोटी-छोटी बातों पर आँसू बहा कर मदद माँगने नहीं आती," यह कहते हुए वह जोर से हँस पड़ी और खुद को ही शाबाशी देते हुए बोली,

    "वाह यूवी, वाह! अब तक तो तू सिर्फ़ इंसानों को मात देती थी और मौत को चकमा देने की बातें करती थी। मगर तू इतनी लाजवाब निकली कि तूने सच में यमराज को चकमा दे दिया और किसी दूसरे की बॉडी में घुस आई। Not bad!" यह कहकर उसने अपने कमजोर सी जाँघों पर मारते हुए एक बार फिर हँसना शुरू कर दिया, जिससे उसे तेज दर्द का एहसास हुआ और उसकी कराह निकल पड़ी,

    "आअआह्ह्ह! ये क्या हुआ है इस बॉडी को?"

    तभी उसे एहसास हुआ कि उसने कुछ गलत कह दिया तो वह खुद को करेक्ट करते हुए बोली,

    "आई मीन, मेरी बॉडी को। अब आखिर यह मेरी ही बॉडी है। और अब इसका ख्याल भी मुझे ही रखना होगा। आई एम रियली सॉरी, सावी, तुम्हारी बॉडी और तुम्हारी लाइफ लेने के लिए। बट मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती। फिर भी कुछ तो कर सकती हूँ तुम्हारे लिए। इसलिए फिकर नॉट, माय डियर सावी, मैं उन में से एक को भी सुकून से नहीं रहने दूँगी जिनके कारण तुम्हारा दिल दुखा है। I promise you, Saavi, मैं एक को भी नहीं बख्शूँगी। फिर चाहे वो तुम्हारा प्यारा पति कार्तिक ही क्यों न हो," कहते हुए उसका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था और मुट्ठियाँ भींच गई थीं।

    तभी सावी को अपने आस-पास से जोर की आवाज सुनाई दी। नज़र झुकाकर देखा तो यह आवाज उसके पेट से आ रही थी। तभी उसके दिमाग से फिर से आवाज आई,

    "ओह हो, इतने बड़े-बड़े डायलॉग्स तो मार लिए तूने, पर बहन, ज़िंदा रहने के लिए तो खाना पड़ता है। वर्ना ये सब कुछ काम नहीं आएगा और इस बार यमराज तेरा बैंड-बाजा बजाकर यहाँ से ले जाएँगे।"

    ये सुनकर वह अपनी जगह से उठी और बोली,

    "हाँ भाई, तू ठीक कह रहा है। चलो अब कुछ खाने का भी इंतज़ाम कर ही लेते हैं!" कहकर नीचे किचन में जाने लगी।

    वह अभी किचन में पहुँची ही थी कि तभी उसे किसी के कदमों की आवाज आई। सावी ने जल्दी से खुद को शांत किया और अपना ध्यान उस ओर लगाया जहाँ से आवाज आ रही थी, मगर वह पीछे नहीं मुड़ी।

    "ए रुक जा! कहाँ जा रही है तू ऐसे मुँह उठाए? किससे पूछ के तू किचन में जा रही है? चल साइड हट," किसी ने उसके पीछे खड़े हुए कहा। सावी को यह सुनकर इतना गुस्सा आया कि वह लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। यह जो कोई भी था, उससे ऐसे बातें कर रहा था जैसे वह कोई गली का कुत्ता हो और सावी से कोई ऐसे बात करे, उसे जरा भी बर्दाश्त नहीं था। कभी किसी की नज़रें उठाने की हिम्मत भी नहीं होती थी उसके सामने। और अब ये नौकरानी... उसकी आँखों में आग सी जल उठी थी।

    फिर से वही आवाज आई,

    "क्या है? तू बहरी हो गई है? सुनाई नहीं देता? एक बार में चल, बाहर निकल इधर से।"

    इतना सुनते ही गुस्से से तमतमाते हुए सावी पीछे पलटी और वह मेड कुछ समझती या रिएक्ट कर पाती, इससे पहले ही सावी ने उसका गला पकड़ लिया और जोर से दबाते हुए उसे पीछे की ओर धक्का देने लगी।

    मेड के गले से धक-धक की आवाजें निकलने लगीं। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और वह छटपटाते हुए सावी के हाथों को पकड़कर छुड़ाने की कोशिश करने लगी। मगर सावी के हाथों की पकड़ बहुत मज़बूत थी। सावी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,

    "अब तू बताएगी मुझे, क्या करना है और क्या नहीं? तुझे नहीं पता किससे पंगा ले रही है।"

    मेड का चेहरा लाल पड़ गया और उसकी साँसें अटकने लगीं।

    सावी ने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की और मेड को ज़मीन पर धकेल दिया। वह हाँफते हुए ज़मीन पर गिरी और अपने गले को सहलाने लगी। सावी ने उसकी तरफ़ ठंडी निगाहों से घूरते हुए कहा,

    "तू नौकर है, तो नौकर की तरह रह। ज़्यादा मालकिन बनने की कोशिश मत कर और मेरे आगे तो भौंकना बंद ही कर दे। समझी? अब अगर तुझे अपनी जान प्यारी है, तो अपनी औक़ात में रह और आगे से मुझसे ऐसे बात करने की गलती मत करना। आई बात समझ?"

    उसने अपनी बात को जारी रखते हुए आगे कहा,

    "और एक बात और, अपने काम से काम रखना सीख ले। आज के बाद गली के आवारा कुत्तों की तरह यहाँ से वहाँ भटकती मिली ना, तो वो हाल करूँगी तेरा कि…"

    आगे के शब्द उसने अधूरे छोड़ दिए, मगर उसकी आँखों में छिपा ख़तरा साफ़ दिख रहा था।

    मेड ने डर के मारे सिर हिलाया और फ़ौरन वहाँ से भाग खड़ी हुई। सावी का यह रूप देखकर इस वक्त उसकी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई थी।

    फिर सावी ने गहरी साँस ली और फिर से किचन की तरफ़ बढ़ गई, जहाँ उसने फ़्रिज खोलकर कुछ खाने का सामान निकाला।

    "खाना खा लूँ पहले, फिर सोचूँगी आगे क्या करना है," खुद से बड़बड़ाते हुए उसने अपना खाना तैयार करना शुरू कर दिया।

    अब आगे क्या होगा इस कहानी में? क्या करेगी यूवी उर्फ़ नई सावी सभी लोगों के साथ? कार्तिक किस काम से गया है? ऐसा क्या हुआ जो उसका इतना ब्रेव मैनेजर इतना घबराया हुआ था?

  • 13. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 13

    Words: 1534

    Estimated Reading Time: 10 min

    सावी ने ध्यान खाने पर लगाया, किंतु उसका मन अभी भी उस घटना में उलझा था। पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो रही थीं, जब कोई उसके सामने खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता था। "इस दो कौड़ी की नौकरानी की इतनी हिम्मत, कहाँ मैं और कहाँ ये…," उसने गुस्से को दबाते हुए, दांत पीसकर खुद से बड़बड़ाया।

    "कंट्रोल, यूवी, कंट्रोल। शांत रह, खुद को काबू में रख, यूवी… ओह सॉरी, सावी," उसने खुद को समझाते हुए कहा। "पहले खाना खा ले, फिर सोचेंगे आगे इन लोगों के साथ क्या करना है। आखिर इतने सारे लोगों से लड़ने के लिए ढेर सारी एनर्जी चाहिए, पर तू तो अभी काफी कमज़ोर है। ऊपर से तुझे लास्ट स्टेज का कैंसर भी है। जल्दी-जल्दी हाथ-पैर और दिमाग चलाना पड़ेगा।"

    उसने जल्दी-जल्दी खाना तैयार किया और उसे प्लेट में परोसकर टेबल पर बैठ गई। दिमाग में विचारों का तूफान चल रहा था, लेकिन उसने खुद को शांत करने की कोशिश की। "अब वक़्त आ गया है खुद को साबित करने का," उसने सोचा।

    खाना खाते-खाते, सावी ने अपनी योजना पर विचार करना शुरू कर दिया। "मुझे सबसे पहले अपनी ताकत वापस पाना होगी। इस घर के लोग मुझे कमज़ोर समझते हैं, लेकिन उन्हें जल्द ही पता चलेगा कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है," उसने खुद से कहा। "और कार्तिक… उसे तो सबसे पहले सबक सिखाना होगा।"

    ये सब सोचते हुए उसने खाना ख़त्म किया। खाने के बाद अपनी प्लेट्स धोकर वह सीधा अपने कमरे में गई और आईने के सामने खड़ी हो गई। उसने खुद को आईने में देखा और अपनी आँखों में चमक महसूस की। "मैं वापस आ गई हूँ," उसने खुद को देखते हुए कहा। "अब सबको दिखाऊँगी कि असली यूवी उर्फ़ सावी कौन है।"

    सावी ने खुद को आईने में देखा और उसकी नज़र पीछे दीवार पर लगी बड़ी सी फोटो फ्रेम पर गई। इसमें करीब 26-27 साल के लड़के की बड़ी डैशिंग, हॉट और सेक्सी सी फोटो लगी हुई थी।

    उसकी हाइट 6.4 इंच थी, बर्फ सा गोरा रंग, गहरी हरी आँखें और चेहरे पर सर्द भाव। उसने बड़े ही स्टाइलिश कपड़े पहने हुए थे: एक सफ़ेद शर्ट, जो उसकी 8 पैक्स एब्स वाली परफेक्ट मस्कुलर बॉडी पर अच्छे से फिट थी, और उसके ऊपर एक लेदर जैकेट थी। वह किसी रेगिस्तानी इलाके में खड़ा था, जहाँ पीछे दूर-दूर तक सिर्फ़ रेत के टीले और नीला आसमान दिख रहा था।

    सूर्य की किरणें उस पर पड़ती हुई एक अलग सा तेज फैला रही थीं। उसका चेहरा एक्सप्रेशनलेस था, लेकिन उसकी उन हरी आँखों में एक अलग ही आकर्षण था जो किसी को भी उसकी ओर खींच सकता था। उसके शेड्स उसके बाएँ हाथ में थे; वह उन्हें पकड़ कर बड़े ही कूल और रिलैक्स्ड पोज़ में खड़ा था।

    उसका चार्म कुछ ऐसा था कि कोई भी अप्सरा भी अपने आप को पूरी तरह उस पर न्यौछावर कर देती। उसे जो देख लेता, वह बस उसकी आँखों में खो जाता। उसकी हर एक अदा में एक शान थी, एक रॉयल्टी थी, जो उसे सबसे अलग बनाती थी।

    सावी पीछे मुड़कर काफी गौर से उसे निहार रही थी; उसका मन नहीं भर रहा था उसे देखते हुए। उसकी आँखें चमक रही थीं, और वह कार्तिक की तस्वीर में खोई हुई थी। "अच्छा, तो यह है कार्तिक," उसने धीरे से कहा। वह जैसे उसे देखते हुए हिप्नोटाइज़ हो गई थी।

    "हाय! मैं मर जावाँ, क्या बला का खूबसूरत इंसान है ये कार्तिक, सामने होता न तो सबसे पहले नज़र उतारती इसकी," उसने तस्वीर की तरफ़ देखते हुए बड़बड़ाया। कार्तिक की मासूमियत और चार्म से वह आकर्षित हो रही थी; उसकी गहरी हरी आँखों में सावी खो सी गई थी। लेकिन फिर उसकी आँखें एकदम से सर्द हो गईं। "पर इतनी मासूम शक्ल के पीछे इतना सारा ज़हर छिपा है, ये मुझसे बेहतर कौन जानता होगा," उसने धीरे से कहा।

    सावी ने इस फोटो को देखते हुए ऐसा लगा कि कार्तिक के पीछे छिपा हुआ यह चार्म और मासूमियत ही उसका सबसे बड़ा कारण था कि सावी इतना सब हो जाने के बाद भी उसके प्यार में थी, लेकिन अब यह सब कुछ बदलने वाला था। "तैयार हो जाओ, कार्तिक," उसने धीरे से कहा। "अब सावी के रूप में यूवी वापस आ गई है, और इस बार, मैं कोई गलती नहीं करूँगी।"

    उसने एक ठंडी हँसी के साथ फोटो की तरफ़ देखते हुए कहा, "तुम्हारा वक़्त ख़त्म हो गया है, कार्तिक। अब सावी की नहीं, यूवी की बारी है। तुमने उसकी ज़िन्दगी को नर्क बना दिया, अब मैं तुम्हें दिखाऊँगी असली नर्क क्या होता है।"

    उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान खेल रही थी। उसने गहरी साँस ली और खुद को तैयार करने लगी। "पहले अपनी ताकत वापस पाना होगी। उसके बाद, मैं एक-एक करके सबको सबक सिखाऊँगी," उसने खुद से कहा।

    सावी ने अपने कमरे में इधर-उधर देखा, जैसे वह हर चीज़ को गहराई से समझ रही हो। उसने अपनी पिछली ज़िन्दगी की यादों को अपने मन में ताज़ा किया, जब वह बिना किसी डर के सबका सामना करती थी। "मैंने पहले भी इनसे बड़े-बड़ों को अच्छा सबक सिखाया है, और इस बार भी करूँगी," उसने एक अंगड़ाई लेते हुए कहा।

    सावी ने खुद को मिरर में देखते हुए कहा, "वैसे इस समय में आकर मुझे ऐसा फील हो रहा है जैसे मैं अपने पूर्वजों के समय में हूँ। सब कितना पुराना, बोरिंग और आउटडेटेड लग रहा है। कहाँ मैं यूवी, 31वीं सदी में थी और अब मैं सावी बनकर 21वीं सदी में आ चुकी हूँ। सबका बाद में, लेकिन मुझे लग रहा है मेरा क्या होगा?" उसने मिरर में अपने आप को देखते हुए क्यूट सा पाउट बनाते हुए और फनी एक्सप्रेशन के साथ कहा, "अब तेरा क्या होगा, युविया?" फिर वह खुद को हँसते हुए देखती है, 'अरे, बकवास! सब कुछ आउटडेटेड लग रहा है!'

    सावी ने सोचते हुए कहा, "हमारी 31वीं सदी में मेरी लाइफ कितनी एडवांस और कूल थी। वहाँ सब कुछ हाइपरटेक्नोलॉजी से चलता था। मुझे किसी भी चीज़ के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ता था। सुबह उठते ही रोबोट्स नाश्ता लेकर हाज़िर हो जाते थे, ड्रोन से शॉपिंग हो जाती थी, और ट्रैवल के लिए फ्लाइंग कार्स होती थीं। अब यहाँ सब कुछ कितना धीमा और आउटडेटेड लग रहा है। यहाँ तो अब भी लोग किचन में खाना बनाते हैं। वो तो अच्छा है, अपनी क्यूरियोसिटी के चलते मैंने इस वक़्त की सभी चीजें सीखी थीं।"

    वह हँसते हुए बोली, "यहाँ के मोबाइल फ़ोन भी कितने बड़े और पुराने हैं। हमें तो माइंड-इंटरफ़ेस फ़ोन मिलते थे, जो सोचने पर ही काम कर जाते थे। ईवन सब कुछ माइंड-कंट्रोल्ड था। बस सोचो और चीजें हो जाती थीं। इस सेंचुरी में तो सब इतना धीमा है। यहाँ टाइम ट्रैवल नहीं है, न हॉलोग्राम्स हैं, न ही इंस्टेंट फ़ूड मशीनें। एक मिनट में किसी भी चीज़ को हाज़िर करने वाली मशीन का तो कोई नामो-निशान नहीं है!"

    वहाँ पर कई बार जब खाने का मन ना हो तो खाने के नाम पर सिर्फ़ एक टैबलेट खानी होती थी, और वह पूरे दिन की न्यूट्रिशन दे देती थी। "यहाँ तो खाने के लिए इतने सारे बर्तन और झंझट! उफ़्फ़्फ़, कितनी मेहनत करनी पड़ती है," उसने कुछ देर पहले के वक़्त को याद किया जब वह किचन में बर्तन धो रही थी। उसने हँसी में कहा, "यूवी, भले ही तुझे काफी चीजें आती हों फिर भी 21वीं सेंचुरी के इंसान के हिसाब से अपनी एडजस्टमेंट स्किल्स को बढ़ाना होगा।"

    उसने अपने हाथ में टेबल पर पड़ा सावी का स्मार्टफ़ोन उठाया और एक नई चीज़ की तरह इसे देखने लगी। "यह क्या है? पुराना मॉडल तो वैसे ही था, लेकिन इसे इस्तेमाल करना कितना बोरिंग है।" उसने एक मेनू में जाने की कोशिश की, लेकिन बटन और स्वाइप करने का तरीका उसे समझ में नहीं आ रहा था। "ऐसे कैसे चलेगा? अब तो मेरे लिए ये स्मार्टफ़ोन भी एक चैलेंज बन गया है!" उसने रुआँसा सा मुँह बनाते हुए कहा, "फ़ोन चलाने की भी आदत डालनी होगी, क्या मुसीबत ही यार!"

    फिर उसने अपनी पुरानी लाइफ को याद करते हुए आगे कहा, "यार, मेरी 31वीं सेंचुरी में लाइफ कितनी आसान थी। वहाँ रोबोट्स और एआई असिस्टेंट्स हर काम में मदद करते थे। अब यहाँ सब कुछ मैनुअली करना पड़ेगा। ओह गॉड, यहाँ के लोग अभी भी फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर अटके हुए हैं, और हम वहाँ वर्चुअल रियलिटी में जीते थे।"

    वह एक पल के लिए सोच में डूब गई और फिर अपने आप से कहा, "लेकिन कोई बात नहीं, मैं यूवी हूँ। 21वीं सेंचुरी की सावी बनकर मैं कितनी धमाल मचाती हूँ।"

  • 14. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 14

    Words: 1549

    Estimated Reading Time: 10 min

    सावी ने एक और मज़ेदार चेहरा बनाकर अपने वॉर्डरोब की ओर इशारा किया। "और ये कपड़े! ये कितने अजीब हैं, ये सिल्क की साड़ियाँ, वेस्टर्न कपड़े! आह, ये सब बहुत पुराना लगता है। 31वीं सदी में तो सब कुछ होलोग्राम की तरह पहन सकते थे, एक ही सेकंड में आउटफिट चेंज हो जाता था। अब ये सब पहनने-उठाने की झंझट! उफ़्फ़, कितना बोरिंग है!" उसने वॉर्डरोब में पड़ी अपनी साड़ी को घूरते हुए कहा, "हाय राम, कितने भारी और असहज हैं ये कपड़े। हमारे ज़माने में टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस थी कि कपड़े, खुद-ब-खुद बदल जाते थे मूड के हिसाब से।"


    वहाँ अगर मुझे कोई समस्या होती थी, तो मैं बस अपनी होलोग्राफिक डिस्प्ले पर टैप करती थी और सब कुछ हल हो जाता था।" उसने फिर से खुद को आईने में देखा और एक लंबी साँस ली। "और यहाँ... यहाँ तो मुझे खुद ही सब कुछ करना होगा। न रोबोट्स, न फ्लाइंग कार्स। यहाँ तो लोग अब भी सड़कों पर ट्रैफिक में फँसते हैं। वाह, क्या ज़माने में आ गई हूँ मैं!" उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।


    फिर उसने थोड़े उदास होते हुए कहा, "यहाँ के लोग भी कितने अलग हैं। मेरे वक़्त में, लोग सीधे दिल की बात करते थे। अगर किसी से नाराज़ होते थे, तो सीधा चेहरे पर दिख जाता था। और यहाँ... यहाँ लोग अपने असली चेहरे छिपाते हैं। हँसी के पीछे गुस्सा और प्यार के पीछे नफ़रत छुपी होती है।"


    "ओह, मेरे प्यारे एआई असिस्टेंट, कितना मिस कर रही हूँ तुम्हें। तुम्हारे बिना तो मुझे ये ज़िन्दगी सुनी-सुनी लग रही है।" उसने अपने नकली आँसुओं को पोंछते हुए कहा।


    उसने खुद को आईने में देखा और आँखें नचाते हुए बोलने लगी, "युवी, तुम बहुत स्मार्ट हो। तुमने 31वीं सदी में सब कुछ मैनेज कर लिया था, तो 21वीं सदी भी तुम्हारे बस की बात है।" इस तरह उसने खुद को दो लाइन की एक मोटिवेशनल स्पीच दी, "अब समय आ गया है, इस ज़माने के लोगों को दिखाने का कि असली बॉस कौन है।" ये सब कहते हुए वो काफी मज़ेदार लग रही थी। एक बार फिर से क्यूट सा पाउट बनाते हुए कहा, "चलो, अब इस आउटडेटेड दुनिया में कुछ नया करके दिखाते हैं, मेरी जान। Here comes यूवी, ready to rock the 21st century! I am ready for this new adventure!"


    "चल बेटा युवी... ओप्प्स, सावी, बहुत हो गई बकबक, अब नींद आ रही है। थोड़ा रेस्ट कर ले, आख़िरकार तूने इतना काम तो किया। पहले मेमोरी रिकवरी, फिर उस मेड को सबक सिखाना, खाना बनाना, उसे खाना, बर्तन धोना, उसके बाद रूम में आकर इस हैंडसम विलेन इंसान को निहारना और गालियाँ देना, उसके बाद इतना सारा अफ़सोस अपनी इस ज़िन्दगी पर। ओह गॉड, इस नाज़ुक सी जान के कंधों पर इतनी ज़िम्मेदारियाँ दे दी आपने, वेरी बैड हाँ।" यही सब बड़बड़ाते हुए वो बेड पर लेट चुकी थी और नींद के आगोश में जा रही थी।


    वहीं दूसरी ओर, कार्तिक एक सफ़ेद शर्ट और फॉर्मल ब्लैक जींस पहने, पैरों में ब्लैक लेदर शूज़ और आँखों पर ब्लैक शेड्स लगाए, दोनों हाथ पॉकेट में डाले उस खंडहर जैसी जगह पर खड़ा था। वह पुरानी, टूटी-फूटी बिल्डिंग के सामने बड़े गौर से देख रहा था, जो इस वक़्त आग की लपटों में घिरी हुई थी। उसके चेहरे पर एक ठंडा, बेपरवाह सा हावभाव था, जैसे उसे इस जलती हुई इमारत की कोई परवाह ही नहीं हो।


    उसकी शेड्स के पीछे छुपी हरी आँखों में निर्दयता की चमक थी, जैसे इस सब से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो। कुछ लोग घबराए हुए इमारत से बाहर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आग इतनी तेज़ी से फैल रही थी कि उनके भागने के रास्ते बंद हो गए थे। एक आदमी, जो आग की चपेट में आने से बुरी तरह झुलस चुका था, मदद की गुहार लगाते हुए कार्तिक की ओर भागा। "साहब, प्लीज़, मेरी मदद कीजिए! मेरे साथी अंदर फँसे हुए हैं। साहब, बचा लीजिए, प्लीज़!"


    कार्तिक ने उसकी ओर एक ठंडी निगाह डाली और अपने शेड्स को थोड़ा नीचे खिसकाते हुए कहा, "मुझे क्या लेना-देना तेरे उन साथियों से? अपनी जान बचा सकता है तो बचा ले, वरना तेरी भी यही हालत होगी, जो अंदर उन लोगों की है।" उसकी आवाज़ में कोई सहानुभूति नहीं थी, बस एक ठंडा और कठोर स्वर था।


    वह आदमी कार्तिक के जवाब पर शोक में डूब गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कोई ऐसे हालात में इतना शांत और बिना किसी की मदद किए हुए कैसे रह सकता है। लेकिन उसके पास सोचने-समझने का वक़्त नहीं था। वह अपनी जान बचाते हुए वहाँ से भाग गया। कार्तिक ने आग की लपटों को देखते हुए उस आदमी की ओर निगाह डाली, जो अभी उससे मदद की गुहार लगा रहा था। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान फैल गई थी। कार्तिक ने खुद से कहा, "वाह, दरवाज़े पर खड़ी मौत इंसान को कितना बेबस और लाचार बना देती है। यह आदमी उस आग से पानी डालने को के रहा है, जो यहाँ सबको राख करने आया है।" कहकर ठहाके लगाकर हँसने लगा।


    कार्तिक को किसी की कोई परवाह नहीं थी। उसने फिर से अपनी निगाहें उस जलती हुई बिल्डिंग की ओर मोड़ लीं। उसके लिए यह सब मानो एक खेल था। इस खेल का मज़ा और अच्छे से लेने के लिए उसने अपनी पॉकेट से एक सिगरेट और लाइटर निकाला और होठों पर एक दिलकश मुस्कान सजाते हुए सिगरेट के कश भरते हुए अपने सामने हो रही बर्बादी का लाइव मंज़र देखने लगा। जहाँ की तबाही और चीख-पुकार किसी के दिल को कंपा सकती थी, वही उसे इन सब से मज़ा आ रहा था।


    सिगरेट के एक लंबा कश भरते हुए उसने कहा, "बहुत वक़्त हो गया था ऐसी बर्बादी का खेल खेले।"


    जलती हुई बिल्डिंग के सामने खड़ा कार्तिक, सफ़ेद शर्ट और काली जींस में, अपने हाथ पॉकेट में डाले हुए, सिगरेट का एक और लंबा कश ले रहा था। उसके दिल में किसी तरह की कोई नरमी नहीं थी। केवल उसकी आँखों में ठंडापन और क्रूरता की एक अजीब सी चमक थी। सामने जो कुछ भी हो रहा था, वह उसे किसी फिल्म का सीन लग रहा था। एक ऐसी फिल्म जिसे वह खुद डायरेक्ट कर रहा था। उसे इस बात का जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था और न ही उसे जरा सी भी दया आ रही थी कि कितने लोग उस आग की चपेट में आकर अपनी जान गँवा रहे थे। वह बस नज़रें उठाकर सामने की बर्बादी को देख रहा था, जैसे यह सब कुछ सिर्फ़ उसके मनोरंजन का ज़रिया हो। आग की लपटों में घिरी इमारत, वहाँ से निकलने के लिए तड़पते लोग, और चारों तरफ़ फैली चीख-पुकार, उसके लिए यह सब सिर्फ़ एक खेल था, एक बर्बादी का खेल, जिसमें वह अच्छे से माहिर था।


    अपने सामने खड़ा कार्तिक बिल्डिंग की बर्बादी का मज़ा अपनी सिगरेट के कश भरते हुए ले रहा था। उसके होठों पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई थी, मानो वह इस तबाही का मज़ा ले रहा हो। हर जलती हुई चीज़, हर टूटता हुआ हिस्सा उसके प्लान का एक हिस्सा था, और वह इस प्लान को परफेक्शन के साथ अंजाम देने में लगा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसने इस दिन का काफी लंबा इंतज़ार किया हो। कार्तिक ने सिगरेट का एक और लंबा कश लिया और धुएं को हवा में छोड़ते हुए खुद से बुदबुदाया, "इंतज़ार लंबा था, लेकिन नज़ारा वाकई में लाजवाब है।" आख़िरकार उसके इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हो गई थीं और वह बस अपने सिगरेट के लंबे-लंबे कश भरकर इस नज़ारे का मज़ा ले रहा था।


    उसकी शेड्स के पीछे छुपी हरी आँखें जलती हुई इमारत की रोशनी में चमक रही थीं। यह रोशनी उसके अंदर की क्रूरता और ठंडापन को और भी उजागर कर रही थी। वह वैसे ही खड़ा रहा, उसका दिल उन लोगों की चीख-पुकार से बिल्कुल भी नहीं पसीजा, जो आग में फँसकर अपनी जान की भीख माँग रहे थे। इस तबाही को देखते हुए एक बार भी उसके पैर नहीं काँपे; बल्कि, उसे इस बर्बादी में एक अजीब सा संतोष महसूस हो रहा था।


    काफी देर तक जलती हुई बिल्डिंग को देखने के बाद उसने सिगरेट की राख को झटकते हुए अपने असिस्टेंट रवीश को कॉल किया। "रवीश," उसने सिगरेट के कश के बीच में धीमी आवाज़ में कहा, "काम पूरा हुआ?"


    दूसरी ओर से रवीश की ठंडी मगर शांत आवाज़ आई, "हाँ, बॉस, सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा है। यह गोदाम पूरी तरह से तबाह हो चुका है। यहाँ से कोई भी ज़िंदा नहीं बचा। उनके सारे दस्तावेज़, सामान और सभी ज़रूरी चीज़ें आग की लपटों में जल चुकी हैं। कोई भी सबूत नहीं बचा है।"


    क्या लगता है, आपको? क्या सावी सब कुछ सही से मैनेज कर पाएगी? या कर देगी कुछ गड़बड़ और खुद को किसी बड़ी मुसीबत में डाल देगी? और यह कार्तिक क्या कर रहा है? यह आग बुझाने के लिए क्यों नहीं गया?

  • 15. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 15

    Words: 1551

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक के चेहरे पर एक और कुटिल मुस्कान आ गई। उसने अपनी जेब से लाइटर निकाला, उसे चालू किया और जलती हुई सिगरेट को देखते हुए कहा, "तुम जानते हो, रविश, इस खेल का मज़ा तभी आता है जब बर्बादी पूरी हो। कोई आधा-अधूरा काम नहीं। अब अगला कदम उठाने का वक़्त आ गया है। इन सबको एक सबक सिखाना ज़रूरी था, और अब हमें अपने असली मिशन पर ध्यान देना है।"

    रविश समझ गया कि कार्तिक के इरादे कितने खतरनाक थे।
    "जी, सर," उसने कहा, "जो भी ऑर्डर हो, मैं तैयार हूँ।"

    फिर रविश ने एक ठंडी साँस भरते हुए कहा, "बॉस, ये लोग कितने क्रूर हैं। मासूम बच्चों को पकड़कर उनके हाथ-पैर काट देना, उन्हें भिखारी बनाकर सड़कों पर छोड़ देना... ये सब सोचकर भी रूह काँप जाती है। लेकिन आप तो जानते हैं, इन सबका खात्मा ज़रूरी है। हम इस काम को अधूरा नहीं छोड़ सकते।"

    कार्तिक ने एक पल के लिए अपनी हरी आँखों से आग की लपटों को देखा और फिर कहा, "तैयार रहो," कार्तिक ने कड़े स्वर में कहा, "हमारे पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं है। इस खेल को हमें जल्दी ही ख़त्म करना होगा।" फिर कुछ देर शांत रहकर उसने आगे कहा, "मुझे उन बच्चों की परवाह है, रविश। इसलिए हम ये सब कर रहे हैं। इन लोगों ने जो मासूम बच्चों के साथ किया है, उसका जवाब सिर्फ़ और सिर्फ़ ऐसी ही तबाही से दिया जा सकता है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन लोगों को क्या लगता है। मैंने फैसला किया है कि ये गंदगी ख़त्म होनी चाहिए।"

    रविश की ठंडी आवाज़ एक पल के लिए रुकी। फिर उसने कहा, "बॉस, ये लोग जितने पत्थर दिल हैं, उतना ही ज़रूरी है कि उन्हें उनकी बेरहमी का असली मतलब समझाया जाए। उन बच्चों की चीखें... उनके कटे हुए बॉडी पार्ट्स के साथ तड़पते हुए चेहरे... ये सोचकर ही खून खौल उठता है।"

    कार्तिक की आँखें एक बार फिर आग की लपटों पर जा टिकीं, जिनमें एक शैतानी चमक आ गई थी। वह जानता था कि इस खेल में वह हमेशा एक कदम आगे रहेगा। उसके लिए यह सब एक मिशन था, और वह उस मिशन को हर हाल में पूरा करने के लिए तैयार था। चाहे इसके लिए कितनी ही ज़िंदगियाँ कुर्बान करनी पड़ें।

    कार्तिक का क्रूर और बेरहम रवैया बाहर से जितना ठंडा और निर्दयी दिखता था, अंदर से वह उन बच्चों के लिए एक पिता की तरह था, जिनके लिए वह लड़ रहा था। ये जानते हुए भी कि इस सब में उसकी खुद की जान को भी खतरा है।

    फ़ोन काटने के बाद, कार्तिक ने एक बार फिर उस जलती हुई इमारत की ओर देखा, जो अब धीरे-धीरे राख में तब्दील हो रही थी। उसने सिगरेट को ज़मीन पर फेंका और अपने जूते से उसे कुचलते हुए वहाँ से निकल गया। वो उन बच्चों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।

    दूसरी ओर, रविश का गोदाम...

    रविश, जो कार्तिक का सबसे भरोसेमंद आदमी और उसका असिस्टेंट था, एक बड़े से गोदाम में खड़ा था। चारों ओर बर्बादी का मंज़र था। आग की लपटें और धुएँ का गुबार। उसने अपने फ़ोन पर कार्तिक को सारी डिटेल्स दे दी थीं। उसके सामने वह माफ़िया खड़ा था जिसने इतने सारे बच्चों की ज़िंदगियों को तबाह किया था। उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ दिखाई दे रही थी, लेकिन वह खुद को शांत दिखाने की कोशिश कर रहा था।

    माफ़िया ने अपने कंपकंपाते होंठों से कहा, "तू जानता है, कार्तिक को अगर मेरे लोगों ने पकड़ लिया तो उसका क्या हाल होगा?"

    रविश ने ठंडी निगाहों से माफ़िया को देखा और बिना किसी डर के कहा, "तू खुद को कुछ ज़्यादा ही होशियार समझता है, है ना? बॉस तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा, और तू ये बात बहुत अच्छे से जानता है कि ये आग तेरे इस काले धंधे का the end की है।"

    माफ़िया की आँखों में डर की हल्की सी झलक दिखाई दी। लेकिन उसने अपनी आवाज़ को शांत रखते हुए कहा, "कार्तिक को यह सब भारी पड़ेगा, बहुत भारी।"

    रविश ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, "तू शायद भूल गया है कि बॉस को किसी से डर नहीं लगता। उनकी बेरहमी और बेदर्दी तुझसे कहीं ज़्यादा है। तू सिर्फ़ बच्चों की ज़िंदगियों से खेलता है, और मेरे बॉस उनकी ज़िंदगी बचाने के लिए इस आग से खेल रहे हैं।"

    रविश ने माफ़िया के चेहरे पर उभरते हुए डर को साफ़ देखा और उसे वहीं छोड़कर वापस अपने काम में लग गया। चारों तरफ़ बर्बादी का मंज़र फैल चुका था, लेकिन रविश और कार्तिक के लिए यह सब आम बात थी।

    यहाँ कार्तिक ने अपनी सिगरेट ख़त्म की और आग की लपटों को एक आख़िरी बार देखा। उसके चेहरे पर एक ठंडा भाव था—उसने एक और धंधे का अंत कर दिया था, जिसने बच्चों की ज़िंदगियों को नर्क बना रखा था। उसने अपने शेड्स ठीक किए और वहाँ से जाने की तैयारी करने लगा।

    उसी वक़्त उसका फ़ोन फिर से बजा। यह वही माफ़िया था जिसने उससे पहले बात की थी। उसकी आवाज़ में अब नफ़रत और डर दोनों थे।
    "कार्तिक, तूने बहुत बड़ी गलती की है, मुझे पकड़कर। इसका ख़ामियाज़ा तुझे और तेरे लोगों को भुगतना पड़ेगा।"

    कार्तिक ने ठंडी आवाज़ में बेपरवाही से जवाब दिया, "तू सिर्फ़ बात कर सकता है। तेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि तू कुछ कर सके। आज तेरी गंदी दुनिया का ख़ात्मा हो चुका है, और अगर तूने उन बच्चों को तंग करने की कोशिश की, तो अगली बार मैं तुझे ज़िंदा जला दूँगा।"

    माफ़िया के चेहरे पर अचानक डर की लकीरें उभर आईं। कार्तिक की बातों में इतना विश्वास और सच्चाई थी कि वह एक पल के लिए सहम गया। उसकी आवाज़ काँपने लगी, "तू नहीं जानता कार्तिक, मेरे पास कितनी पावर है। सेकंड्स में तुझे बर्बाद कर सकता हूँ।"

    कार्तिक ने मुस्कुराते हुए कहा, "तू ये मुझे डराने के लिए कह रहा है या खुद को दिलासा देने के लिए? तू बस इंतज़ार कर, तुझे खुद ही पता चल जाएगा कौन किसे बर्बाद करेगा।"

    यह कहते हुए उसने फ़ोन काट दिया और एक आख़िरी बार उस जलती हुई इमारत को देखा। उसने गहरी साँस ली और खुद से कहा, "खेल तो अब शुरू हुआ है। देखते हैं, कौन जीतता है—तेरी गंदी ताक़तें या मेरे अंदर की आग।" कहते हुए उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, जैसे सच में उनमें आग जल रही हो।

    कार्तिक का यह रवैया दिखाता है कि वह भले ही बाहर से कितना भी बेरहम दिखाई दे, लेकिन उसके अंदर एक ऐसा जुनून है जो उसे इस दुनिया को बर्बाद और आबाद करने में काम आता है। वह उन मासूम बच्चों की ज़िंदगियों के लिए यह सब कर रहा था, और उसके लिए यह खेल एक मिशन है—एक ऐसा मिशन जिसे वह अधूरा नहीं छोड़ सकता।

    जैसे ही कार्तिक वहाँ से जाने के लिए तैयार हुआ, उसके कदमों एक बार फिर से ठिठक गए। उसने पीछे मुड़कर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी—एक ऐसी चमक जो दिखाती है कि वह सिर्फ़ एक क्रूर आदमी नहीं, बल्कि एक ऐसा इंसान है, जो इस दुनिया की ऐसी चीजों को ख़त्म करने के लिए खड़ा हुआ है, जो इंसानों के लिए खतरा हो। उसने अपने कदमों को तेज़ी से उठाया और उस जगह से निकल गया, जहाँ उसने एक बार फिर से बर्बादी का खेल खेला था।

    कार्तिक की कार तेज़ी से अंधेरी रात के सन्नाटे को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी। लेकिन उसके भीतर का तूफ़ान उससे भी तेज़ था। उसकी हरी आँखों के सामने बार-बार उन बच्चों की तस्वीरें घूम रही थीं। उन बिलखते हुए, तड़पते हुए, लाचार बच्चों की तस्वीरें, जिनकी ज़िंदगियाँ उस माफ़िया के अत्याचारों ने नर्क बना दी थीं। उसके मन में गहरी उदासी और गुस्से दोनों का मिला-जुला एहसास था।

    हर बच्चे की हालत ने कार्तिक के दिल को चोट पहुँचाई थी। जिन बच्चों को दुनिया ने छोड़ दिया था, जिनके हाथ-पैर, आँखें, या उंगलियाँ काट दी गई थीं, उन मासूमों का दर्द उसके दिल में छिपा हुआ था। एक १२ साल का बच्चा, जिसकी आँखों की रोशनी छीन ली गई थी, उसकी रोती हुई आवाज़ कार्तिक के कानों में अब भी गूंज रही थी। "साहब, मुझे देखना है... मुझे अंधेरा नहीं चाहिए।"

    एक और ५ साल की बच्ची, जिसकी उंगलियाँ काट दी गई थीं, अपने छोटे से हाथों से कार्तिक के पैरों को पकड़ते हुए मदद की भीख माँग रही थी। "साहब, मुझे घर जाना है... माँ कहाँ है?"

    इन मासूम आवाज़ों ने कार्तिक को भीतर तक झकझोर कर रख दिया था। वह एकदम ठंडा और क्रूर इंसान बन चुका था। लेकिन इन बच्चों के दर्द ने उसके अंदर के इंसान को एक बार फिर से ज़िंदा कर दिया था। वह जानता था कि उसके हाथों से कितनी तबाही हो चुकी है, लेकिन वह यह भी जानता था कि उसकी यह तबाही सिर्फ़ एक जरिया है। इन बच्चों की ज़िंदगी को बचाने के लिए, उनके लिए एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए।

  • 16. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 16

    Words: 1610

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक की उंगलियाँ स्टीयरिंग व्हील पर कसकर पकड़ी हुई थीं, और उसका चेहरा अजीब सी शांति और गुस्से के मिले-जुले भाव लिए हुए था।

    रात का अंधेरा और गहरा हो गया था। आसमान में चाँद भी जैसे उसके दर्द को समझने की कोशिश कर रहा था। लेकिन कार्तिक की निगाहें सड़क पर नहीं, बल्कि उन यादों में खोई हुई थीं, जिनसे वह खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था। उसने अपने शेड्स को और कसकर अपनी आँखों पर चढ़ा लिया, जैसे वह अपनी आँखों में उभरते हुए आँसुओं को दुनिया से छिपाना चाहता हो।


    अचानक, उसकी कार के टायरों ने एक हल्की सी चीख निकाली, जैसे कार्तिक के अंदर का दर्द बाहर आ रहा हो। वह सड़क के किनारे एक वीरान जगह पर कार रोक कर बैठ गया। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और उसके दिल की धड़कनें उसकी छाती में गूंज रही थीं। उसकी आँखों के सामने एक चार साल के बच्चे की तस्वीर तैर रही थी। दिखने में बिल्कुल दूध के जैसा गोरा, अच्छे कपड़े पहने हुए, और उसके सामने एक औरत पड़ी हुई थी। बच्चा अपने नन्हे हाथों से उसे हिला रहा था, और उसकी मासूम आवाज़ में दर्द था।

    "मम्मा, मम्मा उठ जाओ। मुझे खेलना है आपके साथ। भूख लगी है, प्लीज़ मुझे अपने हाथों से खाना खिलाओ।"

    उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और गालों को भिगो रहे थे।

    कार्तिक ने सिर को स्टीयरिंग व्हील पर टिकाया और गहरी साँस ली। उसकी आँखों के सामने फिर से उन बच्चों के चेहरे थे, जो मदद के लिए उसकी ओर देख रहे थे।

    "मुझे कुछ करना होगा... मैं उन्हें इस नर्क से बाहर निकालूँगा," उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा।


    तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी। यह रविश था। उसकी आवाज़ में एक हल्की सी घबराहट थी, लेकिन वह अपने बॉस की तरह ही ठंडी थी।

    "बॉस, सब कुछ प्लान के मुताबिक हो रहा है। हमने उनके सारे सबूत मिटा दिए हैं। वे अब कुछ नहीं कर सकते।"

    कार्तिक ने गहरी साँस लेते हुए कहा,

    "अच्छा किया। लेकिन यह बस शुरुआत है, रविश। मैं चाहता हूँ कि हर उस शख्स का अंत हो, जिसने इन मासूमों की ज़िंदगी को नर्क बना दिया है। हम उन्हें बचाएँगे, चाहे हमें इसके लिए कितनी भी बड़ी कीमत चुकानी पड़े।"

    रविश ने एक ठंडी साँस लेते हुए थोड़ा घबराकर कहा,

    "बॉस, आप जो कर रहे हैं, वह सही है। लेकिन क्या हम यह सब संभाल पाएँगे? ये लोग बहुत खतरनाक हैं।"

    कार्तिक ने एक पल के लिए अपनी हरी आँखों से अंधेरे को देखा, और फिर धीमे से कहा,

    "मैं जानता हूँ कि यह सब कितना खतरनाक है। लेकिन मैं इन बच्चों को ऐसे ही नहीं छोड़ सकता।"


    थोड़ा डरते हुए रविश ने कहा,

    "सो सॉरी सर, लेकिन एक प्रॉब्लम हो गई थी, लेकिन वह सॉल्व हो चुकी है।" उसने फिर पूरी बात समझाई। कार्तिक की आँखें उसकी बात सुनकर और भी डार्क हो गईं। उसने केवल इतना कहा,

    "मुझे जल्द से जल्द सारी डिटेल्स और लोकेशन भेजो।"

    रविश ने "ओके बॉस" कहकर कॉल कट कर दिया।


    कार्तिक की निगाहें फिर से सड़क पर टिक गईं। उसने कार का इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी को फिर से सड़क पर दौड़ा दिया। उसकी आँखों के सामने अब भी उन मासूमों की तस्वीरें थीं, और उसके दिल और दिमाग में उन बच्चों का दर्द था, जिनके लिए वह यह सब कर रहा था।


    इस समय कार्तिक के अंदर की आग और भी भड़क उठी थी—एक ऐसी आग, जो इस नर्क को खत्म करने के लिए काफी थी। लेकिन एक बार फिर वही चार साल का बच्चा उसकी आँखों के सामने था, जिसे वह चाहकर भी नहीं भुला पा रहा था। कार्तिक ने कसकर अपनी आँखें भींच लीं। कुछ देर बाद आँखें खोलीं जो पूरी तरह लाल थीं। फिर उसने एक और गहरी साँस ली और कार की रफ़्तार और तेज़ कर दी, जैसे वह इस दर्द से भागने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन उसे पता था कि इस दर्द से कितना भी भाग ले पर वो उसे नहीं बच सकता।


    रविश की सारी इन्फ़ॉर्मेशन और डिटेल्स देने के बाद, कार्तिक को आखिरकार माफ़िया का पता चल गया था। माफ़िया रणधीर, जो जंगल के पीछे बने एक सुनसान गोदाम में छिपा हुआ था, वहाँ तक पहुँचने का रास्ता अब साफ़ हो चुका था। कुछ देर पहले जब रविश ने कॉल किया था, तब उसने यही बताया था कि रणधीर अपने सभी आदमियों के साथ भाग चुका है।


    कार्तिक ने अपनी कार को तेज़ी से वेयरहाउस की ओर मोड़ दिया, उसकी आँखों में गुस्सा और एक आग थी।


    गोदाम के अंदर की हवा ठंडी और भारी थी, जैसे कोई अजीब सी घुटन चारों ओर फैल रही हो। कार्तिक के कदमों की गूंज उस सन्नाटे को चीरते हुए फैल रही थी, और उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह अपने हाथों में गन थामे हुए, हर चाल के साथ पूरे गोदाम का जायज़ा ले रहा था। रविश उसके साथ था, लेकिन कार्तिक का ध्यान सिर्फ़ एक चीज़ पर था—उस माफ़िया पर, जिसने मासूम बच्चों की ज़िंदगियों को तबाह कर दिया था।


    कार्तिक और रविश गोदाम के अंधेरे कोनों की तलाश कर रहे थे, लेकिन रणधीर का कोई पता नहीं चल रहा था। अचानक, कार्तिक की नज़र एक टूटी हुई चेयर पर पड़ी, जिसके दो पैर टूटे हुए थे। चेयर के पास फैली धूल और टूटी लकड़ी की चिंगारी ने एक सख्त और अजीब सा ही सीन बनाया हुआ था।


    कार्तिक के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आई और उसने चेयर पर अपना दूसरा पैर मारकर उसे पूरी तरह से तोड़ दिया। चेयर के टुकड़े रेत की तरह बिखर गए, और वह एक गहरी हँसी के साथ बोला,

    "बहुत शौक है ना तुझे छोटे-छोटे बच्चों के हाथ-पैर काटने का? अब देख, मैं तेरा वह हिस्सा काटूँगा, जिससे तेरे आने वाले बच्चे दुनिया में ना आ सकें और तुझे ऊपर से ही गालियाँ देंगे।"


    बिना देरी किए, कार्तिक ने अपनी गन से एक गोली चलाई। गोली की आवाज़ पूरे गोदाम में गूंज गई और उसके साथ कार्तिक और रविश अंदर के छुपे हुए हिस्से की ओर बढ़े। कार्तिक ने अपनी जीत के जश्न को और भी मनाने के लिए अपनी सिगरेट जलाते हुए एक हल्की सी सीटी बजाई और गोदाम के अंदर इधर-उधर घूमने लगा, जैसे एक शिकारी अपने शिकार की खोज में हो।


    रविश ने भी अलर्ट रहकर अपने चारों ओर निगरानी रखी, जबकि कार्तिक अपने शिकार की तलाश में था। उसकी आँखें चमक रही थीं, और वह अपनी पैनी नज़रों से पूरे वेयरहाउस को स्कैन कर रहा था। कार्तिक जानता था कि रणधीर की मौत अब बहुत करीब है।


    गोदाम की अंधेरी दीवारों के बीच, कार्तिक और रविश धीरे-धीरे आगे बढ़े, हर कोने की तलाश कुछ इस तरह से कर रहे थे, जैसे एक बड़ा शिकारी अपने शिकार को ढूंढ़ रहा हो।


    कार्तिक ने एक मुस्कान के साथ कहा,

    "जब कोई शिकारी अपने शिकार का पीछा करता है, तो वह उसे तब तक नहीं छोड़ता जब तक उसे अपने हाथों में दबोचकर उसकी जान नहीं ले लेता। मेरे हाथों मौत से अच्छे-अच्छों को डरते हुए देखा है। यकीन नहीं हो रहा, तू भी मुझे देखकर यहाँ छुपा हुआ है। जरा सोच, रणधीर तेरे साथ जो होगा उससे तू भाग भी नहीं पाएगा, तो तेरा क्या हाल होगा?"

    यह कहते हुए कार्तिक जोर से हँस पड़ा।


    रविश ने गन को लोड करते हुए कहा,

    "मुझे लगता है, सर वह ऊपर की तरफ़ छुपा हुआ है।"


    कार्तिक ने इशारा करते हुए कहा,

    "नहीं, रविश, इतनी आसानी से नहीं। इस सुनहरे मौके की तलाश में मैंने न जाने कितनी पूर्णिमा की रातें बिताई हैं। आज अमावस्या की रात रणधीर के लिए होगी, जिसने न जाने कितने मासूमों की ज़िंदगी से खेलकर उनके लाइफ़ में हमेशा के लिए अंधेरा कर दिया है। इस गन को लोड करके इतनी आसान मौत नहीं देना है उसे।"


    कार्तिक और रविश ने मिलकर वेयरहाउस की छत की ओर बढ़ना शुरू किया, जहाँ रणधीर के छिपने की जगह हो सकती थी। उनके कदमों की आवाज़ और गोदाम के अंदर की अंधेरी सन्नाटा ये बता रहा था, कि इस खेल का खेल आगे चलकर और भी भयानक होने वाला है।


    वही अंधेरे कमरे में छिपा हुआ एक आदमी, कार्तिक की सीटी की आवाज़ और उसकी बातों से सिहर उठा था। उसके शरीर से पसीने की बूँदें लगातार टपक रही थीं, और उसकी हर कोशिश असफल हो रही थी। वो बहुत अच्छे से जानता था कि कार्तिक कितना बेहर्म और पत्थर दिल है। वो आदमी बार-बार अपने फ़ोन पर किसी को कॉल लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सुनसान जंगल और गोदाम के अंदर नेटवर्क की कोई चांस नहीं थी।


    उसके काँपते हुए हाथ और आँखों में साफ़-साफ़ डर की झलक दिख रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और वह महसूस कर रहा था कि मौत उसकी दहलीज़ पर खड़ी है। वह सोच रहा था कि आज शायद उसका आखिरी दिन है। कार्तिक की धमकी और उसके छिपने का कोई भी रास्ता नहीं था, उसके पास। क्योंकि यह आदमी कोई और नहीं रणधीर ही था।


    हर बार जब वह अपनी काँपती अंगुलियों से फ़ोन पर कॉल करने की कोशिश करता, तो उसके मन में मौत की तस्वीरें और कार्तिक की खौफ़नाक मुस्कान गूंज उठती थीं। अपनी मौत के करीब होने का एहसास उसे और भी ज़्यादा डरावना लग रहा था।

  • 17. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 17

    Words: 1546

    Estimated Reading Time: 10 min

    रणधीर की हालत और भी खराब हो गई थी। उसने तड़पते हुए, अपने सबसे करीबी लोगों को यह संदेश भेजा: “मैंने यह सब कुछ हमारे लिए किया है! मुझे बचा लो। शायद जब तक यह संदेश तुम्हारे पास पहुँचे, मैं इस दुनिया में नहीं रहूँगा। प्लीज मुझे बचा लो, मैं अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर दूँगा।”

    उसका हाथ काँप रहा था, और उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी। जैसे ही उसने सीटी की आवाज़ सुनी, उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह जानता था कि यह वही आवाज़ है जिसने उसकी नींद उड़ा दी थी।

    उसकी साँसें और भी तेज़ हो गईं। उसकी आत्मा तक में डर की लहर दौड़ रही थी, और उसने महसूस किया कि उसके अंदर की सारी हिम्मत अब ख़त्म हो चुकी है। कार्तिक की सीटी की आवाज़ ने उसे और भी डराया, और वह एकदम से अंदर तक सिहर उठा।

    रणधीर अब पूरी तरह से डर और निराशा में डूब चुका था। वह जानता था कि उसकी मौत अब बस एक कदम दूर है और वह छिपने के बावजूद भी कार्तिक से नहीं बच सकता।

    कार्तिक की आवाज़ रणधीर के कानों में गूंज रही थी, और उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। कार्तिक की आवाज़ का हर शब्द उसे और भी डराता जा रहा था।
    “कहाँ छुपकर बैठा है? और कब तक ऐसे छुपेगा? आखिर यह लुका-छिपी का खेल क्यों? तुझे तो किसी से डर नहीं लगता था, है ना? भगवान के सामने उन्हीं के रूप को तड़पता था सिर्फ़ अपने फायदे के लिए, और अब यहाँ डर के मारे छिपा बैठा है? बाहर निकल, आज शायद तुझे मरने में आसानी हो जाए।”

    कार्तिक की आवाज़ में एक ठंडी क्रूरता थी, जो रणधीर को अंदर तक सिहरन दे रही थी। कहते हुए, कार्तिक ने अपनी गन की एक और गोली हवा में चलाई, और उसकी गूंज पूरे गोदाम में फैल गई। रणधीर का दिल और भी जोर से धड़कने लगा। उसकी आँखों में अब केवल एक ही खौफ़ था—कार्तिक का।

    रणधीर ने घबराहट के मारे काँपते हुए एक अंधेरे कोने की ओर देखा, जहाँ से कार्तिक की आवाज़ आ रही थी।

    रणधीर की आँखों में खौफ़ की लहरें थीं। उसने अपनी पूरी कोशिश की थी कि वह किसी तरह बच सके, लेकिन अब उसे समझ में आ गया था कि कार्तिक से बचना नामुमकिन है।

    “चल, देखता हूँ, तेरी ये रात कब तक चलती है,” कार्तिक ने कहा। रणधीर ने अब अपनी मौत को सामने देखा।

    कार्तिक के कदम गोदाम के अंधेरे हिस्से की ओर बढ़ते गए, जहाँ रणधीर छिपा हुआ था। उसकी आँखों में एक शिकारी की चमक थी, जो अपने शिकार को पकड़ने के लिए पूरी तरह तैयार था।

    गोदाम का सन्नाटा अब और भी गहरा हो गया था, और कार्तिक की हर एक आवाज़ की गूंज रणधीर के कानों में साफ़ सुनाई दे रही थी। रणधीर की घबराहट और बढ़ गई थी, और वह पीछे की ओर खिसकने लगा। लेकिन अब उसके पास कोई जगह नहीं बची थी। वह कहीं भी भाग नहीं सकता था। कार्तिक के कदमों की आवाज़ उसके पास आती जा रही थी, और उसके दिल की धड़कनें और तेज़ हो रही थीं।

    अचानक से कार्तिक तेज़ कदमों से उस अंधेरे कोने की ओर बढ़ा। उसकी आँखें चमक रही थीं, और उसके चेहरे पर एक ठंडी मुस्कान थी। रणधीर ने अब खुद को पूरी तरह से नाकाम महसूस किया। उसकी आँखों में एक आखिरी बार आशा की चमक थी, लेकिन वह जान चुका था कि इसका कोई मतलब नहीं था।

    कार्तिक ने एक गहरी साँस ली और अपनी गन को रणधीर की दिशा में तान दिया।
    “तूने कितनी जिंदगियों को नर्क बना दिया,” कार्तिक ने गहरी आवाज़ में कहा। “अब तू खुद इस अंधेरे में हमेशा-हमेशा के लिए खो जाएगा।”

    कार्तिक ने अपनी गन रणधीर की दिशा में मोड़ी और एक ठंडी नज़रों से उसे देखा। रणधीर की आँखों में अब केवल डर और पछतावा था, क्योंकि उसने जान लिया था कि उसकी मौत अब बस कुछ ही क्षणों की बात है।

    कार्तिक की आवाज़ में एक सख्त ठंडापन था, जो रणधीर के दिल को काँपने के लिए काफी था। माफ़िया के चेहरे पर डर और बेबसी की परतें साफ़ दिख रही थीं, और वह कार्तिक के सामने पूरी तरह से बेबस हो चुका था।

    “प्लीज, मुझे छोड़ दो… मैंने जो कुछ भी किया, वह मजबूरी में किया,” रणधीर ने काँपती हुई आवाज़ में कहा। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन कार्तिक की नज़रों में उसके लिए कोई दया नहीं थी।

    कार्तिक ने उसकी बातों को बेपरवाह तरीके से सुना और अपनी गन की ट्रिगर पर उँगली कस दी।

    “तूने उन बच्चों को कोई माफ़ी नहीं दी थी,” कार्तिक ने धीरे से कहा, “और आज तेरे लिए कोई माफ़ी नहीं है।”
    “तूने मेरे साथ गेम खेला है, मुझे धोखा दिया है, क्या लगता है, तुझे की मौन तुझे पहचान भी पाऊंगा!” कहकर वह ठहाके लगाकर हँसने लगा।

    फिर कार्तिक ने गन की ट्रिगर दबाई, और गोली रणधीर के माथे को भेदते हुए निकल गई। रणधीर का शरीर ज़मीन पर गिर गया, और उसके चेहरे पर एक आखिरी बार खौफ़ और पछतावा की झलक थी।

    कार्तिक ने एक गहरी साँस ली और अपनी गन को अपनी ओर मोड़ा। उसकी आँखों में अब भी वही कोल्डनेस था, और उसकी आँखें भी किसी शैतान की तरह चमक रही थीं। उसने अपना ध्यान सामने पड़ी dead body की ओर से हटाया और अपने असिस्टेंट से कड़क लहजे में कहा, “रवीश, जल्दी करो! हम जिस मकसद के लिए यहाँ आए हैं, वह अब तक पूरा नहीं हुआ है। जल्द से जल्द ढूँढो।”

    कार्तिक की बात सुन रवीश ने अपना सर हाँ में हिला दिया और उसे फॉलो करने लगा।

    फिर कार्तिक ने ठंडी आवाज़ में कहा, “यह रणधीर नहीं है, रविश। हमने किसी और को मारा है। असली रणधीर अभी भी बाहर है। उसे लग रहा है, कि उसने हमें बेवकूफ़ बना दिया।”

    रविश के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई।
    “लेकिन, बॉस, वह यह नहीं जानता कि हम यही चाहते थे? हमने सब कुछ इसी तरीके से प्लान किया था।”

    “यही तो बात है,” कार्तिक ने गहरी साँस लेते हुए कहा। “रणधीर ने हमेशा खुद को छिपा कर रखा है। आज तक किसी ने उसे देखा नहीं है। और यह आदमी…” उसे मरे हुए इंसान को देखते हुए कार्तिक की आँखें कठोर हो गईं और उसने अपने शब्द अधूरे ही छोड़ दिए।

    फिर उसने अपनी गन को वापस अपनी बेल्ट में डाला और अपने असिस्टेंट रविश को निर्देश दिया, “रविश, हमें उसे ढूँढना है। उसे यहाँ छिपाने का मतलब यही है कि वह कहीं न कहीं इसी गोदाम में ही है। वह हमसे दूर नहीं जा सकता। इस बार हम कोई गलती नहीं करेंगे।”

    रविश ने समझते हुए सिर हिलाया और तुरंत अपनी टीम को एक्टिव कर दिया। चारों तरफ़ अंधेरा और डरावनी शांति थी। गोदाम की पुरानी, धूलभरी दीवारें और उसके अंदर छिपी हुई सच्चाई को खुद में समाये हुए थीं। कार्तिक और रविश ने गोदाम के हर कोने को खंगालना शुरू किया। हर कमरे, हर दराज, हर सुराग को वे ध्यान से देख रहे थे।

    जब वे एक पुराने, टूटे हुए शेल्फ़ के पास पहुँचे, तो रविश की नज़र एक अजीब से दिखने वाले टाइल पर पड़ी। उसने कार्तिक को बुलाया,
    “बॉस, यह टाइल बाकी टाइलों से अलग है। कुछ गड़बड़ है।”

    कार्तिक ने पास जाकर टाइल को ध्यान से देखा। उसे तुरंत समझ आ गया कि यह सिर्फ़ एक नॉर्मल टाइल नहीं है। उसने अपने जूते से टाइल को हल्का धक्का दिया, और उसे हटाने की कोशिश की। कुछ ही पलों में, टाइल खिसक गई, और उसके नीचे एक सीक्रेट दरवाज़ा नज़र आया।

    कार्तिक और रविश ने बिना समय गँवाए उस दरवाज़े को खोला और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। नीचे की दुनिया और भी खौफ़नाक और रहस्यमयी थी। वहाँ का माहौल सर्द था, और हर कोने में एक अजीब सा डरावना सन्नाटा छाया हुआ था। दीवारों पर अजीबोगरीब चित्र और दरवाज़ों पर बने अजीब साइन इस बात का इशारा कर रहे थे कि यहाँ कुछ खतरनाक हो सकता है।

    नीचे जाकर, कार्तिक और रविश एक बड़े हॉल में पहुँचे। हॉल के बीचोंबीच एक बड़ी मेज़ थी, जिस पर कई पेपर्स और मैप्स बिखरे हुए थे। हॉल के एक कोने में एक आदमी खड़ा था, उसकी पीठ कार्तिक और रविश की तरफ़ थी।

    कार्तिक ने बिना कोई आवाज़ किए अपनी गन को निकाला और उस व्यक्ति की तरफ़ इशारा किया।
    “रणधीर!” उसने ठंडी आवाज़ में पुकारा। वह व्यक्ति धीरे-धीरे मुड़ा, और उसकी आँखों में कार्तिक की तरह ही एक ठंडक थी।

    क्या होने वाला है आगे? अपने विचार ज़रूर बताएँ!!

  • 18. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 18

    Words: 1541

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक ने बिना आवाज़ किए अपनी बंदूक निकाली और उस व्यक्ति, रणधीर, की ओर इशारा किया। "रणधीर!" उसने ठंडी आवाज़ में पुकारा। वह व्यक्ति धीरे-धीरे मुड़ा, और उसकी आँखों में कार्तिक की तरह ही एक ठंडक थी।

    "तुम लोग आ गए, मगर तुम लोगों को यहाँ आने में बहुत देर हो गई," उसने मुस्कुराते हुए कहा। "मैं जानता था कि तुम मुझे ढूँढ़ने आओगे, लेकिन मुझे यह अंदाज़ा नहीं था कि तुम मेरे लिए इतना बेकरार हो कि इतना नीचे तक आ जाओगे।"

    रणधीर ने कार्तिक की ओर देखकर एक रहस्यमयी मुस्कान दी, मानो वह पहले से ही इस पल के लिए तैयार था। "तुमने अच्छा खेल खेला, लेकिन मैं हमेशा से एक कदम आगे रहा हूँ।"

    कार्तिक ने बिना पलक झपकाए, हलकी मुस्कान के साथ कहा, "यह खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ है, रणधीर। तुम्हें क्या लगा कि तुम मुझे यहाँ चकमा देकर बच जाओगे? लेकिन अब तुम्हारे सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। भूलो मत, कार्तिक की दुनिया में एक पत्ता भी बिना उसकी परमिशन के नहीं हिलता। तो अगर तुम यह सब कर रहे हो, तो इसमें भी मेरी मर्ज़ी है। इसलिए ज़्यादा हवा में उड़ने की ज़रूरत नहीं है।" यह सब उसने बड़ी ही शांति से कहा था।

    रणधीर ने एक गहरी हँसी के साथ कहा, "तुम्हें क्या लगता है, कार्तिक? मैं इतने सालों से यह सब कर रहा हूँ, और तुम्हें लगता है कि मैं इतनी आसानी से हार मान लूँगा और सब कुछ ऐसे ही छोड़ दूँगा? इस गोदाम के नीचे और भी बहुत कुछ दफ़न है, जिसे तुम कभी समझ नहीं पाओगे, और ना ही उसे कभी पाओगे। तुम यहाँ तक पहुँचे हो, लेकिन अब तुम्हारा यहाँ से निकलना नामुमकिन है।"

    कार्तिक ने अपनी बंदूक की नोक रणधीर की ओर की और कहा, "तुम्हारे ऐसे बचकाने खेलों से मैं नहीं डरता, रणधीर। मैं तुम्हारी हर चाल को समझ चुका हूँ। यह तुम्हारी आख़िरी चाल थी, और अब तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं बचा।"

    रणधीर ने एक पल के लिए शांत रहकर कहा, "तुम्हें सच में लगता है कि यह मेरी आख़िरी चाल है? चलो, देखते हैं कि तुम इस राज़ से कैसे निपटोगे।" कहते हुए वह जोर-जोर से ठहाके मारकर हँसने लगा।

    अंधेरे में चारों ओर फैला सायरन का शोर, रणधीर की घटिया चाल को बता रहा था। रविश और कार्तिक दोनों के दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं, मगर कार्तिक अभी भी उसी तरह शांत खड़ा था; उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। उसने एक गहरी साँस ली, और अपनी बंदूक को मज़बूती से पकड़ा।

    रणधीर की चाल साफ़ थी। उसने कार्तिक और रविश को एक ऐसे जाल में फँसा दिया था, जहाँ से निकल पाना नामुमकिन सा लग रहा था। अचानक से हॉल के चारों कोनों से भारी धातु की दीवारें ऊपर उठने लगीं, और हॉल धीरे-धीरे एक बड़े पिंजरे में बदलने लगा। रणधीर की हँसी अंधेरे में गूंज रही थी, मानो वह इस पूरे खेल का मज़ा ले रहा हो।

    "क्या तुमने सोचा था कि मैं तुम्हें इतनी आसानी से जाने दूँगा, कार्तिक?" रणधीर की आवाज़ अंधेरे में गूंज रही थी। "यह जगह अब तुम्हारी कब्र बन जाएगी।" कहकर वह राक्षसों की तरह शोर-शोर से हँसने लगा। मगर इन सब के बावजूद भी कार्तिक के चेहरे पर एक शिकन नहीं थी। वह बड़ी शांति से सब कुछ देख रहा था, जो कहीं न कहीं रणधीर को अंदर ही अंदर परेशान कर रहा था।

    कार्तिक ने तेज़ी से अपने आस-पास के माहौल का जायज़ा लिया। उसने देखा कि रणधीर ने हॉल को चारों ओर से घेरने के लिए धातु की दीवारों का इस्तेमाल किया था, जो धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही थीं। हॉल के केंद्र में एक छोटा सा नियंत्रण पैनल नज़र आ रहा था, जिसे शायद रणधीर ने इस पूरी व्यवस्था को शुरू करने के लिए इस्तेमाल किया था।

    "रविश, हमें तुरंत उस पैनल तक पहुँचना होगा," कार्तिक ने फुसफुसाते हुए कहा।

    रविश ने तुरंत समझ लिया कि उन्हें क्या करना है। दोनों ने सावधानी से अपने कदम बढ़ाए, जबकि दीवारें लगातार उनकी ओर बढ़ रही थीं। कार्तिक ने अपनी बंदूक का इस्तेमाल करते हुए कुछ धातु के तारों को निशाना बनाया, जिससे कुछ सेकंड के लिए दीवारों की गति धीमी हो गई।

    "जल्दी करो, रविश!" कार्तिक ने आदेश दिया, और रविश ने दौड़ते हुए पैनल की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। जैसे ही रविश पैनल के पास पहुँचा, उसने देखा कि पैनल को एक कोड से लॉक किया गया था।

    रणधीर ने इस दौरान कार्तिक की हरकतों को गौर से देखा। उसने फिर से हँसते हुए कहा, "कार्तिक, तुम्हें क्या लगता है कि मैं इतना बेवकूफ़ हूँ कि तुम्हें इसे रोकने का मौका दूँ? यह कोड कोई सामान्य कोड नहीं है, और तुम्हारे पास इसे तोड़ने के लिए वक़्त भी नहीं है।"

    रविश ने तेज़ी से पैनल के बटनों को दबाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कार्तिक ने इस बीच अपनी बंदूक से बाकी की दीवारों को रोकने की कोशिश की, लेकिन दीवारें फिर से तेज़ी से उनकी ओर बढ़ने लगीं।

    रणधीर ने ठंडी हँसी के साथ कहा, "यहाँ से बचने का कोई रास्ता नहीं है, कार्तिक। यह तुम्हारा अंत है।"

    लेकिन कार्तिक अभी भी बिना डरे वहीं खड़ा था और रणधीर की बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा था। उसने गहराई से सोचा कि रणधीर के इस जाल से कैसे बाहर निकला जा सकता है। क्योंकि सचमुच उसे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि रणधीर कुछ इतना बड़ा सोच सकता है। अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि जब वह पहली बार इस हॉल में आया था, तो उसने एक छोटी सी वेंटिलेशन शाफ़्ट देखी थी, जो शायद बाहर जाने का एकमात्र रास्ता हो सकता था।

    "रविश, इस पैनल को छोड़ो! हमारे पास एक और रास्ता है," कार्तिक ने रविश से कहा और उसे वेंटिलेशन शाफ़्ट की ओर इशारा किया।

    दोनों तेज़ी से शाफ़्ट की ओर दौड़े, जबकि दीवारें अब उन्हें लगभग छूने वाली थीं। रविश ने शाफ़्ट का कवर खींचा और दोनों ने बारी-बारी से उसमें प्रवेश किया। शाफ़्ट संकरा और अंधेरा था, लेकिन यह उनके बचने का आख़िरी रास्ता था।

    शाफ़्ट के अंदर चलते हुए, कार्तिक और रविश ने महसूस किया कि यह काफी लंबा और संकरा था। लेकिन इससे पहले कि वे बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ़ पाते, उन्हें अचानक एक और धातु की ग्रिल ने रोक दिया। रणधीर ने इस वेंटिलेशन शाफ़्ट को भी बंद करने का फ़ैसला किया था।

    "तुम कहीं नहीं जा सकते, कार्तिक!" रणधीर की आवाज़ शाफ़्ट के अंदर गूंज रही थी। "मैंने तुम्हारे ज़िंदा लौटने का हर रास्ता पहले ही बंद कर दिया है।"

    लेकिन इस बार कार्तिक के पास इसका हल पहले से था। उसने शाफ़्ट की दीवारों का निरीक्षण किया और देखा कि वहाँ कुछ छोटी-छोटी तारें फैली हुई थीं। कार्तिक ने तुरंत अपने पैंट की जेब से एक छोटा सा पॉकेट चाकू निकाला और तारों को काटने लगा। जैसे ही तार कटीं, ग्रिल धीरे-धीरे खुलने लगी।

    "रविश, अब हमें तेज़ी से भागना होगा," कार्तिक ने आदेश दिया। फिर दोनों शाफ़्ट के आख़िरी छोर तक दौड़ते हुए पहुँचे और ग्रिल को धक्का देकर बाहर निकल आए।

    कार्तिक और रविश जैसे ही शाफ़्ट से बाहर निकले, उन्होंने खुद को एक छोटे से कमरे में पाया, जहाँ से बाहर जाने का एकमात्र रास्ता एक दरवाज़ा था। कार्तिक ने दरवाज़े को धक्का दिया, और वे उस गुप्त कमरे से बाहर आ गए।

    लेकिन जैसे ही वे बाहर निकले, रणधीर ने उन पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। कार्तिक ने तेज़ी से झुकते हुए अपनी बंदूक से जवाबी हमला किया। दोनों तरफ़ से गोलियों की आवाज़ें गूंजने लगीं।

    रणधीर ने सोचा कि वह कार्तिक को यहीं ख़त्म कर देगा, लेकिन उसने कार्तिक की चालाकी को नज़रअंदाज़ कर दिया था। कार्तिक ने रणधीर की बंदूक की आवाज़ से उसकी लोकेशन का अंदाज़ा लगा लिया था और अब उसने एक सटीक निशाना लगाकर उसकी बंदूक को नीचे गिरा दिया।

    "तुम्हारा खेल ख़त्म हो गया, रणधीर," कार्तिक ने ठंडी आवाज़ में कहा। रणधीर अब बेबस खड़ा था, उसकी चालें अब बेकार हो चुकी थीं। कार्तिक ने उसे पकड़ लिया और रविश के साथ उसे उसी पिंजरे वाले हॉल में वापस ले गया।

    कार्तिक के हाथ में अब रणधीर का गला दबा हुआ था, और उसके चेहरे पर गुस्से की आग जल रही थी। रणधीर ने दर्द से कराहते हुए अपनी जगह से खिसकने की कोशिश की, लेकिन कार्तिक ने उसे पीछे से दीवार से खींच लिया था।

    उसने उसका गला इतनी जोर से दबाया हुआ था कि रणधीर की आँखें बाहर निकलने को हो रही थीं। कार्तिक ने उसे जोर से ज़मीन पर पटक दिया, जिससे रणधीर की पीठ पर बिखरे हुए नुकीले पत्थर और काँच के टुकड़े चुभने लगे। वह दर्द से तड़प उठा और उसकी चीखें पूरे गुप्त कमरे में गूंज उठीं। लेकिन वहाँ उसे सुनने वाला कोई नहीं था, सिवाय उन धातु की दीवारों के, जो खुद उसकी बनाई थीं।

    कार्तिक ने उसके गले को और कसते हुए उसे ज़मीन पर घसीटते हुए और भी नीचे खींचा। रणधीर का चेहरा अब पूरी तरह से लहूलुहान हो चुका था, उसकी त्वचा जगह-जगह से फट चुकी थी और खून बह रहा था। उसने दर्द से कराहते हुए कहा, "मुझे छोड़ दो... मैं वादा करता हूँ... मेरी जान बच जायेगी।"

  • 19. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 19

    Words: 1519

    Estimated Reading Time: 10 min

    कार्तिक के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसने अपनी बंदूक रणधीर की ओर तानी और बोला, "तूने जो किया, उसके लिए तुझे कोई माफ़ी नहीं मिलेगी। अब तुझे हर उस दर्द का सामना करना पड़ेगा, जिसे तूने दूसरों को दिया है।"


    रणधीर हँसा, लेकिन उसकी हँसी में अब वह आत्मविश्वास नहीं था जो पहले था। "क्या सच में, कार्तिक? क्या तुझे लगता है कि मुझे मार कर तुम जीत जाओगे? नहीं, कार्तिक, ये खेल अभी बाकी है।"


    कार्तिक ने बिना कोई समय गँवाए अपनी बंदूक से फायर किया, और रणधीर की बांह में गोली धँस गई। रणधीर दर्द से चिल्लाया, लेकिन कार्तिक के चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि थी। उसने रणधीर की ओर बढ़ते हुए कहा, "तूने बच्चों के साथ जो किया, उसके लिए तुझे किसी भी सजा से बख्शा नहीं जाएगा।"


    रणधीर ने अपने दर्द को छिपाते हुए कहा, "तू जो चाहे कर ले, कार्तिक। लेकिन याद रखना, मैं नहीं, मेरी सोच ज़िंदा रहेगी। इस धंधे में मेरे जैसे और भी लोग हैं, जो तेरी ज़िन्दगी को नर्क बना देंगे।"


    यह सुनते ही कार्तिक जोर से हँस पड़ा, उसकी हँसी में एक खौफनाक सन्नाटा था। कार्तिक ने एक पल के लिए सोचा, और फिर उसकी आँखों में वही ठंडापन वापस आ गया। उसने ठंडे स्वर में कहा, "मौत के सामने किसी और को धमकी नहीं दी जाती, समझा? इसलिए तू अपनी जान की सोच। मुझे लगा था कि तू भीख मांगेगा, लेकिन..."


    रणधीर की चीखों में दर्द और खौफ साफ झलक रहा था। वह बुरी तरह से काँप रहा था, लेकिन कार्तिक की बातें सुनकर बहुत जोर से हँसने लगा; उसकी हँसी अब एक चीख में बदल गई थी। "तुझे क्या लगता है, तूने इस पूरे शहर में चलने वाले धंधे को बंद कर दिया है? अपनी गलतफ़हमी से बाहर आ। ये सारे काम ऐसे ही चलते रहेंगे, मेरे न होने पर भी। तू उन्हें कभी नहीं ढूँढ पाएगा, कार्तिक, कभी नहीं? अगर तू मुझे मार भी देगा, तो तेरी आने वाली सात पुश्तें भी आगे होने वाली बर्बादी का तमाशा देखेंगी और सोचेंगी कि इस कार्तिक ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि जिसकी सज़ा उन्हें मिल रही है। क्योंकि वो लोग तुझे और तेरे अपनों को ख़त्म कर देंगे।"


    अभी उसने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि कार्तिक ने उसे एक जोरदार मुक्का मारा, और रणधीर वहीं जमीन पर चक्कर खाकर गिर पड़ा। उसका चेहरा अब खून से लथपथ था। कार्तिक ने उसकी गाल पर जोर से थप्पड़ मारा और बोला, "तुझे क्या लगता है, तू उन्हें बताने के लिए ज़िंदा रहेगा? तेरी लाश को मैं उनके पास भेजूँगा, ताकि उन्हें पता चले कि तेरी रूह तेरे इस नापाक बदन से किस तरह तड़प-तड़प के आज़ाद हुई है। तेरी लाश का वह हश्र करके उन लोगों के पास भेजूँगा कि तेरी आत्मा भी तेरे बदन से बाहर होते हुए भी तुझे देखकर काँपेगी।"


    "तेरे बदन से तेरे उस हिस्से को अलग करूँगा जिससे तेरी आने वाली औलादें तुझे ऊपर से ही गालियाँ देंगी।"


    इसी दौरान रविश एक मशीन लेकर आया, जो पेड़ काटने वाली मशीन थी। उसकी गड़गड़ाहट सुनते ही रणधीर का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा और वह डर से जोर-जोर से चिल्लाने लगा क्योंकि उसे अब पता चल चुका था कि अब उसके साथ क्या होने वाला है। उसके चेहरे पर ऐसी घबराहट देखकर कार्तिक को काफी मज़ा आ रहा था। उसने हँसते हुए उस मशीन को अपने सामने करके उसे आगे-पीछे करते हुए कहा, "देख रहा है रणधीर, ये मशीन कितनी खूबसूरत है! जिस चीज़ को छूती है उसे दो हिस्सों में अलग कर देती है।" कार्तिक के शब्द सुन रणधीर के पसीने छूटने लगे।


    फिर रविश दौड़कर आया और रणधीर को पकड़ लिया। कार्तिक ने भी बिना किसी देरी के सबसे पहले रणधीर के प्राइवेट पार्ट को काट डाला। रणधीर दर्द से तड़पते हुए जमीन पर गिर पड़ा, उसकी चीखें अब और भी तेज हो गईं।


    कार्तिक ने मशीन को रणधीर के चेहरे की ओर बढ़ाया और उसकी नाक को भी काट दिया। अब रणधीर का चेहरा एक भयानक दरिंदे की तरह दिख रहा था—पूरी तरह से खून में सना हुआ, मानो वह अब इंसान नहीं रहा हो, सिर्फ एक दर्द से कराहता हुआ जीव मात्र हो।


    कार्तिक ठीक उसके सामने यमराज का रूप लिए खड़ा था। वह उसे उसके पापों की सज़ा मरने के बाद नहीं, ज़िंदा रहते ही दे रहा था, जो मौत से भी बदतर था।


    फिर कार्तिक ने मशीन को नीचे गिरा दिया और अपनी जेब से ड्रग्स निकाले। उसने ड्रग्स को रणधीर के चेहरे और उसके ज़ख्मों पर डालना शुरू कर दिया। रणधीर दर्द से पूरी तरह तड़प उठा, उसकी चीखें अब एक बिन पानी की मछली के जैसे लग रही थीं, जिसे पानी से बाहर फेंक दिया गया हो। तभी रविश ने मुस्कुराते हुए कहा, "सर, मुझे लगता है इसका एक पैर भी काट देना चाहिए। तो ये और भी अच्छा लगेगा।"


    कार्तिक ने जोर से हँसते हुए कहा, "बिल्कुल, रविश। क्यों नहीं? क्यों नहीं? अब जब ये हमारे हाथ आ ही गया है, तो शुभ काम में देरी कैसी? फिर कुछ सोचते हुए... आखिर तुमने भी बहुत मेहनत की है, रविश, तो यह शुभ काम तुम्हारे ही हाथों से होना चाहिए। इसलिए अब तुम भी अपनी कसर निकाल लो।"


    रविश ने भी बिना देरी किए मशीन उठाई और रणधीर के पैर की ओर बढ़ गया। लेकिन तभी अचानक से गोलियों की आवाज़ से पूरा जंगल गूँज उठा। रणधीर का दर्द और भी बढ़ गया था और रविश के कंधे में गोली लग गई। उसने तुरंत कार्तिक को नीचे झुकाया, लेकिन उस वक़्त कार्तिक के कंधे को गोली छूकर निकल गई।


    यह सब इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ भी समझने का मौका ही नहीं मिला। इसी बीच वह मशीन रविश के हाथ से छूटकर रणधीर के हाथ पर जा गिरी, और बिना किसी चेतावनी के उसका हाथ कट गया। इस खौफनाक माहौल में एक और जोरदार चीख गूँज उठी। तभी बहुत सारे लोग एक साथ गोदाम की ओर बढ़ने लगे। रविश ने कार्तिक की ओर देखते हुए कहा, "सर, हमें यहाँ से निकलना होगा।"


    कार्तिक ने दर्द में तड़पते हुए रणधीर को देखते हुए अपना सिर हिलाते हुए कहा, "इसकी मौत के बिना नहीं।" रविश ने समझते हुए कहा, "सर, हमने इसका ऐसा हाल कर दिया है कि यह ज़िंदा रहते हुए भी तड़पता रहेगा। यह ना जीने लायक बचा है और ना ही मरने। कुछ दिन में तड़पते हुए खुद ही इसकी मौत हो जाएगी और नहीं हुई तो हमारे आदमी इसे ढूँढ कर खुद मौत के घाट पहुँचा देंगे। अगर आप चाहेंगे तो मैं खुद इसे आपके कदमों में लाऊँगा। पर फ़िलहाल, आपकी सेफ़्टी मेरे लिए बहुत important है।"


    कहते हुए, रविश जबरदस्ती कार्तिक को गोदाम से बाहर ले जाने लगा। कार्तिक की आँखें अभी भी रणधीर पर थीं, जिसकी साँसें चल रही थीं, लेकिन वह मुर्दे से कम नहीं लग रहा था। कार्तिक के होठों पर एक ठंडी मुस्कान थी, क्योंकि उसने माफ़िया को ऐसी सज़ा दी थी कि उसकी तो क्या, उसके बारे में सुनने वाले हर इंसान की रूह तक काँप गई होगी।


    घनी काली रात में गोदाम का वातावरण और भी भयानक हो गया था। टिमटिमाते बल्ब की रोशनी में कार्तिक के चेहरे पर बेरहमी की छाया साफ़ दिखाई दे रही थी। उसकी आँखों में आग और चेहरा पत्थर की तरह कठोर था। रणधीर के हाथ पर पड़े मशीन के वार से उसके चीखने की आवाज़ चारों तरफ़ गूँज रही थी। मगर, कार्तिक का ध्यान सिर्फ़ एक ही बात पर था—रणधीर को ख़त्म करना।


    वहाँ का माहौल अचानक बदल गया। कार्तिक की आँखों में एक बार फिर वही जुनून था—मरने या मारने का। उसने रणधीर की तरफ़ देखा, जो अब भी दर्द में छटपटा रहा था, पर उसकी हालत ऐसी थी कि मौत भी उस पर दया कर रही थी। उसने रविश के हाथ को झटक दिया। फिर उसने रणधीर के चेहरे को देखा और उसके ऊपर अपना पैर रख दिया। रणधीर की चीखें तेज हो गईं, लेकिन कार्तिक के चेहरे पर शांति थी। उसने अपने कंधे की चोट को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "तेरी सज़ा अभी बाकी है, रणधीर। मौत के आगे भी तेरा दर्द तुझे चैन नहीं लेने देगा।"


    रणधीर का चेहरा अब एक भयानक रूप ले चुका था। उसके चेहरे से खून टपक रहा था और उसकी आँखों में मौत का खौफ़ था। कार्तिक ने ठंडे स्वर में कहा, "तू सोच रहा था कि तू बच जाएगा, लेकिन तूने यह सोचा भी कैसे कि मैं तुझे ज़िंदा छोड़ दूँगा?"


    रणधीर के मुँह से बस हल्की-हल्की कराह निकल रही थी। कार्तिक ने आगे कहा, "तेरे साथ भी वही सब होगा जो तूने उन बच्चियों और दूसरों के साथ किया है। तेरे कुछ बॉडी पार्ट तो पहले ही कट चुके हैं और काटे तो तू फ़ील ही मर जायेगा। और मैं तुझे और तड़पाना चाहता हूँ, इसलिए तुझे तेरे ही जाल में कैद करने के लिए यहाँ तक लाया हूँ।"

  • 20. Reborn Of My Dazzling Wifey - Chapter 20

    Words: 1129

    Estimated Reading Time: 7 min

    वहीं कार्तिक की बातें सुन रणधीर दर्द में तड़पते हुए मुस्कुराया और बोला, "तू खुद को समझता क्या है, कार्तिक? बाहर देख कैसे तबाही मची हुई है। तुझे लगता है कि मुझे मारने के बाद तू खुद जिंदा बचकर निकल पाएगा। कभी नहीं कार्तिक, कभी नहीं।"

    ये सुन कार्तिक जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, "तुझे क्या लगता है कि तेरे ये टुच्चे लोग मेरा, कार्तिक का कुछ उखाड़ पाएंगे? तो चल, तुझे दिखाता हूं कि कार्तिक क्या कर सकता है।"
    कह कर वह उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे शूट से घसीटने लगा, जिससे एक बार फिर पूरे जगह में रणधीर की चीखें गूंजने लगीं।

    कार्तिक ने रणधीर को उस पैनल के पास खड़ा कर दिया, जिसे उसने पहले लॉक किया था। "अब तुम्हें इसका कोड बताना होगा, ताकि हम इसे हमेशा के लिए बंद कर सकें," कार्तिक ने सख्त आवाज़ में कहा।

    रणधीर ने पहले तो मना किया, लेकिन जब उसने देखा कि वो पूरी तरह से कार्तिक के कंट्रोल में है, तो उसने मजबूरी में कोड बताया। कार्तिक ने पैनल को बंद कर दिया, और उस जाल को हमेशा के लिए डीएक्टिवेट कर दिया।

    अब रणधीर के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। कार्तिक ने उसे उसी पिंजरे में बंद कर दिया, जिसे उसने उनके लिए तैयार किया था। "अब तुम अपनी ही जाल में फंस गए हो, रणधीर," कार्तिक ने कहा और हॉल से बाहर निकलने लगा।

    जैसे ही कार्तिक और रविश वेयरहाउस से बाहर निकले, कार्तिक ने देखा कि रणधीर के बाकी बचे हुए आदमी अब भी लड़ाई कर रहे थे। रविश के साथ कार्तिक भी इन लोगों से भिड़ गया। लगभग 5 मिनट में ही सब कुछ शांत हो चुका था।

    एक लंबी और खून से सनी लड़ाई के बाद, आखिरकार कार्तिक और रविश ने रणधीर के आदमियों को खत्म कर दिया। गोदाम में अब सिर्फ खून और लाशें बिछी थीं।

    रणधीर, जो अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था, उसने कार्तिक की ओर देखा और बुदबुदाया, "तूने... सब कुछ... खत्म कर दिया... मगर कुछ खत्म नहीं हुआ।"
    कार्तिक ने उसकी ओर देखा और बर्फ जैसे ठंडे स्वर में कहा, "खत्म तो हुआ है, लेकिन तुझसे नहीं... इस धंधे से। और अब तुझे वही मिलेगा, जो तूने दूसरों को दिया है।"

    रणधीर ने अपनी आंखें बंद कर लीं, और उसकी सांसें धीरे-धीरे रुक गईं। कार्तिक ने अपनी बंदूक नीचे की और रविश की ओर देखा, जो अब भी उसकी ओर देख रहा था। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा और बिना कुछ कहे, गोदाम से बाहर निकल गए।

    सूरज की किरणें बाहर फैलीं हुई थीं। कार्तिक ने गहरी सांस ली और आसमान की ओर देखा। वह जानता था कि यह लड़ाई खत्म हो चुकी है, लेकिन उसे यह भी पता था कि रणधीर जैसे लोग कहीं न कहीं फिर से पनप सकते हैं।

    सावी ने जब अपनी आंखें खोलीं, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसका पूरा शरीर कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हो। वह अब भी आधी नींद में थी, लेकिन उसकी दिमागी हालत किसी बुरी तरह से थके हुए इंसान जैसी थी। उसने अपने आप से बुदबुदाया, "ये क्या हो रहा है मुझे? कहीं सपना तो नहीं देख रही? मेरी बॉडी में ऐसा क्यों फील हो रहा है?"

    सावी बिस्तर से उठी और लड़खड़ाते हुए अपने पैरों को जमीन पर रखा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बॉडी किसी भारी बोझ के नीचे दबी हो। उसने अपना सिर झटका और सबसे पहले अपने सुबह के रूटीन को पूरा करने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ी। बाथरूम के आईने में उसने अपनी झपकती आंखों को देखा और फिर अचानक से बोली, "अरे, ये मैं हूं या भूत? बाल तो जैसे किसी जंगली बिल्ली जैसे हो चुके है!"

    सावी ने जल्दी से अपने बालों को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ अब भी नींद के आलस में थे। उसने टूथब्रश उठाया और ब्रश करते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ मिनट बाद उसने महसूस किया कि वह गलत तरीके से ब्रश कर रही थी। उसने ब्रश को उल्टा पकड़ा हुआ था! उसने खुद को चपत लगाई और जोर से हंसी और बोली, "वाह सावी, आज तो तुमने खुद को भी पीछे छोड़ दिया पागलपंती में!"

    रूटीन पूरा करने के बाद, सावी को अचानक बहुत तेज प्यास लगी। उसकी प्यास इतनी बढ़ गई थी कि उसे लगा कि वह बिना पानी के एक और सेकंड नहीं रह सकती। वह पूरे कमरे में इधर-उधर घूमने लगी, मानो पानी की तलाश में किसी रेगिस्तान में भटक रही हो। उसने हर कोने में देखा, लेकिन कहीं भी पानी नहीं मिला। उसकी नींद अब भी आधी खुली थी, और उसके दिमाग में केवल पानी का ही ख्याल था, जिससे इसके दिमाग में ये बात नहीं आई कि वो नीचे जाकर भी पानी पी सकती है।

    तभी उसकी नजर कमरे के एक कोने में बने ड्रॉअर पर पड़ी। उसने झट से उसे खोला, और अंदर कुछ बोतलें रखी मिलीं। "आहा! आखिरकार पानी मिल ही गया!" उसने खुशी से झूमते हुए बोला। बिना कुछ सोचे-समझे उसने एक बोतल उठाई और एक सांस में पूरा पानी पी लिया। लेकिन उसकी प्यास अभी बुझी नहीं थी। उसने तुरंत दूसरी बोतल खोली और उसे भी खत्म कर दिया। तीसरी बोतल पर आते-आते उसकी प्यास कुछ हद तक शांत हो चुकी थी, लेकिन उसने फिर भी उसे खाली कर दिया।

    सावी ने एक गहरी सांस ली, अपनी चेस्ट को रगड़ते हुए बोली, "क्या पानी था! ऐसा लग रहा है जैसे कोई जादुई ड्रिंक पी ली हो!" उसने अपना सिर पकड़ते हुए कमरे से बाहर कदम रखा, और अपनी उलझी हालत में खुद पर ही हंस पड़ी। उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसने जो पीया था, वो सचमुच पानी नहीं, बल्कि बेवाड़ो की स्पेशल एनर्जी ड्रिंक है।

    जैसे ही वह बाहर आई, उसने महसूस किया कि उसकी बॉडी में अचानक एक अजीब सी एनर्जी दौड़ने लगी है। उसकी आंखें अब पूरी तरह खुल चुकी थीं। "ओह, ये क्या हो रहा है! मुझे तो लग रहा है जैसे मैं कोई सुपरवुमन बन गई हूँ!" सावी ने खुद को इस अचानक से आई एनर्जी के साथ कन्फ्यूजन में पाया, लेकिन उसकी अजीब हरकतें अभी भी जारी थीं। वह खुद से बोली, "अरे मुझे क्या हो रहा है? पर जो भी हो रहा है बहुत अच्छा लग रहा है। ये मेरे साथ पहली बार हो रहा है। फोन, फोन कहां गया मेरा?"
    थोड़ा इधर-उधर ढूंढने के बाद उसे फोन मिलते ही, उसके दिमाग में पता नहीं क्या आया, वह तुरंत नीचे की ओर बढ़ गई।