जब प्यार पर से भरोसा उठ जाए, तो तक़दीर क्या खेल खेलती है? मन्नत ने अपने रिश्ते को पूरी शिद्दत से निभाया, मगर देव ने कभी उसकी अहमियत नहीं समझी। दिल टूटने के बाद उसकी शादी अथर्व सिंह राइज़ादा से हो गई—एक ऐसा शख्स जिसने पहली नजर में ही उसे अप... जब प्यार पर से भरोसा उठ जाए, तो तक़दीर क्या खेल खेलती है? मन्नत ने अपने रिश्ते को पूरी शिद्दत से निभाया, मगर देव ने कभी उसकी अहमियत नहीं समझी। दिल टूटने के बाद उसकी शादी अथर्व सिंह राइज़ादा से हो गई—एक ऐसा शख्स जिसने पहली नजर में ही उसे अपना बना लिया। पर क्या अथर्व का बेइंतहा प्यार मन्नत के दिल का बंद दरवाजा खोल पाएगा? या फिर देव की वापसी उसकी दुनिया फिर से हिला देगी? एक ऐसी कहानी, जहां प्यार, तक़दीर और इम्तिहान टकराएंगे—"Destiny Wala Love"! sirf aur sirf story mania par....aapko ye jarur pasnd aayegi .
Mannat chauhan
Heroine
Athrava singh raijada
Hero
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मन्नत विला की बड़ी-बड़ी खिड़कियों से बाहर देख रही थी। हल्की ठंडी हवा उसके बालों से खेल रही थी, किंतु उसका ध्यान कहीं और था।
"मन्नत! फिर से फोन में घुसी हो?" आर्यन ने उसकी कलाई पकड़कर फोन छीन लिया।
"भैया! प्लीज़!" मन्नत ने नखरे से कहा, लेकिन आर्यन ने फोन पीछे कर लिया।
"तुम फिर से उस इंसान से बात कर रही हो, जो तुम्हें कभी भी इम्पोर्टेंस नहीं देता!" उसकी भाभी अनन्या ने प्यार से समझाने की कोशिश की।
"भाभी, प्लीज़! आप लोग बार-बार वही बात क्यों दोहरा रहे हो?" मन्नत ने झुंझलाकर कहा।
वहीं बैठकर अखबार पढ़ रही दादी ने, चश्मा नीचे करते हुए कहा, "क्योंकि हमें हमारी बेटी की कदर है, लेकिन वो किसी ऐसे के लिए भागी जा रही है जिसे उसकी कदर नहीं।"
"दादी, प्लीज़! देव ऐसा नहीं है! वो बस बिज़ी रहता है।" मन्नत ने अपनी बात रखी।
"बिज़ी? हाँ, इतना बिज़ी कि तुम्हारा कॉल तक नहीं उठा सकता!" आर्यन ने तंज कसा। "कभी सोचा है कि अगर तुम उससे मिलने ना जाओ, तो वो खुद आकर मिलेगा?"
मन्नत चुप हो गई। उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।
माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, "बेटा, प्यार वो होता है जिसमें दो लोग एक-दूसरे को बराबर अहमियत दें। एकतरफा कोशिश से कुछ नहीं होता।"
"तो आप लोग चाहते हो कि मैं उससे मिलूँ ही नहीं?" मन्नत ने नज़रें चुराते हुए पूछा।
"हम चाहते हैं कि तुम खुद को सबसे ज़्यादा अहमियत दो।" दादाजी ने गंभीर आवाज़ में कहा।
मन्नत ने लंबी सांस ली और उठकर जाने लगी।
"कहाँ जा रही हो?" आर्यन ने पूछा।
"देव से मिलने।" मन्नत ने बैग उठाया और तेज़ी से बाहर निकल गई। कोई कुछ कहता, उससे पहले ही उसकी कार विला के गेट से बाहर जा चुकी थी।
मन्नत तेज़ी से अपनी कार ड्राइव करते हुए देव के ऑफिस पहुँची। उसके दिल में अजीब-सी बेचैनी थी, लेकिन उसने खुद को समझाया—देव बिज़ी रहता है, इसका मतलब ये नहीं कि उसे मेरी परवाह नहीं।
उसने ऑफिस के सामने गाड़ी पार्क की और जल्दी से अंदर चली गई। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे देखा और मुस्कुराई, "मैम, सर अभी एक कॉल पर हैं।"
"कोई बात नहीं, मैं इंतज़ार कर लूंगी," मन्नत ने जबरदस्ती मुस्कान ओढ़ते हुए कहा।
थोड़ी देर बाद, उसने देव को ऑफिस के बाहर फोन पर बात करते हुए देखा। वह बिज़नेस डिस्कशन में गहराई से डूबा हुआ था। मन्नत की आँखें खुशी से चमक उठीं, लेकिन जैसे ही उसने देव को पुकारा, उसने बस एक उड़ती नज़र डाली और फिर फोन पर बात करने में मशगूल हो गया।
मन्नत वहीं रुक गई। उसे उम्मीद थी कि देव उसे देखकर मुस्कुराएगा, उसकी आवाज़ सुनकर कुछ सेकंड के लिए सही, लेकिन फोन नीचे रख देगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
"Excuse me..." देव की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, लेकिन वो उससे नहीं, बल्कि अपने क्लाइंट से बात कर रहा था।
कुछ देर बाद, देव ने कॉल खत्म की और हल्का-सा सिर उठाकर मन्नत की ओर देखा। "तुम यहाँ?"
मन्नत ने जबरदस्ती मुस्कान बनाई, "हाँ... बस ऐसे ही मिलने आई थी।"
देव ने घड़ी की तरफ देखा, "मुझे एक मीटिंग के लिए निकलना है। कुछ ज़रूरी बात थी?"
मन्नत के दिल में हल्का-सा दर्द उठा, लेकिन उसने उसे नजरअंदाज किया। "नहीं... बस..."
देव ने सिर हिलाया, "ठीक है, फिर बाद में बात करते हैं।"
और वो आगे बढ़ गया।
मन्नत ने उसे जाते हुए देखा। उसके अंदर कुछ टूट-सा गया था। उसने हमेशा सोचा था कि उसके प्यार की अहमियत है, लेकिन शायद वो गलत थी।
वो धीरे-धीरे बाहर आई और अपनी कार में बैठ गई। उसकी आँखें नम थीं। कुछ देर तक यूँ ही बैठी रही, फिर उसने अपना फोन निकाला और देव को टेक्स्ट किया—
"तुम्हारे लिए मैं इतनी इम्पॉर्टेंट भी नहीं कि तुम दो मिनट बात कर सको?"
कुछ सेकंड बाद, देव का रिप्लाई आया—
"Mannat, I told you, I was busy. Stop overthinking."
मन्नत ने देव का मैसेज पढ़ा—
"Mannat, I told you, I was busy. Stop overthinking."
उसकी उंगलियाँ फोन की स्क्रीन पर रुक गईं। आँखों में हल्की नमी आ गई, लेकिन उसने जल्दी से पलकें झपकाईं, जैसे खुद को समझा रही हो कि रोना नहीं है।
"Overthinking?" उसने बुदबुदाया।
क्या सच में वो सिर्फ ज़्यादा सोच रही थी? या फिर सच यही था कि देव को उसकी परवाह ही नहीं थी?
उसने फोन को कसकर पकड़ा, जैसे अगर ज़ोर से पकड़ लेगी तो जवाब बदल जाएगा। लेकिन स्क्रीन पर वही मैसेज चमक रहा था— ठंडा, बेरुखी भरा।
मन्नत ने गहरी सांस ली और बिना कोई जवाब दिए फोन बैग में रख दिया।
उसका दिल चाह रहा था कि वो एक लंबा मैसेज टाइप करे, उससे पूछे कि क्या वो उसके लिए कुछ भी मायने नहीं रखती? लेकिन उसने खुद को रोक लिया।
अब और नहीं।
रास्ते भर उसकी आँखें खिड़की के बाहर के बदलते नज़ारों पर टिकी रहीं। मन भारी था, लेकिन वो किसी से शेयर नहीं कर सकती थी।
मन्नत के घर पहुँचते ही आर्यन दरवाज़े पर खड़ा था, जैसे उसका इंतज़ार कर रहा हो।
"अब आईं?" उसकी आवाज़ में गुस्सा और चिंता दोनों थे।
"भैया, प्लीज़..." मन्नत ने धीरे से कहा और अंदर जाने लगी।
"देव से मिली?"
वो बिना रुके सीढ़ियाँ चढ़ने लगी।
"मन्नत!"
उसके कदम ठिठक गए।
आर्यन उसके पास आकर खड़ा हो गया। "मिलने गई थी ना? अब बता भी दो कि क्या कहा उसने?"
मन्नत ने हल्की मुस्कान ओढ़ी, लेकिन आँखें उसकी सच्चाई बयां कर रही थीं।
"कुछ नहीं। वो बिज़ी था।"
आर्यन ने गहरी सांस ली। "और तू बेवकूफों की तरह फिर भी उसके पीछे जाएगी?"
"भैया!" मन्नत की आवाज़ थोड़ी कांप गई। "आप लोग मेरे प्यार को समझने की कोशिश भी नहीं कर रहे।"
आर्यन ने उसकी आँखों में देखा। "तू अपने प्यार को समझ रही है, मन्नत?"
वो कुछ नहीं बोल पाई।
आर्यन ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा, "प्यार अगर बार-बार इग्नोर करने के बाद भी वहीं रुका रहे, तो वो प्यार नहीं, बेइज़्ज़ती बन जाता है।"
मन्नत ने बिना कुछ कहे अपनी नज़रें झुका लीं।
रात के अंधेरे में मन्नत छत पर खड़ी थी। ठंडी हवा उसके बालों से खेल रही थी, लेकिन उसका मन अशांत था।
उसने फोन निकाला और देव की चैट खोली। उंगलियाँ फिर से टाइप करने लगीं—
"देव, मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूँ कि क्या मैं तुम्हारे लिए ज़रूरी हूँ?"
उसने टाइप किया... फिर कुछ देर तक उसे देखती रही... और आखिर में डिलीट कर दिया।
शायद अब समय आ गया था कि वो खुद से ये सवाल पूछे।
सुबह मन्नत की आँखें फोन के नोटिफिकेशन की आवाज़ से खुलीं। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।
जल्दी से उसने फोन उठाया, लेकिन देव का कोई मैसेज नहीं था। बस बैंक और ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स के नोटिफिकेशन थे।
उसने गहरी सांस ली और फोन वापस रख दिया।
"अब तो मैं भी बेवकूफ लगने लगी हूँ खुद को," उसने खुद से बड़बड़ाया।
दरवाज़े पर दस्तक हुई।
"मन्नत, उठ गई?" भाभी की आवाज़ थी।
"हाँ भाभी, आ जाओ।"
अनन्या अंदर आईं और उसे ध्यान से देखा। "ठीक तो हो?"
"हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ," मन्नत ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं है, मन्नत।"
मन्नत का चेहरा उतर गया। "भाभी, क्या प्यार हमेशा इतना मुश्किल होता है?"
अनन्या उसके पास बैठ गईं। "प्यार मुश्किल नहीं होता, गलत इंसान से उम्मीदें मुश्किल बना देती हैं।"
मन्नत चुप रही।
कॉलेज में मन्नत अपनी फ्रेंड्स के साथ बैठी थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था।
"क्या हुआ? फिर से देव के बारे में सोच रही हो?" आयशा ने पूछा।
"नहीं," मन्नत ने झूठ बोला।
"तो फिर ये चेहरा क्यों लटका हुआ है?"
"कुछ नहीं... बस... सो नहीं पाई ठीक से।"
"देख मन्नत," नंदिनी ने सीरियस होकर कहा, "देव तुझे इग्नोर कर रहा है, और तू फिर भी उसके पीछे भाग रही है। इस बार अपने बारे में सोच।"
"पर मैं उसे इतनी आसानी से छोड़ नहीं सकती," मन्नत ने धीरे से कहा।
"तो फिर रोने के लिए तैयार रह।"
मन्नत कुछ नहीं बोली।
शाम को घर लौटते वक्त उसने फिर से देव को मैसेज करने के बारे में सोचा। लेकिन फिर खुद को रोका।
पर तभी...
फोन की स्क्रीन चमकी— देव calling…
मन्नत का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
वो कुछ पल स्क्रीन को देखती रही, फिर कांपते हाथों से कॉल उठाई।
"हेलो?" उसकी आवाज़ हल्की और नर्वस थी।
"Busy हूँ, later बात करेंगे," देव की ठंडी आवाज़ आई और उसने कॉल काट दी।
मन्नत अवाक रह गई।
उसने फोन देखा। Call duration: 6 seconds.
बस 6 सेकंड…
और मन्नत को समझ आ गया कि देव के पास उसके लिए वक़्त नहीं है, ना कभी था…
देव की कॉल कटने के बाद मन्नत फोन को देखती रह गई। उसके दिल में एक अजीब-सी खालीपन थी। एक उम्मीद थी, जो फिर से टूट गई थी।
"बस 6 सेकंड..." उसने खुद से बुदबुदाया और मोबाइल बेड पर फेंक दिया।
अनन्या कमरे में आईं और मन्नत का बुझा हुआ चेहरा देखते ही समझ गईं कि कुछ सही नहीं है।
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं भाभी..." मन्नत ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की।
"देव?"
इस बार मन्नत का चेहरा पढ़ना आसान था।
"मन्नत, तू खुद को तकलीफ क्यों दे रही है?"
"क्योंकि मैं उससे प्यार करती हूँ!" मन्नत अचानक चिल्ला पड़ी। उसकी आँखों में आँसू थे।
अनन्या ने उसके दोनों कंधे थामे। "प्यार कभी एकतरफा नहीं होता, मन्नत। अगर किसी को तुम्हारी कदर नहीं है, तो वो तुम्हारे आँसुओं के भी लायक नहीं है।"
"पर... मैं उसे भूल नहीं पा रही..."
"भूलना नहीं है, बस खुद को याद दिलाना है कि तू भी प्यार की हकदार है, पर किसी बेहतर इंसान के साथ।"
मन्नत चुप रही। शायद वो पहली बार मान रही थी कि वो गलत रास्ते पर थी।
दूसरी तरफ देव अपने ऑफिस में बैठा था। सामने उसकी लैपटॉप स्क्रीन पर मीटिंग चल रही थी, लेकिन उसका ध्यान भटक रहा था।
उसने फोन उठाया। मन्नत का नंबर देखा।
फिर फोन वापस रख दिया।
"इस लड़की को मुझसे इतनी उम्मीदें क्यों हैं?" उसने खुद से कहा।
रात को मन्नत बालकनी में खड़ी थी। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी।
उसने फिर से देव को मैसेज करने के लिए फोन उठाया।
पर इस बार... उसने मैसेज नहीं किया।
उसने फोन बंद कर दिया और आँखें मूँद लीं।
शायद ये शुरुआत थी... खुद को देव से आज़ाद करने की।
अब मन्नत क्या सच में देव से दूर जाने का फैसला कर पाएगी? या फिर उसकी मोहब्बत उसे फिर से खींच लाएगी?
To be continued.....
पूरे दिन मन्नत का ध्यान कहीं और नहीं था। उसकी आँखों में वही अधूरी उम्मीदें और दिल में वही खालीपन था। हर घंटे, हर मिनट, उसकी नजरें फोन पर होती रहीं, जैसे किसी चमत्कारी कॉल का इंतज़ार कर रही हों। लेकिन देव का कॉल नहीं आया।
घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मन्नत किचन में खड़ी थी, लेकिन उसका मन कहीं और ही था। आर्यन और अनन्या ने देखा कि मन्नत आज कुछ ज़्यादा ही उदास थी।
"क्या हुआ मन्नत?" अनन्या ने उसकी आँखों में देखा, जो थकी हुई लग रही थीं।
"कुछ नहीं भाभी..." मन्नत ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन वह मुस्कान उसकी आँखों तक नहीं पहुँच पाई।
"तुम सही नहीं हो मन्नत," आर्यन ने थोड़ा गुस्से में कहा, "तुम फिर से उसे ही सोच रही हो न?"
मन्नत ने सिर झुका लिया। उसका मन चाहता था कि वह इस सवाल का जवाब दे, लेकिन वह चुप रही।
दिन के बाकी घंटे बिना किसी बदलाव के बीत गए। उसका फ़ोन बस एक इंतज़ार बनकर रह गया था।
रात का समय आ गया, और मन्नत अपने कमरे में बैठी थी। बत्ती की हल्की रोशनी में, वह अपने फ़ोन को घूरते हुए बैठी थी। हर बार जब फ़ोन वाइब्रेट होता, उसकी धड़कन तेज हो जाती, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी।
"क्या ये सब कुछ सिर्फ़ मेरा ही सपना था?" मन्नत ने बुदबुदाते हुए अपने दिल की बात खुद से कह दी।
अभी कुछ पल पहले तक वह खुद को समझा रही थी कि शायद देव सच में व्यस्त होगा। लेकिन अब उसके दिल में एक डर था—क्या वह कभी उसकी अहमियत समझेगा?
अचानक उसकी नज़रें फिर से स्क्रीन पर चली गईं। "क्यों मैं खुद को ऐसे तकलीफ़ दे रही हूँ?" वह मन ही मन सोचने लगी।
बिल्कुल तभी फ़ोन की स्क्रीन पर हल्की सी लाइट चमकी, और उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
Dev calling...
मन्नत ने जल्दी से फ़ोन उठाया। उसकी आवाज़ हल्की, नर्वस थी।
"Hello?"
दूसरी तरफ देव की आवाज़ आई—"मन्नत, बहुत देर हो गई, मैं बिजी था, अब बात कर सकता हूँ।"
मन्नत के दिल में गहरे गुस्से और उलझन की लहर दौड़ गई। वह चाहती थी कि देव उसे समझे, लेकिन उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह हर बार उसी उम्मीद से बैठ जाती है।
"देव, क्या तुम कभी समझ पाओगे?" मन्नत की आवाज़ अब कांप रही थी।
"क्या हो गया?" देव ने पूछा।
"तुमने मुझे कभी सही से महसूस ही नहीं कराया," मन्नत ने सीधे शब्दों में कहा। "आज तक मैं तुम्हारे पीछे भागी, लेकिन क्या तुम मुझे कभी भी वह सम्मान दे पाए?"
देव चुप रहा। उसकी आवाज़ हल्की और असमझ थी—"मन्नत, तुम बहुत सोचती हो, मैं तुम्हारा ध्यान रखता हूँ, लेकिन तुम्हें शायद इस सबका एहसास नहीं होता।"
मन्नत का गुस्सा अब आँसुओं में बदलने लगा। "तुमसे उम्मीद थी कि तुम मुझे समझोगे, लेकिन शायद तुम मेरी भावनाओं की कभी क़द्र नहीं कर पाओगे।"
कुछ पल की चुप्पी के बाद, देव ने कहा—"मैं फिर से माफ़ी चाहता हूँ, मन्नत, मुझे वक़्त चाहिए था।"
मन्नत ने फ़ोन रख दिया और बिना एक शब्द कहे, आँखें मूँद लीं। उसके भीतर कुछ टूट रहा था, लेकिन वह अब अपने दिल की सुनने का मन बना चुकी थी।
फिर अचानक, फ़ोन की स्क्रीन पर एक नया नोटिफिकेशन चमका, लेकिन इस बार मन्नत ने उसे अनदेखा कर दिया। उसने अपने दिल को एक बार फिर से आज़ाद करने का फैसला किया।
अगले दिन, देव से उम्मीदें पूरी नहीं होने के बाद, मन्नत का मन बहुत उदास हो गया। घरवालों को जब यह महसूस हुआ कि मन्नत अब पहले जैसी खुश नहीं है, तो उन्होंने सोचा कि उसे फिर से खुश करने के लिए कुछ खास करना चाहिए।
आर्यन और अनन्या ने मिलकर मन्नत की पसंद का खाना बनाने का फैसला किया। सबने उसकी पसंदीदा डिशेज़ तैयार कीं, लेकिन मन्नत ने कुछ भी नहीं खाया। वह बस अपने कमरे में चुपचाप बैठी रही, और उसकी आँखों में उदासी थी।
"क्या हुआ मन्नत? तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो?" अनन्या ने चिंता जताते हुए पूछा।
मन्नत सिर झुकाकर बोली, "अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता।"
इसके बाद, सबने मिलकर मन्नत को खुश करने के लिए एक और तरीका अपनाया। दादी और आर्यन ने मिलकर एक प्यारा सा गाना गाना शुरू कर दिया, जो मन्नत को बहुत पसंद था।
"ये क्या कर रहे हो तुम लोग?" मन्नत ने हैरान होकर पूछा, लेकिन उसका दिल हल्का हो रहा था।
दादी और आर्यन दोनों ने मज़ाक करते हुए गाना गाना जारी रखा, और जल्द ही अनन्या भी उनके साथ गाने में शामिल हो गई। मन्नत को धीरे-धीरे एहसास हुआ कि उसके परिवार को उसकी खुशी की कितनी फ़िक्र है, और वे उसे हर हाल में खुश देखना चाहते हैं।
उस पल में, मन्नत के दिल में एक हल्का सा दर्द हुआ। उसे यह समझ में आया कि उसने अपनी उम्मीदों को देव पर टिका दिया था, जबकि उसके परिवार ने उसे बिना शर्त का प्यार दिया था।
"मुझे माफ़ करना," मन्नत ने धीमे से कहा, और उसकी आँखों में हल्की सी नमी आ गई। "मैंने तुम सभी को दुखी किया, जबकि तुम लोग हमेशा मेरे लिए रहे हो।"
उसने जल्दी से अपनी आँखें पोंछीं और मुस्कुराते हुए कहा, "अब मैं खुश हूँ, तुम सबके साथ।"
फिर, मन्नत ने प्यार से सभी को गले लगा लिया और सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह जान चुकी थी कि प्यार सबसे पहले अपने परिवार से होता है, और उसने अपनी उम्मीदों को समझदारी से बदल लिया था। अब वह अपनी ज़िंदगी को फिर से जीने के लिए तैयार थी, और इस बार अपने परिवार के साथ।
अगले दिन से मन्नत थोड़ा कम उदास महसूस करने लगी। वह अपने परिवार के सामने खुश रहने की कोशिश करती रही, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि परिवार को उसका दुख देखने को मिले। हालाँकि, उसके दिल में अब भी कुछ उलझन थी, और वह खुद को पूरी तरह से खुश नहीं महसूस कर पा रही थी। फिर भी, उसने परिवार की खुशियों को सबसे पहले रखा और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की।
मन्नत के दादा जी और पापा को उसकी चुप्पी और उसका गहरा दुख समझ में आ गया। वे जानते थे कि मन्नत का दिल अब भी कहीं खाली सा है, लेकिन वे यह भी समझते थे कि मन्नत को किसी के साथ अपना दिल जोड़ने की ज़रूरत है।
"हमें मन्नत की खुशी के लिए कुछ करना होगा," दादा जी ने पापा से कहा। "वह अपनी ज़िंदगी को ठीक से जीने के लिए तैयार नहीं है।"
पापा ने सिर झुकाते हुए कहा, "हाँ, मुझे भी यही लग रहा है। हमें अब इस मुद्दे को हल करना होगा।"
इसी सोच के साथ, उन्होंने मन्नत से शादी के बारे में बात करने का फैसला किया।
"मन्नत," पापा ने हल्के से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, "हमने तुम्हारे बारे में बहुत सोचा है, और हमें लगता है कि तुम्हें अब एक नए सफ़र की शुरुआत करनी चाहिए।"
मन्नत चौंकी, लेकिन फिर भी उसने कुछ नहीं कहा।
"हमने इस बारे में सोचकर एक फैसला लिया है," दादा जी ने आवाज़ में दृढ़ता के साथ कहा। "हम तुम्हारी शादी की बात करेंगे, ताकि तुम अपने भविष्य को लेकर कुछ सोच सको और खुद को फिर से एक दिशा में पा सको।"
मन्नत को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उसका दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा। क्या वह इस फैसले के लिए तैयार थी? क्या वह उस रिश्ते के लिए तैयार थी, जो उसके लिए नई शुरुआत हो सकती थी?
उसके मन में तरह-तरह के सवाल थे, लेकिन वह जानती थी कि परिवार का प्यार और समर्थन ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
"मैं... मैं समझ रही हूँ," मन्नत ने धीरे से कहा, और उसकी आँखों में अनकहे सवाल थे।
दादा जी और पापा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "तुम्हें जो सही लगे, वही करना। हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।"
सब लोग मिलकर मन्नत के लिए लड़के की लिस्ट बनाने में लगे हुए थे। मन्नत एक कोने में बैठी थी, उनकी बातें सुन रही थी, लेकिन उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी। सब लोग लड़के के बारे में चर्चा कर रहे थे, उनके गुणों और किस तरह से वे मन्नत को खुश रख सकते हैं, लेकिन मन्नत को इन सब में कोई खास बात नहीं दिख रही थी।
वह सोच रही थी, "क्या किसी लड़के में सच में वह सब होगा जो मुझे चाहिए?" उसकी आँखों में उदासी और निराशा दोनों थे। एक हिस्सा उससे कह रहा था कि उसे विश्वास करना चाहिए, लेकिन दूसरा हिस्सा उसे बताता था कि सब लड़के एक जैसे होते हैं, और बाद में वे बदल जाते हैं।
मन्नत ने अपना सिर झुका लिया। उसे अब प्यार पर से विश्वास उठ चुका था। उसके लिए हर लड़का अब एक जैसा ही था—सिर्फ़ बातें और वादे, जो समय के साथ टूट जाते थे।
वह सोच रही थी कि अगर उसका दिल किसी लड़के को पूरी तरह से सौंप दिया, तो क्या वह कभी उसे वैसा प्यार दे पाएगा जैसा फ़िल्मों में राजकुमार अपनी राजकुमारी को देता है? क्या वह सच में कभी किसी के लिए मायने रखेगी? या फिर वह भी वही सब करेगा, जो बाकी सब लड़के करते हैं—उसे अपनी चाहत से बाहर कर देगा?
इस सोच में डूबी मन्नत ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने परिवार को देखती रही, जो लड़के के बारे में अपने विचारों को साझा कर रहे थे। सबके चेहरों पर उम्मीद और खुशी की झलक थी, लेकिन मन्नत के दिल में केवल शंका और निराशा थी। उसे लगने लगा कि यह सब सिर्फ़ एक प्रक्रिया है, और इसमें कोई सच्चाई नहीं बची है।
वह सोच रही थी, "क्या यह शादी सच में मेरी खुशी के लिए है? या सिर्फ़ मेरे परिवार की उम्मीदों को पूरा करने के लिए?"
मन्नत को अब समझ में आ रहा था कि उसने प्यार से दूर होकर खुद को कितनी बार चोट पहुँचाई थी। उसकी उम्मीदें टूट चुकी थीं, और अब उसे बस एक सवाल था—क्या वह सच में किसी के साथ जुड़ने के लिए तैयार थी?
क्रमशः...
चौहान विला का हॉल लोगों से भरा हुआ था। हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा था, मगर मुद्दा एक ही था—मननत के लिए सही लड़का कौन?
राघवेंद्र सिंह चौहान की तीखी नज़रें एक-एक प्रस्ताव को परख रही थीं। कोई लड़का बहुत सीधा था, कोई ज़्यादा बातूनी, तो कोई अपने माता-पिता की मर्ज़ी से चलने वाला। मगर इनमें से कोई भी मननत के लायक नहीं था।
मननत पास ही बैठी थी, मगर इन सब बातों से उसका कोई लेना-देना नहीं था। प्यार से उसका भरोसा उठ चुका था, ख़ासकर देव के जाने के बाद। अब ये रिश्तों की चर्चा, लड़कों की अच्छाइयाँ और कमियाँ, सब उसे बेमानी लग रही थीं।
तभी राघवेंद्र सिंह चौहान को कुछ याद आया। उन्होंने अचानक कहा,
"अथर्व राइज़ादा..."
पूरे हॉल में एक पल को सन्नाटा छा गया। सबने उनकी तरफ़ देखा।
वीरेंद्र सिंह चौहान, मननत के दादा जी, जो अब तक शांत थे, हल्की मुस्कान के साथ बोले,
"अथर्व? रणवीर सिंह राइज़ादा का बेटा?"
राघवेंद्र ने सिर हिलाया। "हाँ, पापा। रणवीर से मेरी काफ़ी समय से ज़्यादा बातचीत नहीं हुई, मगर मैंने सुना है कि उनका बेटा बहुत अच्छा लड़का है। मेहनती, समझदार, और इज़्ज़तदार। मैं ख़ुद जाकर बात करूँगा।"
मननत का दिल एक पल को अजीब तरीके से धड़क उठा। अथर्व... ये नाम उसके लिए नया था, मगर जिस तरह से उसके पापा और दादा जी उस लड़के के बारे में बात कर रहे थे, उसे लगा जैसे वो कोई बहुत ख़ास इंसान था।
अथर्व सिंह राइज़ादा अपने ऑफ़िस से निकलकर घर पहुँचा। उसकी चाल में एक अलग ही रुआब था—सख़्त, गंभीर, और किसी को भी झुकाने वाला।
अंदर घुसते ही गायत्री देवी राइज़ादा ने उसे देख लिया। "आ गया मेरा शेर? काम कैसा रहा?"
अथर्व हल्की मुस्कान के साथ उनके पास आया। "अच्छा था, दादी। सब ठीक चल रहा है।"
तभी रणवीर सिंह राइज़ादा ने अपनी सख़्त आवाज़ में पूछा, "आज दिनभर बिज़नेस मीटिंग्स में रहा? कोई और बात नहीं?"
अथर्व ने सिर हिलाया, "नहीं, पापा। बस वही..."
अंश, जो हमेशा मौके की तलाश में रहता था, हँसते हुए बोला, "भैया, अगर आपको बिज़नेस के अलावा कुछ और नहीं दिखता, तो प्लीज़ हमें भी अपनी दुनिया में मत घसीटो।"
गायत्री देवी हँस पड़ीं। "छोटू, तू ज़्यादा मत बोल।"
तभी फ़ोन बजा।
राघवेंद्र सिंह चौहान की कॉल थी।
रणवीर ने फ़ोन उठाया। "राघवेंद्र, इतने दिनों बाद कैसे याद किया?"
"एक ज़रूरी बात करनी थी।"
"बिलकुल, बोलिए।"
"मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे घर आकर मिलो। बात गंभीर है।"
रणवीर सिंह थोड़े हैरान हुए, मगर उनकी आवाज़ में वही पुराना सख़्त लहज़ा था। "ठीक है, कल सुबह आता हूँ।"
फ़ोन कट गया। अथर्व ने अपने पिता की तरफ़ देखा। "क्या हुआ?"
रणवीर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कुछ ख़ास बात करनी है। देखते हैं, क्या है।"
अगले दिन: चौहान विला
सुबह का वक़्त था। गायत्री सिंह रायजादा, रणवीर और अथर्व विला पहुँचे। पूरा परिवार ड्राइंग रूम में जमा था।
राघवेंद्र ने आगे बढ़कर रणवीर से हाथ मिलाया। "रणवीर, इतने समय बाद मिलकर अच्छा लगा।"
रणवीर ने हल्की मुस्कान दी। "मुझे भी। बताइए, क्या बात करनी थी?"
राघवेंद्र सिंह ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे कहा, "मैं चाहता हूँ कि मननत और अथर्व का रिश्ता तय हो।"
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। मननत, जो अब तक सब सुन रही थी, एकदम चौंक गई।
चौहान विला के ड्राइंग रूम में जैसे समय ठहर सा गया था।
अथर्व ने पहली बार मननत को देखा। गुलाबी सूट में बैठी वो लड़की, जिसकी बड़ी-बड़ी आँखों में मासूमियत थी। उसका चेहरा शांत था, मगर आँखों में कहीं न कहीं उदासी की परछाईं थी।
अथर्व के लिए यह बस एक आम मुलाक़ात नहीं थी। यह पहली नज़र थी, जिसने उसे अंदर तक झकझोर दिया था। उसके दिल की धड़कनें एक पल के लिए थम गईं। उसने न जाने कितनी बार लड़कियों को देखा था, मगर यह एहसास पहले कभी नहीं हुआ था।
"यही है... यही है वो लड़की, जिसके साथ मेरी पूरी ज़िंदगी जुड़ने वाली है।"
उसका दिल इस सच्चाई को उसी पल क़बूल कर चुका था। वह यह नहीं सोच रहा था कि प्यार कैसे होता है, क्यों होता है, या इसे कब और कैसे महसूस करना चाहिए। उसे बस इतना पता था—यह प्यार है। और वह इसे नकारने वाला नहीं था।
मननत ने भी अथर्व की तरफ़ देखा। उसकी आँखों में वही सख़्ती थी, जो उसके पिता रणवीर सिंह राइज़ादा की आँखों में थी, मगर कहीं न कहीं, उन आँखों में एक अजीब सा खिंचाव भी था। एक ऐसा एहसास, जो उसे ख़ुद समझ नहीं आया।
मननत और अथर्व की नज़रें जैसे ही मिलीं, वक़्त जैसे वहीं ठहर गया। मननत को कुछ अजीब सा महसूस हुआ, लेकिन उसने जल्दी ही अपनी नज़रें फेर लीं। उसे समझ नहीं आया कि उसके दिल की धड़कन एक पल के लिए क्यों तेज़ हो गई थी।
पर दूसरी ओर, अथर्व के लिए ये बस एक नज़र भर नहीं थी। यह एक फ़ैसला था—जो उसके दिल ने बिना किसी तर्क-वितर्क के उसी पल कर लिया।
उसे पहली ही झलक में समझ आ गया था कि मननत ही वो लड़की है, जिसके लिए उसका दिल हमेशा धड़कता रहेगा। उसके अब तक के शांत, नियंत्रित जीवन में यह पहली बार था जब किसी के होने भर से उसकी रूह तक हिल गई थी।
रणवीर सिंह राइज़ादा और राघवेंद्र सिंह चौहान की बातचीत जारी थी, लेकिन अथर्व के कानों में कुछ नहीं पड़ रहा था। उसका पूरा ध्यान बस उस लड़की पर था, जो उसके सामने बैठी थी और जिसे शायद पता भी नहीं था कि उसकी दुनिया अभी-अभी किसी की मोहब्बत में कैद हो चुकी थी।
मननत के चेहरे पर एक नज़ाकत थी, एक मासूमियत थी, और साथ ही एक अनदेखा ग़ुरूर भी। उसकी हल्की-सी उलझन, उसकी पलकों की झपक, उसके होंठों पर हल्की शिकन—सब कुछ अथर्व को अपनी ओर खींच रहा था।
अचानक, राघवेंद्र सिंह की आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ी।
"तो, क्या ख़्याल है, रणवीर?"
रणवीर सिंह ने एक गहरी साँस ली और अथर्व की ओर देखा। "क्या कहते हो, अथर्व?"
अथर्व ने बिना एक पल की देर किए जवाब दिया, "मुझे मननत से शादी करनी है।"
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। मननत, जो अब तक बस सुन रही थी, हैरान रह गई। उसने अथर्व की ओर देखा, मगर उसके चेहरे पर कोई झिझक, कोई हिचक नहीं थी।
राघवेंद्र और वीरेंद्र सिंह चौहान ने एक-दूसरे की ओर देखा। वे जानते थे कि अथर्व कोई भी फ़ैसला सोच-समझकर ही लेता है। लेकिन इतनी जल्दी?
रणवीर सिंह भी थोड़ा हैरान थे। उन्होंने अथर्व की तरफ़ गौर से देखा। "क्या तुमने इस बारे में सोच लिया है?"
अथर्व की आवाज़ में वही ठहराव और आत्मविश्वास था, जो हमेशा होता था। लेकिन आज उसमें कुछ और भी था—एक जुनून, एक हक़ जताने वाली ठहरावट। उसने एक बार फिर मननत की ओर देखा और मुस्कुराया।
"मैंने सोचने के लिए समय नहीं लिया, क्योंकि मुझे पता है कि मेरा दिल क्या चाहता है। और ये फ़ैसला मैंने पूरी तरह से सोच-समझकर ही लिया है।"
मननत को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब इतनी जल्दी हो रहा है। उसे इस आदमी की आँखों में कुछ ऐसा दिखा, जो उसने पहले कभी नहीं देखा था—एक ऐसा जुनून, जो डराने वाला था, लेकिन उसी समय अपनी ओर खींचने वाला भी।
चौहान विला का माहौल पूरी तरह बदल चुका था। जहाँ कुछ देर पहले सिर्फ़ चर्चा थी, अब वहाँ ख़ुशियों की हल्की-हल्की झलक दिखने लगी थी।
राघवेंद्र सिंह चौहान और रणवीर सिंह राइज़ादा आमने-सामने बैठे थे। दोनों के बीच गंभीर बातचीत चल रही थी। मगर इस बार मुद्दा कोई बिज़नेस डील नहीं, बल्कि उनके बच्चों की शादी थी।
"तो फिर तय रहा, यह रिश्ता अब हमारे परिवारों को और करीब लाएगा।" राघवेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
रणवीर ने सहमति में सिर हिलाया, "बिलकुल। मैं चाहता हूँ कि जल्द से जल्द यह रिश्ता औपचारिक कर दिया जाए।"
गायत्री देवी राइज़ादा और वीरेंद्र सिंह चौहान ने एक-दूसरे की ओर देखा और मुस्करा दिए।
"हमारी तरफ़ से कोई ऐतराज नहीं।" वीरेंद्र बोले।
गायत्री देवी ने अथर्व और मननत की ओर देखा, "तुम दोनों को कोई शिकायत तो नहीं?"
मननत एक पल को चुप रही। उसका दिल अभी भी उलझा था। उसे ये रिश्ता एक मजबूरी लग रहा था, मगर अथर्व की आँखों में जो दृढ़ निश्चय था, वो उसे कहीं न कहीं स्थिरता दे रहा था।
अथर्व की नज़रें अब भी उसी पर टिकी थीं। उसे इस रिश्ते से कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि उसने तो इसे अपनी तक़दीर मान लिया था।
"मुझे कोई ऐतराज नहीं।" अथर्व ने पूरे विश्वास से कहा।
मननत ने गहरी साँस ली और धीरे से सिर हिला दिया।
रिश्ता पक्का हो गया।
रायजादा विला
घर पहुँचते ही रणवीर सिंह राइज़ादा ने पूरे परिवार को ड्राइंग रूम में बुलाया। अंश, जो हमेशा मज़ाक के मूड में रहता था, तुरंत बोला, "पापा, इतनी गंभीरता से बुलाने का मतलब कुछ बड़ा ही होने वाला है।"
गायत्री देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बिलकुल, बहुत बड़ी ख़ुशख़बरी है।"
अंश और बाकी सदस्यों ने जिज्ञासा से उनकी ओर देखा। तभी रणवीर बोले, "अथर्व और मननत का रिश्ता तय हो चुका है।"
कमरे में एक सेकंड के लिए शांति छा गई। फिर अंश उछल पड़ा, "भाई की शादी! मतलब अब घर में धमाल होने वाला है!"
गायत्री देवी ने अथर्व के सिर पर हाथ फेरा, "बेटा, तू ख़ुश तो है ना?"
अथर्व ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हाँ, दादी। यह रिश्ता अब मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्सा है।"
गायत्री देवी की आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए।
"तो फिर जल्द ही सगाई की तैयारी शुरू करते हैं!" रणवीर सिंह ने घोषणा की।
अथर्व की नज़रें मननत की तस्वीर पर जा टिकीं। वो जानता था कि अब यह रिश्ता उसकी ज़िम्मेदारी थी। अब वो मननत को सिर्फ़ अपना नाम नहीं, अपना दिल भी देगा।
क्रमशः
शादी की रस्में जोरों पर थीं। चौहान विला रोशनी से जगमगा रहा था। हर तरफ हँसी-ठिठोली, रस्मों की धूम और तैयारियों की हलचल थी।
मननत को अभी भी यह रिश्ता पूरी तरह स्वीकार नहीं था, मगर उसने खुद को समझा लिया था कि यह उसके पापा का फैसला है और उसे निभाना होगा। दूसरी ओर, अथर्व का हाल कुछ और था।
वह पहली ही नज़र में मननत को अपना दिल दे बैठा था। उसकी मासूमियत, उसकी आँखों की चमक और वह लापरवाह हँसी—सब कुछ उसे अपनी ओर खींच रहे थे।
सगाई की रस्म:
शादी के लिए एक होटल बुक किया गया था जिसमें दोनों परिवार रहने वाले थे।
संगीत की धुनों के बीच, अथर्व और मननत को मंच पर बुलाया गया।
मननत ने हल्के गुलाबी रंग का लहंगा पहना था, और उसके खुले बालों से गिरती लटें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं। अथर्व ने एक पल के लिए अपनी नज़रें नहीं हटाईं। यह वही लड़की थी, जिसे देखते ही उसे लगा था कि वह बस उसकी है।
जब उसने मननत के हाथ में अंगूठी पहनाई, तो उसके दिल में हलचल मच गई। यह कोई सामान्य रस्म नहीं थी, यह एक एहसास था—उसका मननत के साथ हमेशा के लिए जुड़ने का।
मननत ने भी अथर्व के हाथ में अंगूठी डाली, मगर उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था। उसके लिए यह बस एक औपचारिकता थी। मगर अथर्व के लिए यह उसकी मोहब्बत की पहली निशानी थी।
रात का वक़्त:
सगाई के बाद सब अपने-अपने कमरों में चले गए। अथर्व अपनी बालकनी में खड़ा था, हाथ में वही अंगूठी थी जो मननत ने उसे पहनाई थी।
वह खुद से ही मुस्कुरा पड़ा। "मननत चौहान... अब तुम सिर्फ मननत नहीं, मननत अथर्व राइज़ादा हो।"
वहीं, मननत अपने कमरे में बैठी खिड़की के बाहर देख रही थी। उसे अब भी समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्यों और कैसे हो रहा है।
उसे क्या पता था कि कोई था, जो उसकी हर बात को, हर हँसी को, हर चुप्पी को अपना बनाना चाहता था। कोई था, जो उसे पहली ही नज़र में अपना दिल दे बैठा था।
राइज़ादा और चौहान परिवारों के बीच हलचल तेज हो गई थी। शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। हर कोई व्यस्त था, लेकिन इन सबके बीच दो लोग ऐसे थे जिनकी दुनिया अलग चल रही थी—अथर्व और मननत।
मननत को अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी शादी इतनी जल्दी तय हो गई। वह इस रिश्ते को सिर्फ एक परिवारिक जिम्मेदारी की तरह देख रही थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि अथर्व के लिए यह शादी सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि उसके दिल की सबसे बड़ी ख्वाहिश बन चुकी थी।
मननत अपने कमरे में बैठी थी। उसकी सहेलियाँ उसे शादी को लेकर छेड़ रही थीं।
"मननत, तेरा दूल्हा तो बड़ा हैंडसम है! तुझे कैसा लगा पहली बार देखकर?" नायरा ने हंसते हुए पूछा।
मननत ने हल्की मुस्कान दी। "अच्छा है... लेकिन शादी को लेकर कुछ फील नहीं हो रहा। बस... जैसे सब कह रहे हैं, वैसा कर रही हूँ।"
"अरे! पागल मत बन! तेरी शादी अथर्व राइज़ादा से हो रही है। पूरे शहर की लड़कियाँ उस पर मरती हैं और तू...!" सिया ने नाटकिया अंदाज़ में कहा।
मननत ने हल्के से सिर हिलाया। उसे इस शादी से कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन दिल अब भी खाली सा लग रहा था।
अथर्व बालकनी में खड़ा था, उसके हाथ में मननत की तस्वीर थी।
"मननत चौहान..." उसने धीरे से उसका नाम लिया। एक अजीब सा सुकून उसके चेहरे पर आ गया।
उसके लिए यह शादी किसी सौदे की तरह नहीं थी। यह पहली बार था जब उसने किसी लड़की को देखा और उसी पल उसे अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। उसने ठान लिया था कि वह इस रिश्ते को सिर्फ नाम का नहीं रहने देगा, बल्कि इसे पूरे दिल से निभाएगा।
"मैं तुम्हें खुद से दूर नहीं जाने दूँगा, मननत। तुम सिर्फ नाम से नहीं, दिल से भी मेरी बनोगी।" उसकी आँखों में एक दृढ़ निश्चय था।
मेहंदी की रात
चौहान विला रंग-बिरंगी लाइट्स से सजा हुआ था। मननत को उसके परिवार ने हरे रंग का लहंगा पहनाया था, और वह इतनी खूबसूरत लग रही थी कि सबकी नज़रें उसी पर थीं।
अथर्व वहाँ पहुँचा, गहरे हरे रंग की शेरवानी में। उसकी नज़र सीधी मननत पर पड़ी। वह उस पर से नज़रें नहीं हटा पा रहा था।
मननत ने भी उसे देखा, मगर जल्द ही नज़रें फेर लीं।
"वाह, अथर्व जी! पहली ही नज़र में मंत्रमुग्ध हो गए?" अंश ने उसे छेड़ा।
अथर्व मुस्कुराया। "कभी-कभी कुछ चीज़ें पहली नज़र में ही दिल में बस जाती हैं।"
अंश हंस पड़ा, लेकिन अथर्व की आँखों में जो सच्चाई थी, वह किसी को भी महसूस हो सकती थी।
मननत की सहेलियाँ उसकी मेहंदी में अथर्व का नाम छुपा रही थीं।
"देखना, अगर तुम्हारे दूल्हे राजा ने तुम्हारा नाम ढूंढ लिया तो तुम उनसे बहुत प्यार करने लगोगी!" सिया ने चुटकी ली।
"बकवास मत कर! ऐसा कुछ नहीं होता।" मननत ने नज़रें चुराईं।
लेकिन वह नहीं जानती थी कि अथर्व को उसके दिल में जगह बनानी आती थी।
मेहंदी की रात का जादू अब भी माहौल में तैर रहा था। संगीत, हँसी-ठिठोली, और रिश्तेदारों की बातें सब कुछ उस रात को खास बना रही थीं। लेकिन इन सबके बीच अथर्व की नज़रें सिर्फ एक इंसान पर टिकी थीं—मननत।
मेहंदी की रस्म खत्म हो चुकी थी। मननत अपने कमरे में थी, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सा खालीपन था। वह खुद को आईने में देख रही थी।
उसकी हथेलियों पर लगी मेहंदी की खुशबू पूरे कमरे में फैली हुई थी। उसने हल्के से अपनी मेहंदी को छुआ और अनजाने में उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई।
"क्या सच में... यह रिश्ता सिर्फ एक समझौता है?" उसने खुद से सवाल किया।
अचानक दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।
"मननत?"
वह चौंक गई। आवाज़ पहचानने में उसे देर नहीं लगी। यह अथर्व था।
वह जल्दी से खड़ी हो गई और दरवाज़ा खोलते ही उसकी नज़रों में अथर्व का चेहरा आ गया। उसकी गहरी आँखों में कुछ ऐसा था जिसे मननत पढ़ नहीं पा रही थी।
"तुम... इतनी रात को यहाँ?" उसने हल्के से कहा।
अथर्व अंदर आया और उसकी ओर देखते हुए बोला, "बस यह देखने आया था कि तुम्हारी मेहंदी पर मेरा नाम सही से लिखा है या नहीं।"
मननत की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"क..क्या?" उसने अनजाने में अपनी हथेलियाँ छुपाने की कोशिश की।
अथर्व हल्का सा मुस्कुराया। "छुपाने से कुछ नहीं होगा, मननत। मैं खुद ढूंढ लूँगा।"
वह धीरे से उसके हाथों को थामकर देखने लगा। मननत का पूरा शरीर एक अनजाने अहसास से सिहर उठा। उसने पहली बार महसूस किया कि अथर्व का स्पर्श उसे अजीब सा महसूस करा रहा था।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद अथर्व ने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, "मिल गया।" उसकी आँखों में एक चमक थी।
मननत ने हैरानी से अपने हाथ देखे। "इतनी जल्दी?" उसने हल्के से फुसफुसाया।
"क्योंकि मुझे तुम्हारे हर हिस्से में खुद को ढूंढना आता है, मननत।" अथर्व ने धीरे से कहा।
उसके शब्दों ने मननत को चौंका दिया। वह कुछ जवाब नहीं दे पाई।
अथर्व ने उसकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा, "अच्छा, अब सो जाओ। सुबह हल्दी की रस्म है।"
मननत कुछ बोल न सकी। बस एक हल्की सी "हम्म" कहकर उसने नज़रें झुका लीं।
अथर्व ने उसे एक आखिरी नज़र देखा और फिर कमरे से बाहर चला गया।
मननत वहीं खड़ी रही, अपने हाथों को देखते हुए।
"क्यों लग रहा है कि यह रिश्ता... समझौते से कहीं ज़्यादा है?" उसने खुद से सवाल किया।
राइज़ादा और चौहान परिवार के लिए आज का दिन बेहद खास था। शादी की रस्में अपने चरम पर थीं और माहौल पूरी तरह से उत्सव में बदल चुका था। घर में हर तरफ रंग-बिरंगी सजावट थी, मेहमानों की चहल-पहल थी और ढोल-नगाड़ों की गूंज माहौल को और भी खुशनुमा बना रही थी।
हल्दी की रस्म
मननत को उसकी सहेलियाँ हल्दी लगाने के लिए बैठा चुकी थीं। उसकी हल्की घबराहट साफ झलक रही थी।
"अरे मननत, इतनी परेशान क्यों लग रही है? शादी के बाद का ख्याल आ रहा है क्या?" नायरा ने चुटकी ली।
"कुछ नहीं यार, बस सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा है," मननत ने धीमे स्वर में जवाब दिया।
दूसरी ओर, अथर्व को भी हल्दी लगाई जा रही थी। उसका चेहरा हल्दी के रंग से दमक रहा था, लेकिन उसकी आँखें किसी को तलाश रही थीं—मननत को।
"भाई, हल्दी लग रही है या सोना चढ़ाया जा रहा है? चेहरे पर तो एक अलग ही चमक है!" अंश ने उसे छेड़ा।
अथर्व हल्का सा मुस्कुराया और बिना कुछ कहे अपनी नज़रें फिर से उसी दिशा में टिका दीं, जहाँ मननत थी।
हल्दी की रस्म के बाद जब मननत अपने कमरे में जा रही थी, तभी गलती से उसका पल्लू फिसल गया। उसने जल्दी से उसे संभालने की कोशिश की, लेकिन तभी एक मजबूत हाथ ने उसके पल्लू को थाम लिया।
"संभलकर," अथर्व की आवाज़ बेहद धीमी लेकिन गहरी थी।
मननत का दिल तेजी से धड़क उठा। उसने झट से अपना पल्लू खींचा और बिना उसकी ओर देखे वहाँ से चली गई। लेकिन अथर्व के चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट थी।
"तुम जितना दूर भागोगी, मैं उतना ही तुम्हारे करीब आऊँगा, मननत," उसने खुद से कहा।
शादी का माहौल हर तरफ था, लेकिन मननत के दिल में हलचल मची हुई थी। वह खुद से ही सवाल कर रही थी—क्या वह इस शादी के लिए सच में तैयार है? क्या यह रिश्ता सिर्फ एक समझौता रहेगा या कुछ और?
वहीं, अथर्व के दिल में अब कोई संशय नहीं था। उसने अपने दिल की बात कबूल कर ली थी। यह शादी सिर्फ एक ज़िम्मेदारी नहीं थी, बल्कि मननत के लिए उसकी अनकही मोहब्बत थी।
क्रमशः
अगली सुबह…
धीरे-धीरे मन्नत की आंख खुली । खिड़की से आती सुनहरी धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, लेकिन उसकी आंखों में चमक नहीं थी। आज उसकी शादी थी। वो दिन, जो एक लड़की की ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन होता है। लेकिन उसके लिए ये दिन कुछ और था—एक डर, एक उलझन, एक अनजाना रास्ता।
उसने तकिये से सिर उठाया और छत की ओर देखने लगी। "आज के बाद सब कुछ बदल जाएगा…" ये सोचते हुए उसके मन में हलचल मच गई। दिल बहुत भारी था।
"एक नए रिश्ते में बंध जाऊंगी… उस इंसान के साथ, जिसे मैं जानती तक नहीं," वह खुद से बुदबुदाई। उसने तो ये दिन देव के साथ देखा था—हजारों ख्वाब बुन लिए थे। हर सपना टूट चुका था, बिखर चुका था।
"अब तो शादी से कोई खास उम्मीद भी नहीं रही," उसने लंबी सांस लेते हुए सोचा। लेकिन कहीं दिल के किसी कोने में एक डर अब भी था—"क्या यह रिश्ता भी वैसे ही टूट जाएगा? क्या अथर्व भी… मेरी ज़िंदगी में मुझे वही जगह देगा जैसी मैं चाहती हूँ?"
एक अजीब सी बेचैनी के साथ वह बिस्तर से उठी और वॉशरूम की तरफ चली गई। ठंडा पानी चेहरे पर डालते ही उसके होश थोड़े ठिकाने आए। लेकिन आंखें अब भी बोझिल थीं।
कुछ देर बाद जब वह वापस कमरे में आई, तो वहां का नज़ारा बिल्कुल अलग था। उसकी भाभी अनन्या और उसकी दो खास दोस्त—नायरा और ईशा—कमरे में पहले से मौजूद थीं। सबकी निगाहें दरवाज़े की ओर मुड़ीं, जैसे उसी का इंतज़ार था।
"अरे मन्नत! आखिरकार हमारी दुल्हन जाग गई," नायरा ने चहकते हुए कहा।
भाभी अनन्या मुस्कुराईं लेकिन उनकी आंखों में नमी थी। मन्नत को देखते ही उनकी आंखें भर आईं। वह उठकर मन्नत के पास आईं, उसके गाल पर प्यार से हाथ रखा और धीरे से बोलीं—
"मन्नत… जब मैं इस घर में शादी कर आई थी, तब तूने मुझे बिल्कुल भी अजनबी महसूस नहीं होने दिया। तूने मुझे भाभी नहीं, बड़ी बहन बना दिया। जब मैं घबराती थी, तू मुझे हंसाती थी। जब मैं अकेली होती थी, तू मेरा सहारा बनती थी। सिर्फ नन्द ही नहीं… तू मेरी भी बहन बन गई थी।"
यह कहते हुए अनन्या की आवाज़ भर्राने लगी। उन्होंने आंखों के कोने से आंसू पोंछे, लेकिन अब मन्नत भी खुद को रोक नहीं पाई। उसकी आंखें भी भीग गईं। वो अचानक अपनी भाभी से लिपट गई और दोनों फूट-फूट कर रो पड़ीं।
ईशा और नायरा एक-दूसरे की तरफ देखने लगीं। कुछ पलों की चुप्पी के बाद नायरा ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की। वो मुस्कुराते हुए बोली—
"ओ भाभी! आप तो आज मन्नत को विदाई से पहले ही रुला रही हैं! ये आंसू तो हम विदाई के वक़्त बहाएंगे… अभी तो सिर्फ मुस्कुराने का टाइम है। आज मन्नत की शादी है यार… उसका सबसे बड़ा दिन।"
ईशा ने भी बात में हाँ मिलाई, "हां मन्नत, आज सिर्फ खुश हो… सब कुछ पीछे छोड़ दो। जो था, उसे वहीं रहने दो। आज से एक नई शुरुआत है…"
नायरा मन्नत के पास आई, उसके आंसू पोंछे और बोली, "अब चुप हो जा पगली, तेरे मेकअप आर्टिस्ट को बुला लिया है। बस थोड़ी देर में आएगा और तुझे दुल्हन बना देगा। फिर देख, सारी नजरें तुझ पर ही होंगी।"
मन्नत ने आंखों में जमी नमी को मुस्कराहट में बदलने की कोशिश की। "पता नहीं… दिल बहुत भारी है," उसने हल्के से कहा।
"हम सब तेरे साथ हैं ना," ईशा ने उसका हाथ थामते हुए कहा।
फिर अनन्या ने मन्नत के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, "बिल्कुल अकेली मत समझना खुद को। चाहे जहां रहे तू, मेरी बहन रहेगी हमेशा। और देखना, अथर्व तुझे बहुत प्यार देगा।"
"उम्मीद करती हूँ," मन्नत ने बस इतना कहा।
इतने में मन्नत की मम्मी भी कमरे में आ गईं। उन्होंने मन्नत को देखा, जो अब तक अपनी सहेलियों के बीच बैठी थी, और एक मीठी मुस्कान उनके चेहरे पर आ गई।
"तेरी नज़र उतार लूं पहले," मम्मी ने कहा और झटपट काला टीका लगाया।
"बेटी आज दुल्हन बन रही है मेरी… कितनी सुंदर लग रही है मेरी गुड़िया," मम्मी ने भावुक होकर कहा।
मन्नत ने नज़रें झुका लीं। एक बार फिर उसकी आंखें नम होने लगीं।
"अरे अरे… अब और नहीं रोना," नायरा ने चिढ़ाते हुए कहा, "वरना आंखें सूज जाएंगी और फिर फोटोज में सब गड़बड़!"
सब हंसने लगे।
माहौल थोड़ा हल्का हो गया था लेकिन दिलों में गहराई से एक एहसास बस चुका था—जुदाई का, नए सफर का, और बहुत सी अधूरी बातों का।
थोड़ी देर बाद मेकअप आर्टिस्ट आ गया। सबने मन्नत को कुर्सी पर बिठाया। हेयर स्टाइलिंग, मेकअप, और ज्वेलरी पहनते समय मन्नत बार-बार आईने में खुद को देख रही थी।
वो खुद से ही सवाल कर रही थी—
"क्या मैं तैयार हूँ इस नए सफर के लिए?"
लेकिन जब उसकी आंखें उन सभी के चेहरे पर पड़ीं—जो उसे दिल से प्यार करते थे, जो उसके लिए आज वहां मौजूद थे—तो एक भरोसा सा जागा।
शायद कुछ नया अच्छा भी हो सकता है।
और फिर, जैसे ही उसने अपने लहंगे की चुनरी ओढ़ी… कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई।
सबकी निगाहें बस एक ही तरफ थीं—मन्नत की तरफ। उसकी आंखों में डर था, लेकिन साथ ही एक सुकून भी।
क्योंकि अब वो अकेली नहीं थी। और जो होना था, वह होना ही था—लेकिन आज, इस पल में, वो सिर्फ अपनी थी… एक नई शुरुआत के मुहाने पर खड़ी।
दूसरी तरफ, अथर्व अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ा था। सुबह की हल्की-हल्की धूप पर्दों से छनकर अंदर आ रही थी। कमरे में हल्का सा गुलाबी-गुलाबी उजाला था, और उस रोशनी में उसकी आँखों में कुछ अलग ही चमक थी। उसने अपने हाथों में मन्नत की एक तस्वीर पकड़ी हुई थी—शादी के कार्ड से काटी हुई वो तस्वीर, जिसमें मन्नत हल्के मुस्कान के साथ देख रही थी, जैसे कुछ कह रही हो, पर फिर भी चुप हो। अथर्व उस तस्वीर को निहार रहा था, जैसे उसे समझने की कोशिश कर रहा हो।
वो एकदम खोया हुआ था। उस मन्नत की तस्वीर में नहीं, बल्कि मन्नत की आँखों में। उन आँखों में जो सवाल थीं, डर था, और शायद कहीं न कहीं एक छोटी सी उम्मीद भी। अथर्व की सोच उसकी आँखों से बहकर तस्वीर में उतर रही थी।
"तुम्हें शायद पता भी नहीं मन्नत," वो मन ही मन बुदबुदाया, "पर तुम्हारी ये खामोशी मेरी सबसे बड़ी बेचैनी बन गई है।"
इसी बीच दरवाज़ा बिना खटखटाए खुला। उसके छोटे भाई अंश ने जैसे ही अंदर कदम रखा, उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। उसके हाथों में अथर्व की शादी की शेरवानी थी। पर उसकी नज़र सीधी अपने भाई पर पड़ी, जो उस तस्वीर में इतना खोया हुआ था कि उसे दुनिया का कोई होश नहीं था।
अंश चुपचाप दरवाज़े पर ही रुक गया। कुछ पल तक अपने भाई को निहारता रहा—जो हमेशा से सीरियस, शांत और दुनिया से कटा-कटा रहता था। जो ना कभी किसी लड़की को देखता, ना ही कभी इमोशन्स की बात करता था। लेकिन आज… आज उसका वही भाई एक तस्वीर के सामने ऐसे खड़ा था, जैसे उस लड़की की आँखों में अपना सारा भविष्य देख रहा हो।
अंश के लिए ये एक नया दृश्य था। "ओ तेरी, ये क्या देख लिया मैंने! भाई तो सीरियस से लव-सिक हो गए!" वो मन ही मन हंसी रोकते हुए बड़बड़ाया।
कुछ देर चुपचाप खड़े रहकर, अंश आखिर बोल ही पड़ा—
"बस-बस भाई! अगर तस्वीर देखकर ही दिल भर लोगे, तो फिर भाभी को सामने देखकर कैसे रह पाओगे?"
अचानक आवाज सुनकर अथर्व चौंक गया। उसने एक झटके में तस्वीर को अपनी पीठ के पीछे छुपा लिया, जैसे कोई बच्चा चोरी पकड़ा गया हो। थोड़ी शर्मिंदगी, थोड़ी झेंप और थोड़ी झुंझलाहट उसके चेहरे पर थी।
"तू... तू कब आया?" उसने खुद को संभालते हुए पूछा।
अंश अब और ज्यादा मुस्कुरा रहा था। वो उछलते हुए अंदर आया और सीधे बेड पर बैठ गया।
"तभी आया भाई, जब आप मन्नत भाभी की तस्वीर को ऐसे देख रहे थे जैसे कोई फिल्म देख रहे हो—धीमे संगीत के साथ!"
अथर्व ने उसका मजाक उड़ाते देख, हल्की सी चपत उसके सिर पर मारी।
"बहुत बातें करने लगा है आजकल तू छोटे ! ये बता किस काम से आया था
अंश हंसते हुए बोला,
"भाई, सीन तो आज आपकी शादी का है। मैं तो बस उसका ट्रेलर दिखा रहा था।"
फिर उसने शेरवानी उसकी ओर बढ़ाई—
"ये लीजिए आपकी शेरवानी। जल्दी से तैयार हो जाइए। बस कुछ घंटे और… फिर भाभी हमेशा के लिए आपकी होंगी।"
इतना कहकर अंश ने फिर से एक बार अपने भाई को शरारत भरी मुस्कान दी और कमरे से बाहर निकल गया।
अंश के जाते ही अथर्व कुछ पल के लिए वहीं खड़ा रह गया। तस्वीर अभी भी उसकी जेब में थी। उसने उसे धीरे से निकाला और एक हल्की सी हँसी आई—खुद पर, अपनी बेवकूफी पर।
"मैं... मैं भी कितना पागल हो गया हूँ। एक तस्वीर से बातें कर रहा हूँ।"
उसने धीरे से अपने बालों पर हाथ फेरा और आईने के सामने जाकर खड़ा हो गया।
अब वो आईने में खुद को देख रहा था—पर जैसे खुद को नहीं, मन्नत की आँखों में अपना अक्स देखने की कोशिश कर रहा हो। आज उसका दिल बेकाबू था, और दिमाग एकदम शांत। दिल कह रहा था कि ये लड़की सिर्फ उसकी दुल्हन नहीं, उसकी किस्मत है। और दिमाग… दिमाग पहली बार दिल के साथ था।
कुछ ही देर बाद वो अपनी शेरवानी पहनने लगा। हर बटन बंद करते वक्त, उसे एक एहसास हो रहा था—जैसे वो खुद को किसी रिश्ते की ज़िम्मेदारी के लिए तैयार कर रहा हो। ये कोई जबरन की शादी नहीं थी उसके लिए… ये तो जैसे किसी अधूरी कहानी की शुरुआत थी।
जब उसने पूरी तरह से खुद को तैयार कर लिया, तो आईने में एक बार फिर खुद को देखा—इस बार कुछ ज्यादा ध्यान से।
"अब तस्वीर देखने की जरूरत नहीं होगी मन्नत," उसने मन ही मन कहा,
"अब हर सुबह तुम्हारा चेहरा देखूंगा। हर रात तुम्हारी खामोशी से बातें करूंगा। और हर दिन तुम्हारे डर को अपने प्यार से मिटा दूंगा।"
आईने में उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई—वो मुस्कान जो उसके चेहरे पर कभी बहुत कम आती थी।
शादी के कुछ घंटे पहले का ये पल, उसके लिए किसी इमोशनल फिल्म के सीन से कम नहीं था। मन्नत के नाम के साथ ही उसके सीने में एक हलचल उठती थी, और अब वो वक्त दूर नहीं था जब मन्नत सिर्फ नाम नहीं, उसकी हमसफ़र बन जाएगी।
Hello readers 🤗🤗 मै इस कहानी को काफी टाइम से नहीं दे पाई थी और बीच में ही छोड़ दिया लेकिन अब मैं इसे पूरा करुंगी रोज चैप्टर देकर,,,,लेकिन मेरी आप सबसे बस एक रिक्वेस्ट है कि आप सब मेरी कहानी को पूरा सपोर्ट दे और फॉलो करे,,,, स्पेशली कॉमेंट्स,,🥹🥹 देखिए एक राइटर एक लिए कमेंट्स ही सबसे इंपॉर्टेंट होते है इससे उन्हें पता चलता की कहानी कैसी लग रही है सबको और उन्हें लिखने का मोटीवेशन मिलता है🙏🏻 तो मैं आप सबसे आशा करुंगी कि आप कमेंट जरूर करेंगे मुझे इंतजार रहेगा आपके कमेंट्स का
Thank you 💗 💗
शहनाइयों की मीठी धुन, गुलाब की खुशबू से महकता मंडप, और चारों ओर सजे हुए फूलों के बीच सबकी निगाहें दूल्हे पर थीं—पर उसका ध्यान सिर्फ एक पर था… उस पर जो अभी आई नहीं थी।
अथर्व मंडप में बैठा था, गोल्डन क्रीम कलर की शेरवानी में, माथे पर सेहरा लेकिन नज़रों में सिर्फ इंतज़ार। हर लम्हा जैसे किसी और ही रफ्तार से बीत रहा था। दिल में बेचैनी थी, और आंखें बस एक झलक को तरस रही थीं।
तभी पायल की छनछनाहट के साथ हल्की सी सरसराहट हुई। सबकी नजरें पलटीं। और फिर—
वो आई।
लाल रंग के लहंगे में, माथे पर झूमर, आँखों में काजल की हल्की लकीर, और होंठों पर एक थमी हुई सी खामोश मुस्कान। मन्नत मंडप की ओर बढ़ रही थी, जैसे कोई परी ज़मीन पर उतर आई हो। हर कदम के साथ उसका घूंघट हल्का सा हिल रहा था, और घूंघट के पीछे उसकी नज़रें—अथर्व की तरफ।
अथर्व की साँस जैसे थम गई थी। इतने लोगों के बीच, उस भीड़ में उसे सिर्फ एक चेहरा दिख रहा था। मन्नत का चेहरा।
"यही है... मेरी मन्नत।" उसने मन ही मन कहा।
मन्नत धीरे-धीरे मंडप तक आई। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। घूंघट के पीछे से उसने भी पहली बार उसे इतने करीब से देखा था। उसकी आँखों में कोई सख्ती नहीं थी, कोई कठोरता नहीं… बस एक नरमी थी। एक अपनापन।
पंडित जी मंत्र पढ़ने लगे। सब रस्में शुरू हो गईं। लेकिन उन दोनों की आँखें… वो जैसे सिर्फ एक-दूसरे से बात कर रही थीं। मन्नत थोड़ी नर्वस थी, पर अथर्व की गहरी, स्थिर नज़रों ने उसे एक अजीब सा सुकून दिया।
जब वरमाला का वक्त आया, तो दोनों आमने-सामने खड़े हुए। मन्नत ने पहली बार पूरी तरह से उसका चेहरा देखा। वो मुस्कुरा नहीं रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक वादा था—"अब से तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।"
मन्नत ने कांपते हाथों से माला उसके गले में डाली, और अथर्व ने झुककर बड़े प्यार से उसकी ओर माला पहनाई। कुछ पल के लिए सब कुछ थम सा गया। मानो वक्त ने भी उन दोनों की पहली मुलाकात को संजो कर रख लिया हो।
सात फेरे, सात वादे, सात बार उस आग के सामने साथ निभाने की कसमें।
अथर्व हर फेरे में सिर्फ एक ही बात सोच रहा था—"अब तुम मेरी हो। लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि एक दिन तुम्हारा दिल भी मेरा हो जाए।"
और मन्नत… वो हर फेरे के साथ थोड़ी और डरी, थोड़ी और उलझी, लेकिन उसकी आँखों में एक सवाल बार-बार उभरता—"क्या यही मेरी किस्मत है?"
लेकिन फिर जब सिंदूर और मंगलसूत्र का समय आया, और अथर्व ने कांपते हाथों से उसकी माँग में सिंदूर भरा—तब मन्नत की आँखों से एक मोती टपक पड़ा।
अब वो सिर्फ मन्नत नहीं रही—अब वो 'अथर्व की मन्नत' बन चुकी थी।
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शादी की सारी रस्में पूरी हो चुकी थीं। पंडित जी ने आखिरी मंत्र पढ़ा और सब कुछ जैसे शांत हो गया।
लेकिन उस शांति में एक तूफान छिपा था… विदाई का तूफान।
मन्नत अपने लहंगे का पल्लू ठीक करते हुए खड़ी थी। आँखें नीचे झुकी थीं, लेकिन दिल अंदर से कांप रहा था। हर वो कोना जिसे वो "घर" कहती थी, अब उसके पीछे छूटने वाला था।
माँ ने मन्नत को गले लगाया।
"तू तो कहती थी मम्मा, मैं कहीं नहीं जाऊँगी… और आज देख, तू ही सबसे दूर जा रही है…" माँ की आवाज़ में इतना दर्द था कि मन्नत की आँखें भीग गईं।
भाई उसके पास आया, उसके सर पर हाथ फेरा,
"बहन से बेटी बनाया था तुझे हमने .… कैसे विदा करें तुझे?"
भाभी, वही जिसकी गोद में मन्नत ने रो-रो कर अपने दिल की बातें की थीं, अब खुद सिसक रही थी।
"जिस घर को तूने अपने हँसी से भरा… अब वो कितना सूना लगेगा मन्नत…"
मन्नत अब तक चुप थी, लेकिन उसकी आँखें बोल रही थीं—हर एक रिश्ते से विदा ले रही थीं वो।
सबसे मुश्किल वक्त आया—पल भर में पराया हो जाने का वक्त।
पिता ने मन्नत का हाथ अथर्व के हाथ में रखा।
"अब ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी है… हमारी मन्नत अब तुम्हारी है।"
अथर्व ने बिना कुछ कहे मन्नत की तरफ एक नर्म सी नज़र डाली, जैसे मन ही मन कह रहा हो—"मैं जानता हूँ ये पल कितना भारी है… लेकिन अब मैं तुम्हारा घर बनूंगा।"
मन्नत की आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे, लेकिन उसके कदम थमे नहीं।
वो पीछे मुड़कर एक बार सबको देखा, फिर सिर झुकाकर गाड़ी में बैठ गई।
कार जब नए घर के दरवाज़े पर रुकी, तो बाहर सब फूलों से सजा था।
लेकिन मन्नत का दिल अभी भी भारी था।
सासू माँ ने आरती की थाली उठाई, दरवाजे पर खड़ी होकर मुस्कुराई,
"बेटा, आज से ये घर तुम्हारा है।"
मन्नत ने चुपचाप सिर झुकाया।
आरती उतारने के बाद चावल से भरी कलश को पाँव से गिराने का वक्त आया।
मन्नत ने कांपते हुए पहला कदम बढ़ाया—एक अनजाने रिश्ते की तरफ।
कलश गिरा… और उसके साथ बीते सारे साल जैसे पीछे छूट गए।
गृहप्रवेश पूरा हुआ, लेकिन मन्नत के दिल में अभी भी सवाल थे।
क्या ये घर सच में उसका होगा?
क्या यहाँ उसे वही अपनापन मिलेगा?
अथर्व चुपचाप उसके पीछे खड़ा था, जैसे उसकी उलझनों को समझ रहा हो।
उसने मन्नत के कान के पास हल्की सी आवाज़ में कहा—
"डरो मत… ये घर तुम्हारे नाम की मन्नत से शुरू हुआ है।"
मन्नत ने पहली बार हल्की सी मुस्कान दी—डरी हुई, लेकिन सच्ची।
गृहप्रवेश के कुछ देर बाद, पूरे घर में एक खास-सी मिठास फैल चुकी थी। पूजा की थाली तैयार थी। पंडित जी पहले से हवन-कुंड के पास बैठ चुके थे।
"मन्नत, अब तुम्हें पहली बार घर की बहू बनकर पूजा करनी है," सासू माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
मन्नत का चेहरा अब भी थोड़ा थका हुआ था, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग-सी शालीनता थी। वो लहंगे के पल्लू को संभालते हुए पूजा स्थल पर बैठ गई।
पंडित जी मंत्र पढ़ते रहे और मन्नत हाथ जोड़कर पूरे मन से पूजा करती रही।
अथर्व थोड़ी दूर खड़ा था, लेकिन उसकी निगाहें बार-बार मन्नत की तरफ ही जा रही थीं।
पहली बार उसे कोई इतना शांत, और फिर भी इतना गहराई से महसूस करने वाला लगा था।
पूजा खत्म होते ही सासू माँ ने सबको आवाज़ दी,
"अब बहू को थोड़ा आराम करने दो, पहले हॉल में बैठाओ, सब उससे मिल लें।"
मन्नत को एक खूबसूरत सोफे पर बिठाया गया। चारों तरफ रिश्तेदार और परिवार वाले थे। सब उसे देखने और जानने के लिए उत्सुक थे। तभी… अंश, जो अब तक थोड़ी दूरी बनाए हुए था, उछलता-कूदता उसके पास आया।
"भाभी!" वो ज़ोर से बोला।
"आपको बता दूँ, इस घर में अगर किसी से सबसे ज्यादा बात करनी है तो वो मैं हूँ… मुझसे बच नहीं सकती आप!"
मन्नत हल्का मुस्कुरा दी,
"अच्छा…
अंश ने तुरंत जवाब दिया,
"हां मैं इस घर का सबसे प्यारा, सबसे स्मार्ट, और सबसे नटखट देवर! और आज से आपका दोस्त भी!"
भीतर बैठे बाकी सभी लोग हँसने लगे।
ताईजी बोलीं, "बेटा मन्नत, इससे बचकर रहना… ये सबसे बड़ा नाटकबाज़ है!"
किसी कज़िन ने चुटकी ली,
"अब तो भाभी को संभालना ही पड़ेगा इस घर के शरारती बच्चे को!"
मन्नत हँसते हुए सबकी बातों को सुन रही थी। आज पहली बार उसे लगा, शायद ये घर… सच में उसका हो सकता है।
अंश फिर बोला,
"भाभी, एक बात पक्की है… अगर कभी भैया आपको परेशान करें, तो सीधा मेरे पास आ जाना। मैं हूँ ना, आपका बॉडीगार्ड!"
अथर्व जो पास ही खड़ा था, हल्की मुस्कान में आँखें फेरकर बोला,
"पहले खुद तो सीधा हो जा!"
सब ज़ोर से हँस पड़े।
थोड़ी देर बाद, सासू माँ ने आकर कहा,
"बहू अब बहुत थक गई होगी… अंश, इसे इसके कमरे तक छोड़ आओ।"
अंश झुककर मन्नत की साड़ी उठाने में मदद करने लगा,
"आइए भाभी, अब आपको आपके नए संसार में छोड़ने का वक्त है!"
मन्नत कमरे के दरवाजे पर पहुँची। अंश ने मुस्कुरा कर कहा,
"जाइए भाभी… और हाँ, डरिए मत… भैया दिखते सीरियस हैं, पर दिल के बहुत अच्छे हैं।"
मन्नत ने एक हल्की सी मुस्कान दी और कमरे में दाखिल हो गई।
दरवाज़ा धीरे से बंद हो गया…
और उसके साथ ही एक नए रिश्ते की, एक नई जिंदगी की शुरुआत भी
Guys न तो व्यूज आ रहे है और ना ही किसी ने कमेंट किया तो मैं न देनी वाली अब चैप्टर,,,जब तक मुझे अच्छे से व्यूज़ और कमेन्ट नहीं मिलते 😏😏 पहले मुझे मोटीवेशन दो फिर चैप्टर लो । वरना अभी कहानी शुरू ही कहा हुई है मन्नत का अथर्व को समझना और अथर्व मन्नत का रोमांस 🤭 उनकी नोक झोंक सब बाकी है मेरे रीडर्स 😏
कमरा बिल्कुल शांत था। रात की खामोशी दीवारों से टकरा रही थी। मन्नत कमरे में अकेली खड़ी थी, उसकी नज़रें चारों तरफ घूम रही थीं। हर कोना, हर चीज़ उसके नए जीवन की झलक दे रही थी। यह कमरा अब उसका था—उसका और अथर्व का।
कमरे की थीम light blue और white थी, जो शांति और सुकून का एहसास दे रही थी। दीवारों पर हल्की ambient lighting चल रही थी, जिससे पूरा कमरा dreamy और romantic लग रहा था। बीचों-बीच एक विशाल king-size bed था, जिस पर नीले और सफेद cushions बड़ी खूबसूरती से सजाए गए थे। बेड की सिल्क शीट्स पर हल्की सी क्रीज़ भी नहीं थी, मानो किसी ने अभी-अभी उसे सेट किया हो।
बेड के बगल में एक बड़ी सी glass-fronted wardrobe थी, जिसमें neatly pressed कपड़े, कुछ शेरवानी के सेट और designer sarees रखी थीं।
मन्नत की नज़रें अब बेड के ऊपर की दीवार पर टिक गईं, जहाँ एक बड़ी सी framed photo टंगी थी—अथर्व की।
पर यह कोई आम फोटो नहीं थी। इसमें अथर्व शर्टलेस था। उसकी toned और muscular body, उभरी हुई chest lines, defined abs, और intense eyes ने मन्नत के दिल की धड़कनें बढ़ा दीं।
उसकी breathing थोड़ी heavy हो गई।
"ये... ये फोटो तो किसी मॉडल की तरह है," वह बुदबुदाई। अनजाने में ही उसके कदम बेड की तरफ बढ़ने लगे।
वह धीरे-धीरे बेड पर चढ़ गई। उसकी नज़रें फोटो पर अटक गई थीं। दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। और हाथ... अपने आप उस फोटो की तरफ बढ़ गए।
उसने अपनी fingers से फोटो के frame पर हल्के-हल्के हाथ फिराने शुरू कर दिए। उसकी ऊँगलियाँ उस तस्वीर की chest पर घूम रही थीं, जैसे उस texture को महसूस कर रही हों।
"So damn hot..." उसके lips से खुद-ब-खुद निकला।
फोटो में अथर्व की वो intense eyes उसे घूरती-सी लग रही थीं। उसका face थोड़ा झुका; सांसें तेज हो गईं। उसके गाल गुलाबी हो गए थे और कान तक लाल हो चुके थे।
अचानक...
"Click!"
कमरे का दरवाज़ा खुला।
मन्नत की सांस अटक गई। उसने फौरन हाथ नीचे कर लिए और झट से पलट गई। उसके चेहरे का रंग एकदम उड़ गया था।
अथर्व कमरे में आया। उसके माथे पर हल्की सी शिकन थी, जब उसने देखा कि मन्नत बेड पर खड़ी थी।
"मन्नत?" उसकी आवाज़ calm थी लेकिन direct। "तुम बेड पर क्यों खड़ी हो?"
मन्नत ने इधर-उधर देखा, कुछ समझ नहीं आया कि क्या बोले। वह बुरी तरह nervous थी। उसके होंठ काँपने लगे।
"वो... कुछ नहीं, मैं... बस..."
वह हड़बड़ाकर नीचे उतरने लगी, लेकिन भारी लहंगे के कारण उसका पैर फिसला। वह गिरने ही वाली थी कि अचानक...
अथर्व ने झट से आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में पकड़ लिया। मन्नत ने हल्की चीख निकाली, पर अगले ही पल वह अथर्व की बाँहों में थी।
उसकी आँखें बंद थीं। वह सोच रही थी कि शायद वह गिर चुकी है, पर जब कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, तो उसने एक आंख धीरे से खोली।
वह खुद को अथर्व की muscular बाहों में झूलता हुआ महसूस कर रही थी। उसका चेहरा अथर्व की chest से सटा हुआ था और सांसें थमी सी लग रही थीं।
अथर्व ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा,
"Relax, गिरने नहीं दूँगा।"
उसके शब्दों में नर्मी थी, पर आवाज़ deep और masculine थी। मन्नत को उसकी सांसों की गर्माहट अपने गालों पर महसूस हो रही थी।
उसने खुद को control करते हुए आँखें नीचे कर लीं। अथर्व ने उसे धीरे से नीचे उतारा, जैसे वह कोई fragile चीज़ हो।
फिर उसने वार्डरोब की तरफ इशारा किया,
"Wardrobe में तुम्हारे कपड़े रखवा दिए गए हैं। इस भारी लहंगे में तुम uncomfortable हो रही हो, change कर लो।"
मन्नत बिना एक शब्द बोले तुरंत अपने कपड़े लेने चली गई और बाथरूम में घुस गई।
अथर्व वहीं खड़ा उसे जाते हुए देख रहा था। उसके चेहरे पर एक soft सी हँसी थी।
"Cute si pagal hai ये... लेकिन दिल से साफ है," उसने मन ही मन सोचा।
फिर उसने भी अपनी शेरवानी के बटन खोलने शुरू किए और अपने कपड़े निकालने लगा।
बाथरूम का दरवाज़ा बंद था। अंदर मन्नत अपने आप से ही उलझ रही थी।
वह आईने के सामने खड़ी थी, हाथों में टॉवल था, और माथे पर बल।
“क्या कर रही थी तू मन्नत...? इतनी बेशर्म कब से हो गई?” उसने खुद को घूरते हुए कहा और अपना चेहरा हथेलियों से ढक लिया।
“उसकी फोटो को हाथ लगा रही थी... seriously? और ऊपर से वो भी शर्टलेस!” उसका चेहरा एकदम लाल हो गया था। शर्म से, डर से... और थोड़ी सी उस हल्की सी हँसी से जो खुद पर ही आ रही थी।
धीरे-धीरे उसने अपनी bridal dress से खुद को बाहर निकाला। लहंगा भारी था और उसका बदन थका हुआ था। उसके बदन पर शादी की रस्मों का थकान था, चेहरे पर मासूमियत, और दिल में डर।
उसके बाद उसने अपना सूट देखा—ना ज़्यादा fancy, ना revealing। बस सिंपल, cotton का, comfortable।
“बस यही ठीक है... I can’t face him like a bride...” उसने बड़बड़ाते हुए सूट पहन लिया और खुद को शीशे में देखा।
अब वह दुल्हन नहीं लग रही थी, बस मन्नत थी—simple, nervous, confused मन्नत।
लेकिन जैसे ही उसने बाथरूम का हैंडल पकड़कर बाहर निकलने के लिए कदम बढ़ाया… उसके पैर के नीचे पानी फिसला…
और…
“आह्ह्ह…”
एक हल्की सी चीख कमरे में गूंज गई।
बाहर खड़ा अथर्व चौक गया।
वह दरवाज़े के पास ही खड़ा था, और मन्नत के गिरने की आवाज़ सुनते ही बिना एक पल गंवाए उसने दरवाज़ा खोल दिया।
"मन्नत…!" उसकी आवाज़ में घबराहट थी, डर था।
वह दौड़ते हुए अंदर आया और मन्नत को फर्श पर पड़ा देखा। उसकी सूट का दुपट्टा बिखरा था, बाल हल्के गीले थे, और उसके चेहरे पर तकलीफ और घबराहट दोनों साफ झलक रहे थे।
अथर्व एक पल भी नहीं रुका।
झुक कर उसने मन्नत को अपनी बाहों में उठा लिया। उसके हाथों में जैसे ही मन्नत आई… उसकी धड़कनों की रफ्तार खुद-ब-खुद बढ़ गई।
"मन्नत... तुम ठीक हो? कहीं लगी तो नहीं?" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन बहुत गहरी थी।
उसने मन्नत को बेड पर लिटा दिया, और खुद पास ही बैठ गया। उसने उसके माथे से भीगी लटों को हटाया और एक बार फिर पूछा, "बोलो ना मन्नत, चोट तो नहीं आई कहीं?"
मन्नत की आंखें उससे मिल नहीं पा रही थीं। उसकी पलकों के कोनों में नमी थी, गाल पर आंसू की एक बूंद ढलकने ही वाली थी।
उसे इतनी फिक्र करते देख मन्नत की आंखें भर आईं। देव की यादें आंखों के सामने तैर गईं। उसकी बेरुखी, उसकी cold बातें… और आज यह इंसान… जिससे वह अभी ठीक से मिली भी नहीं थी… उसके एक गिरने पर बेचैन हो गया।
"तुम रो क्यों रही हो?" अथर्व ने उसका चेहरा पकड़कर धीरे से ऊपर उठाया।
"क्या दर्द हो रहा है? या डर लग रहा है?"
मन्नत ने धीरे से सिर हिलाया… "न-नहीं... बस ऐसे ही…"
"ऐसे ही कोई नहीं रोता मन्नत," उसकी आवाज़ थोड़ी गंभीर हुई लेकिन अब भी बहुत कोमल थी।
"तुम मुझसे डर रही हो?" उसने थोड़ा झुकते हुए पूछा।
मन्नत की सांसें तेज़ चल रही थीं, उसकी आंखों में अब सिर्फ नमी नहीं थी… guilt भी था।
"नहीं… बस आदत नहीं है किसी को इतना अपने लिए फिकर करते देखने की…" मन्नत की आवाज़ टूटी हुई सी थी।
अथर्व कुछ पल उसे बस देखता रहा।
उसके लफ्ज़, उसकी आंखें, उसकी तकलीफ... सब जैसे एकदम साफ पढ़ पा रहा था।
उसने धीरे से उसका हाथ पकड़ा।
"मुझे नहीं पता तुमने क्या झेला है मन्नत… लेकिन एक बात जान लो—तुम अब अकेली नहीं हो। जब तक मैं हूं, तुम्हें गिरने नहीं दूंगा… और अगर गिर भी गई, तो थामने वाला हमेशा तुम्हारे पास रहेगा।"
मन्नत उसकी आंखों में देख रही थी। पहली बार उसे किसी मर्द की आंखों में झूठ, हवस या मतलब नहीं, सिर्फ एक सुकून दिखा।
कमरे में कुछ देर खामोशी छा गई।
सिर्फ मन्नत की सांसों और अथर्व के दिल की धड़कनों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
थोड़ी देर बाद अथर्व खड़ा हुआ और बोला, "मैं बाहर जा रहा हूं... तुम कपड़े बदल लो, ये गीले हो गए हैं और अगर ज़रूरत हो तो मुझे आवाज़ देना। Okay?"
मन्नत ने बस हल्के से सिर हिलाया।
वह कुछ कदम चला… फिर पलटा, और कहा…
"और हां, मुझसे कभी मत छुपाना जब तुम्हें कुछ अच्छा न लगे... चाहे वो मेरा बर्ताव हो या कोई डर… तुम मेरे साथ खुल कर बात कर सकती हो मन्नत।"
दरवाज़ा बंद हुआ… मन्नत ने सिर झुका लिया। एक अजनबी इंसान उसके इतने करीब था… फिर भी उसे पहली बार किसी पर भरोसा करने का मन हो रहा था।