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तमन्ना तु मेरी

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Raveena

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प्यार हो तो दर्द मिलता है पर दर्द पर मरहम कही कही लगाया जाता है और कहानी की शुरुआत भी दर्द से होती है एक लड़की जिसको अपने पति से धोखा मिलता उसके बाद उसकी लाइफ चेंज हो जाती है,,, देखते हैं दुनिया में कोई मिलेगा उसको जो उसको उससे ज्यादा प्यार करता हो...

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Vihaan jindal

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Preeti vihaan jindal

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Total Chapters (107)

Page 1 of 6

  • 1. तमन्ना तु मेरी - Chapter 1

    Words: 1375

    Estimated Reading Time: 9 min

    एक अस्पताल में एक लड़की ICU में थी। उसकी साँसें लगातार कम होती जा रही थीं। डॉक्टर उस लड़की का इलाज कर रहे थे। लड़की को बहुत ज़्यादा चोट लगी थी; उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि उसका एक भयानक एक्सीडेंट हुआ है।

    आईसीयू के बाहर एक लड़की बेंच पर बैठकर रो रही थी। वह लड़की खुद से मन ही मन बोली, "प्लीज़ भगवान् जी, प्रीति को कुछ मत होने देना, वह हमारी सबसे अच्छी दोस्त है। वह कितनी अच्छी है, यह आप भी जानते हो; किसी का बुरा नहीं सोचती, फिर आप उसके साथ ऐसा क्यों कर रहे हो?"

    वह लड़की लगातार भगवान् से प्रार्थना कर रही थी। तभी आईसीयू से डॉक्टर बाहर आए। ऑपरेशन पूरा हो गया था। वह लड़की भागते हुए डॉक्टर के पास गई और बोली, "डॉक्टर, प्रीति कैसी है?"

    डॉक्टर बोले, "मिस रूही, आप शांत हो जाइए। हमने उनका ऑपरेशन कर दिया है। बाकी उनके होश में आने पर पता चलेगा कि वह कैसी हैं। आप उनके पति को ख़बर कर दीजिए।"

    रूही ने डॉक्टर का धन्यवाद किया और प्रीति के पति को कॉल लगाया। पर एक नहीं, दो नहीं, चौथी बार कॉल करने पर सामने वाला फोन उठाते हुए बोला, "क्या आफ़त आ गई है? क्यों बार-बार कॉल कर रही हो? मैं मीटिंग में हूँ इस वक़्त।"

    "जीजू, प्लीज़ एक बार हमारी बात सुन लीजिए। प्रीति अस्पताल में है; उसका बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया है। प्लीज़ आप आ जाइए।" रूही रोते हुए बोली।

    "वह मर गई या ज़िंदा है?" सामने वाला इंसान अपनी कड़क आवाज़ में बोला।

    "जीजू, आप कैसी बात कर रहे हो? प्रीति ज़िंदा है अभी।" रूही हैरान होते हुए बोली।

    "तो ठीक है। जब वह मर जाए, तब फोन करना।" वह आदमी गुस्से में, हर शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला। इतना कहकर उसने कॉल काट दिया। रूही कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। रूही खुद से ही रोते-रोते बोली, "आखिर इस लड़की को यही इंसान मिला था शादी के लिए, जिसको इसके जीने या मरने से कोई फर्क ही ना पड़े।"

    ऐसे ही एक दिन गुज़र गया, पर प्रीति को अब तक होश नहीं आया था। प्रीति बेसुध होकर बेड पर लेटी थी। उसका पूरा शरीर पिलपिला पड़ चुका था; उसके सुरख गुलाबी होंठों का रंग फीका हो गया था। रूही प्रीति के पास ही बैठी थी। कुछ देर में प्रीति को होश आने लगा। प्रीति को होश आता देख रूही डॉक्टर को बुलाती है। डॉक्टर आकर प्रीति को चेक करने लगे। प्रीति को चेक करने के बाद डॉक्टर रूही से बोले, "यह अब बिलकुल ठीक है। बस इन्हें प्रॉपर रेस्ट करना है और ध्यान रहे, ये ज़्यादा स्ट्रेस ना लें।"

    रूही ने हाँ में गर्दन हिला दी। डॉक्टर वहाँ से चले गए। डॉक्टर के जाने के बाद रूही ने प्रीति को देखकर एक गहरी साँस ली और बोली, "फ़ाइनली तुम्हें होश आ गया। तुमको पता है हम कितना डर गए थे।"

    प्रीति रूही की बात पर धीमे से मुस्कुरा दी। प्रीति की निगाहें किसी को तलाश रही थीं। वह बार-बार गेट की तरफ़ देख रही थी; शायद उसे किसी के आने का इंतज़ार था। और यह बात रूही अच्छे से समझ रही थी।

    "क्या देख रही हो उधर?" रूही प्रीति के पास जाकर कहती है।

    "मुझे देखने कोई नहीं आया क्या?" प्रीति अभी भी दरवाज़े को देखते हुए कहती है।

    रूही ने एक गहरी साँस लेते हुए प्रीति का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, "कब तक सहोगी सब कुछ? जब वह तुमसे तलाक चाहता है तो तुम दे दो उसे। तुम उस जैसे इंसान को डिज़र्व नहीं करती हो।"

    "पर मैं उससे प्यार करती हूँ।" प्रीति रूही की बात बीच में काटते हुए बोली।

    "प्रीति, जब प्यार किसी के लिए दर्द बनने लगे, तो उसे छोड़ देना चाहिए। वह तुमसे प्यार नहीं करता। छह महीने हो गए हैं तुम दोनों की शादी को; उसने तुमसे बात तक नहीं की और अब तुम अस्पताल में हो, वह तुम्हें देखने तक नहीं आया।"

    प्रीति रूही की बात चुपचाप सुन रही थी। रूही सच ही तो कह रही थी। उसके पति ने तो उसे नज़र उठाकर देखा भी नहीं। यह शादी भी एक बिज़नेस डील थी। डैड ने अपनी कंपनी का नाम ऊँचा करने के लिए अपनी बेटी को दाव पर लगा दिया था; मॉम पहले ही छोड़कर चली गई थी। अब उसके पास बचा ही कौन है? काश वह इस एक्सीडेंट में मर जाती, पर तभी उसे अपने भीतर से आवाज़ आई, "ऐसे कैसे मर जाती हूँ मैं? कोई मुझसे प्यार नहीं करता, इसका मतलब यह थोड़ी है कि मैं खुद के लिए जीना छोड़ दूँ? अगर उसे मुझसे तलाक चाहिए, तो मैं दूँगी उसे तलाक।"

    "किन ख्यालों में खो गई हो तुम? यह लो, खाना खाओ।" रूही एक चम्मच दलिया प्रीति के मुँह के सामने करते हुए बोली।

    प्रीति मुस्कुराते हुए दलिया खाने लगी। हालाँकि उसे दलिये का टेस्ट तो पसंद नहीं था, पर रूही के इतने प्यार को देखकर मना नहीं कर पाई। एक यही तो थी जो बिना स्वार्थ के प्रीति से प्यार करती थी। कुछ देर में रूही प्रीति को पूरा खाना खिला देती है। खाना खाने के बाद रूही प्रीति को दवा देती है और उसे अच्छे से लेटा देती है। कुछ देर में ही दवा की वजह से प्रीति नींद के आगोश में चली जाती है।

    कुछ वक़्त बाद वहाँ डॉक्टर आते हैं और प्रीति को चेक करते हैं। सब कुछ नॉर्मल बताकर डॉक्टर चले जाते हैं। ऐसे ही एक महीना बीत जाता है। इस एक महीने में रूही प्रीति के साथ साये की तरह रही। रूही ने प्रीति की हर एक चीज़ का ख़्याल रखा। इस एक महीने में प्रीति को देखने कोई नहीं आया; ना उसका पति, ना प्रीति के डैड। पर प्रीति का दोस्त अनुज आता था।

    जब अनुज को पता चला कि प्रीति का एक्सीडेंट हुआ है और वह अस्पताल में एडमिट है, तब से वह दिन में प्रीति से रोज मिलने आता था। कुछ वक़्त बाद प्रीति को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल जाता है। प्रीति रूही का हाथ पकड़े बाहर आ रही थी। अस्पताल के बाहर आते ही प्रीति ने एक गहरी, लम्बी साँस ली और बोली, "फ़ाइनली, एक महीने की कैद से मैं रिहा हो गई। कितना सुकून मिल रहा है बाहर की हवा में।"

    अनुज और रूही प्रीति को देख मुस्कुरा देते हैं। रूही प्रीति को गाड़ी में बिठाते हुए बोली, "चल, गाड़ी में बैठ, हम घर चल रहे हैं।"

    प्रीति घर का नाम सुनकर उदास हो जाती है। इतने वक़्त में उसके चेहरे पर जो मुस्कराहट थी, वह चंद सेकेंड में गायब हो जाती है। रूही और अनुज भी यह महसूस कर रहे थे, पर उन्हें घर तो जाना ही था। ऐसे कब तक अपने घर से प्रीति बाहर रह सकती थी? कुछ वक़्त में उनकी गाड़ी हवा से बातें करने लगती है। एक बड़े से विला में इस वक़्त बिलकुल सन्नाटा पसरा हुआ था। एक कमरे में एक लड़का बैठा लगातार सिगरेट के कश ले रहा था। उसके हाथ में इस वक़्त फोन था, जिसमें वह एक लड़की की तस्वीर देख रहा था; बड़ी-बड़ी नीली आँखें, सुरख गुलाबी होंठ, छोटी नाक, तीखे आइब्रो, काले बाल, गोरा रंग। वह लड़की बहुत प्यारी और सुंदर थी; उसके चेहरे में एक अलग सी कशिश थी, जिसमें वह लड़का खो सा गया था।

    तभी उसके रूम का दरवाज़ा खटखटाया जाता है। वह लड़का आखिरी बार उस तस्वीर को देखकर अपना फोन बंद करता है और अपनी रोभीली आवाज़ में बोला, "कम इन।"

    उस लड़के की आवाज़ सुनकर एक लड़का अंदर आता है, जो उसकी उम्र का था। उस लड़के के हाथ में एक फ़ाइल थी। वह लड़का पहले वाले लड़के को फ़ाइल देते हुए बोला, "विहान, एक बार और सोच ले!"

    विहान अपनी भूरी आँखों से उस लड़के को घूरते हुए बोला, "उसको डिस्चार्ज मिल गया।"

    वह लड़का हाँ में गर्दन हिला देता है। विहान अब उस फ़ाइल को देखने लगता है। पहले पेज पर लिखा था, "तलाक के कागज़ात। यह वही पेपर है जो शादीशुदा जोड़े को अलग करने की ताक़त रखता है। तलाक किसी के लिए अच्छा साबित होता है तो किसी के लिए बुरा।"

    आखिर विहान क्यों देना चाहता है प्रीति को तलाक? क्या विहान को सच में फ़र्क नहीं पड़ता प्रीति के जीने या मरने से?

    जारी है.....

  • 2. तमन्ना तु मेरी - Chapter 2

    Words: 1164

    Estimated Reading Time: 7 min

    विहान लगातार अपनी भूरी आँखों से उस नाम को घूर रहा था, जैसे वह कुछ सोच रहा हो। कुछ देर ऐसे ही घूरने के बाद, विहान फाइल सामने खड़े लड़के को वापस देते हुए बोला, "इसे उस तक पहुँचा दो।"

    वह लड़का एक गहरी साँस छोड़ते हुए बोला, "ठीक है। अगर तुमने फैसला कर ही लिया है, तो मैं कौन होता हूँ तुम्हें रोकने वाला? पर इतना ज़रूर कहूँगा, तुम पछताओगे बहुत।"

    विहान उस लड़के की बात सुनकर गुस्सा हो गया। विहान गुस्से में, एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला, "विक्की, प्लीज़ अभी जा यहाँ से। ऐसा न हो कि मैं गुस्से में तुझे चोट पहुँचा दूँ।"

    विक्की हाँ में सर हिला देता है और चला जाता है। विहान विक्की के जाने के बाद कुछ देर उसी दिशा में देखता रहता है और फिर वाशरूम की ओर चला जाता है।

    कुछ वक्त बाद, विक्की एक बंगले के आगे खड़ा था। वह अंदर जाने को हुआ कि एक गाड़ी का हॉर्न सुनकर रुक जाता है। गाड़ी उसके पास आकर रुकती है। विक्की गौर से गाड़ी की ओर देखने लगता है। प्रीति गाड़ी से बाहर आती है; उसके चेहरे पर उदासी छाया हुआ था।

    प्रीति के साथ रूही भी गाड़ी से निकल जाती है। अनुज गाड़ी पार्क करने के लिए चला जाता है। प्रीति अपने सामने विक्की को देख मुस्कुरा देती है और भागते हुए जाती है और उसे गले लगा लेती है। विक्की भी मुस्कुराते हुए प्रीति को गले लगा लेता है।

    रूही विक्की की ओर देखती तक नहीं। यह बात विक्की नोटिस कर रहा था। विक्की प्रीति का सर सहलाते हुए बोला, "बच्चा, अब कैसी तबीयत है आपकी?"

    प्रीति मुस्कुराते हुए बोलने वाली थी कि उससे पहले ही रूही बोल पड़ती है, "इतने दिन आप कहाँ थे, विक्रांत राठौड़? अब आपको प्रीति की तबीयत से क्या लेना-देना है?" रूही अपने दोनों हाथ आपस में बाँधते हुए कहती है।

    विक्की (विक्रांत राठौड़) जानता था, अब इस प्रश्न को पूछना गलत है; पर प्रीति को अपने सामने देख, विक्की से रहा नहीं गया और वह प्रीति से पूछ बैठा। रूही की बात पर प्रीति उसे देखते हुए बोली, "रूही, तू शांत रहे, हम बात कर रहे हैं ना!"

    प्रीति की बात पर रूही कुछ नहीं कहती है और चुपचाप वहीं खड़ी रहती है। प्रीति विक्की की ओर देखते हुए बोली, "हम जानते हैं आप हमें हॉस्पिटल में देखने आते थे!" प्रीति की बात पर रूही और विक्की को झटका लगता है। विक्की तो इस बात से हैरान था कि आखिर प्रीति को कैसे पता विक्की उसे देखने आता था, वहीं रूही को इस बात से हैरानी होती है कि आखिर यह इंसान कब मिलने आया प्रीति से।

    प्रीति अपनी बात आगे बढ़ाते हुए, मुस्कुराते हुए कहती है, "विक्की भाई, हम बिलकुल ठीक हैं और जैसे पहले थे, वैसे अब हैं।... आप चलिए अंदर, बाहर क्यों खड़े हैं?"

    तब तक अनुज भी कार पार्क करके आ जाता है। विक्की प्रीति को देखते हुए बोला, "नहीं बच्चा, कभी बाद में आएँगे। अभी हमें कुछ ज़रूरी काम है। हम बस आपको यह फाइल देने आए थे।" प्रीति को पता था इस फाइल में क्या है। प्रीति मुस्कुराते हुए फाइल ले लेती है।

    उसके दिल पर क्या गुज़र रही थी, यह कोई नहीं जानता; पर फिर भी प्रीति के चेहरे पर मुस्कराहट बरकरार थी। विक्की प्रीति को फाइल देकर उसका सर सहलाता है और एक नज़र रूही को देख वहाँ से चला जाता है।

    प्रीति फाइल को अपने हाथ में कसकर पकड़ते हुए रूही और अनुज की ओर मुड़ती है। दोनों की नज़र प्रीति पर थी। प्रीति दोनों को देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली, "चलो अब अंदर चलते हैं। बाहर खड़े रहने का इरादा है क्या?"

    दोनों मुस्कुराते हुए एक साथ बोले, "बिलकुल नहीं।"

    तीनों दोस्त अंदर चले जाते हैं। अंदर, लिविंग रूम में, उसके पापा उसकी सौतेली माँ के पास बैठे कुछ बातें कर रहे थे। प्रीति को आता देख मुस्कुराते हुए बोले, "आ गया हमारा बच्चा।" प्रीति हाँ में गर्दन हिला देती है। उसे अंदर ही अंदर अपने पापा पर बहुत गुस्सा आ रहा था।

    प्रीति की सौतेली माँ, रचना, नाटक करते हुए, मीठी आवाज़ में बोली, "कैसी हो प्रीति बेटा?"

    प्रीति एक बड़ी सी फ़ेक स्माइल देते हुए बोली, "आपकी दया से मैं बहुत अच्छी हूँ जी। भगवान् आपकी दिव्य दृष्टि मुझ पर हमेशा बनाए रखें।"

    प्रीति की बात सुनकर रचना मुँह बना लेती है। वहीं, प्रीति के पिता को प्रीति का ऐसे बात करना अच्छा नहीं लगता। प्रीति अपने पापा को इग्नोर कर वहाँ से अपने रूम में चली जाती है।

    रूही प्रीति के पीछे चली जाती है और अनुज वहीं पर बैठकर प्रीति के पापा, आकाश खुराना से बात करने लगता है। अनुज के डैड भी एक बिज़नेसमैन थे; अभी अनुज अपने डैड का बिज़नेस संभाल रहा था। आकाश जी और रचना दोनों अनुज से अच्छे से पेश आ रहे थे।

    वहीं प्रीति अपने रूम में जाती है। रूम में एक औरत की फ़ोटो थी जिसमें उनके साथ प्रीति मुस्कुराते हुए खड़ी थी। वह औरत मुस्कुराते हुए प्रीति को देख रही थी।

    प्रीति बिना भाव के एकटक उस फ़ोटो को देख रही थी। उसके अंदर बहुत दर्द भरा था। अगर उसकी माँ होती, तो वह उनके साथ अपना दर्द बाँट लेती। तभी रूही उसके कंधे पर हाथ रखती है। रूही प्रीति को उदास देख बोली, "आंटी कभी नहीं चाहेगी कि तुम उदास रहो। औरों के लिए नहीं, खुद के लिए जियो। फिर यह दुनिया सबसे अच्छी लगेगी।"

    प्रीति मुस्कुराते हुए पीछे पलटते हुए बोली, "हाँ, तो मैं कहाँ पिछली ज़िंदगी में वापस जा रही हूँ? मैं अब खुद को खुश रखूँगी। ओके?" रूही हाँ में सर हिलाकर बोली, "ओके।" कुछ देर दोनों बात करती हैं। उसके बाद डिनर करके अनुज और रूही चले जाते हैं। प्रीति अपने रूम में लेटे-लेटे उस फ़ाइल को घूर रही थी।

    अगली सुबह

    जिंदल होटल :-

    विहान इस वक्त जिंदल होटल में था। यह होटल विहान का ही है। ऐसे कई सारे होटल और रेस्टोरेंट देश और विदेश में फैले हुए हैं। साथ में विहान की कई सारी कंपनियाँ देश और विदेश में भी थीं। विहान इस वक्त होटल में बने अपने केबिन में बैठा था। तभी उसका दरवाज़ा खटखटाता है। विहान अपनी डिसेंट आवाज़ में "कमिंग" कहता है।

    केबिन का दरवाज़ा खोलकर प्रीति अंदर आती है। इस वक्त प्रीति के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। विहान की नज़रें लैपटॉप पर थीं। वह लैपटॉप से नज़रें हटाकर सामने देखता है तो देखता ही रह जाता है। प्रीति ने पीच कलर की सिल्क साड़ी पहन रखी थी।

    उसके लंबे, कमर तक आते सिल्की बाल, गोरा रंग, भूरी आँखें, गुलाबी होंठ, कानों में छोटे-छोटे हीरे के झुमके, गले में विहान के नाम का मंगलसूत्र, एक हाथ में हीरे का ब्रेसलेट, दूसरे हाथ में ब्रांडेड घड़ी; प्रीति को सबसे खूबसूरत उसके चेहरे पर उसकी वह प्यारी सी मुस्कान बनाती थी।

    जारी है...

  • 3. तमन्ना तु मेरी - Chapter 3

    Words: 2109

    Estimated Reading Time: 13 min

    विहान प्रीति की मुस्कान में खो गया था। प्रीति विहान को कुछ न बोलते देख गला साफ़ करते हुए बोली, "क्या मैं बैठ सकती हूँ?"

    विहान प्रीति की प्यारी आवाज़ सुनकर होश में आया।

    "हाँ," विहान ने सिर हिलाया। प्रीति विहान के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। विहान प्रीति को देखते हुए बोला, "चाय लोगी या कॉफ़ी?"

    प्रीति मुस्कुराते हुए बोली, "नथिंग।" प्रीति ने अपने साथ लाई फाइल विहान के सामने रख दी। विहान ने एक नज़र फाइल पर देखी और फिर प्रीति को देखने लगा।

    प्रीति ने फाइल को आगे सरकाते हुए कहा, "ये तलाक़ के कागज़ मैंने साइन कर दिए हैं और ये..." इतना कहकर उसने गले में बंधा मंगलसूत्र उतारा और हाथ में पहनी डायमंड की अंगूठी निकाली। विहान उसे ये करते हुए देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसे बुरा लग रहा था या अच्छा, ये बता पाना मुश्किल था। प्रीति ने अंगूठी और मंगलसूत्र भी फाइल पर रख दिए। प्रीति ने आखिरी बार मंगलसूत्र और अंगूठी को देखते हुए विहान की ओर देखा।

    उसके चेहरे पर मुस्कान अब भी बनी हुई थी। प्रीति विहान को देख मुस्कुराते हुए बोली, "शायद हम एक-दूसरे के लिए कभी नहीं बने थे। अगर जाने-अनजाने में मैंने कभी भी आपका दिल दुखाया हो तो उसके लिए मुझे माफ़ कर देना। अब से मैं कभी भी आपके सामने नहीं आऊँगी। मिलते हैं कुछ देर में कोर्ट में!"

    इतना कहकर प्रीति वहाँ से खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर मुस्कान अब भी बनी हुई थी। प्रीति वहाँ से जाने के लिए पीछे मुड़ी, तभी उसके कानों में विहान की आवाज़ सुनाई दी। विहान ने अपनी भावहीन आवाज़ में मंगलसूत्र और अंगूठी को देखते हुए कहा, "तुम्हें एलिमनी में क्या चाहिए?"

    प्रीति ने अपनी आँखें बंद कर लीं। भले ही उसके चेहरे पर मुस्कान हो, पर अंदर से उसका दिल रो रहा था। वह कभी भी विहान को तलाक़ नहीं देना चाहती थी, पर विहान के बर्ताव और उसके रूखे व्यवहार की वजह से प्रीति उसे अब खुद से आज़ाद करना चाहती थी। प्रीति ने एक गहरी साँस लेकर खुद को शांत करते हुए पीछे मुड़ी। इस वक़्त उसके चेहरे पर वही मुस्कान थी।

    प्रीति मुस्कुराते हुए अपनी प्यारी सी आवाज़ में बोली, "हमें कुछ नहीं चाहिए। हमारे पास सब कुछ है और जो नहीं है, उसे हम कभी पा नहीं सकते।" इतना कहकर प्रीति बिना विहान की बात सुने वहाँ से चली गई। विहान प्रीति के जाते ही मंगलसूत्र अपने हाथ में उठाया और उसे कुछ देर देखा। मंगलसूत्र देखते हुए उसे अपनी शादी का दिन याद आ गया।

    लाल शादी के जोड़े में सजी प्रीति बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। इस वक़्त वह मंडप में बैठी थी। उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। वहीं उसके बगल में बैठे विहान के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह अपने भावहीन चेहरे से हवन कुंड में जल रही अग्नि को देख रहा था। तभी उसे पंडित जी की आवाज़ सुनाई दी जो उन्हें फेरों के लिए खड़े होने को कह रहे थे। विहान और प्रीति फेरों के लिए खड़े हो गए।

    कुछ देर में उनके फेरे पूरे होने के बाद पंडित जी ने विहान को प्रीति की मांग में सिंदूर भरने को कहा। विहान ने मांग में सिंदूर भरा और उसके बाद प्रीति के गले में मंगलसूत्र डाला।

    विहान मंगलसूत्र हाथ में लिए एकटक उसे देख रहा था। वहीं प्रीति विहान के केबिन से बाहर जा रही थी। वह जैसे-जैसे वहाँ से जा रही थी, वैसे-वैसे उसे लग रहा था उसकी रूह उससे छूटती जा रही है। प्रीति अपने भारी मन के साथ होटल से बाहर आ गई।

    बाहर अनुज और रूही गाड़ी में बैठे प्रीति का इंतज़ार कर रहे थे। प्रीति ने दोनों को मुस्कुराते हुए गाड़ी में बैठ गई। कुछ वक़्त बाद तीनों फ़ैमिली कोर्ट के बाहर खड़े थे। तभी वहाँ विहान आ गया। विहान के साथ विक्की भी आया। प्रीति बाहर ही विहान के आने का इंतज़ार कर रही थी। विहान के वहाँ आते ही प्रीति अंदर चली गई। विहान जाती हुई प्रीति को देखता रहा और कुछ देर में अंदर चला गया।

    सामने एक महिला जज बैठी थी। विहान ने उसे फाइल दे दी। प्रीति चुपचाप बैठे जज को काम करते हुए देख रही थी। जज फाइल के पेज पलटते हुए बोली, "आप लोग तलाक़ क्यों लेना चाहते हो?"

    जज की बात सुनकर विहान और प्रीति की नज़रें एक-दूसरे पर चली गईं। वहीं जज दोनों को गौर से देख रही थी। प्रीति ने विहान से अपनी नज़रें हटाकर कहा, "वो हम दोनों एक-दूसरे के लायक नहीं हैं, और न ही हम दोनों में बनती है, इसलिए हम अलग होना चाहते हैं।"

    प्रीति की बात सुनकर जज विहान को देखती है जो अब भी प्रीति को देख रहा था। जज विहान को देखते हुए बोली, "और आप, मिस्टर जिंदल, आप कुछ कहना चाहेंगे?" विहान जज की बात सुनकर जज की ओर देखते हुए बोला, "मैं इससे तलाक़ नहीं लेना चाहता!"

    विहान की बात सुनकर प्रीति की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। प्रीति विहान को देखते हुए बोली, "ये आप क्या कह रहे हैं? आप ही तो चाहते थे ना कि हम आपसे दूर रहें?" विहान प्रीति को देख उसकी ओर झुकते हुए बोला, "और अब मैं ही कह रहा हूँ कि मुझे तुमसे तलाक़ नहीं चाहिए!"

    "यह क्या मतलब हुआ आपका? हम क्या कोई आपके गुलाम हैं जो आपकी बातें मानते रहें? अब हम आपको तलाक़ देना चाहते हैं!" प्रीति थोड़े गुस्से में विहान को देखते हुए बोली। विहान प्रीति के चेहरे के पास जाते हुए बोला, "पर मुझे तुमसे तलाक़ नहीं चाहिए!" जज की ओर देखता है।

    जज दोनों की ओर देखते हुए बोली, "मुझे लगता है पहले आप लोगों को डिसाइड कर लेना चाहिए कि आपको तलाक़ लेना है या नहीं। उसके बाद आप यहाँ आना।" प्रीति विहान को देख गुस्से में वहाँ से उठकर चली गई।

    प्रीति गुस्से में चलते हुए बाहर आ गई। प्रीति खुद में ही बड़बड़ा रही थी, "समझता क्या है खुद को? कभी कहता है मेरे साथ नहीं रहना और अब कह रहा है तलाक़ नहीं देना। इसे तो मेरे जीने-मरने से फ़र्क नहीं पड़ता, फिर क्यों मुझे तलाक़ नहीं दे रहा है?" प्रीति को आता देख रूही और अनुज उसके पास आ गए।

    वहीं विहान भी प्रीति के पीछे-पीछे आ गया। प्रीति विहान को बाहर देख उसके पास जाकर बोली, "आखिर चाहते क्या हैं आप हमसे? जब हम आपके करीब आना चाहते थे तब आपने हमें खुद से दूर कर दिया, और जब हम आपसे दूर जाना चाहते हैं तो आप हमें जाने नहीं दे रहे हैं। क्या चाहिए आपको हमसे?"

    रूही, अनुज और विक्की जो इनका बाहर इंतज़ार कर रहे थे, उन्हें ये सुनकर शौक लगा कि विहान ने प्रीति को तलाक़ देने से मना कर दिया। विहान प्रीति की बात सुनकर कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप उसे देखता रहा। विहान के ऐसे चुप खड़े रहने पर प्रीति को गुस्सा आ गया। प्रीति गुस्से में विहान को अंगुली दिखाते हुए बोली, "इस बार हम आपको अपने ज़ज़्बातों के साथ नहीं खेलने देंगे, समझे आप!" इतना कहकर प्रीति पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई।

    रूही और अनुज भी प्रीति के पीछे चले गए। विहान जाती हुई प्रीति को देखता रहा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि विहान क्या सोच रहा है।

    विक्की जाती हुई प्रीति को देखता है और फिर विहान के पास आकर बोला, "आखिर करना क्या चाहता है तू? क्यों उस लड़की को तड़पा रहा है? पहले कहता है तलाक़ लेना है और जब वो तलाक़ लेने के लिए तैयार है तब तू उसे तलाक़ नहीं दे रहा है!"

    विहान विक्की की ओर देखते हुए बोला, "उसे आज जितनी तकलीफ़ हो रही है ना, उससे कई ज़्यादा तकलीफ़ मैं झेल चुका हूँ। इसकी वजह से मुझे किर्ति से अलग होना पड़ा। तू जानता है ना मैं किर्ति से कितना प्यार करता था और इस लड़की के लिए वो मुझे छोड़कर चली गई। नफ़रत है मुझे इससे!" इतना कहकर विहान वहाँ से चला गया।

    विक्की जाते हुए विहान को देखते हुए मायूस होकर बोला, "आखिर तू क्यों नहीं समझ रहा है? किर्ति बस तेरे साथ, तेरे पैसों के लिए थी। इसमें इसकी कोई गलती नहीं है।" वहीं प्रीति आँखें बंद किए गाड़ी में बैठी थी और उस दिन को याद कर रही थी जिस दिन उसकी शादी होने वाली थी।

    प्रीति की सौतेली बहन किर्ति जिसकी शादी विहान से होने वाली थी, शादी की रस्में बड़े धूमधाम से की जा रही थीं। प्रीति को इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। प्रीति सभी रस्मों-रिवाजों से दूर रहती थी, पर शादी वाले दिन जब विहान मंडप में बैठा था तब किर्ति शादी छोड़कर भाग गई और प्रीति के पापा अपनी बिज़नेस डील को बचाने के लिए प्रीति को शादी के मंडप में बिठा देते हैं।

    और जब विहान को इस बात का पता चला तब से विहान प्रीति से बात करना दूर, उसके साथ एक कमरे में नहीं रहता था। प्रीति ने कितनी कोशिश की विहान से बात करने की, पर विहान उसकी बात सुनकर भी अनसुना कर देता था। इन छः महीनों में प्रीति ने अपनी माँ भी खो दी, पर अब वो फिर से टूटना नहीं चाहती थी।

    रूही और अनुज प्रीति को परेशान देख रहे थे। कुछ वक़्त बाद प्रीति की कार उसके घर के बाहर आकर रुकी। प्रीति ने एक गहरी, लम्बी साँस लेकर अपने घर को देखा जहाँ उसका बचपन बीता था। प्रीति गाड़ी से बाहर निकल गई और रूही को देख बोली, "मेरी फ़िक्र मत करो, मैं बिलकुल ठीक हूँ।" इतना कहकर प्रीति अंदर चली गई।

    प्रीति जैसे ही अंदर गई, वहाँ उसका सौतेला भाई करण बैठा था जो अपनी बिज़नेस ट्रिप से कुछ देर पहले ही बाहर आया था। करण को देखते ही प्रीति के आँसू, जो अब तक उसने बहने से रोक रखे थे, वो बह गए। प्रीति दौड़कर करण के गले लग गई और रोने लगी। करण ना समझी में प्रीति को देख रहा था। करण प्रीति के सर को सहलाते हुए बोला, "बच्चा, क्या हुआ है? आप रो क्यों रही हो? मुझे बताओ। किसी ने आपको कुछ कहा? विहान से आपका झगड़ा हुआ है क्या?" प्रीति कुछ नहीं बोली, वो बस रोती रही।

    करण परेशानी से मन में बोला, "ये हो क्या रहा है? मैं जब भी बिज़नेस ट्रिप के लिए बाहर जाता हूँ तो पीछे से प्रीति के साथ कुछ न कुछ हो जाता है। पिछली बार गया था तब प्रीति की शादी हो गई और माँ चल बसी और इस बार प्रीति? आखिर हो क्या रहा है।"

    करण प्यार से प्रीति की पीठ सहलाते हुए बोला, "बच्चा, शांत हो जाओ। मुझे बताओ क्या हुआ है, आपके करण भाई आ गए हैं ना, देखना सब सही कर देंगे।" कुछ देर बाद प्रीति का रोना कुछ कम हो गया। प्रीति सिसकते हुए करण से दूर हुई। करण प्रीति को सोफ़े पर बैठाया और टेबल से पानी का गिलास उठाकर पानी पिलाया।

    प्रीति थोड़ा सा पानी पीती है। करण गिलास वापस रखते हुए प्रीति को देखते हुए बोला, "अब बताओ क्या हुआ है?" प्रीति सिसकते हुए बोली, "विहान मुझे तलाक़ देना चाहते हैं।" प्रीति की बात सुनकर करण को जैसे शोक लगा, पर उससे ज़्यादा उसे विहान पर गुस्सा आया। करण गुस्से में मुट्ठी कसते हुए बोला, "उसकी इतनी हिम्मत? आज मैं उसे नहीं छोड़ूँगा!" इतना कहकर करण वहाँ से जाने को हुआ कि प्रीति उसका हाथ पकड़ लेती है।

    करण प्रीति को देखते हुए बोला, "बच्चा, छोड़ो। मुझे उसे उसके किए की सज़ा मिलनी चाहिए।" प्रीति ना में सिर हिलाकर बोली, "नहीं भाई, पहले आप मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए!"

    करण प्रीति को देखते हुए उसकी ओर मुड़ते हुए बोला, "अब और क्या सुनूँ? पहले तेरी शादी तुझे बिन बताए अचानक विहान से करवा दी जाती है और अब छः महीने हुए हैं शादी को और वो तुझे तलाक़ दे रहा है!"

    प्रीति करण का हाथ पकड़ उसे सोफ़े पर बिठाते हुए बोली, "विहान पहले मुझे तलाक़ देना चाहते थे। एक महीने पहले उन्होंने मुझसे कहा कि वो मुझे तलाक़ देना चाहते हैं..."

    जारी है...

  • 4. तमन्ना तु मेरी - Chapter 4

    Words: 1100

    Estimated Reading Time: 7 min

    फ्लैशबैक:

    प्रीति अपने कमरे में बैठी किताबें पढ़ रही थी। वह बहुत ध्यान से किताबें पढ़ रही थी। तभी कमरे में विहान आया। विहान के कदमों की आवाज सुनकर प्रीति ने अपना सिर उठाकर ऊपर देखा। सामने विहान खड़ा था। शादी के पाँच महीने बाद विहान के कदम पहली बार प्रीति के कमरे की ओर आए थे। प्रीति विहान को देखकर खड़ी हो गई। विहान ने प्रीति को एक नज़र देखा और बोला, "मुझे तुमसे तलाक चाहिए।"

    विहान की बात सुनकर प्रीति पर कोई असर नहीं हुआ। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि विहान उससे तलाक चाहता है। प्रीति विहान की आगे की बात सुनकर अपने होश में आई।

    विहान आगे बोला, "मुझे तुमसे छुटकारा चाहिए। जल्द ही मैं तुम्हें तलाक़ के कागज़ तुम्हारे घर पर पहुँचा दूँगा। तुम आज ही और इसी वक्त यह घर छोड़कर चली जाओ। तुम्हें एलिमनी में जितने भी पैसे चाहिए, बता देना, मैं दे दूँगा।" इतना कहकर विहान बिना समय गँवाए वहाँ से चला गया।

    प्रीति की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। प्रीति को विहान की बात सुनकर सदमा लगा। उसने तो सोचा था कि विहान को उसे स्वीकार करने में थोड़ा वक्त लगेगा। विहान की शादी अचानक उससे हो गई थी और विहान तो प्रीति को जानता तक नहीं था, ना ही उसने प्रीति से बात की थी। ऐसी शादी में कुछ वक्त तो लगेगा दोनों को जानने में, पर यहाँ तो विहान प्रीति को तलाक देना चाहता है और उसे घर से चले जाने को भी कह रहा है। ऐसे कैसे वह विहान के कहते ही घर छोड़कर जा सकती है? नहीं, वह नहीं जाएगी।

    प्रीति आँसू पोछकर विहान के पीछे बाहर चली गई। विहान इस वक्त लिविंग रूम में बैठा चाय पी रहा था। विहान को लिविंग रूम में बैठा देख प्रीति नीचे जाने लगी। प्रीति की पायल की आवाज सुनकर विहान को पता चल गया कि प्रीति नीचे आ रही है, पर उसने उसकी ओर देखा तक नहीं।

    प्रीति नीचे आकर विहान के सामने जाकर खड़ी हो गई और अपनी गर्दन नीचे झुकाकर बोली, "हम आपको तलाक़ नहीं देना चाहते हैं। हम आपके साथ रहना चाहते हैं, इसलिए यह घर छोड़कर हम कहीं नहीं जाएँगे।"

    विहान ने अपनी नज़रें उठाकर प्रीति को देखा जो अपनी नज़रें झुकाए विहान के सामने खड़ी थी। विहान गुस्से में चिल्लाते हुए जोर से आवाज लगाई, "सुमित्रा आंटी! आप जहाँ भी हैं, अभी के अभी हमारे सामने आएँ!" प्रीति विहान की तेज़ आवाज सुनकर गुस्से से काँप गई।

    सुमित्रा आंटी, जो घर की नौकरानी थीं, उनकी उम्र पचास के आसपास थी। विहान की गुस्से वाली आवाज सुनकर वह किचन से दौड़ते हुए बाहर आई। "जी साहब, कहिए!"

    विहान गुस्से में प्रीति को घूरते हुए बोला, "इस लड़की का सामान पैक करके अभी के अभी नीचे लेकर आएँ!" सुमित्रा आंटी विहान की बात सुनकर ऊपर प्रीति के कमरे की ओर चली गईं।

    प्रीति ने ना में गर्दन हिलाते हुए रोते हुए कहा, "हम कहीं नहीं जाने वाले। इस घर को और आपको छोड़कर हम आपके साथ ही रहेंगे।" विहान प्रीति को गुस्से में घूर रहा था तो प्रीति विहान की आँखें देखकर अपनी गर्दन झुकाकर रोने लगी। विहान की आँखें गुस्से से लाल हो गई थीं। वह प्रीति को अपनी लाल आँखों से घूर रहा था।

    कुछ देर में सुमित्रा आंटी प्रीति का सामान पैक करके लगेज लेकर आ गईं। विहान ने सुमित्रा आंटी से लगेज लिया और प्रीति का हाथ पकड़कर गेट की ओर ले जाने लगा। सुमित्रा आंटी को भी प्रीति को देखकर बुरा लग रहा था, पर वह कुछ नहीं कर सकती थी। आखिर वह तो उस घर की एक नौकरानी ही थी। प्रीति विहान से रोते हुए अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। "विहान, छोड़िए हाथ! छोड़िए हमारा! हमें कहीं नहीं जाना, आपको छोड़कर!" पर विहान पर प्रीति की बातों का कोई असर नहीं दिखाई दे रहा था।

    विहान ने प्रीति का लगेज गेट के बाहर फेंकते हुए प्रीति को बाहर निकालकर छोड़ दिया। विहान ने प्रीति को देखकर गुस्से में कहा, "चली जाओ यहाँ से और याद रखना, कभी मेरे सामने मत आना!"

    प्रीति हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, "हम आपके बिना मर जाएँगे! प्लीज, हमें घर में रहने दीजिए। मैं वादा करती हूँ, कभी भी आपके सामने नहीं आऊँगी।"

    विहान गुस्से में अपने दाँत पीसते हुए बोला, "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तुम जियो या मरो। और एक बात का ख्याल रखना, दुबारा कभी भी इस घर के आसपास नज़र मत आना!" इतना कहकर विहान ने गेट बंद कर दिया।

    प्रीति रोते हुए वहीं बैठ गई। गार्ड को भी प्रीति को देखकर दया आ रही थी। इतने दिनों में प्रीति ने सबके दिलों में अपने लिए जगह बना ली थी। उसकी मासूमियत और बचपना देख सबको प्रीति से लगाव हो गया था, पर कोई कुछ नहीं कह सकता था। सभी गर्दन झुकाए खड़े रहे। प्रीति दो घंटे तक वहीं बैठकर रोती रही।

    आखिर में थक-हारकर प्रीति ने रूही को कॉल किया। रूही ने कॉल उठाते ही प्रीति ने रोते हुए उसे सारी बात बता दी। प्रीति की बात सुनकर रूही उसे लेने के लिए तुरंत घर से निकल गई। प्रीति ने एक आखिरी नज़र घर को देखकर वहाँ से अपना लगेज उठाकर रोते हुए चली गई। विहान अपने कमरे की बालकनी में खड़ा प्रीति को जाते हुए देख रहा था। विहान की आँखों में इस वक्त कोई भाव दिखाई नहीं दे रहे थे।

    विहान कुछ देर बालकनी से उधर देखता रहा जहाँ प्रीति गई थी और फिर कमरे में चला गया। इधर प्रीति बेसुध सी सड़क पर चली जा रही थी। प्रीति को आज पूरी दुनिया रूठी सी लग रही थी। इस वक्त प्रीति को अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी। उसकी माँ ने उसकी आँखों में एक आँसू तक नहीं आने दिया था और आज यहाँ कोई भी नहीं है जो प्रीति के आँसू पोछ सके। प्रीति खुद में उलझी सड़क के बीचो-बीच चली जा रही थी! और पीछे से एक ट्रक फुल स्पीड में प्रीति की ओर आ रहा था।

    सामने से रूही अपनी कार लेकर प्रीति को लेने आ रही थी। रूही ने प्रीति को कितनी आवाजें लगाईं, पर प्रीति को एक भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। और ट्रक प्रीति को टक्कर मार देता है। प्रीति उछलते हुए कुछ दूरी पर जाकर गिरती है।

    रूही गाड़ी रोककर प्रीति की ओर भागती है। वह ट्रक वाला एक तिरछी मुस्कराहट करते हुए वहाँ से निकल जाता है।

    जारी है...

  • 5. तमन्ना तु मेरी - Chapter 5

    Words: 1050

    Estimated Reading Time: 7 min

    रूही ने आस-पास के लोगों की मदद से प्रीति को अस्पताल पहुँचाया। करण प्रीति की बातें सुनते-सुनते गुस्से से भर गया। प्रीति ने करण को सारी बातें बता दीं। प्रीति की बातें सुनकर करण ने उसे देखा और बोला, "और तुम मुझे अब बता रही हो? इतना कुछ हो गया तुम्हारे साथ और तुमने मुझे एक बार भी बताना ज़रूरी नहीं समझा? क्या मैं तुम्हारा कुछ नहीं लगता?"


    प्रीति ने जल्दी से सिर हिलाते हुए ना में कहा, "नहीं भाई, ऐसा नहीं है। मैं आपको बताना चाहती थी, पर अचानक वो एक्सीडेंट हो गया और मैं नहीं बता पाई। उसके बाद मैंने सोचा आप काम में बिज़ी हो, इसलिए आपको परेशान नहीं किया मैंने।"


    करण की आँखों में प्रीति को देखकर आँसू आ गए। करण ने प्रीति के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा, "इतना दर्द अकेले कैसे सहा तुमने? बच्चा, कम से कम एक बार फोन करके देख लेती। आपका भाई आपके लिए सब कुछ छोड़कर आ सकता था!"


    प्रीति करण के गले लग गई और बोली, "मुझे पता है भाई आप आ जाते मेरे लिए, पर मैं अपनी वजह से आपको परेशान नहीं करना चाहती थी।" करण ने प्रीति के आँसू पोंछे और बोला, "शायद माँ-डैड आ गए हैं, मैं देखता हूँ। और इस बारे में हम बाद में बात करते हैं।" प्रीति ने सिर हिला दिया। करण गेट खोलने चला गया।


    सामने खड़े शख्स को देखकर उसकी मुट्ठी गुस्से में बंद हो गई। करण ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा, "अब तुम यहाँ क्या करने आए हो?" सामने कोई और नहीं, विहान खड़ा था।


    विहान ने करण को अपनी रूखी आवाज़ में कहा, "अपनी वाइफ को लेने आया हूँ।" करण गुस्से में विहान की कॉलर पकड़ते हुए बोला, "मेरी बहन तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाएगी, समझे तुम? चले जाओ यहाँ से और कल कोर्ट आ जाना!"


    विहान ने सिर टेढ़ा करके करण के हाथों को देखा जो उसकी कॉलर पर पकड़े हुए थे। विहान ने अपनी रूखी आवाज़ में करण से कहा, "हाथ हटाओ अपने।" प्रीति ने बाहर से आवाज़ सुनकर बाहर आते हुए कहा, "भाई, कौन है और ये..." आगे के शब्द उसके गले में अटक गए क्योंकि सामने विहान खड़ा था और करण गुस्से में उसकी कॉलर पकड़े खड़ा था।


    विहान ने प्रीति को देखा, जिसका गोरा चेहरा रोने की वजह से लाल हो गया था, उसकी आँखें सूजकर बड़ी हो गई थीं। विहान ने प्रीति को देखते हुए करण के हाथ अपनी कॉलर से हटा लिए और करण को देखते हुए बोला, "आइंदा से अपने हाथों को कण्ट्रोल में रखना, वरना धड़ से अलग करने में वक़्त नहीं लगाऊँगा।"


    विहान की धमकी सुनकर करण कुछ बोलने वाला था कि प्रीति करण के आगे आ गई और बोली, "मिस्टर विहान जिंदल, हिम्मत कैसे हुई आपकी मेरे भाई को धमकी देने की?" विहान ने प्रीति को बिना किसी इमोशन के देखा और बोला, "मेरे पास इतना वक़्त नहीं है कि मैं एक बात दो बार दोहराऊँ, मैं तुम्हें लेने आया हूँ, चलो मेरे साथ।"


    विहान की बात सुनकर प्रीति को गुस्सा आ गया। वह गुस्से में विहान को देखते हुए बोली, "अब क्या बाकी रह गया है आपका? मुझे कहीं नहीं जाना आपके साथ। जिस मुँह से आए थे, उसे उठाइए और चलते बनिए यहाँ से। दुबारा मेरे घर के आस-पास दिखाई मत देना।"


    इतना कहकर प्रीति ने करण का हाथ पकड़ा और उसे अंदर ले जाने लगी। विहान ने जाती हुई प्रीति का हाथ पकड़ लिया। प्रीति पीछे पलटकर देखती है तो विहान उसका हाथ पकड़े उसे देख रहा था। प्रीति ने करण का हाथ छोड़ विहान की ओर देखा।


    विहान ने प्रीति का हाथ पकड़ उसे अपने साथ ले जाते हुए कहा, "मैंने कहा ना मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है, चलो यहाँ से।" करण ने विहान को पीछे से आवाज़ लगाई, "विहान, प्रीति को छोड़ वो कहीं नहीं जाएगी तेरे साथ।"


    विहान ने करण की बात का कोई जवाब नहीं दिया और प्रीति को ले जाने लगा। प्रीति एक जगह रुक गई। विहान पीछे पलटकर देखा तो प्रीति एकटक विहान को देख रही थी, उसकी आँखों में आँसू थे। प्रीति हँसते हुए विहान से बोली, "अब क्यों ले जा रहे हो वहाँ? तुमने ही तो कहा था कि मैं वहाँ से हमेशा के लिए चली जाऊँ, दुबारा कभी भी तुम्हारे सामने ना आऊँ, और अब तुम खुद मुझे वहाँ लेकर जा रहे हो? क्यों?"


    विहान ने प्रीति को देखते हुए अपनी ठंडी आवाज़ में कहा, "जस्ट सिंपल, तुम मेरी वाइफ हो और मैं अपनी वाइफ को अपने घर लेकर जा रहा हूँ।"


    "अब तुम्हें तुम्हारी वाइफ याद आ गई? तब कहाँ थे तुम जब इसका एक्सीडेंट हुआ था और एक महीने तक अस्पताल में पड़ी रही?" करण विहान के पास आते हुए कहता है।


    विहान ने प्रीति को एक झटके में अपने कंधे पर उठाते हुए कहा, "वो सब बाद में बताऊँगा, अभी फिलहाल मैं अपनी वाइफ को अपने साथ लेकर जा रहा हूँ।" प्रीति ने विहान के कंधे पर मुक्के मारते हुए कहा, "मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ, छोड़ो मुझे।"


    करण विहान को रोकने के लिए आगे बढ़ा, पर विहान के बॉडीगार्ड ने करण को पकड़ लिया। करण चिल्लाते हुए बोला, "विहान, प्रीति को छोड़ दे, वरना अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए।" विहान ने करण को इग्नोर करते हुए प्रीति को गाड़ी में अगली सीट पर बिठाया। प्रीति रोते हुए विहान से छूटते हुए बोली, "क्यों कर रहे हो तुम ऐसा? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ, छोड़ो मुझे।" विहान ने प्रीति का सीट बेल्ट लगाते हुए कहा, "अब रोना बंद करो और अपने भाई की कंपनी डूबते हुए नहीं देखना चाहती तो चुपचाप खुशी-खुशी मेरे साथ चलो।"


    विहान की बात सुनकर प्रीति ने करण की ओर देखा जो बॉडीगार्ड से छूटने की कोशिश कर रहा था। प्रीति ने करण को अपने बिज़नेस के लिए बहुत मेहनत करते देखा था। वो नहीं चाहती कि उसकी वजह से करण के बिज़नेस को कुछ हो और विहान जो कहता है उसे करने में वक़्त नहीं लगाता। प्रीति ने करण को देखते हुए कहा, "भाई आप चिंता मत करिए, हम आपको फ़ोन करते रहेंगे। आप कुछ मत करना, आपको हमारी कसम।" तब तक विहान भी ड्राइवर सीट पर बैठ गया।

    जारी है...

  • 6. तमन्ना तु मेरी - Chapter 6

    Words: 1074

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने प्रीति की बात सुनकर कहा, "तुम्हें पागल हो गया है? क्यों इसके साथ जा रही हो?" प्रीति ने आँसू पोछते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "आप अपना ख्याल रखना, ओके।" इतना ही कहकर प्रीति ने विहान को गाड़ी आगे बढ़ाने का इशारा किया। विहान ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।


    करण ने झटके से बॉडीगार्ड का हाथ छुड़ाया और विक्की को फोन लगाया। विक्की उस वक्त ऑफिस में बैठा काम कर रहा था। तभी उसका फ़ोन बज गया। विक्की ने फोन देखा; करण का कॉल देखकर वह मुस्कुराते हुए कॉल उठा लिया। विक्की ने कॉल उठाते हुए कहा, "क्या बात है जनाब को बड़े दिन बाद याद आई मेरी?" करण अभी गुस्से में था, इसलिए उसने विक्की की बातों को अनसुना करते हुए कहा, "यह विहान आखिर चाहता क्या है?"


    विक्की कन्फ्यूज़ होकर बोला, "क्या किया है विहान ने?" करण ने टेंशन में अपने माथे पर उंगली चलाते हुए कहा, "प्रीति को जबरदस्ती अपने साथ ले गया है!"


    विक्की ने करण को शांत करते हुए कहा, "तुम टेंशन मत लो। वह कुछ नहीं करेगा प्रीति के साथ। उसे कुछ कन्फ्यूज़न हुई है, वह दूर हो जाएगी। उसके बाद वह प्रीति को अकेला छोड़ना तो दूर, उसके साथ साये की तरह रहेगा।"


    "ऐसी क्या कन्फ्यूज़न है उसे, जिसके लिए वह प्रीति को तलाक देने पर उतर आया और जब प्रीति चाहती है कि वह उसे तलाक दे दे, तो वह उसे तलाक देने से मुकर गया?" करण चिढ़कर बोला।


    विक्की ने एक गहरी साँस लेते हुए करण से कहा, "यह सब वह तुम्हारी सो कोल्ड बहन किर्ति कर रही है और विहान उससे पागलों की तरह प्यार करता है, उसकी बातों पर यकीन कर रहा है।"


    विक्की की बात सुनकर करण गुस्से में दांत पीसते हुए बोला, "वह लड़की वापस आ गई है! उसने प्रीति की ज़िंदगी में कोई कम तूफ़ान नहीं मचाया हुआ है, जो अब दुबारा आ गई उसे परेशान करने!"


    विक्की ने अपने मन की बात करण के सामने रखते हुए कहा, "मुझे इसमें तुम्हारी हेल्प चाहिए। हम दोनों मिलकर विहान के सामने उसकी सच्चाई लाएँगे, वरना विहान उसके कहने पर कहीं प्रीति को कोई नुकसान न पहुँचा दे।"


    करण ने विक्की की बात सुनकर उसे कुछ कहा, उसके बाद कॉल काटते हुए खुद से कहा, "विहान और किर्ति! तुम दोनों को उस मासूम की ज़िंदगी तबाह नहीं करने दूँगा!"


    वहीं प्रीति विहान की गाड़ी में बैठी बाहर की ओर देख रही थी। उसके मन में बहुत से सवाल एक साथ उठ रहे थे। वह जानना चाहती थी कि आखिर विहान ने प्रीति को तलाक देने से मना क्यों किया और अब उसे वापस घर ले जा रहा है, क्यों? ज़्यादा टेंशन की वजह से उसके सर में दर्द हो रहा था, पर वह बहुत समय से उस दर्द को नज़रअंदाज़ कर रही थी और बार-बार उन्हीं बातों के बारे में सोच रही थी।


    कुछ देर में विहान की कार जिंदल मेंशन के आगे आकर रुकी। विहान ने प्रीति की ओर देखे बिना कहा, "अंदर चलो।" और खुद बाहर निकल गया। प्रीति विहान का ऐसा बर्ताव देख कुछ समझ नहीं पा रही थी। प्रीति ने सीट बेल्ट खोली, गाड़ी से बाहर निकली और विहान के पीछे जाने लगी। उसे हल्के-हल्के चक्कर आ रहे थे, पर प्रीति उनको नज़रअंदाज़ करते हुए आगे बढ़ रही थी।


    वहीं विहान प्रीति को देखे बिना उसके आगे चल रहा था। तभी उसे कुछ गिरने की आवाज़ सुनाई दी। विहान पीछे मुड़कर देखा तो प्रीति ज़मीन पर बेहोश गिरी हुई थी। विहान ने प्रीति को देखकर अपने माथे पर उंगली रगड़ते हुए खुद से कहा, "अब इस लड़की को क्या हो गया? यह नाटक क्यों कर रही है?" विहान अपने पैरों के बल प्रीति के सामने बैठते हुए बोला, "देखो, ज़्यादा नाटक मत करो। मैं तुम्हें उठाकर अंदर नहीं ले जाने वाला, इसलिए चुपचाप उठो और अंदर चलो!"


    पर प्रीति थोड़ा सा भी नहीं हिली। विहान ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखकर उसे हिलाते हुए कहा, "प्रीति, उठो! मैं तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूँ, उठो!" पर प्रीति फिर भी नहीं उठी। प्रीति का चेहरा मुरझाया हुआ लग रहा था। विहान खुद से बोला, "लगता है यह सच में बेहोश हो गई है..." विहान ने प्रीति को अपनी बाहों में उठाया और अंदर ले जाने लगा।


    विहान प्रीति को अंदर ले गया और सीधा अपने कमरे में ले गया। विहान ने प्रीति को बिस्तर पर लिटा दिया। विहान ने अपना फोन निकालकर विक्की को कॉल किया। "मुझे पाँच मिनट के अंदर-अंदर एक लेडी डॉक्टर चाहिए। अगर पाँच मिनट से ऊपर टाइम हुआ तो...?" विक्की ने विहान की बात बीच में ही काटते हुए कहा, "ठीक है। अब धमकी मत दो। वैसे तुम्हें लेडी डॉक्टर की ज़रूरत कैसे पड़ गई?"


    विहान विक्की की बात सुनकर गुस्से में बोला, "कुछ ज़्यादा ही नहीं बोल रहा है तू। जितना कहा है उतना कर।" इतना कहकर विहान गुस्से में कॉल काट दिया और एक नज़र प्रीति को देखकर वाशरूम में चला गया। विहान फ्रेश होकर वाशरूम से बाहर आया, तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। विहान ने जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने लेडी डॉक्टर खड़ी थी, उसके साथ एक नौकर भी था।


    विहान ने डॉक्टर को अंदर आने को कहा। डॉक्टर अंदर आ गई। विहान ने प्रीति की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह अचानक बेहोश हो गई। चेक करके बताइए क्या हुआ है इसे?" डॉक्टर ने हाँ में सर हिलाया और प्रीति को चेक करने लगी।


    डॉक्टर ने प्रीति को अच्छे से जाँचा। प्रीति को देख डॉक्टर कुछ सीरियस हो गई। डॉक्टर ने विहान को देखते हुए कहा, "मिस्टर जिंदल, आपकी वाइफ की कंडीशन काफी नाज़ुक है। इनके सिर की इतनी बड़ी सर्जरी हुई है, इन्हें प्रॉपर रेस्ट की ज़रूरत है और ध्यान रखिए ये कोई स्ट्रेस न लें, वरना ये कोमा में जा सकती हैं।"


    विहान के चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं थे। वह चुपचाप डॉक्टर की बात सुन रहा था। डॉक्टर ने प्रीति को देखकर आगे कहा, "और कल से शायद इन्होंने खाना भी अच्छे से नहीं खाया है। मैं आपको दवा लिखकर दे रही हूँ और डाइट चार्ट भी। आप इसके हिसाब से टाइम-टू-टाइम मिसेज़ जिंदल को दवा देते रहिएगा। ये अभी कमज़ोर हैं, इसलिए इन्हें रेस्ट की ज़रूरत है और कुछ वक़्त में इन्हें होश आ जाएगा।"

    जारी है...

  • 7. तमन्ना तु मेरी - Chapter 7

    Words: 1374

    Estimated Reading Time: 9 min

    विहान ने सिर हिलाया और डॉक्टर के हाथ से दवा की पर्ची ली। डॉक्टर चली गईं। विहान खाली आँखों से प्रीति को देख रहा था। प्रीति का गोरा चेहरा मुरझा गया था। विहान कुछ देर प्रीति को निहारता रहा, फिर अपने कदम बिस्तर की ओर बढ़ाए। उसने पूर्वी को कम्बल से ढँका और प्रीति के चेहरे की ओर झुका, फिर कुछ सोचकर रुक गया और मुट्ठी बान्धकर कमरे से बाहर चला गया।


    विहान कमरे से निकलकर नीचे जाने लगा। उसके चेहरे पर न गुस्सा था, न ही कुछ और। विहान अपने चेहरे के भाव छिपाने में माहिर था; कोई भी यह नहीं बता सकता था कि वह क्या सोच रहा है।


    नीचे जाते हुए उसे एक नौकर दिखाई दिया। विहान ने आवाज़ लगाई, "सुनो, इधर आओ।" विहान की आवाज़ सुनकर नौकर काँप गया। उसे विहान से डर लग रहा था। डरते हुए वह विहान के पास गया और थोड़ी दूर खड़ा होकर घबराकर बोला, "ज...जी सर!"


    विहान ने नौकर को ऊपर से नीचे तक एक नज़र देखा जो डर से काँप रहा था। विहान ने उसकी ओर कदम बढ़ाए। नौकर डर से थरथराने लगा। विहान ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसके चेहरे को देखा जिस पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था। विहान ने कठोर आवाज़ में कहा, "इतना डर क्यों रहे हो? मैं तुम्हें मार थोड़ी रहा हूँ। ये लो, दवा के रुपये और पर्ची। जाकर दवा ले आओ!"


    नौकर ने सिर हिलाया। विहान वहाँ से चला गया। इधर, प्रीति को धीरे-धीरे होश आने लगा। उसने आस-पास देखा। कमरा देखकर पूर्वी झटके से बिस्तर पर उठकर बैठ गई। प्रीति ने मुँह बनाते हुए अपनी मासूम आवाज़ में कहा, "मैं इस राक्षस के कमरे में क्या कर रही हूँ? अगर उसने देख लिया तो फिर से मुझ पर भड़कने लगेगा।" उसे अपनी शादी के कुछ दिन गुज़र जाने के बाद का दिन याद आया जब दादी और विहान के माँ-बाप यहाँ थे। तब तक विहान ने प्रीति को कुछ नहीं कहा था। उनके जाते ही विहान ने प्रीति को दूसरे कमरे में जाने को कहा था। प्रीति ने मना किया तो विहान उस पर गुस्सा करने लगा और प्रीति को मजबूरन दूसरे कमरे में जाना पड़ा था।


    प्रीति अपने ख्यालों से तब बाहर आई जब किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। वह बिस्तर से उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने एक नौकर खाने के साथ खड़ी थी। नौकर ने प्रीति को खाना देते हुए कहा, "मैम, बॉस ने कहा है आपको खाना खिला दूँ, तो ये लीजिये आपका खाना।"


    प्रीति ने मुँह बनाते हुए नौकर को देखा और बोली, "मालती, तुम्हें मैंने कितनी बार कहा है मुझे मैम मत कहा करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है। और रही खाने की बात तो मैं खा लूँगी, पर पहले ये बताओ वो जल्लाद कहाँ है!"


    मालती नासमझी से प्रीति को देखते हुए बोली, "कौन जल्लाद? यहाँ पर तो ऐसा कोई नहीं रहता है।" प्रीति कमरे से बाहर आते हुए मालती को इशारे से नीचे चलने को कहा। मालती प्रीति के साथ नीचे जाने लगी। प्रीति ने मालती को देखते हुए कहा, "तुम्हारा बॉस! मैं उसकी बात कर रही हूँ, वो किसी जल्लाद से कम थोड़ी है!"


    प्रीति की बात सुनकर मालती को हँसी आ गई। मालती हँसते हुए बोली, "वो घर पर नहीं है। दादी माँ आ रही हैं, उन्हें लेने गए हैं।" प्रीति ने मन ही मन सोचा, "तभी तो मैं सोच रही थी इस राक्षस ने तलाक देने से अचानक मना क्यों कर दिया और मुझे जबरदस्ती उठाकर धमकी देते हुए अपने साथ ले आया और अपने कमरे में भी एंट्री दे दी।" (प्रीति मन ही मन शैतानी हँसी हँसते हुए बोली) "अब देखो मिस्टर जल्लाद, मैं क्या-क्या करती हूँ तुम्हारे साथ! अगर तुम्हारा जीना हराम नहीं किया तो मेरा नाम भी प्रीति नहीं।"


    प्रीति को ऐसे अपने आप में हँसते देख मालती बोली, "क्या हुआ दी? आप ऐसे क्यों हँस रही हो?" (मालती प्रीति की हमउम्र है इसलिए उसे दी कह रही है।) प्रीति मालती की आवाज़ सुनकर अपने ख्यालों से बाहर आई और बोली, "वो बस ऐसे ही कुछ याद आ गया था। चल अब तू जल्दी से मुझे खाना दे दे, मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है।"


    मालती ने सिर हिलाया। प्रीति डाइनिंग टेबल पर बैठ गई और मालती ने उसके सामने खाना रख दिया। खाना देखते ही प्रीति उस पर टूट पड़ी जैसे उसने ना जाने कितने ही दिनों से खाना नहीं खाया हो।


    प्रीति को ऐसे खाना खाते देख मालती मुस्कुरा दी। प्रीति खाते-खाते बोली, "वाह मालती! तुमने बहुत अच्छा खाना बनाया है। मैंने बहुत मिस किया तुम्हारे खाने को।" मालती मुस्कुराते हुए बोली, "हमने भी बहुत मिस किया दीदी आपको!"


    प्रीति खाना खाकर लिविंग रूम में आ गई और सोफे पर बैठकर टीवी देखने लगी। तभी घर की डोरबेल बजी। एक नौकर जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने सत्तर-अस्सी साल की बूढ़ी औरत खड़ी थी, जो पचास-पचपन साल की लग रही थी। उन्होंने खुद को बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखा था।


    यह विहान की दादी, सावित्री देवी थीं। सावित्री जी मुस्कुराते हुए घर के अंदर आईं। उनके पीछे विहान आ रहा था। प्रीति दादी को देखकर दौड़ते हुए उन्हें पुकारते हुए गईं और दादी के गले से लिपट गईं। "दादी, हमने आपको बहुत मिस किया! फाइनली आप आ गए हो।" दादी मुँह बनाते हुए प्रीति से अलग हुईं और नाराज़ होते हुए बोलीं, "जानते हैं हम आपने हमें कितना मिस किया, तभी तो आपके दिन में चार-पाँच कॉल आते थे हमारे पास।" इतना कहकर दादी प्रीति को इग्नोर करते हुए सोफे पर जाकर बैठ गईं।


    प्रीति दादी के पीछे-पीछे गईं और उनके पास बैठकर उन्हें गले लगा लिया। प्रीति ने नम आवाज़ में कहा, "हमने सच में आपको बहुत मिस किया था। और रही कॉल की बात तो हमारा फ़ोन टूट गया था।" तभी प्रीति की नज़र सामने से आते विहान पर पड़ी। प्रीति शातिर मुस्कराहट करते हुए बोली, "और आपको पता है दादी, हमने आपके पोते से बहुत रिक्वेस्ट भी की कि हमें फ़ोन लाकर दे दे, पर इन्होंने हमें फ़ोन लाकर देना तो दूर, अपने फ़ोन को हाथ भी नहीं लगाने दिया!"


    प्रीति की बात सुनकर विहान आँखें फाड़े प्रीति को देखने लगा। वहीं दादी घूरकर विहान को देखते हुए बोलीं, "विहान, ये हम क्या सुन रहे हैं? आपने हमारी बच्ची को फ़ोन नहीं लाकर दिया? क्या हम जान सकते हैं आपने ऐसा क्यों किया?" विहान प्रीति को बुरी तरह घूरने लगा। प्रीति ने विहान को देखकर दादी पर अपनी पकड़ कस ली। दादी विहान को देख इस बार थोड़े गुस्से में बोलीं, "हमारी बच्ची को घूरना बंद करो और जो पूछा है आपसे उसका जवाब दो आप!"


    विहान ने अपनी नज़रें प्रीति से हटाकर दादी को देखते हुए कहा, "वो दादी, हमारी कंपनी एक नया फ़ोन लॉन्च करने वाली है, तो मैंने सोचा प्रीति को वो फ़ोन गिफ्ट कर दूँगा, साथ में उसे सरप्राइज़ भी मिल जाएगा!"


    विहान की बात सुनकर प्रीति मन ही मन बोली, "चल झूठा! कितना झूठ बोलता है ये राक्षस जल्लाद कहीं का!" दादी प्रीति का सर सहलाते हुए प्यार से बोलीं, "सुना बच्चा, आपने ये आपको नया फ़ोन देना चाहता था।" प्रीति दादी की बात सुनकर उनसे अलग होते हुए बोली, "अच्छा दादी, हम आपके लिए चाय और नाश्ता लेकर आते हैं। तब तक आप (विहान को बुरी तरह घूरते हुए) अपने पोते से बात कीजिए।" दादी ने सिर हिलाया। प्रीति वहाँ से किचन की ओर चली गई।

    जारी है...

  • 8. तमन्ना तु मेरी - Chapter 8

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    दादी और विहान आपस में बैठे बातें कर रहे थे। कहा जा सकता है, दादी अकेले ही बात कर रही थीं; विहान चुपचाप दादी की बात सुन रहा था। कभी-कभी वह थोड़ा सा बोलता था। प्रीति मिहिका के साथ चाय और स्नैक्स लेकर आई। दादी ने मिहिका को देखकर कहा, "कैसी हो मिहिका?" मिहिका मुस्कुराते हुए बोली, "हम बढ़िया हैं बड़ी मालकिन।" प्रीति ने दादी के लिए कप में चाय निकाली और उन्हें दी। दादी मुस्कुराते हुए चाय ले लीं। प्रीति ने विहान के लिए भी चाय निकाली और कप उसकी ओर बढ़ा दिया। विहान प्रीति को देखते हुए चाय का कप पकड़ लिया।

    प्रीति दादी के बगल में बैठ गई और दादी को देखते हुए बोली, "दादी, वान्या कैसी है?" दादी चाय का घूँट लेते हुए बोलीं, "वह अच्छी है बेटा।" (वान्या विहान की छोटी बहन है। विहान सबसे ज़्यादा प्यार अपनी बहन, दादी और अपने छोटे भाई विन्य से करता है। दादी विन्य और वान्या के पास लंदन गई हुई थीं।) "और विन्य, वह कैसा है?" प्रीति आगे पूछती हुई कहती है।

    प्रीति का पूछना ही था कि तभी दादी के फ़ोन पर विन्य का वीडियो कॉल आ गया। दादी प्रीति को देखकर हँसते हुए बोलीं, "ये लो, नाम लिया, शैतान हाज़िर।" दादी की बात पर प्रीति और दादी दोनों मुस्कुरा दिए। वहीं, विहान की निगाहें प्रीति पर ही टिकी हुई थीं। वह फ़ोन में देखने का नाटक कर रहा था, पर उसका सारा ध्यान प्रीति पर था। प्रीति की हँसी देख विहान को समझने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा कि प्रीति की हँसी दिखावटी है, न कि वह दिल से हँस रही है। दादी ने विन्य का कॉल उठा लिया।

    कॉल उठाते ही सामने से एक अहंकारी आवाज़ सुनाई दी, "हाय जान, क्या कर रही हो?" दादी ने विन्य को आँखें दिखाते हुए कहा, "ख़बरदार! अगर मुझे इन गंदे नामों से बुलाया तो!" विन्य हँसते हुए बोला, "चिल बेबी, चिल! ऐसे छोटी सी बात पर गरम नहीं होते।" दादी थोड़ा गुस्से में बोलीं, "विन्य, तू सुधरने का क्या लेगा?" इस बार विन्य थोड़ा भावुक होते हुए बोला, "दादी, भाई से कहो ना, हमें भी इंडिया आने दो। मुझे भाभी से मिलना है। मैंने उनसे दो दिन ही बात की है, और मैं इंडिया रहकर भी तो पढ़ाई कर सकता हूँ ना।"

    दादी विहान को देखती हैं, जिसने विन्य की बात सुनकर ही अनसुना कर दिया था। दादी विन्य को देख मुस्कुराते हुए बोलीं, "बस इतनी सी बात! ये लो, तुम्हारी भाभी मेरे पास ही है, बात करो।" दादी ने प्रीति को फ़ोन दे दिया। प्रीति को बात करने में हिचकिचाहट महसूस हो रही थी। हाँ, उसने पहले भी विन्य से बात की थी, पर उस वक़्त प्रीति की शादी का दिन और उसके बाद दूसरा दिन था, जहाँ विन्य ने प्रीति से बात की थी, जबकि प्रीति ने बस हाँ-हम्म ही कहा था।

    प्रीति ने फ़ोन अपने चेहरे के सामने कर लिया और जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोली, "हाय विन्य, कैसे हो?" विन्य प्रीति को देख मुस्कुराते हुए बोला, "आई एम फ़ाइन भाभी, आप कैसे हो?" प्रीति मुस्कुराते हुए बोली, "मैं भी ठीक हूँ।"

    विन्य प्रीति को देखते हुए बोला, "प्लीज़ भाभी, आप तो भाई से कहो ना, मुझे इंडिया आने दो। मुझे नहीं रहना है यहाँ। भाई आपकी बात ज़रूर मानेंगे। प्लीज़ भाभी।" प्रीति विन्य को ऐसे रिक्वेस्ट करता देख अपने सामने बैठे विहान की ओर देखती है। विहान फ़ोन में देख रहा था। वह दिखा ऐसे रहा था कि उसका ध्यान फ़ोन में है, पर उसका पूरा ध्यान तो विन्य और प्रीति की बातों पर लगा था।

    प्रीति को कुछ ना बोलता देख विन्य ने उसे आवाज़ लगाते हुए कहा, "भाभी, कहाँ खो गई हो आप? आपको मेरी आवाज़ सुनाई दे रही है?" प्रीति कुछ बोलने ही वाली थी कि विन्य के पास वान्या आ गई। वान्या फ़ोन के अंदर झाँकते हुए गुस्से में बोली, "विन्य, ये तुम किससे बात कर रहे हो? और तुम इस लड़की को भाभी कैसे कह सकते हो? ये धोखे से हमारी भाभी बनी है और तुम इसे भाभी कह रहे हो?" विन्य ने वान्या की ऐसी बात सुनकर तुरंत फ़ोन काट दिया।

    वान्या की ऐसी बातें सुनकर प्रीति की आँखें नम हो गईं, जो विहान देख लेता है। विहान की मुट्ठी गुस्से से बंद हो जाती है। दादी ने प्रीति के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, उसकी बातों का बुरा मत मानना। वह नादान है। शादी जिन हालातों में हुई, वह उसे एक्सेप्ट नहीं कर पाई।"

    प्रीति दादी को फ़ोन देते हुए मुस्कुराते हुए बोली, "इट्स ओके दादी, मैं समझ सकती हूँ। आप भी थक गई होंगी ना? आप आराम करें, हम शाम को बातें करते हैं।"

    दादी मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाकर वहाँ से अपने रूम की ओर चली गईं। वहीं, प्रीति उठते हुए वहाँ से ऊपर चली गई। प्रीति अपने पुराने वाले रूम में आई। उसकी आँखों में नमी थी। "कंट्रोल प्रीति, कंट्रोल! ऐसे तो तू कभी मज़बूत नहीं बन पाएगी। ऐसे छोटी-छोटी बातों पर भला रोते थोड़ी है?" प्रीति ने दो-तीन गहरी साँसें लीं और रूम में बनी बालकनी की ओर चली गई। वहाँ से पूरे गार्डन का नज़ारा दिखाई दे रहा था, जो बहुत सुंदर था। गार्डन में रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। प्रीति खाली आँखों से उन्हें देख रही थी।

    पर असल में तो प्रीति वान्या की बातों को ज़ेहन से निकालने की कोशिश कर रही थी। वहीं, प्रीति को ऐसे जाते देख विहान भी उसके पीछे आ जाता है। प्रीति को अपने रूम में ना जाते देख विहान के क़दम रुक जाते हैं। वह एक बार अपनी आँखें कसके बंद करता है, जैसे खुद को शांत कर रहा हो। फिर प्रीति के पीछे उसी रूम में चला जाता है जहाँ प्रीति गई थी।

    जारी है।

  • 9. तमन्ना तु मेरी - Chapter 9

    Words: 1147

    Estimated Reading Time: 7 min

    विहान रूम में आकर देखता है तो उसे प्रीति रूम में दिखाई नहीं देती है विहान आगे जाता है और सिधा बालकनी के पास चला जाता है बालकनी में उसे प्रीति खड़ी दिखाई देती है प्रीति हाथ बांधे खड़ी थी विहान प्रीति को देखते हुए बोला " यहाँ क्या कर रही हो ' अपने पिछे से किसी की आवाज सुनकर प्रीति समझ जाती है ये विहान है प्रीति बिना पलटे सामने देखते हुए एक लाइन में जवाब देते हुए बोली " आपसे मतलब ' । 




    प्रीति का ऐसा जवाब सुन विहान की मुठ्ठी गुस्से में कस जाती है विहान प्रीति को गुस्से में देखते हुए कठोर आवाज में बोला " तुम्हारा रूम ये नहीं है तुम मेरे रूम में रहोगी ' विहान की बात सुनकर प्रीति नासमझी में पलटती है उसने तो सोचा था शायद विहान गलती से उसे अपने रूम में लेकर आ गया है पर विहान तो उसे अपने रूम में रहने को कह रहा है प्रीति विहान की आंखों में आंखे डाल बोली " और में भला वहा क्यों जाऊ और आप जबरदस्ती मुझे यहाँ क्यों लेकर आए हो मुझे अपने घर वापस जाना है ' विहान प्रीति के करीब जाते हुए बोला " यही तुम्हारा घर है और मेरा कमरा तुम्हारा कमरा है ' । 




    विहान की बातें सुनकर प्रीति एक तंज भरी हंसी हंसते हुए बोली " और ये सब दादी को दिखाने के लिए कर रहे है आप, आप दादी को बता क्यों नहीं देते की हम तलाक़ लेना चाहते हैं और बहुत जल्द हम आपसे आपके इस घर से रूम से अलग होने वाले है। 




    विहान प्रीति की बातें सुनकर एक शैतानी स्माइल करते हुए बोला " ये तो तब होगा जब मैं तुम्हें तलाक देना चाहुगा और में तुम्हें तलाक नहीं देने वाला ' । 

    प्रीति गुस्से में विहान को पिछे धक्का देते हुए गुस्से में बोली " चाहते क्या आप हमसे बता तो दिजिए ताकि हमें भी पता चले हमारी गलती क्या है आपसे शादी करना हमारी मजबूरी थी , आप हमारी बहन से बचपन से प्यार करते थे और हम हम तो आपको जानते तक नहीं थे फिर भी हमने इस बेनाम मजबूरी की शादी को निभाना चाहा , जब आपका मन किया आपने हमैं धक्के मारकर घर से निकाल दिया आप ही थे ना वो जो हमसे तलाक लेना चाहते थे , फिर जब हम आपको तलाक दे रहे हैं तो क्यों आप पिछे हट रहे हैं ! 




    विहान प्रीति की आंखों में देखें जा रहा था प्रीति की आंखों में दर्द इस वक्त साफ देखा जा रहा था प्रीति का अब इन सब बातों को सोचकर सर दर्द करने लगा था वो अपना एक हाथ उठाकर सर पर रख दबाने लगती है विहान एख झटके में प्रीति को अपनी गोद में उठा लेता है प्रीति गुस्से में विहान से छुटने की कोशिश करने लगती है " छोडिये हमें ये आप‌ क्या कर रहे हैं हमने कहा निचे गिर उतारिए हमें , पर विहान प्रीति को इग्नोर कर उसे गोद में उठाए रूम से बाहर निकल जाता है प्रीति विहान के कंधे पर मुक्के मारते हुए बोली " हमें नहीं जाना आपके उस कमरे में हमें हमारे घर जाना है आप हमारे साथ ऐसे जबरदस्ती नहीं कर सकते, हमें निचे उतारें ' ! 




    प्रीति को चुप ना होता देख विहान प्रीति की गर्दन पकड़ उपर करता है और अपने चेहरे के पास ले जाकर प्रीति के होठों पर अपने होठ रख देता है प्रीति की आंखे हैरानी में बड़ी हो जाती है उसे तो समझ ही नहीं आया कि अचानक उसके साथ ये क्या हुआ वही विहान प्रीति के होठों को चुमते हुए अपने रूम का गेट पैर से खोलता है और रूम में चला जाता है गेट की आवाज सुन प्रीति होश में आती है वो विहान से अलग होने की कोशिश करती है पर विहान प्रीति पर अपनी पकड़ कस देता है और प्रीति को बेड पर बिठा देता है अब तक उसके होठ प्रीति के होठों से जुड़े थे । 




    विहान प्रीति के निचले होठ को स्मुच कर रहा था प्रीति विहान को खुद से दूर करने लगती है पर विहान एक इंच भी नहीं हिलता विहान प्रीति के होठ पर बाइट कर लेता है जिससे प्रीति की आह निकल जाती है विहान प्रीति से दूर हो जाता है प्रीति गुस्से में बुरी तरह विहान को घुर रही थी विहान प्रीति को देख बैड के दुसरी साइड जाता है और डरोवर से दवाइयाँ निकालता है ! 




    प्रीति विहान को देख गुस्से में बोली " आपकी हिम्मत कैसे हुई हमारे साथ ऐसी बेहुदा हरकत करने की ' विहान दवाई लेकर प्रीति के पास आ जाता है और टैबल से पानी का गिलास उठाते हुए बोला " चलो ये दवाइ लो और चुपचाप सो जाओ ' । 




    प्रीति मुंह दुसरी और करते हुए बोली " हमें नहीं खानी कोई दवाई, हमनें आपसे कुछ,,,,,,,,,,,, आगे के शब्द प्रीति के गले में रह जाते हैं क्योंकि विहान ने एक झटके में प्रीति को पलट कर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए थे 

    प्रीति विहान के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है पर विहान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था विहान प्रीति की कमर पकड़ अपने और करीब कर लेता है ! 




    प्रीति विहान से खुद छुडाने की कोशिश कर रही थी पर विहान उसे छोड़ने को भी तैयार नहीं था प्रीति अब स्ट्रगल करना बंद कर देती है विहान प्रीति के होठों से अपने होठ अलग कर लेता है प्रीति गहरी सांसें लेने लगती है विहान प्रीति के चेहरे पर आए बालों को कान के पिछे करते हुए बोला अब चुपचाप दवाई खाओगी या फिर दुबारा किस्स करू ' । 




    प्रीति गुस्से में विहान को खुद से दूर धक्का दे देती है विहान दो कदम पिछे हो जाता है प्रीति विहान के हाथ से दवा लेती है और टैबल से पानी का गिलास उठा दवा खा लेती है प्रीति का सर ज्यादा दर्द करने लगा था इसलिए वो अब विहान से किसी भी प्रकार की बहस नहीं करना चाहती थी प्रीति ब्लैकट लेकर दुसरी तरफ पीठ करके सो जाती है ! 




    विहान प्रीति को एक्स्प्रेशन लैंस चेहरे से देखा जा रहा था उसके मन में क्या चल रहा था ये सिर्फ विहान ही जानता था विहान कमरे से बाहर स्टडी रूम की तरफ चला जाता है वही प्रीति आंखे बंद कर लेटी थी उसे बार बार विहान का किस्स करना याद आ रहा था " प्रीति मन ही मन रोते हुए बोली " इस राक्षस ने मेरी पहली किस्स चुरा ली अब मैं अपने हसबैड को क्या दुगी ( फिर खुद के सर पर मारते हुए बोली " क्या प्रीति तु ये कैसे भुल सकती है ये जल्लाद ही‌ तेरा पति है ' ) प्रीति विहान को मन ही मन हजारों गालियाँ निकालती है और कुछ देर में उसे दवाई के असर से निंद आ जाती है और वो गहरी नींद में सो जाती है ! 

    जारी है,,,,,,,,,,,,,, ।


    प्यार से मानो या जबरदस्ती से
    आखिर इस दिल में आना तो तुम्हें ही है।।

  • 10. तमन्ना तु मेरी - Chapter 10

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    विनय वान्या पर भड़का हुआ था। "वान्या, ये क्या तरीका है भाभी से बात करने का?" वान्या सोफे पर बैठते हुए बोला, "ओ कमोन विनय, तुम इतना क्यों भड़के रहे हो? वो कोई मेरी भाभी नहीं है। भाई ने उसे अब तक अपनाया नहीं है और भाई किर्ति से प्यार करते हैं, तो उसे कभी भी अपनाने वाले नहीं हैं।"

    "भाई चाहे कुछ करें, पर तुम्हें ये हक किसी ने नहीं दिया है कि तुम अपनी बातों से किसी को हर्ट करो। और अगर आज के बाद भाभी से ऐसे बात की, तो समझ लेना तुम्हारा एक भाई तुम्हारे लिए मर गया है।" विनय बहुत गुस्से में वान्या से कहता है और वहाँ से चला जाता है।

    वहीँ वान्या प्रीति को कोसते हुए बोली, "अब इस प्रीति की वजह से विनय मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहा है। आई हेट यू प्रीति, आई हेट यू!"


    किर्ति एक फिल्म शूट के लिए इटली आई हुई थी। इस वक्त एक होटल रूम में अपनी फिल्म के हीरो के साथ इंटिमेट हो रही थी। उस होटल रूम में दोनों की गर्म साँसें सुनाई दे रही थीं। कुछ देर बाद उस रूम से आवाज़ें आना बंद हो जाती हैं। दोनों एक-दूसरे की बाहों में लेटे हुए थे। किर्ति भी सुंदर थी, पर प्रीति से कम सुंदर थी।

    किर्ति के साथ वाला लड़का राहुल आहूजा था, फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा। राहुल किर्ति का हाथ पकड़, उसे चूमते हुए बोला, "ये लाइफ अच्छी लगती है या उस विहान जिंदल जैसे आदमी के साथ रहकर बोर होना अच्छा लगता था!"

    किर्ति मुस्कुराते हुए राहुल के गले लगते हुए बोली, "मुझे तुम्हारे साथ रहना अच्छा लगता है, विहान जैसे बोरिंग इंसान के साथ नहीं। अगर उस दिन शादी से मैं नहीं भागती, तो अब तक बैठी रहती विहान के घर, विहान की बीवी बनकर।"

    राहुल हँसते हुए बोला, "उसको बेवकूफ बनाना कितना आसान है ना? आज भी वो अपनी वाइफ से नफरत करता है क्योंकि तुमने उसे कह दिया कि, 'विहान, मेरी बहन तुमसे प्यार करती है और मैं अपनी बहन से बहुत प्यार करती हूँ और उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। इसलिए प्लीज मुझे माफ़ कर देना, मैं ये शादी बीच में छोड़कर जा रही हूँ।'" इतना कहकर राहुल और किर्ति हँसने लगते हैं।


    वहीँ विहान इस वक्त स्टडी रूम में बैठा अपनी मीटिंग ले रहा था। तभी वहाँ विक्की आ जाता है। विहान एक नज़र विक्की को देखता है, फिर वापस अपनी मीटिंग लेने लगता है। विहान को बिज़ी देख विक्की वहीँ सोफे पर बैठ जाता है और अपना फोन चलाने लगता है।

    कुछ वक्त बाद विहान की मीटिंग पूरी हो जाती है। विहान लैपटॉप बंद कर विक्की की ओर देखते हुए बोला, "कुछ काम था क्या?" विक्की अपना फोन बंद कर पाॅकेट में डालते हुए बोला, "क्यों? कोई काम हो तभी आ सकता हूँ क्या?" विहान विक्की का जवाब सुन कुछ नहीं कहता है और एक फाइल उठाकर पढ़ने लगता है।

    विक्की विहान को कुछ ना बोलता देख बोला, "तुम प्रीति को जबरदस्ती उठाकर घर ले आए? मैं जान सकता हूँ तुमने ऐसा क्यों किया?" विहान विक्की का सवाल सुनकर सपाट लहजे में बोला, "मेरी वाइफ है वो, उसे मैं जब चाहे घर ला सकता हूँ!"

    विक्की तंज भरी हँसी हँसते हुए बोला, "अच्छा? तो अब तुझे तेरी वाइफ याद आ गई? उस दिन याद नहीं आई थी क्या, जिस दिन तुमने उसे धक्के मारकर घर से बाहर निकाला था?" विहान खाली आँखों से विक्की को देखता रहता है, पर कुछ कहता नहीं।

    विहान को कुछ ना बोलता देख विक्की गहरी साँस लेते हुए बोला, "देख विहान, प्रीति बहुत मासूम और प्यारी लड़की है। उसकी वजह से किर्ति तुमसे दूर नहीं हुई है, तो तुम प्रीति को तकलीफ देना बंद करो और उसे अपने घर जाने दो!"

    विक्की की आखिरी बात सुनकर विहान विक्की को बुरी तरह घूरने लगता है। विहान को ऐसे खुद को देखता पाकर विक्की को डर लगने लगता है। वो डर से अपना लार गटकते हुए मन में बोला, "ये ऐसे क्यों देख रहा है? कहीं मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया है? नहीं नहीं, मैंने सही कहा है। अगर भड़कता है तो भड़कने दो, आज मैं इससे नहीं डरने वाला।" विक्की मन ही मन खुद को मजबूत करते हुए बोला, "ऐसे क्यों घूर रहा है? सही कह रहा हूँ मैं।"

    विहान विक्की को गुस्से में घूरते हुए बोला, "प्रीति यहाँ से कहीं नहीं जाएगी। समझा? ये शब्द आज तेरे मुँह से निकले हैं, दुबारा नहीं निकलने चाहिए!" विक्की विहान की बात सुनकर नासमझी में उसे देखते हुए बोला, "मतलब?" विहान विक्की की कोई बात का जवाब नहीं देता है और खड़ा होकर लंबे कदमों से स्टडी रूम से बाहर चला जाता है।

    विक्की विहान को जाते देखता रहता है। विक्की करण को फोन लगाता है। करण इस वक्त ऑफिस में बैठा था। विक्की का फोन आता देख करण उठा लेता है, "हाँ, बोल?" विक्की करण की आवाज़ सुनकर बोला, "यार, ये विहान का कुछ समझ नहीं आ रहा है।" "तु कहना क्या चाहता है? साफ़-साफ़ बता?" करण बोला, "यही कि मुझे लगता है विहान प्रीति से प्यार करता है और ये बात वो किसी को बताना भी नहीं चाहता।"

    "तु इतने यकीन के साथ कैसे कह सकता है ये? अगर वो प्रीति से प्यार करता तो वो उसे तलाक़ क्यों देना चाहता था?" करण कन्फ़्यूज़ होते हुए बोला। "ये मुझे नहीं पता। ये विहान का बच्चा मुझे कभी ना कभी पागल करके रहेगा।" विक्की इरिटेट होते हुए कहता है।

    करण विक्की की इरिटेशन भरी आवाज़ सुनकर बोला, "तु प्रीति का ख्याल रखना। मैं कल आकर उससे मिलता हूँ। आगे का बाद में देखेंगे क्या करना है।" विक्की "हम्म" कहकर फोन काट देता है और विहान की बातों के बारे में सोचने लगता है।

    जारी है।

  • 11. तमन्ना तु मेरी - Chapter 11

    Words: 1106

    Estimated Reading Time: 7 min

    शाम का वक्त था। प्रीति को सोए हुए पाँच घंटे हो गए थे, और वह अब तक नहीं उठी थी। दादी कब से प्रीति के आने का इंतज़ार कर रही थीं, पर प्रीति अब तक नीचे नहीं आई थी। दादी ऊपर देखती हैं तो उन्हें विहान अपने कमरे में जाता दिखाई देता है। दादी विहान को आवाज़ लगाते हुए बोलीं, "विहान।"

    दादी की आवाज़ सुनकर विहान नीचे देखता है। दादी आगे बोलीं, "प्रीति क्या कर रही है? अब तक नीचे नहीं आई। उसकी तबीयत तो ठीक है ना?"

    विहान दादी की बात सुनकर दो शब्दों में जवाब देते हुए बोला, "मैं देखता हूँ।"

    विहान अपने कमरे में जाता है तो देखता है प्रीति घोड़े बैठ कर सो रही थी। उसने तकिया हग कर रखा था और ब्लैंकेट ज़मीन पर गिरा पड़ा था। प्रीति एकदम सिकुड़ कर सो रही थी। विहान अपना फ़ोन निकालकर प्रीति की पिक्चर ले लेता है और फ़ोन पाकेट में डालते हुए एक गहरी साँस लेकर मन में बोला, "ऐसे भी कोई सोता है भला!"

    विहान बिस्तर के पास जाता है और नीचे गिरे ब्लैंकेट को उठाकर बिस्तर पर रखता है और प्रीति के चेहरे को देखता है। प्रीति का मासूम चेहरा सोते वक्त और भी प्यारा लग रहा था। विहान प्रीति के चेहरे पर आए बालों को कान के पीछे करते हुए बोला, "रैबिट, उठो। दादी बुला रही हैं तुम्हें।"

    प्रीति कसमसाते हुए विहान के हाथ को अपने चेहरे से हटा देती है और तकिए में चेहरा घुसा लेती है।

    विहान प्रीति की हरकत देख धीमे से मुस्कुरा देता है। इस बार विहान प्रीति को प्यार से ना उठाते हुए पास की टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाता है और प्रीति के चेहरे पर फेंक देता है। प्रीति एक झटके के साथ उठकर बैठ जाती है। प्रीति विहान को देख घूरते हुए बोली, "ये क्या हरकत है आपकी?"

    विहान टाइम की ओर इशारा करते हुए बोला, "वो दिख रहा है।"

    "हाँ, दिख रहा है। अंधी नहीं हूँ मैं!" विहान घूरते हुए प्रीति को देखता है। प्रीति मुँह बनाते हुए वाशरूम में चली जाती है। विहान जाती हुई प्रीति को देखता रहता है और वहीं सोफ़े पर बैठकर लैपटॉप में काम करने लग जाता है।

    वहीं प्रीति वाशरूम में चेहरा धोते हुए विहान को कोसते हुए बोली, "जल्लाद कहीं का! समझता क्या है खुद को? आराम से भी तो उठा सकता था। इतनी ठंड में ठंडा पानी गिराना ज़रूरी था क्या? नक्कड़ कहीं का हूँ!"

    कुछ वक्त बाद प्रीति कपड़े बदलकर बाहर आती है। विहान नज़रें उठाकर प्रीति को देखता है। प्रीति ने व्हाइट कुर्ती के साथ ब्लैक पजामा पहना हुआ था जिसमें वो काफी खूबसूरत लग रही थी। प्रीति विहान को गुस्से में घूरते हुए नीचे चली जाती है।

    प्रीति नीचे आ जाती है। नीचे दादी हाल में बैठी थीं। प्रीति को आता देख दादी बोलीं, "बेटा, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? तुम आज नीचे नहीं आईं।"

    प्रीति दादी के पास सोफ़े पर बैठते हुए बोली, "नहीं दादी, वो बस सो गई थी। वक्त का पता ही नहीं चला।"

    दादी और प्रीति मुस्कुराते हुए बात करने लग जाती हैं। तभी वहाँ विक्की आ जाता है। विक्की को आया देख प्रीति और दादी दोनों खुश हो जाती हैं। विक्की ज्यादातर विहान के साथ ही रहता था, पर विहान की शादी के बाद वो कम ही जिंदल विला में आता था।


    कौशिक विला:

    करण थका-हारा ऑफ़िस से घर आता है। लिविंग रूम में उसे अपनी माँ रचना बैठी हुई मिलती है। रचना ने चेहरे पर चारकोल फेस मास्क लगा रखा था। साथ में बैठी मैगज़ीन पढ़ रही थी। करण रचना को एक नज़र देख ऊपर अपने कमरे की ओर जाते हुए वहाँ काम कर रही मैड से बोला, "शांता, प्लीज़ मेरे लिए एक ब्लैक कॉफ़ी बनाना, विदाउट शुगर।" शांता जी "साहब" बोलकर किचन में चली जाती है।

    करण ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ता है कि रचना जी की आवाज़ सुनकर रुक जाता है। "कब तक उस लड़की की वजह से अपनी माँ को इग्नोर करते रहोगे!"

    करण पीछे पलटकर रचना जी को देखते हुए बोला, "कौन सी माँ? मेरी माँ मिस प्रतिभा मल्होत्रा थीं और वो अब इस दुनिया में नहीं रही हैं। आप मेरे लिए कुछ नहीं हो, और रही बात उस लड़की की तो आपको याद दिला दूँ, वो लड़की मेरी बहन है!"

    "वो लड़की नहीं, किर्ति तुम्हारी बहन है और कल वो यहाँ वापस आ रही है। उसकी मूवी कम्पलीट होने की खुशी में डायरेक्टर ने पार्टी रखी है, तो चुपचाप आ जाना!" रचना करण पर बिफरते हुए बोली।

    करण वापस नीचे आते हुए रचना जी के सामने खड़ा होते हुए बोला, "आने दीजिए आपकी लाड़ली बेटी को। उसी के इंतज़ार में कर रहा हूँ। मेरी बहन की ज़िंदगी बर्बाद करने की कीमत तो उसे चुकानी होगी।"

    रचना जी हँसते हुए बोलीं, "तुम्हारी बहन? उसकी ज़िंदगी बर्बाद कहाँ हुई है? विहान इतना पैसा तो कमाता है जिससे वो उसका पेट भर सके। बिज़नेस करता है, माना कि उसका बिज़नेस ज़्यादा बड़ा नहीं है, पर भूखे घर में तो नहीं गई है तुम्हारी बहन!"

    विहान एशिया का नंबर वन बिज़नेसमैन है। उसके साथ ही वो एक बिलियनेयर है। यह बात बस कुछ लोग, जो विहान के करीबी हैं, वही जानते हैं। किर्ति भी विहान के इस सच से अनजान थी। किर्ति विहान के साथ उसके कॉलेज में ही पढ़ती थी और विहान कॉलेज का सबसे हैंडसम लड़का था। उसके डैड बहुत रिच थे, पर विहान अपने डैड से अलग रहता है, ये बात किसी को नहीं पता थी।

    किर्ति ने विहान को कॉलेज टाइम में अपने प्यार के जाल में फँसा लिया था और विहान किर्ति से सच में प्यार करने लगा था (किर्ति को ऐसा लगता था, बाकी सच तो विहान को पता था)। किर्ति को यह बात शादी के वक्त पता चली थी कि विहान अपने डैड से अलग रहता है और उसका छोटा सा बिज़नेस है और यह सच राहुल ने किर्ति को बताया था।

    और किर्ति तुरंत शादी छोड़कर राहुल के साथ चली गई और अपने मॉम डैड को सारी सच्चाई बताकर गई थी। राहुल विहान से पहले दिन से ही नफ़रत करता था। एक तो विहान राहुल से ज़्यादा हैंडसम था और ऊपर से विहान टैलेंटेड था जिस कारण विहान हमेशा फ़र्स्ट नंबर पर रहता था और राहुल दूसरे नंबर पर!

    राहुल किर्ति को पसंद करता था, पर किर्ति विहान की गर्लफ्रेंड बन गई। सबका बदला लेने के लिए राहुल ने शादी वाले दिन किर्ति को विहान की सच्चाई बता दी और किर्ति शादी से भाग गई! अब आते हैं कहानी पर:

    जारी है…

  • 12. तमन्ना तु मेरी - Chapter 12

    Words: 1062

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने रचना जी की बात पर तंज भरी हँसी हँसी। "आप खुद मेरी बहन की प्रॉपर्टी पर बैठी हैं! यह तो मेरी बहन की मासूमियत का आपने फायदा उठाया है, मिसेज़ रचना विशाल कौशिक, वरना अब तक आप वही गरीबी की ज़िन्दगी जी रही होतीं।"


    रचना जी गुस्से में आकर करण पर हाथ उठाने को हुईं। करण ने रचना का हाथ पकड़ लिया। रचना ने झटकते हुए कहा, "इन्हें संभाल कर रखिए, वरना न हो कि आपके हाथ खाना खाने के लिए भी सही-सलामत न रहें।" इतना कहकर करण शांता की ओर चला गया। शांता कॉफ़ी हाथ में लिए लिविंग रूम में खड़ी थी।


    करण ने शांता से कॉफ़ी ली और वहाँ से अपने कमरे की ओर चला गया। वहीं रचना जी गुस्से में अपने दाँत पीसते हुए मन ही मन बोलीं, "तुम दोनों माँ-बेटी ने मिलकर मेरे बेटे को मेरे खिलाफ़ कर दिया है! मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगी, प्रीति! इसका बदला तो मैं तुमसे लेकर रहूँगी!"


    करण अपने कमरे में गया। कॉफ़ी कप टेबल पर रखकर सोफ़े पर सिर पकड़ बैठ गया और अपने कमरे में लगी प्रतिभा जी की फ़ोटो देखते हुए बोला, "माँ, मिस यू। आई रियली मिस यू, माँ। क्यों चली गईं आप हमें छोड़कर? पता है माँ, आपके बिना..." उसने अपने दिल पर हाथ रखा, "...यहाँ बहुत दर्द होता है। मेरी माँ ने छोड़ दिया था मुझे आपकी चौखट पर, पर आपने मुझे एक बेटे की तरह पाला, कभी मुझे आभास नहीं होने दिया कि मैं आपका बेटा नहीं हूँ। पर मैं हमारी बच्ची का ध्यान नहीं रख पाया, माँ। करियर बनाने के चक्कर में, इन बेदिल लोगों के बीच, प्रीति को छोड़कर चला गया। पर अब नहीं, माँ। मैं सब से बदला लूँगा, जिन्होंने भी प्रीति को चोट पहुँचाने की कोशिश की है, मैं उन सभी से बदला लूँगा, चाहे इसमें मेरा करीबी दोस्त विहान जिंदल ही क्यों न हो!"


    विहान इस वक़्त अपने रूम में बैठा ऑफिस का काम कर रहा था। तभी उसके पास किसी का कॉल आया। विहान ने कॉल उठा लिया। सामने से एक आदमी की आवाज़ आई, "बाॅस, वो कल आ रही है।" विहान उस आदमी की बात सुनकर तिरछा मुस्कुराया और सामने वाले को कुछ ऑर्डर देकर कॉल कट कर दिया।


    विहान मन ही मन सोचता हुआ बोला, "आइए मिस किर्ति कौशिक, अब तुम्हारे सामने और दुनिया के सामने विहान जिंदल की असलियत लाने का वक़्त आ गया है।"


    वहीं प्रीति इस वक़्त मिहिका के साथ किचन में खाना बना रही थी। मिहिका सावित्री जी की बेटी थी और अपनी माँ के साथ वह बहुत बार जिंदल विला में अपनी माँ के काम में हाथ बँटाने आती थी। प्रीति मिहिका को देखते हुए बोली, "मिहिका, तुम खाना टेबल पर लगाओ, हम हलवा लेकर आते हैं, अभी बनने में थोड़ी कमी है।" मिहिका ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "जी दीदी, हम लगाते हैं।" मिहिका प्लेट उठाकर किचन से बाहर जाने को हुई कि प्रीति पीछे से आवाज़ लगाते हुए बोली, "और हाँ, मिहिका, सभी को खाना खाने के लिए कह दो।" मिहिका ने हाँ में सर हिलाकर बाहर चली गई।


    मिहिका ने सभी, विक्की और दादी को खाना खाने के लिए कह दिया। दोनों गार्डन में थे। दोनों मिहिका के पीछे-पीछे आ गए।


    मिहिका हिचकिचाते हुए बोली, "विक्की भैया, आप हमारा एक काम कर दोगे?" विक्की ने मिहिका को देखकर कहा, "हाँ, बताओ क्या करना है?" "वो क्या है ना, आप विहान सर को खाना खाने के लिए कह सकते हैं? वो क्या है ना, हम कह आते हैं, पर हमें उनसे डर लगता है।"


    विक्की मिहिका की बात पर हँस दिया। दादी भी मिहिका की बात पर हँसते हुए बोलीं, "विहान के सर पर दो सींग और हों तो वह पक्का राक्षस प्रजाति का लगेगा! सबको डराकर रखता है, खड़ूस कहि का।"


    विक्की दादी की बात सुनकर वहाँ से जाते हुए बोला, "अच्छा दादी, मैं राक्षस को बुलाने जा रहा हूँ!" दादी हँसते हुए डायनिंग हाल की तरफ़ चली गईं। विक्की विहान के कमरे में जाते हुए बोला, "ओए राक्षस..." विहान विक्की की आवाज़ सुनकर घूरते हुए उसकी ओर देखा। विक्की अपने दाँत दिखाते हुए बोला, "वो मेरा मतलब, खाना बन गया है, दादी तुम्हें बुला रही हैं।" विहान लैपटॉप बंद कर वाशरूम में गया और फ्रेश होकर विक्की के साथ नीचे चला गया।


    दोनों जाकर चेयर पर बैठ गए। हेड चेयर पर दादी बैठी थीं। उनके एक तरफ़ बैठे विहान और दूसरी तरफ़ विक्की। विहान की निगाहें प्रीति को ढूँढ रही थीं कि तभी प्रीति किचन से हलवे का बाउल लेते हुए बाहर आई। विहान सामने देखते हुए बैठ गया। प्रीति ने बाउल टेबल पर रख दादी के पास जाकर उन्हें खाना सर्व किया।


    दादी ने खाने की खुशबू लेते हुए कहा, "खाना आपने बनाया है क्या? खुशबू बहुत अच्छी आ रही है।" प्रीति मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दी। विक्की खाने को देखते हुए बोला, "वाह! बच्चा, खाना देखने में ही बहुत अच्छा लग रहा है। अब और वेट नहीं हो रहा, जल्दी से सर्व करो।"


    "हाँ," प्रीति ने हाँ में सर हिलाकर विक्की की ओर जाने लगी कि विहान ने प्रीति का हाथ पकड़ लिया। विहान विक्की को घूरते हुए बोला, "क्यों? खुद के हाथ क्या कहीं खज़ाना ढूँढ़ने गए हैं? ले लो खुद से मेरी बीवी, तुम्हें क्यों खाना सर्व करें?"


    विक्की सेड फ़ेस बनाकर दादी को देखता है। दादी लाचारी भरी निगाह से विहान को देखते हुए बोलीं, "विहान, तुझे पता है न वो बिना सर्व किए नहीं खाता, तो करने दे न सर्व।"


    प्रीति ने विहान से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, "विहान, हाथ छोड़ो हमारा!" विहान घूरकर प्रीति को देखते हुए मिहिका को आवाज़ लगाते हुए बोला, "मिहिका!"


    मिहिका भागते हुए किचन से आते हुए बोली, "जी सर?" विहान विक्की की ओर इशारा करते हुए बोला, "अपने भैया को खाना सर्व करो।" विक्की मिहिका को देखते हुए बोला, "आजा बहन, अब और बर्दाश्त नहीं होता, बहुत भूख लगी है। ये दानव प्रीति को तो खाना सर्व नहीं करने देगा, तू कर दे!"


    मिहिका ने हाँ में सर हिलाकर विक्की की तरफ़ बढ़ गई। प्रीति विहान को गुस्से में घूरने लगी और झटके से विहान से अपना हाथ छुड़ाकर उसके बगल वाली चेयर पर आकर बैठ गई।

    जारी है...

  • 13. तमन्ना तु मेरी - Chapter 13

    Words: 1132

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति मिहिका की ओर देखते हुए बोली, "मिहिका, वो विहान के लिए सब्जी अलग से बनाई है, तो तुम वो लाकर देना।" मिहिका ने सिर हिलाया और किचन में चली गई।

    प्रीति ने विहान की थाली में खाना परोसना शुरू कर दिया। विहान सब्जी को देखते हुए बोला, "तो मैं इसे क्यों नहीं खा सकता?" प्रीति ने अपनी प्लेट में खाना डालते हुए कहा, "क्योंकि इसमें मुंगफली है और आपको उससे एलर्जी है।" प्रीति की बात सुनकर विहान उसकी ओर देखता रह गया। प्रीति को विहान की हर पसंद-नापसंद का ख्याल था, और उसने विहान की पसंद का भी ख्याल रखा था, पर विहान ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया। शादी के एक महीने तक विहान को किर्ति की सच्चाई पता नहीं चली थी।

    इसलिए उसने कभी भी प्रीति को नजर उठाकर नहीं देखा। शादी के एक महीने बाद विहान चार महीने के लिए ऑस्ट्रेलिया चला गया था। ऑस्ट्रेलिया में विहान ने नई कंपनी शुरू की थी, इसलिए चार महीने तक वह वहीं काम करता रहा। जब वह इंडिया वापस आने के लिए एयरपोर्ट पर आया, तब वहाँ उसे किर्ति राहुल के साथ जाते हुए दिखाई दी। दोनों के चेहरे पर मास्क था, फिर भी विहान दोनों को पहचान गया।

    विहान ने अपने आदमियों को दोनों के पीछे रहने को कहा और खुद इंडिया निकल गया। विहान के आदमी दोनों की हर गतिविधि की जानकारी विहान को देते रहे, जिससे विहान को किर्ति की सच्चाई का पता चल गया। उस दिन विहान का प्यार पर से भरोसा उठ गया!

    विहान कुछ दिन तक इसी गम में रहा कि किर्ति ने उसे धोखा दिया है। तभी विहान को प्रीति का ख्याल आया। विहान ने अपने आदमियों से कहकर प्रीति की जानकारी निकाली, तो उसे पता चला कि प्रीति ने मजबूरी में शादी की थी, वो भी अपने डैड की धमकी पर। यह सब जानकर विहान को प्रीति के लिए बुरा लगा।

    तभी विहान ने निश्चित कर लिया था कि वह किर्ति से अपने साथ किए गए धोखे और प्रीति के साथ की गई नाइंसाफी की सज़ा किर्ति को देगा। विहान अपनी सोच में खोया हुआ था कि प्रीति ने विहान को हिलाते हुए कहा, "विहान, कहाँ खो गए? खाना ठंडा हो रहा है।"

    विहान प्रीति की आवाज़ सुनकर अपने ख्यालों से बाहर आया। विहान ने सिर हिलाया और खाना खाने लगा। विहान ने सब्जी का पहला निवाला लिया। निवाला लेते ही विहान का चेहरा उदास हो गया। विहान प्रीति को देखता है। प्रीति मुस्कुराते हुए बोली, "कैसी लगी?" विहान धीरे से बोला, "अच्छा लगा।" विक्की खाना खाते हुए बोला, "बच्चा, सच में आप खाना बहुत अच्छा बनाती हो, खाकर मज़ा आ गया।"

    दादी ने विक्की की बात सुनकर सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ बेटा, सच में आप खाना बहुत अच्छा बनाती हो। इतने दिनों बाद आपके हाथ का खाना खाकर बहुत अच्छा लगा।" प्रीति दादी की बात पर मुस्कुरा दी और तिरछी नज़रों से विहान की ओर देखी। विहान चुपचाप खाना खा रहा था। प्रीति यह देखकर हैरान रह गई। प्रीति मन ही मन बोली, "इस जल्लाद को मिर्ची नहीं लग रही है क्या? मैंने तो पूरी भर-भर तीन चम्मच मिर्ची इसकी सब्जी में मिलाई थी, इतनी सी जलन नहीं हो रही है।"

    वहीं विहान की हालत इतनी मिर्ची खाने से बहुत बुरी हो रही थी, पर विहान बिना शिकायत किए सब्जी खा रहा था। कुछ देर में विहान अपना खाना खत्म कर देता है। विहान की आँखें खून की तरह लाल हो गई थीं। विहान खड़ा होते हुए बोला, "मेरा हो गया!"

    प्रीति विहान को देखती है। विहान की लाल आँखें देखकर प्रीति मन ही मन बोली, "ओह, तो खड़ूस को कुछ ज़्यादा ही मिर्ची लग गई, पर इसने सारी सब्जी खत्म क्यों की? यह छोड़ भी तो सकता था।" विहान वहाँ से तेज़ कदमों से जाने लगा। प्रीति विहान को आवाज़ लगाते हुए बोली, "सुनिए, आपने हलवा तो खाया नहीं।" विहान प्रीति की बात सुनकर रुकते हुए मन में बोला, "अब क्या, मिठाई के नाम पर नमक खिलाने का इरादा है इसका?" विहान जाते हुए बोला, "मेरा पेट भर गया है, अब मैं और ज़्यादा नहीं खा सकता।"

    विक्की विहान को जल्दबाजी में जाते देख बोला, "इसे क्या हुआ? इतनी जल्दबाजी में क्यों चला गया?" प्रीति और दादी दोनों ने ना में सिर हिला दिया। प्रीति को तो सब पता था, आखिर उसका ही किया धरा था यह!

    वहीं विहान कमरे में आकर सीधा दौड़कर टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाता है और एक ही साँस में सारा पानी पी जाता है। विहान गिलास टेबल पर रखते हुए अपने हाथों से मुँह को हवा देने लगा। दस मिनट बाद विहान की जलन कुछ कम हुई। कुछ देर में विहान के पेट में बहुत जोर से दर्द उठा। विहान पेट पकड़कर बेड पर बैठ गया।

    तभी प्रीति कमरे में आई। विहान को देख प्रीति घबरा गई। प्रीति विहान के पास आते हुए घबराहट में बोली, "विहान, क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बैठे हैं?" विहान ने दर्द से आँखें बंद कर रखी थीं। विहान प्रीति को देखते हुए बहुत मुश्किल से बोला, "प्लीज़... डॉक्टर को कॉल करो!!"

    प्रीति विहान की बात सुनकर घबरा गई। विहान के चेहरे पर दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था; वह दर्द से तड़प रहा था। विहान को देख प्रीति की आँखों में आँसू आ गए। प्रीति रोते हुए अपना फ़ोन ढूँढती है, तो विहान का फ़ोन बेड पर गिरा हुआ मिलता है। प्रीति विहान का फ़ोन उठाती है; उसमें पैटर्न लॉक लगा हुआ था!

    प्रीति रोते हुए विहान को देखते हुए बोली, "इसमें... इसमें पैटर्न लगा है। विहान, बताइए लॉक क्या है?" विहान आँखें खोलकर प्रीति को देखता है। प्रीति की आँखों में आँसू देख विहान बोला, "पहले तुम रोना बंद करो। मेरा पेट दर्द कर रहा है, सिर्फ़..." प्रीति झट से आँसू पोछते हुए बोली, "आप पैटर्न बताइए क्या है।"

    विहान आँखें बंद करते हुए बोला, "तुम्हारी बर्थडे डेट।" प्रीति हैरानी से विहान को देखने लगी। प्रीति झट से अपनी बर्थडे डेट डालती है, तो स्क्रीन पर उसी की तस्वीर लगी दिखाई देती है। यह तस्वीर तब की थी जब विहान ने प्रीति को घर से निकाला था!

    प्रीति इसे अनदेखा करके डॉक्टर का नंबर ढूँढती है, तो उसे डॉक्टर अनुराग सक्सेना का नंबर मिल जाता है। प्रीति फ़ोन डायल करके डॉक्टर को बुला लेती है और बाहर जाकर विक्की को आवाज़ लगाती है, "विक्की भैया! विक्की भैया!" विक्की हाल में बैठा फ़ोन स्क्रॉल कर रहा था। प्रीति के रोने और उसका नाम पुकारते देख विक्की घबरा गया।

    जारी है...

  • 14. तमन्ना तु मेरी - Chapter 14

    Words: 1160

    Estimated Reading Time: 7 min

    विहान आँखें बंद किए बिस्तर पर लेटा था। प्रीति गेट बंद करके एक नज़र विहान की ओर देखी और फिर वाशरूम में चली गई। विहान ने गेट बंद होने की आवाज़ सुनकर आँखें खोलीं और वाशरूम की ओर देखा।

    प्रीति वाशरूम में आईने के सामने खड़ी थी। प्रीति खुद को देखते हुए बोली, "अब इनको मुझसे क्या चाहिए? कभी तलाक़ देना चाहते हैं, फिर कहते हैं तलाक़ नहीं दूँगा। और अब मेरी बर्थडे डेट का पासवर्ड और मेरी पिक्चर वॉलपेपर पर... कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ, पर जो भी हो, इतनी जल्दी तो मैं इन्हें माफ़ नहीं करूँगी।"

    कुछ देर बाद प्रीति वाशरूम से बाहर आई। विहान तब तक दवा के असर से सो चुका था। प्रीति कुछ देर विहान का चेहरा देखती रही और बिस्तर से तकिया उठाकर अलमारी से कंबल निकाला और सोफ़े की ओर चली गई।

    कुछ देर बाद प्रीति को नींद आ गई।


    अगली सुबह, विहान कसमसाते हुए अपनी आँखें खोलीं। उसने बिस्तर की दूसरी ओर देखा जहाँ प्रीति नहीं थी। तभी वाशरूम का दरवाज़ा खुला और प्रीति शावर लेकर बाहर आई। उसके बालों से हल्का-हल्का पानी गिर रहा था। प्रीति ने पीले रंग की प्लेन साड़ी पहन रखी थी और अभी-अभी शावर लेने के कारण वह ताज़ी खिले हुए गुलाब की तरह लग रही थी। प्रीति ड्रेसिंग मिरर के सामने आकर खड़ी हो गई।

    प्रीति ड्रायर से अपने बाल सुखाने लगी। विहान पेट के बल लेटा प्रीति की सारी हरकतें देख रहा था। प्रीति ने विहान की तरफ़ एक बार भी नहीं देखा। बाल सुखाकर उसने उनका ढीला सा जूड़ा बनाया और माँग में हल्का सा सिंदूर लगाया।

    प्रीति अपने खाली गले की ओर देखी तो उसे विहान का उसे मंगलसूत्र पहनाना याद आ गया। कहा जाता है कि विवाहित स्त्री का श्रृंगार तब तक पूरा नहीं होता जब तक उसके गले में मंगलसूत्र न हो।

    तभी प्रीति को विहान की हरकतें याद आईं। प्रीति ने अपना हाथ गले से हटा लिया और कमरे से बाहर निकल गई। विहान प्रीति को एकटक देख रहा था। वह क्या सोच रहा था, इसका पता लगाना मुश्किल था। उसके चेहरे के भाव से भी कुछ अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था।

    विहान बिस्तर से उठा और वाशरूम में चला गया। विहान फ्रेश होकर बाहर निकला और घर में बनी जिम की ओर चला गया। अनुराग कल रात यहीं रुका था।

    विक्की ने उसे विहान और प्रीति के बारे में सब कुछ बता दिया था। प्रीति नीचे आ ही रही थी कि घर की डोरबेल बजी। प्रीति ने समय देखा; अभी सुबह के छह बजे थे। प्रीति मन में बोली, "इतनी सुबह-सुबह कौन आ सकता है?" एक नौकर दरवाज़ा खोलने जा ही रहा था कि प्रीति ने उसे रोकते हुए कहा, "काका, आप रहने दीजिए, हम देखते हैं कौन है!"

    नौकर ने सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया और वापस अपना काम करने लगा। प्रीति जाकर गेट खोली। गेट खोलते ही एक लड़का प्रीति से आकर लिपट गया। प्रीति के हाथ हवा में रह गए।

    वहीं, विहान जिम की ओर जा रहा था, तभी उसकी नज़र उस लड़के पर पड़ी जो प्रीति को गले लगाए खड़ा था। विहान ने कसकर अपनी मुट्ठी बंद कर ली। उसके चेहरे के भाव अब भी गंभीर थे।

    विहान जिम की ओर न जाकर नीचे आ गया। तभी प्रीति की नज़र उस लड़के के साथ आई लड़की पर पड़ी। वह लड़की दिखने में इक्कीस साल के आसपास लग रही थी: खुले बाल, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श, और स्काई ब्लू टॉप के साथ ब्लैक डेनिम जीन्स पहने हुए थी।

    प्रीति ने उस लड़की को देखते ही पहचान लिया। वह लड़की प्रीति को इग्नोर करके अंदर चली गई। प्रीति उस लड़के को खुद से दूर करते हुए मुस्कुरा कर बोली, "आखिर आप अपनी ज़िद पूरी करके आ ही गए।" वह लड़का मुस्कुराते हुए प्रीति के गाल खींचते हुए बोला, "ये सब आपकी वजह से ही तो हुआ है।"

    प्रीति नासमझी में उस लड़के को देखते हुए बोली, "मेरी वजह से? पर कैसे?" वह लड़का प्रीति के कंधे पर हाथ रखकर अंदर आते हुए बोला, "वो इसलिए, मेरी क्यूट भाभी साहब! अगर आप भाई से नहीं कहतीं तो भाई हमें नहीं आने देते ना? आपने भाई से कहा और भाई ने हमारे वापस आने का फ़रमान जारी कर दिया, बस सिंपल!"

    प्रीति कुछ बोलती, उससे पहले उसकी नज़र नीचे आते विहान पर पड़ी। विहान को देख प्रीति का मुँह बन गया। वह लड़की विहान को देख उछलते हुए उसके गले लगने को हुई कि विहान पीछे हट गया। वह लड़की मुँह बनाते हुए बोली, "क्या भाई, कभी तो गले लगाया करो।" विहान गंभीर भाव से बोला, "तुझे कितनी बार बताना पड़ता है, मुझे ये सब नहीं पसंद।" विहान की बात सुनकर उस लड़की के चेहरे पर उदासी छा गई।

    प्रीति विहान की बात सुनकर मन में बोली, "कितना दुष्ट प्राणी है! अपनी बहन को गले नहीं लगा सकता! इस खड़ूस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी!" प्रीति उस लड़की को देख मुस्कुराते हुए बोली, "वान्या, कैसी हो आप?" वान्या प्रीति की बात सुन उसे घूरते हुए बोली, "आपसे मतलब में कैसी भी रहूँ, आप अपने काम से काम रखिए।"

    वान्या की बात सुनकर प्रीति कुछ नहीं कहती और विनय को देखकर बोली, "आप जाकर फ्रेश हो जाइए, तब तक मैं आप सब के लिए नाश्ता बनाती हूँ।" इतना कहकर प्रीति वहाँ से चली गई। विहान वान्या को बुरी तरह घूरने लगा। विहान ही नहीं, विनय भी वान्या को गुस्से में घूर रहा था।

    विनय वान्या को बहुत समझाते हुए लाया था कि वह प्रीति को कुछ भी न कहे, पर वान्या ने तो आते ही अपनी मीठी आवाज़ के बाण चला दिए। विनय वान्या को कुछ कहता, उससे पहले वान्या वहाँ से चली गई।

    विनय विहान के पास जाकर उसके गले लगते हुए बोला, "भाई, कैसे हो आप?" विहान विनय से अलग होते हुए गंभीर आवाज़ में बोला, "आइन्दा से उसे टच भी मत करना, वरना इस बार ऐसी जगह भेजूँगा जहाँ से तुम वापस न आ सको।"

    विहान की बात सुनकर विनय का मुँह बन गया। विनय मन में बोला, "इतना पॉज़ेसिव कौन होता है!" विहान वापस ऊपर जाते हुए बोला, "मैं हूँ!" विनय धीरे से बोला, "हाँ हाँ, दिख रहा है। आपके अलावा कोई हो भी नहीं सकता, साइको कहि के!" विनय एक नज़र जाते विहान को देखता है, फिर वहाँ से अपने कमरे की ओर चला जाता है।

    विहान जिम नहीं करके सीधा वाशरूम में चला गया। विहान को प्रीति के लिए बुरा भी लग रहा था, पर विहान अपने चेहरे के भाव छुपाने में इतना माहिर था कि कोई भी उसका चेहरा देखकर अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि विहान क्या सोच रहा है।

    जारी है...

  • 15. तमन्ना तु मेरी - Chapter 15

    Words: 1058

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ देर बाद विहान कमरे में आया। वह पूरी तरह तैयार था। उसने बिज़नेस सूट पहन रखा था। जेल से सेट बाल, विहान पहले ही बहुत हैंडसम था और चॉकलेटी ब्राउन कलर के बिज़नेस सूट में वह कहर ढा रहा था। विहान लैपटॉप बैग उठाया और नीचे चला गया।

    सभी उस वक़्त अपने-अपने कमरों में थे। विहान लिविंग रूम के सोफ़े पर बैग रख रहा था, तभी उसे प्रीति के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ किचन से आ रही थी। विहान भागकर किचन की तरफ़ गया और देखा कि प्रीति अपने हाथ पर फूँक मार रही थी।

    नाश्ता बनाते वक़्त प्रीति का ध्यान कहीं और था। उसका हाथ गरम तवे से लग गया और प्रीति चीख उठी। विहान ने प्रीति का हाथ पकड़कर देखा। प्रीति ने विहान से अपना हाथ छुड़ाकर दूर कर लिया।

    "हाथ दिखाओ अपना," विहान ने गुस्से में घूरते हुए कहा।

    "कोई ज़रूरत नहीं, मैं इतना दर्द सह सकती हूँ," प्रीति ने ना में सर हिलाते हुए कहा।

    विहान एक झटके में प्रीति की कमर पकड़कर खुद के करीब खींच लिया।

    "छोड़िए मुझे और दूर रहिए मुझसे," प्रीति ने विहान से दूर होने की कोशिश करते हुए कहा।

    विहान ने एक हाथ से प्रीति का जला हुआ हाथ पकड़ा और गौर से उसे देखने लगा। एक झटके में विहान प्रीति को अपनी बाँहों में उठाकर किचन से बाहर निकल गया।

    "नीचे उतारिए मुझे, ये क्या कर रहे हैं आप?" प्रीति ने विहान से छूटने की कोशिश करते हुए कहा।

    विहान ने प्रीति की बात को अनसुना कर उसे कमरे की तरफ़ ले जाना शुरू कर दिया।

    विहान कमरे में पहुँचकर प्रीति को बेड पर बिठा दिया और फर्स्ट एड बॉक्स लाने के लिए अलमारी की तरफ़ चला गया। प्रीति गुस्से में मुँह फुलाकर खड़ी हुई और बाहर जाने लगी। विहान ने टेबल से रिमोट उठाया और एक बटन दबाया जिससे दरवाज़ा बंद हो गया। प्रीति दरवाज़ा खोलने लगी, पर दरवाज़ा नहीं खुला।

    "चुपचाप इधर आओ, मुझे दवा लगाने दो," विहान अलमारी से बाहर आते हुए बोला।

    "अब क्यों आप मेरी केयर कर रहे हो? मुझे नहीं लगवानी कोई दवा," प्रीति ने विहान की ओर पलटते हुए गुस्से में कहा।

    विहान प्रीति के पास आकर उसकी आँखों में आए आँसू पोछते हुए बोला, "वक़्त आने पर सब कुछ बता दूँगा। अब चलकर दवा लगवा लो!"

    "मुझे कुछ नहीं जानना आपसे, आप मुझे बाहर जाने दो," प्रीति ने विहान का हाथ झटकते हुए कहा।

    विहान ने खुद को शांत करने के लिए एक गहरी साँस ली। प्रीति की बच्चों जैसी हरकत देखकर उसे गुस्सा आ रहा था, पर वह प्रीति पर गुस्सा नहीं करना चाहता था। एक झटके के साथ विहान ने प्रीति को गोद में उठा लिया।

    "ये क्या बार-बार आप मुझे बच्चों जैसे उठा रहे हो? मैं कोई बच्ची थोड़ी हूँ," प्रीति चिढ़ते हुए बोली।

    विहान प्रीति को गोद में लिए ही बेड पर बैठ गया। विहान ने एक हाथ से प्रीति की कमर पकड़ी और दूसरे हाथ से फर्स्ट एड बॉक्स खोलते हुए शांत आवाज़ में बोला, "तुम्हारी हरकतें बिलकुल बच्चों जैसी हैं।" प्रीति विहान को बुरी तरह घूरने लगी।

    विहान ने प्रीति का घूरना अनदेखा करते हुए उसके हाथ पर दवा लगाना शुरू कर दिया। प्रीति विहान को घूरती रही। विहान ने दवा वापस फर्स्ट एड बॉक्स में रख दी। प्रीति अभी भी विहान को घूर रही थी। विहान ने बॉक्स बंद कर प्रीति को देखा।

    "क्यों कर रहे हो आप ऐसा?" प्रीति ने विहान की आँखों में आँखें डालकर पूछा।

    विहान प्रीति के चेहरे को बहुत गौर से देख रहा था। प्रीति के चेहरे पर मायूसी झलक रही थी और उसका बेदाग गोरा चेहरा विहान को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। विहान ने प्रीति की बात का जवाब दिए बिना प्रीति को गोद में उठाकर बाहर जाने लगा।

    "हे भगवान! क्या करूँ मैं? इनका बात-बात पर गोद में उठाकर चल देते हैं और जो पूछो उसका जवाब तो इन्हें देना ही नहीं है," प्रीति गुस्से में खुद से बोली।

    विहान ने दरवाज़े के पास लगे फिंगरप्रिंट सेंसर पर अपना अंगूठा लगाया। दरवाज़ा अपने आप खुल गया। विहान प्रीति को नीचे ले गया। सभी उस वक़्त डाइनिंग हॉल में बैठे थे। जब विहान प्रीति को ऊपर ले जा रहा था तब मिहिका आ गई थी। मिहिका किचन में चली गई और प्रीति का अधूरा काम पूरा करने लगी (मतलब नाश्ता बनाने लगी)।

    डाइनिंग हॉल में सभी को बैठा देख प्रीति शर्म से अपना चेहरा विहान के सीने में छिपा लिया। विनय खड़ा होकर सीटी बजा दिया। वान्या का मुँह बन गया। दादी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

    "जैसा तू बता रहा था, वैसा तो कुछ नहीं हो रहा है?" अनुराग ने विक्की के कान में कहा।

    "हाँ, लग तो नहीं रहा विहान कब से ऐसा हो गया है?" विक्की विहान और प्रीति को देखते हुए बोला।

    विहान ने प्रीति को चेयर पर बिठा दिया और खुद उसके पास वाली चेयर पर बैठ गया।

    प्रीति ने शर्म से अपना चेहरा झुका रखा था। विहान ने सबका ध्यान खुद से हटाते हुए अपनी गहरी आवाज़ में वान्या को देखकर कहा, "आज का लंच और डिनर तुम बनाओगी।"

    वान्या विहान की बात सुनकर हैरान नज़रों से विहान को देखने लगी। प्रीति भी विहान को देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि विहान ऐसा क्यों कह रहा है। क्या उसने खाना अच्छा नहीं बनाया या फिर कल विहान को ज़्यादा मिर्च खिलाने की वजह से वह ऐसा कह रहा है?

    "पर क्यों? मैं क्यों बनाऊँ? हमारे घर में सर्वेंट है ना और ये आपकी वाइफ भी तो है," वान्या ने विहान को देखकर नाराज़गी में कहा।

    "इनफ़ वान्या! तुम्हारी बातें सुन रहा हूँ इसका मतलब ये नहीं है कि तुम मेरी वाइफ को जो मन में आए वो बोल सकती हो!" विहान ने कठोर आवाज़ में गुस्से में कहा।

    विहान की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर सभी एकटक उसे देखने लगे।

    "अब क्या कहेगा तू?" अनुराग विक्की के कान के पास जाकर बोला।

    विक्की हैरानी से विहान को देख रहा था। विहान ने प्रीति की साइड ली थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।

    "मुझे यकीन नहीं हो रहा है, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ? तू जरा मुझे चिमटी काट," विक्की विहान को देखते हुए अनुराग से बोला।

    जारी है…

  • 16. तमन्ना तु मेरी - Chapter 16

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    अनुराग ने विक्की के हाथ पर जोर से चिमटी काटी। विक्की चीख उठा। सभी ने विक्की को देखना शुरू कर दिया। विक्की ने अनुराग को देखते हुए कहा, "धीरे काटना था, इतनी जोर से नहीं!"

    अनुराग ने कंधे उचकाते हुए कहा, "मुझे क्या पता? तुमने ही तो कहा था मुझे चिमटी काटने को।"

    विहान दोनों को गुस्से से देख रहा था। विहान के गुस्से को देखकर अनुराग और विक्की चुप होकर बैठ गए। सभी ने साथ में नाश्ता करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद विहान और विक्की ऑफिस जाने लगे। विहान दरवाजे तक गया। उसे कुछ याद आया और वह वापस हॉल में आ गया। प्रीति दादी के पास सोफ़े पर बैठी थी। विहान ने प्रीति के माथे पर किस किया और उसका सर सहलाते हुए गंभीर आवाज़ में कहा, "अपना ध्यान रखना।" प्रीति अपनी बड़ी-बड़ी मासूम आँखों से विहान को देखने लगी। विहान चला गया।

    प्रीति अभी भी सदमे में थी। प्रीति को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक विहान को क्या हो गया और वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा था। दादी मुस्कुराते हुए प्रीति के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "भगवान करे, तुम दोनों की जोड़ी ऐसे ही बनी रहे।" दादी की बात सुनकर प्रीति होश में आई और मुस्कुरा दी।

    रूही और अनुज को पता चल गया था कि विहान प्रीति को अपने साथ ले गया है। रूही और अनुज दोनों इस वक़्त रेस्टोरेंट में बैठे थे। रूही ने कॉफ़ी का घूँट लेते हुए कहा, "तुझे क्या लगता है, विहान अब प्रीति को अपने साथ क्यों ले गया है?"

    अनुज निराश होकर बोला, "यार, ये विहान कुछ समझ नहीं आ रहा। कभी प्रीति को घर से निकालता है और कभी वापस उसे अपने साथ ले जाता है। ये आदमी कुछ अजीब है। मुझे ये बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा।" रूही कुछ सोचते हुए बोली, "कहीं ऐसा तो नहीं है कि विहान ने ये सब किसी को दिखाने के लिए किया?"

    अनुज नासमझी से रूही को देख रहा था। रूही ने कॉफ़ी कप टेबल पर रखते हुए कहा, "ज्यादा मत सोच। मैंने बस ऐसे ही कह दिया था। वैसे भी अब करण भाई आ गए हैं, वो प्रीति को कुछ नहीं होने देंगे, तो हम टेंशन फ्री हैं।"

    अनुज प्रीति की बात सुनकर रिलैक्स होते हुए बोला, "और तेरा क्या?" रूही अनुज की बात नहीं समझी और बोली, "मेरा क्या? मतलब मैं कुछ समझी नहीं!" अनुज रूही को देखकर गंभीर होते हुए बोला, "कब तक उससे नाराज़ रहने का इरादा है? उसे इस बारे में कुछ नहीं पता था। उसने कहा ना, अब तो उसे माफ़ कर दे।"

    रूही अनुज की बात सुनकर अपना फ़ोन उठाते हुए खड़ी हो गई। "चल, बिल पे करके आजा। मैं तेरा इंतज़ार बाहर कर रही हूँ।" अनुज गहरी साँस लेते हुए गर्दन हिलाकर काउंटर की तरफ़ चला गया और कार्ड निकालकर वहाँ खड़े लड़के को दिया। लड़के ने बिल पे करके कार्ड अनुज को दे दिया और अनुज बाहर चला गया।

    वान्या का किचन में बुरा हाल हो गया था। वान्या को खाना बनाना तो दूर, चाय बनानी भी नहीं आती थी। विहान ने सख्त नियम रखे थे, इसलिए वान्या ने कभी किचन में कदम तक नहीं रखा था। वान्या आटा लगा रही थी, पर आटे में ज़्यादा पानी गिर जाने से आटा गीला हो गया। वान्या दोनों हाथों से आटे को ऊपर उठाते हुए बोली, "अरे, इस वीडियो में तो ऐसा नहीं दिख रहा, फिर ये आटा ऐसे कैसे हो गया?"

    प्रीति किचन में पानी लेने आई थी। वान्या को ऐसे परेशान देखकर प्रीति वान्या के पास आ गई। प्रीति ने वान्या को देखते हुए कहा, "अगर आपको प्रॉब्लम ना हो, तो क्या मैं आपकी मदद करूँ?" वान्या प्रीति की आवाज़ सुनकर उसकी ओर देखती है। प्रीति को वहाँ देखकर वान्या उसे अनदेखा करते हुए बोली, "कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे फिर से भाई से डाँट नहीं खानी। आप जाओ यहाँ से।"

    प्रीति वान्या की बात सुनकर मासूम चेहरा बनाते हुए बोली, "वो क्या है ना, आपके भाई ऑफिस चले गए, तो उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा। आप चाहो तो मैं आपकी मदद कर सकती हूँ।"

    वान्या प्रीति को देखती है। प्रीति का मासूम चेहरा देखकर वान्या बोली, "और अगर आपने भाई को बता दिया तो?" प्रीति वान्या के हाथ से आटे का बाउल लेते हुए उसमें एक बड़ा चम्मच आटा और डालकर आटा लगाते हुए बोली, "हम कुछ नहीं बताएँगे। आप इतना भरोसा हम पर कर सकती हो। हम नहीं जानते आप किस वजह से हमसे चिढ़ती हो, पर हम सच में नहीं चाहते आप परेशान रहो।"

    वान्या प्रीति को आटा लगाते हुए देखने लगी। वहीं एयरपोर्ट पर राहुल और किर्ति बाहर निकले। किर्ति ने ब्लैक कलर की घुटनों तक ड्रेस पहन रखी थी। मुँह पर ढेर सारा मेकअप था। किर्ति इसमें सुंदर लग रही थी। एयरपोर्ट पर मीडिया मौजूद थी। राहुल और किर्ति की यह पहली फिल्म थी। उससे पहले राहुल मॉडलिंग करता था। राहुल दिखने में हैंडसम था और आज उसने ब्लू जीन्स के साथ येलो प्रिंटेड शर्ट पहन रखी थी और आँखों पर ब्लैक गॉगल्स लगा रखे थे। दोनों पूरे आत्मविश्वास से चलकर बाहर आए।

    दोनों को बाहर आता देख मीडिया वाले आगे बढ़ने लगे, पर वहाँ खड़े बॉडीगार्ड ने उन्हें रोक लिया। मीडिया वाले दोनों की साथ में तस्वीरें लेने लगे। एक मीडियाकर्मी माइक आगे करते हुए बोला, "राहुल सर, हमने सुना है आप लोग एक मूवी बनाने वाले हैं। क्या आप बताएँगे मूवी का नाम क्या है और कब तक रिलीज़ होगी मूवी?"

    राहुल और किर्ति उस मीडियाकर्मी की बात सुनकर रुक गए। राहुल ने स्टाइल से आँखों से गॉगल्स उतारते हुए चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा, "देखिए, आपने जो सुना वो सही सुना, पर मैं अभी आपको मूवी का नाम और रिलीज़िंग डेट अनाउंस नहीं कर सकता, पर बहुत जल्द आपको हम इस बारे में बताएँगे।" इतना कहकर राहुल पहले किर्ति को गाड़ी में बिठाता है, फिर खुद बैठ जाता है।

    जारी है…

  • 17. तमन्ना तु मेरी - Chapter 17

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    विहान अपने केबिन में बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था। उस वक्त विहान के चेहरे पर हमेशा की तरह गंभीर भाव थे। तभी करण बिना दस्तक दिए विहान के केबिन में आ गया। विहान जानता था कि बिना दस्तक दिए उसके केबिन में आने की इजाजत अनुराग, विक्की और करण, तीनों में से किसी एक को ही थी।

    विहान अपना काम जारी रखा। करण को अनदेखा होते देख, उसने मेज़ पर हाथ पटकते हुए कहा, "मुझे तुमसे बात करनी है।" विहान ने नज़र उठाकर करण को देखा और उसे बोलने का इशारा किया।

    करण ने विहान को गंभीरता से देखा और कहा, "विहान, देख, प्रीति तेरे साथ नहीं रहना चाहती है, तो उसे वापस घर आने दे।" विहान के चेहरे पर अब भी गंभीर भाव थे। विहान ने गंभीर आवाज़ में कहा, "तुझे अपने दोस्त पर इतना भी भरोसा नहीं है? मैं प्रीति के साथ कुछ गलत नहीं करूँगा, तो उसकी फ़िक्र मत कर। और रही बात प्रीति की, तो वह बहुत जल्द तुझे यह कहेगी कि वह मेरे साथ रहना चाहती है।"

    करण विहान की बात सुनकर सोच में पड़ गया। करण ने विहान को देखते हुए कहा, "अगर ऐसा नहीं हुआ तो?" विहान कुर्सी से खड़ा हुआ और केबिन में बनी काँच की खिड़की के पास जाकर एक हाथ दीवार पर रख, बाहर देखते हुए गंभीर आवाज़ में बोला, "अगर इस एक महीने में प्रीति खुद की मर्ज़ी से मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हुई, तो तू उसे अपने साथ ले जाना, मैं तुझे नहीं रोकूँगा।"

    करण विहान के गंभीर चेहरे को देखने लगा। विहान का आधा चेहरा ही करण को दिखाई दे रहा था। करण ने एक गहरी साँस ली और कुर्सी से उठकर विहान के पास जाता हुआ बोला, "तू तो प्रीति को तलाक़ देना चाहता था ना? फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि तूने प्रीति को तलाक़ देने से मना कर दिया था?"

    विहान के चेहरे के भाव बिल्कुल नहीं बदले। विहान बाहर सड़कों पर चल रही कारों को देख रहा था, जो उसके केबिन से छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े जैसे लग रही थीं। विहान बाहर देखते हुए बोला, "हर चीज़ के पीछे कोई न कोई वजह होती है।" करण ने नासमझी में कहा, "कैसी वजह?" विहान इस बार करण की तरफ़ देखा और उसकी बात का जवाब न देकर वापस जाकर कुर्सी पर बैठते हुए बोला, "सुना है आज किर्ति वापस आ रही है और उसकी पहली फ़िल्म के लिए डायरेक्टर ने पार्टी रखी है?"

    करण ने विहान की बात सुनकर, और उसकी बातों में किर्ति का ज़िक्र सुनकर गुस्से में कहा, "मुझे उस लड़की से कोई मतलब नहीं है और तू भी अब उसके बारे में ना सोचो तो अच्छा होगा!" विहान ने करण को गुस्से में देख धीमे से मुस्कुराया और जल्दी ही अपनी हँसी छुपा ली। विहान वापस लैपटॉप पर उंगली चलाने लगा और विक्की को बिना देखे बोला, "आज की पार्टी में ज़रूर आना।"

    करण गुस्से में केबिन से बाहर जाता हुआ बोला, "मैं नहीं आ रहा, मुझे उस लड़की की शक्ल तक नहीं देखनी!" और जोर से केबिन का दरवाज़ा बंद करके बाहर चला गया। विहान करण को ऐसे जाते देखता रहा और वापस अपने काम में लग गया।

    करण गुस्से में दौड़ता हुआ विक्की के केबिन में चला गया और जोर से केबिन का दरवाज़ा खोलकर अंदर चला गया। विक्की के केबिन में उस वक़्त उसकी असिस्टेंट जोया थी, जो विक्की से एक फ़ाइल पर साइन लेने आई थी।

    करण के दरवाज़ा जोर से खोलने पर जोया के हाथ से फ़ाइल गिर गई। जोया जल्दी से फ़ाइल उठाते हुए बोली, "सॉरी सर, गलती से गिर गई।" विक्की ने जोया को डरा देख कहा, "इट्स ओके, जोया। तुम जाओ अभी।" जोया ने हाँ में सिर हिलाकर केबिन से निकल गई। विक्की ने करण को देखते हुए कहा, "क्या हुआ? इतना गुस्से में क्यों है तू?"

    करण विक्की के सामने बैठ गया और टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाकर सारा पानी एक साँस में पी गया। फिर गिलास टेबल पर रखते हुए बोला, "ये विहान नाम का अजीबोगरीब प्राणी मेरी समझ से बिल्कुल बाहर है और मैं इसके बारे में सोच-सोचकर सच में पागल हो रहा हूँ।"

    विक्की ने करण को निराश देख कहा, "पहले बता तो आखिर क्या हुआ है!" करण ने विक्की को केबिन में हुई सारी बातें बता दीं। विक्की ने करण की बात सुनकर कहा, "मुझे लगता है तुम्हें पार्टी में जाना चाहिए।" "और तुझे ऐसा क्यों लगता है?" करण ने पूछा। "क्योंकि जहाँ तक मैं विहान को जानता हूँ, वह खुद को चोट पहुँचाने वाले को ऐसे ही छोड़ता नहीं है। और किर्ति भी तो विहान को धोखा देकर शादी छोड़कर भाग गई थी ना? कहीं न कहीं ये पार्टी मज़ेदार होने वाली है।"

    करण ने विक्की की बात सुनकर अपना शक ज़ाहिर करते हुए कहा, "और अगर विहान के मन में किर्ति के लिए फिर से प्यार उमड़ गया तो?" "तू हमेशा नेगेटिव क्यों सोचता है!" विक्की ने करण को छोटी आँख करके घूरते हुए कहा।

    "तू भूल रहा है, विहान किर्ति से पिछले चार सालों से प्यार करता था और ऐसे में मुझे नहीं लगता वो उसे इतनी जल्दी भूल जाएगा।" करण ने विक्की को देखते हुए कहा।

    "तूने कभी विहान को किर्ति की तरफ़ लेते हुए या उसे गोद में उठाते हुए देखा है?" विक्की ने करण को देखते हुए पूछा। करण ने याद करते हुए ना में सिर हिला दिया। विक्की ने करण का इशारा समझकर कहा, "पर मैंने देखा है विहान को प्रीति के लिए साइड लेते हुए, उसको गोद में उठाते हुए। विहान अपनी भावना किसी को नहीं दिखाता, पर उसकी हरकतों से उसके दिल में जो है उसका पता चलता है। मुझे नहीं पता विहान ने प्रीति को घर से क्यों निकाला, या उसे तलाक़ देना क्यों चाहता है, पर विहान अब प्रीति को खुद से एक सौ गज़ दूर नहीं जाने देगा!"

    जारी है...

  • 18. तमन्ना तु मेरी - Chapter 18

    Words: 828

    Estimated Reading Time: 5 min

    वही किर्ति कौशिक विला आ गई। रचना जी बाहर गेट पर खड़ीं किर्ति का इंतज़ार कर रही थीं। किर्ति के आते ही रचना उसके गले लग गई। वहीँ किर्ति के पापा, आकाश जी, भी वहाँ मौजूद थे। किर्ति, रचना जी से अलग होकर, उनके गाल पर किस करते हुए बोली,

    "माँ, मैंने आपको बहुत मिस किया इतने महीनों में।"

    रचना, किर्ति के माथे पर किस करते हुए बोली,

    "हमने भी आपको बहुत मिस किया बेटा।"

    आकाश, दोनों माँ-बेटी को देखते हुए बोले,

    "इसका मतलब हमें किसी ने मिस नहीं किया?"

    किर्ति, आकाश जी के गाल पर किस करते हुए, हाथों से इशारा करते हुए बोली,

    "आपको तो सबसे ज़्यादा मिस किया हमने।"

    आकाश जी किर्ति को अंदर ले गए। उनके पीछे-पीछे रचना भी मटकते हुए चली गई।

    किर्ति, अंदर जाते हुए इधर-उधर देखते हुए बोली,

    "और वो मेरी सो कॉल्ड सिस्टर कहाँ है? मैंने सुना था विहान उसे तलाक़ देने वाला है।"

    रचना जी, एक तंज भरी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोलीं,

    "पता नहीं बेटा, वो लड़की कहाँ है। विहान तो उसे धक्के मारकर घर से निकाल चुका है।"

    किर्ति और आकाश जी रचना की बात पर हँस दिए। किर्ति मुस्कुराते हुए बोली,

    "वो बेवकूफ़ विहान मुझसे आज भी प्यार करता है और मैंने तो स्पेशली उसे आज पार्टी में इनवाइट किया है ताकि वो पार्टी में आए और राहुल उसकी बेइज़्ज़ती कर सके।"

    करण अभी-अभी घर में आया ही था और किर्ति की बात सुनकर करण गुस्से में, एक-एक शब्द चबाते हुए, बोला,

    "और कर भी क्या सकती हो तुम? आते ही अपनी चालें चलना फिर से शुरू कर दिया तुम्हने। अरे, डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तुम तो अपनी बहन के पति को बेइज़्ज़ती करना चाहती हो।"

    किर्ति, करण को देखकर गुस्से में आ गई। किर्ति करण से हमेशा नफ़रत करती थी। करण उसका सगा भाई होकर भी हमेशा प्रीति का ध्यान रखता था, उससे ज़्यादा प्यार करता था। किर्ति, करण को देख गुस्से में बोली,

    "आपको मेरे मामले में दखलअंदाज़ी करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप और आपकी सो कॉल्ड बहन मेरे मामले से जितना दूर रहेंगे, उतना आप दोनों के लिए अच्छा होगा!"

    करण, किर्ति के सामने आते हुए, उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला,

    "तु भी कान खोलकर अच्छी तरह सुन ले। अगर इस बार तुमने प्रीति को कोई भी चोट पहुँचाने की कोशिश की, तो इस बार तुम्हारा वो हाल करूँगा कि तुम खुद को पहचान नहीं पाओगी।"

    आकाश जी, करण पर चिल्लाते हुए बोले,

    "करण! आवाज़ नीचे मत भूलो। वो तुम्हारी बहन है, ना कि प्रीति।"

    करण भी उसी आवाज़ में, गुस्से में आकाश जी पर गरजते हुए बोला,

    "मत भूलिए मिस्टर कौशिक कि आप और ये आपकी मेकअप की दुकान (किर्ति और रचना की ओर अंगुली करते हुए), मेरे कुछ नहीं लगते। तो मुझ पर अपना ये परिवार वाला टैग लगाना बंद करिए। और एक बात दिल, दिमाग और शरीर सब जगह बैठा लीजिए और अच्छे से याद रखिएगा... प्रीति मेरी छोटी बहन है, थी और हमेशा रहेगी।"

    रचना जी, गुस्से में आगे आते हुए बोलीं,

    "तुम अपनी हद पार कर रहे हो, करण! आखिर उस लड़की ने ऐसा क्या दे दिया है तुम्हें?"

    करण किर्ति को घूरते हुए ऊपर चला गया। रचना जी, खुद को ऐसा इग्नोर होते देख गुस्से में चिल्लाईं,

    "आआआआआआआआआआआ!"

    वहीँ करण अपने रूम में आ गया। करण को वो पल याद आ गया जब करण किर्ति के बर्थडे पर किर्ति को क्लब लेकर गया था। प्रतिभा जी जब किर्ति दस साल की थी, तब से बीमार थीं और अपनी बीमारी के चलते उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा था। करण जब तीन साल का था, तभी से प्रतिभा जी के साथ था। प्रीति तब प्रतिभा जी के पेट में थी और उनका चौथा महीना चल रहा था। प्रतिभा जी ने करण को अपने बेटे की तरह पाला था।

    करण, प्रीति और किर्ति दोनों के साथ क्लब गया था। ये प्रीति का अठारहवाँ बर्थडे था। तब प्रीति अब से पहले थोड़ी कम सुंदर थी। किर्ति हमेशा से प्रीति से जलती थी और उस वक्त किर्ति बीस साल की थी। किर्ति को हमेशा से पैसों का लालच था। वैभव जब वाशरूम के लिए गया, तो किर्ति वहाँ बैठे एक चालीस साल के आदमी को इशारा किया। वो आदमी हाँ में सिर हिलाया। कुछ वक्त में प्रीति के पास आते हुए बोला,

    "मैडम, करण कौशिक आपके साथ थे क्या?"

    प्रीति हाँ में सिर हिला दिया। वो आदमी घबराई आवाज़ में बोला,

    "उनको बाहर कुछ लड़के पीट रहे हैं।"

    प्रीति उस आदमी को देखकर अपनी घबराई आवाज़ में बोली,

    "पर भैया तो वाशरूम की तरफ़ गए हैं। बाहर कैसे हो सकते हैं?"

    किर्ति भी प्रीति की हाँ में हाँ मिला दी।

    जारी है...

    धोखा तो अपने दे देते हैं,
    खामखा परायों पर इल्ज़ाम लगाया जाता है।

  • 19. तमन्ना तु मेरी - Chapter 19

    Words: 1022

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्रीति उस आदमी को देखकर अपनी घबराई आवाज़ में बोली, "पर भईया तो वाशरूम की तरफ़ गए हैं, बाहर कैसे हो सकते हैं?"

    किर्ति भी प्रीति की बात में सहमति जताती हुई बोली, "हाँ।"

    वह आदमी कुछ सोचने का नाटक करते हुए बोला, "हो सकता है वो पिछले गेट से बाहर गए हों। मैंने तो उसे आपके साथ बैठा देखा था। इसलिए आपको बता दिया।"

    इतना कहकर वह आदमी बाहर चला गया। प्रीति को अब करण के लिए घबराहट होने लगी। प्रीति किर्ति को देखकर बोली, "चलिए, कहीं वो आदमी सच तो नहीं कह रहा?"

    किर्ति घबराने का नाटक करते हुए बोली, "एक काम करते हैं, तुम बाहर जाओ और मैं उधर देखकर आती हूँ जहाँ भाई गए हैं।"

    प्रीति ने सिर हिलाया और बाहर चली गई।

    वहीं, करण वाशरूम से बाहर आ गया था। वह कॉरिडोर में चलते हुए आ रहा था कि एक वेटर ने करण पर जूस गिरा दिया और जूस करण के कपड़ों पर गिर गया।

    वेटर ने करण को देखकर कहा, "सॉरी सर, गलती से गिर गया।"

    करण ने "इट्स ओके" कहा और वापस वाशरूम की ओर चला गया। तभी उस वेटर के पास किर्ति आई और उसे कुछ पैसे दिए। वेटर मुस्कुराते हुए पैसे ले लिया और वहाँ से चला गया।

    वहीं, प्रीति क्लब से बाहर निकलकर घबराई हुई करण को ढूँढ़ने लगी। बाहर इस वक़्त ज़्यादा लोग नहीं थे, कुछ इक्का-दुक्का लोग थे। तभी प्रीति की नज़र उस आदमी पर पड़ी जिसने प्रीति को करण के पिटने की खबर दी थी। प्रीति उस आदमी के पीछे जाती हुई उसे आवाज़ लगाने लगी।

    उस आदमी तक प्रीति की आवाज़ जा रही थी, पर वह उसे अनसुना कर देता रहा। प्रीति भागकर उस आदमी का पीछा करती हुई उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "अंकल, मेरे भैया कहाँ हैं? आपने तो कहा था बाहर उन्हें कुछ आदमी पीट रहे हैं।"

    वह आदमी मुस्कुराते हुए पलटा और एक झटके में प्रीति की नाक पर एक रुमाल लगा दिया। प्रीति कुछ समझ पाती, उससे पहले ही रुमाल पर लगी दवा उसकी साँसों के साथ उसके अंदर चली गई और प्रीति वहीं बेहोश हो गई।

    वह आदमी रुमाल हटाकर प्रीति को पकड़ लेता है। तभी कोई पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखता है। वह आदमी पलटकर देखता है तो वहाँ अनुज और रूही खड़े थे। रूही जाकर प्रीति को पकड़ लेती है और अनुज बिना उस आदमी को मौका दिए उसकी पिटाई शुरू कर देता है।

    अनुज और रूही को करण ने बुलाया था। प्रीति के दोस्त थे और आज प्रीति का जन्मदिन था। अनुज और रूही को आने में देर हो गई थी क्योंकि रास्ते में उनकी गाड़ी खराब हो गई थी। जब वे यहाँ आये तो उस आदमी को प्रीति को बेहोश करते देख लिया। दोनों को यही लगा कि यह आदमी प्रीति का अपहरण कर रहा है।

    वहीं, करण जब वापस टेबल के पास आता है तो उसे प्रीति नहीं दिखाई देती। किर्ति वहीं पर बैठी थी।

    करण किर्ति को देखते हुए बोला, "प्रीति कहाँ है?"

    किर्ति कंधे उचकाते हुए बोली, "पता नहीं भाई, मैं तो वाशरूम चली गई थी। अभी वापस आई तो देखा प्रीति यहाँ नहीं है।"

    करण इधर-उधर देखते हुए बोला, "ऐसे कहाँ जा सकती है वो? बिना बताए कभी नहीं जाती।"

    वहीं, किर्ति मन ही मन मुस्कुराते हुए बोली, "अब आपकी प्यारी बहन आपको कभी नहीं मिलेगी भाई, क्योंकि वो तो कोठेवालों को बेच दी मैंने।"

    करण पास से गुज़र रहे वेटर को देखते हुए बोला, "सुनो..."

    वह वेटर करण की आवाज़ सुनकर रुक जाता है। करण चेयर की ओर इशारा करते हुए बोला, "यहाँ एक लड़की बैठी थी। तुमने उसे कहीं जाते देखा?"

    ग़रिमत से उस वेटर ने प्रीति को बाहर जाते देखा था। उसने सिर हिलाकर कहा, "हाँ, वो मैडम कुछ देर पहले बाहर गई थी और थोड़ी घबराई हुई लग रही थी।"

    करण वेटर की आधी बात सुनकर बाहर चला जाता है। किर्ति करण के पीछे जाते हुए मन में बोली, "अब तक तो उसने अपना काम कर दिया होगा।"

    वहीं, अनुज ने बाहर पुलिस बुला ली थी। वह आदमी दर्द से तड़प रहा था। उसने अनुज को मारना चाहा, पर मार नहीं सका क्योंकि अनुज एक बॉक्सर था। स्टडी के साथ-साथ वह बॉक्सिंग भी किया करता था।

    करण बाहर आता है तो उसे कोई दिखाई नहीं देता। करण पार्किंग एरिया की तरफ़ जाता है तो उसे वहाँ अनुज उस आदमी को पीटता हुआ दिखाई देता है।

    करण भागते हुए अनुज के पास जाता है। वहीं, किर्ति की तो साँसें अटक गई थीं। किर्ति मन में बोली, "ओह गॉड! ये लड़की बच कैसे गई? और ये आदमी अब तक प्रीति को यहाँ से लेकर क्यों नहीं गया? अगर भाई के सामने इसने मेरा नाम ले लिया तो... और ये शिला ताई ने ऐसे कैसे आदमी को यहाँ भेज दिया है जो अपना काम तक ना कर पाया।"

    करण अनुज के पास जाता है तो उसे सामने रूही के पास प्रीति दिखाई देती है। रूही ने प्रीति को पकड़ रखा था। प्रीति का चेहरा रूही के कंधे पर टिका था। प्रीति बेहोश रूही के कंधों पर झुक रही थी। करण सबसे पहले प्रीति के पास जाता है और प्रीति का चेहरा थपथपाते हुए बोला, "बच्चा, क्या हुआ आपका?"

    रूही करण को देखकर बोली, "थैंक गॉड भाई, आप आ गए। ये आदमी प्रीति का अपहरण करने की कोशिश कर रहा था।"

    करण रूही की बात सुनकर हैरान नज़रों से उसकी ओर देखता है और एक नज़र प्रीति के चेहरे की ओर देखकर उस आदमी के पास जाता है। अनुज उस आदमी को मुक्का मारने वाला था कि करण उसे रोक देता है। तभी वहाँ पुलिस आ जाती है। पुलिस को देखकर वह आदमी वहाँ से भागने लगता है कि करण उसकी कॉलर पकड़कर पीछे खींचता है और छोड़ देता है जिससे उस आदमी का सिर पास की दीवार से टकरा जाता है और वह जमीन पर गिर जाता है।

    जारी है...

  • 20. तमन्ना तु मेरी - Chapter 20

    Words: 1022

    Estimated Reading Time: 7 min

    आर्यन ने इंस्पेक्टर की ओर देखते हुए कहा, "यही है वो आदमी। आप इसे गिरफ्तार कर लीजिए।"

    वो आदमी आर्यन के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला, "साहब, मुझे माफ़ कर दो। मैंने ये सब पैसे के लिए किया। मुझे तो इस लड़की को कोठे तक पहुँचाने का कहा गया था!"

    कोठे का नाम सुनकर करण का खून खौल गया। करण ने बाएँ हाथ से एक जोरदार मुक्का उस आदमी के मुँह पर मारा और बोला, "तुझे किसने कहा था ऐसा करने को?"

    इंस्पेक्टर ने करण से उस आदमी को छुड़ाते हुए कहा, "रुकिए, मिस्टर कौशिक। आप कानून को अपने हाथ में ना लीजिए। हम अपनी तरफ़ से जानने की कोशिश करते हैं।"

    करण अब भी उस आदमी को गुस्से में घूर रहा था। इंस्पेक्टर ने उस आदमी को थप्पड़ मारते हुए कहा, "अब इज़्ज़त के साथ ये भी बता दे कि ऐसा किसके कहने पर किया था तुमने?"

    वो आदमी अपने गाल पर हाथ रखे, करण की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोला, "इनके साथ एक लड़की और थी।"

    "उसने और उसकी माँ ने मिलकर इस लड़की को कोठे पर बेच दिया था, और मुझे यहाँ से इस प्रकार लड़की को उठाना था।"

    करण, अनुज और रुही एक साथ धीरे से बोले, "किर्ति..."

    करण इधर-उधर देखते हुए बोला, "पर मैं तुम पर यकीन कैसे कर सकता हूँ कि ये सब किर्ति ने करवाया है?"

    वो आदमी अपना फ़ोन निकालकर बोला, "इसमें उस लड़की के फ़ोन से कॉल आया था। आप नंबर देख लीजिए!"

    करण ने उस आदमी के हाथ से फ़ोन ले लिया और नंबर देखने लगा। नंबर किर्ति के थे। ये देख करण को उस आदमी की बात पर यकीन हो गया। पर अंदर ही अंदर करण को बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था कि किर्ति ऐसा कुछ कर सकती थी।

    इंस्पेक्टर ने करण को देखते हुए कहा, "क्या वो लड़की यहीं कहीं है? इस आदमी की बातें सुनकर तो यही लग रहा है वो भी बराबर की दोषी है। तो हम उसे गिरफ़्तार करेंगे।"

    करण ने उस आदमी का फ़ोन इंस्पेक्टर को देते हुए कहा, "आप इस आदमी को यहाँ से ले जाएँ। मुझे उसके ख़िलाफ़ कोई शिकायत लिखवानी नहीं है।"

    इंस्पेक्टर ने हाँ में सर हिलाया और उस आदमी को लेकर वहाँ से चले गए। करण ने अनुज को देखते हुए कहा, "तुम प्रीति को लेकर घर जाओ। मैं किर्ति को लेकर आता हूँ।"

    अनुज ने हाँ में सर हिला दिया और प्रीति को गोद में उठाकर गाड़ी की तरफ़ ले गया। रुही भी उसके साथ गई।

    वहीं करण वापस क्लब की तरफ़ आया और अंदर चला गया। करण ने सब जगह देख लिया, पर उसे किर्ति कहीं नहीं मिली। किर्ति तो पुलिस को देखकर वहाँ से पहले ही भाग चुकी थी।

    किर्ति जल्दबाज़ी में घर आई। रचना जी लिविंग रूम में बैठी टीवी पर अपना फेवरेट टीवी शो देख रही थीं और साथ में काजू खा रही थीं। किर्ति रचना जी के पास आकर घबराते हुए बोली, "माँ, उस आदमी को पुलिस ने पकड़ लिया है। अगर हमारे बारे में भाई को पता लग गया तो?"

    किर्ति की बात सुनकर रचना जी, जो काजू खा रही थीं, वो उनके गले में अटक गया और वो जोर-जोर से खांसने लगीं। किर्ति ने रचना जी को टेबल से पानी का गिलास उठाकर दिया। रचना जी ने पानी पिया और खुद को शांत करते हुए बोली, "हमारा प्लान फ़्लॉप कैसे हो गया?"

    किर्ति कुछ बोलती, उससे पहले करण गुस्से में गरजते हुए बोला, "आपको शर्म नहीं आती? जिस थाली में खाती हो उसी में छेद करती हो। आप इतनी घटिया हरकत कैसे कर सकती हो?"

    रचना जी को अपने किए पर बिल्कुल भी पछतावा नहीं था। रचना जी ने करण की गोद में बेहोश प्रीति को देखते हुए बोली, "और तुम्हें शर्म नहीं आती अपनी माँ से इस लड़की के लिए ऐसी बात करते हुए?"

    करण ने रचना जी को गुस्से में घूरते हुए चिल्लाते हुए कहा, "मैंने कितनी बार कहा है आप मेरी माँ नहीं हो! मेरी माँ सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रतिभा माँ है! तो अपनी गंदी ज़ुबान से मुझे माँ कहना बंद करो!"

    और फिर करण ने किर्ति को घूरते हुए कहा, "तुम प्रीति के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो? इतनी सी उम्र में ऐसी हरकतें करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?"

    किर्ति ने करण को देखते हुए उसी तरह चिल्लाते हुए कहा, "हाँ, नहीं आई! आप हमेशा इस लड़की को मुझसे ऊपर रखते आ रहे हो और मैं इस प्रीति से हद से ज़्यादा नफ़रत करती हूँ! मेरा बस चले तो मैं इसे मार..."

    "अगर आगे एक शब्द भी कहा तो ज़ुबान काटकर हाथ में दे दूँगा! प्रीति हमेशा मेरी प्राथमिकता थी है और हमेशा रहेगी! पहली और आखिरी गलत समझकर छोड़ रहा हूँ। दुबारा तुमने प्रीति को कोई चोट पहुँचाने की कोशिश की तो उसकी सज़ा बद से बदतर होगी!" इतना कहकर करण प्रीति को लेकर उसके कमरे में चला गया और किर्ति और रचना दोनों प्रीति को नफ़रत से देखती रहीं।

    करण ये सब याद करते हुए सिर पकड़कर बैठ गया। प्रतिभा जी के कहने पर उसने अपने परिवार को अपने साथ रख तो लिया, पर वो उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता था और हर रोज़ इसी किटकिट से वो परेशान हो गया था।

    वहीं प्रीति ने वान्या को मिली सज़ा को पूरा कर दिया था। वान्या को प्रीति का ये स्वभाव पसंद आता है, पर वो प्रीति के सामने कहती नहीं है। प्रीति दादी के साथ बाहर गार्डन में बैठी थी, तभी वहाँ विनय आ जाता है।

    विनय प्रीति और दादी के पास आकर बैठ गया। विनय ने प्रीति को देखते हुए कहा, "भाभी, एक बात पूछूँ?"

    प्रीति ने हाँ में सर हिला दिया। विनय ने प्रीति को देखते हुए कहा, "भाभी, आपकी हॉबी क्या है?"

    जारी है...