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शुभ विवाह

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Ravina Sastiya

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तरंग, एक ज़िम्मेदार सा लड़का, रुद्राक्षी, शरारती, भोली, ना समझे प्यार क्या होता है, "अरे देखो, दुल्हन आ गई!"सेवक की आवाज़ के साथ सबकी नज़रें मुड़ गईं,लाल चुनर में लिपटी,छोटी सी वो रुद्राक्षी सकुचाई सी खड़ी थी।...

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तरंग

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रुद्राक्षी

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Total Chapters (64)

Page 1 of 4

  • 1. विवाह - Chapter 1

    Words: 2966

    Estimated Reading Time: 18 min

    "अरे देखो, दुल्हन आ गई!" किसी सेवक ने धीमी आवाज में कहा।

    सभी की निगाहें मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर मुड़ गईं। द्वार पर कुछ महिलाएँ खड़ी थीं, हाथों में थाल लिए हुए। थालों में लाल चूड़ियाँ, सिंदूर और कुमकुम की थाली सजी हुई थी। उन महिलाओं के बीच में एक छोटी सी, बारह साल की मासूम लड़की खड़ी थी—रुद्राक्षी।


    रुद्राक्षी के कदम छोटे-छोटे और धीमे थे। हर कदम के साथ उसकी माँ, देवकी, उसके पीछे-पीछे चल रही थीं। उनके चेहरे पर चिंता और गर्व का मिश्रण स्पष्ट नज़र आ रहा था। देवकी ने अपनी बेटी को अच्छे से सजा रखा था, पर उनकी आँखों में वह दर्द भी झलक रहा था जो हर माँ महसूस करती है जब उसकी बेटी का बचपन छिन जाता है। लेकिन वे खुश भी थीं कि आखिर उनकी बेटी ठाकुर खानदान की बहु बनने जा रही थी।

    जैसे ही रुद्राक्षी मंडप में पहुँची, उसकी आँखें सहसा नीचे की ओर झुक गईं। वह लोगों की नज़रों से बचने की कोशिश कर रही थी। तभी उसकी नज़रें पहली बार दुल्हे (तरंग), जो सोलह वर्ष का था, से मिलीं, जो उसे एकटक देख रहा था।

    तरंग, जो अब तक शांत और संयमित था, रुद्राक्षी की मासूमियत देखकर एक पल के लिए ठिठक गया। उसके चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान उभरी, जो शायद उसने खुद भी महसूस नहीं की।

    रुद्राक्षी ने हल्के से अपने चेहरे को घुमाते हुए अपनी नाक को हल्का सा सिकोड़ लिया।

    तरंग चौंक गया। वह इस बात पर हँसना चाहता था, पर वह खुद को संयमित रखते हुए चुप रहा। दोनों के बीच यह छोटी सी नोंक-झोंक जैसे ही हुई, चारों तरफ़ एक मद्धम मुस्कान फैल गई।

    देवकी ने अपनी बेटी रुद्राक्षी का हाथ थामकर उसे धीरे-धीरे दूल्हे तरंग के पास ले जाकर बिठा दिया। तरंग, जो अब तक अपने मन के विचारों में खोया हुआ था, अचानक अपनी दुल्हन के इतने करीब पाकर थोड़ा असमंजस में पड़ गया। उसकी आँखें फिर से रुद्राक्षी की मासूम सूरत पर टिक गईं।

    तरंग ने जब एक बार फिर रुद्राक्षी की ओर देखा, तो उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान उभर आई। उसे महसूस हुआ कि इस नन्ही दुल्हन में कुछ खास है, जो उसे लगातार अपनी ओर खींच रहा है। उसकी मासूमियत और नन्हें हाव-भाव ने तरंग के मन में एक कोमलता ला दी थी, जिसे वह पहले कभी महसूस नहीं कर पाया था।

    तरंग की यह मुस्कान देखकर रुद्राक्षी ने भी अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उठाईं और उसकी ओर देखा। लेकिन जैसे ही उनकी नज़रें मिलीं, रुद्राक्षी ने उसे घूरकर देखा, मानो कह रही हो, "तुम क्या देख रहे हो?" और फिर वह तिरछे मुँह फेरकर दूसरी दिशा में देखने लगी। उसकी इस मासूम हरकत ने तरंग को अंदर ही अंदर हँसा दिया, लेकिन वह खुद को संयमित रखते हुए चुप रहा।

    "यह तो अभी से तेवर दिखा रही है।" तरंग के मन में ख्याल आया।

    उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, जिसे उसने छिपाने की कोशिश की। लेकिन वह रुद्राक्षी की इस नटखट हरकत से भीतर ही भीतर प्रसन्न हो रहा था। उसे समझ में आ रहा था कि यह छोटी सी दुल्हन, भले ही उम्र में छोटी हो, लेकिन आत्मसम्मान और स्वाभिमान से भरी हुई है।

    तरंग की नज़रें फिर से रुद्राक्षी पर टिक गईं, जो अब मंडप के दीयों की रौशनी में और भी निखर गई थी। रुद्राक्षी ने जैसे ही महसूस किया कि तरंग उसे फिर से देख रहा है, उसने अपने लंबे पलकें झपकाते हुए एक बार फिर नाक सिकोड़ ली और फिर से मुँह फेर लिया।

    "अभी से इतना गुस्सा!" तरंग मन ही मन मुस्कुराया और सोचा।

    पंडित जी ने विवाह की रस्में शुरू करते हुए सबसे पहले अग्नि की पूजा की और फिर हवनकुंड में आहुति डालकर पवित्र अग्नि प्रज्वलित की।

    पंडित जी ने अपनी पूजा सामग्री को ठीक करते हुए सभी का ध्यान वापस रस्मों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "अब विवाह की रस्में शुरू करने का समय आ गया है। आप दोनों अपने-अपने स्थान पर बैठे रहें और पूरे मन से इन पवित्र विधियों को पूरा करें।"

    देवकी, जो अब तक अपनी बेटी के पास बैठी थी, ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, अब तुझे अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करनी है। ठाकुर साहब का घर अब तेरा अपना घर है।" उनकी आवाज में ममता और एक हल्की सी उदासी थी, जिसे उन्होंने छिपाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनकी आँखों में उमड़ते आँसू उनकी भावनाओं को व्यक्त कर रहे थे।

    रुद्राक्षी ने हल्के से सिर हिलाया, मानो अपनी माँ की बात समझ रही हो। तरंग भी अब पूरी तरह से गंभीर हो गया था। उसने मन ही मन यह तय कर लिया था कि वह इस नन्ही दुल्हन को हर हाल में खुश रखेगा और उसकी हर नटखट बात का भी मज़ा लेगा।

    पंडित जी ने जैसे ही रस्मों की शुरुआत की घोषणा की, वहाँ उपस्थित सभी लोग अधिक गंभीर हो गए। देवकी ने रुद्राक्षी के सिर पर ओढ़नी ठीक की और अपने आँसू छिपाते हुए वहाँ से हट गईं।

    अब रुद्राक्षी और तरंग की नई जिंदगी की यात्रा शुरू हो रही थी, और इस यात्रा का पहला कदम यह विवाह संस्कार था।

    पंडित जी ने विवाह की रस्में शुरू कीं। रुद्राक्षी और तरंग को अग्नि के चारों ओर बैठाया गया। पंडित जी ने मंत्रोच्चारण करते हुए दोनों को एक-दूसरे के हाथों में हाथ देने के लिए कहा।

    रुद्राक्षी ने अपनी छोटी-छोटी उंगलियों को तरंग के हाथों में धीरे से रख दिया। तरंग ने भी हल्के से उसका हाथ थाम लिया, और दोनों के बीच एक अव्यक्त बंधन की शुरुआत हो गई।

    इसके बाद, पंडित जी ने सात फेरों के लिए दोनों को तैयार किया।

    रुद्राक्षी ने अपने छोटे-छोटे कदम धीरे-धीरे बढ़ाए, और तरंग ने उसका हाथ थामे रखा।

    फेरों की रस्म शुरू हुई। दोनों धीरे-धीरे उठे और अग्नि के चारों ओर घूमने लगे।

    पहला फेरा शुरू हुआ, और दोनों धीरे-धीरे अग्नि के चारों ओर घूमने लगे। तरंग ने मन ही मन संकल्प किया कि वह हमेशा रुद्राक्षी की देखभाल करेगा, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। रुद्राक्षी ने भी मन ही मन तरंग के इस वचन को स्वीकार किया और सिर झुकाकर उसका साथ दिया।

    दूसरे फेरे में, तरंग ने वचन लिया कि वह कभी भी रुद्राक्षी को अकेला महसूस नहीं होने देगा। चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, वह हमेशा उसका साथ देगा। रुद्राक्षी ने इस वचन पर भी हल्का सा सिर हिलाकर सहमति जताई।

    रुद्राक्षी के नन्हें कदम और तरंग के संयमित कदम, दोनों ने एक साथ हर फेरे में अपना-अपना वचन लिया।

    इसी तरह, दोनों ने सात फेरों में अपने-अपने वचन निभाने का संकल्प लिया। हर फेरे के साथ, दोनों के बीच एक नया बंधन बनता जा रहा था, जो उन्हें जीवन भर के लिए जोड़ने वाला था।

    पंडित जी ने अगले चरण की घोषणा की, "अब हम मंगलसूत्र की रस्म करेंगे।"

    सभी की निगाहें रुद्राक्षी और तरंग की ओर थीं, जैसे ही पंडित जी ने एक छोटा सा लाल वस्त्र निकाला जिसमें मंगलसूत्र रखा था। यह मंगलसूत्र काले मोती और एक सुंदर मोर के आकार का था। रुद्राक्षी की माँ, देवकी, ने एक भावुक नज़र से देखा, जैसे वह अपनी बेटी को इस पवित्र बंधन के साथ देख रही हो।

    तरंग ने धीरे-धीरे मंगलसूत्र को रुद्राक्षी के गले में डाला। उसकी हर एक चाल, हर एक अंगूठी की खनक, हर एक पायल की झंकार उस पल की गंभीरता को बढ़ा रही थी। तरंग ने मंगलसूत्र को उसकी गर्दन में पहनाते हुए, उसके मासूम चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान की ओर देखा। रुद्राक्षी ने सिर झुका लिया और अपनी आँखें धीरे-धीरे बंद कर लीं।

    "अब सिंदूर की रस्म होगी।" अब पंडित जी ने सिंदूर की डिब्बी निकालते हुए कहा।

    तरंग की माँ, यामिनी ने एक छोटी सी डिब्बी से सिंदूर निकाला और तरंग की ओर बढ़ाया। तरंग ने सिंदूर को अपनी उंगली में लिया और धीरे से रुद्राक्षी की मांग में भर दिया। जैसे ही सिंदूर उसकी मांग में भर गया, कुछ सिंदूर उसके नाक पर भी गिर पड़ा, जो शुभ संकेत के रूप में माना गया।

    रुद्राक्षी ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर झुका लिया।

    "विवाह संपन्न हुआ।" पंडित जी ने कहा।

    जैसे ही पंडित जी ने विवाह संपन्न होने की घोषणा की, सभी ने तरंग और रुद्राक्षी की ओर देखा।

    तरंग ने रुद्राक्षी की ओर देखा, और उसकी मासूम मुस्कान में खो गया। लेकिन तभी रुद्राक्षी ने उसकी ओर देखते हुए एक शरारत भरी आँख मार दी। तरंग चौंक गया और अचानक उसका चेहरा लाल हो गया। उसकी झेंप साफ़ नज़र आ रही थी, और वह यह सोचने लगा कि यह नन्ही दुल्हन तो बेहद नटखट है।

    इसके बाद, तरंग और रुद्राक्षी ने धीरे-धीरे उठकर सबका आशीर्वाद लेना शुरू किया।

    विवाह की रस्में पूरी होने के बाद, रुद्राक्षी और तरंग ने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। जब रुद्राक्षी अपनी माँ, देवकी के पास आई, तो उसकी आँखें भर आईं। उसने अपनी माँ के गले लगकर रोना शुरू कर दिया। उसके मासूम चेहरे पर आँसू बहते रहे, और उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। उसकी नाक भी आँसुओं से लाल हो गई थी, जैसे कोई नन्ही गुड़िया रो रही हो।

    देवकी ने अपनी बेटी को कसकर गले से लगा लिया। रुद्राक्षी के चेहरे पर आँसू थे, और उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, जैसे कि वह अपने बचपन के हर उस पल को अलविदा कह रही हो जो उसने अपनी माँ के साथ बिताए थे।

    माँ-बेटी के बीच का यह संवाद भावनाओं से भरा हुआ था। देवकी ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "बेटा, तुझे अब अपना घर छोड़कर एक नए घर में जाना है। मैं जानती हूँ कि यह कठिन है, पर तुझे वहाँ भी इसी तरह प्यार और सम्मान मिलेगा जैसे यहाँ मिला है।"

    रुद्राक्षी ने अपनी माँ की बात को सुनते हुए सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में आँसू और भी बढ़ गए। उसने कहा, "माँ, मुझे आपकी बहुत याद आएगी। मैं कैसे वहाँ रह पाऊँगी?"

    देवकी ने उसकी आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारे साथ तुम्हारी परछाई बनकर मेरा प्यार हमेशा रहेगा। और ठाकुर साहब का घर अब तुम्हारा अपना घर है। वहाँ भी तुम्हें मुझसे कम प्यार नहीं मिलेगा।"

    रुद्राक्षी ने हल्के से सिर झुका लिया और अपनी माँ के गले लग गई। वह इस विदाई के पल को अपने दिल में बसा रही थी, जबकि उसकी माँ उसकी मासूमियत और दर्द को समझते हुए उसे सांत्वना दे रही थी।

    जैसे ही विदाई की रस्म पूरी होने लगी, ठाकुर गंगाधर जी ने देवकी के पास आकर कहा, "समधन जी, आपकी बेटी अब हमारे ठाकुर खानदान की बहू बन गई है। आप निश्चिंत रहें, हम उसे अपनी बेटी की तरह ही प्यार और सम्मान देंगे।"

    देवकी ने उनके इस आश्वासन को सुनते हुए एक हल्की सी मुस्कान के साथ सिर झुका दिया। लेकिन उनके दिल में अपनी बेटी के बिछड़ने का दर्द साफ़ झलक रहा था। ठाकुर गंगाधर जी ने फिर कहा, "आप चिंता मत करें, वह हमारे परिवार में हमेशा सुरक्षित और खुश रहेगी।"

    अब वह समय आ गया जब रुद्राक्षी को कार में बैठाकर नए घर ले जाया जाने वाला था। तरंग ने अपनी नन्ही दुल्हन को कार में बैठाने के लिए हाथ बढ़ाया। रुद्राक्षी, जो अभी तक अपनी माँ के गले लगी हुई थी, धीरे-धीरे तरंग की ओर बढ़ी। तरंग ने उसकी छोटी-छोटी उंगलियों को अपने हाथ में थामा और उसे आराम से कार में बिठाया।

    जैसे ही रुद्राक्षी कार में बैठी, उसने एक बार फिर अपनी माँ की ओर देखा, उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उन आँसुओं के पीछे एक ममता और आशीर्वाद छिपा था। तरंग ने धीरे-से कार का दरवाज़ा बंद किया, और कार धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी, एक नई जिंदगी की ओर, एक नए सफ़र की ओर।

    थोड़ी देर बाद कार एक बड़े से बंगले के बाहर आकर रुकी। बंगला पूरी तरह से सजाया गया था, चारों ओर रंग-बिरंगी लाइटें और फूलों की लड़ियों से लिपटा हुआ था, मानो पूरे माहौल में एक उत्सव की रंगीन छटा बिखरी हो। कार के रुकते ही तरंग बाहर निकला और उसने अपना हाथ बढ़ाकर रुद्राक्षी को कार से बाहर आने का इशारा किया।

    रुद्राक्षी, जो अब भी कार में बैठी थी, अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से बंगले की भव्यता को देख रही थी। उसकी मासूमियत भरी आवाज में हल्की सी हैरानी और खुशी झलक रही थी जब उसने कहा, "इतना बड़ा घर!" उसकी आवाज में उस नन्ही राजकुमारी की मासूमियत थी जो अब एक नए संसार का हिस्सा बनने जा रही थी।

    "चलो, अंदर चलें।" तरंग ने कहा। रुद्राक्षी ने उसकी ओर देखा, और फिर उसकी उंगलियों को हल्के से थाम लिया। दोनों धीरे-धीरे बंगले की ओर बढ़े।

    जैसे ही वह कार से उतरी, सामने खड़े कुछ सेवक और सेविकाएँ फूलों की पंखुड़ियों को उनके ऊपर बरसाने लगे। फूलों की इस बौछार ने रुद्राक्षी के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान बिखेर दी। वह हल्के से अपनी पलकें झपकाती रही, मानो इन फूलों की बारिश से खुद को संवार रही हो। तरंग भी उसके चेहरे की इस मुस्कान को देख, मन ही मन मुस्कुरा उठा।

    अब दोनों धीरे-धीरे मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़े, जहाँ पहले से ही यामिनी खड़ी थीं, अपने नन्हीं बहू का स्वागत करने के लिए। यामिनी के हाथों में एक थाली थी, जिसमें एक दीया जल रहा था, साथ ही लाल सिंदूर, हल्दी, और कुछ अन्य पूजा सामग्री रखी हुई थी। जैसे ही रुद्राक्षी और तरंग दरवाज़े के पास पहुँचे, यामिनी ने दोनों का स्वागत करते हुए एक मधुर मुस्कान के साथ आरती उतारी।

    आरती उतारते वक़्त, उन्होंने पहले दीये को हल्के से घुमाते हुए रुद्राक्षी और तरंग के चारों ओर उसकी लौ को घुमाया, फिर सिंदूर की थाली में हल्की सी उंगली डुबोकर, दोनों के माथे पर तिलक लगाया। यह तिलक उनके रिश्ते की पवित्रता और इस नए जीवन की शुभकामनाओं का प्रतीक था।

    इसके बाद, उन्होंने रुद्राक्षी से धीरे-धीरे उस कलश की ओर बढ़ने का इशारा किया जो दरवाज़े के एक ओर रखा हुआ था। यह कलश चावल से भरा हुआ था। रुद्राक्षी ने अपनी नन्हीं-नन्हीं उंगलियों से अपनी ओढ़नी को हल्का सा समेटा, और फिर अपने छोटे-छोटे कदमों से धीरे-धीरे कलश की ओर बढ़ी।

    जैसे ही वह कलश के पास पहुँची, उसने अपने पैर से हल्के से उसे ठोकर मार दी। कलश में भरे चावल धीरे-धीरे जमीन पर बिखर गए, और इसके साथ ही घर में प्रवेश की इस पहली रस्म को पूरा किया गया। यह एक संकेत था कि नए जीवन में वह समृद्धि और खुशहाली लेकर आ रही है।

    इसके बाद, यामिनी ने एक और रस्म की शुरुआत की। उन्होंने एक छोटी सी थाली में कुमकुम वाला लाल पानी भर रखा था। यह थाली अब रुद्राक्षी के सामने रख दी गई, और उसे इसमें अपने नन्हें-नन्हें पैर डुबोकर घर में प्रवेश करने के लिए कहा गया।

    रुद्राक्षी ने अपने पैर धीरे-धीरे थाली में रखे, और जैसे ही उसने अपने पैरों को कुमकुम वाले पानी में डुबोया, पानी में एक हल्की सी लहर दौड़ गई। उसकी नन्हीं-नन्हीं उंगलियों के निशान अब साफ़ तौर पर पानी में दिखाई देने लगे। उसने धीरे-धीरे अपने कदमों को उठाया और घर के अंदर रखा। उसके हर कदम के साथ, लाल रंग का यह कुमकुम फर्श पर छपता जा रहा था, और यह निशान उसकी नई जिंदगी में उसके पहले कदमों का प्रतीक बन गए।

    यामिनी ने इस पूरे दृश्य को देखकर एक संतुष्ट मुस्कान के साथ सिर हिलाया, और फिर रुद्राक्षी को आगे बढ़ने का इशारा किया।

    दुल्हन ने घर को देखा, उसकी आँखें बड़ी हो गईं। इतना बड़ा घर, चारों तरफ़ बड़े-बड़े झूमर लटक रहे थे, जैसे कोई महल हो। हर चीज़ इतनी शानदार थी कि उसकी साँसें थम सी गईं। लेकिन इस सब के बीच, उसका ध्यान सिर्फ़ एक ही चीज़ पर था - वो हाथ, जो दूल्हे ने उसके हाथ में थाम रखा था।

    थोड़ी देर बाद अंगूठी ढूँढने की रस्म शुरू हुई। यह वो रस्म थी, जहाँ दूल्हा और दुल्हन एक कटोरे में छुपाई गई अंगूठी को ढूँढते हैं, और इसी बहाने थोड़ी नोंक-झोंक भी हो जाती है।

    "देखना, जीतेगी तो भाभी ही।" अनुज, जो दूल्हे की बुआ का लड़का था, ने मज़ाक में कहा।

    "अरे वाह! तो अब भाभी की साइड ले रहे हो?" तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया।

    "भैया, प्यार में तो सब भाभी की साइड ही लेते हैं।" अनुज ने मुस्कुराते हुए कहा।

    तरंग ने नकली गुस्से में अनुज को घूरा और फिर मुस्कुरा दिया।

    "हाँ हाँ बहु, तू ही जीतेगी।" यामिनी ने हँसते हुए कहा।

    दुल्हन ने मुस्कुरा कर सासु माँ की ओर देखा, और फिर हल्के से अपनी आँखें झुका लीं। उसकी आँखों में एक चंचल सी चमक आ गई थी, जैसे वो कह रही हो, "देखिए, अब मैं भी हारने वालों में से नहीं हूँ।"

    फिर दोनों ने अंगूठी ढूँढने के लिए अपने हाथ कटोरे में डाल दिए, और वहाँ से शुरू हुई एक मीठी, हँसी-खुशी भरी नोंक-झोंक।

    अंगूठी ढूँढने की रस्म के दौरान, तरंग ने जानबूझकर अपना हाथ रुद्राक्षी के हाथ से टकराया। उसकी आँखों में एक चंचल चमक थी, जैसे वह जानबूझकर खेल रहा हो। उसने धीमे से कहा, "देखो, मैं ही जीतूँगा।"

    रुद्राक्षी ने बड़ी-बड़ी आँखों से तरंग की ओर देखा। उसकी मासूमियत और झिझक अद्वितीय थी, और यह सब देखकर तरंग की मुस्कान और बढ़ गई।

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखों को एक झपकी देते हुए तरंग की ओर देखा, जैसे वह अपनी हार को स्वीकार कर रही हो, लेकिन उसकी आँखों में एक चुनौती भी थी। "मैं आसानी से हार मानने वाली नहीं हूँ।"

    दोनों के हाथ कटोरे में इधर-उधर हो रहे थे। रुद्राक्षी धीरे-धीरे अपनी अंगुलियों से कटोरे के अंदर खोज रही थी, और तरंग भी उसी के साथ खेलता हुआ दिखाई दे रहा था। कभी-कभी वह जानबूझकर रुद्राक्षी के हाथ को छूता या उसकी अंगुलियों के बीच से गुज़र जाता, जिससे उसकी मुस्कान और गहरी हो जाती।

    अचानक, रुद्राक्षी ने एक हल्की चीख मारी, और उसकी अंगुलियों के बीच अंगूठी आ गई। तरंग ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "अरे वाह, तुमने तो कमाल कर दिया!"

    रुद्राक्षी ने खुशी के मारे तरंग की ओर देखा।

    "देखो, बहु ने साबित कर दिया कि वह हमारी घर की जीत है।" यामिनी ने मुस्कुराते हुए कहा।


    (क्रमशः...)

  • 2. विवाह - Chapter 2

    Words: 1309

    Estimated Reading Time: 8 min

    शादी की सारी रस्में संपन्न होने के बाद, यामिनी जी ने अपनी बहु रुद्राक्षी को उसके कमरे में छोड़ दिया। कमरे की विशालता और साज-सज्जा ने रुद्राक्षी को हैरान कर दिया था।

    रुद्राक्षी ने कमरे के चारों ओर निगाह डाली। कमरे की एक दीवार पर तरंग की बड़ी सी फोटो लगी हुई थी। तरंग की मुस्कान देखकर रुद्राक्षी की आँखों में एक हल्की सी खुशी झलक उठी, और उसने धीरे से कहा, "इतना बड़ा कमरा है तुम्हारा।" फिर उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से कमरे की अन्य चीजों को देखना शुरू किया।

    कमरे के एक कोने में स्टडी टेबल पर किताबें और लैपटॉप रखे हुए थे, जिससे यह साफ़ था कि यहाँ तरंग की पढ़ाई और काम की जगह भी है।

    रुद्राक्षी की नज़रें बालकनी की ओर गईं, जहाँ परदे एक तरफ़ खुले हुए थे और झूला रखा हुआ था। बालकनी से नीचे एक हरे-भरे गार्डन का दृश्य नज़र आ रहा था, जो रुद्राक्षी को बहुत सुंदर लगा।

    रुद्राक्षी ने अपना लहंगा संभालते हुए कमरे में इधर-उधर देखा। हर चीज़ को छूते हुए, वह डरते-डरते हाथ पीछे खींचती, मानो कहीं कुछ गिर न जाए। बड़े घर और बड़े लोगों की ज़िम्मेदारी का बोझ उसके दिल पर महसूस हो रहा था।

    फिर उसे अचानक थकावट का एहसास हुआ। उसने अपने मुँह पर हाथ रखा और जोर से उबासी ली, "आऊऊऊशश्श..." उसकी आँखें भारी हो गईं, और उसने धीरे-धीरे बिस्तर की ओर बढ़ते हुए, बिना किसी अन्य चीज़ को छुए, बिस्तर पर बैठ गई।

    रुद्राक्षी ने एक गहरी साँस ली और बिस्तर की मुलायम चादर पर अपनी आँखें बंद कर दीं। कमरे के शांत वातावरण और ताज़े बिस्तर की खुशबू ने उसे तुरंत राहत दी। जैसे ही उसने आराम किया, उसके शरीर ने अपनी सारी थकावट को महसूस किया और वह धीरे-धीरे नींद की आगोश में समा गई।

    थोड़ी देर बाद तरंग कमरे में आया। आते ही उसकी नज़र बिस्तर पर सोती हुई रुद्राक्षी पर गई।

    तरंग ने रुद्राक्षी को बिस्तर पर सोते हुए देखा और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खिल गई। वह धीरे से उसके पास आया और प्यार से उसके बालों को सहलाया। मन ही मन उसने कहा, "लगता है थकावट की वजह से गहरी नींद में है।"

    फिर तरंग बाथरूम में चला गया और शॉवर लिया। नहाने के बाद, उसने एक तौलिया बाँध लिया और अलमारी से एक टी-शर्ट और लोअर निकाले। कपड़े बदलने के बाद, उसने एक बार फिर से सोती हुई रुद्राक्षी की ओर देखा, गहरी साँस ली और कहा, "मैं आपको कुछ भी नहीं होने दूँगा, रुद्राक्षी।"

    तरंग ने रुद्राक्षी को कम्बल ओढ़ाया और खुद बिस्तर के दूसरी ओर लेट गया। कमरे की शांति और सुकून के बीच, तरंग ने सोचा कि यह नया जीवन कितना चुनौतीपूर्ण और अद्भुत हो सकता है।

    रात के करीब 2 बज रहे थे जब तरंग को अचानक रुद्राक्षी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह हड़बड़ी में उठा और बिस्तर के पास आया। चिंतित होकर उसने पूछा, "क्या हुआ, आपको? आप... आप रो क्यों रही हैं?"

    रुद्राक्षी का रोना तेज हो गया, और तरंग ने तुरंत उसकी ओर झुकते हुए कहा, "शश्शश... चुप हो जाइए, प्लीज़। माँ जाग जाएँगी तो हमें डाँटेंगी कि हमने उनकी बहू को रुलाया।"

    रुद्राक्षी ने तरंग की बात सुनी, और उसने रोना थोड़ी देर के लिए कम कर दिया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। तरंग ने उसके गाल पर धीरे से हाथ रखा और कहा, "अच्छा, आपको अपने घर की याद आ रही होगी, ना? मैं कल आपको घर ले चलूँगा, लेकिन अभी के लिए आप रोना बंद करिए।"

    रुद्राक्षी ने सिसकते हुए कहा, "नहीं, नहीं, माँ ने कहा था कि अब से यही मेरा घर है..."

    तरंग ने थोड़ी हैरानी के साथ पूछा, "जब आपको घर नहीं जाना है, तो फिर आप रो क्यों रही हैं?"

    रुद्राक्षी ने कमज़ोर आवाज़ में कहा, "मुझे भूख लगी है।"

    तरंग ने अपनी आँखें छोटी कीं और चौंकते हुए कहा, "भूख लगी है, वो भी रात के 2 बजे?"

    रुद्राक्षी ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा, "हाँ, मुझे भूख लगी है।"

    तरंग ने जल्दी से कहा, "अच्छा, रुको, मैं कुछ लेकर आता हूँ जिससे तुम्हारी भूख शांत हो जाए।"

    रुद्राक्षी ने ज़िद करते हुए कहा, "जल्दी-जल्दी लाना, मेरे पेट में चूहे डांस कर रहे हैं।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन तुम यहीं रहो।"

    रुद्राक्षी ने जोर देकर कहा, "नहीं, नहीं, तब तक मैं भूख के मारे ऊपर पहुँच जाऊँगी। मुझे जल्दी भूख लगी है, मैं भी चलूँगी साथ में... अगर यहाँ अकेले कोई भूत पकड़ कर ले गया तो मुझे... मेरी तो अभी-अभी ही शादी हुई है।"

    तरंग ने हँसते हुए सिर हिलाकर कहा, "ओके, चलो।"

    तरंग ने रुद्राक्षी का हाथ पकड़कर उसे बिस्तर से नीचे उतरने में मदद की। दोनों धीरे-धीरे गेट की ओर बढ़े और सीढ़ियों पर उतरने लगे। लेकिन अचानक, रुद्राक्षी का पैर लहंगे में फँस गया और वह गिरने ही वाली थी।

    तरंग ने तेज़ी से प्रतिक्रिया देते हुए, उसे अपने हाथ से खींच लिया और रुद्राक्षी को अपनी ओर खींचते हुए अपनी छाती से लगा लिया।

    इस अचानक और करीबी संपर्क ने तरंग की हार्टबीट को तेज़ी से धड़कने पर मजबूर कर दिया। एक हाथ रुद्राक्षी के सिर पर था और दूसरा हाथ उसकी कमर पर। दोनों एक-दूसरे की आँखों में गहराई से देख रहे थे।

    रुद्राक्षी की बड़ी-बड़ी आँखें चमक उठी थीं और तरंग की आँखों में एक नई भावनात्मक गर्मी थी।

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, "अभी मैं गिरने वाली थी, हैना?"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, अगर मैं आपको नहीं बचाता तो आप गिर जातीं। और हाँ, सुनिए, आप यह लहंगा बदलकर कुछ आरामदायक कपड़े पहन लेना, नहीं तो ऐसे ही उलझ-उलझ कर गिरती फिरोगी।"

    रुद्राक्षी ने मासूमियत से कहा, "हाँ, पर मुझे भूख लगी है।"

    और इसी के साथ रुद्राक्षी के पेट से गड़गड़ की आवाज़ सुनाई दी।

    तरंग ने धीरे से कहा, "लगता है कुछ ज़्यादा ही जोर से भूख लगी है, चलो जल्दी से रसोई में।"

    दोनों रसोई में पहुँचे। रुद्राक्षी ने रसोई की विशालता पर चकित होते हुए कहा, "वाह, रसोई भी कितनी बड़ी है तुम्हारी।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "हमारी कहो, तुम भी अब इस घर का हिस्सा हो।"

    रुद्राक्षी ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "हम्म्म।"

    तरंग ने एक तरह से रसोई में झाँकते हुए, फ्रिज से कुछ स्नैक्स और फल निकाल लिए। उसने जल्दी से उन्हें तैयार किया और रुद्राक्षी के सामने रख दिए।

    रुद्राक्षी ने स्नैक्स देखते ही खुशी से कहा, "वाह!"

    तरंग ने एक नज़र रुद्राक्षी की तरफ़ देखा और कहा, "अब चुपचाप खाओ और आराम करो।"

    रुद्राक्षी वहीं ज़मीन पर बैठ गई और स्नैक्स का आनंद लेने लगी। जैसे ही उसने खाना शुरू किया, आधा खाना उसके मुँह पर लग गया, जिससे तरंग को हँसी आ गई।

    तरंग ने देखा कि रुद्राक्षी तो 12 साल की बच्ची ही थी, और वह खाते हुए भी बड़े क्यूट लग रही थी। यह दृश्य उसे बहुत प्यारा लगा। वह भी उसके सामने ज़मीन पर बैठ गया और प्यार से उसे देखने लगा।

    रुद्राक्षी ने एक नज़र तरंग को देखा, फिर कहा, "तुमको भी भूख लगी है क्या?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "हमें आधी रात को खाने का मन नहीं करता।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "फिर मुझे घूर-घूर क्यों देख रहे हो?"

    तरंग सकपका गया, "अरे मैं... मैं कहाँ देख रहा हूँ?"

    अचानक से तरंग उठ खड़ा हुआ और उसके अचानक उठने की वजह से पास रखा एक बर्तन ज़मीन पर गिर पड़ा और एक तेज आवाज़ हुई।

    जैसे ही तरंग ने रसोई के फर्श पर बर्तन गिराया, एक तेज आवाज़ ने माहौल को चीर दिया। यामिनी जी की नींद उचट गई और उन्होंने सोते से जागकर रसोई की ओर कदम बढ़ाए।

    रसोई की ओर बढ़ते हुए, यामिनी जी ने प्रश्नवाचक स्वर में कहा, "कौन है वहाँ?" उनके स्वर में चिंतन की लहर थी, जो रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी। लेकिन जब वे रसोई में पहुँचीं, तो वहाँ......

  • 3. विवाह - Chapter 3

    Words: 1331

    Estimated Reading Time: 8 min

    रसोई की ओर बढ़ते हुए, यामिनी जी ने प्रश्नवाचक स्वर में कहा, "कौन है वहाँ?" उनके स्वर में चिंता की लहर थी, जो रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी। लेकिन जब वे रसोई में पहुँचीं, तो वहाँ कोई नहीं था।

    रसोई में अंधेरा था और हल्की रोशनी में सब कुछ धुंधला दिख रहा था। यामिनी जी ने रसोई की ओर बढ़ते हुए आवाज लगाई, "कोई है वहाँ?"

    यामिनी जी ने एक बार फिर से आवाज दी, "कोई है वहाँ? सब ठीक है?"

    इस बीच, परदे के पीछे, तरंग और रुद्राक्षी एक अप्रत्याशित स्थिति में थे। तरंग और रुद्राक्षी एक-दूसरे को देखने लगे; दोनों की साँसें तेज थीं।

    तरंग ने रुद्राक्षी के मुँह पर एक हाथ रखा था ताकि वह चुप रहे, और दूसरा हाथ उसकी कमर के चारों ओर था, जिससे उनका संपर्क बेहद करीबी था। रुद्राक्षी के दोनों हाथ तरंग के सीने पर रखे हुए थे। उनका चेहरा एक-दूसरे के बहुत करीब था, और उनका श्वास एक-दूसरे के चेहरे को गर्म कर रहा था।

    इस अचानक के स्पर्श से दोनों के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं।

    रुद्राक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से तरंग को देखा। और उनके चेहरे इतने करीब थे कि एक-दूसरे की साँसें उनके चेहरे को छू रही थीं, जैसे समय रुक गया हो।

    तरंग की आँखें बाहर झाँक रही थीं, आशा और चिंता की लहर के साथ, यह देख रहे थे कि कब यामिनी जी वहाँ से चली जाएँगी।

    यामिनी जी ने कुछ और देर रसोई में चुपचाप देखा, और फिर खुद से बुदबुदाते हुए कहा, "शायद मुझे भ्रम हुआ।" उन्होंने एक आखिरी बार रसोई के चारों ओर देखा और धीरे-धीरे बाहर जाने लगीं। उनके कदमों की आवाज धीरे-धीरे हल्की होती गई, जैसे वे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थीं।

    जैसे ही यामिनी जी की आवाज कमरे से बाहर गई, तरंग और रुद्राक्षी ने राहत की साँस ली। तरंग ने रुद्राक्षी की ओर देखा, उसकी आँखों में अब भी एक हल्की चिंता थी। उसने धीरे से कहा, "माँ जा रही हैं, अब हमें ध्यान से बाहर निकलना होगा।"

    रुद्राक्षी ने धीरे से सिर हिलाया, और तरंग ने उसे हल्के से पीछे हटाया। दोनों ने एक बार फिर से सुनिश्चित किया कि यामिनी जी पूरी तरह से जा चुकी हैं। तरंग ने मुस्कुराते हुए और हल्की शरारत से कहा, "चलिए, अब हमें वापस कमरे में जाना चाहिए, वरना कहीं फिर से पकड़ में न आ जाएँ।"

    तरंग और रुद्राक्षी धीरे से अपने कमरे में आए। उनके दिलों की धड़कनें अब भी तेज थीं। तरंग ने रुद्राक्षी की ओर देखा, उसकी आँखों में हल्की चिंता झलक रही थी।

    "आप कपड़े चेंज कर लीजिए," तरंग ने धीरे से कहा, उसकी आवाज में हल्का सा संकोच था।

    रुद्राक्षी ने अपने ऊपर से नीचे तक खुद को देखा; उसकी नज़रें उसके शादी के लहंगे पर टिक गईं। लहंगे का वज़न अब उसे महसूस हो रहा था, और इस अप्रत्याशित स्थिति के बाद वह थोड़ा असहज महसूस कर रही थी।

    "क्या मुझे सच में बदलना पड़ेगा?" उसने मासूमियत से पूछा, उसकी आँखों में थकावट और एक नई स्थिति की दुविधा थी।

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, नहीं तो आप इस भारी लहंगे के साथ घूमते-फिरते हुए कहीं गिर जाएँगी, और फिर आपको दिन भर अस्पताल में रहना पड़ेगा।"

    "क्या तुम खुद को डॉक्टर समझते हो?" रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा।

    "डॉक्टर नहीं, लेकिन एक अच्छा पति जरूर बनना चाहता हूँ। अब जाइए, उधर चेंजिंग रूम है।" तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया।

    उसने सिर हिलाया और तरंग की ओर देखा, जिसने चेंजिंग रूम की ओर इशारा किया, जो वाशरूम में ही अटैच्ड था।

    रुद्राक्षी ने बिना कुछ कहे चेंजिंग रूम की ओर कदम बढ़ाए। कमरे का हल्का अंधेरा और धीमी रोशनी, उसकी लंबी छाया को दीवारों पर बिखेर रही थी। तरंग ने उसे जाते हुए देखा; उसकी आँखों में हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन उस मुस्कान के पीछे भी कुछ और छुपा था – एक नई जिम्मेदारी, एक नई शुरुआत की अनुभूति।

    रुद्राक्षी जब चेंजिंग रूम में पहुँची, तो उसने दरवाज़ा धीरे से बंद किया। अंदर की हल्की रोशनी में उसने खुद को आईने में देखा। उसके चेहरे पर थकान के साथ एक हल्की मुस्कान भी थी। उसने अपने दुपट्टे को धीरे से हटाया और फिर अपने भारी लहंगे के किनारों को पकड़ते हुए उसे उतारने लगी। जैसे-जैसे वह कपड़े बदल रही थी, उसके मन में आज की सभी घटनाएँ घूमने लगीं – शादी की रस्में, अनजाने डर और अब इस नए माहौल में ढलने की कोशिश।

    तरंग बाहर खड़ा था; उसकी आँखें दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसका मन कहीं और भटक रहा था। वह सोच रहा था कि रुद्राक्षी किस तरह से इस नए माहौल में खुद को ढाल पाएगी।

    कुछ ही समय बाद, रुद्राक्षी ने दरवाज़ा खोला और तरंग की ओर देखा। उसने साधारण कपड़े पहन रखे थे, जो हल्के और आरामदायक थे। तरंग ने उसकी ओर देखा और उसकी आँखों में एक नई चमक देखी, जैसे वह अब पहले से थोड़ी अधिक सहज महसूस कर रही हो।

    "अब तो आप आराम महसूस कर रही होंगी। चलिए, अब आराम से सो जाइए, आज का दिन आपके लिए बहुत लंबा था।" तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा।

    रुद्राक्षी ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में अब भी कुछ सवाल थे, जैसे वह तरंग से कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन शब्द नहीं मिल रहे थे। तरंग ने उसकी मनोदशा को समझते हुए कहा, "आप जो भी सोच रही हैं, उसे कल सुबह बात करेंगे। अभी आपको अच्छी नींद की ज़रूरत है।"

    तरंग ने बेड की दूसरी ओर लेटते हुए रुद्राक्षी को देखा, जो आँखें बंद करके सोने की कोशिश कर रही थी।

    फिर वह खुद भी दूसरी तरफ़ करवट लेकर आँखें बंद करके लेट गया।

    सुबह की हल्की रोशनी खिड़की के पर्दों से छनकर तरंग के चेहरे पर पड़ रही थी। वह आँखें मिचमिचाते हुए जागा और धीरे-धीरे उठने लगा। जैसे ही उसने करवट ली, उसने देखा कि रुद्राक्षी उसकी टी-शर्ट को पकड़कर उसके पास सोई हुई थी। उसके मासूम से चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, जो उसकी मासूमियत और थकान को दर्शा रही थी।

    तरंग कुछ पल के लिए उसे देखता रहा। रुद्राक्षी की निर्दोषता और मासूमियत उसे मुस्कुराने पर मजबूर कर रही थी। उसने ध्यान से अपनी टी-शर्ट को उसके हाथों से धीरे से छुड़ाया ताकि उसकी नींद में कोई खलल न पड़े।

    जैसे ही तरंग बिस्तर से उठा, उसने महसूस किया कि आज का दिन उनकी नई ज़िंदगी का एक नया अध्याय होगा। वह हल्के कदमों से बाथरूम की ओर बढ़ गया, ताकि रुद्राक्षी की नींद न टूटे।

    बाथरूम में जाकर तरंग ने अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारे और आईने में अपनी मुस्कान को देखते हुए खुद से कहा, "आज से सब कुछ बदलने वाला है, और मुझे रुद्राक्षी का पूरा साथ देना होगा।"

    तरंग बाथरूम से निकलते ही, उसने अपने गीले बालों को तौलिए से पोंछना शुरू किया। पानी की बूँदें उसके बालों से टपक रही थीं, जो तौलिए के सफ़ेद कपड़े में समा रही थीं। वह धीमे कदमों से अलमारी की ओर बढ़ा और उसे खोलकर अपनी स्कूल ड्रेस निकाली; शर्ट और पैंट, जो उसने सावधानी से तौलिए के एक ओर रखी।

    फिर उसने एक नज़र सोती हुई रुद्राक्षी पर डाली, जो अभी भी गहरी नींद में थी, और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। उसने जल्दी से शर्ट पहनी; उसके गीले बाल शर्ट के कॉलर पर छूते ही थोड़ी सी नमी छोड़ गए। फिर उसने पैंट पहनी और बेल्ट को ठीक किया।

    ड्रेस पहनने के बाद, उसने अपने बालों को एक बार फिर तौलिए से हल्के से रगड़ते हुए सुखाया और उन्हें अपनी उंगलियों से सेट किया। वह खुद को शीशे में देखकर थोड़ा मुस्कुराया, जैसे अपने आप से कह रहा हो, "आज सब कुछ सही होना चाहिए।"

    अब तरंग पूरी तरह से तैयार हो चुका था, और उसने अपने गीले तौलिए को बाथरूम के दरवाज़े पर लटकाया। उसने एक बार फिर से रुद्राक्षी की ओर देखा और सोचा कि उसे जगाना चाहिए या नहीं। फिर उसने धीरे से बिस्तर की ओर कदम बढ़ाए, ताकि उसे बिना किसी परेशानी के जगाया जा सके।

  • 4. विवाह - Chapter 4

    Words: 3287

    Estimated Reading Time: 20 min

    वह बिस्तर के किनारे बैठ गया और उसकी ओर प्यार से देखने लगा।

    तभी रुद्राक्षी की आँखें धीरे-धीरे खुलने लगीं। उसने अपने सामने तरंग को देखा और हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई।

    "गुड मॉर्निंग," तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा।

    रुद्राक्षी ने एक बार फिर से आँखें बंद करते हुए धीरे से कहा, "गुड मॉर्निंग, लेकिन मुझे अभी और सोना है।"

    तरंग हँसते हुए बोला, "ठीक है, आप आराम से सो जाइए, लेकिन मैं कह रहा हूँ, अगर आप और सोएंगी, तो माँ और घर के बाकी सदस्यों को लगेगा कि उनकी नई बहू कितनी आलसी है।"


    रुद्राक्षी जल्दी से उठकर बैठ गई और थोड़ी घबराई हुई आवाज में बोली, "अरे नहीं, नहीं! मेरी माँ ने मुझे कहा था कि ससुराल में सबकी नज़र में अच्छे से रहना चाहिए, और मुझे तो पहली सुबह ही आलसी कह देंगे!"

    तरंग ने उसकी मासूमियत पर हँसते हुए कहा, "अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था। आप आराम से सोइए, कोई कुछ नहीं कहेगा। लेकिन हाँ, अगर आप जल्दी उठ जाएँगी, तो सबको खुशी होगी।"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा, "तुम हमेशा ऐसे ही मुझे डराते रहोगे क्या?"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए और उसकी नाक को हल्के से छेड़ते हुए कहा, "नहीं, नहीं। हम तो बस ये चाहते हैं कि हमारी नई नवेली दुल्हन सबके दिलों में अपनी जगह बना ले।"

    रुद्राक्षी ने उसकी ओर देखा और उसकी आँखों में सच्चाई और प्यार देखकर थोड़ी सहज हो गई। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, मैं जल्दी उठूंगी। लेकिन तुम भी मुझे हर रोज़ ऐसे ही प्यार से समझाओगे, वादा करो?"

    तरंग ने प्यार भरी मुस्कान के साथ कहा, "वादा करता हूँ, हमेशा आपको ऐसे ही समझाऊँगा, चाहे सुबह हो या शाम।"

    रुद्राक्षी ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "चलो, फिर मैं उठ जाती हूँ। और हाँ, तुम्हारी मदद से सबका दिल जीतूंगी।"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "यही तो मैं चाहता हूँ, अब चलिए, जल्दी से तैयार हो जाइए।"


    रुद्राक्षी ने सिर हिलाया, फिर अचानक से तरंग को स्कूल ड्रेस में देखकर कहा, "अरे, तुम स्कूल जाने वाले हो?"

    तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ, हम 12वीं क्लास में हैं ना... हमारे बोर्ड्स हैं इसीलिए हमें जाना होगा।"

    रुद्राक्षी ने मासूमियत से कहा, "ओह, तो तुम 12वीं में हो, और मैं तो अभी 8वीं में ही हूँ। लेकिन मुझे स्कूल जाना बिल्कुल पसंद नहीं है।"

    फिर रुद्राक्षी ने अपनी उँगलियों पर गिनती करते हुए मासूमियत से कहा, "मतलब, आप मुझसे चार साल बड़े हो!"

    तरंग ने हल्की हँसी के साथ जवाब दिया, "हाँ, बिल्कुल। और इसी वजह से आपको हमारी हर बात माननी पड़ेगी, समझे आप?"

    रुद्राक्षी ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा, "अरे वाह! आप बड़े हैं तो क्या हुआ? मैं भी कम नहीं हूँ। और वैसे भी, मैं तो कहती हूँ कि उम्र का फ़र्क बस एक नंबर है।"


    तरंग ने उसे प्यार से देखा और कहा, "ठीक है, ठीक है, लेकिन अब आप जल्दी से तैयार हो जाओ।"
    रुद्राक्षी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और बोली, "पक्का वादा!"


    फिर रुद्राक्षी ने थोड़ा सोचते हुए कहा, "लेकिन स्कूल जाना तो फिर भी बोरिंग लगता है। हर रोज़ वही क्लास, वही किताबें, वही टीचर की डांट।"

    तरंग ने अपनी टाई ठीक करते हुए कहा, "आपके लिए स्कूल बोरिंग हो सकता है, लेकिन हमारे लिए तो ये आखिरी साल है, इसलिए हम कोई चांस नहीं छोड़ना चाहते हैं।"


    रुद्राक्षी ने तरंग को देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा अच्छा, अब मैं जल्दी से नहा लूँ, नहीं तो कहीं और देर न हो जाए।" उसने अपनी चप्पल पहनी और बाथरूम की ओर चल पड़ी। अंदर जाकर उसने शॉवर चालू किया, और जल्दी से नहाने लगी। ठंडे पानी की बौछारें उसके चेहरे को ताजगी का अहसास दिला रही थीं। नहाने के बाद, उसने लाल रंग का सलवार सूट पहना, जो उसे बहुत पसंद था। उसकी सिंपल, लेकिन सुंदर लाल सलवार उसे और भी मासूम बना रही थी।

    जब वह तैयार होकर कमरे से बाहर आई, तो उसने देखा कि तरंग कमरे में नहीं था। उसके चेहरे पर हल्की सी चिंता उभर आई। उसने सोचा कि तरंग कहाँ गया होगा। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, और वह चौंक गई। दरवाजा खोलते ही सामने यामिनी जी खड़ी थीं।

    "अरे बहू, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई?" यामिनी जी ने थोड़ी चिंता और प्यार भरे स्वर में कहा। रुद्राक्षी ने जल्दी से सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "जी माँ, मैं बस तैयार हो रही थी।"


    यामिनी जी ने रुद्राक्षी की ओर ध्यान से देखा, और उसकी मासूमियत और सादगी देखकर उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उन्होंने कहा, "बहू, तुम बहुत प्यारी लग रही हो, लेकिन एक चीज़ अभी भी अधूरी है।"

    रुद्राक्षी ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा, "क्या माँ?"


    यामिनी जी ने उसे एक बार ऊपर से नीचे तक देखा और हल्के से मुस्कुराईं, "रुको एक मिनट!"

    यामिनी जी ने उसे नज़दीक बुलाया और उसके सामने मेज़ पर रखे हुए मंगलसूत्र और सिंदूर की डिब्बी की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम्हारा मंगलसूत्र और सिंदूर... ये हर सुहागिन का श्रृंगार होता है। इसे पहनकर ही तुम पूरी दिखोगी, और ये तुम्हारी पहचान भी है।"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी झिझक के साथ मंगलसूत्र उठाया और उसे पहनने लगी। यामिनी जी ने देखा कि उसकी उँगलियाँ थोड़ी कांप रही थीं, इसलिए उन्होंने प्यार से उसकी मदद की।

    मंगलसूत्र पहनते समय यामिनी जी ने कहा, "देखो बहू, ये सिर्फ एक गहना नहीं है। ये तुम्हारे और तरंग के रिश्ते का प्रतीक है। इसे हमेशा ध्यान से पहनना और संभालकर रखना।"

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाया और फिर सिंदूर की डिब्बी की ओर देखा। यामिनी जी ने उसे हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "आओ, मैं तुम्हें सिखाती हूँ कि सिंदूर कैसे लगाते हैं। ये बहुत आसान है, लेकिन बहुत ही खास भी।"

    उन्होंने डिब्बी खोलकर रुद्राक्षी के मांग में हल्का सा सिंदूर लगाया। रुद्राक्षी ने आईने में खुद को देखा, और उसके चेहरे पर एक नई चमक आ गई।

    यामिनी जी ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "अब तुम पूरी तरह से तैयार हो गई हो। आज से ये मंगलसूत्र और सिंदूर तुम्हारे जीवन का हिस्सा बन जाएगा। इसे गर्व से पहनना और अपनी सासु माँ का मान रखना।"

    रुद्राक्षी ने सिर झुकाते हुए कहा, "जी माँ, मैं हमेशा आपकी बातों का ध्यान रखूँगी।"

    यामिनी जी ने उसकी आँखों में स्नेह भरी दृष्टि से देखा और कहा, "अब चलो, नीचे चलो। बुआ जी इंतज़ार कर रही हैं।"

    रुद्राक्षी ने धीरे से सिर हिलाया और यामिनी जी के साथ सीढ़ियों से नीचे की ओर चल पड़ी। जैसे ही दोनों नीचे पहुँचे, बुआ जी की नज़र रुद्राक्षी पर पड़ी। उन्होंने एक गहरी नज़र उस पर डाली और फिर उनका गुस्सा अचानक फूट पड़ा, "अरे यामिनी भाभी, ये आपकी नई नवेली बहू इतनी देर से उठी है? ठाकुर खानदान की बहू को इतनी देर से उठना शोभा नहीं देता।"

    रुद्राक्षी ने घबराते हुए यामिनी जी की ओर देखा, लेकिन यामिनी जी ने तुरंत उसे अपने पास खींचते हुए कहा, "बुआ जी, पहली बार ससुराल आई है, थोड़ा समय तो लगेगा उसे ढलने में। और वैसे भी, ये सब कुछ नया है इसके लिए।"

    बुआ जी ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा, "लेकिन यामिनी, हमारे घर की परम्पराएँ और रिवाज हैं। बहुएँ देर से नहीं उठतीं, ये तो आपने भी सिखाया होगा अपनी बहू को।"

    रुद्राक्षी ने झुकते हुए धीरे से कहा, "माफ़ कर दीजिए बुआ जी, आगे से ऐसा नहीं होगा।"

    बुआ जी ने उसे घूरते हुए कहा, "देख लो बहू, ठाकुर खानदान की मर्यादाएँ और परम्पराएँ बहुत सख्त होती हैं।"

    यामिनी जी ने स्थिति को संभालते हुए बीच में कहा, "अरे दीदी, अभी बच्ची नई-नई आई है, उसे थोड़ा समय दीजिए। सब सीख जाएगी।"


    बुआ जी ने कहा, "हाँ, तो जाओ, नई बहू की पहली रसोई की रस्म पूरी करो।"

    यामिनी जी ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए कहा, "लेकिन दीदी, रुद्राक्षी अभी बहुत छोटी है, उसे खाना बनाना नहीं आता। उसकी उम्र देखो, उसे तो अभी बहुत कुछ सीखना है।"

    बुआ जी ने हँसते हुए कहा, "हूँह्ह्ह्! मैंने पहले ही कहा था कि ठाकुरों की बहू के गुण इस लड़की में हैं ही नहीं। अरे, पहली रसोई की रस्म तो करनी ही पड़ेगी, न?"

    रुद्राक्षी ने यामिनी जी की ओर कृतज्ञता भरी नज़रों से देखा और सिर झुका लिया। यामिनी जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे रसोई की ओर चलने का इशारा किया।


    रुद्राक्षी की नज़रें तरंग को ढूँढ़ रही थीं, लेकिन उसने खुद से कहा कि शायद वह स्कूल चला गया है। चाय का काम खत्म करने के बाद, यामिनी जी ने उसके चेहरे पर प्यार से हाथ रखा और कहा, "चलो, मेरे साथ रसोई में चलो। मैं तुम्हें सब कुछ सिखा दूँगी।"

    रुद्राक्षी ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुकाया और यामिनी जी के साथ रसोई की ओर बढ़ी। रसोई में कदम रखते ही, यामिनी जी ने उसे बताया कि यहाँ के कामकाज कैसे होते हैं और किस प्रकार से सबका ध्यान रखा जाता है।

    "देखो, रुद्राक्षी," यामिनी जी ने एक बर्तन की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह बर्तन सिर्फ़ चाय के लिए नहीं है, बल्कि हर खाने की तैयारी के लिए इसका सही इस्तेमाल करना पड़ता है।"

    रुद्राक्षी ने ध्यान से सुना और यामिनी जी की हर बात को समझने की कोशिश की। यामिनी जी ने उसे बर्तन साफ़ करने, मसाले तैयार करने और पकवान बनाने के छोटे-छोटे तरीके बताए।

    "तुम्हें धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आ जाएगा," यामिनी जी ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा। "हर चीज़ की शुरुआत थोड़ी कठिन होती है, लेकिन धीरे-धीरे तुम इसे अपने हाथ में ले लोगी।"

    रुद्राक्षी ने निपुणता से जवाब दिया, "मैं पूरी कोशिश करूँगी, माँ।"

    यामिनी जी ने उसे प्यार से देखा और कहा, "मुझे पता है, तुम बहुत जल्दी सब सीख जाओगी। अब चलो, आज हम कुछ आसान चीजें बनाते हैं, ताकि तुम्हारी शुरुआत अच्छी हो।"

    रुद्राक्षी ने उत्साह से हामी भरी और दोनों ने मिलकर रसोई में काम शुरू किया। यामिनी जी के निर्देशों का पालन करते हुए, रुद्राक्षी ने धीरे-धीरे सब कुछ सीखा।

    इस बीच, तरंग का ख्याल अब भी रुद्राक्षी के मन में था, लेकिन उसने खुद से कहा कि यह नया माहौल और नए अनुभव उसकी प्राथमिकता होने चाहिए।

    यामिनी जी ने रसोई में प्रवेश करते ही प्यार से रुद्राक्षी को समझाया, "देखो बेटा, हमारे घर में खाना बनाने का काम तो ज्यादातर सर्वेंट्स ही करते हैं। तुम्हें रोज़-रोज़ खाना बनाने की ज़रूरत नहीं है। बस आज तुम्हें पहली रसोई की रस्म के लिए थोड़ा सा कुछ मीठा बनाना है।"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी राहत की साँस ली और उत्सुकता से पूछा, "तो माँ, क्या बनाऊँ मैं?"

    यामिनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं तुम्हें सब कुछ बता दूँगी। तुम बस चिंता मत करो। हम मिलकर कोई आसान सा मीठा बना लेंगे। चलो, आज हलवा बनाते हैं। ये सबसे सरल है और सबको पसंद भी आता है।"

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी माँ, आप जैसा कहेंगी, मैं वैसे ही करूँगी।"

    यामिनी जी ने उसे हलवा बनाने की प्रक्रिया समझाते हुए कहा, "पहले घी गरम करेंगे, फिर उसमें सूजी डालकर भूनेंगे। जब सूजी का रंग हल्का सुनहरा हो जाए, तो उसमें चीनी और पानी डाल देंगे। ध्यान रहे कि लगातार चलाते रहना है, ताकि गुठलियाँ न बनें।"

    रुद्राक्षी ने ध्यान से सुना और अपनी आँखों में एक नए आत्मविश्वास की चमक लिए हलवा बनाने की तैयारी शुरू की। यामिनी जी ने उसकी हर कदम पर मदद की और उसे सही तरीके से हलवा बनाने में मार्गदर्शन दिया। रुद्राक्षी ने पूरे मन से हलवा बनाया, और जब हलवा तैयार हुआ, तो उसकी महक पूरे घर में फैल गई।

    जैसे ही रुद्राक्षी ने हलवे की कटोरी को धीरे-धीरे सभी के सामने रखना शुरू किया, उसके चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान थी। वह अपनी हरकतों में थोड़ी सी चुलबुलाहट लेकर आई थी, जो उसे और भी प्यारा बना रही थी। यामिनी जी ने उसकी मदद की, और एक-एक करके सभी को हलवा परोसा।

    गंगाधर जी ने हलवे का पहला कौर लेते ही मुस्कुराते हुए कहा, "अरे वाह! बहू ने तो कमाल का हलवा बनाया है।" फिर उन्होंने अपनी जेब से एक छोटा सा गिफ्ट बॉक्स निकाला और कहा, "बहू, ये तुम्हारे लिए गिफ्ट है। एक स्मार्टवॉच और नेकलेस।"

    रुद्राक्षी ने चौंकते हुए अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से गंगाधर जी की ओर देखा और बोली, "स्मार्टवॉच?"

    यामिनी जी हँसते हुए बोलीं, "स्मार्टवॉच? आप भी नहीं मानोगे ना?"

    गंगाधर जी हँसते हुए बोले, "अरे भई, जब सब लोग नई दुनिया में बस चुके हैं तो मैंने सोचा कि मैं भी मेरी बहू को कुछ मॉडर्न दूँ।"

    यह सुनते ही सभी हँस पड़े, सिवाय बुआ जी के, जो थोड़ी गंभीर थीं। रुद्राक्षी ने उनकी ओर देखते हुए हलवे की कटोरी उनके सामने रखते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "बुआ जी, ये आपके लिए।"

    लेकिन तभी गलती से रुद्राक्षी के हाथ से हलवे की कटोरी फिसल गई और हलवा जमीन पर गिर गया। बुआ जी ने तुरंत ताने मारते हुए कहा, "देखा, ये आजकल की लड़कियाँ कुछ भी ठीक से नहीं कर सकतीं। इतने बड़े घर की बहू होकर भी खाना परोसने का सलीका नहीं सीखा। किसी दिन सच में नाक कटाकर मानेगी ये छोरी।"


    रुद्राक्षी ने अपनी गलती को हल्के-फुल्के अंदाज़ में संभालने की कोशिश की। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे बुआ जी, हलवा तो फिसल गया, पर आप टेंशन मत लो, आपके ठाकुर खानदान की नाक कभी नहीं कटेगी!"


    बुआ जी ने उसे गुस्से से देखा, लेकिन यामिनी जी ने बीच-बचाव करते हुए कहा, "दीदी, ये तो एक छोटी सी गलती है, ऐसा तो कभी-कभी हो ही जाता है। आप आराम से बैठिए, हम दूसरी कटोरी हलवा लाकर देंगे।"

    रुद्राक्षी ने भी बुआ जी को मनाने की कोशिश में अपनी चुलबुली हँसी रोकते हुए कहा, "बुआ जी, अगर हलवा फिसलने से आपकी नाक कट गई हो, तो मैं आपकी नाक काटने के लिए तैयार हूँ!"

    यह सुनकर गंगाधर जी और यामिनी जी हँस पड़े, लेकिन बुआ जी की भौंहें और तनी हुई दिखने लगीं।

    गंगाधर जी ने भी हस्तक्षेप करते हुए कहा, "अरे दीदी, बहू ने इतनी मेहनत से हलवा बनाया है, उसकी तारीफ़ करनी चाहिए। गलती तो किसी से भी हो सकती है।"


    बुआ जी ने रुद्राक्षी को घूरते हुए कहा, "अरे, ऐसे हँसी-मज़ाक में कुछ नहीं होता। जब ठाकुरों के घर की बहू फिसल जाए, तो उसकी इज़्ज़त भी दांव पर लग जाती है।"


    रुद्राक्षी ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी बुआ जी, अब ध्यान रखूँगी कि नाक भी सलामत रहे और हलवा भी।"

    बुआ जी उसे घूर कर देखती रहीं।

    यामिनी जी ने प्यार से रुद्राक्षी की पीठ थपथपाते हुए कहा, "कोई बात नहीं, बेटा। अब सब ठीक है। तुम जाकर थोड़ा आराम कर लो, मैं यहाँ सब संभाल लूँगी।"

    लेकिन बुआ जी ने अपनी गंभीरता बनाए रखते हुए कहा, "यामिनी, तुम इसे इतना ढील क्यों दे रही हो? ये ठाकुर खानदान की बहू है, इसे हर बात में परफेक्ट होना चाहिए।"

    यामिनी जी ने फिर से स्थिति को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा, "दीदी, ये बच्ची अभी नई है, धीरे-धीरे सब कुछ सीख जाएगी। और वैसे भी, ये तो पहली बार है, थोड़ा वक़्त देना चाहिए इसे।"


    तभी दादी जी, जो कब से उन सभी की बहस सुन रही थीं, उन्होंने तेज आवाज़ में कहा, "बस! अब कोई एक शब्द नहीं बोलेगा..."


    दादी जी की आवाज़ सुनकर सभी चुप हो गए। रुद्राक्षी डरते हुए दादी जी के पास गई। दादी जी ने अपनी सख्त आवाज़ में कहा, "बहू, तुम यहाँ आओ।"

    रुद्राक्षी ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और दादी जी के सामने खड़ी हो गई। दादी जी की नज़रें गंभीर थीं, लेकिन अचानक उनका चेहरा थोड़ा नरम हुआ। उन्होंने एक हीरे का हार रुद्राक्षी की ओर बढ़ाया और मुस्कुराते हुए कहा, "यह तुम्हारा गिफ्ट है। हलवा बहुत अच्छा था।"

    रुद्राक्षी ने चौंकते हुए दादी जी की ओर देखा और कहा, "जी सच्ची...?"

    दादी जी ने हँसते हुए कहा, "हाँ, हाँ। तुम्हारी मासूमियत और मेहनत ने मेरा तो दिल ही जीत लिया है।"

    रुद्राक्षी की आँखों में खुशी की चमक आ गई। उसने हार को बहुत प्यार से लिया और दादी जी के पैर छू लिए। यामिनी जी और गंगाधर जी ने राहत की साँस ली, और बुआ जी वहाँ से उठकर चली गईं।

    फिर गंगाधर जी भी अपने ऑफ़िस के लिए निकल पड़े।

    दादी जी ने रुद्राक्षी की ढेर सारी बड़ाइयाँ कीं और वे भी बगीचे की तरफ़ चली गईं।

    फिर यामिनी जी ने रुद्राक्षी को खानदानी कंगन दिए और कहा, "बेटा, तुम अभी बहुत छोटी हो... मेरे तरंग से भी छोटी हो... तो अभी तुम भी खा लो हलवा और मैं बाकी का हलवा तरंग और अनुज को टिफ़िन में भेजवा देती हूँ।"


    रुद्राक्षी ने कहा, "म... म... मैं भी... चलू क्या... आपके साथ स्कूल... टिफ़िन देने?"


    यामिनी जी ने हँसते हुए कहा, "हाँ, हाँ, तुम ही जाओ। ड्राइवर के साथ चली जाना।"

    रुद्राक्षी की आँखों में खुशी की चमक आ गई। उसने तुरंत हलवे को ख़त्म किया और यामिनी जी को धन्यवाद कहा। वह जल्दी से तैयार हुई और ड्राइवर के साथ कार में बैठ गई। कार की खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसने देखा कि सुबह की धूप चारों ओर फैली हुई थी।

    थोड़ी देर बाद कार स्कूल के बड़े परिसर के सामने रुकी। रुद्राक्षी ने अपनी लाल दुपट्टे को ठीक से संभाला और टिफ़िन को अपने हाथ में पकड़ते हुए स्कूल के कैंपस की ओर बढ़ी। उसकी मांग में हल्का सिंदूर और मंगलसूत्र दुपट्टे में छिपा हुआ था। उसकी मासूमियत और शालीनता ने उसे और भी प्यारा बना दिया था।


    रुद्राक्षी चारों तरफ़ देख रही थी, स्कूल बहुत ही बड़ा और भव्य था। हर तरफ़ ऊँची-ऊँची इमारतें और खूबसूरत गार्डन थे। सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं में थे, जिससे पूरा परिसर थोड़ा सा शांत लग रहा था।

    उसे स्कूल के गेट के पास ड्राइवर ने छोड़ा था, जो उसके साथ टिफ़िन लेकर आया था। ड्राइवर ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, "अरे छोटी बहू, आप यहीं इंतज़ार कीजिए, मैं ये टिफ़िन रखकर आता हूँ।"

    रुद्राक्षी ने चिंता भरी आवाज़ में कहा, "लेकिन वो तो दिख ही नहीं रहे! कैसे पता चलेगा कि वो कहाँ हैं?"

    ड्राइवर ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए कहा, "छोटी बहू, उनकी क्लास चल रही है, इसलिए वो दिख नहीं रहे। आप चिंता मत करें, मैं उनका क्लासरूम जानता हूँ। मैं ये टिफ़िन वहीं रख आऊँगा, और तरंग बाबू को दे दूँगा।"

    रुद्राक्षी थोड़ी असहज महसूस कर रही थी। वह खुद टिफ़िन देना चाहती थी, तरंग को यह बताना चाहती थी कि उसने कितनी मेहनत से हलवा बनाया था। लेकिन स्कूल के अनुशासन और उसके बड़े आकार ने उसे थोड़ा घबरा दिया था।

    ड्राइवर उसकी उलझन को समझते हुए बोला, "आप यहीं रुकिए, मैं जल्दी ही लौटता हूँ। आप देखिएगा, तरंग बाबू को टिफ़िन मिल जाएगा, और वो बहुत खुश होंगे।"

    रुद्राक्षी ने सहमति में सिर हिलाया और एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई। वह आस-पास के माहौल को गौर से देखने लगी। बच्चे जो अभी खेल के मैदान में नहीं थे, वे सभी अपनी कक्षाओं में पढ़ाई में व्यस्त थे। उसे देखकर लग रहा था जैसे यह स्कूल एक अलग ही दुनिया हो, जहाँ सब कुछ बहुत ही अनुशासित और नियमानुसार चलता है।

    तभी, उसकी नज़र एक छोटी सी झील पर पड़ी जो स्कूल के मैदान के एक कोने में थी। झील का पानी शांति से बह रहा था, और उसकी सतह पर हल्की सी धूप चमक रही थी। रुद्राक्षी उसकी तरफ़ बढ़ने लगी, उसके मन में एक अजीब सी शांति और खुशी थी। उसे लगा जैसे इस शांत झील में उसकी सारी उलझनें दूर हो जाएँगी।

    कुछ ही मिनटों में, ड्राइवर टिफ़िन देकर वापस आ गया। उसने कहा, "लो छोटी बहू, मैंने टिफ़िन दे दिया है। अब आप आराम से घर चलिए।"

    रुद्राक्षी ने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हम्मम।"

    रुद्राक्षी के मन में एक संतोष था कि उसने अपना काम पूरा कर लिया। वह ड्राइवर के साथ गाड़ी की ओर बढ़ी, और रास्ते में सोचने लगी कि तरंग को टिफ़िन मिलते ही वह क्या प्रतिक्रिया देगा।

    जैसे ही वे गाड़ी में बैठे और घर की ओर चले...

    उसकी नज़रें बाहर के नज़ारों पर थीं, लेकिन उसके मन में तरंग की वह प्यारी मुस्कान बसी हुई थी।

    क्रमशः...

  • 5. विवाह - Chapter 5

    Words: 1593

    Estimated Reading Time: 10 min

    रुद्राक्षी अपने बेड पर हाथ-पैर फैलाकर लेट गई। "अब मैं सो जाती हूँ... इस दुनिया में सबसे प्यारी चीज़ अगर कुछ है तो वो है सुबह और दोपहर की नींद!"

    रुद्राक्षी बेड पर हाथ-पैर फैलाकर गहरी नींद में सो रही थी। उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मासूमियत बसी हुई थी। उसके छोटे से मुँह का थोड़ा सा हिस्सा खुला हुआ था, और उसकी साँसें धीरे-धीरे उठ-गिर रही थीं।

    यामिनी जी उस समय घर के अंदर से गुज़र रही थीं, जब उन्होंने रुद्राक्षी के कमरे का दरवाज़ा खुला देखा। उनकी निगाहें दरवाज़े से झाँक गईं, और उन्होंने देखा कि रुद्राक्षी बेड पर आराम से सो रही थी। यामिनी जी मुस्कराते हुए सोचा, “यह लड़की कितनी मासूम और निश्चिंत है।”

    तभी अचानक, रुद्राक्षी ने करवट ली और बेड के किनारे की ओर खिसक गई। वह गिरने ही वाली थी, लेकिन यामिनी जी ने तुरंत एक कदम आगे बढ़ाया और उसे संभाल लिया। उन्होंने रुद्राक्षी को संभालते हुए धीरे से कहा,
    "अरे, तुम इतनी गहरी नींद में हो कि खुद को भी नहीं संभाल पा रही हो। ध्यान रखना, कहीं गिर मत जाना।"

    रुद्राक्षी ने नींद में ही हल्की सी बड़बड़ाट की और करवट लेकर फिर से सो गई। यामिनी जी ने धीरे से रुद्राक्षी को बेड के बीच में ठीक किया और मुस्कराते हुए धीरे से बोलीं,
    "कितनी मासूम है ये... तुम बहुत छोटी हो और यह बाल विवाह वास्तव में गलत है, लेकिन इसके पीछे भी एक कारण है।"

    फिर यामिनी जी ने रुद्राक्षी के बेड के किनारे पर तकिया सावधानी से रखा, ताकि वह दोबारा गिरने से बच सके। उन्होंने रुद्राक्षी के बालों को धीरे से सहलाया, उसकी मासूमियत और नींद की गहराई को देखकर मुस्कराईं। फिर, बिना किसी आवाज के, यामिनी जी दरवाज़े से बाहर चली गईं।

    यामिनी जी के बाहर जाते ही, रुद्राक्षी गहरी नींद में मस्त हो गई।

    शाम को, तरंग और अनुज स्कूल से वापस आ गए। अनुज, जो बहुत भूखा था, सीधे डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ गया। उसने भूख के मारे फौरन खाने की तलाश की और वहाँ बैठ गया। तरंग, हालाँकि, जल्दी से अपने कमरे की ओर जाने लगा, लेकिन बुआ जी ने उसे रोक लिया।

    बुआ जी ने तरंग को इशारे से बुलाया और चिंतित स्वर में पूछा,
    "अरे, तरंग बेटा, तुम इतनी जल्दी कहाँ जा रहे हो? रोज़ तो तुम अनुज के साथ आते हो और भूख लगी होने के कारण डाइनिंग टेबल पर बैठ जाते हो, लेकिन आज अचानक क्या हो गया?"

    तरंग ने थोड़ी सकपकाहट के साथ जवाब दिया,
    "वो, बुआ जी, दरअसल आज हमें भूख नहीं लगी है।" वह घबराहट में अपने शब्दों को संयमित रखने की कोशिश कर रहा था। "हम... हमें आज बस थोड़ी थकावट महसूस हो रही है, और इसलिए जल्दी से अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहते हैं।"

    बुआ जी ने उसकी बात सुनी और उनकी चिंता थोड़ी बढ़ गई, लेकिन उन्होंने तरंग की बात मान ली। उन्होंने कहा,
    "ठीक है बेटा, अगर तुम लोग आराम करना चाहते हो तो ज़रूर कर लो। लेकिन ध्यान रखना, अच्छे से खाना भी ज़रूरी है।"

    तरंग ने सिर झुकाकर धन्यवाद कहा और जल्दी से सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। उसकी चाल में एक हल्का सा तनाव और बेताबी साफ़ नज़र आ रही थी। जैसे ही वह अपने कमरे में पहुँचा, उसने दरवाज़ा बंद किया और सुकून की साँस ली।

    कमरे में पहुँचते ही, तरंग ने दरवाज़ा बंद किया और दीवार के साथ झुकते हुए सोचने लगा कि बुआ जी के सामने कैसे सफ़ाई दी जाए।

    जैसे ही उसने अपना सिर ऊपर उठाकर बेड पर सोती हुई रुद्राक्षी को देखा, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसका छोटा सा चेहरा एक कोमल मुस्कान से भरा हुआ था, और मुँह थोड़ा खुला हुआ था। उसकी साँसें धीरे-धीरे और शांति से उठ-गिर रही थीं, जैसे कि वह गहरी और शांत नींद में खोई हुई थी। बेड की चादरें उसकी चारों ओर फैली हुई थीं, और उसके हाथ-पैर बेतरतीब तरीके से पसरे हुए थे, जो उसकी पूरी बेतकल्लुफ़ नींद को दर्शाते थे।

    धीरे-धीरे वह बेड के पास गया और हल्की आवाज़ में बोला,
    "अरे, नींद की देवी, उठिए भी।"

    रुद्राक्षी ने नींद में ही मुँह चिढ़ाते हुए धीरे से आँखें खोलीं। उसने आँखें मलते हुए देखा कि तरंग उसके पास खड़ा था। उसने धीरे से जवाब दिया,
    "उफ्फ, तुम कितने जल्दी आ गए! अभी तो नींद में बहुत मज़ा आ रहा था।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "अच्छा... ऐसा भी कौन सा सपना देख रही थीं आप कि नींद में इतनी मस्त हो गईं!"

    रुद्राक्षी ने नींद में मुँह चिढ़ाते हुए आँखें खोलीं और देखा कि तरंग उसके पास खड़ा था। उसने आँखें मलते हुए धीरे से कहा,
    "उफ्फ, तुम कितने जल्दी आ गए! अभी तो नींद में बहुत मज़ा आ रहा था।"

    तरंग मुस्कराते हुए बोला,
    "क्या, ऐसा भी कौन सा सपना था कि नींद में मज़ा आ रहा था?"

    रुद्राक्षी ने सिर झुकाकर कहा,
    "मेरे सपने की बात तुम क्यों जानना चाहते हो? तुम्हें अपना होमवर्क करना चाहिए।"

    तरंग ने मज़ाक करते हुए कहा,
    "होमवर्क तो हम कर लेंगे, लेकिन कल से आपको भी स्कूल जाना पड़ेगा। पापा ने आपका भी एडमिशन करवा दिया है।"

    रुद्राक्षी ने चौंकते हुए कहा,
    "क्या? लेकिन मुझे स्कूल नहीं जाना। वहाँ टीचर डाँटते हैं और मुझे होमवर्क भी नहीं करना और... और मुझे एग्ज़ाम और टेस्ट वगैरा भी नहीं देना।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "रुद्राक्षी, आप इतनी घबराई क्यों हुई हैं? स्कूल जाना तो पड़ेगा ही, लेकिन आप इसे इतनी बड़ी समस्या क्यों बना रही हैं?"

    रुद्राक्षी ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा,
    "मुझे टीचर डाँटती हैं।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "ओह, समझ गया! तो इसका मतलब आप घर में आराम करना चाहती हैं और स्कूल जाना नहीं चाहती। लेकिन आप सोचिए, अगर स्कूल नहीं जाएँगी तो आप यहाँ घर में बोर हो जाएँगी?"

    रुद्राक्षी ने झल्लाते हुए कहा,
    "अच्छा ठीक है, ठीक है... लेकिन तरंग, स्कूल के अलावा मुझे और भी बहुत काम हैं। जैसे कि यहाँ आराम करना, सोना, और... खाना।"

    तरंग ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा,
    "ठीक है, आराम करना भी ज़रूरी है। लेकिन स्कूल में पढ़ाई भी ज़रूरी है। और वैसे भी, पढ़ाई करके आप और भी समझदार बन जाएँगी।"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा,
    "समझदार बनने की बात तो ठीक है, लेकिन मैं तो पहले से ही समझदार हूँ ना।"

    तरंग ने माथे पर हाथ रखा और अपने मन में कहा,
    "ओफ्फो, इन्हें कैसे समझाऊँ... ये लड़कियाँ सचमुच! इन्हें कोई नहीं समझा सकता।"

    रुद्राक्षी ने तरंग को कहीं खोए हुए देखकर कहा,
    "ठीक है, ठीक है... तुम अब ज़्यादा मत सोचो... मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हूँ... लेकिन तुम्हें मेरा होमवर्क भी करना पड़ेगा, समझे?"

    तरंग ने अपनी छोटी-छोटी आँखें बड़ी-बड़ी करके कहा,
    "अरे हम क्यों करें आपका होमवर्क? नहीं, हम आपका होमवर्क नहीं करेंगे!"

    तरंग के इस जवाब से रुद्राक्षी ने अपना सिर झुका लिया और मुँह बनाते हुए कहा,
    "तुम सच में बहुत खराब हो, मुझे किसी ने नहीं बताया कि शादी के बाद मुझे होमवर्क भी खुद ही करना पड़ेगा।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "ओहो! अब हम खराब भी हो गए? और वैसे भी, होमवर्क तो आपको खुद ही करना होगा, क्योंकि अगर हमने आपका होमवर्क कर दिया, तो आपकी टीचर हमें डाँटेंगी।"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा,
    "ठीक है, ठीक है, फिर तुम्हें मेरे हिस्से का भी काम करना होगा।"

    तरंग ने मज़ाकिया लहजे में कहा,
    "अरे! अब ये कौन सा नया नियम है? हम आपके काम भी करें और अपना भी? इससे तो अच्छा है कि हम खुद ही स्कूल चले जाएँ और आप यहाँ आराम करें।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए कहा,
    "तो ठीक है, तुम जाओ, मैं यहाँ आराम करूँगी। लेकिन याद रखना, अगर मेरी टीचर ने मुझे डाँटा तो तुम खुद ही भुगतोगे!"

    तरंग ने रुद्राक्षी के गुस्से को देखकर अपनी हँसी रोकने की कोशिश करते हुए कहा,
    "अरे, अरे! इतना गुस्सा मत करो, हम मज़ाक कर रहे थे। ठीक है, हम आपकी थोड़ी मदद कर देंगे, लेकिन बदले में आपको हमारे लिए कुछ ख़ास करना होगा।"

    रुद्राक्षी ने शरारती अंदाज़ में पूछा,
    "क्या करना होगा?"

    तरंग ने मुस्कराते हुए कहा,
    "बस, जब भी हम चाहें, आप हमें गाना गाकर सुनाएँगी और डांस भी करेंगी।"

    रुद्राक्षी ने कहा,
    "लेकिन मैं तुम्हारी बात क्यों मानूँ...?"

    तरंग ने कहा,
    "हम आपके पति हैं!"

    रुद्राक्षी ने कहा,
    "हाँ तो मैं भी आपकी पत्नी हूँ!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "बिल्कुल, आप पत्नी हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि आप मुझे ऐसे धमकाएँ!"

    रुद्राक्षी ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा,
    "धमका तो रही नहीं, बस अपनी शर्तें बता रही हूँ। और वैसे भी, तुम मेरे होमवर्क में मदद करोगे, तो मैं तुम्हारी शर्तें मानूँगी।"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा,
    "अच्छा ठीक है, डील पक्की। लेकिन याद रखना, जब मैं गाना सुनने का मूड बनाऊँ, आपको तुरंत गाना गाना पड़ेगा।"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखों में शरारत भरते हुए कहा,
    "और जब मैं गाने का मूड ना हो तो?"

    तरंग ने मुस्कराते हुए जवाब दिया,
    "फिर तो आपको मेरे लिए कुछ और ख़ास करना पड़ेगा।"

    रुद्राक्षी ने चौंकते हुए पूछा,
    "और क्या करना होगा?"

    तरंग ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा,
    "आपको मेरे लिए एक प्यारी सी स्माइल देनी होगी!"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा,
    "ये तो बहुत आसान है।"

    और फिर उसने मुस्कराते हुए तरंग की तरफ़ देखा और अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपका दीं।

    तरंग ने कहा,
    "बस... बस, अब हम आपका होमवर्क करवा देंगे।"

  • 6. विवाह - Chapter 6

    Words: 1781

    Estimated Reading Time: 11 min

    रुद्राक्षी की मुस्कान देखकर तरंग ने अपनी किताबें उठाईं और पढ़ाई की तैयारी करने लगा। लेकिन उसका ध्यान बार-बार रुद्राक्षी की ओर जा रहा था, जो अपनी जगह पर बैठी उसे ही देख रही थी।

    तरंग ने आखिरकार कहा, "अरे! आप हमें देखना बंद कर सकती हैं? हम होमवर्क नहीं कर पाएँगे अगर आप यूँ ही घूरती रहेंगी तो।"

    रुद्राक्षी ने शरारत भरे अंदाज में जवाब दिया, "क्यों, क्या तुम्हें मेरे देखने से डर लग रहा है?"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "हा हा हा...आपसे तो भूत-प्रेत सब लोग डरकर भाग जाएँगे।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में अपना चेहरा घुमाते हुए कहा, "तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो! देख लेना, अब मैं तुमसे कभी बात नहीं करूँगी।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, ऐसी भी क्या बात हो गई? हम तो बस मज़ाक कर रहे थे। और वैसे भी, अगर आप हमसे बात नहीं करेंगी, तो हम आपका होमवर्क कैसे करेंगे?"

    रुद्राक्षी ने उसे घूरते हुए कहा, "अब तुम्हें मेरे होमवर्क करने की ज़रूरत नहीं है। मैं खुद कर लूँगी!"

    तरंग ने थोड़ा और छेड़ते हुए कहा, "अच्छा! तो फिर अब आप खुद ही सब काम करेंगी? देखिएगा, अगर आप होमवर्क करते समय गलती करेंगी, तो टीचर आपको डांटेंगी, और तब हमें बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा कि कोई तरंग ठाकुर की पत्नी को डांटे।"

    रुद्राक्षी ने नाक चढ़ाते हुए कहा, "हुह्ह्ह्ह्ह.... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी बातें मुझे डरा देंगी? मैं अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे लेकिन हमें तो फर्क पड़ता है, रुद्राक्षी! अगर हमारी प्यारी पत्नी को कोई कुछ कह दे, तो हमारा दिल टूट जाएगा। सोचिए, अगर टीचर ने आपसे कहा, ‘रुद्राक्षी, ये गलत हो गया,’ तो हम कैसे सह पाएँगे?"

    रुद्राक्षी ने उसे थोड़े चिढ़े हुए अंदाज़ में देखा और कहा, "तुम तो बस ड्रामा करते हो! लेकिन सच बताऊँ, मुझे तुम्हारी इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सब कुछ अच्छे से कर लूँगी, और तब तुम्हें भी मानना पड़ेगा कि मैं कितनी परफेक्ट होशियार हूँ।"

    तरंग ने उसकी ओर झुकते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है! लेकिन अगर आपको कोई परेशानी हो, तो याद रखना कि हम आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है, खासकर तुम्हारी तो बिलकुल भी नहीं!"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "जैसी आपकी मर्ज़ी, महारानी जी! लेकिन देख लेना, अगर आपने गलती की, तो हम आपको ताने मारने से नहीं चूकेंगे।"

    रुद्राक्षी ने उसे नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "बस बस अब तुम ज़्यादा भाषण मत सुनाओ।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे वाह! अब आप हमें भाषण देने का आरोप भी लगा रही हैं? देखिए महारानी जी, आप जितना चाहें हम पर हुक्म चला सकती हैं, लेकिन अगर हमने एक-दो बातें कह दीं तो आप चिढ़ जाती हैं।"

    रुद्राक्षी ने अपनी भौहें उठाते हुए जवाब दिया, "तुम्हारी बातें सुन-सुनकर तो मेरे कान पक गए हैं! और तुम्हें क्या लगता है? मैं तुम्हारी बातों से डर जाऊँगी?"

    तरंग ने अपनी किताब बंद करते हुए कहा, "डरना तो दूर की बात है, आप तो हमेशा तैयार रहती हैं मुझसे बहस करने के लिए! लगता है, बहस में जीतने की कोई कसम खाई हुई है आपने!"

    रुद्राक्षी ने नाक चिढ़ाते हुए कहा, "बहस तो तुम शुरू करते हो, और फिर खुद ही हार जाते हो। मुझे तो तुम्हें चुप कराने में मज़ा आता है। और वैसे भी तुम मुझसे कभी नहीं जीत सकते। समझे!"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे! तो अब आपको हमें चुप कराने में मज़ा आता है? अगर ऐसा है, तो हम भी आपकी इस खुशी में शामिल हो जाते हैं। लेकिन एक बात बताइए, अगर मैं चुप हो गया तो फिर आप किससे लड़ेंगी?"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "तुम्हें लड़ाई का इतना ही शौक है, तो किसी और से जाकर लड़ लो।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "किसी और से? लेकिन, हम तो सिर्फ़ आपसे ही लड़ सकते हैं, और किसी से लड़ने का मन ही नहीं करता।"

    रुद्राक्षी ने उसकी तरफ़ देखते हुए ताना मारा, "क्यों? कोई और तुम्हारे लायक नहीं है क्या?"

    तरंग ने अपनी हँसी रोकते हुए जवाब दिया, "बिलकुल! इस दुनिया में कोई और है ही नहीं...जो आपकी तरह हमारी लड़ाई को समझ सके, और फिर आपकी तरह हमसे जीत भी सके।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "अभी भी ताना मार रहे हो ना।"

    तरंग ने कहा, "अरे भला हम अपनी पत्नी को ताना क्यों मारेंगे..!"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से कहा, "वेट एंड वॉच, पति ठाकुर साहब।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "ओह, तो आप हमें चुनौती दे रही हैं तो फिर ठीक है...हमें आपकी चुनौती स्वीकार है। लेकिन याद रखो, हम भी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं।"

    रुद्राक्षी जल्दी से बेड से नीचे उतरी और बाहर निकल कर यामिनी जी को आवाज़ देने लगी।

    रुद्राक्षी ने जोर से रोते हुए यामिनी जी को पुकारा, "माँ...माँ...!"

    यामिनी जी पौधों को पानी देते हुए अचानक घबरा गईं और रुद्राक्षी की ओर दौड़ीं। उन्होंने फ़िक्र करते हुए कहा, "अरे बहु, क्या हुआ? यह नालायक तुम्हें परेशान कर रहा है क्या?"

    तरंग, जो रुद्राक्षी की एक्टिंग देखकर हैरान था, हंसते हुए बोला, "माँ, हमने तो इन्हें कुछ किया भी नहीं।"

    यामिनी जी ने तरंग की ओर गुस्से से देखा और कहा, "क्यों रे तरंग, मेरे बहु को क्यों रुलाया? तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या? अभी ढंग से एक दिन भी नहीं हुआ और तुम बहु को परेशान कर रहे हो...अरे बहु नई है, ये माहौल नया है उसके लिए लेकिन तुम तो....."

    तरंग ने झिझकते हुए कहा, "माँ, पर जब हमने कुछ किया ही नहीं तो..!"

    रुद्राक्षी ने अपने आँसू पोछे और कहा, "माँ...इसने ऐसा भी कहा कि ये मुझसे होमवर्क करवाएँगे..."

    तरंग ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके अपनी पत्नी को देखा। "ह! हमने ऐसा कब कहा..?" फिर तरंग ने अपनी माँ यामिनी जी की तरफ़ देखा और कहा, "माँ ये खुद हमसे कह रही थीं कि ये अपना होमवर्क हमसे करवाएगी।"

    यामिनी जी ने तरंग की तरफ़ गुस्से से देखा और कहा, "बस तरंग....मुझे नहीं पता था कि तुम झूठ बोलना भी सीख गए...आज ही तुम्हारे पापा ने रुद्राक्षी का एडमिशन करवाया है और जब रुद्राक्षी स्कूल ही नहीं गई तो उसका कौन सा होमवर्क तुम करके दोगे।"

    तरंग की माँ यामिनी जी ने जब रुद्राक्षी की बात सुनी, तो वह चौंकी और अपने बेटे पर गुस्से से बोलीं, "तरंग, तुमने तो हद कर दी! तुम्हारी बातों के चलते बहु परेशान हो रही है। तुमने अभी तक कुछ किया ही नहीं, और बहु को परेशान कर रहे हो।"

    तरंग ने झिझकते हुए कहा, "माँ, लेकिन हमने तो कुछ किया ही नहीं।"

    रुद्राक्षी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा, "माँ, इसने कहा था कि होमवर्क मैं इसे करवा दूँगी।"

    तरंग ने अचंभित होकर कहा, "हमने ऐसा कब कहा?"

    यामिनी जी ने तरंग की ओर गुस्से से देखा और कहा, "बस, तरंग! मुझे नहीं पता था कि तुम झूठ बोलना भी सीख गए हो। आज ही तुम्हारे पापा ने रुद्राक्षी का एडमिशन करवाया है, और जब रुद्राक्षी स्कूल ही नहीं गई, तो उसका कौन सा होमवर्क तुम करोगे?"

    यामिनी जी की बात सुनकर तरंग चुपचाप सिर झुकाकर अपने कमरे में चला गया। उसने उदास मन से अपनी स्कूल ड्रेस बदली और सोचने लगा कि रुद्राक्षी कितनी शरारती है।

    वहीँ यामिनी जी रुद्राक्षी को अपने साथ ले गईं।

    तरंग ने अपनी ड्रेस बदलकर बालकनी में आते ही देखा कि रुद्राक्षी गार्डन में झूले पर बैठी हँस रही थी। यामिनी जी और दादी के साथ उसकी बातें चल रही थीं, और वह खुश दिख रही थी।

    तरंग ने सोचा, "हुह्ह्ह्ह, अब देखो कितनी हँस रही है। हमें डांट खिलाकर भी कितनी खुश है।"

    रात का समय आ गया और सब लोग डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। यामिनी जी और रुद्राक्षी ने मिलकर सभी को खाना परोसा। रुद्राक्षी ने खाना परोसते समय हँसते-खिलखिलाते हुए बात की, जबकि तरंग ने चुपचाप और गुस्से में खाना खाया। तरंग की नाराज़गी साफ़ देखी जा रही थी, लेकिन रुद्राक्षी ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अपनी मस्ती में व्यस्त रही।

    खाना खत्म होने के बाद, धीरे-धीरे सब अपने-अपने कमरों में चले गए। तरंग भी रुद्राक्षी का इंतज़ार करते हुए अपने कमरे में बैठा रहा। थोड़ी देर बाद, रुद्राक्षी फुदकते हुए अपने कमरे में आई और सीधे बेड पर धड़ाम से लेट गई। उसकी मुस्कान और हल्की हँसी ने तरंग को चिढ़ा दिया।

    तरंग ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "रुद्राक्षी, हमें आपसे बात करनी है।"

    रुद्राक्षी ने आराम से जवाब दिया, "लेकिन मुझे सोना है, गुडनाइट।"

    तरंग ने झुंझलाते हुए कहा, "इतनी जल्दी?"

    रुद्राक्षी ने बिना उठे हुए ही कहा, "हाँ, मुझे नींद आ रही है।"

    तरंग ने नाराज़गी से कहा, "लेकिन हम आपसे नाराज़ हैं, रुद्राक्षी।"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, "तो मैं क्या करूँ? मुझे तो नींद आ रही है।"

    तरंग ने चिढ़ते हुए कहा, "कम से कम हमारी नाराज़गी को लेकर कुछ तो सोचना चाहिए।"

    रुद्राक्षी ने शांति से कहा, "अगर आप नाराज़ हैं तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ।"

    "आपको हमें मनाना चाहिए।" तरंग ने कहा।

    "मुझे नहीं आता मनाना...मुझे तो सिर्फ़ सोना आता है...और तुम भी सो जाओ पति साहब।" रुद्राक्षी ने कहा।

    तरंग ने कहा, "आपको सोने की ही पड़ी है...तो ठीक है अब हम भी देखेंगे कि आप कैसे सोती हैं...हम आपको अब सोने ही नहीं देंगे..."

    तरंग ने कहा, "अगर आपको सोने की ही पड़ी है, तो ठीक है, लेकिन अब हम देखेंगे कि आप कैसे सोती हैं। हम आपको सोने नहीं देंगे।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए बेफ़िक्री से अपने बिस्तर में घुस गई और आँखें बंद कर लीं।

    तरंग ने अपनी बातों को इग्नोर होते देख, मुस्कुराते हुए अपना छोटा सा स्पीकर निकाला और म्यूज़िक बजाना शुरू कर दिया। म्यूज़िक की तेज आवाज़ कमरे में गूंजने लगी।

    रुद्राक्षी ने अपने कानों पर हाथ रख लिए और चिढ़ते हुए कहा, "यह क्या कर रहे हो? मुझे सोने दो, और यह शोर बंद करो!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "आप हमारी बातों को इग्नोर कर रही हैं। तो अब फिर हमें और भी म्यूज़िक बजाना पड़ेगा।"

    रुद्राक्षी ने झुंझलाते हुए कहा, "तुम्हें ऐसा करके क्या मिलेगा? मुझे सोने दो।"

    तरंग ने म्यूज़िक का वॉल्यूम और बढ़ाते हुए कहा, "जब तक आप हमारी बातों का ध्यान नहीं देंगी, हम यह म्यूज़िक बंद नहीं करेंगे।"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और बेताबी से बिस्तर में घुसी रही। "तुम्हारे म्यूज़िक की वजह से मुझे नींद नहीं आ रही है। मुझे शांति से सोने दो।"

    तरंग ने म्यूज़िक की आवाज़ को और तेज करते हुए कहा, "यह तो बस एक तरीका है आपको जगाने का। जब तक आप हमें नहीं मना लेती तब तक यह स्पीकर ऐसे ही बजता रहेगा।"


    ...क्रमशः

  • 7. विवाह - Chapter 7

    Words: 1462

    Estimated Reading Time: 9 min

    रुद्राक्षी ने गुस्से से उठते हुए कहा, "जबरदस्ती है ये तो!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ तो आप हमें मनाने के लिए पहले हमारा सिर दबा दीजिए। आपकी बातें सुन-सुनकर हमें सिरदर्द हो रहा है।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "हाँ हाँ! अगर ये स्पीकर ऐसे ही फुल वॉल्यूम में बजाओगे तो सिरदर्द होगा ही ना, और ऊपर से मुझे कह रहे हो कि मेरी वजह से सिरदर्द हो रहा है।"


    तरंग ने हँसते हुए कहा, "जी हाँ, और अगर आप सिर दबा दें, तो हम म्यूजिक बंद कर देंगे। वरना, यह शोर तो चलता ही रहेगा।"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी मिचकिचाहट के साथ कहा, "ठीक है।"

    तरंग ने स्पीकर बंद कर दिया और खुद आराम से बेड पर आँखें बंद करके लेट गया।

    रुद्राक्षी ने तरंग की तरफ देखा, फिर पास ही रखे कम्बल को खोलकर पूरा तरंग को ओढ़ा दिया और कहा, "ह्ह्ह्ह्ह्ह... अब सो जाओ तुम... बड़े आए मुझसे सिर दबवाने वाले..."

    तरंग ने कम्बल अपने मुँह से हटाया और अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके रुद्राक्षी को घूरकर देखा और कहा, "अरे... दिस इज नॉट फेयर... हम आपसे नाराज़ हैं और आप... आपको कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ रहा।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बातों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए वापस बेड पर लेट गई और अपनी आँखें बंद कर लीं।

    तरंग ने उसकी इस हरकत को देखकर एक गहरी साँस ली और कहा, "ओह, तो अब हमें इग्नोर किया जा रहा है, हाँ? हम यहाँ अपनी नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं और आप हैं कि... हमें कोई तवज्जो ही नहीं दे रही!"

    लेकिन रुद्राक्षी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह बस बेड पर आँखें बंद किए हुए लेटी रही, जैसे कुछ सुना ही न हो।

    तरंग ने उसे थोड़ा और चिढ़ाने के लिए कहा, "अरे, क्या सच में हमें इग्नोर कर रही हो? या फिर तुम्हारा भी मन है कि हम दोनों इस नाराज़गी का खेल खेलते रहें?"

    रुद्राक्षी ने हल्का सा करवट बदलते हुए जवाब दिया, "तुम्हारा नाराज़गी का खेल जितना ड्रामा से भरा है, उतना ही बोरिंग भी है। मुझे अब सोने दो।"

    तरंग को अब सच में हँसी आ गई। उसने धीरे-धीरे रुद्राक्षी के पास खिसकते हुए कहा, "ओह, तो ये बात है! तुम सोने का बहाना बना रही हो ताकि हमें और परेशान कर सको, है ना?"

    रुद्राक्षी ने आँखें बंद रखते हुए मुस्कुराकर कहा, "हो सकता है। वैसे भी, ये तुम्हारी सज़ा है, तुम ही तो नाराज़ थे। अब भुगतो।"

    तरंग ने कम्बल को वापस अपने ऊपर खींचते हुए कहा, "ठीक है, अब हम भी नाराज़ होकर सो रहे हैं। जब आपको हमारी अहमियत समझ आएगी, तो आकर मना लेना।"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कम्बल के ऊपर से तरंग के सिर पर हल्की थपकी दी और कहा, "अरे बाबा, इतना बड़ा डायलॉग मत मारो। ठीक है, हम मानते हैं कि हम गलत थे। अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है ना?"

    तरंग ने कुछ नहीं कहा और उसे देखकर रुद्राक्षी भी मुस्कुरा दी और आँखें बंद करके सोने लगी।


    सुबह की हल्की रौशनी कमरे में घुस रही थी और तरंग ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं। उसने देखा कि रुद्राक्षी उसके पास ही सोई हुई थी, शायद नींद में उसने अपने आप को उसके पास खिसका लिया था। तरंग ने उसकी प्यारी सी नींद को देखकर मुस्कान छुपाने की कोशिश की, लेकिन मुस्कान बेमन नहीं छुपाई जा सकी।

    वह धीरे से बुदबुदाया, "उठो नींद की महारानी, आज तो सुबह जल्दी उठना है।"

    रुद्राक्षी ने हड़बड़ाते हुए एक पल के लिए आँखें खोलीं, लेकिन फिर वापस अपनी आँखें बंद करते हुए मुठ्ठी भर गहरी नींद में वापस चली गई। तरंग ने देखा कि वह बिल्कुल भी उठने के मूड में नहीं थी।

    तरंग ने थोड़ी जोर से कहा, "अरे, उठो! आज आपको स्कूल भी जाना है।"

    रुद्राक्षी ने अचानक से उठकर बैठ गई, जैसे वह सपना देख रही हो। उसने आधी नींद वाली आँखों से तरंग को देखा और कहा, "तुम जाओ, रेडी हो जाओ। मैं... मैं उठ गई हूँ ना!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, मैं जा रहा हूँ।"

    तरंग ने उसे देखा, फिर वह बाथरूम की तरफ चला गया। उसके बाथरूम में जाने के बाद रुद्राक्षी वापस धड़ाम से बेड पर लेटकर सो गई।

    कुछ मिनटों बाद, वह गीले बालों और नहाने के बाद केवल एक तौलिये में लिपटा हुआ बाथरूम से बाहर आया। तरंग ने देखा कि रुद्राक्षी फिर से बेड पर लेटी हुई है और गहरी नींद में जा चुकी है।

    उसने एक लंबी साँस ली और अपने कपड़े अलमारी से निकाले और शर्ट के बटन लगाते हुए धीरे से रुद्राक्षी के पास वापस आया।

    अब इस बार तरंग ने अपना चेहरा रुद्राक्षी के कान के पास ले जाकर उसके कान में जोर से चिल्ला दिया। तो रुद्राक्षी एकदम से डर के मारे हड़बड़ाहट में उठ बैठी। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, और उसने इधर-उधर देखना शुरू किया, जैसे वह एक बुरी तरह से भयानक सपने से जागी हो। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसने तरंग की तरफ देखा, जो उसके सामने हँसते हुए खड़ा था और उसका कान चिल्लाने से गर्म हो रहा था।

    रुद्राक्षी ने गुस्से और आश्चर्य से भरकर कहा, "तुमने ये क्या किया? मुझे इतना डरा क्यों दिया?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "देखो, हम तो बस आपको उठा रहे थे।"

    रुद्राक्षी ने झुँझलाते हुए कहा, "तुम्हें तो सच में दिमागी बीमारी है! उठाने का तरीका भी कोई ऐसा होता है?"

    तरंग ने शर्ट के बटन लगाते हुए ही हँसी दबाते हुए कहा, "अरे, यह तरीका तो सबसे बेस्ट है आपको जगाने के लिए... और वो रही आपकी स्कूल ड्रेस, उसे पहन लेना और अब जाइए नहा लीजिए।"

    रुद्राक्षी ने अपनी गहरी नींद से उबरते हुए खीझते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है। अब जब तुम इतने जोर से उठाते हो, तो उठ ही गई हूँ। जा ही रही हूँ नहाने।"

    रुद्राक्षी जल्दी से बाथरूम में चली गई।

    थोड़ी देर बाद.....

    रुद्राक्षी नहाने के बाद स्कूल ड्रेस पहन ली और बाथरूम से बाहर आई। उसकी आँखें अभी भी नींद में थीं, लेकिन स्कूल के लिए तैयारी करनी थी। तरंग ने उसे बाथरूम से बाहर आते हुए देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "ओह, देखो, हमारी नींद की महारानी तैयार हो गई है।"

    रुद्राक्षी ने उसे एक चिढ़ी नज़र से देखा और कंघी करते हुए कहा, "हाँ, अब मेरी दो चोटियाँ भी बना दो तुम।"

    तरंग ने चौंकते हुए कहा, "हमें तो चोटियाँ बनानी नहीं आती।"

    रुद्राक्षी ने मासूमियत से कहा, "मुझे भी नहीं आती चोटी बनाना..."

    तरंग ने कहा, "अरे, माँ है ना... वो बना देंगी आपकी चोटियाँ।"

    रुद्राक्षी ने तरंग की बात पर सिर झुका लिया और कहा, "ठीक है, माँ से ही बनवा लूँगी।"

    तभी दरवाजे पर हल्की खटपट सुनाई दी। रुद्राक्षी और तरंग ने देखा कि यमिनी जी कमरे में आ गईं। उन्होंने मुस्कुराते हुए रुद्राक्षी की तरफ देखा और कहा, "अरे, रुद्राक्षी, तुम तैयार हो गई हो? कितना प्यारा ड्रेस है!"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, "जी, माँ। बस बालों में दो चोटियाँ बनानी हैं, मुझे खुद से नहीं बनानी आती।"

    यमिनी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, कोई बात नहीं। मैं तुम्हारी चोटियाँ बना देती हूँ। चलो, बैठो।"

    रुद्राक्षी ने खुशी से कहा, "जी माँ!"

    यमिनी जी ने रुद्राक्षी को बारीकी से बैठाया और उसके बालों को सहेजते हुए प्यार से चोटियाँ बनाने लगीं। तरंग ने देखा कि यमिनी जी कितनी दक्षता से काम कर रही हैं और रुद्राक्षी के चेहरे पर एक सुकून की छाया देखी।

    जब यमिनी जी ने पूरी तरह से चोटियाँ बना दीं, तो रुद्राक्षी ने आईने में देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "वाह, माँ! आप तो सच में जादूगरनी हैं।"

    यमिनी जी ने हँसते हुए कहा, "सिर्फ़ तुम्हारी खुशी के लिए। अब जल्दी से नीचे आकर नाश्ता कर लो, वर्ना लेट हो जाओगी।"

    रुद्राक्षी ने यमिनी जी को देखकर कहा, "माँ, ये सिंदूर और मंगलसूत्र..."

    यमिनी जी ने मुस्कुराते हुए उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा, "बिटिया, तुम मेरी बहू ही नहीं, मेरी बेटी भी हो। इसलिए तुम इन सब बातों को समझना ज़रूरी है। जब तुम स्कूल में सभी को दिखाओगी कि तुम ये सिंदूर और मंगलसूत्र पहन रही हो, तो लोग सवाल पूछेंगे। तुम्हें अभी के लिए इन्हें पहनने की ज़रूरत नहीं है। स्कूल में ध्यान देना और खुद को ध्यान में रखना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।"

    रुद्राक्षी ने समझते हुए कहा, "ठीक है, माँ। मैं समझ गई हूँ।"

    यमिनी जी ने फिर उसे एक बार स्नेहपूर्वक देखा और कहा, "चलो, अब नाश्ता कर लो तुम दोनों। तुम्हें स्कूल में समय पर पहुँचने के लिए जल्दी निकलना होगा।"

    तरंग और रुद्राक्षी दोनों नीचे डाइनिंग टेबल पर आ गए... गंगाधर जी सुबह-सुबह ही कहीं चले गए थे और दादी जी मंदिर गई हुई थीं और वहाँ सिर्फ़ बुआ जी ही थीं।

    बुआ जी ने जैसे ही रुद्राक्षी को देखा तो उनके ताने शुरू हो गए।

  • 8. विवाह - Chapter 8

    Words: 1573

    Estimated Reading Time: 10 min

    बुआ जी ने जैसे ही रुद्राक्षी को देखा, उनकी आँखों में चमक के साथ ताना देने का इरादा स्पष्ट हो गया। उन्होंने रुद्राक्षी की ओर देखते हुए कहा, “ओह, तो आज हमारी नवविवाहिता बहु स्कूल जा रही हैं? बहुत अच्छा। हमें लगा था कि शादी के बाद घर में ही रहेंगी। अच्छा है, समाज में दिखने का भी मौका मिलेगा।”

    रुद्राक्षी बुआ जी की बात सुनकर एकदम से चुप हो गई।

    तरंग ने एक नज़र रुद्राक्षी को देखा, फिर बुआ जी को हँसकर जवाब दिया, “अरे बुआ जी। स्कूल तो सबको जाना ही पड़ता है, वरना पढ़ाई का क्या होगा।”

    बुआ जी ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, “पढ़ाई का तो हम भी जानते हैं। लेकिन शादी के बाद इतनी जल्दी स्कूल जाना, यह थोड़ी अजीब बात है। आखिर घर का काम भी तो है।”

    तरंग ने बुआ जी की बातों को सुनते हुए चिढ़ते हुए कहा, “बुआ जी, अब रुद्राक्षी को जाने दीजिए। शादी के बाद भी पढ़ाई और घर दोनों ही ज़रूरी हैं, वरना किताबें कहेंगी, ‘हम भी दुल्हन बनने का इंतज़ार कर रही हैं ताकि हम भी आराम फरमाएँ!’”

    बुआ जी ने चिढ़ते हुए कहा, “अरे बेटा, हम तो बस यही कह रहे हैं कि शादी के बाद थोड़ा समय तो परिवार के साथ बिताना चाहिए। यह स्कूल और पढ़ाई की बात तो हमेशा रहती है।”

    रुद्राक्षी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि तभी वहाँ अनुज डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए बोला, “अरे यार मम्मी! आप रुद्राक्षी को ऐसे डाँट रही हैं जैसे कि उसने आपकी पुरानी लिपस्टिक चुरा ली हो!”


    अनुज की बात सुनकर बुआ जी थोड़ी चिढ़ गईं और कहा, “अरे अनुज, हम डाँट नहीं रहे हैं, बस अपनी बात कह रहे हैं। शादी के बाद नई ज़िम्मेदारियाँ आती हैं, और घर के काम में भी योगदान देना पड़ता है। वरना घर का काम भी कहेगा, ‘शादी कर ली, अब थोड़ा काम भी कर लो!’”

    अनुज ने समझाने की कोशिश की, “मम्मी, रुद्राक्षी को अभी नई ज़िम्मेदारियों से जुड़ने का पूरा समय मिलेगा। शादी के बाद घर के काम सीखने का दबाव जल्दी देना सही नहीं है। वह अभी स्कूल भी जा रही है, और दोनों ही बातें ज़रूरी हैं। पहले पढ़ाई कर ले, फिर घर का काम भी सीख जाएगी।”

    बुआ जी ने तुनकते हुए कहा, “हाँ-हाँ, तुम्हारे कहने से क्या फ़र्क पड़ेगा।”

    तरंग ने इस बात को शांत करने के लिए कहा, “बुआ जी, आप सही कह रही हैं। लेकिन रुद्राक्षी की पढ़ाई भी महत्वपूर्ण है।”

    रुद्राक्षी ने तुनकते हुए कहा, “मुझे समझ में आता है कि शादी के बाद घर के काम इम्पॉर्टेन्ट हैं और मुझे यह भी समझ में आता है कि आपके ताने आपको ओलम्पिक में गोल्ड मेडल दिलवा सकते हैं...आखिर आप ताने मारने में तो एक्सपर्ट जो हो, ना।”

    यमिनी जी ने इस माहौल को देखते हुए बीच में ही हस्तक्षेप किया और कहा, “अरे, बस बहुत हुआ। चुपचाप सब नाश्ता करो।”

    यमिनी जी की बात सुनकर सभी चुप हो गए और नाश्ता करने लगे। रुद्राक्षी और तरंग ने बुआ जी की बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया और जल्दी से नाश्ता पूरा किया। अनुज ने भी बुआ जी के साथ एक हल्की मुस्कान साझा की, जैसे स्थिति को हल्का करने की कोशिश कर रहे हों।

    जब नाश्ता खत्म हो गया, यमिनी जी ने रुद्राक्षी, अनुज और तरंग से कहा, “हाँ, अब तुम तीनों जल्दी से जाओ स्कूल।”

    रुद्राक्षी, अनुज, और तरंग कार में बैठ गए। रुद्राक्षी और अनुज आपस में हँसी-मज़ाक कर रहे थे, जबकि तरंग ध्यान से दोनों की बातचीत सुन रहा था।

    रुद्राक्षी ने अनुज से पूछा, “अरे अनुज भैया, आपके स्कूल में कौन सा सब्जेक्ट सबसे बोरिंग लगता है?”

    अनुज ने हँसते हुए जवाब दिया, “यार, मैथ्स की क्लास! कभी-कभी लगता है कि उस क्लास में समय थम जाता है। और भूख भी बहुत लगती है मुझे तो।”

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, “हाँ हाँ, मुझे भी ऐसा ही लगता है।”

    अनुज ने सिर हिलाकर कहा, “हाँ, कभी-कभी लगता है कि मैथ्स वाले सर ने टाइम मशीन बना दी हो, और हम उसमें फँसे हुए हैं।”

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, “वैसे, इसमें कोई शक नहीं है कि अनुज और आप रुद्राक्षी, दोनों की पढ़ाई से दूर-दूर का कोई नाता नहीं है।”

    अनुज ने कहा, “हाँ हाँ, वो तो तुम टॉपर हो ना इसीलिए!”

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो इसलिए यह पति साहब इतने खड़ूस हैं, है ना?”

    अनुज ने कहा, “अरे, खड़ूस नहीं है तरंग, बस पढ़ाई को लेकर थोड़ा सीरियस है।”

    तरंग ने कहा, “ओह अच्छा! तो हम आपको खड़ूस लगते हैं..!”

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, “हाँ हाँ हाँ, तुम खड़ूस हो!”

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो फिर आप हमारी पत्नी हैं, तो आप भी खड़ूस हो!”

    रुद्राक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से तरंग को घूरकर देखते हुए कहा, “क्या? लेकिन मैं तो क्यूट हूँ, है ना अनुज भैया!”

    तरंग ने कहा, “हाँ आप क्यूट हो लेकिन...”

    अनुज ने कहा, “अरे... अब बातें बंद करो और देखो हम स्कूल पहुँच ही गए।”

    तभी ड्राइवर ने कार रोकी और तीनों कार से बाहर निकल गए।

    तरंग ने रुद्राक्षी से कहा, “आपकी 8वीं क्लास में आप चली जाइएगा और अगर आपको कोई ज़रूरत हो हमारी...तो आप हमें बता दीजिएगा...हम और अनुज हमारी क्लास 12वीं कॉमर्स...”

    अनुज बीच में ही बोल पड़ा, “अरे तरंग...उसे कोई परेशानी नहीं होगी...है ना रुद्राक्षी...”

    रुद्राक्षी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “हाँ वही तो...”

    तरंग कुछ बोलने ही वाला था कि अनुज ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी क्लास की तरफ़ ले जाते हुए कहा, “तरंग चल जल्दी...वो देख श्वेता मैम क्लास में ही जा रही हैं।”

    तरंग ने पीछे मुड़कर रुद्राक्षी को देखा जो अपनी क्लास में जा रही थी।

    रुद्राक्षी ने अपनी कक्षा में कदम रखा और चारों ओर नज़र दौड़ाई। कमरे में कई छात्र पहले से बैठे हुए थे और उनकी नज़रें रुद्राक्षी पर थीं। कक्षा में प्रवेश करते ही एक लड़के ने सवाल किया, “यह न्यू एडमिशन है क्या?”

    रुद्राक्षी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, मैं न्यू स्टूडेंट हूँ।”

    रुद्राक्षी कक्षा में खड़ी ही थी कि अचानक क्लास टीचर कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने मुस्कुराते हुए रुद्राक्षी की ओर इशारा करते हुए कहा, “अटेंशन एवरीवन। वी हैव अ न्यू स्टूडेंट विथ अस। दिस इज़ रुद्राक्षी, हू इज़ जॉइनिंग अवर स्कूल फ्रॉम टुडे। प्लीज़ गिव हर अ वार्म वेलकम।”

    कक्षा में कुछ छात्र अपने स्थान से उठकर रुद्राक्षी की ओर इशारा करने लगे और हल्की-फुल्की बातचीत शुरू हो गई। रुद्राक्षी ने विनम्रता से मुस्कुराते हुए सबको देखा, लेकिन उसे अंदर से एक हल्की सी संकोच महसूस हो रही थी।

    टीचर ने रुद्राक्षी को इशारा करते हुए कहा, “रुद्राक्षी, प्लीज़ गो एंड सिट ऑन द बेंच। लेट्स बिगिन द क्लास।”

    रुद्राक्षी ने बेमन से लास्ट बेंच की ओर बढ़ गई।

    रुद्राक्षी जैसे ही लास्ट बेंच पर बैठी, क्लास टीचर ने पढ़ाई शुरू की। पहले ही सवाल में टीचर ने मैथ्स के एक प्रश्न को क्लास में पूछा, “अरे, चलो देखो, कौन मुझे बताएगा कि इस समीकरण का समाधान क्या है?”

    टीचर ने गणित का एक सवाल पूछा जो काफ़ी कठिन था। क्लास के बाकी छात्र ध्यानपूर्वक सुन रहे थे।

    तभी टीचर ने रुद्राक्षी की तरफ़ देखा और कहा, “हाँ, तो तुम न्यू स्टूडेंट, तुम बताओ।”

    रुद्राक्षी की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं और उसने कहा, “क्या...मैं...ह...”

    टीचर ने कहा, “जी हाँ, मैं तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ...तुम ही न्यू स्टूडेंट हो ना...तो चलो बताओ...राइट आंसर क्या है?”

    रुद्राक्षी ने कहा, “पर मुझे कैसे पता चलेगा कि इसका आंसर क्या है।”

    सब बच्चे आपस में हँसने लगे।

    टीचर ने गुस्से से क्लास की तरफ़ देखा, फिर रुद्राक्षी से कहा, “कैसे...अरे इडियट...सॉल्व करके बताओ मुझे...यहाँ आओ बोर्ड पर...और सॉल्व करो क्वेश्चन को।”

    रुद्राक्षी ने मन ही मन उस टीचर को ढेर सारी गालियाँ दे डालीं। “हूह्ह्ह्ह्ह...”

    टीचर ने फिर कहा, “अरे अब वहीं खड़ी रहोगी क्या..?”

    रुद्राक्षी बोर्ड के पास गई, और टीचर ने उसे मैथ्स का सवाल सुलझाने को कहा। जैसे ही रुद्राक्षी ने चॉक उठाया, उसके हाथ थोड़े काँपने लगे। उसने सवाल पर नज़र डाली और फिर उसने सॉल्व करने की कोशिश की।

    रुद्राक्षी के मन में एक ही ख्याल था, “मैथ्स से तो था बचपन का बैर था, आज कैसे सुलझाऊँ ये प्रश्नों का ढेर?”

    टीचर ने गुस्से में कहा, “न्यू स्टूडेंट हो, लेकिन यह भी बेसिक नहीं आता? पुरानी स्कूल में पढ़ाया नहीं था क्या यह सब?”

    रुद्राक्षी ने जाते हुए कहा, “मुझे मैथ्स पसंद ही नहीं है, तो मैं मैथ्स की क्लास के दिन बीमार पड़ जाती थी।”

    सारी क्लास ठहाका मारकर हँस पड़ी।

    टीचर ने खीझते हुए कहा, “जाओ अब अपनी बेंच पर बैठ जाओ और हाँ, कल होमवर्क में तुम दस पेज इसी क्वेश्चन को सॉल्व करके लाओगी।”

    रुद्राक्षी ने कहा, “क्याआआआ!”

    रुद्राक्षी, जिसने कभी भी अपना होमवर्क ढंग से नहीं किया, उसे दस पेज एक ही सवाल, वह भी मैथ्स का, करना तो... ऐसा लग रहा था जैसे उसके मैथ्स के टीचर ने उसे पूरी मैथ्स की किताब को हल करने की चुनौती दे दी हो!

    उसने मन ही मन सोचा, “मैंने कभी भी होमवर्क ठीक से नहीं किया। अब यह बड़ा सवाल देखकर तो दिल ही दहल गया है।”

    टीचर ने पूरा क्वेश्चन बोर्ड पर सॉल्व किया, फिर वे चले गए।

    टीचर के जाने के बाद एक लड़की रुद्राक्षी के पास आई और बोली, “हाय रुद्राक्षी...माय नेम इज़ याशी।”

  • 9. विवाह - Chapter 9

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    रुद्राक्षी ने याशी की तरह देखा, फिर बड़े ही एटीट्यूड से अपना एक हाथ उसके सामने करके कहा, "हाय, मैं रुद्राक्षी... नाम तो सुना होगा।" फिर अपनी एक आँख विंक कर दी।

    याशी भी उसको देखकर मुस्कुरा दी और कहा, "यार, तूने तो एकदम कमाल ही कर दिया।"

    रुद्राक्षी ने अपने पूरे चौबीस दांतों से एक बड़ी सी स्माइल दी और कहा, "अरे यार, मैं हूँ ही ऐसी। एंट्री मारनी हो तो धांसू ही होनी चाहिए!"

    याशी ने ठहाका लगाते हुए कहा, "वो तो है! सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी, खासकर उस मिश्रा सर की।"

    रुद्राक्षी ने अपने बालों को पीछे करते हुए कहा, "मिश्रा सर सोच रहे थे कि नई स्टूडेंट आई है तो चुपचाप बैठेगी, लेकिन उन्हें क्या पता कि ये रुद्राक्षी है।"

    याशी ने सिर हिलाते हुए कहा, "बस, तू ऐसे ही चमकती रह।"


    ऐसे ही दोपहर के दो बज गए थे और सारी क्लासेज़ चल ही रही थीं। वहीं तरंग की क्लास में एक लड़का आया और तरंग से कहा, "तरंग भैया, आपको प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं ऑफिस में।"

    तरंग ने एकदम हैरानी से कहा, "क्या? लेकिन क्यों?"

    वो लड़का बोला, "पता नहीं... मैं चलता हूँ, मेरी क्लासेज़ चल रही हैं।"

    तरंग उठा और प्रिंसिपल ऑफिस की तरफ चल पड़ा और सोच रहा था कि उसे क्यों बुलाया है वहाँ।

    तरंग ऑफिस के बाहर खड़ा हो गया और धीरे से दरवाज़े में अंदर झाँककर देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। प्रिंसिपल के सामने रुद्राक्षी अपना सिर झुकाकर बैठी हुई थी और प्रिंसिपल उसे घूर-घूर कर देख रहे थे।

    तरंग ने कहा, "मे आई कम इन, सर?"

    प्रिंसिपल ने गंभीरता से उसकी ओर देखा और कहा, "हाँ, तरंग, अंदर आओ।"

    तरंग दरवाज़े को धीरे से बंद करता हुआ अंदर आया और सोचने लगा कि आखिर रुद्राक्षी ने ऐसा क्या कर दिया है जो उसे यहाँ बुलाया गया है।


    प्रिंसिपल ने कहा, "देखो, ये टेस्ट पेपर रुद्राक्षी का है, और इसने टेस्ट कॉपी में सारे सवालों के अजीब-अजीब जवाब लिखे हैं। देखो, कितनी बेहूदा चीज़ें लिखी हैं!"

    तरंग ने एग्ज़ाम कॉपी पर नज़र डाली, और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। एक सवाल था, "पानी के तीन राज्यों के नाम बताओ?" और रुद्राक्षी ने जवाब लिखा था,

    "पानी, पानी, प्यारा पानी,
    तू है चाय में, तू है कूलर में,
    रोज़ सुबह उठकर तुझे ढूँढ़ा मैंने,
    पर अब तो तू ही तू नज़र आता है हर बर्तन में।"


    तरंग ने जवाब देखकर हँसी रोकने की कोशिश की। फिर प्रिंसिपल ने दूसरे सवाल की ओर इशारा किया, "और देखो, यहाँ सवाल था, 'चाँद पर कैसे पहुँचे?' और इसने लिखा है, 'रॉकेट की टिकट खरीद लो!'"

    रुद्राक्षी ने खुद को बचाने की कोशिश की, "मैंने जो पूछा वही लिखा है। अब आंसर्स लिखो तब भी प्रॉब्लम है, और न लिखो तब भी। और भला पहले दिन ही कोई टेस्ट लेता है क्या न्यू स्टूडेंट का!"


    प्रिंसिपल ने रुद्राक्षी को घूर कर देखा। प्रिंसिपल ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा, "तरंग, उसे समझाओ कि स्कूल का मतलब सिर्फ़ मज़ाक नहीं है। यहाँ डिसिप्लिन और पढ़ाई ज़रूरी है। अगर अगली बार ऐसा हुआ, तो मैं इसे सीरियसली लूँगा।"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी सर, हम इन्हें समझा देंगे।"

    रुद्राक्षी ने तरंग की तरफ देखते हुए अपनी मासूमियत भरी मुस्कान दी।


    तरंग ने रुद्राक्षी को बाहर आने का इशारा किया। रुद्राक्षी धीरे-धीरे चलती हुई बाहर आई और तरंग के साथ कॉरिडोर में खड़ी हो गई।

    तरंग ने नाराज़ होते हुए कहा, "रुद्राक्षी, ये आपने क्या किया... पहले दिन ही प्रिंसिपल ऑफिस में पहुँच गई आपकी शिकायत... अब पता नहीं आगे क्या होगा।"

    रुद्राक्षी ने चिड़चिड़े अंदाज़ में कहा, "अरे... सर ने मुझसे ऐसे सवाल पूछे जो मुझे पसंद नहीं आए, तो मैंने अपने स्टाइल में जवाब दे दिए। और वैसे भी मैं तो आज ही आई हूँ ना, न्यू स्टूडेंट हूँ ना, तो टेस्ट क्यों लिया उन्होंने मेरा!"

    तरंग ने एक हाथ अपने माथे पर रखा और कहा, "रुद्राक्षी, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ..."

    रुद्राक्षी ने कहा, "नो नो नो... तुम मुझे नहीं समझाओ पति साहब... आपकी प्यारी-प्यारी बेवकूफ़ बातों में... मैं नहीं आने वाली।"

    तरंग ने धीरे से कहा, "रुद्राक्षी, आप अभी छोटी हो, लेकिन आपको समझना होगा कि यहाँ स्कूल में डिसिप्लिन भी ज़रूरी है। यहाँ सब कुछ मज़ाक नहीं चल सकता।"

    रुद्राक्षी ने आक्रामक होते हुए कहा, "अरे यार, हर बार कोई न कोई मुझे समझाने आ जाता है। कोई मेरी साइड क्यों नहीं लेता? मैं बस थोड़ी मस्ती कर रही थी। पढ़ाई के लिए तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है।"

    तरंग ने अपनी हँसी रोकते हुए कहा, "और मस्ती के लिए भी तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है। लेकिन यहाँ हमें थोड़ी सीरियसनेस दिखानी होगी। वरना फिर से प्रिंसिपल सर के ऑफिस में मुलाक़ात हो जाएगी।"

    रुद्राक्षी ने एक लम्बी साँस लेते हुए कहा, "ठीक है, मैं कोशिश करूँगी कि अगली बार कोई मस्ती ना करूँ... और वैसे भी, अब तुम हो ना मेरे साथ, तो मुझे किस बात का डर!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं हमेशा हूँ तुम्हारे साथ, लेकिन सही और गलत का फर्क भी समझना होगा। चलो, क्लास में वापस चलते हैं और थोड़ा सीरियस मोड में आते हैं।"

    रुद्राक्षी ने तरंग का हाथ पकड़ते हुए कहा, "ओके, मैं वादा करती हूँ कि अगली बार कुछ भी लिखने से पहले दो बार सोचूँगी। लेकिन अगर कुछ मज़ेदार आ जाए तो खुद को रोक नहीं पाऊँगी।"

    तरंग हँसते हुए बोला, "बस, यही बात है जो आपको सबसे अलग बनाती है। लेकिन याद रखना, मस्ती और पढ़ाई का बैलेंस बनाकर चलना।"

    रुद्राक्षी ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "यानी कि मस्ती आधी और पढ़ाई आधी?"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, और मस्ती थोड़ी कम... और पढ़ाई थोड़ी ज़्यादा।"

    दोनों हँसते हुए क्लास की ओर बढ़ गए।

    क्लास के दरवाज़े पर पहुँचते ही रुद्राक्षी ने अपने बालों को पीछे किया और बड़े ही एटीट्यूड के साथ क्लास में एंट्री मारी, जैसे किसी फिल्म का सीन चल रहा हो।

    वहीं तरंग भी अपनी क्लास में मुस्कुराते हुए गया और अपनी सीट पर बैठ गया।

  • 10. विवाह - Chapter 10

    Words: 1118

    Estimated Reading Time: 7 min

    शाम के चार बज रहे थे। स्कूल के बाद रुद्राक्षी सीधे अपने कमरे में दौड़ कर आई और बैग साइड में पटक दिया। वह बेड पर धड़ाम से गिर पड़ी और हाथ-पैर फैलाकर लेट गई।

    तरंग भी उसके पीछे आया। उसने देखा रुद्राक्षी बेड पर सोने की तैयारी में थी। तरंग ने अपना बैग साइड में रखा और सिर हिलाया।

    "रुद्राक्षी के साथ रहते-रहते हमें एक बात तो पता चल ही गई कि इन्हें इस दुनिया में सबसे ज़्यादा पसंद है, तो वो है सोना और खाना..."

    तरंग वाशरूम में गया। थोड़ी देर बाद शॉवर लेने के बाद उसने अपनी बॉडी पर तौलिया लपेटा और अपने गीले बाल झटकते हुए अलमारी से कपड़े निकालने लगा। तभी उसकी नज़र रुद्राक्षी पर गई जो गिरने ही वाली थी। तरंग ने तेज़ी से अपने हाथ में पकड़े कपड़े जमीन पर पटक दिए और रुद्राक्षी की तरफ दौड़ते हुए उसे पकड़ लिया। रुद्राक्षी अचानक झटके से जागी और उसकी आँखें बड़ी हो गईं। वह थोड़ी घबराई हुई सी थी। तरंग ने उसके दोनों कंधों को पकड़ते हुए कहा,

    "रुद्राक्षी, ध्यान से... आप सोते-सोते गिर ही जाती!"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके तरंग को देखा जो सिर्फ़ तौलिये में था।

    रुद्राक्षी ने अपना मुँह फेर लिया और कहा,

    "उफ्फ्...! ये ज़ालिम बेशर्म पति।"

    तरंग रुद्राक्षी की बात सुनकर हड़बड़ा गया और जल्दी-जल्दी अपने कपड़े उठाकर पहनने लगा। उसने शर्ट का एक बटन भी ठीक से नहीं लगाया और लोअर भी उल्टा पहन लिया। लेकिन इस वक़्त उसे अपनी गलती की चिंता कम और रुद्राक्षी के सामने खुद को शर्मिंदा महसूस करने की ज़्यादा थी।

    तरंग ने झेंपते हुए कहा,

    "आपको क्या ज़रूरत थी ऐसे बेड से नीचे गिरने की।"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा,

    "अरे वाह!...मुझे क्या पता था कि तुम ऐसे ही फ़ैशन शो करते मिलोगे...चलो मुझे सॉरी बोलो अब।"

    तरंग ने अपने कपड़े जल्दी-जल्दी पहनते हुए कहा,

    "अरे, अब हम क्यों सॉरी बोलें...सॉरी तो आपको कहना चाहिए।"

    रुद्राक्षी ने तिरछी नज़रों से तरंग की ओर देखते हुए कहा,

    “सॉरी? और मुझे? अरे, मैंने कोई गलत काम नहीं किया। तुम ही तो ऐसे घूम रहे थे तौलिये में रैंप वॉक करते हुए। अब सॉरी बोलो वरना मैं तो कहीं और सोने जा रही हूँ।”

    तरंग ने अपनी शर्ट के बटन लगाते हुए कहा,

    “अच्छा जी, हम सॉरी नहीं बोलेंगे, और आप भी कहीं नहीं जा सकती।”

    रुद्राक्षी ने अपने पास रखा तकिया खींचकर तरंग की ओर फेंका।

    तरंग ने हँसते हुए तकिये को पकड़ा और रुद्राक्षी की ओर बढ़ते हुए कहा,

    “अब मारने से काम नहीं चलेगा, पत्नी साहिबा। ये सॉरी वाला सीन क्लियर करिए, वरना हम...”

    रुद्राक्षी ने उसकी बात काटते हुए कहा,

    “वरना क्या कर लोगे? अभी तो मैंने बस एक तकिया फेंका है, अगली बार सीधे पानी डाल दूंगी।”

    तरंग ने उसे घूरते हुए कहा,

    “ठीक है, फिर देख लेना, बाथरूम में बंद कर देंगे आपको, फिर खूब सो लेना।”

    रुद्राक्षी ने चिढ़ाते हुए कहा,

    “तुम कर के तो देखो, फिर मम्मी से शिकायत कर दूंगी कि उनका बेटा बेशर्म हो गया है और लड़कियों के सामने तौलिये में घूमता है।”

    तरंग ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा,

    “अरे मम्मी को बताने से पहले ये सोचना कि, आपका पति भी शिकायत कर सकता है कि उनकी बीवी हर समय बस सोती रहती है। फिर मम्मी तुम्हें बर्तन धोने पर लगा देंगी!”

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा,

    "हुह्ह्ह्ह्ह...बड़े आए बर्तन धुलवाने वाले! इतने बड़े घर में इतने सारे नौकर हैं और तुम मुझसे बर्तन धुलवाओगे? पहले खुद तो कपड़े सीधा पहन लो, फिर मुझे धमकी देना!"

    तरंग ने तुनकते हुए कहा,

    "अरे, आप तो बात ही बदल देती हो! वैसे भी, आपके सोने के शौक ने हमें अच्छे से समझा दिया है कि आपको कोई काम नहीं करना। वैसे, अगर मम्मी ने सुन लिया कि आप दिनभर सोती रहती हैं, तो फिर आपकी खैर नहीं।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में झट से तरंग का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए बिस्तर पर बैठा दिया।

    "सुनो, अगर मम्मी जी को कुछ भी बताया तो...तो...फिर मैं भी तुम्हारे सारे राज़ खोल दूंगी! याद है, जब तुम रसोई में घुसकर मिठाई चुराते पकड़े गए थे?"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा,

    "अरे, वो तो बचपन की बात थी! और वैसे भी, आपसे शादी के बाद सारी ज़िम्मेदारियाँ हमारी हो गईं, तो अब आपकी शिकायतें मम्मी जी को बताना हमारा हक़ है!"

    रुद्राक्षी ने उसे हल्के से धक्का देते हुए कहा,

    "हक़ नहीं, बेशर्मी है! और अगर तुम मुझसे फिर उलझे, तो मैं तुम्हारे सारे दोस्तों के सामने बता दूंगी कि तुम रात में डर के मारे बिना लाइट के नहीं सो पाते!"

    तरंग की आँखें बड़ी हो गईं।

    "अरे नहीं, वो बात किसी को मत बताना...प्लीज़!"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा,

    "तो ठीक है, फिर सॉरी बोलो!"

    तरंग ने गहरी साँस लेते हुए, अपनी हार मानते हुए कहा,

    "ठीक है, सॉरी। अब खुश?"

    रुद्राक्षी ने चेहरे पर जीत की मुस्कान लाते हुए कहा,

    "हाँ, अब तुम अच्छे बच्चे बन जाओ और अपनी शर्ट के बटन सही से लगाओ।"

    तरंग ने हँसते हुए बटन ठीक किए और कहा,

    "आप भी ना...एक बात नहीं सुनती हैं हमारी।"

    रुद्राक्षी ने अपनी कमर पर एक हाथ रखा और एक हाथ से अपने बालों को पीछे झटकते हुए बड़े एटीट्यूड से कहा,

    "हाँ, मैं रुद्राक्षी हूँ ना..."

    तरंग ने उसे देखा और हँसते हुए कहा,

    "हाँ हाँ, एटीट्यूड बाद में दिखाना, पहले आप अपनी ड्रेस तो चेंज कर लीजिए।"

    रुद्राक्षी ने कहा,

    "मुझे भूख लगी है।"

    तरंग ने कहा,

    "पहले ड्रेस चेंज कर लीजिए, नहीं तो बुआ जी को मौका मिल जायेगा आपको डाँटने का।"

    रुद्राक्षी जल्दी से बेड से उठ गई और तरंग से कहने लगी,

    "हाँ, फिर वो एक ही डायलॉग कहेंगी... 'ठाकुरों की बहू हो तुम और अपनी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रखना चाहिए।' सच में, अब ये ज़िम्मेदारियों का बोझ को मैं 12 साल की प्यारी मासूम लड़की कैसे झेल सकती हूँ। बल्कि ये ज़िम्मेदारी को मेरा बोझ झेलना चाहिए।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,

    “अरे, आपका बोझ उठाने के लिए हम हैं। आखिरकार, हम तो ठहरे जिम्मेदार पति, है ना?”

    रुद्राक्षी ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए बाथरूम की ओर बढ़ते हुए कहा,

    "हाँ हाँ, बस बस... खुद की ज़्यादा तारीफ़ नहीं करते, समझे तुम।"

    थोड़ी देर बाद रुद्राक्षी ने एक प्यारा सा हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना और बाथरूम से बाहर निकल आई।

    तरंग ने एक नज़र रुद्राक्षी की तरफ़ देखा और हल्के से मुस्कुरा दिया। लेकिन रुद्राक्षी ने उसे देखकर अपनी नाक सिकोड़ ली। फिर तरंग वापस अपनी बुक्स समेटने लगा कि धड़ाम से एक आवाज़ आई।

    तरंग ने जब वापस रुद्राक्षी की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।


    Continue.....

  • 11. विवाह - Chapter 11

    Words: 1303

    Estimated Reading Time: 8 min

    रुद्राक्षी को नीचे गिरा देखकर तरंग तुरंत दौड़कर उसके पास आया। उसने देखा कि रुद्राक्षी अपने पैर पर फूँक मार रही थी, उसका चेहरा पूरी तरह लाल हो चुका था। तरंग ने जल्दी से रुद्राक्षी की ओर बढ़ते हुए पूछा, "रुद्राक्षी, आप...आपको लगी तो नहीं?"

    रुद्राक्षी, दर्द से कराहते हुए, मासूमियत से बोली, "मुझे भूख लगी है।"

    तरंग ने चिंतित होते हुए कहा, "आप नीचे गिर गईं, लेकिन आपको अभी भी भूख लगी है?"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से कहा, "तुम्हें नहीं पता इस दुनिया में बिना खाना खाए कोई भी जिंदा नहीं रह सकता। और फिर मैं तो छोटी सी, प्यारी सी, क्यूट सी, मासूम सी बच्ची हूँ।"


    तरंग ने रुद्राक्षी की बात सुनकर कहा, "अरे, आपसे बहस नहीं करनी है हमें...चलो जल्दी से उठिए और फिर चलिए नीचे...नहीं तो आप अपनी बातों से मेरा सिर ज़रूर खा जाएँगी।"

    कहकर तरंग दरवाज़े की ओर जाने लगा।

    रुद्राक्षी ने कहा, "हा हा, उठ ही रही हूँ..."

    लेकिन जैसे ही रुद्राक्षी उठने लगी, वह वापस से लड़खड़ाकर बैठ गई और उसकी हल्की सी चीख निकल गई, "आआह्ह्ह्ह!"


    तरंग जल्दी से पीछे मुड़कर देखा जहाँ रुद्राक्षी अपना पैर पकड़कर बैठी हुई थी।

    तरंग ने तेज़ी से रुद्राक्षी के पास पहुँचते हुए कहा, "आपको क्या हुआ? मोच आ गई क्या?"

    रुद्राक्षी ने दर्द से कराहते हुए कहा, "हाँ, लगता है मोच आ गई है।"

    तरंग ने रुद्राक्षी को देखा, जो अपने पैर को पकड़कर दर्द से कराह रही थी। बिना एक पल भी गँवाए, उसने रुद्राक्षी को अपनी गोद में उठा लिया।

    रुद्राक्षी की बड़ी-बड़ी आँखें तरंग की ओर देखकर आश्चर्य से भर गईं। उसकी आँखों में एक पल के लिए चिंता और असहायता झलक रही थी, लेकिन साथ ही उसने तरंग के प्रति एक गहरी स्नेह भावना भी महसूस की।

    तरंग ने रुद्राक्षी को अपनी गोद में संभालते हुए कहा, "फ़िक्र मत करिए, आपकी मोच दो मिनट में सही हो जाएगी।"

    रुद्राक्षी ने दर्द के बावजूद हल्की सी मुस्कान के साथ तरंग को देखा और धीरे से कहा, "पर मुझे भूख लगी है बहुत ज़ोरों की।"

    तरंग ने रुद्राक्षी को अपनी बाहों में पकड़े हुए आराम से बेड पर बिठाया और कहा, "आप और आपकी जिद्द...बहुत ही जिद्दी हैं आप..."

    रुद्राक्षी ने कहा, "पर..."

    लेकिन उससे पहले ही तरंग ने उसके होठ पर अपना हाथ रखकर उसे चुप करवा दिया। "बस बस, अब आप कुछ भी नहीं बोलेंगी...मुझे आपकी मोच पर बाम लगाने दीजिए, उसके बाद में आपका खाना भी यहीं लेकर आ जाऊँगा...तब तक के लिए प्लीज़ अपना मुँह बंद रखिए, ओके।"


    रुद्राक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपका दीं और तरंग के हाथ की तरफ़ देखने लगी जिसने उसके मुँह पर अभी भी अपना हाथ रखा हुआ था। तरंग ने जब अपने हाथ की तरफ़ देखा तो उसने झट से अपना हाथ हटा लिया। और फिर तरंग ने सकपकाते हुए अपना हाथ अपने बालों में फेर लिया और अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने मन में कहा, "पागल है हम...हम ऐसा कैसे कर सकते हैं..."


    रुद्राक्षी ने जब उसे देखा तो कहा, "क्या हुआ? खड़े-खड़े ही सो क्यों रहे हो तुम अब? जब मैं सोती हूँ तब तो तुम बड़े ज्ञान झाड़ते हो...बोलो...बोलते क्यों नहीं अब? हाँ...बोलो, चुप क्यों हो गए?"

    तरंग ने रुद्राक्षी की बात सुनी और धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उसने खिसियाते हुए कहा, "अरे, हम सो नहीं रहे थे, बस...बस सोच रहे थे कि आपकी जिद्द का कोई हल निकाला जाए।"

    कहकर तरंग ने पास ही रखी टेबल से बाम उठाया और बेड पर रुद्राक्षी के पास बैठ गया।

    तरंग ने कहा, "हाँ, अब अपना पैर आगे करिए..."

    रुद्राक्षी ने जल्दी कहा, "लेकिन मेरी माँ ने कहा था कि पति को कभी भी पत्नी के पैर नहीं छूने चाहिए...पाप लगता है, पाप।"

    तरंग ने हैरानी से उसकी तरफ़ देखा, फिर कहा, "तो फिर पत्नी जब पति के पैर छूती है तो उनको नहीं लगता क्या पाप...?"

    रुद्राक्षी ने कहा, "पता नहीं..."


    तरंग ने कहा, "हाँ, नहीं पता ना...वही हम बता रहे थे...जब पत्नी पति के पैर छू सकती है तो हम पति अपनी पत्नी के पैर क्यों नहीं छू सकते।"


    रुद्राक्षी ने अपनी मासूमियत से कहा, "अगर आपको पाप लग गया तो?"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं लगेगा।"


    रुद्राक्षी ने कहा, "आपको कैसे पता नहीं लगेगा? और अगर लग गया तो?"


    तरंग ने कहा, "रुकिए, हम आपको बताते हैं..." (तरंग ने अपना फ़ोन निकाला और कुछ फ़ोटोज़ दिखाईं जिसमें कृष्ण भगवान राधा जी के पैर छूते हुए और मुस्कुराते हुए दिखाई दे रहे थे।)

    तरंग ने कहा, "देखिए, भगवान श्री कृष्ण ने भी राधा जी के पैर छुए हैं, और उनसे जुड़ी हर चीज़ पवित्र और आदर्श मानी जाती है। इसलिए, अगर हम भी आपके पैर छूते हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं है।"

    रुद्राक्षी ने फ़ोटो की ओर देखकर कहा, "ठीक है, अगर भगवान भी ऐसा कर सकते हैं, तो शायद हम भी कर सकते हैं।"

    तरंग ने बाम की ट्यूब खोलते हुए कहा, "यही सही है। अब चलिए, मैं आपकी मोच पर बाम लगाता हूँ।"

    तरंग ने ध्यानपूर्वक और धीरे-धीरे बाम लगाया, और रुद्राक्षी के पैर को आराम देने की कोशिश की। रुद्राक्षी ने तरंग की मासूमियत और उसकी देखभाल की सराहना करते हुए कहा, "तुम सच में बहुत अच्छे हो।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "थैंक्स! जल्दी से आराम करो, और हम नीचे जाकर आपके लिए खाना लेकर आते हैं।"


    इससे पहले कि रुद्राक्षी कुछ और कह पाती, तरंग तेज़ी से दरवाज़े की ओर बढ़ा और नीचे खाना लाने के लिए निकल पड़ा। रुद्राक्षी ने उसकी पीठ को देखकर हल्की सी मुस्कान के साथ सिर झुका दिया और मन ही मन तरंग के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को महसूस किया।


    तरंग जब नीचे आया तो देखा कि अनुज पहले से खाना ठूँस-ठूँसकर खा रहा था। तरंग ने अपना सिर हिला दिया और डाइनिंग टेबल पर आकर उसने दो प्लेट्स में खाना लेना शुरू किया।

    अनुज ने जब देखा कि तरंग दो प्लेट्स में खाना डाल रहा है तो अनुज ने कहा, "तरंग, तुम क्या अकेले दोनों प्लेट्स से खाना खाओगे क्या? रुद्राक्षी कहाँ है? उसे भूख नहीं लगी क्या? वो तो पूरे रास्ते सिर खाते हुए आई थी कि मुझे भूख लगी है, भूख लगी है..."

    तरंग ने प्लेट्स उठाते हुए कहा, "वो रूम में है...और उन्हें भूख लगी है, इसीलिए हम उनके लिए रूम में लेकर जा रहे हैं खाना।"

    अनुज ने कहा, "पर रूम में क्यों...?"

    तरंग ने कहा, "वो गिर गई है और उन्हें पैर में मोच आ गई है।"

    यामिनी जी वहाँ आते हुए बोलीं, "क्या बहू गिर गई और उसे मोच आ गई...? तरंग, तुम...तुमने ध्यान नहीं दिया कि वो कैसे गिर गई। बेटा, वो अभी छोटी है, तुम्हें उसका ध्यान रखना चाहिए था ना।"


    तरंग ने यामिनी जी की ओर देखा और कहा, "माँ, ऐसा कुछ नहीं था। बस उनका पैर फिसल गया था। मैंने बाम लगाकर उनका दर्द कम करने की कोशिश की है।"

    यामिनी जी ने चिंतित होते हुए कहा, "अरे, तुमने जल्दी से डॉक्टर को क्यों नहीं बुलाया? मोच में भी कभी-कभी गंभीर समस्या हो सकती है।"

    तरंग ने थोड़ी असहजता से कहा, "माँ, मैंने बाम लगाकर उन्हें आराम देने की कोशिश की है। अगर दर्द बढ़ता है, तो हम डॉक्टर को ज़रूर बुलाएँगे।"

    यामिनी जी ने सिर झुका लिया और फिर कहा, "ठीक है, लेकिन ध्यान रखना कि उसे कोई और दिक्क़त न हो। और अगर डॉक्टर की ज़रूरत हो, तो तुरंत बुलाना।"

    तरंग ने सर झुकाकर कहा, "जी माँ।"


    "दो दिन भी ढंग से नहीं हुए और बहू ने अपने पति को काम पर लगा दिया। कम से कम नए घर में आते ही तो थोड़ी सजगता दिखानी चाहिए।" बुआ जी की आवाज़ सुनते ही सबके चेहरों पर चौंकने की झलक आ गई। बुआ जी ने अंदर हॉल में आते हुए कहा।

  • 12. विवाह - Chapter 12

    Words: 983

    Estimated Reading Time: 6 min

    तरंग ने झिझकते हुए कहा, "बुआ जी, रुद्राक्षी को मोच आ गई है, इसलिए..."

    बुआ जी ने ताना मारते हुए कहा, "अरे, मोच आ गई तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम खुद को बहु के लिए खाना उसके रूम तक लेकर जाओ...?"

    यामिनी जी के चेहरे पर आश्चर्य की झलक थी। वह धीमे से बुआ जी को देख रही थी, जबकि तरंग ने सिर झुका लिया।

    यामिनी जी ने बुआ जी की बातों का आदर करते हुए कहा, "दीदी, तरंग इस वक्त सिर्फ रुद्राक्षी की देखभाल कर रहे हैं। अगर आपको कोई आपत्ति हो, तो कृपया हमें बताइए।"

    बुआ जी ने नाराजगी से कहा, "ध्यान रखना, बहु का काम तो घर की जिम्मेदारी होती है। पति का काम है केवल सहयोग करना। जब तुम सब मिलकर काम करोगे, तभी सब ठीक रहेगा। और हाँ, यह ध्यान रखना कि कोई भी समस्या हो, तुरंत बताना।"

    यामिनी जी ने बुआ जी की बातों को सुनकर कहा, "दीदी, रुद्राक्षी बच्ची है अभी... माना कि उसकी शादी हुई है, लेकिन वह एक मजबूरी थी... नहीं तो हम इतनी कम उम्र में अपने बच्चों की शादी क्यों करते भला?"

    तरंग ने बुआ जी की बातों को चुपचाप सुना। वह जानता था कि बुआ जी के मन में हमेशा से अनुशासन और परंपराओं की ही धारा बहती है। लेकिन यामिनी जी के शब्दों ने उसकी पीड़ा को भी व्यक्त कर दिया था। उसने एक गहरी साँस ली और रुद्राक्षी के कमरे की ओर मुड़ा; उसकी आँखों में अपनी पत्नी के लिए चिंता और बुआ जी के लिए सम्मान दोनों ही थे।

    "बुआ जी," तरंग ने विनम्रता से कहा, "मैं समझता हूँ कि आप घर के नियम और अनुशासन का पालन करना चाहती हैं। लेकिन रुद्राक्षी अभी बच्ची है... उसके लिए इन सब चीजों को समझना थोड़ा मुश्किल है। मैं सिर्फ उसकी मदद कर रहा था।"

    बुआ जी की आँखों में गुस्सा बढ़ गया; उनका चेहरा लाल हो उठा। उन्होंने तीखे स्वर में कहा, "तरंग! घर की बड़ी जिम्मेदारी होती है, और यह बहु को सिखाना हमारी जिम्मेदारी है। आज तुम उसकी मदद कर रहे हो, कल वह सिर पर चढ़ जाएगी। समझे?"

    बुआ जी ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया, मानो बात खत्म हो गई हो। लेकिन उनकी आँखों में अभी भी नाराजगी साफ झलक रही थी।

    फिर वह खाने की प्लेट्स लेकर कमरे की ओर बढ़ा। रुद्राक्षी को बेड पर बैठा देखकर, तरंग के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने प्लेट्स उसकी ओर बढ़ाईं और कहा, "देखो, खाना आ गया है आपका। अब खाओ और आराम करो।"

    रुद्राक्षी ने खाना देखकर हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "वाह! मेरा प्यारा खाना... तेरे बिना तो मैं भूख से ही मर जाती।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे, आप पहले हाथ तो धो लीजिए।"

    रुद्राक्षी ने बेमन से जवाब दिया, "चम्मच से खाऊँगी, तो हाथ धोने की क्या ज़रूरत? और वैसे भी, मेरे पैर में मोच आई है।"

    तरंग ने थोड़ी असहजता से कहा, "फिर भी, हाथ धोना ज़रूरी है। साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।"

    रुद्राक्षी ने खाना खाते हुए, एक चम्मच अपनी ओर बढ़ाते हुए कहा, "देखो, मेरे पैर में मोच है, इसलिए, एक बार खाना खा लेने दो, फिर बाद में जब मोच सही होगी तब हाथ धो लूँगी।"

    तरंग ने सिर झुकाकर कहा, "सच में, कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम आपको कुछ भी कहकर गलती कर ही लेते हैं। आप और आपके जवाब—अरे, समझ ही नहीं आता!"

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, "हा हा, बाद में बोलना! आप पहले मुझे खा लेने दो। मेरी भूख से बुरा हाल है।"

    तरंग ने देखा कि रुद्राक्षी खाना खाते हुए अपने कपड़ों पर ज़्यादा गिरा रही थी। उसकी यह हालत देखकर तरंग ने हल्की चिढ़ के साथ कहा, "अरे, आप तो खाना खा रहे हैं या कपड़ों को नए डिज़ाइन दे रही हैं?"

    रुद्राक्षी ने उसे इग्नोर किया और एक लंबी डकार ली, "हाईईश्शश... मेरा पेट तो भर गया।"

    तरंग ने भी अपना खाना खत्म किया और रुद्राक्षी और खुद की प्लेट एक तरफ रख दी।

    तरंग ने प्लेट्स एक तरफ रखते हुए रुद्राक्षी की ओर देखा और कहा, "अब आप होमवर्क कर लीजिए?"

    रुद्राक्षी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा, "होमवर्क...?" फिर अचानक उसे अपने गणित के शिक्षक की सख्त सज़ा का ख्याल आ गया। उसने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, "अम्म्म्म... वह... मेरे पैर में तो मोच है, मैं होमवर्क कैसे कर सकती हूँ!"

    तरंग ने कहा, "मोच आपके पैर में है और होमवर्क हम हाथों से करते हैं।"

    रुद्राक्षी ने हल्की सी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, "अरे! तुम समझते क्यों नहीं? जब पैर में दर्द होता है, तो दिमाग भी काम नहीं करता। और वैसे भी, तुम तो मेरे सबसे प्यारे पति हो, तो तुम ही मेरा होमवर्क कर दो ना, प्लीज़!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "वाह! पति तो बहुत प्यारा है, लेकिन होमवर्क तो आपको ही करना पड़ेगा।"

    रुद्राक्षी ने घूरते हुए कहा, "अगर तुम होमवर्क करने में मदद नहीं करेंगे, तो मैं अगले तीन दिनों तक आपसे बात नहीं करूँगी।"

    तरंग ने अपनी आँखें बड़ी करते हुए कहा, "अरे, बात नहीं करोगी? अच्छा, तो आप हमें ब्लैकमेल कर रही हो।"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी मासूमियत से जवाब दिया, "हाँ, ब्लैकमेल कर रही हूँ! और अगर तुम फिर भी नहीं माने, तो अगले तीन दिन क्या, मैं पूरे एक हफ़्ते तक तुमसे बात नहीं करूँगी। देखती हूँ फिर कैसे जीते हो बिना मेरी बात किए।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे वाह! फिर तो घर में शांति ही शांति होगी। हमें तो यह डील बहुत पसंद आई।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में तकिया उठाकर उसकी ओर फेंकते हुए कहा, "बहुत मज़ाक सूझ रहा है तुम्हें! मैं सच में सीरियस हूँ!"

    तरंग ने तकिया पकड़कर हँसते हुए कहा, "अच्छा, चलो मान लिया कि आप सीरियस हो। लेकिन एक बात बताओ, अगर मैंने आपका होमवर्क कर दिया तो आप मुझे क्या इनाम दोगी?"

    रुद्राक्षी ने थोड़ी सोचकर जवाब दिया, "इनाम? अह... इनाम... अह... अम्म्म..."
    Continue......

  • 13. विवाह - Chapter 13

    Words: 1241

    Estimated Reading Time: 8 min

    रुद्राक्षी ने थोड़ी देर सोचकर जवाब दिया, "इनाम? अह्ह इनाम.... अह्हम्म्म ...."

    तरंग ने कहा, "हा हा, रहने दीजिए। आप अपना होमवर्क खुद ही करेंगी। हम नहीं करके देने वाले। समझी आप?"

    रुद्राक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से तरंग को घूरते हुए कहा, "ठीक है! अगर तुम मेरे लिए होमवर्क नहीं करोगे, तो देखना मैं भी तुम्हारे सारे काम बिगाड़ दूंगी। फिर मत कहना कि मैंने पहले नहीं बताया!"

    तरंग ने खीझते हुए कहा, "अरे, इतना गुस्सा क्यों हो रही हो? चलो, हम बस एक सवाल में मदद कर देते हैं, बाकी तुम्हें खुद ही करना होगा।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा, "वाह! एक सवाल? इससे तो अच्छा है कि तुम कुछ भी मत करो।"

    तरंग उसके पास बैठते हुए कहा, "अरे, एक सवाल की मदद भी बहुत होती है। चलो, बताओ कौन सा सवाल है?"

    रुद्राक्षी ने गणित की किताब खोलते हुए कहा, "यह वाला! और याद रखना, अगर इसमें गलती हुई तो सारी गलती तुम्हारी होगी। फिर मैं टीचर को कह दूंगी कि तुमने ही सब गलत बताया!"

    तरंग ने किताब को देखते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "अच्छा जी, हमें तो आपके बचकर ही रहना पड़ेगा फिर तो।"

    रुद्राक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे घूरते हुए कहा, "हाँ हाँ, बचकर ही रहना पड़ेगा। क्योंकि अगर गलती हुई, तो मैं मासूम बनकर टीचर के सामने तुम्हारा नाम ले लूंगी!"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे! आप तो बहुत शातिर निकलीं। लेकिन हमसे कोई गलती नहीं होगी।" उसने सवाल को हल करने की प्रक्रिया समझानी शुरू की, "पहले इस संख्या को इधर ले आओ और फिर इसे इससे गुणा करो..."

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाते हुए कहा, "अरे, तुम तो ऐसे समझा रहे हो जैसे मैं कोई पाँचवीं क्लास की बच्ची हूँ!"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, आप तो पाँचवीं क्लास से भी छोटी हो जब बात पढ़ाई की आती है।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में किताब बंद करते हुए कहा, "बस! अब नहीं, खुद ही कर लूंगी।"

    तरंग ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "अरे वाह! इतनी जल्दी हार मान ली? लगता है मेरी छोटी महारानी को गणित से बहुत डर लगता है।"

    रुद्राक्षी ने उसे घूरते हुए कहा, "डर मुझे गणित से नहीं, तुम्हारी ऊल-जलूल बातों से लगता है। तुम हमेशा मुझे चिढ़ाते रहते हो!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, चिढ़ाना तो हमारा अधिकार है। और अगर हम नहीं चिढ़ाएँगे तो आपके चेहरे पर यह प्यारी नाराजगी कैसे आएगी?"

    रुद्राक्षी ने अपने गाल फुलाते हुए कहा, "प्यारी? तुम्हें यह प्यारी लगती है? अब तो मैं और भी गुस्से में आऊंगी!"

    तरंग ने हंसते हुए जवाब दिया, "अरे वाह! आप तो गुस्से में भी इतनी प्यारी लगती हैं कि दिल करता है और तंग करूँ!"

    रुद्राक्षी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तरंग, अगर तुमने एक और शब्द कहा, तो मैं सच में किताब तुम्हारे सिर पर मार दूंगी!"

    तरंग थोड़ा पीछे हटते हुए कहा, "अरे! ठीक है ठीक है... किताब से मत मारना हमें... नहीं तो लोगों को पता चलेगा कि तरंग ठाकुर को उसकी नन्ही बीवी ने किताब से मारा, तो लोग कहेंगे कि... ठाकुर खानदान की नई बहू तो बड़ी हिंसक है।"

    रुद्राक्षी ने तरंग की बात सुनकर नकली गुस्से में अपनी नाक चढ़ाई और कहा, "हाँ, तो ठीक है! सबको बता दूंगी कि तुम्हें कैसे संभालना पड़ता है। वैसे भी, अगर तुम्हारे घरवालों को पता चला कि तुम मुझसे डरते हो, तो क्या कहेंगे?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे वाह! आप तो मुझे धमकियों में भी मात दे देती हैं। लेकिन सच बताऊँ, मैं आपको गुस्से में भी बहुत पसंद करता हूँ।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा, "तुम्हें तो बस हर बात में मज़ाक सूझता है। ज़रा सीरियस भी हो जाया करो कभी!"

    तरंग ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा, "अरे बाबा! अब बहुत सीरियस हो गया हूँ। अब बताओ, अगला सवाल कौन सा है?"

    रुद्राक्षी ने अपनी किताब की ओर इशारा करते हुए कहा, "यहाँ वाला।"

    तरंग ने फिर से सवाल पर ध्यान केंद्रित किया और हल करने की विधि बताने लगा। जैसे-जैसे वह समझा रहा था, रुद्राक्षी उसके चेहरे को ध्यान से देख रही थी। उसकी बातें सुनकर कभी वह हँसती, तो कभी सोच में पड़ जाती।

    कुछ देर बाद, तरंग ने कहा, "बस, हो गया! अब आप खुद इसे हल करके देखिए, अगर सही है तो समझ लो कि हमने अपना काम कर दिया।"

    रुद्राक्षी ने अपनी किताब में कुछ हल किया और थोड़ी देर बाद खुश होकर बोली, "ये! हो गया! सही हो गया!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखा? मैंने कहा था न कि कोई गलती नहीं होगी।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "हम्म..."

    तरंग ने कहा, "हा हा, तो अब हमारी तारीफ करिए आप... आखिर हमने आपकी हेल्प तो की है।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "नहीं, तुम्हारी तारीफ क्यों करूँ मैं?"

    तरंग ने कहा, "अच्छा जी, तो आप हमारी तारीफ नहीं करेंगी।"

    रुद्राक्षी ने आँखें तिरछी करते हुए कहा, "तारीफ? तुम्हारी तारीफ करने का मन नहीं है। खुद ही कर लो अपने काम की तारीफ।"

    तरंग ने चिढ़ाते हुए कहा, "वाह, इतनी नाराजगी! लगता है, तारीफ करने में भी आपको दिक्कत हो रही है।"

    रुद्राक्षी ने झुंझलाते हुए कहा, "दिक्कत... अगर तुम मेरे लिए आइसक्रीम लेकर आओगे तो मैं तुम्हारी तारीफ कर दूंगी।"

    तरंग ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा, "आइसक्रीम? इतनी ठंड में आइसक्रीम कौन खाता है?"

    रुद्राक्षी ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा, "मैं! और अगर तुमने मेरे लिए आइसक्रीम नहीं लाए, तो मैं तुम्हारे सारे नोट्स फाड़ दूंगी।"

    तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया, "वाह! ये क्या बात हुई? पहले होमवर्क, फिर आइसक्रीम और अब धमकी भी! लगता है आपकी मांगें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं।"

    रुद्राक्षी ने नकली गुस्से में कहा, "हाँ, तो! तुम मानते क्यों नहीं?"

    तरंग ने मजाकिया अंदाज में कहा, "ठीक है, ठीक है, आपकी यह मांग भी पूरी कर देंगे। लेकिन एक शर्त है—आइसक्रीम लाने के बाद आप हमें अपने खास 'थैंक यू' स्टाइल में धन्यवाद कहेंगी।"

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाते हुए कहा, "थैंक यू? वो क्या होता है?"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, वो होता है जब आप मुस्कुराते हुए और प्यारी आवाज़ में कहती हैं, 'थैंक यू, तरंग!' और फिर हमें एक चॉकलेट भी देती हैं।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा, "चॉकलेट तो तुम्हें बिल्कुल नहीं मिलेगी, समझे? और वो 'थैंक यू' तो बिल्कुल भी नहीं!"

    तरंग ने शरारत से कहा, "अच्छा, तो फिर आइसक्रीम का सपना देखना छोड़ दो।"

    रुद्राक्षी ने झूठे गुस्से में कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी आइसक्रीम के सपनों को चकनाचूर करने की?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "हिम्मत तो हम तब दिखाएँगे जब आपको आइसक्रीम खिलाकर आपके मुँह से हमारी तारीफ सुनेंगे।"

    रुद्राक्षी ने एक पल सोचकर मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, डील पक्की। तुम आइसक्रीम लाओ, मैं तुम्हारी तारीफ करूँगी... लेकिन चॉकलेट नहीं दूंगी!"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "आपके साथ डील करना तो वाकई बड़ा मुश्किल काम है। लेकिन ठीक है, हमारी डील पक्की।"

    तभी वहाँ यामिनी जी आते हुए बोलीं, "अरे, कौन सी डील पक्की हो गई तुम दोनों की... और बहू, तुम्हारा पैर ठीक तो है ना?"

    यामिनी जी के कमरे में आने पर रुद्राक्षी और तरंग तुरंत चौकन्ने हो गए। रुद्राक्षी ने झट से किताब बंद की और सीधी होकर बैठ गई, मानो कोई बड़ा राज़ छुपाना चाहती हो। तरंग ने भी थोड़ी शरारती मुस्कान के साथ कहा, "अरे, माँ! कुछ खास नहीं, बस आपकी बहू को आइसक्रीम खाने का मन हो रहा है, वो भी इस ठंड में!"

    यामिनी जी ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "आइसक्रीम? इस ठंड में? बहू, तुम्हें ठंड नहीं लगती क्या?"


    .....

  • 14. विवाह - Chapter 14

    Words: 1199

    Estimated Reading Time: 8 min

    रुद्राक्षी ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, "नहीं माँ, वो बस ऐसे ही... ये मजाक कर रहा है।"

    तरंग ने झट से कहा, "अरे, नहीं माँ, यह मज़ाक नहीं था! आपकी बहू ने हमसे कहा है कि अगर हम आइसक्रीम लाकर देंगे, तो ये हमारी तारीफ करेंगी। अब आप ही बताइए, इतनी सर्दी में कौन आइसक्रीम खाता है?"

    यामिनी जी ने सिर हिलाते हुए कहा, "अरे तुम दोनों भी न...। अच्छा, बहू, तुम्हारा पैर कैसा है अब? दर्द तो नहीं हो रहा?"

    रुद्राक्षी ने झट से जवाब दिया, "दर्द है ना अभी भी... हिल ही नहीं रहा पैर।"

    फिर रुद्राक्षी ने अपने मन में कहा, "ये अच्छा बहाना है.. मैं यही कहूँगी कि पैर में बहुत दर्द हो रहा है तो फिर मुझे कल स्कूल भी नहीं जाना पड़ेगा।" रुद्राक्षी अपने मन में यही सोच कर मुस्कुरा रही थी, "ही ही ही रुद्राक्षी तू तो बहुत इंटेलिजेंट है।" उसने अपने मन ही मन कहा।

    यामिनी जी ने उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, "कोई नहीं, ठीक हो जाएगा। और कुछ चाहिए हो तो मुझे बेझिझक कह देना... आखिर में भी तो तरंग की तरह ही तुम्हारी भी माँ हूँ ना।"

    रुद्राक्षी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और कहा, "जी, माँ, आप तो बहुत प्यारी हैं।"

    यामिनी जी ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा चलो, अब तुम आराम करो और तरंग, तुम ध्यान रखना कि बहू को ज्यादा तंग मत करना।"

    तरंग ने कहा, "अरे माँ... हम नहीं बल्कि आपकी बहू हमें तंग करती है।"

    यामिनी जी ने हंसते हुए कहा, "अच्छा, अच्छा! ठीक है, अब मैं चलती हूँ। बहू, अगर पैर में ज्यादा दर्द हो तो मुझे बताना, ठीक है?"

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी, माँ।" यामिनी जी कमरे से बाहर चली गईं, और रुद्राक्षी ने तरंग की ओर देखा।

    तरंग ने कहा, "बस माँ के सामने इतनी भोली-भाली बन जाती हो आप। जैसे इस दुनिया में आपके जितना भोला कोई हो ही नहीं।"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए जवाब दिया, "क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या झूठ बोल रही थी?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे, सब समझता हूँ! आपकी सारी चालाकियाँ मालूम हैं हमें। पैर में दर्द का बहाना बना रही हो ताकि स्कूल न जाना पड़े, है न?"

    रुद्राक्षी ने नकली गुस्से से कहा, "तुम्हें क्या लगता है? मैं बहाने बनाती हूँ?"

    तरंग ने शरारती अंदाज में कहा, "बिल्कुल! और इस बात में तो कोई शक भी नहीं है!"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में तकिया उठाया और तरंग की तरफ फेंका, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में ऐसा सोचने की?"

    तरंग ने झुकते हुए तकिया पकड़ लिया और कहा, "अरे, हमने ऐसा कुछ भी नहीं कहा। सबूत चाहिए तो माँ को बुला लेता हूँ!"

    रुद्राक्षी ने मुँह फुलाते हुए कहा, "तुम हमेशा से मुझ पर शक करते हो। अब देखो, मैंने कुछ नहीं कहा। तुम ही झूठे हो!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे बाबा, मान लिया! लेकिन सच में, इतनी भोली सूरत बनाकर मासूमियत दिखाने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से कहा, "तुम मुझे समझ ही नहीं सकते। ठीक है, अब बात मत करो मुझसे!"

    तरंग ने मजाक करते हुए कहा, "अरे वाह, अब नाराज भी हो गईं महारानी जी!"

    रुद्राक्षी ने उसकी ओर पीठ कर ली और कहा, "हाँ, मैं नाराज हूँ, और अब मुझसे बात मत करना!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए उसके करीब जाते हुए कहा, "अच्छा तो फिर ठीक है। अब हमें आपके लिए आइसक्रीम तो नहीं लानी पड़ेगी।"

    रुद्राक्षी ने उसे घूरते हुए कहा, "नहीं, वो तो तुम्हें लानी ही पड़ेगी।"

    तरंग ने शरारती अंदाज में कहा, "अरे! नाराज होकर भी आइसक्रीम चाहिए? क्या बात है, महारानी जी, आपका गुस्सा भी कितना स्वादिष्ट होता है!"

    रुद्राक्षी ने और भी ज्यादा घूरते हुए कहा, "देखो, ज्यादा मत बोलो! गुस्सा और बढ़ जाएगा, और फिर आइसक्रीम के दो डिब्बे लाने पड़ेंगे!"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे वाह! गुस्सा भी और मांग भी? ये तो बड़ी गलत बात है।"

    रुद्राक्षी ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "तो फिर क्या हुआ? मैं तो वैसे भी बहुत प्यारी हूँ और प्यारे लोगों की डिमांड पूरी करनी पड़ती है।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, हाँ, आप तो बहुत ही खास हैं। और वैसे भी हम आपके लिए कुछ भी कर सकते हैं।"

    रुद्राक्षी ने शरारत भरे अंदाज में कहा, "कुछ भी? तो ठीक है, अभी जाकर आइसक्रीम लाओ!"

    तरंग ने सिर पकड़ते हुए कहा, "अरे यार, इतनी सर्दी में कौन आइसक्रीम लाने जाए? और फिर आपने ही तो कहा था कि पैर में दर्द है, तो आइसक्रीम का क्या करोगी?"

    रुद्राक्षी ने कहा, "जाओ जाओ जल्दी जाओ... मेरे पेट में चूहे पकड़म-पकड़ाई खेल रहे हैं.."

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा, ठीक है! आप बस इंतज़ार कीजिए, हम अभी किचन से आइसक्रीम लेकर आते हैं। लेकिन ये याद रखना कि ठंड में आइसक्रीम खाने के बाद अगर आपकी तबियत खराब हो गई तो मत कहना कि मैंने नहीं बताया।"

    रुद्राक्षी ने आँखें घुमाते हुए कहा, "अरे बाबा, ठीक है, ठीक है। अब ज्यादा ज्ञान मत दो और जल्दी आओ।"

    तरंग किचन की तरफ बढ़ा और किचन में घुसते ही बड़बड़ाने लगा, "ये रानी जी का तो कुछ अलग ही नियम है। ठंड में आइसक्रीम खानी है और खुद पैर में दर्द का बहाना बनाना है।"

    तभी तरंग को अचानक याद आया कि आइसक्रीम फ्रिज में नहीं है। उसने चारों तरफ देखा और फ्रिज के नीचे झुक कर देखा कि कोई और पैकेट रखा है या नहीं। तभी बुआ जी किचन में आ गईं।

    बुआ जी ने पूछा, "अरे तरंग, तुम क्या ढूंढ रहे हो यहाँ?"

    तरंग ने थोड़ा सकपकाते हुए कहा, "बुआ जी, वो आइसक्रीम ढूंढ रहा था।"

    बुआ जी ने हंसते हुए कहा, "अरे, ये सर्दी में आइसक्रीम कौन खाता है! ठीक है, देख लो फ्रिज के ऊपरी रैक में होना चाहिए।"

    तरंग ने फ्रिज के ऊपरी रैक को खंगाल कर देखा और आखिरकार उसे एक आइसक्रीम का पैकेट मिला। उसने राहत की साँस ली और बुआ जी को धन्यवाद कहकर वहाँ से भागा।

    जब तरंग आइसक्रीम लेकर वापस कमरे में आया, तो रुद्राक्षी ने देखा कि तरंग के हाथ में आइसक्रीम है। वह खुश होकर बोली, "वाह! आखिरकार तुम जीत कर लौटे हो।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ महारानी जी, आपकी जिद के आगे हमारी हर कोशिश नाकाम रही। लो, ये आइसक्रीम।"

    रुद्राक्षी ने आइसक्रीम लेकर जल्दी से खाने लगी। लेकिन जैसे ही उसने पहला चम्मच खाया, उसने ठंड से काँपते हुए कहा, "अरे, ये तो सच में बहुत ठंडी है!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अब पता चला सर्दी में आइसक्रीम खाने का असली मज़ा!"

    रुद्राक्षी ने घूरते हुए कहा, "ठीक है, बहुत मज़ाक हो गया! अब तुम भी आइसक्रीम खाओ।"

    तरंग ने कहा, "अरे, नहीं! हमने तो पहले ही कहा था कि सर्दी में आइसक्रीम नहीं खानी चाहिए।"

    रुद्राक्षी ने शरारती मुस्कान के साथ आइसक्रीम का एक चम्मच तरंग की ओर बढ़ाते हुए कहा, "खा लो नहीं तो मैं फिर से नाराज़ हो जाऊँगी!"

    तरंग ने उसकी ओर देखते हुए हँसते हुए कहा, "ठीक है, महारानी जी, आप जो हुक्म करें।" और उसने आइसक्रीम का चम्मच खा लिया।

    रुद्राक्षी ने हँसते हुए कहा, "देखा, कभी-कभी मेरी बात भी मान लिया करो।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "जी हाँ, आपकी हर बात सर-आँखों पर महारानी जी!"

    रुद्राक्षी खिलखिलाकर हँस पड़ी।

  • 15. विवाह - Chapter 15

    Words: 1219

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात का समय था और रुद्राक्षी अपने बिस्तर पर बार-बार करवटें बदल रही थी, पर उसे नींद नहीं आ रही थी। कमरे में जलती हुई लाइट, तरंग की स्टडी टेबल पर चमक रही थी, यही वजह थी। तरंग अपनी किताबों में डूबा हुआ था; उसे रुद्राक्षी की बेचैनी का जरा भी अंदाजा नहीं था।

    रुद्राक्षी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "तुम लाइट कब बंद करोगे? नींद नहीं आ रही है मुझे।"

    तरंग ने अपनी किताबों से नज़रें हटाए बिना जवाब दिया, "बस थोड़ी देर और। हमें पढ़ाई करनी है। मेरे फाइनल एग्ज़ाम हैं एक हफ़्ते बाद।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा, "इतनी रात तक कौन पढ़ाई करता है? पढ़ाई का तो बहाना है, तुम जानबूझकर मुझे सोने नहीं दे रहे।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे, आप तो खुद ही दिन भर सोती रहती हो। फिर अभी क्यों नहीं सो पा रही?"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में तकिया खींचकर अपने चेहरे पर रख लिया और बड़बड़ाया, "तुम्हें मेरी परवाह ही नहीं है। ठीक है, पढ़ते रहो।"

    तरंग ने उसकी ओर देखे बिना कहा, "अरे बाबा, इतनी नाराज़ क्यों हो रही हो? सुबह जल्दी उठकर स्कूल नहीं जाना क्या?"

    रुद्राक्षी ने तकिया हटाते हुए कहा, "नहीं, नहीं जाना! और तुम्हारी वजह से अगर मैं बीमार हो गई तो समझ लेना।"

    तरंग ने उसकी इस धमकी पर हँसते हुए कहा, "अच्छा! तो अब लाइट से भी बीमार पड़ने का नया बहाना मिल गया है!"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "तुम मुझे बहानेबाज़ मत बोलो!"

    तरंग ने कहा, "महारानी जी, बस थोड़ी देर जग लीजिए... थोड़ी देर बाद लाइट बंद कर रहा हूँ।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बात पर और चिढ़ते हुए कहा, "थोड़ी देर, थोड़ी देर, बस यही बोलते रहते हो! अगर तुम सच में लाइट बंद नहीं करोगे, तो मैं कुछ कर बैठूंगी!"

    तरंग ने शरारती अंदाज़ में कहा, "अरे, अब आप और क्या करोगी? मुझसे ज़्यादा कौन जानता है आपकी सारी हरकतें।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़कर कहा, "अच्छा! तुम मुझसे पंगा ले रहे हो? ठीक है, देखती हूँ तुम्हारी कितनी पढ़ाई होती है।"

    यह कहते हुए रुद्राक्षी ने जोर से अपना तकिया उठाया और तरंग की स्टडी टेबल पर फेंक दिया। उसकी किताबें और पेन सब इधर-उधर बिखर गए।

    तरंग ने हैरान होते हुए कहा, "अरे! ये क्या कर दिया आपने? मतलब आप मोच की वजह से चल नहीं सकती हो, लेकिन ये तकिए से आक्रमण करना बहुत घातक है..."

    रुद्राक्षी ने फिर से तकिया उठाया और कहा, "ठीक है, ये लो फिर! और एक तकिया!" उसने दूसरा तकिया भी तरंग की ओर फेंक दिया, जो सीधा उसके चेहरे पर लगा।

    तरंग ने तकिया पकड़ते हुए कहा, "अरे! अब तो आप हद ही कर रही हो। रुको, अब बताता हूँ आपको!"

    तरंग उठकर उसके पास आया और उसका हाथ पकड़ लिया। "इतनी शैतानियाँ क्यों करती हो?" उसने हँसते हुए पूछा।

    रुद्राक्षी ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि मुझे तुम्हें तंग करने में मज़ा आता है! और वैसे भी, तुम्हारी पढ़ाई का टाइम अब ख़त्म। अब तुम भी सोओगे!"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है, महारानी जी। हम भी सोते हैं, लेकिन एक शर्त पर— हमें सिर्फ़ 10 मिनट पढ़ने दीजिए, उसके बाद हम लाइट ऑफ़ कर देंगे?"

    रुद्राक्षी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर गुस्से में ठिठककर कहा, "नहीं! अब बहुत हो गया। अगर तुमने लाइट बंद नहीं की तो मैं यह पानी का जग तुम्हारे ऊपर गिरा दूँगी।"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "अरे वाह, महारानी जी अब आक्रमण की योजना बना रही हैं!"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए पानी का जग उठाया और चेतावनी दी, "मज़ाक मत करो! तुम जानते हो, मैं कर सकती हूँ!"

    तरंग ने उसकी चुनौती को देखते हुए शांत स्वर में कहा, "अच्छा! आप सच में पानी गिराओगी?"

    रुद्राक्षी ने सिर हिलाया, "हाँ, गिरा दूँगी!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "ठीक है, हम देखना चाहते हैं।"

    रुद्राक्षी ने एक सेकंड भी नहीं सोचा और झट से जग का पानी तरंग के ऊपर उड़ेल दिया। तरंग अचानक चौंक गया और पानी से भीगते हुए बोला, "अरे! आपने सच में कर दिया?"

    रुद्राक्षी हँसते हुए बोली, "मैंने कहा था न कि मैं करूँगी!"

    तरंग ने अपने भीगे बालों को झटका और मुस्कुराते हुए कहा, "अब आपने युद्ध की शुरुआत कर दी है, महारानी जी। अब मेरी बारी है!"

    तरंग उठकर अपने बिस्तर की ओर गया, जहाँ उसकी पानी की बोतल पड़ी थी। उसने बोतल उठाई और शरारती मुस्कान के साथ रुद्राक्षी की ओर बढ़ने लगा।

    रुद्राक्षी ने घबराते हुए कहा, "तुम यह क्या करने वाले हो? ठहरो!"

    तरंग ने मज़े लेते हुए कहा, "अब कोई रुकने वाला नहीं है। तुमने शुरुआत की है, अब अंजाम भी देख लो।"

    रुद्राक्षी ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसका पैर फिसल गया, और वह सीधे तरंग की बाहों में जा गिरी। दोनों एक पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखे। तरंग ने हँसते हुए कहा, "अभी भी वक़्त है, सॉरी बोल दो।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "मैं सॉरी नहीं बोलूँगी!"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, फिर भुगतो! हम लाइट भी नहीं बंद करने वाले।"

    कहकर तरंग वापस अपने स्टडी टेबल पर बैठ गया।

    रुद्राक्षी करवट बदलते हुए फिर से बड़बड़ाया, "हे भगवान! इस इंसान को समझ में ही नहीं आता कि मैं सोने की कोशिश कर रही हूँ।"

    तरंग ने उसकी आवाज़ सुनी, लेकिन अनसुनी करते हुए पढ़ाई में मग्न रहा। रुद्राक्षी ने गहरी साँस लेते हुए फिर से कोशिश की और कुछ देर बाद आखिरकार हार मान ली। वह उठकर बैठ गई और जोर से बोली, "तरंग!"

    तरंग ने सिर उठाया और बोला, "क्या हुआ अब?"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से कहा, "तुम लाइट कब बंद करोगे? मुझे सोना है।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "थोड़ा सा और पढ़ने दो, फिर बंद कर दूँगा।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से अपनी चादर खींचते हुए कहा, "अभी बंद करो! मुझे अभी नींद चाहिए।"

    तरंग ने उसकी हालत देखकर कहा, "अरे! ठीक है, थोड़ी देर और सब्र कर लो, फिर बंद कर दूँगा।"

    रुद्राक्षी ने तंग आकर कहा, "ठीक है, अब तुम देखो मैं क्या करती हूँ!" उसने जोर से अपने बिस्तर पर चढ़कर कूदना शुरू कर दिया।

    तरंग ने अपनी किताबें बचाते हुए कहा, "अरे! यह क्या कर रही हो? सब कुछ गिर जाएगा!"

    रुद्राक्षी ने कूदते-कूदते कहा, "तो बंद करो लाइट! वरना मैं और भी जोर से कूदूँगी!"

    तरंग ने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, महारानी जी, हम बंद कर देते हैं। बस यह स्टडी लैम्प रहने दो।"

    रुद्राक्षी ने अपनी मर्ज़ी से कहा, "नहीं! पूरी लाइट बंद करो, नहीं तो मेरा आतंक जारी रहेगा!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "ओह, अब आतंक मचाने का प्लान है?"

    रुद्राक्षी ने सीना चौड़ा करते हुए कहा, "बिल्कुल! अब देखो, अगर लाइट बंद नहीं हुई तो मैं तुम्हारी किताबें खिड़की से बाहर फेंक दूँगी।"

    तरंग ने झूठी गंभीरता से कहा, "अरे, महारानी जी को कौन रोक सकता है! लेकिन ध्यान रहे, अगर तुमने ऐसा किया, तो फिर मैं भी चुप नहीं बैठूँगा।"

    रुद्राक्षी ने उसकी तरफ़ शरारत भरी मुस्कान फेंकी और कहा, "देखते हैं तुम क्या कर सकते हो!"

    तरंग ने उसकी इस चुनौती को स्वीकारते हुए उठकर लाइट की ओर कदम बढ़ाए और फिर अचानक बंद कर दी। कमरे में अंधेरा छा गया।

    रुद्राक्षी ने विजयी भाव से कहा, "देखा! आख़िर में तुमने हार मान ली।"

    तरंग ने धीरे से पास आते हुए कहा, "हमने आपको शांत करने के लिए यह सब किया है, नहीं तो आप ऐसे ही आतंकवादी जैसे आतंक मचाती रहती।"

    .......

  • 16. विवाह - Chapter 16

    Words: 1299

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुबह का सूरज धीरे-धीरे अपनी किरणें फैलाने लगा। कमरे की खिड़की से हल्की-हल्की धूप अंदर आ रही थी। रुद्राक्षी गहरी नींद में थी और उसके चेहरे पर एक प्यारी मुस्कान फैली हुई थी, मानो उसने रात की जंग जीत ली हो।

    तरंग पहले ही जाग चुका था और अपने बिस्तर पर बैठा रुद्राक्षी की तरफ देख रहा था। वह सोच रहा था कि कैसे यह छोटी-सी बच्ची उसकी जिंदगी में इतने सारे रंग भर देती है। उसे रुद्राक्षी की मासूमियत पर हंसी आ रही थी, जब वह रात में अपनी हरकतों से उसे परेशान कर रही थी।

    तरंग ने मन ही मन सोचा, "अब इन्हें उठाना भी होगा, नहीं तो स्कूल के लिए लेट हो जाएगी।"

    उसने धीरे-से रुद्राक्षी के माथे पर हल्की थपकी दी और कहा, "रुद्राक्षी, उठ जाओ। स्कूल नहीं जाना क्या?"

    रुद्राक्षी ने अपने कंबल को और कस कर पकड़ा और कहा, "नहीं...मुझे नींद आ रही है, और स्कूल नहीं जाना।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, उठो, महारानी जी! नहीं तो आज फिर से तुम्हारी टीचर से शिकायत आ जाएगी।"

    रुद्राक्षी ने आँखें बंद रखते हुए कहा, "शिकायत तो तुमसे होनी चाहिए, मुझे सोने नहीं दिया रात भर।"

    तरंग ने चुटकी लेते हुए कहा, "अरे, आप ही तो कल रात शेरनी बनी हुई थीं। मैंने तो लाइट बंद भी कर दी थी। अब बस सुबह-सुबह बहाने मत बनाओ।"

    रुद्राक्षी ने आँखें खोलकर चिढ़ते हुए कहा, "तुम्हें हर चीज़ में बहाना ही नजर आता है।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, चलो उठ जाओ। हम आपको तैयार होने में मदद करेंगे, ताकि आज आप समय पर स्कूल पहुँच सको।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बात पर हैरानी से कहा, "तुम? तुम मेरी मदद करोगे?"

    तरंग ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "हाँ, क्यों नहीं? आखिर आप हमारी छोटी शैतान बीवी हो, और हमें आपका ख्याल रखना है।"

    रुद्राक्षी ने अपने छोटे से शातिर दिमाग को चलाते हुए कहा, "अच्छा, अच्छा! लेकिन मेरे पैर में मोच है, मैं भला स्कूल कैसे जाऊँगी।"

    तरंग ने कहा, "अरे, आपकी मोच अभी भी सही नहीं हुई क्या? रात भर तो आप इधर-उधर दौड़-भाग कर रही थीं, और अब सुबह होते ही पैर में मोच याद आ गई?"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखें मटकाते हुए कहा, "हाँ, क्योंकि तुमने मुझे तंग किया था, इसलिए मैं भूल गई थी। पर अब बहुत दर्द हो रहा है।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे वाह! सुबह-सुबह बहानेबाजी की दुकान खोल ली है आपने।"

    रुद्राक्षी ने चिढ़कर कहा, "बहानेबाजी की दुकान नहीं, सच्चाई की बात कर रही हूँ। और मुझे सच में दर्द हो रहा है पैर में।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपकी मोच अभी भी सही नहीं हुई, अब तो लगता है कि डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा।"

    रुद्राक्षी ने तुरंत पलटकर कहा, "नहीं! डॉक्टर को मत बुलाना। वो इंजेक्शन लगा देगा।"

    तरंग ने मजाक करते हुए कहा, "तो फिर आप स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाओ, वरना डॉक्टर साहब जरूर आएंगे।"

    रुद्राक्षी ने अपनी आँखों को चौड़ा करते हुए कहा, "तुम डराते बहुत हो, पता है?"

    तरंग ने उसकी बात पर हंसते हुए कहा, "और आप भी नाटक बहुत करती हो, पता है?"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा, "मैं नाटक नहीं करती, तुम्हें तो हर बात में बस मजाक ही सूझता है!"

    तरंग ने कहा, "वो सब छोड़ो, पहले जाके फ्रेश हो लीजिए।"

    रुद्राक्षी बेमन से उठी और धीरे-धीरे बाथरूम की तरफ बढ़ी। जैसे ही वह अंदर गई, तरंग ने अपनी मुस्कान को दबाते हुए कहा, "अब देखते हैं महारानी जी कितनी जल्दी तैयार होती हैं।"

    कुछ देर बाद, रुद्राक्षी तैयार होकर बाहर आई, लेकिन अभी भी उसकी चाल में थोड़ी लंगड़ाहट थी। वह अपने पैर को हल्के-हल्के घसीटते हुए आई और बोली, "देखो, मोच की वजह से कितना दर्द हो रहा है।"

    तरंग ने उसकी चाल पर ध्यान देते हुए मजाक में कहा, "अरे! आपको तो अभी भी चोट का नाटक याद है।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बात पर गुस्से में आँखें तरेरते हुए कहा, "नाटक नहीं है, सच में दर्द है। अगर तुम हँसना बंद करोगे तो मदद करो मुझे।"

    तरंग ने कहा, "अच्छा, ठीक है। आओ, हम आपकी मदद करते हैं।"

    यह कहते हुए तरंग ने रुद्राक्षी का हाथ पकड़ा और उसे धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतारने लगा। दोनों के बीच एक प्यारी खामोशी थी, जिसमें केवल कदमों की आहट और सुबह की हल्की चहचहाहट सुनाई दे रही थी।

    तरंग ने सोचा, "ये छोटी-सी बच्ची, अपनी हरकतों से चाहे जितना परेशान करे, लेकिन इसके बिना मेरी जिंदगी सच में अधूरी है।"

    सीढ़ियों से तरंग और रुद्राक्षी उतर गए। जैसे ही उन्होंने सामने हॉल में देखा, दोनों की ही आँखें चौड़ी हो गईं।

    सामने गंगाधर जी और कुछ पुलिस वाले बातचीत कर रहे थे।

    तरंग और रुद्राक्षी ने एक-दूसरे की ओर देखा और चुपचाप हॉल में चले आए। गंगाधर जी और पुलिस वाले बातचीत में व्यस्त थे, और उनके चेहरों पर गंभीरता और चिंता का अक्स साफ दिखाई दे रहा था।

    रुद्राक्षी ने धीरे से तरंग के कान में कहा, "क्या हो रहा है? ये पुलिस वाले यहाँ क्यों हैं?"

    तरंग ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, "पता नहीं, लेकिन लगता है कुछ गंभीर बात है।"

    पुलिस वाले की नज़र जैसे ही रुद्राक्षी पर पड़ी, उसने कहा, "ओह ठाकुर साहब...तो यही है वो लड़की जिसका आपने अपने बेटे से ब्याह करवा दिया..."

    गंगाधर जी ने जब तरंग और रुद्राक्षी को देखा तो उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, "आप दोनों यहाँ क्या कर रहे हैं? यह सुबह का समय है, स्कूल जाना नहीं है क्या?"

    तरंग ने थोड़ी घबराहट के साथ कहा, "जी, पापा जी, हम...हम वो...."

    पुलिस वाले ने कहा, "ठाकुर साहब...बच्चों पर मत बरसो...आप जानते हैं ठाकुर साहब कि आपका बेटा अभी सिर्फ सोलह साल का है और यह नन्ही लड़की बारह साल की...फिर भी आपने...ठाकुर होने पर बड़ा गर्व होता है ना...फिर यह बाल विवाह क्यों?"

    गंगाधर जी ने गुस्से में आकर कहा, "क्या बकवास कर रहे हैं आप लोग? मेरे बेटे और रुद्राक्षी के बीच का रिश्ता हमारी पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार है। आप लोग हमारे परिवार के मामलों में दखल देने वाले कौन होते हैं?"

    पुलिस वाला, जो सख्त दिख रहा था, ने उत्तर दिया, "हम सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, ठाकुर साहब। यह शादी कानून के खिलाफ है। आपके बेटे की उम्र अभी शादी करने के लिए कानूनी रूप से सही नहीं है और रुद्राक्षी तो बहुत छोटी है।"

    गंगाधर जी ने चिढ़ते हुए कहा, "कानून की बात छोड़िए। यह हमारे परिवार का मामला है और हम इसे खुद संभाल सकते हैं।"

    पुलिस वाले ने रुद्राक्षी और तरंग की ओर देखा और कहा, "यह आपके परिवार का मामला नहीं है, ठाकुर साहब।"

    गंगाधर जी ने कहा, "हमारे परिवार के मामले से आप दूर ही रहें तो बेहतर होगा, इंस्पेक्टर यादव।"

    इसी बीच, यामिनी जी ने तरंग और रुद्राक्षी को स्कूल भेज दिया यह कहकर कि अनुज तुम्हारी बुआ के साथ गया है...वह नहीं आएगा आज स्कूल...तुम दोनों जाओ और ध्यान रखना अपना।

    इंस्पेक्टर यादव ने गंभीरता से कहा, "ठाकुर साहब, हमें आपके परिवार के मामलों में दखल देना अच्छा नहीं लगता, लेकिन यह मामला कानूनी है।"

    गंगाधर जी ने गुस्से में कहा, "हमें भी कोई शौक नहीं है अपने बच्चों का जानबूझकर बाल विवाह करवाना...इसमें हमारी भी कोई मजबूरी थी...और वह मजबूरी हम आपको नहीं बताना चाहते, इंस्पेक्टर यादव।"

    इंस्पेक्टर यादव ने गंगाधर जी की बात सुनी और कहा, "ठाकुर साहब, हम आपकी मजबूरी को समझते हैं, लेकिन कानून की भी अपनी जगह है। यह मामला बच्चों के अधिकार और उनकी सुरक्षा से जुड़ा है। हम इस बात को लेकर कोई समझौता नहीं कर सकते।"

    गंगाधर जी ने गहरी सांस ली और कहा, "आप क्या चाहते हैं, इंस्पेक्टर? रही बात बच्चों के अधिकारों की तो रुद्राक्षी हमारी बहू ही नहीं बेटी है...और उसमें और तरंग में हमने कभी भी कोई अंतर नहीं किया।"

    इंस्पेक्टर यादव ने ठंडे स्वर में कहा, "अगर आगे कोई अंतर हुआ तो?"

  • 17. विवाह - Chapter 17

    Words: 1251

    Estimated Reading Time: 8 min

    गंगाधर ने कहा, “तो हम खुद को कानून के हवाले कर देंगे।”


    इंस्पेक्टर यादव की मुस्कान में एक रहस्यमय सी चमक थी, लेकिन उनकी गंभीरता कम नहीं हुई थी। उन्होंने गंगाधर जी की ओर देखा और कहा, “ठाकुर साहब, आपके परिवार के प्रति आपकी वफादारी और स्नेह को देखकर लगता है कि आप सच में अपनी बातों पर अडिग हैं। लेकिन हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।”


    गंगाधर जी ने सिर झुका लिया; उनके चेहरे पर संघर्ष और चिंता के भाव थे। उन्होंने धीरे से कहा, “हम जानते हैं कि यह सब कितनी बड़ी मुश्किल है। लेकिन हमें अपने पारंपरिक मान्यताओं की भी रक्षा करनी है।”


    इंस्पेक्टर यादव ने सिर झुकाते हुए कहा, “हम आपकी स्थिति समझते हैं, लेकिन कानून की भी अपनी जगह है। हमारे पास एक विकल्प है, जो आपको इस संकट से निकाल सकता है।”


    गंगाधर जी ने उत्सुकता से पूछा, “वह विकल्प क्या है?”


    इंस्पेक्टर यादव ने गंभीरता से कहा, “आपको अपनी इस शादी को कानूनी रूप से मान्यता देने के लिए एक आवेदन देना होगा, जिसमें यह साबित करना होगा कि इस विवाह में सभी कानूनों का पालन किया गया है। साथ ही, हमें आपकी पारंपरिक मान्यताओं की जानकारी भी दर्ज करनी होगी।”


    गंगाधर जी ने सोचा और फिर धीरे से कहा, “अगर ऐसा करना पड़ता है तो हम तैयार हैं। लेकिन यह सब जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर और चर्चा न हो।”


    इंस्पेक्टर यादव ने गंगाधर जी की ओर एक दयालु नज़र से देखा और कहा, “ठाकुर साहब, हम आपकी स्थिति की गंभीरता को समझते हैं। लेकिन हमें सभी कानूनी आवश्यकताओं का पालन करना होगा। कृपया हमें इस प्रक्रिया को पूरा करने में मदद करें।”


    गंगाधर जी ने सिर झुका लिया और कहा, “हम समझ गए हैं। हम आपकी मदद करेंगे और इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करेंगे।”


    इंस्पेक्टर यादव ने संतुष्ट होकर कहा, “धन्यवाद, ठाकुर साहब। हमें आपकी सहायता का इंतजार रहेगा। हम उम्मीद करते हैं कि यह मामला जल्द सुलझ जाएगा।”


    इस पर गंगाधर जी ने कहा, “आपका आभार। हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे।”


    इंस्पेक्टर यादव और उनके साथी पुलिस वाले वहाँ से चले गए।


    गंगाधर जी की बातें सुनने के बाद, यामिनी जी के चेहरे पर चिंता और तनाव की लकीरें साफ दिख रही थीं। उन्होंने गंगाधर जी को देखते हुए गहरी साँस ली और चुपचाप खड़ी रहीं। गंगाधर जी ने यामिनी जी की ओर देखा; उनके चेहरे पर एक गंभीर भाव था। फिर, उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “हम हॉस्पिटल जा रहे हैं।”


    यामिनी जी ने कहा, “हमें भी आना है...वो सिर्फ़ आपके दोस्त की ही पत्नी नहीं है बल्कि हम भी उन्हें अपनी बहन जैसा ही मानते हैं।”


    गंगाधर जी ने सिर हिलाया और कहा, “ठीक है, फिर चलिए आप भी।”


    वहीं, स्कूल में तरंग और रुद्राक्षी अपनी-अपनी कक्षा में थे। तरंग अपनी बारहवीं की कक्षा में बैठा था, और रुद्राक्षी आठवीं की कक्षा में।


    थोड़ी देर बाद, गंगाधर जी और यामिनी जी दोनों कार से उतरे और हॉस्पिटल में पहुँचे।


    तभी अचानक गंगाधर जी के कदम रुक गए।


    यामिनी जी ने कहा, “क्या हुआ? आप रुक क्यों गए?”


    गंगाधर जी ने कहा, “हमने यह पहले क्यों नहीं सोचा?”


    यामिनी जी ने कहा, “क्या?”


    गंगाधर जी ने कहा, “तरंग और रुद्राक्षी के विवाह के बारे में सिर्फ़ और सिर्फ़ रुद्राक्षी की माँ देवकी जी और हमारे ठाकुर परिवार को ही पता है...फिर उस पुलिस तक यह बात कैसे पहुँची?”


    यामिनी जी ने कहा, “अरे आप फ़ालतू ही चिंता कर रहे हैं...पुलिस है वो...तो पुलिस वालों को तो खबर हो ही जाती है।”


    गंगाधर जी ने सिर हिला दिया और हॉस्पिटल के अंदर चले गए। वहाँ जाकर वे सीधे उस कमरे में गए जहाँ देवकी जी एडमिट थीं।


    गंगाधर जी और यामिनी जी हॉस्पिटल के अंदर तेज़ी से चल रहे थे। गंगाधर जी के मन में कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन उन्होंने किसी को भी अपनी चिंता नहीं दिखाई। वे सीधे उस कमरे में पहुँचे जहाँ देवकी जी एडमिट थीं।


    कमरे के बाहर डॉक्टर और नर्सें भी थीं, लेकिन गंगाधर जी और यामिनी जी ने धैर्यपूर्वक इंतज़ार किया। गंगाधर जी ने कमरे की ओर इशारा किया और यामिनी जी ने दरवाज़ा खोला। देवकी जी बिस्तर पर लेटी हुई थीं; उनकी आँखों में चिंता और थकावट के संकेत थे।


    गंगाधर जी ने धीरे से कहा, “देवकी जी, कैसे हैं आप?”


    देवकी जी ने हँसते हुए कहा, “मैं ठीक हूँ, गंगाधर जी।”


    यामिनी जी ने देवकी जी की ओर देखा और कहा, “आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बताइए। हम यहाँ आपकी मदद के लिए हैं।”


    देवकी जी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “आप लोगों को यहाँ देखकर अच्छा लगा। बस, थोड़ी चिंता हो रही है। रुद्राक्षी...मेरी बच्ची...वो ठीक तो है?”


    गंगाधर जी ने गंभीरता से कहा, “हाँ, वो ठीक है।”


    देवकी जी ने चिंतित स्वर में कहा, “यामिनी... मेरे पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं है इस संसार में...मेरी बच्ची रुद्राक्षी...उसका ख्याल रखना...”


    यामिनी जी ने कहा, “अरे ऐसा क्यों सोचती हैं आप? आप कहीं नहीं जा रही हैं...आप हम सब को छोड़कर कहीं नहीं जा सकतीं और यह बात भी आप अपने मन से निकाल दीजिए।”


    देवकी जी की आँखों में आँसू थे; उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “यामिनी, यह केवल चिंता की बात नहीं है। मेरे स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए, मुझे लगता है कि मुझे रुद्राक्षी के भविष्य की फ़िक्र करनी चाहिए। मेरे बाद, उसे कोई सही मार्गदर्शन देने वाला होना चाहिए।”


    गंगाधर जी ने देवकी जी की ओर ध्यानपूर्वक देखा और कहा, “देवकी जी, हम पूरी कोशिश करेंगे कि रुद्राक्षी की देखभाल अच्छी तरह से हो। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि उसकी ज़िंदगी में कोई भी कमी न रहे।”


    देवकी जी ने गहरी साँस ली और कहा, “मुझे यकीन है कि आप लोग मेरी बेटी का ध्यान रखेंगे। लेकिन कृपया ध्यान रखें कि उसकी शिक्षा, उसकी खुशियाँ, और उसके जीवन के अन्य पहलुओं को प्राथमिकता दें।”


    यामिनी जी ने आश्वस्त करते हुए कहा, “देवकी जी, आप निश्चिंत रहिए। हम रुद्राक्षी का पूरा ख्याल रखेंगे। हम उसे एक खुशहाल और सुरक्षित जीवन देने की पूरी कोशिश करेंगे।”


    गंगाधर जी ने देवकी जी के हाथ को धीरे से पकड़ा और कहा, “हम आपकी बातों को समझते हैं और इस बारे में गंभीर हैं। आपको बस अब आराम करने की ज़रूरत है।”


    देवकी जी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “धन्यवाद। आपकी बातों से मुझे थोड़ी राहत मिली है।”


    इस दौरान, डॉक्टर ने कमरे में प्रवेश किया और कहा, “देवकी जी, आपको ज़्यादा थकावट से बचने के लिए आराम करना होगा। आपकी स्थिति ठीक है, लेकिन हमें नियमित रूप से आपके स्वास्थ्य की निगरानी करनी होगी।”


    डॉक्टर की बात सुनकर देवकी जी ने सिर झुका लिया और कहा, “ठीक है, डॉक्टर साहब। मैं आराम करूँगी।”


    गंगाधर जी और यामिनी जी ने देवकी जी से विदा ली और हॉस्पिटल से बाहर निकल आए। गंगाधर जी ने कहा, “हमें अब रुद्राक्षी के बारे में सोचना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि उसकी सुरक्षा और शिक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए।”


    यामिनी जी ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, “हम एक योजना बनाते हैं और तुरंत कार्यवाही शुरू करते हैं। रुद्राक्षी का भविष्य हमारे हाथ में है, और हमें उसकी चिंता करनी होगी।”


    गंगाधर जी और यामिनी जी ने हॉस्पिटल से बाहर आकर रुद्राक्षी की देखभाल और भविष्य के लिए उचित कदम उठाने का संकल्प लिया। वे दोनों पूरी तरह से प्रतिबद्ध थे कि वे देवकी जी की इच्छाओं को पूरा करेंगे और रुद्राक्षी की ज़िंदगी को सुगम और खुशहाल बनाएँगे।


    लेकिन कोई था जिसने गंगाधर जी और देवकी जी की बातचीत सुन ली थी।

    क्रमशः...

  • 18. विवाह - Chapter 18

    Words: 1001

    Estimated Reading Time: 7 min

    गंगाधर जी और यामिनी जी की बातचीत समाप्त होने के बाद, अस्पताल के एक कोने में छिपे एक अज्ञात व्यक्ति ने सब कुछ सुन लिया था। वह व्यक्ति, जो काले कपड़ों में ढँका हुआ था और जिसके चेहरे पर मास्क था, बेताबी से अस्पताल की दीवारों के पीछे से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढ रहा था।

    गंगाधर जी और यामिनी जी जब अस्पताल से बाहर निकले, वह अज्ञात व्यक्ति तेज़ी से उनके पीछे चल पड़ा। वह जानता था कि अब उसके पास एक सुनहरा मौका है। देवकी जी की चिंता और गंगाधर जी की जिम्मेदारी का पता चलने के बाद, उसने अपनी योजना को और भी ठोस बनाने का निर्णय लिया।

    अस्पताल के बाहर, गंगाधर जी और यामिनी जी कार में बैठ गए और वापस जाने लगे।

    उधर, तरंग परेशान सा बैठा हुआ सोच रहा था कि आज अनुज भी नहीं है, किससे अपने मन का हाल बताऊँ।

    फिर वह क्लास से बाहर आया। सोचते-सोचते जा ही रहा था कि उसने एक आवाज़ सुनी।

    "एएएईईईईईई तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ!"

    यह आवाज़, झुंड में खड़े बच्चों की तरफ़ से आ रही थी और तरंग भली-भाँति जानता था कि यह आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि उसकी शैतान बीवी की है।

    तरंग ने उस शैतान सी आवाज़ को पहचान लिया और झुंड की ओर बढ़ते हुए देखा कि रुद्राक्षी एक लड़के को पीट रही थी। लड़का जमीन पर गिरा हुआ था और रुद्राक्षी उसके ऊपर खड़ी थी, उसकी आँखों में गुस्से और उत्तेजना के संकेत थे। बाकी बच्चे उस दृश्य को देखते हुए चुपचाप खड़े थे; कुछ लोग हँस रहे थे, और कुछ परेशान नज़र आ रहे थे।

    तरंग ने तुरंत रुद्राक्षी के पास जाकर उसे दूर करने की कोशिश की। वह झुंड के बीच में घुसते हुए चिल्लाया,
    "रुद्राक्षी!!!!"

    रुद्राक्षी ने तरंग की ओर देखा और गुस्से में जवाब दिया,
    "यह लड़का मुझे परेशान कर रहा था।"

    लड़का दर्द से कराहते हुए बोला,
    "उसने मेरी किताबें फेंक दी थीं तरंग।"

    तरंग ने घूर कर उस लड़के को देखा तो वह लड़का एकदम चुप हो गया।

    तरंग ने रुद्राक्षी का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ ले गया।

    रुद्राक्षी ने कहा,
    "मुझे बहुत ही गुस्सा आ रहा है..."

    तरंग ने बड़े प्यार से कहा,
    "फिर बताओ कि आपका गुस्सा शांत कैसे होगा?"

    रुद्राक्षी ने झट से जवाब दिया,
    "मेरा गुस्सा तो खाना खाने से ही शांत होता है।"

    तरंग ने मुस्कराते हुए कहा,
    "देखो, छुट्टी भी हो गई है। आप जाइए, जल्दी से अपना बैग लेकर आ जाइए, तब तक हम आपका वेट कर रहे हैं।"

    रुद्राक्षी जल्दी से अपनी क्लास की ओर भागी और जल्दी से बैग लेकर आ गई। उसने देखा कि तरंग उसी का वेट कर रहा है और ड्राइवर काका भी आ ही गए हैं।

    तरंग और रुद्राक्षी दोनों ही कार में बैठ गए।

    तरंग ने ड्राइवर काका से कहा,
    "काका, आप हमें रेस्टोरेंट तक छोड़ दीजिए..."

    ड्राइवर ने सिर हिला दिया और कार रेस्टोरेंट की तरफ़ मोड़ दी।

    रेस्टोरेंट पहुँचते ही, दोनों ने एक टेबल पर बैठकर ऑर्डर दिया। जैसे ही ऑर्डर आया, रुद्राक्षी खाने पर टूट पड़ी, जैसे वह बरसों से भूखी हो।

    तरंग ने उसे देखा और फिर अपना सिर हिला दिया।

    "यह लड़की सच में बहुत अजीब है। गुस्सा कम करने के लिए इसे खाना खाने की ज़रूरत पड़ती है।"

    तरंग ने रुद्राक्षी को खाते हुए देखा और हँसते हुए कहा,
    "लगता है, आपका गुस्सा अब शांत हो रहा है।"

    रुद्राक्षी ने चबाते हुए जवाब दिया,
    "हाँ, अब ठीक लग रहा है। लेकिन अब भी यह लड़का मेरे गुस्से का कारण है।"

    तरंग ने मुस्कराते हुए कहा,
    "ऐसा मत कहो। अब आप शांत हो, तो हमें उसके बारे में और नहीं सोचना चाहिए।"

    रुद्राक्षी ने एक बाइट लेते हुए कहा,
    "सही कहा तुमने।"

    तरंग ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें कुछ करने लगा। रुद्राक्षी ने जब देखा कि तरंग फ़ोन में व्यस्त है तो उसने कहा,
    "ये ये, तुम फ़ोन में क्या कर रहे हो?"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "कुछ नहीं, लेकिन यहाँ एक मूर्ख प्राणी ज़रूर है जो हमें डिस्टर्ब कर रहा है।"

    रुद्राक्षी ने भौंहें चढ़ाकर कहा,
    "क्या कहा? मूर्ख प्राणी? तुमने मुझे मूर्ख कहा?"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा,
    "नहीं, हमने आपको प्राणी कहा।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में आकर उसका मोबाइल खींच लिया और कहा,
    "अब तुमसे बात नहीं करूँगी। खुद ही देखो अपना मूर्ख प्राणी!"

    तरंग ने उसे देखकर मुस्कराते हुए कहा,
    "अरे, गुस्सा क्यों हो रही हो? एक बात बताओ, आप गुस्से में इतनी प्यारी क्यों लगती हो?"

    रुद्राक्षी ने चिढ़ते हुए कहा,
    "प्यारी? गुस्से में कौन प्यारा लगता है?"

    तरंग ने शरारत से कहा,
    "आप! और आपका यह गुस्सा।"

    रुद्राक्षी ने उसे घूरते हुए कहा,
    "छेड़ोगे तो मैं तुम्हारे सारे कपड़े छत पर सुखाने के लिए डाल दूँगी, और अगर बारिश आ गई तो भी नहीं उतारूँगी!"

    तरंग ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा,
    "वाह, धमकी भी कितनी प्यारी है! लेकिन अगर मैंने आपको तंग करना बंद कर दिया, तो आपका दिन तो कितना बोरिंग हो जाएगा, है न?"

    रुद्राक्षी ने अपने हाथों को कमर पर रखते हुए कहा,
    "बिल्कुल भी नहीं! मेरा दिन तो शांति से कटेगा।"

    तरंग ने उसे चिढ़ाते हुए कहा,
    "शांति? आपके साथ और शांति? जैसे कि शेर और बकरी साथ में बैठकर चाय पिएंगे!"

    रुद्राक्षी ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा,
    "तुमने मुझे बकरी कहा?"

    तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया,
    "नहीं, मैंने शेर कहा... क्योंकि आप जब भी गुस्सा होती हो, तो आप दहाड़ती हो जैसे जंगल की रानी!"

    रुद्राक्षी उसकी बात सुनकर हँसी रोकते हुए बोली,
    "बस करो, तुम्हारी बातें सुनकर लगता है तुम कॉमेडियन बन जाओगे।"

    तरंग ने मुस्कराते हुए कहा,
    "कॉमेडियन तो आपने बना दिया है, अब थोड़ा हँस भी दो ताकि शो की टीआरपी बढ़े।"

    रुद्राक्षी ने मुस्कराते हुए कहा,
    "ठीक है, आज के लिए माफ़ किया। लेकिन अगली बार ऐसा किया, तो मैं सच में तुम्हारा मोबाइल तोड़ दूँगी!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा,
    "अरे, आपसे पंगा लेने की हिम्मत किसकी है?"


    ...

  • 19. विवाह - Chapter 19

    Words: 1749

    Estimated Reading Time: 11 min

    रेस्टोरेंट में हंसी-मज़ाक और नोंक-झोंक के बाद, तरंग और रुद्राक्षी ने घर की ओर रुख किया। दोनों कार में बैठे और ड्राइवर काका ने उन्हें घर ले गया।

    रास्ते में तरंग ने रुद्राक्षी की ओर देखा, जो खिड़की से बाहर देख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जो उसके बेहतर मूड का संकेत दे रही थी। तरंग ने राहत की साँस ली और चुपचाप मुस्कुराने लगा।

    घर पहुँचते ही रुद्राक्षी ने राहत की साँस ली। "आखिरकार, घर आ ही गए। अब मुझे थोड़ी नींद लेनी है। बहुत थक गई हूँ!"

    तरंग ने हँसते हुए कहा, "हाँ, क्यों नहीं। आपको तो हर वक़्त बस नींद ही आती है।"


    जैसे ही दोनों घर के अंदर दाखिल हुए, उन्होंने देखा कि यामिनी जी और गंगाधर जी पहले से ही लॉबी में बैठे थे, कुछ गंभीर बातें कर रहे थे। दोनों के चेहरों पर चिंता की लकीरें थीं।

    जैसे ही तरंग और रुद्राक्षी घर के अंदर दाखिल हुए, यामिनी जी ने उनकी ओर देखा और कहा, "रुद्राक्षी, तुम अपने कमरे में जाओ। तरंग, इधर आओ।"

    रुद्राक्षी ने एक पल के लिए दोनों की ओर देखा और फिर बिना कुछ कहे अपने कमरे की ओर बढ़ गई। उसकी चाल में अब भी वही चंचलता थी, लेकिन चेहरे पर हल्की सी थकान झलक रही थी।

    तरंग यामिनी जी और गंगाधर जी के पास पहुँचा। "क्या बात है, मां?" उसने धीमी आवाज़ में पूछा।

    यामिनी जी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं, बेटा। लेकिन पहले तुम्हें ये समझना होगा कि घर की ज़िम्मेदारियाँ भी तुम्हारे कंधों पर हैं।"

    तरंग ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी मां, मैं समझता हूँ।"

    गंगाधर जी ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, "आज जो भी हुआ, उसके बारे में हम बाद में बात करेंगे। अभी तुम जाकर रुद्राक्षी के साथ रहो। वो अकेली है, और उसे तुम्हारी ज़रूरत होगी।"

    तरंग ने सहमति में सिर हिलाया और अपने कमरे की ओर बढ़ गया। जब वह कमरे के दरवाज़े के पास पहुँचा, तो उसने दरवाज़ा खटखटाया और अंदर कदम रखा।

    तरंग ने दरवाज़े को धीरे से खोला और देखा कि रुद्राक्षी स्टूल पर चढ़ी हुई थी और ऊपर से कुछ पुराने खिलौने निकालने की कोशिश कर रही थी। उसके चेहरे पर ध्यान का भाव था, जैसे वह कुछ खास ढूँढ रही हो। तरंग ने उसे टोकना चाहा, पर रुक गया, क्योंकि वह देखना चाहता था कि वह क्या कर रही है।

    अचानक, स्टूल नीचे से खिसक गया, और रुद्राक्षी का संतुलन बिगड़ने लगा। इससे पहले कि वह गिरती, तरंग ने तेज़ी से कदम बढ़ाए और उसे अपनी बाहों में थाम लिया। दोनों का संतुलन बिगड़ा, और वे दोनों सीधे जाकर बिस्तर पर गिर पड़े।

    तरंग ने देखा कि रुद्राक्षी उसकी छाती पर गिरी हुई है, और उसकी आँखें बंद थीं, जैसे वह अब भी उस पल के डर में हो। तरंग की धड़कनें एक पल को थम सी गईं। इतनी करीब से रुद्राक्षी का मासूम चेहरा देख कर वह मानो कुछ क्षण के लिए सब भूल गया।

    कुछ पल के बाद, रुद्राक्षी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उसने महसूस किया कि वह तरंग के ऊपर है। उसकी आँखों में हल्की सी शरारत और हिचकिचाहट के भाव थे, जबकि तरंग अब भी उसकी खूबसूरती में खोया हुआ था।

    तरंग की नज़रें अब भी रुद्राक्षी के चेहरे पर टिकी हुई थीं। उसकी आँखों में एक अजीब सा सम्मोहन था जो उसे अपनी ओर खींच रहा था। रुद्राक्षी की शरारती मुस्कान और हल्की हिचकिचाहट ने उसके चेहरे को और भी खूबसूरत बना दिया था।

    रुद्राक्षी ने कहा, "अरे, इतनी देर तक ऐसे ही देखते रहोगे क्या? या कुछ कहने का भी इरादा है?"

    तरंग को अचानक एहसास हुआ कि वह कितनी देर से उसे देख रहा था। उसे थोड़ी शर्म आ गई और उसने नज़रें झुका लीं। उसने धीरे से कहा, "नहीं... वो... बस यूँ ही..."

    रुद्राक्षी ने कहा, "क्या यूँ ही?"

    तरंग ने जवाब दिया, "आप कितनी हल्की हो...दिन भर तो खाना ही ठूंसती हो लेकिन वज़न तो बिल्कुल सूखे पत्तों जैसा।"

    तरंग की इस बात पर रुद्राक्षी का चेहरा तमतमा गया। उसने हल्के गुस्से से तरंग की छाती पर एक छोटा सा मुक्का मारा और बोली, "अरे! क्या कहा तुमने? ठूंसती हूँ मैं खाना?"

    तरंग ने उसकी मासूमियत भरी झल्लाहट को देखते हुए हँसते हुए कहा, "अरे बाबा, मज़ाक कर रहा था। वैसे भी, आपका गुस्सा देख कर तो लगता है जैसे किसी बच्चे ने गलती से टॉफी छीन ली हो।"

    रुद्राक्षी ने आँखें छोटी कर लीं और झुंझलाते हुए बोली, "तुम्हारे लिए सब मज़ाक है न?"

    तरंग ने उसे और चिढ़ाने की कोशिश करते हुए कहा, "वैसे, जो भी कहो, आपकी ये नाराज़गी और भी प्यारी लगती है।"

    रुद्राक्षी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, लेकिन वह उसे छिपाने की कोशिश करते हुए बोली, "प्यारी... हाँ, हाँ, और कुछ कहोगे? बस मुझे मना रहे हो ताकि मैं गुस्सा न करूँ।"

    तरंग ने शरारती अंदाज में कहा, "अरे नहीं, आपकी हर बात में एक अलग ही मासूमियत है।"

    रुद्राक्षी ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से मुस्कुराई। उसने कहा, "अच्छा... अगर मैं इतनी मासूम हूँ, तो तुम इतने शैतान क्यों हो?"

    तरंग ने उसके सवाल का जवाब देने की बजाय एक गहरी साँस ली और धीरे से बोला, "क्योंकि आपकी मासूमियत ही मेरे शैतान को जगाती है।"

    रुद्राक्षी की आँखें बड़ी हो गईं, और उसने उसकी छाती पर फिर से हल्के से मुक्का मारा। "अरे! वाह, क्या डायलॉग मारा है।"

    तरंग ने कहा, "अरे बस बस...आपके पति हैं हम और आप हमें मुक्के मारे जा रही हैं....और वैसे भी अब उठिए हमारे ऊपर से..."

    रुद्राक्षी ने तरंग की बात सुनकर और भी ज़्यादा चिढ़ते हुए कहा, "हैं? तो क्या अब मैं तुमसे पूछ कर मारूँ? और वैसे भी, तुम ही ने मुझे गिरने से बचाया था। अब भुगतो।"

    तरंग ने हँसते हुए जवाब दिया, "अच्छा, मतलब बचाकर मैंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली? वाह!"

    रुद्राक्षी की शरारत भरी मुस्कान और चिढ़ाने का मौका हाथ से जाने न देने का अंदाज देखने लायक था। वो हँसते हुए बोली, "अरे! अभी तो मज़ा आ रहा है। क्यों उठ जाऊँ? और वैसे भी, तुमसे ज़्यादा मज़ेदार कुशन और कौन हो सकता है?"

    तरंग ने उसे उठाने की कोशिश करते हुए कहा, "अरे बाबा! कुशन की तरह मैं बैठने के लिए नहीं हूँ, समझी?"

    रुद्राक्षी ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "अच्छा! तो तुम क्या हो, एक शाही सोफ़े? जिस पर सिर्फ़ महारानी बैठेगी?"

    तरंग ने अपनी मुस्कान दबाते हुए कहा, "अब देखो महारानी, अगर आप नहीं उठेंगी तो फिर मैं आपको उठा लूँगा।"

    रुद्राक्षी ने आँखें गोल-गोल घुमाते हुए कहा, "अरे वाह! कोई नई बात बताओ। ये तो हर हीरो हीरोइन को कहता है। लेकिन मैं इतनी आसानी से मानने वाली नहीं हूँ।"

    तरंग ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "अच्छा, तो आप मानेंगी नहीं? चलिए फिर देखते हैं, आपकी ये ज़िद कितनी देर चलती है।"

    इतना कह कर तरंग ने अचानक रुद्राक्षी की कमर पर अपनी उंगलियाँ घुमानी शुरू कर दीं और वह तुरंत हँसने लगी, "हाहाहा... रुक जाओ! मैं गुदगुदी नहीं सह सकती।"

    तरंग ने शरारती अंदाज में कहा, "अरे वाह! तो हमारी महारानी को गुदगुदी भी होती है!"

    रुद्राक्षी खुद को छुड़ाते हुए बोली, "तरंग, प्लीज़, रुक जाओ! नहीं तो मैं जोर से चिल्ला दूँगी।"

    तरंग ने उसे छोड़ते हुए कहा, "ठीक है, महारानी। लेकिन याद रखना, इस शैतान से टक्कर लेना इतना आसान नहीं है।"

    रुद्राक्षी ने अपनी हँसी रोकते हुए कहा, "ठीक है, ठीक है। तुम जीते, मैं हारी। अब खुश?"

    तरंग ने नकली गर्व के साथ सिर हिलाते हुए कहा, "बहुत खुश! वैसे भी, हम सब जानते हैं कि राजा हमेशा जीतता है।"

    रुद्राक्षी ने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा, "अरे वाह! कितना बड़ा घमंड है आपको। राजा... राजा की तरह तो तुम्हारी अक़ल भी छोटी है।"

    तरंग ने उसकी ओर देखकर पूछा, "और रानी जी की अक़ल कितनी बड़ी है?"

    रुद्राक्षी ने चुटकी लेते हुए कहा, "इतनी बड़ी कि वह अपने शैतान राजा को दिन में चार बार हरा सकती है।"

    तरंग ने कहा, "हाँ अब हमारी शैतान बीवी है ही इतनी मासूम है ना।"

    रुद्राक्षी ने चुटकी लेते हुए कहा, "हाँ, हाँ! अब जरा और तारीफ़ करो, शायद दिल पसीज जाए और मैं उठ जाऊँ।"

    तरंग ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, "अरे आपकी तारीफ़ तो एक किताब में लिखने लायक है। 'रुद्राक्षी: मासूमियत की मूरत और शरारत की शहज़ादी!'"

    रुद्राक्षी ने उसकी छाती पर उंगली रखते हुए कहा, "अरे बस बस, अब ज़्यादा मीठा मत बनो, वरना मुझे डायबिटीज़ हो जाएगी।"

    तरंग ने ठहाका लगाते हुए कहा, "अरे, अब तो डरना पड़ेगा। आपकी सेहत का सवाल है!"

    रुद्राक्षी ने उसकी मज़ाकिया बातों का जवाब देने की बजाय उसकी नाक पर हल्की सी चुटकी काट ली। "अब चुप रहो तुम। बहुत हो गया!"

    तरंग ने आहिस्ता से उसकी कलाई पकड़ते हुए कहा, "अरे, आपने ये क्या किया? मेरी प्यारी नाक को चोट पहुँचाई! अब आपको माफ़ी माँगनी पड़ेगी।"

    रुद्राक्षी ने आँखें बड़ी करते हुए नाटकीय अंदाज में कहा, "अरे वाह, माफ़ी भी हम माँगें? उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!"

    तरंग ने गंभीरता से कहा, "हाँ जी, बिल्कुल। अब आप मेरी नाक की माफ़ी नहीं मांगेंगी, तो कैसे चलेगा?"

    रुद्राक्षी ने उसके चेहरे को देखते हुए मुस्कुराई और फिर अचानक से उसकी नाक पर हल्की सी थपकी मार दी, "ये लो माफ़ी। अब खुश?"

    तरंग ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा, "अरे, ऐसे नहीं मानूँगा मैं। एक प्यारी सी स्माइल दे दो, वरना मैं भी नाराज़ हो जाऊँगा।"

    रुद्राक्षी ने मुस्कान दबाते हुए कहा, "अच्छा, अब स्माइल का भी रेट लग गया है। चलो ठीक है, ये लो स्माइल," और उसने एक प्यारी सी मुस्कान दी।

    तरंग ने उसका हाथ पकड़कर उसकी आँखों में देखा और कहा, "आपकी इस मुस्कान की तो कोई कीमत नहीं लगा सकता।"

    रुद्राक्षी ने फिर से शरारती अंदाज में कहा, "अरे वाह, कितने बड़े शायर निकले तुम! अब तो लगता है, तुम्हें अपने ही कवि सम्मेलन में बुलाना पड़ेगा।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "आप जो कहेंगी, वो मंज़ूर है। बस आप हँसती रहें, मुस्कुराती रहें। यही इनाम है मेरे लिए।"

    रुद्राक्षी ने धीरे-धीरे उसके सीने से उठते हुए कहा, "चलो ठीक है, आज के लिए तुम्हारी कविताएँ सुनकर माफ़ किया। लेकिन अगली बार संभल कर रहना!"

    तरंग ने मज़ाक में कहा, "और अगर मैंने नहीं संभाला तो?"

    रुद्राक्षी ने उसकी बात को अनसुना करते हुए बिस्तर पर आराम से लेट गई और आँखें बंद कर लीं। तरंग ने उसके चेहरे की ओर एक नज़र डाली, उसकी मासूमियत में खो सा गया। कुछ पल तक वह बस उसे देखता रहा, जैसे उसकी शांति और प्यारी सी मुस्कान में ही सब कुछ छिपा हो।

    क्रमशः...

  • 20. विवाह - Chapter 20

    Words: 1291

    Estimated Reading Time: 8 min

    ऐसे ही दिन बीतते गए और एक दिन, तरंग अपने स्कूल की फ़ेयरवेल पार्टी के लिए तैयार हो रहा था। उसने एक अच्छा सूट पहना था और उसकी आँखों में एक विशेष चमक थी, जो उसके इस खास दिन की खुशी को दर्शा रही थी।

    रुद्राक्षी ने उसे देखकर कहा, "तुम कितने अच्छे लग रहे हो।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "आज हमारी फ़ेयरवेल पार्टी है, इसलिए।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "वाह! मतलब फिर मुझे स्कूल के लिए होमवर्क कराने वाला कोई नहीं होगा। अब तो एक नई 'फ्री' जिंदगी शुरू हो रही है।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, होमवर्क की बात भी न उठाओ। लेकिन सच में, आज की शाम खास है।"

    रुद्राक्षी बेड पर धड़ाम से बैठ गई और तरंग को देखने लगी।

    तरंग ने कहा, "अब आप हमें ऐसे क्यों देख रही हैं?"

    रुद्राक्षी ने कुछ नहीं कहा और तरंग को देखती रही।

    तरंग ने जब देखा कि रुद्राक्षी उसे ही देखे जा रही है, तो तरंग ने कहा, "अरे अगर हम इतने ही हैंडसम लग रहे हैं तो थोड़ी और तारीफ कर दीजिए...हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा कि हमारी शैतान बीवी ने हमारी तारीफ की है।"

    रुद्राक्षी ने कुछ सोचकर झट से कहा, "तुम फेयरवेल पार्टी में जा रहे हो है ना...तो फिर वहाँ तो सिर्फ तुम्हारे क्लासमेट्स होंगे ना ....क्या मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकती।"

    तरंग ने कहा, "हाँ, वहाँ सिर्फ हमारे क्लासमेट्स ही होंगे...और आप नहीं आ सकती क्योंकि आप अभी आठवीं कक्षा में ही हो...और वहाँ पर सिर्फ बारहवीं या ग्यारहवीं कक्षा के ही स्टूडेंट्स होंगे।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "अरे नहीं ...आज तुम अच्छे वाले हैंडसम लग रहे हो और अगर कोई लड़की मेरे हैंडसम पति को देख लेगी तो ...तो ..."

    कहकर रुद्राक्षी चुप हो गई।

    तरंग ने ध्यान से रुद्राक्षी के चेहरे को देखकर कहा, "तो ...तो क्या...आगे भी कहो..."

    रुद्राक्षी ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "तो... तो मैं यह नहीं चाहती कि कोई और तुम्हें देखे और तुम्हारी तारीफ करे।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, तो इसका मतलब है कि आपको जलन हो रही है?"

    रुद्राक्षी ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "जलन? नहीं...जलन नहीं। मैं तो पत्नी हूँ ना तुम्हारी...अगर कोई लड़की तुम्हें देखकर तुम्हारी तारीफ करेगी, तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "ओह, तो आपको हमारी तारीफ करने वाली लड़कियों की चिंता हो रही है?"

    रुद्राक्षी ने हल्के गुस्से में कहा, "अरे, मैं चिंता नहीं कर रही, मैं तो बस यह कहना चाहती हूँ कि तुम आज के दिन मेरे लिए खास हो। और अगर कोई और तुम्हें देखेगी, तो मुझे तो यह बर्दाश्त नहीं होगा।"

    तरंग ने चिढ़ाते हुए कहा, "अरे, तो फिर क्या करूँ? क्या पार्टी में जाकर सबको बोल दूँ कि मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ और मेरी पत्नी को चिंता हो रही है?"

    रुद्राक्षी ने हाँफते हुए कहा, "अरे, यह मजाक का वक्त नहीं है! मुझे सच में चिंता हो रही है। तुम्हारे लिए कोई भी और तारीफ करने लगे, यह मुझे बिलकुल पसंद नहीं आएगा।"

    तरंग ने चिढ़ाते हुए कहा, "अच्छा, तो आप चिंता कर रही हैं कि कोई और मेरी तारीफ कर देगी? मुझे लगता है कि आप मुझसे जल रही हैं।"

    रुद्राक्षी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "जलना? हाँ, अगर तुम यह सोच रहे हो कि मैं जल रही हूँ, तो शायद तुम सही सोच रहे हो। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम ऐसे ही हंसकर इसे हल्के में ले लो। मैं चाहती हूँ कि आज की शाम सिर्फ मेरी हो, और कोई दूसरी लड़की तुम्हारे पास न आए।"

    तरंग ने मुस्कुराते हुए कहा, "ओह, तो यह है बात। मैं समझ रहा हूँ कि आप चाहती हैं कि मैं पार्टी में सिर्फ आपके लिए खास रहूँ।"

    रुद्राक्षी ने सिर झुकाकर कहा, "हाँ, यही बात है। मुझे नहीं चाहिए कि कोई और तुम्हें देखकर तारीफ करे या तुम्हारे आस-पास फटे।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, तो फिर पार्टी में जाकर मैं क्या करूँ? क्या मैं सबको बता दूँ कि मेरी पत्नी को जलन हो रही है?"

    रुद्राक्षी ने गुस्से में कहा, "तुम मुझसे मजाक मत करो।"

    तरंग ने चिढ़ाते हुए कहा, "हाँ हाँ मैं समझ रहा हूँ आपकी प्रॉब्लम...आज मैं भी हैंडसम लग रहा हूँ और आज तो क्लास की लड़कियाँ भी सुन्दर लग रही होंगी...और तो और वो साड़ी पहनकर आएंगी.... हाशश ..."

    रुद्राक्षी ने तरंग को घूरकर देखा और फिर अगले ही पल उसकी आँखों से आँसू बह निकले।

    रुद्राक्षी के आँसू देखते ही तरंग की हँसी का ठहाका रुक गया। वह तुरंत रुद्राक्षी के पास गया और उसकी आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा, "अरे, यह क्या कर रही हो? मैंने तो मजाक किया था।"

    रुद्राक्षी ने चुपचाप आँसू पोंछते हुए कहा, "मुझे नहीं चाहिए कि तुम किसी और से तारीफ सुनो। मैं बस चाहती हूँ कि तुम मेरे लिए खास रहो।"

    तरंग ने उसे अपने गले में समेटते हुए कहा, "मैं सच में मजाक कर रहा था। देखो, आप मेरी जिंदगी का सबसे खास हिस्सा हो, और मैं चाहूँगा कि हर पल आपके साथ बिताऊँ।"

    रुद्राक्षी ने हल्के से उसके गले में लगे उसे और कसकर पकड़ा और कहा, "तुम्हारी बातें तो मुझे हँसा सकती हैं, लेकिन जब तुम दूसरों की तारीफ की बात करते हो, तो मुझे सच में बुरा लगता है।"

    तरंग ने उसे हल्के से धक्का देते हुए कहा, "देखो, मैं वादा करता हूँ कि पार्टी में सबको यही बताऊँगा कि मैं शादीशुदा हूँ और मेरी पत्नी को मेरे लिए खास बनाने की चिंता है।"

    रुद्राक्षी ने सिर उठाकर तरंग को देखा और कहा, "सच में? तुम ऐसा करोगे?"

    तरंग ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, सच में। अब चलो, मुस्कुराओ।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "नहीं.. मैं गुस्सा हूँ अभी भी...."

    तरंग ने कहा, "अरे सॉरी महारानी जी।"

    रुद्राक्षी ने कहा, "नहीं ऐसे नहीं। कान पकड़ कर उठक बैठक लगाओ..."

    तरंग ने कहा, "अरे पर..."

    रुद्राक्षी ने कहा, "लगाओ मतलब लगाओ..."

    तरंग ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, महारानी जी। आप ही के आदेश हैं।"

    फिर तरंग ने झुककर कान पकड़ते हुए उठक-बैठक करना शुरू कर दिया।

    "एक, दो, तीन..." तरंग ने धीरे-धीरे गिनती गिनते हुए कहा, "आपकी मर्जी के मुताबिक, उठक-बैठक लगाना शुरू कर दिया है।"

    रुद्राक्षी ने तंज भरे अंदाज में कहा, "मुझे हँसी नहीं आ रही, तुम सीरियस हो जाओ।"

    तरंग ने मजाकिया स्वर में कहा, "सॉरी, सॉरी। अब मैं पूरी मेहनत से कर रहा हूँ।"

    फिर वह कान पकड़कर तेजी से उठक-बैठक करने लगा। रुद्राक्षी ने उसे देखकर हँसते हुए कहा, "अरे, अब तुम काफी मेहनत कर रहे हो। लेकिन मैं तुम्हारी मेहनत से ज्यादा खुश तब होऊँगी जब तुम पार्टी में सबको यह बताओगे कि तुम्हारी पत्नी को चिंता है कि कोई और तुम्हारी तारीफ न करे।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "अरे, आपके आदेश का पालन हो रहा है, लेकिन ध्यान रखना कि यह सब मजाक में कर रहा हूँ।"

    रुद्राक्षी ने गुस्से से कहा, "मजाक नहीं, सीरियसली! जब तक तुम अपनी गलती नहीं मानोगे, मैं तुम्हें आराम नहीं करने दूंगी।"

    तरंग ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, महारानी जी। जब तक आप खुश नहीं होतीं, मैं यही करूँगा।"

    रुद्राक्षी ने एक पल को चुप रहकर तरंग की मेहनत को देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "अब ठीक है। तुम अब अपने गुनाह की सजा पूरी कर चुके हो।"

    तरंग ने राहत की साँस लेते हुए कहा, "धन्यवाद, महारानी जी। मुझे उम्मीद है कि अब आप मुझसे खुश हैं।"

    रुद्राक्षी ने सिर झुकाकर कहा, "हाँ, अब ठीक है। लेकिन याद रखना, आगे से ऐसा मजाक मत करना।"

    तरंग ने उसे गले लगाते हुए कहा, "ठीक है, मैंने सबक सीखा है।"

    रुद्राक्षी ने भी तरंग की बाहों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली।

    "अहम अहम...सॉरी मुझे तुम लोगों के रोमांस के बीच मैं नहीं आना चाहिए था।" दरवाजे के पास से आवाज आई।

    तरंग और रुद्राक्षी जल्दी से अलग हो गए।

    क्रमशः...