एक रहस्यमई महल जिसमें एक राजा जिसकी बारह पत्नियां और उस महल पर न जाने है एक अज्ञात श्राप जिसे खत्म करेगी "एक थी वोह"। आखिर कौन होगी उस अज्ञात श्राप को खत्म करेगी जानने के लिए पढ़िए एक थी वोह ओनली ऑन "storymania" पर
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ये उन दिनों की बात है जब ढूँढराब गढ़ के राजा सुमल राठौड़ ने अपनी नौवीं शादी की थी। उसके बाद वे अपनी नौवीं बहू को विदा कराकर अपने महल ला रहे थे।
अचानक उनके रथ के पास एक बूढ़ी किन्नर, जिसका शरीर मिट्टी और खून से सना हुआ था, दिखाई दी। उसे देखकर राजा सुमल ने अपने नौकरों से कहा, "इस किन्नर को नई रानी का बिछुआ उतारकर दे दो।"
जैसे ही किन्नर को बिछुआ दिया गया, उसके हाथ अचानक काले पड़ गए, और उसकी आँखों से काले आँसू बहने लगे। उस बूढ़ी किन्नर ने तीव्र स्वर में कहा, "तुम जो कर रहे हो, वह तुम्हारे लिए काल की कलंकनी है; वह तुम्हारे पुण्यों को पाप में बदल देगी और तुम्हारे पापों का अंत करेगी; वह तुम्हें जकड़ लेगी।"
इतने में राजा ने उसका धड़ अलग कर दिया और उसकी बात अधूरी रह गई।
राजा ने अपने दादा, पंजर राठौड़ से कहा, "काफी दिनों से किन्नर का रक्त नहीं पिया है और मांस भी नहीं खाया है। क्यों दादा जी? आज इच्छा पूरी की जाए।"
दादा ने कहा, "हमें उसकी जीभ का मांस खाना है; बाकी तुम्हें जो करना है, वह करो।"
राजा ने कहा, "तो आज रात यहीं रुकते हैं।"
जैसे ही उन्होंने स्थान तलाशकर वहाँ रुके, राजा ने अपनी नौकरानियों से कहा, "किन्नर को पकाया जाए।"
तभी अचानक काला धुआँ हुआ, जिससे सबकी आँखें कुछ देर के लिए कुछ देखने लायक नहीं रहीं। जब धुआँ साफ़ हुआ, तब सब हैरान रह गए क्योंकि वहाँ किन्नर की मात्र हड्डियाँ और उन हड्डियों पर कुछ मांस चिपका हुआ था। इसे देखकर राजा ने कहा, "अब हमें चलना चाहिए।" तभी राजा ने देखा कि दादा के पूरे वस्त्र खून से लथपथ थे। पर राजा ने कहा, "दादा, स्वाद कैसा था?"
दादा ने कहा, "अब हमें चलना चाहिए।"
जब राजा महल पहुँचने ही वाले थे, दादा ने कहा, "हमने किन्नर को नहीं खाया है।"
तब राजा ने कहा, "हमें सब पता है कि किन्नर को उसने खाया होगा।"
दादा ने कहा, "पर वह तो..."
तभी राजा ने कहा, "महल में हमारी रानियाँ नई बहू का इंतज़ार कर रही हैं।"
राजा और नई बहू के साथ महल पहुँचे। जैसे ही वे महल की दहलीज़ पर पहुँचे, वहाँ सभी आठ रानियाँ, राजा की माँ कुनरेवा देवी, राजा की तीन सौतली माँ और राजा की पाँच बहनें उनके स्वागत में खड़ी थीं। राजा की माँ जैसे ही नई बहू की आरती करने के लिए आगे आती हैं, तभी उसकी सास, यानी राजा की दादी मनका देवी और राजा के पिता सुखेर राठौड़ उसे रोककर कहते हैं, "तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी होगी। मन तो तुम्हारी हिम्मत को काटकर तुमसे अलग कर दे, और तो और, तुमने सोचा कैसे कि तुम आरती कर सकती हो?"
दादी मनका देवी कहती हैं, "इस घर में शुभ और अशुभ कार्य करने का केवल हक़ मेरा है, और किसी का नहीं।"
इतना कहते ही कुनरेवा कहती हैं, "रेवाला वो..."
वो इतने में राजा सुखेर, कुनरेवा से कहते हैं, "ज़्यादा जुबान मत चलाओ, वरना जुबान काटकर आपको ही जुबान खिलाएँगे।"
इतना कहते ही दादी ने कहा, "ठीक है। जब तक रेवाला नहीं आती, तब तक हम बहू का स्वागत करते हैं।"
दादी ने बहू की आरती की। जैसे ही दादी ने बहू से कहा, "इस चावल के कलश को अपने दाएँ पैर से गिराओ।"
तब अचानक उस कलश में से दीमक निकलने लगीं। तभी रेवाला वहाँ आती है और गुस्से में कहती है, "घोर अनर्थ हुआ! इस लड़की ने ना जाने कितने ही पाप किए होंगे। यह लड़की पूरे घर को दीमक की तरह नहीं खाएगी।"
यह बात कहकर रेवाला मुस्कराती है। तभी राजा साहब की पहली पत्नी, उरका देवी कहती हैं, "कि दीमक कैसे आईं?"
रेवाला कहती है, "वह तो तुम अपनी सौतली सास, सुकांता देवी से पूछो।"
तभी दादा कहते हैं, "नई बहू का गृहप्रवेश होगा कि नहीं?"
राजा सुमल के पिता, राजा सुखेर राठौड़ की पत्नियों के नाम: राजा सुमल की सगी माँ का नाम रानी कुनरेवा देवी, राजा सुखेर राठौड़ की दूसरी पत्नी रानी सुकांता देवी, तीसरी पत्नी रानी जता देवी, चौथी पत्नी रानी कनिसेगा देवी।
तभी रेवाला बहू का गृहप्रवेश करवाती है और कहती है, "अब बहू की बहु परीक्षा होगी। इससे पहले आप बहू की मुँह-दिखाई कर लीजिए।"
रेवाला के इतना कहने पर कुनरेवा देवी ताना मारते हुए कहती हैं, "तो आप ही कर लीजिए मुँह-दिखाई।"
तो रेवाला सभी से कहती है, "मुँह-दिखाई हो या रसोई में भोजन पकवाना हो, हमें उससे कोई मतलब नहीं है। हमें मतलब है बहू परीक्षा से, इसलिए मुँह-दिखाई जल्दी करो।"
मुँह-दिखाई के लिए जैसे ही दादी ने घूँघट उठाया और नई बहू को देखा, बोली, "सुंदर होना कोई गुणवान होने का प्रतीक नहीं होता, असली सुंदरता उसके मन और कर्म से होती है।"
और दादी ने उसे एक सोने का चमगादड़ दिया और कहा, "जिस प्रकार चमगादड़ खून चूसता है, उसी प्रकार यह तुम्हारे मन की कायरता को चूसेगा।"
तभी रेवाला कहती है, "मुँह-दिखाई हो गई, सभी ने चेहरा देख लिया। अब सभी अपने उपहार बाद में देंगे। बहू परीक्षा का समय हो गया।"
रेवाला नई बहू से उसका नाम पूछती है, तो वह कहती है, "मेरा नाम धरिता है।"
रेवाला कहती है, "तुम्हारी पहली परीक्षा है: इस महल के पंचमुखी कुंड में से एक हज़ार इक्कीस स्वर्ण कलश से जल भरकर इस कुएँ में करना है।"
रेवाला कहती है, "तुम इस परीक्षा में असफल हुईं तो तुम्हें एक सौ एक चमगादड़ पकड़कर उनके रक्त से मेरा अभिषेक करना होगा।"
इतना कहकर रेवाला जाती है। तभी दादा व्यंग्य कसते हुए कहते हैं, "तुम चमगादड़ के रक्त से अभिषेक कराने की बजाय उसे पी लेतीं तो बेहतर होता, चमगादड़ का खून व्यर्थ न जाता।"
और दादा मुस्कराते रहते हैं। तब रेवाला कहती है, "कौआ अगर अपने आप को गिद्ध समझे, तो कौआ के लिए यह एक पहेली है, जैसे आपके लिए।"
नई बहू धरिता अपनी परीक्षा शुरू करने से डरती नहीं है और मन में कहती है, "जो होना होगा, हो जाएगा।"
वह परीक्षा शुरू करती है और मात्र एक स्वर्ण कलश भरकर कुएँ में डालती है। तभी कोई उसे कुएँ में धक्का देता है और वह कुएँ में गिर जाती है। वह कुएँ से काफी आवाज़ देती है, पर कोई उसकी आवाज़ नहीं सुनता है और वह डूब जाती है। पर कोई कुएँ के ऊपर से उसे देखता रहता है। जब वह डूब जाती है, तो वह वहाँ एक सर्प को मारकर उस कुएँ के पास छोड़ जाता है।
वह किन्नर क्या कहना चाहती थी, जिसे राजा सुमल ने मार दिया? धरिता का पति क्या नरभक्षी है और उस किन्नर को किसने खाया? रेवाला कौन है? धरिता को कुएँ में धक्का किसने दिया?
जब धरिता कुएँ में डूब गई, तब राजा सुमल के दादा छत पर रक्त पी रहे थे।
जब सुबह हुई, रेवाला कुएँ के पास गई और देखा कि कुएँ का जलस्तर बढ़ा हुआ था। रेवाला बोली, "नई बहू ने परीक्षा सफल की।" जब राजा सुमल की सभी आठ रानियाँ वहाँ आईं—
(राजा सुमल की पत्नियों के नाम इस प्रकार हैं:-
पहली पत्नी - उरका देवी
दूसरी पत्नी - गुमान देवी
तीसरी पत्नी - मैना देवी
चौथी पत्नी - त्रिनैना देवी
पाँचवीं पत्नी - कांति देवी
छठी पत्नी - कनिषा देवी
सातवीं पत्नी - रूधारा देवी
आठवीं पत्नी - नेल्ला देवी
नौवीं पत्नी (नई बहू) - धरिता देवी)
तो उरका देवी बोली, "पहली परीक्षा किसने पूरी की है, वह तो रेवाला ही जाने...न जाने बहू कहीं कुंड के मगरमच्छों का शिकार न हो जाएँ।"
"तुम्हारे कहने का क्या अर्थ है?" रेवाला बोली।
उरका देवी हिचकिचाते हुए बोली, "कि...वोह...यहाँ नहीं तो कहाँ है?"
तभी रेवाला बोली, "कौन कहाँ है, वह मुझे पता है।" इतना कहकर रेवाला वहाँ से चली गई।
तभी राजा सुमल के पास नेल्ला देवी (आठवीं पत्नी) आई और बोली, "न जाने अब नई बहू का क्या होगा।"
"बातों के बतासे मत फोड़िए," राजा सुमल गुस्से में बोले, "जो कहना है, सीधे-सीधे कहो।"
इतने में रानी नेल्ला देवी गुस्से में बोली, "कुएँ के पास सर्प मरा पड़ा था और तो और रेवाला ने उसे देखा ही नहीं...रेवाला ने उसे मरवा दिया है।"
"किसको?" राजा सुमल बोले।
नेल्ला देवी बहुत धीमे स्वर में बोली, "नई बहू को।"
तभी राजा सुमल गुस्से में रानी नेल्ला देवी का हाथ पकड़कर बोले, "आज जो कहा, सो कहा। आगे से अपने दिमाग और जुबान दोनों को समझा लेना, वरना...जिस प्रकार नाखून बढ़ जाए तो उसे काटना ही पड़ता है...बाकी आप समझदार हैं।" इतना कहकर राजा सुमल वहाँ से चले गए और नेल्ला देवी राजा को गुस्से में देखती रही। और अपनी शक्ल आईने में देखकर बोली, "काल का पहरा न जाने कब किसको अपनी बाहों में जकड़ ले।"
इधर राजा की माँ, कुनरेवा देवी, अपनी सास माँ मनका देवी से बोली, "नई बहू की रसोई कब शुरू होगी?" दादी बोली, "जब रेवाला चाहे, समझी।"
इधर रेवाला बहू की दूसरी परीक्षा की तैयारी कर रही थी।
(पर कोई उस पर गिद्ध की तरह नज़र गड़ाए हुए था। आखिर कौन था वह...?)
इधर राजा सुमल अपने महल के पीछे विशालकाय बरगद के पेड़ के पीछे गए और वहाँ से अचानक गायब हो गए।
इधर राजा सुमल के पिता, सुखेर राठौड़, छत पर कबूतरों को दाना खिला रहे थे कि तभी उनका प्रिय तोता राभा वहाँ आया और सुखेर सिंह से कहने लगा, "सुमल खतरे में है, उसको जक..." इतने में ही तोते को किसी ने खंजर से काट डाला। यह सब देखकर राजा सुखेर को गुस्सा सातवें आसमान पर था और उन्होंने अपने सैनिकों से कहा, "राजा सुमल को जल्द से जल्द हमारे समक्ष लाया जाए।" और उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी सुकांता देवी से कहा, "हमारा और तुम्हारा प्रिय तोता राभा नहीं रहा, उसे किसी ने खंजर से मार डाला।"
"होनी को कोई टाल न सके और काल को कोई काट ना सके," रानी सुकांता बोली।
राजा और रानी के चेहरे पर दुःख की झलक थी। कुछ देर बाद राजा बोले, "इस महल के पीछे बरगद के पेड़ के पास जो आम और अमरूद का पेड़ है, के मध्य जो स्थान है वहाँ इसे दफना देते हैं क्योंकि उसे आम और अमरूद दोनों काफी पसंद थे, और वोह...अच्छा छोड़ो यह सब बात..."
यह सुनकर रानी सुकांता थोड़ी हिचकिचाई और लड़खड़ाते शब्दों के साथ बोली, "कि...कि...राजा जी, हम...हमको...वोह...जगह ठीक नहीं लगती। हम इसे महल के अंदर अ...अनार के पेड़ के नीचे दफना देते हैं। आखिर उसे अनार भी काफी पसंद थे...मतलब थे।"
रानी सुकांता थोड़ी भयभीत थी, पर क्यों?
इधर जब राजा सुखेर ने रानी सुकांता से कहा, "तुम्हारा दिमाग क्या पानी में डुबकी लगाने गया है? इस महल में मरे इंसान का मांस को वोह नहीं छोड़ते और उसको थोड़ी भनक लग गई तो इस तोते की हड्डियाँ भी शेष नहीं रहेंगी।"
रानी सुकांता रोते हुए और क्रुद्ध शब्दों में बोली, "आखिर वोह है कौन? हमने तो नाम ही सुना है...कौन है वोह...और वोह कौन होगी जो इस महल को मुक्त करेगी...सुमल की नौ बहुओं में से कौन होगी वोह...क्या सुमल को और विवाह करने पड़ेंगे...?" रानी सुकांता ने गुस्से में अपने प्रिय तोते राभा को अग्नि में भस्म कर दिया और बोली, "कच्ची मिट्टी के बर्तन जब तक पकते नहीं तब तक काम नहीं आते।"
(आखिर रानी ने ऐसा क्यों कहा?)
इधर राजा के सैनिकों ने जंगल और नगर, सभी संभव जगहों पर खोजा पर राजा का कुछ पता नहीं चला।
इधर राजा सुखेर सिंह की तीसरी पत्नी, जता देवी, ने राजा सुमल की पाँचवीं पत्नी, कांति देवी से कहा, "तुम आजाद होने वाली हो, यह विषफल लो...जो तुम्हें करना है वो करो, किसको मारना है, किसको मरवाना है यह तुम जानो..." तभी रानी कांति देवी बोली, "हम आपको मारेंगे सबसे पहले, समझी..." (यह बात कोई सुन रहा था चुपके से, पर कौन...?)
इधर रेवाला सतर्कता से जंगल में गई और जंगल में एक गुप्त गुफा में प्रवेश की।
(आखिर क्या रहस्य है रेवाला का...?)
इधर रानी सुकांता मन ही मन सुकून की साँस लेते हुए मन ही मन में सोचती रही, "काश राजा पंजर राठौड़ मर जाएँ..."
(आखिर क्यों ऐसा चाहती थी रानी सुकांता...?)
इधर नई बहू की किसी को चिंता नहीं थी। आखिर क्यों कोई उसके बारे में बात भी नहीं कर रहा था? सब राजा सुमल के लिए दुःखी थे...इधर राजा सुमल का कोई पता नहीं था।
इधर जब रेवाला आई तो उसका रूप एक भयंकर चुड़ैल के समान लग रहा था। वह महल में प्रवेश की और चिल्लाती हुई और क्रुद्ध स्वर में बोली, "वोह आ गई...वोह आ गई..."
सभी रेवाला की आवाज सुनकर महल के मुख्य द्वार पर आए। सभी उसे देखकर हैरान हो गए।
(आखिर क्यों हैरान हो गए सब?)
आखिर क्या राज है महल का और नई बहू कहाँ है? अगर वह मर गई तो उसकी लाश कहाँ है? क्या वह जिंदा है या मुर्दा...?
आखिर रेवाला किसके बारे में कह रही थी कि वो आ गई?
रानी जता देवी ने रानी कांति देवी को विषफल क्यों दिया? क्या मकसद है कांति देवी का?
सभी ने रेवाला को देखा तो परिवार वाले हैरान, भयभीत और आश्चर्यचकित हो गए। रेवाला खून से लथपथ थी, उसके केश खुले हुए थे और हाथ में खून से सनी तलवार थी। एक कंधे पर राजा सुमल खून से भीगे हुए थे।
यह देखकर राजा सुमल की माँ, रानी कुनरेवा देवी ने कहा, "तुमने मार दिया हमारे बेटे को..."
तब मनका देवी ने कहा, "सुमल जिंदा है।" रेवाला ने उसे बचाया है। रेवाला उन्हें चिकित्सक कक्ष में ले गई और महल के आंगन में बने मंदिर के सामने तुलसी के पौधे से पत्तियाँ तोड़कर सुमल की माँ कुनरेवा देवी को दीं। उसने अपने अंदर शक्ति का प्रवेश कराकर नृत्य किया। तभी रेवाला क्रुद्ध स्वर में बोली, "काल का पहरा था, अभी टला नहीं...वह रात, वह समय आने वाला है जब इन नौ बहुओं और इस महल की पाँच बेटियों में से वह एक होगी जो तुम्हारे पुण्यों को पाप में परिवर्तित कर देगी...वह शिव है तो वह शक्ति है, वह इस महल का अंत है तो आने वाले कल का आरंभ...वह एक-एक को सही को गलत करेगी और गलत का विनाश...वह इस महल में होकर भी नहीं है और इस महल में न होकर भी है...वह सबका काल है...अब सब पर काल का पहरा मंडराएगा, सब मरने वाले, तुम लोगों का अंत आएगा। जिस प्रकार यह तुलसी का पौधा सूखता जायेगा, उसी प्रकार तुम्हारे वंश का नाम समाप्त हो जाएगा...इस महल में जो अदृश्य बनकर रहता है...सब का विनाश आएगा। वह एक होगी जो इस महल के गड़े मुर्दों को ज़िंदा करेगी और तुम्हारा विनाश करेगी। तुम इन सबको मारना चाहोगे, पंजर, तो खुद हड्डियों का ढाँचा बन जाओगे...सबका अंत आएगा, इसकी शुरुआत आज से होगी।" इतना कहते ही रेवाला बेहोश हो गई।
दादी मनका देवी गुस्से से लाल हो गईं और बोलीं, "नई बहु धरिता कहाँ है? कहाँ है?" उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया, "सब बहुओं और बेटियों को बंदी बनाकर तहखाने में बंद कर दो।" इतना सुनते ही महल में चीखों की आवाज गूंजने लगी। तभी राजा सुखेर राठौड़ की मझली बेटी अंगिका देवी कुएँ की ओर भागी और कुएँ में कूद गई।
(राजा सुखेर की बेटियों के नाम इस प्रकार हैं:
बड़ी बेटी रूपश्यामा देवी (रानी कुनरेवा की बेटी)
दूसरी बेटी धारवी देवी (रानी जता देवी की बेटी)
तीसरी बेटी अंगिका देवी (रानी सुकांता की बेटी)
चौथी बेटी पुलिता देवी (रानी कनिसेगा की बेटी)
पाँचवीं बेटी रूंगा देवी (रानी जता देवी की बेटी))
उसी समय रानी सुकांता बेहोश हो गईं।
तब रानी जता देवी ने दादी मनका देवी के गले पर तलवार रखकर कहा, "हमारी बेटियों को आजाद कर दो...वरना...वरना हम आपको मार देंगी..." तब रानी मनका देवी हँसकर बोलीं, "हमें पता था कोई तो ऐसी हरकत होगी, इसलिए हम केवल एक दिन के लिए तहखाना बंद कर रहे हैं।" इतने में दादा पंजर सिंह ने जता देवी के सिर पर पत्थर से वार कर उन्हें बेहोश कर दिया।
इधर रानी सुकांता को होश आया और अपनी बेटी के लिए बिलखती हुईं उनकी आँखें लाल हो गईं। गुस्से में उन्होंने दादी मनका देवी से कहा, "जिस प्रकार हमारी बेटी के भय के कारण उसकी मृत्यु हुई, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भय के कारण होगी...ये मेरी हाय है..." सब बर्बाद हो गया, सब के सब खूनपिपासु हैं। इतना सुनकर सुखेर राठौड़ ने सुकांता को कुएँ में फेंक दिया और कहा, "अब वही होगा जो हम चाहेंगे।" इतना कहकर राजा सुखेर वहाँ से चले गए।
रानी मनका देवी बोलीं, "नई बहु भी मर चुकी है, इसलिए आज 'कुएँ की मौत' होगी..." तभी अचानक कुएँ से भयानक आवाजें आने लगीं।
कनिसेगा देवी बोलीं, "काल के कुएँ का मुँह खुल गया है, अब बस सबको निगलना बाकी है।"
अचानक कुएँ के पानी का स्तर बढ़ गया और कुएँ का पानी बाहर आने लगा, पर वह पानी खून था। इसे देखकर दादा पंजर सिंह बोले, "यह तो रक्त है...यहाँ से सब चले जाओ...सब चले जाओ, वह आ जाएँगे, भागो..." दादा पंजर सिंह बहुत भयभीत थे। दादा पंजर सिंह सबको भगाने लगे, तभी रेवाला को होश आया। रेवाला बोली, "अब कुएँ की मौत होगी और छह माह में यह कुण्ड भी सूख जाएगा।" और...सबका अंत होगा...
अब कुएँ से गरम खून निकलने लगा। राजा पंजर सिंह सभी घरवालों को बाहर ले आए। महल के बाहर एक सुरंग थी जिससे होकर राजा पंजर बाकी सब जंगल के बीचों-बीच एक कच्ची मिट्टी के बने महल में आ गए। राजा सुखेर राठौड़ ने कहा, "महल में रेवाला है तो सब ठीक है।"
कुछ समय बाद पंजर सिंह ने कहा, "आज रात यहीं गुजारनी होगी।" तभी जता देवी को होश आया और अपनी बेटियों को सही-सलामत देखकर वह खुश हुईं। फिर कच्ची मिट्टी के बने घर को देखकर बोलीं, "हम कहाँ हैं और आप सब?" तब कुनरेगा देवी ने सारा वृतांत विस्तारपूर्वक बताया। तब जता देवी ने दादी मनका से कहा, "फूटी किस्मत आपकी..." और हँसीं। इतने में सुखेर ने जता देवी के कान मरोड़ दिए और कहा, "रोटी पर अगर घी न मिले तो रोटी को फेंका नहीं जाता।"
इधर रेवाला महल से निकलकर महल के पीछे बने बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गई।
उधर राजा सुमल के जख्मों पर रानी गुमान देवी (दूसरी पत्नी) मिट्टी और नीलकमल के पुष्प से बना लेप लगा रही थीं।
तभी अचानक सभी को भूकंप के झटके लगे। तब पंजर सिंह ने कहा, "हमें इस कच्चे महल से बाहर निकलना चाहिए।" और सभी बाहर आ गए। तब राजा सुमल की सातवीं पत्नी रूधारा देवी ने कहा, "अब हम कहाँ जाएँगे? क्या अब महल जाना चाहिए...?"
तब दादा पंजर राठौड़ ने कहा कि यहाँ पास में नदी है, हमें वहाँ चलना चाहिए।
जब वे सब नदी के किनारे पहुँचे तो वे सब आश्चर्यचकित हो गए। आखिर उन्होंने क्या देखा...?
आखिर कौन है वह जो इस महल के श्राप का अंत करेगी? क्या सच में नई बहु धरिता मर चुकी है? और रानी सुकांता और उनकी बेटी अंगिका देवी सच में मर चुकी हैं? और जहाँ रेवाला को महल की सुरक्षा करनी थी, वह महल के पीछे क्यों गई? और उसने राजा सुमल की जान कैसे बचाई...?
जब सभी नदी के पास पहुँचे, तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने देखा कि नई बहू धरिता वहाँ पर मूर्छित अवस्था में पड़ी हुई है और उसके पास दो हिरण उसके मुख को चाट रहे हैं। और न जाने कितनी ही तितलियाँ उसके शरीर पर उड़ रही थीं, जैसे मधुमक्खियों के छत्ते पर मधुमक्खियाँ भिनभिनाती हैं। उसका मुख सूर्य की तरह कान्तिमय हो रहा था।
यह दृश्य देखकर सभी हैरान थे।
यह सब देखकर दादी मनका देवी बोलीं, "तुम यहाँ कैसे आई?" दादी ने कहा, "तुमने धन तो नहीं चुराया महल से? सच बोलना, वरना हम तुम्हें गंजा कर देंगे।"
तभी रानी जटा कहती हैं, "माँ जी, उसकी पूरी बात तो सुन लो।"
दादी मनका देवी गुस्से से भौंहें चढ़ाकर बोलीं, "बोलिए कंचन कली, आप इस दिव्य स्थान पर कैसे आईं?"
नई बहू धरिता कहती है, "दादी माँ, किसी ने मुझे कुएँ में धक्का दिया। उसके बाद...वह मुझे...कुछ याद नहीं...यहाँ मैं कैसे आई, मुझे कुछ याद नहीं...वह...हम झूठ नहीं बोल रहे हैं।"
दादी मनका देवी कहती हैं, "हमने तो कहा ही नहीं तुम झूठ बोल रही हो क्यों?"
नई बहू धरिता कुछ कहती, इससे पहले ही रानी कुनरेवा देवी, जिनके हाथ में तुलसी के पत्ते थे जो उन्हें रेवाला ने दिए थे, अचानक वे जल गए। जिससे कुनरेवा देवी का बायाँ हाथ जल गया।
इसे देखकर नई बहू धरिता रानी कुनरेवा देवी के हाथों में मिट्टी का लेप लगाती है, जिससे रानी कुनरेवा देवी को थोड़ा आराम मिलता है।
तभी राजा सुखेर राठौड़ की चौथी पत्नी कनिसेगा कुछ कहने वाली होती है, अचानक न जाने बहुत सारे काले तोते सभी पर आक्रमण कर देते हैं, जिन्हें देखकर सभी उस स्थान से अलग-अलग बिखर जाते हैं। इतने में रेवाला कुछ सैनिकों के साथ आकर सभी को बचाती है।
तभी दादा पंजर सिंह ताली बजाते हैं और कहते हैं, "रेवाला, एक काले तोते को हमे पकाकर खिला देती तो मज़ा आ जाता, क्यों सही कहा ना? वैसे भी काले तोते का मांस हमने कभी चखा नहीं।"
रेवाला मुस्कुराती रहती हैं।
राजा सुखेर राठौड़ कहते हैं, "ये काले तोते यहाँ कैसे आए? ये तो..."
तभी रेवाला बोलती हैं, "आज नई बहू की दूसरी परीक्षा यहीं होगी, दोपहर की धूप में।"
तभी कनिसेगा देवी कहती हैं, "पहले इसकी जात के बारे में तो पता करो, नहीं तो नींबू की एक बूँद पूरे दूध को फाड़ देती है।"
फिर दादी मनका देवी कहती हैं, "कहाँ से लाई है इस कंचन कली को? रूप कितना ही मनमोहक क्यों ना हो, पर इंसान की पहचान उसके कर्म से करनी चाहिए।"
तभी दादा पंजर सिंह कहते हैं, "स्वर्ण से बनी वस्तु को कभी मिट्टी के महलों में नहीं रखते, उन्हें असली महलों में रखते हैं।"
तभी जटा देवी रेवाला से कहती हैं, "महल चल सकते हैं क्या?"
तब रेवाला कहती हैं, "आप लोग सैनिकों के साथ जाओ। मैं वह बहू की दूसरी परीक्षा करवाऊँगी। आप लोग जाइए।"
सभी लोग महल की तरफ़ प्रस्थान करने के लिए महल की ओर निकल पड़ते हैं।
और वहाँ केवल रेवाला और नई बहू धरिता रह जाती हैं।
तभी धरिता रेवाला से पूछती है कि आप कौन हैं? मुझे आपके बारे में जानना है।
रेवाला कहती है, "जानना चाहती हो मेरे बारे में? मैं यह नहीं कहूँगी। तुम क्यों जानना चाहती हो? बस मैं यहीं कहीं...कोई मुझे इस महल की दासी, तो कोई मुझे रक्षिका, तो कोई मुझे किन्नर, तो कोई मुझे औरत, तो कोई मुझे आदमी, तो कोई मुझे ढोंगी, तो कोई मुझे तांत्रिक, तो कोई मुझे चुड़ैल, तो कोई मुझे चोर, तो कोई मुझे डायन, तो कोई मुझे...इस महल का भक्षक बोलते हैं। नाम न जाने कितने हैं, पर रेवाला एक है। और...और मेरे बारे में जानना है तो अपने आपको जानना ज़रूरी है।"
इतना कहकर रेवाला की आँखें भर आती हैं। तो वह अपने आँसू पोछने ही वाली होती है, तभी अचानक...
धरिता रेवाला से एक प्रश्न पूछती है, "आखिर आप औरत के रूप में एक किन्नर हो या एक आदमी?"
रेवाला प्रश्न सुनते ही क्रोध में आ जाती हैं और धरिता के केश पकड़कर कहती हैं, "हम क्या हैं यह हम ही जानें, पर तुम क्या हो हमसे बेहतर कोई नहीं जानता।"
धरिता के मन में शंका के भाव प्रकट हो रहे थे जो उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहे थे। यह सब रेवाला समझ रही थी। रेवाला को अपनी तरफ़ गुस्से से आता देख धरिता कुछ गुनगुनाती है,
"जल रही आग सी वह,
छुपा रही कोई राज वह।"
इतने में ही रेवाला धरिता के समक्ष पहुँच जाती है और कहती है, "दूसरी परीक्षा की तैयारी के लिए तैयार रहो।" धरिता सिर झुकाकर हाँ बोलती है।
रेवाला कहती है, "यहाँ से तीन मील दूर दक्षिण दिशा में एक घनघोर वन है, जिसे बुकाटा वन कहते हैं। उस वन में मधुमक्खियों के छत्ते हैं, उन छत्तों से मधु निकालकर इस स्वर्ण कलश में भरना है, फिर महल आना है। ठीक है, अपनी यात्रा आरंभ करो।"
यह सब बातें कोई छिपकर सुन रहा था, पर कौन?
इधर राजा दादा पंजर सिंह महल पहुँचने ही वाले थे कि अचानक धरती में कंपन होता है, जिससे सब सहम जाते हैं।
अचानक एक कुबड़ा बाबा आता है, जिसके वस्त्र काले थे, उसका भेष बहुत ही अजीब था। उसके शरीर से तीव्र गंध आ रही थी और सबको चुनौती देता हुआ, बहुत भयंकर शब्द से चीखता है और बोलता है, "काल बैठा सिर तू भागा कहाँ जाए, एक पाप के लिए तू सबको मरवाए।" "अब मौत तेरे सामने है, तू अब न बच पाए।" "तुम्हारी मौत आ गई है। छह माह तुम्हारे महल का कुंड सूख जाएगा और उसके बाद तीन माह में सब मारे जाओगे या मर जाओगे। तुम सब से वह 'एक थी वह' पूरे महल को तबाह करेगी...फिर उसके बाद एक नया सर्जन करेगी...सुधरने को कोई फायदा नहीं, वह सबके लिए मौत है।"
राजा सुखेर राठौड़ गुस्से में अपनी तलवार से उसका आधा धड़ अलग कर देता है और कहता है, "एक थी वह, कोई नहीं, सब ज़िंदा रहेंगे।"
तभी सभी हैरान हो जाते हैं कि कनिसेगा देवी अचानक गायब हो जाती है।
इधर धरिता खुशी-खुशी परीक्षा के लिए चल रही है कि दोपहर की धूप इतनी गरम हो जाती है कि उसके पैर जलने लगे। उसे लग रहा था कि कहीं यह परीक्षा पूरी नहीं हुई तो हमारा मकसद कभी पूरा नहीं होगा, हमें हर हालत में यह परीक्षा सफल करनी होगी।
आखिर क्या मकसद था धरिता का? और काले तोते कहाँ से आए? क्या सुखेर राठौड़ को पता है काले तोते का राज? कनिसेगा देवी कहाँ गायब हो गई? रेवाला आखिर है कौन?
जब सभी नदी के पास पहुँचे, तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने देखा कि नई बहू धरिता वहाँ पर मूर्छित अवस्था में पड़ी हुई है और उसके पास दो हिरण उसके मुख को चाट रहे हैं। और न जाने कितनी ही तितलियाँ उसके शरीर पर उड़ रही थीं—जैसे मधुमक्खियों के छत्ते पर मधुमक्खियाँ भिनभिनाती हैं। उसका मुख सूर्य की तरह कान्तिमय हो रहा था।
यह दृश्य देखकर सभी हैरान थे।
यह सब देखकर दादी मनका देवी बोलीं, "तुम यहां कैसे आई?" दादी बोलीं, "तुमने धन तो नहीं चुराया महल से? सच बोलना, वरना हम तुम्हें गंजा कर देंगे।"
तभी रानी जटा कहती हैं, "माँ जी, उसकी पूरी बात तो सुन लो।"
दादी मनका देवी गुस्से से भौंहें चढ़ाकर बोलीं, "बोलिए कंचन कली, आप इस दिव्य स्थान पर कैसे आई?"
नई बहू धरिता कहती है, "दादी माँ, किसी ने मुझे कुएँ में धक्का दिया। उसके बाद...वोह मुझे...कुछ याद नहीं...यहाँ मैं कैसे आई...मुझे कुछ याद नहीं...वोह...हम झूठ नहीं बोल रहे हैं।"
दादी मनका देवी कहती हैं, "हमने तो कहा ही नहीं तुम झूठ बोल रही हो क्यों?"
नई बहू धरिता कुछ कहती, इससे पहले ही रानी कुनरेवा देवी, जिनके हाथ में तुलसी के पत्ते थे जो उन्हें रेवाला ने दिए थे, अचानक वे जल गए। जिससे कुनरेवा देवी का बायाँ हाथ जल गया।
इसे देखकर नई बहू धरिता रानी कुनरेवा देवी के हाथों में मिट्टी का लेप लगाती है, जिससे रानी कुनरेवा देवी को थोड़ा आराम मिलता है।
तभी राजा सुखेर राठौड़ की चौथी पत्नी कनिसेगा कुछ कहने वाली होती है, अचानक न जाने बहुत सारे काले तोते सभी पर आक्रमण कर देते हैं, जिन्हें देखकर सभी उस स्थान से अलग-अलग बिखर जाते हैं। इतने में रेवाला कुछ सैनिकों के साथ आकर सभी को बचाती है।
तभी दादा पंजर सिंह ताली बजाते हैं और कहते हैं, "रेवाला, एक काले तोते को हमें पकाकर खिला देती तो मजा आ जाता, क्यों सही कहा ना? वैसे भी काले तोते का मांस हमने कभी चखा नहीं।"
रेवाला मुस्कुराती रहती हैं।
राजा सुखेर राठौड़ कहते हैं, "ये काले तोते यहां कैसे आए? ये तो..."
तभी रेवाला बोलती हैं, "आज नई बहू की दूसरी परीक्षा यहीं होगी, दोपहर की धूप में।"
तभी कनिसेगा देवी कहती हैं, "पहले इसकी जाति के बारे में तो पता करो, नहीं तो नींबू की एक बूँद पूरे दूध को फाड़ देती है।"
फिर दादी मनका देवी कहती हैं, "कहाँ से लाई है इस कंचन कली को? रूप कितना ही मनमोहक क्यों ना हो, पर इंसान की पहचान उसके कर्म से करनी चाहिए।"
तभी दादा पंजर सिंह कहते हैं, "स्वर्ण से बनी वस्तु को कभी मिट्टी के महलों में नहीं रखते, उन्हें असली महलों में रखते हैं।"
तभी जटा देवी रेवाला से कहती हैं, "महल चल सकते हैं क्या?"
तब रेवाला कहती हैं, "आप लोग सैनिकों के साथ जाओ, मैं वह बहू की दूसरी परीक्षा करवाऊँगी। आप लोग जाइए।"
सभी लोग महल की तरफ प्रस्थान करने के लिए महल की ओर निकल पड़ते हैं। और वहाँ केवल रेवाला और नई बहू धरिता रह जाती हैं।
तभी धरिता रेवाला से पूछती है कि आप कौन हैं? मुझे आपके बारे में जानना है।
रेवाला कहती है, "जानना चाहती हो मेरे बारे में? मैं यह नहीं कहूँगी। तुम क्यों जानना चाहती हो? बस मैं यहीं कहीं...कोई मुझे इस महल की दासी, तो कोई मुझे रक्षिका, तो कोई मुझे किन्नर, तो कोई मुझे औरत, तो कोई मुझे आदमी, तो कोई मुझे ढोंगी, तो कोई मुझे तंत्रिका, तो कोई मुझे चुड़ैल, तो कोई मुझे चोर, तो कोई मुझे डायन, तो कोई मुझे...इस महल का भक्षक बोलते हैं। नाम न जाने कितने हैं, पर रेवाला एक है। और...और मेरे बारे में जानना है तो अपने आपको जानना ज़रूरी है।"
इतना कहकर रेवाला की आँखें भर आती हैं। तो वह अपने आँसू पोछने ही वाली होती है, तभी अचानक...
धरिता रेवाला से एक प्रश्न पूछती है, "आखिर आप औरत के रूप में एक किन्नर हो या एक आदमी?"
रेवाला प्रश्न सुनते ही क्रोध में आ जाती है और धरिता के केश पकड़कर कहती है, "हम क्या हैं यह हम ही जानें, पर तुम क्या हो हमसे बेहतर कोई नहीं जानता।"
धरिता के मन में शंका के भाव प्रकट हो रहे थे जो उसके चेहरे पर साफ झलक रहे थे। यह सब रेवाला समझ रही थी। रेवाला को अपनी ओर गुस्से से आता देख, धरिता कुछ गुनगुनाती है—
"जल रही आग सी वह,
छुपा रही कोई राज वह।"
इतने में ही रेवाला धरिता के समक्ष पहुँच जाती है और कहती है, "दूसरी परीक्षा की तैयारी के लिए तैयार रहो।" धरिता सिर झुकाकर हाँ बोलती है।
रेवाला कहती है, "यहाँ से तीन मील दूर दक्षिण दिशा में एक घनघोर वन है जिसे बुकाता वन कहते हैं। उस वन में मधुमक्खियों के छत्ते हैं, उन छत्तों से मधु निकालकर इस स्वर्ण कलश में भरना है, फिर महल आना है। ठीक है, अपनी यात्रा आरंभ करो।"
यह सब बातें कोई छिपकर सुन रहा था, पर कौन?
इधर राजा दादा पंजर सिंह महल पहुँचने ही वाले थे कि अचानक धरती में कंपन होता है, जिससे सब सहम जाते हैं।
अचानक एक कुबड़ा बाबा आता है, जिसके वस्त्र काले थे, उसका भेष बहुत ही अजीब था। उसके शरीर से तीव्र गंध आ रही थी और सबको चुनौती देता हुआ, बहुत भयंकर शब्द से चीखता है और बोलता है—"काल बैठा सिर तू भागा कहाँ जाए, एक पाप के लिए तू सबको मरवाए।" "अब मौत तेरे सामने है, तू अब न बच पाए।" "तुम्हारी मौत आ गई है। छह माह तुम्हारे महल का कुण्ड सूख जाएगा और उसके बाद तीन माह में सब मारे जाओगे या मर जाओगे। तुम सब से वह 'एक थी वह' को पूरे महल को तबाह करेगी...फिर उसके बाद एक नया सर्जन करेगी...सुधरने को कोई फायदा नहीं, वह सबके लिए मौत है।"
राजा सुखेर राठौड़ गुस्से में अपनी तलवार से उसका आधा धड़ अलग कर देता है और कहता है, "एक थी वह, कोई नहीं, सब जिंदा रहेंगे।"
तभी सभी हैरान हो जाते हैं कि कनिसेगा देवी अचानक गायब हो जाती है।
इधर धरिता खुशी-खुशी परीक्षा के लिए चल रही है कि दोपहर की धूप इतनी गरम हो जाती है कि उसके पैर जलने लगे। उसे लग रहा था कि कहीं यह परीक्षा पूरी नहीं हुई तो हमारा मकसद कभी पूरा नहीं होगा। हमें हर हालत में यह परीक्षा सफल करनी होगी।
आखिर क्या मकसद था धरिता का? और काले तोते कहाँ से आए? क्या सुखेर राठौड़ को पता है काले तोते का राज़? कनिसेगा देवी कहाँ गायब हो गई? रेवाला आखिर है कौन?
अब सभी बहुएँ परीक्षा के लिए नौ कोठी महल में गईं। नौ कोठी महल में मात्र नौ कक्ष थे, जिसमें एक-एक कक्ष में एक-एक बहू मिश्रित चावल लेकर गई। और दादी मनका देवी ने महल को बंद कर दिया।
इधर राजा सुखेर राठौड़ अपने कक्ष में, अलमारी के पीछे छुपे एक गुप्त दरवाजे में प्रवेश किए।
उधर रेवाला उस गुप्त गुफ़ा से निकलकर, जब वापस अपने महल में आ रही थी, तब उसे रूंगा देवी की पायल मिली, जिसे रेवाला अपने साथ रख ली।
अब महल में जता देवी अपनी बड़ी बेटी धारवी देवी के पास आकर पूछी- "क्या तुमने रूंगा देवी को देखा है? वह महल में कहीं नहीं है।"
धारवी देवी ने कहा- "माँ, नहीं, हमने तो कहीं नहीं देखा है।"
जता देवी के मुख पर चिंता के बादल साफ़ दिख रहे थे। जता देवी मन ही मन सोच रही थी कैसे भी करके उन्हें इस महल में अपनी दोनों बेटियों को सुरक्षित निकालना होगा, वरना कुछ गलत हो जाएगा।
अचानक नौ कोठी महल में धुआँ-धुआँ हो गया। तभी रेवाला महल लौटी। तभी उसने देखा कि मनका देवी नौ कोठी महल के आगे खड़ी होकर खुशी से नृत्य कर रही थी। तभी रेवाला से नृत्य करते हुए कहा- "नौ बहुएँ अब मर जाएँगी और इस महल में सब कुछ अच्छा होगा।"
"...क्यों रेवला, सब ठीक है ना...श्राप तो स्वयं मिट जाएगा।"
रेवाला मनका देवी की ओर मुस्कुराकर देखती है।
कुछ समय पश्चात् जता देवी दादी मनका और रेवाला के पास आई और रोते और भयभीत शब्दों में कहा- "रूंगा देवी महल में कहीं नहीं मिल रही है, हमारी मदद कीजिए रेवाला, हम पर दया कीजिए।" दादी यह खबर सुनकर मन ही मन खुश हुई। तब रेवाला जता देवी से कहा- "हमारे लिए एक सुखी मिट्टी से भरा पात्र लाइए, रूंगा देवी..."
कुछ समय पश्चात्...रेवाला उस मिट्टी के बर्तन में से रूंगा देवी की पायल उस मिट्टी में से निकाली और कहा- "वह काल के मुख में समा गई है।"
यह सुनकर जता देवी की चीख निकल गई और रोते हुए स्वर में पूछा- "कैसे?" पर रेवाला चुप रही। दादी मनका देवी ने कहा- "मर गई, अच्छा हुआ। अब तीन बेटियाँ ही बची हैं, वह भी ऐसे ही चली जाएँगी, और यह रोना-धोना अपने कक्ष में करो।"
दादी मनका देवी सुकून की साँस ली और मन ही मन बहुत खुश हुई।
कुछ समय पश्चात्, जब धुआँ बंद हो गया, उसके बाद दादी मनका देवी और रेवाला ने नौ कोठी महल के सभी दरवाजे खोले और देखकर दोनों हैरान रह गईं।
और इधर महल में जता देवी गुस्से में सुखेर राठौड़ के कक्ष में गई, पर सुखेर राठौड़ अपने कक्ष में नहीं था, जिससे रानी जता देवी अत्यधिक क्रोध में भर गई। और गुस्से से अपनी बड़ी बेटी धारवी देवी के कक्ष में चली गईं।
इधर दादा पंजर राठौड़ के पास एक सैनिक संदेश लेकर आया। दादा पंजर संदेश पढ़ते ही भयभीत हो गए और उनके चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें आ गईं...आखिर खत में था क्या...
इधर जब दादी मनका देवी और रेवाला देखती हैं कि सभी की सभी नौ बहुएँ सुरक्षित हैं, तब रेवाला और दादी मनका एक-दूसरे को आश्चर्य के साथ देखती हैं। तब दादी मनका देवी कुछ कहने वाली ही थी, तभी रेवाला उनका हाथ पकड़कर रोक देती है और सभी बहुओं से कहती है- "अब पता चलेगा किसने पूरी की परीक्षा।"
तभी रेवाला सभी बहुओं की थाली का परीक्षण करने वाली ही थी कि अचानक मधुमक्खियों का हमला हो जाता है, जिससे सभी के हाथ से थाली गिर जाती है और सभी उस नौ कोठी महल से बाहर निकल जाते हैं और उस महल का दरवाज़ा बंद कर देते हैं। तभी रेवाला कहती है- "कल नई बहू की रसोई होगी, तुमको इक्कीस तरह शुद्ध पकवान और इकतीस तरह के मांसाहारी पकवान बनाने होंगे, महल भगवान और शैतान दोनों की पूजा होती है, समझी? सुबह तैयार रहना।"
रात को जता देवी सभी से छुपकर महल के पीछे गई, जहाँ वह बरगद के पेड़ के नीचे एक संदेश पत्र रखकर चली गई।
सुबह होने पश्चात्, दादा पंजर छत पर चिंतित अवस्था में बैठे रो रहे थे।
इधर रेवाला बहू को भोजन की सामग्री देती है और कहती है- "पहले मांसाहारी भोजन बनेगा और दोपहर को शुद्ध भोजन बनेगा।"
इधर धरिता मन ही मन में सोचती है, इस रेवाला को सबक सिखाना पड़ेगा, परीक्षा के अलावा कुछ आता है कि नहीं।
इधर राजा सुमल की दूसरी पत्नी गुमान देवी रसोई में छुपकर प्रवेश करती है और दूध में नींबू डालकर जल्दी से वहाँ चली जाती है। तभी राजा सुमल की छठी पत्नी कनीषा देवी गुपचुप तरीके से आती है और मांस में सर्प का जहर मिलाकर चली जाती है।
तब धरिता बर्तन धोकर रसोई में आती है और खाना बनाने लग जाती है। तभी राजा सुमल की पहली पत्नी उरका देवी आती है और कहती है- "समझदारी और सतर्कता से खाना बनाना और लापरवाही मत करना।" और वह वहाँ से चली जाती है। धरिता मन ही मन में सोचती है, घर में सब अजीब है पर कोई बात नहीं, आज के बाद कभी मुझसे खाना बनाने के बारे में नहीं कहेंगे।
इधर राजा सुमल की पाँचवीं पत्नी कांति देवी उस विषफल को अपने हाथ में लेती है, जो उन्हें जता देवी ने दिया था, और मन में सोचती है अब इस विषफल का अवसर है और इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देंगे। इतना सोचकर, वह इस विषफल को अपने वस्त्रों में छिपाकर रसोई की तरफ आती है और अचानक उनके हाथ पर कोई खंजर से प्रहार करता है और वह विषफल नीचे गिर जाता है।
कुछ समय पश्चात् राजा सुमल की पत्नी रुधारा देवी आती है और धरिता से कहती है- "कभी इतना खाना बनाया नहीं होगा।" तब धरिता कहती है- "बहुत बार।" इतना कहकर रानी रुधारा जाते-जाते सोचती है, जिस कार्य के लिए आई थी वह तो हो गया। तभी अचानक बड़ी सासु माँ रानी कुनरेवा आती है और जानबूझकर दूध में नमक मिला देती है। यह सब धरिता देख रही होती है और कुछ नहीं कहती। इसके बाद राजा सुमल की आठवीं पत्नी रानी नल्ला देवी आती है और धरिता को एक बाल्टी रक्त देती है और कहती है- "रक्त का शरबत बनाओ।" इतना कहकर वहाँ से चली जाती है।
जब खाना पक जाता है, तो रेवाला और दादी मनका देवी आती हैं और कहती हैं- "सर्वप्रथम यह खाना रेवाला चखेगी, फिर शैतान का भोग लगेगा।" फिर रेवाला सभी भोजन को चखती है और धरिता को कहती है- "महल के बीचों-बीच रसोई है, उसमें शुद्ध भोजन बनाने की तैयारी करो।" तब धरिता चली जाती है।
रेवाला सभी आठ बहुओं को एक गुप्त कक्ष में बुलाती है और गुस्से और ऊँचे आवाज़ में कहती है- "रसोई में कौन था, जिसने सभी भोजन को दूषित किया? मैंने पूछा कौन था रसोई...कौन था।"
आखिर "रसोई में कौन था"? किसने किया भोजन को दूषित...
दादा पंजर क्यों दुखी थे?
क्या रेवाला ने क्यों जता देवी से क्यों कहा रूंगा देवी मर गई है...क्या है रेवाला का मकसद?
रेवाला ने सभी आठ बहुओं को एक गुप्त कक्ष में इकट्ठा करके पूछा, "किसने की ऐसी हरकत? हमने पूछा किसने की? आखिर रसोई में कौन था?"
तभी राजा सुमल की दूसरी पत्नी, रानी गुमान देवी ने कहा, "तुम तो अंतर्यामी हो, चेहरा देखकर ही बता देती हो किसने की होगी। खुद ही पता लगाइए।"
रेवाला ने कहा, "हम चाहे तो तुम सबको मार सकते हैं, पर हम तुम सबको... खैर छोड़ो, हम अपनी तंत्र साधना से स्वयं पता लगाएँगे।"
अचानक राजा सुमल की छठी पत्नी, कनीषा देवी की हँसी छूट गई। इसे देखकर रेवाला की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उच्च स्वर में उसने कहा, "तुम भूल चुकी हो कि हम इस महल की शैतान और भगवान दोनों हैं। हमारे हाथों तुम्हारा अंत भी है और तुम्हारी सुरक्षा... समझी रही बात? रसोई की जिसने भी किया है, उसका तो हम... वोह हाल करेंगे उसका जो किसी ने न देखा होगा और न ही सुना होगा। समझी?"
तभी दादी मनका देवी आईं और रेवाला से बोलीं, "इनको अब हम सजा सुनाएँगे... जो भोजन बिगड़ा है, वोह इन सबको खिलाया जाए।"
रानी जता देवी अपने कक्ष की खिड़की पर बैठी किसी का इंतजार कर रही थीं। तभी एक सफेद कबूतर, जिस पर कुछ काले धब्बे थे, रानी जता देवी के सिर पर बैठकर तीन बार चोंच मारकर उड़ गया। रानी जता देवी ने उस कबूतर के इशारे को समझ लिया और मुस्कराकर मन ही मन में कहा कि अब हम सुकून की साँस ले पाएँगी।
इधर, रेवाला ने नौकरानियों से कहा, "इस भोजन को गुप्त तहखाने में आठ बहुओं को देकर आओ, और जब तक वो इस भोजन ग्रहण न कर लें तब तक वहीं उपस्थित रहना।"
इधर, धरिता शुद्ध शाकाहारी भोजन बना रही थी। तभी रेवाला आईं और देखा कि धरिता देवी मात्र हरी सब्जियाँ उबाल रही थीं। यह सब देखकर रेवाला ने कहा, "तुम्हारे पास बुद्धि नहीं है क्या? इस भोजन का भोग लगेगा क्या?"
तभी धरिता ने कहा, "आपने ही तो कहा था ना कि शुद्ध शाकाहारी मतलब शाक का आहार, इसलिए हमने सभी सब्जियाँ उबाल दी हैं... और हाँ, हमने नमक, मिर्च कुछ नहीं डाला है। फिर आप कहेंगी आखिर रसोई में कौन था... सब दूषित कर दिया।" और धरिता मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं।
रेवाला गुस्से में बोलीं, "हमको मूर्ख मत बनाओ, समझी? जल्दी से भोजन बनाओ... नहीं तो तुम्हें गरम पानी में उबाल दूँगी इस हरी शाक के साथ, समझ गई क्या?"
फिर धरिता ने कहा, "हमें जो पकाना था, हमने पका दिया... और हम इस महल की नई बहू हैं, तो अब हम आराम करेंगी।"
रेवाला हँसते हुए बोलीं, "कहाँ करेंगी आप आराम, नई बिन बुद्धि की बहू? बताइए कहाँ करेंगी आप आराम... जरा हमें भी बताइए।" और रेवाला के मुख पर हँसी और सुकून के भाव खिल रहे थे।
तब धरिता मुस्कराकर रेवाला से बोली, "कभी अपने आप पर इतना गुमान नहीं करना चाहिए, वरना... खैर छोड़ो।"
रेवाला ने कहा, "वरना क्या... बोलिए, धूल की पोटली धरिता देवी जी, वरना एक थप्पड़ में आपकी धूल की पोटली फट जाएगी, और इस धूल से महल गंदा हो जाएगा... अब कहिए धरिता देवी जी।"
धरिता ने आँखें छोटा करके, अपने मुख पर हल्की सी मुस्कान लिए कहा, "कौआ कभी कोयल नहीं बन सकता... सही बोला ना किन्नर रेवाला जी।"
रेवाला गुस्से में धरिता से बोलीं, "तुम्हारी यह हिम्मत? जो तुमसे हम यह कह रही हों। एक बात ध्यानपूर्वक सुन लो, हम तुम्हें अभी मृत्युदंड देंगी।"
तभी रेवाला और धरिता के पास दादी मनका देवी, रानी कुनरेवा देवी एवं रानी जता देवी आईं।
तभी रेवाला ने दादी मनका देवी से कहा, "इसने भोजन में मात्र हरी सब्जियाँ ही उबाल दी।"
तभी अचानक, धरिता ने कहा, "यह भोजन मात्र रेवाला जी के लिए है। उन्होंने कहा था, वोह इस भोजन को स्वयं करेंगी जिससे इस महल का श्राप कम हो जाएगा।" और धरिता शुद्ध शाकाहारी व्यंजन सभी को दिखाती हैं। जिससे दादी बहुत खुश हो जाती हैं और कहती हैं, "बहुत खूब।" इतना कहकर दादी मनका देवी चली जाती हैं, और उनके बाद रानी कुनरेवा देवी और रानी जता भी चली जाती हैं।
रेवाला मन ही मन में कहती है, इस लड़की ने हमारा कार्य बहुत आसान कर दिया। और उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे। यह सब धरिता देख रही थी, और मन में कह रही थी, यह रेवाला हमारे साथ कुछ भी कभी भी कर सकती है, हमें अपने आप को सतर्क रहना होगा, तभी हमारा मकसद पूरा हो पाएगा।
इधर, रानी जता देवी अपनी बड़ी बेटी धारवी के कक्ष में आती है और धारवी से बहुत धीमे स्वर में कहती है, "आज तुम आजाद हो जाओगी, आज तुम्हें पूरे साहस के साथ इस महल से दूर जाना होगा। ठीक है, तैयार रहना।" इतना कहकर जता देवी अपने कक्ष में चली जाती है।
रानी कुनरेवा देवी राजा सुखेर राठौड़ के कक्ष में आती हैं और देखती हैं कि वहाँ कोई नहीं है, और वहाँ से चली जाती हैं।
अब धरिता सभी के लिए भोजन लगा रही थी। तभी दादी मनका देवी कहती हैं, "पहले भगवान के लिए भोग लगेगा जो रेवाला लगाएगी... फिर तुम इस भोजन को चखोगी, समझी।" रेवाला मन ही मन कहती है, अब भोजन करने के बाद पता चल जाएगा कि "आखिर रसोई में कौन था?" जिसने हमारा भोजन दूषित किया।
फिर रेवाला भगवान के भोजन की थाली को लेकर मंदिर (जिसमें सभी का जाना वर्जित था, उस मंदिर में केवल रेवाला ही जा सकती थी) जाती है और मंदिर को अंदर से बंद कर देती है... कुछ समय पश्चात... रेवाला मंदिर के बाहर आती है, परन्तु उसके हाथ में भोग की थाली नहीं होती। फिर रेवाला कहती हैं, "अब सभी आठ बहुएँ, नई बहू को भोजन चखाएँगी लेकिन स्वयं भोजन नहीं करेंगी... क्योंकि तुम सब का पेट भर रहा होगा, और हम बहस नहीं चाहती।"
सभी आठ बहुएँ शांत रहती हैं और नई बहू धरिता को भोजन चखाती हैं। तब दादी मनका देवी कहती हैं, "यह भोजन खाने योग्य है।"
जब धरिता अपने स्थान से उठती है, तो जानबूझकर भोजन के ऊपर गिर जाती है और पूरे भोजन को फैला देती है। जिससे सारा भोजन खराब हो जाता है।
किसी के बोलने से पहले रेवाला गुस्से में और तेज़ आवाज़ में कहती है, "तुमने यह सब जानबूझकर किया है, इसलिए तुम्हें तीन दिन भोजन नहीं मिलेगा, समझी।"
तभी मनका देवी गुस्से से धरिता को थप्पड़ मारती है और हाथ पकड़कर महल से बाहर धक्का देती है। तभी अचानक कोई आकर मनका देवी को एक जोरदार थप्पड़ लगाता है, और साथ में धरिता देवी को जोर से अंदर की ओर धक्का देता है। रेवाला थोड़ी भयभीत हो जाती है, और सभी भयभीत हो जाते हैं। तभी दादा पंजर राठौड़ आते हैं, और वह देखते ही मूर्छित हो जाते हैं।
आखिर किसके आने से सभी लोग भयभीत हो गए?
आखिर धरिता का क्या मकसद है?
आखिर जता देवी क्या करने वाली हैं?
आखिर सुखेर राठौड़ कहाँ है?
महल के रहस्य, और आखिर कौन होगी वोह जो इस महल को श्रापमुक्त करेगी, और वो श्राप क्या है, पढ़िए "एक थी वोह!"
जब मनका देवी ने धरिता को हाथ पकड़कर बाहर धक्का दिया, तभी एक औरत ने मनका देवी को जोरदार थप्पड़ मारा और धरिता को महल के अंदर धक्का दे दिया। यह देखकर सभी हैरान और भयभीत हो गए, और दादा पंजर राठौड़ मूर्छित हो गए।
जैसे ही वह महल में प्रवेश की, रेवाला की रूह काँप गई। उसने मन ही मन कहा, "अब हमारा क्या होगा? लेकिन हमें अपने मकसद के लिए इस महल में हर हाल में रहना ही होगा।"
जैसे ही दादा पंजर राठौड़ को होश आया, उन्होंने सबसे पहले कहा-
"जिसका डर था, आखिर वही हुआ।"
तभी रेवाला काँपते हुए स्वर में बोली-
"आप यहां कैसे...? मेरा... मतलब है कि आपने जाते समय यह कहा था कि आप इस महल में नहीं आएंगी।"
"आखिर कौन आया महल में? तो अब आप सबको बता दें कि यह दादा पंजर राठौड़ की दूसरी पत्नी, रानी जलतारा देवी हैं, और यह मनका देवी की बड़ी बहन है।"
"बड़ी बहन होने के बाद भी आखिर क्यों जलतारा देवी की शादी मनका देवी के बाद हुई?"
"और जलतारा देवी फिर से महल में क्यों आई है? आखिर क्या मकसद है उनका?"
"दादा पंजर राठौड़ की दूसरी पत्नी होने के बाद भी आखिर सब के सब, और दादा पंजर राठौड़ भी, रानी जलतारा देवी से क्यों डरते हैं?"
"इन सब के जवाब आगे आने वाले अध्याय में मिलेंगे।"
तभी जलतारा देवी बोलीं-
"हम क्यों गए और हम क्यों आए हैं, हम तुम्हें क्यों बताएँ?"
तभी, अचानक राजा सुखेर राठौड़ आ गए। उन्होंने मन ही मन कहा, "अब इन्हीं की कमी थी क्या?"
तभी जलतारा देवी ने कहा-
"हम आपका कुछ लोगों से परिचय करवाना चाहते हैं, जोकि आज से, बल्कि अभी से इसी महल में रहेंगे... यह है सुकेत और यह हैं उर्वा... आज से यह इस महल पर नज़र रखेंगे, समझे।"
"आपको बता दें, सुकेत एक नौजवान गुप्तचर है, और रानी जलतारा का खास है।"
"और उर्वा एक बोनी लड़की है, वह काला जादू करने में माहिर है, या आप उसे एक तंत्रिका कह सकते हैं। उसकी आँखें काफी बड़ी-बड़ी हैं, भले ही उसका कद छोटा हो पर वह बड़े-बड़ों को मात दे सकती है।"
जलतारा देवी इन्हें अपने साथ क्यों लाई हैं, यह जलतारा देवी ही जानें।
वहाँ से जलतारा देवी मनका देवी के कक्ष में चली गईं। और दादा पंजर सोचने लगे कि काश जलतारा यहाँ कभी नहीं आती।
इधर जता देवी थोड़ी सहमी हुई थीं क्योंकि वह धारवी देवी को किसी दूसरे स्थान पर भेज रही थीं। वह धारवी देवी को गुप्त स्थान से ले जा रही थीं, तभी अचानक काला धुआँ हुआ... कुछ देर बाद... जब धुआँ साफ़ हुआ, तो जता देवी और उनकी बेटी धारवी देवी दोनों गायब हो गईं।
जब जलतारा देवी ने सभी को महल के शाही कक्ष में बुलाया, तो सभी आ गए।
जलतारा देवी सभी से गुस्से में पूछने लगीं-
"जता देवी और धारवी देवी कहाँ हैं? महल में कोई भी गायब हो रहा है, किसी को कोई फर्क नहीं... क्यों? मनका देवी जी, आप को तो सबसे ज़्यादा खुशी होगी, सही कहा ना मैंने? और सुखेर, तुम्हारी तीन पत्नियाँ और तीन बेटियाँ गायब हैं, तुम्हें तो सबसे ज़्यादा खुशी हो रही होगी, क्यों सही कहा ना मैंने?... इसलिए... मनका देवी और सुखेर राठौड़ को ऐसी सज़ा जो "खौफनाक से ज़्यादा खौफनाक" हो।"
तभी कनिसेगा देवी की बेटी पुलिता देवी आँखों में आँसू लेकर बोली-
"इस महल में कोई इंसान ही नहीं है, छोटी दादी, सब को अपने आराम से मतलब है।"
जलतारा देवी बोलीं-
"मनका देवी और सुखेर राठौड़ को आज रात महल के आँगन में सोना होगा। बहुत शौक है मनका, तुमको औरों के दुख में दीपावली मनाने का। अब सोना आँगन में, जब वह जागेंगे और वह आएंगे... अब सुबह तुम्हारी लाश मिलेगी या हड्डियाँ, यह तो आने वाला कल ही जाने।"
दादा पंजर जलतारा देवी से बोले-
"आखिर क्यों कर रही हो तुम यह? जो कर रही हो, वह असर तुम पर ही पड़ेगा। अभी तुम समझदारी से काम लो, वरना सुधरने का समय भी नहीं मिलेगा, तुमको।"
इतने में जलतारा देवी गुस्से में बोलीं-
"हम जो कर रहे हैं, वह हमें अच्छे से पता है, इसलिए अपनी दखल देना बंद करो, पंजर राठौड़... वरना, तुम..."
इतना कहकर जलतारा देवी अपने कक्ष, जोकि अब मनका देवी का था, उसमें चली गईं।
इधर राजा सुमल के पास उनका गुप्तचर एक संदेश पत्र लेकर आया। जिसे पढ़कर राजा सुमल महल के पीछे बरगद के पेड़ के नीचे एक गुप्त गुफा में गए।
इधर दादी मनका देवी और राजा सुखेर राठौड़ महल के एक कक्ष में गुप्त तरीके से मिले। तभी दादी मनका देवी बोलीं-
"रात को महल के मुख्य आँगन में सोना समझो, अपनी मौत को बुलाना है। और तो यह जलतारा हमें मारने ही यहाँ आई है, यही उसका मकसद है।"
तभी सुखेर बोले-
"अगर वह आ गए तो हमारा बच पाना मुश्किल है।"
तभी मनका देवी बोलीं-
"हमारे पास एक तरीका है। जिस प्रकार आग से जानवर डरते हैं, उसी प्रकार हमें अपने चारों ओर एक सुरक्षा चक्र बनाना होगा।"
मनका देवी राजा सुखेर की ओर इशारा किया, और राजा सुखेर राठौड़ समझ गए कि उन्हें क्या करना है।
इधर, रेवाला महल के बाहर गुप्त तरीके से जंगलों से होती हुई गुप्त गुफा की ओर जा रही थी, तो उसका पीछा रानी जलतारा की जासूस उर्वा कर रही थी। जब वह पीछा कर रही थी, तो रेवाला को भनक लग गई कि कोई उसका पीछा कर रहा है। इसलिए उसने अपना रास्ता बदल लिया। उर्वा भी समझ गई कि रेवाला को पता चल गया है, इसलिए उसने अपने काले जादू से रेवाला को एक आग के घेरे में बंद कर दिया और अपने काले जादू से उल्लुओं को सम्मोहित करके रेवाला पर आक्रमण करवाया। फिर उर्वा पेड़ पर चढ़ गई, और पेड़ पर गुप्त तरीके से रेवाला को आदमी की आवाज़ में डराते हुए शब्दों में बोली-
"अभी तो तुम्हें बहुत 'खौफनाक से ज़्यादा खौफनाक' सज़ा मिलेगी 'मर्द रानी'..."
रेवाला गुस्से में बोली-
"मुझे डराकर तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अरे मैं रेवाला हूँ, जो अपने काल को भी मारकर भेज दूँ, और तुम इन साधारण उल्लुओं से मुझे मरवाओगी? तुम तो एक कायर की भांति मुझको ज़ख्म दे रही हो... कायर कही के।"
तब उर्वा फिर से एक और अलग आवाज़ में बोली-
"अभी तो और तड़पना है तुमको 'मर्द रानी'..."
तभी उसने रेवाला पर बहुत सारा नमक की बारिश कर दी, जिससे उसके घावों पर जलन शुरू हो गई... कुछ देर बाद... अचानक बहुत सारा धुआँ हुआ, और थोड़ी देर बाद जब धुआँ साफ़ हुआ, तो उर्वा देखती है कि रेवाला वहाँ नहीं थी। तब वह मन ही मन में कहती है कि रेवाला आखिर कहाँ गई।
आखिर दादी मनका देवी और राजा सुखेर राठौड़ कैसे बचेंगे?
और वह कौन हैं जिनका नाम भी नहीं लिया जाता और महल के आँगन में सोने से क्यों सबको डर लगता है?
आखिर रेवाला को किसने बचाया?
और उर्वा ने क्यों कहा रेवाला को "मर्द रानी"?
इधर काले धुएँ के आने के बाद, रेवाला अचानक गायब हो गई, और उर्वा हैरान हो गई। उर्वा सोच रही थी कि रेवाला इतनी जख्मी हालत में कहाँ गई, और उसे किसने बचाया। वह मन ही मन कह रही थी, "कोई तो है, जो रेवाला का साथ दे रहा है। आखिर रेवाला क्या चाहती है, हमें यह सब कुछ जानना होगा, जल्द से जल्द।"
इधर, महल में राजा सुखेर और दादी मनका देवी महल के आंगन में आए। तभी जलतारा देवी आई, और मुस्कराते हुए भाव के साथ बोली - "हम आप दोनों की शीघ्र अतिशीघ्र मृत्यु का आशीर्वाद देते हैं। वैसे, तुम दोनों आंगन में ही रात्रि बिताओगे, वैसे निद्रा तो नहीं आएगी आप दोनों को।"
मनका देवी, जलतारा देवी से गुस्से में बोलीं - "वैसे आपको हमारे पुत्र से जलन होती होगी, यह जिंदा कैसे है...जिसने अपने पुत्र को अपने हाथों से मारा हो, वह किसी दूसरी माँ का दर्द क्या समझेगी? और वैसे भी, न तो आप एक अच्छी माँ बन पाईं, न ही एक अच्छी पत्नी, परंतु एक अच्छी षड्यंत्रकर्ता जरूर बन गईं।"
जलतारा देवी (गुस्से में) - "मनका, जो हमने किया, इस महल के आत्मसम्मान के लिए किया, और यह तुम कह रही हो जिसने केवल महल पर एकछत्र राज करना चाहा हो। अरे, तुम जो माँ का ज्ञान दे रही हो, क्या तुम एक अच्छी माँ हो? अरे, तुम तो एक महान माँ हो! बहुत अच्छी परवरिश दी थी तुमने अपने बच्चों को...जिसका परिणाम अभी तक यह महल और महल में रहने वाले सदस्य भुगत रहे हैं।"
मनका देवी - "हमें आपके ज्ञान की ज़रूरत नहीं है, हम महल के खुले में रात गुजारने को तैयार हैं।"
राजा सुखेर राठौड़ बोले - "हम जलकुंड के बीचों-बीच नाव में रात को अपना समय बिताएँगे।"
इतना सुनते ही जलतारा देवी अपने कक्ष में चली गई। दादी मनका मुस्कराहट के साथ राजा सुखेर की ओर इशारा किया।
इधर, महल में रानी जलतारा का अपने जासूस, सुकेत दादा पंजर पर नज़र थी। तभी दादा पंजर के पास एक उल्लू आया, और दादा पंजर ने उस उल्लू के पैर से चिट्ठी खोली, और उल्लू उड़ गया। दादा पंजर ने उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ा। पढ़ने के तुरंत बाद उसने उस चिट्ठी को मदिरा में डुबोकर जला दिया।
इधर, राजा सुखेर जलकुंड में चारों ओर से नौकरों द्वारा भस्म मिला रहे थे, जिससे जल में उपस्थित सारे मगरमच्छ गहरी निद्रा में पहुँच जाएँ, और उस जल में सुरक्षित रह सकें।
अब जलतारा देवी अपने कक्ष से देख रही थी कि राजा सुखेर राठौड़ और दादी मनका देवी अपने ऊपर काला कपड़ा ओढ़कर उस नाव में बैठे हैं, और नाव तीन ओर से रस्सी से बंधी हुई थी। यह सब देखकर जलतारा देवी मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हो रही थीं।
रात्रि का मध्य पहर...
महल में सभी कक्ष बंद थे। महल में ऐसा लग रहा था कि कोई है ही नहीं। मानो महल एक सुनसान महल था जहाँ कोई नहीं रहता हो।
तभी महल में डरवानी आवाज़ें आने लगीं, जैसे कितने ही राक्षस हों। वे महल के हर दरवाज़े के बाहर खून-मांस की सूंघ रहे थे। वे सात थे, जो महल में इस प्रकार विचर रहे थे, जैसे कितने दिनों से कुछ खाया न हो। उनका वेशभूषा बहुत अजीब था; उनके कपड़े बहुत गंदे और उनके बाल बहुत बड़े और गंदे थे, और उनके चेहरे पर गंदे बालों की वजह से उनके चेहरे साफ़ नहीं दिख रहे थे। उनके नाखून इतने बड़े और गंदे थे, जैसे कितने वर्षों से उन्हें साफ़ नहीं किया गया हो; उनके नाखून इतने बड़े थे कि किसी के पेट को फाड़ना या मारना बहुत सरल था।
वे सूँघते-सूँघते उस जलकुंड के पास गए। उन्होंने देखा जलकुंड के बीचों-बीच कोई है। वे अपने दोनों हाथों को जमीन पर पीट रहे थे, और अपनी छाती को भी पीट रहे थे। तभी उनकी नज़र रस्सी पर गई, तो वे भागे-भागे उस रस्सी को पकड़ लिया, और वे रस्सी को हिलाने लगे। कुछ देर में उन्होंने नाव को पलट दिया।
सुबह का दृश्य...
जब जलतारा देवी और दादा पंजर सिंह उस जलकुंड के पास पहुँचे, तो देखा कि दो हड्डियों के ढाँचे पड़े हैं और थोड़ा बहुत उन पर खून और माँस चिपका हुआ है, और एक हड्डी के हाथ में मनका देवी का प्रिय कंगन था। तभी जलतारा देवी ने देखा, और बड़ी प्रसन्नता के साथ बोली - "आज तो जश्न का दिन है, आज हम बहुत खुश हैं।"
दादा पंजर बोले - "जिस मकसद से तुम आई थीं, वह कार्य तो तुम्हारा पूरा हो गया, अब तो तुम्हें चले जाना चाहिए।"
तभी रानी जलतारा देवी गुस्से से दादा पंजर राठौड़ को धक्का देकर बोलीं - "पंजर, अभी तो तुझे हमारे मकसद की भनक भी नहीं है, और रही बात यहाँ से जाने की, तो एक बार कान खोल के सुन ले, तेरे पापों की सज़ा को लेकर आने वाले हैं हम, आज शाम के जश्न में उसको लाएँगे जिससे तेरी रूह की रूह काँप जाएगी।"
तभी रानी कुनरेवा देवी और उनकी बेटी रूपश्यामा देवी आईं, और यह सब देखकर रानी कुनरेवा देवी हँसते हुए बोलीं - "हमें तो मालूम था कि मृत्यु तो होगी। बधाई हो! अब आप हमारी इकलौती सास बन गईं, और अब आप दादा ससुर पंजर राठौड़ को मार देना, फिर आप इस महल की एक बूढ़ी रानी होगी, फिर रहना इस महल में...और हम अपने बेटे, बहुओं और बेटियों के साथ सन्यास ग्रहण कर लेंगे।"
तभी दादा पंजर राठौड़ कंपकपाती आवाज़ में बोले - "सब हमारी जान के पीछे क्यों पड़े हैं?"
जलतारा देवी, दादा पंजर राठौड़ की बात को अनसुना करते हुए सुकेत से बोली - "इन हड्डियों के ढाँचे को बाहर फेंक दो, और महल में जश्न का माहौल बनाओ।"
दादा पंजर पूरे महल में रेवाला को देखते रहे परंतु रेवाला का कोई अता-पता नहीं था, और दादा पंजर सोच रहे थे कि हमारा अंत समय आ गया, रेवाला भी भाग गई।
महल चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ था। श्राप के कारण उस महल में कोई आना नहीं चाहता था; सबको डर लगता था कि श्राप का असर उन पर न पड़ जाए, इसलिए सभी महल में आने से डरते थे।
शाम का समय...
महल के शाही कक्ष में रानी जलतारा देवी खुशी से बैठी थीं, और वहाँ महल के सभी सदस्य मौजूद थे। दादा पंजर सिंह डरते हुए पूछते हैं - "कौन आने वाला है, कितना समय लगेगा?"
रानी जलतारा कहने ही वाली थीं कि शाही कक्ष के मुख्य द्वार से आवाज़ आई - "लीजिए, हम आ गए।"
जैसे ही शाही कक्ष के मुख्य द्वार पर सबकी नज़र गई, तो दादा पंजर मूर्छित हो गए, और जलतारा देवी बोलीं - "यह नहीं हो सकता, तुम यहाँ कैसे?" और सभी के सभी हैरान और भयभीत हो गए।
आखिर कौन आया, जिसे देखकर दादा पंजर और जलतारा देवी हैरान हो गए?
रेवाला कहाँ है?
आखिर वे सात राक्षस की तरह दिखने वाले कौन थे?
आखिर महल का क्या श्राप है?
शाम के समय, महल में उत्सव मनाया जा रहा था। अचानक, महल के शाही कक्ष के मुख्य द्वार से एक आवाज आई - "लीजिए, हम आ गए हैं।"
सभी की नज़र शाही कक्ष के मुख्य द्वार पर पड़ी और सब हैरान हो गए। दादा पंजर मूर्छित हो गए। तभी जलतारा देवी ने कहा - "यह नहीं हो सकता, तुम यहाँ कैसे?" सभी हैरान और भयभीत हो गए।
कुछ देर बाद...
जब दादा पंजर को होश आया, तो उन्होंने देखा कि मनका देवी और सुखेर राठौड़ जीवित हैं। उन्हें इस बात की खुशी हुई, पर उन्हें देखते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। वे मन ही मन बोले, लगता है अब काल के मुख में समाना का समय आ गया है।
जलतारा देवी ने मनका देवी और सुखेर राठौड़ को जीवित देखकर कहा - "तुमने हमारे साथ विश्वासघात किया है, इतना बड़ा धोका दिया, क्यों?" और गुस्से में शरबत से भरा पात्र फेंक दिया।
तभी कनकमाला देवी बोलीं - "सभी अपने कक्षों में जाएँ। बाकी बात कल सुबह होगी।"
कनकमाला देवी, दादा पंजर राठौड़ की सगी बड़ी बहन थीं। जलतारा देवी ने उन्हें क्यों बुलाया और दादा पंजर उनसे क्यों डरते थे, यह सब आपको आगे के अध्याय में पढ़ने को मिलेगा।
सभी अपने-अपने कक्षों में चले गए। दादा पंजर को मनका देवी अपने कक्ष में ले जा रही थीं, कि कनकमाला देवी ने दादा पंजर को एक थप्पड़ मारते हुए आँखें बड़ी करके गुस्से में कहा - "देख पंजर, मैं इस महल में फिर से आई हूँ... मैंने जाते समय तुझसे कहा था कि जब मैं आऊँगी तो तेरा काल बनकर आऊँगी।"
जलतारा देवी ने कहा - "तो मार दीजिए, इस राक्षस को मार दीजिए। आज इसकी वजह से सबकी ज़िंदगी नरक बन गई।"
कनकमाला ने गुस्से में खंजर से दादा पंजर की आँख फोड़ दी और तेज आवाज़ में कहा - "अब पंजर, तुझे इतना तड़पाऊँगी, इस महल की रूह भी काँप उठेगी। बहुत तड़पाया... अब तुम्हें मैं तड़पाऊँगी, इतना कि तुम कभी नहीं सोचा होगा।"
तभी मनका देवी, दादा पंजर को घायल अवस्था में ले जा रही थीं कि जलतारा देवी ने उन्हें धक्का दे दिया। मनका देवी घुटनों के बल गिर गईं और कड़े स्वर में कहा - "अब इस पंजर को अकेले ही अपने आने वाले कल का सामना करना पड़ेगा।"
जलतारा देवी ने पंजर को धक्का दे दिया। दादा पंजर अपनी घायल आँख पर हाथ रखते हुए चुपचाप चले गए। दादा पंजर के जाने के बाद, दादी मनका देवी ने गुस्से में जलतारा देवी को ताने मारते हुए कहा - "क्यों जलतारा, हमें और हमारे बेटे को नहीं मार पाई तो अपनी मांग पूरी करने चली? चलो ठीक है, तुम्हें जिसको मारना होगा मार देना, हम भी देखते हैं कि कौन क्या कर सकता है।"
कनकमाला ने मनका देवी से कहा - "तुम अपने लिए कफ़न तैयार करवा लो, वरना अपना कफ़न भी नहीं पहन पाओगी।"
मनका देवी (आश्चर्य भाव से) - "जो कहना चाहती हो, वह साफ़-साफ़ बोलिए।"
कनकमाला देवी मुस्कराते हुए बोलीं - "इस महल में किसी का अंतिम संस्कार नहीं होता, तो प्रतिदिन नए वस्त्र कफ़न मानकर पहनो, समझी।"
तभी अचानक महल का मुख्य दरवाज़ा खुल गया, मानो महल में भूकंप आया हो। इसे देखकर सभी सदस्य महल के मुख्य द्वार के सामने आ गए। उन्होंने देखा कि मुख्य द्वार पर रेवाला खड़ी थी, उसके पूरे शरीर पर भस्म लगी हुई थी, और उसके लंबे-लंबे बाल खुले हुए थे और हवा में उड़ रहे थे, जैसे कोई चुड़ैल हो। रेवाला छह फुट लंबी और बिल्कुल काले रंग की थी। कोई रेवाला को दिन में अचानक देख ले तो उसकी भयानक रूप के कारण उसकी रूह भी काँप जाए।
तभी उर्वा, जलतारा देवी और सुकेत की ओर आश्चर्य से देखती है। मनका देवी के चेहरे पर खुशी के भाव थे, और वह मन ही मन सोच रही थी कि जलतारा को जल में तारा दिखाएँगी।
दादा पंजर तीसरे माले के अपने कक्ष में से सब देख रहे थे, और उनके हाथ में मदिरा का प्याला था।
कनकमाला भी देख रही थी और मन ही मन में कह रही थी, आ गई नौटंकी कहीं की।
तभी रेवाला तेज, कड़कते हुए उच्च स्वर में बोली - "इस महल में हर कोई षड्यंत्रकारी है। आने वाले समय में इस महल की दीवारें खून से लथपथ होंगी। सब के अंत की शुरुआत हो गई। अब तेरे मरने के दिन आ गए कनकमाला, तेरा अंत इतना भयंकर होगा कि इस महल की रूह भी काँप जाएगी। अब शुरू होगी इस महल के अंत की कहानी... उसने कहा था ना, जब इस महल में श्राप की शुरुआत होगी, तो इस महल की दीवारें खून के आँसू रोएँगी, और इस जलकुंड का पानी लाल हो जाएगा, और मात्र इस महल पर रक्त वर्षा होगी, और उसकी बात कभी खाली नहीं जाएगी, उसका श्राप कोई विफल नहीं कर सकता, आज इस महल में पानी भी खून में परिवर्तित हो जाएगा, सबका अंत आएगा..."
तभी रेवाला भयंकर तांडव नृत्य करने लगी। कनकमाला देवी हँसते हुए बोलीं - "अच्छी नौटंकीबाज हो तुम, अच्छा यह भी बता दो सबसे पहले इस श्राप किस पर पड़ेगा, या पड़ चुका है।"
तभी रेवाला अपना नृत्य बंद कर देती है और जमीन पर बैठकर, एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रखकर गुस्से में, और उसकी आवाज इतनी भारी और तेज होती है, और वह कहती है - "इस महल पर जो श्राप है, वह जिसकी वजह से उसको, यह श्राप भी है कि वह इस महल में सबसे अंत में मरेगा। सब का अंत करने वाला इसी महल में है, वह एक है या एक से अधिक यह वक्त बताएगा।"
तभी बादलों में बिजली इतनी जोर से कड़कती है कि सभी सहम जाते हैं। इतनी तेज आँधी चलती है कि महल की भारी-भारी वस्तुएँ जमीन पर गिर जाती हैं। तभी बादलों से रक्त की वर्षा होने लगती है। महल की दीवारों से रक्त रिसने लगता है, मानो महल की दीवारें रो रही हों। जलकुंड का पानी रक्त से लाल हो गया, और रेवाला अपनी छाती पीट रही थी, और साथ-साथ नृत्य कर रही थी। दादा पंजर के हाथ में जो मदिरा का प्याला था वह रक्त बन गया।
तभी अचानक उस रक्त की बारिश में सभी हैरान और भयभीत हो जाते हैं।
सभी ने ऐसा क्या देखा कि सब के सब हैरान और भयभीत हो गए?
आखिर कौन है इस श्राप का कारण?
मनका देवी और सुखेर राठौड़ कैसे बचे?
रेवाला के कहने पर, बादलों से रक्त की वर्षा होने लगी। महल की दीवारों से रक्त रिसने लगा, मानो महल की दीवारें रो रही हों। जलकुंड का पानी रक्त से लाल हो गया था। रेवाला अपनी छाती पीट रही थी और साथ-साथ नृत्य भी कर रही थी। दादा पंजर के हाथ में जो मदिरा का प्याला था, वह रक्त बन गया था।
तभी, उस रक्त की बारिश में सभी हैरान और भयभीत हो गए। वे सब देखते हैं कि रानी जलतारा की जासूस का शरीर काला पड़ चुका था और उसकी आँखों से रक्त के आँसू बह रहे थे। उसका शरीर कंपकंपाने लगा और उसके बाल, जो उसकी लम्बाई के बराबर थे, खुल गए। उसकी आवाज़ बदल गई थी। उसने बहुत अजीब स्वर में कहा-
"अभी दो पत्नियां और आएंगी इस सुमल की। उनमें से कोई एक होगी जो इस महल को बचा पाएगी। अगर उसने अपने क्रोध पर काबू पा लिया तो वह इस महल को बचाएगी। लेकिन इस महल को बर्बाद करने वाला कोई तो इस महल में..."
इतनी देर में रेवाला उस उर्वा को जलकुंड में फेंक देती है। तभी किसी ने दादा पंजर को तीसरे माले से नीचे फेंक दिया। सबकी नज़र कुंड पर थी, इस वजह से कोई देख नहीं पाया कि दादा पंजर को किसने फेंका।
सभी दादा पंजर के पास गए और उन्हें कक्ष में ले गए।
इधर, सुकेत उर्वा को पानी में देखता है, पर उर्वा का कुछ पता नहीं चलता। रानी जलतारा कहती है-
"हमें उर्वा चाहिए, हर किसी हालत में! वह ज़िंदा है, यह सब रेवाला का षड्यंत्र है।"
इधर, दादा पंजर को ज़ख्मी हालत में पलंग पर लिटाया जाता है। महल में कोई चिकित्सक नहीं था; सारे उपचार रेवाला ही करती थी। रेवाला दादा पंजर को जड़ी-बूटियों से निर्मित लेप लगाती है और कहती है-
"हड्डियाँ बहुत मज़बूत हैं। तीसरे माले से गिरने के बाद भी एक हड्डी भी नहीं टूटी है। सप्ताह भर में ठीक हो जाएँगे।"
कनकमाला ताने देते हुए कहती है-
"आज नहीं तो कल टूटेगा पंजर। देखो, महल में श्राप की शुरुआत हो गई है। अब नहीं जाने कौन और कब मर जाएगा, क्या पता?"
दादा पंजर बहुत धीरे शब्दों में कहते हैं-
"हमें किसी ने जानबूझकर धक्का दिया है। कोई हमको जानबूझकर मारना चाहता है।"
जलतारा देवी गुस्से में कहती है-
"कोई हमसे भी पहले मारना चाहता है। चलो, जल्दी से यह पंजर मर जाए।"
मनका देवी सभी को इशारा करके बाहर भेज देती है, लेकिन रेवाला को रोक लेती है।
इधर, राजा सुमल गहरी चिंता में बैठे हुए हैं। तभी राजा सुमल की पहली पत्नी उरका देवी आती है और कहती है-
"क्या हुआ महाराज...? आप क्या सोच रहे हैं?"
राजा सुमल कहते हैं-
"जो उर्वा ने कहा कि अभी दो आएंगी... इसका मतलब हमको दो बार और विवाह करना पड़ेगा। पर श्राप के अनुसार हमें मात्र दस विवाह ही करने हैं, पर ग्यारह कैसे?"
रानी उरका देवी शांत स्वर में कहती है-
"महाराज, अगर आप गुस्सा ना करें तो एक बात पूछूँ।"
राजा सुमल अपना सिर हाँ में हिलाते हैं।
रानी उरका देवी कहती है-
"आखिर वह श्राप क्या है? आप हमको बता सकते हैं।"
राजा सुमल कहते हैं-
"हम वह श्राप तो नहीं बता सकते। बस इतना कह सकते हैं, भगवान का जप कीजिए। शायद आप इस श्राप से बच जाएँ। और भगवान का जप एकांत और गुप्त तरीके से करना, किसी को भनक नहीं लगनी चाहिए।"
रानी उरका देवी चली जाती है। जब उरका देवी अपने कक्ष की ओर जा रही थीं, तो उन्हें ऐसा लगा जैसे उनका कोई पीछा कर रहा है। वह पीछे मुड़कर भी देखती हैं, पर उन्हें कोई नहीं दिखाई देता।
इधर, महल में राजा सुखेर राठौड़ की चौथी पत्नी कनिसेगा की बेटी पुलिता देवी महल से बाहर गुप्त तरीके से निकल जाती है, यानी वह महल छोड़कर चली जाती है।
मनका देवी रेवाला से कहती है-
"तुम यह कौन सा प्रपंच कर रही हो? जरा हमें भी बताओ। और तुम कहाँ थीं? क्या हम इस महल में सुरक्षित हैं या नहीं?"
रेवाला कहती है-
"इस महल में कोई सुरक्षित नहीं है। क्यों? तुम्हारे ही घर के लोग एक-दूसरे से बदला लेने के लिए तत्पर हैं।"
मनका देवी कहती है-
"हमें कोई बचने का मार्ग बताओ, जिससे हम बच जाएँ।"
रेवाला कहती है-
"तुम्हारे लिए उपाय हैं, पर इस पंजर के लिए नहीं..."
पंजर धीमे स्वर में हँसते हुए कहता है-
"उपाय...? तुम तो खुद एक दुविधा हो! तू इस मनका को उपाय बताएगी? इस बार सबकी मौत आई है, रेवाला, शायद तेरी भी..."
रेवाला दादा पंजर की जो आँख फूटी थी, उस पर गरम घी डालती है और दादा पंजर की चीख निकलने लगती है। तभी रेवाला हँसते हुए कहती है-
"पंजर, कैसा लग रहा है? मैं तुम्हें मार नहीं सकती, लेकिन तुम्हें तड़पा तो सकती हूँ। पंजर, मेरी मौत होगी या नहीं होगी, यह तो आने वाला मेरा वक़्त बताएगा।"
रेवाला दादा पंजर की आँखों में घी डालना बंद कर देती है और मनका से धीमे स्वर में कहती है-
"अभी केवल जलतारा और कनकमाला पर नज़र रखो। और हम तुम्हें इस श्राप से बचाने के लिए कल शैतान को बलि देंगे।"
इधर, मध्यरात्रि को जब रक्त की वर्षा हो रही होती है, तो महल के सारे सैनिक, नौकर वहाँ से भाग जाते हैं। और वे सात राक्षस की तरह दिखने वाले आते हैं और खून को दीवारों से चाटने लगते हैं। जलकुंड, जिसमें रक्त भरा होता है, उसे पीने लगते हैं और महल में उछलने लगते हैं।
सुबह के समय...
जब कुनरेवा देवी बताती है कि महल के सारे नौकर और सैनिक यहाँ से जा चुके हैं और वे यहाँ कभी नहीं आएंगे और पुलिता देवी महल से गायब है, तभी मनका देवी गुस्से में कहती है-
"जिसे जाना है, वह जाए। और अच्छा है, एक-एक करके सब मर रहे हैं।"
कुनरेवा देवी कहती है-
"यह रक्त की वर्षा नहीं जाने कब बंद होगी।"
तभी महल के दरवाजे पर लगा स्वर्ण घण्ट को कोई बजा रहा होता है। तभी कुनरेवा देवी उस दरवाजे के पास पहुँचती है और देखती है कि दरवाजा जासूस सुकेत ने खोल दिया है।
रानी कुनरेवा देवी राजा सुमल को देखती है और गुस्से में कहती है-
"क्यों इस महल में सभी को श्राप का भागी बना रहे हो? क्यों?"
जब महल के सभी सदस्य आते हैं, तो सभी देखकर थोड़े असमंजस में, थोड़े आश्चर्य में पड़ जाते हैं।
आखिर ऐसा क्या किया राजा सुमल ने जिससे सभी के होश उड़ गए?
उर्वा आखिर कहाँ गायब हो गई?
उरका देवी का पीछा कौन कर रहा था?
रानी कुनरेवा देवी ने महल के मुख्य दरवाजे पर राजा सुमल को देखते हुए गुस्से से कहा, "क्यों, इस महल में सभी को श्राप का भागी बना रहे हो, क्यों?"
महल के सभी सदस्य वहाँ आये और दृश्य देखकर असमंजस और आश्चर्य में पड़ गए। महल में उपस्थित सभी सदस्य थोड़े असमंजस में राजा सुमल को देख रहे थे। तभी राजा सुमल की दूसरी पत्नी, गुमान देवी, गुस्से से बोली, "और कितनी चिड़ियों को अपने जाल में फँसाएँगे, महाराज आप तो एक..."
रानी गुमान देवी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि दादी मनका देवी ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ मारते हुए तेज आवाज़ में कहा, "ज्यादा जवान चलाओगी तो जवान ही तुम्हें जलाकर राख कर देंगे, समझी? इस महल के राजकुमार हैं सुमल, वह चाहे जो भी करें कर सकते हैं, समझी? अब किसी ने कुछ बोला तो वह न तो बोलने लायक रहेगा और न ही खाने लायक, उसका मुँह कुचल देंगे।"
मनका देवी ने रेवाला को आदेश देते हुए कहा, "रेवाला, नई बहुओं को महल में प्रवेश कराने की तैयारी जल्दी करो।"
तभी जलतारा देवी बोली, "रेवाला ही क्यों, हम करेंगी इन नई बहुओं का गृहप्रवेश।"
राजा सुमल ने तीन विवाह किए थे जिनमें से उनकी नई पत्नियों के नाम थे:
दसवीं पत्नी - दियावती देवी (इनके शरीर का रंग कोयले के समान काला था।)
ग्यारहवीं पत्नी - संसिका देवी (यह काली माँ की उपासक और उनकी अपार भक्त थीं। इनके साथ राजा सुमल की सभी पत्नियाँ अत्यधिक रूपवान एवम् आकर्षक थीं।)
बारहवीं पत्नी - करिला देवी (यह तलवारबाजी और धनुर्विधा में निपुण थी, इनका स्वभाव मर्दों जैसा था। इन्हें सजना-सँवरना बिलकुल पसंद नहीं था, बल्कि मर्दों की तरह काम करना पसंद था। यह साफ़-साफ़ मुँह पर बोलती थी।)
तभी राजा सुमल ने कहा, "गृहप्रवेश होगा या नहीं? आज रात हमें यहीं महल के बाहर रात गुज़ारनी होगी क्या?"
तभी कनकमाला देवी ने कहा, "इस महल में आज से कोई शुभ कार्य रेवाला नहीं करेगी, और इस महल में सभी शुभ कार्य जलतारा देवी करेंगी।"
महल में लगातार रक्त की वर्षा हो रही थी। अचानक महल में बिजली गिरी। बिजली महल के मंदिर के मुख्य गुंबद पर गिरी और वह अचानक गिर गया। उस मंदिर से लाखों चमगादड़ निकलीं और महल की दीवारों से चिपक गईं, जिनसे रक्त निकल रहा था।
महल में सभी लोग अपने कक्षों में भाग ही रहे थे कि तभी उर्वा वहाँ आई और सभी को रोकते हुए बोली, "ठहरो, ठहरो सभी! रुको क्योंकि अब किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अब वह आ गई है जो तुम्हें इस महल के श्राप से मुक्त करवाएगी।" सुकेत और जलतारा देवी एक-दूसरे की ओर देखकर काफी खुश हुए।
तभी जलतारा देवी खुशी से बोली, "आज से सभी शुभ कार्य उर्वा करेगी, और आज से जितने भी अशुभ कार्य हैं उन्हें भी उर्वा समाप्त करेगी।"
रेवाला का मुँह गुस्से से कद्दू की तरह फूल गया था। जलतारा मन ही मन में बहुत खुश थी, जिसका भाव उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था।
थोड़ी देर बाद उर्वा ने तीनों बहुओं का गृहप्रवेश करवाया और जैसे ही तीनों बहुएँ महल में अपना पहला पैर रखा, वैसे ही महल में रक्त वर्षा बंद हो गई। जब बहुएँ महल में पूरी तरह प्रवेश कर गईं, तो महल के जल-कुंड का रक्त जल में परिवर्तित हो गया और महल की दीवारों का रक्त गायब हो गया। तभी महल की दीवारों से चिपकी चमगादड़ें रेवाला के शरीर पर चिपक गईं।
यह देखकर सभी डर गए, तो उर्वा ने सभी को शांत करते हुए कहा, "डरिए मत, यह आपको कुछ नहीं करेंगी, क्योंकि इन सबको रेवाला ने सम्मोहन विद्या से सम्मोहित कर रखा है।"
जलतारा देवी: "पर यह रेवाला पर ही क्यों चिपक गईं?"
उर्वा: "क्योंकि अब यह हमारे सम्मोहन में हैं, अब यह वही करेंगी जो हम कहेंगे, और जिसे आप मंदिर समझते थे, वह एक चमगादड़ का घर है।"
तभी अचानक सभी चमगादड़ उड़कर महल के सबसे ऊँचे माले पर बने एक बड़े गुंबद से चिपक गईं। महल के ऊँचे गुंबद से अजीब सी तरंगें निकल रही थीं, जिन्हें केवल रेवाला ही देख पा रही थी, और हल्की सी मुस्कान लिए उसके चेहरे पर ऐसा लग रहा था मानो उसके मन में कोई भयानक षड्यंत्र जन्म लेने जा रहा हो।
तभी मनका देवी ने उर्वा से कहा, "क्यों उर्वा? यह चमगादड़ तो आपके सम्मोहन में थीं, तो रेवाला से इन्हें किसने छुड़ाया? आप ही बताएँ।"
उर्वा: "महल में कोई तो है जो इनको अपने वश में कर रहा है।"
उर्वा मन ही मन में कहती है, "जब महल के सभी लोग यहाँ हैं, तो कौन इन चमगादड़ों को अपने सम्मोहन में कर रहा है?"
तभी मनका देवी बोली, "रेवाला ने इस महल को श्राप से बचाकर रखा है, और यह उर्वा हमें रेवाला के खिलाफ भड़काकर हमें रेवाला के लिए नफरत और अपने लिए विश्वास जीतना चाहती है। आखिर है यह जलतारा की तलवे चाटने वाली दासी।"
जलतारा ने गुस्से में मनका देवी को धक्का देते हुए कहा, "अपनी जवान को संभाल के रखो, क्योंकि जब डर के कारण जब चीखोगी कि, 'कोई तो मुझे बचाओ, बचाओ!' " और जोर-जोर से हँसती रही।
तभी रेवाला बोली, "आज इस उर्वा ने नई बहुओं का जो गृहप्रवेश करवाया है, उसने उसमें अपनी काली शक्तियों से काला जादू किया है, जिसके कारण यह महल अशुद्ध हो गया है। अब इस महल को शुद्ध करना होगा, वह भी इसी समय। सबसे पहले इन बहुओं का शुद्धिकरण होगा।"
तभी राजा सुमल गुस्से में चिल्लाते हुए बोले, "बस शांत हो जाइए रेवाला जी! आपने कहा था हमारे दस विवाह होंगे, लेकिन उर्वा ने हमें सच बताया। उन्होंने कहा हमारे विवाह तब तक होते रहेंगे जब तक इस महल को श्राप मुक्त करने वाली कोई इस महल में नहीं आ जाती, और इस महल को श्राप से सुरक्षित रखने वाली भी आएगी। मतलब हमारी बारह पत्नियों में से कोई एक महल के श्राप को मुक्त करवाएगी और एक हम सबको सुरक्षित रखेगी, और अगर इन बारह पत्नियों में से वह नहीं है तो अभी हमारी और पत्नियाँ आएंगी। और रही बात हमारी बहनों की तो केवल एक बची है, शायद वह भी हम सबको छोड़ जाए।"
तभी उर्वा तेज आवाज़ में सभी से बोली, "अब आपको महाराज और विवाह करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह आ गई है, महल के श्राप से सभी को बचाने वाली आ गई है, वह आ गईं।" और रेवाला जोर-जोर से नृत्य करने लगी।
तभी राजा सुमल की नौवीं पत्नी धरिता ने गुस्से में चीखकर कहा, "आखिर इस महल का श्राप क्या है?"
तभी महल में ऐसा कुछ हुआ जिससे महल के सभी सदस्य डरकर अपनी जान बचाकर भागने लगे, जैसे उन्होंने अपने काल को देख लिया हो।
आखिर महल का श्राप क्या है? ऐसा हुआ क्या कि सब अपनी जान बचाकर भागने लगे?
महल में राजा सुमल के तीन विवाह हो चुके थे और महल में आपसी बहसबाजी आम बात हो गई थी। तभी उर्वा तेज आवाज़ में बोली, "अब महाराज को और विवाह करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह आ गई है, महल के श्राप से सभी को बचाने वाली आ गई है।" रेवाला जोर-जोर से नृत्य करने लगी।
तभी राजा सुमल की नौवीं पत्नी, धरिता ने गुस्से में चीखकर कहा, "आखिर इस महल का श्राप क्या है?"
महल में कुछ ऐसा हुआ कि सभी सदस्य डरकर अपनी जान बचाने भागने लगे, मानो उन्होंने अपने काल को देख लिया हो।
महल के सभी सदस्य इधर-उधर भागने लगे क्योंकि सात राक्षस आ गए थे। धरिता ने श्राप का नाम ले लिया था। सभी सदस्य अपने-अपने कक्ष की ओर भागने ही वाले थे कि राक्षसों ने उन्हें घेर लिया। सबकी रूह काँप गई, पर दादा पंजर अपने कक्ष में थे, जख्मी हालत में।
वो सात राक्षस अपनी छाती पीट रहे थे। उनके चेहरे गंदगी और सूखे खून से सने बालों में छिपे थे, पर उनके गंदे दांत दिखाई दे रहे थे। उनकी हँसी ऐसी थी कि लोगों की रूह काँप जाती।
यह सब देखकर राजा सुमल की ग्यारहवीं पत्नी, संसिका देवी बेहोश होकर गिर गईं।
छह राक्षस सभी की ओर बढ़ने लगे। उर्वा ने अपने काले जादू से काला धुआँ कर दिया।
उनमें से एक राक्षस दादा पंजर के पास पहुँचा और उनकी फटी हुई आँख से खून चाटने लगा। पर दादा पंजर भयभीत नहीं थे; वे आराम से अपनी आँख का खून चटवा रहे थे।
जैसे ही काला धुआँ साफ़ हुआ, छह राक्षस भूख से महल में भोजन ढूँढ़ने लगे।
उर्वा ने महल के सभी लोगों को शाही कक्ष के पीछे बने एक गुप्त कमरे में ले आई। कमरे में अंधेरा था, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। राजा सुखेर राठौड़ बोले, "क्या इस कक्ष में सभी सदस्य उपस्थित हैं?"
उर्वा ने अपनी तंत्र-विद्या से रोशनी की। उन्होंने देखा कि राजा सुमल की सभी पत्नियाँ गायब थीं, मनका देवी, जलतारा देवी और रेवाला भी नहीं थीं। कक्ष में केवल राजा सुखेर राठौड़, सुमल राठौड़, कनकमाला देवी, कुनरेवा देवी, उनकी बेटी रूपश्यामा और जासूस सुकेत उपस्थित थे। राजा सुखेर राठौड़ बोले, "आज, सब महल के श्राप की अग्नि में जल जाएँ, पर हमारी माँ को कुछ नहीं होना चाहिए।"
कनकमाला देवी बोलीं, "सुखेर, तुम्हें ये सूखे शब्द कहना शोभा नहीं देता। तुम चिंता क्यों करते हो? तुम्हारे महल की रक्षक रेवाला है, वह मनका को कुछ नहीं होने देगी, और बाकी सबको मार डालेगी।"
राजा सुखेर गुस्से में बोले, "अपनी ईर्ष्या का खंजर हम पर मत चलाइए, वरना उसी खंजर से आपको काटकर, आपके टुकड़े आपके पिता को खिलाऊँगा।"
कनकमाला बोलीं, "कौन किसके टुकड़े खिलाएगा, यह तो कल ही पता चलेगा।"
सुकेत बोला, "दादा पंजर जी भी बाहर हैं, घायल अवस्था में। वे अपना कैसे बचाव करेंगे?"
कनकमाला ने गुस्से में सुकेत को चुप रहने का इशारा किया।
उरका देवी तीनों नई बहुओं को लेकर महल के दूसरे माले पर अपने कक्ष में ले आईं। संसिका देवी अभी भी मूर्छित थीं। गुस्से से करिला देवी बोली, "यह महल है या जंगली जानवरों का घर? हमें यहाँ से जाना होगा, अभी!"
उरका देवी ने करिला देवी को समझाते हुए कहा, "थोड़ा संयम रखो, महल में वह है, इसलिए रात्रि में कोई भी कक्ष से बाहर नहीं निकलता।"
दियावती देवी धीमे और डरते हुए स्वर में बोली, "वह सात राक्षस।"
तभी किसी ने उरका देवी के कक्ष का दरवाज़ा तोड़ दिया। वह राक्षसों में से एक था। दरवाज़ा खुलते ही उसने उरका देवी पर आक्रमण किया। करिला देवी ने दीवार पर रखी तलवार से उस पर प्रहार किया, पर गलती से तलवार उरका देवी के हाथ में लग गई। इतने में दियावती देवी ने दीपक से परदे में आग लगाकर राक्षस को भगा दिया।
गुमान देवी गलती से अपने कक्ष की जगह किसी दूसरे कक्ष में चली गईं, पर किसी ने उनके सिर पर वार कर उन्हें घायल कर दिया।
कांति देवी और रुधारा देवी महल के सबसे ऊपरी हिस्से में पहुँचीं और छत के एक कोने में छिप गईं। कुछ देर बाद रुधारा देवी अचानक गायब हो गईं।
मैना देवी अपने कक्ष के गुप्त छिद्र देख रही थीं। मनका देवी बिना डरे छत की ओर जा रही थीं और अचानक उनकी आँखों के सामने ऊपर चली गईं। मैना कुछ सोच पाती, इससे पहले ही मूर्छित हो गईं।
किसी ने जलतारा देवी को पहले मूर्छित किया, फिर चाकू से घायल करके उन्हें सातवें माले की सीढ़ियों पर छोड़ दिया। कनिषा देवी यह सब देख रही थी, पर चुप रही।
रेवाला और धरिता रसोई में छिप गईं। धरिता ने रेवाला से कहा, "आप यहाँ चूहे की तरह क्यों छिपी हुई हैं? आप तो इस महल की महान रक्षक हैं, तो करिए, इस महल के लोगों की रक्षा करिए।"
रेवाला गुस्से में बोली, "पहले हम तुम्हारी रक्षा इस महल से करेंगे, क्योंकि तुम इस श्राप को मिटा सकती हो।"
धरिता कुछ बोली नहीं। रेवाला ने उसकी आँखों में मिर्च डालकर उसके सिर पर मूसल मार दिया। रेवाला मूर्छित हो गई।
सुबह होते ही रानी त्रिनैना देवी चीख-चीखकर सभी को महल के मुख्य आंगन में बुलाती हैं। जो भी आंगन में आया, उसकी रूह काँप गई।
आखिर ऐसा क्या देखा कि सबकी रूह काँप गई? आखिर वह कौन होगा जो इस श्राप से मुक्ति दिलाएगा?
धरिता ने बिना कुछ कहे रेवाला की आँखों में मिर्च डालकर उसके सिर पर मूसल मार दिया। रेवाला मूर्छित हो गई।
सुबह हुई। रानी त्रिनैना देवी चीख-चीखकर सभी को महल के मुख्य आंगन में बुला रही थीं। जो भी उस आंगन में आया, उसकी रूह कांप गई।
रानी त्रिनैना देवी की आवाज़ सुनकर उर्वा ने खुफिया दरवाज़ा खोला और महल के मुख्य आंगन की ओर गई।
अचानक राजा सुखेर को प्यास लगी। जाते समय महल के एक सदस्य ने उन्हें पानी दिया, जिसे उन्होंने पी लिया।
महल के मुख्य आंगन में पहुँचकर राजा सुखेर ने देखा कि दादी मनका देवी का शरीर नीला पड़ा हुआ था और उनकी दोनों आँखें नोची हुई थीं। उनके शरीर में एक बूँद भी रक्त नहीं था, जिससे उनका शरीर नीला पड़ गया था।
जैसे ही गुस्से में लाल दादा पंजर ने अपनी तलवार निकाली और कुछ कहने ही वाले थे कि उनका पूरा शरीर काँपने लगा और वे जमीन पर गिर पड़े। वे जमीन पर ऐसे फड़फड़ा रहे थे जैसे बिना पानी की मछली।
राजा सुखेर की सहायता करने से पहले ही रानी कुनरेवा देवी खुश होकर बोलीं, "तड़पने दो इस सुखेर को! अब हम इस महल की रानी हैं, और किसी ने इनकी मदद करने या दया दिखाने की कोशिश की तो वह इस महल में जीवित नहीं रहेगा।"
राजा सुखेर की हालत लाचार होती देख रानी कुनरेवा देवी अपने असली रूप में आ गई। तभी उर्वा की नज़र महल के सदस्यों पर गई, जहाँ उसने देखा कि रेवाला, रुधारा देवी और जलतारा देवी उपस्थित नहीं थीं। उसने सुकेत को इशारा किया और सुकेत वहाँ से चला गया।
अचानक रेवाला आई और देखा कि मनका देवी मर चुकी थी और राजा सुखेर के हाथ-पैर हल्के-हल्के नीले पड़ रहे थे, और वे जमीन पर तड़प रहे थे। तभी रेवाला बोली, "सो जा सुखेर, सो जा! अब तेरी माँ नहीं रही है, और यह कुनरेवा और जलतारा और भी सदस्य हैं इस महल के, हमको इस महल में नहीं रहने देंगे।"
कनकमाला देवी बोलीं, "तो चली जाओ! वैसे भी तुम्हारी हितैषी मनका तो मर चुकी है, अब तुम इस महल में क्या करोगी?"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह नकली आँसू बहाने का कोई फायदा नहीं है! जो ढोंग-ढकोसले तुम करती हो, उनका श्रेय तुम्हें कोई नहीं देने वाला। वैसे तुम यहाँ नौकर का काम कर सकती हो, लेकिन नौकर और कुछ बनने के लिए तीतर भी उड़ाने मत लगना, समझी?"
नई बहू करिला देवी बोली, "माँ जी, दादी सास का क्रिया-कर्म कब होगा? इनके लिए पूस का आसन बिछा देते हैं, तब तक पिता ससुर को होश आता है।"
कुनरेवा देवी ने आँखें चढ़ाकर गुस्से में उर्वा देवी के केश पकड़ लिए और बोलीं, "तुम इस घर की बड़ी बहू हो और तुम्हारे होते हुए इस नई बहू को बोलने की हिम्मत कैसे हुई? इन तीनों को समझा दो कि महल में क्रिया-कर्म नहीं होता है!" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने उर्वा देवी के केश छोड़ते हुए उन्हें हल्का-सा धक्का देकर चला दिया।
तभी कनकमाला, रेवाला को ताने मारते हुए बोलीं, "अरे रेवाला, इनके महान पति उस पंजर को भी इनके दर्शन करा देना और फिर इस मनका की लाश को अपने प्रिय और शुभ हाथों से नमक के बोरे में रखकर इस महल के पीछे बरगद के पेड़ पर टांग देना, ठीक है?"
तभी जासूस सुकेत ने जलतारा देवी को अपनी दोनों बाहों में उठा लिया। घबराहट के कारण उसके माथे पर पसीना आ गया था। वह उर्वा से बोला, "किसी ने इनके जख्मों में विष लगाया है, जिससे इनकी मौत शीघ्र हो जाए। हमें इनका जल्द से जल्द उपचार करना होगा।"
जासूस सुकेत और उर्वा जल्दी से जलतारा देवी को कक्ष में ले गए और कक्ष को अंदर से बंद कर दिया।
कुछ देर बाद राजा सुमल दादा पंजर के कक्ष में गए और देखा कि दादा पंजर अपने कक्ष से गायब थे।
इधर कुनरेवा देवी ने सभी बहुओं को अपने कक्ष में बुलाया। उसने देखा कि रुधारा देवी के अलावा सभी ग्यारह बहुएँ उपस्थित थीं। वह सभी से पूछी, "रुधारा कहाँ है? हमसे सच छिपाने की भूल मत करना, हमें रुधारा के बारे में बताओ।" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने अपने कक्ष का दरवाज़ा और सभी खिड़कियाँ बंद कर दीं और अपने कक्ष के अंदर एक छोटी-सी कोठरी में सभी बहुओं को ले गई।
वह एक बार फिर पूछी, "रुधारा कहाँ है?"
तब कांति देवी डरते हुए बोलीं, "हम रुधारा के साथ ही थे कि अचानक काला धुआँ हुआ और वह गायब हो गई। और डर के कारण हमारी हिम्मत नहीं हुई कि हम रुधारा को ढूँढ सकें।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह हमें पहले क्यों नहीं बताया?"
कांति देवी बोलीं, "हम कैसे बताते? दादी मनका की मौत हो गई, इसलिए हमें कुछ समझाने और कहने का मौका ही नहीं मिला।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह सब छोड़ो! हमें यह बताओ कि मनका को किसने मारा? हमें बस इतना बताओ कि आखिर किसने इतनी हिम्मत की कि मनका को नरक में स्थान दिलाया?"
तभी धरिता बोली, "हमें लगता है मनका—मेरा मतलब दादी सास को—छोटी दादी सास जलतारा देवी ने मारा होगा, तभी इतनी घायल अवस्था में मिली थीं।"
गुमान देवी बोलीं, "रात को किसी ने हमारे सर पर वार किया था, उसके बाद हमें नहीं पता क्या हुआ। हमारी आँखें सुबह ही खुलीं जब त्रिनैना सभी को आंगन में बुला रही थीं।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह सब बातें छोड़ो! बस इतना याद रखो कि अब तुम्हें रेवाला को ऐसी मौत देनी है जिससे इस महल की रूह काँप जाए, समझी?" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने सभी को जाने के लिए कहा।
इधर उर्वा, रानी जलतारा का उपचार कर रही थी और सुकेत से बोली, "इनके जख्मों में विषफल का जहर है जो इनके जख्मों में अभी कुछ समय पहले लगाया गया है, इसलिए इनके शरीर में जहर का असर कम है। अब हमें शीघ्र ही इस षड्यंत्र के पीछे कौन है इसका पता करना होगा।"
सुकेत बोला, "राजा सुखेर का अचानक इस तरह बीमार हो जाना, लगता है, उन्हें भी जहर दिया गया है।"
उर्वा बोली, "रात भर हम उनके साथ थे तो जहर कब दिया गया राजा सुखेर को?"
सुकेत बोला, "हम राजा सुखेर के शरीर में विष का पता करते हैं, आखिर उन्हें कौन सा विष दिया गया है।"
उर्वा बोली, "क़दम-क़दम आँख-कान-नाक को सतर्क रखना।"
इतना कहकर सुकेत वहाँ से चला गया।
इधर रेवाला ने मनका देवी के मृत शरीर पर कपड़ा ढँक दिया और राजा सुखेर को उनके कक्ष में ले जाकर उनका उपचार करने लगी क्योंकि राजा सुखेर अभी भी मूर्छित अवस्था में थे। वह मन ही मन कहती रही, आखिर मनका देवी को मारा किसने और आखिर रात को क्या-क्या हुआ? हमें इसकी सटीक जानकारी एकत्रित करनी होगी।
राजा सुमल पूरे महल में दादा पंजर को ढूँढते रहे, लेकिन दादा पंजर उन्हें कहीं नहीं मिले।
आखिर मनका देवी की मृत्यु कैसे हुई? राजा सुखेर और रानी जलतारा देवी को किसने जहर दिया? रानी रुधारा कहाँ है? कुनरेवा देवी रेवाला को क्यों मरवाना चाहती है? रेवाला और उर्वा में से कौन सबसे पहले मनका देवी की मौत का पता लगा पाएगा?
धरिता ने बिना कुछ कहे रेवाला की आँखों में मिर्च डालकर उसके सिर पर मूसल मार दिया। रेवाला मूर्छित हो गई।
सुबह हुई। रानी त्रिनैना देवी चीख-चीखकर सभी को महल के मुख्य आंगन में बुला रही थीं। जो भी आंगन में आया, उसकी रूह काँप गई।
रानी त्रिनैना देवी की आवाज़ सुनकर उर्वा ने खुफिया दरवाज़ा खोला और महल के मुख्य आंगन की ओर गई।
राजा सुखेर को प्यास लगी। जाते समय महल के एक सदस्य ने उन्हें पानी दिया, जो उन्होंने पी लिया।
महल के मुख्य आंगन में पहुँचकर राजा सुखेर ने देखा कि दादी मनका देवी का शरीर नीला पड़ा हुआ था और उनकी दोनों आँखें नोची हुई थीं। उनके शरीर में एक बूँद भी रक्त नहीं था, जिससे उनका शरीर नीला पड़ गया था।
गुस्से में लाल दादा पंजर ने अपनी तलवार निकाली। कुछ कहने ही वाले थे कि उनका पूरा शरीर काँपने लगा और वे जमीन पर गिर पड़े। वे जमीन पर बिना पानी की मछली की तरह फड़फड़ा रहे थे।
राजा सुखेर की सहायता करने से पहले ही रानी कुनरेवा देवी खुशी से बोलीं, "तड़पने दो इस सुखेर को! अब हम इस महल की रानी हैं, और अगर किसी ने इनकी मदद करने या दया दिखाने की कोशिश की तो वह इस महल में जीवित नहीं रहेगा।"
राजा सुखेर की हालत लाचार होती देख रानी कुनरेवा देवी अपने असली रूप में आ गई। तभी उर्वा की नज़र महल के सदस्यों पर गई, जहाँ उसने देखा कि रेवाला, रुधारा देवी और जलतारा देवी उपस्थित नहीं थीं। उसने सुकेत को इशारा किया, जिससे सुकेत वहाँ से चला गया।
अचानक रेवाला आई और देखा कि मनका देवी मर चुकी थी और राजा सुखेर के हाथ-पैर हल्के नीले पड़ रहे थे और वे जमीन पर तड़प रहे थे। तभी रेवाला बोली, "सो जा सुखेर, सो जा! अब तेरी माँ नहीं रही है, और यह कुनरेवा और जलतारा और भी सदस्य इस महल के, हमको इस महल में नहीं रहने देंगे।"
कनकमाला देवी बोलीं, "तो चली जाओ! वैसे भी तुम्हारी हितैषी मनका तो मर चुकी है, अब तुम इस महल में क्या करोगी?"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह नकली आँसू बहाने का कोई फायदा नहीं है। जो ढोंग-ढकोसले तुम करती हो, उनका श्रेय तुम्हें कोई नहीं देने वाला। वैसे तुम यहाँ नौकर का काम कर सकती हो, लेकिन नौकर और कुछ बनने के लिए तीतर भी उड़ाने मत लगना, समझी?"
नई बहू करिला देवी बोली, "माँ जी, दादी सास का क्रिया-कर्म कब होगा? इनके लिए पूस का आसन बिछा देते हैं, तब तक पिताजी को होश आता है।"
कुनरेवा देवी ने गुस्से में उरका देवी के केश पकड़ लिए और बोलीं, "तुम इस घर की बड़ी बहू हो और तुम्हारे होते हुए इस नई बहू को बोलने की हिम्मत कैसे हुई? इन तीनों को समझा दो कि महल में क्रिया-कर्म नहीं होता है।" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने उरका देवी के केश छोड़ते हुए उन्हें हल्का-सा धक्का देकर चली गईं।
तभी कनकमाला ने रेवाला को ताने मारते हुए कहा, "अरे रेवाला! इनके महान पति उस पंजर को भी इनके दर्शन करा देना और फिर इस मनका की लाश को अपने प्रिय और शुभ हाथों से नमक के बोरे में रखकर इस महल के पीछे बरगद के पेड़ पर टाँग देना, ठीक है?"
तभी जासूस सुकेत ने जलतारा देवी को अपनी दोनों बाहों में उठा लिया। घबराहट के कारण उसके माथे पर पसीना आ गया था। उसने उर्वा से कहा, "किसी ने इनके ज़ख्मों में विष लगाया है, जिससे इनकी मौत शीघ्र हो जाए। हमें इनका जल्द से जल्द उपचार करना होगा।"
जासूस सुकेत और उर्वा जल्दी से जलतारा देवी को कक्ष में ले गए और कक्ष को अंदर से बंद कर दिया।
कुछ देर बाद राजा सुमल दादा पंजर के कक्ष में गए और देखा कि दादा पंजर अपने कक्ष से गायब थे।
इधर कुनरेवा देवी ने सभी बहुओं को अपने कक्ष में बुलाया। रुधारा देवी के अलावा सभी ग्यारह बहुएँ उपस्थित थीं। उन्होंने सभी से पूछा, "रुधारा कहाँ है? हमसे सच छिपाने की भूल मत करना, हमें रुधारा के बारे में बताओ।" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने अपने कक्ष का दरवाज़ा और सभी खिड़कियाँ बंद कर दीं और अपने कक्ष के अंदर एक छोटी सी कोठरी में सभी बहुओं को ले गईं।
वह फिर रुधारा के बारे में पूछीं, "रुधारा कहाँ है?"
तब कांति देवी डरते हुए बोलीं, "हम रुधारा के साथ ही थे कि अचानक काला धुआँ हुआ और वह गायब हो गई। डर के कारण हमारी हिम्मत नहीं हुई कि हम रुधारा को ढूँढ़ सकें।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह हमें पहले क्यों नहीं बताया?"
कांति देवी बोलीं, "हम कैसे बताते? दादी मनका की मौत हो गई, इसलिए हमें कुछ समझाने और कहने का मौका ही नहीं मिला।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह सब छोड़ो, हमें यह बताओ कि मनका को किसने मारा? हमें बस यह बताओ कि आखिर किसने इतनी हिम्मत की कि मनका को नरक में स्थान दिलवाया?"
तभी धरिता बोली, "हमें लगता है मनका, मेरा मतलब दादी सास को, छोटी दादी सास जलतारा देवी ने मारा होगा, तभी तो इतनी घायल अवस्था में मिली थीं।"
गुमान देवी बोलीं, "रात को किसी ने हमारे सर पर वार किया था, उसके बाद हमें नहीं पता क्या हुआ। हमारी आँखें सुबह ही खुलीं जब त्रिनैना सभी को आंगन में बुला रही थीं।"
कुनरेवा देवी बोलीं, "यह सब बातें छोड़ो, बस इतना याद रखो कि अब तुम्हें रेवाला को ऐसी मौत देनी है, जिससे इस महल की रूह काँप जाए, समझी?" इतना कहकर कुनरेवा देवी ने सभी को जाने के लिए कहा।
इधर उर्वा रानी जलतारा का उपचार कर रही थी और सुकेत से बोली, "इनके ज़ख्मों में विषफल का ज़हर है, जो इनके ज़ख्मों में अभी कुछ समय पहले लगाया गया है। इसलिए इनके शरीर में ज़हर का असर कम है। अब हमें शीघ्र ही इस षड्यंत्र के पीछे कौन है, इसका पता करना होगा।"
सुकेत बोला, "राजा सुखेर का अचानक इस तरह बीमार हो जाना... लगता है, उन्हें भी ज़हर दिया गया है।"
उर्वा बोली, "रात भर हम उनके साथ थे, तो ज़हर कब दिया गया राजा सुखेर को?"
सुकेत बोला, "हम राजा सुखेर के शरीर में विष का पता करते हैं, आखिर उन्हें कौन सा विष दिया गया है।"
उर्वा बोली, "क़दम-क़दम आँख-कान-नाक को सतर्क रखना।"
इतना कहकर सुकेत वहाँ से चला गया।
इधर रेवाला ने मनका देवी के मृत शरीर पर कपड़ा ढँक दिया और राजा सुखेर को उनके कक्ष में ले जाकर उनका उपचार किया, क्योंकि राजा सुखेर अभी भी मूर्छित अवस्था में थे। वह मन ही मन कहती रही, आखिर मनका देवी को मारा किसने और आखिर रात को क्या-क्या हुआ? हमें सबकी जानकारी बहुत ही सटीक तरीके से एकत्रित करनी होगी।
राजा सुमल पूरे महल में दादा पंजर को ढूँढ़ते रहे, लेकिन दादा पंजर उन्हें कहीं नहीं मिले।
आखिर मनका देवी की मृत्यु कैसे हुई?
राजा सुखेर और रानी जलतारा देवी को किसने ज़हर दिया?
रानी रुधारा कहाँ है?
कुनरेवा देवी रेवाला को क्यों मरवाना चाहती है?
रेवाला और उर्वा में से कौन सबसे पहले मनका देवी की मौत का पता लगा पाएगा?
सुकेत ने गुस्से में कहा, "बस यह बकवास बंद करिए, हमें रानी जलतारा के बारे में पता करना होगा। किसने गायब किया है, बताओ।"
उर्वा ने कहा, "बताइए, बोलिए कांति देवी जी, बोलिए। आपको इतना पसीना क्यों आ रहा है? कहीं आपने तो..."
कांति देवी हकलाती हुई बोली, "वो... आज हमने सुबह से कुछ नहीं खाया, यहां तक पानी का एक घूंट नहीं पिया, इसलिए हमें पसीना आ रहा है।"
उर्वा कांति देवी पर शक कर रही थी। फिर उसने जासूस सुकेत से कहा, "रानी मैना देवी और त्रिनैना देवी को इस सभी की नज़रों से नज़रबंद कर दो।"
रानी त्रिनैना देवी डरती हुई बोली, "पर हमें क्यों? हमने तो कुछ किया नहीं है।"
उर्वा ने रानी त्रिनैना की ओर घूरते हुए कहा, "चोर, चोरी करने के उपरांत यह कभी नहीं कहता कि चोरी उसने की है।"
मैना देवी ने ऊँचे स्वर में कहा, "तो आप हमें किस गलती की सज़ा दे रही हैं, बोलिए?"
उर्वा ने कहा, "हमने आपको नज़रबंद करने को कहा है, मतलब आपके खाने-पीने और रहने में कोई कमी नहीं रहेगी।"
रानी त्रिनैना देवी ने अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए कहा, "कमी नहीं रहेगी, तो आप करेंगी हमारी सेवा? अब तो इस महल में कोई सेवक नहीं है, रक्षा करने के लिए सैनिक नहीं हैं, कैसे होगी हमारी रक्षा, बोलिए?"
तभी धरिता ने रेवाला को ताना मारते हुए कहा, "वैसे अभी धरिता ने कहा था कि रेवाला इस महल की भगवान और शैतान दोनों है।"
रेवाला गुस्से में बोली, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
धरिता ने कहा, "हम यह कहना चाहती हैं कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, और शैतान अपने शिकार की तो रक्षा करता ही है, तो इस महल में आज से तुम रक्षिका और सेविका दोनों ही होंगी, तुम रेवाला।"
रेवाला गुस्से में सभी से बोली, "तो सुनो, न हमें भोजन पकाना आता है न ही हम इस महल का कोई कार्य करेंगी, हम इस महल की रक्षा करेंगी।"
कुनरेवा देवी ने आदेश देते हुए कहा, "ठीक है, अब इस महल की रक्षा रेवाला करेगी, लेकिन अब इस महल में जितने सदस्य बचे हैं, अगर इन सदस्यों में से किसी की मृत्यु हुई या कोई सदस्य गायब हुआ, तो तुम्हारे शरीर से एक अंग अलग कर देंगे, समझी?"
रेवाला ने एक शैतानी मुस्कराहट के साथ कहा, "वैसे सभी जानते हैं कि एक दुश्मनों के बारे में, अगर उनको कुछ हो जाए तो, तब भी हमको सज़ा मिलेगी, बोलिए रानी जी।"
कुनरेवा देवी हँसते हुए बोली, "तब तुम्हें पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।"
जासूस सुकेत, रानी मैना और त्रिनैना को उनके कक्ष में बंद करके आया और गुस्से में तलवार पर हाथ रखकर बोला, "उर्वा, यह तुम क्या कर रही हो? हमें रानी जलतारा का जल्द से जल्द पता लगाना है, और तुम इन सबके साथ समय बर्बाद कर रही हो।" उर्वा ने जासूस सुकेत को शांत होने का इशारा अपनी आँखों से किया। जासूस सुकेत शांत हो गया।
नई बहू संसिका देवी ने बहुत धीमे और सीधे शब्दों में कहा, "तो कल इस महल का हम शुद्धि के लिए यज्ञ करेंगे, और फिर हम इस महल के श्राप के निवारण के लिए भगवान गणेश और उनके साथ माँ लक्ष्मी की स्थापना करेंगे।"
रेवाला फिर गुस्से में बोली, "तुम यह सब जो कर रही हो, वो सब गलत है, इस महल में भूचाल आ जाएगा, और सब के सब मारे जाएँगे।"
उर्वा तेज स्वर में चीखी, "भूचाल आए या भूकंप या फिर बवंडर, अब इस महल से श्राप का खत्म होने का समय आ गया है।"
गुमान देवी ने कहा, "वैसे महल में जो मंदिर था, वो तो खंडित हो गया, अब मूर्ति स्थापना कहाँ होगी?"
उर्वा ने कहा, "वैसे मंदिर ही खंडित हुआ है, लेकिन मंदिर में कोई तो भगवान की मूर्ति तो जरूर होगी।"
कनकमाला देवी ने कहा, "हाँ, उसमें माँ काली देवी माँ और माँ मनसा देवी माँ की मूर्तियाँ होंगी। हम उनकी भी पुनः स्थापना करनी होगी, क्योंकि श्राप से पहले भी हम देवी माँ की आराधना, सेवा-पूजा-अर्चना करते थे। हम देवी माँ को फिर से मनाएँगे।"
उर्वा ने कहा, "पर सबसे पहले दादी मनका देवी के शरीर का अंतिम संस्कार, वो भी विधि-विधान से करना होगा।"
रेवाला हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, "इस हिसाब से तो महल में सूतक लग जाएँगे और महल में कोई शुभ कार्य नहीं होगा, रही बात मंदिर में मूर्ति की वो वहाँ नहीं है, मूर्तियाँ अपने आप गायब हो गई थीं।"
उर्वा ने कहा, "तुमने तो बोला था, कि दादी मनका देवी जीवित अवस्था में हैं, तो महल में सूतक कैसे, क्यों रेवाला, बोलो।"
धरिता ने ताना मारते हुए कहा, "वैसे मनका देवी का शरीर कहाँ है रेवाला?"
कुनरेवा देवी ने रेवाला से पूछा, "हाँ, रेवाला बोलो, बताओ मनका देवी का पार्थिव शरीर कहाँ है?"
रेवाला ने कहा, "महल में दादी मनका देवी जी को अग्नि देने वाला कोई मर्द नहीं है, इसलिए हमने उनके शरीर को जंगल के कुएँ में डाल आया।"
उर्वा ने शक भरी नज़रों से रेवाला को देखते हुए कहा, "जंगल में मात्र एक कुआँ है, जिसमें पानी है या नहीं, लेकिन हम उस कुएँ से दादी मनका जी के पार्थिव शरीर को निकालेंगे। हमें उस कुएँ के पास स्वयं चले जाएँगे।"
रेवाला हिचकते हुए बोली, "वो मैंने कुएँ का बंद कर दिया है, इसलिए तुम सब चाहकर भी दादी मनका का अंतिम संस्कार नहीं कर सकतीं।"
उर्वा ने कहा, "जहाँ कुआँ था वहाँ हम स्वयं चले जाएँगे, और दादी मनका जिंदा है या मर गई, उस रहस्य को हम सुलझा लेंगे।"
रेवाला ने उर्वा को ताना देते हुए कहा, "वैसे आग लगाने और लगवाने में जितना फर्क होता है, वैसे ही तुम्हारी बातों में है, क्योंकि पहेलियों को सुलझाना या उसमें उलझ जाना... समझ गई ना मेरा कथन उर्वा।"
उर्वा ने कहा, "इसका जवाब तुम्हें जल्द ही मिलेगा।"
रेवाला ने कहा, "आज तक ऐसा कोई नहीं है जो रेवाला को जवाब दे।"
रेवाला के कहते ही, उर्वा और जासूस सुकेत वहाँ से चले गए।
राजा सुमेल को जब दादा पंजर नहीं मिले तो, वे महल की ओर लौट रहे थे, कि अचानक उनके माथे पर काला तोता चोंच मार गया, उसके बाद वे मूर्छित हो गए।
रेवाला और सुकेत, जंगल के नक्शे द्वारा जंगल के कुएँ के पास पहुँचे, और जैसे ही वे कुएँ की तरफ देखते हैं, तभी पीछे से कोई उन पर आक्रमण करता है।
रेवाला और सुकेत जंगल के नक्शे से जंगल के कुएँ के पास पहुँचे। कुएँ की ओर देखते ही पीछे से किसी ने उन पर आक्रमण किया। रेवाला ने नीलपुष्प सूँघाकर उर्वा और सुकेत को मूर्छित कर दिया और उन्हें एक गुफा के अंदर बने रहस्यमयी तहखाने में बंद करके चली गई।
महल में रानी कुनरेवा ने राजा सुमल की सभी पत्नियों को बुलाया और कहा, "अब इस महल में कोई नहीं है। हमें पता है रेवाला उर्वा और सुकेत को मार ही डालेगी। जब वह इस महल में आए, तो तुम सब उस रेवाला को काल के दर्शन करवा देना। ऐसा षड्यंत्र सोचना जिससे रेवाला के शरीर से एक बूँद रक्त भी न निकले। नहीं तो वह सात राक्षस आ जाएँगे, इसलिए सतर्क रहना।"
करिला देवी ने कहा, "क्यों ना हम उन सात राक्षसों को ही मार दें, जिससे इस महल का खौफ ही अलग हो जाएगा।"
कुनरेवा देवी ने पूछा, "पर कैसे करोगी यह कार्य?"
करिला देवी ने उत्तर दिया, "हम उन्हें पहले मूर्छित करेंगे फिर उन्हें मृत्युदंड दे देंगे।"
त्रिनैना देवी ने कहा, "यह हो सकता है, लेकिन रेवाला को इसकी भनक नहीं लगनी चाहिए।"
धरिता देवी ने कहा, "रेवाला को इस महल में आने ही न दिया जाए तो।"
उरका देवी ने पूछा, "मतलब, तुम्हारे कहने का क्या अर्थ है?"
धरिता देवी ने कहा, "हम उसे उसके मार्ग से विचलित कर दें, तो।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "वो रेवाला है, जो साँप को बिन लाठिया के कुचल दे, और उसका जहर भी पी जाए।"
धरिता देवी ने कहा, "तो हम उसे मार्ग में मार दें, तो। आपने ही रेवाला को मारने को कहा था ना।"
तभी अचानक नेल्ला देवी ने कहा, "पहले हमें रुधारा को भी ढूँढना होगा।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं। और वैसे भी पहले इस श्राप की जड़ को खत्म कर देते हैं।"
संसिका देवी ने कहा, "आखिर इस महल में कुछ ऐसा है, जो अनदेखा सा है।"
गुमान देवी ने कहा, "पहले इस महल में हमें उन सात राक्षसों का पता करना होगा कि वे कहाँ हैं।"
करिला देवी ने कहा, "उसके लिए रात्रि का इंतज़ार करना होगा, और एक जानवर, वह भी ज़िंदा।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "जानवर नहीं, केवल रक्त और उसका इंतज़ाम हम कर देंगे।"
दियावती देवी ने कहा, "लेकिन हमें सुमल को भी सुरक्षित रखना होगा और महल के बाहर ही रखना होगा।"
धरिता देवी ने कहा, "हमारे पास योजनायुक्त षड्यंत्र है, जिससे रेवाला और राजा जी भी सुरक्षित रहेंगे।"
जंगल में रेवाला को राजा सुमल मूर्छित अवस्था में मिले। थोड़ी देर बाद, जब राजा सुमल को होश आया, तो राजा सुमल ने रेवाला से पूछा, "तुम इस जंगल में क्या कर रही हो? सच बताना, क्योंकि जंगल में आना तुम्हारा कोई मकसद तो नहीं।"
रेवाला ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "नहीं, मैं दादी मनका के शरीर को यहाँ दफ़नाने आई थी, लेकिन आप तो दादा पंजर जी को ढूँढने गए थे। क्या दादा पंजर जी नहीं मिले?"
राजा सुमल ने कहा, "कहाँ दफ़नाया है दादी मनका देवी को? हमें वह जगह देखनी है।"
रेवाला ने कहा, "क्या तुम हम पर शक कर रहे हो? और कर रहे हो, तो हम फिर भी नहीं दिखाएँगे दादी मनका को, समझे।"
इतने में ही राजा सुमल पर ऊपर से एक बड़ा पत्थर गिरा। जिससे उनका सिर फट गया, और उनके सिर के पिछले भाग से रक्त बहने लगा। इससे वे मूर्छित हो गए। तीन डाकू के भेष में व्यक्ति आए। रेवाला ने आदेश देते हुए कहा, "इसे भी ले जाओ और इसका उपचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है।" वे व्यक्ति राजा सुमल को उठाकर ले गए।
यह सब धरिता देवी और गुमान देवी देख रही थीं। धरिता देवी ने रेवाला पर पीछे से पत्थर से हमला किया और रेवाला के सिर पर पत्थर मारकर उसे घायल कर मूर्छित कर दिया, और उसे वृक्ष के तने से बाँध दिया।
कुनरेवा देवी, नेल्ला देवी के साथ शिकार करने आई थी, जिससे उन्हें उस जानवर का रक्त चाहिए था। वे दोनों जंगल में भटक रही थीं कि तभी उनके सामने एक महात्मा आए और कहा, "तुम जो कार्य करने आई हो वह सफल नहीं होगा। लेकिन अगर तुम सच्चे मन से ईश्वर की उपासना करोगी तो तुम बच सकती हो।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "पर हमें रक्त की अति आवश्यकता है, क्योंकि हमारे पूरे परिवार पर काल की तलवार लटकी हुई है। हमें और हमारे परिवार को बचाइए, बाबा।"
महात्मा ने कहा, "किस परिवार के बारे में कह रही हो? जिस परिवार ने तुम्हें कभी सम्मान नहीं दिया और तुमने भी कभी अपने परिवार को अपना माना ही नहीं, तो किस अधिकार से तुम अपने परिवार को बचाना चाहती हो?"
कुनरेवा देवी ने कहा, "माना मैंने कभी परिवार को अपना माना नहीं, लेकिन जो कुछ बचा है, मैं उसको सुरक्षित रखना चाहती हूँ।"
महात्मा ने कहा, "तुमने सिर्फ़ एक ही को अपना माना है, वह तुम्हारा अपना खून है।"
अचानक नेल्ला देवी ने संदेहयुक्त स्वर में कहा, "पर माँ जी की तो दो संतान हैं।"
महात्मा ने कहा, "संतान चाहे कितनी ही क्यों न हों, लेकिन मन और कर्म से इन्होंने अपनी सगी संतान को ही अपना प्रेम और उसकी रक्षा की है।"
कुनरेवा देवी ने पूछा, "क्या आप हमें इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं?"
महात्मा ने कहा, "हरि भजन जाने कीजो, बाके हर दुःख प्रभु हर लीजो।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "मतलब हमको प्रभु की सेवा करनी होगी।"
महात्मा ने कहा, "तुम कुछ नहीं कर पाओगी, लेकिन हमेशा याद रखना तुम अपने परिवार को बचा सकती हो अगर तुम कोशिश करती हो।"
कुनरेवा देवी ने कहा, "अब आप हमें कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे हम जल्द से जल्द अपने परिवार को बचा सकें।"
महात्मा ने कहा, "पत्थर के अंदर जल है छिपा, तुमको न दिख पाएगा और एक होगी वह जो पत्थर से पानी निकाल पाएगी।"
अचानक नेल्ला देवी ने पूछा, "क्या हम बच पाएँगे?" तभी कुनरेवा देवी ने नेल्ला देवी को आँख दिखाई।
महात्मा ने कहा, "केवल वह ही बचेगी।"
इतना कहकर महात्मा वहाँ से चले गए।
नेल्ला देवी ने कुनरेवा देवी से पूछा, "आपका सगा कौन सा है?"
कुनरेवा देवी ने कहा, "हमने सबको अपने सगे से ज़्यादा माना, लेकिन सबने हमें एक टूटे बर्तन समझा।"
इतना कहकर कुनरेवा देवी बिना कुछ कहे महल की ओर जाने लगी और उनके पीछे-पीछे नेल्ला देवी भी बिना कुछ कहे चलने लगी।
धरिता देवी उन तीनों डाकुओं के पीछे गई, लेकिन धरिता देवी को कोई पीछे से आकर मूर्छित कर दिया और उन्हें पेड़ पर उल्टा लटका दिया।
गुमान देवी उस गुफा में पहुँची और वहाँ राजा सुमल को देखकर तुरंत उस गुफा से बाहर निकल आई।
गुमान देवी उस गुफा में पहुँची और वहाँ राजा सुमेल को देखा। वह तुरंत गुफा से बाहर निकल आई।
वह गुफा के पास बने बरगद के पेड़ों के बीच छिप गई, ताकि कोई उसे न देख सके, और गुफा पर नज़र रखती रही।
कुछ देर बाद, गुमान देवी ने सोचा कि धरिता कहाँ है। तब उसे याद आया कि धरिता राजा सुखेर की सेवा कर रही थी, पर वह इस गुफा में कैसे आई? कहीं रेवाला सच में हमारे परिवार की दुश्मन तो नहीं है? गुमान देवी ने मन ही मन में कहा, "हमें महल में सभी को आगाह करना होगा।" और वह वहाँ से सतर्कता से भाग निकली।
भागते-भागते वह महल की ओर बढ़ रही थी कि उसने देखा कि धरिता जख्मी हालत में पेड़ पर उल्टी लटकी हुई है। गुमान देवी ने बिना कुछ सोचे-समझे पेड़ पर चढ़कर धरिता को नीचे उतारा। जब धरिता होश में आई, तो गुमान देवी ने कहा, "रेवाला ने ही ससुर श्री सुखेर राठौड़ जी और हमारे पति सुमेल जी को बंदी बनाया है। वह रेवाला ही है जिसने पूरे महल में अपने षड्यंत्र का जाल बुना और हम सब उस जाल में फँस गए। उसने ही इस महल में दादी मनका देवी जी को मारा होगा। हमें शीघ्र ही महल में रेवाला का सच बताना होगा।"
"आप यह इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो?" धरिता ने पूछा।
गुमान देवी ने डरी और घबराई हुई आवाज़ में कहा, "हमने खुद गुफा में देखा। हमने उन तीन डाकुओं का पीछा किया जो राजा जी को ले जा रहे थे, और वह तीन डाकू रेवाला से मिले हुए थे। इसलिए हमें यकीन हो गया कि रेवाला ही यह षड्यंत्र कर रही है।"
"पर वह गुफा किस दिशा में है? क्योंकि जंगल के मानचित्र के अनुसार, इस जंगल में कोई गुफा नहीं है। इसका मतलब वह गुफा गुप्त है।" धरिता ने कहा।
"लेकिन हमारे पास समय नहीं है बताने का, क्योंकि रेवाला महल पहुँच जाएगी। इससे पहले कि रेवाला ऐसा कोई कृत्य करे जिससे हमें हानि हो, हमें उसे आगाह करना होगा, और उसे रोकना होगा।" गुमान देवी ने कहा।
"हमें इसलिए जानना था कि अगर रेवाला उस गुफा में पहुँच जाए और कुछ ऐसा कृत्य कर दे जिससे हमारी ज़िंदगी बर्बाद हो जाए।" धरिता ने कहा।
"अच्छा, ध्यान से सुनो। यहाँ से एक कोस दूर बबूल और नीम के पेड़ आएंगे, जिस पर हमने एक चिन्ह बनाया है। उस चिन्ह के दाहिने ओर मुड़ना। वहाँ से सीधे-सीधे आधा कोस दूर एक छोटा सा तालाब आएगा। उसको पार करके एक पीपल का पेड़ आएगा, जिस पर भी चिन्ह होगा। उस चिन्ह के दाहिने मुड़ना और लगभग 100 कदम पर छह बरगद के पेड़ आएंगे। और उन पेड़ों से थोड़ी दूरी पर वह गुफा है।" गुमान देवी ने निर्देश दिया।
"आप संभल कर महल जाना, और हम उस रेवाला से महाराज को बचाएँगे।" धरिता ने कहा।
और इतना कहकर जब गुमान देवी जा रही थी, तब धरिता ने उसके सिर पर वार करके उसे मूर्छित कर दिया। और एक शैतानी मुस्कराहट के साथ कहा, "रेवाला का राज अभी राज ही रहना चाहिए।" इतना कहकर उसने गुमान देवी को एक पेड़ से बाँधकर छोड़ दिया।
कुछ देर बाद, जब धरिता रेवाला को देखने आई, तो वह हैरान हो गई। वहाँ रेवाला नहीं थी। उसने इधर-उधर देखा, पर रेवाला का कहीं पता नहीं चला। न ही रेवाला के पदचिन्ह, और न ही रक्त की एक बूँद दिखाई दी। धरिता ने मन ही मन में सोचा कि कहीं रेवाला गुफा में तो नहीं गई। तभी रेवाला, गुमान देवी द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ी।
इधर, कुनरेवा देवी और नेल्ला देवी महल में पहुँचीं। उन्होंने देखा कि कनकमाला देवी ने आँगन में एक नए गमले में तुलसी का पौधा लगाया है। तब कुनरेवा देवी ने कनकमाला देवी से कहा, "महल के मुख्य आँगन में तुलसी का पौधा? इसकी क्या ज़रूरत थी?"
"तुम भूल चुकी हो, वह तुलसी का पौधा बहुत समय पहले जल चुका है। इसलिए हमने नया तुलसी का पौधा लगाया है, क्योंकि अब हम इस श्राप से मुक्त होना चाहते हैं।" कनकमाला देवी ने उत्तर दिया।
"हमें श्राप के तोड़ का निवारण मिल गया है, और वह तोड़ है भगवान की आराधना। जितना हो सके, हमें भगवान की पूजा-पाठ में ध्यान अर्पित करना होगा।" कुनरेवा देवी ने कहा।
"वैसे, तुम्हारी बेटी रूपश्यामा नहीं दिख रही है। जरा हमें भी बताओ, वह क्या कर रही है?" कनकमाला देवी ने पूछा।
तभी अचानक रेवाला आ गई, और कुनरेवा देवी से गुस्से में बोली, "आप हमें क्यों मरवाना चाहती हो? हमने इस महल को इतने वर्ष दिए, और आप हमें मरवाने के लिए अपनी बहुओं को भेज दिया। एक बात कान खोलकर सुन लो, हम ही आपको इस श्राप से मुक्त करवा सकती हैं। हमारे पास इस श्राप का तोड़ है।"
"जरा हम भी सुनें, क्या तोड़ है? यह नौटंकी करना बंद कर दो। वरना हम तुम्हें खुद एक श्राप बना देंगी। समझी?" कनकमाला देवी ने कहा।
"अभी इस महल से चुपचाप निकल जाओ, वरना न तुम देख सकोगी और न ही तुम चल पाओगी। निकल जाओ इस महल से अभी।" कुनरेवा देवी ने आदेश दिया।
रेवाला हँसते हुए बोली, "तुमने क्या समझा कि तुम्हारे कहने पर मैं चली जाऊँगी? देखो, मेरे साथ कौन आया है, और हाँ, इन्हीं से पूछ लो कि मैं इस महल में रह सकती हूँ या नहीं।"
जैसे ही दादा पंजर को सभी ने देखा, तो सब हैरान हो गए। क्योंकि दादा पंजर पहले से भी ज़्यादा स्वस्थ थे। उनके सारे घाव भर चुके थे, और उनकी फूटी आँख भी बिल्कुल सही हो गई थी। तब दादा पंजर ने तेज स्वर में कहा, "रेवाला यहीं रहेगी, और वह इस घर की नौकरानी नहीं है। उसने ही हमें अपनी तंत्र-विद्या से बिल्कुल ठीक किया है। इसलिए आज से रेवाला इस घर की शाही रक्षक होगी।"
और इतना कहकर दादा पंजर और रेवाला दादा पंजर के कक्ष में चले गए।
तब कुनरेवा देवी ने कहा, "अब इस महल में भगवान का जप करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।"
इधर, गुफा में उर्वा ने अपनी तंत्र-विद्या से काला धुआँ करके सभी को मूर्छित कर दिया। और अपने आप को रस्सियों की जकड़न से खोलकर आजाद कर लिया। फिर उसने सुकेत को आजाद किया और उस गुफा से सभी को सुरक्षित निकालकर एक अदृश्य गुफा में छिपा दिया। फिर उसने उस गुफा को हमेशा के लिए बंद करके अदृश्य कर दिया।
लगभग शाम होने वाली थी कि धरिता उस स्थान पर पहुँची जहाँ गुमान देवी ने बताया था, पर धरिता को वहाँ कोई गुफा नहीं मिली। यह सब उर्वा और सुकेत देख रहे थे। तब सुकेत ने उर्वा से कहा, "क्या धरिता ही वह है जिसने इस महल में षड्यंत्र किया है?"
शाम होने को ही थी कि धरिता उस स्थान पर पहुँची जहाँ गुमान देवी ने बताया था। परन्तु धरिता को वहाँ कोई गुफा नहीं मिली। यह सब उर्वा और सुकेत देख रहे थे। तभी सुकेत, उर्वा से बोला,
"क्या धरिता ही वह है जिसने इस महल में षड्यंत्र रचा है?"
उर्वा ने कहा,
"थोड़ा संयम रखो, सब सच सामने आएगा।"
परन्तु सुकेत को शक हो गया कि धरिता एक षड्यंत्रकारी है।
धरिता ने भी हर जगह खोजा, परन्तु उसे गुफा का कोई निशान नहीं मिला। वह सोचने लगी कि कहीं गुमान देवी ने उसे धोखा तो नहीं दिया। परन्तु उसे रेवाला का सच पता था। और धरिता गुमान देवी के पास जाने लगी और उसका पीछा जासूस सुकेत और उर्वा कर रहे थे।
इधर महल में उरका देवी थोड़ी चिंतित थी क्योंकि धरिता और गुमान देवी अभी तक महल नहीं लौटी थीं और रात होने वाली थी। इसलिए वह कुनरेवा देवी के पास जाकर बोली,
"माँ जी, रेवाला से जाकर कहो कि वह जंगल से धरिता और गुमान को ढूँढकर इस महल में ले आए।"
तभी अचानक कनकमाला देवी बोलीं,
"अभी रेवाला से कहना व्यर्थ है। पहले हमें पूरी जानकारी एकत्र करनी होगी क्योंकि रेवाला और पंजर झूठ बोल रहे हैं।"
उरका देवी ने कहा,
"पर धरिता और गुमान को कुछ हो गया तो?"
कुनरेवा देवी ने कहा,
"हम कांति देवी और कनिषा देवी को भेज देते हैं। वे धरिता और गुमान को ले आएंगी और उनके साथ हमारे पुत्र सुमल भी होंगे।"
कनकमाला देवी कुछ इशारे करके वहाँ से चली गईं। यह सब नेल्ला देवी देख रही थी और वह अपने मन में सोच रही थी कि यह सब एक दिखावा है, परन्तु अब उसे पूरा सच जानना होगा।
रात हो चुकी थी और धरिता उसी स्थान पर आई जहाँ उसने गुमान देवी को बाँधा था, परन्तु वहाँ गुमान देवी नहीं थी। धरिता और भी अधिक घबरा गई। उसे लगा कि कहीं रेवाला ने गुमान देवी को मार तो नहीं दिया। डर और थकान के कारण धरिता के होठ सूख चुके थे और वह काफी थकी हुई थी, परन्तु उसे गुमान देवी को ढूँढना था। इसलिए वह गुमान देवी की तलाश में जंगल में भटक रही थी और साथ ही गुमान देवी आवाज़ भी दे रही थी। धरिता का पीछा उर्वा और सुकेत कर रहे थे।
सुकेत ने उर्वा से शक भरी आवाज़ में कहा,
"हमें लगता है इसने गुमान जी को गायब किया है और अब नाटक कर रही है। कहीं इसे हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया।"
उर्वा ने कहा,
"हमें पहले पूरा सच पता करना होगा कि हमको गुफा में किसने बंदी बनाया था। इसलिए बस संयमता के साथ धरिता पर नज़र रखो।"
धरिता इधर-उधर भटक ही रही थी कि उसने देखा कि कांति देवी और कनिषा देवी जंगल में हैं। बिना देरी किए वह उनसे मिली। तब कांति देवी ने उसे जल पिलाया। जल पिलाने के बाद कनिषा देवी ने गुमान देवी के बारे में पूछा।
तब धरिता घबराहट के कारण हिचकिचाते हुए बोली,
"हमें पूरे जंगल में राजा सुमल का पता नहीं चला तो हम जल्दी-जल्दी महल लौट रहे थे क्योंकि रात होने वाली थी। और रास्ते में अचानक काला धुआँ हुआ जिसकी वजह से हम मूर्छित हो गए। और जब हमें होश आया तो हमने देखा गुमान देवी कहीं नहीं है। हमने उन्हें बहुत ढूँढा, परन्तु वे नहीं मिलीं। हमें उन्हें ढूँढना होगा।"
कांति देवी और कुनरेवा देवी धरिता को शक भरी नज़रों से देख रही थीं। यह धरिता समझ रही थी और कुछ कहने वाली थी कि तभी कनिषा देवी बोलीं,
"गायब हो गई या तुमने गायब कर दिया? कहीं तुमने उन्हें काल की गोदी में हमेशा के लिए सुला तो नहीं दिया।"
धरिता ने कहा,
"नहीं-नहीं, हमने कुछ नहीं किया। हम पर विश्वास कीजिए, हमने कुछ नहीं किया।"
कांति देवी ने कहा,
"हमें यह बकवास नहीं सुननी है। हमें सच बताओ और वैसे भी तुम पर हम क्यों विश्वास करें? महल चलो, फिर पता चलेगा कि तुमने क्या किया है और क्या नहीं।"
धरिता ने कहा,
"हमारा विश्वास करिए, कृपया हम सत्य बोल रहे हैं।"
कांति देवी ने धरिता को आँख दिखाकर उन्हें महल चलने का इशारा किया और वे तीनों महल की ओर जाने लगीं।
इधर महल में कुनरेवा देवी कनकमाला देवी के कक्ष में आईं। तभी कनकमाला देवी ने इशारे से कुनरेवा देवी को दरवाज़ा बंद करने का आदेश दिया।
कुनरेवा देवी ने कहा,
"आपने हमको क्यों बुलाया? या फिर रेवाला को मारने का षड्यंत्र करना है?"
कनकमाला देवी ने कहा,
"हमारी कुछ बात अधूरी रह गई थी। कुछ याद आया क्या?"
कुनरेवा देवी ने कहा,
"आप दाल में कंकड़ मत मिलाइए। जो कहना है वह साफ़-साफ़ बोलिए।"
कनकमाला देवी ने कहा,
"तो सुनो, हमने तुमसे पूछा था कि तुम्हारी बेटी रूपश्यामा कहाँ है? देखो, हमें तुम्हारा एक अतीत का राज पता है। वह राज बाहर आया तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।"
कुनरेवा देवी ने कहा,
"हम जानते हैं, परन्तु आपको उससे क्या? वैसे भी आपने हमसे वादा किया था कि आप किसी को सच नहीं बताएँगी, तो आज हमें क्यों धमका रही हैं?"
कनकमाला देवी ने कहा,
"पंजर ने जो हमारे साथ किया, शायद वह किसी और के साथ न करे। इसलिए हम तुम्हारी बेटी को इस श्राप और महल के राज से सुरक्षित रखना चाहते हैं। इसलिए हम रूपश्यामा को बचाना चाहते थे।" इतना कहते-कहते कनकमाला की आँखें भर आईं।
कुनरेवा देवी ने कहा,
"हम समझते हैं कि आप पर क्या बीती है, परन्तु हम अपनी बेटी का ख्याल खुद रख लेंगे। और बस आपको दादा पंजर पर ध्यान देना चाहिए।"
इतना कहकर कुनरेवा देवी चली गईं, परन्तु नेल्ला देवी छिपकर सब बातें सुन रही थी और वहाँ से बिना किसी की नज़र में आए निकल गई।
थोड़ी देर बाद, महल में कांति देवी और कनिषा देवी धरिता को ले आईं। और कनिषा देवी ने महल के आँगन की दीवार पर लगी बेला पर लकड़ी के हथौड़े से बजाया। जिसकी आवाज़ सुनकर महल के सभी सदस्य उसी जगह पर आ गए।
जब वे आ गए तब कुनरेवा देवी ने कहा,
"क्यों इतना शोर किया जा रहा है?"
तभी उरका देवी बोली,
"राजा जी और गुमान कहाँ हैं? कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया?"
कुनरेवा देवी ने कहा,
"क्या हुआ सुमल और गुमान को?"
कांति देवी गुस्से में बोलीं,
"इस धरिता ने गुमान को मार दिया और हमको भी मारना चाहती थी। इसलिए हमने इससे समझौता किया कि हम इसे महल की सभी मूल्यवान वस्तुएँ दे देंगे, परन्तु हमें गुमान और राजा जी के बारे में बता दो। तब यह यहाँ पर आई है।"
कनकमाला ने कहा,
"इतनी लालची निकली तुम! मात्र कुछ वस्तुओं के लिए तुम्हारा ईमान डोल गया? थोड़ी शर्म करो तुम! इस महल की एक बहू हो और ऐसे नीच हरकत करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई? थोड़ी शर्म करो।"
धरिता कुछ बोल पाती, इससे पहले वहाँ रेवाला, दादा पंजर के साथ आई और बोली,
"कांति और कनिषा देवी सत्य बोल रही हैं, और हमारे पास एक ऐसा साक्षी है जो बिलकुल सत्य बोलेगा और इस पापी धरिता का सारा सत्य बताएगा।"
रानी त्रिनैना देवी ने कहा,
"कौन है जो इस धरिता का हमें सत्य बताएगा?"
रेवाला ने कहा,
"बताएगी, और वह है राजा सुमल की दूसरी पत्नी गुमान देवी।"
और गुमान देवी जख़्मी हालत में सबके सामने आई और बोली,
"धरिता ने ही हमको जख़्मी करके पेड़ से बाँध दिया और इसने राजा सुमल जी को भी मार दिया। इसने जंगल के दलदल में डुबोकर मार दिया।"
तभी अचानक कुनरेवा देवी की चीख़ निकल गई। वह धरिता को थप्पड़ मारती है और धरिता के केश पकड़कर उसे ज़मीन पर गिरा देती है।
तभी अचानक महल में उर्वा और सुकेत आते हैं। सुकेत कुछ कहने ही वाला था कि उर्वा ने उसका हाथ पकड़कर आँखों से शांत रहने का इशारा किया।
तभी रेवाला कुनरेवा देवी के कंधे पर हाथ रखकर बोली,
"हम सुमल को ज़िंदा कर सकते हैं। उसके लिए रात में माँ काली का यज्ञ करना होगा। और इस रेवाला को आज रात कालकंठ कोठरी में रखना होगा।"
यह सब देखकर उर्वा मुस्कुराई। फिर अपने चेहरे पर दुःख के भाव प्रकट करते हुए रुदन भरी आवाज़ में बोली,
"क्या एक यज्ञ आप हमारी माँ जैसी जलतारा देवी के बारे में बता सकती है?"
रेवाला ने कहा,
"उसके लिए तुम्हें महल के बाहर तीन दिन तक एक पैर पर खड़े होकर हमारी पूजा करनी होगी।" इतना कहकर रेवाला अपने मन में बोली, कितना भी नाटक कर लो, हम तुम्हारे बारे में सब जानते हैं उर्वा।
उर्वा ने कहा,
"धन्यवाद, हम ऐसा करेंगे, अवश्य करेंगे।" और उर्वा मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।
इधर धरिता गुमान देवी से बोली,
"आप ऐसा क्यों कर रही हो? आप सबको बता दीजिए कि आपने क्या देखा।"
परन्तु गुमान देवी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गुमान देवी एकदम सीधे खड़ी थी और उनकी आँखें ऐसी थीं जैसे वे रेवाला के अलावा कुछ देख ही नहीं पा रही थीं।
फिर रेवाला धरिता को उस कालकंठ कोठरी में ले गई जहाँ न बैठने की जगह थी और न ही लेटने की जगह। वह कोठरी दीवार को काटकर बनाई गई थी जहाँ केवल खड़ा ही रहा जा सकता था।
रेवाला धरिता को उस कोठरी में बंद करके जा रही थी कि धरिता रेवाला से बोली,
"तुमने ही राजा सुखेर और सुमल जी को बंदी बनाया था ना? और तुम ही इस महल पर अपना राज स्थापित करना चाहती हो। इसलिए तुम सबको अपने जाल में फँसा रही हो।"
धरिता की बात सुनकर रेवाला जोर-जोर से हँसने लगी और बोली,
"तुम्हें तो सब सच पता है, फिर भी तुमने किसी को नहीं बताया। क्यों? क्योंकि तुम भी इस महल में किसी सदस्य को मारना चाहती हो। इसलिए तुमने हमको बचाया, नहीं तो तुम हमारा सत्य अच्छे से जान गई हो।"
धरिता रेवाला को गुस्से की नज़र से देखती है और बोली,
"मेरा बदला तुमसे है रेवाला, क्योंकि तुमने हमारे साथ बहुत गलत किया है और तुम्हें इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी।"
रेवाला ने कहा,
"कैसी सज़ा? तुम बचोगी तब हमें कोई सज़ा दे पाएगा क्या? तुम हमारा एक बाल भी नहीं नोच सकती। तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, समझी?"
धरिता ने कहा,
"तुमने हमसे हमारे जीवनदाता छीना, तुमने हमारी खुशियाँ छीनीं। अब हम तुमसे तुम्हारा गुरूर और जिस बात का तुम्हें घमंड है, वह सब छीन लेंगे। हम तुम्हें ऐसी सज़ा देंगे जो तुमने कभी देखी होगी और न ही सुनी होगी, और न ही तुम सोच सकती हो। हम तुम्हें इस धरती पर ही नर्क के दर्शन करवा देंगे, डायन रेवाला।"
रेवाला गुस्से में अपना खंजर निकालकर धरिता की गर्दन पर रख देती है और बोली,
"हैवानों की हैवान हूँ और जानवरों की रानी हूँ मैं! जो यह तू बोल रही है, हमने तेरा जीवनदाता छीना है तुझसे, तो सुन, अब तू कुछ नहीं कर सकती है। जिसमें तू अभी खड़ी हुई है, इसे कालकंठ कोठरी कहते हैं, मतलब तू काल के कंठ में फँस गई, जिसमें तेरा मरना निश्चित है।" इतना बोलते ही रेवाला वहाँ से हँसते हुए जाने लगी, और धरिता रेवाला को गुस्से से देखने लगी।
कुछ देर बाद, रेवाला गुमान देवी के कक्ष में गई और अंदर से कुंडी बंद कर दी। यह सब उर्वा छिपकर देख रही थी।
रेवाला गुमान देवी से बोली,
"अब तुम्हें वही करना है जो हम तुमसे कहेंगी।"
गुमान ने हाँ में अपना सिर हिलाया। फिर रेवाला ने सम्मोहन विद्या से गुमान देवी को सम्मोहित किया। जब गुमान देवी पूरी तरह रेवाला के वश में हो गई, तब रेवाला गुमान से बोली,
"अब तुम्हें सो जाओ और सुबह उठकर सबसे पहले मेरे कक्ष में आना। फिर मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण कार्य दूँगी। उस कार्य को तुम्हें पूर्ण करना होगा।"
गुमान देवी सो गई। रेवाला मन ही मन में बोली, अब मेरा षड्यंत्र पूरा होगा। अब गुमान तो मेरे हाथ की कठपुतली है। और गुमान देवी के कक्ष से निकल गई। यह सब उर्वा छिपकर सुन रही थी, पर वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।
इधर महल में रानी नेल्ला देवी छिपकर महल की छत पर जाकर एक उल्लू के पैर पर चिट्ठी बाँधी और उसे उड़ा दिया।
थोड़ी देर बाद, उरका देवी गुप्त तरीके से दियावती, संसिका देवी और करिला देवी से मिली और उनसे बोली,
"हमें जल्द से जल्द रुधारा देवी को ढूँढना होगा क्योंकि वह इस महल में है। हम तुम तीनों को यह कार्य सौंप रहे हैं। इसलिए बड़ी सावधानी के साथ तुम्हें रुधारा देवी को ढूँढना ही होगा।"
संसिका देवी ने कहा,
"पर कैसे? और आप उनको क्यों ढूँढना चाहती हो?"
उरका देवी ने कहा,
"इसकी चिंता तुम मत करो। यह महल का नक्शा है, जिससे तुम महल में ढूँढ सकती हो।"
करिला देवी ने कहा,
"इस महल में काफी गुप्त तहखाने और गुप्त कालकोठरियाँ हैं। उनके बारे में कैसे पता लगायेंगे?"
उरका देवी ने कहा,
"इस नक्शे में वह सब कुछ है जो रेवाला को भी नहीं पता। इसलिए बड़ी सावधानी के साथ रुधारा को ढूँढना होगा।"
संसिका देवी ने कहा,
"पर आप उन्हें क्यों ढूँढना चाहती हो?"
उरका देवी ने कहा,
"कुछ सवालों के जवाबों का इंतज़ार करना पड़ता है। समय आने पर तुम्हारे सभी सवालों के जवाब मिल जाएँगे।"
दियावती देवी ने कहा,
"इस महल में हम पूजा-पाठ कर सकते हैं क्या?"
उरका देवी ने कहा,
"कल रेवाला राजा जी को उस दलदल में से ज़िंदा निकालेगी और उसी बीच हम महल में मूर्ति स्थापना करेंगे। हमारे पास गंगाजल है जिससे हम पूरे महल को पवित्र करेंगे। फिर इस महल में मूर्ति स्थापना होगी।"
इधर कांति देवी और कनकमाला देवी धरिता के सामान की जाँच-पड़ताल कर रही थीं, परन्तु उन्हें उसमें से एक सोने का चमगादड़ मिला।
कनकमाला देवी ने शक करते हुए कांति देवी से कहा,
"यह इतनी कीमती वस्तु इस धरिता ने महल में ही चुराई होगी।"
कांति देवी ने कहा,
"नहीं, यह उसने नहीं चुराई, बल्कि यह उपहार दादी मनका देवी जी ने धरिता को मुँह-दिखाई की रस्म में दिया था। और इसी तरह के उपहार दादी जी ने सभी को दिए थे।"
कनकमाला देवी ने कहा,
"तुम्हें मुँह-दिखाई के उपहार में क्या दिया था?"
कांति देवी ने कहा,
"हमें सोने का साँप दिया था।"
कनकमाला देवी ने कहा,
"मनका को जानवरों से ज़्यादा प्यार था, इसलिए कुछ न कुछ ख़ास देने का शौक था।"
इन सब बातों को जासूस सुकेत छिपकर सुन रहा था।
इधर रेवाला से मिलने कोई महल के पीछे आया और आकाश में दो उल्लुओं द्वारा संकेत भेजे। रेवाला समझ गई, परन्तु थोड़ी सी वह भयभीत हुई। रेवाला सभी से छिपकर महल के पीछे गई और अपने गुप्तचर से मिली।
रेवाला ने कहा,
"ऐसी क्या ज़रूरत आ गई जो इतनी रात को तुम्हें यहाँ आना पड़ा? और हमने समझाया था कि इस महल के बाहर कोई नहीं आएगा। और तुम्हारी आँखें इतनी लाल क्यों हो गईं? कोई नशा करके यहाँ आए हो?"
गुप्तचर ने कहा,
"सुखेर की हालत नाज़ुक है, वह किसी भी वक़्त मर सकता है। अब हम क्या करें? आपको इतनी देरी हो गई थी कि मुझे आना पड़ा।"
रेवाला ने कहा,
"सुखेर को मरने दो। आज हम गुफा नहीं आएंगे। तुम्हें हमारा एक कार्य बहुत ही सावधानीपूर्वक करना होगा। और वह कार्य कि कल तुम्हें जंगल में काँटेदार झाड़ियों के पास बने दलदल के पास राजा सुमल को लाना है और उनके पूरे शरीर को उस दलदल के कीचड़ से पोत देना है। और हाँ, वह कीचड़ सूखे न, उस पर पानी का छिड़काव करना। और जैसे ही हम वहाँ धुआँ करेंगे, उस सुमल को हमारे कदमों के पास छोड़ देना और वहाँ से चले जाना। और रास्ते में कोई नशा मत करना। समझे? सावधानीपूर्वक ही जाना।"
गुप्तचर ने कहा,
"जी, हुक्म।"
और इतना कहकर रेवाला वहाँ से चली गई। और यह सब बात उर्वा और जासूस सुकेत सुन रहे थे। तभी सुकेत उर्वा से बोला,
"तो इसका मतलब रेवाला ने ही राजा सुमल जी और सुखेर जी और हमको बंदी बनाया था? और यह गुप्तचर कैसे आया? उन सबको तो हमने बंदी बना लिया है।"
उर्वा ने कहा,
"यह एक भ्रम था जो रेवाला को हुआ है और अब पूरा तमाशा अब कल होगा। बस अब तुम इस षड्यंत्र का आनन्द लो।"
सुकेत ने कहा,
"लेकिन उस गुफा में एक और गुफा का नक्शा मिला है। हमें उसकी जाँच-पड़ताल करनी होगी।"
उर्वा ने कहा,
"थोड़ा सब्र रखो, सब रहस्यों से पर्दा उठेगा।"
सुकेत ने कहा,
"और धरिता तो बेक़सूर है। कहीं रेवाला उसे मार न दे। हमें धरिता को बचाना होगा।"
उर्वा ने कहा,
"हम धरिता को बचाएँगे अगर वह गलत नहीं होगी तो।"
इधर महल के अंदर आते ही रेवाला कालकंठ कोठरी में धरिता के पास गई और बोली,
"तुम्हारी मौत का समय शुरू हो गया है, अब बस तुम्हें ऐसा दर्द होगा जिसकी कल्पना तुमने कभी नहीं की होगी।"
धरिता ने कहा,
"वह तो समय बताएगा रेवाला, किसकी मौत आएगी, समझी?"
धरिता की बातें सुनकर रेवाला को हँसी आने लगी, और वह हँसते हुए बोली,
"वैसे तुम्हारा काल तुम्हारे नज़दीक खड़ा है और तुम हमको, यानी महान रेवाला को धमकी दे रही हो।" और रेवाला हँसते हुए वहाँ से चली गई।
उर्वा और सुकेत उस महल के नक्शे द्वारा उस कालकंठ कोठरी तक पहुँचने का कोई मार्ग ढूँढ रहे थे। परन्तु उस कालकंठ कोठरी तक पहुँचने के लिए तीन मार्ग थे, पर उन मार्गों को पार करना उर्वा और सुकेत के लिए थोड़ा मुश्किल था। परन्तु उर्वा सुकेत को समझाते हुए बोली,
"तुम बस चौकन्ना रहना, बाकी हम सब संभाल लेंगे।"
और सब से छिपाते हुए उर्वा और सुकेत निकल पड़े और पहली मंज़िल पर पहुँच गए। उर्वा ने अपने काले जादू से पहले दरवाज़े को पार किया, फिर दूसरे और फिर तीसरे और चौथे दरवाज़े और आख़िर उस कालकंठ कोठरी तक पहुँच ही गए। और धरिता से मिले और धरिता ने उन्हें दोनों को देखकर भावुक होकर कहा,
"आप यहाँ कैसे?"
उर्वा ने कहा,
"हमें सच बताना कि तुम रेवाला से नफ़रत क्यों करती हो? क्योंकि हमने इतने बार देखा है कि तुम रेवाला पर अपने व्यंग्य बाण छोड़ती हो।"
सुकेत ने कहा,
"हमें सब पता है कि रेवाला ने ही राजा सुमल जी और राजा सुखेर जी को बंदी बनाया था और अब वह सुरक्षित है और उर्वा ने ही गुफा को अदृश्य कर दिया था जिसकी वजह से तुम्हें गुफा कहीं नहीं दिखी। रानी गुमान जी को भी सम्मोहित किया गया है जिसकी वजह से उन्होंने झूठ बोला।"
धरिता की आँखों से आँसू बहने लगे, और धरिता रुदलाते स्वर में बोली,
"उसने हमारी माँ को मारा, वह भी हमारी आँखों के सामने। इसलिए हम उससे अपनी माँ का बदला लेना चाहते हैं और यह जानना चाहते हैं कि उसने हमारी माँ को क्यों मारा? आख़िर क्या गलती थी हमारी माँ की? हम उसे ऐसी मौत देंगे जिससे काल की रूह भी काँप जाए।"
उर्वा ने कहा,
"तुम्हारे पिता ने कुछ नहीं किया।"
धरिता ने कहा,
"उनके बारे में बस यही पता है कि वह किन्नरों की टोली में ढोलक बजाते थे और बस माँ को कभी-कभी मिलने आते थे।"
उर्वा ने कहा,
"मुझे अपने परिवार के बारे में सही और विस्तारपूर्वक जानकारी दो, जिससे हम रेवाला के बारे में वह सब सच जान सकें जो वह सबसे छिपा रही है।"
धरिता उर्वा और सुकेत पर विश्वास करती है और बोली,
"आज से लगभग बारह वर्ष पहले, हमारा पूरा एक परिवार जिसमें हम, हमारी माँ और पिता और हमारे दो बड़े भाई, एक छोटी बहन और हमारी दादी थीं। हमारे पिता अक्सर हमसे मिलने सप्ताह भर बाद आते थे। हमारा परिवार खुश था, हम लोग सुखी जीवन जी रहे थे। कहते हैं खुशियों का कोई ठिकाना नहीं होता, उसी प्रकार दुःखों के पहाड़ की कोई सीमा नहीं होती। जब हम अपनी माँ के साथ जंगल से लकड़ी काटकर ला रहे थे, तो हमारी नज़र आम के पेड़ पर पड़ी जिस पर कच्चे आम लग रहे थे। और हम अपनी माँ से नज़र बचाकर आम के पेड़ पर चढ़ गए और हमारी माँ हमें इधर-उधर देख रही थी। परन्तु हम शरारत कर रहे थे। तभी अचानक रेवाला अपने हाथ में तलवार लेकर आई और हमारी माँ को मार दिया। यह सब देखकर हम मूर्छित हो गए और पेड़ से गिर गए। जब हमें होश आया तो हमारी दादी हमारे पास थीं। उन्होंने हमसे पूछा कि हमारी माँ कहाँ है। तब हमने बिना कुछ सोचे उन्हें सब सच बता दिया। उसके बाद हम सब अपने गाँव को छोड़कर दूसरे गाँव बस गए। हम सब अपनी माँ के पार्थिव शरीर को भी नहीं देख पाए। माँ के जाने के बाद हमें अपने पिता के बारे में भी नहीं पता। बस यही हमारा सच है। जब हम इस महल में बहू के रूप में आई तो हमें पता भी नहीं था कि हमारा विवाह उस घर में हो रहा है जिसमें हमारी माँ का कातिल रहता है। और रेवाला को दादी सास इतना सम्मान देती थीं, तो हमारी कहने की हिम्मत भी नहीं हुई। परन्तु हम रेवाला से यह जानना चाहते थे कि उसने हमारी माँ को क्यों मारा और जब हम पेड़ पर गिरे तो हमें क्यों नहीं मारा। इसलिए हम रेवाला से नफ़रत करते हैं क्योंकि उस पर कोई शक्तियाँ नहीं हैं। उसने इस महल में सभी को अपने भ्रमजाल में फँसा कर रखा है। यही हमारा सत्य है और हम मरने से पहले उससे अपने कुछ सवालों के जवाब चाहिए।" और इतना कहकर धरिता रोने लगी।
उर्वा धरिता को संभालते हुए बोली,
"धैर्य रखो धरिता, अब बस तुम्हें हमारा एक कार्य करना होगा। क्या तुम हमारा साथ दोगी?"
धरिता ने कहा,
"हम आपका साथ अवश्य देंगे। और आपका कैसा कार्य करना होगा हमें?"
उर्वा ने कहा,
"तुम्हारे पिता को ढूँढने के लिए हमें उनका एक चित्र चाहिए। क्या तुम उस चित्र को बनवाने में हमारी मदद कर सकती हो?"
धरिता ने कहा,
"हम आपकी मदद कर सकते हैं, परन्तु हमारे पिता बारह वर्ष पहले जैसे दिखते थे, हम उनकी वैसी ही छाया चित्रण करवा सकते हैं। परन्तु आपको हमारे पिता के चित्र का क्या करोगी आप? कहीं आप हमसे अपना कार्य तो नहीं करवाना चाहतीं?"
सुकेत ने कहा,
"आप थोड़ा धीरज रखिए। बल्कि यह तो आपके पिता के बारे में अपनी काली विद्या से आपके बारे में पता लगाएगी, जिससे आपके पिता के बारे में पता चल सके।"
धरिता डरते और हिचकिचाते हुए बोली,
"क्या आप सच में काला जादू कर सकते हैं या फिर आप भी उस रेवाला की तरह हो?"
सुकेत को इस बात पर गुस्सा आ गया। वह धरिता पर चिल्लाने वाला था कि उर्वा ने उसे रोक लिया और धरिता से बोली,
"क्या तुम तैयार हो?"
धरिता कुछ कहती, इससे पहले उर्वा ने अपने जादू से एक चित्र बनाने के लिए कागज़ और अपने आप चित्र बनाने वाली कलम बना दी। तभी धरिता बोली,
"मैं तैयार हूँ।" और धरिता जैसे ही अपने पिता के बारे में बताती गई, उर्वा की जादुई कलम ने वैसा ही धरिता के पिता का जीवंत छाया चित्रण कर दिया। जब चित्र बनकर तैयार हो गया तो धरिता की आँखें भी भर आई थीं, और धरिता बोली,
"सच में आपने हमारे पिता को पुनः जीवंत कर दिया। सच में आप बहुत अच्छी हैं।"
उर्वा ने कहा,
"धरिता, बस आज रात इस कोठरी में रहो, कल तुम आज़ाद हो जाओगी।"
इतना कहकर उर्वा और सुकेत वहाँ से चले गए। और वे सभी से छिपाते हुए अपने कक्ष में पहुँचे और अंदर से दरवाज़ा और कक्ष के सभी दरवाज़े और खिड़कियाँ भी बंद कर दिए। सुकेत उर्वा से बोला,
"अब हमें आगे क्या करना होगा?"
उर्वा ने कहा,
"आने वाले वक़्त का इंतज़ार और थोड़ा धीरज समझे।"
उर्वा और सुकेत एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए।
इधर महल में रानी त्रिनैना और रानी मैना अपने कक्ष में एक-एक पत्थर को नुकीला बना रही थीं और मैना देवी बोली,
"अब कल होगा इस महल में मातम।" इतना कहकर दोनों हँसने लगीं।
सुबह होने पर,
रेवाला महल के मुख्य आँगन में ढोल बजा रही थी। ढोल की आवाज़ सुनकर सभी अपने कक्षों से बाहर आ गए। तभी रेवाला और ज़ोर-ज़ोर से ढोल बजाती है और सभी से बोली,
"अब आपको रात को डरने का नहीं है क्योंकि हमने अपनी वर्षों से स्थापित की हुई सिद्धियों से इस श्राप को कमज़ोर कर दिया है। अब आप रात्रि को बिना डरे सो सकते हो। अब आपकी प्रत्येक रात्रि में कोई दहशत और डर नहीं होगा।"
दादा पंजर ताली बजाते हुए बोले,
"शाबाश! रेवाला, हमें यकीन था एक दिन तुम इस कार्य को पूरा करोगी। परन्तु तुमने इस श्राप को करने के लिए लगभग बारह वर्ष लगा दिए। सच में तुम इंसान रूप में इस घर की कुलदेवी हो।"
कुनरेवा देवी ने कहा,
"सच में रेवाला, तुम प्रत्येक कार्य को लगन और मेहनत से करती हो। सच में आज तुम्हारे वजह से हमारा पुत्र हमारे पास सही-सलामत आएगा।"
रेवाला ने कहा,
"हमारे साथ गुमान देवी और दादा पंजर, रानी कुनरेवा देवी चलेंगी।"
दादा पंजर ने कहा,
"वैसे कनकमाला, तुम चलना चाहो तो चल सकती हो और तुम आज अपनी इन आँखों से भी देख लेना कैसे महान रेवाला हमारे इकलौते राजकुमार सुमल को काल के मुँह से बाहर लाती है।"
कनकमाला ने कहा,
"अवश्य चलेंगे, क्योंकि हम तुम्हारा वह चेहरा देखना चाहते हैं जब तुम्हारा यह घमंड टूटेगा, तब हम बहुत खुश होंगे।"
रेवाला ने कहा,
"वह तो समय बताएगा जिसने हमारे ऊपर शक किया, वह इस महल के लिए सबकी नज़रों में एक शक बन जाता है।"
यह सुनकर कनकमाला हँसी।
दादा पंजर गुस्से में रेवाला से बोले,
"जब जलतारा मर चुकी है तो इसके जासूस इस महल में क्या कर रहे हैं? इनको तुम मार क्यों नहीं देती?"
इस बात को सुनकर सुकेत को गुस्सा आया। वह कुछ कहने वाला ही था कि तभी कनकमाला देवी बोलीं,
"जलतारा हमें इस महल में लाई थी, इसलिए वह अभी ज़िंदा है और कहाँ है यह जल्द ही पता चल जाएगा। और अब ये हमारे कहने पर यहाँ रुकेंगे और हमारे साथ रेवाला का तमाशा भी देखने चलेंगे।"
रेवाला ने कहा,
"कौन कहाँ रहेगा, इस पर अभी कोई बहस नहीं होगी। आप सब तैयार रहिए, हम अभी आएँगे।"
रेवाला वहाँ से चली
जब महल का सारा कार्य पूरा हो गया, तो कनीषा देवी ने कहा, "हम इस महल में मूर्ति कहाँ स्थापित करेंगे और भगवान की मूर्ति कहाँ है?"
उरका देवी ने उत्तर दिया, "उसकी चिंता करने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है।"
कनिषा देवी ने उरका देवी से पूछा, "क्या महल में मूर्ति स्थापित करना ठीक होगा? अगर दादा पंजर ने कुछ कर दिया तो? और रुधारा देवी का हमें कोई पता नहीं है कि वह कहाँ है।"
तभी नई बहू संसिका देवी आई और बोली, "हम नई मूर्ति की स्थापना पुराने मंदिर में से करेंगे।"
कनीषा देवी ने कहा, "पर वह महल तो खंडित है। मेरे हिसाब से तुलसी माँ की जड़ में हम गणेश और लक्ष्मी जी की स्थापना करेंगे।"
तभी नई बहू दियावती देवी आई और बोली, "हमें यह शुद्धिकरण पूजा जल्द से जल्द करनी होगी।"
इधर, रेवाला और अन्य लोग जंगल के दलदल में पहुँच गए। तभी कनकमाला देवी ने रेवाला से पूछा, "तो कितने समय में आप काल के घर से निकालेंगी राजा सुमल को?"
रेवाला ने कनकमाला से कहा, "हम ही भगवान और हम ही शैतान हैं। राजा सुमल काल के मुख से बिल्कुल सुरक्षित निकलेंगे और आप इस चमत्कार को स्वयं ही देखेंगी।"
इतना कहकर रेवाला एक पैर पर खड़ी हो गई और सभी से शैतान की जय-जयकार करने को कहा।
दादा पंजर ने कुनरेवा देवी से कहा, "अब तुम्हारा पुत्र जीवित होगा।" बोली रेवाला, "शैतान की जय! रेवाला शैतान की जय!"
थोड़ी देर बाद काला धुआँ हुआ। सभी लोगों को कुछ दिखाई नहीं दिया। जब अंधेरा साफ हुआ, तो सभी लोग हैरान और थोड़े भयभीत हो गए क्योंकि वहाँ राजा सुमल की जगह एक काला कौवा मरा हुआ पड़ा था।
तभी कनकमाला देवी ने ताना मारते हुए कहा, "काल के महल से एक काला कौवा निकाला, वह भी मरा हुआ! इस ढकोसले को कब तक आगे बढ़ाओगी, शैतान रेवाला जी?"
यह सुनते ही रेवाला बोली, "हमारा पहला प्रयास असफल रहा। अब दूसरा प्रयास अवश्य ही सफल होगा।"
उर्वा, कनकमाला और सुकेत एक-दूसरे की ओर मुस्कराकर देख रहे थे।
अबकी बार रेवाला ने पुनः प्रयास किया। इस बार सफ़ेद धुआँ हुआ जिससे कुछ देर के लिए किसी को दिखाई नहीं दिया। और इस बार जब सब लोगों ने देखा तो एक मरा हुआ काला साँप था।
तब कुनरेवा देवी गुस्से में रेवाला से बोली, "क्या तुम कोई जादू करना चाहती हो या यह सब तुम्हारे ढकोसले हैं? हमें तो नहीं लगता कि तुम हमारे बेटे सुमल को वापस ला सकती हो। तुम एक अच्छी षड्यंत्रकर्ता हो सकती हो, लेकिन काला जादू करना तुम पर नहीं आता। अभी की अभी हमारी नज़रों के सामने से चली जाओ, वरना हमारी तलवार तुम्हारा अंत कर देगी।"
कुनरेवा देवी के ऐसा कहने पर रेवाला थोड़ी डर गई और बोली, "आपको लगता है मुझ पर तंत्रविद्या नहीं आती? तो सुनिए, मैं तंत्रविद्या में अघोर हूँ और आज रात एकांत में, जब कोई व्यक्ति मेरे समीप नहीं होगा, तब मैं अपनी तंत्र साधना से राजा सुमल को वापस जीवित कर सकती हूँ।"
तभी कनकमाला हँसते हुए बोली, "पर हमारी उर्वा तो दिन में ही राजा सुमल को सबके सामने काल की कोठरी में जीवित निकाल सकती है।"
यह सुनकर रेवाला हँसते हुए उर्वा को ताना मारते हुए बोली, "छोटे कद वाले लोग खोटे किस्म के होते हैं और उनसे किसी कार्य की उम्मीद करना समझो लोहे को लकड़ी की तलवार से काटने के बराबर है।"
यह सुनने के बाद उर्वा शांत रहकर मंत्रों का जाप करने लगी। पहले की तरह काला धुआँ उठा और जब काला धुआँ साफ हुआ तो रेवाला और अन्य लोग हैरान हो गए क्योंकि राजा सुमल मिट्टी से सने हुए मूर्छित अवस्था में पड़े हुए थे।
रानी कुनरेवा देवी ने उर्वा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, "धन्यवाद उर्वा, हमने तुम्हें बहुत गलत समझा और तुमने हमारे पुत्र को जीवित कर दिया। सच में तुम हमारे लिए भगवान हो, तुम्हारी जय हो।"
तभी दादा पंजर बोले, "उर्वा ने जो भी किया वह उसका फ़र्ज़ है या षड्यंत्र, हम नहीं जानते। अगर इतनी बड़ी जादूगरनी है तो जलतारा देवी को वापस लाकर दिखाए तो हम जानें। लेकिन रेवाला अब भी इस महल की भगवान है और रहेगी, समझे सभी लोग।"
दादा पंजर के इतना कहते ही राजा सुमल को होश आ गया।
इधर महल में कांति देवी घबराते हुए उरका देवी से बोली, "संसिका देवी ने जो भगवान जी की मूर्ति बनाई थी, वह गायब है।"
उरका देवी बोली, "आपको कोई गलतफ़हमी हुई है। अभी संसिका देवी ने कोई मूर्ति नहीं बनाई है। वह गायब कैसे हो सकती है? वह तो मूर्ति बनाएगी।"
कांति देवी बोली, "उन्होंने आज भोर के समय छत पर गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियाँ बनाई थीं और उन्हें छत पर सुखाने के लिए रख दिया था।"
थोड़ी देर में उरका देवी सभी रानियों को महल के आंगन में बुलाती है और सभी रानियों से पूछते हुए बोलती है, "भगवान जी की प्रतिमा किसने गायब की? हमें सच-सच बताइए। और रानी मैना और त्रिनैना, आपको सुकेत ने बंदी बनाया और थोड़ी देर बाद आजाद क्यों किया? हमें सच-सच बताइए। कहीं आपने तो मूर्तियाँ गायब नहीं की? एक तो रुधारा देवी का कुछ अता-पता नहीं है और जलतारा देवी का भी कुछ अता-पता नहीं है। हमें सभी सच-सच बताइए, मूर्तियाँ गायब कैसे हुईं?"
रानी मैना बोली, "सुकेत ने हमें क्यों छोड़ा यह तो सुकेत ही जाने, पर हमने मूर्तियाँ गायब नहीं की हैं।"
तभी अचानक एक अघोरी बाबा महल के मुख्य दरवाजे पर लगे घंटे को बजाता है। तो कनीषा देवी दरवाज़ा खोलती है और अघोरी बाबा भिक्षा माँगता है। तभी रानी नेल्ला देवी एक कटोरे में चावल भरकर अघोरी बाबा को देती है। जैसे ही नेल्ला देवी अघोरी बाबा के पात्र में चावल डालती है, वे चावल काले पड़ जाते हैं। तभी अघोरी बाबा भयंकर आवाज़ में बोलता है, "घोर अनर्थ इस महल में है! वह इस महल का काल है! काल को कलंकित करके सभी का काल बनेगी! वह इस महल में रहने वाले सभी को चुन-चुनकर मारेगी!"
इतना कहकर वह अघोरी बाबा काले चावल से भरे पात्र को फेंक जाता है और चला जाता है।
आखिर वह कौन होगी?