"प्यार... एक ऐसा शब्द जो अद्वय राठौड़ के लिए किसी मज़ाक से कम नहीं था।" Successful, charming और dangerously handsome — लड़कियाँ उसकी एक मुस्कान पर फिदा थीं, मगर शादी? उससे तो वो ऐसे भागता था जैसे आग से। लेकिन किस्मत ने जब उसकी टक्कर आध्या... "प्यार... एक ऐसा शब्द जो अद्वय राठौड़ के लिए किसी मज़ाक से कम नहीं था।" Successful, charming और dangerously handsome — लड़कियाँ उसकी एक मुस्कान पर फिदा थीं, मगर शादी? उससे तो वो ऐसे भागता था जैसे आग से। लेकिन किस्मत ने जब उसकी टक्कर आध्या से कराई, तो कहानी ने मोड़ ले लिया। आध्या — एक खूबसूरत, बोल्ड और खुद्दार सिंगल मदर। जिसकी ज़िंदगी उसकी नन्हीं सी दुनिया मिष्टि के इर्द-गिर्द घूमती थी। उसका अतीत ऐसा था कि मर्दों पर भरोसा करना उसने छोड़ दिया था। प्यार, शादी, मोहब्बत — सब बकवास लगता था उसे। पर अद्वय... वो तो कुछ और ही निकला। वो उसका अतीत नहीं, किस्मत बनकर आया था। और इस मोहब्बत की सबसे खूबसूरत शुरुआत बनी — मिष्टि। ये कहानी है एक ऐसे इश्क़ की... जो तकरार से शुरू होकर तक़दीर में बदल गया। एक ऐसे जुनून की... जिसने एक टूटी हुई औरत को फिर से मोहब्बत पर यकीन करना सिखाया। "He never believed in love... until she belonged to him."
Page 1 of 13
पुणे, मुंबई। सुबह छह बजे। एक पचास गज का घर, जिसमें दो कमरे, एक रसोई और एक बड़ा सा हॉल था। हॉल के बायें ओर खुली रसोई थी, जहाँ एक सुन्दर युवक खाना बना रहा था। तभी एक कमरे से एक लड़की, अपने लम्बे सुनहरे बालों को जूड़े में बाँधते हुए, बाहर निकली।
उसकी उम्र लगभग तेईस-चौबीस साल रही होगी। दूधिया रंग, वह बेहद दुबली-पतली नहीं थी; थोड़ी हेल्दी लग रही थी, और यह उस पर खूब जँच रहा था। गोल-मटोल गाल, जिन्हें देखकर खींचने का मन करता था। शांत चेहरा, भूरी-भूरी आँखें, और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे कोमल, गुलाबी, पतले होंठ, जिन पर हल्की मुस्कान थी। देखने में बेहद खूबसूरत, जैसे भगवान ने अपनी सारी कला उसके रूप में उकेरी हो। उसने एक सादा हरा कुर्ता और सलवार पहना हुआ था, गले में चुनरी लटक रही थी। वह उस युवक के पास जाकर खड़ी हुई और मुस्कुराकर बोली,
"तुम क्यों बनाने लगे? मुझे उठा दिया होता, मैं बना देती।"
आवाज़ सुनकर युवक ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराकर बोला, "गुड मॉर्निंग।" फिर उसने चाय का एक कप उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "लो, चाय पियो और काम की चिंता मत किया करो, मैं मैनेज कर लूँगा। और केयरटेकर के लिए बोला हुआ है, जल्दी ही कोई न कोई काम करने वाली मिल जाएगी, जो काम भी करेगी और हमारी प्रिंसेस का ध्यान भी रखेगी।"
लड़की ने कप लिया और घूँट लेने के लिए उसे उठाते हुए बोली, "जितना आसानी से तुमने कहा, यह उतना आसान नहीं है। जानते हो, मिष्टि किसी को टिकने ही नहीं देती।"
उसकी बात सुनकर वह युवक मुस्कुराया। फिर चाय की चुस्की लेते हुए बोला, "अब ढंग की कामवाली मिलती ही नहीं, तो इसमें मिष्टि की क्या गलती है?"
"हाँ, तुम और तुम्हारी प्रिंसेस, कोई पसंद आती ही नहीं उसे, और तुम उसके नखरे उठाते रहते हो। ऐसे तो मिल गई हमें काम करने वाली, जानते नहीं हो, वह जानबूझकर हर आने वाले को इतना परेशान करती है कि बेचारी एक दिन से ज़्यादा टिक ही नहीं पाती।"
लड़की ने नाक सिकोड़ते हुए कहा। जवाब में युवक के होंठों पर हल्की मुस्कान छा गई। "ठीक ही तो है। किसी और के भरोसे अपनी गुड़िया को कैसे छोड़ सकता हूँ मैं? उसका ध्यान मैं खुद ही रख लिया करूँगा। और यह हम दोनों के बीच की बात है, तो तुम्हें बीच में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। चलो, चाय पीकर बताओ कैसे बनी है।"
लड़की ने मुँह बनाते हुए घूँट लिया और चाय का घूँट भरते ही उसकी आँखें बंद हो गईं। उसने चाय के स्वाद में खोते हुए कहा, "उम्मह.........तुम्हारी चाय का तो कोई जवाब ही नहीं। इंसान की सारी थकान इसके एक घूँट भरने से ही उतर जाती है। मैं तो कहती हूँ, यह इंजीनियरिंग तो तुमने बेवजह ही कर ली, अपने टैलेंट को पहचानते और चाय की दुकान खोल ली होती। मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ, खूब कमाई होती तुम्हारी।"
लड़की ने शरारत से मुस्कुराते हुए आँखें मटकाईं। लड़के ने नाराज़गी से उसे घूरा और उसके सर पर चपत लगा दी। "पागल लड़की! मैं क्या तुम्हें चाय बेचने वाला नज़र आता हूँ? इतनी अच्छी जॉब है मेरी, मुझे नहीं खोलनी चाय की दुकान। वैसे भी, मेरे हाथों की स्पेशल चाय सिर्फ़ कुछ स्पेशल लोगों के लिए ही है, हर किसी को इसका स्वाद चखाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। इसलिए ज़्यादा ख्याली पुलाव मत बनाओ और चुपचाप चाय पियो।"
लड़की ने अपना सर सहलाते हुए मुँह फुलाकर उसे देखा। उसने उसके गालों को खींचते हुए कहा, "कितनी क्यूट हो तुम! बिल्कुल टेडी बियर जैसी। और हमारी प्रिंसेस बिल्कुल तुम पर गई है। माँ क्यूट तो बेटी सुपर क्यूट। वैसे, हमारी शैतान गुड़िया कहाँ है? अभी उठी नहीं क्या? घर में उसके रहते इतनी शांति कुछ हज़म नहीं होती।"
उसकी बात सुनकर लड़की के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। उसने कमरे की ओर देखते हुए मुस्कुराकर कहा, "रात को मस्ती कर रही थी, देर से सोई है, तो अभी जगी नहीं है। अगर जाग गई होती, तो तूफ़ान नहीं आ गया होता अभी तक।"
"तुमने बेवजह ही मेरी प्रिंसेस को बदनाम किया हुआ है। इतनी भी शैतानी नहीं करती है वह। अपनी उम्र के बच्चों से कहीं गुना ज़्यादा समझदार है।" उसने गर्व भरी मुस्कान के साथ कहा। तो लड़की अपने ख्यालों में खो गई।
"Hmm, सही कहा तुमने। अपनी उम्र से ज़्यादा समझदार है। कभी-कभी तो मुझे उसकी समझदारी देखकर डर लगता है। इतनी सी उम्र में इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है। डर लगता है, कहीं अपनी प्रॉब्लम के चक्कर में मैं उससे उसका बचपन तो नहीं छीन रही।"
"तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। हमारी प्रिंसेस से उसका बचपन नहीं छिनेगा। वह समझदार है क्योंकि अपनी समझदार माँ पर गई है। पर उसका बचपना उससे छीना नहीं है और हमारे रहते ऐसा कभी होगा भी नहीं।"
उस लड़के ने प्यार से उसके सर को सहलाते हुए समझाया। लड़की पलकें उठाकर उसे देखने लगी। "मैं कभी-कभी सोचती हूँ कि अगर उस रोज़ मुझे तुम नहीं मिले होते, तो मेरा और मिष्टि का क्या होता? इसके बारे में सोचकर भी मुझे डर लगने लगता है। एक बिन बाप की बच्ची को दुनिया में लाना और उसकी परवरिश करना बहुत मुश्किल है। पता नहीं, मैं ऐसा कर भी पाती या अपने हालातों से लड़ते हुए कहीं अंधेरे में दम तोड़ देती। शायद मिष्टि इस दुनिया में आ ही नहीं पाती।"
वह आगे कुछ कह पाती, उससे पहले ही लड़के ने उसकी बात काटकर कहा, "जो हुआ नहीं, उसके बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं। तुम और मिष्टि अकेली नहीं हो, मैं हूँ तुम्हारे साथ और हमेशा रहूँगा भी। बेवजह इन बेकार की बातों को सोचकर अपना और मेरा दिन खराब करने की ज़रूरत नहीं है। जाकर तैयार हो जाओ, फिर मिष्टि को भी उठा देना। जाते हुए उसे प्ले स्कूल में छोड़ दूँगा।"
उसकी बात सुनकर लड़की ने अपने आँसुओं को साफ़ किया और मुँह लटकाकर बोली, "मुझे आज कहीं नहीं जाना, तो तुम तैयार हो जाओ। मैं काम भी कर लूँगी और मिष्टि को स्कूल भी छोड़ आऊँगी।"
"नहीं जाना मतलब?" लड़के ने भौंहें चढ़ाते हुए गहरी निगाहों से उसे देखा, जिसने उसे नज़रें चुराने पर मजबूर कर दिया। "मतलब तुम्हें बताने की ज़रूरत तो नहीं, तुम इसका मतलब बहुत अच्छे से समझते हो।"
"मतलब एक बार फिर तुमने जॉब छोड़ दी।" लड़के ने ऐसे कहा, जैसे मामूली सी बात हो। उसकी बात सुनकर लड़की ने मुँह बनाते हुए कहा, "तो और क्या करती? मैंने तो बस जॉब छोड़ी ही है। मन तो कर रहा था कि उस बूढ़े को इतना मारूँ कि सारी रंगीनी एक बार में ही निकल जाए।"
जिस अंदाज़ में उस लड़की ने यह बात कही, उस लड़के की हँसी छूट गई। "यार आध्या, तुमने तो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना लिया है। इतनी तो लड़कियाँ बॉयफ्रेंड नहीं बदलतीं जितनी तुम जॉब बदलती हो। हर महीने के अंत में मुझे एक नई गुड न्यूज़ सुनने को मिलती है। अब तो इसकी इतनी आदत पड़ गई है कि गलती से अगर कभी किसी महीने तुम्हारे मुँह से यह बात नहीं सुनता, तो लगता ही नहीं कि तुम मेरी ही आध्या हो।"
उसको हँसता देख आध्या ने मुँह बना लिया। "अब इसमें मेरी क्या गलती है? हर आदमी को मेरा काम नहीं, बल्कि खूबसूरती दिखती है। मुझे तो समझ नहीं आता, मैं तो आजकल की लड़कियों की तरह स्लिम-ट्रिम भी नहीं हूँ, फ़ैशन सेंस भी बिल्कुल ज़ीरो है मेरा, मेकअप नाम की बाला से भी कोसों दूर रहती हूँ और इतने डिसेंट कपड़े पहनती हूँ, फिर भी लोग मेरे पीछे पड़ जाते हैं। मैं इज़्ज़त से दो पैसे कमाना चाहती हूँ, पर यह दुनिया मेरी इज़्ज़त के ही पीछे पड़ जाती है। जहाँ भी काम करने जाओ, वहाँ ऐसे लीचड़ इंसान मिल जाते हैं कि मुझे जॉब छोड़नी ही पड़ती है।"
आध्या के चेहरे पर उदासी और मायूसी देखकर लड़के ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मैंने तुम्हें इतनी बार कहा है कि तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं है। मैं हूँ ना। तुम बस घर पर रहकर मिष्टि की परवरिश करो, तुम्हारी और उसकी ज़िम्मेदारी मैं उठाऊँगा। ऐसे तुम मिष्टि पर भी ध्यान दे पाओगी।"
"मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ? वैसे ही तुम मेरे और मिष्टि के लिए इतना करते हो। हर दूसरे महीने मुझे जॉब छोड़नी ही पड़ जाती है। तुम्हीं तो सब खर्च उठाते हो। अगर तुम नहीं होते, तो मैं कभी मिष्टि को इस दुनिया में ला ही नहीं पाती। तुम्हारे वैसे ही बहुत एहसान हैं, और कितना एहसान लूँ तुमसे? मैं मिष्टि को अपने बल पर पालना चाहती हूँ। उसे दुनिया में लाने का फैसला मेरा था, फिर भी तुम उसका सारा खर्च उठाते हो। मैं चाहकर भी तुम्हारी मदद नहीं कर पाती, पर मैं हार नहीं मानूँगी। अंत तक कोशिश करूँगी, भगवान कभी तो मुझ पर तरस खाएँगे। मैं फिर से जॉब ढूँढूँगी और कोशिश करूँगी कि इस बार किसी ऐसी कंपनी में काम मिले जहाँ का मालिक मेरे काम को देखे, मुझे नहीं।"
आध्या की बात सुनकर समीर ने गंभीरता से कहा, "आध्या, तुम मेरे लिए मेरी बहन और दोस्त दोनों हो। मैंने कभी तुम्हें या मिष्टि को पराया नहीं समझा है, और न ही मैंने तुम पर या मिष्टि पर कोई एहसान किया है। तुम्हारे आने से तो मुझे कंपनी मिल गई, फिर मिष्टि जैसी प्यारी सी गुड़िया भी तो तुम ही ने मुझे दी है। चाहे कितना ही परेशान होऊँ, पर उसकी एक मुस्कान मेरी सारी परेशानी खत्म कर देती है। तुम अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हो तो मैं तुम्हें रोकूँगा नहीं, पर इतना याद रखना कि मैं हूँ तुम्हारे साथ और हमेशा रहूँगा। अगर जॉब नहीं भी मिलती, तब भी मैं हूँ। मैं अपनी बहन और प्रिंसेस को एक आराम की ज़िंदगी दे सकूँ, इतना कमा लेता हूँ।"
"हाँ, पता है मुझे। एक यही वजह है जो मैं भगवान से कभी शिकायत नहीं करती। उन्होंने भले ही मुझसे सब छीन लिया हो, मेरी ज़िंदगी को बस मुश्किलों से भर दिया हो, फिर भी उन्होंने उन सब के बदले मुझे तुम्हारे जैसा दोस्त दिया है। तुम्हारे और शिल्पा के वजह से ही मैं इतनी परेशानियों के बाद भी, यहाँ तक पहुँच पाई हूँ। मिष्टि को जन्म देने के बाद से तुमने उसे ऐसे संभाला जैसे मैं भी नहीं संभाल पाई। मेरी ज़िंदगी में आज जो भी है, सब तुम्हारे और शिल्पा के वजह से ही है।
किसी ने सही ही कहा है कि अगर आपके पास सच्चे दोस्त हैं तो आप बहुत खुशकिस्मत हो, क्योंकि वे तुम्हारा साथ हर मुश्किल में देंगे, जब हर कोई आपके खिलाफ़ हो, तब भी वे तुम्हारे साथ खड़े रहेंगे। दोस्ती का रिश्ता बहुत खास होता है और मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ जो मुझे एक नहीं, दो-दो दोस्त मिले हैं जो हर मुश्किल घड़ी में मेरी हिम्मत बनकर मेरे साथ खड़े रहते हैं।"
उसकी बात सुनकर समीर ने मुस्कुराकर कहा, "चलो, अब बहुत तारीफ़ कर ली तुमने हमारी। अब जाकर फ़्रेश हो जाओ और मेरी जादू की छड़ी को भी उठा देना। मैं ब्रेकफ़ास्ट तैयार करता हूँ।"
आध्या कुछ कहने जा ही रही थी कि समीर ने उसे धक्का देते हुए किचन से बाहर निकाल दिया। आध्या भी मुस्कुराकर अपने कमरे की ओर बढ़ गई। कमरे में जाते ही उसकी नज़र बिस्तर पर सोई हुई बच्ची पर गई। तीन से चार साल की लड़की लग रही थी, जिसके जूड़े में बंधे बाल उसके कंधे से थोड़े नीचे तक आ रहे थे। उनमें से निकलते छोटे-छोटे बाल उसके माथे और गर्दन पर फैले हुए थे। अपनी माँ की तरह ही एकदम गोरा रंग, गुलाबी पतले-पतले होंठ, सुपर क्यूट चेहरा, चबी चीक्स, इतनी क्यूट लग रही थी वह कि उसे देखकर हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ ही जाए।
कितनी ही बड़ी प्रॉब्लम हो, पर बस उसकी एक झलक दिल को सुकून देने के लिए काफी थी। उसे देखकर आध्या की मुस्कान बड़ी हो गई। उसने उसकी ओर कदम बढ़ा दिए। उसके पास जाकर उसने उसके माथे और चेहरे पर फैले बालों को पीछे किया और प्यार से उसके माथे को चूम लिया। तो मिष्टि के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गई।
पर आध्या के मुस्कुराते लब सिमट गए और वह आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरने लगी।
जल्द ही...
मिष्टि बेटा, उठ जाइए। आध्या ने प्यार से उसके गाल को छूकर कहा। मिष्टि ने उसके हाथ को पकड़कर अपने सर के नीचे रख लिया। आध्या मुस्कुरा उठी। उसने मिष्टि को अपनी गोद में उठाते हुए कहा, "मम्मा को पता है कि आप उठी हुई हैं। इसलिए अब ये नाटक करना बंद कीजिए।"
मिष्टि ने उसकी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी छोटी-छोटी बाहें लपेट दीं और अपनी प्यारी-प्यारी आँखें खोलकर आध्या को देखते हुए अपने चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान बिखेरते हुए बोली, "गुड मॉर्निंग मम्मा।"
इतना कहकर उसने आध्या के गाल पर किस कर दिया। आध्या ने भी मुस्कुराकर उसके गाल को चूम लिया। "लव यू टू माय बच्चा। अच्छा, अब आप पहले मम्मा को ये बताइए कि आप रोज़ जाग जाती हैं, फिर भी सोने का नाटक क्यों करती हैं?"
आध्या का सवाल सुनकर मिष्टि ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा, "ओफ्फो मम्मा, आपको तो कुछ भी नहीं पता। उठ तो मैं आपके जाने के बाद ही जाती हूँ, पर मुझे सबसे पहले आपका सुंदर सा चेहरा देखना होता है ना, इसलिए इंतज़ार करती हूँ कि कब आप मुझे उठाने आएंगी। ताकि मिष्टि की सुबह उसकी मम्मा का सुंदर सा चेहरा देखकर हो। सुपरमैन कहते हैं कि आपका चेहरा देखकर अगर दिन की शुरुआत हो तो दिन अच्छा गुज़रता है।"
उसकी एक्टिंग देखकर आध्या ने उसके गाल को खींचते हुए कहा, "आप और आपके सुपरमैन, पता नहीं क्या-क्या करते रहते हैं। चलिए, अब हो गई आपकी दिन की शुरुआत, तो चलकर फ़्रेश हो जाइए, वरना अंकल को लेट हो जाएगा।"
"मम्मा, पहले मिष्टि को नीचे तो उतारिए। सुपरमैन को तो अभी गुड मॉर्निंग कहा ही नहीं मिष्टि ने," मिष्टि ने मासूमियत से अपनी आँखें मटकाते हुए कहा। आध्या ने उसको नीचे उतारते हुए कहा, "जल्दी आइएगा, मम्मा आपका इंतज़ार कर रही है।"
मिष्टि ने "येस मम्मा" कहा और झट से अपने छोटे-छोटे पैरों से मटकते हुए वहाँ से भाग गई। आध्या मुस्कुराकर उसको देखती रही, फिर वॉर्डरोब की तरफ़ बढ़ गई।
मिष्टि कमरे से बाहर निकली और भागते हुए किचन में पहुँच गई। फिर उसने अपनी कमर पर हाथ रखकर समीर को देखते हुए कहा, "सुपरमैन, नीचे आइए ना। मिष्टि अभी लिटिल गर्ल है।"
उसकी बात सुनकर समीर उसकी तरफ़ मुड़ा और उसको उठाकर स्लैब पर खड़ा करते हुए मुस्कुराकर कहा, "अब तो मिष्टि बिग गर्ल हो गई। बताइए, हमारी प्रिंसेस यहाँ क्यों आई है?"
"गुड मॉर्निंग सुपरमैन।" मिष्टि ने खिलखिलाते हुए उसके गाल पर किस कर दिया।
समीर की मुस्कान और बड़ी हो गई। उसने भी उसके गाल को चूम लिया। "गुड मॉर्निंग प्रिंसेस। अच्छा, चलिए बताइए, आज आप ब्रेकफ़ास्ट में क्या खाएँगी?"
"आप जो भी बनाएँगे, मिष्टि खा लेगी। उसके सुपरमैन बहुत अच्छी कूकिंग करते हैं। मिष्टि को उनकी बनाई हर डिश पसंद है।"
"अच्छा, ठीक है। चलिए, अब आप जाकर तैयार होकर आइए, तब तक आपके सुपरमैन आपके लिए स्पेशल ब्रेकफ़ास्ट बनाते हैं।"
समीर ने उसको अपनी गोद में उठाकर नीचे उतारा और मिष्टि फुदकती हुई वापिस कमरे में भाग गई। समीर भी मुस्कुराकर अपने काम में लग गया। कुछ एक घंटे बाद आध्या मिष्टि के साथ कमरे से बाहर निकली तो समीर तैयार होने चला गया। आध्या ने डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफ़ास्ट लगाया और कुछ देर में समीर भी वहाँ आ गया।
आध्या ने उसको ब्रेकफ़ास्ट करवाया और फिर खुद करने लगी। ब्रेकफ़ास्ट के बाद समीर उसको लेकर चला गया। अब वहाँ बस आध्या रह गई थी। आध्या ने घर साफ़ किया और अब काम निपटाने के बाद वह न्यूज़पेपर में जॉब के ऐड्स देखने लगी। सुबह से दोपहर हुई तो वह जाकर मिष्टि को लेकर आ गई। उसके कपड़े बदलवाकर उसको लंच कराकर सुला दिया और खुद उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली,
"पता नहीं आपकी मम्मा आपको वो ज़िंदगी दे भी पाएँगी या नहीं जिस पर आपका हक़ है, पर आपकी मम्मा जो भी कर रही है, बस आपके लिए ही कर रही है। आप ही उनके लिए सब कुछ हैं, उनके जीने की वजह भी आप हैं। एक बिन माँ-बाप की बच्ची को ये सेल्फ़िश दुनिया कहीं का नहीं छोड़ती, इसलिए आपकी मम्मा हमेशा आपके साथ रहेगी। खुद को नहीं बचा पाई, पर आप पर आँच तक नहीं आने देंगी। आपको वो प्यार ज़रूर मिलेगा जिसके लिए आपकी मम्मा आज तरसती है, और मैं कोशिश करूँगी कि अपनी बेटी को दुनिया की हर खुशी दे पाऊँ।"
फिर उसने अपनी आँखें बंद करके कहा, "हे भगवान जी, आपने आज तक जो भी मेरे साथ किया, मैंने उसे बिना शिकायत किए एक्सेप्ट किया है क्योंकि मुझे आप पर विश्वास है। अगर आप कुछ कर रहे हैं तो उसके पीछे मेरा भला ही छुपा होगा। आज भी आपसे शिकायत नहीं कर रही, बस रिक्वेस्ट कर रही हूँ कि बहुत ठोकरें खा ली मैंने, अब मुझे ऐसी नौकरी दिला दीजिए जहाँ मैं इज़्ज़त से काम कर सकूँ और मिष्टि की अच्छे से परवरिश कर दूँ। इस बार किसी गलत जगह मत भेजिएगा मुझे।"
इतना सोचते हुए उसकी आँखें नम हो गईं। उसने मिष्टि के माथे को चूम लिया और लग गई एक बार फिर अपने लिए जॉब ढूँढने में। शाम हुई तो समीर भी लौट आया। उसने मिष्टि के साथ खूब मस्ती की। आध्या भी दोनों की मस्ती देखते हुए खाना बना रही थी। रात को तीनों ने साथ में डिनर किया, फिर दोनों मिलकर मिष्टि को पढ़ाने लगे। वह पढ़ते-पढ़ते ही सो गई तो समीर ने उसको अच्छे से सुलाया और गुड नाइट बोलकर वहाँ से निकल गए। अगले दिन का सोचते हुए आध्या भी सो गई।
वहीं शहर के सबसे आलीशान बंगले में, एक लड़का था— नज़रें उसकी तरफ जाती थीं... और फिर वहीं ठहर जाती थीं।
सुबह की हल्की धूप उस महल जैसे घर की खिड़कियों से छनकर, सीधे उस पर पड़ रही थी। वह अपने पर्सनल जिम में था। हाथों में डम्बल्स, आँखों में जुनून, और बदन से टपकता पसीना… ऊपरी बदन से कपड़े नदारद, और सामने शीशे में झलकती उसकी सिक्स पैक एब्स वाली परफेक्ट बॉडी।
पसीने की बूंदें उसके चेहरे से लुढ़कती हुई गर्दन और मस्कुलर चेस्ट पर गिर रही थीं… वह सिर्फ फिट नहीं था… वह खतरनाक हद तक परफेक्ट था। एक ऐसा लड़का, जो किसी के भी दिल की धड़कनों को मिनटों में तेज़ कर सकता था।
उसने अपने हैंडसम से चेहरे को तौलिए से पोंछते हुए दूसरी तरफ़ निगाह उठाई। वहाँ खड़े लड़के ने झट से कहा, "सॉरी सर, वो आज आप ऑफ़िस नहीं आने वाले थे, फिर सीधे दो दिन बाद ही आपसे बात हो पाती और मेरा अभी आपसे बात करना बहुत ज़रूरी था। मुझे अर्जेंटली दिल्ली जाना होगा, पापा की तबियत खराब हो गई है। उन्हें कल रात को अटैक आया था, माँ बहुत डरी हुई है इसलिए मुझे वहाँ जाना होगा और शायद एक-दो महीने मैं आ भी न सकूँ। फैमिली का प्रेशर है कि शादी करनी है, तो अब जब सब ठीक होगा, तभी लौट पाऊँगा।"
उसने तोते की तरह सब एक साँस में कह दिया, फिर डरी हुई नज़रों से लड़के को देखा। लड़के ने बड़े आराम से उसकी बात सुनी। उसके चुप होने के कुछ देर बाद, बिना किसी भाव से उसने बोला, "तो तुम शादी करने के लिए जा रहे हो और उसके लिए अपनी जॉब छोड़ना चाहते हो?"
उसके सवाल को सुनकर वह लड़का हड़बड़ा गया।
"नहीं सर, मैं जॉब छोड़ना नहीं चाहता। इतने अच्छे बॉस के लिए काम करने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा? बात बस इतनी है कि मम्मी-पापा प्रेशर डाल रहे हैं, तो मुझे जाना ही होगा, पर मैं जॉब नहीं छोड़ना चाहता। अगर आप मुझे एक महीने की छुट्टी दे देते तो अच्छा होता।"
उसका जवाब सुनकर लड़का कुछ देर सोचता रहा। फिर उसने उसकी तरफ़ निगाह उठाते हुए कहा, "तुम पिछले पाँच सालों से मेरे साथ काम कर रहे हो, तुम्हारे काम से मुझे कभी कोई कंप्लेंट नहीं रही। ये कहना गलत नहीं होगा कि तुमने हर मोड़ पर अपनी काबिलियत को साबित किया है, इसलिए मैं तुम्हें हटाना नहीं चाहता। पर अगर एक महीने तक तुम काम पर नहीं आओगे तो काम में प्रॉब्लम्स आएगी, ये लाज़मी है। ऐसे में तुम्हारी जगह किसी को तो अपॉइंट करना ही होगा।"
उसके इतना कहते ही लड़के ने झट से कहा, "सर, मैं आपके लिए नई असिस्टेंट ढूँढ दूँगा। आज तो आपको वाशिंगटन जाना है Mr. विलियम के साथ। आपकी कल एक मीटिंग है। आप दो-तीन दिन बाद ही लौटेंगे, तब तक मैं आपके असिस्टेंट को सब सिखा दूँगा। आपको कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। ये मेरी ज़िम्मेदारी है। आप जब वापिस आएँगे, तब आप उस असिस्टेंट के काम को चेक कर सकते हैं। अगर आपको उसका काम पसंद आया, तभी मैं जाऊँगा, वरना कुछ और सोच लूँगा।"
उसकी बात सुनकर लड़के ने वहाँ से जाते हुए कहा, "माँ-बाप को वेट कराना सही नहीं। चले जाओ तुम, मैं मैनेज कर लूँगा। हाँ, अपनी जगह असिस्टेंट ढूँढ जाना और ट्रेंड भी कर देना। चिंता करने की ज़रूरत नहीं। जब तुम लौटोगे, तो तुम्हें तुम्हारी पोस्ट वापिस मिल जाएगी। बाकी जो करना है, वो मैं देख लूँगा।" इतना कहकर वह वहाँ से निकल गया। वह दूसरा लड़का भी जल्दी से वहाँ से निकल गया। लिविंग रूम में उसे एक बूढ़ी औरत बैठी मिली। उन्हें देखकर उसने आदर से सर झुका लिया। "गुड मॉर्निंग दादी।"
आवाज़ सुनकर उस महिला ने अखबार हटाकर उसे देखा और मुस्कुराकर बोली, "गुड मॉर्निंग बेटा। आज सुबह-सुबह यहाँ, कुछ ज़रूरी काम था क्या?"
"जी, वो घर जाना था। पापा की तबियत ठीक नहीं, माँ अकेली है तो मेरा जाना ज़रूरी है। बस इसलिए सर से परमिशन लेने आया था।" उसके जवाब पर लड़के ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। दादी ने आगे कहा, "सही सोचा है आपने, आपको उनके पास जाना ही चाहिए। माँ-बाप के प्रति अपने फ़र्ज़ को भूलना ठीक नहीं। क्या कहा अद्वय ने? छुट्टी के लिए मना तो नहीं किया ना?"
"नहीं दादी, सर ने हाँ कह दिया है। बस जाने से पहले कुछ काम निपटाने हैं, वही करने जा रहा था।" उसने एक बार फिर मुस्कुराकर कहा। दादी ने उठते हुए कहा, "अब आप आ ही गए हैं तो चलकर हमारे साथ ब्रेकफ़ास्ट कीजिए, उसके बाद चले जाइएगा काम पर।"
"नहीं दादी, काम बहुत ज़रूरी है, अभी ही जाना होगा। अगर नहीं गया तो सर छुट्टी ही नहीं देंगे।"
उसका चेहरा घबराया हुआ लग रहा था। जिसे देखकर दादी ने मुस्कुराकर कहा, "इतना क्यों डरते हैं आप उनसे? वो भी आपके तरह आम इंसान ही हैं।"
"आपने उन्हें जाना नहीं है। वो आपके सामने जितने सीधे बनते हैं, उतने ही ज़्यादा खड़ूस हैं वो काम के मामले में। एक बार किसी को घूरकर जो देख लें तो इंसान की साँसें अटक जाएँ।"
पीयूष ने अब मुँह बना लिया। जैसे ही वह चुप हुआ, एक कड़क आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "तो तुम यहाँ खड़े मेरी बुराई कर रहे हो? लगता है अपनी ज़िंदगी से मोह खत्म हो गया है तुम्हारा?"
उसकी बात सुनकर पीयूष ने घबराकर आवाज़ की दिशा में देखा। सीढ़ियों के पास ही अद्वय खड़ा था और उसी को घूर रहा था। उसके एक्सप्रेशन देखकर पीयूष ने खुद से कहा, "आज तो तू गया काम से!" फिर उसने कुछ संभलकर कहा, "सॉरी सर, मैं जा ही रहा था।"
इतना कहकर वह छुट्टे साँड की तरह सर पर पैर रखकर भाग गया। उसकी हालत देखकर दादी ने अद्वय को देखकर हल्की नाराज़गी से कहा,
"अद्वय, ये क्या तरीका था? क्यों आप उन्हें डराते रहते हैं? वो जा ही रहे थे, हमने ही उन्हें रोका था। क्या अब हम किसी से बात भी नहीं कर सकते?"
अद्वय ने नाराज़गी से उन्हें देखते हुए कहा, "वो मेरा एम्प्लॉयी है। आप उससे ऐसे मेरे बारे में बात कैसे कर सकती हैं? वो ढंग से काम करे, इसके लिए उसके साथ सख्ती दिखाना ज़रूरी है। अब हर किसी के साथ मैं आपके साथ जैसे रहता हूँ, वैसे तो नहीं रह सकता। अगर ऐसा हुआ तो ऑफ़िस में कोई न तो मुझे सीरियस लेगा और न ही काम को ढंग से करेगा। कभी-कभी सख्ती दिखाना भी ठीक होता है। आप उससे जो मर्ज़ी बात करती हैं, मैंने आज तक कभी आपको रोका है? जो आज रोकता हूँ, पर मेरे बारे में कुछ मत कहा कीजिए।"
"कभी-कभी तो हमें लगता है कि हमने आपकी परवरिश करने में कमी छोड़ दी है। आपके अंदर किसी चीज़ के लिए इमोशंस ही नहीं हैं। काम में खुद को इतना मशगूल कर लिया है कि ज़िंदगी के रंगों को कभी खुद पर चढ़ने ही नहीं देते। बेटा, ज़िंदगी जीने के लिए काम करना पड़ता है, पर आपने काम को ही अपनी ज़िंदगी बना लिया है। सबके साथ सख्ती दिखाते-दिखाते आपका दिल ही सख्त हो गया है, उसमें अब भावनाएँ रही ही नहीं या आप उन्हें आने नहीं देते। खुद को ऐसे काम में डुबोना भी ठीक नहीं बेटा, कभी-कभी हँसी-मज़ाक भी कर लेना चाहिए। ज़िंदगी को काटने की जगह उसे जीने की कोशिश कीजिए। ऐसे पत्थर दिल बने रहेंगे तो कभी खुश नहीं रह पाएँगे।"
उनकी बात सुनकर अद्वय ने वहाँ से जाते हुए कहा, "नॉट अगेन दादी, आप जानती हैं आपकी ये बातें मेरा इरादा नहीं बदल सकतीं।" इतना कहकर उसने नौकर को कुछ इशारा किया और वहाँ से चला गया। दादी उदास नज़रों से उसको जाते हुए देखते हुए बोली,
"जाने कब आप हमारी बातों को समझेंगे? आधी ज़िंदगी तो अकेले ही गुज़ार दी है। कहीं आपकी ज़िद आपको सारी ज़िंदगी अकेला रहने पर मजबूर न कर दे। सबके साथ सख्ती दिखाते-दिखाते आपने अपने दिल को पत्थर का बना लिया है। हमारी भगवान से बस एक ही प्रार्थना है, वो जल्दी से आपकी ज़िंदगी में ऐसी लड़की को भेज दे जो इस पत्थर को मोम बनने पर मजबूर कर दे। और कुछ नहीं तो आपके एम्प्लॉयीज़ को आपके रोज़-रोज़ के गुस्से से छुटकारा मिल जाएगा और हमें भी एक साथी मिल जाएगा।"
वह यही सोचते हुए मंदिर के लिए निकल गई।
अद्वय अपनी दादी की बात को अनसुना करके वहाँ से चला गया। कुछ मिनटों में वह एक बड़े से आलीशान कमरे में था। वहाँ सब चीज़ एंटीक थी; पेंटिंग्स हों या फिर सजावट का कोई भी सामान, इंटीरियर भी कमाल का था।
वह कमरा इतना बड़ा और सुन्दर था कि उसे देखकर वहीं रहने का मन करने लगा। कमरे में जाकर वह अलमारी की ओर जाता हुआ खुद से बोला,
"दादी को भी पता नहीं क्या ही दिक्कत है, इतनी अच्छी चल रही है ज़िंदगी पर नहीं, उन्हें तो मेरी शादी करवाकर मुझे बर्बाद करने का शौक चढ़ा हुआ है। जानती है आज के ज़माने में प्यार बस एक खोखला शब्द बनकर रह गया है। उनके कहने पर कोई भी लड़की मुझसे शादी करने को तैयार हो जाएगी, पर उसे प्यार मुझसे नहीं, बल्कि मेरे नाम, शोहरत, बैंक बैलेंस और प्रॉपर्टी से होगा। मेरे जैसे सफल व्यक्ति से शादी करना उसके लिए स्टेटस सिम्बोल होगा।"
इतनी लड़कियाँ दीवानों की तरह मेरे आगे-पीछे घूमती हैं, पर उनमें से कोई एक भी नहीं जिसे अद्वय जानना चाहता हो, या जिसकी वह अपनी ज़िंदगी में शामिल होना चाहे। अगर उन्हें कुछ चाहिए तो वह है मेरा नाम, 'The great Adhvay Rathour' से सब जुड़ना चाहते हैं, उसके नाम के पीछे पागल हैं। और कुछ हैं जिन्हें मेरे चेहरे, लुक्स और पर्सनालिटी से प्यार है। जो प्यार मेरे डैड-मॉम को एक-दूसरे से था, अब उसका कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है।
ऐसे खोखले रिश्ते में बंधने से अच्छा होगा कि मैं सारी उम्र अकेला ही गुज़ार दूँ। नफ़रत होती है मुझे उन लड़कियों से जो मुझे पाने के ख्वाब देखती हैं और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं। सेल्फ़ रेस्पेक्ट नाम की चीज़ तो उनके अंदर होती ही नहीं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे अपनी इज़्ज़त तक को दाव पर लगाने से नहीं चूकती हैं।
जो खुद की ही इज़्ज़त ना कर सके, वह क्या रिश्तों के महत्व को समझेगा? मैं ऐसी किसी गलत लड़की को अपनी ज़िंदगी में शामिल नहीं कर सकता। जिस दिन मुझे कोई ऐसी लड़की मिली जो बिल्कुल माँ की तरह हो, जिसे मेरे नाम और पैसों में कोई दिलचस्पी ना हो, जो रिश्तों की कद्र करना जानती हो, भावनाओं को महत्व देती हो ना कि पैसों को, अगर कभी ऐसी लड़की मुझे मिली तो मैं ज़रूर दादी की इच्छा पूरी करने का सोचूँगा, लेकिन यह नामुमकिन ही है, इसलिए मुझे शादी-वादी के बारे में सोचना ही नहीं है। बहुत अच्छी ज़िंदगी चल रही है, इसमें मुझे किसी मुसीबत को लाने का कोई शौक नहीं है।
यही सब सोचते हुए उसने बैग निकाला और उसमें अपनी ज़रूरत के हिसाब से कपड़े, फ़ाइलें आदि चीजें रखने के बाद कपड़े लेकर नहाने चला गया। कुछ देर में तैयार होकर अपना कोट पहनते हुए बाहर निकला तो गेट पर ही नौकर नज़र आ गया। उसे देखते ही नौकर ने सर झुकाकर कहा,
"जी सर।"
अद्वय ने आगे बढ़ते हुए कहा,
"सामान कमरे में रखा है, बाहर ले आओ।"
इतना कहकर वह सीढ़ियों से नीचे उतर गया। हॉल में पहुँचा तो एक नौकरानी उसके सामने आकर खड़ी होती हुई बोली,
"सर, खाना लग गया है।"
अद्वय ने एक नज़र उन्हें देखा, फिर टेबल पर से अख़बार उठाते हुए बोला,
"दादी कहाँ हैं?"
"सर, बड़ी मैम तो मंदिर गई हैं, अभी तक लौटी नहीं हैं।" नौकरानी ने तुरंत जवाब दिया। अद्वय अख़बार पढ़ते हुए ही दूसरी तरफ़ बढ़ गया। नौकरानी भी उसके पीछे भागी। कुछ ही सेकंड में वह वहाँ रखे बड़े से डाइनिंग टेबल के पास पहुँच गया। किसी राजा की तरह वह सबसे बड़ी वाली कुर्सी पर बैठ गया। वहाँ और भी नौकर थे, उनमें से दो आगे आ गए और उसके लिए प्लेट लगाकर पीछे हट गए।
अद्वय ने अपनी हाथ में पहनी ब्रैंडेड घड़ी की ओर नज़र घुमाई जो देखने में इतनी सुन्दर थी कि किसी का भी दिल उस पर अटक जाए। उसने समय देखा, फिर अख़बार टेबल पर रखते हुए जेब से फ़ोन निकालकर किसी को फ़ोन लगाया और फ़ोन कान से लगा लिया।
कुछ सेकंड बाद ही उसने कहना शुरू कर दिया,
"दादी कहाँ हैं आप? आपको पता है ना आज मुझे जाना है, जल्दी आइए वरना मैं यूँ ही निकल जाऊँगा।"
जी हाँ, यह दादी ही थीं। उसकी बात सुनकर दूसरी तरफ़ से सधी हुई आवाज़ आई,
"नाश्ता किए बिना उठने की सोचिए भी मत, आ रही हूँ, बस पाँच मिनट रुकिए।"
इतना कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया। वह एक बार फिर अख़बार में लग गया। कुछ देर बाद दादी भी वहीं आकर उसके पास ही बैठ गईं। अद्वय ने अख़बार रखकर खाना खाना शुरू कर दिया। दादी भी चुपचाप खाना खाने लगीं। दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई।
अद्वय जानबूझकर उनसे बात करने से बच रहा था, वरना कुछ देर पहले वाली बहस एक बार फिर उसके दिमाग को खराब कर देती। उसने नाश्ता किया, फिर उठकर उनके पैर छुए और सीधे खड़े होते हुए बोला,
"दो-तीन दिन लग जाएँगे, अपना ध्यान रखिएगा, जल्दी लौटने की कोशिश करूँगा।"
दादी ने प्यार से उसके माथे को चूमा। अद्वय के होंठ हल्के से खिंचे, पर उसने मुस्कान अपने चेहरे पर आने नहीं दी। चुपचाप वहाँ से निकल गया।
बाहर पहुँचा तो गेट के सामने ही काले रंग की जैगुआर कार खड़ी थी जो देखने में बहुत ही सुन्दर थी, एकदम चमकती काली कार, जिसे देखकर लोग उसकी तारीफ़ करने से खुद को रोक न सकें। जो उसके ओहदे को दिखा रही थी। अद्वय आगे बढ़ा तो ड्राइवर ने आगे आकर पीछे का दरवाज़ा खोल दिया। अपनी टाई का गाँठ ठीक करते हुए वह पीछे बैठ गया। सामान पहले ही रखा जा चुका था। उसके बैठने के बाद ड्राइवर भी आगे बैठ गया और बड़े से गलियारे से गुज़रते हुए वह कार उसके बड़े से गेट से बाहर निकल गई।
वहीं दूसरी तरफ़ दादी अपने कमरे में चली गईं। वहाँ एक तस्वीर को छूते हुए उनकी आँखें नम हो गईं। उन्होंने आँखों के कोनों को साफ़ करते हुए भारी गले से कहा,
"बहुत जिद्दी है आपका बेटा, कभी हमारी बात ही नहीं सुनते, शायद अपने डैड पर ही गए हैं। बहुत कोशिश की हमने, पर वह हैं कि टस से मस नहीं होते। लड़कियों के नाम से भी ऐसे दूर भागते हैं जैसे कोई भूत-प्रेत हो जो उन्हें पकड़ लेगा।
काम में आधी उम्र तो यूँ ही निकाल ली है। डरते हैं कहीं बची हुई ज़िंदगी भी अकेले ही ना काट ले। जीवन में जीवनसाथी का साथ बहुत ज़रूरी होता है। वह ज़िंदा है, पर एक रोबोट की तरह ज़िंदगी जी रहा है। रिश्तों के नाम पर एक हम और दूसरे आपके दोस्त के बेटे और आपके बेटे के बचपन के दोस्त हर्ष, बस इनसे अलग उसकी कोई दुनिया ही नहीं।
अपने चाचा-चाची से तो साल में एक बार मिलते तक नहीं। दिन-रात बस काम करते रहते हैं। इसमें शक की गुंजाइश नहीं कि वह एक अच्छे बेटे, पोते और बेहतरीन बिज़नेसमैन हैं। बहुत कामयाबी हासिल की है उन्होंने इतनी कम उम्र में, वह भी अपने बल पर, पर जाने क्यों शादी के नाम से ही चिढ़ जाते हैं। यह बात समझने की कोशिश ही नहीं करते कि जब तक घर-परिवार नहीं बसा लेते इन धन-दौलत का कोई मोल ही नहीं है।
क्या फ़ायदा ऐसी कामयाबी का जो आपको दुनिया की भीड़ में अकेला कर दे? हमारा भरोसा ही क्या है? इतनी उम्र हो गई है, आज है तो कल नहीं। डरते हैं अगर उन्होंने अपना परिवार नहीं बसाया तो हमारे जाने के बाद अकेले रह जाएँगे वह। जानते हैं बहुत प्यार करते हैं हमसे, उन्होंने अपनी ज़िंदगी हम तक सीमित कर दी है, पर कब तक अकेले रह पाएँगे? हम सारी उम्र तो उनका साथ नहीं दे पाएँगे। वह तो यह बात सुनना ही नहीं चाहते हैं।
जानते हैं डरते हैं हमें खोने से, पर आँखें बंद कर लेने से सच तो नहीं बदल जाता। बूढ़े हो गए, किसी भी पल बुलावा आ जाएगा। अगर हम अपनी आँखों के सामने उनका घर बसा देखना चाहते हैं तो इसमें गलत ही क्या है? रिश्तों का इतना मान रखते हैं, पता नहीं क्यों इतनी इज़्ज़त करने के बाद भी रिश्तों से दूर भागते हैं।
हमारी तो मुरली मनोहर से यही प्रार्थना है कि जल्दी से उनकी ज़िंदगी में ऐसी लड़की को भेज दे जो इन्हें ब्रह्मचर्य छोड़कर गृहस्थ बनने पर मजबूर कर दे। अपनी आँखों के सामने इनका घर बसा देखे और अपने सभी दायित्व को पूरे करने के बाद सुख से मुरली मनोहर के पास जा सकेंगे। वह कहते नहीं हैं, पर हम जानते हैं कितने अकेले हैं वह। मुरली मनोहर अब कोई चमत्कार दिखाए तो हम भी अपने पोते की गृहस्थी बसा देख सकें।"
वह यही सब सोचती रही। जहाँ वह अद्वय की ज़िंदगी के बारे में सोच-सोचकर परेशान हुए जा रही थीं, वहीं अद्वय कार में बैठे अपने लैपटॉप पर अपनी उंगलियाँ चलाने में व्यस्त था। उसका काम ही उसकी ज़िंदगी था और प्यार उसे अपने काम से था। हाँ, दादी के लिए उसका प्यार बहुत अलग था, उनकी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा महत्व वही रखती थीं। उनके अलावा उसका कोई अपना था भी तो नहीं।
कुछ देर में वह एयरपोर्ट पहुँचा और चेक इन करने के बाद फ़र्स्ट क्लास की लग्ज़ीरियस केबिन में आराम से सफ़र करते हुए अपने काम को करने में लगा रहा। करीब 14-15 घंटे बाद फ़्लाइट मेलबर्न में लैंड हुई और वहाँ से अपनी प्राइवेट कार में बैठते हुए वह वहाँ के सबसे महँगे 7 स्टार होटल के अपने आलीशान सुइट में पहुँचा। उसके लिए इंडिया से बाहर ट्रैवल करना आम बात थी। उसका हीरा का बिज़नेस सिर्फ़ इंडिया में ही नहीं, दुनिया भर में फ़ेमस था।
Avantika Diamonds Pvt Ltd उसी की कंपनी थी जो न सिर्फ़ हीरे के निर्माण के लिए, बल्कि उसके निर्यात के लिए दुनिया भर में फ़ेमस थी। बहुत ही कम उम्र में उसने यह मुकाम हासिल किया था। कंपनी का नेट वर्थ लगभग US $1.5 बिलियन था। उसके चेयरमैन, 'The legend of diamonds Mr. Adhvay Rathour' को कौन नहीं जानता था? यह कंपनी उसी ने शुरू की थी, उसका संस्थापक और चेयरमैन वह खुद था। कड़ी मेहनत के बाद उसने दुनिया में इतना नाम कमाया था।
पिछले पाँच सालों से उसे एशिया के सबसे कम उम्र के और सफल बिज़नेसमैन का अवार्ड मिल रहा है। हीरों के उद्योग में एक चमकता सितारा, जिसे छूने का सपना सभी देखते हैं, पर उस तक पहुँचना सबकी बस की बात नहीं। बिज़नेसमैन ऑफ़ द ईयर के अवार्ड को भी पिछले पाँच सालों से उसने अपने नाम किया हुआ है।
सिर्फ़ इतना ही नहीं, कई बड़ी ज्वैलरी कंपनियों के साथ उसकी कंपनी का सहयोग है। इंडिया की बेस्ट कंपनियों के सामने भी उसकी अपनी एक मज़बूत पहचान थी। उसके खुद के डिज़ाइनर थे और उन कंपनियों का वित्तपोषक भी वह था। उनके भी अपने डिज़ाइनर हैं और सभी कंपनी के चेयरमैन और उसके सबकी सहमति से ही वह कोई भी नया उत्पाद, मतलब डिज़ाइन, बाज़ार में उतारते हैं। उनके ब्रांड की इंडिया में ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में बहुत माँग है, पर हर किसी की पहुँच की बात नहीं है, क्योंकि डिज़ाइन जितना अच्छा उसकी कीमत भी उतनी ही अच्छी होती है और जब इतना बड़ा ब्रांड हो तो उसकी कीमत आम लोगों की पहुँच से बाहर ही होती है, पर हर साल वहाँ से भी उन्हें खूब लाभ होता था।
ज्वैलरी का बिज़नेस उसके डैड ने शुरू किया था, जिसे अब अद्वय ने संभाला था। उसकी कामयाबी उसकी मेहनत का ही नतीजा है। ज़िंदगी में कुछ ही चीजें ज़रूरी हैं उसके लिए: ईमानदारी, सम्मान, व्यापार और परिवार, जिसके नाम पर उसके पास एक दादी हैं जिनमें उसकी जान बसती है और दूसरा उनके बचपन का दोस्त जिसकी जान है यह।
दुनिया के लिए कड़ा, अभिमानी और सफल बिज़नेसमैन, पर अपने दोस्त के लिए आज भी वही पहला वाला दोस्त, कोई अहंकार नहीं, बस बोलता कम है, मज़ाक-मस्ती से भी दूर ही रहता है। लड़कियों से तो उसे नफ़रत है, ख़ासकर उन लड़कियों से जो उसके आगे-पीछे घूमा करती हैं, जो उसके बिस्तर पर बिछने तक को तैयार हो जाती हैं, पर यह महाशय जो कि बला के हैंडसम चेहरे के मालिक हैं।
सिर्फ़ चेहरा ही नहीं, कमाल की बॉडी और आकर्षक चेहरा, लड़कियों को पागल करने की सभी खूबियाँ हैं इनमें। उनकी एक झलक पाकर लड़कियाँ अपने होश खो बैठती हैं। आज तक किसी ने उन्हें मुस्कुराते नहीं देखा, पर इसमें कोई शक वाली बात नहीं कि जब यह मुस्कुराएँगे तो कितने ही दिलों पर बिजलियाँ गिर जाएँगी। उनके लुक्स के चर्चे सिर्फ़ इंडिया में ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर हैं। बहुत कम लोग हैं जिन्हें इनसे मिलने का मौका नसीब होता है। अवार्ड शोज़ से दूर ही रहते हैं। उनकी ज़्यादा तर डील कॉन्फ़्रेंस वीडियो कॉल के ज़रिए हुआ करती हैं। उनके सहायक, जिनसे आपकी पहले मुलाक़ात करवाई थी, वही उनका चेहरा है दुनिया के सामने, क्योंकि वह उनकी परछाई की तरह उनके साथ रहता है।
मीडिया के सामने अगर कुछ कहना हो तब भी वही सामने आता है। हमारे हीरो की शख़्सियत एकदम धाकड़ है। उनके मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता। हीरों की कंपनी के मालिक हैं, पर यह कहना कुछ गलत नहीं होगा कि वह खुद एक चमकता हीरा है जिसे भगवान ने बड़े ही खूबसूरती से तराशा है।
एकदम परफ़ेक्ट चेहरा, कमाल की हीरो जैसी बॉडी, आकर्षक पर सख्त चेहरा, गहरी काली आँखें जिनसे देखकर ही वह अक्सर सामने वाले के पसीने छुड़ा दिया करते हैं। एक चीज़ से नफ़रत है उन्हें: झूठ, छल, धोखा। बाकी बातें आगे बताएँगे, अभी के लिए इतना जान लीजिये कि हमारे हीरो में सभी अच्छे गुण कूट-कूट कर भरे हुए हैं। अगर लड़कियाँ उनके पीछे दीवानी हैं तो बेशक वह इस लायक हैं। उनका आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि कोई इससे बच ही नहीं पाता। आज भी वह अपनी एक डील फ़ाइनल करने जा रहे हैं। अब देखते हैं कि क्या होता है जब वह हमारी खूबसूरत नायिका से टकराएँगे, प्यार पनपेगा उनके बीच या टकराव का रिश्ता बनेगा उनका, या शायद टकराव से ही उनके प्यार की शुरुआत हो जाए। मिलते हैं अगले भाग में।
आध्या का आज का दिन अपनी बेटी के साथ बीता और अगले दिन का सूरज उनकी ज़िंदगी में एक नई उम्मीद लेकर आया। सुबह पाँच बज रहे थे जब आध्या की नींद खुली। वह रोज़ से जल्दी उठी थी। आँखें खोलते ही उसकी नज़रें मिष्टि पर गईं और उसके होंठों पर मुस्कान फैल गई। उसने मिष्टि के प्यारे चेहरे पर बिखरे बालों को अपनी हथेली से पीछे करते हुए उसके माथे को प्यार से चूमा। फिर उसने मिष्टि को अच्छे से कवर किया और हौले से वहाँ से उठकर बालकनी में चली गई।
उगता सूरज अपनी हल्की-हल्की रोशनी हर जगह फैला रहा था। आसमान में हल्की-हल्की लालिमा छा रही थी। पंछी खुले आकाश में भ्रमण करते हुए अपनी मधुर आवाज़ से सुबह के होने का संदेशा दे रहे थे। वहाँ चलती ठंडी-ठंडी हवाओं को महसूस करते हुए पेड़ की डालियाँ खुशी से झूम रही थीं। पत्तों की सरसराहट की आवाज़ पक्षियों की चहचहाहट के साथ घुल सी गई थी।
आध्या बालकनी की रेलिंग को पकड़कर खड़ी हो गई। उसने सूरज की तरफ़ अपना चेहरा किया हुआ था और आँखें बंद थीं। कुछ देर अपनी दोनों बाहों को फैलाए वह शांत खड़ी रही और उन ठंडी-ठंडी हवाओं को महसूस करती रही। फिर कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोलते हुए कहा,
"आज एक नई शुरुआत करने जा रही हूँ। एक ऐसी जगह जा रही हूँ जहाँ मेरे पापा को बहुत इज़्ज़त मिली थी। एक ऐसी जगह जहाँ से कुछ अच्छी तो कुछ बुरी यादें जुड़ी हुई हैं। एक उम्मीद है दिल में, शायद मुझे भी वहाँ वो इज़्ज़त मिल सके जो मेरे पापा को मिली थी। शायद मैं भी उनके तरह वहाँ काम करके अपनी ज़िंदगी इज़्ज़त से काट सकूँ, अपनी बेटी को वो सब दे सकूँ जो मैं उसे देना तो चाहती हूँ पर दे नहीं पाती।
कभी एक सपना देखा था, शायद उन सपनों को उड़ान दे पाऊँ। पर मुझे थोड़ा डर लग रहा है। वो जगह इतनी हाईफ़ाई है, मेरे जैसी आम लड़की के लिए शायद वहाँ कोई जगह हो ही न, पर एक कोशिश ज़रूर करूँगी। नहीं जानती ये जॉब मुझे मिलेगी या नहीं, पर इतना ज़रूर पता है कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती।"
उसने एक गहरी साँस भरी और लबों पर प्यारी सी मुस्कान सजाए अंदर चली गई। उसने ड्रेसिंग टेबल से क्लच उठाया और अपने कमर तक झूलते लम्बे सुनहरे बालों को एक जूड़े में बाँधते हुए पहले वॉशरूम गई, फिर कमरे से बाहर निकल गई। रोज़ की तरह किचन में पहुँची तो समीर वहाँ पहले से मौजूद था। उसके कदमों की आहट सुनकर समीर ने सामने की तरफ़ नज़र उठाई। आध्या का खिला हुआ चेहरा देखकर उसके लब भी मुस्कुरा उठे।
आध्या वहाँ पहुँची तो दोनों ने एक साथ ही मुस्कुराकर एक-दूसरे को देखकर "गुड मॉर्निंग" कहा और फिर दोनों ही हँस पड़े। कुछ देर में वे चुप हुए। समीर ने आदतन उसकी तरफ़ चाय का प्याला बढ़ाते हुए मुस्कुराकर कहा,
"आज बहुत फ्रेश-फ्रेश लग रही हो, कोई खास वजह?"
आध्या ने चाय का प्याला लेते हुए कहा, "hmm एक जगह इंटरव्यू देने जा रही हूँ। अगर जॉब मिली तब बताऊँगी तुम्हें कि कहाँ apply किया है मैंने।"
इतना कहकर उसने चाय की चुस्की ली, फिर उसकी तरफ़ मुड़कर मुँह फुलाकर नाराज़गी से बोली, "समीर एक बात तो बताओ, तुम कितने बजे उठते हो? सोते भी हो या नहीं? मैं जितनी भी जल्दी उठूँ तुमसे पहले नहीं उठ पाती। कहीं रात भर उल्लू के तरह जागते तो नहीं रहते?"
उसकी बात सुनकर समीर हँस दिया। आध्या ने उसके हँसने पर गंभीर होकर कहा, "तुम हँसने क्यों लगे? मैं मज़ाक नहीं कर रही।"
"मैंने तुम्हारी बात को मज़ाक समझा भी नहीं। चलो अगर तुम इतनी ही सीरियस हो तो मैं आज तुम्हें अपना राज़ बता ही देता हूँ। वो क्या है ना, मैंने एक अलार्म लगाया हुआ है, जैसे ही तुम बेड से उठती हो वैसे ही वो अलार्म बज जाता है और तुम्हारे यहाँ तक पहुँचने से पहले मैं यहाँ आ जाता हूँ ताकि तुम्हारी सुबह की शुरुआत मेरी चाय से हो और मेरे दिन का आगाज़ तुम्हारे चेहरे पर ये चाय पीने से आने वाले सुकून को देखते हुए हो।"
समीर ने सौम्य सी मुस्कान के साथ उसको देखते हुए बड़े आराम से अपनी बात पूरी की। पर उसकी बात सुनकर आध्या ने नाराज़गी से उसे देखा। इसके साथ ही समीर की मुस्कान बड़ी हो गई। उसने उसके फूले गालों को खींचते हुए मुस्कुराकर कहा,
"तुम भी मिष्टि से कुछ कम नहीं हो, बच्चों की तरह छोटी-छोटी बात पर मुँह फुला लेती हो और क्यूटनेस में तो मिष्टि बिल्कुल तुम्हारी ही परछाई है, माँ क्यूट तो बेटी सुपर क्यूट।"
आध्या ने उसके हाथ को हटाया तो समीर ने संजीदगी से कहा, "मुँह फुलाना छोड़ो, जवाब दे देता हूँ तुम्हारे सवाल का। तुम पाँच से छः के बीच उठती हो और मैं लगभग पौने पाँच के आसपास उठ जाता हूँ, ताकि तुम्हारी सुबह मेरे हाथ की चाय पीकर हो, और मैं सीरियस हूँ, जब तुम चाय पीती हो तब तुम्हारे चेहरे पर जो सुकून होता है उसे देखने का लालच मुझे ज़्यादा देर सोने ही नहीं देता।"
उसने मुस्कुराकर उसके गाल को छूते हुए चाय पीने का इशारा कर दिया। आध्या के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैली हुई थी। उसने कुछ देर में अपनी चाय खत्म की, फिर उसको किचन से बाहर धक्का देते हुए बोली,
"आज मेरी ड्यूटी है, तो नाश्ता मैं बनाऊँगी और तुम्हारी कोई चालाकी आज चलने वाली नहीं है, जाकर अपनी प्रिंसेस को देखो।"
उसने उसको बाहर निकाल दिया और गैस जिस स्लैब पर रखी थी उसके सामने खड़े होकर देखने लगी कि उसने क्या किया हुआ है। वह ओपन किचन था तो स्लैब हॉल की तरफ़ था। समीर आध्या के सामने खड़ा हो गया, एक तरफ़ वह था तो दूसरी जगह आध्या। आध्या ने उसको अपनी आँखें छोटी करके देखा तो समीर ने मुस्कुराकर कहा, "तुम जानती हो वो तुम्हें देखे बिना उठेगी नहीं, और अभी तो वक़्त है उसको उठाने में, तब तक मैं तुम्हारी मदद कर दूँ।"
आध्या ने उसको घूरकर देखा तो समीर ने क्यूट सी शक्ल बनाकर उसको देखा और आखिर में आध्या मान ही गई। अब दोनों साथ मिलकर नाश्ता बनाने लगे। वैसे भी तीन लोगों का खाना बनाना कोई बड़ी बात नहीं थी। जल्दी ही खाना तैयार हो गया। घड़ी ने भी 6:30 बजने का इशारा कर दिया। समीर को आध्या ने वहाँ से भगा दिया। किचन का काम तो बाद में करती, तो पहले घर की साफ़-सफ़ाई में लग गई।
समीर उसके कमरे में चला गया। मिष्टि रात को देर से सोई थी तो वह अभी तक भी बड़े आराम से सो रही थी। समीर ने उसके ऊपर से चादर हटाई जिसे वह खुद में लपेटे हुए सो रही थी और फिर उसको अपनी गोद में उठा लिया।
मिष्टि नींद में थोड़ा सा हिली, फिर उसके गले से लिपटकर वापिस सो गई। समीर की मुस्कान गहरी हो गई थी। वह उसे लेकर वॉशरूम में चला गया। वॉश बेसिन के साइड रखी टेबल को खिसकाकर सामने कर लिया और फिर मिष्टि को उस पर खड़े करते हुए बड़े प्यार से बोला,
"प्रिंसेस अब उठ जाइए, वरना आपकी मम्मा आपके साथ-साथ आपके सुपरमैन को भी पनिश कर देंगी। चलिए जल्दी से अपनी आँखें खोलिए, सुपरमैन को देर हो जाएगी।"
मिष्टि अब भी आधी नींद में थी। वह भले ही खड़ी थी पर अब भी समीर से कंधे पर अपना सर टिकाए सोने में लगी थी। समीर ने उसके चेहरे को पानी से साफ़ किया तो कुछ देर की मशक्कत के बाद मिष्टि ने अपनी उनींदी आँखों को अपनी छोटी-छोटी हथेली की मुट्ठी बनाकर उसको मलते हुए कहा,
"गुड मॉर्निंग सुपरमैन।"
उसकी मीठी-मीठी आवाज़ कानों में मिश्री जैसे घुल गई थी। समीर ने उसके चेहरे को तौलिए से साफ़ करते हुए मुस्कुराकर कहा, "तो हमारी मिष्टि की सुबह हो ही गई।"
मिष्टि ने अपनी छोटी-छोटी बाहों को उसकी गर्दन में लपेट दी। अब उसने अपनी प्यारी-प्यारी आँखों को खोलकर उसे देखा और मुस्कुराकर उसके गाल पर किस करते हुए बोली,
"येस, मिष्टि की सुबह हो गई और आज तो मिष्टि को सुपरमैन जगाने आए हैं। आज मिष्टि ढेर सारी मस्ती करेगी, मम्मा भी तो नहीं हैं हमें रोकने के लिए।"
ये कहते हुए उसने अपनी आँखों को मटकाते हुए उसे देखा तो समीर ने भी मुस्कुराकर उसके गाल पर किस करते हुए कहा, "बिल्कुल, आज प्रिंसेस और उसके सुपरमैन ढेर सारी मस्ती करेंगे, पर उसके साथ मिष्टि को ब्रश करना होगा, नहाकर रेडी होना होगा, वरना अगर मिष्टि टाइम पर रेडी नहीं हुई तो मम्मा से मिष्टि और उसके सुपरमैन को दोनों को एक साथ ही खूब डाँट पड़ेगी।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "ये हमारा सीक्रेट है, मम्मा को नहीं बताएँगे। पहले मस्ती करेंगे फिर तैयार होंगे।"
उस छोटी सी बच्ची के दिमाग को देखकर समीर मुस्कुराए बिना रह न सका। उसने उसको ब्रश करवाया, फिर उसके कपड़े लेकर, उसको अपनी गोद में उठाए हुए अपने कमरे में चला गया। अब तो दोनों की मौज हो गई। काफ़ी देर तक दोनों एक-दूसरे पर पानी डालते हुए खेलते रहे। इसी मस्ती के बीच समीर ने उसे नहलाया और फिर मिष्टि ने उसको देखकर अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रखकर उसको घूरते हुए कहा,
"सुपरमैन अब आप बाहर जाइए, मिष्टि को चेंज करना है। आप बॉय हैं ना, गर्ल्स बॉयज़ के सामने चेंज नहीं करतीं।"
समीर ने उसके दोनों फूले हुए गालों को खींचते हुए कहा,
"हमें पता है हमारी मिष्टि बहुत समझदार है, अपनी मम्मा के तरह सुपर इंटेलिजेंट है। चलो आप जल्दी से चेंज करके बाहर आइए, फिर हम हमारी मिष्टि को तैयार कर देंगे।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि ने मुस्कुराकर हामी भर दी तो वह बाहर चला गया।
यहाँ मिष्टि ने अपने कपड़े खोले और वेस्ट और निक्कर पहनकर ठुमकते-ठुमकते बाहर चली गई। समीर ने भी अब तक चेंज कर लिया था। उसने मिष्टि को बेड पर खड़ा किया, उसके हाथ-मुँह पोछकर उसे क्रीम लगाई और उसके गीले बालों को पोछने के बाद उसको कपड़े पहनाकर, बालों की गुथकर चोटी बना दी। कुछ ही देर में हमारी मिष्टि स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई थी। उसने स्कूल की घुटनों तक की स्कर्ट और शर्ट पहनी हुई थी। बालों को एक चोटी में बाँधा हुआ था जिसमें से उसके छोटे-छोटे बाल निकलकर उसके माथे और गर्दन पर फैले हुए थे, जिससे वह और भी ज़्यादा क्यूट लग रही थी।
उसने मिष्टि को सॉक्स पहनाए, फिर उसको बेड पर बिठा दिया। अब उसने अपने बालों को सेट करने के लिए कंघी उठाई तो मिष्टि झट से बेड पर खड़ी हो गई। उसने कंघी करने के लिए हाथ उठाया तो मिष्टि ने झट से कहा,
"सुपरमैन आपने मिष्टि को तैयार किया अब मिष्टि आपको तैयार करेगी।"
उसकी बात सुनकर समीर के हाथ रुक गए। उसने उसकी तरफ़ नज़रें घुमाईं तो मिष्टि ने अपने हाथ को आगे कर दिया और क्यूट सी शक्ल बनाकर उसको देखा। समीर उसको इनकार नहीं कर पाया। उसने उसके हाथ में कंघी पकड़ा दी तो मिष्टि ने उसे नीचे आने का इशारा कर दिया। समीर लबों पर मुस्कान सजाए उसके सामने बैठ गया।
मिष्टि एकदम सीरियस हो गई थी और बड़े अच्छे और ध्यान से उसे कंघी कर रही थी। वही समीर तो उसको देखकर मुस्कुरा रहा था। कुछ देर में उसने उसके बालों को कंघी कर दिया, पर वह थी तो बच्ची ही, जिन हाथों में कंघी ढंग से पकड़ी तक न जा रही हो, उन नाज़ुक हाथों से उसकी कंघी कैसे हो पाती? उसने उसके बालों को अजीब तरीके से सेट कर दिया, फिर उसको देखने लगी। समीर ने उसको अपने पास खींचते हुए मुस्कुराकर कहा, "अरे हमारी प्रिंसेस का चेहरा कैसे उतर गया?"
"अरे हमारी प्रिंसेस का चेहरा कैसे उतर गया?"
मिष्टि ने उसके बालों को देखते हुए उदास होकर कहा, "बेबी को कंघी करनी नहीं आती।"
उसका उदास चेहरा देखकर समीर ने मुस्कुराकर कहा, "बस इतनी सी बात, चलिए आज सुपरमैन अपनी जादू की छड़ी से कॉम्ब करना सिखाएँगे।"
उसके इतना कहते ही मिष्टि का चेहरा खिल उठा। उसने ड्रेसिंग टेबल के सामने वाले चेयर पर उसे खड़ा किया और अपनी कंघी करते हुए उसे सिखाने लगा। मिष्टि बड़े गौर से सब देख और सुन रही थी, जैसे जाने कितना ही मुश्किल काम हो।
कुछ देर बाद उसने अपने हाथ को आगे बढ़ाकर मुस्कुराकर कहा, "अब मिष्टि सुपरमैन को कंघी करेगी।"
समीर ने मुस्कुराकर उसे कंघी थमा दी। अब उसने एकदम अच्छे से उसके बालों को सेट कर दिया और फिर उसे देखकर मुस्कुराकर बोली, "सुपरमैन को मिष्टि ने रेडी कर दिया, जैसे वो मिष्टि को रेडी करते हैं।"
समीर ने मुस्कुराकर उसे अपनी गोद में उठाकर बेड पर बिठा दिया। उसके बाद उसने अपनी घड़ी पहनी और बाकी सब सामान रखते हुए उसे लेकर बाहर चला गया। दोनों जब डाइनिंग टेबल के पास पहुँचे, तभी आध्या भी वहाँ पहुँची। वह भी नहाकर रेडी हो गई थी। लॉन्ग ऑरेंज प्रिंटेड कुर्ता, येलो लेगी और एक तरफ़ से उसके कंधे पर डाला ऑरेंज और रेड के कॉन्ट्रास्ट वाला सॉफ्ट सा दुपट्टा; बालों को एक चोटी में बाँधा हुआ था। मेकअप की उसे कोई ज़रूरत ही नहीं थी; सादगी में भी बला की खूबसूरत लग रही थी।
मिष्टि को देखकर उसका चेहरा खिल उठा। समीर ने सही ही कहा था, मिष्टि में उसकी झलक आती थी; दोनों देखने में ही माँ-बेटी लगते थे। तीनों ने साथ बैठकर नाश्ता किया। फिर आध्या ने उसका बैग, टिफ़िन सब पैक करने के बाद उसे जूते पहनाकर पूरी तरह से तैयार कर दिया। इतने में समीर भी अपने कमरे से अपना ऑफिस बैग ले आया। तीनों गेट तक पहुँचे तो आध्या मिष्टि के पास नीचे घुटनों के बल बैठ गई। उसने बड़े ही प्यार से कहा,
"मिष्टि बेटा कोई शरारत मत करना, वहीं रहना, मम्मा आएंगी आपको लेने।"
मिष्टि ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराकर कहा, "ओफ्फो मम्मा, मिष्टि बिग गर्ल हो गई है, उसको सब पता है। आप मिष्टि की चिंता मत कीजिये, मैं टीचर की सब बात मानूँगी और भागूँगी भी नहीं, आपके आने का इंतज़ार करूँगी।"
आध्या ने मुस्कुराकर उसके माथे को चूम लिया। "मेरी समझदार बच्ची।"
अब समीर ने मिष्टि का हाथ थामकर उसे देखकर मुस्कुराकर कहा, "तुम इसकी चिंता छोड़ दो, हमारी मिष्टि बहुत समझदार है। तुम बस अपने इंटरव्यू पर ध्यान दो, अच्छे से जाना और अच्छे से इंटरव्यू देकर आना, देखना तुम्हें ये जॉब ज़रूर मिलेगी, इंतज़ार करूँगा तुम्हारे फ़ोन का, वक़्त पर निकल जाना और परेशान बिल्कुल मत होना।"
"तुम भी कभी नहीं बदलोगे ना? मैं कोई छोटी बच्ची थोड़े ना हूँ।" आध्या ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराकर कहा। तो समीर ने उसे गले से लगाकर कहा,
"जैसे तुम्हें मिष्टि की चिंता होती है वैसे ही मुझे तुम्हारी चिंता होती है। न तुम बदल सकती हो, न मैं तुम्हारी चिंता करना छोड़ सकता हूँ। इसलिए अपना ध्यान रखना, कुछ भी गड़बड़ हो तो तुरंत मुझे फ़ोन करना।"
उसके चेहरे पर चिंता साफ़ नज़र आ रही थी। आध्या ने मुस्कुराकर हामी भर दी। तो मिष्टि ने भी उसे बाय कहा और समीर के साथ चली गई। आध्या के इंटरव्यू में अभी वक़्त था तो वो किचन का काम समेटने लगी। ऐसे ही एक घंटा निकल गया। 11 बजे से इंटरव्यू शुरू होना था तो वो भी थोड़ा जल्दी निकल गई, आखिर सरकारी बसों का कोई भरोसा भी तो नहीं।
बस के धक्के खाते हुए वो किसी तरह अपनी मंज़िल तक पहुँची, जहाँ पहुँचने के लिए उसे कुछ दूर पैदल भी चलना पड़ा था। वो इस वक़्त नवी मुंबई के इंडस्ट्रियल एरिया में थी, एक बड़ी सी कंपनी के ठीक सामने खड़ी थी। काँच की बनी वो पाँच मंज़िला इमारत देखने में ही सबसे अलग लग रही थी। उन पारदर्शी दीवारों पर डिसेंट से पर्दे लगे हुए थे, जो उसके अंदर की हाईफ़ाई दुनिया को सबकी नज़रों से बचाने का काम कर रही थीं।
एक अलग ही आभा थी उसकी, सबसे अलग, अपने रुतबे को दिखाती हुई। वो इमारत बड़ी ही खूबसूरती से बनाया गया था। उसके ऊपर बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था, जिस पर बड़ी ही खूबसूरती से लिखा था "Avantika Diamonds Pvt. Ltd." आध्या ने उस कंपनी को देखते हुए खुद से कहा,
"कितना कुछ बदल गया, लग ही नहीं रहा कि ये वही पहले वाली कंपनी है, जहाँ कभी मैं आया करती थी, कुछ भी वैसा नहीं यहाँ।" उसकी आँखें नम थीं। उसने गहरी साँस लेते हुए खुद को शांत किया और उसके बड़े से दरवाज़े के पास पहुँची तो एंट्रेंस पर ही दो गार्ड खड़े थे।
वहाँ से होते हुए अंदर गई और उसके बड़े से स्लाइडिंग डोर की तरफ़ बढ़ गई, जहाँ से कई सारे और भी लोग अंदर जा रहे थे। नीचे वाले फ्लोर के एंट्रेंस पर रिसेप्शनिस्ट बैठी हुई थी। आध्या ने उसी से पूछा कि इंटरव्यू कहाँ हो रहा है, तो उसने भी बड़े ही अदब से उसे थर्ड फ्लोर पर जाने के लिए कह दिया। सिर्फ़ वो अकेली नहीं थी। जब आध्या लोगों से पूछते हुए उस जगह पहुँची जहाँ इंटरव्यू होना था, तो एक पल को उसके कदम ठिठक गए।
आध्या लोगों से पूछते हुए उस जगह पहुँची जहाँ इंटरव्यू होना था। एक पल को उसके कदम ठिठक गए।
सामने कम से कम पचास लड़कियाँ मौजूद थीं; कुछ लड़के भी थे। एक से एक सुंदर लड़कियाँ थीं जिनके कपड़े देखकर लग रहा था जैसे वे इंटरव्यू देने नहीं, किसी फैशन शो में भाग लेने आयी हों। या शायद उनके यहाँ आने की वजह यह जॉब ही नहीं थी। पोस्ट थी, ग्रेट बिज़नेस टायकून अद्वय राठौर के पर्सनल असिस्टेंट की। उसे उम्मीद थी कि इंटरव्यू वो खुद लेगा।
इतने लोगों को देखकर आध्या घबरा गई। उसने खुद से कहा, "आध्या, यहाँ तो तेरा कोई चांस ही नहीं है। देख तो कितने लोग हैं यहाँ! इनका कॉन्फिडेंस इनके चेहरे पर दिख रहा है। शायद तू इस जगह के लिए बनी ही नहीं है। इनके आगे तू कहाँ तक टिक पाएगी? कहाँ ये अच्छे-अच्छे घरों की पढ़ी-लिखी लड़कियाँ, और कहाँ तू एक मामूली सी मिडिल क्लास लड़की?"
यह सोचते हुए वह उदास हो गई। पर तभी उसके अंदर से एक आवाज़ आयी, "नहीं आध्या, आज तूने कभी हार नहीं मानी है, तो आज भी तू अपने कदम पीछे नहीं हटाएगी। क्या हुआ अगर तू इन जैसी नहीं है? तुझे कौन सा इन कंपनी की मालकिन बनना है? जॉब करनी है, और वो तो काबिलियत के बल पर मिलेगी। उसके लिए महँगे कपड़ों और इतने दिखावे की चीजों की ज़रूरत ही नहीं है। तू बस इंटरव्यू पर फोकस कर।"
उसने खुद को मोटिवेट किया और एक तरफ़ जाकर बैठ गई। वहाँ सब उसे अजीब नज़रों से देख रहे थे। शायद वह उन सबसे मैच नहीं कर पा रही थी। कुछ तो उसे देखकर बातें भी बना रही थीं। पर वहाँ मौजूद लड़के उसे हैरानी से देख रहे थे। सादगी में इतनी खूबसूरत लड़की उन्होंने शायद पहली बार देखी थी। चेहरे पर झलकता कॉन्फिडेंस उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहा था।
कुछ देर में चार-पाँच सूट-बूट पहने आदमियों के साथ अद्वय के असिस्टेंट ने वहाँ कदम रखा। यह उम्मीद से कुछ अलग बात थी। यह बात सब जानते थे कि अद्वय जिन कामों में इंटरेस्ट नहीं लेता था, वे काम रितेश ही संभालता था। अगर उसे अद्वय का दाहिना हाथ कहा जाए तो उसमें कुछ गलत भी नहीं था।
रितेश तो वहाँ दिखा, पर अद्वय नहीं। तो लोगों में बातें शुरू हो गईं। वे ज़्यादा कुछ सोच पाते, उससे पहले ही एक लड़की ने आकर पहले कैंडिडेट का नाम अनाउंस कर दिया। इसी के साथ शुरू हुआ इंटरव्यू का सिलसिला। एक-एक करके कैंडिडेट अंदर जाते गए और अपना उतरा हुआ चेहरा लेकर बाहर आते गए। बेचारी आध्या की हालत ख़राब हो गई थी यह देखकर।
कुछ एक घंटे बाद आध्या का नाम अनाउंस हुआ। आध्या उस लड़की, जो शायद वहाँ काम करती थी, के साथ अंदर चली गई। सामने ही बड़ी सी टेबल के पास उन आदमियों के बीच रितेश बैठा था और उन सबके सामने एक चेयर रखी थी। आध्या ने सबको गुड मॉर्निंग कहा और उनके सामने बैठ गई। रितेश ने उसकी फ़ाइल को अच्छे से देखा। बाकियों ने भी देखा और आपस में कुछ बातें करने लगे। आध्या घबरा तो रही थी, पर शांत रहने की पूरी कोशिश कर रही थी।
कुछ देर बाद रितेश ने आध्या को देखकर कहा, "Ms आध्या।"
"येस सर," आध्या ने सधे शब्दों के साथ जवाब दिया। अब रितेश के बगल में बैठे आदमी ने उसे देखते हुए सवाल किया, "आप इसी साल ग्रेजुएट हुई हैं। आपके सर्टिफ़िकेट देखकर लगता है जैसे आपने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद फिर से शुरू की है। इसकी कोई खास वजह?"
"जी हाँ, मेरे पर्सनल रीज़न के कारण मुझे एक साल ड्रॉप करना पड़ा। मैं इसी साल ग्रेजुएट हुई हूँ, पर मेरी क्वालिफ़िकेशन इस जॉब के लिए परफेक्ट है।" आध्या ने एक बार फिर सटीक जवाब दिया। तो उसकी बात सुनकर अब रितेश ने सवाल किया, "आपने ग्रेजुएशन नॉन से की है, तो साथ में कुछ और भी किया है?"
"जी, मैं जॉब करती हूँ, मतलब करती थी। सिर्फ़ पढ़ने से तो ज़िंदगी नहीं कटती। दिमाग में कुछ जाने के लिए पेट में कुछ जाना बेहद ज़रूरी है। मेरे माँ-बाप नहीं हैं, अकेली हूँ, तो अपने ख़र्च के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से अच्छा मैं खुद कमाकर अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में विश्वास रखती हूँ, और वही करती भी हूँ।" आध्या ने साफ़-साफ़ शब्दों में अपनी बात बिना घबराए उनके सामने रख दी। जिसे सुनकर रितेश मुस्कुरा उठा। उसने मुस्कुराकर कहा,
"आपकी ऑनेस्टी और हिम्मत की दाद देनी होगी। कोई मिलावट नहीं, जो है सामने है। बस एक आख़िरी सवाल पूछना चाहूँगा। इससे पहले कहाँ काम करती थी आप?" उसके सवाल को सुनकर एक बार फिर आध्या ने पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ कहा,
"कोई एक जगह फ़िक्स नहीं है। पिछले चार सालों से काम कर रही हूँ, पर कभी किसी जॉब में दो महीने से ज़्यादा टिक नहीं पायी। अब आप सवाल करेंगे कि ऐसा क्यों, तो मैं पहले ही बता देती हूँ। एक मिडिल क्लास लड़की हूँ। इज़्ज़त और मेहनत से काम करके जीना चाहती हूँ, पर एक लड़की के लिए यह सपना देखना थोड़ा मुश्किल है, खासकर तब जब उसके साथ खड़ा होने वाला कोई न हो। एक अकेली लड़की हर किसी को मौका लगती है, जिसका फ़ायदा उठाने से वे पीछे नहीं हटते। आज तक जहाँ भी मैंने काम किया, वहाँ के बॉस की नज़र मेरे काम पर कम और मुझ पर ज़्यादा रहती थी, इसलिए मैं काम छोड़ देती थी।"
उसकी बात सुनकर रितेश खड़े होते हुए बोला, "आप इस पोस्ट के लिए एकदम सही हैं। हमें ऐसे ही ख़ुद्दार इंसान की तलाश थी, और आप हमारे पैमानों पर खरी उतरी हैं। बाहर इंतज़ार करियेगा, आपका जॉइनिंग लेटर आप तक पहुँच जाएगा। अभी सर यहाँ नहीं हैं। उन्हें गलती करने वालों से सख्त नफ़रत है, इसलिए थोड़ा ध्यान से रहियेगा। सर तीन दिन बाद आएंगे, तब तक मैं आपको ट्रेनिंग दूँगा, ताकि आपको आगे कोई परेशानी न हो। और एक बात, आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं, हमारे ऑफ़िस में लड़कियों की बहुत इज़्ज़त की जाती है, आपको यहाँ कोई परेशानी नहीं होगी।"
उसने बड़े ही आराम से अपनी बात पूरी की। वहीँ आध्या को तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। आज तक अपनी और अपनी बेटी की हर छोटी-छोटी खुशी के लिए बेहिसाब दर्द सहती आयी थी। लड़ने के अलावा कभी कोई रास्ता ही नहीं था उसके पास, पर आज जो उसे मिला उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसने हैरानी और खुशी के मिले-जुले भाव से कहा,
"मतलब मुझे जॉब मिल गयी?"
उसके एक्सप्रेशन देखकर रितेश मुस्कुराकर बोला, "जी, आप हर तरह से इस पोस्ट के लायक हैं। कल से आप जॉइन कर सकती हैं। अभी सर कहीं गए हुए हैं, तो मैं ही आपको ट्रेन करूँगा। सर के आने से पहले आपको सब सीखना होगा। और हमारे सर नियम-कानूनों के बहुत पक्के हैं, तो उनके सामने अच्छे से बिहेव कीजियेगा। बाकी तो आप सब संभाल ही लेंगी। अब आप बाहर जा सकती हैं। आपको जॉइनिंग लेटर अभी ही मिल जाएगा। और एक बात, आपका एक साल का कॉन्ट्रैक्ट होगा, तो अगले एक साल तक आप यह जॉब नहीं छोड़ सकतीं, वरना हमारी कंपनी आप पर फ्रॉड का केस कर सकती है और सज़ा के लिए भारी जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।"
उसने काफी सीरियस होकर कहा, तो आध्या ने भी उसकी बात मान ली। वह थैंक्यू कहकर बाहर गई, तो कुछ ही देर में वही लड़की कुछ पेपर्स लेकर उसके पास आ गई। आध्या ने पेपर्स पढ़कर उस पर साइन कर दिया। उस लड़की ने उसे कांग्रेचुलेशन कहा, तो आध्या ने भी मुस्कुराकर थैंक्यू कह दिया और फिर लबों पर मुस्कान और आँखों में चमक लिए वह घर के लिए निकल गई।
आध्या वहाँ से घर के लिए निकल गई थी। आज वह बहुत खुश थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसके कदम ज़मीन पर न पड़ रहे हों, वह तो आज़ाद पंछी की तरह खुले आकाश में उड़ने के लिए बनी ही थी।
घर पहुँचते-पहुँचते दोपहर हो गई थी। जाते हुए वह मिष्टि के प्ले स्कूल चली गई थी। गेट पर वॉचमैन खड़ा था, जो उसे जानता था। आध्या ने उन्हें "नमस्ते काका" कहा तो उन्होंने उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया और फिर अंदर चले गए। कुछ ही मिनटों में मिष्टि, अपने छोटे-छोटे कंधे पर अपना बैग टाँगे, मटकते हुए उसके तरफ़ भागी चली आई।
उसे देखकर आध्या नीचे झुक गई थी। तो मिष्टि उछलकर उसकी गोद में चढ़ गई थी। उसने उसके गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी बाहों को लपेटा हुआ था। आध्या ने उसके गाल को चूम लिया और मुस्कुराकर बोली,
"मिष्टि ने मम्मा को मिस किया?"
मिष्टि ने उसके इतना कहते ही अपनी दोनों बाहों को फैलाकर कहा,
"येस, मिष्टि ने मम्मा को इतना सारा मिस किया।"
उसकी बात सुनकर आध्या की मुस्कान बड़ी हो गई थी। उसने उसके गाल को चूमते हुए कहा,
"मम्मा ने भी अपनी प्रिंसेस को इतना सारा मिस किया, इसलिए आज मम्मा जल्दी आई है, अब मम्मा और मिष्टि खूब प्ले करेंगी।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि भी खुश हो गई थी। आध्या उसे लेकर घर की तरफ़ बढ़ गई थी। घर पहुँचकर उसने उसके कपड़े बदले, खुद ने भी कपड़े बदले, फिर लंच बनाने के बाद उसे लेकर डाइनिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गई थी। उसने उसको चेयर पर बिठाया और उसको अपने हाथों से खिलाने लगी थी।
मिष्टि कुछ देर चुपचाप खाती रही थी, फिर उसने भी अपने छोटे-छोटे हाथों से निवाला तोड़कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया था। आध्या के लब मुस्कुरा उठे थे। उसने भी उसके हाथ से खा लिया था। उसके बाद दोनों ने लंच किया था। जब तक आध्या ने किचन का काम ख़त्म किया था, तब तक मिष्टि ने अपना होमवर्क पूरा कर लिया था। उसके बाद दोनों अपने रूम में चली गई थीं और खेलने में बिज़ी हो गई थीं। चार बजते-बजते मिष्टि सो गई थी, तो अब आध्या रात के स्पेशल डिनर की तैयारी में लग गई थी। उसने काम करने के साथ ही किसी को फ़ोन करके उसे आने के लिए कहा था और लग गई थी स्पेशल डिनर की तैयारी में।
शाम होते-होते मिष्टि जाग गई थी। तो, आध्या ने उसको खिलौने दिए थे, वह हॉल में बैठी उनसे खेलने लगी थी। आध्या सामने किचन में खड़ी खाना बना रही थी, पर ध्यान मिष्टि पर भी था। घड़ी ने सात बजाए थे, इसके साथ ही डोरबेल के बजने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी थी। आध्या ने जाकर दरवाज़ा खोला था तो सामने उसी की उम्र की एक लड़की खड़ी थी। बढ़िया सा जीन्स-टॉप पहना हुआ था, चेहरा भी काफी सुंदर था और वह आध्या को देखते ही मुस्कुराकर उसके गले से लग गई थी।
आध्या भी उसे देखकर खुश हो गई थी। कुछ देर बाद वह आध्या से अलग होते हुए बोली,
"अब बता क्या हुआ है? इतनी जल्दी में क्यों बुलाया तूने मुझे?"
"पहले अंदर चल, समीर आएगा उसके बाद साथ में दोनों को गुड न्यूज़ दूँगी।" आध्या ने मुस्कुराकर कहा था तो लड़की ने अंदर आते हुए कहा था,
"चल ठीक है, वैसे भी मुझे अपनी प्रिंसेस से मिलना है।" इतना कहते हुए वह अंदर चली गई थी तो आध्या भी दरवाज़ा बंद करके अंदर की तरफ़ बढ़ गई थी। यह शिल्पा थी, आध्या की बचपन की दोस्त, बाकी बातें आगे पता चल जाएँगी।
शिल्पा हॉल में पहुँची थी तो अपनी कलर बुक में कलर करती मिष्टि पर उसकी नज़र चली गई थी। उसने उसके तरफ़ बढ़ते हुए मुस्कुराकर कहा,
"लगता है आज हमारी प्रिंसेस कुछ ज़्यादा ही बिज़ी है, क्या बात है उन्हें अपनी मासी से नहीं मिलना?"
उसकी आवाज़ सुनते ही मिष्टि ने सर उठाकर उसे देखा था और इसके साथ ही वह उसके तरफ़ भाग गई थी। शिल्पा ने नीचे झुककर उसको अपने गले से लगा लिया था। मिष्टि बेहद खुश थी, उसने उसके गले लगते हुए कहा,
"मिष्टि ने मासी को बहुत मिस किया।"
उसकी बात सुनकर शिल्पा ने भी उसके गालों पर किस करते हुए मुस्कुराकर कहा,
"मासी ने भी अपनी प्रिंसेस को बहुत मिस किया। चलिए आज मासी मिष्टि के साथ प्ले करेंगी, मम्मा को खाना बनाने देते हैं और हम अंदर कमरे में चलते हैं।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि खूब खुश हुई थी। दोनों ने सब सामान समेटा और अंदर कमरे में चली गई थीं। वहाँ जाते ही वह पज़ल्स से खेलने लगी थीं, यह तरीका था खेलते हुए मिष्टि को पढ़ाने का।
दोनों बिज़ी हो गई थीं और आध्या भी अब निश्चिंत होकर काम करने लगी थी। कुछ देर बाद एक बार फिर डोरबेल बजी थी। अबकी बार समीर आया था। वह भी फ़्रेश होकर मिष्टि के पास पहुँच गया था तो शिल्पा को वहाँ देखकर शॉक्ड हो गया था। उसने हैरानी से पूछा,
"तुम यहाँ कब आई और मुझे बताया क्यों नहीं?"
शिल्पा ने उसको घूरकर देखते हुए कहा,
"क्यों बताती तुम्हें, मेरी फ़्रेंड रहती है यहाँ और मैं उसके बुलाने पर ही आई हूँ, इसलिए जाओ यहाँ से, मुझे और मिष्टि को डिस्टर्ब करने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"
उसकी बात सुनकर तो वह और भी हैरान हो गया था। मिष्टि दोनों को अपनी छोटी-छोटी आँखों को टिमटिमाते हुए देखने लगी थी। शिल्पा ने समीर को देखकर मुँह बना लिया था तो मिष्टि ने बड़ी ही मासूमियत से कहा,
"मासी आप सुपरमैन को डाँट क्यों रही हैं? क्या उन्होंने भी बेबी की तरफ़ कोई शरारत की है, बेबी शरारत करती है तो मम्मा भी उसे ऐसे ही डाँटती है।"
उसकी बात सुनकर समीर और शिल्पा दोनों की नज़र उसकी तरफ़ घूम गई थी। समीर कुछ कहता उससे पहले ही शिल्पा ने उसके पास बैठते हुए मुस्कुराकर कहा,
"हाँ बेटा, आपके सुपरमैन ने गलती करी है इसलिए मासी उन्हें डाँट रही थी पर आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, मासी अपनी प्रिंसेस से तो गुस्सा नहीं है इसलिए हम खूब सारी मस्ती करेंगी और मासी आपको ढेर सारी चॉकलेट्स भी देंगी।"
उसके इतना कहते ही मिष्टि खुशी से चहक उठी थी,
"चॉकलेट्स, मासी मिष्टि को चॉकलेट्स खानी है, अभी-अभी-अभी.............."
उसके हल्की ज़िद करते हुए कहा था तो उसने भी अपने पर्स से बड़ी सी चॉकलेट निकालकर उसकी तरफ़ बढ़ा दी थी। मिष्टि ने झट से चॉकलेट ले ली थी। उसने फाड़ने की कोशिश की थी पर उससे फटा नहीं था। शिल्पा ने उससे माँगा भी था कि,
"मैं फाड़ देती हूँ" पर हमारी मिष्टि ने यह कहकर मना कर दिया था कि,
"मिष्टि बिग गर्ल है, वो खुद कर लेगी।"
फिर क्या होना था, शिल्पा लबों पर मुस्कान सजाए उसे देख रही थी। समीर उसी को देख रहा था। कुछ देर मिष्टि के कोशिश करने के बाद भी जब वह चॉकलेट फाड़ नहीं पाई थी तो समीर उसके पास चला गया था और बड़े प्यार से बोला था,
"प्रिंसेस क्या आप अपने सुपरमैन को अपनी मदद करने देंगी?"
उसकी बात सुनकर मिष्टि ने झट से उसके तरफ़ चॉकलेट बढ़ा दी थी तो शिल्पा की नाक सिकुड़ गई थी। उसने उसको घूरते हुए मुँह बना लिया था। समीर ने चॉकलेट फाड़कर उसको देते हुए मुस्कुराकर कहा था,
"लीजिये हो गया आपका काम।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि ने चॉकलेट ली थी और खुशी-खुशी खाने लगी थी। समीर ने एक नज़र शिल्पा को देखा था फिर मिष्टि को देखकर मुस्कुराकर बोला था,
"मिष्टि आप अकेले-अकेले खा रही हैं, अपनी मम्मा के साथ शेयर नहीं करेंगी? आपको पता है ना मम्मा को भी चॉकलेट्स बहुत पसंद हैं।"
उसकी बात सुनकर मिष्टि ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा था,
"मिष्टि तो भूल ही गई, मैं अभी जाकर मम्मा को चॉकलेट खिलाकर आती हूँ, शेयर करने अच्छी बात होती है, मम्मा और बेबी 50-50 खा लेंगे।"
इतना कहकर वह खुशी-खुशी वहाँ से भाग गई थी। उसके जाते ही वहाँ का माहौल एकदम से बदल गया था। समीर और शिल्पा दुश्मनों जैसे एक दूसरे को घूरने लगे थे।
मिष्टि तो भूल ही गई, मैं अभी जाकर मम्मा को चॉकलेट खिलाकर आती हूँ, शेयर करने अच्छी बात होती है, मम्मा और बेबी 50-50 खा लेंगे।"
इतना कहकर वह खुशी-खुशी वहाँ से भाग गई। उसके जाते ही वहाँ का माहौल एकदम बदल गया।
अब समीर खड़ा हो गया और शिल्पा की तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "अब बताओ, किस बात पर मुँह फुलाया हुआ है? जब आ रही थी तो मुझे बताया क्यों नहीं? और ऐसे गुस्सा क्यों कर रही हो?"
उसकी बात सुनकर शिल्पा ने उसे देखकर मुँह बनाते हुए कहा, "क्यों बताऊँ मैं तुम्हें कुछ भी, मेरा शरीर, मेरा मुँह, मेरी मर्ज़ी, जो मर्ज़ी करूँ, इसका तुम कुछ लेना-देना नहीं है और मैं यहाँ तुम्हारे लिए नहीं, आध्या की वजह से आई हूँ, उसने मुझे फ़ोन करके बुलाया था।"
इतना कहकर उसने रूम से बाहर जाने के कदम बढ़ा दिए, पर समीर उसके सामने आकर खड़ा हो गया। शिल्पा ने खाने वाली नज़रों से उसे घूरकर देखा तो उसने गंभीरता से कहा, "मेरी बात अभी ख़त्म नहीं हुई है, जवाब दो किस खुशी में अपना मुँह सड़ाया हुआ है आज तुमने?"
उसकी बात सुनकर शिल्पा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने उसके मुँह को नोचने के लिए हाथ बढ़ाया, फिर अपने गुस्से को काबू करते हुए दाँत पीसते हुए बोली, "सामने से हटो, वरना मुँह नोच लूँगी तुम्हारा, कोई बात-वात नहीं करनी मुझे तुमसे, हटो मेरे रास्ते से।"
उसने समीर के बगल से निकलना चाहा, पर समीर ने उसकी बाँह पकड़कर उसे दीवार से लगा दिया। उसके दोनों कलाई को उसने कसके पकड़कर उसकी पीठ से लगाया हुआ था।
दोनों बेहद करीब थे। शिल्पा कसमसाते हुए खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। "समीर मैं कह रही हूँ, छोड़ो मुझे, अगर तुमने अभी मेरी नहीं सुनी तो मैं तुम्हारा क्या हाल करूँगी ये तुमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।"
वह गुस्से से उसे घूर रही थी, छटपटा रही थी, पर समीर की पकड़ बहुत मज़बूत थी। उसने बेहद शांति से कहा, "क्या हुआ है? इतने गुस्से में क्यों हो?"
शिल्पा ने उसे घूरते हुए चिल्लाकर कहा, "मैंने कहा ना मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी, अब ये भी मैं बताऊँ कि मैं गुस्सा क्यों हूँ? जब तुमसे हमारा रिश्ता संभाला नहीं जाता तो छोड़ दो मुझे, वैसे भी तुम्हें कभी मेरी याद तो आती नहीं है।"
उसकी बात सुनकर समीर के एक्सप्रेशन सख्त हो गए। शिल्पा ने नाराज़गी से अपना चेहरा फेर लिया था। समीर ने उसके चेहरे को अपने सामने कर लिया और उसे घूरते हुए शांति से बोला,
"पहली बात तो ये कि ये तुम डिसाइड नहीं कर सकती कि मुझे किसकी याद आती है और किसकी नहीं? दूसरी बात ये कि बस दो दिन बात नहीं कर पाया था, वर्क लोड ज़्यादा था, फिर आध्या भी थोड़ी परेशान थी तो रात का वक़्त उसके साथ निकल जाता और थकावट की वजह से रात को तुम्हें फ़ोन नहीं कर पा रहा था। जानती तो हो, मिष्टि किसी मेड को टिकने नहीं देती है, सब काम मुझे और आध्या को ही संभालना पड़ता है, जब वक़्त मिलता है तो करता हूँ तुमसे बात।
अगर फिर भी तुम इतनी सी बात पर हमारे सालों के रिश्ते को ख़त्म करना चाहती हो तो ज़िंदगी तुम्हारी है तो फ़ैसला भी तुम्हारा होगा और जो होगा मुझे मंज़ूर होगा।"
उसने बड़ी ही शांति से अपनी बात कही और फिर उसे छोड़कर जाने के लिए कदम बढ़ा दिया। शिल्पा बहुत ही सीरियस थी और उसके चेहरे के भावों को देखते हुए उसकी बात बड़े ही गौर से सुन रही थी। समीर ने जैसे ही जाने के कदम बढ़ाए, शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ लिया। समीर उसकी तरफ़ नहीं मुड़ा, वैसे ही खड़े हुए बोला, "और कुछ कहना रह गया है क्या?"
उसकी आवाज़ में एक उदासी थी। शिल्पा ने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया और अपने चेहरे को उसकी पीठ से लगा दिया। उसके दोनों हाथ समीर के सीने पर थे। उसने उस पर अपनी बाहों को लपेटते हुए कहा, "सॉरी, मैं बस तुम्हें थोड़ा परेशान कर रही थी।"
समीर ने उसके हाथों को अपने ऊपर से हटाकर उसे घुमाते हुए अपने सामने लाकर खड़ा कर दिया। शिल्पा ने एक हाथ से अपने कान को पकड़कर सॉरी का इशारा कर दिया। उसकी क्यूट सी शक्ल देखकर समीर के चेहरे पर भी मुस्कान फैल गई। उसने उसे अपने गले से लगाकर मुस्कुराकर कहा,
"पागल लड़की, दोनों दोस्त एक जैसी ही हो, बस आध्या के अंदर कुछ दिमाग तो है जिसे वो यूज़ कर लेती है पर तुम तो उसमें भी कंजूसी करती हो, बिना सोचे-समझे बस जो मन में आया कह दिया, जो मन किया कर लिया, कभी ये भी सोच लिया करो कि तुम्हारी बातें किसको कितना हर्ट कर सकती हैं।"
"ज़्यादा बकवास मत करो, दिमाग है मेरे पास और तुमसे भी ज़्यादा है।" उसने उसके गुस्से से उसे घूरा तो समीर ने उसकी गुस्से से लाल नाक को खींचते हुए कहा, "Hmm, तुम बहुत समझदार हो और बहुत लकी भी हो मेरे लिए। चलो अब जाकर मिष्टि को संभालो वरना वो आध्या को तंग कर देगी, मैं फ़्रेश होकर आता हूँ।"
उसकी बात सुनकर शिल्पा ने उछलकर उसके गाल को चूम लिया और वहाँ से भाग गई। समीर ने अपने गाल को छूते हुए अपनी उंगलियों को अपने लबों से लगाते हुए मुस्कुराकर कहा, "पागल लड़की, पर जैसी भी है मेरी है, और बहुत खास है मेरे लिए।"
वह भी लबों पर मुस्कान सजाए वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद सभी डिनर के लिए इकट्ठे हुए तो समीर ने खाना देखा, फिर आध्या को देखकर मुस्कुराकर बोला, "क्या बात है आज स्पेशल डिनर बना है, कोई खास बात है क्या?"
उसकी बात सुनकर आध्या ने दोनों को देखकर मुस्कुराकर कहा, "आज मैं इंटरव्यू देने गई थी, मुझे वहाँ जॉब मिल गई है, कल से ही जॉइन करना है, सैलरी पहले से डबल से भी ज़्यादा होगी और जगह भी बहुत अच्छी है। पता है मुझे कहाँ जॉब मिली है?"
उसने बड़े ही एक्साइटमेंट और खुशी से अपनी बात बताई तो शिल्पा ने उसके मुँह में हलवा का चम्मच डालते हुए मुस्कुराकर कहा, "कांग्रेचुलेशन जानेमन, मुझे पता ही था तुझे ढंग की जॉब ज़रूर मिल जाएगी, मेरी आध्या है ही इतनी टैलेंटेड, बस उसके टैलेंट की क़दर करने वाले की ज़रूरत थी, चल अब बता कहाँ जॉब लगी है तेरी।"
"अवंतिका डायमंड्स में लगी है, वो भी वहाँ के CEO की असिस्टेंट की पोस्ट है, मुझे हमेशा से इसी फ़ील्ड में जाना था, फ़ाइनली मुझे मौका मिल ही गया। अब सब अच्छा होगा, मैं इज़्ज़त से काम करके मिष्टि को वो ज़िंदगी दे पाऊँगी जो वो डिज़र्व करती है पर मैं उसे नहीं दे पाती।"
आध्या के चेहरे की खुशी देखने लायक थी। उसकी खुशी देखकर बाकी दोनों भी खुश हो गए थे। अब समीर ने उसका मुँह मीठा करवाते हुए कहा, "अब बस तुम आगे बढ़ती रहना, अपनी पुरानी ज़िंदगी को भूलकर जो आज हो वही बनकर रहना, बहुत अच्छी जगह जॉब लगी है तुम्हारी, बहुत सुना है मैंने उस कंपनी के बारे में, तुम्हें डिज़ाइन की लाइन में ही जाना था ना, ये मौका अपने हाथ से जाने मत देना, खूब मेहनत करना, देखना सब अच्छा होगा और अब ये जॉब तुम्हारी ज़िंदगी बदल देगी।"
आध्या ने मुस्कुराकर हामी भर दी। सबने खुशी-खुशी साथ में डिनर किया। फिर समीर शिल्पा को छोड़ने चला गया जबकि आध्या मिष्टि को सुलाने में लग गई।
रात यूँ ही बीती। अगला दिन एक नई उम्मीद लेकर आया था, सबको इससे बहुत उम्मीदें थीं। सुबह तैयार होकर सभी अपनी-अपनी मंज़िल के लिए निकल गए। आध्या को छोड़ने आज खुद समीर गया था। आध्या भी वक़्त से पहले ऑफ़िस पहुँच गई और इंतज़ार था तो रितेश का, आख़िर उसका काम तो उसके आने के बाद ही शुरू होना था, तो वह बस ऑफ़िस को देख रही थी। वह जगह बहुत ही हाईफ़ाई थी, सब बहुत सुंदर और साफ़-सुथरा था।
आध्या लबों पर मुस्कान सजाए ऑफ़िस को देख रही थी। सफ़ेद रंग में रंगा वह ऑफ़िस कमाल का लग रहा था। ग़ज़ब का इंटीरियर था उसका, सबसे अलग, सबसे खास। सभी एम्प्लॉयी भी काफी सीरियस लग रहे थे और आते ही अपने-अपने कामों में लग गए थे। इतनी शांति थी वहाँ, यह यह बताने के लिए काफी थी कि उनके बॉस ख़डूस हैं, तभी तो सबकी ऐसी हालत है। आध्या बड़ी ही बारीकी से सब देख रही थी।
अचानक ही एक जाना पहचाना सा चेहरा उसके सामने आया, जिसे देखकर आध्या के चेहरे का रंग उड़ गया।
आध्या बड़ी ही बारीकी से सब देख रही थी।
कुछ देर में रितेश भी आ गया। आध्या को देखकर उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "गुड मॉर्निंग।" आध्या ने भी मुस्कुराकर गुड मॉर्निंग कहा। रितेश आगे बढ़ते हुए बोला, "ऑफ़िस देखा आपने?"
"जी, वही देख रही थी। बहुत बड़ा ऑफ़िस है और उतनी ही खूबसूरती से बनाया गया है। कहीं कुछ कमी नहीं है, सब परफ़ेक्ट है। पर एक बात समझ नहीं आई, पूरा ऑफ़िस ऐसा लग रहा है जैसे सफ़ेद रंग में नहाकर बाहर निकला है। आपके सर को सफ़ेद रंग से इतना प्यार है तो बाकी के रंगों से उनकी पटती नहीं है, जो सफ़ेदी की चमकान बनाया हुआ है पूरे ऑफ़िस को।" उसने थोड़े मज़ाकिया लहज़े में कहा। उसकी बात सुनकर रितेश हँस पड़ा। उसके हँसने पर आध्या भी हँसने लगी।
कुछ देर बाद रितेश ने मुस्कुराकर कहा, "मज़ाकिया स्वभाव लगता है आपका। कल तो बहुत संज़िदा लग रही थीं, पर आज आपके रंग कुछ बदले-बदले से हैं।"
"Hmm, कल मैं थोड़ी परेशान थी। मुझे इस जॉब की बहुत ज़रूरत थी, या सिर्फ़ इतना कहना ग़लत होगा, मैं दिल से चाहती थी कि मुझे यहाँ जॉब मिल जाए। बचपन का सपना है मेरा ये, पर बड़े होते-होते ये इंपोसिबल सा लगने लगा था। फिर अचानक ही किस्मत ने यहाँ लाकर खड़ा कर दिया। उम्मीद है मुझे कि यहाँ काम करके मैं नई चीज़ें सीख पाऊँगी।"
आध्या ने सौम्य सी मुस्कान के साथ जवाब दिया। उसका यूँ खुलकर अपनी बात कहने की अदा पर रितेश मुस्कुराकर बोला, "मानना पड़ेगा, भगवान ने आपको बहुत फ़ुरसत में बनाया है। खूबसूरती और दिमाग दोनों ही हैं आपके पास, और उस पर भी आपका कॉन्फ़िडेंस तो ऐसा है कि क्या कहने! बिना घबराए अपने दिल की बात सामने रख देती हैं। आजकल की दुनिया में बहुत कम देखने को मिलता है।
मुझे उम्मीद है कि आपका इस ऑफ़िस से रिश्ता बहुत लम्बा चलेगा, क्योंकि हमारे सर को ऐसे ही लोग पसंद आते हैं। वैसे आपने कहा था ना कि सर को सफ़ेद रंग ज़्यादा प्यारा है या बाकी रंगों से दुश्मनी है, तो मैं उसका जवाब दे देता हूँ। उन्हें शांति बहुत पसंद है, सफ़ेद रंग उनके नेचर को दिखाता है। पर अगर आप इसे बाकी रंगों से दुश्मनी के रूप में देखना चाहें, तब भी कुछ ग़लत नहीं है, क्योंकि सर थोड़े बोरिंग हैं। काम के आगे उन्हें कुछ नहीं दिखता। बाकी तो अब आप उनके साथ काम करेंगी तो आपको खुद ही पता चल जाएगा। चलिए, मैं आपको आपकी जगह दिखा देता हूँ और काम समझा देता हूँ।"
आध्या मुस्कुराकर उसके साथ चली गई। उसने उसको पूरा ऑफ़िस दिखाया, फिर अद्वय और उसके ठीक बगल में उसके ऑफ़िस को दिखाया जो अब आध्या का होने वाला था। उसके बाद दोनों गंभीर हो गए। रितेश उसे क्लाइंट्स, फ़ाइल्स, शेड्यूल्स सबके बारे में समझाने लगा और इसी में सुबह से शाम हो गई। लंच भी दोनों ने वहीं किया था और उनकी काफी पटने भी लगी थी।
शाम गहराने पर आध्या वहाँ से निकल गई। एक बार फिर बस का इंतज़ार करने लगी और कुछ आधे घंटे बाद उसे बस मिली। सारे दिन की थकान का असर था कि वह बस सीट पर आँखें बंद करके बैठ गई और उसकी आँख लग गई। पर उसके स्टॉप के आने से पाँच मिनट पहले ही उसकी आँख खुल गई। जल्दी से उठकर बस से उतरी, फिर पैदल यात्रा शुरू हो गई। थकी-हारी घर पहुँची तो डोरबेल बजाकर गेट खुलने का इंतज़ार करने लगी।
कुछ ही मिनटों में दरवाज़ा खुला। सामने समीर खड़ा था, लबों पर मुस्कान सजाए। आध्या उसको देखकर हल्का मुस्कुराकर अंदर आने लगी। समीर ने गेट बंद करते हुए कहा, "लगता है बहुत थक गई हो। कहो तो कॉफ़ी बना दूँ।"
आध्या ने उसकी बात सुनकर पीछे मुड़कर उसको देखकर मुस्कुराकर कहा, "Hmm, सच में बहुत थक गई हूँ। सही कहते हैं, जितनी बड़ी जगह उतना ही ज़्यादा काम। सारा दिन काम समझते-समझते ही निकल गया। पर ऑफ़िस अच्छा है, जगह काफी अच्छी है, मज़ा आया मुझे वहाँ काम करने में।"
"चलो कोई जगह तो तुम्हें पसंद आई। जाओ जाकर फ़्रेश हो जाओ, मैं कॉफ़ी लेकर आता हूँ।" समीर ने भी मुस्कुराकर कहा। उसने भी मुस्कुराकर हामी भर दी और फिर अपने रूम में चली गई। बेड पर ही मिष्टि सोई हुई थी। उसने प्यार से उसके माथे को चूम लिया, फिर कपड़े लेकर चेंज करने चली गई।
समीर कुछ देर में कॉफ़ी बनाने के बाद उसके रूम की तरफ़ बढ़ गया। पर गेट पर पहुँचते ही आध्या रूम से बाहर निकली तो दोनों के कदम रुक गए। कुछ पल ठहरने के बाद आध्या ने उसके तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कहा, "मिष्टि कब सोई?"
वह उसके पास पहुँच गई थी। समीर ने कॉफ़ी मग उसकी तरफ़ बढ़ाकर मुस्कुराकर कहा, "कुछ देर पहले ही सोई है। आज लंच में वक़्त नहीं मिला ना सोने का, इसलिए जल्दी सो गई।"
उसकी बात सुनकर आध्या ने कुछ परेशान होकर कहा, "समीर, अगर मैंने ये जॉब की तो मिष्टि को बहुत तकलीफ़ होगी। आज पहला ही दिन है और मैं उसके लिए वक़्त नहीं निकाल पाई। अगर यही चलता रहा तो मिष्टि को कौन संभालेगा?"
समीर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "चिंता मत करो। उसके स्कूल टीचर से मेरी बात हो गई है, वह उसका ध्यान रखेंगी और मैं शाम को जल्दी आ जाया करूँगा।"
"कितना सोचते हो तुम मेरे लिए और मैं हमेशा तुम्हारी प्रॉब्लम की वजह बन जाती हूँ।" उसने कुछ कृतज्ञ नज़रों से उसे देखते हुए कहा। उसकी बात सुनकर समीर ने हल्के गुस्से से कहा,
"बहुत पिटोगी! मिष्टि क्या सिर्फ़ तुम्हारी ही बेटी है? मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं है क्या?"
उसने उसे गुस्से से देखा। आध्या ने नम आँखों से उसे देखते हुए कहा, "तुम्हारा जितना हक़ है उस पर, उतना मेरा भी नहीं है। तुम्हारा हक़ तो उस पर मुझसे भी ज़्यादा है। उसका अस्तित्व तुम्हारी वजह से है..."
वह आगे कुछ कहती, उससे पहले ही समीर ने उसकी बात काटकर कहा, "बस अब और कहने की ज़रूरत नहीं है। एक बात कान खोलकर सुन लो, मिष्टि जितनी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, उतनी ही मेरी भी है। मैंने केयरटेकर के लिए बताने को कह दिया है, जल्दी ही कोई इंतज़ाम हो जाएगा। तुम बस इस जॉब को अच्छे से करो। तुम्हारा बचपन का सपना पूरा होने वाला है, तो बस उस पर ध्यान रखो। फिर कल से मैं आ जाया करूँगा ना तुम्हें लेने, फिर तुम्हें भी मिष्टि के साथ वक़्त मिल जाया करेगा। तुम बस इतना बताओ, तुम्हें वहाँ अच्छा लगा?"
"Hmm, जगह तो अच्छी है। अभी तक सर से नहीं मिली, पर बाकी कुछ एम्प्लॉयीज़ से बात हुई थी, सब अच्छे ही लगे मुझे तो।" आध्या ने आराम से कहा। समीर ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बस अपने सपने पर ध्यान दो, बाकी सब हम दोनों संभाल लेंगे।"
आध्या ने हाँ में सर हिला दिया। दोनों ने खाना खाया, फिर अपने-अपने कमरों में चले गए। समीर शिल्पा से बात करने लगा और आध्या मिष्टि के सर पर हाथ फेरते हुए ही सो गई।
अगले दो दिन यूँ ही निकले। आध्या ने सब सीख लिया था और अपना काम जल्दी ख़त्म करके वह समीर के साथ जल्दी घर आ जाती थी, तो मिष्टि भी खुश हो जाती थी। आज वह वापिस आने वाला था, पहली बार दोनों का आमना-सामना होने वाला था।
अब देखना ये है कि कैसी होती है उनकी पहली मुलाक़ात, प्यार की दस्तक होती है या फिर उनके रिश्ते की शुरुआत टकरार और खट्टी-मीठी नोंक-झोंक के साथ होती है। जो भी हो, आपको मज़ा बहुत आने वाला है, तो कहानी पढ़ते रहिए और मुस्कुराते रहिए।
आध्या रोज़ की तरह तैयार होकर समय पर ऑफिस पहुँची। रितेश अभी तक नहीं आया था। उसे पता था कि आज अद्वय राठौड़, अर्थात उसका बॉस, जिसके अधीन उसे काम करना था, आने वाला था। रितेश से हुई बातों के आधार पर उसके मन में अद्वय की एकदम खड़ूस बॉस की छवि बन गई थी।
वह अब उसके आने और आमने-सामने होने का इंतज़ार कर रही थी। कुछ देर बाद ऑफिस में शोर मच गया। सब यहाँ-वहाँ भागते हुए किसी-न-किसी काम में लग गए। आध्या का फ़ोन बजा। रितेश का नंबर देखकर उसने झट से फ़ोन उठा लिया। उससे बात करने के बाद वह गेट की ओर बढ़ गई। वह तीसरे तल पर थी, इसलिए लिफ़्ट से पहले तल पर जाने लगी।
वह नीचे कदम रखी ही थी कि उसकी नज़र वहाँ आती गाड़ियों पर पड़ी। उसके कदम रुक गए और आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह आँखें फाड़े सामने का नज़ारा देखने लगी। सभी गाड़ियाँ ऑफिस के अंदर वाले गेट के पास आकर एक के पीछे एक रुकने लगीं। आगे की कार से कुछ काले कपड़े पहने हट्टे-कट्टे आदमी बाहर निकले जो देखने में बॉडीगार्ड जैसे लग रहे थे। इनमें से एक ने तुरंत पीछे की कार के पास पहुँचकर पीछे वाला दरवाज़ा खोला।
आध्या आँखें फाड़े उस तरफ़ देख रही थी। कार से एक काले रंग का सूट-बूट पहने आदमी ने बाहर कदम रखा। आध्या ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा; अच्छी खासी हीरो जैसी बॉडी जो उसके फिटेड ब्लैक सूट में और भी उभरकर आ रही थी। दूध से गोरे शरीर पर काला रंग बहुत खूब लग रहा था; गहरा, बड़े ही फुरसत में तराशा गया चेहरा; पतले गुलाबी होंठ; आँखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था; हाथ में ब्रैंडेड बढ़िया सी घड़ी, जिसे देखकर ही लेने का मन कर जाए।
एकदम टीवी में दिखने वाले हीरो जैसा लग रहा था। चेहरे पर अलग ही एटीट्यूड नज़र आ रहा था, पर उस पर वह रौब जच रहा था। कमाल की पर्सनैलिटी लग रही थी उसकी; एकदम दबंग, हैंडसम सा चेहरा जिसमें लोगों की नज़रों को अपनी ओर आकर्षित करने का जादू था।
उसके कार से बाहर निकलते ही पाँच-छः अच्छे खासे बॉडी वाले काले कपड़े पहने आदमी उसके पीछे चलने लगे। अद्वय के साथ ही रितेश भी इंट्रेंस की ओर बढ़ गया। दोनों के बीच शायद कुछ बात हो रही थी। अद्वय काफी गंभीर लग रहा था।
आध्या उसके भाव-भंगिमा नोट कर रही थी। वह रितेश की ओर बढ़ गई, पर वह उसके पहुँच पाती, उससे पहले ही अद्वय के साथ वह भी लिफ़्ट में घुस गया। आध्या देखती ही रह गई और दरवाज़ा बंद हो गया।
उसने घूरकर लिफ़्ट को देखा और मुँह बनाकर बोली, "कैसे-कैसे पागल लोग हैं यहाँ! खुद ही मुझे बुलाया और अब खुद ही छोड़कर चले गए। एक Mr. राठौड़ हैं, उनकी तो शक्ल से ही ऐसा लगता है कि हर वक़्त गुस्सा ही करते हैं। कितना सख्त चेहरा था! पता नहीं कभी मुस्कुराते भी हैं या नहीं। इतने रूढ़ लग रहे थे, जाने क्या होगा मेरा।"
यही सोचते हुए वह सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। वहाँ से निकलकर वह अपने केबिन में चली गई। मूड तो अद्वय का चेहरा देखकर ही खराब हो गया था। वह अपनी सीट पर बैठी ही थी कि उसके केबिन का दरवाज़ा खुला। इसके साथ ही उसकी नज़रें दरवाज़े की ओर उठ गईं। सामने एक लड़की खड़ी थी। उसे देखकर आध्या ने मुस्कुराते हुए कहा,
"संजना, अंदर आओ ना।"
यह उसकी कलीग थी। पिछले तीन दिनों से उसका लंच उसी के साथ होता था, तो दोनों की पहचान हो गई थी। संजना उसकी बात सुनकर अंदर आते हुए मुस्कुराकर बोली,
"अभी बैठने का वक़्त नहीं है। अगर सर को पता चल गया तो परमानेंट छुट्टी दे देंगे और कहेंगे कि अब जितना आराम करना है करो। वैसे भी अभी वह काफी गुस्से में लग रहे थे। तुम्हें अपने केबिन में बुलाया है, तो अगर उसके गुस्से का शिकार नहीं बनना हो तो जल्दी जाओ उनके केबिन में।"
उसकी बात सुनकर आध्या ने अपने मन में कहा, "हाँ, वह तो मुझे दिख ही गया; कड़वा करेला है, ऊपर से नीम चढ़े; जिन्हें देखकर ही दिमाग गरम होने लगता है। कैसे मुँह सड़ाकर आ रहे थे, और रौब तो देखो! ऐसा लग रहा था जैसे कहीं के राजा-महाराज हों।"
"राजा तो नहीं, पर हिटलर से कम नहीं लग रहे थे; जैसे रिंग मास्टर होता है और अपनी चाबुक के ज़ोर पर सबको अपने इशारों पर नचाता है, वैसे ही वह यहाँ सबको अपने इशारों पर नचाते हैं; एनाकोंडा को भी मात दे दिया है आपने तो!"
उसने मन में उसकी खूब तारीफ़ की, फिर मुँह बनाते हुए केबिन से बाहर निकल गई। उसके बगल में ही अद्वय का केबिन था। उसने दरवाज़ा खटखटाया तो अंदर से एक कड़क आवाज़ आई, "Come in।"
आध्या ने अब अपना चेहरा ठीक किया; वरना पता चलता कि अद्वय आते ही उसे बाहर का रास्ता दिखा देता। उसने गेट खोला और अंदर कदम रखा तो नज़र अद्वय पर चली गई। जिसकी पीठ उसकी तरफ़ थी। वह ग्लास वॉल की तरफ़ घूमकर खड़ा हो रखा था। आध्या उसकी ओर बढ़ गई, पर वह दो कदम चली ही थी कि उसकी चीख निकल गई, "म...माँ..."
"म...माँ..."
इसके साथ ही अद्वय उसके तरफ़ घूमा और आध्या को गिरता देख बड़ी ही फुर्ती से उसके तरफ़ दौड़ गया। आध्या गिरती उससे पहले ही अद्वय ने उसके कमर में अपनी बाहें लपेटकर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। आध्या उसके सीने से जा लगी। दिल सुपरफ़ास्ट ट्रेन की तरह दौड़ रहा था। गिरने के डर से उसने अपनी आँखें भींच ली थीं और सुनसान कैबिन में आध्या की दिल की धड़कनों को अद्वय साफ़-साफ़ सुन पा रहा था।
आध्या तो अभी तक शॉक से बाहर नहीं आई थी कि अद्वय ने उसे खुद से दूर झटक दिया। इसके साथ ही आध्या ने हैरानी से उसके तरफ़ निगाह उठाई। उसकी नज़रें जैसे ही अद्वय के गुस्से से लाल चेहरे पर गईं, उसकी आँखें और भी बड़ी-बड़ी हो गईं। वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही अद्वय ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा,
"बहुत पुरानी है, कुछ नया सोचो। और अगर अपने दिमाग को इन्हीं सब में लगाना हो तो जाकर टीवी सीरियल में काम करो। यहाँ नौटंकी करने के पैसे नहीं मिलते और न ही मैंने कोई नाटक मंडली खोली हुई है। इसलिए बेहतर होगा कि आगे से ये चीप हरकतें ना ही करो, वरना तुम्हें तुम्हारी औक़ात दिखाने में मुझे ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा।"
पहले तो आध्या उसके चिल्लाने की वजह को समझ ही नहीं पाई, इसलिए वह उसे हैरानी से देख रही थी। पर जैसे ही उसने अपनी आखिरी बात कही, उसके साथ ही आध्या के चेहरे के भाव बदल गए। अद्वय चुप हुआ ही था कि आध्या ने गुस्से में कहा,
"Excuse me, पहली बात तो ये कि मुझे अपनी औक़ात बहुत अच्छे से पता है तो किसी को मुझे उसे दिखाने की ज़रूरत नहीं है। बहुत अच्छे से जानती हूँ मैं कि यहाँ मैं काम करने आई हूँ और वही करती भी हूँ, और चीप मेरी हरकत नहीं, आपकी सोच, आपकी मेंटेलिटी है।
अगर आपको ये लग रहा है कि अभी जो हुआ वो मैंने जानबूझकर किया ताकि आपको अपने पास ला सकूँ तो जनाब आप बहुत बड़ी गलतफ़हमी में जी रहे हैं। मेरी मानिए तो जितनी जल्दी उसे दूर करे उतना ही अच्छा होगा क्योंकि भले ही लड़कियाँ आपके पीछे पागल होंगी पर उनमें मैं नहीं हूँ। आप जैसी गंदी सोच के आदमियों से नफ़रत है मुझे।
आपने बुलाया था इसलिए आई थी, वरना मुझे भी आपका सड़ा हुआ चेहरा देखने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। तो अपने दिमाग से ये खुशफ़हमी निकाल दीजिये कि बाकी की पागल लड़कियों की तरह आध्या भी आप पर डोरे डाल रही है क्योंकि मैं यहाँ काम करने आई हूँ। इन बकवास बातों के लिए वक़्त नहीं है मेरे पास।"
उसने उसे गुस्से से घूरते हुए अपनी बात कही। अद्वय का पारा चढ़ गया था यह सुनकर। उसने आध्या की बाँह पकड़ते हुए कहा, "अच्छा तो ये गिरने का नाटक क्यों? ज़्यादा शरीफ़ बनने की कोशिश कर रही हो मेरे आगे पर अफ़सोस कि तुम्हारी जैसी लड़कियों की हर चालबाज़ी को मैं बहुत अच्छे से समझता हूँ, इसलिए ये सब मुझ पर काम नहीं करेगा।"
आध्या की बाँह में दर्द होने लगा था। अद्वय ने उसके हाथ को बहुत कसके पकड़ा हुआ था। आध्या की आँखों में आँसू भर गए। उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर अद्वय से खुद को आज़ाद न करवा सकी। तो उसने उसके हाथ को झटकते हुए गुस्से से चिल्लाकर कहा,
"Enough मिस्टर राठौर, समझते क्या हैं आप खुद को? हाथ छोड़िये मेरा, कोई हक़ नहीं आपको मुझे छूने का।"
"तो मुझे भी तुम्हें छूने का कोई शौक़ नहीं है।" अद्वय ने उसे नफ़रत से घूरते हुए उसका हाथ झटक दिया। आध्या गिरने को हुई पर जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया और व्यंग्य से मुस्कुराते हुए बोली, "अजीब बात है ना, छूने का शौक़ नहीं फिर भी मुझे छूने चले आए। पता था कि नाटक था फिर भी मुझे बचाने से खुद को रोक नहीं पाए। यही तो आता है आप मर्दों को, खुद पर इतना गुरूर है कि सामने खड़े इंसान की सच्चाई भी आपको धोखा ही लगती है। पर आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, मैंने नाटक नहीं किया था, पैर स्लिप हो गया था।
अगर नहीं संभालते तो सबूत भी मिल जाता कि नाटक नहीं किया था मैंने, सच में गिर रही थी। मैं तो यहाँ आकर बहुत खुश थी, सोचा था यहाँ तो इज़्ज़त से काम कर पाऊँगी पर आपने मेरी गलतफ़हमी दूर कर दी। Thanku मुझे ये एहसास दिलाने के लिए कि सब मर्द एक से ही होते हैं। सामने वाले की भावनाओं की उनके नज़र में कोई कीमत ही नहीं होती।
आपकी नौकरी आपको मुबारक। मैं आज ही इस नौकरी को छोड़ती हूँ। अपनी सेल्फ़ रिस्पेक्ट को गँवाकर पैसे कमाने का शौक़ नहीं मुझे और न ही आप में रत्ती भर इंटरेस्ट है। शुष्क पौधा हूँ जिस पर अब किसी चीज़ का कोई असर नहीं होता, वह बंजर ज़मीन हूँ जिस पर फिर फूल कभी खिल ही नहीं सकते। फूल तो दूर, उस पर तो अंकुर भी नहीं फूट सकते।
आप भी बेअसर ही हैं मेरे लिए। होंगे आप बहुत अमीर और हैंडसम पर मेरे लिए आप एक अकडू, बददिमाग, बदतमीज़ आदमी हैं जिसे अपने आगे और कुछ नहीं दिखता, जिसने खुद को इतना श्रेष्ठ समझ लिया है कि अपने आगे किसी को इज़्ज़त लायक समझता ही नहीं है।"
वह गुस्से से वहाँ से दनदनाते हुए चली गई। बाहर निकलते ही आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। वह अपने हाथों से अपने आँसुओं को पोंछते हुए अपने कैबिन में घुस गई। अंदर जाते ही वह फफक कर रो पड़ी। कह तो आई पर सच तो यही था कि उसे इस जॉब की बहुत ज़रूरत थी। सोचा था यहाँ तो आराम से काम करके अपनी बेटी को ढंग की ज़िंदगी दे पाएगी, पर एक ही झटके में उसके सारे सपने टूट गए थे। एक बार फिर ज़लील होकर आई थी।
आज तक तो बस लोगों की बुरी नज़रों का शिकार होती थी पर ये कड़वे शब्द आज पहली बार सुने थे। चाहकर भी उसके कहे शब्दों को भुला नहीं पा रही थी।
वहीं दूसरी तरफ़, आध्या जिस तरह से वहाँ से गई थी उससे अद्वय का पारा हाई हो गया था। उसने गुस्से में किसी को फ़ोन किया और अगले पाँच मिनट के अंदर ही रितेश उसके कैबिन में पहुँच गया। अंदर आते ही नज़र अद्वय के गुस्से से लाल चेहरे पर चली गई। उसने घबराकर उसके तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कहा,
"सर, कुछ हुआ है क्या? आप इतने गुस्से में क्यों हैं?"
"सर, कुछ हुआ है क्या? आप इतने गुस्से में क्यों हैं?"
अद्वय ने जलती निगाह उस पर डाली और गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला,
"किस बदतमीज़ लड़की को तुमने हायर किया है?"
रितेश की तो जान हलक में अटक गई। उसके शब्द सुनकर उसने घबराकर कहा,
"क्या हुआ सर? आध्या से कुछ गलती हो गई क्या? अगर कुछ गलत हुआ हो तो मैं माफ़ी चाहता हूँ और आप जैसा उन्हें समझ रहे हैं वो वैसी नहीं है। काफ़ी सुलझी हुई और समझदार लड़की है। सब कैंडिडेट में वो एकलौती थी जो यहाँ सिर्फ़ काम करने के लिए आई थी। वो आपकी असिस्टेंट बनने के लिए परफेक्ट है। रुकिए, मैं अभी उन्हें बुलाता हूँ, आप खुद ही देख लीजिएगा, वो हर तरह से इस पोस्ट के लिए ठीक है।"
उसने आध्या का नंबर लगा दिया। उसकी बात सुनकर अद्वय को आध्या की बात याद आ गई कि वह यहाँ इज़्ज़त से काम करने आई थी। आध्या अब भी रो रही थी। रितेश का नंबर देखकर उसने अपने आँसुओं को पोंछ लिया और गहरी साँस छोड़ते हुए खुद को शांत करके फोन उठाया।
"जी सर।"
"आध्या, सर के कैबिन में आइए।" रितेश की बात सुनकर आध्या का जी तो किया कि मना कर दे, पर रितेश को इंकार ना कर सकी और "जी सर" कहकर फ़ोन रख दिया। उसने अपना हुलिया ठीक किया और कैबिन से बाहर निकल गई। अद्वय के कैबिन का दरवाज़ा नॉक किया तो अंदर से रितेश ने अंदर आने को कह दिया।
आध्या अंदर आई, पर अद्वय की तरफ़ देखा तक नहीं। रोने से उसकी आँखें और नाक लाल हो गई थीं। उसने नज़रें झुकाए हुए ही कहा, "जी सर।"
रितेश ने अब अद्वय को देखकर कहा, "सर, ये हैं मिस आध्या। पिछले तीन दिनों में मैंने इनका काम देखा है, बहुत ही डेडिकेटेड है, बहुत जल्दी सब सीख गई। मेरा विश्वास है कि मिस आध्या आपको शिकायत का मौक़ा नहीं देंगी।"
अद्वय ने अब उसके तरफ़ देखा। लॉन्ग ब्लू कुर्ता, जिस पर यैलो फ़्लॉवर्स प्रिंटेड थे, यैलो लैगी, और मल्टीकलर दुपट्टा जिसे एक तरफ़ से कंधे पर डाला हुआ था, इसी के पैर के नीचे आने की वजह से वह गिरने लगी थी। लंबे सुनहरे बालों को एक चोटी में बाँधा हुआ था। खूबसूरत तो इतनी थी कि सादगी में भी सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींच रही थी।
अद्वय ने उसको ऊपर से नीचे तक स्कैन करते हुए कहा, "ये क्या पहना हुआ है? इस ऑफिस का एक ड्रेस कोड है और सबको उसे फ़ॉलो करना होता है। क्या तुमने उन्हें ये नहीं बताया?"
अद्वय ने घूरकर रितेश को देखा, पर उसके कुछ कहने से पहले ही आध्या ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "बताया था और मैंने भी साफ़ शब्दों में कहा था कि मैं बाकी इम्प्लायज़ की तरह, शर्ट-पैंट पहनकर नहीं आ सकती। मैं कुर्ता ही पहनती हूँ, इसी में कम्फ़र्टेबल हूँ, और मैं किसी के लिए खुद को बदल नहीं सकती।"
उसकी बात सुनकर अद्वय ने गुस्से से उसे देखा तो रितेश ने उसके गुस्से को देखते हुए आराम से कहा, "सर, मिस आध्या ने कभी उन कपड़ों को नहीं पहना है और आप ही तो कहते हैं कि कपड़े डिसेंट होने चाहिए जिसमें इम्प्लाय कम्फ़र्टेबली काम कर सके। मिस आध्या इन्हीं कपड़ों में कम्फ़र्टेबल हैं और ये भी तो फ़ॉर्मल में ही आते हैं।"
अद्वय ने उसको घूरकर देखा और बाहर जाने का इशारा कर दिया तो बेचारा थूक निगलते हुए बाहर निकल गया। अब अद्वय ने आध्या की तरफ़ निगाह घुमाई तो उसकी लाल आँखें देखकर एक पल को उसके दिल में कुछ अलग सा फ़ील हुआ, पर जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया और कड़क लहज़े में बोला,
"सो मिस आध्या, अब आप क्या कहना चाहेंगी?"
"किस बारे में?" आध्या ने तुरंत उससे नज़रें मिलाते हुए सवाल किया। अद्वय उसके कॉन्फ़िडेंस और हिम्मत को देखकर मन ही मन चिढ़ उठा। उसने उसको घूरते हुए कहा,
"अपने कपड़ों के बारे में। आपने कंपनी का रूल तोड़ा है और जहाँ तक मैंने देखा है, अभी कुछ देर पहले ही आप अपने इन कपड़ों की वजह से ही गिरने वाली थीं। आपको नहीं लगता कि आपको भी बाकी के इम्प्लायीज़ की तरह फ़ॉर्मल्स में आना चाहिए?"
"जी नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। तब मैं थोड़ी नर्वस थी इसलिए ध्यान नहीं गया, पर मेरे कपड़े एकदम परफ़ेक्ट हैं। मैं इनमें ही बहुत अच्छे से अपना काम कर सकती हूँ और अगर आपको इस बात पर डाउट हो तो आप मेरा टेस्ट ले सकते हैं, पर अगर जीत मेरी हुई तो हार मानने से इंकार मत कीजिएगा। और वैसे भी, अब मैं आपके साथ काम नहीं करना चाहती, तो आपको मैं क्या पहनती हूँ और क्या नहीं, इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए।"
आध्या ने बिना घबराए पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ अपनी बात कही। उसकी नज़रें बराबर अद्वय की निगाहों से टकरा रही थीं, पर उसमें डर नहीं था। अद्वय इसे देखकर और भी चिढ़ गया। आध्या ने अपनी बात कही और जाने के लिए कदम बढ़ाया तो पीछे से अद्वय ने हल्के गुस्से में कहा,
"अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आपने एक साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है। अब ऐसे कॉन्ट्रैक्ट तोड़कर गई तो ख़ामियाज़ा भुगतना होगा आपको।"
ये सुनकर आध्या के कदम रुक गए। उसने वापिस पीछे मुड़कर अद्वय को घूरकर देखा तो उसने तिरछी मुस्कान के साथ उसे देखते हुए कहा, "कम से कम पाँच लाख फ़ाइन भरना होगा और दूसरी जगह काम भी नहीं कर पाओगी।"
उसकी बात सुनकर आध्या ने उसे घूरते हुए कहा, "तो आप मुझे फ़ोर्स कर रहे हैं, जबरदस्ती मुझसे काम करवाना चाहते हैं? या धमकी दे रहे हैं?"
उसकी बात सुनकर अद्वय ने फ़ाइल उठाते हुए कहा, "सच्चाई बता रहा हूँ, एग्रीमेंट तुमने ही साइन किया था तो पढ़ा तो होगा ही। अब जाकर Mr. भटनागर की फ़ाइल तैयार करो, सारी इंफ़ॉर्मेशन चाहिए मुझे, वो भी लंच से पहले।"
वह फ़ाइल पर नज़रें गड़ाए हुए था। उसकी बात सुनकर आध्या ने गुस्से से उसको घूरा, पर अद्वय ने उसके तरफ़ निगाह नहीं उठाई। तो आध्या गुस्से में पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद अद्वय ने निगाह उठाई, वह काफ़ी गंभीर लग रहा था। वह दरवाज़े की तरफ़ देख ही रहा था कि एक बार फिर उसके कैबिन का दरवाज़ा खुला। इसके साथ ही अद्वय ने अपनी निगाहों को फ़ाइल में गड़ा लिया।
तभी उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी, "क्या बात है, आज मुझे देखा तक नहीं?"
आवाज़ सुनकर अद्वय ने निगाहें सामने की तरफ़ घुमाई तो गेट के पास एक हैंडसम सा लड़का खड़ा था, ब्राउन थ्री पीस सूट पहने और लबों पर मुस्कान सजाए वह अद्वय को देख रहा था। उस लड़के के चेहरे पर नज़र पड़ते ही अद्वय के चेहरे के भाव बदल गए।
"क्या बात है, आज मुझे देखा तक नहीं?"
आवाज़ सुनकर अद्वय ने निगाहें सामने की ओर घुमाईं। गेट के पास एक हैंडसम सा लड़का खड़ा था। ब्राउन थ्री पीस सूट पहने और लबों पर मुस्कान सजाए वह अद्वय को देख रहा था। उसे देखकर अद्वय का चेहरा भी सामान्य हो गया। उसने अपनी चेयर पर बैठते हुए कहा,
"आज सुबह-सुबह यहाँ चला आया, कुछ काम था?" अद्वय ने सवालिया नज़रों से उसे देखा। वही उसकी बात सुनकर सामने खड़ा लड़का उसे गुस्से से घूरने लगा।
उसके कुछ न कहने पर अद्वय ने ही आगे कहा, "क्या है? अब घूर क्या रहा है? जो बोलना है बोल।"
"रुक, अभी बताता हूँ तुझे। बहुत एटिट्यूड आ गया है ना, अभी ही निकालता हूँ तेरी सारी अकड़।" वह गुस्से से उस पर लपका, पर अद्वय बड़ी ही फुर्ती से वहाँ से भाग गया। वह दूसरी ओर खड़ा हो गया तो वह लड़का भी उसी ओर दौड़ पड़ा। बचने के लिए अद्वय ने भागते हुए गुस्से से कहा,
"क्या है सुबह-सुबह? क्या मेरे साथ पकड़म-पकड़ाई खेलने के लिए यहाँ आया है?"
उसकी बात सुनकर उस लड़के ने उसके तरफ़ दौड़ते हुए कहा,
"नहीं, तेरा मुँह तोड़ने यहाँ आया हूँ। आजकल कुछ ज़्यादा ही हवा में उड़ने लगा है, तुझे ज़मीन पर लाने के लिए आया हूँ यहाँ।"
"बस कर दे यार हर्ष! वैसे ही सुबह-सुबह दिमाग गरम हो गया है, अब तू मेरा सर तो मत खा।" अब अद्वय ने परेशानी भरे लहज़े में कहा। हर्ष जहाँ था वहीं रुक गया और उसके चेहरे का मुआयना करते हुए आराम से बोला,
"क्या हुआ? सुबह-सुबह तेरा मूड किसने ख़राब कर दिया? किसकी इतनी हिम्मत हुई कि मेरे बम के गोले पर चिंगारी लगा दी?"
इतना कहकर वह हँस दिया। अद्वय बिना कुछ कहे बस उसे गुस्से से घूरने लगा। उसके घूरने से हर्ष कुछ देर हँसने के बाद शांत हुआ और पानी का गिलास लेकर उसके तरफ़ बढ़ते हुए बोला, "चल अब नहीं करता मज़ाक। पानी पी और शांत होकर बता, किसकी इतनी हिम्मत हुई कि मेरे यार को परेशान कर दिया?"
हर्ष ने उसके तरफ़ गिलास बढ़ा दिया, पर अद्वय ने नहीं पकड़ा, बस उसे गुस्से से घूरने लगा। तो हर्ष ने उसे गिलास पकड़ाते हुए कहा, "बस कर दे, कितना घूरोगे मुझे? चल पानी पी और बता क्या हुआ है?"
अद्वय ने अब गिलास टेबल पर रख दिया और अपनी चेयर पर जाकर बैठ गया। हर्ष भी उसके सामने बैठ गया और उसके कुछ कहने का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर चुप रहने के बाद अद्वय ने कहना शुरू किया, "कुछ नहीं यार, एक लड़की ने दिमाग ख़राब कर दिया है।"
उसके मुँह से 'लड़की' सुनते ही हर्ष के कान खड़े हो गए। उसने हैरानी से कहा, "लड़की?"
अद्वय ने उसका एक्सप्रेशन देखा तो गिलास उसकी ओर करते हुए बोला, "तुझे इसकी ज़्यादा ज़रूरत है, रिलैक्स हो जा। जैसा तू सोच रहा है वैसा कुछ नहीं है। रितेश को घर जाना है और शायद एक महीने तक वापस न आ सके। इसलिए नए असिस्टेंट को उसने ही सिलेक्ट किया है। एक लड़की है, आध्या, उसी को चुना है उसने, बस उसी ने दिमाग ख़राब कर दिया है।"
हर्ष ने अब संयमित होते हुए सवाल किया, "ऐसा क्या किया उसने?"
अद्वय ने अब जो भी हुआ सब बता दिया। हर्ष बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहा था। जैसे ही अद्वय चुप हुआ, उसके अगले ही पल वह ठहाके लगाकर हँस पड़ा। अद्वय पहले तो उसे हैरानी से देखने लगा, पर जब वह चुप नहीं हुआ तो उसने गुस्से से कहा, "हँसना बंद कर, कोई जोक नहीं मारा है मैंने तो पागलों की तरह हँसे ही जा रहा है।"
हर्ष ने अब अपनी हँसी रोकने की कोशिश करते हुए कहा, "जोक ही तो है। तुझे लगा कि वह लड़की बाकी लड़कियों की तरह है और तुझे अट्रैक्ट करने के लिए उसने गिरने का नाटक किया, पर यहाँ तो सब उल्टा निकला। वह शायद पहली लड़की होगी जिसे 'The great business tycoon Advay Rathour' में कोई इंटरेस्ट नहीं है। वह तो तेरी उम्मीद से बिलकुल उलट निकली और तो और जिसके सामने अच्छे-अच्छे की बोलती बंद हो जाती है, उसने उसके सामने इतना कुछ कह दिया, वह भी बिना घबराए।
मानना पड़ेगा यार, लड़की बड़ी हिम्मत वाली है। उससे मिलना तो बनता है। आख़िर अद्वय राठौर से पंगे लेना किसी आम लड़की का काम तो नहीं हो सकता। कुछ तो बात है उसमें जो तेरे चार्म से अनछुई रह गई। ऊपर से तेरी आँखों में आँखें डालकर जवाब देते हुए भी उसे ज़रा भी डर नहीं लगा, जबकि तेरे गुस्से से तो कभी-कभी मुझे भी डर लगने लगता है।"
उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। वही उसकी बात सुनकर अद्वय चिढ़ गया था। उसने खीझकर कहा, "इतने ही तारीफ़ों के पुल बाँधने हैं तो उसके पास जा, यहाँ बकवास करेगा तो मुँह तोड़ दूँगा तेरा।"
"क्यों? वैसे तुझे गुस्सा आ किस बात पर रहा है? उसे तुझ में इंटरेस्ट नहीं है यह बात तुझसे हज़म नहीं हो रही या फिर कोई है जो तुझसे, तेरी पॉवर से डरता नहीं है, बल्कि तेरी आँखों से आँखें मिलाकर जवाब देती है यह बात तुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही? वैसे वह लड़की क्या नाम था उसका... कुछ सोचते हुए कुछ देर बाद बोला... हाँ याद आया, आध्या... हाँ तो मैं कह रहा था कि आध्या से तो तू आज पहली बार मिला है और वह लड़की तुझे इतना इफ़ेक्ट करने लगी है?"
उसने मज़ाक में यह बात कही थी, पर उसकी बात सुनकर अद्वय का गुस्सा अपनी सीमा पार कर गया। उसने पेपर वेट उसकी ओर फेंकते हुए कहा, "बंद कर अपनी बकवास।"
बेचारा हर्ष तो उसकी हरकत से शॉक रह गया था। उसने झट से पेपर वेट को कैच किया और हल्के गुस्से से बोला, "पागल है क्या?"
"मैं नहीं, तू है पागल। तब से कुछ कह नहीं रहा तो कुछ भी बकवास किए जा रहा है। कोई इफ़ेक्ट नहीं है उसका मुझ पर, बस गुस्सा आ रहा है क्योंकि वह निहायत बदतमीज़ है, बिलकुल मैनर्स ही नहीं है उसमें।"
उसने गुस्से में गरजते हुए कहा। एक पल को हर्ष उसे देखता ही रह गया। फिर उसने पानी उसकी ओर बढ़ाते हुए आराम से कहा, "चल पहले पानी पी और शांत हो जा, बस मज़ाक कर रहा था। तू तो बेवजह ही इतना हाइपर हो गया।"
अद्वय ने गिलास लगभग टेबल पर पटकते हुए कहा, "मुझे ऐसे मज़ाक बिलकुल नहीं पसंद। अगर दोबारा कभी ऐसी बकवास की तो आज तो बच गया, अगली बार पेपर वेट नहीं बल्कि मेरा पंच पड़ेगा, वह भी सीधे तेरे मुँह पर।"
वह अब भी बेहद गुस्से में लग रहा था। हर्ष ने बदले में कुछ नहीं कहा, बस उसे देखने लगा। कुछ देर अद्वय चुप रहा, फिर उसने खुद ही गिलास उठाकर पानी पिया। अब वह कुछ रिलैक्स हुआ और उसकी ओर नज़रें घुमाकर आराम से बोला, "अब घूरना बंद भी कर, बस फेंका ही था, लगा तो नहीं तुझे।"
उसने यह कहते हुए मुँह सिकोड़ा तो हर्ष ने बड़ी ही गंभीरता से कहा, "एक लड़की की बातों से तू इतना गुस्सा हो गया, तुझे नहीं लगता यह थोड़ा अजीब है?"
उसकी बात सुनकर अद्वय ने भी इस बात पर गौर किया, पर फिर उसने आध्या का ख्याल अपने सर से झटकते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "वह सब छोड़, तू यह बता आज बिना खबर किए यहाँ कैसे चला आया?"
उसे इतना रिलैक्स देखकर हर्ष ने भी आध्या के ख्याल को परे झटक दिया और मुस्कुराते हुए बोला, "बस बहुत वक़्त हो गया था, कहीं बाहर नहीं गए थे। तू तो इस दुनिया का सबसे बिज़ी इंसान है, वक़्त कहाँ होता है तेरे पास अपने यार के लिए? तो सोचा आज बिना वार्निंग के तुझ पर धावा बोला जाए, बस इसलिए आ गया।"
उसकी बात सुनकर अद्वय ने पहले घूरकर उसे देखा, फिर मुस्कुराते हुए बोला, "चल तू भी क्या याद रखेगा? आज रात को चलते हैं वहीं जहाँ हम ज्यादातर जाते हैं और इस बार नताशा को साथ ले आइयो, वरना पिछली बार तो बस उसका चंडी रूप ही देखा था, इस बार तो काली माता बनकर तेरा खून ही कर देगी।"
इतना कहकर वह हँस दिया। ठीक इसी वक़्त उसका डोर नॉक हुआ। हर्ष उसे गुस्से से घूर रहा था। गेट नॉक होते ही अद्वय चुप हो गया। एक बार फिर गंभीर होकर उसने गेट की ओर देखते हुए कहा, "Come in."
"आओ।"
इसके साथ ही गेट खुला, और आध्या ने एक बार फिर उसके केबिन में कदम रखा। आध्या अंदर आने के दो कदम बाद ही रुक गई। अद्वय ने नज़र उठाकर उसे देखा। आध्या ने उसको देखते हुए कहा, "सर, फ़ाइल तैयार है। मैंने क्रॉस चेक भी कर लिया है। एक बार आप देखकर फ़ाइनल कर देते तो आगे का काम शुरू हो जाता।"
"रख दो," अद्वय ने एक छोटा सा जवाब दिया और उस पर से नज़रें हटा लीं। आध्या तो वैसे ही गुस्से में थी, पर मजबूरी थी। उसने भी कुछ नहीं कहा। आगे आकर फ़ाइल टेबल पर रख दी और जाने के लिए कदम बढ़ाया। तभी हर्ष ने पीछे से उसे देखते हुए कहा, "Excuse me।"
उसके इतना कहते ही आध्या के कदम रुक गए। हर्ष तब से उसको देखकर कुछ सोच रहा था। आख़िर में उसने कह ही दिया। आध्या भी वापस पीछे घूम गई और उसको सवालिया नज़रों से देखते हुए बोली, "जी?"
हर्ष ने अब मुस्कुराकर कहा, "अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप ही Ms. आध्या हैं?"
"जी," आध्या ने एक बार फिर छोटा सा जवाब दिया, पर अब वो तीखी नज़रों से अद्वय को देखने लगी थी। वहीं अद्वय हर्ष को घूरने में लगा था। हर्ष ने आध्या की तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कहा, "Don't worry, उसने कुछ नहीं कहा है आपके बारे में। वो तो, पहली बार इसकी असिस्टेंट एक लड़की है ना, बस इसलिए मैं एक बार देखना चाहता था कि आख़िर वो लड़की है कौन?"
अब तक वो उस तक पहुँच गया था। उसने अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए मुस्कुराकर कहा, "Hi, I am हर्ष चौहान, आपके बॉस का बचपन का दोस्त और इस कंपनी का ऑफ़िशियल लॉयर और लीगल एडवर्टाइज़र।"
आध्या ने पहले उसके हाथ को देखा, फिर उसको देखने लगी, पर हाथ नहीं मिलाया। तो हर्ष ने अब धीरे से कहा, "Don't worry, आपके बॉस की तरह खड़ूस नहीं हूँ मैं और न ही मुँहफट और गुस्सैल हूँ। आप मुझे अपना दोस्त समझ सकती हैं। वैसे भी जहाँ तक मेरा अंदाज़ा है आपकी और मेरी खूब पटेगी। आप अपने बॉस की तारीफ़ भी कर सकती हैं मुझसे, मुझे भी कोई मिल जाएगा जिसके साथ मिलकर मैं इस अकड़ू की तारीफ़ कर सकूँ।"
उसकी सुनकर आध्या उसको हैरानी से देखने लगी। उसने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "समझा करो यार, इतने सालों से उसके साथ हूँ तो उसके रग-रग से वाक़िफ़ हूँ, जानता हूँ। उसके साथ रहना इतना भी आसान नहीं। अब तुम्हें भी उसके साथ काम करना है तो तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़ेगी ही, इसलिए मुझसे दोस्ती करना तुम्हारे और मेरे दोनों के लिए फ़ायदेमंद है।"
अब उसकी बात का मतलब समझकर आध्या ने हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा और हाथ मिला लिया। ठीक इसी वक़्त उनके कानों में अद्वय की कड़क आवाज़ पड़ी, "यहाँ बातें करने की सैलरी नहीं मिलती है तो चुपचाप जाकर काम करो।"
आध्या ने घूरकर उसे देखा और जाने के लिए मुड़ी। हर्ष ने मुस्कुराकर उसको कुछ इशारा किया। इसके साथ ही उसका गुस्सा पल में छू-मंतर हो गया, लबों पर मुस्कान फैल गई और वो चुपचाप वहाँ से चली गई। हर्ष अब अद्वय की तरफ़ मुड़ा। वो उसी को गुस्से से घूर रहा था। उसने गहरी साँस छोड़ते हुए मुस्कुराकर कहा, "अच्छी लड़की है यार, काफ़ी फ़्रैंक भी है और तेरी असिस्टेंट है तो मेरी जान-पहचान तो होनी चाहिए ना उससे, इसलिए हाय-हैलो कर लिया।"
ये कहते हुए वो वापस अपनी चेयर पर बैठ गया। अद्वय उसको घूरता रहा। फिर लैपटॉप ऑन करते हुए कहा, "अगर बहाने बनाने से फ़ुरसत मिल गई हो और मेरी बुराई करके मन भर गया हो तो जाकर अपना काम कर, मेरे पास फ़ालतू वक़्त नहीं है, बहुत काम करना बाकी है।"
उसकी बात सुनकर हर्ष ने मुँह बनाकर उसे देखते हुए कहा, "जा रहा हूँ, भगाने की ज़रूरत नहीं है और चाहे काम में डूब जाइयो, पर अगर तूने इस बार शाम का प्लेन कैंसल किया तो मैं तेरे साथ क्या करूँगा, तू वो सोच भी नहीं पाएगा।"
अद्वय ने बेफ़िक्री से उसको जाने का इशारा कर दिया। हर्ष पैर पटकते हुए वहाँ से निकल गया। इसके बाद अद्वय वो फ़ाइल पढ़ने लगा जिसे कुछ देर पहले ही आध्या देकर गई थी। आध्या भी अपने काम में लगी रही। इस बीच रितेश ने आकर अद्वय से जाने की परमिशन ले ली थी। उसने भी जाने के लिए कह दिया, पर अभी भी उसको आध्या की काबिलियत पर ज़रा भी विश्वास नहीं था।
सुबह से दोपहर हो गई, लंच टाइम हो गया। बाकी स्टाफ़ कैन्टीन की तरफ़ चले गए। आध्या अद्वय की असिस्टेंट थी। ना चाहते हुए भी उसे उसके केबिन में जाना ही पड़ा। उसने कुछ वक़्त बाद उसके केबिन का दरवाज़ा नॉक कर दिया। अद्वय अब भी लैपटॉप और फ़ाइल में उलझा हुआ था। उसने बिना ऊपर देखे ही "Come in" कह दिया। इसके साथ ही दरवाज़ा खुला और दो कदम अंदर आने के बाद आध्या ने बड़ी अदब से सवाल किया, "सर, लंच टाइम हो गया है, बता दीजिए आप क्या खाएँगे, मैं ले आती हूँ।"
उसकी आवाज़ सुनकर अद्वय के हाथ, जो लगातार लैपटॉप के कीबोर्ड पर चल रहे थे, वो रुक गए। उसने सर उठाकर देखा। आध्या अब गुस्से में नहीं लग रही थी, बिलकुल नॉर्मल नज़र आ रही थी। उसने एक नज़र उसे देखा, फिर वापस अपने काम में लगते हुए बोला, "शायद तुम्हें रितेश ने ये बताया नहीं कि कैन्टीन से नहीं आता मेरा खाना।"
आध्या हैरानी से उसे देखते हुए याद करने लगी, पर उसको ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा था। उसने हैरान-परेशान नज़रों से उसे देखते हुए कहा, "तो कहाँ से आता है? मुझे तो ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा कि सर ने मुझे इस बारे में कुछ बताया हो।"
"इसमें ताज्जुब की कोई बात नहीं है, मैं यहाँ नहीं था तो उसे याद नहीं रहा होगा," अद्वय ने भी अब बड़े ही आराम से कहा और फिर उसके तरफ़ नज़रें उठाते हुए बोला, "फ़ोन करके पूछो उससे, पता चल जाएगा तुम्हें कि कहाँ से आता है खाना।"
उसकी बात सुनकर आध्या का मुँह बन गया। उसने मन में कहा, "हूँह, बड़े आए फ़ोन करके पूछने को कहने वाले, अगर खुद बता देते तो क्या इनकी हाइट कम हो जाती या अकड़ घुटनों में चली जाती? बस हर बात में अपना एटिट्यूड दिखाना है, लॉर्ड गवर्नर कहिँ के। मेरा बस चले तो आपको ही कढ़ाई में डालकर आपके ही पकोड़े बना दूँ।"
सारा स्टाफ़ कैन्टीन का खाना खा रहा है, पर नहीं ये तो ठहरे लॉर्ड गवर्नर। अगर यहाँ का खाना खा लेंगे तो उनकी नाक नहीं कट जाएगी? दिखाना तो ज़रूरी है ना कि इस ऑफिस के बॉस हैं तो बस बेकार के नखरे करके दूसरों का दिमाग खाना है इन्हें। आदत हो गई होगी ना दूसरों का दिमाग खाने की, राक्षस जो ठहरे तो इंसानों की तरह खाना खाना कहाँ रास आता होगा उन्हें।
आध्या मन ही मन उसे कोसने में लगी थी, इस बात से अनजान कि अद्वय की नज़रें उसके चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। कुछ देर तक अद्वय उसको देखता रहा, फिर उठकर उसके तरफ़ बढ़ गया।
आध्या तो उसे कोसने में इतना खो गई थी कि उसने ध्यान ही नहीं दिया कि अद्वय उसके पास आ रहा है। अद्वय उसके ठीक सामने आकर खड़ा हो गया और उसके आगे चुटकी बजाते हुए बोला, "Hello miss, इस दुनिया में है या दूसरी दुनिया में पहुँच गई है?"
उसकी आवाज़ सुनकर आध्या चौंक कर अपनी सोच से बाहर आई। कुछ सुनाई तो दिया नहीं, पर अद्वय को अपने ठीक सामने देख वो हड़बड़ाहट में पीछे हटने को हुई, पर जल्दबाज़ी में उसका पैर मुड़ गया। वो पीछे की तरफ़ गिरने लगी। उसे बचाने के लिए अद्वय ने उसकी कमर पर अपनी बाहें लपेट दीं। वहीं आध्या ने उसके शर्ट के कॉलर को पकड़ लिया।
अद्वय ने उसको अपनी तरफ़ खींच लिया। आध्या उसके सीने से जा लगी। इसके साथ ही दोनों के दिल की धड़कनों की रफ़्तार बढ़ गई। ये महसूस करते ही पहले अद्वय ने हैरानी से उसके चेहरे को देखा जो अभी भी घबराई नज़रों से उसे ही देख रही थी। अगले ही पल अद्वय ने उसे छोड़ दिया।
अगले ही पल अद्वय ने उसे छोड़ दिया।
आध्या अब भी उसके सीने से चिपकी हुई थी। अद्वय ने उसे घूरते हुए कहा, "गिरने में एक्सपर्ट हो, कोई स्पेशल कोर्स किया होगा ना?"
आध्या को उसकी बात समझ नहीं आई। वह कन्फ़्यूज़ सी उसे देखने लगी। अद्वय ने अब उसके हाथ की तरफ़ घूरकर देखते हुए कहा, "बहाना अच्छा है मेरे करीब आने का।"
इसके साथ ही आध्या ने झटके से उसकी शर्ट छोड़ दी और कुछ पीछे होते हुए बोली, "आपके पास आना कौन चाहता है? मैं गिर रही थी, तो बचने के लिए जो हाथ आया वही पकड़ लिया। पर इसका कुछ गलत मतलब निकालने की ज़रूरत नहीं है आपको। पहले भी कहा है और अब आख़िरी बार कह रही हूँ, आप बहुत हैंडसम होंगे, लड़कियाँ आपके पीछे पागल होंगी, पर मैं उनमें से नहीं हूँ।
न मुझे आप में कोई इंटरेस्ट है, न ही किसी और लड़के में कोई दिलचस्पी है। मेरी ज़िंदगी में किसी लड़के के लिए कोई जगह नहीं है और कभी होगी भी नहीं। काम करने आई हूँ यहाँ और वही करूँगी भी।"
उसकी बात सुनकर अद्वय ने व्यंग्य भरे लहज़े में कहा, "अक्सर चोर यही कहता है कि उसने चोरी नहीं की। कुछ ऐसा ही हाल तुम्हारा भी है। मेरे करीब आने का बहाना ढूँढ रही हो और कह रही हो कि कोई दिलचस्पी नहीं है मुझमें?"
आध्या ने गुस्से से उसे घूरा। फिर मन में बोली, "सेल्फ़ ऑब्सेस्ड इंसान है ये, खुद को जाने क्या ही समझते हैं। कोई आसमान से उतरे राजकुमार नहीं है जो सारी दुनिया की लड़कियाँ इनके आगे-पीछे घूमेंगी, मैं तो बिलकुल भी नहीं। न शक्ल, न सूरत, खुद को शहंशाह समझने में लगे हैं। इतने भी बुरे दिन नहीं आए हैं जो मैं इस करेले के करीब जाने के लिए इन चीप ट्रिक्स का इस्तेमाल करूँ।"
वह एक बार फिर अपनी सोच में खो गई। अद्वय ने उसके आगे चुटकी बजाते हुए कहा, "अगर मुझे कोसने से फ़ुरसत मिल गई हो तो जाकर लंच का इंतज़ाम करो।"
आध्या ने हड़बड़ाहट में हामी भरी और वहाँ से भाग गई। अद्वय एक पल को गेट की तरफ़ देखता ही रह गया। फिर उसने खुद से ही कहा, "क्या है ये लड़की? सच में मुझसे बेअसर है या बस दिखा रही है? हरकतें दिखा रही है कि बहाने ढूँढ रही है मेरे करीब आने के, पर चेहरा कुछ और ही कहता है।
(कुछ देर तक ये सोचने के बाद उसने खुद से ही चिढ़कर कहा) उस पागल लड़की के बारे में सोचकर अपना वक़्त क्यों बर्बाद कर रहा है? इतनी इम्पॉर्टेंस देने की ज़रूरत नहीं है उसे।"
उसने अपना सर झटका और काम में लग गया। वहीं आध्या वहाँ से भागकर सीधे अपने कैबिन में घुस गई। वहाँ जाते ही उसने एक गिलास पानी एक साँस में ही पी लिया और अपने दिल पर हाथ रखकर बोली, "हद है, ऐसे कोई डराता है क्या? और तू भी पागल है, उनके सामने ही तुझे सब सोचना था। कैसे देख रहे थे मुझे, ऐसा लग रहा था जैसे आँखों से ही भस्म कर देंगे। पता नहीं उन्हें इंसान किसने बना दिया? हरकतें तो राक्षसों वाली हैं और घमंड तो इतना है कि कहना ही क्या?
सोचते हैं सब लड़कियाँ मरी जा रही हैं उनकी बाहों में आने को। पागल आवारा आदमी, कोई समझाए उन्हें कि इतने भी कुछ खास नहीं कि दुनिया भर की लड़कियाँ सब काम-धाम छोड़कर उनके करीब आने की प्लैन बनाने में लग जाएँ, खासकर मैं तो बिलकुल भी नहीं। बेअसर हूँ उनसे और वही रहूँगी।
मैं वो काला-सियाह रंग हूँ जिस पर और किसी रंग का चढ़ना संभव नहीं। काले रंग में मिलकर हर रंग अपना अस्तित्व खो देता है, पर उसके स्याह रंग को बदल नहीं पाता।" ये सोचते हुए वह काफी सीरियस हो गई। उसने अपने दिमाग से उसके ख्याल को झटका और रितेश को फ़ोन लगा दिया।
दूसरी तरफ़ से "हैलो" की आवाज़ आते ही आध्या ने एक साँस में ही कहना शुरू कर दिया, "सॉरी सर, आपको डिस्टर्ब किया, पर आपके बॉस ने ही मेरा दिमाग खराब किया हुआ है। लगता है वो लंच में इंसानों को खाना ज़्यादा पसंद करते हैं। इतने नखरे हैं उनके, ऊपर से गुरूर इतना कि खुद से बका भी नहीं जा रहा कि क्या खाते हैं। बस मुझे घूरने में लगे थे जैसे मुझे ही खाएँगे, इसलिए अब आप ही बता दीजिए कि कौन सी दुनिया से उनके लिए स्पेशल खाना आता है।"
आध्या पहले ही चिढ़ी हुई थी और उसकी चिड़चिड़ाहट उसकी बातों में झलक रही थी। रितेश अपनी हँसी को रोक नहीं पाया और ठहाके लगाकर हँस पड़ा। उसकी हँसी की आवाज़ सुनकर आध्या चुप हो गई। अपनी बात को याद करते हुए उसने अपनी जीभ को दाँतों के नीचे दबा लिया। फिर कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे से बोली, "सॉरी सर, वो सर ने कहा था कि आपसे पूछ लूँ कि वो क्या खाते हैं।"
उसकी बात सुनकर अब रितेश चुप हो गया और हल्की मुस्कान के साथ बोला, "वैसे मुझे ताज्जुब है, एक ही दिन में आप बॉस को इतने अच्छे से जान गई, पर अभी भी आप उन्हें समझ नहीं पाई हैं। कुछ दिन उनके साथ रहिए, तब आपको पता चलेगा कि सर उस नारियल के जैसे हैं जो बाहर से इतना सख्त होता है कि किसी का भी सर फोड़ दे, पर अंदर से वो उतने ही नर्म हैं।
चलिए, ये तो आप खुद ही जान जाएँगी। अभी मैं आपको आपकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन दे देता हूँ। मैं आपको एक नंबर msg करता हूँ। उस नंबर पर फ़ोन करके बस इतना बता देना कि आप अवंतिका डायमंड्स से अद्वय सर की असिस्टेंट बोल रही हैं और आपको सर के लिए लंच ऑर्डर करना है। उसके बाद लंच खुद आप तक पहुँच जाएगा। मेन्यू भी उन्हें पहले से पता है। सर का लंच वहीं से आता है।"
आध्या ने "ओके" कहा तो रितेश ने फ़ोन कट कर दिया। कुछ ही सेकंड बाद उसके फ़ोन पर एक msg आया। उसने उस नंबर पर फ़ोन करके वही कह दिया जो उसने कहने को कहा था और इंतज़ार करने लगी। अद्वय के चक्कर में अभी तक उसने भी कुछ नहीं खाया था। भूख तो लगी थी, पर खाती कैसे? इसलिए अपने पेट को पकड़े बैठी रही।
कुछ देर बाद एक आदमी ने उसके कैबिन का डोर नॉक किया। आध्या ने मुँह फ़ुलाकर ही "Come in" कह दिया। इसके साथ ही वह आदमी अंदर आ गया और उसे देखते हुए बोला, "आप ही miss आध्या हैं?" आवाज़ सुनकर आध्या ने सामने देखा और हाँ में सर हिला दिया। उस आदमी ने अपने हाथ में पकड़े बैग्स को सामने रखते हुए कहा, "मैम, ये रहा आपका ऑर्डर।"
आध्या ने अब उठते हुए कहा, "इसकी पेमेंट..."
उसने इतना कहा ही था कि उस आदमी ने मुस्कुराकर कहा, "आप शायद नई आई हैं इसलिए नहीं जानतीं, हमें हर महीने सीधे अद्वय सर से ही पेमेंट मिलती है।"
इतना कहकर उसने जाने की इज़ाज़त मांगी तो आध्या ने हाँ भर दी। वह आदमी चला गया तो आध्या ने पैक की तरफ़ नज़रें घुमाईं और फिर खुद से ही बोली, "वाह, क्या ठाठ-बाठ है जनाब के! Five star होटल से लंच आया है। तभी उन्हें यहाँ का खाना अच्छा नहीं लगता। लगेगा भी कैसे? अब इतने अमीर हैं तो अपने पैसों का रौब तो झाड़ेंगे ही।
वरना बाकी सब भी तो यहाँ का खाना खाते हैं। अगर वो भी खा लेते तो पेट तो नहीं ख़राब हो जाता उनका, पर नहीं, उन्हें तो दिखाना है कि अमीर हैं तो आम लोगों जैसा खाना खाकर उनकी शान नहीं घट जाएगी। उन्हें तो Five star होटल का खाना ही अच्छा लगेगा। आख़िर वो लोग खाने में हीरे-मोती तो डालते होंगे।"
उसने मुँह बनाकर बैग्स उठाते हुए आगे कहा, "छोड़ तुझे इससे क्या? Five star होटल से खाना मँगवाएँ या फिर सीधे जन्नत से खान ऑर्डर करें। तेरा काम बस उनके लंच को उन तक पहुँचाना है, उसके बाद ही तुझे खाने को कुछ मिलेगा तो जल्दी अपना काम पूरा कर, ताकि अपनी पेट पूजा कर सके।"
वह जल्दी से उसके कैबिन की तरफ़ बढ़ गई। गेट नॉक किया तो अद्वय ने अंदर से "Come in" कह दिया। अंदर जाकर आध्या ने खाना खोलकर टेबल पर सेट कर दिया, फिर उसे देखते हुए बोली, "सर, लंच।"
अब जाकर अद्वय ने नज़र उठाकर उसको देखा, पर आध्या की नज़र उसकी तरफ़ नहीं थी, वह मुँह लटकाकर कभी घड़ी तो कभी अपने पेट को देख रही थी। अद्वय ने अब टाइम देखा तो डेढ़ बजने वाले थे। उसने अपनी चेयर से उठते हुए कहा, "अगर जाना हो तो जा सकती हो, बस 10 मिनट में लंच ख़त्म हो जाएगा, उसके बाद खाने की इज़ाज़त नहीं मिलेगी तुम्हें।"
उसकी बात सुनकर आध्या ने हैरानी से उसे देखा। अद्वय के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह तो खाना बैठ गया और आध्या उसे देखती ही रह गई। कुछ देर बाद एक बार फिर अद्वय की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "हर वक़्त मुझे घूरती ही रहती हो? खाने के जगह मुझे ही खाने का इरादा है क्या?"
उसकी आवाज़ सुनकर आध्या अपनी सोच से बाहर आ गई। अद्वय ने भौंह उठाकर उसे देखा तो आध्या भी भला क्यों पीछे रहती? उसने भी मुँह सिकोड़ते हुए कहा, "इतना भी घटिया टेस्ट नहीं मेरा और न ही इतने बुरे दिन आए हैं कि इंसानों को खाना पड़े। खैर, आपको इंसान कहना भी गलत होगा, क्योंकि आप तो जीते-जागते राक्षस हैं जो इंसान का भेष धरे बैठे हैं और मैं नॉनवेज नहीं खाया करती, इसलिए दूसरों को खाकर आप ही अपनी भूख मिटाइए, जैसे सुबह से मेरा दिमाग खाकर अपना काम चला रहे थे। मैं तो खाना खाकर ही खुश हूँ।"
उसकी बात सुनकर अद्वय उसे गुस्से में घूरने लगा तो बदले में आध्या ने भी उसे घूरा। अद्वय ने गुस्से में स्पून नीचे प्लेट में पटका और उसके तरफ़ बढ़ते हुए गुस्से में बोला, "बहुत ज़ुबान चलती है तुम्हारी, रुको अभी बताता हूँ तुम्हें।"
आध्या कहाँ डरने वाली थी? वह भी अकड़कर खड़ी हो गई। अद्वय उसके सामने आकर खड़ा हो गया, पर वह कुछ कहता उससे पहले ही लंच ओवर होने की ड्रिल बज उठी। आध्या तुरंत उसके साइड से बचकर भागते हुए टेबल की तरफ़ आई और सब वापस पैक करने लगी। अद्वय ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा, "ये क्या कर रही हो?"
आध्या ने उसका सवाल सुनकर उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं और सौम्य सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरते हुए बोली, "लंच ओवर हो गया सर। आप यहाँ के बॉस हैं, इम्प्लायज़ तो आपसे ही सीखेंगे ना, इसलिए आपको भी अपने ऑफिस के नियमों का पालन करना चाहिए। लंच के बाद भी अगर आपने लंच किया तो सब स्टाफ़ भी यही करने लगेंगे, फिर ऑफिस का माहौल बिगड़ जाएगा। इसलिए अब से आप भी उन नियमों का पालन करेंगे जो नियम आपने अपने इम्प्लायज़ के लिए बनाए हैं। लंच के बाद अगर हम कुछ नहीं खा सकते तो आपको भी अब भूखे ही रहना होगा।"
ये कहते हुए आध्या ने सब पैक करके बैग में डाला और वहाँ से चल दी। अद्वय तो मुँह खोले उसे देखता ही रह गया। जब दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, तब कहीं जाकर वह होश में लौटा और खुद से ही बोला, "आख़िर ये लड़की है क्या? समझती क्या है खुद को? मेरे ही ऑफिस में, मेरे ही कैबिन में आकर मुझ पर ही हुक्म चला रही है, मुझे ऑर्डर दे रही है! इसे तो मैं छोड़ूँगा नहीं।" ये कहते हुए उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
अब खाना तो वापस चला गया था। उसने अपने हाथ साफ़ किए और वापस काम में लग गया। वहीं आध्या अपने कैबिन में पहुँची और उन पैकेट को देखकर विजयी मुस्कान के साथ खुद से बोली, "अब आएगा मज़ा! बहुत हवा में उड़ रहे थे, पर मैं भी कहाँ कम हूँ? बड़े आए मुझ पर हुक्म चलाने वाले, अब रहिए भूखे, तब निकलेगी आपकी सारी अकड़।" उसने पियन को बुलाकर खाना आस-पास मौजूद किसी गरीब को देने को कह दिया। भूख तो लगी थी, पर वह वैसे ही काम में लग गई।
दोपहर से शाम हो गयी, आध्या अद्वय के सामने दोबारा गयी ही नही, अद्वय ने जो फाइल मंगवाई वो उसने पियून के हाथों भिजवा दी। अद्वय भी देख रहा था कि वो जानमुचकर उसके सामने आने से बच रही थी। शाम हुई तो सब धीरे धीरे घर जाने लगे, सात बज गए पर अद्वय अपने कैबिन से नही निकला, आध्या बहुत देर से इंतज़ार कर रही थी की वो निकले तो उसे भी घर जाने का मौका मिल जाए ।
आखिर मे जब उसको और कोई रास्ता नही दिखा तो वो उसके कैबिन के तरफ बढ़ गयी और गेट नॉक किया तो अंदर से come in की आवाज़ आ गयी। अद्वय तो फाइल और लैपटॉप मे इतना खोया हुआ था की उसे पता ही नही चला कब दोपहर से शाम हो गयी, आध्या अंदर आई तब भी उसने नजर उठाकर उसकी तरफ देखा तक नही, आध्या ने ही कहना शुरु किया " सर सात बज गए है, क्या मैं घर जा सकती हूँ? "
उसकी आवाज़ सुनकर अद्वय ने सर उठाकर उसे देखा फिर घडी को देखने के बाद वापिस नजर लैपटॉप पर गड़ाते हुए बोला "hmm "
आध्या अब भी वही खड़ी रही, कुछ देर बाद उसने फिरसे कहा "आप नही जाएंगे? "
" नही" एक बार फिर अद्वय ने काम मे खोए हुए ही कहा तो आध्या की आँखे बड़ी बड़ी हो गयी उसने हैरानी से कहा "सर सात बज चुके है, आपको घर नही जाना?"
अब अद्वय ने नजर उठाकर उसको आँखों मे देखते हुए कहा " इससे आपको कोई मतलब नही होना चाहिए, आपका काम खत्म हो गया तो आप जा सकती है।"
उसकी बात सुनकर आध्या का मुह सिकुड़ गया, उसने मुह बनाकर कहा "अच्छी बात है मुझे क्या ,रहिये सारी रात यहाँ, मैं तो जा रही हूँ। "
उसने मुह बनाकर उसे देखा तो अद्वय ने उसको घूरते हुए इशारा कर दिया "leave "
आध्या मुह सड़ाते हुए वहाँ से चली गयी, अपने कैबिन मे जाकर उसने जल्दी से अपना समान पैक किया और फिर अपना पर्स टांगते हुए वहाँ से निकल गयी, बस स्टैंड पर पहुँचकर बस का इंतज़ार करने लगी पर आधे घंटे से ऊपर होने के बाद भी बस का नामोनिशान तक नही दिख रहा था, सारा दिन काम करके थक गयी ऊपर से कुछ खाया भी नही था तो वो थककर स्टैंड पर लगी चेयर पर बैठ गयी।
कुछ देर बाद वहाँ से अद्वय की गाड़ी गुजरी तो गलती से अद्वय की नज़र उसपर चली गयी, गर्मी का मौसम था और पसीने से तर वो उस बेंच पर बैठे हुए परेशान सी बार बार अपनी घडी देख रही थी, जैसे ही अद्वय की गाड़ी वहाँ से गुजरी उसके साथ ही आध्या उठकर दौड़ पड़ी, अद्वय के मन मे जाने क्या आया उसने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कह दिया और उस तरफ देखने लगा जहाँ आध्या थी ।
उसके पीछे ही एक बस आ गयी थी , काफी देर बाद बस आई थी तो काफी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी, घुसते घुसते बस पूरी भर गयी तो ड्राइवर ने दरवाजा बंद कर दिया और बहुत कोशिश करने के बाद भी आध्या उसमें चढ़ नही पाई, उसने गुस्से से मुह फुलाकर अपने सामने से जाती बस को देखा फिर ऊपर देखते हुए खुदसे बोली
"किस बात का बदला ले रहे है मुझसे, पहले उस लार्ड गवर्नर से मिला दिया ,उसके चक्कर मे अभी तक भूखी हूँ, और जो उसने मेरा दिमाग खराब किया सो अलग, उपर से इतनी देर हो गयी है और जब इतने देर इंतज़ार करने के बाद बस आई तब भी मुझे उसमें जगह ही नही मिली, सारा दिन निकल गया मिष्टि से बात भी नही कर पाई ।"
यही सब सोचते हुए उसका मुह छोटा सा हो गया, उसने अपने वॉलेट निकालकर पैसे देखे फिर ऑटो रुकवाकर उसमे बैठकर निकल गयी, इसके बाद अद्वय ने भी ड्राइवर को गाड़ी चलाने को कह दिया और मन ही मन बोला
" क्या है ये लड़की, एक तरफ मुझसे भिड़ती रहती है , दूसरे तरफ इतनी मासूम बनती है। जिंदगी मे पहली बार कोई ऐसी लड़की मिली है जो बेधड़क डंके की चोट पर मुझसे लड़ती है,इतना भी डर नही की बॉस हूँ उसका अगर जॉब से निकाल दिया तो क्या करेगी? कह तो रही थी पैसे कमाने है इसलिए काम कर रही है और अभी भी पैसे बचाने के लिए बस का इंतज़ार कर रही थी, जानती थी कि देर हुई तो बस नही मिलेगी फिर भी बिना बताए ऑफिस से नही निकली।
पल मे इतनी बेपरवाह की बिना किसी चीज़ की परवाह किये कुछ भी बोल या कर जाए और अगले ही पल इतनी समझदार कि देखने वाला सोच मे पड़ जाए , इतनी अजीब लड़की आज तक नही मिली, मेरे सामने से खाना उठाकर ले गयी, ज़रा भी नही घबराई, मुझे भूखा रखा सो अलग और खुद भी कुछ नही खाया, सारा दिन काम करती रही। शायद सच मे काम को लेकर बहुत सीरियस है, पर सोचने वाली बात है कोई इंप्लॉय अपने बॉस से ऐसा बिहेव कैसे कर सकता है?
और उसे छोड़ खुदको देख, इतनी बदतमीज़ी की उसने पर तूने उसे कुछ कहा तक नही, जा रही थी न जॉब छोड़कर फिर भी इस सर दर्द को अपने सर पर बिठा लिया, आम लड़की तो नही है ये इतने गटस किसी मे नही की मुझसे उलझे, आज पहला ही दिन था और अपनी हरकतों से तुझे इतना इरिटेट् कर दिया आगे जाने क्या करेगी।
कुछ तो सोचना पड़ेगा, वरना ये तूफानमेल तेरी ज़िंदगी मे तहलका मचा देगी, एक तो इसकी कैंची जैसी ज़बान उसपर गिरने पड़ने की आदत, पता नही इसके घर मे कुछ चीज़ सबूत होगी भी या सब टूटा फूटा पड़ा होगा, और तो और बोलते बोलते जाने कौन सी दुनिया मे खो जाती है, किस आफत को रोक लिया है तूने, ये तेरा जीना हराम कर देगी। शांत सी ज़िंदगी थी मेरी जाने कहा से ये आध्या नाम का तूफान आ गया मेरे ऑफिस मे । "
बेचारा यही सोच रहा था, वही दूसरी तरफ आध्या बहुत सोचने के बाद ऑटो से वहाँ से निकल गयी, ऑटो मे बैठे हुए भी उसका दिल घबरा रहा था, सारा दिन हो गया था पर मिष्टि से बात तक नही कर पाई थी, इसलिए अब उसको बहुत बेचैनी हो रही थी, सारे रास्ते वो बस घडी मे टाइम देखती रही।
ऑटो उसके घर के आगे जाकर रुका तो आध्या ने जल्दी से पैसे दिये और घर के तरफ भाग गयी। उसने झट से बेल बजाई तो कुछ मिनट बाद ही दरवाजा खुल गया इसके साथ ही उसके पैरों से दो नन्हीं नन्हीं बाँहें लिपट गयी, एक मिठी सी आवाज़ उसके कानों मे पड़ी
" मम्मा "
ये मिष्टि ही थी जो उसके आने का जाने कब से इंतज़ार कर रही थी और जैसे ही बेल बजी भागते हुए गेट के तरफ पहुँच गयी थी, समीर ने जैसे ही दरवाजा खोला मिष्टि उसके पैरों से लिपट गयी, आध्या ने झुककर उसको अपनी गोद मे उठा लिया।अब तक जितनी बेचैन थी अब उतना ही ज्यादा रिलेक्स फील कर रही थी, सुबह से अपनी बेटी से दूर थी तो मिलते ही उसने उसके चेहरे को चूम लिया, फिर उसको अपने सीने से लगाते हुए बोली
" sorry बच्चा, मम्मा को टाइम ही नही मिला आपसे बात करने का। "
मिष्टि ने उसके गर्दन पर अपनी बाहों को लपेट दिया और उसके गाल पर किस कर दिया फिर उससे अलग होकर मुस्कुराकर बोली " It's okay मम्मा, सुपरमैन ने बेबी को बताया था आप काम कर रही थी इसलिए आपको टाइम नही मिला, मिष्टि बहुत समझदार है न इसलिए वो आपसे गुस्सा नही है और आज मिष्टि ने कोई शैतानी भी नही की, टीचर कह रही थी कि मम्मा थककर आए तो उन्हें परेशान नही करते, इसलिए मिष्टि भी आपको परेशान नही करेगी। "
उसकी समझदारी वाली बातें सुनकर आध्या के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी उसने उसके गाल को चूमकर मुस्कुराकर कहा "कितना समझदार है मेरा बच्चा, मम्मा आपसे बहुत प्यार करती है आप सबसे बेस्ट daughter है। "
समीर दोनों को देखकर मुस्कुरा रहा था, आध्या ने अपनी बात पूरी की इसके साथ ही समीर ने मिष्टि को लेते हुए कहा " बाहर से आई हो , फ्रेश होकर आ जाओ, हम खाना लगाते है।"
ये कहकर उसने मिष्टि के तरफ देखकर मुस्कुराकर कहा " चलिए हम डिनर लगाते है। "
मिष्टि ने झट से हामी भर दी तो समीर उसे लेकर किचन मे चला गया, आध्या भी पर्स लेकर अपने रूम के तरफ बढ़ गयी, सुबह से काम मे लगी थी तो थकी हुई थी, फ्रेश होने के बाद उसको कुछ बेहतर महसूस हुआ, बालों का अतरंगी सा जुड़ा बनाते हुए रूम से बाहर निकली ठीक उसी वक़्त मिष्टि भी वहाँ पहुँच गयी उसे देखते ही उसने सौम्य सी मुस्कान के साथ उसे देखते हुए कहा
" चलिए मम्मा, खाना लग गया। "
आध्या ने उसको अपनी गोद मे उठा लिया तो मिष्टि की मुस्कान बड़ी हो गयी। आध्या उसे लेकर डाइनिंग टेबल के पास पहुँची तो समीर ने उसकी चेयर को पीछे खींचते हुए मुस्कुराकर उसे देखा तो आध्या मुस्कुराकर चेयर पर बैठ गयी, समीर ने उसकी प्लेट लगाई फिर खुद अपनी चेयर पर बैठ गया।
आध्या ने खाने की खुशबू को सूंघते हुए अपनी आँखे बंद करते हुए कहा "वाओ क्या खुशबू आ रही है, मेरे पेट के चूहे तो अब बाहर ही निकल जाएंगे, बेचारे सुबह से भूखे है अब कही जाकर उनकी भूख शांत होगी। "
उसकी बात सुनकर समीर ने तुरंत ही सवाल किया "क्यों लंच नही किया था? "
आध्या ने मुह बिचकाकर उसे देखा फिर खाने को देखते हुए बोली "पहले पेट पूजा हो जाए उसके बाद बताती हूँ सब ।"
उसकी आँखों मे खाने को देखकर जो चमक आई थी, उससे ये समझना बहुत आसान था कि वो कितनी भूखी थी तो समीर ने भी बात को वही छोड़ दिया, आध्या ने हमेशा के तरह पहले मिष्टि को खाना खिलाया फिर खुदने खाना खाया, इन सबमे रात के दस बज गए थे तो मिष्टि नींद मे झूलने लगी थी, आध्या ने समीर को काम करने से मना कर दिया और मिष्टि को लेकर उसे अंदर भेज दिया।
समीर ने भी बहस नही की और अंदर जाकर उसको सुलाने लगा, आध्या भी बर्तन धोने मे लग गयी। कुछ देर मे मिष्टि सो गयी तो समीर ने उसको अच्छे से कवर किया फिर किचन के तरफ बढ़ गया, उसने किचन मे कदम रखा ठीक उसी वक़्त आध्या ने किचन साफ करने के बाद अपने हाथ मुह धोकर टॉवल से हाथ मुह पोंछते हुए किचन से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ा लिया तो एंट्रेंस पर लगभग समीर से टकराते टकराते बची।
आध्या ने किचन साफ़ करने के बाद हाथ-मुँह धोकर तौलिए से पोंछा और किचन से बाहर निकलने लगी। एंट्रेंस पर वह समीर से लगभग टकरा ही जाती, बाल-बाल बची।
आध्या हड़बड़ाहट में पीछे हटी और बोली, "क्या मुसीबत है यार! आज का दिन ही खराब है। जब देखो किसी न किसी से टकरा ही जाती हूँ। वहाँ वो नागफनी मेरे पीछे पड़ा था और अब वो नहीं मिला तो तुम ही मेरे पीछे लग गए। लगता है दिन पलटने वाले हैं मेरे। आज तक दिल टूटा था, अब तो लगता है हाथ-पैर भी ज़्यादा दिनों तक सलामत नहीं रहेंगे। एक तो वैसे ही उस अनाकोंडा ने मेरा दिमाग खराब किया हुआ था, अब यहाँ भी मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा। दुष्ट कहीं का! जबसे मेरी ज़िन्दगी में आया है, बस ठोकरें ही खा रही हूँ।"
वह उसके बारे में ही सोच रही थी और एक बार फिर सुबह वाले टकराने के हादसे को याद करते हुए खुद में ही बड़बड़ा रही थी। समीर आश्चर्य से उसे देख रहा था। कुछ देर बक-बक करने के बाद जब आध्या की नज़र समीर के हैरान-परेशान लुक्स पर गयी, तब कहीं जाकर उसे एहसास हुआ कि अद्वय का ख्याल उस पर इस कदर हावी हो गया था कि वह यहाँ भी उसके बारे में ही कह रही थी, जबकि वह तो यहाँ था ही नहीं। उसने अपना मुँह बंद किया और क्यूट सी शक्ल बनाकर बोली,
"सॉरी, वो…"
उतना ही कहा था कि समीर उसकी शक्ल देखकर ठहाका लगाकर हँस पड़ा। आध्या हैरान सी उसे देखती ही रह गयी। समीर ने उसके कन्फ़्यूज़्ड लुक्स देखे तो किसी तरह अपनी हँसी को काबू किया और मुस्कुराकर बोला,
"तुम भी न कमाल करती हो! किससे मिलकर आ रही हो आज जो यहाँ भी उसी का ख्याल आ रहा है तुम्हें? और ये कैसे नाम लेकर बुला रही हो उसे? इंसान है या सच में किसी अनाकोंडा से दोस्ती करके आ रही हो? या ऐसा भी हो सकता है कि अनाकोंडा से भिड़ कर आ रही हो।"
वह एक बार फिर हँसने लगा। उसकी बात सुनकर आध्या ने मुँह लटकाकर कहा,
"तुम्हें सब मज़ाक लग रहा है। पता है आज मेरे साथ क्या-क्या हुआ? वो अद्वय राठौर इंसान नहीं, अनाकोंडा है। हर वक़्त मुँह बाए खड़ा रहता है जैसे ही शिकार आए उसे अपने मुँह से दबोच ले… मुँह तो छोड़ो, उसकी तो आँखें ही बहुत हैं। ऐसे घूरता है जैसे आँखों से ही ज्वालामुखी निकालकर सामने वाले को भस्म कर दे। पहले ड्रैगंस हुआ करते थे न जो मुँह से आग निकालकर सामने पड़ी हर चीज़ को भस्म कर दिया करते थे, बिलकुल उन्हीं की प्रजाति का है। फ़र्क बस इतना है कि वो मुँह से आग बरसाते थे और इसके लिए तो वो चील सी आँखें ही बहुत हैं।
इतना गुरूर है कि अपने सामने वाले को कुछ समझता ही नहीं है। जाने किस बात की अकड़ है। यूँ ही बेफ़ालतू में हवा में उड़ता रहता है। सोचता है दुनिया में सभी लड़कियाँ वैली बैठी हैं तो उसके आगे-पीछे मँडराती रहेंगी और कुछ काम जो नहीं होगा उनके पास। जाने कौन से सुरख़ाब के पर लगे हुए हैं। ज़मीन पर तो कदम ही नहीं टिकते। गलती से जो कभी झुक गए तो शान नहीं कम हो जाएगी उन शहंशाह की। मेरा बस चले तो उसकी सारी अकड़ की चटनी बनाकर उसी के मुँह में ठूँस दूँ। हद होती है किसी बात की! बिना मतलब के मेरे ऊपर ही चढ़ने लगा।
पता नहीं किस बात की दुश्मनी निकाल रहे थे भगवान भी मुझसे जो मुझे उस कैक्टस से मिलवा दिया। पूरा दिन बर्बाद कर दिया और जो भूखे-मरी वो अलग। जाने कैसे कर पाऊँगी मैं वहाँ जॉब? यहाँ तो एक ही दिन में मेरा दम निकल गया है। अंकल तो अच्छे थे, फिर ये इतना घटिया कैसे निकल गया? बचपन में भी चिढ़ता था और आज भी वही करता है। कहीं चैन ही नहीं है इसे।"
उसकी बात सुनकर अब तक तो समीर मुस्कुरा रहा था और एन्जॉय कर रहा था, पर आखिरी की चंद लाइनें सुनकर उसकी मुस्कान फीकी पड़ गयी। आध्या तो एक बार फिर बिना ब्रेक की गाड़ी के तरह दौड़े जा रही थी। सब कहने के बाद वो चुप हुई तो समीर ने तुरंत ही उसके तरफ़ पानी का ग्लास बढ़ा दिया, क्योंकि आध्या बिना साँस लिए बस बोले ही जा रही थी और अब वो लम्बी-लम्बी साँस ले रही थी।
आध्या ने उसके हाथ से ग्लास ले लिया और पीने लगी तो समीर ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा,
"तुम भी न हद करती हो! कभी-कभी तो मुझे डाउट होता है कि मिष्टि तुम्हारी ही बेटी है न? लगता ही नहीं कि एक बेटी की माँ हो, वो भी इतनी समझदार बेटी की। इतनी भी क्या एक्साइटेड थी कि साँस तक लेना ज़रूरी नहीं समझा। आराम से भी तो बोल सकती थी न, पर नहीं तुम्हें तो एक बार शुरू होना है तो बस ट्रेन की तरह चलते ही जाना है, जाना है।"
उसने प्यार भरी झिड़की दी और नाराज़गी और गुस्से से उसे देखा। तो आध्या ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा,
"सॉरी।"
बस अब क्या होना था? उसकी प्यारी सी शक्ल देखकर समीर और गुस्सा कर ही नहीं पाया। उसने उसके गाल को खींचते हुए मुस्कुराकर कहा,
"नो डाउट मिष्टि अपनी मम्मा पर ही गयी है, अपनी मम्मा की ही परछाई है।"
उसकी बात सुनकर आध्या के एक्सप्रेशन बदल गए, चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गयी। उसने धीरे से कहा,
"तभी तो डरती हूँ, कहीं मेरे जैसा नसीब न लाए हो। जो मैंने सहा, उसका कतरा भर भी मैं उसकी ज़िन्दगी में नहीं देखना चाहती। बहुत कुछ सहा है मैंने और अब बस एक ही दुआ है उस रब से, मुझे सौ दुःख दे दे पर मेरी बच्ची को दुनिया की हर खुशी दे। उसकी ज़िन्दगी में दर्द का नामोनिशान न हो। उसे वो ज़िन्दगी दे सकूँ जिसके सपने कभी मेरी आँखों ने देखे थे। जो मुझे नहीं मिला वो हर खुशी उसके दामन में भरना चाहती हूँ।"
उसकी आँखों में नमी तैर गयी, गला भर आया। उसने निगाह फेरनी चाही पर समीर ने उसे रोक दिया। फिर उसके आँसुओं को पोंछते हुए मुस्कुराकर बोला,
"हम हैं न। हम उसे दुनिया की हर खुशी देंगे। उसकी ज़िन्दगी में कभी किसी की परछाई तक नहीं पड़ने देंगे। वो हमारी ज़िम्मेदारी है और हम मिलकर उसे वो ज़िन्दगी ज़रूर देंगे जिसका सपना हमने देखा है। जो तुम्हारे साथ हुआ वो इसलिए हुआ क्योंकि तुम्हारे साथ कोई अपना नहीं खड़ा था और जो थे वो तुमसे नहीं तुम्हारे पैसों से प्यार करते थे। पर मिष्टि तो बहुत लकी है, उसके पास तुम्हारी जैसी बहादुर माँ है जिसने सौ दुःख सहकर भी उसको बस खुशियाँ देने की कोशिश की है और फिर मैं तो हूँ ही उसका सुपरमैन। मानता हूँ बाप नहीं हूँ उसका, पर जान है वो मेरी। उसके जन्म लेने से लेकर इतनी बड़ी होते तक मैंने उसे अपनी बेटी की तरह पाला है। मेरी जादू की छड़ी से दुनिया की हर खुशी मिलेगी। हम देंगे उसे वो वो खुशियाँ।"
आध्या ने चाहत से उसके गले लगते हुए कहा,
"मैं बहुत लकी हूँ जो मुझे तुम्हारे जैसा दोस्त मिला। सही ही कहते हैं लोग अगर ज़िन्दगी में एक सच्चा दोस्त मिल जाए तो ज़िन्दगी बहुत आसान बन जाती है। बाकी चीजों का तो पता नहीं पर इस मामले में बहुत लकी हूँ। मेरे पास एक नहीं दो-दो दोस्त हैं, वही दोस्त जिन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। तुम्हारे और शिल्पा के साथ के बिना मैं कभी ये सब नहीं कर पाती।"
समीर बोला,
"बस अब चने की झाड़ पर चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। बहुत हो गयी तारीफ़। अब बताओ क्या हुआ है आज? जबसे आई हो, बहुत थकी-थकी लग रही हो और लंच क्यों नहीं किया था तुमने?"
उसके सवाल सुनकर आध्या ने मुँह बनाते हुए कहा,
"बस पूछो मत आज मेरे साथ क्या-क्या हुआ है। मुझे तो लगने लगा है कि मैं मुसीबतों के पास नहीं जाती बल्कि सारी मुसीबतें मुझे ढूँढते हुए मुझ तक पहुँच जाती हैं। उन भगवान जी को चैन नहीं है। मेरी शांत सी ज़िन्दगी उन्हें ज़रा भी नहीं पसंद। जब सोचती हूँ कि अब नॉर्मल होकर जी पाऊँगी, तभी वो एक नया तूफ़ान ले आते हैं मेरी ज़िन्दगी में। अब तक उन्होंने हद ही कर दी। मतलब किस जन्म का बदला निकाल रहे हैं? कम से कम मुझे ये ही बता दें तो मुझे संतोष हो जाए कि मेरी ही करनी की सज़ा भुगत रही हूँ, पर नहीं उन्हें तो बस मुझे तंग करना है, चाहे वजह और तरीका कुछ भी क्यों न हो।
अब तक क्या कम मुसीबत थी जो उस अद्वय नाम के शैतान को मेरे सर पर लाकर बिठा दिया है। इतना अकड़ू इंसान मैंने आज तक नहीं देखा। जाने क्या ही खुजली लगी रहती है। मुझे देखकर ही चिढ़ जाता है। पहली बार मिला हो तब की बात हो या आज की, बेमतलब के मुझसे भिड़ने में उसे पहले भी मज़ा आता था और आज भी वैसा ही है। अब तो पहले से भी ज़्यादा दुष्ट हो गया। कम से कम सौ रावण मरे होंगे तब कहीं जाकर उसके जितने बुरे इंसान को भगवान ने धरती पर भेजा होगा।
इतनी कड़वाहट भरी है उसमें कि उसे देखकर ही दम घुटने लगता है। वो सिंघ वाले सांड होते हैं न जो लाल कपड़ा देखते ही पागल हो जाता है, वैसे ही वो है। मुझे देखते ही पागल सांड के तरह मेरे पीछे पड़ जाता है। सच अगर वो मेरा बॉस नहीं होता तो मैं उसको जान से मार देती, पर अब तो ये भी नहीं कर सकती। वो राक्षस अब मेरे ही सर पर तांडव करेगा।"
उसकी बात सुनकर समीर मुस्कुराए जा रहा था। आध्या चुप हुई तो उसने तुरंत अपनी मुस्कान छुपा ली और गंभीर चेहरा बनाकर बोला,
"अब इतना बता दिया है तो हुआ क्या ये भी बता दो।"
आध्या ने अब आज जो हुआ सब उसे बता दिया और मुँह फुलाकर खड़ी हो गयी। तो समीर ने उसके कंधे को पकड़ते हुए मुस्कुराकर कहा,
"तुम क्यों उदास हो रही हो? अगर उसने तुम्हें परेशान किया तो तुम भी तो पीछे नहीं हटीं। उसकी हर बात का जवाब दिया। जितना उसने तुम्हें परेशान नहीं किया होगा उससे ज़्यादा तुमने उसकी नाक में दम कर दिया होगा। और तुम्हारी बातों से तो मुझे ज़रा भी नहीं लग रहा कि उसे तुम याद भी हो तो वो पहले का बदला नहीं ले रहा तुमसे, इसलिए तुम भी बस अपने काम से काम करो।
ये जॉब तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है और तुम वहाँ काम करने जाती हो तो उसी पर अपना ध्यान लगाओ। तुम्हें ज्वैलरी डिज़ाइनर बनना है और उस जगह से अच्छी जगह और कोई नहीं हो सकती तुम्हारे लिए। इसलिए बस अपने काम पर फ़ोकस करो और अगर वो तुम्हें परेशान करता है तो हमारी आध्या किसी से कम थोड़े न हैं। वो एक करे तो तुम उसे चार गुना परेशान करना।"
उसने आध्या को देखते हुए अपनी दाई आँख दबा दी और मुस्कुराने लगा। तो आध्या ने खुशी से चहकते हुए उसको हाई-फ़ाई दिया और दोनों ही हँस पड़े। समीर उसकी निष्कल हँसी को देख रहा था। मिष्टि के साथ वो खुश रहती ही थी पर इतना फ़्री नहीं रह पाती थी, जितनी आज थी। कुछ देर हँसने के बाद उसको आराम करने का कहकर समीर वहाँ से चला गया तो आध्या भी कमरे में चली गयी। मिष्टि गहरी नींद में सो रही थी। आध्या उसके बगल में लेट गयी और प्यार से उसके माथे को चूमने के बाद उसे अपनी बाहों में भरकर अपनी आँखें बंद कर ली।
अद्वय आध्या के बारे में सोचते हुए ही घर पहुँच गया। ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला। अपनी टाई ढीली करते हुए, अद्वय घर के दरवाज़े की ओर बढ़ गया। अंदर घुसते ही नौकर उसके पास आ गया। अद्वय ने लैपटॉप बैग उसे देते हुए पूछा, "दादी कहाँ हैं?"
उस नौकर ने, जिसका नाम राजू था, बैग पकड़ते हुए कहा, "अपने कमरे में हैं। आप फ्रेश हो आइए, हम उन्हें आपके आने की खबर दे देते हैं।"
अद्वय ने कोट उतारते हुए कहा, "It's okay, मैं खुद ही उनसे मिल लेता हूँ। बस एक कड़क कॉफ़ी भिजवा देना।"
सर्वेंट ने सिर हिलाया। अद्वय टाई खोलते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। अपने कमरे में जाने के बजाय वह सीधे दादी के कमरे में चला गया। दरवाज़ा खुला हुआ था। अंदर कदम रखते हुए उसने कहा, "लीजिये दादी, बहुत मौज कर ली आपने मेरी एब्सेंस में। अब आपकी आज़ादी के दि..." इसके आगे वह कुछ कह नहीं पाया। पहले उसके होंठ हल्के से मुस्कुरा रहे थे, पर अंदर का नज़ारा देखते ही उसकी भौंहें सिकुड़ गईं, माथे पर चिंता की रेखाएँ खिंच गईं और वह घबराकर उनके पास चला गया। उनके पास बैठते हुए उसने उनकी हथेली अपनी हथेलियों में थामते हुए चिंतित स्वर में कहा, "दादी, आप ठीक तो हैं?"
उसकी आवाज़ सुनकर दादी ने आँखें खोलीं। उसका परेशान चेहरा देखकर वे मुस्कुरा उठीं। उन्होंने प्यार से उसके गाल को छूते हुए कहा, "Hmm, हमें क्या होना है? हम तो बिलकुल ठीक हैं और अब तो हमारे जिगर का टुकड़ा भी हमारे पास है तो हम और भी ज़्यादा ठीक हो गए हैं।"
वे मुस्कुराकर तो बोलीं, पर उनकी बात सुनकर अद्वय के भावों में कोई खास बदलाव नहीं आया। उसने परेशान होकर कहा, "ये क्या हाल बनाया हुआ है आपने? जब गया था तब तो बिल्कुल ठीक थीं, फिर तीन ही दिन में आपने अपना ये कैसा हाल बना लिया है? अपना ध्यान क्यों नहीं रखती हैं आप? देखिए कितनी कमज़ोर लग रही हैं।"
"क्या करें? बूढ़े हो गए हैं। आपके पास तो हमारे लिए वक़्त होता नहीं और आपके अलावा और कोई है नहीं तो कौन हमारी ख्याल रखता?" उन्होंने फिर मुस्कुराकर कहा। अद्वय ने नाराज़गी से कहा, "क्यों? इतने नौकर क्या देखने के लिए हैं? अगर वे सब मिलकर भी आपका ध्यान नहीं रख सकते तो उनके लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है।"
वह हल्के गुस्से से बोला और खड़ा ही हुआ था कि दादी ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "इसमें उन सब का कोई दोष नहीं है। वे तो हमारा बहुत ध्यान रखते हैं, पर हमारी गिरती सेहत की वजह ऐसी नहीं जिसे वे ठीक कर सकें।"
अद्वय उनकी ओर मुड़ गया और उनकी हथेलियाँ थामते हुए बोला, "मुझे बताइए ऐसी कौन सी बात है जो आपको परेशान कर रही है? मैं वह हर वजह ख़त्म कर दूँगा जिसके कारण मेरी दादी के चेहरे पर एक शिकन तक आए।"
वह कड़क आवाज़ में बोला, जुनून उसकी आँखों में दिख रहा था। दादी ने शांति से कहा, "हमारी परेशानी की वजह आप हैं। आपके शादी ना करने की ज़िद की वजह से हम परेशान हैं। इतने नौकर रखने का कोई फ़ायदा नहीं है, हमें इन नौकरों की नहीं, अपने परिवार की ज़रूरत है। आपके पास तो वक़्त होता नहीं है और हम यहाँ अकेले पड़ जाते हैं।
अगर आप शादी करते हैं तो फिर हमें भी साथ मिल जाएगा और आपकी गृहस्थी बसते देख हम भी निश्चिंत हो सकेंगे। फिर हमारी तबियत भी खुद ही ठीक हो जाएगी। जब तक आपका घर नहीं बस जाता और हम आपको सुखी नहीं देख लेते, यह चिंता हमसे दूर नहीं हो सकती और जब हम चिंतित रहेंगे तो स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ेगा ही।"
उनकी बातों में दर्द और उदासी झलक रही थी। अद्वय कुछ पल अवाक सा उन्हें देखता रहा। फिर उनके उदास और बीमार से चेहरे को देखकर उसने एक लंबी साँस छोड़ी और उनके हाथ को थामकर आराम से बोला, "आप जानती हैं आपके अलावा मेरा कोई नहीं। दिन-रात मेहनत करता हूँ सिर्फ़ डैड की कंपनी को दुनिया की नंबर वन कंपनी बनाने के लिए। जो कर रहा हूँ, आपको हर सुख-सुविधा देने के लिए ही कर रहा हूँ। अगर मेरे शादी करने से आप खुश होंगी और आपकी तबियत ठीक होती है तो ठीक है। ढूँढ लीजिए लड़की, पर शादी के लिए लड़की मेरी मर्ज़ी की चुनी जाएगी। आप मुझ पर दबाव नहीं डालेंगी। बस मुझे फ़ोटो दिखाएँगी, अगर मुझे ठीक लगी तभी बात आगे बढ़ेगी।"
उनकी बात सुनकर दादी का चेहरा खिल उठा। उन्होंने झट से अपने तकिए के नीचे से कुछ फ़ोटोग्राफ़ निकालकर उसके हाथ में थमाते हुए कहा, "बिलकुल, हम आप पर दबाव नहीं डालेंगे। आप देख लीजिए और जो भी पसंद आए हमें बता दीजिए, हम आपसे उन्हें मिलवाने का इंतज़ाम कर देंगे। अच्छे से जान लीजिएगा और अगर पसंद आए तो ही हाँ कीजिएगा। हम भी नहीं चाहते कि हमारे दबाव में आकर आप बेमन से किसी रिश्ते में बंध जाएँ, क्योंकि शादी ज़िन्दगी भर का रिश्ता होता है और बिन इच्छा के किसी रिश्ते में बंधना कभी खुशियाँ नहीं लाता और हम आपको खुश देखना चाहते हैं, पर आप भी हमारी शराफ़त का नाजायज़ फ़ायदा उठाने की कोशिश मत कीजिएगा।"
यह कहते हुए उन्होंने घूरकर उसे देखा। अद्वय हैरानी से आँखें बड़ी-बड़ी करके कभी अपनी हथेली पर रखी तस्वीरों को तो कभी दादी के चेहरे को देख रहा था। कुछ वक़्त पहले तक तो वे बीमार सी लग रही थीं, पर उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वे कभी बीमार थीं भी। दादी के घूरने पर अद्वय के भाव बदल गए। उसने तीखी नज़रों से उन्हें घूरते हुए कहा, "तो यह सब नाटक था? मेरे प्यार का नाजायज़ फ़ायदा उठाया आपने ताकि मुझसे अपनी बात मनवा सकें।"
उनकी बात सुनकर दादी मुस्कुराकर बोलीं, "कुछ ऐसा ही समझ लीजिए, पर इसमें गलती आपकी है। आपने अपनी ज़िद से हमें यह करने को मजबूर कर दिया था। ऐसे तो हमारी कोई बात सुनते नहीं थे तो हमें छोटा सा नाटक करना पड़ा, पर अब आप अपनी बात से पलटने की सोचिएगा भी मत, वरना आज तो नाटक किया था, आगे यह सच भी हो सकता है। भूलिएगा नहीं, दादी हैं हम आपकी। आप डाल-डाल तो हम पात-पात। हमसे जीतना आपके लिए असंभव है। आख़िर आपका यह ज़िद्दीपन आपको हमसे ही विरासत में मिला है तो हम बहुत अच्छे से जानते हैं कि कैसे आपके हठ को तोड़ना है।"
वे शरारती मुस्कान के साथ अपनी बात पूरी कर मुस्कुराकर उन्हें देखने लगीं। अद्वय उठकर खड़ा हुआ और कमरे से बाहर की ओर बढ़ते हुए कुछ ऐसा कहा कि पल भर में दादी के मुस्कुराते लब सिमट गए।
अद्वय ने कहा, "अगर आप दादी हैं तो मैं भी आपका पोता हूँ। हारने वाला तो मैं भी नहीं हूँ, पर इस बार मैं आपसे लड़ना ही नहीं चाहता, क्योंकि आपकी सेहत के साथ मैं किसी तरह का रिस्क नहीं ले सकता। मुझे मजबूर करने के लिए आप खुद को तकलीफ़ देंगी और ये मैं होने नहीं दे सकता।"
"आपको मेरी शादी ही करवानी है ना तो ठीक, ढूँढ लीजिए लड़की। अगर कोई पसंद आ गई तो आपको आपकी बहू मिल जाएगी और अगर मुझे कोई पसंद ही नहीं आई तो मैं कुछ नहीं कर सकता। हाँ, इतना वादा करता हूँ कि बेवजह आपकी पसंद की लड़कियों में खामियाँ नहीं निकालूँगा। अगर कोई दिल में उतर सकी तो खुशी-खुशी उसे अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर लूँगा। अब आप नीचे चलिए, मैं चेंज करके आता हूँ।"
इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया। दादी खुश होकर नीचे चली गईं। अद्वय अपने कमरे में चला गया। अलमारी से कपड़े निकाले और घड़ी उतारते हुए खुद से ही बोला, "आज का दिन ही खराब है। वहाँ वो पागल बेवकूफ़ लड़की ने मेरा दिमाग खराब किया और अब दादी बेवजह की ज़िद पकड़े बैठी हैं। समझती क्यों नहीं कि ऐसी लड़की कोई बनी ही नहीं है जो मेरे दिल तक पहुँच सके, तो मैं यूँ ही किसी से शादी करके अपनी और उसकी ज़िन्दगी तो बर्बाद नहीं कर सकता।"
मॉम-डैड एक-दूसरे से प्यार करते थे, तभी तो जितने वक़्त भी दुनिया में रहे, साथ और खुश रहे। पर अगर कोई रिश्ता बिना प्यार के बनाया जाए तो वो खुशी नहीं, तकलीफ़ देता है। पर अब उन्हें मना करके मैं उन्हें उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ करने की वजह नहीं दे सकता। देखते हैं क्या सोचा है भगवान ने मेरे लिए।
उसने सब अपनी किस्मत पर छोड़ दिया। अपने मॉम-डैड के प्यार को उसने बचपन से देखा था, इसलिए उसी निस्वार्थ प्यार की तलाश थी उसे। रिश्तों की इज़्ज़त करता था, इसलिए किसी के साथ नाइंसाफ़ी नहीं करना चाहता था, पर अपनी दादी को खोने से भी डरता था, इसलिए उसने सब किस्मत पर छोड़ दिया। देर हो गई थी तो उसने हर्ष को आज के लिए मना कर दिया।
कुछ देर बाद नीचे गया तो दादी के चेहरे पर छाई मुस्कान देखकर उसने भी कुछ नहीं कहा। शांति से खाना खाकर अपने स्टडी रूम में चला गया। आधी रात तक काम करता रहा और फिर जाकर बिस्तर पर लेट गया। कई दिनों बाद आज सुकून से सोया, क्योंकि आज वह अपनी दादी के पास था। यहाँ नहीं रहता था तो दादी की चिंता में सुकून से सो ही नहीं पाता था।
अगली सुबह रोज़ की तरह जॉगिंग और एक्सरसाइज़ के बाद तैयार होकर डाइनिंग एरिया में पहुँचा तो उसके बैठते ही दादी ने उसके आगे एक बार फिर लड़कियों की ढेर सारी तस्वीरें रख दीं और मुस्कुराकर बोलीं, "चलिए, अब जब आपने शादी के लिए हाँ कह ही दिया है तो जल्दी से तस्वीरें देखकर बताइए इनमें से कोई पसंद है या और लड़कियों को ढूँढने की ज़रूरत है? अगर आपको पहले से कोई पसंद हो तो बता दीजिए, हम उन्हीं को अपने घर की बहू बना लेंगे।"
उनकी बात सुनकर अद्वय ने फ़ोटोज़ को साइड करते हुए कहा, "सबसे पहली बात तो ये कि अभी मेरे पास इन बकवास सी चीजों के लिए वक़्त नहीं है। मुझे जल्दी से ऑफिस जाना है और दूसरी बात ये कि आप इसमें मुझे तो उलझाने की कोशिश ही मत कीजिए, क्योंकि मुझे इन सब में कोई इंटरेस्ट नहीं है। ये सरदर्द आप ही झेलिए। खुद देखिए और जो आपको पसंद आ जाए उसे फ़ाइनल करने के बाद ही मुझसे मिलने को कहिएगा और ये ध्यान रखिएगा कि लड़की ऐसी हो जो आपकी इज़्ज़त करे। अब ये सब बाद में करिएगा, पहले खाना खा लीजिए, मुझे देर हो रही है।"
उसकी बात सुनकर जहाँ एक तरफ़ दादी गुस्सा थीं, वहीँ उसके प्यार और उनके प्रति सम्मान को देखते हुए उन्हें अपने खून और परवरिश पर गर्व महसूस हो रहा था। अद्वय ने वहाँ से बचकर भागने के लिए जल्दी से नाश्ता किया, फिर अपना लैपटॉप और फ़ाइलें लेकर घर से निकल गया।
दादी भी उन तस्वीरों को देखते हुए अपने पोते के लिए एक सुन्दर, सुशील और संस्कारी लड़की को ढूँढने में लग गईं।
दूसरी तरफ़ आध्या रोज़ की तरह जल्दी उठी। सुबह से काम में लगी रही। समीर और उसके लिए ये थोड़ा मुश्किल होता था, घर के काम के साथ मिष्टि को भी संभालना होता था और फिर ऑफिस के लिए भी वक़्त पर निकलना पड़ता था, पर इतने वक़्त से साथ रहने की वजह से उन्हें इसकी आदत हो गई थी।
समीर ने खाना बनाया, तब तक आध्या ने साफ़-सफ़ाई का काम निपटा लिया। उसके बाद दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए। आध्या ने मिष्टि को भी तैयार किया और खुद भी तैयार होने लगी। कुछ देर में तीनों ने नाश्ता किया, फिर घर से निकल गए। समीर दोनों को छोड़ते हुए अपने ऑफिस चला गया।
सुबह से जल्दी-जल्दी करते हुए अब जाकर आध्या को चैन मिला। अभी ऑफिस का टाइम नहीं हुआ था, वह पूरे पन्द्रह मिनट पहले वहाँ पहुँच गई थी और अब जाकर रिलैक्स हुई थी। उसने अपने बालों को ठीक करते हुए ऑफिस के मेन गेट की तरफ़ कदम बढ़ाते हुए खुद से कहा, "बच गई आध्या! अगर वह अजगर तुझसे पहले आ जाता या तू ज़रा भी लेट हो जाती तो सुबह-सुबह ही उसका भाषण सुनना पड़ता। दिमाग खराब होता सो अलग, दिन भी खराब हो जाता।"
"अभी तो ऑफिस का टाइम भी नहीं हुआ, चल अब कुछ देर आराम से बैठियों, वरना उस नागफ़नी के आने के बाद तो वह तुझे शांति से रहने देने से रहा।" अद्वय को कोसते हुए वह मेन गेट से होते हुए लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ गई, पर जैसे ही उसने लिफ़्ट के अंदर कदम रखा, इसके साथ ही किसी और ने भी अंदर कदम रख दिया।
आध्या ने नज़र घुमाकर देखा तो उसके ठीक पीछे अद्वय खड़ा था। उसके पीछे आज भी उसके बॉडीगार्ड खड़े थे। गोरे बदन पर काले रंग का पहरा था। व्हाइट शर्ट और ब्लैक थ्री पीस सूट पहने, अपने गहरे काली आँखों पर शेड्स चढ़ाए हुए वह काफ़ी आकर्षक लग रहा था, पर उसका चेहरा एकदम सख्त था।
उसे देखकर आध्या ने मन ही मन कुढ़ते हुए कहा, "लो, नाम लिया और शैतान हाज़िर! पता नहीं भगवान ने उन्हें इंसान बना ही कैसे दिया? हमेशा ऐसा सड़ा हुआ चेहरा बनाकर रखते हैं कि देखने वाले को भी उल्टी आ जाए। नाक तो देखो, गुस्से से ऐसे फूली हुई है जैसे सुबह-सुबह किसी ने झाड़ू और जूतों से इनकी आरती उतार दी हो।"
"हमेशा ऐसे सीरियस लुक बनाए रखते हैं, पता नहीं इनके परिवार का क्या हाल होगा? बेचारे तो समझ ही नहीं पाते होंगे कि ये खुश है या नाराज़। नहीं, एक्चुअली वह बेचारे अपना सर पीटते होंगे कि किस संगदिल अकडू आदमी से पाला पड़ गया है उनका, जिसे हँसना ही नहीं आता।"
"कभी थोड़ा मुस्कुरा लेंगे तो क्या सरकार इनसे टैक्स भरने को कह देगी? जो मुँह सड़ाए घूमते रहते हैं। इतना बुरा तो मेरा भी मूड नहीं होता, जबकि मेरी ज़िन्दगी में तो रोज़ एक नई प्रॉब्लम मुँह बाए मेरा इंतज़ार करती रहती है, फिर भी मैं कितनी खुश रहती हूँ, पर ये तो अकडू है ना! जब तक अपनी अकड़ नहीं दिखाएँगे तो दिन कैसे कटेगा उनका?"
वह मन ही मन उसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जा रही थी। अचानक ही अद्वय ने अपनी गहरी काली आँखों को उसकी तरफ़ घुमाया और तीखी नज़रों से घूरकर उसको देखा तो आध्या की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई।
हालाँकि उसने अब भी चश्मा लगाए हुए थे, पर फिर भी उसकी आँखों की तपिश को आध्या महसूस कर पा रही थी। घबराहट के मारे उसके माथे पर पसीने की बूँदें झिलमिलाने लगीं। उसने झट से उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं।
अद्वय की नज़रों से वह घबरा गई थी। उसने अपने माथे पर से पसीने को साफ़ करते हुए खुद से कहा, "हद है! यह ज्वालामुखी तो तेरे पीछे ही पड़ गया है। कैसे घूर रहा था, जैसे कच्चा ही निगल जाएगा! एनाकोंडा कहीं का। जब देखो तब अपनी डरावनी आँखों से मुझे घूरने लगता है। ऐसा लगता है जैसे अजगर की तरह मुझे साबुत ही निगल जाएगा।"
"आध्या बेटा, दूर रहियो इससे! मुझे तो शक है यह इंसान नहीं है, ज़रूर राक्षस है। हरकतें तो देखो, कहीं से इंसान लगता है क्या? ऊपर से जब घूर-घूरकर देखता है तो कितना डरावना लगता है। उसकी गहरी काली आँखें तो उसकी और भी भयानक बना देती हैं।"
उसने दोबारा गलती से भी उसकी तरफ़ नहीं देखा, पर उसकी नज़रों को खुद पर महसूस कर रही थी जिससे उसकी जान हलक में अटकी हुई थी। तीसरे फ्लोर पर लिफ़्ट रुकी तो लिफ़्ट के खुलते ही वह बाहर भाग गई। उसे ऐसे भागता देख अद्वय की भौंहें सिकुड़ गईं। उसने अपनी आँखों को छोटी करते हुए उसे घूरा, फिर बाहर निकल गया। आध्या तो सीधे अपने केबिन में जाकर रुकी और अपने सीने पर अपनी हथेली रखकर गहरी साँस लेते हुए बोली, "बच गई।"
बस यही शब्द निकले उसके मुँह से। उसने खुद को रिलैक्स किया और फिर अपनी कुर्सी पर बैठकर काम करने लगी।
आध्या अपना काम करने में लग गई थी। करीब पन्द्रह मिनट बाद उसके कैबिन का दरवाज़ा खुला, और उसकी नज़रें गेट की तरफ़ घूम गईं। सामने एक लड़का खड़ा था। आध्या को देखकर उसने मुस्कुराकर कहा, "Good morning."
आध्या ने भी औपचारिक मुस्कान के साथ उसे "Good morning" कहा। तब उस लड़के ने उसके आगे कुछ फ़ाइलें बढ़ाते हुए कहा, "ये फ़ाइलें पहले एक बार चेक कर लीजिए, फिर सर से जितनी जल्दी हो सके उनके साइन करवा के ले आइए। आगे का काम शुरू करना है।"
आध्या ने फ़ाइलें लेते हुए कहा, "लंच तक दे दूँगी।"
लड़का हाँ भरते हुए चला गया। आध्या ने सब काम छोड़कर उन फ़ाइलों में लग गई। वे अकाउंट्स की फ़ाइलें थीं। आध्या ने बड़ी बारीकी से एक-एक चीज़ चेक की। फिर अपना फ़ोन उठाते हुए वह कैबिन से बाहर निकल गई। उसने अद्वय के कैबिन के दरवाज़े पर नॉक किया। अंदर से "Come in" की आवाज़ आई।
आध्या ने गेट खोला और अंदर कदम रखा। उसकी नज़र अद्वय पर पड़ी जो काफ़ी सीरियस लग रहा था और शायद लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। आध्या उसके टेबल के पास आ गई और फ़ाइल उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोली, "Good morning sir, ये अकाउंट्स की फ़ाइल है। मैंने चेक किया है। आप भी एक बार चेक करके साइन कर दीजिए। मुझे लंच तक फ़ाइल वापस करनी है।"
उसने बड़े आराम से अपनी बात कही। आवाज़ सुनकर अद्वय ने नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखा। वह भी काफ़ी सीरियस लग रही थी। अद्वय ने फ़ाइल लेते हुए, उस पर से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा, "मिस्टर जैसन का कन्साइनमेंट कहाँ तक पहुँचा है?"
आध्या ने तुरंत जवाब दिया, "पैकिंग हो गई है, रीचेक भी हो गया है। निकलने के लिए तैयार है। कुछ एक घंटे में हांगकांग के लिए निकल जाएगा। टाइम पर पहुँच भी जाएगा। बात हुई थी मेरी Mr. भावेश से।"
अद्वय ने फ़ाइल देखते हुए कहा, "Hmm, और नए कलेक्शन का काम कहाँ तक पहुँचा?"
"काम चल रहा है। हमारे डिज़ाइनर्स काम में लगे हुए हैं। जहाँ तक मैंने देखा है, उनकी कोशिश है कि इस बार का ब्राइडल कलेक्शन आज तक का बेस्ट कलेक्शन हो। अप्रैल में होने वाले फ़ोटो शूट से पहले सब तैयार हो जाएगा। मुझे इस बारे में आपसे कुछ कहना भी था।"
आध्या इतना कहकर चुप हो गई और उसकी परमिशन का इंतज़ार करने लगी।
अद्वय ने अब उसकी तरफ़ नज़रें उठाते हुए कहा, "कहो।"
"वो सर, जो मेन डिज़ाइनर हैं, उनका कहना था कि वो इस बार कुछ अलग करना चाहते हैं। ब्राइडल कलेक्शन तो हर बार होता है, इस बार वो उसमें लड़की के हर रूप को दिखाना चाहते हैं। मतलब सिर्फ़ दुल्हन के लिए नहीं, बल्कि एक माँ, बेटी, बहन और सभी रिश्ते जिन्हें औरत एक धागे में पिरोकर रखती है, उन सभी रूपों के लिए कुछ खास तैयार करना चाहते हैं। उनकी एडवाइस के बारे में बहुत सोचने के बाद मैंने आपसे बात करने की सोची है।
अगर हम उनके आइडिया पर काम करते हैं तो हमें ज़्यादा प्रॉफिट होगा और मार्केट में हमारे ब्रांड की एक अच्छी इमेज भी उभरकर आएगी। औरत का हर रूप खास होता है। अगर उसे हम अच्छे से उजागर कर पाएँ तो लोगों के दिल पर हमारा ब्रांड गहरी छाप छोड़कर जाएगा और इससे मार्केट में हमारा ब्रांड और भी फ़ेमस हो जाएगा। फिर ये कॉन्सेप्ट भी नया है तो लोगों को अट्रैक्ट करेगा। हमारे कम्पटीटर्स इसके बारे में कभी सोचेंगे भी नहीं, तो इसका फ़ायदा भी हमें होगा।"
आध्या ने बड़े ही सहजता से अपनी बात उसके सामने रख दी। अद्वय बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहा था। आध्या चुप हुई और उसे देखने लगी। अद्वय ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, "आइडिया काफ़ी अच्छा और यूनिक है। हमारे डिज़ाइनर्स से कहो कि इस पर काम शुरू कर दें और जल्दी से जल्दी मुझे उनके डिज़ाइन मिल जाने चाहिए। जैसा उन्होंने कहा है, अगर वो अपने डिज़ाइनों के ज़रिए उसे सामने ला सकें, तभी फ़ाइनल परमिशन मिलेगी।"
उसकी बात सुनकर आध्या के लब मुस्कुरा उठे। उसने झट से हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "Okay sir, मैं बात कर लूँगी।"
अद्वय ने कल से अब तक में पहली बार उसको मुस्कुराते हुए देखा था। वह बेहद हसीन थी, इस बात में कोई दोराहे नहीं थी, पर मुस्कुराते हुए उसकी खूबसूरती और भी उभरकर सामने आ रही थी। अद्वय कुछ पल के लिए उसकी मुस्कुराहट में खो गया, पर जल्दी ही वो संभल गया। उसने आध्या पर से अपनी नज़रें हटा लीं और फ़ाइल पर निगाहें गड़ाते हुए बोला, "तुमने फ़ाइल चेक की है?"
"जी, दो बार क्रॉस चेक करने के बाद ही आपके पास लाई हूँ। फिर भी आप एक बार चेक कर लीजिए," आध्या ने तुरंत जवाब दिया। अद्वय ने अब उस फ़ाइल पर साइन करने लगा। आध्या ने उसे बिना पढ़े साइन करते देखा तो हैरानी से बोली, "ये क्या कर रहे हैं आप? पढ़ तो लीजिए।"
अद्वय ने नज़र उठाकर उसको देखा और दृढ़ता से बोला, "इसकी ज़रूरत नहीं है। तुमने चेक कर लिया, उसके बाद लेकर आई हो, मतलब सब ठीक है।"
उसकी बात सुनकर आध्या का मुँह खुला का खुला रह गया। उसने बेहद हैरानी से कहा, "पर मुझे आए हुए बस चार-पाँच दिन ही हुए हैं। आप ऐसे मुझ पर इतना विश्वास कैसे कर सकते हैं? एक बार चेक कर लेते, क्या पता कुछ गड़बड़ होती।"
"मैंने कहा ना, इसकी ज़रूरत नहीं है। अपने इम्प्लायज़ पर भरोसा होना चाहिए हर इंसान को और तुमने ये भरोसा कमाया है। अगर रितेश ने इतने कैंडिडेट के बीच तुम्हें चुना है, मतलब तुम इस पोस्ट और इस भरोसे के लायक हो।" अद्वय ने एक बार अपनी बात दृढ़ता से उसके सामने रख दी।
आध्या उसके चुप होते ही कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोलना चाहती थी, पर वो कुछ कह पाती, उससे पहले ही अद्वय ने कड़क लहज़े में कहा, "बस, आगे कोई बहस नहीं चाहिए मुझे। तीन दिन बाद Mr. मेहरा के साथ मीटिंग है। वो डील एक्सटैंड करना चाहते हैं तो पिछले पाँच साल में उनके साथ जो भी डील्स हुई हैं, उनकी डिटेल्ड रिपोर्ट चाहिए मुझे। बेसमेंट में तुम्हें पुरानी फ़ाइलें और डाटा मिल जाएगा। दो दिन का वक़्त है तुम्हारे पास। परसों शाम तक रिपोर्ट मेरे डेस्क तक पहुँच जानी चाहिए। अब तुम यहाँ से जा सकती हो।"
उसने अपनी बात सख्ती से उसके सामने रखी और फिर फ़ोन लगाकर किसी से बात करने लगा। आध्या अब भी वहीं खड़ी उसे हैरानी से देख रही थी। अद्वय ने बात करते हुए उसकी तरफ़ निगाह उठाई और उसे वहीं खड़ा देखकर, उसे घूरते हुए अपनी भौंह उचकाकर इशारों में ही सवाल किया और जाने का इशारा कर दिया। आध्या का मुँह बन गया। वह झट से पलट गई और बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाते हुए मन में बड़बड़ाने लगी।