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Demon king's angle wifey

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यह कहानी है प्रकृति राजवंश और रूद्र सिंह राठौर की प्रकृति जो कि एक प्यारी, मासूम, नेक दिल है एक दैविक है जिसके पास देवीय शक्तियाँ है पर वो है एक असुर साम्राज्य की महारानी और असूर सम्राट की पत्नी लेकिन अपने प्यार  अपने पति  से दूर होकर  एक उदेश्य के क...

Total Chapters (6)

Page 1 of 1

  • 1. Demon king's angle wifey - Chapter 1

    Words: 2422

    Estimated Reading Time: 15 min

    मुंबई शहर

    एक सुनसान जंगल का एरिया

    सुबह होने वाली थी पर हल्का अंधेरा अभी भी था । एक औरत जिसकी उम्र करीब 31-32 साल होगी उस जंगल मे एक 9-10 साल के लड़के को अपने साथ लिए दौड़े जा रही थी। उस औरत को देखकर कोई भी कह सकता था की वह माँ बनने वाली है और उसका बच्चा कभी भी हो सकता है। वह अपना पेट  सम्भाले और उस लड़के को अपने साथ लिए भागे जा रही थी ।

    वह लड़का जो उसके साथ था वह उस से कहता है - माँ हम अब कहाँ जाएँगे?

    वह औरत जो की उस लड़के की माँ थी । वह अपने बेटे से कहती है - पता नही बेटा की हम कहाँ जाएँगे।  पर अभी के लिए हमे यहाँ नही रूकना है। वर्ना वह लोग हम से तुमको और हमारी आने वाली  संतान को हम से दूर कर देगे।  और हम ऐसा किसी भी कीमत पर आपने बच्चो को अपने आप से दूर नही होने देंगे। 
    भागते- भागते अचानक ही उस औरत के पेट मे दर्द होने लगता है। वह एक पेड़ के सहारे जमीन पर बैठ जाती है । अब उसके पेट का दर्द बढ़ गया जिसका मतलब साफ था की उसके बच्चे के जन्म का समय हो गया है। वह बच्चा अपनी माँ की ऐसी हालत देखकर घबरा जाता है। उसे समझ नही आता  की वह क्या करे तभी एक जोरदार चीख उस औरत की सुनाई देती है और सब कुछ एक पल के लिए  शांत हो जाता है।

    कुछ पल बाद एक छोटे बच्चे की रोने की अवाज उस पूरे जंगल मे सुनाई देती है। उस औरत ने एक छोटी बच्ची को जन्म दिया था । वह अपनी बच्ची को अपनी गोद मे लेती है अपनी माँ की गोद मे आते ही वह बच्ची शांत हो जाती है और आंखें खोल अपनी माँ को अपनी नीली आँखो से देखने लगती है। वह नन्ही सी जान अपनी गहरी नीली और खुबसूरत आँखों से अपनी माँ को दुनिया भर की मासूमियत लिए टुकुर- टुकुर देख रही थी। सुबह हो चुकी थी और सूर्य की पहली किरण जैसे ही उस बच्ची पर पड़ी तो उसका चेहरा हिरे-सा चमकने लगा , उसके चेहरे का तेज ऐसा था जैसे कोई प्यारी सी , नन्ही सी परी धरती पर आ गई हो । वो दिखने मे भी परी जैसी ही थी , पर क्या वो सच में कोई परी थी ? खैर यह तो कहानी मे आगे पता चल ही जाऐगा ।

    सुबह हो चुकी थी इसलिए अब वो औरत जिसनें उस परी जैसी दिखने वाली नन्ही सी जान को अभी - अभी जन्म दिया था उसका भी चेहरा दिखने लगता है । वह औरत कोई और नही बल्कि स्वाती राजवंश थी , शहर के नामी - गिरामी परिवार राजवंश परिवार की बहु और मसहूर बिजनेस टाइकून कार्तिक राजवंश की बीवी । दिखने भे ऐसी खुबसूरत मानो कोई अप्सरा हो , कोई देखे तो देखता ही रह जाए उसकी गहरी नीली आँखे समुद्र सी गहरी और सुन्दर और बड़ी- बड़ी पलकों की छाँव से ढंकी हुई।

    गुलाबी होठ , दूध- सा गोरा रंग और कोयल सी मीठी आवाज,  स्वभाव से सभी के लिए बहुत अच्छी और प्यारी, पर स्वाभिमानी जब बात ख़ुद के सम्मान की आए तो किसी से भी लड़ने को तैयार हो जातीं है चाहे सामने कोई भी अपना सम्मान पहले है इनके लिए अपने हक और सम्मान के लिए लड़ने से पीछे नही रहती यह , निडर किसी नही डरती है यह , लेकिन भोली - भाली , मासूम , नेक दिल और सादगी से पूर्ण । पर अभी उसकी हालत देखकर ही पता लगाया जा सकता है कि वह बहुत ज्यादा थकी हुई है , उसके अन्दर जारा सी भी ताकत नही बची है  हो भी कैसे अभी - अभी एक बच्ची को जो जन्म दिया है उसने  । उसके रेशमी बाल पूरी तरह से बिखर चुके थे , उसके शरीर से पसीना भी बह रहा था और पलकों पर आँसू थे जो सूक चुके थे ।

    स्वाती के साथ जो लड़का था वह भी कोई और नही बल्कि स्वाती और कार्तिक का बडा बेटा अनिरुद्ध राजवंश है । दिखने मे बिल्कुल कार्तिक की परछाई और गुस्सा भी कार्तिक जैसा ही है पर स्वभाव और दिल से अपनी माँ जैसा अच्छा और नेक दिल पर जब शांत है तब ,  बाकी  गुस्से मे यह अलग ही रूप मे होते है जिसमे किसी के लिए कोई रहम नही करते । दिखने मे कार्तिक की तरह ही हैडसम,  डैशिंग और कोल्ड पर्सनैलिटी का लड़का,  उसकी  आँखे अपने डैड जैसी गोल्डन रंग की । यह अपनी माँ से सबसे ज्यादा प्यार करते है , पिता से इन्हे कोई मतलब नही है ( और वो क्यो नही है वो आगे पता चलेगा) । अगर मम्मा बाॅय कहेंगे तो गलत नही होगा क्योकी यह वो ही है , अपनी माँ के लाड़ले उनकी आँखों का तारा ।
    (पर अपनी माँ  का यह लाल, पीला, हरा,  नीला असल मे क्या- क्या कर सकता है और करेगा यह आपको आगे पता चलेगा । 😂😂😂) खैर  इनकी माँ स्वाती इन्हे प्यार से अनि कहकर बुलाती है।

    स्वाती अपनी नई-नई जन्मीं परी जैसी बेटी को निहार रही थी , वह बच्ची दिखने मे बिल्कुल अपनी माँ जैसी खुबसूरत थी । अपनी माँ जैसी ही उसकी भी गहरी  नीली आँखे थी जिनमे मासूमियत तो थी पर कुछ गहरे राज भी थे , वह इतनी गहरी थी कोई भी अपने आप को उसकी सुन्दर आखों मे डूबने से रोक ही ना पाए , लाल चैरी जैसे होठ , दूध सी गोरी , लाल- लाल गुलाब की पंखुडी जैसे गाल । दिखने मे वह ऐसी थी कि कोई आसमान से उतर कोई परी आ गई हो , उसकी मनमोहिनी मुस्कान कोई देख ले तो मोहित ही हो जाए। जब वह मुस्कुराती तो उसके छोटे- छोटे गालों पर प्यारे- प्यारे डिंपल पडते जो उसे और भी क्यूट बना देते।

    स्वाती अपनी नन्ही सी बेटी को देखने मे इतना खो गई कि वह अपनी सारी परेशानियां, तकलीफें और प्रसव पीड़ा से जो दर्द हुआ था, अपनी जान जोखिम में डाल इतना दर्द   जो उसने सहन किया था, वह सब अपनी बेटी को देखने के बाद एकदम भूल सी गई, उसकी आँखों मे ख़ुशी थी और आँसू भी थे । माँ ऐसी ही होती है चाहे कितनी भी तकलीफ हो, दर्द हो प्रसव पीड़ा मे वह सब अपने बच्चे को सही - सलामत देखने के बाद गायब से हो जाते है ।

    और हो भी क्यो ना नौ महीने अपनी कोख मे अपने बच्चे को सींचा फिर उसको इतना दर्द सहन कर जन्म दिया और जब बच्चा सही हो तो माँ को खुशी होगी ही । स्वाती अपनी बेटी को देखकर यह भी भूल गई थी की वह किससे भाग रही थी और क्यो भाग रही थी । उसको होश अपने बेटे अपने बेटे अनिरुद्ध की आवाज से आया जो उसे कह रहा था- " माँ हमे भी हमारी  छोटी बहन से मिलना है ! क्या हम इसे अपनी गोद मे ले लें ? Please।"

    अनिरुद्ध बहुत खुश था क्योकि उसे एक छोटी बहन मिल गई थी । जब उसे पता चला था कि उसका एक छोटा भाई या बहन आने वाला है । तब से वह एक छोटी बहन ही  चाहता था जो बिलकुल उसकी माँ की तरह हो , जिसके साथ वह खेल सके। स्वाती ने अपनी बेटी केछोटे से शरीर पर लगे खून को साफ किया और उसे अपनी चुनरी मे लपेटकर अनिरुद्ध के हाथों मे दे दिया । अनिरुद्ध अपनी बहन को अपनी गोद मे लेकर बहुत खुश था , उसे अपनी बहन को अपने हाथों मे लेकर एक अजीब से अहसास हो रहे थे जो उसने कभी महसूस नही किए थे , लेकिन यह अहसास बहुत ही नए और अच्छे थे। उसने अपनी बहन को ऐसे पकड़ रखा था जैसे वो कोई कांच की गुडिया हो और जरा सा हिलने पर वह गिरकर टूट जाएँगी ।

    तभी स्वाती के दिमाग मे कुछ आया और वह अनिरुद्ध से बोलीं- " बेटा अनि ! आप आज हमसे एक वादा कीजिए।"  अनिरुद्ध मुस्कुराते हुए बोला - " जी माँ ! कहिए क्या वचन चाहिए आपको , हम ज़रूर से उसको निभाने की कोशिश करेंगे।"  स्वाती अब सीरियस होकर बोली - " अनि ! हमे आपसे यह वादा चाहिए की आप हमेशा अपनी बहन की रक्षा करेंगे, किसी की भी बुरी नजर अपनी बहन पर नही लगने देंगे। क्योकी हम नही चाहते कि अपके डैड को कभी भी इसके बारे मे कोई भी भनक लगे , नही तो पता नही इसके साथ क्या करेंगे वो ? आप हमे वादा दीजिए की कभी भी आप अपने डैड को इसके आस- पास भी नही आने देंगे । कीजिये हमसे वादा ! "

    अनिरुद्ध ने एक नज़र अपनी गोद मे मुस्कुरा कर खुद की तरफ टुकुर-टुकुर देख रही अपनी बहन को देखा और अपनी माँ के हाथ मे अपना देते हुए कहा - " माँ हम आपसे वादा करते है की हम अपनी बहन को हर तरह से प्रोटेक्ट करेंगे,  इस पर किसी की भी  बुरी नजर नही आने देंगे खास कर अपने डैड की तो बिल्कुलभी नही। वो कभी इसे ढूंढ नही पाएँगे , कभी इसके बारे मे जान नही पाएँगे और अगर कभी उन्हे इसके बारे मे पता चल भी गया तो हम आपसे वादा करते है वो  कभी भी इसके पास नही आ पाएँगे। यह वादा हमारा आपसे माँ ! "

    स्वाती खुशी के मारे फूले नहीं समा पा रही थी वो कितनी खुश थी आज वह शब्दो मे बयां नही कर पा रही थी क्योकी वह जानती थी की अनिरुद्ध कया हैं और क्या- क्या कर सकता है , वै यह भी जानती थी की उसका बेटा अपने दिए हुए वादों का कितना पक्का है । अब उसे किसी बात की चिंता नहीं थी क्योकी उसकी चिंता अनिरुद्ध के वादे ने मिटा दी थी । अचानक कहता है - " माँ हम इसका क्या रखेंगे वैसे , क्या आपने कोई नाम सोचा है इसके लिए ? "

    इस बात पर स्वाती और अनिरुद्ध दोनों ही सोचने लगते है। तभी अनिरुद्ध के मन मे एक नाम आता है और वो स्वाती से कहता है - " माँ ! हमारे मन मे एक नाम आया है , आप कहे तो बताऊँ ? "  स्वाती उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कहती है - " हाँ ! बोलो ना हमारे बच्चे क्या नाम आया है तुम्हारे मन मे तुम्हे इसका नाम रखने के लिए  हमसे पूछने की कोई जरूरत नही है यह तुम्हारी भी बहन है तुम इसका नामकरण कर सकते हो ।"  अनिरुद्ध उसकी बात सुन मुस्कुराते हुए कहता है -  " ठीक है माँ ! तो हम इसका नाम रखेंगे प्रकृती क्योकी यह यहाँ पेड़-पौधों के बीच , इस पूरी प्रकृती के बीच हुई है और आप भी तो बताते हो माँ की माँ आदिशक्ति का एक प्रकृती भी , वह ही है जो इस सम्पूर्ण प्रकृती मे वास करती है इसलिए हमनें  इसका यह नाम रखा है।"

    स्वाती उसकी बात खुश हो जाती है फिर वो प्रकृती को अपनी गोद मे लेती है और मुस्कुराते हुए कहती है - " अनि ! बहुत ही सुन्दर और प्यारा नाम चुना है आपने अपनी बहन का और उससे भी ज्यादा प्यारा और सुन्दर तो इसका यह नाम रखने की आपकी वज़ह है बेटा , आपने बिल्कुलसही कहा प्रकृती माता रानी का ही एक नाम है और यह भी हमारे लिए उनका ही एक अंश है,  उनका ही एक रूप है जो हमारे घर आई है। इसलिए आज से तुम्हारा नाम होगा प्रकृती। वही प्रकृती अपना नया नाम सुन बहुत खुश थी और अपनी माँ की गोद मे खेल रही थी ।

    वही दूसरी तरफ ,

    एक पहाड़ जहाँ शिव जी की नटराज वाली रोद्र  रूप वाली एक बड़ी सी मुर्ति और  शिवलिंग रखा हुआ था जो की पहाड़ की चोटी जो गोलाकार मे बनीं हुई वहाँ पर यह मुर्ति और शिवलिंग स्थापित थे उनके सामने एक अघोरी बाबा आँखे बंद कर महादेव का जाप कर रहे थे उन अघोरी बाबा के पीछे की तरफ थोडी दूरी पर बड़े-बड़े ढोल रखे हुए थे जो काफी ज्यादा पुराने लग रहे थे उन पर गहरी मिट्टी की चादर बिछी थी। जिस जगह वह अघोरी बाबा बैठे थे उसके ठीक सामने थोड़ी दूरी पर एक बड़ी सी चट्टान थी जिस पर एक  कपल की पिक्चर बनी हुई थी वह मिट्टी से ढंकी हुई थी इसलिए वह किसकी पिक्चर थी यह साफ पता नही चल पा रहा था । बस उन दोनो की गोल्डन और नीली  आँखे ही दिखाई पड़ रहीं थीं ।

    तभी अचानक अघोरी बाबा की आँखे खुल गई और वे मुस्कुरा उठे तभी वहाँ एक पंडित जी आए जो उनके ही शिष्य थे। वो उनके पास आए उनको इस तरह अपनी आँखे खोल मुस्कुराते देख उनसे अपने हाथ जोड़कर पूछने लगे - " गुरुदेव क्या हुआ अचानक आपने अपना ध्यान क्यो बंद कर दिया ? आपको अखिर ऐसी चीज़ का आभास हुआ की आपने आपना ध्यान भंग किया ? "

    अघोरी बाबा उनकी बात सुनकर वैसे ही मुस्कुराते हुए बोले - " तुम नही जानते वो इस दुनिया मे वापस आ चुकी है पूरे सौ वर्षो बाद उसने आज एक बार फिर जन्म लिया है अपने साथ हुए उस धोखे का बदला लेने , अपने प्रेम को पाने और एक उद्देश्य के लिए उसे महादेव ने एक और अवसर दिया है। और देखो  महादेव की परम भक्त ने  आज फिर जन्म लिया है वो भी किस दिन आज महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर । अब उसका सामना क़ोई नही कर पाएँगा क्योकी इस बार स्वंय महादेव का आशीष उसके साथ है। "

    पंडित जी को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने फिर से किया- "  आप किसकी बात कर रहे है? हमे कुछ समझ नहीं आ रहा ? कही महारानी की बात तो नही कर रहे जिनकी आपने हमे कथा सुनाईं थी ? "

    पंडित जी के इस सवाल पर अघोरी बाबा की मुसकान और बड़ी हो गई,  वे बोले - " हाँ तुमने सही कहा हम महारानी की ही बात कर रहे थे। चलो हम उनसे मिल उन्हे प्रणाम कर आते है , चलो ! "

    पंडित जी को अघोरी बाबा की बात कुछ भी समझ नही आई पर उनके कहने पर वह उनके साथ जाने के लिए मान गए क्योकी वे भी देखना चाहते थे की अखिर ऐसा कौन है जिससे अघोरी बाबा इतने उत्सुक है मिलने को । फिर अघोरी बाबा ने मंत्र बोला और वह दोनो वहाँ से गायब हो गए ।

    अखिर क्यो और किससे स्वाती और अनिरुद्ध भाग रहे है ? क्या वजह की है इतने मशहूर बिजनेसमेन और इतने बड़े खानदान की बहू और बेटा ऐसे जंगलों मे भटक रहे है? कौन थे यह अघोरी बाबा और पंडित जी? किसकी बात कर रहे थे यह ? जानेंगे आगे की कहानी मे

  • 2. Demon king's angle wifey - Chapter 2

    Words: 2327

    Estimated Reading Time: 14 min

    अब आगे ,

    ' प्रकृति ' यह एक शब्द पूरे जंगल मे गुंज उठा और यह शब्द पूरे जंगल मे सुनाईं पड़ा तो वहाँ का माहौल और भी ज्यादा खुशनुमा हो गया । वहाँ एक अलग  ही ख़ुशबू फैल गई,  एक अलग तरह की हवा चलने लगी। हर तरफ पॉजिटिवीटी फ़ैली हुई थी , अनिरुद्ध भी अपनी बहन का नाम सुन खुश हो गया था उसे भी यह नाम बहुत पसंद आया ।

    उसने खुश होकर कहा - " माँ प्रकृती तो बहुत ही सुन्दर और प्यारा नाम है । और इसके पीछे का अर्थ भी एकदम सही है , यही नाम सही रहेगा । वैसे भी यह यहाँ जंगल मे पेड़- पौधो के बिच पैदा हुई है तो प्रकृती ही सही है। " अनिरुद्ध बहुत ही समझदार और इंटेलिजेंट लड़का था , वह इतनी कम उम्र में भी बहुत सी चीजें समझता था और अब अपनी बहन के आने के बाद वह और भी ज्यादा जिम्मेवार बन गया था। वह जान चूका था की अब उसे ही अपनी माँ और बहन को अकेले ही अपने दम  पर  सम्भालना है ।

    स्वाती भी खुश थी लेकिन एक चीज से अनजान दोनो माँ- बेटे नन्ही सी प्रकृती के साथ खेल रहे थे , लेकिन प्रकृती की नजरें आसमान पर थी और वो उस ओर देख कर खुश होए जा रही थी । वह खुश ऐसे हो रही थी जैसे कोई खास , कोई उसका अपना जिससे उसका कोई गहरा रिश्ता हो जिससे वह जुड़ी हुई हो , वह शख्स वहाँ मौजूद हो । स्वाती और अनिरुद्ध का इस बात पर ध्यान नही था वह दोनो तो बस उस नन्ही परी के साथ खेल रहे थे।

    वही आसमान मे एक काला साया जिसकी गोल्डन आँखे थी लेकिन वो ठीक  तरह से दिख नही रहा था , उसकी सिर्फ़ आँखे दिख रही थी जिन मे एक जूनून था , एक सनक थी , एक पागलपन था , कुछ अलग ही अहसास थे   । जिने लिए वो प्रकृती को बड़े प्यार से देख रहा था , वो साया तब से वहाँ मौजूद था , जब से प्रकृती का जन्म हुआ था।

    जैसे ही उसने प्रकृती शब्द सूना वैसे ही उसके मुँह से आवाज आई जो किसी को सुनाईं तो नही दी पर उसकी आवाज बेहद ठंडी,  डरावनी और रूह काँपा देने वाली थी । वह साया अपनी डरावनी आवाज मे नमी लाते हुए बोला - " हम्म ! प्रकृती,  हमारी  प्रकृती ! रूद्र की प्रकृती । आखिरकार अपने जन्म ले ही लिया,  पूरे तीन हजार वर्षो से आपके जन्म लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे । आज हमारी प्रतीक्षा खत्म हुई , हम आपको दुबारा देख कितने खुश है बता नही सकते । आपके चले जाने से हम अधुरे से हो गए थे , जैसे हमारा कोई हिस्सा हमसे ज़ुदा हो गया हो आपका हमने कितना इंतजार किया बता नही सकते । "

    प्रकृती उस साए को देख और उसकी बाते सुन ऐसे चेहरा बनाई जैसे उसकी बात सून वह भी दुखी हो गई हो । वो उस साए को देख खुश थी जैसे उसी ही का ही इंतजार कर रही हो। तभी उस साए ने आगे कहना जारी रखा - " पर अब आप आ गई है अब हम ख़ुद आपकी रक्षा करेंगे,  वादा करते है आप जब तक अपकी शक्तियाँ आपको याद नही आ जाती तब तक हम आपकी रक्षा करेंगे । आप पहले भी हमारी थी,  अब भी हमारी है , और आगे भी हमारी ही रहेंगी । आप पर सिर्फ़ हमारा हक है अगर फिर से उन लोगो ने या किसी और ने आपको हमसे अलग करने की कोशिश की तो हम सब कुछ तबह कर देंगे । सब कुछ ! और इस बार आपको वचन भी नही देंगे । बहुत जल्द मिलेंगे जब आप विवाह के लायक हो जाएँगी तब हम आपको एक बार फिर अपना बनाएँगे और हमे कोई नही रोक पाएगा । वादा करते बहुत जल्द आपको अपना बनाने आएंगे । इंतजार रहेगा उस दिन का और आपके बड़े होने का  , चलते है ! "

      वहीं हमारी नन्ही सी प्रकृती का चेहरा लाल हो गया था उस साए की बाते सुन । वो उस साए को ऐसे देख रही थी जैसे कह रही हो- " इसका कुछ नहीं हो सकता ,यह कभी नही बदल सकता जब देखों तब बस यह तबाह कर देंगे,  वो तबाह कर देंगे बस तबाही ही मचानी होती है इसे , रावण कही का ।" वो ऐसे - ऐसे मुहँ बना रही थी जैसे उस साए को बहुत सी गालियाँ दे रही हो , वही वह साया उसे यूँ मुँह बनाते देख मुस्कुराने लगता है और फिर वहाँ से गायब हो जाता है जो देखकर प्रकृती को और गुस्सा आता है । उसका मुँह ऐसा हो जाता है जैसे कह रही हो - " लो फिर गायब हो गया यही काम है इसका धमकी देना, तबाही मचाना और फिर कांड करके रफू चक्कर हो जाना। पता नहीं कब सुधरेंगें हम गुस्सा कर रहे है और यह हस रहे है बड़े होने दो हमे फिर बताते है, यह खैर जो भी हो हम आ गए ना इसे तो अब हम देख लेंगे,  समझता क्या है अपने आप को  दानव कही का ! "

    प्रकृती को उस साए का जाना शायद अच्छा नही लगता इसलिए वो रोना शुरू कर देती है । स्वाती उसे चुप कराने की कोशिश करती है लेकिन वो चुप ही नहीं हो रही थी , उस साए की बाते और  उसकी बाते सून प्रकृती का  मुँह  बनाना यह सब वहाँ कब से मौजूद अघोरी बाबा और पंडित जी देख रहे थे । जब स्वाती ने अपनी बेटी का नाम प्रकृती रखा था तभी वह लोग वहाँ आ गए थू और आसमान से यह सब देख रहे थे और उन दोनो की बाते भी सुन रहे थे जो किसी को भी सुनाईं नही दी थी । पर जब साया गायब हो जाता है तो प्रकृती गला फाडे रोने लगती है जिससे स्वाती और अनिरुद्ध तो डर जाते है और साथ मे पंडित जी जो अघोरी बाबा के साथ आए थे उन्हे भी प्रकृती के रोने की वजह समझ नही आती पर अघोरी बाबा उसके रोने की वजह समझ गए थे इसलिए वह मुस्कुरा रहे थे ।

    वही स्वाती परेशान हो रही थी क्योकी उसे डर था की कही कोई उनको प्रकृती के रोने की आवाज सुन  इधर आकर  उन्हे  ढूंढ ना ले इसलिए वह उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी पर उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे क्योकी प्रकृती चुप होने का नाम ही ले रही थी बल्कि और जोर से रो रही थी । वही आसमान मे खड़े अघोरी बाबा यह सब देख रहे थे और स्वाती और अनिरुद्ध की परेशानी भी देख रहे थे और समझ भी रहे थे क्योकी वह सब जानते थे वे अघोरी बाबा और पंडित जी आसमान से धरती पर उतर जाते है और थोडी दूरी पर आकर खडे हो जाते है फिर अघोरी बाबा  महादेव का का मंत्र बोलना अंरभ करते है -

    कर्पूरगौरं करुणावतारं
    संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्सदा
    वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि

    उनको यह श्लोक गाता देख पंडित जी भी यह श्लोक गाना शुरू करते है और दोनो ही महादेव का यह श्लोक बोलते हुए प्रकृती,  स्वाती और अनिरुद्ध की तरफ बढ़ने लगे ,इस श्लोक को सुन स्वाती और अनिरुद्ध एक दूसरे की ओर देखते है वह सोचते है की यह आवाज कहाँ से आ रही है तभी उनकी नजर सामने से आ रहे अघोरी बाबा और पंडित जी पर पडती है ,  वही प्रकृती यह श्लोक सुन शांत हो जाती है और हंसने लगती है , अपनी माँ की गोद मे खेलने लगती है । स्वाती और अनिरुद्ध यह देख मुस्कुराने लगते है और एक राहत भरी सांस लेते है फिर वो दोनो भी उस श्लोक गाने लगते है -

    कर्पूरगौरं करुणावतारं
    संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्सदा
    वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि.........!

    तभी अघोरी बाबा और पंडितजी उन लोगों के पास आ जाते है , प्रकृती अघोरी बाबा को मुसकुराते हुए देख रही थी जैसे उन्हे जानती हो उसने अपने नन्हे हाथो को प्रणाम करने के तरीके से जोड़ रखा था जैसे वो अघोरी बाबा को प्रणाम कर रही हो , अघोरी बाबा भी उसको देखकर मुसकुरा रहे थे उन्हे भी अपने हाथ जोड़ रखे थे और वो प्रकृती को प्रणाम कर रहे थे और मन मे बोले - " आप हमे इतना ऊँचा स्थान मत दीजिए माता , प्रणाम मत कीजिये हमे पाप के भागी बन जाएंगे हम अखिर अपनी माँ से कौन प्रणाम करवाता है । यह तो अपके अच्छाई है बाक़ी हम इसके लायक नही आपको एक बार फिर इतने वर्षो के बाद देखने का सुअवसर मिला वही बहुत है हमारे लिए ।"

    प्रकृती जैसे उनकी सारी बाते सुन चुकी थी इसलिए वह मुस्कुरा रही थी , वही स्वाती अघोरी बाबा और पंडित जी को देखकर घबरा गई थी । उसे लग रहा था की कही यह वो लोग ना हो जो उनका पीछा कर रहे थे , कही यह लोग उसके बच्चो को उससे दूर ना कर दे । वह अनिरुद्ध और प्रकृती को बार - बार  पीछे कर रही थी । यह अघोरी बाबा और पंडित जी दोनो देख लेते है वह समझ जाते है की वह अभी घबराई हुई है , वह जैसे ही थोडा आगे बड़े स्वाती ने अपने बच्चो को पीछे कर कहा - " दूर रहो और हमसे और हमारे बच्चो से भी दूर चले जाओ ! Please , हमे और हमारे बच्चो को जाने दीजिए , हमे छोड दीजिए अखिर हमारी नन्ही सी बच्ची ने आपका क्या बिगाडा है जो सब उसको मारने आ गए है । "

    यह कह वह रोने लगती है , तभी पंडित जी उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहते है - " आप गलत समझ रही है हम वे लोग नही है जो आप समझ रही है , आप .....!" स्वाती उनकी बात बीच मे काटकर गुस्से मे बोली - " हमे सब समझ आता है , हम सब जानते है की आप लोग कौन है और क्या- क्या कर सकते है । हम जानते है आपको उन्होंने भेजा है ना हमारी बेटी को मारने के लिए , पता नही क्यो सब हमारी बेटी के पीछे पड़े है हम जानते है की हमारी बेटी खतरा है उनके लिए तो चले जाऐंगे ना  अपनी बच्ची को लेकर सब से दूर अब नही रहेगा कोई भी खतरा आप सब पर जब यह पास ही रहेंगी तो । फिर भी क्यो आप सब हमारे पीछे पड़े है , छोड़ दिजीये हमे और हमारे बच्चो को हम वादा करते है बहुत दूर चले जाऐंगे इसे लेकर इतना की इसकी परछाई भी आप लोगो पर नही पड़ेगी,  पर भगवान के लिए छोड़ दिजीये हमें । "

    पंडित जी उसकी बात सुन कुछ बोलने को होते तभी अघोरी बाबा कहते है - " रहने दो ! इसे समझाने का कोई फायदा नहीं है वह डरी हुई हैं इसलिए किसी पर भी विश्वास नहीं कर पा रही क्योकी इसके अपनों ने इसका विश्वास तोड़ा है । खैर कोई बात नही हम तो बस इन्हे कुछ देने आए थे सो वो दे देते है । तभी वे अपनी झोली मे से रूद्राश के दो कंगन निकालते है और उन्हे नन्ही सी प्रकृती के छोटे- छोटे हाथो मे पहना देते है । स्वाती और अनिरुद्ध यह सब बस चुपचाप देख रहे थे क्योकी उन्हे इतना तो यकीन हो गया था  की यह वो नही है जो वह दोनो समझ रहे थे क्योकी अगर यह वो होते तो रूद्राश को हाथ भी नही लगा पाते ।

    रूदाश के कंगन पहना कर अघोरी बाबा मुस्कुराएँ और फिर वह दोनो प्रकृती को प्रणाम कर बिना कुछ बोले थोड़ा आगे गए और गायब हो गए। वही प्रकृती वह कंगन पाकर बहुत थी जैसे उसे कोई बहुत कीमती चिज मिल गई हो लेकिन स्वाती और अनिरुद्ध अभी भी यही सोच रहे थे की वह अघोरी बाबा और पंडित जी कौन थे , क्यो आए थे , और यह कौन सा कंगन प्रकृती को दे गए । वह दोनो यह सब सोच ही रहे थे की उन्हे किसी के उनकी तरफ आने का अहसास हुआ , वह दोनो ही घबरा उठे क्योकी वह शायद जान चुके थे की यह लोग कौन है जो उनकी तरफ आ रहे है ,  अब  वो दोनो अकेले नही थे अब उनके साथ छोटी सी प्रकृती भी थी उन्हे सबसे ज्यादा डर उसके लिए लग रहा था ।

    अब वह लोग भाग भी नही सकते थे क्योकी अभी स्वाती की ऐसी हालत नही थी की वो भाज सके उसने अभी - अभी एक बच्ची को जो जन्म दिया था। तभी अनिरुद्ध के दिमाग मे कुछ आया और वो भाग कर स्वाती और प्रकृती के पास गया और उसने स्वाती का हाथ पकड़ लिया फिर कुछ मंत्र बोला और फिर वह तीनो वहाँ से गायब हो गए ।
    उनके गायब होते ही वहाँ कुछ काली आत्माएँ और सैनिक जेसे दिखने वाले कुछ लोग  जो दिखने मे बिल्कुल अजीब से थे मतलब वह इंसानों जैसे बिल्कुल भी नही दिख रहे थे वे किसी दानव जैसे दिख रहे थे आए जहाँ अभी कुछ देर पहले अनिरुद्ध और स्वाती थे पर अब वहाँ कोई नही था । वह लोग आपस मे बाते करने लगें ।

    उनमें से एक साए ने कहा- " ‌‌‌‌‌‌‌‍‍‍‍ महारानी और युवराज के होने की जानकारी हमे यही की मिलीं थी , पर अब तो यहाँ कोई नही है । हमे अहसास हुआ था उनके यहाँ होने का फिर वह लोग कहाँ जा सकते है ?

    उसकी बात सुन एक दानव जैसा दिखने वाला सैनिक बोला - " जो भी हो हमे उन्हे ढूंढना ही होगा नही तो महाराज पता नही क्या करेंगे हमारे साथ , चलो आगे चलकर देखते है अगर वह लोग यहाँ से भागे भी होंगे तो ज्यादा दूर नहीं जा पाएँगे चलो आगे चलकर देखते है ! " सब उसकी बात पर सहमति जता आगे उन दोनो को ढूँढने चले जाते है ।

    20 साल बाद ,





    अखिर कौन हे जो स्वाती और उसके बच्चो के पीछे पडा है  और क्यो?  कौन था वो साया जिसे प्रकृती आसमान मे देख रही थी ?  क्या रिश्ता है उसका प्रकृती के साथ? क्या जैसे उसने कहा वैसे वो कभी प्रकृती को पा पाऐगा? जानेंगे आगे की कहानी मे stay tuned

  • 3. Demon king's angle wifey - Chapter 3

    Words: 2663

    Estimated Reading Time: 16 min

    अरे आप लोगों को तो कैरेक्टर्स के बारे में बताना ही भूल गए हम तो चलिए पहले जान लेते हैं हमारी हीरोइन की फैमिली के बारे में यानी राजवंश फैमिली के बारे में

    अखंड राजवंश- यह राजवंश परिवार के हेड है इनकी उम्र 75 है दिखने में तो बहुत शांत लगते हैं और उनके चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कुराहट बनी रहती है लेकिन उनकी इस मुस्कुराहट के पीछे भी कई गहरे राज है यह असुर साम्राज्य के भगवान है इन्हें इंसानों से सख्त नफरत है लेकिन इन्होंने स्वाति को इसलिए अपनाया था क्योंकि एक वजह तो उनके साम्राज्य के लिए एक वारिस लाना था और दूसरा इनका बड़ा बेटा इनका गुस्सा बहुत खतरनाक है इनके आगे घर में किसी की नहीं चलती सब उनकी सुनते और मानते सिवाय इनके बड़े बेटे के।

    भैरवी राजवंश- यह अखंड राजवंश की पत्नी है इनकी उम्र 70 साल है दिखने में तो यह बहुत खूबसूरत है इन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता कि उनकी उम्र 70 की होगी यह भी बिल्कुल अपने पति जैसी हैं इंसानों से सख्त नफरत करती हैं और इसके पीछे एक वजह है बहुत बड़ी वजह जो इनके पीहर से जुड़ी हुई है यह भी एक असुर साम्राज्य के राजकुमारी थी इसीलिए इनमें घमंड बहुत है और यह जैसी है उनके चेहरे पर दिखाई देता है लेकिन अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है और स्वाति से तो इन्हें सख्त नफरत है पर अपने बड़े बेटे के कारण इन्होंने स्वाति को अपना लिया था या कहे अपनाना पड़ा था यह सबसे ज्यादा प्यार अपनी छोटी बहू को देती हैं इनकी और अखंड जी के दो बेटे हैं - कार्तिक राजवंश और यश राजवंश ।

    कार्तिक राजवंश- यह राजवंश परिवार के बड़े बेटे हैं और असुर साम्राज्य के महाराज है इनकी उम्र 50 साल है यह दिखने में काफी यंग लगता है और काफी ज्यादा हैंडसम है यह अपनी पत्नी और अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं बाकी इन्हें किसी से मतलब नहीं इन्होंने स्वाति जी से शादी एक मकसद के लिए की थी लेकिन इन्हें स्वाति जी से बाद में प्यार हो गया था बहुत ही ज्यादा रूढ, एरोगेंट और गुस्सैल किस्म के है ।

    स्वाति राजवंश- कार्तिक राजवंश की पत्नी राजवंश परिवार की बड़ी बहू इनकी उम्र 45 साल है जिसे ज्यादा खूबसूरत कोई कह नहीं सकता कि दो बच्चों की मां है बहुत ही मासूम नेक दिल और स्वाभिमानी स्त्री है इन्हें इनकी मासी ने पाला है इसके माता-पिता नहीं थे बहुत छोटी उम्र में इन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था इनकी मासी मां ही इनकी पूरी दुनिया है और यह काशी की है यह और कार्तिक जी काशी में ही मिले थे इनके और कार्तिक जी के दो बच्चे हैं - अनिरुद्ध राजवंश और प्रकृति राजवंश ।

    यश राजवंश- कार्तिक राजवंश के छोटे भाई और राजवंश परिवार के छोटे बेटे यह भी असुर हैं लेकिन इनका दिल काफी अच्छा है उनके हिसाब से इंसान भी कई तरीके के होते हैं सब खराब हो यह जरूरी नहीं इन्हें इंसानों से कोई परेशानी नहीं है यह सब की मदद करते हैं और इन्हें अपने माता-पिता का व्यवहार अपनी भाभी स्वाति के प्रति बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता यह कई बार अपने माता-पिता से स्वाति को बचाते भी थे यह अपनी भाभी स्वाति को अपनी दूसरी मां ही समझते हैं इनकी उम्र 40 है ।

    दीप्ति राजवंश- राजवंश परिवार की छोटी बहू और यश राजवंश की पत्नी उम्र 39 साल यह भी अपने परिवार के बाकी सदस्य जैसी ही है इन्हें भी स्वाति जी किसी कारण की वजह से पसंद नहीं है(और वह आपको कहानी में पता चलेगा कि क्यों पसंद नहीं है )यह भी एक असुर साम्राज्य की राजकुमारी है और बहुत ही घमंडी भी है इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है इन्हें हमेशा बचपन से यही सिखाया गया है कि इंसान हमारे दुश्मन है तो बस यह इंसानों को अपना दुश्मन ही समझती है पर अपने सास ससुर जैसे ही इंसानों के साथ व्यवहार करती हैं इनके और यश राजवंश के दो बेटे हैं - अक्ष राजवंश और वायु राजवंश ।

    (चलिए अब जानते हैं राजवंश परिवार की यंग जनरेशन के बारे में )

    अनिरुद्ध राजवंश- राजवंश परिवार का बड़ा पोता उम्र 30 साल बहुत बड़ी बिजनेसमैन है कार्तिक राजवंश और स्वाति राजवंश के बड़े बेटे अपनी मां और बहन से बहुत प्यार करते हैं पर अपने परिवार से बहुत नफरत। दिखने में किसी हीरो से काम नहीं है अच्छी खासी घंटो जिम में बनाई हुई बॉडी ,काली गहरी आंखें पर हद से ज्यादा ठंडी सिर्फ बाहर वालों के लिए ।

    अक्ष राजवंश- राजवंश परिवार का दूसरा पोता उम्र 25 साल यह भी एक बहुत बड़ी बिजनेसमैन है और अपने डैड और अपने बड़े डैड की बिजनेस में मदद कर रहे हैं यह बिल्कुल अपने पिताजी जैसे हैं शांत इन इंसानों से तो नफरत नहीं है लेकिन इन्हें लड़कियों से जरूर नफरत है क्योंकि उनके हिसाब से लड़कियां सिर्फ पैसों के पीछे भागती है और सारी लड़कियां उनके पीछे इसीलिए है क्योंकि इनके पास पैसे हैं इसीलिए इन्हें लड़कियों से नफरत है यह भी दिखने में अनिरुद्ध से काम नहीं लगता काफी ज्यादा हैंडसम , लड़कियां उनके आगे पीछे घूमती है इनकी एक नजर खुद पर पानी के लिए। सिक्स पैक एब्स, फॉरेस्ट ग्रीन आंखें किसी भी लड़की को इनके ऊपर फिदा होने के लिए मजबूर कर दे ।

    वायु राजवंश- राजवंश परिवार का तीसरा पोता उम्र 20 साल बहुत ही मस्त मौला है अपनी मर्जी के करते हैं किसी की नहीं सुनते इन्हें कोई इंसानों से नफरत नहीं है यह बिल्कुल अपने पिता जैसे ही है इन्हें भी उनके घर की सो कॉल्ड थॉट्स पसंद नहीं है यह तो इंसानों के साथ रहते भी हैं उन्हें अपने दोस्त भी बनाते हैं और उनके साथ गल मिलकर मस्ती मजाक भी करते हैं इन्हें कोई फर्क नहीं पडता की यह क्या है और सामने वाला क्या है पर जब गुस्सा आता है तो यह वह नहीं रह जाते जैसे यह दिखते हैं यह अपने परिवार से बहुत प्यार करते हैं बस उनकी सोच पसंद नहीं।

    प्रकृति राजवंश- राजवंश परिवार की सबसे छोटा पोती उम्र 20 साल यह और वायु ए की उम्र के हैं बस महीना का फर्क है यह उनसे कुछ महीने बड़ी है इन्हें अपने परिवार के बारे में कुछ भी नहीं पता इनके लिए उनकी फैमिली इनके भाई मां और नानी मां है और इन्हें किसी के बारे में नहीं पता बहुत ही प्यारी शान स्वभाव की और नटखट लड़की है बहुत चुलबुली है शैतानी तो इतनी की कई बार तो इनकी शैतानी से लोग परेशान भी होते हैं तो कई बार हंसते भी लगते हैं यह सब के चेहरे पर मुस्कुराहट लाती रहती है पर यह अपने परिवार से बिल्कुल अलग है यह कोई असर नहीं है

    20 साल बाद,

    काशी
    सुबह का समय

    एक बड़ा आलीशान विला विला जो वाइट कलर का था उसके आगे एक बड़ा सा गार्डन था जो काफी ज्यादा खूबसूरत था बीच में एक खूबसूरत सा फाउंटेन भी बना हुआ था उसे घर के बाहर मैं एंट्रेंस पर लिखा हुआ था चौहान मेंशन यह चौहान मेंशन और यहां की मालकिन है स्वामी जी की मासी मां कात्यानी चौहान इन्होंने अपने पूरी जिंदगी सिंगल रहते हुए निकाल थे इन्होंने कभी शादी नहीं की क्योंकि उनके माता-पिता के कोई बेटा नहीं था यह और स्वामी जी की मां दो बेटियां ही थी जिनमें से इनकी बहन की तो शादी हो गई थी जिसे स्वामी जी हुई लेकिन अपने माता-पिता का ध्यान रखने के लिए इन्होंने ता उम्र कुंवारा रहना स्वीकार किया क्योंकि इन्हें उनके लिए डर लगता था इसके लिए इन्होंने अपने बॉयफ्रेंड को भी छोड़ दिया था

    और अपने माता-पिता के लिए यह बेटी से बेटा बन गई और उनकी सेवा करने लगी पर जब स्वामी जी 5 साल की थी तभी उनके माता-पिता की एक कर एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई और क्योंकि कात्यायनी जी स्वामी जी को अपनी ही बेटी समझती थी क्योंकि उनके कोई औलाद नहीं थी उन्होंने शादी नहीं की थी इसीलिए वह स्वामी जी को अपने पास ले आई उनसे पालने लगी और स्वामी जी के नाना नानी भी उन्हें बहुत प्यार करते थे लेकिन कुछ समय बाद उनकी भी मृत्यु हो गई और कात्यायनी जी और स्वामी जी अकेले हो गए कात्यानी जी ने स्वामी जी को हमेशा मां और पिता दोनों का प्यार दिया है वह कभी मां जैसी ममता देती उन्हें तो कभी पिता जैसी कड़क बन जाती कार्तिक जी और स्वामी जी की लव मैरिज की जिससे कात्यायनी जी को कोई परेशानी नहीं थी लेकिन कहीं ना कहीं उन्हें स्वामी जी के लिए डर लगता था पता नहीं क्यों लेकिन कार्तिक की उन्हें सही नहीं लगते थे लेकिन फिर भी अपनी बेटी की खुशी के लिए उन्होंने कार्तिक जी को अपना लिया और अब उन्हें पता चल चुका है कि कार्तिक की असल में क्या है

    तभी उसे विला में से एक औरत की आवाज आती है- प्रकृति प्रकृति बेटा कहां है आप सुबह से ढूंढ रहे हैं पता नहीं कहां चली गई यह लड़की प्रकृति

    इसी विला के पीछे वाले गार्डन में बीचों-बीच एक महादेव का मंदिर बना हुआ था जो वाइट मार्बल के पिलर से बना हुआ था जिस पर फूलों और पत्तों की बेलो से सजाया गया था वह मंदिर दिखाने में बहुत खूबसूरत था वहां पर महादेव का शिवलिंग विराजमान था और पीछे महादेव माता पार्वती के साथ एक मूर्ति भी स्थापित थी वह मूर्ति बहुत खूबसूरत थी इस शिवलिंग के आगे खूबसूरत सी लड़की जिसने पिंक कलर का लहंगा चोली पहन रखा था , उसका दुपट्टा कंधे पर लगा हुआ था और पीछे की तरफ से खुला छोड़ा हुआ था जिसकी वजह से वह हवा में लहरा रहा था , उसके बाल खुला छोड़े हुए थे जो उसकी कमर से भी नीचे तक आते थे और उन्हें भी पिंक कलर की फूलों से बहुत खूबसूरती से सजाया हुआ था, हाथों में दो रुद्राक्ष के करे थे ,कुछ पिंक कलर की चूड़ियां पहनी हुई थी ,पैरों में सोने की पायल और गले में ओम का लॉकेट ,उसकी एक हाथ की बाजू में ओम का निशान बना हुआ था जो काफी खूबसूरत था।

    तभी सूर्य की रोशनी उसे लड़की पर पड़ती है उसका चेहरा हिरे सा चमक रहा था लड़की दिखने में काफी खूबसूरत थी , सुर्ख लाल हॉट और गाल बिल्कुल किसी चैरी जैसे लाल, उसे लड़की की स्किन गोरी होने के साथ-साथ लाल रंग की भी ,उसे लड़की की घनी पलकों ने उसके आंखों को ढक रखा था उसकी आंखें बंद थी वह महादेव के मित्रों का जाप कर रही थी और महादेव को जल अर्पण कर रही थी उसकी मीठी सी आवाज में ओम नमः शिवाय पूरे उसे गार्डन में ऐसे गूंज रहा था जैसे कोई संगीत गुजारा हो माथे पर बिंदी उसके रूप को और भी ज्यादा खूबसूरत बना रही थी वह दिखने में किसी अप्सरा से काम नहीं लग रही थी या यूं कहीं वह अप्सरा से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी यह कोई और नहीं बल्कि हमारी प्यारी सी मासूम सी नायिका प्रकृति राजवंश ।

    तभी वहां एक औरत जिसकी उम्र कोई 45 साल होगी आई जो उसे लगातार आवाज दिए जा रही थी यह कोई और नहीं बल्कि स्वाती जी ही थी वह उसे पीछे वाले गार्डन में उसे ढूंढते -ढूंढते वहां आ पहुंची थी उनकी उम्र 45 साल हो गई थी लेकिन फिर भी वह दिखने में बहुत खूबसूरत थी उनकी आंखों में आज भी वही मासूमियत थी ,वही गुरुर उनमें था वह लगातार प्रकृति का आवाज दिए जा रही थी क्योंकि वह सुबह से प्रकृति को ढूंढे जा रही थी लेकिन उन्हें उनकी प्यारी सी गुड़िया मिली नहीं रही थी उन्हें इसकी चिंता हो रही थी।

    तभी पीछे से 30 साल का नौजवान जो दिखने में काफी हैंडसम था ,किसी हीरो से काम नहीं लग रहा था आया और स्वाती जी से कहने लगा- "देखा ना माँ! हमने आपसे कहा था आप बेवजह परेशान हो रही है देखिए यह यही है हमने तो आपसे पहले ही कहा था यह आपको यहीं मिलेगी अभी इसकी पूजा का वक्त था अब बेवजह ही इसे लेकर परेशान हो जाती हैं आपको पता है ना यह इस वक्त महादेव की आराधना कर रही होती है आप भी ना बेवजह ही डर जाती हो और हमें भी डरा देती हो।" यह है हमारे अनिरुद्ध बाबू जो अब बड़े हो गए है और बिल्कुल कार्तिक जी की काॅपी लगते है।

    उसी के साथ एक 70 साल के आसपास की एक औरत भी खड़ी थी जो कोई और नहीं बल्कि कात्यायनी दी थी स्वाती जी की मासी मां वह भी अनिरुद्ध और स्वाती जी के साथ सुबह से प्रकृति को ढूंढ रही थी क्योंकि जब भी प्रकृति स्वाती जी की आंखों के सामने नहीं आती थी तब तक स्वाती जी को चैन नहीं पड़ता था जब तक प्रकृति उनहे मिल नही जाती तब तक उन्हें प्रकृति के लिए डर लगा रहता था कि उसे कुछ हो ना गया हो इसीलिए वह परेशान हो जाया करती थी और उसे पूरे घर में ढूंढती रहती थी और उसी के साथ में अनिरुद्ध और कात्यायनी जी भी परेशान हो जाते थे और प्रकृति को ढूंढने लगते थे तभी कात्यायनी थी स्वाती जी से कहने लगी-" बिल्कुल सही कह रहा है अनि! इसने तो पहले ही कहा था की प्रकृति हमें यही मिलेगी और सच ही है आखिर प्रकृति का यही शेड्यूल है तुम जानते हुए भी उसको लेकर इतना परेशान हो जाती हो तुम्हें तो पता है ना सुबह-सुबह उसे आदत है पहले महादेव की पूजा करना फिर, उसके बाद में नाश्ता करना, कॉलेज जाना फिर भी यह सब जानते हुए भी तुम इतना परेशान हो जाती हूं और फिर साथ में हमें भी अपनी बातों में लेकर हमें भी डरा देती हो।"

    स्वाती जी उन्हें गुस्से में देखते हुए बोली-" आपके कहने का मतलब क्या है मासी माँ हमे चिंता है उसकी हमें पता है कि उसका शेड्यूल क्या है लेकिन जो लोग उसके पीछे पड़े हैं ना वे लोग इंसान नहीं है वे लोग क्या है यह आप भी जानती हैं और अनि भी हमें आप लोगों को बताने की जरूरत नहीं है हम चाहे उन्हें कितना भी कहीं भी रोकने की कोशिश कर ले चाहे कितना भी छूटने की कोशिश कर ले आप लोग बहुत अच्छी तरीके से जानते हैं कि वह एक न एक दिन हमारी बच्ची तक पहुंच जाएंगे और हमारी बच्ची हमारी लाडो कहीं भी हो वह लोगों से हमसे दूर कर देंगे हम जानते हैं कि वह महादेव के पास सुरक्षित रहती है लेकिन क्या करें जब से हमें उन लोगों की सच्चाई पता चली है तब से हमें हमारी बच्ची को लेकर डर लगा रहता है हम जानते हैं कि अनि है उसकी प्रोटेक्शन करने के लिए पर कब तक अनि के पिता के आगे अनि की ताकत कुछ भी नहीं है आप लोगों नहीं पता लेकिन कार्तिक जी क्या है यह हम जानते हैं सिर्फ और सिर्फ हम क्योंकि हमने उनकी सच्चाई अच्छे से पता है हमने उन्हें जाना है इसलिए हमें पता है की वह क्या है। हां मानते हैं कि अनि भी वही है जो उसके पिता है लेकिन जितनी शक्तियां उसके पिता के पास में है इतनी शक्तियां अनि के पास में भी नहीं है चाह कर भी वो अपने पिता से अपनी बहन को नहीं बचा सकता इसी वजह से हमें डर लगा रहता है कि किसी दिन कार्तिक जी को प्रकृति के बारे में पता चल गया तो वह हमारी बच्ची को हमसे दूर कर देंगे और यही नहीं वह अनि को भी हमसे दूर कर देंगे और हम ऐसा किसी भी कीमत पर होने नहीं देंगे चाहे हमें इसके लिए खुद की जान ही क्यों ना देनी पड़े और अगर आप लोगों को लगता है कि हम गलत हैं तो हम गलत ही सही क्योंकि हम माँ है और हमें डर लगता है अपने बच्चों को खोने से।" यह कहते वक्त काफी इमोशनल हो गई थी और उनकी आवाज भी यह सब बोलते वक्त काफी टूटी हुई थी तभी पीछे से एक प्यारी सी मासूम सी मीठी सी आवाज उन सभी के कानो में पड़ी।


    please aapne reviews jaroor aur aapne payare payare comments kyunki hum itni mehenat se aap logon ke liye likhte hai toh hume kuch toh milna chahiye 😁😁🤭🤭🤗🤗

  • 4. Demon king's angle wifey - Chapter 4

    Words: 1824

    Estimated Reading Time: 11 min

    तभी उन सभी के कानों में एक मीठी सी और प्यारी सी आवाज पड़ी -"मां क्या हुआ आप रो रही हो ?"यह आवाज प्रकृति की थी स्वाती जी ने अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोछा और एक प्यारी सी मुस्कुराहट लिये पीछे की तरफ मूडी और अपनी प्यारी सी बेटी के सर पर ममता भरा स्पर्श देते हुए कहा -"कुछ नहीं बेटा बस आंखों में कुछ चला गया था इसीलिए पानी आ गया था भला मैं क्यों रोऊगी मुझे रोने की क्या जरूरत है तुम्हारी जैसी इतनी प्यारी बेटी और तुम्हारे भाई जैसा इतना अच्छा बेटा मुझे मिला है तो मुझे रोने कि कहां जरूरत है? रोए मेरे दुश्मन" स्वाती जी जानती थी कि भले ही वे झूठ बोल रही है लेकिन प्रकृति उन्हें आराम से पहचान सकती थी कि वह सच बोल रहे हैं या झूठ क्योंकि प्रकृति हमेशा उनकी आंखों में देखकर सच पहचान लिया करती थी हमेशा की तरह इस बार भी प्रकृति को पता चल गया था कि उसकी मां झूठ बोल रही है उसे उनकी रोने की वजह तो नहीं पता थी लेकिन वह नहीं चाहती थी कि इस वजह को फिर से याद करके उसकी मां की आंखों में आंसू आए क्योंकि वह अपनी मां को रोता हुआ बर्दाश्त नहीं कर सकती थी इसीलिए उसने एक प्यारी सी मुस्कुराहट दी और शांत हो गई।

    स्वाती जी ने मुस्कुराते हुए कहा -"तुम्हारी पूजा हो गई चलो अब अंदर चलकर सब नाश्ता करते हैं मैं अभी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगती हूं ।" इतना कह कर वह अंदर चली गई और किचन में जाकर फूट-फूट कर रोने लगी और अपने आप से कहने लगी -"हमें माफ कर दीजिए हमारे बच्ची हमें पता है कि आपने हमारे आंखों में आंसू देख लिए थे और हमारी आंखों से ही हमारे मन की बात को भी समझ लिया था हमारा मन रखने के लिए आपने हमसे आगे बात नहीं कि हम सब समझते हैं लेकिन क्या करें हम आपको चाह कर भी आपकी सच्चाई नहीं बता सकते हम आपको नहीं बता सकते कि आप राजवंश परिवार की बेटी है कार्तिक राजवंश की औलाद है क्योंकि अगर हमने आपको यह सब कुछ बता दिया तो आप उन्हें अपना परिवार समझकर उनके पास जाने की कोशिश करेंगे लेकिन वह लोग आपको जान से मारने की ताक पर है हम मानते हैं कि वह आपके परिवार वाले हैं आपको उनके बारे में जानने का हक है आपको अपने पिता के बारे में जानने का हक है लेकिन जब आपके पिता ही आपके दुश्मन है तो हम आपको उनके बारे में कैसे बताएं हम चाह कर भी आपको नहीं बता सकते कि आप प्रकृति चौहान नहीं बल्कि प्रकृति राजवंश है कार्तिक राजवंश की दूसरी औलाद है एक तरफ तो वह जल्लाद हमसे हमेशा कहा करता था कि उसे भी हमारे जैसे एक प्यारी सी बेटी चाहिए और दूसरी तरफ जब उसे एक बेटी मिलने चली थी तब इसी बेटी को अपने हाथों से मारना चाहता था कितने दोगले हैं वह हमसे कुछ और कहते थे और मन में कुछ और ही रखते थे ।"फिर उन्होंने अपने आंसू पहुंचे -"नहीं चाहे कुछ भी हो जाए हम कार्तिक राजवंश को कभी भी हमारी बच्ची के बारे में पता नहीं चलने देंगे चाहे इसके लिए हमें कुछ भी क्यों न करना पड़े इतने सालों से प्रकृति को उस से छुपा कर रखा है हम उन्हें कभी पता नहीं चलने देंगे कि उनकी एक बेटी भी है क्योंकि वह इस लायक ही नहीं है कि उन्हें कभी पता चले आब चाहे कुछ भी हो जाए हम कभी भी अपनी गुड़िया को उसके परिवार और उसके पिता के बारे में पता नहीं लगने देंगे, हे भोलेनाथ! आप हमारी मदद कीजिएगा इन सब में हमें ताकत दीजिएगा ताकि हम इन सब लोगों से लड़ सके।"

    स्वाती जी ने हाथ जोड़ते हुए महादेव से प्रार्थना करते हुए कहा और फिर नाश्ता बनाने लगी वहीं दूसरी और प्रकृति, अनिरुद्ध और कात्यायनी जी को देख रही थी और अनिरुद्ध और कात्यानी जी कभी एक दूसरे को देखते तो कभी प्रकृति को देखते वह लोग समझ तो गए थे कि स्वाती जी को देखते ही प्रकृति समझ गई थी कि वह उसे झूठ बोल रही है लेकिन अपनी मां का मन रखने के लिए उसने उनके आगे कुछ पूछना जरूरी नहीं समझा लेकिन अब शामत उनकी आई थी क्योंकि अब प्रकृति के सवालों का सामना अब उन्हें करना था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब वह उनसे क्या पूछने वाली है क्योंकि प्रकृति कब क्या करती थी किसी को कुछ पता ही नहीं चलता था।

    अनिरुद्ध बहुत कोशिश करता था उसके मन को पढ़ने की लेकिन कभी पढ़ नहीं पता था और अभी भी यही हाल था वह कोशिश कर रहा था की प्रकृति के दिमाग में क्या चल रहा है लेकिन उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और वही प्रकृति लगातार उन्हें घूरे जा रही थी

    तभी उनके कानों में प्रकृति की मीठी आवाज पड़ी-" अब आप लोग हमें बताएंगे कि माँ क्यों रो रही थी हमें पता है कि वह हमसे झूठ बोल रही थी ताकि हम उनसे और सवाल ना करें और हम करेंगे भी नहीं क्योंकि हम उनकी आंखों में दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकते और हमें लगता है कि वह कोई ऐसी बात थी जिसकी वजह से वह रो रही थी अगर हम उसे छेड़ देंगे तो शायद वह और रोने लगेगी इसलिए हमने उनसे कुछ भी नहीं पूछा लेकिन अब हमारे सवालों का जवाब आप लोगों को देना होगा बताइए हमारे माँ क्यों रो रही थी।"

    अब अनिरुद्ध और कात्यायनी जी के तो गले में फंसनी आ गई थी वह कभी एक दूसरे को देखते तो कभी प्रकृति को देखे जो लगातार उन्हें ही देखे जा रही थी उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब की प्रकृति को क्या बताएं कि उसकी मां क्यों रो रही थी तभी अनिरुद्ध के दिमाग में कुछ आया और उसने प्रकृति को एक प्यारी सी मुस्कुराहट देते हुए कहा-" चेरी ब्लॉसम! तुम चिंता मत करो यह तो मां का रोज का है तुम तो जानती हो ना नानी मां आपनी तबीयत का ध्यान रखना भूल जाती है काम वगैरह के चक्कर में और दवाई लेना भूल जाती है तुम तो जानती हो ना नानी मां को शुगर है और वह अपनी सेहत का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती है मीठा भी खा लेती है और वह करने को तो वह भी नहीं करती साथ में मेडिसिन और लेना भूल जाती है तो अभी कुछ दिन पहले उनका मंथली चेकअप मां ने करवाया था और उसका रिजल्ट आ गया था जिसमें नानी मां का शुगर लेवल ज्यादा हो गया था बस यही काफी था माँ को इमोशनल करने के लिए उन्होंने नानी मां को बहुत सुनाया और तुम तो जानती हो ना बात को कहां से कहां ले जाती है वह नानी मां से होते-होते अपने मॉम डैड को याद करने लग जाती है तो बस उन्हें अपने मॉम डैड की याद आ गई थी इसी वजह से वह रो रही थी ।"

    अनिरुद्ध तो यह सब मुस्कुराते हुए कह रहा था उसका ध्यान ही नहीं था कि पीछे कात्यायनी जी उसे गुस्से में घूर रही थी और बहुत ही बुरी तरह घूर रही थी क्योंकि यह पहली बार नहीं था जब अनिरुद्ध ने प्रकृति के सवालों से बचने के लिए उनकी तबीयत का इस्तेमाल किया हो अनिरुद्ध यह कई बार कर चुका था।

    जब भी उसे कुछ समझ नहीं आता था कि उसे प्रकृति को क्या जवाब देना चाहिए वह प्रकृति को हमेशा कात्यायनी जी की तबीयत से रिलेटेड कोई ना कोई बहाना बना दिया करता था और यह सच भी था जब भी कात्यायनी जी की तबीयत में कुछ ना कुछ उच्च - नीच होती थी स्वाती हमेशा दुखी हो जाती थी उनको कात्यायनी जी को खोने का डर होता था । कात्यायनी जी की तबीयत खराब होने पर वह उन्हें बहुत डांटती थी और डाटते- डांटते उन्हें अपने मॉम डैड की भी याद आ जाती थी क्योंकि उनके पास उनकी मासी मां के अलावा कोई नहीं था इसीलिए वह अपनी मांसी मा को लेकर काफी पाजिसिवथी क्योंकि कात्यायनी जी के अलावा और कोई नहीं था उनके परिवार में सिर्फ उसकी मासी मां ही थी इसीलिए प्रकृति और अनिरुद्ध दोनों जानते थे कि जब भी कात्यायनी जी की तबीयत खराब होती थी स्वामी जी उन्हें डांट-डांटकर अपनी मां-बाप को याद करने लग जाती थी जिससे वह काफी उदास भी हो जाती थी और पूरे दिन किसी से बात नहीं करती थी इसी चीज का फायदा अनिरुद्ध उठाता था जब भी उसे कोई जवाब नहीं आ रहा होता था वह हमेशा कात्यानी जी की तबीयत को टारगेट करके प्रकृति को जवाब दिया करता था और हमारी भोली सी प्रकृति वह भी हमारे शैतान से अनिरुद्ध बाबू की बातों में आ जाती थी और उसकी बात मान जाती थी और आगे कोई सवाल नहीं करती थी

    अभी भी ऐसा ही हुआ था हमारी प्यारी सी मासूम सी प्रकृति इस बार भी अपने शैतान भाई की बातों में आ गई थी और अब वह कात्यायनी जी को गुस्से में देखकर बोली-" क्या नानी मां! आप भी ना अपनी तबीयत का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते पूरे दिन बस काम काम और काम माना कि आपका बिजनेस है बहुत काम होता है आपको लेकिन इतना भी क्या काम मे खोना की अपनी तबीयत का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते और आपको डॉक्टर ने मना किया था ना मीठा खाने के लिए और ठीक है चलो आपको मीठा खाने का मन हो जाता है तो थोड़ा वर्कआउट कर कर लिया कीजिए पर नहीं आपको तो कुछ करना ही नहीं है । ना आप अपनी तबीयत का ध्यान रखते हैं ना ही आप मीठा खाना बंद करते हैं और ना ही वॉक करते है अब से आपका मीठा खाना बंद अब आपको मीठा तभी मिलेगा जब आप रोज सुबह वॉक पर जाएंगे हम तभी आपको मीठा खाने की इजाजत देंगे वरना हम मिठाइयां छुपा देंगे घर में बता रहे हैं।"

    हमारी मासूम सी प्रकृति गुस्से में भी काफी क्यूट लग रही थी यह सब कहते वक्त इसीलिए कात्यानी जी उसकी सारी बातें सुन भी लेती थी और मान भी लेती थी वरना कात्यायनी जी तो ऐसी थी कि कोई अगर उन्हें कुछ भी बोल देना तो वह किसी की नहीं सुनती थी उसकी धज्जियां उड़ा देती थी सिवाए स्वाती जी के स्वाती जी जब उन्हें डांटती तो वह चुपचाप उनकी बात मान लिया करती थी लेकिन अब दूसरी प्रकृति भी आ गई थी जिसकी बात वह कभी टाल नहीं पाती थी क्योंकि प्रकृति इतनी मासूम और प्यारी थी कि उसकी बात टालने का उन्हें मन नहीं करता था बाकी अगर अनिरुद्ध उन्हें कुछ कह दे तो उसका अच्छा खासा बैंड बजा दिया करती थी कात्यायनी जी और अभी अनिरुद्ध के साथ वही होने वाला था इतना कहकर प्रकृति तो अंदर चली गई थी अपनी मां स्वाती जी की नाश्ता बनाने में मदद करने के लिए और अनिरुद्ध चैन की सांस ले रहा था कि चलो बला टलि लेकिन उसे क्या पता था की असली भला तो उसके पीछे खड़ी है जो उसे कब से गुस्से में घूर रही है भूखी शेरनी की तरह। 🤣🤣🤣

  • 5. Demon king's angle wifey - Chapter 5

    Words: 1028

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    जैसे ही अनिरुद्ध पीछे मुद्दा उसने देखा कात्यायनी की बड़ी गुस्से में से घर रही थी जैसे अभी ही उसे करता सब आ जाएगी और हो भी क्यों ना यह अनुरोध का हर बार का जो हो गया था अब उसके चक्कर में बेचारी कात्यानी जी का मीठा बंद हो गया था और कात्यायनी जी को मीठा खाना बहुत पसंद था लेकिन अब अनिरुद्ध के कारण उन्हें अब मीठा नहीं मिलने वाला था क्योंकि प्रकृति की बात इस घर में कोई नहीं डालता था प्रकृति जो कह देती थी तब उसी को ही मानते थे क्योंकि कोई भी उसका मन दुखाना नहीं चाहता था आखिर वह थी इतनी प्यारी अब प्रकृति मैडम ने यह आदेश जारी जो कर दिया था कि अब कात्यायनी जी को मीठा खाने को नहीं मिलेगा और उन्हें मीठा खाने तभी मिलेगा जब वह रोज सुबह वॉक पर जाया करेगी लेकिन बेचारी मासूम से प्रकृति को कौन बताएं कि हमारी कात्यायनी जी बहुत ही हेल्थ कॉन्शियस थी वह अपनी हेल्थ का बहुत अच्छी तरीके से ध्यान देती थी हां एक दो बार उनके ब्लड शुगर लेवल अप डाउन हो गया था लेकिन उसके बाद से उन्होंने अपने आप को काफी अच्छी तरीके से मेंटेन करके रखा था वह रोज सुबह वॉक पर जाया करती थी इसके बारे में सिर्फ और सिर्फ स्वामी जी को पता था और अनिरुद्ध को पता था क्योंकि जिस वक्त वॉक पर जा रही होती थी उसे वक्त प्रकृति पूजा कर रही होती थी महादेव जी की इसी वजह से उसे पता नहीं होता था कि कात्यायनी जी कहां है कात्यानी जी पर बहुत बड़ी मुसीबत आन पड़ी थी क्योंकि कात्यायनी जी बिना मीठे के तो खाना ही नहीं खाती थी उन्हें मीठा बहुत पसंद था बिना मीठे के वह खाना खाना पसंद ही नहीं करती थी उनके हिसाब से थाली में मीठे के बिना खाने की थाली अधूरी होती है और खाना अधूरा सा होता है खाने के साथ तो स्वीट डिश होनी ही चाहिए लेकिन आप उनका यही मीठा की प्यारी सी नातिन ने बंद कर दिया था और इसकी वजह था उनके सामने खड़ा उनका यह बदमाश लगती जिसने उनका मीठा खाना बंद करवाया था अब वह इसे तो छोड़ने वाली नहीं थी क्योंकि वह प्रकृति को कुछ नहीं कह सकती थी लेकिन अनिरुद्ध की तो बहुत अच्छी खासी को पिटाई कर सकती थी और शायद अनिरुद्ध के साथ अब वही होने वाला था क्योंकि कात्यानी जी पानी के किनारे बिल्कुल भी नहीं रह सकती थी इससे पहले अनिरुद्ध कुछ समझ पाता कात्यायनी जी ने जोर का झापड़ उसकी कंधे पर मारा और बोली क्यों रे तुझे हमेशा हमें मिलते हैं टारगेट करने के लिए अगर तुझे तेरी बहन सवालों के जवाब नहीं मिलते तो इसमें मेरी क्या गलती है मुझे हमेशा ही बीच में लेकर आ जाएगा और तेरी वजह से मेरा मीठा खाना बंद हो जाता है अब देख तेरी बहन ने क्या किया उसे मेरा मीठा खाना बंद करवा दिया अब तो मुझे मीठा बिल्कुल भी नहीं मिलेगा हमेशा मेरी तबीयत को हमेशा टारगेट करता रहता है अनिरुद्ध कुछ कहने वाला था इतने में कात्यानी जी ने फिर से डांट करते हुए कहा नहीं आज तो तुम मुझे बता ही दे आखिर तेरी कौन सी दुश्मनी है मुझे मैं तेरा ऐसा क्या चुरा लिया जो तू हमेशा मुझे टारगेट करता रहता है मेरी मीठे के दुश्मन है तू एक नंबर का तुझे मैंने मेरी मिट्टी का दुश्मन जब देखो तब मेरी मीठे खाने के पीछे पड़ा रहता है तेरी नजर लगी है मेरे मीठे खाने को क्या आजकल कई दिनों से मुझे मीठा खाने को नहीं मिल रहा पहले अपनी मां को बिटकाया और अब अपनी बहन को भी यह बोल दिया आज तो मैं तुझे छोडूंगी नहीं आज तो ऐसा सबक सिखाऊंगी मैं तुझे की याद रखेगा तू यह कहते हुए कात्यानी की लगातार उसे झापड़ में झापड़ लगाए जा रही थी कंधे पर और बेचारा अनिरुद्ध वह कहने लगा अरे नानी मां तो मैं क्या करूं क्या जवाब दूं उसे की मन क्यों रो रही थी हमें ही तो पता है ना कि वह क्यों रो रही थी अब उसे यह तो नहीं बता सकते कि उनके रन के पीछे की वजह हमारे दादा है उसे कुछ ना कुछ तो बात कर भेजना ही पड़ेगा ना और सब जानते हैं कि मामा आपकी हेल्थ को लेकर कितनी ज्यादा पजेसिव रहती है बस कुछ दिन के लिए तो मीठा बंद रहेगा और अगर आप कहोगी तो बाहर जाकर भी मैं आपको मीठा खिला दूंगा लेकिन मुझे मारना बंद करो प्लीज बहुत लग रही है दुख रहा है मुझे इतना कहकर अनिरुद्ध ने उनके सामने हाथ जोड़ दिए कात्यायनी जी से कहने लगी एक नंबर का नालायक है तू तेरी वजह से तेरी बहन मुझे मीठा नहीं खाने देता अब तू ही मुझे मीठा खिलाएगा और अब अगर तूने उसे यह कहा ना कि मेरे शुगर लेवल की वजह से तेरी मां परेशान है तो सोच लेना तू फिर देखना तेरा क्या हाल करती हूं अभी चल मुझे बाहर कुछ मीठा खिलाकर लेकर आना और इतना कहकर कात्यानी जी वहां से अंदर की ओर चली जाती है और अनिरुद्ध अपना सर को जाते हुए कैसा रहता है और महादेव की शिवलिंग के आगे हाथ जोड़ते हुए कहता है है महादेव आपको हम मिले थे इन तीन मुसीबत के बीच में फंसने के लिए कैसे मतलब आपने हमें इन तीनों बना के पीछे छुपा दिया एक है जो हमें मुसीबत में डालती है दूसरी है जो सवालों के झंडे डालकर मेरे ऊपर मुसीबत डालती है और तीसरी वह तो क्या ही कहूं उनके बारे में वह तो इसे भी अव्वल है और मुसीबत में नहीं डालते बल्कि सीधा पीटने पर जाती है प्रभु ऐसा क्या गुनाह कर दिया हमने जो हमें ऐसी सजा दे रहे हो जल्दी से कुछ ना कुछ करो ताकि हमें इन तीन बालों से छुटकारा मिले नहीं तो हम इन तीनों के पीछे ही इस कर रह जाएंगे इतना कहकर वह अंदर की और चला जाता है अंदर सभी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हैं फिर अनिरुद्ध और कात्यानी जी ऑफिस चले जाते हैं प्रकृति अपनी कॉलेज चली जाती है सरस्वती जी अपनी किचन का काम खत्म करके हाल में सोफे पर बैठकर न्यूजपेपर पढ़ रही होती है दूसरी तरफ मुंबई

  • 6. Demon king's angle wifey - Chapter 6

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