Aarav जिसे हमेशा लगता है कि उसकी ज़िंदगी में कुछ अधूरा है। उसे अक्सर सपनों में एक लड़की दिखती है – माया। वो लड़की उसे ऐसी लगती है जैसे वो उसे बहुत पहले से जानता हो। धीरे-धीरे आरव को महसूस होता है कि शायद ये उसका पहला जन्म नहीं है। उसके पास कुछ ऐसे... Aarav जिसे हमेशा लगता है कि उसकी ज़िंदगी में कुछ अधूरा है। उसे अक्सर सपनों में एक लड़की दिखती है – माया। वो लड़की उसे ऐसी लगती है जैसे वो उसे बहुत पहले से जानता हो। धीरे-धीरे आरव को महसूस होता है कि शायद ये उसका पहला जन्म नहीं है। उसके पास कुछ ऐसे इशारे आने लगते हैं जो उसे उसके पिछले जन्म की ओर ले जाते हैं – एक पुरानी हवेली, एक पुरानी डायरी और कुछ बातें जो उसकी दादी ही जानती हैं। आरव की ज़िंदगी में बहुत से सवाल खड़े हो जाते हैं – क्या सच में हम दोबारा जन्म लेते हैं? क्या प्यार कभी खत्म होता है?
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रात लगभग दो बज रहे थे। आसमान में चाँद अधूरा था, पर उसकी रौशनी आरव के कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी। पंखा घूम रहा था, लेकिन गर्मी ज़्यादा ही थी। आरव करवटें बदल रहा था, मानो नींद में कुछ देख रहा हो।
"माया... मत जाओ..."
उसने अचानक आँखें खोलीं और एकदम बैठ गया। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, माथे पर पसीना था, और दिल जैसे सीने से बाहर निकलने को तैयार था।
यह कोई पहला मौका नहीं था जब उसे यह सपना आया हो। पिछले कुछ महीनों से वह बार-बार यही सपना देख रहा था।
एक लड़की, सफ़ेद साड़ी में, लंबे खुले बाल, हल्की मुस्कान और आँखों में उदासी। वह किसी पुराने महल की सीढ़ियों से नीचे उतरती है और फिर अचानक धुंध में गायब हो जाती है।
आरव ने पानी की बोतल उठाई, दो घूँट पिए और खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगा। शहर की सड़कें सुनसान थीं, पर उसके मन में शोर मचा था।
"कौन हो तुम? और मुझे क्यों बार-बार बुला रही हो?"
उसने खुद से सवाल किया।
आरव त्रिपाठी, 28 साल का, एक नामी आर्किटेक्ट था। बाहर से सब कुछ परफेक्ट था—अच्छी नौकरी, अपना फ्लैट, और अच्छे दोस्त। लेकिन उसके दिल में कुछ अधूरा था, कुछ ऐसा जो उसे चैन से बैठने नहीं देता था।
"यह सिर्फ़ सपना नहीं हो सकता," उसने बड़बड़ाते हुए कहा। "इतना सच्चा महसूस होता है, जैसे मैं उस जगह को जानता हूँ।"
सुबह होते ही आरव ने अपने लैपटॉप पर वही सपना खोजना शुरू किया—"सपनों में किसी अनजान लड़की को बार-बार देखना", "पिछले जन्म की यादें", "रहस्यमयी सपने"... लेकिन हर जगह बस कहानियाँ और तर्क मिले।
नाश्ते के वक़्त, उसने अपनी दादी अम्मा से पूछा, "दादी, क्या कभी किसी को अपने पिछले जन्म की बातें याद आती हैं?"
सावित्री देवी ने चश्मा हटाकर उसे गौर से देखा और मुस्कुराईं। "ऐसे सवाल क्यों पूछ रहा है तू?"
आरव ने टालने की कोशिश की। "बस ऐसे ही, एक सपना बार-बार आता है...लगता है जैसे कुछ अधूरा रह गया हो।"
दादी कुछ देर चुप रहीं, फिर धीरे से बोलीं, "कुछ बातें होती हैं जो तुझे खुद ही समझ में आएंगी बेटा। हर बात बताने का समय होता है।"
आरव को लगा जैसे दादी कुछ छिपा रही हैं। लेकिन उन्होंने बात बदल दी और फिर से टीवी पर भजन चला दिया।
शाम को आरव अपने दोस्त शिवांश से मिला। उन्होंने एक साथ कॉलेज में पढ़ाई की थी और आज भी अच्छे दोस्त थे।
"तू ठीक तो है ना?" शिवांश ने पूछा, "कुछ परेशान लग रहा है।"
आरव ने सारी बातें बता दीं—सपना, लड़की, पुराना महल, और दादी का अजीब जवाब।
शिवांश ने मज़ाक में कहा, "कहीं तू पिछले जन्म का आशिक तो नहीं?"
आरव ने हल्की सी मुस्कान दी। "काश यह सिर्फ़ मज़ाक होता... लेकिन मैं उस चेहरे को पहचानता हूँ, यार! जैसे मैंने उसे किसी ज़िंदगी में देखा हो...बहुत गहराई से।"
दोनों चाय पीते-पीते चुप हो गए।
कुछ दिन ऐसे ही बीतते गए। आरव ने सपना नोट करना शुरू कर दिया—हर बार की डिटेल्स, हर आवाज़, हर एहसास।
और फिर, एक रात...
सपना थोड़ा और गहरा हो गया।
इस बार सिर्फ़ लड़की नहीं थी, बल्कि एक नाम भी आया—"वृंदावन हवेली"।
सुबह होते ही आरव ने इंटरनेट पर खोज शुरू कर दी—वृंदावन हवेली...और हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के एक पुराने गाँव में वृंदावन हवेली नाम की एक असली जगह मौजूद थी, जो अब खंडहर बन चुकी थी।
आरव की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"क्या यह वही जगह है? क्या माया वहीं से जुड़ी है?"
वह अब ठान चुका था—उसे वहाँ जाना ही है। सवाल बहुत थे, लेकिन जवाब शायद उसी हवेली में छुपे थे।
रविवार की सुबह थी। आसमान साफ़ था, पर आरव के मन में सवालों की घटाएँ उमड़ रही थीं।
उसने अपना बैग पैक किया; लैपटॉप, डायरी, कैमरा और कुछ ज़रूरी कपड़े रखे। दादी से झूठ कहा कि वह ऑफिस के काम से बाहर जा रहा है, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वे परेशान हों।
ट्रेन की टिकट बुक हो चुकी थी – दिल्ली से मथुरा, फिर वहाँ से लोकल बस से उस छोटे से गाँव तक जहाँ वृंदावन हवेली मौजूद थी।
रास्ते भर आरव की नज़रें बाहर के खेतों, पेड़ों और गाँवों पर थीं, लेकिन उसका ध्यान अंदर ही अंदर था। उसका सपना अब सिर्फ़ सपना नहीं रह गया था, बल्कि एक मिशन बन चुका था। उसे यकीन हो गया था कि उस हवेली में उसका कोई बीता हुआ रिश्ता है।
बस जैसे ही गाँव के स्टैंड पर रुकी, एक बूढ़ा आदमी चाय की दुकान पर बैठा दिखाई दिया। आरव पास जाकर पूछा,
"दादाजी, यहाँ कहीं वृंदावन हवेली है?"
बूढ़ा आदमी चौंक गया, फिर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आई।
"तू वहाँ क्यों जाना चाहता है, बेटा?"
"बस यूँ ही, एक पुरानी हवेली के बारे में सुना था… देखने की इच्छा है।"
बूढ़े ने धीरे से कहा,
"वो जगह अब वीरान है, कोई नहीं जाता वहाँ। कहते हैं वहाँ कोई आत्मा भटकती है… एक लड़की की।"
आरव की धड़कन एक पल के लिए थम सी गई।
"क्या नाम था उस लड़की का?"
"लोग कहते हैं, उसका नाम माया था।"
अब आरव को किसी सबूत की ज़रूरत नहीं थी। उसका सपना, उसकी डायरी में लिखे शब्द, और अब यह अनजाना बुज़ुर्ग – सब उसे एक ही दिशा में ले जा रहे थे।
"मैं फिर भी वहाँ जाना चाहता हूँ," आरव ने ठान लिया।
वह हवेली गाँव से करीब तीन किलोमीटर दूर थी। एक पुरानी कच्ची सड़क से होकर जाना था। कुछ झाड़ियों, सूखे पेड़ों और टूटी हुई दीवारों के बीच से गुजरते हुए, आखिरकार वह उस जगह पहुँचा।
वृंदावन हवेली उसके सपनों से भी ज़्यादा रहस्यमयी थी। बड़े-बड़े पत्थर, टूटी खिड़कियाँ, और दीवारों पर बेलें चढ़ी हुई थीं। लेकिन वहाँ कुछ था... कुछ जो उसे अंदर खींच रहा था।
जैसे ही आरव ने हवेली का दरवाज़ा खोला, एक तेज़ हवा का झोंका आया। अंदर धूल थी, लेकिन एक कोना साफ़ था, जैसे कोई वहाँ रोज़ आता हो।
जैसे ही आरव ने हवेली का दरवाज़ा खोला, एक तेज़ हवा का झोंका आया। अंदर धूल थी, पर एक कोना साफ़ था, मानो कोई वहाँ रोज़ आता हो।
वह धीरे-धीरे अंदर गया। सामने एक पुरानी पेंटिंग दिखी – एक महिला की, बिल्कुल वैसी ही जैसी माया उसके सपनों में दिखती थी। वही आँखें, वही साड़ी, वही मुस्कान।
"माया..." उसके मुँह से खुद-ब-खुद निकला।
तभी अचानक पीछे से किसी के कदमों की आवाज़ आई। आरव ने मुड़कर देखा, पर वहाँ कोई नहीं था।
"क्या मुझे कोई देख रहा है?" उसने खुद से पूछा।
उसने घर का हर कोना देखा – पुरानी लाइब्रेरी, सीढ़ियाँ, तहखाने का रास्ता। एक कमरे की दीवार पर कुछ लिखा हुआ था, जो धूल से ढँका था। उसने हाथ से साफ किया, और वहाँ लिखा था:
"प्रेम कभी मरता नहीं, वह सिर्फ लौटता है..."
उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्यों ये शब्द उसे इतने अपने लग रहे हैं।
उसी वक्त उसके बैग से डायरी नीचे गिर गई। जब उसने उठाई, तो उसमें एक पन्ना खुला था, जिस पर पिछले हफ्ते उसने लिखा था – “कहीं वह लड़की माया ही तो नहीं, जिसकी आँखें मुझे मेरे दिल के अंदर तक महसूस होती हैं?”
अब और कोई शक नहीं था।
उसी पल, हवेली के कोने से एक धीमी सी आवाज़ आई – "आरव..."
वह आवाज़ हवा में गूंजी, जैसे किसी ने बहुत दूर से पुकारा हो।
"क...कौन?" आरव ने कांपते हुए पूछा।
कोई जवाब नहीं आया, पर हवा का झोंका फिर से आया... और पेंटिंग की आँखों से एक आँसू नीचे गिरा।
अध्याय 2 समाप्त।
हवेली में बिताई गई वह पहली शाम आरव की ज़िंदगी की सबसे अजीब शाम थी। वापस गाँव लौटते वक़्त उसके मन में हज़ारों सवाल थे। पेंटिंग की आँख से गिरे आँसू, हवा में गूंजती वह आवाज़ — "आरव..." — और दीवार पर लिखा वह वाक्य, सब कुछ जैसे किसी और दुनिया का हिस्सा लग रहा था।
गाँव में रहने के लिए एक छोटी सी धर्मशाला में कमरा मिल गया था। वहीं पहली बार उसकी मुलाकात हुई रिया से।
रिया एक दिल्ली की ट्रैवल ब्लॉगर थी। मस्तीभरी, खुलकर बोलने वाली, और ज़रा भी शर्मीली नहीं।
"ओह हेलो! तुम भी यहाँ रुके हो?" रिया ने चाय का कप हाथ में लिए मुस्कराते हुए पूछा।
"हाँ… कुछ काम से आया हूँ।" आरव ने सिर हिलाया।
रिया ने बिना कोई हिचकिचाहट के उसकी बगल वाली कुर्सी खींची और बैठ गई, "तुम भी एक्सप्लोर करने आए हो? वैसे यहाँ ज़्यादा लोग नहीं आते, तो मुझे लगा तुम गाँव के नहीं हो।"
आरव ने हल्की सी मुस्कान दी। “मैं बस… एक पुरानी हवेली देखने आया था।”
“वृंदावन हवेली?” रिया ने उत्साह से पूछा।
आरव थोड़ा चौंका। “तुम्हें उसके बारे में कैसे पता?”
रिया ने आँख मारी। “अरे बाबा, मैं ट्रैवल ब्लॉगर हूँ! और डरावनी जगहों पर वीडियो बनाना मेरी खासियत है। मैं तो वहीं जा रही थी कल! वैसे अकेले जाओगे? साथ चलें?”
आरव थोड़ा असहज हो गया। उसे कंपनी की ज़रूरत नहीं थी, और खासकर ऐसी लड़की की जो सब कुछ मज़ाक समझती हो।
“नहीं, मैं अकेले ही ठीक हूँ,” उसने सीधा जवाब दिया।
रिया मुस्कराई। “ओह, तो सीरियस टाइप हो! चलो कोई बात नहीं, फिर मिलेंगे।”
वह मुड़कर चली गई, लेकिन जाते-जाते एक बार फिर मुस्कराकर बोली, “वैसे अकेलेपन में कुछ बातें दिल पर असर डाल देती हैं। अगर कभी बात करने का मन हो, तो मैं यहीं हूँ।”
आरव ने मन ही मन सोचा – “मुझे माया चाहिए, कोई और नहीं।”
अगली सुबह वह फिर हवेली पहुँचा। इस बार उसने एक टॉर्च, कैमरा और दस्ताने पहन रखे थे ताकि कुछ खोज सके।
हवेली में दाखिल होते ही उसे वह पुराना तहखाना याद आया जो कल अधखुला मिला था। इस बार उसने पूरी ताकत से दरवाज़ा खोला और नीचे उतर गया।
नीचे की हवा बहुत ठंडी और भारी थी। वहाँ धूल, मकड़ी के जाले और दीवारों पर फटी-पुरानी तस्वीरें थीं।
एक पुराने संदूक के कोने में कुछ चमक रहा था। उसने पास जाकर देखा – एक चमड़े की पुरानी डायरी।
डायरी पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था:
“माया की डायरी – वर्ष 1948”
आरव के हाथ काँप गए। उसने पहला पन्ना खोला:
“15 अगस्त 1948
आज देश आज़ाद हुआ, लेकिन मेरा दिल कैद में है। मुझे आरव से मिलने की इजाज़त नहीं है। बाबा ने कह दिया है – उस गरीब लड़के से कोई रिश्ता नहीं होगा…”
आरव की आँखें नम हो गईं।
“तो मेरा नाम भी आरव ही था उस जन्म में?”
हर पन्ना एक नए दर्द, एक नए प्यार और एक अधूरी कहानी की गवाही दे रहा था।
डायरी में आखिरी पन्ना लिखा था:
“अगर ये डायरी कभी आरव के हाथ लगे, तो जान लो – मेरा वादा अब भी अधूरा है। मैं लौटूँगी… वादा है…”
उसी वक्त तहखाने की दीवार पर कुछ सरसराहट हुई। आरव ने टॉर्च घुमाई, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। सिर्फ एक परछाईं दिखी जो धीरे-धीरे एक लड़की की शक्ल ले रही थी।
वह वही शक्ल थी — माया।
आरव ठिठक गया। परछाईं ने उसकी तरफ देखा और जैसे कुछ कहना चाहा, लेकिन फिर हवा में घुल गई।
आरव वहीं ज़मीन पर बैठ गया, और बोला — “मैं आया हूँ माया… इस बार अधूरी बात पूरी करके ही जाऊँगा।”
जैसे ही हवेली की पुरानी दीवार पीछे सरक गई, एक छुपा हुआ कमरा सामने आ गया। आरव की साँसें थम सी गई थीं। रिया भी एकदम चुप थी; शायद पहली बार उसे भी लगा था कि यह सब मज़ाक नहीं, कुछ बहुत बड़ा राज़ है।
कमरे में बहुत हल्की रोशनी थी। चारों तरफ धूल जमी थी और पुरानी चीज़ों की महक आ रही थी। एक छोटा सा झूमर छत से टंगा था जो बिना हवा के भी धीरे-धीरे हिल रहा था। कमरे के बीच में एक गोल पत्थर का चबूतरा था, जैसे कोई खास पूजा या अनुष्ठान वहीं होता हो।
"आरव... यह जगह थोड़ी डरावनी लग रही है," रिया ने धीरे से कहा।
आरव ने उसकी तरफ देखा और बोला, "डरने का टाइम नहीं है रिया, हम अब बहुत पास हैं उस सच्चाई के, जिसे मैं बरसों से महसूस करता आया हूँ।"
कमरे के एक कोने में लकड़ी की पुरानी अलमारी रखी थी। ऊपर एक मिट्टी का दिया रखा था, जो बुझा हुआ था। आरव ने उसे जलाया। जैसे ही दिया जला, कमरे में एक हल्की सी गर्माहट फैल गई।
अचानक दीवार पर कुछ चमकने लगा। वहाँ लिखा था:
"जिसे सच्चे दिल से पुकारा गया, वही सच्चा प्यार समझ पाएगा।"
"रिया, यही बात माया की डायरी में भी थी। यह सब माया से जुड़ा हुआ है।"
रिया कुछ बोलने ही वाली थी कि अलमारी का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया। अंदर एक छोटा सा संदूक रखा था, जिस पर ताला लगा था और एक कागज़ चिपका हुआ था।
कागज़ पर लिखा था:
"इस संदूक में वह चिट्ठी है जो एक अधूरे प्यार की आखिरी आवाज़ है। इसे वही खोल सकता है जो माया से सच्चा प्यार करता हो।"
आरव ने ताले को छुआ ही था कि वह खुद-ब-खुद खुल गया। जैसे उसे पहचान गया हो।
संदूक के अंदर एक चिट्ठी थी, जिस पर लिखा था:
"मेरे आरव के लिए..."
आरव की आँखों में नमी आ गई थी। उसने काँपते हाथों से लिफाफा खोला और चिट्ठी पढ़ने लगा।
"मेरे आरव,
अगर यह चिट्ठी तेरे हाथ में है, तो इसका मतलब है कि तू अब भी मुझे ढूँढ रहा है...
तेरे बिना हर दिन अधूरा लगा। लोगों ने हमें अलग कर दिया, लेकिन मैं तुझसे दूर कभी नहीं हुई।
मुझे यकीन है कि तू मुझे एक दिन ज़रूर ढूँढेगा।
मैं अब भी तेरा इंतज़ार कर रही हूँ... हर जन्म में।
तेरी…
माया"
चिट्ठी पढ़ते ही हवेली की दीवारों में हल्का सा कंपन हुआ। जैसे पूरी हवेली ने इस प्यार की गवाही दी हो।
रिया अब एकदम चुप थी। उसकी आँखों में भी नमी थी।
"मैंने कभी नहीं सोचा था कि कोई इतना सच्चा प्यार कर सकता है, आरव। अब समझ आया, तू मुझसे दूर क्यों रहता है।"
आरव ने पहली बार उसकी तरफ देखा, पर उस नज़र में कोई झिझक या शर्म नहीं थी—बस एक साफ़ दिल की बात।
"रिया, तू बहुत समझदार है। और अब तू समझ चुकी है कि मैं क्यों किसी और के करीब नहीं जाना चाहता। मेरा दिल पहले ही माया के पास है—चाहे वह इस जन्म में हो या पिछले में।"
रिया हल्का सा मुस्कराई, आँसू छुपाते हुए बोली, "अब समझ आ गया, आरव। और हाँ, ऐसा सच्चा प्यार अधूरा नहीं रह सकता। तू माया से ज़रूर मिलेगा।"
उस पल कमरे में सब शांत हो गया था, पर आरव के दिल में हलचल और तेज़ हो गई थी। अब उसे यकीन था—यह बस यादें नहीं हैं, यह सब असली है। और उसका प्यार अब बहुत पास है।
सपनों से परे की दुनिया
उस दिन हवेली से लौटने के बाद, आरव पूरी रात सो नहीं पाया। उसके दिमाग में माया की चिट्ठी घूमती रही। उसके मन में बहुत से सवाल थे—माया की मौत कैसे हुई? वे कौन लोग थे जिन्होंने उन्हें अलग किया? और अब, आगे क्या करना है?
करीब तीन बजे रात को, जब सब कुछ शांत था, आरव की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं।
और फिर…
वो सपना शुरू हुआ।
आरव ने खुद को एक पुराने जमाने की जगह पर पाया—जहाँ चारों तरफ़ मिट्टी के घर, बैलगाड़ियाँ, और औरतें साड़ी में पानी भरती नज़र आ रही थीं। सब कुछ जैसे किसी और जन्म की दुनिया लग रहा था।
आरव के कपड़े भी बदले हुए थे। उसने सफ़ेद धोती और कुर्ता पहना हुआ था। उसके हाथ में एक लाल रंग का धागा बंधा था, जैसे किसी पूजा के बाद बंधा जाता है।
"आरव!" एक आवाज़ आई।
वह पीछे मुड़ा।
माया खड़ी थी।
उसी तरह के कपड़ों में, बालों में गजरा, और आँखों में वही मासूमियत। वह हँस रही थी, जैसे बहुत सालों बाद किसी को देखा हो।
"तू इतना देर क्यों लगा रहा है? देख, मंदिर के घंटे बज चुके हैं," माया ने प्यार से कहा।
आरव कुछ बोल नहीं पाया। वह उसे सिर्फ़ देखता रहा।
"चल ना," माया ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों मंदिर की तरफ़ चलने लगे।
लेकिन तभी, अचानक…
माया की हँसी रुक गई। उसकी आँखें डर से भर गईं। सामने से कुछ लोग आ रहे थे—हाथ में तलवारें, चेहरों पर गुस्सा।
"यही है वो लड़का!" उनमें से एक ने चिल्लाया।
"माया, भाग!" आरव चिल्लाया।
लेकिन माया वहीं रुक गई। "नहीं आरव, अब और नहीं भागूंगी। हमें जितना लड़ना था, लड़ चुके। अगर किस्मत में जुदाई है, तो अब और नहीं डरूंगी।"
एक आदमी ने माया की तरफ़ तलवार चलाई… और…
आरव की नींद खुल गई।
वह पूरी तरह पसीने से भीगा हुआ था। साँसें तेज़, दिल की धड़कन जैसे कानों में गूंज रही थीं।
उसने जल्दी से अपनी डायरी उठाई और सपना लिखना शुरू किया। पूरा सपना जैसे किसी फ़िल्म की तरह उसकी आँखों के सामने था।
"रिया को यह सपना बताना चाहिए?" उसने सोचा।
फिर खुद ही बोला, "नहीं… यह सिर्फ़ मेरा है। माया और मेरा।"
लेकिन अब एक बात साफ़ थी—माया की मौत अचानक नहीं हुई थी। किसी ने उसे मारा था। और शायद यह राज़ अभी भी हवेली के किसी कोने में छुपा हुआ था।
आरव ने तय किया—अब वह सिर्फ़ यादें नहीं देखेगा। अब वह सच सामने लाएगा।
"जो भी हुआ, मैं जानकर रहूँगा… माया के लिए… और खुद के लिए भी।"
तहखाने का राज़
सुबह होते ही आरव ने फैसला किया—उसे हवेली के तहखाने में जाना ही था। रात का सपना, माया की चिट्ठी, और वह गुप्त कमरा…सब एक ही बात कह रहे थे—सच कहीं नीचे छिपा है।
रिया को उसने कुछ नहीं बताया। वह नहीं चाहता था कि वह खतरे में पड़े।
हवेली की पिछली दीवार के पास एक टूटा हुआ दरवाज़ा था, जो हमेशा बंद रहता था। आरव को वहाँ एक पुराना लॉक मिला, लेकिन हैरानी की बात यह थी कि वह खुला हुआ था।
"लगता है…कोई यहाँ पहले भी आ चुका है," उसने धीरे से कहा।
वह सीढ़ियों से नीचे उतरा। नीचे अंधेरा था। उसने जेब से टॉर्च निकाली और रोशनी फैलाई।
तहखाना बड़ा था। बहुत पुराना और बहुत ठंडा। दीवारों पर जाले थे, कुछ लकड़ी के बॉक्स रखे थे, और बीच में एक पुराना झूला टंगा था—जैसे कोई बच्ची कभी वहाँ खेला करती थी।
आरव की टॉर्च एक दीवार पर रुकी—वहाँ खून के छींटों जैसे निशान थे।
"क्या…यही माया की मौत की जगह थी?" उसका दिल धड़कने लगा।
वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा, और एक कोने में उसे एक पुराना, बंद संदूक मिला। ऊपर धूल जमी थी, और ताले में जंग। लेकिन जैसे ही उसने उसे छुआ, ताला खुद खुल गया।
संदूक के अंदर कुछ कपड़े थे…और एक फोटो।
फोटो में एक लड़की थी…माया नहीं…रिया।
आरव की आँखें चौड़ी हो गईं।
"ये कैसे हो सकता है…ये तो रिया है, लेकिन बहुत पुरानी फोटो लग रही है…"
फोटो के पीछे एक पंक्ति लिखी थी:
"अगर तुम यह पढ़ रहे हो, तो जान लो कि रिया सिर्फ तुम्हारी दोस्त नहीं है। वह इस जन्म की माया है।"
आरव के हाथ काँपने लगे।
"रिया…माया है?"
उसी पल, पीछे से किसी की आवाज़ आई—"तू यहाँ कैसे आया, आरव?"
आरव ने मुड़कर देखा—रिया खड़ी थी, उसके चेहरे पर अब तक का सबसे गहरा और रहस्यमयी भाव था।
"तू जानता है ना, इस तहखाने में जो आता है, वह कभी वैसा नहीं रहता जैसा बाहर गया था," रिया की आवाज़ बदल चुकी थी। जैसे उसमें दो आत्माएँ एक साथ बोल रही हों।
"रिया…तू…माया है?" आरव की आवाज़ काँप गई।
रिया मुस्कुराई, और बोली—"मैं ही हूँ माया…और अब तू भी जान चुका है। लेकिन यह बस शुरुआत है आरव। असली खेल अब शुरू होगा…"
हवेली के तहखाने में, जहाँ अंधेरा गहराता जा रहा था…वहाँ अब सच की रोशनी फैल चुकी थी।
आरव की आँखों में हैरानी, दर्द और सवालों का तूफान था। रिया—या अब कहें माया—खामोश खड़ी थी, जैसे उसने खुद को बहुत समय बाद पूरी तरह से किसी के सामने खोला हो।
"रिया…या माया…जो भी तू है…तूने पहले क्यों नहीं बताया?" आरव ने काँपती आवाज़ में पूछा।
माया ने एक लंबी साँस ली। "क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि तुझ पर फिर से वही दर्द आए, जो हमने पिछले जन्म में झेला था।"
आरव कुछ नहीं बोला, बस उसकी आँखों में देखता रहा।
"आरव… पिछले जन्म में हम बस प्यार नहीं करते थे, हम कसम खाए हुए थे… सात जन्मों की कसम। लेकिन हमारा प्यार कुछ लोगों को मंज़ूर नहीं था।"
"कौन थे वो?" आरव ने धीरे से पूछा।
"मेरे ही परिवार के लोग…" माया की आवाज़ भर्रा गई। "मेरे ताऊजी, जिन्होंने मेरी शादी एक मंत्री के बेटे से तय कर दी थी, ताकि उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सके। और जब मैंने मना किया… तो… उन्होंने मुझे मार डाला।"
आरव के रोंगटे खड़े हो गए। "क्या… तेरे अपने?"
"हाँ," माया की आँखों से आँसू बहने लगे, "और उन्होंने ये सब ऐसे किया जैसे मैंने आत्महत्या की हो।"
"और मैं…?" आरव ने पूछा।
"तू मुझसे मिलने आ रहा था उसी रात… लेकिन उन्होंने तुझे बेहोश कर दिया। तू दो दिन तक कोमा में रहा। जब होश आया, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। तुझे यकीन दिलाया गया कि मैंने तुझे धोखा दिया।"
आरव की मुट्ठियाँ कस गईं। उसकी आँखों में गुस्सा था, दर्द था… और अब सच भी।
"माया… अब हम साथ हैं… फिर से। इस बार कुछ भी हमें अलग नहीं कर सकता," उसने माया का हाथ पकड़ा।
"नहीं, आरव," माया ने हाथ धीरे से छुड़ाते हुए कहा, "अभी भी एक कसम अधूरी है। इस जन्म में हमें फिर से उस अधूरे प्यार को पूरा करना है… लेकिन उससे पहले… मुझे अपना बदला लेना है।"
"बदला?" आरव चौंका।
"हाँ… जिसने मुझे मारा, वो अब भी ज़िंदा है। और सबसे हैरानी की बात ये है, कि वो तुझसे भी जुड़ा है।"
"क्या मतलब?"
माया ने धीरे से कहा—"तेरा सगा चाचा… वही जो आज तुझे बहुत मानता है… वही मेरा हत्यारा है।"
असली दुश्मन
हवेली से लौटते वक़्त आरव की आँखें सुर्ख थीं। रिया—अब माया—की बातों ने उसके दिल-दिमाग में तूफ़ान ला दिया था।
"मेरे अपने चाचा…? माया के हत्यारे?"
उसका दिल मानने को तैयार नहीं था, पर माया के शब्द झूठ भी नहीं लग रहे थे।
चाचा जी — बचपन से उसके सबसे करीब। हर चोट पर मरहम, हर गलती पर ढाल बने खड़े रहते। लेकिन अब लग रहा था, शायद उनकी मुस्कान के पीछे कोई गहरा राज़ छुपा है।
अगले दिन…
आरव घर लौटा तो देखा कि चाचा जी आँगन में बैठकर पुराने एल्बम देख रहे थे।
"आ गया मेरा शेर!" चाचा ने मुस्कुराकर कहा, "कैसी रही हवेली की सैर?"
आरव ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन अंदर कुछ दरक रहा था।
"चाचा जी… एक बात पूछूँ?" उसने सीधा सवाल किया।
"हाँ बेटा, पूछ।"
"क्या आप माया को जानते थे?"
चाचा जी का चेहरा पल भर को सख्त हो गया, लेकिन फिर तुरंत संभल भी गया।
"कौन माया?" उन्होंने चौंकने का नाटक किया।
"वही… जो पिछले जन्म में मेरी ज़िन्दगी थी। और… जिसकी मौत अब एक राज़ नहीं रही।" आरव ने कहा।
अब चाचा जी की आँखों में हल्का डर उभर आया था।
"क्या बकवास कर रहा है तू, आरव? पिछले जन्म? ये सब फालतू की बातें हैं।"
"झूठ मत बोलिए चाचा। आप उस तहखाने में गए थे। ताले पर आपके हाथों के निशान थे। और वो संदूक जिसमें रिया की तस्वीर थी… वही जिसे आप बचपन में 'पुरानी चीज़ों का बोझ' कहकर छुपा दिया करते थे।"
चाचा अब चुप थे।
आरव का गुस्सा बढ़ने लगा। "क्यों किया आपने ऐसा? क्यों मारा माया को?"
चाचा ने गहरी साँस ली। "क्योंकि अगर माया उस लड़के से शादी कर लेती… यानी तुझसे… तो हमारे खानदान की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाती। उसके ताऊ ने मुझसे मदद माँगी थी। और मैं… मैंने मान लिया।"
आरव पीछे हट गया, जैसे किसी ने उसे थप्पड़ मारा हो।
"मैंने सिर्फ़ समझौता किया था," चाचा बोले, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि वो मर जाएगी। हम तो बस उसे डराना चाहते थे… लेकिन वो… फिसल गई… और सिर पर चोट लगी… और सब खत्म।"
"आपको लगता है ये सिर्फ़ हादसा था?!" आरव चीखा।
चाचा ने आँखें झुका लीं। "तू जो चाहे सज़ा दे ले बेटा… मैं अब अपने गुनाह से नहीं भाग रहा हूँ।"
तभी पीछे से आवाज़ आई — "सज़ा कानून देगा, आरव नहीं।"
माया, यानी रिया, वहाँ खड़ी थी, पुलिस के साथ।
"आपने हमारे प्यार को मिटाने की कोशिश की थी। अब हम आपको मिटाएँगे नहीं… आपको आपके कर्मों से मिलवाएँगे।"
पुलिस ने चाचा जी को हिरासत में ले लिया।
चाचा ने जाते-जाते कहा, "माफ़ कर देना, बेटा… मैं सिर्फ़ परम्पराओं का गुलाम था।"
आरव चुपचाप माया के पास गया।
"अब क्या?" उसने पूछा।
माया ने मुस्कराते हुए कहा, "अब… हम फिर से जीएँगे। पहली बार, बिना डर के।"
पुलिस वाले चाचा जी को ले गए थे, और हवेली में अब एक अजीब सी शांति थी — जैसे सालों पुराना कोई बोझ उतर गया हो।
आरव और माया दोनों कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे।
"तू ठीक है?" आरव ने माया से पूछा।
माया हल्के से मुस्कराई, "हाँ… अब लग रहा है कि मैं सच में ज़िंदा हूँ। अब कोई डर नहीं बचा।"
आरव ने उसका हाथ थामा। "अब हम साथ हैं, और यही सबसे बड़ी बात है।"
अगले दिन…
आरव ने माया को शहर की सबसे ऊँची पहाड़ी पर चलने को कहा। वह वही जगह थी जहाँ कभी उसने अपने सपनों में माया को देखा था — खुला आसमान, ठंडी हवा, और दूर-दूर तक फैली रोशनी।
"क्या तू सच में इस रिश्ते को एक बार फिर से जीना चाहती है?" आरव ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा।
माया ने बिना झिझक कहा, "इस बार नहीं… हर बार जीना चाहती हूँ।"
और फिर… आरव ने अपनी जेब से एक छोटा सा लाल डिब्बा निकाला।
"माया… क्या तू मेरे साथ इस जन्म को… और हर अगले जन्म को बिताना चाहती है?"
माया की आँखों में पानी था। "हाँ… सौ बार हाँ!"
दोनों हँस पड़े। वहाँ न कोई तामझाम था, न भीड़, न शोर — बस दो प्यार करने वाले, और उनका सच्चा रिश्ता।
लेकिन… जैसे ही उन्होंने नीचे की तरफ़ उतरना शुरू किया, माया को हल्की चक्कर सी आने लगी।
"क्या हुआ?" आरव ने घबराकर पूछा।
माया ने अपना सिर पकड़ा, और बोली, "आरव… कुछ अजीब सा लग रहा है… जैसे किसी ने मेरी आत्मा को फिर से खींचने की कोशिश की हो…"
आरव ने उसे पकड़ लिया, लेकिन माया बेहोश हो गई।
अगला दृश्य — हॉस्पिटल का कमरा।
डॉक्टर बाहर निकला, और बोला, "उसे अजीब तरह का ब्रेन स्ट्रेस हुआ है। उसका दिमाग पिछले जन्म की यादों से इतना भर गया है कि अब शरीर उस बोझ को नहीं सह पा रहा है।"
"तो क्या…" आरव की आवाज़ काँपी।
"अगर इसे जल्द कंट्रोल में नहीं लिया गया, तो माया की यादें पूरी तरह मिट सकती हैं… इस जन्म की भी और पिछले जन्म की भी।"
आरव टूट गया।
उसे अब अपनी सबसे बड़ी लड़ाई लड़नी थी — माया की यादों को बचाने की लड़ाई।