यह कहानी अगस्त्य और काशवी की अगस्त्य ने जबरदस्ती काशवी से नफरत के रिश्ते में शादी कर लिया जिसके लिए काशवी कभी तैयार नहीं थी। लेकिन अब जब वह दोनों इस रिश्ते में जुड़ चुके हैं तो देखना यह है कि कैसे अगस्त्य और काशवी के नफरत भरे रिश्ता प्यार में बदलता ह... यह कहानी अगस्त्य और काशवी की अगस्त्य ने जबरदस्ती काशवी से नफरत के रिश्ते में शादी कर लिया जिसके लिए काशवी कभी तैयार नहीं थी। लेकिन अब जब वह दोनों इस रिश्ते में जुड़ चुके हैं तो देखना यह है कि कैसे अगस्त्य और काशवी के नफरत भरे रिश्ता प्यार में बदलता है।
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मुंबई शहर में एक ऊँची इमारत के सबसे ऊपरी तल पर, 29 वर्षीय एक युवक बैठा था। उसकी जिम से तराशी हुई क़द्-काठी थी, पर उसकी आँखों में कोई भाव नहीं दिख रहा था। उसके बाल थोड़े उस्तरे से सँवारे हुए थे, माथे पर आँखों के ऊपर तक आ रहे थे। वह बेहद आकर्षक था, किसी मॉडल से कम नहीं। उसके हाथ में एक सिगरेट जल रही थी, जिसके कश वह ले रहा था।
एक आदमी पीछे से आया और बोला, "बॉस, जिस ज़मीन पर हम काम शुरू करना चाहते हैं, उस पर एक एनजीओ है। उसकी मालकिन उसे तोड़ने की इजाज़त नहीं दे रही है। दरअसल, वह हमें धमकी दे रही है कि वह पुलिस में शिकायत करेगी।"
यह सुनकर युवक ने सिगरेट फेंक कर अपने पैरों से कुचल दिया और कहा, "और तुम उसकी धमकी से डर गए?" उसकी तेज आवाज से वह आदमी सहम गया। वह हकलाते हुए बोला, "नहीं बॉस, ऐसा नहीं है। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी। और वह कोई मामूली लड़की नहीं है, मुंबई की जाने-माने बिज़नेसमैन संजीव शर्मा की बड़ी बेटी है। मुझे कुछ नहीं सुनना, वह ज़मीन मुझे किसी भी हाल में चाहिए, नहीं तो आप सोच सकते हैं कि मैं क्या कर बैठूँगा।" इतना कहते हुए वह तेज़ रफ़्तार से केबिन से बाहर निकल गया।
यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि अगस्त्य राठौर था, एक शीर्ष बिज़नेसमैन और अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह। लोगों ने उसे कभी देखा नहीं था, केवल नाम से ही जानते थे। वह आज तक किसी के सामने नहीं आया था।
अगस्त्य अपनी गाड़ी लेकर उस जगह पहुँचा जिस ज़मीन के लिए वह पिछले एक महीने से कोशिश कर रहा था। एक बड़ा सा एनजीओ, जिस पर "खुश एनजीओ" का बोर्ड लगा था। उसने अपने आदमियों से कहा, "जल्द से जल्द इस एनजीओ को खाली करो और इसे तोड़ दो। बहुत वक़्त हो गया, मुझे अपना काम जल्दी शुरू करना है।"
उसके आदमी आगे बढ़े और एनजीओ का सामान तोड़ने लगे।
तभी वहाँ एक लड़की आई और उसने उन्हें रोकते हुए कहा, "ये क्या कर रहे हैं आप लोग? ये मेरी जगह है। आप मेरी इजाज़त के बिना ये सब नहीं कर सकते।"
उनमें से एक आदमी बोला, "ये हमारे बॉस का आदेश है, हमें करना पड़ेगा।"
"आपका बॉस कहाँ है? मुझे उससे बात करनी है। कैसे कोई मेरे स्थान पर अपनी मनमानी कर सकता है?" लड़की ने कहा। आदमी ने बताया, "बॉस बाहर गाड़ी में हैं।"
वह लड़की बाहर आई और देखा कि एक काली मर्सिडीज़ के पास एक आदमी खड़ा था, जो किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसे सिर्फ़ उसकी पीठ दिखाई दे रही थी।
लड़की ने कहा, "कौन हो तुम? और क्यों मेरे एनजीओ को तोड़ रहे हो? मैंने मना कर दिया है, मतलब मैं नहीं दूँगी।"
उसकी आवाज़ सुनकर अगस्त्य पीछे मुड़ा। जैसे ही उसने उसे देखा, वह देखता ही रह गया। सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी, जिसका नाम काशवी था। सफ़ेद कुर्ती, सफ़ेद पायजामा, बहुरंगी दुपट्टा, अच्छे बाल, छोटे झुमके, माथे पर बिंदी, होंठों पर हल्की लिपस्टिक, आँखों में काजल – कुल मिलाकर वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।
अगस्त्य उसे देखता ही रह गया। तभी वह लड़की उसके सामने आकर बोली, "हेलो मिस्टर, आई एम टॉकिंग टू यू।"
तभी अगस्त्य का सहायक बोला, "यह ज़मीन हमें काम के लिए चाहिए। इसके बदले में हम आपको मनचाही रकम दे सकते हैं।"
लड़की को बहुत गुस्सा आया और वह चिल्लाई, "आपका दिमाग खराब हो गया है! मैं शुरू से कह रही हूँ, मुझे यह एनजीओ की ज़मीन नहीं देनी।"
उसकी तेज आवाज़ सुनकर अगस्त्य उसे घूर कर देखने लगा क्योंकि आज तक किसी ने भी अगस्त्य के सामने आवाज़ ऊँची नहीं की थी।
सहायक बोला, "आवाज़ नीचे करके बात करो, तुम्हें पता नहीं है ये कौन हैं?"
"मुझे जानने का भी शौक़ नहीं है। मैं चाहती हूँ कि आप अपने आदमियों को रोको। आप लोगों ने हमें एक महीने से परेशान किया है। यहाँ इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं है। यहाँ इतने बच्चे रहते हैं, अगर यह एनजीओ टूट जाएगा तो वे कहाँ रहेंगे? मैं यह ज़मीन नहीं दे रही हूँ, और यह एनजीओ मेरे नाम पर है। हिम्मत है तो मुझे ले जाकर दिखाइए क्या कर सकते हैं आप।"
सहायक बोला, "तुम बहुत पछताओगी, तुम्हें पता भी नहीं है तुम किससे पंगा ले रही हो।"
काशवी बोली, "और तुम्हें भी नहीं पता कि तुम किससे पंगा ले रहे हो। मैं भी कोई मामूली लड़की नहीं हूँ। तुम्हें मुझसे पंगा लेना बहुत भारी पड़ेगा।"
अगस्त्य, जिसकी निगाहें लगातार काशवी पर थीं, अचानक अपने सहायक से बोला, "अभी के अभी सबको रुकने को बोलो।"
उसकी बात सुनकर सहायक तुरंत सबको रोक दिया। और अगस्त्य वहाँ से बिना कुछ कहे अपनी कार से चला गया।
काशवी अंदर आकर सामान को ठीक करने के लिए कुछ लोगों को बुलाया। कुछ देर में एनजीओ पहले जैसा हो गया, लेकिन कई जगह बहुत नुकसान हो चुका था। काशवी ने अपने सहायक को कहा कि कल तक सब ठीक हो जाना चाहिए।
इधर, कार में…
अगस्त्य ने अपने सचिव से कहा, "इस लड़की के बारे में सारी जानकारी जल्द से जल्द निकाल कर मुझे दो।"
कुछ देर बाद वह अपने ऑफिस पहुँचा। ऑफिस पहुँचकर अगस्त्य अपना काम करने लगा। तभी अगस्त्य का सचिव एक फ़ाइल लेकर आया और बोला, "सर, उस लड़की की सारी जानकारी इस फ़ाइल में है।"
अगस्त्य ने केवल सिर हिलाया। अगस्त्य ने फ़ाइल खोली और सारी जानकारी पढ़ने लगा। तभी उसके चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान आ गई। "तो तुम वही हो, बहुत इंतज़ार करवाया तुमने। काशवी शर्मा, बहुत जल्द तुम मेरी हो जाओगी, क्योंकि सालों से इस दिल और दिमाग पर सिर्फ़ तुम ही हो।"
कुछ दिन बाद…
शर्मा इंडस्ट्रीज़ में काशवी अपने केबिन में कुछ फ़ाइलें चेक कर रही थी। उसके चेहरे पर चिंता साफ़ दिख रही थी। तभी उसकी सचिव आई और बोली, "मैम, हमारे शेयर कुछ दिनों में बहुत गिर गए हैं। हमें कुछ भी करके प्रॉफ़िट कमाना होगा, नहीं तो इस नुकसान से हमारा बिज़नेस बर्बाद हो जाएगा।"
काशवी बोली, "तुम सही कह रही हो सिया, लेकिन ऐसा कैसे? अचानक से हमारे सारे शेयर इतने गिर सकते हैं? इतना नुकसान आज तक नहीं हुआ। मुझे लगता है यह राठौर इंडस्ट्रीज़ की वजह से हो रहा है। उन्होंने पहले तुम्हारे एनजीओ पर कब्ज़ा करना चाहा और अब हमारे शेयर खरीदकर हमें नुकसान पहुँचा रहे हैं।"
यह सुनकर काशवी बोली, "तो मिस्टर राठौर से बात कर लेते हैं। मीटिंग के लिए उन्हें मैसेज भेज दो। अब या तो होगा या पार।" काशवी की आँखों में गुस्सा साफ़ दिख रहा था।
शर्मा कंपनी की ओर से जैसे ही कश्वी ने अगस्त्य के साथ मीटिंग का मैसेज भेजा, अगस्त्य जानता था कि कश्वी उससे मिलेगी। इसलिए उसने तुरंत approval एक्सेप्ट करते हुए कहा, "कल ही उसके साथ मेरी मीटिंग फिक्स करो।" उसकी आँखों में अलग ही भाव दिखाई दे रहे थे, जो किसी के समझ में नहीं आ रहे थे।
अगला दिन, राठौर इंडस्ट्रीज के सामने कश्वी खड़ी थी। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था। वह तुरंत बिल्डिंग के अंदर जाकर रिसेप्शनिस्ट से पूछती है, "मिस्टर राठौर से मुझे मिलना है।"
वह लड़की तुरंत किसी को कॉल करके बताती है कि मेम आ चुकी हैं। कश्वी अजीब नजरों से उसे घूर कर देखती है। तभी एक आदमी आकर कश्वी से कहता है, "मेम, सर केबिन में हैं। आपको उन्होंने वहीं बुलाया है।"
कश्वी गुस्से में उसके केबिन के अंदर जाती है और पाती है कि अगस्त्य बड़े से काँच के वॉल पर पीठ किए खड़ा था। वह बिना पीछे मुड़े कहता है, " कैसी हो, sweetheart?"
"आप पूरी तरीके से पागल हो क्या? एक तो पहले NGO के लिए परेशान किया, अब मेरी कंपनी को लॉस करवा रहे हो। ये सब बंद करो, नहीं तो मैं आपको छोड़ूंगी नहीं!" कश्वी गुस्से से कहती है।
अगस्त्य पलटते हुए कहता है, "मैं तो अब चाहता ही हूँ कि तुम मुझे कभी ना छोड़ो।" वह उसके बेहद करीब आ जाता है। कश्वी अपने कदम पीछे लेने लगती है। पीछे जाते-जाते उसकी पीठ दीवार से लग जाती है। अगस्त्य उसके बिल्कुल सामने था।
जैसे ही कश्वी साइड से निकलने की कोशिश करती है, अगस्त्य उसे दोनों हाथों से ब्लॉक कर देता है।
"तो तुम चाहती हो कि मैं यह सब बंद कर दूँ, और तुम्हारे NGO को न तोड़ूँ और न ही तुम्हारी कंपनी को लॉस करवाऊँ? Right?" अगस्त्य पूछता है।
"हाँ, बिल्कुल," कश्वी कहती है।
"तो मेरी एक शर्त है।" अगस्त्य कहता है।
"कैसी शर्त?" कश्वी उसे देखते हुए कहती है।
अगस्त्य उसकी आँखों में देखते हुए कहता है, "Marry me।"
"What?? दिमाग खराब हो गया है क्या? बकवास कर रहे हो!" कश्वी कहती है।
"बकवास बिल्कुल भी नहीं कर रहा हूँ। मुझे तुम पसंद आ चुकी हो। और तुम्हारी daringness और तुम्हारा बिंदास अंदाज़ मुझे बहुत पसंद आया है।" अगस्त्य कहता है।
कश्वी उसे अपने से दूर धकेलते हुए कहती है, "बकवास बंद करो।"
"Choice is yours। दो दिन का टाइम दे रहा हूँ। दो दिन के अंदर तुमने अगर शादी के लिए हाँ नहीं कहा, तो मैं जबरदस्ती तुमसे शादी कर लूँगा।" अगस्त्य कहता है।
"अगर मैं ना कर दिया तो?" कश्वी पूछती है।
"तो तुम सोच भी नहीं सकती मैं क्या कर सकता हूँ। चाहो तो trailer दिखा सकता हूँ।" कहते हुए अगस्त्य कश्वी के और बढ़ने लगता है। तभी कश्वी उसे अपने से दूर धकेलते हुए कहती है, "हद में रहो!" और वह उसके केबिन से बाहर निकल जाती है।
अगस्त्य जाते हुए देखकर कहता है, "अब तो सारी हद पार होगी!" वह अपनी सीट पर आकर बैठ जाता है। उसके सामने कश्वी का चेहरा घूम रहा था। उसके होठों पर कातिल मुस्कान थी।
इधर कश्वी अपनी कार में बैठते हुए सोच रही थी, "मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था! यह पूरा इंसान ही पागल है। शादी ऐसे ही थोड़ी ना कर लूंगी! यह तो वैम्पायर से कम नहीं लगता है!" कहते हुए कश्वी तरह-तरह के मुँह बना रही थी। वह अपने घर की ओर निकल पड़ती है।
सही दिन बीत जाता है। अगले दिन, कश्वी अपने कमरे में थी। तभी उसके कमरे में उसकी माँ, मीना जी आती हैं और कहती हैं, "कशी बेटा, जरा नीचे आना। तुमसे कुछ बात करनी है।"
कश्वी अपनी माँ की बात सुनकर नीचे आती है। उसके पापा और मम्मी हाल में बैठे थे।
तभी कश्वी को देखकर उसके पापा कहते हैं, "बेटा, आज तक मैंने तुम्हारे किसी भी डिसीजन को तुमसे बिना पूछे नहीं लिया है। तो आज भी एक डिसीजन तुमसे पूछकर ही लेना चाहता हूँ।"
उनकी बात सुनकर कश्वी कहती है, "पापा, आज तक आपने कभी भी मेरे लिए गलत डिसीजन नहीं लिया है, तो आप कैसे लेंगे?"
फिर उसके पापा, संजीव जी कहते हैं, "हमें तुमसे यही उम्मीद थी। राठौर इंडस्ट्रीज के बारे में तुम जानती हो?"
कश्वी हैरानी से उन्हें देखती है, फिर कहती है, "हाँ, जानती हूँ।"
"उन्हीं के बड़े बेटे के लिए तुम्हारा रिश्ता आया है। तुम्हें रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है, तो मैं चाहता हूँ कि तुम इस रिश्ते के बारे में सोचो।"
बात सुनकर कश्वी कुछ देर के लिए शॉक में चली जाती है। फिर उसकी बहन, साक्षी उसे हिलाते हुए कहती है, "दीदी, कुछ तो बोलो।"
कश्वी अपने होश में आती है और कहती है, "पर पापा, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूँ, और वह भी अगस्त्य राठौर से? वह तो बहुत बुरा इंसान है।" कहकर कश्वी अपने कमरे में चली जाती है।
कश्वी की बात सुनकर उसकी मम्मी कुछ कहने को होती है, तब उसके पापा हाथ दिखाकर उन्हें रोक देते हैं और कहते हैं, "जाने दो। उसका मन नहीं है, तो इस रिश्ते के लिए मना कर दो। मैं अपनी बेटी पर किसी भी तरीके का डिसीजन नहीं थोपना चाहता।"
संजीव जी की बात सुनकर मीना जी कहती हैं, "लेकिन ऐसा रिश्ता बार-बार नहीं आता। हमारा बैकग्राउंड अच्छा है और उनका बैकग्राउंड हमसे बहुत बड़ा है। हमारी बेटी वहाँ राज करके रहेगी, लेकिन यह समझ नहीं रही है। कम से कम आप तो समझाइए।"
तब संजीव जी कहते हैं, "मैं सब समझता हूँ। अगस्त्य के पापा, राघव राठौर ने मुझे कुछ दिन पहले आकर बात की। उसने मुझे सारी चीज़ों के लिए माफ़ी माँगी, कि NGO के लिए हमें परेशान किया। मुझे उनका यह बिहेवियर अच्छा लगा। उन्होंने मुझसे कश्वी के लिए अपने बेटे का हाथ माँगा। मैंने कहा कि मैं सिर्फ़ अपनी बेटी से बात करूँगा। अगर वह हाँ करेगी, तो मैं इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहूँगा।"
तो क्या कश्वी करेगी? अगस्त्य को शादी के लिए हाँ...?
राठौर मेंशन
अगस्त्य अपने पिता के सामने बैठा था। उसके पिता ने उसे देखकर कहा, "तुमने जिस लड़की के बारे में हमें बताया, हम उस लड़की को पहले से ही जानते हैं। वह लड़की बहुत ही होशियार और सफल है। तुम्हारे कहने पर मैं उसके पिता से उसकी शादी की बात कर चुका हूँ। लेकिन तुम यह सब क्यों कर रहे हो? तुम तो पहले शादी के लिए ना-नुकुर कर रहे थे, अब खुद कह रहे हो कि तुम्हें शादी करनी है।"
अपने पिता से अगस्त्य ने कहा, "डैड, मुझे वह लड़की पसंद है, इसलिए मैं उससे शादी करना चाहता हूँ।" उसके पिता ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है। बस ध्यान रहे कि तुम कुछ ऐसा-वैसा काम ना करो।" कहकर वे वहाँ से चले गए।
राघव राठौर बहुत ही नरम दिल के इंसान थे और अगस्त्य उनका इकलौता बेटा था। इस कारण वे उनकी कोई भी बात नहीं टालते थे। राघव ने ही अगस्त्य और काशवी की शादी की बात मिस्टर शर्मा से की थी।
राघव जी के जाने के बाद अगस्त्य ने अपनी आँखें बंद की और कहा, "इसमें मेरा एक ही मकसद है—काशवी को हासिल करना। पहले से ही, जबसे मैंने उसे देखा था, वह मुझे मोह ले गई है। और उसका वह एटीट्यूड, किसी से ना डरना, मुझे भा गया है। अब मैं किसी भी हाल में उसे हासिल करके ही रहूँगा।" अगस्त्य की आँखों में एक अलग ही जुनून नज़र आ रहा था।
अगले दिन, काशवी अपने एनजीओ में बच्चों के साथ खेल रही थी। तभी उसकी नज़र पड़ी—वहाँ अगस्त्य खड़ा था। अगस्त्य बेहद गुस्से में दिख रहा था। काशवी उसे देखकर एक पल के लिए डर गई, फिर खुद को मज़बूत करते हुए बोली, "आप यहाँ क्यों हैं?"
"ओह, रियली? अब मुझे तुम्हें बताना पड़ेगा कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ?" कहते हुए अगस्त्य काशवी की ओर बढ़ा, उसका हाथ पकड़ा और बाहर ले जाकर अपनी गाड़ी में बिठाया। फिर खुद भी बैठकर तेज़ी से गाड़ी चलाने लगा।
काशवी लगातार उसे रोकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अगस्त्य के सिर पर मानो खून सवार हो गया था। वह उसके किसी भी बात का जवाब दिए बिना तेज़ी से गाड़ी चला रहा था। काशवी को बहुत डर लग रहा था। उसने डर से अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। कुछ देर में गाड़ी एक बड़े से विला के सामने रुकी।
अगस्त्य ने काशवी को कार से बाहर निकाला और खींचते हुए अंदर ले गया। काशवी लगातार उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह नाकाम रही।
अगस्त्य ने उसे अंदर ले जाकर कुछ कागज़ उसके हाथ में थमा दिए और कहा, "क्या अब भी तुम शादी के लिए मना करोगी?" वह कागज़ों की ओर इशारा कर रहा था।
काशवी ने जैसे ही कागज़ खोले, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके पिता की सारी प्रॉपर्टी के कागज़ थे। इसमें साफ़ लिखा था कि सारी प्रॉपर्टी अगस्त्य के नाम पर हो चुकी है।
वह गुस्से में कागज़ फाड़कर बोली, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! यह क्या हरकत है?" तो अगस्त्य ने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, "तुम नहीं जानती कि अपने पति से कैसे बात करनी चाहिए?" कहते हुए उसने अपनी उंगलियाँ उसके गालों पर फेरनी शुरू कर दीं। काशवी ने जोर से उसे धक्का दिया और पीछे धकेल दिया। अगस्त्य इसके लिए तैयार नहीं था; वह दो कदम पीछे हट गया।
काशवी ने कहा, "तुम तो इज़्ज़त के लायक ही नहीं हो! मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं!"
अगस्त्य ने कहा, "बस यही अदा पर मैं तुम पर मर चुका हूँ! अब बस तुम्हें अपना बनाना है मुझे।"
काशवी बहुत गुस्से में उसे देख रही थी, लेकिन अगस्त्य के आगे उसकी नज़रों का कोई असर नहीं हो रहा था।
अगस्त्य ने फिर कहा, "अब सब तुम्हारे हाथ में है। तुम अपने पिता को बर्बाद करना चाहती हो या मेरे साथ शादी करना? तुम्हें दोनों में से कोई एक चीज़ चुननी होगी।"
काशवी वहीं जमीन पर बैठकर रोने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। फिर उसने अपने आप को संभालते हुए अगस्त्य से कहा, "मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
काशवी की बात सुनकर अगस्त्य के होंठों पर एक कातिल सी मुस्कान आ गई। फिर वह उसके पास घुटनों के बल बैठ गया और उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा, "इतने कीमती आँसू तुम ऐसे ही नहीं बहा सकतीं। ये बहुत ख़ास हैं।" कहते हुए अगस्त्य ने उसके सर को अपने होंठों से चूमा।
काशवी को उसका इतना करीब आना बिलकुल पसंद नहीं आया। उसने तुरंत उसे झटक दिया और दूर हो गई।
काशवी की हरकत पर अगस्त्य ने कहा, "कब तक दूर भागोगी? अब तो आना ही है तुम्हें मेरे पास।"
वह अपना हाथ काशवी की ओर बढ़ाते हुए बोला, "चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।"
काशवी ने उसे अपना हाथ नहीं दिया, तो अगस्त्य ने उसे अपनी गोद में उठा लिया। काशवी उससे छूटने के लिए छटपटा रही थी। फिर अगस्त्य ने कहा, "अगर हिली तो यहीं पटक दूँगा! फिर हाथ पर टूँडवा कर मुझसे शादी करनी पड़ेगी।" उसकी बात सुनकर काशवी ने उसे घूर कर देखा, फिर वह चुपचाप वैसे ही रही। अगस्त्य उसे गाड़ी में बिठाया और कुछ देर में उसे शर्मा हाउस छोड़ आया।
काशवी अपने घर आई और चुपचाप, किसी से कुछ बोले बिना, अपने कमरे में चली गई। कमरे में आकर वह जोर-जोर से रोई, फिर अपने आप को संभालते हुए बोली, "अगस्त्य राठौर, यह तुमने अच्छा नहीं किया! तुम मुझसे शादी करके बहुत पछताओगे!" काशवी की आँखों में बहुत गुस्सा नज़र आ रहा था।
काशवी नीचे आकर अपनी माँ से बोली, "माँ, मैं अगस्त्य से शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
काशवी ने अपने दिल पर पत्थर रखकर अपनी माँ से यह बात कह दी।
मिना जी उसकी बात सुनकर बहुत खुश हो गईं। उन्होंने उसे गले से लगाते हुए कहा, "बहुत अच्छा बेटे, तुमने सही फ़ैसला लिया है। तुम जानती हो, उस घर में तुम हमेशा खुश रहोगी।"
लेकिन काशवी का दिल ही जानता था कि वह कैसे यह सब कह रही थी।
काशवी ने शादी के लिए हां कर दिया था, लेकिन उसने मन ही मन ठान लिया था कि वह अगस्त्य को इसके लिए कभी माफ़ नहीं करेगी। अगस्त्य ने जिस तरह उसे ब्लैकमेल करके शादी के लिए मनाया था, उसका बदला वह अवश्य लेगी।
काशवी के हां कहते ही अगले दिन अगस्त्य की बड़ी दादी, रीना राठौर, और माँ, गीतिका राठौर, शर्मा हाउस आईं और काशवी के लिए कुछ शगुन का सामान लाया।
काशवी अपने कमरे से नीचे आई। उसे पता था कि आज अगस्त्य के परिवार के सदस्य आने वाले हैं। काशवी को देखते ही गीतिका उसकी ओर आईं और उसकी बलाई लेते हुए बोलीं, "मेरी बहू कितनी सुंदर है! किसी की नज़र न लगे।" कहते हुए उन्होंने अपनी आँखों का काजल निकालकर काशवी के कान के पीछे लगा दिया।
रीना जी ने काशवी की खूबसूरती और चेहरे के नूर को देखकर कहा, "हमारे पोते की पसंद बहुत अच्छी है। हमें बहुत पसंद आई। हमारे राजपूत खानदान के लिए ऐसा ही सौंदर्य, रूप और चेहरे पर तेज चाहिए था।"
काशवी उनकी सारी बातें ध्यान से सुन रही थी। उसके मन में बहुत सारे सवाल और उलझनें थीं।
कुछ देर बाद, गीतिका और रीना जी, काशवी को सारे शगुन और तिलक करके वापस चली गईं।
काशवी अपने कमरे में आई। उसने अपने सिर का दुपट्टा हटाया, जिसे कुछ देर पहले गीतिका जी ने उसे ओढ़ाया था। वह बिस्तर पर बैठकर सोचने लगी कि उसके साथ क्या हो रहा है।
तभी उसके फ़ोन पर किसी का कॉल आया। उसने देखा कि कॉल अनोन नंबर से है। उसने कॉल रिसीव किया। उधर से किसी की आवाज़ आई, "हेलो, वुड बी मिसेज़ राठौर, कैसी हैं आप?"
उस आवाज़ को पहचानते ही काशवी समझ गई कि यह अगस्त्य की आवाज़ है। उसने उसे कोई जवाब नहीं दिया। अगस्त्य को जवाब न मिलने पर फिर बोला, "क्या हुआ? वैसे मुझे पता है तुम्हें क्या हुआ है, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता। शादी तुम्हें मुझसे करनी ही पड़ेगी। वैसे मैंने सिर्फ़ इतना बोलने के लिए फ़ोन किया था कि मैं एक हफ़्ते के अंदर ही तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"
काशवी ने उसकी बात सुनकर हैरानी से कहा, "एक हफ़्ते के अंदर? इतनी जल्दी भी क्या है? आज ही तो आपके घर वाले मुझे शगुन देखने आए हैं। अभी डेट कैसे फ़िक्स कर सकते हैं, वह भी बिना किसी से पूछे?"
"मैं किसी से नहीं पूछता, बल्कि मैं अपने डिसीजन खुद ही लेता हूँ और तुम्हें मेरे डिसीजन को मानना पड़ेगा।" अगस्त्य ने फ़ोन काट दिया।
काशवी हैरान-परेशान होकर फ़ोन को एकटक देख रही थी। एक हफ़्ते के अंदर उसकी शादी अगस्त्य से हो जाएगी!
वह नीचे आई तो देखा कि उसके पापा और मम्मी कुछ परेशान से लग रहे थे। उसने उनसे जाकर पूछा कि क्या हुआ है। उसकी माँ ने उसे बताया कि राठौर परिवार एक सप्ताह के अंदर ही शादी करना चाहते हैं। इस बीच शादी की तैयारी कैसे करेंगे?
संजीव जी ने कहा, "हो जाएगी सब तैयारी, आप चिंता मत कीजिए।" कहते हुए वे तैयारी में जुट गए।
काशवी कुछ नहीं बोली। वह जानती थी कि यह होने वाला है।
काशवी चुपचाप अपने कमरे में चली गई। वह अपनी किस्मत को कोस रही थी कि वह अगस्त्य से क्यों मिली।
एक हफ़्ते बाद, शादी के सारे रस्म शुरू होने वाले थे। काशवी शादी की तैयारी और शॉपिंग में ही उलझी रही। काशवी को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसके जितने भी ड्रेस थे, उसकी बहन साक्षी ने ही डिसीड किए थे। वह तो एक नज़र भी कुछ देर तक नहीं रुकी थी।
एक हफ़्ते बाद, आज अगस्त्य और काशवी की हल्दी थी।
शर्मा हाउस बहुत खूबसूरती से सजाया गया था। हर जगह व्हाइट और पीले रंग के पर्दे लगे थे और हर जगह फूल भी सजे हुए थे। बहुत खूबसूरती से दुल्हन की तरह सजाया गया था।
इधर काशवी भी अपने कमरे में हल्दी के लिए तैयार हो चुकी थी। उसने येलो कलर का फूलों वाले डिज़ाइनर लहंगा पहना था। उसने बहुत ही सुंदर सा कुंदन का सेट पहना था, बालों का अच्छा सा हेयरस्टाइल बनवाया था और उसने मेकअप ना के बराबर ही किया था। इन सब में भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। साक्षी उसे तैयार करते हुए बोली, "वह भी यह लुकिंग सो ब्यूटीफुल देखेंगे ना, तो देखते ही रह जाएँगे। लेकिन अभी तक आपने मुझे अपनी चीज़ें दिखाई ही नहीं!" कहती हुई साक्षी बच्चों जैसा मुँह बनाती है। तो काशवी उसे चिढ़ाते हुए बोली, "तुझे क्यों मिलने की इतनी पड़ी है? वैसे भी उनमें मिलने जैसा कुछ नहीं है।"
साक्षी बोली, "आप जिजू के लिए कुछ ज़्यादा ही पॉज़ेसिव तो नहीं हो रही हो, जो अपनी बहन से ही नहीं मिला रही हो?" अपनी बहन की बात सुनकर काशवी और ज़्यादा गुस्से में आ गई। वह कुछ कहती, इससे पहले ही मीना जी अंदर आईं और बोलीं, "काशवी बेटा, चलो राठौर परिवार आ गया है नीचे हल्दी के लिए। सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।"
मीना जी और साक्षी दोनों काशवी को लेकर नीचे आईं। काशवी जाकर नीचे स्टेज पर बैठ गई। सभी उसे हल्दी लगाने लगे। कुछ देर में हल्दी पूरी तरह काशवी को लग चुकी थी।
वह अपने कमरे में नहाने गई, तभी किसी ने उसके हाथ पकड़ कर दरवाज़े से लगा दिया। वह एक पल के लिए डर गई। वह चिल्लाने ही वाली थी कि उस इंसान ने उसके होंठों पर अपना हाथ रख दिया। काशवी ने जैसे ही अपनी आँखें खोलीं, सामने अगस्त्य को देखकर उसकी आँखें बड़ी हो गईं।
वह कुछ बोल नहीं पा रही थी क्योंकि अगस्त्य ने उसके होंठों पर अपना हाथ रखा हुआ था। इशारे में काशवी ने अगस्त्य को अपना हाथ हटाने को कहा, तो अगस्त्य ने अपना हाथ हटा दिया। काशवी ने राहत की साँस ली और बोली, "आप पागल हैं! ऐसा कोई करता है? और आप यहाँ क्या कर रहे हैं? जाइए यहाँ से!" कहते हुए काशवी गुस्से में उसे धक्का देने लगी। तो अगस्त्य उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला, "आज हमारी हल्दी है, तो मैं तुम्हें हल्दी लगाने आया हूँ।" काशवी की बात पर गुस्सा आ गया। उसने कहा, "मुझे आपसे हल्दी नहीं लगानी, अब जाइए यहाँ से!" अगस्त्य उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला, "नहीं जा रहा, पहले मुझे तुम्हें हल्दी लगानी है।" कहकर उसने वहाँ रखे बाउल में से हल्दी उठाई और काशवी के पेट पर लगा दी। इसके झटके से काशवी की आँखें बंद हो गईं और उसका पूरा शरीर काँप गया। अगस्त्य उसे देखकर मुस्कुराया और फिर उसे बाकी की हल्दी पूरे शरीर पर लगाने लगा। काशवी को अगस्त्य का ऐसा करना मानो अच्छा लग रहा था। बंद आँखों से वह अगस्त्य को महसूस कर रही थी। तभी अगस्त्य ने उसके कान में धीरे से कहा, "मुझसे पसंद न करने का दावा करती हो, तो मेरे करीब आने से तुम्हारी आँखें क्यों बंद हो गईं?"
काशवी ने उसकी बात सुनकर तुरंत अपनी आँखें खोलीं। सामने अगस्त्य उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था। वह दूर हटकर बोली, "आप यहाँ से प्लीज़ चले जाइए। कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा?" अगस्त्य बोला, "ठीक है, चला जाऊँगा, लेकिन एक शर्त पर।"
काशवी चिढ़ते हुए बोली, "कैसी शर्त? क्या मुझे आपको किस करना पड़ेगा?" काशवी हैरानी से उसे देख रही थी। वह बोली, "मैं आपको किस नहीं कर रही हूँ। चुपचाप यहाँ से चले जाइए।"
अगस्त्य उसके बिस्तर पर लेटे हुए बोला, "नहीं जा रहा, जब तक तुम मुझे किस नहीं करती।"
उफ़्फ़! चिढ़ते हुए काशवी अगस्त्य को देख रही थी, जो आराम से उसके बिस्तर पर लेटा हुआ सीटी बजा रहा था।
तभी काशवी के कमरे में किसी ने खटखटाया। वह आवाज़ सुनकर डर गई। अगस्त्य को देखते हुए बोली, "देखिए, कोई आ गया है कमरे में। प्लीज़ आप चले जाइए यहाँ से।" अगस्त्य ने कहा, "मैं नहीं जा रहा।" काशवी बोली, "आप प्लीज़ समझ क्यों नहीं रहे हो?"
काशवी उसे लगातार समझा रही थी, लेकिन अगस्त्य नहीं मान रहा था।
फ़्रस्ट्रेट होकर काशवी ने अगस्त्य को अपनी ओर खींचा और उसके गाल पर किस कर दिया। अगस्त्य के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
वह बोला, "ये तो छोटी सी किस है। मुझे फ़ील भी नहीं हुआ।" काशवी उसे घूरते हुए बोली, "आप जा रहे हैं या नहीं जा रहे?"
"जा रहा हूँ, लेकिन आखिरी बार। इतने छोटे किस से काम नहीं चलेगा।" कहकर अगस्त्य वहाँ से चला गया।
काशवी ने राहत की साँस ली और जाकर अपना दरवाज़ा खोला तो पाया कि साक्षी उसे घूरकर देख रही थी। उसने साक्षी से कहा, "क्या हुआ?" साक्षी बोली, "मैं कितनी परेशान हो गई थी! मैं 15 मिनट से दरवाज़ा लगातार खटखटा रही थी।"
काशवी बोली, "वो मैं बाथरूम में थी।"
"अच्छा।" कहकर साक्षी उसके कमरे में आ गई। उसके पीछे-पीछे काशवी भी आ गई। अपने-अपने मेहँदी के लिए ड्रेस निकालने लगीं। काशवी बोली, "नहीं..."
साक्षी बोली, "ठीक है, मैं निकाल दे रही हूँ। आप जाकर हल्दी साफ़ कर लीजिए।"
काशवी नहाने के लिए बाथरूम में चली गई।
अगले दिन मेहँदी थी। आज कश्मीरा ने बहुत ही खूबसूरत सा हरा रंग का शरारा पहना था। उसने फूलों की ज्वैलरी पहनी थी और बालों को खुला छोड़कर कुछ हेयर एक्सेसरीज़ लगाए थे। वह आज बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसके हाथों में अगस्त्य के नाम की मेहँदी लग रही थी। सामने कुछ लोग गाना-बजाना कर रहे थे और कुछ लड़कियाँ वहाँ पर नाच रही थीं। कश्मीरा का ध्यान कहीं और ही था; वह अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी।
कुछ ही देर में उसके हाथों में पूरी मेहँदी लग चुकी थी। मेहँदी लगवाते-लगवाते वह बहुत थक चुकी थी, इसलिए उसने अपने कमरे में जाकर आराम करने का सोचा। उसने अपनी माँ को कह दिया कि वह अपने कमरे में जा रही है। वह अपने कमरे में आ गई।
कमरे में आकर वह अपनी बालकनी में चली गई। वहाँ चाँद को देखते हुए उसने कहा-
"चाहत, फ़िक्र, वफ़ा और सादगी,
बस चीज़ों ने मेरा तमाशा बना दिया।"
वह अपने हाथों की मेहँदी को देखते हुए सोच रही थी, "एक लड़की के लिए शादी का दिन सबसे खूबसूरत पल होता है, लेकिन मेरे लिए यह मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा पल है, जिसे मैं कभी याद नहीं करना चाहती।"
अगली सुबह शादी का दिन आ गया। सभी तैयारी कर रहे थे। कश्मीरा ने पेरट ग्रीन रंग का फ्रिल लॉन्ग अनारकली सूट पहना था। उसने बालों को सिम्पल सा चोटी बनाया हुआ था। वह नीचे आती ही सभी शादी की तैयारी में लगे हुए थे। तभी उसके पास साक्षी आते हुए बोली-
"दीदी, आप अपने मेहँदी का कलर तो दिखाइए कि मेरे जीजू आपसे कितना प्यार करते हैं।"
कश्मीरा अपने हाथों की मेहँदी देखने लगी। मेहँदी का रंग बहुत ही गहरा और सुंदर आया था। जिसे देखकर साक्षी बोली-
"ओ हो! देखो तो मेरे जीजू का प्यार कितने अच्छे से खिला है आपके हाथ में।"
कश्मीरा, जिसने अपने मेहँदी का रंग अभी तक नहीं देखा था, साक्षी की बात सुनकर उसने एक नज़र अपने हाथों पर देखी। फिर वह बोली-
"कलर आने से कुछ नहीं होता, सब सिर्फ़ बातें हैं। मेहँदी के रंग से कोई यह नहीं जान सकता कि उसका पति उससे प्यार करता है या नहीं।"
साक्षी बोली-
"यह बातें नहीं, सच होती हैं। देखो तो आपका कलर कितना प्यारा है।"
वे बातें कर ही रही थीं कि वहाँ पर मीना जी आईं और कश्मीरा से बोलीं-
"कश्मीरा बेटा, आज गौरी पूजन है। शादी का जोड़ा पहनने से पहले एक बार गौरी पूजा कर लेना। मैंने सारी तैयारी कर ली है।"
कश्मीरा अपनी माँ की बात सुनकर उन्हें गले लगाते हुए बोली-
"हाँ माँ, कर लूँगी। वैसे आपने खाना खाया?"
जैसे ही कुछ कहती, कश्मीरा बोली-
"मैं कुछ नहीं सुन रही। चलिए आप पहले कुछ खा लीजिए, फिर बाकी की तैयारी बाद में कर लीजिएगा।"
कहते हुए वह उन्हें डाइनिंग एरिया में बैठा देती है। वह अपने माँ-बाप की बहुत केयर करती थी। शुरू से ही उनके खाने-पीने का ध्यान रखती थी और वह जानती थी कि शादी की तैयारी के बीच उन्होंने ठीक से खाना नहीं खाया होगा।
कश्मीरा अपने पापा को भी खींचकर डाइनिंग टेबल पर ले आई।
"क्या पापा, अब तो मेरी शादी हो ही जाएगी। कम से कम आज तो मेरी बात सुन लीजिए। तब से ना ना कर रहे हैं आप।"
कहते हुए अपने हाथों से अपने पापा को खिलाने लगी। मिस्टर शर्मा अपनी बेटी के हाथ से खाते हुए उन्हें देख रहे थे। उनकी आँखें नम हो गईं। इसे देखकर कश्मीरा की भी आँखें नम हो गईं। वह अपने पापा के गले लगते हुए बोली-
"आप ऐसे रोओगे तो मुझे नहीं करनी शादी।"
संजीव जी बोले-
"अरे नहीं नहीं, मैं नहीं रो रहा। मैं तो सिर्फ़ इतना देख रहा हूँ कि मेरी बिटिया इतनी बड़ी हो गई है कि अब वह अपने नए घर जाकर नया परिवार बनाएगी।"
तभी मीना जी बोलीं-
"हाँ, अब तो तुम्हारा वही घर अपना होगा। ध्यान रखना, वहाँ पर किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देना। हर समय अपने पति का साथ देना और अपने ससुराल वालों को खुश रखना।"
तभी संजीव जी बोले-
"सिर्फ़ ससुराल वाले और पति का नहीं, बल्कि अपने आप को भी खुश रखना। कभी कुछ तकलीफ़ हो तो तुम्हारे पापा हमेशा तुम्हारे लिए खड़े हैं।"
उनकी बात सुनकर कश्मीरा उनके गले लगते हुए बोली-
"आप वर्ल्ड के बेस्ट पापा हो।"
मौहौल ज़्यादा सेंटी हो रहा था, जिससे साक्षी बोली-
"बस बस! सुबह से रोने-धोने लगोगे तो कैसे चलेगा? आज दीदी की शादी है, सब लोग खुश हो।"
बात सुनकर कश्मीरा बोली-
"जब तेरी शादी होगी ना, तब मैं पूछूँगी कि सेंटी होना है या नहीं।"
साक्षी उसकी बात पर मुँह बनाते हुए बोली-
"मैं कहीं नहीं जा रही, मैं हमेशा यहीं रहूँगी।"
मीना जी बोलीं-
"हाँ हाँ! बड़े दामाद जी का तो पता नहीं, लेकिन छोटे दामाद जी को बहुत ही ज्यादा पापड़ बेलने पड़ेंगे तुम्हें अपने घर में रखने के लिए।"
इसके बाद साक्षी और ज़्यादा चिढ़ गई, जिसे देखकर सभी हँसने लगे।
देखते-देखते शाम का वक़्त भी आ गया। पूरा शर्मा हाउस रॉयल रेड रंग से दुल्हन की तरह सजा हुआ था। डेकोरेशन बहुत ही खूबसूरत और रॉयल लग रहा था। उन्होंने कोई भी कमी नहीं छोड़ी थी, आखिर उनके घर की सबसे बड़ी बेटी की शादी थी।
इधर कश्मीरा को सब तैयार कर रहे थे। कश्मीरा आज किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। डार्क रेड रंग का जोड़ा पूरे तरीके से उसके रंगत को निखार रहा था। हैवी ज्वैलरी और ब्राइडल मेकअप में वह आज बेहद खूबसूरत लग रही थी। तभी साक्षी उसे देखकर बोली-
"मैंने आज तक इतनी खूबसूरत दुल्हन कहीं नहीं देखी। आप कितनी सुन्दर लग रही हो!"
तभी उनमें से एक कज़िन ने कहा-
"सच में, हमारे जीजू तो जीत गए इतनी खूबसूरत बीवी पाकर।"
कहते हुए वह कश्मीरा और अगस्त्य का नाम लेकर छेड़ने लगी। कश्मीरा बस हल्का सा मुस्कुरा रही थी। उसका दिल ही जान रहा था कि वह इस वक़्त क्या महसूस कर रही है। तभी उसके कानों में बैंड-बाजा की आवाज़ आई। जिसे सुनते ही साक्षी चलते हुए बोली-
"बारात आ गई! चलो अब हम चलते हैं, बारात का स्वागत भी करना है।"
कहते हुए वह सब चली गईं। कश्मीरा की आँखें हल्की नम हो गईं, लेकिन उसने जैसे-तैसे अपने आप को संभाला और कहा, "नहीं कश्मीरा, तुझे अपने पापा के लिए मज़बूत होना ही होगा।"
सभी नीचे बारात का स्वागत कर रहे थे। सामने मंडप में अगस्त्य बैठा था। वह आज किसी राजा से कम नहीं लग रहा था। कलरफुल फुल वर्क हैवी कुर्ता, नीचे पजामा, मोज़ड़ी और बहुत ही खूबसूरत सी पगड़ी में वह बहुत ही हैंडसम लग रहा था।
तभी पंडित जी ने मीना जी से कहा कि वधु को ले आएँ। साक्षी और उनके कुछ कज़िन जाकर कश्मीरा को नीचे लाते हैं। कश्मीरा नीचे आती है, उसकी नज़रें झुकी हुई थीं। वह धीरे से अपने लहँगे को संभालते हुए चल रही थी। उसने एक भी नज़र सामने उठाकर नहीं देखा। अगस्त्य की नज़रें कश्मीरा पर टिकी हुई थीं। कश्मीरा बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।
तभी उसके दो दोस्त, जिनके नाम नील और कार्तिक थे, वह दोनों अगस्त्य को छेड़ते हुए बोले-
"बस भाई! माना कि भाभी आज बहुत खूबसूरत लग रही है, तो तुम उसे ऐसे देखोगे तो लोग क्या सोचेंगे? कि दूल्हा कितना बेशर्म है, ऐसे अपनी दुल्हन को कोई देखता है?"
उनकी बात सुनकर अगस्त्य उन्हें घूरते हुए बोला-
"शट अप!"
मंडप से उठकर कश्मीरा को लेने आता है। कश्मीरा भी अपना हाथ आगे करके उसका हाथ थामती है। कश्मीरा ने बिना किसी भाव के उसके हाथ में अपना हाथ रख दिया। दोनों मंडप में बैठ गए।
कश्मीरा एकटक सामने अग्नि को देख रही थी। अगस्त्य के चेहरे पर भी कोई भाव नहीं था। पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे। मंत्र पढ़ते हुए उन्होंने थाली आगे की और अगस्त्य को मंगलसूत्र और सिंदूर पहनाने को कहा। अगस्त्य ने पहले मंगलसूत्र पहनाया, फिर कश्मीरा की मांग में सिंदूर भरा। सिंदूर भरते वक़्त कश्मीरा की आँखें और नम हो गई थीं। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जिससे कुछ आँसुओं की बूँदें उसके गालों पर आ गईं। अगस्त्य ने अपने हाथों से साफ किया।
अगस्त्य का जेस्चर देखकर संजीव जी और मीना जी को अच्छा लगा कि उनका दामाद उनकी बेटी की केयर करता है।
इधर साक्षी का अलग ही खेल चल रहा था। वह लगातार अगस्त्य के जूते ढूँढने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अगस्त्य के जूते नील के पास थे। जिसकी खबर उसे लग चुकी थी। वह कैसे भी करके नील से अगस्त्य के जूते लेने की तरकीब ढूँढ रही थी। तभी उसने नील को एक कमरे में जाते हुए देखा। वह उसके पीछे चली आई। नील ने सामने एक बॉक्स रखा और वह वॉशरूम में चला गया। साक्षी भी धीरे से उस कमरे में आई और देखा कि नील बाथरूम में है। तो वह चुपके से बॉक्स को उठाने ही वाली थी कि पीछे से नील ने उसकी कलाई पकड़ कर अपनी ओर खींचा और उसकी आँखों में देखते हुए कहा-
"चोरनी कहीं की!"
"मैं कोई चोर नहीं हूँ! मैं अपने जीजू के जूते लेने आई हूँ। चुपचाप से मुझे दे दो, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं।"
कहते हुए उसने उसे उंगली दिखाई। तो नील ने उसकी उंगली को साइड करते हुए कहा-
"मेरी खैर तो तब होगी जब तुम इस जूते को मुझसे ले पाओगी।"
वह उसके सामने जूते दिखाता है, तो साक्षी उसके ऊपर लपकती है। वह खुद को संभाल नहीं पाती और वह सीधे नील के ऊपर गिर जाती है। नील भी हड़बड़ा जाता है। दोनों एक साथ जमीन पर गिर जाते हैं। नील ने तुरंत ही साक्षी को पकड़ लिया था। उसका एक हाथ साक्षी की कमर में था और एक हाथ सिर के नीचे ताकि साक्षी को चोट ना लगे। नील साक्षी को देख रहा था। साक्षी की आँखें डर की वजह से बंद थीं। नील बस साक्षी को ही देखे जा रहा था। साक्षी आज बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने पीच कलर का बहुत ही खूबसूरत सा लहँगा पहना था, जिसमें वह बहुत प्यारी और क्यूट लग रही थी। तभी जब साक्षी को एहसास हुआ कि वह सेफ है, तो उसने अपनी आँखें खोलीं। सामने नील का चेहरा देखकर वह एक पल को स्तब्ध रह गई। फिर वह अपने होश संभालती और उठने लगी। उठते ही उसने नील को धक्का दिया, जिससे नील फिर से नीचे गिर गया। वह उठकर बॉक्स लेकर नील को दिखाकर हँसते हुए बोली-
"देखा, ले लिया ना?"
नील तो उसे देखा ही रह गया। वह उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उससे पहले साक्षी वहाँ से भाग चुकी थी। वह नीचे आती है और आकर अगस्त्य के सामने खड़ी हो जाती है। जूते दिखाती है और कहती है-
"मेरा निक?"
अगस्त्य उसे सामने देखकर कहता है-
"बताइए साली साहिबा, आपको क्या चाहिए?"
तो साक्षी कहती है-
"मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आप मेरी दीदी को खुश रखना।"
कहते हुए वह अपने हाथों से अगस्त्य को जूते पहनाने लगती है।
अगस्त्य अपने जेब से नोटों की गड्डी निकालता है और साक्षी के हाथ में रखते हुए कहता है-
"ये लो, तुम्हारा नेग।"
साक्षी उसे लेने से मना करती है, तब गीता जी कहती हैं-
"अरे बेटा, ले लो, ये तो शगुन होता है।"
गीता जी के कहने पर साक्षी उसे ले लेती है।
कुछ ही देर में विदाई का भी समय आ जाता है। कश्मीरा की आँखें नम थीं, साथ ही साथ उसके पूरे घरवालों की भी आँखें नम थीं। साक्षी उसे गले लगाते हुए जोर से रोने लगती है, जिससे कश्मीरा का सब्र टूट जाता है और वह भी रोने लगती है। फिर मीना जी आकर दोनों बहनों को संभालती हैं। कश्मीरा एक-एक करके सबसे मिलती है। आखिर में वह अपने पापा से मिलती है। उन्हें देखकर कश्मीरा की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। कश्मीरा के पापा अपने आप को मजबूत करते हुए कहते हैं-
"बेटा, अपना ख्याल रखना और ज़्यादा मत रोना। तुम तो अपने ही घर जा रही हो।"
कहते हुए वह उन्हें अपने सीने से लगा लेते हैं। उनका दिल ही जानता था कि उन्होंने अपनी बेटी को कितनी नज़ाकत से पाला था और वह आज उसे किस तरीके से विदा कर रहे हैं।
वह अगस्त्य को देखते हुए कहते हैं-
"बेटा, अब आप मेरी बेटी का ख्याल रखना। उससे अगर कोई गलती हो जाए तो उसे प्यार से समझाना, वह समझ जाएगी।"
अगस्त्य उनके हाथ में अपना हाथ रखते हुए कहता है-
"आप चिंता मत कीजिए, मैं इसका ख्याल अपने से भी ज़्यादा रखूँगा।"
फिर अगस्त्य कश्मीरा का हाथ पकड़कर अपनी कार में बैठाता है और खुद भी बैठ जाता है। कश्मीरा की आँखों से अभी भी लगातार आँसू बह रहे थे।
उनकी कार स्टार्ट होती है और आगे बढ़ जाती है। कश्मीरा अभी भी रोए जा रही थी। तभी अगस्त्य ने इरिटेट होकर कहा-
"मैं तुम्हें कोई किडनैप करके नहीं ले जा रहा हूँ जो तुम इतने आँसू बहा रही हो!"
उसकी बात सुनकर कश्मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना मुँह विंडो साइड घुमा दिया। अब अगस्त्य और भी ज़्यादा चिढ़ गया। उसने कश्मीरा को अपनी ओर खींचा और उसे अपनी गोद में बैठाते हुए कहा-
"चुप! एकदम! अब एक भी आँसू निकल ना तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
कश्मीरा उसे दूर धकेलते हुए कहती है-
"आपसे बुरा कोई हो भी नहीं सकता।"
कहते हुए वह उसकी बाहों में सिसकने लगती है। तो अगस्त्य उस पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए कहता है-
"अब तुम चाहकर भी मुझसे दूर नहीं जा सकती।"
कहते हुए वह कश्मीरा की आँखों से आँसू पोछता है।
कुछ ही देर में वे राठौर मेंशन पहुँच जाते हैं।
उनकी गाड़ी राठौर मेंशन के सामने खड़ी थी।
अगस्त्य गाड़ी से नीचे उतरा और अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए काशवी की ओर किया और कहा, "वेलकम टू योर न्यू होम, काशवी अगस्त्य सिंह राठौर।"
काशवी ने अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। अगस्त्य ने उसका हाथ जबरदस्ती पकड़ते हुए कहा, "अब तो तुम्हें यह हाथ पकड़ना ही पड़ेगा।" कहते हुए वह उसका हाथ पकड़कर गाड़ी से बाहर निकला।
काशवी को बिना मन के उसका हाथ पकड़कर बाहर निकलना पड़ा। जैसे ही काशवी कार से बाहर निकली, उन पर फूलों की वर्षा हुई और ढोल-नगाड़े बजने लगे।
अगस्त्य, काशवी का हाथ पकड़े, उसे अंदर ले गया। अंदर जाकर वे दोनों इंटरेस्ट गेट पर खड़े हुए। सामने राठौर परिवार, काशवी का स्वागत करने के लिए खड़ा था।
गीतिका जी, अपने हाथ में थाल लेकर, दोनों की आरती उतारने लगीं। उन्होंने दोनों का तिलक किया, फिर काशवी को कलश अपने दाएँ पैर से गिराने को कहा। काशवी ने उनके कहे अनुसार वैसा ही किया।
आरती के कहने पर, थाल में पैर रखते वक्त काशवी थोड़ी लड़खड़ा गई। अगस्त्य ने उसे पीछे से पकड़ लिया जिससे वह संभल गई। फिर वह अपने कदम घर के अंदर रखी।
अगस्त्य का काशवी का साथ देते हुए देखकर, बड़ी दादी दोनों की बलाई लेते हुए बोलीं, "हाए मेरे बच्चों को किसी की नज़र न लगे।"
कुछ देर में सारी रस्में खत्म हुईं और अगस्त्य की बहन, रितिका, काशवी को अगस्त्य के कमरे में ले गई।
"हेलो भाभी," रितिका बोली, "रितिका, आपकी छोटी ननद। मैं आपसे अच्छे से मिल नहीं पाई, लेकिन मेरी और आपकी बहुत अच्छी जमेगी। आप मुझे पहली नजर में बहुत ज़्यादा अच्छी लगीं।"
रितिका की बात सुनकर काशवी हल्के से मुस्कुरा दी।
फिर रितिका, काशवी को अगस्त्य के कमरे में छोड़कर वापस बाहर आ गई।
अगस्त्य अपने कमरे में आया तो नील, रितिका और करण बाहर ही अगस्त्य का रास्ता रोक लिए।
अगस्त्य अपने आइब्रो उठाकर उन्हें देख रहा था, मानो पूछ रहा हो कि यह क्या हो रहा है?
रितिका अगस्त्य के सामने आते हुए बोली, "भाई, पहले आपने एक तोहफ़ा दिया, अब आपको वापस जाना पड़ेगा।"
रितिका की बात सुनकर अगस्त्य ने अपने सामने से अपना गोल्डन क्रेडिट कार्ड निकालकर उसके हाथ में थमाते हुए कहा, "लो, तुम्हें जो चाहिए, तुम ले सकती हो।"
रितिका अगस्त्य की बात सुनकर बहुत खुश हुई। फिर उसने उसे रास्ता दिया, लेकिन करण और नील ने उसका रास्ता फिर से रोक लिया। खीझते हुए अगस्त्य ने उन्हें घूरकर देखा और कहा, "अब तुम दोनों को क्या चाहिए?"
नील थोड़ा धीरे-धीरे बोला, "तेरी साल..." उसने अपना जवाब अधूरा ही छोड़ा। नील अपना जवाब संभालते हुए बोला, "हमें कुछ नहीं चाहिए, बस हमें कुछ जरूरी तुमसे बात करनी है।" कहते हुए नील और करण उसे बातों में उलझाने लगे।
अगस्त्य समझ गया कि ये दोनों उसे जानबूझकर परेशान कर रहे हैं ताकि वह कमरे में ना जा पाए। तो अगस्त्य उन सबको इग्नोर करते हुए कमरे के अंदर जाकर गेट उनके मुँह पर बंद कर दिया।
यह देखकर रितिका उन दोनों पर जोर-जोर से हँसने लगी। फिर बोली, "आप दोनों को क्या लगा? भाई इतनी आसानी से आप दोनों के झांसे में आ जाएँगे?" कहकर वह हँसने लगी।
नील मुँह बनाकर चला गया। रितिका जैसे ही जाने को हुई, करण ने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, "बहुत हँसी आ रही है ना? अब बताओ।"
रितिका कसमसाते हुए बोली, "करण! यह क्या बदतमीजी कर रहे हो? छोड़ो मुझे, कोई देख लेगा। भाई के कमरे के सामने तुम यह हरकत कर रहे हो! छोड़ो, मुझसे दूर रहो!" करण ने उसे नहीं छोड़ा। तभी रितिका को एक आइडिया आया। उसने अपने पैर से करण के पैर में जोर से मारा। इस कारण करण अपने पैर को सहलाने लगा और उसने रितिका को छोड़ दिया। करण ने उसे घूरकर देखा और कहा, "मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं!" वह उसे पकड़ता, उससे पहले ही रितिका अपने कमरे में दौड़कर चली गई और दरवाज़ा लॉक कर दिया।
करण ने एक नज़र रितिका के कमरे के दरवाज़े पर देखा, फिर अपने कमरे में चला गया।
इधर अगस्त्य का कमरा...
अगस्त्य जब अपने कमरे में आया तो पाया कि उसका कमरा पूरी तरह से खाली है। तभी उसे बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। उसने अपनी नज़रें घुमाकर बाथरूम की ओर की। तभी वहाँ से काशवी बाहर आई। उसे देखकर वह एक पल के लिए ठहर गया। काशवी ने बहुत ही खूबसूरत सा लाल रंग का साड़ी पहना था। उसके बाल खुले हुए थे, माँग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, हाथ में लाल चूड़ा, बाल लहरा रहे थे। इसे देखकर अगस्त्य की साँस मानो रुक सी गई हो।
अगस्त्य काशवी की ओर बढ़ने लगा और उसके बहुत करीब आ चुका था।
काशवी ने अपने सामने अगस्त्य को देखकर एक पल के लिए डर गई। अगस्त्य उसे कुछ पल निहारता रहा, फिर खुद ही पीछे हट गया।
उसकी ऐसी हरकत देखकर काशवी डर गई। फिर अपने आप को संभालते हुए बेड पर गई, वहाँ से तकिया और ब्लैंकेट उठाकर सोफ़े पर आकर सो गई।
अगस्त्य कुछ पल उसे वैसे ही देखता रहा, फिर आकर काशवी को अपनी गोद में उठा लिया। काशवी एक पल डर गई। फिर वह अगस्त्य से खुद को छुड़ाने के लिए कसमसाने लगी। तो अगस्त्य उसे बेड पर सुलाते हुए बोला, "मैं तुम्हारा पति हूँ और तुम मेरी पत्नी। तो हम दोनों को बेड में सोने में कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।" कहकर वह बाथरूम में चला गया।
एक नज़र बाथरूम के दरवाज़े को देखकर, फिर वह बेड पर, तकियों का एक दीवार बनाकर, एक तरफ होकर सो गई।
वॉशरूम से बाहर आते ही अगस्त्य ने देखा कि काशवी एक तरफ सोई है, बीच में तकियों की दीवार बनाई है। इसे देखकर अगस्त्य के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
वह बिना कुछ बोले, दूसरी तरफ होकर सो गया। काशवी को जब एहसास हुआ कि अगस्त्य उसके बगल में सो चुका है, तो उसने अपनी आँखें खोलकर एक नज़र अगस्त्य को देखा। अगस्त्य की आँखें बंद थीं। तभी अगस्त्य की आवाज़ काशवी के कानों पर पड़ी, "क्या हुआ, मिसेज़ राठौर? नींद नहीं आ रही है? कहो तो हम अपना प्रोग्राम स्टार्ट करते हैं?" उसकी बात सुनकर काशवी डर से अपने आप को पूरी तरह से ब्लैंकेट में कवर करके सो गई। अगस्त्य ने अपनी आँखें खोलकर एक नज़र काशवी को देखा और मन में सोचा, "तुम्हारे अंदर मैं अपने लिए प्यार ज़रूर लाऊँगा, चाहे मुझे जो करना पड़े। और एक दिन तुम्हें अपना भी बनाऊँगा।"
सुबह का वक्त था।
7:00 बजे काशवी की नींद खुली। जैसे ही उसने अपनी आँखें खोली, सामने अगस्त्य का हैंडसम चेहरा नज़र आया। वह एक पल के लिए अगस्त्य के चेहरे में खो सी गई।
वह एकटक अगस्त्य को निहार रही थी, तभी उसके कानों में अगस्त्य की आवाज़ पड़ी। "क्या हुआ, मैसेज राठौर अब से कंट्रोल नहीं हो रहा है क्या?"
अगस्त्य की आवाज़ सुनकर काशवी अपने होश में आई और हड़बड़ाकर बेड से उठ गई। उसकी ऐसी हरकत देखकर अगस्त्य आँखें खोलकर उसे देखने लगा। वह बिना कुछ कहे बाथरूम में चली गई। अगस्त्य भी उठकर जिम में चला गया और अपना डेली रूटीन पूरा किया।
जिम से जब अगस्त्य वापस अपने कमरे में आया, तो उसकी नज़र मिरर में खड़ी काशवी पर गई। काशवी ने बहुत ही खूबसूरत सा, डार्क पिंक कलर का बनारसी साड़ी पहना था। उसने सिम्पल सा कुंदन चोकर सेट कैरी किया था; हाथों में लाल चूड़ा, मांग में सिंदूर और बालों को साइड से हेयर स्टाइल बनाकर खुला छोड़ा था। वह बिल्कुल ही नई दुल्हन की तरह सजी हुई थी। अगस्त्य की नज़रें उस पर से हट ही नहीं रही थीं। काशवी की नज़र जैसे ही मिरर पर पड़ी, उसकी नज़रें पीछे खड़े अगस्त्य से टकरा गईं। काशवी ने एक पल उसे देखा, फिर अपना मुँह फेर लिया।
अगस्त्य ने भी अपने होश संभाले और बाथरूम चला गया।
काशवी भी तैयार होकर नीचे आई। नीचे आकर उसने सबसे पहले सबको प्रणाम किया, फिर पूजाघर में जाकर पूजा की। उसका नेचर देखकर घरवाले इम्प्रेस हो गए, क्योंकि काशवी एक ब्राह्मण परिवार से आती थी, इसलिए उसे पूजा-पाठ और बाकी सब संस्कार अच्छे से सिखाए गए थे।
फिर वह किचन की ओर बढ़ी। तभी गीतिका जी बोलीं, "काशी बेटा, आज तुम्हारी पहली रसोई है, तो तुम जो आता है, वह मीठे में बना दो।"
काशवी ने सिर्फ़ हाँ में जवाब दिया।
काशवी को बहुत डर लग रहा था। ऐसा नहीं था कि उसे कुकिंग नहीं आती थी, लेकिन उसे डर था कि कहीं उसका बनाया मीठा किसी को पसंद न आए। फिर उसने अपने आप को शांत करते हुए कहा, "बनाना तो पड़ेगा, तो देख लिया जाएगा, जो होगा सो होगा।"
वह फिर बनाना शुरू करने लगी। कुछ ही देर में उसने मीठे में खीर बना ली, जिसकी खुशबू से पूरा किचन महक गया। फिर उसने उसे ट्रे में रखकर बाहर डायनिंग एरिया में ले आई।
सभी डायनिंग एरिया में बैठ चुके थे, लेकिन अगस्त्य अभी तक नहीं आया था। गीतिका जी ने काशवी से पूछा, "बेटा, अगस्त्य कहाँ है?"
काशवी कुछ जवाब दे पाती, उससे पहले ही अगस्त्य सीढ़ियों से नीचे की ओर आ गया। वह सीधे बाहर की ओर जाने लगा, तो गीतिका जी ने उसे आवाज़ देते हुए कहा, "अगस्त्य बेटा, कहाँ जा रहे हो?" अगस्त्य ने उनसे कहा, "मॉम, इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है, तो जल्दी जाना पड़ेगा।"
उसकी बात सुनकर बड़ी दादी बोलीं, "लेकिन बेटा, आज काशवी की पहली रसोई है, उसने आज मीठा बनाया है, तो बिना चखे ही चला जाएगा?"
अब काशवी की बात थी, तो अगस्त्य को रुकना ही पड़ा। उसने अपने कदम वापस डायनिंग एरिया की ओर मोड़े और आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
अगस्त्य की इस हरकत से पूरे घरवाले शॉक्ड थे, क्योंकि अगस्त्य कभी अपने काम को डिले नहीं करता था; वह टाइम का बहुत पंक्चुअल था, लेकिन आज काशवी के लिए उसने ऑफिस लेट जाना ही सही समझा।
रितिका तो अगस्त्य से बोल ही पड़ी, "वाह भाई! ऐसे तो हम कई बार आपको रोका है, लेकिन आप मजाल है रुक जाएँ, लेकिन आज भाभी के नाम पर रुक गए!" बोलकर वह हँसने लगी। उसके साथ-साथ घरवाले भी मुँह दबाकर हँसे।
अगस्त्य ने किसी को कुछ जवाब नहीं दिया। वह बहुत कम बोलता था; सिर्फ़ ज़रूरत पड़ने पर ही वह किसी से कुछ कहता था, वरना ज्यादातर वह चुप ही रहता था।
गीतिका जी ने फिर काशवी से कहा, "बेटा, सबको सर्व करो और तुम भी बैठ जाओ।"
काशवी ने सबको मीठा सर्व किया। आखिर में वह अगस्त्य के पास आई और खड़ी होकर सोची कि वह सर्व करे या ना करे। फिर उसने बिना मन के अगस्त्य को खीर सर्व कर दी।
मीठा खाने के बाद सब ने काशवी की खूब तारीफ़ की, क्योंकि खीर बहुत ज़्यादा टेस्टी बनी थी। रितिका ने तो और एक प्लेट खीर माँग ली थी। दादी और गीतिका जी ने उसे नेक भी दिया। सबके गिफ्ट देने के बाद काशवी की नज़र अगस्त्य पर गई, जो चुपचाप अपनी सीट पर बैठा था। उसने अपना खाना फ़िनिश करके उठ गया और सीधा ऑफिस के लिए निकल गया। उसका ऐसा बिहेवियर काशवी को अच्छा नहीं लगा; अगस्त्य ने न तो उसकी तारीफ़ की, न कोई गिफ्ट दिया।
उसकी भावनाओं को समझकर गीतिका जी ने काशवी से कहा, "वो ऐसा ही है, वह अपने काम को पहले रखता है, तुम चिंता मत करो।"
काशवी हल्के से मुस्कुराकर बोली, "कोई बात नहीं आंटी।"
"आंटी" शब्द सुनकर गीतिका जी ने प्यार से फटकारते हुए कहा, "अभी भी तुम मुझे आंटी कहोगी? अब माँ कहने की आदत डाल लो।"
काशवी ने कहा, "ओके माँ।" फिर उसने अपना जबान संभालते हुए कहा, "सॉरी माँ।" उसकी इस बचकानी हरकत पर गीतिका जी बिना मुस्कुराए नहीं रह सकीं।
पूरे दिन में काशवी अपनी मम्मी से और साक्षी से बात करती रही। ऐसे ही पूरा दिन निकल गया।
रात को जब अगस्त्य वापस घर आया, तो उसने देखा कि हॉल में रितिका और काशवी बैठकर बात कर रही थीं। रितिका की बातों पर काशवी हँस भी रही थी।
उसे मुस्कुराते देख अगस्त्य के दिल को सुकून मिला। यहाँ आने के बाद उसने काशवी को मुस्कुराते हुए बहुत कम ही देखा था। वह काशवी को देखकर अपने कमरे में चला गया।
काशवी ने भी अगस्त्य को कमरे में जाते हुए देख लिया था। कुछ देर बाद वह भी ऊपर कमरे में चली गई। ऊपर कमरे में जाकर देखा कि अगस्त्य सोफ़े पर बैठकर लैपटॉप में अपना काम कर रहा था।
काशवी उसके पास जाकर खड़ी हो गई। उसे ऐसे अपने पास खड़ा देखकर अगस्त्य ने बिना अपनी नज़रें उठाए पूछा, "क्या हुआ, मिसेज़ राठौर? आप बिना हिचकिचाहट के अपने पति से कह सकती हैं।"
उसकी बात पर काशवी सकपका गई। फिर वह अगस्त्य से बोली, "वो...वो...आपके लिए डिनर ला दूँ?"
अगस्त्य ने सिर्फ़ हम में जवाब दिया।
काशवी नीचे जाकर अगस्त्य के लिए डिनर ऊपर लाई। वह डिनर टेबल पर रखने ही वाली थी कि अगस्त्य ने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया, तो काशवी सीधे अगस्त्य की गोद में गिर गई। वह तुरंत ही उससे दूर होने लगी, तो अगस्त्य ने उस पर अपनी पकड़ मज़बूत कर दी। जब काशवी अपने आप को छुड़ा नहीं पा रही थी, तो वह अगस्त्य से बोली, "ये क्या बदतमीज़ी है? छोड़िए मुझे।"
अगस्त्य ने कहा, "ये कोई बदतमीज़ी नहीं है। चुपचाप यहीं बैठकर मुझे खाना खिलाओ।"
काशवी उसकी बात सुनकर आँखें बड़ी करके उसे देखने लगी।
अगस्त्य ने उसे देखकर कहा, "देखने नहीं बोला है, शांति से जो बोला है वो करो।"
काशवी ने कहा, "कोई ज़बरदस्ती है क्या!"
अगस्त्य ने कहा, "हाँ, ज़बरदस्ती ही है।"
काशवी ने जब देखा कि अगस्त्य अपनी ज़िद पर अड़ा है, तो उसे मज़बूरन अगस्त्य की बात माननी पड़ी। काशवी ने खाने की प्लेट से निवाला उठाकर अगस्त्य की ओर बढ़ा दिया। अगस्त्य ने एक पल मुस्कुराकर वह निवाला खा लिया।
ऐसे ही करके काशवी ने उसे पूरा खाना खिला दिया। खाना फ़िनिश होने के बाद जब काशवी उठने लगी, तो अगस्त्य ने वापस उसे अपनी गोद में बिठा लिया।
काशवी अब चिढ़ते हुए उससे बोली, "अब क्या चाहिए?"
अगस्त्य ने कहा, "चाहिए तो बहुत कुछ, मिसेज़ राठौर, अगर आप देना चाहें तो।"
यह बात अगस्त्य ने बहुत शरारती अंदाज़ में बोली थी, जिसे सुनकर काशवी की नज़रें नीचे झुक गईं।
काशवी को ऐसे देख अगस्त्य को उस पर बहुत प्यार आ रहा था। उसने कुछ पल काशवी को देखा, फिर अपने इमोशन को कंट्रोल करते हुए अपनी जेब से एक बॉक्स निकालकर काशवी के सामने करते हुए कहा, "ये रहा तुम्हारा गिफ्ट।"
काशवी ने उस बॉक्स को देखा, फिर अगस्त्य को देखकर कहा, "मुझे नहीं चाहिए आपसे कोई भी चीज़।"
उसकी बात पर अगस्त्य को गुस्सा आ गया। उसने काशवी को अपने और करीब करके कहा, "मैं तुमसे पूछ नहीं रहा, चुपचाप बिना कुछ बोले इसे रख लो, नहीं तो तुम जानती हो कि मैं क्या कर सकता हूँ।"
उसकी बात सुनकर काशवी की आँखों में हल्की नमी आ गई। उसने बॉक्स लेते हुए कहा, "मैं आपको बहुत अच्छे से जान चुकी हूँ कि आप अपनी ज़िद पूरी करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, चाहे इसमें किसी की ज़िन्दगी बर्बाद क्यों न हो, आपको फ़र्क नहीं पड़ता।" इतना कहकर वह उसके गोद से तुरंत उठ गई और उस बॉक्स को बेड के साइड टेबल पर रखकर बाथरूम में चली गई।
काशवी की ऐसी बात सुनकर अगस्त्य का गुस्सा और बढ़ गया। वह उठकर अपने कमरे के अंदर बने स्टडी रूम में चला गया।
कशवी जब वॉशरूम से बाहर आई, तो उसने देखा कि पूरा कमरा खाली था। उसने मन ही मन कहा, "अब यह इतनी रात को कहाँ चले गए?" फिर अपने मन को झटकते हुए कहा, "छोड़ो, मुझे क्या? वैसे भी, वह अपने मन के मालिक हैं।"
वह आकर बेड पर सो गई।
रात के बारह बजे स्टडी रूम का दरवाज़ा खुला। अगस्त्य की आँखें लाल थीं; उसे देखकर ही मालूम हो रहा था कि उसने ड्रिंक किया हुआ है। उसने सामने बेड पर कशवी को आराम से सोते हुए देखा।
अगस्त्य कशवी के चेहरे को बड़े प्यार से निहार रहा था।
फिर उसने कशवी से अपनी नज़रें हटाकर पिलो और ब्लैंकेट बेड से उठाए और सोफ़े पर सो गया। वह जानता था कि कशवी को ड्रिंक करने वाले लोग अच्छे नहीं लगते, इसलिए वह उसे अनकम्फ़र्टेबल महसूस नहीं कराना चाहता था; इसलिए उसने सोफ़े पर सोना ही सही समझा।
सुबह सात बजे जब कशवी की नींद खुली, तो उसकी नज़र सामने सोफ़े पर सोए अगस्त्य पर पड़ी। वह उठकर बेड पर बैठ गई। फिर वह सोचने लगी कि अगस्त्य सोफ़े पर क्यों सोया? कल ही तो उसने कहा था कि हम दोनों पति-पत्नी हैं।
फिर वह बोली, "इनको कोई नहीं समझ सकता! इनको जो समझ ले, वह गंगा नहा ले!"
इतना कहकर वह उठकर वॉशरूम में चली गई।
कुछ ही देर में वह बाहर निकली। अपने गीले बालों को टॉवल से सुखाते हुए झटक रही थी। टॉवल के कुछ धागे सामने सोफ़े पर सोए अगस्त्य के चेहरे पर पड़े, जिससे उसकी नींद खुल गई। उसने आँखें खोलीं तो शीशे के सामने खड़ी कशवी को देखा जो अपने बालों को सुखाते हुए झटक रही थी।
अगस्त्य उसे देखता रहा। कशवी, इन सब से अनजान, अपने बाल सुखाकर माँग में सिंदूर भरती है, फिर अपनी साड़ी को अच्छे से ठीक करके नीचे जाने के लिए मुड़ी, तो देखा कि अगस्त्य उसे सोफ़े पर लेटे हुए देख रहा है।
जैसे ही दोनों की नज़रें एक-दूसरे पर टकराईं, कशवी ने अपनी नज़रें फेर लीं और कमरे से बाहर चली गई। अगस्त्य भी उठकर अपने जिम चला गया।
कशवी नीचे आकर अपने कामों में लग गई।
वहीं ऊपर से रितिका जल्दबाज़ी में नीचे आ रही थी, तभी सामने से आते करण से वह टकरा गई। वह गिरने ही वाली थी कि करण ने उसे थाम लिया और कहा, "अरे अरे! संभल के! क्यों बुलेट ट्रेन की तरह इतनी स्पीड में चल रही हो?"
रितिका, अपने आप को संभालते हुए बोली, "ये तुम मुझे अजीब नामों से क्यों बुलाते हो? बुलेट ट्रेन? कभी-कभी लोमड़ी! तुम मुझे इंसान नज़र नहीं आती? इंसानों जैसा नाम रखा करो!"
उसकी बात पर करण ने कहा, "इंसानों जैसा नाम इंसानों का रखा जाता है!"
बस करण का इतना कहना था कि रितिका ने एक नीले रंग का पिलो उठाया और उसके पीछे भागने लगी। दोनों पूरे हॉल में बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे। तभी रितिका ने पिलो करण पर मारा, तो करण बचने के लिए नीचे झुक गया। वह पिलो सामने से आते नील के मुँह पर पड़ा।
रितिका ने यह देखा तो अपने जीव को दांतों तले दबा लिया।
करण जोर-जोर से हँसने लगा।
वहीं नील, अपने होश में आते हुए बोला, "ये कैसा वेलकम है सुबह-सुबह मेरा?"
रितिका ने कहा, "सॉरी भाई! ये सब करण की वजह से हुआ। यही मुझे सुबह-सुबह अजीबोगरीब नामों से बुला रहा था, जिससे मुझे गुस्सा आ गया। मैंने ये कुशन भी इसी को फेंका था, लेकिन यह जानबूझकर नीचे झुक गया और आपके ऊपर कुशन लग गया।"
उसकी बात पर करण ने कहा, "तुम सारा ब्लेम मुझ पर क्यों डाल रही हो? सुबह-सुबह तुम ही बिल्ली की तरह मुझे नोचने आ रही थीं!"
रितिका बोली, "तुम फिर मुझे जानवरों के नाम से बुला रहे हो! मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं!"
दोनों की लड़ाई शुरू होने ही वाली थी कि नील बीच में आ गया। "इनफ़! क्या तुम दोनों बच्चों की तरह लड़ रहे हो? और करण, तुम भी!"
करण बोला, "मैं कहाँ लड़ रहा हूँ? ये चिड़चिड़ी मेरे साथ लड़ रही है!" रितिका उसे छोड़ने वाली नहीं थी। उसने सामने रखा बड़ा कुशन उठाया और उस पर बरसाते हुए कहा, "तुम्हें तो मैं अब सच में नहीं छोड़ूंगी!"
नील उन दोनों को देखते हुए बोला, "इन दोनों को कुछ नहीं हो सकता!"
कशवी हॉल में आवाज़ सुनकर बाहर आई। सामने रितिका और करण को देखकर वह हैरानी से आँखें बड़ी करती हुई उन्हें देखने लगी।
नील जाकर बोला, "गुड मॉर्निंग, भाभी!"
कशवी ने भी उसे गुड मॉर्निंग विश किया और पूछा, "नील भाई, ये सब क्या है? ये दोनों ऐसे बच्चों की तरह क्यों लड़ रहे हैं?"
नील बोला, "अरे आप इन दोनों को छोड़ो! इन दोनों का तो रोज का है। जब भी मौका मिले, ये दोनों एक-दूसरे को छोड़ते नहीं।"
करण, खुद को रितिका से छुड़ा चुका था। वह आकर सीधे कशवी को गले लगाते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग, मेरी ब्यूटीफुल भाभी!"
कशवी ने उसे सामान्य रूप से गले लगाते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग।"
करण, कशवी से दूर होते हुए बोला, "वैसे आपके पतिदेव कहाँ हैं?"
कशवी इतना ही कह पाई थी कि ऊपर से नीचे आते अगस्त्य दिखाई दिए।
कशवी की नज़र के पीछे मुड़कर नील और करण ने भी उसे देखा।
नील अगस्त्य से बोला, "यार, शादी के बाद तू तो कुछ ज़्यादा ही बदल गया! ऐसे तो दिन में हज़ार बार मुझे कॉल करके परेशान कर देता था, कि ये काम हुआ या नहीं, इसे जल्दी करो; लेकिन कल से लेकर आज तक तूने मुझे एक बार कॉल नहीं किया।"
नील की बात पर करण बोला, "अब जिसकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, उस बंदे का दिल कम कहाँ लग सकता है?"
उसके बाद अगस्त्य ने उसे घूर कर देखा, जिससे वह चुप हो गया। अगस्त्य के चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि वह करण की बात से जल रहा है। किसी और के द्वारा अपनी पत्नी की तारीफ़ सुनकर पति का जलना स्वाभाविक है; ऐसा ही अगस्त्य के साथ हुआ था।
और करण तो मस्तीखोर प्लेबॉय टाइप का था; वह किसी के भी साथ फ़्लर्ट कर सकता था।
अगस्त्य, करण को इग्नोर करते हुए नील से बोला, "हाँ, कल एक इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग थी, इसलिए पूरा दिन बिज़ी था। इसलिए तुझे कॉल नहीं कर पाया।"
नील बोला, "सही है। चल, निकलते हैं। कुछ इम्पॉर्टेन्ट फ़ाइल्स भी चेक करनी हैं और बहुत सारा काम भी पेंडिंग है।"
तभी रितिका हॉल में आते हुए बोली, "कोई बिना ब्रेकफ़ास्ट किए ऑफिस नहीं जाएगा! चलो, सब बैठो, ब्रेकफ़ास्ट कर लो!"
रितिका की बात को कोई टाल नहीं सकता था, इसलिए तीनों जाकर ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर बैठ गए।
कशवी सबको सर्व कर रही थी। वह अगस्त्य के पास आकर, उसकी तरफ़ देखे बिना, चुपचाप उसका ब्रेकफ़ास्ट सर्व करती रही। अगस्त्य ने उसे एक पल देखा, फिर अपनी नज़रें हटा लीं।
सबको सर्व करने के बाद कशवी भी बैठ गई और अपना नाश्ता करने लगी।
सभी ब्रेकफ़ास्ट करने के बाद अगस्त्य, करण और नील ऑफिस के लिए निकलने लगे। तभी नील अगस्त्य से बोला, "आज मिस्टर सिंह हमारी मीटिंग नहीं कर पाएँगे; वे आउट ऑफ़ इंडिया हैं। इसलिए उनकी बेटी, आरती सिंह, इस डील की मीटिंग करेंगी।"
फिर करण बोला, "अरे, आरती सिंह! वही ना, जो अगस्त्य पर फिदा है! वो तो अगस्त्य पर लाइन मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ती!"
अगस्त्य ने उसे घूरते हुए कहा, "साले, तू अपना मुँह बंद रख!"
तीनों बातें करते हुए ऑफिस के लिए निकल गए।
करण की बात सामने हॉल में बैठी कशवी ने सुन ली थी। उसके मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी थी; उसे खुद नहीं समझ आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है।
पूरे दिन कशवी को करण की बात खटक रही थी। वह सोच रही थी कि सच में आरती और अगस्त्य के बीच कुछ है या नहीं।
रात को जब अगस्त्य घर वापस आया, तो सीधे अपने रूम में गया। उसने चारों ओर देखा, लेकिन कशवी कहीं नज़र नहीं आई। फिर वह वॉशरूम में गया।
अगस्त्य बाहर से आकर सीधे बालकनी में चला गया। कहीं न कहीं उसे पता था कि कशवी यहीं होगी; और उसका अंदाज़ा सही निकला। कशवी रेलिंग से हाथ टिकाए, ऊपर चाँद को देख रही थी। उसके मन में हज़ारों ख्याल थे, लेकिन उसे खुद नहीं समझ आ रहा था कि ये ख्याल उसके मन में क्यों आ रहे हैं।
अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी कि उसे किसी के खांसने की आवाज़ आई। वह पीछे मुड़कर देखी तो अगस्त्य, हाथ बांधे, उसकी ओर देख रहा था।
"तुम इतनी ठंड में बिना स्वेटर पहने बाहर क्या कर रही हो?"
उसके सवाल सुनकर कशवी कुछ नहीं बोली और वापस रूम में जाने लगी, तो अगस्त्य ने पीछे से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ। तुम्हें ठंड लग जाएगी तो?"
कशवी ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, "आपको मेरी इतनी फ़िक्र क्यों है? आपको तो उसकी फ़िक्र होनी चाहिए जो आपके पीछे पागल है!"
उसके बाद अगस्त्य ने उसे नाराज़गी से देखा।
अगस्त्य ने पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
कशवी बोली, "कुछ भी नहीं। आप बैठिए, मैं आपके लिए डिनर ले आती हूँ।" कहकर उसने अपना हाथ छुड़ाकर नीचे चली गई।
वह उसे जाते हुए देख रहा था। फिर रूम के अंदर जाकर सोफ़े पर बैठकर अपना काम करने लगा।
कुछ देर में कशवी हाथ में डिनर लेकर आई और टेबल पर रख दिया। फिर वह जाकर बेड पर आकर मोबाइल स्क्रोल करने लगी। काफी देर बाद जब उसने नज़र उठाई तो देखा कि खाने की प्लेट वैसे ही थी और अगस्त्य अभी भी अपने काम में लगा था।
कशवी ने अगस्त्य से कहा, "आपने खाना क्यों नहीं खाया?"
अगस्त्य ने उसे कोई जवाब नहीं दिया।
कशवी ने फिर उससे सवाल किया, लेकिन इस बार भी अगस्त्य ने कुछ नहीं कहा। तब वह उसके सामने जाकर, उसकी कमर पर हाथ रखते हुए बोली, "मैं आपसे कुछ पूछ रही हूँ!"
अगस्त्य बोला, "मेरे हाथ खाली नहीं हैं।"
यह सुनकर कशवी समझ गई कि अगस्त्य आज भी उसके हाथों से ही खाना खाएगा।
कशवी बिना कुछ कहे उसके बगल में बैठकर, खाने की प्लेट अपने हाथ में ले कर, उसे एक निवाला खिलाया। अगस्त्य ने, उसकी तरफ़ देखे बिना, अपना मुँह खोल दिया। उसकी इस हरकत को देखकर कशवी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, जिसे उसने तुरंत छिपा लिया।
अगस्त्य ने कहा, "मेरे सामने हँसोगी तो मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा।"
कशवी बोली, "मेरी मर्ज़ी! मैं जैसे चाहूँ मुस्कुराऊँगी। आप चुपचाप अपना खाना खाओ।"
अगस्त्य बोला, "तुमसे बस बहस करवा लो।"
कशवी बोली, "आप तो बहुत ही स्वीट हो न, जब देखो तब..." इतना कहकर वह चुप हो गई।
अगस्त्य ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए पूछा, "चुप क्यों हो गई? आगे बोलो!"
कशवी बोली, "आपका खाना हो गया ना? बस, आप मुझे परेशान करना बंद करो।" कहकर वह खाने की प्लेट नीचे रखने के लिए चली गई।
अगस्त्य उसे देखकर मुस्कुरा दिया।
कुछ देर में कशवी रूम में आई और अगस्त्य की तरफ़ देखे बिना बेड पर आकर सो गई।
कुछ देर में अगस्त्य भी आकर बेड पर सो गया।
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए। इस बीच अगस्त्य और कशवी के बीच बातें थोड़ी ज़्यादा होने लगी थीं; असल में बातें नहीं, लड़ाई ज़्यादा होने लगी थीं; बातें कम ही होती थीं।
एक दिन कशवी अपने रूम में कुछ काम कर रही थी, तभी उसके फ़ोन पर किसी का कॉल आया। उसने देखा कि कॉलर आईडी में उसके असिस्टेंट का नाम फ्लैश हो रहा है।
उसने कॉल उठाया। उधर से उसके असिस्टेंट ने कहा, "मैम, एक NGO में कुछ बड़े लोग डोनेशन देना चाहते हैं, उससे पहले वे आपसे मीटिंग करना चाहते हैं। आपको यहाँ आना पड़ेगा।"
अपने असिस्टेंट की बात पर कशवी को याद आया कि शादी के बाद उसने अपने काम पर इतना ध्यान नहीं दिया है।
कशवी बोली, "ठीक है, आप उनसे मेरी मीटिंग कल के लिए फ़िक्स कर दीजिए। मैं आकर उनसे मीटिंग कर लूँगी।" कहकर उसने फ़ोन काट दिया।
अब कशवी की उलझन यह थी कि अगस्त्य उसे काम करने की परमिशन देगा या नहीं? फिर वह सोचती है कि आज दोपहर में अगस्त्य के लिए लंच ऑफिस ले जाए और वहीं पर अगस्त्य से इस बारे में बात भी कर ले।
तो अब देखना यह होगा कि कशवी के पहली बार ऑफिस जाने पर कुछ नया बखेड़ा तो नहीं हो जाता, और अगस्त्य कशवी को काम करने की परमिशन देता है या नहीं।
दोपहर के समय कशवी ने अगस्त्य के लिए खाना पैक किया और उसके ऑफिस के लिए निकल गई। कुछ देर में वह बड़ी सी बिल्डिंग के नीचे खड़ी थी। उसके सामने बड़ा सा बोर्ड था: राठौर इंडस्ट्रीज़...
कशवी बिल्डिंग के अंदर गई। वह यहाँ पहले आ चुकी थी, इसलिए उसने बिना किसी से पूछे सीधे अगस्त्य के केबिन की ओर बढ़ गई। अगस्त्य के केबिन में जाते वक्त, कुछ लड़के, जो यहाँ के साधारण कर्मचारी थे, उनकी नज़र कशवी पर पड़ी। उन्होंने एक-दूसरे से बात करते हुए कहा-
"यार, ये कौन है? क्या खूबसूरत है यार!"
कशवी ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन उन्हें अनदेखा करते हुए अगस्त्य के केबिन के अंदर चली गई। उसने देखा कि केबिन में अगस्त्य नहीं है। वह समझ गई कि वह अभी कहीं मीटिंग में व्यस्त होगा। वह आकर सामने पड़े सोफ़े पर बैठकर अपना फ़ोन स्क्रॉल करते हुए समय बिताने लगी।
लगभग आधे घंटे बाद अगस्त्य अपने केबिन में आया। उसने कशवी को देखा तो पहले तो वह दंग रह गया, फिर उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कराहट आ गई। कशवी का ध्यान अभी अपने फ़ोन पर था, इसलिए उसने अगस्त्य की उपस्थिति महसूस नहीं की।
अगस्त्य काफी देर तक कशवी को देखता रहा। जब कशवी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उसने हाथ जोड़कर कहा-
"क्या बात है मिसेज़ राठौर? मेरी इतनी याद आ रही थी कि आप मुझसे मिलने मेरे ऑफिस आ गईं?"
अगस्त्य की बात सुनकर कशवी हड़बड़ाकर अपना फ़ोन नीचे रखा। सामने देखा तो अगस्त्य हाथ बाँधे उसे ही देख रहा था। वह खड़ी हो गई, जैसे उसने कोई जुर्म कर दिया हो।
अगस्त्य ने कशवी को कुछ देर देखा, फिर कहा-
"तुम्हारे मुँह में ज़बान नहीं है? कुछ पूछ रहा हूँ, क्यों आई हो? कुछ काम था?" उसने ठंडे लहजे में पूछा।
"वो, मैं आपके लिए लंच लेकर आई थी।" कशवी ने कहा।
उसकी बात पर अगस्त्य को अच्छा लगा। वह आकर सोफ़े पर बैठ गया। कशवी उसके लिए लंच परोसने लगी।
कशवी ने लंच अगस्त्य की ओर बढ़ाया। अगस्त्य ने एक नज़र देखा। उसकी नज़रों को पहचानते हुए कशवी समझ गई कि वह उसके हाथों से खाएगा, इसलिए उसने उसे अपने हाथ से खाना खिलाने लगी। अगस्त्य बड़े प्यार से उसे देखकर खाना खाने लगा।
अगस्त्य को अपनी ओर ऐसे देखकर कशवी असहज होने लगी, इसलिए उसने कह ही दिया-
"आप मुझे घूरना बंद करेंगे।"
अगस्त्य ने सपाट लहजे में कहा-
"नहीं।"
तो कशवी ने उसे मन ही मन कोसते हुए खाना खिलाना जारी रखा। तभी अगस्त्य ने एक निवाला तोड़कर कशवी की ओर बढ़ाते हुए कहा-
"तुमने भी लंच नहीं किया होगा, मेरे साथ ही कर लो।"
कशवी ने मना किया, लेकिन अगस्त्य तो अगस्त्य था; वह किसी की बात सुनता ही नहीं था। इसलिए उसने उसे डाँटते हुए कहा-
"जो कह रहा हूँ, वो करो चुपचाप।"
उसके बाद कशवी मुँह बनाते हुए खाने लगी और साथ ही अगस्त्य को भी खिलाती रही। कुछ देर में दोनों ने लंच खत्म किया।
कशवी ने लंच पैक किया, फिर अगस्त्य को देखने लगी, मानो उससे कुछ कहना चाहती हो। अगस्त्य ने उसकी नज़रों को भाँपते हुए कहा-
"बोलो, तुम्हें कुछ कहना है?"
अगस्त्य की बात सुनकर कशवी ने अपना सिर हाँ में हिलाया। वह उसे देखता रहा, जैसे उसे पूछना चाहता था कि क्या बोलना चाहती है। लेकिन कशवी से कोई जवाब न पाकर वह बोला-
"अब बोलो, क्या काम है?"
"वो, मैं अपना एनजीओ का काम वापस से ज्वाइन करना चाहती हूँ। वहाँ पर मेरी ज़रूरत है, इसलिए।" कशवी ने कहा।
उसके बाद अगस्त्य ने कहा-
"हाँ, तो तुम्हें मना किसने कहा है? आराम से तुम अपना काम कर सकती हो। मैं तुम्हें कभी भी तुम्हारे काम को लेकर रोकना नहीं चाहता। तुम अपना काम आराम से जारी रख सकती हो।"
कशवी की बात सुनकर उसे राहत की साँस मिली। फिर उसे कुछ याद आया। वह फिर से अगस्त्य को देखने लगी।
"तुम्हें और कुछ कहना है?" अगस्त्य ने पूछा।
कशवी ने इस बार फिर से अपनी मुँडि हाँ में हिलाई। अगस्त्य बोला-
"बोलो।"
"वो अब आप मेरे NGO को कुछ नहीं करेंगे ना? मतलब आप मेरे NGO में कोई काम अपना शुरू करने वाले थे जिससे उसे तोड़ना पड़ता। आप प्लीज़ अब उसे रोक दीजिए। मैं तो आपकी बात मान लेती हूँ, अब आप भी मेरी बात मान लीजिए।" कशवी अगस्त्य से ज़िद करते हुए कहती है।
अगस्त्य उसे देख रहा था। वह बहुत प्यारे से यह सब कह रही थी, मानो एक बच्चा अपने लिए कुछ ज़रूरी चीज़ माँग रहा हो। अगस्त्य को उस पर बहुत प्यार आ रहा था।
"ठीक है, मैं तुम्हारे NGO को कुछ नहीं करूँगा। लेकिन इसके लिए मुझे कुछ चाहिए।" सुनकर कशवी हैरानी भरी नज़रों से उसे देखती है।
अगस्त्य ने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा-
"अब मैं तुम्हारी इतनी सारी बातें मान रहा हूँ, तो तुम्हें भी मुझे कुछ बदले में देना चाहिए ना?" कहते हुए अगस्त्य कशवी के चेहरे के करीब आने लगा।
कशवी आँखें बंद कर लेती है। उसकी धड़कनें बहुत तेज़ चल रही थीं, जिसे अगस्त्य आसानी से सुन पा रहा था। उसने एक पल उसके बंद पलकों को देखा, फिर उसके मासूम चेहरे को। वह मुस्कुराते हुए उसके माथे पर किस करता है, फिर उसके दोनों गालों पर।
अगस्त्य जैसे ही कशवी के होठों की ओर बढ़ने लगा, वह अचानक रुक गया। काफी देर तक कुछ महसूस होने पर कशवी अपनी आँखें खोलकर देखती है तो पाती है अगस्त्य उसे बड़े प्यार से निहार रहा था। उसकी प्यार भरी नज़रों को देख कशवी शर्मा जाती है। वह अपनी पलकें झुका लेती है, तो अगस्त्य उस पर अपनी पकड़ कसते हुए कहता है-
"ऐसे शर्माओगी तो मैं कैसे अपने आप को काबू में रख पाऊँगा, मिसेज़ राठौर?"
उसकी बात सुनकर कशवी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। उसने अभी भी अपनी पलकें उठाकर अगस्त्य को नहीं देखा था। वे दोनों ऐसे ही खड़े थे, तभी उनके केबिन में नील और करण ने एंट्री मारी। जैसे ही दोनों ने सामने का नज़ारा देखा, वे पीछे की ओर मुड़ गए।
"सॉरी, सॉरी! हमें पता नहीं था कि आप दोनों यहाँ ऑफिस में रोमांस फ़रमा रहे हो।" करण ने कहा।
"हाँ, सॉरी! हम बाद में आते हैं, यू गाइज़ कंटिन्यू..." नील ने कहा।
दोनों की बात सुनकर अगस्त्य तुरंत कशवी से अलग हो जाता है। अगस्त्य को तो उन दोनों का खून कर देने का मन कर रहा था, क्योंकि उन दोनों ने उसके इतने अच्छे पल को खराब कर दिया था।
कशवी की नज़रें नीचे ही थीं। अगस्त्य, रोबदार आवाज़ में कहता है-
"मैनर्स नाम की चीज़ नहीं है तुम दोनों में? कम से कम नॉक करके तो आना चाहिए था।"
उसके बाद नील और करण पलटते हुए उसे घूर कर देखते हैं और कहते हैं-
"अब हम ये सब फ़ॉर्मेलिटी कब से निभाने लगे? पहले हम ऐसे ही आते थे।" करण कहता है।
"हाँ, लेकिन अब तुम दोनों जब भी मेरे केबिन में आओगे, नॉक करके आना, अब से।" अगस्त्य ने कहा।
अगस्त्य की बात पर करण और नील मुँह फाड़े उसे देख रहे थे।
"नील यार, तू सही बोल रहा था, ये सच में शादी के बाद बदल गया।" करण नील से बोला।
अगस्त्य उनकी बातों को अनसुना करते हुए कहता है-
"अब तुम लोग दोनों यहाँ आ ही चुके हो, तो बता दो काम क्या है?"
उसकी बात पर करण कहता है-
"वो, मैं ये बोल रहा था कि अभी-अभी जो तुमने आरती सिंह के साथ मीटिंग की, वो डील करने के लिए तैयार है।"
"दैट्स वेरी गुड फॉर आवर बिज़नेस प्रॉफ़िट। क्योंकि ये डील हमारे लिए बहुत ही इम्पॉर्टेंट थी। अगर वो डील साइन करना चाहती है, तो करने दो। नील, तुम बाकी चीज़ हैंडल कर लेना।" कहते हुए वह अपनी सीट पर बैठ जाता है।
आरती सिंह का जिक्र सुनकर कशवी के दिमाग में फिर से अगस्त्य और आरती के रिश्ते को लेकर बातें आने लगती हैं। वह अपनी सोच में खोई थी, तभी अगस्त्य उसे बुलाता है-
"मिसेज़ राठौर, आप कुछ देर वेट कीजिए, मैं भी अपना काम खत्म करके घर के लिए निकलता हूँ।"
अगस्त्य की बात सुनकर कशवी अपने होश में आती है और अपना सिर हाँ में हिलाती है। उसे ऐसे सिर हिलाते हुए देख अगस्त्य को झुंझलाहट होती है, लेकिन वह कुछ कहता नहीं है।
अगस्त्य अपने चेहरे पर बैठकर काम करने लगता है। वहीं नील और करण कशवी से बात करने लगते हैं। कशवी इन दोनों से बात करते हुए हँस रही थी, जिसे देखकर अगस्त्य ने थोड़ी जलन महसूस की, लेकिन वह जानता था कि नील और करण कशवी को बहुत सम्मान करते हैं।
फिर भी, बात तो अपनी बीवी की है ना! बंदे को गुस्सा आ गया। उसने नील और करण को देखते हुए कहा-
"तुम दोनों को काम नहीं है जो यहाँ बैठकर हँसी-ठिठोली कर रहे हो?"
उसके बात को समझते हुए करण कहता है-
"कोई जलन तो नहीं हो रही है?"
"हाँ, यहाँ तक स्मेल आ रही है?" नील ने कहा।
उसकी बात पर अगस्त्य बोलता है-
"सालों, तुम जैसे दोस्त रहे तो दुश्मन की ज़रूरत नहीं है। जाकर अपना काम करो चुपचाप, समझ में आया?"
"अरे, जा रहे हैं यार, तू तो अपने दिल पर ले लेता है बात! चल करण, मियाँ-बीवी को अपना अधूरा काम करने दे।" नील ने कहा।
उसकी बात पर करण हाँ में सर हिलाते हुए बोलता है-
"सही बात है। नई-नई शादी हुई है, अभी तो रोमांस की बरसात होगी।"
उसकी बात पर कशवी नज़रें नीची कर लेती है। वहीं अगस्त्य दोनों को घूर कर देखता है, तो दोनों अपने पति से चिपके हुए केबिन से निकल जाते हैं।
अगस्त्य एक नज़र सोफ़े पर बैठी कशवी को देखता है, फिर अपना काम करने लगता है। कशवी भी अपना फ़ोन निकालकर स्क्रॉल करने लगती है, समय बिताने के लिए।
एक घंटे बाद, अगस्त्य ने अपना काम पूरा किया। जैसे ही उसने सामने के सोफे पर नज़र डाली, उसे पता चला कि काशवी वहीं सो रही थी। सोते हुए वह बहुत प्यारी लग रही थी।
अगस्त्य ने उसे सोते हुए देखा। उसने उसे उठाना सही नहीं समझा, इसलिए वह जाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया और अपने प्राइवेट लिफ्ट से ऑफिस के बाहर आ गया। उसने बहुत संभालकर काशवी को पैसेंजर सीट पर बिठाया और फिर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
अगस्त्य गाड़ी चलाते हुए काशवी को देख रहा था, तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा। आवाज़ सुनकर काशवी की नींद खुल गई। उसने खुद को गाड़ी में देखकर हैरान भरी नज़रों से अगस्त्य को देखा।
काशवी को ऐसे देखकर अगस्त्य समझ गया। इसलिए उसने कहा, "वो तुम नींद में थीं, इसलिए मैंने तुम्हें अपनी गोद में उठाकर गाड़ी में ले आया।"
"उठा भी तो सकते थे?" काशवी ने हैरान भरी नज़रों से पूछा।
"वही तो किया, तुम्हें गोद में उठाकर यहां तक लाया..." अगस्त्य ने कहा।
"मैं गोद में उठाने की बात नहीं कर रही हूँ, बल्कि नींद में उठाने की बात कर रही हूँ।" काशवी ने कहा।
अगस्त्य उसकी बात सुनकर बोला, "थकती नहीं हो क्या? इतना बोलती हो हर समय! मुँह नहीं दिखता तुम्हारा?"
उसकी बात पर काशवी गुस्से में कुछ बोलने ही वाली थी कि अगस्त्य ने कहा, "चुपचाप! " और अपना कॉल अटेंड किया। कुछ देर में उसने बात करके कॉल काट दिया।
काशवी उसे खिन्नता भरी नज़रों से घूर रही थी। अगस्त्य ने जैसे ही उसे देखा, उसने तुरंत अपनी नज़रें हटा लीं। फिर वह बड़बड़ाने लगी, "खड़ूस कहीं के! जब देखो तो सिर्फ़ गुस्सा ही करना आता है इन्हें।"
अगस्त्य ने उसे बड़बड़ाते हुए देखा और गाड़ी चलाते हुए पूछा, "तुमने कुछ कहा?"
काशवी झूठी हँसी हँसते हुए बोली, "मैंने कुछ भी नहीं कहा। शायद आपके कान बज रहे होंगे।"
उसके जवाब पर अगस्त्य ने कुछ नहीं कहा, हालाँकि उसने काशवी की बात सुन ली थी।
कुछ देर में वे दोनों राठौर मेंशन पहुँचे। मेंशन के अंदर जाते ही गीतिका हाल में बैठी दिखीं। उन्होंने दोनों को देखकर उन्हें अपने पास बुलाया। दोनों जाकर उनके सामने सोफे पर बैठ गए।
"बेटा, तुम दोनों की नई-नई शादी हुई है, इसलिए मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों कहीं घूमो। क्योंकि फिर अगर कामों में बिजी हो जाओगे, तो बाद में समय नहीं मिलेगा।" गीतिका जी ने कहा।
गीतिका जी की बात पर अगस्त्य और काशवी एक-दूसरे को देख रहे थे। काशवी की नज़रों को भाँपते हुए अगस्त्य जान गया था कि काशवी कहीं बाहर नहीं जाना चाहती, खासकर उसके साथ। इसलिए उसने गीतिका जी से कहा, "मॉम, एक्चुअली मेरी अभी डील साइन हुई है, जिस पर मुझे बहुत काम करना है और मेरी बहुत सारी मीटिंग भी हैं। सो मेरे पास अभी टाइम नहीं है।"
"पर बेटा, एक बार घूम जो, फिर अपने कामों में लग जाना।" गीतिका जी ने कहा।
"मॉम, आई हैव नो टाइम। सॉरी।" इतना कहकर अगस्त्य रूम में चला गया।
अगस्त्य की बात से गीतिका जी अपसेट हो गईं। काशवी ने जब उन्हें देखा, तो उसे अच्छा नहीं लगा। इसलिए वह जाकर गीतिका जी को गले लगाते हुए बोली, "मॉम, हम फिर कभी चले जाएँगे।"
"लेकिन मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को अच्छे से शुरू करो। लेकिन यह लड़का मेरी बात कभी सुनता ही नहीं।" गीतिका जी ने कहा।
काशवी ने अब उन्हें कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह जानती थी कि अगस्त्य ने उसके लिए ही गीतिका जी को मना किया था। वह चुपचाप अपने रूम में चली गई।
काशवी रूम में आई तो देखा कि अगस्त्य कहीं नज़र नहीं आ रहा था। तभी उसे बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आई। वह समझ गई कि अगस्त्य बाथरूम में है।
काशवी जाकर चेंजिंग रूम में अपनी ड्रेस बदल ली और फिर नीचे आ गई। नीचे बैठी रितिका ने जब काशवी को देखा, तो उसे अपने पास बुलाते हुए कहा, "भाभी, देखो ना, मैं कितनी देर से अपने लिए एक ड्रेस सेलेक्ट कर रही हूँ। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा।"
काशवी आकर उसके बगल में बैठ गई और बोली, "मैं तुम्हारे लिए ड्रेस चुन देती हूँ।"
"भाभी, आप मुझे 'आप' कहकर मत बुलाओ। आप रिश्ते में मुझसे बड़ी हैं, इसलिए आप मुझे 'तुम' कहकर बात करो, मुझे अच्छा लगेगा।" रितिका ने कहा।
काशवी मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा, ठीक है।"
रितिका और काशवी दोनों ड्रेस देखने लगीं। तभी राठौर मेंशन में करण आया। वह अंदर हाल की तरफ़ बढ़ा तो देखा कि सामने काशवी और रितिका बैठी हुई हैं। वह जाकर काशवी के बगल में बैठते हुए बोला, "भाभी, आप इस बंदरिया के साथ क्या कर रही हैं?"
"तुमने फिर मुझे अजीब नाम से बुलाया! इतना अच्छा नाम है मेरा, उस नाम से भी बुला लो, लेकिन नहीं, तुम्हें तो समझ नहीं आता।" रितिका ने कहा।
"हाँ, तो अच्छे नाम से इंसानों को बुलाते हैं।" करण ने कहा।
"तो तुम्हें मैं इंसान नज़र नहीं आती हूँ?" रितिका ने पूछा।
"नहीं।" करण ने कहा।
उसकी बात पर रितिका करण की ओर बढ़ी, तभी काशवी बीच में आकर बोली, "बस, बस, बस! आप दोनों फिर से शुरू मत हो जाओ।"
"भाभी, ये हर समय मुझे ऐसे ही नाम से बुलाता रहता है! ठरकी इंसान कहीं का!" रितिका ने कहा।
"ठरकी इंसान? तुम मुझे कहाँ से ठरकी नज़र आती हो? तुम तो हर जगह गर्लफ्रेंड बनने घूमती हो।" करण ने कहा।
रितिका की बात पर काशवी को हँसी आ गई।
काशवी को हँसते देख करण चिढ़ते हुए उससे बोला, "भाभी, आप क्यों हँस रही हैं इस बंदरिया की बात पर?"
"आपको पता है भाभी, इसकी इतनी गर्लफ्रेंड हैं कि आप गिनोगी तो आपकी उँगलियाँ कम पड़ जाएँगी।" रितिका ने कहा।
"हाँ, तो मेरा चार्म ऐसा है कि लड़कियाँ अपने आप को मेरे पास आने से रोक ही नहीं पातीं और अट्रैक्ट हो जाती हैं।" करण ने कहा।
"सबकी आँखें खराब हैं, इसलिए तुमसे अट्रैक्ट हो जाती हैं।" रितिका ने कहा।
ऐसे ही दोनों लड़ रहे थे और काशवी बैठी उन दोनों को देख रही थी।
अगस्त्य भी अब तक ऊपर रूम से नीचे आ चुका था। वह जाकर उनके अपोजिट वाले सोफे पर बैठते हुए दोनों को देखकर बोला, "तुम दोनों का टॉम एंड जेरी शो ख़त्म हो गया? तो करण, मैंने जो तुमसे कहा था, वह तुमने किया?"
"हाँ।" करण ने कहा।
"चलो स्टडी रूम में, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" इतना कहकर अगस्त्य चला गया। फिर करण भी उठकर उसके पीछे चल दिया। जाते वक़्त उसने रितिका के सर पर थपकी मारी। रितिका ने खिन्नता भरी नज़रों से उसे देखा।
काशवी यह देखकर मुँह दबाकर हँसने लगी।
करण जाते हुए रितिका को शरारती मुस्कान के साथ आँख मारी, जिससे रितिका और ज़्यादा चिढ़ गई।
कुछ देर में डिनर का वक़्त हो चुका था। गीतिका जी ने काशवी से कहा, "बेटा, अगस्त्य को बुलाकर ले आओ।"
"जी।" काशवी ने कहा।
वह ऊपर जाकर अगस्त्य के स्टडी रूम में चली गई। वह अंदर जाने ही वाली थी कि तभी करण की बात उसके कान में पड़ी, "यार, यह आरती सिंह इतनी जल्दी कैसे मानी? उसके फादर इतनी आसानी से कोई डील करते नहीं हैं। कम से कम दो-तीन बार मीटिंग ज़रूर करते हैं, लेकिन उसकी बेटी ने तुमसे एक ही बार में डील साइन कर ली! नॉट बैड! सच में, तुम पर मर मिटेंगे।"
अगस्त्य कुछ कहता उससे पहले, काशवी के पीछे आ रही रितिका ने गेट खोल दिया। करण सामने की ओर देखा तो काशवी और रितिका सामने खड़ी थीं। रितिका ने कहा, "भाई, डिनर लग चुका है, मॉम आपको बुला रही हैं डिनर के लिए।"
"और मुझे?" करण ने पूछा।
"तुम्हें नहीं बुलाया, तो तुम्हें आने की ज़रूरत नहीं है।" रितिका ने कहा।
"करण भाई, आप भी आ जाओ। मैं आप दोनों को बुलाने आई थी।" इतना कहकर काशवी चली गई। उसके दिमाग में अब आरती फिर से चलने लगी। उसे याद आया कि दोपहर के वक़्त अगस्त्य आरती सिंह के साथ ही मीटिंग कर रहा था। उसके मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी।
डिनर के वक़्त काशवी बहुत चुप थी। बहुत सारे ख्याल उसके मन में आ रहे थे, जिन्हें वह खुद समझ नहीं पा रही थी। अगस्त्य ने इस बात को नोटिस भी किया।
डिनर करके काशवी तुरंत रूम में आकर बालकनी में चली गई। उसने फिर अपने आप से कहा, "ये मुझे करण भाई की बात सुनकर बेचैनी क्यों हो रही है? अगस्त्य जो करे अपनी ज़िंदगी में, मुझे क्या लेना-देना?" उसके चेहरे पर जलन साफ़ दिखाई दे रही थी। वह अपने ही गुम थी, तभी अगस्त्य ने पीछे से आकर उसे हग किया। काशवी घबरा गई। तभी अगस्त्य ने उसके कान में धीरे से कहा, "मैं हूँ।"
उसकी बात पर काशवी बोली, "आप हैं तो क्या? मुझे ऐसे पकड़कर रहोगे? छोड़ो मुझे, नींद आ रही है।"
उसकी बात पर अगस्त्य बोला, "अभी तो तुम यहाँ पर शांति से खड़ी थीं, अब मैंने तुम्हें हग किया तो तुम्हें प्रॉब्लम होने लगी।"
"मुझे प्रॉब्लम नहीं हो रही, नींद आ रही है। गुड नाईट।" इतना कहकर काशवी रूम में चली गई और बेड पर सीधे सो गई। अगस्त्य को उसका व्यवहार कुछ अजीब लगा, लेकिन उसने अपना दिमाग झटका और आकर साइड में लेट गया। अगर उसके मन में न जाने क्या आया, उसने झट से काशवी को अपनी ओर खींचा और उसे अपने सीने से लगाकर सो गया। अगस्त्य की इस हरकत पर काशवी तो सोच में ही चली गई थी, लेकिन फिर उसने कसमसाते हुए कहा, "ये क्या कर रहे हैं आप? छोड़िए मुझे।"
"नहीं छोड़ रहा।" अगस्त्य ने कहा।
काशवी बहुत देर तक अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करती रही, लेकिन वह नाकाम रही। थक-हारकर वह ऐसे ही अगस्त्य के बाहों में सो गई।
अगस्त्य को जब महसूस हुआ कि काशवी सो गई है, तो उसने झुककर काशवी के माथे पर किस किया और सो गया। आज उसके चेहरे पर अलग ही सुकून था।