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The bodyguard Bride

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Muskan Gupta

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Description

वो एक अमीर बाप की मासूम बेटी थी... और वो, उसकी हिफ़ाज़त के लिए रखा गया एक खामोश बॉडीगार्ड। 12 साल की उम्र में इनायत मल्होत्रा की पहली मुलाक़ात स्वास्तिक राठौर से हुई थी — एक शांत, गहरे नज़रों वाला लड़का, जो किसी टूटे हुए वादे की तरह चुप...

Characters

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Swastik Thakur

Hero

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Inaayat Malhotra

Heroine

Total Chapters (31)

Page 1 of 2

  • 1. The bodyguard Bride - Chapter 1

    Words: 769

    Estimated Reading Time: 5 min


    Mumbai…
    एक शहर जो कभी नहीं रुकता।
    जहाँ दिन भी भागते हैं और रातें भी।
    जहाँ हर मोड़ पर कोई न कोई अपनी किस्मत से जूझ रहा होता है —
    किसी की आँखों में उम्मीद की चमक होती है, तो किसी की मुस्कान में छुपा होता है टूट चुका दिल।

    साल का वही मौसम था — जब समंदर और आसमान मिलकर शहर को भिगोने लगते हैं।
    बिल्डिंग के पीछे का वो छोटा-सा गार्डन, जो आम दिनों में वीरान रहता था,
    आज बारिश की बूंदों से भीगता हुआ कुछ ज़्यादा ही जिंदा लग रहा था।

    बारिश की हल्की बूंदें पत्तों पर गिरतीं, फिर पत्तों से टपक कर मिट्टी से मिल जातीं।
    और मिट्टी की वो भीनी खुशबू — वो थी जैसे कोई पुरानी याद फिर से ज़िंदा हो गई हो।

    "इनायत! अंदर आ जाओ बेटा, बारिश तेज़ हो रही है..."
    नैनी की आवाज़ गूंजी।

    लेकिन उस आवाज़ से बेख़बर एक छोटी-सी परछाई, गीली घास पर नंगे पाँव दौड़ रही थी।
    सफेद फ्रॉक, जो अब हल्की कीचड़ से स्याह हो गई थी।
    बारिश में भीगते बाल, और हाथ में एक किताब — "Papa said, princesses don’t cry."

    मगर उस किताब के उलट उसकी आँखों में आँसू थे।
    भीगे हुए, खामोश, और बहुत गहरे।

    "अगर मम्मी होतीं... तो मुझे आज अकेले स्कूल नहीं जाना पड़ता..."
    उसने आसमान की तरफ देखा, जैसे वो बादलों से कोई जवाब माँग रही हो।

    नैनी उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ लिया —
    "बेबी, प्लीज़ चलिए अब... बीमार पड़ जाएंगी आप..."

    इनायत ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की —
    "आंटी प्लीज़... बस पाँच मिनट और... मम्मी से थोड़ी बातें करनी हैं..."
    वो जानती थी कि उसकी माँ वहाँ नहीं हैं।
    पर बारिश में भीगते हुए, उसे लगता था कि माँ की रूह उसके आस-पास है।
    हर बूंद में जैसे मम्मी की आवाज़ घुली हो — "राजकुमारी, मुस्कुराओ न…"

    "क्या हुआ हमारी इनायत राजकुमारी को?"
    एक भारी, पर बहुत स्नेहभरी आवाज़ आई।

    इनायत ने पलट कर देखा —
    सामने खड़े थे दादू — R.K. मल्होत्रा।

    उम्र की रेखाएँ उनके चेहरे पर साफ थीं,
    पर उनकी चाल और आँखों में आज भी वही रुतबा था —
    जिसने मल्होत्रा एंपायर को बनाया था।

    इनायत भाग कर उनके सीने से लग गई —
    "दादू... मुझे बारिश में और रहना है..."

    आर. के. मल्होत्रा ने उसे गोद में उठाया।
    उसके गाल पर एक प्यार भरा चुंबन दिया और बोले —
    "पर बेटा, अगर आप बीमार पड़ गईं, तो आपके दादू को अच्छा नहीं लगेगा ना...?"

    इनायत ने धीरे से सर हिलाया,
    "मुझे अच्छा लगता है, दादू... जब मैं बारिश में होती हूँ, तो लगता है जैसे मम्मी मेरे साथ हैं..."

    कुछ पल के लिए आर. के. मल्होत्रा की आँखें भी नम हो गईं।
    उन्होंने अपनी पोती को और कसकर सीने से लगा लिया।

    "आपकी मम्मी तो आपके अंदर हैं, बेटा… आपकी हर मुस्कान में।
    लेकिन अभी आपको स्कूल जाना है, और दादू की राजकुमारी अगर स्कूल नहीं गई तो सारे अंकल लोग क्या कहेंगे?"

    इनायत मुस्कुरा दी, और फिर चुपचाप नैनी के साथ चल पड़ी।
    पीछे मुड़कर उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा —
    शायद वो बूंदों में माँ का प्यार ढूंढ रही थी।


    ---
    मल्होत्रा हवेली —

    एक भव्य, राजसी हवेली — जिसके हर कोने में शाही अंदाज़ था,
    लेकिन दीवारों में जो बातें कैद थीं, वो उतनी ही ज़हरीली।

    रघुवीर मल्होत्रा का छोटा सौतेला भाई — शिवराज मल्होत्रा —
    जो दिखता तो धार्मिक और सौम्य था,
    पर दिल में मल्होत्रा एंपायर को हथियाने की आग सुलग रही थी।

    उसकी बीवी — भावना मल्होत्रा —
    हर किसी के सामने इनायत को दुलार देती,
    पर अकेले में उसके मनोबल को तोड़ने की हर कोशिश करती।

    "राजकुमारी बन गई है ये छोटी सी बच्ची...
    सारी दौलत की अकेली वारिस!"
    भावना ने तंज कसते हुए अपने बेटे युवराज से कहा।

    "माँ, चिंता मत करो। वक़्त आने दो...
    दादाजी के जाते ही हम सब कुछ अपने नाम करवा लेंगे।
    इस छोटी बच्ची से कौन डरता है?"
    युवराज ने ठहाका लगाया।

    "डरना चाहिए…"
    किआरा ने धीमे से कहा।

    सबका ध्यान उसकी ओर गया।

    "क्यों?" — भावना ने चौंक कर पूछा।

    "क्योंकि इनायत भले ही अभी बच्ची है…
    लेकिन उसके पास दादू का दिल है।
    और वो दिल ही इस घर की चाबी है।"

    शिवराज ने किआरा की तरफ देखा और मुस्कुराया —
    "तुम्हारी यही समझदारी तुम्हें सबसे आगे ले जाएगी।
    जारी रखो उसे दोस्ती का दिखावा करना…"

    किआरा ने सिर हिलाया और मुस्कुराई —
    पर वो मुस्कान मासूमियत से कोसों दूर थी।


    ---

    स्कूल की बस में बैठी इनायत, खिड़की से बाहर बारिश को देख रही थी।
    उसकी गोद में वही किताब थी —
    "Papa said, princesses don’t cry."

    लेकिन उसका दिल जानता था —
    राजकुमारियाँ भी रोती हैं… बस चुपचाप।

  • 2. The bodyguard Bride - Chapter 2

    Words: 722

    Estimated Reading Time: 5 min

    लोकेशन: मल्होत्रा हाउस – मुंबई – रात 12:15 AM

    बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी। खिड़की पर टप-टप गिरती बूंदों की आवाज़ कमरे की ख़ामोशी में एक तरह की रिद्म बना रही थी।
    दादू, यानी आर.के. मल्होत्रा, अपनी पुरानी कुर्सी पर बैठे थे — बगल में एक पुराना लकड़ी का संदूक खुला पड़ा था, जिसमें बहुत सारे पुराने एल्बम और फाइलें थीं।

    उन्होंने एक तस्वीर निकाली — आर्या की।
    विवेक की पत्नी, इनायत की माँ।

    वो तस्वीर देखते हुए उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, फिर आँखे भर आईं।
    उनके हाथ काँपते हैं, पर वो तस्वीर को अपनी गोद में रखकर जैसे किसी से बात कर रहे हों।

    दादू (धीरे-धीरे, खुद से):
    “आर्या… तुम्हारी बेटी हर दिन बड़ा सवाल पूछती है, और हम सब हर रोज़ हार जाते हैं... कभी जवाब देकर, कभी चुप रहकर।”
    (एक रुकावट)
    “आज उसने पूछा... जब वो रोती है, तो क्या तुम भी रोती हो?”
    (गहरी साँस लेते हैं)
    “और उस वक़्त मुझे लगा… कि हाँ, तुम रोती हो... हर उस दिन, जब इनायत अकेले बैठती है… जब वो किसी से कुछ नहीं कहती… जब वो खुद को कसूरवार मानती है।”

    (पल भर के लिए रुकते हैं, फिर तस्वीर को सीने से लगाकर)
    “मैंने तुम्हारा बेटा खो दिया था उस दिन, जिस दिन तुम गईं थीं… विवेक सिर्फ इनायत का पापा नहीं रहा, वो एक मशीन बन गया है — बस काम करता है, बस चलता रहता है… वो हँसता नहीं अब। और वो समझता है कि ये ठीक है, क्योंकि वो सबके लिए स्ट्रॉन्ग बना हुआ है। पर मुझे पता है, वो अंदर से कितना टूटा हुआ है।”
    (आँखें बंद करते हैं)
    “और इनायत… तुम्हारी इनायत… वो तुम्हारी परछाई है। उतनी ही मासूम, उतनी ही सच्ची... और उतनी ही अकेली।”

    फ्लैशबैक — 12 साल पहले का दिन
    (हॉस्पिटल का कॉरिडोर, सफेद लाइट्स, बाहर बैठा विवेक अपने हाथों से सिर पकड़े रो रहा है। अंदर से डॉक्टर बाहर आता है।)

    डॉक्टर:
    “बच्ची बिल्कुल ठीक है… पर हम... माँ को नहीं बचा पाए।”

    विवेक (बिलखते हुए):
    “नहीं… नहीं! आप झूठ बोल रहे हैं! आर्या नहीं जा सकती… वो नहीं जा सकती…”

    फ्लैशबैक एंड — वर्तमान

    दादू की आँखों से आँसू गिरते हैं।
    वो संदूक से एक पुराना लेटर निकालते हैं — आर्या का आखिरी लिखा हुआ पत्र।

    दादू (पढ़ते हैं):
    "प्यारे पापा,
    अगर मैं कभी वापस ना आ सकूँ… तो मेरी बेटी को कहना कि मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ। उसे हर रोज़ मेरे फूल देना… और उसे यह मत बताना कि मैं चली गई, उसे बताना कि मैं हर रोज़ उसे देखने आती हूँ, उसके ख्वाबों में, उसकी कहानियों में… और उसके पापा की आँखों में..."

    दादू की आवाज़ भर जाती है। वो चुप हो जाते हैं।

    कुछ देर बाद — दरवाज़े पर हल्की दस्तक होती है।

    दादू (सँभलते हुए):
    “आ जाओ… इनायत, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?”

    इनायत (धीरे से):
    “पता नहीं… नींद नहीं आ रही थी। मम्मी की फोटो देखी तो लगा जैसे आपने उन्हें याद किया है।”

    दादू (मुस्कुराते हुए):
    “तो क्या तुम्हें भी उनकी खुशबू आई?”

    इनायत (हँसकर):
    “हाँ… जैसे गुलाब और बारिश की मिलीजुली सी खुशबू…”

    दादू:
    “तुम्हारी माँ की सबसे पसंदीदा खुशबू थी वो।”

    इनायत दादू के पास आकर बैठ जाती है। दोनों एक-दूसरे का हाथ थाम लेते हैं।

    इनायत:
    “दादू, क्या मैं भी मम्मी जैसी बन सकती हूँ?”

    दादू:
    “तुम पहले से हो… बिल्कुल उन्हीं जैसी… पर एक बात याद रखना — मम्मी जैसी बनने के लिए तुम्हें माँ खोनी नहीं पड़ेगी। तुम जब चाहो, उनसे बात कर सकती हो। अपने मन में, अपनी कहानियों में, अपनी हँसी में।”

    इनायत (धीरे से):
    “पर क्या वो मेरी आवाज़ सुनेंगी?”

    दादू (गले लगाते हुए):
    “हर बार। तुम्हारे हर शब्द से पहले तुम्हारी माँ की धड़कन चलती है… वो तुम्हें सुनती हैं, महसूस करती हैं… और तुम्हारी हँसी से वो जीती हैं।”

    (इनायत की आँखें भर आती हैं, पर चेहरे पर एक मुस्कान होती है)
    इनायत:
    “तो आज से मैं हर रोज़ मम्मी को अपनी एक कहानी सुनाया करूंगी।”
    दादू:
    “और मैं तुम्हारी ऑडियंस बनूंगा।”

    कैमरा बाहर की ओर जाता है — खिड़की पर फिर से बारिश रुक गई है। बादल छंट चुके हैं, और चाँद की हल्की सी रौशनी इनायत के कमरे पर पड़ रही है।

    वॉयस ओवर — इनायत की आवाज़:
    “माँ… मुझे पता है, आप वहाँ हो… और मैं यहाँ… लेकिन जब तक आपकी याद मेरे पास है, मैं कभी अकेली नहीं हूँ…”

  • 3. ख़तरा मंडरा रहा है <br> Chapter 3

    Words: 608

    Estimated Reading Time: 4 min

    मुंबई की रातों में जितनी रौनक होती है, उतनी ही गहराई भी। और कभी-कभी, इन गहराइयों में छुपा होता है ऐसा सन्नाटा जो डर से कहीं ज़्यादा खतरनाक होता है।

    मल्होत्रा हाउस के बाहर का इलाका अब भी रोशनी में डूबा था, लेकिन अंदर माहौल कुछ और था।


    ---

    विवेक मल्होत्रा — एक सफल बिजनेसमैन, लेकिन उससे भी बड़ा एक ज़िम्मेदार पिता — अपनी स्टडी में खिड़की के पास खड़े थे। सामने समंदर की लहरें टकरा रही थीं, लेकिन उनके ज़हन में उठते सवालों की लहरें ज़्यादा तेज़ थीं।

    हाथ में एक पुरानी डायरी थी — आर्या की लिखी हुई — इनायत की मां।

    विवेक ने एक पन्ना पलटा —
    "इनायत के आने के बाद मुझे दुनिया से डर लगने लगा है… इतनी मासूमियत को कैसे बचाऊँगी मैं?"
    उसने पन्ना बंद किया और खामोश निगाहों से बाहर देखा।

    उसे ऐसा लग रहा था कि कोई उन्हें देख रहा है। कई दिनों से उसे अपने आसपास एक अनदेखी परछाई महसूस हो रही थी। कार में बैठते समय पीछे शीशे में एक परछाईं, ऑफिस में CCTV फुटेज एक मिनट के लिए ब्लैंक, इनायत के स्कूल के बाहर एक अनजान चेहरा जो तस्वीरें ले रहा था...

    ये सब इत्तेफ़ाक़ नहीं हो सकते।


    ---

    रात 10 बजे आर. के. मल्होत्रा — इनायत के दादू — धीरे-धीरे चलकर विवेक के कमरे में आए।

    "विवेक?" उन्होंने धीमे से पूछा।
    "आप अब तक जाग रहे हैं?"

    "नींद नहीं आ रही पापा... कुछ गड़बड़ है।"

    उन्होंने सारी बातें दादू को बता दीं — इनायत के इर्द-गिर्द मंडराती परछाइयाँ, और उनका बढ़ता हुआ डर।

    दादू ने गंभीरता से सब सुना, फिर अपना चश्मा उतारते हुए बोले,
    "मुझे लगता था कि ये दिन कभी नहीं आएगा... पर अब लगता है कि वक्त आ गया है। सिक्योरिटी बढ़ानी होगी।"

    "पापा, इनायत पहले ही अपनी मां को खो चुकी है। मैं नहीं चाहता कि वो और डर में जीए। कोई बॉडीगार्ड उसे और असहज कर देगा।"

    "लेकिन अगर कुछ हो गया तो?"
    आर. के. मल्होत्रा की आवाज़ पहली बार काँपी।
    "उस बच्ची की आंखों में उसकी मां की मासूमियत है... और हमारे दुश्मनों की निगाहें उसी मासूमियत पर हैं।"

    "दुश्मन?" विवेक ने चौंककर पूछा।

    दादू कुछ देर चुप रहे।
    "कुछ शक हैं मुझे... और शक अगर मल्होत्रा हाउस के अंदर के लोगों पर हो... तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"

    विवेक की आंखें खुल गईं।
    "आप रघुवीर चाचा के परिवार की बात कर रहे हैं?"

    "मैं नाम नहीं ले रहा," दादू ने कड़वाहट छुपाते हुए कहा,
    "लेकिन जो मीठा दिखता है, वो हमेशा मीठा नहीं होता... याद रखो, किसी को जहर देने के लिए ज़रूरी नहीं कि वो कड़वा हो।"

    विवेक चुपचाप बैठ गए।

    "हमें कोई ऐसा चाहिए जो इनायत के आसपास रह सके — उसे बिना डराए, पर हर वक्त उसकी रक्षा करे।"
    दादू ने एक नंबर डायल किया।

    "हलो? करण, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
    दूसरी तरफ दादू के पुराने सिक्योरिटी चीफ थे।

    "एक नाम है सर — स्वास्तिक ठाकुर। खामोश लड़का है, तेज़ है, वफादार है... लेकिन टूटा हुआ है।"

    "टूटे हुए लोग कभी-कभी सबसे मज़बूत बनते हैं," दादू ने कहा।
    "उसे भेजो... एक बच्ची की हिफाज़त का सवाल है।"

    फोन कट गया। विवेक अब भी चुप थे।

    "उसका नाम क्या बताया?"

    "स्वास्तिक ठाकुर," दादू ने कहा।
    "अगर किस्मत ने चाहा, तो वो न सिर्फ इनायत की हिफ़ाज़त करेगा… बल्कि उसकी अधूरी दुनिया में एक नया रंग भी भर सकता है।"


    ---

    और उसी वक्त, शहर के एक दूसरे कोने में...
    काले कपड़ों में लिपटा एक लड़का, एक मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था।
    हाथ में एक चाकू, आँखों में एक तूफ़ान, और दिल में एक पुराना ज़ख्म।

    स्वास्तिक ठाकुर।

    उसे नहीं पता था कि उसकी ज़िंदगी की अगली सुबह… किसी की पूरी दुनिया बन सकती है।

  • 4. Chapter 4- पहली मुलाकात – रहस्यमय लड़का

    Words: 686

    Estimated Reading Time: 5 min

    मुंबई की सुबह आम तौर पर शोर से भरी होती है — हॉर्न, लोकल ट्रेन की आवाज़ें, दूधवाले की घंटी… लेकिन आज मल्होत्रा हाउस की खामोशी सब पर भारी थी। सुबह की सुनहरी धूप खिड़की से झांक रही थी, लेकिन घर में जैसे कोई साया पसरा हुआ हो।

    ऊपरी कमरे में इनायत अपने पापा विवेक की गोद में थी। उसकी नींद अभी-अभी खुली थी। चॉकलेटी बाल बिखरे हुए थे, मासूम चेहरा ममता के साए में सुकून पा रहा था।

    विवेक उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला,

    "अब तुझे कोई भी तकलीफ़ नहीं होगी, इनू… ये वादा है मेरा।"

    उसके लफ़्ज़ों में एक बाप की लाचारी थी, और साथ ही वो कसक जो पिछले कुछ दिनों में जाग चुकी थी। वो अपनी बेटी को इस हालत में देखना नहीं चाहता था — डरी हुई, सहमी हुई, रातों को चीखकर उठती हुई।



    उसी वक्त, मल्होत्रा हाउस के सामने एक काली बाइक आकर रुकी। बाइक पर बैठा लड़का हेलमेट उतारता है। करीब 18 साल का, लंबे कद वाला, सादे काले कपड़ों में, लेकिन उसकी मौजूदगी जैसे हवा में कुछ बदल देती है।

    स्वास्तिक ठाकुर।

    पहली नज़र में आम लड़का लगता था — लेकिन उसकी आंखें… उनमें एक गहराई थी। जैसे हर दर्द, हर राज़, हर चीख कहीं भीतर दफ़्न हो। वो ज़्यादा बोलता नहीं था, लेकिन उसकी चुप्पी चीखती थी।

    दादू, जो हमेशा मुस्कुराते थे, इस बार गंभीर थे। उन्होंने दरवाज़े तक आकर उसका स्वागत किया।

    "तुम्हें सिर्फ एक काम करना है — इनायत की हिफ़ाज़त। वो हमारी जान है।"

    स्वास्तिक ने बस सिर हिलाया।

    "कभी बच्चे के आसपास रहे हो?"

    दादू ने नर्म लहजे में पूछा।

    "नहीं।"

    ये उसका पहला शब्द था — भारी आवाज़, बिल्कुल उसकी आंखों की तरह।

    "तो अब रहना पड़ेगा।"

    दादू ने उसकी पीठ थपथपाई और धीमे से बोले,

    "बच्चे सिर्फ सुरक्षा नहीं मांगते… वो भरोसा भी चाहते हैं।"



    इनायत का आज स्कूल जाने का मन नहीं था। उसकी आंखों में डर था जो वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी।

    "पापा… मुझे अजीब सा लग रहा है… जैसे कोई मुझे देख रहा हो।"

    विवेक ने उसे सीने से लगा लिया।

    "तुम्हें अब कोई नहीं देखेगा। तुम्हारे पास अब एक दोस्त आएगा।"



    गर्मी की हल्की धूप में गार्डन की घास पर ओस सूख चुकी थी। इनायत किताब लेकर बाहर आई, लेकिन मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। वो बस बैठी रही — खोई हुई, चुपचाप।

    तभी एक आवाज़ पीछे से आई —

    "किताब उल्टी पकड़ी है।"

    वो चौंकी, पलटी — और उसे देखा।

    लड़का। अजनबी। उसकी उम्र से बड़ा दिखने वाला चेहरा। ठंडी आंखें, और चेहरा भावशून्य।

    "तुम कौन हो?"

    इनायत ने थोड़ा घबरा कर पूछा।

    "तुम्हारा बॉडीगार्ड।"

    "मतलब तुम मेरे पीछे हर वक्त रहोगे?"

    "हां। जब तक ज़रूरत है।"

    इनायत ने संदेह से उसे देखा,

    "तुम बहुत डरावने हो… मैं पापा से कहने जा रही हूं।"

    "ठीक है।"

    वो वहीं खड़ा रहा — बिना कोई भाव बदले।

    इनायत कुछ कदम चली… फिर रुककर पीछे पलटी।

    "पर तुमने देखा कैसे कि किताब उल्टी थी?"

    "क्योंकि… मैंने भी यही किताब पढ़ी थी। जब मैं बच्चा था।"

    उसकी आंखों में एक पल के लिए कुछ टूटता हुआ सा चमका… शायद कोई भूली हुई याद… या कोई अधूरी कहानी।

    इनायत ने कुछ पल उसकी आंखों में देखा।

    फिर हल्की मुस्कान आई उसके चेहरे पर —

    "तुम्हारा नाम क्या है?"

    "स्वास्तिक।"

    "मेरा नाम इनायत है। और मैं बहुत बात करती हूं। तुम बोर हो जाओगे।"

    "मैं पहले से ही बोर हूं।"

    इनायत हंस पड़ी।

    "तो क्या हम दोस्त बन सकते हैं?"

    स्वास्तिक कुछ पल चुप रहा… और फिर बहुत हल्की सी मुस्कान उसके होंठों पर आई — जैसे किसी पुराने बंद दरवाज़े पर धीरे से कोई दस्तक हुई हो।

    "शायद बन सकते हैं।"



    लेकिन उस पल उनकी मासूम बातचीत को कोई और भी सुन रहा था।

    छत की एक ऊंची दीवार पर छुपी एक परछाई थी — हाथ में दूरबीन, आंखें तेज़। उसने बहुत ध्यान से इनायत और स्वास्तिक को देखा… और फिर अपने फोन पर किसी का नंबर डायल किया।

    "बॉडीगार्ड आ चुका है। पर बच्ची अब भी अकेली है।

    वक़्त आने पर एक झटका काफी होगा…"

    फोन कट गया।

    छाया मुस्कुराई… और फिर अदृश्य हो गई।

    (To Be Continued…)

  • 5. Chapter 5- जब इनायत को स्कूल में कुछ होता है...

    Words: 550

    Estimated Reading Time: 4 min

    सुबह की हवा हल्की ठंडी थी। खिड़कियों से छन कर आती धूप जैसे इनायत की ज़िंदगी में किसी नए सफर की शुरुआत का इशारा कर रही थी। वो स्कूल के लिए तैयार हो रही थी, पर आज कुछ नया था। उसके साथ आज एक बॉडीगार्ड जा रहा था — स्वास्तिक।

    इनायत ने यूनिफॉर्म पहनी, बालों में रिबन लगाया और सामने खड़े आईने को देखा, "क्या मैं सच में किसी VIP जैसी लग रही हूं?"

    पापा कमरे में आए, उसके बाल संवारे, टाई ठीक की और माथे पर एक प्यारा सा किस किया,
    "पढ़ाई पर ध्यान देना, मस्ती बाद में। और हां… कोई टेंशन नहीं। अब स्वास्तिक तुम्हारे साथ रहेगा।"

    "पर वो तो कुछ बोलते ही नहीं… जैसे रोबोट हों।"
    इनायत ने मुंह बनाया।

    स्वास्तिक पास ही खड़ा था, वही सधा-सधा चेहरा, सीधा खड़ा हुआ। ऐसा जैसे उसकी नसों में खून नहीं, कंप्यूटर कोड बह रहा हो।

    "कम से कम गुड मॉर्निंग तो बोलो!"
    इनायत ने हाथ कमर पर रखकर कहा।

    "गुड मॉर्निंग।"
    आवाज़ इतनी सीधी थी कि उससे ज्यादा भावनाएं तो दीवार में होती हैं।

    इनायत ने आंखें घुमा ली, और खिड़की से बाहर झांकते हुए बड़बड़ाई,
    "अजीब इंसान हो यार…"


    ---

    स्कूल में…

    क्लास शुरू हो चुकी थी। इनायत ने अपना पसंदीदा कोना पकड़ा — विंडो के पास। उसकी किताबें खुली थीं लेकिन मन नहीं लग रहा था।

    बगल में बैठी एक लड़की ने कान में फुसफुसाया,
    "वो देखो… वहीं लड़की जिसका बॉडीगार्ड है!"
    "कुछ तो रॉयल फैमिली जैसी लगती है।"

    इनायत ने सुना… पर कुछ नहीं कहा।

    ब्रेक टाइम…

    वो जैसे ही कैंटीन पहुंची, सामने से आती तीन लड़कियों ने जानबूझकर उसके रास्ते में टिफिन गिरा दिया।

    "ओह, सॉरी प्रिंसेस… ये क्या कर दिया हमने?"
    उनमें से एक ने ताना मारा।

    इनायत ठिठक गई।
    "अरे, डर गई क्या? या फिर तुम्हारा बॉडीगार्ड आएगा तुम्हें बचाने?"

    इनायत के होंठ भिंच गए। आंखें नीचे झुक गईं।

    तभी…

    "किसने हाथ लगाया?"

    पीछे से आई भारी आवाज़ ने जैसे पूरे कैंटीन को साइलेंट मोड पर डाल दिया।

    स्वास्तिक।
    वो दरवाज़े पर खड़ा था। चेहरा शांत था, लेकिन आंखों में वो गहराई थी जो सामने वाले को कांपने पर मजबूर कर दे।

    वो धीरे-धीरे उन लड़कियों की तरफ बढ़ा।
    "अगर दोबारा इसे कुछ कहा, धक्का दिया… तो स्कूल से बाहर फेंक दूंगा।"

    "तुम कोई टीचर हो क्या?"
    एक लड़की ने हिम्मत दिखाई।

    "नहीं। पर उससे भी खतरनाक हूं।"

    इतना कहकर वो उन लड़कियों के सामने से ऐसे गुज़रा जैसे बर्फ के बीच आग चल रही हो।

    लड़कियां बिना कुछ कहे हट गईं।

    इनायत ने आश्चर्य से पूछा,
    "तुम… यहीं थे?"

    "हमेशा रहूंगा। जब तक ज़रूरत है।"

    इनायत के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान खिल गई।
    "थैंक्यू… बॉडीगार्ड अंकल।"

    स्वास्तिक का चेहरा पहली बार थोड़ा सा बदला।
    "मैं सिर्फ 20 का हूं।"

    "ओके बॉडीगार्ड भैया!"

    स्वास्तिक ने कुछ नहीं कहा। बस आगे बढ़ गया।
    पर जैसे ही इनायत ने धीरे से कहा,
    "शायद तुम डरावने नहीं हो… बस अकेले हो।"

    स्वास्तिक के कदम एक पल को थमे… लेकिन फिर उसने कुछ नहीं कहा और आगे बढ़ गया।


    ---

    सीन कट टू — छत

    एक पुरानी बिल्डिंग की छत पर एक आदमी बैठा था — काली हूडी, चश्मा और एक दूरबीन। वो इनायत को देख रहा था।

    "बॉडीगार्ड सिर्फ एक इंसान है…
    पर हमारा खेल बहुत बड़ा है…
    बहुत जल्द… रॉयल शतरंज की असली चाल चलेगी।"

    वो हंसा… पर उसकी हंसी में डर था।

  • 6. Chapter 6- जान पर खेल गया

    Words: 818

    Estimated Reading Time: 5 min

    शाम के पाँच बजे थे। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी, बच्चे अपने-अपने बैग्स लिए बाहर निकल रहे थे। कुछ हँसते हुए, कुछ थक कर… लेकिन इनायत आज बिल्कुल अलग थी — शांत, गुमसुम और खोई-खोई सी।

    वो कार की पिछली सीट पर बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी। आज पहली बार, किसी ने उसके लिए कुछ कहा था, वो भी कोई ऐसा, जो कभी कुछ नहीं कहता था।

    स्वास्तिक।
    सामने की सीट पर बैठा वो लड़का नहीं, कोई मशीन लगता था। ड्राइविंग करते वक़्त उसकी आँखें हर मोड़, हर गली पर घूम रही थीं। शरीर शांत था, लेकिन ज़हन पूरी तरह अलर्ट। जैसे हर खतरे की आहट वो पहले ही सुन लेता हो।

    इनायत ने बिना उसकी तरफ देखे पूछा,
    "तुम्हारा नाम स्वास्तिक क्यों रखा गया?"

    कोई जवाब नहीं। सिर्फ इंजन की आवाज़ और सड़क पर चलती गाड़ी की खामोशी।

    "ओह… फिर से रोबोट मोड," वो बुदबुदाई।

    कुछ सेकंड बाद एक धीमी, लगभग खोई हुई आवाज़ आई —
    "मम्मी ने रखा था…"

    इनायत चौंक गई। पहली बार उसने कुछ खुद बताया था।

    "ओ… मेरी मम्मी का नाम आर्या था… पर वो मुझे छोड़कर चली गई थीं जब मैं पैदा हुई थी।"
    उसकी आवाज़ में हल्की नमी थी। पर वो मुस्कराने की कोशिश कर रही थी — जैसे आँसू को हँसी में छिपाना चाहती हो।

    गाड़ी धीमी हुई। स्कूल से कुछ दूरी पर एक सुनसान सड़क थी — झाड़ियों से घिरी, चारों ओर सन्नाटा।

    "गाड़ी रोको!"
    स्वास्तिक की अचानक उभरी आवाज़ में सख्ती थी।

    ब्रेक लगे। इनायत घबरा गई।

    "क्या हुआ?"

    पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। अगले ही पल उसने खुद गाड़ी का दरवाज़ा खोला, इनायत की तरफ घूमते हुए फुर्ती से उसका दरवाज़ा खोला।

    "नीचे उतरो!"

    "पर क्यू—"

    "अब उतरो!"

    उसकी आँखों में ऐसी बेचैनी थी, कि इनायत ने बिना कोई सवाल किए कदम बाहर रखा।

    और ठीक उसी पल…

    धड़ाम!!
    एक ज़ोरदार धमाका हुआ। सड़क के दूसरी ओर एक बाइक फटी। ऐसा लगा जैसे किसी ने बम लगाया हो।

    अगर गाड़ी थोड़ा और आगे होती — इनायत शायद उस धमाके के बीच होती।

    स्वास्तिक ने उसे झपट कर पास की झाड़ियों के पीछे धकेल दिया।
    उसकी बाँहों में इनायत का शरीर कांप रहा था। आंखें फटी की फटी रह गईं।

    "तुम ठीक हो?"
    स्वास्तिक की साँसें तेज़ थीं, लेकिन आवाज़ स्थिर।

    इनायत ने सिर हिलाया… कुछ कहने की कोशिश की… तभी—

    दूर से भागते आए दो नकाबपोश।

    एक के हाथ में चाकू था, दूसरे के पास किसी बंदूक जैसा कुछ था।

    स्वास्तिक झट से खड़ा हुआ।

    "पीछे रहना।"
    उसने ठंडी आवाज़ में कहा और अपने जैकेट के नीचे से एक छोटी रॉड निकाली —
    उसकी खास हथियार।

    पहला हमलावर उसकी तरफ दौड़ा।
    एक पल… एक पंच…
    चाकू स्वास्तिक के हाथ में था, और उस लड़के की कलाई उलटी मड़ी हुई।

    दूसरे हमलावर ने पीछे से वार किया — मगर जैसे ही वो पास आया, स्वास्तिक ने हवा में छलांग मारी और उसे कंधे से पकड़कर ज़मीन पर दे मारा।

    "इतना आसान नहीं है मुझे हराना," उसने फुसफुसाया।

    इनायत काँप रही थी। उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि वो खुद उसकी आवाज़ सुन सकती थी।

    तभी…

    सायरन की आवाज़… पुलिस आ रही थी।

    हमलावर बदहवासी में भाग निकले।

    स्वास्तिक वापस इनायत की ओर भागा। उसके माथे से खून बह रहा था, पर उसकी नज़र सिर्फ इनायत पर थी।

    "तुम ठीक हो?"
    उसकी आवाज़ अब पहले से कहीं नरम थी।

    इनायत की आंखों से आँसू बहने लगे।
    "तुम… तुम मर सकते थे! क्यों किया ये सब?"

    स्वास्तिक झुका।
    "क्योंकि… मैंने तुम्हें बचाने का वादा किया है। और वादा कभी नहीं तोड़ता।"

    उसकी बात में कोई इमोशन नहीं था — लेकिन इनायत जानती थी, उसके पीछे एक तूफान छिपा था।

    उसने पहली बार उसका हाथ थामा।
    "तुम सिर्फ बॉडीगार्ड नहीं हो… तुम मेरे दोस्त हो… असली वाला।"

    स्वास्तिक चुप रहा… पर उसके चेहरे पर कुछ था — एक एहसास, जिसे वो कब से दबाए बैठा था।


    ---

    सीन कट टू:

    एक काली कार सुनसान मैदान के किनारे खड़ी थी। अंदर बैठा था वही रहस्यमयी शख्स — काली हूडी, गहरे काले चश्मे और एक टैबलेट हाथ में।

    उसने स्क्रीन पर इनायत और स्वास्तिक का क्लिप देखा — सारा हमला रिकॉर्ड हो चुका था।

    "स्वास्तिक ठाकुर…"
    उसने धीरे से कहा,
    "तुम बहुत मजबूत हो… पर हर सुरक्षा में एक दरार होती है। और मैं जानता हूँ, तुम्हारी दरार कहां है।"

    पास ही बैठा एक आदमी बोला,
    "प्लान बी शुरू करें?"

    वो मुस्कराया —
    "नहीं… अब प्लान C चलेगा। अब दर्द वहां होगा जहां स्वास्तिक सोच भी नहीं सकता…"


    ---

    सीन कट टू: रात

    इनायत अपने कमरे में थी।
    घटना के बाद उसे काफी देर लग गई नॉर्मल होने में। लेकिन जब वो सोने लगी, तो उसने देखा —

    बालकनी पर कोई खड़ा था।

    "स्वास्तिक?" उसने पूछा।

    वो चुपचाप खड़ा रहा।

    "तुम… वहां क्या कर रहे हो?"

    "तुम्हारी सुरक्षा कर रहा हूँ। जब तक तुम सो जाओ।"

    "और फिर?"

    "फिर मैं भी सो जाऊंगा। आँखें खुली रखकर।"

    इनायत मुस्कराई।

    वो जानती थी… अब वो अकेली नहीं है।

  • 7. Chapter 7- मेरा सबसे अच्छा दोस्त

    Words: 780

    Estimated Reading Time: 5 min

    धमाके वाली घटना के बाद इनायत की ज़िंदगी में जैसे सब कुछ बदल गया था। जो इनायत कभी किसी पर भरोसा नहीं करती थी, वो अब हर बात पर स्वास्तिक को देखती थी — जैसे वो कोई बॉडीगार्ड नहीं, बल्कि उसकी ज़िंदगी की ढाल हो।

    अगली सुबह जब वो घर से निकली, तो उसके चेहरे पर वो पुरानी इनायत वाली उदासी नहीं थी। आज वो हल्के से मुस्कुरा रही थी। कार के पास खड़ा स्वास्तिक हमेशा की तरह सीधा और शांत खड़ा था। मगर जैसे ही इनायत उसके पास पहुँची, वो एकदम से बोल पड़ी —

    "स्वा-स्तिक!"

    वो पलटा। उसकी आँखें हमेशा की तरह चौकस थीं।

    "हमेशा ऐसे सीरियस क्यों रहते हो? लगता है जैसे कभी बचपन जिया ही नहीं।"

    स्वास्तिक कुछ नहीं बोला।

    "थोड़ा मुस्कुराया करो। चलो आज मैं तुम्हें हँसाने की कोशिश करती हूं।"

    स्वास्तिक का चेहरा वैसे ही रहा, पर उसकी नज़र में एक हल्की सी चमक उभरी।

    "मैंने सोचा है," इनायत ने कहा, "आज से तुम मेरे बॉडीगार्ड नहीं, मेरे बेस्ट फ्रेंड हो। ठीक है?"

    स्वास्तिक थोड़ा चौंका, लेकिन फिर उसकी आँखों में कुछ पिघलता हुआ सा महसूस हुआ।

    "दोस्ती?"

    "हां, तुम्हें मेरी जान बचाने का इनाम मिलना चाहिए न। ये दोस्ती उसी का रिटर्न गिफ्ट है।"

    उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया।

    स्वास्तिक ने थोड़ी देर देखा, फिर हाथ थाम लिया — नर्मी से, जैसे किसी भूले-बिसरे एहसास को फिर से छू लिया हो।

    इनायत की आँखों में चमक थी, लेकिन स्वास्तिक की आँखों में कोई बीती यादों की परछाईं थी।

    "तो अब से हम दोस्त हैं," इनायत ने मुस्कुराकर कहा, "और दोस्तों के कुछ रूल्स होते हैं। पहली बात – तुम मुझे रोज़ स्कूल छोड़ने और लेने आओगे, बिना रोबोट वाला चेहरा बनाए।"

    स्वास्तिक ने कुछ नहीं कहा, पर उसकी आँखों में हल्की सी मुस्कान उभरी — वो मुस्कान जो वो दुनिया से छुपाता था।

    **

    स्कूल में लंच टाइम था। इनायत हमेशा की तरह अकेली बैठी थी। लेकिन आज उसने खुद को अकेला महसूस नहीं किया। उसके पास कोई भले न था, लेकिन दिल में एक दोस्त था — और वो गेट के बाहर, पेड़ के नीचे खड़ा था।

    उसने बैग से दो सैंडविच निकाले — एक खुद के लिए, एक उसके लिए। वो दौड़ती हुई गेट की तरफ गई।

    "स्वास्तिक!"

    वो जैसे ही मुड़ा, इनायत ने उसके सामने सैंडविच बढ़ा दिया।

    "ये लो। मेरे पापा के हाथ का बनाया हुआ है। बहुत टेस्टी है।"

    स्वास्तिक ने सर हिलाया। "मैं ड्यूटी पर हूं। नहीं ले सकता।"

    "और मैं दोस्त हूं। और दोस्तों का हुक्म मानना पड़ता है। खाओ!"

    उसकी आवाज़ में जो मासूम जिद थी, उसे मना कर पाना शायद स्वास्तिक के लिए पहली बार मुश्किल हुआ। उसने सैंडविच ले लिया।

    दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए। हवा हल्की-हल्की चल रही थी। बच्चों की हँसी दूर कहीं गूंज रही थी। लेकिन इन दोनों के लिए वक़्त जैसे वहीं रुक गया था।

    "तुम्हें कोई दोस्त नहीं था क्या?" इनायत ने पूछा।

    स्वास्तिक कुछ देर चुप रहा। फिर बोला, "था… पर अब नहीं है।"

    इनायत ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा, "अब है। मैं हूं न।"

    उस दिन पहली बार इनायत ने उसे हँसते हुए देखा — हल्की सी मुस्कान, जो आँखों तक गई।

    **

    उधर दूसरी तरफ… एक अंधेरी कोठरी में कुछ लोग बैठे थे। आर. के. मल्होत्रा का सौतेला भाई — एक चालाक और खतरनाक इंसान, जो अब तक परदे के पीछे खेल चला रहा था।

    उसके सामने इनायत की तस्वीरें और कुछ रिपोर्ट्स फैली थीं।

    "स्वास्तिक नाम का ये लड़का… कुछ ज्यादा ही अड़चन बन रहा है। जब तक वो है, इनायत तक पहुँचना मुश्किल है।"

    एक आदमी बोला, "अगर उसे ही खत्म कर दें?"

    "नहीं," मल्होत्रा ने कहा, "उसे खत्म करने से पहले, इनायत को असहाय बनाना होगा।

    उसका हर सहारा छीन लो… फिर जब वार हो, तो कोई उसे बचाने न आए।"

    "तो क्या अगला निशाना उसके पापा हैं?"

    मल्होत्रा की आंखें चमकीं।

    "शायद… या फिर स्कूल। देखते हैं, स्वास्तिक कितने मोर्चे पर लड़ सकता है।"

    **

    रात को इनायत बालकनी में खड़ी थी। उसकी आँखों में आज एक अजीब सी बेचैनी थी। वो नीचे झाँक कर देखने लगी।

    स्वास्तिक अब भी वहीं था — नीचे गाड़ी के पास, बिल्कुल सतर्क।

    इनायत ने नीचे झुककर कहा, "स्वास्तिक!"

    वो ऊपर देखा।

    "अगर कल फिर कुछ हो जाए… तो तुम भाग मत जाना। मैं तुम्हें अकेले नहीं लड़ने दूंगी।"

    स्वास्तिक की आँखों में कुछ गहराया। वो कुछ बोलने ही वाला था, कि बालकनी के पास एक छाया तेजी से गुज़री।

    इनायत चौंकी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

    नीचे खड़ा स्वास्तिक पहले से भी ज़्यादा अलर्ट हो गया था। उसने तुरंत गाड़ी से वायरलेस निकाला,

    "Code Red. Building A-17. कोई हरकत हुई है। Immediate back-up needed."

    इनायत को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन अब उसे यकीन था — कुछ बहुत बड़ा होने वाला था।

  • 8. Chapter 8-स्वास्तिक कौन है?

    Words: 627

    Estimated Reading Time: 4 min

    इनायत की नज़र में अब स्वास्तिक सिर्फ एक बॉडीगार्ड नहीं था — वो उसका पहला दोस्त था, उसका "सुपरहीरो", जो बिना माने हमेशा उसके साथ खड़ा रहता।

    उस दिन स्कूल से लौटते वक्त कार में इनायत खामोश बैठी थी। बाहर बारिश हो रही थी, और उसकी नजरें खिड़की से टकराती बूंदों पर थीं।

    "स्वास्तिक?" उसने धीमे से पूछा।

    "हां?"

    "तुम इतने सीरियस क्यों रहते हो? तुम्हें गुस्सा आता है? डर लगता है?"

    स्वास्तिक कुछ देर चुप रहा। "गुस्सा आता है… डर नहीं।"

    "किस पर गुस्सा आता है?"

    "खुद पर।" उसने हल्के से कहा।

    इनायत चौंकी। "खुद पर क्यों?"

    स्वास्तिक ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी आंखों में कुछ था… कोई अधूरा किस्सा, कोई ऐसा दर्द जिसे उसने सालों से दबा रखा था।

    **

    फ्लैशबैक – 5 साल पहले

    एक वीरान पहाड़ी इलाका। गोलियों की आवाज़। धुंआ। चीखें।

    एक 15 साल का लड़का, खून से लथपथ… किसी को कंधे पर उठाए दौड़ रहा था। उस लड़के के पीछे जलता हुआ घर था, और उसके सामने अंधेरा जंगल।

    "भाग स्वास्तिक!" पीछे से एक आवाज़ आई।

    वो मुड़ा नहीं। भागता गया।

    उसने जिसने खोया था… वो सब उसकी आंखों में आज भी ज़िंदा था।

    **

    वापस वर्तमान में

    इनायत ने उसकी तरफ देखा, जैसे वो कुछ समझ गई हो। "तुम्हारे साथ कुछ बहुत बुरा हुआ है न?"

    स्वास्तिक ने एक नजर उस पर डाली — उसकी मासूम आंखों में चिंता थी। वो पहली बार कुछ बोलना चाहता था… पर खुद को रोक लिया।

    **

    रात ढल चुकी थी

    स्वास्तिक अपनी डायरी में कुछ लिख रहा था।

    "5 साल हो गए… पर वो आग आज भी अंदर जलती है। अब इनायत मेरी जिम्मेदारी है… लेकिन डर इस बात का नहीं कि मैं फेल हो जाऊं… डर इस बात का है कि अगर उसने भी मुझे खो दिया, तो क्या मैं खुद को माफ कर पाऊंगा?"

    वो कलम बंद करता है, और एक पुरानी तस्वीर निकालता है — उसमें एक औरत और एक छोटी बच्ची है, जो उसके सीने से लगी हुई है।

    **

    दूसरी तरफ – इनायत का घर

    आर. के. मल्होत्रा सीसीटीवी फुटेज देख रहे थे। स्क्रीन पर स्वास्तिक की मूवमेंट्स, उसकी नजरें, उसका अलर्ट रहना — सब दिख रहा था।

    "ये लड़का आम नहीं है," उन्होंने कहा।

    इनायत के पिता विवेक बोले, "हमने उसकी बैकग्राउंड चेक की थी, सब क्लीन था।"

    "क्लीन होना और ब्लैंक होना दो अलग बातें हैं, विवेक। कोई इतना परफेक्ट नहीं हो सकता। किसी ने इसे ट्रेंड किया है। पता लगाओ… ये आखिर है कौन।"

    **

    रात के उसी वक़्त – शहर के दूसरे कोने में

    एक अंधेरी कोठरी में, कुछ लोग बैठे थे। बीच में जलती हुई सिगरेट की राख गिर रही थी।

    "स्वास्तिक… ये नाम अब खटकने लगा है," एक ने कहा।

    "जब तक वो लड़का जिंदा है, इनायत तक पहुँचना नामुमकिन है।"

    "हमें पहले उसे इनायत से अलग करना होगा," एक और बोला।

    "कैसे?"

    "उसका ट्रस्ट तोड़ो। उसकी छवि बिगाड़ो। इनायत को यकीन दिलाओ कि वो खतरा है… सुरक्षा नहीं।"

    सभी चुप हो गए। फिर वही पहला आदमी बोला, "और अगर तब भी वो न माने, तो स्वास्तिक को खत्म कर दो।"

    **

    अगली सुबह

    इनायत स्कूल जा रही थी। गाड़ी में बैठते वक्त उसने स्वास्तिक से कहा, "तुम्हारे साथ कुछ बहुत सीक्रेट है न? मैं जानना चाहती हूं।"

    स्वास्तिक ने सिर झुकाया। "हर सच हर वक्त नहीं बताया जा सकता।"

    इनायत मुस्कुरा दी, "ठीक है। लेकिन जब बताने का मन करे, तो सबसे पहले मुझे बताना।"

    वो कुछ नहीं बोला, लेकिन पहली बार उसकी आंखों में सुकून था।

    **

    एंड सीन – दूर एक बिल्डिंग की छत से इनायत की गाड़ी पर कोई दूरबीन लगाए देख रहा था।

    "बहुत जल्द… मासूमियत का ये बुलबुला फूटेगा। और फिर शुरू होगा असली खेल।"

    उसने अपनी जेब से एक मोबाइल निकाला। स्क्रीन पर इनायत की तस्वीर थी, और नीचे लिखा था: "TARGET LOCKED"

  • 9. Chapter 9-एक हादसा... और गायब होता साया

    Words: 522

    Estimated Reading Time: 4 min

    मुंबई की हल्की बारिश भरी शाम थी। इनायत ने गुलाबी स्वेटर पहना था, बाल खुले और आंखों में वही पुरानी मासूम चमक। वह लॉन में बैठी थी, हाथ में अपनी डायरी, जिसमें उसने अपने पापा के लिए एक प्यारी सी कविता लिखी थी।

    “जब आप पास होते हो पापा, डर दूर भाग जाता है…”
    वो धीरे-धीरे पढ़ती जा रही थी। आज उसे पापा से कुछ ख़ास कहना था।

    स्वास्तिक, जो अब उसके करीब एक हफ्ते से बॉडीगार्ड बन कर रह रहा था, हमेशा की तरह थोड़ी दूरी पर खड़ा था। उसकी आंखें लगातार बाहर की दुनिया को स्कैन कर रही थीं — जैसे कुछ बड़ा होने वाला हो।

    इनायत ने उसे देखा और पूछा,
    “स्वास्तिक भैया, आपको कभी डर लगता है?”

    स्वास्तिक कुछ पल उसे देखता रहा, फिर धीमे से बोला,
    “डर वहां होता है जहां कोई अपना होता है।”

    इनायत उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाई, पर उसने हल्का सा मुस्कुराया।


    ---
    – विवेक मल्होत्रा का ऑफिस, रात के 8:15 बजे

    विवेक अपने ऑफिस की आखिरी मीटिंग खत्म कर चुके थे। फोन पर इनायत की कविता रिकॉर्डिंग सुन रहे थे जो उसने सुबह भेजी थी। उनकी आंखों में नमी थी, लेकिन होंठों पर गर्व भरी मुस्कान।

    "मेरी बच्ची कितनी बड़ी हो गई है…"

    ड्राइवर ने गाड़ी गेट से बाहर निकाली ही थी कि तभी…

    BOOM!!!!

    एक ज़ोरदार धमाका हुआ।
    गाड़ी में टाइम-बॉम्ब लगाया गया था।

    धुएं, आग, और चीखों से पूरी सड़क गूंज उठी।


    ---
    – मल्होत्रा हाउस

    दादू फोन पर किसी से गुस्से में बात कर रहे थे।
    “हमारे परिवार पर हमला हुआ है! सब तरफ सिक्योरिटी
    डबल करो!”

    इनायत भागती हुई आई,
    “दादू, क्या हुआ? पापा नहीं आए अभी तक?”

    उनकी आंखें भीगी थीं, पर चेहरा सख्त।
    उन्होंने इनायत को गले से लगा लिया और कुछ नहीं कहा।

    “नहीं दादू… बोलिए… कुछ तो बोलिए ना…”

    कुछ ही देर बाद न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ थी —
    “बिजनेस टायकून विवेक मल्होत्रा की कार में धमाका, मौके पर मौत।”

    इनायत की दुनिया जैसे थम गई थी।

    उसने चुपचाप स्वास्तिक को देखा, उसकी आंखों में सवाल थे —
    “आप तो थे ना… आप तो मेरे पापा को बचा सकते थे…”

    लेकिन स्वास्तिक कुछ नहीं बोला। उसकी आंखें पहली बार भीग गई थीं।


    ---

    रात 1:00 बजे
    स्वास्तिक अपने कमरे में बैठा था। उसके हाथ में विवेक की एक पुरानी तस्वीर थी।

    वो किसी को कॉल करता है —
    “मैं यहां अब और नहीं रुक सकता। जो हुआ वो सिर्फ शुरुआत थी। मैं इस लड़ाई से पीछे नहीं हट सकता… लेकिन उसे बचाऊंगा, किसी भी कीमत पर।”

    अगली सुबह...

    इनायत जब जागी तो सबसे पहला सवाल यही पूछा —
    “स्वास्तिक भैया कहां हैं?”

    दादू चुप थे।
    स्वास्तिक का कमरा खाली था। कोई नोट नहीं, कोई अलविदा नहीं।

    बस दीवार पर इनायत की तस्वीर थी, जिस पर लिखा था —
    “जब तक तुम मुस्कुरा रही हो, मैं हार नहीं मानूंगा।”

    इनायत का दिल पहली बार टूटा।
    पहली बार उसने महसूस किया — इस दुनिया में सिर्फ मासूम होना काफी नहीं।


    ---

    किसी दूर जगह पर
    स्वास्तिक काले कपड़ों में एक ट्रेनिंग कैंप में दाखिल होता है। उसके चेहरे पर अब मासूमियत नहीं, बस एक मिशन की आग है।

    “मैं लौटूंगा… जब वक्त आएगा।”

  • 10. Chapter 10-बारिश और खामोशी

    Words: 520

    Estimated Reading Time: 4 min

    – मल्होत्रा हाउस | रात 12:30 बजे |

    बारिश खिड़की से टकरा रही थी, लेकिन घर के अंदर उससे भी ज़्यादा तेज़ टूट रहा था — एक 12 साल की बच्ची का दिल।

    इनायत फर्श पर बैठी थी, अपने पापा की सफेद शर्ट को भींचे हुए, जैसे उसे छोड़ देगी तो पापा की खुशबू भी चली जाएगी।

    उसकी आंखें सूख चुकी थीं। अब उसमें आंसू नहीं, बस सन्नाटा था।

    वो एकटक दरवाज़े को देख रही थी, जैसे हर पल यही सोच रही हो —
    "शायद अगली घंटी पर पापा आ जाएं..."


    ---

    – दादाजी का कमरा

    दादाजी व्हीलचेयर पर बैठे हुए थे। टीवी पर वही न्यूज़ रिपीट हो रही थी —
    "बिजनेस टायकून विवेक मल्होत्रा की कार में बम ब्लास्ट… मौके पर मौत…"

    उनकी आंखें नम थीं, लेकिन चेहरा पत्थर की तरह सख़्त।

    उन्होंने रिमोट उठाकर टीवी बंद कर दिया… और धीमे से कहा —
    “मेरी दुनिया चला गया… लेकिन उसकी दुनिया अभी बची है — इनायत।”


    ---

    – फ्लैशबैक | कुछ दिन पहले

    "पापा… अगर मैं स्टेज पर गिर गई तो?"

    "तू नहीं गिरेगी मेरी गुड़िया, मैं सामने बैठा हूंगा ना… और ताली भी सबसे ज़्यादा मैं ही बजाऊंगा!"

    "Promise?"

    "Promise."
    और फिर उन्होंने उसके माथे पर एक प्यारा सा किस किया था।


    ---

    – वर्तमान | रात 1:00 बजे

    इनायत चुपचाप पापा के कमरे में गई।
    तकिए पर उनकी शर्ट रखी और उसी से लिपट कर लेट गई।
    वो बस फुसफुसाई…

    "आपने वादा किया था… आप तो झूठ नहीं बोलते थे ना पापा?"

    उसकी सिसकियां सुनकर बाहर खड़े दादाजी की आंखें भर आईं, लेकिन वो जानते थे —
    अब इनायत को सिर्फ सहारा नहीं, हौसला बनना पड़ेगा।


    ---

    – अगली सुबह

    घर के बाहर मीडियावाले, अंदर रिश्तेदार, और बीच में खड़ी थी — इनायत।

    ना उसने किसी से बात की, ना किसी के सवालों का जवाब दिया।
    वो सीढ़ियों पर बैठी रही — गुमसुम, निःशब्द।

    दादाजी उसके पास आए, उसका सिर सहलाया।
    "बेटा, वो अब ऊपर से देख रहे हैं तुझे… और तुझ पर बहुत गर्व होगा उन्हें…"

    इनायत पहली बार बोली, आवाज़ कांपती थी —
    "क्या ऊपर से भी वो ताली बजा सकते हैं, जब मैं फिर से डांस करूंगी?"

    दादाजी ने खुद को रोने से रोका, और बस कहा —
    "ज़रूर बेटा… वो हर बार बजाएंगे।"


    ---

    – स्वास्तिक का कमरा | खाली

    इनायत अचानक यादों में खो गई —
    स्वास्तिक… जो हमेशा उसे चुपचाप देखते थे, पर हर मोड़ पर उसका साथ देते थे।

    अब उनका कमरा भी खाली था।
    कुर्सी पर रखा था सिर्फ एक तस्वीर — इनायत की मुस्कुराती हुई तस्वीर, जिस पर एक लाइन लिखी थी:

    "जब तक तुम मुस्कुरा रही हो… मैं हार नहीं मानूंगा।"


    ---

    – रात का आखिरी सीन

    इनायत अपनी डायरी खोलती है।
    अपने पापा के लिए वो कुछ लिखती है — पहली बार, अपने टूटे हुए दिल से:

    > “प्यारे पापा,
    आप चले गए, पर आपकी कहानी अब भी मेरी सांसों में है।
    मैं अब अकेली हूं, लेकिन हार नहीं मानूंगी।
    एक दिन… मैं स्टेज पर खड़ी होकर आपके लिए तालियां लाऊंगी।
    और जब सब मुझे देखेंगे,
    मैं आसमान की तरफ देखकर कहूंगी —
    ‘वो देखो… मेरे पापा ताली बजा रहे हैं।’”

    To be continue

    muskan Gupta

  • 11. The bodyguard Bride - Chapter 11

    Words: 647

    Estimated Reading Time: 4 min

    "कुछ लोग कभी वापस नहीं आते, लेकिन दिल में हमेशा ज़िंदा रहते हैं…"

    10 साल बीत चुके हैं…

    10 बरस पहले की उस मासूम सी इनायत को अब लोग मैम कहकर बुलाते हैं।22 साल की हो चुकी इनायत अब मल्होत्रा ट्रस्ट के अंतर्गत बच्चों के साथ जुड़कर सोशल वर्क प्रोजेक्ट में काम करती है।

    वो अब भी वैसी ही मासूम है, बस ज़िंदगी ने उसकी मुस्कान में हलकी सी समझदारी घोल दी है।

    सलीका आ गया है बातों में, लेकिन दिल अब भी वैसा ही है — नर्म, सच्चा, और ज़रा सा टूटा हुआ।

    ---

    – दोपहर | मल्होत्रा फाउंडेशन स्कूल

    एक हल्की सी धूप क्लासरूम की खिड़की से अंदर झांक रही थी।

    इनायत जमीन पर बैठी थी, और उसके चारों तरफ छोटे-छोटे बच्चे बैठे थे — कोई 5 साल का, कोई 7 साल का।

    इनायत ने हाथ में किताब ली और बोली,

    "हर किसी के पास कुछ न कुछ कमी होती है… लेकिन अगर तुम अपने सपनों पर भरोसा रखो, तो दुनिया बदल सकते हो।"

    एक नन्हा बच्चा बोला, “मैम, क्या आपके पास भी कोई कमी थी?”

    इनायत थोड़ी देर चुप रही, फिर मुस्कराकर बोली —

    "थी… बहुत कुछ खोया है मैंने। मम्मी-पापा… दोनों नहीं हैं अब मेरे साथ।"

    एक बच्ची धीरे से उसके पास आकर उसका हाथ पकड़ लेती है।

    “मैं भी नहीं जानती मम्मी को… लेकिन जब आप पास होती हो, तो बहुत अच्छा लगता है।”

    इनायत की आंखें भर आती हैं।वो उस बच्ची को गले लगाकर बोलती है —"हम सब एक-दूसरे के लिए ही तो हैं।"

    ---

    – शाम | मल्होत्रा हाउस का लॉन

    वो पुराना लॉन… अब बच्चों की हँसी से गूंजता है।

    लेकिन रात होते-होते, जब सब सो जाते हैं, इनायत की दुनिया फिर से वही बन जाती है —

    एक किताब, एक झूला, और एक नाम… स्वास्तिक।

    वो झूले पर बैठती है, किताब बंद करती है… और आंखें बंद कर लेती है।

    "क्या तुम भी मुझे याद करते हो, स्वास्तिक?"

    उसके ज़हन में अब भी वही अधूरी बातें घूमती हैं…

    आखिरी बार जब उसने स्वास्तिक को देखा था —

    उसने सिर्फ एक वादा किया था —

    "जब तक तुम मुस्कुरा रही हो, मैं ज़िंदा हूं…"

    ---

    – फ्लैशबैक | 12 साल की इनायत | ब्लास्ट के बाद

    हर तरफ धुआं था।

    हर तरफ चीखें थीं।

    इनायत ने अपने पापा को आखिरी बार तब देखा था, जब वो उसे ढाल बनाकर बम से बचा रहे थे।

    "इनायत… भाग जा बेटा… पापा तुम्हारे साथ हैं…"

    एक ज़ोरदार धमाका हुआ।

    और सब कुछ खत्म।

    ---

    – आज की रात | 10 साल बाद | वो ही लॉन

    इनायत अब 22 की है,

    लेकिन उस रात की चीखें अब भी सोने नहीं देतीं।

    कभी-कभी वो अपने तकिए में मुंह छुपा कर रोती है,

    लेकिन सुबह फिर मुस्कुरा कर बच्चों के सामने खड़ी होती है।

    वो जानती है — उसका दर्द उसकी ताकत है।

    ---

    – कहीं दूर | सीमा के पार | रात का वक्त

    एक अंधेरी गली में कुछ नकाबपोश लोग चल रहे हैं।

    उनके बीच एक तेज़ निगाहों वाला आदमी खामोशी से चल रहा है —

    कंधे पर बंदूक, आंखों में सवाल, और सीने में एक पुराना अधूरा नाम — इनायत।

    "स्वास्तिक…"

    उसे अब भी याद है — वो चेहरा, वो वादा, वो लड़की जो उसकी मुस्कान में छुपी थी।

    कोई पास आकर बोलता है —

    "मिशन कंप्लीट करने के बाद तू वापस जाएगा?"

    वो धीरे से जवाब देता है —

    "मिशन तो अब शुरू हुआ है… जिसे मैंने अधूरा छोड़ा था, अब उसे पूरा करूंगा।"

    ---

    – अगली सुबह | मल्होत्रा हाउस

    डोरबेल बजती है।

    इनायत दरवाजा खोलती है।

    डाकिया एक पुराना, धूल भरा लिफाफा देता है —

    कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं।

    वो कांपते हाथों से खोलती है —

    और उसके अंदर रखी है… एक वही पुरानी तस्वीर —

    जो कभी स्वास्तिक ने उसे दी थी।

    पीछे लिखा था —

    "तुम मुस्कुराती रही… मैं ज़िंदा रहा। अब शायद लौटने का वक़्त है।"

    इनायत की आंखें भर आती हैं।

    "स्वास्तिक…?"

  • 12. The bodyguard Bride - Chapter 12

    Words: 626

    Estimated Reading Time: 4 min

    उस दिन सब कुछ आम था। इनायत बच्चों को पढ़ा रही थी, फिर NGO की मीटिंग अटेंड की, और शाम होते-होते मल्होत्रा हाउस के ऑफिस रूम में बैठी कुछ पेपर्स साइन कर रही थी। अचानक उसका फोन बजा। एक अनजान नंबर… लेकिन गवर्नमेंट स्टैम्प वाला।

    "हैलो?" उसने धीमे स्वर में कहा।

    "मैम, हम इंडिया गवर्नमेंट की स्पेशल सिक्योरिटी डिवीजन से बात कर रहे हैं। हाल ही में आपकी एक रिपोर्ट को लेकर सरकार ने संज्ञान लिया है। आपके कार्य की सराहना करते हुए आपको एक पर्सनल प्रोटेक्शन ऑफिसर अलॉट किया गया है।"

    इनायत को हैरानी हुई।

    "लेकिन मुझे इसकी जरूरत नहीं—"

    फोन की दूसरी तरफ से आवाज़ आई, "ये सरकार का आदेश है, मैम। सुरक्षा प्राथमिकता है। आपके लिए जो ऑफिसर नियुक्त किया गया है, उनका नाम है — स्वास्तिक राणा। वो कल सुबह आपकी लोकेशन पर रिपोर्ट करेंगे।"

    इनायत की पेन हाथ से छूट गई।

    एक पल को तो वो कुछ समझ ही नहीं पाई।

    स्वास्तिक राणा?

    वो नाम जैसे हवा में तैर गया…

    वो नाम, जो अब तक सिर्फ दिल की गहराइयों में था,

    जो अब तक सिर्फ झूले पर बैठ कर याद आता था…

    अब सामने आने वाला था?

    क्या ये वही स्वास्तिक है?

    उसका स्वास्तिक?

    जिसने वादा किया था — "जब तक तुम मुस्कुरा रही हो, मैं ज़िंदा हूं…"

    या फिर ये सिर्फ एक इत्तेफाक है?

    उस रात इनायत को नींद नहीं आई।

    वो उस पुरानी तस्वीर को बार-बार देखती रही, जो कुछ दिन पहले किसी अनजान लिफाफे में उसे मिली थी।

    स्वास्तिक की वो मुस्कुराती आंखें, वो तेज़ नाक, वो आधी सी मुस्कान — सब कुछ याद था।

    वो सोचती रही…

    "अगर ये वही है, तो क्यों लौट रहा है अब?"

    "और अगर नहीं है, तो ये नाम मेरे नसीब में फिर क्यों आया?"

    ---

    अगली सुबह | मल्होत्रा हाउस का गेट

    इनायत लॉन में खड़ी थी, हल्के नीले सूट में, बाल खुले और आंखों में बेचैनी।

    उसके दिल की धड़कन जैसे तेज़ हो रही थी… हर आती-जाती गाड़ी को देखती।

    फिर गेट के सामने एक ब्लैक SUV आकर रुकी।

    ड्राइवर उतरा और गाड़ी की पिछली सीट का दरवाज़ा खोला।

    वहां से उतरा एक लंबा, चौड़ा कद वाला शख्स।

    ब्लैक शर्ट, ग्रे पैंट, आंखों पर चश्मा… और चाल में सधा हुआ आत्मविश्वास।

    उसने गेट की तरफ कदम बढ़ाए, और सीधा इनायत के सामने आकर खड़ा हो गया।

    "मैं स्वास्तिक राणा। आपकी सुरक्षा का ज़िम्मा मुझे सौंपा गया है।"

    इनायत का गला सूख गया।

    उसकी आंखें उस शख्स को निहारती रहीं… चेहरा जाना-पहचाना था, लेकिन थोड़ी ठंडक, थोड़ी सख्ती भी आ चुकी थी।

    वो एकदम सधे हुए स्वर में बोलता रहा,

    "मैं 7 साल तक आर्मी में था, फिर स्पेशल फोर्स से जुड़ा। अब गवर्नमेंट सिक्योरिटी डिवीजन के लिए काम कर रहा हूं। 24x7 आपकी सुरक्षा मेरी ज़िम्मेदारी है।"

    लेकिन इनायत बस उसे देखती रही… कुछ बोल नहीं पाई।

    वो सोचती रही —

    "क्या ये वही स्वास्तिक है?"

    "लेकिन उसकी आंखें… वो तो वैसी ही हैं… बस अब उनमें दर्द छुपा है।"

    स्वास्तिक ने उसकी तरफ देखा।

    उसने हल्के से सिर झुकाया और कहा —

    "अगर आप अंदर ले चलें, तो मैं सारी औपचारिकताएं पूरी कर लूं।"

    इनायत ने पहली बार अपना स्वर निकाला, बहुत धीमे, बहुत सधे हुए शब्दों में —

    "आपको ये नाम कैसे मिला?"

    स्वास्तिक का चेहरा एक पल को ठहर गया।

    उसने चश्मा उतारा।

    उसकी आंखों में वही पुरानी गर्माहट थी… वही मासूम गहराई।

    "ये नाम मैंने खुद नहीं चुना था… ये मुझे एक लड़की ने दिया था, बहुत पहले।"

    इनायत का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

    "उस लड़की का नाम क्या था?" उसने कांपते हुए पूछा।

    स्वास्तिक ने एक पल के लिए आसमान की तरफ देखा… और फिर मुस्कराकर बोला —

    "इनायत।"

    इनायत की आंखों से आंसू बह निकले।

    इतने सालों का इंतजार, इतनी रातों की तन्हाई…

    आज सामने था — उसका स्वास्तिक, ज़िंदा, सामने, उसके पास।

  • 13. The bodyguard Bride - Chapter 13

    Words: 648

    Estimated Reading Time: 4 min

    इनायत ने दरवाज़ा खोला, और उसे सामने खड़ा देखा।

    स्वास्तिक।

    लेकिन अब वो वैसा नहीं था जैसा दस साल पहले था — न वो मासूम लड़का, न वो नर्म मुस्कान, और न ही वो चंचल आंखें।

    अब उसके चेहरे पर सख़्ती थी, चाल में अनुशासन और आंखों में एक अजीब सा खालीपन।

    वो ब्लैक यूनिफॉर्म में था, गले में सरकारी ID, कमर पर हथियार और पीठ पर वही पुरानी स्ट्रेट पोस्चर जो सिर्फ सेना में सालों बिताने के बाद आता है।

    इनायत ने कांपती आंखों से उसे देखा।

    दिल की धड़कनें तेज़ थीं… मानो दस साल बाद धड़कने की वजह सामने खड़ी हो।

    वो अपने अंदर हज़ार सवालों को रोके हुए थी —

    "कहाँ थे तुम?"

    "क्यों गए थे?"

    "क्यों कुछ नहीं बताया?"

    "क्या तुम वही हो… मेरा स्वास्तिक?"

    लेकिन वो... एकदम अलग था।

    उसके चेहरे पर भाव नहीं, सिर्फ कर्तव्य था।

    स्वास्तिक ने हल्के से सिर झुकाया,

    "मैम, मैं स्वास्तिक राणा। भारत सरकार द्वारा नियुक्त आपकी सुरक्षा का ज़िम्मेदार ऑफिसर। मेरी ड्यूटी अब आप तक सीमित है – आपकी सुरक्षा सुनिश्चित करना, आपकी हर हरकत पर नज़र रखना और किसी भी तरह के खतरे से आपको बचाना।"

    इनायत को एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ — ये वही था?

    जिसने झूले पर बैठकर उसके बालों में फूल लगाए थे?

    जिसने हाथ पकड़कर कहा था, "तू मेरी इनायत है, और मैं तेरा स्वास्तिक…"

    लेकिन वो अब उसे ऐसे देख रहा था जैसे वो कोई अजनबी हो।

    उसकी आंखें उसकी आंखों से टकराई… और इनायत को उसमें अतीत की झलक नहीं मिली।

    "तुम… मुझे जानते हो, है ना?"

    इनायत ने खुद को रोक नहीं पाई।

    स्वास्तिक की नजर एक पल को ठिठकी, लेकिन उसने तुरंत अपने भावों को छुपा लिया।

    "मैम, मेरी ड्यूटी प्रोफेशनल है। निजी सवालों से बचिए।"

    उसके शब्दों ने जैसे इनायत के दिल पर किसी ने सुई चुभो दी हो।

    इतने सालों के इंतजार के बाद, इतनी यादों के बाद, इतनी तड़प के बाद…

    वो यूं मिल रहा था?

    जैसे कुछ था ही नहीं कभी?

    इनायत की आंखें नम हो गईं, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।

    उसने एक सख्त मुस्कान ओढ़ ली, जैसे कह रही हो – "ठीक है, खेल तुम जैसा चाहते हो वैसा ही सही।"

    "ठीक है, मिस्टर राणा। फिर आइए, आपको मेरा रूटीन और सिक्योरिटी प्रोफाइल दिखा देती हूं।"

    उसका लहजा बिल्कुल प्रोफेशनल था, लेकिन उसके अंदर तूफान मच रहा था।

    वो उसे हॉल में लेकर गई, उसे रूटीन बताया, बाहर के सिक्योरिटी गार्ड्स से मिलवाया, और उसके लिए गेस्ट रूम भी दिखा दिया – जो अब से उसका मॉनिटरिंग रूम बनने वाला था।

    स्वास्तिक चुपचाप सब नोट करता रहा।

    हर कमरे की विंडो चेक की, हर एग्जिट प्वाइंट को मार्क किया, और फिर बोला –

    "आपका घर से बाहर जाना हो, तो मुझे 24 घंटे पहले सूचना दीजिए। मैं पहले रूट क्लियर करूंगा।"

    इनायत ने हल्के से सिर हिलाया, लेकिन उसके अंदर कुछ टूट रहा था।

    "क्या वाकई वो भूल गया है मुझे?"

    "या वो कुछ छुपा रहा है?"

    "कहीं वो सिर्फ शरीर से जिंदा तो नहीं… दिल से मरा हुआ तो नहीं?"

    उस रात इनायत छत पर अकेली बैठी थी।

    उसने आसमान की तरफ देखा – जहां वो कभी तारे गिना करते थे साथ में।

    जहां वो कहा करता था –

    "जब तू नहीं होती, मैं सबसे ऊंचे तारे को देखता हूं, और सोचता हूं – तू वहीं होगी..."

    आज वहीं तारे उसे चुभने लगे थे।

    नीचे कमरे में स्वास्तिक बैठा था – CCTV मॉनिटर पर नजरें टिकाए।

    एक पल के लिए उसने कैमरे की स्क्रीन पर उसे छत पर देखा –

    उसके बालों को हवा छू रही थी, आंखें आसमान से भरी थीं।

    उसके होंठों पर कुछ हल्का सा हिला — शायद वो नाम, जो अब भी उसकी रगों में दौड़ता है…

    "इनायत…"

    लेकिन फिर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं।

    उसने खुद को याद दिलाया —

    "मुझे सिर्फ उसकी हिफाज़त करनी है… उसकी ज़िंदगी से दोबारा जुड़ना नहीं है।"

    पर क्या वाकई वो ऐसा कर पाएगा?

  • 14. The bodyguard Bride - Chapter 14

    Words: 841

    Estimated Reading Time: 6 min

    अगली सुबह।

    इनायत तैयार होकर जैसे ही सीढ़ियाँ उतरती है, नीचे डाइनिंग टेबल पर अपने दादा-दादी को नाश्ता करते हुए देखती है।

    दादी हमेशा की तरह हल्की सी मुस्कान के साथ बैठी थीं, और दादा जी अखबार पढ़ते हुए अपनी चाय की चुस्कियों में मग्न थे।

    इनायत धीरे से पास आई, और झुककर दादी के गाल पर एक प्यारी सी किस दी।

    “गुड मॉर्निंग दादी… गुड मॉर्निंग दादू।”

    दादी मुस्कराईं, “गुड मॉर्निंग बच्ची…”

    दादा जी ने चश्मे के ऊपर से उसे देखा और हल्के से सिर हिलाया।

    वो अपनी कुर्सी पर बैठ गई और जल्दी-जल्दी नाश्ता करने लगी, जैसे उसे कोई जल्दी हो।

    दादा-दादी दोनों उसकी आँखों को गौर से देख रहे थे।

    उसकी सूजी हुई आँखें छुप नहीं रही थीं — वो साफ़ बताती थीं कि बीती रात फिर वो अपने पापा की याद में रोई है।

    “इनायत?”

    दादी ने धीरे से आवाज़ दी।

    “हूं…”

    इनायत ने सिर झुकाए, प्लेट से नजरें हटाए बिना जवाब दिया।

    “तुम ठीक हो न?”

    वो बिना उनकी तरफ देखे, जल्दी से एक टोस्ट मुँह में भरते हुए बोली,

    “मैं बिल्कुल ठीक हूं दादी। और मैं अब कॉलेज जा रही हूं।”

    वो उठ खड़ी हुई और प्लेट वहीं छोड़ते हुए जल्दी से दरवाज़े की ओर बढ़ी।

    “बाय दादी, बाय दादू!”

    दादी कुछ कहने को ही थीं कि तभी दादा जी ने अखबार से नजर हटाए बिना कहा,

    “रुको।”

    इनायत वहीं दरवाज़े के पास ठिठक गई।

    उसने पीठ उनकी ओर किए ही धीमे स्वर में कहा,

    “जी दादू?”

    दादा जी ने अख़बार का पन्ना पलटा और गंभीर लहज़े में बोले,

    “आज से आप अपने बॉडीगार्ड के साथ जाएंगी।”

    स्वास्तिक का नाम न भी लिया हो, लेकिन इनायत जानती थी बात उसी की हो रही है।

    उसके चेहरे पर झुंझलाहट की एक परछाईं आई, आँखें कुछ पल के लिए बंद कर लीं।

    “क्या उसे ले जाना ज़रूरी है?”

    वो धीरे से बुदबुदाई,

    “मतलब… मैं अपना ख्याल खुद रख सकती हूं।”

    दादा जी ने पहली बार उसकी आँखों में झाँका —

    “वो तो हमें आपकी आँखें देख कर ही पता चल गया है कि आप कितना खुद का ख्याल रख रही हैं। हमने कह दिया ना, बस।”

    दादी दादा जी को घूरने लगीं,

    “अभी आया है वो लड़का, हमें तो ठीक से भरोसा भी नहीं हुआ उस पर… घर में और भी बॉडीगार्ड हैं, आप इनायत को उसी के साथ क्यों भेज रहे हैं?”

    दादा जी ने चश्मा उतारते हुए गहरी साँस ली और दादी की तरफ देखकर बोले —

    “क्योंकि बाकी सब सिर्फ बॉडीगार्ड हैं, और वो… वो वो लड़का है जिसने इस बच्ची को बिना कुछ कहे भी समझा है। देखना तुम, एक दिन वही इसको खुद से ज़्यादा प्रोटेक्ट करेगा… चाहे वो माने या ना माने।”

    दादी कुछ कहना चाहती थीं लेकिन चुप हो गईं।

    कभी-कभी दादा जी की बातों में वो सच्चाई होती है जो वक्त ही साबित करता है।

    ---

    इनायत चुपचाप कार में बैठी थी, और सामने ड्राइविंग सीट पर वही खामोश, ठंडे चेहरे वाला स्वास्तिक।

    कुछ मिनट तक कार में सिर्फ साइलेंस था… बस टायरों की आवाज़ और हल्के म्यूजिक की धीमी धुन।

    “तुम… मुझे जानते हो न?”

    इनायत ने अचानक पूछा।

    स्वास्तिक ने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया,

    “मैम, आपकी सेफ्टी मेरी पहली जिम्मेदारी है। बाकी बातें ज़रूरी नहीं।”

    इनायत ने खिड़की की ओर देखा, उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई… दर्द भरी, पर सच्ची।

    “पता है, तुम वैसे ही हो जैसे बचपन में थे — चुप, अजीब, और बहुत दूर…”

    स्वास्तिक की उंगलियाँ स्टेयरिंग पर कस गईं। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

    तभी…

    बारिश की पहली बूँदें विंडशील्ड पर पड़ीं।

    इनायत की आँखों में चमक आ गई।

    “प्लीज़, कार रोको।”

    “मैम बारिश हो रही है—”

    “मैंने कहा, कार रोको।”

    उसने दोबारा कहा, अबकी बार थोड़ा जिद्दी अंदाज़ में।

    स्वास्तिक ने कार सड़क किनारे रोक दी।

    इनायत दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।

    भीगती बारिश में, दोनों हथेलियाँ फैलाकर खड़ी हो गई… मानो इस बारिश में कुछ तलाश रही हो।

    स्वास्तिक कुछ पल तक उसे देखता रहा।

    फिर कार से बाहर आया… धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा।

    “आप बीमार पड़ जाएंगी…” उसने कहा।

    “मैं पहले ही बीमार हूँ… तुम्हारी याद की बुखार में।”

    वो फुसफुसाई, आँखें बंद करते हुए।

    स्वास्तिक कुछ कह नहीं सका।

    उसने इनायत को देखा — भीगते बाल, काँपते होंठ, और भीगी पलकों के बीच मुस्कुराहट की हल्की सी परछाईं।

    उनके बीच सिर्फ बारिश थी, और बहुत सी अनकही बातें।

    इनायत ने उसकी तरफ देखा।

    “अगर तुम वही हो… तो इतना अजनबी मत बनो, स्वास्तिक।”

    स्वास्तिक की साँसें थम सी गईं।

    वो उसे बस देखता रह गया —

    जैसे इतने सालों की दूरी और खामोशी को एक ही भीगी नज़र में समेट लेना चाहता हो।

    इनायत की आँखें डबडबाई हुई थीं…

    उसने सिर थोड़ा झुकाया,

    “मैं अब और झूठ नहीं सह सकती…”

    स्वास्तिक ने हल्के से उसकी ओर कदम बढ़ाए…

    उनके बीच की दूरी एक हल्की साँस जितनी ही बची थी।

    फिर उसने सिर्फ इतना कहा —

    “मैं कोशिश कर रहा हूँ… खुद को रोकने की… लेकिन तुम हर बार मुझे तोड़ देती हो।”

    इसी भीगती खामोशी में — कोई इज़हार नहीं हुआ, कोई छुअन नहीं हुई…

    पर दो दिलों के बीच बहुत कुछ कह दिया गया।

  • 15. The bodyguard Bride - Chapter 15

    Words: 606

    Estimated Reading Time: 4 min

    बारिश थम चुकी थी।

    हवा में अभी भी ठंडी नमी थी और इनायत का चेहरा उस नमी में किसी पुराने ख्वाब जैसा लग रहा था… भीगा, अधूरा और फिर भी खूबसूरत।

    स्वास्तिक अब शांत था।

    उसकी आँखों में एक हल्का सा कंपकंपाता डर था —

    शायद खोने का डर…

    या फिर उन भावनाओं का, जिन्हें वो सालों से दबाए बैठा था।

    दोनों वापस कार में बैठे।

    सड़क अब खाली थी, और दूर-दूर तक कोई गाड़ी नहीं दिखाई दे रही थी।

    स्वास्तिक ने कार स्टार्ट की और रास्ते पर वापस आ गया।

    तभी…

    एक मोड़ पर कार मुड़ी ही थी कि—

    “धायं!!”

    एक तेज़ गोली की आवाज़ हवा को चीरती हुई आई —

    और इनायत के कंधे के पास से होते हुए खिड़की के शीशे को चीरकर बाहर निकल गई।

    “इनायत!”

    स्वास्तिक ने एक झटके से ब्रेक मारे।

    इनायत का हाथ एकदम से पकड़ लिया गया —

    उसकी बाँह से खून निकलने लगा था।

    “उफ्फ...!”

    वो चीखी, पर ज़्यादा दर्द से नहीं — डर से।

    स्वास्तिक ने तुरंत सीट बेल्ट खोली और उसकी तरफ झुककर उसका हाथ दबाया।

    “शांत रहो... कुछ नहीं हुआ। बस छू कर निकली है।”

    उसकी आवाज़ में एक ग़ुस्सा था, और एक बेचैन डर।

    इनायत की साँसे तेज़ हो गईं।

    उसने खुद को रोका, पर आँखों से आँसू निकल ही गए।

    तभी दूसरी गोली गाड़ी के बोनट पर लगी —

    “धायं!!”

    “नीचे झुको!”

    स्वास्तिक ने उसे अपनी बाँहों में खींच लिया और सिर उसकी गोद में झुका दिया।

    वो गाड़ी से बाहर निकल चुका था।

    इनायत ने कार के फर्श पर बैठकर कांपते हाथों से खिड़की से बाहर झाँका।

    स्वास्तिक ने तेजी से कमर के पीछे से बंदूक निकाली, और एक ऊँचे टीले की तरफ दौड़ गया जहाँ से गोलियाँ आ रही थीं।

    उसकी आँखों में अब बॉडीगार्ड नहीं, बल्कि कोई बेहद पर्सनल इमोशन था।

    दस मिनट…

    गोलियों की आवाजें, ज़मीन पर गिरते पत्ते और दूर भागते हमलावर।

    आख़िरकार, सब थम गया।

    ---

    10 मिनट बाद — पहाड़ी की तलहटी में

    इनायत अभी भी कार में बैठी थी, उसका कंधा अब भी जल रहा था।

    स्वास्तिक वापस आया — उसके कपड़े मिट्टी और खून से सने थे, चेहरा पसीने और गुस्से से लाल।

    उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झुककर उसके जख्मी हाथ को देखा।

    “तुम ठीक हो?”

    उसकी आवाज़ अब पहले जैसी ठंडी नहीं थी — वो कंपकंपा रही थी।

    इनायत उसे देखती रही।

    उसने कुछ नहीं कहा।

    “जवाब दो इनायत… तुम ठीक हो?”

    अबकी बार उसने उसके चेहरे को छूते हुए दोहराया।

    “हां…”

    उसकी आवाज़ टूटी हुई थी,

    “पर तुम… तुम क्यों भागे थे मेरी तरफ? तुम्हें तो बस मेरी सेफ्टी का ऑर्डर मिला है न…”

    स्वास्तिक का चेहरा सख़्त हो गया।

    उसने एक पल को आँखें बंद कीं और फिर बोला —

    **“अगर सिर्फ ऑर्डर होता, तो शायद मैं तुम्हें कार में छोड़कर पहले हमलावर को मारता…

    लेकिन तुम…”

    (उसकी नज़र इनायत की आँखों में उतर गई)

    “…तुम अब मेरी ड्यूटी नहीं, मेरी ज़रूरत हो।”

    इनायत की आँखों में आँसू आ गए।

    उसने धीरे से अपना जख्मी हाथ उसके सीने पर रखा।

    “तुमने मेरी जान बचाई… क्या तुम हमेशा ऐसे ही बचाते रहोगे?”

    स्वास्तिक झुका…

    उसके लहजे में कोई रोमांटिक फ्लर्ट नहीं था, सिर्फ एक वादा था।

    “जब तक मेरी साँसे हैं।”

    उनके बीच खामोशी छा गई।

    फिर बारिश दोबारा शुरू हो गई…

    इस बार हल्की, लेकिन बहुत अपनी सी।

    इनायत ने सिर झुका लिया, पर स्वास्तिक ने उसका चेहरा अपने हाथों से ऊपर किया।

    “इनायत, एक बात कहूँ?”

    “हां…”

    उसकी आवाज़ धीमी थी।

    “तुम्हें देख कर डर लगता है… कि कहीं तुम मेरी ज़िंदगी से भी उसी तरह गायब ना हो जाओ, जैसे सब हो जाते हैं।”

    इनायत कुछ नहीं बोली…

    उसने बस अपना सिर उसके सीने पर रख दिया।

  • 16. The bodyguard Bride - Chapter 16

    Words: 598

    Estimated Reading Time: 4 min

    इनायत का घर — उसी शाम

    बारिश थमी नहीं थी…

    सड़कें भीगी थीं, और हवाओं में किसी अनकहे डर की सरसराहट थी।

    जब इनायत के ऊपर हमले की खबर घर पहुँची,

    दादी के हाथ से फोन छूट गया।

    “क्या… गोली? किसने…?”

    उनकी आवाज़ लड़खड़ाई।

    दादा जी ने एक झटके से उनका चेहरा देखा।

    “क्या हुआ?”

    दादी कुछ कहतीं उससे पहले ही एक नौकर दौड़ता हुआ आया —

    “सर, मैडम… इनायत मैम पर अटैक हुआ है। गोली लगी है, पर वो ठीक हैं… बॉडीगार्ड ने जान बचा ली।”

    "क्या?"

    दादा जी की आँखों की पुतलियाँ फैल गईं।

    उन्होंने बिना कुछ कहे एक कदम आगे बढ़ाया… और फिर अचानक उनका हाथ सीने पर गया।

    "इनायत...!"

    अगले ही पल —

    दादा जी ज़मीन पर गिर पड़े।

    “बाबूजी!!”

    दादी घबरा गईं। उनके साथ बाकी स्टाफ भी दौड़ा।

    दादा जी की साँसे अब अनियमित थीं…

    चेहरे पर दर्द, आँखें अधखुली — जैसे ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा हो कोई।

    "जल्दी करो! एम्बुलेंस बुलाओ!"

    दादी ने चिल्ला कर कहा।

    ---

    स्थान: हॉस्पिटल — कुछ देर बाद

    दादा जी को स्ट्रेचर पर ICU की तरफ ले जाया गया।

    दादी का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था।

    “कुछ मत होना, कुछ भी नहीं…”

    वो बुदबुदा रही थीं,

    “तुम्हें कुछ हुआ तो इनायत टूट जाएगी। और मैं भी…”

    डॉक्टर:

    “हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इन्हें स्ट्रेस से एक मेजर हार्ट अटैक आया है। आगे की 12 घंटे बहुत क्रिटिकल हैं।”

    ---

    दूसरी तरफ — स्वास्तिक और इनायत कार में

    जब स्वास्तिक को फोन पर खबर मिली,

    वो वहीं जम गया।

    इनायत अभी भी चुप थी, उसका हाथ पट्टी से बंधा था।

    “क्या हुआ?”

    उसने धीरे से पूछा।

    स्वास्तिक ने उसका हाथ पकड़ा।

    “हमें घर जाना होगा… अभी।”

    “क्यों? कुछ हुआ है?”

    इनायत की आवाज़ में बेचैनी थी।

    “दादा जी को दिल का दौरा पड़ा है… उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया है।”

    इनायत की आँखें फटी रह गईं।

    “नहीं… नहीं… मेरी वजह से…?”

    उसका चेहरा सफेद पड़ गया।

    “मुझे दादू से बात करनी है… मैं अभी…”

    “तुम शांति रखो इनायत।”

    स्वास्तिक ने गाड़ी तेज़ मोड़ दी।

    “तुम्हें अभी उनकी ज़रूरत है — और उन्हें तुम्हारी।”

    ---

    हॉस्पिटल — रात का समय

    इनायत ICU के बाहर पहुंची तो डॉक्टर बाहर निकल रहे थे।

    “डॉक्टर! वो कैसे हैं?”

    उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    डॉक्टर ने सांत्वना भरी नज़र से देखा —

    “अभी वेंटिलेशन पर हैं, लेकिन आपकी आवाज़ और मौजूदगी शायद उन्हें थोड़ी राहत दे सके।”

    इनायत भागती हुई ICU के दरवाज़े पर पहुँची।

    अंदर दादा जी बेहोश थे… पर उनकी उंगलियाँ हल्की-हल्की हिल रही थीं।

    इनायत पास गई…

    उनका हाथ थाम लिया।

    “दादू… प्लीज़… मेरी वजह से मत जाइए…”

    उसके आंसू बेआवाज़ बह रहे थे।

    “अगर आप कुछ हुए न… तो मैं टूट जाऊंगी… सब टूट जाएगा…”

    कुछ पल बाद…

    दादा जी की उंगली हिली —

    उनकी पलकें फड़कीं।

    “इन… आयत…”

    बहुत धीमे से, बहुत मुश्किल से उनके होंठ हिले।

    इनायत चौंकी।

    “हां! मैं यही हूं… आपकी इनायत!”

    ---

    बाहर — स्वास्तिक और दादी

    दादी बैठी थीं, आँखें लाल थीं।

    स्वास्तिक उनके पास आया और चुपचाप बैठ गया।

    “बच्ची पर एक हमला… और उस पर इस हादसे की ज़िम्मेदारी का बोझ। वो अंदर से बिखर जाएगी।”

    दादी की आँखों से आँसू बह रहे थे।

    स्वास्तिक ने सिर झुका लिया।

    “मैंने वादा किया है दादी… मैं उसे कुछ नहीं होने दूँगा। और अब… जिसने ये किया है — उसे ढूँढ कर रहूँगा।”

    दादी ने उसकी तरफ देखा।

    “हमने तो तुम्हें इनायत की रक्षा के लिए भेजा था… पर तुम तो अब उसके हर दर्द के साथ खुद भी टूटते हो।”

    स्वास्तिक की नज़रें झुक गईं।

    “कभी-कभी… ड्यूटी और दिल एक ही जगह जा टकराते हैं, दादी।”

  • 17. The bodyguard Bride - Chapter 17

    Words: 657

    Estimated Reading Time: 4 min

    रात का समय

    ICU के बाहर सब कुछ थमा-थमा सा था।

    सिर्फ दिलों की धड़कनों की आवाज़ थी... और वक़्त का इंतज़ार।

    इनायत अब भी दादा जी का हाथ थामे बैठी थी।

    उनकी हर हलचल उसे थोड़ी उम्मीद देती, फिर गहरी चिंता में डाल देती।

    “प्लीज़ जल्दी ठीक हो जाइए दादू…”

    उसके चेहरे पर थकान, डर और बेबसी सब कुछ एक साथ था।

    दादी बाहर कुर्सी पर बैठी थीं।

    स्वास्तिक पास आया, उनके लिए पानी रखा।

    “आप अंदर जाना चाहें तो मैं…”

    “नहीं बेटा, वो तेरी इनायत को देखकर ज़िंदा हैं… तू उसके पास ही रह।”

    दादी की बातों में एक गहराई थी, जो सिर्फ एक बुज़ुर्ग औरत ही महसूस कर सकती है।

    ---

    कुछ देर बाद – स्वास्तिक इनायत के पास आया।

    “तुमने कुछ खाया नहीं है, चलो कुछ खा लो…”

    “मुझे भूख नहीं है…”

    इनायत ने सिर झुका लिया।

    “इनायत…”

    स्वास्तिक ने उसकी तरफ देखा,

    “अगर तुम्हें कुछ हो जाता, तो क्या तुम्हारे दादा जी को बचा पाते हम?”

    इनायत चौंकी… उसके होंठ हिले पर शब्द नहीं निकले।

    “तुम्हारी ज़िम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी नहीं है अब… वो तुमसे साँसें लेते हैं। इसलिए तुम्हें अब अपने लिए नहीं, उनके लिए जीना है… और सावधान रहना है।”

    इनायत ने पहली बार उसकी आँखों में देखा —

    वहाँ सिर्फ डांट नहीं थी… डर था, चिंता थी… और एक अजीब-सी मोहब्बत भी।

    ---

    अगली सुबह

    डॉक्टर ने बताया कि दादा जी अब स्थिर हैं, पर अगले कुछ दिन बेहद सावधानी के हैं।

    इनायत थोड़ी राहत की साँस लेती है।

    लेकिन स्वास्तिक नहीं —

    उसने उस हमले की तह में जाना शुरू कर दिया है।

    स्थान: स्वास्तिक का रूम

    स्वास्तिक अपनी स्पेशल डिवाइस पर कुछ रिकॉर्डिंग्स देख रहा था।

    गाड़ी की फुटेज, गोली चलने का एंगल, और आस-पास के CCTV…

    “Zoom in… rewind… pause!”

    एक चेहरा… बहुत हल्का… लेकिन जाना-पहचाना।

    “ये वही है…”

    उसकी आँखें सिकुड़ती हैं।

    ---

    स्थान: इनायत का कमरा — उसी वक्त

    इनायत बैठी थी… अपने पापा की पुरानी डायरी पढ़ रही थी।

    हर पन्ना उसकी आँखों को नम कर रहा था।

    “पापा कहते थे… हर सच्चा रिश्ता वक़्त पर पहचाना जाता है…”

    उसने डायरी बंद की और शीशे में खुद को देखा।

    “अब मुझे कमज़ोर नहीं बनना… ये जो हो रहा है, यूं ही नहीं हो रहा।”

    ---

    रात — इनायत की बालकनी

    स्वास्तिक और इनायत साथ खड़े थे।

    चाँद आधा था, और हवा ठंडी।

    “तुमने कुछ पता लगाया?”

    इनायत ने धीरे से पूछा।

    स्वास्तिक ने सिर हिलाया।

    “किसी ने अंदर से लोकेशन लीक की थी। वो हमलावर किसी आम गुंडे का काम नहीं कर सकता। ट्रेनिंग मिली थी उसे।”

    इनायत ने उसका चेहरा पढ़ा।

    “तुम कुछ छुपा रहे हो…”

    “जब तक सब कुछ पक्का ना हो, मैं कुछ नहीं कह सकता।”

    “स्वास्तिक…”

    इनायत ने पहली बार उसका हाथ पकड़ा।

    “मुझसे मत छुपाओ… मेरी ज़िंदगी दांव पर है, और अब मेरे दादा जी की भी। अगर तुम मेरे साथ हो, तो पूरी तरह रहो।”

    स्वास्तिक कुछ पल उसे देखता रहा…

    “ठीक है… कल एक जगह चलना होगा मुझे… और मैं चाहता हूँ तुम मेरे साथ चलो। लेकिन पूरी सिक्योरिटी के साथ।”

    ---

    अगले दिन — एक गुप्त जगह

    स्वास्तिक और इनायत एक वीरान गोदाम जैसी जगह पर पहुँचे।

    वहाँ एक बंदा पहले से बंधा बैठा था — उसका चेहरा चोटों से भरा था।

    “यही है वो आदमी जिसने तुम्हारी गाड़ी की लोकेशन दी थी।”

    स्वास्तिक ने बताया।

    इनायत का खून खौल उठा।

    “किसने भेजा तुम्हें?”

    उसने चिल्ला कर पूछा।

    वो डर गया… लेकिन एक नाम बुदबुदाया…

    “मिश्रा… मिश्रा साहब ने…”

    इनायत चौंकी।

    “कौन मिश्रा?”

    “पता नहीं पूरा नाम… पर वो कोई बड़ा आदमी है… और उसने कहा था, इनायत को सबक सिखाना है…”

    ---

    रात — हॉस्पिटल

    इनायत वापस दादा जी के पास गई। वो अब आँखें खोल चुके थे। “दादू… मैं अब डरूँगी नहीं। जिसने भी आपको ये दर्द दिया है, मैं उसे छोड़ूँगी नहीं।”

    दादा जी मुस्कराए — बहुत हल्के से बोले — “अब… तुम… बड़ी हो गई हो…” “और अब… मैं तुम्हारी नहीं… तुम मेरी ढाल बन गई हो…”

    इनायत उनकी उंगलियाँ थामे रही।

  • 18. The bodyguard Bride - Chapter 18

    Words: 644

    Estimated Reading Time: 4 min

    दादा जी का रूम

    दादी इनायत को दवा दिलाने के लिए बाहर भेजती हैं।

    इनायत जाते वक्त दादा जी के पैर छूती है, और कमरे से बाहर चली जाती है।

    दादी दादा जी के पास आकर बैठती हैं।

    “आपका चेहरा बता रहा है कि आप कुछ सोच रहे हैं।”

    दादा जी धीरे-धीरे उठते हैं और खिड़की की तरफ देखने लगते हैं।

    “मैंने एक फैसला लिया है।”

    “कैसा फैसला?” दादी ने चौंक कर पूछा।

    दादा जी कुछ पल चुप रहे, फिर बोले —

    “इनायत की शादी का।”

    “क्या? अभी? वो सिर्फ़ बाइस साल की है…” दादी घबरा कर बोलीं।

    “मैं जानता हूँ…”

    दादा जी ने गहरी साँस ली,

    “लेकिन अब हर दिन मौत की तरह लग रहा है। मैं नहीं चाहता कि मेरी आँखें बंद होने से पहले, वो अकेली रह जाए।”

    “पर हम कैसे तय करेंगे? किससे करेंगे? वो लड़की खुद अपने ज़ख्मों से लड़ रही है…”

    “और इसी लिए तो…” दादा जी ने मुड़ कर दादी को देखा,

    “मैं चाहता हूँ कि उसकी ज़िंदगी किसी ऐसे के हाथ में जाए जो उसे टूटने न दे। जो उसके साथ हर लड़ाई लड़े — उसके साथ नहीं, उसके लिए।”

    दादी कुछ नहीं कह पाईं…

    उनके मन में ढेर सारे सवाल थे,

    लेकिन दादा जी के चेहरे पर दिखती मजबूरी ने उन्हें चुप कर दिया।

    ---

    दूसरी ओर — एक अंधेरा कमरा, तेज़ रौशनी में बस एक चेहरा

    रघुवीर फोन पर बात कर रहा था।

    “कितनी बार बची है ये लड़की…”

    उसने गुस्से से कहा,

    “हर बार सोचता हूँ अब नहीं बचेगी… पर किस्मत तो देखो इसकी। फिर ज़िंदा।”

    उधर से किसी की आवाज़ आती है — साफ़ नहीं, लेकिन धीमी और खतरनाक।

    रघुवीर हँसता है…

    “इस बार नहीं… इस बार तो इनायत को मरना ही होगा।”

    “तो कब तक आ रहे हो?” रघुवीर पूछता है।

    फोन की दूसरी तरफ़ से कुछ जवाब आता है।

    रघुवीर शातिर हँसी हँसता है और धीरे से कहता है —

    “ठीक है… फिर इस बार इनायत की कहानी भी खत्म… और उसका वारिस भी।”

    “अब न वो जी पाएगी, न कोई उसे बचा पाएगा।”

    फोन कट जाता है।

    रघुवीर मुड़ कर दीवार पर टंगी एक पुरानी तस्वीर की तरफ़ देखता है —

    जिसमें इनायत के पापा हैं… मुस्कुराते हुए।

    “अब तेरी बेटी की बारी है, विवेक!”

    ---

    अगली सुबह

    इनायत स्वास्तिक के साथ वापस आई है हॉस्पिटल से।

    दादा जी को आराम की ज़रूरत है, इसलिए डॉक्टर ने उन्हें घर शिफ्ट करने को कहा।

    जैसे ही इनायत ने हवेली में कदम रखा,

    दादी ने उसे धीरे से पास बुलाया।

    “बेटा, आज शाम को थोड़ा समय निकालना… दादा जी तुमसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहते हैं।”

    इनायत ने चौंक कर देखा —

    “सब ठीक है ना?”

    “हां… लेकिन शायद अब वक़्त आ गया है कुछ बड़ा सोचने का।”

    इनायत थोड़ी उलझन में थी।

    ----------

    इनायत और दादा जी का आमना-सामना

    दादा जी ने अपनी टेबल पर रखी एक पुरानी अंगूठी उठाई,

    जो कभी इनायत की माँ की थी।

    “मैंने ये तुम्हारी माँ के लिए बनवाई थी… और अब मैं चाहता हूँ कि ये तुम्हारे हाथों में जाए।”

    इनायत ने घबरा कर कहा —

    “दादू आप ये क्यों…”

    “क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तुम अब अकेली मत रहो। दुनिया बहुत खतरनाक है बेटा… और मैं अब हर रोज़ डरता हूँ कि अगर कुछ हो गया, तो तुम्हें कौन संभालेगा।”

    “दादू… लेकिन…”

    “मैंने एक रिश्ता सोचा है। जिससे बात चलानी है — वो लड़का समझदार है, मजबूत है और हमारी बराबरी का है।”

    इनायत हैरान थी, चुप थी, पर उसने मना भी नहीं किया।

    उसकी आँखें भीग रही थीं।

    ---

    उधर — स्वास्तिक अपनी हथियारों की लॉकर बंद कर रहा था

    वो अभी भी रघुवीर के आदमी की तलाश में था।

    तभी उसके फोन पर कॉल आता है।

    “Target is on the move. He’s heading to Mumbai He’s meeting Raghubeer tomorrow.”

    स्वास्तिक की आंखों में आग सी चमक उठती है।

    “ये लड़ाई अब मेरी नहीं रही… ये इनायत की सुरक्षा की कसम है।”

  • 19. The bodyguard Bride - Chapter 19

    Words: 511

    Estimated Reading Time: 4 min

    मल्होत्रा हवेली – सुबह का समय

    इनायत आज थोड़ी जल्दी उठ गई थी।

    वो खामोशी से पूजा रूम में गई, जहाँ उसके पापा की फोटो लगी थी।

    अगर कोई बहुत ध्यान से देखता तो समझ जाता — वो आजकल हर सुबह वहाँ आती है... अपने दिल की आवाज़ कहने।

    “दादू मेरी शादी की बात कर रहे हैं…”

    उसने धीमे से कहा,

    “और मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि मैं इसके लिए तैयार भी हूं या नहीं… पापा, आप होते तो क्या करते?”

    उसकी आँखें भर आईं।

    ---

    नीचे हॉल में – दादा जी, दादी और परिवार के करीबी सदस्य बैठे हैं

    दादा जी ने सबके सामने साफ़ शब्दों में कह दिया —

    “मैं चाहता हूँ कि इनायत की शादी तय हो जाए… किसी ऐसे इंसान से जो उसके लिए ढाल बन सके, और उसके साथ जिंदगी भर खड़ा रहे।”

    दादी अभी भी असमंजस में थीं।

    “वो लड़की अभी पूरी तरह से संभली भी नहीं है… और आपने बात तक नहीं की उससे।”

    “मैं उससे बात करूँगा। लेकिन मैं अब और इंतज़ार नहीं कर सकता। दुनिया जितनी खतरनाक हो गई है, मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकता।”

    दादा जी की आँखों में थकावट और डर दोनों था।

    ---

    दूसरी ओर – हवेली से कुछ किलोमीटर दूर एक फार्महाउस

    वहाँ एक आदमी अपने काले सूट में खड़ा था।

    गाड़ी से उतरते ही उसके पीछे दो और लोग थे – एक बेहद स्मार्ट, पर आँखों में चालाकी... और दूसरा शांत, जैसे कोई खतरनाक साया।

    ये लोग थे —

    रघुवीर के संपर्क में रहने वाले पुराने दुश्मन।

    रघुवीर ने अपने फोन से कॉल किया —

    “इनायत अब शादी की तैयारी में लग चुकी है… और यही सही वक़्त है आखिरी वार का। इस बार उसे या तो घर से उठाओ… या उसकी शादी की सगाई को खून में बदल दो।”

    फोन के दूसरी तरफ से एक आवाज़ आई —

    “तुम बस जगह और वक्त बताओ… बाकी सब हमारे हाथ में है।”

    रघुवीर ने फोन रखते हुए फोटो देखी — इनायत की मुस्कराती तस्वीर।

    फोटो को देखा और बोला:

    “अब तू मुस्करा ले… आखिरी बार।”

    ---

    स्वास्तिक की बेचैनी

    स्वास्तिक अब हर दिन इनायत के आस-पास साये की तरह रहता।

    पर अब वो बॉडीगार्ड जैसा कम, और किसी अपने जैसा लगने लगा था।

    एक दिन इनायत ने पूछ ही लिया:

    “क्या तुम जानबूझ कर खामोश रहते हो?”

    स्वास्तिक ने सीधी नज़र से उसकी तरफ देखा:

    “क्योंकि कुछ जज़्बात अगर लफ्ज़ बन जाएं… तो सब टूट जाता है।”

    इनायत थोड़ी देर चुप रही, फिर मुस्कुराई:

    “अगर मैंने शादी के लिए हाँ कर दी… तो?”

    स्वास्तिक के चेहरे पर एक पल को हल्की रेखा सी खिंच गई,

    लेकिन फिर बोला:

    **“तो मैं तुम्हारी हिफाज़त आख़िरी दिन तक करूँगा… भले वो तुम्हारी विदाई का दिन क्यों न हो।”

    ---

    स्वास्तिक के एक पुराने साथी से उसे एक पेंड्राइव मिलती है।

    उसमें एक क्लिप है — जिसमें रघुवीर किसी से डील कर रहा होता है…

    “वो लड़की नहीं बचेगी… उसकी शादी को उसकी विदाई बना देंगे…”

    स्वास्तिक का खून खौल उठा।

    उसने वहीं फैसला कर लिया —

    “अब इसे और छुपाया नहीं जा सकता। इनायत को सच्चाई जाननी होगी।”

  • 20. The bodyguard Bride - Chapter 20

    Words: 998

    Estimated Reading Time: 6 min

    हवेली की दीवारें हल्के फूलों से सजी हुई थीं। मेन गेट पर हल्की सजावट, लॉन में टेंट्स और सफेद गुलाबों की महक फैली थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उत्सव आने वाला हो। लेकिन इनायत के चेहरे पर आज भी उलझन का बादल था।

    दादा जी, हमेशा की तरह सफेद कुर्ता-पायजामा में, एक-एक व्यवस्था पर अपनी नज़र गड़ाए हुए थे। उनका चेहरा शांत था, पर उनके भीतर बेचैनी साफ दिख रही थी।

    "वक्त कम है और करना बहुत कुछ है," वो हल्के स्वर में बोले।

    तभी हवेली के बाहर कुछ गाड़ियों के हॉर्न सुनाई दिए।

    दादा जी ने अपनी पत्नी को आवाज़ दी,

    "सुनो, वो लोग आ गए हैं... जल्दी आओ।"

    दादी रसोई से निकलते हुए जल्दी-जल्दी पल्लू ठीक करती हुई बाहर आईं।

    बाहर, काले रंग की एक प्रीमियम कार से एक लंबा, गठीला, और शालीन चेहरा सामने आता है।

    वो लड़का करीब 28 साल का होगा — आरंभ महेश्वरी। हल्के क्रीम रंग की शेरवानी, हल्की मुस्कान और चाल में एक शालीन आत्मविश्वास।

    वो दादा जी के करीब आकर हाथ जोड़ते हुए बोला,

    "नमस्ते अंकल। मैं आरंभ महेश्वरी।"

    दादा जी ने उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देखा, फिर मुस्कराते हुए बोले —

    "नमस्ते बेटा, बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलकर। लेकिन तुम अकेले आए हो? मम्मी-पापा साथ नहीं आए?"

    आरंभ थोड़ी संकोच भरी मुस्कान के साथ बोला,

    "जी… उन्हें अचानक से एक जरूरी मीटिंग के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा, तो वो नहीं आ पाए। माफ़ कीजिए।"

    दादा जी ने सिर हिलाया,

    "कोई बात नहीं… बाद में मिलवा देना। वैसे भी, आज की मुलाकात सिर्फ औपचारिक नहीं, हमारे लिए खास भी है।"

    दादी भी पास आ चुकी थीं।

    उन्होंने आरंभ को हल्का सा मुस्करा कर देखा और कहा,

    "आओ बेटा, अंदर चलो। इनायत भी अभी आती होगी।"

    ---

    आरंभ ने पूरे घर को देखा — सादगी, गरिमा और एक गहरा इतिहास हर कोने में मौजूद था। वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी...

    इनायत नीचे आई।

    हल्के बैंगनी रंग का सूट, खुले बाल और वो परिचित मासूम सी मुस्कान, जो शायद अब पहले जैसी नहीं रही।

    उसकी नज़र आरंभ से टकराई।

    वो पल… कुछ अजीब था। कोई भावना नहीं… बस एक अजनबीपन, जिसमें एक अजीब-सी दूरी थी।

    आरंभ खड़ा हुआ।

    "हाय, मैं आरंभ।"

    इनायत ने जबरन मुस्कुराते हुए कहा,

    "हाय… इनायत।"

    दादी ने माहौल को सहज बनाने की कोशिश की।

    "तुम दोनों चाहो तो बाहर लॉन में जाकर बैठ सकते हो। आराम से बात कर लो।"

    ---

    आरंभ और इनायत आमने-सामने बैठे थे।

    पहले कुछ सेकंड्स तक खामोशी रही।

    फिर आरंभ बोला,

    "मुझे पता है ये सब अचानक हो रहा है, और मैं कोई फिल्मी डायलॉग नहीं बोलने वाला… लेकिन मैं ये भी जानता हूँ कि रिश्ते जबरदस्ती नहीं बनाए जा सकते।"

    इनायत ने एक गहरी साँस ली।

    "मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरी शादी पर डिस्कशन ऐसे किसी अनजान शख्स से शुरू होगा…"

    आरंभ ने मुस्कराकर कहा,

    "मैं अनजान हूँ, लेकिन बेईमान नहीं। अगर तुम चाहो, तो मैं दोस्ती से शुरू कर सकता हूँ। अगर नहीं चाहो, तो मैं कभी दोबारा कोशिश भी नहीं करूँगा।"

    इनायत ने पहली बार उसकी तरफ ठीक से देखा।

    आरंभ की आंखों में अपनापन था, लेकिन स्वास्तिक जैसी बेचैनी नहीं।

    ---

    आरंभ ने मुस्कराकर कहा, “आपसे मिलकर अच्छा लगा। मैंने सुना है आप बच्चों को पढ़ाती हैं? बड़ा ही दिलचस्प काम है।”

    इनायत ने बस मुस्कुरा कर सर हिला दिया।

    पर इससे पहले कि माहौल थोड़ा और सामान्य होता…

    दरवाज़े की घंटी बजी।

    सभी की नज़रें मुड़ीं… और जो दाखिल हुआ, वो था —

    स्वास्तिक।

    काली शर्ट, डार्क जीन्स, बूट्स, और हमेशा की तरह साइलेंट बॉडी लैंग्वेज। उसने कमरे में आते ही सबसे पहले इनायत की नज़र पकड़ी — और फिर सीधे आरंभ की।

    दोनों के बीच की दूरी बस कुछ कदम थी… लेकिन वो नज़रों की लड़ाई में बहुत लंबी लग रही थी।

    “मैं स्वास्तिक, इनायत मैम का सिक्योरिटी इंचार्ज।”

    आरंभ ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा… हल्की सी मुस्कान के साथ बोला —
    “ओह, आपने ही इनायत को बचाया था पिछली बार… impressive.”

    स्वास्तिक ने बस सिर हिलाया, “बस ड्यूटी थी।”

    आरंभ आगे बढ़ा और हाथ बढ़ाया, “Nice to meet you.”

    स्वास्तिक ने थोड़ी देर देखा, फिर हाथ मिलाया — पर उसकी पकड़ थोड़ी टाइट थी।

    इनायत को महसूस हो रहा था — दोनों के बीच कुछ अनकही टेंशन है।

    दोनों ने कभी एक-दूसरे से पहले मुलाकात नहीं की थी, लेकिन... शायद महसूस ज़रूर किया था।

    आरंभ ने हल्के अंदाज़ में कहा —
    “हम मिले नहीं कभी, मगर महसूस तो किया है एक-दूसरे को… है ना?”

    स्वास्तिक ने कोई जवाब नहीं दिया। सिर्फ उसकी आंखें बोलीं — “मैं जानता हूं तुम कौन हो... और क्या चाहते हो।”


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    रात – लॉन में चाय के दौरान

    आरंभ ने दादी से बातों-बातों में कहा —
    “मुझे इनायत का सादापन बहुत पसंद आया। जो लड़कियां दिल से काम करती हैं, वो घर भी दिल से संभालती हैं।”

    स्वास्तिक वहीं पीछे खड़ा था, जैसे उसकी हर बात का विश्लेषण कर रहा हो।

    इनायत ने झुंझलाकर चाय का कप नीचे रखा, और उठ गई।

    “मुझे थोड़ा अकेले रहना है, दादी।” – कहकर वो घर के पीछे बगीचे की ओर चली गई।

    आरंभ उसे जाते हुए देख रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा, और हल्की सी फुसफुसाहट में कहा —
    “**दिलचस्प है… ये लड़की। और उसकी परछाईं भी।”

    स्वास्तिक ने वो सुना था।


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    रात – इनायत की बालकनी

    इनायत अकेली खड़ी थी, हवा से बाल उड़ रहे थे।

    स्वास्तिक भी वहीं खड़ा था — नीचे बगीचे में, जैसे छाया बनकर।

    कुछ देर दोनों चुप थे। फिर इनायत ने नीचे झांकते हुए कहा,
    “तुम्हें कैसा लगा आज का लड़का?”

    स्वास्तिक ने बिना ऊपर देखे कहा,
    “सही समय पर सही शब्द बोलना बहुत लोग जानते हैं... असलियत वक्त दिखाता है।”

    इनायत चुप हो गई।

    और दोनों एक बार फिर अजनबी होकर भी... एक-दूसरे को महसूस करने लगे।


    क्या कभी स्वस्तिक को अपने जज्बात समझ आएंगे क्या इनायत को रघुवीर का सच्च पता चलेगा और कौन है ये आरंभ महेश्वरी ये सब जाने के लिए पढ़ते रहिए। "The Bodyguard bride""

    please rating dena mat bhulna aur follow kr lo mujhe please 🥺