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साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2

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miss Sharma

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ये कहानी है युवान सिंह राठौड़ और युवानिका सूर्यवंशी दोनो करते है एक दूसरे से बेहद इश्क लेकिन क्या एक झूठ से हो जाएगी दोनों की जिंदगी तबाह क्या होगा जब युवानिका के सामने आयेगा सच क्या दोनो हो जाएंगे जुदा या कुछ और ही मोड लगी इनके इश्क की ये कहानी, या...

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कबीर प्रताप सिंह शेखावत

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सांझ राठौड़

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Total Chapters (181)

Page 1 of 10

  • 1. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 1

    Words: 1752

    Estimated Reading Time: 11 min

    मुंबई…

    यह नहीं कहा जा सकता कि मुंबई छोटा शहर है; मुंबई तो बहुत बड़ा शहर है। यहाँ किसी को ढूँढ पाना असंभव सा होगा!


    जहाँ दो लोग मिलकर जुदा हुए थे, वही शहर क्या ले आएगा दो लोगों को करीब? क्या होगा जब अतीत की यादें होंगी सबके सामने?


    कहानी तो वही है, बस बदलेंगे किरदारों के नाम और चेहरे।


    मुंबई…


    शाम का समय था…


    हर तरफ़ सड़कों पर भीड़भाड़ थी। मुंबई के रोड पर रात का ट्रैफिक कम थोड़ा ना था। चारों तरफ़ के ट्रैफिक को देखकर एक काली कार में बैठी लड़की ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा,

    “ओफ़्फ़ो! ये कब क्लियर होगा मॉम, डैड? हमें लेट हो जाना है।”

    इतना बोल उस लड़की ने सामने देखा जहाँ आगे की सीट पर एक औरत और एक आदमी बैठे हुए थे। इतना बोलकर उसने अपने बगल में देखा जहाँ एक लड़की बैठी हुई थी, जो एकटक खिड़की से बाहर देख रही थी।

    “इसे ये ट्रैफिक पसंद आ गया लगता है, है ना मॉम?”

    लड़की की बात सुनकर आगे बैठे आदमी ने कहा,

    “कैसी-कैसी बातें आती हैं आपके दिमाग में प्राची?” उसने हल्का सा पीछे प्राची को देखते हुए कहा।

    उस औरत ने उस आदमी की बात सुनी तो उसने कहा,

    “क्या हुआ अक्षय जी? कोई बात नहीं, बच्चियाँ हैं, दोनों बहनें हैं, ऐसे ही बातें करती हैं।”

    अक्षय जी: “तुम नहीं समझ रही मेरी बात युवानिका। माना बच्ची है, लेकिन ऐसे कौन बोलता है?”

    युवानिका ने मुस्कुराते हुए पीछे देखा, तो उनकी नज़र उस लड़की पर गई जो अभी भी सब से बेखबर होकर बाहर की ओर देख रही थी। “सांझ, बाहर क्या है ऐसा बेटा?”

    युवानिका की आवाज़ सुनते ही सांझ ने देखा और कहा,

    “कुछ नहीं मॉम, बस देख रही थी। सुबह से लोग इधर-उधर भागते फिरते हैं, लेकिन ये कुछ मिनटों का ट्रैफिक उन्हें रेस्ट देता है।”

    “ओये! रेस्ट नहीं देता, लेट करवाता है।” प्राची ने तिरछा बैठकर सांझ को देखते हुए कहा।

    “हाँ, जानते हैं, इस ट्रैफिक की वजह से लेट होता है, लेकिन वो हमारे हाथ में है। हमें मालूम होता है ना कि हर जगह ये सिग्नल होता है, तो हमें टाइम से पहले आना चाहिए। यू नो, ये हमारी ही सेफ्टी के लिए बनाए जाते हैं। सोचो ये ना हो तो कितने एक्सीडेंट रोज़ हों, इस चौराहे पर हमेशा भीड़ लगी रहेगी, पैदल चलने वालों को बड़ी प्रॉब्लम होगी।”

    “बस कर सांझ, बस कर! मेरा सर दर्द कर गया इतना ज्ञान लेकर। वैसे मॉम, डैड, इसे बिज़नेस फील्ड में नहीं, समाज कल्याण विभाग में होना चाहिए!” इतना बोल प्राची ने सांझ को एक नज़र देखा, जो कि वापस बाहर देख रही थी। “इसका कुछ नहीं हो सकता, इतनी सी है ये अभी, लेकिन देखो इसे… मुझसे बड़ी लगती है, इतनी लंबी क्यों हुई तुम?”

    सांझ: “रहने दो।” इतना बोल सांझ मुस्कुराई और बाहर देखते हुए बोली, “फ़ाइनली सब फिर बिज़ी हो जाएँगे।”

    अक्षय जी ने सांझ की बात सुनी तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्होंने कहा,

    “बिलकुल, तुम दोनों मां-बेटी एक जैसी हो, सांझ और युवी।”

    युवी ने जैसे ही सुना तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपना सिर सीट से लगाया और आँखें बंद कर ली। अतीत की धुंधली यादें उसे आज भी परेशान कर रही थीं। युवी को आँखें बंद करते ही युवान की बात याद आ गई जब उसने उससे कहा था,

    “हमारी बेटी बिलकुल तुम्हारी जैसी होगी।”

    युवी को देखकर युवी ने भी उसी तरह से कहा,

    “और बेटा बिलकुल तुम्हारे जैसा।”

    युवान: “बट मुझे तो बेटी चाहिए।”

    युवी: “नहीं, पहले बेटा होगा, जो हमेशा मेरी साइड होगा।”

    युवान: “तो फिर क्यों ना दोनों हो जाएँ?” इतना बोल दोनों एक-दूसरे के गले लग गए।


    “ये तो आपने बिलकुल सही कहा डैड, मॉम और सांझ बिलकुल एक जैसी हैं, और आप और मैं एक जैसे।” इतना बोल प्राची हँसने लगी।

    प्राची के हँसने की आवाज़ सुनकर युवी ने अपनी आँखें खोल ली थीं। वो अपने अतीत को भूलकर आगे तो बढ़ गई थी, लेकिन कहते हैं ना यादें कभी पीछा नहीं छोड़तीं। युवी ने अपनी गर्दन को खिड़की के बाहर निकाला और बाहर देखने लगी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।


    थोड़ी ही देर में अक्षय जी ने गाड़ी को लाकर एक बहुत बड़ी होटल के आगे खड़ा किया। सब लोग कार से बाहर आ गए थे। सांझ भी बाहर आ गई थी। उसने बहुत प्यारी नीली रंग की ड्रेस पहनी हुई थी, और उसके कमर तक आते बाल आज प्राची की बदौलत छोटे से लग रहे थे, क्योंकि प्राची ने उसके बालों को कर्ली किया हुआ था।


    सब लोग अंदर जा ही रहे थे कि तभी प्राची ने कहा,

    “आज तो इस सांझ के चक्कर में लेट हो गए, ऊपर से इस मुंबई का ट्रैफिक! पक्का माहिरा गुस्सा हो रही होगी।”

    “मेरी वजह से आप लेट हैं, आप झूठ तो न बोलें दी।” सांझ ने इतना ही कहा था कि तभी अक्षय जी ने हँसते हुए कहा,

    “जाओ, वो रही माहिरा सामने।”

    प्राची और सांझ ने माहिरा को देखा और उसके पास चली गईं।


    माहिरा, जो कि अपने होने वाले पति के साथ बैठी हुई थी, उसने जैसे ही प्राची को देखा तो उठकर उसके गले लगते हुए कहा,

    “ये लो अब आ रही हो तुम?”

    प्राची: “क्या करूँ यार, ये सांझ को रेडी करने में लगी थी।”

    सांझ ने प्राची की बात सुनकर उसे देखा और माहिरा के बगल में बैठे लड़के के पास आकर बैठते हुए कहा,

    “सच बोलो दी कि आपने चार बार कपड़े चेंज करने के बाद फ़ाइनली ये ड्रेस पहना है?”


    सांझ की बात सुनकर सब हँसने लगे। प्राची ने उसे देखा और कहा,

    “अच्छा बेटा! तुझे तो हम बताते हैं घर चल! वैसे अजीत जीजू आप बताओ… कौन ज़्यादा सुंदर लग रही है?” प्राची ने अजीत को देखकर कहा।


    अजीत ने तीनों को देखा और मन में सोचा क्या बोलूँ? इतना बोल अजीत ने कहा,

    “ये तुम तीनों से मेरे तीन रिश्ते हैं, एक बहन है, एक साली है, और घरवाली है! तो सिम्पल है, तुम तीनों अच्छी लग रही हो।”


    अजीत की बात पर सब मुस्कुराए तो माहिरा ने कहा,

    “क्यों ना डांस किया जाए?”


    माहिरा ने अजीत को देखा। तब तक प्राची ने दोनों का हाथ पकड़ा और उसे डांस फ़्लोर पर ले आई जहाँ पहले से ही सब लोग डांस कर रहे थे।


    सांझ एक साइड खड़ी हुई सब को देख रही थी। जितनी सुंदर वो बाहर से थी, उतना ही सुंदर उसका दिल था। सांझ ने इधर-उधर देखा तो उसकी नज़र एक छोटे से बच्चे पर गई जो चेयर पर बैठा कुछ देख रहा था। सांझ ने उसे हेलो कहा और जैसे ही जाने को हुई कि उसका दुपट्टा खिंचने लगा। सांझ ने पीछे मुड़कर देखा तो एक लड़का खड़ा हुआ था, जिसकी घड़ी में सांझ का दुपट्टा उलझ गया था। सांझ ने एक नज़र उस लड़के को देखा और जल्दी से अपना दुपट्टा खींचकर वहाँ से चली गई। सांझ के ऐसे करने से उस लड़के ने तुरंत पीछे देखा तो वहाँ कोई नहीं था।


    तो वहीं प्राची डांस करके थक गई थी। उसने युवी के पास बैठते हुए कहा,

    “सच में डांस करने में मज़ा बहुत आता है।” इतना बोल प्राची ने जल्दी से एक कदम चेयर से नीचे रखा और जाती हुई सांझ का हाथ पकड़ लिया।

    सांझ: “क्या हुआ दी?”

    प्राची: “डांस कर ले।”

    सांझ: “नहीं, मुझे नहीं करना।”

    प्राची: “मॉम बोलो ना ये डांस करे।”

    युवी ने सांझ की ओर देखा और कहा,

    “प्लीज़, सांझ दी बोल रही है ना…”

    सांझ ने सब को देखा और वहाँ से डांस फ़्लोर पर आ गई। उसने कुछ लड़कियों को अपने साथ लिया और डांस करने लगी।


    ओ कड़ियो गुड़ किन्ने खालेया, स्वीटी
    गुड़ वाली चा किन्ने पीती, स्वीटी
    बुवा जी दा नाड़ा किन्ने खिचेया, हाँ
    ओ खिंच के मारी किन्ने सीटी
    ओह छड्डो जी छड्डो
    जा के पकड़ो वो हलवाई
    के जिसने गुड़ की बना दी मिठाई
    ओ सबको बात है ये समझाई


    सांझ एक-एक स्टेप्स बहुत अच्छी कर रही थी शादी में। जितने भी लोग आए थे, सब एक साथ उसे ही देख रहे थे।


    ओ गुड़ नालो इश्क़ मिठा
    ओ गुड़ नालो इश्क़ मिठा (ओए होए)
    ओ गुड़ नालो इश्क़ मिठा (आए हाय)
    ओ रब्बा लगे ना किसे नू जावे
    ओ गुड़ नालो इश्क़ मिठा ओए
    सोहणी मेरा दिल ले गयी (ओए होए)
    हाए कुड़ी मेरी जान ले गयी (आए हाय)
    ओ मुझको यार कोई तो बचाए
    गुड़ नालो इश्क़ मिठा


    “सच में ये लड़की डांस से दूर भागती है, लेकिन करती बड़ा जबरदस्त है डांस।” है ना मॉम? प्राची ने युवी के कंधे पर सिर रखते हुए सामने देखकर कहा।


    युवी, जो कि कब से सांझ को देखकर मुस्कुरा रही थी, उन्होंने भी प्राची की बात पर हाँ किया और कहा,

    “बिलकुल, बहुत अच्छा डांस कर रही है।”


    तो वहीं डांस ख़त्म होते ही, सांझ आगे आई और अजीत और माहिरा को बीच में ले आई और इस बार एक कपल सॉन्ग चल रहा था। सांझ डांस करने में इतना गुम हो गई थी कि वो सबसे अलग एक साइड में डांस कर रही थी। तभी उधर से जा रहे एक लड़के, जिसके हाथ में ड्रिंक का ग्लास था, वो गलती से सांझ से पीछे से टकरा गया, लेकिन सांझ का ध्यान बिलकुल भी नहीं था। सांझ को जब अजीब लगा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने तुरंत अपने बंधे हुए बालों को खोला और इधर-उधर देखने लगी। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी। सांझ ने अपने कदम पीछे लिए और पास में लगे पिलर से लगकर खड़ी हो गई और खुद से ही बड़बड़ाने लगी,

    “ओह गॉड! ये जीप कैसे खुल गई… क्या करूँ…”

    सांझ ने इतना ही कहा था कि तभी किसी ने उसके आगे अपना कोट बढ़ाया। तो सांझ की नज़र अपने सामने खड़े लड़के पर गई। तो सांझ ने चिल्लाते हुए कहा,

    “तुम… तुम यहाँ भी आ गए?”


    उस लड़के ने सांझ को देखा और कहा,

    “ओह! तो तुम हो… झूठ लड़की…”

    इतना बोल वो लड़का जैसे ही जाने को पलटा, उससे पहले ही सांझ ने उसके हाथ से उसका कोट लिया और उसे अपने हाथों पर और कंधे पर डाल लिया।


    उस लड़के ने सांझ को देखा जो टेंशन में भी बहुत अच्छी लग रही थी।

    “वैसे इसे तुम पहन लोगी तो ज़्यादा अच्छा लगेगा।” इतना बोल वो लड़का वहाँ से चला गया।


    सांझ ने उस लड़के को देखा और खुद से कहा,

    “बड़ा आया!” इतना बोल सांझ ने कोट को देखा और पहन लिया।


    आगे…

  • 2. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 2

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    20 साल बाद

    मुंबई।

    सुबह का समय था। दो मंजिला बड़ा सा घर। उसके सेकंड फ्लोर पर एक कमरे में एक लड़की सोई हुई थी। कमरे की खिड़की से आती धूप उसके चेहरे पर गिर रही थी। सुबह की सीधी धूप की वजह से वह लड़की बार-बार करवट बदल रही थी। लेकिन जब वह धूप बर्दाश्त नहीं कर पाई, तो उसने अपने पास रखे तकिये को अपने ऊपर डालकर वापस सो गई।

    "हे भगवान! इनके कमरे के पर्दे हटाओ, चाहे एक बार को पूरे कमरे की छत ही हटा दो, लेकिन इनकी नींद इतनी सी भी अधूरी नहीं रहनी चाहिए।" सुबह के आठ बज गए थे, लेकिन मजाल है कि प्राची ने आँखें खोली हों! एक लड़की, जिसने बहुत प्यारी सी छोटी, सफ़ेद रंग की कट शोल्डर गाउन पहना हुआ था, जो उसके घुटनों तक आ रहा था। उसके कमर तक आते बालों को एक ऊँची पोनी बना हुआ था। बिना मेकअप के भी वह बहुत प्यारी लग रही थी। उसने अपने कदम बिस्तर पर सोई प्राची की ओर बढ़ाए और उसके चेहरे से तकिया खींच लिया।

    "ओहो दी! उठो ना, यार! कुंभकर्ण भी आपसे अच्छा है।" इतना बोलकर उस लड़की ने कमरे में नज़र दौड़ाई और आगे बढ़कर खिड़की के सारे पर्दे हटा दिए।

    "यार सांझ! तुझे मैं सोती हुई अच्छी नहीं लगती क्या? जब देखो मेरी नींद में तेरी इस आवाज़ और इस धूप की आहुति दे देती है।" इतना बोलकर बिस्तर पर सोई प्राची ने अपने चेहरे से तकिया हटाया। मोटी-मोटी आँखें, बालों का जुड़ा जो आधे से ज़्यादा खुला हुआ था, ढीला सा सफ़ेद शर्ट और हल्का नीला शॉट्स। दिखने में प्राची बहुत प्यारी थी।

    "अब जब मैंने आपकी नींद की आहुति दे ही दी है, तो आप उठने का कष्ट करें। आप अपना वादा तो नहीं भूल गईं ना?" सांझ ने प्राची की ओर आँखें छोटा करके देखते हुए कहा।

    "वादा...? " इतना बोलकर प्राची ने मुस्कुराते हुए सांझ की ओर देखा जो उसे ही घूर रही थी। "मन में ओह गॉड! कौन सा वादा किया था मैंने?" प्राची ने जल्दी से अपने ऊपर से कम्बल हटाया और बिस्तर के दूसरी तरफ़ से उठकर कमरे से बाहर निकलते हुए कहा, "अच्छा तेरा वो वादा... हाँ हाँ, याद है मुझे। तू रेडी हो जा। हम चलेंगे।" इतना बोलकर प्राची तुरंत नीचे चली गई।

    सांझ को समझ आ गया था कि प्राची फिर भूल गई। उसने रोने सी सूरत बनाई और प्राची के पीछे नीचे भाग गई। प्राची सीढ़ियों पर जल्दी-जल्दी उतर रही थी। उसने जल्दी से हॉल में नज़र दौड़ाई जहाँ हॉल में लगे बीचों-बीच सोफ़े पर अक्षय बैठा अख़बार पढ़ रहा था।

    प्राची ने उन्हें देखा और वापस इधर-उधर देखकर नीचे आ गई। पूजा करके मंदिर से बाहर आई युवानिका, जिसने बाल खुले छोड़े हुए थे, लाल रंग की सादी साड़ी, एक हाथ में चूड़ियाँ और मांग में सिंदूर लगाए, बहुत प्यारी लग रही थी। प्राची ने जैसे ही युवी को देखा, तो वह तुरंत उनके पीछे आकर छुपते हुए बोली, "जल्दी बताओ ना मैंने सांझ से कौन सा वादा किया था?"

    सांझ भी तब तक युवानिका के आगे आकर खड़ी हो गई थी। उसने हाथ हिलाते हुए कहा, "देखो दी! बाहर आओ। हर बार ऐसा नहीं चलेगा। बाहर आओ और आप मम्मी, साइड हटो!"

    सांझ के इतना बोलते ही प्राची ने युवानिका की दोनों बाहों को कसकर पकड़ा और कहा, "नहीं मॉम..." इतना बोलकर प्राची ने युवानिका को घुमाया और खुद भी घूम गई क्योंकि सांझ उसे पकड़ने की कोशिश कर रही थी।

    दोनों बहनों का यूँ सुबह-सुबह शोर मचाने से अक्षय के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। तभी किसी ने उसके कंधे पर आकर हाथ रखा तो अक्षय ने अपने बगल में देखा तो एक औरत खड़ी उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

    अक्षय ने उस औरत को देखा और सोफ़े से उठते हुए कहा, "प्रणाम माँ..." इतना बोलकर अक्षय ने उनके पैर छू लिए। उस औरत ने अक्षय को आशीर्वाद दिया और प्राची और सांझ की नोकझोंक देखने लगी।

    "ये लो, फिर शुरू हो गया इन दोनों का। पर कुछ भी कहो, जब तक दोनों ऐसे शैतानियाँ नहीं करतीं, ना घर का माहौल खुशनुमा नहीं बनता।" इतना बोलकर वह औरत अक्षय की ओर देखने लगी।

    (ये हैं मौलवी जिंदल, जिंदल खानदान की इकलौती बहू।)

    "ये तो हैं, इनकी वजह से इस घर में इतनी रौनक रहती है।" अक्षय ने अपनी माँ को देखते हुए कहा। (अक्षय जिंदल, जिंदल इंडस्ट्रीज़ के सीईओ। दिल्ली में इनका जाना-माना नाम था और अभी ये अपनी फैमिली के साथ मुंबई में हैं। मुंबई में भी इनकी काफी कंपनी है।)

    "अरे मॉम! बताओ ना..." कौन सा वादा है जिस पर ये सांझ, सांझ ना बनकर आग बनकर बैठी है? प्राची ने युवानिका को पकड़कर सोफ़े की ओर ले जाते हुए कहा।

    "तुमने वादा किया था, तुम्हें याद नहीं...?" युवानिका ने प्राची की ओर देखकर कहा।

    "इन्हें कैसे याद होगा... इन्हें तो वो..." इतना बोलकर सांझ चुप हो गई और रोने सी शक्ल बनाकर मौलवी जी के बगल में आकर बैठ गई। "यू नो दादी! दी हर बार भूल जाती है, बोलो ना इन्हें!"

    "उसे जाने दो। चलते हैं। हमारे साथ चलोगी ना?" मौलवी जी ने सांझ के चेहरे पर हाथ रखकर कहा।

    "येस बेटा! हम सब साथ चलेंगे।" वैसे भी तुम दोनों अभी मुंबई में नई ही हो। अक्षय ने इतना कहा ही था कि प्राची और सांझ दोनों जोर-जोर से हँसने लगीं।

    अक्षय ने उनके हँसने की आवाज़ सुनी तो उसने उन दोनों की ओर देखा, तो प्राची और सांझ के साथ-साथ मौलवी जी और युवानिका दोनों हँस रही थीं। अक्षय ने सबको देखा और उठते हुए कहा, "मैंने कोई जोक तो नहीं मारा था?"

    "जोक नहीं मारा डैड... जोक के खानदान को ही मार दिया।" आपको मालूम भी नहीं होगा, लेकिन आप पिछले सात महीनों से हमसे यही बोल रहे हैं कि बच्चो! मुंबई तुम्हारे लिए नया है। इतना बोलकर प्राची ने पास में बैठी सांझ को हाई-फाइव दिया और हँसने लगी।

    क्रमशः

  • 3. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 3

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    अक्षय ने जब उनके हँसने की आवाज़ सुनी, तो उसने उनकी ओर देखा। प्राची, सांझ, मौलवी जी और युवानिका सभी हँस रही थीं। "मैंने कोई जोक तो नहीं मारा था?" अक्षय ने सबको देखते हुए उठते हुए कहा।

    "जोक नहीं मारा डैड, जोक के खानदान को ही मार दिया!" "आपको मालूम भी नहीं होगा, लेकिन आप पिछले सात महीनों से हमसे यही बोल रहे हैं कि बच्चों, मुंबई तुम्हारे लिए नया है!" इतना बोल प्राची ने पास बैठी सांझ को हाई-फाइव दिया और हँसने लगी।

    अक्षय ने सबको देखते हुए कहा, "हाँ, मालूम है, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि तुमने सात महीनों में मुंबई घूम लिया हो। कई बार हम वर्षों एक जगह रहकर भी किसी को नहीं जान पाते और तुम शहर की बात कर रही हो।" अक्षय के बोले गए शब्दों के साथ उसके चेहरे के भाव अलग थे।

    मौलवी जी और युवानिका ने अक्षय की बात सुनी, तो उनके चेहरों पर भी अजीब भाव आ गए। "चलो, चलो, जल्दी से ब्रेकफास्ट करो!" युवानिका ने सबको देखकर आरती देते हुए कहा।

    "आप भी आ रहे हैं ना, पापा?" सांझ ने बड़े प्यार से पीछे से अक्षय का हाथ पकड़कर कहा। सांझ का हाथ अचानक पकड़ते ही अक्षय के चेहरे के भाव बदल गए। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। उसने पीछे पलटकर सबको देखा और सांझ के सर पर हाथ रखकर कहा, "तो तुम दोनों को यह लगा कि मैं ऐसा सीरियस वाला डैड बनकर घूमूँगा?" इतना बोल अक्षय खुद जोर-जोर से हँसने लगा।

    "इतनी उम्मीद हम सबको आपसे शुरू से ही है, जिंदल साहब।" इतना बोल युवानिका ने अक्षय के सर पर आरती दी और उसके हाथ में प्रसाद रख दिया।

    अक्षय ने युवानिका को देखा और कहा, "चलो, सब नाश्ता कर लो।" इतना बोल अक्षय ने प्रसाद खाया और वहाँ से डाइनिंग टेबल की ओर चला गया।

    अक्षय के पीछे-पीछे सब लोग उठकर डाइनिंग टेबल पर आ गए। युवानिका सबको नाश्ता लगा रही थी। सांझ ने जल्दी से आगे बढ़कर टेबल पर रखे बाउल का ढक्कन उठाकर देखा। "भिंडी! भिंडी कौन खाता है?" सांझ का मुँह बन गया।

    "अब इसे भिंडी पसंद नहीं तो क्या कोई भी ना खाए?" प्राची ने मुँह बनाते हुए सांझ को देखते हुए कहा।

    "तुम दोनों बस करो। सांझ, तेरे लिए मैंने राजमा बनाया है, वह खा लो, लेकिन झगड़ा नहीं हाँ!" युवानिका ने टेबल पर बैठते हुए कहा।

    कुछ देर में सब लोग खाना खाकर फ्री हो गए। मौलवी जी ने सोफे पर बैठते हुए कहा, "बस एक संडे ही होता है जो पूरी फैमिली को एक साथ जोड़े रखता है, एक साथ मिला देता है। वरना तो तुम चारों ऑफिस में होते हो और मुझे यहाँ अकेला छोड़ देते हो। तुम लोग बस आज का दिन ही तो मिलता है तुम सब के साथ। तो इसी बहाने चलो ना आज घूम आते हैं और साथ प्राची का वादा भी पूरा हो जाएगा।"

    अक्षय ने मौलवी जी के बगल में जाकर उन्हें गले लगाया और कहा, "मैं किसी को नहीं बोलता मां, लेकिन ये तीनों खुद से बिज़नेस संभाल रही हैं। प्राची और सांझ ने अपनी काबिलियत पर वह पोस्ट ली है और युवानिका तो मेरी पार्टनर है, तो उसका क्या ही बोलूँ।"

    "मेरे पास एक आइडिया है।" सांझ ने सबको देखते हुए कहा।

    "ज़रूर कोई बकवास सा आइडिया ही होगा।" प्राची ने अपने चेहरे पर हाथ रख गर्दन नीचे करके कहा। लेकिन प्राची की बात सबने सुन ली थी।

    "क्यों ना दादी मां, आप भी हमारे साथ ही ऑफिस ज्वाइन कर लो।" इतना बोल सांझ जोर-जोर से हँसने लगी। "अब आपने ही कहा ना आपका मन नहीं लगता, पापा आपके लिए वहाँ एक अलग सी चेयर देंगे, वहाँ बैठकर सब पर दादी वाले ऑर्डर लगाना।"

    सांझ की बात सुनकर मौलवी जी ने मुँह बनाया और सांझ के सर पर चपत लगाते हुए कहा, "पागल लड़की!"

    "हाय भगवान! पागल है सच में यह लड़की!" दादी ने सांझ को एक नज़र देख अक्षय की ओर देखकर कहा।

    अक्षय ने प्राची को देखा और कहा, "जाओ प्राची, रेडी हो जाओ और तुम भी सांझ, हम मंदिर चलेंगे ना।"

    "अभी, डैड?" प्राची ने सबको देखते हुए कहा।

    "हाँ, बेटा, अभी। क्या प्रॉब्लम है? हम बाहर अच्छे से घूम के आएंगे। वैसे भी आज संडे है, मां का मन भी है।" युवानिका ने सबको देखते हुए कहा।

    "प्रॉब्लम नहीं है। मुझे लगा शाम तक चलते तो मैं मेरा थोड़ा ऑफिस वर्क रह गया, वही कर लेती। बाकी ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं है।" सांझ ने सबको देखकर कहा।

    "सो कम ऑन एवरीवन।" जल्दी से रेडी हो जाओ, आज तो डैड की तरफ से डिनर होगा, है ना डैड?" प्राची ने मुस्कुराते हुए कहा।

    "सांझ, इसे याद दिलाओ कि इसका प्रॉमिस क्या था।" अक्षय ने सांझ को देखकर कहा।

    "प्रॉमिस? अरे बताओ कोई तो, कि ऐसा कौन सा प्रॉमिस था?" प्राची ने सोफे से उठकर अपने हाथों को हिलाते हुए सब से पूछा।

    "यही कि आपकी सैलरी आते ही आप हम सबको अच्छे बच्चे की तरह डिनर करवाएंगी, हमें घुमाएंगी, एंड एंड, शॉपिंग करवाएंगी।" सांझ ने उठकर अक्षय के कंधे पर हाथ रखकर उसकी ओर देखते हुए कहा।

    "हैं? यह कब बोला मैंने? ऐसे थोड़ा ना होता है। मॉम, दादी आप दोनों तो बोलो, वैसे ही बॉस इतनी सी सैलरी देता है, उसमें से भी आप चारों को इतना कुछ दूँ, मेरे पास क्या बचेगा? ना ना, डिनर हम डैड के पैसों से करेंगे।"

    "अच्छा तो तेरा वह खड़ूस बॉस तुझे इतनी सी सैलरी देता है? क्यों अक्षय? बताओ कोई अपने एम्प्लॉयी से इतना काम करवाता है और सैलरी नहीं देता?" मौलवी जी ने अक्षय को देखकर कहा।

    तुम खुद से बात कर लेना। वैसे भी कल से तुम सबका नया बॉस आ रहा है, तुम्हें पता है ना प्राची और सांझ? तो सैलरी की भी तुम उससे ही बात कर लेना। अक्षय ने दोनों को देखते हुए कहा।

    "तो कंपनी तो आपकी है ना?" प्राची ने मुँह बनाते हुए कहा।

    क्रमशः...

  • 4. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 4

    Words: 1052

    Estimated Reading Time: 7 min

    अक्षय ने दोनों को देखते हुए कहा, "तुम खुद से बात कर लेना, वैसे भी कल से तुम सब का नया बॉस आ रहा है। तुम्हें पता है ना प्राची और सांझ? तो सैलरी की भी तुम उससे ही बात कर लेना!"

    प्राची ने मुँह बनाते हुए कहा, "तो कंपनी तो आपकी है ना!"

    सांझ ने थोड़ा सीरियस होते हुए पूछा, "आपकी BOD से बात हुई, उन्होंने और आपने फ़ैसला लिया होगा ना CEO चेंज करने का? कौन नया आ रहा है!"

    युवानिका ने सब की ओर देखकर सवाल करते हुए कहा, "मिस्टर धवन अब CEO नहीं हैं।"

    अक्षय ने युवानिका की ओर देखकर कहा, "हम्मम... उनकी जगह नया CEO है, कल आ जाएगा। तुम सब कल मिल लेना, और हाँ युवानिका, तुम कुछ दिन रेस्ट करो। तुम अभी से ज्वाइन नहीं कर रही।"

    युवानिका ने अक्षय को देखते हुए कहा, "पर मैं अब ठीक हूँ। मोच बिलकुल ठीक हो गई है। मैं कल से ज्वाइन करूँगी वापस।"

    अक्षय ने वापस कहा, "नहीं का मतलब नहीं ही है। एक बार बोल दिया ना, तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं अब हाँ करूँगा।"

    मौलवी जी ने सबको डाँटते हुए कहा, "अच्छा अच्छा ठीक है। आज संडे को क्यों ऑफिस खोलकर बैठ गए? आज तो रहने दो। वरना पूरे छह दिन तुम लोग दिन के निकले रात को दिखते हो। एक आज ही का तो दिन है जब तुम सब यहाँ रहते हो। उसमें भी ऑफिस की बात उठा लाए!"

    अक्षय ने युवानिका के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "ओके, चलो सब बीस मिनट में मिलो मुझे यहाँ। रूम में आओ।" इतना बोल अक्षय वहाँ से चला गया।

    अक्षय के बाद युवानिका और बाकी सब भी रेडी होने चले गए।


    डैड... डैड... कहाँ है आप? डैड यार कहाँ हो? इतना बोलते हुए एक लड़का जल्दी-जल्दी में सीढ़ियों से उतर रहा था। उसने ब्लू शर्ट विथ ब्लैक जींस पहनी हुई थी, और हाथों में घड़ी को सही करते हुए सीढ़ियों से नीचे आ रहा था। तभी सामने से आ रही सावित्री जी से टकरा गया।


    उस लड़के ने सावित्री जी को देखते हुए कहा, "सॉरी... सॉरी दादी... आप ठीक हैं ना?"

    सावित्री जी ने वेदांश को देखते हुए कहा, "मैं बिलकुल ठीक हूँ, पर वेदांश बेटा, देखकर चलो। इतनी जल्दी किस चीज़ की हो रही है?"

    वेदांश ने कहा, "सॉरी, मैं डैड को ढूँढ रहा था। सुबह से दिख नहीं रहे। कहाँ गए वो? आपने देखा दादी?"

    देवकी जी मुस्कुराते हुए उनकी ओर आते हुए बोलीं, "दादी कहाँ से देखेंगे? दादी तो तुम दोनों बाप-बेटे का फेवरेट खाना बनाने में लगी हुई थी!"

    वेदांश ने देवकी जी को देखा और झुककर उनके पैर छूते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग बड़ी दादी!"

    सावित्री जी ने वेदांश के कान पकड़ते हुए कहा, "ओए, मैं भी हूँ। मेरे तो पैर ना छुए तूने।"

    वेदांश ने सावित्री जी को गले लगाते हुए कहा, "तुसी तो गले लगो। पैर तो बड़ों के छुए जाते हैं। जवान लोगों से तो गले लगा जाता है!"

    सावित्री जी ने वेदांश के कान खींचते हुए कहा, "चल हट बदमाश कहीं के!"

    एक लड़की, जिसकी उम्र लगभग अठारह या उन्नीस साल होगी, ने कमर पर हाथ रखकर मुँह बनाते हुए कहा, "यही सब तो सीख रहे हैं ये दादी कॉलेज में!" यह आवाज सुनकर सब ने पीछे देखा।

    वेदांश ने उस लड़की के पास जाते हुए कहा, "हाँ हाँ, वेरी फनी! तू मुझे देखने जाती है कि मैं क्या करता हूँ? छोटी सी बंदरिया!"

    देवकी जी ने हँसते हुए कहा, "पियानी... बेटा ऐसे नहीं बोलते। पर आप जरा बताओ, आपको किसने बताया कि ये कॉलेज में यही सब सीखते हैं?"

    पियानी ने वेदांश को देखते हुए कहा, "मुझे सब पता होता है। खैर, मुझे डैड से काम था। कहाँ है वो?"

    वेदांश ने पियानी की ओर देखते हुए कहा, "मैं भी उन्हें ही देख रहा था। तुझे क्या काम है?"

    युवांश ने सीढ़ियों से नीचे आते हुए कहा, "क्या काम आ गया मुझसे जो तुम दोनों मुझे याद कर रहे हो?" व्हाइट कलर के कुर्ते में और हाथ में ब्लैक घड़ी, युवांश बहुत अच्छा लग रहा था।


    पियानी ने युवांश के सीने से लगाते हुए कहा, "पापा... पापा प्लीज ना मान जाओ ना, प्लीज। पियानी ने युवांश के सीने से लगाते हुए कहा, प्लीज मान जाओ, कुछ दिनों की ही तो बात है, प्लीज मुझे ट्रिप पर जाने दो ना। पक्का कोई शैतानी नहीं। अगर भरोसा नहीं तो आप भाई को भी भेज दो। इनके भेज के भी बच्चे जा रहे हैं। मेरा ध्यान रख लेंगे ना ये? हैं ना भाई?" पियानी ने वेदांश को एक आँख मारते हुए कहा।

    वेदांश ने अटकते हुए कहा, "हाँ... हाँ... क्यों नहीं, मैं चला जाऊँगा अगर डैड बोलेंगे तो।"

    युवांश ने दोनों को देखते हुए कहा, "क्या चल रहा है तुम दोनों का? मुझे पागल बना रहे हो!"

    वेदांश ने कहा, "नो... नहीं डैड, हमें ऐसा क्यों करेंगे? वो तो पियानी को जाने दो ना। मैं चला जाऊँगा साथ में, तो ये घूम भी लेगी और मैं ध्यान रख लूँगा।"

    युवांश ने नीचे आकर सावित्री जी और देवकी जी के पैर छूते हुए कहा, "ठीक है... अभी जाओ, लेकिन दोनों..."


    देवकी जी ने धीरे से सावित्री जी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "आप पूछो, मैं नहीं..."

    सावित्री जी ने देवकी जी को कोहनी मारते हुए धीरे से कहा, "आप बड़ी हैं दीदी, वो आपकी बात मान लेगा। प्लीज पूछो ना..."

    युवांश ने दोनों को देखते हुए पूछा, "क्या हुआ आप दोनों को? कुछ चाहिए क्या?"

    सावित्री जी ने कहा, "वो... वो... मैं क्या बोल रही थी ना युवांश की मैं और दीदी, नहीं, अगर तुम चाहो तो दुर्गा माता के मंदिर चल आएँ!"

    युवांश ने कहा, "हम्मम..." इतना बोल युवांश वहाँ से चला गया। युवांश का इतना फ़ीका जवाब सुनकर सावित्री जी को काफ़ी बुरा लग रहा था। सावित्री जी ने उदास होते हुए कहा, "भगवान को कहाँ मानता है अब ये? कितने साल हो गए, आज तक उनके मंदिर नहीं गया। एक गलती की इतनी बड़ी सज़ा मिल रही है। कितनी बुरी किस्मत मिली है ना!"

    देवकी जी ने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए कहा, "मेरा मन कहता है, कभी तो अच्छा होगा हमारे घर में। बहुत अच्छा। चलो अब, रेडी हो जाओ, बड़ा दूर है मंदिर!"

  • 5. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 5

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    हम्म। इतना बोलकर युवांश चला गया। युवांश का इतना फीका जवाब सुनकर सावित्री जी को बुरा लगा। "भगवान को कहाँ मानता है अब ये... कितने साल हो गए, आज तक उनके मंदिर नहीं गया..." एक गलती की इतनी बड़ी सजा मिल रही है। कितनी बुरी किस्मत मिली है ना... सावित्री जी ने उदास होते हुए कहा।

    मेरा मन कहता है, कभी तो अच्छा होगा हमारे घर में। इतना बोलकर देवकी जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा और अपनी गर्दन हाँ में हिला दी। "चलो अब, रेडी हो जाओ, बड़ा दूर है मंदिर।"


    तो वही अक्षय रेडी होकर हॉल में खड़ा हुआ था। उसके बगल में मौलवी जी और सांझ खड़े थे। सांझ ने एक नीले रंग की प्लेन कुर्ती पहनी हुई थी जो गोल थी।

    "कितना टाइम लोगी प्राची, युवानिका तुम दोनों?"


    तो वही युवानिका ने खुद को आईने में देखा और जल्दी से मांग की डिब्बी उठाकर सिंदूर लगा लिया। आईने में से उसके ठीक पीछे एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी जिसमें अक्षय, युवानिका, एक तरफ़ प्राची और एक तरफ़ सांझ थी और बीच में कुर्सी पर मौलवी जी बैठी हुई थीं। फ़ोटो में एकदम परफेक्ट फैमिली थी।


    थोड़ी देर में दोनों नीचे आ गए। ब्लैक जींस और व्हाइट शॉर्ट टॉप में खुले बालों में प्राची बहुत प्यारी लग रही थी। युवानिका ने बिलकुल प्लेन पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी।


    अक्षय ने सबको देखा और बाहर निकल गया। "इतना टाइम तुम रेडी होने में लगाती हो क्या? माँ और सांझ भी तुमसे पहले रेडी होकर आ गए।" इतना बोलकर अक्षय गाड़ी में बैठा और सबको बैठने को बोला।


    "डैड, यही तो लाइफ़ के दिन हैं जो खुलकर जीने पड़ते हैं, वरना बाद में कोई आप जैसा मिले तो रेडी भी अच्छे से ना होने दे। आप मॉम को हमेशा लास्ट मोमेंट पर रेडी होने का बोलते हो... आप को पता है हम लड़कियों को कितना रेडी होना पड़ता है? आपका क्या है, पैंट शर्ट पहनी चलो और हमें ड्रेस देखो, फिर उसके मैचिंग की इयररिंग्स, सैंडल, वॉच लो, मेकअप करो, बाल बनाओ... बहुत चीज़ होती है।" प्राची गाड़ी में पीछे की सीट पर बैठी हुई अक्षय को समझा रही थी।


    "बस करो दी, कितना बोलती हो! ये सब भी आप ही करती हो, मैं तो जो हाथ में पहले आता है वही पहनती हूँ क्योंकि अलमीरा में मेरे फेवरेट कपड़े हैं, तो मैं कोई सा भी पहन लेती हूँ।" इतना बोलकर सांझ ने अक्षय को देखा और कहा, "मैं बिलकुल पापा पर गई हूँ, बिलकुल कम टाइम में रेडी हो जाती हूँ।" इतना बोलकर सांझ ने अक्षय को देखा और उसे हाई-फाई दिया। दोनों ने हाई-फाई किया और जोर-जोर से हँसने लगे।


    "गलत बात, हम रेडी होने में टाइम लगाते हैं तो इसका मतलब ये तो बिलकुल नहीं है, जिंदल साहब की आप कुछ भी बोलोगे।" युवानिका ने मुँह बनाते हुए कहा।


    "अरे अरे मोहतरमा, आप को कब मैंने कुछ बोला? इतनी बड़ी गुस्ताखी थोड़ी ना करनी है..." इतना बोलकर अक्षय हँसने लगा तो सब लोग हँसने लगे, लेकिन युवानिका ने मुँह बना लिया और अपना चेहरा बाहर की ओर फेर लिया।


    "देख रही हो सांझ, प्राची, तुम्हारी मॉम का मुँह बन गया। एक महीने में इनका मुँह बन ही जाता है जिससे मुझे इन्हें एक बार डेट पर लेकर जाना पड़ता है। कहाँ तो तुम्हारी उम्र है डेट पर जाने की, तो कहाँ मुझे तुम्हारी मॉम को लेकर जाना पड़ता है। बीस साल से हर महीने जाती हैं ये डेट पर..." इतना बोलकर अक्षय ने युवानिका की ओर देखा जो उसे ही घूर रही थी।


    "आप दोनों ऐसे ही हर महीने डेट पर जाते रहो, बस हमें यही चाहिए।" प्राची ने एक अलग ही अंदाज़ में कहा तो युवानिका ने उसके कान पकड़कर मरोड़ते हुए कहा, "इसकी शादी कीजिए, अच्छा सा लड़का ढूँढ के... तब पता चलेगा इसे बहुत बोलने लगी है।" युवानिका ने प्राची के कान पकड़कर अक्षय की ओर देखते हुए कहा।


    "बस करो तुम सब, कितना बोलते हो! मेरी तरह शांत रहो। वैसे युवानिका बेटा, तुमने माता रानी का दुपट्टा रख लिया था ना?" मौलवी जी ने कहा।


    "हाँ जी माँ, मैंने रख लिया। पूरा सामान रख लिया था।" युवानिका ने कहा, "वैसे कितनी प्यारी जगह है ना वो! मैंने पहली बार मुंबई में इतनी प्यारी जगह देखी है।"


    "मैंने भी। सच में, वाह! एक अलग ही सुकून है। ऐसे लगता है वहीं बैठे रहो, आने का मन ही नहीं करता। इनफैक्ट, मैंने अभी मुंबई भी नहीं देखा अच्छे से... यहाँ का बीच बहुत अच्छा है लेकिन कब देखेंगे...?"


    "बहुत अच्छी जगह है, वह एक सुकून है जो कहीं ना मिले और तो..." इतना बोलकर अचानक युवानिका चुप हो गई। उसने सबको देखा जो उसे ही देख रहे थे। युवानिका ने सबकी ओर देखा और कहा, "क्या हुआ? मुझे क्यों देख रहे हो ऐसे?"


    "तुम भी तो पहली बार मुंबई आई हो ना, तो इन सब के बारे में कैसे जानती हो?" मौलवी जी ने पूछा।


    "है भगवान माँ! मुंबई पहली बार आई हूँ, मोबाइल पहली बार थोड़ी ना चलाया है। मोबाइल पर देखा था एक दिन, इसलिए पता था, बाकी तो मैं खुद अभी तक मुंबई नहीं घूमी।" इतना बोलकर युवानिका चुप हो गई।


    "तो क्यों ना टाइम निकालकर मैं तुम सबको घुमा लाता हूँ।" इतना बोलकर अक्षय ने पीछे देखा और कहा, "क्यों लेडीज? क्या बोलती हो?" अक्षय के 'लेडीज' बोलने पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया तो अक्षय ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा, "ओह सॉरी! तो क्या बोलती हो गर्ल्स?" अक्षय के ये बोलते ही सब हँसने लगीं।


    तो वही सावित्री जी, देवकी जी, और वेदांश, पियानी और युवान पाँचों मंदिर के लिए निकल गए थे। युवान ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और कहा, "ज़्यादा टाइम मत लेना माँ, मैं ज़्यादा देर नहीं रुकूँगा।" इतना बोलकर युवान ने गाड़ी की स्पीड और तेज कर दी।


    "पता नहीं पापा को मंदिर से क्या चीड़ है, कभी मंदिर जाते ही नहीं हैं।" पियानी ने धीरे से वेदांश के कान में कहा।


    "ये तो है। मैंने भी आज तक इन्हें मंदिर में जाते नहीं देखा। पता नहीं इन्हें क्या प्रॉब्लम है। खैर, ज़्यादा मत बोल, वरना पापा सुन लेंगे तो गुस्सा हो जाएँगे। मम्मी भी नहीं है जो हमारी साइड लेगी।" वेदांश ने पियानी को देखते हुए कहा।

  • 6. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 6

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    "पता नहीं पापा को मंदिर से क्या चिढ़ है, कभी मंदिर जाते ही नहीं हैं," पियानी ने धीरे से वेदांश के कान में कहा।

    "ये तो है, मैंने भी आज तक इन्हें मंदिर में जाते नहीं देखा। पता नहीं इन्हें क्या प्रॉब्लम है। खैर, ज़्यादा मत बोल, वरना पापा सुन लेंगे तो गुस्सा हो जाएँगे। मम्मी भी नहीं है जो हमारी साइड लेगी!" वेदांश ने पियानी को देखते हुए कहा।

    "हाँ, मम्मी को बुलाओ ना यार, याद आ रही है। वो भी पता नहीं जाकर ही बैठ गई। माना ऑफिस इम्पॉर्टेन्ट है, लेकिन बच्चे भी तो हैं!" पियानी ने बड़े नखरे करते हुए कहा। तो वेदांश ने उसके गाल खींचते हुए कहा, "ज़्यादा बड़ी मत बन, समझी ना?"

    "क्या हुआ...? क्या बातें हो रही हैं? कौन बड़ा बन रहा है...?" युवान ने सामने लगे कांच में से दोनों को देखते हुए कहा।

    "कुछ नहीं पापा, हमारी बात थी। मैं और भाई बस कुछ बात कर रहे थे," पियानी ने युवान की ओर देखकर कहा।


    कुछ ही देर में अक्षय ने कार को लाकर मंदिर के बाहर खड़ा किया। सब लोग गाड़ी से बाहर आ गए थे। अक्षय ने गाड़ी से सामान निकाला और युवानिका और मौलवी जी के साथ मंदिर जाने लगा। उसने पीछे मुड़कर देखा जहाँ गाड़ी के पास सांझ और प्राची खड़ी हुई थीं।

    "सांझ, प्राची चलो दोनों मंदिर में, दर्शन करके आ जाना बेटा..." अक्षय ने दोनों को देखते हुए कहा।

    "आप चलो ना डैड, हम अभी आते हैं!" इतना बोल प्राची ने सांझ का हाथ पकड़ा और गाड़ी से साइड हो गई।

    "ज़्यादा दूर मत जाना, यहीं रहना पास ही," युवानिका ने दोनों को जाते देख कहा।


    युवानिका, अक्षय और मौलवी जी तीनों मंदिर में आ गए थे। तीनों पंडित जी से पूजा करवा रहे थे, तो वहीं सांझ और प्राची नीचे खड़ी दुकान की ओर देख रही थीं। तभी उनके बगल से एक कार आकर रुकी। प्राची ने तुरंत सांझ को पकड़कर साइड किया और खुद से कहा, "अपने बाप का रोड समझकर चलाते हैं, देखते भी नहीं हैं कौन है, कौन सी जगह है, कहाँ है। नहीं बस चलानी नहीं उड़ानी होती है!"

    "बस करो दी, कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ। मैं ही गलत जगह खड़ी हुई थी। उनकी गाड़ी की स्पीड भी कम थी और वो चला भी सही रहे थे। खैर, चलो वरना पता चले पापा यहीं लेने आ जाएँगे!" सांझ ने प्राची का हाथ पकड़कर ले जाते हुए कहा।


    प्राची और सांझ अपनी धुन में चली जा रही थीं, तो वहीं युवान गाड़ी से बाहर आकर खड़ा हो गया था। सब लोग बाहर आ गए थे। देवकी जी ने अपने हाथ में एक प्लेट ली हुई थी। उन्होंने युवान को देखा और कहा, "आ जाओ ना युवान...?"

    "आपको अच्छे से पता है, फिर भी वही सवाल है आपका, तो मेरा भी वही जवाब है। मेरा इनके मंदिर के पैर रखने तक का भी बिल्कुल मन नहीं है। आप सब जल्दी जाकर आएँ।" इतना बोल युवान ने सबकी ओर पीठ करके वहीं खड़ा हो गया।


    सब लोग युवान की बात सुनकर मंदिर में जाने लगे। तो वहीं युवान की बात सांझ ने सुन ली थी। उसने युवान को देखा और कहा, "कितने अजीब हैं ये! कोई भगवान से भी नाराज़ हो सकता है क्या...? भगवान तो कभी किसी का बुरा नहीं करते!" सांझ एक जगह खड़ी होकर यही सब सोच रही थी कि तभी प्राची ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "चल ना यार, वरना पापा आ जाएँगे।"

    "चलो," इतना बोल सांझ प्राची के साथ गाड़ी से चली गई। सांझ के जाते ही युवान ने उसकी ओर देखा जो कि बिलकुल पीछे से जाते हुए युवी की सी लग रही थी। वो लगातार उसी ओर देख रहा था। तो वहीं सावित्री जी सीढ़ियाँ चढ़ रही थीं कि अचानक ही उनका पैर फिसल गया। वो गिरती उससे पहले ही पीछे चल रही सांझ ने उन्हें पकड़ा और एक हाथ से उनकी प्लेट को पकड़ लिया।


    सावित्री जी को गिरता देख युवान भी भागकर ऊपर सीढ़ियों में आ गया। तो वहीं देवकी जी और प्राची ने तुरंत उन्हें सही से पकड़ा और वहीं सीढ़ियों पर बिठा दिया।

    "आप ठीक हैं ना दादी जी...?" सांझ ने उनके कंधे पर हाथ रखकर बड़े प्यार से पूछा।

    सावित्री जी ने सांझ को देखा और कहा, "पैर में दर्द है।" युवान भी तब तक आ गया था। उसने सावित्री जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "आप ठीक हैं ना माँ? ध्यान से नहीं चल सकती थीं। आप आपका ध्यान कहाँ था? आना नहीं था ना, नीचे बैठ जाती..." युवान को ऐसे बोलते देख सांझ ने उसे घूरा और कहा,

    "बड़े ही बदतमीज़ हो आप तो! उन्हें चोट लगी है और आप हैं कि उन्हें सुना रहे हैं।" इतना बोल सांझ नीचे घुटनों पर बैठी और सावित्री जी के पैर को पकड़कर कहा, "यहाँ दर्द हो रहा है दादी?" सांझ के पूछते ही सावित्री जी ने हाँ में गर्दन हिला दी। युवान चुपचाप सांझ को देख रहा था। सांझ ने सावित्री जी की ओर देखा और कहा, "प्लेट को तो मैंने संभाल लिया... आपको इतनी जल्दी किस बात की थी?" इतना बोल सांझ ने सावित्री जी का पैर पकड़कर मोड़ दिया, जिससे सावित्री जी की हल्की सी चीख निकल गई थी। सावित्री जी की चीख सुनते ही युवान ने तुरंत सांझ का हाथ पकड़कर दूर किया और कहा, "पागल हो तुम! उन्हें दर्द हो रहा है, और तुम हो कि..." युवान आगे कुछ बोलता उससे पहले ही सावित्री जी ने कहा, "मेरे पैर का दर्द बिल्कुल ठीक हो गया!"


    सावित्री जी की बात सुनते ही सांझ के चेहरे पर स्माइल आ गई। वो सावित्री जी से कुछ बोलने को जैसे ही हुई कि उससे पहले ही अक्षय की आवाज़ आई जो ऊपर से दोनों को आवाज़ दे रहा था।

    "क्या कर रही हो बच्चा? जल्दी आ जाओ, पंडित जी वेट कर रहे हैं।" प्राची ने अक्षय को देखा और कहा, "आ गए डैड।" इतना बोल प्राची ने सांझ का हाथ पकड़ा और कहा, "अगर मॉम आई ना तो चिल्लाएगी। चल।" सांझ ने सावित्री जी की ओर देखा और कहा, "ध्यान रखना दादी।" इतना बोल सांझ ने युवान को देखा और उसके बगल से निकल गई, लेकिन युवान का हाथ सांझ से टच हो गया।

  • 7. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 7

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    सावित्री जी की बात सुनते ही सांझ के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह सावित्री जी से कुछ बोलने ही वाली थी कि उससे पहले ही अक्षय की आवाज आई जो ऊपर से दोनों को आवाज़ दे रहा था।

    "क्या कर रही हो बच्चा, जल्दी आ जाओ, पंडित जी वेट कर रहे हैं।"

    प्राची ने अक्षय को देखा और कहा, "आ गए डैड।" इतना बोलकर प्राची ने सांझ का हाथ पकड़ा और कहा, "अगर मॉम आई ना तो चिल्लाएगी।"

    सांझ ने सावित्री जी को देखा और कहा, "ध्यान रखना दादी।" इतना बोलकर सांझ युवान को देखकर उसके बगल से निकल गई, लेकिन युवान का हाथ सांझ से स्पर्श हो गया।


    मैं इस पर गुस्सा हो गया। इस लड़की से मिले इतनी सी देर हुई है, लेकिन लग रहा था जैसे मैं इसे सालों से जानता हूँ, जबकि मैं इसे अभी मिला हूँ। बिलकुल युवी की तरह लग रही थी। काश तुम यहाँ होती आज युवी! सब कितना अच्छा होता ना।


    तो वही सांझ और प्राची ऊपर आ गई थीं। दोनों को आता देखकर युवानिका ने दोनों को घूरा। प्राची और सांझ ने अक्षय को देखा तो वह भी तुरंत युवानिका के पीछे हो गया और अपने कंधे उचका दिए।

    "देखा, पापा भी इस मामले में हमें मॉम से नहीं बचा सकते। पूजा के मामले में पापा भी मम्मी से पंगा नहीं लेते।" प्राची ने हाथ जोड़कर धीरे से बड़बड़ाते हुए सांझ से कहा।


    प्राची की बात सांझ के अलावा अक्षय, मौलवी और युवानिका ने भी सुन ली थी। युवानिका ने उसे घूरकर देखा तो प्राची ने दाँत दिखाए और हाथ जोड़कर आँखें बंद कर लीं।


    तो वही सावित्री जी, देवकी जी, वेदांश और पियानी सब लोग मंदिर में आ गए थे। सब पूजा करने में लगे हुए थे। युवानिका ने पंडित जी से प्रसाद लिया और सब वहाँ से निकल गए। सावित्री जी की नज़र सांझ पर गई। वह उससे मिलना चाहती थी, लेकिन पूजा से बीच में जा भी नहीं सकती थी।


    सब लोग पूजा करके नीचे आ गए थे। युवानिका ने अपने सर पर अभी भी साड़ी का पल्लू रखा हुआ था। वह बहुत प्यारी लग रही थी। युवान गाड़ी से टिककर खड़ा हुआ था। वह किसी से कॉल पर बात कर रहा था।


    "यहाँ से चलो, कुछ और घूम लेना। वैसे भी शाम होने को आई है।" अक्षय के इतना बोलते ही सब लोग गाड़ी में बैठने लगे। दादी आगे बैठ गई थी। सांझ और प्राची दोनों पीछे थीं। युवानिका अभी भी बाहर खड़ी हुई थी।


    युवान लगातार अक्षय की गाड़ी को देख रहा था। अचानक ही उसकी नज़र युवानिका पर गई जो उसकी ओर पीठ करके खड़ी हुई थी।

    "उफ्फ! हर जगह तुम ही दिखती हो। हर जगह और हर किसी में पीछा क्यों नहीं छोड़ती हो तुम मेरा? परेशान हो गया मैं अब!" ये सब बोलते हुए भी युवान लगातार युवानिका को ही देख रहा था।


    युवानिका कार में जैसे ही बैठी कि उसकी नज़र आगे लगे शीशे में गई जहाँ से उसे युवान दिखाई दिया। युवानिका ने मुँह बिगाड़ा और धीरे से कहा, "पता नहीं कौन है, कैसे देख रहा है?"


    "कौन है मॉम, कौन देख रहा है?" प्राची ने युवानिका से उसकी ओर देखते ही पूछा। अक्षय ने भी कार की स्पीड बढ़ाकर काँच में से पीछे देखते हुए कहा, "क्या हुआ?"


    युवानिका: पता नहीं कौन था, मुझे चेहरा अच्छे से दिखा ही नहीं। बस इसलिए, क्या पता वो मुझे नहीं देख रहा हो। खैर, मुझे क्या!


    सांझ ने युवानिका की बात सुनी और तुरंत कार के विंडो से पीछे देखा तो अब वहाँ कोई नहीं था।


    प्राची ने उसे देखते हुए देखा तो उसके सर पर मारते हुए कहा, "ओह देवी माँ! हम अब आगे आ गए और तुम अब देख रही हो। सीधी बैठ जाओ, अब कुछ नहीं है।"


    सांझ ने प्राची के बोलते ही मुँह बिगाड़ा और कहा, "पापा, चॉकलेट खानी है।" सांझ की बात सुनकर अक्षय के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने कार का डैशबोर्ड देखा और वहाँ से एक चॉकलेट उठाकर पीछे बैठी सांझ को दे दिया। "लो खाओ, तुम्हारी वजह से मुझे ये सब अब कार में भी रखनी पड़ती है।"


    कुछ ही देर में सब लोग एक बढ़िया से होटल में बैठे हुए थे। शाम हो गई थी। सब ने डिनर किया और वहाँ से घर के लिए निकल गए।


    तो वही युवान भी घर आ गया था। उसने रूम में आकर रूम का दरवाज़ा बंद किया और सोफ़े पर बैठ गया। उसने अपनी आँखें बंद की और मन में सोचने लगा, "तुम कहाँ हो युवी? प्लीज़ लौट आओ ना। मेरा एक-एक दिन तुम्हारे बिना निकलना सच में बहुत मुश्किल है। जानता हूँ उस दिन गुस्से में तुमसे इतना कुछ बोल दिया था, लेकिन तुम तो समझदार थी ना! एक बार आकर मुझसे लड़ लेती, झगड़ा कर लेती, थप्पड़ मार देती, लेकिन चली आती ना! क्यों चली गई तुम सबको छोड़कर?" इतना बोलते ही युवान को सांझ की याद आई जो उसे बिलकुल युवी की तरह लग रही थी। युवान ने तुरंत अपनी आँखें खोली और वहाँ से उठकर रूम की दीवार के पास आया जहाँ युवी की काफ़ी बड़ी तस्वीर लगी हुई थी जिसमें वह बहुत प्यारी लग रही थी।


    युवान ने तस्वीर के ऊपर हाथ लगाया और कहा, "मेरा मन आज तक नहीं माना कि तुम मुझे छोड़कर जा चुकी हो। कभी नहीं मानेगा। तुम्हें पता है, वो लड़की बिलकुल तुम्हारी जैसी दिख रही थी। उसका मुझे वैसे ही डाँटना, जैसे तुमने मुझे पहली बार मिली थी और तुमने मुझे डाँटा था। याद है ना तुम्हें?" ये सब बोलते हुए युवान की आँखों में नमी आ गई थी।


    "तुम्हें पता है, मैंने एक औरत को देखा, पीछे से बिलकुल तुम्हारी जैसी लग रही थी, लेकिन तुम होती तो मेरे पास आ जाती ना। पता नहीं कौन थी। प्लीज़ लौट आओ ना। तुम्हारे बिना ज़िन्दगी जीना बहुत मुश्किल है, सच में। वो दिन मैं कभी नहीं भूल पाता, जिस दिन मैंने तुम्हें और अपनी बेटी को हमेशा के लिए खो दिया।"

    क्रमशः

  • 8. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 8

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवान ने तस्वीर पर हाथ रखा और कहा, "मेरा मन आज तक नहीं माना कि तुम मुझे छोड़कर चली गई हो, कभी नहीं मानेगा। तुम्हें पता है, युवा, वो लड़की बिलकुल तुम्हारी जैसी दिख रही थी। उसका मुझे वैसे ही डाँटना, जैसे तुमने पहली बार मुझे डाँटा था, याद है ना तुम्हें?" युवान की आँखों में नमी आ गई थी।

    "तुम्हें पता है, मैंने एक औरत को देखा, पीछे से बिलकुल तुम्हारी जैसी लग रही थी। लेकिन तुम होती तो मेरे पास आ जाती ना। पता नहीं कौन थी। प्लीज, लौट आओ ना। तुम्हारे बिना जीना बहुत मुश्किल है, सच में। वो दिन मैं कभी नहीं भूल पाता, जिस दिन मैंने तुम्हें और अपनी बेटी को हमेशा के लिए खो दिया।"

    "डैड... डैड... डैड कहाँ हैं आप?" वेदांश की आवाज़ सुनकर युवान ने तुरंत अपनी आँखों की नमी पोंछी और फोटो को छूकर उस पर कवर लगा दिया।

    वेदांश ने युवान को एक तरफ़ खड़ा देखा तो उसके कदम दरवाज़े पर ही रुक गए। उसने युवान को देखते हुए कहा, "आपको दादी नीचे बुला रही हैं, डैड।"

    "कल मेरे साथ ऑफिस चलना। जो डील हमने की थी ना, उसके हेड तुमसे मिलना चाहते हैं।" युवान ने वेदांश के सर पर हाथ रखते हुए कहा।

    "ओके डैड, मैं रेडी हो जाऊँगा। अभी मैं जाऊँ..." वेदांश ने युवान की ओर देखा और कहा, "आप परेशान लग रहे हैं। कुछ हुआ है क्या? आप जब भी इस रूम में आते हैं परेशान हो जाते हैं। क्या है इस रूम में जो इसमें आप के अलावा कोई नहीं आता...?"

    "कुछ भी नहीं। बस कुछ पुरानी चीज़ें रखी हैं। अभी तुम जाओ।" इतना बोलकर युवान ने रूम का गेट बंद किया और नीचे चला गया। उसके दिमाग में सावित्री जी की बातें घूमने लगीं।

    सावित्री जी: "जानती हूँ युवान, तुम युवी को नहीं भूलोगे। लेकिन बेटा, पाँच साल हो गए। तुम्हारी भी अब एक बीवी और दो बच्चे हैं। प्लीज़, युवी को इन सब से दूर रखो। पियानी और वेदांश को क्या-क्या समझाओगे? प्लीज़, इसलिए..."

    "सॉरी... सॉरी... कहाँ ध्यान है आपका युवान?" कीर्ति की आवाज़ सुनकर युवान अपनी सोच से बाहर आया। उसने देखा वो सीढ़ियों से नीचे आ रही थी, लेकिन उससे टकरा गया था।

    "सॉरी... आप कब आईं दी?" युवान ने कीर्ति से पूछा।

    "मैं तो तब आई जब तुम अपनी ही धुन में नीचे आ रहे थे। ध्यान कहाँ था तुम्हारा? अभी गिर जाते तो!" कीर्ति की बात सुनकर युवान मुस्कुराकर बोला, "आप भी ना! मैं बस कुछ सोच रहा था। खैर, ये बताएँ आप यहाँ? धरा नहीं आई, और जे..." युवान चुप हो गया।

    कीर्ति ने युवान की बात सुनी तो उसके चेहरे पर उदासी छा गई। युवान ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "मैंने धरा के बारे में भी पूछा था।"

    "धरा घर ही है, अपने दादा-दादी के पास। उसे नहीं आना था।" कीर्ति ने कहा। युवान ने उसकी ओर देखकर कहा, "बाप पर ही गई है, लगता है।" इतना बोलकर युवान हल्का सा हँस गया।

    कीर्ति लगातार युवान को देख रही थी। वो आज पहली बार काफी सालों में इस तरह हँसा था। युवान ने कीर्ति को देखा और चुप होकर सोफ़े पर बैठ गया। कीर्ति ने युवान को देखा और मन में कहा, "तुमसे मिली तो नहीं युवी, लेकिन इन सब से तुम्हारे बारे में सुना बहुत है। तुम्हारी ही वजह से मेरे भाई की क्या हालत हो गई है! तुम्हारी वजह से मेरे पति इस घर में कभी नहीं आए। तुम्हारी वजह से मेरा घर, घर सा रहा ही नहीं। क्यों किया तुमने ऐसा? तुम्हारी वजह से सब कुछ बदल गया है। तुम तो चली गईं, लेकिन सब की ज़िन्दगी वहीं रोक दी तुमने।"

    "क्या सोचने लगीं दी आप? आइए ना।" युवान ने कीर्ति की ओर देखकर कहा।

    कीर्ति और बाकी सब ऐसे ही बातें करने लगे। सावित्री जी वहीं बैठी सबकी बातें सुन रही थीं। उन्होंने अपने पैर की ओर देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। सावित्री जी को यूँ अकेले मुस्कुराता देख सब ने उन्हें देखते हुए कहा, "क्या हुआ माँ? किस बात पर अकेले-अकेले हँस रही हैं?"

    "वो लड़की जो मंदिर में मिली थी, कितनी प्यारी थी ना! सच में, ऐसी प्यारी बच्ची मैंने कहीं नहीं देखी। मेरा बस चले तो मैं उसे अपने वेदांश की बहू बनाकर ले आऊँ।"

    वेदांश ने जैसे ही यह सुना, उसके मुँह से पूरा पानी बाहर आ गया जो उसने पिया था। वेदांश को सावित्री जी की बात सुनकर खांसी होने लगी। सबने सावित्री जी की ओर देखा और वेदांश को देखने लगे। युवान ने वेदांश को पानी का गिलास दिया और उसकी पीठ पर हाथ रखकर थपथपाते हुए कहा, "टेंशन मत ले। उन्होंने कहा ना सिर्फ़ 'इनका बस चले तो'! तू तो अभी बच्चा है मेरा। ख्याल करना बंद कर।"

    "जान ना पहचान आप किसी को भी बहू बना लेंगी! मॉम, आजकल के लोग दिखते क्या हैं और होते क्या हैं? ऐसी शरीफ़ और मासूम इंसान मिलना अब तो बहुत मुश्किल है।"

    ऐसे ही आज का दिन निकल गया था। रोज़ की तरह सब लोग अपने-अपने ऑफिस जाने के लिए रेडी हो रहे थे। प्राची रेडी होकर नीचे आ गई थी। उसने देखा युवानिका और सांझ टेबल पर नाश्ता लगा रही थीं।

    "गुड मॉर्निंग एवरीवन।" प्राची ने सबके गले लगते हुए कहा। सबने भी उसे गुड मॉर्निंग कहा। अक्षय जल्दी में नीचे आया और नाश्ता करने बैठ गया। उसने सांझ की ओर देखकर कहा, "सांझ, मैं किसी ज़रूरी मीटिंग की वजह से मुंबई से बाहर जा रहा हूँ। तुम दोनों आज संभाल लेना। एंड में शाम को मिलता हूँ तुम सब से।"

    "वो तो ठीक है, लेकिन कौन सी मीटिंग है डैड?" सांझ ने उनकी प्लेट में सैलेड रखते हुए कहा।

  • 9. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 9

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्राची ने सबके गले लगते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग एवरीवन।" सबने उसे गुड मॉर्निंग कहा। अक्षय जल्दी में नीचे आया और नाश्ता करने बैठ गया। उसने सांझ की ओर देखकर कहा, "सांझ, मैं किसी जरूरी मीटिंग की वजह से मुम्बई से बाहर जा रहा हूँ। तुम दोनों आज संभाल लेना। शाम को मिलता हूँ तुम सब से।"

    "वो तो ठीक है, लेकिन कौन सी मीटिंग है, डैड?" सांझ ने उनकी प्लेट में सलाद रखते हुए कहा।

    "वही जिस प्रोजेक्ट पर हम पिछले छह महीने से काम कर रहे हैं, उसकी एक मीटिंग है। पूरी पाँच कंपनी जुड़ी हुई हैं इसमें। बस तीन लोगों को ही इस प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिलेगा।"

    "वो तो अच्छा है, लेकिन कौन-कौन सी कंपनी और है?" सांझ के सवाल सुनकर सबने उसकी ओर देखा। अक्षय ने कहा, "एक तो आरएसएस है, एक सिंघानिया है, एक सूर्यवंशी है, और एक राठौड़ है।"

    कंपनी के नाम सुनते ही युवानिका ने तुरंत अक्षय की ओर देखा और अपनी उंगलियों को अपनी साड़ी के पल्लू में फँसाते हुए कहा, "मैं भी ऑफिस ज्वाइन कर लूँ ना आज से?"

    "नहीं।" अक्षय ने कहा।

    "आपको याद तो है ना, पापा? मेरी और दीदी की पोस्ट। मैं मिस्टर धवन की पर्सनल असिस्टेंट हूँ, और दीदी एक एम्प्लॉयी..." प्राची ने सांझ की बात सुनी और कहा, "हम यहीं से शुरू करते हैं ना? देखना, हम बहुत जल्दी डैड की कुर्सी छीन लेंगे।" प्राची की बात सुनकर सबने उसकी ओर देखा। प्राची ने मुँह बनाते हुए कहा, "आई मीन की हम उनकी जगह जल्दी पहुँच जाएँगे मेहनत करके। छीनने वाला मतलब थोड़ा ना था।"

    "मैं भी चलूँ ऑफिस, प्लीज़ अक्षय।" युवानिका ने कहा।

    "मैंने मना किया ना युवानिका, कुछ दिन रेस्ट करो। तुम कितना लोड ले लेती हो! पिछली बार का पता नहीं है? उस मीटिंग की फाइल बनाने के चक्कर में तुम्हें फीवर हो गया था, और उस दिन मोच भी आ गई थी। तुम आज नहीं, कल से ज्वाइन कर लेना। खुश ना?"

    युवानिका ने हाँ में गर्दन हिलाई और चुपचाप किचन में चली गई। उसके चेहरे के भाव एकदम बदल गए थे। उसने सेल्फ पर हाथ रखा और कुछ सोचने लगी।

    प्राची और सांझ दोनों एक ही कार से ऑफिस गई थीं। अक्षय भी अपनी मीटिंग के लिए निकल गया था। उसने रास्ते में से फ़ोन करके सांझ और प्राची से कहा कि आज जो उनका बॉस आ रहा था, वह नहीं आएंगे।

    सांझ और प्राची दोनों ऑफिस आ गई थीं। ऑफिस में सबको मालूम था कि दोनों अक्षय की बेटियाँ हैं। प्राची अपने कामों में लगी हुई थी, और सांझ भी अपना शेड्यूल देख रही थी। उसने अब तक जो भी डिले हुआ है, वह सब नोट किया और कुछ फाइलें रेडी करने लगी।

    आज का दिन भी यूँ ही निकल गया था। प्राची फ्री होकर सांझ के पास आई जो अपने काम में लगी हुई थी।

    "चल ना सांझ, अब कल कर लेना। अभी घर चलते हैं। देखो, आठ बज गए।" प्राची ने घड़ी में टाइम देखते हुए सांझ से कहा।

    "आप जाइए दीदी, मैं थोड़ी देर में आ जाऊँगी। और हाँ, खाना खा लेना। मैं बस थोड़ा सा काम करके अभी थोड़ी देर में आ जाऊँगी।" सांझ के बोलते ही प्राची ने उसकी ओर देखा और कहा, "तू श्योर है ना कि तू आ जायेगी? अगर बोले तो मैं रुक जाऊँ?"

    "अरे आप जाइए, पहली बार तो नहीं है ना? आप जाइए, मैं आ जाऊँगी।" प्राची ने सांझ की ओर देखा और कहा, "ठीक है, कार यहीं छोड़कर जा रही हूँ। तुम प्लीज़ जल्दी आ जाना।"

    सांझ ने हाँ कहा और वापस काम करने लगी। वह अपने काम में इतना डूब गई थी कि उसने टाइम ही नहीं देखा था। अचानक सांझ की नज़र अपने फ़ोन पर गई तो उसने टाइम देखा; रात के साढ़े नौ बज चुके थे।

    सांझ ने फाइल को समेटा और उठकर निकलते हुए खुद से बड़बड़ाने लगी, "ओह गॉड! ओह गॉड! मर गई! मम्मी तो मार ही डालेगी! ओह यार! क्या करूँ? जल्दी से निकलती हूँ।" इतना बोल सांझ जल्दी से पार्किंग में आई और कार लेकर वहाँ से निकल गई।

    युवानिका हाल में चक्कर लगा रही थी। उसके सामने सोफ़े पर प्राची और दादी बैठी हुई थीं। "मैंने मना किया था ना, तुम्हें प्राची को अकेले मत छोड़ना! तुम्हें पता भी है रात हो रही है। ऊपर से उसका फ़ोन लग नहीं रहा। कहाँ होगी वो? कैसी होगी?"

    प्राची ने सांझ को फ़ोन लगाते हुए कहा, "आ जाएगी मॉम।" प्राची ने इतना कहा, "लग गया फ़ोन।" उसने अपने फ़ोन का स्पीकर खोल दिया। दूर से सांझ ने फ़ोन उठाते हुए कहा, "डोंट वरी, मैं बस अभी थोड़ी देर में आ जाऊँगी। रास्ते में नेटवर्क इश्यू है। डोंट वरी, बस थोड़ी देर में आ जाऊँगी।"

    प्राची या युवानिका के कुछ बोलने से पहले ही उस ओर से फ़ोन कट हो गया था। सांझ ने अपना फ़ोन देखा और कहा, "फिर से नेटवर्क इश्यू! हाए रब्बा!" इतना बोल सांझ ने सामने देखा और गाड़ी रुक गई। सांझ ने गाड़ी को स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन वह स्टार्ट हो ही नहीं रही थी। सांझ ने गाड़ी को बार-बार स्टार्ट किया। जब वह नहीं हुई तो वह अपना फ़ोन लेकर बाहर आई, जिसके कोई नेटवर्क ही नहीं था। उसने आगे बढ़कर गाड़ी को देखा और कहा, "इसे भी अभी खराब होना था! अब क्या करूँ? किसी को फ़ोन भी नहीं लगेगा।" इतना बोल सांझ वहीं खड़ी हो गई।

    सांझ गाड़ी से थोड़ी दूर खड़ी किसी आती हुई गाड़ी या ऑटो का इंतज़ार कर रही थी। तभी कुछ लड़के उसके पास आए, जिसे देखकर सांझ ने अपने कदम पीछे लिए और चुपचाप अपना फ़ोन देखने लगी।

    "हम मदद कर दें मैडम जी। कहाँ जाना है?" उन आदमियों में से एक लड़के ने कहा।

    "हमें कोई मदद नहीं चाहिए भैया। हम चल जाएँगे।" इतना बोल सांझ तुरंत अपनी गाड़ी के आगे आ गई।

    एक लड़के ने दूसरे लड़के से कहा तो दूसरे लड़के ने तुरंत आगे बढ़कर सांझ का हाथ पकड़ लिया। सांझ ने उस लड़के को देखा और जोर से उसके पेट में लात मारकर वहाँ से भाग गई।

    क्रमशः

  • 10. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 10

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    सांझ ने तुरंत अपनी गाड़ी के आगे आकर कहा, "हमें कोई मदद नहीं चाहिए भैया, हम चले जाएँगे।"

    एक लड़के ने दूसरे लड़के से कहा, दूसरे लड़के ने तुरंत आगे बढ़कर सांझ का हाथ पकड़ लिया। सांझ ने उसे देखा और जोर से उसके पेट में लात मारकर वहाँ से भाग गई।


    सांझ जल्दी-जल्दी भाग रही थी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो तीन लड़के उसके पीछे भागे आ रहे थे। सांझ ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई और तेज़ी से भागने लगी। उसकी साँसें ऊपर-नीचे होने लगी थीं। तभी सांझ की नज़र सामने एक काली कार पर पड़ी जो खड़ी थी। सांझ जल्दी से कार के पास गई और बिना देखे कार का दरवाज़ा खोलकर अंदर बैठ गई। उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया और सीट पर टेक लगा ली। उसकी बढ़ती हुई साँसों का शोर पूरी कार में गूंज रहा था।

    "कौन हो तुम...?" यह आवाज़ और सवाल सुनकर सांझ ने अपने बगल में देखा तो एक लड़का बैठा था। उसने सफ़ेद शर्ट, काली पैंट पहनी हुई थी। उसके घुटनों पर लैपटॉप रखा हुआ था, एक हाथ में घड़ी थी और उसके बाल बिखरे हुए थे। उसकी आँखें लाल हो रही थीं।

    "मैं...मैं... लड़की हूँ। प्लीज़, प्लीज़ मेरी हेल्प कर दो। मुझे कार से मत उतारना प्लीज़..." सांझ ने हाथ जोड़ते हुए शीशे से बाहर देखा तो वे तीनों लड़के उसी ओर आ रहे थे।

    "ओह हेलो... कौन हो तुम? मेरी कार से उतरो, प्लीज़ जो भी हो।" उस लड़के ने सांझ को घूरते हुए कहा।

    "तुम्हारी कार...? अरे तुम्हारी ही है, मैं कौन सा लेकर भाग जाऊँगी, लेकिन मेरे पीछे कुछ लोग पड़े हैं। प्लीज़ बचा लो।"

    "तुम उतरो मेरी कार से।" इतना बोलकर उस लड़के ने सांझ का हाथ पकड़ लिया।

    "तुम ना... तुम बहुत बुरे हो।" सांझ इतना ही कह पाई थी कि किसी ने कार की खिड़की खटखटा दी।

    सांझ डर की वजह से पीछे देख नहीं पाई। वह तुरंत आगे बढ़कर उस लड़के के गले लग गई। सांझ के गले लगते ही उस लड़के की आँखें खुली की खुली रह गईं। उसने एक नज़र सांझ को देखा और फिर खिड़की की ओर देखा। तीन लड़के वहाँ खड़े थे। उन्होंने खिड़की खटखटाई तो उस लड़के ने खिड़की खोली और कहा, "क्या हुआ...?"

    एक गुंडे ने उस लड़के को देखते हुए कहा, "यहाँ से किसी लड़की को जाते हुए देखा है क्या?" उस आदमी की बात सुनकर उस लड़के ने कहा, "नहीं, मैंने नहीं देखा!"

    उस आदमी ने सांझ को उस लड़के से गले लगे हुए देखा तो दूसरे आदमी ने कहा, "भाई, इस लड़की ने बिलकुल वैसे ही कपड़े पहने हैं। मुझे तो लगता है यही लड़की है वो।" उस दूसरे आदमी की बात सुनकर पहले आदमी ने उस लड़के को घूरते हुए कहा, "ये लड़की कौन है...? चेहरा दिखा इसका...?"

    "ये...ये मेरी वाइफ़ है, और चेहरा क्यों दिखाऊँ? निकलो वरना पुलिस को बुला लूँगा।" उस लड़के ने सांझ के बालों में हाथ फेरते हुए कहा। सांझ ने उसकी बात सुनते ही मुँह बनाते हुए कहा, "कमीना कहीं का, झूठा एक नंबर का! मैं इसकी वाइफ़ हूँ!" इतना बोलते ही सांझ ने उस लड़के के हाथ पर अपने नाख़ून गाड़ दिए।

    नाख़ून लगते ही उस लड़के के मुँह से चीख निकल गई।

    उस आदमी ने दूसरे आदमी को चलने का इशारा किया और वे वहाँ से चले गए। उनके जाते ही उस लड़के ने तुरंत कार की खिड़की बंद कर दी और सांझ से दूर हो गया।

    "तुम्हें किसी पागल कुत्ते ने काट लिया था क्या...? मुझे नाख़ून क्यों लगाया?" उस लड़के ने लगभग सांझ को घूरते हुए कहा।

    सांझ ने उस लड़के को देखा और कहा, "तो मैंने कहा था क्या? मुझे अपनी वाइफ़ बताओ, मैं तुम्हारी वाइफ़ थोड़ी ना हूँ!" सांझ ने मुँह बनाते हुए कहा।

    "तो मेरे गले लगने को किसने कहा? और मैंने बोल दिया तो बोल दिया, मुझे यही याद आया, वरना तो उन्हें तुम्हारी शक्ल देखनी थी, उठा ले जाते तुम्हें तुम्हारे वो प्यारे रिश्तेदार!" उस लड़के ने अपने हाथ को देखते हुए कहा।

    "मेरे रिश्तेदार...? वो भी प्यारे? तुम्हारे रिश्तेदार हैं वो, मिलते भी हैं, वो भी गुस्से के और तुम...तुम्हें देखकर तो लग रहा है जैसे गुस्से की फैक्ट्री नाक पर रखकर घूमते हो!"

    "हाँ, मेरी बड़ी है ना? तुम्हारी तो वो भी छोटी सी है। दिमाग होना चाहिए इंसान में, तुम में तो वो भी नहीं है।" उस लड़के की बात सुनकर सांझ ने उसे घूर कर कहा, "मेरा दिमाग मत खाओ! हेल्प कर दी इसका मतलब ये नहीं कि खुद को अक्षय कुमार समझ रहे हो! उसके जैसा कोई नहीं समझे ना!"

    "मुझे किसी के जैसा बनने का शौक नहीं। एनीवेज, उतरो मेरी कार से अब।" उस लड़के ने सांझ को घूरते हुए कहा।

    सांझ ने उस लड़के को देखा और कहा, "बड़े ही बदतमीज़ इंसान हो! एक लड़की की हेल्प करने की जगह उसे इतनी रात को अकेला छोड़कर जाने का सोच रहे हो।" सांझ ने मुँह बनाते हुए कहा।

    उस लड़के ने सांझ की बात सुनी और उसके मुँह पर हाथ रखकर उसके थोड़ा करीब आते हुए कहा, "कितना बोलती हो! पीएचडी कर ली क्या बोलने में? उतरो अच्छे से, वरना मैंने उतारा ना तो अच्छा नहीं होगा।" इतना बोलकर उस लड़के ने सांझ के मुँह से अपना हाथ हटाया और अपनी साइड से उतरकर कार से बाहर आ गया।


    तो वहीं युवी हाल में बैठी हुई थी। उसने प्राची को देखते हुए कहा, "हे भगवान! उसका फोन नहीं लग रहा, वो आई भी नहीं। क्या करूँ? मेरा जी घबरा रहा है।"

    "डैड को भी नहीं परेशान कर सकते, वरना उन्हें बता देते। कुछ टाइम इंतज़ार करते हैं, फिर नहीं आती है तो डैड को बता देंगे।" प्राची ने परेशान होते हुए कहा।

    मौलवी जी ने दोनों को देखा और कहा, "फ़ोन तो मिलते रहो तुम। पता नहीं कैसी है मेरी बच्ची, रात भी बहुत होने को आई।"

    क्रमशः

  • 11. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 11

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवी हाल में बैठी हुई थी। उसने प्राची को देखते हुए कहा, "हे भगवान! उसका फ़ोन नहीं लग रहा है, वो आई भी नहीं। क्या करूँ? मेरा जी घबरा रहा है।"

    "डैड को भी नहीं परेशान कर सकते, वरना उन्हें बता देते। कुछ टाइम इंतज़ार करते हैं, फिर नहीं आती है तो डैड को बता देंगे।" प्राची ने परेशान होते हुए कहा।

    मौलवी जी ने दोनों को देखा और कहा, "फ़ोन तो मिलाते रहो तुम। पता नहीं कैसी है मेरी बच्ची। रात भी बहुत होने को आई!"

    सांझ जब गाड़ी से बाहर नहीं आई, तो उस लड़के ने दूसरी साइड का दरवाज़ा खोला और सांझ का हाथ पकड़कर बाहर निकालते हुए कहा, "ओह प्लीज! अब उतरो, समझी ना? मुझे लेट हो रहा है।" इतना बोलकर उस लड़के ने सांझ को वहीं छोड़ दिया और कार में बैठ गया। तब तक कार का ड्राइवर भी आ गया था। उसने कार स्टार्ट की और वहाँ से चला गया।

    सांझ ने जाती हुई कार को देखा और खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, "कैसे घर जाऊँगी? ये कमीना इंसान मुझे यहीं छोड़ गया! दिल है कि पत्थर दिल है... नहीं नहीं, इसके पास तो दिमाग के साथ दिल भी नहीं है। एक मासूम लड़की को यूँ रात में अकेला इस सुनसान सड़क पर छोड़कर चला गया..." इतना बोल सांझ पीछे घूमी तो उसके पीछे वही तीनों लड़के खड़े हुए थे! सांझ की नज़र जैसे ही उन तीनों पर गई, उसकी आँखें एकदम से शोक से बड़ी-बड़ी हो गईं।

    सांझ ने उन तीनों को अपने सामने देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने धीरे से कहा, "तु...तु...तुम लोग...?"

    सांझ को देखकर उन लड़कों में से एक ने कहा, "खुद को बड़ा होशियार समझ रही थी। तुझे क्या लगा बच के निकल जायेगी? तुझे पता ही नहीं है तेरा पाला किससे पड़ा है। शेरा नाम है मेरा, मैं जिस काम के लिए हाँ कर दूँ ना, फिर उसे करके ही रहता हूँ। चाहे फिर कुछ भी हो जाए! और तेरी मौत मेरे हाथों लिखी है!" इतना बोल वो लड़का हँसने लगा।

    एक लड़की गाड़ी से ऑटो में जा रही थी कि तभी उसकी नज़र सांझ पर गई। उसने ऑटो वाले को रुकने को कहा और खुद बाहर आ गई। उसने ऑटो वाले को देखा और कहा, "उस लड़की को कुछ लोग परेशान कर रहे हैं, आप हेल्प करो।" काशी की बात सुनकर ऑटो वाले ने मान लिया और वहाँ से चला गया। वह लड़की गाड़ी से उन लोगों के पास आ गई। उसने अपनी कमर पर हाथ रखा और कहा, "ओह भैया! क्या कर रहे हो इधर? घर ना जाना तुम लोगों को?" उस लड़की की आवाज सुनकर वो तीनों लड़के उसकी ओर देखने लगे। तो वहीं सांझ भी उस लड़की की आवाज सुनकर भागकर उस लड़की के पीछे आ गई थी। उन लड़कों ने उस लड़की की ओर देखकर कहा, "एक के साथ एक माल फ्री भाई!" इतना बोल वो तीनों लड़के हँसने लगे। उनकी बात पर वो लड़की भी हँसने लगी।

    "क्या दिमाग पाया है... खैर, निकल लो वरना कोई बचा भी नहीं पाएगा!" इतना बोल उस लड़की ने सांझ का हाथ पकड़ा और गाड़ी से जाने लगी कि तभी एक लड़के ने उस लड़की का हाथ पकड़ लिया।

    उस लड़की ने जैसे ही उस लड़के को देखा, अगले ही पल उस लड़के के पेट में एक जोरदार लात मार दी, जिससे वो लड़का सीधे जमीन पर गिर गया।

    तीनों लड़के एक-एक करके उस लड़की पर हमला कर रहे थे। वो लड़की भी उनको अच्छे से पीट रही थी। पास में खड़ी सांझ ने उन सब को देखा और अपने आस-पास देखने लगी और पत्थर उठाकर एक के सर पर मारने को हुई। उससे पहले ही एक लड़के ने उसके गले पर चाकू रखकर उस लड़की से कहा, "छोड़ उनको, वरना ये लड़की यहीं मर जाएगी।" उस लड़की ने जैसे ही सुना तो उसने तुरंत मारना बंद कर दिया। दूसरे लड़के ने उस लड़की के दोनों हाथों को पकड़ लिया था। एक लड़के ने सांझ को देखा और कहा, "तेरा तो काम तमाम करना ही था," उस लड़की की ओर उंगली करके, "लेकिन ये बेचारी तुझे बचाने के चक्कर में फ्री में मारी जाएगी।" इतना बोल उस लड़के ने सांझ के गर्दन पर जो चाकू रखा था, उसको सांझ की गर्दन पर जोर से दबा दिया। सांझ की गर्दन पर हल्का सा कट लग गया था, जिससे खून निकल रहा था। उस लड़की ने सांझ की हल्की सी चीख सुनी तो उसने चिल्लाते हुए कहा, "हाथ भी मत लगाओ, वरना मार दूँगी!"

    "भाई, ये तो आपको धमकी दे रही है!" एक लड़के ने दूसरे लड़के को बताते हुए कहा।

    "पहले इसी की गर्दन उड़ा दे!" उस लड़के के इतना बोलते ही दूसरे आदमी ने चाकू लिया और उस लड़की की ओर बढ़ने लगा। वो उस लड़की के पेट में चाकू मारने ही वाला था कि तभी बीच में किसी का हाथ आ गया। उस लड़की ने और सांझ ने कस के अपनी आँखें बंद कर लीं। लेकिन जब कुछ देर तक कोई हरकत नहीं हुई तो दोनों ने अपनी आँखें खोलीं। सामने एक लड़का खड़ा हुआ था, जिसने चाकू अपने हाथ में पकड़ा हुआ था। उस लड़के ने उस गुंडे की ओर देखकर कहा, "ये मर जाएगी ना तो भाई इसका खानदान तुम्हें उड़ा देगा!" इतना बोल उस लड़के ने उस लड़के की बाजू पर चाकू मार दिया, और दूसरे को पकड़ के उसके सर से भिड़ा दिया। एक लड़के ने चाकू लिया और जैसे ही उस लड़के पर मारने को हुआ कि उस लड़की ने उसे लात मार दी।

    उस लड़के ने तीनों को पकड़ा और एक-दूसरे से भिड़ा दिया! वो तीनों लड़के वहाँ से भाग गए थे। उस लड़की ने उस लड़के को देखा जो अपने हाथ साफ कर रहा था। उस लड़के ने उस लड़की की ओर एक नज़र देखा और सांझ की ओर देखा जो चुपचाप खड़ी थी। तभी सांझ ने उस लड़की की ओर देखकर कहा, "थैंक यू। अगर आज आप नहीं होतीं तो पता नहीं क्या होता!"

  • 12. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 12

    Words: 1036

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस लड़के ने तीनों को पकड़ा और एक-दूसरे से भिड़ा दिया।" वो तीनों लड़के वाह से भाग गए थे। उस लड़की ने उस लड़के को देखा जो अपने हाथ साफ कर रहा था। उस लड़के ने उस लड़की की ओर एक नज़र देखा और सांझ की ओर देखा जो चुपचाप खड़ी थी। तभी सांझ ने उस लड़की की ओर देखकर कहा, "थैंक यू। अगर आज आप नहीं होतीं तो पता नहीं क्या होता…!"

    उस लड़के ने सांझ को देखा और कहा, "जो होता है अच्छा होता, हम नहीं होते तो कोई और होता…!"

    "कोई और…? उस इंसान जैसा जो रात को एक लड़की को यहां अकेला छोड़कर चला गया…!" मन तो कर रहा था वहीं उसी की कार से उड़ा दूँ उसे। एनीवेस, मेरा नाम सांझ जिंदल है…!" सांझ ने अपना हाथ आगे करके कहा।

    उस लड़के ने जैसे ही सुना, उसने भी उससे हाथ मिलाते हुए कहा, "शिव राणा।" सांझ ने शिव से हाथ मिलाया और कहा, "राणा इंडस्ट्रीज…?" सांझ का सवाल सुनकर शिव ने गर्दन हिला दी।

    काशी को शिव का सांझ से इस तरह बात करना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था। उसने सांझ का और शिव का हाथ हटाया और कहा, "मैं भी यहीं हूँ।" इतना बोल काशी ने सांझ के आगे हाथ बढ़ाया और कहा, "मेरा नाम काशी है।" सांझ ने काशी को गले लगाया और कहा, "थैंक यू। अगर आप नहीं होतीं तो पता नहीं सच में क्या होता…!"

    "तुम यहां क्या कर रही हो वैसे…?" शिव ने सांझ को देखते हुए कहा।

    सांझ ने शिव की बात सुनी और कहा, "सब बताऊँगी, लेकिन मुझे पहले आपका फ़ोन मिलेगा। लग रहा है जैसे मेरे ही फ़ोन में नेटवर्क नहीं है…!"

    काशी ने अपना मुँह बिगाड़ा और कहा, "यहाँ इस एरिया के नेटवर्क नहीं हैं…!"

    सांझ ने उन दोनों को देखा और कहा, "मैं ऑफ़िस से घर के लिए जा रही थी, और मेरी गाड़ी खराब हो गई।"

    शिव ने सांझ की बात सुनी और कहा, "ओह! तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर ड्रॉप कर दूँ…?"

    सांझ ने शिव की बात सुनी और उसकी ओर देखा तो काशी उसे ही घूर रही थी। सांझ ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और कहा, "वो तो आपको करनी पड़ेगी… वैसे भी मेरी मॉम बहुत परेशान हो रही होगी…!"

    "गाड़ी में चलकर बैठो। रास्ते में सुनाना तुम क्या-क्या हुआ था…!" तीनों कार में बैठ गए थे। काशी और शिव आगे बैठे हुए थे। सांझ ने अपने साथ जो-जो हुआ उन दोनों को बता दिया।

    "अरे बाप रे! कैसा लड़का है, मुसीबत में छोड़कर चला गया…?" काशी ने सांझ की ओर देखकर कहा। "भाई, थोड़ी हेल्प कर देता तो क्या होता, पर नहीं। कोई किसी की हेल्प करना ही नहीं चाहता। जो किसी लड़की की हेल्प नहीं कर सकता, वो लाइफ पार्टनर की क्या ही हेल्प करेगा!"

    शिव कुछ सोच रहा था। अचानक ही उसे कुछ खटका तो उसने सांझ से आईने में देखकर कहा, "वैसे सांझ, ये लोग तुम्हारा पीछा क्यों कर रहे थे…?"

    शिव का सवाल सुनकर सांझ और काशी ने उसे देखा और काशी ने कहा, "ये इन गुंडों का यही काम है, लड़की देखी नहीं पीछे पड़ जाते हैं…!"

    सांझ ने भी काशी की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, "हाँ शिव सर, शायद उन्हें पैसे चाहिए हों… बस इसलिए…!"

    सांझ की बात सुनकर शिव ने उसे वापस समझाते हुए कहा, "आई नो, बट तुम लोगों ने उनकी बात नहीं सुनी क्या… वो तुम्हें मारना चाहते थे…? क्यों?"

    शिव का सवाल सुनकर सांझ कुछ सोचने लगी, तो वहीं काशी ने शिव के हाथ पर पिंच करते हुए कहा, "तुम पागल-वागल हो क्या? वो टेंशन में है, और उसे और टेंशन दे रहे हो…? दिमाग लगाया करो।"

    सांझ ने दोनों को लड़ते देखा तो मुस्कुराते हुए कहा, "डोंट वरी काशी, मैं ठीक हूँ।"

    शिव ने सांझ की ओर देखकर कहा, "तुम्हारे फ़ेस से और बात करने से लग रहा है, तुम बहुत समझदार हो…!" "बस कुछ लोगों में तो दिमाग होता नहीं और दूसरों को बोलते हैं। छोटा सा दिमाग जहाँ लगाना होता है वहाँ नहीं लगाते और जहाँ लगाना नहीं वहाँ ये छोटा सा दिमाग बड़ा हो जाता है…!"

    "आप दोनों दोस्त हैं…?" सांझ ने दोनों को देखते हुए कहा।

    सांझ का सवाल सुनकर काशी और शिव ने एक-दूसरे को देखा। काशी ने कहा, "ये नहीं हो सकता।" और उसी टाइम शिव ने कहा, "येस, हम दोस्त हैं…!"

    दोनों के अलग-अलग जवाब सुनकर सांझ कन्फ़्यूज़ हो गई, तो वहीं काशी और शिव दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। शिव ने काशी की ओर देखते हुए कहा, "हम फ़्रेंड नहीं हैं…?"

    काशी ने शिव को घूरते हुए कहा, "ये कब हुआ…?" दोनों एक-दूसरे से लड़ रहे थे। तभी सांझ ने चिल्लाते हुए कहा, "यहाँ से राइट लो…!"

    सांझ की आवाज़ सुनकर दोनों शांत हो गए थे। सांझ ने अपनी आँखें बंद की तो उसे एक बार तो सब धुंधला सा नज़र आने लगा। उसने वापस अपनी आँख खोली और कहा, "यहीं रोक दो, यहीं है मेरा घर…!"

    सांझ की बात सुनकर शिव ने कार रोक दी। उसने गाड़ी का लॉक भी ओपन कर दिया और सब बाहर आ गए। सांझ ने काशी को गले लगाया और कहा, "थैंक यू, थैंक यू सो मच…!" शिव की ओर हाथ बढ़ाकर, "थैंक यू शिव सर, आप दोनों नहीं होते तो मेरा टिकट ऊपर का कट जाना था…!"

    शिव ने सांझ के सर पर हाथ रखा और कहा, "तुम बहुत अच्छी हो, हिम्मत रखो, डरती नहीं हो। अब तुम सेफ़ हो, जाओ वरना तुम्हारी मॉम टेंशन लेंगी।"

    सांझ ने शिव की बात सुनी और जाने को पलटी की, तभी वापस पलटते हुए कहा, "आप लोग भी आइए ना अंदर…?"

    सांझ के बोलते ही शिव उसके पास आया और कहा, "ज़रूर आऊँगा, लेकिन आज नहीं। आज बहुत लेट हो गया, घर वाले टेंशन कर रहे होंगे ना।" इतना बोल शिव ने काशी को देखा।

    शिव के बोलते ही काशी ने मुँह बिगाड़ा और अपने सर पर मारते हुए कहा, "ओह तेरी… मम्मी तो मुझे ढूँढ रही होगी। हम तुमसे और कभी मिलेंगे…!" "अभी हम बहुत लेट हैं, अगर किसी भी हेल्प की ज़रूरत हो तो बताना…!"

    काशी और शिव की बात सुनकर सांझ ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और वहाँ से घर के अंदर आ गई।

    क्रमशः…

  • 13. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 13

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    सांझ ने शिव की बात सुनी और जाने को पलटी। तभी वापस पलटते हुए कहा, "आप लोग भी आइए ना अंदर...?"

    शिव उसके पास आया और कहा, "जरूर आऊँगा, लेकिन आज नहीं। आज बहुत लेट हो गया, घर वाले टेंशन कर रहे होंगे।" इतना बोल शिव ने काशी को देखा।

    काशी ने मुँह बिगाड़ा और अपने सर पर मारते हुए कहा, "ओह तेरी! मम्मी तो मुझे ढूँढ रही होगी। हम तुमसे और कभी मिलेंगे! अभी हम बहुत लेट हैं। अगर किसी भी हेल्प की ज़रूरत हो तो बताना।"

    काशी और शिव की बात सुनकर सांझ ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और घर के अंदर आ गई।


    हॉल में बैठी युवानिका और प्राची दोनों परेशान लग रही थीं। प्राची ने युवानिका को देखा और कहा, "मॉम, उसने तो कहा था थोड़ी देर में आ जाएगी। हमें डैड को बता देना चाहिए ना? हम चलकर भी ढूँढ लेते हैं।"

    "अब तो मुझे भी डर लगने लगा है। हमें चलना चाहिए, बाहर देखते हैं।" युवानिका सोफे से उठते हुए बोली।


    तभी सांझ बाहर आ गई। उसे चलना ही नहीं जा रहा था। अचानक उसे सब धुंधला-सा नज़र आया, तो उसने तुरंत पिल्लर को पकड़ लिया। उसने अपने सर पर हाथ रखा और अंदर चली गई।


    युवानिका और प्राची जैसे ही जाने के लिए उठीं, उनकी नज़र अंदर आती हुई सांझ पर गई। सांझ को देखते हुए युवानिका तुरंत उसकी ओर आई और भागकर उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया। उसके माथे पर किस करते हुए बोली, "कहाँ चली गई थी आप...? आप ठीक हैं ना, सांझ? हमारी जान निकलने को आ गई थी, बेटा। आप ठीक तो हैं ना? कुछ हुआ तो नहीं ना, बच्चा...?"

    युवानिका लगातार सवाल कर रही थी। सांझ अभी भी अपनी गर्दन नीचे करके खड़ी हुई थी। प्राची ने युवानिका के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "मॉम, उसे अंदर तो लेकर चलिए। वो सही है।" इतना बोल प्राची ने सांझ का हाथ पकड़ा और अंदर लाकर सोफे पर बैठा दिया।

    सांझ ने दोनों को देखा और कहा, "मैं ठीक हूँ, कुछ नहीं हुआ था। मेरी कार खराब हो गई थी। मुझे थोड़ा रेस्ट करना है। आप लोग भी सो जाओ। मेरी टेंशन मत लो, मैं एकदम ठीक हूँ।"

    "चल, मैं तुझे रूम तक ले चलती हूँ। थोड़ा रेस्ट कर ले।" प्राची खड़े होते हुए बोली।

    "सच में कुछ नहीं हुआ ना...? तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो, सांझ...? तुम सच में ठीक हो, बेटा? पता नहीं मेरा मन घबरा रहा था। मुझे क्यों लग रहा है जैसे तुम कुछ छिपा रही हो...?" इतना बोल युवानिका की नज़र जैसे ही सांझ की गर्दन पर गई, उन्होंने तुरंत सांझ का हाथ पकड़ा और सोफे पर वापस बिठाते हुए कहा, "ये चोट कैसे लगी तुम्हें...? तुम कुछ छिपा रही हो ना...? बताओ...?"


    "कौन क्या छिपा रहा है...?" यह आवाज़ सुनकर सब ने दरवाज़े की ओर देखा तो अक्षय खड़ा हुआ था। अक्षय को देखते ही सब सोफे से खड़े हो गए। अक्षय भी तब तक अंदर आ गया था। सांझ ने अक्षय को देखा और भागकर उसके गले लग गई। अक्षय के साथ प्राची और युवानिका भी दोनों उसे देख रही थीं। अक्षय के गले लगते ही सांझ की आँखों से आँसू आने लगे थे। उसने कस के अक्षय को पकड़ा और कहा, "पापा... पापा..." इतना बोल सांझ फिर से रोने लगी।


    उसे रोता देख सब लोग परेशान हो गए थे। अक्षय ने उसके सर पर हाथ फेरा और प्यार से कहा, "क्या हुआ, बेटा...? आप रो रही हो...? आप ठीक हैं ना...?" अक्षय ने सांझ के चेहरे को अपने हाथ में लेकर उसकी ओर देखते हुए कहा, "क्या हुआ? आप रो क्यों रही हो, बच्चा...?" इतना बोल अक्षय की नज़र जैसे ही सांझ के गले पर लगी चोट पर गई, तो उसने अपने एक हाथ की मुट्ठी बंद कर ली। उसने सांझ को देखा और कहा, "मेरा बहादुर बच्चा डर गया... चलो मेरे साथ आओ।" इतना बोल अक्षय ने प्राची और युवानिका को देखा और कहा, "जाओ, तुम दोनों सो जाओ। रात बहुत हो गई है।" इतना बोल अक्षय ने सांझ को पकड़ा और अपने रूम में ले आया।


    प्राची अपने रूम में चली गई थी। युवानिका भी अक्षय के पीछे-पीछे उसके रूम में आ गई थी। अक्षय ने सांझ को बेड पर बिठाया और खुद नीचे घुटनों के बल बैठ गया। उसने सांझ का हाथ पकड़ा और कहा, "क्या हुआ है? अब बताओ...?" सांझ ने एक नज़र अक्षय को देखा और एक नज़र युवानिका को देखा। युवानिका ड्रॉअर से फर्स्ट एड किट निकाल रही थी।

    "कुछ नहीं हुआ... बस आपकी याद आ रही थी, इसलिए आँसू आ गए।" सांझ ने अपनी पलकें नीचे करते हुए कहा।

    "तुम झूठ बोल रही हो...? अगर कुछ हुआ नहीं तो ये चोट कैसे लगी आपको...?" अक्षय ने सांझ के हाथ पर हाथ रखकर कहा।

    युवानिका ने सांझ को देखा और कहा, "आप इसके गले में पट्टी कर दो। मैं बाहर जा रही हूँ।" इतना बोल युवानिका वहाँ से चली गई। उसके जाते ही सांझ ने अपनी आँखें साफ की और कहा, "जब मैं आ रही थी ना, तो कुछ गुंडे मेरे पीछे पड़ गए थे। बस वही और कुछ बात नहीं है। इसलिए थोड़ा अजीब लग रहा था।"

    "बहादुर बच्चा हो ना, डरते नहीं है। लेकिन ये बताओ, चोट कैसे लगी...?" अक्षय ने सांझ को देखते हुए कहा। सांझ ने अक्षय को देखा और कहा, "वो उन लोगों ने चाकू लगा दिया था। बाकी ठीक हूँ। अगर शिव सर और काशी नहीं होते तो मैं ज़िंदा ही नहीं होती।" इतना बोल सांझ ने अक्षय को देखा और कहा, "कुछ अजीब लगा, तुम्हें...?" अक्षय के पूछते ही सांझ ने जैसे सब कुछ बताया और कहा, "वो लोग मुझे मारना चाहते थे, डैड।" अक्षय ने जैसे ही सुना तो उसने सांझ को खड़े होकर गले लगाते हुए कहा, "वो तुम्हें नहीं मारते... कुछ नहीं करते... डरना बंद करो। तुम तो नहीं डरती हो ना किसी से भी। अब अचानक क्या हुआ है?"

  • 14. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 14

    Words: 1031

    Estimated Reading Time: 7 min

    बहादुर बच्चा हो ना, डरते नहीं है, लेकिन ये बताओ, चोट कैसे लगी? अक्षय ने सांझ को देखते हुए कहा।

    "वो उन लोगों ने चाकू लगा दिया था। बाकी ठीक हूँ। अगर शिव सर और काशी नहीं होते तो मैं ज़िंदा ही नहीं होती!" इतना बोल सांझ ने अक्षय को देखा और कहा।

    "कुछ अजीब लगा, तुम्हें?" अक्षय के पूछते ही सांझ ने जैसे सब कुछ बताया और कहा, "वो लोग मुझे मारना चाहते थे, डैड!"

    अक्षय ने जैसे ही सुना, उसने सांझ को खड़े होकर गले लगाते हुए कहा, "वो तुम्हें नहीं मारते... कुछ नहीं करते... डरना बंद करो। तुम तो नहीं डरती हो ना किसी से भी? अब अचानक क्या हुआ है? सब यही है, पापा-मम्मी, सब यही है।" इतना बोल अक्षय ने सांझ के गले में बैंडेज लगाई और उसके गाल पर हाथ रखकर कहा, "डरना नहीं है बच्चा। अगर तुम डरोगी ना तो लोग तुम्हें और डराकर रखेंगे, इसलिए अपने इस डर को खत्म कर दो। खैर, चलो शांत हो जाओ। मम्मी को पता लगेगा तो टेंशन हो जाएगी और वो परेशान हो जाएगी इसलिए शांत हो जाओ और मेरे साथ डिनर करो।"

    "आप कभी खुद से दूर मत करना पापा मुझे, आप बेस्ट पापा हो..." सांझ अक्षय के गले लगते हुए बोली।

    सांझ की बात सुनकर अक्षय ने उसके माथे को चूमा और कहा, "मेरा तो ठीक है, लेकिन अभी तुम्हारी मम्मी ने सुन लिया होता ना तो हम दोनों घर में नहीं रहते, रात को घर से बाहर कर देती!"

    "चलो उससे बात करो। तब तक मैं चेंज करके आता हूँ।"

    सांझ ने अक्षय की बात सुनी और अपनी गर्दन को हाँ में हिलाते हुए रूम से बाहर आ गई। उसकी नज़र जैसे ही युवानिका पर गई, वो युवानिका के पास आते हुए बोली, "मम्मा, बहुत भूख लगी है। खाना लगा दो, पापा भी आ रहे हैं थोड़ी देर में।"

    युवानिका ने सांझ के गाल पर हाथ रखा और कहा, "चलो, अपने हाथों से खिलाती हूँ।" इतना बोल दोनों नीचे चली गईं।

    युवानिका डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी, और सांझ कुर्सी पर हाथ रखकर मस्त खड़े होकर एप्पल खा रही थी। अक्षय जो उसके पीछे खड़ा हुआ था, उसने पीछे से उसके हाथ से एप्पल ली और कहा, "खाना खाओ, बैठो। इससे पेट नहीं भरेगा, बैठो चलो..."

    अक्षय ने सांझ को बैठते हुए कहा।

    सांझ ने अक्षय की ओर देखा और खाना खाने बैठ गई। युवानिका दोनों को खाना लगा रही थी। उसने दोनों को खाना खिलाया और अपने रूम में आ गई। सांझ भी रूम में आकर सो गई थी। युवानिका रूम में आई तो उसने देखा अक्षय लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। युवानिका ने उसे देखा और बेड पर बिखरे सामान की ओर देखने लगी, जिसमें किताबें, अखबार, पेन, चश्मा, बाकी और भी सामान था।

    "अक्षय, क्या है ये? देखो यार, इतना सामान! छोटे बच्चे भी अपने बेड पर ऐसे नहीं फैलाकर रखते!"

    अक्षय ने एक नज़र युवानिका को देखा और वापस लैपटॉप में देखकर कहा, "मैं तुम्हें बूढ़ा नज़र आता हूँ क्या?"

    अक्षय के ऐसे बोलते ही युवानिका ने अपने हाथों को बांधा और बेड से पेपर उठाकर फोल्ड करके अक्षय को देते हुए कहा, "आप ना बहुत बुरे हो, और बूढ़े ही नहीं, बूढ़े से भी बूढ़े हो! अब बताओ!"

    युवानिका के ऐसे मारने से अक्षय ने बचते हुए अपना लैपटॉप जल्दी से बंद करके रखा और बेड से उठ गया। वो इधर-उधर बच रहा था। उसने युवानिका का हाथ पकड़ा और सोफे पर बिठा दिया।

    "थक जाएंगी आप, माँ बैठ जाएँ..." अक्षय ने एक ग्लास उठाकर पानी युवानिका के आगे रखा और उसके बगल में बैठते हुए कहा।

    "वो ठीक है, बस थोड़ी परेशान थी।" युवानिका के बिना बोले ही अक्षय ने सांझ के लिए बता दिया था।

    "वो उसको चोट..." इतना बोल युवानिका चुप हो गई तो, अक्षय ने उसके हाथ पर हाथ रखा और कहा, "वही रीज़न है, जो तुम सोच रही हो। बाकी हमें अब थोड़ा बचकर रहना पड़ेगा। आज से तुम तीनों अकेले नहीं आओगी।" अक्षय ने जिस तरह से कहा था, उसके बोलने से ही लग रहा था कि वो कितने सीरियस तरीके से बोल रहा था।

    "बट हम लोग कब तक बचेंगे वो लोग? खैर, आपको जो ठीक लगे, बस बच्चियों पर कोई खतरा ना हो, ध्यान रखो। आज तो सांझ सेफली घर आ गई, लेकिन आगे का पता नहीं क्या होगा!"

    अक्षय ने उसकी ओर देखा और कहा, "तुम टेंशन मत लो। चाहे ज़िंदगी कितने ही इम्तिहान ले ले, लेकिन एक दिन अच्छा समय ज़रूर आएगा। जानता हूँ, मैंने जो खोया है वो शायद मैं कभी नहीं पा सकूँगा, लेकिन मुझे फिर भी खुशी है कि तुम सब मेरी लाइफ में हो। मेरी दोनों बेटियाँ मेरी जान हैं, और तुम मेरा वो साथ हो जिसने मुझे उस टाइम संभाला था, जब मैं टूट चुका था।"

    "हम्मम... जब दो टूटे हुए और ठोकरें खाए लोग एक साथ होकर अपना सुख-दुख बाँटते हैं ना, तो दुनिया में उनसे बड़ा दोस्त, साथी कोई नहीं होता। क्योंकि ये डर रहता ही नहीं है कि वो मेरी लाइफ को सुनकर मुझे ब्लेम करेगा या क्या सोचेगा। बाकी मैंने ही नहीं, आपने भी मुझे उस टाइम संभाला, मुझे नई ज़िंदगी दी। पता नहीं अपने ही लोग धोखा क्यों देते हैं। हम दूसरों के दिए धोखे से तो एक बार उबर सकते हैं, लेकिन जब कोई अपना ही दे तो वो पल दिलो-दिमाग से बिल्कुल नहीं निकलता है!" इतना बोल युवानिका अचानक से चुप हो गई।

    अक्षय ने युवानिका को देखा और कहा, "सो जाओ। तुम सुबह जल्दी उठती हो ना, नींद आ रही होगी ना।" अक्षय के बोलते ही युवी उठकर सोने चली गई। अक्षय भी अपने बेड पर आकर सो गया था।

    तो वही युवान अपने बेड पर लेटा हुआ करवट बदल रहा था। नींद अभी भी उसकी आँखों में नहीं थी। उसने अपने बेड के पास देखा जहाँ एक फ़ोटो में युवान, वेदांश, पियालिनी और एक लड़की थी। उस फ़ोटो को देखते ही युवान ने मुँह फेरा और वापस आँखों को बंद कर लिया और मन में खुद से ही बोलने लगा, "तुम क्यों चली गई युवा? तुम्हारे बिना एक-एक रात कैसे निकलती है, मुझे पता है..."

  • 15. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 15

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवान अपने बिस्तर पर लेटा हुआ करवट बदल रहा था। नींद उसकी आँखों में नहीं थी। उसने अपने बिस्तर के पास रखे एक फोटो को देखा। उस फोटो में युवान, वेदांश, पियालिनी और एक लड़की थी। फोटो देखते ही युवान ने मुँह फेर लिया और आँखें बंद कर लीं। मन ही मन बोलने लगा, "तुम क्यों चली गईं युवा? तुम्हारे बिना एक-एक रात कैसे निकलती है, मुझे पता है। मैंने तुम्हारे साथ काफी बुरा किया है, लेकिन प्यार तो मैंने तुमसे सच्चा ही किया था।" "क्यों नहीं समझ पाईं तुम? और क्यों नहीं समझ पाया मैं तुम्हें? गुस्से में बोल गया था मैं ज़्यादा। इसका मतलब यह नहीं... काश उस दिन तुम नहीं जातीं, तो शायद आज हम साथ होते। हमारे बच्चे, हमारी लाइफ़, हमारी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पल हमने खो दिया युवा... सबसे खूबसूरत पल!" इतना सोचते हुए युवान की आँखों से आँसू निकलने लगे। उसे पता ही नहीं चला। अचानक उसने अपनी आँखें खोलीं और आँसू पोछकर फिर आँखें बंद कर लीं।


    सुबह हो गई थी। सब अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। सावित्री जी सबका नाश्ता लगा रही थीं। उन्होंने चारों ओर देखा और सबको आवाज़ देकर कहा, "सब लोग आकर नाश्ता कर लो जल्दी से, वरना ठंडा हो जाएगा!" इतना बोलकर उन्होंने सामने देखा तो युवान ब्लैक कलर का शूट पहने बहुत अच्छा लग रहा था। उसमें कोई बदलाव नहीं आया था। आया था तो सिर्फ़ उसकी चेहरे की मुस्कराहट अब नहीं थी। युवान समय का बहुत सख्त हो गया था। उसकी सभी चीज़ों का समय फिक्स हुआ करता था। आज भी वह सबसे पहले आकर नाश्ते में बैठ गया था।


    जिंदल भवन में सब नाश्ता करके उठ गए थे। प्राची, अक्षय और सांझ तीनों ऑफिस जाने को तैयार थे। प्राची ने अक्षय को देखा और कहा, "डैड, आपने जिस CEO के आने का बोला था, वो तो अभी तक आया नहीं, क्यों?"


    प्राची की बात सुनकर अक्षय ने जवाब दिया, "हाँ, उससे मेरी बात हो गई थी। वह कल आएगा। उसे कुछ काम था, इसलिए आज और कल नहीं आ सका। बाकी तुम सब चलो, बहुत काम पेंडिंग है।"


    तीनों को जाते देख सीढ़ियों से आती हुई युवानिका ने सबको देखा और कहा, "आज से हम भी चल रहे हैं, तो हमें भी लेकर चलो ना। मुझे भूल जाते हो आप सब?" युवानिका बच्चों की तरह तीनों की ओर देखते हुए बोली।


    अक्षय ने युवानिका को देखा। उसने बिज़नेस सूट पहना हुआ था। आज भी वह उसमें बहुत अच्छी लग रही थी। उसने बालों की एक चोटी बनाई हुई थी और कोट हाथ में लिया हुआ था। अक्षय युवानिका के पास आया और उसके हाथ को पकड़कर कहा, "उफ़्फ़! तुम्हें कोई भूल सकता है! नहीं युवी, चलो अब।" इतना बोलकर चारों एक साथ वहाँ से ऑफिस के लिए निकल गए।


    युवान भी ऑफिस के लिए तैयार था। उसने अपनी घड़ी में समय देखा और टेबल से उठते हुए कहा, "मैं बाहर गाड़ी में इसका केवल दो मिनट इंतज़ार करूँगा। अगर यह नहीं आया तो बोलना, इसे आज ऑफिस आने की ज़रूरत नहीं है।" इतना बोलकर युवान बाहर जाने लगा कि तभी उसके कानों में पियानी की आवाज़ आई, "आप मुझे भी भूल रहे हो पापा। मुझे आप कॉलेज ड्रॉप करोगे ना?" पियानी तैयार होकर सीढ़ियों से नीचे आते हुए युवान से बोल रही थी।


    "ओह, सॉरी! मैं भूल गया। आओ जल्दी, वरना तुम भी लेट हो जाओगी और मैं भी।" इतना बोलकर युवान जल्दी-जल्दी बाहर निकलने लगा। पियानी ने एक नज़र ऊपर देखा और मन ही मन कहा, "कहाँ रह गए भाई... जल्दी आ जाओ प्लीज़!" इतना बोलते हुए पियानी धीरे-धीरे बाहर की ओर चलने लगी।


    सावित्री जी ने जाते हुए युवान को आवाज़ दी, "युवान..." सावित्री जी की आवाज़ सुनकर युवान के कदम रुक गए। उसने सावित्री जी की ओर देखा और कहा, "हाँ माँ, बोलिए।" युवान के बोलते ही सावित्री जी ने उसे देखा और कहा, "एयरपोर्ट चल जाना।" सावित्री जी के बोलते ही पियानी ने उन्हें देखा और कहा, "मम्मा, मैं भी चलूँगी प्लीज प्लीज ना..." पियानी युवान के आगे आकर बोल रही थी। युवान ने पियानी के सर पर हाथ रखा और कहा, "मेरी एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है, तो तुम और वेदांश चल जाना, मैं नहीं जा पाऊँगा।" इतना बोलकर युवान बाहर चला गया। युवान के जाते ही सावित्री जी देवकी जी को देखकर चेयर पर बैठ गईं। पियानी भी युवान के पीछे-पीछे चली गई थी। युवान गाड़ी में बैठा हुआ दोनों का इंतज़ार कर रहा था। उसने गाड़ी का हॉर्न दिया, तभी उसके बगल में वेदांश आकर बैठ गया। युवान ने पीछे देखा तो पियानी भी बैठी हुई थी। युवान ने दोनों को देखकर और पियानी के कॉलेज की ओर गाड़ी मोड़ दी।


    अक्षय ने कार ऑफिस के आगे रोकी तो चारों बाहर आ गए। सबके चेहरे पर एक से एक भाव थे। सांझ ने सबको देखा और वहाँ से बाहर की ओर चली गई।


    "ओह! इसका यह रोज़ का रूटीन है। जब भी ऑफिस आती है, यह काम ज़रूर करती है।" प्राची ने अक्षय और युवानिका को देखते हुए कहा। "उसे उन गरीब बच्चों से बहुत प्यार है। वह रोज़ इस समय इसके आने का इंतज़ार करते हैं। और सांझ को भी इनसे मिलकर सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है।" अक्षय ने प्राची और युवानिका को देखते हुए कहा। "हम्म, खैर हम क्यों लेट हो रहे हैं, हमें चलना चाहिए। वह आ जाएगी कुछ देर में।" इतना बोलकर प्राची जल्दी से आगे बढ़ गई। उसके पीछे अक्षय और युवानिका भी चले गए थे। सांझ वापस से ऑफिस के पीछे वाली रोड पर आ गई थी। इस साइड अधिकतर गाड़ियों का आना-जाना होता था, लेकिन इस साइड न कोई दुकान थी, न कोई घर, न कुछ। एकदम सुनसान रोड जहाँ एक छोटा सा पुल बना हुआ था। सांझ ने चारों ओर देखा और पास ही में एक दुकान पर आ गई।

  • 16. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 16

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    प्राची ने जल्दी से कहा, "हम्म्म, खैर हम क्यों लेट हो रहे हैं, हमें चलना चाहिए। वो आ जाएगी कुछ देर में।" उसके पीछे अक्षय और युवानिका भी चल दिए थे। सांझ वापस ऑफिस के पीछे वाली सड़क पर आ गई थी। इस ओर अधिकतर गाड़ियों का आना-जाना होता था, लेकिन न कोई दुकान थी, न कोई घर, न कुछ। एकदम सुनसान सड़क जहाँ एक छोटा सा पुल बना हुआ था।

    सांझ ने चारों ओर देखा और पास ही में एक दुकान पर आ गई। दुकान वाले ने सांझ को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "कैसी हो बिटिया?"

    सांझ ने दुकान वाले को पैसे दिए और कहा, "हम एकदम अच्छे हैं अंकल, लेकिन बच्चे कहीं दिख नहीं रहे हैं। उन्हें देखा है आपने?"

    सांझ का सवाल सुनकर दुकान वाले ने कुछ सोचा और फिर कहा, "हाँ, देखा है। अभी कुछ देर पहले उस पुल की ओर खड़े हुए थे। एक साहब आए थे, वही उन्हें कुछ देने के लिए ले गए हैं।"

    सांझ ने दुकान वाले को धन्यवाद कहा और पुल की ओर जाती हुई खुद से बड़बड़ाने लगी, "मुझसे पहले किसने दे दिया? और ठीक है, लेकिन नया आया कौन है जो... खैर..." सांझ ने सामने देखा तो बच्चे एक ओर खड़े होकर चॉकलेट और कुछ चीज़ें खा रहे थे। सांझ मुस्कुराते हुए उनके पास आई और उनके पीछे से जोर से चिल्लाई, "बच्चों!"

    बच्चों ने पीछे देखा और सांझ को देखते ही उसके गले लग गए। तभी एक लड़के ने कहा, "क्या लाई हो दीदी आज हमारे लिए? आपको पता है, एक भैया आज हमें ये सब देकर गए हैं। भैया ने सामान तो अच्छा दिया है, लेकिन भैया देखने में ही गुस्से में लग रहे थे!"

    सांझ ने हँसते हुए कहा, "ओए बंदर! ऐसे नहीं बोलते किसी के लिए। खैर, ये सब लो और जाकर पढ़ो। ये क्या कर रहे हो? तुम्हारी शीतल दीदी कहाँ है? आई नहीं?"

    सांझ के सवाल पर बच्चों ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा, "हम सब तो भूल ही गए! भैया हमें यहाँ लेकर आए थे तो भूल गए। हम जाते हैं दीदी, आपसे शाम को मिलते हैं।" इतना बोलकर बच्चे वहाँ से भाग गए। सांझ ने उन्हें अलविदा कहा और वहीं खड़ी रही। सुबह का समय होने की वजह से हल्की-हल्की धूप निकल रही थी, जिसकी सीधी किरणें सांझ के चेहरे पर पड़ रही थीं। मौसम भी काफी अच्छा था। सांझ ने पुल को देखा और उसके पास आकर खड़ी हो गई। उसने नीचे देखा तो नीचे घास-फूस और बड़े-बड़े पेड़ लगे हुए थे, और काफी गहराई भी थी। सांझ ने अपना एक पैर उस बाउंड्री पर रखा, फिर दूसरा भी। उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला लिए थे।

    तभी किसी ने उसके हाथ को पीछे से पकड़कर खींच लिया।

    "सांझ बाउंड्री पर खड़ी हुई थी, तभी किसी ने उसके हाथ को पीछे से पकड़कर खींच लिया और कहा, "तुम पागल हो क्या? सुसाइड हर चीज़ का रास्ता नहीं होता!"

    उस लड़के के अचानक खींचने से सांझ उस लड़के के बिल्कुल करीब आ गई थी। सांझ ने जैसे ही उस लड़के को देखा तो उसे कल रात की सभी बातें याद आने लगीं। सांझ ने उस लड़के की ओर देखा और कहा, "तुम... और तुमने क्या कहा अभी? वापस बोलना?"

    उस लड़के ने सांझ को देखकर कहा, "आह, तुम... बड़ी अजीब मुसीबत हो! पहले वो गुंडे और अब ये सुसाइड। देखो, मरना हर चीज़ का हल नहीं होता। लाइफ बहुत खूबसूरत है, उसे जियो।"

    सांझ ने उस लड़के को देखा और कहा, "तुम तो चुप ही रहो। पीकर आए हो क्या? और कितना बोलते हो! कब से बोले जा रहे हो। मैं सुसाइड नहीं कर रही थी। तुम्हें क्या लगता है मैं सुसाइड करूंगी? जितना दिमाग हो, उतना ही लगाया करो। जब मदद करने की ज़रूरत थी, तो वहाँ से भाग गए और अब जब मदद की कोई ज़रूरत ही नहीं है, तो क्यों आए हो? मुझे तुम जैसे लड़के बिल्कुल पसंद नहीं हैं, समझे ना? इसलिए आइंदा से मेरे सामने आ मत जाना।"

    सांझ इतना ही बोल पाई थी कि उस लड़के ने उसके मुँह पर हाथ रखा और अपनी ओर करके कहा, "अभी तो मुझे बोल रही थी कि मैं बहुत बोलता हूँ... लेकिन खुद को देखा है तुमने कभी? वाइफ़ी..." उस लड़के ने सांझ के कान के पास आकर कहा और उसे छोड़ दिया।

    सांझ ने जैसे ही उसके मुँह से "वाइफ़ी" सुना, तो उसने उस लड़के को उंगली दिखाकर कुछ कहना चाहा, कि तभी उस लड़के ने सांझ के हाथ को नीचे किया और कहा, "ये उंगली दिखाने की ज़रूरत ही नहीं है। मरा नहीं जा रहा मैं तुम्हें देखने को... इसलिए आइंदा से मेरे सामने मत आना।"

    वो लड़का जैसे ही जाने को हुआ, सांझ ने एक मुस्कान की और अपना पैर उसके पैर में अड़ा दिया, जिससे वो लड़का नीचे गिर गया। सांझ ने उस लड़के को देखा और हँसने लगी। सांझ की हँसने की आवाज़ सुनकर वो लड़का उसकी ओर देखने लगा। सांझ हँसते हुए बहुत प्यारी लग रही थी। उस लड़के ने सांझ की ओर देखा और कहा, "ओह, हेलो! हेल्प करो अब मेरी।" इतना बोलकर उस लड़के ने सांझ के आगे हाथ कर दिया।

    सांझ ने इधर-उधर देखा और मुँह बनाते हुए जैसे ही अपना हाथ दिया, उस लड़के ने सांझ का हाथ जोर से पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। इस बार सांझ नीचे गिर गई थी, और वो लड़का एक झटके से खड़ा हो गया था। सांझ ने उस लड़के को देखा और कहा, "तुमने चीटिंग की है।"

    सांझ के इतना बोलते ही उस लड़के के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने सांझ की ओर देखा और कहा...


    क्रमशः

  • 17. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 17

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    सांझ ने जैसे ही उसके मुँह से "वाईफी" सुना, उसने उस लड़के को उंगली दिखाकर कहना चाहा, कि तभी उस लड़के ने सांझ का हाथ नीचे किया और कहा, "ये उंगली दिखाने की ज़रूरत ही नहीं है, मरा नहीं जा रहा हूँ मैं तुम्हें देखने को..." इसलिए आइंदा से मेरे सामने मत आना। समझी? इतना बोलकर वो लड़का जाने को हुआ कि उससे पहले सांझ ने मुस्कुराते हुए अपना पैर उसके पैर में अड़ा दिया। जिससे वो लड़का नीचे गिर गया। सांझ ने उस लड़के को देखा और हँसने लगी। सांझ की हँसी सुनकर वो लड़का उसकी ओर देखने लगा। सांझ हँसते हुए बहुत प्यारी लग रही थी। उस लड़के ने सांझ की ओर देखा और कहा, "ओह, हेलो! हेल्प करो अब मेरी..." इतना बोलकर उस लड़के ने सांझ के आगे हाथ बढ़ा दिया। सांझ ने इधर-उधर देखा और मुँह बनाते हुए हाथ देने ही वाली थी कि उस लड़के ने सांझ का हाथ जोर से पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। इस बार सांझ नीचे गिर गई, और वो लड़का झटके से खड़ा हो गया। सांझ ने उस लड़के को देखा और कहा, "तुमने चीटिंग की है!" सांझ के इतना बोलते ही उस लड़के के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने सांझ की ओर देखा और कहा, "तुमने भी तो की थी!" सांझ जल्दी से खड़ी हुई और अपने कपड़े साफ़ करते हुए वहाँ से जाती हुई बोली, "यूँ... तुम्हें तो मैं देख लूँगी बाद में..." सांझ के ये बोलते ही उस लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, "अभी देख लो वाइफी, तुम्हारा हक है, पूरा आराम से देखो..." सांझ ने यह सुना, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और वहाँ से बड़बड़ाते हुए चली गई। उस लड़के ने सांझ को देखा और मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया।


    पूरे ऑफिस में शांति थी, लेकिन बाहर के एरिया में कुछ एम्प्लॉयी बातें कर रहे थे, जिनकी आवाज़ बाहर तक आ रही थी। सांझ जो उसी साइड से जा रही थी, उसने जैसे ही आवाज़ सुनी, चिल्लाते हुए कहा, "काम के पैसे मिलते हैं या इधर-उधर की बातें करने के? आप सबको..." सांझ की आवाज़ सुनकर सभी एम्प्लॉयी चुप हो गए। सांझ ने वापस सबकी ओर देखा और कहा, "इस बार मैंने आवाज़ सुनी, तो सीधा सर से बोलूँगी!" इतना बोलकर सांझ वहाँ से निकलकर सीधे सामने वाले केबिन में आ गई जहाँ उस समय सीट खाली थी। सांझ ने इस सीट को देखा और कहा, "सीईओ... बनने के लिए मेहनत की जाती है, लेकिन मुझे लगता है ये जो नया सीईओ आने वाला है, उसने सब यूँ ही हासिल किया है। क्या को आने में इतना नाटक कर रहा है।" इतना बोलकर सांझ वहाँ बैठ गई और फाइलें देखने लगी। उसे अब तक का शेड्यूल देखना था।


    वहीं युवानिका अपने केबिन में कोई फाइल देख रही थी। उसने फाइल कंप्लीट होते ही उसे रखा और सीट पर टेक लगा लिया। उसे अपना अतीत याद आ रहा था, कितना आगे बढ़ गई थी वो। उसने अपनी आँखें बंद कीं, तभी उसके कानों में कीर्ति की आवाज़ आने लगी... "क्यों चली गई थी तुम? आखिर क्यों युवी...? तुम्हारी वजह से मेरे भाई की ये हालत हो गई, तुम्हारी वजह से मेरा पति मुझे छोड़ने को तैयार है। क्या चाहती थी तुम आखिर? तुम्हारी वजह से मेरी हस्ती, खेलती जिंदगी बर्बाद हो चुकी है। जेएस मुझसे बात तक नहीं करते..."


    युवी को ये सब याद आते ही उसने तुरंत अपनी आँखें खोली और खुद से बोलने लगी, "नहीं युवी, अतीत को सोचकर अब तुम कमज़ोर नहीं पड़ सकती... पर करूँ भी क्या...?" क्यों आखिर मैं इतना परेशान रहती हूँ? मुझे नफ़रत है तुमसे युवान... तुम तो प्यार करते थे ना? तुमने एक पल में मुझे मेरे बच्चे का दोषी बता दिया और एक माँ को उसके ही बच्चे से अलग कर दिया! मैं तुम्हें अपने प्रेजेंट में बिल्कुल याद नहीं रखना चाहती! लेकिन फिर भी तुम्हारी याद दिल, दिमाग सब में समाई हुई है, निकलने का नाम ही नहीं ले रही..." युवी ये सब सोच रही थी, उसकी आँखों में नमी आ गई थी, तभी किसी ने उसके केबिन का दरवाज़ा खटखटाया। युवी ने जल्दी से आँसू पोंछे और कहा, "कौन है? आ जाइए..." उसने खुद को काफी हद तक संभाल लिया था। उसके चेहरे से देखकर अब कोई नहीं बता सकता था कि वो किस हाल में है। वो कुछ जाहिर ही नहीं होने देती थी। उसने खुद को काफी मज़बूत कर लिया था।


    दरवाज़ा खोलने की आवाज़ से युवी ने उस ओर देखा तो अक्षय खड़ा हुआ था, उसके साथ कोई और भी था। अक्षय को देखकर युवी खड़ी हो गई। उसने सामने खड़े इंसान को देखा और कहा, "अरे मिस्टर जडेजा! काफ़ी दिन बाद आए आप। आइए ना, बैठिए।" इतना बोलकर युवी फिर से बैठ गई। वो लोग किसी मीटिंग के बारे में बात कर रहे थे। उन्होंने युवी की ओर देखा और कहा, "हम हमारी इस कंपनी में पार्टनर भी ले सकते हैं, आई मीन हमारे इस प्रोजेक्ट में!" अगर आप लोग चाहो तो, क्योंकि ये प्रोजेक्ट हम अकेले नहीं कर सकते, ये आप भी लोग भी जानते हैं।


    युवी ने दोनों को देखा और कहा, "कौन सी कंपनी है...?" युवी का सवाल सुनकर मिस्टर जडेजा ने युवी को देखा और कहा, "वीआर इंडस्ट्रीज़!" वीआर का नाम सुनते ही एक बार तो युवी को अजीब लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और बोली, "अच्छा, तो आप उनसे बात कीजिए, बाकी अक्षय देख लेंगे।" युवी के बोलते ही मिस्टर जडेजा ने दोनों से हाथ मिलाया और वहाँ से चले गए।


    अक्षय ने युवी को देखा और कहा, "तुम परेशान लग रही हो? कोई बात है क्या...?" अक्षय के पूछते ही युवी ने उसे देखा और कहा, "जी नहीं।" इतना बोलकर युवी लैपटॉप में कुछ देखने लगी। अक्षय ने बात को बदलते हुए कहा, "अमन के डैड आ रहे हैं...?" अक्षय के ये बोलते ही युवी ने उसे देखा और कहा, "अक्षय, मैं आपसे पहले भी बोल चुकी हूँ...

  • 18. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 18

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    युवी ने दोनो को देखा और कहा..." कौनसी कम्पनी है ..?" युवी का सवाल सुनकर मिस्टर जडेजा ने युवी को देखा और कहा..." वीआर इंडस्ट्रीज...!" वीआर का नाम सुनते ही एक बार तो युवी को अजीब लगा लेकिन उसने कुछ नही कहा और कहा..."  अच्छा तो आप उनसे बात कीजिए बाकी अक्षय देख लेंगे  युवी के बोलते ही मिस्टर जडेजा ने दोनो से हाथ मिलाया और वाह से चले गए!"

    " अक्षय ने युवी को देखा और कहा..." तुम परेशान लग रही हो..? कोई बात है क्या...?" अक्षय के पुछते ही युवी ने उसे देखा और कहा..." जी नही इतना बोल युवी लैपटॉप में कुछ देखने लगी, अक्षय ने बात को बदलते हुए कहा..."  अमन के डैड आ रहे है..?" अक्षय के ये बोलते ही युवी ने उसे देखा और कहा..." अक्षय मैं आपसे पहले भी बोल चुकी हूं, हमारी बच्चियों की ज़िंदगी का सवाल है, और उनकी लाइफ का फैसला वो खुद से ले तो अच्छा होगा, हम उन पर जबरदस्ती किसी भी रिश्ते का वजन नही रख सकते!"  आप समझते क्यो नही युवा... सॉरी अक्षय हमारी बच्चियां बहुत समझदार है वो अपनी लाइफ के फैसले ले सकती है, प्लीज हो सके तो आप प्राची से बात कर लीजिएगा!" इतना बोल युवी चुप हो गई तो, अक्षय भी वाह से चला गया!" वो अपने केबिन में आया और चेयर पर बैठ गया उसने अपनी आंखों को बंद किया तो उसे कुछ बाते याद आने लगी...."  मैं एक ऐसी लड़की हूं जो अरेंज  मैरिज करके भी दुनियां में सबसे खुश हूं क्योंकि मुझे तुम जैसा जीवन साथी मिला है जो मेरे हर दुख सुख में मेरे साथ खड़ा रहता है...!" मेरी दुनिया बसती है आपमें अक्षय मेरा साथ कभी मत छोड़ना...!" मरते दम तक भी नही!" इतना बोल वो औरत जो ब्लू कलर की साड़ी में खिडकी के पास खड़ी हुई ये सब बोल रही थी, उसी के बगल ने अक्षय खड़ा हुआ था!" 
    अचानक से खिडकी की  बंद होने की आवाज से अक्षय अपनी सोच से बाहर आया उसने अपनी गर्दन झटकी तो उसकी आंखो ने नमी आ गई!" वो अपने अतीत को याद नही करना चाहता था, लेकिन ऐसा कभी नही हो पाता हमारा अतीत हमारा पीछा कभी नही छोड़ता, और खासकर तब जब कोई आप को बेइंतहा चाहने वाला हो...! और यही अक्षय के साथ हुआ था!" वो अपनी पहली वाइफ को अपनी ज़िंदगी से निकाल ही नही पा रहा था!" आखिर वो उसकी मोहब्बत जो थी उसकी जिंदगी का सफर जो थी, लेकिन एक हादसे ने अक्षय से उसका सब कुछ छीन लिया था!" और वही सब याद करके अक्षर अक्षय की आंखों में नमी आ जाती थी, उसने अपनी आंखों को साफ किया और खुद से कहा..." ये तो किसी ने सही कहा है, जब दो लोग एक साथ ठोकरे खाते हुए मिलते है तो दोनो एक दूसरे को अच्छे से समझते है, कोई किसी को जज नही करता...!" आज तक तो तुम संभालती हुई आई हो...!" खुद को मुझे मेरी बच्चियों को मेरी मां को लेकिन में तुम्हे कभी नही संभाल पता!" तुमने सही कहा था, रिश्ते जबरदस्ती नहीं बनाए जाते, जिस दिन प्राची खुद से नही बोलेगी या कोई अच्छा सा लड़का नही मिलता तब तक में भी उसे फोर्स नही करूंगा!, इतना बोल अक्षय अपने लैपटॉप पर कोई काम करने लगा!"


    " तो वही युवान चेयर पर बैठ हुआ कुछ परेशान नजर आ रहा था!" तभी उसके पास वेदांश आया और चेयर पर बेठते हुए बोला..." डैड मॉम आ रही है, मैं उन्हे लेने एयरपोर्ट जा रहा हूं आप चल रहे है क्या...?"  वेदांश के ये बोलते ही युवान ने उसे देखा और कहा..." नही तुम ध्यान से जाना और हा पिया को भी ले जाना!"  उसे कुछ सामान लेना था तो वही दिलाते हुए लाना!" मैं देख लूंगा यहां का!"

    वेदांश ने युवान को ध्यान से देखा और कहा..." मुझे बोलना तो नही चाइए डैड लेकिन जब मोम आप को छोड़कर ही चली गई तो, आप प्रीत मां से बात क्यो नही करते आपने उनसे शादी की है तो कम से कम उनसे रिश्ता तो निभाइए, आप उनसे बात तक नहीं करते एक महीने से वो घर नही है, और आप........

    " वेदांश इतना बोल पाया था की तभी युवान ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा..." जाकर ले आओ प्रीत को, और हां  तुम इन सब से दूर रहो!" इतना बोल युवान कोई फाइल देखने लगा, उसकी आंखों में वो सब चलने लगा जो उसे अपने और युवी के रिश्ते में दरार डालता हुआ नजर आ रहा था!" उसका प्रीत से शादी करना उसे आज भी परेशान कर रहा था!" युवान के बोलते ही वेदांश केबिन से बहार आया और खुद से ही बोलने लगा...!" आप कहा है मां डैड की हालत देखी है आपने, मेने आप को आजतक नही देखा लेकिन फिर भी मैं आप को बुलाता हूं मां प्लीज जहा भी हो आ जाओ, आई नो आप मेरी कभी नही सुनेंगी लेकिन प्लीज मां , प्रीत मां भी  परेसान रहती है, इतना बोलते हुए वेदांश नीचे चला गया!"

    युवानिका अपने केबिन में बैठी हुई थी तभी प्राची उसके पास आई और कहा...."  मम्मा मम्मा  जल्दी मेरी बात सुने आप प्राची का इतनी जल्दी बोलना युवानिका के लिए परेशानी था उसने प्राची की और इशारा करते कहा ..." पहले बैठो बेटा फिर बोलना प्राची जल्दी से चेयर पर बैठी और कहा..."  मोम आप एक काम कर देंगे प्लीज बहुत अर्जेंट है प्लीज मम्मा ना मत करिएगा मिस्टर कपूर है ना वह आ रहे थे!"  अचानक से शुभम को कोई काम आ गया है जिससे वह उसे लेने नहीं जा पाया प्लीज किसी को भी बोलकर आप उन्हें प्लीज यहां ले आइए ना एयरपोर्ट से अगर टाइम से  गाड़ी नहीं गई ना तो वह लोग गुस्सा हो जाएंगे हमारे डील भी कैंसिल हो जाएगी प्लीज..."  प्राची के बोलते ही युवानिका उसे देखा और कहां हम बोल देते हैं कोई ले आएगा  प्राची ने युवानिका को देखते हुए कहा... उन्हें जाकर आप ले आओ ना , नही तो सांझ को  भेज दीजिए आप खुद चले जाइए!"

    प्लीज आप सांझ से बात कीजिए और आप देख लीजिए प्लीज थोड़ा जल्दी चले जाना इतना बोल प्राची वहां से चली गई थी!" 

    To be continue.....

  • 19. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 19

    Words: 1027

    Estimated Reading Time: 7 min

    मिस्टर कपूर का इंतज़ार था। “शुभम को अचानक काम आ गया है! वह एयरपोर्ट नहीं जा पाएगा। कृपया किसी को भेजकर उन्हें ले आइए। अगर गाड़ी समय पर नहीं पहुँची तो वे गुस्सा हो जाएँगे और हमारा डील कैंसिल हो जाएगा। कृपया...” प्राची ने कहा।

    युवानिका ने प्राची को देखा और कहा, “हम किसी को भेज देते हैं।”

    प्राची ने कहा, “उन्हें आप खुद ले आइए, नहीं तो शाम को आप खुद जाइए। कृपया सांझ से बात कीजिए और जल्दी जाने का इंतज़ाम कीजिए।” इतना कहकर प्राची चली गई।

    युवानिका ने समय देखा, अपना फ़ोन निकाला और सांझ को फ़ोन किया। “बेटा, मेरे केबिन में आओ।”

    कुछ देर बाद सांझ युवानिका के केबिन में आई और कुर्सी पर बैठते हुए बोली, “क्या हुआ मम्मा? आपने मुझे इतना जल्दी क्यों बुलाया?”

    युवानिका ने कहा, “हाँ यार, शुभम को अचानक काम आ गया है, इसलिए वह नहीं जा पा रहा। क्या तुम उन्हें एयरपोर्ट से ले आओगी?”

    सांझ ने सिर हिलाया, “जी मम्मा, हमें कोई परेशानी नहीं है। हम ले आएंगे।” इतना कहकर सांझ चली गई। वह अपने केबिन में गई, अपना फ़ोन और पर्स लेकर निकल गई।

    मुंबई एयरपोर्ट पर फ्लाइट आ चुकी थी। बिज़नेस सूट पहनी एक खूबसूरत लड़की, कंधे तक लम्बे बालों के साथ, एक लगेज और पर्स लिए खड़ी थी। तभी एक काली कार आई और रुकी। लड़की ने कार को देखा और उसके पास गई। उसके कुछ बोलने से पहले ही कार से वेदांश और पियानी निकले। लड़की ने पियानी को गले लगाया, फिर वेदांश को गले लगाते हुए कहा, “कैसे हो तुम दोनों? तुम दोनों ने मुझे एक महीने में बिल्कुल भूल ही दिया। क्या कोई अपनी माँ को भी भूल सकता है?” यह थी प्रीत। उसने प्यार से दोनों को देखा।

    वेदांश ने प्रीत के कंधे पर हाथ रखा, “माँ, हम आपको कैसे भूल सकते हैं?”

    पियानी ने भी प्रीत को गले लगाते हुए कहा, “ऐसा कभी नहीं हो सकता मम्मी, हम आपको रोज याद करते थे।”

    प्रीत ने पियानी के चेहरे पर हाथ रखा, “आई नो, तुम दोनों हमें याद करते थे, लेकिन बाकी घरवालों की ख़बर हमें घर जाकर लेनी है। चलो जल्दी।”

    जैसे ही प्रीत अपना बैग उठाने लगी, वेदांश ने उसे उठाते हुए कहा, “आप बैठिए मम्मी, मैं रख देता हूँ।” वेदांश ने बैग रखा और कार चालू कर दी।

    एयरपोर्ट जाने के लिए सांझ खुद निकल गई थी। उसने अपना फ़ोन देखा और किसी को कॉल किया।

    “नेहल, कहाँ है तू?” सांझ ने फ़ोन उठाते ही नेहल पर चिल्लाया।

    नेहल ने फ़ोन कान से दूर किया, “ओह माता, शांत हो जा! धीरे बोल। और हाँ, अभी तो मिस नेहल देसाई इसी दुनिया में है, सो डोंट वरी मेरी जान।” नेहल हँसने लगी।

    सांझ ने कहा, “इडियट, कहाँ है तू? तू ऑफिस भी नहीं आ रही, ऊपर से यह बोल रही है! कल से मेरा फ़ोन तक नहीं उठा रही थी!”

    नेहल के खिलखिलाते चेहरे पर एकदम से उदासी छा गई। उसकी आँखों में नमी आ गई, लेकिन उसने खुद को संभाला, “वो… थोड़ा बिजी थी। बस।”

    सांझ ने कार के ब्रेक लगाए, “कुछ हुआ है क्या? तू रो रही है?”

    नेहल ने खुद को कंट्रोल किया और मुस्कुराई, “अरे कुछ नहीं, मैं क्यों रोऊँगी? तू भी बहुत ज़्यादा सोच रही है!”

    सांझ ने कहा, “तो आँखों में नमी क्यों है? चल, बता क्या हुआ है?”

    नेहल ने कहा, “कुछ नहीं हुआ। तू टेंशन मत ले और ड्राइविंग ध्यान से कर। कल आऊंगी ना, तब बैठकर बात करते हैं।”

    सांझ ने हाँ कहा और फ़ोन रख दिया। उसके दिमाग में नेहल के बारे में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। उसने कार स्टार्ट की और एयरपोर्ट की ओर निकल गई।

    सांझ एयरपोर्ट की ओर जा रही थी। उसी समय वेदांश, प्रीत और पियानी भी अपनी कार से आ रहे थे। वेदांश ने देखा कि एक बूढ़ी दादी सड़क पार कर रही थी। दूसरी तरफ से ट्रक आता हुआ दिखा। वेदांश ने गाड़ी साइड कर दी। उसी समय सामने से सांझ की गाड़ी आई और दोनों गाड़ियाँ टकरा गईं। टक्कर हल्की थी, पर दोनों गाड़ियाँ रुक गईं। सांझ ने ब्रेक लगाए और गाड़ी से बाहर आई। उसने भी बूढ़ी दादी को देखा था। उन्हें बचाने के चक्कर में दोनों गाड़ियों की टक्कर हो गई थी।

    सांझ गाड़ी से बाहर आई। वेदांश भी अपनी गाड़ी से बाहर निकला। उसने देखा कि सांझ का सिर शायद स्टीयरिंग से टकरा गया था, उसके सर पर हल्का खरोच था। सांझ ने वेदांश को देखा और कहा, “आप पहले गाड़ी चलाना सीखिए! किसी को बचाने के चक्कर में किसी और का एक्सीडेंट करवा देंगे आप।” इतना कहकर सांझ बूढ़ी दादी की ओर गई। ट्रक भी चला गया था।

    क्रमशः…

  • 20. साजन बेइंतहा इश्क सीजन 2 - Chapter 20

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    सांझ गाड़ी से बाहर निकली। वेदांश भी अपनी गाड़ी से बाहर निकला। उसने देखा कि सांझ का सिर शायद गाड़ी की स्टीयरिंग से टकरा गया था, जिससे उसके सिर पर हल्की खरोच आ गई थी। सांझ ने वेदांश की ओर देखकर कहा, "आप पहले गाड़ी चलाना सीखिए। किसी को बचाने के चक्कर में किसी और का एक्सीडेंट करवा देंगे आप।" सांझ ने जल्दी से वेदांश की ओर देखकर कहा और वहाँ से बूढ़ी दादी की ओर चली गई। वह ट्रक भी चला गया था! सांझ ने उन्हें रोड क्रॉस करवाया और वापस वेदांश के पास आकर कहा, "बताओ, गाड़ी चलानी आती नहीं तो तीन-तीन लोग जाते क्यों हो? पता नहीं कैसे-कैसे लोग हैं।"

    वेदांश एकटक सांझ को देख रहा था। सांझ ऐसे जल्दी-जल्दी सब कुछ बोल रही थी कि वेदांश का ध्यान उसकी बातों पर नहीं गया था। उसका ध्यान सिर्फ़ उसकी चोट पर था। वेदांश ने अपनी पॉकेट से रुमाल निकाला और सांझ को देते हुए कहा, "पहले यह जो चोट लगी है ना, उसे साफ़ कर लो, फिर मुझसे लड़ लेना।" इतना बोलकर वेदांश मुस्कुरा दिया।

    सांझ रुमाल लेती उससे पहले ही वेदांश ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर सांझ के चेहरे पर आते खून को साफ़ कर दिया। सांझ ने उसे घूरकर देखा और उसका हाथ हटाते हुए कहा, "बड़े ही बदतमीज़ इंसान हो! मुझे टच कर रहे हो!"


    पियानी और प्रीत गाड़ी से बाहर निकल आई थीं। प्रीत ने सांझ की बात सुनी और सांझ की ओर देखकर कहा, "बेटा, वह गलती से हो गया था। अगर तुम्हें गाड़ी चलाना आता है तो तुम चलाओ ना, दूसरे पर ब्लेम क्यों कर रहे हो? गलती तुम्हारी भी थी। सामने से बूढ़ी दादी नहीं आती तो यह ऐसा नहीं होता। सामने वाले को सुनाने से पहले देखा भी करो कि सिचुएशन क्या है।" सांझ को प्रीत का इस तरह बोलना बिलकुल अच्छा नहीं लगा। प्रीत ने सांझ को देखा और थोड़ी शांति से कहा, "गलती किसी से भी हो सकती है, आपसे भी हो सकती है। इसलिए आप भी थोड़ा संभलकर चलाएँ, बेटा!"

    "वेदांश, चलो बेटा, लेट हो जाएँगे।" लेट का नाम सुनकर सांझ को याद आया कि उसे भी एयरपोर्ट जाना था। उसने वेदांश की ओर उंगली करके कहा, "तुम्हें तो हम बाद में देखेंगे।" इतना बोलकर सांझ अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से चली गई। वेदांश को सांझ से अपना सा फील हो रहा था। उसने सांझ को उस दिन मंदिर में देखा था, लेकिन उसे इस तरह की शक्ल याद नहीं थी। उसे सांझ तो देखी हुई लग रही थी, पर उसे याद नहीं आ रहा था। मंदिर में वह काफी अलग लुक में थी। आज उसने बिज़नेस सूट पहना हुआ था।


    थोड़ी ही देर में सांझ एयरपोर्ट पहुँच गई। उसने एयरपोर्ट पर कार खड़ी की और गाड़ी से बाहर निकलकर देखा तो सामने से एक लड़का आ रहा था। उसे लड़के को देखकर ही सांझ का मुँह बन गया। उसने लड़के को देखकर कहा, "मम्मी रे! ओह माय गॉड! इसे लेने आना था! ओह गॉड! ये फिर से आ गया! तू कहाँ तक संभालेगी...! सांझ कहाँ तक संभालेगी इसे? ओह माय गॉड! प्राची दी! प्राची दी! आपको पहले बताना था ना कि मैं जिसे लेने आई हूँ वह युवराज कपूर है! भगवान! पिछली बार तो मैंने इसे भगा दिया था! अगर इसने मुझे पहचान लिया, अगर इसने मम्मा-पापा के सामने मेरा नाम ले दिया तो प्लीज़...!"

    युवराज कपूर उसके पास आया और उसकी ओर देखकर कहा, "एक्सक्यूज़ मी, मिस सांझ जिंदल!" सांझ ने जैसे ही अपना नाम सुना, उसने पलटकर युवराज की तरफ़ देखा और कहा, "आप मुझे पहचान गए, मिस्टर कपूर!" युवराज के चेहरे पर स्माइल आ गई। उसने सांझ की ओर देखकर कहा, "बिल्कुल, मैं आपको भूल सकता हूँ क्या?" सांझ ने जैसे ही युवराज की बात सुनी, उसने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "जी बिल्कुल, मुझे ना भूलने जैसा आप काम भी करके गए थे।" इतना बोलकर सांझ हँस दी।


    सांझ ने युवराज की ओर देखकर कहा, "क्या है ना, मैं कल गिर गई थी तो मेरी कमर में मोच आ गई है। क्या आप यह लगेज गाड़ी में रख देंगे?" सांझ ने काफी मासूमियत से बात बोली थी। युवराज ने उसे देखा और कहा, "अरे बिल्कुल! मेरे होते हुए तुम उठाओगी? मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आएगा।" इतना बोलकर युवराज ने अपना लगेज उठाकर रखा और कार में आकर बैठ गया। सांझ ने देखा तो युवराज आगे वाली सीट पर बैठा हुआ था। सांझ कुछ बोल भी नहीं पाई। बोलती कैसे? अगर ड्राइवर होता तो बोल भी सकती थी, लेकिन वह खुद से लेने आए थे। उसने फिर भी हिम्मत करके कहा, "अब पीछे बैठ जाइए ना, कम्फ़र्टेबल होगी।"

    सांझ की बात सुनकर युवराज ने उसे देखा और कहा, "क्यों? तुम मेरी ड्राइवर हो?" "नहीं ना।" युवराज का बोलना सांझ को बड़ा ही अजीब लग रहा था।

    "नहीं... ड्राइवर नहीं हूँ मैं आपकी। बट मुझे लगा आप इतना कम्फ़र्टेबल होकर नहीं बैठ पाएँगे, इसलिए मैंने आपसे बोला कि आप पीछे बैठ जाएँ।" सांझ ने बड़े ही आराम से युवराज की ओर देखकर कहा। इतना बोलकर वह आगे आकर बैठ गई थी। उसे लग रहा था वह अनकम्फ़र्टेबल हो रहा है, बट उसने सच में युवराज को पीछे बैठने के लिए इसीलिए बोला था कि वह परेशान ना हो।

    सांझ ने अपनी गाड़ी को कंपनी की ओर मोड़ ली थी। वह आराम से गाड़ी चला रही थी, तो वहीँ उसे युवराज परेशान कर रहा था। युवराज को देखते हुए उसने कहा, "तुम सच में इतनी शैतानियाँ करती हो या फिर मुझे देखकर थोड़ा परेशान करती हो?" युवराज की बात जैसे ही सांझ ने सुनी, उसने धीरे से मुस्कुराते हुए मन में कहा, "मन तो कर रहा है इसे यहीं खिड़की से बाहर निकालकर फेंक दूँ! कितना बोलता है यार! इरिटेट कर दिया इसने मुझे।" और फिर मन में कहा और वापस युवराज की ओर देखकर कहा, "नहीं, ऐसी बात नहीं है। क्या है ना... मैं..."