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MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈

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Reena ✨

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हनी एक मासूम सी लड़की वही अवीक एक साइको जिसे खून और रोने की आवाज़ सुन के मजा आता है वही एक दिन हनी को अपनी बहन तृषा की ख़ुशी के लिए करनी पड़ती है अवीक से शादी और उसी दिन से हनी की ज़िंदगी बर्बाद होना सुरू हो जाति है । हनी ने क्यू की एक साइको से शादी...

Total Chapters (18)

Page 1 of 1

  • 1. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 1

    Words: 1715

    Estimated Reading Time: 11 min

    टिक-टिक-टिक-टिक! सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए एक आदमी के हाथ में नोकदार चाकू था। उसने एक हाथ में चाकू पकड़ा था और दूसरे हाथ की उंगली से उसके कोने पर फेरते हुए नीचे आया। नीचे कुर्सी पर एक लड़की बैठी थी, जिसके मुँह पर टेप लगा था। वह बार-बार खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, उसकी नज़र उस आदमी पर टिकी हुई थी। लड़की और घबरा रही थी।

    कमरे में केवल एक डिम लाइट जल रही थी। लड़की कुर्सी से बंधी हुई थी। कमरे में चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था।

    वह आदमी लड़की के पास जाकर उसके सामने दूसरी कुर्सी पर बैठ गया। उसने काली शर्ट और पैंट पहन रखी थी। शर्ट के तीन बटन खुले थे, जिससे उसका चौड़ा सीना साफ़ दिखाई दे रहा था। सामने लड़की डरी-सहमी नज़रों से उसे देख रही थी। उसके गले पर आँसुओं की सूखी लकीरें थीं।

    "क्या हुआ बेबी? तुम डर रही हो?" लड़के ने अपनी गर्दन तिरछी करके पूछा। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। यह देखकर लड़की की आँखों से फिर आँसू बहने लगे। आँसुओं को देखकर लड़का हँसते हुए बोला, "रो रही हो? ज़ोर-ज़ोर से रो। तुम्हारे रोने की आवाज़ से मुझे सुकून सा मिल रहा है।"

    वह अपनी आँखें बंद करके कुर्सी पर सिर टिका देता है। लड़की काफी देर तक रोती रही। जब वह थोड़ी चुप हुई, तो आदमी ने आँखें खोली, एक नज़र देखा और झटके से उसके मुँह से टेप निकालकर फेंक दिया। ऐसा करते ही लड़की के मुँह से दर्द भरी चीख निकल गई। आदमी ने कहा, "ओह! तुम्हें दर्द हुआ?"

    लड़की के रोएँ खड़े हो गए। उसने हकलाते हुए कहा, "प्लीज़ मुझे जाने दो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? आखिर तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? मैं तो तुम्हें जानती तक नहीं हूँ। फिर तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? प्लीज़ मुझे घर जाना है।"

    उसकी बात सुनकर आदमी की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। वह गुस्से में लड़की का हाथ पकड़कर उस पर चाकू से वार किया। लड़की के हाथ से खून निकलकर फर्श पर गिरने लगा। लड़की जोर-जोर से रोने लगी। आदमी ज़ोर से हँसते हुए बोला, "बच्चा घर जाना है? मैं घर छोड़ता हूँ तुम्हें।"

    इतना कहकर वह फिर से चाकू लेकर लड़की के हाथों, चेहरे, पैरों, पेट और शरीर के हर हिस्से पर वार करने लगा। लड़की पूरी तरह खून से लथपथ हो गई और उसकी साँसें भारी होने लगीं।

    वह आदमी उसे काटता रहा जब तक कि लड़की की साँसें पूरी तरह से नहीं रुक गईं। जब वह मर गई, तो आदमी ने उसे छोड़कर चाकू साफ़ किया, उसे अपनी जेब में रखा और "टिक-टिक-टिक!" कहते हुए कमरे से बाहर चला गया।


    लखनऊ...

    एक छोटे से घर में चार-पाँच लोग मौजूद थे। एक लड़की किचन में हाथ चला रही थी। गैस बंद करते हुए उसने कहा, "पूरी और बाकी सब तो बन गया। अभी क्या बाकी है? हम्म..."

    वह सोच ही रही थी कि किचन में एक अधेड़ उम्र की औरत आई और बोली, "ये लड़की, सारा खाना बन गया ना?"

    उस औरत की बात सुनकर लड़की मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ माँ, सब हो गया है। बस..." बीच में ही औरत ने सारे खाने पर नज़र दौड़ाते हुए कहा, "तूने ये क्या किया है, हाँ?"

    औरत ने गुस्से से कहा। लड़की घबरा गई और बोली, "क्या हुआ माँ?"

    तभी औरत बोली, "मैंने तुझे सादा पनीर बनाने को कहा था और तूने ये आलू-गोभी की सब्जी बनाकर रख दी है? क्या? इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी तुझे दी मैंने कि तू गड़बड़ करे? अरे, आज तेरी बहन को लड़के वाले देखने आ रहे हैं, पता भी है? लखनऊ के कितने बड़े आदमी हैं और मैं उनके सामने ये आलू-गोभी की सब्जी ले जाऊँगी? पागल लड़की!"

    लड़की घबराते हुए बोली, "नहीं माँ, ये सब्जी भी बहुत अच्छी है और मैं अभी पनीर बना देती हूँ। आप फ़िक्र मत करिए।"

    औरत बोली, "वो लोग पाँच मिनट में आने वाले हैं और तू कब बनाएगी? हाँ, कहीं ये सब तूने जान-बूझकर तो नहीं किया ना?"

    औरत ने लड़की की तरफ़ उंगली दिखाते हुए कहा। लड़की डर गई और बोली, "नहीं माँ, मैंने सोचा ये अच्छा लगेगा इसीलिए बना दिया। मुझे नहीं पता था। प्लीज़ आप ज़िद मत करिए। मैं अभी उनके आने से पहले ही बना दूँगी।"

    "हनी, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" किचन में एक आदमी की आवाज़ आई। दोनों औरतों ने गेट की तरफ़ देखा तो एक आदमी खड़ा था। उसके कुछ सफ़ेद बालों से उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।

    हनी सिंह, राकेश सिंह की बड़ी बेटी। औरत हेमलता, राकेश जी की पत्नी। जिन्हें सिर्फ़ अपनी छोटी बेटी तृषा से प्यार है, और किसी से नहीं। हनी उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं।

    राकेश जी की बात सुनकर हेमलता गुस्से से बोली, "आ गए! इनकी ही कमी थी। अब तो कुछ अच्छा बोलूँगी तो बाप-बेटी जो बुरा मानेंगे। अरे भैया, क्यों ना लगे? आखिर गोद ली बेटी जो ठहरी।"

    हेमलता जी ने हनी को ताना मारा। असल में, हनी उनकी सगी बेटी नहीं, राकेश जी के रास्ते में मिली थी। राकेश जी उसे घर ले आए थे और अपनी बेटी बना लिया था। हेमलता जी ने कई बार हनी को घर से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन हर बार नाकाम रहीं। आखिर में जब राकेश जी को पता चला तो उन्होंने सीधे धमकी दे दी कि अगर हनी के साथ फिर कुछ हुआ तो वह और उनकी बेटी दोनों को घर से बाहर निकाल देंगे।

    इसी डर से हेमलता जी बस ताने मारकर अपना गुस्सा निकालती थीं। हनी की अब तक आदत हो चुकी थी, इसलिए वह हर बार इग्नोर कर देती थी।

    खैर, हेमलता जी की बात सुनकर राकेश जी ने कुछ नहीं कहा और हनी की तरफ़ देखते हुए बोले, "जो बना है, बना है। मेहमान आने वाले हैं, तो तू खुद थोड़ा रेडी हो जा। मैं वेट कर रहा हूँ।"

    हनी राकेश जी की बात सुनकर सिर हिलाकर चली गई। कुछ देर में लड़के वाले आ गए। हेमलता जी ने उनके स्वागत-सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर उनकी बेटी को ही देखने आए थे। उधर, हनी तृषा के कमरे में रेडी हो रही थी।

    कुछ देर बाद, तृषा की माँ उसे लेकर सीढ़ियों तक आई ही थी कि वह अचानक रुक गई। तृषा और हनी भी वहीं रुक गईं। तृषा ने कहा, "क्या हुआ मॉम? आप रुक क्यों गईं?"

    हेमलता जी ने घूरकर हनी को देखा। हनी अपनी नज़रें फेरकर खड़ी हो गई। हेमलता जी बोलीं, "नीचे जाने से पहले ओह कई तेरी नज़र तो उतार दूँ जो किसी और के चक्कर में करना ही भूल गई।"

    तृषा मुँह बना लेती है। हनी कुछ कहने को होती है कि हेमलता जी फिर से बोलीं, "अब कुछ बोलना मत। मैं बस काजल लगाऊँगी बस।"

    इतना कहकर उन्होंने आँखों से काजल निकालकर तृषा के कान के पीछे लगाया और कहा, "हो गया। अब तुम बुरी नज़रों से सुरक्षित रहोगी।"

    हेमलता जी ने तो यह कहा, लेकिन उनकी नज़र हनी पर टिकी हुई थी। तृषा को अपनी माँ की बातों पर गुस्सा आता है, उसका अब मन नहीं कर रहा था नीचे जाने का। लेकिन अब तक आकर वह वापस नहीं जा सकती थी। कोई उसके सामने हनी को कुछ कहे, यह वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, लेकिन अभी बात अलग थी, इसलिए उसने कुछ नहीं कहा और नीचे जाने लगी।

    इधर, लड़के की माँ, शोभा जी, राकेश जी से बात कर ही रही थीं कि उनकी नज़र सीढ़ियों से आ रही तृषा पर पड़ी। तृषा ने पिंक कलर की साड़ी पहन रखी थी, ब्लाउज़ की बाँह स्लीवलेस थी, जिससे वह और आकर्षक लग रही थी।

    तृषा का गोरा, गोल चेहरा किसी को भी मोह सकता था। जितनी हनी खूबसूरत है, उससे कम तो तृषा नहीं है। दोनों ही किसी से कम नहीं हैं, बराबर हैं, बस स्वभाव में थोड़ा ऊपर-नीचे हैं।

    शोभा जी तृषा को देखकर अपनी जगह से खड़ी हो गईं। उनके चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कान थी। बगल में बैठा लड़का, अंश बक्शी, अपनी माँ को खड़ा देखकर उसी तरफ़ देखने लगा, लेकिन तृषा के बजाय उसकी नज़र हनी पर टिक गई। हनी ने लाल अनारकली पहन रखी थी, माथे पर छोटी सी बिंदी, नाक में नथ, कानों में झुमके। वह बहुत साधारण तरीके से तैयार होकर आई थी। ना बहुत ज़्यादा मेकअप किया था, ना तामझाम पहना था। हनी को सादा रहना ज़्यादा पसंद था, चाहे घर हो या कॉलेज। अंश की नज़र गंदी तो नहीं थी, लेकिन उसकी नज़र में कुछ अजीब सा था, अलग सा, जो सिर्फ़ उसे ही पता है।

    जारी...✍️

  • 2. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 2

    Words: 1366

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक आपने देखा कि तृषा को देखने लड़के वाले आए जो लखनऊ शहर के सबसे जाने-माने अमीरों में से एक, अंश बक्शी, थे।

    "ये तुम कैसी बातें कर रही हो? पागल हो गई हो? एक बेटी की ज़िंदगी आबाद करने के लिए मैं दूसरी को सूली पर चढ़ा दूँ?" राकेश ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

    "हाँ तो क्या? जवान बेटी को ऐसे ही घर पर बैठे रहने दूँ? अरे, इसमें गलत क्या है? एक बेटी की शादी के लिए दूसरी की ही तो करनी है!" हेमलता ने कहा।

    राजेश: "तुम कुछ समझ भी पा रही हो? अगर उन्हें हमारी तृषा पसंद होती तो वो लोग ये शर्त कभी नहीं रखते।"

    हेमलता: "तो क्या करें? मना कर दें? हमें शादी नहीं करनी है।"

    "हाँ, मना कर दीजिए! नहीं करनी है ऐसे घर में शादी जहाँ एक बेटी की ज़िंदगी आबाद करने के लिए दूसरी को सूली पर चढ़ा दें!"

    "क्या? सच में आपका दिमाग़ खराब हो चुका है? मैं तो समझ ही नहीं पा रही आपको! अपनी बेटी से प्यार भी है या नहीं?"

    "प्यार मैं दोनों से करता हूँ। और, मेरा नहीं, तुम्हारा दिमाग़ खराब हो चुका है! तुम शादी के लिए हाँ कैसे कह सकती हो? हनी तुम्हारी भी बेटी है!"

    "मैं नहीं मानती।"

    "तुम्हारे मानने से सच नहीं बदलेगा।"

    "कोई सच नहीं है! वो मेरा खून नहीं है।"

    "लेकिन गोद तो लिया है! इस नाते वो हमारी बेटी है।"

    "आपकी है, मेरी नहीं।"

    "मेरी नहीं, हमारी है! और ये बात तुम अपने दिमाग़ में बैठा लो! शादी नहीं होगी उस घर में! न तृषा की, न हनी की! ये आखिरी फ़ैसला है!"

    अपनी बात कह राकेश जी जाने लगे। पीछे से हेमलता ने चिल्लाते हुए कहा, "तो मेरा भी आखिरी फ़ैसला ये है कि शादी कल ही होगी! और वो भी दोनों की! मैं भी देखती हूँ आप कैसे रोकते हैं!"

    असल में, मिस शोभा बक्शी ने तृषा और अंश की शादी के लिए एक शर्त रखी थी कि हनी की शादी वो अपने बड़े बेटे अवीक से करना चाहती है। वो दोनों लड़कियों को अपने घर की बहू बनाना चाहती है। अगर हनी की शादी उनके बड़े बेटे अवीक से होगी, तभी वो तृषा और अंश की शादी के लिए हाँ कहेगी। लेकिन सबसे बड़ी बात यह हुई कि राकेश और तृषा इसके ख़िलाफ़ हैं क्योंकि बक्शी परिवार के बड़े बेटे अवीक बक्शी को आज तक किसी ने देखा नहीं, ना सुना है। तो कैसे ऐसे इंसान से हनी की शादी करा दें जिसे कोई जानता ही नहीं है?

    ये बात जानने के बाद कैसे कोई बाप अपनी बेटी की शादी के लिए मान जाए? वहीँ हेमलता जी फटाक से मान गईं। वैसे भी उन्हें हनी की खुशी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस तृषा की शादी कैसे भी करके बक्शी खानदान में करवाना था।

    दूसरी तरफ़, बक्शी मेंशन...

    "तुम्हें लगता है वो लोग शादी के लिए हाँ करेंगे, अंश?" सामने सोफ़े पर बैठी शोभा बक्शी कहती हैं। वहीं अंश, जो किसी दूर ख्यालों में गुम था, उसने कुछ सोचते हुए कहा, "कोई माने या ना माने माँ, लेकिन हनी वो काफ़ी मासूम और सीधी-साधी लड़की है। वो परिवार और अपनी बहन के खातिर ज़रूर मानेगी।"

    शोभा: "अगर ना कर दिया शादी के लिए, तब क्या होगा? हम अवीक से कह चुके हैं शादी के लिए। अगर ना कहेंगे तो वो भड़क जाएगा।"

    बीच में अंश ने कहा, "आपको भाई से कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने उनसे बात कर लूँगा। बस आपको कैसे भी करके शादी के लिए कन्विन्स करना है उस परिवार को। मैंने ऐसे ही मिस हनी को भाई के लिए नहीं चुना है। वो उन लड़कियों से बिल्कुल अलग है। इसीलिए शायद भाई ठीक हो जाए उनके साथ।"

    शोभा: "लेकिन अंश, शादी के लिए अवीक को बाहर आना ही पड़ेगा! तब क्या होगा? हम लोगों को क्या जवाब देंगे?"

    अंश: "माँ, आपको किसी को कोई जवाब नहीं देना है। मैं सब कुछ देख लूँगा। बस आप शादी की तैयारी करिए और कुछ नहीं।"

    शोभा जी: "पहले वो लोग हाँ तो करें, उसके बाद शादी की तैयारी हो जाएगी। लेकिन एक दिक्कत है।"

    अंश: "क्या दिक्कत है?"

    शोभा: "हनी क्या वो अवीक के साथ एक दिन भी रह पाएगी? तुम जानते हो कि अवीक कैसा है! वो लड़कियों को देख..."

    "मैडम!"

    एक तेज आवाज़ पूरे लिविंग रूम में दौड़ गई जो काफ़ी दर्द से भरी थी। अंश और शोभा जी अपने-अपने जगह से खड़े हो गए। जैसे ही उन्होंने सीढ़ियाँ देखीं, दोनों हैरान रह गए। जहाँ से एक लड़की, खून से लथपथ होकर, नीचे भागते हुए आ रही थी। उसके चेहरे पर दर्द, खौफ़, सारे मौजूद थे। वो काफ़ी डरी हुई थी।

    सारे नौकर डर से सहम गए। शोभा और अंश दोनों उस लड़की की तरफ़ भागे, लेकिन तब तक वो लड़की बेहोश होकर नीचे गिर गई।


    "दीदी, बस बहुत हुआ! मुझे कुछ नहीं सुनना है! आपको मेरे लिए कोई भी सैक्रिफ़ाइस नहीं करनी है, ना कुछ और करना है।" तृषा ने हनी का हाथ अपने हाथ में लेके कहा, जो घुटनों के बल ज़मीन पर बैठी थी।

    वहीं बेड पर बैठी हनी ने तृषा के गाल पर हाथ रख के कहा, "बच्चा, मेरी बात समझो तो... मैं जो कह रही हूँ वो सही है। तुम अंश को पसंद करती हो। अगर मेरी वजह से ये शादी नहीं हुई तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी। तुम समझने की कोशिश करो। मैं जो करना चाहती हूँ वो सही है।"

    "दीदी, आप समझाने की कोशिश करिए। मेरी शादी होने या ना होने से आपको गिल्टी फील करने की ज़रूरत नहीं है। ये मेरा निजी फ़ैसला है। मैं अपनी खुशियों के लिए आपकी खुशियों को दाव पर नहीं लगा सकती। अगर ये हुआ तो मैं कभी खुश नहीं रह पाऊँगी।"

    "लेकिन लाडो, मुझमें और तुम्हें फ़र्क है। वैसे भी मैं किसी को पसंद नहीं करती। मैं शादी करती तो अरेंज मैरेज ही। ये भी वही है। क्या फ़र्क पड़ता है? हमने लड़के को नहीं देखा है, तब भी नहीं देखते ना?"

    "फ़र्क पड़ता है! आपको नहीं, लेकिन मुझे पड़ता है! पता नहीं वो कौन है, कैसा होगा? ऐसे कैसे आपकी शादी करा दें? नहीं, ये मुझे मंज़ूर नहीं है, दीदी! आप गलत कह रही हो।"

    "तृषा, बात तो समझो एक बार!" हनी ने इस शब्द पर थोड़ा ज़ोर देकर कहा। तृषा, एक ना सुन के अपनी जगह से खड़ी हो गई और जाने लगी। तभी हनी ने उसके हाथ को पकड़ लिया और कहा, "प्लीज़ मान जा! क्यों ज़िद्द कर रही है?"

    तृषा, बिना हनी की तरफ़ देखे, कहती है, "कभी नहीं! ये ज़िद्द नहीं, मेरा फ़ैसला है!"

    अपनी बात कह तृषा ने हाथ छुड़ा के चली गई। हनी बस बैठी रही। उसने सुनहरे मन में कहा, "मैं खुद के लिए तेरी खुशी ऐसे ठुकराते नहीं देख सकती हूँ। तू चाहे या ना चाहे, मैं जानती हूँ मुझे क्या करना है।"

    इस वक़्त हनी की आँखों में एक अलग ही नूर था, कुछ कर जाने का।


    डॉक्टर: "नर्स! कैसी है?" शोभा जी ने परेशान होते हुए पूछा। सामने खड़े डॉक्टर ने थोड़े गुस्से में कहा, "शोभा! मैंने कितनी बार कहा है, किसी लेडी नर्स को अवीक के पास मत भेजो! लेकिन तुम हर बार मुझे इग्नोर कर देती हो! आखिर चाहती क्या हो? पता है इस लड़की को कितना पेन हो रहा है? वो दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, लेकिन तुम हो कि कुछ भी समझ नहीं रही हो!"

    शोभा जी ने थोड़े गुस्से से कहा, "तुम मुझे ज्ञान मत दो! बस इतना बताओ वो ठीक है या नहीं?"

    डॉक्टर ने गहरी साँस लेके कहा, "फ़िलहाल वो ठीक है, लेकिन अपने बेटे को काबू में रखिए! वो ज़िंदा नहीं छोड़ने वाला है उसे! ये बात तुम जानती हो! उनका ठीक होना तुम्हारे बेटे की प्यास बढ़ने के बराबर है।"

    जारी...✍️

    क्या होगा? क्या किया अवीक ने?

  • 3. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 3

    Words: 1562

    Estimated Reading Time: 10 min

    शोभा जी ने थोड़े गुस्से से कहा, "तुम मुझे ज्ञान मत दो। बस इतना बताओ, वो ठीक है कि नहीं?"

    डॉक्टर ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "फिलहाल वो ठीक है। लेकिन अपने बेटे को काबू में रखिए। वो उसे ज़िंदा नहीं छोड़ने वाला है। ये बात तुम जानती हो। उनका ठीक होना तुम्हारे बेटे की प्यास बढ़ने के बराबर है।"


    शाम का वक्त था। बक्शी मेंशन...

    "एक बार फिर से सोच लो। क्या सच में तुम शादी करने के लिए तैयार हो? क्योंकि शादी एक दिन या फिर दो दिन का सफ़र नहीं है, बल्कि सात जन्मों का है।" सामने सोफ़े पर बैठी हनी, सादे दुल्हन के जोड़े में तैयार थी। माथे पर छोटी सी बिंदी, कानों में झुमके; इस तरह तैयार होने के लिए शोभा जी ने ही कहा था।

    हनी किसी दुल्हन की तरह तैयार होकर बैठी थी। उसने शोभा जी की बात सुनकर हाँ में सिर हिलाया और कहा, "अगर इस शादी से मेरी बहन की शादी होगी, तो मैं करने के लिए तैयार हूँ।"

    शोभा जी और अंश ने एक-दूसरे को देखा। फिर अंश ने कहा, "हाँ, बिलकुल। आप जैसा चाहती हैं, वैसा ही होगा। अगले ही महीने शादी होगी।"

    हनी ने कहा, "फिर ठीक है। बताइए, आगे क्या करना है?"

    अंश ने बगल में खड़े एक आदमी को इशारा किया। उसने काले कोट पहना हुआ था; पहनावे से लग रहा था कि वह कोई वकील है। उसने हनी के पास आकर उसके सामने एक कागज़ और पेन रखा।

    हनी उसे देखकर हैरान हो गई। वह अंश की तरफ़ देखने लगी। तब अंश ने बिना किसी भाव के चेहरे पर कहा, "इस पर साइन कर दीजिए। आपकी शादी हो जाएगी। और अगर आप पढ़ना चाहती हैं, तो पढ़ सकती हैं।"

    हनी ने एक नज़र कागज़ पर देखकर हाथ में उठा लिया। हनी ने एक लाइन पढ़ी, उसके बाद पेन उठाकर साइन कर दिया। इसे देखकर अंश ने कहा, "एक बार पूरा तो पढ़ लो।"

    हनी ने साइन करते हुए कहा, "जब फ़ैसला कर ही लिया है, तो पढ़कर क्या करूँगी?" कुछ देर में सारा प्रोसेस ख़त्म होने के बाद शोभा जी ने हनी से कहा, "आज से तुम इस घर की बड़ी बहू हो। बहुत-बहुत बधाई हो।"

    शोभा जी ने हनी को गले से लगा लिया। हनी खुश है या दुखी, उसे नहीं पता; बस वहीं खड़ी रही। उसे कुछ नहीं पता था। शोभा जी ने किसी नौकर को बुलाकर कहा, "हमारी बहू को उसके पति के कमरे में ले जाओ। याद रहे, किसी चीज़ की कमी नहीं होनी चाहिए।"

    नौकर ने हाँ में सिर हिलाया। शोभा जी ने प्यार से हनी के गाल पर हाथ रखते हुए कहा, "तुम घर पर रहो। मुझे थोड़ा काम है, मैं आती हूँ।" बीच में अंश ने कहा, "मेरी मीटिंग है। उसके बाद डिनर बाहर ही करके आऊँगा, रात को।"

    अपनी बात कहकर दोनों घर से बाहर चले गए। हनी को पता नहीं क्यों, अजीब सा डर लग रहा था। उसका दिल एक बार अपनी बहन से बात करने को कह रहा था। उसने नौकर से कहा,

    "क्या मैं थोड़ी देर के लिए अपने घर बात करके फिर कमरे में जाऊँ?"

    नौकर ने कहा, "माफ़ करिएगा मैडम, हमें इस बारे में कुछ कहा नहीं गया है। बस आपको सर के कमरे तक छोड़ने के लिए कहा गया है। हम वही कर सकते हैं।"

    हनी ने कुछ नहीं कहा। वह नौकर के पीछे जाने लगी। इस वक़्त उसके दिमाग़ में हज़ार बातें चल रही थीं। एक तो ऐसी शादी जिसमें दूल्हा ही नहीं है, दूसरा अपने परिवार से धोखा देकर यहाँ आना, तीसरा कि उसका पति कौन है, उसे खुद नहीं पता। इन्हीं में डूबी हनी कब कमरे के बाहर पहुँच गई, उसे पता ही नहीं चला। उसने नज़रें उठाकर एक नज़र दरवाज़े को देखा। उसे अजीब सा डर सा लगने लगा।

    वही कुछ हाल नौकर का भी ख़राब था। उसने पसीने को साफ़ करते हुए हकलाते हुए कहा, "मै... मैडम, आ... आप अंदर आइए। य... यही कमरा है आपका।"

    हनी अजीब नज़रों से नौकर को देखने लगी, क्योंकि अभी तक तो वह नॉर्मल थी। अचानक से क्या हुआ? हनी कुछ पूछती, इससे पहले ही नौकर वहाँ से ऐसे भागी जैसे उसके पीछे जंगली कुत्ते छोड़े हों। हनी बस देखती रह गई।

    "ये ऐसे क्यों भाग गई?" हनी ने मन में कहा। फिर उसने दरवाज़े को देखकर कहा, "क्या मुझे अंदर जाना चाहिए? कुछ अजीब सा लग रहा है। क्या करूँ?" हनी बाहर खड़ी होकर सोचने लगी। उसे जाना चाहिए या नहीं। कुछ देर खुद में उलझी, उसने गहरी साँस भरकर धीरे से दरवाज़ा खोलकर अंदर बढ़ गई।

    दूसरी तरफ़...

    "मम्मा, आप ये कैसे कर सकती हैं? आप जानती थीं कि हनी दी जा रही है? क्या आपने उन्हें रोकना सही नहीं समझा?" तृषा ने चिल्लाते हुए कहा।

    वहीं सामने बैग से भरे नोटों को देखकर हेमलता वैसे ही पागल हुई थी। अपना हाथ उन बैगों से भरे नोटों पर फेरते हुए कहा, "जाते-जाते हमें अमीर कर गई इस लड़की ने। अब तो मैं पार्टी पार्लर में रोज़ जाया करूँगी।"

    हेमलता ने नोटों की एक गड्डी उठाकर अपने गाल से लगा लिया। वहीं खड़ी तृषा सब देख रही थी। उसने गुस्से से उस नोट की गड्डी छीन ली और कहा, "मम्मा, आप मेरी बात सुन भी रही हैं या नहीं? मैं कुछ कह रही हूँ।"

    हेमलता गुस्से में खड़ी हो गई और कहती है, "हाँ, बोलो। सुन रही हूँ, बोलो।"

    तृषा ने कहा, "सीरियसली मम्मा, मैं कब से बोल रही हूँ और आप पूछ रही हैं क्या है?"

    हेमलता ने कहा, "तो क्या कहूँ? तुम उस लड़की के लिए मेरे ऊपर चिल्ला रही हो। तुम जानती हो, मुझे वो बिलकुल पसंद नहीं थी। चली गई तो अब तुम अपनी माँ से लड़ोगी?"

    तृषा ने कहा, "तो क्या करूँ? आपने हनी दी को वहाँ क्यों भेजा? मैंने कहा था ना, ये शादी नहीं होगी। वो लोग पता नहीं किस बेटे से मेरी बहन की शादी कराना चाहते हैं और आप हैं कि हाँ कह दिया। एक बार तो उनके बारे में सोचतीं।"

    हेमलता ने कहा, "मैंने कुछ नहीं कहा। शोभा जी खुद पैसे लेकर आई थीं और तुम्हारी प्यारी बहन ने बुलाया था। ये पैसे सोच रही हो मैंने माँगे हैं? नहीं, ये तेरी बहन ने शादी के बदले खुद माँगे हैं और मुझसे कहकर गई कि इन पैसों से तेरी शादी अच्छे से करा दूँ।"

    तृषा ने कहा, "माँ, मुझसे झूठ मत कहिए। हनी दी ऐसा कभी नहीं कर सकती है और पैसे तो वो बिलकुल नहीं माँगेगी। आप ये कैसे कह सकती हैं?"

    हेमलता ने कहा, "मुझे पता था तुझे यकीन नहीं होगा मेरे ऊपर। इसीलिए रिकॉर्डिंग करके रखा है। ले, सुन।"

    हेमलता जी ने फ़ोन चालू करके एक रिकॉर्डिंग तृषा के सामने ऑन कर दी, जिसमें हनी शोभा जी से कह रही थी, "थैंक्यू आंटी जी, मेरी बात मानने के लिए। मैं इस शादी के लिए तैयार हूँ।"

    शोभा जी ने कहा, "थैंक्यू, तुम क्यों कह रही हो? वो तो हमें कहना चाहिए। अच्छा, ये सब छोड़ो। चलो, घर। आज ही शादी होगी और आज से तुम उस घर की बड़ी बहू हो जाओगी।"

    हनी ने हेमलता जी से कहा, "माँ, ये सारे पैसे मैं चाहती हूँ कि आप तृषा की शादी के ख़र्च करें। कोई भी कमी उसके शादी में नहीं होनी चाहिए और मेरे बारे में उसे कुछ मत बताइएगा। मैं खुद दो दिन बाद उससे मिलने आऊँगी।"

    हेमलता जी ने रिकॉर्डिंग बंद करके कहा, "सुन लिया तुम्हारी प्यारी दीदी ने क्या कहा? बेवजह मेरे ऊपर इल्ज़ाम लगाए जा रही हो।"

    तृषा हैरान थी। उसकी भोली बहन आखिर कैसे ये कह सकती है? उसके लिए खुद की ज़िंदगी बर्बाद कर दिया। तृषा सोफ़े पर बैठ गई। "हनी दी, आपने सही नहीं किया। आप को ये सब नहीं करना चाहिए था। आखिर क्यों किया आपने? मुझे अंश से बात करनी होगी इस बारे में।"

    अंश का याद आते ही तृषा ने फ़ोन लिया और कमरे की तरफ़ चली गई। उसके जाते ही हेमलता पैसों को फिर से देखते हुए कहा, "तृषा मेरी बच्ची, तुम चिंता मत करो। असली सच्चाई तुम्हें कभी पता नहीं चलेगा। तुम बस यही समझो जो मैंने बताया है।"

    हेमलता डेविल स्माइल के साथ बड़बड़ा रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी नूर थी, जो सिर्फ़ उन्हें ही पता है।

    उधर, हनी जैसे ही कमरे में गई, हैरानी से उसकी आँखें बड़ी हो गईं, क्योंकि कमरे में बिलकुल अंधेरा था। रोशनी का नामो-निशान नहीं था। हनी का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसे काफ़ी डर लग रहा था। अचानक से उसके मन में हनुमान चालीसा चलने लगी। वह पढ़ते हुए कहती है, "कहीं मैंने किसी भूत से शादी तो नहीं कर ली? ये सब क्या है?"

    हनी यही सोच रही थी कि अचानक से उसके कानों में कुछ खट-खट की आवाज़ आने लगी। ये आवाज़ जैसे किसी कील पर हथौड़े मारने की तरह थी, जो धीरे-धीरे काफ़ी तेज़ बढ़ता जा रहा था।

    जारी...

    क्या होगा आगे? हनी की शादी किससे हुई? अब तृषा अपनी बहन के लिए क्या करेगी? क्या होगा हनी के साथ?

  • 4. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 4

    Words: 1237

    Estimated Reading Time: 8 min

    हनी यही सोच रही थी कि अचानक उसके कानों में कुछ खटखट की आवाज आने लगी। यह आवाज किसी कील पर हथौड़े के मारने जैसी थी जो धीरे-धीरे काफी तेज बढ़ती जा रही थी।

    हनी का बदन डर से थर-थर काँपने लगा। उसके शरीर का खून जम सा गया। जब उसके कदम अंदर के अंधेरे को चीरते हुए दूसरे कमरे की ओर बढ़े, जैसे-जैसे वह पास जाती, दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं, मानो जैसे वह किसी कब्रिस्तान में जा रही हो।

    कुछ दूरी का सफ़र तय कर जैसे ही वह अंदर गई, सामने का नज़ारा देख उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। पैर अपनी जगह पर जम से गए। हाथ-पैर काँपने लगे।

    वह किसी पुतले के समान खड़ी रही, लेकिन ज़्यादा देर तक नहीं। अचानक सामने के भयानक नज़ारे को देख वह धड़ाम की आवाज़ से नीचे फर्श पर जा गिरी।

    कुछ देर बाद हनी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं तो आँखों के सामने लाल रंग की लाइट नज़र आ रही थीं, लेकिन काफी थकान के कारण वह अपनी आँखें नहीं खोल पा रही थी। मगर हिम्मत करके हनी ने आँखें खोलीं तो फिर से वही हाल हुआ, लेकिन इस बार वह भागने की कोशिश करने लगी। मगर वह उठ तक नहीं पा रही थी। जब उसने बगल में देखा तो उसके हाथ बंधे हुए थे।

    यह देख वह और हैरान रह गई। आँखों से आँसू बहने लगे। डर से दिल धड़कने लगा। तड़पते हुए गले से शब्द निकले,
    "कौन है? प्लीज़ मुझे जाने दो, प्लीज़।"

    वह बार-बार कहती रही, मगर कोई उसका सुनने वाला नहीं था। खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश यूँ ही बनी रही। कुछ देर बाद किसी के कदमों की आहट कानों में गई। नज़र खुद-ब-खुद वहीं गईं।

    पैरों में पहने काले जूते, काले पैंट... जैसे-जैसे नज़रें ऊपर जातीं, ऐसा लगता था कि दिल डर से बाहर निकल जाएगा।

    जब आँखों से आँखें मिलीं, शरीर की एक-एक हड्डी काँप गई। लाल आँखें, नशे से भरी, शेर से भी ज़्यादा ख़तरनाक; होंठों पर मौजूद मुस्कान जैसे वही दिल चीरकर गायब कर दे।

    ज़्यादा देर देख ना सकी, नज़रें झुक गईं। कदमों की आवाज़ पास में आई तो उसने चेहरा पकड़कर ऊपर किया, मगर नज़रें उठाकर देखने की हिम्मत कहाँ थी? ना बोली तो कान में आवाज़ आई,

    "तो तुम ही हो मेरी बीवी?"

    यह सवाल था या पूछ रहे थे? मगर पति को देखने की चाहत जगी, जिसके साथ एक बार फिर नज़रें उठाकर ताड़ने को तैयार थीं, लेकिन ज़्यादा देर तक नहीं। फिर से नीचे झुक गईं। वही शरीर ने तो पहले ही अपना हाथ खड़ा कर दिया था कि वह साथ नहीं देगा, इसीलिए तो काँप रहा था।

    हनी के पति, अवीक बक्शी, घुटनों के बल बैठ गए। हनी का चेहरा छोड़कर कहा, "तुम खूबसूरत हो। मैंने सोचा था माँ ऐसी-वैसी लाएँगी किसी को, लेकिन तुम तो मेरी सोच से अलग हो।"

    तारीफ़ थी या बलि देने से पहले की पूजा? जो भी था, हिम्मत करके आखिर में हनी ने कहा, "मुझे डर लग रहा है। प्लीज़ मेरा हाथ छोड़िए, मुझे बाहर जाना है।"

    बड़ी मासूमियत से कहा, को किसी का भी दिल घायल कर दे। जब सामने किसी मर्द का होना, वही पति ने मर्दाना और कड़क आवाज़ में कहा, "जाने दूँगा, लेकिन पहले मैं वो तो कर लूँ जिसके लिए तुम आई हो।"

    वह न समझ पाई, बस देखती रही। पति ने बगल से उठाया एक ब्लेड और गूंज गई एक चीख पूरे कमरे में।


    "मेरी एक ही बहन है, मैं बहुत प्यार करती हूँ उनसे। अगर उसे कुछ हुआ तो मैं मर जाऊँगी। प्लीज़ मेरी बहन को आज़ाद कर दो।" हाथ जोड़ अपनी बहन की सुरक्षा के लिए तृषा कर रही थी अंश से विनती, मगर सामने खड़े अंश ने कहा, "देखो तृषा, मैं जानता हूँ तुम अपनी बहन से बहुत प्यार करती हो। मैंने उन्हें नहीं कहा शादी के लिए, माँ ने जो कहा था मैं समझ सकता हूँ, लेकिन वो खुद हमारे पास इस शादी के लिए आई थी।"

    तृषा: "मेरी बहन भोली है, नहीं पता उसे दुनियादारी। उसे आज़ाद कर दो, बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

    अंश: "यह नहीं हो सकता है।"

    तृषा: "तुम ऐसा तो मत कहो। अगर मुझसे शादी करना चाहते हो तो मैं नहीं करूँगी, बस मेरी बहन को छोड़ दो।"

    अंश: "मेरे हाथ में कुछ नहीं है। शादी हो चुकी है। अवीक भाई खुद नहीं आने देंगे। तुम समझो मेरी बात।"

    ना सुनकर गुस्से से तिलमिलाई तृषा खड़ी हुई। भड़ास निकालना चाहा तो कह दिया, "तुम लोग एक घटिया इंसान हो। किसी की ज़िंदगी बर्बाद करना तुम अमीरों को अच्छे से आता है, यह बात मैं आज अच्छे से जान गई हूँ। लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना, दूसरों की ज़िंदगी बर्बाद करके कभी कोई खुश नहीं रह सकता है।"

    वह आगे बढ़ी कि अंश ने हाथ पकड़ लिया। तृषा खुद को छुड़ाकर कहा, "छोड़ो मेरा हाथ।"

    अंश ने अपनी ओर खींचकर कहा, "तुमने अपनी बात तो कह दी, लेकिन एक बार मेरी भी सुन लो।"

    तृषा: "मुझे कुछ नहीं सुनना किसी की भी। मेरी बहन के साथ जो गलत करेगा, मैं उसे कभी छोड़ने वाली नहीं हूँ।"

    अंश: "कुछ गलत नहीं हुआ है तुम्हारी बहन के साथ। वो खुश है शादी से। चाहो तो कल आकर अपनी बहन से मिल लेना। मैं जानता हूँ मेरे भाई को कभी किसी ने देखा नहीं है, तो सब उसे गलत समझते हैं। कल आओगी तो सब कुछ अपनी आँखों से देखकर समझ जाओगी।"

    तृषा के कानों पर यकीन नहीं हुआ। क्या उसकी बहन खुश है? पर कैसे? उसकी मर्ज़ी नहीं थी शादी की, फिर कैसे? मन में ख्याल आया तो पूछ लिया,

    "क्या सच में वो खुश है? मैं यकीन नहीं कर पा रही हूँ।"

    अंश ने उसके तरफ़ देखकर कहा, "मैं सच कह रहा हूँ। कल घर आकर खुद मिलकर पूछ लेना। तुम्हारी बहन तुम्हारे लिए शादी करी है कि तुम खुश रहो। लेकिन अगर वो हमारे घर पर खुश नहीं रहेगी तो तुम कैसे रह सकती हो उस घर में? इसीलिए मैं कल मिलने के लिए कह रहा हूँ।"

    आँखों में आँसू भर गए। उसने कहा, "ठीक है, मैं कल आऊँगी। अगर मेरी बहन खुश होगी तो मुझे यह जानकर और खुशी होगी।"

    इसके बाद कुछ बचा ही नहीं था बात करने के लिए, तो दोनों अपने रास्ते निकल गए। अब तो बस कल का इंतज़ार था।

    वहीं हनी का कुछ पता नहीं, बस फर्श पर बड़ा खून। कमरा खून से लाल-पीला हो रहा था, चारों तरफ जैसे पानी नहीं, कोई खून ही पिता हो। दिन से रात होने को आई, घर में हलचल होने लगी, लेकिन नई बहू को किसी ने नहीं पूछा कहाँ है, कैसी है। उसी कमरे में फिर से सन्नाटा छाया था, जैसे अंदर कुछ हुआ ही कहाँ था।

    वही रोज़ के चर्या के हिसाब से सब खा-पीकर अपने-अपने कमरों में चले गए। घड़ी की घंटी टन-टन की आवाज़ से बढ़ गई। अंधेरे में फर्श पर पड़ी हनी बेहोश थी। वही लहंगा जो कल पहना था, वही सिंगार जो किया था, वैसे के वैसे थी, बस बेसुध सी ज़मीन पर आँखें बंद थीं। धीरे-धीरे रात बिताती गई और सूरज की पहली किरण उसके ऊपर गिरी।

    जारी...✍️

  • 5. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 5

    Words: 1267

    Estimated Reading Time: 8 min

    वही रोज़ की दिनचर्या के अनुसार सब खा-पीकर अपने-अपने कमरों में चले गए। घड़ी की टन-टन की आवाज़ से बड़ी रात गुज़र गई। अंधेरे में फर्श पर पड़ी हनी बेहोश थी। वही लहंगा जो कल पहना था, वही श्रृंगार जो किया था, वैसे ही थी, बस बेसुध सी जमीन पर पड़ी थी, आँखें बंद थीं। धीरे-धीरे रात बीतती गई और सूरज की पहली किरण उसके ऊपर गिरी।

    सूर्य की किरण हनी के ऊपर पड़ी तो कसमसाते हुए उसने अपनी आँखें खोलीं। देखा तो वह उसी कमरे में थी जहाँ कल आई थी। आँखों में दर्द साफ़ नज़र आ रहा था।

    हिम्मत करके वह उठी और बैठकर खुद को एक नज़र देखकर बोली, "क्या यही मेरी किस्मत है? मुझे बचपन से आज तक यही मिलता आया है और आज भी यही मिल रहा है। शायद माता-पिता के जाने के बाद दूसरी की औलादों की ज़िंदगी यही होती है।"

    एक आँख के कोने से आँसू निकलकर गाल पर आ गए। जमीन का सहारा लेकर वह उठी और लड़खड़ाते पैरों से वाशरूम की तरफ़ चली गई।

    उधर, अंश के कहने के मुताबिक़ आज तान्या हनी से मिलने उसके घर आने वाली थी। वह जल्दी से तैयार होकर घर से जैसे ही बाहर जाने को हुई कि बीच में हेमलता जी ने आकर कहा,

    "तृषा बेटा, इतनी सुबह-सुबह कहाँ जा रही है?"

    तृषा उनकी आवाज़ सुनकर आँखें भींच लेती है और फिर बड़ी मुस्कान के साथ पीछे मुड़कर कहती है,

    "बस मॉम, एक छोटा सा काम है, वही करके आती हूँ।"

    हेमलता जी तृषा के पास आते हुए कहती हैं, "ऐसा कौन सा काम है जो तुम अपनी माँ को नहीं बता सकती?"

    "बस कुछ है, मैं बाद में बता दूँगी। अभी मुझे लेट हो रहा है।"

    "लेकिन मुझे अभी जानना है।"

    "मॉम, आप हर बार अपनी टांग क्यों अड़ाती हैं? मैंने कहा ना, आकर मैं बता दूँगी। मुझे जाना है, लेकिन आप बार-बार शुरू हो जाती हैं- कहाँ जा रही है, क्यों जा रही है? आप लोग कुछ देर बच्चों को उनकी मर्ज़ी का नहीं करने दे सकती हैं?" तृषा ने थोड़ा चिढ़कर कहा।

    "तू इतना गुस्सा क्यों हो रही है? मैं तो बस पूछ रही थी। मैंने ये तो नहीं कहा कि तू मत जा। बता दे, कहाँ जा रही है, फिर चली जा। मैंने कब मना किया?"

    "एक बात बताइए मॉम, पहले तो आप ये सवाल नहीं किया करती थीं, फिर आज अचानक क्यों?"

    "माँ हूँ तेरी, फ़िक्र होती है इसीलिए पूछ रही हूँ।"

    "पहले भी तो माँ थीं, तब आपको फ़िक्र नहीं होती थी। आज अचानक से फ़िक्र जाग गया?"

    "तब भरोसा था।"

    "क्यों अब नहीं है?"

    "ऐसा नहीं है।"

    "फिर कैसा है? बताइए आप।"

    "तुम इतनी छोटी बात पर भड़क क्यों रही हो? यही बात आराम से करो।"

    "आप आराम से करने देती हैं तब ना करूँ। हर बार चौकीदार की तरह खड़ी रहती हैं हज़ार सवाल पूछने के लिए।"

    "पहले कब पूछा था जो तू कह रही है?"

    "लेकिन आज तो पूछ रही हो ना।"

    "हाँ तो मुझे जानना है, इसीलिए पूछ रही हूँ।"

    "लेकिन मॉम, मेरा बताने का मूड नहीं है। मैं कहाँ और किससे मिलने जा रही हूँ, मुझे जाना है, लेट हो रहा है, बाय।"

    अपनी बात कह तृषा जैसे ही बाहर जाने को हुई कि पीछे से हेमलता जी ने उसे फिर रोकते हुए बोला,

    "रुक! रुक!"

    तृषा अपने कदम रोककर गहरी साँस लेती हुई बोली, "अब क्या है मॉम? फिर से क्यों रोका?"

    "एक काम कर, जहाँ जा रही है जल्दी आना।"

    "किसलिए? कहीं दीदी की तरह मुझे भी तो नहीं बेचने वाले हैं?"

    हेमलता जी ने गुस्से से बोला, "पागल है क्या? बोल रही है?"

    "गलत क्या कहा? सही तो कह रही हूँ। यही आपने दीदी के साथ किया था जब घर पर कोई नहीं था। तब आपने इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया और उसी तरह आज भी कोई नहीं है। आप मुझे रोक रही हैं जिससे बाद में मुझे भी बेचकर पैसे कमा सकें।"

    "अगर दुबारा ये शब्द कहे ना तो आज मेरा हाथ तेरे ऊपर उठ जाएगा!" हेमलता जी ने गुस्से के घूँट पीते हुए बोला।

    वही अजीब तरह से हँसकर तृषा बोली, "क्यों? खुद के खून के साथ ये कहते हुए आपको बुरा लग रहा है? जब मेरी बहन के साथ किया तब आपको बुरा नहीं लगा? वो भी आपकी बेटी थी।"

    "वो मेरी बेटी नहीं थी।"

    "लेकिन मेरी बहन थी। मैं उन्हें अपनी बहन मानती थी।"

    "मानने से कोई सगा नहीं होता है। वो बस एक बोझ थी।"

    "आपके लिए, मेरे लिए नहीं।"

    "बकवास मत कर। जाकर अपने पापा को बुला। आज तेरी बहन के घर ही जाना है।"

    तृषा की आँखें ये सुनकर सिकुड़ गईं। वो पहले से ही हनी से मिलने जा रही है, फिर उसकी मॉम-डैड क्यों जा रहे हैं?

    तृषा से रहा नहीं गया तो खुद ही पूछ लिया, "किसी महान काम के बिना तो आप वहाँ जाने से हैं नहीं। आज क्या बेचने जा रही हैं आप? कुछ बात हुई क्या आपकी फिर से?"

    "कोई बात नहीं हुई है। शोभा जी ने फ़ोन कर आज के खाने पर बुलाया है। आज तेरी बहन की पहली रसोई है। वो चाहती है कि खाने के बहाने हम उस लड़की और जमाई साहब से मिलें। साथ में तेरी और अंश की शादी की तारीख़ पक्की हो जाए।"

    तृषा कोई जवाब न देकर किसी को कॉल करते हुए कमरे की तरफ़ चली गई। वहीं हेमलता जी ने कहा, "ये लड़की कुछ बोलकर नहीं गई।" फिर उन्होंने पीछे मुड़कर तृषा से कहा,

    "चल रही है या नहीं है? क्या कहकर जा रही है ये तो बताया दे।"

    तृषा ने बस पीछे मुड़कर हाँ में सिर हिला दिया और सीधे कमरे में चली गई। उधर घर में जोरों-शोरों से तैयारी चल रही थी। आज मुँह-दिखाई और पहली रसोई दोनों हैं, जिसमें सभी को बुलाया गया है। सारे खाने हनी बना रही है क्योंकि कोई एक चीज़ तो नहीं खाने वाला है, सबको कुछ न कुछ खाना है तो सुबह से वही बना रही है।

    शोभा जी किचन में आकर हनी से कहती हैं जो साड़ी के पल्लू को कमर में बाँधकर आँटा गूँथ रही थी, हनी से कहती हैं, "हनी बेटा।"

    हनी काम रोककर उनके तरफ़ देखकर कहती है, "जी! आंटी जी।"

    शोभा जी हनी के पास आकर बोलीं, "सारी तैयारी हो गई है?"

    हनी: "हाँ, सब हो गई, बस पुड़िया बाकी है।"

    "ठीक है! वो सब मैं कर देती हूँ। तुम जाकर ठीक से तैयार हो जाओ। तुम्हारी बहन और मम्मी-पापा आ रहे हैं।"

    अपने परिवार के आने के बारे में सुनकर हनी घबरा गई। वो कुछ बोल नहीं पा रही थी। तभी शोभा जी उसके पास आकर गाल पर हाथ रखकर बोलीं, "तुम मुझे आंटी जी नहीं माँ कहना और याद रखना कि कल के बारे में तुम्हारी फैमिली को पता न चले, ठीक है?"

    हनी ने मासूमियत से हाँ में सिर हिला दिया। शोभा जी बड़े प्यार से बोलीं, "ठीक है, इसे यहीं पर छोड़कर जाओ। अच्छे से तैयार हो जाओ।"

    हनी बस अपना सिर हिलाकर चली गई। जाते हुए वो अपने हाथ आपस में उलझाकर मन में कहती है, "मैं नहीं कहूँगी, लेकिन तान्या समझ जाएगी और अगर उसे पता चला तो मुझे यहाँ कभी नहीं रहने देगी। मैं क्या करूँ? कैसे उससे छुपाऊँ? मैं चली गई तो उसकी शादी कैसे होगी?"

    अपने ही ख्यालों में घूम हनी कमरे में जाकर शीशे के सामने खड़ी हो गई। उसके आँखों में डर-घबराहट थी। तभी बड़े धीमे से किसी ने उसके कमर में अपने हाथ को लपेटा और कान के पास आकर कहा, "इतनी घबराहट किस बात की मेरी जान?"

    ये आवाज़ सुनते ही हनी के रोंगटे खड़े हो गए। शीशे में पीछे खड़े शख़्स को देखकर आँखें बड़ी हो गईं। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो गईं कि जैसे अभी फट जाएँगी।

    जारी...

  • 6. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 6

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    अपने ही ख्यालों में गुम हनी कमरे में जाकर शीशे के सामने खड़ी हो गई। उसके आँखों में डर और घबराहट थी। तभी बड़े धीमे से किसी ने उसके कमर में अपना हाथ लपेटा और कान के पास आकर कहा, "इतनी घबराहट किस बात की, मेरी जान?"

    ये आवाज सुनते ही हनी के रोंगटे खड़े हो गए। शीशे में पीछे खड़े शख्स को देखकर उसकी आँखें बड़ी हो गईं। दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं कि जैसे अभी फट जाएगा।

    हनी हैरानी से अवीक को देखकर बोली, "आप... आप यहाँ?"

    हनी की जान जैसे हलक में अटक गई थी। उसके गले से शब्द बाहर नहीं आ रहे थे। वह घबराई जा रही थी; उसके शरीर में एक अलग सी कंपन हो रही थी। जिसे अवीक ने महसूस कर उसे अपने और पास करके कहा,

    "हम्म! मैं यहाँ नहीं तो और कहाँ रहूँगा? यह मेरा कमरा है। तुम मेरी पत्नी हो, तो मैं यही रहूँगा न, बीबी?"

    इस बात का हनी ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वह पलकें नीचे कर खड़ी रही। तभी अवीक, जिसकी गहरी नज़र उसके ऊपर थी, वह टेढ़ी नज़र से बड़े गौर से हनी को देख रहा था। वह आगे बोला, "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?"

    हनी ने कोई जवाब नहीं दिया। तो अवीक थोड़ी देर देखने के बाद उसने हनी को छोड़कर दो कदम पीछे हो गया।

    अवीक के दूर जाते ही हनी पलकें उठाकर देखने लगी। तब अवीक ने कहा,

    "तुम्हारी फैमिली आ रही है। नीचे जाओ।"

    अचानक से अवीक के बदले स्वभाव को देखकर हनी कुछ समझ नहीं पाई और मन में बोली, "ये मुझे इतनी जल्दी कैसे जाने को कह रहे हैं? क्या सच में मैं जाऊँ? नहीं! अगर गई तो कल की तरह मुझे सजा मिलेगी। मैं नहीं जाती हूँ।"

    हनी सोच ही रही थी कि बीच में अवीक ने अपनी दमदार आवाज में कहा, "सजा नहीं मिलेगी। मैंने कहा, नीचे जाओ।"

    एक बार हनी अवीक की बात सुनकर चिल्ला उठी, लेकिन दूसरे ही पल वह खुश हो गई और बिना किसी देरी के फौरन हनी नीचे भाग गई। वहीं अवीक उसे जाते हुए देखकर कहता है,

    "मुझसे दूर जाने की इतनी जल्दी है तुम्हें, लेकिन तुम समझ नहीं सकती, यह भागने की बीमारी तुम्हें कहाँ ले जा रही है।"

    टेढ़ी मुस्कान करते हुए अवीक पैंट के पॉकेट में हाथ डालकर सीधे अपने कमरे के बगल वाले कमरे में चला गया। उसके दिमाग में कुछ खतरनाक चल रहा था।

    इस वक्त जिस कमरे में अवीक गया, वहाँ पर बस डिम रेड लाइट जल रही थी। जहाँ का माहौल खतरनाक था; इतना खतरनाक कि किसी की रूह तक काँप जाए।

    जिसमें हर चीज़ रेड कलर की थी; कमरे की लाइट, यहाँ तक कि वहाँ पर रखी चेयर तक रेड कलर की। ऐसी चीजों को कोई दिन में देखे तो डर से पसीने छूट जाएँ, फिर रात क्या चीज है? अवीक कमरे में जाकर सीधे सोफे पर बैठ गया और नीचे टेबल से एक बॉक्स निकालकर उसने बाहर निकाला।

    फिर उसे खोलकर उसमें से एक डॉल निकाली, जो काफी बुरी दिखाई दे रही थी। इतनी खराब थी कि उसके चेहरे के बाल कटे हुए थे; बहुत ही बुरी हालत में थी।

    अवीक उस डॉल को लेकर सोफे से खड़ा हो जाता है। फिर कुछ दूर चलकर वह वॉशरूम में जाकर उसे कमोड में धो देता है।

    जैसे-जैसे वह डॉल साफ हो रही थी, वैसे-वैसे अवीक मुस्कुराए जा रहा था, जैसे उसका कोई बहुत बड़ा काम पूरा हुआ हो।

    उधर नीचे जैसे ही हनी गई, शोभा जी उसे देखकर बोलीं, "हनी, तुम तैयार नहीं हुई?"

    हनी बार-बार ऊपर की तरफ देख रही थी। वह बुरी तरह घबराई हुई थी, जिसे शोभा जी उसकी नज़रों को देखकर समझ गईं। लेकिन हनी ने कुछ कहा नहीं। तो फिर से शोभा जी बोलीं, "हनी, क्या हुआ? कुछ हुआ है क्या?"

    हनी अपने होश में आकर उनके तरफ देखती है और कहने की कोशिश करती है, "वो... वो..." वह कुछ कह नहीं पा रही थी। जिसे देखकर शोभा जी एक गहरी साँस लेती हैं और कहती हैं, "कोई बात नहीं, तुम मेरे कमरे में जाकर चेंज कर लो।"

    हनी कुछ न कहकर हाँ में सिर हिलाकर चली जाती है।

    दूसरी तरफ कुछ देर में तृषा, हेमलता और राकेश जी आ गए थे। हनी ने ब्लू कलर की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। लेकिन अवीक के साथ इस ताज का कोई मतलब नहीं है, यह तो हम सब जानते हैं।

    "दीदी!" तृषा ने जैसे ही सामने से आते ही हनी को लिविंग रूम में देखा, वह दौड़ गई। उसके पास जाकर हनी को गले से लगा लिया। तृषा की आँखों से आँसू गिर गए। वह अभी तक गिल्ट में थी कि उसकी वजह से आज उसकी बहन पता नहीं किससे शादी करनी पड़ी है।

    वहीं हनी भी तृषा को देखकर काफी खुश थी। अंदर से दिल जोरों से धड़क रहा था। मन कर रहा था कि वह कहीं ले जाकर खूब बातें करे, उसे बताए उसके एक रात कैसे बीते हैं। लेकिन वह मजबूर थी; उसके कानों में अवीक की आवाज गूंज रही थी।

    "इस रात की बातें में बताने की गलती से भी गलती मत करना, वरना जो हाल अभी है, वह हर रात होगा।" अवीक की धमकी से एक बार फिर हनी काँप गई। उसकी कंपन को महसूस कर तृषा हनी से दूर होकर अपने आँसू साफ कर उससे बोली,

    "क्या हुआ दीदी? आप ठीक हो?" तान्या को कुछ अलग सा महसूस हुआ। वहीं हनी, जिसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान तो थी, लेकिन उसके पीछे एक गहरा दर्द था, जो सिर्फ़ उसे ही पता है।

    हनी तृषा की बातों को सुनकर ना में सिर हिलाकर बोली, "ऐसा कुछ नहीं है, मैं ठीक हूँ। तुम अपना बताओ, कैसी हो?"

    तृषा ने हनी के चेहरे पर हाथ रखकर बोली, "मैं बिल्कुल ठीक हूँ, लेकिन आप पहले यह बताइए, क्या सच में आप ठीक हैं, दीदी? प्लीज मुझसे कुछ छिपाने की कोशिश मत करिएगा।"

    हनी तृषा का हाथ हटाकर उसके कंधे पर हाथ मारकर बोली, "पागल है! मैं क्यों झूठ कहूँगी? सब ठीक है, तू ज़्यादा सोच मत। समझी?"

    तृषा कुछ कहने को हुई कि राकेश जी आकर बोले, "तृषा बेटा, अब क्या पूरे दिन तुम ही अपनी बहन से मिलती रहोगी? हमें भी मिलने दो।"

    तृषा: "नहीं पापा! आप भी आइए ना।"

    तृषा पीछे हो गई। हनी आगे बढ़कर राकेश जी के पैर छूती है। उसके बाद हेमलता जी के। वैसे हेमलता जी मना करने वाली थीं, लेकिन सामने शोभा जी को देखकर वह बनावटी हँसी के साथ बोलीं,

    "सदा सुहागन रहो बेटा।" उनके मुँह से आशीर्वाद सुनकर हनी नहीं, बल्कि राकेश, तृषा भी हैरान हो गए; आँखें फैल गईं और हेमलता जी को देखने लगे। वहीं हनी ने कुछ नहीं कहा। वह जानती है यह बनावटी है, लेकिन इसके लिए भी वह खुश थी। उसने हेमलता जी को हमेशा से अपनी माँ के रूप में देखना चाहती थी; झूठ ही सही, लेकिन वह उसकी माँ तो मिनी है।

    किसी ने कुछ नहीं कहा। हेमलता जी से मिलकर हनी राकेश जी के आशीर्वाद लेकर उनके गले लग गई। सब से मिलते वक्त हनी के चेहरे पर एक स्माइल थी, जिसे उसकी तारीफ़ कम नहीं कर पाती।

    जारी...✍️

    क्या होगा आगे? क्या अवीक नीचे आएगा? वह क्या करने वाला है हनी के साथ?

  • 7. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 7

    Words: 1202

    Estimated Reading Time: 8 min

    सदा सुहागन रहो बेटा।" उनके मुँह से आशीर्वाद सुनकर हनी नहीं, बल्कि राकेश और तान्या भी हैरान हो गए। आँखें फैल गईं और वे हेमलता जी को देखने लगे। वहीं हनी ने कुछ नहीं कहा। वह जानती थी यह बनावटी है, लेकिन इसके लिए भी वह खुश थी। उसने हेमलता जी को हमेशा से अपनी माँ के रूप में देखना चाहा था। झूठ ही सही, लेकिन वह उसकी माँ तो थी ही।

    किसी ने कुछ नहीं कहा। हेमलता जी से मिलकर हनी राकेश जी के आशीर्वाद लेकर उनके गले लग गई। सब से मिलते वक्त हनी के चेहरे पर एक मुस्कान थी जिसे उसकी तारीफ़ कम नहीं कर पाती थी।

    जहाँ एक ओर अवीक की सच्चाई सब से छिपी हुई थी, वहीं हनी ना किसी से कुछ कह रही थी, ना जताने की कोशिश कर रही थी। लेकिन बहन तो बहन होती है ना? तृषा को इसका अहसास हुआ कि उसकी बहन तकलीफ में है, मगर किस लिए, यह नहीं पता। और इंसान किसी के दिल की बात कुछ हद तक समझ सकता है, पूरी नहीं। अगर ऐसा होने लगे तो किसी से कुछ कहने की ज़रूरत ही ना पड़े।

    हनी एक ऐसी लड़की है जो बचपन से सबसे पहले अपने परिवार को रखती आई है और आज भी उसने सबसे आगे उन्हें रखा। उन्हें खुद के बारे में कुछ न बताकर वह सब के साथ हँसी-मज़ाक करती बैठी थी।

    जहाँ अंश और तान्या आमने-सामने थे, वहीं तृषा के पास हनी, राकेश जी, शोभा जी और हेमलता जी सब साथ में बैठकर आपस में बातें कर रहे थे। तान्या ने हनी का हाथ पकड़ रखा था।

    तभी हेमलता जी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, "बहन जी, सब कुछ तो ठीक है। मेरी बेटी हनी खुश है तो मुझे और क्या चाहिए? लेकिन आपका बड़ा बेटा दिखाई नहीं दे रहा। क्या वह घर पर कहीं है?"

    "मेरी बेटी" शब्द सुनकर ही राकेश जी और तृषा समझ गए कि उनकी माँ कुछ तो करना चाहती है। क्या पता नहीं? उनके इस सवाल से शोभा जी और अंश की हवाएँ उड़ गईं। दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। बीच में हनी ने बात को संभालते हुए बोली, "माँ, वह कमरे में है। आराम कर रहा है। कल रात से थोड़ी तबियत खराब हो गई है, इसीलिए नहीं आया।"

    हनी ने बोलना इसलिए सही समझा क्योंकि एक तो अंश और शोभा जी चुप थे, दूसरी बात हनी खुद के लिए अवीक के बारे में झूठ बोल रही थी। एक दिन में वह पूरी तरह तो अवीक को नहीं जान पाई थी, लेकिन इतना ज़रूर समझ गई थी कि अगर वह सबसे सामने आया, पक्का कुछ न कुछ ऐसी हरकतें होंगी जो किसी को पसंद नहीं आएंगी। इसीलिए हनी को बोलना सही लगा।

    वहीं शोभा जी हनी के इस क़दम से काफ़ी इम्प्रेस हुईं। वह मन में बोलीं, "बस इसीलिए तो मैंने तुम्हें चुना है अपने बेटे के लिए। मैं जानती हूँ तुम कभी लोगों के सामने उसका वो चेहरा नहीं लेके आओगी जिसे आज तक हम छुपाते आए हैं। थैंक्यू बेटा, तुम इतना समझ रही हो। बस गिल्ट इस बात का है, मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पा रही और न शायद कर पाऊँगी। मुझे इसके लिए माफ़ करना।" शोभा जी किसी बात को लेकर मन ही मन में दर्द से भरती जा रही थीं।

    अचानक से शोभा जी के चेहरे पर परेशानी की लकीर आ गई। वहीं अंश ने उन्हें देख अपना हाथ शोभा जी के ऊपर रखकर उन्हें शांत करते हुए आगे कहा, "भाभी सही कह रही है। भाई ज्यादातर अपने कमरे में ही रहते हैं और कल अचानक से उनकी तबियत खराब हो गई, जिसके कारण वह नीचे नहीं आए।"

    अंश की बात किसी को ज्यादा समझ में नहीं आई। कमरे में रहने से किसकी तबियत खराब हो जाती है? तभी तृषा के मन में सवाल उठे थे। लेकिन तृषा से रहा नहीं गया, तो वह बोली, "क्या उन्हें कोई बीमारी है जो घर के रहने से बीमार हो जाते हैं?"

    तृषा पहली बार किसी आदमी के बारे में ऐसी बातें सुन रही थी। वैसे तो उसने कई बार नेट पर भी अवीक के बारे में खोज की, मगर उसका कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि अवीक के बारे में उसके आस-पास वालों के अलावा और कोई नहीं जानता था कि अवीक कैसा इंसान है।

    तृषा की बात सुनकर एकदम से हनी तेज आवाज़ में बोली, "नहीं! वह ठीक है। उन्हें कुछ नहीं हुआ है। वह तो बस रात में ठीक से सोए नहीं थे और..."

    हनी का अचानक से ऐसा बिहेवियर देख सब उसकी तरफ़ देख रहे थे। शोभा जी और अंश की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। हनी अवीक को इतना प्रोटेक्ट कर रही थी, लेकिन तृषा को यह भाया नहीं। वह कड़क आवाज़ में बोली, "दी, मैं अंश से पूछ रही हूँ, आप क्यों जवाब दे रही हैं? आपको कितना ही पता होगा? कल ही तो शादी हुई और कमरे में रहने से बीमार हो गए?"

    तृषा ने थोड़ा तँत के लहजे में कहा जो सब को समझ में आया कि वह पूछने के साथ-साथ यह जानना भी चाहती थी कि आखिर क्या सच है? कोई बीमारी तो नहीं है?

    जिसका जवाब अंश ने हल्की मुस्कान के साथ दिया, "नहीं, भाई को कोई बीमारी नहीं है। बस ठंडे पानी से तबियत खराब हो गई है। अगर तुम यह जानना चाहती हो कि ठंडे पानी से कैसे हुआ, उसका जवाब भाभी दे सकती है। आखिर कल ही तो शादी हुई है और दोनों..."

    इसके आगे अंश कुछ नहीं बोला। उसने जानबूझकर आधे में अपनी बातें खत्म कर हनी की तरफ़ देखने लगा। वहीं हनी भी उसकी तरफ़ ही देख रही थी, जैसे अंश की आँखों में उसने कुछ पढ़ लिया हो। वह हल्के से शर्माकर सर नीचे झुका लेती है, जिसका साफ़ मतलब था कि दोनों के बीच कल कुछ हुआ होगा और साथ में नहाने के वजह से भी हो सकता है।

    तृषा हनी के चेहरे को देखकर समझ गई। वह अपनी बहन के लिए खुश भी थी और चिंतित भी। चिंतित इसलिए कि वह जानती है उसकी बहन अपनी तकलीफ़ इतनी जल्दी नहीं बताती है और अगर कोई दिक्क़त भी है तो हनी नहीं बताएगी। लेकिन कुछ ही देर में तृषा सारे थॉट दूसरी दिशा में फेक कर कुछ नहीं कहती।

    वहीं अब तक अंश की बात सब समझ गए थे और बेटी के पास बाप भी बैठे थे, जिसकी वजह से वहाँ का माहौल अजीब हो गया। सब की नज़र दूसरी-दूसरी दिशा में जाने लगी, जिसे देखकर शोभा जी बात संभालते हुए कहती हैं, "चलकर भोजन करते हैं। आज हनी ने अपने हाथों से अपनी पहली रसोई की रस्म करी है। देखते हैं वह कैसा बना है?"

    शोभा जी की बात सुनकर तृषा तुरंत बोली, "कैसा बना है यह नहीं आंटी। बहुत अच्छा बना होगा। जब मेरी दीदी ने बनाया है, फिर तो उसकी कोई कमी नहीं होगी। मैं जानती हूँ अपनी बहन को। वह दुनिया की बेस्ट कुक है।"

    तृषा अपनी बात कहकर हनी के हाथ को जैसे ही चूमने को हुई कि उसके कानों में एक जोरदार और कड़क आवाज़ गई, "छूने की कोशिश भी मत करना!"

    तृषा और हनी ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, दोनों ही चौंक गईं और सामने सीढ़ी की तरफ़ देखी, जहाँ पर अवीक खड़ा था।

    जारी...

    क्या होगा आगे? क्या करेगा अवीक सब से मिलकर? क्या करेगी हनी?

  • 8. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 8

    Words: 943

    Estimated Reading Time: 6 min

    जैसे ही सब ने अवीक की आवाज़ सुनी, सबकी नज़र सीढ़ियों की तरफ़ चली गई जहाँ अवीक खड़ा था। अवीक के बाल उसकी आँखों के ऊपर थे। वही ब्लैक शर्ट में वो काफी हैंडसम लग रहा था। अवीक को एकटक दोनों लड़कियाँ देखने लगीं। वह हेमलता और राकेश जी की भी नज़र ठहर गई। राकेश जी अवीक को देखकर अपनी बेटी के लिए खुश हो गए।

    क्योंकि सीढ़ियों पर अवीक की पर्सनैलिटी काफी अट्रैक्टिव थी। लेकिन यही इंसान की सबसे बड़ी गलती होती है, जो चेहरे को देखकर अच्छा-बुरा का भेद कर लेते हैं। लेकिन क्या यह सही है? नहीं। जब तक इंसान का स्वभाव ना पता हो, कोई भी राय नहीं बनानी चाहिए।

    जहाँ राकेश जी देखकर खुश थे, वहीं हेमलता जी जलभुन गईं। उन्होंने तुरंत ही अंश और अवीक को कंपेयर करना शुरू कर दिया—कौन ज़्यादा हैंडसम है? और ज़ाहिर सी बात थी, अवीक ज़्यादा हैंडसम लग रहा था। उसके गोरे चेहरे पर हल्की दाढ़ी, लम्बे बाल—वह काफी हैंडसम लग रहा था।

    "दीदी जीजू तो काफी हैंडसम हैं। क्या इसीलिए आप झूठ बोल रही थीं कि मैं उन्हें देख न लूँ?" तृषा ने हनी की तरफ़ झुककर मज़ाकिया लहज़े में बोला। जिसे सुनकर, ना चाहते हुए भी, हनी के चेहरे पर लाली आ गई। उसने तुरंत ही सिर नीचे कर लिया।

    वहीं अवीक की नज़र भी हनी के ऊपर थी। तभी अंश अवीक के पास आते हुए बोला, "भाई, अब आप कैसे हैं?" अंश ने जानबूझकर कहा क्योंकि अभी उसने सब से झूठ कहा था कि अवीक की तबियत ठीक नहीं है।

    अवीक ने अंश की बातें सुनकर आँखें सिकोड़कर जवाब दिया, "मुझे क्या हुआ है?"

    अंश झूठी हँसी के साथ बोला, "वो भाई..." अंश पूरा कहता कि बीच में शोभा जी बोलीं, "अरे, तुम्हें क्या हुआ है? कुछ तो नहीं... चलो अच्छा, आओ यहाँ। मैं तुम्हें हनी के मॉम-डैड से मिलवाती हूँ।"

    शोभा जी की बात सुनकर हनी, हनी के माता-पिता और राकेश, हेमलता सब अपने-अपने जगह से खड़े हो गए। सबके चेहरे पर लम्बी सी स्माइल थी।

    लेकिन अवीक ने शोभा जी की बातों को पूरी तरह इग्नोर करते हुए कहा, "मुझे किसी से नहीं मिलना है। बस अपनी बीवी को बुलाने आया था। बीवी, २ मिनट के अंदर कमरे में आओ।"

    अपनी बात कहकर अवीक ने न किसी की तरफ़ देखा, न किसी की बातें सुनना उसे ज़रूरी लगा और न उसने किसी का लिहाज़ किया। बस अपनी बात कहकर कमरे की तरफ़ चला गया। वहीं शोभा जी का सिर शर्म से झुक गया। उन्हें अंदाज़ा था अवीक ऐसा कुछ करेगा, लेकिन मन में एक उम्मीद थी कि अवीक शायद हनी के परिवार से मिल सके।

    वहीं हनी भी खुद किसी से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। क्योंकि माता-पिता के सामने ऐसी बातें किसी के लिए भी शर्मिंदगी से भरी होंगी। वहाँ का माहौल ही अजीब हो गया। कुछ देर के लिए शांति फैल गई पूरे लिविंग रूम में।

    तभी तृषा ने बात संभालते हुए कहा, "दीदी, आप यहाँ क्यों हैं? जाइए। हो सकता है जीजू को कोई काम हो। आप जाइए। हम कभी और मिल लेंगे। अब तो आपसे कभी भी मिल सकते हैं, फिर जीजू से भी मिलता हो जाएगा आप कमरे में।"

    तृषा ने कहा तो अंश ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, "हाँ भाभी। क्या पता भाई कोई फ़ाइल चाहिए हो। वो आपको बुला रहे हैं। जाइए आप, भाई का काम कर दीजिए।"

    हनी जानती थी अंश झूठ बोल रहा है। अवीक तो कभी घर से बाहर जाता ही नहीं, वो घर में ही रहता है। लेकिन वो कुछ ना बोलकर उंगलियों को उलझाते हुए अपना सिर हाँ में हिलाती है और वहाँ से चली गई।

    उन्होंने मुझे क्यों बुलाया होगा? कहीं फिर से मुझे वो सब तो नहीं दिखाने वाले हैं? नहीं-नहीं, उन्होंने तो कहा था रात में दिखाते हैं, दिन में नहीं। फिर क्यों बुलाया है? मैं जाऊँ कि न जाऊँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा? हनी मन में सोचते हुए कमरे की तरफ़ चली गई, लेकिन उसके कदम काँप रहे थे। इच्छा तो बिलकुल नहीं थी वो जाए, क्योंकि वो जानती है उसके जाने के बाद अवीक कुछ तो करेगा। उसे डर और विश्वास दोनों था, क्योंकि दो मुलाक़ातों के अंदर ही वो उसे थोड़ा-बहुत जानने लगी थी।

    लेकिन अब उसने सबके सामने बुलाया ही है, फिर कैसे हनी मना कर सकती है? वो परेशान सी होकर कमरे में चली गई।

    नीचे सब बैठे रहे। अवीक का व्यवहार देखकर हेमलता जी से रहा नहीं गया। वैसे तो अंदर से खुश थीं, लेकिन सच्चाई वो सबके मुँह से सुनना चाहती थीं। लेकिन वो सब कुछ इग्नोर करके बोलीं,

    "लगता है आपके बड़े बेटे को तमीज़ नहीं है कि घर आए मेहमान से बात भी कर लें। इस मुँह-बन के नहीं कहते। लेकिन वहीँ आपका छोटा बेटा अंश है, देखिए कितने अच्छे संस्कार दिए हैं आपने।"

    हेमलता जी जुबान की ख़र हैं, लेकिन जो कहती हैं वो सच होता है। वो नहीं देखती सामने कौन है, उन्हें जो कहना है वो कह देती हैं। आगे बोलने से बात कुछ भी हो, उन्हें फर्क भी नहीं पड़ता।

    हेमलता जी की बात सुनकर एक तरफ़ तृषा, दूसरी तरफ़ राकेश जी अपने-अपने हाथ से हेमलता जी के हाथ को पकड़ लेते हैं जिससे वो चुप रहें। लेकिन वो चुप नहीं होतीं और कहती हैं,

    "बुरा मत मानिएगा बहन जी, लेकिन आपका बड़ा लड़का पसंद नहीं आया। उससे कहीं अंश से ज़्यादा न वो काबिलियत है और न ही..."

    हेमलता जी ने अपनी बात कहकर देखने लगी सभी को। सब भी शांत हो गए थे।

    इधर हनी जैसे ही कमरे में आई, कमरे में पूरा अंधेरा था। उसे घबराहट हो रही थी। एक साइड में जाकर बैठ जाती है और उसी दौरान अमृता अवीक के कमरे में रहने के बारे में सोचती है।

    जारी...

  • 9. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 9

    Words: 1291

    Estimated Reading Time: 8 min

    बुरा मत मानिएगा बहन जी, लेकिन आपका बड़ा लड़का पसंद नहीं आया। इसमें अंश से ज़्यादा न वो काबिलियत है और न ही…

    हेमलता जी ने अपनी बात कह दी। सभी शांत हो गए थे।

    इधर, हनी जैसे ही कमरे में आई, कमरे में पूरा अंधेरा था। उसे घबराहट हो रही थी। वह एक साइड में जाकर खड़ी हो गई।

    हेमलता जी के मुँह में जो आया, वो बोल गईं। लेकिन उनकी बात सुनकर अंश और शोभा जी एक-दूसरे को देखने लगे। उनके आँखों में कोई दुख या बुरा लगने जैसा कुछ दिखाई नहीं दिया। लेकिन क्या था, ये उन्हें ही पता है।

    हेमलता जी की बात सुनकर शोभा जी बोलीं,

    "ऐसा आपको लगता है बहन जी, लेकिन हमें नहीं लगता कि हमारे अवीक को तमीज़ नहीं है। लेकिन अगर ऐसा आपको लगा तो उसके लिए हम माफ़ी माँगते हैं। वो ऐसा ही है, उसे लोगों से ज़्यादा लगाव नहीं है। हमसे भी बहुत कम बात करता है। लेकिन जब से हनी उसकी ज़िंदगी में आई है, वही उसकी सब कुछ हो गई है।"

    हेमलता जी ये सुनकर अंदर ही अंदर खुश होकर बोलीं, "मुझे पता है आप कुछ छिपा रही हैं। लोगों को पहचानने का अनुभव आपसे ज़्यादा मुझे है, समधी जी। आपके बड़े बेटे में कुछ तो गड़बड़ है, जो मैं जानकर रहूँगी। लेकिन उससे पहले मेरा यहाँ आने का मकसद पूरा करना होगा।"

    हेमलता जी जब काफ़ी देर तक कुछ नहीं बोलीं, तो शोभा जी कहती हैं,

    "क्या हुआ? आप क्या सोचने लग गईं?"

    हेमलता जी ख़यालों से बाहर आकर बोलीं, "कुछ नहीं, बस यही सोच रही थी कि सब कितना अच्छा है। मेरी दोनों बेटियाँ एक ही घर में रहेंगी। अरे हाँ, मैं भूल गई! क्यों ना आज ही हम अंश और तान्या की शादी की तारीख़ पक्की कर दें? सब आये हैं, तो इसी वजह से ये भी हो जाए। नेक काम में देरी क्यों?"

    हेमलता जी ने बड़ी चालाकी से अपनी बात कही। लेकिन तान्या को ये बात पसंद नहीं आई। वह तुरंत ही हेमलता जी को शांत करते हुए बोली,

    "आप ये क्या कह रही हैं, मॉम?"

    बीच में हेमलता जी बोलीं, "क्या मैंने कुछ गलत कहा?"

    तृषा कुछ नहीं बोल पाई। तो शोभा जी बोलीं,

    "नहीं, आपने कुछ गलत नहीं कहा। ये बात तो मैं भी करने वाली थी। चलिए, जब आये हैं तो बात यहीं पर हो जाए, अच्छा है।"

    उनकी बात पर हेमलता जी सिर हिला देती हैं। लेकिन उनकी खुशी उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी। वो यही तो चाहती थीं, तो खुश क्यों नहीं होंगी? तभी शोभा जी कहती हैं,

    "ठीक है, मैं अपने पंडित जी से बात करके शादी की डेट निकालकर आपको बता दूँगी। आप भी अपने पंडित जी से पता कर लीजिए।"

    हेमलता जी हाँ में सिर हिला देती हैं। वे कुछ देर बात करके सब घर के लिए निकल गए। लेकिन लास्ट में तान्या हनी से मिलना चाहती थी, बात करना चाहती थी। लेकिन हनी दुबारा नीचे आई ही नहीं और न वो ऊपर जा सकी। तृषा उदास होकर चली गई। वो अपनी बहन की ज़िंदगी में घुसना भी नहीं चाहती थी।

    लेकिन मजबूरन उसे घर से जाना पड़ा। उसके जाने के बाद अंश ने शोभा जी से गुस्से में कहा,

    "आपने शादी के लिए हाँ क्यों कहा?"

    उसके सवाल पर शोभा जी अजीब तरह से अंश को देखने लगीं, जैसे उसकी बातें काफ़ी बेकार किस्म की थीं। उन्हें कुछ न कहते देख अंश बोला,

    "आपसे मैंने पहले ही कहा था, मैं शादी नहीं करना चाहता हूँ अभी तो! आपने शादी की डेट की बात तक कर ली। मैं भी बगल में बैठा था। एक बार आप बात तो कर लेतीं ना!"

    शोभा जी गुस्से में बोलीं, "अब तुम मुझे बताओगे कि मुझे क्या करना है, अंश? ये मत भूलो, तुम्हें तुम्हारे भाई की शादी करनी थी, जो हो गई। लेकिन उसके लिए हमने तुम्हारी शादी की बात की है तृषा से। और हनी की शादी इसीलिए हुई क्योंकि उन्हें लगता है तुम तृषा से प्यार करते हो। अगर ये शादी नहीं हुई तो अवीक का क्या होगा? हेमलता ने हनी की शादी अवीक से कराई है।"

    अंश इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी शोभा जी उसके कंधे से पकड़कर बोलीं,

    "अंश, मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रहे हो। तुम्हारा भाई एक सनकी इंसान है, साइको है, जो लड़की को मारता है बेरहमी से। उसे कैसे भी करके हमने इस घर में छुपाकर रखा है। लेकिन वो दुबारा गलती बाहर न करे, इसीलिए हमने हनी से शादी कराई है। लेकिन बच्चा, अगर तृषा से तुमने शादी नहीं की तो हनी यहाँ नहीं रहेगी। वो अपनी बहन के लिए आई है।"

    अंश शोभा जी का हाथ झटककर वहाँ से चला गया। कमरे में जाते ही उसने सारे सामान को नीचे फेंककर कहा,

    "लेकिन आप समझ नहीं रही हैं, मॉम! वो नहीं है जो आप सोच रही हैं।"

    अंश काफ़ी परेशान था। क्या पता नहीं उसके दिमाग़ में क्या चल रहा है? ये कोई नहीं जानता? या शायद वो भी नहीं?

    ख़ैर, थोड़ी देर बाद वो ऑफ़िस के लिए निकल गया। इधर, शोभा जी किचन में चली गईं। वहाँ कमरे में हनी अभी भी उस अंधेरे कमरे में पसीने से लथपथ खड़ी थी। उसकी उंगलियाँ एक-दूसरे में उलझी हुई थीं। न वो बाहर जा सकती थी, न लाइट ऑन कर सकती थी, क्योंकि कल रात में ही अवीक ने उसे मना किया था कि वो इस कमरे की किसी की भी चीज़ को हाथ नहीं लगा सकती।

    काफ़ी वक़्त तक जब हनी वैसे ही खड़ी रही, तभी उसके कान में अवीक के पैरों की आवाज़ आई। वो आवाज़ ऐसी थी कि हनी के रोंगटे खड़े हो गए। वो काँपने लगी। तभी अचानक से अवीक ने लाइट ऑन किया। सामने देखा तो हनी आँखें बंद करके खड़ी थी।

    "तुम ऐसे यहाँ पर क्यों खड़ी हो? मुझे लगा नीचे से तुम आई ही नहीं।"

    अवीक के सवाल पर हनी आँखें खोलकर उसे देखने लगी। उसकी नज़रों को समझकर अवीक ने गाल पर हाथ रखकर कहा,

    "मैंने दूसरे कमरे के सामान को हाथ लगाने से मना किया था, लाइट ऑन करने से नहीं। ये कमरा तुम्हारा भी है, तुम जैसे चाहो वैसे रह सकती हो।"

    अवीक के अचानक बदले बर्ताव से हनी को कल रात का सीन याद आया, जब अवीक इसके दोनों हाथों को पकड़कर उसकी उंगलियाँ खींचते हुए बोला था,

    "मेरी बात मानने से इंकार करोगी?"

    हनी दर्द और डर में बस ना में सिर हिला रही थी। उसके आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। उसे पता ही नहीं चला कब ये आँसू फिर से बहने लगे।

    जब अवीक ने उसके आँसू साफ़ करके कहा,

    "क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो? क्या मेरी बात बुरी लगी? मैंने कुछ गलत किया हाँ?"

    हनी अपने होश में आते ही अपने आँसू साफ़ किये और जल्दी से ना में सिर हिलाकर बोली,

    "नहीं, मैं... मैं ठीक हूँ। आपने कुछ नहीं किया।"

    अवीक उसके आँखों के झाँक के बोला,

    "जब मैंने कुछ नहीं किया तो तुम्हें रोने का हक़ किसने दिया?"

    हनी आवाक से देखती रह गई। अभी अवीक को अच्छा समझकर कह दिया, लेकिन क्या उसके कहने से नाराज़ हो गया अवीक? ये ख़याल हनी के मन में चलने लगे। वो घबराते हुए कुछ कहने लगी कि अवीक ने उसके मुँह पर हाथ रखकर कहा,

    "मैं नाराज़ नहीं हूँ। तुम्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।"

    एक बार फिर हनी देखती रह गई। ये कैसा इंसान है जो पल भर में बदल जा रहा है। हनी ने सोचा तो अवीक ने कहा,

    "अच्छा, जब तुम आ ही गई हो, चलो हम बाहर चलते हैं। मैं अपनी फ़ेवरेट जगह तुम्हें दिखाता हूँ।"

    हनी कुछ कह नहीं पाई। अवीक उसका हाथ पकड़कर कमरे से बाहर निकल गया और सीधे घर के पीछे के दरवाज़े से बाहर निकल गया।

    जारी...✍️

    क्या होगा आगे? क्या अवीक सच में एक साइको है? अवीक हनी को कहाँ लेके गया है?

  • 10. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 10

    Words: 1462

    Estimated Reading Time: 9 min

    "मैं नाराज नहीं हूँ, तुम्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।"

    एक बार फिर हनी देखती रह गई। यह कैसा इंसान है जो पल भर में बदल जा रहा है! हनी ने सोचा। तब अविेक ने कहा,

    "अच्छा, जब तुम आ ही गई हो, चलो हम बाहर चलते हैं। मैं अपनी फेवरेट जगह तुम्हें दिखाता हूँ।"

    हनी कुछ कह नहीं पाई। अविेक उसका हाथ पकड़कर कमरे से बाहर निकल गया और सीधे घर के पीछे के दरवाज़े से बाहर निकल गया।

    अविेक जैसे ही हनी को लेकर घर के पीछे गया, वहाँ का दृश्य देखकर हनी थोड़ी हैरान हुई। क्योंकि घर की खूबसूरती जितनी बाहर से थी, उससे कई गुना ज़्यादा पीछे की तरफ थी। तरह-तरह के पौधे और यहीं नहीं, बल्कि चार से पाँच गाड़ियाँ खड़ी थीं। उन्हें देखकर कोई भी कह सकता था कि वे करोड़ों से कम नहीं हैं।

    हनी तो बस देखती रह गई, लेकिन उसे एक बात और समझ में नहीं आई—आखिर घर के पीछे की साइड इतनी खूबसूरत क्यों है? और यहाँ किसकी गाड़ी खड़ी है? या क्यों सामने भी तो हो सकती है? लेकिन सिर्फ़ यही सब हनी के दिमाग में चल रहा था। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उसके दिमाग को अविेक ने अपने शब्दों से शांत कर दिया। जब उसने हनी का हाथ पकड़कर एक रेड मार्सेडीज़ के पास ले जाते हुए कहा,

    "तुम ज़्यादा इन सब के बारे में मत सोचो। ये सारी गाड़ियाँ मेरी हैं और यहाँ पर जितने भी पौधे और बाकी सब है, वो मेरी पसंद का है।"

    अविेक की बात सुनकर हनी से रहा नहीं गया। वो बोली, "लेकिन ये सब घर के सामने भी तो हो सकते हैं। घर के पीछे की साइड क्यों? यहाँ तो कोई आया ही नहीं है।"

    हनी के सवाल पर अविेक के होंठों पर मुस्कान आ गई, जो कोई साधारण नहीं थी। वो हँसते हुए अपनी मुँड टेढ़ी कर हनी को देखने लगा। लेकिन उसके इस हरकत से हनी की घबराहट शुरू हो गई। उसने मन में कहा, "क्या मैंने इनसे कुछ पूछकर उन्हें गुस्सा तो नहीं दिला दिया? अगर ये गुस्से में फिर से मुझसे नाराज़ हो गए तो मैं क्या करूँगी?? मुझे तो इन्हें देखकर ही डर लग रहा है।"

    हनी यही सोच रही थी कि अविेक ने मुँड टेढ़ी कर हाथ उठाकर उसके बालों को पीछे करने लगा। हनी घबराहट भरी निगाहों से उसे देख रही थी। आखिर वो क्या कर रहा है? अविेक जैसे ही बाल पीछे किया, वो हनी के गाल पर हाथ रखकर बोला,

    "डार्लिंग, तुम इतना क्यों सोचती हो? क्या बच्चों को पढ़ाते वक्त भी इतना सोचती हो? बताओ मुझे।"

    हनी ने जल्दी से ना में सिर हिला दिया। तो अविेक बोला, "ये मेरी जगह है। यहाँ कोई आए, मुझे पसंद भी नहीं है। और मुझे लोगों के पीछे रहकर काम करने में मज़ा आता है। मैं नहीं चाहता कोई मुझे सामने देखें या मेरे बारे में जाने। मैं सब से पीछे होकर भी सबसे आगे रहता हूँ। यही तो खास बात है मुझमें। अविेक को कोई जानता भी नहीं है।"

    हनी अविेक की बातों को समझ नहीं पा रही थी। उसकी बातों में कुछ था, जैसे इंसान कभी-कभी कुछ और होता है और दिखाता खुद को कुछ और। ऐसा ही कुछ हनी को अविेक को देखकर लग रहा था। लेकिन उसकी आँखों में एक कसीस थी, वो बेहद ही नशीली थी, जिसे देखकर हनी की नज़र खुद ब खुद नीचे झुक गई। वो ज़्यादा देर तक अविेक की आँखों में नहीं देख पा रही थी। उसके उस क़िस्म के आकर्षण से हनी को अपने अंदर कुछ अलग फील हो रहा था, जिसे आज तक उसने कभी महसूस नहीं किया था। ये पहली बार था।

    अविेक हनी को बड़े गौर से देख रहा था। वो फिर से हनी के बालों को सँवारकर कहा,

    "मैंने कहा ना, अपने इस छोटे से दिमाग को ज़्यादा यूज़ मत करो। तुम अगर मेरी बात नहीं समझ पा रही हो, तो कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि ये तुम्हारे समझ के परे है। जहाँ तुम या कोई और तक नहीं जा सकता। जहाँ लोगों की सोच खत्म होती है, मेरी शुरू होती है। इसीलिए मुझे कोई नहीं समझ सकता।"

    अविेक की गोल-गोल बातें हनी के समझ से सच में काफ़ी दूर थीं। लेकिन उसकी बातें कितनी भी हों, वो थोड़ा-बहुत समझी। उसकी भौंहें तन गईं, जिसे देखकर अविेक समझ गया। उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर कहा, "छोड़ो, दिमाग नहीं है तुम्हारे पास। चलो, बैठो अंदर। हमें कहीं जाना है।"

    हनी इस बार अविेक की बातों पर ज़्यादा ध्यान न देकर अंदर बैठने लगी। जैसे ही वो सीट पर बैठी, उसे समझ में आया कि अविेक ने उसे अभी-अभी क्या कहा था—"तुम्हारे पास दिमाग नहीं है।" उसकी नज़रें एकदम से अविेक पर चली गईं। उसने मन में कहा, "क्या मेरे पास दिमाग नहीं है? क्या ये कहना चाहिए था? लेकिन ये कैसे कह सकते हैं, मेरे पास दिमाग नहीं है?"

    हनी को ये बात काफ़ी बुरी लगी। आज तक सब कहते थे कि हनी, तुम स्मार्ट, इंटेलिजेंट हो। कॉलेज से लेकर स्कूल तक वो टॉपर रही है। इसके जैसा प्रोफ़ेसर आज तक नहीं आया। लोग हनी के टीचिंग से इतने इम्प्रेस रहते थे, कॉलेज में बस उसके ही क्लास लेने आते थे। लेकिन आज अविेक ने कहा कि उसके पास दिमाग नहीं है। जो हनी के दिल पर लग गया।

    वो खिड़की के बाहर देखकर बोली, "कोई मुझे कह रहा है मेरे पास दिमाग नहीं है? ये जानते क्या हैं मेरे बारे में? कैसे कह सकते हैं? सब मेरी तारीफ़ें करते हैं और ये मुझे कह रहे हैं मेरे पास दिमाग नहीं है। दिमाग तो उनके पास नहीं है जो रात में वो वाली हरकतें..."

    उसके आगे के शब्द उसके गले में ही अटक गए, क्योंकि बीच में सीट बेल्ट लगाते हुए अविेक ने कहा, "दिमाग ज़्यादा मत चलाओ। मैंने बस मेरी बातों को न समझने के लिए 'दिमाग नहीं है' ये कहा है। बीच में कॉलेज और पढ़ाई को नहीं लाया।"

    एक बार फिर हनी हैरान रह गई। उसने जो मन में कहा, वो अविेक को पता चल गया। वो बोली, "ऐसे कैसे हो जाता है? हर बार मैं जब भी मन में बोलती हूँ, उन्हें पता चल जाता है। अब मैं कुछ बोलूँगी ही नहीं।"

    अविेक ने दो टूक में कहा, "गुड गर्ल! मुँह और मन दोनों बंद करके बैठो। क्योंकि मैं तुम्हारा दोनों सुन सकता हूँ। और अभी जो तुमने मुझे कहा कि रात को अगर ऐसा तुम सोचती हो तो वो रात में करते..."

    हनी एकदम से डर से बोली, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं कहा मैंने। मेरा वो मतलब नहीं था।"

    अविेक ने सिर हिलाकर सीट बेल्ट लगा लिया। जिसे समझकर हनी ने जल्दी से सीट बेल्ट लगाई। और कुछ ही पल में गाड़ी स्टार्ट होकर सड़कों पर दौड़ने लगी। ना हनी ने कुछ कहा, ना अविेक ने। कुछ देर में अविेक की कार शहर के बाहर निकल गई। जिसे देखकर हनी का दिल काँपने लगा। उसे ऐसा लग रहा था, शायद उसने जो कहा उसकी वजह से अविेक नाराज़ हो गया है। जो गुस्से में इसे यहाँ से दूर ले जा रहा है। हनी अंदर ही अंदर डर रही थी, लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी वो कुछ पूछ सके। तभी कुछ देर के इंतज़ार में अविेक ने एक जगह पर अपनी गाड़ी रोकी और कार से बाहर निकल गया। दूसरी तरफ से हनी भी बाहर आई। उसने देखा तो दूर-दूर तक कोई नहीं था। पूरा मैदान खाली था। आस-पास सिर्फ़ पत्थर और पहाड़ थे और कुछ नहीं—ना इंसान, ना जानवर। हनी सवालिया निगाहों से अविेक को देखने लगी।

    तभी अविेक ने उसके पास आकर कहा, "तुम सही सोच रही हो। यहाँ हम दोनों के अलावा और कोई क्यों नहीं है? तो यहाँ कोई नहीं आता सिवाय मेरे। लेकिन आज यहाँ मैं और तुम दोनों हैं, तो मैं तुम्हारे साथ आज कुछ भी कर सकता हूँ। यहाँ कोई हमें नहीं देखेगा। ये कितना रोमांचक है ना?"

    अविेक ने चेहरे पर तिरछी मुस्कान के साथ कहा और क़दम हनी की तरफ़ ले रहा था। वहीं हनी पीछे की तरफ़ जाने लगी, लेकिन वो ज़्यादा दूर न जाकर कार के बोनट से टकराकर रुक गई। लेकिन नज़रों में डर साफ़ नज़र आ रहा था।

    हनी आस-पास देखकर कुछ समझती, कि अविेक के हाथ उसके कमर को पकड़ लिए। जिसके छुवन से हनी डर से काँप गई।

    जारी...

    क्या होगा आगे? कहाँ लेके आया हनी को अविेक? और क्यों लेके आया है? क्या मक़सद है उसका? क्या हनी वहाँ से जा पाएगी बाहर? या यहीं रहकर अविेक का सीक्रेट बनेगी?

  • 11. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 11

    Words: 1591

    Estimated Reading Time: 10 min

    अवीक ने चेहरे पर तिरछी मुस्कान के साथ कहा और कदम हनी की तरफ़ ले रहा था। वहीँ हनी पीछे की तरफ़ जाने लगी, लेकिन वह ज़्यादा दूर नहीं जा सकी और कार के बोनट से टकराकर रुक गई। लेकिन उसकी नज़रों में डर साफ़ नज़र आ रहा था।

    हनी आस-पास देखकर कुछ समझ पाती, इससे पहले ही अवीक के हाथ उसके कमर को पकड़ लिए। इसके स्पर्श से हनी डर से काँप गई।


    "माँ, आपको ये सब कहने की क्या ज़रूरत थी? हम तो हनी दी से मिलने आए थे, ना कि शादी की बात करने। फिर आपने क्यों शादी की बात की? क्या कुछ दिन आप रुक नहीं सकती थीं?"

    तृषा ने नाराज़गी से कहा और सोफ़े पर बैठ गई। उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए राकेश जी बोले,

    "सच कहूँ तो मुझे उस वक़्त इतना गुस्सा आया कि क्या कहूँ, बस कुछ कर नहीं पाया। एक बेटी कैसी है, कैसी नहीं, ज़्यादा कुछ पता नहीं और दूसरी की बात भी कर ली। मैं तो भाई समझाते-समझाते थक गया हूँ। अब तो मेरे कहने का कोई मतलब भी नहीं रह गया यहाँ तो..."

    अपनी बात कहते हुए राकेश जी जूते निकालने लगे। वहीँ उनके बगल में आँखें बंद करके हेमलता जी बैठी थीं। जब दोनों बाप-बेटी शांत हो गए, तभी हेमलता जी बोलीं,

    "आप दोनों का हो गया हो तो मैं कुछ हूँ?"

    उनकी बात सुन तृषा बोली, "क्या अभी बोलने के लिए कुछ है, मॉम?"

    "हाँ है। मेरी बात वो रह गई है, उसे भी तुम सबको सुनना होगा।"

    "वही घिसा-पिटा ही कुछ बोलेंगी आप।" तृषा ने बेमन से कहा। उसकी बातों से साफ़ ज़ाहिर हुआ कि वह उनकी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती है, लेकिन फिर भी वह बैठी रही। तभी हेमलता जी बोलीं,

    "ना मन हो फिर भी सुनो। अभी तुम दोनों ने क्या कहा कि मुझे शादी की बात नहीं करनी चाहिए थी? तो मुझे ये बताइए, अगर नहीं करती, तब तुम दोनों करते नहीं? तुम दोनों को बस अपनी वो हनी दिखाई देती है और दूसरा कोई नहीं। लेकिन मुझे दिखते हैं लोग और मेरी बेटी मेरे लिए ज़रूरी है। उसके लिए मैं एक बार नहीं, कई बार कर सकती हूँ।"

    "आप यही तो करती हैं। खुद के आगे आपको कोई और नहीं दिखाई देता। कहाँ है हनी दी? आप के लिए अपनी जान तक दे देंगी, लेकिन वो आप कभी नहीं दिखेंगी। पता नहीं उनसे क्या दिक्क़त है आपकी?"

    "हनी, हनी, हनी! आख़िर उस लड़की में ऐसा क्या है जो उसके ही गुण गाते रहते हो तुम बाप-बेटी? और भी बाकी इंसान हैं यहाँ पर, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता।"

    "उनके अंदर की अच्छाई आपकी आँखें नहीं देख सकतीं, क्योंकि आपकी आँखों पर काले रंग की पट्टी लगी है जहाँ से कुछ भी दिखाई नहीं देता, मॉम।"

    "अगर दिखाई नहीं दे रहा तो दिखाओ मुझे। आख़िर मैं भी तो देखूँ असली सच्चाई क्या है?"

    "ये कोई दिखाने की चीज़ नहीं है, मॉम। खुद का दिल साफ़ होना चाहिए किसी की अच्छाई देखने के लिए।"

    "क्या तुम कहना चाहती हो मेरा दिल काला है?"

    "मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा और न कहना चाहती हूँ। आप खुद अपने दिल की बात ज़ुबान पर ला रही हैं। आपको पता है आपका दिल कैसा है।"

    "अब तुम अपनी माँ से ऐसी बातें करोगी? वो भी उस लड़की के लिए! मुझे ताने मारे जाएँगे, मेरा दिल काला है, हाँ, यही सब देखना बाकी था!"

    "आप फिर से सारी चीज़ें हनी दी पर क्यों ले जा रही हैं? मैंने कहा मेरी बात सुनिए। मैंने आपका दिल काला कहा है?"

    "क्यों ना ले जाऊँ? उसके ऊपर सारी कहानी का जड़ वही तो है, फिर उसे कैसे छोड़ दूँ मैं?"

    "आपसे बात करना ही बेकार है।" तृषा चिढ़ के बोली और उठकर वहाँ से जाने लगी, लेकिन पीछे से हेमलता जी चिल्लाईं, "तृषा, बात सुन के जाओ।"

    उनकी एक बात भी तृषा नहीं सुनी और वहाँ से चली गई। हेमलता जी गुस्से के घूँट पीकर ऐसी ही बैठी रहीं। तभी अपनी जगह से राकेश जी खड़े होकर बोले, "तुम्हारी ये नफ़रत ही तुम्हें एक दिन ले डूबेगी। तब तुम्हें अहसास होगा आख़िर सब हनी को इतना प्यार क्यों करते हैं। उसके अंदर की अच्छाई है, जब तुम्हारे आँखों के पर्दे को हटाएगी, तब सारी बातें तुम्हारे अंदर आएंगी।"

    राकेश जी बोलकर निकल गए, लेकिन हेमलता जी उन्हें बड़े ध्यान से देख रही थीं। उनके जाने के बाद मन में बोलीं,

    "ऐसा दिन कभी नहीं आएगा और ना मैं आने दूँगी। वो लड़की ना मुझे पहले पसंद थी, ना कभी होगी।"

    वह वहीं बैठकर सोचने लगी।

    समय किसी ने नहीं देखा है, कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। और कभी-कभी इंसान जिससे नफ़रत करता है, अक्सर सबसे ज़्यादा प्यार भी उसी से करता है। अब तो वक़्त ही बताएगा कौन सही है और कौन गलत?

    उधर अवीक ने हनी के कमर में हाथ डालकर उसे उठा लिया और सीधे कार के बोनट पर बैठाकर उसके पास आकर खड़ा हो गया। हनी बस भौचक्की होकर देख रही थी। वह क्या कहे, उसे इसका भी डर था कहीं अवीक नाराज़ न हो जाए।

    "स्वीटहार्ट, पता है तुम्हारी ये आँखें मुझे बहुत पसंद हैं। इतनी कि मन करता है इन्हें निकाल लूँ और दिल के करीब रखकर बैठा रहूँ।"

    अवीक की ख़तरनाक बातें सुन हनी का गला सूखने लगा। डर से उसे खुले आसमान में भी घुटन होने लगी।

    वहीँ फिर से अवीक ने हनी के गालों को छूते हुए कहा, "लेकिन मैं ऐसा नहीं करूँगा। पता है क्यों?"

    अवीक ने भावुकता दिखाते हुए कहा। हनी उसका मतलब समझकर ना में सिर हिला देती है। तब अवीक कहता है, "क्योंकि तुम मेरी जान हो। तुम्हारे ये आँखें और बाकी फ़ीचर से मुझे बहुत प्यार है। जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी मेरा ये दिल तुम्हारे इन मासूम से भोले पर फिसल गया।"

    अवीक ने हनी के गालों पर अपनी उंगलियों की पकड़ बनाकर बोला। हनी उसके बातों का कोई जवाब नहीं दे पा रही थी। बस दिल की धड़कनें डर से तेज थीं। कहीं उसके किसी भी हरकत पर अवीक नाराज़ होकर उसे मारकर यहीं फेंक न दे। वो दो दिनों में उसकी कुछ हरकतें देखकर समझ गई थी कि अवीक को मौत से डर नहीं लगता है।

    लेकिन हनी को बहुत डर लगता है मौत से। वह बस आँखें फाड़कर अवीक को देख रही थी। उसके होंठ बाहर निकले थे, जिसे अवीक ने पकड़ लिया और कहा, "ये खुलते भी हैं कभी या ऐसे ही बंद रहना पसंद है?"

    उसके सवाल पर हनी ने हाँ में सिर हिला दिया। तो अवीक उसके होंठों को छोड़ बोला, "बोलो फिर चुप क्यों हो? क्या ये जगह तुम्हें पसंद नहीं आई?"

    हनी ने धीरे से कहा, "यहाँ कोई है नहीं, सिर्फ़..."

    बीच में अवीक तिरछी स्माइल कर कहा, "क्यों? तुम चाहती हो क्या दूसरा कोई हो जो तुम्हें देखे?"

    हनी ने ना में सिर हिलाकर बोली, "नहीं, मेरा वो मतलब नहीं है।"

    अवीक: "फिर लोग क्यों चाहिए? अकेले भी तो रहना चाहिए। लोगों के सामने दिखाना ही सही है क्या?"

    हनी: "आप अजीब कहते हैं।"

    अवीक: "क्यों?"

    "पता नहीं।" हनी बोली।

    अवीक कुछ ना बोल के देखता रहा। फिर कुछ देर बाद वो हनी के कमर में हाथ डालकर उसे अपने पास खींच लिया। हनी इसके लिए तैयार नहीं थी। वह हैरानी से अवीक को देखने लगी। कैप्टन उसके हाथ अवीक के कंधे को मज़बूती से पकड़ लिए थे।

    अवीक ने बड़े प्यार से कहा, "तुम बचपन से अकेली रही हो। तुम्हें किसी का प्यार नहीं मिला। इसीलिए तुम्हें अपने पास कोई चाहिए। लेकिन मुझे अकेले रहना पसंद है। मैं चाहता हूँ ये पूरी दुनिया काली हो जाए, अंधेरा छा जाए और मैं उसमें अकेले रहूँ।"

    "आप मेरे बारे में इतना सब कैसे जानते हैं?"

    "तुमसे भी ज़्यादा जानता हूँ मैं।"

    "कैसे?"

    "क्या करोगी जान के? कुछ करोगी?"

    हनी ना में सिर हिलाकर चुप हो गई। अवीक भी कुछ न बोलकर हनी के सीने पर हाथ रखकर खड़ा रहा। हनी बस उसे हिचकिचाहट में देख रही थी, क्योंकि वह अवीक के ऊपर हाथ रखे या नहीं, पहले ही अनजाने में कंधे पर हाथ चला गया था, लेकिन उसने दुबारा अपना हाथ पीछे खींच लिया था।

    कुछ देर में शाम होने लगी। सूरज डूबने के कगार पर था। अवीक सिर निकालकर हनी से बोला, "तुम्हें जो दिखाने लाया हूँ, पहले वो देखो।" अपनी बात कह उसने सामने की दिशा की ओर दिखाया जहाँ सूर्य अपनी रंग-बिखेरकर डूब रहा था।

    हनी ने देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। आँखों में देखने की चमक थी। तभी वहीं पर खुशी से उसके मुँह से उसी वक़्त निकला, "ये कितना खूबसूरत है! मैंने आज से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था।"

    अवीक कुछ ना कह के उसे ही देख रहा था। लेकिन हनी जहाँ खुश थी, अचानक से उसकी सारी खुशी कहीं गायब हो गई। आँखों में बेचैनी आ गई। उसकी नज़र किसी और दिशा में थी। अवीक भी उसका चेहरा देख ही रहा था। उसके बिगड़े स्वभाव देखकर वह भी पीछे मुड़कर देखने लगा। उसकी भी नज़र एक जगह जाकर टिक गई।

    जारी...

  • 12. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 12

    Words: 1520

    Estimated Reading Time: 10 min

    कुछ देर में शाम होने लगी। सूरज डूबने के कगार पर था। अवीक सिर निकालकर हनी से बोला, "तुम्हें जो दिखाने लाया हूँ, पहले वो देखो।" अपनी बात कहकर उसने सामने की दिशा दिखाई जहाँ सूर्य अपनी रंग-बिखेर कर डूब रहा था।

    हनी ने देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। आँखों में देखने की चमक थी। तभी वहीं पर, खुशी से उसके मुँह से उसी वक्त निकला, "ये कितना खूबसूरत है! मैंने आज से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था।"

    अवीक कुछ न कहकर उसे ही देख रहा था। लेकिन हनी जहाँ खुश थी, अचानक से उसकी सारी खुशी कहीं गायब हो गई। आँखों में बेचैनी आ गई। उसकी नज़र किसी और दिशा में थी। अवीक भी उसका चेहरा देख ही रहा था। उसके बिगड़े स्वभाव देखकर वो भी पीछे मुड़कर देखने लगा। उसकी भी नज़र एक जगह जाकर टिक गई।


    सिंह भवन...

    "क्या तुम नाराज़ हो मुझसे?" अंश ने फ़ोन पर कहा। जो इस वक्त तृषा से बात कर रहा था। वह तृषा बेड पर लेटी, सीलिंग को देख रही थी। वो कुछ देर शांत रही, फिर बोली,

    "क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूँ?"

    जवाब देने के बजाय तृषा ने सवाल किया। जिसे सुनकर अंश ने कहा, "पहले मेरी बातों का जवाब दो। तुम ठीक हो?"

    तृषा ने दर्द भरी मुस्कान के साथ कहा, "जिसकी बहन अपनी ज़िन्दगी यूँ दाव पर लगाकर चली गई, वो भी मेरे लिए... क्या वो बहन खुश रह सकती है? नहीं अंश, मैं कभी नहीं चाहती थी कि मेरी बहन मेरे लिए अपने आप को त्याग दे।"

    "वो भाई के साथ खुश है।" अंश ने फ़ौरन जवाब दिया, क्योंकि वो समझ रहा था तृषा को यही लग रहा है कि हनी उसके भाई के साथ खुश नहीं है।

    "मुझे नहीं लगता।" तृषा ने दो टूक बोली।

    "तुम ज़्यादा सोच रही हो। इसीलिए तुम्हें नहीं लगता। लेकिन जब शादी करके तुम घर आओगी, खुद देख लेना भाई किस तरह से भाभी से प्यार करते हैं। हाँ, मैं मानता हूँ आज तक उन्हें किसी ने देखा नहीं है, ना किसी को उनके बारे में कुछ पता है। लेकिन वो कोई बुरे इंसान नहीं हैं, बहुत अच्छे हैं। वो भाभी को बहुत खुश रखेंगे।"

    अंश ने प्यार से कहा, लेकिन तृषा को सब बनावटी लगा। वो इसका जवाब देने के बजाय बोली, "क्या तुम मेरे सवालों के जवाब दोगे? आखिर तुमने जो पूछा, वो मैंने बता दिया है।"

    "हाँ, पूछो। क्या पूछना है?" अंश ने कहा। वो जानता था बिना जवाब लिए तृषा छोड़ेगी नहीं।

    "क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो?" अचानक से तृषा ने सवाल किया। वहीं उसके सवाल से अंश की आँखें सिकुड़ गईं। वो एकदम से बोला, "ये कैसा सवाल है तृषा?"

    "बस सवाल है तो है। तुम इसका जवाब दो। प्यार करते हो मुझसे सच में? या फिर बस मेरी दी के लिए मेरे घर में आए थे?"

    पता नहीं क्यों, लेकिन तृषा के सवाल पर अंश की आँखें बंद हो गईं। उसकी गहरी साँसें फ़ोन के दूसरी तरफ़ भी सुनाई देने लगीं। जिसे सुनकर तृषा ने कहा,

    "मैं जानती थी। पहले दिन जब तुम आए और तुम्हारी माँ ने देखते ही मेरी बहन को पसंद किया और कहा कि वो अपने बड़े बेटे के लिए उन्हें चुन रही है। फिर मेरी माँ को... पैसे... मुझसे प्यार... मैं ये बात पहले ही जानना चाहती थी, लेकिन मैं पूछ नहीं पाई। मुझे लगा कि शायद मैं गलत सोच रही हूँ। लेकिन आज जब से वहाँ से आई हूँ, तब से मेरे दिमाग में बस एक ही ख्याल आया है। जीजू को दी के अलावा कोई दिखा ही नहीं। तुमने एक बार शादी की बात की, बस मेरी मॉम ही कह रही थीं। और जिस तरह से जीजू ने दी पर नज़र डाली, वो एक दिन का असर बिल्कुल नहीं था।"

    तृषा ने अपने दिल की सारी बातें बोल दीं। लेकिन उसे सुनकर अंश ने कहा, "तुम गलत कह रही हो। तुमने जो कहा, जो लगा, सब गलत है। ज़रूरी नहीं है जो दिख रहा हो वो सही हो। कभी-कभी आँखों के सामने आने वाली चीज़ भी गलत होती है।"

    "तो सच क्या है अंश? क्यों मेरी बहन को चुना अपने भाई के लिए? अगर मुझसे प्यार था तो प्यार के बीच में शर्त कैसे आई? प्यार में तो कोई शर्त नहीं होती, वो तो निस्वार्थ होती है ना? फिर कैसे अंश? कैसे? अगर ये सच नहीं तो फिर सच क्या है? मुझे जानना है?"

    इस वक्त तृषा के अंदर काफ़ी सवाल थे, जिसका जवाब शायद अंश के पास नहीं थे। लेकिन फिर भी वो कुछ देर सोचता रहा। उसके बाद बोला, "मैं ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता तृषा, लेकिन तुम जो कह रही हो वो गलत है। मैंने पहली ही नज़र में तुमसे प्यार किया है और माँ ने भाभी को भाई के लिए इसीलिए चुना क्योंकि भाभी अच्छी है। जिस तरह से वो भाई को प्यार करती है, इस तरह से कोई और... कोई... काफी दिन तक हो... ज़रूरी तो नहीं पहली नज़र में भी कुछ होता है। क्या तुमने नहीं सुना है?"

    एकदम से तृषा बोली, "सुना है, बहुत बार सुना है। लेकिन प्यार की ज़रूरत तो मेरी बहन को भी है। क्या सिर्फ़ वो इस रिश्ते में प्यार देगी या फिर तुम्हारे भी?"

    "मैं नहीं जानता। ये उनके ऊपर है। वो अपने पति से कैसे प्यार करती है। लेकिन मैं बस इतना कहना चाहूँगा, भाई भाभी को हमेशा खुश रखेंगे। तुम उनकी फ़िक्र मत करो। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। अगर उनकी नहीं तो मेरी बात पर यकीन कर लो।"

    अंश की एक भी बात तृषा के दिल को सुकून नहीं दे रही थी। उसे और बेचैनी होने लगी थी अपनी बहन को लेकर। अवीक का स्वभाव उसे बिल्कुल पसंद नहीं आया था। उसकी और अंश की शादी की बात जिस तरीके और बेमन से हुई थी, वो अभी भी तृषा को चुभ रही थी। जब वो इस बेचैनी को ज़्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर पाई तो बोली,

    "ठीक है अंश, मैं बाद में बात करती हूँ। कॉलेज का assignment पूरा करना है। ओके, बाय।"

    अंश के कुछ कहने से पहले ही तृषा ने फ़ोन कट कर दिया। जैसे ही उसने फ़ोन रखा, वो उठकर बैठ गई और खुद के हाथों को देख वो बोली, "क्या मेरी ये लकीर झूठी है? मेरे किस्मत में प्यार है या नहीं?"

    तृषा खुद से सवाल कर रही थी, लेकिन जवाब उसके पास नहीं थे। यहाँ तक कि वो खुद को समझा भी रही थी वो गलत है। लेकिन जब कोई बात दिल और दिमाग पर बैठ जाए तो इंसान कुछ और सोच ही नहीं पता है।

    तृषा उठकर मिरर के सामने जाकर खड़ी हो गई और खुद को देखने लगी। अचानक से उसके आँखों से आँसू भर गए। वो रोते हुए खुद से बोली, "मैं फिर से अपनी बहन की गुनेहगार बन गई। बचपन से आज तक उन्हें सिर्फ़ मेरी वजह से तकलीफ़ मिली है। मॉम ने दी को इसीलिए नहीं अपनाया, कहीं दी मेरा हक न ले ले। मॉम ने दी की शादी करवाई मेरे लिए, कि मेरी शादी अच्छी हो जाए। क्या ये मेरी वजह से नहीं हुआ? मेरी वजह से दी ने कभी नए कपड़े नहीं लिए, क्योंकि मॉम कहती थी, क्या फेकना, हनी पहन लेगी। लेकिन आज सब कुछ बिखरा हुआ लग रहा है। क्यों? मेरे दिल में दी को देखकर दर्द क्यों उठा?"

    खुद के सवाल में वो खुद दुखी थी। वहीं दूसरी तरफ़, अंश ने फ़ोन रखते ही एक जोरदार हाथ टेबल पर मारकर गुस्से में कहा, "मॉम, आपने मुझे कहाँ फँसा दिया है! ऑफ़िस छोड़ सकता हूँ और उसे... आपने अच्छा नहीं किया मॉम, बहुत गलत किया है। मैं कभी नहीं चाहता था मेरी ज़िन्दगी ऐसी हो। अअह्ह!"

    अंश खुद के बाल नोचने लगा। वो काफ़ी स्ट्रेस में था। उसने पॉकेट से एक सिगरेट निकाली और कस लेते हुए काँच के पास जाकर खड़ा हो गया। उसके आँखों के सामने पूरा शहर था, लेकिन आँखें खाली थीं। वो थोड़ी देर तक सोचता रहा। जब कुछ शांति मिली तो फिर से अपने काम में लग गया।

    वहीं तृषा दुखी होकर बैठी थी अपनी बहन की फ़ोटो लेकर। वो अभी तक इसी गिल्ट में थी, सब कुछ उसकी वजह से हो रहा है, ऐसा उसे लग रहा था।

    उधर, हनी पत्थर पर बैठी सामने का नज़ारा देख रही थी, जहाँ पर अवीक बैठा था। उसके गोद में एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा था, जो ठंड से सिकुड़ गया था। अवीक ने उसे अपनी जैकेट में डाल रखा था और प्यार से उसके सिर को सहला रहा था। ये सब देख हनी एकटक अवीक को देख रही थी, जिसका एहसास अवीक को था।

    जारी...

    क्या होगा आगे? क्या सच में अंश प्यार करता है तृषा से? आखिर असली रूप क्या है अवीक का?

  • 13. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 13

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    उसकी आँखों के सामने पूरा शहर था, लेकिन आँखें खाली थीं। वह थोड़ी देर तक सोचता रहा। जब कुछ शांति मिली, तो फिर से अपने काम में लग गया। वहीं तृषा दुखी होकर बैठी थी, अपनी बहन की फ़ोटो लेकर। वह अभी तक इसी गिल्ट में थी; सब कुछ उसकी वजह से हो रहा है, ऐसा उसे लग रहा था। उधर, हनी एक पत्थर पर बैठी, सामने का नज़ारा देख रही थी। वहाँ अवीक बैठा था, उसकी गोद में एक छोटा-सा चिड़िया का बच्चा था जो ठंड से सिकुड़ गया था। अवीक ने उसे अपनी जैकेट में डाल रखा था और प्यार से उसके सिर को सहला रहा था। यह सब देख हनी एकटक अवीक को देख रही थी, जिसका एहसास अवीक को था।

    क्या सच में हनी की आँखों के सामने वही अवीक है जो दो दिन पहले उसने देखा था? क्या सच में यह वही है जिसने हनी को धमकी दी थी? क्या यह सच में वही है जिसने सबके सामने हनी को कमरे में ले जाकर डराया था? क्या सच में यह वही अवीक है जिसने हनी को पहली रात में वो सब दिखाया था, जिसे देखकर बड़े से बड़ा आदमी मर सकता है? क्या सच में यह वही है?

    ये सारे सवाल हनी के अंदर गूंज रहे थे। दिल जोरों से धड़क रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो आदमी अपने कमरे में पुतलों के कटे पार्ट रखता हो, वह एक चिड़िया की जान बचा रहा है। हनी के लिए अब अवीक को समझना मुश्किल लग रहा था। अभी यहाँ आने से पहले उसे लगा था कि वह अवीक को थोड़ा-बहुत समझ रही है, लेकिन वह गलत थी; इतनी गलत कि पता नहीं उसके मन में क्या आया था।

    जहाँ हनी यह सब सोचकर अवीक को देख रही थी, वहाँ अवीक जानता था कि हनी उसे देख रही है, लेकिन वह क्या सोच रही है, यह अंदाज़ा नहीं था अवीक को। वह उस चिड़िया के बच्चे को उठाकर अपनी जगह से हटा तो हनी भी उसे देखकर उठ गई।

    अवीक ने उसकी तरफ देखकर कहा, "तुम बैठो?"

    हनी ने तुरंत जवाब न देकर कुछ देर बाद बोली, "लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?"

    हनी के सवाल पर अवीक ने नज़रें उठाकर देखा। तो हनी घबराकर बोली, "मेरा मतलब था कि आप इसे लेकर कहाँ जा रहे हैं? मैं बस यही पूछ रही थी, और कुछ नहीं। आपको बुरा लगा हो तो सॉरी।" इतना कहकर हनी ने सिर नीचे झुकाकर बैठ गई।

    अवीक हनी की घबराहट साफ़ महसूस कर पा रहा था। हनी को ऐसे घबराते देख उसके होंठों पर तिरछी मुस्कान आ गई। वह हनी के करीब आकर उसके गालों पर हाथ रखा, तो हनी उसे पलकें उठाकर देखने लगी। तभी अवीक बोला, "तुम्हें इतना सब सोचने की ज़रूरत नहीं है, और ना ही यह जानने की कि मैं इसका क्या करूँगा। तुम इसके चक्कर में इतनी डरोगी तो मेरा काम कैसे होगा? इसीलिए शांति से बैठो और देखो मैं क्या कर रहा हूँ।"

    अवीक के जिस तरह से यह कहा, हनी सिहर सी गई, लेकिन हनी ने इसके बाद कुछ नहीं बोली। बस सिर झुकाकर नीचे बैठी रही। उसे कुछ बोलना ठीक भी नहीं लगा; क्या पता अवीक गुस्सा हो जाए? इसी बात का डर हनी को ज़्यादा था। उसे ऐसे देख अवीक उसके करीब आकर बोला,

    "बुरा मत मानो, वो क्या है ना, मुझे जानवरों से ज़्यादा इंसानों को परेशान करने में मज़ा आता है। मैं उन बेज़ुबानों पर जुल्म नहीं करता जो बोल नहीं सकते हैं। वैसे भी ये तो रो भी नहीं सकता और ना ही उनका रोना मेरे कानों को सुकून देगा। और जो मुझे सुकून नहीं देता, मैं उसे कुछ नहीं करता हूँ। लेकिन तुम मुझे सुकून देती हो।"

    अवीक अपनी बात खत्म कर फिर से उस बच्चे को दुलार करने लगा, लेकिन हनी हैरानी और डर से अवीक को देखने लगी। उसकी बातें सुनकर उसके रोंगटे खड़े होने लगे, क्योंकि अभी तक तो उसने यह जाना ही कहाँ था कि अवीक के दिमाग में ऐसे ख्याल भी आते हैं।

    अवीक हनी के हैरान चेहरे को देख कुछ नहीं बोला, बस हाथ पकड़कर उसे कार में बैठाया और खुद आकर ड्राइव करने लगा। हनी अभी भी कुछ न बोलकर शॉक में थी। क्या सच में अवीक लोगों को मारकर उनके रोने की आवाज़ सुनता है? क्या इसीलिए पहली रात उसके हाथों में वो चोट देकर अवीक उसे कार ड्राइव करते हुए देख रहा था? हनी क्या सच में रही है? शायद उसका अंदाज़ा अवीक को था, इसीलिए वह सामने की तरफ़ बस देख रहा था।

    कुछ देर तक यही चला। अवीक के ख्यालों में हनी इतनी खो गई कि उसे ध्यान नहीं आया कि अवीक उसे घूर रहा है। लेकिन अगले ही पल वह ख्यालों से बाहर आई जब अवीक ने उसके हाथों को जोर से पकड़ लिया। उसके अहसास से हनी सिहर सी गई। वह अवीक की तरफ़ डर से देखने लगी, तो अवीक ने उसके गालों पर आए बाल को कान के पीछे करते हुए कहा,

    "इस बेज़ुबान को पकड़ो।"

    अवीक ने उस बच्चे को हनी की गोद में देकर कहा। हनी ने जल्दी से उसे हाथों में पकड़कर बैठ गई, जैसे वह उस बेज़ुबान को बचाना चाहती हो। और अवीक कार चलाते हुए आगे बढ़ रहा था, लेकिन हनी के ख्यालों में परसों की रात आ गई जब वह शादी करके पहली बार अपने ससुराल और कमरे में गई थी। एक तरफ़ उसका डर था, वहीं दूसरी तरफ़ पति को देखने की चाह। हाँ, शादी एक शर्त पर हुई थी, लेकिन पति तो पति होता है। जब शादी करके कोई लड़की ससुराल आती है, तो सब कुछ उसका पति ही होता है; उठते-बैठते सब कुछ पति ही होता है।

    दो दिन पहले...

    "प्लीज ऐसा मत करिए, मुझे डर लग रहा है, प्लीज।" हनी ने लगभग रोते हुए कहा। उसका चेहरा मेकअप के बजाय पसीने से भीगा था। आँखों में डर के आँसू थे और हाथ-पैर बंधे काँप रहे थे।

    वहीं सामने अवीक, जो कुर्सी पर बैठा हँस रहा था, उसके सामने हनी बंधी हुई थी। उसे ऐसे बांधकर और रोते देख अवीक ने मुँह टेढ़ा करके कहा,

    "अगर तुम रोना सुनाओगी तो मैं रुक जाऊँगा, कुछ भी नहीं करूँगा, स्वीटहार्ट। जो तुम कहोगी वो कर दूँगा, बस एक बार रोकर दिखाओ।"

    उसकी बात सुन हनी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। काफ़ी देर रोने के बाद जैसे ही वह शांत हुई, अवीक को गुस्सा आ गया। वह हनी के हाथ को पकड़कर मार दिया, जिसकी वजह से हनी फिर से जोर-जोर से रोने लगी।

    उस रात वह कितनी डरी थी और उसे कितनी तकलीफ हुई, यह वही जानती है, लेकिन वह किसी से कह नहीं पाई। किसे कहती? माँ, जो उसे नहीं मानती; पिता, जिसके ऊपर वह बोझ नहीं बनना चाहती; बहन, जिसे पता चला तो खुद की खुशी त्याग देगी। इन्हीं सब मजबूरियों में हनी बंधी रही और सब कुछ सोचने लगी।

    अवीक ने एक-दो नज़र उसकी तरफ़ देखी और किसी गहरे सोच में डूबते देख उसने कुछ दूसरी दिशा में अपनी गाड़ी रोक दी, जिसकी वजह से हनी का सिर आगे झटके से लड़ने से बच गया। अवीक ने हनी को पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। वह सीने से अवीक से जा लगी और सिर उठाकर अवीक को देखने लगी, जो उसे ही देख रहा था।

    यह देख हनी जल्दी से दूर होने लगी कि अवीक ने हनी के कंधे को अपने एक हाथ से और जकड़कर रख दिया। किसी के लिए यह कहना मुश्किल नहीं है कि अवीक कितना स्ट्राँग है।

    हनी हटना चाहती थी, लेकिन वह नहीं पाई। तभी अवीक ने अपनी पकड़ कसते हुए कहा, "अगर गलती से भी मेरी मर्ज़ी के बिना तुम यहाँ से हटीं, तो आज मैं वो करूँगा जो तुमने कभी सोचा नहीं होगा।"

    हनी यह सुनकर और घबरा गई। बस इसी का फ़ायदा उठाकर अवीक ने उसे उठने नहीं दिया। वह जानता है कि हनी कितनी सेंसिटिव है।

    हनी यूँ ही रही। कुछ देर बाद अवीक की कार सीधे पहाड़ के दूसरे छोर पर पहुँची। कार रुकते ही अवीक ने हनी से कहा, "बेबी, हम पहुँच गए, उठो।"

    उसकी आवाज़ सुनकर हनी घबराकर उठ गई। वह बाहर की तरफ़ देखी तो जगह कुछ और थी। वह सवालिया नज़रों से अवीक की तरफ़ देखने लगी, जो बिना कुछ कहे कार से बाहर निकल गया। हनी पूछना चाहती थी कि यह कौन सी जगह है? वह क्यों आया है यहाँ?

    जारी... क्या होगा आगे? कहाँ ले गया है हनी को अवीक? क्या हनी समझ पाएगी अवीक को?

  • 14. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 14

    Words: 1408

    Estimated Reading Time: 9 min

    उसकी आवाज़ सुनकर हनी घबराकर उठ गई। उसने बाहर की तरफ़ देखा; जगह कुछ और थी। वह सवालिया नज़रों से अवीक की तरफ़ देखने लगी। अवीक बिना कुछ कहे कार से बाहर निकल गया। हनी पूछना चाहती थी कि यह कौन सी जगह है? वह क्यों आया है यहाँ? लेकिन पूछ नहीं पाई।

    कई सवाल हनी के मन में थे, लेकिन वो कुछ पूछ पाती, उससे पहले अवीक आगे बढ़ते हुए बोला, "ये जगह मेरी फेवरेट है। जब मेरा दिल अशांत रहता है, तो मैं यही आता हूँ। मुझे काफ़ी शांति मिलती है।"

    हनी उसके पीछे थी; उसकी सारी बातें सुन रही थी। जैसे ही "अशांति" की बात हनी के कानों में गई, वो मुँह फेरकर बड़बड़ाई, "जो खुद अशांति फैलता है, उसे कौन अशांत करता होगा?"

    कहते हुए हनी आगे बढ़ने लगी कि अचानक से अवीक से टकरा गई। "अह्ह्ह्ह!" दर्द के साथ अपने माथे को सहलाते हुए हनी ने सिर उठाकर देखा; अवीक उसे घूर रहा था। हनी समझ गई कि अवीक ने उसकी कही बात सुन ली है। हनी ने अपनी आँखें भींच लीं। फिर से, हनी ने अंदर ही अंदर खुद के सिर पर चपत लगाकर बोली, "यार हनी! कभी तो सोच-समझकर बोला कर! जब पता है बंदा तेरे मन की बात पढ़ लेता है, तो नहीं करना चाहिए था।"

    हनी समझ नहीं पाई, इस वक्त जो कह रही है, वो भी अवीक सुन रहा है। वो घूरते हुए बोला, "अभी भी मैं सुन रहा हूँ; ये भूल गई क्या? तुम मन में कहो या मुँह से बोलो, मैं सब सुनता हूँ।"

    अवीक की बात सुनते ही हनी की आँखें बंद हो गईं। वो न बाहर कुछ कह सकती थी, न अंदर। दोनों तरफ़ से फँसी थी। अब तो नज़रें उठाकर देखने की हिम्मत तक नहीं थी। वो नीचे सर झुकाकर खड़ी हो गई।

    अवीक ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "ये सब छोड़ो, चलो मेरे साथ।"

    इतना कहकर वो आगे बढ़ गया। लेकिन उसके हाथ पकड़ने की वजह से हनी का शरीर पहले से कुछ अलग तरीके से सिहर गया। पहले भी उसके रोंगटे खड़े हुए थे, लेकिन डर से; लेकिन आज और अभी कुछ अलग था। जिसकी वजह से हनी की नज़र उसके हाथों पर जम गई थी, और अनजाने में ही होंठों पर मुस्कान छा गई।

    लेकिन वही, हनी के एहसासों से अनजान ना होते हुए भी अनजान बनकर अवीक आगे बढ़ा और एक जगह आकर रुक गया।

    "यहाँ से सनसेट कितना खूबसूरत दिखता है ना! और हवाएँ कितनी खुशबूदार हैं!" अवीक ने हल्के स्माइल के साथ कहा। लेकिन हनी की नज़र बाकियों पर नहीं, अवीक के होंठों के उस स्माइल पर थी। जो आज तक उसने देखा था, लेकिन ये काफ़ी अलग था। आज सब कुछ उसके साथ अलग-अलग हो रहा था, जिसे हनी समझ नहीं पा रही थी, क्यों? आखिर कुछ दिन पहले वाला अवीक अलग क्यों था, और ये अलग क्या?

    इसके अंदर जितने सवाल थे, उससे कई ज़्यादा सोचते हुए उसके सिर में दर्द होना शुरू हो गए। लेकिन हनी ने खुद को समझाकर अपने विचारों को रोक लिया। जानती है, उसके विचारों से कुछ नहीं होने वाला है; न उसे उसके सवालों के जवाब मिलेंगे, न कुछ पता चलेगा, बस उसकी मुसीबत बढ़ेगी।

    खैर, अवीक उसे ऐसे देखते-देखते समझ गया। वो हनी के कंधे से पकड़कर डेस्क पर बैठाकर, उसके बगल में बैठकर कहा, "तुम यही सोच रही होगी कि अभी तक शाम हो गई थी, लेकिन यहाँ क्यों सनसेट दिख रहा है। तो ये उस जगह का दूसरा साइड है। यहाँ पर सनसेट काफ़ी देर तक देखा जा सकता है। देखो, कितने लोग यहाँ पर यही देखने आए हैं।"

    हनी अपने ख्यालों को छोड़कर अवीक की बात सुनकर चारों तरफ़ देखने लगी। सच में, सब कुछ काफ़ी खूबसूरत था। ठंडी हवा जो सीधे तन-बदन को छूकर आगे बढ़ रही थी; हनी ने ऐसा कुछ पहले कभी महसूस नहीं किया था।

    ये सब देखते हुए उसके होंठों पर मुस्कान बिखर गई। वो हँसते हुए अवीक की तरफ़ मुड़ी, तो उसकी नज़र कहीं और थी। हनी जैसे ही अवीक की नज़रों का पीछा कर सामने देखी, उसकी आँखें बड़ी हो गईं और शर्म से ज़बान बंद हो गए; क्योंकि सूरज के डूबने के साथ-साथ वहाँ मौजूद एक-एक के होंठ उनके साथियों से मिले थे।

    यानी जितने भी कपल वहाँ पर मौजूद थे, सब के सब एक-दूसरे को चूम रहे थे। न कोई किसी और को देख रहा था, न कोई किसी पर ध्यान दे रहा था। कहाँ? कौन है? कैसे? क्या? कर रहे थे वहाँ, जब कि सब एक-दूसरे के प्यार में खोए थे। ये नज़ारा देखकर एक पल के लिए हनी ठहर सी गई, लेकिन दूसरे ही पल वो नज़र फेरकर नीचे अपने पैरों को देखने लगी।

    किस वो सब कर रहे थे! शर्म से उसका गाल लाल हो गया। हनी सिर उठाकर किसी को देख नहीं पा रही थी और न अवीक से कह सकती थी वो वहाँ न देखे। वो बस सिर झुकाकर बैठी थी। तभी अवीक ने उसके हाथ को पकड़कर दबा दिया, जिसे न चाहते हुए हनी की नज़र अवीक की तरफ़ गई।

    देखते ही हनी की नज़र सीधा अवीक की नज़रों से जा लड़ी। दोनों एक-दूसरे की आँखों में बारी-बारी देखने लगे। आँखों में झाँकते ही कब होंठ मिले, हनी समझ नहीं पाई। अवीक उसके होंठों को अपने होंठों से चूम रहा था, जिसके एहसास से हनी का रोम-रोम खिल गया था। वो अवीक को ये करने से रोकना चाहती थी, लेकिन ना उसका हाथ रोकने के लिए उठा, बल्कि उठा तो कंधे पर पकड़ जम गई।

    अवीक किस करते-करते हनी के कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींच लिया। बाकियों की तरह दोनों भी एक-दूसरे में खो गए। उन्हें भी किसी के होने से कोई मतलब नहीं... अब जाकर हनी समझ में आई कि क्यों सब एक-दूसरे में खोए हैं; क्योंकि यहाँ हवा ही प्यार भरी है। दूसरों पर ध्यान देने का समय नहीं; दोनों को अपनी साँसों में दूसरों की साँसों को घुलते हुए महसूस करना ही दिमाग का चलना बंद ही इस हवा में है।

    अवीक किस करते-करते डिप चला गया और हनी अंदर से रोमांच से भर गई। सूरज के साथ-साथ दोनों के होंठ गहरे होते गए।

    वहीं दूसरी तरफ़, अपने स्कूटर का घोड़ा दौड़ाते हुए तृषा लैपटॉप लेकर बैठी, अवीक के बारे में सर्च कर रही थी। लेकिन उसे कहीं भी कुछ नहीं मिला। अवीक के बारे में कहीं भी कोई बात नहीं लिखी थी; बस शोभा और अंश के बारे में सब लिखा था। तृषा ये सब देखते हुए सोचने लगी...

    "अगर शोभा आंटी के दो बेटे हैं, तो एक का नाम क्यों नहीं है? और उनके हसबैंड, उनका नाम क्यों नहीं लिखा? और वो हैं कहाँ? क्या करते हैं वो?"

    तृषा के मन में हज़ार सवाल एक साथ उभर कर आए, लेकिन जवाब न उसके पास था और न मिल रहा था। वो थक-हारकर लैपटॉप बंद कर लेट गई और बोली, "ये कौन सा परिवार है जिसमें आधे लोगों की पहचान है, आधे की नहीं? अगर दीदी की शादी नहीं हुई होती, तो मैं पता भी नहीं करती। आखिर फैमिली किस तरह की है? मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।"

    तृषा भी शादी के नाम पर खुश थी, और इस खानदान को कौन नहीं जानता? हर कोई जानता है। तृषा को भी पता करना कुछ ज़रूरी नहीं लगा; लेकिन आज उसे इसमें कुछ गड़बड़ लग रही थी। उसके दिमाग में कई सवाल आ गए थे, और उसी सवाल का जवाब पाने के लिए वो बेड से उठी और कपड़े बदलकर घर से बाहर चली गई।

    अब तक शाम का अंधेरा हो गया था, जिसकी वजह से पीछे के रास्ते से अवीक हनी को घर लेकर आया। इस बारे में किसी को पता नहीं चला कि अवीक और हनी बाहर गए थे। नीचे जाने से पहले अवीक ने उसे बेड पर कुछ देर सोने को कहा। हनी तो डर गई थी, क्यों सोना है? लेकिन अवीक ने कहा, वो मना नहीं सकती। इसीलिए कुछ देर के लिए वो सो गई। जब रात के 8 बजे के आसपास आँख खुली, तो वो फ़्रेश होकर नीचे आई, जहाँ अवीक के साथ-साथ अंश, शोभा जी सब बैठे थे।

    जारी ✍️

    क्या होगा आगे? अवीक असल में है कौन?

  • 15. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 15

    Words: 1590

    Estimated Reading Time: 10 min

    रात के 8 बजे के आस पास एक लड़की जो पूरे चेहरे को कवर कर सुनसान सड़क पर खड़ी थी उसके आस पास आते जाते ऐसे कई लोग थे जो रात में चेहरा कवर होने की वजह से उसे बार बार देखते लेकिन उस लड़की को इन सब से फर्क ही नही पड़ रहा था ।

    वो अकेले खड़ी किसी का इंतजार कर रही तभी कुछ वक्त के बाद उसके सामने एक कार आके रुकी उस कार के रुकते ही वो लड़की सीधे कार में बैठ गई और चेहरे से स्कॉफ निकाल के साइड कर गहरी सांस लेते हुए बोली

    " मैने जल्दी आने को कहा था इतने लेट क्यू आए ? "

    ये लड़की कोई और नही तृषा थी जो बाहर खड़ी आके कार में बैठी उसके बात का जवाब ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी ने दिया " जानकारी निकालने में वक्त लग गया ? "

    तृषा उसकी तरफ चिढ़ के बोली " बस छोटी सी जानकारी मांगी थी ना की कुंडली जिसमे इतना वक्त लग।गया " "

    " "ठीक है अब जो हो गया वो हो गया आगे क्या करना है ये बता "

    तृषा ने गहरी सांस लेके बोली " करना क्या है ? जो करने गए थे वो बताओ कुछ पता चला बंसल परिवार के बारे में "

    बगल में बैठे शख्स ने सामने सड़क पर देखते हुए कहा " हां मिला लेकिन वही जो सब को पता है "

    मै कुछ समझी नही

    इसमें समझना कुछ नही है जो कुछ टाइम पहले गूगल पर पढ़ा है वही बात सब को पता है लोग अंदर की बात नही जानते और सच कहूं तो कोई जानने में इंट्रेस्ट नही है क्यू पता नही लेकिन बस बंसल परिवार के आस पास रहने वाले लोगों के चेहरे से ये तो पता चल गया उन्हे उस परिवार के बारे में कुछ तो पता है क्या ये नही पता और ना वो सब बताने के बारे में सोच रहे थे वो चाहते ही नहीं है की किसी को उनके बारे में पता चली "

    लेकिन क्यू वो वहा के नौकर है उन्हे हमारी हेल्प करनी चाहिए अगर कुछ गलत है फिर तो गलत पर आवाज उठाना चाहिए ना की चुप रह के देखते रहे मुझे तो कुछ समझ में नही आ रहा कोई कुछ क्यू नही कह रहा ।

    तृषा परेशान सी यही सोच रही क्या गलत के लिए कोई नही बोलता उसकी परेशानी और बाते सुन बगल में बैठे लड़के ने कहा " अभी तक तो तुम्हे भी नही पता आखिर गलत क्या है बस तुम्हारा दिल कह रहा है बस इसी लिए तुम जानना चाहती हो आखिर अवीक का नाम क्यू नही है परिवार के सदस्य में "

    उस लड़के की बात सुन तृषा उसकी तरफ देखने लगी उसके बाद कोई जवाब नही था वो क्या कहे हां ये सच था तृषा को नही पता गलत क्या है उस घर में वो तो बस अविक के बारे में जानना चाहती है जो कही से पता नही चल रहा । उस लड़ने ने अपनी बात आगे बड़ा के कहा " देखो तृषा कई बार होता है बड़े घर के कोई लड़के ऐसे होते है जो लोगो की कसारो से बच के जीना चाहते है कई बार ये मीडिया और लोग उन्हें समान तरीके से रहने नही देते जो उन्हे बिल्कुल पसंद नहीं आता बस हो सकता है इसी लिए अविक बंसल ना चाहता हो उसके बारे में किसी को पता चले तुम खाम खा ज्यादा सोच के स्ट्रेस ले रही हो अगर ठंडे दीमाक से सोचो तो ।

    " "लेकिन विषम अचानक से उन्हे मेरी ही बहन क्यू पसंद क्या।तुम जानते हो मेरी बहन सिंपल से सीधी सादी है वो ना किसी से ज्यादा बात करती है ना कभी कुछ कहती है आज जब मैने उन्हे गले से लगाया वो कांप रही थी उनके आंखो में मैने कई भावनाए देखे मुझसे बात करने की तलब देखी और अवीक के बुलाने पर डर मुझे हक है मेरी बहन के बारे में जानने का आखिर इस चार दिवारी के अंदर क्या हो रहा है उसके साथ मैं ये भी जानती हूं बस सोच रही हूं लेकिन सोचने के लिए मजबूर तो यही सब दिए शादी हो गई हमे बुलाया तक नही कैसे शादी हुई हम जानते भी नही न मैं अपनी बहन से बात कर पा रही ना वो करने दे रहे तो तुम बताओ क्या मेरा सोचना अभी भी गलत है ।

    विषम तृषा के बचपन का दोस्त और साथ में उसकी गली को छोड़ दूसरी गली में रहने वाला जब पहली बार राकेश जी हनी को घर लेके आए अपने तो ये वही थे विषम और तृषा जिन्होंने हेमलता के बदले खुद घर में हनी का स्वागत किया था इस घर में तृषा और हनी अगर सबसे ज्यादा यकीन करते है तो राकेश जी के अलावा वो है विषम।

    तृषा की बात खत्म।होते ही कुछ देर की शांति छा गई दोनो ने कुछ देर तक कुछ नही कहा काफी देर सोचने के बाद अचानक से विषम ने कहा " अगर सच्चाई और सक को जानना है फिर एक ही रास्ता है इसके लिए "

    तृषा उसके तरफ देखी और बोली " कैसा राश्ता "?

    कुछ देर विषम शांत रहा और फिर बोला "तुम अंश से शादी कर उस घर में जाके खुद पता करो क्या चल रहा है कौन है अवीक क्यू रहता है सबसे चुप के क्या छुपा रहे है उसके परिवार दुनिया से ये सारे सवालों के जवाब तुम्हे अब उस घर में ही मिलेंगे अगर तुम्हे जानना है तो तुम्हे अंश से शादी करनी होगी और अगर तुम्हारा सक सही निकला हनी के साथ कुछ गलत हो रहा है फिर इस दुनिया में एक तुम ही हो जो हनी को बचा सकती है वरना तुम्हारी मां यहां रहने के बाद तुम्हे कभी ऐसा कुछ करने नही देखी अब तुम डिसाइड करो क्या करना है ।"

    विषम के बात में दम था जो सीधे तृषा के दिमाक में खटकी वो तिरछी मुस्कान के साथ चहक के बोली " यार विषम सच में ऐसी की प्रोबलन नही जिसका सैलुसन तुम्हारे पास न हो थैंक्स यार "

    विषम खुश नही था वो सिरियश होके बोला " तृषा ध्यान से अगर सच में दलदल हुआ तुम फंस जाओगी "

    तृषा सीना चौड़ा कर बोली " अब जो भी हो अगर अवीक अच्छा निकला तो मैं खुद दीदी को उन्हे कभी अलग नहीं होने दूंगी लेकिन अगर उनके साथ कुछ गलत t हुआ मै किसी को नही छोड़ने वाली बस इंतजार है मेरी शादी का "

    तृषा शादी अंश से करने के लिए खुश नही बस उस घर में जाके अपने सवालों के जवाब पाने के लिए खुश थी वक्त पता नही उसके सावली के जवाब देगा या नही या फिर वो उसी घर में बंद ही रहेगा ये तो वक्त आने पर पता चलेगा लेकिन फिलहाल हनी डरी सहमी सी इस वक्त अवीक के सामने खड़ी थी जिसके हांथ में एक हथौड़ा था ।

    वो अजीब तरह से एक डॉल को तोड़ रहा ये सब देख हनी के रोंगटे खड़े हो गए थे वो सो के उसी और खुश होके नीचे खुश लेकिन उसे क्या पता था शोभा जी फिर से अविक के साथ उसे कमरे में भेज देंगी और उसे यहां आके ये सब देखना होगा ।

    अवीक उस डॉल को मारे जा रहा वो पूरी तरह पागल हो चुका था हनी को कुछ समझ में नही आ रहा वो क्या करे बस एक कोने में खड़ी देख रही बार बार कान और आंखे बंद कर रही थी ।

    तभी अवीक उस डॉल को पूरी तरह खत्म कर मुंडी टेडी कर हनी के पास आते हुए अजीब तरह से हंसा और बोला "बीबी देखा न मैने इसे मार दिया मार दिया ये बिल्कुल चाय नही थी ये मुझे तंग करती थी इसी लिए मैने उसे खत्म कर दिया "

    उसके कदम हनी के दिल की धड़कने बड़ने के लिए काफी थे और ऊपर से उसके बाते मानो हनी के खून को बर्फ की तरह ठंडा कर रहा वो साबुन से चिपकी जा रही और अवीक उसके पास आता जा रहा जैसे वो हनी के करीब पहुंचा हनी का हांथ पकड़ के अपनी तरफ खींचने लगा लेकिन हनी दीवाल के कोने को पकड़ के खुद को जाने से रोकने लगी ।

    जिसे देख के अवीक ने गुस्से से कहा "बीबी मेरे पास आओ "

    हनी ना में सिर हिला के हिम्मत कर बोली "नहीं मुझे नही आना मुझे डर लग रहा है आप इंसान नही है आप की हरकते किसी पागल की तरह है मुझे नही आना"

    पागल शब्द जैसे अवीक के दिल पर लगी वो गुस्से में लाला दहाड़ के बोला "तूने मुझे पागल कहा "

    अवीक इतनी ज़ोर चिल्लाया जैसे बदलो में गर्जन हो रही वही ये आवाज नीचे तक गई जहा अंश और शोभा ही डिनर कर रहे एक बार दोनो आवाज सुन एक दूसरे को देख लेकिन फिर से कान में आवाज गई "मैने कहा पास आ वरना "

    सब के कानो में अवीक की आवाज साफ साफ जा रही नौकर चाकर सब अपनी जगह पर खड़े कांपने लगे और सब की मेरे ऊपर थी वह अंश उठने को हुआ की शोभा जी ने ना में सर हिलाया लेकिन अंश एक ना सुन के बोला " आज नही मॉम"""

    इतना कह वो सीधे सीढियों के तरफ बड़ा जो सीधे अवीक के कमरे के तरफ जाती है ।

    जारी ✍️

    क्या होगा आगे ? अवीक हनी के साथ क्या करेगा ? अंश क्यू भागा अवीक के कमरे में क्या उसे पता है अवीक क्या करेगा ?

    मै जानती हूं कहानी थोड़ा कम समझ में आ रही होगी आप सब को लेकिन इंतजार करिए सच्चाई काफी मजेदार है इतना की आप का दीमाक घूम जायेगा 😵‍💫 इसकी तरह 😅

  • 16. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 16

    Words: 1214

    Estimated Reading Time: 8 min

    सब के कानो में अवीक की आवाज साफ-साफ जा रही थी। नौकर-चाकर सब अपनी जगह पर खड़े कांपने लगे और सब की नजरें मेरे ऊपर थीं। वह अंश उठने को हुआ कि शोभा जी ने 'ना' में सर हिलाया, लेकिन अंश एक ना सुन कर बोला, "आज नहीं मॉम।" इतना कह वो सीधे सीढ़ियों की तरफ बढ़ा जो सीधे अवीक के कमरे की तरफ जाती हैं।

    तुम इतनी रात को कहां गई थी तृषा?" हेमलता ने घर में आते हुए तृषा को देख कहा।

    वही तृषा कुछ सोचते हुए सीधे घर में आ रही थी, लेकिन हेमलता की बात सुन वो उन्हें देखने लगी और जवाब कुछ ना दी, जिसे देख हेमलता फिर से बोली, "तृषा तुम इतनी रात कहां थी? मैं कुछ पूछ रही हूं।"

    तृषा इस बार भी कोई जवाब नहीं देना चाहती थी, लेकिन वो जानती थी अगर उसने जवाब नहीं दिया तो उसकी मां बार-बार यही रट लगा रखेंगी। तृषा ने गहरी सांस ली और बोली, "क्या फर्क पड़ता है आप को मैं कहां थी, कहां नहीं? आप को मेरी शादी से मतलब होना चाहिए, ना कि मेरे आने-जाने से।"

    "तुम ये कैसी बातें कर रहीं? मैं तुम्हारी मां हूं और जब बच्चे रात को बिना बताए जाते हैं, एक मां का दिल डरता है। क्या उस मां को कुछ भी अपने बच्चे से पूछने का हक नहीं है?"

    "क्या सच में आप मेरी मां हैं? क्या सच में आप का दिल डर रहा या फिर आप सुनना चाहती हैं कहीं मैं फिर से हनी दी से मिलने तो नहीं गई, कहीं मैं उनके पास जाके उन्हें वहा से यहां लाने के बारे में तो नहीं सोच रही? आप यही जानना चाहती है ना।"

    तृषा की बात सुन कुछ देर तक हेमलता शांत रही, फिर बोली, "तुम बिल्कुल अपने बाप पर गई हो। वो उस लड़की के लिए मेरे ऊपर हर वक्त शक करते है, सेम तुम कर रही हो। मैंने उस लड़की का नाम भी नही लिया, लेकिन देखो तुम्हे लग रहा तुम्हारी मां उसके बारे में जानना चाहती है।"

    "आप कैसे कर लेती है इतना सब? थकती नहीं है, हां?" तृषा इतना बोल रुकी, फिर मुंह अजीब सा बना के बोली, "मां, शक बेफिजूल में नहीं किया जाता, करने की वजह होती है और आप ने वो वजह मुझे डैड को दी है, तभी हम करते है, बाकी हमे किसी पागल कुत्ते ने नही काटा है जो हम शक करेंगे।"

    "मुझे तुमसे कोई बहस नहीं करना, बस साफ-साफ बताओ इतनी रात को तुम किससे मिलने गई थी? तु ये भूल रही है अब तुम अंश की पत्नी बनने वाली हो। मैं नहीं चाहती तुम्हारी किसी गलती से रिश्ता खत्म हो।"

    हेमलता की बात सुन तृषा अजीब तरह से हंस के देखने लगी, जिसे देख हेमलता आंख सिकोड़ के बोली, "क्या हुआ तुम ऐसे हंस क्यूं रही हो? मैने कुछ गलत कहा है? तुम एक से जानती हो शोभा जी किस तरह की है।"

    तृषा निचले होंठ उठा के बोली, "मैं जानती हूं आंटी को, मॉम और आप कुछ गलत नहीं कर सकती। वैसे भी गलत मैं अगर हो भी जाऊं तो आप है ना मुझे बचाने वाली। बचपन से आप यही तो करती है, जब-जब मैं गलत होती भी थी तो आप दी का नाम लगा के मुझे बचा लेती, आज भी वैसे कर लीजिएगा अगर गलती से मैने कुछ गलत कर दिया तो।" तृषा ने तो शब्द खींच के कहे।

    तृषा की बात सुन हेमलता कुछ कह ही नहीं पाई, उसके पास शब्द ही नही बचे थे। हां ये सच ही तो है, हर बार हनी को ही गलत करार कर दिया जाता। तृषा अपनी गलती को छुपाने वालो में से नही है, अगर उसकी गलती है फिर वो सजा के लिए भी तैयार रहती है, लेकिन ये उसकी मॉम को बिलकुल नही पसंद था, वो हर बार हनी को बीच में लाती और तृषा को बचा लेती, मगर उसकी सजा हनी को मिलती।

    ये सब देख मृषा का प्यार और बढ़ता जा रहा था। हेमलता कोई जवाब देती तृषा वहा से जाते हुए बोली, "गुड नाईट मॉम।" इतना कह हांथ हिलाते हुए तृषा अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने बैग उठा के फेक दिया और बेड पर बैठ गहरी सांस लेते हुए खुद से बोली, "मॉम आप ने बहुत गलत किया दी की शादी उस घर के करा के, इसके लिए मैं आप को कभी माफ नही करूंगी, कभी नही। आप को नही पता आप ने दी को कहा भेजा है और मुझे भी वही भेज रही है। आई नो ये जरूर आप के पापो की सजा मुझे मिल रही मैं एक ऐसे घर में जा रही जहा पर पता नहीं कितने राज छिपे है।"

    तृषा खुद के अंदर जलते हुए ये सारी बाते कह रही थी। वो गहरी सांस लेके कुछ देर खुद को शांत की, फिर कुछ सोच के पर्स से अपना फोन निकाल अंश का नंबर डायल करने लगी, लेकिन फुल घंटी जाने के बाद भी अंश फोन नही उठा रहा।

    वही तृषा बार-बार कॉल कर रही थी। फोन की आवाज सुन अंश की मॉम जो सोफे पर बैठी थी उनकी नजर अवीक के कमरे के तरफ थी। वो फोन की आवाज सुन फोन उठा ली, लेकिन तृषा का नाम देख कर वो फोन वही पर पटल कर दी जिससे आवाज ज्यादा बाहर न जाए।

    इतना कर वो फिर से ऊपर देखने लगी जहा पर अंश अपना जोर ताकत लगा के अवीक के कमरे का गेट खोलता है। जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला सामने का नजारा देख इसके मुंह से एक चीख निकल गई।

    "भाई....." अंश चिल्लाते हुए आगे बड़ा जहा अवीक ने हनी का गला दबोच के उसे बेड से लगा रखा था। अंश अवीक का हांथ पकड़ के दूर करने की कोशिश करते हुए कहा, "भाई आप ये क्या कर रहे है? छोड़िए भाभी सांस नही ले पा रही, भाई मैं कह रहा हूं छोड़िए उन्हे वो मर जायेंगी।"

    अंश बार-बार कह रहा अवीक को दूर करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अवीक के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा। वो बस गुस्से से लाल आंखो से घूरते हुए बोला, "उसने मुझे पागल कहा, क्या मैं पागल हूं? मैं पागल नही हूं, इसकी हिम्मत भी कैसे हुई मुझसे जबान चलाने की? ये नही जानती मैने कितनो को मारा है, इसे भी मैं मार सकता हूं आज और अभी।"

    "नही भाई आप इन्हे कुछ नही कर सकते, आप भाभी से प्यार करते है आप ने शादी की है, आप ऐसा मत करिए, गुस्सा छोड़िए प्लीज" अंश कहता जा रहा लेकीन अवीक उसकी एक नही सुन रहा, जिसे देख अंश ने एक नजर अवीक को देखा फिर हनी को जिसका चेहरा कला हो गया था। आंखे बंद कर वो सांस लेने की कोषिश कर रही थी। हनी को देख ऐसा लग रहा उसकी सांसे किसी भी पल रुक सकती है।

    ये देख अंश घबरा गया, वो पैनिक होने अवीक को देख के कहा, "सॉरी भाई अब मुझे वही करना होगा जो मैं करना नही चाहता था, मुझे माफ कर दीजियेगा।" इतना कह अंश अवीक को छोड़ अवीक के वही रेड कमरे में चला गया जहा अवीक अक्सर रहता है और हनी को वही पर टॉर्चर किया था।

  • 17. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 17

    Words: 1

    Estimated Reading Time: 1 min

    अब अग्नि को जो समझना है समझ ले  लेकिन जैसे ही अग्नि ने दोनो का चेहरा देखा अग्नि तेज आवाज में  बोला " दोनो सच सच सारी बात बताओ मुझे  एक भी बात छुपना नहीं चाहिए। इस वक्त अग्नि काफी खतरनाक लग  रहा था आखिर में दोनो ने अपना मुंह खोला और आगे आ के एक एक बात बताने लगे ।

    अब आगे ...

    ये सब दादी के पहाड़ी गुरु जी ने दिया था कहा की इस जड़ी बूटी से जल्द ही घर में बच्चे की किलकारी गूंजेगी हमने तो एक बार दादी को मना किया वो न करे आप को पता चला बात बिगड़ जाएगी लेकिन वो हमारी एक नहीं सुनी  बोली उन्हें जल्दी से घर में बच्चे चाहिए और हमें धमकी दी कि ...

    इतना कह अनय चुप हो गया जिसे देख अग्नि अपनी तेज निगाहों से घूर के कहा " कैसी धमकी?

    अनय ने एक नजर अयन को देख फिर दादी को जो उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी वो घबरा गया अग्नि के समाने अब बात छुपा नहीं सकता उसने सिर झुका के कहा " दादी हमे अपने हांथ से खाना नहीं देती इस लिए हमने किया  अब दादी के हांथ से कहां रोज रोज खाने को मिलता है बस इसी लालच में हम मान गए ।

    अपनी बात कह वो अयन के पीछे छिप गया वो जनता है इस बात से अग्नि बहुत नाराज होगा क्योंकि  ये एक बचकाना धमकी थी इसका कोई मतलब नहीं है ।

    लेकिन  अनय अयन से थोड़ा बचकाना था अयन कुछ समझदार था तो अनय ने था अक्सर उसकी हरकत बच्चों वाली हो जाती लेकिन जब काम की बात आती तो दोनो भाई एक जैसे हो जाते  ऐसे मानो की उन्हें न किसी से डर है न किसी से भय सब कुछ कर लेते है ।।

    अग्नि की नजर अनय से खिसक के दादी के तरफ गई जो अग्नि को देखने मात्र से ही अपने सामने के टूटे दांतों को दिखा के बोली " अरे इसकी बाते तू क्यों सुन रहा जनता है न मै ऐसा कुछ नहीं ......

    दादी ... अग्नि ने इस शब्द कर जोर देके कहा दादी बीच में रुक गई वो सीरियस होके बोली " सॉरी,, मुझे पता है तुमने शादी क्यों कि बस उसी के डर था कही भविष्व में अलग न हो जाओ मैं नहीं चाहती थी इस लिए मुझे लगा शायद बच्चे हो जाएंगे तो तुम दोनों एक साथ रहोगे इसी लिए मैने ये  सब किया मुझे माफ कर दो बेटा  लेकिन गुरु जी बहुत अच्छे है "

    पछतावे की आंखों से दादी ने अग्नि के तरफ देखा वही दादी को भी सब देख रहे थे अग्नि का गुस्सा गायब हो चुका था उसके चेहरे पर किसी तरह का कोई भाव नहीं था शायद एक यही सब है जहां अग्नि का गुस्सा शांत होता है लेकिन अग्नि ने दादी का सॉरी एक्सेप्ट न कर के कहा

    " मै आप को माफ कर देता लेकिन अब ने अनय को धमकी क्यों दी आप जानती है दादी वो दोनो आप से कितना प्यार करते है दादी से ज्यादा आप को मां मानते है और हर बार आप इसी का फायदा उठा के दोनो से गलत काम करवाती है ये क्या आप सही कहती है  नहीं दादी ये बहुत गजट है किसी के प्यार का गलत फायदा उठाना । "

    अग्नि की बात सुन दादी कुछ नही बोली बस अनय को देखी वो छिपा सा था जब  बचपन अग्नि उसे अपने  साथ ले आया  था दादी ने दोनो को पाला अपने बच्चे की तरह ओर उन्हें अपने हांथ से खान बना के खिलाती यही दोनों को ज्यादा पसंद थी लेकिन जब दादी को अग्नि से रिलेटेड कोई काम करवाना होता तो वो अक्सर यही कहती वो काम नहीं करेंगे तो वो खाना अपने हांथ से नहीं खिलाएंगी दादी के प्यार में दोनो ये काम करते शुरू सुर में अधिसा को उन्होंने दादी के कहने कर ही भगाया था और आज दादी का साथ भी इसी लिए दिया ।

    ये थोड़ा सा सब को बचकाना लगेगा लेकिन जब कोई किसी से प्यार करता है चाहे फिर वो पति पत्नी हो, मां बच्चे , या फिर कोई और प्यार इंसान अपने  उस प्यार के लिए कुछ भी कर सकता है

    ऐसा नहीं है दादी दोनो ने प्यार नहीं करती लेकिन वो अग्नि से भी ज्यादा करती है मगर अग्नि से कुछ कहने से डरती है वैसे डरते दोनों भी है बस दादी इसी का फायदा उठा के दोनो को अग्नि के समाने परोस देती है

    आज सच में दादी को पछतावा हुआ एक छोटे बच्चे की तरह अनय दादी को देख रहा । अक्सर बचपन में जब अग्नि डांटता तो अनय अयन के पीछे जाके छिप जाता ओर दादी को इसी तरह देखा क्योंकि डांट भी वो दादी की ही वजह से मिलती थी ।

    दादी अपना हांथ बड़ा के अनय को पास बुलाई अयन के पीछे ही अनय छिपा रहा वो नहीं आया तो दादी बोली " सॉरी आज से ऐसा कभी नही होगा पक्के अपनी दादी मा को माफ कर दे  ओर मेरे पास आ जा "

    दादी सच में पछता रही अग्नि के भलाई के बारे में सोच के उनकी भावनाएं न समझ पाई अनय दादी की बात सुन उनके पास आके गले से लग गया । ओर बोला " आप सॉरी क्यों बोल रही दादी बस आप बताइए खान खिलाएंगी न " ।।

    इतना कह दादी से अलग हुआ तो दादी ने प्यार से गाल छू के हां में सी हिला दी जिसे देख अनय खुश हो गया और बोला अग्नि से " अब बॉस आप जो सजा देंगे मुझे मंजूर है ।

    अग्नि सर हिला के बोला " ठीक है  गलती की है तो सजा मिलेगी लेकिन पहले ये भी बताओ शेरा के कमरे का दरवाजा बंद किसने किया "

    अब तो भाई शेरा की बात हुई वो भी सीना तान के खड़ा हो गया सुनने के लिए किसने ये जुर्रत की अगर अयन अनय ने की है फिर तो वो छोड़ेगा नहीं दोनों को लेकिन भैया दादी ने मुंह खोला " मैने की थी और न करती तो अब तक ये नालायक रात में ही सारा घर उठा लेता जो करना था वो भी नहीं करने देता इसी लिए।इसे बंद किया "

    फिर से दादी अपने फॉम में आई तो शेरा उन्हें घूर कर देखने लगा सच में  चारों कम एक दूसरे से लड़ने लगे ये न कोई जनता है और न ये कब एक साथ हो जाए ये समझा काफी मुश्किल है अभी तक दादी जो अच्छी थी अब शेरा की दुश्मन हो गई अग्नि के समाने वो घूरने के सिवा कुछ बोल नहीं पाया लेकिन अग्नि  जो खुद एक आग है दादी ओर शेरा के बीच चिंगारी जलाते हुए कहा

    " आप की वजह से दादी शेरा ने गन चलने वाले आदमी को देख नहीं पाया अगर एक भी गोली मुझे आके लग जाती फिर,, आप ने ये  बहुत बड़ी लगती की है "

    अपनी बात कह के अग्नि वहां से उठ के डाइनिंग टेबल ओर चला गया नाश्ते के लिए बाकी शेरा के रहते हुए उसके बॉस को कुछ हो सकता है और उसके रहने के बाद भी गोली चली इस गिल्ट में वो घर से बाहर निकल गया । दादी और बाकी दोनों को पता था अग्नि ने गोली चलाई थी और अग्नि ने जान बुझ कर आग लगाई लेकिन तीनो सफाई दे नहीं पाय

    खैर शेरा के जाने के बाद अग्नि ने नाश्ते के लिए आया  सब कुछ देर में आके नाश्ते के टेबल पर  बैठ गए बात का सुलह हो चुकी थी बस सजा बाकी थी तभी खाते हुए अग्नि ने अयन और अनय से कहा "  सजा के तैयार पर तुम दोनो को  ग्राउंड का 50 चक्कर लगाना है इस लिए अच्छे से खा लो "

    जैसे ही  अग्नि ने कहा दोनों को खांसी आनी शुरू हो गई खाना गले में ही रह गया बस आंखे फाड़ के अग्नि को देखने लगा वो कैसे ये बात भूल गए अग्जी उन्हें साफ साफ जाने देख इया हो नहीं सकता है शेरा वो काफी खुश हो गया दोनो की सजा सुन सब अपने में थे तभी सीढ़ियों से  की आवाज काफी तेज़ आई देखा तो बैग लेके अधीसा भागते हुए नीचे आ रही उसे इस तरह से हड़बड़ाए देख सब की आंखे छोटी हो गई दादी कुछ कहती उससे पहले अधिसा घर के बाहर जिल गई

    अग्नि उसे  जाते देख मन में कहा  " ये इस तरह से कहा जा रही है । अग्नि को नहीं पता अधिसा कहा जा रही उसे कुछ पता  भी नहीं  करना था ।

    जारी ✍️

    क्या होगा आगे . ?

  • 18. MY PSYCHO KILLER HUSBAND 😈 - Chapter 18

    Words: 0

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