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Until you are mine

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Aarya Rai

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"शी नेवर बिलीव्ड इन मॉन्स्टर्स... अनटिल वन सेव्ड हर." नागपुर के बाहरी इलाके… घना जंगल, शाम की धुंधली रौशनी, ऊपर आसमान में बिजली की गड़गड़ाहट और हवाओं की सरसराहट। उस सुनसान खामोशी में एक लग्ज़री कार ज़ोर से ब्रेक लगाकर रुकती है। अंदर एक...

Total Chapters (105)

Page 1 of 6

  • 1. Until you are mine - Chapter 1

    Words: 1700

    Estimated Reading Time: 11 min

    महाराष्ट्र, नागपुर

    नागपुर का आउटर एरिया, दोनों तरफ घने जंगल, ऊँचे-ऊँचे पेड़, शाम का वक्त था। आकाश में बादल घिर आए थे, बिजली कड़क रही थी। ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं जिससे वहाँ लगे पेड़ खुशी से झूम रहे थे। अजीब सी शांति थी वहाँ। तभी एक कार तेज रफ्तार में वहाँ आई और अचानक ही झटके से रुक गई। अंदर एक लड़का और एक लड़की बैठी थी। लड़के का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था और आँखें एकदम लाल थीं, वहीं लड़की चुप सी बाहर देख रही थी।

    अचानक झटके से कार के रुकने से लड़की का सर शीशे से टकरा गया और माथे पर चोट लग गई और थोड़ा-थोड़ा खून आ गया। लड़की ने दर्द से अपने पतले-पतले लबों को आपस में भींच लिया और माथे पर हाथ रखकर दूसरे तरफ देखा जहाँ वो सूट-बूट पहना लड़का बैठा था, पर अब वहाँ किसी को न देखकर लड़की डर गई।

    वो कुछ समझ पाती, उससे पहले ही उसके तरफ का दरवाजा खुला और किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसको कार से बाहर खींच लिया। लड़की एकदम से घबरा गई, पर उसने सामने देखा तो सामने वही लड़का खड़ा था जिसके साथ वो थी।

    लड़की ने उसे गुस्से में देखा तो हिम्मत करते हुए बोली "सॉरी निहाल, मुझे नहीं पता कि क्यों तुम मुझ पर तब से इतना गुस्सा कर रहे हो, पर फिर भी मैं तुमसे माफी मांग रही हूँ।"

    "माफ़ी, माई फ़ुट! तुमने आज जो किया है उसकी कोई माफ़ी नहीं है। तुमने मेरे दोस्तों के सामने मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दीं। क्या सोच रहे होंगे वो सब कि मेरी मंगेतर कैसी है? कैसी लड़की को मैंने खुद के लिए पसंद किया है? कहाँ मैं, मुझे देखकर अच्छी-अच्छी लड़कियाँ भी मुझ पर फ़िदा हो जाती हैं, एक से एक लड़की मेरे आगे-पीछे घूमती है, पर मैं ही किसी को भाव नहीं देता और कहाँ मेरी मंगेतर, जो इतनी डाउन मार्केट है कि कोई लड़का उसे देखना भी पसंद न करे। तुम्हारा और मेरा कोई मेल ही नहीं है, ये बात आज मुझे समझ आई है।

    कहाँ मैं, कॉलेज का सबसे फेमस लड़का, और कहाँ तुम, एकदम बहनजी टाइप लड़की, जिसे न कपड़े पहनने का ढंग है, न ही बात करने का सलीका आता है। यहाँ तक कि तुम्हें तो ये भी नहीं पता कि किसके साथ कैसे बिहेव करते हैं, लोगों के बीच कैसे उठते-बैठते हैं, कैसे खाते हैं। तुम बिल्कुल गाँव की गवार जैसी हो। मुझे अब खुद पर हैरानी हो रही है कि मैंने तुम्हें पसंद कैसे कर लिया।"

    उसकी बातें सुनकर लड़की की गहरी भूरी आँखों में आँसू भर आए। उसने अपनी हथेली से उसे साफ करते हुए कहा "मैंने किया क्या है? क्या गलत है इन कपड़ों में?"

    लड़की ने अपने कपड़ों को देखते हुए कहा, उसने वाइट कलर का सुंदर सा सूट पहना हुआ था, गले में दुपट्टा लटक रहा था। मासूम सा, छोटा सा भरा-भरा चेहरा, प्यारी-प्यारी सागर सी गहरी भूरी-भूरी आँखें, छोटी सी नाक और मद्धम आकार के करीने से तराशे गए गुलाबी-गुलाबी लब, कंधों से नीचे और कमर से ऊपर तक लहराते खुले कर्ली सुनहरे बाल, जिनकी कुछ लटें उसके गालों पर झूल रही थीं।

    काजल से सजी आँखें बेहद आकर्षक लग रही थीं। सामान्य कद-काठी थी, न ज्यादा पतली थी, न ही मोटी। गोल-गोल, चबी-चबी गाल जो उसको और भी क्यूट बना रहे थे। उसका रंग न गोरा, न काला, साफ रंग था। देखने में कमाल लग रही थी, अजब खूबसूरती थी, चेहरे पर अलग ही कशिश और बिल्कुल करीने से तराशा गया बदन, किसी मॉडल से कम नहीं लग रही थी वो।

    उसके आँसू देखकर लड़के को और भी चिढ़ होने लगी। उसने खीझते हुए कहा "अब रोने मत लगना!"

    "मैं नहीं रो रही, पर तुम मुझ पर इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो?" लड़की ने अपने आँसुओं को पोंछते हुए कहा। उसकी बात सुनकर निहाल ने उसको ऊपर से नीचे तक घूरने लगा

    "गुस्सा न करूँ तो और क्या, प्यार करूँ तुम्हें? कपड़े देखे हैं अपने? क्या दिया था मैंने तुम्हें और तुम क्या पहनकर आई हो? बहनजी जैसे सूट और ये दुपट्टा डालकर पहुँच गई मेरी पार्टी में। देखा था न वहाँ सबने कैसे कपड़े पहने थे? और तुम्हें इन कपड़ों में देखकर कैसे रिएक्ट कर रहे थे? मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम चाहती क्या हो? जब मैंने तुम्हें खास वो ड्रेस दी थी और कहा था कि आज की पार्टी में मैं तुम्हें सबसे मिलवाने वाला हूँ, तो वही पहनकर आना, अच्छे से रेडी होकर आना ताकि मेरे साथ खड़े होने लायक लग सको, तो तुम ये कपड़े पहनकर आई ही क्यों?"

    "मैंने तुम्हें पहले ही कहा था वो ड्रेस बहुत छोटी है, मैं ऐसे कपड़े नहीं पहनती, मुझे उनमें जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने ये कपड़े पहन लिए।" लड़की ने फिर से सफाई दी, पर उसकी बात सुनकर निहाल ने गुस्से में उसकी बाँह पकड़ते हुए चिल्लाकर कहा

    "तुम्हारी इसी बेवकूफ़ियाना ज़िद की वजह से आज मुझे अपने दोस्तों के सामने कितना शर्मिंदा होना पड़ा। आज तक किसी की हिम्मत नहीं थी कि मुझसे कुछ कह सके, पर आज सिर्फ़ तुम्हारी वजह से मुझे उनके सामने इतना एम्बेरेस्ड होना पड़ा। वो मुझे ताने मार रहे थे कि ऐसे तो बहुत चौड़े में रहता है, इतना एटीट्यूड दिखाता है, टशन में घूमता है और गर्लफ्रेंड कैसी पसंद की है। मैं किसी को जवाब भी नहीं दे सका।

    सिर्फ़ तुम्हारी वजह से आज मेरी सबके सामने इतनी इन्सल्ट हुई है, जितनी आज तक कभी नहीं हुई थी। तुम्हारे लिए सिर्फ़ तुम ही इम्पॉर्टेंस रखती हो, मेरी इच्छा, मेरी इज़्ज़त की तुम्हारे नज़रों में कोई इम्पॉर्टेंस ही नहीं। मैंने तुम्हें पहले ही कहा था, मेरा स्टेटस अलग है, अगर मुझसे शादी करनी है तो तुम्हें खुद को बदलना होगा, पर मुझे नहीं लगता कि तुम खुद को कभी बदलोगी।

    तो ठीक है, मैं भी तुम जैसी बेवकूफ़ और डाउन मार्केट लड़की को ज़िंदगी भर के लिए अपने सर पर नहीं बिठा सकता ,और इन्सल्ट नहीं करवा सकता तुम्हारी वजह से अपनी, इसलिए अब से हमारे रास्ते अलग-अलग हैं। मैं अभी इसी वक़्त इस सगाई को तोड़ता हूँ।" निहाल ने गुस्से में उसके हाथ को झटक दिया तो लड़की के कदम लड़खड़ा गए। वो डबडबाई आँखों से उसे देखने लगी, जबकि लड़का वापस दूसरी तरफ जाकर कार के अंदर बैठ गया और गुस्से में उसने कार स्टार्ट भी कर दी।

    लड़की बुत बनी खड़ी ही रह गई। जब कार उसकी आँखों से ओझल हो गई तो उसने गुस्से में चिल्लाकर कहा "तो जाओ मुझे छोड़कर, मुझे भी तुमसे कोई मतलब नहीं है। मैं किसी के लिए कभी खुद को नहीं बदलूँगी। जाते हो तो जाओ जहन्नुम में, मैं भी तुमसे शादी करने के लिए मरी नहीं जा रही हूँ। अगर मेरी मजबूरी नहीं होती तो मैं तुम जैसे खुदगर्ज़ लड़के का कभी चेहरा भी देखना पसंद नहीं करती। तुम्हें क्या लगता है तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तो मैं रोऊँगी तुम्हारे लिए? अरे रोए मेरे दुश्मन, मैं नहीं रोने वाली किसी के लिए, मैं खुद से घर चली जाऊँगी और अब तुम नाक रगड़ते हुए भी मेरे पास आओगे न, तब भी तुमसे शादी नहीं करूँगी।"

    लड़की ने अपना सारा फ्रस्ट्रेशन निकाल लिया। फिर सड़क पर जाने के बजाय गुस्से में जंगल की तरफ चल दी। वो बड़बड़ाते हुए चली जा रही थी, बिना ये देखे कि कहाँ जा रही है। अचानक ही उसको अपने पीछे से कोई आवाज़ सुनाई दी तो वो एकदम से चौंक गई। उसने घबराकर आस-पास देखा तो खुद को जंगल में देखकर डर से उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

    तभी उसको किसी के अपने तरफ आने की आहट सुनाई दी तो उसने आव देखा न ताव और सीधे दौड़ पड़ी, जहाँ मर्ज़ी मुड़ जाती, पर उसके पीछे-पीछे वो साया भी जा रहा था। भागते-भागते लड़की ने पीछे मुड़कर देखा, जिस वजह से सामने से उसका ध्यान हट गया और वो दलदल में जा गिरी। इसके साथ ही उसके मुँह से चीख निकल गई। डर के मारे वो अपने हाथ-पैर चलाने लगी। अचानक ही किसी ने उसके मुँह को अपनी हथेली से दबा दिया और पलक झपकते ही उसे लेकर हवा में उड़ा गया। उनके वहाँ से जाते ही वो साया सामने आ गया; खूनी लाल आँखें, काले कपड़े और दोनों तरफ से मुँह से बाहर आते दांत, जिनमें खून लगा हुआ था।

    वो अदृश्य साया लड़की को अपने साथ उड़ाते हुए वहाँ से दूसरे तरफ वाले जंगल में आ गया। लड़की छटपटा रही थी और हैरानी और डर से उसकी आँखें बाहर आने को हो गई थीं, डर से गला सूख गया था।

    कुछ दूरी पर आकर उस साये ने उसको ज़मीन पर उतार दिया। लड़की के सफ़ेद कपड़े एकदम गंदे हो गए थे। छूटते ही लड़की ने मुड़कर देखा तो पीछे कोई नहीं था। तभी उसके कानों में पानी के बहने की आवाज़ पड़ी तो वो बाकी सब भूलकर आवाज़ की दिशा में चल पड़ी। कुछ ही कदमों की दूरी पर एक सुंदर सा झरना था। लड़की पानी देखकर खुशी से उछल पड़ी और झट से झरने के नीचे जाकर पानी को हाथ में लेकर उसे खुद पर डालने लगी।

    वो पानी देखकर एकदम बच्ची बन गई थी और मस्ती करते हुए नहा रही थी, वहीं एक विशाल पेड़ के पीछे वो साया अब भी मौजूद था और उसकी निगाहें उस लड़की की निश्छल मुस्कान पर ठहरी हुई थीं। अभी कुछ ही देर हुई थी कि झमाझम बारिश शुरू हो गई। अब तो लड़की की खुशी का ठिकाना नहीं था।

    वहीं उसको देखकर उस साये के लब भी हल्के से खिंच गए और नज़रें जैसे लड़की के चेहरे पर जा ठहरी थीं। कुछ देर बाद लड़की को लगा जैसे किसी की नज़रें उसे ही देख रही हैं तो उसके चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए। वो उसी दिशा में बढ़ गई जहाँ पेड़ के पीछे वो साया खड़ा था। लड़की को अपने तरफ आता देख वो साया भी कुछ विचलित हो गया।

    अगले ही पल उसकी आँखें एकदम नीली हो गईं और मुँह के साइड से दो दांत बाहर आ गए। वो एकदम से लड़की के सामने आ गया। अंधेरे में और बारिश की वजह से लड़की उस साये को ठीक से देख नहीं पाई, पर उसकी नीली डरावनी आँखें और बाहर आए दांत देखकर वो समझ गई कि सामने वैम्पायर खड़ा है और अगले ही पल वो निढाल होकर ज़मीन पर जा गिरी। इसके साथ ही वो साया गायब हो गया।


    Coming soon…

  • 2. Until you are mine - Chapter 2

    Words: 2041

    Estimated Reading Time: 13 min

    सामने वैम्पायर को देखकर लड़की पल भर में ही निढाल होकर जमीन पर गिर गई। एक बार फिर उसके सफ़ेद कपड़े मिट्टी से मैले हो गए; चेहरे पर डर के भाव पसरे हुए थे, माथे पर बल पड़ गए थे, और वह अपने होश खोकर जमीन पर बेसुध पड़ी हुई थी। उसके बेहोश होते ही, पलक झपकते ही, वह साया भी गायब हो गया। एक तेज़ हवा का झोंका आया और वह लड़की अदृश्य हो गई।


    लगभग पंद्रह मिनट बाद, वही काला साया उसी जगह पर आया और सामने बहते झरने को देखते हुए उस पल में खो गया जब वह लड़की वहाँ झरने के नीचे खड़ी भीग रही थी। उसका भीगा हुआ, चाँद सा सुंदर मुखड़ा उसकी आँखों के सामने घूम गया। उसने अपनी पलकें झुका लीं, जैसे उस पल को अपनी आँखों में कैद कर रहा हो; लबों पर सुकून भरी, मोहिनी मुस्कान फैल गई।


    उसने उस लड़की को याद करते हुए खुद से कहा,
    "यहाँ आया था इस मौसम का आनंद लेने, कुछ पल सुकून से बिताने की चाहत मुझे यहाँ खींच लाई थी, पर यह नहीं जानता था कि यहाँ मुझे मेरे बेचैन दिल का करार मिल जाएगा। पता नहीं कभी किसी ने तुम्हें यह बताया या नहीं, पर तुम बिल्कुल चाँद का टुकड़ा लगती हो; इतनी हसीन कि तारीफ़ के लफ़्ज़ कम पड़ जाएँ। वह पल जब तुम बेखौफ़, चंचल नदी के तरह बारिश की फुहारों से खेल रही थीं, कितना खूबसूरत पल था वह। तुम्हारे जिस्म से आती भीनी-भीनी खुशबू मन को रोमांचित कर गई थी; अजीब सी कशिश थी तुममें जो मुझे सम्मोहन कर रही थी।"


    "तुम्हें निगाहों में बसाने के लालच ने एक पल के लिए भी तुम पर से नज़रें हटाने ही नहीं दिया, पर मुझे देखकर तुम्हारा बेहोश होना मेरे इस हसीन ख्वाब को तोड़ गया, एहसास करा गया मुझे कि तुम इन आँखों में बस सकती हो, पर ज़िंदगी में शामिल नहीं हो सकती। तुम्हारे लिए तड़प सकता हूँ, पर तुम्हें पाने का ख्वाब नहीं देख सकता। बहुत नाज़ुक दिल की लड़की हो तुम; मेरे साथ तुम्हारा कोई मेल ही नहीं। तुम मेरे बेचैन दिल का करार तो बन गईं, पर अब जो बेकरारी मेरे अंदर जगाकर गई हो उसका कोई अंत नहीं है।"


    "हम दो अलग-अलग योनियों के प्राणी हैं; हमारा मिलन असंभव है। बहुत खास हो तुम मेरे लिए, पर पास नहीं रह सकती। शायद मेरे हिस्से बस यही एक पल आना था; शायद तुमसे दूर रहकर बेचैनी से अपनी ज़िंदगी काटना ही मेरी नियति है। पर मुझे कोई शिकायत नहीं; आज तुम्हें नज़र भर देख पाया, इतना ही बहुत है मेरे लिए।"


    "तुम्हारी वह निश्छल मुस्कान हमेशा तुम्हारे लबों पर सजी रहे, यही एक कामना है मेरी। तुम्हें अपनी बाहों में उठा सका, यह किसी हसीन ख्वाब से कम नहीं था मेरे लिए; यह अनमोल पल मेरे हिस्से आया, यह भी किस्मत की मेहरबानी है। अब तो तुम्हारे एहसासों के सहारे ही ज़िंदगी बितानी है मुझे। तुम्हें कल कुछ याद नहीं रहेगा, मैं भी नहीं, पर मैं अब तुम्हें कभी ख्वाब में भी भूल नहीं पाऊँगा।"


    उस साये ने अपनी आँखें खोलीं, एक बार फिर झरने को देखा तो अब भी उसे वहाँ वही लड़की नज़र आ रही थी; पानी में भीगती, हँसती-मुस्कुराती। अगले ही पल, तेज़ हवा के झोंके के तरह, वह वहाँ से उड़ गया।


    उसके वहाँ से जाते ही एक चमगादड़ उड़ता हुआ वहाँ आया और अगले ही पल एक वैम्पायर में बदल गया। उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं; उसने पलटकर उस झरने को देखा और अपनी मुट्ठियाँ कस लीं। उसकी आग सी धधकती, लाल, भयावह आँखें उसी दिशा में घूर रही थीं जहाँ से अभी-अभी वह साया गया था।


    अगले दिन, सुबह पाँच बजे नागपुर में बने एक दो मंजिला घर के एक छोटे से कमरे में एक लड़की बेड पर आँखें मूंदे लेटी हुई थी; लबों पर मोहिनी मुस्कान फैली हुई थी, जैसे ख्वाब में कुछ अच्छा देख रही हो। अगले ही पल, उसके आँखों के सामने एक जोड़ी गहरी नीली, डरावनी आँखें और मुँह के दोनों तरफ़ से बाहर आते दांत आ गए। वह धुंधला सा चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया और उसका चेहरा डर से सफ़ेद पड़ गया।


    अगले ही पल वह चीखते हुए उठकर बैठ गई। पूरा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। उसने आँखें खोलीं तो आँखों के सामने किसी औरत की तस्वीर आ गई जो सामने की दीवार पर लगी हुई थी। लड़की ने घबराकर नज़रें घुमाईं, फिर अपनी हथेली से अपना पसीना पोंछते हुए खुद से ही बोली,


    "यह तो मेरा कमरा है, पर मैं यहाँ कब और कैसे आई? मैं तो कल रात जंगल में थी; मेरे सामने वह वैम्पायर आ गया था..." यह कहते हुए उसका बदन काँप गया; उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और खुद को कंट्रोल करते हुए याद करने की कोशिश करते हुए बोली,


    "मुझे अच्छे से याद है, यह कोई सपना नहीं था। कल निहाल मुझे जंगल के पास छोड़ आया था और मैं गुस्से में अंदर घुस गई थी। फिर किसी की आहट पाकर मैं बिना सामने देखे भागने लगी थी और शायद दलदल में गिर गई थी... पर फिर मैं बाहर कैसे आई? ... वहाँ कैसे पहुँची? ... कोई था वहाँ, किसी ने मुझे पकड़ा था और वहाँ से उड़ाकर ले गया था... वहाँ मैंने किसी की मौजूदगी को महसूस किया था; कोई था जो मुझे देख रहा था... पर फिर वह वैम्पायर आ गया और मैं डरकर बेहोश हो गई... पर मैंने तो टीवी में देखा था वैम्पायर इंसानों का खून पी जाते हैं; उसने मेरा खून पीकर मुझे मारा क्यों नहीं? ... और मैं यहाँ कैसे आई?"


    बेचारी लड़की बुरी तरह कन्फ्यूज हो गई; उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कल उसके साथ आखिर हुआ क्या था? वह बेड पर से उठी और अलमारी से कपड़े लेकर नहाने चली गई। अब भी उसके दिमाग में कल की बातें ही चल रही थीं। बाहर आकर उसने बालों को एक चोटी में बाँधा, फिर दुपट्टा गले में डाला तो कल निहाल की कही बातें याद आ गईं और उसका मन कसैला हो गया। उसने अपने उल्टे हाथ के अनामिका उंगली में पहनी रिंग को देखा, फिर गुस्से में उसे उतारने लगी; तभी बाहर से किसी की आवाज़ आई,
    "आन्या..."


    आवाज़ सुनकर लड़की, जिसका नाम आन्या था, उसके हाथ रुक गए। उसने दुपट्टा ठीक किया और कमरे से बाहर निकली तो सामने ही एक आदमी, एक औरत और उनके साथ निहाल खड़ा था। निहाल को देखते ही आन्या का पारा हाई हो गया और उसने उसे घूरते हुए कहा,


    "अब यहाँ क्या करने आए हो? यह देखने कि मैं ज़िंदा हूँ या मर गई? चिंता मत करो; इतनी कमज़ोर नहीं हूँ मैं कि तुमने सगाई तोड़ दी और उसके गम में मैं अपनी जान दे दूँ।"


    "आन्या, ऐसे मत कहो; कल मैंने जो भी कहा वह गुस्से में मेरे मुँह से निकल गया। तुम तो जानती हो, गुस्से में मुझे पता नहीं चलता कि क्या बोल रहा हूँ।" निहाल ने बेचारी सी शक्ल बनाकर सफ़ाई दी। उसकी बात सुनकर आन्या गुस्से से, व्यंग्य भरे लहज़े में बोली,


    "हाँ, कल तुमने जो कहा और किया वह सब गुस्से में किया था। तुम्हें पता ही नहीं चला होगा कि तुमने क्या कहा और क्या हुआ; अब समझ आ गई होगी कि तुमने तो बहुत गलत कर दिया मेरे साथ, तो सुबह-सुबह मुँह उठाए चले आए मेरे घर।"


    आन्या ने जैसे ही अपनी बात खत्म की, उस औरत ने उसकी बाँह पकड़कर उसे अपनी तरफ़ घुमा लिया और गुस्से से चिल्लाई, "यह कौन सा तरीका है निहाल से बात करने का? अपनी तमीज़, शर्म, हया सब बेचकर खा गई हो क्या?"


    "रहने दीजिए आंटी, गलती उसकी नहीं मेरी है; उसका गुस्सा जायज़ है।" निहाल ने आन्या का बचाव किया तो कावेरी जी ने आन्या की बाँह छोड़ दी, पर आन्या के भाव नहीं बदले; वह अब भी गुस्से से निहाल को घूर रही थी।


    "मैंने कल तुमसे जो कहा और तुम्हारे साथ जैसे सुलूक किया, उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। Please माफ़ कर दो मुझे; एक मौका दे दो मुझे, मैं दोबारा कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।" निहाल ने उससे माफ़ी माँगी, पर आन्या के भाव ज़रा भी नहीं बदले। उसने तेवर देखकर अबकी बार अजीत जी, मतलब उसके पापा ने उसे डाँटते हुए कहा, "आन्या, नज़रें नीची करो अपनी; घूर-घूरकर क्या देख रही हो उन्हें? वह तुमसे माफ़ी माँग रहे हैं तो माफ़ कर दो उन्हें।"


    "नहीं करूँगी माफ़ उन्हें।" आन्या ने निर्भय होकर उनसे निगाहें मिलाते हुए कहा तो वह उसे गुस्से से घूरने लगे। अब आन्या ने निहाल की तरफ़ घूमकर बेहद गुस्से में कहा,


    "सही कहा तुमने; तुमने जो कल किया वह तुम दोबारा कभी नहीं कर पाओगे, क्योंकि मैं तुम्हें इसका मौका ही नहीं दूँगी। समझते क्या हो तुम खुद को? कल तुम गुस्से में थे तो उस सुनसान रास्ते पर, जहाँ दोनों तरफ़ घने जंगल थे, मुझे अकेला छोड़कर चले आए। तुम्हें एक बार भी मेरा ख़्याल नहीं आया कि क्या होगा मेरे साथ; तुम्हें दिखा तो सिर्फ़ अपना गुस्सा। अगर मैं कल मर भी जाती, तब भी यहाँ किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, यह जानती हूँ मैं, पर मुझे पड़ता है फ़र्क। कल तुमने अपने गुस्से में मुझे क्या नहीं सुनाया; ऐसे ताने मार रहे थे मुझे जैसे मुझसे सगाई करके तुमने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान कर दिया हो।"


    "पर तुम भूल रहे हो तो मैं तुम्हें याद दिला दूँ, मैं नहीं आई थी तुम्हारे पास; तुम्हें मुझमें दिलचस्पी थी। मैंने इतनी बार तुम्हें कहा था कि हमारा कोई मैच नहीं है, पर तुम पर ही प्यार का बुख़ार चढ़ा हुआ था; कितने वादे किए थे तुमने, पर मैं तब भी नहीं मानी थी क्योंकि मेरे दिल में तुम्हारे लिए कभी कुछ था ही नहीं, लेकिन तुमने हार नहीं मानी। जब मुझे राज़ी नहीं करवा सके तो मेरा रिश्ता लेकर मेरे घर पहुँच गए। मैंने इस सगाई और शादी के लिए हाँ अपने मम्मी-पापा के दबाव के वजह से की थी।"


    "तुम पहले से जानते थे कि मैं ऐसी ही हूँ; मैंने तुम्हें साफ़-साफ़ शब्दों में कहा था कि सोच-समझकर कोई भी फ़ैसला लो, क्योंकि मैं कभी खुद को किसी के लिए नहीं बदलूँगी, कभी भी नहीं। अगर मुझे बदलने के बाद तुम मुझसे प्यार करोगे तो प्यार के रूप में यह धोखा, यह सौदा मुझे मंज़ूर नहीं। कल तुमने मुझसे कहा था कि तुम मुझसे यह सगाई तोड़ते हो; आज मैं तुमसे कहती हूँ कि तुम्हारे जैसे दोमुँहे साँप के साथ मुझे किसी किस्म का कोई रिश्ता नहीं रखना है।" आन्या ने अपने रिंग फ़िंगर से रिंग निकाली और उसकी हथेली पर रखते हुए बोली, "यह पकड़ो अपनी सस्ती सी अंगूठी और निकल जाओ मेरे घर से भी और मेरी ज़िंदगी से भी।"


    आन्या आज पहली बार इतने गुस्से में थी; निहाल अवाक सा उसे देखता ही रह गया। जैसे ही आन्या चुप हुई, एक जोरदार चांटा सीधा उसके गाल पर आकर लगा और उसके कान सुन्न पड़ गए। आँखों में आँसू भर आए; उसने नज़रें उठाईं तो सामने खड़ी कावेरी जी ने उसके गाल पर एक और चांटा दे मारा और गुस्से से चीखी,


    "तेरी इतनी हिम्मत हो गई कि अब तू हमसे बिना पूछे यह रिश्ता तोड़ रही है? पता भी है कितनी मुश्किल से तेरे लिए इतना अच्छा लड़का मिला है; अगर यह रिश्ता टूट गया तो कौन करेगा तुझसे शादी? और क्या गलत कहा दामाद जी ने तुमसे? यही कहा था न कि उनके दोस्तों के सामने उनकी पसंद के कपड़े पहनकर आना, पर तुमने उनकी बात नहीं सुनी और अब उल्टा उन पर ही चिल्ला रही हो। एक बात तू भी कान खोलकर सुन ले; शादी तेरी निहाल जी से ही होगी और तुझे खुद को उनके अनुसार बदलना ही होगा।"


    "नहीं बदलूँगी मैं खुद को किसी के लिए; चाहे आप मुझे मार-मारकर जान ले ले मेरी, पर मैं इससे कभी शादी नहीं करूँगी।" आन्या भी अब गुस्से में चीखी। अगले ही पल, एक बार फिर उसके गोरे-गोरे गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ आकर लगा और आन्या का सर चकरा गया। इस बार चांटा बहुत जोर से लगा था और मारने वाले अजीत जी थे।


    "आपकी शादी तय हो चुकी है तो अपनी हरकतों को सुधार लीजिए। बहुत ज़ुबान लड़ाने लगी है आजकल; अपनी सीमा मत भूलिए, वरना हम भी भूल जाएँगे कि आप हमारी बेटी हैं।" वह गुस्से से गरजे; उनकी बातें सुनकर आन्या की आँखों से आँसू छलक आए।

  • 3. Until you are mine - Chapter 3

    Words: 2061

    Estimated Reading Time: 13 min

    "आपकी शादी तय हो चुकी है, तो अपनी हरकतें सुधार लीजिए। बहुत ज़ुबान लड़ाने लगी है आजकल, अपनी सीमा मत भूलिए, वरना हम भी भूल जाएँगे कि आप हमारी बेटी हैं।" वे गुस्से से गरजे। उनकी बातें सुनकर आन्या की आँखों से आँसू छलक आए।

    उसने अपने आँसू पोंछ लिए और भरी आँखों से उन्हें देखते हुए बोली, "आपको याद ही कब था कि मैं आपकी बेटी हूँ और आप मेरे पिता हैं? आपको कभी मैं नज़र आई ही नहीं। मेरे आँसू कभी दिखे ही नहीं आपको, आपको दिखता है तो बस अपनी पत्नी के आँसू, सुनाई देती है तो बस उनकी बातें, मैं तो कभी थी ही नहीं। जानती हूँ, आज भी आपको वही सही लगेंगी, इसलिए मुझे आपसे कुछ कहना भी नहीं है।

    अगर आपको मेरी रत्ती भर भी फिक्र होती, तो आज मेरे खिलाफ नहीं, मेरे साथ खड़े होते। जो लड़का आपकी बेटी को रात के वक्त अकेले बीच जंगल में यह कहकर छोड़ आया कि अबसे उसका उससे कोई रिश्ता नहीं है, आपकी पत्नी चाहती है कि मैं उससे खुशी-खुशी शादी कर लूँ और आपको कोई आपत्ति भी नहीं है।

    आप भी चाहते हैं कि मैं निहाल से शादी कर लूँ, सिर्फ इसलिए कि मुझे इस घर से निकाल सकें। पर मैं ऐसे इंसान से हरगिज़ शादी नहीं करूँगी, जिसकी नज़रों में न तो मेरा खुद का कोई वजूद है, न ही आत्मसम्मान। आप दोनों को मुझसे छुटकारा चाहिए तो कह दीजिए मुझे, मैं खुद यह घर छोड़कर चली जाऊँगी, कभी वापिस भी नहीं आऊँगी, पर मैं निहाल से हरगिज़ शादी नहीं करूँगी।"

    "ऐसे कैसे नहीं करेगी तू शादी? शादी तो तुझे किसी भी हाल में करनी ही होगी। मैं भी देखती हूँ कैसे नहीं करती तू शादी और कैसे तू इस घर से बाहर कदम रखती है। अब तो तू अपने कमरे से उसी दिन बाहर निकलेगी, जिस दिन तू शादी के लिए हाँ कह देगी।" वे उसके बाल पकड़ते हुए उसे उसके कमरे की तरफ खींचते हुए ले जाने लगे, पर आन्या ने एक शब्द नहीं कहा, होंठों को दांतों के नीचे दबाकर किसी तरह दर्द को बर्दाश्त करने लगी।

    उन्होंने उसको कमरे के अंदर धकेल दिया और बाहर से दरवाजा लगाते हुए बोली, "जब तक तू शादी के लिए हाँ नहीं कह देती, न तुझे कुछ खाने को मिलेगा, न ही पीने को। मैं भी देखती हूँ तेरा यह घमंड कब तक रहता है। जब दो दिन भूखे-प्यासे रहेगी, तो सारा गुरूर चूर-चूर हो जाएगा और खुद नाक रगड़ते हुए आएगी मेरे कदमों में और कहेगी कि तैयार है तू शादी करने के लिए।

    यहाँ से आज़ाद तो तू तभी होगी, जब शादी करके निहाल के घर जाएगी, उससे पहले न तू इस कमरे से बाहर जा सकती है और न ही घर से बाहर कदम रख पाएगी।"

    "ठीक है, देख लीजिये, मेरा गुरूर नहीं, यह मेरा आत्मसम्मान है। अगर मैं भूखी-प्यासी मर भी गयी, तब भी मैं यही कहूँगी कि मैं निहाल से शादी नहीं करूँगी।" अंदर से आन्या ने चिल्लाकर कहा। पर कावेरी जी ताला लगाकर वहाँ से चली गयी और निहाल के आगे हाथ जोड़ते हुए बोली, "माफ़ करना बेटा, आजकल ज़रा-ज़रा सी बात पर बहुत गुस्सा और ज़िद करने लगी है, आप चिंता मत कीजिये, कुछ देर अंदर बंद रहेगी तो गुस्सा अपने आप शांत हो जाएगा, फिर वह खुद आपको फोन कर लेगी। यह शादी नहीं टूटेगी, आप निश्चिंत रहिए।"

    निहाल ने जी आंटी कहा, फिर दोनों से विदा लेकर चला गया।

    कावेरी जी ने अब अजीत को देखकर गुस्से से कहा, "हरकतें देख रहे हैं उसकी? इतने नाज़ों से पाला है हमने उसे और कैसे बदतमीज़ी से बात करती है वह हमसे? दिन-ब-दिन और ज़िद्दी और बदतमीज़ होती जा रही है। हम तो माँ-बाप हैं, तो सब बर्दाश्त कर लेते हैं, कल को उनकी शादी होगी, दूसरे के घर जाएँगी तो कैसा होगा? हमें तो बहुत चिंता हो रही है। जवान लड़की है और लक्षण ठीक नहीं हैं उसके, हाथ से निकलती ही जा रही है, अब तो मार-पीट का भी कोई असर नहीं होता। देखा था आपने कैसे आँखों में आँखें मिलाकर बात कर रही थी? मैं तो कहती हूँ जितनी जल्दी हो सके निहाल से उनकी शादी करवा दीजिये। अगर बात हाथ से निकल गयी और यह रिश्ता टूट गया, तो कोई शादी नहीं करेगा आन्या से। वैसे भी बेटियाँ कितनी जल्दी अपने घर चली जाएँ, उतना अच्छा होता है।

    अगर आप कहें तो मैं समधन जी से शादी की बात आगे बढ़ाने को कहूँ? जल्दी से जल्दी शादी हो जाए तो हमारी भी चिंता खत्म हो जाएगी और शादी के बाद शायद आन्या भी सुधर जाए।"

    उन्होंने अजीत जी को अपनी मीठी-मीठी बातों में फँसा लिया और उन्होंने बड़ी आसानी से सहमति भी जता दी। कावेरी जी के आँखों में चमक आ गयी। आन्या की शादी के बाद निहाल उन्हें दस लाख रुपए देने वाला था, इसलिए वह जल्दी से उससे उसकी शादी करवाना चाहती थी। पर यह बात अजीत जी नहीं जानते थे, वही आन्या से कुछ भी छुपा हुआ नहीं था। वह जानती थी उसकी सौतेली माँ उसको शादी के नाम पर एक ऐसे लड़के के हाथ बेच रही है, जिसकी नज़रों में उसका कोई अस्तित्व नहीं है, जो बस उसके जिस्म को हासिल करना चाहता है।

    पहले भी उसने रिश्ते से मना किया था, पर उन दोनों ने तब भी उसको ऐसे ही टॉर्चर किया था। एक हफ़्ते तक वह बिना पानी और खाने के कमरे में बंद रही थी। उसकी तबियत इतनी बिगड़ गयी थी कि डॉक्टर ने साफ़ कह दिया था कि अब उसका बचना नामुमकिन है। आन्या चाहती थी कि वह मर जाए, क्योंकि यहाँ वैसे भी कोई उससे प्यार नहीं करता था।

    उसकी माँ उसको जन्म देने के बाद ही स्वर्ग सिधार गयी थी। उसके बाद दाई माँ ने ही उसको संभाला था। वह तीन साल की थी, पर उसके पापा ने तब तक भी अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा था। बस उसकी पैसों से जुड़ी ज़रूरतें पूरी करते रहे थे, शायद अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे, क्योंकि आखिर में आन्या उन्हीं की बेटी थी। एक दिन अचानक वे अपने साथ कावेरी जी को ले आए।

    दोनों ने शादी कर ली थी। उस दिन उन्होंने आन्या का चेहरा देखा था और उसे बस इतना कहा था कि अबसे कावेरी जी ही उसकी माँ है और वहाँ से अपने कमरे में चले गए। वह नन्ही सी तीन साल की बच्ची, जिसने कभी न तो अपनी माँ के प्यार को महसूस किया था, न ही अपने पिता को देखा था, वह एकटक कावेरी जी को देखने लगी थी।

    दाई माँ के साथ उसके तीन साल बीते थे। उसके लिए वही सब कुछ थी। अचानक कावेरी जी आ गयीं। दाई माँ ने उसे समझाया कि वही उसकी माँ है, अबसे वही उसका ध्यान रखेगी। नन्ही आन्या बहुत खुश हुई थी। उस दिन वह माँ-माँ कहते हुए जाकर कावेरी जी के पैरों से लिपट गयी, पर उस संगदिल औरत ने उस मासूम सी बच्ची को ठोकर मारकर गिरा दिया।

    वह बच्ची ज़मीन पर गिर गयी और रोने लगी, पर कावेरी जी को रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ा। दाई माँ ने आकर जल्दी से उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया और उसको चुप करवाते हुए हैरानी से कावेरी जी को देखने लगी। आन्या के रोने की आवाज़ सुनकर आज पहली बार अजीत जी वहाँ आए, वरना पहले कभी उन्हें उससे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। उनके आते ही कावेरी जी ने जाकर आन्या को दाई माँ से छीन लिया और उसको चुप करवाने लगी। दाई माँ उनके बदले रंग को देखती ही रह गयी।

    उस दिन के बाद से अजीत जी के सामने वह ऐसे दिखाती, जैसे आन्या से बहुत प्यार करती है और उनके न रहने पर बात-बात पर उस बच्ची को डाँटती, मारती। ऐसे ही दो साल बीत गए। दाई माँ से यह अत्याचार और देखा नहीं गया। उन्होंने अजीत जी को बात बताई, तो कावेरी जी ने उल्टा उन्हीं पर गहनों की चोरी का इल्ज़ाम लगाकर उन्हें घर से निकलवा दिया।

    अब इस घर पर उनका एकाधिकार था और यही वह चाहती थी। अजीत जी को कभी आन्या और उसके आँसू नज़र ही नहीं आए, वे पूरी तरह से उनके वश में थे। उन्होंने अपनी मीठी-मीठी बातों और रूप-जाल में उन्हें ऐसा फँसाया कि अजीत जी वही सुनते जो वे कहती और वही करते जो वे कहती। आन्या का आखिरी सहारा दाई माँ थी, वही उसको प्यार करती थी, पर उससे वह भी छीन गया। उस नन्ही बच्ची को समझ ही नहीं आया कि उसको किस गुनाह की सज़ा मिल रही है।

    आन्या पाँच साल की थी और तभी से कावेरी जी उससे घर का सारा काम करवाती थी, जबकि उसे काम करना आता भी नहीं था। कभी कहीं चोट लगती, तो कभी कोई देखने वाला नहीं होता था। अजीत जी कभी गलती से पूछ लेते, तो कावेरी जी झूठा इल्ज़ाम लगा देती कि गली के बच्चों के साथ रोज़ ही सारा दिन खेलती है और लड़ती है, तो चोट लग जाती है।

    पाँच साल की आन्या हतप्रभ सी उन्हें देखती ही रह जाती, पर बोलती कुछ नहीं। वह इतना तो समझ चुकी थी कि उसके पिता उसकी न ही सुनेंगे, न ही उसकी बात पर विश्वास करेंगे, जैसे दाई माँ के लाख कहने पर भी उन्होंने उनकी सच्चाई का विश्वास नहीं किया था और उन्हें धक्के मारकर घर से निकाल दिया था। उसके नाज़ुक से दिल पर इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा था और वह अजीत जी से विमुख हो गयी थी, सारी उम्मीदें छोड़ दी थी उसने। अकेले में अपनी माँ की तस्वीर लेकर रोती थी, पर किसी से कुछ नहीं कहती थी।

    जब कुछ दिन तक लगातार अजीत जी को आन्या के शरीर में कहीं न कहीं ज़ख्म दिखने लगे और हर बार कावेरी जी यही कहती कि सारा दिन बाहर खेलती और लड़ती है, तो उनकी शिकायतों से परेशान होकर उन्होंने आन्या का स्कूल में एडमिशन करवा दिया।

    अंजाने में उन्होंने उस पर उपकार कर दिया था। अब वे खुद सुबह उसे स्कूल छोड़ आते, कि कहीं रास्ते से कहीं और न भाग जाए और लेने के लिए भी खुद जाते। आन्या का आधा दिन स्कूल में बीतता, तो आधा घर के कामों में। रात को जागकर पढ़ाई करती, क्योंकि एक वही काम था जिससे उसको खुशी मिलती थी। पढ़ाई को लेकर स्कूल से टीचर की कभी कोई शिकायत नहीं आयी।

    धीरे-धीरे उसे भी काम करना आ गया, तो चोट भी लगनी कम हो गयी, धीरे-धीरे बंद हो गयी। घर में माहौल ऐसा था कि आन्या छोटी सी उम्र में सारा दर्द अपने अंदर छुपाकर हँसना-मुस्कुराना सीख गयी। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह इतनी गंदी ज़िंदगी जी रही है। घर में एकदम शांत रहती, तो स्कूल में वह बिल्कुल अलग इंसान बन जाती। हँसती-मुस्कुराती, खूब बातें करती, सबकी उससे दोस्ती थी, वह सबको हँसाती रहती थी। टीचर भी उससे खुश रहते थे, उसके लबों पर हमेशा मुस्कान रहती थी, पढ़ने में भी अच्छी थी और उसके वजह से क्लास का माहौल बहुत अच्छा बना रहता था। खुद भी हँसती, दूसरों को भी हँसाती और साथ में पढ़ाती भी।

    वह आठ साल की थी, जब घर में एक नन्हा मेहमान आया। कावेरी जी ने शादी के पाँच साल बाद एक बेटे को जन्म दिया था। बहुत मुश्किल हुई थी और बहुत बड़े ऑपरेशन से अजय हुआ था, इसलिए कावेरी जी एक महीने तक बेड रेस्ट पर थीं।

    उस वक्त आन्या की गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं। बाहर नहीं जाती थी, घर में रहकर सारा दिन घर में काम करती थी। वह एक गिलास उठाकर भी यहाँ से वहाँ नहीं रखती थी, सारी ज़िम्मेदारी आठ साल की आन्या के नाज़ुक कंधों पर आ गयी थी, पर वह खुश थी क्योंकि उसे बच्चे बहुत पसंद थे और नन्हा अजय उसकी खुशी का केंद्र था। हालाँकि कावेरी जी उसे उसके पास जाने नहीं देती थी। पर जब वह नहाने जाती, तो आन्या अजय के साथ खूब खेलती।

    अजीत जी के लिए सब ठीक चल रहा था। स्कूल से आन्या की तारीफ़ ही आती और घर में भी वह सब काम करती थी। अजय के होने के बाद से कावेरी जी को आन्या से और नफ़रत होने लगी, कि उसके बेटे के हक़ में पार्टीदार बनेगी वह और अब उन्होंने अजीत जी के दिल में आन्या के खिलाफ़ ज़हर भरना शुरू कर दिया। बेचारी आन्या आए दिन बिना किसी कारण उनके कोप का शिकार बन जाती थी, पर एक शब्द नहीं कहती थी, सब खामोशी से सहती जाती थी। आँखों से आँसू भी बाहर नहीं आने देती, जिस पर कावेरी जी उसको ढीठ कहती और खुद भी उसे मारती-पीटती।


    क्रमशः...

  • 4. Until you are mine - Chapter 4

    Words: 2171

    Estimated Reading Time: 14 min

    वक़्त पंख लगाकर उड़ गया। आठ साल की आन्या कॉलेज जाने लगी। उसके नंबर अच्छे थे, इसलिए उसे अच्छे कॉलेज में प्रवेश मिल गया। अजीत जी ने चाहे उसके साथ जैसा मर्ज़ी सुलूक किया हो, पर उसकी पढ़ाई में कोई लापरवाही नहीं दिखाई दी थी।

    कावेरी जी कहती थीं, "क्या करेंगे उसे इतना पढ़ा-लिखाकर? एक दिन दूसरे घर जाकर ही तो संभालना है उसे।" पर अजीत जी इस मामले में उनकी नहीं सुनते थे। उनका मानना था कि लड़का हो या लड़की, शिक्षा पर सबका अधिकार है और आन्या तो पढ़ने में बहुत अच्छी थी; इसलिए उन्होंने उसे खुली छूट दी थी कि जितना पढ़ना हो पढ़ ले, पर कुछ गलत नहीं करना है। जहाँ उसके कदम गलत दिशा में बढ़ें, वहीं से उसकी पढ़ाई से उनका साथ छूट जाएगा।

    आन्या भी अपने में मस्त रहने वाली लड़की थी। घर में जितनी अंतर्मुखी थी, बाहर उतनी ही शैतान और बातूनी थी। वह सरकारी स्कूल में पढ़ी थी, कॉलेज भी सरकारी था, इसलिए पढ़ाई पर ज़्यादा खर्चा भी नहीं हुआ था। उसकी अजय से अच्छी बनती थी। जब कावेरी जी और अजीत जी नहीं होते, तब दोनों खूब मस्ती करते थे। पर अजय की उससे नज़दीकियाँ कावेरी जी को पसंद नहीं थीं।

    दोनों भाई-बहन एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। घर में रहकर अगर कभी आन्या मुस्कुराती थी, तो उसकी वजह अजय होता था, और यही बात कावेरी जी को खटकती थी। उसे आन्या से दूर रखने के लिए उन्होंने उसका प्रवेश दूर के स्कूल में करवा दिया था। वह अपने मामा के साथ रहता था, उनकी फैमिली के साथ, और कभी-कभी छुट्टी होने पर ही यहाँ आता था। आन्या से उसकी यह खुशी भी छिन गई थी, पर उसने कुछ नहीं कहा।

    वह खामोशी से कावेरी जी के हर अत्याचार सहती रही, और अजीत जी को कभी खबर ही नहीं लगी। कावेरी जी उनके सामने खुद को अच्छा और आन्या को बुरा दिखाती थीं, जिसकी वजह से उनके और आन्या के बीच एक अनदेखी सी दीवार बन गई थी। वे अपनी ही बेटी को कभी समझ नहीं पाए और कावेरी जी की बातों में आकर आन्या को जाने कितना दर्द और तकलीफ पहुँचाई, जिसकी वजह से आन्या उनसे बहुत दूर चली गई। बात इतनी बढ़ गई कि उसने उन्हें पिता मानना भी बंद कर दिया।

    बस, जो रिश्ता भगवान ने उनसे जोड़ दिया था, उसे निभाती जा रही थी। कावेरी जी दोनों बाप-बेटी के बीच फूट डालने में कामयाब हो गई थीं, और अजीत जी अब हर बात पर आन्या को ही गुनाहगार ठहराने लगे थे। आन्या सब समझ रही थी, फिर भी खामोशी से सब सहती जा रही थी। कहती भी तो किससे? माँ थी नहीं, और बाप होकर भी उसका नहीं हो सका था। तो खामोशी से सौतेली माँ के हर अत्याचार को सहती रही, गलत न होते हुए भी गुनाहगार की तरह सज़ा भुगतती रही।

    अब उसे इन सबकी आदत सी हो गई थी। कहते हैं न, जब दर्द ज़्यादा हो तो दर्द होना बंद हो जाता है, और जब किसी को बार-बार कहा जाए कि वही गलत है, तो उसे भी विश्वास हो जाता है कि सच में वही गलत है। ऐसा ही कुछ आन्या के साथ हुआ था। जब वह थर्ड ईयर के फाइनल एग्ज़ाम शुरू होने वाले थे, तभी अचानक उसकी मुलाकात निहाल से हो गई थी। कॉलेज फेस्ट में दूसरे कॉलेज के बच्चे भी आए थे, और वहीं निहाल ने उसे देखा था।

    उसे वह पहली नज़र में पसंद आ गई थी। उसके बाद वह उसके कॉलेज के चक्कर काटने लगा, बहुत कोशिश की आन्या को मनाने की, पर उसका इस तरह कोई इंटरेस्ट ही नहीं था, तो वह हर बार इनकार कर देती थी। जब निहाल हर तरह से हार गया, पर आन्या नहीं मानी, तो आखिर में उसने अपनी माँ-बाप से बात की, और वे आन्या के लिए रिश्ता लेकर उसके घर आ गए।

    आन्या को जब पता चला, तो उसने साफ़ इनकार कर दिया। वह पढ़ना चाहती थी, तो अजीत जी भी मान गए कि अभी वह आगे पढ़ेगी। पर कावेरी जी इस मौके को हाथ से नहीं देना चाहती थीं। उन्हें कैसे भी करके आन्या को इस घर से निकालना था, ताकि सब कुछ उनके बेटे को मिल सके। अजीत जी के मना करने पर बात टल गई। आन्या ने शांति से फाइनल के एग्ज़ाम दिए। इस बीच कावेरी जी की बात निहाल से हो गई।

    आन्या बेहद खूबसूरत लड़की थी, और निहाल उसे किसी भी कीमत पर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसने उनके सामने एक डील रखी कि अगर वे आन्या से उसकी शादी करवा देती हैं, तो वह उनसे दहेज में एक पैसा नहीं लेगा, उल्टा उन्हें दस लाख रुपए देगा। कावेरी जी अपने लालच के वजह से और अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उसके साथ मिल गईं।

    एक बार फिर उन्होंने अजीत जी के कान भरने शुरू कर दिए, उन्हें आन्या के बारे में उल्टी-सीधी बातें बताने लगीं, जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि आन्या का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है, इसलिए वह शादी के लिए इनकार कर रही है। उन्होंने अपनी ही बेटी पर विश्वास नहीं किया, और कावेरी जी की झूठी बातों को ही सच समझकर आन्या का रिश्ता निहाल से तय कर दिया।

    आन्या पर जब यह बम फूटा, तो अपनी ज़िंदगी में पहली बार उसने कुछ कहा, अपने लिए आवाज़ उठाई, सबके खिलाफ़ चली गई कि नहीं करेगी शादी। उसका असर यह हुआ कि अजीत जी का शक यकीन में बदल गया। आन्या को कावेरी जी ने बहुत मारा, और अजीत जी ने एक शब्द नहीं कहा। आन्या आँसू भरी नज़रों से उन्हें देखती रह गई, पर वे खामोश रहे। और उसी दिन से आन्या के मन में उनके लिए जो थोड़ी इज़्ज़त और प्यार था, वह भी खत्म हो गया। उनकी बात न मानने पर आन्या को कमरे में बंद कर दिया गया।

    एक हफ़्ते भूखे और प्यासे रहने की वजह से उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी। बचना नामुमकिन था, पर फिर भी वह बच गई। जब उसकी निहाल से सगाई हुई, तब वह पूरी तरह से होश में भी नहीं थी। हॉस्पिटल से जिस दिन घर आई थी, उसी दिन दोनों परिवारों के बीच साधारण तरीके से उनकी सगाई हो गई थी। आन्या न चाहते हुए भी इस बंधन में बंध गई थी, और सगाई के बाद निहाल एकदम से बदल गया था। आन्या जहाँ इस रिश्ते को अपनाने की कोशिश करने लगी थी, वहीं वह अब बात-बात पर उस पर गुस्सा करता था, और बीती रात तो उसने अपनी सारी हदें ही पार कर दी थीं। बीच पार्टी से खींचकर उसे ले आया, फिर सुनसान जंगल के बीच वाले रास्ते पर उसे अकेला छोड़ आया।

    आन्या की आँखों के सामने उसकी आज तक की ज़िंदगी चलचित्र की भाँति घूम गई। कावेरी जी के धक्के मारने की वजह से बेड के कोने से उसके सिर पर चोट लग गई थी, और आन्या वहीं बैठी अपनी आज तक की ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी। आज दूसरी बार उसने बगावत की थी, और इस बार भी उसकी आवाज़ को दबाने के लिए उसे कमरे में बंद कर दिया गया था। पर इस बार आन्या हार नहीं मानने वाली थी, वह किसी कीमत पर निहाल से शादी नहीं करना चाहती थी। वह शाम तक वहीं बैठी सोचती रही कि अब क्या करे। उसके बाद उसने कुछ सोचा, और एक नोट लिखकर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया।

    उसने अलमारी के ऊपर से बैग उतारा, फिर अपने सर्टिफिकेट और कपड़े बैग में रखने लगी। रात को कावेरी जी ने आकर एक बार उससे पूछा, "अब उसके सिर से सगाई तोड़ने का भूत उतरा या भूखे मरने का इरादा है?" पर आन्या ने जवाब नहीं दिया, उल्टा फुल वॉल्यूम में गाने बजा दिए। उसे टेलीविज़न गानों का बहुत शौक था, तो स्पीकर था उसके पास, क्योंकि टेलीविज़न तो कावेरी जी देखने नहीं देती थीं, तो काम करते वक़्त गाने सुन लिया करती थी। उसके तेज आवाज़ में गाने चलाने से कावेरी जी गुस्से में वहाँ से चली गईं।

    आन्या ने पीछे की खिड़की खोली और आसानी से उसका काँच तोड़ दिया। पीछे छज्जा बना हुआ था, पर उसके नीचे जाने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं था। आन्या ने अपने दुपट्टों को जोड़कर उसकी रस्सी बनाकर नीचे लटका दिया, अपना बैग नीचे फेंका, फिर उसी रस्सी के सहारे से नीचे उतर गई, और फुल वॉल्यूम में गाने बजने की वजह से किसी को कुछ पता भी नहीं चला।

    आन्या ने ऑटो लिया और रेलवे स्टेशन पहुँच गई। आठ बजने वाले थे। उसकी किस्मत अच्छी थी, कुछ देर बाद ही पुणे हमसफ़र आने वाली थी, तो उसने उसी की टिकट ले ली और जाकर खाली चेयर पर बैठ गई। वहाँ बहुत से लोग थे, और सभी ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे। आन्या अपने दुपट्टे को अपने चेहरे पर बाँध रही थी। उससे कुछ ही दूरी पर एक लड़का खड़ा था, और इत्तफ़ाक़न उसकी नज़रें आन्या पर पड़ गईं।

    हालाँकि अब उसकी सिर्फ़ आँखें ही नज़र आ रही थीं, पर उसकी उन गहरी भूरी आँखों को देखते ही लड़के के भाव एकदम से बदल गए। उसकी तेज निगाहें उस पर टिक गईं, और वह बड़े गौर से उसके भावों और पल को नोट करने लगा। काँच तोड़कर बाहर आने की वजह से आन्या के हाथ पर कई छोटे-छोटे कट लग गए थे, आन्या दुपट्टे से उन्हें साफ़ करने लगी। वह लड़का शायद उसके भावों के ज़रिये समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर उसके दिमाग में क्या चल रहा है।

    कुछ देर में ट्रेन आई, तो आन्या बैग लेकर खड़ी हो गई, पर भीड़ में घुसना थोड़ा मुश्किल था। लड़के की नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं। वह आगे आया और सीधे आन्या की कलाई पकड़ ली और उसे अपने साथ अंदर ले जाने लगा। आन्या को यह स्पर्श कुछ जाना-पहचाना सा लगा। उसने देखने की कोशिश की, पर लड़के की पीठ उसकी तरफ़ थी। आन्या उससे कुछ पीछे थी, तो उसका चेहरा नहीं देख पाई। वह लड़का उसे अपने साथ लेकर अंदर आ गया, पर उसने उसका हाथ नहीं छोड़ा, उल्टे अपनी आँखें बंद कर लीं।

    इसके साथ ही उसकी आँखों के सामने वह सब चलने लगा जो आन्या के दिमाग में इस वक़्त चल रहा था। उसकी कन्फ़्यूज़न की वजह समझते ही उस लड़के की आँखें हैरानी से बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने झटके से आन्या का हाथ छोड़ दिया और आगे बढ़ने लगा, पर आन्या ने उसकी हथेली थाम ली। लड़के ने चौंक कर उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं।

    आन्या ने अब जाकर उस लड़के को देखा। गोरा रंग, सुडौल शरीर, चौड़े कंधे, गठीले बदन पर पहनी ब्लैक शर्ट जो एकदम फिट थी, उससे उसकी मज़बूत मांसपेशियाँ उभरकर सामने आ रही थीं। ब्लैक पैंट पहनी हुई थी। उसके गोरे बदन पर काला रंग सज रहा था। गहरी काली आँखें, खड़ी नाक, मद्धम गुलाबी होंठ, कमाल के नयन-नक्ष थे उसके, चेहरे पर अलग ही तेज़ झलक रहा था, हल्की दाढ़ी उस पर हैंडसम चेहरे को और भी आकर्षक बना रही थी। उसने इतना हैंडसम लड़का पहले कभी नहीं देखा था।

    आन्या उसकी मोहिनी सूरत को मंत्रमुग्ध सी देख रही थी, उसकी गहरी काली आँखों में वह खो सी गई थी, अपनी सुध-बुध गवाँकर वह अपलक उसे निहारे जा रही थी। लड़के ने उसे खोया हुआ देखा, तो उसके आगे चुटकी बजाते हुए बोला, "हैलो मिस, कहाँ खो गई? हाथ छोड़िये मेरा।"

    आवाज़ सुनकर आन्या होश में लौटी, और उसके हाथ को छोड़ने के बजाय उसने उसकी कसके पकड़ लिया, तो लड़के की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। अगले ही पल वह आँखें छोटी करके उसे घूरते हुए बोला, "कान खराब है जो सुनाई नहीं दे रहा? या मौके का फ़ायदा उठाना चाहती है?"

    उसकी बात सुनकर आन्या की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने झट से उसके हाथ को छोड़ते हुए कहा, "ऐसा नहीं है, मैं कोई आपका फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं कर रही हूँ।"

    लड़के ने एक उड़ती हुई नज़र उसके चेहरे पर डाली और आगे बढ़ने लगा, तो आन्या ने पीछे से कहा, "ऐसे बीच रास्ते में किसी का साथ छोड़कर नहीं जाते। आपने मेरा हाथ थामा था, बिना मुझे मेरी मंज़िल तक पहुँचाए आप मेरा साथ कैसे छोड़ सकते हैं? मुझे मदद की ज़रूरत है।"

    आन्या ने सीधे से मदद माँग ली, तो लड़का चाहकर भी उसे नज़रअंदाज़ करके नहीं जा सका। उसके कदम ठहर गए। जैसे ही वह आन्या के तरफ़ मुड़ा, पीछे से धक्का आया, और आन्या सीधा उसके चौड़े सीने से जा टकराई। दोनों का दिल धड़क उठा। लड़के की आँखें बंद हो गईं, हाथ उसे थामने के लिए बढ़े, पर हवा में ही रह गए। एक पल को उसकी करीबी महसूस करने के बाद लड़के ने उसे खुद से दूर कर दिया। बेचारी आन्या हैरान-परेशान सी उसे देखने लगी, उसकी जोरों से धड़कते दिल की आवाज़ उसे अब तक अपने कानों में सुनाई दे रही थी।

    उसका खुद का दिल उसके अख्तियार से बाहर हो चला था। पहले कभी किसी लड़के के इतने करीब नहीं गई थी, और यह एहसास बहुत अलग सा और खास सा था उसके लिए, जैसे पहले भी कभी महसूस किया हो उसने इन एहसासों को, बस याद नहीं आ रहा था। आन्या एकटक उस लड़के को देख रही थी, और लड़का भावहीन सा उसे ही देख रहा था।

  • 5. Until you are mine - Chapter 5

    Words: 2280

    Estimated Reading Time: 14 min

    आन्या एक बार फिर उसकी गहरी काली आँखों में खो सी गई थी। लड़के ने उसकी बाँह पकड़ी तो वह होश में लौटी और आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।

    लड़के ने उसे सीट पर बिठा दिया और दूसरी तरफ चला गया। आन्या की निगाहें भीड़ में भी उसी पर टिकी हुई थीं। रात का वक्त था, उसने सुबह से ही कुछ खाया-पिया नहीं था, तो अब उसे जोरों से भूख लग रही थी। वह अपने लबों पर जीभ फिराते हुए अपने सूखते लबों को गीला करने लगी।

    लड़का भले ही दिखा नहीं रहा था, पर बड़ी ही बारीकी से आन्या की हर मूवमेंट को देख रहा था। उसकी गहरी निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं। उसे वक्त नहीं लगा यह समझने में कि आन्या को भूख लगी है। वह उसके चेहरे को पढ़ सकता था, पर फिलहाल उससे दूर था, खामोशी से बैठा रहा। आन्या ने अपने छोटे से पिट्ठू बैग, जो वह साथ में लाई थी, उसमें से कैंडी निकाली और मुँह में डालने के बाद आँखें बंद करके सीट पर सिर टिकाकर बैठ गई। थकान और स्ट्रेस के कारण उसकी आँख लग गई।

    कुछ देर बाद उसके बगल की सीट खाली हुई तो लड़का उसके पास आकर बैठ गया। ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी, घड़ी ने रात के नौ बजाए, तो लड़के ने एक नज़र आन्या को देखा जो बड़े सुकून से सो रही थी, फिर अपना लंच खोल लिया। खाने की खुशबू जैसे ही आन्या के नाक में गई, उसके लबों पर मुस्कान और मुँह से पानी आने लगा।

    कुछ देर बाद ही उसने झटके से अपनी आँखें खोल दीं और बगल में रखा खाना देख उसकी आँखों में चमक आ गई। इतनी भूख लगी थी कि उसने झट से दुपट्टा खोलकर गले में डाला और खाना खाने के लिए हाथ बढ़ा दिया, पर बीच में ही रुक गई। लड़के की चोर निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं और अब उसके भाव कुछ सख्त हो गए थे।

    आन्या के सर पर लगी चोट, जिस पर खून सूख चुका था, लड़के की नज़रें वहीं टिकी हुई थीं और अब उसकी आँखें गुस्से से नीली होने लगी थीं। तभी अचानक उसके कानों में आन्या की मीठी सी आवाज़ पड़ी।
    "क्या मैं खाना खा सकती हूँ? मुझे ज़ोरों की भूख लगी है, चाहो तो मुझसे इसके पैसे ले लेना। ज़्यादा पैसे तो नहीं हैं मेरे पास, पर खाने के पैसे दे सकूँ, इतने पैसे हैं मुझ पर।"

    उसकी आवाज़ सुनते ही लड़के ने अपनी आँखें बंद कर लीं ताकि खुद को शांत और सामान्य कर सके। आँखें खोली तो सामने आन्या का मासूम सा चेहरा आ गया जो आशा भरी निगाहों से इस वक्त उसे देख रही थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया तो आन्या ने क्यूट सी शक्ल बनाकर आगे कहा।
    "मैंने सुबह नहीं, कल दोपहर से कुछ नहीं खाया है, मुझे भूख लगी है, भूखे को खाना खिलाने से बहुत पुण्य मिलता है, ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने पर भगवान खुश होते हैं, अगर तुम मेरी मदद करोगे, मुझे खाने को दोगे तो भगवान तुमसे खुश हो जाएँगे और तुम्हें जो भी चाहिए होगा तुम्हें मिल जाएगा। क्या अब मैं तुम्हारा थोड़ा सा खाना खा सकती हूँ?"

    उसने उसे बातों में बहलाने की कोशिश की, पर लड़के का सारा ध्यान तो इस बात पर था कि उसने कल दोपहर से कुछ खाया नहीं है। उसने बिना एक शब्द कहे खाना उसकी तरफ़ बढ़ा दिया तो आन्या का चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने जल्दी से एक बाइट ली और उसे मुँह में डालते ही अपनी आँखें बंद करके उसका मज़ा लेने लगी।

    लड़के की निगाहें उसके चेहरे पर टिकी हुई थीं। वहीं आन्या हर बात से बेखबर खुशी से खाना खा रही थी। उसने जल्दी ही सारा खाना खत्म कर दिया, फिर लड़के की तरफ़ नज़रें उठाईं, पर लड़के ने उसके मूव को समझते हुए पहले ही उस पर से निगाहें फेर ली थीं। आन्या ने उसे देखा और मुस्कुरा कर बोली।
    "थैंक्यू सो मच, बहुत टेस्टी खाना था, आपने बनाया था?"

    "नहीं, खरीदा था।" लड़के ने बिना उसके तरफ़ देखे हुए ही जवाब दिया तो आन्या ने अपने पिट्ठू बैग से कुछ पैसे निकालकर उसके तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।
    "ये लो तुम्हारे खाने के पैसे।"

    "मुझे ज़रूरत नहीं, तुम्हारे काम आयेंगे, तुम ही रख लो।" लड़के ने एक बार फिर बिना उसे देखे ही कहा। उसकी बात सुनकर आन्या ने उसकी हथेली पकड़ ली तो लड़के की हैरानी भरी निगाहें उसके तरफ़ उठ गईं, पर आन्या को कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने उसकी हथेली पर पैसे रखते हुए कहा।
    "थैंक्यू सो मच, पर मैं किसी का एहसान लेना पसंद नहीं करती, मैंने तुम्हारा खाना खाया तो अब ये पैसे तुम्हारे हुए।"

    लड़के ने अब भी कुछ नहीं कहा और अपनी हथेली उसके हाथ से खींचकर सीधे बैठ गया। आन्या आदत से मजबूर थी, उसकी बकबक शुरू हो गई। लड़का दिखा नहीं रहा था, पर उसका सारा ध्यान आन्या की बातों पर था।

    शायद वह अपने सवालों के जवाब चाहता था, पर आन्या अपने दिल की बात आसानी से किसी को नहीं बताती थी। वह फ़ालतू की बकवास कर रही थी और खुद ही हँसे भी जा रही थी, पर लड़के के तरफ़ से कोई रिएक्शन ही नहीं था, तो भावहीन सा बैठा अपना फ़ोन चला रहा था। आन्या की किसी बात का जवाब ही नहीं दे रहा था।

    उसके रखे बिहेवियर को देखकर आन्या ने खीझते हुए कहा।
    "तुम यह खामोशी और उदासी क्यों फैला रहे हो यहाँ? ज़ुबान दी ही है भगवान ने तुम्हें, आवाज़ भी बुरी नहीं, तो फिर कुछ बोलते क्यों नहीं, मौन व्रत भी नहीं तुम्हारा। थोड़ी देर पहले बोल तो रहे थे, फिर अब मेरी किसी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे?"

    "अगर दिमाग होता तुम्हारे पास तो समझ जाती कि मेरी खामोशी का मतलब है कि मुझे तुम में और तुम्हारी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है। तो मुझे पकाना बंद करके खामोश होकर बैठ जाती, पर शायद भगवान ने तुम्हें कभी ना रुकने वाला मुँह दिया, पर दिमाग देना ही भूल गए।" लड़के ने सीधे-सीधे बेचारी आन्या की इंसल्ट कर दी तो आन्या गुस्से से भड़क उठी।
    "हैलो मिस्टर, ज़्यादा तो बोलो मत। हाँ मुझे भगवान ने मुँह दिया है, तुम्हें भी दिया है, पर तुम्हें उसका इस्तेमाल करना नहीं आता, पर मैं तो जी भरकर अपने मुँह का इस्तेमाल करती हूँ। अब भगवान ने मुँह दिया है तो बोलूँगी तो सही, तुम्हारे तरह मुँह सड़ाकर नहीं बैठ सकती मैं।"

    "मुँह खाने के लिए दिया था भगवान ने और ज़रूरत पड़ने पर बोलने के लिए, उसका इस्तेमाल करना होता है, नॉन-स्टॉप अपनी बकबक से दूसरों का दिमाग खराब करने के लिए नहीं दिया है भगवान ने मुँह।"

    "मेरा मुँह मेरी मर्ज़ी, मैं कुछ भी करूँ।" आन्या ने चिढ़ते हुए कहा और मुँह बना लिया। पर आदत से मजबूर, भला वह कितनी देर चुप रह पाती? उसने लड़के को देखा और उसकी बाँह को खींचा तो लड़के ने नज़रें घुमाकर उसे घूरकर देखा।

    आन्या ने उसकी डरावनी आँखें देखी तो मासूम सा चेहरा बनाकर बोली।
    "यार तुम भी हद लड़के हो। इतने कोल्ड लुक्स क्यों देते रहते हो हर वक्त? कभी थोड़ा हँस लिया करो, मुस्कुरा लिया करो, पता है खुश रहने से खून बढ़ता है।"

    लड़के ने कोई जवाब ही नहीं दिया और उसके हाथ को झटक दिया। अब आन्या ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
    "मैं जब स्ट्रेस में होती हूँ तो बहुत बोलती हूँ, आदत है मेरी। अभी मैं बहुत टेंशन में हूँ। तुमने मेरी मदद की थी और मैं अभी तुम्हारे अलावा यहाँ किसी को नहीं जानती, अगर मैं खामोश होकर बैठ जाऊँगी तो मेरा छोटा सा दिमाग फट जाएगा, मुझे बोलने दो न।"

    लड़के ने न तो उसके तरफ़ देखा, न ही कोई रिस्पांस किया तो आन्या उदास होकर बैठ गई, फिर उसने अपना फ़ोन निकालकर ऑन किया और सर्च करने लगी। कुछ देर बाद वह फ़ोन चलाते-चलाते ही सो गई।

    लड़के की नज़रें बराबर उस पर बनी हुई थीं, भले ही वह दिखा नहीं रहा था, उससे बेरुखी से बात कर रहा था, पर फिर भी उसका ध्यान उसी पर था। आन्या नींद में थी तो उसके हाथ से उसका फ़ोन छूट गया, पर वह नीचे गिरता उससे पहले ही उस लड़के ने उसे कैच कर लिया। उसकी नज़रें स्क्रीन पर चली गईं।

    आन्या नासिक में रहने की जगह सर्च कर रही थी। यह देखकर लड़के ने एक नज़र आन्या को देखा, फिर उसके सामान को देखा।

    एक बार फिर उसकी नज़रें स्क्रीन की तरफ़ घूम गईं। आन्या के भाव अचानक ही बदलने लगे, जैसे वह सपने में कुछ बुरा देख रही हो। लड़के ने तुरंत उसकी कलाई थामते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। इसके साथ ही उसकी आँखों के सामने वह सब घूम गया जो आज सुबह से आन्या के साथ हुआ था।

    निहाल का आना, उनकी बहस, आन्या को मारना, उसे कमरे में बंद करना और उसका वहाँ से भागना। यह सब देखते हुए लड़के की मुट्ठियाँ कस गईं, जिस वजह से आन्या की हथेली पर उसकी पकड़ कस गई। आन्या ने दर्द से छटपटाते हुए झटके से अपनी आँखें खोल दीं, इसके साथ ही लड़के की आँखें भी खुल गईं और दोनों की निगाहें एक-दूसरे से जा मिलीं। आन्या की आँखों में आँसू थे, उसने भरी निगाहों से अपने हाथ को देखा जिस पर पहले से काँच से चोट लग गई थी, और अब उस लड़के ने उसी जगह को कसके दबा दिया था जिसके वजह से आन्या को बहुत दर्द हो रहा था।

    उसकी नज़रों का पीछा करते हुए जब लड़के ने देखा कि उसकी कलाई से खून निकल रहा है तो उसने झटके से उसकी कलाई छोड़ते हुए कहा।
    "सॉरी, वह तुम गिर रही थी इसलिए पकड़ा था।"

    आन्या ने कुछ नहीं कहा, अपनी हथेली को अपने दुपट्टे से ढक लिया और दर्द बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी।

    लड़के ने अपनी पॉकेट से रुमाल निकाला और उसकी कलाई पकड़ते हुए उस पर रुमाल बाँधते हुए आराम से बोला।
    "कहाँ जा रही हो?"

    सवाल सुनकर पहले तो आन्या हैरानी से उसे देखने लगी, फिर उसने हाथ पीछे करते हुए कहा।
    "नासिक।"

    "अकेले जा रही हो?" लड़के ने फिर से सवाल किया तो आन्या ने हामी भर दी। लड़का पहले ही सब जान चुका था, पर उसने अनजान बनते हुए आगे सवाल किया।
    "वहीं की रहने वाली हो?"

    "नहीं, वहाँ जा रही हूँ।"

    "किसी दोस्त या रिश्तेदार के पास जा रही होगी?"

    "नहीं, वहाँ मैं किसी को नहीं जानती, बस यूँ ही जा रही हूँ। जहाँ रहती थी वहाँ तो न सुकून मिला न इज़्ज़त, तो अब उसी सुकून की तलाश में जा रही हूँ, जहाँ किस्मत ले जाएगी, चली जाऊँगी।" आन्या की बातों में एक दर्द और उदासी झलक रही थी। लड़के ने आगे कोई सवाल नहीं किया, पर अब उसके दिमाग में बस आन्या ही घूम रही थी। रात हो गई तो सभी लोग सो गए।

    आन्या अंधेरी रात में एकटक खिड़की के बाहर देखती रही। जाने इस अंधेरे में उसे ऐसा क्या दिख रहा था कि उसके लबों पर हल्की सी मुस्कान छाई हुई थी। उसकी निगाहें जाने किसकी तलाश कर रही थीं। लड़का आँखें बंद किए बैठा था, पर उसका ध्यान अब भी आन्या पर ही था।

    देखते-देखते रात बीत गई। सूरज की किरणें आकाश में फैलने लगीं, पक्षियों की चहचहाहट की आवाज़ मधुर संगीत की तरह कानों में घुलने लगी। सुबह की पहली किरण आन्या के चेहरे पर पड़ी तो उसके खूबसूरत मासूम चेहरे पर सुनहरी आभा फैल गई। इस वक्त उसका चाँद सा सुंदर मुखड़ा दमक रहा था और वह बेहद हसीन लग रही थी। वह बाहर देखते-देखते ही सो गई थी और वह लड़का आन्या के चाँद से सोने मुखड़े को निहारे जा रहा था जो सूरज की तरह दमक रहा था। अलग ही कशिश थी उसके चेहरे में जो उसके ध्यान को अपनी तरफ़ खींच रही थी।

    सूरज की किरणें पड़ने से आन्या की नींद भी खुल गई तो लड़के ने तुरंत निगाहें फेर लीं। आन्या ने अंगड़ाई लेते हुए आँखें खोली तो उसका खड़ूस चेहरा देखकर उसने मुस्कुराकर कहा।
    "गुड मॉर्निंग, कभी मुस्कुरा भी लिया करो यार, हर वक्त इतना सीरियस चेहरा बनाकर रखते हो, इतना सीरियस रहोगे तो ICU में भर्ती करना पड़ जाएगा तुम्हें।"

    इतना कहते हुए वह हल्का सा हँस दी। वहीं लड़के ने घूरकर उसे देखा तो आन्या ने अपनी हँसी दबाई और उसके तरफ़ अपना हाथ बढ़ाते हुए मुस्कुराकर बोली।
    "आन्या... आन्या नाम है मेरा, जानती हूँ बहुत प्यारा है बिल्कुल मेरी तरह। मेरी माँ ने रखा था। कहा था अगर बेटी हुई तो यही नाम रखेंगी। यह बात मुझे दाई माँ ने बताई थी। वैसे मैं इतनी भी बुरी नहीं हूँ कि तुम मुझे बस गुस्से से घूरते ही रहते हो।

    सारे सफ़र पर हम साथ रहे, तुमने मेरी इतनी मदद की है तो नाम तो पता होना ही चाहिए न? मैंने तो अपना नाम बता दिया, तुम भी बता दो। वैसे देखने में बुरे नहीं हो, इतना हैंडसम चेहरा है और उस पर तुम्हारे कातिलाना लुक्स। पहली बार किसी लड़के को देखकर उस पर से नज़रें हटाने का जी नहीं कर रहा मेरा, जी करता है बस तुम्हें देखती ही जाऊँ।

    मानना पड़ेगा भगवान ने बड़ी ही फुरसत से बनाया है तुम्हें, कमाल की बॉडी, अट्रैक्टिव पर्सनालिटी जो किसी को भी अपना कायल बना दे। चेहरे पर अजीब और बहुत अलग तेज़ है जो आम लोगों के चेहरे पर देखने को नहीं मिलता। इतनी खूबियाँ और तुम्हारा एटीट्यूड, बस पूछो मत कितनी जबरदस्त पर्सनालिटी है तुम्हारी। अब तो इतनी तारीफ़ भी कर दी मैंने तुम्हारी, कम से कम अब तो मुझे अपना नाम बता दो, वरना मैं तुम्हें अजनबी कहकर बुलाऊँगी, फिर मुझे घूरना मत।"

    वह चैटरबॉक्स की तरह बकबक करने में लगी हुई थी। लड़के ने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया और उस पर से नज़रें फेरते हुए उठ खड़ा हुआ। उसने जाने के लिए कदम बढ़ाया तो आन्या ने पीछे से आवाज़ दी।
    "ओ अजनबी, यार कहाँ जा रहे हो मुझे अकेला छोड़कर?"

  • 6. Until you are mine - Chapter 6

    Words: 2078

    Estimated Reading Time: 13 min

    वह चैटरबॉक्स की तरह बकबक कर रही थी। लड़के ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उस पर से नज़रें फेरते हुए उठ खड़ा हुआ। उसने जाने के लिए कदम बढ़ाया, तभी आन्या ने पीछे से आवाज़ दी, "ओ अजनबी, यार कहाँ जा रहे हो मुझे अकेला छोड़कर?"

    उसकी आवाज़ सुनकर लड़के के कदम थोड़े समय के लिए ठहरे। फिर उसने आगे बढ़ते हुए कहा, "तुम मेरे साथ नहीं हो, तो मैं कहीं भी जाऊँ इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए।"

    उसने गुस्से में यह कहा और आगे बढ़ गया। आन्या का मुँह छोटा सा हो गया। वह मुँह लटकाकर बैठ गई। अगले ही पल उसके कानों में फिर से उसी अजनबी लड़के की आवाज़ पड़ी, "मेरे साथ आओ, कुछ बात करनी है तुमसे।"

    इतना कहकर वह उस कोच के गेट की तरफ़ चला गया। आन्या झट से खड़ी हुई और अपने बैग को संभालते हुए उसके पीछे-पीछे चल दी। वह उसके लिए अजनबी ही था, पर आन्या को उसके साथ अपनेपन सा एहसास हो रहा था, जैसे वह उसे पहले से जानती हो। उसे डर नहीं लग रहा था, बल्कि एक सुकून था कि वह उसके साथ सुरक्षित है।

    इन एहसासों की वजह वह नहीं जानती थी, और शायद जानना चाहती भी नहीं थी। वह बस इतना जानती थी कि उसके साथ उसे महफ़ूज़ महसूस हो रहा था और वह उसके साथ रहना चाहती थी। उसके अलावा और किसी को वह जानती भी नहीं थी; उसे वह भी नहीं जानता था, पर दिल उस पर विश्वास कर चुका था, इसलिए वह उसके पीछे चल गई।

    लड़का गेट के पास खड़ा था जहाँ से ठंडी-ठंडी हवाएँ आकर उसके चेहरे को छूकर गुज़र रही थीं; उसके सिल्की-सिल्की बाल उसके माथे पर लहरा रहे थे। अब तो वह और भी आकर्षक और तेजतर्रार लग रहा था। आन्या जाकर उसके पीछे खड़ी हो गई। उसके आने की आहट पाकर लड़के ने उसकी ओर मुड़ते हुए सवाल किया, "अपना घर छोड़कर भाग रही हो?"

    उसने सपाट लहज़े में सीधे सवाल दाग दिया। उसका सवाल सुनकर आन्या की आँखें हैरानी से फैल गईं; मुँह से शब्द नहीं निकल सके। लड़के ने उसे चुप देखा, तो आगे बोला, "कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार आगे-पीछे का सोच लेना चाहिए। तुम घर छोड़ आयी हो, पर जाओगी कहाँ इसका कोई ठिकाना नहीं है। अकेली लड़की हो, एडल्ट हो, इतना तो समझती होगी कि यूँ ही अकेले कहीं भी निकल जाना सुरक्षित नहीं है। तुम्हें घर वापिस..."

    "महफ़ूज़ तो वो घर भी नहीं था जहाँ से मैं भागकर आयी हूँ। अब अगर कोई मेरे साथ कुछ गलत कर भी लेता है तो मुझे इस बात का सुकून रहेगा कि गलत करने वाला अजनबी है, तो मुझे इतना दर्द नहीं होगा जितना उस घर में रहकर होता था जब मेरे परिवार के लोग ही मुझे प्रताड़ित करते थे। अगर वहाँ से नहीं भागती तो वे मेरी शादी एक ऐसे लड़के से करवा देते जो मेरी ज़िंदगी को जहन्नुम से भी बदतर बना देता।

    मुझे ऐसी ज़िंदगी नहीं चाहिए जिसमें मैं साँस भी दूसरों की मर्ज़ी के हिसाब से लूँ। बचपन से यही सहती आ रही हूँ और सहने की हिम्मत नहीं है मुझमें। मैं खुली हवा में साँस लेना चाहती हूँ, आज़ाद पंछी की तरह अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ। पढ़ी-लिखी हूँ, इतनी काबिलियत रखती हूँ कि जहाँ भी जाऊँगी अपनी ज़िंदगी आराम से काट सकूँगी; किसी के रहमों-करम पर जीने या एहसानों तले दबकर घुट-घुटकर मर जाऊँ, इसकी नौबत नहीं आएगी।

    जहाँ लोगों को मेरी रत्ती भर परवाह नहीं, जिनके लिए मेरा कोई अस्तित्व नहीं, उनके साथ और नहीं रह सकती मैं। तुम कहते हो अकेली लड़की बाहर में सुरक्षित नहीं, तो वह अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है। वहाँ से नहीं भागती तो मिसेज़ सिन्हा पैसों के लालच में मुझे बेच देतीं; शादी कर लेता वह मुझसे, उसके बाद जो चाहे करता मेरे साथ और मैं कुछ नहीं कर पाती, तब कौन बचा लेता मुझे उससे? पति बनकर उसे वैसे ही मुझ पर सब अधिकार मिल जाते।

    मेरे खुद के पापा मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे, सबको मैं ही गलत लगती हूँ तो और क्या रास्ता बचा था मेरे पास? कर लेती उससे शादी जो मेरे जिस्म को हासिल करने के लिए जबरदस्ती मुझसे शादी करने के पीछे पड़ा है? मान लेती उन सबकी बात और बन जाती उसके हाथों की कठपुतली जिसे वह अपने इशारों पर चलाता। मिटा देती अपने ही हाथों अपना वजूद, अपना लेती उस ज़िल्लत भरी ज़िंदगी को जिसमें पल-पल मैं एक नई मौत मरती।

    नहीं-नहीं सह सकती मैं ये सब।"

    ये सब याद करते हुए आन्या की आँखों में नमी तैर गई। उसने अपने आँसुओं को साफ़ करते हुए आगे कहा, "मुझे तुम अच्छे इंसान लगे थे, पता नहीं क्यों पर तुम्हारे साथ महफ़ूज़ महसूस कर रही थी इसलिए तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी। तुम्हें लगता है कि मैंने गलत किया है तो ठीक है, हूँ मैं गलत और गलत ही रहना चाहती हूँ।

    अभी तुम ही ने कहा था न कि हम अजनबी हैं, मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं होना चाहिए तो तुम्हें भी मुझसे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। मेरी ज़िंदगी मैं जो मर्ज़ी करूँ। मैं अब तुम्हें परेशान नहीं करूँगी और तुम भी मुझसे बात मत करना। अकेली आयी हूँ तो अपने भरोसे सब छोड़कर आयी हूँ, किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है मुझे, मैं खुद अपना ध्यान रख लूँगी।"

    ये कहते हुए उसने अपनी कलाई पर बाँधा हुआ रुमाल खोलकर उसे उसे पकड़ा दिया और बैग लेकर दूसरे कोच में चली गई। लड़का बस उसे जाते हुए देखता ही रह गया। आन्या दूसरे कोच के गेट के पास जाकर बैठ गई और नम आँखों से बाहर देखने लगी। उस लड़के पर उसको विश्वास होने लगा था; उसने जब वापिस जाने का सुझाव दिया तो आन्या को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और उसने अपना सारा दर्द गुस्से के रूप में उस पर निकाल दिया, और अब उसे खुद को बहुत बुरा लग रहा था; आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, पर वह कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी, रोना तो बिल्कुल नहीं चाहती थी। इसलिए वह पलकें झपकाते हुए बाहर देख रही थी ताकि अपने आँसुओं को बाहर आने से रोक सके।

    घड़ी ने सात बजाया और ट्रेन नासिक रेलवे स्टेशन पर रुकी। आन्या अपना बैग संभालते हुए बाहर निकल गई और वहाँ लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई। इतना बुरा और उदास वह तब भी महसूस नहीं कर रही थी जब घर छोड़कर आयी थी, जितना अब महसूस कर रही थी। अजीब सा खालीपन था दिल में, अकेला-अकेला महसूस कर रही थी। आँखों में पानी था और नज़रें ज़मीन पर टिकी हुई थीं। आस-पास से लोग निकलकर जा रहे थे।

    धीरे-धीरे ट्रेन से उतरे सभी लोग वहाँ से चले गए। पर आन्या वहीं बैठी रही; जाती भी कहाँ? यहाँ वह कुछ जानती ही नहीं थी। ज़्यादा पैसे भी नहीं थे। वह उदास सी वहीं बैठी रही। कुछ देर बाद उसकी नज़रें जो ज़मीन पर टिकी हुई थीं, उसके सामने एक जोड़ी काले जूते आ गए, साथ ही उसके कानों में जानी-पहचानी सी आवाज़ पड़ी, "यहाँ बैठकर क्या कर रही हो? अपना ध्यान खुद रखने वाली थी न तो जाओ, जब घर छोड़ने का फैसला ले लिया है तो जाकर नया ठिकाना ढूँढो अपने लिए, यहाँ बैठकर क्या कर रही हो।"

    ये आवाज़ उसी लड़के की थी। उसकी बात सुनकर आन्या को अब गुस्सा आ गया। उसने गुस्से से नज़रें उठाकर उसे घूरते हुए कहा, "मेरी मर्ज़ी कहीं भी जाऊँ? कहीं भी बैठूँ तुम्हें क्या दिक्क़त हो रही है? अपने काम से काम रखो और जाओ यहाँ से, मुझे तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना। मैं अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ, बस तुम मेरी नज़रों से दूर चले जाओ।"

    लड़का दूर जाने के बजाय उसके बगल में आकर बैठ गया। तो आन्या गुस्से में उठकर जाने लगी, पर लड़के ने उसकी कलाई पकड़कर उसे रोक दिया और आराम से बोला, "बैठो।"

    "मैं नहीं बैठूँगी? और मैं तुम्हारा आदेश क्यों मानूँ? हो कौन तुम?" आन्या अब भी गुस्से में थी। लड़के ने एक ठंडी साँस छोड़ी और थोड़ा कोमल स्वर में बोला, "कोई नहीं हूँ मैं तुम्हारा, अजनबी हूँ जिस पर विश्वास करके तुमने कुछ देर पहले अपना सारा दर्द और निराशा उस पर निकाली थी। जैसे तब विश्वास किया था वैसे ही एक बार और विश्वास करके बैठो, कुछ कहना है मुझे तुमसे।"

    उसने इतने प्यार से कहा कि आन्या का गुस्सा पल में गायब हो गया, वह एकटक उसे देखने लगी। लड़के ने आँखों से बैठने का इशारा किया तो आन्या कुछ दूरी बनाते हुए उसके पास बैठ गई।

    कुछ देर वहाँ खामोशी फैली रही, फिर उस लड़के ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरू किया, "सबसे पहले तो अगर मेरी बात का तुम्हें बुरा लगा हो तो उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ, मेरा इरादा तुम्हें दुःख देने का नहीं था। मैं बस तुम्हें यथार्थ बता रहा था। जो भी वजह रही हो, यूँ ही जल्दबाज़ी में घर छोड़ने का फैसला लेना मूर्खता है। हाँ, तुम्हारे हालात ऐसे थे कि तुम्हें यह कदम उठाना पड़ा, पर अब आगे क्या करोगी? कहाँ जाओगी?

    पता है अगर तुम्हारे जगह कोई लड़का होता तो उसे ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता, वह कहीं भी, किसी भी हालात में रह लेता, कोई भी काम करके गुज़ारा कर लेता, पर तुम एक लड़की हो, जवान हो और सुंदर भी हो। यूँ अकेले घर से अलग रहना तुम्हारे लिए सुरक्षित नहीं है, यह बात तुम समझ नहीं रही हो। वैसे तो मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं होना चाहिए, फिर भी मैं सब जानकर भी अनजान बनकर तुम्हें यहाँ अकेले छोड़कर नहीं जा सकता। ठीक है, तुम्हें घर छोड़ना सही फैसला लगा तो तुमने घर छोड़ दिया और यहाँ आ गई इस अनजान जगह पर।

    पर अब न तुम्हारे पास कोई सुरक्षित जगह है जहाँ तुम रह सको, न यहाँ कोई काम या पैसे हैं। अब तुम सोचो क्या करोगी? कहाँ जाओगी? ऐसा तो नहीं होगा कि वहाँ से बचकर तुम यहाँ आयी हो और यहाँ आकर उसी दलदल में जाना चाहोगी जिससे बचने के लिए तुम अपना घर छोड़कर भागी हो। अब मैं कुछ नहीं कहूँगा। तुम शांत दिमाग से सोचो कि क्या और कैसे करोगी आगे? अगर कोई रास्ता है तो बताओ और अगर वापिस जाने का फैसला है तो मैं तुम्हें खुद तुम्हारे घर छोड़कर आऊँगा।"

    "मैं वापिस नहीं जाऊँगी।" लड़के के चुप रहने पर आन्या ने फ़ौरन ही जवाब दिया, तो लड़के ने उसकी ओर नज़रें घुमायीं। आन्या ने अब उसे देखते हुए आराम से कहा, "मैं वापिस वहाँ नहीं जाऊँगी। वे लोग मेरे साथ जानवरों से भी बदतर सुलूक करते हैं, मेरे अपने बाप को मेरे आँसू नज़र नहीं आते, बिना गलती के भी मैं गुनाहगार की तरह उनकी हर सज़ा भुगतती हूँ, उन्होंने कभी मुझे समझा ही नहीं, उन्हें अगर किसी से प्यार है तो अपनी पत्नी और अपने बेटे से, उन्हें सिर्फ़ उन्हीं की बातें सुनाई देती हैं और उन्हीं की बातों पर उन्हें विश्वास होता है।

    मेरा वहाँ कोई भी नहीं है, किसी को मेरी परवाह नहीं है। अगर मेरी माँ ज़िंदा होती तो मेरा यह हाल नहीं होता, पर वह मुझे जन्म देते ही दुनिया छोड़कर चली गई, मेरे पापा ने मुझे उनकी मौत का ज़िम्मेदार माना और कभी मुझे प्यार नहीं किया। मैं वहाँ वापिस नहीं जाऊँगी।

    मानती हूँ दुनिया बहुत बुरी है, जब मेरे अपने ही मेरे नहीं हुए तो मैं किसी गैर से उम्मीद भी क्या कर सकती हूँ? पर जितना मैंने तुम्हें समझा है, तुम एक अच्छे इंसान हो, तुम्हारे साथ मुझे महफ़ूज़ महसूस होता है। मेरे पास अभी ज़्यादा पैसे नहीं हैं, कोई जगह नहीं जहाँ मैं जा सकूँ, कोई काम भी नहीं है, पर मैं जल्दी ही काम ढूँढ लूँगी।

    तुम कहीं तो रहते होगे, मुझे अपने साथ ले चलो, मैं तुम्हें बिल्कुल परेशान नहीं करूँगी, जल्दी ही कोई काम ढूँढ लूँगी। जैसे दो रूममेट एक साथ रहते हैं वैसे ही मैं भी रह लूँगी। तुम्हारी ज़िंदगी में दखल नहीं दूँगी, बस मुझे अपने साथ रहने दो। मैं यहाँ किसी को नहीं जानती, पर जब से तुमसे मिली हूँ ऐसा लगता है जैसे बहुत पहले से जानती हूँ तुम्हें, जैसे कोई रिश्ता है हमारा, दिल तुम पर विश्वास करने लगा है।

    ऐसा पहले कभी किसी के लिए महसूस नहीं किया है मैंने। तुम अंजान होकर भी मेरे अपनों से ज़्यादा करीब हो गए हो मेरे। मुझे गलत मत समझना, मैं फ़्लर्ट करने वाली लड़कियों में से नहीं हूँ, सच में तुम्हारे साथ मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे बहुत पहले से जानती हूँ तुम्हें, बहुत गहरा रिश्ता हो हमारा, तुम्हारे साथ होती हूँ तो सारा डर अपने आप गायब हो जाता है, एक विश्वास रहता है कि तुम हो तो मैं सुरक्षित हूँ। मुझे अपने साथ रहने दो।"


    आगे...

  • 7. Until you are mine - Chapter 7

    Words: 2314

    Estimated Reading Time: 14 min

    आन्या ने उससे अनुरोध किया कि वह उसे अपने साथ ले जाए। लड़का उसे परेशान होकर देखने लगा, पर उसकी आँखों में उम्मीद और उस पर उसका विश्वास देखकर वह सोच में पड़ गया। उसकी बातें सुनकर उसके दिल में भी कुछ अजीब से एहसासों ने जन्म लिया, जो उसकी समझ से परे थे।

    जब लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया, तो आन्या निराश हो गई और अपना बैग लेकर वहाँ से जाने लगी। कुछ पल लड़का परेशान होकर उसे देखता रहा, फिर उसने पीछे से कहा, "ठीक है, तुम मेरे साथ चल सकती हो, पर जल्दी से जल्दी तुम्हें अपने लिए कोई काम ढूँढ़ना होगा, और उसके बाद मैं तुम्हारे लिए अलग घर का इंतज़ाम कर दूँगा। अगर मंज़ूर हो तो ठीक है; इससे ज़्यादा मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता।"

    उसके शब्द आन्या के कानों में पड़ते ही उसके कदम रुक गए; लबों पर मायूसी की जगह हल्की सी मुस्कान फैल गई। वह झट से उसकी ओर घूम गई और मुस्कुराकर बोली, "ठीक है।"

    लड़के ने अपना बैग उठाया और आगे बढ़ गया; आन्या भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ी। बाहर जाकर लड़के ने एक ऑटो रोका और उसे अंदर बैठने को कहा। उसने उसका बैग भी अंदर रख दिया, फिर खुद अंदर बैठ गया। ऑटो वाले को पता बताया और अपने फ़ोन में लग गया। आन्या कुछ देर उसे खामोशी से देखती रही, फिर मुस्कुराकर बोली, "अब तो अपना नाम बता दो, मुझे पता है इतनी अच्छी सूरत है तो नाम भी अच्छा सा ही होगा।"

    लड़के ने उसकी बात सुनकर फ़ोन पर से नज़रें हटाकर उसकी ओर घुमा लीं। आन्या अब भी लबों पर मुस्कान सजाए उसे ही देख रही थी। उसकी मुस्कान देखकर लड़के ने गहरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा, "तुम्हारी बातों से लग रहा था जैसे बहुत दर्द सहा है तुमने बचपन से, फिर भी इतना बोलती हो, हर बात पर मुस्कुरा लेती हो? थकती नहीं खुश रहने का नाटक करते-करते?"

    "मैं कोई नाटक नहीं करती। मैंने दर्द में भी मुस्कुराना अपनी ज़िंदगी से सीखा है; मेरा मानना है जब दर्द सहना ही है तो मुस्कुराकर सहो, रोने या उदास होने से कौन सा दर्द कम होगा, वो तो होगा ही, तो बेवजह आँसू क्यों बहाना? मुस्कुराते रहो, एक दिन किस्मत भी थक जाएगी कि इसे कितनी ही तकलीफ़ दो पर वो टूटती ही नहीं है, मुस्कुराकर सब सह जाती है, तो वो खुद ही और दर्द देना बंद कर देगी और अपने लिए कोई और ठिकाना ढूँढ़ लेगा।" आन्या ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

    उसकी बात सुनकर लड़का एकटक उसे देखता रह गया। इतनी सकारात्मकता, ज़िंदगी जीने का जज़्बा शायद उसने पहले कभी किसी लड़की में नहीं देखा था। अक्सर दर्द से लड़ते-लड़ते लोग टूट जाते हैं, हार जाते हैं, ज़िंदगी जीना और मुस्कुराना तक भूल जाते हैं, पर यह लड़की सबसे जुदा थी। अलग ही ऊर्जा थी उसमें; हर ग़म सहकर भी इतना खुलकर हँसती थी, मुस्कुराती थी कि उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उसने ऐसी मुश्किलों भरी ज़िंदगी जी है।

    आन्या अब भी मुस्कुराकर उसे देख रही थी। अब लड़के ने उस पर से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा, "अन्वय... अन्वय नाम है मेरा।"

    "बहुत प्यारा नाम है, बिल्कुल तुम्हारे तरह, सबसे अलग, सबसे ज़्यादा ख़ास।" आन्या मोहिनी मुस्कान लबों पर सजाए उसे देख रही थी। अन्वय ने अब कोई जवाब नहीं दिया। आन्या ने भी आगे कुछ नहीं कहा; लबों पर मुस्कान सजाए बाहर देखने लगी। अन्वय के माथे पर परेशानी की रेखाएँ उभर आई थीं। करीब 25 मिनट बाद ऑटो एक घर के बाहर रुका।

    अन्वय ने ऑटो वाले को पैसे दिए और आन्या का सामान लेकर ऑटो से उतर गया। आन्या भी उसके पीछे-पीछे नीचे उतर गई। अन्वय सामने वाले घर की तरफ़ बढ़ गया। वह दो-तीन मंज़िला घर था। देखने में अच्छा लग रहा था; टाइल वग़ैरह लगाकर अच्छे से बनाया हुआ था, करीब 100 गज़ का घर था। आन्या उसके पीछे-पीछे चल दी। वह गेट पर पहुँचा और डोर बेल बजाई। कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला, और सामने एक महिला खड़ी थी।

    यह माधुरी जी थीं, अन्वय की भाभी। अन्वय जब दस साल का था, तब उसके माँ-बाप की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी; अन्वय भी उनके साथ था, पर उसे एक खरोंच भी नहीं आई थी। यह देखकर सभी हैरान थे, फिर उन्होंने सोचा कि भगवान ने उसे बचा लिया है। तब से वह अपने बड़े भाई के साथ ही रहता था। पहले दोनों भाई एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छे से और खुशी-खुशी रहते थे।

    लगभग पाँच साल पहले मदन जी ने माधुरी जी से शादी की थी; उसके बाद से दोनों भाई के बीच दूरियाँ आ गईं। वजह बस इतनी थी कि अन्वय उसका सगा भाई नहीं था, इसलिए माधुरी जी नहीं चाहती थी कि वह उनके साथ रहे। उनके आने के बाद से अन्वय अपने भाई से दूर हो गया था; ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था क्योंकि माधुरी जी उसे अच्छी नहीं लगती थीं।

    माधुरी जी ने उसे देखा तो उनके चेहरे पर नफ़रत और गुस्से के भाव आ गए। तभी उनकी नज़र पीछे खड़ी आन्या पर गई। इतनी सुंदर लड़की देखकर वह दंग थीं। उन्होंने अन्वय को देखा, फिर अंदर की तरफ़ सर घुमाकर तेज आवाज़ में बोलीं, "बाहर आइए, देखिए आपका भाई दुनिया की सैर करके लौट आया है, और इस बार अकेले नहीं आया है, अपने साथ किसी लड़की को भी लेकर आया है। पहले से एक बोझ हमारे सर पर पड़ा है, अब एक और आ गई है मुफ़्त की रोटियाँ खाने।"

    उनकी बात सुनकर आन्या की मुस्कान गायब हो गई; वह अन्वय के पीछे खिसक गई और पीछे से उसकी शर्ट को पकड़ लिया। कुछ देर बाद नीचे के कमरे से मदन जी निकलकर बाहर आए और उनके पास आते हुए बोले, "क्या हुआ है? क्यों सुबह-सुबह अपना गला फाड़ रही हो?"

    "मैं तो बस बोल ही रही हूँ, तो आपको इतना बुरा लग रहा है? यहाँ आकर अपने भाई के कारनामे देखिए। हमारी इज़्ज़त को नीलाम करने का फैसला कर लिया है इन्होंने। पहले तो बस घर से ग़ायब ही रहते थे, अब अपने साथ लड़कियों को भी घर लाने लगे हैं, क्या कहेंगे लोग हमारे परिवार के बारे में?" उन्होंने चिंगारी लगाई।

    उनकी बात सुनकर मदन जी गेट पर पहुँचे; अन्वय के पीछे छुपी आन्या उन्हें दिखी ही नहीं। उन्होंने अन्वय को देखकर सवाल किया, "अन्वय, ये तुम्हारी भाभी क्या कह रही है? और कहाँ थे तुम पिछले एक हफ़्ते से? सही कहती है तुम्हारी भाभी, तुमने घर को धर्मशाला बनाया हुआ है; जब मन करता है आते हो, जब मन होता है बिना कुछ बताए चले जाते हो। अन्वय, तुम बच्चे नहीं हो, घर में रहो, कुछ काम करो, कब तक मैं अकेले सबका ख़र्चा उठाता रहूँगा?"

    "वो सब तो बाद में देखिएगा, पहले ज़रा ये पूछिए कि किसे अपने साथ लेकर आया है? और क्या रिश्ता है उनका इस लड़की से जो उन्हें घर ले आए हैं? अगर उनका कोई चक्कर चल रहा है तो मैं बता देती हूँ कि या तो ये इस घर में रहेंगे या मैं। मेरी बहन का दिल तोड़ने वाले के साथ मैं नहीं रह सकती।" माधुरी जी ने अन्वय के कुछ कहने से पहले ही अपना फ़ैसला सुना दिया। मदन जी आगे कुछ कहते, उससे पहले ही अन्वय ने शांत आवाज़ में कहा, "भैया, पहले हम अंदर आ जाएँ, उसके बाद बात कर लेंगे।"

    मदन जी ने देखा तो उनकी आवाज़ सुनकर बाहर लोग जमा होने लगे थे, तो वह सामने से हट गए। अन्वय ने आन्या का हाथ थामा और उसे लेकर अंदर चला गया। वह सीधे उसे एक कमरे में लेकर गया और गंभीरता से बोला, "यहीं रहना, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।"

    इतना कहकर उसने दरवाज़ा बंद किया और बाहर हॉल में चला गया। आन्या गेट से लगकर खड़ी हो गई ताकि उनकी बातें सुन सके। अन्वय बाहर पहुँचा तो माधुरी जी ने उसे देखकर मुँह घुमा लिया। वहीं मदन जी उसके कुछ कहने का इंतज़ार कर रहे थे। अन्वय ने हमेशा जैसे गंभीर भाव के साथ उन्हें देखते हुए कहा, "भैया, भाभी, जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है। मैं किसी काम से नागपुर गया था। जिस लड़की को आपने देखा वो मुझे वापसी में ट्रेन में मिली थी। एक हादसे में उससे उसका परिवार छिन गया, उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी और वो लड़की थी इसलिए मैं उसे अकेला नहीं छोड़ पाया और यहाँ ले आया।

    लेकिन आप दोनों चिंता मत कीजिए, वो यहाँ बस तब तक रहेगी जब तक उसे नौकरी नहीं मिल जाती, उसके बाद मैं उसके रहने का इंतज़ाम कहीं और कर दूँगा, और मैं और वो आप पर बोझ नहीं बनेंगे। मुझे कॉलेज से असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर जॉइन करने का ऑफ़र मिला था, इंटरव्यू क्लीयर हो गया है, मैं वही जॉब जॉइन कर लूँगा। बस कुछ दिनों की बात है, उसे यहाँ रहने दीजिए।"

    "बहुत अच्छी कहानी सुनाई है आपने, पर आपकी झूठी बातों में आप अपने भैया को फँसा सकते हैं, मुझे नहीं। सब समझ रही हूँ मैं। मेरी बहन आपको इतने सालों से पसंद करती है, पर आपने कभी उसके तरफ़ निगाहें उठाकर देखा तक नहीं, उस पर आपको कभी प्यार तो क्या तरस भी नहीं आया, और आज एक लड़की पर इतनी दया आ गई कि उसे सीधे घर ही ले आए।

    मैं बेवकूफ़ नहीं हूँ, सब समझ रही हूँ कि क्यों आप उसे घर लाए हैं और क्या रिश्ता है आपका उससे। मैं उस लड़की को एक पल भी इस घर में बर्दाश्त नहीं कर सकती जिसने मेरी बहन के प्यार को छीन लिया है, और अगर आपने अभी इसी वक़्त उसे घर से बाहर नहीं निकाला तो आपको भी उसके साथ इस घर से जाना होगा, नहीं तो मैं यह घर छोड़कर चली जाऊँगी, वो भी हमेशा-हमेशा के लिए।" उन्होंने सीधे-सीधे धमकी दे डाली।

    अन्वय को उनकी बेतुकी बात सुनकर गुस्सा आने लगा था, पर उसने खुद को संभालते हुए आराम से कहा, "देखिए भाभी, आपकी बहन मेरे बारे में क्या सोचती है उससे मुझे कोई मतलब नहीं है। मैं उसे और आपको पहले ही बता चुका हूँ कि मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, फिर भी अगर वह मेरे पीछे पागल है तो वह उसकी समस्या है मेरी नहीं, और आप अपनी बहन को समझाने के बजाय मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश करती हैं, पर इसका कोई फायदा नहीं होगा।

    मुझे आपकी बहन पसंद नहीं है; जब मैं कभी उसका था ही नहीं तो कोई भी मुझे उससे छीन ही नहीं सकता, और जिस लड़की पर आप इल्ज़ाम लगा रही हैं कि उसके साथ मेरा कोई रिश्ता है इसलिए मैं उसे यहाँ लाई हूँ तो मैं साफ़-साफ़ बता चुका हूँ कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है। उसे मदद की ज़रूरत है, और मैं बस इंसानियत के नाते उसकी मदद कर रहा हूँ, तो जब तक उसे जॉब और रहने के लिए कोई जगह नहीं मिल जाती, वह यहीं रहेगी इसी घर में। जितना यह घर आपका या भैया का है, उतना हक़ मेरा भी है इस घर पर, इसलिए आन्या यहीं रहेगी।"

    "देख रहे हैं आप अपने भाई को कैसे बात कर रहा है मुझसे? मेरे फ़ैसले के ख़िलाफ़ जा रहा है, मेरी आँखों में देखकर कह रहा है कि यह घर इसका है, और आप खामोशी से अपनी पत्नी की बेइज़्ज़ती होते सुन रहे हैं।" अन्वय से न जीत पाने की स्थिति में उन्होंने मदन जी को अपनी बातों में फँसाया। उनका दर्द भरा चेहरा देखकर मदन जी ने अन्वय से गुस्से से कहा,

    "अन्वय, यह कौन सा तरीका है अपनी भाभी से बात करने का? वह जो कहती है तुम्हारी भलाई के लिए ही कहती है। अगर तुम ऐसे किसी लड़की को लाकर घर में बिठा दोगे तो लोग क्या कहेंगे? क्या इज़्ज़त रह जाएगी हमारी मोहल्ले में? तुम जो भी सोचकर उस लड़की को यहाँ लेकर आए हो, पर वह यहाँ नहीं रह सकती। जहाँ से उसे लाए हो वहीं छोड़ आओ, और एक आखिरी बात, यह घर मैं चलाता हूँ, तो यहाँ वही होगा जो मैं कहूँगा।

    हम कल ही तुम्हारी भाभी के घर जाएँगे और तुम्हारा रिश्ता पक्का करके आएंगे। मैं नहीं चाहता तुम फिर किसी दिन किसी और लड़की को उठाकर वहाँ ले आओ। शादी हो जाएगी तो ज़िम्मेदारी पड़ेगी तुम पर, और तुम भी सही रास्ते पर आ जाओगे। उम्मीद करता हूँ कि तुम अपने भैया के फ़ैसले के ख़िलाफ़ नहीं जाओगे।"

    उनका फ़ैसला सुनकर एक पल के लिए अन्वय हैरान रह गया। अगले ही पल उसने बिना किसी भाव के कहा, "ठीक है, आप चाहते हैं कि मैं आपकी साली से शादी कर लूँ तो मैं कर लूँगा, पर मेरी एक शर्त है; आन्या जब तक चाहे वह यहाँ रहेगी, और आप या भाभी उसे यहाँ से जाने के लिए नहीं कहेंगे।"

    "यह कैसी बात कर रहे हो तुम? जिस घर में एक जवान कुंवारा लड़का रहता है वहाँ एक जवान लड़की कैसे रह सकती है? लोग क्या कहेंगे? और तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो कि तुम एक लड़की को हमारे घर में रखोगे और मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करवा दूँगी ताकि तुम उसे धोखा दे सको? वह लड़की यहाँ हरगिज़ नहीं रह सकती। या तो तुम उसे खुद इस घर से बाहर निकालो, नहीं तो मैं धक्के मारकर उसे अपने घर से बाहर फेंक दूँगी।"

    माधुरी जी गुस्से में अन्वय के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगीं, पर अन्वय उनके सामने आकर खड़ा हो गया और हल्के गुस्से से बोला, "मैंने कहा ना वह यहाँ से कहीं नहीं जाएगी, मान रहा हूँ ना आपकी बात, आपकी बहन से शादी करने के लिए हाँ कह दिया है ना मैंने, तो अब आपको उसके यहाँ रहने से क्या समस्या है? चिंता मत कीजिए, मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं है, आपकी बहन को धोखा नहीं दूँगा मैं।"

    "मुझे यह सब नहीं पता। मैं बस इतना जानती हूँ कि वह लड़की इस घर में नहीं रह सकती।"

    "उसे मैं यहाँ लाया हूँ और वह यहीं रहेगी।"

    "अगर वह यहाँ रहेगी तो मैं यह घर छोड़कर चली जाऊँगी।" माधुरी ने एक बार फिर धमकी दी, पर अन्वय को कोई फ़र्क नहीं पड़ा; उसने अपना चेहरा घुमा लिया।


    क्रमशः...

  • 8. Until you are mine - Chapter 8

    Words: 2435

    Estimated Reading Time: 15 min

    "अगर वो यहाँ रहेगी तो मैं यह घर छोड़कर चली जाऊँगी।" माधुरी ने एक बार फिर धमकी दी, पर अन्वय को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसने अपना चेहरा घुमा लिया।

    उसकी बेरुखी देखकर माधुरी जी गुस्से से भड़क उठीं और मदन जी पर चिल्लाते हुए बोलीं, "देख लीजिए अपने भाई को! मुँह फेर लिया इसने। इसका मतलब इसे मेरे जाने-न-जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, पर वह लड़की यहीं रहेगी। आपका भाई आपके सामने एक अनजान लड़की के लिए आपकी पत्नी को घर से जाने को कह रहा है, और आप खामोशी से सुन रहे हैं? कुछ नहीं कहेंगे आप उन्हें? या आपके लिए भी, कुछ देर पहले इस घर में आई लड़की आपकी पत्नी से ज़्यादा ज़रूरी हो गई है? या आपको अपने भाई से इतना प्यार है कि उसकी ज़िद पूरी करने के लिए आप मुझे घर से जाने के लिए कह रहे हैं?"

    "ऐसा नहीं है मधु," मदन जी ने सफ़ाई देनी चाही, पर माधुरी जी ने उनकी बात बीच में काट दिया और गुस्से से बोलीं, "मुझे कुछ नहीं सुनना। मैंने फ़ैसला ले लिया है; या तो वह इस घर में रहेगी या मैं। अब आप सोच लीजिए, आपके लिए वह ज़्यादा ज़रूरी है? आपका भाई या आपकी पत्नी?"

    मदन जी के पास अब रास्ता ही क्या बचा था? उन्होंने अन्वय को देखा, पर उनके कुछ कहने से पहले ही अन्वय बोल पड़ा, "मेरा फ़ैसला भी सुन लीजिए। वह लड़की मेरे भरोसे यहाँ आई है; अब वह मेरी ज़िम्मेदारी है। मैं उसे अकेले दुनिया से लड़ने के लिए नहीं छोड़ सकता।

    अगर उसके लिए इस घर में कोई जगह नहीं है, तो उसके साथ-साथ मैं भी यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। वैसे भी आपकी पत्नी मुझे पसंद नहीं करती; वह तो चाहती है कि मुझसे उनका पीछा छूट जाए। आपको उन्हीं को खुश करना है, तो चला जाता हूँ मैं यह घर छोड़कर। उसके बाद भाभी को कभी आपसे कोई शिकायत नहीं होगी।"

    मदन जी कुछ बोल ही नहीं पाए। एक तरफ़ उनका भाई था, जिसे उन्होंने पाला था; तो दूसरी तरफ़ उनकी पत्नी, जिससे अग्नि के सात फ़ेरे लेकर ब्याह करके इस घर में लाए थे। दोनों में से किसी एक को भी वे इस घर से जाने के लिए कैसे कह सकते थे? उनकी दुविधा समझते हुए अन्वय ने मुस्कुराकर कहा, "आज पत्नी के प्यार के आगे भाई का प्यार हार गया। कोई बात नहीं, मैंने आज तक आपको बहुत परेशान किया है, अब नहीं करूँगा। आप रहिए यहाँ अपनी पत्नी के साथ। वैसे भी मेरा इस घर पर कोई हक़ नहीं है, तो मैं ही इस घर से चला जाता हूँ।"

    इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। आँखों में बेबसी के आँसू थे, पर उसने उन्हें बड़ी आसानी से छुपा लिया। मदन जी की आँखों में भी आँसू थे, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। अन्वय ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, आन्या उसके ऊपर ही गिरने लगी क्योंकि वह दरवाज़े से चिपककर खड़ी थी। अन्वय ने उसे गिरने से बचाया और एक नज़र घूरने के बाद अंदर चला आया।

    आन्या भी उसके पीछे-पीछे आ गई और उसके पीछे खड़े होकर बोली, "मेरे वजह से तुम्हारी, तुम्हारे भैया-भाभी से लड़ाई हो गई। सॉरी, तुम्हें यहाँ से जाने की ज़रूरत नहीं है; मैं चली जाती हूँ।"

    "और कहाँ जाओगी तुम अकेली?" अन्वय की घूरती निगाहें उस पर पड़ीं, तो आन्या ने सर झुकाकर कहा, "कहीं तो चली ही जाऊँगी। तुमने मेरे लिए इतना किया, वही बहुत है। मैं अपने वजह से तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती; मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा अगर मेरे वजह से तुम्हें अपने घर और अपने परिवार से..." आन्या ने इतना कहा ही था कि अन्वय ने उसके लबों पर अपनी उंगली रखकर उन्हें खामोश कर दिया।

    दोनों एक-दूसरे के करीब खड़े थे; उसकी उंगली आन्या के लबों को छू रही थी। इसके साथ ही आन्या के शरीर में बिजली की तरंगें दौड़ गई थीं; वह अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपकाते हुए उसे एकटक देखने लगी।

    "कितना बोलती हो तुम, थकती नहीं हो?" अन्वय ने खीझते हुए सवाल किया। आन्या ने बड़ी ही मासूमियत के साथ ना में सर हिला दिया। उसकी मासूमियत देखकर अन्वय का गुस्सा अपने आप ही कम हो गया; यह लड़की कोई जादू जानती थी, पल में उसके गुस्से को शांत कर देती थी। यह देखकर अन्वय को थोड़ी हैरानी हुई, पर उसने उसे ज़ाहिर नहीं होने दिया और आराम से आगे बोला, "कुछ भी तुम्हारी वजह से नहीं हो रहा; तुम नहीं भी होती, तब भी आज नहीं तो कल यह होता; मुझे इस घर से जाना ही होता; भाभी यह बहुत पहले कर चुकी होतीं, बस उन्हें सही मौका नहीं मिल रहा था।

    आज तुम्हारे आने से उन्हें मौका मिल गया और उन्होंने अपना दाव चल दिया। इस सब का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है; इस बात को अपने दिमाग़ में अच्छे से बिठा लो। तुम्हें मैं यहाँ लायी था, तो तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो। जब तक तुम्हें कोई अच्छी सी जॉब नहीं मिल जाती और मैं किसी सेफ़ जगह तुम्हारे रहने का इंतज़ाम नहीं कर देता, तुम मेरे साथ रहोगी। अब शांति से जाकर बेड पर बैठो; मुझे मेरा सामान पैक करना है, और हाँ, मुँह से एक शब्द नहीं निकलना चाहिए; याद रखना।"

    आन्या ने हामी भर दी। अन्वय की गहरी काली आँखें उस पर टिकी हुई थीं, और वह उसके इतने करीब था कि आन्या साँस भी रोके खड़ी थी; मुँह से शब्द ही नहीं निकल सके। अन्वय ने उसे देखा, तो उसके लबों से अपनी उंगली हटाते हुए कहा, "साँस लो, वरना मर जाओगी और यहाँ से मुझे पुलिस उठाकर ले जाएगी तुम्हारे ख़ून के इल्ज़ाम में।"

    उसकी बात सुनकर आन्या ने झट से कहा, "नहीं, मैं इतनी आसानी से नहीं मरूँगी। बहुत सख़्त जान है मेरी।"

    उसकी बात सुनकर अन्वय ने वापिस उसकी तरफ़ मुड़ते हुए उसे घूरकर देखा, तो आन्या ने उसकी बात याद करते हुए मुँह पर उंगली रख ली और जाकर चुपचाप बेड पर बैठ गई। अन्वय ने उसके ऊपर से नज़रें हटा ली और अलमारी की तरफ़ बढ़ गया। आन्या के चेहरे को याद करते हुए उसके लबों पर तीखी मुस्कान फैल गई। उसने बैग निकाला और अपना सामान पैक करने लगा।

    आन्या खामोशी से उसे देख रही थी। अन्वय ने अपना बैग पैक किया, फिर उसकी तरफ़ मुड़ा, तो आन्या अब भी मुँह पर उंगली रखे, अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपकाते हुए, आँखें टिमटिमाते हुए उसे ही देख रही थी और बेहद मासूम और प्यारी लग रही थी। कोई इंसान इस मासूम और क्यूट सी लड़की से प्यार न करे, यह कैसे हो सकता है? अन्वय के दिमाग़ में यही ख़्याल चल रहा था। आन्या ने अब उसे देखकर कहा, "अब उंगली हटा लूँ?"

    "हम्म, पर बोलना कुछ नहीं है।" अन्वय ने सख़्ती से बोलने के लिए मना कर दिया, तो आन्या ने हाँ में सर हिला दिया और मुँह पर से उंगली हटाकर चैन की साँस ली, जैसे चुप रहने पर वह ढंग से साँस नहीं ले पा रही थी। अन्वय उसके पास आया और उसके बैग को भी लेकर गेट की तरफ़ बढ़ गया। आन्या उसके पीछे-पीछे चल दी।

    अन्वय बाहर आया, तो मदन जी अब भी वहीं खड़े थे। अन्वय ने जाकर दोनों बैग छोड़े और जाकर उनके पैर छू लिए; बड़े भाई के साथ-साथ वे अन्वय के लिए उसके पिता की तरह थे। मदन जी ने भी उसे अपने बेटे की तरह रखा था; उनकी आँखों में नमी थी। उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "मैं तुम्हें जाने दे रहा हूँ क्योंकि मैं तुम्हें ऐसे रिश्ते में नहीं बाँधना चाहता जो तुम्हारे दिल से न जुड़े। विश्वास है मुझे अपने भाई पर कि वह मुझसे कभी झूठ नहीं कहेगा। उम्मीद करता हूँ कि जो फ़ैसला लोगे, उसे गलत साबित नहीं होने दोगे और जहाँ रहोगे, खुश रहोगे। दोबारा यहाँ मत आना; बहुत ताने सुन लिए तुमने अपनी भाभी के, अब जाकर खुलकर अपनी ज़िंदगी जियो, जैसे तुम जीना चाहते हो।"

    उनकी बातें सुनकर अन्वय की आँखों में आँसू और लबों पर मुस्कान ठहर गई। भाभी वहाँ नहीं थी। अन्वय अब बिना पीछे मुड़कर देखे सीधे घर से बाहर निकल गया; आन्या उसके पीछे ही थी, पर गेट पर जाकर वह रुक गई और वापिस अंदर चली गई। तो अन्वय उसे रोकने के लिए उसके पीछे जाने लगा, पर कुछ कदम बाद ही उसके कदम रुक गए; उसके कानों में आन्या की आवाज़ पड़ी।

    "मुझे नहीं पता आप अपने भाई को ऐसे जाने क्यों दे रहे हैं; आपकी नम आँखें बता रही हैं कि आप उनसे बहुत प्यार करते हैं। अगर आपको लगता है कि मेरे और उनके बीच कुछ है, इसलिए आप उन्हें घर से निकाल रहे हैं, तो मैं आपको सच-सच बता रही हूँ; मैं उन्हें नहीं जानती; हम कल स्टेशन पर मिले थे और वे बस मेरी मदद करने के लिए मुझे यहाँ लाए थे।

    मैंने उन्हें कहा भी कि मुझे जाने दो; मेरे लिए उन्हें अपना घर छोड़ने की ज़रूरत नहीं है, पर वे मेरी बात नहीं सुनेंगे। आप ही मुझ पर विश्वास कर लीजिए; उन्हें घर से मत निकालिए; बस कुछ दिन दे दीजिए मुझे; मैं यहाँ से चली जाऊँगी। मेरे वजह से यह घर बिखरे; मैं ऐसा नहीं चाहती।" आन्या मदन जी के सामने खड़ी होकर उन्हें समझा रही थी। अन्वय ने उसकी बात सुनी, तो कड़क आवाज़ में बोला, "आन्या, बाहर आओ।"

    उसकी तेज आवाज़ सुनकर आन्या डर गई। उसने घबराकर पीछे देखा, तो अन्वय उसे ही घूर रहा था। मदन जी ने उसे देखा, तो प्यार से उसके सर पर हाथ रख दिया। आन्या ने सर घुमाकर उन्हें देखा, तो मदन जी ने मुस्कुराकर कहा, "ऐसा ही है; वह बात-बात पर गुस्सा करता है, पर बुरा नहीं है। जानता हूँ तुम दोनों के बीच कुछ गलत नहीं है, पर मैं अपने भाई को उससे भी ज़्यादा जानता हूँ।

    तुम उसके लिए कोई आम लड़की नहीं हो; ख़ास हो; तभी तुम्हारे लिए वह यह घर छोड़ने को तैयार हो गया; वैसे तो वह यह घर बहुत पहले छोड़ गया होता, पर मेरे लिए रुका रहा; पर आज उसने इस घर को छोड़ने का फ़ैसला लिया है, मतलब साफ़ है तुम उसके लिए ख़ास हो; तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता वह, इसलिए खुद भी साथ जा रहा है।

    तुम इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हो; मैं हूँ। खुद को ज़िम्मेदार मत ठहराओ। वैसे तो मुझे कोई हक़ नहीं है, फिर भी कुछ माँग रहा हूँ तुमसे। उसका ध्यान रखना; मूडी है; दिल की बात जल्दी से ज़ाहिर नहीं करता; यहाँ से जा रहा है, पर यह उसके लिए आसान नहीं है। तुम अच्छे घर की साफ़ दिल लड़की लगती हो; उसका साथ कभी मत छोड़ना। अब जाओ, वरना वह गुस्सा हो जाएगा।"

    आन्या उनकी आधी बातें समझ तक नहीं सकीं; इतने में अन्वय अंदर आ गया और उसकी कलाई पकड़ते हुए गुस्से में उसे अपने साथ ले गया। आन्या कभी उसे तो कभी मदन जी को देखती ही रह गई।

    अन्वय ने बाहर जाकर उसका हाथ छोड़ा और गुस्से में बोला, "क्या कर रही थी वहाँ? मना किया था कुछ भी कहने के लिए; बिना बोले कुछ देर भी नहीं रह सकती तुम?"

    उसके चिल्लाने से आस-पास लोग जमा हो गए; आन्या ने सबको देखा और नज़रें झुका लीं, पर उसकी आँखों में आई नमी अन्वय से छुप नहीं सकी। उसने दोनों बैग्स संभालते हुए कहा, "चलो मेरे साथ।"

    आन्या नज़रें झुकाए उसके साथ चल दी। आस-पास लोग बातें करने लगे, पर अन्वय ने किसी पर ध्यान नहीं दिया। ऑटो रोका और आन्या के साथ वहाँ से निकल गया।

    बस स्टैंड पहुँचे, पर अन्वय सामान निकाल ही रहा था कि उनके सामने से बस जाने लगी; उनके आगे एक जोड़ा और था; वे भी बस के लिए भागे। अन्वय ने भी जल्दी से बैग्स पकड़े और बस के पीछे दौड़ गया; उसके लंबे-लंबे पैर थे, पर बेचारी आन्या उसके कदमों से बराबरी नहीं कर पा रही थी; वह पीछे छूट गई।

    वह कपल बस में चढ़ गया, और अन्वय की आवाज़ पर उन्होंने बस ड्राइवर को बस रोकने को कहा, तो बस की रफ़्तार धीमी हो गई; उस कपल ने अन्वय के बैग्स पकड़े, तो अन्वय भी बस में चढ़ गया। अब उसने पीछे देखा, तो आन्या थोड़ी दूर थी; एक तो बस के पीछे भागने के वजह से वह थक गया था; आन्या को इतने पीछे देखकर उसकी आँखें छोटी-छोटी हो गईं; इतनी मुश्किल से बस में घुसा था, पर उसे वापिस उतरना पड़ा। वह भागता हुआ आन्या के पास आया और उसकी कलाई पकड़कर उसे अपने साथ लेकर भाग गया। अंदर से कपल में जो लड़का था, उसने हाथ दिया, तो अन्वय ने आन्या को आगे कर दिया।

    आन्या तो चढ़ गई, पर बस ने रफ़्तार भी बढ़ा दी; अन्वय पीछे छूट गया, तो आन्या घबराई हुई सी गेट से झाँककर उसे देखने लगी। अन्वय अब भी बस के पीछे भाग रहा था और उसे अंदर जाने को कह रहा था, पर आन्या सुन नहीं रही थी; उन्हें देखकर लड़की तुरंत ड्राइवर के पास भागी और अचानक ही ब्रेक लगा; बस रुक गई। झटका लगने से आन्या गिरते-गिरते बची; लड़के ने उसे पकड़कर पीछे खींचा; अन्वय भी भागता हुआ बस में चढ़ गया और बस अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गई।

    आन्या डबडबाई आँखों से उसे देख रही थी। अन्वय भागते-भागते थक गया था, तो कमर पकड़े थोड़ा झुककर गहरी-गहरी साँसें ले रहा था। उस लड़के ने बैग से बोतल निकालकर उसके तरफ़ बढ़ा दी। अन्वय ने थोड़ा सा पानी पिया और "थैंक्यू" कहकर बोतल वापिस उसे दे दी, तो लड़के ने उसके कंधे थपथपाते हुए कहा, "मानना पड़ेगा यार, कमाल का स्टैमिना है तुम्हारा। तुम्हारी जगह मैं होता, तो मेरी बस छूट गई होती; पर तुमने हार नहीं मानी; क्या भागे हो यार; तुम्हें तो एथलीट होना चाहिए; देश को एक-दो गोल्ड तो यूँ ही मिल जाएँगे।"

    उसकी बात सुनकर लड़की ने मुस्कुराकर कहा, "अरे भागना तो था ही; इतनी सुंदर गर्लफ्रेंड जो बस में थी, उसे अकेला कैसे छोड़ देते? देखा नहीं कितनी परेशान थी बेचारी; अगर तुमने नहीं पकड़ा होता, तो नीचे गिर गई होती।"

    उनकी बात सुनकर अन्वय की नज़रें आन्या पर गईं, जिसकी आँखों में अब भी आँसू भरे हुए थे और नज़रें उसी पर टिकी थीं। अन्वय ने उस पर से नज़रें हटाते हुए कहा, "वह मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है।"

    "तो क्या वाइफ़ है? पर आप दोनों को देखकर लगता नहीं कि आपकी शादी हो रखी है।" लड़की ने फिर से सवाल किया। इस बार आन्या ने जवाब दिया, "हम दोस्त हैं।"

    उसका जवाब सुनकर अन्वय ने हैरानी से उसे देखा, पर आन्या ने उसे नहीं देखा। चारों ने टिकट ली और अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए; साथ ही बात भी चालू थी। राहुल और सिमरन दोनों आन्या से बात कर रहे थे; आदत अनुसार अन्वय एकदम खामोशी से बैठा हुआ था। करीब चार घंटे बाद वे चारों औरंगाबाद बस स्टैंड पर उतरे। इस दौरान अन्वय और आन्या को बात करने का मौका नहीं मिला था।

  • 9. Until you are mine - Chapter 9

    Words: 2609

    Estimated Reading Time: 16 min

    अन्वय आन्या के साथ औरंगाबाद पहुँचा था। रास्ते में राहुल और सिमरन भी उनसे मिल गए थे। आन्या को उनसे बात करने में अच्छा लग रहा था; अन्वय ज़्यादा कुछ बोलता नहीं था, बस गुस्सा करता था, आँखें दिखाता था। वे दोनों मिलनसार स्वभाव के थे, इसलिए आन्या जल्दी ही उनके साथ घुल-मिल गई थी।

    वे चारों औरंगाबाद पहुँचे। अन्वय दोनों के बैग पकड़े हुए था; आन्या उन दोनों के साथ बात करते हुए धीरे-धीरे चल रही थी। अन्वय ने सर घुमाकर देखा और तीनों को इतना पीछे देखकर वहीं रुक गया। कुछ देर में तीनों वहाँ पहुँचे। उसने नाराज़गी से उन्हें देखते हुए कहा,
    "थोड़ा तेज़ चलेंगे तो हम जल्दी अपनी मंज़िल तक पहुँच सकेंगे।"

    "हमें क्या कह रहे हो? धीरे तो तुम्हारी दोस्त चल रही है, अब तुम तो उसे छोड़कर आगे भागे जा रहे हो, हम तो उसे अकेला छोड़कर तेज़ नहीं चल सकते।" सिमरन ने तुरंत जवाब दिया। अन्वय की नज़रें आन्या की तरफ़ घूम गईं। उसकी नज़रों के सवाल को समझते हुए आन्या ने धीरे से कहा,
    "वो बस के पीछे भागते हुए मेरी चप्पल टूट गई है, बहुत पुरानी है इसलिए टूट गई, मुझसे ऐसे चला नहीं जा रहा।"

    "अरे तो पहले बताना था न? आगे ही दुकान है, चलो तुम्हें नयी चप्पल दिला देंगे।" राहुल ने उसे उदास देखकर मुस्कुराते हुए बोला। अन्वय की नाराज़गी से भरी निगाहें आन्या पर टिकी हुई थीं। यहाँ राहुल की बात खत्म हुई और उसका फ़ोन बज उठा। उसने बात की तो थोड़ा परेशान लगने लगा।

    "क्या हुआ? तुम अचानक परेशान क्यों हो गए?" सिमरन ने उसे परेशान देखकर सवाल किया। उसने उसे देखते हुए जवाब दिया,
    "माँ का फ़ोन था, पापा की तबियत ख़राब हो गई है, वो हॉस्पिटल में हैं, हमें जल्दी वहाँ पहुँचना होगा।"

    "हाँ तो आप दोनों चले जाइए और अंकल कैसे हैं, फ़ोन करके बता दीजिएगा, देखना वो बिल्कुल ठीक हो जाएँगे।" आन्या ने तुरंत ही उन्हें हिम्मत बंधाई। उसकी बात सुनकर दोनों हल्का सा मुस्कुरा दिए। राहुल ने अन्वय को अपना नंबर देते हुए कहा,
    "अब जान-पहचान हो गई है तो कुछ ज़रूरत हो तो बता देना, टाइम मिलते ही हम मिलने भी आयेंगे, कांटेक्ट में रहना और आन्या का थोड़ा ध्यान रखना, लड़कियों के साथ इतने सख़्त बनकर नहीं, थोड़ा प्यार से डील किया जाता है।"

    राहुल ने उसे हिदायत दी, पर अन्वय के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसने नंबर ले लिया पर कुछ नहीं बोला। दोनों ऑटो में बैठे तो आन्या ने उन्हें अलविदा कहा और ऑटो आगे बढ़ गया। अन्वय की नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं। सारे रास्ते में आन्या ने एक बार भी उससे बात नहीं की थी और अब भी उसकी तरफ़ देख नहीं रही थी, ये बात उसे थोड़ी अजीब लग रही थी।

    उसने उस पर से नज़रें हटाईं और आगे बढ़ते हुए बोला,
    "चलो, तुम्हारे लिए चप्पल ले लेते हैं वरना जहाँ हमें जाना है वहाँ पहुँचने में तुम अगली सुबह कर दोगी।"

    यहाँ भी उसकी अहंकार दिखाई दिया। वह तो आगे बढ़ गया पर आन्या अपनी जगह से नहीं हिली, वहीं खड़ी रही। अन्वय को इस बात का एहसास हुआ तो उसने उसकी तरफ़ घूमते हुए सवाल किया,
    "अब चल क्यों नहीं रही? क्या चाहती हो? बाहों में उठाकर तुम्हें शॉप तक लेकर जाऊँ? या मुझे कोई जादूगर समझा हुआ है कि दुकान को उठाकर तुम्हारे सामने हाज़िर कर दूँगा?

    अगर ऐसा है तो मैं तुम्हें पहले ही बता रहा हूँ कि न तो मैं जादूगर हूँ, न ही तुम्हें अपनी बाहों में उठाकर कहीं ले जाने वाला हूँ। तुम्हें अपने पैरों से चलकर ही दुकान तक जाना होगा और थोड़ा जल्दी चलना, हमें कहीं और भी जाना है।"

    "मेरे पास पैसे नहीं हैं, मुझे नयी चप्पल नहीं लेनी, इसे ही सिलवा लूँगी।" आन्या ने उसके चुप होने के बाद धीरे से कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय की निगाहें उसकी चप्पल पर चली गईं; काफ़ी पुरानी लग रही थी, दो-चार बार सिलवा भी रखी थी। उसने चप्पलों को देखते हुए सवाल किया,
    "और कितनी बार सिलवाकर पहनोगी? एक जगह बची है जहाँ से टूटी न हो? और कितने सालों से इस चप्पल को घसीट रही हो?"

    "पता नहीं, याद नहीं है, शायद पाँच साल हो गए। लास्ट टाइम टूटी थी तो मिसेज़ कावेरी सिन्हा को कहा था नयी चप्पल दिला दे, ये पूरी टूट गयी है तो उन्होंने मुझे बहुत मारा और कहा, 'पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं? तेरा बाप सारा दिन मेहनत करके चार पैसे कमाता है और तू बस बेफ़िज़ूल की चीज़ों को खरीदने में उनकी मेहनत की कमाई उड़ाने पर लगी रहती है। वैसे ही तेरी पढ़ाई पर पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं, सब तुझ पर ही लुटा देंगे तो मेरे और मेरे बेटे को सड़कों पर भीख माँगना पड़ेगा।'

    उसके बाद मैंने दोबारा किसी चीज़ के लिए उन्हें कुछ नहीं कहा। कॉलेज की सैंडल टूट जाती थी तो मेरी दोस्त आरती अपने पैसों से सिलवा देती थी। एक बार उसने गुस्से में मेरी सैंडल फेंक दी थी क्योंकि वो पूरी टूट गई थी और उसी ने मुझे नए सैंडल भी दिलवाई थी लेकिन जब मैं घर गई तो पापा की पत्नी ने उन्हें जाने क्या-क्या सुना दिया कि उन्होंने सैंडल कूड़े में डाल दी और छड़ी से मुझे बहुत मारा, मेरे शरीर पर नील पड़ गए थे, मैं एक हफ़्ते कॉलेज नहीं गई थी। उसके बाद से मैं सैंडल-चप्पल सब सिलवाकर पहनती थी।

    परसों मेरी सैंडल जंगल में गुम गई और दूसरी थी नहीं तो चप्पल पहनकर घर से भाग गई। और आज ये फिर से टूट गई। पर आप चिंता मत कीजिए, मैं सिलवा लूँगी तो ठीक हो जाएगी, आपको बेवजह पैसे ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं है, पहले ही बहुत एहसान है आपके मुझ पर, इतने एहसान मत कीजिए कि मैं कभी उतार भी न पाऊँ।"

    अन्वय में जाने ऐसा क्या था कि जो बात आन्या सालों से अपने दिल में दबाकर रखती आई थी, अन्वय के सामने बेझिझक उसने वो सब कह दिया था। उसकी बात सुनकर अन्वय को उस पर दया आने लगी थी। उसने उसके सर पर हाथ रखा तो आन्या नज़रें उठाकर उसे देखते हुए बोली,
    "अरे आप इतने सीरियस क्यों हो गए? मैं ठीक हूँ, मुझे अब उन बातों को याद करके बुरा नहीं लगता, आदत हो गई है मुझे इन चीज़ों की। बचपन से उनके ताने और पिटाई ही खाती आई हूँ, अब तो दर्द भी नहीं होता।"

    उसने कितनी आसानी से अपना दर्द अपनी मुस्कान के पीछे छुपा लिया। अन्वय ने दोनों बैग के हैंडल को एक हाथ में पकड़ा और दूसरे से उसकी कलाई पकड़ते हुए बोला,
    "चलो, तुम्हें नयी चप्पल दिलाता हूँ।"

    "मेरे पास पैसे नहीं हैं और मैं अब आपका और एहसान नहीं लेना चाहती।" आन्या ने उसका हाथ उससे छुड़ाते हुए कहा। अन्वय एक बार फिर उसकी तरफ़ घूम गया और उसकी आँखों में झाँकते हुए गंभीरता से बोला,
    "ठीक है, नहीं लेना मेरा एहसान तो छोड़ देती हूँ यहीं तुम्हें, अपना इंतज़ाम खुद कर लेना, मैं क्यों तुम पर और एहसान करूँ।"

    इतना कहकर उसने आन्या का हाथ छोड़ दिया। पर उसकी बात सुनकर आन्या ने झट से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
    "नहीं, मुझे अकेले डर लगता है, मैं आपके साथ चलूँगी।"

    उसकी बात सुनकर अन्वय के लबों पर तिरछी मुस्कान तैर गई और वह उसकी हथेली थामे आगे बढ़ गया। एक गली छोड़कर ही उन्हें फ़ुटवियर की शॉप मिल गई। दोनों अंदर गए। अन्वय ने वहाँ काम करने वाले लड़के को आन्या के लिए अच्छी सी चप्पल और सैंडल दिलाने को कहा। आन्या ने कुछ कहना चाहा पर अन्वय की घूरती निगाहें देखकर खामोश हो गई।

    कुछ चप्पल और सैंडल ट्राई करने के बाद भी आन्या को कुछ समझ नहीं आया। अन्वय ने पसंद करने को कहा तो उसने सर झुकाकर जवाब दिया कि उसे पसंद करना नहीं आता। कभी कुछ खरीदा ही नहीं है, जो कावेरी जी लाकर देतीं वो चुपचाप रख लेती।

    आखिर में अन्वय ने ही चप्पल और सैंडल पसंद कीं और चप्पल उसे दे दी, सैंडल पैक करवाई और पैसे देकर दोनों शॉप से बाहर निकल गए। आन्या चलते हुए बार-बार अपने पैरों को देख रही थी। ये बात अन्वय ने भी नोटिस की और उसके साथ चलते हुए ही उसने सवाल कर दिया,
    "क्या हुआ? चप्पल पसंद नहीं आई? बार-बार पैरों को देख रही है? अगर दूसरी पसंद हो तो चलकर दूसरी ले लो।"

    "नहीं, ऐसा नहीं है, चप्पल बहुत अच्छी है और आपकी पसंद भी बहुत अच्छी है। मैंने इतने वक़्त बाद नयी चप्पल पहनी है न, बस इसलिए पैरों को देखकर खुश हो रही हूँ, कितने सुंदर लग रहे हैं मेरे पैर, बस थोड़े गंदे हो गए हैं।" आन्या ने मुस्कुराकर उसे देखते हुए सब कह दिया। उसकी बात सुनकर अन्वय कुछ नहीं बोला, सामने देखते हुए चलने लगा तो आन्या ने ही सवाल किया,
    "हम कहाँ जा रहे हैं?"

    "रहने के लिए जगह का इंतज़ाम करने जा रहे हैं, इसके आगे कोई सवाल नहीं, चुपचाप मेरे साथ चलो।" अन्वय ने सख़्ती से कहा। उसके चुप होते ही आन्या बोल पड़ी,
    "तुम हमेशा मुझे चुप रहने को क्यों कहते हो? घर में मिसेज़ सिन्हा भी कुछ नहीं बोलने देती थीं, कुछ बोलती थी तो मारने लगती थीं और अब तुम भी मुझे बोलने नहीं देते। एक काम करो, मेरे होंठों को चिपका दो, फिर मैं चाहकर भी कभी बोल नहीं पाऊँगी तो सबको खुशी मिल जाएगी।"

    आन्या ने नाराज़गी से मुँह फुला लिया। उसकी बातें सुनकर अन्वय को एहसास हो रहा था कि उसने कितनी मुश्किल ज़िंदगी जी है। उसने अब कुछ नहीं कहा, हालाँकि आन्या ने भी आगे कुछ नहीं कहा और मुँह फुलाए उसके साथ चलती रही। कुछ गलियाँ छोड़कर अन्वय एक घर के आगे रुका, डोर बेल बजायी तो अंदर से एक आंटी निकलकर बाहर आई। अन्वय ने उन्हें नमस्ते किया तो उन्होंने भी उसे सदा खुश रहने का आशीर्वाद दिया। फिर आन्या को देखकर बोली,
    "ये गुड़िया कौन है? पहले कभी तुम्हारे साथ नहीं देखा? तुमने शादी कर ली?"

    "नहीं काकी, रास्ते में मिली थी, रहने के लिए घर की ज़रूरत थी तो मैंने सोचा जब तक कोई और ठिकाना नहीं मिल जाता यहाँ मेरे साथ ही रुक जाएगी, आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं है?"

    "हमें क्यों ऐतराज़ होगा बेटा? आपका कमरा है, बस इज़्ज़त से रहिएगा।"

    "आप चिंता मत कीजिए, हम बस रूममेट बनकर साथ रहेंगे।" अन्वय ने उन्हें यकीन दिलाया तो आंटी मुस्कुराकर अंदर चली गई। अन्वय अंदर आया और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया, आन्या भी खामोशी से उसके पीछे चल गई। ऊपर एक कमरा बना हुआ था। अन्वय ने बैग रखे और पॉकेट से चाबी निकालकर गेट खोला। फिर उसने गेट के बगल के स्विच बोर्ड से स्विच ऑन किया और कमरे में रोशनी फैल गई। वह बैग लेकर अंदर आ गया और उन्हें साइड में खड़ा करते हुए बोला,
    "कमरा थोड़ा छोटा है, एडजस्ट कर लेना, मुझे शोर-शराबा बिल्कुल पसंद नहीं है तो अपनी बकबक की दुकान को बंद रखना, यहाँ रहोगी तो मेरे नियमों को मानना ही होगा। वरना तुम्हें बाहर का रास्ता दिखाने में मुझे ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा।"

    आन्या ने तो उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। वह तो अपनी नज़रें घुमाते हुए उस कमरे को देख रही थी। कमरा भले ही ज़्यादा बड़ा नहीं था पर पूरे कमरे को सलीके से सजाया हुआ था। कमरे के बीच में, पीछे की दीवार से लगाकर बेड था, उसके साइड में टेबल जिस पर लैम्प रखा हुआ था। दूसरी तरफ़ शेल्फ़ बने हुए थे जिन पर काफ़ी सारी किताबें रखी हुई थीं। बेड के सामने एक टेबल रखा हुआ था जिस पर कुछ कागज़ रखे हुए थे, कमरे से जुड़ा हुआ ही बाथरूम था और दूसरी तरफ़ सेपरेट किचन था। और बालकनी भी थी और उसके बगल में बड़ी सी खिड़की थी जो फ़िलहाल बंद थी, बेड के ठीक सामने दीवार पर LCD लगा हुआ था, उसके बगल में ड्रेसिंग टेबल था और उसके साइड में अलमारी थी। व्हाइट कलर का पेंट हो रखा था कमरे में, बेड पर भी व्हाइट चादर बिछी हुई थी, कमरे में कम चीज़ें थीं पर फिर भी कमरा बहुत अच्छा लग रहा था।

    आन्या ने कमरे में नज़रें घुमाते हुए कहा,
    "ये जगह तो ऐसी लग रही है जैसे कोई पहले से यहाँ रहता है।"

    "मैं ही रहता हूँ।" अन्वय ने सख़्त आवाज़ में ही जवाब दिया। उसकी बात सुनकर आन्या की हैरत भरी निगाहें उसकी तरफ़ घूम गईं। उसने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखते हुए कहा,
    "आपका घर तो नासिक में है न? फिर आप यहाँ कैसे रह सकते हैं? और मैंने सुना था आपकी भाभी कह रही थी कि आप कोई काम नहीं करते हैं फिर आपके पास कमरे के लिए पैसे कहाँ से आए?"

    उसकी बात सुनकर अन्वय उसे तीखी नज़रों से घूरने लगा। तब जाकर आन्या को एहसास हुआ कि उसने जो कहा वो उसे नहीं कहना चाहिए था। उसने अपनी जीभ को दांतों तले दबा लिया, चोर नज़रों से अन्वय को देखा, उसकी घूरती निगाहों को खुद पर टिका देख आन्या ने मासूम सी शक्ल बनाकर सफ़ाई दी,
    "वो मैं बस सुन रही थी कि मेरे बारे में क्या बात हो रही है, आप सबकी बातें सुनने का मेरा कोई इरादा नहीं था, सच्ची।"

    उसकी बात सुनकर अन्वय ने उस पर से नज़रें हटाते हुए कहा,
    "भाभी के साथ रहना पसंद नहीं था मुझे इसलिए ज्यादातर यहीं रहता था और मैं कोई निकम्मा-निठल्ला, आवारा लड़का नहीं हूँ, अकाउंटेंट की जॉब करता हूँ मैं यहाँ बस किसी को ये पता नहीं है और अब तो लेक्चरर की जॉब भी मिल गई है तो इतने पैसे रहते हैं मेरे पास कि खुद का ख़र्चा उठा सकूँ।"

    "हम्म, फिर तो बस मुझे ही अपने लिए कोई अच्छी सी जॉब ढूँढ़नी है।" आन्या ने सोचते हुए कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय के दिमाग़ में कुछ आया और उसने बेड पर बैठते हुए कहा,
    "वैसे तुमने तो अब नए दोस्त बना लिए, अब तो तुम्हें इस अजनबी की ज़रूरत नहीं होगी।"

    "ये आपको किसने कहा कि मुझे आपकी ज़रूरत नहीं है?" आन्या ने झट से सवाल किया। उसका सवाल सुनकर अन्वय उठकर खड़ा हो गया और उसकी तरफ़ बढ़ते हुए बोला,
    "मुझे लगा अब तो तुम्हारे नए-नए इतने अच्छे दोस्त बन गए हैं तो तुम्हें मुझ जैसे अहंकारी अजनबी को झेलने की ज़रूरत नहीं होगी।"

    "मैं आपको झेल नहीं रही हूँ, मुझे आपके साथ अच्छा लगता है और आप वो अजनबी हैं जो मेरे अपनों से भी ज़्यादा अपने हैं मेरे लिए। जिनसे पहली बार मिलकर भी दिल को ऐसा लगा जैसे वो आपको बहुत पहले से और बहुत अच्छे से जानता है।"

    "इतना ही अपना हूँ तो मुझे क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी चप्पल टूट गई है और तुम्हें चलने में परेशानी हो रही है?" अन्वय अब भी धीमे कदमों से उसकी तरफ़ बढ़ रहा था। आन्या का दिल ज़ोरों से धड़क उठा, उसने कदम पीछे हटाते हुए जवाब दिया,
    "वो आप घर से निकलते वक़्त मुझ पर कैसे चिल्लाए थे, गुस्सा कर रहे थे तो मुझे आपसे बोलने में डर लग रहा था।"

    "जब मैंने तुम्हें चुप रहने को कहा था तो तुम राहुल से क्या बात कर रही थी?" अन्वय की तीखी नज़रें आन्या के चेहरे पर टिकी हुई थीं। वहीं आन्या घबराई हुई सी पीछे हटते हुए बोली,
    "वो सब आपके और मेरे रिश्ते को गलत समझ रहे थे, मैं बस उन्हें बता रही थी कि हमारे बीच वैसा रिश्ता नहीं है जैसा वो समझ रहे हैं।"

    "तो कैसा रिश्ता है हमारा? क्या लगता हूँ मैं तुम्हारा जो तुम्हें मुझ पर इतना विश्वास है कि मेरे साथ एक कमरे में रहने को भी तैयार हो गई?" इस बार अन्वय के सवाल सुनकर आन्या परेशान नज़रों से उसे देखने लगी। अन्वय ने उसकी खामोशी देखी तो भौंहें चढ़ाकर आँखों से सवाल किया। अब आन्या ने झट से कहा,
    "दोस्त, दोस्त हैं हम।"

    "दोस्त कब बने हम?" अन्वय ने अगला सवाल दागा। बेचारी आन्या के पास जवाब नहीं था तो उसने कुछ नहीं कहा।


    क्रमशः...

  • 10. Until you are mine - Chapter 10

    Words: 2471

    Estimated Reading Time: 15 min

    "दोस्त कब बने हम?" अन्वय ने अगला सवाल दागा। बेचारी आन्या के पास जवाब नहीं था तो उसने कुछ नहीं कहा। अब अन्वय उसके एकदम सामने खड़ा हो गया और अपनी गंभीर निगाहों को उसके चेहरे पर टिकाते हुए बोला, "बस में रो क्यों रही थी?"

    उसका सवाल सुनकर आन्या की हैरत भरी निगाहें अन्वय की तरफ़ उठ गयीं तो उसने आगे कहा, "जब मैं नीचे छूट गया था तो गेट पकड़कर लटकी हुई क्यों थी? मेरे लाख कहने पर अंदर क्यों नहीं जा रही थी? और जब मैं बस में चढ़ा तो तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों थे?"

    उसका सवाल सुनकर आन्या को वो पल याद आ गया और आँखों में एक डर नज़र आने लगा। उसने नज़रें झुकाते हुए कहा, "आप नीचे छूट गए थे तो मैं डर गयी थी, अगर मैं आपसे अलग हो जाती तो कहाँ जाती? मैं तो आपके अलावा किसी को भी नहीं जानती। जब आप बस में चढ़े तो मेरी जान में जान आयी इसलिए मेरी आँखें नम थीं क्योंकि मैं डर गयी थी कि मैं आपको खो दूँगी।"

    उसकी बात ख़त्म होने के कुछ पल बाद तक वहाँ सन्नाटा पसरा रहा। अन्वय वापिस बेड की तरफ़ बढ़ गया और बेड पर लेटते हुए बोला, "ये रूम मेरा है तो मैं बेड पर सोऊँगा, तुम अपना इंतज़ाम कर लो।"

    उसने अपने सर के पीछे अपनी बाहों को रखते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। आन्या ने सर उठाकर उसको देखा फिर रूम में नज़रें घुमायीं। बेड के साइड में खाली जगह थी, उसके पीछे अलमारी थी। आन्या ने ध्यान से देखा तो अलमारी के ऊपर चटाई रखी हुई थी। ये देखकर उसकी आँखों में चमक लौट आयी, उसने मुस्कुराकर कहा, "इट्स ओके, मैं नीचे सो जाऊँगी, आदत है मुझे। बस इतना बता दीजिए गद्दा या चादर वग़ैरह है रूम में?"

    "गद्दा तो नहीं है पर अलमारी में, नीचे के शेल्फ़ में दरि और चादर रखे हैं। अगर ज़रूरत हो तो ले सकती हो और अब मुझे किसी बात के लिए डिस्टर्ब मत करना, तुम्हारी वजह से पहले मुझे नासिक जाना पड़ा और फिर ट्रैवल करके यहाँ आना पड़ा, मैं थक गया हूँ तो मुझे सोना है और अपनी नींद में ज़रा भी डिस्टर्बैंस मुझसे बर्दाश्त नहीं है तो अपना मुँह बंद रखना और हो सके तो यहाँ शांति बनाए रखना।"

    अन्वय ने आँखें बंद किए हुए ही कहा। उसकी बात सुनकर आन्या ने मुँह बना लिया। अलमारी से चादर और दरि निकाली फिर उन्हें टेबल पर रखने के बाद कमरे में नज़रें घुमायीं तो दरवाज़े के पीछे रखी झाड़ू और डस्टिंग का कपड़ा उसे नज़र आया। रूम थोड़ा गन्दा था, मतलब शायद कुछ दिनों से बंद था तो धूल-मिट्टी हो गयी थी।

    आन्या ने अपने दुपट्टे को अपनी कमर पर लपेटकर बाँध लिया फिर उसने अन्वय को सोते देखा तो पूरे रूम को साफ़ न करके बस चीज़ों को पोंछ दिया फिर बड़े ध्यान से बिना आवाज़ किए झाड़ू लगायी। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते पहले बाथरूम में गयी फिर बालकनी में आयी तब जाकर उसको क्लॉथ ड्रायर रेक पर टाँगा पोछा नज़र आया। उसने बाथरूम में जाकर बाल्टी में पानी भरा फिर रूम में पोछा लगाने लगी। कमरा अब पहले से कुछ साफ़ लग रहा था।

    उसने अब किचन की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। किचन में गंदे बर्तन सिंक में पड़े थे, ये देखकर आन्या ने अपनी नाक सिकोड़ दी और पहले किचन के जाले साफ़ किए, सब कैबिनेट को खोलकर सब डब्बों को साफ़ किया, खाली डब्बे और बर्तन धोने के लिए निकाल दिए, प्लेटफ़ॉर्म और गैस साफ़ करने के बाद उसने सब बर्तनों को धोकर पोंछकर रैक में लगाया।

    अब उसने नज़रें घुमाकर किचन में देखा तो किचन एकदम साफ़-सुथरा और व्यवस्थित लग रहा था। उसने अन्वय को याद करते हुए मन ही मन कहा, "देखने में इतने केयरलेस तो नहीं लगते पर शायद लड़कों के जीन में ही ये गंदी आदतें होती हैं, साफ़-सफ़ाई से तो जैसे उनकी जन्मों की दुश्मनी होती है। घर पर जब अजय आता था तो वो भी घर को बिल्कुल फैला देता था, झूठे बर्तन कहीं होते तो गंदे कपड़े कहीं पड़े होते और मुझे ढूँढ़-ढूँढ़कर सब निकालकर धोकर उन्हें उनकी जगह पर रखना पड़ता था पर आप उससे थोड़ा कम गंदगी फैलाते हैं।"

    उसके मन की बात सुनते हुए बाहर बेड पर आँखें बंद किए लेटा अन्वय हल्का सा मुस्कुरा दिया। इसके बाद उसकी आँख लग गयी। आन्या ने अपने कदम अब बाथरूम की तरफ़ बढ़ा दिए, देखा तो गेट के पीछे कपड़ों का ढेर इकट्ठा किया हुआ है। उसने अपना सर पकड़ लिया और खीझते हुए बोली, "बिल्कुल नहीं, मैं गलत थी, आप उससे भी ज़्यादा गैर-ज़िम्मेदार हैं। आप तो अकेले यहाँ रहते थे फिर भी अपने काम नहीं किए जाते आपसे, ऐसा लग रहा है जैसे सब काम मेरे लिए ही इकट्ठा किया हुआ है।"

    उसने टब में सर्फ डालकर सब कपड़ों को उसमें डाल दिया और उन्हें कुछ देर के लिए पानी में छोड़कर वापिस किचन में चली गयी। करीब आधे घंटे बाद वापिस लौटी और बैठकर सारे कपड़े धोने लगी। उसको एक घंटा लग गया कपड़े धोकर नहाने में।

    आज उसने आसमानी कलर का अनारकली सूट डाला हुआ था जिसकी लेगी ऑरेंज थी और दुपट्टा भी ऑरेंज था। ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गयी। उसने अपने बैग से अपना कॉम्ब निकाला और बालों को सुलझाते हुए उन्हें फिर से एक चोटी में बाँध लिया। वो वैसे भी ज़्यादा कुछ नहीं करती थी पर फिर भी हमेशा की तरह आज भी बहुत प्यारी लग रही थी। अब उसने सोते हुए अन्वय को देखा और किचन में जाकर दो थाली लायी। उन्हें टेबल पर रखकर वो अन्वय के पास आ गयी।

    आन्या को सब काम निपटाते-निपटाते शाम के चार बज गए थे। उसने अन्वय को जगाने के लिए हाथ बढ़ाना चाहा फिर कुछ सोचकर रुक गयी और दो कदम पीछे हटते हुए बोली, "एक्सक्यूज़ मी, खाना बन गया है। उठकर खा लीजिए फिर सो जाइएगा।"

    उसकी बात पर अन्वय ने कोई रिस्पांस नहीं किया। तब आन्या एक कदम आगे बढ़ते हुए बोली, "अन्वय, उठकर खाना खा लीजिए, ठंडा हो जाएगा।"

    अन्वय अब भी टस से मस नहीं हुआ तो आन्या ने अब हार मानते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसके कंधे को छूते हुए कहा, "अन्वय, उठ जाओ न, खाना ठंडा हो रहा है। मुझे ज़ोरों की भूख लगी है।"

    उसके छूने से नींद में भी अन्वय को कुछ अजीब सा एहसास हुआ, कुछ तस्वीरें उसकी आँखों के सामने घूमने लगीं, जैसे पहले भी कभी ऐसा हुआ हो पर सब कुछ धुंधला-धुंधला था। अन्वय बेचैनी से सब देखने की कोशिश करने लगा पर कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा था, बस यही आवाज़ सुनाई दे रही थी। जब वो नहीं उठा तो आन्या ने अब उसके कंधे को ज़ोर से हिलाते हुए चिल्लाकर कहा, "अन्वय, उठ जाओ! अगर अब भी तुम नहीं उठे तो मैं तुम्हें यहीं नहला दूँगी!"

    उसके ज़ोर से हिलाने से अन्वय ने चौंक कर अपनी आँखें खोलीं तो आँखों के सामने आन्या का चेहरा देख वो झट से उठकर बैठ गया और अपनी हथेली से अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोला, "तुम... तुम यहाँ क्या कर रही हो? मेरे पास आने का हक़ किसने दिया तुम्हें?"

    अब अन्वय ने गुस्से से उसको घूरा तो आन्या दो कदम पीछे हटते हुए बोली, "इतना क्या भड़क रहे हो? मैं कोई तुम्हारा फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं कर रही थी। बस तुम्हें जगा रही थी। खाना ठंडा हो रहा है, अब जाग गए हो तो मुँह धोकर आ जाओ, मुझे ज़ोरों की भूख लगी है।"

    इतना कहकर वो कपड़ों से भरी बाल्टी लेकर बालकनी की तरफ़ जाने लगी तो अन्वय की निगाहें बाल्टी में रखे कपड़ों पर पड़ीं तो वो हैरानी से बोला, "ये मेरे कपड़े कहाँ लेकर जा रही हो?"

    आन्या ने मुड़कर उसे देखा और मुँह बनाते हुए बोली, "तुम्हारे कपड़ों को चुराकर बेचने जा रही हूँ, थोड़े पैसे मिल जाएँगे मुझे।"

    उसका टेढ़ा जवाब सुनकर अन्वय की भौंहें सिकुड़ गयीं और उसने उसको घूरते हुए कहा, "मुझे ऐसे बकवास मज़ाक पसंद नहीं है, चुपचाप बताओ मेरे कपड़ों को क्या करने लेकर जा रही हो।"

    "हमेशा इतनी सड़ी शक्ल बनाकर घूमते रहते हो तो आपको मज़ाक पसंद हो भी कैसे सकता है? ख़ैर, इतना दिमाग़ तो आप पर होगा ही, फिर भी लगता है आप अभी-अभी सोकर उठे हैं न तो शायद इसलिए आपका दिमाग़ काम नहीं कर रहा। तो मैं ही बता देती हूँ, आपके इतने सारे कपड़े अंदर बाथरूम में गंदे पड़े थे तो मैंने सबको धो दिया और अब सुखाने जा रही हूँ।" आन्या ने मुँह बनाते हुए कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय की आँखें गुस्से से छोटी-छोटी हो गयीं। उसने दाँत पीसते हुए सवाल किया, "तुमने मेरे कपड़े धोए?"

    "हाँ, गंदे थे तो मैंने धो दिए।" आन्या ने असमझ की स्थिति में अपने कंधे उचका दिए। अन्वय ने उसको घूरते हुए ही दोबारा सवाल किया, "मैंने तुम्हें क्या मेरे काम करने के लिए यहाँ रखा है?"

    "नहीं, पर..." आन्या ने इतना कहा ही था कि अन्वय ने उसकी बात काटकर बेहद गुस्से में कहा, "आइंदा मेरी किसी चीज़ को हाथ लगाने की ज़रूरत नहीं है, मैं अपना काम खुद करना जानता हूँ तो बेहतर होगा कि तुम भी अपने काम से काम रखना सीख जाओ। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई गैर मेरी चीज़ों को हाथ भी लगाए। कुछ दिनों के लिए यहाँ हो तो तमीज़ से रहो, मुझसे और मेरी चीज़ों से दूर रहो, मैंने पहले ही कहा था मुझे मेरी ज़िंदगी में न तो किसी की दख़लअंदाज़ी पसंद है, न ही वो लोग बर्दाश्त हैं जो मेरी ज़िंदगी में ज़बरदस्ती घुसने की कोशिश करें या मेरी ज़िंदगी की शांति को भंग करें। आगे से बिना मुझसे पूछे मेरी किसी चीज़ को हाथ लगाने की ज़रूरत नहीं है।"

    "ठीक है, आगे से इस बात का ध्यान रखूँगी। अब तो मैंने कपड़े धो दिए हैं तो सुखा आऊँ?" आन्या ने अपनी चिर-परिचित अंदाज़ में शांति से कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय की आँखें हैरानी से चौड़ी हो गयीं। उसने उन्हें हैरानी से देखते हुए कहा, "मुझसे डाँट खाकर भी तुम्हें कपड़े सुखाने की पड़ी है, कोई सेल्फ़ रिस्पेक्ट है या नहीं तुम्हारे अंदर?"

    अन्वय एक बार फिर गुस्से में लग रहा था। उसकी बात सुनकर आन्या ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुमने तो सिर्फ़ डाँटा है, मैं तो मार खाने के बाद भी घर का सारा काम करती थी, आदत है मुझे, अब इन सब चीज़ों से बुरा नहीं लगता। पर इसका मतलब ये नहीं कि मेरा कोई आत्मसम्मान नहीं है, बहुत बड़ी है मेरी सेल्फ़ रिस्पेक्ट, उसे बचाने के लिए तो अपने घर से भागी हूँ।"

    उसकी मासूमियत भरी बातें एक बार फिर अन्वय के पत्थर दिल को पिघला गयीं। उसने आन्या पर से नज़रें हटा ली और उठकर खड़ा हो गया तो आन्या ने फिर से कहा, "सुखा दूँ न कपड़े?"

    "जो करना है करो, बस अभी मुझसे कोई बात मत करो।" अन्वय ने खीझते हुए कहा और बाथरूम में चला गया। उसने गुस्से में बाथरूम का दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया तो आन्या ने बाहर से तेज आवाज़ में कहा, "अरे इतनी तेज़ दरवाज़ा क्यों बंद कर रहे हो? टूट गया तो बनवाने में पैसे लगेंगे।"

    "मेरे लगेंगे ना तो तुम अपने मुँह का शटर बंद रखो वरना तुम्हारे बोलने पर चार्ज लगा दूँगा, पैसे तो तुम्हारे पास वैसे ही नहीं, खुद भी बिक जाओगी अपनी बकबक के चक्कर में।" अंदर से अन्वय ने गुस्से में चीखते हुए कहा। बोलने पर चार्ज लगाने की बात सुनकर आन्या का मुँह हैरानी से खुल गया पर उसने एक शब्द नहीं कहा। क्या भरोसा था, कहीं उसने कुछ कह दिया और सच में वो बाहर आकर उससे पैसे माँगने लगता तो क्या करती? इसलिए वो खामोश रही और बाल्टी लेकर बालकनी में चली गयी। क्लॉथ ड्राइंग स्टैंड पर अपने और उसके कपड़ों को सुखाया फिर अंदर आ गयी। तब तक में अन्वय भी नहाकर बाहर आ गया। अब उसने ब्लैक लोअर और ब्लैक टीशर्ट डाली हुई है। ब्लैक कलर उस पर बहुत जच रहा था, जैसे ये रंग उसी के लिए बना हो।

    आन्या ने उसको देखा, एक पल को उसकी नज़रें उस पर ठहर गयीं, वो लगता ही इतना कमाल था कि आन्या उसमें खो सी जाती थी, कुछ था अन्वय में जो उसे अपनी तरफ़ खींचता था। पर उसने खुद को संभालते हुए उस पर से अपनी नज़रें हटा ली और जाकर सोफ़े पर बैठ गयी। अन्वय भी उसके पास आकर बैठ गया पर खाना देखकर उसका मुँह बन गया, वहीं आन्या खामोशी से खाना खा रही थी। अन्वय ने भी खाना खाना शुरू किया। दोनों ने खाना खाया फिर आन्या बर्तन लेकर किचन में चली गयी। अन्वय ने उसके पीछे आते हुए कहा, "रहने दो, मैं कर लूँगा, बहुत काम कर लिया है तुमने, अब आराम करो।"

    आन्या ने कुछ भी नहीं कहा, चुपचाप बर्तन सिंक में रखकर किचन से बाहर चली गयी। अन्वय को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि जब से वो नहाकर आया था आन्या एकदम खामोश थी। पर फिर उसने सर झटका और बर्तन धोने लगा।

    आन्या ने बाहर जाकर ज़मीन पर चटाई बिछाई, फिर उसके ऊपर दरि और चादर बिछाकर लेट गयी। थक तो सच में गयी थी तो जल्दी ही उसकी आँख लग गयी।

    अन्वय जब बाहर आया तो देखा आन्या हर बात से बेख़बर बड़े सुकून से सो रही थी। दुपट्टे को अपने ऊपर डाला हुआ था जो अब उसके बदन से सरक गया था। सोते हुए वो और भी ज़्यादा प्यारी लग रही थी, अन्वय की नज़रें उस पर ठहर सी गयीं। इतनी देर में अब उसने सुकून से दो पल उसे देखा था, ये रंग उस पर काफ़ी खिल रहा था। वो कुछ पल वहीं खड़ा उसे देखता रहा फिर उसने चादर ली और उसको अच्छे से ओढ़ा दी। आन्या अपनी बाँह को सर के नीचे रखकर सो रही थी, ये देखकर अन्वय ने एक पिलो लिया, बड़े ध्यान से उसके सर के नीचे लगा दिया तो आन्या खुद में सिमटते हुए करवट लेकर सो गयी। अन्वय अब उठकर आकर बेड पर लेट गया, उसने लाइट्स ऑफ़ की और सर के नीचे बाँह रखते हुए आँखें बंद करके लेट गया।

    रात के करीब दो बज रहे थे जब आन्या की आँख खुली। जल्दी सोने के वजह से जल्दी ही उसकी आँख खुल गयी। उसने खुद पर चादर और वहाँ रखा तकिया देखा तो उसकी हैरत भरी निगाहें बेड की तरफ़ घूम गयीं जहाँ अन्वय अब भी वही पोज़िशन में लेटा हुआ था, शायद सो रहा था।

    आन्या उठकर खड़ी हो गयी, रूम में, बाहर आसमान में चमकते चाँद की हल्की-हल्की चाँदनी बिखरी हुई थी। आन्या ने मुड़कर सोते हुए अन्वय को देखा फिर बालकनी का डोर खोलकर बालकनी में जाकर रेलिंग पकड़े खड़ी हो गयी और खामोशी से उस अंधेरी रात को अपनी चाँदनी से रोशन करते चाँद और उसके आस-पास झिलमिलाते तारों को देखने लगी। उसे गए हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि अन्वय ने भी अपनी आँखें खोल दीं। कुछ सेकंड सोचने के बाद वो बालकनी के डोर के बगल वाली खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया और आन्या को देखने लगा जिसकी पीठ उसके तरफ़ थी और नज़रें आसमान पर टिकी हुई थीं।


    Coming soon........

  • 11. Until you are mine - Chapter 11

    Words: 2250

    Estimated Reading Time: 14 min

    आन्या के चेहरे पर अजीब सी खामोशी छाई थी। अन्वय अपनी गहरी निगाहें उस पर टिकाए खड़ा था। हालाँकि उसने आन्या पर गुस्सा करके उसे चुप रहने को कहा था, पर उसकी खामोशी अब उसे खल रही थी। एक दिन ही हुआ था दोनों को साथ में, पर उसके साथ रहकर ऐसा लग रहा था जैसे बहुत लंबा साथ रहा हो उनका। उसकी बकबक की शायद अन्वय को आदत हो गई थी, पर उनकी बहस के बाद से वह एकदम खामोश थी। उसकी खामोशी अन्वय को चुभ रही थी। पर उसने कुछ नहीं कहा, खामोशी से आन्या को देखता रहा। आन्या रेलिंग पकड़े खड़ी थी, आसमान को अपनी चांदनी से रोशन करते चांद और काले आकाश में झिलमिलाते सैकड़ों तारों को देख रही थी।

    कुछ देर उसे देखने के बाद अन्वय भी बालकनी में आया और उससे कुछ दूरी पर खड़ा हो गया।

    "इस वक्त यहां क्या कर रही हो?" कुछ देर खामोश रहने के बाद भी जब न तो आन्या ने उसकी ओर निगाहें घुमाईं, न ही एक शब्द कहा, तो आखिर में अन्वय ने उससे सवाल किया। आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया।

    अन्वय को यह बात जरा भी पसंद नहीं आई और अब उसे आन्या पर गुस्सा आने लगा था। कुछ देर इंतजार करने के बाद भी जब उसने कोई जवाब नहीं दिया, तो अन्वय ने हल्के गुस्से से कहा, "सुनाई नहीं दे रहा? कुछ पूछ रहा हूँ मैं। मुझे वो लोग बिल्कुल नहीं पसंद जो मेरी बात सुनकर भी अनसुना करें, पूछने पर जवाब न दें।"

    "आपको तो मेरी तरह बोलने वाले लोग भी नहीं पसंद।" आन्या की उदासी से भरी आवाज उसके कानों में पड़ी, तो अन्वय के भाव कुछ कोमल हो गए। उसकी आवाज में भारीपन महसूस करते हुए अन्वय ने आराम से कहा, "फालतू की बकवास करने से मना किया था मैंने तुम्हें, यह नहीं कहा था कि मुंह को फेविकॉल लगाकर चिपका लो ताकि काम की बात भी न कह सको।"

    "फेविकॉल से मुंह नहीं चिपकता।" आन्या ने उसकी ओर निगाहें घुमाते हुए जवाब दिया। उसका जवाब सुनकर अन्वय ने उसे गुस्से से घूरते हुए कहा, "देखा, फिर हो गई ना तुम्हारी बकवास शुरू, काम की बात तो तुम्हारे मुंह से निकलती नहीं है, बकवास जितनी मर्जी करवा लो।"

    "मैं नहीं आई थी आपसे बात करने, आप आए थे यहां, मैं तो खामोश ही खड़ी थी।" आन्या ने तुनकते हुए जवाब दिया और बदले में उसे घूरने लगी। अन्वय भी उसे घूरते हुए बोला, "तुम्हारा दिमाग ठीक तो है? मुझे लगता है तुम्हें डॉक्टर को दिखाने की सख्त जरूरत है।"

    "मुझे नहीं है, पर आपको जरूर है। पहले खुद से मुझे चुप रहने को कह रहे थे, जब मैं चुप हो गई तो खुद ही मुझसे बात करने आए और अब जब मैं बोल रही हूँ तो मुझ पर ऐसे भड़क रहे हैं जैसे मैंने आपकी कौन सी जायदाद ही चोरी कर ली है। वैसे तुम ना तमीज के लायक हो नहीं, इसलिए आप नहीं, तुम ही कहूंगी तुम्हें। अब जाओ यहां से, मुझे तुम्हारा सड़ा हुआ चेहरा देखकर अपना मूड खराब नहीं करना है, मुझे अकेले इस पल को जीना है।" आन्या ने उसे घूरा और सामने देखने लगी। उसकी बातें सुनकर अन्वय हैरानी से उसे देखने लगा था। उसकी बदतमीजी देखकर उसने गुस्से से कहा,

    "तुम न चुप ही अच्छी लगती हो, जब मुंह खोलती हो तो कुछ न कुछ बकवास ही निकलता है तुम्हारे मुंह से, आगे से मेरे सामने अपना मुंह मत खोलना, वरना फेविक्विक से दोनों होंठों को चिपका दूंगा, उसके बाद दोबारा कभी मुंह भी नहीं खोल पाओगी।"

    आन्या ने उसकी बात सुनकर बेफिक्री से कंधे उचकाते हुए कहा, "देते रहो धमकी, मैं नहीं डरने वाली। तुम कभी मेरे होंठों को नहीं चिपका सकते, अगर तुमने ऐसा किया तो मैं खाना भी नहीं खा पाऊंगी और भूख से मर जाऊंगी, तो उसका इल्जाम तुम्हारे सर पर आएगा, इसलिए तुम मुझे कुछ नहीं कर सकते, हाँ गुस्सा कर सकते हो, चिल्ला सकते हो, जैसे मिसेज सिन्हा करती थीं, वो तो मारती भी थीं, पर तुम मुझे नहीं मार सकते, तुम उनके तरह बुरे नहीं हो ना इसलिए।"

    अन्वय उसकी बातों में खो सा गया था। जब-जब वह मिसेज सिन्हा, मतलब अपनी माँ का जिक्र करती थी, अन्वय को एहसास होता था कि कितनी मुश्किल जिंदगी जी है उसने, फिर भी इतनी जिंदादिल है, यह हैरानी की बात थी उसके लिए।

    आन्या अपनी बात कहकर चुप हो गई और लबों पर हल्की मुस्कान सजाकर आगे बोली, "पता है मुझे रात का अंधेरा बहुत पसंद है। ऐसा लगता है जैसे मेरा कोई बहुत गहरा रिश्ता है रात के इस अंधेरे से, इन चांद-सितारों से। अलग ही सुकून मिलता है मुझे जब मैं रात के अंधेरे में इन चांद-सितारों को देखती हूँ। ये कैसे अपनी रोशनी से रात के अंधेरे को मिटा देते हैं, जैसे जुगनू होते हैं, वे अपनी रोशनी से अंधेरे को मिटाने की कोशिश करते हैं, काश ऐसा एक सितारा, ऐसा एक जुगनू मेरी जिंदगी में भी आ जाए और अपनी रोशनी से मेरी जिंदगी के सियाह अंधेरे को मिटा दे। मुझे इन अंधेरों से निकालकर एक ऐसी दुनिया में ले जाए जहाँ सिर्फ प्यार का उजाला हो, कोई नफरत, कोई दर्द न हो, सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ हों।

    जब मैं खुले आसमान में उड़ने वाले पक्षियों को देखती हूँ, तो मेरा भी दिल करता है कि खुद को इस अदृश्य पिंजरे से आज़ाद करके खुले आसमान में उड़ूँ, आकाश की ऊंचाइयों को छूँ। मैंने हमेशा से एक सुकून भरी जिंदगी चाही है, जिसकी तलाश में मैं यहां तक आ गई, पर यहां भी वही बंदिशें, वही रोक-टोक। फर्क बस इतना है, वहां मिस्टर एंड मिसेज सिन्हा मेरी जिंदगी को कंट्रोल करते थे, मुझे अपने हिसाब से चलने पर मजबूर करते थे, यहां तुम मुझे अपने बनाए नियमों के दायरों में बांधना चाहते हो।

    मैं खुलकर हंसना चाहती हूँ, छोटी-छोटी बात पर मुस्कुराना चाहती हूँ, दुखी होने पर रोना चाहती हूँ, अपनी बकबक पर खिलखिलाना चाहती हूँ, अपने दिल की बातों को, दर्द को किसी अपने से बांटना चाहती हूँ। अपने हिसाब से, अपनी शर्तों पर अपनी जिंदगी जीना चाहती हूँ। मुझे यह रोक-टोक जरा भी नहीं पसंद। सब मुझे समझाते हैं, मुझ पर हुक्म चलाते हैं, 'आन्या यह नहीं करना', 'आन्या अगर ज्यादा मुंह चलाया तो मुंह जला दूंगी तेरा', 'आन्या यहां नहीं बैठना', 'आन्या ऐसे नहीं रहना', 'आन्या तू वही करेगी जो मैं कहूंगी', 'आन्या यहां नहीं जाना', 'उससे बात नहीं करनी', 'इसके साथ ही रहना है'...

    मेरी जिंदगी उनके हाथ की कठपुतली बन गई थी, उनके इशारों पर चलते-चलते मैं थक गई हूँ, तुम भी मुझे अपने इशारों पर चलाना चाहते हो, तुम कहते हो अगर बोलूंगी तो मुंह चिपका दोगे मेरे, चार्ज लोगे मुझसे, 'यह मत छुओ', 'यह मत करो'... मुझे ऐसी जिंदगी नहीं जीनी है। अगर तुम ऐसे करोगे तो मैं यहां से भी चली जाऊंगी। मैं किसी को अपनी वजह से परेशान नहीं करना चाहती, इसलिए तुम्हारे भैया से बात करने गई थी। यहां आई तो चीजें गंदी देखी तो साफ कर दी। तुमने एक अनजान होते हुए मेरे लिए इतना किया तो मैंने भी तुम्हारी थोड़ी मदद करने के लिए तुम्हारे कपड़ों को धो दिया, पर बदले में तुमने मुझ पर इतना गुस्सा किया।

    मुझे तुम्हारे चिल्लाने का जरा भी बुरा नहीं लगा, पर मुझे यह अच्छा नहीं लगा कि तुमने मुझे तुम्हारी हर चीज से दूर रहने को कहा। मैं कोई चोर नहीं हूँ जो तुम्हारी चीजों को चुरा लूंगी। अगर हम साथ में एक घर में रह रहे हैं तो उसके कामों की जिम्मेदारियों को भी दोनों को आपस में बांटना चाहिए न? तुम सब करो और मैं बस देखती रहूँ, यह नहीं होगा मुझसे। अगर तुम्हें मेरा यहां रहना नहीं पसंद तो मैं कल सुबह ही यहां से चली जाऊंगी। तुम अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना, कोई तुम्हारी जिंदगी में दखल नहीं देगा। तुम्हारे शर्तों के हिसाब से नहीं चल सकती मैं, अगर मेरा मन करेगा तो मैं बोलूंगी, यहां रहूंगी तो काम भी करूंगी, मुफ्त की रोटियां नहीं तोड़नी मुझे। वरना कल को तुम भी मुझे बोझ समझकर किसी के हाथ बेच दोगे, जैसे मिसेज सिन्हा कर रही थीं। मैं कल ही यहां से चली जाऊंगी, तुम पर और बोझ नहीं बनूंगी मैं।"

    आन्या की आँखों में नमी तैर गई थी, पर उसने अपने आँसुओं को अपने अंदर ही जप्त कर लिया, जैसे सालों से करती आ रही थी और अंदर जाकर अपनी जगह पर लेट गई। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, बेचैनी महसूस हो रही थी, तो उसने अपना बैग खोला और एक डायरी निकालकर और पेंसिल लेकर स्केच करने लगी।

    अन्वय बाहर ही खड़ा उसकी बातों के बारे में सोचता रहा। उसके कानों में आन्या की आवाजें, उसकी कही बातें गूंज रही थीं। कहीं न कहीं अन्वय को अब एहसास हो रहा था कि अनजाने में उसने भी उसे दुःख पहुँचाया है, उसके साथ वही सुलूक कर रहा है जो उसके घर में उसके साथ होता था, जिसके कारण वह अपने घर से भागकर आई थी।

    वह वहाँ खड़े-खड़े यही सोचता रहा। लगभग चार घंटे बीत गए, उसके बाद वह अंदर गया तो आन्या सो गई थी। वह पेट के बल लेटी हुई थी, तकिये पर चेहरा लुढ़का हुआ था, सीधे हाथ की उंगलियों में पेंसिल फंसी हुई थी और हाथ के पास ही एक डायरी खुली पड़ी थी।

    अन्वय ने आगे बढ़कर डायरी पर नज़र डाली तो उस पर जंगल का स्केच बना हुआ था। पेड़ के पीछे से बाहर आई वह काली परछाई, उसकी डरावनी आँखें और बाहर आते दांत। आन्या ने उसी लम्हे को कागज़ पर उतारा था जब जंगल में अचानक ही वह वैम्पायर उसके सामने आ गया था और वह डरकर बेहोश हो गई थी। उस स्केच को देखकर अन्वय की आँखें गहरी हो गईं, उसने आन्या को देखा जो हर बात से बेखबर सुकून से सो रही थी।

    अन्वय ने बैठते हुए उसके माथे पर अपने अंगूठे को रखकर अपनी आँखें बंद कर लीं। इसके साथ ही वह वापस उसी जंगल में चला गया, उसी झील के पास जहाँ उस रोज़ आन्या नहा रही थी। आन्या शायद सपने में वही देख रही थी। कुछ देर बाद अन्वय ने अपना हाथ पीछे हटा लिया और अचरज से आन्या को देखा, इस बार उन नीली आँखों को देखकर वह डरी नहीं थी, बड़े प्यार से उसे निहार रही थी, यही देखकर अन्वय ने अपनी आँखें खोल दी थीं। वह हैरान-परेशान सा अपने सामने लेटी उस लड़की को देखने लगा जो उसकी परेशानी की वजह थी और इस वक्त सुकून की नींद में सो रही थी।

    अन्वय ने कुछ सोचकर वह डायरी उठा ली और शुरू से देखने लगा। डायरी में बहुत से स्केच थे, ऐसे ही अजीब-गरीब स्केच। कहीं एक लड़की अकेली खड़ी थी तो कभी एक लड़के के साथ जंगल में थी। कभी उससे लड़ते हुए तो कभी वे दोनों एक-दूसरे की आँखों में खोए हुए थे, कभी झगड़ रहे थे तो कभी बात कर रहे थे, बहुत सी तस्वीरें बनी थीं, अन्वय उन्हें गौर से देखने लगा, उन्हें देखते हुए उसे ऐसा लग रहा था जैसे उन तस्वीरों में उसने पहले कहीं देखा है या इन लम्हों को उसने जिया हुआ है पहले कभी, यह हुआ है। अन्वय अब और भी ज्यादा परेशान हो गया। उसने डायरी वापस वैसे ही रखी और वापस बालकनी में चला गया, उसने अपनी आँखें बंद कर ली और पल में वहाँ से गायब हो गया।

    कुछ ही पल बाद वह उसी जंगल में था जिसको आन्या ने ड्रा किया था, उसी झरने के पास बैठा वह आन्या के बारे में सोचने लगा, एक जोड़ी आँखें थी जो उसी पर टिकी हुई थीं। अन्वय की आँखों के सामने वह लम्हा घूम गया जब आन्या उसे देखकर डरकर बेहोश हो गई थी और वह उसे अपनी बाहों में उठाकर उसके घर छोड़ आया था। उसे अच्छे से याद था उसने आन्या की यादों से उस पल को मिटाया था जब वह उसके सामने आया था, पर आन्या कुछ नहीं भूली थी, उसे तब तक की सारी बात याद थी, उसने हर पल को अपनी डायरी में स्केच के रूप में उतार दिया था। उसका जंगल में पहुँचना, परछाई से भागते हुए दलदल में गिरना, एक अदृश्य शख्स का उसे बाहर निकालना, झरने में नहाना, उसके बाद उस परछाई का सामने आना। कुछ भी तो नहीं भूली थी वह।

    अन्वय हैरान था। उसने अपने बालों में हाथ फेरते हुए खुद से ही कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने उसकी मेमोरी को इरेज़ किया था, फिर उसे सब याद कैसे है? उन स्केचेस को देखकर मुझे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे मैंने वह सब पहले भी देखा है, उन लम्हों का हिस्सा रहा हूँ मैं भी।

    यह लड़की इतनी रहस्यमयी क्यों है? पहली मुलाकात में ही उसे देखकर दिल जोरों से धड़क उठा, जैसे पहले से जानता हो, उसकी करीबी में वह सुकून था, जैसे लंबे वक्त से इसी सुकून की तलाश हो उसे। बिछड़कर फिर से एक-दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए, साथ नहीं रहना चाहता उसके, पर तकदीर ने ऐसा खेल खेला है, चाहकर भी उससे दूर नहीं जा पा रहा। उसका दर्द अपना सा लगता है, उसकी खामोशी अजीब से सूनेपन का एहसास करवाती है। हो क्या रहा है मेरे साथ? वह एक आम इंसान है, उसके लिए यह भावनाएँ ठीक नहीं हैं, तुझे उससे दूर रहना ही होगा। कुछ भी करके जल्दी से जल्दी उसे खुद से दूर करना ही होगा। ऐसा न हो तेरी वजह से उसकी जान खतरे में पड़ जाए।"

    अन्वय खुद से ही बातें करता रहा और वह साया उसकी हर बात को सुनता रहा। अन्वय कुछ दो घंटे बाद वहाँ से वापस चला गया, उसके साथ ही वह साया भी गायब हो गया।

  • 12. Until you are mine - Chapter 12

    Words: 2352

    Estimated Reading Time: 15 min

    अन्वय घर पहुँचा। जैसे ही उसने गेट से अंदर कदम रखा, उसकी नज़रें आन्या पर पड़ीं। आन्या उठ चुकी थी। वह बेड के पास खड़ी, अपने कल धोए कपड़े फोल्ड कर रही थी। अन्वय के कपड़े वहाँ नहीं थे; वह समझ गया कि आन्या ने उसके कपड़े नहीं छुए थे।


    आन्या ने नज़रें उठाकर उसे देखा तक नहीं और कपड़े बैग में रख लिए। उसने जो सामान निकाला था, वह भी अंदर रख लिया। बैग बंद करने के बाद उसने अपना पिट्ठू बैग पीछे टाँगा और दूसरे बैग के हैंडल को पकड़कर बाहर जाने लगी। अन्वय गेट के पास खड़ा, खामोशी से उसे देख रहा था।


    आन्या उसके साइड से निकलने लगी। अन्वय खिसककर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसे घूरते हुए बोला, "कहाँ जा रही हो?"


    "ऐसी जगह जहाँ कोई मुझ पर अपना हुक्म ना चलाए, जहाँ आज़ादी हो मुझे अपने मन से हँसने की, बोलने की।" आन्या ने बिना उसे देखे ही जवाब दिया और दूसरी तरफ से जाने लगी। अन्वय एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, "और ऐसी जगह कहाँ है जहाँ तुम अपने मर्ज़ी से जो चाहो कर सको, कोई तुम्हें कुछ न कहे?"


    "मुझे नहीं पता, पर मैं अब किसी के साथ नहीं रहूँगी, अकेली रहूँगी, अपने शर्तों पर अपनी ज़िंदगी जियूँगी।" आन्या ने अब उसकी निगाहों से निगाहें मिलाते हुए जवाब दिया। अन्वय कुछ पल खामोशी से उसकी आँखों में झाँकता रहा, फिर उसके हाथ से बैग लेते हुए बोला, "तुम यहां से कहीं नहीं जा सकती।"


    "क्यों नहीं जा सकती मैं? आप मुझे कोई खरीदकर नहीं लाए हैं जो मैं आपके इशारों पर नाचूँ।" आन्या ने तुनकते हुए, गुस्से से कहा। उसकी बात सुनकर अन्वय ने उसकी निगाहों में गहराई से देखते हुए कहा, "मैंने तुम्हें नाचने कहा भी नहीं है। तुम मेरे साथ आई थी तो मेरी ज़िम्मेदारी है तुम्हारी सुरक्षा का ध्यान रखना, इसलिए जब तक तुम्हें कोई जॉब नहीं मिल जाती और तुम्हारे रहने का कोई दूसरा ढंग का इंतज़ाम नहीं हो जाता, तुम यहां से कहीं नहीं जा सकती और बेहतर होगा अगर तुम दोबारा मेरे सामने ये खरीदने-बेचने की बात न ही करो, क्योंकि मैं कोई दलाल नहीं हूँ जो लड़कियों को बेचूँ या खरीदूँ और मुझे ये पसंद नहीं कि तुम मुझे उन घटिया लोगों में शामिल करो।"


    "देखा, बस इसलिए नहीं रहना मुझे तुम्हारे साथ। तुम्हारे लिए बस तुम क्या चाहते हो, तुम्हें क्या अच्छा लगता है, यही ज़रूरी है, मेरी इच्छाओं से तुम्हें भी कोई फर्क नहीं पड़ता, जैसे वहाँ किसी को नहीं पड़ता था।" आन्या ने चिढ़ते हुए, उसे उंगली दिखाते हुए कहा। अन्वय उसे गुस्से से घूरने लगा।


    आन्या ने भी उसे घूरते हुए आगे कहा, "और ये तुम्हारी काली-काली बड़ी-बड़ी डरावनी आँखें, जिन्हें दिखाकर तुम हमेशा मुझे डराने की कोशिश करते हो, पर मैं डरूंगी नहीं, मुझे जो कहना है मैं वो कहकर ही रहूँगी। तुम एक नंबर के सेल्फिश, अकडू और घमंडी इंसान हो, हमेशा सड़ी हुई शक्ल बनाकर घूमते रहते हो, न खुद कुछ कहते हो न मुझे बोलने देते हो, पर मैं तुमसे नहीं डरती, मैं च...." आन्या नॉन-स्टॉप बोले जा रही थी कि अचानक ही अन्वय ने उसके लबों पर अपनी उंगली रखकर उन्हें खामोश कर दिया। आन्या अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपकाते हुए उसकी गहरी काली आँखों में देखने लगी; एक बार फिर उसका दिल ज़ोरों से धड़क उठा था।


    अन्वय ने उसे घूरते हुए कहा, "कौआ खाती हो क्या? क्या हो क्या? नॉन-स्टॉप बोलती ही जाती हो। इतना अत्याचार मत किया करो अपने मुंह पर, कभी थोड़ा आराम भी दे दिया करो और कभी दूसरों को भी बोलने का मौका दे दिया करो। तुम्हारी बकवास से ज़्यादा ज़रूरी भी कोई बात हो सकती है जो सामने वाला कहना चाहता हो।"


    अब अन्वय बोले जा रहा था और आन्या पलकें फड़फड़ाते हुए उसे देखे जा रही थी। अन्वय ने उसकी पलकों को घूरते हुए कहा, "ये सही है तुम्हारा, या तो मुंह चलेगा नहीं तो तुम्हारी पलकें फड़फड़ाएँगी। बंद करो अपनी पलकों को झपकना, मुझे इरिटेशन हो रही है इनसे।"


    बेचारी आन्या ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी कर लीं ताकि पलकें न फड़फड़ाएँ और आँखें बड़ी-बड़ी करके घबराई हुई सी उसे देखने लगी। अब तो और भी ज़्यादा प्यारी लग रही थी; अन्वय उसकी मासूमियत में खोने लगा और भूल ही गया कि वह आगे क्या कहने वाला था, पर उसने खुद जल्दी ही संभाल लिया और उसके चेहरे पर से नज़रें हटाते हुए कहा, "अब तुम तब तक कुछ नहीं कहोगी जब तक मैं न कहूँ और न ही अपनी पलकों को फड़फड़ाओगी। Am I clear?"


    आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया, वैसे ही बड़ी-बड़ी आँखें करके उसे देखती रही। अन्वय को एक बार फिर गुस्से ने घेर लिया। उसने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें बात सुनाई नहीं देती क्या जो कभी कोई जवाब नहीं देती, कुछ पूछा है मैंने, मेरी बात समझ आई या नहीं, जवाब दो।"


    आन्या ने अब उसके हाथ की तरफ़ नज़रें घुमाईं जो अब भी उसके मुंह पर था। अन्वय ने तुरंत ही उसके मुंह पर से अपनी उंगली हटाते हुए कहा, "मुंह बंद था तो पलकों को झपक कर भी बता सकती थी कि समझ गई हो मेरी बात।"


    आन्या उससे दो कदम पीछे हट गई; बेचारी की तो साँसें अटकी हुई थीं। वह गहरी-गहरी साँसें लेने लगी। तभी उसके कानों में अन्वय की आवाज़ पड़ी और वह खीझते हुए बोली, "तुमने ही पलकें झपकने को मना किया था तो मैं क्या करती?"


    "मैंने तो बोलने के लिए भी मना किया था, कितनी ही बार कर चुका हूँ, पर कभी वो तो नहीं मानती।" अन्वय ने व्यंग्य से उसे घूरते हुए कहा। आन्या ने मुंह बनाकर अपना चेहरा घुमा लिया। अन्वय कुछ पल उसे घूरता रहा, फिर उसने कहना शुरू किया, "तुम यहां से कहीं नहीं जाओगी, तुम पर अब कोई रोक-टोक नहीं लगाऊँगा, जैसे चाहो वैसे रह सकती हो तुम यहां, तुम्हें अपनी मर्ज़ी से सब करने की आज़ादी है, बस अपना मुंह हो सके तो बंद रखना, मुझे डिस्टर्बेंस पसंद नहीं है।"


    उसके इतना कहते ही आन्या की घूरती निगाहें उसके तरफ़ घूम गईं। अन्वय चिढ़कर बोला, "Come on, सारे एडजस्टमेंट मैं ही तो नहीं करूँगा, थोड़ा तुम्हें भी कॉपरेट करना होगा। हम दोनों अगर यहां रहेंगे तो एक-दूसरे के लिए थोड़ा एडजस्ट करना होगा, दोनों को ही।"


    आन्या ने अकड़ते हुए नज़रें घुमा लीं। अन्वय ने गुस्से से अपने जबड़े भींच लिए। तभी उसके कानों में आन्या की आवाज़ पड़ी, "ठीक है, मैं तुम्हें अपनी बकबक से परेशान नहीं करूँगी, यहां से जाऊँगी भी नहीं, पर उसके लिए तुम्हें मेरी कुछ शर्तों को मानना पड़ेगा।"


    उसकी बात सुनकर अन्वय उसे तीखी नज़रों से घूरने लगा। आन्या ने अपना बैग पकड़ते हुए कहा, "ठीक है, तुम्हें नहीं माननी तो मैं चली जाती हूँ यहां से। क्या होगा बाहर? सड़कों पर अकेली भटकूंगी, कोई राह चलता आवारा अगर मिल गया तो वो मेरा फायदा उठाने की कोशिश करेगा, वो क्या है न, मैं एक लड़की हूँ, जवान हूँ, खूबसूरत भी हूँ तो मेरा यूँ अकेले बाहर रहना सेफ नहीं है। ये दुनिया बहुत ज़ालिम है, अकेली लड़की पर सबकी गिद्ध की नज़रें गड़ी रहती हैं कि मौका मिले और वो उसका शिकार कर ले। पर कोई बात नहीं, मुझसे फर्क ही किसे पड़ता है? क्या होगा अगर किसी ने मेरे साथ कुछ गलत कर भी लिया तो? कोई मुझे बचाने थोड़े ना आएगा, मैं तो सबके लिए फालतू हूँ, मर भी जाऊँगी तो भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"


    आन्या ने बिल्कुल बेचारों जैसी शक्ल बनाई, जैसे जाने कितनी ही दुखी हो। उसने अन्वय की कही बातें बड़ी ही चालाकी से उस पर ही दे मारीं और अन्वय अपने हाथ बाँधे उसकी नौटंकी देख रहा था। उसने मन ही मन कहा, "To good, क्या कमाल की एक्टिंग करती है ये लड़की। मासूमियत तो देखो इसकी, ऐसा लगता है जैसे कुछ जानती ही नहीं है और चालकियाँ तो उसके रगों में खून के तरह बहती हैं। मेरी ही कही बातें मुझे ही सुनाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रही है...


    पर अभी तेरे पास इस बेवकूफ़ लड़की की बात मानने के अलावा कोई और चारा है भी नहीं। एक नंबर की पागल और सरफ़िरी लड़की है, जैसे तुझ पर विश्वास करके तेरे साथ यहां तक आ गई, पता चले बाहर गई तो किसी और के साथ चल पड़े। अक्ल तो इसमें ज़रा भी नहीं है, इंसानों को पहचानना भी नहीं आता, जो दो मीठे बोल ले उसी के पीछे चल देगी। और बाहर लोग इसके जैसे सीधे नहीं हैं, इतनी खूबसूरत है कि कोई भी इसका फायदा उठाने की कोशिश करने से पीछे नहीं हटेगा। तू इसे उनका शिकार नहीं बनने दे सकता। जैसी भी है, तुझ पर भरोसा करती है, पहली नज़र में उसने तेरे दिल में जगह बनाई है, भले ही उसे प्यार नहीं कर सकता, उसके साथ नहीं रह सकता, पर उसकी सेफ्टी का ध्यान तो रख ही सकता है।"


    अन्वय ने सारी सिचुएशन के बारे में गहराई से सोचा। आन्या अब भी तिरछी नज़रों से उसे ही देख रही थी, अंदर ही अंदर डर भी रही थी कि अगर कहीं अन्वय ने उसकी बात नहीं मानी, उसे जाने दिया तो क्या करेगी? कहाँ जाएगी? पर अपना डर उसने चेहरे पर ज़ाहिर नहीं होने दिया। अन्वय ने सब सोचने के बाद जैसे ही उसके तरफ़ निगाहें घुमाईं, आन्या ने हड़बड़ाहट में उस पर से अपनी नज़रें हटा ली और दूसरी तरफ़ देखने लगी। उसकी हरकत पर ना चाहते हुए भी अन्वय के लबों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई जिसे उसने बड़ी आसानी से छुपा लिया और गंभीर चेहरा बनाते हुए बोला, "बोलो क्या शर्त है तुम्हारी।"


    उसकी बात सुनकर आन्या अंदर ही अंदर खुशी से झूम उठी कि उसका नाटक काम कर गया। खुद को ही शाबाशी देने लगी कि कितनी अच्छी एक्टिंग करती है कि इस सख्त दिल इंसान को भी अपनी बातों में फँसाकर अपनी बात मनवा ली उसने, पर उसने भी गंभीर चेहरा बनाए रखा, खुशी को ज़ाहिर न करते हुए अकड़ते हुए बोली, "मैं घर का काम करूँगी, तुम्हारा काम करूँगी, पर तुम मुझे रोकोगे नहीं।"


    "गलत। हम दोनों यहां रहेंगे तो घर का काम ऑल्टरनेट डे पर दोनों ही करेंगे, पर अपना-अपना काम खुद करना होगा, दूसरा किसी के पर्सनल काम को छुएगा भी नहीं। तुम मेरी किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाओगी। आधा बेड तुम्हारा होगा और आधी अलमारी तुम्हारी होगी, तुम वहाँ जो मर्ज़ी करो, पर मेरे हिस्से में आने की कोशिश मत करना। मेरे कामों में दखलअंदाज़ी मुझे बिल्कुल नहीं पसंद, तो इस बात का तुम्हें ध्यान रखना होगा। तुम अपने लिए खाना बनाओगी और मैं अपने लिए, हम रूममेट्स की तरह सिर्फ़ रूम और यहां की चीज़ों को शेयर करेंगे, दूसरे की ज़िंदगी में घुसने की कोशिश नहीं करेंगे।"


    अन्वय आगे कुछ कहता उससे पहले ही आन्या बोल पड़ी, "ये गलत है, मेरी शर्त मानी जानी थी, तुम तो अपनी मनमानी चलाए जा रहे हो।"


    "ठीक है, एक काम करते हैं, तुम जो चाहती हो उसे एक पेपर पर लिखो और मैं जो चाहता हूँ उसकी लिस्ट बनाता हूँ, उसके बाद फ़ाइनल डिसीज़न लिया जाएगा।"


    अन्वय ने रास्ता सुझाया तो आन्या ने तुरंत हामी भर दी। दोनों पेपर लेकर बैठ गए। कुछ ही देर में वे पूरी लिस्ट बनाकर वापस एक-दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए। उन्होंने लिस्ट एक्सचेंज की और पढ़ने लगे। पहला पॉइंट पढ़ते ही आन्या हैरानी से बोली,


    "दो घंटे तुम बाथरूम में क्या करते हो? अगर मुझे तब वॉशरूम जाना होगा तो मैं दो घंटे तुम्हारा इंतज़ार कैसे करूँगी? और बाथरूम में दो घंटे कौन लगाता है? मैं तो लड़की हूँ, फिर भी मेरे लिए आधा घंटा more than enough है और तुम्हें दो घंटे चाहिए? अंदर सोते तो नहीं हो? कहीं तुम इंसान की जगह कोई और क्रिएचर तो नहीं हो, जिसे पानी चाहिए होता है इसलिए तुम बाथरूम को ही अपना घर समझ लेते हो?"


    "बकवास मत करो, मुझे फ़्रेश होने, नहाने में और कपड़े वगैरह धोने में इतना टाइम लगता है।" अन्वय ने उसकी बकवास बात सुनकर उसे डाँटते हुए कहा। उसकी बात सुनकर अब आन्या अजीब नज़रों से उसे घूरते हुए देखने लगी; अन्वय को अजीब फ़ील होने लगा। उसने चिढ़कर कहा, "अब ये मुझे स्कैन क्यों कर रही हो?"


    आन्या ने उसे देखकर सोचते हुए कहा, "अब मैं समझी तुम्हारी इतनी साफ़ स्किन का यही राज़ है, तुम घंटों तक बाथरूम में बैठे खुद को साबुन से रगड़ते रहते होगे, तभी दूध जैसे गोरे हो।"


    उसकी बात सुनकर पहले तो अन्वय हैरान रह गया, फिर उसने उसे घूरते हुए कहा, "मैं बाथरूम में कुछ भी करूँ, उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए। सुबह 6-8 बाथरूम मेरा है, अगर तुम्हें इस्तेमाल करना हो तो या तो इससे पहले करना होगा या फिर मेरे निकलने के बाद।"


    आन्या ने मुंह बनाकर उसे देखा, फिर झट से बोली, "ठीक है, एक बात तुम्हारी मानी गई तो अगली बार मेरी मानी जाएगी। मैं बेड के राइट साइड पर सोऊँगी और मुझे सोने के लिए लाइट की ज़रूरत होती है, अंधेरे में मुझे नींद नहीं आती, इसलिए रात को लाइट्स ऑन रहेंगी और अलमारी का राइट पोर्शन भी मेरा होगा, तुम गलती से भी मेरे तरफ़ के अलमारी को हाथ नहीं लगाओगे।"


    "मुझे कोई शौक भी नहीं है तुम्हारी चीज़ों को देखने या छूने का। तुम्हें राइट साइड चाहिए तो ठीक है, रख लो, पर रात को लाइट्स ऑफ रहेंगी, क्योंकि मुझे रोशनी में नींद नहीं आती, मुझे सोने के लिए आम इंसानों की तरह अंधेरे की ज़रूरत होती है।"


    "नहीं, मुझे अंधेरे में डर लगता है, मैं लाइट्स ऑन करके ही सोऊँगी।" आन्या ने इनकार करते हुए कहा। अन्वय ने उसकी बात सुनकर तिरछी नज़रों से उसे देखते हुए कहा, "कल रात को कोई कह रहा था कि उसे अंधेरा बहुत पसंद है और अब किसी को अंधेरे से डर लगता है।"


    "हाँ, तो मैंने कहा था कि मुझे रात के अंधेरे में चांद-तारों को देखना पसंद है, ये तो नहीं कहा था कि मुझे अंधेरे से प्यार ही है। इंसान हूँ, मुझे अंधेरे से डर लगता है बचपन से, नींद नहीं आती मुझे अंधेरे में और मुझे उल्लुओं की तरह रात-रात भर जागने का कोई शौक नहीं है, इसलिए लाइट्स ऑन रहेंगी रात को।" आन्या ने तुरंत ही दलील पेश कर दी और साथ में अपना फैसला भी सुना दिया।


    क्रमशः...

  • 13. Until you are mine - Chapter 13

    Words: 2001

    Estimated Reading Time: 13 min

    हाँ, तो मैंने कहा था कि मुझे रात के अंधेरे में चाँद-तारों को देखना पसंद है, यह तो नहीं कहा था कि मुझे अंधेरे से प्यार ही है। इंसान हूँ, मुझे अंधेरे से डर लगता है बचपन से, नींद नहीं आती मुझे अंधेरे में और मुझे उल्लुओं की तरह रात-रात भर जागने का कोई शौक नहीं है, इसलिए लाइट्स ऑन रहेंगी रात को, एक बात मैंने तुम्हारी मानी, दूसरी तुम मेरी मानो।" आन्या ने तुरंत ही दलील पेश कर दी और साथ में अपना फैसला भी सुना दिया। अन्वय ने हामी भर दी और आगे बोला, "मैं अपना खाना खुद बनाऊँगा और तुम अपना खुद बनाओगी।"

    "नहीं, ऐसे डबल गैस लगेगा। एक दिन तुम बनाना, एक दिन मैं बना दूँगी।" आन्या ने तुरंत ही बात बदल दी और अन्वय कुछ कहता, उससे पहले ही आगे बोल पड़ी, "तुम वेजिटेरियन हो न? नॉनवेज तो नहीं खाते?"

    "खाता हूँ, क्यों?" अन्वय ने उसे असमंजस में देखा क्योंकि आन्या का रिएक्शन उसे समझ नहीं आया था। उसकी बात सुनकर आन्या ने मुंह बनाते हुए कहा, "तुम नॉनवेज खाते हो तो जब खाना हो बाहर जाकर खाना, यहाँ नॉनवेज नहीं आएगा, मुझे नॉनवेज देखकर ही उल्टी आने लगती है।"

    अन्वय उसे अजीब नज़रों से घूरने लगा। तो आन्या ने चिढ़कर कहा, "क्या है? अपनी-अपनी पसंद है, मुझसे नहीं देखा जाता वो सब, मुझे उल्टी आती है तो मैं क्या कर सकती हूँ?"

    "तुम इंसान ही हो न? मतलब अंधेरे में तुम्हें नींद नहीं आती, नॉनवेज देखकर तुम्हें उल्टी आती है। लोग खाते नहीं हैं यह तो समझ आता है, पर देखकर किसी को उल्टी कैसे आ सकती है?" अन्वय ने उसे अजीब नज़रों से देखते हुए सवाल किया। तो आन्या ने अकड़ते हुए कहा, "जैसे मुझे आती है, वैसे ही आ सकती है, अब इस बात पर बहस मत करो मुझसे। मैंने कह दिया नॉनवेज खाने का मन हो तो बाहर जाकर खाना, यहाँ नहीं आएगा नॉनवेज।"

    अन्वय ने बेमन से हामी भर दी और आगे बोला, "मुझे शोर-शराबा पसंद नहीं है तो ध्यान रहे तुम्हारा मुँह जो टेप रिकॉर्डर की तरह नॉन-स्टॉप बजता रहता है उसे अपने कंट्रोल में रखना। वरना फिर मेरा गुस्सा झेलने के लिए तैयार रहना।"

    "ठीक है, मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है, मैं खुद से ही बात कर लूँगी, तुम्हारी ज़रूरत नहीं है मुझे।" आन्या ने मुँह बनाकर उसे देखा। अन्वय उसे गुस्से से घूरते हुए बोला, "टीवी मेरा है तो तुम उसे छू नहीं सकती, हाँ अगर मैं कुछ देख रहा हूँ और तुम्हें भी वह देखना हो तो देख सकती हो।"

    "ऐसे थोड़े न होता है। यहाँ तो सब चीज़ तुम्हारी है, इसका मतलब क्या है मैं किसी चीज़ को हाथ ही नहीं लगाऊँगी? ऐसा नहीं होगा। मिसेज़ सिन्हा भी मुझे टीवी नहीं देखने देती थीं, कहती थीं बिजली का बिल का मेरा बाप भरेगा, मैंने कभी नहीं कहा, पर बिल तो मेरा ही बाप भरता था, फिर भी सारा दिन वही नाटक देखती रहती थीं, मुझे आस-पास भटकने भी नहीं देती थीं। मुझे टीवी देखना बहुत पसंद है, मैं छुप-छुपकर टीवी देखती थी और अब जब मुझे हक से टीवी देखने का मौका मिला है तो तुम भी मुझे टीवी छूने से मना कर रहे हो। यह गलत बात है।" आन्या ने नाराज़गी से मुँह फुलाते हुए उसे देखा।

    उसकी बात सुनकर अन्वय ने ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा, "ठीक है, मुझे कभी-कभी ही टीवी देखना होता है, मैच वगैरह के लिए। बस तब मुझे देखने देना, उसके अलावा कम वॉल्यूम पर तुम्हें जो करना हो करना।"

    उसकी बात सुनकर आन्या खुश हो गई। कुछ पॉइंट्स और डिस्कस हुए, फिर फ़ाइनली सब फ़िक्स हो गया। तो अन्वय ने उसे देखकर कहा, "अब मेरा टाइम है तो मैं नहाने जा रहा हूँ, अब तुम्हें काम करना ही है तो जाकर खाना बनाओ, आज मुझे कॉलेज जाना है काम से।"

    उसने उसे ऑर्डर दे दिया और कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। आन्या मुँह खोले उसे हैरानी से देखती ही रह गई, फिर वह किचन में गई और खाली बर्तन देखे, तब उसे कुछ याद आया, वह किचन से बाहर आ गई और बाथरूम के पास आकर तेज आवाज़ में बोली, "मैं तुम्हें बताना भूल गई, तुम्हारा राशन खत्म हो गया, नमक और मिर्च-मसाले के अलावा कुछ भी नहीं है, वैसे एक बात, तुम यहाँ रहते कैसे थे? खाते क्या थे? यहाँ तो कुछ भी नहीं है। उबला हुआ खाना खाते थे क्या? या चाय पर ही जिंदा रहते थे, चाय पत्ती ही पड़ी है बस।"

    उसकी बात सुनकर अंदर से अन्वय ने हल्के गुस्से से कहा, "तुम्हें कहीं भी चैन नहीं है न? कुछ देर चुप नहीं रह सकती? मैं बाथरूम में हूँ, तब भी तुम अपनी बकवास करने से बाज़ नहीं आ रही हो।"

    "मैं कोई बकवास नहीं कर रही हूँ, बता रही हूँ घर में बनाने के लिए कुछ भी नहीं है, अगर तुम्हारे पास पैसे और वक्त हो तो मैं सामान की लिस्ट बना देती हूँ, बाजार से ले आना।" आन्या ने एक बार फिर बाहर से कहा। तो अन्वय ने खीझते हुए कहा, "यह तुम मेरे बाहर आने के बाद भी कह सकती थी न?"

    "और अगर तुम बाहर आने के बाद खाने के लिए मेरे सर पर तांडव करने लगते तो मैं क्या करती? इसलिए मैंने पहले ही बता दिया है और एक बात, मैं अपना सामान सेट करने जा रही थी। राइट साइड वाले अलमारी में तुम्हारा जो भी सामान होगा उसे मैं वैसा का वैसा लेफ्ट साइड वाले ड्रॉवर में शिफ्ट कर दूँगी, अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम हो तो बता दो, सामान बाहर निकालकर रख देती हूँ।" आन्या ने अपनी बात कही और उसके जवाब का इंतज़ार करने लगी, वहीं अन्वय का गुस्से से खून जल रहा था कि यह लड़की दो मिनट भी चुप नहीं रह सकती। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर उसने गुस्से पर काबू करते हुए सख्ती से कहा, "मैं बाहर आकर अपना सामान खुद शिफ्ट कर लूँगा, तुम्हें मेरे सामान को छूने की ज़रूरत नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर आन्या ने मुँह बना लिया। और कुछ तो कर नहीं सकती थी तो उसने झाड़ू उठाया और जाले साफ़ करने लगी, कल तो अन्वय के सोने के वजह से नहीं कर पाई थी। उसने जाले साफ़ किए, सब चीजों को झाड़कर साफ़ किया, फिर झाड़ू लगाने लगी। जब तक अन्वय बाहर आया, आन्या रूम, बालकनी, किचन सबको क्लीन कर चुकी थी। बस पोछा लगाना रह रहा था। अन्वय टॉवल से अपने गीले बालों को पोंछता हुआ बाहर आया और बालकनी की तरफ़ बढ़ गया। उसे रूम में आन्या नहीं दिखी थी तो उसे लगा वह किचन में होगी। वह बालकनी में पहुँचा तो आन्या दोनों हाथों को फैलाए, आँखें बंद किए वहाँ खड़ी थी।

    बरसात का मौसम चल रहा था और आज मौसम भी बारिश जैसा हो रखा था, धूप छुपी हुई थी, काले बादलों ने आसमान को घेरा हुआ था, ठंडी-ठंडी सुहावनी हवाएँ चल रही थीं और आन्या उन्हीं ठंडी हवाओं को आँखें बंद किए महसूस कर रही थी। उसके लबों पर मोहिनी मुस्कान फैली हुई थी। गले का दुपट्टा नदारद था, चोटी से निकलती लटें हवाओं के वजह से उसके गालों पर झूल रही थीं। लबों पर छाई मोहिनी मुस्कान और चेहरे पर अलग ही तेज था, कशिश थी जो औरों को अपनी तरफ़ आकर्षित करे। अन्वय ने टॉवल को स्टैंड पर सुखाया और अपने कपड़े उतारने लगा।

    आहट पाकर आन्या ने आँखें खोली और पलटकर देखा। तो अन्वय को देखकर उसकी मुस्कान बड़ी ही गई, अगले ही पल उसने उसके कपड़े देखे और मुँह बनाते हुए बोली, "एक बात बताओ, तुम्हारी बाकी के खूबसूरत रंगों से कोई दुश्मनी है क्या?"

    उसका सवाल सुनकर अन्वय ने कन्फ़्यूज़ नज़रों से उसे देखा। तो आन्या ने मुँह बनाते हुए कहा, "माना कि ब्लैक में तुम बहुत हैंडसम और हॉट लगते हो, इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम बाकी के रंगों को अंडरएस्टिमेट करो, बाकी के रंगों का भी अपना ही जादू है, कभी ट्राई तो करो। तुम तो इतने हैंडसम हो कि हर कलर में कमाल ही लगोगे।"

    अन्वय ने उसकी बात पर कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया, उसके मुँह से अपनी तारीफ़ में निकले शब्द उसके कानों में मिश्री जैसे घुल गए थे तो नज़रें बड़े प्यार से आन्या को देख रही थीं। आन्या तो अपनी ही धुन में मस्त थी, उसने कपड़ों को देखते हुए आगे कहा, "वैसे मैंने तो बस तुम्हारे कपड़े धोए ही थे, तुम्हें मुझे थैंक्यू कहना चाहिए था, पर तुम तो मुझ पर गुस्से से फायर हो गए।"

    अब अन्वय की तंद्रा टूटी, होश में लौटते ही उसने आन्या पर से अपनी नज़रें हटा ली और आराम से बोला, "मुझे किसी और की याद आ गई थी इसलिए कल मैंने तुम पर गुस्सा कर दिया था जब तुमने मेरे कपड़ों को धोया था, अनइंटेंशनली मुँह से वह सब निकल गया, जानबूझकर तुम्हें हर्ट करने का कोई इरादा नहीं था मेरा।"

    "Ooo, तो मिस्टर परफेक्ट से भी गलतियाँ होती हैं, मुझे तो लगा कि तुम बस दूसरों की गलतियों को ढूंढकर उन्हें सुनाने का ही काम करते हो, पर सुनकर अच्छा लगा कि कुछ तो आम इंसानों जैसी आदत है तुममें। कम से कम गलतियाँ तो हम जैसे आम इंसानों की तरह करते हो, पर माफ़ी मांगना नहीं आता तुम्हें, चलो कोई बात नहीं, वह मैं तुम्हें सिखा दूँगी। वैसे वह लकी पर्सन जिसकी तुम्हें याद आ गई थी वह कोई लड़की थी? तुम्हारी गर्लफ्रेंड थी न? इतने हैंडसम हो तुम, मुझे पता ही था गर्लफ्रेंड तो होगी ही तुम्हारी, कहाँ है वह? तुम दोनों अब भी साथ हो? कैसी दिखती है वह? तुम्हारे टक्कर की तो है? अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड को पता चला कि तुम किसी अनजान लड़की के साथ रह रहे हो तो वह तुम्हें कुछ नहीं कहेगी?" आन्या का टेप रिकॉर्डर एक बार फिर चालू हो गया था और बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

    उसकी बकबक और बकवास सवालों से परेशान होकर अन्वय ने उसे घूरकर देखा और कपड़े लेकर अंदर चला गया। उसने जवाब नहीं दिया तो आन्या ने उसके पीछे जाते हुए सवाल किया, "अरे मिस्टर अकडू, पहले मेरे सवाल का जवाब तो दे दो। वह लड़की थी न? तुम्हारी गर्लफ्रेंड?"

    "मेरी ज़िंदगी में न कोई लड़की है न ही हो सकती है तो अपने बकवास सवालों को अपने तक ही रखो।" अन्वय ने पलटकर उसे घूरते हुए कहा, पर आन्या को कहाँ फर्क पड़ना था, वह फट से बोली, "झूठ बोल रहे हो तुम। शादीशुदा तुम लगते नहीं, बहन तुम्हारी है नहीं, इसके बाद एक गर्लफ्रेंड ही बचती है, वही अपनी बॉयफ्रेंड के कपड़े या उसकी चीजों को हाथ लगाती है। लेकिन शायद तुम मुझे बताना नहीं चाहते, it's okay, इतना बता दो, मुझसे भी ज्यादा खूबसूरत है क्या?"

    आन्या आँखें टिमटिमाते हुए उसे देखने लगी। उसकी बात सुनकर अन्वय की निगाहें उसके चेहरे पर ठहर गईं, झरने के पास नहाती आन्या का भीगा चाँद सा सुंदर चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया, उसके मुँह से अनजाने ही निकल गया, "तुमसे सुंदर तो इस कायनात में दूसरी कोई नहीं है।"

    उसके मुँह से अपने लिए ऐसे शब्दों की उम्मीद नहीं थी आन्या को, वह आँखें फाड़े हैरानी से उसे देखने लगी, तब कहीं जाकर अन्वय को एहसास हुआ कि उसने क्या किया है तो उसने बात को संभालते हुए कहा, "जो है नहीं उससे खुद को कंपेयर करोगी तो कोई भी यही कहेगा। वह लड़की ज़रूर थी, पर मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है, भाभी की बहन है जो जब भी घर आती है तो मेरी चीजों को छेड़ने लगती है।"

    "Ooo, अच्छा, एक बात बताओ, तुम्हारी भाभी की बहन मुझसे ज्यादा सुंदर है क्या?" आन्या ने बड़ी ही उत्सुकता से सवाल किया। तो एक पल को अन्वय ने उसे देखा, फिर नज़रें फेरते हुए बोला, "मुझे नहीं पता, मैंने कभी इतने गौर से देखा नहीं, शायद तुमसे सुंदर ही है।"

    उसकी बात सुनकर आन्या का मुँह छोटा सा हो गया, अन्वय अलमारी की तरफ़ बढ़ गया और उसके लबों पर इस वक्त शातिर तिरछी मुस्कान फैली हुई थी। उसने अलमारी से कपड़े निकालकर अपनी तरफ़ वाले अलमारी में रख दिए, फिर आन्या की तरफ़ मुड़कर बोला, "जाओ अपना सामान सेट कर लो। मैं खाना ऑर्डर कर लेता हूँ।"

    आन्या ने मुँह फुलाए हुए ही हामी भर दी और अपने बैग से कपड़े निकालकर जमाने लगी।

  • 14. Until you are mine - Chapter 14

    Words: 2437

    Estimated Reading Time: 15 min

    अन्वय की बात सुनकर आन्या का मुँह छोटा सा हो गया और वह अपने कपड़े अलमारी में सेट करने लगी। अन्वय ने खाना ऑर्डर किया, फिर तैयार होने लगा। बीच-बीच में वह आन्या को भी देख लेता, जो मुँह फुलाए काम कर रही थी। उसका चेहरा देखकर अनजाने ही अन्वय के लबों पर मुस्कान ठहर गई।

    वह तैयार हुआ, इतने में उसका फ़ोन बजने लगा तो वह कमरे से बाहर चला गया। कुछ देर बाद वापिस आया तो उसके हाथ में एक पैकेट था। वह उसे लेकर किचन में गया। उसने दो प्लेट में खाना निकाला और दोनों प्लेट लेकर बाहर आ गया।

    "आन्या, ये सब काम बाद में कर लेना, पहले आकर ब्रेकफ़ास्ट करो, वरना कहोगी कि मैंने तुम्हें खाना नहीं दिया, भूखा मार दिया तुम्हें।" अन्वय ने प्लेट टेबल पर रखते हुए कहा।

    आन्या का मूड खराब था। उसने मुँह फुलाते हुए कहा, "मुझे भूख नहीं है।"

    "ठीक है, मत खाओ। तुम्हारी प्लेट रखी है, अगर बाद में खाने का मन करे तो खा लेना, वरना छोड़ देना। तुम्हारा शरीर है, खाओ ना खाओ तुम्हारी मर्ज़ी है, मेरा काम था कहना, सो मैंने कह दिया।" अन्वय ने बेफ़िक्री से कहा और खाना खाने लगा। आन्या ने पहले नाराज़गी से उसे देखा, फिर वापिस अपने काम में लग गई।

    अन्वय ने ब्रेकफ़ास्ट किया और अपना बैग लेकर जाने लगा। फिर गेट के पास पहुँचकर वह आन्या की तरफ़ पलटते हुए बोला, "वैसे तो ये जगह सेफ़ है, फिर भी दरवाज़ा अंदर से बंद रखना, जब मैं आऊँ तब ही खोलना।"

    अन्वय ने उसे समझाया तो आन्या ने बेमन से हामी भर दी। अन्वय कमरे से बाहर निकल गया। आन्या ने अपने कपड़े सेट किए, फिर पोछा लगाने के बाद नहाने चली गई।

    नहाकर बाहर आई तब तक 10 बज चुके थे। पेट से अजीबोगरीब आवाज़ें आने लगी थीं, मतलब साफ़ था कि उसे अब ज़ोरों की भूख लग रही थी। उसने किचन में जाकर देखा तो उसकी प्लेट को दूसरी प्लेट से ढँककर स्लैब पर रखा हुआ था। आन्या की आँखों में चमक आ गई। उसने झट से प्लेट हटाकर देखा तो पाव भाजी था जो देखने में ही बहुत टेस्टी लग रहा था। आन्या प्लेट लेकर बाहर चली गई और बेड पर जाकर आराम से बैठ गई। फिर उसने झट से टीवी ऑन किया और सीरियल देखते हुए मज़े से खाना खाने लगी।

    कुछ काम तो था नहीं, अन्वय भी नहीं था तो आन्या क्या ही करती अकेली? उसने सामान की लिस्ट बनाकर रख दी और उसके बाद उल्टी लेटकर टीवी देखने में मग्न हो गई।

    दूसरी तरफ़ अन्वय का आज कॉलेज में पहला दिन था तो उसके वेलकम में छोटी सी पार्टी रखी गई थी। बाकी के लेक्चरर से इंट्रोडक्शन करवाया गया, उसके बाद ऑफ़िस में उसे कुछ काम था। क्लासेस कल से शुरू होनी थीं। पर आज उसे एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े बाकी काम निपटाने थे। उन्हीं सब में उसे शाम के चार बज गए। उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और घर की तरफ़ बढ़ गया। वह ज्यादातर यहीं रहता था तो उसने बाइक ली हुई थी, उसी से आज वह कॉलेज आया था।

    अन्वय कॉलेज से निकला। वह तो पार्टी से होकर आया था तो उसे भूख नहीं थी। बाइक चलाते हुए उसे आन्या का ख्याल आ गया। उसने लंच में कुछ खाया भी होगा या नहीं, लंच तो छोड़ो, उसने ब्रेकफ़ास्ट भी किया होगा या नहीं, यह सोचकर वह परेशान हो गया। आन्या की बेवकूफ़ी भरी हरकतों को देखकर उसे उस पर पूरा शक था कि अपने गुस्से के चक्कर में उसने ब्रेकफ़ास्ट भी नहीं किया होगा। मार्केट से गुज़रते हुए उसकी नज़र मार्केट में लगे छोले-भटूरे के ठेले पर चली गई तो उसने बाइक साइड में लगाई और एक प्लेट छोले-भटूरे पैक करवा लिए। एक बार फिर उसने बाइक घर की तरफ़ दौड़ा दी।

    कुछ देर बाद बाइक घर के आगे रुकी। वह अपने कमरे के बाहर पहुँचा और जैसे ही गेट नॉक करने के लिए दरवाज़े को टच किया, गेट अपने आप ही खुल गया। यह देखकर अन्वय के भाव एकदम सख्त हो गए, कुछ डर और घबराहट के मिले-जुले भाव उसके चेहरे पर नज़र आने लगे। उसने जल्दी से गेट खोलकर अंदर कदम बढ़ाया, पर वह कुछ कदम अंदर आया ही था कि उसकी नज़रें बेड पर उल्टी लेटी हुई आन्या पर पड़ीं। टीवी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी तो उसने नाख़ुशी में अपनी गर्दन हिला दी।

    आन्या टीवी देखते-देखते ही सो गई थी। अन्वय ने एक नज़र उसे देखा, फिर कुछ सोचकर किचन की तरफ़ बढ़ गया। प्लेट को धुला देख समझ गया कि आन्या ने खाना खा लिया था। उसने पैकेट वहीं रखा और बाहर आकर आन्या की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। आन्या अपने हाथों में रिमोट लिए सो रही थी।

    अन्वय ने देखा तो उसके बचपन पर उसे उस पर प्यार आने लगा। सोते हुए वह एकदम शांत थी और बहुत प्यारी लग रही थी। अन्वय ने उसके हाथ से रिमोट निकालकर टीवी बंद कर दिया। जैसे ही आन्या के कानों में आवाज़ जाना बंद हो गई, उसने नींद में हाथ चलाते हुए कहा, "मेरा टीवी चुप कैसे हो गया, मुझे और देखना है..."

    वह नींद में रिमोट ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थी और साथ में बड़बड़ाए जा रही थी। अन्वय ने उसकी बे-सर-पैर की बातें सुनीं तो अन्वय ने आन्या को घूरते हुए मन ही मन कहा, "एंटीक पीस है ये लड़की भी, नींद में भी इसे चैन नहीं है।"

    अन्वय ने परेशान होकर गहरी साँस छोड़ी, फिर उसे आवाज़ देते हुए बोला, "आन्या, उठो।"

    आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया, अपने में ही बड़बड़ाती रही। तो अन्वय ने उसे फिर से जगाना चाहा, लेकिन आन्या नहीं उठी। आखिर में अन्वय बाथरूम में गया और बाहर आकर थोड़ा सा पानी उसके ऊपर छिड़क दिया। इसके साथ ही आन्या हड़बड़ाहट में उठकर बैठते हुए बोली, "मैंने कुछ नहीं किया... मुझे मत मारना... मैंने सब काम कर दिया है..."

    आन्या की बातें सुनकर अन्वय स्तब्ध सा उसे देखता ही रह गया। वहीं आन्या की आँखें अब भी बंद थीं। उसका घबराया हुआ चेहरा देखकर अन्वय ने उसके कंधे को छूते हुए आराम से कहा, "आन्या, रिलैक्स, मैं हूँ।"

    अब जाकर आन्या के कानों में अन्वय की आवाज़ पड़ी। उसने आँखें खोली तो सामने अन्वय को देखकर उसकी जान में जान आई। उसने अपने दुपट्टे से अपने चेहरे पर आए पसीने को साफ़ करते हुए कहा, "सॉरी, वो मुझे लगा कि..."

    उसने इतना कहा ही था कि अन्वय ने उसकी बात काटकर कहा, "इट्स ओके, जाकर मुँह धोकर आओ और कुछ खा लो।"

    "पर घर में कुछ है ही नहीं, मैं खाऊँगी क्या?" आन्या ने तुरंत ही सवाल किया। तो अन्वय ने अलमारी की तरफ़ बढ़ते हुए कहा, "लाया हूँ तुम्हारे लिए कुछ, किचन में जाकर देखो और लिस्ट दे दो मुझे, मैं सामान ले आता हूँ।"

    आन्या ने तुरंत तकिये के नीचे से लिस्ट निकालकर उसे दे दी। अन्वय ने लिस्ट देखी तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने हैरानी से कहा, "ये हमारे लिए मँगवा रही हो या पूरे औरंगाबाद को खाने पर बुलाने का इरादा है तुम्हारा?"

    "अरे, ये एक महीने का राशन है, लगता है तुमने कभी ये सब नहीं किया। सच-सच बताओ, तुम घर में खाना बनाते भी थे?" आन्या ने तिरछी नज़रों से उसे देखते हुए कहा। तो अन्वय ने तुरंत ही अकड़ते हुए जवाब दिया, "हाँ, मैं नहीं बनाता था, तो क्या तुम आकर बनाती थी?"

    अन्वय ने उसे घूरते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आन्या फट से बोली, "क्या बनाते थे तुम?"

    "दाल-चावल, सब्ज़ी, मैगी वगैरह सब बनाता था मैं।" अन्वय का जवाब सुनकर आन्या ने मुँह बनाते हुए कहा, "झूठे कहिके। जाओ जाकर राशन लेकर आओ।"

    आन्या ने उसे घूरकर देखा और बाथरूम में चली गई। उसकी हरकतें हर बार अन्वय को हैरान कर देती थीं, वह अब भी हैरानी से बाथरूम के दरवाज़े को देख रहा था। कुछ देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आन्या ने बाहर कदम रखा और उसे देखकर बोली, "तुम अभी तक गए नहीं?"

    "जा ही रहा था।" अन्वय ने अलमारी से पैसे निकालकर वॉलेट में रखते हुए कहा। तो आन्या ने बड़े प्यार से कहा, "सुनो न।"

    उसके मुँह से ये शब्द सुनकर अन्वय का दिल धड़क उठा, नज़रें आन्या की तरफ़ घूम गईं। आन्या ने क्यूट सी शक्ल बनाकर आगे कहा, "मेरे लिए एक सिम ले आना, अपनी आईडी से, प्लीज़।"

    "क्यों? तुम्हारे पास फ़ोन है तो सिम भी होगी ही? और मेरी आईडी से क्यों निकलवाऊँ तुम्हारे लिए सिम?" अन्वय ने सवालिया नज़रों से उसे देखा।

    आन्या ने अब सर झुकाकर कहा, "वो मैंने सिम ट्रेन से निकलते ही तोड़कर फेंक दी थी। वरना वो मेरे नंबर से पता लगवा लेते कि मैं यहां हूँ? अगर मैंने अभी भी अपनी आईडी से सिम ली तो उन्हें मालूम चल जाएगा कि मैं यहां हूँ और वो मुझे वापस ले जाएँगे। मुझे वापस नहीं जाना।"

    अन्वय बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहा था। आन्या एकदम उदास हो गई तो उसने थोड़ा प्यार से कहा, "ठीक है, ला दूँगा, जाओ जाकर खाना खाओ।"

    वह अब गेट की तरफ़ बढ़ गया तो आन्या भी किचन में जाने लगी। वह जैसे ही किचन के एंट्रेंस पर पहुँची, पीछे से अन्वय की सख्त आवाज़ आई, "पहले दरवाज़ा बंद करो, सुबह भी समझाया था कि मेरे आने तक दरवाज़ा बंद रखना, पर तुम दरवाज़ा खोलकर आराम से सो रही थी। अपनी सेफ़्टी का ध्यान भी नहीं रखा जाता है तुमसे। आगे से अगर ऐसी लापरवाही की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, समझी तुम।"

    आन्या ने पलटकर उसे देखा तो अन्वय उसे गुस्से से घूर रहा था। आन्या समझ गई कि इस बार तो उसने काफी बड़ी गलती कर दी है और अब अपनी लापरवाही के कारण उसने अन्वय को गुस्सा दिला दिया है। उसने प्यारी सी शक्ल बनाकर कहा, "sorry मैं भूल गई थी। अब से पक्का ध्यान रखूंगी।"

    अन्वय अब भी उसको घूरकर देख रहा था तो आन्या उसके तरफ़ बढ़ गई। अन्वय बाहर निकला तो आन्या ने झट से गेट बंद कर लिया। तब जाकर अन्वय वहाँ से गया। आन्या किचन में गई और जैसे ही उसने छोले भटूरे देखे उसके लबों पर बड़ी सी स्माइल फैल गई। उसने उन्हें प्लेट में निकाला और झट से एक निवाला लेकर मुँह में डाला। फिर उसका स्वाद लेते हुए बोली, "delicious, लगता है यही सब खाकर अपने दिन काट रहे थे तुम, खैर चॉइस अच्छी है तुम्हारी। सुबह पाव भाजी भी कमाल की थी और अब ये छोले भटूरे भी जबरदस्त हैं।"

    उसने प्लेट उठाई और आकर बेड पर बैठ गई। एक बार फिर उसने टीवी चला लिया, पर इस बार उसने सोंग्स चलाए थे। उसने मज़े से छोले भटूरे खाए, फिर बर्तन धोकर आई और वॉल्यूम तेज करके गाने पर डांस करने लगी। करीब डेढ़ घंटे बाद अन्वय वापिस आया तो सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ही उसके कानों में गाने की आवाज़ पड़ी। उसने गौर से सुना तो आवाज़ उसी के कमरे से आ रही थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह गुस्से में तेज कदमों से ऊपर पहुँचा और गेट नॉक किया। पर आन्या ने सोंग बहुत तेज वॉल्यूम पर चलाया हुआ था और ऊपर से वह तो डांस करने में मग्न थी तो उसने दरवाज़े पर नॉक करने की आवाज़ सुनी ही नहीं।

    अन्वय ने तीन-चार बार आवाज़ दी, पर आन्या को सुनाई नहीं दिया। आखिर में अन्वय ने गुस्से में ज़ोर से दरवाज़ा पीटा और गुस्से से चिल्लाया, "आन्या दरवाज़ा खोलो!"

    इस वक़्त उसकी आवाज़ बेहद भयानक लग रही थी। आन्या का रोम-रोम काँप उठा, कदम तो जैसे जम ही गए थे। उसने घबराकर गेट की तरफ़ नज़रें घुमाईं और एक बार फिर अन्वय उसका नाम लेकर चिल्लाया, "आन्या मैंने कहा दरवाज़ा खोलो!"

    अन्वय की आवाज़ सुनकर बगल वाले कमरे और नीचे से भी लोग बाहर आकर उसे देखने लगे थे।

    आन्या समझ गई कि उसने सोते हुए राक्षस को जगा दिया है। उसने झट से टीवी बंद किया और भागकर जल्दी से दरवाज़ा खोल दिया। तो सामने खड़ा अन्वय उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा। आन्या ने मासूम सा चेहरा बनाकर कहा, "सॉरी।"

    अन्वय ने उस पर से नज़रें हटा ली और सामान उठाकर अंदर आ गया। आन्या भी उसके पीछे-पीछे आने लगी तो वह गुस्से से चिल्लाया, "दरवाज़ा बंद करो।"

    आन्या ने जल्दी से मुड़कर दरवाज़ा बंद कर दिया। अन्वय सब सामान किचन में रख आया। आन्या बेड के पास सर झुकाए खड़ी थी, वह जानती थी अब अन्वय उसकी क्लास लगाने वाला है। अन्वय जैसे ही उसके सामने आकर खड़ा हुआ, आन्या ने सर झुकाए हुए ही कहना शुरू कर दिया, "सॉरी, मुझे इतनी तेज वॉल्यूम पर गाने नहीं चलाने चाहिए थे, मैं जानती हूँ मेरी गलती है और तुम्हारा गुस्सा भी जायज़ है, पर मैं इंसान हूँ, गलतियाँ हो जाती हैं कभी-कभी..."

    "कभी-कभी।" अन्वय ने उसकी बात काटकर उसे घूरते हुए कहा। तो आन्या ने झट से अपनी गलती सुधारते हुए कहा, "हाँ, मतलब कभी-कभी नहीं, मुझसे बार-बार गलती हो रही है। मैं ऐसी ही हूँ, तभी तो मिसेज़ सिन्हा मुझे पनोती बोलती थीं, मैं सब काम खराब कर देती हूँ न, पर आई प्रॉमिस, अब से मैं तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूँगी, बहुत ध्यान से रहूँगी, कोई भी गलती नहीं करूँगी। गॉड प्रॉमिस।"

    उसने मासूम सा चेहरा बनाकर उसे देखा। अन्वय चाहकर भी उस पर गुस्सा नहीं कर सका और अपनी पॉकेट से सिम का पैकेट निकालकर उसके तरफ़ बढ़ाकर कहा, "तुम्हारी सिम।"

    आन्या ने उसके हाथ से पैकेट ले लिया तो अन्वय बेड पर अपनी तरफ़ जाकर लेट गया। उसने सर के पीछे हाथ लगाया और अपनी आँखें बंद कर ली, शायद वह अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। आन्या ने अपने पिट्ठू बैग से अपना फ़ोन निकाला और उसके पास आकर खड़ी हो गई। अन्वय कुछ पल आँखें बंद किए लेटा रहा, जबकि वह आन्या की खुशबू को महसूस कर पा रहा था कि वह वहीं खड़ी है। उसके बाद भी जब आन्या वहाँ से नहीं हटी तो उसने आँखें बंद किए हुए ही कहा, "अब क्या चाहिए तुम्हें मुझसे?"

    "मेरे फ़ोन में सिम डाल दो।" आन्या ने धीरे से कहा। तो अन्वय ने आँखें खोलकर उसे घूरते हुए सवाल किया, "क्यों? बकवास करने के अलावा और कुछ नहीं आता तुम्हें? यहां तक सिम डालने के लिए तुम्हें मेरी ज़रूरत है?"

    "मुझे सिम डालनी आती है, पर तुमने ली है तो तुम डालोगे तो आसान होगा, मुझे तुमसे सब पूछना पड़ेगा और अभी मेरे पास बहुत काम है करने के लिए। सब राशन सेट करना है, फिर डिनर भी बनाना है।" आन्या ने तुनकते हुए जवाब दिया। उसकी बात सुनकर अन्वय कुछ पल उसे घूरता रहा, फिर उसने उसके हाथ से फ़ोन और सिम ले लिया और ढंग से बैठते हुए काम में लग गया। आन्या भी किचन में चली गई।

    अन्वय ने सिम ऑन करके फ़ोन टेबल पर रख दिया और उठकर कपड़े लेकर चेंज करने चला गया।

  • 15. Until you are mine - Chapter 15

    Words: 2330

    Estimated Reading Time: 14 min

    आन्या ने सारा सामान सेट करने के बाद खाना बनाया। अन्वय कमरे में बैठा, कल के लेक्चर की तैयारी कर रहा था; अपने नोट्स निकाल रहा था, उन्हें देख रहा था। आन्या बाहर आई और दोनों की प्लेट टेबल पर रखने के बाद उसके तरफ़ घूमकर बोली,

    "खाना खा लो, ठंडा हो जाएगा।"

    अन्वय ने आवाज़ सुनकर नज़रें उठाकर उसे देखा, फिर वापस नज़रें नोट्स पर टिकाते हुए बोला,

    "अपना फ़ोन ले लो और उसमें मैंने अपना नंबर सेव कर दिया है। अगर कभी बहुत ज़रूरी हो तभी मुझे फ़ोन करना। फ़ालतू में अगर फ़ोन घुमाया तो नंबर ब्लॉक कर दूँगा, उसके बाद ज़रूरत पर भी मुझे कांटेक्ट नहीं कर पाओगी।"

    उसकी बात सुनकर आन्या का मुँह बन गया। उसने धीरे से कहा,

    "तुम जैसे सड़ियल इंसान को फ़ोन करना भी कौन चाहता है? बड़े आए मेरे नंबर ब्लॉक करने वाले, हुह?"

    उसने कहा तो धीरे से, पर अन्वय के कानों में उसका कहा हर शब्द साफ़-साफ़ सुनाई दिया। उसने नज़रें उठाकर उसे गुस्से से घूरा, तो आन्या भी बदले में उसे घूरते हुए उसके पास आ गई और अपना फ़ोन लेकर वापस चली गई,

    "खाना खाना हो तो आ जाओ, वरना बाद में अकेले खाते रहना, वो भी ठंडा खाना।"

    अन्वय ने बदले में कुछ भी जवाब नहीं दिया, तो आन्या चिढ़ते हुए जाकर सोफ़े पर बैठ गई और अपना खाना खाने लगी। उसके बाद उसने अपनी प्लेट धोई और आकर अपनी जगह पर लेटकर फ़ोन चलाने लगी। अन्वय ने बीच का पर्दा खींच दिया, तो आन्या ने एक नज़र उसकी तरफ़ देखा और अन्वय को घूरते हुए वापस फ़ोन में लग गई।

    कुछ देर बाद अन्वय उठा और हाथ धोकर खाना खाने के बाद बर्तन धोकर वापस आया, तो नज़रें आन्या की तरफ़ चली गईं जो फिर से उल्टी पड़ी हुई थीं। रात के 11 बज रहे थे। अन्वय ने कुछ सोचकर उसकी तरफ़ कदम बढ़ाया, तो देखा फ़ोन में वीडियो चल रही थी, आन्या के कानों में ईयरफ़ोन लगी हुई थी और वह मज़े से सोने में लगी हुई थी। अन्वय ने उसे देखकर अजीब सा चेहरा बनाया, फिर ईयरफ़ोन निकालकर फ़ोन बंद करके टेबल पर रख दिया। उसके बाद उसे चादर से अच्छे से कवर करने के बाद अपनी जगह जाकर लेट गया। उसके दिलो-दिमाग पर आन्या ही छाई हुई थी; उसने करवट बदलकर आँखें बंद कर लीं।

    अगली सुबह अन्वय बालकनी में एक्सरसाइज़ कर रहा था। अभी 5:30 ही बज रहे थे। आन्या की नींद खुली, तो वह उठकर बाथरूम में चली गई। उसके बाद ठंडी हवा खाने के लिए बालकनी की तरफ़ बढ़ गई। उसने जैसे ही बालकनी में कदम रखा, नज़रें अन्वय पर चली गईं, जिसकी पीठ उसकी तरफ़ थी और उसने अभी शर्ट नहीं पहनी हुई थी। उसके चौड़े कंधे और आकर्षक बॉडी देखकर आन्या का दिल जोरों से धड़क उठा। तभी उसकी नज़र अन्वय के बाएँ कंधे पर बने निशान पर गई और आन्या ने उसे गौर से देखते हुए कहा,

    "ये तुम्हारे कंधे पर कैसा टैटू बना हुआ है?"

    आवाज़ सुनकर अन्वय चौंक गया और झट से उसकी तरफ़ घूमा। आन्या ने पहली बार इतनी अच्छी और आकर्षक बॉडी देखी थी। उसकी मज़बूत मांसपेशियाँ उभरकर सामने आ रही थीं और आन्या का गला सुखने लगा था उसे ऐसे देखकर; वह एकटक उसके निरावरण धड़ को देखते हुए थूक निगलकर अपना गला तर करने लगी। अन्वय ने उसकी प्यासी निगाहें और गर्दन पर होती हलचल देखी, तो झट से रेलिंग पर लटक रही अपनी टीशर्ट उठाकर पहन ली और उसे घूरते हुए बोला,

    "तुम यहाँ क्या कर रही हो?"

    "मैं तो हवा खाने आई थी। सुबह-सुबह ठंडी हवा खाने से दिन की शुरुआत खूबसूरत होती है, पर मुझे नहीं पता था कि मेरी दिन की शुरुआत इतनी खूबसूरत होने वाली है। क्या कमाल की बॉडी बनाई हुई है तुमने! ऐसे ही इतने हॉट लगते हो, पर कसम से जब तुम शर्टलेस होते हो तो बिजलियाँ गिराते हो। कमाल लगते हो यार। जी करता है बस तुम्हें देखती ही जाऊँ। वैसे तुमने टीशर्ट क्यों पहन ली? थोड़े देर देखने देते ना मुझे; पहली बार मैंने इतनी अच्छी बॉडी इतने करीब से देखी है, वरना टीवी में हीरो की बॉडी ही देखी थी।"

    आन्या अपनी ही धुन में मग्न बोले जा रही थी और अन्वय उसकी बातें सुनकर हैरत भरी निगाहों से उसे देख रहा था। उसने मन ही मन कहा,

    "अजीब बेशर्म लड़की है, किसी चीज़ से शर्माती ही नहीं है। इसके सामने ऐसे आने में मुझे अनकम्फ़र्टेबल फील होने लगा था, पर इसको तो कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा, उल्टा कह रही है कि उसे और देर मेरी बॉडी देखनी है। मतलब दुनिया में ऐसी लड़कियाँ भी हैं, स्ट्रेंज!"

    आन्या अब उसके पास आ गई और रिक्वेस्ट करते हुए बोली,

    "अन्वय, एक बार अपनी टीशर्ट उतार लो, मुझे तुम्हारी एक फ़ोटो लेनी है।"

    उसकी बात सुनकर अन्वय अपने ख्यालों से बाहर आया और आन्या को घूरते हुए बोला,

    "बहुत बेशर्म हो तुम, मुझे तो शक है कि तुम लड़की हो भी या नहीं।"

    "अरे मैं लड़की ही हूँ, मुझे देखकर नहीं पता चल रहा क्या? इतनी खूबसूरत लड़की हूँ मैं, चाहे तो टेस्ट करके देख लो, मैं सच में लड़की हूँ।" आन्या एक बार फिर फ्लो-फ्लो में जो मुँह में आया सब बोल गई। उसकी बात सुनकर पहले तो अन्वय हैरानी से उसे देखने लगा, फिर उसने आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरते हुए कहा,

    "तुम्हारा दिमाग ठिकाने पर तो है? जानती भी हो क्या कह रही हो? तुम चाहती हो मैं तुम्हें टेस्ट करूँ कि तुम लड़की हो या नहीं? Are you out of your mind or insane?"

    उसकी बात सुनकर तो आन्या का मुँह हैरानी से खुल गया। उसने झट से सफ़ाई देते हुए कहा,

    "मेरा ऐसा मतलब नहीं था, वो तो मेरे मुँह से निकल गया।"

    "तभी कहता हूँ अपनी कैची जैसी चलने वाली ज़ुबान पर लगाम लगाओ, वरना किसी दिन अपनी बकवास करने की आदत के वज़ह से बहुत बुरा फँसोगी तुम।" अन्वय ने उसे घूरते हुए कहा और उसके बगल से निकलकर जाने लगा, तो आन्या ने पीछे से कहा,

    "अरे सुनो, ये तो बता जाओ कि कंधे पर कौन सा टैटू बना हुआ है, सच बड़ा ढाँसू लग रहा था, मुझे भी बनवाना है।"

    अन्वय ने उसकी बात को पूरी तरह से अनसुना कर दिया और जाकर बाथरूम में घुस गया, तो आन्या मुँह छोटा सा करके वापस बालकनी में आ गई। उसकी आँखों के आगे वो पल घूम गया जब उसने अन्वय को शर्टलेस देखा था; एक बार फिर उसका दिल जोरों से धड़क उठा और लबों पर मुस्कान ठहर गई।

    अन्वय कुछ पाँच मिनट बाद ही बाहर आ गया। आज उसकी बारी थी और उसे कॉलेज भी जाना था, तो उसने जल्दी से घर साफ़ किया और जैसे ही खाना बनाने किचन में गया, आन्या भी वहाँ आ गई। आन्या ने उसे वहाँ देखा, तो मुस्कुराकर बोली,

    "तुम जाकर नहाकर रेडी हो जाओ, मैं बना लेती हूँ, वैसे भी सारा दिन खाली ही बैठना है मुझे।"

    अन्वय उसके सामने आना नहीं चाहता था, तो वह बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। आन्या को उसकी खामोशी कुछ अजीब लगी, पर फिर उसने सर झटका और खाना बनाने लगी। अन्वय नहाकर बाहर आया। आज वह टॉवल में ही बाहर आ गया था। ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा वह अपनी शर्ट पहनने लगा, तो उसके कानों में आन्या के कहे शब्द गूंज गए। उसने पहली बार खुद को शीशे में इतने गौर से देखा और आन्या की लालसा भरी निगाहें याद करके वह हँस पड़ा।

    फिर उसके दिमाग में उसका कहा सवाल आया और उसने मुड़ते हुए शीशे में अपने कंधे पर बना निशान देखा, जो जन्म के साथ ही उसके कंधे पर बना हुआ था और वह कोई आम निशान या कोई टैटू नहीं था, बल्कि वैम्पायर का चिन्ह था।

    उसे देखते ही अन्वय की मुस्कराहट गायब हो गई और उसकी आँखों के सामने एक दृश्य घूम गया।

    फ्लैशबैक

    अन्वय अपने बेड पर सो रहा था, तब उसकी उम्र कुछ 17-18 ही रही होगी। चेहरे पर एकदम सख्त भाव थे, जैसे कुछ भयानक सपना देख रहा था। धीरे-धीरे उसका शरीर अकड़ने लगा; कुछ ही पल में उसकी आँखें खुल गईं—एकदम गहरे नीले रंग की, भयानक, डरावनी आँखें। वह एकदम से खड़ा हो गया और अगले ही पल इंसान से एक वैम्पायर में बदल गया। काले कपड़े, नीली-नीली आँखें; उसने जैसे ही मुँह खोला, दोनों तरफ़ से दो दांत बाहर निकल आए।

    यह पहली बार था जब वह इंसान से वैम्पायर बना था। रात के बाहर बज रहे थे; हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था और उस अंधेरे कमरे में अन्वय की नीली आँखें चमक रही थीं। अन्वय कुछ समझता उससे पहले ही वह एक चमगादड़ में बदल गया और कमरे में यहाँ से वहाँ उड़ने लगा; इस वक़्त वह अपने वश में नहीं था।

    एक सायाँ उसके रूम की खिड़की से चिपका हुआ था; अन्वय को वैम्पायर बनता देख वह सायाँ चमगादड़ बन गया और वहाँ से उड़ गया। कुछ ही मिनट बाद उस कमरे में एक साथ तीन नीली आँखें नज़र आने लगीं। नीली आँखों को देखते ही अन्वय एकदम नार्मल हो गया; उसे कुछ याद ही नहीं रहा कि अभी-अभी हुआ क्या था। वह हैरान-परेशान सा उन नीली आँखों को देखने लगा। देखते ही देखते उसके सामने दो आकृतियाँ उभर आईं—एक औरत थी, तो दूसरा उसकी ही उम्र का लड़का।

    अन्वय ने उन्हें हैरानी से देखते हुए कहा,

    "कौन है आप? और यहाँ मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं?"

    "हम आपकी माँ हैं, अन्वय।" उस औरत की ममता से लिप्त आवाज़ अन्वय के कानों में पड़ी, तो एक पल को अन्वय उन्हें देखता रह गया। फिर उसने उन पर से नज़रें हटाते हुए कहा,

    "आप शायद गलत जगह और गलत इंसान के पास आ गई हैं; मैं आपका बेटा नहीं हूँ। मेरे मम्मी-पापा सालों पहले मुझे छोड़कर जा चुके हैं।"

    "हम झूठ नहीं कह रहे, अन्वय। आप हमारे ही बेटे हैं। जब आपका जन्म हुआ था, तब हम आपको यहाँ छोड़ गए थे ताकि अपने दुश्मनों से आपको बचा सकें; जिन्हें आप अपने मम्मी-पापा समझ रहे हैं, उन्होंने सिर्फ़ आपको पाला है, आपको हमने जन्म दिया है और उन्हें हम ही आपको सौंपकर गए थे, इस वादे के साथ कि जब आप 18 के हो जाएँगे और आपको आपकी शक्तियाँ प्राप्त हो जाएँगी, तो हम आपको अपने साथ अपनी दुनिया में ले जाएँगे, जहाँ पर सब आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं।"

    उस लेडी ने अन्वय को समझाने की कोशिश की, पर अन्वय ऐसे किसी अंजान की कही बातों पर भला कैसे विश्वास कर लेता? उसने उनकी बात मानने से साफ़ इनकार कर दिया और गुस्से में बोला,

    "आप जो भी हैं और जिस भी वजह से यहाँ आई हैं, यहाँ से चली जाइए; मेरा आपसे कोई संबंध नहीं है, मुझे आपकी बातों पर विश्वास नहीं।"

    "आप एक इंसान नहीं, वैम्पायर हैं; आप हमारे समुदाय के युवराज हैं। आपकी जान की रक्षा के लिए हम आपको यहाँ छोड़कर गए थे ताकि जब तक आपको आपकी शक्तियाँ प्राप्त नहीं हो जातीं और आप हमारे दुश्मनों का सामना करने के लिए तैयार नहीं हो जाते, आप यहाँ सुरक्षित रहें, एक आम इंसान की तरह अपनी ज़िंदगी बिताएँ। आज आप 18 के हो गए हैं; इसके साथ ही आपको आपकी सारी शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं, इसलिए हम आपको लेने आए हैं। आपके कुटुम्ब को आपकी ज़रूरत है। वक़्त आ गया है कि अब आप अपने असली पहचान को समझें और अपने दायित्वों का निर्वाह करें। आपके पिताजी की अनुपस्थिति में अपने साम्राज्य की रक्षा करना आपका फ़र्ज़ है।"

    वैम्पायरों की मल्लिका, अनामिका जी ने उसे फिर से समझाया, पर अन्वय उनकी किसी बात पर विश्वास करने को राज़ी नहीं था, तो उन्होंने अपना हाथ रोल किया; इसके साथ ही एक तेज़ रोशनी उस कमरे में पहुँच गई। अन्वय को अब जंगल के बीच एक महल के विशाल कक्ष में लेटी अनामिका जी नज़र आने लगीं। उसने अपना जन्म होते देखा; अनामिका जी उसे यहाँ उसके माँ-बाप को सौंपकर वापस अपने महल में चली गईं। अन्वय ने यह भी देखा, पर उसने फिर भी उन पर विश्वास नहीं किया। अनामिका जी ने अब उसके माथे पर अपना अंगूठा रख दिया; अन्वय की पलकें बंद हो गईं और उसके सामने कुछ देर पहले वाला उसका रूप आ गया। उसने चौंक कर अपनी आँखें खोल दीं।

    "अब भी आपको लगता है कि हम असत्य कह रहे हैं? आप हमारे तरह एक वैम्पायर नहीं हैं?" अनामिका जी आशा भरी नज़रों से उसे देख रही थीं। अन्वय की आँखों के सामने वह सब घूमने लगा जो उसने अभी-अभी देखा था। उनकी एक-एक बात उसके कानों में गूंजने लगी। इतना बड़ा राज़ उसके सामने खुला कि उसका दिमाग बंद पड़ गया; उसने अपने कानों को अपनी हथेलियों से दबा लिया ताकि वह आवाज़ें उसे न सुनाई दें और गुस्से से चिल्लाया,

    "हाँ, आप झूठ कह रही हैं; यह सब आपका बनाया कोई भ्रम जाल है; मैं एक आम इंसान हूँ और मेरे मम्मी-पापा सालों पहले मुझे छोड़कर जा चुके हैं। मैं नहीं मानता आपकी इस मनगढ़ंत कहानी को। मुझे अकेला छोड़ दीजिए; चली जाइए मेरे घर से और दोबारा कभी मेरे सामने मत आइएगा।"

    उन्होंने अन्वय को समझाने की बहुत कोशिश की, पर अन्वय ने उनकी किसी बात पर विश्वास नहीं किया। आखिर में वे उम्मीद हारकर वहाँ से चली गईं।

    उस दिन के बाद अन्वय को अपने अंदर बहुत से बदलाव नज़र आए, जो उसे आम इंसानों से अलग बनाते थे। वह बहुत तेज़ गति में भागता था; देखते ही देखते आँखों के सामने से गायब हो जाता था; उसे गुस्सा आता तो उसकी आँखें नीली हो जातीं, दाँत बाहर आ जाते थे। किसी को छूता तो उसके मन की बात पढ़ लेता था। और भी बहुत से बदलाव थे। धीरे-धीरे उसे विश्वास होने लगा था कि वह सच में एक वैम्पायर है; उसने इस पर बहुत रिसर्च भी की। अपनी शक्तियों को इस्तेमाल करना भी सीख गया, पर फिर भी उसने इंसानी ज़िंदगी जीना ही ठीक समझा।

    इंसानों के बीच इंसान बनकर रहता; कभी बहुत बेचैनी होती तो चमगादड़ बनकर जंगल में पहुँच जाता और अपने असली रूप में आ जाता। उस रात भी वह मौसम का मज़ा लेने जंगल गया था, जब आन्या से उसकी मुलाक़ात हो गई। अन्वय सही सब सोच रहा था; अचानक ही उसके कानों में आन्या की आवाज़ पड़ी...

    Coming soon...

  • 16. Until you are mine - Chapter 16

    Words: 1937

    Estimated Reading Time: 12 min

    अन्वय अपनी सोच में खोया हुआ था। तभी उसके कानों में आन्या की आवाज़ पड़ी, “मुझे बताओ ना तुमने ये टैटू कहाँ से बनवाया? बहुत कमाल लग रहा है तुम पर, तुम्हारी पर्सनैलिटी पर सूट कर रहा है।”

    आवाज़ सुनते ही अन्वय अपनी सोच से बाहर आया और झट से शर्ट पहनते हुए उसकी ओर मुड़ गया। “तुम्हें नहीं लगता तुम बहुत बेशर्म और मुँहफ़ट हो? कोई लड़की इतनी बेबाक कैसे हो सकती है कि सामने एक लड़का बिना कपड़ों का खड़ा है और वो बेशर्मों की तरह उसको ताड़ती जाए?”

    “तो इसमें क्या गलत है? टीवी में हीरो भी तो अपनी बॉडी दिखाते हैं, सभी देखते हैं उन्हें। तो अगर मैंने तुम्हारी बॉडी देख ली तो इसमें बेशर्मी वाली बात कहाँ से आ गई? वैसे भी मैंने थोड़े ही तुम्हारे कपड़े उतारे हैं, तुम ही बार-बार बिना कपड़ों के मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हो। जब मुझे लाइव हीरो जैसी सॉलिड बॉडी देखने को मिल रही है तो मैं क्यों इतना अच्छा मौका मिस करूँ?

    पता भी है, असल ज़िन्दगी में तो सारे लड़के या तो लकड़ी जैसे सूखे से होते हैं या फिर फ़ुटबॉल जैसे फैले हुए होते हैं। बहुत कम लड़के मिलते हैं जिनकी इतनी अच्छी हीरो जैसी बॉडी है। वैसे निहाल भी देखने में अच्छा था, बॉडी भी ठीक ही होगी, पर मेरा कभी उसे देखने का मन नहीं करता था। उसके साथ होती थी तो नेगेटिव वाइब्स आती थीं, मुझे उसमें कभी दिलचस्पी ही नहीं रही।

    पर तुम्हें देखने में बहुत मज़ा आता है। तुम्हारे साथ होती हूँ तो ऐसा लगता है कि दुनिया की सबसे महफ़ूज़ जगह हूँ, यहाँ कोई मुझे तकलीफ नहीं पहुँचा सकता। कुछ तो है तुममें जो मुझे तुम्हारी तरफ़ खींचता है।”

    आन्या की बात सुनते हुए अन्वय के भाव बदलते जा रहे थे। पहले उसे आन्या की बात से चिढ़ हो रही थी। जब उसने निहाल का ज़िक्र किया तो अन्वय की आँखें नीली होने लगीं, जो बता रही थी कि उसे गुस्सा आ रहा था। पर जैसे ही आन्या ने कहा कि उसे निहाल में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही, वो तो अन्वय की तरफ़ आकर्षित हो रही है, तो अन्वय के भाव बदल गए, लबों पर हल्की मुस्कान फैल गई। वह खामोशी से उसकी बात सुन रहा था। आन्या तो अपनी ही धुन में आगे बोल रही थी।

    “पता है, इतना अट्रैक्टिव पर्सनैलिटी है तुम्हारी कि जो लड़की तुम्हें एक बार देख ले, तुम्हारी दीवानी हो जाए। तुम्हारी छाप जिसके दिल पर लग जाए और वो कभी तुम्हें भूल ना पाए। मैं तो सोच रही हूँ, आज तक कितनी ही लड़कियाँ तुम पर मर मिटी होंगी, पर तुम्हें देखकर लगता नहीं है कि तुमने कभी किसी को भाव दिया होगा।

    अगर मुझे मौका मिले तो मैं भी देखना चाहूँगी कि तुम्हारी दीवानियों की लिस्ट कितनी लंबी है। ज़ाहिर है कि जिसने भी आज तक एक बार नज़र भर तुम्हें देखा होगा, वो तुम्हारी दीवानी बनी घूम रही होगी, क्योंकि तुम्हारे चार्म से बचना किसी भी लड़की के लिए नामुमकिन है। मुझे तो लगता है तुम्हारे साथ रहकर मैं भी कहीं तुम्हारी…” कहते-कहते अचानक ही आन्या खामोश हो गई। उसके चुप होते ही अन्वय बोला, “तुम भी मेरी क्या…?”

    “कुछ नहीं,” आन्या ने बात को खत्म करते हुए कहा। पर उसकी गहरी निगाहें उसी पर ठहरी हुई थीं। आन्या उससे बेअसर न रह सकी और नज़रें घुमाते हुए बोली, “मैं भी तुम्हारी दीवानी ना बन जाऊँ।”

    उसकी बात सुनकर अन्वय मन ही मन मुस्कुराया, पर मुस्कान लबों पर नहीं आने दी और बिना कुछ कहे शीशे की ओर घूमकर शर्ट के बटन लगाने लगा। उसके रिएक्शन को देखकर आन्या कन्फ़्यूज़ हो गई। उसे समझ ही नहीं आया कि उसकी खामोशी तूफ़ान से पहले आने वाली खामोशी है या अन्वय को उसकी कही बात से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा। वह कुछ पल वहीं खड़ी उसको देखकर सोचती रही, फिर उसने आखिर में पूछ ही लिया,

    “मैंने जो कहा उसके बाद तुमने कोई रिएक्ट क्यों नहीं किया? तुमने सुना नहीं या तुम्हें उस बात से फ़र्क ही नहीं पड़ा? गुस्सा तो नहीं हो गए? कहीं मुझे घर से तो नहीं निकाल दोगे? कुछ तो बोलो। गुस्सा हो गए क्या मुझसे? मैंने कुछ गलत नहीं कहा, तुम सच में इतने हैंडसम और अट्रैक्टिव हो कि कोई भी तुम्हारी दीवानी बन जाए।”

    “तुम भी?” अन्वय ने एकाएक पलटकर सवाल किया तो आन्या ने बिना सोचे ही बोल दिया, “हाँ मैं भी। मैं भी एक लड़की हूँ। इतना हैंडसम, चार्मिंग और हॉट लड़का मेरे साथ रहेगा तो उससे अट्रैक्ट होना लाज़मी है और मैं भी कुछ कम नहीं हूँ। हाँ तुम खंभे जैसे लम्बे-चौड़े हो, और मेरी हाइट नॉर्मल है, पर तुम बहुत हैंडसम हो तो मैं भी खूबसूरती में किसी हीरोइन से कम नहीं हूँ।

    पता है, कॉलेज में हर साल मैंने कॉलेज क्वीन का अवार्ड जीता है, वो तो मेरा गर्ल्स कॉलेज था, वरना जाने कितने लड़के मेरे दीवाने होते। एक तो पहली नज़र में ही मुझ पर फ़िदा हो गया था और तब से मेरे पीछे ही पड़ गया था। अगर तुम्हारी दीवानियों की लिस्ट बहुत लंबी है तो अगर मैं सड़क पर निकल जाऊँ तो मेरे पीछे भी दीवानों की लंबी कतार लग जाएगी।”

    आन्या एक बार फिर अपनी ही धुन में बोले जा रही थी और खुद पर ही इतराने लगी थी। वहीं उसकी बात अब अन्वय को गुस्सा दिलाने का काम कर रही थी। उसने अपनी मुट्ठियाँ कस ली और जबड़े भींचते हुए बोला, “कुछ ज़्यादा नहीं बोल रही हो तुम? बहुत शौक है तुम्हें अपने दीवानों की कतार लगाने का, एक से तो भागती फिर रही हो, बाकियों को कैसे संभालोगी? और जिन दीवानों की तुम बात कर रही हो वो सिर्फ़ तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती और जिस्म की बनावट ही देखेंगे। उन्हें दीवाना नहीं कहते, जो तुम्हारी रूह को अपना बनाना चाहे वो आपका दीवाना होता है, वरना जिस्म की चाह रखने वाले और उन्हें नोच खाने वाले गिद्ध से तो ये दुनिया भरी पड़ी है।”

    उसकी बात से आन्या निरुत्तर हो गई और एकटक अन्वय को देखने लगी। वहीं अन्वय ने नाराज़गी से उस पर से नज़रें हटाते हुए कहा, “अगर दीवानों की इतनी ही चाह है तो गलत जगह हो तुम, जा सकती हो यहाँ से।”

    उसकी बात सुनकर आन्या का मुँह हैरानी से खुल गया। वो आँखें बड़ी-बड़ी करके उसको देखते हुए बोली, “तुम मुझे यहाँ से भगा रहे हो?”

    “तुम्हें ही शौक चढ़ा है अपने पीछे दीवानों की लाइन लगाने का तो जाओ यहाँ से, क्योंकि यहाँ तुम्हें कोई दीवाना नहीं मिलने वाला। मैं आज तक सबसे बेअसर रहा हूँ और आगे भी बेअसर ही रहूँगा। चाहे तुम कितनी ही खूबसूरत हो पर मुझे अपना दीवाना नहीं बना सकती, इसलिए अगर तुम्हें अपना शौक पूरा करना है तो गलत जगह हो तुम। दरवाज़ा खुला है।” इतना कहकर वो शीशे की ओर मुड़ गया और अपने बालों को सेट करने लगा। इस वक़्त उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।

    वहीं आन्या उसकी बात सुनकर खुद को देखते हुए मन ही मन बोली, “क्या मैं इतनी बुरी दिखती हूँ कि उसने इतने विश्वास के साथ कह दिया कि मैं उसे कभी पसंद नहीं आ सकती? … नहीं, तू बहुत सुंदर है, उसकी पसंद ही घटिया होगी। खैर तुझे उससे क्या? वैसे भी उसमें ऐसी कोई बात नहीं कि तू उसकी दीवानी बने और न ही तुझे इतने अकडू लड़के को अपना दीवाना बनाने में कोई इंटरेस्ट है। वैसे भी मुझे इन झमेलों में नहीं पड़ना है।” उसने खुद को समझाया, फिर अन्वय को देखकर बोली, “तुम गलत समझ रहे हो। मुझे किसी को अपना दीवाना नहीं बनाना है, मुझे आज़ादी से अपनी ज़िन्दगी जीनी है, अकेले। किसी के साथ की ज़रूरत नहीं है मुझे। इसलिए मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी।”

    इतना कहकर वह वापिस किचन में चली गई। अन्वय ने नज़र उठाकर शीशे में ही जाती हुई आन्या को देखते हुए मन ही मन कहा, “नहीं बनना चाहता था फिर भी तुमने मुझे अपना दीवाना बना ही लिया है। पर ये दीवानगी कभी ज़ाहिर नहीं हो सकती। तुम और मैं अलग-अलग दुनिया से ताल्लुक रखते हैं। हम कुछ वक़्त साथ तो रह सकते हैं पर अपनी ज़िन्दगी एक-दूसरे के साथ नहीं बिता सकते। हमारे बीच कोई रिश्ता मुमकिन नहीं है। जितनी जल्दी हो सके मुझे तुम्हें खुद से दूर भेजना ही होगा, जैसे तुम मुझे देखती हो, अगर ज़्यादा वक़्त हम साथ रहे तो तुम सच में मेरे प्यार में पड़ जाओगी और फिर मुझे ना चाहते हुए भी तुम्हारा दिल तोड़ना पड़ेगा। मैं ऐसा नहीं चाहता।”

    अन्वय गहरी सोच में डूब गया। फिर उसने अपना ध्यान बंटाने के लिए अपना फ़ोन उठा लिया। इसके बाद उसके और आन्या के बीच कोई बात नहीं हुई। कहीं न कहीं आन्या को ये बात बुरी लगी थी कि अन्वय ने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया था कि वह कभी उसे पसंद नहीं कर सकता। वहीं अन्वय आन्या को खुद से दूर रखने के बारे में सोच रहा था। उसने ब्रेकफ़ास्ट किया और वहाँ से निकल गया। आन्या ने सबसे पहले गेट लॉक किया, फिर किचन साफ़ करके नहाकर खाना खाया और बेड पर लेटकर फ़ोन चलाने लगी। जॉब ढूँढनी थी उसे, उसके लिए ही सर्च करने लगी।

    अन्वय आज पहली बार क्लास लेने गया। इतना यंग और हैंडसम प्रोफ़ेसर देखकर लड़कियाँ उस पर फ़िदा हो गईं। वहीं लड़के जल भुनकर राख होने लगे कि जब प्रोफ़ेसर इतना हॉट है तो भला कॉलेज की लड़कियाँ उन्हें कैसे देखेंगी?

    खैर, अन्वय को किसी बात से कोई मतलब नहीं था। उसने हमेशा वाले सख्त चेहरे और पूरे कातिलाना एटीट्यूड के साथ क्लास में एंट्री ली। उसका गुस्से वाला सख्त चेहरा देखकर कोई कुछ बोल नहीं पाया। क्लास शुरू हुई। जैसे ही क्लास ख़त्म हुई, एक लड़की हिम्मत करके उसके पास पहुँच गई, पर उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। अन्वय कुछ पल उसके कहने का इंतज़ार करता रहा, पर जब उसने कुछ नहीं कहा तो अन्वय हल्के गुस्से से बोला, “आपके पास बर्बाद करने के लिए वक़्त होगा, पर मेरे पास नहीं है। आइन्दा यूँ मेरा वक़्त बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं है।” वह उसे गुस्से में घूरते हुए आगे बढ़ गया। वहीं वो लड़की बस उसे देखती ही रह गई, बाकी स्टूडेंट्स भी उन्हें देख रहे थे। अन्वय गेट के पास जाकर रुक गया और वापिस मुड़कर उस लड़की को देखते हुए बोला, “आप कुछ ज़्यादा फ़्री लगती हैं तो एक काम कीजिएगा, नेक्स्ट क्लास में आज जो पढ़ाया है उसके आगे का पूरा चैप्टर पढ़कर आइएगा, पहले आपसे कुछ न्यूमेरिकल करवाया जाएगा, उसके बाद आगे पढ़ाई होगी। अगर आप मेरे क्वेश्चन को सॉल्व नहीं कर पाई तो अगले एक महीने तक आपको मेरी क्लास में आने की ज़रूरत नहीं है।”

    इतना कहकर वह क्लास से बाहर निकल गया। सब उसे आँखें फाड़े और मुँह खोले देख रहे थे। बेचारी उस लड़की का तो जैसे फ़्यूज़ ही उड़ गया। उसने जल्दी से बुक निकालकर देखा तो उस चैप्टर के 35 से ऊपर पेज बचे हुए थे। वह अपना सर पकड़कर बैठ गई। वहीं बाकी सबके बीच अब अन्वय की एरोगेंस को लेकर बातें होने लगीं। उसकी पर्सनैलिटी सबसे अलग थी। जितना ज़्यादा हैंडसम दिखता था, उससे कहीं गुना ज़्यादा स्ट्रिक्ट था।

    अन्वय नेक्स्ट क्लास में चला गया। उसका रवैया हमेशा जैसे स्ट्रिक्ट ही रहा। सारा दिन वह क्लासेस में बिज़ी रहा। शाम को चार बजे वह फ़्री हुआ तो घर के लिए निकल गया।

    आन्या घर पर सारा दिन खुद को बिज़ी रखने की कोशिश कर रही थी, पर अकेली बैठे-बैठे वह बोर हो गई थी। तो उसने पिलो उठाया और उसे अन्वय बनाकर उससे बातें करने लगी। जब रूम का डोर नॉक हुआ तब भी वह वहीं कर रही थी। जैसे ही डोर नॉक हुआ, उसके साथ ही बाहर से अन्वय की आवाज़ आई, “आन्या दरवाज़ा खोलो।”

    आन्या ने झट से पिलो को वापिस उसकी जगह पर रख दिया और गेट की तरफ़ दौड़ पड़ी।


    आगे जारी...

  • 17. Until you are mine - Chapter 17

    Words: 1961

    Estimated Reading Time: 12 min

    आन्या ने झट से दरवाज़ा खोला। जैसे ही उसकी नज़र सामने खड़े अन्वय पर पड़ी, उसके लबों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गयी। वहीं अन्वय का चेहरा हमेशा की तरह सख्त था।

    आन्या ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "तुम आ गए? मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी।"

    "क्यों? जब तक मुझे परेशान ना कर लूँ, तुम्हें चैन नहीं आता, जो मेरे आने का इंतज़ार कर रही थी?" अन्वय ने उसे घूरते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आन्या का मुँह बन गया। वह अंदर जाते हुए बोली, "अकेले बोर हो रही थी मैं, इसलिए तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। पर अब लग रहा है, गलती कर दी मैंने। तुम्हारे इंतज़ार करने से बेहतर होता कि मैं भूत-प्रेतों और वैम्पायर्स से ही बातें कर लेती, वो लोग भी तुमसे बेहतर होंगे। तुम्हारे तरह हर वक़्त अपने घमंड में चूर, सड़ा सा चेहरा नहीं बनाकर घूमते रहते होंगे।"

    "तो कर लेती भूत-प्रेतों से बातें, तुम्हारी ही बिरादरी के होंगे।" अन्वय ने तुरंत जवाब दिया। उसकी बात सुनकर आन्या का मुँह बन गया। वह बिना कुछ कहे, दनादन किचन में चली गयी।

    अगले ही पल अन्वय की आँखें गहरी हो गयीं। उसके मुँह से 'वैम्पायर' शब्द सुनकर उसे वह पल याद आ गया जब जंगल में वह वैम्पायर के रूप में उसके सामने आया था। एक बार फिर वह सोच में पड़ गया कि आन्या कुछ भूली क्यों नहीं। फिर उसने अपना सिर झटका और कुछ कदम अंदर ही आया था कि आन्या एक बार फिर उसके सामने खड़ी थी।

    इस वक़्त उसके हाथ में पानी का गिलास था। अन्वय ने कुछ नहीं कहा, बस आँखों में सवाल लिए, कठोर भाव से उस गिलास और आन्या को देखने लगा। तब आन्या ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, "पानी ही है, ज़हर नहीं दे रही तुम्हें जो ऐसे घूर रहे हो। वैसे भी तुम्हें ज़हर देने का कोई फ़ायदा ही नहीं होगा। तुम्हारे अंदर पहले ही कूट-कूटकर ज़हर भरा पड़ा है, बस बेचारे का तुम पर कोई असर ही नहीं होगा। तो बेझिझक पानी पी सकते हो तुम।"

    "करना क्या चाहती हो तुम? पत्नी हो मेरी जो मेरा ध्यान रख रही हो?" अन्वय ने गहरी निगाहों को उस पर टिकाते हुए सवाल किया। उसके सवाल सुनकर आन्या ने मुँह बनाकर कहा, "मैं कुछ नहीं करना चाहती और न ही तुम्हारी पत्नी बनने की मेरी कोई ख्वाहिश है। मैं तो बस पानी लायी थी तुम्हारे लिए, काम से आये हो तो थक गए होंगे। जब पापा ऑफिस से आते थे तो मैं उनके लिए भी पानी लेकर जाती थी।"

    "तो वो तुम्हारे पापा थे और मैं एक अजनबी। मेरे लिए कोई ये सब करे, मुझे पसंद नहीं है।" अन्वय ने आगे बढ़ते हुए, बिना किसी भाव के जवाब दिया। पर आन्या फुदक कर उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और लबों पर मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली, "तुम अपने वाले अजनबी हो जो गैर होकर भी मेरे अपनों से ज़्यादा खास हो मेरे लिए। मैंने बताया था ना, तुम्हारे साथ में बहुत सेफ़ फील करती हूँ। ऐसा लगता है जैसे बहुत पहले से जानती हूँ तुम्हें, कोई बहुत गहरा रिश्ता हो हमारा। अब ज़्यादा नखरे मत करो और पानी पी लो।"

    आन्या ने लगभग उसे ऑर्डर दे डाला। तो अन्वय आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरने लगा। आन्या ने अब क्यूट सी शक्ल बनाकर उसे देखा तो अन्वय ने उसके हाथ से गिलास ले लिया, आगे बढ़ते हुए बैग टेबल पर रखा और सोफ़े पर बैठकर पानी पीने लगा।

    आन्या भी उसके बगल में आ बैठी और मुस्कुराकर बोली, "वैसे तुम्हारा कॉलेज को-एड है ना?"

    "Hmm" अन्वय ने पानी पीते हुए छोटा सा जवाब दिया। आन्या की आँखों में चमक आ गयी। उसने झट से दूसरा सवाल कर डाला, "फिर तो लड़कियाँ भी होंगी, तुम्हें देखकर तो तुम पर फ़िदा ही हो गयी होंगी। इतना यंग और हैंडसम प्रोफ़ेसर शायद पहली बार ही देखा हो उन्होंने। किसी ने तुमसे कुछ कहा? किसी से मिले या बात की? या कहीं किसी ने सीधे तुम्हें प्रपोज़ तो नहीं कर दिया?"

    उसकी बात सुनकर अन्वय ने गिलास नीचे रख दिया और उसकी तरफ़ घुमाकर उसे घूरते हुए बोला, "मैं वहाँ पढ़ाने गया था, कोई आवारा लड़कों की तरह मटरगस्ती करने या गर्लफ्रेंड पटाने नहीं गया था।"

    "अरे तो मैंने कब कहा कि तुम वहाँ गर्लफ्रेंड बनाने गए थे। मैं तो बस पूछ रही हूँ। तुम्हें देखकर कोई लड़की तुम्हारी दीवानी ना हो, ये पॉसिबल नहीं है। किसी ने तो कुछ कहा या किया होगा, मुझे बस वही जानना है।" आन्या ने एक बार फिर मुस्कुराकर उसे देखा, जैसे अपने सवाल के जवाब का इंतज़ार कर रही हो। अन्वय कुछ पल खामोश, निगाहों से उसे घूरता रहा, फिर तंज कसते हुए बोला, "लगता है गॉसिप्स सुनने का बहुत शौक है तुम्हें, पर यहाँ तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। वैसे तुम्हें नहीं लगता कि मैं थककर आया हूँ तो शायद तुम्हें कुछ देर मुझे चैन की साँस लेने दे देनी चाहिए?"

    आन्या मुँह बनाते हुए बोली, "जाओ मत बताओ, पता है मुझे, ज़रूर किसी ने तुम पर लाइन मारी होगी, तभी इतना भड़के हुए हो, वरना सीधे से इंकार नहीं कर देते कि किसी ने कुछ नहीं कहा। लो अब चैन की साँस, मैं जा रही हूँ।"

    उसने गाल फुलाते हुए कहा और उठकर बालकनी में जाकर खड़ी हो गयी। अन्वय ने एक नज़र बालकनी के बंद दरवाज़े को देखा, फिर अलमारी से कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। कुछ देर बाद बाहर आया तो आन्या कपड़ों को तह करके बेड पर अलग-अलग रख रही थी। अन्वय को देखकर उसने मुँह बनाया और अपने कपड़ों को उठाकर अलमारी में रखने लगी। अन्वय ने भी अपने कपड़े लिए और अलमारी के पास आ गया। दोनों अलग-बगल में खड़े थे। अन्वय ने अपने कपड़े रखते हुए कहा, "कुछ ज़्यादा ही एक्साइटेड नहीं हो तुम ये जानने के लिए कि मुझे कॉलेज में किसी ने प्रपोज़ किया या नहीं?"

    अन्वय का सवाल सुनकर आन्या ने उसे देखकर मुँह बनाते हुए कहा, "हाँ थी एक्साइटेड, ये जानने के लिए कि तुम्हारी सड़ी सी शक्ल देखने के बाद भी कोई तुम्हें प्रपोज़ करने का रिस्क ले सकती है या नहीं? पर अब मैं समझ गयी कि तुम्हारे जैसे पत्थर दिल को कोई लड़की नहीं पिघला सकती, चाहे कोई कुछ भी कर ले, उसे बदले में हमेशा निराशा ही मिलेगी। क्योंकि ये प्यार-व्यापार तुम्हारे लिए नहीं बना है और न ही कभी बन सकता है। क्योंकि तुम्हारे पास दिल है ही नहीं तो किसी के लिए एहसास कहाँ से जन्म लेंगे? तुम बिल्कुल निर्मोही हो, जैसे इंसान न होकर कुछ और हो, भूत-प्रेत या वैम्पायर।"

    आन्या के मुँह से एक बार फिर 'वैम्पायर' शब्द सुनकर अन्वय ने तुरंत सवाल किया, "तुम कभी वैम्पायर से मिली हो? जानती हो उन्हें?"

    "नहीं, पर शायद एक बार देखा है। पता है उस रात क्या हुआ था?" यह कहते हुए आन्या ने जंगल में खोने से लेकर वैम्पायर को देखकर बेहोश होने वाली सारी बात उसे बता दी और फिर कन्फ़्यूज़ नज़रों से उसे देखते हुए आगे बोलने लगी, "मुझे समझ नहीं आया कि मैं तो जंगल में बेहोश हो गयी थी, फिर अगले दिन अपने घर में मेरी आँखें कैसे खुली? और अगर वो वैम्पायर था तो उसने मेरा खून पीकर मुझे मारा क्यों नहीं? वैम्पायर तो इंसानों का खून पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं ना? फिर उसने मुझे छोड़ कैसे दिया?"

    "सारे वैम्पायर एक जैसे नहीं होते, कुछ लोगों को नुकसान पहुँचाकर अपनी प्यास बुझाते हैं तो कुछ शांति से अपनी ज़िन्दगी जीने की ख्वाहिश रखते हैं, किसी को नुकसान पहुँचाने की कोशिश नहीं करते हैं।" अन्वय के मुँह से अनायास ही निकल गया तो आन्या टुकुर-टुकुर उसे देखने लगी।

    अन्वय ने उसका रिएक्शन देखा तो बात संभालते हुए बोला, "मेरा मतलब यह है, जैसे हम इंसानों की अपनी दुनिया है, वैसे उनकी भी होगी। उनमें से कुछ मेरी जैसी सोच वाले भी होंगे कि हमें दूसरों की ज़िन्दगी में दख़ल नहीं देना चाहिए, अपनी ज़िन्दगी चैन से जिएँ और दूसरों को भी चैन की ज़िन्दगी जीने दें।"

    "हाँ, हो सकता है कि कुछ वैम्पायर तुम्हारे जैसी अकड़ू, सड़ियल और घमंडी हों, पर क्या कुछ मेरे जैसे ज़िंदादिल, बकबक की दुकान भी होंगे वहाँ?" आन्या ने आँखों में चमक लाते हुए उससे सवाल किया। अन्वय ने एक पल उसे देखा, फिर नज़रें फेरते हुए बोला, "मुझे कैसे पता होगा?"

    "हाँ, तुम्हें कैसे पता होगा, तुम वैम्पायर थोड़े ना हो।" आन्या ने सर पर हाथ मारते हुए कहा और खिलखिलाकर हँस पड़ी। अन्वय की घूरती निगाहें उस पर पड़ी तो आन्या ने अपने होंठों पर उंगली रख ली, पर अब भी उसके लब और आँखें मुस्कुरा रही थीं।

    अन्वय ने उसके बकवास से बचने के लिए किचन की तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कहा, "डिनर मैं बनाऊँगा और इस बात पर मुझे कोई बहस नहीं चाहिए। तुम्हें किचन में आने की इज़ाजत नहीं है, तो यहीं रहना।"

    उसने सख्ती से अपनी बात कही और चला गया। आन्या मुँह फुलाकर उसे देखती रही, फिर उसने टीवी चलाकर गाने लगा दिए और सब भूलकर गाने के बोलों पर झूमने लगी। गाने की आवाज़ अन्वय भी सुन पा रहा था, साथ में आन्या के गुनगुनाने की आवाज़ भी उसे सुनाई दे रही थी। अन्वय के लबों पर हल्की मुस्कान छा गयी और वह गाने सुनते हुए काम करने लगा। कुछ एक घंटे बाद वह बाहर आया, पर कदम किचन के एंट्रेंस पर ही रुक गए।

    आन्या मस्ती में झूम-झूमकर कमर मटकाते हुए नॉन-स्टॉप नाच रही थी। दुपट्टा हवा में लहरा रहा था। चोटी से छोटी-छोटी लटें निकलकर उसके चेहरे पर, गर्दन पर बिखर गए थे, चेहरे पर पसीने की बुँदे सफ़ेद मोतियों जैसे चमक रही थीं।

    आन्या इस वक़्त और भी ज़्यादा हसीन लग रही थी। अन्वय भी उस पर से अपनी नज़रें हटाने में असमर्थ ही रहा। जैसे झील के पास उसे नहाते देख उसकी नज़रें उस पर ठहर गयी थीं, वैसे ही इस वक़्त आन्या को बेफ़िक्री से लहराते हुए डांस करते देख उसकी निगाहें उस पर जम सी गयी थीं। वह अपलक आन्या के खूबसूरती से तराशे गए दिलकश चेहरे को देखता रहा, उसके इस रूप को अपने दिल में बसाने लगा, फिर उसने उस पर से अपनी नज़रें हटा ली और बेड की तरफ़ बढ़ गया।

    आन्या तो खुद में मग्न, मस्ती में झूमे जा रही थी। अन्वय बेड पर किताबें लेकर बैठ गया, पर उसका सारा ध्यान आन्या पर था। वह उसे डिस्ट्रैक्ट कर रही थी, तो अन्वय ने बीच के पर्दे को नीचे खींच दिया, फिर भी उस झीने पर्दे से आन्या की धुंधली सूरत नज़र आ रही थी और अन्वय की निगाहें उसके तरफ़ बार-बार मुड़ने को बेकरार हो रही थीं। कुछ देर बाद गाना ख़त्म हुआ तो आन्या मुस्कुराकर बेड पर गिर गयी और अगले ही पल खिलखिलाकर हँस पड़ी।

    अन्वय उसकी निश्छल हँसी में खो सा गया। उसकी हर अदा अन्वय को अपनी तरफ़ खींच रही थी। कुछ पल अन्वय उसे देखता रहा, फिर उसने अपना सारा ध्यान काम पर लगा दिया। आन्या खुद में ही बड़बड़ाने लगी।

    रात हुई तो दोनों ने डिनर किया, उसके बाद आन्या बेड पर बैठी यहाँ-वहाँ नज़रें घुमाती रही। अन्वय उसे ही देख रहा था। कुछ देर वह उसे देखता रहा, फिर किताबों पर नज़रें गड़ाते हुए बोला, "अगर बोर हो रही हो तो बुक शेल्फ़ से कोई किताब लेकर पढ़ सकती हो।"

    उसकी बात सुनकर आन्या का चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने झट से "थैंक्यू" कहा और बेड से कूद गयी, तो अन्वय की आँखें बड़ी-बड़ी हो गयीं, अगले ही पल लबों पर मुस्कान खेल गयी। आन्या ने एक किताब पसंद की और आलती-पालती मारकर बेड पर बैठकर किताब पढ़ने लगी।

    रात के 12 बज गए थे, तब जाकर अन्वय ने अपनी किताबें बंद करके टेबल पर रखी और सोने से पहले एक बार आन्या को देखने उसके तरफ़ आया, तो आन्या आज फिर किताब मुँह पर रखे सो चुकी थी। अन्वय के लब मुस्कुरा उठे। उसने किताब लेकर टेबल पर रखी और उसे अच्छे से लिटाकर कवर कर दिया। उसके बाद वह खुद भी लेट गया।

  • 18. Until you are mine - Chapter 18

    Words: 1226

    Estimated Reading Time: 8 min

    समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। राहुल और सिमरन से न तो उनकी बात हुई थी और न ही मुलाक़ात। अन्वय और आन्या के बीच तकरार बरक़रार थी, पर प्यार अभी दिखाई नहीं दे रहा था।

    आन्या की अब आदत बन गई थी रोज़ सुबह छुपकर अन्वय को व्यायाम करते देखना। अन्वय भी यह बात जानता था, पर वह उसे कुछ नहीं कहता था।

    अब उसने बनियान पहनकर व्यायाम करना शुरू कर दिया था, जिस वजह से आन्या उदास हो जाती थी, पर अन्वय मुस्कुराता रहता था। वह जानबूझकर उसे परेशान कर रहा था क्योंकि वह जानता था कि आन्या उसकी मस्क्युलर बॉडी देखने के लालच में सुबह-सुबह खिड़की से चिपकी रहती है।

    नियम के मुताबिक एक दिन अन्वय काम करता तो अगले दिन आन्या। सुबह का नाश्ता वह बनाती तो रात का भोजन अन्वय के हिस्से में आता। आन्या अब उसकी किताब लेकर पढ़ लेती थी। अब भी वह बिना सोचे-समझे कुछ भी कर देती थी, अन्वय को अपने उल्टे-सीधे सवालों से परेशान करती रहती थी। अन्वय ज्यादातर खामोश ही रहता, पर आन्या लगी रहती अपनी बकबक में।

    शायद अन्वय को भी उसकी बकबक की आदत सी हो गई थी। उसके आते ही आन्या की जुबान चलनी शुरू हो जाती थी और अन्वय खामोशी से उसकी सारी बातें सुनता था। दोनों के बीच अब भी बात-बात पर बहस हो जाती थी। अन्वय जितना उस पर गुस्सा करके उसे खुद से दूर करने की कोशिश कर रहा था, उतना ही ज़्यादा आन्या उसकी ओर खिंच रही थी।

    उधर, आन्या के जाने के बाद उसकी चिट्ठी पढ़कर कावेरी जी ने एक बार फिर आन्या के बारे में उल्टी-सीधी बातें मिस्टर सिन्हा के दिमाग में भर दीं। जिस वजह से उन्होंने आन्या को ढूँढने की कोशिश नहीं की, उसे मरा हुआ मान लिया। पर कावेरी जी उसे ढूँढ रही थी। आखिर वह उनकी लॉटरी की टिकट थी, तो वह इतनी आसानी से उसे अपने हाथों से कैसे निकलने दे सकती थी? उन्होंने पुलिस में शिकायत नहीं की थी, वरना उनकी बदनामी हो जाती। बल्कि निहाल को उसे ढूँढने के लिए कहा था और निहाल उसे ढूँढ भी रहा था।

    अन्वय और आन्या को साथ रहते हुए एक हफ़्ता बीत गया था, पर उनके बीच कुछ नहीं बदला था।

    आज सुबह आन्या की नींद नहीं खुली। अन्वय व्यायाम के बाद नहाने चला गया। अचानक ही आन्या झटके से उठकर बैठ गई, उसका चेहरा एकदम सफ़ेद पड़ गया था। वह झट से बिस्तर से नीचे उतर गई। उसने बिस्तर की चादर चेक की, फिर बाथरूम की ओर दौड़ी तो देखा दरवाज़ा बंद था। आज उसने उसके बाहर आने का इंतज़ार नहीं किया, बल्कि दरवाज़ा खटखटाते हुए बोली,
    "अन्वय।"

    "क्या है? तुम मुझे बाथरूम में भी चैन से नहीं रहने देती हो, आखिर तुम मुझसे चाहती क्या हो?" अन्वय की गुस्से भरी आवाज़ आन्या के कानों में पड़ी। उसने दरवाज़ा खटखटाते हुए आगे कहा,
    "मुझे वॉशरूम जाना है, it's an emergency, please बाहर आ जाओ।"

    "कुछ देर इंतज़ार नहीं किया जा रहा तुमसे? यह मेरा समय है ना, तो इंतज़ार करो मेरे निकलने का।" एक बार फिर अन्वय गुस्से से चिल्लाया। आन्या की आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे। उसने भारी गले से कहा,
    "मैं इंतज़ार नहीं कर सकती, please मेरी बात समझो, मेरा बाथरूम जाना बहुत ज़रूरी है।"

    "क्यों? तुम क्या बच्ची हो जो कुछ देर कंट्रोल नहीं कर सकती?" अन्वय के सवाल सुनकर अब आन्या ने रुआंसी होकर कहा,
    "यार समझा करो, लड़की हूँ मैं, इतने पत्थर दिल तो मत बनो। Please मुझे बाथरूम इस्तेमाल करने दो।"

    अन्वय उसके आवाज़ में आए भारीपन को महसूस कर गया। उसने जल्दी से नहाकर कपड़े पहने और जैसे ही दरवाज़ा खोलकर बाहर आया, आन्या ने उसे घूरते हुए कहा,
    "अभी अगर तुम नहीं निकलते ना तो मैं तुम्हारा क़त्ल कर देती।"

    आन्या ने इतना कहा और झट से अंदर घुसकर दरवाज़ा बंद कर लिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि अन्वय कुछ समझ नहीं सका। वह हैरान-परेशान सा बाथरूम के दरवाज़े को देखता रहा जो अब बंद हो चुका था।

    दस मिनट बीत गए, पर आन्या बाहर नहीं निकली तो अन्वय किचन में चला गया। वैसे तो नाश्ता आन्या बनाती थी, पर आज उसने नहीं बनाया था। तो अन्वय ही नाश्ता बनाने लगा क्योंकि उसके पास अब ज़्यादा समय नहीं था। उसने सैंडविच बनाया और वापिस बाहर आया तो बाथरूम अब भी बंद देखकर उसे कुछ ठीक नहीं लगा। उसने बाहर से दरवाज़ा खटखटाते हुए सवाल किया,
    "आन्या, are you fine? तुम पिछले पौने घंटे से अंदर बंद हो, कोई प्रॉब्लम तो नहीं है? तुम ठीक हो ना?"

    "हाँ, मैं ठीक हूँ, मुझे थोड़ा वक़्त लगेगा। तुम नाश्ता करके चले जाना और बिस्तर के पास मत जाना, please।" आन्या अंदर से ही उससे रिक्वेस्ट की। उसकी बात अन्वय को कुछ ठीक नहीं लगी। उसने फिर से सवाल किया,
    "कुछ हुआ है क्या? तुम्हें मेरी मदद की ज़रूरत है तो बताओ।"

    "नहीं, कुछ नहीं हुआ है और मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है, बस तुम चले जाओ बाकी मैं संभाल लूंगी।" आन्या ने फिर से अंदर से कहा। अन्वय ने एक-दो बार और पूछा पर आन्या ने उसे कुछ नहीं कहा तो अन्वय ने खीझते हुए कहा,
    "ठीक है, मत बताओ। मुझे भी कोई दिलचस्पी नहीं है तुम्हारी प्रॉब्लम को जानने में और न ही फालतू का वक़्त है कि यहाँ खड़े होकर तुम्हारे कुछ बताने का इंतज़ार करूँ। मुझे लेट हो रहा है तो मैं जा रहा हूँ। नाश्ता रखा हुआ है, मन करे तो बाथरूम से बाहर आकर खा लेना।"

    इतना कहकर वह ड्रेसिंग टेबल के पास जाकर तैयार होने लगा। अचानक ही बाल सेट करते वक़्त उसके कानों में आन्या की बात गूँजी कि बिस्तर के पास मत जाना और उसके कदम उस तरफ़ बढ़ गए जहाँ आन्या सोती थी। उसने कुछ सोचकर चादर हटाई और अगले ही पल घबराकर वापिस चादर बिस्तर पर डाल दी और दो कदम पीछे हट गया।

    बिस्तर की चादर पर हल्का सा खून का निशान देखकर वह घबरा गया कि कहीं आन्या को कहीं चोट तो नहीं आ गई। वह तुरंत ही बाथरूम की तरफ़ गया और फिर से दरवाज़ा खटखटाते हुए बोला,
    "आन्या, तुम ठीक हो? तुम्हें कहीं चोट आई है क्या? बिस्तर पर खून का निशान है, अगर तुम्हें कहीं चोट आई है तो बाहर आओ, हमें डॉक्टर के पास चलना चाहिए।"

    अंदर बैठी आन्या ने जब उसकी बात सुनी तो उसकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गईं और अगले ही पल वह गुस्से से चीखी,
    "मैंने मना किया था ना तुम्हें, क्यों गए तुम बिस्तर के पास?"

    "मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी, तुमने पहले कभी ऐसे बर्ताव नहीं किया है।" अन्वय की चिंता भरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी पर आन्या अब भी गुस्से से गरजते हुए बोली,
    "तुम्हें कब से मेरी चिंता होने लगी? मैंने कहा था ना तुम्हें कि मैं ठीक हूँ, तुम यहाँ से चले जाओ, फिर भी तुमने मेरी बात नहीं सुनी। मुझे ना तुमसे कोई बात ही नहीं करनी, चले जाओ तुम यहाँ से, मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है। प्राइवेसी नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं रह गई है अब।"

    "इतना क्या भड़क रही हो? अगर चोट लगी है, बाहर आओ हम डॉक्टर के चलते हैं।" अन्वय के इतना कहते ही आन्या गुस्से से चीखी,
    "मुझे कोई चोट नहीं लगी है और न ही मुझे किसी डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत है, पर तुम्हारा दिमाग ज़रूर खराब हो गया है तो जाकर डॉक्टर को दिखा लो।"

    "अगर तुम्हें चोट नहीं लगी तो वह निशान...?"


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  • 19. Until you are mine - Chapter 19

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

    “मुझे कोई चोट नहीं लगी है और न ही मुझे किसी डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत है, पर तुम्हारा दिमाग ज़रूर खराब हो गया है तो जाकर डॉक्टर को दिखा लो।”

    “अगर तुम्हें चोट नहीं लगी तो वो निशान…?” अन्वय ने कन्फ्यूज होकर सवाल किया, पर आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। अन्वय कुछ पल अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाता रहा। फिर अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया और वह स्तब्ध सा बंद दरवाजे को देखता रह गया। अब उसको आन्या के गुस्से की वजह समझ आई थी और वह खुद अब असहज हो गया था। जब वह छोटा था, तभी माँ गुज़र गयी थी। घर में कोई लड़की नहीं थी, तो इन सबके बारे में उतना ही पता था जितना पढ़ा था। कभी ऐसी किसी सिचुएशन में आया ही नहीं था, तो आज उसका दिमाग बंद पड़ गया था। उसको अब वो सब याद आने लगा जो उसने किसी वक़्त पर स्कूल में पढ़ा था।

    कुछ पल वह गहरी सोच में गुम रहा। फिर हिम्मत करके फिर से दरवाज़ा नॉक करते हुए बोला, “इट्स ओके, ये नॉर्मल है। अब क्या सारा वक़्त खुद को बाथरूम में बंद करके रहोगी?”

    “मैं बाहर नहीं आ सकती, तुम बस चले जाओ यहाँ से।” आन्या ने चिढ़ते हुए कहा। उसको खुद से ही खीझ हो रही थी कि उसको पहले पता कैसे नहीं चला। अब क्या करेगी? अपने घर होती तो कुछ जुगाड़ कर भी लेती, यहाँ तो कुछ भी नहीं जानती है।

    अन्वय एक बार फिर खामोशी से उसके बारे में सोचता रहा। उसके बाद उसके ज़हन में सिमरन का ख्याल आया। उसने झट से फ़ोन निकालकर राहुल के नंबर पर फ़ोन किया, पर नंबर बंद था। एक बार फिर वह परेशान हो गया।

    आन्या की प्रॉब्लम तो समझ गया था, पर अब करे क्या, यह समझ नहीं आ रहा था। कुछ सोचकर वह घर से बाहर चला गया। दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ सुनकर आन्या को जान गयी कि वह समझ गया है, पर वह बाहर आने की हिम्मत नहीं कर सकी। मुँह लटकाए अंदर बैठी रही और खुद को कोसती रही कि उसने पहले ध्यान क्यों नहीं दिया, अब कैसे निकलेगी इस सिचुएशन से?

    अन्वय वहाँ से सीधे कैमिस्ट की दुकान पर पहुँचा, पर अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। इतनी शर्मिंदगी उसने पहले कभी फील नहीं की थी। कुछ पल ठहरने के बाद आन्या के बारे में सोचकर उसने अंदर कदम रखा और अपनी नज़रें दौड़ाने लगा, पर कुछ बोला नहीं। तब दुकान वाले ने ही सवाल किया, “क्या हुआ भाई साहब? क्या लेना है?”

    आवाज़ सुनकर अन्वय ने उसे देखा। लब हिले, पर मुँह से आवाज़ बाहर नहीं आई। वह एम्बेरेस्ड फील कर रहा था। दुकानदार उसके कुछ कहने का इंतज़ार कर रहा था। अन्वय ने बहुत हिम्मत जुटाने के बाद धीरे से कहा, “वो लड़कियों को… मंथली प्रॉब्लम होती है, तो वो… जो इस्तेमाल करती है, वो चाहिए।”

    बेचारे अन्वय के इतना कहते हुए पसीने छूट गए। वही उसकी घबराहट देखकर दुकानदार अंकल ने ही आगे कहा, “आपको सैनिटरी नैपकिंस चाहिए?”

    अन्वय ने धीरे से हाँ भर दी। तो उसने फिर से सवाल किया, “कौन सा चाहिए? बताइए।”

    अब तो अन्वय चौंक उठा, “कौन सा चाहिए? मतलब?”

    “अलग-अलग कंपनी के हैं, अलग-अलग तरह के, सब अपनी सहूलियत के हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। आपको कौन सा चाहिए?” दुकानदार को तो आदत थी, तो वह एकदम सहज था, पर अन्वय और भी ज़्यादा असहज होता जा रहा था और अब बुरी तरह परेशान भी हो गया था कि अब क्या करे? दुकान वाला उसे ही देख रहा था।

    शायद आज भगवान को अन्वय की हालत पर थोड़ा तरस आ गया। कुछ ही मिनट बाद एक लड़की वहाँ आई, तो दुकानदार उसके साथ बिज़ी हो गया। इत्तेफ़ाक़ से लड़की को भी वही लेना था, तो वह लेकर चली गयी।

    अब दुकानदार ने फिर से उसकी तरफ़ घूमकर कहा, “बताइए, कौन सा लेना है आपको?”

    “वो जो लड़की लेकर गयी, वो अच्छा है?” अन्वय ने कुछ हिचकिचाते हुए पूछ ही लिया। दुकानदार ने हाँ भर दी, तो अन्वय ने वही पैक करवा लिया और वहाँ से निकल गया।

    घर पहुँचा तो आन्या अब भी अंदर बाथरूम में लॉक थी। अन्वय ने पैकेट बेड पर रखा, फिर बाथरूम नॉक करते हुए बोला, “आन्या।”

    आवाज़ सुनकर आन्या चौंक गयी और हड़बड़ाहट में बोली, “तुम… तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम तो चले गए थे ना?”

    अन्वय ने उसका सवाल का जवाब नहीं दिया, बल्कि धीरे से अपनी बात बोला, “बेड पर तुम्हारी ज़रूरत की चीज़ रखी है। मैं जा रहा हूँ, तो प्लीज़ खुद को बाथरूम में बंद मत रखना और ब्रेकफ़ास्ट भी कर लेना।”

    इतना कहकर उसने अपना बैग उठाया और वहाँ से चला गया। आन्या उसकी बात के बारे में सोचने लगी। कुछ देर बाद उसके दिमाग में कुछ आया और उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गयीं। उसने हिम्मत करके बाथरूम से बाहर कदम रखा और बेड पर रखा पैकेट खोलकर देखा, तो शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया। उसने अपनी आँखें भींच ली और यही सोचने लगी कि आज उसने कितनी बड़ी गड़बड़ कर दी है, वह क्या सोच रहा होगा उसके बारे में? अचानक ही उसके दिमाग में आया कि अन्वय उसके लिए खुद लेकर आया, उसकी केयर महसूस करते हुए आन्या के लबों पर शायद सी मुस्कान फैल गयी। वह कपड़े और चादर लेकर वापिस बाथरूम में चली गयी।

    अन्वय अब भी अजीब फील कर रहा था। कॉलेज पहुँचते ही वह कैंटीन में गया और दो बोतल पानी पी गया। ब्रेकफ़ास्ट तो किया नहीं था, पर अब उसे भूख भी नहीं लग रही थी। तो वह क्लास में चला गया। सारा दिन खुद को बिज़ी रखा, ताकि आन्या का ख्याल दिल में न आए।

    शाम को फ़्री हुआ, पर घर जाने का दिल नहीं था उसका, उसको फ़ेस करने से पहली बार उसको अजीब सा लग रहा था। उसने बाइक जंगल की तरफ़ दौड़ा दी। वहाँ एकांत में बैठा प्रकृति की सुंदरता को निहारता रहा। वहाँ आकर उसे हमेशा से बेहतर फील होता था।

    आज भी यहाँ आकर उसको अच्छा लग रहा था। वहाँ अंधेरा छा गया। अचानक ही उसके ज़हन में आन्या का ख्याल कौंध गया। उसने घड़ी देखी तो रात के 10 बज गए थे। उसको अब आन्या की चिंता होने लगी, तो उसने उसका नंबर मिला दिया, पर आन्या ने फ़ोन नहीं उठाया।

    अन्वय को बेचैनी सी होने लगी। वह अभी काफ़ी दूर था। वह बाइक पर बैठा और बाइक हवा को चीरते हुए सड़कों पर दौड़ने लगी। रात का वक़्त था, सड़कें सुनसान थीं, फिर भी उसको घर पहुँचने में डेढ़ घंटा लग गया। उसने बाइक खड़ी की और घर का लॉक खोलकर अंदर आया। अपने रूम के बाहर पहुँचा, पर वक़्त देखते हुए उसने डोर नॉक नहीं किया।

    एक बार फिर आन्या को फ़ोन किया। अंदर से आवाज़ तो आई, पर आन्या ने फ़ोन नहीं उठाया। अन्वय पलक झपकते ही हवा के तरह वहाँ से ग़ायब हो गया; अगले ही पल वह बालकनी के पास था।

  • 20. Until you are mine - Chapter 20

    Words: 1118

    Estimated Reading Time: 7 min

    अन्वय को बेचैनी हुई। वह उस वक्त काफी दूर था; पल भर में उसकी बाइक हवा चीरती हुई सड़कों पर दौड़ने लगी। रात का वक्त था, सड़कें सुनसान थीं, फिर भी उसे घर पहुँचने में डेढ़ घंटा लगा। उसने बाइक खड़ी की और घर का ताला खोलकर अंदर आया।

    अपने कमरे के बाहर पहुँचा, पर वक्त देखकर उसने दरवाज़ा नहीं खटखटाया। उसने फिर आन्या को फोन किया। अंदर से आवाज़ आई, पर आन्या ने फोन नहीं उठाया। अन्वय पलक झपकते ही वहाँ से गायब हो गया; अगले ही पल वह बालकनी के पास था। वह वापस चमगादड़ से अपने मानवीय रूप में आ गया।

    आन्या बालकनी का दरवाज़ा हमेशा खुला रखती थी। यह बात वह जानता था, और इस बात पर दोनों की कई बार बहस भी हुई थी क्योंकि अन्वय उसे दरवाज़ा बंद रखने को कहता था, लेकिन आन्या नहीं मानती थी। इसके कारण अन्वय उस पर गुस्सा भी करता था। पर आज उसे उस पर गुस्सा नहीं आया। वह बालकनी से कमरे में घुस गया और जैसे ही आन्या के पास आया, आन्या को देखकर उसकी धड़कनें धीमी पड़ गईं। आन्या अपने पेट पर अपनी बाहें लपेटे, पैर मोड़कर घुटनों को पेट से लगाए, उनके बीच अपना मुँह छुपाए लेटी हुई थी और सिसक रही थी।

    अन्वय तेज़ कदमों से उसके पास आया और चिंता भरे स्वर में बोला,
    "आन्या, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? तुम रो क्यों रही हो?"

    आवाज़ सुनकर आन्या ने सिर उठाकर उसे देखा। उसकी लाल, सूजी हुई आँखें देखकर अन्वय और भी ज़्यादा डर गया। आन्या ने एक नज़र उसे देखा और वापिस अपने घुटनों के बीच अपना सिर छुपाते हुए धीरे से बोली,
    "हम्म, मैं ठीक हूँ।"

    "अगर तुम ठीक हो तो ऐसे क्यों लेटी हो? और रो क्यों रही हो?" अन्वय परेशान सा उसे देख रहा था। आन्या ने अब अपने आँसुओं को पोंछ लिया और फ़ीकी मुस्कान के साथ उसे देखते हुए बोली,
    "मेरी चिंता करने के लिए थैंक्यू, पर तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। बस पेट थोड़ा दर्द कर रहा है, पर वो नॉर्मल है, एक-दो दिन में खुद ही ठीक हो जाएगा।"

    "तुम्हारा पेट दर्द कर रहा है और तुमने मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा? कैसे ठीक हो जाएगा खुद से? कोई जादू जानती हो तुम?" अन्वय अब गुस्से से बिगड़ते हुए बोला और उसे घूरकर देखने लगा।

    "मैं ठीक हूँ, ऐसे वक़्त पर ऐसा होता है मेरे साथ, आदत है मुझे, दो दिन में खुद ठीक हो जाएगा।" आन्या जितना हो सके खुद को नॉर्मल दिखाने की कोशिश कर रही थी। पर दर्द उसके चेहरे पर झलक रहा था। उसकी बात सुनकर अन्वय ने हल्के गुस्से से कहा,
    "अच्छा, अगर इतनी ही आदत है तो रो क्यों रही थी? आँखें देखो कैसे लाल होकर सूज गई हैं! दर्द से चेहरा सना हुआ है और कह रही हो कि ठीक हो? अगर हमेशा दर्द होता है तो कभी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया? जहाँ तक मैंने पढ़ा है, ऐसा कुछ कंपलसरी तो नहीं है कि इस वक़्त असहनीय दर्द हो, अगर दर्द होता है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए था ना?"

    "कौन लेकर जाता डॉक्टर के पास? पापा को कुछ कह नहीं सकती थी और उनकी पत्नी को मुझे होने वाले दर्द से कोई मतलब नहीं था। उन्हें बस अपने पैसे बचाने थे। मैं दर्द सहकर भी सब काम करती थी, पर उन्हें कभी मेरा दर्द नज़र ही नहीं आया, बस काम अगर वक़्त पर नहीं होता तो मारती थीं। पापा भी मुझे कामचोर कहकर ताने मारते। कोई था ही नहीं सुनने वाला, माँ होती तो वो मेरा दर्द समझ जाती, पर वो तो मुझे जन्म देते ही मुझे अकेला छोड़कर चली गई थी।

    शायद पापा ठीक कहते थे, मैं ही अपनी माँ की कातिल हूँ, मेरी वजह से वो इस दुनिया से चली गई।" ये कहते हुए उसका गला भर आया और आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे। उसने किसी तरह अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया और फ़ीकी मुस्कान के साथ आगे बोली,
    "मैंने कहा था ना, आदत है मुझे, अभी ज़्यादा हो रहा है, खुद ही आराम हो जाएगा और बस दो दिन बाद मैं वापिस एकदम ठीक हो जाऊंगी।"

    अन्वय उसकी मुस्कान भी देख पा रहा था और उसके पीछे छुपा दर्द भी महसूस कर पा रहा था। कितनी मुश्किल लड़ाई लड़ी थी उसने ज़िंदगी से जीने के लिए। इस मुस्कान को पाने के लिए खुद से ही लड़ रही थी, उसकी इस जद्दोजहद से अन्वय भी अनजान नहीं था। वह कुछ पल खामोशी से उसे देखता रहा, फिर किचन की तरफ़ जाते हुए बोला,
    "नाश्ता और दोपहर का खाना किया था तुमने?"

    "नहीं, सुबह से पेट बहुत दुख रहा है।" आन्या अब और दिखावा नहीं कर सकी; अन्वय से झूठ कहने की ज़रूरत कभी उसे पड़ती ही नहीं थी। कुछ तो था उसमें कि आन्या उसे अपने दिल की हर बात बता दिया करती थी; जो दर्द कभी किसी से नहीं बाँटा था, वह अन्वय के सामने उजागर कर देती थी, बिना किसी डर के कि वह उसके बारे में क्या सोचेगा, वह उसे सब कह जाती थी।

    उसकी बात सुनकर अन्वय के कदम एक पल को ठहर गए, फिर वह वापिस किचन की तरफ़ बढ़ गया। आन्या एक बार फिर अपना पेट पकड़कर लेट गई। कुछ देर बाद अन्वय किचन से बाहर आया; उसके हाथ में ट्रे थी जिसमें हॉट वॉटर बैग था और साथ में कॉफ़ी का मग भी था। उसने ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा,
    "आन्या, उठकर सीधे से बैठो।"

    आन्या ने आवाज़ सुनकर सिर उठाकर उसे देखा तो उसने उठने का इशारा कर दिया। आन्या उठकर बैठ गई तो अन्वय ने ग्लास उसकी तरफ़ बढ़ाकर कहा,
    "इसे ख़त्म करो, सुबह से भूखी हो तो पेट दर्द ही करेगा। कुछ तो खा लेती।"

    "तुम्हें नहीं पता, खाने पर और ज़्यादा दर्द करता है।" आन्या ने मुँह फुलाते हुए उसे देखा तो अब अन्वय ने उसे घूरते हुए कहा,
    "और नहीं खाने से तो दर्द छूमंतर हो गया होगा ना?"

    आन्या ने नज़रें झुका ली और मुँह बिचका लिया। अन्वय ने उसका चेहरा देखा तो अब थोड़ा आराम से बोला,
    "जल्दी से कॉफ़ी ख़त्म करो, इससे तुम्हें थोड़ा आराम मिलेगा, तब तक मैं तुम्हारे खाने के लिए कुछ बना देता हूँ।"

    उसने आँखों से कॉफ़ी पीने का इशारा किया तो आन्या ने कॉफ़ी मग लेकर उसे अपने होठों से लगा दिया। अन्वय ने हॉट वॉटर बैग उठाया और उसके पेट पर रखते हुए बोला,
    "इसे यूँ ही पकड़कर रखो, दर्द से आराम मिलेगा।"

    आन्या पहले तो चौंक गई थी, फिर उसने बैग पकड़कर हाँ में सिर हिला दिया। अन्वय वापिस किचन में चला गया और उसके लिए ओट्स बनाने लगा। कुछ देर बाद वह फिर से वहाँ आया तो सामने का नज़ारा देखकर चौंक गया।


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