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His Dangerous Obsession

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Aarya Rai

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Description

His Dangerous Obsession एक ऐसी मोहब्बत... जो हदें पार कर गई। जब आरोही की आँखें खुलीं, वो एक ऐसे बंद दरवाज़े के पीछे थी, जहाँ उसकी मर्ज़ी की कोई जगह नहीं थी। धुंधली यादों, भारी सिर और डर से भरे दिल क...

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अधिराज सिंह राठौर

Hero

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आरोही मेहरा

Heroine

Total Chapters (64)

Page 1 of 4

  • 1. His Dangerous Obsession - Chapter 1

    Words: 1041

    Estimated Reading Time: 7 min

    सेवन स्टार होटल के उस पार्टी हॉल में हर चीज़ एक परफेक्ट फ़ेयरीटेल जैसी लग रही थी। ग्लिटरिंग लाइट्स, डिज़ाइनर आउटफिट्स, शैम्पेन की खुशबू और हर तरफ़ मुस्कराते चेहरे... पर उस भीड़ में एक चेहरा था जो मुस्कुरा नहीं रहा था।

    एक कोने में खड़ी, आरोही के चेहरे पर दर्द साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी आँखों में नमी थी और लब खामोश। दिल जैसे धड़कना भूल गया था और आज उसे अपनी साँसें बोझ लग रही थीं। आज पहली बार वो अपनी फैमिली के साथ ऐसी किसी पार्टी में आई थी और यहाँ उसे ऐसा सरप्राइज मिला जिसने उसके होश उड़ा दिए थे।

    आरोही नम आँखों से सामने देख रही थी। सामने ही स्टेज पर वो इंसान खड़ा था, जिसे उसने पूरे दिल से चाहा था, अपनी ज़िंदगी माना था… और आज? आज वो किसी और का हो गया था। मोहब्बत में उसे बेवफ़ाई मिली थी और दगा करने वाली उसकी अपनी बहन थी।

    "लेट्स रेज़ अ टोस्ट फॉर द लवली कपल!"

    जैसे ही ये आवाज़ गूँजी, अप्लॉज़ की तेज़ लहर दौड़ पड़ी। हर कोई नाच रहा था, मुस्कुरा रहा था, पर आरोही के लिए वो हर ताली, हर हँसी – एक तमाचा थी उसकी ख़ामोश मोहब्बत पर।

    नंदिता का चेहरा चमक रहा था। उसने ख़ास तौर पर एमराल्ड ग्रीन गाउन पहना था, जो उसकी जीत की तरह दमक रहा था। उसने स्टेज से ही आरोही की तरफ़ देखा और अपनी इंटेजमेंट रिंग दिखाते हुए एक विक्ड स्माइल दी – वो मुस्कान जिसमें तंज था, जीत थी… और शायद साज़िश भी।

    उसके पास खड़े उसके मॉम, डैड और सभी बहुत खुश नज़र आ रहे थे। आरोही ने अपना चेहरा फेर लिया। नंदिता ने अपने फ़ियांसे को कुछ कहा और इठलाते हुए आरोही की ओर बढ़ गई।

    "कैसा लग रहा है, आरोही?" नंदिता उसके करीब आकर फुसफुसाई। "जिसे तुम चाहती थी, वो अब मेरा है। बहुत ट्रस्ट था न तुम्हें अपनी मोहब्बत पर, देखो आज मैंने तुमसे तुम्हारी मोहब्बत को भी छीन लिया। जिसे तुमने दिलों जान से चाहा उसने तुम्हें ठुकराकर मुझे चुना और बेचारा करता भी क्या? उसे भी समझ आ गया था कि तुम उसके लायक ही नहीं हो, तुम उसे डिज़र्व ही नहीं करती इसलिए तुम्हें छोड़कर उसने मुझसे इंटेजमेंट कर ली... वैसे कैसा लगा तुम्हें हमारा ये सरप्राइज? आज तुम्हारी बहन की एंगेजमेंट हुई है, विश नहीं करोगी मुझे?"

    नंदिता शातिर मुस्कान होंठों पर सजाए जानबूझकर आरोही के ज़ख़्मों पर अपने शब्दों का नमक रगड़ रही थी।

    आरोही ने होंठ काटते हुए आँसू रोकने की कोशिश की। नंदिता की बातें उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थीं। अब वो यहाँ और नहीं रह सकती थी। उसने नंदिता को पूरी तरह से इग्नोर किया और उस भीड़ में कहीं खो गई।

    अपनी जीत पर इतराते हुए नंदिता वापिस स्टेज की तरफ़ बढ़ गई जहाँ गेस्ट उसका वेट कर रहे थे।


    (बार काउंटर के पास...)

    "एक ड्रिंक देना," आरोही ने बारटेंडर से कहा, उसकी आवाज़ भारी और आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।

    "मैम," उस बारटेंडर ने उसकी हालत देखकर कुछ कहना चाहा पर आरोही ने उसे मौका नहीं दिया।

    "मुझे बस एक ड्रिंक चाहिए," उसने ज़िद की तो बारटेंडर उसके लिए ड्रिंक बनाने लगा। तभी वहाँ एक वेटर आया जिससे उसका ध्यान भटक गया। उस वेटर ने बारटेंडर को बातों में उलझाकर मौके का फ़ायदा उठाया और आरोही की ड्रिंक में पाउडर जैसा कुछ डाल दिया। अपने ग़म में डूबी आरोही ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया।

    "मैम आपकी ड्रिंक," बारटेंडर ने ग्लास उसके तरफ़ बढ़ाया।

    बिना ये जाने कि उसके गिलास में कुछ मिला हुआ था, आरोही ने उसे एक ही साँस में ख़त्म कर दिया। दूर स्टेज पर बैठी नंदिता के होंठों पर एविल मुस्कान फैली हुई थी।

    आरोही ने दो-तीन ग्लास खाली कर दिए। उसका दिल टूट चुका था, अब दर्द का एहसास भी फ़ीका पड़ने लगा था। शराब का नशा उसके सर पर चढ़ने लगा था; शरीर भी सुन्न होने लगा था, आँखें भारी हो रही थीं। उसे लग रहा था जैसे दुनिया घूम रही हो।

    आरोही ने अपना सर थाम लिया। अब वो अपने होश खोती जा रही थी। अजीब सी बेचैनी महसूस करते हुए उसने वहाँ से जाने के लिए कदम बढ़ाए पर उसके कदम लड़खड़ा गए, वो गिरती उससे पहले ही किसी मर्दाना बाँह ने उसे थाम लिया।

    "मैम आप ठीक हैं?"

    आवाज़ सुनकर आरोही ने सर उठाया, जबरदस्ती अपनी आँखों को बड़ा-बड़ा करके सामने खड़े शख्स को देखने की कोशिश की। पर उसकी पलकें भारी हो रही थीं और सब कुछ धुंधला नज़र आ रहा था। उसके कपड़ों से वो इतना समझ गई कि जिसने उसे गिरने से बचाया वो कोई वेटर है।

    आरोही की पलकें फिर झुक गईं और अनजाने में उसने अपना सर उस वेटर के सीने से लगा दिया।

    "मैम लगता है आपने ज़्यादा ड्रिंक कर ली है, मैं आपको रेस्ट रूम में ले चलता हूँ।"

    आरोही ने पलटकर कुछ नहीं कहा, उसे होश ही नहीं था। चाहकर भी वो अपनी आँखें नहीं खोल पा रही थी।

    उस वेटर ने पलटकर स्टेज की तरफ़ देखा और आरोही को संभालते हुए वहाँ से लेकर जाने लगा।

    अभी वो थोड़ा आगे ही आया था कि आरोही ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया।

    "ऊऽऽऽग्घ... उऽऽऽ..."

    वेटर ने घबराकर उसे खुद से दूर किया। आरोही के कदम लड़खड़ा गए।

    "मैम कंट्रोल करिए, मैं आपको वॉशरूम ले चलता हूँ।" वेटर ने फिर उसको संभाला और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। अचानक ही आरोही ने उल्टी कर दी और उसके कपड़े गंदे हो गए। वेटर ने अजीब सा मुँह बनाया और जल्दी-जल्दी चलकर आरोही को वॉशरूम छोड़ने के बाद खुद मेल वॉशरूम में चला गया।

    वॉश बेसिन के सामने खड़ी आरोही ने उल्टी की, अपना मुँह धोया और दीवार का सहारा लेकर वॉशरूम से बाहर निकल गई। उसके सामने ही लिफ्ट थी। भीड़ के साथ आरोही भी लिफ्ट में घुस गई।

    धीरे-धीरे लोग अपने-अपने फ़्लोर पर उतरते चले गए। आरोही लिफ्ट की वॉल से चिपककर आँखें मूंदे बैठी हुई थी। लास्ट फ़्लोर पर जाकर लिफ्ट रुकी। आरोही खुद को संभालते हुए खड़ी हुई और लिफ्ट से बाहर निकल गई।

    आरोही को नहीं पता था कि वो कहाँ जा रही थी। कदम बहक रहे थे, सिर घूम रहा था, और उसके भीतर एक अजीब-सी गर्मी दौड़ रही थी। कॉरिडोर में चलते हुए उसने एक डोर पर हाथ रखा ही था कि किसी ने उसकी कलाई पकड़कर उसे अंदर खींच लिया।


    To be continued…

  • 2. His Dangerous Obsession - Chapter 2

    Words: 1473

    Estimated Reading Time: 9 min

    आरोही को नहीं पता था कि वह कहाँ जा रही थी। कदम बहक रहे थे, सिर घूम रहा था, और उसके भीतर एक अजीब-सी गर्मी दौड़ रही थी। कॉरिडोर में चलते हुए उसने एक दरवाज़े पर हाथ रखा ही था कि दरवाज़ा खुद ब खुद खुल गया। आरोही लड़खड़ाती हुई अंदर चली गई।

    अपनी अधखुली आँखों को चारों ओर घुमाते हुए वह आगे बढ़ने लगी और चलते-चलते एक कमरे में घुस गई।

    "कौन हो तुम?" अचानक ही एक गहरी, भारी आवाज़ वहाँ गूँजी और आरोही के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए। उसने नज़रें उठाईं।

    एक लम्बा, हैंडसम मैन उसके सामने खड़ा था। उसकी तीखी निगाहें अंधेरे में भी चमक रही थीं। उसकी शर्ट के बटन आधे खुले थे, मजबूत बाहें उसकी शक्ति और प्रभुत्व की गवाही दे रही थीं।

    यकीनन वह किलर लुक्स और अट्रैक्टिव पर्सनैलिटी का मालिक था, उसकी आँखों में जो इंटेंसिटी थी, वह किसी को भी पिघला सकती थी। कोल्ड किलर लुक्स एंड डेंजरस ऑरा का बेमिसाल कॉम्बो था वह, पर आरोही के लिए बिल्कुल अंजान था।

    "म... मुझे नहीं... पता," आरोही की आवाज़ धीमी थी, अपनी पलकें फड़फड़ाते हुए वह गौर से उसे देखते हुए पहचानने की कोशिश कर रही थी।

    आरोही का जवाब सुनकर उस शख्स की आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं। आरोही आगे बढ़ी, पर उसके कदम लड़खड़ा गए, और वह सीधे उस शख्स के चौड़े सीने से टकरा गई।

    उसने उसकी कमर पकड़कर उसे गिरने से रोका। लेकिन जैसे ही उसकी नज़दीकी का एहसास हुआ, उसका गला सूखने लगा, अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ।

    आरोही का मखमली बदन, उसके जिस्म से उठती भीनी खुशबू, उसका कोमल स्पर्श... उसने पहले कभी किसी लड़की को अपने इतने करीब आने का अधिकार नहीं दिया था और आज अचानक ही एक अंजान लड़की उसके सीने से लिपट गई थी।

    उस शख्स को खुद में कुछ अजीब से बदलाव महसूस हुए। उसने चेहरा फेरते हुए गहरी साँस ली, अपने ज़ज़्बातों को कंट्रोल किया, फिर नज़रें घुमाकर आरोही को देखा।

    "तुम नशे में हो," वह फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ अब भी भारी थी।

    "नहीं... मैं ठीक हूँ," आरोही ने धीमे से कहा, फिर अपनी उंगलियों से उसकी शर्ट को पकड़ते हुए उसके और करीब चली गई।

    "नहीं... म... मैं ठीक नहीं हूँ... क... कुछ... कुछ हो रहा है मुझे... अजीब सी बेचैनी हो रही है।" आरोही की ज़ुबान लड़खड़ा रही थी। उस शख्स ने उसे खुद से दूर करना चाहा, पर आरोही ने उसे कसके पकड़ लिया।

    "तुम जो भी हो, इस वक़्त तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए।"

    "न... नहीं... मुझे खुद से दूर मत करो... ऐसे ही रहने दो..." उसकी आवाज़ में अजीब सी बेचैनी थी और वह लगातार उस शख्स के करीब होती जा रही थी। इन नज़दीकियों से बेअसर वह भी नहीं था, पर कोशिश पूरी कर रहा था खुद को कंट्रोल करने की।

    "तुम होश में नहीं हो, तुम्हें एहसास नहीं है कि तुम क्या कर रही हो... दूर रहो मुझसे... अगर मेरे करीब आई तो बाद में बहुत पछताओगी।"

    "मुझे परवाह नहीं," आरोही ने कहा, उसकी आँखें नशे और दर्द से बोझिल थीं। "आज मैंने सब खो दिया... मुझे अब कोई परवाह नहीं..."

    उस शख्स ने आरोही के चेहरे को गौर से देखा। बिखरी हुई हालत, लाल चेहरा, आँखों में दर्द में लिपटी नमी। यह मासूम लड़की यहाँ इस हाल में क्यों थी? क्या कोई उसे नुकसान पहुँचाना चाहता था? यहाँ कैसे आई और यह सब क्या है?

    कई सवाल ज़हन में उठे, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, आरोही ने खुद को उसके करीब खींच लिया। उसकी साँसें गर्म थीं, नज़रें बोझिल, लेकिन चाहत से भरी हुईं।

    "तुम जानते हो... कैसा लगता है जब कोई तुम्हारा सब कुछ छीन ले?" आरोही ने उसके कॉलर को कसकर पकड़ा। "जब तुम्हें एहसास हो कि तुम कुछ भी नहीं थे, हो, और कभी रहोगे भी नहीं? तुम्हारा कोई अपना नहीं... सब कुछ धोखा था... छल था, फरेब था... तुम्हें पता है... जब एक झटके में तुमसे तुम्हारी सारी खुशियाँ, तुम्हारी मोहब्बत छिन जाए तो कैसा लगता है?... मेरे पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं... कुछ भी नहीं..."

    ड्रग्स के नशे पर दिल टूटने का दर्द भारी पड़ने लगा था। उसकी आँखों में आँसू थे और उसे इस कदर दर्द में देखकर उस शख्स के एक्सप्रेशन्स कठोर हो चुके थे।

    "मैं जानता हूँ।"

    और फिर, बिना सोचे, बिना कुछ कहे, उसने आरोही को अपने करीब खींच लिया। आरोही उसके सीने से लग गई। उसकी आँखों से बहते आँसू उस शख्स की शर्ट को भिगोने लगे थे।

    अधिराज का शरीर सख्त हो गया। उसके अंदर एक तूफान उठने लगा। वह कभी अपनी इच्छाओं के आगे नहीं झुका था, लेकिन यह लड़की... इसमें कुछ था, जो उसे बेकाबू कर रहा था।

    कुछ लम्हें गुजरे। आरोही ने अपना सिर उसके सीने से बाहर निकाला और अपनी हथेली से उस शख्स के गाल को सहलाने लगी।

    "तु... तुम बहुत अच्छे हो... मैं बिल्कुल अकेली थी... टूटकर बिखर रही थी... तु... तुमने मुझे संभाल लिया... आई नीड यू..."

    आरोही ने लड़के के सीने पर अपने होंठों को टिका दिया। उसकी आँखें सख्त हो गईं, जबड़े भींचते हुए उसने आरोही को खुद से दूर करना चाहा, पर आरोही उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी। उसने उसकी आँखों में देखते हुए, बेताबी से कहा,

    "मुझे मत रोको... मत ठुकराओ... इस वक़्त, इस पल... बस मुझे अपना बना लो... मुझे खुद से दूर मत करो, मुझे तुम्हारे पास आना... बहुत पास आना है... यह बेचैनी सिर्फ़ तुम मिटा सकते हो..."

    आरोही की हथेली उस शख्स के सीने और गर्दन पर फिसलने लगी। उसकी आवाज़ में तड़प थी,

    "मुझे सिर्फ़ तुम्हारा प्यार चाहिए... सबने मुझे ठुकरा दिया, तुम मुझे अपना बना लो... आज की रात... मुझे सिर्फ़ तुम चाहिए... Passionately... madly... love me... I need you..."

    आरोही ने धीरे से उसकी गर्दन पर होंठ रखते हुए, सरगोशी की और उसके ईयरलॉब को अपने दांतों के बीच दबा दिया। इतना काफी था उस शख्स को उकसाने के लिए।

    आरोही की करीबी, उसकी चाहत को इससे ज़्यादा वह रेजिस्ट नहीं कर सका। उसने पहले कभी किसी लड़की को इस कदर नशे में नहीं देखा था, और कभी किसी की मासूमियत ने उसे इस हद तक बेचैन भी नहीं किया था। पर आज यह अंजान लड़की अपनी बातों और हरकतों से उसे बहकने पर मजबूर कर रही थी।

    आरोही ने उसकी आँखों में देखा, उसकी आँखों में अजीब-सा अट्रैक्शन था, जो उसे अपनी तरफ़ खींच रहा था।

    उस शख्स का हाथ आरोही की कमर पर सरक गया। उसकी कमर पर अपनी पकड़ कसते हुए उसने आरोही को खुद से सटा लिया। आरोही का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने आँखें बंद कर लीं।

    अधिराज ने कभी इस तरह किसी के लिए महसूस नहीं किया था, लेकिन यह लड़की... यह नशे में थी, लेकिन उसकी मासूमियत, उसकी चाहत, सब कुछ असली लग रहा था।

    उसके होंठ आरोही के करीब आए।

    "एक आखिरी मौका दे रहा हूँ तुम्हें, अब भी वक़्त है, सोच लो, क्या तुम यह चाहती हो? अगर मैं अब नहीं रुका, तो मैं खुद पर काबू नहीं रख पाऊँगा। एक बार तुम्हारे करीब आया तो तुम चाहकर भी मुझे रोक नहीं सकोगी। अगर आज रात तुम मेरे नज़दीक आई तो कभी दोबारा मुझसे दूर जाने की इजाज़त नहीं मिलेगी। इस एक रात की कीमत तुम्हें आगे की हर रात मेरे साथ बिताकर चुकानी होगी।"

    उसकी गहरी आवाज़ आरोही के कानों से टकराई और गर्म साँसें उसके गाल व गर्दन पर बिखरने लगीं।

    आरोही पर पूरी तरह से नशा हावी होने लगा था। उसे बिल्कुल एहसास नहीं था कि उसके सामने खड़ा शख्स कौन है, उनके बीच क्या होने वाला है? वह क्या कह रहा है। उसे बस इतना पता था कि इस वक़्त उसे उसकी ज़रूरत थी। उसकी बाहों में आकर उसे सुकून मिल रहा है।

    उस शख्स की वार्निंग को नज़रअंदाज़ करते हुए आरोही ने नशीली निगाहों से देखा और बड़ी बेताबी से उसके चेहरे को चूमने लगी।

    आरोही की कमर पर पकड़ मज़बूत करते हुए उस शख्स ने उसके बालों में अपनी उंगलियों को उलझाया और उसके चेहरे को ऊपर करते हुए उसके होंठों को अपने होंठों से दबा दिया।

    दोनों के होंठ आपस में टकरा रहे थे, बेचैन साँसें चेहरे पर बिखर रही थीं, दिल की धड़कनें तेज़ थीं। आरोही धीरे-धीरे वाइल्ड होती जा रही थी और होंठों को चूमने के साथ उसे काटना शुरू कर दिया था।

    उस लड़के ने उसकी कमर को थामते हुए उसे हल्का ऊपर उठाया, आरोही ने पैरों को खोलकर उसकी कमर पर लपेट दिया। लड़के ने उसके सर के पीछे हाथ लगाया और शिद्दत से उसके होंठों को चूमने लगा। आरोही की हथेली उसके बालों को सहलाने लगी।

    दोनों इन लम्हों में पूरी तरह से खो चुके थे। धीरे-धीरे उनके बीच की दूरियाँ कम होने लगी थीं। आरोही की साँसें उखड़ने लगीं, उस लड़के ने उसके लबों को आज़ाद किया और अपने होंठों से उसके गर्दन, खुले कंधों को सहलाते हुए बेड की ओर बढ़ गया।


    To be continued…

  • 3. His Dangerous Obsession - Chapter 3

    Words: 1508

    Estimated Reading Time: 10 min

    नशे में आरोही एक अंजान लड़के के कमरे में चली गई थी। पैशनेट रात का आगाज़ हो चुका था। दोनों के कपड़े फर्श पर बिखरे थे। कमरे की मद्धम रोशनी में दोनों एक-दूसरे के इतने करीब थे कि उनकी साँसें एक-दूसरे में घुल रही थीं।

    आरोही की आहों और सिसकियों की आवाज़ उस कमरे में गूंज रही थी। उस शख्स की हथेली आरोही के जिस्म के हर अंग को तराश रही थी; शरीर पर जगह-जगह लव बाइट्स के निशान मौजूद थे। आरोही ने अपनी बाँहों में उसकी पीठ कस ली हुई थी; उसके नाखून उसके सीने और पीठ पर निशान छोड़ चुके थे।

    दोनों पूरी तरह से इन एहसासों में खो चुके थे। आरोही के बदन से उठती खुशबू, उसकी बेचैन साँसें और बिखरती आहें उस लड़के को और ज़्यादा एक्साइटेड कर रही थीं। वो पूरी शिद्दत से उसके होंठों को चूम रहा था, जिसमें आरोही भी उसका पूरा साथ दे रही थी।

    धीरे-धीरे उनके बीच की सारी हदें टूटती चली गईं। उस शख्स ने आरोही की हथेलियों को मसलते हुए उसे बेड पर दबा दिया और पूरी तरह से उस पर हावी हो गया। आरोही की दर्द भरी चीख वहाँ गूँजी और झुकी पलकों के नीचे से आँसू बहने लगे।

    धीरे-धीरे दर्द कम हुआ और अजीब सा सुकून उसके चेहरे पर छा गया। ये मीठा-मीठा सा दर्द अच्छा लगने लगा उसे और सब भूलकर वो उसकी बाँहों में समा गई। पर उस शख्स का मन अब भी नहीं भरा था; वो अब भी पूरी शिद्दत के साथ आरोही में डूबा हुआ था।

    सुबह की पहली किरण मिरर वॉल से छनकर आरोही के चेहरे पर बिखरने लगी, जिस पर अलग सी कशिश बिखरी हुई थी। होंठों पर हल्की मुस्कान सजी थी।

    नींद में खलल पड़ी। आरोही की पलकें धीरे से हिलीं; शरीर में कुछ हलचल हुई। नींद अब भी पूरी नहीं हुई थी; रात की खुमारी अब भी दिलों-दिमाग पर छाई हुई थी।

    आरोही को अपने शरीर में अजीब-सा भारीपन महसूस हुआ। सिर के साथ लोअर पार्ट में तेज दर्द का एहसास हुआ। करवट लेनी चाही तो दर्द से उसकी सिसकी निकल गई। उसने अपनी पलकों को उठाया और जो उसने देखा, उससे उसकी साँसें अटक गईं।

    उसके बगल में कोई लेटा था... बिल्कुल करीब... उसकी बाहों में, जिसका चेहरा उसके बिल्कुल सामने था, पर वो उसे नहीं जानती थी।

    दोनों एक चादर में लिपटे थे; बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। उसकी बाँह आरोही के कमर पर लिपटी हुई थी और पकड़ इतनी सख्त थी कि आरोही हिल तक नहीं पा रही थी।

    आरोही कुछ पल ब्लैंक सी उसे देखती रही। अपने दिमाग पर ज़ोर डाला। सिर पहले ही भारी लग रहा था, अब और दर्द करने लगा। आँखों के आगे बीती रात की धुंधली परछाइयाँ उभरने लगीं। घबराहट के मारे उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।

    "नहीं... नहीं, ये सब सपना था... ये सच नहीं हो सकता..."

    खुद में बड़बड़ाते हुए उसने अपने चारों ओर देखा, खुद को देखा—अजनबी फैला हुआ कमरा, फर्श पर बिखरे कपड़े, खुद के शरीर पर मौजूद निशान और सबसे बड़ा सबूत... उसके पास ही गहरी नींद में सोया हुआ ये अजनबी शख्स।

    आरोही का चेहरा पीला पड़ गया; उसने अपना सिर पकड़ लिया; आँखों में बेबसी के आँसू भर गए।

    "ये क्या कर दिया मैंने? ये सब कैसे हो गया? मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ? मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ? अब क्या करूँगी मैं?"

    आरोही की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने खुद को संभाला। एक नज़र अपने बगल में लेटे लड़के को देखा, बड़ी मुश्किल से उसकी बाँह को अपनी कमर पर से हटाया और चादर से खुद को ढकते हुए किसी तरह बेड से नीचे उतरी, यहाँ-वहाँ बिखरे कपड़े उठाए और बाथरूम में चली गई।

    कुछ देर बाद सीधे रूम से बाहर निकल गई; उसने एक बार भी पलटकर वापिस उस लड़के की ओर नहीं देखा।

    खुद में सिमटी, घबराई हुई सी, किसी तरह खुद को छुपाते हुए पार्टी हॉल से बाहर निकल गई। उसके पास न उसका पर्स था और न फोन, पैसे भी नहीं थे। हालत इतनी खराब थी कि ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। उसकी टाँगें कांप रही थीं; आँखों से आँसू बह रहे थे, पर वो बस एक ही ख्याल में बदहवास सी भागी जा रही थी।

    'मुझे घर पहुँचना है, इससे पहले कि कोई मुझे इस हालत में देख ले।'

    इस बात से अंजान कि एक मुसीबत को वो पीछे छोड़कर आई है और दूसरी घर पर उसका इंतज़ार कर रही है, वो बस किसी तरह घर पहुँचना चाहती थी।


    आरोही के वहाँ से निकलने के कुछ देर बाद ही उस शख्स की आँख खुल गई। बिखरा कमरा, चादर पर पड़ी सिलवटें बीती रात की कहानी सुना रही थीं। सफ़ेद चादर पर मौजूद खून के धब्बे देखकर उस शख्स के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे और भौंहें ऊपर की ओर तन गईं।

    अपने कपड़े पहनते हुए उसने सब जगह चेक किया, पर जब उसे आरोही कहीं नहीं मिली तो कुछ सोचते हुए उसके चेहरे पर खतरनाक भाव उभर आए और उन काली आँखों में बेहिसाब गुस्सा नज़र आने लगा।

    रूम में जाकर उसने नाइट स्टैंड पर रखा अपना मोबाइल उठाया और किसी को कॉल लगाते हुए होटल रूम से बाहर निकल गया।

    "कल रात मेरे साथ होटल रूम में एक लड़की थी; मुझे जल्दी से जल्दी उसके बारे में सारी इंफोर्मेशन चाहिए; कुछ भी करना पड़े, करो, पर मुझे उसके बारे में सब कुछ जानना है। सब कुछ, मतलब सब कुछ, गॉट इट?"

    "य...यस सर," दूसरे तरफ़ से हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई। वो शख्स होटल के एग्ज़िट गेट तक पहुँच चुका था। गार्ड कार लेकर आया और वो कॉल काटते हुए तेज़ी से वहाँ से निकल गया।

    "सर के साथ कोई लड़की थी, होटल रूम में साथ, वो भी रात को..." फ़ोन के दूसरे तरफ़ मौजूद लड़का शॉक्ड था।

    "सर तो काफ़ी गुस्से में लग रहे हैं। लगता है वो लड़की उन्हें मिली नहीं और अब वो कुछ भी करके उसे ढूँढकर ही रहेंगे। पता नहीं क्या होगा उसका, सर इतनी आसानी से छोड़ेंगे नहीं उसे और अगर तूने जल्दी से जल्दी उस लड़की का पता नहीं लगाया तो उनका गुस्सा तेरी नौकरी निगल जाएगा, इसलिए खुद में बड़बड़ाना छोड़ , उस लड़की के जगह अपनी चिंता कर और जल्दी से काम में लग जा।"

    उस लड़के ने खुद को समझाया और वहाँ से निकल गया।


    कार फ़ुल स्पीड में सड़कों पर दौड़ रही थी। उसकी चील सी तेज़ निगाहें दोनों तरफ़ घूम रही थीं; चेहरे पर कोल्ड लुक्स थे और भौंहें तनी हुई थीं, जिससे साफ़ ज़ाहिर था कि वो काफ़ी गुस्से में है। आरोही के ऐसे बिना बताए जाने पर काफ़ी नाराज़ है और ठान चुका था कि अब किसी भी कीमत पर उसे ढूँढकर ही रहेगा।

    आरोही लिफ़्ट लेकर किसी तरफ़ मल्होत्रा हाउस पहुँची। जैसे ही आरोही अपने घर के दरवाज़े तक पहुँची, उसने राहत की साँस ली। पर अंदर कदम रखते ही उसे अहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ थी।

    ड्राइंग रूम में उसके सौतेले पिता, संजीव मल्होत्रा, गुस्से से भरे बैठे थे; आरोही पर नज़र पड़ते ही उनकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं।

    "कहाँ थी तू कल पूरी रात?" उनकी रौबदार आवाज़ गूँजी, जो इतनी तेज़ थी कि आरोही बुरी तरह काँप गई।

    "बताती क्यों नहीं, कहाँ थी तू कल? किससे साथ थी? पार्टी से अचानक कहाँ गायब हो गई थी और अब कहाँ से आ रही है?"

    एक औरत की गुस्से भरी कठोर आवाज़ आरोही के कानों से टकराई और उसने घबराकर आवाज़ की दिशा में देखा।

    वहाँ एक औरत खड़ी थी जो पैनी निगाहों से उसे घूर रही थी। घबराहट और डर से आरोही का गला सूखने लगा। उसने खुद को संभालते हुए कहा, "मैं...मैं बस..."

    उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गई और इतने में उस औरत ने आकर एक तमाचा उसके गाल पर दे मारा। आरोही के शरीर में पहले ही जान नहीं थी; वो फर्श पर जा गिरी। गोरे गाल पर पाँच उंगलियाँ छप चुकी थीं और होंठ के किनारे से हल्का खून आ रहा था।

    आरोही ने गाल पर हाथ रखकर डबडबाई आँखों से उन्हें देखा। पर उन्हें उस पर ज़रा भी दया नहीं आई। उन्होंने बड़ी ही बेरहमी से उसके बालों को अपनी मुट्ठियों में भींचते हुए उसे खींचकर वापिस खड़ा किया और ले जाकर मिस्टर मल्होत्रा के कदमों में फेंक दिया।

    "पूछो इससे कहाँ और किसके साथ थी कल रात।"

    "मैं किसी के साथ नहीं थी।" आरोही ने जैसे ही ये कहा, मिस्टर मल्होत्रा गुस्से से चिल्लाए,

    "झूठ मत बोल!"

    उन्होंने हाथ में पकड़ा गिलास ज़मीन पर दे मारा और उसके गालों को दबाते हुए गुस्से में जबड़े भींच लिए, "मुझे पहले ही शक था कि तू अपना खेल खेलेगी, पर मुझे ये नहीं पता था कि तू इतनी गिरी हुई निकलेगी कि हमें धोख़ा देकर,हमारी नाक के नीचे से निकल जाएगी!"

    "क्या—क्या मतलब?" आरोही की आवाज़ काँपी; गालों में दर्द होने लगा।

    तभी पीछे से नंदिता ठहाका मारकर हँसी, "पापा, इसे नहीं पता कि आप क्या कह रहे हैं। क्यों न हम इसे सच्चाई बता दें?"

    आरोही की नज़रें नंदिता की ओर घूम गईं। अगले ही पल उसने कुछ ऐसा कहा कि आरोही के पैरों तले ज़मीन खिसक गई और वो आँखें फाड़े, अविश्वास भरी नज़रों से उन्हें देखने लगी।


    To be continued…

  • 4. His Dangerous Obsession - Chapter 4

    Words: 1616

    Estimated Reading Time: 10 min

    "पापा, इसे नहीं पता कि आप क्या कह रहे हैं। क्यों न हम इसे सच्चाई बता दें?"

    आरोही की नज़रें नंदिता की ओर घूम गईं।

    संजीव उठे और एक कदम उसकी तरफ बढ़ाया। "कल रात तुझे जिस आदमी के हवाले करना था, जिसने तुझे खरीदने की कीमत चुकाई थी, उसके पास तू पहुँची ही नहीं। और तेरे न आने के कारण उस आदमी ने गुस्से में डील कैंसल कर दी। अब सिर्फ़ तेरे कारण मेरा लाखों का नुकसान हो चुका है!"

    आरोही का शरीर सुन्न पड़ गया। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।

    "क्या... मतलब?"

    "मतलब ये," नंदिता ने एक एविल स्माइल के साथ उसे देखा, उसके करीब आई और कान में फुसफुसाते हुए बोली, "कि तुझे बेचा जा रहा था, और तू भाग गई। लेकिन सवाल ये है कि तू गई कहाँ थी? पार्टी से निकली तो सारी रात कहाँ थी? अगर उस आदमी के पास नहीं पहुँची तो किसके साथ थी?"

    आरोही को लगा जैसे किसी ने बड़ी ही बेरहमी से उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। उसे बेचा गया था। उसका सौदा किया गया था। कल रात उसे किसी को सौंपा जाने वाला था। सोचकर ही अजीब सा दर्द सीने में उठा।

    "बता कहाँ थी तू सारी रात? किसके साथ रात गुज़ार कर आई है?"

    संजीव की गुस्से भरी नज़रों ने उसे घूरना शुरू कर दिया। आरोही घबरा गई, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। हड़बड़ी में सर हिलाते हुए बोली,

    "नहीं!.... मैं किसी के साथ नहीं थी?"

    "झूठ मत बोल!" संजीव ने गुस्से में उसे थप्पड़ मार दिया। वह लड़खड़ा कर गिर पड़ी।

    "ओफ़्फ़ो डैड! इतने भी क्रुएल मत बनिए, देखिए तो बेचारी पहले ही कितनी तकलीफ़ में है। प्यार से बात कीजिए, वो सब बता देगी।"

    नंदिता ने नाराज़गी से संजीव को टोका और सहारा देकर आरोही को उठाकर खड़ा किया।

    "आरोही, ज़ोर से लगी ना, देखो होंठ से खून भी निकलने लगा। डैड कुछ ज़्यादा ही गुस्सा करते रहते हैं। तू मुझे बता, कहाँ थी तू कल सारी रात? किसके साथ थी? और अगर किसी के साथ नहीं थी तो तेरी गर्दन पर ये निशान कैसा है? सारी रात घर से कहाँ गायब थी तू? और अभी इस कंडीशन में कहाँ से आ रही है?"

    आरोही ने घबराकर अपनी हथेली से अपनी गर्दन को ढक लिया और नम आँखों से बेचारगी से नंदिता को देखने लगी। नंदिता के होंठों पर एक मिस्टीरियस स्माइल थी।

    "जवाब क्यों नहीं देती? कहाँ मुँह काला कराकर आई है तू? किसके साथ रात गुज़ार कर आ रही है? कहाँ थी सारी रात और किसके साथ थी?"

    मिसेज़ मल्होत्रा गुस्से से चीखीं। आरोही सहम गई। अब उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था। उसकी चुप्पी से मिस्टर मल्होत्रा का खून खौल गया।

    "बता किसके साथ थी तू सारी रात? कौन था वो जिसके साथ सारी रात अय्याशी करके आ रही है? क्या रिश्ता है तेरा उससे? अगर अब मुँह नहीं खोला तो आज मैं तुझे जान से मार दूँगा।"

    उन्होंने अपनी बेल्ट निकाली। जैसे ही मारने को हुए, आरोही ने अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपा लिया।

    "मैं नहीं जानती... मुझे कुछ भी नहीं पता... मुझे कुछ याद नहीं... मैंने कुछ भी नहीं किया। Please मुझे मत मारना.... मुझे कुछ नहीं पता, मैं नहीं जानती कि वो कौन था, मुझे कुछ भी याद नहीं, कुछ भी याद नहीं।"

    "तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी मर्ज़ी के खिलाफ़ जाने की? मेरी डील बर्बाद कर दी तूने... लाखों-करोड़ों का नुकसान करा दिया। और तू? तू सारी रात किसी गैर मर्द के साथ रंगरलियाँ मनाती फिर रही थी! यहाँ हम सारी रात तेरा इंतज़ार करते रहे, और तू अपनी हवस में डूबी हुई थी! शर्म नहीं आई तुझे? हमारे एहसानों का यही सिला दिया तूने? सालों से तेरे और तेरी माँ का बोझ उठा रहा हूँ और आज जब मुझे तेरी ज़रूरत पड़ी तो ये किया है तूने?"

    चिल्लाते हुए उन्होंने दो-चार बेल्ट उस पर बरसा दिए। आरोही की दर्द भरी चीखें वहाँ गूंज उठीं। नंदिता मज़े से सब देख रही थी। मिसेज़ मल्होत्रा को भी कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ रहा था।

    मिस्टर मल्होत्रा अपना सारा गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन उस पर निकालने के बाद रुके। आरोही की आँखों से आँसू बहने लगे। "मैं आपकी बेटी हूँ... आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?... आपने मेरा सौदा कर दिया और मैं वहाँ नहीं पहुँची तो मार रहे हैं मुझे?"

    "बेटी?" संजीव ठहाका मारकर हँसा। आरोही नम आँखों से उन्हें देखने लगी। वह झुके और उसके चेहरे को कसकर पकड़ लिया।

    "तू मेरी औलाद नहीं है, तू सिर्फ़ एक बोझ है, जिसे मैं सालों से झेलता आ रहा हूँ। क्योंकि तूने भी तेरी माँ जैसा खूबसूरत चेहरा लेकर जन्म लिया है, जिसका इस्तेमाल मैं अपने फ़ायदे के लिए कर सकता हूँ। सालों से तुझे इस घर में रखा है ताकि तेरे जवान होने के बाद उसकी कीमत लगाकर आज तक जितना खर्च तुम पर किया है उसे इंटरेस्ट के साथ वसूल सकूँ। और वो दिन आया पर तेरे, सिर्फ़ तेरे कारण सब बर्बाद हो गया। हमारे लाखों करोड़ों के नुकसान की ज़िम्मेदार है तू। और ये कम था कि तू एक अंजान आदमी के साथ रात गुज़ार कर आ गई।"

    उन्होंने गुस्से में उसे खुद से दूर झटका। आरोही फ़र्श पर गिर गई। नंदिता उसके पास चली आई और घुटनों के बल बैठते हुए तंज कसा, "तू जानती है मुझे नफ़रत है तुझसे। अगर मेरे बस में होता तो मैं कब का तुझे अपने घर और लाइफ़ से निकालकर बाहर फेंक चुकी होती। पर डैड ऐसा नहीं चाहते थे। लेकिन आज तूने जो किया उसके बाद अब तुझे घर से बाहर निकालना बहुत आसान हो गया मेरे लिए। क्योंकि अब डैड तुझे एक पल भी यहाँ नहीं रहने देंगे, है ना डैड?"

    नंदिता की कनिंग स्माइल के साथ संजीव ने क्रूरता से सिर हिलाया। "हाँ। इस घर में अब तेरी कोई जगह नहीं है। निकल जा यहाँ से।"

    उन्होंने आरोही की बाँह पकड़कर उसे जबरदस्ती घसीटते हुए घर से बाहर लेकर जाना चाहा। रोती हुई आरोही उनके पैरों से लिपट गई।

    "I am sorry dad.... Please ऐसा मत कीजिए। मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया था। मुझे नहीं पता ये कैसे हो गया, please मुझे घर से मत निकालिए। मैं कहाँ जाऊँगी, कैसे रहूँगी अपनी माँ के बिना।"

    रोती बिलखती आरोही उनके पैरों में लिपटी गिड़गिड़ा रही थी, पर उन्हें कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा। कुछ देर यह तमाशा देखने के बाद मिसेज़ मल्होत्रा ने आगे आकर संजीव को रोका।

    "संजीव, रुको! आरोही कह रही है ना उसने कुछ भी इंटेंशनली नहीं किया, गलती से हो गया उससे। माफ़ कर दो उसे, वो दोबारा ऐसा कुछ नहीं करेगी और जो तुम कहोगे वो करेगी।"

    इसके बाद उन्होंने पलटकर आरोही को देखा, "है ना आरोही, तुम दोबारा ऐसी गलती नहीं करोगी ना? संजीव जो कहेंगे बिना किसी ऑब्जेक्शन के वो करोगी ना? और तुम्हारे कारण हमारा जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई भी करोगी। जल्दी बोलो वरना संजीव तुम्हें उठाकर इस घर से बाहर फेंक देंगे, फिर तुम ज़िंदगी में कभी दोबारा अपनी माँ को नहीं देख सकोगी। और जब तुम ही यहाँ नहीं होगी तो उनका ख्याल कौन रखेगा? फिर तो वो बहुत जल्द मर जाएगी और तुम अनाथ हो जाओगी।"

    बड़ी ही चालाकी से मिसेज़ मल्होत्रा ने आरोही के खिलाफ़ इमोशनल कार्ड चला था, उसकी उस कमज़ोरी पर वार किया था जिसने आरोही को बेबस, मजबूर और लाचार बना दिया था।

    "आप जो कहेंगे मैं करूँगी, बस मुझे मेरी माँ से दूर मत कीजिए, मैं आप लोगों की हर बात मानूँगी, बस मुझे यहाँ मेरी माँ के पास रहने दो।"

    "अच्छे से सोच ले, अभी तूने खुद कहा कि तू हमारी सारी बात मानेगी और अपने कारण हमारा जो नुक़सान किया है उसकी कीमत भी चुकाएगी। अगर बाद में तूने कोई नाटक किया तो तेरी इन गलतियों की भरपाई तेरी माँ करेगी।"

    "नहीं, माँ को कुछ मत करना, आप जो कहेंगे मैं करूँगी।"

    "ठीक है तो अब से तू वही करेगी जो मैं कहूँगा। अगर दोबारा तूने ऐसा कुछ किया या तेरे कारण मुझे लॉस हुआ तो मैं तुझे और तेरी माँ दोनों को उठाकर बाहर फेंक दूँगा।"

    आरोही उनकी धमकी सुनकर डर गई। उसके हामी भरते ही वहाँ खड़े तीनों लोगों के होंठों पर शैतानी मुस्कान फैल गई।

    "आज से ठीक पन्द्रह दिन बाद तुझे फिर से उस क्लाइंट के पास जाना है और उसे इतना खुश करना है कि वो तेरी डबल कीमत देने को तैयार हो जाए। अगर तूने कोई भी गड़बड़ करने की कोशिश की, उन्हें नाराज़ किया, तेरे कारण उनसे हमारे रिलेशन ख़राब हुए और मुझे लॉस हुआ तो तुझे और तेरी माँ दोनों को उठाकर बाहर फेंक दूँगा।"

    "डैड इससे हमारा क्या फ़ायदा होगा? एक काम करेंगे, आरोही को उस शेख को बेच देंगे जो पहली नज़र में उसका दीवाना बन गया है। वो पहले खुद इसका अच्छे से इस्तेमाल करेगा, फिर इसे आगे बेच देगा। इससे हमें प्रॉफ़िट होगा और इसके जाने के बाद इसकी माँ को भी किसी गवर्नमेंट हॉस्पिटल में शिफ़्ट करवा देंगे। प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं मिलेगा तो कुछ वक़्त में खुद ही मर जाएगी और हमें इन दोनों से छुटकारा मिल जाएगा।"

    नंदिता की बात सुनकर जहाँ आरोही अविश्वास से उसे देखने लगी, वहीं मिस्टर एंड मिसेज़ मल्होत्रा की आँखें अलग अंदाज़ में चमकीं।

    सालों से इन लोगों के साथ रह रही थी, उनकी हर बात मान रही थी, सब कुछ ख़ामोशी से सह रही थी, फिर भी इन लोगों को उससे प्यार तो दूर, उस पर तरस तक नहीं आता। ये उसे बेचने को तैयार हैं, उनकी नज़रों में वो कोई इंसान नहीं, पैसे कमाने का एक ज़रिया है, जिसके लिए वो किसी भी हद तक गिरने को तैयार थे।

    आरोही की आँखों से बेबसी के आँसू छलक गए। अभी आगे कोई तमाशा होता, उससे पहले ही एक यंग एंड हैंडसम लड़के ने वहाँ कदम रखा और माहौल एकदम से बदल गया।

    To be continued…

  • 5. His Dangerous Obsession - Chapter 5

    Words: 1475

    Estimated Reading Time: 9 min

    "कबीर," नंदिता उस लड़के से जाकर लिपट गई। उसने भी मुस्कुराते हुए उसे अपने गले से लगा लिया। दोनों ने छोटी सी किस की। फिर कबीर मिस्टर एंड मिसेस मल्होत्रा से मिला और आखिर में, अजीब निगाहों से आरोही को घूरते हुए, उसकी ओर कदम बढ़ा दिए। आरोही सर झुकाए सिसक रही थी। उसके चेहरे पर अजीब से भाव मौजूद थे।

    "तो आ गई तुम वापस?"

    कबीर की आवाज़ में घुला ज़हर आरोही के कानों में सीसा बनकर उतर गया।

    "मुझे लगा था जिसके साथ रात भर रही, उसी के पास रह जाओगी। मगर नहीं... तुम तो बड़ी मासूम बनती हो ना? भोली सूरत, डरी-सहमी सी आँखें... लेकिन असल में? तुमने तो सारी हदें पार कर दीं।"

    कबीर ने धीमे-धीमे कदम बढ़ाते हुए उसके करीब आते हुए कहा, "एक अजनबी के साथ रात गुज़ारकर, यूँ लौट आई जैसे कुछ हुआ ही नहीं। तुम्हारे चेहरे पर ना शर्म है, ना अफ़सोस। सच कहूँ तो अब देख कर घिन आती है तुम पर। विश्वास नहीं होता कि मैंने तुम जैसी लड़की पर कभी ट्रस्ट किया था।"

    आरोही चुप थी। भीगी पलकें उठीं, जिनमें ना सिर्फ़ बेबसी, बल्कि टूटे भरोसे और अपमान की टीस भी झलक रही थी। उसका गला रुंधा हुआ था, होंठ काँप रहे थे, लेकिन फिर भी वो कुछ नहीं बोली।

    "मैंने तुम्हें एक सीधी-सादी, मासूम सी लड़की समझा था। लगा था तुम बाकी सब से अलग हो... लेकिन तुम तो उन्हीं में से निकली, जिनका दिल और जिस्म दोनों ही बेचने के लिए तैयार होते हैं।"

    कबीर अब उसकी आँखों में झाँक रहा था।

    "तुम कहती थीं मुझसे प्यार करती हो, है ना? पर जिस्म बाँट आई किसी और के साथ। इतनी बेसब्र थी तुम, कि एक अनजान इंसान की बाँहों में सुकून ढूँढ लिया? प्यार अगर था, तो उस एक रात में मर कैसे गया? कैसे किसी गैर मर्द के साथ जिस्मानी संबंध बना लिए तुमने? किसी और को अपने करीब आने का हक कैसे दे दिया?"

    कबीर की आँखों में गुस्से के साथ अजीब सी नाराज़गी भी झलक रही थी।

    "शायद मेरी ही गलती थी... जो तुम जैसी लड़की पर भरोसा कर बैठा। नंदिता ने तो मुझे बहुत बार तुम्हारा असली चेहरा दिखाने की कोशिश की लेकिन मैंने कभी उस पर ट्रस्ट नहीं किया। लेकिन अब सब कुछ क्लियर हो गया है। अच्छा हुआ, वक़्त रहते तुम्हारा ये घिनौना चेहरा मेरे सामने आ गया। अब मैं जानता हूँ तुम किस लायक हो। इसलिए मैंने तुम्हें छोड़कर नंदिता को चुना। कम से कम वो... तुम जैसी नहीं है।"

    आरोही की आँखों में अब आँसू भर आए थे, लेकिन कबीर की नफ़रत की आग में वो आँसू भी जलकर धुआँ बनते जा रहे थे।

    "तुम जैसी लड़कियाँ 'प्यार' जैसे रिश्ते का मज़ाक बनाती हैं। तुमसे शादी करना तो दूर, कोई तुम्हें अपनी ज़िंदगी में शामिल भी नहीं करना चाहेगा। क्योंकि तुम जैसी लड़कियाँ सिर्फ एक रात के लिए होती हैं—दिल बहलाने के लिए, जिस्म की भूख मिटाने के लिए। बिल्कुल उस टिशु पेपर जैसी जिसे एक बार इस्तेमाल करने के बाद डस्टबिन में फेंक दिया जाता है।"

    कबीर के होंठों पर तिरछी शैतानी मुस्कान उभरी और सर्द निगाहें आरोही को घूरने लगीं। आँखों में वो एक क्रूर हँसी हँसता है, और फिर ज़हर उगलता है—

    "बोलो आरोही, कल रात... उस आदमी ने क्या कीमत दी तुम्हें? कितना मिला तुम्हें अपनी रात रंगीन करने के बदले? कितने में अपना जिस्म बेचा तुमने? और बताओ... अगली रात किसकी बारी है? अगला सौदा कहाँ तय हुआ है?"

    उसका हर लफ्ज़ आरोही के सीने में कील की तरह धँस रहा था।

    "अब हर रात तुम्हारा एक नया खरीदार होगा। तुम्हारा हुस्न अब नीलामी में जाएगा। तुम अब बस एक जिस्म बनकर रह जाओगी, जिसका सिर्फ एक काम होगा अपने हुस्न से उन जैसे मर्दों का दिल बहलाना, जिसके साथ तुम कल रात थी। वैसे मानना पड़ेगा... तुम्हारे चेहरे और जिस्म का तुमने सही इस्तेमाल किया है। अब तो तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं। और मेरी ज़िंदगी में भी तुम्हारे लिए अब कोई जगह नहीं बची है। तुम जैसी लड़की बस 'इस्तेमाल की जाने वाली चीज़' है—ना प्यार के लायक, ना इज़्ज़त के।"

    कबीर मुड़ गया था, पर आरोही वहीं जमी हुई थी। जैसे किसी ने उसकी रूह को कुचलकर रख दिया हो।

    "अब यहाँ खड़ी-खड़ी क्या कर रही है? अपना मनहूस चेहरा लेकर चली जा यहाँ से और दोबारा जब तक न कहूँ मेरे सामने मत आना।"

    मिस्टर मल्होत्रा गुस्से से गरजे। आरोही ने एक नज़र कबीर को देखा जो हँस-हँसकर नंदिता से बातें कर रहा था, उसके बेहद करीब था। अपनी आँखों में आए आँसुओं को उसने बड़ी ही बेरहमी से अपनी हथेलियों से पोंछा और वहाँ से चली गई।

    कबीर की नज़रें उसकी ओर उठीं, उसकी आँखों में सिर्फ घिन और नफरत झलक रही थी। आरोही का चेहरा एक्सप्रेशनलेस था। वह धीमे कदमों से चलते हुए वहाँ से चली गई।

    अपने कमरे में आकर वह सीधे वॉशरूम में चली गई। उसने अपने कपड़े उठाकर मिरर के सामने खड़ी हो गई। शरीर पर जगह-जगह मौजूद निशान बीती रात की कहानी सुना रहे थे। पीठ पर बेल्ट के अनगिनत निशान मौजूद थे, दर्द से उसका शरीर काँप रहा था। आँखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ रहा था।

    आरोही ने शॉवर ऑन कर दिया और आँखें बंद करके उसके नीचे खड़ी हो गई। कानों में कबीर के कहे शब्द गूँजने लगे, झुकी पलकों के आगे बीती रात की धुंधली यादें घूमने लगीं और आँखों से बहते आँसू शॉवर में पानी में घुलकर अपना अस्तित्व खोते रहे।

    पता नहीं कितनी देर तक वह यूँ ही शॉवर के नीचे खड़ी भीगती रही, अपनी बेबसी पर आँसू बहाती रही। फिर बाथरूम से अपने शरीर को ढकते हुए रूम में आकर बेड पर गिर गई और तकिए में अपना मुँह छुपाए दर्द से चीख उठी।

    "ओये महारानी! तू अभी तक सो रही है? काम कौन करेगा? तेरा बाप या तेरी वो माँ जो सालों से जिंदा लाश जैसे बिस्तर पर पड़ी है? चल उठ और जाकर काम कर; वरना हमें एक मिनट नहीं लगेगा तेरी बीमार माँ को उठाकर इस घर से बाहर फेंकने में।"

    आरोही के कानों में नंदिता की गुस्से से चिल्लाने की आवाज़ें पड़ीं। तब कहीं जाकर उसकी नींद खुली। वह रोते-रोते ही सो गई थी।

    "मैं तेरी नौकरानी नहीं हूँ जो बार-बार तुझे उठाने आऊँ। अगर अब भी तू नहीं उठी तो मैं मॉम को बता दूँगी और उसके बाद वो तेरा वो हाल करेंगी कि हफ़्ते भर तक तू बिस्तर से उठ भी नहीं पाएगी और तेरी माँ भूख-प्यास से तड़प-तड़पकर मर जाएगी।"

    नंदिता ने उसे ज़बरदस्ती उठाया और खूब सुनाने, धमकाने के बाद वहाँ से चली गई। आरोही ने अपना सर पकड़ लिया जो भट्टी जैसे तप रहा था और दर्द से फटा जा रहा था। शरीर भी टूट रहा था, उसमें बिल्कुल जान नहीं बची थी।

    आरोही निढाल सी वापस बिस्तर पर गिरने ही वाली थी कि उसके ज़हन में उसकी माँ का ख्याल आया। उसने अपनी बोझिल पलकों को उठाकर देखा, लंच टाइम होने को था और उसे होश ही नहीं रहा।

    "तू इतनी देर तक सोती कैसे रह गई आरोही? पता नहीं किसी ने माँ को खाना दिया भी होगा या नहीं, उनकी मेडिसिन भी मिस हो गई होगी।"

    आरोही ने साइड टेबल के ड्रॉवर से मेडिसिन (फ़ीवर की) निकाली। सुबह से, क्या उसने कल रात से ही कुछ भी नहीं खाया था। फिर भी दवाई ली, किसी तरह खुद को संभालते हुए अलमारी से कपड़े निकाले और चेंज करने लगी।

    कुछ देर बाद आरोही बेचैनी से लंबे-लंबे डग भरते हुए नीचे सबसे कोने में बने रूम की ओर बढ़ रही थी कि अचानक ही मिसेस मल्होत्रा उसके सामने आकर खड़ी हो गई।

    "वहाँ कहाँ जा रही है? किचन में जाकर लंच रेडी कर; उसके बाद कहीं और जाने की परमिशन मिलेगी; वरना अभी तेरे बाप को बताती हूँ कि उनकी लाडली बेटी महाराणियों जैसे अभी सोकर उठी है और सब काम-धाम छोड़कर अपनी माँ के पास जाना चाहती है।"

    आरोही के होंठों पर व्यंग्य भरी मुस्कान उभरी। "लाडली बेटी," लगा जैसे मज़ाक उड़ाया गया हो उसका। उसने एक नज़र उस बंद कमरे को देखा और चुपचाप किचन में चली गई।

    खाना बनाते हुए बार-बार उसकी नज़रें उस रूम की ओर जा रही थीं; पर जब तक वह सब काम नहीं कर लेती उसे वहाँ जाने की परमिशन नहीं मिलेगी, यह भी जानती थी; इसलिए जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी जिसके वजह से दो-तीन बार उसका हाथ भी जल गया।

    आरोही ने लंच रेडी किया, डाइनिंग टेबल सेट किया। जब तक चारों ने खाना खाया वह वहीं सर झुकाए खड़ी रही; जबकि उसका सर घूम रहा था और हालत खराब हो रही थी।

    जैसे-तैसे अपने सारे काम निपटाने के बाद आरोही ने एक बाउल में दलिया निकाला, उसे ट्रे में रखा, अपना हुलिया ठीक किया और होंठों पर मुस्कान सजाते हुए उस बंद रूम की ओर बढ़ गई।

    उसने दरवाज़ा खोला और जैसे ही नज़र सामने गई, होंठों पर बिखरी मुस्कान कहीं खो गई और आँखों से आँसू बहने लगे।

    To be continued…

  • 6. His Dangerous Obsession - Chapter 6

    Words: 1667

    Estimated Reading Time: 11 min

    "माँ," आरोही की आवाज़ काँप गई। वह तेज कदमों से चलते हुए अंदर आई, ट्रे टेबल पर रखा और आगे बढ़कर बिस्तर पर बेजान सी लेटी अपनी माँ को संभालकर अपने गले से लगा लिया। दोनों माँ-बेटी की आँखों से खामोशी से आँसू बहते रहे।

    कुछ देर बाद आरोही ने खुद को संभाला, उन्हें खुद से अलग करते हुए उनके आँसू पोंछे।

    "नहीं माँ, आप मत रोइए, आपकी तबियत पहले ही ठीक नहीं है। आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिये, कुछ नहीं हुआ है मुझे, मैं बिल्कुल ठीक हूँ और जब तक मैं हूँ, मैं आपको भी कुछ नहीं होने दूँगी। कोई कुछ भी करे पर मैं आपको यहाँ अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी, कभी नहीं जाऊँगी, आप बिल्कुल भी टेंशन मत लीजिये।"

    आरोही उन्हें समझा रही थी, संभाल रही थी और मुस्कुराकर उन्हें अपने ठीक होने का विश्वास भी दिला रही थी।

    मिसेस देविका मेहरा (आरोही की मॉम) सूनी निगाहों से उसे देखने लगी। सालों से वह खामोशी से लेटी अपनी लाचारी की कीमत अपनी बेटी को चुकाते देख रही थी, अंजान नहीं थी पर बेबस थी कि इतने दर्द में भी अपनी बेटी को मुस्कुराने की कोशिश करते देखती रहती थी।

    उनकी आँखों में कुछ सवाल थे। जिन्हें समझते हुए आरोही ने अपना सर झुका लिया और धीमे स्वर में बोली, "मुझे नहीं पता माँ कि वो कौन था, मैं वहाँ कैसे पहुँची, हमारे बीच क्या, क्यों और कैसे हुआ? मुझे कुछ भी ठीक से याद नहीं है। मैं तो पार्टी हॉल में ही थी पता नहीं क्या हुआ और मैं वहाँ कैसे पहुँची। जब आँख खुली तब तक सब खत्म हो चुका था।

    मुझे ठीक से कुछ भी याद नहीं। वो शक्स मेरे लिए बिल्कुल अंजान था, मैंने पहले कभी उसे नहीं देखा था, नहीं जानती थी मैं उसे और मैं बहुत डर गयी थी तो उसे सोता छोड़कर ही आ गयी, इसके अलावा मुझे और कुछ भी नहीं पता।"

    मिसेस मेहरा ने अपना हाथ उठाने की कोशिश की पर उठा नहीं सकीं। आरोही खुद ही आगे बढ़कर उनके गले में जा लगी और उनके हाथ को उठाकर अपने सर पर रख लिया।

    "I am sorry मम्मा, अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।"

    आरोही की आँखें भीग गईं। मिसेस मेहरा अजीब-अजीब सी आवाज़ें निकालने लगीं, शायद कुछ कहना चाह रही थीं, पर कह नहीं पा रही थीं।

    आरोही उनसे दूर हुई, अपने आँसू पोंछे और मुस्कुराते हुए बोली, "मैं जानती हूँ मम्मा कि आपको मुझ पर पूरा विश्वास है, आप मुझसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं क्योंकि आप जानती हैं कि आपकी बेटी जानबूझकर कभी ऐसा कुछ नहीं कर सकती। डोंट वरी मम्मा, मैं वीक नहीं पड़ूँगी, मैं आपकी और डैड की सुपर स्ट्रांग डॉटर हूँ। मैं इन सबसे निकलने का कोई न कोई रास्ता ज़रूर ढूंढ लूँगी और आपको लेकर इन सबसे बहुत दूर चली जाऊँगी।

    चलिए अब रोना बंद कीजिये, आँसू पोंछिये और फटाफट लंच कीजिये। मुझे पता है आपने सुबह से कुछ भी नहीं खाया होगा, आपकी मेडिसिन भी नहीं दी होगी किसी ने आपको और डॉक्टर ने कहा है कि आपके लिए वक़्त पर मेडिसिन लेना बहुत इम्पॉर्टेन्ट है इसलिए जल्दी से आ कीजिये।"

    आरोही ने टेबल से ट्रे उठाकर अपनी गोद में रख लिया और स्पून उनकी ओर बढ़ा दिया। वे खाने की जगह आरोही की देखने लगीं और वह उनकी आँखों की भाषा पल में समझ गई।

    "हाँ हाँ मैं भी खा लूँगी। आप क्यों मेरी इतनी फिक्र करती है? मैं अब वो दो साल की आरोही नहीं रह गयी हूँ, अब तो इतनी बड़ी हो गयी हूँ, आपका कितना ख्याल रखती हूँ तो अपना भी ख्याल रखूंगी क्योंकि मैं जानती हूँ कि मेरे अलावा मेरी मम्मा का और कोई भी नहीं है, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी मम्मा को देखने वाला कोई नहीं रहेगा इसलिए मैं अपनी हैल्थ के साथ कोई लापरवाही नहीं करती।

    चलिए अब जल्दी से आ कीजिये, आपको खाना खिलाकर मेडिसिन देनी है उसके बाद मैं भी लंच कर लूँगी।"

    आरोही अब भी मुस्कुरा रही थी और मिसेस मेहरा की आँखें नम थीं।

    आरोही ने उन्हें खाना खिलाया, मेडिसिन दी, उनके मुँह को साफ करके उन्हें ठीक से वापिस लिटा दिया और बर्तन लेकर किचन में पहुँची जहाँ ढेर सारे बर्तन धोने में पड़े थे।

    आरोही ने गहरी साँस ली और खाना देखा तो उसके लिए कुछ बचा ही नहीं था। जब गयी थी तब था पर अब सारे बर्तन खाली थे, मतलब जानबूझकर ऐसा किया गया था।

    आरोही ने ठंडी आह्ह भरी। उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी। आदत थी उसे इन सबकी। अपनी माँ के लिए बनाए दलिये में से ही उसने थोड़ा सा दलिया खाया और मेडिसिन ली और दोबारा काम में लग गई।

    दोपहर के बाद उसे एक मिनट आराम नहीं मिला। नंदिता और मिसेस मल्होत्रा जानबूझकर उसके लिए काम फैलाते रहीं। बुखार और दर्द से उसका बदन टूट रहा था, फिर भी चुपचाप सब करती रही।

    मिसेस मल्होत्रा को डिनर करवाने, मेडिसिन खिलाकर सुलाने के बाद उसने खुद खाना खाया, बर्तन धोए, किचन साफ किया और आखिर में अपने रूम में चली आई। वैसे वह अपनी माँ के साथ ही सोती थी पर आज उसकी हालत ठीक नहीं थी और वह उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी।

    आरोही ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर खड़ी हो गई। ऑयलमेंट निकाला, अपने टॉप को उतारा, कैमिसोल को ऊपर करके पीठ पर लगे ज़ख़्मों पर ऑयलमेंट लगाने लगी जो थोड़ा मुश्किल था।

    जैसे-तैसे उसने दवाई लगाई, मेडिसिन ली और पेट के बल बिस्तर पर गिर गई।


    "सॉरी सर, उस रात आपके साथ कौन थी, अभी तक हमें इसके बारे में कोई इन्फॉर्मेशन नहीं मिली है। मैंने होटल के सीसीटीवी फुटेज चेक करवाए जिसमें आपके रूम से वो लड़की निकलती हुई नज़र आई पर होटल से बाहर निकलने के बाद वो कहाँ गयी इसका कुछ पता नहीं चल सका।

    मैंने उस रात होटल में आए सभी गेस्ट की लिस्ट भी चेक की पर कहीं उसका नाम नहीं मिला, वहाँ होने वाली एक पार्टी में उसे देखा गया था पर उस पार्टी में आए सभी गेस्ट में भी उसका नाम कहीं नहीं है। कोई नहीं जानता कि वो कौन थी, वहाँ कैसे आई और कहाँ चली गयी। जिन्होंने पार्टी ऑर्गेनाइज़ करवाई थी वो उनकी फैमिली से भी बिलॉन्ग नहीं करती।

    अभी तक हमें उसके बारे में कुछ पता नहीं चला है पर मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूँ, जल्दी ही हमें कोई न कोई इन्फॉर्मेशन ज़रूर मिल जाएगी।"

    करण (उस अंजान शक्स का असिस्टेंट जिसके साथ आरोही उस रात थी) ने हिम्मत करके सब कह तो दिया पर अब डर के मारे उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगे थे। उसके चुप होते ही वहाँ मौत सा सन्नाटा पसर गया।

    "क्या कर रहे हो तुम?"

    उस शक्स की आवाज़ में बर्फ जैसी ठंडक थी, और उसमें गुस्सा साफ झलक रहा था।

    "एक मामूली सी लड़की नहीं ढूँढ पा रहे तुम? TWO WEEKS! दो हफ्ते हो गए, और तुम अब तक उसका नाम तक नहीं ला सके मेरे सामने?"

    वह अपनी जगह से उठा, कुर्सी पीछे गिर गई पर उसकी परवाह नहीं की।

    "क्या तुम्हें अंदाज़ा है मैं उस बेवफ़ा लड़की की वजह से कितनी रातें सो नहीं पाया हूँ? वो लड़की... वो अब मेरी ज़रूरत बन चुकी है। और तुम मेरी ज़रूरत तक पहुँचने में नाकाम हो रहे हो।"

    उसने टेबल पर रखा ग्लास गुस्से में ज़मीन पर दे मारा।

    "मुझे नहीं पता तुम क्या और कैसे करोगे, मुझे बस वो लड़की मेरे सामने चाहिए। जो भी करना पड़े करो पर उसे मेरे पास लेकर आओ। मुझे वो चाहिए...... ये लास्ट चांस है तुम्हारे पास। Next time तुम मेरे सामने खाली हाथ आए... तो तुम्हें इस ऑफिस में जगह नहीं मिलेगी। Understood?"

    उसका असिस्टेंट घबराया हुआ सर हिलाता है और जल्दी से वहाँ से भाग गया। उसके जाते हुए उस शक्स ने टेबल से बैक टिकाते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं, आँखों के आगे आरोही का मासूम सा चेहरा आ गया और अगले ही पल उस शक्स ने अपनी आँखें खोल दीं। उसके चेहरे पर गुस्सा जल उठा, आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं।

    "तो तुम भी बाकियों जैसी बेवफ़ा निकली। तुम्हारी मासूमियत भी एक छलावा था। मुझे अपने हुस्न के नशे की लत लगाकर रातों-रात गायब हो गयी। तुमने अपना प्रॉमिस तोड़ा है इसकी सज़ा तुम्हें ज़रूर मिलेगी। बस एक बार तुम मेरे हाथ आ जाओ फिर मैं तुम्हें बताऊँगा कि अधिराज सिंह राठौड़ को धोखा देने का क्या अंजाम होता है।"

    इस वक़्त वह किसी क्रुएल डेविल से कम नहीं लग रहा था और उसके इरादे उसके लुक्स जैसे ही खतरनाक थे। जिससे आरोही बिल्कुल अंजान थी। वह तो अपनी हैल्थ से परेशान थी। इस वक़्त अपनी माँ के पास बैठी किन्हीं ख्यालों में खोई थी, कानों में नंदिता के कहे शब्द गूंज रहे थे।

    "आरोही कहीं तुम प्रेग्नेंट तो नहीं? सोचो तुम्हें तो ये तक नहीं पता कि उस रात तुम किसके साथ थी, अगर प्रेग्नेंट हो गयी तो क्या करोगी तुम? अगर मैंने डैड को ये बात बता दी तो वो तो तुम्हें ज़िंदा ही नहीं छोड़ेंगे और तुम्हारे बाद तुम्हारी माँ भी तड़प-तड़पकर मर जाएगी और मेरा रास्ता बिल्कुल क्लियर हो जाएगा, क्या कहती हो बता दूँ डैड को तुम्हारी प्रेग्नेंसी के बारे में?"

    आरोही ने बेचैनी से पहलू बदला और हथेली पेट पर चली गयी।

    "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, मैं प्रेग्नेंट नहीं हो सकती। मैं अपने साथ-साथ अपने बच्चे की ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती। आई होप कि रिपोर्ट नेगेटिव आए।"

    आरोही ने मन ही मन प्रे किया और अपनी माँ से चिपककर लेट गई पर अब भी उसे अजीब सी बेचैनी हो रही थी, डर लग रहा था।

    अगले दिन

    शाम का वक़्त था और मौसम कुछ खराब लग रहा था जैसे तूफान आने वाला हो। आरोही हाथ में कुछ रिपोर्ट्स लेकर हॉस्पिटल से बाहर निकली। उसके चेहरे पर डर और परेशानी साफ दिख रही थी।

    वह हॉस्पिटल के बाहर निकलकर ऑटो रोकने ही वाली थी कि अचानक ही एक नई चमचमाती कार उसके सामने आकर रुकी और इससे पहले ही वह कुछ समझ पाती, कार के पीछे का डोर खुला और किसी ने उसकी कलाई पकड़कर झटके से उसे अंदर खींच लिया। डर से आरोही की चीख निकल गई।

    "मम्माआआ......"

    To be continued…

  • 7. His Dangerous Obsession - Chapter 7

    Words: 1668

    Estimated Reading Time: 11 min

    आरोही हॉस्पिटल के बाहर निकलकर ऑटो रोकने ही वाली थी कि अचानक ही एक नई चमचमाती कार उसके सामने आकर रुकी। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, कार के पीछे का दरवाज़ा खुला और किसी ने उसकी कलाई पकड़कर झटके से उसे अंदर खींच लिया। जिससे आरोही अंदर मौजूद शख्स के सीने से टकरा गई।

    दरवाज़ा लॉक हुआ और कार आगे बढ़ गई। आरोही ने घबराकर पीछे हटना चाहा। तभी उसके कानों में एक जानी-पहचानी सी सर्द आवाज़ गूंजी,

    "आखिरकार तुम्हें ढूँढ ही लिया मैंने। बहुत कोशिश की तुमने मुझसे छुपने की... लेकिन भूल गई थीं, आरोही, अधिराज राठौड़ से कोई नहीं बच सकता। अब जब तुम मेरे शिकंजे में आ चुकी हो... तो जब तक मैं न चाहूँ, तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती।"

    उस सर्द आवाज़ से आरोही अंदर तक काँप गई। यह अंदाज़ कुछ जाना-पहचाना सा लगा उसे। अपनी कमर पर किसी की बाँहों की कसती पकड़ का एहसास हुआ और उसने चौंकते हुए सिर उठाकर देखा।

    आरोही की नज़र जैसे ही उसके पास बैठे अधिराज के चेहरे पर पड़ी, उसका चेहरा डर और घबराहट से पीला पड़ गया। आँखों के आगे उस सुबह का वो सीन आ गया जब उसने अधिराज को अपने इतने ही करीब सोते देखा था।

    आरोही की धड़कनें थम गईं और साँसें ऊपर-नीचे होने लगीं।

    "तुम्हारे एक्सप्रेशन देखकर तो लगता है कि अब तक तुम भी मुझे भूल नहीं सकी हो। आज भी मेरी करीबियों का गहरा असर होता है तुम पर।"

    अधिराज की कोल्ड वॉइस और डेंजरेस ऑरा से आरोही बुरी तरह घबरा गई और हड़बड़ी में उस पर से नज़रें हटा लीं।

    "न..... नहीं..... मैं नहीं जानती तुम्हें। मुझे नहीं पता तुम किस बारे में बात कर रहे हो, मैं नहीं जानती तुम्हें। छ..... छोड़ दो मुझे......"

    आरोही उसकी बाँहों की कैद से आज़ाद होने के लिए बुरी तरह छटपटाने लगी। अधिराज की भौंहें तन गईं, आँखें छोटी-छोटी किए इंटेंस निगाहों से उसे घूरने लगा।

    "तो तुम नहीं जानती मुझे?"

    "न.... नहीं, मैं नहीं जानती तुम्हें, मुझे नहीं पता कि तुम कौन हो, मुझे कुछ भी नहीं पता। Please तुम मुझे छोड़ दो, जाने दो मुझे।"

    "इतनी आसानी से तो नहीं.... उस रात तुमने जो किया तुम्हें उसकी रिस्पॉन्सिब्लिटी लेनी होगी, तुम ऐसे बचकर नहीं जा सकती, मैं जाने ही नहीं दूँगा।"

    उस रात का ज़िक्र होते ही AC की ठंडक में भी आरोही के माथे पर पसीने की बुँदे चमकने लगीं, चेहरे पर अजीब सी बेचैनी और डर झलकने लगा।

    "क..... कौन सी रात... क.... कैसी रिस्पॉन्सिब्लिटी? मु.... मुझे... क... कुछ भी समझ नहीं आ... आ रहा।"

    "तुम्हें सच में कुछ समझ नहीं आ रहा, कुछ याद नहीं या अंजान बनने का नाटक करके मुझे बहलाने की कोशिश कर रही हो?"

    अधिराज ने तीखी निगाहों से उसे घूरा और उसकी कमर पर अपनी पकड़ कसते हुए उसे खुद से सटा लिया। आरोही के थरथराते लबों से आह्ह निकल गई, घबराहट में उसने अपनी आँखों को कसके भींच लिया।

    अगले ही पल उसे अपने होंठों पर कुछ अजीब सा एहसास हुआ और चौंकते हुए उसने अपनी आँखें खोलीं; नज़रें अधिराज की गहरी काली नज़रों से जा टकराईं।

    अधिराज वाइल्डली उसके होंठों को चूमने लगा। आरोही उससे छूटने के लिए छटपटाती रही पर अधिराज का अभी उसे छोड़ने का बिल्कुल भी मूड नहीं था। आरोही चीखना चाहती थी पर आवाज़ बाहर नहीं आ रही थी, वह उसे छोड़ ही नहीं रहा था।

    आरोही की साँसें उखड़ने लगीं, आँखों में बेबसी के आँसू छलक आए। जिन पर नज़र जाते ही अधिराज ने उसके होंठों को आज़ाद कर दिया और अपना चेहरा उसकी गर्दन में छुपा लिया।

    "ये सज़ा है उस सुबह मुझे वहाँ अकेला छोड़ जाने की। उम्मीद है अब तुम्हें सब कुछ याद आ रहा होगा — वो रात, वो पल... और मैं। और अगर अब भी तुम्हारी याददाश्त धोखा दे रही है... तो कोई बात नहीं, मैं सब कुछ दोबारा दोहराने को तैयार हूँ। फिर शायद तुम्हें भूलना मुश्किल होगा।"

    आरोही सिर झुकाए गहरी-गहरी साँसें ले रही थी। अधिराज की बात सुनकर उसकी मुट्ठियाँ उसके सीने पर कस गईं और उसने अपने होंठों को दाँतों तले दबा लिया।

    "जवाब दो, जानती हो मुझे?"

    अधिराज ने उसके कान में सरगोशी की। उसकी कोल्ड वॉइस का असर था कि आरोही सिहर गई। उसने धीरे से सिर हिलाया। अधिराज ने उसकी ठुड्डी को अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच दबाते हुए उसके चेहरे को अपने सामने कर लिया।

    "देखो मुझे और मेरी निगाहों से निगाहें मिलाकर जवाब दो, जानती हो मुझे?"

    आरोही ने अपनी भीगी पलकें उठाईं और गुलाबी आँखों से उसे देखने लगी।

    "हाँ"

    "कैसे जानती हो?"

    अधिराज के इस सवाल पर आरोही चुप्पी साध गई जिससे अधिराज के चेहरे के एक्सप्रेशन बिगड़ गए, आँखों में जुनून नज़र आने लगा और आरोही की कमर को उसने अपनी हथेली से मसल दिया।

    "जवाब दो मुझे"

    आरोही के मुँह से सिसकी निकल गई।

    "व... वो उस रात.... म..... मैं तुम्हारे साथ..... वो...."

    घबराहट में आरोही की ज़ुबान लड़खड़ाने लगी और उसने अपनी पलकें झुका लीं।

    "मुझे सोता छोड़कर क्यों भागी थी तुम?" अधिराज ने आरोही के गालों को दबाते हुए उसके चेहरे को अपने सामने कर लिया। आरोही की आँखें छलक गईं।

    "I.... I am sorry..... उस वक़्त मैं बहुत डर गई थी। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था..... मेरे लिए तुम बिल्कुल अंजान थे, मैं नहीं जानती थी तुम्हें और हमारे बीच जो हुआ... बहुत घबरा गई थी मैं। सारी रात वहाँ थी, घर जाना था मुझे। मुझे नहीं पता कि हमारे बीच जो भी हुआ वो कैसे हुआ पर मुझमें हिम्मत नहीं थी तुम्हें फेस करने की। पहले ही बहुत बड़ी प्रॉब्लम में फंस गई थी, वैसे ही मेरी लाइफ में इतनी परेशानियाँ हैं मैं उन्हें और बढ़ाना नहीं चाहती थी इसलिए तुम्हें सोता छोड़कर घर चली गई थी।

    पर उस दिन जो भी हुआ वो सिर्फ एक गलती थी। Please मुझे छोड़ दो, तुम कहोगे तो मैं माफ़ी माँग लूँगी, दोबारा कभी तुम्हारे सामने भी नहीं आऊँगी, बस अभी मुझे जाने दो please."

    "जाने दूँ तुम्हें... और वो भी ऐसे ही? कभी नहीं। शायद तुम्हें याद नहीं कि उस रात हमारे बीच क्या डील हुई थी। इसलिए आज तुम मुझे छोड़कर जाने की बातें कर रही हो, उस रात को ‘गलती’ कह रही हो... पर मैं तुम्हें याद दिला दूँ — वो गलती नहीं थी, वो एक चाहत थी। एक ऐसी रात थी जो हमने अपनी मर्ज़ी से चुनी थी।

    तुम खुद आई थी मेरे पास... अपने पैरों से, अपनी ख्वाहिशों के साथ।

    मैंने तब भी तुम्हें चेतावनी दी थी —

    'अगर एक बार मेरे करीब आ गई, तो फिर कभी दूर नहीं जा सकोगी।'

    और अब देख लो... वही हो रहा है।

    तुम्हारी आँखों की बेचैनी, तुम्हारे काँपते होंठ, तुम्हारी साँसों की रफ़्तार — सब कुछ कह रहा था कि तुम उस पल के लिए तड़प रही थी।

    तुम्हें प्यार चाहिए था... किसी का होना चाहिए था... और तुमने वो सब मुझसे माँगा।

    मैंने तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी की। तुम्हें छुआ, तुम्हें महसूस किया... तुम्हें अपना बना लिया।

    अब तुम कह रही हो कि मैं सब भूल जाऊँ? तुम्हें छोड़ दूँ?

    नहीं आरोही... अब ये मुमकिन नहीं।

    क्योंकि उस एक रात की कीमत तुम्हें आने वाली हर रात चुकानी होगी।

    तुमने मेरी शर्तें मानी थीं — अब तुम्हें मेरी क़ैद भी मंज़ूर करनी होगी।

    अब तुम सिर्फ मेरी हो।

    और जब तक मैं नहीं चाहता... तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती।

    ये हक़ अब मेरा है — तुम्हारी हर साँस पर, हर धड़कन पर।"

    अधिराज का जुनूनियत भरा अंदाज़ और उसकी बातें सुनकर आरोही शॉक्ड थी। उसने अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर दिया; आज वो धुंधली यादें कुछ साफ़ नज़र आईं। अपनी हरकतों के बारे में जानकर शर्मिंदगी से उसने अपनी नज़रें झुका लीं।

    "I am sorry..... मुझे नहीं पता मुझे उस रात क्या हो गया था, मैंने अपनी अब तक की लाइफ में पहले कभी ऐसे बिहेव नहीं किया है। उस रात के बारे में मुझे ठीक से कुछ याद भी नहीं है, शायद मैं नशे में थी, इमोशनली अनस्टेबल थी और मुझसे गलती हो गई।"

    "अगर तुम्हारे लिए वो पैशनेट रात, वो हसीन यादें, नज़दीकियों के वो खूबसूरत लम्हें गलती थी तो अब से हर रात तुम्हें ऐसी गलतियाँ करनी होंगी।"

    आरोही ने हैरानी से आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा। अधिराज सीरियस था और आरोही का दिल घबराहट के मारे ज़ोरों से धड़कने लगा था।

    "मैं ऐसा नहीं कर सकती, please उस रात के लिए तुम मुझे माफ़ कर दो, जाने दो मुझे।"

    "मैंने कहा न — अब तुम यहाँ से कहीं नहीं जा सकती। जो वादा तुमने उस रात किया था, अब उसे निभाना होगा तुम्हें। ये ज़िंदगी तुमने खुद चुनी थी... अपनी मर्ज़ी से, मेरी दुनिया का हिस्सा बनने का फ़ैसला किया था।

    अब वापसी का कोई रास्ता नहीं है, आरोही।

    चाहे अपनी मर्ज़ी से... या मेरी ज़िद से —

    तुम्हें अपनी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ ही बितानी होगी। मेरी बनकर। क्योंकि जो हुआ... उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ मेरी नहीं, तुम्हारी भी है।

    अब हर सुबह तुम्हारी मेरी होगी, हर रात मेरी बाहों में कटेगी, हर साँस मेरी इजाज़त से चलेगी।

    क्योंकि तुमने मुझे चुना था... और अब मैं तुम्हें कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा।"

    "ये मुमकिन नहीं है, मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। मुझे जाना होगा वापिस, please मेरी प्रॉब्लम समझने की कोशिश करो, जो तुम चाहते हो मैं वो नहीं कर सकती। please मैं रिक्वेस्ट करती हूँ तुमसे, please मुझे जाने दो।"

    अधिराज ने उसकी रिक्वेस्ट को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया और आइब्रो चढ़ाते हुए सवाल किया,

    "हॉस्पिटल क्यों आई थी तुम?"

    हॉस्पिटल का ज़िक्र हुआ, अचानक ही आरोही को रिपोर्ट्स का ख्याल आया। उसने बेचैनी से नज़रें घुमाईं। रिपोर्ट सीट के नीचे उसके पैर के पास गिरी हुई थी।

    आरोही की निगाहों का पीछा करते हुए अधिराज की नज़र भी उन रिपोर्ट्स पर गई। उसने आरोही को छोड़ा और रिपोर्ट उठाने के लिए झुका ही था कि आरोही ने हड़बड़ी में जल्दी से रिपोर्ट उठाई और उसे अपनी पीठ के पीछे छुपा लिया।

    अधिराज की आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं।

    "क्या है उन रिपोर्ट्स में जिसे तुम मुझसे छुपाने की कोशिश कर रही हो?.... कहीं तुम प्रेग्नेंट तो नहीं?"

    अधिराज का सवाल सुनकर आरोही के चेहरे का रंग उड़ गया।

    To be continued…

  • 8. His Dangerous Obsession - Chapter 8

    Words: 1402

    Estimated Reading Time: 9 min

    अधिराज की आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं।

    "क्या है उन रिपोर्ट्स में जिसे तुम मुझसे छुपाने की कोशिश कर रही हो?"

    "कुछ भी नहीं... कुछ नहीं है इन रिपोर्ट्स में, मैं कुछ भी नहीं छुपा रही तुमसे, सच्ची।"

    आरोही हड़बड़ा गई, पसीने से उसका चेहरा भीग गया। उसकी मासूम, घबराए हुए चेहरे पर पल भर के लिए अधिराज की निगाहें ठहरीं। फिर उसने आँखें चढ़ाते हुए सख्त अंदाज़ में सवाल किया—

    "अगर कुछ नहीं है तो उसे मुझसे छुपा क्यों रही हो? इतना घबराई हुई क्यों लग रही हो? क्यों आई थी हॉस्पिटल? मेरे सवालों के जवाब खुद से दे दो तो बेहतर होगा तुम्हारे लिए, वरना फिर मैं जवाब अपने अंदाज़ में निकलवाऊँगा।"

    अधिराज ने आँखों से ही उसे वार्निंग दी। आरोही घबराहट में आँखें घुमाने लगी और उन रिपोर्ट्स को अपने हाथ में भींच लिया।

    "कुछ खास नहीं...वो पिछले कुछ दिनों से फीवर था, उतर नहीं रहा था तो उसी के लिए टेस्ट करवाए थे, उन्हीं की रिपोर्ट है।"

    "झूठ बोल रही हो तुम।" उस सन्नाटे में अधिराज की रौबदार आवाज़ गूंजी। और आगे बढ़कर उसने रिपोर्ट्स लेनी चाहीं। आरोही घबराकर कार के डोर से चिपक गई और इंकार में सर हिलाने लगी।

    "नहीं...मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ।"

    "अगर इतना ही सच बोल रही हो तो लाओ, दिखाओ मुझे अपनी रिपोर्ट्स, घबरा क्यों रही हो?"

    अधिराज इंटेंस निगाहों से उसे घूर रहा था और आरोही उससे नज़रें चुरा रही थी।

    "कहीं तुम प्रेग्नेंट तो नहीं?"

    अधिराज का सवाल सुनकर आरोही के चेहरे का रंग उड़ गया। उसने चौंकते हुए नज़रें उठाईं और हड़बड़ाते हुए बोली— "नहीं...नहीं मैं प्रेग्नेंट नहीं हूँ।"

    "रिपोर्ट्स दिखाओ, सच खुद सामने आ जाएगा।"

    आरोही इंकार में सर हिलाने लगी और रिपोर्ट्स को कसके पकड़ लिया। अधिराज की भौंहें तन गईं।

    "अगर अभी तुमने मुझे वो रिपोर्ट्स नहीं दीं,
    और मुझे उन्हें जबरदस्ती तुमसे लेना पड़ा,
    तो याद रखो आरोही—रिपोर्ट्स तो मैं लूँगा ही,
    लेकिन उसके साथ तुम्हें इसकी सज़ा भी भुगतनी होगी।

    उस रात जो हमारे बीच हुआ था...वही सब एक बार फिर होगा—यहीं, अभी, इसी चलती कार में।

    पिछली बार तुम नशे में थीं, शायद कुछ धुंधला सा याद रह गया हो तुम्हें, लेकिन इस बार...जो होगा, वो तुम्हारे जिस्म और ज़हन दोनों में हमेशा के लिए बस जाएगा।

    तो अब फैसला तुम्हारा है—रिपोर्ट्स अपनी मर्ज़ी से दो...या मुझे मजबूर करो सब कुछ दोहराने पर। पर याद रखना, एक बार मैं शुरू कर दूँ, तो तुम्हारी ना की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी।"

    आरोही आँखें फाड़े, शॉक्ड सी उसे देखती ही रह गई। अधिराज ने आइब्रो चढ़ाते हुए कुछ इशारा किया, जिसे समझते हुए आरोही हड़बड़ा गई और झट से रिपोर्ट उसके हाथ में रख दी।

    अधिराज के होंठों पर तिरछी मुस्कान उभरी, वहीं आरोही घबराहट में अपने निचले होंठ को काटने लगी।

    अधिराज ने पूरी रिपोर्ट पढ़ी, फिर निगाहें आरोही की ओर घुमाते हुए गंभीरता से सवाल किया—

    "क्या प्रॉब्लम हो रही है तुम्हें कि तुम्हें डाउट हुआ और तुमने ये टेस्ट करवाए?"

    आरोही की सहमी निगाहें उसकी ओर उठ गईं, निगाहें अधिराज की निगाहों से टकराईं जो उसे ही देख रही थीं। अगले ही पल उसने सकपकाते हुए उस पर से निगाहें फेर लीं और अपनी ऊँगली से कपड़े को खुरचने लगी।

    "वीकनेस लग रही थी, तबियत भी खराब चल रही थी। शुरू में 4-5 दिन फीवर था, उसके बाद से वोमिटिंग की प्रॉब्लम होने लगी थी, थकान भी ज़्यादा रहती थी।...
    मेरा फर्स्ट टाइम था और प्रोटेक्शन भी यूज़ नहीं किया था। फर्स्ट..... फर्स्ट टाइम में प्रेग्नेंसी के चांसेस ज़्यादा रहते हैं तो मुझे लगा कि..."

    "डॉक्टर ने क्या कहा?"

    "फीवर के वजह से बॉडी में वीकनेस आ गई है। पेट में इंफेक्शन है, बस और कुछ नहीं।"

    "और ट्रीटमेंट?"

    अधिराज ने आँखें चढ़ाते हुए सवाल किया। आरोही ने धीरे से निगाहें उसकी ओर उठाईं।

    "डॉक्टर ने मेडिसिन लिखी है, प्रॉपर खाना खाने कहा है। कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा।"

    "और तुम्हारे दूसरे हाथ में क्या है?"

    "मम्मा की रिपोर्ट है।"

    "उन्हें क्या हुआ है?"

    "पैरालिसिस की पेशेंट है। अब तो मैंने सब बता दिया, अब मैं जाऊँ?"

    आरोही ने बड़ी ही उम्मीद से पूछा था और कहते हुए सहमी हुई भी लग रही थी। अधिराज पहले से काफी शांत नज़र आ रहा था और चेहरे पर सीरियस लुक्स के साथ उसे ही देख रहा था।

    "मैंने क्या कहा था तुम्हें?" अधिराज ने पैनी निगाहों से उसे घूरा, आरोही ने अपनी नज़रें झुका लीं।

    "तुम जो चाहते हो मैं वो नहीं कर सकती। मैंने तुम्हें बताया ना मेरी मम्मा पैरालिसिस की पेशेंट है, मुझे उनका ख्याल रखना होता है, मैं उन्हें छोड़कर नहीं जा सकती। उस रात जो भी हुआ वो मेरे नशे में होने के वजह से हुआ, मैं उसके लिए माफ़ी माँग रही हूँ, बस मेरी एक गलती के लिए तुम मुझे पूरी लाइफ़ फ़ोर्सफ़ुल्ली अपने साथ कैसे रख सकते हो?"

    "मैं अधिराज सिंह राठौड़ हूँ...तुम अभी मुझे जानती ही कितना हो? तुम्हें अंदाज़ा नहीं कि मैं क्या क्या कर सकता हूँ। इसलिए भूलकर भी मुझे चैलेंज करने की गलती मत करना।

    अगर मैंने ठान लिया तो तुम्हें इस दुनिया से ऐसा गायब करूँगा कि लोग तुम्हारा नाम तक भूल जाएँगे, तुम्हें आज़ादी से साँस लेने के लिए भी तरसा दूँगा, इतना मजबूर कर सकता हूँ कि तुम्हारे पास मेरे ऑर्डर मानने के अलावा और कोई ऑप्शन ही नहीं बचेगा। और इन सबके बावजूद तुम क्या और मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा और न ही तुम मेरी कैद से कभी आज़ाद हो सकोगी।"

    जिस अंदाज़ में अधिराज ने ये बातें कही, आरोही डर से खुद में सिमट गई। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में मोटे-मोटे आँसू भर आए थे।

    "तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ?"

    "क्योंकि अब तुम सिर्फ़ मेरी हो और मैं अपनी चीज़ों को कभी खुद से दूर नहीं जाने देता, कभी नहीं।"

    "पर मैं कोई चीज़ नहीं हूँ, एक जीती जागती इंसान हूँ। मेरी भी कोई इच्छा है, मर्ज़ी है।"

    "तुम अपनी मर्ज़ी से मेरी दुनिया में आई थीं...लेकिन मैंने तभी कहा था—एक बार मेरी दुनिया में कदम रख दिया, तो वापसी का कोई रास्ता नहीं बचता। तुम्हें मेरे करीब आने की इजाज़त थी…मगर मुझसे दूर जाने की नहीं। और जब तक मैं न चाहूँ, तब तक तुम कहीं नहीं जा सकती। अब तुम सिर्फ़ मेरी हो—मेरी ज़िद, मेरी चाहत, और मेरी क़ैद।"

    आरोही के पास अब कहने के लिए कुछ भी नहीं था। अपनी एक गलती के कारण वो ऐसी मुसीबत में फंस चुकी थी कि उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा था।

    अधिराज की ज़िद, जुनून, पागलपन के बीच वो बुरी तरह फंस चुकी थी। वो कुछ सुनने और समझने को तैयार ही नहीं था।

    आरोही कुछ पल नम आँखों से उसे देखती रही, फिर सर झुकाते हुए बोली—"क्या अगर मैं तुम्हें प्रॉमिस करूँ कि मैं तुम्हारी ही रहूँगी, मुझ पर सिर्फ़ तुम्हारा हक़ होगा, मैं कभी तुम्हारे अलावा किसी और को अपने करीब नहीं आने दूँगी, तो तुम मुझे जाने दोगे?"

    "मैंने तुम्हें छुआ है, आरोही…और अधिराज सिंह राठौड़ जिस चीज़ पर एक बार दावा कर दे, उसे कोई और देख भी ले—ये तक मैं बर्दाश्त नहीं करता। तुम पर मेरी मुहर लग चुकी है…और अब अगर तुम चाहो भी, तब भी इसे मिटा नहीं सकती।

    उस रात…तुम्हीं आई थी मेरे पास। हर नज़दीकी की वजह तुम थी। लेकिन अब…अब तुम्हें मुझसे दूर जाने की इजाज़त नहीं है।

    जो मेरा होता है, उसे मैं हर हाल में हासिल करता हूँ—चाहे उसके लिए मुझे पूरी दुनिया से क्यों न लड़ना पड़े। तुम अब सिर्फ़ मेरी ज़िद नहीं, मेरा जुनून बन चुकी हो।

    तुम्हें मेरी बाँहों में लौटना ही होगा—अपनी मर्ज़ी से या मेरी ज़बरदस्ती से। अब से तुम जहाँ भी जाओगी, तुम्हें तुम्हारी हर राह पर मैं मिलूँगा। और आख़िर में, तुम्हारे पास लौटकर मेरी बाहों में आने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचेगा। क्योंकि अब तुम्हारी मंज़िल सिर्फ़ मैं हूँ—अधिराज सिंह राठौड़।"

    आरोही की आँखें छलक आईं। हार गई थी वो, अधिराज की ज़िद और जुनून में उलझकर रह गई थी। इसके आगे दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। कार अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रही। उसके ज़हन में उस वक़्त सिर्फ़ मिसेस मेहरा का ख्याल था, उनकी चिंता हो रही थी उसे। इस चलती कार से कूद जाना चाहती थी वो, पर कार लॉक थी।

    वो नहीं जानती थी कि वो कहाँ जा रही है, उसे किसी बात का होश ही नहीं था, अपने ही ख़यालों में उलझी थी। अचानक एक झटके के साथ कार रुकी और आरोही चौंकते हुए होश में लौटी। अनायास ही निगाहें बाहर की ओर घूमीं और सामने उसने जो देखा, उसके बाद उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।


    To be continued…

  • 9. His Dangerous Obsession - Chapter 9

    Words: 1484

    Estimated Reading Time: 9 min

    "य...ये तो..." आरोही की हैरानी भरी निगाहें अधिराज की ओर घूम गईं।

    "जाओ... आज तुम्हें तुम पर तरस खाकर आज़ाद कर रहा हूँ। पर ये आज़ादी ज्यादा वक्त की नहीं है, आरोही। बहुत जल्दी वो वक्त आएगा जब तुम खुद लौटकर मेरी बाहों में आओगी... मजबूर होकर, बेताब होकर।"

    "तब तक... जी लो अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर। पर एक बात याद रखना—वो वादा, जो तुमने किया था।"

    "अगर तुमने उसे तोड़ा... अगर मेरे अलावा किसी और को अपने करीब आने दिया... तो मैं तुम्हें इस दुनिया से चुराकर अपनी दुनिया में ले जाऊँगा। एक ऐसी दुनिया... जहाँ से कोई लौटकर नहीं आता। और वहाँ, तुम सिर्फ मेरी रहोगी। हमेशा के लिए।"

    पता नहीं यह वार्निंग थी या धमकी। आरोही की धड़कनें पल भर को थम गईं। कार अनलॉक हो चुकी थी। आरोही जल्दी से बाहर निकल गई और मल्होत्रा मेंशन के अंदर चली गई। अधिराज की निगाहें उस पर तब तक टिकी रहीं जब तक वह अंदर नहीं चली गई।

    "ऑफिस चलो।" ड्राइवर ने तुरंत कार टर्न कर ली।

    कुछ देर बाद अधिराज अपने कैबिन में बैठा था और उसके सामने करण खड़ा था।

    "मुझे आरोही के पल-पल की खबर चाहिए, वह कहाँ जाती है? क्या करती है? किससे मिलती है? सब कुछ... और साथ ही उसके बारे में सारी इंफॉर्मेशन भी चाहिए, छोटी से छोटी बड़ी से बड़ी... कुछ भी नहीं छूटना चाहिए। अंडरस्टैंड...?"

    करण ने तुरंत सर हिलाया और वहाँ से चला गया।

    आरोही लगभग भागती हुई अंदर आई, पर सामने खड़ी मिसेज़ मल्होत्रा को देखते ही उसके कदम ठिठक गए।

    "कहाँ गई थी तू?" उन्होंने गुस्से में जबड़े भींचते हुए सवाल किया। आरोही हड़बड़ा गई।
    "मम्मा की रिपोर्ट लेने गई थी।"

    "इतना वक़्त लगता है रिपोर्ट कलेक्ट करने में?" पैनी निगाहों से उन्होंने आरोही को घूरा। घबराहट में उसके माथे पर पसीने की बुँदे छलकने लगीं।

    "व...वो ऑटो नहीं मिल रहा था, उसी में वक़्त लग गया।"

    वह अब भी उसे घूरे जा रही थी। आरोही नज़रें चुराते हुए वहाँ से निकल गई।

    अगले दिन रात का वक़्त था। आरोही खूबसूरत सा रेड गाउन पहने रेडी हो रखी थी और बहुत प्यारी लग रही थी, पर उसकी आँखों में अजीब सी बेचैनी और घबराहट थी, चेहरे पर मजबूरी मायूसी बनकर बिखरी हुई थी। डरी-सहमी सी खुद में सिमटी हुई वह होटल के प्राइवेट सुइट में बैठी किसी का इंतज़ार कर रही थी।

    धीमी रोशनी, आलीशान कमरा, लेकिन हवा में अजीब सी घुटन थी। दिल घबरा रहा था।

    उसने तो बहुत मना किया था, पर किसी ने उसकी सुनी ही नहीं। आज इसी वजह से मिसेज़ मल्होत्रा से कितने थप्पड़ खाए थे उसने और अब यहाँ बैठी अपनी बेबसी का मातम मना रही थी।

    आरोही ने अपनी आँखें बंद कीं और बंद पलकों के आगे अधिराज का गुस्से से जलता चेहरा आ गया। कानों में उसके कहे शब्द गूंजने लगे और आरोही ने घबराकर अपनी आँखें खोल दीं।

    "आरोही, कल ही तूने उससे वादा किया था कि तू सिर्फ उसकी रहेगी, उसके अलावा कभी किसी को अपने करीब नहीं आने देगी और आज तू यहाँ बैठी किसी और का इंतज़ार कर रही है। अगर उसे इसके बारे में पता चल गया तो वह छोड़ेगा नहीं तुझे... पर इन सब में मेरी क्या गलती है? मैं अपनी मर्ज़ी से तो यहाँ नहीं आई। मेरी मजबूरी है कि न चाहते हुए भी मुझे यह सब करना पड़ रहा है।"

    "मैं जानती हूँ कि मैं उसके साथ बहुत गलत कर रही हूँ और इसका अंजाम भी भुगतना होगा मुझे, पर अगर मैं यह नहीं करूँगी तो मिस्टर मल्होत्रा मम्मा का ट्रीटमेंट रुकवा देंगे। मेरी इज़्ज़त की कीमत है उनकी जान और अपनी मम्मा की जान बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।"

    आरोही ने गहरी साँस छोड़ी और साथ ही उसके कानों में दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पड़ी। उसने हड़बड़ी में अपनी ड्रेस को ठीक किया और नज़रें झुकाते हुए उठकर खड़ी हो गई।

    दो कदम उसके सामने आकर ठहरे, एक जोड़ी आँखें उसे ऐसे घूरने लगीं कि आरोही सिहर उठी, दिल बेतहाशा धड़क रहा था। घबराकर उसने कदम पीछे हटाने चाहे, तभी किसी ने अपनी कलाई थाम ली। सिगार का धुआँ सीधे उसके चेहरे पर आया और आरोही की नज़रें सामने की ओर उठ गईं।

    एक 50 के पार का, घिनौनी मुस्कान और आँखों में गंदा लिबास ओढ़े एक आदमी। महंगे सूट में लिपटा वह शख्स ऊपर से तो सभ्य लगता था, पर उसकी आँखों में हवस भरी थी... एक भेड़िये जैसी।

    आरोही चौंक गई। उसे स्टेप फादर ने इस बूढ़े के साथ उसका सौदा किया था जो उसकी उम्र के डबल से भी ज्यादा था।

    उस शख्स ने आरोही को काउच पर बिठाया और खुद दूसरे तरफ बैठ गया।

    "ड्रिंक बनाओ।" रौबदार आवाज़ गूंजी। आरोही हड़बड़ी में ड्रिंक बनाने लगी।

    सामने बैठे उस पचास साल के आदमी ने धीरे से अपनी व्हिस्की का घूंट लिया और मुस्कुराया। उसकी नज़रें एक पल के लिए भी आरोही से नहीं हट रही थीं। वह लग ही बला की खूबसूरत थी और वह उस खूबसूरती में डूबने को बेताब था।

    "हकीकत में फोटो से भी ज्यादा खूबसूरत हो तुम, तुम्हें देखकर पहली बार लग रहा है कि जवानी सच में किसी की गुलाम हो सकती है... कितनी नाज़ुक हो तुम। तुम्हारी त्वचा... जैसे दूध में शहद घुला हो। और ये आँखें... अगर कोई तैरना भी न जानता हो तो इनमें डूबने का मन करे।"

    उसकी गिद्ध सी निगाहें आरोही के कोमल बदन पर फिसल रही थीं। आरोही का गला सूखने लगा। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसने उन्हें पीछे छुपा लिया।

    वह आदमी अपनी जगह से उठा, धीमे-धीमे उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला, "तुम्हारे जैसा नाज़ुक फूल अगर मेरे पास न होता तो यह ज़िंदगी अधूरी रहती... आज तो किस्मत मेहरबान है।"

    वह उसके और पास आया, इतना कि अब उसकी साँसों की गर्माहट आरोही के चेहरे पर महसूस होने लगी।

    "तुम घबराओ मत," उसने नर्म लहजे में कहा, लेकिन उसकी आँखों में वहशी चमक थी, "मैं तुम्हारे साथ बहुत खास पल बिताना चाहता हूँ।"

    आरोही ने एक अनकहे डर से पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन पीठ सोफे के बैक से टकरा गई। उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था, आवाज़ जैसे गले में अटक गई हो।

    "कितनी मासूम लगती हो तुम... डर बिल्कुल मत, बस खुद को मेरे हवाले कर दो। तेरी इस जवान हसीन हुस्न की कीमत चुकाई है मैंने, अगर आज की रात तूने मुझे संतुष्ट कर दिया तो तेरी ज़िंदगी बदल दूँगा मैं।" वह आदमी अब उसके इतने पास आ चुका था कि उनकी साँसें टकरा रही थीं।

    आरोही की आँखें नम होने लगीं। उसके होंठ काँप रहे थे, लेकिन आवाज़ नहीं निकल रही थी। उस आदमी ने उसके कोमल होंठों को अपने अंगूठे से मसल किया, उसकी कमर को अपनी हथेली से दबाते हुए उसके चेहरे की ओर झुक गया।

    आरोही ने अपनी आँखों को कसके भींच लिया। झुकी पलकों के आगे एक बार फिर अधिराज का चेहरा आया और एकदम से उसने उस आदमी को खुद से दूर धकेल दिया।

    अचानक ऐसा होने पर वह संभल नहीं सका और फर्श पर जा गिरा। आरोही घबराकर सोफे से खड़ी हो गई। एक नज़र उस आदमी को देखा और तेज़ी से कमरे से बाहर जाने लगी।

    अब तक जो आदमी उसकी खूबसूरत हुस्न का दीवाना बना हुआ था, उसकी आँखों में खून उतर आया था। अपनी यह इंसल्ट उससे बर्दाश्त नहीं हुई।

    आरोही अभी कुछ कदम चली ही थी कि अचानक ही उसके मुँह से चीख निकल गई। उस आदमी ने उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए खींचकर उसे अंदर की ओर धकेल दिया।

    "तेरी इतनी हिम्मत की मुझे धक्का दे? खरीदा है मैंने तुझे, आज रात की कीमत चुकाई है, जब तक मैं तुझसे पूरी कीमत नहीं वसूल लेता, तुझसे अपनी इस इंसल्ट का बदला नहीं ले लेता, तू यहाँ से कहीं नहीं जा सकती।"

    आरोही फर्श पर जा गिरी और घबराकर पीछे को सरकने लगी। उसके सामने खड़ा यह आदमी भूखे भेड़िये जैसे उस पर टूट पड़ा। उसकी आँखों से हवस टपक रही थी और वह हैवानियत पर उतर आया था।

    वह आरोही को खींचते हुए बेड के पास ले गया। आरोही उससे अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करती रही। जैसे ही उस आदमी ने झुककर उसे उठाना चाहा, आरोही ने अपना सिर उसके सिर पर दे मारा, पूरी ताकत के साथ उसे खुद से दूर धकेल दिया और झटपट उठकर खड़ी हो गई।

    उस आदमी ने गुस्से से उसे घूरा और उसके करीब आने लगा। आरोही ने नाइट टेबल पर रखा काँच का वास उठा लिया और खुद को बचाने के लिए उसे उस आदमी पर फेंक दिया, पर वह साइड हट गया।

    जैसे ही वह चिल्लाते हुए आरोही पर झपट्टा मारा, आरोही तुरंत बेड पर चढ़ गई और तेज़ी से दूसरे तरफ से नीचे उतर गई। वहाँ रखे शो पीस में अपने दोनों हाथों से कसके पकड़ लिया।

    "मेरे पास मत आना, खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश भी की, मैं जान से मार दूँगी तुम्हें।"

    "इन नाज़ुक हाथों से मारेगी तू मुझे?" उस आदमी की शैतानी हँसी की आवाज़ वहाँ गूंज उठी। आरोही डर से काँप गई।

    To be continued…

  • 10. His Dangerous Obsession - Chapter 10

    Words: 1497

    Estimated Reading Time: 9 min

    "मेरे पास मत आना, खबरदार जो मुझे छूने की कोशिश भी की, मैं जान से मार दूँगी तुम्हें।"

    "इन नाज़ुक हाथों से मारेगी तू मुझे?" उस आदमी की शैतानी हँसी की आवाज़ वहाँ गूंज उठी। आरोही डर से काँप गई, पर उसने खुद को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया। जैसे ही उस आदमी ने उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाया, आरोही ने शो पीस उसके सिर पर दे मारा। खून का फव्वारा सा फूट गया।

    आरोही घबराकर दो कदम पीछे हट गई। उसके हाथ से शो पीस छूटकर नीचे गिर गया। कुछ सेकंड के लिए वह सदमे की स्थिति में खड़ी, फटी आँखों से उसे देखती ही रह गई।

    जैसे ही वह आदमी फर्श पर गिरा, आरोही चौंकते हुए होश में लौटी और बिना एक सेकंड बर्बाद किए तुरंत बाहर की ओर भाग गई।

    आरोही बहुत ज्यादा घबरा गई थी और डरी हुई भी थी। वह बदहवास सी भागते हुए होटल से बाहर जा रही थी कि अचानक ही किसी से टकरा गई। पीछे गिरने को हुई, पर किसी की बाँह ने उसकी कमर को थामते हुए उसे अपनी ओर खींच लिया। आरोही का सिर उस शक्स के चौड़े सीने से टकरा गया।

    जानी पहचानी सी परफ्यूम की खुशबू उसकी साँसों में घुल गई। स्पर्श को पहचानते हुए उसने चौंकते हुए सिर उठाकर सामने खड़े शक्स को देखा; उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

    "मैं... मैंने मार... मार दिया उसे..." आरोही की ज़ुबान काँप गई, उसकी पलकें थरथराने लगीं और वह उसकी बाहों में झूल गई। वह फिज़िकलि वीक थी, इतना मेंटल स्ट्रेस, खौफ वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। उस शक्स ने उसे अपनी बाहों में उठाया और तेज़ी से होटल से बाहर निकल गया।

    आरोही को पैसेंजर सीट पर बिठाया गया, खुद ने ड्राइविंग सीट संभाली। आरोही के सीट बेल्ट को लगाते हुए उसने उसे गौर से देखा। उसके बिखरे बाल, अस्त-व्यस्त कपड़े, फैली हुई लिपस्टिक, गालों पर बने काजल के निशान, सिर पर सूजन... आरोही की हालत देखकर उस शक्स की आँखें खूनी रंग में रंग गईं; गुस्से में अपनी मुट्ठी भींचते हुए हाथ स्टीयरिंग पर दे मारा।

    उस शक्स ने किसी को मैसेज ड्रॉप किया और वहाँ से निकल गया।

    उनके निकलने के बाद ही कुछ आदमी वहाँ आए और सीधे उस कमरे में चले गए जहाँ कुछ देर पहले आरोही थी। अंदर बेहोश पड़े आदमी को उठाकर वहाँ से ले जाया गया, पर किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि कुछ कह सके या उन्हें रोक सके।

    आरोही के घर पर सभी रिलैक्स होकर सो रहे थे, उन्हें किसी बात की खबर ही नहीं थी।

    अगला दिन शुरू हो चुका था। आरोही की पलकें हिलीं, शरीर में कुछ हलचल हुई। उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और आँखों के सामने एक बड़ा खूबसूरत सा झूमर आया।

    अचानक ही आरोही के ज़हन में होटल और वह अधेड़ उम्र का आदमी आया और वह हड़बड़ी में उठकर बैठ गई। उसने अपनी बड़ी-बड़ी घबराहट भरी आँखें चारों तरफ घुमाईं।

    वह उस वक्त एक किंग साइज बेड पर बैठी थी। बेडरूम लग्ज़ीरियस और मस्क्युलिन था। बड़ी खिड़कियों से शहर का नज़ारा दिखाई दे रहा था और बिस्तर गहरे रंग के वेलवेट लिनन से सजा हुआ था। दीवारों पर डार्क आर्टवर्क लगे थे और फर्नीचर सिंपल लेकिन एलिगेंट था। कमरे में एक मजबूत अहसास था, जो नियंत्रण और प्रभुत्व को दर्शाता था।

    खुद को अनजान जगह पर देखकर आरोही घबरा गई। बेड से नीचे उतरकर सीधे गेट की ओर दौड़ी। सीढ़ियों से दौड़ते हुए नीचे उतरी। आरोही जल्दी से जल्दी वहाँ से निकलने की फिराक में थी और घबराहट में आँखें चारों तरफ घुमा रही थी।

    इस वक्त वह एक विशाल, शाही हवेली जैसा आलिशान बंगले में थी। बाहर से ऊँची दीवारों और भारी फाटक से घिरा, अंदर घुसते ही संगमरमर की सीढ़ियाँ, झूमर की रौशनी, और हर कोने में रॉयलिटी झलक रही थी। काले, गहरे रंगों और साइलेंस में डूबा यह घर उतना ही डरावना था जितना भव्य और खूबसूरत।

    आरोही का दिल घबराहट के मारे जोरों से धड़क रहा था; उस सुनसान वीरान मेंशन में उसे डर भी लग रहा था।

    वह गेट के पास पहुँची ही थी कि अचानक ही गेट बंद हो गया, साथ ही एक सख्त आवाज़ उसके कानों से टकराई,

    "ये मेरी दुनिया है, डार्लिंग। जब तक मैं नहीं चाहता, तुम इस मेंशन से एक कदम भी बाहर नहीं निकाल सकती।"

    आरोही की आँखें फटी की फटी रह गईं और दिल की धड़कनें थम गईं। वह चौंकते हुए पलटी। उसके ठीक पीछे कुछ कदमों की दूरी पर अधिराज खड़ा था। हल्की बियर्ड से ढका चेहरा, कोल्ड लुक्स, घूरती काली डरावनी आँखें।

    आज उसने टीशर्ट और लोवर पहना हुआ था। उसके गोरे बदन पर डार्क ब्लैक रंग खिल रहा था और दोनों हाथों को अपने लोवर की पॉकेट में डाले वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहा था।

    आरोही घबराहट में अपने कदमों को पीछे की ओर घसीटने लगी। आरोही की पीठ गेट से टकराई; उसने चौंकते हुए पीछे देखा, फिर घबराहट भरी नज़रें अधिराज की ओर घुमाईं।

    "मुझसे बचकर भाग रही थी?" अधिराज ने पैनी निगाहों से उसे घूरते हुए सर्द लहज़े में सवाल किया। आरोही ने हड़बड़ी में सिर हिला दिया,

    "न... नहीं, मैं क्यों तुमसे भागूँगी?"

    "अक्सर गुनाह करने वाले सज़ा से बचने के लिए भागने की कोशिश करते हैं।"

    "गुनाह?" आरोही के लब फड़फड़ाए और आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं।

    अधिराज के कदम ठीक उसके सामने आकर रुके। आरोही के साइड में अपनी हथेली टिकाते हुए वह उसके चेहरे की ओर झुक गया। आरोही घबराहट से दरवाजे से चिपक गई।

    "तुमने मुझे धोखा दिया, तुमने अपना प्रॉमिस तोड़ा, आरोही।" उसकी आवाज़ अब धीमी थी, लेकिन डरावनी आँखों में गुस्सा था।

    "मैंने नहीं..." आरोही ने धीरे से कहा।

    अधिराज ने उसके चेहरे को अपने मजबूत हाथों से पकड़ लिया और उसकी आँखों में झाँका।

    "तुम कल रात होटल में उस आदमी के साथ क्या कर रही थीं?"

    आरोही का चेहरा सफेद पड़ गया। इसलिए तो वह यहाँ से भागने की कोशिश कर रही थी, पर अधिराज ने शिकंजा कस दिया था।

    "जवाब दो आरोही, कल तुम उस कंडीशन में वहाँ क्या कर रही थी?"

    अधिराज की आवाज़ इतनी डरावनी लग गई थी कि आरोही की धड़कनें बढ़ गईं।

    "मुझे मेरे डैड ने वहाँ भेजा था।" नज़रें झुकाते हुए वह फुसफुसाई।

    "क्यों?" अधिराज का चेहरा भावहीन था।

    आरोही नर्वसनेस में अपने होंठ को काटने लगी। अधिराज ने अपने अंगूठे से उसके होंठ को मसल लिया। आरोही के जिस्म से सिहरन सी दौड़ गई, झुकी पलकें उसकी ओर उठ गईं।

    "इन पर मेरा हक है, तुम्हें कोई राइट नहीं इन्हें हर्ट करने का।"

    अजीब सी जुनून थी उन आँखों में, आरोही हैरान थी।

    "मेरे ही शरीर पर मेरा ही हक नहीं।"

    "जवाब दो आरोही, वरना तुम्हारी इस खामोशी की पनिशमेंट तुम्हारे इन सॉफ्ट होंठों को भुगतनी होगी।"

    अधिराज का चेहरा इतना करीब था कि दोनों की नाक एक-दूसरे को छू रही थीं और साँसें एक-दूसरे की साँसों से उलझ रही थीं।

    आरोही ने घबराकर अपनी आँखें भींच लीं। "उन्होंने... उन्होंने मेरा सौदा कर दिया था..."

    अधिराज के चेहरे पर अब भी कोई एक्सप्रेशन नहीं थे। उसने आरोही की कमर पर अपनी बाँह फँसाते हुए उसे झटके से अपने करीब खींचा और उसके अधखुले होंठों को अपने होंठों से दबा दिया।

    यह सब इतने अचानक हुआ कि आरोही शॉक्ड सी खड़ी ही रह गई। अधिराज उसके होंठों को चूमने के साथ बाइट करने लगा था और दर्द से आरोही की आँखों में आँसू आ गए थे। वह छटपटा रही थी, पर अधिराज उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था। उसकी हथेली ने उसके कमर को इतने कस के पकड़ा था कि उसके नाखून आरोही के पेट पर चुभ रहे थे, उसके बालों पर अधिराज की पकड़ मजबूत थी और आरोही दर्द से तड़प रही थी।

    लगभग 10 मिनट की लंबी इंटेंस किस के बाद अधिराज ने उसके होंठों को आज़ाद किया और अपना चेहरा उसकी गर्दन में छुपा लिया।

    "ये सज़ा है तुम्हारी, अपना वादा तोड़ने और मेरे अलावा किसी और को अपने करीब आने देने की।"

    अधिराज के होंठों ने उसकी गर्दन को सहलाया, आरोही के थरथराते होंठों से दर्द भरी सिसकी निकल गई। उसकी गर्दन पर अधिराज के दांतों का निशान बन चुका था।

    आरोही की साँसें उखड़ी हुई थीं, चेहरा कश्मीरी सेब जैसे लाल हो गया था। दिल जोरों से धड़क रहा था। पलकें झुकी थीं और लबों को उसने आपस में बिंचा हुआ था, जो जगह-जगह कट गए थे और उनसे खून आ रहा था।

    "याद रहे, आगे से मेरे अलावा अगर किसी को अपने करीब आने दिया... तो सज़ा इससे भी ज़्यादा खतरनाक होगी। जितना आगे बढ़ोगी उसके साथ, उतनी ही बढ़ती जाएगी तुम्हारी सज़ा। और तब मैं रहम नहीं करूँगा, बिल्कुल नहीं।"

    चढ़ती-उतरती साँसों के दरमियान आरोही ने धीरे से अपनी पलकें उठाईं।

    "तुम ये सब क्यों कर रहे हो मेरे साथ? मैंने बताया था ना कि मैंने अपना वादा नहीं तोड़ा था, मैं मजबूर थी, फिर भी मैंने उसे खुद को छूने नहीं दिया था, इसके बावजूद तुम्हें मुझे हर्ट किया... ये कैसा प्यार है तुम्हारा?"

    उसकी उन बड़ी-बड़ी आँखों में नमी में लिपटी शिकायत थी। अधिराज के होंठों पर मिस्टीरियस स्माइल फैल गई।

    To be continued…

  • 11. His Dangerous Obsession - Chapter 11

    Words: 1418

    Estimated Reading Time: 9 min

    "तुम ये सब क्यों कर रहे हो मेरे साथ? मैंने बताया था न कि मैंने अपना वादा नहीं तोड़ा था, मैं मजबूर थी, फिर भी मैंने उसे खुद को छूने नहीं दिया था। इसके बावजूद तुम्हें मुझे हर्ट किया… ये कैसा प्यार है तुम्हारा?"

    उसकी उन बड़ी-बड़ी आँखों में नमी में लिपटी शिकायत थी। अधिराज के होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान फैल गई।

    "तुम्हें ये किसने कह दिया कि मुझे तुमसे प्यार है?"

    अधिराज ने आइब्रो उठाते हुए सवाल किया और गहरी निगाहों से उसे देखा। उसका सवाल सुनकर आरोही आँखें बड़ी-बड़ी किए, कंफ्यूज सी उसे देखने लगी।

    "तुम मुझे अपने पास रखना चाहते हो, मुझ पर अपना हक़ जताते हो, किसी और का मेरे करीब आना बर्दाश्त नहीं करते, अपनी पूरी लाइफ मेरे साथ बिताना चाहते हो तो क्या तुम प्यार नहीं करते मुझसे?"

    "प्यार," अधिराज की शैतानी हँसी आरोही का दिल दहला गई। अधिराज रुका, हल्का झुका, होंठों पर व्यंग्य भरी तिरछी मुस्कान सजाई और उसकी आँखों में झांकने लगा।

    "प्यार शब्द के लिए अधिराज सिंह राठौड़ की ज़िंदगी में कोई जगह नहीं है। नफ़रत है मुझे मोहब्बत से… तुम मेरा जुनून हो, मेरी चाहत और ज़रूरत हो, मोहब्बत नहीं। तुम्हें हासिल करना मेरी ज़िद है, एक ऐसी ज़िद जिसे पूरा करने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ।"

    आरोही हैरान थी और फटी आँखों से एकटक उसे देखे जा रही थी। उसके जुनून में पोजेशन था, मोहब्बत नहीं, ऑब्सेस्ड था वो उससे।

    आरोही शॉक्ड सी उसे देखे जा रही थी। अधिराज ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया। आरोही ने घबराकर अपनी बाहों को उसकी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट दिया।

    "य… ये क्या कर रहे हो तुम? नीचे उतारो मुझे… मैंने कहा नीचे उतारो मुझे, कहाँ लेकर जा रहे हो मुझे?… देखो मुझे डर लग रहा है, please मुझे नीचे उतार दो, जाने दो मुझे, मुझे घर जाना है।"

    आरोही बोलती रही, नीचे उतरने के लिए छटपटाती रही, पर अधिराज पर कोई असर नहीं हुआ। वो आरोही को अपनी बाँहों में उठाए वापिस उस कमरे में ले आया जहाँ से वो गई थी।

    "अब से यही तुम्हारा रूम है और तुम्हें यही रहना है मेरे साथ।"

    अधिराज ने उसे बेहद प्यार से बेड पर लिटा दिया। आरोही झटके से उठकर बैठ गई और हैरानी से सवाल किया।

    "क्या मतलब? कहना क्या चाहते हो तुम? मैं यहाँ क्यों रहूँगी? मुझे मेरे घर जा…" वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी थी कि अधिराज अचानक ही उसकी ओर झुक गया। आरोही घबराकर पीछे हटी और बेड पर लेट गई। शब्द गले में अटककर रह गए और वो आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरानी से उसे देखने लगी।

    अधिराज ने अपनी हथेली बेड से टिकाते हुए उसके चेहरे की ओर झुक गया और ठंडे अंदाज़ में जवाब दिया।

    "अब तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी।"

    "क… क्यों?" आरोही की ज़ुबान लड़खड़ा गई।

    अधिराज ने एक तीखी नज़र उसके चेहरे पर डाली और कहा, "अब मैं तय करूँगा कि तुम्हें कहाँ रहना है, और किसके साथ रहना है। तुम्हारे ज़िंदगी के सभी फैसले अब मैं करूँगा। तुम मेरी हो, आरोही। सिर्फ़ मेरी। और मैं ये इंश्योर करूँगा कि मेरे अलावा किसी की नज़र भी तुम पर न पड़ सके।"

    आरोही ने उसकी आँखों में देखा, जहाँ एक खतरनाक जुनून था।

    "त… तुम मुझे यहाँ, अपने इस बड़े से आलीशान महल में कैद करके रखना चाहते हो?"

    "कैद समझो या उस कैद से रिहाई जिसमें तुम सालों से रहती आ रही हो, पर सच्चाई यही है कि अब से तुम्हें यही रहना है मेरे साथ, सिर्फ़ मेरी बनकर।" उसकी आवाज़ खतरनाक थी। आरोही बुरी तरह घबरा गई।

    "नहीं… तुम मुझे ऐसे जबरदस्ती यहाँ रहने पर मजबूर नहीं कर सकते, मुझे जाना है यहाँ से, मुझे मेरे घर वापिस जाना है।"

    "भूल जाओ, अब तुम्हें यहाँ से कहीं जाने की इजाज़त नहीं है। बहुत जल्द मैं शादी करने वाला हूँ तुमसे, उसके बाद मुझे लीगली राइट होगा तुम्हें अपने पास, अपने साथ रखने का और तुम चाहो या न चाहो तुम्हें यही रहना होगा, मेरे साथ।"

    आरोही के चेहरे का रंग उड़ गया। अधिराज की ये बात उसके लिए किसी झटके से कम नहीं थी।

    "शादी… मेरी, तुमसे… नहीं ये नहीं हो सकता। मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती।"

    "क्यों नहीं? क्या वजह है? जब तुम पहले ही मेरे साथ एक पैशनेट रात बिता चुकी हो, हमारे रिश्ते में इतने आगे बढ़ चुकी हो, मुझसे प्रॉमिस भी किया था कि मेरे अलावा कभी किसी और को खुद को छूने नहीं दोगी, फिर शादी से इंकार क्यों?" अधिराज भौंहें सिकोड़े पैनी निगाहों से उसे घूर रहा था।

    "वो सब नशे में हुआ था। मैं तुमसे प्यार नहीं करती, तुम मुझसे प्यार नहीं करते, मुझ पर मेरी मम्मा की ज़िम्मेदारी है, मैं नहीं कर सकती शादी।"

    "आरोही… भूल जाओ कि तुम्हारी कोई मर्ज़ी भी है। जो चीज़ एक बार अधिराज सिंह राठौड़ की हो जाए, उस पर किसी और की नज़र तक बर्दाश्त नहीं होती मुझे। तुम्हारी हर मुस्कान, हर आहट, हर साँस अब मेरी है।

    अगर किसी ने भी तुम्हें गलत नज़रों से देखा, उसकी आँखें निकाल दूँगा। अगर किसी ने तुम्हें छूने की कोशिश की, उसके हाथ तोड़ दूँगा… नहीं, उससे भी बदतर हाल करूँगा।

    और कल जैसी सिचुएशन दोबारा न हो, इसके लिए तुम्हारा मुझसे जुड़ना ज़रूरी है। ये शादी अब होकर रहेगी—चाहे तुम्हारी रज़ामंदी से या मेरी ज़िद से। तुम्हारे पास अब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा, आरोही… सिर्फ़ 'मैं' हूँ।"

    "तुम समझ क्यों नहीं रहे, मैं नहीं कर सकती तुमसे शादी। अगर मैंने ऐसा कुछ भी किया तो वो मेरी माँ को मार देंगे, अगर मैं उनके खिलाफ गई तो वो जान ले लेंगे उनकी। मैं ऐसा नहीं कर सकती, मुझे जाना है यहाँ से, मुझे मेरे घर वापिस जाना है जहाँ मेरी माँ मेरा इंतज़ार कर रही है।"

    आरोही गुस्से और दर्द से चीखी, उसकी आवाज़ रुंध गई थी। अधिराज एकदम शांत हो गया। कुछ पल उसके बेबसी भरे चेहरे को देखता रहा, फिर पीछे हट गया।

    "ठीक है, जाओ, मैं तुम्हें इस बार भी नहीं रोकूँगा।"

    आरोही हैरान थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

    "मैं सच में जाऊँ?"

    "हाँ जाओ।" अधिराज के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और यही बात आरोही को डरा रही थी। वो झटके से उठकर बैठ गई।

    "मैं सच में जाऊँ न?"

    "Hmm" अधिराज सर हिलाते हुए पीछे हट गया। आरोही कुछ पल शक भरी नज़रों से उसे देखती रही, फिर फटाफट बेड से नीचे उतरकर बाहर की तरफ दौड़ गई।

    आरोही मेंशन से बाहर निकली ही थी कि अचानक ही एक कार उसके सामने आकर रुकी। आरोही घबराकर दो कदम पीछे हट गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। पिछली बार ऐसी ही कार में उसे खींच लिया गया था, इसलिए डर गई थी।

    कार का गेट खुला तो आरोही हल्का सा झुककर अंदर झांकने लगी। ड्राइविंग सीट पर अधिराज बैठा था।

    "तुम इतनी जल्दी यहाँ कैसे आ गए?" आरोही ने चौंकते हुए सवाल किया, पर जवाब देने के बजाय अधिराज डोर खोलते हुए बाहर आया और घूमकर आरोही के तरफ़ बढ़ गया।

    आरोही ने कदम पीछे लेने चाहे, तब तक में अधिराज उसके पास पहुँच गया था। उसने बिना कुछ कहे उसकी कलाई झटके से पकड़ी और उसे अपनी कार की ओर खींचने लगा।

    "अधिराज… प्लीज…" आरोही ने विरोध करने की कोशिश की।

    लेकिन अधिराज ने उसकी बात नहीं सुनी। उसने कार का दरवाज़ा खोला और उसे अंदर धकेल दिया।

    "कार से उतरने की कोशिश भी मत करना," उसकी आवाज़ में एक चेतावनी थी। आरोही की सीट बेल्ट लगाकर वो पीछे हट गया।

    आरोही आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरान परेशान सी उसे देखती ही रह गई। अधिराज ने कार स्टार्ट की और तेज़ी से सड़क पर दौड़ा दी। कार के अंदर सन्नाटा था। आरोही आँखें बड़ी-बड़ी करके अधिराज को देखे जा रही थी, वही उसका पूरा ध्यान ड्राइविंग पर था और चेहरा बिल्कुल सपाट।

    कार मल्होत्रा मेंशन के सामने आकर रुकी। अधिराज ने डोर ओपन किया तो खुद में उलझी आरोही बाहर निकल गई। आरोही के बाहर निकलते ही अधिराज ने कार टर्न की और धूल उड़ाते हुए कार उसकी आँखों के सामने से गायब हो गई।

    आरोही शॉक्ड सी खड़ी ही रह गई। उसने सर झटका, गहरी साँस छोड़ी और अपने घर को देखा। अब तक तो दिलों दिमाग पर वही छाया रहता था। इसलिए किसी और तरफ़ उसका ध्यान ही नहीं गया, पर अब उसे घर जाना है, सबको फेस करना था। कल जो उसने किया उसके बाद मिस्टर एंड मिसेज़ मल्होत्रा उसके साथ क्या करेंगे वो इमेजिन भी नहीं कर सकती थी।

    आरोही ने अपने दिल को समझाया और बोझिल कदमों से मल्होत्रा मेंशन की ओर बढ़ गई।

    आरोही अंदर आई और वहाँ का नज़ारा देखकर वो शॉक्ड रह गई।

    To be continued…

  • 12. His Dangerous Obsession - Chapter 12

    Words: 1306

    Estimated Reading Time: 8 min

    "अरे आरोही, आ गई तू? वहाँ खड़ी-खड़ी क्या कर रही है? चल आजा, इधर आकर मेरे पास बैठ और देख, तेरे लिए कितना सारा शगुन का सामान आया है।"

    "शगुन का सामान?" आरोही खुद में उलझी हुई सी उनके तरफ बढ़ गई। जैसा उसने सोचा था, वैसा तो यहाँ कुछ भी नज़र ही नहीं आ रहा था।

    जो उसने किया था, उसके बाद आज यहाँ सबको उस पर गुस्सा करना चाहिए था, पर सब खुश नज़र आ रहे थे। अब तक की ज़िंदगी में पहली बार, ज़हन उगलने वाली ज़ुबान से शहद टपक रहा था, जो नॉर्मल तो बिल्कुल नहीं था।

    आरोही थोड़ा अंदर आई तो उसकी नज़र सोफे के सामने लगे टेबल पर रखे सामान पर गई। जिसमें ब्राइडल आउटफिट, हैवी ज्वेलरी, फ्रूट्स वगैरह, ऐसे काफी सामान रखा हुआ था और सब उसे ही देख रहे थे।

    "क्या है ये सब?"

    "सब तेरा ही है, बाद में आराम से देख लेना। अभी इस पर साइन कर।"

    संजीव ने कुछ पेपर्स उसकी ओर बढ़ाए। "मैरिज रजिस्ट्रेशन के पेपर हैं, साइन कर जल्दी।"

    "मैरिज रजिस्ट्रेशन के पेपर्स....."

    आरोही बुरी तरह चौंक गई।

    "हाँ आरोही, ये सब तेरी शादी की प्रिपरेशन हो रही है। आज ही तेरे लिए इतना अच्छा रिश्ता आया कि मॉम-डैड ने तुरंत हाँ कह दी। ये सब जो तू देख रही है, तेरे शगुन का सामान है जिसे पहनकर कल तू इस घर से हमेशा-हमेशा के लिए चली जाएगी और ये पेपर्स हैं तेरी मैरिज के रजिस्ट्रेशन के पेपर्स। तेरा होने वाला हसबैंड तुझसे शादी करने के लिए इतना बेताब है कि उससे एक दिन का भी इंतज़ार नहीं किया गया। आज ही सब भेज दिया और कल तुझसे शादी भी कर लेगा। लगता है बेचारे के पास ज़्यादा वक़्त नहीं होगा, अपने बुढ़ापे के आखिरी दिन तेरे साथ बिताना चाहता होगा, इसलिए इससे पहले ही मर जाए, तुझसे शादी कर लेना चाहता है।"

    नंदिता के होंठों पर तिरछी मुस्कान फैली थी। वो जानबूझकर ऐसी बातें करके उसका दिल जला रही थी। आरोही शॉक्ड थी।

    "किसका रिश्ता आया है? आप लोग ऐसे कैसे मुझसे बिना पूछे रिश्ते के लिए हाँ कह सकते हैं? ये मेरी लाइफ का सबसे इम्पॉर्टेन्ट डिसीज़न है, मैं ऐसे ही किसी से भी शादी नहीं कर सकती। मुझे माँ को देखना होता है, उनका ख्याल रखना होता है और अभी मेरी उम्र ही कितनी है।"

    ज़िंदगी में पहली बार आरोही ने अपने हक के लिए आवाज़ उठाई और एक ज़ोरदार थप्पड़ सीधे उसके गाल पर लगा।

    "ज़्यादा ज़ुबान चलाने लगी है, हमसे सवाल करेगी तू? भूल मत, तू और तेरी माँ आज तक हमारे फेंके टुकड़ों पर पल रहे हो, एहसान मान हमारा कि हमने तुम दोनों को इतने साल तक यहाँ इस घर में रहने दिया, कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। चुपचाप जो कह रहे हैं वो कर, इसी में तेरी और तेरी माँ की भलाई है। अगर हमारे खिलाफ जाने की कोशिश की या शादी से इंकार करने का ख्याल भी तेरे मन में आया तो सबसे पहले तो तुझे किसी कसाई के हाथों बेच देंगे, फिर तेरी माँ को इस घर से उठाकर बाहर फेंक देंगे।"

    "अभी इज़्ज़त से शादी करके भेज रहे हैं तो चुपचाप बिना कोई नखरे दिखाए शादी कर ले। अगर तू हमारी बात मानेगी, तभी तेरी माँ इस घर में रहेगी। अगर ज़्यादा ज़ुबान चलाई तो तेरी तो ज़िंदगी बर्बाद होगी ही, तेरे वजह से तेरी वो लाचार माँ भी मारी जाएगी। अब बता, शादी करेगी या नहीं? इन पेपर्स पर साइन करेगी या अपनी आँखों के सामने अपनी ज़िंदगी बर्बाद होते और अपनी माँ को मरते देखेगी?"

    मिस्टर और मिसेज़ मल्होत्रा दोनों ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी उसे प्रेशराइज़ करने में। आरोही ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया। मिस्टर मल्होत्रा ने सर्वेंट की ओर नज़रें घुमाईं।

    "जाओ, लेकर आओ इसकी माँ को और फेंक दो घर से बाहर। जब उसकी सगी बेटी को उसकी कोई फ़िक्र नहीं है तो हम क्यों चिंता करें?"

    सर्वेंट तुरंत मिसेज़ मेहरा के कमरे की ओर बढ़ गया। ये देखकर आरोही एकदम से चीखी, "नहींईई..."

    तीनों लोगों के चेहरे पर शैतानी मुस्कान उभरी जिसे उन्होंने जल्दी ही छुपा लिया।

    "तो क्या फैसला है?"

    आरोही ने उस रूम की ओर देखा। मिसेज़ मेहरा वहाँ से उसे ही देख रही थीं। वो लाचार थीं, आँखों में आँसू भरे, धीरे-धीरे इंकार में सर हिलाते हुए आरोही को उनकी बात मानने से मना कर रही थीं।

    "अगर तू चाहती है कि तेरी माँ ज़िंदा रहे, पहले जैसे बिल्कुल ठीक हो जाए तो इसका एक ही रास्ता है। इन पेपर्स पर साइन कर और चुपचाप ये शादी कर ले, इसके बदले हम तेरी माँ का बड़े हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट करवाएँगे, उसकी देखभाल के लिए एक नर्स भी रख देंगे।"

    आरोही भावहीन सी उन्हें देख रही थी। उनकी बातों पर विश्वास नहीं था उसे, पर अभी उसके पास कोई और जगह नहीं थी जहाँ अपनी माँ को लेकर जा सके, पैसे नहीं थे कि उनका ट्रीटमेंट करवा सके। अगर उन्हें इस घर से निकाला गया तो शायद वो वैसे ही मर जाएंगी।

    "आरोही, एक तरफ़ तेरी ज़िंदगी है तो दूसरी तरफ़ तेरी माँ की जान। पता नहीं ये लोग किससे तेरी शादी करवाने जा रहे हैं और उसके बाद तेरी लाइफ़ कैसी होगी, पर अगर तूने इनकी बात नहीं मानी तो ये लोग तेरी माँ को इस घर से निकाल देंगे, जैसे तूने सालों पहले अपने डैड को खोया, वैसे अपनी मम्मा को भी खो देगी, अनाथ हो जाएगी, इस दुनिया में पूरी तरह तन्हा हो जाएगी। तेरी माँ की जान की कीमत अगर तेरी ज़िंदगी है तो तुझे इसे चुकाना ही होगा। अपनी माँ की जान बचाने के लिए इस रिश्ते को अपनाना ही होगा।"

    आरोही ने अपनी माँ को देखा जिनके चेहरे पर बेबसी झलक रही थी। हल्के से मुस्कुराई और अपनी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल फ़ैसला ले लिया।

    आरोही ने गहरी साँस छोड़ते हुए धीरे से पेन उठाया। उसका हाथ काँप रहा था, लेकिन उसने किसी तरह उन पेपर्स पर साइन कर दिए।

    उसकी आँखों से आँसू आए, पर बाहर आने से पहले ही उसने उन्हें पोछ दिया।

    नंदिता के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी। "गुड गर्ल। अब देखते हैं तेरा दूल्हा कौन बनता है!"

    आरोही ने एक नज़र उसे देखा और चुपचाप अपने रूम में चली गई।

    "पता नहीं आगे मेरी ज़िंदगी क्या मोड़ लेगी, जब अधिराज को इस बारे में पता चलेगा तो पता नहीं अपनी ज़िद में वो क्या करेगा, पर मुझे ये करना ही था। मम्मा के लिए, मजबूरी में मुझे ये कदम उठाना ही था। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था मेरे पास।"

    आरोही खुद को समझा रही थी। बीते चंद दिनों में उसकी ज़िंदगी पूरी तरह उलझ गई थी। कब क्या हो रहा था उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था और वो बस किस्मत के हाथ की कठपुतली बनी यहाँ से वहाँ नाचती जा रही थी।

    अब भी उसने अपनी लाइफ़ का इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया था और ये तक नहीं जानती थी कि आगे क्या होगा।

    आरोही की रात आँखों ही आँखों में कटी। मिसेज़ मेहरा उससे बहुत नाराज़ थीं और आरोही बेबस।

    अगले दिन शाम को वो लाल जोड़े में सजी दुल्हन बनकर बैठी थी। पूरी तरह से रेडी थी वो और बेहद हसीन लग रही थी। नंदिता उसकी ख़ूबसूरती देखकर मन ही मन जल रही थी, तो खुश भी हो रही थी कि अब आरोही की लाइफ़ बर्बाद हो जाएगी।

    बाहर कार आकर रुकी। आरोही अपनी माँ से मिलने के बाद चुपचाप जाकर उस कार में बैठ गई। नहीं जानती थी कि उसकी मंज़िल क्या है और अब उसे उसकी चिंता भी नहीं थी।

    एक्सप्रेशनलेस चेहरे के साथ बिल्कुल गुमसुम, उदास सी बैठी आरोही अपने ही ख़्यालों में खोई हुई थी, जब अचानक कार रुकी और तेज़ झटके के साथ वो सेंसेस में लौटी। नज़रें घुमाईं और जैसे ही नज़र सामने बैठे शख्स पर गई, उसका चेहरा भय से सफ़ेद पड़ गया।

    To be continued…

  • 13. His Dangerous Obsession - Chapter 13

    Words: 1180

    Estimated Reading Time: 8 min

    "अधिराज… नहीं नहीं… वो यहां कैसे हो सकता है? आरोही, ये क्या हो रहा है तेरे साथ? पहले तो आँखें बंद करने पर उसका चेहरा नज़र आता था, अब खुली आँखों से तू उसके ख़्वाब देखने लगी है। लगता है आजकल मेरे दिलो-दिमाग़ पर वही हावी रहता है, इसलिए ये सब हो रहा है मेरे साथ। वो यहां नहीं है फिर भी नज़र आ रहा है।"

    "कंट्रोल आरोही, कंट्रोल… अपने ख़्यालों को काबू में रख और उसके बारे में सोचना बंद कर। आज शादी है तेरी और तेरा रिश्ता हमेशा-हमेशा के लिए किसी और से जुड़ने वाला है। उसके बाद तुझे कोई हक़ नहीं रह जाएगा किसी गैर मर्द के बारे में सोचने का।"


    आरोही ने अपनी आँखें मूँदकर खुद में बड़बड़ाया। फिर आँखें खोलकर दोबारा उसी दिशा में देखा, तो अबकी बार वहाँ कोई नहीं था।

    "मतलब ये सच में मेरा वहम ही था।" आरोही अब भी खुद में ही उलझी हुई थी, जब दो लेडीज़ ने आकर उसके तरफ़ का गेट खोला और उसे बाहर निकालने के बाद उसके चेहरे को अपने साथ लाये भारी दुपट्टे से ढँक दिया।


    इससे पहले ही आरोही ने सरसरी नज़र चारों ओर डाल ली थी। वो एक सुनसान सी खंडहर-नुमा जगह थी। सामने जर्जर हालत में एक पुराना मगर बड़ा सा मंदिर था। यहाँ इन दो लेडीज़ के अलावा और कोई नज़र नहीं आ रहा था।


    उस हैवी दुपट्टे के बाद अब आरोही को कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। उसे चलने में भी परेशानी हो रही थी, तो वही दोनों उसे अपने साथ ले जा रही थीं।

    "पता नहीं कौन है ये और शादी के लिए मुझे ऐसी सुनसान जगह क्यों बुलाया है?"


    न चाहते हुए भी आरोही के मन में ये ख़्याल आ ही गया था। कुछ देर बाद उसके सामने एक आदमी आकर खड़ा हुआ, जिसका चेहरा तक वो देख नहीं सकी। उन लेडीज़ ने ही उससे वरमाला पहनवाई और मंडप पर बिठा दिया।

    "कैसी शादी है ये, जिसमें मेरा कन्यादान करने के लिए मेरी माँ तक नहीं है, न अपनों का साथ है और न ही सर पर माँ-बाप का आशीर्वाद भरा हाथ।"


    सोचते हुए आरोही की आँखें छलक गईं। उसके परिवार में बस एक उसकी माँ ही थी और वो भी उसके साथ नहीं थी, जिसका दुख उसे था।


    धीरे-धीरे विवाह की रस्में तेज़ी से पूरी कर दी गईं और उसे एक बार फिर उसी कार में बिठा दिया गया। अब भी वो अकेली थी और अपने ही ख़्यालों में उलझी हुई थी। पूरी शादी के दौरान उसे एक बार मौक़ा नहीं दिया गया था कि उस शख्स की एक झलक ही देख ले जिससे उसकी शादी हो रही है, बस कुछ अजीब से एहसास थे जिनमें वो उलझी हुई थी।


    आरोही को एक सुनसान हवेली में लाया गया, जहाँ न उसका स्वागत करने के लिए कोई था और न ही ऐसा कोई उसके साथ था जिससे वो अपने सवालों के जवाब ले सके।


    अब भी उसका चेहरा घूँघट से ढँका था। वो लेडीज़ उसे एक रूम में बिठाकर वहाँ से चली गईं, पर अब भी आरोही ने घूँघट उठाकर कुछ भी देखने की कोशिश नहीं की। उसके दिल में ऐसी कोई ख़्वाहिश ही नहीं बची थी, वो तो खुद को मेंटली इस सिचुएशन को फेस करने, इस रिश्ते को निभाने के लिए तैयार कर रही थी।


    कुछ देर बाद एक बार फिर गेट खुला। अपने करीब बढ़ते क़दमों की आहट महसूस करते हुए आरोही की धड़कनें भी बढ़ने लगीं। घबराहट में साँसें तेज़ चलने लगीं।


    क़दम ठहरे और वो शख़्स उसके सामने बैठ गया। अगले ही पल उसके चाँद से चेहरे को घूँघट से आज़ाद कर दिया गया। आरोही ने अपनी आँखें कसके भींच लीं, नर्वसनेस में निचले होंठ को दाँत से काटने लगी और अपने लहंगे को मुट्ठी में भींच लिया।

    "वेलकम टू माय वर्ल्ड मिसेज़ आरोही अधिराज सिंह राठौड़।"


    आरोही के कानों में जैसे ही ये आवाज़ पड़ी, उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं।

    "तुम?" आरोही की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके सामने बैठा अधिराज ने गुरूर भरे अंदाज़ में जवाब दिया,

    "हाँ मैं।"

    "त… तुम यहां क्या कर रहे हो?" आरोही ने कई बार अपनी पलकों को झपकाया, पर हर बार सामने अधिराज ही नज़र आया।


    उसका ये सवाल सुनकर अधिराज ने आँखें चढ़ाते हुए तीखी निगाहों से उसे घूरते हुए सवाल किया, "राठौड़ मेंशन में, अधिराज सिंह राठौड़ के बेडरूम में, मैं नहीं आऊँगा तो और यहाँ और किसके आने की उम्मीद थी तुम्हें?"


    आरोही ने हड़बड़ी में निगाहें चारों ओर घुमाईं और पल में पहचान गई कि ये वही रूम है जहाँ कल सुबह उसकी आँख खुली थी।

    "य… ये तुम्हारा घर है, तुम्हारा रूम है तो मैं यहाँ क्या कर रही हूँ, मेरी शादी तो…" कहते-कहते वो अचानक ही रुक गई। निगाहें अधिराज की ओर उठाईं, जो बिल्कुल रिलेक्स होकर बैठा हुआ था। उसके होंठों पर बिखरी मिस्टीरियस स्माइल बहुत कुछ बयां कर रही थी, पर आरोही के लिए उस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल था।

    "क… क्या मेरी शादी…" उससे ये कहा तक नहीं गया और खुद ही अपनी सोच में झुठलाने लगी, "नहीं… ऐसा नहीं हो सकता। हाउ इज़ दिस पॉसिबल? मेरी शादी तुमसे… नहीं…"


    "क्यों, तुम्हारी शादी मुझसे क्यों नहीं हो सकती?" अधिराज की त्योरियाँ चढ़ गईं और वो ख़तरनाक अंदाज़ में आरोही को घूरने लगा। आरोही भी कुछ सकपका गई।

    "बोलो आरोही, तुम्हारी शादी मुझसे क्यों नहीं हो सकती?" अधिराज उसके करीब आकर उसकी आँखों में झाँक रहा था।

    "क्योंकि ये शादी नहीं, सौदा है। मुझे मेरे स्टेपफादर ने पैसों के लिए मुझे बेचा है और उसे शादी का नाम दे दिया ताकि मैं ऑब्जेक्शन न उठा सकूँ। अगर मेरी शादी तुमसे हुई है तो इसका मतलब होगा कि तुमने उनसे मेरी लाइफ़ का सौदा किया है, उन्होंने मेरी कीमत लगाई और तुमने उस कीमत को चुकाकर मुझे ख़रीदा ताकि ज़िंदगी भर गुलाम बनाकर अपनी मर्ज़ी के हिसाब से मेरा इस्तेमाल कर सको, जैसे अब तक वो करते आ रहे थे।

    बोलो, कितने में ख़रीदा तुमने मुझे? कितनी कीमत लगाई मेरी ज़िंदगी, मेरे सपनों और मेरी आज़ादी की? मुझे हासिल करने के लिए कितनी बड़ी रक़म दी उन्हें कि वो इस शादी के लिए तैयार हो गए?"


    आरोही बिना डरे या घबराए उसकी आँखों में आँखें डालकर बात कर रही थी। उसकी आँखों में अजीब सी बेचैनी और लहजे में नाराज़गी झलक रही थी।


    आरोही का कॉन्फिडेंस देखकर अधिराज के होंठों के किनारे हल्के से खिंच गए।

    "ये जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं है," अधिराज ने ठंडे लहजे में कहा। "तुम्हारे लिए इतना जान लेना काफी है कि अब तुम्हारी शादी मुझसे हो चुकी है। हम हस्बैंड-वाइफ़ हैं। ऑफ़िशियली, तुम मेरी हो। और अब तुम्हें अपनी पूरी ज़िंदगी इसी मेंशन में, मेरे साथ बितानी होगी।"


    आरोही का चेहरा सख्त हो गया, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन आवाज़ बर्फ़-सी ठंडी।

    "तो तुमने भी मेरी बोली लगाई है?" वो धीरे से बोली। "मुझे हासिल करने की कीमत चुकाई है… फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि पहले जो लोग आए, वो मुझे एक रात के लिए ख़रीदना चाहते थे, और तुमने मुझसे शादी करके मुझे ज़िंदगी भर का गुलाम बना दिया।"


    इसके जवाब में अधिराज ने कुछ ऐसा कहा कि आरोही टकटकी लगाए उसे अपलक देखती ही रह गई।


    To be continued…

  • 14. His Dangerous Obsession - Chapter 14

    Words: 1532

    Estimated Reading Time: 10 min

    "तुम्हें लगता है मैंने तुमसे शादी इसलिए की कि तुम्हें अपना गुलाम बना सकूँ?" अधिराज की आँखों में कुछ अजीब से भाव उभरे। "अगर मेरा मकसद बस तुम्हें कैद करना होता, तो मुझे ये सब करने की ज़रूरत नहीं थी। जब चाहता, तुम्हें उठा लेता, इस मेंशन में कैद करके रखता... और यकीन मानो, कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।"

    वह थोड़ा और आगे बढ़ा, उसकी आँखें आरोही की आँखों से टकराईं। "मगर मैंने वो नहीं किया, क्योंकि तुम्हें सिर्फ पाना नहीं था... तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाना था। तुम्हारा जिस्म, तुम्हारी रूह, तुम्हारी हर साँस... अब सिर्फ मेरी है।"

    "मैंने तुम्हें पहले ही कहा था—जो चीज़ एक बार अधिराज सिंह राठौड़ की हो जाती है, उस पर किसी और की नज़र भी मुझे बर्दाश्त नहीं। और तुम अब मेरी हो। पूरी तरह से।"

    अधिराज की हथेली आरोही के गर्दन पर ठहरी; अंगूठे से उसने आरोही के गाल को सहलाते हुए थोड़ा और करीब आया। उसकी गहरी, सर्द आवाज़ आरोही के कानों में गूंजने लगी थी।

    "अगर मैं ये कदम नहीं उठाता, तो तुम्हारा वो सौतेला बाप हर रात तुम्हें किसी नए शख्स के सामने फेंक देता। तुम्हें बेच देता। और ये मैं मरकर भी नहीं होने देता। इसलिए मैंने साम, दाम, दंड, भेद—सब कुछ इस्तेमाल किया... ताकि मैं तुम्हें बचा सकूँ, हमेशा के लिए, हर उस नज़र से, जो तुम्हें गंदा कर देती।"

    अधिराज एक पल को रुका, फिर झुका और धीमे से फुसफुसाया, "अब तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है, आरोही। तुम्हारी हर सुबह, हर रात, अब मेरी मुट्ठी में है। तुम्हें मेरी बनकर ही रहना होगा... क्योंकि मुझसे दूर जाने का कोई ऑप्शन नहीं तुम्हारे पास।"

    अधिराज की बातों में जुनून झलक रहा था। उसका लहजा इतना ठंडा था कि आरोही काँप गई। उसने पीछे हटने की कोशिश की, पर अधिराज ने उसकी कमर पर बाँह फंसाते हुए झटके से अपनी तरफ खींच लिया।

    "बहुत नाराज़ हूँ तुमसे, आरोही...," उसकी आवाज़ में डरावनी थी। "एक बार फिर तुमने मुझे धोखा दिया—मेरे साथ बेवफाई करने की कोशिश की। वो सब वादे... वो सब एहसास क्या झूठ थे? ज़िंदगी भर मेरी होने की कसमें खाकर तुम किसी और से शादी करने चली गईं!"

    अधिराज थोड़ा और करीब आया और उसके गाल पर बिखरी ज़ुल्फ़ों को अपनी उंगलियों में उलझाने लगा।
    "अगर मैंने वक्त रहते सब कंट्रोल में नहीं लिया होता, तो आज तुम किसी और की वाइफ बनकर उसकी बाँहों में होती... और ये सोच ही मुझे पागल कर देती है!"

    ये सोचकर ही उसकी आँखों में खून उतर आया और भौंहे तन गईं। उसने एक गहरी साँस ली, फिर एक खतरनाक ठहराव के साथ कहा।

    "तुम्हारे इस गुनाह की सज़ा तुम्हें ज़रूर मिलेगी, आरोही... क्योंकि अधिराज सिंह राठौड़ को धोखा देने वालों को कभी माफ़ी नहीं मिलती।"

    उसकी काली आँखों में नाराज़गी और गुस्सा साफ झलक रहा था। आरोही, जो आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देख रही थी, ने अपनी पलकें झुका लीं। घबराहट के मारे उसकी साँसें ऊपर नीचे होने लगीं और उसका चेहरा पसीने से भीग गया।

    "सुनना नहीं चाहोगी अपनी सज़ा?"

    अधिराज की नज़रें आरोही के चेहरे पर टिकी थीं, जिस पर घबराहट और डर झलक रहा था। आरोही ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। अधिराज ने गुस्से में उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए उसके चेहरे को अपने चेहरे के करीब कर लिया।

    आरोही के होंठ थरथराए और एक सिसकी निकल गई। भीगी पलकें उठीं और नज़रें अधिराज की जुनून भरी, सुर्ख नज़रों से टकरा गईं।

    "तुम्हारी गलती की सज़ा सुनो, आरोही...," उसकी आवाज़ सर्द थी, लहज़ा इतना कठोर कि आरोही का दिल भय से काँप गया।

    "अब से हर रात... तुम्हें अपनी मर्ज़ी से मेरे साथ बितानी होगी। हमारी शादी हो चुकी है, और एक आदर्श पत्नी की तरह तुम्हारा हर फर्ज़ अब सिर्फ मुझे खुश करना है। तुम्हें खुद को, अपने ख्यालों को, अपने जिस्म और एहसासों को... सब कुछ सिर्फ मेरे नाम करना होगा।"

    वह उसके बेहद करीब आया, उसकी साँसों को कैद करते हुए बोला—"तुम्हारी हर धड़कन पर मेरा हक है। मेरे सिवा किसी और का ख्याल, किसी और की नज़दीकी, तुम्हारे ज़हन में भी नहीं आनी चाहिए। और अगर एक बार भी तुमने मुझे धोखा देने, यहाँ से भागने या किसी और को सोचने की कोशिश की—तो याद रखना..."

    वह रुक कर उसकी आँखों में देखने लगा,

    "...अधिराज सिंह राठौड़ की कैद से रिहाई सिर्फ मौत देती है। मैं जिसे चाहता हूँ, उसे अपना बनाकर ही छोड़ता हूँ। और जो धोखा देता है, उसके लिए मेरे दिल में सिर्फ सज़ा होती है... माफ़ी नहीं।"

    "अभी मैं प्यार से पेश आ रहा हूँ... लेकिन मुझे मजबूर मत करना कि मैं वो चेहरा दिखाऊँ जिससे तुम्हारी रूह कांप जाए। मेरे प्यार में अगर पागलपन है, तो मेरी नफरत में तबाही भी है। गलती से भी ऐसा कुछ मत करना कि मेरी ज़िद, जुनून, पागलपन, तुम्हारे लिए मेरी दीवानगी, नफरत बनकर तुम्हारी और तुम्हारे चाहने वालों की ज़िंदगी तबाह कर दे।"

    अधिराज की धमकी सुनकर पल भर को आरोही की साँसें थम गईं और आँखें सामान्य से बड़ी हो गईं।

    "मैं फ्रेश होकर आता हूँ... तब तक खुद को तैयार कर लो, आरोही। आज शादी के बाद हमारी पहली रात है... और मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे उसी क़रीब से महसूस करो जैसे उस रात किया था—जब तुम खुद मेरे पास आई थीं, नशे में सही... मगर अपनी मर्ज़ी से।"

    वह धीरे से उसके चेहरे के करीब झुक गया, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में झाँकते हुए इंटेंस वॉयस में कहा।

    "आज की रात तुम्हारे लिए एक सज़ा है... उस गुनाह की, जो तुमने मुझे छोड़कर किसी और से शादी करने की कोशिश करके किया। तुम्हें अपनी मर्ज़ी से वो हर हक़ देना होगा जो उस रात बिना कहे मुझे दिया था।"

    "क्योंकि जबरदस्ती करना मेरी आदत नहीं... मुझे चाहिए तुम्हारी रज़ामंदी, तुम्हारा समर्पण... तुम्हारा सब कुछ, मेरी मर्ज़ी से नहीं, तुम्हारी रज़ा से।"

    अधिराज ने उसके थरथराते लबों को अपने होंठों से छू दिया और होंठों पर एक कनिंग स्माइल सजाते हुए पीछे हट गया।

    "बी रेडी, आरोही, आज की रात उन सभी लम्हों को एक बार फिर जीने के लिए, एक बार फिर मेरी करीबियों में खोने के लिए, अपनी मर्ज़ी से मेरा होने के लिए, जिसके बाद तुम्हारे वापसी के सभी रास्ते हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाएँगे।"

    जिस अंदाज़ में अधिराज ये कहकर गया, आरोही बर्फ से जम गई और फटी आँखों से उसे देखती ही रह गई।

    उसके कानों में बाथरूम के दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ पड़ी, तब जाकर वह होश में लौटी। कानों में अधिराज के कहे शब्द गूंजने लगे। उसकी साँसें सामान्य से तेज़ हो गईं, दिल ज़ोरों से धड़का, अजीब सी बेचैनी होने लगी।

    आरोही अपने लहंगे को संभालते हुए बेड से नीचे उतरी और ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ गई।

    "ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ?"

    आरोही ने मिरर में खुद को देखा तो लगा जैसे किसी और की परछाईं हो।

    "मुझे लगा था, वो रात मेरी ज़िंदगी से हमेशा के लिए खत्म हो गई है और उसके साथ ही खत्म हो गया मेरी ज़िंदगी से इस शख्स का चैप्टर... लेकिन किस्मत ने एक बार फिर मुझे उसी शख़्स के सामने ला खड़ा किया... अधिराज सिंह राठौड़... अब मेरा हसबैंड।"

    उसने अपनी मांग में लगे सिंदूर को छूकर देखा, जैसे यक़ीन दिलाना चाह रही हो खुद को कि यह सपना नहीं... हक़ीक़त है।

    "पता नहीं मुझे ये जानकर सुकून महसूस करना चाहिए कि मेरी शादी किसी अजनबी से नहीं हुई... या डर इस बात का कि मेरी तक़दीर उस जुनूनी आदमी से बंध गई है, जिसकी नज़रों में मैं एक इंसान नहीं, एक अधूरी ख्वाहिश हूँ, एक अधूरी जीत।"

    उसके कदम डगमगाए, दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। नज़र गले में मौजूद मंगलसूत्र पर ठहर गई।

    "अगर मेरी शादी किसी और से होती, तब भी शायद मैं अपनी उस एक रात को भूलने की कोशिश करती... लेकिन अब, अब तो हर दिन, हर पल उसी रात का अक्स होगा। ये सोचकर ही साँसें घुटने लगती हैं कि अब मुझे पूरी ज़िंदगी उसी के साथ गुज़ारनी है... एक ऐसे आदमी के साथ, जिससे मुझे उसके जुनून, उसके हक़ जताने के तरीके, उसकी पागलपन से डर लगता है। जिसे मुझसे मोहब्बत ने नहीं, मुझे हासिल करने की ज़िद ने मुझसे जोड़ा है।

    मैं तो उस कैद से आज़ाद होना चाहती थी... पर उसने मुझसे शादी करके मुझे अपनी ‘मालिकियत’ बना लिया। अब ये कैद ही मेरी ज़िंदगी की सबसे कड़वी सच्चाई है—जिससे कोई रिहाई नज़र नहीं आती।"

    आरोही धीमे कदमों से चलते हुए उस कमरे में मौजूद बड़ी सी खिड़की के पास आ गई, जिसके उस पार सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था, बिल्कुल वैसे जैसे इस वक़्त उसका दिल अंधकार में डूबा था,

    "उसे मुझसे प्यार नहीं है... मैं बस उसकी जिद हूँ, उसका ओब्सेशन। और जिस दिन उसके जुनून का बुखार उतर गया, वो मुझे भी उतनी ही बेरहमी से अपनी ज़िंदगी से बाहर फेंक देगा जैसे कभी कबीर ने किया था।"

    आँखों से बहते आँसुओं को पोंछते हुए उसने खुद से पूछा।

    "क्या मुझे इस रिश्ते से कोई उम्मीद रखनी चाहिए? किसी ऐसे इंसान से जो मुझे सिर्फ अपनी 'चीज़' मानता है... कोई चाहत नहीं, कोई अपनापन नहीं... बस हक़, बस ज़िद... और एक दिन ये ज़रूरत खत्म होते ही, क्या मैं भी बस एक यूज़्ड टिशू की तरह फेंक दी जाऊँगी।"

    अपने ख्यालों में उलझी आरोही पलटी और जैसे ही नज़र सामने गई, उसकी चीख निकल गई।


    To be continued…

  • 15. His Dangerous Obsession - Chapter 15

    Words: 1617

    Estimated Reading Time: 10 min

    "त...तुम कब आए और ऐ....ऐसे क....क्यों......"

    आरोही अपने ठीक पीछे खड़े अधिराज को देखकर बुरी तरह चौंक गई। वह उस वक्त सिर्फ एक सफेद टॉवल में, उसके बेहद करीब खड़ा था। उसके चौड़े कंधे, उभरी हुई छाती की मसल्स और हल्की गीली स्किन पर चमकती पानी की बूँदें उसे और भी खतरनाक हॉट बना रही थीं।

    बालों से टपकता पानी उसके जॉ लाइन से होता हुआ कॉलर बोन पर गिर रहा था, और उसके ऐब्स पर बहती हर बूंद जैसे आरोही की बेचैनी बढ़ा रही थी।

    अधिराज की गहरी काली आँखें, शरीर की गीली त्वचा और टपकती बूँदें उसे किसी Greek God जैसा बना रही थीं—ख़तरनाक, सेक्सी और अजीब तरह से मोहक।

    आरोही की साँसें खुद-ब-खुद तेज़ हो गईं। उसने हड़बड़ी में अधिराज पर से नज़रें हटाते हुए कदम पीछे लिए तो खिड़की से टकरा गई। उसने घबराकर पीछे देखा, फिर खुद में सिमटी हुई ही साइड से निकलने लगी, पर अधिराज ने हाथ अड़ाकर उसे रोक दिया।

    अब वह दोनों तरफ से अधिराज की बाहों के घेरे में कैद, सर झुकाए खड़ी थी। उसकी बढ़ी धड़कनें, बहकती साँसें, सीने पर होती हलचल और शर्म से लाल चेहरा अधिराज को अपनी ओर अट्रैक्ट कर रहा था। उसके होंठों पर डेविलिश स्माइल बिखरी थी।

    कुछ पल वह यूँ ही आरोही को खुद में बेचैन होते देखता रहा, फिर हल्का झुकते हुए उसके कान में सरगोशी की,

    "लुक एट मी आरोही।" अधिराज की गर्म साँसें उसके गाल पर बिखरीं और उसने आरोही के कान को अपने होंठों से चूम लिया।

    आरोही की धड़कनें थम गईं, घबराहट भरी नज़रें अधिराज की ओर उठ गईं। अधिराज को अपने इतने करीब देखकर उसकी साँसें थम गईं, नज़रें चेहरे से फिसलकर उसकी बॉडी पर चली गईं।

    अधिराज ने उसे और सताने के इरादे से उसकी हथेली को थामकर अपने सीने पर रख दी। आरोही की बढ़ी धड़कनों का शोर वहाँ गूंजने लगा। उसकी नज़रें चाहकर भी अधिराज के सीने से हट नहीं रही थीं। जिस तरह पानी की बूँदें उसके क्लीवेज से होती हुई abs तक सरकती थीं, वैसा नज़ारा शायद उसने कभी नहीं देखा था।

    उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों उसकी नज़रें बार-बार वहाँ भटक रही थीं...क्यों उसका दिल इस वक्त और तेज़ धड़कने लगा था...क्यों उसके दिल में यह ख्वाहिश जाग रही थी कि उसकी बॉडी को फील करे और क्यों अधिराज की मौजूदगी, उसकी गीली मर्दानगी, उसके बदन की गर्माहट उसे अपनी ओर खींच रही थी।

    लेकिन अधिराज मुस्करा रहा था—उसे पता था, उसके इरादे असर कर रहे हैं।

    अधिराज ने उसकी गर्दन पर अपनी हथेली रखते हुए उसके चेहरे को ऊपर किया। आरोही आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।

    "आई एम ऑल योर्स डार्लिंग, यू आर माय वाइफ....यू कैन टच मी, फील मी...एंड लव मी....."

    आरोही की साँसें बेचैन हो गईं। उसके भीगे गुलाबी होंठ, उसके दिल में अजीब सी हलचल मचा रहे थे, गला सूखने लगा था। उसके थरथराते लब और सीने पर लगातार होती हलचल देखकर अधिराज के होंठों पर तिरछी मुस्कान फैल गई।

    "किस मी," अधिराज ने अपने चेहरे को और करीब कर दिया। आरोही की साँसें थम गईं। कुछ तो था उसमें जो उसे अपनी तरफ बढ़ने पर मजबूर कर रहा था और वह चाहकर भी उसके तरफ अट्रैक्ट होने से खुद को रोक नहीं पा रही थी, उससे दूरी नहीं बना पा रही थी।

    "किस मी, आरोही।"

    आरोही ने हड़बड़ाते हुए इंकार में सर हिलाया चाहा, इतने में अधिराज ने खुद आगे बढ़कर उसके होंठों को अपने होंठों से दबा दिया और शिद्दत से उसे चूमने लगा। आरोही को अजीब सी बेचैनी और घबराहट हो रही थी, फिर भी वह उसे रोक नहीं पा रही थी और न ही अपनी बहकती फीलिंग्स को कंट्रोल कर पा रही थी।

    अधिराज ने हल्के से उसकी कमर को पिंच किया, आरोही के मुँह से सिसकी निकल गई और उसके होंठ खुल गए। अधिराज की आँखें शरारत से चमक उठीं।

    उनकी किस और भी वाइल्ड होती जा रही थी, आरोही उसकी बाँहों में मचल रही थी, उसकी बाँहें अधिराज की गर्दन पर लिपटी थीं और हथेली उसके बालों में घूम रही थी। वहीं अधिराज की हथेली आरोही की पूरी अपर बॉडी को एक्सप्लोर कर रही थी।

    अधिराज ने आरोही को अपनी बाँहों में उठा लिया, पर उसके लबों को आज़ाद नहीं किया। आरोही की साँसें उखड़ने लगी थीं। होंठ पूरी तरह लाल हो गए थे।

    अधिराज ने उसे बेड पर लिटाया और अपना चेहरा उसकी गर्दन में छुपा लिया। उसके हाथ आरोही के कमर और पेट पर फिसल रहे थे, होंठ बड़ी ही बेताबी से उसके गर्दन, कंधों और सीने को चूम रहे थे।

    अधिराज ने आरोही को उल्टा कर दिया और खुद उसके ऊपर आ गया। उसके प्यासे लब उसकी खुली पीठ पर फिसलने लगे। अपने दांतों से उसने उसकी ब्लाउज़ की डोरी को खोला। आरोही की साँसें थमने लगीं, उसने अपनी आँखों को कसके भींच लिया। कांपते होंठों से धीरे से आवाज़ आई,

    "अधिराज नहीं..."

    अधिराज एकदम से ठहर गया। अगले ही पल आरोही को अपने कंधे पर गीला-गीला सा महसूस हुआ और अधिराज की धीमी अट्रैक्टिव वॉयस कान से टकराई,

    "कॉल मी।"

    आरोही ने झटके से अपनी आँखें खोल दीं। अधिराज ने उसे वापस अपनी ओर पलटा और उसकी हल्की गुलाबी नशीली आँखों में खोने लगा,

    "कॉल मी, आरोही।"

    उलझन में उलझी आरोही ने धीरे से उसे पुकारा, "अधिराज।"

    "अब से तुम मुझे ऐसे ही पुकारोगी, आई लाइक्ड इट।"

    अधिराज के होंठों पर कातिलाना मुस्कान बिखरी और आरोही खोई हुई सी एकटक उसे देखने लगी।

    "लव मी आरोही, आई वांट टू फील यू।"

    आरोही जैसे सम्मोहित हो गई थी, अब उस पर खुद पर कोई अख्तियार नहीं था। उसने अपनी बाँहों को उसकी गर्दन पर लपेट दिया और सर हल्का सा उठाते हुए उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। अधिराज की आँखें चमक उठीं।

    दोनों पैशनेटली एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे। अधिराज की हथेली आरोही के बदन पर फिसल रही थी, आरोही कभी उसके सीने को छूती तो कभी उसकी पीठ पर अपनी बाहों में कस देती। दोनों ही इन एहसासों और नज़दीकियों में बहकने लगे थे, अब उनका खुद पर कोई कंट्रोल नहीं रह गया था।

    उस कमरे में उनकी बहकती साँसें और बिखरती धड़कनों का शोर गूंज रहा था। दोनों एक बार फिर सभी दायरों को तोड़कर एक-दूसरे में खोते जा रहे थे, बेताब थे पूरी तरह से एक-दूसरे में समा जाने को।

    आरोही की आहें और सिसकियाँ अधिराज को पागल कर रही थीं। किसी जुनूनी आशिक जैसे वह आरोही पर अपना सारा प्यार बरसाने को बेकरार था। खुद आरोही का यही हाल था, वह सब कुछ भूलकर इन पैशनेट पलों में डूबती जा रही थी। रूम का टेंपरेचर बढ़ गया था, दोनों के अंदर एक आग सुलग रही थी।

    अधिराज ने आरोही के होंठों को अपने होंठों से दबा लिया और पूरी तरह से उसने समा लिया। दर्द से आरोही चीख भी नहीं सकी।


    कुछ देर बाद पसीने से तरबतर दोनों एक-दूसरे से लिपटे गहरी-गहरी साँसें ले रहे थे। आरोही की आँखें बंद थीं, वहीं अधिराज उसके हसीन दिलकश चेहरे को निहारने में खोया हुआ था।

    अधिराज ने आरोही की कमर पर अपनी पकड़ कसते हुए उसे खुद से सटा लिया, अपना चेहरा उसके कंधे और खुले बालों में छुपाते हुए गहरी साँस ली। आरोही के जिस्म और खुले बालों से आती खुशबू उसकी साँसों में घुल गई और लबों पर किलर मुस्कान फैल गई।

    "तुममें अजीब सा नशा है, जो हर बार मुझे तुममें खो जाने पर मजबूर कर देता है। जितना तुम्हारे करीब आता हूँ, उतनी ही मेरी दीवानगी...मेरा जुनून तुम्हारे लिए और गहरा होता जाता है। कुछ तो खास है तुममें, जिसने अधिराज सिंह राठौड़ को भी बेकाबू कर दिया…"

    उसने नज़रें उसके चेहरे पर टिकाईं, फिर धीरे से उसकी जुल्फ़ें हटाने लगा, कुछ ही सेकंड में आरोही का चाँद सा हसीन दिलकश चेहरा उसके सामने था।

    "आज तक कोई शराब, कोई लड़की, कोई ख़ूबसूरती मुझ पर असर नहीं कर सकी...पर तुम्हारी आँखों में ऐसा नशा है कि मैं हर बार बहक जाता हूँ। तुम्हारी नज़दीकियाँ मुझे वह बना देती हैं जो मैं कभी किसी के लिए नहीं बना...बेकरार, बेचैन और बेसब्र।"

    वह उसके बेहद करीब आया, इतना कि आरोही की धड़कनें अब उसके सीने से टकरा रही थीं।

    "तुम मेरी आदत बन चुकी हो आरोही...वह आदत जो अब छूट नहीं सकती। तुम मेरी मोहब्बत नहीं...मेरी ज़िद हो, मेरा जुनून हो। और अब यह पागलपन इस हद तक पहुँच चुका है कि मैं तुम्हें कभी खुद से जुदा नहीं होने दूँगा...कभी नहीं।"

    अधिराज के शब्द आरोही के कानों में गूंज रहे थे। वह सोई नहीं थी, बस आँखें बंद करके लेटी हुई थी।

    "यह कैसा जुनून है…कैसी दीवानगी है उसकी? उसकी आँखों में कोई मोहब्बत नहीं, बस एक पागलपन झलकता है…ऐसा पागलपन जो हर बार मुझे जकड़ लेता है। जब वह मुझे छूता है, मेरे इतने करीब आता है…तो मेरा अपना वजूद जैसे कांपने लगता है। मैं डरती हूँ उससे, फिर भी उस डर में भी एक अजीब सा खिंचाव है, एक अजीब सा एहसास जो मुझे उससे दूर भी नहीं जाने देता।

    क्या यह सज़ा है मेरी? उसके हाथों में फंसी यह ज़िंदगी, जिसमें प्यार नहीं, बस अधिकार है…हक है…ज़बरदस्ती है।

    मुझे नहीं पता कि मैं उससे नफ़रत करती हूँ या…या फिर उसकी उस दीवानगी का हिस्सा बन चुकी हूँ। मोहब्बत नहीं मुझे इससे पर कुछ है जो मुझे हर बार उसकी तरफ अट्रैक्ट करता है और मैं खुद को रोक नहीं पाती। मुझे नहीं मालूम कि आगे क्या होगा, मेरी ज़िंदगी मुझे किस रास्ते पर लेकर जाएगी, पर एक बात मैं जानती हूँ—अधिराज सिंह राठौड़ अब मेरी किस्मत बन चुका है…और शायद अब अपनी किस्मत से भागना मुमकिन नहीं मेरे लिए।"

    आरोही अपने ही ख्यालों में खोई थी कि अधिराज के होंठ एक बार फिर उसके खुले कंधों पर अपना लम्स छोड़ने लगे, बेचैन आरोही उसकी बाँहों में मचल उठी।

    To be continued…

  • 16. His Dangerous Obsession - Chapter 16

    Words: 1222

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरोही की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। कमरे की रौशनी हल्की थी, लेकिन सुबह की सुनहरी धूप परदे से झाँक रही थी। जैसे ही उसकी नज़र खुद पर पड़ी—बिखरे बाल, अस्त-व्यस्त कपड़े, और लिपटी चादर—वह एक झटके से उठ बैठी। बदन में अजीब सी थकान और सिहरन थी। बीती रात की अधिराज की दीवानगी, उसके जिस्म पर निशान छोड़ गई थी।

    उसका दिल धड़क रहा था—तेज़, बहुत तेज़।

    तभी वॉशरूम का दरवाज़ा खुला। आरोही की नज़रें भी उस तरफ चली गईं। अधिराज ने बस एक ग्रे लोअर पहना हुआ था; उसका ऊपरी बदन पूरी तरह नग्न था। पानी की बूँदें अब भी उसके चौड़े सीने और कंधों पर से फिसल रही थीं। उसके बाल हल्के गीले थे, और एक हाथ में उसने टॉवेल पकड़ा हुआ था, जिससे वह अपने गले और कंधे रगड़ रहा था।

    आरोही की साँस अटक गई।

    उसकी आँखें अनजाने में ही अधिराज की मजबूत छाती, उभरी मसल्स और वॉशबोर्ड एब्स पर टिक गईं, जहाँ उसके नाखूनों के खरोच के निशान मौजूद थे। वह चाहकर भी अपनी नज़रें नहीं हटा सकी।

    अधिराज की हर चाल, हर कदम में वही दबंग पजेसिव एटीट्यूड था जिससे घबराहट भी होती थी और अजीब सा खिंचाव भी महसूस होता था।

    अधिराज ने उसकी तरफ देखा—गहरी, सधी हुई नज़रें, होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन आँखों में अब भी रात वाली वही खुमारी बाकी थी।

    "Good morning, Mrs. Rathore..."

    उसकी आवाज़ धीमी थी। आरोही ने हड़बड़ी में उस पर से नज़रें हटा लीं।

    "रात अच्छी थी न... इस बात तो सब याद होगा या तुम्हें याद दिलाऊँ कि क्या-क्या हुआ?"

    आरोही की आँखों के आगे बीती रात के एक-एक लम्हा घूमने लगा। उसने चौंकते हुए अधिराज को देखा जो आइब्रो चढ़ाते हुए, शैतानी मुस्कान होंठों पर सजाए उसके पास बैठ गया था। उसकी निगाहें बड़ी ही दिलचस्पी से आरोही के बदन पर फिसल रही थीं।

    आरोही ने चादर और कसकर खुद के चारों तरफ लपेट ली, जैसे वह खुद को अधिराज की आँखों से छुपा लेना चाहती हो। उसके चेहरे पर रात की थकान से ज़्यादा बेचैनी और शर्म बिखरी हुई थी।

    "तुम... तुमने मेरे साथ ये सब जबरदस्ती किया..." उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर नज़रें अब अधिराज की आँखों में झाँक रही थीं।

    अधिराज ठहर गया। एक पल को उसके चेहरे की मुस्कान गहराई में बदल गई।

    "जबरदस्ती?" वह आगे बढ़ा, उसकी आँखों की गहराई में झाँकने लगा, "तो भाग क्यों नहीं गई तुम? चीखी क्यों नहीं? रोका क्यों नहीं मुझे उस वक़्त?"

    "क्योंकि... मैं डरी हुई थी... शॉक में थी!" आरोही ने सकपकाते हुए उस पर से नज़रें हटा लीं।

    अधिराज थोड़ा झुका; उसका चेहरा अब आरोही के चेहरे के बेहद करीब था।

    "डर सिर्फ एक पल का था, आरोही। लेकिन तुम्हारी साँसें... तुम्हारी धड़कनें... तुम्हारा साथ देना... ये सब झूठ नहीं बोल सकते। तुम जानती हो जो हुआ, वो सिर्फ मेरा पागलपन नहीं था, तुम्हारी खामोश मंज़ूरी भी थी। जितना बेकरार कल मैं था उतनी ही बेसब्र तुम भी थीं। अगर तुम्हारी नज़दीकियों ने मुझे बेकाबू किया था तो मेरी करीबियों के एहसास में तुम भी बहकी थीं और हमारे बीच जो भी हुआ उसमें तुमने मेरा पूरा साथ दिया है जिसके निशान अब भी मेरे बदन पर मौजूद हैं।"

    आरोही की नज़रें अनायास ही उसके खुले कंधे और सीने पर चली गईं और अगले ही पल वह नज़रें झुकाए बैठ गई। सच तो यही था कि न चाहते हुए भी वह बहक गई थी और जो हुआ उसके लिए पूरी तरह से अधिराज को ब्लेम नहीं कर सकती थी।

    "I want to kiss you आरोही।"

    अचानक ही अधिराज की सर्द आवाज़ आरोही के कानों से टकराई और उसने चौंकते हुए निगाहें उसकी ओर उठाईं। जिस अंदाज़ से वह उसे देख रहा था, आरोही सिहर गई और खुद में ही सिमटने लगी। उसे याद था बीती रात अधिराज ने उसे कितना सताया था, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। वही सब दोबारा सोचकर ही उसका चेहरा पीला पड़ गया।

    "न... नहीं अधिरा..." वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी और अधिराज ने उसके खुले लबों को अपने होंठों से दबाते हुए उसकी बोलती बंद कर दी।

    आरोही की आँखें चौड़ी हो गईं। अधिराज के कंधों को अपनी हथेलियों से पुश करते हुए खुद से दूर करने लगी, पर अधिराज पर कोई असर नहीं हुआ। वह पूरे फ़ोकस और डेडिकेशन के साथ अपना काम करता रहा। उल्टा, इतना मचलने से आरोही के बदन से चादर नीचे सरकने लगी, जिससे आरोही घबरा गई; वहीं अधिराज की आँखें शरारत से चमक उठीं।

    अधिराज ने तुरंत उसके होंठों को छोड़ दिया और नीचे की ओर बढ़ने ही लगा था कि आरोही ने झट से चादर से खुद को ढक लिया। अधिराज ने भौंहें सिकोड़ते हुए नाराज़गी से उसे घूरा, फिर पीछे हटते हुए बोला,

    "जाओ जाकर फ़्रेश हो जाओ।"

    आरोही ने झुकी पलकें उठाईं। अधिराज उसे छोड़कर वॉर्डरोब की ओर बढ़ गया था। यह देखकर उसने गहरी साँस ली; अगले ही पल अधिराज की बात याद करते हुए उसके माथे पर सिलवटें पड़ गईं।

    "मेरे कपड़े।"

    "ये पहनकर आना।" अधिराज ने कुछ उछाला जिसे आरोही ने झट से कैच कर लिया, पर जब उसने उसे देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।

    "म... मैं ये कैसे..."

    "जाओ जाकर नहाकर आओ, अगर एक सेकंड और यहाँ रुकी तो मैं तुम्हें उठाकर अंदर ले जाऊँगा और अपने हाथों से तुम्हें अच्छे से नहलाऊँगा।"

    आरोही अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी कि अधिराज की रौबदार आवाज़ वहाँ गूंज गई। आरोही का मुँह हैरानी से खुल गया। अधिराज ने उसे वहीं बैठे देखकर आइब्रो चढ़ाते हुए आँखों से ही कुछ इशारा किया।

    आरोही ने हड़बड़ाते हुए उस पर से निगाहें हटा लीं और बेड से उतरने लगी, पर उस चादर के साथ उतर नहीं सकी और परेशान निगाहें एक बार फिर अधिराज की ओर उठ गईं, जो लंबे-लंबे कदम बढ़ाते हुए उसके पास पहुँच चुका था।

    आरोही कुछ समझ पाती, उससे पहले ही अधिराज उसकी ओर झुका और जैसे ही उसने उस पर से चादर हटाने लगा, आरोही घबराकर पीछे हट गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।

    "य... ये क्या कर रहे हो तुम?"

    "तुम दो बार मेरे साथ फ़िज़िकल हो चुकी हो, अब कुछ भी छुपा नहीं है मुझसे, फिर इतना झिझकने, शरमाने और छुपाने की क्या ज़रूरत है?"

    अधिराज की गहरी काली इंटेंस निगाहें आरोही को देख रही थीं, जिसका चेहरा कश्मीरी सेब जैसे लाल हो गया था।

    आरोही ने चादर को और भी कसके पकड़ लिया और अपनी निगाहें झुकाते हुए धीमे स्वर में बोली, "Please, तुम चले जाओ यहाँ से, मैं कम्फ़र्टेबल नहीं फील कर रही।"

    "तो करो खुद को मेरे साथ कम्फ़र्टेबल क्योंकि मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला और तुम्हें अपनी आगे की पूरी लाइफ़ मेरे साथ ही बितानी है।"

    अधिराज ने सीरियस अंदाज़ में कहा। आरोही की निगाहें अनायास ही उसकी ओर उठ गईं।

    "मेरी पूरी लाइफ़ तुम मुझे ऐसे ही अपने पास रखोगे, मुझे अपनी पूरी लाइफ़ तुम्हारे ज़िद्द, जुनून और पागलपन को सहना होगा, क्या मुझे कभी तुम्हारी मोहब्बत नहीं मिलेगी?"

    अपने दिल से निकले सवाल पर आरोही खुद हैरान थी। लब खामोश थे, पर उसकी वो बड़ी-बड़ी आँखें बहुत कुछ कह रही थीं, जिन्हें समझने की अधिराज ने कोई कोशिश नहीं की। उसकी आँखों में झाँकते हुए वह उसके चेहरे की ओर झुक गया।

    आरोही ने घबराहट में अपनी आँखें भींच लीं और चादर को कसके पकड़ लिया। अगले ही पल उसे कुछ अजीब सा एहसास हुआ और उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं।

    To be continued…

  • 17. His Dangerous Obsession - Chapter 17

    Words: 1474

    Estimated Reading Time: 9 min

    "य...ये क्या कर रहे हो तुम? नीचे उतारो मुझे, मैं खुद से चली जाऊँगी। अधिराज, नीचे उतारो मुझे, मैं जा रही थी ना फिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मुझे नीचे उतार दो, मैं चली जाऊँगी खुद से।"

    आरोही लगातार नीचे उतरने के लिए छटपटा रही थी। अधिराज से रिक्वेस्ट कर रही थी, पर उसने उसकी एक नहीं सुनी। उसने उसे अपनी बाँहों में उठाकर बाथरूम की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

    घबराहट से आरोही की धड़कनें बढ़ गई थीं। कहीं अधिराज सच में वो न कर दे जो उसने कहा, यही सोचकर उसका दिल घबरा रहा था।

    "म...मैं खुद से नहा लूँगी और फटाफट नहाकर आ जाऊँगी, मुझे नीचे उतार दो।"

    आरोही ने बेचारगी से उसे देखा, एक आखिरी कोशिश की। अधिराज उसे लेकर बाथरूम में पहुँच गया था। आरोही की बढ़ी धड़कनों का शोर बखूबी सुन पा रहा था, पर उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे।

    उसने बाथटब के पास आरोही को खड़ा किया। वह छिटककर उससे दूर हट गई और आँखें बड़ी-बड़ी किए घबराई हुई सी उसे देखने लगी।

    "फटाफट नहाकर बाहर आ जाओ, अगर ज्यादा टाइम लगाया तो मैं अंदर आ जाऊँगा।"

    अधिराज ने कड़क अंदाज़ में वार्निंग दी। सरसरी नज़र उस पर डाली और पलटकर बाथरूम से बाहर चला गया। दरवाजा बंद हुआ, तब जाकर आरोही की जान में जान आई। अपने सीने पर हथेली रखते हुए उसने गहरी साँस छोड़ी और बंद दरवाजे को घूरते हुए बड़बड़ाई,

    "यू आर क्रुएल डेविल, आई हेट यू... डरा दिया मुझे।"

    आरोही अधिराज को कोस रही थी। तभी अचानक उसे अधिराज की धमकी याद आई और वो बुरी तरह हड़बड़ा गई।

    कुछ देर बाद वह नहाकर बाहर आई। अधिराज वही सोफे पर पैर पर पैर चढ़ाए बैठा फोन में कुछ कर रहा था।

    जैसे ही उसकी नज़र सामने आ रही आरोही पर गई, उसकी भौंहें सिकुड़कर आपस में जुड़ गईं। उसने मोबाइल टेबल पर रखा और आरोही की ओर कदम बढ़ा दिया।

    "क्या है ये?" आरोही के कानों में अचानक ही अधिराज की कठोर आवाज़ पड़ी और चौंकते हुए उसने सर उठाया। अधिराज उसके सामने खड़ा उसे पैनी निगाहों से घूर रहा था।

    आरोही ने खुद पर लपेटी चादर को कसके पकड़ लिया और उसके साइड से निकलकर जाने लगी। अधिराज की त्योरियाँ चढ़ गईं। उसने आरोही की बाँह पकड़कर उसे वापिस अपने सामने खड़ा कर दिया।

    "ये चादर क्यों डाली हुई है तुमने?"

    "क्योंकि तुमने मुझे सिर्फ अपनी टीशर्ट दी है पहनने के लिए। अब तुम ये तो कहना मत कि तुमसे कुछ भी छुपा नहीं है तो इन सबकी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मुझे ज़रूरत है, मैं कॉन्फोर्टेबल नहीं हूँ ऐसे तुम्हारे सामने आने में।"

    आरोही ने तुनकते हुए कहा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें नाराज़गी से उसे घूर रही थीं।

    "Ohh मेरी डरपोक चुहिया शेरनी जैसे मुझे आँखें दिखा रही है।"

    अधिराज की आँखों में शरारत थी और होंठों पर तिरछी मुस्कान फैली थी। अपना यूँ मज़ाक बनते देखकर आरोही चिढ़ गई। उसने अधिराज का हाथ झटका और मुँह बनाते हुए आगे बढ़ गई। पर अगले ही पल उसके कदम ठिठक गए और आँखें हैरानी से फैल गईं।

    वह घबराकर पीछे पलटी। अधिराज शातिर मुस्कान होंठों पर सजाए चादर के एक किनारे को अपने हाथ में पकड़े खड़ा उसे गहरी निगाहों से देख रहा था।

    आरोही ने पहले फटी आँखों से अधिराज को देखा, फिर नज़रें झुकाकर खुद को देखा और हड़बड़ी में चादर छोड़कर अपनी टीशर्ट को पकड़कर नीचे करने लगी।

    "बहुत बुरे हो तुम।" आरोही ने शिकायती निगाहों से अधिराज को घूरा और टीशर्ट को खींचकर अपने पैर को ढकने की नाकाम सी कोशिश करते हुए धीरे-धीरे पीछे को सरकने लगी।

    अधिराज ने चादर छोड़ी और आरोही के तरफ़ कदम बढ़ा दिए।

    "क्या कर रहे हो, छोड़ो मेरा हाथ, मैं बता रही हूँ अब मैं मार दूँगी तुम्हें, कहाँ लेकर जा रहे हो मुझे...छोड़ो ना, मुझे दर्द हो रहा है...तुम हर्ट कर रहे हो मुझे..."

    आरोही अपने बाँह को उससे छुड़ाने की नाकाम सी कोशिश करती रही। पर यहाँ भी अधिराज ने उसकी एक नहीं सुनी और उसकी बाँह पकड़कर लगभग खींचते हुए ले जाकर बेड पर बिठा दिया।

    "पेट के बल लेटो यहाँ।"

    अंदाज़ बिल्कुल ऑर्डर देने वाला था। आरोही की बाँह उसके कसके पकड़ने की वजह से लाल हो गई थी। आरोही अपनी दूसरी हथेली से अपनी बाँह को सहलाते हुए अजीबोगरीब शक्लें बना रही थी। जब अधिराज के शब्द उसके कानों से टकराए और उसकी हैरानी भरी नज़रें उसकी ओर उठ गईं।

    "क...क्यों?"

    "मैंने कहा पेट के बल लेटो और अपनी टीशर्ट ऊपर करो।"

    किलर अंदाज़ था और घूरती आँखें। आरोही ने घबराहट में अपनी टीशर्ट को अपने दोनों हाथों से कसके पकड़ लिया।

    "नहीं, मैं नहीं करूँगी। एक तो तुमने मुझे ठीक से कपड़े भी नहीं दिए पहनने के लिए, ऊपर से अब पता नहीं क्या बोल रहे हो। मैं नहीं मानूँगी तुम्हारी कोई बात।"

    अधिराज की आँखें गहरी हो गईं, भौंहें चढ़ाए वह गुस्से से उसे घूरने लगा।

    "मैं नहीं मानूँगी तुम्हारी बात, तुमने कहा था कि मैं तुम्हारी स्लेव नहीं हूँ तो तुम ऐसे मुझे ऑर्डर देकर उन्हें मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। मैं वाइफ़ हूँ ना तुम्हारी तो मेरी भी बात मानी जाएगी। मेरे हसबैंड होने के नाते तुम्हारा फ़र्ज़ है मेरी इच्छा का मान रखना।"

    आरोही बिना घबराए एक साँस में सब बोल गई। वह खुद नहीं जानती थी कि उसने ये कहा क्यों, जबकि उसे पता था कि अधिराज को उसकी मर्ज़ी से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बस उम्मीद थी कि वह उसकी सुनेगा।

    अधिराज कुछ पल उसे घूरता रहा, फिर फ़र्श पर पड़ी चादर को उठाकर उसके हाथ में थमा दिया।

    "पकड़ो इसे, अब लेटो और अपनी टीशर्ट ऊपर करो, अगर अब तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं खुद तुम्हारी टीशर्ट उतार दूँगा।"

    अधिराज के कोल्ड लुक्स देखकर आरोही घबरा गई। इस सनकी का कोई भरोसा नहीं था, वह कुछ भी कर सकता था। उसने मुँह बिचककर उसे देखा, फिर चादर से कमर के नीचे के पार्ट को कवर करते हुए पेट के बल लेट गई।

    अधिराज ने ड्रॉअर से एक क्रीम निकाली और उसके पास बैठ गया। आरोही झिझक रही थी, तो उसने खुद ही उसकी टीशर्ट को ऊपर सरकाया, उसकी पीठ पर कई नए और पुराने निशान मौजूद थे।

    अधिराज के चेहरे पर सख्त भाव मौजूद थे और आँखों में बेहिसाब गुस्सा भरा था। आरोही जो अब तक खुद में उलझी, बेडशीट को अपनी मुट्ठियों में भींचे लेटी हुई थी, जैसे ही उसे अपने पीठ पर कुछ ठंडा-ठंडा सा महसूस हुआ उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं और सर घुमाकर अधिराज को देखने लगी। उसके हाथ में क्रीम देखकर आरोही सब समझ गई।

    "एक वो थे जो बदकिस्मती से रिश्ते में मेरे डैड लगते हैं, पर जल्लादों जैसा सुलूक करते थे मेरे साथ, जिनके निशान आज भी मेरे शरीर पर मौजूद हैं और एक तुम हो, जिसे मुझसे मोहब्बत नहीं, जिसके लिए मैं सिर्फ़ उसकी ज़रूरत हूँ, फिर भी तुम उन ज़ख़्मों पर मरहम लगा रहे हो। मेरे हसबैंड बने तो उसका फ़र्ज़ निभा रहे हो।"

    आरोही एकदम अधिराज को देख रही थी और उसके चेहरे पर कोमल भाव मौजूद थे। अधिराज के इस जेस्चर पर उसका दिल कुछ अलग अंदाज़ में धड़का।

    "वॉर्डरोब से कपड़े लेकर चेंज करो और नाश्ते के लिए नीचे पहुँचो।"

    अधिराज वहाँ से उठा और सीधे रूम से बाहर निकल गया। आरोही हैरान-परेशान सी उसे देखती ही रह गई। अधिराज के जाने के बाद वह उठकर बैठ गई, उसकी कही बात याद करते हुए उसने चेंजिंग रूम की ओर कदम बढ़ा दिए।

    उसने पहले तीन-चार वॉर्डरोब खोले, सब में अधिराज के ही कपड़े और बाकी का सामान रखा था।

    "क्या इन्हीं में से कुछ चुनकर पहनने को कहकर गया है वो?"

    आरोही खुद में ही उलझी हुई आगे बढ़ी। अगला वॉर्डरोब खोला और जैसे ही सामने देखा उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके बाद के सभी वॉर्डरोब और कैबिनेट को खोलकर देखा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे और ज़्यादा हैरान होती जा रही थी।

    "ये सब क्या है? और जब यहाँ मेरी ज़रूरत की हर छोटी से बड़ी ब्रैंडेड चीज़ें विथ ऑप्शन्स मौजूद हैं तो मुझे ये खाली टीशर्ट क्यों दी थी पहनने को?"

    आरोही ने खुद से ही सवाल किया, अगले ही पल उसके दिमाग में कुछ आया और आँखें गुस्से से भर गईं।

    "तुमने सब जानबूझकर किया ना, ताकि मुझे परेशान कर सको, राक्षस हो तुम, दुष्ट राक्षस...आई हेट यू।"

    खुद में बड़बड़ाते हुए आरोही ने अपने लिए एक ड्रेस निकाली और उसकी आँखें शरारत से चमक उठीं। होंठों पर शैतानी मुस्कान फैल गई।


    अधिराज ड्राइंग रूम में लगे सोफे पर बैठा आरोही के आने का इंतज़ार कर रहा था। कुछ देर बाद आरोही सीढ़ियों से नीचे उतरती नज़र आई। अधिराज के साथ-साथ वहाँ काम में लगे सर्वेंट्स की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, सबके चेहरों का रंग उड़ गया।

    आरोही जो अपनी ही मस्ती में मुस्कुराते हुए सीढ़ियों से नीचे आ रही थी, जब उसने नज़र सामने की ओर उठाई तो उसकी मुस्कराहट सिमट गई और आँखें फाड़े वह सामने का नज़ारा देखने लगी।

    To be continued…

  • 18. His Dangerous Obsession - Chapter 18

    Words: 1412

    Estimated Reading Time: 9 min

    "उस दिन तो यहां कोई भी नहीं था, पूरा मेंशन बिल्कुल सुनसान लग रहा था। फिर आज यहां इतने सारे लोग कहाँ से आ गए और ये सब ऐसे आँखें फाड़कर क्यों देख रहे हैं मुझे?"

    आरोही ने आँखें बड़ी-बड़ी करके सामने खड़े लोगों को देखा, फिर नज़रें इधर-उधर घुमाईं।

    नीचे बैठे अधिराज की नज़र जब आरोही पर गई तो उसके चेहरे के भाव बिगड़ गए। उसने नज़रें आस-पास घुमाईं; वहाँ मौजूद सर्वेंट से लेकर गार्ड तक सभी फटी आँखों से आरोही को ही घूर रहे थे।

    अधिराज की आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं।

    "Leave!" अधिराज की गुस्से भरी तेज़ आवाज़ पूरे मेंशन में गूंज उठी। सभी सर्वेंट्स और गार्ड उसके गुस्से से जलते चेहरे और घूरती आँखें देखकर घबरा गए और तुरंत ही सर झुकाकर वहाँ से चले गए। सेकेंड्स के अंदर वो जगह बिल्कुल खाली हो चुकी थी।

    अधिराज के यूँ चिल्लाने से आरोही भी डर गई थी और घबराई हुई सी, सवालिया निगाहों से उसे देख रही थी।

    आरोही ने जैसे ही कमरे से बाहर कदम रखा, अधिराज की सख़्त नज़रें एक बार फिर आरोही की ओर घूम गईं। उसने हल्का सा लूज़ crop top और matching shorts पहना था—एक प्यारा, कंफर्टेबल co-ord set, लेकिन अधिराज की नज़रों में ये सब कुछ बर्दाश्त के बाहर था।

    वह झटके में सोफे पर से उठकर खड़ा हो गया। उसकी निगाहें, जो अब तक मोहब्बत और जुनून से भरी थीं, अब गुस्से से जल रही थीं।

    "ये क्या पहन रखा है तुमने?" उसकी आवाज़ बर्फ जितनी ठंडी और आँखें आग जैसी गर्म थीं।

    आरोही रुक गई। उसने हैरानी से अधिराज को देखा, फिर खुद को देखा।

    "मैं तो बस—"

    "बस क्या?" अधिराज ने उसकी बात बीच में ही काट दी और दो कदम में उसके पास पहुँच गया।

    एक झटके में उसने उसकी कलाई अपने मजबूत हाथों में थाम ली और उसे ज़ोर से पकड़ते हुए लगभग घसीटता हुआ कमरे की तरफ़ बढ़ा।

    "छोड़ो मुझे अधिराज! क्या कर रहे हो? मुझे दर्द हो रहा है, कितनी टाइटली पकड़ा हुआ है तुमने मेरा हाथ, मेरा हाथ उखड़ जाएगा...छोड़ो मुझे..." आरोही ने खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश की।

    कमरे के अंदर पहुँचते ही अधिराज ने दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और आरोही को दीवार के पास धकेल दिया।

    "तुम्हें इतनी समझ नहीं है या जानबूझकर कर रही हो ये सब?" अधिराज की आँखें गुस्से से लाल थीं। उसकी उंगलियाँ अब भी आरोही की बाँह पर मजबूती से जकड़ी हुई थीं।

    "कहा था मैंने...साफ़ कहा था कि मेरे अलावा किसी की नज़रें तुम पर न ठहरें, कोई और तुम्हें उस नज़र से देखे, ये बर्दाश्त नहीं मुझसे। फिर भी तुम मेरी वाइफ़ होकर ऐसे कपड़े पहनकर सबके सामने चली आई। आखिर करना क्या चाहती हो तुम ये सब पहनकर? चैलेंज कर रही हो मुझे?"

    वह एक कदम और करीब आया; उसकी साँसें अब आरोही के चेहरे को छूने लगी थीं। आरोही का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, पर वह नज़रें नहीं चुरा सकी।

    "तुम नहीं जानती आरोही, तुम किससे उलझ रही हो। मेरी हदें सिर्फ़ मेरी मर्ज़ी से टूटती हैं...मत लो मेरे सब्र का इंतेहान, अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए। जब तक शांत हूँ, शांत रहने दो मुझे, अगर अपनी इन हरकतों से मुझे उकसाने और भड़काने की कोशिश की, मैंने अपनी हदें तोड़ी तो यकीन मानो, तुम सह नहीं पाओगी।"

    आरोही के होंठ फड़फड़ाए, शायद कुछ कहना चाहती थी वह, पर शब्द बाहर नहीं आए। अधिराज ने उसके बालों को पीछे हटाया और ठुड्डी को उंगली से ऊपर किया। "अब ये मत कहना कि तुमने जानबूझकर नहीं किया...क्योंकि तुम्हारे मासूम चेहरे के पीछे छुपे शैतानी दिमाग से बहुत अच्छे से वाक़िफ़ हूँ मैं और तुम्हारी शरारत से चमकती आँखें सब बता चुकी हैं मुझे।"

    आरोही ने चौंकते हुए पलकें उठाईं; नज़रें जैसे ही उसकी काली डरावनी आँखों से टकराईं, उसने सकपकाते हुए वापिस नज़रें झुका लीं।

    "इसे तुम्हारी पहली और आखिरी गलती समझकर माफ़ कर रहा हूँ, आरोही। लेकिन अगली बार...अगर तुमने दोबारा भी ऐसी कोई हरकत की जो मेरे जुनून, मेरी दीवानगी को ट्रिगर करे—तो यकीन मानो, मैं खुद पर काबू नहीं रख पाऊँगा।"

    उसकी आवाज़ भारी थी, पर हर शब्द में गहराई और धमकी छुपी थी। घबराहट में आरोही का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। अधिराज उसकी आँखों में झाँक रहा था।

    "मेरे सब्र को आज़माने की भूल मत करना, क्योंकि मैं तुम्हारे लिए हद से ज़्यादा पॉज़ेसिव हूँ। तुम्हारा हर लम्हा, हर नज़र, हर साँस—अब मेरी है।"

    उसने उसका चेहरा करीब खींच लिया—इतना कि अब उनकी साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं।

    "मैं पहले भी कह चुका हूँ, और ये आखिरी बार समझा रहा हूँ—सिर्फ़ मैं तुम्हें इस तरह देखने का हक़दार हूँ, सिर्फ़ मैं! किसी और की नज़र तुम्हारे जिस्म पर पड़ी, तो मैं उसे देखने लायक तक नहीं छोड़ूँगा...और अगर तुमने मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एक भी कदम उठाया, तो उसके अंजाम के लिए खुद को तैयार रखना पड़ेगा, आरोही। क्योंकि तब तुम अधिराज सिंह राठौड़ का वो रूप देखोगी जिससे दुनिया ख़ौफ़ खाती है।"

    आरोही की साँसें तेज़ थीं, पर उसकी आँखों में डर से ज़्यादा सवाल थे। अधिराज उसे छोड़कर जैसे ही पीछे हटा, आरोही की सहमी हुई धीमी आवाज़ उसके कानों से टकराई।

    "तुम मुझ पर इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? मैंने तो उन्हीं में से इसे निकाला है जो कपड़े तुमने मेरे लिए रखवाए हैं। अगर तुम्हें मेरे ऐसे कपड़े पहनने से इतनी ही प्रॉब्लम थी तो ऐसे कपड़े लाए ही क्यों? नहीं होते तो नहीं पहनती मैं।"

    अधिराज हाथ बाँधे सख़्त निगाहों से उसे घूर रहा था, जिससे आरोही नर्वस हो गई और अपने निचले होंठ को दाँतों से काटने ही वाली थी कि अधिराज ने आगे बढ़कर उसके होंठ पर अपनी उंगली रख दी। आरोही की हैरानी भरी आँखें उसकी ओर उठ गईं।

    "तुम मेरे सामने कुछ भी पहन सकती हो, पर अगर मेरे अलावा कोई आस-पास है तो तुम्हें पूरे कपड़े पहनने होंगे, किसी और के सामने शरीर दिखाने वाले कपड़े पहनने की इज़ाज़त नहीं है तुम्हें, समझ आई बात?"

    आरोही ने हड़बड़ी में सर हिला दिया। कहाँ वह उससे बदला लेना चाहती थी और खुद ही अपने बिछाए जाल में बुरी तरह फँस गई थी। अधिराज ने जितना गुस्सा किया और जिस तरह से वह नाराज़ हो रहा था, आरोही को अंदाज़ा हो गया था कि वह उसे लेकर हद से ज़्यादा पॉज़ेसिव है।

    "जाओ कपड़े चेंज करो और आगे से ये सब ड्रेसेस सिर्फ़ तब पहनना जब हम अपने बेडरूम में हों या घर में हमारे अलावा कोई और न हो।"

    अधिराज की आवाज़ सॉफ्ट थी। आरोही सर हिलाती हुई वहाँ से भाग गई और चेंजिंग रूम में घुसकर डोर से चिपककर अपनी आँखें बंद करके खड़ी हो गई। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।

    "आरोही, उस राक्षस को दोबारा कभी भूलकर भी छेड़ने की कोशिश मत करना, वरना वो तुझे कच्चा निगल जाएगा और डकार भी नहीं लेगा।"

    आरोही कपड़े बदलकर आई; अधिराज वहीँ उसका इंतज़ार कर रहा था। इस बार उसने शॉर्ट प्रिंटेड कुर्ती के साथ लूज़ पैंट पहनी हुई थी। खुले बाल पीठ पर बिखरे थे। मासूमियत भरा हसीन चेहरा जो सादगी में भी क़यामत ढाता था।

    अधिराज के होंठ हल्के से खिंच गए। उसने आगे बढ़कर आरोही की हथेली थामी और उसे लेकर रूम से बाहर निकल गया।

    आरोही नीचे आई तो एक बार फिर चौंक गई। लगभग पूरा मेंशन बिल्कुल खाली था। एक इंसान नज़र नहीं आ रहा था वहाँ।

    अधिराज उसे लेकर डाइनिंग रूम में आया; वहाँ एक सर्वेंट सर झुकाए खड़ी थी।

    अधिराज ने चेयर पीछे करते हुए आरोही की ओर नज़रें घुमाईं; वह आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।

    "बैठो।"

    "मैं?" आरोही ने चौंकते हुए सवाल किया। जवाब में अधिराज ने आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरा; आरोही सकपकाते हुए झट से बैठ गई। अधिराज उसके बगल में बैठ गया। सर्वेंट ने उन्हें खाना सर्व करना शुरू किया। आरोही कभी सामने रखी डिशेज को देखती तो कभी सर घुमाकर अधिराज को।

    "ये सब मैं खाऊँगी?"

    "येस, और तुम्हें ये सब फ़िनिश करना है, याद है ना डॉक्टर ने क्या कहा था? तुम्हें अपनी हेल्थ पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है, इसलिए अब से तुम्हें क्या खाना है? कब खाना है? कितना खाना है? ये सब मैं डिसाइड करूँगा, और तुम्हें मेरे ऑर्डर फ़ॉलो करने होंगे क्योंकि मैं तुम्हारी हेल्थ को लेकर कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं करूँगा।"

    अधिराज का लहजा सख़्त था, पर डोमिनेटिंग से ज़्यादा केयरिंग लग रहा था वह। इंकार का कोई रास्ता न देखकर आरोही ने पलकें झपकाईं और अपने सामने रखी डिशेज को देखने लगी।


    "अधिराज, तुम कहीं जा रहे हो?"

    आरोही ने अधिराज को रेडी होते देखकर सवाल किया।

    उसका सवाल सुनकर अधिराज के होंठों पर शातिर मुस्कान फैल गई।

    To be continued…

  • 19. His Dangerous Obsession - Chapter 19

    Words: 1255

    Estimated Reading Time: 8 min

    "अधिराज, तुम कहाँ जा रहे हो?"

    आरोही ने अधिराज को तैयार होते देखकर सवाल किया। अधिराज, जो टाई बांधने जा रहा था, एकदम रुक गया। दिमाग में कुछ आया और वह पलटकर आरोही के पास आ गया।

    "टाई बांधनी आती है तुम्हें?"

    "Hmm," आरोही ने सिर हिलाया। अधिराज ने टाई उसकी ओर बढ़ा दी और उसके पास ही बैठ गया।

    "लो, बाँधो इसे।"

    "तुमने नहीं बताया, तुम कहाँ जा रहे हो?" आरोही ने टाई बांधते हुए अपना सवाल दोहराया। अधिराज ने सिर हिलाते हुए हामी भरी।

    "हाँ, मुझे ऑफिस जाना है, शाम को वापिस आऊँगा।"

    अधिराज का जवाब सुनकर आरोही का चेहरा उतर गया। "तुम मुझे इस भूत बंगले में अकेला छोड़कर चले जाओगे?"

    "भूत बंगला!" अधिराज की घूरती निगाहें उस पर टिकीं। पल में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपनी जीभ को दाँतों तले दबा लिया और कातर निगाहों से उसे देखते हुए क्यूट सी शक्ल बना ली।

    अधिराज ने अफ़सोस से सिर हिलाया और वापिस ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गया।

    "तुम मुझे यहाँ अकेला छोड़कर चले जाओगे। तुम्हारा मेंशन इतना बड़ा है, मुझे डर लगता है यहाँ अकेले।"

    "सर्वेंट्स और गार्ड्स रहेंगे।"

    "पर तुम तो नहीं रहोगे ना। तुम्हारे सर्वेंट्स, गार्ड्स किसी को भी तो जानती नहीं हूँ मैं। मैं कैसे रहूँगी इतने बड़े मेंशन में इन अंजान लोगों के बीच?"

    आरोही उठकर उसके पास आ गई। अधिराज ने बड़ी ही बेफ़िक्री भरे अंदाज़ में जवाब दिया।

    "तुम्हें उनके बीच रहने की ज़रूरत भी नहीं है। रूम में रहना, जो चाहिए हो बस ऑर्डर करना, सब कुछ यहाँ पहुँच जाएगा।"

    "मैं नहीं रहूँगी यहाँ अकेले।"

    आरोही के जवाब सुनकर अधिराज के होंठों पर शैतानी मुस्कान सजी। वह उसकी ओर पलटा और उसकी कमर में अपनी बांह डालते हुए उसे झटके से अपनी ओर खींच लिया। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि आरोही बस फटी आँखों से उसे देखती ही रह गई।

    "अगर तुम्हें अकेले रहने में इतनी ही प्रॉब्लम है तो नहीं जाता आज मैं कहीं। लेकिन अगर मैं यहाँ रुका तो तुम्हें प्रॉब्लम हो सकती है।"

    आरोही की आँखों में कई सवाल झिलमिलाने लगे। अधिराज उसके थोड़ा करीब आया और इंटेंस निगाहों से उसे देखने लगा।

    "कहा था ना मैंने, तुममें वो नशा है जो मुझे बहकने पर मजबूर करता है। तुम्हारी करीबी मुझे बेकाबू करती है और मुझे नहीं लगता कि कल की रोमांटिक नाइट के बाद तुम्हारे अंदर इतना स्टेमिना होगा कि वो सब फिर से सहन कर सको।"

    उसकी बातों का मतलब समझते हुए आरोही के कान जल उठे, चेहरा लाल हो गया, वह नज़रें चुराने पर मजबूर हो गई। अधिराज उसे देखकर कुटिलता से मुस्कुराया और वापिस तैयार होने लगा।

    "तुम मुझे मेरे घर छोड़ आओ, मैं अपनी मम्मी के साथ रहूँगी, शाम को वापिस आ जाऊँगी।"

    आरोही के ये कहते ही, अधिराज के चेहरे पर सख्त भाव उभरे और भौंहें तन गईं। वह झटके से आरोही की ओर पलटा।

    "कहीं नहीं जाओगी तुम।"

    "क्यों?... क्यों नहीं जाऊँगी?" आरोही ने चौंकते हुए सवाल किया।

    "क्योंकि मैं कह रहा हूँ और तुम्हें वही करना होगा जो मैं कहूँगा।"

    अधिराज के अंदाज़ में अधिकार था जो आरोही को नागवार गुज़रा। "क्यों?... क्यों करूँगी मैं वही जो तुम कहोगे? बीवी हूँ तुम्हारी, गुलाम नहीं हूँ। ये तुम ही ने कहा था ना? फिर अब अपनी मर्ज़ी मुझ पर कैसे थोप सकते हो तुम?"

    "तुम्हें जो समझना है समझो, पर मैंने एक बार कह दिया कि तुम कहीं नहीं जाओगी, मतलब कहीं नहीं जाओगी तुम। और अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, मेरे खिलाफ़ जाने की कोशिश की तो सज़ा की हकदार बनोगी और सज़ा आसान नहीं होगी।"

    अधिराज ने कठोर लहज़े में उसे चेतावनी दी, पर आरोही उसके सामने डटकर खड़ी हो गई।

    "मैं कहीं और तो नहीं, अपने घर जाने की बात कर रही हूँ। कह रही हूँ कि शाम को तुम्हारे आने से पहले वापिस भी आ जाऊँगी। फिर क्या प्रॉब्लम है तुम्हें? क्यों नहीं जा सकती मैं अपने घर?"

    "अब वो तुम्हारा घर नहीं है। उस घर और घर के लोगों से अब तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं। तुम मेरी वाइफ़ हो, अब से यही तुम्हारा घर है और यही तुम्हारी दुनिया है। तुम्हें यहीं रहना है मेरे साथ। तुम लौटकर कभी वापिस उस घर में नहीं जाओगी, उस घर के लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखोगी। ये बात अपने दिलो-दिमाग में अच्छे से बिठा लो।"

    "वहाँ मेरी माँ रहती है, अधिराज। तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?"

    आरोही के शब्दों में दुख और निराशा घुली थी। अधिराज उसकी बात को नज़रअंदाज़ करके वहाँ से जाने लगा। आरोही पीछे से चिल्लाई,

    "मैं वहाँ जाऊँगी, ज़रूर जाऊँगी। मेरी माँ है वहाँ, मैं जाऊँगी उनसे मिलने और तुम क्या, दुनिया की कोई ताकत मुझे अपनी माँ से मिलने से नहीं रोक सकती।"

    "मेरी इज़ाज़त के बिना तुम इस घर से एक कदम भी बाहर नहीं निकाल सकती।"

    "तुम मुझे अपने इस सोने के पिंजरे में कैद करके रखना चाहते हो? मैं नहीं रहूँगी यहाँ, चली जाऊँगी यहाँ से। तुम या तुम्हारे आदमी नहीं रोक सकेंगे मुझे।"

    अधिराज के कदम ठहर गए। वह वापिस आरोही की ओर पलटा और सर्द निगाहों से उसे घूरने लगा।

    "अब तुम यही समझो कि ये एक सोने का पिंजरा है और मैंने तुम्हें यहाँ कैद किया है। और जब तक मैं नहीं चाहूँगा, तुम इस पिंजरे से आज़ाद नहीं हो सकती। अगर ज़्यादा पंख फड़फड़ाई तो घायल हो जाओगी। इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि जो मैं कह रहा हूँ वो करो। मेरे खिलाफ़ जाना तुम्हें बहुत भारी पड़ सकता है।"

    आँखों से वार्निंग देते हुए वह रूम से बाहर निकल गया और आरोही बुत बनी खड़ी ही रह गई। उसकी आँखें नम थीं। अब उसका उसकी माँ से रिश्ता भी इस रिश्ते की बलि चढ़ने वाला था, यही बात उसे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ दे रही थी।


    मल्होत्रा हाउस में जश्न का माहौल था। सबको यही लगता था कि उन्होंने आरोही की ज़िंदगी बर्बाद कर दी, उस अनचाहे बोझ से छुटकारा मिल गया था उन्हें और साथ ही उसकी अच्छी खासी कीमत वसूली थी उन्होंने।

    "डैड, आरोही को तो आपने इस घर और हमारी ज़िंदगी से निकालकर बाहर कर दिया, पर अब उस बुढ़िया का क्या करेंगे?"

    "वो बुढ़िया नहीं है, बेटा, वो उस तिजोरी की चाबी है जिसके सहारे हम ये ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी रहे हैं।"

    संजीव की बात सुनकर नंदिता कन्फ़्यूज़ हो गई। "डैड, आप कहना क्या चाहते हैं? मुझे कुछ समझ नहीं आया।"

    मिस्टर मल्होत्रा ने सिर घुमाकर मिसेज़ मल्होत्रा को देखा और दोनों के होंठों पर शातिर मुस्कान फैल गई।

    "बेटा, ये घर, कंपनी, सारी प्रॉपर्टी, शेयर्स, सब कुछ आरोही का है और देविका उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है, जिसका इस्तेमाल करके आज तक हम उसकी प्रॉपर्टी और पैसों पर ऐश की ज़िंदगी जी रहे हैं।

    आरोही के 22 के होते ही ये सब कुछ उसके नाम हो जाएगा और तब हमें देविका की ज़रूरत पड़ेगी। उसके सहारे हम आरोही को मजबूर करेंगे और उसकी सारी प्रॉपर्टी, शेयर्स, सब कुछ अपने नाम करवा लेंगे।

    अगर उससे पहले देविका को कुछ हो गया तो आरोही हमारे हाथ से निकल जाएगी और ये सब कुछ हमसे छिन जाएगा। इसलिए उस वक़्त तक देविका का यहाँ और ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है... अब कुछ समझी तुम?"

    आज जिस राज़ पर से उन्होंने पर्दा उठाया, उसके बाद नंदिता के मन में आरोही के लिए नफ़रत और चिढ़ और ज़्यादा बढ़ गई। पर उसने उसे ज़ाहिर नहीं किया और भौंह उठाते हुए सवाल किया-

    "अगर ऐसा है तो आपने इतनी जल्दी उसकी शादी क्यों करवा दी? एक साल और रुक जाते, सब कुछ अपने नाम करवाने के बाद उसे और उसकी माँ दोनों को एक साथ उठाकर इस घर और हमारी लाइफ़ से बाहर फेंक देते।"

    To be continued…

  • 20. His Dangerous Obsession - Chapter 20

    Words: 1429

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    "अगर ऐसा है तो आपने इतनी जल्दी उसकी शादी क्यों करवा दी? एक साल और रुक जाते, सब कुछ अपने नाम करवाने के बाद उसे और उसकी माँ दोनों को एक साथ उठाकर इस घर और हमारी लाइफ से बाहर फेंक देते।"

    "सोचा तो हमने भी यही था कि थोड़ा वक्त देंगे... लेकिन हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे थे। मार्केट क्रैश कर रही थी, कंपनी घाटे में जा रही थी। ऐसे में अगर सही वक्त पर सही फैसला नहीं लेता, घर में मौजूद खूबसूरती से फायदा नहीं उठा पाता, तो मेरा इतने सालों से इस फील्ड में होना बेकार था। एक सफल बिज़नेसमेन वही होता है जो सही वक्त पर सही फैसला ले सके और अपने फायदे के बारे में सोचे।"

    आरोही जवान थी... खूबसूरत... और सबसे ज़रूरी बात—मजबूर। उसके पास न रास्ता था, न आवाज़। देविका के कारण वो लाचार थी; हमारी सभी बातें मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था उसके पास। हमने सोचा, क्यों न उसकी ज़िंदगी को ही एक सौदा बना दिया जाए? एक ऐसी डील जिसमें बस मुनाफा ही मुनाफा हो।

    शादी? वो तो बस एक दिखावा था इस खेल में। असली मकसद था—करोड़ों की डील साइन कराना, डूबती कंपनी को उबारना... और हाँ, एक एक्स्ट्रा इनकम सोर्स बनाना, जो हर हाल में हमारे क़ब्ज़े में रहे।

    और फिर इस खेल में हमारा सबसे बड़ा मोहरा तो अब भी हमारी कैद में है—देविका। जब तक वो हमारे पास है, आरोही कभी भी हमारे खिलाफ जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती। वो हमारी हाथ की कठपुतली बनकर रहेगी। और फिर... वक्त आने पर, हम उसका सहारा लेकर आरोही से सब कुछ अपने नाम करवा लेंगे—ज़मीन, प्रॉपर्टी, बिज़नेस... सब कुछ।

    ये सिर्फ़ एक शादी नहीं थी... ये एक इन्वेस्टमेंट थी। जिसका रिटर्न उन्हें जल्द ही मिलने वाला था... भारी मुनाफे के साथ।

    तीनों की शैतानी हँसी वहाँ गूंज उठी। अपने रूम में बेबस और लाचार सी लेटी मिसेज़ मेहरा उनकी सारी प्लानिंग सुन रही थीं; उनके घटिया इरादों के बारे में जानकर भी वो कुछ नहीं कर पा रही थीं। उनकी आँखों से बेबसी के आँसू बह रहे थे। अपनी बेटी के दुखों की वजह थी वो, उनकी बेटी की ज़िंदगी, उसकी खुशियाँ एक सौदा बनकर रह गई थीं और वो कुछ नहीं कर सकीं।

    बाहर बैठे तीनों लोग अभी अपनी प्लानिंग को आगे बढ़ा ही रहे थे कि अचानक मिस्टर मल्होत्रा का फ़ोन बजा। स्क्रीन पर चमकते नाम को देखकर उनके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए। उन्होंने दोनों को चुप रहने को कहा और कॉल रिसीव करते हुए वहाँ से हटकर साइड में चले गए।

    "हैलो सर, कहिए कैसे याद किया हमें।"

    "वो लड़की... आरोही... कीमत बताओ उसकी। लेकिन इस बार हमें वो सिर्फ एक रात के लिए नहीं चाहिए—इस बार हम उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहते हैं, हमेशा के लिए। शादी करके उसे अपने घर लाना है, अपने नाम से जोड़ना है।"

    "जितना चाहे, उतना बड़ा मुँह खोलो... जो भी कीमत माँगोगे, उससे ज़्यादा देंगे तुम्हें। मगर बदले में चाहिए तो सिर्फ वो लड़की... हर हाल में, हर कीमत पर।"

    उस आवाज़ में अजीब सा ज़िद और जुनून झलक रहा था। मिस्टर मल्होत्रा कुछ परेशान हो गए।

    "लगता है आपका भी आरोही पर दिल आ गया। अगर हम आपकी ये इच्छा पूरी कर पाते तो हमें बहुत खुशी होती पर अब आरोही यहाँ नहीं है।"

    "यहाँ नहीं है का क्या मतलब हुआ? तुम्हारी बेटी अगर तुम्हारे पास नहीं है तो कहाँ है?" दूसरे तरफ़ मौजूद शख्स की आवाज़ तेज़ थी, शायद गुस्से में थे।

    "कल ही आरोही की शादी हो गई है, अब वो अपने हसबैंड के साथ रहती है। अगर आप एक रात के लिए कहते तो हम कोशिश भी करते पर हमेशा के लिए.... माफ़ी चाहेंगे पर ये तो मुमकिन नहीं है।"

    "किससे शादी हुई है उसकी?"

    "वो तो हम नहीं जानते, हमें बढ़िया डील मिली और बदले में आरोही को देना था तो हमने डील साइन कर दी जैसे आपके साथ की थी।"

    उस आदमी ने गुस्से में कॉल काट दी।

    "कुछ तो बात है इस लड़की में... जो भी मिलता है, पहली ही मुलाकात में उसका दीवाना हो जाता है। और जो एक रात उसके साथ गुज़ारता है, वो ज़िंदगी की हर रात उसी के नाम करने की ख्वाहिश करने लगता है।"

    "अब तो सोच रहे हैं, उसकी शादी करवा कर सबसे बड़ी गलती कर दी हमने। अगर आज वो हमारे पास होती... तो उसकी हर रात की बोली लगती, लाखों-करोड़ों में उसका सौदा होता। उसकी जवानी की कीमत तय करके बिना एक मेहनत किए हम शानो-शौकत से ज़िंदगी जीते।"

    "न कोई ज़िम्मेदारी... न कोई टेंशन... बस ऐश और आराम!"

    उनके होंठों पर घिनौनी मुस्कान फैली थी, साथ ही अपने फैसले पर उन्हें आज अफ़सोस हो रहा था।


    सारा दिन बीत गया था। आरोही न रूम से बाहर आई और न ही किसी को अंदर आने दिया। सुबह अधिराज के जाने के बाद उसने यहाँ से बाहर जाने की बहुत कोशिश की थी, पर गार्ड्स ने उसे घर से एक कदम भी बाहर नहीं जाने दिया था। भागने का भी सोचा पर कोई रास्ता ही नहीं था। उसका मोबाइल तक उसके पास नहीं था; अधिराज जाते हुए साथ ही ले गया था।

    अधिराज को कॉल करना चाहा तो किसी ने उसे मोबाइल ही नहीं दिया, शायद अधिराज ने ही मना किया होगा। अंत में थक-हारकर वो मायूस सी जो रूम में आई, उसके बाद दोबारा बाहर नहीं निकली।

    अधिराज शाम को कहकर गया था पर उसे लौटते-लौटते रात हो गई थी। अंदर आते ही उसने चारों तरफ़ नज़रें घुमाईं।

    "मैडम कहाँ है तुम्हारी?" सर्वेंट ने पानी का ट्रे उसकी ओर बढ़ाया और सर झुकाते हुए जवाब दिया।

    "आपके बेडरूम में है।"

    "डिनर कर लिया उन्होंने?"

    "मैडम सुबह के बाद रूम से बाहर नहीं आई है। हमने बहुत बार उनसे खाने के लिए पूछा पर उन्होंने मना कर दिया।"

    इसके बाद पल भर ठहरते हुए उसने आगे कहा, "सुबह आपके जाने के बाद मैडम यहाँ से जाने की ज़िद कर रही थी पर गार्ड्स ने उन्हें जाने नहीं दिया। हमसे मोबाइल माँग रही थी पर आपके ऑर्डर थे इसलिए हम में से किसी ने उनकी हेल्प नहीं की। बहुत देर तक वो कोशिश करती रही फिर उदास और दुखी होकर रूम में चली गयी। उसके बाद न खुद बाहर आई और न ही किसी को अंदर आने की परमिशन दी।"

    अधिराज पानी लेने वाला था पर उसका हाथ बीच में ही रुक गया। माथे पर कुछ रेखाएँ उभरीं और कदम सीढ़ियों की ओर बढ़ गए।

    "डिनर लगाओ।"

    ऑर्डर देकर वो लंबे-लंबे डग भरते हुए तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। रूम के बाहर पहुँचा, दरवाज़ा अंदर से बन्द था। अधिराज ने पासवर्ड डाला और गेट खोलते हुए अंदर चला आया।

    बेचैन निगाहें चारों ओर घूमीं और बेड पर जाकर ठहर गईं।

    आरोही सुबह वाले कपड़ों में ही थी। चादर में लिपटी वो खुद में सिमटी हुई लेटी थी, शायद गहरी नींद में सो रही थी। अधिराज ने ऑफिस बैग टेबल पर रखा और आरोही की ओर कदम बढ़ा दिए।

    आरोही के सर के पास बैठते हुए उसने उसके चेहरे पर बिखरे बालों को पीछे किया। उसके मासूम से चेहरे पर अधिराज की निगाहें ठहर गईं; भीगी पलकें और गालों पर बने आँसुओं के निशान देखकर चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे।

    कुछ देर यूँ ही उसे निहारता रहा फिर उठकर बालकनी में चला गया। पॉकेट से मोबाइल निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। "जो काम कहा था वो कितना हुआ है?"

    "सर बस उसी में लगे हुए हैं।" दूसरे तरफ़ से किसी आदमी की आवाज़ आई।

    "और कितना वक़्त लगेगा। जल्दी से जल्दी उसे ख़त्म करो, इतना इंतज़ार करने के लिए टाइम नहीं है मेरे पास।"

    "बस सर हम कोशिश में लगे हैं, जल्दी ही रिज़ल्ट आपके सामने होगा।"

    अधिराज ने कुछ इंट्रक्शंस देने के बाद कॉल कट कर दी। पॉकेट से आरोही का मोबाइल निकाला और उसमें कुछ करने लगा। उसके बाद वापिस अंदर चला आया पर आरोही के पास न जाकर अपने कपड़े लेकर फ़्रेश होने चला गया।

    "आरोही उठ जाओ, डिनर का टाइम हो गया है। Wake up darling...... रुही wake up... रात हो गई है, उठकर डिनर करो फिर सो जाना।"

    अधिराज लगातार उसे जगाने की कोशिश कर रहा था पर आरोही उठ ही नहीं रही थी। अधिराज ने उसे रुही पुकारा तो आरोही नींद में मुस्कुराई और अधिराज की गोद में अपना सर रखते हुए अपनी बाँहों को उसके पेट और कमर पर लपेट दिया। जिससे अधिराज चौंक गया।

    "आई लव यू.... आई मिस यू सो मच......" आरोही नींद में बड़बड़ा रही थी और उसके ये शब्द सुनकर अधिराज की भौंहें तन गईं थीं, चेहरे पर सख्त भाव मौजूद थे। आरोही ने आगे जो कहा उसे सुनकर गुस्से से अधिराज का खून खौल उठा।


    To be continued…