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अध्याय -19 आयशा इन ट्रबल भाग-1 ★★★ हल्की हवा चलना शुरू हो गई थी। मौसम पहले से काफी ठंडा था, मगर इन ठंडी हवाओं ने मौसम और भी ठंडा कर दिया था। आयशा, आरदु और शौर्य के साथ एक पतली सी गली में थी। इसी पतली गली में उसे स्नो गौल की लोकेशन का आभास हुआ था। वह बार-बार अपनी लंबी चौड़ी जैकेट को संभाल रही थी ताकि किसी तरह से खुद को ठंड लगने से बचाए। शौर्य को ठंड नहीं लगती थी और न ही ठंड का आभास आरदु को होता था, लेकिन आयशा को ठंड लगती थी। शौर्य ने अपनी जैकेट उतारी और उसे आयशा को देते हुए कहा, “तुम्हें कुछ ज़्यादा ही ठंड लग रही है, तुम इसे भी पहन लो।” आयशा ने शौर्य की दी हुई जैकेट पहनी और फिर उसे धन्यवाद कहा। शौर्य ने अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कराहट दिखाई। थोड़ी देर में वे लोग एक पुरानी कबाड़ की दुकान में थे। आयशा दुकानदार से बहस कर रही थी, मगर दुकानदार उसकी किसी भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। आयशा ने कहा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है, जब मैं आपको इस पुराने स्नो ग्लोब के लिए पूरे $100 दे रही हूँ, तो फिर आपको क्या चाहिए? आपका यह स्नो ग्लोब $5 का भी नहीं है, मगर फिर भी मैं इतनी कीमत दे रही हूँ। आखिर आप मुझे यह क्यों नहीं दे रहे हैं?” दुकानदार कोई 65 साल की उम्र का था और उसने अपनी आँखों पर बड़े-बड़े चश्मे लगा रखे थे। उसने लाल रंग का स्वेटर पहन रखा था और सिर पर भारी-भरकम टोपी पहनी हुई थी। गले में भी उसने मफलर पहन रखा था। उसने अपने चश्मे को संभालते हुए आयशा को जवाब देते हुए कहा, “क्योंकि यह मेरी दुकान है और यहाँ पर मेरी मर्ज़ी चलेगी, चाहे मैं इसे बेचूँ या फिर इसे अपनी दुकान पर रखूँ। तुम यह सब बताने वाली या फिर समझाने वाली कौन होती हो? जाओ, जाकर अपना काम करो, मेरे मुँह मत लगो। पता नहीं कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं।” दुकान में और भी लोग थे, इसलिए आयशा नहीं चाहती थी कि वह किसी तरह का हंगामा करे या फिर जबरदस्ती स्नो ग्लोब लेने की कोशिश करे। इतना उसे दुकान में आते ही पता चल गया था कि इस दुकान का मालिक एक अंधेरी परछाई है और शायद वह इस स्नो ग्लोब की हिफ़ाज़त के लिए इसे नहीं बेच रहा है। आयशा ने दोबारा ज़िद की और कहा, “देखिए, मेरे घर में मेरी छोटी बहन है और उसे यही स्नो ग्लोब चाहिए, जो मुझे बड़ी मुश्किल से यहाँ पर मिला है। आप चाहे तो इसे प्लीज़ मुझे एक दिन के लिए दे दीजिए, इसके बाद मैं आपको वापस लाकर दे दूँगी। मेरी बहन का जन्मदिन है, अगर मैं उसे यह तोहफ़ा दूँगी तो वह भी खुश हो जाएगी। प्लीज़, मेरी इतनी सी बात मान लीजिए।” आयशा ने अपने हाथ जोड़ दिए और वह जितना ज़्यादा विनती कर सकती थी, उतना ज़्यादा विनती करने की कोशिश कर रही थी। दुकानदार ने दोबारा अपने चेहरे पर एटीट्यूड दिखाया और बोला, “मैंने एक बार कह दिया ना, मुझे यह नहीं देना तो नहीं देना। अब जाओ और दफ़ा हो जाओ यहाँ से।” शौर्य ने यहाँ मौजूद सभी लोगों की तरफ़ देखा और जब उसने देखा कि किसी का भी ध्यान उसकी तरफ़ नहीं था, तब उसने जोर से अपना हाथ ग्लोब की तरफ़ मारा और अपने शरीर से रोशनी के धागे निकालकर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। दुकानदार ने गुस्से से शौर्य से कहा, “ए लड़के, यह तुम क्या कर रहे हो? चलो, इसे वापस रखो। तुम्हें पता है ना, यहाँ चोरी करने वालों को क्या सज़ा दी जाती है? तुम इसे वापस रख दो, वरना मैं पुलिस को बुला लूँगा।” सभी लोगों का ध्यान अब दुकानदार की तरफ़ चला गया क्योंकि उसने काफी चिल्लाकर कहा था। शौर्य ने उसकी बात नहीं मानी और उसे कहा, “जिसे बुलाना है बुला लो। अगर यह स्नो ग्लोब मुझे लेना है, तो मतलब लेना है।” इतना कहकर वह बाहर की तरफ़ भाग पड़ा। अंधेरी परछाई स्नो ग्लोब को अपने हाथ से जाते हुए देख पूरी तरह से तिलमिला गई और उसने इस बात की परवाह नहीं की, यहाँ पर इंसान भी हैं और वह अपने असली रूप में आ गई। काले रंग का धुआँ हुआ और वह अपना आकार बदलने लगी। उसकी पीठ में हड्डियों के चटकने की आवाज़ आने लगी और थोड़ी ही देर में चमड़े को चीरते हुए छह मकड़ी जैसे दाँत बाहर निकल आए। खून और उल्टी जैसी बदबू आने लगी। कुछ देर में उसका शरीर एक धमाके से फट गया और वह किसी गंदे खून से सनी हुई मकड़ी में बदल गई। आरदु पीछे हट गया और आयशा भी पीछे हट गई। वहीं जो लोग यहाँ पर मौजूद थे, उनमें भगदड़ मच गई और वे बस बाहर जाने का रास्ता ढूँढ़ने लगे। मकड़ी बनी क्रिएचर ने एक इंसान की तरफ़ देखा और अपना मुँह खोलकर उस पर गुलाबी रंग की उल्टी कर दी, जिससे वह इंसान वहीं पर सड़कर नीचे गिर गया। उसका शरीर बुरी तरह से सड़ने लगा, जैसे उसने अपने मुँह से तेज़ाब की उल्टी की हो। आरदु ने अपनी तलवार निकाली। वह हमला करने के बारे में सोच रहा था, तभी मुख्य दरवाजे से चार और अंधेरी परछाइयाँ आ गईं जो इसी तरह की दिखती थीं। यहाँ पर तकरीबन छह के करीब इंसान थे, जिसमें से एक को मार दिया गया था और जब वे चार परछाइयाँ आईं तो उन्होंने बाकी के पाँच इंसानों पर भी अपनी तेज़ाब वाली उल्टी की। सभी छह इंसान जो यहाँ पर मौजूद थे, उन्हें मार दिया गया। उनकी लाशें किसी उबलते पानी की तरह जमीन पर उबल रही थीं। आरदु ने अपनी तलवार संभाली और दरवाजे की तरफ़ से आई चार परछाइयों का रुख किया, वहीं आयशा अपने सामने की परछाई को देखने लगी। मकड़ी वाली परछाई ने अपने भयानक और खौफ़नाक आवाज़ में कहा, “तुम आश्रमवासी हो, हमारे दुश्मन! तुमने यहाँ आकर अपनी मौत को गले लगाया है। आश्रमवासी! तुम्हारी कितनी औक़ात हो गई है कि वह अब अंधेरी परछाइयों के घर में आकर उन्हें चुनौती देने की कोशिश कर रही है? आज मैं तुम्हें बताती हूँ कि आश्रमवासियों की औक़ात क्या है!” उसके बोलने के तरीके से और उसकी बातों से यह पता लग रहा था कि वह एक लड़की थी। आयशा ने दोनों हाथ जमीन पर रखे और फिर एकदम से खड़ी हो गई। उसकी आँखें खुलते ही उसके ठीक आस-पास सुनहरी रोशनी से चमकते हुए फ़र्श की टाइलें बाहर निकलीं और वह हवा में ही उड़ने लगीं। आयशा ने अपने हाथों को फैलाया जिससे सारी टाइलें हवा में ही फैल गईं और फिर आयशा के चारों तरफ़ घूमने लगीं। सामने की अंधेरी परछाई ने अपना मुँह खोला और तेज़ाब वाली उल्टी आयशा के ऊपर गिराने की कोशिश की। मगर आयशा ने अपनी आँखों से उसे देखा और उसे हवा में ही रोक दिया। जैसे ही उल्टी रुक गई, वह भी आयशा के चारों तरफ़ घूमने लगी। आयशा ने आस-पास के सामान को भी उड़ाया। दुकान में जो भी कचरा मौजूद था, वह सारा का सारा आयशा के चारों तरफ़ आकर घूमने लगा। आयशा ने आगे बढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रही थी, फ़र्श की टाइलें उखड़ रही थीं और उसके चारों ओर घूम रही थीं। आयशा ने उस अंधेरी परछाई से कहा, “तुम्हारे शैतान भी आ जाएँ, तब भी वे आश्रमवासियों को रोक नहीं पाएँगे। आश्रमवासियों का हर एक सदस्य तुम लोगों की जान लेने के लिए पैदा हुआ है और इस दुनिया को बचाने के लिए। आश्रमवासियों का हर एक सदस्य इस दुनिया को बचाने के लिए हर एक हद तक जा सकता है, और तुम जैसी अंधेरी परछाइयाँ उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकतीं।” यह कहकर आयशा ने अपनी आँखों का एक हल्का सा इशारा किया, जिससे उसके आस-पास जितनी भी चीज़ें घूम रही थीं, वे सब उस अंधेरी परछाई से टकराने लगीं। हर एक टक्कर इतनी जोरदार थी कि अंधेरी परछाई के शरीर के टुकड़े अलग हो रहे थे। देखते ही देखते उस अंधेरी परछाई से काफी ज़्यादा संख्या में चीज़ें टकराईं और उसके शरीर के टुकड़े चारों तरफ़ उड़ने लगे। वहीं आरदु एक अंधेरी परछाई से अपनी तलवार के ज़रिए मुक़ाबला कर रहा था। बाकी की अंधेरी परछाइयाँ उसके चारों तरफ़ थीं और वे भी बीच-बीच में उस पर हमला कर रही थीं, जिसका सामना आरदु कर रहा था। आयशा ने उन परछाइयों की तरफ़ रुख़ किया और जब वह उनकी तरफ़ चलने लगी तो उसके आस-पास घूमने वाली चीज़ों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया। एक अंधेरी परछाई ने उस पर हमला करने की कोशिश की तो आयशा के आस-पास घूमने वाली सारी चीज़ें उसके चारों तरफ़ ऐसे चिपक गईं जैसे वह लोहा हो और आस-पास की चीज़ें चुम्बक। अगले पल वह धड़ाम से नीचे गिर गई और चीज़ों का दबाव इतना ज़्यादा बढ़ गया कि वह भी किसी बड़े धमाके की तरह फट गई। आयशा पर एक अंधेरी परछाई ने उल्टी का हमला किया। बचने के लिए आयशा ने अपनी गर्दन को दाएँ तरफ़ कर लिया। फिर उसने उस अंधेरी परछाई के ठीक पीछे की तरफ़ देखा जहाँ बिजली के कुछ तार थे। बिजली के तार जिंदा हुए और अजीब तरीके से हवा में लहराते हुए उस अंधेरी परछाई के चारों ओर लिपट गए। बिजली के तारों का आगे वाला सिरा उसके चेहरे के पास आया और किसी साँप के फ़न की तरह लहराने लगा। अंधेरी परछाई के चेहरे पर दर्द दिखाई दे रहा था। अगले ही पल बिजली के तार का वह सिरा उसकी नाक में घुस गया और वह परछाई ज़ोर की बिजली से झटका खाने लगी। बिजली के झटकों की वजह से उसका शरीर जलने लगा और वह तड़पते हुए नीचे गिर गई। थोड़ी ही देर में उसकी मौत हो गई। आरदु भी जिस अंधेरी परछाई से लड़ रहा था, उसने उसे चकमा दिया और अपनी तलवार उसकी गर्दन के आर-पार कर दी। जिससे उसकी गर्दन से खून फुहारे की तरह बाहर निकलने लगा, फिर आयशा और आरदु ने मिलकर बची हुई परछाइयों का काम तमाम किया और दोनों बाहर आ गए। आयशा ने आरदु से कहा, “आखिर यह शोर्य कहाँ चला गया? वह मुझे कहीं दिखाई क्यों नहीं दे रहा है? क्या वह इसी तरफ़ था?” दोनों अब शौर्य को ढूँढ़ रहे थे जो उन्हें दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ देर में वे गली के अंत में आए और दाएँ तरफ़ मुड़े। जैसे ही मुड़े, वे अपनी जगह पर हैरान रह गए। शौर्य उनकी ठीक सामने खड़ा था और शौर्य के ठीक सामने एक और शख़्स था जो हवा में उड़ रहा था। उसकी आँखें बंद थीं। ऐसा लग रहा था जैसे शौर्य और उस शख़्स के बीच में कोई बातचीत हुई हो। जैसे ही आयशा और आरदु इस गली में पहुँचे, उस आदमी ने अपनी आँखें खोलीं और कहा, “मैं तुम लोगों का इंतज़ार कर रहा था, अच्छा हुआ तुम लोग आ गए। अब मैं तुम तीनों को एक साथ मारूँगा।” आयशा चलते हुए आगे आई और उसने पूछा, “कौन हो तुम?” वह मुस्कराया और बोला, “बहुत जल्दी भूल गए? तुमने जिस लड़के को मारा, मैं उसका बाप हूँ। मगर मुझे नहीं लगता मेरी यह पहचान तुम लोगों को डर का एहसास दिलाएगी, इसलिए मैं अपनी असली पहचान बताता हूँ। मैं वह हूँ जिससे मौत भी डरती है, मैं वह हूँ जिसे उसकी ज़िन्दगी में कभी भी मौत नहीं मिलेगी, मैं वह हूँ जो कभी भी मारा नहीं जा सकता। मैं हूँ श्रापित योद्धा।” जैसे ही उसने यह कहा, आयशा के दिमाग़ में सारी यादें तैरने लगीं। उसे पहाड़ी पर हुई लड़ाई की यादें याद आ गईं जिसमें उसने जिसे ख़त्म किया था, उसने यह बात कही थी। वह आ रहा है और वह श्रापित योद्धा का ही नाम ले रहा था, जिसे मौत का श्राप मिला हुआ है। आयशा को नहीं पता था कि जिस लड़के को उसने ख़त्म किया था, वह उसी का बेटा था। और न ही उसे यह पता था कि श्रापित योद्धा आखिर कितना ताकतवर है या फिर उसकी असली ताकत क्या है। हाँ, यह ज़रूर था कि वह मर नहीं सकता, लेकिन सिर्फ़ यही उसकी ताकत नहीं थी।
ऐसा लग रहा आया मानो यह पूरा समंदर ही जम गया हो। और इस जमे हुए समंदर के बीच में मौजूद इस जहाज का, समंदर के जमने की वजह से, जमुना तट पर चाँद की चाँदनी रोशनी में देवासी की नज़र जहाँ तक जा रही थी, वहाँ तक उसे बर्फ में जमा हुआ समंदर ही दिखाई दे रहा आया। माहौल और वातावरण भी काफी ठंडा हो गया आया। काफी ठंडी हवा चल रही थी और एक हल्की धुंध दिखाई दे रही थी। यह हल्की धुंध और चलने वाली हवा इतनी ठंडी थी कि देवासी के शरीर से टकराने मात्र से उसकी आंतरिक आग बुझ रही थी। हालाँकि, थोड़ी देर बाद वह दोबारा जाग रही थी, लेकिन उस ठंड का असर देवासी पर अवश्य हो रहा आया।