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Slowly, i became yours

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Gayatri Sharma

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शिवांगी की ज़िंदगी हमेशा से साधारण रही थी, लेकिन एक दिन सब कुछ बदल गया। उसकी शादी जबरदस्ती देश के सबसे खतरनाक माफिया किंग, आदित्य राठौड़ से करवा दी गई। आदित्य बेरहम, क्रूर और किसी पर भरोसा न करने वाला इंसान था। उसके लिए ये शादी सिर्फ एक मजबूरी थी, ले...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. Slowly, i became yours - the forced marriage

    Words: 1446

    Estimated Reading Time: 9 min

    अंधेरी रात थी। तेज़ बारिश हो रही थी, और उसके साथ ही बिजली की गड़गड़ाहट पूरे माहौल को और डरावना बना रही थी। एक काली SUV वीरान कोठी के बाहर आकर रुकी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। हवाएं पेड़ों की शाखाओं को जोर से हिला रही थीं, लेकिन उस हवेली के अंदर एक और तूफान खड़ा होने वाला था।

    बीच हॉल में एक लड़की कुर्सी से बंधी हुई बैठी थी। उसकी कलाईयों पर रस्सियों के निशान पड़ चुके थे, लेकिन चेहरे पर डर का नामोनिशान नहीं था। उसकी आँखों में साफ गुस्सा दिख रहा था, जैसे उसे परवाह ही नहीं कि उसे किसने किडनैप किया और क्यों।

    दरवाजा ज़ोर से खुला, और उसके साथ ही भारी कदमों की आवाज़ गूंज उठी। एक लंबा-चौड़ा आदमी अंदर दाखिल हुआ, उसके काले कपड़े और सख्त चेहरा किसी को भी थरथरा देने के लिए काफी थे।

    "काफी हिम्मत है तुम्हारी," आदमी ने ठंडे लहजे में कहा।

    लड़की ने धीरे से आँखें ऊपर उठाईं और हल्की मुस्कान दी। "हिम्मत? मुझे किडनैप कर लिया, फिर भी मैं ज़िंदा हूँ। हिम्मत तो तुम्हारी भी कम नहीं।"

    आदित्य सिंह राठौड़, जिसे पूरे क्राइम वर्ल्ड में माफिया किंग कहा जाता था, पहली बार किसी लड़की को इस तरह मजाक उड़ाते देख रहा था। उसके माथे की नसें तन गईं। किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसके सामने इस तरह बात करे।

    "तुम्हें पता भी है कि तुम किससे बात कर रही हो?"

    "हाँ, हाँ, माफिया किंग आदित्य सिंह राठौड़। सब तुम्हारे नाम से डरते हैं, लेकिन देखो, मैं नहीं डर रही," उसने लापरवाही से कंधे उचका दिए।

    वीर, कियान और रुद्र, जो दरवाजे पर खड़े तमाशा देख रहे थे, हंसी रोकने के लिए दूसरी तरफ देखने लगे।

    "अब बहुत हो गया।" आदित्य एक झटके में उसके करीब आ गया। उसकी गहरी काली आँखें शिवांगी की आँखों में टकराईं। "तुम्हें मुझसे शादी करनी होगी।"

    कमरा पूरी तरह खामोश हो गया। शिवांगी का चेहरा पहले फ्रीज़ हुआ, फिर वह ज़ोर से हंस पड़ी।

    "शादी? मुझसे? तुम पागल तो नहीं हो गए?"

    आदित्य ने बिना हिले-डुले अपनी बंदूक उसकी ठोड़ी के नीचे टिकाई। "हाँ, शादी। या तो अपनी मर्जी से, या फिर मेरी मर्जी से।"

    अब पहली बार उसके चेहरे पर हल्की बेचैनी आई। उसने अपनी साँस अंदर खींची। "तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?"

    आदित्य झुका और धीरे से फुसफुसाया, "क्योंकि तुम्हारे परिवार ने मेरा सब कुछ छीन लिया… अब मैं तुम्हें छीन रहा हूँ।"

    कई घंटे बाद, एक सीक्रेट अंडरग्राउंड चैंबर में आदित्य और शिवांगी की शादी करवाई जा रही थी। कोई गेस्ट नहीं था, कोई खुशी नहीं थी, बस एक मजबूरी भरा रिश्ता था। शिवांगी ने घूंघट हटाया और धीमे से कहा, "वैसे मेरा मंडप का सपना था कि मैं फूलों से सजे हॉल में शादी करूं, लेकिन यहाँ तो चार गुंडे और दो बंदूकें हैं। वाह!"

    आदित्य ने उसे घूरा, लेकिन कहीं न कहीं उसे ये मज़ाक पसंद भी आ रहा था। यह लड़की डरने के बजाय उसे ही परेशान कर रही थी।

    "वचन लो!" पंडित ने कहा।

    "मैं अपनी पत्नी की रक्षा करूंगा।"

    शिवांगी ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "और मैं रोज़ तुम्हारी नाक में दम करूंगी।"

    कियान, वीर और रुद्र की हंसी छूट गई।

    शादी के बाद आदित्य उसे अपने कमरे में लेकर गया। शिवांगी ने दरवाजे पर खड़े होकर चारों तरफ देखा। "वाह, यह कमरा तो एकदम डरावना है। कहीं कोने में चुड़ैल तो नहीं खड़ी?"

    आदित्य ने बिना बोले अपनी जैकेट उतारी और उसकी तरफ देखा।

    "सो जाओ।"

    "क्या? सुहागरात पर यही कहना था?" उसने नकली हैरानी जताई।

    आदित्य ने उसे चेतावनी भरी नजरों से देखा। "तुम्हें लगता है मैं इन सब चीजों में इंट्रेस्टेड हूँ?"

    शिवांगी ने मजाकिया अंदाज में सिर हिलाया। "हूँ… नहीं, लेकिन तुम्हारा गुस्से वाला चेहरा देखकर मुझे लग रहा है कि मैं तुम्हारी इंटरेस्ट लिस्ट में जल्दी आ जाऊंगी।"

    आदित्य ने उसे घूरा, फिर अलमारी से एक कम्बल निकाला और उसे बेड पर फेंक दिया। "सो जाओ, जब तक मैं कह रहा हूँ।"

    शिवांगी ने मुस्कुरा कर बेड की तरफ देखा और फिर आदित्य को। "तुम बेड पर सो रहे हो या मैं?"

    "तुम सो रही हो।"

    "और तुम?"

    "तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं।"

    शिवांगी ने एक लंबी सांस ली और चुपचाप कम्बल लेकर लेट गई, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी। यह शादी जबरदस्ती हुई थी, लेकिन वह जानती थी कि अब उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा खेल शुरू हुआ था।

    शिवांगी रातभर सो नहीं पाई थी। वो करवटें बदलती रही, लेकिन मन में चल रहे सवालों ने उसे चैन नहीं लेने दिया। आखिर आदित्य ने उससे शादी क्यों की? क्या सिर्फ बदला लेने के लिए या फिर इसके पीछे कोई और वजह थी?

    आदित्य खिड़की के पास खड़ा था, बाहर हल्की बारिश हो रही थी। ठंडी हवा कमरे में आ रही थी, लेकिन माहौल में एक अजीब-सा तनाव था। वो चुपचाप खड़ा रहा, शायद सोच रहा था या शायद बस यूं ही।

    "तो अब आगे क्या?" शिवांगी ने अचानक पूछ लिया।

    आदित्य ने बिना मुड़े कहा, "सो जाओ।"

    "और अगर न सोऊं तो?" उसने मजाकिया लहजे में कहा।

    आदित्य ने धीरे से सिर घुमाया और उसे देखा। "तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"

    "कैसे?" वो जानबूझकर मुस्कुराई।

    "नींद की गोलियां देकर।"

    शिवांगी ने हंसते हुए सिर हिलाया। "तुम सच में बहुत रोमांटिक पति हो। पहली रात पर ही बीवी को सुलाने के लिए गोलियों का सहारा लेना चाहते हो?"

    आदित्य ने कोई जवाब नहीं दिया, बस उसे घूरता रहा।

    "ठीक है, ठीक है, मैं सोने की कोशिश कर रही हूँ," उसने कहा, फिर थोड़ी देर बाद फिर से बोली, "लेकिन एक बात बताओ... तुमने मुझसे शादी क्यों की? बदला लेने के लिए?"

    आदित्य की आँखों में ठंडा सा भाव आया। उसने बिना हिचकिचाए कहा, "हाँ।"

    शिवांगी ने कुछ सेकंड तक उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका लिया। "झूठ बोल रहे हो।"

    "मुझे झूठ बोलने की जरूरत नहीं," आदित्य ने सीधा जवाब दिया।

    "फिर भी, मुझे लगता है कि सिर्फ बदला लेने के लिए शादी नहीं की। कोई और भी वजह है, जो तुम मुझसे छुपा रहे हो।"

    आदित्य पहली बार थोड़ा असहज हुआ, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। "जो सोचना है, सोच लो। अब सो जाओ।"

    शिवांगी ने सिर हिलाया और लेट गई। लेकिन उसकी आँखों में अब भी सवाल थे।

    ---

    सुबह जब उसकी आँख खुली, तो आदित्य कमरे में नहीं था। हल्की धूप पर्दों से छनकर आ रही थी। वो धीरे से उठी और बालकनी में गई। नीचे आदित्य अपने दोस्तों वीर, कियान और रुद्र के साथ खड़ा था। सब किसी गंभीर मुद्दे पर बात कर रहे थे। शिवांगी ने ध्यान से देखा, आदित्य का चेहरा हमेशा की तरह सख्त था, लेकिन उसकी आँखों में बेचैनी दिख रही थी।

    "सुबह-सुबह इतनी गंभीर चर्चा?" उसने खुद से बड़बड़ाया।

    तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और नौकर अंदर आया। "मैडम, सर ने आपको नाश्ते के लिए नीचे बुलाया है।"

    शिवांगी मुस्कुराई। "सर ने बुलाया है, या आदेश दिया है?"

    नौकर असमंजस में पड़ गया, लेकिन कुछ कहने से पहले ही वो बालकनी से हट गई। "ठीक है, मैं आ रही हूँ।"

    ---

    डाइनिंग टेबल पर आदित्य पहले से बैठा था। उसके साथ वीर, कियान और रुद्र भी थे। जैसे ही शिवांगी वहाँ पहुँची, सबकी नजरें उस पर टिक गईं। लेकिन वो बिना झिझक के कुर्सी खींचकर बैठ गई।

    "तो, कैसा चल रहा है मेरा नया जीवन?" उसने हल्के मजाकिया अंदाज में पूछा।

    आदित्य ने बिना उसकी तरफ देखे कहा, "शांति से नाश्ता करो।"

    "ओह, मतलब आज बात करने की मनाही है?" उसने लंबी सांस ली। "ठीक है, लेकिन अगर मैं ज्यादा देर चुप रही, तो शायद तुम्हें मेरी याद आएगी।"

    वीर और कियान ने एक-दूसरे को देखा, लेकिन चुप ही रहे।

    "शिवांगी," आदित्य ने उसकी तरफ देखा, उसकी आवाज़ में हल्की चेतावनी थी।

    "ठीक है, ठीक है, चुप हूँ।" उसने हथियार डालने के अंदाज में हाथ उठाए और चुपचाप नाश्ता करने लगी।

    थोड़ी देर तक सिर्फ बर्तनों की आवाज़ आती रही। फिर अचानक आदित्य ने कहा, "आज से तुम्हारी कुछ सीमाएं होंगी।"

    शिवांगी ने चम्मच रोककर उसकी तरफ देखा। "सीमाएं?"

    "हाँ। तुम इस विला से बाहर नहीं जाओगी, किसी बाहरी शख्स से बात नहीं करोगी, और मेरी इजाजत के बिना कोई फैसला नहीं लोगी।"

    शिवांगी को जैसे झटका लगा। "मतलब? मैं तुम्हारी कैदी हूँ?"

    "तुम मेरी पत्नी हो।"

    "पत्नी या बंधक?" उसकी आवाज़ में हल्का तंज था।

    आदित्य ने कुछ नहीं कहा, बस अपनी कॉफी पीता रहा।

    शिवांगी को गुस्सा आ रहा था, लेकिन वो जानती थी कि इस आदमी से सीधे भिड़ने का कोई फायदा नहीं। उसने धीरे से कुर्सी पीछे खींची और उठ गई। "ठीक है, अगर तुम्हारी दुनिया में यही नियम हैं, तो देखते हैं मैं कितने दिन इन्हें मानती हूँ।"

    आदित्य ने उसे जाते हुए देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वीर, कियान और रुद्र भी चुप थे, लेकिन सबको पता था कि ये टकराव अब जल्दी खत्म नहीं होने वाला।?

  • 2. Slowly, i became yours - Chapter 2

    Words: 0

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  • 3. Slowly, i became yours - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min