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ध्रुव द घोस्ट एजेंट

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Aman Aj

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ध्रुव द घोस्ट एजेंट, कहानी एक घोस्ट एजेंट की जो बचपन से ही भूतों को देखा आ रहा है और अपने पिता की मौत की वजह से जबरदस्ती उसे क्यों एजेंट बनना पड़ता है इस कहानी में क्या होगा यह जानने के लिए इसे पूरा पढ़ें

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ध्रुव2

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Ayni 123

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Total Chapters (153)

Page 1 of 8

  • 1. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 1

    Words: 1447

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात के 2:00 बज रहे थे। तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश हो रही थी। मौसम बेहद भयानक था। इस भयानक मौसम के बीच एक कार सड़क पर फिसलते हुए तेजी से मुड़ी। कार का ड्राइवर घबराया हुआ था और बार-बार पलटकर पीछे की तरफ देख रहा था। पीछे 1 साल का छोटा बच्चा था जो किलकारियां भरते हुए खेल रहा था। “बस थोड़ी देर और।” कार ड्राइवर ने कहा। उसने बेक मेरर में देखा और अपनी रफ्तार को और बढ़ा दिया। तकरीबन 15 मिनट के बाद कार शहरी गली में एक मकान के सामने आकर रुकी। कार ड्राइवर जल्दी से बाहर निकला और पीछे की सीट का दरवाजा खोला। उसने बच्चे के चेहरे की तरफ देखा और एक पल के लिए उसमें खो गया। “तुम, मैं तुम्हें ऐसा बिल्कुल नहीं छोड़ने वाला था।” उसने कहा। कार ड्राइवर ने बच्चे की तरफ हाथ बढ़ाएं और उसे उठा लिया। बारिश में भीगता हुआ वह मकान के सामने आया और उसे दरवाजे पर लेटा दिया। बच्चे को बारिश का पानी नुकसान ना पहुंचाए इसलिए उसने अपना ग्रे कलर का ओवरकोट उतारा और उसे बच्चे के ऊपर ओढ़ा दिया। “ध्रुव ...” कार ड्राइवर घुटनों के बल बैठ कर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए बोला “याद रखना.... तुम मेरे बेटे हो... एक घोस्ट एजेंट के बेटे.. और तुम... तुम भी एक घोस्ट एजेंट हो... ध्रुव  द घोस्ट एजेंट... मुझे अफसोस है जो मैं तुम्हें यह जिंदगी देने जा रहा हूं, तुम्हारे पैदा होने से पहले मैंने और मेरी मां ने तुम्हारे लिए कई सपने देखे थे, मगर अब उनमें से कोई भी पूरा नहीं हो पाएगा, हम तुम्हारे भविष्य का कोई फैसला नहीं ले पाएंगे।” इसके बाद उसने अपना चेहरा ऊपर की तरफ किया और कहा “तुम्हारे भविष्य का फैसला किस्मत ने पहले से ही निर्धारित कर रखा है।” उसने कहकर बच्चे के माथे पर हाथ फेरा। फिर खड़ा हुआ और दरवाजे की डोर बेल बजा कर जल्दी से अपनी कार की तरफ भाग गया। उसने कार स्टार्ट की और दरवाजे के खुलने से पहले वहां से चला गया। दरवाजा खुला और वहां एक मोटी औरत ने दस्तक दी। “कौन है जिसने इतनी आधी रात को... अरे... यहां तो एक बच्चा है.... अजी सुनते हो... जल्दी बाहर आइए...” “क्या हुआ... क्यों इतनी आधी रात को चिल्ला रही हो...” अंदर से एक मोटा आदमी बाहर आया। “यह देखिए... यहां एक बच्चा है...” “क्या बच्चा...!! इसे यहां कौन छोड़ गया..?” “पता नहीं...” “ऐसे किसी बच्चे को कौन छोड़ सकता है....!! इसके मां-बाप को अक्ल नहीं थी क्या...” औरत आगे बढ़ी और बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। “इसके गले में... यह एक लॉकेट है... इस पर नाम लिखा हुआ है...” “क्या नाम... लाओ मुझे देखने दो... आ...” “ध्रुव ...” औरत ने नाम को पढ़ा। “चलो अंदर चलो... बहुत बारिश हो रही है कहीं यह बीमार ना हो जाए...” “हां चलिए...” दोनों दरवाजा बंद कर के अंदर चले गए। वह अंदर आपस में बातें करते रहे जिसकी आवाज धीरे धीरे धीमी होती गई। औरत कह रही थी “हम इस बच्चे को पाल ले... वैसे भी हमारा कोई बच्चा नहीं... हम इसका नाम ध्रुव  ही रख लेंगे.. कितना प्यारा नाम है...” “बस करो... कल को कोई इसे लेने आ गया तो हम क्या करेंगे...” “तो.. तो क्या... यह जब तक यहां रहेगा तब तक हमारा होकर रहेगा... और जब जाना होगा तो यह चला जाएगा...” _____ बच्चे को छोड़ने वाला कार ड्राइवर अभी भी घबराया हुआ था और कार को काफी हाई स्पीड में चला रहा था। उसकी आंखों में आंसू थे जो अपने बच्चे को अकेले छोड़ देने के कारण थे। कार को चलाते-चलाते उसने बगल की सीट पर पड़े एक अजीब से यंत्र को उठाया और उसे देखा। “तुम मेरे लिए एक अभिशाप हो...” उसने यंत्र को देखते हुए कहा। “ना तुम होते... ना मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चे को खोता... ” यह कहकर उसने कार के शीशे को नीचे किया और कुछ बुदबुदाकर उस यंत्र को बाहर फेंक कर मारा। एक छोटे त्रिशूल के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र वाला यह यंत्र सड़क के किनारे गिरा और वहां बहने वाले पानी के साथ बहने लगा। बहते बहते अचानक यंत्र धुएं में बदलता हुआ गायब हो गया। कार ड्राइवर ने आसुंओं को साफ किया और तेजी से कार चलाता रहा। अगले 30 मिनट में उसने कार को अपने घर के सामने लाकर रोक दिया। वह कार से उतरा और पीछे डिक्की को खोल कर पेट्रोल की दो कैन को बाहर निकाल लिया। वह घर में गया और उन्हें खोल कर हर जगह पेट्रोल छिड़कने लगा। इस दौरान वह रो रहा था। उसके घर में कई सारे अजीब से यंत्र, ढेर सारी किताबें जो काफी पुरानी थी, तस्वीरें जिनमें ऐसे लग रहा था उसने यह किसी के साथ खड़े होकर खिंचाई है मगर किसके साथ वह उस तस्वीर में दिखाई नहीं दे रहा था, थे। सब पर पेट्रोल छिड़कने के बाद वो घर के बाहर आ गया। “मैं हर चीज का नामोनिशान मिटा दूंगा...वो कभी तुम तक नहीं पहुंच पाएंगे...” उसमें जैब से लाइटर निकाला और उसे जला लिया। “ऐसा कुछ भी नहीं छोडूंगा जो मेरे बच्चे के लिए खतरा बने... वो... उसे कुछ नहीं होगा... मैंने अपनी पत्नी को खो दिया मगर मेरे बच्चे को कुछ नहीं होने दूंगा...” उसने लाइटर को फेंक कर घर की तरफ मारा। लाइटर घर के दरवाजे तक पहुंचा था तभी अचानक काला धुआं प्रकट हुआ और एक हाथ ने धुंए के बीच से निकलकर लाइटर को पकड़ लिया। देखते ही देखते उस धुए ने एक इंसान की शक्ल ले ली जिसका आधा शरीर गला हुआ था। “तुम्हें कुछ ज्यादा ही जल्दी नहीं दिवाकर शर्मा....” उसे देख कर दिवाकर शर्मा की आंखें बड़ी हो गईं। वह अपने कपड़ों में हाथ मारने लगा, उसे किसी चीज की तलाश थी। “क्या तुम इसे ढूंढ रहे हो...” सामने के आधे गले इंसान ने उसे उसे एक यंत्र दिखाया। यह एक आधे हाथ के जितने डंडे पर वी आकर के अक्षर को बांधे हुए था। “इसे.... जिसके साथ तुम कुछ मंत्र पढ़ते हो... और हमें लाचार बेसहारा कर देते हो.... हमारी किस्मत का फैसला करते हो... तुम भुतनाशको ने... तुम भूतनाशको ने इसके साथ हमारा जीना हराम कर रखा है...” उसने उस यंत्र को गुस्से से देखा। “तुम्हें तुम्हारे कर्मों की सजा मिलती है... तुम्हारे बुरे इरादों की सजा मिलती है... उन बुरे इरादों की जिसमें तुम लोग कभी कामयाब नहीं हो पाओगे....” यह सुनकर सामने का आदमी हंसा और बड़े ही स्टाइल में कहां “अब इसकी टेंशन किसको है....” वह थोड़ा सा और हंसा और फिर हंसना बंद करके बोला “चलो, ज्यादा बहस बाजी नहीं और अच्छे बच्चों की तरह मुझे बताओ..... वो नर्क आयाम यंत्र कहां है.....? ” “तुम्हें लगता है तुम ऐसे पूछोगे और मैं तुम्हें उस यंत्र का पता बता दूंगा, उस यंत्र का जिससे तुम लोग क्यामत लेकर आने वाले हो, तुम उसे आजाद करके यहां लाने वाले हो,“ “क्यामत तो आकर रहेगी...” “मगर मेरे होते हुए नहीं, मैं मर जाऊंगा मगर तुम्हें कभी उस यंत्र का पता नहीं दूंगा...” “जब तक तुम यंत्र का पता नहीं बता देते हैं तब तक तुम्हारी सांसे चलती रहेगी... ” “तुम मुझे नहीं रोक सकते... बिल्कुल नहीं...” दिवाकर शर्मा ने कहा और अपनी आंखों में आत्मविश्वास दिखाता हुआ उसकी ओर दौड़ने लगा। वह उसके पास पहुंचा, नीचे झुका और उसे पकड़कर घर के अंदर कूद गया। उस आदमी के पास जो लाइटर मौजूद था वो अभी भी जल रहा था। घर के अंदर कुदते ही लाइटर फर्श पर गिरा, पेट्रोल ने आग पकड़ी और अगले ही पल पूरा घर आग से धधक गया। वह आदमी और दिवाकर शर्मा दोनों ही उस आग में जलने लगे। घर आग से जल रहा था तभी आदमी खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उसका शरीर अभी भी आग से जल रहा था मगर उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसने लंबा लबादा पहन रखा था। उसने अपने लबादे को उठाया और अपने ऊपर औढ लिया। ऐसा करते ही वह पारदर्शी हो गया। उसने लबादा नीचे किया और अपने इस पारदर्शी रूप में घुटनों के बल बैठ कर दिवाकर शर्मा को गिरेबान से पकड़ कर ऊपर की तरफ खींचा। दिवाकर शर्मा के शरीर से उसकी आत्मा बाहर आ गई। “ यंत्र का पता तो तुम्हें बताना होगा...” वह बोला। “मैं... मैं...” दिवाकर शर्मा बोला। “मैं उसका पता कभी नहीं बताने वाला।” “तो... तब तो.. तुम्हारे लिए खुशखबरी है... मुबारक हो... अब तुम्हारी आत्मा को तब तक तड़पाया जाएगा जब तक सदियों की सदिया खत्म नहीं हो जाती, अरसों का अरसा बीत नहीं जाता।” वह खड़ा हुआ और हंसते हुए दिवाकर शर्मा की आत्मा को घर से बाहर ले आया। वहां आदमी ने कहा “यह अंत नहीं शुरुआत है.. शुरुआत क्यामत की.... और क़यामत को...  क़यामत को आने से कोई नहीं रोक सकता.... कोई नहीं” वह आदमी धुएं में बदला और धुएं के साथ दिवाकर शर्मा की आत्मा को लेकर गायब हो गया।

  • 2. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 2

    Words: 1799

    Estimated Reading Time: 11 min

    “ध्रुव ....” “ध्रुव ......” “ध्रुव ...” मोटी औरत ध्रुव  को जोर-जोर से आवाज लगा रही थी। सुबह का माहौल था। नाश्ता तैयार हो चुका था। नाश्ता शुरू करने से पहले ध्रुव  का इंतजार था जो अभी भी अपने कमरे में था। “आ रहा हूँ नेनस, बस थोड़ा सा और रुको।” ध्रुव  अपने कमरे से चिल्लाते हुए बोला। वह पूरे 18 साल का हो चुका था। एक दुबला पतला सा लड़का। जो तकरीबन 5.6 इंच की हाइट का था। दिखने में मासुम। वह अपने बालों को ठीक करने की कोशिश कर रहा था। आज उसका कॉलेज में पहला दिन था। उसने कुछ किताबों को बैग में डाला, खुद को आईने में देखा। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मायुसी थी। जैसे वह किसी वजह से परेशान हो। उसने धीरे से खुद को कहा ,"क्या मुझे नेनस को इस बारे में बता देना चाहिए? कुछ दिनों से मुझे अजीब सपने आ रहे हैं। डरावने सपने, मुझे यह नॉर्मल नहीं लगता।"   फिर वो सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आ गया और अपने नाना नानी को बोला“गुड मॉर्निंग नेनस, गुड मॉर्निंग नानस” “यह नेनस नानस क्या करते रहते हो तुम...” मोटी औरत बोली “कायदे से हमें नाना नानी कहां करो।” ध्रुव ने कुर्सी संभाली और उस पर बैठ गया।“नाना नानी बहुत ओल्ड फैशन लगता है, जमाना बदल चुका है, आप लोग भी जमाने के साथ बदलना सीखिए, आजकल किसी को भी नहीं पसंद यह सब।” उसकी नानी ने उसकी तरफ हाथ किया “बस करो, किसी की पसंद-नापसंद से हमें क्या लेना, तुम वही बोला करो जो हमें अच्छा लगता है।” ध्रुव मुस्कुराने लगा “जी बिल्कुल नहीं, मैं तो वही बोलूंगा जो मुझे अच्छा लगता है।” “तुम बस हमेशा अपनी जिद करते रहना..” “और क्या नहीं नेनस, मैं बस हमेशा अपनी जिद करता रहूंगा।” उसके नाना उसकी नानी से बोले, “तुम चुप भी करो ना, क्या हमेशा बच्चे को डांटती रहती हो, आजकल के बच्चों को नहीं इसकी आदत है तो क्यों जिद कर रही हो।” “आप बस हमेशा इसकी साइड लेना...हुंह...” दोनों यह सुनकर हंस पड़े। ध्रुव  ने जल्दी-जल्दी खाना खत्म किया, और फिर खड़े होते हुए बोला, “अच्छा मैं चलता हूँ, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है और मैं नहीं चाहता मैं अपने पहले दिन ही कॉलेज में लेट पहुंचू।” यह कहकर वह जाने लगा। “अरे खाना तो पूरा खा लेते...” पीछे से उसकी नानी ने कहा। “मैंने खा लिया जितना खाना था।” ध्रुव  बोला और बाहर आ गया। बाहर उसने अपने साइकल पकड़ी, और फिर उसे चलाते हुए कॉलेज की ओर निकल गया। उसके जाने के बाद उसकी नानी बोली, “पता ही नहीं चला यह कब बड़ा हो गया, ऐसे लग रहा है जैसे कुछ दिन पहले यह छोटा सा था, और अब अचानक सीधे इतना बड़ा हो गया।” “टाइम का पता नहीं चलता मेरी जान” “हां बिल्कुल, 18 साल का यह वक्त 18 दिनों के जैसा लगा, वैसे मुझे आपको शुक्रिया कहना चाहिए” “वो क्यों?” “मैं इसकी मां बनना चाहती थी, मगर आपने मुझे समझाया, हमारी उम्र ज्यादा हो चुकी है तो हम इसके मां-बाप के रूप में अच्छे नहीं लगेंगे, हमें इसके नाना-नानी के रूप में रहना चाहिए, हम इसके नाना-नानी है तो इसने भी हमें लेकर कभी कुछ नहीं सोचा।” “इसमें शुक्रिया वाली कौन सी बात है, मैंने बस वही किया जो मुझे सही लगा।” “हमममम, मगर...” औरत यह कहते हुए उदास हो गई। “मगर क्या?” “मैं हमेशा यह सोच कर उदास हो जाती हूँ, कभी इसने अपने मां-बाप के बारे में पूछा तो मैं इसे क्या जवाब दूंगी? मुझे नहीं पता जब यह दिन आएगा तब मैं इसका सामना कर भी पाऊंगी या नहीं।” “अब तक इसने अपने मां-बाप के बारे में नहीं पूछा तो उम्मीद रखो, यह आगे भी नहीं पूछेगा, हम इसे प्यार दिखाने में किसी तरह की कमी नहीं रखेंगे,” वह खड़े हुए और औरत के पास आकर उसके दोनों कंधों पर हाथ रखकर उसे दिलासा दिया। “जो भी होगा वह अच्छा होगा।” _____ यह पूरा इलाका पहाड़ियों से घिरा हुआ था। पहाड़ियों के बीच साइकिलिंग करता ध्रुव  अपने कॉलेज की ओर जा रहा था। सीटी बजाता हुआ और मदमस्त अपनी चाल में। एक तरफ की पहाड़ी जंगल से भरी हुई थी, और एक तरफ की पहाड़ी ढलान वाली और आगे जाकर एक खाई पर खत्म होने वाली थी। यह इलाका खूबसूरत था, और साथ में थोड़ा सा खतरनाक भी। यहां रहने वाले लोगों को इसकी आदत थी। कुछ देर तक ध्रुव का ध्यान साइकलिंग पर रहा मगर फिर वह दोबारा से अपने सपनों के बारे में सोचने लगा। उसने खुद से कहा ,"क्या ऐसे सपने आना आम है? वह जगह कौन सी है जो मुझे बार-बार सपने में दिखाई देती हैं? वो एक बड़ा दरवाजा... उसके आगे खड़े वह दो डिमेन... उनके हाथों में मौजूद वह हथियार... जैसे वह उसे दरवाजे की हिफाजत कर रहे हो..." तकरीबन 20 मिनट के बाद ध्रुव अपने कॉलेज पहुंच गया। “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं लेट पहुंचा हूँ...” अपनी साइकिल को खड़े करते हुए वह बोला। उसने एक नजर घड़ी की तरफ देखा। “ओह नहीं, मुझे सही ही लग रहा है, मैं पूरे 10 मिनट लेट हूँ।” ध्रुव  ने तेजी से अपना बैग निकाला और फौरन क्लास की ओर दौड़ा। क्लास ऑलरेडी शुरू हो चुकी थी। अभी के लिए नए आए स्टूडेंट का इंट्रोडक्शन लिया जा रहा था। इसमें जूही नाम की एक स्टूडेंट अपना इंट्रोडक्शन दे रही थी। “मेरा नाम जूही है... मैं 19 साल की हूँ और शहर में ढलान के नीचे बनी बस्ती में रहती हूँ। मैंने वहीं के एक लोकल स्कूल में टॉप किया है।” “ग्रेट जूही..” टीचर ने कहा, और उसे उसे बैठने के लिए कहा। “नेक्स्ट।” अगली स्टूडेंट खड़ी हुई। वो अपना इंट्रोडक्शन देने के लिए बोलने वाली थी, तभी ध्रुव  क्लास के दरवाजे तक आ गया। “मे आई कम इन सर.. ” “बिल्कुल.... बोलिए आपको क्या चाहिए.. अगर आप डस्टबिन लेने आए हैं तो वह उस तरफ पड़ा है...” टीचर ने अपने चेहरे पर एटीट्यूड दिखाते हुए कहा। ध्रुव  घबरा गया। वह लेट था, और टीचर के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह गुस्सा है। “वो.. सर.. वो मैं एक स्टूडेंट हूँ।” “स्टूडेंट हो... पर स्टूडेंट कभी क्लास का टाइम होने के बाद नहीं आते... इस कॉलेज में क्लास का टाइम होने के बाद सिर्फ चपरासी आते हैं..” सारे स्टूडेंट यह सुनकर हंसने लगे। ध्रुव  ने अपना चेहरा नीचे कर लिया और चुपचाप खड़ा हो गया। “चलो आ जाओ, मगर आगे से टाइम का ध्यान रखना।” टीचर ने उसे आने के लिए कहा। ध्रुव  ने हां में सिर हिलाया और क्लास के अंदर आकर बैठ गया। टीचर ने खड़ी लड़की की तरफ इशारा किया और उसे इंट्रोडक्शन देने के लिए कहा। जो भी लड़की अपना इंट्रोडक्शन देने के लिए खड़ी थी क्लास में बैठे सारे लड़के उसे बड़ी ही दिलचस्प नजरों से देख रहे थे। लाइट ब्राउन बालों वाली यह लड़की पूरी क्लास में अलग ही दिख रही थी। उसकी हाइट अच्छी थी, और फिगर में वह जीरो साइज़ थी। आशु ने बैठने के बाद उसे देखा तो वह भी उसे देखा ही रह गया। इतनी खूबसूरत लड़की उसने आज से पहले कभी नहीं देखी थी। दुबली पतली सी लड़की जिसने फिट कपड़े पहन रखे थे। चेहरे पर एटीट्यूड था, जैसे उसे पता हो क्लास के सारे लड़के उसे ही देख रहे हैं। “मेरा नाम ऐनी है।” उस लड़की ने कहा। “मैं शहर में नई हूँ, मेरी मॉम-डैड मुंबई से है, मैं यहां अपने गार्डीयंस के साथ रहती हूँ, मेरे मॉम-डैड भी जल्दी यहां आ जाएंगे, मैंने मुंबई के सेंट हेरीन से अपनी स्टडी में टॉप किया है।” “वेरी नाइस, लगता है हमारा कॉलेज कुछ ज्यादा ही पॉपुलर हो रहा है जो लोग बाहर से आ रहे हैं। वैसे मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही, हम यहां पर एक छोटे से टाउन में रहते हैं, फिर तुम मुंबई छोड़कर यहां पर पढ़ने के लिए क्यों आई हो?” यह सच में अजीब था। मुंबई के मुकाबला टाउन की हैसियत जीरो के बराबर थी। फिर भी एक लड़की मुंबई को छोड़कर यहां पर पढ़ाई करने के लिए आई। ऐनी ने तुरंत जवाब दिया ,"कुछ पर्सनल कारण है सर, मैं उन्हें पब्लिक नहीं कर सकती हूं, बस आप यह समझ लीजिए ग्रेजुएशन पूरा होने तक मैं और मेरी फैमिली यहीं पर रहेंगे।" ध्रुव ने अपने मन में कहा ,"इस टीचर को आखिर क्या चाहिए? अगर कोई खूबसूरत लड़की हमारे कॉलेज में पढ़ने के लिए आई है तो पढ़ने दे ना!" टिचर ने लड़की को बैठने के लिए कह दिया। वह आगे के स्टूडेंट का इंट्रोडक्शन लेने लगे। कुछ स्टूडेंट के इंट्रोडक्शन के बाद ध्रुव  की बारी आई। ध्रुव अचानक से घबरा गया। वह खड़ा हुआ तो उसके दिल की धड़कन जोरो से धड़क रही थी। ध्रुव खड़ा हुआ, और बोला, “मेरा नाम ध्रुव  है...”‌ उसने इतना ही कहा था कि कुछ बच्चे हंसने लगे। वह बच्चे स्कूल के टाइम से उसे जानते थे। पढ़ाई के मामले में ध्रुव का डब्बा गोल था। हमेशा उसे पासिंग मार्क्स ही मिले थे। “हां, आगे बताओ बेटा।”‌ टीचर ने कहा। ध्रुव  आसपास के स्टूडेंट की तरफ देखने लगा। सब उसे देख कर हंस रहे थे। ध्रुव ने एक नजर ऐनी की तरफ देखा। क्लास के सारे स्टूडेंट का ध्यान ध्रुव की तरफ था मगर ऐनी ध्रुव की तरफ नहीं देख रही थी। ध्रुव नहीं चाहता था पहले दिन ही उसका इंप्रेशन खराब पड़े मगर उसके पास बताने के लिए कुछ अच्छा था भी नहीं। उसने टीचर की तरफ देखा और कहा, “मैं अपने नाना नानी के साथ रहता हूं, बस इतना ही।” “क्या सच में!!” टीचर ने अजीब सा रिस्पांस दिया। “अभी आगे और बताओ।” “बता चुका हूं, मेरा नाम ध्रुव  है। मैं पहाड़ी के ऊपर मौजूद बस्ती में रहता हूँ। मैंने वही एक छोटे स्कूल से...वहां स्टडी की है।” “क्या तुमने वहां टॉप नहीं किया...” ध्रुव  ने ना में सिर हिला दिया। “वो स्टूडेंट अपना हाथ ऊपर करें जिसने अपने स्कूल में टॉप नहीं किया..” टीचर बोला, और क्लास के बच्चों की तरफ देखने लगा। क्लास में किसी भी बच्चे ने अपना हाथ ऊपर नहीं किया। टीचर मुस्कुराए और बोले, “मुबारक हो, तुम इस क्लास के सबसे कम मार्क्स वाले लड़के हो, कैसा लग रहा है तुम्हें अपने आप में इकलौता हो कर?” सारे स्टूडेंट फिर से हंस पड़े। पीछे कोई स्टूडेंट उसका मजाक उड़ाते हुए बोला, “यह क्लास का सबसे बड़ा नमूना बनेगा” कोई दूसरा स्टूडेंट बोला, “नमुना नहीं, अब्बल दर्जे का नमूना बनेगा, हर एक क्लास में ऐसा एक लड़का होता है।” ऐनी ने एक नजर ध्रुव की तरफ देखा। ध्रुव ने फौरन अपना चेहरा घूम लिया और अपनी आंखें कसकर बंद कर ली। वह अपने मन में बोला ,"क्या यार, पहली बार ना पढ़ने का अफसोस हो रहा है।" कोई एक बोला, “इसने यहां एडमिशन ही क्यों लिया है, इसे पता नहीं यहां टॉपर एडमिशन लेते हैं” कोई और बोला, “इसे किसी और कॉलेज में जाना चाहिए था” क्लास के ज्यादातर स्टूडेंट्स उसकी इंसल्ट कर रहे थे। टीचर को भी इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। ध्रुव  अपना सर झुका कर खड़ा रहा।

  • 3. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 3

    Words: 1424

    Estimated Reading Time: 9 min

    पहली क्लास खत्म होने के बाद इंटरवल हुआ और स्टूडेंट बाहर जाने लगे। कुछ शरारती स्टूडेंट बाहर जाने की बजाय ध्रुव के पास आए और उसके इर्द-गिर्द घेरा बनाकर खड़े हो गए।  इसमें एक मोटा लड़का था, और बाकी उसके दोस्त थे। वह मोटा लड़का ऐनी के सामने अपना इंप्रेशन बनाना चाहता था। “क्यों बे, तुझे कोई दूसरा कॉलेज नहीं मिला? यहां पर होशियार और अमीर लड़के पढ़ते आते हैं।” मोटे लड़के ने कहा, “तुम तो मुझे गरीब भी लग रहे हो।” उसका दूसरा साथी बोला, “यह हमारे कॉलेज के लिए जोकर है।” मोटे लड़के ने अपना चेहरा ध्रुव के चेहरे के पास किया और बोला, “मैं तुम्हारे लिए यह कॉलेज नर्क बना दूंगा।।” ध्रुव को गुस्सा आ गया। उसने अपना चेहरा ऊपर किया, और मोटे लड़के की आंखों में आंखें डालते हुए बोला, “मुझसे दूर रहो।” “नहीं रहेंगे, क्या कर लेगा..?” मोटा पीछे हुआ और हंसने लगा। “अपने मम्मी-पापा से हमारी शिकायत लगाएगा, क्या बोलेगा उन्हें,” वह तुतलाती हुई आवाज निकालते हुए बोला, “ये बोलेगा...ममा ममा... अर्लुन ने मेको छेड़ा... उसने मेको ये बोला ....ऊ...ततत...लुलुलु  ” ध्रुव को यह सुनकर और ज्यादा गुस्सा आ गया। उसने अपना बैग उठाया और जोर से पटक कर मोटे लड़के के मुंह पर मारा। उसका नाम अर्जुन था। ऐनी अभी तक अपने काम में लगी हुई थी, मगर जैसे ही यह हुआ उसका ध्यान इस तरफ चला गया। अर्जुन के बाकी के दोस्त चिल्लाए और एक साथ ध्रुव के ऊपर टूट पड़े। वो ध्रुव को मारने-पीटने लगे थे। ध्रुव भी जवाब में उन्हें मारने-पीटने लगा था, मगर इतने जनों को संभालना उसके बस की बात नहीं थी। इसमें वह सामने वालों की कम पिटाई कर रहा था जबकि उसकी ज्यादा पिटाई हो रही थी। ऐनी अपनी जगह से खड़ी हुई। वो अर्जुन के पास गई और उसे पीछे से पड़कर खींच लिया। दूसरे लड़के ने यह देखा तो एक जोरदार थप्पड़ उसके मुंह पर आकर पड़ा। एक लड़का कुछ समझ पाता तभी एक लात उसके सीने पर पड़ी और वह उछलते हुए बेंच के ऊपर गिर गया। धुव्र की आंखें यह देखकर हेरत के मारे खली की खुली रह गई। ऐनी एक दुबली पतली लड़की होने के बावजूद अपने से ताकतवर लड़कों को ऐसे धो रही थी जैसे वह कोई सीक्रेट एजेंट हो। ऐनी चिल्लाते हुए बोली, “ नाऊ स्टॉप इट गायस, यह क्या जानवरों की तरह कर रहे हो,” सब के सब अपनी जगह पर रुक गए और उसकी तरफ देखने लगे। “जाओ और जाकर अपनी जगह पर बैठो।” उसने ऑर्डर देने वाले अंदाज में कहा। अर्जुन और उसके पास उसके दोस्त के चेहरे अजीब से हो गए। वह सब चुपचाप अपनी सीटों की तरफ गए और वहां जाकर बैठ गए। अर्जुन के लिए यह एक इंसल्ट वाला मूमेंट था। फिर ऐनी ने पलक झपकते ही उनकी धुलाई भी कर दी थी। ऐनी उनके जाने के बाद ध्रुव को घूर कर देखने लगी। “क्या...” ऐनी ध्रुव पर चिल्लाते हुए बोली, “क्या चाहिए तुम्हें... चुपचाप बैठो अपनी सीट पर।” ध्रुव एक ही झटके में अपनी सीट पर बैठ गया। ऐनी ने पूरी क्लास की तरफ देखा जहां सबके चेहरे पर सन्नाटा पसरा हुआ था, फिर वह भी बैठी और अपना काम करने लगी। क्लास में दूसरे टीचर के आने तक किसी तरह का शोर नहीं हुआ। फिर क्लास में टीचर आया और सारे स्टूडेंट आगे की पढ़ाई में लग गए। ऐनी ने जो भी किया था उसका असर सभी क्लासों के खत्म होने तक रहा। किसी ने शरारत करना तो दूर की बात खड़े होकर बोलने तक का नहीं सोचा। क्लास खत्म हुई, और सारे स्टूडेंट अपने अपने घर की ओर चल दिए। ध्रुव स्टेंड में अपनी साइकिल निकाल रहा था। अर्जुन और उसके दोस्त अपनी बाइक लेकर उसके पास से गुजरने लगे। अर्जुन ने अपनी बाइक उसके पास रोक दी। उसके सारे दोस्त भी एक-एक कर उसके पास रुक गए। “तुमने आज जो भी किया तुम्हें इसकी सजा मिलेगी, देखना तुम हमसे बचोगे नहीं, तुम्हारी वजह से मेरी जो बेज्जती हुई है मैं उसका बदला लेकर रहूंगा।” ध्रुव सामने से बोला, “क्या कर लोगे तुम लोग...” “अकेले मिल फिर बताते हैं।” अर्जुन ने धमकी दी। “तुम्हारा ऐसा हाल होगा...” वह आगे के शब्द बोलने वाला था, तभी उसे ऐनी दिख गई जो स्कूटी पर उनकी ओर आ रही थी। यह देखते ही अर्जुन ने आनन-फानन में अपनी बाइक को स्टार्ट किया और उसे वहां से निकाल लिया। उसके दोस्त भी दुम दबा कर बाइक स्टार्ट करके भाग गए। ध्रुव पहले तो देखता रहा, यह क्या हो रहा है, फिर उसने जब ऐनी को देखा तो पूरा मामला समझ गया। ऐनी ने अपनी स्कूटी उसके पास आकर रुकी। ध्रुव ने अपना चेहरा छुपा लिया और उससे नजर बचाकर बैग ठिक करने का नाटक करने लगा। ऐनी बोली, “आगे से कोई तुम्हें तुम्हारे साथ ऐसा करें तो,” उसने अपने शब्दों को भारी और मोटिवेशनल अंदाज में कहा, “उसके मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ कर देना, जो होगा बाद में देखा जाएगा।” इतना कहकर वह निकल गई। ध्रुव ने उसके रुकने तक एक बार भी अपना चेहरा ऊपर उठाकर उसकी आंखों में नहीं देखा था। मगर उसके जाने के बाद उसने उसे जाते हुए जरूर देखा। उसने अपना सिर हिलाया और मुस्कुराया। वह अपने में बोला ,"एक खूबसूरत लड़की ने मेरे साथ बात की, उसे अर्जुन के बच्चे को तो मुझे थैंक्स कहना चाहिए, उसकी वजह से ऐनी मुझसे बात करने के लिए आई। ओह, आज का दिन मेरे लिए कितना लकी है।" ध्रुव का आज का दिन अच्छा नहीं था।  सड़क पर साइकिल को चलाते हुए वह इसी के बारे में सोच रहा था। मगर फिर भी वो खुश था। ऐनी ने आखिर में जो भी शब्द कहे, उसने उसके आज के पूरे दिन को अच्छा कर दिया था। ध्रुव घर पहुंचा। नाना-नानी को अपने घर आने के बारे में बताया और फिर सोने के लिए चला गया। रात के तकरीबन 8:00 बज रहे थे, और सब बैठ कर खाना खा रहे थे। खाना खाते हुए नानी ने ध्रुव से पूछा, “तुम्हारा आज कॉलेज में पहला दिन था ना? कैसा गया? मैं तो इसके बारे में बात करना ही भूल गई?” “ठीक-ठाक था।” ध्रुव खाना खाते हुए बोला, “ना ज्यादा अच्छा, ना ज्यादा बुरा। लड़के मुझसे मेरे बारे में पूछ रहे थे, जिसे मैं जवाब नहीं देना चाहता था। अच्छा मुझे कॉलेज के फॉर्म में पेरेंट्स का नाम लिखना था, आप लिखना भूल गए, मैं वहां पर क्या लिख कर आऊं?” उसकी नानी यह सुनकर उसके नाने की तरफ देखने लगी। “वो...” नानी बताने के लिए शब्द ढूंढने लगी। “वो वो छोड़ीए नेनस...” ध्रुव नॉर्मल वे मे बोला, “ नानस खुद जाकर भर देंगे कल...” उसके नाना ने जवाब दिया ,"हां मैं भर दूंगा।" रात के तकरीबन 9:30 बज रहे थे। ध्रुव ऊपर अपने कमरे में स्टोरी नोवल पढ़ रहा था, तभी उसके नाना ने दरवाजा खटखटाया। “मैं दुकान पर अपने हिसाब का रजिस्टर भूल आया हूं, तुम मेरे साथ चलोगे, हम रजिस्टर लेकर आते हैं।” ध्रुव अंदर से बोला, “नानस सुबह ले आना ना, इतनी रात को आप उनका क्या करेंगे।” “नहीं बेटा, मुझे सुबह कर्मचारियों को हिसाब करके सैलरी देनी है, पहले ही 3 दिन लेट हूं, मैं उन्हें और लेट नहीं कर सकता।” “क्या नानस आप भी...” ध्रुव खड़ा हुआ और बाहर आ गया, “चलिए।” उसने अपने‌ नाना को जाने के लिए कहा दोनों पुराने जमाने की मर्सिडीज कार से पहाड़ी क्षेत्र में नीचे की तरफ जा रहे थे। ध्रुव के नाना का यहां लोकल दुकानों के लिए सामान सप्लाई करने का बिजनेस था, जिसके लिए उन्होंने काफी सारे कर्मचारी रख रखे थे। 20 मिनट के बाद उनकी कार ने यहां की सबसे भीड़ भाड़ वाली बस्ती में एंट्री ली। शहर की ज्यादातर आबादी यही रहती थी। पूरा माहौल खुशनुमा था, और लाइटों के बीच लोग स्ट्रीट फूड्स को एंजॉय कर रहे थे। बस्ती के आखिर में एक सुनसान जगह पर एक वेयरहाउस बना हुआ था, जिसके सामने उसके नाना ने कार को पार्क कर दिया। “तुम यहीं रहना, मैं अभी रजिस्टर लेकर आता हूँ।” उसके नाना बोले “ठीक है। जैसी आपकी मर्जी।” ध्रुव ने बोर होने वाले अंदाज में कहा। उसके नाना कार से उतरकर रजिस्टर लेने के लिए चले गए। ध्रुव कार में बैठ कर गाने सुनने लगा। वह बोर हो रहा था, तो उसने मन बहलाने के लिए गाने चला लिए। वह गाने सुन रहा था, तभी उसकी कार के थोड़ा पीछे एक फुटबॉल दिखी जो टपे खाते हुए कार की ओर आ रही थी। वह फुटबॉल अकेले ही उसके कार की ओर आ रही थी। फुटबॉल कार के पास पहुंची। फुटबॉल ने जोर से कार के बोनट पर ठप्पा खाया, आवाज हुई, और ध्रुव बुरी तरह से चौंक गया। वहीं म्यूजिक प्लेयर भी करकर की आवाज करते हुए बंद हो गया।

  • 4. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 4

    Words: 1528

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        फुटबॉल कार की छत के ऊपर कूदी और सामने आ गई। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था जो डरावने दृश्य पैदा कर रहा था। ध्रुव  ने कार का दरवाजा खोला और बाहर आ गया। उसने अपने आगे पीछे देखा। वेअर हाउस के सामने लाइट लगी हुई थी जिसकी रोशनी दुर तक थी। जहां तक रोशनी थी वहां तक उसे कोई दिखाई नहीं दिया। ध्रुव  फुटबॉल के पास गया और फुटबॉल उठाने के लिए झुका। मगर जैसे ही वह फुटबॉल उठा कर ऊपर हुआ उसे अपने सामने एक लड़की दिखाई दी। ध्रुव  उसे देखते ही डर गया और पीछे हो गया। लड़की के बाल बिखरे हुए थे। उसकी उम्र तकरीबन 19 साल के करीब थी।  वह अजीब सी दिख रही थी और ध्रुव को भी अजीब सी नजरों से देख रही थी। उसे देख कर डर लग रहा था। ध्रुव  भी उससे डर रहा था।     “यह मेरी है।” उस लड़की ने अपने दोनों हाथ सामने किए और कहा।     ध्रुव ने फुटबॉल उसकी तरफ फेंक दी। फुटबॉल नीचे गिरती हुई लुढकती गई। लड़की फुटबॉल की तरफ चली गई और उसे उठा लिया।     “तुम यहां अकेली क्या कर रही हो?” ध्रुव  ने हल्का सा हकलाते हुए उससे पूछा।     लड़की ने उसके शब्दों को अजीब तरीके से दोहराया “मै... अकेली... यहां...” इतना कहकर वो चुप हो गई।     “हां तुम अकेली यहां?”     “क्या कर रहीं हो...।” लड़की आगे के वर्ड्स बोली और फुटबॉल से खेलते हुए दौड़ने लगी। वह लगभग 19 साल की थी मगर उसकी हरकतें बच्चों वाली थी। उसने एक स्कूल ड्रेस पहन रखी थी। व्हाइट कलर की शर्ट, रेड कलर की स्कर्ट और रेड कलर की ही टाइ।     “यह इतनी रात को यहां, यह कोई खेलने की जगह नहीं है और ना ही उम्र...., इस पागल लड़की को पता नहीं इस वक्त इसे अपने घर पर रहना चाहिए...”, ध्रुव  ने अपने डर को नजरअंदाज किया और किसी नॉर्मल लड़के की तरह खुद से कहा।     लड़की रुक गई। वह पीछे पलटी और बोली “जिसका घर जल‌ गया हो‌ वो‌ कहां जाए?”     ध्रुव  उसकी यह बात सुनकर डर गया। “आ... देखो लड़की, तुम यह क्या कह रही हो, तुम...” ध्रुव  लड़की से बात कर रहा था इतने में उसके नाना वेयरहाउस से रजिस्टर लेकर बाहर आ गए।     “मैंने रजिस्टर ले लिए हैं चलो चलें।” उसके नाना ने कहा। ‌ नाना के बोलते ही ध्रुव  एक बार के लिए उनकी तरफ देखने लगा‌।     “हां चलते हैं पर इस लड़की..” वह बोलकर लड़की की तरफ पलटा मगर वह वहां नहीं थी। “वो...लड़की” वो इतना कह कर ही चुप हो गया क्योंकि उसे लड़की नहीं दिख रही थी।     “क्या वो लड़की?” उसके नाना ने पूछा।     “वो यहां एक बड़ी लड़की थी जो फुटबॉल खेल रही थे।” ध्रुव  ने लड़की के बारे में सोचते हुए कहा।     “तुम ठीक तो हो ना, तुम इस वक्त शहर से बाहर हो और यहां कोई इंसान भी नहीं आता और तुम लड़की की बात कर रहे हो। यह जगह डरावनी है तो रात को सब यहां आने से डरते हैं।”     “मगर मैंने यहां अभी एक लड़की को देखा था। वो कोई 18-19 साल की होगी उसने स्कूल ड्रेस पहन रखी थी।” ध्रुव  को समझ नहीं आ रहा था उसने जो देखा वह सच था या फिर उसे कोई वहम हुआ है।     “बस करो, जरूर तुम्हारा वहम होगा। तुम बड़े हो रहे हो।” उसके नाना हंसते हुए बोले और गाड़ी में बैठ गए। ध्रुव  अभी भी बाहर की तरफ इधर उधर देख रहा था और लड़की को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। मगर वह उसे कहीं नहीं दिखी। “चलो आओ गाड़ी में बैठो, अब चले यहां से हैं।” ध्रुव  के नाना ने उसे दोबारा गाड़ी में बैठने के लिए कहा। ध्रुव  ने आखरी बार फिर हर तरफ अपनी नजरों को घुमाया और लड़की की तलाश की मगर फिर से उसे वही नतीजा मिला जो पहले मिला था। उसने गहरी सांस ली और उसे बाहर छोड़ते हुए गाड़ी में बैठ गया। “भगवान जाने यह क्या था क्या नहीं, शायद कोई वहम ही होगा।” वह खुद से बोला।     रात के 11:00 बज रहे थे। ध्रुव  का मन अपने रूम में नहीं लग रहा था तो वह कॉफी बनाकर छत पर आ गया। छत पर भी वह लड़की के बारे में सोच रहा था। वह लड़की के बारे में सोचते हुए बोला “वो लड़की मेरे मन का वहम नहीं हो सकती, मैंने इसे खुद अपनी आंखों से देखा था, उससे बात भी की थी, पर वह अचानक से गायब भी हो गई, कहीं...” ध्रुव  एक पल के लिए रुका “कहीं वो कोई भूत तो नहीं थी..” उसने खुद के सर को झटका दिया “कैसी पागलों वाली बात कर रहे हो, तुम साइंस के स्टूडेंट हो, तुम्हें अच्छे से पता है यह भूत वुत कुछ नहीं होते, तुम उस लड़की के सामने एक बार के लिए डर भी गए थे, तुम्हें इस तरह से डरना भी नहीं चाहिए, तुम बच्चे नहीं हो..” ध्रुव  ने किसी बड़े आदमी की तरह खुद को कहा और नीचे सड़क की तरफ देखने लगा।     ठंडी रात में सर्द भरी सड़क पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा था। लोग कब के अपने घरों में जा चुके थे। ध्रुव  की नजरें सड़क पर इधर-उधर घूम रही थी तभी उसे दूर कोई बुढा अंकल लगड़ाकर चलते हुए दिखा। ध्रुव  की नजरें उस बूढ़े अंकल पर ठहर गई। “इतनी रात को यह अंकल बाहर क्या कर रहे...?” उसे देखते हुए उसने कहा।     अंकल सड़क पर चलते हुए लगातार उसके घर के करीब आ रहे थे। ध्रुव  के घर के सामने की सड़क से वह गुजरने वाले थे इसलिए उनका इसी तरफ आना हो रहा था। वो चलते हुए लाइट में आए तो ध्रुव  ने उसे पहचान लिया। “वसीम अंकल... यह तो वसीम अंकल है...” यह कहते ही उसका चेहरा पसीने से भर गया। “यह तो 4 साल पहले मर गए थे... तो अब कैसे...”     वसीम अंकल रुके और ऊपर की तरफ देखा। जैसे ही‌ दोनों की नजरें एक दूसरे से मिली ध्रुव  पीछे हटा और तेजी से नीचे की तरफ दौड़ पड़ा। वह अपने कमरे में आया और कॉफी के कप को टेबल पर रख कर दरवाजा बंद कर दिया। उसके दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी। वह अपनी खिड़की के पास गया और परदे से हल्के से झांककर बाहर की तरफ देखा। वसीम अंकल अब दुबारा सड़क पर आगे की तरफ चल पड़े थे।     ध्रुव  पीछे हो गया। “यह हो क्या रहा है मेरे साथ...?” वह बोला और बेड पर बैठ गया।     अगली सुबह ध्रुव  की नानी ने दरवाजा खटखटाया “अरे ध्रुव , तुम्हें उठना नहीं है क्या, काफी देर हो गई है तुम्हें कॉलेज भी जाना है...” रात भर सोचने के कारण ध्रुव  टाइम पर सो नहीं पाया था। इसलिए उसकी आंख भी नही खुली थी।     नानी के बार-बार दरवाजा खटखटाने से उसकी आंख खुली और उसने घड़ी की तरफ देखा। “बाप रे, इतना टाइम हो गया...” उसने अपने कंबल को फेंका और फटाक से खड़ा हो गया। इसके बाद वह कमरे में बस दौड़ते भागते दिखा। काफी दौडा़ भागी करने के बाद वह जल्दी बाहर आया और डाइनिंग टेबल से एक परांठा उठा लिया “गुड मॉर्निंग नेनी, गुड मॉर्निंग नानस, साॅरी, आज मैं ज्यादा ही लेट हो चुका हूं तो आप सबके साथ खाना नहीं खा पाउंगा...” वह बाहर की तरफ दौड़ पड़ा।     उसने साइकिल पकड़ी और परांठा खाते-खाते उसे चलाते हुए कॉलेज की और चल‌ पड़ा। वह बीच रास्ते में था जहां उसकी नजर अब्दुल पर गई। अब्दुल उस वसीम अंकल का बड़ा बेटा था जिसे ध्रुव  ने कल रात देखा था। अब्दुल जंगल की लकड़ी से लदे ट्रक को लोड करके खड़ा था और जंगल से आदमियों के आने का इंतजार कर रहा था जिसके बाद उसे शहर की तरफ जाना था। ध्रुव  ने अब्दुल को देखा तो उसे कल रात वसीम अंकल वाले दृश्य याद आ गए। उसने अपनी साइकिल को अब्दुल के पास आकर रोक दिया।     “कैसे हो अब्दुल भैया आप?” उसने अब्दुल भैया का हालचाल पूछा।     “मैं ठीक हूं, तुम बताओ तुम कैसे हो? माफ करना मैं तुम्हारे 18 वें जन्मदिन पर तुम्हारे घर नहीं आ सका था, काम काफी ज्यादा है तो फुर्सत ही नहीं मिल रही।”     “कोई बात नहीं अब्दुल भैया, मैं समझ सकता।” ध्रुव  ने जवाब दिया। फिर उसने इधर उधर देखा और थोड़ा सोचते हुए अब्दुल से पूछा “अच्छा क्या आप वसीम अंकल को याद करते हो?” वसीम अंकल अब इस दुनिया में नहीं थे तो ध्रुव  सीधे-सीधे अपनी बात नहीं कह सकता था।     “हां, उनकी याद तो हमें हर दिन आती है, उनके बिना काम संभालना बहुत मुश्किल है, सेठ से उनकी अच्छी बनती थी तो काम में इतनी दिक्कत नहीं होती थी, जबकि अब तो ज्यादातर डांट ही सुनने को मिलती है।”     “आप तो उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते थे, क्या आपके साथ ऐसा होता है कि वो अब भी आपको मिलते हो या फिर दिखते हो?”     “मरे हुए इंसान भी कभी दोबारा दिखते हैं...” अब्दुल भैया हंसते हुए बोले और अपनी गाड़ी की तरफ चले गए। वो‌ सब आदमी वापस आ गए थे जिसका अब्दुल को इंतजार था। देखते ही देखते अब्दुल ने ट्रक स्टार्ट किया और वहां से चला गया जबकि ध्रुव  वहीं खड़ा रहा। अब्दुल की कही गई आखरी बात अब उसके दिमाग में घूम रही थी। “मरे हुए इंसान भी कभी दोबारा दिखते हैं...” ध्रुव  ने हैरानी वाला चेहरा बनाया और दबे शब्दों में खुद से कहा “मगर... मैंने तो... आखिर यह कैसे पॉसिबल है?”         

  • 5. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 5

    Words: 2778

    Estimated Reading Time: 17 min

    रास्ते में बात करने की वजह से ध्रुव कॉलेज में फिर लेट पहुंचा। आज वह कल से भी ज्यादा लेट हो गया था। टीचर क्लास में अपना लेक्चर ले रहे थे। अपने लेक्चर में वह किसी बात का कैंकुलिसन निकालते हुए बोले “तो स्टूडेंट, यहां से पता चलता है नेगेटिव एनर्जी का भी वजूद है। साइंटिस्ट अभी इस पर और रिसर्च कर रहे हैं, नेगेटिव एनर्जी की गहरी परतो के राज अभी खुलना बाकी है, इस ब्रम्हांड में अनगिनत अनसुलझे रहस्य है, और नेगेटिव एनर्जी भी इन्हीं रहस्यों में से एक रहस्य है।” टीचर ने अपनी लाइन खत्म की थी तभी ध्रुव  दरवाजे पर आया “क्या मैं अंदर आ सकता हूं सर?” टीचर ने उसकी तरफ देखते ही बड़े अदब से झुकते हुए कहा “हां क्यों नहीं ध्रुव  महाराज, हम पिछले 35 मिनट से बड़ी बेसब्री से आपका ही तो इंतजार कर रहे थे। आप क्लास में पधारे तो यह पूरी क्लास धन्य हो गई और साथ में मैं भी।” सभी स्टूडेंट फिर से हंसने लगे। हंसने की आवाज कोने तक बैठे स्टूडेंट्स तक से आ रही थी। ऐनी के चेहरे पर किसी तरह का रिस्पांस नहीं था। किसी बच्चे ने कोने पर बैठे-बैठे कहा “यह आता ही क्लास में अपनी बेजती करवाने के लिए है।” कोई बच्चा बोला “इसके सिर्फ काम बच्चों जैसा नहीं है, हरकतें भी बच्चों जैसी है।” “क्या मैं क्लास में आ सकता हूं सर?” ध्रुव  दर वाजे पर खड़े खड़े दुबारा बोला। “जी नहीं।” टीचर ने अपने चेहरे पर सख्त अंदाज दिखाया “अगर आज मैंने तुम्हें क्लास के अंदर आने दिया तो तुम बार-बार यही करोगे। इसलिए आज तुम्हें क्लास के अंदर नहीं आने दिया जाएगा ताकि तुम कल से टाइम पर आओ। वैसे भी आधी क्लास हो चुकी है तो बाकी की आधी क्लास लगाने का फायदा नहीं। अधजल गगरी छलकत जाए वाला मुहावरा तो सुना होगा ना तुमने, आज तुम पर वही लागू होता है।” “प्लीज सर आज आज छोड़ दीजिए, आई प्रॉमिस कल से मैं क्लास में लेट नहीं आऊंगा।” “बिल्कुल नहीं, जाओ और जाकर क्लास से बाहर अपना टाइम स्पेंड करो।” टीचर ने कहा और बच्चों की तरफ रुख करते हुए बोला “तो मैं कहां था स्टूडेंटस, हां नेगेटिव एनर्जी पर... तो नेगेटिव एनर्जी होती है।” ध्रुव  जाने के लिए मुडा़ ही था की किसी स्टूडेंट से उठकर सवाल किया “सर माना जाता है भूत प्रेत नेगेटिव एनर्जी में आते हैं, अगर नेगेटिव एनर्जी होती है तो क्या हम यह भी कह सकते हैं भूत-प्रेत भी होते हैं?” यह सवाल सुनकर ध्रुव  दरवाजे के पास ही खड़ा हो गया। स्टूडेंट के सवाल पर टीचर ने उसे दिलचस्प नजरों से देखा। उन्होंने हल्की सांस ली और कहा “साइंटिफिक तरीके से देखा जाए तो हम इसे रिफ्यूज नहीं कर सकते, यानी सीधे-सीधे शब्दों में कहूं तो अगर भूत प्रेत नेगेटिव एनर्जी में आते हैं तो हां, हां उनका वजूद है।” “मगर सर वह हमें दिखाई तो नहीं देते, फिर आप यह कैसे कह सकते हैं उनका वजूद है?” उसी स्टूडेंट ने दोबारा सवाल किया। “दिखाई तो हमें ग्रेविटी फोर्स भी नहीं देता। ना ही मैग्नेटिक फोर्स, ना ही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स, न्यूक्लियर फोर्स और एटॉमिक फोर्स को भी हम नहीं देख पाते, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं यह सब एगजिस्ट ही नहीं करते, इसलिए अगर हमें कोई चीज दिखाई नहीं देती तो हम यह नहीं कह सकते उसका वजूद नहीं है।” स्टूडेंट अभी भी अपनी जगह पर खड़ा था। उसने टीचर की इस बात पर कहा “लेकिन सर आपने जितने भी फोर्स का नाम लिया हम इन्हें महसूस कर सकते हैं, भूत प्रेत के मामले में ऐसा भी होते हुए नहीं दिखा?” “ग्रेविटी को हमने अभी 200 साल पहले ही खोजा था, थी तो वो पहले से ही‌ ना, मैंने जितने भी फोर्स का नाम लिया उन सभी को भी हमने अभी-अभी खोजा, अब 400-500 साल पहले तो यह सब लोगों के लिए किसी भूत-प्रेत की तरह ही तो होगी, आई मीन इन पर क्वेश्चनमार्क होगा, हर एक चीज का एक टाइम होता है, भूत प्रेत के मामले में यह टाइम अभी आया नहीं, मगर जब टाइम आएगा तब हम इसे महसूस भी कर लेंगे और प्रूफ भी।” टीचर इसके बाद कल के असाइनमेंट के बारे में बात करने लगा। ध्रुव  अपनी जगह से हटा और गार्डन की तरफ जाने लगा। टीचर की हर बात को उसने गौर से सुना था। “नेगेटिव एनर्जी और भूत प्रेत...” ध्रुव  खुद से बोला “यह सब सुनकर कितना अजीब लग रहा है, नेगेटिव एनर्जी जैसी चीज को मैं भी नजरअंदाज नहीं कर सकता, यानी कल वसीम अंकल का दिखना किसी तरह का वहम नहीं था, शायद कल मैंने जिस लड़की को देखा था वह भी मेरा कोई वहम नहीं था,” ध्रुव  गार्डन में आने के बाद वहां पड़े बेंच पर बैठ गया। “लेकिन ऐसा हुआ क्यों होगा? और क्या यह सिर्फ मेरे साथ हुआ है या फिर किसी और के साथ भी हो चुका है? उफफ, समझ में नहीं आ रहा आखरी पंगा क्या है।” ध्रुव  वहीं बैठ गया और इस बारे में और सोचने लगा। वह इस बारे में जितना सोच रहा था वह उतना ही कंफ्यूज हो रहा था। उसके साथ यह क्या हो रहा है क्यों हो रहा है और कैसे हो रहा है उसे कुछ भी नहीं पता था। कुछ भी नहीं। क्लास के खत्म होते ही सेशन गेप शुरू हो गया। अर्जुन और उसके साथी बाहर निकले और ध्रुव  की तलाश करने लगे। सभी को ध्रुव  गार्डन में बैठा दिखा। सभी ने अपने चेहरे पर शैतानी मुस्कान दिखाइ और उसकी तरफ चल पड़े। अर्जुन ध्रुव  के पास आया और उसका बैग छीनते हुए पुछा “क्यों रे छोटे बच्चे, अपने बैग में कुरकुरे लेकर आया है?” “मुझे मेरा बैग वापिस दो।” ध्रुव  खड़ा हुआ और अपना बैग वापस लेने की कोशिश की मगर अर्जुन ने उसे पीछे कर दिया। “फिकर मत करो छोटे बच्चे, हम तुम्हारे कुरकुरे को कुछ नहीं करेंगे, हम छोटे बच्चे नहीं जो कुरकुरे खाएंगे।” अर्जुन ने कहा। साथी यह सुनकर हंसने लगे। अर्जुन का एक साथी आगे आया और ध्रुव  को धक्का मारते हुए बोला “पीछे हट बे, छोटे बच्चों को इतने पास आकर बात नहीं करनी चाहिए।” ध्रुव  पीछे बैंच से टकराया और उसके ऊपर गिर गया। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। ध्रुव  ने अपनी आंखें बंद की और एकदम से खड़े होकर धक्के मारने वाले बच्चे के मुंह पर जोर से मुक्का दे मारा। वह पीछे अपने दूसरे साथियों के पास जा गिरा। अर्जुन और बाकी के सभी बच्चों ने ध्रुव  की तरफ गुस्से से देखा। ‌ “तुम कुछ ज्यादा ही उछलते हो...” अर्जुन बोला “अब देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूं...” और उसका बैग लेकर गार्डन में बने स्विमिंग पुल की ओर चल पड़ा। ध्रुव  ने उसके पीछे जाने की कोशिश की मगर उसके साथियों ने उसका रास्ता रोक लिया। ध्रुव  ने दो बच्चों को धक्का मारा और उन्हें नीचे गिरा दिया।‌ फिर वह दूसरे दो बच्चों से भिड़ गया। अर्जुन स्विमिंग पुल के पास पहुंचा और बैग उछाल कर स्विमिंग पूल के अंदर गिरा दिया। ध्रुव  ने दूसरे दो बच्चों को भी नीचे गिराया और दौड़ते हुए अर्जुन की ओर आने लगा। अर्जुन ने अपने चेहरे पर चलाकीपन दिखाया। ध्रुव  दौड़ते हुए अर्जुन के पास पहुंचा और अर्जुन एक तरफ हो गया। ध्रुव  ने खुद को रोकने की कोशिश की मगर अर्जुन ने उसे धक्का देकर स्विमिंग पुल के अंदर गिरा दिया। “चल छोटे बच्चे, पढ़ाई बाद में करना पहले थोड़ा सा नहा लो” अर्जुन उसे गिराने के बाद बोला। उसने अपने साथियों को यहां से जाने का इशारा किया। सब वहां से चले गए। ध्रुव  ने स्विंग पुल के अंदर खुद को संभाला। वह तैरना जानता था। उसने अर्जुन और उसके जाते हुए साथियों की तरफ देखा “तुम लोगों को मैं छोड़ूंगा नहीं...” उसने कहा। उनके दूर जाने के बाद ध्रुव  ने उन्हें देखना थोड़ा और अपने बैग की तरफ तैरने लगा। बैग के पास पहुंच कर उसने बैग को पकड़ा और बाहर आने लगा। लेकिन वह बाहर आने के लिए अभी मुड़ा ही था कि अचानक किसी ने उसका पैर पकड़ा और स्विंग पुल के अंदर खींच लिया। ध्रुव  अपने बैंग के साथ ही स्विमिंग पूल के अंदर चला‌ गया। पानी के अंदर उसने अपने पैर की तरफ देखा तो उसका चेहरा डर से भर गया। स्विमिंग पूल के अंदर एक आधी सड़ी गली लाश की तरह दिखने वाली औरत थी जो उसे खींच रही थी। *** आशु पुल में डूब रहा था। खुद को बचाने के लिए उसने हरकत करना शुरू कर दी। वह अपने हाथ पैरों को तेजी से हिला रहा था। मगर वह औरत उसे लगातार नीचे ले जा रही थी। आशु हाथ पैर हिलाने के बावजूद उसके चंगुल से आजाद नहीं हो रहा था। आशु का दम घुटने लगा। उसकी आंखों के आगे हल्का अंधेरा आने लगा। उसके हाथ से बैग छुटा और वह ऊपर की तरफ तैर गया। आशु की आंखें बंद हो गई। उसके शरीर ने हरकत करना छोड़ दी। उसके शरीर अब ऐसे हो गया था जैसे मानो वह स्पेस में तैर रहा हो। ऐनी क्लास लगाने के लिए जा रही थी। तभी उसकी नजर बाहर आ चुके बैग पर पड़ी जो एकदम से पानी के ऊपर आया था। यह देखते ही पता नहीं उसके मन में क्या आया वह तुरंत स्विमिंग पूल की तरफ दौड़ी। दौड़ते दौड़ते उसने अपनी शर्ट उतार दी जिसके नीचे उसने camisole पहन रखी थी। स्विमिंग पुल के पास आते ही उसने अंदर छलांग लगा दी। थोड़ी देर बाद ऐनी ने आशु को बाहर लाकर पटका। उसने अपने बालों को पीछे की तरफ झटका और खुद भी बाहर आ गई। आशु के शरीर में पानी जा चुका था। ऐनी ने उसके पेट को दबाना शुरू कर दिया ताकि उसके शरीर से पानी बाहर आ सके। पर इससे ज्यादा असर नहीं पड़ा। उसने आसपास देखा और फिर आशु के चेहरे के पास आकर गहरी सांस लेकर उसे माउथ ट्रीटमेंट दिया। ऐसा उसने तीन से चार बार किया जिसके बाद आशु खांसा और उसकी आंख खुली। आशु को ऐसे लग रहा था जैसे वह दोबारा जिंदा होकर लौटा है। ऐनी ने उसे कंधे से पकड़ा और बैठाते हुए पूछा “कैसे हो तुम? क्या तुम अब ठीक हो?” “हां... मैं.. मैं ठीक हूं पर..” उसने अपने मुंह से अजीब से खुशबू आ रही थी। उसने अपना मुंह साफ किया “मगर मेरा मुंह चिपचिपा क्यों हो गया, और यह अजीब सी खुशबू किसकी है...” “वो..” ऐनी‌ दूसरी तरफ देखने लगी “वो ये लिपबाम की खुशबू है..” इस बात को लेकर ऐनी अपने बने लाइट एक्सप्रेशन जैसे-तैसे कर कंट्रोल कर रही थी “तुम्हें होश नहीं आ रहा था तो मुझे तुम्हें माउथ ट्रीटमेंट देना पड़ा।” यह सुनकर आशु का चेहरा भी अजीब सा हो गया। उसने इधर-उधर देखना शुरू कर दिया जहां उसकी नजर दोबारा स्विमिंग पुल के ऊपर चली गई। स्विमिंग पूल की तरफ देखते ही उसे उस औरत की याद आ गई जो उसके पैर को पकड़कर उसे अंदर की ओर खींच रही थी। उसने ऐनी से पूछा “तुमने मुझे बाहर कैसे निकाला...?” “क्या मतलब बाहर कैसे निकाला, मुझे तैरना आता है तो तुम्हें तैरते हुए बाहर निकाला।” ऐनी ने अपने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया। “वो... ” आशु को समझ नहीं आ रहा था वो अंदर औरत के दिखने वाली बात उसे कैसे बताए। क्योंकि वह जानता था उसकी इस बात पर कोई यकीन नहीं करेगा। “वो तुम्हें अंदर कोई दिखा नहीं? मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोई मेरे पैर को खींचकर मुझे अंदर डुबो रहा हो।” “मगर मुझे तो पानी के अंदर कोई नहीं दिखा। सिर्फ तुम थे जो डूब रहे थे और तुम्हें मैं बाहर निकाल कर ले आई।” आशु ने अजीब सा चेहरा बनाया और इसके बाद कुछ नहीं कहा। इस मामले में उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। “तुम स्विमिंग पूल के अंदर कैसे चले गए थे?” ऐनी‌ ने सवाल किया। “वो.. अर्जुन... देखना मैं उसे छोडूंगा नहीं..” आशु खड़ा हो गया और अपने कपड़े निचोड़ने लगा। ऐनी‌ भी खड़ी हुई और अपनी शर्ट पहनने लगी। ऐनी ने आशु को कहा “वो लोग गैंग में रहते हैं। तुम अकेले उनसे नहीं भिड़ सकते। अगर तुम्हें उनका कुछ करना है तो दोस्त बनाने होंगे।” “मैं अभी यहां नया हूं, इतनी जल्दी मेरा कोई दोस्त नहीं बनेगा, और वो लोग, वो लोग मुझे ऐसे ही तंग करते रहेंगे, उन्हें सबक तो सिखाना पड़ेगा।” ऐनी ने अपना बैग उठाया और इस बात को नजरअंदाज करते हुए आशु को बोली “यह सब बाद में कर लेना, अभी क्लास में चलते हैं, वरना तुम्हारे शेड्यूल में एक और क्लास ऐड हो जाएगी जहा टीचर तुम्हें बाहर निकाल देंगे, इस बार तो तुम्हारे साथ मेरा नंबर भी लग जाएगा।” आशु ने हां में सिर हिलाया और अपना बैग उठाकर क्लास में चला गया। क्लास में अर्जुन और उसके साथियों ने दोनों को भीगे हुए देखा तो वह समझ गए क्या हुआ होगा। अर्जुन और उसके साथियों ने अपने चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। आशु ने सबको गुस्से से देखा। ऐनी ने उसका हाथ पकड़ा और कहा “गुस्सा मत करो, यह गुस्सा करने का सही वक्त नहीं है, तुम आओ और आकर मेरे साथ बैठो।” ऐनी ने उसका हाथ छोड़ा और अपनी सीट पर जाकर बैठ गई। आशु कुछ देर तक अर्जुन और उसके साथियों को देखता रहा फिर वह भी उसके पास जाकर बैठ गया। क्लास में अगले टीचर आए और उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला तब तक चला जब तक आज की सारी क्लासें खत्म नहीं हो गई। सभी क्लासों के बाद आशु और ऐनी एक साथ पार्किंग एरिया की तरफ जा रहें थे। आशु बोला “एक साथ मैं उन्हें सबक जरूर सिखाऊंगा, अगर वह फिर भी नहीं माने तो मैं सब की शिकायत‌ कॉलेज स्टाफ से कर दूंगा, फर्स्ट ईयर और स्कूल की 12वीं क्लास में ज्यादा फर्क नहीं होता, यह लोग फर्स्ट ईयर में ही स्टूडेंट को टॉर्चर करने वाले काम कर रहे हैं, सोचो जब यह सीनियर हो जाएंगे तो यहां आने वाले जूनियर का क्या हाल करेंगे।” “मेरे ख्याल से तुम्हें अभी जाकर कॉलेज स्टाफ से शिकायत करनी चाहिए, अगर तुम भी वही करोगे जो वो लोग कर रहे हैं तो तुममें और उनमें फर्क क्या रह जाएगा, शायद तब कॉलेज स्टाफ भी तुम्हारी कोई मदद ना करें।” “मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें सबक सिखाना तो बनता है, भले आगे जाकर मुझे स्टाफ से कोई मदद ना मिले।” ऐनी ने यह सुनकर अपना सर झटका “समझ नहीं आता तुम लड़के इतनी जिद्दी क्यों होते हो।” ___ आशु घर आने के बाद दोबारा सो गया। तकरीबन 5:00 बजे के करीब उसकी आंख खुली और वह उठकर बाहर आया। ‌ उसकी नानी ने किचन से उसे देखते हूए कहा “मैंने तुम्हारे लिए चाय और खाने के लिए पकोड़े बना रखे हैं, खा लो। तुमने सुबह भी कुछ नहीं खाया था।” आशु किचन में गया और अपने लिए चाय ले आया। उसने चाय के साथ पकोड़े भी ले लिए थे। डाइनिंग टेबल पर चाय के साथ पकोड़े खाते हुए उसने अपनी नानी से पूछा “नेनस, आपकी इतनी उम्र हो चुकी है, क्या आप मुझे अपने एक्सपीरियंस के हिसाब से बता सकती हैं आपने कभी किसी तरह का भूत या कोई डरावनी औरत देखी है। या कोई ऐसा जो काफी साल पहले मर चुका हो।” “कैसी पागलों वाली बात कर रहे हो...” उसकी नानी ने सब्जी काटते हुए कहा “ऐसा कुछ नहीं होता।”‌ वह कुछ देर रुकी और फिर आशु से पूछा “तुम यह क्यों पूछ रहे हो, कुछ हुआ है क्या?” आशु नानी को अपने साथ हुई घटनाओं के बारे में नहीं बताना चाहता था। इसलिए उसने बात को टालते हुए कहा “नहीं नेनस, वो आज हमारे क्लास में नेगेटिव एनर्जी नाम के किसी टाॅपिक को पढ़ा रहे थे, तो उसमें भूत प्रेत दिखने और ना दिखने की बात हो रही थी, बस इसीलिए पूछा। साइंस मानती है भूत प्रेत अगर है तो वह नेगेटिव एनर्जी हैं। अब नेगेटिव एनर्जी का वजूद है तो भूत-प्रेत के वजुद को भी कोई इग्नोर नहीं कर सकता।” “तुम और तुम्हारी साइंस, मुझे इससे दूर ही रखो।” उसकी नानी ने कहा और अपनी सब्जी काटने का काम जारी रखा। तकरीबन साढे़ पांच बजे आशु ने अपनी साइकिल पकड़ी और मार्केट की तरफ निकल गया। उसका घूमने का मन कर रहा था। देर शाम का वक्त था और शहर में भारी भरकम भीड़ थी। शहर की भारी-भरकम भीड़ में साइकल चलाते हुए वह शहर से बाहर की तरफ जाने लगा। वह अपने नाना के वेयर हाउस की तरफ जा रहा था। वेयर हाउस की तरफ जाते हुए उसकी नजर एक घर पर पड़ी और उसने अपनी साइकिल उसी वक्त रोक दी। घर जला हुआ था। घांस फुंस वाली जमीन पर यह घर यहां की एकमात्र इमारत थी जो दिखाई दे रही थी। आशु ने अपनी साइकिल को सड़क पर रोका और घर की तरफ चल पड़ा पर वह घर से थोड़ी दूर आकर रुक गया। घर की चौखट पर वहीं लड़की बैठी थी जिसे उसने कल रात देखा था। अपने उसी फुटबॉल के साथ जो आशु की कार के ऊपर कूदते हुए सामने आ गई थी। ‌

  • 6. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 6

    Words: 1640

    Estimated Reading Time: 10 min

        ध्रुव  लड़की को देखे जा रहा था। लड़की का ध्यान अभी उसकी तरफ नहीं था। अचानक लड़की ने ऊपर की तरफ देखा। जैसे ही उसने ध्रुव  को देखा और ध्रुव  ने अपने कदम पीछे लिए और साइकिल की तरफ दौड़ पड़ा। उसने साइकिल पकड़ी और फिर चलाते हुए वेयर हाउस की तरफ चला गया। वह पीछे मुड़कर भी नहीं देख रहा था।     वेयरहाउस पहुंचते ही उसने खुद से कहा “मेरे साथ कुछ ज्यादा ही बड़ा गड़बड़ घोटाला हो रहा है।”     उसने अपनी लाइन भी पूरी नहीं की थी तभी उसके नाना ने उसे देख लिया “अरे ध्रुव  बेटा, तुम यहां, वो‌ भी इतने दिनों बाद!! क्या बात है आज रास्ता भूल गए क्या जो यहां आने का कष्ट किया। तुम तो यहां चाय नाश्ता भी देने काफी कम आते हो, अब बिना किसी काम के ही यहां आ गए।”     “वो‌ नानस मेरा घर पर मन नहीं लग रहा था तो घूमने निकल आया, घूमते घूमते यहां वेयर हाउस आने का ख्याल आ गया।”     उसके नाना यह सुनकर खुश हुए। उन्होंने दूर खड़ी एक गाड़ी की तरफ देखा जिसका ड्राइवर उनका इंतजार कर रहा था और ध्रुव  से कहा “चलो अब आ गए हो तो एक ऑर्डर ही डिलीवर कर आओ, राजेश को पता है ऑर्डर कहां देना है, बस तुम यह देखना कस्टमर को‌ किसी तरह की प्रॉब्लम ना हो,‌ यह बिल है।” ध्रुव  के नाना ने उसे बिल पकड़ा दिया।     “पर नानस..” ध्रुव ‌ ने बुझा हुआ चेहरा बनाया क्योंकि उसे यह सब पसंद नहीं था।     “पर वर कुछ नहीं है, जल्दी से यह काम निपटा दो तब तक मैं वेयर हाउस के अंदर का काम निपटा देता हूं, आज इसी बहाने मैं जल्दी घर आ जाऊंगा।”     ध्रुव  ने अपनी साइकिल पार्क की और फिर राजेश के साथ ऑर्डर डिलीवरी करने चला गया। राजेश कोई 50 साल की उम्र का होगा। गहरे रंग वाले चेहरे के साथ राजेश ने चेक शर्ट पहनरखी थी। ऑर्डर डिलीवरी करते वक्त उनकी गाड़ी उस घर के सामने से गुजर रही थी जो जल चुका था और जहां ध्रुव  ने उसी लड़की को दोबारा देखा था जिसे वह पहले भी देख चुका था।     ध्रुव  ने घर की तरफ देखते हुए राजेश से पूछा “यह घर... यह घर ऐसा क्यों है... यहां क्या हुआ था?”     “ये...” राजेश ने घर की तरफ देखते हुए कहा “मत ही पूछो। यहां बहुत खौफनाक दुर्घटना हुई थी। रात को पूरा परिवार सो रहा था। तभी सिलेंडर लीक‌ होने की वजह से घर में आग लग गई। किसी को बचने का मौका नहीं मिला और पूरे 5 लोगों का परिवार आग में जलकर मर गया।”     “पांच लोगों का परिवार?” ध्रुव  ने सवालिया अंदाज अपने चेहरे पर दिखाया।     “हां 5 लोग, दादी, ‌ पति-पत्नी, उनके दो बच्चे जिसमें एक बेटा था और एक बेटी। आयुष शर्मा नाम था आदमी का। बेचारे मुंबई में रहते थे। पुश्तैनी जमीन थी तो आशीष ने यहां आकर घर बनवाया। अभी नए घर में आए हुए महीना भी नहीं हुआ था और यह हादसा हो गया।”     “ओह...” ध्रुव  ने एक नजर दोबारा घर की तरफ देखा। घर पर अभी तक कलर नहीं हुआ था। “तभी यहां अभी तक कोई कलर नहीं हुआ।” उसने कहा।     दोनों में इसके बाद कोई बात नहीं हुई। तकरीबन आधे घंटे बाद गाड़ी एक बेकरी शाॅप के सामने आकर रुकी। राजेश अंदर चला गया ताकी वह दुकान मालिक को बाहर बुला सके और सामान की डिलीवरी कर सके। वही ध्रुव  बाहर ही इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद राजेश एक लड़की के साथ बाहर आया। उस लड़की ने जब सूट पहन रखा था। हाथों में ग्लेबस थे और सर पर कवर जैसे वह ब्रेड बना रही हो।     ध्रुव  की नजर उस लड़की पर गई तो वो हैरान हो गया। “अरे ऐनी तुम यहां...!!” ध्रुव  ने हैरानी के साथ कहा।‌     “हां, पर इसमें इतनी हैरानी वाली कौन सी बात है।” ऐनी ने पूछा।     “तुम यहां क्यों हो... आई मीन तुम यहां क्या कर रही हो? और तुमने यह अजीब से कपड़े क्यों पहन रखे हैं?” ध्रुव ने हाथ बढ़ाते हुए पूछा।     “वो यह मेरे गार्डियन की दुकान है तो मैं शाम को अक्सर उनकी हेल्प के लिए नीचे आ जाती हूं। वो उमर दराज है तो उनसे सब काम ठीक से नहीं हो पाता।”     “वाह, यह तो काफी अच्छी बात है।” ध्रुव ‌ ने कहा और दुकान का नाम पढ़ा।     वहीं ऐनी‌ ने उससे पूछा “और तुम?” उसने ध्रुव  से यहां होने का कारण पूछा।     “वो तुम लोगों ने जो सामान मंगाया है मेरे नाना उसी तरह के सामान को सप्लाई करने का काम करते हैं। मैं आज वेयर हाउस घूमने आया था तो उन्होंने मुझे इस आर्डर को डिलीवरी करने के लिए कह दिया और मैं यहां तुम्हारे पास आ गया।”     ऐनी ने अपने चेहरे पर एक मुस्कान दिखाई और सामान चेक करने लगी। राजेश ने सामान निकाल कर बाहर रख दिया था।     “सब प्रॉपर है।” ऐनी ने कहा। यह सुनते ही राजेश सामान अंदर रखने लगा। ऐनी ध्रुव  से बोली “मेरे गार्डियन ने बताया वह लोग तुम्हारे नाना से पिछले कई सालों से सामान मंगवा रहे हैं, अभी तक सामान में कोई शिकायत नहीं आई, तुम्हारे नाना सच में काफी अच्छा काम कर रहे हैं, प्रोडक्ट की क्वालिटी चेक में भी वो खुद साथ आकर हमारे सामने प्रोडक्ट को चेक करवाते हैं।”     “सेटीफिकेशन के मामले में मेरे नाना का कोई जवाब नहीं है। काम कम हो मगर अच्छा होना चाहिए, उनका बस यही ऐम है।”     “आओ ना, मैं तुम्हें यहां की बैकरी चेक करवाती हूं।” ऐनी ने कहा और ध्रुव  को अपने साथ ले गई।    वह उसे बेसमेंट मे ले आई जहां पर बेकरी बनाने का काम हो रहा था। चार औरतें बेकरी बनाने का काम कर रही थी और वह खुद भी थी जो पहले हेल्प कर रही थी लेकिन अब ध्रुव के साथ थी। ऐनी ने उसे कुछ बेकरी टेस्ट करवाईं।     तकरीबन 15 मिनट बाद ध्रुव  ऐनी के साथ बाहर आया।  “वाउव यार, यहां की कुकिंग कमाल की है, मैं अभी तक स्वाद को भूल नहीं पा रहा हूं, देखना मैं अब से रोज यहां आया करूंगा।”     “बिल्कुल, तुम्हारा मोस्ट वेलकम रहेगा।”     दोनों ने एक दूसरे को बाय कहा और फिर ध्रुव  राजेश के साथ वापिस वेयर हाउस की तरफ चल पड़ा। वेयर हाउस पहुंचने के बाद उसने अपने नाना को ऑर्डर डिलीवरी का अपडेट दिया और फिर साइकिल पकड़कर वापसी का रास्ता पकड़ लिया।     अपनी साइकिल पर वह उसी घर के सामने से गुजर रहा था। मगर अब अंधेरा हो चुका था तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा पड़ा था और घर भी बड़ी मुश्किल से दिखाई दे रहा था। सड़क पर स्ट्रीट लाइटस लगी हुई थी इसलिए किसी तरह की दिक्कत नहीं थी। ध्रुव  की नजर अंधेरे में भी घर की तरफ थी। वह अंधेरे में घर को ना देखने के बावजूद उसे देखने की कोशिश कर रहा था।‌ इस दौरान उसका ध्यान सामने की तरफ नहीं था।     उसने सामने की तरफ देखा तो साइकिल की ब्रेक एकदम से लगा दी। सामने उसे देखने वाली लड़की फुटबॉल के साथ खड़ी थी। बिल्कुल सुन और एक टक ध्रुव को देखते हुए।     ध्रुव अपनी साइकिल से उतरा और धीरे-धीरे उसे आगे ले जाने लगा। लड़की अपनी जगह पर रुकी रही। ध्रुव की धड़कनें बढ़ीं हुई थी मगर फिर भी वह भाग नहीं सकता था। वह लड़की के करीब से निकल गया। अपना सर नीचे करके। ध्रुव  के आगे जाने के बाद वह उसकी तरफ घूम कर उसे देखने लगी। ध्रुव  भी पीछे मुड़कर उसे देख रहा था। ध्रुव  ने कुछ देर पीछे देखने के बाद लड़की को देखना छोड़ा और सामने की तरफ चेहरा किया। मगर जैसे ही उसने सामने की तरफ चेहरा किया एक लड़का उसके ठीक सामने खड़ा था। ध्रुव ‌अपनी जगह पर ही रुक गया। वो‌ 20-21 साल का छोटे बालों वाला लड़का था।     लड़की ने फुटबॉल को‌ नीचे गिरा दिया जो लुढ़कते हुए ध्रुव  के पैरों के पास आकर रुक गई। ध्रुव  ने फुटबॉल की तरफ देखा और फिर लड़के की तरफ। वो झुका‌ और फुटबॉल उठाने लगा।     ध्रुव ने फुटबॉल उठा कर ऊपर की तो लड़का उससे बोला “तुम हमें देख सकते हो, मगर कैसे?” ध्रुव ने यहा सुना तो उसका डर थोड़ा सा कम हुआ।     “वो...” ध्रुव  ने हल्की-हल्की सांस लेते हुए कहा “वो‌ हां, पर कैसे इसका जवाब मैं भी नहीं जानता। और सिर्फ तुम्हें नहीं बल्कि काफी लोगों को। दो-तीन दिनों से मैं काफी लोगों को देख पा रहा हूं जिन्हें मुझे नहीं देखना चाहिए या वो नहीं दिखाई देने चाहिए।”     “अगर तुम हमें देख सकते हो तो प्लीज हमारी मदद करो..” लड़का आगे आया और ध्रुव  के पास आकर बोला “मैं और हमारी पूरी फैमिली यहां इस घर में रहती थी।” उसने जले हुए घर की तरफ इशारा करते हुए कहा।     “मगर इस घर को तो आग लग गई थी।” ध्रुव‌‌ बोला।     “हमारे घर में आग नहीं लगी थी, बल्कि हमारे घर को जला दिया गया था, वो चार लोग थे जो एक पुरानी सी कार में हमारे घर पर आए, उन्होंने पहले सभी को चाकु से मारा, फिर आग लगा दी। मैंने  सिढीयो से उन आदमियों को यह करते हुए देखा, उन लोगों ने मुझे नहीं मारा, उन्होंने मुझे घर में बंद कर दिया जिसके बाद‌ आग लगने की‌ वजह से मेरी मौत हो गई, मेरी बहन भी मेरे साथ थी। उन चारों लोगों ने हम सभी को मार दिया। किसी को भी नहीं छोड़ा।‌ मेरे पिता की जान तो बड़ी बेरहमी से ली गई। प्लीज हमारी मदद करो। कोई नहीं जानता हमारे साथ क्या हुआ। ‌ सब लोगों को लगता हमारी मौत आग लगने से हुई। सबको सच्चाई बताओ और उन चारों लोगों को पर्दा फाश करो, बताओ सबको उन चारों ने हम सब को मार दिया।”     जेसै जैसे लड़का अपनी बात कह रहा था ध्रुव  के ऐसे लग रहा था जैसे उसके आसपास सन्नाटा पैदा हो रहा है। ऐसा सन्नाटा जो उसे अपनी तरफ खींच रहा था। ध्रुव  लड़के की बातों में पूरी तरह से खो गया था। लड़के की बात पूरी होते ही ध्रुव  की आंखों के आगे अंधेरा छाया और वह बहोश होकर वहीं गिर गया।         

  • 7. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 7

    Words: 1433

    Estimated Reading Time: 9 min

    ध्रुव के चेहरे पर पानी की बूंदें गिरीं और उसकी आँख खुली। आस-पास देखने पर पाया कि वह अपने कमरे में है। उसके नाना-नानी उसके दोनों ओर खड़े थे, उसकी ओर देख रहे थे। होश आते ही नानी उसके पास आईं और उसे अपने गले से लगा लिया। “क्या हुआ था तुम्हें मेरे बेटे? तुम अचानक ऐसे बेहोश कैसे हो गए?” उसकी नानी ने पूछा। उसके नाना ने कहा, “मैं वापस आ रहा था तो तुम्हें रास्ते पर देखा। मैं तुम्हें फौरन घर ले आया। बेहोशी में तुम कुछ बड़बड़ा भी रहे थे।” यह सुनकर ध्रुव ने हैरानी में अपने नाना से पूछा, “क्या? मैं क्या बड़बड़ा रहा था?” “मुझे कुछ ठीक से समझ नहीं आया, लेकिन जितना समझ आया उससे लग रहा था तुम कह रहे थे, ‘वहाँ आग नहीं लगी, उन्हें मारा गया है।’” “वो... ये... वो,” ध्रुव घबरा गया, “ये मेरे कॉलेज में मेरे एक्ट के डायलॉग थे। दोपहर से इन्हें रिपीट कर रहा था, शायद अपने आप मुँह से निकल रहे होंगे।” उसने बात को टाल दिया। “मगर तुम बेहोश कैसे हो गए थे?” उसकी नानी ने पूछा। ध्रुव ने कुछ सोचा और कहा, “वो नानी, मैं शाम को ऑर्डर डिलीवरी करने गया था। वहाँ एक बेकरी वाली दुकान थी। मैंने वहाँ काफी बेकरी खा ली थी, जिसके बाद मुझे अपना पेट भारी-भारी लग रहा था और चक्कर भी आ रहे थे। शायद इसी वजह से मैं बेहोश हो गया होऊंगा।” “भगवान का लाख-लाख शुक्र है तुम्हारे नाना वहाँ आ गए थे। आज से तुम्हारा बेकरी खाना बिल्कुल बंद।” उसकी नानी ने कहा और उसे दोबारा गले से लगा लिया। “मैं तुम्हारे खाने-पीने का ध्यान रखूँगी और तुम्हें हल्का खाना खिलाऊँगी।” ध्रुव कुछ नहीं बोला। उसके दिमाग में बस उसी लड़के की बातें घूम रही थीं। यह जो भी था, उसके लिए कोई आम बात नहीं थी। अगले दिन कॉलेज के लिए ध्रुव काफी पहले निकल गया। जल्दी निकलने की वजह से वह कॉलेज भी जल्दी पहुँच गया। ऐनी अभी-अभी अपनी स्कूटी पार्क करके लौटी थी। उसकी नज़रें ध्रुव पर पड़ीं तो चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई। “अरे वाह ध्रुव! लगता है आज सूरज पश्चिम से उगा है। तुम तो क्लास शुरू होने से पहले आ गए, वो भी काफी पहले।” “वो मैंने सोचा रोज़-रोज़ लेट जाना अच्छा नहीं होता, इसलिए आज जल्दी निकला हूँ।” “ऐसा पिछले दो दिन भी सोचते तो तुम आज क्लास के एक हाइलाइटेड बच्चे नहीं होते।” ऐनी ने टोंट वाले अंदाज़ में कहा। “किस्मत हर बार इतनी अच्छी नहीं होती।” ध्रुव बोला और अपने चेहरे पर मुस्कान दे दी। “अभी काफी टाइम पड़ा है, तो चलो कैंटीन चलते हैं।” ऐनी ने कहा। ध्रुव ने हाँ में सिर हिलाया और इस बात के लिए मान गया। दोनों कैंटीन में आए और चाय के साथ समोसे लेकर टेबल पर बैठ गए। ध्रुव अपने चेहरे से उदास लग रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि वह कल रात वाली बात के बारे में सोच रहा था। ऐनी ने उसके चेहरे को देखा और पूछा, “क्या बात है? तुम मुझे परेशान क्यों लग रहे हो?” “क...क...कुछ नहीं।” ध्रुव ऐनी को अपनी समस्या के बारे में नहीं बताना चाहता था। ऐनी ने अपने हाथ उसके हाथों पर रखे और कहा, “अब तुम मुझे अपना दोस्त मान सकते हो, एक अच्छा दोस्त। अगर तुम्हारी लाइफ में किसी तरह की प्रॉब्लम चल रही है या कुछ ऐसा है जिसे तुम दूसरों को नहीं बता पा रहे हो, तो तुम अपनी बात मुझसे शेयर कर सकते हो। मेरा यकीन करो, तुम्हारी बताई गई बात सिर्फ़ हम दोनों के बीच रहेगी।” ऐनी ने अपनी पूरी बात काफी दोस्ताना तरीके से कही। इतनी दोस्ताना तरीके से कि इसे सुनकर कोई भी अपनी सारी बातें बता दे। मगर ध्रुव अभी भी इसे लेकर कन्फ़्यूज था। ध्रुव ने ना में सिर हिलाया और कहा, “नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं। वो बस मैं अर्जुन के बारे में सोच रहा था।” “डरो मत।” ऐनी बोली, “जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, वह कुछ नहीं करेगा।” कैंटीन के बाद दोनों क्लास में चले गए जहाँ वे एक-दूसरे के अगल-बगल बैठे थे। टीचर ने क्लास में एंट्री ली और ध्रुव को देखते ही अजीब सा चेहरा बनाते हुए कहा, “क्या बात है ध्रुव महाराज? आज तो तुम वक़्त से पहले पहुँच गए। लगता है तुमने एक नई घड़ी ले ली।” क्लास के सब बच्चे हँस दिए। ध्रुव ने कुछ नहीं कहा और टीचर भी अपना लेक्चर लेने लगा। दो-चार टॉपिक पढ़ाने के बाद टीचर ने कहा, “नेगेटिव एनर्जी के बाद अगर कोई दूसरा टॉपिक साइंस के लिए इंटरेस्टिंग है तो वह है डायमेंशन का टॉपिक। माना जाता है इस यूनिवर्स में हज़ारों की तादाद में डायमेंशन हैं। हम इन्हीं हज़ारों डायमेंशन में से किसी एक डायमेंशन में रहते हैं। उन्होंने कई तरह के डायमेंशन की कल्पना कर रखी है जिसमें सबसे प्रसिद्ध डायमेंशन पैरेलल डायमेंशन है।” टीचर ने स्टूडेंट की तरफ़ देखा और कहा, “क्या आप लोगों में से कोई जानता है पैरेलल डायमेंशन क्या होता है?” “हाँ सर।” ऐनी ने अपना हाथ ऊपर किया। “ठीक है, मुझे इसके बारे में बताओ।” ऐनी अपनी जगह से खड़ी हुई, “पैरेलल डायमेंशन के बारे में थ्योरी है कि यह बिल्कुल हमारे डायमेंशन के जैसा होता है, चीज़ें भी बिल्कुल ऐसी ही होती हैं। अगर इसमें थोड़ा बहुत फ़र्क होता है तो वह बस इन्हीं चीज़ों का होता है कि अगर कोई चीज़ हमारे डायमेंशन में हो रखी है तो ज़रूरी नहीं वह हमारे पैरेलल डायमेंशन में हो रखी हो। फ़ॉर एग्ज़ैम्पल, अगर मैं इस वक़्त यहाँ इस क्लास में बोलकर आप सभी को पैरेलल डायमेंशन के बारे में बता रही हूँ तो ज़रूरी नहीं किसी दूसरे डायमेंशन में मैं ऐसा ही कर रही होंगी।” टीचर ने तालियाँ बजाईं, “वेरी गुड! पैरेलल डायमेंशन की थ्योरी डायमेंशन के अंदर सबसे कॉम्प्लिकेटेड थ्योरी में से एक है। इसका मेन कारण यह है कि अगर पैरेलल डायमेंशन का वजूद है तो वह हर एक इंसान के लिए अलग-अलग होगा। अब इससे यह समस्या खड़ी होती है कि अगर हमारी इस दुनिया में अरबों की आबादी है तो इसका मतलब अरबों की संख्या में पैरेलल डायमेंशन होंगे। यहाँ आकर यह सब चीज़ें नामुमकिन लगने लगती हैं। मगर यह जो साइंस है ना, पता है यह क्या कहती है? यह कहती है इस ब्रह्मांड में कुछ भी नामुमकिन नहीं।” टीचर ने इसी तरह से आगे की क्लास ली और अपने टॉपिक को पूरा किया। टॉपिक को पूरा करने के बाद वह अंत में बोले, “अगले लेक्चर में हम इसी डायमेंशन वर्ल्ड में कुछ और डायमेंशन के बारे में जानेंगे। सब के सब काफी इंटरेस्टिंग हैं और देखना आप सभी को इनमें बहुत मज़ा आएगा।” सभी स्टूडेंट ने अपने चेहरे पर खुशी दिखाई। क्लास के लेक्चर इसी तरह से होते रहे और सभी लेक्चर के बाद कॉलेज में छुट्टी हो गई। कॉलेज से बाहर आने के बाद ऐनी और ध्रुव ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और एक-दूसरे को अलविदा कहकर अपने-अपने घरों की तरफ़ चले गए। घर आने के बाद ध्रुव नहीं सोया। उसने एक क्यूब ली और बेड पर लेटकर लड़के की बातों के बारे में सोचने लगा। उसने सोचते हुए खुद से कहा, “देखा जाए तो उनके साथ काफ़ी बुरा हुआ है। जिसने भी यह किया है, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। पता नहीं ये लोग ऐसे कैसे दूसरों की जान ले लेते हैं। किसी की जान लेना आसान काम थोड़ी ना होता है। जान लेते वक़्त आखिर उन लोगों के हाथ क्यों नहीं काँपते? या फिर उन्हें सामने वाले पर दया क्यों नहीं आती? वो भी तो आखिर इंसान होते हैं जिनकी वे जान लेते हैं।” यह सब सोचने के बाद ध्रुव रुका और कुछ देर रुकने के बाद खुद से बोला, “मगर मैं यह कैसे करूँगा? मैं उन लोगों की मदद कैसे करूँगा? मुझे नहीं लगता मैं उनकी मदद कर पाऊँगा। नहीं-नहीं, मुझसे यह नहीं होगा।” वह कन्फ़्यूज था। रात को ध्रुव ने खाना खाया और सोने के लिए चला गया। आज वह दिन में सोया नहीं था इसलिए उसे पता भी नहीं चला कब नींद आ गई। रात के लगभग 2:00 बज रहे थे और ध्रुव के चेहरे पर अजीब से एक्सप्रेशन आ रहे थे। वह किसी तरह का डरावना सपना देख रहा था। इस डरावने सपने में वह स्ट्रीट लाइट वाली एक सड़क पर दौड़ रहा था। उसके पीछे स्ट्रीट लाइट एक के बाद एक बंद होती जा रही थीं। देखने से ऐसा लग रहा था जैसे उसके पीछे खौफ़नाक अंधेरा उसका पीछा कर रहा हो। ध्रुव बेचैन होने लगा। उसके चेहरे के एक्सप्रेशन भी भारी होने लगे। उसकी साँस रुकने लगी। चेहरा पसीने से भर गया। इससे पहले कि उसकी हालत और ख़राब होती, उसकी आँख खुल गई और वह एकदम से उठकर बैठ गया। मगर जैसे ही उठने के बाद उसने सामने की तरफ़ देखा, वह जोर से चिल्ला पड़ा।

  • 8. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 8

    Words: 1216

    Estimated Reading Time: 8 min

    ध्रुव एक डरावने सपने से उठा। आँख खुलते ही सामने किसी को देखकर वह जोर से चिल्लाया।  सामने फुटबॉल वाली लड़की खड़ी थी।  चिल्लाना बंद करते हुए लड़की ने कहा, "तुम हमेशा डराते क्यों रहते हो? हार्ट अटैक दिलवाना है क्या मुझे? मैं एक बार पहले भी मर चुकी हूं मुझे दोबारा नहीं मरना।" तभी उसके नाना-नानी कमरे के पास आ गए और दरवाजा खटखटाया। नानी ने बाहर से पूछा, "क्या हुआ ध्रुव? तुम ठीक तो हो ना? तुम जोर से क्यों चिल्लाए थे?" ध्रुव परेशान हो गया क्योंकि उसके नाना नानी सामने दरवाजे पर खड़े थे। लड़की सामने से बोली ,"फिक्र मत करो, वो लोग मुझे नहीं देख पाएंगे, सिर्फ तुम ही मुझे देख सकते हो" ध्रुव खड़ा हुआ और दरवाजा खोला। लड़की केवल उसे ही दिखाई देती थी, इसलिए उसे कोई चिंता नहीं थी। उसने नानी से कहा, "हाँ नैनस, मैं ठीक हूँ। बस एक डरावना सपना देखा था, इसलिए आँखें खुलते ही थोड़ा सा चिल्ला दिया..." "थोड़ा सा!!" उसके नाना हैरान होकर बोले, "तुम बहुत जोर से चिल्लाए थे।" "पता नहीं मेरे बेटे को क्या हो गया है।" नानी चिंतित स्वर में बोली, "आज पहले बेहोश होकर गिर गया और अब यह। इस बार छुट्टी के दिन मैं तुम्हें किसी जगह ले जाऊँगी ताकि पता चले तुम्हें क्या हुआ है। कहीं तुम्हारे ऊपर कोई ऊपरी साया तो नहीं है।" "कैसी बातें कर रही हो नैनस? जाओ सो जाओ, मैं ठीक हूँ। डरावने सपने रोज नहीं आते और यह ऊपरी साया वगैरह कुछ नहीं होता। मुझे कहीं नहीं जाना।" कहकर उसने दरवाजा बंद कर दिया। नाना-नानी सोने चले गए, जबकि ध्रुव लड़की के पास गया। लड़की ने कहा, "देखो, पहले तो मुझे घूरना बंद करो, दूसरा, मुझे डराना बंद करो।” ध्रुव धीमी  में आवाज में बोला “तुम भी ऐसे अचानक से मेरे सामने मत आया करो। आना ही हो तो पहले दरवाजा या खिड़की खटखटाओ या कोई इशारा करो जिससे मुझे पता चले।" लड़की ने हाँ में सिर हिलाया। ध्रुव गहरी साँसें ले रहा था।  "सच में, तुमने मुझे बहुत डरा दिया था।" वह बैठ गया और पूछा, "अच्छा, जो मैंने सपना देखा उसमें क्या तुम्हारा हाथ था?" लड़की ने ना में सिर हिलाया। "ठीक है।" ध्रुव पीछे की ओर होकर बैठ गया। कुछ देर दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। उसके सामने जो लड़की खड़ी थी भले ही वह भूत हो लेकिन वह दिखने में बहुत सुंदर थी। तकरीबन 19 साल की लड़की जो ध्रुव से 1 साल बड़ी थी। उसका रग गौरा था। बाल छोटे मगर सिल्की। आंखें नीले रंग की। ऐसी लड़की भुत हो तो भी कोई ठीक से ना दर पाए। ध्रुव काफी देर से घर रहा था। लड़की ने फिर कहा, "मुझे घूरना बंद करो।" ध्रुव ने कोशिश की, पर वह अजीब लगने लगा। लड़की ने सिर हिलाते हुए कहा, "तुमसे नहीं होगा, छोड़ो।" ध्रुव ने उससे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" "रीइइइइ...वाआआआ..." लड़की ने शब्दों को अजीब तरह से खींचते हुए कहा। "रीवा..." ध्रुव ने कहा, "अच्छा नाम है। इतना अच्छा नाम है, फिर तुम ऐसे भूत कैसे बन गई?" "हाँ... क्योंकि नाम का मरने से कोई लेना देना नहीं होता।" रीवा ने एक झटके में कहा। ,"मैं नहीं जानती तुममे ऐसा क्या खास है जो इस पूरी दुनिया में सिर्फ तुम ही मुझे देख सकते हो, और मेरे भाई को भी, जो अभी यहां पर नहीं है। लेकिन यह हमारे लिए किसी लॉटरी से कम नहीं।" "मैं खुद हैरान हूं ऐसा क्यों हुआ है।" ध्रुव बोला। तभी लड़की का भाई प्रकट हुआ। उसने सबसे पहले पूछा, "क्या तुम हमारी मदद करोगे?" ध्रुव एक झटके से पीछे हट गया। "ओह... तुम!!  आखिर डराना तुम्हारे खून में है क्या? तुम लोग नॉर्मल एंट्री नहीं कर सकते?" "वो माफ़ करना..." लड़के ने कहा, "हमारा आना-जाना ऐसे ही होता है। मुझे नहीं पता था कि तुम डर जाओगे।" "फिलहाल तो डर ही रहा हूँ, मगर धीरे-धीरे आदत हो जाएगी। तुम लोग भुत जो हो" ध्रुव ने नॉर्मल तरीके से कहा। फिर उसने लड़के से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" "सिद्धार्थ..." लड़के ने कहा। "तुम्हारा नाम भी अच्छा है।" ध्रुव बोला। लड़के ने हाँ में सिर हिलाया और पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" "ध्रुव।" "तुम्हारा असली नाम?" सिद्धार्थ ने तुरंत पूछा। "यही मेरा असली नाम है।" ध्रुव ने आँखें मोटी करते हुए कहा। "मगर यह तो बच्चों वाला नाम लग रहा है।" सिद्धार्थ बोला। ध्रुव ने उदास चेहरा बना लिया। "मेरा नाम इतना भी बुरा नहीं..." उसने ओवरएक्टिंग करते हुए कहा। कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर सिद्धार्थ ने पूछा, "मैं जानना चाहता हूँ, तुम हमारी मदद करोगे या नहीं? हमारे कातिल अभी तक नहीं पकड़े गए। यह बात मुझे बहुत परेशान करती है, मगर मैं कुछ नहीं कर सकता। अब सारी उम्मीदें तुमसे हैं। बताओ, क्या तुम हमारी मदद करोगे?" ध्रुव सिद्धार्थ की ओर देखने लगा। वह कन्फ्यूज था। एक सेकंड सोचने के बाद उसने कहा, "हाँ, मैं तुम्हारी मदद करूँगा, मुझे नहीं लगता इसके अलावा मेरे पास कोई और रास्ता है। फिर मुझे यह भी जानना है मैं भूतों को कैसे देख सकता हूं?" रीवा और सिद्धार्थ खुश हो गए। सिद्धार्थ बोला, "हम तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूल पाएँगे। तुम्हारी मदद भी हम कर देंगे। क्या पता तुममें कोई स्पेशल पावर हो?" ध्रुव मुस्कुराया ,"स्पेशल पावर जैसा कुछ नहीं होता" रीवा ने फुटबॉल ध्रुव की ओर करते हुए कहा, "थैंक्स, हमारी मदद करने के लिए।" ध्रुव ने फुटबॉल पकड़ी। "वेलकम... यह फुटबॉल... यह भूत कैसे बन गई?" "हम नहीं जानते।" सिद्धार्थ ने कहा, "जो भी है, तुम्हारे सामने है।" आधा घंटा बीत चुका था। ध्रुव फुटबॉल देखते हुए कमरे में घूम रहा था। उसने सिद्धार्थ से पूछा, "मुझे बताओ, अब मैं तुम्हारी मदद कैसे करूँ? क्या तुम जानते हो कि वो चार लोग कौन थे?" सिद्धार्थ ने ना में सिर हिलाया। "उन्होंने अपने चेहरे पर नकाब पहन रखा था।" "तो फिर उनका पता कैसे चलेगा?" ध्रुव ने पूछा। सिद्धार्थ ने सोचा और फिर कहा, "मैं नहीं जानता, तुम हमारी मदद कर रहे हो तो तुम देखो कैसे करनी है।" "मैं कोई डिटेक्टिव नहीं हूँ।" ध्रुव बोला और फिर घूमने लगा। "अगर डिटेक्टिव होता तो शायद कोई रास्ता निकाल लेता।" वह कातिलों को ढूँढने के तरीके के बारे में सोच रहा था। "पता नहीं डिटेक्टिव अपना काम कैसे करते होंगे।" थोड़ा सोचने के बाद उसने पूछा, "अगर तुमने उनका चेहरा नहीं देखा, तो क्या कुछ ऐसा देखा है जिससे उनका पता लग सके? कोई भी चीज़, छोटी-बड़ी, कुछ भी।" सिद्धार्थ को कुछ याद आया। वह एक्साइटमेंट से बोला, "हाँ, एक चीज़ है! वो चारों एक पुरानी मारुति कार (1990 मॉडल) में आए थे। ऐसी गाड़ियाँ हमारे शहर में कम ही हैं। मैंने गाड़ी को ध्यान से देखा है, अगर मुझे वह गाड़ी फिर दिखी तो मैं पहचान लूँगा। इससे तुम्हें एक रास्ता मिल जाएगा।" ध्रुव ने सोचा। फिर कन्फ्यूज होकर कहा, "तुम्हारे पास कोई और चीज़ नहीं?" सिद्धार्थ ने ना में सिर हिलाया। ध्रुव ने रीवा से पूछा, "तुम्हारे पास?" उसने भी ना में सिर हिलाया। ध्रुव ने दोनों से पूछा, "तुम दोनों के पास कोई ऐसी पावर नहीं है जिससे कोई और रास्ता मिले? टाइम ट्रेवल जैसी पावर हो तो क्या ही कहना..." दोनों ने ना में सिर हिलाया। "नहीं... यानी हमारे पास बस कार ही एकमात्र सुराग है।" ध्रुव ने चेहरा नीचे कर लिया। उसने अपने सर को झटका और बोला, "ठीक है, अब कल से बनता हूँ मैं डिटेक्टिव और लगाता हूँ पता... तुम्हारे कातिलों का..." उसने आत्मविश्वास से कहा। ,"मगर एक कर यह कोई अच्छा क्लु नहीं है"

  • 9. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 9

    Words: 1962

    Estimated Reading Time: 12 min

    ध्रुव आज फिर कॉलेज जल्दी आ गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि वह पूरी रात सोया ही नहीं था। पहले वह सिद्धार्थ और रीवा से बात करता रहा। फिर, दोनों के जाने के बाद, वह कातिलों को ढूँढने के बारे में सोचने लगा। सुराग के रूप में उसके पास बस एक ही जानकारी थी: कार की जानकारी, जिसका इस्तेमाल करके उसे कातिलों का पता लगाना था। ऐनी दोबारा उसे पार्किंग एरिया में मिली। पर इस बार ध्रुव पहले से वहाँ मौजूद था। वह साइकिल को पकड़कर खड़ा हुआ था, अपनी सोच में गुम। ऐनी ने अपनी स्कूटी उसके पास रोकी। ध्रुव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी; वह खोया हुआ था, इसलिए ऐनी ने स्कूटी का हॉर्न बजाया। ध्रुव एकदम से चौंका और होश में आया। “क्या बात है? कहाँ खोए हुए हो?” ऐनी ने पूछा। “वो...वो...वो मैं असाइनमेंट के बारे में सोच रहा था।” “पर कल तो किसी सर ने कोई असाइनमेंट नहीं दिया।” ऐनी बोली और अपनी स्कूटी खड़ी करने लगी। “मैं कल के नहीं, बल्कि परसों के असाइनमेंट के बारे में सोच रहा था।” “हाँ, मगर सर ने हमें परसों भी कोई असाइनमेंट नहीं दिया।” ध्रुव ने इधर-उधर देखते हुए कहा, “ये हमारे कॉलेज के टीचर फिर करते क्या हैं?” ऐनी उसके पास आ गई, “अब बताओ, तुम क्या सोच रहे थे?” “अरे, मैं असाइनमेंट के बारे में ही सोच रहा था; आई मीन, इस बारे में कि कोई टीचर हमें कोई असाइनमेंट क्यों नहीं दे रहा।” “कॉलेज की शुरुआत है, इसलिए असाइनमेंट कम मिल रहे हैं। सात-आठ दिन बाद देखना, इतने असाइनमेंट होंगे कि कुछ और करने के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा।” दोनों क्लास की तरफ चलने लगे। ऐनी ने दोबारा उससे पूछा, “कोई बात है तो बता दो। तुम मुझे कल भी परेशान से लग रहे थे। मैं तुम्हें कह चुकी हूँ, हम अब अच्छे दोस्त हैं, इसलिए कोई भी बात हो, उसे बेझिझक बता सकते हो; मैं तुम्हारी बात किसी से शेयर नहीं करूँगी।” “अरे, कोई बात नहीं; होती तो मैं तुम्हें जरूर बताता।” “पर तुम्हारा चेहरा देखकर ऐसा नहीं लग रहा। तुम्हारे चेहरे की हवाइयाँ उड़ी रहती हैं, जो सामान्य बात नहीं है।” ऐनी को अब पता चल रहा था कि ध्रुव उससे कुछ छिपा रहा है, और वह इस बात को जानना चाहती थी। ध्रुव कुछ नहीं बोला। दोनों क्लास में चले गए। क्लास के पहले टीचर आए और उन्होंने अपने पुराने लेक्चर को आगे बढ़ाया। “तो डियर स्टूडेंट्स, कल हम डायमेंशन के बारे में पढ़ रहे थे, और मैंने आप सभी को पैरेलल डायमेंशन के बारे में बताया था। अब मैं आप सभी को इनमें कई और दिलचस्प डायमेंशन के बारे में बताता हूँ। पैरेलल डायमेंशन के बाद दूसरा दिलचस्प डायमेंशन आता है, वह है वॉयड डायमेंशन। इसे 0 डायमेंशन भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि इस डायमेंशन में, सिवाय स्पेस के, और कुछ नहीं है। यह पैरेलल डायमेंशन का ही एक रूप है, मगर ऐसा जहाँ कुछ भी शुरू नहीं हुआ था; ना कोई बिग बैंग, ना ही कुछ और।” सारे स्टूडेंट ध्यान से टीचर की बात को सुन रहे थे। “वॉयड डायमेंशन के बाद एक और दिलचस्प डायमेंशन आता है, वह है वन-वे डायमेंशन। एक ऐसा डायमेंशन जहाँ कोई पार्टिकल जा सकता है, मगर वापस नहीं आ सकता। बच्चों, मैं तुम सभी को जितने भी डायमेंशन के बारे में बता रहा हूँ, यह कोई इमेजिनेशन नहीं है; यह सभी डायमेंशन श्रोडिंगर के समीकरण से निकलकर आए हैं; श्रोडिंगर, जिसे आप सब जानते होंगे। उनके बिल्ली के एक्सपेरिमेंट ने सबसे पहले डायमेंशन को डिस्कवर किया था। इसके बाद उन्होंने एनर्जी इक्वेशन दी, जिसने डायमेंशन के कई सारे प्रकार को दुनिया के सामने रखा। वे एक महान वैज्ञानिकों में से एक थे, और उनकी बदौलत आज हम डायमेंशन के बारे में इतना जानते हैं कि इस पर किताबों की किताबें मौजूद हैं।” ध्रुव का ध्यान आज क्लास के लेक्चर की तरफ कम था, मगर इसके बावजूद उसने लेक्चर पर कहीं-कहीं काफी ज़्यादा ध्यान दिया। टीचर अपने लेक्चर को खत्म करने पर आए, तो अचानक ध्रुव के दिमाग में कुछ आया, और वह अपना हाथ ऊपर करते हुए खड़ा हो गया, “सर, मुझे आपसे एक सवाल पूछना है।” “क्या, ध्रुव महाराज?” टीचर ने मजाकिया अंदाज़ में कहा, “तुम्हारे चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे तुम्हें क्लास में नींद आ रही है। अब तुम्हें सवाल पूछना है? चलो, पूछो, क्या पूछना है?” “वो सर, यह सवाल दो दिन पहले पढ़ाए गए टॉपिक से रिलेटेड है; नेगेटिव एनर्जी के बारे में।” “ओके, यानी टाइम के मामले में तुम्हें हमेशा से पीछे रहने की आदत है; दो दिन बाद पुराने टॉपिक के बारे में पूछ रहे हो। चलो, नो प्रॉब्लम; बताओ, तुम्हें इसमें क्या जानना है?” “सर, क्या नेगेटिव एनर्जी में कोई मैटर भी शामिल हो सकता है? आई मीन, भूत-प्रेतों के मामले में एक इंसान नेगेटिव एनर्जी में कन्वर्ट होता है। क्या ठीक इसी तरह कोई मैटर, यानी कि कोई चीज़ भी, नेगेटिव एनर्जी में कन्वर्ट हो सकती है? जैसे मान लो यह बेंच...” उसने सामने मौजूद बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा, “...या फिर आपका लेक्चर स्टैंड, या फिर कोई फ़ुटबॉल।” टीचर उसके चेहरे की तरफ देखते रहे। “कहाँ से लाए ऐसा सवाल...” टीचर ने अजीब से अंदाज़ में कहा। फिर हल्की साँस ली और बोले, “हाँ, पॉसिबल है। नेगेटिव एनर्जी, यह एनर्जी का एक फॉर्म है। अब एनर्जी पार्टिकल का निर्माण करती है, तो जाहिर है नेगेटिव एनर्जी मिलकर नेगेटिव पार्टिकल का निर्माण करेगी। जब ये नेगेटिव पार्टिकल आपस में मिलेंगे, तो नेगेटिव मैटर का निर्माण होगा। किसी चीज़ का भी नेगेटिव एनर्जी में कन्वर्ट होना पॉसिबल है। यानी बेंच या फिर मेरा यह लेक्चर स्टैंड भी एक भूत बन सकता है। हाँ, प्रॉब्लम यह है कि कन्वर्ज़न किस तरह से काम करता है, इस बारे में कोई पता नहीं लगा सकता। अभी तो नेगेटिव एनर्जी पर ही सवालिया निशान है, तो आगे की चीज़ों के बारे में तो बात ही क्या करना।” ध्रुव ने सर हिलाकर दिखाया; उसे चीज़ें समझ में आ गई थीं, हालाँकि वह ज़्यादा कुछ ठीक से समझ नहीं पाया था। इस क्लास के खत्म होने के बाद बाकी की क्लासेस भी चलती रहीं। ध्रुव ने एक क्लास गैप के बीच लाइब्रेरी में जाने का सोचा। ऐनी ने उसे जाते हुए देखा, तो वह भी उसका पीछा करने लगी। लाइब्रेरी इस वक़्त खाली थी। लाइब्रेरी में आने के बाद ध्रुव उस तरफ़ जाने लगा जहाँ कंप्यूटर मौजूद थे। लाइब्रेरी का माहौल अलग था। दिन होने के बावजूद यहाँ ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ था मानो रात के बारह बजे का टाइम हो। अचानक ध्रुव को किसी अलग तरह का खिंचाव महसूस हुआ। उसने अपने कदमों की गति कम कर दी। अपने पीछे उसे अंधेरे के होने का एहसास हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे लाइब्रेरी की किताबें हवा में उड़कर उसके पीछे हों; किसी खतरनाक जानवर की तरह उसका शिकार करने के लिए झपटा मारने को तैयार। ध्रुव ने अपने कदम रोके और एकदम से पीछे पलटा। जैसे ही वह पीछे पलटा, उसके पीछे का नज़ारा वैसा ही था जैसा उसे महसूस हो रहा था। अंधेरे के बीच लाइब्रेरी की किताबें किसी पागल जानवर की तरह उस पर झपट्टा मारने को तैयार थीं। किताबों में से एक किताब जानवर की तरह हमला करने के लिए टूटी, और ध्रुव पीछे होते हुए नीचे गिर गया। बाकी किताबों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दिखाई और जानवरों की तरह उस पर हमला करने के लिए टूटीं। ध्रुव तेज़ी से पीछे होने लगा। पीछे वह कंप्यूटर टेबल से टकराया, और उसने अपना हाथ आँखों के आगे रखकर गर्दन नीचे कर ली। “ध्रुव...” ऐनी ने दरवाज़े के पास आते ही उसे नीचे गिरा देख कहा। ध्रुव ने अपना हाथ हटाया, तो सब कुछ नॉर्मल था; ना तो यहाँ किसी तरह का अंधेरा था, ना ही किताबें पागल जानवरों की तरह उस पर झपट्टा मारने के लिए तैयार थीं। ऐनी उसके पास आई, “तुम ठीक तो हो ना? यह ऐसे नीचे क्यों गिरे पड़े हो?” “वो...” ध्रुव को समझ नहीं आ रहा था; अभी जो हुआ वह क्या था। वह ऐनी को भी इस बारे में नहीं बता सकता था। उसके दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। “वो पता नहीं, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मुझे भ्रम हो रहे हैं।” उसने सामान्य वे में किताबों की तरफ़ देखते हुए कहा। “भ्रम...!!” ऐनी हैरानी से बोली, “व्हाट यू मीन बाय इल्यूज़न...?” “मुझे अभी ऐसे लगा जैसे यहाँ कमरे में अंधेरा था और किताबें मुझे खाना चाहती हैं।” उसने ऐनी को अभी की बात बता दी, क्योंकि वह अपने डर को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था। “मगर यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं था।” ऐनी ने उसे खड़ा किया। “मुझे भी दिख रहा है, मगर तुम्हारे आने से पहले यहाँ का माहौल बिल्कुल अलग था। मुझे नहीं पता यह क्यों हुआ, यह भ्रम; मुझे यह भ्रम क्यों हो रहे हैं!!” “क्या तुम्हें इससे पहले कोई और भी भ्रम हुआ था?” “हाँ... जब मैं पानी में था, तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मुझे अंदर खींच रहा है... एक औरत, जिसका आधा शरीर मूर्दे की तरह सड़ा-गला था।” ध्रुव ने इस बात को बताना भी बेहतर समझा; अपने डर को कम करने के लिए उसने यह बात भी शेयर कर दी। ऐनी के चेहरे पर सन्नाटा था। उसे समझ नहीं आ रहा था वह इसके जवाब में क्या कहे, क्या नहीं। उसने ध्रुव की पीठ पर हाथ फेरा और कहा, “घबराओ मत, सब सही हो जाएगा। शाम को शॉप पर आना; हम वहाँ बैठकर इस बारे में बात करेंगे। चलो, अभी क्लास में चलते हैं; क्लास का टाइम हो गया है।” ऐनी उसे क्लास में ले गई ताकि वह इन सब बातों को भूलकर अपना ध्यान कहीं और लगा सके। दोपहर को सारी क्लासेस खत्म होने के बाद दोनों एक साथ पार्किंग एरिया से बाहर आ रहे थे। ध्रुव अपने चेहरे से शांत था। बाहर आने के बाद ऐनी उससे बोली, “इस बारे में ज़्यादा सोचो मत; तुम जितना सोचोगे, उतना परेशान होओगे। घर जाने के बाद एक अच्छी नींद लेना, और शाम को मिलना; वहाँ बैठकर आराम से डिस्कस करेंगे।” “हम्मम।” ध्रुव ने बुझे मन से हाँ में सिर हिला दिया। दोनों अपने-अपने घरों के लिए निकल गए। ध्रुव अपनी साइकिल के साथ चलते हुए पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ रहा था। इतने में अर्जुन और उसके दोस्त बाइक के साथ वहाँ आ गए। अर्जुन ने बाइक उसकी साइकिल के सामने रोक दी। उसके दोस्तों में से एक दोस्त ने अपनी बाइक को उसकी साइकिल के पीछे रोक दिया, जबकि एक दोस्त ने उसकी साइकिल के दाईं ओर। बाईं ओर काँटेदार झाड़ियों से भरी ढलान थी जो काफी नीचे तक जा रही थी, तो उस तरफ़ कोई भी नहीं गया। अर्जुन अपनी बाइक से नीचे उतरा और स्टैंड लगाकर ध्रुव की तरफ़ बढ़ता हुआ बोला, “क्यों बे सयाने, क्लास की टॉप लड़की के साथ घूमता है? तुम्हारी इतनी हिम्मत? बच्चों वाला नाम रखकर क्लास की टॉप लड़की से दोस्ती करेगा?” “तुम्हें इससे मतलब...” ध्रुव ने उसे गुस्से से देखकर कहा। अर्जुन का दोस्त, जो उसके दाईं ओर खड़ा था, बोला, “उस लड़की से दूर रहना; वह अर्जुन की पसंद है; अर्जुन को वह लड़की हर हाल में चाहिए।” अर्जुन उसके पास आ गया, “अगर इसके बावजूद तुमने उसके पास आने की कोशिश की, तो तुम्हारा वह हश्र होगा जो तुमने कभी सोचा भी नहीं होगा।” ध्रुव ने अर्जुन के मुँह पर जोरदार मुक्का जड़ दिया, “मुझसे दूर रह, साले गँडें!” ध्रुव गुस्से से बोला। अर्जुन के दोस्त नीचे उतरे और ध्रुव पर झपट पड़े। ध्रुव और उसके दोस्तों में हाथापाई होने लगी। अर्जुन ने मुँह को हाथ लगाकर अपने हाथ पर खून देखा। अर्जुन के मुँह से इस मुक्के से खून निकलने लगा था। वह आग-बबूला हो उठा। उसकी आँखों में गुस्सा सवार था। उसने ना आव देखा, ना ताव। वह ध्रुव के पास गया और उसे पीछे कंधों से पकड़कर ढलान की तरफ़ फेंक दिया। ध्रुव ढलान पर गिरा और लुढ़कते हुए नीचे चला गया; इतना नीचे कि वह दिखना ही बंद हो गया।

  • 10. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 10

    Words: 1923

    Estimated Reading Time: 12 min

    ध्रुव की आँखें तकरीबन एक घंटे बाद खुलीं। वह उठा तो उसने खुद को सड़क पर पाया; उसी जगह जहाँ से उसे नीचे गिराया गया था। उसने इधर-उधर देखा; दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। ध्रुव कन्फ़्यूज़ हो गया। उसे अच्छे से याद था कि अर्जुन ने उसे नीचे फेंक दिया था, तो वह अब यहाँ वापस कैसे? उसने अपनी साइकिल देखी; उसकी साइकिल थोड़ी ही दूर पर खड़ी थी। ध्रुव साइकिल की तरफ़ गया और उसे लेकर घर चला गया। घर का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर प्रवेश किया, तो नानी ने टीवी देखते हुए उससे पूछा, “आज तुम एक घंटा लेट कैसे आए?” “वो...नानी, आज एक्स्ट्रा क्लास थी...इसलिए आने में देरी हो गई।” ध्रुव जल्दी कमरे में गया और आईने के सामने खड़े होकर खुद को देखने लगा। उसके चेहरे पर चोट का एक निशान तक नहीं था। उसको अच्छे से याद था कि हाथापाई में उसके मुँह पर कुछ मुक्के पड़े थे, जिसकी वजह से खून निकलने लगा था। उसने अपनी कलाइयाँ देखीं; जब वह झाड़ियों में गिरा था, तो कटीली झाड़ियों के कारण उसकी कलाइयों पर काफी रगड़ आई थी, मगर इस वक़्त उसकी कलाइयाँ भी साफ़ थीं। “अब आखिर यह क्या पंगा है?” ध्रुव ने हैरानी से खुद से कहा, “मेरे साथ यह सब क्यों हो रहा है?” उसने सवाल किया। वह कुछ देर तक खुद को आईने में देखता रहा; इसके बाद फ़्रेश हुआ और सोने के लिए चला गया। शाम के लगभग पाँच बजे उसने अपनी साइकिल ऐनी की शॉप के सामने रोकी। वह अंदर गया और ऐनी को “हाय” बोला। “हाय...” ऐनी ने उसे जवाब देते हुए कहा, “मुझे बस पाँच मिनट दो; मैं कस्टमर को सर्व करके आती हूँ।” “हाँ, ठीक है...” ध्रुव एक टेबल पर जाकर बैठ गया और ऐनी के आने का इंतज़ार करने लगा। पाँच मिनट बाद ऐनी बटर केक के साथ आई और उसे उसके सामने रखते हुए पूछा, “अब मुझे बताओ, तुम्हारे साथ यह कब से हो रहा है?” वह उसके ठीक सामने बैठ गई। “क्या?” ध्रुव ने ऐसे रिएक्ट किया मानो किसी ऐसे टॉपिक पर बात हो रही हो जिसके बारे में उसे पता ही नहीं। “व्हाट क्या? तुम्हारे भ्रम! तुमने मुझे लाइब्रेरी में इसके बारे में बताया था। मैंने शाम को तुम्हें इसलिए यहाँ बुलाया था ताकि हम इस बारे में बात कर सकें।” ध्रुव इस बात को टालना चाहता था, “वो, मैं कल रात को सोया नहीं था, तो उस वजह से हुआ होगा। तुम फ़िक्र मत करो; सब नॉर्मल है।” “सब नॉर्मल नहीं है।” सामने से ऐनी बोली, “तुम्हारे चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई थीं। चलो, अब चुपचाप बताओ, मुझे तुम्हारे साथ यह कब से हो रहा है?” “मैं तुम्हें कुछ ठीक से नहीं बता सकता, मगर ऐसा लग रहा है जैसे यह पिछले तीन-चार दिनों से मेरे साथ हो रहा है।” ध्रुव ने कुछ बातों को बताना ठीक समझा, “अब क्यों हो रहा है, मैं यह नहीं जानता।” “तुम्हारे साथ इसमें क्या होता है?” “बस मुझे अजीबोगरीब चीज़ें दिखती हैं; ऐसी चीज़ें जो मुझे नहीं दिखनी चाहिएं। फ़ॉर एग्ज़ैम्पल, स्विमिंग पूल के अंदर मुझे वह औरत दिखी; आज लाइब्रेरी में अंधेरा और जानवरों की तरह काटने वाली किताबें।” “इसके अलावा कुछ और?” ध्रुव के चेहरे पर सन्नाटा छा गया। अभी भी कुछ और बातें थीं जो वह बता सकता था; जैसे वसीम अंकल का दिखना, रीवा और सिद्धार्थ के बारे में, इसके अलावा आज अर्जुन के साथ हुई घटना के बारे में। ध्रुव ने हल्की साँस ली और ना में सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं।” “क्या तुम पूरे यकीन के साथ कह सकते हो कि तुम्हें इसके अलावा कुछ और नहीं दिख रहा; कोई...कोई ऐसा जो काफ़ी पहले मर चुका हो?” ऐनी ने अपने शब्दों को रोकते हुए कहा। “मुझे बस औरत दिखी, जिसके बारे में मैं नहीं जानता कि वह ज़िंदा है या मर चुकी है।” ध्रुव ने केक खाते हुए ऐसे कहा जैसे कोई मज़ाक किया हो। ऐनी उसे घूरकर देखने लगी, “यह मज़ाक की बात नहीं है।” ऐनी बोली, “अगर तुम्हें भूत-प्रेत दिखाई देते हैं, तो मुझे इसके बारे में बताओ।” “नहीं, मुझे नहीं दिखाई देते।” ध्रुव ने साफ़ मना कर दिया। ऐनी के चेहरे पर अजीब सा एक्सप्रेशन आया जो उसके गुस्से को दिखा रहा था। “तुम सच बोल रहे हो ना?” उसने हल्के गुस्से वाले अंदाज़ में कहा। ध्रुव केक खाते हुए बोला, “तुम तो मुझसे ऐसे सवाल कर रही हो जैसे मैंने किसी का मर्डर कर दिया हो।” ऐनी ने खुद को शांत किया, “वो, तुम काफ़ी अजीब हो जाते हो, इसलिए पूछा।” अचानक एक बूढ़े अंकल वहाँ आए और उन्होंने केक की एक और प्लेट रख दी, “बच्चों, यह लो, यह भी खा लो।” ऐनी ने बूढ़े अंकल की तरफ़ हाथ करते हुए कहा, “यह मेरे अंकल हैं; मेरे संरक्षक।” “ओह, हाय अंकल।” ध्रुव बोला। ऐनी के अंकल ने हाँ में सिर हिलाया और वहाँ से चले गए। ध्रुव और ऐनी में थोड़ी और बातें हुईं जो कॉलेज के बारे में थीं। इसके बाद ध्रुव खड़ा हुआ और जाने का कहते हुए बोला, “अच्छा, मैं अब चलता हूँ।” “इतनी जल्दी? अभी तो तुम्हें आए हुए सिर्फ़ बीस मिनट हुए हैं।” “वो, मुझे साइबर कैफ़े भी जाना है; बस इसलिए।” “ठीक है।” ऐनी खड़ी हुई और उसे बाहर छोड़ने के लिए उसके साथ चलने लगी। बाहर आने के बाद उसने कहा, “तुम्हें दोबारा इस तरह की प्रॉब्लम हो, तो मुझे बताना। अभी के लिए ना तुम इस बारे में ज़्यादा सोचना, ना मैं इस बारे में ज़्यादा सोचूँगी। कम सोने या फिर खाने-पीने की वजह से कई बार ऐसा हो जाता है, तो जस्ट इग्नोर इट और ओवरथिंकिंग मत करना।” “मुझे तो तुम मुझसे ज़्यादा ओवरथिंकिंग करती हुई दिख रही हो।” ध्रुव बोला, “इतनी ज़्यादा टेंशन तो मुझे इन चीज़ों की नहीं है जितनी तुम्हें हो गई है।” ध्रुव ने अपनी बात बिना किसी एक्सप्रेशन के कही, जो इस बात को कूल बना रही थी। ऐनी ने कोई जवाब नहीं दिया और बस मुस्कुरा दी। दोनों ने एक-दूसरे को बाय बोला, और फिर ध्रुव साइबर कैफ़े के लिए निकल गया। साइबर कैफ़े पहुँचने के बाद वह इंटरनेट पर कस्बे के लोगों की प्रोफ़ाइल चेक करने लगा। वह फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल चेक कर रहा था। कस्बे के लोग सोशल लाइफ़ में काफ़ी ज़्यादा इन्वॉल्व्ड थे, इसलिए कौन ज़्यादातर क्या करता है, इसके बारे में फ़ेसबुक या ऐसी ही किसी एप्लीकेशन से ही पता लगाया जा सकता था। ध्रुव हर किसी की प्रोफ़ाइल पर जाकर उनके फ़ोटोस देख रहा था। काफ़ी सर्फिंग करने के बाद उसे एक फ़ोटो में वही कार दिखाई दी जिसकी बात सिद्धार्थ ने की थी। हालाँकि यह वही कार है, यह नहीं कहा जा सकता था, मगर अभी तक की सर्फिंग में उसे बस इसी आदमी के पास ही यह कार दिखाई दी थी। ध्रुव ने आदमी का नाम पढ़ा: “राजवीर मेहता।” उसने सर्फिंग बंद की और साइकिल लेकर अपने घर की तरफ़ चला गया। रात को वह सबके साथ खाना खाने बैठा था। उसके नाना ने हल्की बातचीत शुरू करते हुए उससे पूछा, “तुम्हारी तबीयत अब कैसी है? तुम्हें दोबारा कुछ फ़ील हुआ?” “नहीं, नाना; मैं ठीक हूँ।” “और तुम्हारा कॉलेज कैसा चल रहा है?” उसकी नानी ने पूछा, “टीचर कैसे पढ़ा रहे हैं और इन दिनों तुमने क्या कुछ पढ़ा?” “ठीक-ठाक ही है।” ध्रुव ने बेढँगा मुँह बनाते हुए कहा, “कॉलेज की शुरुआत है, तो चीज़ें सेटल्ड नहीं हैं; मगर जल्द ही सब ठीक हो जाएगा और चीज़ें बेहतर हो जाएँगी। पढ़ाने की बात करूँ तो आजकल नेगेटिव ऊर्जा और डायमेंशन के टॉपिक पर ज़्यादा फ़ोकस है; यह सबको अच्छा भी लगता है।” “क्यों? इसमें क्या ख़ास है ऐसा?” उसके नाना ने पूछा। “ख़ास तो अब क्या बताऊँ; बस यूनिवर्स और यूनिवर्स से जुड़ी हुई चीज़ें सबको अच्छी लगती हैं। यूनिवर्स के सीक्रेट ऐसे होते हैं कि कोई भी इसमें बिना इंटरेस्ट लिए नहीं रह सकता।” “हमें तो यह बोरिंग सा लगा।” उसके नाना अजीब सा चेहरा बनाकर खाना खाने लगे। इसके बाद कोई बातचीत नहीं हुई, और ध्रुव खाना खाने के बाद अपने कमरे में चला गया। ग्यारह बजे के करीब ध्रुव अपने कॉलेज का होमवर्क कर रहा था, तभी उसके ठीक बाईं ओर फ़ुटबॉल ठपा खाते हुए अचानक से प्रकट हुई। ध्रुव चौंका, मगर इस बार वह डरा नहीं था। “रीवा...” वो थोड़ा सा ऊँचा बोला, “मतलब तुम सुधरोगी नहीं।” वह फ़ुटबॉल की तरफ़ देख रहा था। फ़ुटबॉल को देखने के बाद वो पलटा, तो रीवा उसके सामने बेड के ऊपर खड़ी थी। उसने आज कपड़े बदल रखें थे। वह वन पीस पार्टी ड्रेस में थी। वो ब्लेक कलर की थी और रिवीलिंग भी। रिवा इसमें अट्रेक्टीव लग रही थी। रीवा अपने रोबोटिक अंदाज़ में बोली, “तुमने कहा था आने से पहले कोई शोर करना; मैंने बस वही किया।” “शोर भी ऐसा करना है जिसमें डर ना लगे; यह नहीं कि उसके बगल में छत से फ़ुटबॉल फेंक दो। तुमने आज कपड़े कैसे बदल लिए??” रिवा कंधे उचकाकर बोली,"एक लड़की का एक्सीडेंट हुआ और वह मर गई, मरने के बाद उसकी आत्मा को मोक्ष मिल गया और उसके कपड़े पीछे रह गए जैसे मैंने ले लिया। जब मोक्ष मिलता है तो आत्मा बिना कपड़ों के जाती है।" खिड़की की तरफ़ आवाज़ हुई। ध्रुव ने उस तरफ़ देखा, तो सिद्धार्थ खिड़की की दीवार से निकलते हुए बाहर आया, “क्या मेरा आना ठीक है? इससे तो तुम्हें डर नहीं लगा?” “हाँ, यह फिर भी कम डरावना है; अपनी बहन को भी ऐसे ही सिखाओ।” ध्रुव ने होमवर्क करना बंद कर दिया। वह खड़ा हुआ और दोनों से बोला, “कल तुम लोगों ने मुझे जो कार के बारे में बताया था, मैंने उस पर आज छानबीन की कोशिश की। मैं तुम दोनों को इस बारे में बताऊँगा, मगर इससे पहले तुम दोनों को मेरी मदद करनी होगी।” “कैसी मदद?” सिद्धार्थ ने पूछा। “तुम दोनों नॉर्मल नहीं हो; मेरे साथ भी पिछले कुछ दिनों से कुछ नॉर्मल नहीं हो रहा है। आई थिंक तुम दोनों इस मामले में मुझे कुछ बता सकते हो।” “बताओ, तुम्हें क्या जानना है?” सिद्धार्थ ने उससे पूछा। “आज दोपहर को मेरी अर्जुन नाम के एक लड़के से लड़ाई हुई थी। लड़ाई ज़्यादा बढ़ गई, और उसने मुझे पहाड़ी ढलान पर फेंक दिया। पहाड़ी ढलान काफ़ी गहरी थी, जिसके बाद मुझे काफ़ी चोटें आनी चाहिए थीं। गिरते ही मैं बेहोश हो गया था, मगर जब मेरी आँख खुली, तो मैंने देखा मैं सड़क पर था; बिल्कुल सही-सलामत; चोट का एक निशान तक नहीं था। यह कैसे हो सकता है?” सिद्धार्थ सोच में पड़ गया, और ध्रुव उसकी तरफ़ देखता रहा। काफ़ी सोचने के बाद सिद्धार्थ बोला, “मैं माफ़ी चाहूँगा; मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं है यह क्यों हुआ होगा।” “मैं तुम्हें दोपहर को हुई एक चीज़ के बारे में बताता हूँ; दोपहर में मैं लाइब्रेरी में जा रहा था ताकि वहाँ पड़े कंप्यूटर में सर्फिंग करके तुम लोगों के बताए सुराग से कातिलों के लिए कोई और कड़ी ढूँढ सकूँ; मगर वहाँ मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे अंधेरा मेरा पीछा कर रहा है और लाइब्रेरी की किताबें मुझे खाना चाहती हैं। मैं पलटा, तो मेरे पीछे ऐसा ही था। क्या यहाँ तुम लोगों को कुछ समझ आ रहा है?” सिद्धार्थ फिर सोचने लगा। थोड़ा सोचने के बाद उसने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “मैं दोबारा तुमसे माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन यहाँ भी मैं नहीं जानता तुम्हारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।” ध्रुव के चेहरे पर उदासी आ गई, “तुम दोनों भी इस मामले में मेरी मदद नहीं कर सकते; मैं नहीं जानता इस पूरी दुनिया में कौन होगा जो इन चीज़ों को लेकर मेरी मदद करेगा।” वह मायूस होकर बेड पर बैठ गया। रीवा ने अपनी फ़ुटबॉल उठाई और उसके पास आते हुए बोली, “पर हम अर्जुन के मामले में तुम्हारी मदद कर सकते हैं...” उसके यह कहते ही ध्रुव उसकी तरफ़ देखने लगा। उसकी आँखें बड़ी हो गई थीं।

  • 11. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 11

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

    ★★★ रात के 2:00 बज रहे थे। अर्जुन अपने कमरे में बेड पर पागलों की तरह सो रहा था। उसका मुँह एक तरफ़ से सूजा हुआ था; वहाँ ध्रुव ने जोर से मुक्का मारा था। सिद्धार्थ दीवार के आर-पार होकर कमरे के अंदर आया। उसने खिड़की खोल दी। ध्रुव, जो कमरे के बाहर नीचे इंतज़ार कर रहा था, पाइप के ज़रिये ऊपर चढ़ा और खिड़की से होते हुए अंदर आ गया। ध्रुव ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे। सिद्धार्थ और ध्रुव दोनों में इशारों-इशारों में कोई बात हुई और फिर ध्रुव दूर जाकर खड़ा हो गया। सिद्धार्थ अर्जुन के बेड के पास गया। उसने अर्जुन का कम्बल पकड़ा और उसे झटके से खींच लिया। अर्जुन एकदम से उठा। उसने आस-पास देखा; कमरे में कोई नहीं था। फिर कम्बल की तरफ़ देखा; कम्बल नीचे गिरा पड़ा था। उसने टेबल के पास मौजूद बोतल से पानी पिया। फिर खड़ा हुआ और कम्बल उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। मगर जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया, कम्बल खिसकर ध्रुव की तरफ़ चला गया। अर्जुन की नज़र ध्रुव पर पड़ी। ध्रुव को देखते ही उसकी हवाएँ छूट गईं। “त-त-तुम...” अर्जुन के मुँह से हकलाते हुए निकला। “हाँ मैं।” ध्रुव बोला। “त-त-तुम तो... तुम तो...” “मैं तो पहाड़ी के नीचे गिर गया था। तुम यही कहना चाहते हो ना? हाँ, मैं पहाड़ी से नीचे गिर गया था। इतना नीचे कि मैं ज़िंदा नहीं बच पाया। अब मैं भूत बन चुका हूँ।” “पर यह नहीं हो सकता... भूत-प्रेत कुछ नहीं होते...” “क्यों नहीं होते? क्या तुमने क्लास में आशुतोष सर का नेगेटिव एनर्जी का टॉपिक नहीं पढ़ा?” उसकी क्लास में जो अध्यापक पहला व्याख्यान देते थे उनका नाम आशुतोष था।  “उन्होंने साफ़-साफ़ कहा है अगर नेगेटिव एनर्जी का वजूद है तो भूत-प्रेतों का भी वजूद है।” ध्रुव ने अपने पैरों के पास मौजूद कम्बल की तरफ़ देखा। “और भूत... भूत कुछ भी कर सकते हैं...” सिद्धार्थ ने कम्बल उठाया और उसे हवा में इधर-उधर उड़ाने लगा। अर्जुन यह देखकर पूरी तरह से डर गया। तभी कमरे में रीवा की एंट्री हुई। उसने पानी की बोतल उठाई और उसे दूर फेंक कर मारा। अर्जुन पीछे की तरफ़ हो गया। ध्रुव अपने कदम अर्जुन की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, “तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, तुम्हें मेरी जान लेते वक़्त बिल्कुल भी डर नहीं लगा, तुमने एक बार भी नहीं सोचा अगर मुझे कुछ हो गया तो फिर आगे क्या होगा...?” “म-म-मुझे लगा था तुम बस झाड़ियों में फँस जाओगे, तुम्हें चोटें आएंगी, तुम इसके बाद हमसे डरने लगोगे।” ध्रुव भूतों की तरह हँसने की एक्टिंग करने लगा। रीवा और सिद्धार्थ उसकी इस एक्टिंग पर उसे घूर कर देखने लगे। ध्रुव ने हँसना बंद किया और अर्जुन को कहा, “तब तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ, क्योंकि अब तुम मुझसे डरोगे, मैं ज़िन्दगी भर रोज़ रात को तुम्हें आकर इसी तरह से डराऊँगा... सिर्फ़ डराऊँगा नहीं बल्कि तुम्हारा जीना भी हराम कर दूँगा...” सिद्धार्थ ने आकर अर्जुन को पीछे से पकड़कर खींचने की कोशिश की मगर उसका हाथ अर्जुन के आर-पार हो गया। यानी वह किसी इंसान को नहीं पकड़ सकता था। यह चीज़ें किस तरह से काम करती हैं, इसका उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। उसने कमरे में इधर-उधर देखा। दूर क्रिकेट बैट पड़ा था। वह क्रिकेट बैट की तरफ़ गया और उसे उठा लिया। क्रिकेट बैट के मामले में या फिर कमरे में मौजूद किसी भी चीज़ के मामले में वह उन्हें पकड़ सकता था। बैट हवा में उड़ते हुए अर्जुन के पास आया और अर्जुन के पेट से जोर से टकराया। अर्जुन ने अपना पेट पकड़ लिया। “प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो...” अर्जुन दर्द से कराहते हुए बोला। “मुझे नहीं पता था ऐसा करने से यह होगा... अगर मुझे थोड़ा सा भी पता होता तो मैं यह कभी नहीं करता...” “लेकिन अब तो यह हो गया... अब तुम्हें किसी तरह की माफ़ी नहीं मिलेगी... तुम्हें ऐनी पसंद है ना? देखना अब मैं तुम्हारा चेहरा ही बिगाड़ दूँगा.... तुम्हारा चेहरा इतना बुरा कर दूँगा कि ऐनी छोड़ तुम दुनिया की किसी लड़की को पसंद नहीं कर सकोगे।” रीवा ने फलों की टोकरी में मौजूद चाकू उठा लिया। ध्रुव ने चाकू को देखा और अपने डायलॉग में आगे बोला, “मैं इस चाकू से तुम्हारे चेहरे का नक्शा बदल दूँगा... तुम्हारे चेहरे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दूँगा... तुम मेरे कातिल हो...” सिद्धार्थ घूरता हुआ ध्रुव से बोला, “तुम यह क्या कह रहे हो... इसके चेहरे पर तुम बड़े-बड़े अक्षरों में यह सब नहीं लिख सकते...” ध्रुव आगे बोला, “इससे तुम्हें सबक मिलेगा। तुम इसके बाद कॉलेज में किसी बच्चे को तंग नहीं करोगे। तुम्हारे साथ यही करना सही रहेगा।” अर्जुन हाथ जोड़ते हुए नीचे बैठ गया। “प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत करो, मुझे बस एक चांस दो, बस एक चांस दे दो, देखना तुम्हें मेरी तरफ़ से कोई शिकायत नहीं आएगी, मैं एक अच्छा लड़का बन जाऊँगा।” “चांस, मुझे नहीं लगता तुम इसके काबिल हो, तुम अभी यह सब कह रहे हो मगर मुझे अच्छे से पता है तुम कल वापस पहले की तरह हो जाओगे।” “मुझे मेरे माता-पिता की कसम... मैं आज से पूरी तरह से सुधर जाऊँगा....” “मतलब तुम अब कल से किसी बच्चे को तंग नहीं करोगे.... चाहे वह नया हो चाहे पुराना...” “हाँ मैं नहीं करूँगा।” ध्रुव ने अपने गले को स्पर्श करते हुए कहा। “ऐनी से दूर रहोगे... उसके पास आने का सोचोगे भी नहीं।” “प्रॉमिस, मैं अब से उसे जानता भी नहीं।” ध्रुव सोचने लगा वह अर्जुन से और क्या-क्या करवाए। “अपने दोस्तों को भी सुधरने के लिए कहोगे, ऐसा ना हो तुम तो सुधर जाओ मगर तुम्हारे दोस्त वही सब करते रहें जो तुम लोग कर रहे हो।” “पक्का.... तुम्हें अब उनकी तरफ़ से भी कोई शिकायत नहीं होगी...” “और मैं यह भी चाहता हूँ यह सब मेरी वजह से हुआ है, तुम इसके बारे में किसी को ना बताओ।” “हो जाएगा कुछ और...” अर्जुन डरा हुआ था तो वह यहाँ ध्रुव की हर एक बात मानने के लिए तैयार था। “नहीं, बस इतना ही...” सिद्धार्थ ने कम्बल उठाया और उसे लेकर ध्रुव की तरफ़ चला गया। फिर वह ध्रुव के इर्द-गिर्द गोल-गोल घूमने लगा। रीवा ने बेड की चादर खींची और वह भी ध्रुव के पास जाकर उसके इर्द-गिर्द गोल-गोल घूमने लगी। ध्रुव ने ऊपर की तरफ़ देखते हुए कहा, “यह मेरे साथ क्या हो रहा है... मुझे आकाश से कोई आवाज़ सुनाई दे रही है... क्या... मेरी अभी मरने की उम्र नहीं आई तो मेरी आत्मा को वापस मेरे शरीर में भेजा जा रहा है? क्या... मैं एक वापस भेजी गई आत्मा हूँ.... क्या... इस वजह से... अगर किसी ने मुझे तंग करने की कोशिश की तो उसे फ़ौरन ऊपर बुला लिया जाएगा।” उसने अर्जुन की तरफ़ देखा। “अपनी आँखें बंद कर लो अर्जुन क्योंकि मेरी आत्मा वापस मेरे शरीर में जा रही है... मगर मैंने तुम्हें जो कहा उसे याद रखना.... तुम्हें एक नया मौका, एक नई ज़िन्दगी मिलने जा रही है... इसे जाया मत होने देना... कल एक अच्छा इंसान बनकर सबके सामने आना...” “देखना... देखना अब ऐसे ही होगा...” अर्जुन ने कहा और अपनी आँखें बंद कर लीं। ध्रुव फ़ौरन खिड़की की तरफ़ गया और पाइप पकड़कर नीचे उतर गया। सिद्धार्थ ने खिड़की धीरे से बंद कर दी। फिर वे दोनों भी वहाँ से चले गए। अर्जुन ने अपनी आँखें खोलीं तो कमरे में पूरी तरह से सन्नाटा था। वह डरा हुआ था। यहाँ तक कि उसका चेहरा पसीने से भरा हुआ था। उसकी हालत देखने लायक थी। उसने नीचे देखा तो उसकी पेंट भी गीली हो चुकी थी। ★★★

  • 12. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 12

    Words: 1442

    Estimated Reading Time: 9 min

    ★★★ रात के 3:00 बज रहे थे। ध्रुव चोरी छुपे झाड़ियों के बीच किसी बंगले की तरफ देख रहा था। रिवा पीछे घास के मैदान पर फुटबॉल के साथ खेल रही थी। सिद्धार्थ उसके ठीक पास उसी तरह छुपकर बंगले की तरफ देख रहा था। यह घर शहर के पास ही एक अलग जगह पर था। यहां गिनती के 7-8 घर थे जो यहां के वीआईपीज और बड़े लोगों के थे। ध्रुव घर की तरफ देखते हूए बोला “तुम लोगों की वजह से मुझे क्या-क्या करना पड़ रहा है, अगर किसी ने मुझे देख लिया या फिर पकड़ लिया तो ऐसी शामत आनी है की, की मैं तो क्या तुम लोग भी जिंदगी भर याद रखोगे।” “तुम्हें अच्छे से पता है राजवीर मेहता का घर यही है। तुम क्यों और कैसे श्योर हो उसका घर यही है, कोई और भी हो सकता है?” “मैंने जब उसकी प्रोफाइल देखी थी तब उसके घर के एड्रेस को अच्छे से नोट किया था। उसका घर यहीं है। बस किसी तरह हमें इस घर का गैराज दिख जाए। फिर वहां कार देख लेंगे तो इस चीज की भी संतुष्टि हो जाएगी।” “तुम रुको, मैं देख कर आता हूं।” सिद्धार्थ झाड़ियों से बाहर निकला और घर की तरफ चला गया। चांदनी रात थी। ध्रुव कुछ देर तक उसे जाते हुए देखता रहा फिर जब वह चला गया तो पीछे रीवा की तरफ देखने लगा। “तुम्हारा फुटबॉल प्रेम कभी खत्म नहीं होता क्या?” उसने रीवा को देखते हुए कहा। रिवा आज भी खुबसूरत लग रही थी। रिवा ने उसकी तरफ देखा और ना में सिर हिलाते हुए कहा “नहीं।” सिद्धार्थ को गैराज मिल गया था। वह बंगले के दाई और था। ‌ उसने गैराज के दरवाजे को आर पार किया और अंदर देखा। अंदर आठ नौ कारें खड़ी थी। इसमें वो कार भी थी जिसे उसने देखा था। वह वापस मुड़ा और गैराज के दरवाजे के पास आकर वहां मौजूद एक बटन को दबा दिया। गैराज का शटर धीरे-धीरे ऊपर होने लगा। सिद्धार्थ बाहर आया और आसपास देखा। दूर-दूर तक उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था। यह देखकर उसने ध्रुव को आवाज लगाई “आ जाओ, यहां कोई नहीं है, कार यहीं पर है तुम भी इसे अपनी आंखों से देख लो।” ध्रुव धीरे से बोला “हां मगर इतना चिल्लाने की क्या जरूरत है, किसी ने सुन लिया तो...” वो गैराज की तरफ जाने लगा “सच ये तो भुत है, यह कितना भी क्यों न चिल्ला ले इसे कोई नहीं सुनेगा।” वह गैराज में आया और कार के पास जाकर उसे देखने लगा। उसने सिद्धार्थ से पूछा “क्या यह वही कार है जो तुमने देखी थी?” “हां वही कार है।” “और तुम यह बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?” ध्रुव ने उसकी तरफ घूर कर देखा। “लगता है तुम मुझसे बदला ले रहे हो, यह तुमने इसलिए पूछा ना क्योंकि मैंने तुमसे इस घर के एड्रेस को लेकर सवाल किया था।” “नहीं नहीं मैं तो नॉर्मल पूछ रहा हूं।”‌ ध्रुव ने कहा “मुझे बताओ तुम यह बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?” “इस कार के सीसे पर लगा यह सूरजमुखी के फुल का स्केच, मैंने इसे देखा था, पहले बताना भूल गया क्योंकि इस बात पर ध्यान नहीं गया, लेकिन मैंने इसे देखा तो मैं देखते ही पहचान गया। इसलिए मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं यह वही कार है।” “ओके, यानी तुमने मुझे जो सुराग दिया था वह हमें मिल गया। अब यह कार राजवीर मेहता के घर पर खड़ी है तो यहां इस बात की 110% पॉसिबिलिटी है की तुम लोगों के कत्ल में इस बंदे का कोई ना कोई हाथ है। या इस बंदे ने हीं तुम लोगों को मरवाया है। बस अब हमें जरूरत है तो किसी ऐसी चीज की जिससे हम इसे साबित कर दें। कोई सबूत या कुछ और।” सिद्धार्थ खामोशी से कार की तरफ देखता रहा। कुछ देर तक घर की तरफ देखने के बाद उसने कहा “मुझे पूरा विश्वास है तुम सबूत भी ढूंढ लोगे। तुम मिले तो हमारे मामले में चीजें यहां तक पहुंची, तुम इसे आगे भी ले जाओगे।” “मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा, बाकी आगे जो होगा वह देखा जाएगा।” यह कहकर उसने बाहर की तरफ देखा “चलो अब चलते हैं यहां से।” “हां....” सिद्धार्थ ने हां में सिर हिलाया “तुम चलो मैं दरवाजा बंद करके आता हूं।” ध्रुव बाहर चला गया। सिद्धार्थ ने बटन दबाया और गैराज का दरवाजा बंद करने लगा। ध्रुव अपने हाथ रगड़ते हुए सामने की तरफ देख रहा था। ठंड थी तो वह इस ठंड को अब महसूस कर रहा था। “कौन हो तुम और यहां क्या कर रहे हो?” अचानक दाई ओर से एक लड़की की आवाज आई और ध्रुव पूरी तरह से चौक गया। उसके दाईं और एक 18 साल की लड़की खड़ी थी। जींस पैंट पहने और लेदर की जैकेट के साथ। उसने अपने बाल पैक कर रखे थे। मोटे गालों और छोटी आंखों वाली लड़की देखने में अलग ही लेवल की लग रही थी। यानी स्मार्ट क्यूट और एक नजर में किसी का भी दिल ले लेने वाली। उसने अपने दोनों हाथ जैकेट की जेब में डाल रखे थे। “वो..” ध्रुव को समझ नहीं आ रहा था वह क्या कहें। “बोलो...” लड़की दुबारा बोली “तुम यहां क्या कर रहे हो..?” इतने में सिद्धार्थ गैराज के दरवाजे से बाहर निकल आया। वह लड़की के पीछे था। लड़की को देखते ही वह भी डर गया और एकदम से पीछे हो गया। लड़की पीछे मुड़ी और उसकी तरफ देखा “तुम ... तुम दोनों आखिर यहां क्या कर रहे हो?” “तुम मुझे देख सकती हो....” सिद्धार्थ हैरानी से बोला। “देख सकती हूं... वट यु मीन देख सकती हूं.... तुम दोनों मेरे सामने हो... मुझे बताओ तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो... ?चोरी करने आए हो...? रुको मैं अभी अपने पापा को बुलाती हूं।” लड़की ने अपने पापा को आवाज लगाने के लिए ऊपर की तरफ देखा तभी ध्रुव उससे बोला “प्लीज अपने पापा को आवाज मत लगाओ, हम यह चोरी करने नहीं आए, हम तो बस....” “हम तो क्या...?” लड़की ने किसी टीचर की तरह सख्त अंदाज में पूछा। रिवा की फुटबॉल लुढकती हुई ध्रुव के पैरों के पास आई और रुक गई। ध्रुव ने फुटबॉल की तरफ देखा तो उसने फुटबॉल उठाई और लड़की से कहा “हम तो बस यह फुटबॉल लेने आए थे, वो इसे रिवा ने यहां फेंक दिया था, वो...”‌ उसने रिवा की तरफ देखते हुए कहा “ वो उसे फुटबॉल खेलनी थी तो हम सड़क पर फुटबॉल खेल रहे थे। वहां से ये यहां आ गई।” उसने यह कहने के लिए ज्यादा कुछ सोचा नहीं था। जो मन में आया बस बोल दिया। “तुम लोग पागल वागल हो क्या या फिर मुझे पागल बनाने की कोशिश कर रहे हो,” लड़की ने अपनी आंखों मोटी करते हुए कहा “इतनी रात को फुटबॉल कौन खेलता है? कोई नहीं खेलता। मुझे सच सच बताओ तुम लोग यहां क्या कर रहे। मुझे पक्का पता है तुम लोग यहां चोरी करने आए थे।” “हम यहां चोरी करने नहीं आए थे...” ध्रुव ने अपनी आवाज को थोड़ा सा तेज करते हुए कहा “अगर हमें चोरी करने भी होती तो तुम बताओ हम यहां कहा चुराते, आसपास ऐसा कुछ भी नहीं है चोरी करने के लिए, गैराज हैं तो हम लोग ड्राइविंग नहीं जानते जो तुम लोगों की कार उड़ाकर ले जाएंगे।” उसने रिवा और सिद्धार्थ की तरफ देखा और दोनों से कहा “चलो यहां से, इसे अगर नहीं मानना तो ना माने, बुला ले जिसको बुलाना है।” ध्रुव फुटबॉल के साथ यहां से जाने के लिए चल‌ दिया। रीवा और सिद्धार्थ भी उसके पीछे पीछे चल दिए। ध्रुव धीरे-धीरे भगवान को याद करते हुए कह रहा था “भगवान करे यह लड़की अपने पापों को आवाज ना लगाए, ओ गाॅड, हमारी हेल्प करो, इसे अपने पापा को आवाज मत लगाने देना।” सिद्धार्थ पीछे लड़की की तरफ देखते हुए ध्रुव को बोला “तुमने देखा वह भी हमें देख सकती है, तुम्हें उस लड़की से इस बारे में बात करनी चाहिए थी।” “अभी तो मैं बस यहां से सही सलामत जाने का सोच रहा हूं, तुम्हें अंदाजा भी नहीं अगर पुलिस मुझे यहां पकड़ने आई तो सुबह मेरे साथ क्या होगा, मैं नेनस और नानस को अपनी शक्ल तक नहीं दिखा सकूंगा..” “नेनस‌ और नानस.... अब यह क्या है?” सिद्धार्थ को यह चीज समझ नहीं आई थी। इस तरह के अटपटे वर्ड्स उसने पहली बार सुने थे। “अरे नाना और नानी...” ध्रुव ने कहा। पीछे गैराज के पास खड़ी लड़की तीनों को जाते हुए देख रही थी। वह बीच-बीच में ऊपर भी देख रही थी। यह सोचते हुए कि वह आवाज लगाएं या फिर नहीं। तीनों चुपचाप झाड़ियों के बगल में से होते हुए सड़क की तरफ निकल गए और वहां से घर की तरफ चले गए। गैराज वाली लड़की ने आवाज नहीं लगाई थी। ★★★

  • 13. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 13

    Words: 1858

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का अलार्म बजा और ध्रुव की आँखें एकदम से खुल गईं। जैसे ही उसकी आँखें खुलीं, वह उठकर बैठ गया। उसके सामने रिवा प्लाथी मारकर बैठी हुई थी। वह फुटबॉल अपने हाथ में घुमा रही थी। ध्रुव ने अपनी गर्दन टेढ़ी की और उससे पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रही हो? इस वक्त तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए था?” “मुझे मेरे भाई ने तुम्हारे साथ रहने के लिए कहा है।” रिवा ने अपने अंदाज़ में कहा। “मेरे साथ!! मगर वह किसलिए?” ध्रुव ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए पूछा। “ मेरे भाई ने कहा है कि उसे कोई काम करना है, इसलिए जब तक उसका काम पूरा नहीं हो जाता, मैं तुम्हारे साथ रहूँ।” “मगर तुम मेरे साथ ऐसे नहीं रह सकती। मुझे भी अपने काम करने हैं, कॉलेज जाना है, खाना-पीना, नाश्ता सब।” ध्रुव ने अपने हाथ फैलाते हुए कहा। रिवा ने कंधे उचकाते हुए कहा, “मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती। मुझे मेरे भाई ने यही कहा है।” “हशशश.... तुम्हारा भाई...” ध्रुव पीछे की ओर गिर गया। ध्रुव ने अपने कपड़े निकाले और नहाने के लिए बाथरूम में चला गया। उसने दरवाज़ा बंद कर दिया और फव्वारा चालू किया, तभी रिवा दरवाज़े के आर-पार होते हुए अंदर आ गई। “अरे पागल!.... तुम यहाँ नहीं आ सकती... मैं नहा रहा हूँ।” “मगर मुझे मेरे भाई ने तुम्हारे साथ रहने के लिए कहा है।” रिवा ने अपना रोबोटिक अंदाज़ जारी रखा। “हाँ, कहा तो है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि तुम किसी के बाथरूम में भी घुस जाओ। चलो बाहर चलो, यह प्राइवेट जगह है।” रिवा अपनी जगह पर खड़ी रही और बाहर जाने के लिए नहीं मुड़ी। ध्रुव ने गुस्से से भरा चेहरा बनाया। रिवा ने अपनी आँखें नीचे कीं और होंठ मोटे करते हुए बाहर चली गई। इसका मतलब वह नाराज़ थी। ध्रुव उसके जाने के बाद नहाने लगा। बाहर आकर उसने कपड़े पहने और नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर आ गया। ध्रुव नाश्ता कर रहा था। उसके नाना ने कहा, “हम काफ़ी दिनों से घूमने नहीं गए हैं। मैं सोच रहा हूँ इस संडे कहीं घूमने चलें।” ध्रुव की नानी तुरंत बोली, “आप रहने दीजिए। आप बस घूमने का कहते ही रहते हैं, कभी जाते नहीं। पिछले पाँच सालों से घूमने का कह रहे हैं, अभी तक तो गए नहीं।” “अरे क्यों नहीं गए...?" उसके नाना ने घूरते हुए कहा, “अभी छह महीने पहले ही तो हम गए थे।” “वह सत्संग था। घूमना अलग चीज़ होती है।” ध्रुव ने दोनों के चेहरों की ओर देखा, “आप दोनों बहस मत करिए। जब संडे आएगा, तब देख लेंगे क्या करना है।” “हाँ, देख लेना..." नाना बोले, "मैं भी वेयरहाउस में बात करके फ़ाइनल कर लूँगा कि कहाँ घूमने जाना है।" रिवा डाइनिंग टेबल के बीच से, आर-पार होते हुए, बाहर निकल गई। ध्रुव ने अपनी आँखें चौड़ी करके उसे देखा। उसने बिना अपने नाना-नानी की ओर ध्यान दिए रिवा से कहा, “तुम यहाँ ऐसे नहीं आ सकती...” “क्या ऐसे नहीं आ सकती...?" ध्रुव के नाना ने उसकी ओर देखते हुए पूछा। “वो... वो... कुछ नहीं नाना। वो मैं कह रहा था... आप अपने साथियों को इसमें क्यों शामिल कर रहे हैं? आप खुद अपनी तरफ़ से कोई अच्छी लोकेशन देख लीजिए घूमने के लिए... हम सब फिर एक साथ वहाँ घूमने चलेंगे।” “मैं भी घूमने चलूँगी।” रिवा बोली। ध्रुव कुछ नहीं बोला। वह बस उसे गुस्से से देखता रहा। नाश्ता करने के बाद ध्रुव अपनी साइकिल से पहाड़ी रास्ते पर नीचे उतर रहा था। रिवा उसके बराबर-बराबर चल रही थी। “क्या तुम रोज़ इसी तरह साइकिल को घसीटते हुए कॉलेज जाते हो...?" रिवा ने कहा, "हम इसे बैठकर भी चला सकते हैं।" “ओह... थैंक्स बताने के लिए... मुझे तो पता ही नहीं था कि इसे बैठकर भी चलाया जा सकता है... तुम्हारी वजह से मेरा जनरल नॉलेज बढ़ गया।” ध्रुव साइकिल पर बैठ गया और उसे चलाने लगा। रिवा पीछे रह गई। ध्रुव ने पीछे मुड़कर चिल्लाते हुए कहा, “अब पता चला मैं साइकिल ऐसे क्यों चला रहा था।” ध्रुव आगे देखते हुए साइकिल चलाने लगा। थोड़ा ही आगे जाने के बाद उसने मुड़कर पीछे देखा, तो रिवा साइकिल के पीछे बैठ गई थी। रिवा ने कहा, “तुम भूल रहे हो, मैं कहीं भी आ सकती हूँ।” “ओह हाँ...” ध्रुव ने निराश होकर कहा, “काश मेरे पास भी यह शक्ति होती... कितना मज़ा आता।” ध्रुव कॉलेज पहुँच चुका था, पर उसे अभी तक ऐनी दिखाई नहीं दी थी। ध्रुव पार्किंग एरिया में ही उसके आने का इंतज़ार करने लगा। लगभग दस मिनट के बाद भी वह वहाँ नहीं आई। रिवा ने पूछा, “तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो?” “यार, एक लड़की थी, उसे अब तक आ जाना चाहिए था, मगर वह अभी भी नहीं आई है।” “क्या वह तुम्हारी दोस्त है...?" “हाँ... दोस्त ही है।” “अच्छी वाली दोस्त?” रिवा ने मासूमियत से पूछा। “अब यह ‘अच्छी वाली दोस्त’ क्या होता है?” “वो... तुम्हारी गर्लफ्रेंड है...” रिवा बोली। ध्रुव ने उसका मुँह बंद कर दिया, “तुम्हें यह सब बातें कौन सिखाता है?” वह उसके साथ अपने क्लासरूम की ओर चल पड़ा। क्लासरूम जाते हुए रिवा ने कहा, “मैं और मेरे भाई जब बोर होते थे, तो पार्क में जाते थे। वहाँ बहुत सारे लड़के-लड़कियाँ आते थे। तब मेरा भाई उन सब को देख-देखकर कहता रहता था कि यह उसका बॉयफ्रेंड है और यह उसकी गर्लफ्रेंड है। मैंने वहीं मेरे भाई से पूछा था कि गर्लफ्रेंड क्या होता है? तब उसने बताया था कि अच्छी वाली दोस्त।” “ओह... आज तुम्हारे भाई की ख़बर लेनी पड़ेगी... इतनी कम उम्र में ही वह तुम्हें कुछ ज़्यादा ही चीज़ें बता रहा है।” दोनों क्लास में चले गए। आज अर्जुन क्लास में अच्छे बच्चों की तरह एक कोने में बैठा हुआ था, मानो उससे ज़्यादा शरीफ़ बच्चा इस क्लास में कोई हो ही ना। ध्रुव क्लास में आया तो अर्जुन ने खड़े होकर सिर झुकाकर अपने अंदाज़ में उसका स्वागत किया। ध्रुव ने इधर-उधर देखा और फिर सिर हिलाकर उसे बैठने के लिए कहा। उसके दोस्त भी आज उसकी तरह ही शांत लग रहे थे। जल्द ही क्लास के पहले टीचर आ गए और अपना लेक्चर शुरू कर दिया। ध्रुव का मन लेक्चर में नहीं लग रहा था क्योंकि ऐनी यहाँ नहीं थी। क्लास के टीचर अपने लेक्चर में किसी टॉपिक के बारे में बताते हुए कह रहे थे, “वार्महोल के बारे में चीज़ें अभी स्पष्ट नहीं हैं। इसलिए इसके बारे में ज़्यादा लेख देखने को नहीं मिलते। यह क्या कर सकता है, इसके बारे में भी कहना मुश्किल है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि हम इसके ज़रिए टाइम ट्रैवलिंग कर सकते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हमें स्पेस में एक जगह से दूसरी जगह पर ले जा सकता है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक तरीका है एक आयाम से दूसरे आयाम में जाने का।” सभी स्टूडेंट्स के कान खड़े हो गए। “मुझे पता था कि जब मैं यह बात कहूँगा, तब आप सबका ध्यान लेक्चर की ओर होगा। हमने कल ही कई सारे आयामों के बारे में जाना था। जब आयामों की बात होती है, तो हम नॉर्मल तौर पर खुद से ही सवाल करते हैं, क्या हम इन आयामों में जा भी सकते हैं? वैज्ञानिक हमेशा सवालों के जवाब जानने की कोशिश में लगे रहते हैं। यहाँ वार्महोल एक ऐसी चीज़ है जो इसे संभव कर सकता है।” टीचर ने सभी बच्चों की ओर देखते हुए कहा, “वार्महोल एक जगह पर मौजूद छोटे-छोटे छेद होते हैं... जो इतने छोटे होते हैं... कि इन्हें न तो देखा जा सकता है, न ही महसूस किया जा सकता है... ये एक परमाणु से भी काफ़ी छोटे होते हैं...” टीचर ने ब्लैकबोर्ड पर दो घेरे बना दिए। एक घेरा बड़ा था और एक काफ़ी छोटा, किसी बिंदु की तरह। “वार्महोल की थ्योरी ब्लैकहोल से निकलकर आई थी। आप जो बड़ा घेरा देख रहे हैं, वह एक ब्लैकहोल है। ब्लैकहोल के बारे में हर किसी को पता है। यह ब्रह्मांड में एक ऐसा दानव है जो अपने आसपास आने वाली हर एक चीज़ को निगल लेता है। वैज्ञानिकों का यहाँ भी मानना है कि जब कोई चीज़ ब्लैकहोल में चली जाती है, तो कुछ भी संभव हो सकता है। वह चीज़ ब्रह्मांड में किसी दूसरी जगह पर जा सकती है। टाइम ट्रैवल हो सकता है। या फिर किसी दूसरे आयाम में भी जाया जा सकता है। बिल्कुल वैसा ही जैसा वार्महोल में। ब्लैकहोल काफ़ी बड़े होते हैं और ब्रह्मांड में दूर-दूर पाए जाते हैं। पर वार्महोल... वो काफ़ी छोटे होते हैं। ब्रह्मांड में हर एक संभव जगह पर पाए जा सकते हैं। यहाँ तक कि इस कमरे में भी। वार्महोल के बारे में कुछ हद तक यह भी कहा जा सकता है... ये ब्लैकहोल का एक छोटा वर्ज़न हैं...। लेकिन यह ब्लैकहोल से ज़्यादा महत्वपूर्ण है, इसका एकमात्र कारण है इसके कहीं भी पाए जाने की संभावना।” एक स्टूडेंट खड़ा हुआ और उसने सवाल किया, “पर सर, जब वार्महोल इतने छोटे हैं, तो हम इसके ज़रिए एक आयाम से दूसरे आयाम में कैसे जा सकते हैं? यानी हमारा आकार इतना बड़ा है और इसका इतना छोटा।” “टेक्नोलॉजी... टेक्नोलॉजी के ज़रिए इसे संभव किया जा सकता है। ब्लैकहोल के मामले में जब हम टेक्नोलॉजी की बात करते हैं, तो हम प्रकाश की गति से चलने वाले स्पेसक्राफ़्ट की कल्पना करते हैं। इसके ज़रिए हम ब्लैकहोल के पास पहुँचकर उसके अंदर जा सकते हैं। जबकि वार्महोल के मामले में हम एक ऐसी टेक्नोलॉजी की कल्पना करते हैं जो इसके आकार को ऊर्जा देकर हमारे जितना बड़ा कर सके और फिर हम इसके ज़रिए किसी आयाम में जा सकें।” टीचर ने अपना लेक्चर जारी रखा। रिवा, जो वहीं बैठी हुई थी, उसने ध्रुव से कहा, “तुम लोगों को यहाँ आकर नींद नहीं आती। मेरा सोने का मन कर रहा है, जबकि मैं सोती नहीं हूँ।” ध्रुव ने सिर हिलाते हुए कहा, “मत ही पूछो यहाँ आकर क्या-क्या होता है। दिमाग़ की बत्तियाँ बंद हो जाती हैं। वैसे भी यह साइंस है... आसानी से दिमाग़ में घुसती भी नहीं।” सिद्धार्थ जो काम कर रहा था, वह और कोई नहीं, बल्कि उस लड़की के घर पर नज़र रखना था जहाँ वह कल रात गया था। नज़र रखने के मामले में भी वह ख़ास तौर पर लड़की पर नज़र रख रहा था। उसे यह जानना था कि वह लड़की उसे कैसे देख पा रही थी। इसके पीछे का आखिर कारण क्या है। सिद्धार्थ एक पेड़ के नीचे था और वहाँ से घर की ओर देख रहा था। घर की ऊपरी मंज़िल में शीशे की दीवार थी, जिसके दूसरी ओर क्या हो रहा है, यह यहाँ से दिख रहा था। सिद्धार्थ के ठीक सामने वह लड़की खाना डाइनिंग टेबल पर लगा रही थी। एक आदमी वहाँ था जिसकी सिर्फ़ पीठ दिख रही थी। वह डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना आने का इंतज़ार कर रहा था। थोड़ी देर बाद वह खाना खाने लगा। लड़की भी वहाँ बैठ गई और खाना खाने लगी। सिद्धार्थ को कुछ भी ठीक से समझ नहीं आ रहा था। वह अपने पैरों को ऊपर उठाकर ताक-झाँक करने लगा। अचानक उसे अपने पीछे कोई सरसराहट महसूस हुई। यह पेड़ के पत्तों पर किसी के आने की आवाज़ थी। सिद्धार्थ पीछे मुड़ा, तो उसके मुँह पर लकड़ी का जोरदार डंडा लगा। सिद्धार्थ वहीं गिरकर बेहोश हो गया। वह एक हट्टा-कट्टा, मोटा आदमी था। उसने काला कोट-पैंट पहन रखा था। उसने सिद्धार्थ की लात पकड़ी और उसे घसीटते हुए वहाँ से ले गया।

  • 14. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 14

    Words: 1449

    Estimated Reading Time: 9 min

    सिद्धार्थ को होश आया तो वह एक अंधेरे से भरे कमरे में था। यह कमरा किसी प्रकार की लाइब्रेरी प्रतीत हो रहा था। वह कुर्सी पर था और रस्सियों से बंधा हुआ था। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, मगर रस्सियों की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह बस हिल ही पा रहा था। आमतौर पर, यदि वह चाहे तो वस्तुओं को पार कर जाता था, मगर इन रस्सियों के मामले में वह इनके आर-पार नहीं हो पा रहा था। सिद्धार्थ ने कमरे की ओर देखा। कमरे में उसे किताबों के साथ-साथ कुछ तस्वीरें भी दिखाई दे रही थीं। इन तस्वीरों में ओवरकोट पहने हुए पुरुष थे। उम्र के हिसाब से ऐसा लग रहा था कि एक तस्वीर में परदादा हैं, एक में दादाजी, फिर किसी ऐसे पुरुष की तस्वीर थी जिसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष थी। चेहरों से स्पष्ट पता चल रहा था कि सभी तस्वीरें एक ही पीढ़ी की हैं। बाईं ओर सीढ़ियाँ थीं जो ऊपर की ओर जा रही थीं। ध्रुव कैंटीन में था और समोसे खा रहा था। रिवा उसके सामने बैठी हुई थी। अर्जुन आया और उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठने की कोशिश की, जहाँ रिवा बैठी हुई थी। “अरे नहीं नहीं, यहां नहीं...” ध्रुव ने उसे रोका। “यहाँ मत बैठो...” “क्यों? यहां क्या पंगा है...?” अर्जुन ने उसकी ओर घूरते हुए पूछा। “वो पंगा कुछ नहीं, मैं चाहता हूँ कि मेरे सामने वाली कुर्सी खाली रहे।” “हाँ, मगर इसका कारण क्या है? तुम्हें अपनी सामने वाली कुर्सी खाली क्यों चाहिए?” अर्जुन ने उससे पूछा। ध्रुव को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले। रिवा अर्जुन की ओर देख रही थी। वह अपनी जगह से हटने का नाम नहीं ले रही थी। “वो... वो मैं इमेजिन कर रहा हूँ कि यहां कोई बैठा है... बस इसीलिए मैं नहीं चाहता कि तुम यहां बैठो।” “और यहां कौन बैठा है?” अर्जुन ध्रुव को और भी तीखी नज़रों से घूरने लगा। “अरे, तुम कहीं और बैठ जाओ ना, तुम्हें भी क्यों मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठना है?” ध्रुव ने हड़बड़ाते हुए कहा। अर्जुन बाईं ओर मौजूद कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसने इधर-उधर देखा और फिर धीरे से ध्रुव से पूछा, “मैं तुमसे कुछ पूछने के लिए यहां आया हूँ। अच्छा, मुझे एक चीज़ बताओ, मरने के बाद कैसा फील होता है? ऐसा लगता है क्या कि हम मर चुके हैं? कोई अनुभूति होती है?” ध्रुव रिवा की ओर देखने लगा। रिवा ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “मुझे... मुझे कोई अनुभूति नहीं होती, ना दर्द का पता चलता है, ना किसी और चीज़ का।” ध्रुव ने अर्जुन की ओर देखा और उससे कहा, “नहीं, कोई अनुभूति नहीं होती, ना दर्द का पता चलता है, ना किसी और चीज़ का।” “ओह...” अर्जुन कुछ सोचने लगा। “यानी मरने के बाद सुकून मिलता है।” रिवा एकटक ध्रुव को देखते हुए बोली, “बिल्कुल नहीं, मरने के बाद आप बस एक जगह अटक कर रह जाते हो।” ध्रुव ने कुछ नहीं कहा। अर्जुन कुछ देर और वहाँ बैठा रहा और इसके बाद सब अपनी कक्षा में चले गए। ध्रुव धीमे-धीमे कदमों से चल रहा था। कॉलेज खत्म हो चुका था और वह घर वापस लौट रहा था। रिवा उसके साथ थी। ध्रुव को आज के दिन कुछ खास मज़ा नहीं आया क्योंकि ऐनी कॉलेज नहीं आई थी। ध्रुव ने चलते हुए रिवा से पूछा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा तुमने ऐसा क्यों कहा था, मरने के बाद आप बस एक जगह पर अटक कर रह जाते हैं, यह तो अच्छी चीज़ है ना? लोग वैसे भी कहते हैं हम एक ही स्थिति में रहें, जैसे अब हैं वैसे ही जीवन भर, तो इसमें समस्या क्या है?” रिवा अपने रोबोटिक अंदाज़ में बोली, “कुछ समय यह अच्छा लगता है, मगर इसके बाद आप इससे बोर होने लगते हो, फिर आपको इससे नफ़रत होने लगती है, इसके बाद आप अपनी इस स्थिति में मछली की तरह तड़पते हो। बदलाव ज़रूरी है, हम नहीं चाहते बदलाव हो, मगर वह ना हो तो आप अपनी जीवन की सबसे बुरी चीज़ों को अंत तक झेलते हो।” “बाप रे...” ध्रुव ने हैरानी के साथ कहा। “तुम्हारी उम्र देखकर लगा नहीं था तुम इतनी समझदार वाली बातें भी कर लोगी।” ध्रुव ने रोबोट जैसी मुस्कराहट दिखाई। “तुम शायद भूल रहे हो, मैंने दुनिया देखी है, और मेरा भाई ...” “हाँ हाँ, समझ गया। मेरी माँ। तुम्हारी जो बकबक होती है उसमें तुम्हारे भाई का ही सबसे ज़्यादा हाथ है।” रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे। ध्रुव अपने कॉलेज का होमवर्क करने में लगा था। रिवा कमरे में फ़ुटबॉल के साथ खेल रही थी। ध्रुव ने होमवर्क बंद किया और रिवा से पूछा, “तुम्हारा भाई ऐसे कौन से काम पर गया है जो वह अब तक नहीं आया?” “उसने मुझे नहीं बताया। बस इतना कहा था मुझे कुछ जानना है।” “और उसे क्या जानना था?” “आई डोंट नो...” रिवा ने कंधे उचकाते हुए कहा। “वह यह कल रात से कह रहा था, फिर सुबह यह कहा और निकल गया।” कल रात का नाम लेते ही ध्रुव के दिमाग में लड़की वाली घटना आई। “कल तो वह... कल तो वह लड़की के बारे में कह रहा था...” ध्रुव को पता लग गया कि सिद्धार्थ कहाँ है। “मैं जानता हूँ तुम्हारा पागल भाई इस वक्त कहाँ होगा और उसे क्या पता करना था।” “क्या?” रिवा ने पूछा। “कल रात हमें जो लड़की मिली थी, उसके बारे में जानने के लिए गया है। वह तुम दोनों को देख सकती थी। उसे जानना था कि वह लड़की ऐसा क्यों कर सकती है।” रिवा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वापिस फ़ुटबॉल के साथ खेलने लगी। ध्रुव अलग ही सोच में डूबा हुआ था। वह बोला, “लेकिन अगर वह उस लड़की का पता लगाने गया था तो उसे अब तक आ जाना चाहिए था। इतनी भी क्या किसी की जासूसी करना।” बारह बजने को आ गए थे। ध्रुव खिड़की की ओर देख रहा था। वह सिद्धार्थ के आने का इंतज़ार कर रहा था, पर सिद्धार्थ अभी तक नहीं आया था। नीचे उसे वसीम अंकल दिखाई दिए जो अपने हमेशा के अंदाज़ में घर की ओर जा रहे थे। ध्रुव पीछे मुड़ा और रिवा से कहा, “चलो मेरे साथ...” “कहाँ?” रिवा ने पूछा। “तुम्हारे भाई को देखने...” रिवा और ध्रुव अगले आधे घंटे बाद उसी बंगले के सामने थे जहाँ सिद्धार्थ नज़र रख रहा था। दोनों आस-पास देखते हुए सिद्धार्थ को ढूँढने की कोशिश कर रहे थे, मगर वह उन्हें नहीं मिल रहा था। तभी घर के पीछे की ओर से एक हट्टा-कट्टा आदमी बाहर निकला। उसने काला कोट-पैंट पहन रखा था। वह घर के बाईं ओर बने जंगलों की ओर जा रहा था। यह वही आदमी था जिसने सिद्धार्थ को डंडा मारा था। ध्रुव और रिवा दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। ध्रुव बोला, “यह बंदा कौन है जो इतनी रात को जंगल में जा रहा है? दिमाग़ से पागल है क्या? ज़रूर यह उस लड़की का बाप होगा जो हमें कल रात मिली थी। वह भी दिमाग़ से हिली हुई लग रही थी, अब जब वह हिली हुई थी तो उसके बाप का हिला हुआ होना तो बनता है।” “हमें उसका पीछा करना चाहिए।” रिवा बोली। “रहने दो, क्या पता उसे जंगल में कोई काम हो, हम यहीं रहकर सिद्धार्थ को ढूँढते हैं...” ध्रुव रुका और अगले ही पल खुद से बोला, “पर इतनी रात को जंगल में उसे क्या काम होगा? सही कहा, पीछा तो करना चाहिए।” वह पीछे की ओर हुआ और दूसरी ओर से उस आदमी का पीछा करने के लिए चल पड़ा। रिवा भी उस आदमी का पीछा करने के लिए ध्रुव के साथ चल पड़ी। हल्की चाँदनी रात थी। दोनों पेड़ों के पीछे छिपते हुए उस आदमी का पीछा कर रहे थे। आदमी लगातार सामने की ओर चलते जा रहा था। काफ़ी देर तक चलते रहने के बाद वह रुका और अपने आस-पास देखा। ध्रुव और रिवा वहीं एक पेड़ के पीछे छिप गए। आदमी ने अपना चेहरा नीचे किया और वहाँ मौजूद गटर के ढक्कन की तरह दिखने वाले एक ढक्कन को ऊपर उठा दिया। फिर वह उसके अंदर चला गया। ध्रुव और रिवा बाहर खड़े रहे। दोनों अभी पेड़ के पीछे से निकलकर आगे जाने का सोच रहे थे कि सिद्धार्थ के चिल्लाने की आवाज़ आई। इस आवाज़ को सुनकर ध्रुव और रिवा दोनों के कान खड़े हो गए। रिवा हवा में उड़ी और फ़ौरन ढक्कन की ओर चली गई। ध्रुव भी उसके पीछे-पीछे दौड़ा। रिवा और ध्रुव दोनों अंदर आए। उनके सामने सिद्धार्थ फ़र्श पर गिरा पड़ा था। आदमी ने उसे जोर से मुक्का मारा था जिसके बाद वह नीचे गिर गया था। आदमी वहीं था। उसने पलटकर देखा तो उसे ध्रुव और रिवा दिखे। गहरी काली मूँछों वाले आदमी का चेहरा साँवला था। वह देखने से ही डरावना लग रहा था। उस डरावने आदमी ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए कहा, “अब तुम दोनों कौन हो?”

  • 15. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 15

    Words: 1691

    Estimated Reading Time: 11 min

    ★★★ तीनों कुर्सी से बंधे हुए थे। सिद्धार्थ और रिवा शांत बैठे थे, जबकि ध्रुव लगातार हिल-डुल रहा था। वह आदमी ध्रुव और रिवा को भी वहीं बांधकर चला गया था। ध्रुव ने हिलते हुए कहा, “तुम दोनों अपनी सुपर पावर क्यों नहीं इस्तेमाल करते? चुपचाप बैठकर मरने का इंतज़ार कर रहे हो क्या?” रिवा अपने रोबोटिक अंदाज में बोली, “तुम भूल रहे हो, हम दोनों मर नहीं सकते।” “ओह, मतलब तुम लोग तभी रस्सी से बंधे रहना चाहते हो।” ध्रुव ने दोनों को घूरते हुए कहा। “ऐसी बात नहीं है,” सिद्धार्थ बोला, “हम चाहकर भी खुद को इन रस्सियों की पकड़ से आजाद नहीं कर पा रहे हैं। पता नहीं यह कैसा जादू है? आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। आज से पहले तो कोई हमें देख भी नहीं पाता था।” रिवा बोली, “और अब तो देखने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।” ध्रुव रिवा की तरफ देखकर बोला, “यह लड़की कितना बोलती है! शुरू में जब मिली थी, तब इसकी जुबान से एक शब्द नहीं निकलता था।” कुछ देर के लिए सन्नाटा छाया रहा। फिर ध्रुव ने सिद्धार्थ से पूछा, “तुम लड़की का पता लगाने आए थे ना? कुछ पता चला?” “नहीं,” सिद्धार्थ ने जवाब दिया, “मैंने उसे दूर से ही देखा। जितना देखा, उससे वह मुझे सामान्य लगी। वह खाना बना रही थी, खाना खा रही थी, और खाना सर्व भी कर रही थी।” “तुम उसे देख रहे थे या उसके खाने को...” ध्रुव ने कहा। फिर इधर-उधर देखते हुए बोला, “तुम्हें ऐसा नहीं लगता, वह मेरे जैसी ही कोई लड़की होगी? जैसे मैं तुम लोगों को देख सकता हूँ, वैसे वह भी तुम लोगों को देख सकती है।” “अगर ऐसा है, तो वह मोटा आदमी भी तुम्हारे जैसा होगा।” सिद्धार्थ बोला। “अगर तुम बुरा न मानो, तो मैं एक बात कहूँ?” “हाँ, कहो।” “कहीं वह तुम्हारा मेले में बिछड़ा हुआ कोई बाप तो नहीं, और वह लड़की तुम्हारी बहन?” “क्या कुछ भी...” ध्रुव इधर-उधर देख रहा था। तभी उसका ध्यान कमरे में टंगीं फ़ोटोज़ पर गया। “यह सब तस्वीरें किसकी हैं?” “कुछ कह नहीं सकते, लग तो एक ही खानदान की हैं।” सिद्धार्थ बोला। “सब का पहनावा भी अजीब सा है, इतने लंबे-लंबे ओवरकोट कौन पहनता है?” ध्रुव की नज़र एक अलमारी के पास पड़ी कुल्हाड़ी पर गई। “बाहर निकलने का रास्ता मिल गया!” वह बोला और अपनी कुर्सी खिसकाते हुए उस कुल्हाड़ी तक जाने लगा। बड़ी मशक्कत के बाद वह कुल्हाड़ी तक पहुँच गया, मगर उसका हाथ अभी भी कुल्हाड़ी से दूर था। उसने खुद को झटका दिया और नीचे गिर गया। फिर कुल्हाड़ी पकड़ी और उसका इस्तेमाल करके अपने हाथों को खोला। जल्द ही तीनों आजाद हो गए थे। सिद्धार्थ और रिवा गटर वाले हिस्से की तरफ़ बढ़े और उसके आर-पार होकर बाहर चले गए। ध्रुव वहाँ पहुँचा तो अनजाने में उसने भी उसके आर-पार जाने की कोशिश की। इससे उसका सिर गटर के दरवाज़े से टकरा गया। वह बोला, “ओ शिट यार! मैं इंसान हूँ... तुम भी क्या पागलों वाली हरकतें करते रहते हो।” उसने ढक्कन उठाया और बाहर आ गया। “इससे पहले वह बेकार सा आदमी वापस आ जाए, हमें यहाँ से जल्दी भाग जाना चाहिए।” दोनों ने हाँ में सिर हिला दिया। दोनों बंगले से काफ़ी दूर एक छोटी ढलान से होकर गुज़र रहे थे। यह ढलान घास वाले मैदान की थी, जहाँ से वे गुज़र रहे थे, वहाँ सड़क थी। ध्रुव ने इस दौरान बंगले की तरफ़ देखा तो उसे काँच के दूसरी ओर कुछ अजीब दिखा: एक बहुत बड़ी परछाई। उस परछाई के आगे एक आदमी अपना सिर झुकाकर खड़ा था। परछाई के बनने का कारण कमरे में जल रही चिमनी थी, और ये दोनों शख्स चिमनी के आगे खड़े थे। इस वजह से उनकी परछाई काँच के ऊपर मौजूद पदों पर पड़ रही थी। ध्रुव कुछ देर तक उस तरफ़ देखता रहा, इसके बाद उसने अपना ध्यान सामने की तरफ़ कर लिया। अपने घर पहुँचते ही ध्रुव बेड के ऊपर गिर गया। रिवा फ़ुटबॉल पकड़कर उसे घुमाने लगी। सिद्धार्थ कुर्सी पर बैठ गया। ध्रुव ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “आज के बाद ऐसा मत करना, अकेले कहीं मत जाना।” “तुम मेरी इतनी फ़िक्र मत करो,” सिद्धार्थ बोला, “मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है, लेकिन अब दोबारा होगा तो मैं अपने आप को संभाल लूँगा।” “ये मैं तुम्हारी फ़िक्र के लिए नहीं कह रहा, तुम्हारी बहन के लिए कह रहा हूँ, वह बहुत दिमाग खाती है! आज के बाद ऐसा कभी मत करना, अपनी बहन को कभी अकेले मेरे पास मत छोड़ना।” ____ अगले दिन ध्रुव कॉलेज पहुँचा तो ऐनी उसके आने से पहले ही वहाँ आ गई थी। “तुम कल कहाँ थी?” ध्रुव ने ऐनी की तरफ़ बढ़ते हुए पूछा। “कहीं नहीं, ज़रूरी काम था, तो मुझे घर पर रहना पड़ा।” “हाँ, मगर वह ज़रूरी काम क्या था? उस काम का कोई नाम भी होगा।” “तुम रहने दो, तुम्हें समझ में नहीं आएगा।” ऐनी ने बात को टाल दिया। “ये बताओ, तुम कैसे हो? तुम्हारी दिमागी प्रॉब्लम ठीक हुई या नहीं?” “एक्सक्यूज़ मी...” ध्रुव ने अपने ‘ए’ को काफ़ी लंबा खींचा, “मुझे कोई दिमागी प्रॉब्लम नहीं।” “मेरे कहने का वह मतलब नहीं था, मैं बस यह कह रही थी, तुम्हारे भ्रम बंद हुए या नहीं।” ऐनी चेहरे से मायूस लग रही थी। “हाँ, लग तो रहा है बंद हो गए हैं। कल से मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ।” “चलो, तब तो बेहतर है। तुम्हारे साथ जो भी हो रहा था, वह बस तुम्हारे तनाव या डिप्रेशन की वजह से हुआ होगा।” ऐनी अपने आप में ही बोली। “भगवान जाने क्या है क्या नहीं! तनाव में भी कौन सा मेरी शादी होने वाली है! उफ़्फ़, छोटी सी तो लाइफ़ है मेरी, और उसमें भी इतनी बड़ी-बड़ी प्रॉब्लम्स!” ध्रुव ने कहकर अपना सिर हिला दिया। ऐनी ने उसकी तरफ़ देखा और हल्की मुस्कराहट देकर इस बात को छोड़ दिया। क्लास के लेक्चर की शुरुआत हो चुकी थी। पहले पीरियड में टीचर अपने आगे के टॉपिक को आगे बढ़ा रहे थे। वॉर्म होल के बारे में बताने के बाद आज उन्होंने एक नया टॉपिक छेड़ रखा था। यह नया टॉपिक दूसरी दुनियाओं के लोगों का था। वह अपने इस टॉपिक के बारे में बात करते हुए बोले, “मैं तुम लोगों को नए आयाम और नई चीज़ों के बारे में बता चुका हूँ, अब हम नई दुनिया के नए लोगों के बारे में पढ़ रहे हैं। हम इन लोगों को ‘नॉर्मल एलियन’ के नाम से पुकारते हैं। अब मैंने एक विशाल ब्रह्मांड और कई सारी दूसरी चीज़ों के बारे में बताया है, तो हम इसे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। अगर हमारा वजूद है, तो पॉसिबल है दूसरे लोगों का भी वजूद होगा।” एक स्टूडेंट ने अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ होगा। हमारी खुद की पृथ्वी पर जीवन इतनी मुश्किल से क्रिएट हुआ है, यह बस एक नॉर्मल इमेजिनेशन है।” टीचर उसकी तरफ़ देखकर हल्के से मुस्कुराए। वह कुछ देर तक शांत रहे, फिर मुस्कराहट को जारी रखते हुए बोले, “पृथ्वी पर महाद्वीप की खोज से पहले, समुद्र से अलग रहने वाले महाद्वीप के लोगों को लगता था, उनके अलावा इस धरती पर कोई नहीं। फिर एक दिन एक आदमी ने समुद्री बेड़ा बनाया और समुद्र में सफ़र किया। सफ़र ख़त्म होने के बाद वह दूसरे महाद्वीप पर पहुँच गया, जहाँ उसे और लोग दिखाई दिए। ये लोग उसकी दुनिया से अलग थे; आई मीन, उनके महाद्वीप से अलग थे। अगर वह आज के टाइम से उन्हें कोई नाम देता, तो वह उन्हें एलियन कहता। हमें जब तक चीज़ों के बारे में पता नहीं होता, हम तब तक उसे नज़रअंदाज़ करते हैं। लेकिन एक दिन हमारा सामना हकीकत से हो जाता है। तब हम चाहकर भी अपने सामने मौजूद चीज़ों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।” स्टूडेंट ने कुछ नहीं कहा। टीचर ने अपनी जो बात कही थी, उसका मतलब सारे स्टूडेंट समझ गए थे। एक-एक करके सारी क्लासेस ख़त्म हुईं और सब अपने-अपने घर की ओर जाने के लिए चल पड़े। अर्जुन ने जाने से पहले ध्रुव को हाय-हेलो कहा। ऐनी और ध्रुव एक साथ पार्किंग एरिया की तरफ़ जा रहे थे। ऐनी शांत थी। उसके चेहरे पर हल्की सी उदासी थी, जिसकी वजह से वह ना तो कुछ बोल रही थी, ना ही उसका ध्यान इधर-उधर की चीज़ों की तरफ़ था। ऐसा उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था। ध्रुव ने उसका चेहरा देखा और उसकी उदासी को भाँपते हुए बोला, “क्या बात है? तुम बड़ी खोई-खोई लग रही हो, कोई प्रॉब्लम है?” “नहीं, कुछ नहीं।” ऐनी बोली और अपने बैग को पकड़कर तेज़ी से आगे चली गई। ध्रुव पीछे ही रह गया। आगे चलकर वह अपनी स्कूटी पर बैठी और घर की तरफ़ चली गई। ध्रुव ने अपने कंधे उचकाए और कहा, “अब इसे क्या हुआ? नाराज़ हो गई क्या मुझसे? पर मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं बोला? इससे इसकी प्रॉब्लम का पूछा। क्या प्रॉब्लम का पूछने से भी कोई नाराज़ हो जाता है?” ऐनी ने अपनी स्कूटी दुकान के सामने पार्क की और तेज़ी से अंदर आकर अपना बैग काउंटर पर पटक दिया। इस टाइम लंच ब्रेक था और शॉप में उसके अंकल के अलावा और कोई नहीं था। आंटी अंदर खाना लेने गई हुई थी। “तुम्हें अब किस बात का गुस्सा आ रहा है?” उसके अंकल ने पूछा। “इतने टाइम बाद एक उम्मीद दिखी थी, वह भी टूट गई। मुझे लगा था जो काम कोई नहीं कर सका, वह मैंने कर लिया है। एक्साइटमेंट में आकर ढिंढोरा भी पीट दिया, परसों ध्रुव ने सब पर पानी फेर दिया। उसकी वजह से मुझे कल की मीटिंग में कितना कुछ सुनना पड़ा।” “इसमें उस बेचारे लड़के की क्या गलती? तुम्हें अपनी छानबीन को पुख्ता रखना चाहिए था। इतनी बड़ी गलती करोगी, तो सुनना तो पड़ेगा ना।” उसके अंकल बोले। “मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था। कल मुझसे नफ़रत करने वाले सब लोग कितने खुश थे! खुश तो होंगे ही ना, मैंने पहली बार गलती की थी, सब को मानो मेरा गला पकड़ने का मौका मिल गया था। उफ़्फ़!” उसने अपना सिर टेबल पर पटक दिया। “पता नहीं मेरी तलाश कब ख़त्म होगी।” “तुम अकेली नहीं ढूँढ रही उसे, सब ढूँढ रहे हैं। अब बस उम्मीद करो, किसी ना किसी को वह मिल जाए।” अंकल इतना बोलकर वहाँ से चले गए, जबकि ऐनी वहीं टेबल पर पड़ी रही। उसने साँस बाहर छोड़ते हुए कहा, “हाँ, उम्मीद तो है...” ★★★

  • 16. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 16

    Words: 1374

    Estimated Reading Time: 9 min

    ध्रुव अपने कमरे में आया तो सिद्धार्थ और रीवा पहले से वहाँ मौजूद थे। ध्रुव ने अपना बैग रखते हुए कहा, “मुझे कभी-कभी लड़कियाँ कुछ खास समझ में नहीं आतीं, कभी इनका मूड कुछ होता है, तो कभी कुछ।” “क्या हुआ?” सिद्धार्थ ने पूछा। “मेरी एक मित्र है, आज मैंने उससे पूछा, ‘तुम्हें कोई समस्या है तो बता दो,’ और वह, क्या ही कहूँ अब, वह मुँह फुलाकर ऐसे भागी जैसे मैंने उसका कोई प्यारा टेडी बियर छीन लिया हो।” सिद्धार्थ ने सिर हिलाया। ध्रुव टेबल पर बैठा और सोचने वाला चेहरा बनाते हुए कहा, “रात जो भी हुआ, हमें उसके बारे में सोचने का वक्त नहीं मिला। मुझे सुबह कॉलेज जल्दी जाना था, बस इसलिए, मगर अब हम इसके बारे में आराम से सोच सकते हैं।” “मैं सुबह से इसके बारे में सोच रहा हूँ। जो भी हुआ, उसके बाद हमारे सामने कई सारे सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे पहला सवाल, वह दोनों हमें देख कैसे सकते हैं? दूसरा सवाल, वह कार वहाँ क्या कर रही थी? तीसरा सवाल है, वह लड़की कौन थी? आइ मीन्स, उसमें कुछ खास है क्या?” ध्रुव उसे बीच में टोकते हुए बोला, “मुझे लगता है पहला और तीसरा सवाल, दोनों एक ही हैं।” “तो फिर तीसरा सवाल यह है कि अगर कार वहाँ थी, तो क्या वहाँ के किसी शख्स का हमारे कत्ल से कोई संबंध है?” “संबंध है! कितनी ओल्ड फ़ैशन हिंदी यूज़ कर रहे हो तुम!” ध्रुव खड़ा हुआ और पानी के जग से पानी गिलास में डालते हुए बोला, “तुम लोगों की मौत की गुत्थी तो डिटेक्टिव भी न आसानी से सुलझा पाए। कितना कॉम्प्लिकेटेड केस हो गया है!” उसने पानी पिया। पानी पीने के बाद वह बोला, “मगर सभी सवालों के जवाब तो जानने होंगे।” “अब यह इतना आसान नहीं रहा। हम भूत होने का फ़ायदा नहीं उठा सकते हैं, और तुम तो हो ही इंसान।” सिद्धार्थ ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा। “और वह आदमी मुझे देख भी चुका है। अगर हम ऐसे ही बंगले के आसपास गए, तो वह तुरंत हमें पहचान लेगा।” ध्रुव बोला। ध्रुव कमरे में चहलकदमी करने लगा। वह सोच-विचार में डूबा हुआ था। अचानक उसने चुटकी बजाई और बोला, “शायद मुझे पता है, मुझे क्या करना है।” दोनों उसकी तरफ़ देखने लगे। ध्रुव खुद ही खुद में मुस्कुरा रहा था। शाम के लगभग 4:00 बज रहे थे। ध्रुव एक पुराने, फटे ओवरकोट में, आइसक्रीम के ठेले के साथ गली में घूम रहा था। वह उस आइसक्रीम के ठेले के साथ जोर से आवाज़ लगाते हुए बोल रहा था, “आइसक्रीम ले लो, आइसक्रीम… ले लो…” उसने नीचे ढक्कन की तरफ़ देखा। जिस बड़े बक्से में आइसक्रीम के साथ बर्फ को रखा जाता है, उस बक्से में सिद्धार्थ और रीवा भी थे। रीवा दबी हुई आवाज़ में बोली, “मेरा दम घुट रहा है, तुम थोड़ा साइड में हटो ना।” उसने सिद्धार्थ से कहा था। “मैं कहाँ साइड में जाऊँ? तुम्हें कहा तो था, तुम घर पर रहो, लेकिन इसके बावजूद नहीं मानी। अब यहाँ आ ही गई हो, तो यह सब झेलना पड़ेगा।” ध्रुव ने दोनों को चुप करवाते हुए कहा, “तुम दोनों शोर मत करो। क्या पता कौन-कौन है जो तुम लोगों को सुन सकता है। मुझे यह पूरी की पूरी गली अजीब लग रही है। बीस मिनट से चिल्ला रहा हूँ, मगर अभी तक कोई आइसक्रीम लेने नहीं आया।” तभी एक घर का दरवाज़ा खुला और छोटी सी लड़की दौड़ते हुए आई। “मुझे आइसक्रीम चाहिए।” उस लड़की ने कहा। ध्रुव फ़ौरन उस लड़की से बोला, “आओ आओ बेटा, मुझे तुम्हारा ही इंतज़ार था।” लड़की उसके पास आकर बोली, “मगर तुम्हें मेरा इंतज़ार क्यों था?” “अरे, वह मेरे कहने का मतलब यह था कि मुझे इस बात का इंतज़ार था कि कोई मुझसे आइसक्रीम खरीदने आए। इतने टाइम से आवाज़ लगा रहा हूँ, मगर अभी तक कोई नहीं आया।” “ओह…” लड़की ने हल्की साँस बाहर छोड़ी। ध्रुव उसके लिए आइसक्रीम बनाने लगा। उसने आइसक्रीम बनाते हुए उस बंगले की तरफ़ देखा जिसे वह दो-तीन दिनों से देख रहा है और लड़की से पूछा, “अच्छा, यह जो सामने एक बड़ा सा घर है, तुम इसके बारे में कुछ जानती हो?” छोटी लड़की ने घर की तरफ़ देखा और बोली, “मेरी मम्मी कहती है, यह यहाँ का रहस्यमय घर है। इस घर में रहने वाले लोग कभी बाहर दिखाई नहीं देते, सब घर के अंदर ही रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे शहर में दिख जाते हैं।” ध्रुव ने अपने चेहरे पर हैरानी दिखाई। “क्या मतलब तुम्हारा?” “मतलब ये लोग कभी घर से बाहर जाते हुए दिखाई नहीं दिए, लेकिन इसके बावजूद शहर में अलग-अलग जगहों पर दिख जाते हैं।” “ओह।” ध्रुव बोला। “और क्या जानती हो तुम इस घर के बारे में?” “मैं बस इतना ही जानती हूँ।” “इस घर में एक लड़की भी रहती है, तुम्हें उसका पता है कुछ?” ध्रुव ने पूछा। “अनुष्का…” लड़की अपनी आँखें बड़ी करते हुए बोली। “वह मेरी अच्छी मित्र हुआ करती थी। मगर अपने अठारहवें जन्मदिन के बाद उसने भी घर से बाहर निकलना छोड़ दिया।” “और ऐसा क्यों?” ध्रुव ने आइसक्रीम उस लड़की को पकड़ा दी। “पता नहीं, दो-तीन दिन बाहर आई थी तो डरी हुई लग रही थी, मगर इसके बाद उसने बाहर आना ही छोड़ दिया।” लड़की इतना कहकर दौड़ पड़ी। ध्रुव ने उसे रोकने की कोशिश की, “अरे रुको तो सही, हमें कुछ और भी जानना है…” लेकिन वह लड़की नहीं रुकी। सिद्धार्थ आइसक्रीम के बक्से में से बोला, “यह लड़की तो हमारी कन्फ्यूज़न को और बढ़ाकर चली गई है। अब इसका क्या मतलब हुआ? वे लोग घर से बाहर नहीं निकलते, मगर इसके बावजूद शहर में दिखाई दे जाते हैं।” ध्रुव ने दुबारा बंगले की तरफ़ अपनी नज़रें कीं। वह कुछ देर तक शांत रहा, फिर कहा, “आई डोंट नो।” ऐनी अपने कमरे में थी। उसके ठीक सामने लैपटॉप था। लैपटॉप में फ़ेसबुक खुला हुआ था। वह शहर में रहने वाले हर एक तीन ऐज के लड़के-लड़की की प्रोफ़ाइल देख रही थी। चाहे वह लड़का हो या लड़की। उसके ठीक पास एक लिस्ट थी जिसे वह मार्क डाउन करती जा रही थी। एक और मार्क डाउन करने के बाद वह उठी और बाहर आई। दुकान में उसके अंकल कुछ ग्राहकों को संभाल रहे थे। ऐनी को देखते ही उसके अंकल उसके पास पहुँचे। ऐनी बोली, “मैंने लिस्ट को दोबारा देखा है। इस शहर में कुल 45 लड़के-लड़कियाँ ही हैं जो पिछले तीन महीनों में 18 वर्ष के हुए हैं। इसमें 44 को जाँच-परख लिया गया है। ध्रुव सबसे क्लोज़ था। उसके होने के चान्सेस भी ज़्यादा थे, मगर वह नहीं निकला। अब बस एक लड़की बची है, जिसका नाम अनुष्का है। वह यहाँ के एक वीआईपी फ़ैमिली में से है। इंटरनेट पर उसका कोई नामोनिशान नहीं। यहाँ के स्कूल-कॉलेज में भी उसकी डिटेल नहीं मिली। अब… आई डोंट नो, मैं इसका क्या करूँ? यह लड़की है तो हम इसे नज़रअंदाज़ भी कर सकते हैं।” “नहीं कर सकते। क्योंकि किसी को नहीं पता, वह लड़का था या लड़की। जिसे पता था, वह अभी यहाँ नहीं है। इसलिए इसके बारे में और जानो। क्या पता यही वह हो जिसकी हमें तलाश है।” “मगर मेरे पास जो डाटा है, उसमें इसके माँ-बाप का ज़िक्र है। हमें जिसकी तलाश है, उसके माँ-बाप नहीं हैं।” “उसे गोद भी लिया जा सकता है। यह चीज़ काम नहीं आएगी। तुम अपनी तलाश जारी रखो।” ऐनी ने अपना सर पटका और वापस चली गई। शाम हो रही थी। ध्रुव लौट कर आ चुका था। आने के बाद वह ऐनी से मिलने उसकी दुकान की तरफ़ चला गया था। सिद्धार्थ और रीवा घर पर ही रुक गए थे। दुकान में आते ही ध्रुव काउंटर के पास गया और वहाँ अंकल से पूछा, “हेलो अंकल, ऐनी कहाँ है?” अंकल ने ऊपर की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “ऊपर अपने कमरे में है। जाओ जाकर मिल लो।” ध्रुव ने हाँ में सिर हिलाया और उसके कमरे की तरफ़ चला गया। ध्रुव कमरे में पहुँचा तो कमरे में कोई नहीं था। ऐनी का लैपटॉप खुला हुआ था। पास ही एक पीले रंग की किताब पड़ी थी, जिस पर एक तस्वीर थी और फिर नीचे, जिसकी तस्वीर थी, उसका बायोडाटा था। ध्रुव ने इधर-उधर देखा और फिर उस किताब के पास चला गया। किताब में उसी की तस्वीर थी। फिर नीचे उसका बायोडाटा लिखा हुआ था। “यह क्या है…” ध्रुव हैरानी भरे शब्दों में बोला। इतने में ऐनी बाथरूम से बाहर निकली और उसकी नज़रें ध्रुव पर पड़ गईं।

  • 17. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 17

    Words: 1377

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    “ये क्या है...” ध्रुव हैरानी भरे शब्दों में बोला। इतने में ऐनी बाथरुम से बाहर निकली और उसकी नजरों ध्रुव पर पड़ गई। ★★★ “रुको.... तुम यहां क्या कर रहे हो?” ऐनी जोर से बोली। ध्रुव उसके जोर से बोलने की वजह से एकदम डर गया और पीछे होकर मेज के साथ चिपक कर खड़ा हो गया। ऐनी आगे आई और उसके सामने आते हुए उससे पूछा “तुम यहां क्या कर रहे हो?” “वो मैं तो तुमसे मिलने आया था, नीचे तुम्हारे अंकल से बात की तो उन्होंने मुझे ऊपर जाने के लिए कह दिया।” ऐनी ने महसूस किया वह कुछ ज्यादा ही ओवर रिएक्ट कर रही है। इसलिए उसने खुद को नार्मल किया और ध्रुव को कहा “ओह, अंकल भी ना, मैं नीचे ही आ रही थी, वहीं वेट करने के लिए कह देते, खामांखा तुम्हें यहां आना पड़ा।” “हां तो मुझे यहां आने में कोई दिक्कत नहीं है।” ध्रुव अजीब सी आंखें बनाते हुए बोला। “तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे यहां चोरी का माल रखा है और मैं किसी इस्पेक्टर की तरह उसे पकड़ लूंगा।” यह कहते ही उसे उस किताब का ख्याल आया जो उसने अभी-अभी देखी थी। “और तुम्हारे पास मेरी तस्वीर क्या कर रही है...” वो पीछे मुड़ा ताकि किताब को दोबारा देख सके। ऐनी एकदम से उसके आगे आ गई। दोनों के चेहरे एक दूसरे के इतने पास थे कि वह एक दूसरे की सांसो तक को महसूस कर सकते थे। कुछ देर तक दोनों ऐसे ही रहे। फिर ऐनी पलटी और किताब को बंद करते हुए बोली “ये तो मैं अपने कॉलेज से लेकर आई हूं, वो, वो मैं कॉलेज इलेक्शन लड़ने का सोच रही हूं, इसलिए सभी स्टूडेंट की प्रोफाइल लेकर आई हूं, ताकि सब के बारे में थोड़ा बहुत जान सकूं, इससे वोट मांगते वक्त मुझे आसानी होगी।” “तुम तो कमाल निकली, इलेक्शन लड़ोगी, बाप रे, कितना आगे का सोचती हो तुम।” ऐनी मुस्कुराई और फिर किताब को अलमारी में रख दिया। इसके बाद नीचे की तरफ जाते हुए ध्रुव को कहा “चलो नीचे जाकर बात करते हैं।” दोनों नीचे एक टेबल पर बैठकर आपस में बातें कर रहे थे। ध्रुव ने दो तीन बातें करने के बाद उससे पूछा “अच्छा मुझे बताओ दोपहर को तुम्हें क्या हुआ था जो फॉरेन भाग गई, तुमने ऐसा कभी नहीं किया?” “दोपहर को...” ऐनी याद करने लगी दोपहर को उसने क्या किया था। उसे याद आया दोपहर को वह जाने अनजाने में ध्रुव को इग्नोर करके घर आ गई थी “वो मुझे काफी भूख लगी थी, खाना खाना था इसलिए जल्दी से घर आ गई।” “तुम्हें समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।” ध्रुव ने सिर हिलाते हुए कहा। ऐनी कुछ देर तक शांत रही। फिर एक नजर अपने अंकल को देखने के बाद ध्रुव से पूछा “अच्छा तुम्हारे साथ वापस कुछ अजीब हुआ या फिर नहीं? क्या अभी भी तुम्हें इधर उधर की चीजें दिखाई देती है?” “क्या मतलब इधर उधर की चीजें?” “वही जो तुम्हें पहले दिखाई देती थी।” “नहीं।” ध्रुव ने ना में सिर हिला दिया। ऐनी का चेहरा वापस इससे मायूस हो गया। “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है तुम्हें मुझसे ज्यादा इसमें इंटरेस्ट है मुझे कुछ अजीब दिख रहा है या फिर नहीं। इतना तो मैंने भी इस पर ध्यान नहीं दिया जितना तुम दे रही हो।” “वो मुझे तुम्हारी फिक्र है ना इसलिए, अगर अभी भी तुम्हारे साथ होने वाली चीजें ठीक नहीं हुई होती तो मैं तुम्हें किसी डॉक्टर के पास ले कर जाती।” “मुझे डॉक्टर अच्छे नहीं लगते।” ध्रुव ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए कहा। “मैं बचपन से ही डॉक्टर से दूर रहा हूं। अगर बीमार भी हुआ तो घर पर ही नेनी का काढ़ा पीकर ठीक हो गया।” “और मुझे काढ़ा अच्छा नहीं लगता।” ऐनी हंसते हुए बोली। “और ना मेरी नानी दादी थी जो मुझे इस तरह की कोई चीज बना कर देती है।” “नानी दादी से याद आया तुम्हारे पेरेंट्स कब आ रहे हैं? तुमने अपने इंट्रोडक्शन में कहा था वह लोग जल्दी आ जाएंगे।” “मुझे खुद नहीं मालूम। शायद उन्हें 1 महीने से ज्यादा टाइम लग जाएगा। शहर में उनके काम ही नहीं खत्म हो रहे। वो काम खत्म हो तो यहां आए।” ऐनी के अंकल ने कॉफी के दो कप ला कर उनके सामने रख दिए। ध्रुव ने थैंक्स बोला। उनके जाने के बाद ध्रुव ने पूछा “तुम्हारे पापा क्या काम करते हैं?” “वो तो एक सीए है। उनका अच्छा खासा बिजनेस भी है। ये बिजनेस फार्मेसी के फील्ड में है।” “अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या मैं जान सकता हूं, जब तुम्हारी फैमिली का अच्छा खासा बिजनेस शहर में है तो वह यहां क्यों आ रही है? क्या यहां तुम लोगों की कोई जमीन जायदाद है?” ऐनी ने ना में सिर हिला दिया। इसका मतलब था यहां उनकी कोई जमीन जायदाद नहीं। ध्रुव ने अपने हाथों को हवा में हिलाते हुए पूछा “तो फिर?” ऐनी इस बात का जवाब देने में खुद को कंफर्टेबल नहीं समझ रही थी। उसने एक बार नीचे की तरफ देखा एक बार दाएं की तरफ फिर कहां “वो यह थोड़ा पर्सनल मैटर है, इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता सकती हम यहां क्यों सेटल हो रहे हैं। हां, जब थोड़ा कंफर्टेबल हो जाऊंगी तब तुम्हें जरूर बता दूंगी।” “ओके, नो प्रॉब्लम, जब तुम्हें बताना सही लगे तब बता देना।” ध्रुव ने कहा और कॉफी पीने लगा। कॉफी खत्म करने के बाद वह जाने के लिए खड़ा हो गया “चलो मैं अब चलता हूं, मैं बस यही पूछने आया था तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं है, बिकॉज दोपहर को तुमने काफी अजीब बिहेव किया था।” ऐनी भी अपनी जगह से खड़ी हो गई और उसके साथ बाहर जाने के लिए चलने लगी। “मैं इसके लिए माफी चाहूंगी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, आगे से ध्यान रखूंगी।” बाहर आने के बाद दोनों ने एक दूसरे को बाय कहा। ध्रुव ने अपनी साइकिल उठाई और शहर से वापस अपने घर की तरफ चल दिया। शाम का वक्त था इसलिए हल्का अंधेरा हो रहा था। वह सड़क पर अकेले ही साइकिल चलाते हुए जा रहा था। अचानक उसे महसूस हुआ उसके पीछे कोई अजीब सी हलचल हो रही है। ध्रुव ने पीछे नहीं देखा। थोड़ा और आगे जाने के बाद पीछे होने वाली हलचल और बढ़ने लगी। वातावरण में सन्नाटा पसरा हुआ था मगर इस हलचल की वजह से ऐसे लग रहा था मानो जैसे यह सन्नाटा भी काल्पनिक। ध्रुव ने और आगे जाने के बाद धीरे से पीछे मुड़कर देखा। जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। चेहरे पर डर के इतने डरावने भाग बन गए जैसे उसके सामने मौत आ खड़ी हो। उसके पीछे के दृश्य एक भयानक खौफ थे। ध्रुव के ठिक पीछे अंधेरे से भरे वातावरण में सड़क किसी लहरदार पानी की तरह ऊपर की तरफ उठती हुई ध्रुव की और आ रहीं थीं।‌ ध्रुव ने सामने की तरफ देखा और अपनी साइकिल को और तेजी से भगाने लगा। जैसे-जैसे वह साइकिल को सड़क से गुजार रहा था उसके पीछे की सड़क ऊपर उठती जा रही थी। सामने मोड़ आया और उसने तेजी से साइकिल को मोड़ा। जैसे ही साइकिल मुड़ी सामने से एक ट्रक आ गया। ध्रुव ने खुद को उस ट्रक से बाल बाल बचाया। ट्रक के उसके करीब से निकलते ही उसने पीछे मुडकर देखा। ट्रक हैरतअंगेज तरीके से ऊपर उठी सड़क के अंदर से निकल गया। ध्रुव को यह देखकर हैरानी हुई। उसने आगे बढ़ना बंद किया और सड़क पर रुक गया। सड़क ऊपर उठते हुए उसके पास आती जा रही थी। सड़क उसके पास आई और उससे आकर टकरा गई। जैसे ही सड़क उस से टकराई सब कुछ शांत हो गया। मानो कुछ हुआ ही न हो। सड़क नॉर्मल थी। ध्रुव भी उस पर नॉर्मल खड़ा था। आसपास के माहौल में भी किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं दिख रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे सब ध्रुव का वहम हो। ध्रुव ने इधर उधर देखा। फिर साइकिल को स्टैंड पर खड़ा किया और नीचे बैठकर सड़क को छुआ। उसके चेहरे पर एक बड़ी हैरानी के भाव थे। ध्रुव ने दूसरे हाथ से भी सड़क को छुआ। छूने के बाद उसने सड़क को दबाकर देखा। सब कुछ नॉर्मल था। ध्रुव ने अपने चेहरे की हैरानी को थोड़ा सा कम किया और कहा “ये सब आखिर है क्या? मैंने सब अपनी आंखों से देखा था फिर...? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। ये...ये जो भी है मिस्टीरियस हैं।” ★★★

  • 18. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 18

    Words: 1844

    Estimated Reading Time: 12 min

    ★★★ ध्रुव अपने घर पर आया और कमरे में जाकर तकिया उठाकर उसे ज़ोर से दीवार पर फेंका। वो गुस्से में था। उसने कहा “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है मैं गलत दुनिया में पैदा हो गया, इतना कुछ एक नॉर्मल दुनिया में कभी नहीं होता।” इतने में रिवा सामने की दीवार से निकलकर बाहर आई। वो अपनी फुटबॉल के साथ खेलते हुए ध्रुव के करीब से निकल गई। ध्रुव उसकी तरफ मुड़ा और थोड़ा गुस्से वाली आवाज में बोला “तुम यह आवाज बंद करोगी?” रिवा पलटी “तुम्हें क्या हुआ है?” ध्रुव बेड पर बैठ गया। “मत पूछो, जिंदगी की ऐसी तैसी हो रही है।” “अपनी जिंदगी से तो इतना हम भी परेशान नहीं जितना तुम हो रहे हो।” “तुम लोग जिंदा हो ही कहा...” ध्रुव ने कहा और रिवा के चेहरे पर सन्नाटा छा गया। रिवा ने कुछ नहीं कहा और ऊपर की तरफ उड़ते हुए गायब हो गई। ध्रुव ने उसे जाते हुए देखा और दोबारा अपना चेहरा नीचे कर लिया। उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी। वह‌‌ फ्रस्ट्रेटेड दिख रहा था। रात के तकरीबन 10:00 बज रहे थे। सभी खाना खा रहे थे। उसके नाना नानी आपस में बातें कर रहे थे मगर ध्रुव का ध्यान उनकी तरफ बिल्कुल नहीं था। उसकी नानी ने उसके चेहरे की तरफ देखा और पूछा “ध्रुव क्या बात है, तुम काफी परेशान लग रहे हो, कुछ हुआ है?” “नहीं कुछ नहीं हुआ, मैं बस कॉलेज के असाइनमेंट की वजह से परेशान हूं।” ध्रुव ने काफी रुडली तरीके से जवाब दिया। “तुम्हारा मूड तो काफी बिगड़ा हुआ है..” उसके नाना बोले। वह खड़े हुए और वहीं पड़ी एक अलमारी की तरफ गए। उन्होंने अलमारी खोली और एक बड़ा सा बक्सा लेकर वापस आ गए। “मैंने सोचा था तुम्हें यह तोहफा 2 दिन बाद वीकेंड आने पर दूंगा, शायद इससे तुम्हारा बिगड़ा हुआ मूड थोड़ा सा ठीक हो जाए।” आशु‌ ने कुछ देर तक तोहफे की तरफ देखा। “अगर आप मुझे यह वीकेंड पर देना चाहते थे तो वीकेंड पर दे देना, मेरे मुड की वजह से आप अपनी प्लानिंग मत चेंज कीजिए।” “अरे नहीं-नहीं, वो तो बस कहने के लिए था, ये तोफा मैं तुम्हें आज ही देने वाला था, वीकेंड का अभी कुछ फाइनल नहीं।” उन्होंने तोहफा टेबल पर रख कर ध्रुव की तरफ बढ़ा दिया। ध्रुव ने बॉक्स का रेपर उतारा और फिर बॉक्स खोला। उसमें लैपटॉप था। ध्रुव के चेहरे पर लैपटॉप देखकर हल्की खुशी आ गई। “लैपटॉप!! थैंक्स नानस..” ध्रुव ने मुस्कुराते हुए कहा। सब दुबारा खाना खाने लगे। खाना फिनिश करने के बाद ध्रुव कमरे में आया और लैपटॉप बेड पर रखकर छत की तरफ चला गया। उसने छत पर चारों तरफ देखा। उसे रिवा की तलाश थी। “रिवा कहां हो तुम?” वह उसे बुलाते हुए बोला “रिवा... वापिस आओ..” रिवा‌ ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। रिवा छत पर चिमनी वाली दीवार के अंदर छुपी हुई थी। ध्रुव ने आसमान की तरफ देखा और हल्के दबे हुए गले वाली आवाज में कहा “मुझे तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था, एम सॉरी, मैं बस गुस्से में था और वह गुस्सा तुम पर निकल गया, प्लीस‌ वापिस आ जाओ, आई प्रॉमिस मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा, अगर गुस्से में भी होऊंगा तो अपना गुस्सा तुम पर नहीं उतारूंगा।” रिवा यह सब सुन रही थी मगर इसके बावजूद वह चिमनी से बाहर नहीं निकली। ध्रुव ने पछतावे वाली फीलिंग के साथ अपनी पलकें झपकाईं और हाथ अपने पट पर मारते हुए वापस कमरे की तरफ चला गया। कमरे में आकर उसने एक नोटबुक उठाई और अपने लैपटॉप के सामने बैठ गया। “ऐसे परेशान होने से कुछ नहीं होगा, जो भी प्रॉब्लम मेरे सामने हैं मुझे उनका सोलुयशन सोचना होगा।” उसने नोटबुक का पन्ना खोला “मैं अपनी सारी प्रॉब्लम एक-एक करके इसके ऊपर लिख लेता हूं। ओके तो मेरी पहली प्रॉब्लम है सिद्धार्थ के कातिलों का पता लगाना, हां रिवा के भी‌ जो नाराज होकर बैठी है, सेकंड प्रॉब्लम है उस डरावने से घर की मिस्ट्री को सॉल्व करना, वो‌ लोग भूत प्रेतों को कैसे देख सकते हैं यह सबसे मेन है यहां पर, उस लड़की की सच्चाई भी इसके अंदर आ जाएगी, तीसरी प्रॉब्लम है मेरे साथ जो भी हो रहा है उसका कारण क्या है। इसमें मेरे पास दो सवाल है। पहला सवाल मुझे भूत क्यों दिखाई दे रहे हैं, दूसरा सवाल डरावने से इंसिडेंट अचानक से मेरी आंखों के सामने क्यों होने लगते हैं।” यह सब लिख कर उसने लैपटॉप उठाया और राजवीर मेहता के घर के बारे में सर्च करने लगा। उसके घर को सर्च करते ही उसके सामने घर की काफी सारी डिटेल्स निकलकर सामने आ गई। जो भी डिटेल उसके सामने थी वह इस तरीके से पेश की गई थी जैसे मानो किसी इंसान ने घर पर कई सालों तक नजर रखी हो और फिर उसकी रिपोर्ट बनाकर पब्लिश की हो। “मुझे नहीं पता था एक घर के बारे में इंटरनेट पर इतना कुछ लिखा होता है।” ध्रुव इस डिटेल को देखते हुए बोला। उसने डिटेल को पढ़ना शुरू किया। काफी पढ़ने के बाद उसने कहा “खतरनाक, यह घर है या पहेलियों का जाल, इतने सारे इंसिडेंट एक ही घर में कैसे हो सकते हैं?” “कौन से इंसिडेंट हो गए?” सिद्धार्थ उसके ठीक पीछे आया और उसके कान के पास बोला। उसके एकदम बोलने की वजह से ध्रुव फिर से डर गया। वो‌ उछलते हुए लैपटॉप उठाकर दूसरी तरफ जाते हुए बोला “मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है ऐसे एकदम से मत आया करो, यार तुम लोग ऐसे मेरी जान ले लोगी किसी दिन।” “ओह‌ माफ करना मेरे दिमाग से निकल गया था, मैं आगे से ध्यान रखूंगा।” ध्रुव वापस आकर बैठ गया। उसने लैपटॉप सिद्धार्थ के सामने रखते हुए कहा “हमारे सामने जो घर है वह कोई ऐसा वैसा घर नहीं है। यह पहेलिया से भरा हुआ घर है। इस घर को 1795 में एक अंग्रेज ने बनाया था। वो एक विआईपी बंदा था और भीड़-भाड़ की दुनिया से दूर हो कर एक शांत जगह पर रहना चाहता था। जब उसने यहां घर बनाया था तब दूर-दूर तक यहां कोई नहीं रहता था। 1800 में अचानक उस अंग्रेज की मौत हो गई। उसकी लाश जंगल मैं दो हिस्सों में बंटी हुई मिली। कमर के ऊपर का शरीर एक पेड़ से लटका हुआ था जबकि बाकी का शरीर एक झरने के पास था। यह कैसे हुआ क्यों हुआ इसका पता किसी को नहीं चला। 1805 में सामने आया इस घर को अंग्रेज ने मरने से पहले शोभनाथ मेहता के नाम कर दिया था।” “शोभनाथ मेहता?” सिद्धार्थ ने सवालिया नजर से ध्रुव की तरफ देखा। “ तुम्हें जानकर हैरानी होगी यह उन्हीं आदमियों में से एक है जिसकी तस्वीर हमने उस दीवार पर देखी थी।” “ओह... इट... ये खतरनाक है।” “हां आगे सुनो,‌ शोभनाथ मेहता उस समय सिर्फ 22 साल का था और उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह एक आलीशान घर खरीद सके, लेकिन फिर भी घर उसके नाम हो गया, इसके 5 साल बाद दो और लोगों ने यहां पर जगह ली और घर बनाना शुरू किया। लेकिन 3 महीने के अंदर ही सभी लोगों की मौत हो गई। ‌ सभी लोग ठीक उसी तरीके से मारे गए थे जिस तरीके से वह अंग्रेज मारा गया था। अगले 3 साल में कुछ और लोग यहां रहने के लिए आए और उनकी भी मौत हो गई। शोभनाथ को छोड़कर और कोई भी इस इलाके में जिंदा नहीं रहा।”‌ “इससे साफ होता है यह जो भी किया है शोभनाथ ने किया है।” सिद्धार्थ ने फौरन कंक्लूजन निकालते हुए कहा। “मुझे भी यही लगा। लेकिन अगले चार सालों बाद शोभनाथ भी मारा‌ गया। वो भी उसी.....तरीके से......” “हद हो गई।” “उस समय इंडिया में माहौल ठीक नहीं था। अंग्रेज विद्रोह को दबाने में लगे हुए थे इसलिए वह इन घटनाओं को छोटी मोटी घटनाएं समझते थे और उन्होंने इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। फिर अगले कई सालों तक किसी तरह की घटना नहीं घटी और यहां पर आबादी बसने लगी है। हालांकि अभी भी लोग ज्यादा नहीं थे। 1845 में इस घर की नीलामी रखी गई जहां इस घर का एक मालिक सामने निकल कर आया। यह शोभनाथ का बेटा था। दिव्य भास्कर मेहता। एक खतरनाक डिटेक्टिव। उसने अंग्रेजों के लिए काफी काम किया।‌ पीढ़ी दर पीढ़ी घर के मालिक अपने आने वाले वंशज के साथ बदलते गए। और इन सब में हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान 40 से ज्यादा लोग उसी तरीके से सिर मारे गए। 1980 में इतनी सारी घटनाओं के बाद जंगल में सर्च अभियान चलाया गया। सामने आया जंगल में आदमखोर भेड़िया के कई सारे कबीले थे। उन सभी को मार दिया गया। इसके बाद ऐसी घटना नहीं घटी।” “यानी जो भी हुआ वहीं आदमखोर भेड़ियों की वजह से हुआ।” “लेकिन इस रिपोर्ट को लिखने वाले आदमी ने लिखा है अगर यह सब भेड़ियों का किया हुआ था तो वह जान लेने के बाद उसकी लाश को खाते क्यों नहीं थे। वो बस उन्हें दो हिस्सों में फाड़ कर फेंक क्यों देते थे।” “भाई डराओ मत.... मुझे ऐसे लग रहा है जैसे यह रिपोर्ट किसी नशेड़ी आदमी ने लिखी है।” “उसने लिखा है घर में कई सारी खुफिया जगह है, उनमें कई सारे राज दफन है, ये फैमिली एक नॉर्मल फैमिली नहीं है, इस फैमिली के लोग.... इस फैमिली के लोग हैवान है... किसी तरह के राक्षस..., अगर घर की खुफिया जगह की तलाश की जाए तो फैमिली के सारे दफ़न राज निकल कर बाहर आ जाए। इस रिपोर्ट को 2010 में पब्लिश किया गया था और 2011 में इस रिपोर्टर की मौत हो गई। रिपोर्ट का खंडन सबसे पहले राजवीर मेहता ने किया था, वो इसके जवाब में बोले थे, ये बस किसी फिक्शन कहानी की तरह लग रहा है, घर अंग्रेजों के जमाने में बना था इसलिए घर में कुछ खुफिया कारागृह है, मगर‌ उनमें कोई राज नहीं दफन, वहां बस दीवारें हैं या फिर सलाखें।” “काफी फिल्मी तरीके से जवाब दिया इसने...” सिद्धार्थ उठते हुए बोला। “राजवीर मेहता ने कई सारे इंटरव्यू दिए और धीरे-धीरे करके लोगों के दिमाग से यह बात निकाल दी। अब लोगों को पता भी नहीं इस तरह का भी कुछ यहां हुआ है। इलाके के काफी कम लोग हैं जिन्हें राजवीर मेहता के घर के बारे में यह सब पता होगा। हां, लोग उसे अजीब जरूर मानते हैं इसलिए उसके घर की तरफ कोई आता जाता नहीं। राजवीर मेहता भी बस कभी कबार काम के चक्कर में शहर में दिखाई दे जाते हैं। वरना किसी को पता तक नहीं वह कैसे रहता है, अपनी लाइफ कैसे जीता है, या‌ वो यहां है भी या नहीं।” “उफफफ..... घर के साथ-साथ राजवीर मेहता भी पहेलियों की खान है.... यार‌..” सिद्धार्थ स्क्रीन की तरफ देख रहा था। “यार... ये हमारा क़त्ल कितना कॉम्प्लिकेटेड है। क्या-क्या निकलकर सामने आ रहा है इसमें।” सिद्धार्थ ने लैपटॉप का बटन दबाया तो राजवीर मेहता की तस्वीर आ गई जिसे उसने पहले ही निकाल कर रखा था। “कुछ ज्यादा ही कॉन्प्लिकेटेड है... पुराने सवालों के जवाब मिलते नहीं और नए सवाल और खड़े हो जाते हैं। ऐसे लग रहा यह एक ऐसा केश है जिसमें बस सवाल ही सवाल है। और सबसे बड़ा सवाल है.... ये राजवीर मेहता...” ध्रुव राजवीर मेहता की तस्वीर को बड़ी ही दिलचस्प नजरों से देखने लगा।“ये बंदा भी मुझे नॉर्मल नहीं लगता।” ★★★

  • 19. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 19

    Words: 1889

    Estimated Reading Time: 12 min

    ★★★ अगले दिन शाम के तकरीबन 4:00 बज रहे थे। ध्रुव काले रंग का कोट पैंट पहनकर एक स्टेज के सामने बैठा था। वह बार बार अपनी टाइ सही कर रहा था। “मुझे यह टाइ फांसी के फंदे की तरह लग रही है, पता नहीं लोग कोट पेंट पहनते ही इसे पहनने क्यों लग जाते हैं, इसे कोट पेंट के साथ कंपलसरी क्यों कर रखा है।” “ऐसी हरकतें मत करो, लोग तुम्हें पागल समझेंगे।” ध्रुव के बगल में बैठा सिद्धार्थ बोला। वो टी-शर्ट और कैपरी में था। ऐसे जैसे घर में हो। उसके दूसरी तरफ रिवा थी जो पॉपकॉर्न खा रही थी। “ये मूवी कब शुरू होगी।” रिवा ने अपने रोबोटिक अंदाज में कहा। ध्रुव और सिद्धार्थ दोनों उसे घूर कर देखने लगे। ध्रुव ने कहा “हम यहां मूवी देखने नहीं आए, हम यहां राजवीर मेहता को देखने आए हैं।” “क्या वह किसी मूवी में है?” रिवा दोनों की तरफ देखने लगी। सिद्धार्थ ने उसे घूरते हुए कहा “यह एक स्पीच फंक्शन है। राजवीर मेहता यहां एक स्पीच देने के लिए आएगा।” “तुम लोगों ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। जिस तरह तुम लोग कमरे में बात कर रहे थे मुझे लगा मूवी देखने जा रहे हो।” रिवा ने कहा और पॉपकॉर्न के डब्बे को ऊपर उठाकर उसमें पॉपकॉर्न खाने लगी। ध्रुव और सिद्धार्थ दोनों कुछ देर तक चुप रहे। फिर ध्रुव के मन में कुछ आया और वह सिद्धार्थ के कान के पास आकर बोला “मेरे ख्याल से हम में से किसी को उसके घर पर भी नजर रखनी चाहिए थी। इससे यह पता चल जाता है वह घर से निकलकर यहां आता है या सीधे ही किसी और तरीके से यहां पहुंचता है।” “तुमने सही कहा। यह बात हमारे दिमाग से कैसे निकल गई।” जोरदार तालियां बजी और राजवीर मेहता सामने स्टेज पर नजर आए। स्टेज पर मौजूद दूसरे लोग उनके स्वागत के लिए आगे बढ़े। वह साधु ने फूलों के गुच्छे और तरह-तरह के गिफ्ट देकर उनका स्वागत कर रहे थे। राजवीर मेहता ने सभी के तो फिर लिए और माइक की तरफ बढ़ा। वो शहर के चर्चित लोगों में से एक था। दिखने में स्मार्ट और जंग लग रहा था। उसने ग्रे कलर का कोट पेंट पहन रखा था जो काफी महंगा था। चेहरे पर नजर वाले चश्मे थे जो उसे और गंभीर बना रहे थे। गंभीरता के मामले में वह सधे हुए और काफी एक्सपीरियंस लोगों जैसा लग रहा था। वह माइक के पास आया और उसे टेस्ट किया। कुछ देर तक लोगों की तरफ देखा और फिर उन्हें संबोधित करते हुए बोला “मुझे आप सबको यहां देख कर खुशी हुई। मुझे उम्मीद नहीं थी मुझे इतने सारे लोग सुनने के लिए आएंगे।” यह एक ओपन इनविटेशन था और इस वक्त हॉल की कुछ सीटों को छोड़कर पूरा का पूरा हॉल पीछे तक भरा हुआ था। तकरीबन 1500 की तादाद इस हाॅल में आसानी से आ सकती थी। “शहर में लोग मुझे एक बिजनेसमैन के नाम से ज्यादा जानते हैं। हां थोड़ा बहुत मेरे मिस्टीरियस घर और मेरे मिस्टीरियस कहानी के लिए भी....” उसने हल्के मजाकिया अंदाज में कहा “हालांकि लोग इसे भूल चुके हैं और मैं भी।” वह कुछ देर तक रुके “हम इस वक्त एक ऐसी दुनिया का हिस्सा है जो हर दिन नए कारनामे बना रही है। हम विकास कर रहे हैं। साइंस हर दिन कुछ ना कुछ नया खोज रही है। यह एक ऐसी दुनिया है जहां आपको हर वक्त सिर्फ दो ही चीजों के बारे में सोचना होता है, पहली आज के दिन क्या करना है, दूसरी हम दुनिया को नया क्या दे रहे हैं। दोनों ही चीजें की अपनी अलग-अलग वैल्यू है। पहली चीज है हमारे लिए इंपॉर्टेंट है और दूसरी चीज हमारे आने वाले बच्चों, हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए इंपॉर्टेंट है। मैंने देखा है शहर में पिछले कुछ सालों से कुछ खास नहीं हो रहा। शायद मैं यहां पर थोड़ा सा गलत हूं। पिछले कुछ सालों से नहीं बल्कि तबसे जबसे यह बना है। इसके कई कारण हो सकते हैं। यहां की आबादी इतनी ज्यादा नहीं। हम पहाड़ों के बीच आते हैं। शहर से बाहर के लोग हम पर खास ध्यान नहीं देते। मैं गिनती करूं तो ऐसे और भी कई सारे कारण बता सकता हूं। यह सच में हैरानी की बात है। खैर मैं इस पर ज्यादा नहीं जाना चाहता। मैं सीधे मुद्दे की बात पर आता हूं। शहर के जाने माने बिजनेस मैन होने के नाते मैंने शहर के विकास के लिए कदम उठाने का फैसला किया है। हालांकि मुझे यह काफी पहले कर लेना चाहिए था मगर तब हालात ऐसे नहीं थे, पर अब मैं इसमें देरी नहीं करना चाहता। मैं इस शहर के विकास के लिए वो करूंगा जो आज तक किसी ने नहीं किया। और आप सब जानते हैं मेरा पहला काम क्या होगा....” वह इतना कह कर चुप हो गए। उन्होंने सामने वाले लोगों के लिए एक सवाल छोड़ दिया था जिस पर सामने के सभी लोग सोचने और आपस में कानाफूसी करने लगे थे। ध्रुव बोला “यार इसके बोलने का अंदाज कितना खतरनाक है। मैं तो इसकी स्पीच में पूरी तरह से खो गया था। यह अपने हर एक शब्द को इतने अच्छे तरीके से सजाकर बोलता है कि अगर यह प्राइम मिनिस्टर का चुनाव लड़े हैं तो आसानी से जीत जाए।” सिद्धार्थ भी खोया हुआ था “सच में यार।” उसने भी यही प्रतिक्रिया दी। दोनों रीवा की तरफ मुड़े तो वह सो रही थी। लोग आपस में जितने कानाफूसी कर सकते थे वह कर चुके थे‌। अबुल सबको राजगीर मेहता से ही जवाब का इंतजार था। राजवीर मेहता ने अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान दी और कहा “मैं इस शहर में पहली ट्रेन लेकर आने वाला हूं।” सभी के चेहरे पर यह सुनकर खुशी आ गई “मैंने स्टेट गवर्मेंट से बात करनी है और वह भी इस प्रोजेक्ट में मेरा साथ दे रही है। हम शहर के उत्तर में मौजूद पहाड़ों की कटाई करेंगे और उसके अंदर रास्ता बना कर रेल लाइनों को बिछाएंगे। अभी तक जहां ट्रेन नहीं आई क्योंकि पहाड़ रास्ता नहीं देते लेकिन अब हम इसे पॉसिबल बनाएंगे।” उन्होंने अपना हाथ ऊपर किया और किसी अच्छे नए की तरह लोगों को उत्साहित करते हुए बोले “अब यह शहर विकास का एक नया दौर देखेगा।” पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा। ध्रुव ने भी अपना हाथ आगे किया और दो तीन तालियां स्लो मोशन में बजाई। राजवीर मेहता का स्पीच खत्म हो चुका था। लोगों ने अपने घर जाना शुरू कर दिया था। मगर ध्रुव अभी भी यही था और राजवीर मेहता की तरफ गौर से देख रहा था। राजवीर मेहता तेज पर मौजूद दूसरे लोगों से बात कर रहे थे। अचानक ध्रुव का ध्यान स्टेज पर बने एंट्री टूर पर गया। वहां वहीं लड़की खड़ी थी जिसे उन्होंने उस रात देखा था। वही गैराज वाली लड़की। उसका ध्यान अभी तीनों पर नहीं था और वह भी राजवीर मेहता की तरफ देख रही थी। उसने राजवीर मेहता की तरह ही काले रंग का कोट पेंट पहन रखा था। उस रात उसकी शक्ल और वह खुद ज्यादा अच्छे तरीके से नहीं देखी थी मगर आज एहसास तरीके से देख रही थी। वो किसी फॉरेन कंट्री की लड़की की तरह लग रही थी। काफी ज्यादा गोरा रंग, मोटे गाल जो हल्के गुलाबी थे, और बाल जो ना तो ब्लैक थे ना ही ब्राउन। उनमें दोनों का मिक्सर था। इस वक्त उसने आगे से बालों के एक हिस्से को खुला छोड़ रखा था जबकि पीछे उनमें रबड़ लगा रखी थी। इससे उसका लुक उस रात से भी ज्यादा अच्छा लग रहा था। फिर कोट पेंट पहन रखा था तो यह उसे और भी ज्यादा अट्रैक्टिव बना रहा था। ध्रुव ने सिद्धार्थ को कोहनी मारी। “क्या है...” सिद्धार्थ बोला और ध्रुव की तरफ मुड़ा। वह सामने देख रहा था तो उसने भी सामने की तरफ देखा और उसे भी सामने वही लड़की देखी। ध्रुव के होश उस लड़की को देखने के बाद पूरी तरह से उठ चुके थे और ऐसा ही कुछ और सिद्धार्थ के साथ हो क्या था। “ये तो वहीं लड़की है।” सिद्धार्थ के मुंह से निकला। राजवीर मेहता ने स्टेज पर बात करते हुए लड़की की तरफ इशारा किया। लड़की ने हां में सिर हिलाया और फौरन राजीवर मेहता के पास आ गई। राजगीर मेहता उन्हें वहां मौजूद कुछ गेस्ट से मिलवा रहे थे। थोड़ी बातचीत करने के बाद लड़की वह स्टेज पर एक तरफ हो कर खड़ी हो गई। वहां उसने इधर-उधर देखना शुरु किया और उसका ध्यान ध्रुव पर चला गया। उसने सिद्धार्थ और रिवा को भी देख लिया। उसके देखते ही ध्रुव फौरन सीट के नीचे झुका और अपना चेहरा छुपाने लगा। सिद्धार्थ भी कुछ ऐसा ही करने लगा। जबकि रिवा सो रही थी। “यार इसमें हमें देख लिया...” ध्रुव ने कहा। “इसने हमें पहचान भी लिया होगा। गॉड काश इस लड़की की याददाश्त कमजोर हो। इसे गजनी की तरह कोई बीमारी हो। यह चीजों का लॉन्ग टाइम तक याद ना रख सकती हो।” सिद्धार्थ अजीबोगरीब लाइने बड़बड़ाने लगा। “चुप करो तुम, चलो निकले यहां से।” ध्रुव खड़ा हुआ और फौरन निकलने के लिए चल पड़ा। सिद्धार्थ ने भी रिवा को उठाया और उसका हाथ पकड़ कर वहां से जाने लगा। लड़की ने स्टेज पर इधर उधर देखा और वह भी वहां से चली गई। ध्रुव और सिद्धार्थ रिवा के साथ हाॅल के दाई और मौजूद दरवाजे से बाहर निकल रहे थे। यह दरवाजा यहां का मेन दरवाजा नहीं था। मेन दरवाजा दूसरी तरफ था। इसलिए यहां पर भीड़ नहीं थी और ना ही ज्यादा लोग यहां पर दिखाई दे रहे थे। ध्रुव और सिद्धार्थ दरवाजे से बाहर निकले तो लड़की उनके ठीक सामने खड़ी थी। दोनों उसे देखते ही पीछे हो गए और एकदम से दीवार से सट कर खड़े हो गए। रिवा ने उस लड़की को देखा तो उपसस वाला चेहरा बना लिया। “वो मेरी फुटबॉल यहां भी खो गई थी।” रिवा अपने उपपस वाले चेहरे के साथ ही बोली। सिद्धार्थ ने उसे झटका दिया और चुप रहने को कहा। “तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?” उस लड़की ने पूछा वह भी सख्त अंदाज में “पहले तुम लोग मेरे घर पर थे और अब यहां इस फंक्शन में...” “वो हमें...वो...” ध्रुव बोलने के लिए शब्द ढूंढ रहा “वो हमें पता चला तुम्हारे पापा शहर के विकास को लेकर कोई अनाउंसमेंट करने वाले हैं तो हम उसे ही सुनने के लिए यहां आ गए।” “झूठ मत बोलो। उन्हें यहां क्या कहना था क्या नहीं इसके बारे में किसी को नहीं पता था।” “वो...वो...वो हमें पता था। हमें किसी तांत्रिक ने पहले ही बता दिया था यहां क्या होने वाला है।” सिद्धार्थ हड़बडाते हुए बोला। ध्रुव सिद्धार्थ को घूर कर देखने लगा। “वो इसके कहने का मतलब है तुम्हारे पापा के एक दोस्त ने हमें इसके बारे में बता दिया था।” “तुम लोग फिर झूठ बोल रहे हो, उन्होंने यह बात अपने किसी दोस्त को भी नहीं बताई थी। बताओ तुम लोग यहां क्या कर रहे थे?” लड़की ने अपना सख्त अंदाज बनाए रखा। “हमें घर जाने में देरी हो रही है। तुमसे बाद में बात करते हैं।” ध्रुव ने सिद्धार्थ और रीवा का हाथ पकड़ा और फौरन वहां से निकल गया। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था तो उसने जाना ही सही समझा। लड़की पहले अपनी जगह पर खड़ी रही फिर उनके पीछे चल पड़ी। वह अभी थोड़ा सा ही आगे गई थी तभी पीछे से राजगीर मेहता की आवाज आई “कहां जा रही हो तुम?” लड़की यह कहते ही रुक गई। उसके चेहरे के एक्सप्रेशन बदल गए। उसके चेहरे पर हल्का सा डर आ गया था। ★★★

  • 20. ध्रुव द घोस्ट एजेंट - Chapter 20

    Words: 1773

    Estimated Reading Time: 11 min

    ★★★ राजवीर मेहता अपने घर में थे। लड़की उसके ठीक सामने घुटनों के बल बैठी हुई थी। “क्या तुम भागने का सोच रही थी?” राजवीर मेहता ने अपने दोनों हाथ पेंट की जेब में डाल रखे थे। उन्होंने इसी अंदाज में पुछा। “जी नहीं डैड।” लड़की ने जवाब दिया। वह हटा कटा आदमी जिसका चेहरा एक तरफ से खराब था और सड़ा हुआ लग रहा था वह भी वहां पर मौजूद था। उसने अपने हाथ पीछे कर रखे थे। “तो फिर तुम बाहर की तरफ क्यों जा रही थी?” राजवीर मेहता ने पूछा। “वो...वो..” लड़की को समझ नहीं आ रहा था वह क्या जवाब दें। “मुझे बताओ अनुष्का ....” राजवीर मेहता ने जोर से उसका नाम लिया। अनुष्का काफी ज्यादा घबरा गई। “वो मुझे वहां दो लड़के दिखे थे। मैं बस उनका पीछा करने गई थी।” “कौन दो लड़के...?” राजवीर मेहता उसकी तरफ झुके। “मैं उन्हें नहीं जानती। लेकिन मैंने दोनों को पहले भी देखा था। वह दोनों कुछ दिन पहले रात को हमारे गैराज के सामने खड़े थे। इसलिए मैं बस उनसे पूछने गई थी वह हम पर नजर क्यों रख रहे हैं।” “क्या सच में?” राजवीर मेहता ने अपने शब्दों को धीमी आवाज में बोला। “हां।” अनुष्का ने हां में सिर हिला दिया। राजवीर मेहता ऊपर की तरफ हो गए। पास खड़े मोटे आदमी ने कुछ सोचा और अनुष्का से पूछा “क्या उनके साथ एक छोटी लड़की भी थी?” अनुष्का ने हां में सिर हिला दिया। मोटे आदमी ने कहा “शायद यह उन्हीं लोगों की बात कर रही है जिन्हें मैंने पकड़कर पुरानी लाइब्रेरी में बंद किया था। वो काफी दिनों से हम पर नजर रख रहे हैं। मैंने आपको उन तीनों के बारे में बताया था और आपने कहा था मैं अपने स्पीच के बाद उन्हें देखने जाऊंगा। इसमें दो तो पहले से मरे हुए हैं। यानी वो भुत है।” “डेविड...” राजवीर मेहता ने मोटे आदमी का नाम लिया “अगर ऐसा है तो पता करो वह लोग कौन हैं और हम पर नजर क्यों रख रहे हैं।” कह कर उन्होंने अनुष्का की तरफ देखा “तुमने हमें यह बात पहले क्यों नहीं बताई थी?” “वो...वो...” अनुष्का अभी भी घबराई हुई थी “मुझे लगा वह जाने अनजाने में आ गए होंगे इसलिए, इसलिए मैंने उन पर शक नहीं किया था।” “मगर तुम जानती हो हमारा रूल क्या है। हमारे घर में या हमारे घर के आस-पास कुछ भी अजीब होता है तो उसका पता मुझे चलना चाहिए।” “मुझे माफ कर दीजिए डैड।” “तुम्हें माफी नहीं मिलेगी।” अनुष्का रोने लगी। उसकी घबराहट ही उसके रोने में बदल गई थी। “डैड मैं आगे से ध्यान रखूंगी। प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। मैं यह गलती आगे से नहीं करूंगी।” “तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।” राजवीर मेहता दीवार की तरफ मुड़ गए। अनुष्का की तरफ उनकी पीठ हो गई। “प्लीज डेड, मुझे आपकी कसम, मैं ऐसा अब दोबारा नहीं करूंगी।” राजवीर मेहता ने अपने चेहरे पर कोई दया नहीं दिखाई और डेविड को आदेशात्मक स्वर में कहा “जाओ और जाकर इसे नीचे उस कमरे में बंद कर दो, यह वहां पूरे 24 घंटे तक रहेगी।” “नहीं डैड... प्लीज ऐसा मत कीजिए...” अनुष्का के चेहरे पर डर के बहुत सारे एक्सप्रेशन आ गए। राजवीर मेहता ने कोई जवाब नहीं दिया। डेविड आया और उसे उठा लिया। अनुष्का हाथ-पैर मारने लगी। “प्लीज डेड मुझ पर विश्वास कीजिए, मुझ पर विश्वास किजीए मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी।” राजवीर मेहता ने उसकी तरफ पलट कर देखा तक नहीं। डेविड सीढ़ियां उतरते हुए उसे नीचे की तरफ ले जा रहा था। सिढिया दीवार के इर्द-गिर्द गोल गोल घूमते हुए नीचे की अंधेरी जगह की ओर जा रही थी। अनुष्का अभी भी चिल्ला रही थी और बचने के लिए हाथ पैर मार रही थी। डेविड नीचे आया और एक कमरे का दरवाजा खोलकर अनुष्का को उसके अंदर धकेल दिया। अनुष्का ने संभलते ही बाहर भागने की कोशिश की मगर डेविड ने दोबारा उसे अंदर की तरफ धक्का मारा और दरवाजा बंद कर दिया। अनुष्का बंद दरवाजे के पास आई और जोर से उसे मारते हुए कहा “प्लीज खोलो इसे.... खोलो इसे....प्लीज...” डेविड ने उसकी बात नहीं सुनी और वहां से चला गया। इस जगह पर जो थोड़ी-बहुत रोशनी थी वह वहां लगे छोटे बल्ब की थी। डेविड ने अपनी जेब से रिमोट निकाला और उन छोटे बल्बों की लाइट को भी बंद करने लगा। जैसे-जैसे डेविड आगे जा रहा था वैसे वैसे जगह में अंधेरा होता जा रहा था। नीचे अनुष्का के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी। डेविड ऊपर आया और नीचे के हिस्से में जाने वाले भारी भरकम दरवाजे को भी बंद कर दिया जिसके बाद अनुष्का की आवाजें बाहर आना बंद हो गई। ध्रुव और सिद्धार्थ जल्दी जल्दी घर पहुंचे। ध्रुव दरवाजा बंद करते ही अपने कमरे की तरफ दौड़ा। उसे देख कर उसकी नानी ने आवाज लगाई “अरे बेटा कहां भाग रहे हो आओ कुछ खा लो।” “मुझे नहीं खाना नेनस...” ध्रुव अपने कमरे में गया और फटाक से दरवाजा बंद कर के दरवाजे के साथ ही सटकर खड़ा हो गया। वह गहरी गहरी सांसे ले रहा था। सिद्धार्थ बंद दरवाजे और ध्रुव के आर पार हुआ और आकर ध्रुव के पास खड़ा होकर गहरी गहरी सांसें लेने लगा। रिवा छत से उल्टा लटकते हुए धीरे-धीरे अंदर आई। “तुम दोनों तो ऐसे घबरा गए हो जैसे किसी राक्षस को देख लिया हो.... वो बस एक लड़की थी... एक इंसानी लड़की... किसी तरह की चुड़ैल या फिर राक्षस नहीं।” रिवा बोली। ध्रुव और सिद्धार्थ ने कुछ नहीं कहा। ध्रुव कुछ देर तक गहरी सांसे लेता रहा फिर उसने कहा “यार उस लड़की ने तो जान ही निकाल दी थी। तुमने उसके तेवर देखें...” “हां बहुत खतरनाक थे।” सिद्धार्थ बोला। “हमें इस लड़की से बच कर रहना होगा। मुझे नहीं लगता इसके बारे में कुछ पता लगाना हमारे बस की बात है।” “मुझे भी यही लग रहा है। इस लड़की से जितना दूर रहे हमारे लिए उतना ही फायदेमंद है।” सिद्धार्थ आकर बेड पर बैठ गया। वहां उसने कहा “उस लड़की की वजह से मुझे तो फिल ही नहीं आ रहा मैं मर चुका हूं।” “और मुझे भी...” ध्रुव बोला और वह भी बेड पर आकर बैठ गया मगर बैठते ही वह अजीब सा चेहरा बनाते हुए बोला “पर मुझे ऐसा फील आएगा भी क्यों, मैं तो जिंदा हूं।” दोनों बेड पर गिर गए। रात के तकरीबन 11:00 बज रहे थे। ध्रुव डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहा था। उसके नाना राजवीर मेहता के बारे में बात करते हुए बोले “आज मैंने वेयरहाउस में राजवीर मेहता का भाषण सुना, वह अब यहां एक ट्रेन लेकर आएगा।” “यह तो काफी अच्छी बात है, अगर ऐसा होता है तो हमारा यह टाउन काफी विकास करेगा।” ध्रुव की नानी ने कहा। “हां सच में। राजवीर मेहता काफी अच्छे काम कर रहे हैं। लगता है वह जल्द ही शहर में मेयर का चुनाव लड़ेगा।” ध्रुव यह सब बातें चुपचाप सुन रहा था। कुछ देर तक सुनने के बाद उसने अपने नाना से पूछा “नाना जी आपके हिसाब से राजवीर मेहता कैसे आदमी हैं?” “कैसे आदमी है से तुम्हारा मतलब?” उसके नाना उसे देखने लगे। “आ... मेरा मतलब वह अच्छे इंसान है या फिर बुरे... मैंने सुना है अमीर लोग अक्सर ज्यादातर बुरे ही होते हैं।” “उममम....” उसके नाना सोचने लगे “मैं उसे ज्यादा नहीं जानता मगर उसके पिता के साथ मेरी थोड़ी बहुत जान पहचान थी। उसके पिता अक्सर वेयर हाउस के सामने बने पहाड़ों पर घूमने आते थे। वहां मेरी उनसे कई बार बात हुई थी। उन्हें वह पहाड़ बहुत पसंद थे। हां पर उनकी बातें बहुत अजीबोगरीब सी थी।” “अजीबोगरीब सी मतलब...” ध्रुव ने अपने चेहरे पर थोड़ी सी हैरानी दिखाइए। “उममम... तुम्हें समझाना थोड़ा मुश्किल है। वो ऐसी बातें करते थे जैसे मानो उनका यह सोचना हो किसी तरह की दूसरी दुनिया भी है।” “द...द... दूसरी दुनिया...” “हां दूसरी दुनिया। वो कहते थे इस दुनिया में इंसानों के पास लाचारी और बेबसी के अलावा कुछ नहीं। जबकि एक और दुनिया है जहां सुकून है। वहां कोई नियम कानून नहीं। सब अपनी मर्जी से रह सकते हैं। अपनी मर्जी से जी सकते हैं।” “ओह.. इंटरेस्टिंग। फिर क्या हुआ?” “फिर कुछ नहीं। इसके बाद उन्होंने पहाड़ी पर आना बंद कर दिया। चार-पांच महीने बाद मुझे पता चला वह अचानक गायब हो गए। उसका बेटा सुर्खियों में आया। फिर उसने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। 2 महीने पहले ही उनका हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया था। वह इस बात को फैलाना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने परिवार वालों के साथ मिलकर उनकी आखिरी विदाई खुद के घर में ही की।” “लेकिन ऐसे कैसे हो सकता है...आई मीन उसके पिता अचानक ऐसे कैसे मर सकते... क्या पता यह राजीवर मेहता की कोई साजिश हो और उसने ही अपने पिता की जान ले ली हो। वरना अगर किसी की डेथ होती है तो लोगों को तो पता चलता ही है और लोगों को बताना भी होता है।” “यह सब पता करना अब हमारा काम नहीं है। यह है या तो पुलिस जाने या फिर खुद राजवीर मेहता। वैसे मुझे नहीं लगता राजवीर मेहता को अपने पिता की जान लेने की जरूरत थी। वो अपने पिता का एकलौता बेटा था और सारी जमीन जायदाद भी पहले से उसके नाम थी। उसके पिता भी पहाड़ियों पर इसलिए घूमने आते थे क्योंकि वह सारी जिम्मेदारियों को अपने बेटे के हाथ में सौंप चुके थे। किसी को मारने के लिए कारण भी तो होना जरूरी है।” “वो भी है...” ध्रुव ने कहां और चुपचाप खाना खाने लगा। इसके बाद किसी ने भी आगे किसी तरह की बात नहीं की। सब ने खाना खाया और फिर होल की लाइट बंद करके अपने अपने कमरे में चले गए। रात के तकरीबन 11:00 बज रहे थे। रिवा शहर में एक सुनसान गली में फुटबॉल खेल रही थी। वह भुत थी इसलिए वह कहीं भी जाकर फुटबॉल खेलने लग जाती थी। सिद्धार्थ ध्रुव के साथ उसके कमरे में था। रिवा के हाथ से अचानक फुटबॉल छुट्टी और वह गली में लूढकते हुए किसी भी इंसान के पैर पास जाकर रुक गई। रिवा फुटबॉल को लेने के लिए दौड़े मगर दौड़ते दौड़ते जब उसने ऊपर की तरफ देखा तो उसके कदम रुक गए। उसके ठीक सामने डेविड खड़ा था। रिवा तेजी से पीछे मुड़ी और भागने की कोशिश की मगर डेविड ने अपने काले रंग के कोट से एक अजीब सा यंत्र निकाला और उसे रिवा के सामने कर दिया। यंत्र से सफेद रंग की रोशनी निकली और रिवा की सारी भुत वाली पावर चली गई। रिवा गायब होने की कोशिश कर रही थी मगर उस से गायब नहीं हुआ जा रहा था। डेविड आगे बढ़ा और रिवा के पास आया। “त...त... तुमने यह कैसे...” रिवा अभी पूरा भी नहीं बोली थी कि डेविड ने उसके मुंह पर जोर से मुक्का मारा और रिवा वहीं बेहोश होकर सड़क पर गिर गई। ★★★