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Golden trap of billionaire

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Jahnavi Sharma

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दीवा गोयंका, जो अपने पापा के डूबते बिजनेस को बचाने के लिए उनकी कंपनी के मैनेजर रक्षित दीवान की हेल्प लेती है, जो कि उसका बॉयफ्रेंड भी है। दीवा रक्षित के इरादों से अनजान थी कि वो बिजनेस डील के बहाने उसे एक अमीर बिजनेसमैन को बेचने जा रहा है। दीवा रक्षि...

Total Chapters (67)

Page 1 of 4

  • 1. Golden trap of billionaire - Chapter 1

    Words: 1495

    Estimated Reading Time: 9 min

    एक क्लब के अंदर लाइट थोड़ी डिम थी। वहां की स्पॉटलाइट और वहां मौजूद लोगों का ध्यान इस वक्त एक ही तरफ था। सब अपने हाथ में ड्रिंक का गिलास पड़े हुए सामने स्पॉटलाइट पर खोई हुई नजरों से देख रहे थे, जहां एक लड़की पियानो बजा रही थी।



    पियानो की धुन शानदार थी और उतनी ही शानदार और खूबसूरत वो लड़की। उम्र लगभग 23 साल के करीब, डार्क ग्रे आईज, गोरा रंग, मिड बैक तक लाइट ब्राउन वेवी हेयर और दिखने दुबली पतली सी। उसने व्हाइट कलर का स्लीवलेस शिफॉन फ्रॉक पहनी थी।



    वह लड़की पियानो बजाने में खोई हुई थी। हालांकि उसका मन अशांत था।



    उसके दिल में हजारों बातें चल रही थी। “मैंने यहां आकर सही तो किया ना? ना जाने क्यों डर सा लग रहा है लेकिन रक्षित साथ है तो थोड़ा राहत महसूस हो रही है। वह मेरे साथ कुछ गलत नहीं होने देगा। फिर उसने यही तो कहा था कि मुझे यहां पियानो बजाना है और उस आदमी के साथ मीटिंग करनी है। उसे अच्छे से होस्ट करना है, ड्रिंक सर्व करनी है, एक डिनर होगा और छोटी सी बातचीत। उसके अलावा और कुछ नहीं। फिर भी क्यों डर लग रहा है।”



    अचानक उसकी नज़रें ऊपर उठी। उसकी नजरों के सामने एक लगभग 27 साल का आदमी खड़ा था, जिसके हाथ में ड्रिंक थी। लड़की से नजरें मिलते ही उसने अपनी ड्रिंक उठाकर मुस्कुराते हुए उसे चीयर किया।



    वो आदमी मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था, तभी उसके पास खड़े एक लगभग पचास साल के आदमी ने कहा, “मिस्टर रक्षित दीवान, तुमने बिल्कुल सही कहा था। ये लड़की तो कमाल का पियानो बजाती है। दिखने में भी खूबसूरत है, पर ये वर्जिन तो है ना?” वो आदमी अपनी उम्र के मुकाबले काफी फिट लग रहा था। अभी भी वो हवस भरी निगाहों से उस लड़की को घूर रहा था।



    रक्षित ने उसकी तरफ तिरछा मुस्कुराते हुए देखा और कहा, “आप मुझ पर शक कर रहे हैं मिस्टर सिंह। आपकी जो भी रिक्वायरमेंट थी, उसमें दीवा गोयंका बिल्कुल फिट बैठती है। पिछले चार साल से डेट कर रहा हूं मैं इसे। हमारे बीच अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। उससे पहले यह सिंगल थी। ”



    मिस्टर सिंह ने सिर हिलाया और बोला, “ठीक है पर अब मुझे और इंतजार नहीं करना। इसे बोलो, जल्दी मेरे पास आए। ये रात और इसकी खूबसूरती मुझे ओर मदहोश कर रही है।”



    “हां, एक बार यह पियानो कॉन्सर्ट खत्म हो जाए, उसके बाद यह आप ही की है। मैंने इसकी ड्रिंक में ड्रग्स मिला दिए हैं, तो दिक्कत भी नहीं होगी। बस आप पहले इसके साथ अच्छे से पेश आइएगा क्योंकि मैंने इसे यही कहा है कि आप इसके बाप के डूबते हुए बिजनेस को फिर से आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते है। थोड़ी नकचढ़ी भी है, तो संभाल लीजिएगा।” रक्षित ने उसे सब समझाते हुए कहा।



    “मुझे ऐसी लड़कियों को संभालना अच्छे से आता है मिस्टर दीवान।” मिस्टर सिंह तिरछा मुस्कुराते हुए बोला और सामने दीवा को देखने लगा।



    पियानो बजा रही लड़की मुंबई के एक अमीर बिजनेसमैन नवीन गोयंका की बेटी दीवा गोयंका थी। गोयंका इंडस्ट्रीज इन दिनों बैंकरप्ट होने की कगार पर थी। मिस्टर चिराग सिंह भी एक बिजनेसमैन थे, जिनके साथ गोयंका इंडस्ट्रीज एक डील करने वाली थी। डील फिक्स करने के लिए ही रक्षित का सहारा लेकर दीवा आज उसके साथ इस क्लब में आई थी।



    जब दीवा ने रक्षित की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।



    दीवा को अंदर से अच्छी फीलिंग नहीं आ रही थी और यह गलत नहीं था। रक्षित के इरादों से बेखबर दीवा उसके साथ एक डील के लिए आई थी जबकि वह ना तो मुंबई के बारे में अच्छे से जानती थी और ना ही बिजनेस वर्ल्ड के बारे में। थोड़े टाइम पहले ही वह लंदन से अपनी मेडिकल की स्टडी कंप्लीट करके वापस आई थी।



    दीवा ने घबराई हुई नजर से चारों तरफ देखा तो सब उसी को देख रहे थे। दीवा ने फिर से पियानो की तरफ ध्यान दिया और बड़बड़ा कर बोली, “पता नहीं ठीक से हो रहा है या नहीं भी। पूरे 4 साल बाद पियानो बजा रही हूं। उस एक्सीडेंट के बाद से मैंने कभी पियानो को हाथ भी नहीं लगाया। प्लीज आज संभाल लेना गॉड और सब कुछ अच्छा करना। ”



    दीवा फिर से एक धुन बजाने में खो गई, जो उसने बहुत साल पहले अपने किसी खास के लिए बनाई थी। इन सब के बीच एक और शख्स था, जो दीवा को पैनी निगाहों से देख रहा था।



    उसके हाथ में वाइन का गिलास था। उसकी गहरी काली आंखें दीवा को ही देख रही थी। दीवा को देखते हुए उसने एक घूंट में वाइन का गिलास खाली कर दिया था। वो पूरी तरह खोया हुआ था, तभी लोगों की तालियों की आवाज सुनकर उसका ध्यान टूटा। दीवा ने मिस्टर सिंह की इच्छा अनुसार एक अच्छा पियानो कॉन्सर्ट दे दिया था। वह लग्जीरियस क्लब उन्हीं का था।



    पियानो बजाने के बाद दीवा स्टेज से नीचे उतरी तो रक्षित उसके पास आया और उसका हाथ पकड़ कर उसे मिस्टर सिंह के पास लेकर गया।



    मिस्टर सिंह ने अजीब नजरों से दीवा की तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “मिस गोयंका, मानना पड़ेगा, आप खूबसूरत होने के साथ-साथ टैलेंटेड भी काफी है। मैंने अपनी जिंदगी में काफी सारे म्यूज़िक कॉन्सर्ट अटेंड किए हैं और वह सब दिग्गज पियानो प्लेयर थे, लेकिन आप भी उन्हें अच्छी टक्कर दे रही है, वह भी इतनी कम उम्र में। ”



    “थैंक यू मिस्टर सिंह। ” दीवा ने अपनी घबराहट को काबू करके धीरे से जवाब दिया और फिर रक्षित की तरफ देखा।



    दीवा के चेहरे की घबराहट रक्षित से छुपी हुई नहीं थी। उसने सिर हिलाया और दीवा को एक गिलास देते हुए कहा, “सॉफ्ट ड्रिंक है बेबी, पी लो, तुम काफी थक गई होगी। थोड़ी ही देर की बात है।”



    दीवा को रक्षित पर पूरा विश्वास था और उसने ड्रिंक का गिलास लेकर उसे एक झटके में खाली कर दिया था। वैसे भी वह लगभग 1 घंटे से स्टेज पर थी और इतने टाइम में उसे प्यास लग रही थी।



    सब की बातचीत के बीच में वो लड़का अभी भी उन्हें देख रहा था। वह आर्यांश कपूर था। मुंबई की सबसे बड़ी एंटरटेनमेंट कंपनी कपूर इंटरनेशनल्स का मालिक। उम्र लगभग 27 साल के आसपास। दिखने में बिल्कुल बेइंतहा हैंडसम। उसने गहरी सांस ली और अपने पास खड़े एक आदमी को गहरी आवाज में कहा, “ये वही लड़की है।”



    “तो अब आप क्या करने वाले हैं?” उसके पास खड़े आदमी ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, जो कि उसका मैनेजर और राइट हैंड सार्थक खन्ना था।



    “बस देखते जाओ। ” आर्यांश ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा। वह कहीं भी जाने के बजाय वहां बैठा उनकी तरफ देख रहा था।



    वही एक ड्रिंक लेने के बाद रक्षित ने दीवा के कमर पर हाथ रख कर कहा, “चलो अब डिनर करते हैं, वैसे भी काफी टाइम हो गया। ”



    डिनर करने के लिए उन्होंने क्लब का प्रेसिडेंशियल रूम बुक किया था। दीवा को मिस्टर सिंह काफी अजीब लग रहे थे क्योंकि वह लगातार उसे चेक आउट कर रहे थे।



    दीवा ने अपने मन में कहा, “बस थोड़ी देर की बात है। रक्षित भी साथ है। अगर पापा के बिजनेस की बात नहीं होती तो मैं इस घटिया आदमी को 1 मिनट के लिए नहीं झेलती।”



    मिस्टर सिंह दीवा के पास आने लगे, तभी वो कुछ कदम पीछे हटकर बोली, “आप लोग चलिए, मैं बाथरुम जाकर आती हूं।”



    “ठीक है फिर जल्दी आना।” रक्षित ने मुस्कुरा कर कहा और फिर रूम नंबर बता दिए थे।



    दीवा जल्दी से बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी। उसने मन ही मन कहा, “पता नहीं, अचानक इतनी गर्मी क्यों लग रही है।” उस पर ड्रग्स का असर होने लगा था।



    दीवा को बाथरूम की तरफ जाते हुए देखकर आर्यांश के चेहरे के भाव गंभीर हो गए, तभी सार्थक खन्ना ने उससे कहा, “इस आदमी को तो आप जानते ही हो। यह चिराग सिंह है। इसे पियानो बजाने वाली कम उम्र की लड़कियां पसंद है। लड़कियों पर काफी पैसा खर्च करता है ये। इसके क्लब में इसे आसानी से ऐसी लड़कियां मिल जाती है। लगता है यह लड़की आज बच नहीं पाएगी। क्या हमें उसकी मदद करनी चाहिए सर?”



    “मुझे नहीं लगता कि हमें कुछ करना चाहिए। इसकी किस्मत में आज की रात बर्बाद होना लिखा है, तो ये नहीं बच सकती हैं खन्ना।” आर्यांश ने काफी रहस्यमई तरीके से कहा और फिर वहां से उठकर जाने लगा।



    आर्यांश की कही हर बात का मतलब सार्थक को समझ आ रहा था। वह उसके पीछे नहीं गया। आखिर अपने बॉस को उससे बेहतर कौन जान सकता था। हां, आज रात दीवा गोयंका के साथ जो होने वाला था, वह उससे बच नहीं सकती थी। खास कर तब, जब वह आर्यांश कपूर की नजरों में आ गई थी।



    °°°°°°°°°°°°°°°°



    कहानी का पहला भाग आपको कैसा लगा? क्या लगता है, दीवा की किस्मत में सच में आज की रात बर्बाद होना लिखा है, या आर्यांश इस मामले में कुछ करेगा? जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़िए। पढ़कर कमेंट और रेटिंग दीजियेगा।

  • 2. Golden trap of billionaire - Chapter 2

    Words: 1289

    Estimated Reading Time: 8 min

    दीवा अपने पापा के डूबते बिजनेस को फिर से खड़ा करने के इरादे से अपने बॉयफ्रेंड रक्षित दीवान के साथ क्लब में एक बिजनेसमैन के साथ मीटिंग के लिए आई थी। वहां एक डिनर होने वाला था, जो दीवा ने होस्ट किया था। दीवा नहीं जानती थी कि उसकी ड्रिंक में उसके बॉयफ्रेंड ने ड्रग्स मिला दिए हैं। दीवा के लिए ये एक डील थी लेकिन रक्षित ने उसे बिजनेसमैन चिराग सिंह को बेच दिया था। इस क्लब में एक और बिजनेसमैन आर्यांश कपूर की नजर दीवा पर पड़ी।

    इन सब से अनजान दीवा डिनर से पहले बाथरूम में आई थी। बाथरूम में आने के बाद उसने आईने में अपने चेहरे को देखा तो उसका चेहरा लाल हो गया था और उसे सब कुछ घूमता हुआ नजर आ रहा था।

    दीवा ने अपने मुंह पर पानी डाला और धीमी आवाज में कहा, “लगता है ड्रिंक चेंज हो गई होगी, तभी मेरे साथ ऐसा हो रहा है। रक्षित ऐसा कभी नहीं करेगा। मुझे लेमन जूस पीना होगा, तभी अब सब ठीक होगा।” दीवा रक्षित पर आंख मूंदकर यकीन करती थी, शायद यही वजह थी वो बिना सोचे समझे यहां आ गई थी।

    दीवा का सिर चकरा रहा था, फिर भी वो खुद को संभालते हुए बाहर की तरफ जा रही थी। दीवा ने कुछ ही कदम आगे बढ़ाए थे कि वो एक अनजान आदमी की चेस्ट से ज्यादा टकराई। दीवा का चेहरा नीचे की तरफ था लेकिन उसकी गहरी काली आंखें उसे इंटेंसिटी से देख रही थी।

    “आई एम रियली सॉरी मिस्टर, मेरा ध्यान नहीं था।” दीवा ने सिर पकड़कर लड़खड़ाती आवाज में कहा।

    दीवा ने देखा तक नहीं कि वो किससे टकराई है, वो बस वापस बाहर जाने लगी तभी किसी ने उसे पकड़ कर खींच लिया। उस शख्स ने उसे दीवार पर लगा दिया था, दीवा कुछ समझ पाती उससे पहले उस शख्स ने उसे कंधे पर उठा लिया था। दीवा को चक्कर आ रहे थे तो उसने उसे रेसिस्ट भी नहीं किया।

    वहीं दूसरी तरफ रक्षित, मिस्टर सिंह के साथ में उनके बुक किए हुए रूम में था, जहां दोनों शराब पी रहे थे। रक्षित आज बहुत खुश था क्योंकि उसने आज दीवा को अपनी बातों में बहला ही लिया था।

    शराब पीते हुए मिस्टर सिंह ने रक्षित की तरफ देखकर कहा, “तुम मुझसे भी बड़े कमीने हो। चार साल तक एक लड़की को डेट किया, वो भी इतनी खूबसूरत लड़की को और उसे हाथ तक नहीं लगाया और अब तुम उसे मुझे सौंपने जा रहे हो।”

    “क्या फर्क पड़ता है मिस्टर सिंह। वैसे भी जवान आदमी को लड़की की कमी नहीं होती है। वो चली गई तो और कोई आ ही जाएगी।” रक्षित बेशर्मी से मुस्कुरा कर बोला।

    मिस्टर सिंह ने उसकी बात पर हां में सिर हिलाया और फिर एक पेपर उसके सामने रखते हुए कहा, “कॉन्ट्रैक्ट मैंने तैयार करवा लिया है। एक बार फिर से मैं तुमसे पूछना चाहता हूं कि सच में तुम दोनों के बीच में कभी कुछ नहीं हुआ ना? तुम मेरा टेस्ट जानते ही हो।”

    “आप भी ना बहुत शक करते हो, मुझे अच्छे से पता है आपको कैसी लड़कियां पसंद है। आपको अभी मेरी बात पर यकीन नहीं आ रहा होगा लेकिन सुबह आपकी सारी शिकायत मिट जाएगी।” रक्षित ने जवाब दिया।

    रक्षित ने तिरछी निगाहों से मिस्टर सिंह की तरफ देखा और कॉन्ट्रैक्ट उठाने की कोशिश की लेकिन मिस्टर सिंह ने उसे अपने हाथ में कस कर पकड़ लिया था।

    “कॉन्ट्रैक्ट भी अब बाद में ही मिलेगा।” मिस्टर सिंह ने भौहें उठाकर कहा।

    रक्षित के पास अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था। उसने सिर हिलाया और फिर वहां से उठते हुए बोला, “ठीक है फिर आज रात के लिए गुड लक, उम्मीद है कि आज की रात यादगार होगी।”

    मिस्टर सिंह उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया, रक्षित वहां से चला गया था। उसके जाते ही मिस्टर सिंह ने कहा, “नवीन गोयंका ने कभी नहीं सोचा होगा कि उसका इतना भरोसेमंद और काबिल मैनेजर उसके पैर काट रहा है। उसकी बेटी को पटा रखा था, तो कंपनी तो इसी के पास आनी थी, फिर ये सब करने की क्या जरूरत थी। ऊपर से लड़की को भी बेच दिया? खैर मुझे क्या... अब आ भी जाओ दीवा गोयंका, मुझसे इंतजार नहीं हो रहा है।”

    दीवा का इंतजार करते हुए मिस्टर सिंह ने कुछ गोलियां खाई, जो आज रात उनके लिए मददगार साबित होने वाली थी और फिर उसके आने का इंतजार करने लगा।

    ______________

    रात काफी हो चुकी थी और बाहर हल्की हल्की बारिश भी हो रही थी। इन सबके बीच क्लब के एक वीआईपी रूम में कमरे में सारी लाइट्स चालू थी। रात के अंधेरे में भी उस कमरे में दिन जैसा उजाला था।

    कमरे के फर्श पर चारों तरफ कपड़े बिखरे हुए थे और बेड पर एक लड़का और लड़की एक दूसरे से लिपटे हुए थे। दोनो के ही शरीर पर कपड़े नही थे।

    वो आर्यांश कपूर था और बेड पर उसके नीचे दीवा सोई हुई थी। वो पूरी तरह होश में नहीं थी, लेकिन जो भी हो रहा था, उसे महसूस कर सकती थी। दीवा नशे में इतनी मदहोश थी, कि इस वक्त वो उसका पूरा साथ दे रही थी।

    मुंबई का मोस्ट एलिजिबल बैचलर, जो दिखने में इतना हैंडसम और परफेक्ट था, कि हर लड़की उसे पाना चाहती थी, वो इस वक्त दीवा गोयंका के साथ बेड पर अपनी हसरते पूरी कर रहा था।

    अचानक किस ब्रेक करके आर्यांश ने अपनी गहरी काली आंखों से दीवा की तरफ देखा। उसकी आंखों में प्यार के बजाय कुछ और ही था, एक जुनून, नफरत या यूं कहें दीवा को खत्म करने की एक जिद, या शायद वो उसे हासिल करना चाहता था।बेड पर भले ही दीवा हो, लेकिन आर्यांश के दिमाग में कोई और थी।

    अगले ही पल वो अपने ख्यालों से बाहर आया और फिर से दीवा पर टूट पड़ा। देर रात तक उस कमरे में दीवा की सिसकियां गूंज रही थी।

    बाहर बारिश तेज होने लगी थी और कमरे का माहौल उस हिसाब से और भी रोमेंटिक था।

    ______________

    अगली सुबह काफी देर तक दीवा उस बेड पर लेटी रही। जब उसकी आंख खुली तो उसका सिर बहुत भारी हो रहा था। दीवा के पूरे शरीर में, खासकर पैरों में इतना दर्द हो रहा था कि वो हिल भी नहीं पा रही थी।

    दीवा ने अधखुली आंखों से इधर-उधर देखा। ऐसे लग रहा था कि वो आदमी अभी भी उसके पास है। उसकी वो गहरी काली आंखें दीवा कभी नहीं भूल सकती थी।

    दीवा ने अपनी आंखें बंद करके याद करने की कोशिश की तो उसे थोड़ा बहुत याद आ रहा था और इसी के साथ उसकी आंखें नम होने लगी। वो समझ गई थी कि कल रात उसके साथ क्या हुआ था। जो भी उस कमरे में था, वो उस शख्स से पहली बार मिली थी। उसे पहली बार महसूस किया था।

    दीवा ने जल्दी से आंखें खोली तो वहां कमरे में कोई नहीं था। अचानक दीवा की नजर बैठ की दूसरी तरफ गई तो वहां बेड साइड पर पांच सौ के नोट की चार गड्डियां रखी थी।

    दीवा ने उन्हें देखकर कड़वाहट से कहा, “तो ये कीमत लगाई है उसने मेरी।”

    अचानक ही दीवा ने अपनी मुठ्ठियां कसकर बंद कर ली और जोर-जोर से रोने लगी। उसे नहीं समझ आ रहा था कि कल रात उसके साथ बेड पर कौन था, पर हां उसका धुंधला सा चेहरा अभी भी उसके दिमाग में ताजा था और अगर वो एक बार फिर से उसे देखती तो जरूर उसे पहचान लेती।
    फिलहाल तो एक ही रात ने दीवा की जिंदगी बदल कर रह गई थी। किसी ने धोखे से उसके साथ रिलेशन बनाए, तो अब उसकी इंसल्ट करने के लिए एक कीमत लगा कर गया था।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    पढ़कर रेटिंग और कमेंट कर दीजियेगा। अगले पार्ट पर मिलते हैं क्या लगता है, दीवा कभी आर्यांश को ढूंढ पाएगी? या आर्यांश खुद उसे फिर अपने करीब लेकर आएगा।

  • 3. Golden trap of billionaire - Chapter 3

    Words: 1376

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगली सुबह दीवा बेड पर बैठकर रो रही थी। वो इस वक्त एक क्लब के वीआईपी रूम में थी और उसे समझ नहीं आया कि कल रात उसके साथ कौन था, जिसने उसके साथ रात बिताई।

    दीवा के दिमाग में उसकी धुंधली तस्वीर के अलावा कुछ नहीं था। उसके बारे में सोचते हुए उसने वहां लगभग आधे घंटे तक आंसू बहाए। जब दीवा को लगा कि रोने का कोई फायदा नहीं है तब उसने जैसे-तैसे करके अपने कपड़े उठाए और उठकर जाने लगी। हालांकि ये सब करते हुए दीवा के शरीर और दिल दोनों में बहुत दर्द हो रहा था।

    दीवा बाहर आई तो अभी भी बहुत तेज बारिश हो रही थी पर उसे कोई होश नहीं था। उसने सुबकते हुए अपने मन में कहा, “ऐसा लग रहा है जैसे कि आसमान भी मेरे साथ रो रहा है। कौन हो तुम, जिसने मेरे साथ इतना बुरा किया। एक बार तुम मुझे मिल जाओ, मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं।”

    दीवा खोई हुई हालत में अपने घर की तरफ बढ़ रही थी।

    वहीं दूसरी तरफ कपूर इंटरनेशनल के सीईओ के फ्लोर पर आर्यांश कपूर इस वक्त अपने केबिन में था और कुछ डाक्यूमेंट्स देख रहा था। उनके अंदर दीवा की सारी डिटेल्स थी।

    दीवा की बाकी डिटेल्स देखते हुए आर्यांश की नजर एक पियानो कंपटीशन की फोटो पर पड़ी, जिसकी विनर दीवा थी। ये "मिडसमर नाइट्स ड्रीम" कंपीटिशन था, जो 5 साल में एक बार होता था और पिछली बार उसे दीवा ने हीं जीता था।

    अचानक ही आर्यांश के चेहरे के भाव सर्द हो गए। उसने उस सर्टिफिकेट को देखते हुए कहा, “तो तुम वही हो। पूरे 4 साल लग गए मुझे तुम्हें ढूंढने में। अगर कल रात तुमने वो म्यूजिक नहीं बजाया होता तो शायद ही मैं तुम्हें कभी ढूंढ पाता दीवा गोयंका।”

    आर्यांश ने उस फाइल को बंद किया और फिर बिना किसी भाव के कहा, “कोई भी इंसान अपनी किस्मत को बदल नहीं सकता और ना ही उससे भाग सकता है। ये तो कल रात तुम्हें पता चल ही गया होगा। तुम्हारी किस्मत में कल रात बर्बाद होना लिखा था। चिराग सिंह ना सही, तुम्हारे साथ बेड पर मैं था और तुम उसे नहीं बदल पाई। ऐसे ही आगे जो होगा, उसे तुम कभी नहीं बदल पाओगी।”

    आर्यांश की गहरी काली आंखों में बहुत कुछ था और उसकी बातों से साफ जाहिर था कि दीवा से जुड़ी हुई उसकी यादें अच्छी तो बिल्कुल नहीं है।

    वही खोई हुई हालत में दीवा अपने घर पहुंची। वो अभी भी कल रात जो भी हुआ, उससे निकाल नहीं पा रही थी। बार-बार दीवा यही सोच रही थी कि आखिर वो गहरी काली आंखों वाला शख्स कौन हो सकता है।

    कपूर मेंशन का दरवाजा खुला था। दीवा अंदर जाने के बजाए, वहां खोई हुई हालत में खड़ी थी तभी उसे किसी की जानी पहचानी आवाज सुनाई दी और इसी के साथ दीवा का ध्यान टूट गया।

    “बेबी तुम ठीक तो हो ना?” रक्षित ने कहा।

    दीवा को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक रक्षित वहां कैसे आ गया। रक्षित ने दीवा का हाथ पकड़ा और उसे अंदर लिविंग रूम में लेकर गया। उसके मॉम डैड घर पर ही थे, लेकिन फिलहाल वो और रक्षित वहां अकेले थे।

    अंदर आते ही दीवा पूरी तरह होश में आ गई थी। रक्षित ने उसकी तरफ देखा और प्यार से बोला, “बेबी कल रात तुम कहां चली गई थी? तुम्हें पता भी है कल मैंने तुम्हें कितना ढूंढा था, थक हारकर मुझे घर आना पड़ा।

    दीवा ने तुरंत खुद को नॉर्मल किया और बोली, “वो मेरी एक फ्रेंड का कॉल आ गया था। उसे मेरी जरूरत थी तो मैं अचानक वहां चली गई और मुझे तुम्हें बताने का मौका नहीं मिला।” दीवा झूठ बोल रही थी, इस वजह से वो रक्षित की आंखों तक में नहीं देख पा रही थी।

    रक्षित की सच्चाई से अनजान दीवा इस वक्त गिल्ट में थी। उसे ऐसे लग रहा था जैसे उसने रक्षित को धोखा दिया हो।

    तभी रक्षित ने आगे पूछा, “कौन सी फ्रेंड के पास? और अगर उसे तुम्हारी जरूरत थी तो साथ में मुझे भी ले चलती। तुम्हें अकेले इतनी रात को वहां से नहीं जाना चाहिए था। रास्ते सेफ नहीं है, बेबी आजकल पता नहीं कैसी-कैसी न्यूज़ आती रहती है।”

    रक्षित ऐसे जता रहा था जैसे उसे दीवा की कितनी ही फिक्र हो रही हो, जबकि सच तो ये था कि कल रात दीवा जब मिस्टर सिंह के कमरे में नहीं पहुंची थी तो मिस्टर सिंह का मूड खराब हो गया था और उन्होंने रक्षित को काफी सुनाया था।

    अचानक बात करते हुए रक्षित की नजर दीवा की गर्दन पर गई। जहां पर एक लव बाइट का निशान नजर आ रहा था। उसे देखते ही उसकी आंखें छोटी हो गई। जहां तक उसे पता था, दीवा ने आज तक इतना करीब तो उसे भी नहीं आने दिया और वो कल रात मिस्टर सिंह के पास भी नहीं पहुंची थी, फिर अचानक ये निशान दीवा के गले पर कैसे आ सकता था।

    दीवा के बाल उसकी गर्दन से चिपके हुए थे क्योंकि वो बारिश से भीग कर आई थी। रक्षित ने अपने दोनों हाथों से दीवा के बालों को पीछे की तरफ किया तो उसकी सफेद गर्दन पर काफी सारे लाल लव बाइट के निशान बने हुए थे।

    वो सब देखकर रक्षित के चेहरे के भाव सख्त हो गए। वो गुस्से में बोला, “बेबी मुझे झूठ नहीं सुनना है, सच-सच बताओ कल रात तुम कहां गई थी?”

    दीवा समझ गई थी कि उसका झूठ पकड़ा गया है, वो इतनी जल्दबाजी में बाहर निकली थी कि उसने अपने चेहरे तक को आईने में नहीं देखा था।

    दीवा ने जल्दी से अपने बालों को गर्दन पर किया और रक्षित से बोली, “मैने कहा ना अपनी फ्रेंड के घर पर गई थी।”

    “ठीक है, नाम बता दो कौन सा फ्रेंड।” रक्षित ने सख्ती से पूछा।

    रक्षित अच्छे से जानता था कि दीवा को मुंबई आए हुए ज्यादा टाइम नहीं हुआ था। वो लाइफ केयर हॉस्पिटल में काम करती थी, जहां उसके ज्यादा दोस्त नहीं थे। दीवा का ऐसा नेचर ही नहीं था कि उसका आसानी से कोई दोस्त बन जाए। फिर वो कैसे किसी को अपना दोस्त बनाकर उसके साथ रात बिता सकती थी।

    दीवा ने नजर उठाकर रक्षित की तरफ देखा तो वो उसे गुस्से में घूर रहा था। ये गुस्सा दीवा पर नहीं बल्कि मिस्टर सिंह की वजह से था। कल रात उसे मिस्टर सिंह के साथ होना चाहिए था और वो अचानक गायब हो गई। उसकी वजह से रक्षित की डील भी कैंसिल हो गई थी।

    रक्षित इस तरह से सवाल जवाब कर रहा था। गुस्से में रक्षित की आवाज तेज हो गई थी। उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर दीवा के मॉम डैड नवीन और प्रार्थना गोयंका उसके पास आए।

    दीवा की नज़रें झुकी हुई थी और रक्षित जो भी बोल रहा था, वह सब वे पहले ही सुन चुके थे।

    नवीन ने कुछ नहीं कहा लेकिन प्रार्थना गुस्से में दीवा पर तेज़ आवाज़ में बोली, “दीवा तुम जवाब क्यों नहीं दे रही हो, रक्षित कुछ पूछ रहा है तुमसे, कल रात तुम कहां थी?”

    गीले कपड़ों में दीवा को अब ठंड लगने लगी थी। ऊपर से उन सब के सवाल जवाब उसे उसके दर्द का और भी एहसास करा रहे थे। दीवा की आंखों में आंसू आ गए और उसने सुबकते हुए रक्षित की तरफ देखकर कहा, “रक्षित हम अलग हो जाते हैं‌। मैं तुम्हारे लायक नहीं रही।”

    दीवा रोए जा रही थी और उसकी नज़रें झुकी हुई थी, तभी रक्षित उसके पास आया और उसे दोनों कंधों से पकड़ते हुए गुस्से में बोला, “मुझे जवाब दो दीवा।‌ कौन था वो, जिसने तुम्हारे साथ ये सब किया। वन मोर थिंग मुझे कोई झूठ नहीं सुनना है।”

    “मुझे...मुझे कुछ भी याद नहीं है, बस इतना पता है कि किसी ने कल रात मेरे साथ अच्छा नहीं किया। मै...मैने जानबूझकर नहीं किया।” दीवा रोते हुए काउच पर बैठ गई। वो बहुत लाचार महसूस कर रही थी।

    “झूठ मत बोलो दीवा, तुमने मुझे धोखा दिया है और अपने धोखे को मासूमियत से छुपाने की कोशिश कर रही हो।” रक्षित गुस्से में जोर से चिल्लाया।

    दीवा ने एक नजर रक्षित की तरफ देखा और फिर रोते हुए ऊपर अपने कमरे में चली गई थी। उसकी कोई गलती नही थी फिर भी उसे गुनहगार समझा जा रहा था। ये दीवा की किस्मत में था, या आर्यांश कपूर ने ये सब उसकी किस्मत में जानबूझकर लिखा था।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

  • 4. Golden trap of billionaire - Chapter 4

    Words: 1443

    Estimated Reading Time: 9 min

    कल रात आर्यांश कपूर के साथ एक नाइट स्पेंड करने के बाद दीवा वापस घर पर आई। वहां उसका बॉयफ्रेंड रक्षित उसका इंतजार कर रहा था। रक्षित ने दीवा को एक अमीर बिजनेसमैन को बेचा था लेकिन टाइम पर नहीं पहुंचने की वजह से उनकी डील कैंसिल हो गई। इस वजह से रक्षित दीवा पर गुस्सा कर रहा था।

    दीवा से सवाल जवाब करते वक्त रक्षित की नजर दीवा की गर्दन पर गई, जहां बहुत सारे लव बाइट के निशान बने हुए थे। दीवा ने उन सबको बता दिया कि कल रात उसे नहीं पता कि उसके साथ ये सब किसने किया है। इतना कहने के बाद वो अपने कमरे में आई और कमरा बंद करने के बाद दीवा सीधा बाथरूम में जाकर शावर के नीचे खड़ी हो गई थी।

    पानी के नीचे आते ही दीवा ने अपनी ड्रेस निकाली तो उसकी नजर सामने आईने पर गई। उसकी बॉडी पर बहुत सारे निशान थे, जिससे साफ था कि कल रात जिसने भी ये किया था, उसने उस पर जरा भी तरस नहीं खाया था।

    “तुम... तुम मेरे साथ इतना बुरा कैसे कर सकते हो। मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा। उसने... उसने मुझे गंदा कर दिया।” दीवा पागलों की तरह रोते हुए अपने हाथ पैर को रगड़ रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे वो आर्यांश के टच को खुद से अलग करना चाह रही हो।

    दीवा ने अपना सिर पकड़ा और कल रात की घटनाओं को याद करने की कोशिश करने लगी, “लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है। मैं बाथरूम में बिल्कुल नॉर्मल गई थी। उससे पहले मैंने रक्षित का दिया हुआ ड्रिंक पिया था। रक्षित उस आदमी के सामने काफी अजीब बिहेव कर रहा था, जैसे हम दोनों के बीच कोई रिश्ता ना हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि रक्षित ने मेरी ड्रिंक में कुछ मिला दिया होगा लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा।”

    पहले जहां दीवा को गिल्ट हो रहा था कि उसने रक्षित को चीट कर दिया। वहीं अब उसे रक्षित पर शक होने लगा। वो ऐसे ही जाकर रक्षित पर इल्जाम नहीं लगा सकती थी, तब तक तो बिल्कुल नहीं जब तक उसके पास कोई ठोस सबूत ना हो।

    दीवा अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी किसी ने बाथरूम का दरवाजा खटखटाया। बाहर से उसकी मां प्रार्थना ने शांत लहजे में कहा, “दीवा कब से बाथरूम के अंदर हो, बाहर आओ मुझे तुमसे बात करनी है।”

    “मुझे कोई बात नहीं करनी है मॉम और ना ही किसी के सवालों के जवाब देने हैं, प्लीज मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दीजिए।” दीवा ने चिढ़ते हुए जवाब दिया।

    प्रार्थना चाहे कितनी भी सख्त पैरेंट क्यों ना रही हो लेकिन अपनी बेटी को इस हालत में वो अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी। उसने गहरी सांस ली और थोड़ा नरम लहजे में कहा, “बेबी बाहर आओ, ग्यारह बज रहे हैं। तुम इस वक्त तक अपना ब्रेकफास्ट कब का कर चुकी होती हो। भूख की वजह से तुम्हें गुस्सा आने लगा है, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आती हूं।”

    दीवा अब थोड़ी शांत हो गई थी क्योंकि प्रार्थना उससे काफी अच्छे से बात कर रही थी। वो उसने शॉवर बंद किया और बाथरोब पहन कर कमरे के अंदर आ गई।

    खुशकिस्मती से उस दिन सैटरडे था और वीकेंड होने की वजह से हॉस्पिटल में उसको सुबह के वक्त ड्यूटी के लिए नहीं जाना था। बाहर आते ही उसने देखा प्रार्थना के हाथ में सूप और ब्रेड था।

    दीवा ने एक नजर नाश्ते की तरफ देखा और कहा, “मेरा कुछ खाने का मन नहीं कर रहा है मॉम।”

    “तुम चाहो तो हम पुलिस स्टेशन जाकर कंप्लेंट कर सकते हैं।” प्रार्थना ने उसके पास आकर कहा।

    “मेरी ही गलती थी कि मुझे ड्रिंक करने के बाद में होश नहीं रहा। मैं बस इस हादसे को भूल जाना चाहती हूं मॉम, प्लीज इस बारे में बात मत कीजिए। और गलती तो मेरी ही थी, जो मै खुद को संभाल नहीं पाई... और एक अनजान इंसान ने मेरा फायदा उठाया।” दीवा ने मायूसी से कहा।

    वैसे भी उनके घर पर बिजनेस की वजह से काफी डाउनफोल चल रहे थे और घर का माहौल बिगड़ा हुआ था, ऐसे में दीवा नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उसके पेरेंट्स और ज्यादा परेशान हो।

    प्रार्थना ने उसकी बात पर सिर हिलाया और फिर उसके गाल पर प्यार से हाथ रख कर कहा, “तुम चाहो तो मुझ पर गुस्सा कर सकती हो, रो सकती हो, चिल्ला सकती हो पर अपने दिल में किसी तरह का दर्द मत रखो। इससे तुम अंदर ही अंदर घुटने लगोगी। तुम्हारे दिल में जो भी है, वो तुम अपनी मॉम को बता सकती हो।”

    प्रार्थना की बातों से दीवा की आंखें नम होने लगी। उसने गहरी सांस लेकर कहा, “मैं ठीक हूं मॉम.. बस मुझे किसी के उल्टे-सीधे सवालों के जवाब नहीं देने क्योंकि मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया था।”

    प्रार्थना ने दीवा को गले से लगाया और उसे सहलाकर कहा, “मैं जानती हूं, तुम ऐसा नहीं कर सकती हो तो मुझे सफाई मत दो।”

    प्रार्थना दीवा को चुप करने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। उसने मन ही मन कहा, “मैं अपनी बेटी को अच्छे से जानती हूं। जरूर इसके साथ कुछ गलत हुआ है, वरना इसका नेचर ऐसा नहीं है कि ये जाकर किसी के साथ भी वन नाइट स्टैंड कर ले।” दीवा की तरह प्रार्थना भी परेशान थी कि आखिर किसने दीवा के साथ वन नाइट स्टैंड किया था।

    दीवा अपनी मॉम से अलग हुई और उनसे कहा, “मॉम प्लीज मुझे थोड़ी देर के लिए अकेले छोड़ दीजिए। मुझे आराम करना है, वैसे भी मैं काफी थकी हुई हूं।”

    दीवा की इस हालत में प्रार्थना उसे परेशान नहीं करना चाहती थी। उसने उसके गाल पर हाथ रखकर पलके झपका कर कहा, “किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताना। तुम अकेली नहीं हो।” कहकर उसने दीवा के फोरहेड पर किस किया।

    जवाब में दीवा ने हां में सिर हिला दिया। फिर उसको रूम में छोड़कर प्रार्थना बाहर चली गई थी। दीवा ने चेंज किया और कुछ देर के लिए सो गई थी। वो इन सब चीजों को भूलना चाहती थी। शाम के वक्त दीवा की आंखें खुली तो बारिश बंद हो चुकी थी, पर अब उसे इस कमरे में घुटन महसूस हो रही थी।

    “जब तक ऐसे ही कमरे में बंद रहूंगी, बार-बार वही याद आता रहेगा। मुझे थोड़ी देर बाहर जाकर घूमना चाहिए।” दीवा ने खुद से कहा।

    दीवा ने ड्रेस चेंज करके एक चेरी ब्लॉसम कलर का बैलून स्लीव्स का फ्रॉक पहना और फिर घूमने के लिए बाहर आ गई।

    अक्सर उस वक्त लोग अपने ऑफिस से ब्रेक लेकर थोड़ी देर के लिए बाहर निकलते थे। सड़क पर काफी चहल पहल थी। वहां एक बड़ा सा नया होर्डिंग लगा था, जिस पर एक सुपर मॉडल की तस्वीर थी, जिसे देखकर दीवा वहीं पर रुक गई। लोग भी वहां खड़े होकर उसकी फोटो खींच रहे थे। वो काफी खूबसूरत लग रही थी और उससे भी ज्यादा उसके गले का डायमंड नेकलेस सबका ध्यान खींच रहा था।

    “अरे ये तो कपूर इंटरनेशनल की ब्रांड एंबेसडर और मॉडल नितारा रॉय है ना? कितनी खूबसूरत है यह।” एक लड़की ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

    “हां पर इसकी इस खूबसूरती और कामयाबी के पीछे आर्यांश कपूर का हाथ है। उसी ने इसे इस मुकाम पर पहुंचाया है। सुना है इन दोनो का अफेयर भी है।” दूसरी लड़की ने जलन के मारे मुंह बनाकर कहा।

    “तो इसमें गलत क्या है। बड़ी कामयाबी के रास्ते अक्सर अमीर आदमियों के बेड से होकर गुजरते है। वैसे भी आर्यांश कपूर जैसे आदमी के साथ कौन अपना अफेयर नहीं करना चाहेगा। मुझे मौका मिले तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी।” उनकी बात सुनते ही एक लड़की ने कहा।

    दीवा मुंबई में नहीं थी, इस वजह से वो आर्यांश कपूर के नाम से बेखबर थी लेकिन उन लड़कियों की बातें सुनकर उसने अपने मन में कहा, “कौन है ये आर्यांश कपूर, जिसके लिए ये लड़कियां इस हद तक बेशर्मी पर उतर सकती हैं। जरूरी नहीं कि कामयाब होने के लिए एक अमीर आदमी के साथ रात बिताई जाए। मेरी कितनी भी मजबूरी क्यों ना हो, मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी चाहे सामने कोई आर्यांश कपूर ही क्यों ना हो।”

    दीवा नहीं जानती थी कि जिस आर्यांश कपूर से वो अनजाने में नफरत कर रही है, उसी के साथ पिछली रात में वो बेड पर थी। कल क्या होने वाला था, ये कोई नहीं जानता था। क्या पता, आज जो दीवा इतना बड़ा दावा कर रही थी, कल को वही अपनी मर्जी से आर्यांश कपूर के साथ बेड पर हो।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    दीवा भले ही ये सच ना जानती हो लेकिन आर्यांश को पता है कि दीवा ही कल रात उसके साथ थी और उसने ये सब जानबूझकर किया, क्या दीवा के सामने आर्यांश का सच आ पाएगा?

  • 5. Golden trap of billionaire - Chapter 5

    Words: 1273

    Estimated Reading Time: 8 min

    दीवा के साथ जो भी हुआ था, वो उसे भुलाने के लिए बाहर घूमने के लिए गई थी। चलते हुए दीवा लोगों की भीड़ के बीच खड़ी हो गई, जहां एक्ट्रेस नितारा रॉय का एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ था। वहां खड़े लोग नितारा की तारीफ कर रहे थे और साथ ही बातों की बातों में उन्होंने इस बारे में भी चर्चा की थी, उसके रिलेशन आर्यांश कपूर के साथ है। वहां मौजूद लड़कियां आर्यांश कपूर को लेकर दीवानी हो रही थी, तो वही दीवा को उनकी बातें अजीब लगी।

    दीवा ने उन्हें देखकर सिर हिलाया और वहां से चली गई। चलते हुए वो एक सुनसान गली में पहुंच गई थी। दीवा इस वक्त अपने ख्यालों में खोई हुई थी।

    दीवा ने अपने मन में कहा, “आखिर कौन था वो शख्स...मेरे दिमाग से जा क्यों नहीं रहा है। मुझे मूव ऑन करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि सब कुछ एक्सीडेंटल था लेकिन इतनी आसानी से कैसे भुला दूं। उसने गलत किया है तो उसे उसकी सजा भी तो मिलनी चाहिए ना।”

    दीवा अपने ख्यालों में खोई हुई चल रही थी कि तभी अचानक वो किसी से जा टकराई। दीवा उसे सॉरी कहने ही वाली थी कि उसने देखा कि सामने चार अजीब दिखने वाले आदमी खड़े थे। वो शक्ल और कपड़ों से अच्छे नहीं लग रहे थे। ऊपर से उनमें से एक ने अपने हाथ में चाकू भी पकड़ रखा था।

    उन्हें देखकर दीवा ने हल्के घबराते हुए कहा, “तुम... तुम लोग क्या चाहते हो और मेरा रास्ता इस तरह क्यों रोक रहे हो?” कल रात जो भी हुआ था, उसके बाद से दीवा काफी घबरा गई थी, वरना वो इस तरह आसानी से डरने वाली लड़की नहीं थी।

    उनका हेड दीवा के सामने आया और तिरछा मुस्कुराते हुए बोला, “क्या बात है जानेमन। बहुत नखरे दिखा रही हो? हमें तो पता चला है कि कल रात तुमने मिड नाइट क्लब में किसी की रात रंगीन की थी। ये समझ लो, हमें भी उसी ने भेजा है। अब उसने तो अपना काम कर लिया। थोड़ा हमारा भी टाइम पास कर दो।”

    अपनी बात खत्म करते ही वो आदमी दीवा पर हंसने लगे तो वही दीवा को उनसे डर लगने लगा था। उसने अपना बैग कसकर पकड़ लिया और खुद को मजबूत करके कहा, “देखो तुम्हें जितने भी पैसे चाहिए, मैं दे सकती हूं पर प्लीज फिलहाल के लिए मुझे जाने दो।” उसकी खूबसूरत डार्क ग्रे आइज इधर-उधर देखने लगी कि कहीं से भी उसे भागने का रास्ता मिल सके।

    “पैसों की बात मत करो डार्लिंग, पैसे हम तुम्हें देंगे। सुना है गोयंका फैमिली की अब इतनी हैसियत नहीं रही कि वो किसी को कुछ दे सके। चलो बहस मत करो। सब कुछ आराम से करते हैं। तुम्हें भी मजा आएगा और हमें भी।” उनमें से दूसरा आदमी हंसते हुए बोला।

    दीवा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसने इधर-उधर देखा और रास्ता बनाकर वहां पर भागने लगी। गुंडे भी उसके पीछे भागने लगे। वो उन चारों से तेज नहीं भाग पाई और थोड़ा सा आगे जाने पर उन्होंने उसे पकड़ लिया था। हालांकि दीवा ने थोड़ा बहुत मार्शल आर्ट सीखा था लेकिन दो गुंडो ने उसके हाथों को कसकर पकड़ दिया था, जिसके बाद दीवा कुछ नहीं कर पाई।

    दीवा के पूरे शरीर में दर्द था तो वो लाख कोशिशें के बाद भी उन दोनों को खुद से अलग नहीं कर पाई। उनका हेड दीवा के पास आया और उसका मुंह दबाते हुए कहा, “अच्छा तो तुम्हें हमें नखरे दिखाने हैं, तुम्हें इस तरह भागना नहीं चाहिए था।”

    दीवा का चेहरा डर से पीला पड़ गया था। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “देखो मैं नहीं जानती कि तुम्हें किसने भेजा है। पर...पर...आई...आई प्रॉमिस उसने तुम्हें जितने पैसे दिए हैं, मैं उससे डबल तुम्हें दूंगी पर प्लीज मुझे जाने दो।”

    “मैंने कहा ना मुझे पैसा नहीं, तुम चाहिए और मैं तुम्हें हासिल करके रहूंगा। चलो अब टाइम खराब मत करो। प्यार से मान जाओ।” गुंडे ने जवाब दिया। उसने गहरी सांस ली और दीवा के कंधे पर रखा।

    दीवा का दिल डर से जोर जोर से धड़कने लगा। जैसे ही उसने दीवा के कंधे पर हाथ रखा, दीवा ने उसके हाथ पर काट लिया था। फिर उसने उसके पेट में लात मारी।

    दीवा आखिर खुद को बचाने में कामयाब हो ही गई थी। दीवा थोड़ी ही आगे गई थी कि एक गुंडे ने उसे बालों से पकड़ा और अपनी तरफ खींचते हुए उसके गाल पर थप्पड़ लगाते हुए कहा, “अच्छा तो अब तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि तुम हमारे बॉस को हाथ लगाओगी? तुम जैसी लड़कियां ऐसे हैंडल हीं होती हों।”

    उसके थप्पड़ मारने के बाद दीवा के होठों के कोनों से खून आने लगा था। उसकी आंखों में आंसू थे। वो मन ही मन अपनी किस्मत को कोस रही थी कि कल रात उसके साथ ये सब हो गया तो आज जब उसने आगे बढ़ने का सोचा तो एक और नई मुसीबत उसके सामने आकर खड़ी थी।

    दीवा के गालों पर उसके थप्पड़ के निशान बन गए थे। उसके कपड़े हल्के फट गए थे और बाल भी बिखरे हुए थे। दीवा ने रोते हुए अपने दोनों हाथों से खुद को कवर कर लिया। इस वक्त उसे यही लग रहा था कि आज उसे कोई नहीं बचा पाएगा।

    अब वो गुंडे मारपीट पर उतर आए थे कि तभी उस गली में किसी को तेज कदमों से आने की आहट सुनाई दी।

    “कौन है बे...” एक गुंडे ने पीछे की तरफ देखकर चिल्लाकर कहा।

    वो लगभग चार लोग थे, जिन्होंने काले रंग के कपड़े पहन रखे थे। उनके हाथ में हॉकी स्टिक थी। वह गुंडे कुछ समझ पाते उससे पहले वह चार आदमी आकर उन्हें बुरी तरह उन्हें हॉकी स्टिक से मारने लगे। उन्होंने कुछ मिनटों में उन सब गुंडो को जमीन पर गिरा दिया था। वो दर्द से कराह रहे थे।

    दीवा की आंखों में आंसू थे और वो रोते हुए वहां दीवार पर चिपक गई थी। उसने सुबकते हुए कहा, “अब ये कौन है। कही इन्होंने भी मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो?”

    दीवा को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी एक और आदमी आया, जिसने ग्रे कलर का सूट पहना हुआ था। वो कोई और नहीं आर्यांश का मैनेजर सार्थक खन्ना था।

    सार्थक ने उन्हें देखकर मुंह बनाया और तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, “तुम तो बहुत ही सस्ते और दो कौड़ी के गुंडे निकले? बस हाथ में चाकू छूरी लिया और डॉन बनने की कोशिश कर रहे हो? शर्म नहीं आती तुम लोगों को खुद को गुंडे कहते हुए? थोड़ी सी ही मार पिटाई में ढेर हो गए?”

    दीवा की निगाहें उन गुंडों पर थी, जिन्हें वो काले कपड़े वाले आदमी अभी भी बेरहमी से पीटे जा रहे थे।

    इस बीच सार्थक की नजर दीवा पर गई, जो काफी डरी हुई लग रही थी। वो दीवा के पास गया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर बोला, “हेलो मिस गोयंका, मेरा नाम सार्थक खन्ना है और मैं यहां अपने बॉस मिस्टर आर्यांश कपूर के कहने पर आया हूं। वो आपसे मिलना चाहते हैं।”

    दीवा हैरानी से सार्थक की तरफ देख रही थी। वो कुछ पूछ पाती उससे पहले सार्थक ने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया। मजबूरी में दीवा उसके पीछे जा रही थी। आर्यांश कपूर का नाम उसने आज ही सुना था पर वो नहीं जानती थी कि आर्यांश कपूर आखिर उसे मिलने के लिए क्यों बुला रहा है। फिलहाल के लिए तो आर्यांश कपूर और सार्थक दीवा के लिए किसी फरिश्ते की तरह थे, जिसने उसकी इज्जत बचाई थी।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    कैसे रहने वाली है उनकी पहली मुलाकात। क्या दीवा को आर्यांश का चेहरा देखते ही सब याद आ जाएगा? चलिए अगले पार्ट में देखते हैं। प्लीज पढ़ कर रेटिंग और कमेंट कर दीजिएगा और कहानी के साथ बने रहने के लिए थैंक यू सो मच।

  • 6. Golden trap of billionaire - Chapter 6

    Words: 1402

    Estimated Reading Time: 9 min

    दीवा थोड़ा टाइम रिलैक्स करने के लिए बाहर घूमने गई थी, लेकिन वहां कुछ गुंडे उसे परेशान करने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जानबूझकर उन्हें दीवा के पीछे भेजा हो।

    वो दीवा के साथ कुछ कर पाते, उससे पहले आर्यांश का मैनेजर, सार्थक खन्ना, वहां पहुंच गया था। उसने उन लोगों को मारपीट कर भगा दिया था।

    सार्थक वहां ऐसे ही नहीं आया था। वो आर्यांश के कहने पर दीवा को कपूर इंटरनेशनल्स में ले जाने के लिए आया था।

    दीवा इस तरह एक अनजान शख्स के साथ जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन फिलहाल सार्थक और आर्यांश ने उसके लिए जो भी किया था, उसके बाद वो मना भी नहीं कर पाई।

    दीवा सार्थक के साथ गली से बाहर आई तो वहां तीन लग्जरी कार खड़ी थी। सार्थक ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा बताइए मिस गोयंका, कौन सी गाड़ी में जाना पसंद करेंगी आप?”

    “ये कैसा सवाल हुआ?” दीवा ने हैरानी से पूछा।

    “आप कंफ्यूज हो रही है तो कोई बात नहीं, मेरी गाड़ी में चलते हैं। वैसे, आपकी जगह कोई और लड़की होती तो इस वक्त खुशी-खुशी सबसे अच्छी वाली गाड़ी सलेक्ट करती।” सार्थक ने मुस्कुरा कर कहा। वो उस कंफर्टेबल करने की कोशिश कर रहा था, जो उस वक्त थोड़ा बेतुका लग रहा था।

    सार्थक अपनी गाड़ी के पास आया और दीवा के लिए पैसेंजर सीट की तरफ का दरवाजा खोला। दीवा चुपचाप उसमें जाकर बैठ गई थी।

    कुछ ही देर में दीवा सार्थक के साथ कपूर इंटरनेशनल्स के आगे पहुंच चुकी थी। कपूर इंटरनेशनल्स एशिया की वन ऑफ द टॉप कंपनी में थी, जिनके काफी सारे बिजनेस थे, मूवी प्रोड्यूस करना, ज्वेलरी डिजाइनिंग, रियल एस्टेट, मीडिया नेटवर्किंग उनके मेन बिजनेस थे।

    हालांकि, कंपनी का नाम दीवा से छुपा हुआ नहीं था। बचपन से ही वो इस कंपनी के बारे में सुनते हुए आ रही थी और आज इसे अपनी आंखों के सामने देख रही थी।

    कपूर इंटरनेशनल्स की बिल्डिंग‌ शानदार थी, जो लगभग 50 मंजिल की थी। सार्थक ने दीवा के साथ प्राइवेट लिफ्ट ली और वो 49th फ्लोर पर पहुंच चुकी थी, जहां आर्यांश का ऑफिस था।

    वहां जाते वक्त दीवा के दिमाग में काफी कुछ चल रहा था। उसने अपने मन में कहा, “आर्यांश कपूर आखिर मुझसे क्यों मिलना चाहता है? क्या लोग सच कहते हैं कि वो एक बिगड़ा हुआ अमीर आदमी है जो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता? मेरी तो उससे कोई दुश्मनी नहीं है, फिर उसने मुझे यहां क्यों बुलाया होगा?”

    दीवा बस खोई हुई सार्थक के पीछे चल रही थी। कंपनी में जो भी इंपॉर्टेंट पोजीशन पर थे, उन सबके केबिन उसी फ्लोर पर थे। उनके केबिन से गुजरने के बाद, वो सार्थक के साथ आर्यांश के केबिन के आगे पहुंच चुकी थी।

    सार्थक ने नॉक किया तो अंदर से आर्यांश की इंटेंस वॉइस आई, “अंदर आ जाओ।” उसकी आवाज़ शानदार थी।

    आर्यांश की आवाज सुनकर दीवा का दिल जोर से धड़कने लगा था। सार्थक ने दीवा की तरफ देखा तो उसका ड्रेस ऊपर से फटा हुआ था। उसने अपना ब्लेज़र निकाला और दीवा के कंधों पर रखकर कहा, “आप अंदर जाइए, मैं थोड़ी देर में आता हूं।”

    दीवा ने उसकी बात पर सिर हिलाया और अंदर चली गई। अंदर जाते ही उसकी नजर सबसे पहले आर्यांश की तरफ गई, जो उसकी तरफ पीठ करके खड़ा था और बड़ी सी कांच की खिड़की के पास खड़ा बाहर की तरफ देख रहा था। बाहर सनसेट होने वाला था और इतना ऊपर से बाहर का नजा़रा बहुत ही खूबसूरत लग रहा था।

    दीवा ने एक नजर उसके केबिन की तरफ दौड़ाई तो वो काफी बड़ा और शानदार था। महंगा ग्रे और व्हाइट इंटीरियर, कुछ एंटीक पेंटिंग के साथ वो कमरा काफी अच्छा इंप्रेशन दे रहा था।

    दीवा ने रूम में इधर-उधर देखने के बाद आर्यांश की तरफ देखा। उसकी हाइट और बॉडी काफी अच्छी थी। न जाने क्यों दीवा को नर्वसनेस फील हो रही थी। उसने धीरे से पूछा, “क्या आप मिस्टर आर्यांश कपूर है?”

    दीवा के पूछते ही आर्यांश उसकी तरफ पलटा। वो वाकई काफी हैंडसम था। दीवा मन ही मन उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकी। वही आर्यांश भी उसकी तरफ चल कर आ रहा था। जब दीवा की लाइट ग्रे आइज आर्यांश की गहरी काली आंखों से जा टकराई तो वो हैरान रह गई। अचानक उसके चेहरे के भाव बदल गए और बहुत गुस्से से आर्यांश की तरफ देखने लगी।

    दीवा के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। वो अपने मन में कांपती आवाज में बोली, “तो ये है वो इंसान, जिसने कल रात मेरे साथ वो सब किया था। नहीं, मैं धोखा नहीं खा सकती। ये.. ये वही आँखें है।”

    दीवा उन आंखों को कभी नहीं भूल सकती थी और आर्यांश को देखते ही वो उसे पहचान गई थी।

    वही आर्यांश ने सिर हिला कर अपने इंटेंस वॉइस में कहा, “हां, मैं ही आर्यांश कपूर हूं।”

    आर्यांश के चेहरे के भाव गंभीर थे, लेकिन अचानक ही उसके चेहरे पर तिरछी मुस्कुराहट आ गई। अचानक उसके चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई और वो सर्द निगाहों से दीवा को घूर रहा था।

    आर्यांश का इस तरह देखना दीवा को डरा रहा था। शायद उसने पहली बार अपनी जिंदगी में इतने कम टाइम में एक ही इंसान के तीन बार एक्सप्रेशंस बदलते देखे होंगे।

    दीवा ने हिम्मत की और आर्यांश की आंखों में देखते हुए कहा, “आपने मुझे यहां क्यों बुलाया है? और आप जैसे इंसान को मुझसे क्या काम हो सकता है?”

    जवाब देने से पहले आर्यांश ने दीवा की आंखों में देखा और बिना हिचकिचाए सीधे-सीधे कहा, “जानना नहीं जाओगी कि कल रात तुम्हारे साथ बेड पर कौन था दीवा गोयंका? कल रात हमने बेड शेयर किया था। बेड पर जो भी हुआ था, उससे तुम अनजान नहीं तो बिल्कुल नहीं हो।”

    दीवा हैरानी से आर्यांश की तरफ देख रही थी। कोई इंसान इतना बेशर्म कैसे हो सकता है कि इतना सब कुछ करने के बाद बिना किसी शर्म के सब कुछ उसके मुंह पर बोल रहा था। दीवा के मन में काफी कुछ चल रहा था।

    दीवा आर्यांश को बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मानो उसका मुंह जैसे किसी ने सील दिया हो। वो अपने मन में बोली, “हमने बेड शेयर किया से इसका मतलब क्या है? इसने जो भी किया, वो जबरदस्ती थी। फिर ये ”हमने“ शब्द यूज भी कैसे कर सकता है?”

    दीवा ने जैसे-तैसे हिम्मत इकट्ठा की और आर्यांश को जवाब देते हुए सख्त आवाज में बोली, “देखिए मिस्टर आर्यांश कपूर...”

    आर्यांश ने उसकी बात को पूरा नहीं होने दिया, उससे पहले ही वो उसकी बात बीच में काटते हुए बोला, “पहले मैं बात करूंगा। मुझे घुमा फिरा कर बात करने की आदत नहीं है, तो जो कहूंगा, सीधे सीधे बोलूंगा मिस गोयंका। तुम्हारी फैमिली में जो भी हो रहा है, वो मुझसे छुपा हुआ नहीं है।”

    आर्यांश की बातें दीवा को हैरान कर रही थी। उसके पापा का बिजनेस डाउनफॉल में चल रहा था, ये बात अभी मार्केट में फैली नहीं थी। फिर आर्यांश कैसे जान सकता था।

    “आपको कैसे पता?” दीवा ने जल्दी से पूछा।

    फिर उसे अपने सवाल पर अफसोस हुआ। आर्यांश कपूर जैसा शख्स हर इंसान की खबर रखता होगा। फिर उसके पापा की कंपनी के बारे में पता लगाना कौन सी बड़ी बात थी।

    फिर भी दीवा के सवाल का जवाब देने के लिए आर्यांश के कदम उसकी तरफ बढ़ने लगे। जैसे-जैसे आर्यांश दीवा के करीब आ रहा था, वो अपने कदम पीछे ले रही थी। उसे अपने पास आते देख दीवा को डर लगने लगा। इतना डर तो उसे उन गुंडो के सामने भी नहीं लगा था।

    दीवा जब जाकर आखिर में दीवार पर टकरा गई, तब आर्यांश उसके पास आकर बोला, “मुझ जैसे इंसान के लिए इतना मुश्किल भी नहीं है मिस गोयंका।”

    दीवा को समझ नहीं आया वो क्या जवाब दे। तभी आर्यांश ने उसकी कमर पर हाथ रखा और उसे अपने बिल्कुल करीब खींच लिया था।

    दीवा के दिल की धड़कनें तेज होने लगी। उसने सीधे-सीधे पूछा, “आखिर तुम चाहते क्या हो? तुमने पहले मेरे साथ वो सब किया, और उन सब से मन नहीं भरा तो अचानक मुझे यहां बुलाकर इंप्रेस करने की कोशिश कर रहे हो। तुमने अभी कहा कि तुम्हें घुमा फिरा कर बात करने की आदत नहीं है, तो जो कहना है सीधे-सीधे कहो।”

    “बी माइन वूमेन... ओनली माइन। शादी करोगी मुझसे?” आर्यांश ने अचानक उसकी आंखों में गहराई से देखते हुए कहा, तो मानो दीवा पर किसी ने बम फोड़ दिया था।

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    आर्यंश काफी straightforward बंदा है और अब तक आपको ये पता चल गया होगा। पढ़कर लाइक और कमेंट कर दीजियेगा।

  • 7. Golden trap of billionaire - Chapter 7

    Words: 1488

    Estimated Reading Time: 9 min

    दीवा इस वक्त आर्यांश कपूर के ऑफिस में आई हुई थी। आर्यांश ने बिना छुपाए दीवा के सामने सीधा-सीधा सब कुछ बता दिया था कि कल रात वो दोनों ही साथ में थे।

    आर्यांश का बर्ताव काफी मिस्टीरियस लग रहा था। पहले उसने दीवा को अपने ऑफिस में बुलाया और अब वो उसके करीब आ रहा था। दीवा ने आर्यांश से उसके इरादे पूछे, तो उसने सीधा-सीधा उसके सामने शादी करने का प्रपोजल रख दिया था।

    दीवा भी कोई सीधी-साधी लड़की नहीं थी, जो आर्यांश कपूर की धमकियों से डर जाए। जैसे ही आर्यांश ने उससे शादी का कहा, दीवा के चेहरे पर एक सारकास्टिक स्माइल थी।

    दीवा ने ना में सिर हिला कर कहा, “कभी भी नहीं, मिस्टर आर्यांश कपूर... आप इस गलतफहमी में क्यों हैं कि मुझे आपकी हेल्प चाहिए? मेरी फैमिली किसी भी प्रॉब्लम से क्यों न सफ़र कर रही हो, लेकिन मैं आप जैसे इंसान से शादी कभी नहीं करूंगी। और दूसरी बात, कल रात हमारे बीच जो भी हुआ था, मुझे तो वो याद भी नहीं है। रही बात तुम्हारी, तो तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी। इसके बाद अगर मैं हमारे बीच जो भी हुआ, उसकी बात करूं, तो मुझसे ज्यादा तुम नहीं चाहोगे कि ये बात किसी के सामने आए।”

    दीवा आर्यांश को ठीक से जानती नहीं थी, पर उसने उसके बारे में काफी कुछ सुना था। वो एक अच्छा आदमी नहीं था; लोग उसे रिबेलियस होने की वजह से जानते थे। दीवा को लगा कि अगर उसने शादी के लिए हां कह दिया, तो ज़रूर आर्यांश अपनी हरकतों से उसे पागल कर देगा।

    दीवा ने इसे काफी कैजुअली मना किया था, लेकिन आर्यांश के चेहरे के भाव सर्द हो रहे थे। उसने दीवा की तरफ देखकर सर्द आवाज में कहा, “तो तुम मुझे, आर्यांश कपूर को रिजेक्ट कर रही हो?”

    दीवा ने नजरें उठाकर आर्यांश की तरफ देखा। वो गुस्से में लग रहा था। दीवा ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, “हम दोनों किसी भी तरह से एक-दूसरे के लिए सही नहीं हैं। और वैसे भी तुम्हें मेरी क्या जरूरत है? तुम्हारे आसपास मुझसे भी खूबसूरत लड़कियां घूमती रहती हैं। तुम्हें देखकर साफ पता चल रहा है कि तुम मुझे पसंद भी नहीं करते हो।”

    “तुम्हें किसने कहा कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता? मुझे रिजेक्शन का प्रॉपर कारण चाहिए, तुम सब कुछ मेरे ऊपर नहीं डाल सकती हो।” आर्यांश ने सिर हिलाकर कहा।

    आर्यांश जिस हिसाब से बात कर रहा था, दीवा को घबराहट हो रही थी। वो काफी ज़िद्दी नज़र आ रहा था।
    ऐसी सिचुएशन में भी दीवा ने खुद को काफी कंट्रोल कर रखा था। दीवा ने महसूस किया कि उसे पसीना आ रहा है; शायद नर्वसनेस की वजह से ऐसा हो रहा था।

    दीवा ने गहरी सांस ली और आर्यांश से कहा, “मुझे नहीं पता कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती क्यों कर रहे हो। ये सिर्फ इसलिए नहीं है कि हमने एक रात साथ बिताई है। आज से पहले तुम कई लड़कियों के साथ वन-नाइट स्टैंड कर चुके हो। तो क्या अगले दिन तुम सबके सामने शादी का प्रपोजल लेकर पहुंच जाते हो?”

    “लगता है तुम मेरे बारे में पूरी रिसर्च करके आई हो कि मैं किसके साथ कितनी बार सो चुका हूं,” आर्यांश ने भौंहें उठाकर कर कहा।

    “ऐसा कुछ नहीं है।” दीवा ने चिढ़ते हुए कहा।

    आर्यांश उससे कुछ कदम दूर हुआ और बोला, “खुद को इतनी इंपॉर्टेंस मत दो। तुम्हें तो खुद को खुशकिस्मत समझना चाहिए कि आर्यांश कपूर तुमसे शादी करना चाहता है, जबकि तुम किसी भी लिहाज से मेरी वाइफ बनने के लायक तो बिल्कुल नहीं हो।”

    आर्यांश के चेहरे की स्माइल देखकर साफ जाहिर था कि वो दीवा का मजाक उड़ा रहा है।

    दीवा ने गुस्से में उसे घूर कर कहा, “अगर लायक नहीं हूं, तो पीछे क्यों पड़े हो?”

    दीवा को समझ नहीं आया कि आखिर आर्यांश चाहता क्या है। उसकी बातें और एटीट्यूड से साफ था कि वो उससे शादी तो कभी नहीं करना चाहेगा। फिर यहां बुलाकर उसकी इंसल्ट करने का क्या कारण था?

    अचानक दीवा ने देखा कि आर्यांश अपने कदम उसकी तरफ बढ़ाने लगा। उसने दीवा को कमर से पकड़ कर अपने करीब किया और उसके कंधे पर अपना सिर रखकर कान में बिल्कुल धीमी आवाज में कहा, “कहीं तुम्हें शर्म तो नहीं आ रही, कल रात हमारे बीच जो भी हुआ था, उस वजह से? यकीन करो, वो एक हसीन रात थी।” बोलते हुए आर्यांश के चेहरे पर स्माइल आ गई। उसने जानबूझकर अपने होठों को दीवा के ईयरलोब पर रख दिया था।

    उसके इतना करीब आने पर दीवा को अपने शरीर में झुरझुरी सी महसूस हुई। ऐसा लग रहा था जैसे कल रात जो भी हुआ, वो आर्यांश के करीब आने पर एक बार फिर से महसूस कर रही थी।

    दीवा वहाँ खोई हुए हालत में खड़ी थी, तभी आर्यांश ने अपने होठों को उसकी गर्दन पर रख दिया था और उसे बिना सोचे-समझे काफी डीपली किस करने लगा।

    दीवा कुछ मोमेंट के लिए फ्रिज हो गई थी। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा था। अचानक उसे होश आया तो उसने आर्यांश को खुद से दूर धकेलते हुए चिल्लाकर कहा, “मुझसे दूर रहो, आर्यांश कपूर। तुम बहुत बुरे हो।”

    दीवा की आंखें नम हो रही थी, जबकि आर्यांश के चेहरे पर इविल स्माइल थी। रक्षित के ड्रग्स देने की वजह से दीवा कल रात अपने होशो हवास पूरी तरह से खो बैठी थी।

    “क्या बात है, अब शर्म आ रही है, जबकि कल रात तुमने खुद मुझे बेड पर धकेला था। कहा ना, वो एक बहुत ही हसीन रात थी।” आर्यांश ने आई विंक करके कहा।

    “तुम झूठ बोल रहे हो! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।” दीवा ने कांपती आवाज में कहा।

    “ठीक है, लगता है अब तुम्हें सबूत दिखाने पड़ेंगे। मुझे पहले ही पता था कि तुम मेरी बात पर यकीन नहीं करोगी, इसलिए मैंने कल रात का वीडियो शूट किया था। तुम देखना चाहोगी, मिस गोयंका? उम्म, शायद यही वजह है, कि मेरे जैसा शख्स तुमसे शादी करना चाहता है।” आर्यांश ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा।

    वीडियो शूट होने की बात सुनकर दीवा के चेहरे पर घबराहट के भाव थे। वो जल्दी से बोली, “लोग तुम्हारे बारे में बिल्कुल सही कहते हैं, आर्यांश कपूर। तुम एक साइकोपैथ हो। अगर तुम्हें कुछ शूट किया भी है, तो उसे डिलीट कर दो। वरना गलती से भी वो सामने आ गया तो हम दोनों के लिए ही अच्छा नहीं होगा।”

    आर्यांश दीवा के पास आया और उसका मुंह पकड़ कर कहा, “ओह, रियली? मेरे लिए अच्छा नहीं होगा? पर मेरी तो इमेज ही ऐसी है। वैसे लोगों को भी तो पता चलना चाहिए कि रात के अंधेरे में एक रोमांटिक माहौल में दीवा गोयंका किस तरह वाइल्ड हो जाती है।”

    दीवा हैरानी और गुस्से से आर्यांश की तरफ देख रही थी। वो ऐसा क्यों कर रहा था, इसका कारण दीवा को अभी तक समझ नहीं आया। पर एक बात तो साफ़ थी कि आर्यांश कपूर अपने पागलपन में किसी भी हद तक जा सकता था। दीवा का मन किया कि वो इस वक्त आर्यांश की जान ले ले, लेकिन उसने खुद को बहुत मुश्किल से कंट्रोल कर रखा था।

    दीवा ने खुद के गुस्से को काबू करके कहा, “तुमने जो भी किया है उसके बाद मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं। अब तक मैंने सोचा था कि ये एक हादसा है, इसलिए जाने देती हूं। लेकिन तुम्हारी बातें सुन कर साफ हो गया कि सब तुमने जानबूझकर किया है। अब तुम्हें कोर्ट के सामने जवाब देना होगा, आर्यांश कपूर, कि तुमने मेरे साथ जबरदस्ती क्यों की?”

    “फिर तो कोर्ट को भी देखना चाहिए कि जबरदस्ती कौन कर रहा था।” आर्यांश ने सिर हिला कर कहा। फिर वो कुछ पल‌ रुक कर बोला, “अच्छा, ऐसा करता हूं कि एक कॉपी तुम्हें भी भेज देता हूं। कोर्ट में सबूत के तौर पर काम आएगी ना।”

    आर्यांश की हरकतें दीवा को चिढ़ा रही थी। वो चिल्ला कर बोली, “यू नो व्हाट, आर्यांश कपूर! तुम्हें एक साइकोलॉजिस्ट की जरूरत है। तुम कितने भी अमीर और पावरफुल इंसान क्यों ना हो, लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं करूंगी, चाहे तुम दुनिया के आखिरी इंसान भी क्यों ना बचे हो।”

    “तो चलो, फिर देखते हैं। आई चैलेंज यू, दीवा गोयंका, तुम तो अपने घुटनों के बल बैठकर हाथ जोड़कर मेरे सामने भीख मांग कर खुद से शादी करने को कहोगी।” आर्यांश ने चैलेंजिंग वॉइस में कहा। फिर वो कुछ पल रुक कर सर्द आवाज में बोला, “लेकिन हां, अगली बार तुम मुझे भीख भी मांगोगी तो तुम्हारे लिए चीजें आसान नहीं रहने वाली। तुमने प्यार से सब कुछ करने का मौका खो दिया है।”

    आर्यांश की बात सुनकर दीवा को एक पल के लिए डर सा महसूस हुआ और उसके शरीर में एक सिहरन उठी। वो आर्यांश के चेहरे की तरफ देख रही थी, जो सर्द निगाहों से उसे घूर रहा था। इस वक्त उसका चेहरा देखकर कोई भी कह सकता था कि आर्यांश ने जो भी कहा था, वो मजाक तो किसी भी तरीके से नहीं था।

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  • 8. Golden trap of billionaire - Chapter 8

    Words: 1342

    Estimated Reading Time: 9 min

    दीवा को पता चल चुका था कि वो आर्यांश ही था, जिसके साथ उसने कल की रात बिताई थी। आर्यांश ने दीवा के सामने शादी का प्रपोजल रखा, जिसे दीवा ने सीधे-सीधे ठुकरा दिया था। भले ही वह आज आर्यांश कपूर से पहली बार मिल रही हो, लेकिन उसके बारे में उसने काफी कुछ सुना था।

    दीवा के मना करने के बाद भी आर्यांश के चेहरे पर एक जिद और गुस्सा था। उसने दीवा को सीधे चैलेंज कर दिया कि एक दिन खुद वह जाकर उससे शादी की भीख मांगेगी।

    दीवा ने आर्यांश की तरफ़ देखकर सिर हिला दिया और फिर वहाँ से जाने लगी। अचानक, दरवाज़े पर रुककर उसे कुछ याद आया। वह आर्यांश की तरफ़ पलटी और सख्ती से बोली, “तुम्हें तुम्हारा सामान तो लौटाना भूल ही गई थी।”

    इतना कहकर दीवा ने अपने बैग में हाथ डाला। उसने अभी भी उन पैसों को अपने साथ ले रखा था, जो आर्यांश उसके लिए बेड पर रखकर गया था। दीवा ने पैसे निकाले और उन्हें उसके सामने डेस्क पर रखते हुए बोली, “आगे से ऐसी घटिया हरकत करने से पहले दो बार सोच लेना। हर किसी की इज़्ज़त बिकाऊ नहीं होती है, आर्यांश कपूर।”

    दीवा ने नोटिस किया कि उसके कंधों पर आर्यांश के मैनेजर, सार्थक का ब्लेज़र अभी भी रखा हुआ था। उसने ब्लेज़र निकाला और उसे भी रखते हुए कहा, “यह भी तुम्हारे ही आदमी का है, ना? मुझे तुमसे जुड़ी हुई हर चीज़ से नफ़रत है। उम्मीद है कि हम वापस कभी नहीं मिलेंगे। आज से हम दोनों एक दूसरे के लिए अनजान है, मिस्टर कपूर।”

    दीवा आर्यांश से बात कर रही थी, जबकि आर्यांश लगातार उसे घूरकर देख रहा था। उसने देखा दीवा की ड्रेस फटी हुई थी।

    आर्यांश ने पैसे उठाकर वापिस उसे देते कहा, “ये पैसे रख लो और जाकर अपने लिए एक अच्छी ड्रेस खरीद लेना। मेरी तरफ़ से गिफ़्ट होगा। पहला गिफ्ट कहना गलत होगा, क्योंकि पहला गिफ़्ट तो मैं कल रात ही तुम्हें दे चुका हूँ, तो दूसरा गिफ़्ट समझकर रख लो।”

    “तुम निहायती घटिया इंसान हो आर्यांश कपूर! कहा ना, तुमसे जुड़ी हुई कुछ भी नहीं चाहिए। मेरे पास कपड़े खरीदने के लिए मेरे पैसे हैं, तो तुम्हारे एहसान की ज़रूरत नहीं है। आगे से गलती से भी टकरा जाए, तो भूल जाना कभी हमारे बीच कुछ हुआ था।” दीवा ने जवाब दिया और फिर बिना मुड़े वहाँ से निकल गई।

    जाते जाते दीवा के कानों में आर्यांश की आवाज पड़ी। आर्यांश तेज आवाज़ में बोला, “चलो फिर अजनबी बन जाते है दीवा गोयंका, पर शर्त याद रखना। तुम खुद मेरे पास आओगी।”

    दीवा ने उसे इग्नोर किया। वो वहाँ से निकली और सीधा एक मॉल में पहुँच गई थी। उसने अपने लिए एक खूबसूरत ड्रेस सेलेक्ट की। ड्रेस चेंज करने के बाद दीवा ने अपने बालों को सही किया।

    दीवा ने खुद को वहाँ लगे आईने में देखते हुए मुस्कुराकर कहा, “मुझे अपना मूड खराब नहीं करना है। कल मेरे और रक्षित के रिश्ते की चौथी एनिवर्सरी है। सुबह मैं उस पर बहुत बुरी तरह से चिल्लाई थी। मुझे उसे सॉरी कहना चाहिए।”

    दीवा आर्यांश को भूलकर आगे बढ़ना चाहती थी, इसलिए वह वहाँ से सीधे रक्षित के घर पर पहुँची। वह उसके घर का पासकोड जानती थी, इस वजह से वह बिना डोर नॉक किए अंदर पहुँच गई।

    दीवा मुस्कुराते हुए अंदर जा रही थी, तभी अचानक उसके कदम रक्षित के कमरे के बाहर ही रुक गए थे। कमरे के अंदर से सिसकियों की आवाज़ आ रही थी।

    दीवा कोई बच्ची नहीं थी, जो अंदर आ रही आवाज़ को समझ ना पाए। उन सब को सुनकर उसकी आँखों से मुस्कुराहट गायब हो गई और आँखों से आँसू का कतरा बह गया था।

    दीवा वहाँ से जाने को हुई, तभी उसके कानों में एक जानी-पहचानी लड़की की आवाज़ पड़ी। वह लड़की उसी की दोस्त, कनिष्का थी।

    अंदर कमरे में कनिष्का और रक्षित एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए थे। दोनों ने ही कपड़े नहीं पहन रखे थे। कनिष्का ने रक्षित की चेस्ट पर अपना सिर रखा और फिर कहा, “सच में तुम्हारा और दीवा का ब्रेकअप हो गया है ना, रक्षित?”

    “मैं सच कह रहा हूँ, डार्लिंग। अगर हमारा ब्रेकअप नहीं हुआ होता, तो मैं यहाँ इस तरह तुम्हारे साथ बेड पर थोड़ी ना होता।” रक्षित ने जवाब दिया और फिर कनिष्का को पकड़कर अपने ऊपर लेटा लिया था।

    “कम ऑन! कौन सा हम पहली बार इस तरह बेड पर साथ में आए हैं?” कनिष्का ने बेपरवाही से सिर हिलाकर कहा। फिर वह कुछ पल रुककर बोली, “गुस्सा तो मुझे कल रात की वजह से आ रहा है। उस लड़की की वजह से हमारी सारी प्लानिंग फ़ेल हो गई। वह बूढ़ा मिस्टर सिंह, उसके साथ कुछ नहीं कर पाया और उसका गुस्सा हम पर निकाल रहा है। ऊपर से मैंने कुछ आदमियों को उसे मारने के लिए भेजा था, पर उनसे भी कुछ नहीं हुआ। सब के सब यूज़लेस हैं।”

    कनिष्का ने दीवा को मारने के लिए आदमियों को भेजा था। यह सुनकर रक्षित ने उसे अपने ऊपर से नीचे उतारा और तुरंत बैठते हुए हल्के गुस्से में कहा, “तुमने उसे मारने के लिए कुछ आदमियों को भेजा और मुझे बताया तक नहीं? कितनी बार कहा है कि मुझसे पूछे बिना कोई प्लानिंग मत किया करो।”

    “तुम तो इस तरह गुस्सा कर रहे हो जैसे उसे प्यार करते हो। कहीं सच में प्यार तो नहीं करते ना? तुमने ही तो प्लानिंग की थी कि वह मिस्टर सिंह उसके साथ रात बिताए। मैंने कुछ गुंडों को भेज दिया तो क्या गलत कर दिया?” कनिष्का ने रक्षित को घूरते हुए कहा।

    रक्षित नहीं चाहता था कि कनिष्का किसी भी तरह उसे लेकर डाउट में रहे। वह तुरंत सिर हिलाकर बोला, “ऐसा कुछ नहीं है। बस मैं नहीं चाहता कि प्लानिंग में गड़बड़ हो। आगे से मुझसे पूछे बिना कुछ मत करना, बस यही बोल रहा हूँ।”

    “ओके, बेबी।” कनिष्का ने मुस्कुराकर कहा और उसके गाल पर किस कर दिया।

    वहीं बाहर खड़ी दीवा ने जब उनकी बातें सुनीं, तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके सीने में छुरा मार रहा हो। रक्षित और कनिष्का की बातों से वह समझ गई थी कि उन्होंने कल रात कितना कुछ प्लान किया था और अभी भी उसे मारने के लिए गुंडे भेजे थे।

    “इसका मतलब तुमने ही मेरी ड्रिंक में ड्रग्स डाले थे और तुम्हारी वजह से आर्यांश कपूर ने मेरे साथ जबरदस्ती की। अगर वह नहीं होता, तो क्या कल रात मैं मिस्टर सिंह के साथ बेड पर होती?” दीवा ने सिसकते हुए कहा।

    उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ यह क्या हो रहा है। दीवा कोई सीन क्रिएट नहीं करना चाहती थी और ना ही वह इस हालत में थी। दीवा वहाँ से जाने को हुई, तभी उसके कानों में रक्षित की आवाज़ पड़ी और रक्षित के शब्दों ने दीवा को वहाँ रुकने पर मजबूर कर दिया था।

    रक्षित ने कनिष्का से कहा, “बेबी, तुम समझदार हो, तो ऐसी उल्टी-सीधी हरकतें मैं तुमसे एक्सपेक्ट नहीं करता हूँ। अब तुम उस दीवा गोयंका की तरह बेवकूफ़ थोड़ी ना हो, जो बिना सोचे-समझे किसी की भी बातों में आकर कुछ भी कर दोगी।”

    रक्षित की बात सुनकर दीवा ने अपने आँसू पोंछते हुए गुस्से में कहा, “अच्छा तो मैं उसे बेवकूफ़ लगती हूँ? फिर तो मेरा प्यार और इमोशन, सब कुछ बेवकूफ़ी थी।”

    दीवा से अब सहन नहीं हुआ। उसने एक झटके से कमरे का दरवाज़ा खोला। अंदर बेड पर रक्षित और कनिष्का एक-दूसरे को किस कर रहे थे। जैसे ही रक्षित की नज़र दीवा पर पड़ी, उसने तुरंत कनिष्का को खुद से दूर धकेल दिया था।

    दीवा के चेहरे के भाव देखकर रक्षित समझ गया था कि वह उनकी बातें सुन चुकी है और इस वक्त रक्षित की हालत देखने लायक थी। उसके माथे पर पसीने की बूँदें आ गई थीं यह सोचकर कि ना जाने दीवा अब आगे उनके साथ क्या करने वाली थी।

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    चलो, दीवा के सामने जल्द ही रक्षित का चेहरा आ गया। यही अच्छी बात है। आई होप कि आप इस कहानी को सपोर्ट करोगे और आप जानते भी हो कि अभी कितना ज़रूरी है इस कहानी पर व्यूज़ बढ़ाना। तो प्लीज़ इसे पढ़िए, आपको अच्छी लगेगी और पढ़कर रेटिंग और कमेंट ज़रूर कीजिएगा।

  • 9. Golden trap of billionaire - Chapter 9

    Words: 1681

    Estimated Reading Time: 11 min

    दीवा सब कुछ भूलकर यहाँ रक्षित से बात करने आई थी, लेकिन जब वह रक्षित के घर पहुँची, तो उसने उसे अपनी दोस्त कनिष्का के साथ बिस्तर पर देखा। दीवा इस बात का ज़्यादा सीन क्रिएट नहीं करना चाहती थी और चुपचाप ब्रेकअप करके वहाँ से जाना चाहती थी, लेकिन जब उसने रक्षित और कनिष्का की बातें सुनीं, तो उससे रहा नहीं गया। वे उसे बेवकूफ़ बता रहे थे और कल रात उन्होंने ही प्लान बनाकर उसकी ड्रिंक में ड्रग्स मिलाए थे।

    दीवा गुस्से में कमरे में गई। उसे देखकर उन दोनों के चेहरे के रंग उड़ गए। दीवा खुद को मज़बूत दिखाने की पूरी कोशिश कर रही थी। वो रक्षित के सामने रोकर खुद को कमजोर साबित नहीं कर सकती थी।

    दीवा ने उन दोनों को देखकर सार्केस्टकली सिर हिलाकर कहा, “ग़लत समय पर आ गई ना मैं? डिस्टर्ब कर दिया होगा? लगे रहो, शर्म तो वैसे भी तुम दोनों के मुँह पर है नहीं।”

    दीवा ने गुस्से में रक्षित को घूरा। सुबह वह प्यार करने के बड़े-बड़े दावे कर रहा था और रात को वह किसी और के साथ बिस्तर पर था।

    दीवा को लगा कि उसकी बातें सुनकर रक्षित उसे सफ़ाई देगा। रक्षित ने कनिष्का को अपने करीब खींचा और फिर भौंहें उठाकर बोला, “मुझे तुम्हें किसी तरह की सफ़ाई नहीं देनी है कि मैंने ऐसा क्यों किया। अब जब तुमने हम दोनों को साथ पकड़ लिया है, तो सच बता देता हूँ कि मैं कनिष्का से प्यार करता हूँ। तुम्हारा हो गया हो तो जा सकती हो यहाँ से।” रक्षित के चेहरे पर अफ़सोस के कोई भाव नहीं थे।

    दीवा ने भी खुद को पूरा मज़बूत कर रखा था। उसने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, “और तुम्हें क्यों लगा कि मुझे किसी तरह की सफ़ाई की ज़रूरत है? मैं तो खुद यहाँ ब्रेकअप करने के लिए आई थी। याद है ना सुबह भी मैंने तुम्हें कहा था कि अब हम साथ नहीं रहने वाले हैं। वैसे भी तुम मेरे टाइप के नहीं हो। कनिष्का जैसी लड़कियाँ ही तुम्हें पसंद आ सकती हैं।”

    दीवा की बात सुनकर कनिष्का गुस्से में बोली, “मतलब क्या है तुम्हारे कहने का, मुझे जैसी लड़की? मुझमें क्या कमी है?”

    कनिष्का भी दिखने में खूबसूरत थी; हल्का साँवला रंग, गहरी काली आँखें और कंधे को छूते बाल, उसका फ़िगर भी काफ़ी अच्छा था।

    “तुम मेरे कहने का मतलब नहीं समझीं। तुम जैसी लड़की, मतलब एहसान फ़रामोश लड़की। भूल गई कि तुम्हारे पास स्कूल की फ़ीस भरने तक के पैसे नहीं थे, तब मेरे पापा ने तुम्हारा ध्यान रखा, तुम्हारी आगे तक की एजुकेशन पूरी करवाई और उसके बाद अपनी कंपनी में अकाउंटेंट की जॉब दी। जिस इंसान ने तुम्हें ज़िंदगी में सब कुछ दिया, उसी की बेटी के साथ तुमने ऐसा किया।” दीवा ने गुस्से में जवाब दिया।

    “तुम अमीर लोगों को लगता है कि पैसों से सब कुछ खरीदा जा सकता है। तुम्हारे पापा ने जो पैसे दिए थे, वह मैं पहले ही चुका चुकी हूँ।” कनिष्का ने जवाब दिया।

    कनिष्का ने दीवा के पापा के प्यार को एहसान समझकर पल में छोटा दिखा दिया था। दीवा अपने बारे में तो सब कुछ बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने डैड के बारे में वह कुछ नहीं सुन सकती थी।

    दीवा गुस्से में उसके पास आई और जोर से थप्पड़ लगाकर बोली, “आज तुम्हारी जगह कोई और होती, तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन तुमने अपना बनने का दिखावा किया और फिर जिस तरह से धोखा दिया है, उसके बाद यह छोटा सा थप्पड़ तो तुम डिज़र्व करती हो।”

    कनिष्का ने लाल आँखों से रक्षित की तरफ़ देखा। रक्षित ने कुछ नहीं पहना हुआ था। उसने पास रखा ब्लैंकेट अपनी कमर के नीचे लपेटा और दीवा के पास आकर बोला, “आज के लिए इतना तमाशा काफ़ी है, दीवा गोयंका। मेरे घर से निकलो, वरना मैं पुलिस बुला लूँगा।”

    “तुम एक घटिया इंसान हो, रक्षित दीवान… तुमने मेरे साथ जो भी किया है, उसका तुम्हें ख़ामियाज़ा ज़रूर उठाना पड़ेगा।” दीवा गुस्से में चिल्लाकर बोली।

    धमकियों का रक्षित पर कोई असर नहीं हुआ। वह तिरछा मुस्कुराते हुए बोला, “तुम अच्छे से जानती हो कि अब तुम्हारी कोई औक़ात नहीं रही है। बेहतर होगा कि अपने घमंड को थोड़ा कम करो, क्योंकि यह हाई-क्लास घमंड दिवालिया हुए लोगों पर सूट नहीं करता।” रक्षित ने दीवा को पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने घर के बाहर कर दिया।

    रक्षित के घर से बाहर निकलकर दीवा सड़क पर पागलों की तरह चल रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे और दिमाग़ में कई सवाल।

    दीवा ने अपने मन में कहा, “रक्षित ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया होगा? मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी जो उसने मुझे धोखा दिया... और किसी और उसने मुझे बेचने तक की प्लानिंग भी कर ली?”

    दीवा को बहुत जोर से रोना आ रहा था, लेकिन उसने खुद को संभाला और खुद को गले लगाते हुए बोली, “रो मत, दीवा, सब ठीक हो जाएगा। अच्छा हुआ जो कुछ बुरे लोग तुम्हारी ज़िंदगी से चले गए।”

    थोड़ी देर पहले दीवा को आर्यांश कपूर दुनिया का सबसे बुरा इंसान लग रहा था, तो फ़िलहाल अब उसे रक्षित सबसे ज़्यादा गिरा हुआ इंसान लग रहा था।

    दीवा जैसे ही अपने घर पहुँची, तो उसने देखा वहाँ पुलिस आई हुई थी और उसके डैड को पकड़कर ले जा रही थी।

    दीवा जल्दी से उनके पास जाकर बोली, “क्या हो रहा है यहाँ पर? आप लोग मेरे पापा को इस तरह पकड़कर क्यों ले जा रहे हो?”

    पुलिस ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उसे वहाँ से ले जाने लगी। दीवा के डैड, मिस्टर नवीन गोयंका ने उसकी तरफ़ देखा और तेज आवाज़ में चिल्लाकर कहा, “मुझे माफ़ कर देना। तुम इतने टाइम बाद यहाँ पर आई थी, तुम्हें यह सब देखना पड़ रहा है। रक्षित दीवान से बचकर रहना, वह अच्छा इंसान नहीं है। वह तुम्हें धोखा देगा।”

    नवीन ने जाते-जाते दीवा को आगाह कर दिया था और पुलिस उसे पकड़कर ले गई थी। दीवा को कुछ समझ में नहीं आया। वह दौड़कर अंदर गई तो उसकी मॉम, प्रार्थना, लिविंग रूम में काउच पर सुन्न होकर बैठी थी।

    नवीन के अरेस्ट होने पर प्रार्थना को बड़ा झटका लगा था और वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। दीवा जल्दी से उसके पास गई और बोली, “मॉम, बाहर क्या चल रहा है? वह लोग पापा को अरेस्ट करके क्यों ले गए हैं?”

    दीवा को यह ज़रूर पता था कि उनकी कंपनी की हालत सही नहीं लग रही है, लेकिन उसमें पुलिस का कोई इंवॉल्वमेंट नहीं था। फिर अचानक पुलिस नवीन को क्यों पकड़कर ले गई, यह देखकर दीवा काफ़ी हैरान थी।

    दीवा की बात सुनकर प्रार्थना होश में आई और उसके गले लग गई। उसने रोते हुए बताया, “किसी अनजान को अपना मानकर भरोसा करते हैं, तो यही होता है। तुम्हारे पापा ने कनिष्का को अपनी बेटी की तरह पाला था, लेकिन उसने ही धोखा दिया। कंपनी पर पहले से ही इतना लोन था, ऊपर से ये सब।” बोलते हुए प्रार्थना फिर से रो पड़ी।

    दीवा ने घबराते हुए पूछा, “ये सब क्या मॉम? प्लीज मुझे सब बताइए ”

    प्रार्थना ने सुबकते हुए कहा, “लोन हम अरेंज कर सकते थे, लेकिन इस बीच कनिष्का ने कुछ पेपर्स में गड़बड़ी की और बहुत से अमाउंट ग़लत दिखाकर उन पर तुम्हारे पापा के सिग्नेचर ले लिए। पूरे 500 करोड़ इधर-उधर हो रहे हैं। उन पर ग़बन का इल्ज़ाम लगा है और पुलिस उन्हें पकड़कर ले गई।”

    प्रार्थना के बताते ही दीवा को भी एक बड़ा झटका लगा। थोड़ी देर पहले ही उसने रक्षित और कनिष्का को साथ में देखा था। वह समझ गई थी कि यह उन दोनों की मिलीभगत थी।

    गुस्से में दीवा के मुँह से निकला, “वह इतनी घटिया हरकत कैसे कर सकती है?”

    दीवा फ़िलहाल इस बारे में प्रार्थना को कुछ नहीं बताना चाहती थी कि थोड़ी देर पहले उसने रक्षित और कनिष्का को एक साथ देखा था, लेकिन उसके आँसू रुक नहीं रहे थे और वह जोर-जोर से रोने लगी।

    प्रार्थना ने तुरंत उसे संभालते हुए पूछा, “क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो? हम तुम्हारे पापा को बाहर ले आएंगे।”

    दीवा से अब अपना दुःख कंट्रोल नहीं हो रहा था। उसने सुबकते हुए प्रार्थना से कहा, “सुबह मैंने रक्षित पर गुस्सा किया था, तो उससे बात करने के लिए उसके घर पर गई थी। मॉम, वहाँ पर रक्षित और कनिष्का एक-दूसरे के साथ बिस्तर पर…” दीवा अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी और फिर से फूट-फूट कर रोने लगी।

    हालाँकि दीवा ने पूरी बात नहीं बताई थी, वह खुद को बेवकूफ़ समझ रही थी क्योंकि उसने आँख बंद करके रक्षित और कनिष्का पर भरोसा किया। रक्षित और कनिष्का की सच्चाई सुनकर प्रार्थना को भी गुस्सा आ रहा था और अपनी बेटी दीवा पर दया।

    “वह दोनों सच में बहुत घटिया निकले।” प्रार्थना ने गुस्से में कहा।

    फ़िलहाल दीवा को रक्षित के धोखे को भूलकर अपने पापा के बारे में सोचना था, तो वह तुरंत उस मोमेंट से बाहर आ गई। उसने प्रार्थना से पूछा, “मॉम, हमें डैड को बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?”

    “हमें कम से कम 500 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी।” प्रार्थना ने बताया। फिर वह कुछ पल रुककर बोली, “अगर मैं अपने सारे शेयर्स और बाकी सब चीज़ें भी बेच दूँ, तो उनसे तो 100 करोड़ भी नहीं निकलेंगे।”

    500 करोड़ रुपये वाकई काफ़ी ज़्यादा थे और इतने पैसे ना तो प्रार्थना के पास थे और ना ही दीवा के पास। रकम सुनने के बाद दीवा के चेहरे पर घबराहट के भाव आ गए क्योंकि वह जानती थी कि बिना पैसों के अब उन्हें और नवीन को क्या कुछ सहना पड़ेगा। ग़बन की गई रकम नहीं चुकाई गई तो नवीन को कड़ी सज़ा होने वाली थी, जबकि इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं थी। अगर यह रक्षित की प्लानिंग थी तो फिर जेल में न जाने नवीन को तोड़ने के लिए उन पर कौन से टॉर्चर होने वाले थे। यह सोचकर ही दीवा की रूह कांप रही थी। दूर-दूर तक उसे कोई नजर नहीं आ रहा था, जो उन्हें इन हालातो से निकाल सके।

    लेकिन मुश्किलें यही खत्म नहीं हुई थी, अभी तो रक्षित अपने आखिरी दांव के साथ तैयार था, जिसके बाद शायद दीवा और गोयंका फैमिली का बचा कुचा सब दाव पर लगने वाला था

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    क्या दीवा हेल्प मांगने आर्यांश के पास जाएगी?

  • 10. Golden trap of billionaire - Chapter 10

    Words: 1574

    Estimated Reading Time: 10 min

    दीवा का आज का दिन काफी भारी रहा था। पहले आर्यांश ने उसके साथ वह सब किया, तो फिर ऑफिस में बुलाकर सीधे-सीधे उसके सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया था। दीवा आर्यांश से आगे बढ़ाकर वापस अपने बॉयफ्रेंड, रक्षित से मिलने गई, तो उसके सामने एक और नई सच्चाई आ चुकी थी। कल रात उसे ड्रग्स देकर मिस्टर सिंह को बेचने वाला शख्स रक्षित था। ऊपर से, उसका उसी की फ्रेंड, कनिष्का के साथ अफेयर भी चल रहा था।

    पहले आर्यांश, तो बाद में रक्षित; दीवा का बहुत दिल बहुत दुखी था। घर पर आई, तो दीवा के ऊपर एक नया बम फूट चुका था—उसके डैड, मिस्टर नवीन गोयंका को गबन के इल्ज़ाम में अरेस्ट कर लिया गया था। दीवा की मॉम, प्रार्थना ने बताया कि यह सब कनिष्का ने किया है।

    एक-एक करके, सब उसे धोखा देते जा रहे थे। 500 करोड़ रुपए चुकाना कोई छोटी बात नहीं थी, ऊपर से उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे।

    कुछ भी करके दीवा को अपनी फैमिली को इस प्रॉब्लम से बाहर निकलना ही था। उसने गहरी साँस ली और प्रार्थना की तरफ़ देखकर, शांत लहजे में कहा, “डॉन्ट वरी, मॉम। हम इन सब से बाहर निकल जाएँगे। यह फैसला काफी मुश्किल है, पर हमें हमारा घर और इसमें, रखी सभी एसेट्स को बेचना होगा। उतने में हमारे पास 500 करोड़ रुपए आ जाएँगे।”

    घर बेचने का सुनकर प्रार्थना की आँखों से आँसू बहने लगे थे। वह घर उन्होंने काफी प्यार से डिजाइन करवाया था। प्रार्थना ने खुद को संभालते हुए, दीवा से कहा, “यह बहुत मुश्किल होने वाला है, और नवीन को पता चला तो उन्हें भी बहुत बुरा लगेगा। पर उन्हें बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ। हालाँकि पुलिस जाँच कर रही है, पर मुझे उन पर यकीन नहीं है।”

    “जब यह सब ठीक हो जाएगा, तब हम इस घर को फिर से हासिल कर लेंगे, मॉम।” दीवा ने प्रार्थना का हाथ सहलाते हुए कहा, और फिर उसके गले लग गई थी।

    दीवा को अंदर-अंदर काफी घबराहट हो रही थी, पर वह अपने चेहरे से कुछ जाहिर नहीं कर रही थी। अब उसे ही अपनी मॉम को संभालना था, और अपने डैड को भी बाहर निकालना था। दीवा को इस तरह हिम्मत करते देखा, प्रार्थना को भी हिम्मत मिल रही थी।

    आज की रात दीवा प्रार्थना के साथ ही सो रही थी। अगली सुबह दीवा कुछ लोगों के कांटेक्ट नंबर एक पेपर पर लिख रही थी, ताकि उनसे घर बेचने की बात कर सके। उनसे अलग, प्रार्थना उसके लिए नाश्ता लेकर आई थी।

    दीवा और प्रार्थना अपनी तरफ़ से नई शुरुआत करने की कोशिश कर रही थीं, तभी उन्हें दरवाज़े पर किसी के आने की आवाज़ हुई। दीवा और प्रार्थना ने सामने की तरफ़ देखा, तो वह रक्षित था।

    उसे देखते ही दीवा की गुस्से में मुट्ठी बंध गई थी। उसने तेज़ साँस लेते हुए कहा, “यह इंसान और कितनी बेशर्मी दिखाएगा! इतना सब कुछ करने के बाद भी, यहाँ पर मुँह उठाकर चला आया है।”

    दीवा का मन किया कि वह रक्षित का मुँह तोड़ दे। वह उठकर उसके पास जा रही थी, कि रक्षित खुद ही उसके पास चला आया।

    उन दोनों को देखते हुए, रक्षित ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, “मानना पड़ेगा, तुम दोनों माँ-बेटी के बीच काफी प्यार है। बाप के जाने के बाद माँ के साथ रिश्ता गहरा कर रही हो, दीवा गोयंका?”

    दीवा रक्षित के चेहरे की तरफ़ देख रही थी। वह काफी कॉन्फिडेंट नज़र आ रहा था। इसका मतलब कि वह एक बार फिर अपने बुरे इरादों के साथ वहाँ पर आया था।

    जहाँ दीवा खुद को शांत करके रक्षित के इरादे समझने की कोशिश कर रही थी, तो वहीं प्रार्थना गुस्से में उस पर झपट पड़ी थी।

    प्रार्थना ने रक्षित का कॉलर पकड़ा और फिर गुस्से में चिल्लाकर कहा, “तुम बेशर्म इंसान! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? मेरी बेटी के साथ इतना सब कुछ करके भी तुम्हारा मन नहीं भरा, जो हमारे जले पर नमक छिड़कने के लिए यहाँ पर आ गए? मैं अभी पुलिस को कॉल करती हूँ और तुम्हें धक्के मारकर यहाँ से निकलवाती हूँ।”

    रक्षित ने सिर हिलाया और फिर अपने कॉलर से प्रार्थना के हाथ अलग किए। वह मुस्कुराते हुए बोला, “अरे आंटी, आप तो गुस्सा हो गईं! पहले जब मैं आता था, तो कितना प्यार से मेरी खातिरदारी करती थीं। चलिए, जाइए मेरे लिए एक ग्लास पानी लेकर आइए, बैठकर प्यार से बात करते हैं।”

    अपनी बात खत्म करके रक्षित वहाँ सोफ़े पर पैर पर पैर रखकर बैठ गया था। वह किसी किंग की तरह बैठा हुआ था।

    दीवा ने रक्षित को घूरते हुए पूछा, “सीधे-सीधे बताओ, यहाँ क्यों आए हो?”

    “मैं तो बस यहाँ किसी काम से आया हूँ। अपनी खास चीज़ लेने के लिए आया हूं।” रक्षित ने कंधे उचकाकर, बेपरवाही से कहा।

    “तुम्हारा यहाँ कुछ नहीं है।” दीवा ने सख़्ती से जवाब दिया।

    “कुछ है, तभी यहाँ आया हूँ ना, बेबी! वरना क्यों आऊँगा? वैसे, तुम्हें क्या लगता है कि मैं यहाँ क्यों आया हूं?” रक्षित बोला।

    “मुझे नहीं पता। मैं बस इतना जानती हूँ कि मैं तुम्हें एक मिनट के लिए भी बर्दाश्त नहीं कर सकती, रक्षित दीवान! सो जो भी है, लो और निकलो यहाँ से।” दीवा ने दाँत पीसते हुए कहा।

    इतना सब कुछ करने के बाद भी, रक्षित उसके सामने खड़ा, बिना किसी शर्म के उससे बात कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इतनी गलतियाँ करने के बाद भी रक्षित को कोई पछतावा नहीं था।

    रक्षित ने गहरी साँस ली और विक्ट्री स्माइल के साथ कहा, “मैंने कल रात बिल्कुल ठीक कहा था, दीवा गोयंका! तुम बेवकूफ़ हो! तुम्हें कुछ समझ नहीं आएगा। चलो, मैं ही बता देता हूँ। मैं यहाँ इसलिए आया हूँ ताकि मैं अपने घर से दो फ़ालतू के सामान को बाहर निकाल सकूँ, और वह फ़ालतू सामान तुम और तुम्हारी माँ हो। हाँ, तो कोई मुझे बाहर निकालने के लिए कह रहा था! बेहतर होगा कि तुम दोनों जल्दी से मेरे घर से बाहर निकल जाओ।”

    इतना कहकर रक्षित हँसने लगा। वहीं दीवा को लग रहा था कि कोई इस वक्त उसके साथ बहुत बड़ा मज़ाक कर रहा है। जिस इंसान से वह अपने मम्मी-पापा के बाद सबसे ज़्यादा प्यार करती थी, आज उसे उसी से सबसे ज़्यादा नफ़रत हो रही थी।

    दीवा ने खुद को मज़बूत करके कहा, “खुली आँखों से सपना देखना बंद करो, रक्षित दीवान। जल्द ही पुलिस पता लगा लेगी कि मेरे डैड को तुमने फँसाया है, और फिर उनकी जगह तुम जेल की सलाखों के पीछे होंगे। एक बात मुझे बताओ कि मेरा घर तुम्हारा घर कब से हो गया?” बोलते हुए दीवा की आवाज़ काँपने लगी थी।

    ना जाने किस्मत उसकी ही परीक्षा क्यों ले रही थी, जो पिछले दो दिनों में उसकी ज़िन्दगी उसे ये मंज़र दिखा रही थी। अंदर से वह कितना भी स्ट्राँग रहने की कोशिश क्यों न कर ले, लेकिन अंदर ही अंदर उसके दिल में एक तूफ़ान सा उठा हुआ था।

    रक्षित दीवा के पास आया और उसके गाल पर उंगली घुमाते हुए कहा, “ओह तुम्हारा बाप! वह अभी भी तुम लोगों से झूठ बोलता है। उसने तुम लोगों को बताया नहीं कि पिछली बार उसने एक प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए लोन उठाया था। गारंटी के तौर पर उसने यह घर रखा था। लोन के पैसे मैंने चुका दिए हैं, तो घर मेरा हुआ।”

    “तुम झूठ बोल रहे हो! मेरे पापा ऐसा कभी नहीं कर सकते।” दीवा गुस्से में बोली, और उसने रक्षित का कॉलर पकड़ लिया था। रक्षित ने गुस्से में दीवा को खुद से दूर धकेला, तो वह जमीन पर जाकर गिर गई थी।

    प्रार्थना जल्दी से दीवा के पास आई और उसे उठाते हुए बोली, “दीवा, बेटा, तुम ठीक हो ना?”

    दीवा को रोने का मन कर रहा था, लेकिन उसने खुद को बखूबी संभाल रखा था। उसने बिना कुछ कहे हाँ में सिर हिला दिया था।

    दीवा और प्रार्थना आपस में लगी हुई थीं, तब रक्षित ने तेज़ आवाज़ में कहा, “अगर फिर भी तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है, तो तुम्हें कॉन्ट्रैक्ट के पेपर दिखा देता हूँ? फिर तो यकीन हो जाएगा ना?”

    दीवा ने कुछ नहीं कहा, पर उसके बावजूद रक्षित ने तेज़ आवाज़ में अपने वकील को आवाज़ लगाते हुए कहा, “मिस्टर पाठक, अंदर आइए! और डियर दीवा गोयंका को पेपर दिखाइए! यह लड़की इतनी बेवकूफ़ है कि सच इसके साथ आँखों के सामने भी हो, तो फिर भी इसे यकीन नहीं होता है।”

    रक्षित बार-बार दीवा का अपमान कर रहा था। कॉन्ट्रैक्ट के पेपर लेकर मिस्टर पाठक अंदर आ चुके थे। वह दीवा को पेपर दिखाने लगे थे। पेपर पढ़ने के बाद दीवा को सब समझ आ गया था कि कैसे शुरू से ही रक्षित और कनिष्का उसके डैड को ट्रैप करने की कोशिश कर रहे थे।

    दीवा की आँखें नम होने लगी थीं। प्रार्थना ने दीवा का हाथ पकड़कर कहा, “चलो, हम अपना सामान लेकर यहाँ से चलते हैं।”

    जैसे ही दीवा और प्रार्थना अपने कदम बढ़ाने को हुईं, रक्षित ने पीछे से तेज़ आवाज़ में कहा, “एक और चीज़! अपने कपड़ों के अलावा किसी दूसरी चीज़ को हाथ भी मत लगाना, क्योंकि इस घर में रखा हर एक कीमती सामान मेरा है।”

    दीवा और प्रार्थना पूरी तरह टूट चुकी थीं। उन्होंने सोचा था कि वे इस घर को बेचकर नवीन गोयंका को आज़ाद करवा देंगे, लेकिन अब तो उनके खुद के सिर से छत तक छीन गई थी। ऐसे में दीवा कैसे अपने डैड को बाहर निकलवा सकती थी? ऊपर से रक्षित ने सब कुछ फ़ुल प्लानिंग से किया था, तो इससे साफ़ था कि उनकी मुसीबतें यहीं ख़त्म होने वाली नहीं थीं।

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  • 11. Golden trap of billionaire - Chapter 11

    Words: 1639

    Estimated Reading Time: 10 min

    दीवा जैसे-तैसे करके अपनी मां, प्रार्थना के साथ, इस मुसीबत से निकलने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने यही सोचा था कि वह अपना घर और बाकी कीमती चीजें बेचकर अपने पापा को जेल से बाहर निकाल लेंगी, लेकिन इस वक्त उसके बॉयफ्रेंड, रक्षित ने, उसके ऊपर एक नया बम फोड़ दिया था।

    रक्षित न केवल दीवा का बॉयफ्रेंड था, बल्कि वह उनकी कंपनी में मैनेजर भी था। पूरा घोटाला कनिष्का की वजह से हुआ था। कनिष्का और रक्षित मिले हुए थे, इस वजह से रक्षित ने उनके घर पर भी कब्जा कर लिया था। अब वह गोयंका मेंशन से प्रार्थना और दीवा को बाहर निकालने आया था। साथ ही, उसने यह भी कह दिया था कि वे अपने कपड़ों के अलावा किसी दूसरी चीज़ को भी हाथ न लगाएँ।

    दीवा ने गहरी साँस ली और प्रार्थना का हाथ पकड़कर उसे ऊपर ले गई। कुछ ही देर में वे दोनों अपने-अपने कपड़ों के साथ नीचे आ चुकी थीं।

    घर से बाहर निकलने से पहले, प्रार्थना ने एक नज़र घर को देखा तो वह फूट-फूट कर रो पड़ी। ऐसा नहीं था कि दीवा को बुरा नहीं लग रहा था, पर वह अपने इमोशंस को कंट्रोल किए हुए थी।

    दीवा ने प्रार्थना का हाथ पकड़कर सहलाते हुए कहा, “बस कुछ दिनों की बात है, मॉम। हम डैड को बाहर निकाल लेंगे। उसके बाद हम अपने घर को वापस हासिल करेंगे और इस घटिया आदमी को यहां से धक्के देकर बाहर निकालेंगे।”

    दीवा की बात सुनकर रक्षित जोर से हँसा। वह बोला, “यह लड़की सच में बेवकूफ है! इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी इसे यह उम्मीद है कि यह सब कुछ फिर से हासिल कर लेगी। वैसे, तुम चाहो तो यहां रह सकती हो, पर मेरी एक शर्त है।”

    इतना कहकर रक्षित के चेहरे के एक्सप्रेशन सख्त हो गए। वह दीवा के पास आया और उसके गाल को अपनी उंगलियों से सहलाते हुए बोला, “पिछले 4 साल से तुम्हारे साथ रिलेशनशिप में था, तो इतना एहसान तो कर ही सकता हूँ। तुम यहां रह सकती हो, बस बदले में तुम्हें मुझे खुश करना होगा। ट्रस्ट मी, मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा। मैं प्यार करता हूं तुमसे दीवा।”

    रक्षित की बात सुनकर दीवा को इतना गुस्सा आया कि उसका मन किया कि वह रक्षित का मुँह तोड़ दे। उसने अपने दाँत पीसते हुए कहा, “मैं बेवकूफ हूँ, तो तुम बेशर्म हो! तुम्हें क्या लगता है? कल रात तुम्हें उस लड़की के साथ बेड पर देखने के बाद मुझे तुम्हारे प्यार या रिलेशनशिप जैसी बातों पर यकीन होगा?”

    “वह तो मैंने इस प्रॉपर्टी को हासिल करने के लिए किया था। मेरा यकीन करो, मैं उससे ज़्यादा तुम्हें खुश रखूँगा। ठीक है, पहले बदला लेने के लिए मैंने तुमसे प्यार का नाटक किया, पर तुम मुझे धीरे-धीरे अच्छी लगने लगी। तुम्हें हॉस्पिटल में काम भी नहीं करना होगा। देखो, तुम अपने आप को कभी नहीं छुड़ा पाओगी, तो ऐसे में यही सही रहेगा कि तुम मेरे साथ, मेरी मिस्ट्रेस बनकर रहो।” रक्षित ने सिर हिलाकर कहा।

    दीवा के चेहरे पर सार्कास्टिक स्माइल थी। उसने ना में सिर हिलाया और कहा, “फिलहाल तो मेरे पास एक अच्छी जॉब है, लेकिन फिर भी अगर मेरे पास काम नहीं होगा, तो मैं रोड पर झाड़ू लगाना पसंद करूंगी, लेकिन तुम्हारे जैसे घटिया आदमी के लिए पानी का एक गिलास भी नहीं लेकर आऊंगी।”

    दीवा ने रक्षित को धकेलकर खुद से दूर किया और फिर प्रार्थना का हाथ पकड़कर वहाँ से जाने लगी। रक्षित ने गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ बाँध ली थीं।

    अचानक उसकी आँखों के सामने कुछ दृश्य तैरने लगे थे—उसके माता-पिता, जिन्होंने न जाने क्यों एक बड़ी सी बिल्डिंग से खुदकुशी कर ली थी। वह उस वक्त ज़्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन यह किसकी वजह से और क्यों हुआ था, इस बारे में उसे अंदाज़ा था।

    “तुम मुझसे नफ़रत कर रही हो, दीवा गोयंका, जबकि तुम्हें अपने बाप से नफ़रत करनी चाहिए! उनकी वजह से मेरे मॉम-डैड की मौत हुई। मैंने जो हासिल किया है, उस पर मेरा हक़ है। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। अगर कोई गलत और घटिया इंसान है, तो वह तुम्हारा बाप, नवीन गोयंका है।” रक्षित ने मन ही मन कहा।

    उसने दीवा को इसीलिए मोहरा बनाया था ताकि अपने माँ-बाप की मौत का बदला ले सके। रक्षित यही चाहता था कि दीवा उसके पास वापस आ जाए, पर वह तो उसकी तरफ़ देख तक नहीं रही थी।

    गोयंका मेंशन से बाहर आते ही दीवा ने प्रार्थना से कहा, “आई एम रियली सॉरी, मॉम, जो मैं आपके और डैड के लिए कुछ नहीं कर पाई।” दीवा की आँखें नम होने लगी।

    “ऐसा मत कहो, बेटा। इन सब में तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मुझे तो यह डर सता रहा है कि अब हम कहाँ जाएँगे?” प्रार्थना ने चिंतित स्वर में कहा।

    “फिलहाल हम किसी होटल में चलते हैं, उसके बाद कोई फ़्लैट रेंट पर देख लेंगे।” दीवा ने जवाब दिया और अपने मोबाइल से होटल में कमरा बुक करवाया।

    दीवा इंडिया में अभी आई थी और अस्पताल में काम करते हुए उसे ज़्यादा टाइम नहीं हुआ था। वो लोगों से आसानी से घुल-मिल नहीं पाती थी, इस वजह से उसके ज़्यादा दोस्त भी नहीं बने थे, जिससे वह मदद के लिए कॉल कर सके। फिलहाल के लिए, दीवा की प्रायोरिटी बदला लेना या कुछ और करने से ज़्यादा अपनी मां का और खुद का ध्यान रखना था। उनके सर से छत तक छिन गई थी, उन्हें फिर से अपनी लाइफ को स्टेबल करना था।

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    अगले दिन दोपहर बारह बजे के करीब दीवा हॉस्पिटल के चेंजिंग रूम में थी। वह अभी-अभी किसी सर्जरी से बाहर आई थी। उनके साथ जो भी हो रहा था, उसके बारे में दीवा ने किसी को कुछ नहीं कहा, बस वह हमेशा की तरह शांति से अपना काम कर रही थी।

    दीवा हैंड वॉश कर रही थी, तभी उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने पलटकर देखा तो सामने उसकी असिस्टेंट नर्स, सिस्टर लीजा खड़ी थी, जो उम्र में लगभग 35 साल की आसपास थी। लीजा हॉस्पिटल में काफ़ी टाइम से काम कर रही थी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी और वह काफ़ी पॉज़िटिव भी रहती थी।

    उसने दीवा के पास आते ही चहकते हुए कहा, “डॉ. गोयंका, आपने फिर से कमाल कर दिया! कौन कह सकता है कि आप इतनी कम उम्र में भी इतना अच्छे से काम करती हैं।”

    “थैंक यू, सिस्टर। लेकिन यह मैंने अकेले नहीं किया है। पूरी टीम मेरे साथ थी।” दीवा ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा।

    उसके बाद दीवा वापस अपने हाथ धोने लगी। वह थक गई थी क्योंकि उसने लगभग 4 घंटे ऑपरेशन थिएटर में बिताए थे। उसने सुबह नाश्ता भी नहीं किया था।

    दीवा बिल्कुल नॉर्मल थी, लेकिन सिस्टर लीजा कुछ ज़्यादा ही खुश थी। उसने कहा, “नहीं, डॉक्टर। हम सब तो बस आपको असिस्ट कर रहे थे। सब जानते हैं कि आप सीनियर डॉक्टर, यथार्थ मल्होत्रा की टक्कर की हैं। मैंने तो डीन को आपकी तारीफ़ करते हुए भी सुना था। उन्होंने बोला कि इतना टैलेंटेड डॉक्टर आज तक यहां नहीं आया। वह आपको प्रमोशन देने के बारे में कह रहे थे। प्रमोशन मिलने के बाद आप हम सबको पार्टी देंगी ना?”

    “हाँ, मैं आप सबको पक्का एक अच्छी सी पार्टी दूंगी।” दीवा ने मुस्कुराते हुए कहा।

    डॉक्टर यथार्थ मल्होत्रा का ज़िक्र आते ही दीवा उसके बारे में सोचने लगी। वह उसके सीनियर डॉक्टर थे। यह दीवा की खुशकिस्मती या बदकिस्मती कहें कि उसके इतने टैलेंटेड होने की वजह से यथार्थ मल्होत्रा उससे काफ़ी चिढ़ा हुआ रहता था, आखिर उसकी पोज़िशन जो खतरे में आ गई थी। इतनी कम उम्र में भी दीवा अच्छा कर रही थी, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं था।

    उसे याद करने के बाद, दीवा वहाँ से बाहर निकली और चेंज करने के बाद वह अपने केबिन की तरफ़ बढ़ने लगी। उसने अपने पेट पर हाथ लगा रखा था। दीवा को भूख तो लगी थी, पर उसका कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था।

    पिछले दो-तीन दिनों में उसकी दुनिया पूरी तरह बदल गई थी—पहले आर्यांश कपूर के साथ नशे में रात बिताना, तो उसके बाद रक्षित का इस तरह उसे धोखा देना, ऊपर से उनका घर भी छिन गया था, उसके पापा जेल में थे। दीवा कुछ नहीं कर पा रही थी, इस बात की उसे काफ़ी फ्रस्ट्रेशन हो रही थी।

    दीवा कदमों से अपने केबिन की तरफ़ बढ़ रही थी, तभी अचानक किसी की आवाज़ सुनकर वह वहीं पर रुक गई। वह आवाज़ उसे जानी पहचानी सी लग रही थी।

    “सर, मिस्टर सौरभ बजाज इस वक्त हॉस्पिटल में एडमिट है, जो कि हमारे लिए एक अच्छा मौका है। क्यों ना इस मौके का फ़ायदा उठाया जाए और…” वह आदमी बोलते हुए रुक गया, मानो आगे की बात कहने से वह हिचकिचा रहा था।

    दीवा उस आवाज़ को पहचानने की कोशिश कर रही थी, तभी उसे अगली आवाज़ आई, जिसे तो वह किसी भी हाल में नहीं भूलने वाली थी—वह आर्यांश कपूर की आवाज़ थी।

    आर्यांश ने इस वक्त अपने हाथ में सिगरेट पकड़ी हुई थी। उसने एक कश लगाया और अपने दिलकश, लेकिन सर्द आवाज़ में कहा, “अच्छा मौका है, तो फ़ायदा उठाओ ना। जाकर उसे मार दो और ऐसे साबित कर देना जैसे यह सब डॉक्टर की गलती की वजह से हुआ हो। किसी को कानों कान भी भनक नहीं होनी चाहिए।”

    अब दीवा को समझ आ गया था कि वह पास खड़ा आदमी सार्थक खन्ना था। वही सार्थक खन्ना को भी आर्यांश की बात सुनकर झटका सा लगा। वह सौरभ खन्ना को मारने के बारे में नहीं सोच रहा था, जबकि आर्यांश ने बेरहमी से उसे मारने के सीधे-सीधे ऑर्डर दे दिए थे। ऊपर से सारा इल्ज़ाम भी अस्पताल स्टाफ़ और उसकी सर्जरी करने वाले डॉक्टर पर आने वाला था।

    ये सब सुनकर दीवा के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। आर्यंश की ये हरकत उन पर काफी भारी पड़ने वाली थी।

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    फिलहाल के लिए इतना ही। क्या दीवा आर्यंश को रोकेगी? एक बार फिर उनकी मुलाकात होगी। एंड प्लीज आप पढ़कर कमेंट किया करो यार! मुझे कहानी को ट्रेंडिंग में लेकर जाना है।

  • 12. Golden trap of billionaire - Chapter 12

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    दीवा सब कुछ भूलकर अपनी ज़िंदगी को फिर से ट्रैक पर लाने की कोशिश कर रही थी। अगली सुबह, हॉस्पिटल में सर्जरी निपटाने के बाद, दीवा अपने केबिन की ओर बढ़ रही थी, तभी उसने दो लोगों की बातचीत अनजाने में सुन ली। वह दो लोग कोई और नहीं, आर्यांश कपूर और उसका मैनेजर, सार्थक खन्ना थे। उनकी बात सुनकर दीवा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। वह किसी सौरभ बजाज को मारने की बात कर रहे थे!

    दीवा के कदम वही जम गए। वहीं, सौरभ बजाज को मारने की बात सुनते ही सार्थक खन्ना ने हड़बड़ाते हुए कहा, "लेकिन मैंने मारने का नहीं सोचा था। आई मीन, यह ज़्यादा नहीं हो गया? वह आपके सगे मामा हैं। ऊपर से, आपकी मॉम उनके बिना पागल हो जाएंगी। अगर उन्हें कुछ हो गया, तो वह तूफ़ान ले आएंगी।"

    "उसके साथ जो भी हो रहा है, वह वही डिजर्व करता है। हमारी कंपनी में काम करते हुए, वह हमारे पैसे में घोटाला कर रहा था। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। सब कुछ बहुत सावधानी से होगा। ऊपर से, वह हॉस्पिटल में है, तो कोई हमारे बारे में सोच भी नहीं पाएगा कि यह हमने किया है। सारा इल्ज़ाम तो उस डॉक्टर पर जाएगा, जो उसका इलाज कर रहा है।" आर्यांश ने सिर हिलाकर कहा।

    दीवा को यकीन नहीं हो रहा था कि आर्यांश ऐसा कुछ कर सकता है। हालाँकि उसने उसके बारे में काफी कुछ सुना था। अब तक, वह उसके लिए एक बिगड़ा हुआ अमीर बिज़नेसमैन के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन यहाँ तो वह सीधे-सीधे किसी को मारने की प्लानिंग कर रहा था।

    अचानक दीवा के दिमाग में कुछ स्ट्राइक हुआ। उसने धीमी आवाज में खुद से कहा, "मुझे यह 'सौरभ बजाज' नाम इतना सुना हुआ क्यों लग रहा है? कौन है यह? मुझे याद करना ही होगा, और मुझे उसे बचाना होगा।"

    दीवा वहाँ अपने ख़्यालों में खोई हुई थी कि तभी उसका पैर नीचे रखे एक वास से जा टकराया। हालाँकि दीवा अभी भी उधेड़बुन में खोई हुई थी, सौरभ बजाज नाम के शख़्स को याद करने की कोशिश कर रही थी; इस चक्कर में उसका ध्यान नहीं गया। वहीं, आवाज़ सुनकर आर्यांश और सार्थक अलर्ट हो गए थे।

    आर्यांश ने तेज़ और सख़्त आवाज़ में कहा, "कौन है वहाँ?"

    आर्यांश की आवाज़ सुनते ही दीवा का ध्यान टूट गया। उसके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं। वह कुछ कर पाती, उससे पहले ही आर्यांश उसके सामने आ गया था और उसे घूरते हुए देख रहा था। दीवा का मन कर रहा था कि वह कहीं जाकर मर जाए! दो दिन पहले जब वो आर्यांश से मिली थी, तब उसने यही कहा था कि वह कभी गलती से भी नहीं टकराएँगे, अब वह वहाँ खड़ी होकर उनकी बातें सुन रही थी।

    दीवा ने नर्वस चेहरे के साथ आर्यांश के चेहरे की ओर देखा, जिसके चेहरे के भाव काफी सख़्त थे। दीवा ने जल्दी से सिर हिलाकर हड़बड़ाते हुए कहा, "मैंने... मैंने कुछ नहीं सुना।"

    आर्यांश ने देखा, दीवा ने बिना कुछ पूछे ही उसे अपनी सफ़ाई दे दी थी। यह देखकर आर्यांश के चेहरे पर तिरछी मुस्कान आ गई। दीवा की बातों ने खुद ही साबित कर दिया था कि वह उनकी बातें सुन चुकी है। दीवा ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं। इस वक़्त उसे बहुत शर्मिंदगी हो रही थी।

    दीवा ने मन ही मन बड़बड़ाकर कहा, "ओह नो! मेरी किस्मत इतनी बुरी कैसे हो सकती है? यह आदमी फिर से मेरे सामने आ गया, और मैं इससे बात क्यों कर रही हूँ?"

    दीवा अपने ख़्यालों में खोई हुई थी, तभी आर्यांश ने उसके सामने चुटकी बजाई। दीवा का ध्यान टूटा, तो वह हड़बड़ाकर बोली, "मुझे... मुझे कुछ काम है।"

    इतना कहकर दीवा जाने लगी, तभी आर्यांश उसके सामने आ गया था। वह इस वक़्त हॉस्पिटल के 15वें फ़्लोर पर थी। मुंबई का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल होने की वजह से, यह काफी लग्ज़रियस और हर एक सिक्योरिटी से लैस था, फिर भी न जाने क्यों दीवा को वहाँ आर्यांश के सामने डर लग रहा था। शायद उसका औरा ही ऐसा था।

    आर्यांश ने अपनी गर्दन टेढ़ी की और दीवा की आँखों में देखते हुए पूछा, "तुम यहाँ डॉक्टर हो?"

    आर्यांश ने बस ऐसे ही उसे पूछ लिया, जबकि वह उसके बारे में सब कुछ पहले ही पता लगा चुका था।

    "नहीं, मैं डॉक्टर नहीं हूँ।" दीवा ने जवाब दिया। वह नहीं चाहती थी कि आर्यांश उसके पीछे-पीछे हॉस्पिटल में आने लगे।

    "अगर तुम डॉक्टर नहीं हो, तो यह व्हाइट कोट तुमने फैशन शो में जाने के लिए पहना है?" आर्यांश ने सारकास्टिकली कहा।

    "हाँ, फैशन शो में जाने के लिए ही पहना है। मैं एक मॉडल हूँ।" दीवा ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा। वह अंदर से घबराई हुई थी, लेकिन उसने अपने चेहरे से कहीं भी यह ज़ाहिर नहीं होने दिया।

    अगर आर्यांश दीवा से थोड़े और सवाल-जवाब करता, तो शायद वह पकड़ी जाती। यही सोचकर दीवा वहाँ से जाने लगी, तभी आर्यांश ने उसके कंधों को कसकर, मज़बूती से पकड़ लिया था।

    अगर आर्यांश उसे नॉर्मली पकड़ता, तो बात अलग थी, पर इस वक़्त उसने गुस्से में उसे काफी टाइटली पकड़ रखा था। दीवा की आँखें नम होने लगी थीं।

    आर्यांश ने दीवा की आँखों में देखते हुए, सर्द आवाज़ में कहा, "बेवकूफ़ लगता हूं मैं तुम्हें? चलो, अब सीधे-सीधे बताओ क्या सुना तुमने?" आर्यांश ने गुस्से में गहरी साँस ली और फिर आगे कहा, "मुझे सख़्त चिढ़ है जब लोग मुँह पर झूठ बोलते हुए, खुद को मासूम दिखाने की कोशिश करते हैं।"

    "तुम मुझे डरा रहे हो! मैंने कहा ना, मैंने कुछ नहीं सुना। मैं बस यहाँ से गुज़र रही थी, और मेरा पैर इस वास से टकरा गया।" दीवा ने काँपती आवाज़ में कहा।

    दीवा मासूमियत से उसकी तरफ़ देखने लगी, ताकि आर्यांश उस पर यकीन कर ले। वह मन ही मन बोली, "अब तो तुम मेरी जान भी ले लोगे, तब भी मैं यह एक्सेप्ट नहीं करूँगी कि मैंने तुम्हारी बातें सुन ली हैं। अगर मैंने सच एक्सेप्ट कर लिया, तो मैं उस इंसान को कभी नहीं बचा पाऊँगी।"

    दीवा की बात सुनते ही आर्यांश ने उसे एक झटके में छोड़ दिया था, जिससे वह कुछ कदम लड़खड़ा गई। आर्यांश ने उसकी तरफ़ घूरकर देखते हुए कहा, "ठीक है, तुमने कुछ नहीं सुना। लेकिन अगर मुझे तुम्हारे सच का पता चला, तो उसके बाद मुझे दोष मत देना कि तुम्हारे साथ क्या हो गया। वैसे भी, हम अजनबी हैं, और जो अजनबी मेरी बातें सुनता है और मेरे ख़िलाफ़ एक्शन लेने का सोचता है, मैं उसका बहुत बुरा हाल करता हूँ।"

    आर्यांश की बातें दीवा को डरा रही थीं। उसने मुट्ठियाँ कसकर बंद कर लीं और खुद की आवाज़ को सख़्त करके कहा, "यह हॉस्पिटल है, और तुम मुझे खुलेआम धमकी नहीं दे सकते हो।"

    "तुम्हारे इस हॉस्पिटल को मैं शाम तक खरीदकर बंद भी करवा सकता हूँ। आगे तुम्हें कुछ कहना है, मिस दीवा गोयंका?" आर्यांश ने भौंहें चढ़ाकर कहा।

    "अगर तुम इतने ही अमीर और पावरफुल हो, तो यहाँ खड़े होकर क्या कर रहे हो? तुम्हें बस बड़ी-बड़ी बातें करना आता है। अपना काम करो ना! बिज़ी लोगों के पास टाइम नहीं होता है।" दीवा ने धीमी आवाज में जल्दी जल्दी बोलते हुए जवाब दिया।

    "तुम मुझ पर सवाल उठा रही हो?" आर्यांश उसके करीब बढ़ते हुए बोला, तो दीवा जल्दी से कुछ कदम पीछे हट गई।

    "मैं तुम पर कोई सवाल नहीं उठा रही हूँ। पर तुम इस तरह मुझे डरा-धमका नहीं सकते हो।" दीवा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।

    "अच्छा, तो मैं तुम्हें डरा-धमका रहा हूँ? चलो फिर, अच्छे से बताते हैं कि डराया और धमकाया कैसे जाता है।" आर्यांश आगे बढ़ा और अपना हाथ उठाकर दीवा की गर्दन की तरफ़ बढ़ाने लगा। तभी दीवा के चेहरे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं।

    दीवा ने जल्दी से अपना हाथ उठाया और वहाँ लगे कैमरे की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "अगर तुमने कुछ भी किया, तो वह रिकॉर्ड हो जाएगा।"

    कैमरे का ज़िक्र सुनते ही आर्यांश ने अपने हाथ नीचे कर दिए थे। वह खुलेआम ऐसे ही किसी डॉक्टर पर हमला नहीं कर सकता था।

    "तो तुम मुझे कैमरे का नाम लेकर डरा रही हो? तुम्हें मुझसे दुश्मनी मोल लेनी है, दीवा गोयंका?" आर्यांश ने सिर हिलाकर पूछा।

    दीवा ने जल्दी से ना में सिर हिला दिया था। वह तो उससे बचने की कोशिश कर रही थी, वह क्यों आर्यांश से दुश्मनी मोल लेगी?

    दीवा ने गहरी साँस ली और कहा, "देखिए मिस्टर कपूर, आपको कोई गलतफ़हमी हुई है। मैंने कहा ना, मैंने आपकी कोई बात नहीं सुनी है, तो प्लीज़ मुझे जाने दीजिए।"

    "बिल्कुल, तुम्हें ऐसे ही बिहेव करना है। अगर तुमने कुछ सुना भी है, तो सबको यही बताना है कि तुमने कुछ नहीं सुना। एक बार फिर से मेरे रास्ते में आई, तो उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।" आर्यांश ने सर्द आवाज़ में कहा और फिर सार्थक को अपने साथ आने का इशारा किया।

    आख़िरकार आर्यांश ने दीवा को छोड़ दिया था, तो वह भागते हुए अपने केबिन की ओर जाने लगी। उसकी यह हरकत देखकर आर्यांश के चेहरे पर सारकास्टिक स्माइल आ गई थी।

    वहीं दीवा, जो आर्यांश से मुश्किल से बचकर निकली थी, अब उसे सौरभ बजाज को ढूँढकर उसे भी बचाना था।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    अगर दीवा ने आर्यांश से पंगा लेते हुए सौरभ बजाज को बचाने की कोशिश की, तो पक्का वह आर्यांश की नज़रों में आ जाएगी। देखते हैं क्या होता है! वैसे, दीवा ने एक बार ही कहा था कि हम एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं, और आर्यांश ने उसे ज़्यादा ही सीरियसली ले लिया। खैर, कोई नहीं! अगले पार्ट पर मिलते हैं। पढ़कर रेटिंग और कमेंट किया करो।

  • 13. Golden trap of billionaire - Chapter 13

    Words: 1660

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्यांश ने दीवा को उसकी बातें सुनते हुए पकड़ लिया था। दीवा ने जैसे-तैसे बहाना बनाया और आर्यांश के साथ एक लंबी बहस करने के बाद अपने केबिन में आ गई थी। केबिन के अंदर आते ही दीवा ने एक फाइल खोल रखी थी, जिसके अंदर पेशेंट का डेटा था।

    इस वक्त दीवा के दिमाग में एक ही नाम चल रहा था, और वह था सौरभ बजाज का। वह किसी भी हाल में उस आर्यांश कपूर से बचाना चाहती थी।

    नाम ढूँढते हुए, अचानक दीवा का हाथ एक नाम पर रुक गया था, जिसे देखते ही उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई थीं।

    दीवा चौंकते हुए कहा, “अरे नहीं! यह कैसे हो सकता है? यह तो वही पेशेंट है जिसकी सुबह मैंने सर्जरी की थी। आर्यांश सारा इल्ज़ाम डॉक्टर और अटेंडिंग टीम पर लगाना चाहता है। यह सर्जरी तो मैंने की थी! तो क्या सारा एग्ज़ाम मेरे ऊपर आने वाला है?”

    दीवा परेशानी में सर पकड़कर बैठ गई थी। तभी वहां एक नर्स आई। नर्स नव्या, उम्र में उसी के बराबर थी। पूरे अस्पताल में अकेली नव्या थी, जिसके साथ दीवा थोड़ा खुलकर बात कर पाती थीं।

    दीवा परेशानी में वहाँ बैठी हुई थी, तभी नव्या एक खाने के बॉक्स के साथ वहाँ आई। केबिन के अंदर आते हुए, नव्या ने डाँटने के अंदाज़ में कहा, “यहाँ सब जानते हैं आप एक काबिल डॉक्टर हो, और आपने सर्जरी भी काफी अच्छे से की है। पर इस तरह खुद की हेल्थ को अंडरएस्टीमेट करना भी सही नहीं है, डॉक्टर गोयंका। आपने कुछ नहीं खाया है ना?”

    हालाँकि दीवा नव्या से हर लिहाज़ में सीनियर थी, पर फिर भी फ़्रेंडशिप होने की वजह से वह अकेले में उससे थोड़ा कैजुअली बात कर लिया करती थी।

    दीवा ने नम आँखों से नव्या की तरफ़ देखा। उसे सच में बहुत भूख लगी थी, लेकिन आर्यांश के साथ बहस होने के बाद से वह खाना खाना जैसे भूल ही गई थी। ऊपर से, जब से पता चला था कि सौरभ बजाज उन्हीं का पेशेंट है, दीवा की भूख उड़ गई थी।

    दीवा ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए उसके हाथ से बॉक्स लेते हुए कहा, “थैंक यू सो मच, नव्या! मुझे बहुत भूख लगी थी।” बोलते हुए उसने नव्या को सामने बैठने का इशारा किया।

    इतना कहकर दीवा खाना खाने लगी थी। वहीं उसे खाते देखकर नव्या ने मुस्कुरा कर कहा, “मुझे लगा ही था हम हमेशा साथ में लंच करते हैं। आप वहाँ पर नहीं आईं तो मैंने डॉक्टर अंसारी से पूछा था। उन्होंने बताया कि आपकी सर्जरी है, तो मैं आपके लिए खाना लेकर आ गई।”

    नव्या दिखने में काफी क्यूट थी, और उसे गॉसिप करना काफी अच्छा लगता था। नव्या को अस्पताल और बाकी सारी जानकारी होती थी। यह सोचकर दीवा ने उससे पूछा, “क्या तुम जानती हो यह सौरभ बजाज कौन है?”

    दीवा का सवाल सुनकर नव्या उसे अजीब नज़रों से देखने लगी। उसने आइज़ रोल करके कहा, “क्या सच में आप सौरभ बजाज को नहीं जानती? वह कपूर इंटरनेशनल्स के जनरल मैनेजर हैं।”

    “अच्छा, मैं उनके बारे में नहीं जानती थी।” दीवा ने खुद को सामान्य दिखाते हुए जवाब दिया। फिर वह आगे बोली, “फिर तो यह वही पेशेंट हुए ना जिसकी सुबह मैंने सर्जरी की थी?”

    “हाँ, यह वही है।” नव्या बोली। फिर वह उसके बारे में आगे बताने लगी, “कपूर इंटरनेशनल का सीईओ आर्यांश कपूर है। यह उसका मामा लगता है। यह हमारी खुशकिस्मती है जो उसे विदेश के किसी अस्पताल में ना ले जाकर यहीं पर लाया गया। उनका बैकग्राउंड काफी स्ट्रॉन्ग है। आर्यांश कपूर को कौन नहीं जानता!”

    ऐसा लग रहा था जैसे दीवा नव्या से आर्यांश के बारे में कुछ और पूछती, तो वह लगातार बिना रुके कई घंटे बात कर सकती थी। वहीं उसकी बात सुनकर दीवा सकते में आ गई थी। अगर सौरभ आर्यांश का मामा था, तो वह उसे मारना क्यों चाहता था? हालाँकि यह बात सार्थक ने भी पहले कही थी, पर दीवा अपने ख्यालों में इतना खोई थी कि उसने सार्थक की बातों पर ध्यान नहीं दिया।

    दीवा ने मन ही मन बड़बड़ाकर कहा, “अजीब बात है! लोग कितने बुरे हो सकते हैं जो अपने ही मामा को मारने की कोशिश कर रहे हैं।”

    दीवा अपने ख्यालों में खोई हुई थी, तभी नव्या ने उसका हाथ पकड़कर हिलाया, जिससे दीवा का ध्यान टूटा।

    नव्या ने उससे कहा, “क्या हुआ मैम? आप परेशान लग रही हो। सब ठीक है ना?”

    “कुछ नहीं। मैं बस मिस्टर बजाज के बारे में सोच रही थी। हमें उन्हें क्रिटिकल आईसीयू में शिफ्ट कर देना चाहिए।” दीवा ने जवाब दिया।

    “क्या उनकी हालत इतनी खराब है कि उन्हें क्रिटिकल आईसीयू की ज़रूरत पड़ रही है?” नव्या ने परेशान स्वर में पूछा।

    क्रिटिकल आईसीयू में अक्सर उन पेशेंट को शिफ्ट किया जाता था जिनकी हालत सर्जरी के बाद काफी बिगड़ जाती थी, या वह कोमा तक में पहुँच जाते थे।

    “हाँ, वह थोड़ा लेट रिकवर कर रहे हैं। ऊपर से तुमने बताया ना कि वह आर्यांश कपूर के मामा हैं, तो हमें उनका खास ध्यान रखना चाहिए। अब इतने बड़े आदमी की तबीयत बिगड़े तो हमारे हॉस्पिटल पर बात आ सकती है।” दीवा ने जवाब दिया, जिस पर नव्या ने आसानी से यकीन कर लिया था।

    दीवा जल्दी से खड़ी हुई और नव्या के साथ जाकर सौरभ बजाज को क्रिटिकल आईसीयू में एडमिट करने की तैयारी करने लगी।

    वहीं दूसरी तरफ़, आर्यांश इस वक्त कपूर इंटरनेशनल में अपने केबिन में बैठकर कुछ पेपर पर साइन कर रहा था। इसी बीच सार्थक खन्ना उसके पास आया।

    सार्थक ने आर्यांश के सामने आकर धीमी आवाज़ में कहा, “सर, एक बुरी खबर है। हम अपना काम नहीं कर पाएँगे क्योंकि हॉस्पिटल से कॉल आया था कि मिस्टर बजाज को क्रिटिकल आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। जनरली आईसीयू में पेशेंट के घरवालों को मिलने की इजाज़त फिर भी मिल जाती है, लेकिन क्रिटिकल आईसीयू में यह इम्पॉसिबल है। लगता है उनकी हालत ठीक नहीं है।”

    “अच्छा, ऐसा है क्या?” आर्यांश ने बेपरवाही से कहा। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई, मानो वह समझ गया हो कि यह किसने और क्यों किया था।

    अपनी बात कहकर आर्यांश उठकर कमरे से बाहर जाने को हुआ, तभी सार्थक ने पीछे से कहा, “सर, हमें एक मीटिंग के लिए बाहर जाना होगा।”

    “कैंसिल कर दो, क्योंकि मैं हॉस्पिटल जा रहा हूँ।” आर्यांश ने उसकी तरफ़ बिना देखे कहा, और फिर अपने केबिन से इस फ़्लोर पर बने अपने प्राइवेट रूम में चला गया।

    उसने चेंज करके डस्की ब्लू कलर का कस्टम-मेड सूट पहना था, जो आज ही डिजाइन होकर आया था। आर्यांश इस वक्त ऐसे तैयार हो रहा था, जैसे किसी डेट पर जा रहा हो। चेंज करने के बाद उसने अपने बालों को सेट किया और अपना फ़ेवरेट महँगा परफ़्यूम लगाया। उसके बाद आर्यांश हॉस्पिटल जाने के लिए निकल गया।

    वहीं अस्पताल में सौरभ बजाज को क्रिटिकल आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था। उसकी जाँच करने के लिए दीवा उसके वार्ड में गई हुई थी।

    इस बीच आर्यांश वहाँ पर पहुँचा। वह अपने कदम सीधे क्रिटिकल आईसीयू की तरफ़ बढ़ा रहा था कि पीछे से नव्या दौड़ती हुई आई, और उसने हाँफते हुए कहा, “रुक जाइए, मिस्टर कपूर! आप अंदर नहीं जा सकते हैं।”

    नव्या दौड़ते हुए आर्यांश के पास आ गई थी। उसे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसका ड्रीम मैन उसकी आँखों के सामने खड़ा है। वह उसके खूबसूरत चेहरे को गौर से देखने लगी।

    दीवा चेकअप करके कमरे से बाहर आई। उसकी नज़रें आर्यांश से मिल गईं। दीवा को मन ही मन डर लग रहा था कि कहीं उसका झूठ पकड़ा ना जाए। उसने सौरभ को बचाने के लिए उसे जानबूझकर क्रिटिकल आईसीयू में शिफ्ट करवाया था।

    आर्यांश ने एक नज़र दीवा की तरफ़ देखा और बिना कुछ कहे अपने कदम सीधे अंदर की तरफ़ बढ़ाने लगा।

    दीवा आर्यांश से बात नहीं करना चाहती थी, फिर भी उसने पीछे से तेज आवाज़ में कहा, “मिस्टर कपूर! आप पेशेंट के रूम में नहीं जा सकते हैं।” मुश्किल से ही सही, लेकिन उसने आर्यांश को अंदर जाने से रोक लिया था।

    आर्यांश उसकी तरफ़ पलटा और बेपरवाही से बोला, “मुझे मेरे मामा को देखने के लिए जाना है। आपको कोई प्रॉब्लम है, डॉक्टर?”

    आर्यांश सबके सामने ऐसे रिएक्ट कर रहा था जैसे वह दीवा को जानता ही ना हो। उसका बर्ताव हमेशा दीवा को हैरानी में डाल देता था। वह इतनी जल्दी से अपने चेहरे के एक्सप्रेशन बदल लेता था कि सामने वाला कंफ़्यूज़ हो जाता था। यही हाल दीवा का था। आज सुबह वह सौरभ को मारने का प्लान कर रहा था, तो अब उससे मिलने के लिए उसकी परवाह जताते हुए अस्पताल तक आ गया था।

    दीवा ने गहरी साँस ली और खुद को मज़बूत करके कहा, “मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, लेकिन उसकी हालत क्रिटिकल है। अस्पताल के रूल्स के हिसाब से उनके फ़ैमिली मेंबर्स भी उनसे नहीं मिल सकते हैं।”

    दीवा के मना करने के बाद आर्यांश उसके पास आया और कंधे उचकाते हुए बोला, “अजीब बात है, डॉक्टर गोयंका! रूल्स हम इंसान ही बनाते हैं, तो वह सबके लिए अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? आप उनके कमरे में जा सकती हैं और मैं नहीं जा सकता? मैं उनसे मिलकर रहूँगा। वह मेरे फ़ैमिली मेंबर हैं और मुझे उनकी परवाह है। रही बात रूल्स फ़ॉलो करने की, तो मैं खुद को डिसइन्फ़ेक्ट करने के बाद ही अंदर जाऊँगा।”

    “रूल्स रूल्स‌ ही होते हैं, और हर लोगों के लिए अलग-अलग हीं बनाए जाते हैं। अगर आपने फिर भी मेरी बात नहीं सुनी, मिस्टर कपूर, तो मैं यहाँ सिक्योरिटी बुला लूँगी।” दीवा ने सख्ती से कहा। वह किसी भी हाल में आर्यांश को अंदर नहीं जाने दे सकती थी। क्या पता आर्यांश वहाँ मिस्टर बजाज को मारने के इरादे से आया हो।

    नव्या हैरानी से दीवा और आर्यांश की तरफ़ देख रही थी, जो दोनों एक-दूसरे के बिल्कुल करीब खड़े हुए थे और एक-दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से देख रहे थे।

    आर्यांश कपूर कौन था, यह सब जानते थे, और कोई उसे रोकने की हिम्मत नहीं रखता था। सब जानने के बावजूद भी दीवा आर्यांश को अंदर जाने से रोक रही थी, बगैर सोचे कि उसका अंजाम क्या हो सकता है।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

  • 14. Golden trap of billionaire - Chapter 14

    Words: 1480

    Estimated Reading Time: 9 min

    सौरभ बजाज को आर्यांश से बचाने के लिए दीवा ने, उसकी हैल्थ को क्रिटिकल बताते हुए, उसे क्रिटिकल आईसीयू में शिफ्ट करवा दिया था। आर्यांश, सौरभ से मिलने के लिए हॉस्पिटल आया हुआ था; इस वक्त दीवा और आर्यांश के बीच जंग छिड़ी हुई थी।

    दीवा, हॉस्पिटल के रूल्स और रेगुलेशन का हवाला देते हुए, आर्यांश को अंदर जाने से मना कर रही थी। आर्यांश ने उसकी नहीं सुनी, तो दीवा ने सिक्योरिटी बुलाने की धमकी दी।

    आर्यांश ने उसकी धमकी को अपने इगो पर लेते हुए, सख्त आवाज़ में कहा, “ओह, रियली? तो तुम अब सिक्योरिटी को बुलाओगी। ठीक है, ट्राई करके देख लेते हैं। सिक्योरिटी छोड़ो, ऐसा करो कि तुम अपने हॉस्पिटल के डीन को यहाँ बुला लो। फिर देखते हैं यहाँ से कौन जाता है।”

    आर्यांश के एटीट्यूड से दीवा समझ गई थी कि उसे इस तरह डरा-धमका कर हैंडल नहीं किया जा सकता। दीवा ने अपना लहजा नरम करते हुए, प्यार से कहा, “देखिए सर, उनकी हालत ठीक नहीं है। मैं आपको मिलने से मना नहीं कर रही हूँ। कुछ दिनों में, जब वह ठीक हो जाएँगे, तब आप उनसे मिल सकते हैं। प्लीज़, रूल्स फॉलो कीजिए।”

    आर्यांश को रोकने के लिए दीवा को जो भी समझ आ रहा था, वह वो कर रही थी। उसके हिसाब से, आर्यांश वहाँ अच्छे इरादों से नहीं आया था। अगर उसने उनकी बातें नहीं सुनी होतीं, तो उसे क्या फर्क पड़ता था कि सौरभ बजाज से कौन मिलने आता है या कौन नहीं।

    उसकी बात सुनकर आर्यांश ने कंधे उचकाए और फिर वहाँ लगी चेयर पर बैठते हुए कहा, “ठीक है, फिर मैं यहाँ पर उनके ठीक होने का इंतज़ार करूँगा।”

    दीवा को अब कुछ-कुछ उसके इरादे समझ आ रहे थे। वह कपूर इंटरनेशनल्स का सीईओ था; उसके पास इतना फ़्री टाइम कैसे हो सकता था? ज़रूर वह उसे परेशान करने के लिए वहाँ पर आया था। यह समझते ही दीवा ने फ़्रस्ट्रेशन से अपनी आँखें बंद कर ली।

    वहाँ ड्यूटी की ज़िम्मेदारी नव्या की थी। दीवा जानती थी कि उसके जाते ही नव्या को मना कर, आर्यांश ज़रूर अंदर चला जाएगा।

    दीवा ने नव्या की तरफ़ देखकर कहा, “नव्या, तुम जाकर अपना काम करो, मैं इन्हें देखती हूँ।”

    “ठीक है, डॉक्टर गोयंका, लेकिन फिर भी आपको किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े, तो मुझे बुला लीजिएगा।” नव्या ने जवाब दिया और फिर अफ़सोस भरे भाव से आर्यांश की तरफ़ देखा। वह उसका क्रश था; उसकी आँखों के सामने था, फिर भी उसे बात करने का मौका नहीं मिल रहा था।

    नव्या वहाँ से चली गई थी। उसके जाते ही आर्यांश ने दीवा की तरफ़ घूरकर देखते हुए कहा, “तुमने तो कहा था कि तुम यहाँ पर डॉक्टर नहीं हो?”

    आर्यांश के बोलने का लहजा दीवा को डरा रहा था। एक दिन में वह उसे दूसरी बार मिल रही थी, और दूसरी बार वह उसका झूठ पकड़ रहा था।

    आर्यांश को सीधा जवाब देने के बजाय, दीवा ने बातचीत का रुख बदलते हुए, हड़बड़ाकर कहा, “अगर तुम पेशेंट से मिलना चाहते हो, तो मैं तुम्हारे साथ अंदर चलूँगी। लेकिन अगर तुम्हारी वजह से पेशेंट को कुछ भी हुआ, तो उसके रिस्पॉन्ससिबल तुम रहोगे।”

    “ओह, रियली? और इसका रिस्पॉन्ससिबल मैं कैसे रहूँगा? तुम कुछ भी बकवास बोल रही हो। अगर पेशेंट को इंफेक्शन हुआ, तो उसका रिस्पॉन्ससिबल हॉस्पिटल होगा।” आर्यांश बोला।

    “हॉस्पिटल इसका रिस्पॉन्ससिबल नहीं रहेगा, क्योंकि हम अपने सेफ़्टी और सफ़ाई का पूरा ध्यान रखते हैं। तुम ज़िद करके अंदर जाना चाहते हो; तुम रूल्स एंड रेगुलेशन्स फ़ॉलो नहीं कर रहे हो, तो रिस्पॉन्ससिबल भी तुम ही होंगे, मिस्टर आर्यांश कपूर।” दीवा ने उसे वॉर्निंग फ़िंगर दिखाते हुए कहा।

    जो दीवा थोड़ी देर पहले आर्यांश से डर रही थी, वह अब उसे धमकी देने लगी। उसकी हिम्मत सच में बढ़ती जा रही थी; अब तो वह सीधा आर्यांश से सवाल-जवाब करने लगी थी।

    “हॉस्पिटल इसलिए रिस्पॉन्ससिबल रहेगा, क्योंकि मैं खुद को डिसइनफ़ेक्ट करके अंदर जाऊँगा। फिर भी पेशेंट को इंफेक्शन हुआ, तो या तो तुम्हारे हॉस्पिटल में प्रॉब्लम है या फिर यहाँ की सफ़ाई में। अब समझ में आया, डॉक्टर?” आर्यांश ने पूरी चालाकी से जवाब दिया।

    दीवा की इतनी कोशिश करने के बाद भी वह आर्यांश को मुक़ाबला नहीं दे पा रही थी। उसने हार मानते हुए कहा, “चेंजिंग रूम उधर है।”

    आर्यांश के चेहरे पर विक्ट्री स्माइल थी, और वह चेंजिंग रूम की तरफ़ चला गया। दीवा उस कमरे के बाहर खड़ी हुई थी; इस वक्त उसे काफ़ी अजीब लग रहा था। वह पिछले 3 महीने से इस हॉस्पिटल में काम कर रही थी। उसकी काबिलियत को देखकर डॉक्टर यथार्थ मल्होत्रा और बाकी जलने वाले लोगों ने उसे हटाने की कोशिश भी की, पर वह शांति से अपना काम कर रही थी। पर जब से आर्यांश आया था, ऐसा लग रहा था कि उसकी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।

    खुद को डिसइनफ़ेक्ट करने के बाद आर्यांश बाहर आया और उसने दीवा को अपने साथ चलने का इशारा किया। क्रिटिकल आईसीयू में पहुँचने के बाद आर्यांश ने एक नज़र दीवा की तरफ़ देखा, जिसके माथे पर पसीने की बूँदें थीं।

    आर्यांश उसे देखकर तिरछा मुस्कुराया और बोला, “क्या बात है, डॉक्टर गोयंका? एक एयर कंडीशनर रूम में तुम्हें पसीना आ रहा है? डर लग रहा है तुम्हें मुझसे?”

    “ऐसा कुछ नहीं है।” दीवा ने जल्दी से अपने माथे पर उभरी पसीने की बूंदों को साफ़ करते हुए कहा।

    आर्यांश ने आगे कुछ नहीं कहा और उसे देखकर एक अजीब सी मुस्कराहट दी। दीवा को उसके साथ उस कमरे में बहुत अजीब लग रहा था; वहाँ घड़ी की टिक-टिक के अलावा और कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।

    अंदर आने के बाद आर्यांश एकटक सौरभ बजाज की तरफ़ देख रहा था। अचानक उसने इस ख़ामोशी को तोड़ते हुए, सर्द आवाज़ में कहा, “यह मरने वाला है।”

    आर्यांश जिस तरह उसे घूर कर देख रहा था, उसका बस चलता तो वह अपनी नज़रों से ही उसे इस वक्त मार देता।

    वही, आर्यांश की बात सुनकर दीवा चौंक गई थी। उसने हड़बड़ाते हुए जल्दी से पूछा, “तुम... तुम यहाँ क्या करने की सोच रहे हो? देखो, कोई बेवकूफी मत करना; यहाँ हर तरफ़ कैमरे लगे हुए हैं।”

    “तुम इतना क्यों घबरा रही हो? क्या तुम्हें डर है कि मैं इसे मार दूँगा?” आर्यांश ने सार्कैस्टिकली मुस्कुराते हुए पूछा।

    उसकी बात सुनकर दीवा के शरीर में एक सिहरन सी महसूस हुई। ना जाने क्यों उसे आर्यांश के सामने इतना डर लग रहा था। उसका और ही ऐसा था।

    दीवा ने तुरंत ना में सिर हिलाकर कहा, “तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे; यह तुम्हारे सगे मामा हैं, और मामा माँ के समान होते हैं।”

    “हाँ, मेरे सगे प्यारे चाचा।” आर्यांश ने जवाब में इतना ही कहा।

    दीवा उसके चेहरे की तरफ़ गौर से देख रही थी। कौन जानता था कि उनके बीच ऐसा क्या हुआ था जो आर्यांश उनसे इतनी नफ़रत करता था? कोई भतीजा अपने ही मामा को जान से क्यों मारना चाहेगा? यह बात दीवा को थोड़ी हैरान कर रही थी।

    वह वहाँ खड़ी होकर सोच रही थी, तभी आर्यांश ने अचानक पूछा, “इससे कब तक होश आएगा?”

    “दो या तीन दिन का टाइम लग सकता है। उनकी पूरी देखभाल करने की ज़रूरत है।” दीवा ने जवाब दिया।

    “तब तो मेरे प्यारे मामा ने डॉक्टर गोयंका का काम बढ़ा दिया। ठीक है, फिर इनका अच्छे से ध्यान रखना; कहीं ये मर ना जाए।” आर्यांश ने भौंहें चढ़ाकर कहा और फिर अपने क़दम बाहर की तरफ़ बढ़ा दिए थे। दीवा उसके पीछे-पीछे आ रही थी।

    बाहर आते ही दीवा ने सौरभ बजाज की सिक्योरिटी के लिए दो नर्स को छोड़ दिया था। आर्यांश वहाँ से जा चुका था, तो दीवा भी बेफ़िक्र होकर अपने काम में लग चुकी थी।

    पूरे दिन काम करते हुए दीवा आर्यांश के बारे में सोचती रही। उसकी पर्सनैलिटी ही कुछ ऐसी थी कि कोई उसके आस-पास होता था, तो उसके बातचीत करने के लहजे से उसे खुद ही घबराहट होने लगती थी। वह काफ़ी रहस्यमयी तरीके से बात करता था।

    “मैं उसके बारे में इतना सोच रही हूँ। ऐसे लोगों की ना दोस्ती अच्छी होती है और ना ही दुश्मनी। अच्छा हुआ जो मैंने उसे अजनबी बनने को कह दिया, और वह मेरी बात को फ़ॉलो भी कर रहा है। सौरभ बजाज के डिस्चार्ज होने तक मुझे उसका ध्यान रखना है; उसके बाद वह उसके साथ कुछ भी करे, हॉस्पिटल या मेरी रिस्पॉन्ससिबिलिटी नहीं होगी।” दीवा ने मन ही मन कहा।

    शाम को काम ख़त्म करने के बाद दीवा अपने पापा से मिलने के लिए जेल गई हुई थी। जब वह वहाँ पर पहुँची, तो ठीक उसी वक्त आर्यांश की गाड़ी वहाँ आकर रुकी। जब आर्यांश ने दीवा को पीछे से वहाँ देखा, तो उसकी निगाहें सर्द होने लगी थीं। वही, आर्यांश की मौजूदगी से अनजान दीवा अपने क़दम अंदर बढ़ा रही थी।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    फिलहाल के लिए इतना ही। एक ओर चैप्टर लाइन में है, तो दोनों पार्ट्स को पढ़कर कमेंट कीजियेगा। आर्यांश दीवा के पीछे वहाँ पर आया है या अपने ही किसी काम से? वैसे, आर्यांश और दीवा का एक साथ होना इत्तेफ़ाक किसी तरह नहीं है। पढ़कर प्लीज़ कमेंट कर दीजिएगा। अगले चैप्टर पर मिलते हैं।

  • 15. Golden trap of billionaire - Chapter 15

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    हॉस्पिटल में अपना काम निपटाने के बाद, दीवा घर जाने के बजाय सीधा पुलिस स्टेशन में अपने डैड, नवीन गोयंका से मिलने गई। वही इस वक्त किसी काम के सिलसिले में आर्यांश भी जेल आया हुआ था। दीवा को वहाँ देखकर आर्यांश के चेहरे के सर्द हो गए।

    वहीं, दीवा आर्यांश की मौजूदगी से अनजान, सीधा अपने पापा से मिलने के लिए मीटिंग रूम में पहुँची। दीवा ने उन्हें देखा तो उसकी आँखें नम हो गईं। नवीन के शरीर पर चोट के निशान थे; वह थके हुए लग रहे थे। उनका चेहरा पीला पड़ गया था, लेकिन फिर भी दीवा को देखकर उनके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई।

    नवीन के चेहरे पर मुस्कान देखकर दीवा अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर पाई। उसने कभी नहीं सोचा था कि अपने डैड से मिलने के लिए उसे जेल जैसी जगह पर आना पड़ेगा। ऊपर से, उन्हें तकलीफ न हो, यह सोचकर वे अपने दर्द को मुस्कान के पीछे छिपाने की कोशिश कर रहे थे।

    दीवा जल्दी से उनके पास गई और उनके गले लग गई। उसने सुबकते हुए कहा, “डैड, मुझे माफ़ कर दीजिए, मैं आपके लिए कुछ नहीं कर पाई।”

    दीवा को रोते हुए देखकर नवीन जल्दी से उससे अलग हुए। उन्होंने दीवा के आँसुओं को साफ़ करते हुए प्यार से कहा, “मैं ठीक हूँ, तुम बेवजह रो रही हो। जब सब साबित हो जाएगा, तो मैं बाहर आ जाऊँगा। तुम तो मेरी स्ट्राँग बेटी हो, फिर तुम क्यों रो रही हो?”

    इतनी तकलीफ में भी नवीन के चेहरे पर अभी भी हल्की मुस्कुराहट थी। दीवा उनकी चोटों की ओर देख रही थी। वह समझ सकती थी कि नवीन से सच उगलवाने के लिए ज़रूर उन्हें मारा-पीटा होगा। उसके होते हुए उसके पिता को इस तरह जेल में रहना पड़ रहा था, यह सोचकर दीवा की साँसें भारी होने लगीं।

    “यह सब मेरी वजह से हो रहा है। मैं किसी काम की नहीं हूँ। आपके लिए कुछ नहीं कर पा रही, डैड।” दीवा ने भरी आवाज़ में कहा।

    दीवा की परेशानी का कारण नवीन समझ सकते थे। उनकी चोटों के निशानों की वजह से शायद दीवा को और ज़्यादा बुरा लग रहा था।

    नवीन ने दीवा का गाल सहलाया और कहा, “आगे से यह कभी मत कहना कि तुम किसी काम की नहीं हो। तुम एक डॉक्टर बन गई हो, और तुममें इतनी काबिलियत है कि तुम लोगों की जान बचा सकती हो। मेरी बेटी महान काम करने के लिए पैदा हुई है। मुझे पता है तुम इसलिए रो रही हो क्योंकि मेरे माथे और बाकी जगह पर चोट के निशान हैं। कल मेरा पैर फिसल गया था, इस वजह से यह चोट आ गई थी। मैं ठीक हूँ, बेटा, तुम्हें टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है।” नवीन दीवा को समझाने लगे ताकि उसके दिल पर किसी तरह का बोझ न रहे।

    “काश मैं डॉक्टर बनने के बजाय बिज़नेस जॉइन कर लेती, तो मुझे पता रहता कि कौन सी चीज़ों को कैसे हैंडल किया जाता है। फिर भी आप फ़िक्र मत कीजिए, मैं आपको यहाँ से जल्द से जल्द बाहर निकलवा लूँगी।” दीवा ने जवाब दिया।

    नवीन ने प्यार से उसके बालों को सहलाया। उनके पास मिलने के लिए ज़्यादा समय नहीं था। नवीन को ले जाने के लिए काँस्टेबल आ चुके थे। जाने से पहले नवीन ने दीवा को अपना और अपनी माँ का ख्याल रखने को कहा। उनके जाते ही दीवा वहीं खड़ी होकर फूट-फूट कर रोने लगी।

    वहीं दूसरी तरफ कोई शख़्स ऐसा था, जो दीवा को स्क्रीन पर रोते हुए देख रहा था। वह कोई और नहीं, आर्यांश कपूर था। उसके पास में एक पुलिस वाला खड़ा हुआ था।

    दीवा को रोते हुए देखकर आर्यांश के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसने मन ही मन बड़बड़ा कर कहा, “यह तो तुम्हारी तकलीफ़ों की शुरुआत है, दीवा गोयंका। आगे तुम्हें बहुत रोना पड़ेगा।”

    दीवा को एक नज़र देखने के बाद आर्यांश पुलिस वाले की तरफ़ पलटा और बोला, “इसे अंदर क्यों बंद किया गया है?”

    “सर, इसने अपनी ही कंपनी के शेयरहोल्डर्स का पैसा खाया है। पैसे को ग़बन करने के साथ ही काफ़ी लोन ले रखा है, वह भी चुकाया नहीं। जाँच चल रही है।” पुलिस इंस्पेक्टर ने बताया।

    “ठीक है, फिर जाँच करते रहो। जब तक मैं न कहूँ, यह यहाँ से बाहर नहीं जाना चाहिए।” आर्यांश बोला, जिस पर पुलिस इंस्पेक्टर ने हाँ में सिर हिला दिया था।

    ऐसा लग रहा था जैसे आर्यांश के दिमाग़ में काफ़ी कुछ चल रहा था। वह दीवा को तकलीफ़ देना चाहता था। वहीं, उनसे अलग दीवा अब वहाँ से बाहर निकलकर रोड पर बेसुध होकर चल रही थी। बाहर ठंडी हवाएँ चलने की वजह से वह खुद की बाँहों को सहला रही थी।

    दीवा के दिमाग़ में इस वक़्त काफ़ी कुछ चल रहा था। उसने मन ही मन बड़बड़ा कर ऊपर देखते हुए कहा, “आप इतने क्रुअल कैसे हो सकते हो? मेरे डैड ने सब कुछ अपनी मेहनत से बनाया था। वह किसी के साथ धोखा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने हमेशा ईमानदारी से काम किया था। फिर उन्हें यह सब क्यों भुगतना पड़ रहा है? मेरे साथ जो भी हुआ, मैंने उसके लिए आपसे कभी शिकायत नहीं की, पर मेरे डैड यह सब डिजर्व नहीं करते हैं।”

    दीवा को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था कि इतने लोग उसे रोते हुए देख रहे थें। वह फिर भी अपने दिल का बोझ हल्का करने के लिए रोए जा रही थी। यह करना ज़रूरी भी था, क्योंकि जब वह घर जाती, तो वह प्रार्थना के सामने रो नहीं सकती थी।

    चलते हुए दीवा ने आस-पास देखा तो कुछ लोग उसकी तरफ़ अजीब नज़रों से देख रहे थे। दीवा ने जल्दी से अपने आँसू साफ़ किए, तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी।

    दीवा ने जल्दी से कॉल उठाया तो दूसरी तरफ सिस्टर लीज़ा थी। उसने दीवा से कहा, “डॉ. गोयंका, आप कहाँ रह गईं? हॉस्पिटल से भी जल्दी निकल गई थीं। सॉरी, मैं आपको इन्फ़ॉर्म नहीं कर पाई, लेकिन आज रात को कार्डियोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट की ख़ास मीटिंग रखी है। यह एक डिनर गैदरिंग है। मैं आपको लोकेशन भेज देती हूँ। आप प्लीज़ पहुँच जाइए।”

    “हाँ, मैं बस थोड़ी ही देर में आती हूँ।” दीवा ने जवाब दिया। रोने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थीं।

    “हाँ, लेट मत करना। सर ने सबको ख़ास कहा है कि मीटिंग काफ़ी इम्पॉर्टेंट है।” लीज़ा ने कहा और फिर कॉल काट दिया।

    दीवा वहाँ से पास ही के मॉल में गई और टच-अप करके लोकेशन पर पहुँच गई थी। वह मुंबई का सबसे बड़ा सेवन-स्टार होटल था। दीवा आखिरी बार वहाँ पर अपनी मॉम डैड के साथ आई थी, जब वह लगभग 10 साल की थी। उसे होटल का टॉप फ़्लोर अपने स्पेशल बने टेरेस और अरेंजमेंट के लिए काफ़ी फ़ेमस था। दीवा ने वहीं पर डिनर किया था।

    अपने मॉम डैड के साथ बिताए पुराने खुशनुमा पलों को याद करके दीवा इमोशनल होने लगी। फ़िलहाल उसके पास दुख मनाने का वक़्त नहीं था, इसलिए वह सीधा अंदर गई।

    रिसेप्शनिस्ट के पास जाकर दीवा ने पूछा, “मैं लाइफ़ केयर हॉस्पिटल से डॉ. दीवा गोयंका हूँ, मिस्टर आलोक रंधावा की तरफ़ से। क्या उन्होंने कोई टेबल बुक की है?”

    “हाँ, आज की डिनर गैदरिंग के लिए पूरा टॉप फ़्लोर बुक किया गया है। मैं वेटर को बोल देती हूँ, वह आपको वहाँ तक छोड़ देगा।” रिसेप्शनिस्ट ने जवाब दिया।

    पूरा टॉप फ़्लोर बुक था। इसका मतलब मीटिंग सच में ख़ास होने वाली थी। दीवा वहाँ पहुँची तो उसने देखा बाकी सारे लोग वहाँ आ चुके थे। डिनर अरेंजमेंट काफ़ी अच्छा किया गया था। सब लोग एक साथ बैठ सकें, इसलिए बड़ी सी टेबल रखी गई थी।

    दीवा ने एक चीज़ नोटिस की कि हेड ऑफ़ द टेबल की जगह पर आलोक रंधावा नहीं बैठे थे। वह जगह खाली थी। इसका मतलब कोई और भी वहाँ आने वाला था।

    दीवा को देखते ही आलोक ने मुस्कुराकर कहा, “अरे डॉक्टर गोयंका, आप आ गईं।”

    “सॉरी, मुझे आने में थोड़ी देर हो गई।” दीवा उनकी तरफ़ बढ़ते हुए बोली।

    “कोई बात नहीं। इस पार्टी को अरेंज करने वाला मेहमान अभी आया नहीं है, तो हम आज आपकी लेट-लतीफ़ी को झेल सकते हैं।” आलोक ने हल्के लहजे में कहा और फिर दीवा को बैठने का इशारा किया।

    आलोक उम्र में लगभग 55 साल के थे। वह सबके साथ काफ़ी फ्रेंडली बिहेव रखते थे और मज़ाकिया अंदाज़ के आदमी थे।

    “वह कौन है?” दीवा ने बैठते हुए पूछा।

    ऐसा लग रहा था कि दीवा के अलावा वहाँ बाकी लोग भी नहीं जानते थे कि आज इस पार्टी का कारण क्या है या फिर उनका मेहमान कौन है।

    बाकी सब भी सवालिया नज़रों से आलोक की तरफ़ देख रहे थे, तभी दरवाज़े पर किसी के क़दमों के आने की आहट हुई। सबकी नज़रें दरवाज़े की तरफ़ घूम गई थीं। वहाँ लगी ख़ूबसूरत लाइटों के बीच से बिल्कुल किसी हीरो की तरह चलते हुए आर्यांश कपूर आ रहा था।

    सब उसे देखकर एक्साइटेड होकर खुश हो गए। वहीं, उनसे अलग दीवा ने तुरंत अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ कर ली थीं। हाँ, आज उनकी पार्टी का मेहमान आर्यांश कपूर था, जो वहाँ किस इरादे से आया था, उससे वह सब पूरी तरह अनजान थे।

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  • 16. Golden trap of billionaire - Chapter 16

    Words: 1400

    Estimated Reading Time: 9 min

    दीवा जेल में अपने पापा से मिलकर फ्री हुई थी, कि उसके पास सिस्टर लीजा का कॉल आया। लीजा ने उसे एक होटल में आने को कहा, जहाँ हॉस्पिटल के डीन एक डिनर गैदरिंग रख रहे थे। यह डिनर गैदरिंग किसी मीटिंग के चलते रखी गई थी।

    दीवा वहाँ पहुँची, तो उसे पता चला कि यह मीटिंग उनके डीन के बजाय किसी और शख्स ने रखी है। वे सब इस शख्स के आने का इंतज़ार कर रहे थे।

    इन सब के बीच वहाँ आर्यांश कपूर की एंट्री हुई। उसे देखते ही दीवा को समझ आ गया था कि ज़रूर यह मीटिंग आर्यांश ने रखवाई है। आर्यांश को देखते ही दीवा ने अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ कर लीं।

    आर्यांश के सम्मान में वे सब लोग खड़े हुए, तो मजबूरन दीवा को भी खड़ा होना पड़ा। उनके डॉक्टर आलोक रंधावा आगे गए और आर्यांश की तरफ़ हाथ बढ़ाकर कहा, “वेलकम, मिस्टर कपूर। हम बस आप ही के आने का इंतज़ार कर रहे थे।”

    आर्यांश ने कुछ ख़ास रिएक्ट नहीं किया। हैंडशेक करने के बाद वह उनके साथ डाइनिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गया। वहाँ आते ही उसकी नज़र सबसे पहले दीवा की तरफ़ गई।

    दीवा को देखते ही आर्यांश ने अपनी दिलकश आवाज़ में कहा, “यू आर लुकिंग गॉर्जियस डॉक्टर गोयंका।”

    आर्यांश के मुँह से अपनी तारीफ़ सुनकर दीवा झेंप गई। उसने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए आर्यांश को थैंक्स कहा।

    उसकी तारीफ़ के बाद दीवा थोड़ी अनकम्फ़र्टेबल फील करने लगी, क्योंकि सब उसी की तरफ़ देखने लगे। उन सब के चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट थी।

    यह सब चीज़ दीवा की शर्म और असहजता को बढ़ा रही थी। उसने मन ही मन कहा, “क्या फ़र्क़ पड़ता है मैं कैसी लग रही हूँ या कैसी नहीं? इसे क्यों मेरी मुसीबतें बढ़ानी होती हैं? अगर मीटिंग करने के लिए आया है, तो मेरी तारीफ़ करने की क्या ज़रूरत है?”

    दीवा मन ही मन आर्यांश को कोस रही थी, तभी डॉक्टर आलोक ने कहा, “चलिए, मैं आपको इस डिनर गैदरिंग का कारण बता देता हूँ। मिस्टर कपूर हमारे हॉस्पिटल में इन्वेस्ट कर रहे हैं और इसी के साथ वे हमारे शेयरहोल्डर भी बन जाते हैं। इन्वेस्ट करने के बाद उन्होंने हम सबके लिए एक शानदार डिनर देने की बात रखी, तो मैं मना नहीं कर पाया।”

    “आप सब इसके हक़दार हैं।” आर्यांश ने सिर हिलाकर कहा।

    हर कोई गुड बुक्स में आने के लिए कुछ न कुछ बोल रहा था। उनसे अलग दीवा इस वक़्त काफ़ी इरिटेट हो रही थी। आर्यांश भी कुछ नहीं बोल रही थी। उसकी नज़रें बस दीवा पर ही टिकी हुई थीं।

    आलोक रंधावा का ध्यान जब इस तरफ़ गया कि आर्यांश दीवा की तरफ़ देख रहा है, तो उसने दीवा का इंट्रोडक्शन देते हुए कहा, “यह हमारे हॉस्पिटल की सबसे कम उम्र की सर्जन है। मिस दीवा गोयंका ने थोड़े टाइम पहले ही ज्वाइन किया है, पर सच में इनकी काबिलियत देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।”

    “हाँ, मानना पड़ेगा मिस गोयंका में कुछ तो बात है! तभी तो मेरे मामा की सर्जरी इन्होंने सक्सेसफुली हैंडल कर ली। मिस गोयंका को देखने के बाद लग रहा है कि मैंने अपने पैसे ग़लत जगह इन्वेस्ट नहीं किए हैं।” आर्यांश ने दीवा को घूरते हुए कहा। उसकी बातों का मतलब दीवा बखूबी समझ रही थी।

    “थैंक यू सो मच, मिस्टर कपूर।” दीवा ने मजबूरी में कहा।

    सब दीवा को कांग्रेचुलेट करने लगे, लेकिन इन सब के बीच डॉक्टर यथार्थ मल्होत्रा का मुँह बना हुआ था। उन्हें दीवा बिल्कुल पसंद नहीं थी। ऊपर से यहाँ पर तो उसकी इतनी तारीफ़ हो रही थी! वो कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड थे। उनका बस चलता तो वो दीवा को कब का निकाल देते।

    डिनर के बाद आर्यांश ने उनके लिए महँगी शैम्पेन की बोतल मँगवाई। दीवा ड्रिंक नहीं करना चाहती थी, लेकिन सबके फ़ोर्स करने पर वह मना भी नहीं पाई।

    खाना-पीना हो जाने के बाद सब वहाँ से जाने लगे। वहीं दीवा के इस जगह से यादें जुड़ी हुई थीं, तो वह उनके साथ जाने के बजाय रेलिंग के पास आकर बाहर शहर की तरफ़ देखने लगी। दुनिया उसी तरह आराम से चल रही थी। ठंडी हवा के थपेड़े दीवा के चेहरे को छू रहे थे, जिससे उसका चेहरा लाल पड़ गया। उसके बाल हवा में उड़ रहे थे। ठंड से बचने के लिए दीवा खुद की बाजू को सहला रही थी। उसकी आँखों के आगे बार-बार अपने डैड का चेहरा आ रहा था। पिछले तीन दिनों से वह ठीक से सोई तक नहीं थी।

    दीवा को लगा सब यहाँ से जा चुके हैं, तो वह भी अपने क़दम बढ़ाने ही वाली थी, तभी पीछे से एक सर्द आवाज़ आई।

    वह आर्यांश था। उसने पूछा, “अकेली खड़ी होकर क्या सोच रही हो?”

    “मैं बस यहाँ से जा ही रही थी। थोड़ा सफ़ोकेशन फील हो रहा था, तो सोचा खुली हवा में साँस ले लेती हूँ।” दीवा ने बहाना बनाया। वह उसके पीछे यहाँ तक चला आया था। दीवा आर्यांश से बात करने के मूड में नहीं थी, इस वजह से वह उसे इग्नोर करने लगी।

    आर्यांश उसके पास आया और बोला, “तुम तो बहुत अच्छे बहाने बना लेती हो।”

    “मैं कोई बहाना नहीं बना रही हूँ। खैर, मैं यहाँ से जा रही हूँ। फिर कभी मिलते हैं, मिस्टर कपूर।” दीवा ने जवाब दिया।

    इतना कहकर दीवा ने अपने क़दम बढ़ाए ही थे कि आर्यांश ने अचानक उसकी कलाई को पकड़ा और अपने करीब खींच लिया। आर्यांश का एक हाथ दीवा की कमर पर था। वे दोनों एक-दूसरे के चेहरे के इतने करीब थे कि दीवा आर्यांश की गरम साँसों को खुद के चेहरे पर महसूस कर रही थी।

    “तो तुम जाना चाहती हो?” आर्यांश ने गहरी आवाज़ में पूछा।

    “तुम... तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो?” दीवा ने घबराहट के साथ पूछा।

    उस रात से पहले दीवा आर्यांश से कभी नहीं मिली थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह उसे क्यों टारगेट कर रहा है।

    “मैं बस तुम्हारी हेल्प करना चाहता हूँ। तुम बस एक बार कह कर तो देखो।” आर्यांश ने जवाब दिया और उसने झटके से दीवा को खुद के और करीब कर लिया था।

    आर्यांश की हरकतें दीवा की दिल की धड़कनें तेज कर रही थीं। वह सब समझ रही थी। आर्यांश उसकी फैमिली की कंडीशन का फ़ायदा उठाकर उससे शादी करना चाहता था।

    दीवा ने खुद को मज़बूत किया और कहा, “आप ग़लत समझ रहे हैं, मिस्टर कपूर। मुझे आपसे कोई हेल्प नहीं चाहिए।” दीवा ने साफ़ मना कर दिया।

    इतनी परेशानी में भी दीवा के मना करने पर आर्यांश ने भौंहें उठाकर कहा, “दीवा गोयंका, क्या कभी तुमने अपनी ज़िंदगी में उस लम्हे को महसूस किया है जब सब ख़त्म होने वाला हो और आपका कोई बस ना चले?”

    दीवा कन्फ़्यूज़न से उसकी तरफ़ देख रही थी, तभी अचानक से आर्यांश ने उसका हाथ छोड़ा और वह रेलिंग से आधा नीचे की तरफ़ झूल गई थी। वह बिल्डिंग बहुत ऊँची थी। अगर थोड़ा भी इधर-उधर होता, तो दीवा नीचे आ जाती।

    दीवा ने अपनी आँखें बंद कीं। उसने महसूस किया मौत के इतने करीब आने के बाद भी न जाने क्यों उसे मौत से डर नहीं लग रहा था और दिल ही दिल में एक सुकून मिल रहा था। क्या मरने से उसकी मुसीबतें ख़त्म होने वाली थीं? उसे उसके दिल में जवाब मिल गया था। दीवा थक चुकी थी। शायद उसकी सहनशक्ति इतनी ही थी। जब वह दुनिया को अलविदा कहने को हुई, तभी आर्यांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे ऊपर खींचा और दीवा की आँखों में देखते हुए सर्द आवाज़ में कहा, “हाँ, मर जाओगी तो शायद तुम अपनी तकलीफ़ों से आज़ाद हो सकती हो, लेकिन अभी तुम्हें जीना होगा। अभी तो तुम्हारी तकलीफ़ों की शुरुआत हुई है।”

    तभी दीवा को भी अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह इतनी आसानी से मर नहीं सकती थी। उसके माँ-डैड के अलावा और कोई नहीं था। वे दोनों मुसीबत में थे। ऐसी सिचुएशन में दीवा मरने का सोच भी कैसे सकती थी?

    दीवा ने गहरी साँस ली और फिर आर्यांश के चेहरे की तरफ़ देखा, जिस पर एक छोटी सी स्माइल थी। ऐसे लग रहा था कि वह उसे तकलीफ़ देकर खुशी महसूस कर रहा है।

    “शायद ये अमीर लोग ऐसे ही होते हैं। दूसरों को दर्द देकर इन्हें खुशी मिलती है।” दीवा ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए अपने मन में कहा, क्योंकि आर्यांश भी उसके साथ यही कर रहा था—उसे तकलीफ़ देकर न जाने क्यों आर्यांश के चेहरे पर सुकून के भाव आ जाते थे।

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    फिलहाल के लिए इतना ही। अगले चैप्टर पर मिलते हैं। प्लीज़ पढ़कर लाइक और कमेंट किया करो आप लोग।

  • 17. Golden trap of billionaire - Chapter 17

    Words: 1619

    Estimated Reading Time: 10 min

    दीवा इस वक्त होटल की टेरिस पर खड़ी थी। आर्यांश उसके साथ था। आर्यांश ने दीवा को इस तरह से धक्का दिया था कि वह अगले ही पल नीचे गिरने वाली थी। न जाने क्यों, एक पल के लिए दीवा ने मौत को स्वीकार कर लिया था। इससे पहले कि दीवा अपना पूरा शरीर ढीला छोड़कर नीचे गिरती, आर्यांश ने उसे ऊपर की तरफ खींच लिया था।

    आर्यांश के इरादे दीवा को समझ नहीं आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने मनोरंजन के लिए दीवा को तकलीफ दे रहा था।

    दीवा ने उसकी तरफ देखा और धीमी, उदास आवाज में पूछा, “आखिर यह क्यों कर रहे हो तुम?”

    “मैं कुछ नहीं कर रहा। मैं तो तुम्हें बस यह समझाना चाहता हूँ कि ज़िंदगी कितनी भी मुश्किल क्यों न खड़ी कर दे, लेकिन खुद को इतना नीचे कभी मत गिरने देना कि मरने का सोचो।” आर्यांश ने गहरी आवाज में कहा।

    आर्यांश के शब्द दीवा को तीर की तरह चुभ रहे थे। उसने कभी खुद को कमजोर नहीं समझा था; वह तो एक स्वतंत्र, खुश रहने वाली लड़की थी, जिसकी ज़िंदगी अचानक पिछले कुछ दिनों में बदल गई थी।

    दीवा ने गहरी साँस ली और आर्यांश से बोली, “देखो, मैं नहीं जानती कि आखिर तुम मेरे पीछे क्यों आए हो। हम दोनों अलग-अलग इंसान हैं, हमारी दुनिया भी अलग है। अगर मुझसे कोई गलती हो गई है, तो मैं हाथ जोड़कर तुमसे माफ़ी मांगती हूँ, पर प्लीज़, इस तरह मेरी ज़िंदगी को और मुश्किल मत बनाओ।”

    दीवा को लगा कि अगर अनजाने में उसने कभी आर्यांश का दिल दुखाया हो और उसका बदला लेने के लिए वह यह सब कर रहा हो, तो उसकी माफ़ी मांगना ही सही है, ताकि कम से कम वह उसका पीछा छोड़ दे।

    “ओह, रियली? ये दो दुनियाएँ कब से होने लगीं?” आर्यांश ने भौंहें उठाकर पूछा।

    दीवा के पास उसकी बातों का कोई जवाब नहीं था। उसने कसकर अपने मुट्ठियाँ बंद कर ली थीं। तभी आर्यांश आगे बोला, “खुद को इतना मत सताओ। बस, आज़ाद छोड़ दो।”

    आर्यांश के शब्द सुनकर दीवा चौंक गई थी। ये कोई मामूली शब्द नहीं थे। उसने उस रात जो पियानो की धुन बजाई थी, उसे उसने यही नाम दिया था—आज़ादी। ये उसी के नोट्स थे।

    दीवा कुछ पूछ पाती, उससे पहले उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने चेक किया तो यह रक्षित का कॉल था। दीवा ने उसे इग्नोर कर दिया। दीवा के कॉल इग्नोर करने के बाद भी रक्षित बाज़ नहीं आया। उसने दीवा को एक वीडियो भेजा।

    दीवा ने इरिटेट होकर वीडियो प्ले किया तो वह हैरान रह गई। यह वीडियो डिटेंशन सेंटर की थी, जहाँ उसके डैड को बुरी तरह मारा जा रहा था। उसे देखकर दीवा की आँखों से आँसुओं का कतरा बह गया।

    दीवा एक पल के लिए यह भी भूल गई थी कि उसके पास आर्यांश खड़ा है। वह फफक-फफक कर रोने लगी थी। आर्यांश उसके पास आया।

    उसने वीडियो देखा तो सीधे-सीधे पूछा, “तो यह तुम्हारे एक्स-बॉयफ्रेंड का काम है।”

    दीवा ने गुस्से में अपनी मुट्ठियाँ कसकर बंद कर ली थीं। उसे रक्षित पर गुस्सा आ रहा था। उसके डैड ने रक्षित के लिए बहुत कुछ किया था, उसके बावजूद वह उनके साथ यह सब कर रहा था।

    दीवा के हाव-भाव को देखते हुए आर्यांश ने कहा, “इस तरह गुस्सा करने से कुछ नहीं होगा। इस जैसे लोगों से निपटने का एक ही तरीका है कि उन्हें इतना तड़पाओ कि वह अपनी मौत की भीख माँगने लगें।” बोलते हुए आर्यांश की आवाज काफी सर्द होने लगी।

    दीवा ने आर्यांश की तरफ देखा और लाचारी से कहा, “लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती।”

    अपनी मजबूरी के एहसास ने दीवा के दिल के दर्द को बढ़ा दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे उसका जीना बेकार है।

    दीवा अपने दुख में खोई हुई थी, तभी अचानक आर्यांश ने कहा, “मेरी बन जाओ। उसके बाद तुम इतनी पावरफुल हो जाओगी कि किसी के साथ कुछ भी कर पाओगी।”

    इस वक्त आर्यांश का अंदाज़ काफी खतरनाक लग रहा था। पहले भी आर्यांश ने दीवा को शादी के लिए कहा था, पर उसने हर बार मना किया था। लेकिन इस बार दीवा का दिल अचानक ही नर्म हो गया।

    दीवा ने आर्यांश की तरफ देखा और काफी नर्म आवाज में कहा, “क्या उससे पहले तुम मेरे पापा को बाहर निकाल सकते हो?”

    अपने पापा के लिए दीवा कुछ भी करने को तैयार थी। आर्यांश भी तो यही चाहता था।

    दीवा को लगा आर्यांश हाँ कर देगा, लेकिन तभी आर्यांश ने कंधे उचकाते हुए, काफी बेरहमी से कहा, “नहीं।”

    आर्यांश ने मना कर दिया था। जिसे सुनकर दीवा की आँखें हैरानी से बड़ी हो गई थीं। अचानक उसे समझ आ गया था कि आर्यांश ने मना क्यों किया था। उसने भी आर्यांश की कोई शर्त नहीं मानी थी, तो भला वह उसकी बात क्यों मानेगा?

    दीवा की आँखों में आँसू बह रहे थे। उसने अपने आँसुओं को साफ करके कहा, “और अगर मैं तुम्हारी शादी की शर्तें मान लूँ, तब तो तुम मेरे डैड को बाहर निकाल लोगे ना?”

    “इस चीज़ के लिए बहुत देर हो चुकी है, मिस गोयंका।” आर्यांश ने आँखें छोटी करके कहा।

    दीवा की आँखों में आँसू थे, फिर भी अचानक उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई। उसने दर्द भरी मुस्कराहट के साथ कहा, “समझ गई।”

    अब उसे आर्यांश की बात का मतलब समझ आ रहा था, जब उसने यह कहा था कि वह खुद उसके सामने शादी के लिए भीख माँगेगी।

    दीवा ने कुछ नहीं कहा। वह वहाँ से जाने लगी। तभी आर्यांश ने पीछे से तेज आवाज में कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी मर्ज़ी से मुझसे शादी करने के लिए हाँ कहो, किसी मजबूरी के चलते नहीं, जैसा कि तुम अब कर रही हो।”

    दीवा उसकी तरफ पलटी तो आर्यांश आगे बोला, “ज़बरदस्ती किसी का प्यार हासिल नहीं किया जा सकता है। मैं चाहता हूँ कि शादी जैसा बंधन दोनों पक्षों की मंज़ूरी से हो, तो ज़्यादा अच्छा लगता है। बाकी हां तो तुम्हें कहनी ही थी।” वो काफी कॉन्फिडेंट नजर आ रहा था।

    उसकी बातें किसी जादू की तरह थीं, जो दीवा को हैरान कर रही थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि आर्यांश कपूर, जिसके बारे में लोग यही कहते हैं कि वह लड़कियों के साथ वन-नाइट स्टैंड करके छोड़ देता है, वह आज प्यार और मर्ज़ी से रिश्ते निभाने की बात कह रहा था।

    दीवा ने उसे देखकर सर हिलाया और फिर वहाँ से चली गई। दीवा जब रात को होटल रूम में पहुँची, तो लगभग बारह बज चुके थे। अपनी माँ की नींद खराब न हो, यह सोचकर दीवा ने धीरे से दरवाज़ा खोला।

    जैसे ही वह दरवाज़ा बंद करके दूसरी तरफ पलटी, तो उसे प्रार्थना की नर्म आवाज़ आई, “दीवा बेटा, तुम आ गई?”

    “आप अब तक क्यों जाग रही हैं, मॉम?” दीवा ने गहरी साँस लेकर कहा और फिर उसने लाइट ऑन की तो प्रार्थना सोफ़े पर बैठी हुई थी।

    दीवा उसके बाद अपनी माँ के पास सोफ़े पर आकर बैठ गई। प्रार्थना ने उससे प्यार से कहा, “तुम जाकर चेंज करके सो जाओ। सुबह तुम्हें काम पर भी जाना होता है।”

    “हाँ, सो जाऊँगी, लेकिन आपको भी सो जाना चाहिए। आप काफी थकी हुई लग रही हैं।” दीवा ने प्यार से कहा। उसने देखा कि प्रार्थना की आँखें भी लाल थीं। शायद वह भी नवीन के लिए रो रही थी।

    प्रार्थना ने मुस्कुराकर कहा, “कोई बात नहीं। तुम्हारे पापा के आने के बाद सो जाऊँगी। थोड़ी देर में आते ही होंगे।”

    प्रार्थना की बात सुनकर दीवा को झटका सा लगा। उसने खुद के इमोशंस को कंट्रोल करते हुए कहा, “पापा को छूटने में थोड़ा टाइम लगेगा, मॉम।”

    जैसे ही दीवा की बात खत्म हुई, प्रार्थना रो पड़ी। उसने दीवा के कंधे पर सर रखकर कहा, “आज मैंने उनके कुछ दोस्तों को कॉल किया था। कुछ ने कॉल उठाया भी नहीं, और कुछ बोल रहे हैं कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। जब भी उन्हें ज़रूरत पड़ी है, नवीन हमेशा उनके लिए अवेलेबल रहा है।”

    दीवा ने प्रार्थना की पीठ को सहलाते हुए कहा, “मॉम, यह दुनिया ऐसी ही होती है। यहाँ सब लोग मतलब के लिए एक-दूसरे के साथ हैं। जिस दिन मतलब ख़त्म होता है, उस दिन रिश्ते और दोस्तियाँ भी टूट जाती हैं। आप चिंता मत कीजिए। हम डैड को बाहर निकाल लेंगे।”

    दीवा के समझाने पर प्रार्थना को कुछ तसल्ली मिली। प्रार्थना ने उससे अलग होकर कहा, “ठीक है। फिर कल हम तुम्हारे डैड से मिलने जाएँगे।”

    दीवा ने तुरंत ही ना में सर हिला दिया। जब वह नवीन से मिली थी, तब उसके थोड़े-बहुत चोट के निशान थे, लेकिन जिस हिसाब से रक्षित ने आज वीडियो भेजा था, उससे साफ़ था कि उसने नवीन को बहुत बुरी तरह पिटवाया था। अगर प्रार्थना यह सब देखती, तो वह और परेशान हो जाती।

    दीवा ने खुद को नॉर्मल करते हुए कहा, “मैं आज डैड से मिलने गई थी, तो उन्होंने कहा कि हम एक हफ़्ते तक उनसे नहीं मिल पाएँगे।”

    “अच्छा, ऐसा भी हो सकता है? मुझे इस बारे में पता नहीं था।” प्रार्थना ने मायूसी से कहा।

    वह कभी नवीन के बिना नहीं रही थी और उनकी मैरिड लाइफ़ भी काफी खुशहाल थी। नवीन से न मिल पाने का सुनकर प्रार्थना का सिर भारी होने लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।

    दीवा ने प्रार्थना को संभाला और उसे सोने के लिए ले गई।

    पूरा एक हफ़्ता होने को आया था। हालांकि दीवा ने प्रार्थना को झूठ बोला था, लेकिन इस बीच प्रार्थना को भी नवीन से मिलने नहीं दिया गया।

    दीवा को कहीं न कहीं उम्मीद थी कि आर्यांश उसके इस मामले में हेल्प करेगा, लेकिन एक हफ़्ते में वह उसे दिखा तक नहीं था। दीवा को उस पर गुस्सा आ रहा था। दीवा ने उसकी बात नहीं मानी, तो शायद अब वह उसकी मदद तभी करने वाला था, जब वह सच में उसके पैरों में गिरकर भीख माँगेगी।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

  • 18. Golden trap of billionaire - Chapter 18

    Words: 1793

    Estimated Reading Time: 11 min

    दीवा को आर्यांश से मिले पूरा एक हफ्ता बीत गया था। इस बीच दोनों की कोई बात नहीं हुई। दीवा को लग रहा था जैसे आर्यांश ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया है, तो वही जेल में नवीन गोयंका की हालत बेहाल होती जा रही थी। रक्षित ने दीवा को नवीन से मिलने नहीं दिया, और अब तो आर्यांश भी दीवा की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था।

    इस बीच दीवा ने एक छोटा सा अपार्टमेंट किराए पर ले लिया था। उसकी दिनचर्या अब हॉस्पिटल में सिमट कर रह गई थी।

    आज वर्किंग आर्स खत्म होने के बाद घर जाने के बजाय दीवा तैयार होकर क्लब पहुंची क्योंकि आज उनके डिपार्टमेंट के हेड यथार्थ मल्होत्रा का जन्मदिन था।

    बाकी लोग क्लब में कब के ही पहुंच चुके थे जबकि दीवा सबसे देरी से आई थी। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, उसे अपने शरीर में कंपकंपी सी महसूस हुई।

    “काश मैं इस जगह पर उस दिन नहीं आती तो मेरी जिंदगी इस तरह बर्बाद नहीं होती। ना मैं आर्यांश से मिलती और ना ही मेरी लाइफ में इतनी प्रॉब्लम्स क्रिएट होती। ” दीवा ने अंदर की तरफ झांकते हुए कहा। यह वही जगह थी जब पिछली बार दीवा रक्षित के साथ आई थी।

    रक्षित ने उसके ड्रिंक में ड्रग्स मिला दिए थे और उसके बाद वह आर्यांश के साथ फिजिकली इंवॉल्वड हो गई थी। अगर आज उसके डिपार्टमेंट हेड यथार्थ मल्होत्रा का बर्थडे नहीं होता तो वह कभी नहीं आती। वैसे भी यथार्थ उसे पसंद नहीं करता था। अगर वह पार्टी में नहीं आती तो फिर से उसे यथार्थ के ताने सुनने को मिलते।

    दीवा ने गहरी सांस लेकर खुद को मजबूत किया और वह अंदर गई। उसके बाकी के टीम मेंबर्स भी वहीं पर थे।

    दीवा को उनकी तरफ बढ़ते हुए देखकर यथार्थ उसके पास गया और सिर हिला कर कड़वाहट से कहा, “मुझे लगा नहीं था कि तुम आज पार्टी में आओगी। वैसे लेट आकर क्या तुम खुद की इंपोर्टेंस बढ़ाना चाहती हो? ”

    “सॉरी, वह मुझे अचानक ही एक पेशेंट को ट्रीट करने के लिए जाना पड़ा वरना मैं टाइम से आती। आप तो जानते हैं कि हम डॉक्टर्स कभी भी टाइम को लेकर कमिटमेंट नहीं कर पाते हैं। ” दीवा ने खुद की सफाई में कहा।

    यथार्थ ने उसकी तरफ घूर कर देखते हुए कहा, “लेकिन रूल तो टूटा है। तुम अच्छे से जानती हो कि जो डिपार्टमेंट की दी हुई पार्टी में लेट आता है, उसे सजा के तौर पर पांच ड्रिंक के शॉट्स लेने पड़ते हैं। ”

    यथार्थ की बात पर सहमति जताते हुए दूसरे डॉक्टर ने कहा, “तो डॉक्टर गोयंका, क्या तुम तैयार हो? वैसे मैंने पहले ही तुम्हारी सजा के तौर पर शॉट्स तैयार करके रखे थे। ”

    दीवा ड्रिंक नहीं करना चाहती थी। उसने मना करना चाहा, पर यथार्थ ने जबरदस्ती उसकी तरफ शॉट्स बढ़ा दिए थे। दीवा ने एक नज़र उनकी तरफ देखा और फिर एक-एक करके उसने पांचों शॉट्स खाली कर दिए थे।

    दीवा के ड्रिंक करते ही यथार्थ ने तिरछा मुस्कुराते हुए कहा, “लगता है आज हमारी डॉक्टर गोयंका फुल पार्टी मूड में है। क्यों ना हम भी इन्हें ज्वाइन करते हुए इंजॉय करते हैं? ”

    सबने यथार्थ की बात पर हामी भरी। दीवा ने भी अनजाने में काफी ड्रिंक कर ली थी। अब उसके कदम लड़खड़ाते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ रहे थे।

    दीवा जब बाथरूम की तरफ जा रही थी तो किसी की नज़रें उसे पर टिकी हुई थी और वह सर्द निगाहों से उसकी तरफ घूर रहा था। वह कोई और नहीं आर्यांश था, जो इस वक्त एक क्लाइंट के साथ बैठा हुआ था।

    आर्यांश के चेहरे के भाव काफी सर्द थे। उसने सिर हिलाकर मन ही मन बड़बड़ा कर कहा, “यह लड़की सच में बेवकूफ है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इसे अक्ल नहीं आई, जो यह इस तरह टल्ली होकर उसी क्लब में घूम रही है। इसे सच में इस बात की भी परवाह नहीं है कि कोई इसका फायदा उठा लेगा। इडियट। ”

    आर्यांश मन ही मन दीवा पर गुस्सा उतार रहा था। उसकी नजरे अभी भी दीवा पर थी। उसके क्लाइंट ने नोटिस किया कि आर्यांश का ध्यान उसकी बातों में नहीं है। उसने आर्यांश की नजरों को फॉलो किया तो वह दीवा को देख रहा था।

    अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके क्लाइंट ने टेबल पर ग्लास को आवाज करते हुए रखा, जिससे आर्यांश का ध्यान टूट गया।

    आर्यांश ने उसकी तरफ देखा तो उसके क्लाइंट ने कहा, “लगता है आपका मेरी बातों की तरफ ध्यान नहीं है मिस्टर कपूर। ” बोलते हुए उसने दीवा की तरफ इशारा किया, जो बिल्कुल धीरे चल रही थी।

    वही दीवा के कदमों ने उसका साथ नहीं दिया। वह किसी के ऊपर गिरती उससे पहले वह पास ही एक खाली चेयर पर बैठ गई।

    दीवा ने अपना सिर पकड़कर लड़खड़ाती आवाज में कहा, “लगता है सब कुछ घूम रहा है। मैंने... मुझे इतनी ड्रिंक नहीं करनी चाहिए थी। वह लोग तो पीछे रह गए। अब मैं किसकी हेल्प लूं। ”

    दीवा वहां कशमकश में बैठे खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। इस बीच आर्यांश अपने क्लाइंट से बात करने लगा।

    उसके क्लाइंट ने आर्यांश को सिगरेट जला कर देते हुए कहा, “शायद इसके बाद आपका ध्यान हमारी बातों में लग जाए। मिस्टर कपूर यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत जरूरी है और अगर आप हमारे साथ जुड़े तो आप अच्छे से जानते हैं कि हमारी कंपनी जो नुकसान झेल रही है, उससे हम जल्द ही उबर जाएंगे। आप चाहो तो प्रॉफिट शेयर ज्यादा ले सकते हैं, पर प्रोजेक्ट को बीच में मत छोड़िएगा।”

    आर्यांश का ध्यान अभी भी उसकी बातों में नहीं था। वह सिगरेट के कश लेते हुए दीवा को घूर रहा था। फिर क्लाइंट के ज्यादा जोर देने पर आर्यांश ने दीवा से अपना ध्यान हटाया और उसकी दी हुई फ़ाइल को पढ़ने लगा।

    वही दीवा जब अकेले बैठी हुई थी तभी उसके पास एक लड़का आया। उसने दीवा की कलाई को पकड़ा और उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, “क्या बात है डार्लिंग, लगता है तुम बिल्कुल भी होश में नहीं हो। मेरे साथ चलो, मैं तुम्हारी हेल्प करता हूं। ”

    दीवा ने अपना हाथ झटक कर उससे दूर कर लिया। वह ना में सिर हिलाते हुए बोली, “नहीं, मुझे किसी की हेल्प नहीं चाहिए। तुम जाओ यहां से। ”

    “कम ऑन.. तुम अकेली हो और खुद को संभाल नहीं पा रही हो। रुको मैं अपने फ्रेंड को बुला लेता हूं। उधर दूसरी तरफ हमारे बाकी दोस्त भी बैठे हुए हैं। हम सब मिलकर तुम्हारी हेल्प करेंगे और ट्रस्ट मी आज रात तुम बहुत इंजॉय करने वाली हो। ” उस लड़के ने कहा और दीवा को कमर से पकड़ कर चेयर से उठाया।

    वह लड़का बाथरूम से आया था। उसका फ्रेंड भी उसके पीछे उस तरफ आया तो उसने इशारे से उसे दीवा के पास आने को कहा। वह दोनों अब दीवा करीब आ गए थे।

    उस क्लब में इस तरह एक लड़की का पार्टी करते हुए दो लड़कों या अपने दोस्तों के साथ घूमने आना आम था। इसलिए किसी का ध्यान उनकी तरफ नहीं गया। सब अपने में बिजी थे।

    दीवा ने मदद के लिए इधर-उधर देखा। उसे कोई नजर नहीं आ रहा था। उसकी टीम भी उससे काफी दूर थी। दीवा ने अपना हाथ उससे दूर करने की कोशिश की और कमजोर सी धीमी आवाज में कहा, “तुम लोग बुरे आदमी हो। मुझे पता है तुम क्या करने वाले हो। छोड़ो मुझे, जाने दो वरना मैं शोर मचा कर सबको बुला लूंगी। मैं पुलिस कंप्लेंट करूंगी तुम्हारी। ”

    “अच्छा तो तुम हमारी कंप्लेंट करोगी लेकिन तुम हमारी कंप्लेंट क्यों करोगी। हम बुरे आदमी नहीं है। तुम एक बार हमारे साथ आकर तो देखो, फिर पता चल जाएगा हम कितने अच्छे इंसान हैं। ” वह लड़का आई विंक करके बोला, जिस पर उसका दोस्त हंसने लगा।

    उसके बाद उसने अपने दोस्त को इशारे से दीवा को वहां से ले जाने को कहा। दीवा को वहां से हटाने से पहले उन्होंने इधर-उधर देखा तो सब अपने में ही लगे हुए थे।

    दूसरे लड़के ने दीवा की कलाई को कसकर पकड़ लिया था। वह सख्त आवाज में बोला, “चुपचाप साथ चलो वरना उठा कर लेकर जाऊंगा। ”

    उसकी बात सुनकर दीवा को गुस्सा आ गया। अपना हाथ उससे दूर करने के लिए दीवा ने उसके हाथ पर काट लिया था, जिस पर वह लड़का और भी गुस्सा हो गया था।

    “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे काटने की? तुम जैसी लड़कियां यहां क्लब में आकर ऐसे ही टल्ली होकर घूमती हो और फिर हम जैसे लड़कों को गुंडा बोलकर संस्कारी बन जाती हो। तुम्हें तो अभी सबक सिखाता हूं। ” वह लड़का गुस्से में बोला।

    उसने अपना हाथ उठाया और वह दीवा को थप्पड़ मारने ही वाला था कि किसी ने उसके हाथ को कसकर पकड़ लिया था।

    वह लड़का अपना हाथ उसके हाथ से अलग करना चाहता था लेकिन उसने उसके हाथ को बुरी तरह मरोड़ दिया था। वह कोई और नहीं आर्यांश था, जो इस वक्त बेहद सर्द निगाहों से उस लड़के को देख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे आर्यांश अभी उसकी जान ले लेगा।

    आर्यांश का गुस्सा ही उसे नहीं डरा रहा था बल्कि उसकी पूरी शख्सियत उसके दिल में डर पैदा कर रही थी। उसके सामने खड़ा आदमी कौन था, वह अच्छे से जानता था। आर्यांश कपूर, जो कपूर इंटरनेशनल्स का मालिक था और कुछ सेकंड में सामने वाले को बर्बाद करने की औकात रखता था,व। उसे इस तरह अपने सामने देखकर वह लड़का कांपने लगा।

    “वह...मैं सिर्फ... मेरी बात...” वह लड़का डरते हुए अपनी सफाई पेश करने की कोशिश कर रहा था तभी आर्यांश ने उसका हाथ एक झटके में छोड़ दिया।

    आर्यांश ने धीमी लेकिन सख्त आवाज में कहा, “निकलो यहां से और आज के बाद इस लड़की के आसपास भी नजर नहीं आने चाहिए। ”

    आर्यांश की बात सुनकर उस लड़के की जान में जान आ गई थी। उसने उसे काफी सस्ते में छोड़ दिया था वरना उसकी जो हरकत थी, उसके बाद आर्यांश इतनी आसानी से किसी को जाने नहीं देता था। उसने जल्दी से अपने दोस्त का हाथ पकड़ा और वहां से भाग गया।

    उनके जाते ही आर्यांश दीवा की तरफ पलटा। अपने सामने इस तरह आर्यांश को देखकर दीवा की आंखें डर से बड़ी हो गई थी। वह कुछ कहती उससे पहले आर्यांश ने उसे पकड़ कर अपने बेहद करीब कर लिया था। आर्यांश के चेहरे पर गुस्से के भाव थे, जिसे देखकर दीवा को डर लगने लगा। ना जाने अब वह उसके साथ क्या करने वाला था।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    फिलहाल के लिए इतना ही। बाकी का कंटेंट अगले चैप्टर में। सॉरी थोड़ा बिजी होने की वजह से बीच में गैप लेना पड़ा। अब रोजाना फिर से दो चैप्टर देने की कोशिश करूंगी। आज भी दो चैप्टर आएंगे तो प्लीज आप पढ़ कर हर एक पार्ट पर रेटिंग और कमेंट कर दीजिएगा। क्या लगता है आर्यांश दीवा को सस्ते में जाने देगा या उस पर गुस्सा करेगा?

  • 19. Golden trap of billionaire - Chapter 19

    Words: 1517

    Estimated Reading Time: 10 min

    आर्यांश अपने क्लाइंट के साथ मीटिंग कर रहा था। उसने क्लब में अचानक दीवा को देखा, जो काफी नशे में थी। दीवा का खुद पर जरा भी कंट्रोल नहीं था, ना ही वह खुद को ठीक से संभाल पा रही थी। हालांकि आर्यांश दीवा पर पूरी नज़र बनाए हुए था, लेकिन कुछ मोमेंट्स के लिए वह अपने क्लाइंट के साथ बिज़ी हो गया। इस बीच दो लड़के आए और दीवा के साथ बदतमीज़ी करने लगे। उनमें से एक लड़का दीवा की हरकत से गुस्सा होकर उसे थप्पड़ मारने जा रहा था, कि आर्यांश ने बीच में आकर उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया। आर्यांश ने उसे वहाँ से भगा दिया और फिर अगले ही मोमेंट में दीवा उसकी बाहों में थी।

    दीवा ने आर्यांश को अपने इतने करीब देखा तो वह हड़बड़ाते हुए, मदहोश आवाज़ में बोली, “तुम...तुम आर्यांश कपूर... तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

    “एक बिज़नेस मीटिंग के लिए आया था।” आर्यांश ने जवाब दिया। उसके चेहरे के भाव नरम हो गए थे।

    “ओह.. थैंक्स..!” दीवा ने बिल्कुल धीमी आवाज़ में कहा।

    दीवा ने ज़्यादा कुछ ज़ाहिर नहीं किया। उसने आर्यांश को थैंक्स भी बहुत धीमी आवाज़ में कहा था। आर्यांश को वहाँ देखकर दिल ही दिल में दीवा को बहुत अच्छा लग रहा था। वह बिल्कुल ठीक समय पर आया था और उसने दीवा को बचा लिया था।

    दीवा अपने ख़यालों में खोई हुई आर्यांश का चेहरा देख रही थी, कि तभी आर्यांश ने हल्की, ना दिखने वाली स्माइल के साथ कहा, “शायद तुम मुझे थैंक्स कहना चाहती हो? है ना, मिस गोयंका?”

    आर्यांश की बात सुनकर दीवा आँखें बड़ी करके उसकी तरफ़ देखने लगी। कई बार वह काफी अजीब हरकतें करता था; दीवा के दिल में जो बात चल रही होती थी, वह अक्सर आर्यांश के जुबान पर होती थी।

    दीवा ने अपनी पलकें कई बार झपकाईं; उसे ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, “ऐसे कौन सामने से चलकर थैंक्यू डिमांड करता है, मिस्टर कपूर?”

    दीवा अभी भी खुद को ठीक से संभाल नहीं पा रही थी, तो आर्यांश ने उसे और कस के थाम लिया। अचानक उसने दीवा के होंठों पर हल्का सा किस करके कहा, “मैं थोड़ा अलग हूँ इस मामले में। अगर मैंने किसी की हेल्प की है, तो बदले में मुझे एप्रिसिएशन चाहिए।”

    आर्यांश की इस हरकत पर दीवा उसकी तरफ़ घूर कर देख रही थी। वह जितना आर्यांश से दूर होने की कोशिश करती, आर्यांश उसे उतना टाइटली पकड़ रहा था।

    दीवा ने कसमसाते हुए कहा, “छोड़ो मुझे, तुम बहुत अजीब हो।”

    दीवा को आर्यांश पर गुस्सा आ रहा था। भले ही उसने उसकी जान बचाई थी, पर अब वह उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। वह इस वक़्त उसे किसी ज़िद्दी आदमी की तरह लग रहा था।

    “तो मैं अजीब हूँ?” आर्यांश ने भौंहें उठाकर कहा, “हाँ, अजीब तो मैं हूँ।” इतना कहकर आर्यांश ने उसे एक झटके में छोड़ दिया था। उसे दीवा को इस तरह अपनी बुराई करना अच्छा नहीं लगा।

    आर्यांश की इस हरकत से दीवा को नशा एक झटके में उतर गया। उसने आर्यांश को घूरकर देखा और तेज आवाज़ में कहा, “तुम पागल हो क्या? अगर तुम्हें मुझे छोड़ना ही था, तो तुम मुझे पहले नहीं बता सकते थे क्या?” दीवा खुद की कमर को सहलाने लगी; गिरने की वजह से उसे दर्द हो रहा था।

    आर्यांश नीचे झुका और बोला, “मुझे अजीब किसने कहा था? अजीब लोग ऐसी ही हरकतें करते हैं।”

    दीवा का मन किया कि वह आर्यांश के बाल नोच ले। उसे गिरा हुआ देखकर भी आर्यांश के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे, मानो वह मन ही मन उसके इस हाल को इन्जॉय कर रहा हो।

    दीवा को लगा आर्यांश हाथ बढ़ाकर उसकी मदद करेगा, लेकिन वह तो हाथ बांधे उसे देख रहा था। दीवा जैसे-तैसे करके टेबल का सहारा लेकर खड़ी हुई और चिढ़कर बोली, “तुम सिर्फ़ अजीब ही नहीं, थैंकलेस और क्रुएल भी हो। एक लड़की यहाँ गिरी हुई है और तुम उसे उठाने के लिए हाथ भी नहीं दे सकते।”

    “ओह, रियली? थोड़ी देर पहले जब मैं तुम्हारी हेल्प कर रहा था, तब मैं अजीब था और अब जब मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ, तो मैं थैंकलेस और क्रुएल हो गया। अब तुम इतना कह रही हो, तो तुम्हारी हेल्प कर ही देता हूँ।” आर्यांश ने हल्का मुस्कुरा कर कहा। वह दीवा के पास बढ़ने लगा, तभी दीवा कुछ कदम पीछे हो गई।

    दीवा ने उसे हाथ के इशारे से वहीं रोकते हुए कहा, “रहने दो, मैं खुद कर लूँगी। मुझे तुम्हारी हेल्प की ज़रूरत नहीं है।”

    आर्यांश ने बिना कुछ कहे कंधे उचका दिए। दीवा ने काफी ड्रिंक कर रखी थी। हालांकि आर्यांश की बातों ने उसके दिमाग को काफी हद तक ठिकाने लगा दिया था, लेकिन उसके कदम अभी भी उसका साथ नहीं दे रहे थे। वह फिर से लड़खड़ाने लगी थी।

    दीवा ने लाचारी से आर्यांश की तरफ़ देखा, तो वह बोला, “किसने कहा था इतनी ड्रिंक करने के लिए? यही हरकतें रहीं, तो इसी तरह किसी गुंडे के बीच फँस जाओगी।”

    “तुम जैसे सनकी इंसान के साथ रहने से अच्छा है कि मैं उन गुंडों के बीच ही फँस जाऊँ, आर्यांश कपूर।” दीवा ने चिढ़कर जवाब दिया।

    आर्यांश आगे बढ़कर दीवा की मदद करना चाहा, लेकिन दीवा ने उसके हाथ को झटक दिया। तभी अचानक आर्यांश ने दीवा को अपने कंधे पर उठा लिया। उसकी इस हरकत पर दीवा की आँखें बड़ी हो गईं और वह उसके कंधे पर मारने लगी।

    “मुझे मारना बंद करो। तुम इस वक़्त बिल्कुल भी होश में नहीं हो। जब इंसान को किसी की ज़रूरत हो, तो उसे इतना एटीट्यूड नहीं दिखाना चाहिए। चुप करके बैठो।” आर्यांश ने सख़्ती से कहा और दीवा को इस तरह उठाकर क्लब के बाहर निकलने लगा।

    अब दीवा ने आर्यांश के कंधे पर मारना बंद कर दिया। उसने काफी आराम से अपना सर उसके कंधे पर टिका लिया। उसकी परफ़्यूम की स्मेल कमाल की थी, बिल्कुल उसकी पर्सनेलिटी की तरह उस खुशबू को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता था।

    बाहर आते ही ठंडी हवा के थपेड़े दीवा को अपने चेहरे पर महसूस हुए। उसे यह खुली हवा सुकून दे रही थी, पर अगले ही पल उसे हल्की ठंड लगने लगी। वह आर्यांश से चिपक गई। उसकी इस हरकत पर आर्यांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।

    आर्यांश ने उसे छेड़ते हुए कहा, “इन्जॉय कर रही हो?”

    आर्यांश की बात सुनते ही दीवा होश में आई। उसने अपनी आँखें बड़ी कीं और कहा, “ऐसा कुछ नहीं है। तुम मुझे नीचे उतारो।”

    आर्यांश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह अपनी गाड़ी के पास आया और उसने दीवा को पैसेंजर सीट पर बिठा दिया। वह खुद दीवा के पास, ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।

    आर्यांश ने एक नज़र दीवा की तरफ़ देखा और बोला, “तुम सीधे-सीधे बोल क्यों नहीं देती कि तुम्हें भी मेरे साथ अच्छा लगता है।”

    “इन योर ड्रीम्स।” दीवा ने चिढ़कर कहा और गाड़ी से उतरने की कोशिश करने लगी, लेकिन उससे पहले ही आर्यांश ने गाड़ी के दरवाज़े को लॉक कर दिया था।

    “चुप करके बैठो।” आर्यांश ने सख़्त आवाज़ में कहा और गाड़ी स्टार्ट कर ली।

    दीवा ने आगे कुछ नहीं कहा। वह सीट पर लीन हो गई और उसने अपनी आँखें बंद कर ली। वह यह भी नहीं जानती थी कि इस वक़्त आर्यांश उसे कहाँ लेकर जा रहा है।

    लगभग आधे घंटे बाद गाड़ी रुकी, तो दीवा ने अपनी आँखें खोलीं। आर्यांश ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और दीवा को बाहर आने को कहा।

    “यह हम कहाँ आ गए हैं और तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आए हो?” दीवा ने हैरानी जताते हुए पूछा। उसने आस-पास देखा तो उसे एक सेवन स्टार होटल का बोर्ड दिखाई दिया।

    आर्यांश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उसे अपनी गोद में उठा लिया। दीवा कुछ समझ नहीं पा रही थी। सच में, कई बार आर्यांश अजीब हो जाता था। उसने दीवा की बात का जवाब देने के बजाय उसे गोद में उठाकर होटल के अंदर जा रहा था।

    “प्लीज छोड़ दो मुझे। हम यहाँ क्यों आए हैं?” दीवा ने हल्का घबराकर पूछा, हालांकि इसका सवाल बहुत बेवकूफी भरा था। वह जानती थी कि आर्यांश इस वक़्त उसे होटल के रूम में लेकर जा रहा है।

    जैसा कि उसे अंदाज़ा था, कुछ ही देर में वह होटल के प्रेसिडेंशियल सुइट के अंदर थे।

    वहाँ आते ही आर्यांश ने दीवा को नीचे उतारा और उसके गाल पर हाथ रखकर कहा, “मुझे तुमसे उम्र भर का वादा नहीं चाहिए और ना ही मैं यह कहूँगा कि मेरे साथ प्यार करते हुए पूरी ज़िन्दगी बिताओ। बस एक रात, दीवा गोयंका; एक रात बिताओ और तुम्हारे पापा के सारे लोन मैं पे कर दूँगा। अब फ़ैसला तुम्हारा है।”

    दीवा कशमकश की स्थिति में आर्यांश के सामने खड़ी थी। उसके पास ना कहने का ऑप्शन था, लेकिन एक हाँ उसकी ज़िन्दगी बदल सकती थी। वैसे भी, कौन सा वह आर्यांश के करीब पहली बार जा रही थी।

    आर्यांश दीवा के जवाब का इंतज़ार कर रहा था। वहीं दीवा आँखों में उलझन लिए आर्यांश को देख रही थी।

    °°°°°°°°°°°°°°°°

    तो क्या होगा दीवा का फ़ैसला? क्या वह अपने पापा के लिए आर्यांश के साथ समझौता करेगी या फिर एक बार फिर आर्यांश की ईगो को नई चोट मिलेगी?

  • 20. Golden trap of billionaire - Chapter 20

    Words: 1963

    Estimated Reading Time: 12 min

    दीवा अपने क़ुलीग़ डॉक्टर्स के साथ क्लब में पार्टी कर रही थी। वहाँ ज़्यादा ड्रिंक करने के बाद दो लड़के उसके साथ बदतमीज़ी करने लगे। आर्यांश वहीं पर मौजूद था। उसने दीवा को उनसे बचाया और वहाँ से एक होटल में ले आया था।

    दीवा इस वक़्त आर्यांश के साथ होटल के प्रेसिडेंशियल सुइट में थी। आर्यांश ने दीवा के साथ रात बिताने की शर्त रखी थी, बदले में वह उसके पापा के सारे लोन चुकाने वाला था। अब फ़ैसला दीवा पर था, कि वह आर्यांश के आगे झुकती है या वहाँ से वापिस चली जाती है।

    दीवा उलझन में थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसने आर्यांश की तरफ़ देखा और कहा, “तुम यह क्यों कर रहे हो? तुम्हारे पास काफ़ी सारे ऑप्शन हैं। फिर तुम मेरे ही पीछे क्यों पड़े हो?”

    “तो तुम्हें इस बात से दिक्कत है कि मेरे पास काफ़ी सारे ऑप्शन हैं? सो कोई जल रहा है?” आर्यांश ने उसे परेशान करने के लिए कहा।

    दीवा उसकी तरफ़ घूरकर देखने लगी, कि तभी आर्यांश ने उसे पकड़कर बेड पर बैठा दिया था। ऐसा लग रहा था मानो आर्यांश हर हाल में आज दीवा को मनाने वाला था।

    दीवा गुस्से में खड़ी हुई और चिढ़ते हुए बोली, “मैं क्यों जलूँगी? तुम्हें जिसके साथ रात बितानी है, बिताओ, पर तुम इस तरह मेरे साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हो।”

    “मैं ज़बरदस्ती नहीं कर रहा। मैंने तुम्हारे सामने एक शर्त रखी है। अब उसे एक्सेप्ट करना या ना करना, तुम पर डिपेंड करता है।” आर्यांश बेपरवाही से बोला।

    “और मुझे तुम्हारी शर्त मंज़ूर नहीं है। समझे तुम... अब जाने दो मुझे यहाँ से। आगे से मेरे सामने भी मत आना।” दीवा गुस्से में उस पर चिल्लाई। उसकी आँखें नम होने लगीं। उसे अपने सभी दुःख याद आने लगे।

    आर्यांश की शर्त को नामंज़ूर करने का मतलब वह अच्छे से समझती थी। कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आने वाला था, पर फिर भी उसे आर्यांश के साथ एक रात का समझौता करना सही नहीं लगा।

    वहीँ दीवा के इनकार करते ही आर्यांश के चेहरे के भाव गहरे होने लगे। वह उसके साथ ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता था, ना ही पहले उसने किसी के साथ ऐसा किया था, पर दूसरा सच यह भी था, आज रात के लिए उसे दीवा चाहिए थी, वह भी उसके कंसेंट के साथ।

    दीवा उठकर वहाँ से जाने लगी। जल्दबाज़ी और गुस्से में उसका पैर नीचे रखे बड़े और भारी से वासबसे जा टकराया। दीवा लड़खड़ाकर नीचे गिरती, उससे पहले आर्यांश ने उसे अपनी मज़बूत बाहों में थाम लिया था।

    दीवा की आँखों में आँसू थे। वह सिसकते हुए बोली, “मैं थक गई हूँ। यह सब कब ख़त्म होगा?”

    “मुझे नहीं पता।” आर्यांश ने धीमी, शांत आवाज़ में कहा।

    आर्यांश ने एक झटके से दीवा को अपने बिल्कुल क़रीब कर लिया था। उनके होठों के बीच बस ना के बराबर फ़ासला रह गया था।

    दीवा की आँखों से आँसू का कतरा बह गया, तो आर्यांश ने उसे अपने होठों से थाम लिया था। अचानक दीवा के होठ खुद ही आर्यांश के होठों से जा मिले थे। अभी भी वह पूरी तरह होश में नहीं थी और अपने दुःखों में इस क़दर मदहोश हो चुकी थी कि उसे यह तक एहसास नहीं था कि थोड़ी देर पहले वह आर्यांश को खुद से दूर रहने को बोल रही थी और अब खुद ही उसके क़रीब चली गई थी।

    आर्यांश ने दीवा को कसकर अपनी बाहों में थाम लिया था और वह उसे काफ़ी पेशेंटली किस कर रहा था। अगले ही पल वह दोनों बेड पर थे। आर्यांश ने उसे लिटाया और अपनी जैकेट उतारने लगा। उसने दीवा के चेहरे की तरफ़ देखा जो गहरी साँस ले रही थी।

    “लगता है मुझसे ज़्यादा तुम्हें मेरे क़रीब आने की जल्दी लगी है। मैं बेवजह तुम्हारे सामने कोई शर्त रख रहा था, जबकि तुम तो इसके लिए पहले से तैयार थीं, दीवा गोयंका।” आर्यांश बोला, जिस पर दीवा हैरानी से उसकी तरफ़ देखने लगी।

    दीवा उठने की कोशिश करने लगी, तभी आर्यांश ने उसे हल्का सा धकेलकर वापिस लेटा दिया था। अगले ही पल उसके हाथ तेज़ी से दीवा की शर्ट के बटन खोल रहे थे। जलदबाजी में उसने कुछ बटन तोड़ भी दिए थे। फिर उसने देखा दीवा के बाईं तरफ़ ब्रेस्ट के नीचे एक बड़ा सा सर्जरी का निशान था, जिसे देखकर आर्यांश ने अपनी आँखें कसकर बंद कर दीं। उसके चेहरे पर दर्द उभर आया था।

    आर्यांश ने मन ही मन कहा, “भले ही तुम बच गई थीं, लेकिन दर्द तो तुमने भी सहा होगा।”

    दीवा कुछ कहती, उससे पहले आर्यांश फिर से उसके ऊपर आ गया था और उसने उसके होठों को कैप्चर कर लिया। यह दीवा का दुःख था, नशा, या फिर कुछ और, पर वह चाहकर भी आर्यांश को रेसिस्ट नहीं कर पा रही थी और एक बार फिर उन दोनों के बीच वही हुआ, जिसके लिए दीवा होश में रहकर कभी आर्यांश को हाँ नहीं कहती।

    अगली सुबह, आर्यांश दीवा को अपनी बाहों में जकड़े हुए सो रहा था। वह उसके चेहरे को काफ़ी गौर से देख रहा था। दीवा गहरी नींद में थी।

    आर्यांश ने घड़ी में टाइम देखा, तो सुबह के लगभग 8:00 बज रहे थे। वह 2 घंटे पहले ही उठ चुका था, लेकिन दीवा अभी भी गहरी नींद में थी। उसका मन नहीं कर रहा था कि वह दीवा को अकेले छोड़कर वहाँ से जाए।

    आर्यांश उसके चेहरे में खोया हुआ था, तभी दीवा उसकी बाहों में कसमसाने लगी। आख़िर आर्यांश ने उसे इतना कसकर जो पकड़ रखा था! दीवा की आँख खुली, तो आर्यांश उसके चेहरे के ऊपर झुका हुआ था और उसके चेहरे पर एक ईविल स्माइल थी।

    “तुम... तुम यह क्या कर रहे हो?” दीवा ने हड़बड़ाकर पूछा और उठने की कोशिश करने लगी।

    दीवा ने अपने सर को पकड़ा और कल रात की बातों के बारे में सोचने लगी। उसे सब तुरंत ही याद आ गया था। दीवा की आँखों से आँसू का कतरा बह गया था। एक बार फिर नशे में वो आर्यांश के साथ उसके क्लोज़ आई थी और वह इतनी बेवक़ूफ़ थी कि इस बार थोड़ा बहुत होश होने के बाद भी उसे खुद से दूर नहीं कर पाई।

    दीवा ने तुरंत अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर दिया था। वह आर्यांश का चेहरा भी नहीं देखना चाहती थी। तभी आर्यांश ने उसका चेहरा पकड़कर अपनी तरफ़ किया और हल्का मुस्कुराकर कहा, “गुड मॉर्निंग।”

    दीवा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और फिर से अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया। इसकी हरकतें आर्यांश को बिल्कुल भी गुस्सा नहीं दिला रही थीं।

    “क्या हुआ? अब तुम्हें मुझसे नफ़रत हो रही है?” आर्यांश ने सिर हिलाकर पूछा। फिर वह कुछ पल रुककर, इसी मुस्कुराहट के साथ बोला, “वैसे कल की रात कमाल की थी। ऐसा नहीं था कि हम पहली बार क्लोज़ आए थे, पर कल की बात ही अलग थी। तुम नशे में ज़रूर थीं, लेकिन ड्रग्स के नशे में तुम्हें बिल्कुल होश नहीं था और शराब के नशे में तुम मेरा पूरा साथ...”

    आर्यांश क्या कहना चाह रहा था, दीवा समझ गई। उसकी बात पूरी होने से पहले ही वह बीच में चिल्लाकर बोली, “अपना मुँह बंद रखो।”

    “ठीक है, जैसा तुम चाहो।” आर्यांश बोला और दीवा के ऊपर से खड़ा हो गया। उसने अभी भी कपड़े नहीं पहन रखे थे।

    दीवा भी उठकर बैठ गई थी और उसने खुद को ब्लैंकेट से कवर कर लिया। दीवा खुद में सिमटी हुई थी, इस लम्हे से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी।

    आर्यांश ने एक नज़र दीवा की तरफ़ देखा और फिर बोला, “वैसे तो तुमने कल रात मेरी शर्त को ठुकरा दिया था और खुद ही अपनी मर्ज़ी से मेरे क्लोज़ आई थीं, लेकिन फिर भी बताओ, तुम क्या चाहती हो?”

    दीवा को उस पर गुस्सा आ रहा था। उसने अपनी मुट्ठी बांध ली थी। वह गुस्से में गहरी साँस ले रही थी। उसे शांत करने के लिए आर्यांश ने दीवा के कंधे पर अपना हाथ रखा, लेकिन दीवा ने उसे झटककर खुद से दूर कर दिया था।

    दीवा ने आर्यांश की तरफ़ देखा और फिर काँपती, धीमी आवाज़ में कहा, “मेरे पापा...” दीवा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

    “डॉन्ट वरी, वह बिल्कुल ठीक हैं।” आर्यांश ने हल्की दिलकश मुस्कुराहट के साथ कहा।

    आर्यांश के चेहरे की मुस्कुराहट देखकर दीवा की घबराहट थोड़ी कम हो गई। वह जैसा भी था, लेकिन उसने अपना वादा निभाया था।

    दीवा चुपचाप बैठी थी, तो आर्यांश ने कहा, “चलो अब जल्दी से उठकर कपड़े पहन लो, मैं तुम्हें घर छोड़ दूँगा।”

    दीवा ने फिर से उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपना चेहरा ब्लैंकेट में छुपा लिया था। वह आर्यांश को फ़ेस भी नहीं करना चाहती थी। शायद इसकी एक वजह यह भी थी कि रात को मना करने के बाद भी कहीं ना कहीं आर्यांश के साथ उसने रात बिताई थी और उसके बदले में अपने पापा को बाहर निकालने की शर्त रख दी थी।

    दीवा को ज़िद करते देखकर आर्यांश ने हल्के सख्ती से कहा, “तुम यहाँ से नहीं उठने वाली हो?”

    दीवा अभी भी चुप थी। वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी, “इसे इतना भी समझ नहीं आता क्या, मुझे इसका फ़ेस नहीं करना है। यह खुद ही चला क्यों नहीं जाता यहाँ से।”

    दीवा आर्यांश पर गुस्सा उतार रही थी, तभी आर्यांश तेज़ और सख़्त आवाज़ में बोला, “अगर अगले एक मिनट में तुम बाहर नहीं निकलीं, तो आई बेट यू तुम फिर से मेरे नीचे मिलोगी, एंड आई विल रिपीट एवरीथिंग।”

    आर्यांश के धमकी देते ही दीवा जल्दी से ब्लैंकेट से बाहर निकली। उसके लंबे बाल उसके कॉलरबोन पर बिखरे हुए थे और वह अपनी ग्रे आइज़ से उसे घूर रही थी।

    आर्यांश दीवा की तरफ़ ईविल स्माइल के साथ देख रहा था। उसने मन ही मन बड़बड़ाकर कहा, “अरे वाह! मेरी एक छोटी सी धमकी से इतना असर हुआ? कितनी भोली हो तुम, दीवा गोयंका।”

    दीवा ने गहरी साँस ली और अपनी शर्ट की तरफ़ इशारा करके कहा, “मुझे दूसरे कपड़े चाहिएं, शायद यह फ़ट चुकी है।”

    रात को जल्दबाज़ी में आर्यांश ने ध्यान नहीं दिया था, पर दीवा को अनड्रेस करते हुए उसने उसकी शर्ट को डैमेज कर दिया था। आर्यांश ने पास की ड्रोर से एक ड्रेस निकालकर देते हुए कहा, “इसे पहन लो।”

    “ठीक है, लेकिन तुम बाथरूम में जाओ। उसके बाद मैं तैयार हो जाऊँगी।” दीवा ने अपनी शर्त रखते हुए कहा।

    कपड़े तो आर्यांश ने भी नहीं पहने थे, पर उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उसने ब्लैंकेट साइड किया और वैसे ही उठकर बाथरूम में जाने लगा, तो वहीं दीवा ने अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ कर लीं।

    कुछ ही देर में आर्यांश चेंज करके बाहर आ चुका था। उसने ब्लैक सूट पहना था, तो वहीं दीवा भी अब तैयार थी। दीवा ने पिंक कलर की वन पीस ड्रेस पहनी हुई थी। यह दीवा का फ़ेवरेट कलर था, जो आर्यांश को पता था।

    दीवा ने एक नज़र आर्यांश की तरफ़ देखा। वह हैंडसम लग रहा था और मासूम भी। दीवा ने आगे कुछ नहीं कहा और वह दरवाज़े की तरफ़ जाने लगी। उसके पीछे आर्यांश भी आया। जैसे ही वह पार्किंग में पहुँचे, दीवा हैरान रह गई। रात को वह दूसरी गाड़ी में वहाँ आई थी, लेकिन अब वहाँ पर एक ब्लैक कलर की लैम्बॉर्गिनी खड़ी हुई थी।

    “तुम कितना शो ऑफ़ करते हो।” अचानक दीवा के मुँह से निकला।

    “कोई बात नहीं, मेरे साथ रहते हुए तुम भी मेरी तरह शो ऑफ़ करना सीख जाओगी।” आर्यांश ने जवाब दिया।

    “इन योर ड्रीम्स! ना तो मैं तुम्हारे साथ रहने वाली हूँ और ना ही तुम्हारे जैसे बनूँगी, आर्यांश कपूर।” दीवा ने गुस्से में जवाब दिया और गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगी। वहीं आर्यांश उसकी तरफ़ खोई हुई निगाहों से देख रहा था।

    एक पल के लिए, आर्यांश को दीवा में किसी की परछाईं दिखाई दी—वही मासूमियत, वही बचकाना अंदाज़। उतनी ही ख़ूबसूरत और मासूम।

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    क्या लगता है, आर्यांश दीवा से कैसे जुड़ा हुआ है? एक और चैप्टर जल्द ही आएगा, और प्लीज़ आप पढ़कर समीक्षा किया करो।