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मेरे हमसफ़र

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तेगवंश राणा और गीत कंग – दो लोग, दो बिल्कुल अलग दुनिया। वंश एक अमीर और प्रभावशाली परिवार का इकलौता बेटा है। ऐश्वर्य, रुतबा और अहंकार उसके व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। दूसरी ओर है गीत कंग – एक अनाथ लड़की, जिसे हालात ने मजबूर किया, लेकिन जिसने अपनी आत्...

Total Chapters (70)

Page 1 of 4

  • 1. मेरे हमसफ़र - Chapter 1

    Words: 1435

    Estimated Reading Time: 9 min

    पहले पानी पी लूँ, फिर जाता हूँ डैड के पास। सोचता हुआ वह किचन में चला गया। किचन में प्रवेश करते ही उसने एक लड़की को देखा। उसने सफ़ेद कुर्ता-प्लाज़ो पहना हुआ था और गले में दुपट्टा डाला हुआ था। वह किचन के फर्श पर बिखरे कांच के टुकड़े उठा रही थी।

    वंश उसे देखता रह गया। बहुत गोरा रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, तीखी नाक, गुलाबी होंठ और रेशमी बाल जो खुले छोड़े हुए उसकी पीठ पर गिर रहे थे। उसके चेहरे पर, निचले होंठ के पास, एक काला तिल था जो उसके चेहरे पर बहुत जच रहा था। वंश भूल गया था कि वह किचन में क्यों आया था।

    कांच उठाते हुए एक टुकड़ा उसके हाथ में चुभ गया। उसकी हल्की सी चीख से वंश को होश आया।

    "अरे, आपको ध्यान रखना चाहिए।" वंश ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसके हाथ से खून निकल रहा था। उसने पानी का नल खोला और उसके हाथ को उसके नीचे रख दिया।

    "ऐसे यह ठीक हो जाएगा," वंश ने कहा।

    "कोई बात नहीं, मैं देख लूँगी।" उसने वंश के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया और फ्रिज से पानी पीकर वहाँ से चली गई।

    "कौन है ये?" वह अपने आप से कहता गया। वह स्टडी में चला गया।

    ----------------#######-------
    वापस जाते हुए, वंश गाड़ी चला रहा था और गीत उसके साथ बैठी हुई थी।

    "मुझे लगता है अब मुझे आपको तंग करना चाहिए," गीत ने मज़ाक में कहा।

    "मैंने कब रोका है?" वंश ने पूछा।

    "मैं तो तैयार हूँ भाई। मेरी बीवी को मुझे तंग करना चाहिए," वंश ने मुस्कुराते हुए कहा।

    गीत को ध्यान आया कि वह क्या कह रही है। वह चुपचाप गाड़ी चलाता रहा। गीत बाहर देखने लगी।

    "अब बाहर देखकर, कैसे मुझे तंग करना है? कोई प्लान बना रही हो?" वंश ने कहा।

    "हाँ, प्लान ही बना रही हूँ। मुझसे सलाह ले सकती हो। मैं बता दूँगा मुझे कैसे तंग करना है।"

    "अच्छा, तो फिर बताओ," गीत खुश होकर बोली।

    "मैं कुछ बातें बताता हूँ। वह मत करना, क्योंकि उनसे मैं ज़्यादा डिस्टर्ब हो जाऊँगा।"

    "अच्छा, बताओ तो सही।"

    "एक तो गाल पर किस करना, और होंठों पर तो बिल्कुल भी नहीं।" कहकर वंश ने उसे आई ब्लिंक की।

    गीत ने उसके कंधे पर मारा। "आपको बिल्कुल भी शर्म नहीं है।" वह बाहर की तरफ देखने लगी।

    "अब सारे राज एक ही दिन थोड़ी बताऊँगा। कुछ और भी बातें हैं।"

    गीत हँसकर दूसरी तरफ़ मुँह कर ली।

    "तुम इधर क्यों नहीं देख रही?"

    "मुझे नहीं पता कि आप ऐसे हैं।"

    "मैं तो बता रहा हूँ यह मत करना। अब क्या पता तुम्हारा मूड बन जाए।" वह पूरे शरारत के मूड में था।

    "आप गाड़ी इतनी स्लो क्यों चला रहे हैं? वह देखो, मोटरसाइकिल भी हमसे आगे जा रहे हैं।" उसने बात बदलते हुए कहा।

    "मेरा अपनी बीवी के साथ रोमांस करने का पूरा इरादा है। जाने की मुझे बिल्कुल भी जल्दी नहीं है।" वंश ने गीत का हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया।

    "बीवी का भी थोड़ा बहुत इरादा तो होगा रोमांस करने का।" उसने गीत की तरफ़ देखा।

    ------------###########---------
    एक महँगी स्पोर्ट्स बाइक हवा की स्पीड से आ रही थी। वहाँ पर कुछ लड़के-लड़कियाँ उसे देखने के लिए खड़े हुए थे।

    "वह देखो, सबसे पहले तेगवंश ही पहुँचा है।" उन लड़कों में से किसी ने कहा।

    "यह तो शर्त लगाने वाले की गलती है। तेगवंश कभी नहीं हारता।" उसके साथ खड़े दूसरे लड़के ने कहा।

    तभी, एंडिंग पॉइंट पर आकर बहुत तेज चलती हुई मोटरसाइकिल फिसल गई और उस पर बैठा हुआ लड़का मोटरसाइकिल के साथ गिर गया। एक लड़का भागकर उसके पास आया।

    "तुम ठीक तो हो ना, वंश?" उसने उसका हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया।

    "बिल्कुल, मैं ठीक हूँ, अविनाश।"

    "तुम्हें चोट तो नहीं आई?"

    "नहीं, थोड़ी सी शायद हाथ पर लगी है। कोई इतनी बड़ी बात नहीं।" वह लड़का खड़ा होकर अपने चेहरे से हेलमेट उतारता है।

    वहाँ इस रेस को देखने वाली लड़कियों के दिल अपनी जगह धड़कने लगे। तेगवंश राणा, राणा खानदान का इकलौता वारिस, 6 फीट 1 इंच लम्बा, गोरा रंग, बड़ी-बड़ी भूरी आँखें, चेहरे पर दाढ़ी और हेलमेट उतारने की वजह से बिखरे हुए हल्के काले बाल, एक्सरसाइज़ करके बनाई मस्कुलर बॉडी। बस देखने वाला उसे देखता ही रह जाता।

    तभी, जो बाइक पीछे थी, वह भी आ गई। दूसरा बाइक वाला अपनी बाइक रोककर अपना हेलमेट उतारता है।

    "मैंने तुमसे कहा था ना। जानते हो ना तेगवंश राणा कभी हारता नहीं है। स्पीड से कितना प्यार है। चलो अब चलें।" वह अपने दोस्त से कहता है।

    तभी एक लड़की उसके पास भागती हुई आती है।

    "अगर फ्री हो तो शाम को डिनर पर चलें।" वंश उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुराता है।

    "मुझे बहुत काम है। फिर कभी चलेंगे। अब मैं घर जा रहा हूँ।"

    वह अपनी बाइक स्टार्ट करता है। उसका दोस्त अविनाश उसके पीछे बैठ जाता है।

    "क्या हुआ? लड़की खूबसूरत थी। तुमने उसका इनविटेशन क्यों ठुकरा दिया?" अविनाश ने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा।

    "कोई ऐसी लड़की नहीं बनी जो वंश के दिल में उतर सके, और टाइम पास में मुझे दिलचस्पी नहीं है। मुझे तो सिर्फ़ स्पीड से प्यार है, मुझे इसी के साथ दोस्ती पसंद है।"

    वह दोनों घर की तरफ़ चल पड़ते हैं।

    "मगर पहले हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। तुम्हारा हाथ दिखा देते हैं।" अविनाश ने कहा।

    "कोई बड़ी प्रॉब्लम नहीं है।"

    फिर भी, उसका दोस्त उसे जबरदस्ती डॉक्टर के पास ले जाता है। बस मसल्स पेन है, कोई बड़ी बात नहीं। डॉक्टर उसे कह देता है और उसके हाथ पर गर्म पट्टी बाँध देता है।

    वह दोनों राणा मेंशन की तरफ़ जाते हैं। रास्ते में फिर अविनाश उसे कहता है, "तुम्हें उस बेचारी लड़की का दिल ऐसे नहीं तोड़ना चाहिए। क्या फ़र्क पड़ जाता अगर तुम उसके साथ लंच पर चले जाते।"

    "पता है इन लड़कियों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम क्या है? कि सारा टाइम फ़्री चाहिए होता है। ये रूठती हैं, इन्हें मानना पड़ता है, इन्हें गिफ़्ट देने पड़ते हैं, इन्हें फ़ूल भेजने पड़ते हैं, इनका जन्मदिन याद रखना पड़ता है। फिर तो आदमी इनका गुलाम हो जाता है, और मुझे किसी लड़की की ज़रूरत नहीं अपनी लाइफ़ में।" वंश मुस्कुराकर कहता है।

    "अगर तुम्हें प्यार हो गया तो?" अविनाश कहाँ उसका पीछा छोड़ने वाला था।

    "आज तक तो नहीं हुआ। हम लोग स्कूल में, कॉलेज में, फिर एमबीए किया। मैं कभी इश्क़-विश्क़ में नहीं पड़ा। मुझे कोई अच्छी नहीं लगी।"

    "सही बात है, तुम्हारे गुस्से को कोई झेल भी नहीं सकता, सिवाय मेरे।" अविनाश ने कहा।

    "बिल्कुल, मेरे गुस्से को झेलना ज़रा मुश्किल है। मगर तुम मुझे झेलते हो। मैं तुम्हारी बकबक झेलता हूँ।" वंश ने कहा।

    "आज तुम्हें क्या ज़रूरत थी उसके साथ रेस लगाने की?"

    "उसने मुझे चैलेंज किया। थोड़ा कूल रहा करो।" अविनाश उसे फिर कहता है।

    वे एक बेहद खूबसूरत घर के अंदर जाते हैं और बाइक खड़ी कर हाल में जाते हैं। वहाँ हाल में एक बेहद खूबसूरत औरत बैठी हुई है।

    "आओ बेटा, आओ।" औरत ने कहा।

    "मुझे पता लगा है तुम्हें चोट लगी है।"

    "आपको किसने बताया?" वंश पूछता है।

    तभी किचन से मेड के साथ एक खूबसूरत सी लड़की बाहर आ रही है, जिसने बेहद स्टाइलिश ड्रेस पहनी हुई है।

    "मैंने बताया।" लड़की कहती है।

    "अरे सिया तुम! तुम्हें क्या ज़रूरत थी मॉम को बताने की?"

    "अगर ये नहीं बताती तो मुझे पता भी नहीं चलता।"

    उनकी सारी बात वंश के डैड, जो अभी हाल में आए थे, ने सुन ली।

    "कहाँ पर चोट लगी तुम्हें?" वह गुस्से से बोले।

    "डैड, कुछ नहीं हुआ।" वंश ने कहा और डैड ने उसका हाथ पकड़ कर देखने लगा।

    "इसीलिए मैं तुम्हें रोकता हूँ। इतनी स्पीड पर क्यों बाइक चलाते हो?"

    "इतने सालों से चला रहा हूँ, कभी कुछ हुआ नहीं।" वंश ने कहा।

    उसके डैड उसे गुस्से से देखते हुए अपनी स्टडी में चले जाते हैं।

    "तुम्हें ज़रूरत नहीं थी चुगली करने की।" वंश ने सिया से कहा।

    "यह चुगली नहीं है। वह तुम्हारा फ़िक्र करती है।" उसकी मॉम कहने लगी।

    "बिल्कुल, हम लोग बचपन से दोस्त हैं।" वह वंश को कहती है।

    "और ये मेरी भी दोस्त है।" उसकी मॉम ने हँसकर सिया का हाथ पकड़ लिया।

    "ठीक है, मैं जा रहा हूँ।" अविनाश, जो सबकी बातें सुन रहा था, खड़ा हो गया।

    "ठीक है, तुम गाड़ी ले जाना।" वंश ने उससे कहा।

    "नहीं, मैं टैक्सी में चला जाऊँगा।" अविनाश बाहर की तरफ़ चला जाता है।

    "मैं भी रूम में जा रहा हूँ, थका हुआ हूँ।"

    "भाई, क्या हुआ?" इतने में वही हाल के एक रूम से एक लड़की व्हीलचेयर पर बाहर निकलती है।

    "कुछ नहीं हुआ सोना मेरी जान।" वंश ने कहा।

    वह वहाँ आ जाती है। "बस मॉम की तो आदत है ऐसे ही फ़िक्र करने की।" वह सोना को कहता है और फिर ऊपर अपने रूम की तरफ़ चला जाता है।

  • 2. मेरे हमसफ़र - Chapter 2

    Words: 1022

    Estimated Reading Time: 7 min

    तेगवंश राणा, राणा ग्रुप के मालिक राजवीर राणा के इकलौते बेटे थे। वे बहुत जिद्दी और गुस्से वाले थे। काम में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी; बाइक चलाना उनका पसंदीदा काम था। वे गाड़ी भी बहुत तेज चलाते थे। जिस यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमबीए किया था, वहाँ के टॉपर थे। पढ़ाई में वे हमेशा बहुत अच्छे रहे थे। लड़कियों से उनकी कभी नहीं बनती थी क्योंकि वे लड़कियों के नखरे नहीं उठा सकते थे। अविनाश मेहरा उनके बचपन का दोस्त था। अविनाश उनके ही ऑफिस में काम करता था और सिया कपूर, वह भी उनकी बचपन की दोस्त थी।

    वह मन ही मन उन्हें चाहती थी, मगर तेगवंश राणा के मन में उनके लिए ऐसी कोई भावना नहीं थी। वह एक दोस्त के रूप में उन्हें पसंद करता था।


    राजवीर राणा की पत्नी नीता राणा एक बेहद स्टाइलिश औरत थीं, जिसे अपनी अमीरी और अपनी खूबसूरती पर गुमान था। उन्हें अपने बेटे से बहुत प्यार था, मगर वे अपनी बेटी को पसंद नहीं करती थीं।

    क्योंकि वह व्हीलचेयर पर थी।


    उन्हें लगता था कि अगर सोना पैदा ही ना होती तो अच्छा होता। उसे देखकर उन्हें टेंशन आ जाती थी। उन्हें सिया बेहद पसंद थी क्योंकि सिया उन्हें अपनी ही तरह स्टाइलिश लगती थीं और वे उन्हें अपनी बहू बनाना चाहती थीं।


    सिया के पिता नहीं थे; उनकी केवल माँ थी और वह नीता की अच्छी सहेली थी। राजवीर राणा को वंश की बहुत फिक्र थी क्योंकि आजकल उसकी सेहत ज्यादा अच्छी नहीं रहती थी। उन्हें लगता था कि अगर उनके बेटे ने उनका बिजनेस नहीं संभाला तो क्या होगा। वे किसी भी तरह से अपने बेटे को काम के प्रति जिम्मेदार बनाना चाहते थे।


    उन्हें अपने दोनों बच्चे, वंश और सोना, बहुत प्यारे थे। अपनी पत्नी से वे प्यार तो करते थे, मगर वे उसके बारे में हर बात जानते थे। इसलिए उन्हें अपने दोनों बच्चों की फिक्र थी। वे स्टडी में बैठे हुए वंश के बारे में सोच रहे थे।

    "क्या करूँ मैं तुम्हारा?"
    "कुछ तो करना होगा मुझे।"


    तभी उन्होंने किसी को फोन लगाया।

    "कैसी हो आप? मुझे आपसे मिलना है।"
    "ठीक है, मैं कल आ रहा हूँ।" उन्होंने फोन काट दिया।


    "यही सही रहेगा। मुझे वंश के लिए फैसला करना होगा।" उन्होंने अपने मन में वंश के लिए एक फैसला किया।

    "एक बार तुम्हें मेरी बात अच्छी ना लगे, मगर जैसे-जैसे टाइम बीतेगा, तुम समझोगे कि तुम्हारे डैड ने यह फैसला क्यों किया।"


    वे अपने पीए को फोन लगाते हैं।

    "पंजाब जाने के लिए मेरी फ़्लाइट की टिकट बुक करो। मुझे पंजाब तो जाना होगा। गीत से मांगना है। मुझे उसकी माँ से उम्मीद है, वह मुझे इनकार नहीं करेगी।"


    राजवीर राणा की टिकट बुक हो चुकी थी। उन्हें जहाँ से चंडीगढ़ जाना था और चंडीगढ़ से बाय रोड संगरूर, जो चंडीगढ़ से ज़्यादा दूर भी नहीं था। जिसके पास वे जा रहे थे, उसका गाँव पंजाब के संगरूर शहर से बिल्कुल नज़दीक था। वे अगले दिन शाम होने को आई थी जब उस गाँव में पहुँचे। उन्हें उस घर का पता मालूम था; वे वहाँ पहली बार नहीं आये थे। जैसे ही वे दरवाज़े पर पहुँचे, दरवाज़े पर ताला लगा था। उन्होंने अपना फ़ोन निकाल कर किसी नंबर पर फ़ोन लगाया, मगर फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था।


    उन्होंने आस-पास देखा। वहाँ पास में जो घर था, वे उस घर में चले गए।

    "क्या बता सकते हैं, जो इस घर में रहते हैं, वे कहाँ गए हैं?"

    "अच्छा, आप सामने वाले घर में जो बहन जी रहती हैं, उनकी बात कर रहे हैं। वह बीमार हैं, अस्पताल में हैं।"


    राजवीर उस अस्पताल का पता लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं। वे अस्पताल के काउंटर से पता करते हुए वहाँ पर पहुँचते हैं जहाँ वह एडमिट थीं। वहाँ एक औरत आँखें बंद किए लेटी हुई थी। एक बेहद खूबसूरत सी लड़की उसके पास कुर्सी पर बैठी किसी सोच में थी।

    "गीत।" राजवीर राणा ने कहा। वह उनकी तरफ़ देखती है।

    "अंकल।" वह खड़ी होकर उनके गले लग जाती है।

    "बेटा, क्या हुआ बहन जी को?"

    "अटैक आया है। हम लोग बाहर चल कर बात करते हैं। अभी दवा के असर से माँ सो रही है।" वे दोनों वहाँ से बाहर हॉस्पिटल के वेटिंग एरिया में आ जाते हैं।

    "क्या हुआ बेटा? अब बताओ।"

    "माँ को हार्ट अटैक आया है। बहुत सीरियस है।" गीत ने रोते हुए कहा।

    "मैं हूँ ना, तुम क्यों फ़िक्र करती हो?" राजवीर जी ने कहा।


    गीत के पिता गुरजीत सिंह और राजवीर राणा कभी दोस्त थे। गीत के पिता का अपना ट्रक था। ट्रक लेकर वे पूरे देश में जाते थे। एक बार किसी ने राजवीर राणा की गाड़ी पर लूटने के लिए हमला कर दिया था, तो उन्होंने जान पर खेल कर राजवीर की जान बचाई थी। दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे और दोनों अक्सर मिलते रहते थे।


    गुरजीत की पत्नी भी एक बहुत अच्छी औरत थीं। यह बात अलग थी कि राजवीर की पत्नी नीता ने कभी गुरजीत और उसकी पत्नी को पसंद नहीं किया था। उन्हें हमेशा से मिडिल क्लास लोगों से नफ़रत थी।


    इसलिए गुरजीत और उनकी फैमिली कभी राजवीर के घर नहीं गए थे, मगर राजवीर काफ़ी बार उनके पास पंजाब आया था। वे जब भी काम के सिलसिले में चंडीगढ़ आते तो उनसे मिलने ज़रूर आकर जाते थे। उन्हें गुरजीत और उनकी पत्नी के साथ-साथ उनकी बेटी गीत बहुत पसंद थी। तो आज वे इरादा करके आए थे कि उन्हें अपने लापरवाह बेटे के लिए गीत चाहिए थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके घर को जैसी लड़की की ज़रूरत है जो उनके घर और बेटे दोनों को संभाल सके।

  • 3. मेरे हमसफ़र - Chapter 3

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    जब गीत की माँ राजवीर जी को देखकर बहुत खुश हुई।

    "आज मुझे आपसे कुछ मांगना है।"

    "ऐसा क्यों कह रहे हैं भाई साहब?"

    "नहीं। सच कह रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ आप मुझे मना नहीं करेंगी।"

    "तो फिर कहिए, क्या चाहिए?"

    "मुझे आपका जिगर का टुकड़ा चाहिए।" राजवीर ने गीत की तरफ देखते हुए कहा। गीत की माँ ने राजवीर जी को हैरानी से देखा।

    "आप सही समझ रही हैं। मुझे वंश के लिए गीत चाहिए।"

    अब तक गीत की माँ की सबसे बड़ी टेंशन यही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका अंतिम समय आ चुका है। एक अकेली लड़की के लिए रहना कितना मुश्किल है, उसे पता था। तो अब उसकी सबसे बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व हो गई थी और शायद उसका मरना भी आसान हो गया था।

    "मुझे और क्या चाहिए अगर आप इसे अपनी बेटी बनाकर ले जाएँगे? मेरे पास तो टाइम नहीं है, मैं मरने वाली हूँ।"

    "मगर मैं आपके हाथ अपनी बेटी सौंप रही हूँ।" गीत की माँ ने राजवीर से कहा।

    गीत हैरानी से उन दोनों की बातें सुन रही थी। असल में गीत और वंश, वे दोनों कभी एक-दूसरे से नहीं मिले थे। हाँ, उसके बारे में गीत ने सुना जरूर था।

    गीत की माँ की हालत गंभीर बनी हुई थी। डॉक्टर उन्हें जवाब दे चुके थे। गीत को उन्होंने बता दिया था कि वह थोड़े ही टाइम की मेहमान है।

    गीत की माँ ने गीत को अपने पास बैठाया।

    "मेरे पास बैठो बेटा। एक वादा करो तुम। अब यही तुम्हारे पापा हैं। इनकी हर बात माननी है। जैसे तुमसे ये कहेंगे, वैसा करोगी। तुम उनके बेटे को नहीं जानती। वो बहुत अच्छा लड़का है। भाई साहब उनसे तुम्हारी शादी करना चाहते हैं।"

    "मगर माँ," गीत बोली।

    "मेरी बात बीच में मत रोको। तुम्हें उससे शादी करनी है और सबसे बड़ी बात, हर हाल में शादी को निभाना है। हो सकता है एक बार तुम्हारे आगे थोड़ी मुश्किल हो, फिर भी तुम्हें मुश्किलों का सामना करना है और देखना, मुश्किलों के बाद तुम्हारी ज़िंदगी बहुत आसान होगी। माँ की यह बात याद रखना।"

    गीत को उनकी बात का मतलब तो समझ नहीं आया था, मगर आज तक तो उसने अपने माँ-बाप की कोई बात नहीं मोड़ी थी। उसी रात गीत की माँ की डेथ हो गई थी। राजवीर जी उनके क्रिया-कर्म और सारी रस्मों के बाद उसे अपने साथ ले गए थे।

    गीत अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी थी। वह एक बहुत प्यारी और जिम्मेदार लड़की थी और देखने में भी बहुत खूबसूरत थी। मगर फिर भी वंश राणा और गीत का कोई मुकाबला नहीं था।

    वो विदेश में पढ़ा मॉडर्न लड़का था, बिल्कुल डिफरेंट लाइफस्टाइल जीने वाला। गीत मिडिल क्लास फैमिली की सीधी-साधी लड़की थी।

    इस बात से अनजान नीता राणा, कि उसके पति के दिमाग में क्या चल रहा है, वह अपने बेटे की शादी का अलग ही प्लान बना रही थी। उसे सिया बेहद पसंद थी। वो उसकी सहेली की बेटी थी और सिया वंश की वजह से अक्सर ही उनके घर आती थी। वंश से उसकी दोस्ती तो थी, मगर वंश ने तो फिर भी उस नज़र से नहीं देखा था। इसीलिए वो उसकी माँ से दोस्ती रखती थी ताकि वह वंश के ज़्यादा आसपास रह सके।

    नीता जी ने सोच लिया था कि वह वंश के लिए सिया की माँ से बात करेंगी। अगर उसकी माँ हाँ कहती है तो फिर वह बात वंश से भी करेंगी। उसे यकीन था कि वंश को सिया पसंद है।

    "आज आप लोग हमारे घर खाने पर आ सकते हो।" नीता ने सिया की माँ को फोन किया।
    "असल में मुझे आपसे बात करनी है।"

    "बिल्कुल आएंगे।"

    "ऐसी क्या ज़रूरी बात है?"

    "आप लोग आ जाओ, शायद आज वंश के डैड भी घर आ जाएँगे। मुझे सिया पसंद है अपने वंश के लिए, तो मैं आज उनके पापा से भी बात करूँगी।"

    वह दोनों माँ-बेटी खुश हो गई थीं और सिया तो बहुत ज़्यादा खुश थी।

    राजवीर गीत को लेकर शाम तक अपने घर पहुँचे। घर के अंदर जाकर अपनी वाइफ नीता को गीत से मिलवाते हैं।

    "तुम मेरे दोस्त गुरजीत को तो जानती ही हो, उनकी बेटी है। अब यही हमारे साथ रहेगी।"

    फिर सुमित्रा, जो कि उनका पूरा घर संभालती थी, उसे बुलाते हैं।

    "गीत को जो नीचे गेस्ट रूम है उसमें ठहरा दो। जाओ बेटा, तुम बहुत थकी होगी। अब जाकर रेस्ट करो।" वह गीत को सुमित्रा के साथ भेज देते हैं।

    गीत के जाने के बाद नीता ने कहा,
    "आप इसे यहाँ क्यों लेकर आए हैं?"

    "इसका दुनिया में कोई नहीं रहा, इसलिए मैं इसे यहाँ लाया हूँ।"

    "अगर इसका कोई नहीं है तो क्या हमारा घर अनाथ आश्रम है जो इसे यहाँ ले आए?"

    "बिल्कुल भी नहीं है। इसकी वंश से शादी करनी है। इसीलिए मैं इसे यहाँ लेकर आया हूँ।" राजवीर ने चेहरा सख्त करते हुए कहा।

    सिया और उसकी माँ जो कि अंदर लॉबी में इंटर हो रही थीं, उन्होंने सुन लिया। वह दोनों एक-दूसरे के चेहरे की तरफ देखती हैं।

    "मगर शादी का फैसला ऐसे कैसे कर सकते हैं? यह कभी नहीं हो सकता। वंश भी नहीं मानेगा।"

    "तुम माँ-बेटी क्या चाहती हो, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। होगा वही जो मैं चाहूँगा।" राजवीर ने गुस्से से कहा और उसे अपने घर में जो ऑफिस था उसमें चला गया।

    नीता को बहुत गुस्सा आ रहा था। राजवीर से ज़्यादा उसे गीत पर गुस्सा था।

    "आओ बेटा, यह तुम्हारा कमरा है।" सुमित्रा ने गीत से कहा।

    "जी, शुक्रिया।"

    "तुम क्या लोगी बेटा?"

    "नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए।" गीत ने कहा।

    सुमित्रा वहाँ से चली गई। गीत बेड पर लेट गई थी। उसके सामने नीता ने चाहे कुछ भी नहीं कहा था, मगर वो नीता के चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर सब समझ गई थी। अब उसे माँ की बात याद आ रही थी कि हर हाल में उसे यहाँ रहना है। मगर वो ये नहीं जानती थी कि अभी तो उसकी ज़िंदगी में मुश्किलों की शुरुआत हुई ही नहीं थी।

  • 4. मेरे हमसफ़र - Chapter 4

    Words: 991

    Estimated Reading Time: 6 min

    आंटी अंकल ये क्या कह रहे हैं? सिया ने नीता से कहा।

    "नहीं बेटा, तुम फिकर मत करो। जो मैं चाहूंगी वही होगा और तुम्हें क्या लगता है, वंश मान जाएगा! इस लड़की से शादी करने के लिए।"

    "मुझे लगता है हमें इस वक्त चलना चाहिए," सिया की माँ ने कहा।

    "आप बैठो, क्यों जा रहे हो?"

    "नहीं, आपके घर का मसला है और आपको सॉल्व करना है," सिया की माँ ने कहा।

    "मगर मॉम," वो अपनी माँ से कहने लगी।

    "नहीं बेटा, अब चलो मेरे साथ।" सिया की माँ उसे लेकर वहाँ से चली गई।

    "मॉम आपने मुझे वहाँ क्यों नहीं रुकने दिया?"

    "बेटा, तुम देख रही हो ना उनके घर का माहौल? जहाँ मेरी बेटी को इज़्ज़त नहीं मिलेगी। मुझे वहाँ कोई दिलचस्पी नहीं। तेगवंश नहीं तो और लड़का मिल जाएगा।"

    "माँ, आप अच्छे से जानती हैं, मैं उसे चाहती हूँ।"

    "मगर वह तुम्हें नहीं चाहता है। वह तुम्हें सिर्फ दोस्त समझता है।"

    "मुझे अच्छे से पता है," सिया ने गुस्से से कहा।

    "सबसे बड़ी बात, जैसा वंश के साथ हो रहा है, वैसा हम लोग तो सोच भी नहीं सकते। वंश की शादी तय हो चुकी और वंश को बताया नहीं। उनके घर का माहौल ऐसा है! हमसे वह लोग बहुत डिफरेंट हैं और तुम्हें उसका पीछा छोड़ देना चाहिए।"

    अपनी माँ के ऐसा कहने पर सिया गुस्से में घर से बाहर निकल गई थी।

    दूसरी तरफ, वंश घर के अंदर इंटर करता है।

    "मॉम, डैड कहाँ हैं? उन्होंने मुझे बुलाया है।"

    "वह स्टडी में बैठे हैं।"

    वंश स्टडी में जाने लगा। पर उसे प्यास फील हुई।

    "पहले पानी पी लूँ, फिर जाता हूँ डैड के पास," सोचता हुआ वह किचन में चला गया। वह किचन में इंटर करता है तो वहाँ पर एक लड़की, जिसने व्हाइट कलर का कुर्ता-पाजामा पहना हुआ था और गले में दुपट्टा था, किचन की फर्श पर बिखरे हुए कांच के टुकड़े उठा रही थी।

    वंश उसकी तरफ देखता रह गया। बहुत ज्यादा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, तीखी सी नाक, गुलाबी होंठ और रेशमी बाल जो ऐसे ही खुले छोड़े हुए उसकी पीठ पर आ रहे थे। उसके चेहरे पर, उसके निचले होंठ के पास काला तिल था जो चेहरे पर बहुत जच रहा था। वंश भूल गया था कि वह किस लिए किचन में आया था।

    उस लड़की को कांच उठाते हुए कांच का टुकड़ा उसके हाथ में चला गया और उसकी हल्की सी चीख से वंश को होश आया।

    "अरे, आपको ध्यान रखना चाहिए।" उसने उसका हाथ पकड़ लिया। उसके हाथ में से खून निकल रहा था। वह पानी की टैप चलाकर उसके नीचे हाथ रख देता है।

    "ऐसे यह ठीक हो जाएगा," वंश ने कहा।

    "कोई बात नहीं, मैं देख लूँगी।" वह वंश के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लेती है। वह फ्रिज में से पानी पीता हुआ वहाँ से चला जाता है।

    "कौन है ये?" वह अपने आप से कहता जा रहा था। वह स्टडी में चला गया।

    "डैड, आपने मुझे बुलाया?" वह जाकर अपने डैड के सामने चेयर पर बैठ गया।

    "हाँ बेटा, मैंने तुम्हें बुलाया था।"

    "जल्दी बताओ, आपने मुझे किस लिए बुलाया?"

    "मैंने तुम्हारी शादी तय कर दी है! उस लड़की से तुम्हें मिलवाना है।"

    "आप मुझसे मज़ाक कर रहे हैं?" वंश हँसते हुए।

    तभी राजवीर सुमित्रा को फोन लगाता है।

    "सुमित्रा, गीत को स्टडी में लेकर आओ।"

    "गीत कौन है?" वंश पूछता है।

    तभी सुमित्रा स्टडी में दाखिल होती है। उसके पीछे गीत आ रही है।

    "यह गीत है, मेरे दोस्त की बेटी। बहुत जल्दी तुम दोनों की शादी हो रही है। मुझे तुम्हें गीत से मिलाना था।"

    "पहली बात तो मुझे शादी ही नहीं करनी। मैं इससे शादी कभी नहीं करने वाला," वंश गुस्से में था।

    "शादी तो तुम्हें हर हाल में करनी पड़ेगी," उसके डैड ने कहा।

    गीत हैरानी से उन दोनों बाप-बेटों को देख रही थी।

    "करूँगा तो मैं वही जो मुझे अच्छा लगेगा।" कहता हुआ वह स्टडी से बाहर निकल गया।

    तब तक नीता भी वहाँ आ गई।

    "आप उसके साथ ऐसा नहीं कर सकते," उसने कहा।

    राजवीर ने सुमित्रा को इशारा किया। वह गीत को लेकर वापस वहाँ से चली गई।

    "जिसे मेरी बात ना पसंद आए, वह घर छोड़ कर जा सकता है। मुझे इसके बारे में बात नहीं करनी," राजवीर ने नीता से कहा।

    नीता उसकी बात सुनकर हैरान थी। वहीं वंश गुस्से से घर से निकल गया था। तभी नीता सिया को फोन करती है।

    "वो गुस्से से घर से निकला है। मेरा फोन भी नहीं उठा रहा। जरा देखो भी वह कहाँ है।"

    "आंटी, मैं अभी पता करती हूँ।" सिया वंश को फोन मिलाने की कोशिश करती है, मगर वंश का फोन ऑफ आ रहा है।

    "पता है मुझे तुम कहाँ हो।" वह उसे ढूँढती हुई वहाँ चली जाती है। वह गाड़ी से लगा हुआ खड़ा हुआ था। सिया उसके पास जाती है।

    "क्या हुआ वंश? तुम्हारी मॉम बहुत परेशान है, तुम जहाँ पर हो।"

    "देखो सिया, इस वक्त तुम जहाँ से जहाँ चली जाओ, मैं बहुत परेशान हूँ।"

    "मुझे पता है तुम्हारी परेशानी का कारण। एक ग़वार लड़की के साथ तुम्हारी शादी कैसे हो सकती है?"

    "मुझे सभी समझते हैं, सिवाय मेरे डैड के।"

    "फिर भी तुम जाओ जहाँ से।" वो सिया को वहाँ से भेज देता है।

    ना चाहते हुए भी सिया को वहाँ से जाना पड़ता है।

    फिर वह अपने दोस्त अविनाश को फोन लगाता है।

    "अब मैं क्या करूँ अविनाश?" वह अविनाश को सारी बात बताता है।

    "तुम उस लड़की से बात क्यों नहीं करते? शायद अगर तुम दोनों इकट्ठे अपने डैड से बात कहोगे कि तुम दोनों को शादी नहीं करनी, तो तुम्हारे डैड मान जाएँगे।"

    "मुझे पता था मेरा दोस्त हमेशा बेस्ट होता है।" तो वह इस वक्त घर वापस चला जाता है, गीत से बात करने के लिए।

  • 5. मेरे हमसफ़र - Chapter 5

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    फिर उसने अपने दोस्त अविनाश को फोन किया।

    "अब मैं क्या करूँ अविनाश?" उसने अविनाश को सारी बात बताई।

    "तुम उस लड़की से बात क्यों नहीं करते?"

    "शायद अगर तुम दोनों इकट्ठे अपने डैड से बात कहोगे कि तुम दोनों को शादी नहीं करनी, तो तुम्हारे डैड मान जाएँगे।"

    "मुझे पता था मेरा दोस्त हमेशा बेस्ट होता है।" वह घर वापस चला गया, गीत से बात करने के लिए।

    वह उसी वक्त घर वापस चला गया। काफी रात हो चुकी थी। उसने गीत के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। समय देखते हुए गीत ने कमरे का दरवाज़ा खोला।

    "अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम ना हो, मैं तुमसे दो मिनट बात कर सकता हूँ?"

    "ठीक है।" वह कमरे के अंदर आ गई और वंश उसके पीछे।

    "देखो, मैं शादी नहीं करना चाहता तुमसे। मुझे अभी किसी से शादी नहीं करनी और फिर तुम्हें तो मैं जानता भी नहीं हूँ। तुम भी मुझे नहीं जानती। ऐसे इंसान के साथ तुम भी शादी नहीं करना चाहोगी। जब हम दोनों कहेंगे कि हम दोनों को शादी नहीं करनी, यह शादी कैंसिल हो जाएगी। चलो, डैड से बात करते हैं।"

    वह बाहर की तरफ जाने लगा। वह उसके पीछे नहीं आई। वह फिर गीत से बोला,

    "आ जाओ।"

    "नहीं, मुझे नहीं जाना।" गीत ने कहा।

    "तो तुम पैसों की वजह से मुझसे शादी करना चाहती हो? स्टेटस, पैसा, ज्वेलरी, प्रॉपर्टी, हर चीज मिल जाएगी तुम्हें, मगर याद रखना, मैं तुमसे कभी शादी नहीं करने वाला हूँ, तुम जैसी लालची लड़की से तो कभी नहीं।" वह गुस्से में वहाँ से चला गया।

    "माँ, आपने मुझे किस मुसीबत में डाल दिया है? जो लड़का मुझसे शादी नहीं करना चाहता, मैं उससे शादी करने जा रही हूँ। सोचो, उसके मन में क्या इज्जत होगी मेरी? जो लड़की उसकी मना करने के बावजूद उससे शादी के लिए तैयार है। आपको मुझसे ऐसा प्रॉमिस नहीं लेना चाहिए था।" गीत परेशान हुई, वहाँ नीचे बैठ गई और खूब रोई।

    उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह शादी के लिए कैसे मना करे। क्योंकि उसने अपनी माँ को प्रॉमिस किया था और उसकी माँ ने कहा था कि उसे उसके अंकल की हर बात माननी है।

    "मुझे नहीं पता माँ, आपने मुझे ऐसा क्यों कहा कि मुझे अंकल की हर बात माननी है। जैसे आपने कहा था, मैं वैसा ही कर रही हूँ। देखती हूँ क्या होता है, मगर इस टाइम मैं बहुत दर्द और तकलीफ में हूँ। ऐसी बेइज्जती मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।" कितनी देर कमरे में बैठकर वह रोती रही।

    सिया नीता के पास घर आई हुई थी। सिया नीता के पास बैठकर रो रही थी।

    "बेटा, फिक्र मत करो। यह शादी कभी नहीं होगी। तुम ही मेरी पसंद हो, तुम ही मेरी बहू बनोगी। अगर मुझे पहले पता होता तो मैं यह सब नहीं होने देती।"

    "आंटी, मुझे समझ नहीं आ रहा अंकल वंश के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? आजकल के जमाने में ऐसी शादी कौन करता है?"

    "तुम मेरी एक बात ध्यान से सुनो। जितना हो सके तुम इस टाइम वंश के साथ रहो। वह बहुत परेशान है। इस वक्त तुम उसका साथ दो, तो वह तुम्हें दोस्त से ज्यादा मानने लगेगा।"

    वंश अपने कमरे में परेशान बैठा था।

    "बहुत लालची लड़की है। इसका इलाज पैसा ही है। पैसे के लिए वो सब कर रही है। तो ठीक है, पैसे की भाषा से ही बात करते हैं।"


    उधर, ऑफिस में राजवीर का चचेरा भाई वीर उसके ऑफिस आया हुआ था। दोनों भाइयों का एक साथ बिज़नेस था। वीर वंश का चाचा लगता था, पर वह वंश से केवल दस साल छोटा था।

    "भाई, मैं क्या सुन रहा हूँ?" वीर ने राजवीर से पूछा।

    "किसके बारे में?"

    "वंश के बारे में। उसकी शादी के बारे में।"

    "हाँ, मैं उसकी शादी कर रहा हूँ। तुम्हें पता है, उसके बारे में, उसका काम पर बिल्कुल ध्यान नहीं है।"

    "मगर वह तो एक दूसरे को जानते भी नहीं।"

    "फिक्र मत करो, एक दूसरे को वह जान भी जाएँगे। एक दूसरे से प्यार भी करने लगेंगे।"

    "आपका टाइम नहीं है भाई। बच्चे कैसे निभाएँगे एक दूसरे के साथ? मुझे लगता है आपको सोचना चाहिए।"

    "काम के प्रति वह बिल्कुल भी सीरियस नहीं है। कोई काम कहो, एक कान से सुनता है, दूसरे से निकाल देता है। सिर्फ रेसिंग का जुनून है उसे। अपने जान खतरे में डालता है। कितने एक्सीडेंट कर चुका है। शुक्र है कि उसे कुछ नहीं हुआ। तुम अपनी भाभी नीता के बारे में भी जानते हो कैसी औरत है और सोना की तबीयत का भी तुम्हें पता है। मुझे लगता है कि मेरे घर को एक अच्छी संस्कारी लड़की की ज़रूरत है, जो मेरे घर को संभाल सके। अगर घर संभालने वाली कोई ना हो तो मेरा घर बिखर जाएगा। मैं कब तक हूँ? इसीलिए मैंने वंश के लिए गीत का चुनाव किया है। वह लड़की मेरे घर को संभाल लेगी। वह ऐसी है, मुझे पता है वह मेरे बेटे और मेरा घर दोनों संभाल सकती है।"

    अगली सुबह वंश गीत के कमरे में आया। वह बिना दस्तक दिए कमरे के अंदर आ गया। गीत जो बेड पर लेटी हुई थी, जल्दी से कपड़े ठीक करती हुई बेड से उठी। उसने वहाँ बेड पर पैसे रखे।

    "पैसे और भी मिलते रहेंगे। फ़िक्र मत करो। तुम्हारे अकाउंट में हर महीने एक बड़ी रकम आ जाएगी।"

    गीत को समझ नहीं आ रहा था। वह उसकी तरफ देखती रही।

    "नीचे गाड़ी खड़ी है। उसे तुम अपना एड्रेस बताओ और वह तुम्हें वहाँ पहुँचा देगा। यह पैसे पकड़ो और हर महीने तुम्हारे अकाउंट में एक मोटी रकम ट्रांसफ़र होती रहेगी। मैं घर से बाहर जा रहा हूँ और जब मैं वापस आऊँ तो उम्मीद करता हूँ तुम यहाँ नहीं होगी।"

    कहता हुआ वंश कमरे से बाहर चला गया। फिर उसने अपनी बाइक उठाई और वहाँ से जाने लगा।

    "पता है मुझे, अब जब मैं घर वापस आऊँगा, तुम नहीं होगी। तुम्हें पैसे चाहिए थे, वह मिल गए।"

  • 6. मेरे हमसफ़र - Chapter 6

    Words: 1183

    Estimated Reading Time: 8 min

    गीत ने तेगवंश के कमरे से जाने के बाद अपना सूटकेस उठाया।

    "मैं यहीं से चली जाऊंगी। मेरी इतनी बेइज्जती!" वह अपना सामान उठाकर कमरे से बाहर निकलने लगी।

    उसे अपनी माँ के कहे हुए शब्द याद आए।

    "तुझे हर हाल में अपने अंकल की बात माननी है। जैसा वे कहेंगे, तुम्हें वैसा ही करना है।" उसकी आँखों में आँसू आ गए।

    वह वापस बिस्तर पर बैठ गई।

    "माँ, तुमने यह क्या किया? क्यों मुझसे ऐसा वचन लिया? देख रहे हो आप, जिस इंसान से अंकल मेरी शादी करना चाहते हैं, उसकी नज़र में मेरी क्या इज़्ज़त है? वह भी सही है अपनी जगह। उसकी अपनी अलग लाइफ है। हो सकता है उसकी लाइफ में भी कोई हो, और मैंने आकर उसकी लाइफ खराब कर दी। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था। मैं वहीं रहती, उसी घर में। तुम्हारी यादें थीं वहाँ पर।"


    वह क्लब चला गया। वहाँ सिया भी आई हुई थी। वह काउंटर पर बैठा ड्रिंक पी रहा था और किसी सोच में डूबा हुआ था। सिया उसके पास आकर बैठ गई।

    "क्या सोच रहे हो, वंश? उस लड़की के बारे में?"

    "बहुत इरिटेटिंग है ना तुम्हारे लिए?" सिया ने कहा।

    उसकी बात सुनकर वह मुस्कुराया।

    "तुम हँस रहे हो?"

    "समझो, उस लड़की से पीछा छूट गया।" वंश ने कहा।

    "वह कैसे?" सिया खुश होकर बोली।

    "मैंने उसे पैसों की ऑफ़र की है। इतने पैसे उसने सोचे भी नहीं होंगे।"

    "तो क्या वह मान गई?"

    "उसके चेहरे से तो यही लगा। उसने कोई जवाब नहीं दिया।"

    "अगर वह चली गई तो अंकल से क्या कहोगे?"

    "डैड को भी पता चल जाएगा वह कितनी लालची लड़की थी। सब ठीक हो गया है।" वंश काफी खुश था।

    बात करते हुए अचानक वंश के ध्यान में गीत का चेहरा आ गया। जब वह पैसे रखकर कमरे से बाहर जाते हुए पीछे उसकी तरफ देख रहा था, तो उसे गीत की आँखें, गीत का चेहरा, वह जिस तरह से उसे देख रही थी, अचानक याद आने लगा। याद करते हुए ऐसा फील हो रहा था जैसे उसकी कोई चीज़ गुम हो गई थी।

    "वंश, किस सोच में चले गए?" सिया ने उससे कहा।

    "मैं घर जा रहा हूँ, बहुत थका हुआ हूँ।" वंश का वहाँ अचानक मन लगना बंद हो गया।

    "तुम्हारा चेहरा तो कह रहा है उसके जाने की बात से तुम उदास हो।" सिया ने हँसकर कहा।

    "कैसी बातें कर रही हो तुम? मैं क्यों उदास होता उसके जाने से?"

    "मैं तो मज़ाक कर रही थी, तुमने तो सीरियस ले लिया।" सिया ने उसका चेहरा देखकर कहा।

    सिया के ऐसा कहने पर जैसे वंश के चेहरे का रंग ही उड़ गया था। जैसे सिया ने उसका दिमाग पढ़ लिया था। इसके बारे में वह खुद भी नहीं जानता था।

    तभी वहाँ पर एक और लड़की उनके पास आई।

    "कैसे हैं आप दोनों?" उस लड़की ने आकर कहा।

    "मैं ठीक हूँ। रोज़ी, तुम बताओ। कितने दिन हुए हमारी मुलाक़ात ही नहीं हुई।" सिया ने उससे कहा।

    "मगर मेरी तो रोज़ हो जाती है।" वंश ने कहा।

    "बिल्कुल, यह तुम्हारे ऑफिस में काम जो करती है।"

    "ठीक है। तुम दोनों फ़्रेंड्स एन्जॉय करो। अब मैं चलता हूँ।" वंश ने कहा। रोज़ी वंश के ही ऑफिस में काम करती थी।

    वंश दोनों को वहीं छोड़कर क्लब से बाहर निकल गया।


    वंश देर से घर पहुँचा। उसकी माँ हाल में बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी।

    "बेटा, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी। मुझे पता है तुम्हारे डैड की शादी वाली बात ने तुम्हें बहुत अपसेट कर दिया।"

    "उस बात को छोड़ो। शादी नहीं होगी, मुझे पता है। अब तुम्हारी मर्ज़ी के बिना यह शादी कैसे हो सकती है?" नीता ने कहा।

    "मैंने उस लड़की को पैसे देकर जाने को कहा है।"

    "ठीक है बेटा। अच्छी बात है। वह लड़की हमारी जान छोड़ दे।"

    "अभी मैं बहुत थका हुआ हूँ, मैं जा रहा हूँ।"

    "अगर यह लड़की चली गई तो क्या हुआ? तुम्हारे डैड कोई और लड़की ढूँढ लेंगे। इसीलिए कहती हूँ, अपने लिए लड़की खुद ही पसंद कर लो। मुझे तो सिया भी अच्छी लगती है।"

    "इस शादी वाले टॉपिक को बंद करो माँ। मुझे ना उस लड़की से, ना सिया से, किसी से शादी नहीं करनी। मैं बहुत थका हुआ हूँ, मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।" वह अपने कमरे की तरफ़ चला गया।


    वंश बहुत खुश था। वह सीटी बजाता हुआ कमरे में गया। उसे पक्का यकीन था कि गीत अब जा चुकी है। वह अपनी जैकेट उतारता हुआ अपने बिस्तर के पास आया। मगर सामने देखकर उसका मूड खराब हो गया। वह पैसों का पैकेट, जो उसने गीत को दिया था, वह सामने बिस्तर पर पड़ा था।

    "पैसे यहाँ पड़े हैं। इसका मतलब वह लड़की नहीं गई।" वंश ने अपने आप से कहा।

    "यह भी तो हो सकता है कि वह गुस्से में चली गई हो। उसने पैसे अपनी आत्म-सम्मान के लिए नहीं लिए होंगे।" वह सोचता हुआ कमरे की बालकनी में आकर बैठ गया। वह सोच ही रहा था कि उसकी नज़र नीचे लॉन की चेयर पर बैठी हुई गीत पर गई। क्योंकि गीत का बेडरूम नीचे था और उसके कमरे का एक दरवाज़ा बाहर लॉन की तरफ़ खुलता था। वह अपने रूम का दरवाज़ा खोलते हुए बाहर आकर बैठ गई थी। वह उसे देखता रहा।

    वह जल्दी से अपने कमरे से बाहर आया। उसका इरादा गीत के पास जाकर उससे बात करने का था। मगर जब तक वह नीचे पहुँचा, उसके डैड उसके पास आ चुके थे।

    "बेटा, ऐसे क्यों बैठी हो? क्या हुआ?" वह गीत को उदास देखकर पूछते हैं।

    गीत की आँखों में पानी था। वह जल्दी से अपनी आँखें साफ़ करती है।

    "बस अंकल, ऐसे ही बैठ गई थी।"

    "किसी ने तुमसे कुछ कहा?" उन्होंने उसकी आँखों में पानी देखकर पूछा।

    "नहीं अंकल, बस माँ की याद आ रही थी।"

    "तुम ठीक तो हो ना बेटा?" उन दोनों को बातें करते देखकर वंश वापस चला गया।

    "अंकल, मुझे आपसे बात करनी थी। क्या यह फैसला सही है? मेरी और वंश की शादी का।" गीत ने नज़रें झुकाते हुए कहा। "मुझे नहीं लगता, क्योंकि उसमें और मुझमें बहुत फ़र्क है।"

    "बेटा, तुम्हारी माँ ने तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दिया और मैं तुम्हारे लिए गलत फ़ैसला बिल्कुल नहीं करूँगा। मेरे बेटे के लिए और तुम्हारे लिए, दोनों के लिए यह फ़ैसला बिल्कुल सही होगा। तुम थोड़ा सा टाइम दो इस बात को। देखना, तुम दोनों बहुत खुश रहोगे।"

    तभी राजवीर का फ़ोन आ गया।

    "मैं बाद में बात करता हूँ।" वह अपना फ़ोन कॉल रिसीव करते हुए अंदर की तरफ़ चला गया। गीत वहीं बैठी सोचने लगी।

    "अब मैं क्या करूँ? वह मुझे पसंद नहीं करता। मैं कैसे करूँ यह शादी?" वह बहुत देर तक बैठी खुद के और वंश के बारे में सोचती रही।

  • 7. मेरे हमसफ़र - Chapter 7

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 8. मेरे हमसफ़र - Chapter 8

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    तेजवंश को बहुत गुस्सा आया। वह वापस अपने कमरे में चला गया। उसके पिता फोन पर बात करते हुए वापस अपनी स्टडी में चले गए।


    वंश उनसे मिलने आया।
    "आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। मैं ऐसी लड़की से कैसे शादी कर सकता हूँ जिसे मैं जानता ही नहीं हूँ? मेरी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला ऐसे नहीं कर सकते।"


    "शादी तो तुम्हें करनी होगी।" उसके पिता ने कहा।


    "क्या मेरी पसंद और नापसंद की कोई अहमियत नहीं?"


    "समझो, तुम बाप हूँ मैं तुम्हारा। तुम्हारे लिए कोई गलत फैसला नहीं करूँगा।" राजवीर ने कहा।


    "अपना अच्छा-बुरा मैं देख सकता हूँ। आपको ज़रूरत नहीं है।" वह बहुत गुस्से में था। "मैं आपको एक बात बहुत अच्छे से बता देता हूँ। मेरी ज़िंदगी मेरी मर्ज़ी से चलेगी। इसलिए मैं शादी नहीं करूँगा।"


    "शादी तो करनी होगी, बेटा।" उसके पिता भी गुस्से में खड़े हो गए थे।


    "उससे शादी करके मैं अपनी आजादी की कुर्बानी हरगिज नहीं देने वाला।" वंश ने कहा।


    "तो ठीक है। अगर शादी नहीं करनी तो निकल जाओ इस घर से। अभी इसी वक्त।" राजवीर कहने लगा।


    "आपने हमेशा मुझ पर अपनी मर्ज़ी चलाई है। जो आप चाहते हैं, मैंने वही किया। मगर अब मैं अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी जीऊँगा।"


    "तुमने हमेशा ज़िद की है। हमेशा अपनी मर्ज़ी चलाई है।"


    दोनों बाप-बेटा ही काफी गुस्से में थे। "मैं सिर्फ़ तुम्हारी गलतियाँ ठीक करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ तुम ज़िंदगी में कामयाब हो जाओ। अच्छी ज़िंदगी जियो।"


    "ठीक है, डैड, मैं जा रहा हूँ।" कहते हुए तेजवंश स्टडी से बाहर निकल गया।


    वह गुस्से से घर से बाहर निकलने लगा।
    "बेटा, प्लीज़ मेरी बात सुन लो।" उसकी माँ रह-रहकर कहती रही।


    "प्लीज़, इस वक़्त नहीं, फिर बात करूँगा मैं आपसे।" कहता हुआ वह बाहर निकल गया।


    नीता को अपने पति पर बहुत गुस्सा आया।


    "मालूम नहीं उस गँवार लड़की में क्या दिखाई दिया जो अपने बेटे से उसकी शादी करना चाहता है। मुझसे पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा।" वह काफी गुस्से में थी। उसे अपने बेटे का घर छोड़कर जाना अच्छा नहीं लगा था।


    घर में जो हो रहा था, वह गीत से छुपा नहीं था। वह भी अपने कमरे में बहुत उदास बैठी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके अंकल अपने बेटे से उसकी शादी क्यों करना चाहते हैं।


    वंश समुद्र के किनारे पहुँच गया था। वहाँ रात में कोई नहीं था। उसने अपनी गाड़ी खड़ी की और अपने पिता की कही बातें सोच रहा था।


    वहाँ समुद्र के किनारे खड़ा सोच रहा था, तभी उसके फ़ोन पर कॉल आई। वह कॉल उसके दोस्त अविनाश की थी।
    "मैं कल आ रहा हूँ।" वह कहता है।


    "ठीक है।"


    "क्या हुआ? तुम मुझे ठीक नहीं लग रहे।"


    "जानते हो, आज तक मैंने वही किया जो उन्होंने कहा। किस स्कूल में जाना है, किस कॉलेज में जाना है, किस यूनिवर्सिटी में जाना है, कौन-सी पढ़ाई करनी है। जैसे उन्होंने मुझसे कहा, मैंने वैसे ही किया। जब कहा बिज़नेस जॉइन कर लो, मैंने बिज़नेस जॉइन कर लिया। फिर भी उन्हें चैन नहीं है। कहते हैं कि मैं मनमर्ज़ियाँ करता हूँ।"


    "अच्छा, फिर से अंकल के साथ तुम्हारी लड़ाई हुई है?" अविनाश ने कहा।


    "यह मेरी ज़िंदगी है। मेरा फैसला वो कैसे कर सकते हैं?"


    "तो फिर शादी का मसला?" अविनाश ने कहा।


    "तुम खुद ही बताओ, मैं ऐसे कैसे किसी लड़की के साथ शादी कर सकता हूँ जिसे मैं जानता ही नहीं।"


    "बात तो तुम्हारी ठीक है।"


    "तुम अपनी टिकट कैंसिल करो, मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ।"


    "शादी से भागकर मेरे पास आ रहे हो? क्या यह ठीक होगा? ऐसा करना भी बहुत गलत होगा।"


    "मैं जहाँ से भाग नहीं सकता। मगर मैं क्या करूँ? मैं ऐसे कैसे फैसला मान लूँ?"


    "मैं तुम्हें एक बात कहूँ, अंकल कभी गलत नहीं होते। तुम मान जाओ उनकी बात।"


    "ठीक है, मुझे तुम्हारी बात ठीक लगती है।" वंश कहता है। वो फ़ोन काट देता है और वापस घर आता है।


    वह अपनी गाड़ी खड़ी करता हुआ हाल में आता है। उसकी माँ अभी वहीं थी।


    "बेटा, क्या हुआ?" वह पूछती है।


    मगर वह सीधा अपने पिता के ऑफिस में चला जाता है। वह अभी तक वहीं थे। कोई ऑफिस का काम कर रहे थे।


    "डैड, मुझे मंज़ूर है आपका फैसला। मैं शादी करने के लिए तैयार हूँ।"


    यह सुनकर वे खुश हो जाते हैं।
    "पता था मुझे, मेरा बेटा मान जाएगा।"


    "क्या आप मुझसे पूछेंगे नहीं कि मैं शादी के लिए क्यों तैयार हुआ?"


    "नहीं, तुमने बिलकुल ठीक फैसला किया है और मैं बहुत खुश हूँ।"


    "वैसे, आप ओवर कॉन्फिडेंट नहीं हैं मेरे इस फैसले को लेकर? मतलब आपने कहा यह सही फैसला किया मैंने।" वो अपने पिता के चेहरे की तरफ़ देखते हुए कहता है।


    "मैं चाहता हूँ शादी जल्द से जल्द हो जाए। अगर आप चाहें, मैं तो कल ही शादी कर सकता हूँ।" उसके पिता बहुत हैरान हो जाते हैं।


    चलो, वह दोनों स्टडी से बाहर आते हैं। वहीं पर वह अपनी पत्नी नीता को भी बुला लेते हैं और साथ में अपनी बेटी सोना और गीत को भी वहीं आने को कहते हैं। सभी को समझ नहीं आ रहा था कि इतनी रात को राजवीर उन सबको हाल में क्यों बुला रहे हैं।


    "आप सभी सोच रहे होंगे कि मैंने आपको क्यों बुलाया है।" राजवीर ने सभी के चेहरों की तरफ़ देखते हुए कहा। वह काफी खुश नज़र आ रहा था। "वंश और गीत, इन दोनों की शादी के बारे में बात करनी है। मैंने इसीलिए बुलाया।"


    "क्या सचमुच, डैड?" सोना खुश होकर कहती है।


    "मगर देखो..." नीता ने बीच में टोका।


    "मॉम, मैं तैयार हूँ शादी के लिए।" उसने अपनी माँ से कहा।


    गीत काफी हैरानी से वंश की तरफ़ देख रही है क्योंकि सुबह तक तो वह उसे घर छोड़ने को कह रहा था। पैसों का लालची कह रहा था। आज वह उसे अचानक शादी के लिए तैयार है। वो सभी की बातें सुनती रही। उसने अपने मुँह से किसी से कुछ भी नहीं कहा।


    नीता फिर से वंश से कहती है,
    "तुम अच्छे से सोच लो, बेटा। बाद में मत पछताना।"


    "तुम चुप रहो, नीता।" राजवीर नीता पर गुस्सा होने लगा। मगर सोना बहुत खुश है अपने भाई की शादी की बात से।

  • 9. मेरे हमसफ़र - Chapter 9

    Words: 1065

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं चाहता हूँ कि इन दोनों की जल्दी से जल्दी शादी हो जाए।


    "ऐसे कैसे?" नीता ने राजवीर से कहा।


    "मेरे बेटे की शादी दो दिन में कैसे हो सकती है?"


    "अंकल, मुझे कुछ कहना है।"


    "हाँ, गीत बेटा, कहो।"


    "शादी बिल्कुल सादगी से होनी चाहिए।" ऐसा कहते हुए वह उदास हो गई, क्योंकि अभी उसकी माँ की मौत को थोड़े ही दिन हुए थे।


    "ठीक है बेटा।" राजवीर के बोलने से पहले ही नीता कहने लगी, "इतने बड़े बिज़नेसमैन के बेटे की शादी बहुत धूमधाम से होगी।"


    "नहीं, गीत ठीक कह रही है। शादी सादगी से होगी। एक बार इनकी कोर्ट मैरिज कर देते हैं, बाद में बहुत बड़ी पार्टी देंगे।"


    "नहीं, शादी इतनी सिंपल नहीं होनी चाहिए।" नीता अभी भी बात करने को तैयार नहीं थी। "इसकी माँ की मौत को भी थोड़े दिन हुए हैं। हमें शादी सादगी से ही करनी होगी।"


    अब यह इस लड़की की कौन सी चाल है? सादगी से शादी क्यों करना चाहती है? वंश गीत की बात पर सोच रहा था।


    "तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूँ।" राजवीर वहाँ से उठकर अपने कमरे में गया और थोड़ी ही देर में वापस आ गया। उसके हाथ में एक बॉक्स था। वह बॉक्स खोलता है; उसमें बेहद खूबसूरत कंगन थे। नीता उन कंगनों को देख रही थी।


    "यह तो माँ जी के कंगन हैं।"


    "हाँ, मेरी माँ के गहने हैं। नीता, तुम गीत को कंगन पहना दो।" उस बॉक्स में एक रिंग भी थी।


    "वह रिंग वंश को देती है।"


    "वंश, गीत को रिंग पहना दो।"


    नीता वह कंगन नहीं पकड़ती।


    "लाओ पापा, यह कंगन मैं पहना देती हूँ भाभी को।" सोना अपने पापा के हाथ से वह कंगन पकड़ लेती है और गीत के हाथ में पहनाती है।


    "भाभी, आपके हाथों पर यह बहुत अच्छे लग रहे हैं।"


    फिर राजवीर वंश को एक रिंग देता है। "यह रिंग तुम्हारी दादी की है। उन्होंने अपनी… तुम्हारी बीवी के लिए रखी थी।" वंश उठकर गीत के पास आकर बैठ जाता है। गीत नज़र झुकाए बैठी है।


    वह उसका हाथ पकड़ता है और रिंग गीत को पहना देता है। वह गीत के चेहरे की तरफ ही देख रहा था, मगर गीत की नज़रें झुकी हुई थीं।


    "क्या समझती हो अपने आप को? मुझसे शादी करके इस खानदान की बहू बनोगी, ऐश की लाइफ गुजारोगी। भूल जाओ इन सबको। अगर तुमने खुद यह रिश्ता ना तोड़ा तो मेरा नाम तेगवंश नहीं है। तुम डैड से खुद कहोगी, तुम्हें तलाक चाहिए।" तेगवंश गीत की तरफ देखता हुआ सोच रहा था। अचानक वंश की नज़र गीत के होंठों पर चली जाती है। उसके होंठों के नीचे का काला तिल… अचानक से वह उसे देखने लगता है। उसकी आँखों का रंग अचानक से बदल गए थे, जैसे वह उसे देखते ही अपने दिमाग में क्या सोच रहा था, भूल जाता है।


    "भाई, सिर्फ़ दो दिन की बात है। गीत भाभी आपकी हो जाएंगी। आप तो ऐसे देख रहे हैं कि अपनी नज़र ही नहीं हटा रहे।"


    सोना की आवाज़ से वंश को होश आता है। वंश ने हँसकर अपनी बहन की तरफ देखा। वह मुस्कुराने लगा।


    गीत उठकर पहले अपने अंकल के पैर छूती है, फिर नीता के। मगर नीता दूसरी तरफ चेहरा कर लेती है।


    "भाभी, मेरे गले भी लग जाओ।" सोना अपनी व्हीलचेयर पर बैठे उसे कहती है। गीत उठकर सोना के भी गले लग जाती है।


    "मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।"


    "बिल्कुल, बहुत रात हो चुकी है। अब सब सो जाओ।" तेगवंश वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला जाता है। सभी अपने-अपने कमरों में जाने लगते हैं।


    "वंश, मुझे तुमसे बात करनी है, अकेले में।" नीता वंश से कहती है।


    "मॉम, प्लीज़, मैं अभी बहुत थका हुआ हूँ। रेस्ट करना चाहता हूँ। हम फिर बात करेंगे।" वह नीता की बात पर इग्नोर करता हुआ ऊपर चला जाता है।


    सोना बहुत खुश है। "गीत भाई के साथ बहुत अच्छी लगेगी।" वह खुश होकर कहती है।


    "तुम अपने कमरे में जाओ, बहुत रात हो गई है।" नीता उससे कहती है। वह अपनी व्हीलचेयर का बटन दबाती है और अपने कमरे की तरफ जाने लगती है।


    गीत कमरे में जाकर बैठी थी। वंश उसकी समझ से बिल्कुल बाहर हो रहा था। वह सोफ़े पर बैठी सोच रही थी। उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाता है। वह जाकर खोलती है तो सामने वंश खड़ा था।


    "मुझे तुम्हारे डॉक्यूमेंट्स चाहिए। कोर्ट मैरिज के लिए डैड ने कहा है।"


    "ठीक है, मैं देती हूँ।" वह कमरे के अंदर जाने लगती है और अपना सूटकेस खोलती है। वंश उसके पीछे ही आ जाता है। वह जब अपने डॉक्यूमेंट्स निकालकर मुड़ने लगती है तो एकदम उसे पीछे देखकर थोड़ी घबरा जाती है।


    वह वंश को अपने डॉक्यूमेंट्स देती है। "तुम्हारी पासपोर्ट साइज़ फोटो भी चाहिए। कल मेरे साथ चलना, हम खिंचवा लेंगे।"


    "मेरे पास हैं।" वह अपनी फोटोग्राफ़्स निकालकर देती है।


    "जो जो भी हुआ, मैं उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।"


    "कोई बात नहीं।" गीत कहती है। वह वहाँ से मुस्कुराते हुए चला जाता है।


    जब वह वापस अपने कमरे में जाता है तो उसकी मॉम वहीं थी।


    "कहाँ गए थे तुम?" वह देखती है कि उसके हाथ में गीत के डॉक्यूमेंट्स और फोटोग्राफ़ थे। "उसके कमरे से आ रहे हो? एक बार फिर सोच लो तुम इस शादी के बारे में।"


    "मॉम, प्लीज़, अभी मैं रेस्ट करना चाहता हूँ। आप जाओ।"


    नीता कमरे से बाहर चली जाती है। वंश कमरे का दरवाज़ा लॉक कर लेता है।


    "मॉम आपको क्या पता क्या होने वाला है?" वह गीत की पासपोर्ट साइज़ फोटो हाथ में लेकर पकड़े हुए उसे देख रहा था।


    "क्या नाम है तुम्हारा?" वह डॉक्यूमेंट पढ़ता है। "गीत कंग। पछताओगी तुम एक दिन कि तुमने मुझसे शादी क्यों की, और मेरे डैड तुमसे ज़्यादा पछताएँगे। क्या चाहिए तुम्हें शादी के बाद? मगर तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। प्यार तो बहुत दूर की बात है, तुम्हारी तो मैं इज़्ज़त भी नहीं करता। जब तुम यहीं घर पर पड़ी रहोगी ऐसे ही, तुम्हें तब पता चलेगा कि तुमने कहाँ पंगा लिया है।" वंश अपने आप से बातें कर रहा था।


    मगर वह यह भूल गया था कि जब वह गीत के चेहरे की तरफ देखता है, तो उसकी आँखों का रंग बदल जाते हैं।

  • 10. मेरे हमसफ़र - Chapter 10

    Words: 1078

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह राणा हाउस में शादी की तैयारी शुरू हो चुकी थी। राजवीर राणा ने पूरी फैमिली को एक साथ बुलाया हुआ था। वंश, नीता, सोना और गीत ब्रेकफास्ट के बाद हाल में लगे सोफे पर बैठे हुए थे।

    "तो बेटा, फिर शादी में तो टाइम ही नहीं है। आज और कल का दिन है। परसों तुम दोनों की पहले कोर्ट मैरिज होगी और उसके बाद मंदिर में तुम लोगों के फेरे होंगे। उसके बाद हमने घर पर लंच रखा है, जहां पर हमारे आने वाले थोड़े से मेहमानों का खाना होगा। जैसा कि तुम चाहती हो, पार्टी हम थोड़े दिनों के बाद देंगे। थोड़ा टाइम हो जाने दो तुम्हारी मॉम को," राजवीर ने कहा।


    "जब शादी करनी है तो ठीक है। तो हमें इतनी जल्दबाजी क्या है शादी के लिए? हम थोड़े दिनों के बाद उनकी शादी कर देंगे, बहुत धूमधाम से करेंगे। आखिर वंश हमारा एकलौता बेटा है," नीता ने कहा।


    "नहीं, जब वंश और गीत शादी के लिए तैयार हैं, तो इस पार्टी के दिखावे का क्या मतलब? हम थोड़े दिनों के बाद सबको रिसेप्शन दे देंगे। मगर शादी तो अभी होगी।"


    "सही बात है। मैं डैड की बात से सहमत हूँ," वंश ने कहा।


    "मैं भी बहुत खुश हूँ भाई। मुझे भी कंपनी मिल जाएगी भाभी की," सोना ने गीत की तरफ देखते हुए कहा।


    नीता का मूड खराब था। गीत वहाँ सबकी चुपचाप बातें सुन रही थी।


    "तो आज बेटा, हम सब लोग शॉपिंग के लिए चलते हैं। तुम्हारे लिए शादी की ड्रेस, ज्वेलरी सब खरीदना है। वंश, तुम गीत को शॉपिंग कराने के लिए ले जाना।"


    "अंकल, मुझे आपसे बात करनी थी," गीत ने बीच में कहा।


    "क्या बेटा? तुम्हें कुछ स्पेशल ड्रेस पसंद है? पता है आजकल की लड़कियाँ डिजाइनर की ड्रेस फ़ोन में सेव करके रखती हैं। अगर तुम्हारी पसंद में कोई है तो तुम तस्वीर दिखाकर ड्रेस खरीद सकती हो।"


    "इसीलिए तो, तुम शादी कर रही हो तो तुम्हें डिजाइनर कपड़े, गहने चाहिए। बहुत चालाक हो तुम," गीत को देखकर वंश अपने मन में सोच रहा था।


    "अंकल, अगर आपको ऐतराज ना हो, मेरे पास मेरी माँ की शादी की साड़ी और ज्वेलरी है। अगर आप इजाज़त दें तो मैं वह पहनना चाहती हूँ," गीत ने कहा।


    "जैसा तुम्हें अच्छा लगे। बिल्कुल तुम्हारी माँ का आशीर्वाद है उसमें बेटा। मगर शादी की शॉपिंग तो फिर भी करनी है। नीता, तुम भी चली जाना। अपनी बहू को अच्छी सी शॉपिंग करवा देना," राजवीर ने नीता की तरफ देखकर कहा।


    "नहीं, मुझे काम है। मेरी पहले से फाउंडेशन की मीटिंग है, तो इसलिए मैं नहीं जा सकती।"


    "तो ठीक है, तुम दोनों ही चले जाओ। मैं भी आ जाऊँगा वहाँ पर," राजवीर ने वंश और गीत की तरफ देखा।


    "सोना भी हमारे साथ चली जाएगी," गीत ने सोना की तरफ देखा।


    "यह क्या करेगी वहाँ पर?" नीता बीच में कहने लगी।


    "सही बात है माँ, सोना भी हमारे साथ जाएगी," वंश ने कहा।


    "सही बात है, मैं भी चलूँगी," सोना खुश हो गई थी।


    "तो ठीक है, तुम तीनों शॉपिंग के लिए चलो। मैं भी तुम लोगों के पास पहुँच जाऊँगा। तो ठीक है, तुम तीनों तैयार हो जाओ।"


    सोना भी अपनी व्हीलचेयर से, जो कि ऑटोमेटिक है, उसे अपने कमरे में चली जाती है। गीत भी वहाँ से उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगती है। मगर वंश वहीं पर बैठा हुआ कुछ सोच रहा है।


    राजवीर ऑफिस चला जाता है। तभी वहाँ पर सिया अंदर आती है। उसकी नीता से फ़ोन पर बात हुई थी। उसे पता चल चुका है कि वंश शादी के लिए मान गया है।


    सिया वंश के पास आकर कहती है,
    "तुम क्या कर रहे हो? उससे शादी कर रहे हो?"


    तभी अविनाश हाल के अंदर आता है, जो एयरपोर्ट से सीधे आ रहा था।


    "तुम उसे ऐसा सवाल नहीं कर सकती," वह हँसते हुए वंश के गले लग जाता है।


    "तुम्हें नहीं पता यह शादी कर रहा है और वह भी एक गँवार लड़की के साथ," वंश चुपचाप सभी की बातें सुन रहा है, कोई जवाब नहीं दे रहा।


    "अविनाश, तुम्हें इसे रोकना चाहिए। तुम दोनों बेस्ट फ्रेंड हो और तुम खुश हो रहे हो इसकी शादी से," सिया गुस्से में वहाँ से चली जाती है।


    "चलो हम कमरे में चलते हैं," वंश अविनाश को लेकर अपने कमरे में चला जाता है।


    "यह क्या है? कल तक तो तुम इस शादी के खिलाफ़ थे। आज इतनी जल्दी शादी करने चले हो। मेरी समझ नहीं आ रहा। सिया ने जो कहा है उसके पीछे कहानी क्या है? बताओ तो सही मुझे। मैं थोड़े दिनों के लिए देश से बाहर गया। तुमने तो शादी की तैयारी कर ली," अविनाश ने मुस्कुरा कर कहा।


    "मत पूछो यार। डैड पंजाब गए थे। वहाँ से मालूम नहीं किस लड़की को पकड़कर लाए हैं और उससे मेरी शादी करने चले हैं।"


    "आजकल के ज़माने में ऐसे शादी कौन करता है? और क्या वह लड़की तैयार है शादी के लिए?"


    "इतने बड़े खानदान में शादी करने का मौका वह कैसे छोड़ सकती है? मुझसे शादी करने के बाद उसे स्टेटस, पैसा, ज्वैलरी, डिजाइनर कपड़े क्या नहीं मिलेगा? और क्या चाहिए किसी लड़की को?"


    "अगर तुम कहो तो अंकल और उस लड़की से एक बार मैं बात करूँ। मुझे पता है तुमने गुस्से में सब काम बिगाड़ दिया होगा।"


    "नहीं अविनाश, अब समझने-समझाने का टाइम गुज़र चुका है। परसों मेरी शादी हो रही है।"


    "क्या कह रहे हो तुम?"


    "सही बात है। डैड मेरी शादी करना चाहते हैं। वह कहते हैं कि उनका फैसला मेरे लिए बिल्कुल सही है। मगर मुझे उनका फैसला गलत साबित करना है।"


    "सिर्फ़ डैड को गलत साबित करने के लिए शादी कर रहे हो तुम?" अविनाश ने हैरानी से पूछा।


    "बिल्कुल। मैं डैड को रियलाइज़ करवाऊँगा, मेरी और उस लड़की की शादी का फैसला उनकी ज़िंदगी का सबसे गलत फैसला था। इसमें मुझे ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा। बहुत जल्द पता चल जाएगा।"


    "जो तुम डिस्टर्ब हो जाओगे, उसके बारे में सोचा है?"


    "बिल्कुल भी नहीं, डिस्टर्ब मैं नहीं हूँगा। डिस्टर्ब होगी तो वह लड़की, जब उसके सपने टूटेंगे। मैं तो रिलैक्स हूँ, बहुत रिलैक्स।" वह दोनों को डिस्टर्ब हुए देखना चाहता है। "मुझे उस लड़की को बताना है कि मुझसे शादी करने का फैसला उसकी ज़िंदगी की बर्बादी था।"

  • 11. मेरे हमसफ़र - Chapter 11

    Words: 1072

    Estimated Reading Time: 7 min

    देखो, शादी के बाद मत कहना मैंने तुम्हें बताया नहीं।

    वंश तुम्हारे साथ जो भी करेगा, उसकी जिम्मेदार तुम खुद होगी।

    उसका गुस्सा तुम्हें ही झेलना पड़ेगा।

    फिर मत कहना कि मैंने तुम्हें खबरदार नहीं किया था।

    "तुम हमारे बीच आ रही हो।"

    "कोई बात नहीं, मैं तो तुम्हें फिर भी दुआएँ देती हूँ।" सिया कमरे से बाहर चली गई।


    मैं बहुत बुरी हूँ।

    दो प्यार करने वालों के बीच आ रही हूँ। गीत बहुत उदास थी।


    शादी के ऐन वक्त पर गीत को पता चलना कि वंश और सिया एक-दूसरे से प्यार करते हैं, उसके लिए काफी दुख भरा था। वह कितनी देर वहाँ बैठी सोचती रही। इस शादी में तो उसे पहले ही कोई इंटरेस्ट नहीं था, क्योंकि वह जानती थी कि वंश उससे शादी नहीं करना चाहता।


    अब तो बिल्कुल भी यह शादी नहीं करना चाहती थी। मगर उसने अपनी माँ से प्रॉमिस किया था कि वह अंकल की हर बात मानेगी। वह इस बात को तोड़ नहीं सकती थी। उसकी आँखों में आँसू थे। वह आईने के आगे गई और अपनी आँखों के आँसू साफ किए।


    सिया सीधे नीता के पास गई।

    "क्या कहा उसने?" नीता पूछती है।


    "मैंने उससे कहा कि हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं, इसलिए वो शादी से मुकर जाए। मगर वो नहीं मानी।"


    "वो तुम दोनों के बीच आ रही है," नीता ने कहा।


    "मगर ये बात तो गलत है। वंश तो मेरी तरफ देखता भी नहीं है," सिया उदास होते हुए कहती है।

    "मगर मैं हार नहीं मानूँगी। वंश सिर्फ मेरा है। मैं उसे अपना बनाकर ही रहूँगी।" सिया ने कहा।


    "मैंने भी वंश से कहा था मना करने के लिए, मगर वह भी मेरी बात नहीं माना। वो अपने डैड से डरता है।" नीता ने कहा।


    सोना अपने कमरे में अपने लैपटॉप पर किसी से चैटिंग कर रही थी। वह उसे चैट करते हुए बहुत खुश थी। तभी उसके रूम में वंश आया।


    "भाई, आप ने तो मुझे डरा दिया!" सोना ने मुस्कुराकर कहा।


    "मैं देखने आया था। मेरी छोटी बहन क्या कर रही है?"


    "मैं विदेश जाने की तैयारी कर रही हूँ। सोचती हूँ इससे पहले आपकी तरह डैड मेरी भी शादी अचानक से करे, मैं जहाँ से चली जाती हूँ।" वह हँसती है।


    "तब तो मुझे भी साथ ले चलो।" वंश ने कहा।


    "आपकी तो आज शादी है। आपके पास तो भागने का टाइम है ही नहीं। वैसे आपके लिए मैं बहुत खुश हूँ। मुझे गीत बहुत अच्छी लगी।"


    "इतनी जल्दी तुम्हें पता भी चल गया?"


    "वह अच्छी है।"


    "हाँ, तो मुझे मेरे जैसी लगती है। जैसी मैं हूँ, वैसे।"


    "क्या बात है? मेरी छोटी बहन को तो इंसानों को पहचानना भी आने लगा! जैसे मॉम मुझे पसंद नहीं करती, वैसे मॉम उसे भी पसंद नहीं करती। इसीलिए मैं कह रही हूँ कि वह मेरे जैसी है।" सोना हँसती है।


    "कमरे में बैठे-बैठे उल्टा-सीधा सोचती हो तुम। मॉम पसंद क्यों नहीं करती? तुम तो हमारी जान हो। चलो हम बाहर चलते हैं।" वो उसकी व्हीलचेयर लेकर उसे बाहर लाने लगा।


    "मगर भाई, हमें तैयार होना है। मुझे भी और आपको भी। शादी है आज।" सोना बोल रही है, मगर वो उसकी बात नहीं सुनता। वह उसे बाहर ले जाता है।


    तभी राजवीर भी वहाँ आता है।

    "तुम दोनों भाई-बहन क्या कर रहे हो? अपने-अपने कमरों में जाकर तैयार हो जाओ। हम लोगों को कोर्ट जाना है।"


    "मैंने कहा था भाई से।" सोना वंश को देखकर मुस्कुराती है।


    उधर, गीत तैयार हो रही थी। जिस तरह से उसकी शादी हो रही थी, ना तो वंश शादी के लिए राजी था, ना उसकी मॉम। अभी उसे सिया वाला मैटर पता चला था। उसके लिए शादी दुनिया का सबसे मुश्किल काम था।


    वंश और सोना अविनाश के साथ कोर्ट चले गए थे। नीता और सिया, वह दोनों एक साथ कोर्ट पहुँची थीं। राजवीर गीत को अपने साथ लेता हुआ पहुँचा था।


    राजवीर और गीत पीछे रह गए थे। उनकी गाड़ी ट्रैफिक में फँस गई थी। बाकी सभी पहले कोर्ट पहुँच चुके थे। जैसे ही गीत और राजवीर वहाँ पहुँचे, सोना ने कहा,

    "ये लो, डैड और भाभी भी आ गए।"


    सभी गीत और राजवीर की वेट कर रहे थे। सभी ने दरवाज़े की तरफ़ देखा। वंश तो गीत को देखता ही रह गया था। रेड कलर की बनारसी साड़ी, जिसके साथ उसने हल्की सी ज्वेलरी पहनी थी। कानों में झुमके थे जिनका साइज़ बहुत बड़ा नहीं था और गले में छोटा सा नेकलेस था। होंठों पर हल्की-हल्की लिपस्टिक, मगर आँखों में ढेर सारा काजल था।


    कई दिनों से गीत मेंशन में थी। वह सिंपल से सूट में बिना मेकअप के रहती थी और आज उसका हल्का-हल्का मेकअप उसे बिल्कुल ही डिफरेंट बना रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, वह कभी उनकी तरफ़ देख रही थी तो कभी उसके होंठों के पास काले तिल को।


    "मुझे लगता है तुम तो भाई अभी काम से गए," धीरे से अविनाश ने उसके कान में कहा।


    वंश को जैसे होश आई। उसने अविनाश को आँखें निकाल कर देखा। वहाँ कोर्ट मैरिज होने के बाद वह लोग मंदिर चले गए, जहाँ फिर उनके फेरे होने थे।


    वैसे गीत का तो इस शहर में कोई नहीं था। उनकी एक दूर की मौसी, शीला, ज़रूर वहाँ आई थी, जिसे देखकर नीता ने अपना मुँह बना लिया।


    फेरे होने के बाद वह वहीं से जाने लगी तो राजवीर ने उन्हें रोक लिया। "आप हमारे साथ होटल में लंच करने के बाद फिर जाएँगे।"


    सारा प्रोग्राम खत्म होते-होते शाम हो चुकी थी। गीत के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी। उसकी मौसी ने उससे पूछा भी,

    "बेटा, आज तो खुशी का दिन है, तुम उदास क्यों लग रही हो?"


    "बस ऐसे ही, माँ की याद आ रही है।" उसने कहकर टाल दिया था।


    जैसे ही वह लोग घर पहुँचे, तो राजवीर ने कहा,


    "तुम दोनों की फ़्लाइट का टाइम हो रहा है। जल्दी से अपनी पैकिंग करो और जाने की तैयारी करो।"


    असल में राजवीर उन दोनों को हनीमून के लिए शिमला भेज रहा था। वैसे तो वह चाहता था कि वह दोनों विदेश घूमने जाएँ, मगर क्योंकि गीत के पास वीज़ा नहीं था और ना ही उसका पासपोर्ट बना था, तो इसलिए उसका बाहर जाना मुमकिन नहीं था। उन्होंने उनके शिमला जाने की तैयारी कर दी थी।

  • 12. मेरे हमसफ़र - Chapter 12

    Words: 1144

    Estimated Reading Time: 7 min

    असल में राजवीर उन दोनों को हनीमून के लिए शिमला भेज रहा था। वह चाहता था कि वे दोनों विदेश घूमने जाएँ, मगर गीत के पास वीजा नहीं था और ना ही उसका पासपोर्ट बना था, इसलिए उसका बाहर जाना मुमकिन नहीं था। उन्होंने शिमला जाने की तैयारी कर दी थी।

    इस बारे में उनकी वंश से बात भी हो चुकी थी और वंश मान गया था जाने के लिए। वंश का प्लान था कि वह वहाँ जाकर गीत को एहसास कराएगा कि उसने उसके साथ शादी करके कितनी बड़ी गलती की है। वे लोग होटल की जगह अपने फ्लैट में रुकने वाले थे और उनके पहुँचने से पहले फ्लैट में उनके लिए हर तरह का इंतज़ाम हो चुका था। राजवीर उन दोनों को छोड़ने के लिए एयरपोर्ट चला गया।

    जब वे लोग एयरपोर्ट के अंदर जाने लगे, तो राजवीर ने गीत का हाथ पकड़ लिया।
    "तुम इतनी उदास क्यों हो, बेटा?"

    "अपने मॉम-डैड की याद आ रही है मुझे।"

    गीत की आँखें भर आईं।

    "मैं भी तो तुम्हारा पापा हूँ और देखना, तुम्हारी माँ भी तुम्हें देख रही होगी। ऐसे उदास नहीं होते, बेटा।"

    राजवीर ने गीत और वंश से कहा,
    "तुम लोगों के लिए वहाँ फ्लैट में सारा सामान है। अगर तुम लोग खाना बाहर से मँगवाना चाहो तो मँगवा लेना। अगर तुमने एक बार मेरी बेटी का हाथ का खाना खाना है, जो कि बहुत टेस्टी होता है।"

    उन दोनों के शिमला जाने से नीता घर पर परेशान थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि वंश गीत के साथ कहीं भी अकेला जाए। मगर मजबूरी थी, तो वह कुछ नहीं कर सकी। गीत फ्लाइट में पहली बार बैठ रही थी। जब प्लेन टेक ऑफ होने लगा, तो उसे बहुत डर लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और कसकर अपनी सीट के हैंडल को पकड़ा हुआ था। वंश ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा।

    "तुम इस प्लेन में बैठकर ही नहीं, मेरी ज़िन्दगी में आकर भी पछताओगी कि तुमने मुझसे शादी क्यों की। तुम खुद कहोगी डैड से कि तुम्हें तलाक चाहिए और डैड भी कहेंगे कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की तुम्हारी मुझसे शादी करके।"

    वे लोग तकरीबन ढाई घंटे में चंडीगढ़ पहुँच चुके थे और चंडीगढ़ से उन्हें शिमला बाय रोड जाना था। मगर उन्हें वहीं पर रात हो चुकी थी। जब वे लोग चंडीगढ़ पहुँचे, तो उनके लिए गाड़ी पहुँच चुकी थी। राजवीर ने उनके लिए पर्सनल गाड़ी वहाँ पर अरेंज करवा दी थी क्योंकि वह चाहता था कि वे लोग आराम से घूमें।

    जैसे ही वे लोग चंडीगढ़ एयरपोर्ट से निकले, तभी एक आदमी उनके पास आया।
    "आपकी गाड़ी बाहर है सर।"

    वंश बिना पीछे देखे आगे चल रहा था। गीत उसके पीछे जल्दी-जल्दी भागकर उसके साथ आ रही थी। वंश गाड़ी में बैठता है तो गीत भी उसके साथ आकर बैठ जाती है।

    बहुत रात हो गई थी। वे लोग वहाँ से शिमला की तरफ निकल गए। गीत ने सुबह का कुछ भी नहीं खाया था। उसे बहुत स्ट्रेस था, तो अब उसे भूख लग रही थी। उसका मन किया कि वह वंश से कह दे कि उसे कुछ खाना है, मगर जब उसने वंश के चेहरे की तरफ देखा, तो उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कहने की। वह चुपचाप गाड़ी में बैठ गई।

    वंश ने गाड़ी का म्यूज़िक ऑन किया और शिमला की तरफ जाने लगा। वह चोरी से गीत के चेहरे की तरफ भी देख लेता था कि उसके क्या इंप्रेशन हैं, मगर उसका चेहरा जैसे सुबह था, अभी भी वैसा ही था। उसके मन में क्या था, उसका चेहरा नहीं बता सकता था। गीत चलती गाड़ी में सो गई थी।

    "खुद तो चैन से सो रही है, मैं यहाँ गाड़ी ड्राइव कर रहा हूँ। इतनी भी अक्ल नहीं है कि आगे की सीट पर बैठकर सोते नहीं।" वंश को उस पर गुस्सा आ रहा था। वंश को भी भूख लग रही थी। उसने एक जगह गाड़ी रोकी।

    उसने सोई हुई गीत के चेहरे को ध्यान से देखा। एक अजीब सी मासूमियत, एक अजीब सी फ़्रेशनेस थी उसके चेहरे पर। सुबह का किया हुआ मेकअप अब तक उतर चुका था।

    एक ढाबा देखकर वंश ने गाड़ी रोक दी। गाड़ी रोकने से गीत की भी आँख खुल गई। वंश गाड़ी में से उतर गया, मगर गीत गाड़ी में ही बैठी रही। उसे वंश ने उतरने को नहीं कहा था, इसलिए वह नहीं उतरी। जब उसने देखा कि गीत उसके पीछे नहीं आ रही है, तो वह गाड़ी तक वापस आया।

    "अगर खाना खाना हो तो नीचे आ जाओ।" उसने बड़ी ही रूडली तरीके से कहा।

    गीत को बहुत ज़्यादा भूख लगी थी और उसे वॉशरूम भी जाना था।
    "मैं वॉशरूम जाकर आती हूँ।" गीत ने वंश से कहा और वॉशरूम की तरफ जाने लगी।

    उसने अच्छे से अपना चेहरा धोया और बालों को पानी से ठीक किया। फिर वह वंश के पास वापस आने लगी। चेहरा धोकर उसने अपना सारा मेकअप उतार दिया था। सिर्फ़ आँखों में काजल बचा था। बनारसी साड़ी जो उसने सुबह से पहनी थी, पहले उस साड़ी को कंधे पर पिन से लगाया गया था, अब उसने वह पिन खोलकर साड़ी को अपने कंधों पर लपेट लिया था। शायद उसे सर्दी लग रही थी। उस सामने से आ रही लड़की में इस वक़्त ऐसा कुछ भी नहीं था जो किसी को अपनी तरफ़ खींच सकती।

    वह उदासी भरी सिंपल सी लड़की थी। वह खूबसूरत थी, मगर इस वक़्त उसके दिमाग़ में उलझन के अलावा, जो उसके चेहरे पर भी दिखाई दे रही थी, कुछ नहीं था। वह अपनी आने वाली ज़िन्दगी को लेकर बेहद कंफ़्यूज और उलझी हुई थी।

    वंश ने उस अपनी तरफ़ आती हुई लड़की को देखा। वंश की नज़र गीत के होंठ के पास तिल पर जाती है, जो शायद पहले मेकअप में कम दिखाई दे रहा था। अब वह चमकने लगा था। वह तिल वंश को अपनी तरफ़ खींचता है। वंश की निगाह उसके होंठों और उसके तिल के बीच उलझ गई थी। वह वंश के दिल में अजीब सी हलचल मचा देता है।

    मगर जल्दी ही उसने अपना चेहरा घुमा लिया। वह उसके पास आकर बैठ गई।

    "क्या खाओगी तुम? यहाँ तो ऑइली है।" वंश ने कहा।

    "कोई बात नहीं, जो भी है मैं खा लूँगी।"

    वहाँ पर शोले-भटूरे खाने को मिले थे। वंश ने तो वह नहीं खाए, मगर गीत ने खा लिए थे।

    "इतना ऑइली खाना कौन खाता है?" वह उसे देखकर सोच रहा था। वह सुबह से भूखी थी। उसने आराम से खाना खाया। उसे खाना खाकर बहुत अच्छा लगा। वंश ने सिर्फ़ कॉफ़ी पी और वे लोग वापस चल पड़े।

    "मेरी बात सुनो, तुम अब सोना नहीं है। नहीं तो मुझे भी नींद आने लगेगी। अभी अपना सफ़र रहता है। समझी तुम?" वंश ने गीत से कहा।

  • 13. मेरे हमसफ़र - Chapter 13

    Words: 985

    Estimated Reading Time: 6 min

    क्या खाओगी तुम? जहाँ तो तैलीय है। वंश ने कहा।

    "कोई बात नहीं, जो भी है मैं खा लूँगी।"


    वहाँ पर शोले भटूरे खाने के लिए आये थे। वंश ने तो वे नहीं खाये, मगर गीत ने खा लिये थे।

    इतना तैलीय खाना कौन खाता है? वो उसे देखकर सोच रहा था। वो सुबह से भूखी थी। उसने आराम से खाना खाया। उसे खाना खाकर बहुत अच्छा लगा। वंश ने सिर्फ़ कॉफ़ी पी और वे लोग वापस चल पड़े।


    "मेरी बात सुनो, तुम अब सोना नहीं है। नहीं तो मुझे भी नींद आने लगेगी। अभी हमारा सफ़र बाकी है। समझी तुम?" वंश ने गीत से कहा।


    गाड़ी चलते-चलते वंश एक नज़र गीत को देख लेता। गाड़ी में म्यूज़िक भी चल रहा था। वंश को नींद आने लगी थी। नींद गीत को भी आ रही थी। असल में दोनों ही शादी के स्टेटस की वजह से रात भर सो नहीं सके थे।


    एक जगह पता चला कि एक्सीडेंट हो गया था जिस वजह से ट्रैफ़िक रुका हुआ था। यह देखकर वंश को गुस्सा आया।

    "मुझे नफ़रत है ऐसे लोगों से। इन लोगों को तो बस बहाना चाहिए सड़क रोकने का। अगर ये लोग जगह करें तो साइड से गाड़ियाँ गुज़र सकती हैं।" वंश उन लोगों को देखकर बोल रहा था।


    वंश ने हॉर्न पर हाथ ही रख लिया। गीत ने वंश की तरफ़ देखा।

    "आप जो हॉर्न बजाना बंद कर दीजिये। वहाँ कोई ज़िन्दगी और मौत के बीच फँसा हुआ है।" गीत ने वंश की ओर देखते हुए कहा।


    वंश ने हॉर्न बजाना बंद कर दिया।
    "वो सही कह रही थी," वंश ने अपने आप से कहा।


    उन दोनों को वहाँ आधा घंटा रुकना पड़ा। उसके बाद रास्ता चलने लगा।


    चलती गाड़ी से गीत बाहर की तरफ़ देख रही थी। दोनों थोड़ी देर में अपनी मंज़िल पर पहुँच गये थे। शहर से थोड़ा बाहर एक बिल्डिंग थी जो बेहद खूबसूरत जगह पर बनी थी। उसके फ़्लैट के साइड पहाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं। एक साइड थोड़ा दूर से शहर दिखता था। पूरी हरियाली थी उस बिल्डिंग के आसपास।


    उस बिल्डिंग में सभी अमीर लोगों के फ़्लैट थे जो छुट्टियों के लिए यहाँ आते थे। वंश अक्सर अपने दोस्तों के साथ यहाँ आता था। उसने आते ही बिल्डिंग के वॉचमैन को अपनी गाड़ी की चाबी पकड़वाई।

    "जो सामान है वह ऊपर फ़्लैट में पहुँचा देना।" कहता हुआ वो ऊपर की तरफ़ जाने लगा। गीत उसके पीछे आ रही थी। उनका फ़्लैट 9th फ़्लोर पर था, पर बहुत खूबसूरत फ़्लैट था। दो बेडरूम, एक लिविंग रूम, छोटी सी किचन और बाहर टेरेस बनी थी जहाँ पर बाहर का खूबसूरत नज़ारा दिखता था।


    फ़्लैट के अंदर पहुँचते ही वंश ने गीत की तरफ़ देखा।

    "वो वाला कमरा मेरा है और यह वाला तुम्हारा। देखो हम लोग जहाँ पर एक हफ़्ते के लिए आये हैं और ऐसा समझो इस एक हफ़्ते के लिए मैं तुम्हारे लिए जहाँ पर नहीं हूँ। तुम मेरे लिए नहीं। तुम मेरे किसी भी काम में इंटरफ़ेरेंस नहीं करोगी। जो तुम चाहती हो वह कर सकती हो और जो मैं चाहता हूँ मैं वह करूँगा।" वो कमरे की तरफ़ जाने लगा। गीत भी उस दूसरे कमरे की तरफ़ चली गई।


    थोड़ी देर में उनका सामान वहाँ पहुँच गया। गीत अपना सूटकेस लेकर अपने कमरे में, वंश अपना सूटकेस लेकर। वैसे भी वंश के कुछ कपड़े यहाँ पड़े रहते थे क्योंकि वह यहाँ आता रहता था। गीत ने अपने सूटकेस से अपना नाइट सूट निकाला।

    "चलो अच्छा है, मुझे भी थोड़ा सा चैन चाहिए था।"


    वंश अपने कमरे में बैठा हुआ सोच रहा था, "अब डैड तुम्हें फ़ोन करेंगे और पूछेंगे। तुम बताओगी कि हम दोनों अलग-अलग कमरों में हैं तो डैड को आज से ही समझ आने लगेगा कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है मेरी शादी तुमसे करवा कर। देखते जाओ यह तो अभी शुरुआत है डैड, और तुम दोनों को पता चल जाएगा मेरे साथ ज़बरदस्ती करने का।" वो सोच रहा था। अब वंश को भूख लग रही थी।


    उसने टाइम देखा। उस बिल्डिंग की ग्राउंड फ़्लोर पर एक रेस्टोरेंट था जहाँ से इस बिल्डिंग के रुकने वाले लोग खाना मँगवाते थे।

    "अब तक तो वह भी बंद हो गया होगा," वंश ने सोचा।


    उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था। सिर्फ़ कॉफ़ी पी थी।


    वह कपड़े बदलने के बाद अपने कमरे से बाहर आया। वो सोच रहा था कि वो अपने कमरे में बैठी रो रही होगी। जब वो बाहर आया तो उसे किचन में आवाज़ सुनाई दी। उसने थोड़ा आगे होकर देखा तो गीत फ़्रिज खोलकर सामान देख रही थी।


    उसने फ़्रिज को बंद कर दिया फिर वह ड्रॉअर खोलकर देखने लगी। उसने मैगी का पैकेट निकाला और उसे बनाने की तैयारी करने लगी। एक साइड पर उसने मैगी बनने रखी और दूसरी साइड पर उसने चाय बनने रखी।


    "इसने तो वहाँ पर भी खाया था और फिर भूख लगी है।" वो किचन के दरवाज़े पर खड़ा सोच रहा था। उसने देखा वंश खड़ा है।

    "आप लेंगे कुछ?" उसने पूछा।


    वो उसे मना करके गुस्सा दिखाना चाहता था, मगर उसे मैगी की स्मेल आने लगी। उसकी भूख बढ़ गई।

    "हाँ, मुझे भी मैगी चाहिए।" वो लिविंग रूम में चला गया।


    थोड़ी देर बाद गीत बाहर आई। गीत के हाथ में ट्रे थी। एक बाउल में मैगी और कप में चाय थी। उसने ट्रे टेबल पर रखी।

    "मैं मैगी के साथ चाय नहीं, कोल्ड ड्रिंक पीता हूँ।"


    "सर्दी हो रही है। इस वक़्त आपको कोल्ड ड्रिंक नहीं पीना चाहिए। गला खराब हो सकता है।" कहती हुई गीत किचन में वापस चली गई। फिर वह थोड़ी देर बाद वापस आई। उसके हाथ में बाउल और चाय का कप था।


    वंश को लगा वो उसके साथ डाइनिंग टेबल पर आकर बैठेगी, मगर वो डाइनिंग टेबल के पास से गुज़रती हुई अपने कमरे में चली गई।

  • 14. मेरे हमसफ़र - Chapter 14

    Words: 1016

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुझे क्या कमरे में बैठकर खाओ। वंश ने अपने आप से कहा। वह उसे इस तरह से इग्नोर करेगी, वंश ने तो सोचा नहीं था। उसे लगा था कि वह उसके पास आने के बहाने ढूँढेगी।

    शायद उसने वंश के दिल पर पहली चोट की थी। खाने के बाद वंश अपने कमरे में चला गया। दोनों थके हुए थे, दिन भर के। पूरी रात किसी को होश नहीं रहा था। सुबह जब वंश की आँख खुली, तो धूप कमरे में आ रही थी। वह आराम से उठा। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला और हाल में निकला, पूरी लॉबी में धूप पड़ रही थी, जो अच्छी लग रही थी। गीत घर के कार्टून साइड पर बैठी हुई थी। वह बालकनी के स्लाइडिंग डोर के पास बैठकर पराठा खा रही थी।

    "इस लड़की को देखो, पूरा दिन खाती रहती है," वंश ने अपने आप से कहा।

    थोड़ी देर बाद गीत उठकर हाल में आई और बिना वंश की तरफ देखे, वह किचन में चली गई। जब वह बाहर आई, उसके हाथ में प्लेट थी। उसने वह डाइनिंग टेबल पर रखी।

    "आपके लिए है, ब्रेकफास्ट कर लीजिए," गीत ने उससे कहा।

    उसका ब्रेकफास्ट टेबल पर रखकर गीत अपने कमरे में चली गई। सामने टेबल पर गोभी का पराठा था, दही के साथ, जो वंश का फेवरेट था।

    "तो उसने जानबूझकर मेरी पसंद का बनाया है," वंश बैठकर खाने लगा।

    गीत वापस लिविंग रूम की बालकनी में जाकर बैठ गई थी। ब्रेकफास्ट करते हुए वंश का ध्यान बालकनी की तरफ गया, जहाँ पर हल्की-हल्की धूप में गीत बैठी हुई थी। उसने रात का नाइट सूट पहना हुआ था। उसके बाल खुले हुए थे। बिना किसी मेकअप के वह बाहर की तरफ देख रही थी।

    धूप में बैठे गीत का गोरा रंग और भी गोरा लग रहा था। बिना मेकअप के ही वह बहुत सुंदर लग रही थी। वंश की नज़र उसकी होंठों के पास के तिल पर गई और फिर वह उसके गुलाबी होंठों को देखने लगा। वह उसे देखता हुआ अपना पराठा खाना भूल गया।

    हल्की-हल्की हवा चल रही थी। उसके बाल उड़ते हुए उसके चेहरे पर आते; वह उन्हें वापस पीछे करती थी। वह बहुत प्यारी लग रही थी। वंश को एकदम से ख्याल आया।

    "मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं है," वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में गया और थोड़ी देर में तैयार होकर बाहर निकल गया। गीत ने उसे बाहर जाते देखा। वह उठकर अंदर आ गई। उसने आधा ही पराठा खाया था; आधा ऐसे ही पड़ा था। उसने वह प्लेट उठाकर किचन में रख दी। वह भी नहाकर तैयार हो गई थी। उसने एक ब्लू कलर की साड़ी निकाली, जिसके बॉर्डर पर हल्का-हल्का वर्क था। उसके साथ उसने क्रीम कलर का शॉल लिया। थोड़ी देर में वह तैयार होकर नीचे चली गई।

    वह वहाँ घूमना चाहती थी; और भी टूरिस्ट थे जो वहाँ पर घूम रहे थे। जैसे ही वह नीचे पहुँची, उसने एक साइड पर देखा कि वंश ने गाड़ी से किसी की साइकिल को टक्कर मारी थी। वह आदमी नीचे गिर गया था और उसे चोट लगी थी।

    पहले तो वह भाग कर जाने लगी, मगर फिर वह रुक गई और वहीं रुककर देखने लगी।

    "अगर बड़ी गाड़ी हो तो हम लोगों को मार डालोगे क्या?" उस आदमी ने कहा।

    "साइकिल देखकर चलनी चाहिए, यह सड़क तुम्हारे बाप की नहीं है।"

    उसकी इस बात पर वंश को गुस्सा आ गया। वह अपनी गाड़ी से बाहर निकला और उसे मारने लगा। उनको लड़ते देखकर किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। थोड़ी ही देर में पुलिस वहाँ पहुँच गई थी। पुलिस उन दोनों को पकड़कर अपने साथ ले गई। पुलिस स्टेशन पहुँचकर पुलिस को सारी बात पता चली कि वंश ने उस आदमी को मारा है।

    पुलिस वंश को लॉकअप में डालने लगी।

    "एक मिनट में मैं उस आदमी से बात कर सकता हूँ," वंश ने पुलिस ऑफिसर से कहा।

    "ठीक है, मगर सिर्फ दो मिनट।" वह इंस्पेक्टर भी चाहता था कि इनका सेटलमेंट हो जाए, क्योंकि यह एक हिल स्टेशन था और अक्सर ऐसा होता रहता था। लोग पैसे लेकर सेटलमेंट भी कर लेते थे, और अभी नहीं तो सुबह तक सेटलमेंट हो ही जानी थी।

    "तुम जितने कहोगे मैं तुम्हें उतने पैसे दूँगा," वंश ने कहा।

    मगर रिपोर्ट वापस लेने से उस आदमी ने मना कर दिया।

    "एक बार फिर सोच लो तुम। चाहो तो मैं तुम्हारे अकाउंट में अभी पैसे डाल देता हूँ।" वंश नहीं चाहता था कि उसकी डैड तक बात जाए। वह उस आदमी से सेटलमेंट करना चाहता था, मगर उस आदमी ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। वंश को लॉकअप में डाल दिया गया। गीत, जिसने वह लड़ाई देखी थी, उनके पीछे ही पुलिस स्टेशन पहुँच गई थी। जैसे ही वह पुलिस स्टेशन में जाने लगी, वह आदमी, जिससे लड़ाई हुई थी, वह पुलिस स्टेशन से बाहर निकल रहा था।

    गीत ने उससे पूछा, "वह दूसरा आदमी कहाँ है?"

    "उसको लॉकअप में डाल दिया। बड़े बाप की औलाद था।"

    "क्या मैं आपसे दो मिनट बात कर सकती हूँ?" गीत ने उस आदमी से कहा।

    "कहो," वह आदमी बोला।

    "आप अपनी कंप्लेंट वापस ले लीजिए।"

    "क्यों?"

    "असल में वह बहुत परेशान है। उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के बिना ज़बरदस्ती की गई है। उसे वह लड़की पसंद नहीं है।"

    "तुम कौन हो?" वह आदमी पूछता है।

    "मैं ही वह लड़की हूँ जिससे शादी हुई है।"

    "बेवकूफ है वह जो तुम जैसी खूबसूरत लड़की को ठुकरा रहा है।"

    "प्लीज, अगर आप कंप्लेंट वापस ले लें।"

    उस आदमी के मन में पता नहीं क्या आया।

    "ठीक है, मैं वापस ले रहा हूँ।"

    पुलिस ऑफिसर वंश को बाहर निकालता है।

    "उस आदमी ने अपनी कंप्लेंट वापस ले ली है।"

    "अच्छा," वंश काफी हैरान होता है, क्योंकि उसने तो इतनी मिन्नत की थी, उस आदमी को लालच भी दिया था, वह फिर भी नहीं माना था।

    "मगर अचानक कैसे?" वंश ने पूछा।

    "मालूम नहीं, अपनी वाइफ से पूछिए," इंस्पेक्टर ने कहा। वह देखता है कि गीत उसका इंतज़ार कर रही है।

    जहाँ पर इंस्पेक्टर कहता है, गीत साइन करती है और वह दोनों बाहर आ जाते हैं।

    "क्या ज़रूरत थी मेरे पीछे आने की? मैं अपना मैटर हैंडल कर सकता था।" वंश परेशान है क्योंकि वह गीत की हेल्प नहीं लेना चाहता था।

  • 15. मेरे हमसफ़र - Chapter 15

    Words: 1175

    Estimated Reading Time: 8 min

    मगर अचानक कैसे? वंश ने पूछा।

    मालूम नहीं। अपनी वाइफ से पूछिए। इंस्पेक्टर ने कहा। वह देखता है कि गीत उसका इंतज़ार कर रही है।

    जहाँ पर इंस्पेक्टर कहता है, गीत साइन करती है और वह दोनों बाहर आ जाते हैं।

    "क्या ज़रूरत थी मेरे पीछे आने की? मैं अपना मैटर हैंडल कर सकता था।"

    वंश परेशान है क्योंकि वह गीत की हेल्प नहीं लेना चाहता।

    वह दोनों पुलिस स्टेशन के बाहर आते हैं। वंश एक टैक्सी रोकता है। वह उसमें बैठता है। गीत वहीं खड़ी है।

    "अब बैठो।" उसके कहने से गीत उसके साथ बैठ जाती है।

    वंश बहुत गुस्से में है। तभी टैक्सी वाला म्यूज़िक ऑन कर देता है।

    "तुम्हें किसी ने कहा म्यूज़िक ऑन करने के लिए? किसके कहने पर तुमने म्यूज़िक ऑन किया?" वंश उसे बोलने लगता है।

    "मुझे लगा आपको अच्छा लगेगा। सभी कस्टमर म्यूज़िक लगाने के लिए कहते हैं। मैंने इसीलिए लगा दिया।"

    "तो क्या हुआ?" वह टैक्सी वाला कहता है।

    "देखो..." वंश गुस्से में उसे बोलने लगता है।

    गीत डर रही है कि अब इससे लड़ाई होगी। वह वंश की तरफ देखती है और उसे रोकने के लिए उसके हाथ पर हाथ रख देती है। वंश उसकी तरफ देखता है।

    वह आँखों से ही वंश को चुप होने का इशारा करती है। वंश चुप हो जाता है।

    दोनों को अपने घर तक पहुँचते हुए शाम हो गई थी। आज पूरा दिन ऐसे ही बेकार चला गया था। वंश ने तो गीत के हाथ का पराठा भी नहीं खाया था। वह भी छोड़ दिया था। अब वही उसे पुलिस लॉकअप से छुड़ाकर लाई थी।

    अंदर आते ही दोनों अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद फ्रेश होकर गीत कमरे से बाहर आती है। वह दो कप चाय बनाती है। अपना कप वह वहीं किचन में छोड़कर वंश का कमरा खटखटाती है।

    "आ जाओ।" वंश बोलता है।

    गीत कमरे का दरवाज़ा खोलती है।

    "मैं आपके लिए चाय लेकर आई थी।" बेड पर लेटा हुआ वंश उठकर उसके पास आता है।

    "मैंने तुमसे चाय मांगी थी?"

    "मुझे चाय नहीं चाहिए। अगर मुझे कुछ चाहिए होगा तो नीचे रेस्टोरेंट है। मैं वहाँ से लेकर आऊँगा। समझी तुम? तुम जहाँ से जा सकती हो।"

    गीत को बुरा बहुत लगता है वंश का ऐसे बात करना। वह चाय लेकर वापस किचन में आ जाती है।

    वंश कमरे से निकलता है और फ्लैट से बाहर चला जाता है। अब गीत को भूख भी लग रही थी। वह कुछ खाना चाहती थी। उसने देखा कि सुबह के बने हुए दो पराठे पड़े हुए थे। उसका और खाना बनाने को मन नहीं था। उसने चाय के साथ वही पराठे का रोल बनाया और उसे बैठकर खाने लगी। तभी उसका फ़ोन बजता है। राजवीर का फ़ोन था।

    "कैसे हो बेटा तुम लोग?"

    "हम ठीक हैं पापा।"

    "और वंश कैसा है?"

    "वह भी ठीक है। मैं आपकी उनसे बात कराती हूँ।"

    "वह अभी-अभी बाहर गए हैं।"

    "कोई बात नहीं, तुमसे बात हो गई। एक ही बात है।"

    गीत जब बात कर रही थी, उसे नहीं पता था कि वंश पीछे आ चुका है।

    वह अपना पर्स भूल गया था। वही लेने आया था। उसे लगा था कि गीत उसकी शिकायत करेगी, मगर उसने पुलिस स्टेशन के बारे में कुछ नहीं बताया और फ़ोन काट दिया।

    "डैड का फ़ोन था।" वंश ने गीत से कहा।

    "तुमने पुलिस स्टेशन वाली बात क्यों नहीं बताई? मेरी शिकायत करनी थी।"

    "मुझे आदत नहीं है शिकायत करने की। अगर बताना है तो आप खुद बता सकते हैं।" उसने टेबल से अपना चाय का कप उठाया और अपने कमरे में चली गई। वह परेशान था। वापस नीचे चला गया।

    उसने अविनाश को फ़ोन लगाया।

    "क्या बात है भाई? अपने दोस्त को तो भूल ही गए।" अविनाश ने जानबूझकर शिकायत की।

    "क्या मैं भूल गया? मैं बहुत परेशान हूँ।"

    "क्यों?"

    "भाभी कैसी है?"

    "मत पूछो।" वंश ने कहा।

    वह उसे लड़ाई वाली सारी बात बताता है।

    "तो क्या अंकल को पता चल गया? भाभी ने बता दिया होगा।"

    "नहीं, उसने कुछ नहीं बताया।"

    "मतलब उसने तुम्हारी फेवर की है। मतलब जैसी लड़की होनी चाहिए थी, वह वैसी ही है। किस्मत वाले हो।" अविनाश कहता है।

    वंश गुस्से में उसका फ़ोन काट देता है।

    रात को वह लेट तक रेस्टोरेंट में बैठा रहता है और फिर रेस्टोरेंट बंद होने के बाद ही वहाँ से उठकर घर आता है। जैसे ही वह अंदर गया, फ्लैट में पूरी शांति थी। गीत का कमरा बंद था। उसे पूरी उम्मीद थी कि वह उसके पीछे वापस फ़ोन करेगी, या उसकी वेट करेगी। मगर फ्लैट में पूरी शांति थी। फिर उसे याद आया कि ना तो उसके पास वंश का नंबर था और ना वंश के पास गीत का।

    उसे कमरे में जाकर लगा जैसे बालकनी का दरवाज़ा खुला था। वह वापस लिविंग रूम में आता है। देखता है कि सचमुच लिविंग रूम की बालकनी का दरवाज़ा खुला था। वह दरवाज़े से बाहर देखता है। वहाँ सोफ़े पर गीत वहीं सो रही थी।

    उसने वही ब्लू कलर की साड़ी पहनी थी। उसने अपनी बाजुओं पर क्रीम रंग का शाल लिया हुआ था। लिविंग रूम से हल्की-हल्की रोशनी गीत के चेहरे पर पड़ रही थी। वंश उसकी तरफ ध्यान से देख रहा है। उसकी बंद आँखों पर लंबी-लंबी पलकें दिखाई दे रही थीं। वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।

    उसकी निगाह फिर उसके होंठ और तिल के बीच आकर अटक जाती है। वह गुस्से में था, मगर गीत को ऐसे देखकर उसके चेहरे से गुस्सा चला गया था और वह अजीब से तरीके से गीत को देख रहा था।

    तभी वंश का फ़ोन बजा। फ़ोन की घंटी से पहले ही वह होश में आया। सिया का फ़ोन था। उसने नहीं उठाया। वह अपने कमरे में चला गया।

    "वो बाहर सो रही है। कहीं मेरा इंतज़ार तो नहीं कर रही थी? अगर करती भी हो तो मुझे क्या? मगर बाहर सर्दी होने लगी है।" उसने अपने आप से कहा।

    वह वापस बाहर आया। गीत अभी भी वैसे ही सो रही थी। वह चाहता था कि गीत उठकर कमरे में चली जाए क्योंकि बाहर ठंड थी, लेकिन वह उसे सीधा उठाना भी नहीं चाहता था। वह किचन में गया और एक गिलास उठाया और नीचे गिरा दिया, जिससे काफ़ी शोर हुआ। उसने किचन के दरवाज़े पर जाकर बाहर लिविंग रूम से बालकनी की तरफ़ देखा। मगर वह ऐसे ही सो रही थी। वह उसे उठाना चाहता था।

    "अगर नहीं उठाती है, मैं क्यों परेशान हो रहा हूँ?" वह अपने कमरे में चला गया।

    एक बार सोया तो उसकी सुबह ही आँख खुली। वह कमरे से बाहर आया। उसका ध्यान वहीं बालकनी की तरफ़ गया। मगर वह दरवाज़ा बंद था। गीत वहाँ पर नहीं थी।

    "कमरे में होगी।" उसने सोचा।

    "चलो खुद ही चाय बनाता हूँ।" वह किचन में गया और चाय बनाने लगा। वह देखने लगा शायद कल की तरह पराठे बने हों। वहाँ पर कुछ भी नहीं था। वह चाय बनाकर लिविंग रूम की बालकनी में चला गया। वहाँ बैठकर चाय पीने लगा।

  • 16. मेरे हमसफ़र - Chapter 16

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    एक बार सोया तो उसकी सुबह ही आँख खुली। वह कमरे से बाहर आया। उसका ध्यान उसी बोल लिविंग रूम की बालकनी की तरफ गया, मगर वह दरवाज़ा बंद था; गीत वहाँ पर नहीं थी।

    कमरे में होगी, उसने सोचा। चलो खुद ही चाय बनाता हूँ। वह किचन में गया और चाय बनाने लगा। वह देखने लगा शायद कल की तरह पराठे बनाए हों। वहाँ पर कुछ भी नहीं था। वह चाय बनाकर लिविंग रूम की बालकनी में चला गया। वहाँ बैठकर चाय पीने लगा।

    उसकी निगाह ऊपर से नीचे गीत पर गई। वह वहाँ बच्चों के साथ बैठी हुई थी। पास में गाँव पड़ता था; उस गाँव के बच्चे थे। आठ-दस बच्चे होंगे। वह उनके साथ बातें कर रही थी। थोड़ी देर बच्चे वहाँ पर रुके और फिर वे बच्चे चले गए। बच्चों के जाने के बाद गीत पहाड़ी की तरफ जाने लगी। पहाड़ी पर खूबसूरत सा पॉइंट था जहाँ पर लोग अक्सर आते थे और बैठते थे। वह उसी की तरफ जा रही थी।

    वह जाते हुए किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। पता नहीं क्यों वंश को जिज्ञासा हुई।

    "मैं क्यों इसमें इतनी दिलचस्पी लेता हूँ?"

    वह उसे सोता हुआ छोड़कर अकेली चली गई थी। वह भी उसी पहाड़ी की तरफ चला गया।

    वह जानना चाहता था, "कहीं इसका कोई बॉयफ़्रेंड तो नहीं है? इससे यहाँ पर मिलने आ रहा हो? ऐसा भी तो हो सकता है, मुझे पता करना चाहिए।"

    बहुत से लोग वहाँ पर थे। उसने ध्यान से देखा; कहीं भी गीत नहीं थी। वहाँ पर जो खाने की स्टॉल थी, वंश ने ऊपर भी ध्यान किया, मगर वह उसे नहीं मिली।

    "कहाँ गई? कहीं सुसाइड करने तो नहीं आई थी? मैंने उसे नहीं अपनाया, इसलिए उसने सुसाइड कर लिया हो?"

    वह जल्दी से खाई की तरफ गया। फिर उसने साइड पर देखा, जहाँ पर झरना बहता था। गीत वहाँ साइड पर पानी में पैर डालकर बैठी हुई थी। उसने पिंक कलर का सूट पहना था, जिसके ऊपर पिंक कलर का कार्डिगन डाला था। गले में दुपट्टा था। उसके पैर पानी में थे और वह बैठी सोच रही थी। उस खूबसूरत सी लड़की को देखकर वंश के चेहरे पर अपने आप मुस्कराहट आ गई थी।

    "अच्छा, तो यहाँ बैठी हो अकेली?" वंश ने उसे देखा। वह उसके पास जाने लगा।

    "मैं इसके पास क्यों जा रहा हूँ?" वह वापस चला गया। उसे पता नहीं क्यों फ़िक्र हुई थी कि वह कहाँ गई है। वह वापस फ़्लैट में चला गया था।

    अविनाश का फ़ोन आया। "क्या हुआ? क्या चल रहा है? और भाभी कैसी है?"

    "ठीक है," वंश ने कहा।

    "मानते हो कि वह मेरी भाभी है? मैं तो मज़ाक कर रहा हूँ। बताओ, फिर अब तक तो वह लड़की थोड़ा बहुत पछताने लगी होगी तुमसे शादी करके। थोड़ा बहुत तो गुस्सा करने लगी होगी, भाभी।" अविनाश ने जानबूझकर कहा।

    क्योंकि जिस तरीके से वंश की आवाज़ थी, वह उसे समझा रहा था। वह उसके बचपन का दोस्त था।

    "मैं पछता रहा हूँ।"

    "क्यों? उसने कहा तुमसे कुछ?"

    "वह कुछ भी नहीं कहती। उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं है! वह खुश है या दुखी है? मैं ज़रूर पछता रहा हूँ। हम लोग कल आ रहे हैं।"

    "मगर तुम लोग तो एक हफ़्ते के लिए गए थे और तुम कह रहे थे कि जब तुम दोनों शिमला से आओगे, वह लड़की वहीं पर पछताने लगेगी।"

    "नहीं यार, बस मैं नहीं रह सकता उसके साथ। मैं आ रहा हूँ और उससे कहता हूँ कि हम तलाक ले लेते हैं।"

    "चलो ठीक है," अविनाश ने कहा।

    वंश सोचने लगा। सचमुच गीत ने उसे इग्नोर किया था। वह ऐसा भी नहीं कह सकता था क्योंकि पुलिस स्टेशन में वह उसके पीछे आई थी। उसके लिए खाना बनाया और रात वह उसी का वेट कर रही थी।

    मगर यह भी सच था कि उसके मन में क्या था, वह वंश नहीं जान सका। उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिससे वंश समझ सके कि उसके मन में क्या है।

    "मुझे घुटन हो रही है इस रिश्ते से। आने दो, मैं उससे बात करता हूँ।" दो दिन शादी को हुए थे और वह कह रहा था कि गीत पछताएगी उससे शादी करके, मगर जहाँ तक तो वह खुद पछता रहा था।

    "नहीं नहीं, मैं अभी बात नहीं करूँगा उससे। हम लोग घर जाते हैं। घर जाकर फिर बात करूँगा मैं उससे।"

    दोपहर की शाम हो गई थी, मगर गीत वापस नहीं आई थी। "कहीं मेरे आने के बाद उसने सचमुच सुसाइड तो नहीं कर लिया? मैं क्यों पागल हो रहा हूँ इसके बारे में सोचकर?"

    उसे शाम को कॉफ़ी चाहिए थी और वह नीचे बने रेस्टोरेंट में चला गया। कॉफ़ी ऑर्डर करके वहीं बैठ गया। उसकी नज़र एक टेबल पर गई जहाँ पर गीत किसी ओल्ड लेडी के साथ बैठी हुई थी, सैंडविच खा रही थी। वह उस औरत के साथ हँस रही थी।

    "इसने मुझे सुबह से परेशान कर दिया है। पहले मैं इसके पीछे बहुत पॉइंट तक गया, फिर इसे ढूँढा। मुझे अभी भी इसकी फ़िक्र हो रही थी और इसे देखो, सैंडविच खा रही है। कोई ज़िम्मेदारी भी होती है।"

    अब वंश खुद ही भूल गया था कि उसने फ़्लैट में आते ही गीत से क्या कहा था। गीत ने उसकी बात मान ली थी। अब वह खुद ही अपनी बात मानने को तैयार नहीं था। अगर गीत सामने थी तो उसे प्रॉब्लम थी; अगर गीत सामने नहीं थी तो उसे प्रॉब्लम थी।

    अब वंश को कौन समझाए कि उसे प्यार हो गया था गीत से? लव एट फ़र्स्ट साइट। जब उसने किचन में गीत को देखा था, वह सिंपल सी खूबसूरत लड़की उसके दिल में पहली ही नज़र में उतर गई थी। अगर उसके डैड उससे शादी के लिए नहीं कहते तो वह उसी दिन गीत में दिलचस्पी भी लेता और शायद खुद ही कह देता कि मुझे गीत से प्यार है।

    वह सिर्फ़ इस बात को लेकर गीत को अपनाने को तैयार नहीं था कि उसकी जबरदस्ती शादी की गई है, उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़। इसी बात को लेकर वह खुद को और गीत को दोनों को परेशान कर रहा था।

  • 17. मेरे हमसफ़र - Chapter 17

    Words: 1040

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब वंश को कौन समझाए कि उसे गीत से प्यार हो गया था। लव एट फर्स्ट साइट। जब उसने किचन में गीत को देखा था, वह सिंपल सी खूबसूरत लड़की उसके दिल में पहली ही नजर में उतर गई थी। अगर उसके डैड उससे शादी के लिए नहीं कहते, तो वह उसी दिन गीत में दिलचस्पी लेता और शायद खुद ही कह देता कि उसे गीत से प्यार है।

    वह सिर्फ़ इस बात को लेकर गीत को अपनाने को तैयार नहीं था कि उसकी जबरदस्ती शादी की गई थी, उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़। इसी बात को लेकर वह खुद को और गीत को दोनों को परेशान कर रहा था।

    वंश ने सोच लिया था कि सुबह ही वहाँ से चलेंगे। अगली सुबह वंश जल्दी उठा क्योंकि वह बेचैनी में पूरी रात सोया ही नहीं था। उसे गीत से बात करनी थी। वह उठकर कमरे से बाहर आया, मगर गीत अभी उठी नहीं थी। उसने खुद अपने लिए नाश्ता बनाया और गीत का इंतज़ार करने लगा। सुबह हो गई थी और काफी समय हो गया था, मगर अभी तक गीत का दरवाज़ा नहीं खुला।

    "मुझे देखना चाहिए," वह सोचा। "वो तो जल्दी उठती है।" वह उसके कमरे की तरफ़ जाने लगा। उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाने ही वाला था कि दरवाज़ा खोलती हुई गीत बाहर आई। वह नाइट सूट में थी, बालों को एक जुड़ा बनाते हुए बाहर निकल रही थी।

    "काम था आपको कोई मुझसे?" गीत ने पूछा।

    "हम लोग चल रहे हैं। तैयार हो जाओ।" वंश ने कहा।

    "ठीक है।" गीत ने कहा और वह किचन की तरफ़ जाने लगी।

    "कमाल है! कोई वापस सवाल भी नहीं किया," वंश ने किचन की तरफ़ देखते हुए सोचा।

    वह अपने कमरे में चला गया। "एक बार भी मुझसे सवाल करके नहीं पूछा कि हम लोग एक हफ़्ते के लिए आए थे और आज ही जा रहे हैं।" वह चाहता था कि गीत उसे सवाल करे और वह उसे कोई ऐसा जवाब दे जिससे गीत लाजवाब हो जाए।

    मगर गीत उसे इग्नोर कर रही थी। थोड़ी देर बाद वह तैयार होकर कमरे से बाहर आया। गीत लिविंग रूम में सोफ़े पर बैठी थी। उसके पास उसका सूटकेस पड़ा था।

    जैसे ही वंश कमरे से बाहर निकला, गीत की नज़र वंश पर गई। उसने ब्लू जींस, ब्लैक शर्ट, ऊपर से लेदर की जैकेट, और पैरों में स्नीकर्स पहने थे। वह बालों में हाथ मारता हुआ बाहर आ रहा था।

    गीत उसकी तरफ़ लगातार देखती रही। उसे होश भी नहीं था कि वंश उसे नोटिस कर रहा है।

    "क्या हुआ? ऐसे देख रहे हो मुझे? मैं बहुत हैंडसम लग रहा हूँ?" वंश ने कहा।

    उसकी बात पर गीत मुस्कुरा दी।

    "मैं क्या सोच रही हूँ, इस बात का कोई मतलब नहीं।" वह खड़ी हो गई।

    "मैंने तो अपना बैग ही नहीं पैक किया," वंश ने कहा। वह वापस कमरे में जाने लगा।

    "अगर आपको हेल्प चाहिए हो तो मैं कर सकती हूँ," गीत कहने लगी।

    "कोई भी ज़रूरत नहीं," वंश ने कमरे के अंदर जाते हुए कहा। मगर उसके सारे कपड़े, जो उसने इन दिनों में पहने थे, वैसे ही वहाँ सोफ़े पर पड़े थे। पूरा कमरा बिखरा पड़ा था। वह वापस बाहर आया।

    "ठीक है, मेरा बैग पैक कर दो।" वंश ने कहा। गीत उसके कमरे में गई।

    गीत ने पूरा सामान समेटकर दस मिनट में बैग में डाल दिया।

    "चले हम," गीत ने कहा।

    "हमें चलने से पहले ब्रेकफ़ास्ट कर लेना चाहिए। मैंने रेस्टोरेंट में ऑर्डर कर दिया है।" वंश ने कहा।

    वे दोनों बाहर सोफ़े पर बैठे थे। रेस्टोरेंट से उनका ब्रेकफ़ास्ट आ गया और उन्होंने डाइनिंग टेबल पर बैठकर ब्रेकफ़ास्ट करने लगा।

    "मुझे तुमसे जाने से पहले तुमसे बात करनी है।" वंश के कहने पर गीत ने उसकी तरफ़ देखा।

    "मैंने एक बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे शादी नहीं करनी चाहिए थी, मगर डैड ने इतना प्रेशराइज़ किया। उन्हें गलत साबित करने के लिए मुझे यह करना पड़ा। उन्हें सिर्फ़ यह समझाने के लिए कि हम दो अलग-अलग दुनिया के लोग हैं और कभी एक साथ खुश नहीं रह सकते, सिर्फ़ उन्हें गलत साबित करने के लिए मैंने तुमसे शादी के लिए राज़ी हुआ। हम दोनों एक साथ नहीं हो सकते। हमारी शादी नहीं चल सकती। मैंने सोचा था मैं वेट करूँगा। मुझे लगा तुम खुद डाइवोर्स माँगोगी।"

    गीत चेहरे पर कोई दुख या खुशी के भाव लिए बिना उसकी तरफ़ देखती रही।

    "हम लोग दो दिनों से साथ हैं। तुझे मुझ में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मुझे तुझ में कोई इंटरेस्ट नहीं। इसलिए हमारा तलाक़ ही सही है। आज नहीं तो कल तुम खुद तलाक़ माँगोगी। तुम भी मेरे साथ खुश नहीं रह सकोगी। हम तलाक़ ले लेते हैं, जिससे जाते ही हम दोनों अलग-अलग हो जाएँगे। सिर्फ़ डैड को गलत साबित करने के लिए हम दोनों अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकते। तुम्हें पैसे मिलते रहेंगे, उसकी फ़िक्र बिल्कुल मत करना। पता है मुझे, तुम इस दुनिया में बिल्कुल अकेली हो। मैं तुम्हारी हर ज़रूरत का ख़्याल रखूँगा।" वंश गीत से पूछ रहा था, मगर गीत चुपचाप उसे देखती रही।

    "कुछ तो बताओ। ठीक है ना हम तलाक़ ले लेंगे?"

    गीत का मन किया कि कह दे, "ठीक है, हम ले लेते हैं," मगर उसे अपनी माँ को दिया हुआ वचन याद आ रहा था। क्योंकि उसने अपनी माँ से प्रॉमिस किया था कि वह अपने अंकल की हर बात मानेगी और अंकल उन दोनों को एक साथ देखना चाहते थे। उसे बहुत बुरा लग रहा था कि वह सामने वाला इंसान उसके साथ नहीं रहना चाहता और फिर भी वह उसके साथ रह रही है। उसकी कोई सेल्फ़ रिस्पेक्ट नहीं है। मगर उसने अपने अंदर कंट्रोल करते हुए कहा,

    "नहीं, मैं तलाक़ नहीं ले सकती।" और वह अपना ब्रेकफ़ास्ट छोड़कर खड़ी हो गई।

    गीत के इस तरह मना करने पर वंश को बहुत गुस्सा आया।

    "तुम मुझे तलाक़ नहीं दोगी? तो एक बात याद रखो तुम हमेशा, राजवीर राणा की बहू हो सकती हो, मगर मेरी वाइफ़ कभी नहीं। हम दोनों के बीच ऐसा कोई रिश्ता कभी नहीं हो सकेगा। याद रखना, मेरे ज़िंदगी में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं होगी। देखो गीत, मैंने ईमानदारी से तुम्हें हर बात बता दी है। समझो तुम मुझे। मुझे समझ नहीं आ रहा कि डैड तुम्हें इतना पसंद क्यों करते हैं।"

  • 18. मेरे हमसफ़र - Chapter 18

    Words: 1105

    Estimated Reading Time: 7 min

    आपको मेरी सीरीज कैसी लग रही है कमेंट में बताएं।


    गीत का मन किया कि  कह दे ।
    ठीक है हम ले लेते हैं ।मगर उसे अपनी मां को दिया हुआ बचन याद आ रहा था ।क्योंकि उसने अपनी मां से प्रॉमिस किया था। वह अपने अंकल की हर बात मानेगी ।और अंकल उन दोनों को एक साथ देखना चाहते थे ।उसे  बहुत गंदा फील हो रहा था कि वह सामने वाला इंसान उसके साथ नहीं रहना चाहता और फिर भी वह उसके साथ रह रही है। उसकी कोई सेल्फ रिस्पेक्ट नहीं है।  मगर उसने अपने अंदर कंट्रोल करते हुए कहा।
    नहीं मैं तलाक नहीं ले सकती। और वह अपने ब्रेकफास्ट छोड़कर खड़ी हो गई।


    गीत के इस तरह मना करने पर वंश को बहुत गुस्सा आता है।
    तुम मुझे तलाक नहीं  दोगी ।
    तो एक बात याद रखो तुम हमेशा ।
    राजवीर राणा की बहू हो सकती हो। मगर मेरी वाइफ कभी नहीं।
    हम दोनों के बीच ऐसा कोई रिश्ता कभी नहीं हो सकेगा।
    याद रखना मेरे जिंदगी में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं होगी।
    देखो गीत मैंने ईमानदारी से तुम्हें हर बात बता दी है। समझो तुम मुझे।
    मुझे समझ नहीं आ रहा कि डैड तुम्हें इतना पसंद क्यों करते हैं ।



    वो दोनों मुंबई पहुंच गए थे। वंश पूरे रास्ते नाराज रहा ।जैसे ही वह लोग घर पहुंचे हर रात हो चुकी थी। उन दोनों को देखकर राजवीर बहुत हैरान हूआ।

    तुम दोनों जहां पर ।दो दिन हुए तुम लोगों को जहां से गए हुए ।
    राजवीर ने कहा।


    नीता खुश हो गई थी।
    मेरा बेटा इस लड़की को दो दिन से ज्यादा  नहीं झेल  सकता
    और क्या करें। आना ही था उसे। नीता अपने आप से कह रही थी।

    मैं बहुत थका हुआ हूं ।वंश कमरे में चला गया था ।गीत भी सभी से मिलकर उसके पीछे कमरे में चले गई ।वंश को गाड़ी से सामान निकलवाना था ।वह वापस बाहर आ गया ।

    उसने देखा कि उसके डैड गाड़ी में बैठ रहे हैं ।
    डैड आप इतनी रात को कहां जा रहे हो ।

    बेटा  कंस्ट्रक्शन साइड पर बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो गई है।
    मैं वहीं जा रहा हूं ।

    मैं भी आपके साथ ही चलता हूं।
    इतनी रात को आप अकेले कहां जाएंगे।

    वो राजवीर के साथ ही चला जाता है। वंश ने गाड़ी से ड्राइवर को उतार दिया था ।वह खुद ड्राइव करने लगा था। राजीवर उसे देख कर मुस्कुराता है ।

    आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं ।
    आप कह रहे हैं इतनी बड़ी टेंशन हो गई ।

    अब मुझे स्ट्रेस लेने की क्या जरूरत है ।जब जवान बेटा बाप के साथ हो।

    तो क्या  लगता है आप को 
    आपका  बेटा आपकी सारी प्रॉब्लम सॉल्व कर देगा ।अपने डैड की बात पर वंश ने मुस्कुरा कर कहा।

    मुझे नहीं पता था कि गीत से शादी के बाद तुम दो ही दिन में इतने रिस्पांसिबल हो जाओगे।
    मैं खुश हूं तुम्हारे लिए ।राजवीर ने उससे कहा ।

    अब इसके बीच में गीत कहां से आ गई। वंश कहने लगा ।

    ठीक है भाई अब मैं गीत के बारे में नहीं कहूंगा। राजवीर ने कहा।
    मगर प्लीज बेटा वहां पर ध्यान रखना कि गुस्से से काम नहीं लेना।
      पहले ही  मजदूर और जो हमारे डिपार्टमेंट थे हमारे लोग थे। उनके बीच में लड़ाई हो गई ।
    जरा संभल कर मैटर  हैंडल करना होगा।

    जी ठीक है। वंश ने कहा।

    वंश को गीत याद आ गई। जब वह टैक्सी में बहुत गुस्से में था।
    तो गीत ने उसे अपनी आंखों के इशारे से चुप रहने को कहा था।
    उसे वह आंखें याद आ रही थी ।सचमुच पेशेंस बहुत है तुझ में ।गाड़ी चलाता हुआ वंश अचानक से गीत के बारे में सोचने लगा था।

    मगर तलाक तो मुझे तुमसे लेना है ।फिर उसका दिमाग तलाक वाली लाइन पर आ गया था। वह दोनों बाप बेटा उस साइड पर पहुंच गए थे ।

    वहीं गीत कमरे में चेंज करने के बाद सोफे पर आकर बैठ गई ।वो  मैसेज चेक करने लगी।उसके फोन पर उसकी सहेली सिमरन का मैसेज था ।वह उसे व्हाट्सएप्प कॉल लगाती है ।क्योंकि उसकी फ्रेंड सिमरन इंडिया से बाहर कनाडा में थी ।

    चलो भाई शुक्र है । तुम्हें  हमारे लिए टाइम तो मिला ।
    वरना कहां गायब थी तू ।तुमने मुझे  इन दिनों में कोई फोन नहीं किया ।

    मुझे  टाइम नहीं लगा। मैं भी थोड़ी बिजी चल रही थी। सिमरन ने बताया ।


    हां पता है मुझे तू दो-दो नौकरियां कर रही होगी। गीत ने कहा।

    और नहीं तो क्या यार ।अपना देश भी छोड़ा है।
    काम तो करना पड़ेगा ना।
    तू बता कैसा चल रहा है ।
    मुझे पता चला था कि अब आंटी नहीं रहे।

    मेरी लाइफ में इतना सब कुछ हो चुका है।
    तुम सोच भी नहीं सकती। वो उसे अपनी शादी और वंश के बारे में बताती है ।
    तुम्हारे कहने का मतलब है तुमने शादी कर लिया और तुम्हारा पति तुमसे तलाक चाहता है ।

    मैं अपनी मॉम का वचन नहीं तोड़ सकती। तुम अच्छे से जानती हो ।
    मरने से पहले उन्होंने मुझसे प्रॉमिस लिया था।


    तुम्हारी जिंदगी में  जो हो रहा है मेरी समझ से बाहर है । सिमरन ने कहा।

    चल छोड़ इस बात को।
    तू बता तू तो ठीक है।

    हां गीत ।अगर कोई भी परेशानी हो तो प्लीज मुझ से शेयर करना
    और याद रखना तुम्हारी सहेली  तुम्हें बहुत चाहती है।
    तुमने और आंटी ने हमेशा बुरे टाइम में मेरा साथ दिया है।
    मैं कभी पीछे नहीं हटूंगी।

    डायलॉग मारने की जरूरत नहीं है।
    मैं ठीक हूं और वैसे भी पाप है ।दोनों   कितनी देर फोन पर बात करती रही ।

    राजवीर और वंश  मैटर  सालव कर लेते हैं।
    बेटा वैसे मैं बहुत खुश हूं ।जिस तरह से आए तुमने मैटर को हैंडल किया ।
    बिल्कुल मुझे मेरी जवानी का राजवीर  दिखने लगा ।उसके डैड हंसने लगे।

    वह लोग काफी लेट घर पहुंचे।  वंश अपने कमरे की तरफ जाने लगा ।
    अब हम दोनों को साथ रहना पड़ेगा ।
    तो अब वह लड़की मेरे साथ रहेगी।

    वह कमरे के अंदर गया ।लाइट ऑफ थी।नाइट लैंप चल रहा था ।वंश ने आगे बढ़कर लाइट ऑन कर दी। बेड खाली था ।उसका ध्यान साइड पर पड़े सोफे पर गया। जहां पर गीत सो रही थी।वो उसकी तरफ देखते हुए बैड पर लेट गया।

    सिया अपने कमरे में आधी रात को बेचैनी से घूम रही थी ।उसे नीता ने फोन करके बता दिया था की वंश आ चुका है। उसके हाथ में वंश और अपनी कॉलेज की तस्वीर थी।
      मैं तुम्हें उसे लड़की को नहीं दे सकती।।
    तुम्हें मेरा होना ही होगा ।वह तस्वीर देख कर कह रही थी
    गीत  तुम यह मत समझना कि तुम्हारी शादी हो गई और वंश तुम्हारा हो गया। मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी।

  • 19. मेरे हमसफ़र - Chapter 19

    Words: 1132

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह जब वंश उठा, गीत कमरे में नहीं थी। वह उसके उठने से पहले ही कमरे से जा चुकी थी। वंश भी उसका चेहरा नहीं देखना चाहता था। वह तैयार होकर ऑफिस चला गया। उसने नाश्ता भी नहीं किया क्योंकि वह गीत को नहीं देखना चाहता था।


    ऑफिस में, वह अपने कमरे में परेशान बैठा था और अविनाश उसके पास था।

    "क्या मैं पूछ सकता हूँ?" अविनाश ने पूछा।

    "तुम हनीमून से आए हो और ऐसे गुमसुम क्यों हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए।"


    "देखो, मुझे मजाक बिल्कुल पसंद नहीं। मैं इस शादी नाम के पिंजरे से बाहर नहीं आ सकता।"


    "तुम्हें इसके बारे में भाभी से बात करनी चाहिए।"


    "मैंने बात की थी। वह तलाक के लिए तैयार नहीं। उसने मना कर दिया।"


    "क्या कहा उसने?" अविनाश ने पूछा।


    "उसने कोई कारण नहीं दिया। ठीक है, उसने इंकार कर दिया। मगर मैं भी हार मानने वाला नहीं हूँ। बहुत जल्दी उसे पछताना पड़ेगा अपने फैसले पर। वह खुद मुझसे तलाक मांगेगा।"


    गीत अपने कमरे में बैठी थी। वह परेशान थी। तभी दरवाज़ा खोलती हुई नीता कमरे में आई। वह नीता को देखकर खड़ी हो गई।

    "आंटी, आप मुझे बुला लेतीं।" गीत कहने लगी।


    "चली क्यों नहीं जाती मेरी बेटे की लाइफ से तुम? तुम जैसी एक मिडिल क्लास लड़की मेरे बेटे के साथ बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। कहाँ वह और कहाँ तुम! लेकिन पता है तुम्हें? बहू को किचन में जला दिया जाता है। तुम्हारे साथ भी तो ऐसा हो सकता है।" नीता उसे धमकाने लगी।


    "मेरी बात मानो। चुपचाप घर छोड़कर चली जाओ। मैं तुम्हें बहुत पैसे दूँगी। सोच लो और हाँ, यह बात अगर तुमने राजवीर को बताई, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"


    गीत अपना सिर पकड़कर बैठी हुई थी। वह अपने माँ-बाप को याद कर रही थी।

    "आप दोनों मुझे साथ ही क्यों नहीं ले गए? क्यों छोड़ गए ऐसी जिंदगी और बेइज़्ज़ती के लिए? माँ, एक बार भी सोचा कि आप मुझसे कैसा वचन ले रही हो? आप अच्छे से जानती हैं कि मैं आपका वचन कभी नहीं तोड़ सकती।"


    वह सारा दिन अपने कमरे में लेटी, रोती रही। उसके आँसू रोकने वाला भी नहीं था।


    वह उन दोनों ही माँ-बेटे से परेशान थी, मगर उन्हें गलत भी नहीं कह सकती थी क्योंकि उन दोनों ने तो शादी से पहले ही उसे बता दिया था कि वे उसे पसंद नहीं करते। फिर भी उसने शादी की थी।


    तभी उसका दरवाज़ा खटखटाया गया और दरवाज़ा खोलती हुई सोना अपनी व्हीलचेयर पर आई।

    "भाभी, बाहर आ जाओ! हम लोग आपकी वेट कर रहे हैं खाने पर।"


    गीत सोना के साथ बाहर आ गई।


    डाइनिंग टेबल पर राजवीर पहले ही बैठा हुआ था।

    "बेटा, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। इसीलिए सोना को बुलाने भेजा।"


    तभी वंश भी बाहर से हाल में आया।

    "भाई, आ जाओ, साथ में खाना खाते हैं।" सोना ने कहा। "बहुत दिन हो गए हम लोगों ने साथ में खाना नहीं खाया।"


    चाहे वंश का मूड खराब था, मगर वह सोना की बात नहीं टाल सकता था। वह भी आकर बैठ गया।


    "तो बेटा, तुम ठीक हो?" राजवीर ने गीत से पूछा।


    "जी पापा, मैं ठीक हूँ।"


    "तुम्हें पंजाब और मुंबई में फ़र्क लगा? कैसा है हमारा मुंबई शहर?"


    "जब मैं इसे जानने लगूँगी तो आपको बताऊँगी।" गीत ने बात खत्म करनी चाही।


    "सही बात है, तुम लोग आज शिमला से आए हो। तुम्हें मुंबई घूमना चाहिए। वंश, कल तुम गीत को खाने पर लेकर जाने वाले हो। मेरी बहू को शहर दिखाओ।"


    "मगर डैड, को तो वह मीटिंग है।"


    "कोई बात नहीं, मीटिंग पर मैं वीर को भेज दूँगा। कंस्ट्रक्शन वाली मीटिंग जल्दी होनी है, तुम केवल उसे अटेंड कर लेना। बाकी काम मैं और वीर भी देख लेंगे।" राजवीर ने कहा।


    "अब गीत के प्रति भी तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। काम और बीवी दोनों में बैलेंस बनाना सीखो।" राजवीर ने उसे हँसकर कहा। "कल तुम्हारी ऑफिस से छुट्टी। बीवी को शहर घुमाओ, बाहर खाना खिलाओ, शॉपिंग कराओ, समझे?"


    नीता को राजवीर की बात बहुत बुरी लग रही थी। वह चुपचाप बैठी हुई थी। वंश भी परेशान था, मगर वह अपने डैड से कुछ नहीं कहता।


    खाने के बाद वंश कमरे में आया। वह अपना ब्लेज़र बेड पर रखते हुए बाहर वॉशरूम चला गया।


    थोड़ी ही देर बाद वह चेंज करके वापस आया। गीत सोफ़े पर बैठी हुई उसकी तरफ देख रही थी। थोड़ी देर बाद वंश भी आकर बेड पर बैठ गया। तभी वंश का फ़ोन बजा।


    अविनाश का फ़ोन था।

    "क्या हुआ? किसलिए फ़ोन किया?" वंश ने पूछा।


    "कल टूर्नामेंट हो रहा है। चलोगे ना? हम पुराने दोस्त इकट्ठे हो रहे हैं वहाँ पर।"


    "कल मैं फ़्री था। बिल्कुल जा सकता था। मगर कल डैड ने मुझे एक फ़ुज़ूल सा काम दिया है।" वंश ने गीत की तरफ़ देखते हुए कहा। "और वह काम करना मेरी मजबूरी है।"


    गीत वंश से बात करने के लिए बैठी हुई थी। वह उसे कहना चाहती थी कि वह राजवीर से बात करेगी और वे दोनों बाहर नहीं जाएँगे। मगर जिस तरह से वंश ने फ़ोन पर अपने दोस्त से बात की कि कल वह एक फ़ुज़ूल सा काम करने जा रहा है, गीत के अंदर से आवाज़ ही नहीं निकली। उसे बहुत ज़्यादा रोना आया। वह उठकर वॉशरूम चली गई।


    थोड़ी देर वह वॉशरूम में रही। अपने आप को उसने ठीक किया। वह रोना नहीं चाहती थी और वह लम्बी-लम्बी साँस ले रही थी। वंश ने उसे वॉशरूम जाते हुए देखा। उसे भी बुरा लगा था कि उसने गीत के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था, जानबूझकर उसकी बेइज़्ज़ती की थी।


    वंश ऐसा नहीं था। उसने यह भी सोचा था कि उसके इस तरह बोलने पर गीत उस पर नाराज़ होगी, मगर वह बिल्कुल चुप हो गई थी।


    नीता सिया से बात कर रही थी।

    "सिया, अगर तुम वंश को चाहती हो तो तुम्हें उसका पीछा नहीं छोड़ना चाहिए। याद रखो, अगर तुमने पीछा छोड़ दिया तो तुम कभी वंश को नहीं पा सकोगी। तुम मुझे पसंद हो और तुम्हें ही मेरी बहू बनाना है।"


    "मैं तलाक नहीं ले सकती।" और वह अपना नाश्ता छोड़कर खड़ी हो गई।


    गीत के इस तरह मना करने पर वंश को बहुत गुस्सा आया।

    "तुम मुझे तलाक नहीं दोगी? तो एक बात याद रखो तुम हमेशा। राजवीर राणा की बहू हो सकती हो, मगर मेरी वाइफ कभी नहीं। हम दोनों के बीच ऐसा कोई रिश्ता कभी नहीं हो सकेगा। याद रखना, मेरे ज़िन्दगी में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं होगी। देखो, गीत..."

  • 20. मेरे हमसफ़र - Chapter 20

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    गीत सुबह उठ चुकी थी। उसकी पूरी रात बेचैनी से गुज़री थी। वह अपने मन में बहुत परेशान थी, मगर उसने अपने आप से वादा किया था कि वह किसी की परवाह नहीं करेगी। उसे अपनी ज़िन्दगी शान्त होकर बितानी थी। ये दोनों माँ-बेटे चाहे कैसे भी हों, अगर वे उसे नहीं अपना रहे थे, तो वह भी उन्हें नहीं अपनाएगी।

    वह नहाकर बाथरूम से निकली। उसने नहाने के बाद अपने बालों को सँवारा। चेहरे पर हल्का मेकअप करते हुए उसने अपने गले में पड़े मंगलसूत्र की ओर देखा, फिर उसे अनदेखा करते हुए तैयार हो गई। वह ड्रेसिंग रूम में थी। लगातार वंश का अलार्म बज रहा था। थोड़ी देर उसने इंतज़ार किया, मगर वंश नहीं उठा।

    उसे पता था कि आज सुबह वंश की मीटिंग है। उसे मीटिंग में जाना है। वह उसे उठाने के लिए उसके पास गई।

    "अगर मैंने इसे उठा दिया, तो क्या पता क्या कहे?"

    फिर उसने खिड़की का पूरा पर्दा किनारे कर दिया, जिससे बाहर से आई हुई हल्की-हल्की धूप उसके चेहरे पर पड़ी। अचानक रोशनी उसके चेहरे पर पड़ने से उसकी आँख खुल गई।

    उसने खिड़की की ओर देखा जहाँ गीत पर्दा हटा रही थी। उसने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और उसके बाल उसके चेहरे पर आ गए थे। उसने अपने हाथ से उन्हें पीछे किया और पर्दा ठीक करने लगी।

    गीत के चेहरे की ताज़गी देखने वाले का मन मोह लेती थी।

    ना चाहते हुए भी वंश ने उसकी ओर मुस्कुराकर देखा। सच, वह सुबह की नरम धूप थी जो वंश के कमरे में उतरी थी, मगर अगले ही पल उसके चेहरे का भाव बदल गया।

    "यह तुमने क्या किया?" वंश ने कहा।

    "आपका अलार्म बज रहा था। आप नहीं उठे। आज आपको जल्दी ऑफिस जाना है। आपको उठाने के लिए किया। रात आपने पापा से बात की थी।"

    "तुम्हें इस बात से क्या मतलब?"
    "तुम अपने काम से कम रखो।" वंश बोलने लगा।

    वह उसकी बात बिना सुने कमरे से बाहर जाने लगी।

    "मैं बात कर रहा हूँ और यह कमरे से बाहर चली गई।"

    वंश को अब और भी गुस्सा आ गया। वंश ने समय देखा। उसे सचमुच मीटिंग के लिए जल्दी पहुँचना था।

    गीत डाइनिंग टेबल की ओर गई। वहाँ अकेली नीता नाश्ता कर रही थी। राजवीर ऑफिस जा चुके थे। सोना अभी नहीं उठी थी। नीता ने उसे अजीब तरीके से देखा।

    गीत डाइनिंग टेबल के बजाय किचन में चली गई।

    "एक बार वंश को जाने दो ऑफिस। फिर देखती हूँ मैं तुम्हें।" नीता ने उसे देखते हुए अपने आप से कहा।

    वहाँ उसने अपने लिए चाय का एक कप बनाया और साथ में एक सैंडविच लिया। वह ट्रे में रखकर वापस कमरे की ओर जाने लगी। जैसे ही वह कमरे में दाखिल होने लगी, वैसे ही वंश दरवाज़ा खोलता हुआ बाहर निकला। वह उससे टकरा गई और चाय उन दोनों के कपड़ों पर गिर गई।

    "तुम मेरे लिए चाय लेकर क्यों आई हो? किसने कहा था तुम्हें मेरे लिए चाय लाने के लिए?" वंश को लगा कि वह उसके लिए चाय लेकर आई है।

    "नहीं, यह तो मेरे लिए थी। आपके लिए नहीं थी। आपके लिए चाय और नाश्ता टेबल पर लगा हुआ है।" गीत ने कहा।

    वंश ने उसकी ओर हैरानी से देखा।

    वंश ने अपनी शर्ट बदल ली और नाश्ता करने के बाद ऑफिस चला गया। जैसे ही वंश घर से बाहर निकला, नीता जो वहाँ सोफ़े पर बैठी थी, खड़ी हो गई।

    "गीत, तुम्हारा मुझे कुछ तो करना ही पड़ेगा। इस घर में तुम रहोगी या मैं रहूँगी।" कहती हुई नीता अपनी जगह से खड़ी हो गई।

    गीत किचन में जाकर अपने लिए वापस चाय बनाने लगी। तभी नीता किचन में आई।

    "इस वक़्त घर में हम दोनों हैं। पता है, सुमित्रा भी बाजार गई है और दूसरी नौकरानी लक्ष्मी भी कहीं नहीं है। तो हम दोनों हैं घर पर। अब चाय बनाते हुए तुम्हें आग भी लग सकती है और घर में बचाने वाला भी कोई नहीं।" नीता गीत को धमका रही थी। "चाहो तो जान बचाने के लिए यह घर छोड़कर चली जाओ। तुम्हारा और मेरे बेटे का कोई मुक़ाबला नहीं। समझी तुम? तुम जैसी लड़की इस घर की मालकिन बनना चाहती है? ऐसा कभी नहीं होगा। मेरे बेटे को तुम कभी पसंद नहीं आओगी।" नीता बोल रही थी।

    गीत चुपचाप उसे देखती और सुनती रही, क्योंकि उसे लगा इसके साथ बहस करना बिलकुल बेकार है। उसने अपनी चाय का कप बनाया और उसे लेकर बाहर लॉन में चली गई।

    वहीं वंश को काम करते-करते गीत और उसका टकराना याद आ गया।

    "उस लड़की ने कितनी आसानी से कह दिया, 'यह चाय तुम्हारे लिए नहीं, मेरे लिए थी।' वह अपने आप को समझती क्या है?"

    अब वंश को समझ नहीं आ रहा था कि उसे किस बात पर गुस्सा था। वह तब भी गुस्सा था जब वह चाय उसके लिए लेकर आई थी। जब उसने कह दिया कि वह उसके लिए नहीं लेकर आई, तो फिर भी गीत पर गुस्सा था। राजवीर ने वंश को आज गीत को बाहर खाने पर ले जाने को कहा था और वह उसे ले जाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने योजना बनाई।

    वंश अपने चाचा वीर के केबिन में गया।

    "चाचू, आप क्या कर रहे हैं? आज आप घर जाओ। मीटिंग में मैं जाता हूँ।"

    "क्यों?" वीर ने कहा।

    "आजकल मैं बहुत ज़िम्मेदार हो गया।" वंश मुस्कुराकर कहने लगा।

    "कोई ज़रूरत नहीं। पता है, मुझे तुम्हें गीत को खाने पर ले जाना है।"

    "आपको कैसे पता?"
    "समझो, डैड ने बताया आपको।"


    "मुझे पता है तुम्हारा प्लान क्या है। तुम मुझे घर भेज दोगे और खुद उसे खाने पर लेकर नहीं जाओगे।"