मिष्ठी जिसे उसके पति राजवीर ने अपनी प्रेमिका मोना के साथ मिलकर मरवा दिया था। मिष्ठी का पुनर्जन्म होता है और वो राजवीर से अपनी शादी तोड़ देती है पर क्या सबकुछ इतना आसान था? मिष्ठी के सामने आते हैं बहुत सारे राज जिनसे वो थी अंजान। उसकी जिंदगी में आता ह... मिष्ठी जिसे उसके पति राजवीर ने अपनी प्रेमिका मोना के साथ मिलकर मरवा दिया था। मिष्ठी का पुनर्जन्म होता है और वो राजवीर से अपनी शादी तोड़ देती है पर क्या सबकुछ इतना आसान था? मिष्ठी के सामने आते हैं बहुत सारे राज जिनसे वो थी अंजान। उसकी जिंदगी में आता है अनिरूद्ध जिससे उसका कोई गहरा रिश्ता है। आखिर क्या रिश्ता है मिष्ठी का अनिरूद्ध से? क्या पिछले जन्म में भी मिष्ठी अनिरूद्ध को जानती थी?और क्या होगा जब राजवीर उससे सच में प्यार करने लगेगा? क्या मिष्ठी उसे एक मौका देगी? या लेगी बदला? क्या ये राजवीर की नई चाल है? जानने के लिए पढ़िए मोहब्बत हो गई है तुमसे।
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"अगर अपनी बीवी सही-सलामत चाहिए तो दस लाख तैयार रखना।" एक क्रूर आवाज़ सुनाई दी। मिष्ठी ने डरते हुए उस खतरनाक किडनैपर की तरफ़ देखा। मिष्ठी जुड़वाँ बच्चों की माँ बनने वाली थी; इसलिए और महिलाओं की तुलना में उसका बेबी बम्प ज़्यादा बड़ा था। उसकी प्रेग्नेंसी का यह सातवाँ महीना था। "सॉरी, हमारे सीईओ अभी मीटिंग में हैं।" फ़ोन की दूसरी तरफ़ से राजवीर के असिस्टेंट की आवाज़ आई। "अगर मुझे मेरे पैसे नहीं मिले तो इसकी लाश देखने को तैयार रहना।" किडनैपर ने धमकी दी। "हमारे सीईओ बिज़ी हैं।" अबकी बार असिस्टेंट ने फ़ोन ही काट दिया। मिष्ठी चिल्लाने लगी, पर दुःख की बात थी कि उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी क्योंकि उसकी जीभ काट दी गई थी। किडनैपर ने मिष्ठी के जोरदार थप्पड़ मारा। "तुझे किडनैप करके तो मेरा समय ख़राब हो गया। तेरे पति को तेरे जीने-मरने से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा।" मिष्ठी सिसक रही थी। तभी उसका फ़ोन बजा। किडनैपर ने लालच भरी नज़रों से उसका फ़ोन उठाया। यह एक वीडियो कॉल था। किडनैपर ने कैमरा मिष्ठी के आगे कर दिया। उसे लगा मिष्ठी की नाज़ुक हालत देखकर वह इस इंसान से मुँह माँगी कीमत वसूल लेगा। मिष्ठी ने देखा, वह मोना थी, राजवीर की खास दोस्त। "मिष्ठी, राजवीर एक बहुत इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग में है। लाखों की डील है, तुम समझ रही हो ना? तुम भी नहीं चाहोगी कि राजवीर को नुकसान हो?" मोना ने मुस्कुराते हुए कहा। मिष्ठी आँखें बड़ी किए उसे देखती रह गई। 'क्या उसकी कीमत चंद रुपयों से भी कम है?' "ओह, तुम्हें पता है राजवीर ने दो कमरे सजाए हैं। अभी पता नहीं है ना, लड़का होगा या लड़की?" बच्चे की बात सुनकर मिष्ठी के चेहरे पर कोमल भाव आ गए। उसने अपने पेट पर हाथ फेरा। "राज चाहता है कि अगर बेटी हो तो वह मुझ पर जाए।" मोना ने अपने पेट पर हाथ रखकर कहा। मिष्ठी के सर पर जैसे आसमान गिर गया था। "ऐसे क्या देख रही हो? तुम्हें यह तो नहीं लगा मैं तुम्हारे बच्चे की बात कर रही हूँ? मैं अपने बच्चे की बात कर रही हूँ। तीन महीने से प्रेग्नेंट हूँ मैं।" मिष्ठी पागलों की तरह चीखने लगी और कैमरे पर हाथ मारने लगी। "गुस्सा आ रहा है? तुम्हें क्या लगा मैं तुम्हारे बच्चे की बात कर रही हूँ? राजवीर के बच्चे थोड़ी ना हैं ये? जो वह इनकी फ़िक्र करेगा?" मिष्ठी जोर-जोर से ना में अपना सर हिलाने लगी। तीन साल की शादी में राजवीर सिर्फ़ एक ही बार उसके करीब आया था, तभी वह प्रेग्नेंट हो गई थी। राजवीर के अलावा उसने कभी किसी को छुआ तक नहीं। "ओ माय गॉड! तुम्हें यह भी नहीं पता यह पाप जो तुम्हारे पेट में है वह किसी और का है? पिछले तीन सालों में राज ने तुम्हें कभी टच किया है? नहीं, क्योंकि वह मुझसे प्यार करते हैं। लेकिन मुझे नहीं पता था तुम उनके पीठ पीछे उन्हीं के भाई अनिरुद्ध के साथ... च...च...च... कितनी बेशर्म हो तुम?" मिष्ठी बार-बार ना में सर हिलाती रही। अनिरुद्ध, वह क्रिमिनल, उससे तो वह कभी मिली भी नहीं। "अच्छा, अब मैं रखती हूँ। राज मुझे बुला रहे हैं।" मुस्कुराकर मोना ने फ़ोन काट दिया। किडनैपर "हैलो-हैलो" करता रहा, लेकिन फ़ोन कट चुका था। उसने फ़ोन ज़मीन पर पटक दिया और मिष्ठी के पेट पर लात मारकर बोला, "नीच औरत! अब तू पड़ी रह यहीं।" किडनैपर दरवाज़ा बंद करके चला गया। मिष्ठी दर्द से बिलबिला रही थी, लेकिन रात तक भी कोई उसकी मदद के लिए नहीं आया। आख़िरकार उसके बच्चों की हलचल रुक गई और सब कुछ शांत हो गया। चारों तरफ़ घोर अंधेरा था। मिष्ठी को समझ नहीं आ रहा था क्या सपना था, क्या सच था। सब कुछ किसी भ्रम की तरह लग रहा था। मिष्ठी को एहसास हुआ वह ठंडे पानी में डूब रही है। उसने हाथ-पैर मारे और उसका सर पानी से बाहर निकला। सामने चमकता हुआ सूरज, जिसकी सुनहरी किरणें पानी पर पड़ रही थीं। मिष्ठी ने अपने पेट पर हाथ रखा और यह क्या? उसका पेट पतला कैसे हो गया? "मेरे बच्चे..." मिष्ठी ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। "मैं...बोल सकती हूँ।" उसने अपने मुँह में उंगली डाली। हाँ, उसकी जुबान उसके मुँह में थी। मिष्ठी ने अपने चारों ओर देखा। यह राजवंशी हाउस था। वह उनके घर के स्विमिंग पूल में थी। मिष्ठी ने अपने कपड़ों पर नज़र डाली: पतली सी सफ़ेद शर्ट और पिंक शॉर्ट्स। पानी में भीगने से वाइट शर्ट उसके शरीर से चिपक गई थी और उसका फ़िगर साफ़ नज़र आ रहा था। यह वह समय था जब वह उन्नीस साल की थी। उसके असली माँ-बाप उसे अपने साथ रहने को लाए थे और उसे पता चला कि उसकी शादी राजवीर राजवंशी से तय हो चुकी थी। राजवंशी परिवार उससे मिलना चाहता था और वह पहली बार इस घर में आई थी। लेकिन किसी ने उसे बेहोश करके स्विमिंग पूल में धक्का दे दिया था। जब सब लोगों ने उसे ऐसे देखा था तो उसकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाई गई थीं। मिष्ठी ने पानी में छलांग लगाई और तैरते हुए किनारे पर आ गई। उसने पानी से अपना सर निकालकर अपनी आँखें खोलीं। उसकी आँखों के सामने एक लंबा-चौड़ा लड़का खड़ा था। उसका रंग साँवला था और उसकी ऐब्स धूप में सोने की तरह चमक रही थीं। "सॉरी-सॉरी...वह मुझे पता नहीं था।" बोलते हुए मिष्ठी साइड से होकर ऊपर आई, लेकिन उसका पैर फिसल गया और वह मुँह के बल गिर पड़ी। वह तो अच्छा हुआ उसने दोनों तरफ़ अपने हाथ टिका लिए। मिष्ठी को एहसास हुआ वह उसी लड़के के ऊपर गिरी है और उसका सर लड़के के सीने पर है। मिष्ठी का चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया। वह बिजली की फुर्ती से पीछे हटी और उसका सिर टन की आवाज़ के साथ रेलिंग से टकरा गया और वह खुद को संभाल नहीं पाई और वापस पूल में गिर गई। मिष्ठी पानी में हाथ-पैर मारने लगी। तभी किसी ने उसका हाथ पकड़कर खींचा और उसे ज़मीन पर पटक दिया, जैसे वह कोई चूज़ा हो। मिष्ठी जोर-जोर से खांसने लगी। उसका चेहरा बिल्कुल लाल पड़ गया। अनिरुद्ध ने मिष्ठी को घूरा, जो उसकी इजाजत के बिना उसके इलाके में आ गई थी। मिष्ठी ने अनिरुद्ध की ओर देखा। धूप की रोशनी पड़ने से अनिरुद्ध का चेहरा साफ़ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी घूरती आँखों की तपिश ज़रूर महसूस हो रही थी। मिष्ठी ने नीचे देखा: झीनी सी शर्ट जिसमें उसकी त्वचा भी साफ़ दिख रही थी। मिष्ठी शर्म के मारे लाल हो गई और उसने अपने हाथों से खुद को ढक लिया। "मुझे रिझाने के लिए अभी तुम बच्ची हो।" अनिरुद्ध ने मिष्ठी को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए टेढ़ी मुस्कान दी। "बच्ची? मिष्ठी की भौंहें तन गईं। "मैं बच्ची नहीं हूँ। चौबीस साल की हूँ मैं।" "चौबीस? लेकिन लगती नहीं हो?" कहते हुए अनिरुद्ध की नज़र मिष्ठी के सीने पर टिक गई। "आ!!!! बेशर्म!!" "बेशर्म? मेरे स्विमिंग पूल में तुम आई...मुझे सेड्यूस करने की कोशिश तुमने की...और मैं बेशर्म?" अनिरुद्ध ने आँखें छोटी कीं और एक झटके में मिष्ठी को अपनी ओर खींच लिया। मिष्ठी भी मार्शल आर्ट जानती थी। उसने अनिरुद्ध का हाथ मोड़ोड़कर किक मारने की कोशिश की, लेकिन अनिरुद्ध पहले ही साइड हो गया, जबकि उसकी पकड़ मिष्ठी पर कस गई। तभी बाहर से कुछ लोगों के आने की आहट सुनाई दी। "तुमने किसी को बुलाया है?" अनिरुद्ध ने मिष्ठी को घूरा। मिष्ठी ने ना में सर हिलाया। अनिरुद्ध ने मिष्ठी को वहाँ रखी एक डेस्क के पीछे छिपा दिया और उस पर तौलिया डाल दी। क़रीब सात-आठ-नौ जवान अंदर आए। सबसे आगे एक लड़की थी, खुशी। "खुशी, मुझे नहीं लगता तुम्हारी बहन यहाँ होगी।" एक लड़के ने कहा। "हाँ, यहाँ पर आना सेफ़ नहीं है। अगर किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी।" दूसरे लड़के ने कहा। लेकिन खुशी आज किसी भी हाल में मिष्ठी की इज़्ज़त का कचरा करना चाहती थी। खुशी की शादी होने वाली थी राजवीर से और अचानक पता चलता है कि उसके पापा की एक और लड़की है, मिष्ठी। अब उसकी जगह मिष्ठी को दे दी गई थी। इधर-उधर देखने के बाद भी खुशी को मिष्ठी नहीं दिखी। "वह देख, शायद वह राजवीर है?" एक लड़के ने स्विमिंग पूल के किनारे बैठे शख्स की ओर इशारा किया। खुशी धड़कते दिल के साथ अनिरुद्ध के पास आकर बोली, "तुमने मेरी बहन को देखा है क्या?" अनिरुद्ध ने डेस्क के पीछे छिपी मिष्ठी को देखा, जो ना में सर हिला रही थी। "नाम?" "मेरा नाम खुशी है।" खुशी शर्माते हुए बोली। "तुम्हारा नहीं, तुम्हारी बहन का?" अनिरुद्ध ने सर्द आवाज़ में कहा। खुशी झेंप गई। वहीं उसके दोस्त मन ही मन हँसने लगे। "मिष्ठी नाम है उसका।" "मिष्ठी..." अनिरुद्ध धीरे से बुदबुदाया, जैसे इस नाम को दिल से महसूस कर रहा हो। उसने वापस डेस्क के पीछे देखा, पर मिष्ठी वहाँ से नदारद थी। अनिरुद्ध की भौंहें सिकुड़ गईं। "गेट लॉस्ट फ्रॉम हेयर!" अनिरुद्ध की फटकार से खुशी और उसके दोस्त डरकर भाग गए। अनिरुद्ध की नज़र एक चमकती चीज़ पर गई। उसने उठाकर देखा, वह एक डायमंड स्टड था। मिष्ठी एक खाली गेस्ट रूम में आ गई। वह हड़बड़ाकर बाथरूम में घुसी और शीशे में अपना अक्स देखकर चौंक गई। सामने खड़ी लड़की ना कमज़ोर थी, ना उसकी आँखों में निराशा थी। इसका मतलब वह सच में पाँच साल पीछे आ गई है, जब ना उसकी शादी राजवीर से हुई थी और ना उसकी जीभ काटी गई थी। किस्मत के पन्ने वापस पलट चुके थे। समय का पहिया वापस घूम चुका था। लेकिन क्या मिष्ठी अपनी किस्मत बदल पाएगी? क्या इस बार वह अपने सच्चे साथी से मिल पाएगी? "राजवीर! मोना! खुशी! तुम तीनों ने जितने ज़ख्म दिए हैं मुझे, उसका सौ गुना दर्द मैं तुम्हें दूँगी। अगर तुम लोगों को खून के आँसू ना रुला दिए तो मेरा यह पुनर्जन्म व्यर्थ है।"
दरवाजे पर दस्तक हुई। मिष्ठी ने दरवाजा खोला; सामने उसके दादाजी थे, अजीत राठोड़। इस घर में एक दादाजी ही थे जो मिष्ठी को प्यार करते थे, उसकी परवाह करते थे। दादाजी को देखते ही मिष्ठी उनके गले लगकर रो पड़ी। दादाजी हैरान थे।
"क्या हुआ हमारी बच्ची को? किसी ने परेशान किया?" दादाजी ने चिंता करते हुए कहा। उन्हें पता था उनके परिवार में किसी को मिष्ठी फूटी आंख नहीं भाती।
"मुझे मम्मी पापा की याद आ गई थी।" मिष्ठी ने आधा बहाना बनाया जिसमें आधा सच भी था।
"तुम्हारे मम्मी पापा बाहर इंतज़ार कर रहे हैं।"
"हम्म।" मिष्ठी बाहर आई। एक वाइट कार खड़ी थी। मिष्ठी अंदर बैठ गई। कार में तेजू और मनीष और उनकी बेटी खुशी बैठे थे।
मिष्ठी इन लोगों से नफ़रत करती थी क्योंकि मनीष राठोड़ ने कभी भी मिष्ठी को अपनी बेटी नहीं समझा था। तेजू मनीष की दूसरी पत्नी थी; मिष्ठी की सगी मां मर चुकी थी।
"मिष्ठी, तुम्हारी बहन खुशी को फीमेल लीड का रोल मिला है। तुम्हें उसमें स्टंट डबल का रोल करना है।" तेजू ने लगभग आर्डर दिया।
मिष्ठी के होंठों पर फीकी मुस्कान आ गई। पिछले जन्म में भी उसने स्टंट डबल का रोल किया था; छह महीने के लिए सारी मेहनत उसकी और बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला खुशी को। और वो बेवकूफ यही सोचती रही कि खुशी उसकी बहन है। अपनी जिंदगी के अंत तक भी उसे एहसास नहीं हुआ कि इन लोगों ने कभी उसे अपनाया ही नहीं था। वो सिर्फ उसके सर पर पैर रखकर कामयाबी की सीढ़ी चढ़ रहे थे। लेकिन इस बार नहीं; इन लोगों का सामना उस मिष्ठी से होगा जो बदला लेने आई है।
"तुम्हारी मां सही कह रही है। खुशी बहुत कोमल और नाज़ुक है, और वैसे भी स्टंट डबल का रोल करके तुम्हें एक्सपीरियंस भी मिलेगा।" मनीष जी भी हां में हां मिलाकर बोले।
"ओह! खुशी नाज़ुक और कोमल और मैं... मेरा शरीर तो पत्थर का बना है?" मिष्ठी मुस्कुराकर बोली। लेकिन यह मुस्कान उन तीनों को कांटे की तरह चुभ रही थी।
"ये घुमा फिराकर क्या बोल रही हो? मैंने ऐसा कब कहा?" मनीष जी खिसियाकर बोले।
"यहीं तो मतलब था आपका।"
"देखो मिष्ठी, तुम्हारे पापा तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं। तुम्हारे पास वैसे भी कोई डिग्री तो है नहीं, ना कोई कनेक्शन है। सोचकर देखो, ये तुम्हारे लिए सुनहरा मौका है कि तुम्हें ये मौका मिल रहा है कि तुम खुशी की स्टंट डबल बन सको।" तेजू ने समझाया। खुशी तो खूब इतरा रही थी जैसे वो बेस्ट एक्ट्रेस बन ही गई हो।
"जब सारी मेहनत मेरी है तो आप लोग फीमेल लीड मुझे क्यों नहीं बना देते?" मिष्ठी ने अपने बालों की लटों से खेलते हुए कहा।
यह सुनकर तीनों जोर-जोर से हंसने लगे।
"तुम और फीमेल लीड? एक्टिंग जानती भी हो क्या होती है?" तेजू हंसते हुए बोली।
"वो तो आपको देखकर ही सीखी है मैंने, मिसेज़ राठोड़।" मिष्ठी का तंज सुनकर तेजू का चेहरा उतर गया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
"मिष्ठी, ये क्या तरीका है अपनी मां से बात करने का?" मनीष डांटने लगे।
"कौन सी मां?" मिष्ठी ने मासूमियत से मनीष जी को देखा।
"मैंने शादी की है तेजू से; मां है वो तुम्हारी।" मनीष जी गुस्से में उफनकर बोले।
"जब आपको मैं अपना बाप नहीं मानती तो ये मेरी मां कैसे हुई, मिस्टर राठोड़?"
"तुम??? मैं बता रहा हूं, मेरे घर में रहना है तो तमीज़ से रहना, नहीं तो निकाल दूंगा घर से।"
"ठीक है, मैं दादाजी के पास चली जाती हूं।" मिष्ठी ने सर झटककर कहा, जैसे उसे रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता।
मनीष जी अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए गहरी सांस लेने लगे।
"अगर आपको मुझसे इतनी ही दिक्कत है तो समझ लीजिए मैं मर चुकी हूं और आप मुझसे कभी मिले ही नहीं।" मिष्ठी के ये शब्द सुनकर मनीष जी आत्मग्लानि महसूस करने लगे।
"मिष्ठी, ठीक है। तुम्हें खुशी का स्टंट डबल नहीं बनना तो... मरने-मारने की बात मत करो।" मनीष जी ने हार मानते हुए कहा।
घर पहुँचकर मनीष जी ने मिष्ठी को स्टडी रूम में बुलाया।
"मम्मी, पापा मिष्ठी को कोई रोल तो नहीं देना चाहते?"
"नहीं, पढ़ाई की बात करनी होगी।"
"मम्मी, तुम्हें पता है आज मैंने राजवीर को देखा? क्या दिखता है वो? उसके सामने तो सारे मॉडल भी फ़ेल हैं।" खुशी स्विमिंग पूल में मिले अनिरूद्ध को राजवीर समझ बैठी थी।
"तुझे वो पसंद है?"
खुशी ने शर्माकर सर झुका लिया।
"तू चिंता मत कर। राजवीर की शादी तुझसे ही होगी। वैसे भी वो मिष्ठी राजवंशी परिवार के लायक नहीं है।"
"सच्ची मम्मी?" खुशी तेजू के हाथ पर लटकते हुए बोली।
"हम्म।"
दूसरी ओर, स्टडी रूम में मनीष जी ने कॉलेज एडमिशन फ़ॉर्म मिष्ठी को दिया। "इसे भर दो। इस शहर के सबसे बड़े कॉलेज में तुम्हारा एडमिशन करवा रहा हूं।"
"नहीं, मुझे एक्ट्रेस बनना है।"
"क्या? लेकिन मिष्ठी राजवंशी परिवार एक एक्ट्रेस को अपनी बहू नहीं स्वीकार करेगा।"
"वो सब मैं देख लूंगी। मेरा डिसीजन फ़ाइनल है। मुझे एक्ट्रेस बनना है।"
"ठीक है फिर।"
पाँच साल की उम्र में मिष्ठी का किडनैप हो गया था। वहाँ से बचकर वो अनाथ आश्रम में रही। फिर तेरह साल की उम्र में उसे एक दंपत्ति ने गोद ले लिया; राजू और मिनी, जिनका बेटा था शानू। राजू और मिनी ने मिष्ठी को बहुत प्यार से पाला था। वो लोग थोड़े गुंडे टाइप थे, जिसके कारण मिष्ठी भी अपने इलाके की मशहूर गुंडी थी। पिछले जन्म में मनीष ने उसके गॉडपेरेंट्स से सारे रिश्ते तुड़वा दिए थे, लेकिन इस बार मिष्ठी दोबारा वो ग़लती नहीं करना चाहती थी। तैयार होकर वो राजू-मिनी से मिलने निकल गई। वो लोग मिष्ठी को देखकर बहुत खुश हुए। कुछ समय वहाँ बिताने के बाद मिष्ठी वहाँ से निकल गई।
मिष्ठी अपने फ़ोन में कुछ देख रही थी, तभी पीछे से कोई आया और उसे जोरदार धक्का लगा। मिष्ठी गिर गई और उसके फ़ोन की स्क्रीन भी टूट गई। मिष्ठी ने गुस्से में ऊपर देखा; एक लड़का हाथ में पर्स लिए खड़ा था। मिष्ठी को इग्नोर करके वो लड़का फिर भागने लगा।
"ऐ रूक!" मिष्ठी भी उसके पीछे भागी। लड़के को इसकी उम्मीद नहीं थी; वो और तेज़ भागने लगा। सामने शायद शूटिंग चल रही थी और भीड़ जमा थी। वो चोर भीड़ में घुस गया; मिष्ठी भी घुस गई।
"साला, आज का दिन ही ख़राब है।" चोर अपनी किस्मत को कोसने लगा।
मिष्ठी ने दीवार के ऊपर चढ़कर बहुत ऊँचाई से छलांग लगाई। भीड़ उसे आँखें फाड़कर देखने लगी।
मिष्ठी नीचे कूदी और उसकी कोहनी छिल गई। उसने देखा चोर फिर से भागने वाला है, तो उसने चोर का पैर खींच दिया, जिससे वो भी लुढ़क गया।
"ये देखो, मेरा फ़ोन तुम्हारी वजह से टूट गया। मुझे इसका हरजाना चाहिए।" मिष्ठी अपना टूटा हुआ फ़ोन दिखाकर बोली।
चोर ने पीछे देखा; पुलिस की जीप आ चुकी थी।
"ये लो, ये सारे पैसे रख लो।" चोर ने मिष्ठी की तरफ़ पर्स उछाला और भाग गया।
मिष्ठी पर्स में से पैसे निकालने लगी, तभी उसे लगा कुछ गड़बड़ है। उसने ऊपर मुँह किया; उसके सामने पुलिस खड़ी थी। 😳😳
"अरे, मैं कब से कह रही हूँ मैंने ये पर्स नहीं चुराया, आप लोग समझते क्यों नहीं?" मिष्ठी कह-कहकर थक गई, लेकिन कोई उस पर भरोसा नहीं कर रहा था। दरअसल, मिष्ठी ने आज ब्लैक फ़ुल स्लीव शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी थी और साथ में ब्लैक हैट भी लगा रखा था, और वो चोर ने भी ऐसे ही कपड़े पहने थे।
"अपने घरवालों का नंबर दो, नहीं तो तीन-चार दिन जेल की हवा खानी पड़ेगी।" इंस्पेक्टर सख्ती से बोला।
आखिरकार मिष्ठी ने नंबर दिया। तेजू और मनीष जी घर में थे नहीं। खुशी, जो अभी-अभी घर आई थी, उसने फ़ोन उठाया। "हेलो?"
"मिष्ठी राठोड़ पुलिस स्टेशन में है। आप जल्दी यहाँ आ जाइए।"
"पुलिस स्टेशन?" खुशी के कान खड़े हो गए। उसने तेजू को फ़ोन करके बताया।
"मुझे पता ही था वो गुंडी है और गुंडी रहेगी। दिखा दिए ना अपने असली रंग? अच्छा सुन, जैसा मैं कहती हूँ वैसा कर। राजवंशी परिवार को फ़ोन करके बता, मिष्ठी जेल में है और उसके माँ-बाप घर में नहीं हैं।"
खुशी ने ऐसा ही किया।
थोड़ी देर में एक एरोगेंट हैंडसम सीईओ पुलिस स्टेशन में आया; उसके पीछे उसका असिस्टेंट भी था।
"मिस्टर राजवीर, आप यहाँ?" इंस्पेक्टर ने खड़े होकर कहा।
मिष्ठी एक पल को जम गई। उसने धीरे से ऊपर देखा; राजवीर राजवंशी। पाँच साल पहले भी वो ऐसा ही था; कोल्ड एंड अलूफ़, जैसे दुनिया उसके चारों तरफ़ घूमती है। तीन साल मिष्ठी इस आदमी के दिल को जीतने की कोशिश करती रही, लेकिन नहीं; इस आदमी का दिल पत्थर का बना था। उसने कभी मुड़कर भी नहीं देखा।
"मैं यहाँ मिष्ठी की बेल करवाने आया हूँ।"
"सर, आपको इन पर नज़र रखनी चाहिए। इतनी कम उम्र में चोरी?" लेडीज़ सब-इंस्पेक्टर ने कहा।
ये सुनकर राजवीर ने मिष्ठी को ऐसे देखा जैसे उसने कितना घिनौना अपराध कर दिया हो?
"आपने कहा था ना, सीसीटीवी फ़ुटेज आने वाली है?" मिष्ठी ने राजवीर को इग्नोर करके इंस्पेक्टर से पूछा।
"क्या फ़र्क पड़ेगा? चोरी तो तुमने ही की है।" इंस्पेक्टर ने कहा। लेकिन तभी सब-इंस्पेक्टर फ़ुटेज की पेनड्राइव लेकर आ गया। इंस्पेक्टर ने लैपटॉप में पेनड्राइव लगाई; राजवीर भी आगे आकर देखने लगा।
वीडियो में साफ़ दिख रहा था चोर एक लड़का था और मिष्ठी उस चोर को पकड़ने के लिए उसके पीछे भाग रही थी।
"सॉरी मिस, हमारी तरफ़ से चूक हो गई। आप जा सकती हैं।" इंस्पेक्टर पछताकर बोला।
मिष्ठी ने एक नज़र राजवीर को देखा और निकल गई। वो पुलिस स्टेशन से बाहर आई; उसने देखा सामने राजवीर की कार खड़ी है। पहले मिष्ठी को लगता था राजवीर को ये कार पसंद है, लेकिन बाद में पता चला राजवीर को ये कार इसलिए पसंद है क्योंकि ये मोना का गिफ़्ट है।
"मिष्ठी, अच्छा होगा दोबारा ऐसी ग़लती ना हो।" राजवीर पीछे से आते हुए बोला; बोलते हुए भी घमंड पूरा था उसमें।
मिष्ठी ने राजवीर को सर्द निगाहों से देखा। "तुम्हें किसने बुलाया यहाँ?"
"तुम्हारे परिवार ने।"
मिष्ठी समझ गई और आगे बढ़ गई। राजवीर को लगा जैसे मिष्ठी बदल गई है। अपनी कार में बैठकर वो रियर व्यू मिरर में पीछे देखने लगा। उसे लगा था मिष्ठी उससे लिफ़्ट लेगी, उससे घर ड्रॉप करने की ज़िद करेगी, लेकिन मिष्ठी सड़क किनारे खड़े होकर टेक्सी रोकने लगी। राजवीर को लगा मिष्ठी सिर्फ़ नाटक कर रही है, लेकिन अगले ही पल वो हैरान रह गया जब मिष्ठी सच में टेक्सी लेकर चली गई।
राजवीर को पता नहीं क्यों गुस्सा आ गया और वो भी चला गया।
"इतनी जल्दी बेल मिल गई?" मिष्ठी को घर आता देख खुशी चिढ़ाते हुए बोली।
मिष्ठी उसे नज़रअंदाज़ करके ऊपर जाने लगी। खुशी को अपमानित महसूस हुआ। उसने मिष्ठी को टांग अड़ाकर गिराना चाहा। मिष्ठी ने एक तिरछी मुस्कान दी, साइड हुई और उल्टा खुशी के पैर में पैर अड़ा दिया। खुशी गला फाड़कर चीखी। मिष्ठी ने उसे एक हाथ से रोक रखा था; खुशी का पूरा शरीर हवा में डोल रहा था। खुशी ने डरते हुए मिष्ठी को देखा; उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। मिष्ठी ने मुस्कुराते हुए खुशी का हाथ छोड़ दिया। खुशी चीख़ते हुए नीचे गिर गई। मिष्ठी भी जानती थी ऊँचाई ज़्यादा नहीं थी; ज़्यादा से ज़्यादा खुशी को मोच आई होगी। लेकिन खुशी को सबक सिखाना बहुत ज़रूरी था।
"हाथ फिसल गया।" मिष्ठी मुँह पर हाथ रखकर बोली।
"मुझे पता है तुमने जानबूझकर मुझे गिराया। आने दो मम्मी-पापा को; तुम्हारी शिकायत करूँगी।"
"सॉरी, मैंने जानबूझकर ही किया।" मिष्ठी मुस्कुराकर बोली।
खुशी - 😐😐
"ये तो सिर्फ़ ट्रेलर था। अगर दोबारा मेरे रास्ते में टांग अड़ाई तो... समझ लेना तुम्हारे साथ और क्या-क्या हो सकता है?"
खुशी मिष्ठी के इस रूप से काफ़ी डर गई थी।
मिष्ठी ने मेडिकल किट निकाली। चोर के पीछे भागते हुए उसकी कोहनी छिल गई थी। मिष्ठी ने दवाई लगाई; जलन से उसकी आँखें बंद हो गईं।
"मिष्ठी! दरवाजा खोलो!!!! मिष्ठी!!!"
मिष्ठी ने दरवाजा खोला। सामने गुस्से में लाल, मनीष जी खड़े थे।
"मैंने तुम्हें किस चीज़ की कमी रखी है जो तुम चोरी करने पर आ गई?" वे गुस्से में बोले।
"मुझसे कुछ पूछकर क्या फ़ायदा? भरोसा तो आपको मुझ पर है नहीं?" मिष्ठी मेडिकल किट केबिनेट में रखते हुए बोली।
मिष्ठी की चोट देखकर मनीष जी कुछ शांत हुए।
"ये कैसे कपड़े पहने हैं?" उन्होंने मिष्ठी की कटी-फटी जीन्स देखकर कहा।
"आपकी वाइफ़ ने टेढ़े-मेढ़े कपड़े ही खरीदे हैं मेरे लिए। कोई ड्रेस बहुत छोटी है, कोई बहुत बड़ी।"
मनीष जी सब समझ गए। उन्होंने अपना कार्ड निकालकर मिष्ठी को दिया। "शॉपिंग कर लेना।"
मिष्ठी ने एक आइब्रो उचकाई और कार्ड ले लिया।
मिष्ठी सबसे पहले ऑडिशन देने गई। पिछले जन्म में भी उसे एक डायरेक्टर ने सेलेक्ट कर लिया था, लेकिन बाद में उसका पता चला कि खुशी ने बड़ी चालाकी से उससे एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करवा लिया था। जिसमें साफ़-साफ़ लिखा था कि वह खुशी की इजाज़त के बिना कोई भी रोल नहीं ले सकती। और अगर उसने कॉन्ट्रैक्ट तोड़ा तो उसे दस लाख रुपये देने होंगे—दस लाख! उसके पास उस समय दस हज़ार भी नहीं रहते थे। नाम को वह राजवीर की पत्नी थी, लेकिन वह उसे एक रुपया भी नहीं देता था। मिष्ठी अकेले में ही एक्टिंग प्रैक्टिस करती थी। उसका एक्ट्रेस बनने का सपना सपना ही रह गया था।
मिष्ठी को एक रोल मिल गया। रोल था आर्या का, जो एक विलेन थी, लेकिन सबसे इम्पॉर्टेन्ट रोल वहीँ था। वहाँ से निकलकर मिष्ठी ने खूब सारी शॉपिंग की। उसे मनीष जी का फ़ोन आया। फ़ोन उठाते ही वे दहाड़ते हुए जल्दी आने को बोले। मिष्ठी ने मुँह बनाया। उसने पहले खाना खाया, उसके बाद घर गई। मिष्ठी को इतने सारे शॉपिंग बैग लाते देख खुशी जल गई।
"इतने सारे पैसे कहाँ से आए?"
मिष्ठी चुपचाप ऊपर जाने लगी।
"बहुत उड़ रही है ना? राजवंशी परिवार ने हमें डिनर के लिए बुलाया है।"
"डिनर? क्यों?"
"और क्यों? उन्हें पता चल गया होगा तुम्हारा जेल कांड। ज़रूर वो राजवीर का रिश्ता तुमसे तोड़ना चाहते होंगे।" खुशी इतराकर बोली।
"अगर मुझसे रिश्ता टूट भी गया, तब भी तुम्हारा तो दूर-दूर कोई चांस नहीं है।"
मिष्ठी की जुबान अच्छों-अच्छों को बेहोश करने में माहिर थी। खुशी ने गुस्से में मिष्ठी को चाटा मारना चाहा। मिष्ठी मुस्कुराई और इससे पहले कि खुशी कुछ समझ पाती, मिष्ठी नीचे गिर गई। मिष्ठी की चोट वापस छिल गई। मिष्ठी ने खुशी की ओर देखा, जो अवाक होकर उसे देख रही थी। 'हुंह! एक्टिंग सिर्फ़ तुम्हें ही नहीं आती, मुझे भी आती है।'
"खुशी!!!!!" मनीष जी चिल्लाते हुए आए और मिष्ठी को उठाया। मिष्ठी ने उन्हें धक्का देकर रोते हुए बोली, "जब पैसे खर्च होने का इतना ही डर था, तो मुझे क्रेडिट कार्ड दिया ही क्यों? अब अपनी बेटी को भेज दिया मुझे मारने?"
तड़ाक!!
मनीष जी ने खुशी को थप्पड़ जड़ दिया। "ऐसे व्यवहार करते हैं अपनी बहन के साथ?"
खुशी मुँह फाड़े देखती रह गई। पहली बार मनीष जी ने उस पर हाथ उठाया था।
"पापा, मैंने कुछ नहीं किया।"
"चुप! बिल्कुल चुप! मैंने अपनी आँखों से देखा है तुम्हें मिष्ठी को धक्का देते हुए।"
तेजू दौड़ते हुए बाहर आई। "क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?"
"मुझसे क्या पूछ रही हो? अपनी लाडली से पूछो।"
"मम्मी, मिष्ठी नाटक कर रही है।" खुशी रोते हुए बोली।
"मतलब मैं पागल हूँ जो खुद नीचे गिर गई?" मिष्ठी मासूमियत से बोली।
"बिल्कुल।" खुशी ने जोर-जोर से हाँ में सर हिलाया।
मिष्ठी ने गीली आँखों से मनीष जी की तरफ़ देखा, जैसे वह अभी रो देगी।
"बेशर्म!! नालायक!! मुझे नहीं पता था तुम ऐसी हो? वो तो मैंने सब अपनी आँखों से देख लिया।" मनीष जी फिर खुशी पर चिल्लाने लगे। उन्होंने मिष्ठी के नीचे गिरे हुए बैग उठाकर मिष्ठी को दिए। "मिष्ठी, जाओ बेटा, तैयार हो जाओ। हमें राजवंशी हाउस जाना है।"
मिष्ठी हाँ कहकर ऊपर चली गई।
"और तुम घर पर रहना। कोई ज़रूरत नहीं है हमारे साथ आने की।"
खुशी फिर से रो पड़ी।
मनीष जी बाहर इंतज़ार कर रहे थे। तेजू को आता देखकर उनकी आँखें चमकने लगीं। तेजू ने ब्लैक एंड रेड कॉम्बिनेशन की शिफ़ॉन साड़ी पहन रखी थी, जिसमें वह और भी ज़्यादा स्लिम और सुंदर लग रही थी। तेजू अपने लुक्स का बहुत ध्यान रखती थी। चालीस की उम्र में वह तीस की दिखती थी। मनीष को अपनी ओर आकर्षित देख तेजू मुस्कुरा उठी।
"सॉरी, मुझे देर हो गई।"
मनीष जी ने तेजू के हाथ पर किस कर लिया। "तुम्हारे लिए तो मैं हमेशा इंतज़ार कर सकता हूँ।"
तेजू शर्मा गई। उसी समय मिष्ठी भी नीचे आ गई। उसने व्हाइट कलर का प्लाज़ो कुर्ता ड्रेस पहना था, एक साइड से दुपट्टा खुले हुए, कर्ली बाल और लाइट मेकअप। मिष्ठी ड्रॉप डेड गॉर्जियस लग रही थी। यह देखकर तेजू के दिल में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगीं।
"बहुत सुंदर लग रही हो। वहाँ जाकर सबसे माफ़ी माँग लेना।" मनीष जी समझाने लगे।
"माफ़ी?"
"देखो मिष्ठी, अगर तुमने माफ़ी नहीं माँगी तो यह सगाई टूट जाएगी। फिर सिर्फ़ तुम्हारी नहीं, हमारे पूरे खानदान की बदनामी होगी।" मनीष जी सख़्ती से बोले। वे किसी भी कीमत पर राजवंशी खानदान से रिश्ता जोड़ना चाहते थे, जिससे उनकी कंपनी को फ़ायदा हो सके।
"मिष्ठी, तुम्हारे पापा तुम्हारी भलाई के लिए कह रहे हैं। वहाँ जाकर बदतमीज़ी मत करना।"
"ओके।"
एक घंटे में वे लोग राजवंशी हाउस पहुँच गए। कार में बैठे-बैठे मिष्ठी को बहुत जोर से टॉयलेट आने लगा। जैसे ही उनकी कार रुकी, उधर से राजवीर की कार भी रुकी। वह कार से निकला और मिष्ठी को देखकर वह एक पल को रुक गया। 'ये मेरे लिए इतना तैयार होकर आई है?' उसने मन ही मन सोचा। उसे लगा मिष्ठी उसके पास आएगी, लेकिन मिष्ठी तूफ़ानी रफ़्तार से सीधा घर के अंदर चली गई। राजवीर की भौंहें तन गईं।
"राजवीर बेटा, कैसे हो?" मनीष जी आगे आकर बोले।
"अंकल।" राजवीर ने संबोधित किया, लेकिन उसके एक्सप्रेशन एकदम ठंडे थे। मनीष जी को इसकी आदत थी।
इधर मिष्ठी अंदर आई, लेकिन यह मेंशन इतना बड़ा था और घुमावदार था, जैसे भूल-भुलैया। मिष्ठी ने एक सर्वेंट से पूछा। उसने एक तरफ़ इशारा किया। मिष्ठी आगे आई, लेकिन फिर गुम हो गई। एक गैलरी के बाहर उसे बड़ा सा हॉल रूम दिखा। मिष्ठी वहाँ आई और फ़ाइनली वाशरूम दिख गया। लेकिन इससे पहले कि वह वहाँ जाती, किसी ने उसे पकड़कर दीवार से लगा दिया। मिष्ठी ने ऊपर देखा तो उसकी नज़रें अनिरुद्ध की गहरी काली आँखों से जा मिलीं। अनिरुद्ध शर्टलेस था; उसकी स्ट्राँग बॉडी साफ़ दिख रही थी। मिष्ठी के कान लाल हो गए।
अनिरुद्ध मिष्ठी को ऐसे देख रहा था, जैसे शेर की गुफा में कोई बकरी घुस गई हो।
"तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
"वो... मैं ग़लती से यहाँ आ गई।"
"ग़लती से? बहुत ग़लतियाँ करती हो तुम?"
मिष्ठी का मन रोने जैसा हो गया। अरे उसकी इतनी जोर से लगी है और यह आदमी उसके पीछे पड़ गया। 😭😭😭
"एक कमज़ोर लड़की को सताते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती? हिम्मत है तो आमने-सामने की लड़ाई करो।" मिष्ठी ने आँखें दिखाईं। अनिरुद्ध ने फ़ाइनली मिष्ठी को छोड़ दिया।
मिष्ठी लड़ाई की पोज़िशन में खड़ी हो गई। उसने हाथों की नसें चटकाईं। "तुम्हें पता नहीं है, जब मैं मारती हूँ ना, तो अच्छों-अच्छों की चटनी बना देती हूँ।"
अनिरुद्ध को हँसी आ रही थी। "कम ऑन।"
मिष्ठी ने एक कदम आगे दौड़ी और फिर दुगनी स्पीड से पीछे दौड़कर बाथरूम में घुस गई। अनिरुद्ध देखता रह गया। 🤣🤣
"बॉस, यह लड़की यहाँ? आपका और इसका कुछ लफ़ड़ा है क्या?" यश अंदर आते हुए बोला। यश अनिरुद्ध का सबसे ख़ास दोस्त, असिस्टेन्ट, सब कुछ था।
"राजवीर की मंगेतर है वो।" अनिरुद्ध शर्ट पहनते हुए बोला।
"राजवीर की मंगेतर? मुझे तो लगता है कि वो तुम्हें पसंद करती हैं?"
यह सुनकर अनिरुद्ध के हाथ एक पल को रुक गए।
"वैसे अच्छा ही है। उस राजवीर का बकरा बनाने में मज़ा बहुत आएगा।"
"हम्म, अच्छा आइडिया है। तुम क्यों नहीं ट्राई करते मिष्ठी को अपने प्यार में फँसाने का?"
"मैं... मैं तो बस मज़ाक कर रहा था।" यश दाँत दिखाकर बोला।
मिष्ठी वाशरूम से बाहर आई। उसने देखा अनिरुद्ध ने ओलिव ग्रीन की टीशर्ट पहन ली थी, साथ ही ब्लैक लूज़ बेगी पैंट्स। अनिरुद्ध की पर्सनैलिटी वाइल्ड और कोल्ड थी। अनिरुद्ध एक कमांडो था और वहीँ इंसान जिसके साथ मोना ने उस पर आरोप लगाया था कि वो जुड़वाँ बच्चे अनिरुद्ध के थे। मिष्ठी को याद आया पिछले जन्म में अनिरुद्ध हमेशा अकेला रहा। उसकी राजवंशी परिवार से बिल्कुल नहीं बनती थी और कम उम्र में उसे देशद्रोही के आरोप में फाँसी हो गई।
"मैडम, आप यहाँ? आपको बाहर बुला रहे हैं।" बटलर मनोज ने आकर कहा।
मिष्ठी उनके पीछे चली गई। हॉल में आकर उसने देखा राजवीर की माँ सोनिया, मनीष जी और तेजू साथ बैठकर बातें कर रही थीं।
राजवीर के पिता संजय राजवंशी की सोनिया से लव मैरिज हुई थी। सब कुछ ठीक चल रहा था, जब तक संजय को नहीं पता चल गया कि सोनिया माँ नहीं बन सकती। संजय ने सोनिया को तलाक दे दिया और दामिनी से उसका अफ़ेयर शुरू हो गया। दामिनी संजय के प्यार में पागल थी। संजय बहुत हैंडसम और सक्सेसफ़ुल आदमी था। दामिनी प्रेग्नेंट हो गई। जब यह बात उसके घरवालों को पता चली तो वे लोग बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने संजय पर दामिनी से शादी करने का दबाव डाला, क्योंकि दामिनी का परिवार बहुत पावरफ़ुल परिवार था। संजय को दामिनी से शादी करनी पड़ी। लेकिन हद तो तब हो गई जब शादी के दिन सोनिया आ धमकी। वो भी छः महीने प्रेग्नेंट। कमज़ोर बच्चे के कारण उसकी प्रेग्नेंसी का पता नहीं चला था। दामिनी के पिता जी ने संजय को करारा तमाचा लगाया और दामिनी को ले जाने लगे। लेकिन दामिनी नहीं मानी। वो संजय की दूसरी बीवी बनकर रहने को भी तैयार थी। गुस्से में दामिनी के परिवार ने उससे सारे संबंध तोड़ दिए। दिन-ब-दिन दामिनी की हालत बिगड़ती जा रही थी। अनिरुद्ध को जन्म देते समय वो गुज़र गई। अनिरुद्ध को दामिनी के परिवार वाले अपने साथ ले गए। वो वहीं पला-बढ़ा था। अनिरुद्ध के संबंध राजवंशी परिवार से बिल्कुल ठीक नहीं थे।
मिष्ठी को देखकर सोनिया ने मुस्कुराकर अपने पास बुलाया।
"आओ बेटा।"
मिष्ठी को याद था पिछले जन्म में सोनिया उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। मिष्ठी ने बहुत कोशिश की सोनिया का दिल जीतने की, लेकिन सोनिया ने कभी उसे नहीं अपनाया।
"सोनिया जी, राजवीर ने मिष्ठी को जेल से छुड़ाकर बहुत बड़ा एहसान किया है हम पर।" तेजू सोनिया से बोली।
"जेल?"
"आपको नहीं पता?" तेजू ने चौंककर मनीष जी की तरफ़ देखा।
"मिष्ठी, समझाओ इन्हें।" मनीष जी मिष्ठी को ऑर्डर देते हुए बोले।
"क्या समझाऊँ? मैंने कुछ ग़लत नहीं किया?"
"मिष्ठी!!!! तुमने कहा था ना तुम माफ़ी माँगोगी? अब अपनी इगो साइड रखो और माफ़ी माँगो।" मनीष जी गुस्से में तमतमाकर खड़े हो गए।
"शायद आपको कोई गलतफहमी हुई है? मिष्ठी ने चोर को पकड़ने में पुलिस की मदद की। आज उन्होंने एक सर्टिफिकेट भी भेजा है। मैंने वीडियो भी देखी हैं जिसमें मिष्ठी उस चोर को पकड़ रही थी।"
सोनिया ने एक नौकर से कहा और वह सर्टिफिकेट ले आया।
"ये देखिए।"
मनीष जी ने सर्टिफिकेट देखा और वे शर्म से पानी-पानी हो गए। कहाँ वे मिष्ठी को चोर समझ रहे थे और कहाँ उसे पुलिस ने सम्मान दिया।
सोनिया ने कहा, "चलिए डिनर कर लेते हैं।"
संजय और राजवीर भी डिनर के लिए आ गए, लेकिन अनिरूद्ध नहीं आया।
"राजवीर, अनिरूद्ध को भी बुला लाओ। वह वैसे भी घर कभी-कभी आता है।" सोनिया ने चिंता जताई।
"पड़े रहने दो उसे। अपने कमरे में। यहां आकर आँखों में काँटे की तरह चुभेगा।" संजय अनिरूद्ध का नाम सुनकर ही भड़क उठे।
अंदर ही अंदर सोनिया काफी खुश हुई।
राजवीर मिष्ठी के बराबर में आकर बैठ गया। खाने खाते हुए राजवीर ने मिष्ठी की प्लेट में फिश करी सर्व की, लेकिन मिष्ठी ने उसे छुआ तक नहीं। राजवीर ने चिकन सर्व किया; मिष्ठी ने वह भी नहीं छुआ, बल्कि खुद लेकर खाने लगी। राजवीर के बिगड़ते एक्सप्रेशन को उसने पूरी तरह इग्नोर कर दिया। राजवीर झटके से उठा।
"मुझे कुछ काम याद आ गया।"
और चला गया।
"मिष्ठी, ये तुमने क्या किया? राजवीर मुझे भी सर्व नहीं करता और तुम?" सोनिया नाराज़ होकर बोली।
"सॉरी आंटी।" मिष्ठी मासूमियत से बोली, जबकि मन में उसके लड्डू फूट रहे थे। अच्छा ही होगा अगर यह राजवीर खुद सगाई तोड़ दे।
शुक्रवार की रात मिष्ठी को सोनिया का फोन आया।
"हेलो आंटी?"
"हेलो मिष्ठी, मैंने तुम्हें इसलिए फोन किया था कि संडे को राजवीर फ्री है, तो तुम दोनों डेट पर चले जाना।"
मिष्ठी का मुँह बन गया। उसने हज़ार बहाने बनाकर सोनिया को टाल दिया, लेकिन सोनिया भी टेढ़ी खीर थी। उसने मनीष जी से कहा, और मनीष जी ने मिष्ठी को लगभग आर्डर दे दिया।
शनिवार की रात मिष्ठी बिस्तर पर फुदक रही थी क्योंकि कल राजवीर के साथ डेट पर जाना था। थक-हार कर मिष्ठी उठ बैठी और राजवीर को फोन लगाया। दो रिंग के बाद उधर से एरोगेंट आवाज आई।
"हेलो?"
"राजवीर, मैं मिष्ठी।"
"हाँ बोलो।"
"कल मैं बहुत ज्यादा बिजी हूँ, इसलिए डेट किसी और दिन करें?"
राजवीर की नसें तन गईं। डेट की वजह से उसने आज ओवरटाइम काम किया था और यह लड़की... लेकिन राजवीर को अपना इगो बहुत प्यारा था। उसने हाँ कहकर फोन रख दिया। मिष्ठी को लगा जैसे उसके ऊपर से सौ किलो का वज़न हट गया हो। फाइनली वह चैन से सो गई।
अगले दिन मिष्ठी फिल्म के फ़ोटोशूट के लिए गई। वहाँ से निकलकर वह कैब का इंतज़ार कर रही थी कि उसके सामने एक कार आकर रुक गई। कार का शीशा नीचे हुआ और अनिरूद्ध का हैंडसम चेहरा नज़र आया।
"अंदर बैठो।"
"मैं चली जाऊँगी कैब से।"
"तुमने दो बार मेरा फ़ायदा उठाया, उसकी माफ़ी के लिए तुम्हें मुझे लंच ट्रीट देनी होगी।"
मिष्ठी मुँह बनाकर बैठ गई। यश ड्राइव कर रहा था। उसने सबसे महँगे रेस्टोरेंट के सामने कार रोक दी।
"तुम दोनों जाओ, मैं अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहा हूँ।"
यश अनिरूद्ध और मिष्ठी को करीब लाना चाहता था। अनिरूद्ध पच्चीस साल का था और आज तक उसकी एक भी गर्लफ्रेंड नहीं बनी थी। यश को डर था अगर उसने कुछ तरकीब नहीं लगाई तो अनिरूद्ध ज़िन्दगी भर कुँवारा रह जाएगा।
मिष्ठी ने जब रेस्टोरेंट देखा तो वह दो कदम पीछे हो गई।
"किसी और रेस्टोरेंट में चलें क्या? यह तो बहुत महँगा है।"
अनिरूद्ध उसका हाथ पकड़कर अंदर ले गया, जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो।
"सर, आपका प्राइवेट रूम बुक है। आइये।" मैनेजर ने राजवीर से कहा। राजवीर अंदर जा ही रहा था जब उसकी नज़र मिष्ठी और अनिरूद्ध पर पड़ी। एक पल में उसकी आँखें छोटी हो गईं।
"ओह! तो मेरे भाई के साथ घूमने में बिजी हो तुम?" उसने तंज कसा। मिष्ठी का दिमाग़ खराब हो गया। तभी एक मीठी सी आवाज़ आई।
"राज, तुम तो आधे घंटे बाद आने वाले थे ना?"
मिष्ठी का रंग पीला पड़ गया। एक पल में उसके सामने जैसे पूरी फिल्म चल गई; उसका टॉर्चर होना, उसकी जीभ काटना, उसके बच्चों का उसके गर्भ में ही तड़प-तड़पकर मर जाना। मिष्ठी की साँसें तेज हो गईं। अनिरूद्ध ने जब यह नोटिस किया तो वह चिंता भरे स्वर में बोला।
"आर यू ओके?"
मिष्ठी जैसे किसी बुरे सपने से जागी हो, उसने खुद को नियंत्रित किया।
"अनिरूद्ध भाई, आप भी यहाँ हैं? यह आपकी गर्लफ्रेंड है? बहुत खूबसूरत है।" मोना ने राजवीर का हाथ पकड़ रखा था। कोई ना जानता हो तो समझे दोनों कपल हैं।
"सच?" अनिरूद्ध ने मिष्ठी की तरफ देखा। उसने सीधे-सीधे ना हाँ किया ना मना किया।
"सचमुच बहुत खूबसूरत है।" मोना दिल से तारीफ़ करते हुए बोली। उसने व्हाइट ड्रेस पहनी थी और एकदम भोली-भाली लग रही थी। कोई नहीं कह सकता था उसकी मासूम शक्ल के पीछे एक शैतान छिपा है।
"लगता है तुम भी बहुत बिजी हो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ?" मिष्ठी मुस्कुराई और राजवीर की बोलती बंद हो गई। वहीं मोना शर्माने लगी।
"हम कपल नहीं हैं। मैं राज की बचपन की दोस्त हूँ।"
"बचपन के दोस्त एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चलते हैं?"
"मुझे बचपन से आदत है।"
"यह आदत ठीक नहीं है। तुम यह तो जानती ही होगी कि तुम्हारे खास दोस्त राज की एक मंगेतर है और वह तुमसे कहीं गुना खूबसूरत भी है।" मिष्ठी ने आत्मविश्वास भरे अंदाज में कहा। राजवीर उसकी इस अदा पर फ़िदा हो गया। मिष्ठी का दूध जैसा रंग उस अंधेरे कॉरिडोर में अलग ही दमक रहा था और सबसे खूबसूरत उसकी वह नीली आँखें।
"लेकिन उसे गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है।" मिष्ठी ने मासूमियत से वार्निंग दी। मोना हैरान हो गई।
"तुम्हें कैसे पता?"
"क्योंकि राज की मंगेतर मैं हूँ।"
मोना का दिल बैठ गया। उसने सुना था राजवीर की मंगेतर के बारे में, लेकिन उसने इसे सीरियसली नहीं लिया। पर आज मिष्ठी की सुंदरता देखकर उसके दिल में खतरे की घंटियाँ बजने लगी थीं। मोना ने राजवीर की ओर देखा।
"यह सच कह रही है?"
"हम्म।"
मोना ने एक गहरी साँस ली और अपने अंदर उठती ईष्या और नफ़रत के सैलाब को अंदर दबाते हुए वह मुस्कुराकर मिष्ठी की ओर बढ़ी।
"अच्छा, तो तुम हो राज की मंगेतर।"
मोना के छूने से पहले मिष्ठी पीछे हट गई, जैसे मोना के छूने से वह गंदी हो जाएगी।
"लेट्स गो।" मिष्ठी अनिरूद्ध के साथ अंदर चली गई। मोना ने नम आँखों से राजवीर को देखा।
"राज... मुझे लगता है मिष्ठी को गलतफहमी हो गई है। तुम उसे सॉरी बोल दो।"
मोना को पता था राजवीर बेहद एरोगेंट था। उसने कभी किसी से माफ़ी नहीं माँगी थी और यहीं हुआ। राजवीर टेढ़ी हँसी के साथ बोला,
"माफ़ी? कभी नहीं।"
और बाहर निकल गया। मोना उसके पीछे भागी।
"राज।"
अनिरूद्ध ने एक से एक महंगी डिशेज ऑर्डर कीं, वो भी बहुत सारी क्वांटिटी में। मिष्ठी को लग रहा था कि वो खाना नहीं, पैसे खा रहे हैं। अब जब बिल उसे ही भरना था, मिष्ठी फुल स्पीड पर खाने लगी। लेकिन कुछ ही देर में उसका पेट एकदम टुल हो गया। अनिरूद्ध धीरे-धीरे खा रहा था, लेकिन उसकी डाइट अच्छी थी; आखिर वो एक कमांडो था।
बिल काउंटर पर तीस हज़ार का बिल सुनकर मिष्ठी लगभग बेहोश हो गई। उसने रोती हुई सूरत बनाकर अपना कार्ड निकाला, पर उससे पहले ही अनिरूद्ध ने पे कर दिया।
"तुमने तो कहा था ये मेरी ट्रीट है?"
"अगली बार।"
मिष्ठी को एहसास हुआ कि अनिरूद्ध इतना बुरा भी नहीं है, और उसके होंठों पर मुस्कान आ गई।
मिष्ठी ट्यूशन पढ़ने के बहाने रोज़ घर से निकल जाती और शूटिंग करती थी। खुशी को उस पर शक होने लगा। एक दिन उसने मिष्ठी का पीछा किया। शूटिंग सेट पर आकर उसका शक यकीन में बदल गया। मिष्ठी खूबसूरत तो थी ही, और डायरेक्टर उसकी एक्टिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। खुशी को डर सताने लगा था। उसे पता था कि अगर ऐसे ही चलता रहा, तो मिष्ठी को बेस्ट एक्ट्रेस बनते देर नहीं लगेगी।
खुशी ने देखा कि एक मिडिल-एज एक्टर, जेक, मिष्ठी को गंदी नज़रों से देख रहा है। उसके दिमाग में एक आइडिया आया। खुशी चुपचाप जेक के कमरे में गई और एक पर्ची टेबल पर रख आई। एक शैतानी मुस्कान के साथ वो चुपचाप वहाँ से निकल गई। जब जेक वहाँ आया, उसने वो पर्ची देखी: "आज रात को मिलते हैं - मिष्ठी।"
मिष्ठी जब शूटिंग सेट से बाहर निकली, सामने जेक खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा था।
"मिष्ठी, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
"बोलो।"
"देखो, मैं जानता हूँ तुम बहुत मेहनती हो, लेकिन तुम्हारे पास कनेक्शन नहीं है। मैं तुम्हें ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता हूँ।"
"ये क्या बकवास है?"
"मिष्ठी, अब ज़्यादा नाटक मत करो।" जेक ने मिष्ठी को हाथ पकड़ लिया। उससे सब्र नहीं हो रहा था।
"कैसा नाटक? तुम दूर रहो मुझसे।" मिष्ठी पीछे हट गई।
"तो इस नोट का क्या मतलब है?" जेक ने अपनी जेब से एक पर्ची निकालकर मिष्ठी को दिखाई। मिष्ठी ने जब वो हैंडराइटिंग देखी, वो एकदम पहचान गई कि ये किसका कारनामा है। "देखो, ये सब मैंने नहीं लिखा। मुझे तुममें कोई इंटरेस्ट नहीं है।" कहकर मिष्ठी जल्दी से निकल गई।
खुशी अपने कमरे में बैठी फिल्म स्क्रिप्ट पढ़ रही थी। उसने जानबूझकर दरवाज़ा खुला छोड़ा, जिससे मनीष जी देख सकें कि वो कितनी मेहनत कर रही है। जैसा उसने सोचा था, मनीष जी कोरिडोर से गुज़रे और खुशी को मेहनत करते देख खुश हो गए। खुशी भी मुस्कुराई, मगर उसकी मुस्कान ज़्यादा देर ना टिक सकी; मनीष जी के साथ मिष्ठी को देखकर... मिष्ठी अंदर आई और खुशी के पास बैठ गई।
"खुशी, मुझे नहीं पता था तुम मेरी इतनी फ़िक्र करती हो?"
खुशी को कुछ समझ नहीं आया कि मिष्ठी क्या कर रही थी।
मिष्ठी ने पर्ची निकालकर खुशी को दिखाई और मनीष जी को दे दी। खुशी के चेहरे का रंग उड़ गया।
"पापा, देखिए, खुशी ने मुझे रात को मिलने बुलाया। उसने कहा कि वो मुझे अपनी फिल्म में रोल देने वाली है।"
"वाह, खुशी बेटा! ये तो बहुत अच्छी बात है। मुझे तुम पर गर्व है।"
खुशी जबरदस्ती मुस्कुरा दी। उससे न उगलते बन रहा था, न निगलते। "पर मैं कैसे तुम्हें रोल दे सकती हूँ? ये मेरे हाथ में नहीं है।" खुशी बहाना बनाकर बोली।
मिष्ठी ने रोती हुई सूरत बनाकर खुशी को देखा। "तो तुम क्या मेरा मज़ाक बना रही थी?"
मनीष जी का दिल पिघल गया। "मिष्ठी, उदास मत हो। तुम्हें रोल मिल जाएगा। मेरी ज़िम्मेदारी।" आज वैसे भी वो बहुत खुश थे; मिष्ठी ने उन्हें पापा कहकर पुकारा था।
मिष्ठी मुस्कुरा दी। "थैंक्यू पापा।"
खुशी की मुट्ठियाँ कस गईं। उसकी चाल उस पर ही भारी पड़ गई थी।
मिष्ठी अपनी पहली फिल्म में पूरी मेहनत से काम कर रही थी। मनीष जी ने मिष्ठी को कार भी ले कर दी थी। सुबह-सुबह मिष्ठी को गुनगुनाते हुए गाड़ी में जाते देख खुशी के तन-बदन में आग लग गई। वो दौड़ते हुए तेजू के पास पहुँची। "मम्मी, उस मिष्ठी को देखा? कैसे हवा में उड़ रही है? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो एक दिन वो मुझसे भी आगे निकल जाएगी।"
तेजू पौधों की कटिंग कर रही थी। खुशी की शिकायतें सुनकर भी वो बेहद शांत थी।
"ये फूल देख रही हो? अगर इसकी खूबसूरती से छुटकारा पाना है, तो..." तेजू ने खूबसूरत गुलाब का फूल काट दिया और फूल नीचे गिर गया। तेजू ने बेरहमी से उस नाज़ुक गुलाब को अपने पैरों से कुचल दिया। खुशी की आँखें क्रूरता से चमक उठीं। "समझ गई मम्मा।"
मिष्ठी शूटिंग से घर लौट रही थी। हाईवे पर आगे काम चल रहा था; बीच में बहुत बड़ा गड्ढा था। मिष्ठी ने ब्रेक दबाए, लेकिन गाड़ी बुलेट ट्रेन की तरह दौड़े जा रही थी। मिष्ठी के हाथ-पांव फूल गए। ब्रेक फ़ेल थे। मिष्ठी ने पूरी ताकत से ब्रेक दबाए, लेकिन कुछ असर नहीं हुआ। मिष्ठी पसीने से भीग गई। जैसे ही गाड़ी गड्ढे तक आई, मिष्ठी ने आँखें भींच लीं। तभी एक जोरदार टक्कर हुई, और मिष्ठी उछल गई। गाड़ी के एक तरफ़ का हिस्सा पूरी तरह से कचूमर बन गया। कुछ काँच के टुकड़े मिष्ठी के हाथों में घुस गए, लेकिन मिष्ठी को सिर्फ़ इतना पता था कि वो ज़िंदा थी। जिस गाड़ी ने उसे टक्कर मारी थी, वो भी टूट-फूट गई थी। उसका दरवाज़ा खुला, और अनिरूद्ध बाहर आया। उसके माथे से, होंठों के किनारे से खून बह रहा था।
"बाहर निकलो, फ़ास्ट!" एक मिलिट्री ऑफ़िसर की तरह अनिरूद्ध ने ऑर्डर दिया। मिष्ठी ने काँपते हाथों से हैंडल पकड़ा, लेकिन उससे पहले ही अनिरूद्ध ने दरवाज़ा खोलकर उसे बाहर खींच लिया। उसके बाहर निकलते ही कार, जो आधी लटकी हुई थी, दो सेकंड को डोली और फिर नीचे गिर गई।
बूम!!!! 💥💥💥💥
गाड़ी ब्लास्ट होकर धूँ-धूँ करके जलने लगी।
मिष्ठी को चक्कर आने लगे और वो बेहोश हो गई। अनिरूद्ध ने उसे अपनी बाँहों में थाम लिया। यश गाड़ी लेकर आया। अनिरूद्ध मिष्ठी के साथ अंदर बैठा, और गाड़ी हॉस्पिटल की ओर मुड़ गई।
एक नकाबपोश आदमी इस एक्सीडेंट का वीडियो बना रहा था। उसने मिष्ठी को निकलते हुए नहीं देखा था। उसे लगा कि मिष्ठी मर गई है। उसने वीडियो सेंड कर दी।
वीडियो देखकर तेजू के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई। मनीष जी अंदर आए। "तेजू, ये देखो, मैंने मिष्ठी के लिए ये तीन रोल देखे हैं। अब तुम बताओ, इनमें से मिष्ठी के लिए कौन-सा रोल सही रहेगा?"
'बेवकूफ़ आदमी! इसे यहीं नहीं पता कि मिष्ठी तो कबका स्वर्ग सिधार चुकी है। अब ये सारी प्रॉपर्टी और ये कंपनी मेरी बेटी खुशी को मिलेगी।' तेजू सोचकर ही खुश हो गई। उसने मनीष के हाथ से स्क्रिप्ट ली और राजकुमारी चन्द्रतारा का रोल चुन लिया। खुशी इस फिल्म की फ़ीमेल लीड थी; उसके बाद यही रोल सबसे मुश्किल, लेकिन ज़रूरी था। तेजू को पता था कि मिष्ठी तो वापस आने से रही, इसलिए क्यों न मनीष की नज़रों में ही अच्छा बना जाएँ?
घर के लैंडलाइन नंबर पर फोन आया। खुशी ने फोन उठाया। "हेलो?"
"मैं सोनिया बोल रही हूँ।"
"जी आंटी?"
"मुझे मिष्ठी से बात करनी थी। राजवीर और मिष्ठी शादी से पहले एक-दूसरे को समझ लेते तो बहुत अच्छा रहता।"
"आंटी, मिष्ठी घर में नहीं है। जब वो आएगी, मैं आपसे बात करवाती हूँ।"
"ओके बेटा।"
फोन रखकर खुशी हँसने लगी। "अब वो कभी वापस नहीं आएगी, आंटी।"
मिष्ठी की आँखें खुलीं।
"तुम जाग गई?" मिष्ठी ने आवाज़ की दिशा में देखा। उसके बेड के पास अनिरुद्ध बैठा था। उसके सीने और सिर पर पट्टियाँ बँधी हुई थीं। अगर अनिरुद्ध ने समय पर उसकी कार नहीं रोकी होती, तो वो पक्का मर जाती। वो नहीं जानती थी इस बार उसे दोबारा जीने का मौका मिलता या नहीं।
"मैंने तुम्हारी जान बचाई है।" अनिरुद्ध मिष्ठी के ऊपर झुकते हुए बोला। अनिरुद्ध का चेहरा इतने करीब देखकर मिष्ठी सिकुड़ गई। "थैंक्यू।"
"मुझे कुछ और चाहिए।" वो थोड़ा और आगे आकर बोला।
"अगर मेरी बस में हुआ, तो मैं दूँगी।"
"मैं चाहता हूँ तुम कभी मुझसे नफ़रत ना करो। कर पाओगी? ये वादा?" अनिरुद्ध मिष्ठी की नीली आँखों में डूबकर देख रहा था। मिष्ठी ने हाँ में सिर हिला दिया। अनिरुद्ध आख़िरकार पीछे हट गया और मिष्ठी ने राहत की साँस ली। "तुम आराम करो।" कहकर अनिरुद्ध जाने लगा। मिष्ठी ने देखा अनिरुद्ध के दाहिने पैर में थोड़ा कज़ लग रहा था। मिष्ठी को याद आया पिछले जन्म में अनिरुद्ध के दाहिने पैर में गोली लगी थी। उसके बाद उसकी क्रिटिकल कंडीशन की वजह से उसे मिलिट्री से रिटायर होना पड़ा था।
"रुको।"
अनिरुद्ध वापस मुड़ गया। "तुम्हारा पैर?" अनिरुद्ध ने अपने पैर की ओर देखा और मुस्कुराकर कहा, "मैं ठीक हूँ।" जबकि सच यह था कि डॉक्टर ने अनिरुद्ध को कुछ भी हैवी एक्सरसाइज़ के लिए मना किया था, नहीं तो उसका दायाँ पैर ख़राब हो सकता था। यश अनिरुद्ध और मिष्ठी को मिलाना ज़रूर चाहता था, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि अनिरुद्ध मिष्ठी की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं करेगा।
मिष्ठी के दादाजी मिष्ठी से मिलने आए, पर मिष्ठी घर पर नहीं थी। रात का समय हो चुका था। "नालायक!!! कैसा बाप है तू? तेरी बेटी घर नहीं आई, तू चैन से सो रहा है?"
दादाजी ने मनीष के पैरों पर लाठी मार दी। यह देखकर खुशी नाख़ुश होकर बोली, "दादाजी, इसमें पापा की कोई ग़लती नहीं है। मिष्ठी ज़िद्दी है, अपने मन की करती है। इसमें पापा क्या कर सकते हैं?"
"साहब, मिष्ठी मेडम का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया है। उनका बचना लगभग नामुमकिन है।" एक आदमी अंदर आकर बोला। दादाजी यह सुनकर बेहोश हो गए। मनीष जी ने उन्हें सम्भाला। एक पल में हड़कम्प मच गया।
दादाजी को हॉस्पिटल में जब होश आया, मिष्ठी को याद करके वो फफक-फफक कर रोने लगे। "मेरी ग़लती है। मैं अपने दादाजी होने का फ़र्ज़ नहीं निभा पाया।"
"बाऊ जी, इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है। अब होने को कौन टाल सकता है? अब राजवीर से शादी कौन करेगा?" यह था मनीष का दूसरा भाई, पंकज। इसकी भी एक बेटी थी, चिंकी, और यह चिंकी की शादी राजवीर से कराना चाहता था। इस घर में सबके लिए राजवीर वो सोने का खज़ाना था जो उनकी ज़िन्दगी संवार सकता था।
"अभी तक मिष्ठी की लाश भी नहीं मिली और तुम शादी की बात कर रहे हो? छी!" मनीष ने कहा।
"नौसो चूहें खाकर बिल्ली हज को चली!!! बोला भी तो कौन? आप तो भैया रहने ही दो, मुझसे अच्छा आपको कौन जानता है? आप अपनी खुशी का नंबर लगाना चाहते हैं। मुझे तो लगता है कहीं इसलिए ही तो तुमने मिष्ठी को नहीं मरवा दिया? लेकिन एक बात सुन लो, खुशी तुम्हारी सगी बेटी नहीं है, इस ख़ानदान का खून नहीं है, इसलिए उसकी शादी राजवीर से नहीं हो सकती।"
मनीष के चेहरे पर कई रंग आकर गुज़र गए और वो फट पड़े। "कुछ भी बोलेगा तू? मैं क्यों मिष्ठी को मारूँगा? मिष्ठी मेरी बेटी है।"
"देवर जी! मिष्ठी को मैंने अपनी सगी बेटी से बढ़कर माना है, खुशी भी मिष्ठी को बहुत प्यार करती है। आप खुशी को इस परिवार से अलग कैसे कर सकते हैं?" तेजू टपटप आँसू बहाकर बोली।
"बस!!!!! बहुत हो गया।" दादाजी चिल्लाए।
उसी समय सोनिया और राजवीर भी अंदर आए। "मैंने मिष्ठी के बारे में सुना, क्या यह सच है?" सोनिया का सवाल सुनकर सब आँसू बहाने लगे।
राजवीर की भौंहें सिकुड़ गई थीं, लेकिन उसके चेहरे पर ज़्यादा कोई एक्सप्रेशन नहीं थे।
"मिष्ठी के जाने का ग़म हम सबको है, लेकिन ज़िन्दगी को तो आगे बढ़ाना ही है। सोनिया जी, आप कहें तो मिष्ठी की जगह मेरी बेटी खुशी राजवीर से शादी कर लेगी। खुशी मिष्ठी से भी ज़्यादा होशियार है।" मनीष जी ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं।
खुशी और तेजू बहुत खुश थे।
"मिष्ठी नहीं रही, तो उस पुराने वादे का भी कोई मतलब नहीं है।" राजवीर आख़िरकार कुछ बोला, लेकिन खुशी ने यह सुनते ही भड़क उठी। "तुम कौन होते हो बीच में बोलने वाले? मुझे राजवीर से शादी करनी है, तो वही फ़ैसला लेगा।"
पूरे वार्ड में सन्नाटा छा गया।
"मैं ही राजवीर हूँ।" राजवीर गुर्राया।
"ये क्या तमाशा था? तू तो कह रही थी ना तुझे राजवीर पसंद है और तू उसे पहचानी भी नहीं?" तेजू खुशी पर बिफ़र पड़ी। वो दोनों वापस घर जा रहे थे। मनीष अपने पिताजी के साथ ही रुक गया था।
अपनी बेइज़्ज़ती याद करके खुशी का चेहरा लाल पड़ गया। "मुझे क्या पता था? उस दिन स्विमिंग पूल में मैंने जिसे देखा था, वो कौन था?"
"बेवकूफ़!" तेजू ने डाँटा, फिर कुछ याद करते हुए बोली, "कहीं वो अनिरुद्ध तो नहीं था?"
"अनिरुद्ध?"
"हाँ, राजवीर का सौतेला भाई, कमांडो है वो और बेहद ख़तरनाक भी।"
तभी गाड़ी में जोरदार झटका लगा और दोनों माँ-बेटी उछल पड़ीं। "ए ड्राइवर! कैसे गाड़ी चला रहा है?" खुशी चिल्लाई।
"मेडम, सामने कोई था।" ड्राइवर डरते हुए बोला।
"कहीं किसी का एक्सीडेंट तो नहीं कर दिया? निकलकर देख।" तेजू खीझते हुए बोली।
ड्राइवर बाहर निकला। वो इस समय एक सुनसान सड़क पर था। चारों तरफ़ अंधेरा था। दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। तभी एक लड़की के रोने की आवाज़ आई, "उं,,,उं,,," ड्राइवर डरकर वापस बैठ गया, लेकिन गाड़ी चालू नहीं हो रही थी। "मेडम, गाड़ी ख़राब हो गई।" ड्राइवर के पसीने छूटने लगे।
"आ!!!!!!!!"
खुशी गला फाड़कर चीखी और तेजू से चिपक गई। "क्यों चीख रही हैं?"
"मम्मी,,,, मैंने मि,,,मिष्ठी को देखा।" खुशी काँपते हुए बोली।
"क्या बकवास कर रही है? मिष्ठी मर चुकी है।" तेजू अभी भी शांत थी। तभी फिर कहीं से लड़की के रोने की आवाज़ आने लगी, "ऊं,,,,ऊं,,," उस अंधेरी रात में रोने की आवाज़ कुछ ज़्यादा ही मनहूसियत भरी और भयावह लग रही थी। ड्राइवर तो डरकर भाग गया।
अब तेजू को भी डर लगने लगा था। उसने फ़ोन निकाला। फ़ोन में सिग्नल नहीं थे। तभी,
"आ!!!!!!"
तेजू चीखीं। सामने खिड़की पर दो खून से सने हाथ फिसले और फिर एक सफ़ेद बालों से ढका चेहरा कांच से चिपक गया। तेजू बेहोश हो गई। खुशी पागलों की तरह तेजू को हिलाने लगी, पर कोई फ़ायदा नहीं,,,, खुशी दरवाज़ा खोलकर गाड़ी से बाहर निकली कि उसके सामने वो भूतनी आ गई। उसने सफ़ेद मटमैला गाउन पहना था। बाल उसके मुँह को ढक रहे थे।
"आ!!!! मुझे छोड़ दो,,, मैंने कुछ नहीं किया।" खुशी पीछे मुड़ी। पीछे भी वही भूतनी। खुशी घुटनों के बल गिरकर सूखे पत्ते की तरह काँपने लगी। "मैंने कुछ नहीं किया,,,, ये सब मेरी माँ का प्लान था,,, मुझे छोड़ दो।"
दो लम्बे नाख़ून वाले पंजे उसकी गर्दन की तरफ़ बढ़े और बस,,, खुशी भी बेहोश हो गई।
"च,,,च,,, क्या छुईमुई है दोनों? इतने में ही बेहोश हो गई?" शानू ने विग उतारकर कहा।
दूसरी भूतनी, मतलब मिष्ठी ने भी विग उतार दी और मुस्कुराने लगी।
मनीष अपने पिताजी के सामने बैठा था। बाकी सब जा चुके थे। उसी समय, रात की चुप्पी में किसी के चलने की आवाज आई। वार्ड का दरवाजा खुला। मनीष ने ऊपर देखा और धड़ाम!! कि आवाज के साथ वह सदमे में कुर्सी से लुढ़क गया।
"मिष्ठी?"
तेज आवाज से दादाजी भी जग गए। मिष्ठी को देखते ही उनकी आंखों से आंसू बह निकले।
"मिष्ठी!"
दादाजी की हालत देखकर मिष्ठी दुखी भी हुई और उसे एक सुकून भी मिला कि दादाजी उसे कितना प्यार करते हैं। वह दौड़कर उनके गले गई।
"दादाजी, मैं ठीक हूँ।"
"वो एक्सीडेंट?"
"एक नेक इंसान ने मेरी जान बचा ली।"
"तुम बुलाओ उसे, हमें उसे धन्यवाद कहना होगा।"
"अनिरूद्ध राजवंशी।"
"अनिरूद्ध?"
"ओह, तो तुम ज़िंदा हो? और वहाँ मेरी माँ रात भर चैन से सोई नहीं।" राजवीर, जो सुबह दादाजी से मिलने आया था, मिष्ठी को देखकर चौंक गया। पहले उसे खुशी हुई, लेकिन अनिरूद्ध का नाम सुनते ही उसका मूड बिगड़ गया।
"माफ़ी चाहूँगी, मेरे मरने की खुशखबरी इतनी जल्दी नहीं मिलेगी तुम्हें।" मिष्ठी हाथ बाँधकर राजवीर को चिढ़ाते हुए बोली।
"राजवीर, शादी दो दिलों का पवित्र बंधन है, इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। अगर तुम्हें मिष्ठी पसंद नहीं तो ठीक है, तुम्हें यह शादी करने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे घरवालों से मैं बात कर लूँगा।" दादाजी राजवीर का मिष्ठी के प्रति रूखा व्यवहार देखकर नाराज़ थे।
"ऐसा नहीं है दादाजी, माँ मिष्ठी को लेकर पूरी रात परेशान थी, इसलिए मुझे गुस्सा आ गया। मैं मिष्ठी से शादी हमारे परिवारों के बीच हुए वादे को निभाने के लिए ही नहीं, इसलिए भी कर रहा हूँ क्योंकि मुझे मिष्ठी पसंद है।" राजवीर एकदम से नर्म पड़ गया।
दादाजी ने संतुष्टि दिखाई। वहीं मिष्ठी चौंक गई और मन ही मन राजवीर को डाँटते हुए बोली, 'तुम किसी को पसंद नहीं करते, सिवाय खुद के।'
राजवीर के जाने के बाद मनीष ने मिष्ठी को घर चलने कहा। मिष्ठी दादाजी के गले लग गई।
"दादाजी, मुझे आपके साथ रहना है, प्लीज़।"
"मिष्ठी, दादाजी को परेशान मत करो, चलो मेरे साथ।" मनीष मिष्ठी पर कंट्रोल रखना चाहते थे। उन्हें पता था मिष्ठी दूर रहकर उनकी एक नहीं सुनेगी। लेकिन मिष्ठी भी सब जानती थी। उसने दादाजी को मासूमियत से देखा और दो आँसू उसके गालों पर लुढ़क आए।
"दादाजी, प्लीज़।"
दादाजी का दिल एकदम पिघल गया।
"मिष्ठी मेरे साथ ही रहेगी।"
"पर बाऊजी?"
"मैंने कहा दिया ना।"
"जैसा आप ठीक समझें।"
उधर, बीच सड़क पर एक कार खड़ी थी। उसके दरवाज़े खुले हुए थे। सुबह सात बजे का समय था। सूरज की किरणों से उस औरत की आँखें खुलीं। जैसे ही उसने अपने ऊपर कार की छत देखी, वह हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसे एक और झटका तब लगा जब उसने देखा, उसके शरीर से कपड़े गायब हैं, सिवाय अंडरगारमेंट्स के। तेजू ने सामने देखा, खुशी भी इसी हाल में थी। तेजू ने देखा, कुछ दूरी पर एक-दो आदमी भी मॉर्निंग वॉक कर रहे थे। उसने खुशी को जोर से हिलाया।
"खुशी, उठ!!"
खुशी उठते ही,
"भूत!!!!!"
तड़ाक!!!!
सुबह-सुबह पड़े जोरदार चाटे से खुशी होश में आई।
"बेवकूफ!! कल रात कोई हमारा उल्लू बना गया।" तेजू जल्दी से कपड़े पहनने लगी। खुशी ने भी अपने कपड़े उठाए, जहाँ उसे एक पर्ची मिली।
"तुम दोनों के खूबसूरत फ़ोटो मेरे पास हैं। दस लाख तैयार रखना, नहीं तो कल सुबह के अखबार में तुम्हारी फ़ोटो छपी होगी।"
खुशी ने नोट तेजू को पकड़ाया। जिसे पकड़कर उसके दाँत किटाकिका गए।
"एक बार मुझे पता चल जाए यह नाटक किसने किया है, खाल उधेड़ दूँगी।"
खुशी ने नोट तेजू को पकड़ाया। जिसे पकड़कर उसके दांत किटाकिका गए। "एक बार मुझे पता चल जाए ये नाटक किसने किया है, खाल उधेड़ दूंगी।" 😈😈
सबसे बड़ा झटका उन दोनों को तब लगा जब घर जाकर उन्हें पता चला कि मिष्ठी ज़िंदा है।
"लेकिन ये कैसे हो सकता है?" खुशी पागलों की तरह बड़बड़ाती रही।
मनीष: "क्या नहीं हो सकता?"
तेजू: "कुछ नहीं। तुम जाओ रेस्ट करो। मैं चाय भिजवाती हूँ।"
मनीष के जाने के बाद दोनों के एक्सप्रेशन बदल गए।
मिष्ठी दादाजी के साथ ही हॉस्पिटल में एडमिट थी। तेजू और खुशी मिष्ठी के वार्ड में दनदनाती हुई घुसीं। मिष्ठी खिड़की के पास बैठकर किताब पढ़ रही थी।
खुशी: "वो सब तुमने किया था ना?"
मिष्ठी: "क्या सब किया?" मिष्ठी ने मासूमियत से पलकें झपकाईं।
खुशी: "ज्यादा मासूम मत बनो। वो रात को भूत बनकर तुमने हमें डराया था ना?"
मिष्ठी: "भूत? कहीं तुम लोगों ने किसी को मारने की कोशिश तो नहीं की? चोर की दाढ़ी में तिनका।" मिष्ठी ने मुस्कुराते हुए दोनों को देखा।
तेजू: "मतलब तुम्हें सब पता चल गया? तुम बची कैसे गई?" तेजू अपने असली रंग में आ गई।
मिष्ठी: "बचाने वाला तो वो ईश्वर है। जब तक उसकी मर्ज़ी ना हो कोई किसी को नहीं मार सकता, चाहे कितने ही हाथ-पैर मार ले। और वैसे भी, तुम दोनों का पोपट करने में मुझे बड़ा मज़ा आता है, इसलिए तुम लोग टेंशन ना लो, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाने वाली।"
तेजू और खुशी दांत किटकिटाकर रह गईं।
मिष्ठी: "अब काम की बात करें? जल्दी से मेरे पैसे ट्रांसफर करो, स्टेपमॉम, नहीं तो आपके वो फ़ोटोज़... समझ रही है ना?"
खुशी: "कितनी बेशर्म हो तुम?" खुशी पैर पटकने लगी।
मिष्ठी: "कम से कम मैं किसी की जान तो नहीं ले रही।"
तेजू ने अपनी इज़्ज़त की खातिर पैसे ट्रांसफर कर दिए और दोनों लुट-पिटकर बाहर आ गईं।
तेजू: "मम्मी, इस मिष्ठी ने बहुत बड़ा दांव खेल दिया। खुद तो मरी नहीं, ऊपर से हमें भी लूट लिया, सो अलग।"
तेजू: "मिष्ठी तुम्हारे साथ ही काम करने वाली है ना फिल्म में? तब बहुत मौके मिलेंगे। हर बार ये इतनी खुशनसीब नहीं होगी।" तेजू ने जहरीले अंदाज़ में कहा।
मिष्ठी दादाजी के घर आ गई। दादाजी का घर बहुत शांत जगह पर था, और खूबसूरत भी। दादाजी अकेले रहते थे। वहाँ एक केयरटेकर थी, शांता, जो वहाँ रहती थी।
शांता बाहर गई हुई थी, इसलिए मिष्ठी ने अपना सारा सामान खुद ही अपने कमरे में सेट किया। सारा काम करते हुए उसे दोपहर हो गई।
कमरे में दो खिड़कियाँ थीं जहाँ से सारा वेंटिलेशन था। मिष्ठी ने खिड़की खोली। ताज़ी हवा से उसकी सारी थकान छूमंतर हो गई। उसने आस-पास देखा तो उसकी नज़र सामने वाले घर पर गई। खिड़की पर एक परछाई थी। कोई शायद कपड़े चेंज कर रहा था। कोई लड़का लग रहा था। मिष्ठी मुड़कर जाने ही वाली थी कि वो खिड़की खुल गई और नज़र आया अनिरूद्ध। अनिरूद्ध ने भी मिष्ठी को देख लिया और दोनों की नज़रें टकरा गईं। मिष्ठी का मुँह खुला रह गया। वो बहुत ज़्यादा क्यूट लग रही थी।
अनिरूद्ध: "मेरा पीछा करते हुए तुम यहां तक गई?" अनिरूद्ध ने मिष्ठी को ऐसे देखा जैसे वो सड़कछाप गुंडी हो।🤣🤣
मिष्ठी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
मिष्ठी: "कौन तुम्हारा पीछा कर रहा है? मैं अपने दादाजी के घर आई हूँ।"
अनिरूद्ध: "मुझे सब पता है। तुम्हें शर्माने की ज़रूरत नहीं है। मैं जानता हूँ मैं बहुत हैंडसम हूँ।" अनिरूद्ध एकदम सीरियस फेस बनाकर बोला। मिष्ठी का मन किया उसके मुँह पर मुक्का मार दे। अचानक वो हँसने लगी।
मिष्ठी: "वैसे तुम यहां क्या कर रहे हो? कहीं तुम तो मेरा पीछा करते हुए यहां नहीं आ गए?"
अनिरूद्ध: "मैं यहीं रहता हूँ...और तुम मुझे कपड़े बदलते हुए क्यों घूर रही थी? गुंडी!!" अनिरूद्ध ने खिड़की जोर से बंद कर दी।
मिष्ठी अपना मुक्का हवा में लहराकर रह गई।
मिष्ठी: "हुंह! इससे ज़्यादा बेशर्म आदमी मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा।"
मिष्ठी नीचे खाने के लिए आई। "दादाजी, आपने बताया नहीं अनिरूद्ध हमारा पड़ोसी है?"
दादाजी चौंक गए। "पड़ोसी?"
"हाँ, अनिरूद्ध अपने पीछे वाले घर में रहता है," मिष्ठी चेयर पर बैठते हुए बोली।
"लेकिन वो घर तो कब से बंद पड़ा था? वो सब छोड़ो और खाना खाओ।"
"जी, दादाजी।"
मिष्ठी खिड़की के किनारे बैठकर स्क्रिप्ट पढ़ रही थी।
"सुनो।"
मिष्ठी ने सर उठाकर देखा। अनिरूद्ध अपने घर की खिड़की के पास खड़ा था।
"कहो।"
"तुम्हारा फोन? चाहिए या नहीं?"
मिष्ठी को याद आया कि एक्सीडेंट के बाद से उसका फोन गायब ही है। उसे लगा खो गया होगा। "वहीं से दे दो, मैं केच कर लूंगी।"
"नो वे, खुद मेरे घर आओ और ले जाओ। इधर से फेंककर गिर जाएगा।"
इससे पहले मिष्ठी कुछ कहती, अनिरूद्ध वहाँ से चला गया। मिष्ठी का मुँह बन गया। दादाजी ने उसे बाहर जाते हुए देखा तो बोले, "मिष्ठी, इस समय कहाँ जा रही हो?"
"अनिरूद्ध के यहाँ। मुझे कुछ लेना है।"
"ठीक है, जल्दी आना।"
अनिरूद्ध के घर का दरवाजा खुला हुआ था। मिष्ठी जब अंदर आई, अनिरूद्ध सीढ़ियाँ उतर रहा था। उसने ग्रे टी-शर्ट और डार्क ग्रीन ट्राउज़र्स पहने थे। वो बहुत हॉट एंड हैंडसम लग रहा था। मिष्ठी ने अपनी नज़रें फेर लीं। "तुम यहाँ अकेले रहते हो?"
"हाँ।"
"लाओ मेरा फ़ोन?"
अनिरूद्ध फोन देने की जगह मिष्ठी की तरफ़ बढ़ने लगा। मिष्ठी आँखें बड़ी करके पीछे हो गई। तभी वो किसी चीज़ से टकराई। अनिरूद्ध उसे कमर से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। मिष्ठी ने पीछे देखा; एक काली बिल्ली जिसकी दो गोल-गोल आँखें उसे देख रही थीं। दो सेकेंड मिष्ठी को देखकर बिल्ली पूँछ लहराती हुई अंदर चली गई। मिष्ठी के होंठ सिकुड़ गए।
मिष्ठी ने अनिरूद्ध को दूर किया और जाने लगी। "मुझे तुम्हारे हाथ का खाना खाना है?" अनिरूद्ध की फ़रमाइश सुनकर मिष्ठी के कदम रुक गए। उसने अनिरूद्ध को सवालिया नज़रों से देखा। "तुम्हें शुक्रिया कहने का मौका दे रहा हूँ।" मिष्ठी ने उसे घूरा। "मेरे पास समय नहीं है।"
"तो मैं कल तुम्हारे घर आ जाता हूँ लंच के लिए।" अनिरूद्ध ने बिना पलकें झपकाए कहा। मिष्ठी उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए चली गई। उसके जाते ही अनिरूद्ध के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
अगले दिन मिष्ठी ने अपनी मैनेजर रमा के साथ मिलकर कांट्रेक्ट साइन किया। रमा किंग इंटरटेनमेंट की बहुत अच्छी मैनेजर थी। किंग इंटरटेनमेंट टॉप इंटरटेनमेंट कंपनी थी, जिसका बॉस मिस्टीरियस था।
रमा को किंग के वाइस प्रेसिडेंट का फ़ोन आया। "यस, बॉस?"
"मिष्ठी को कोई भी इंटिमेट सीन्स नहीं देने।"
"लेकिन ये तो कॉमन है?" रमा हैरान होकर बोली।
"ऐसे सीन के लिए डबल ढूँढो, लेकिन ये किंग का ऑर्डर है।"
"किंग का? ओके।"
फ़ोन रखकर रमा सोच में पड़ गई। ये मिष्ठी का किंग से क्या कनेक्शन है? किंग तो किसी से नहीं मिलते?
दोपहर को जब मिष्ठी घर आई, बाहर राजवीर की कार खड़ी थी। अंदर राजवीर और सोनिया आए हुए थे।
"मिष्ठी, थैंक गॉड तुम ठीक हो। मैं तो डर ही गई थी।" सोनिया ने चिंता जताई।
'इतनी ही फ़िक्र होती तो इतने दिन मैं हॉस्पिटल में थी, तब क्यों मिलने नहीं आई? ड्रामेबाज!!' मिष्ठी ने सोचा और मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक्यू आंटी, मैं ठीक हूँ।"
सभी लोग लंच के लिए बैठे कि मिष्ठी का फ़ोन बजने लगा। "एक्सक्यूज़ मी।" मिष्ठी साइड चली गई। "हेलो?"
"तुमने लंच का वादा किया था। साढ़े बारह बज गए, मुझे भूख लगी है।"
"तुम!!!" मिष्ठी को यकीन नहीं हो रहा था। अनिरूद्ध कल की बात को लेकर अब तक सीरियस है। फिर उसे गिल्टी फ़ील होने लगा। "अभी घर में मेहमान आए हैं।"
"मेहमान? कौन मेहमान?"
"माय फ़ियान्से।" मिष्ठी मच्छर जैसी आवाज़ में बोली। पता नहीं क्यों उसे लग रहा था जैसे उसने कुछ ग़लत कर दिया।
"ही ही…," अनिरूद्ध ठंडी हँसी हँसा। उसकी हँसी में गुस्सा भी था।
"तुम चाहो तो आ सकते हो।" मिष्ठी ने फ़ॉर्मेलिटी के लिए कहा, पर किसे पता था…
"अब तुम कह रही हो तो मैं मन मारकर आ रहा हूँ।"
मिष्ठी की आँखें बड़ी हो गईं। "तुम्हें ज़बरदस्ती आने की ज़रूरत नहीं है… हेलो? हेलोओओ?" मिष्ठी ने बंद स्क्रीन को घूरकर देखा जैसे अभी अनिरूद्ध उसमें से बाहर निकल जाएगा और वो उसे कुट पाएगी।
"अब तुम कह रही हो तो मैं मन मारकर आ रहा हूँ।"
मिष्ठी की आँखें बड़ी हो गईं। "तुम्हें जबरदस्ती आने की ज़रूरत नहीं है। हेलो? हेलोओओ?" मिष्ठी ने बंद स्क्रीन को घूरकर देखा, जैसे अभी अनिरूद्ध उसमें से बाहर निकल जाएगा और वह उसे कुट पाएगी।
मिष्ठी ने टेबल पर देखा; सब उसे ही देख रहे थे। "शांता काकी, एक और प्लेट रख दीजिए, कोई आने वाला है।" शांता ताई चली गईं। मिष्ठी आकर बैठ गई, तो दादाजी ने पूछा, "कौन आ रहा है?"
"हमारे पड़ोसी।" मिष्ठी ने हल्का खांसते हुए कहा।
"अनिरूद्ध?"
"क्या अनिरूद्ध तुम्हारा पड़ोसी है?" राजवीर लगभग चेयर से उछल पड़ा।
कोई कुछ कहता, उससे पहले कदमों की आहट आई। ब्लैक टी-शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र्स पहने हैंडसम अनिरूद्ध को देखकर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।
"ओहो! यहाँ तो बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ आई हुई हैं?" अनिरूद्ध ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा और मिष्ठी के बराबर वाली कुर्सी पर बड़े नेचुरल तरीके से बैठ गया। राजवीर के एक्सप्रेशन कुछ ज़्यादा ही खराब हो गए। सोनिया का भी यही हाल था।
"तुम तो अपने अपार्टमेंट में रहते थे? यहाँ आकर रहने की कोई स्पेशल वजह?" राजवीर ने 'स्पेशल' शब्द पर ज़ोर देकर मिष्ठी को देखा।
"वजह तो बहुत स्पेशल है।" अनिरूद्ध ने जैसे तंज सुना ही नहीं।
मिष्ठी ने दोनों को इग्नोर करके पानी पीने लगा। 'अरे तुम दोनों को लड़ना है तो बाहर जाकर लड़ो ना, मुझे क्यों बीच में घसीट रहे हो?'
"अपनी होने वाली भाभी की जान बचाने के लिए मैं तुम्हारा जितना शुक्रिया करूँ, कम है।"
मिष्ठी को धक्का लगा। अनिरूद्ध ने मिष्ठी की पीठ थपथपाई। "आराम से।"
"मिष्ठी को बचाना मेरा पर्सनल डिसीज़न था, तुमसे इसका कुछ लेना-देना नहीं है।"
राजवीर की मुट्ठियाँ कस गईं। सोनिया ने उसका हाथ थपथपाकर शांत रहने का इशारा किया। "खाना शुरू करते हैं।"
"आर्मी से तुम रिटायर हो गए हो। तुम कहो तो मैं अपनी कंपनी में तुम्हें जॉब दे सकता हूँ।" राजवीर अपने आप को हमेशा से ही अनिरूद्ध से बहुत ऊँचा समझता था। एक ही पिता की संतान होकर भी दोनों की किस्मत बिल्कुल अलग थी। राजवीर के पास पिता का प्यार था, पैसा था; वह एक राजकुमार की तरह पला-बढ़ा था। दूसरी ओर, अनिरूद्ध से बचपन में ही माँ दूर हो गई थी। संजय ने उसके सिर पर प्यार से हाथ भी नहीं फेरा था। अनिरूद्ध के नानाजी एक स्ट्रिक्ट मेजर जनरल थे। अनिरूद्ध ने बचपन से ही कठोर जीवन जिया था।
"कोई ज़रूरत नहीं है।" अनिरूद्ध ने सोचा भी नहीं।
"इतनी जल्दी जवाब मत दो। अभी तो तुम अकेले हो, लेकिन जब तुम्हारी शादी होगी, बच्चे होंगे, तब तो तुम्हें काम करना होगा?"
"तुम्हें बड़ी फ़िक्र हो रही है मेरी?"
"आखिर बड़ा भाई हूँ मैं तुम्हारा।" राजवीर मुस्कुराकर बोला। तभी उसका फ़ोन बजा। राजवीर ने काट दिया। फिर फ़ोन बजा। मिष्ठी ने तिरछी नज़रों से देखा; मोना नाम दिख रहा था। "उठा लो, हो सकता है कोई ज़रूरी कॉल हो।" राजवीर ने फ़ोन उठा लिया। "बोलो?"
"राज, कहाँ हो तुम?"
"अपनी फ़िआंसे के यहाँ।"
एक पल के लिए खामोशी छा गई। "मैं यहाँ हाइवे पर हूँ। मेरी कार खराब हो गई है और बाहर बारिश हो रही है। तुम आ जाओ ना, प्लीज़। मुझे बहुत ठंड लग रही है।"
राजवीर ने एक पल सबको देखा। मोना की नाज़ुक हालत को वह इग्नोर ना कर सका और उठ गया। "तुम वहीं रुक; मैं आ रहा हूँ।"
मिष्ठी: "कहाँ जा रहे हो?"
"एक दोस्त को मेरी ज़रूरत है। मैं फिर कभी लंच के लिए आता हूँ।"
"लगता है बहुत ख़ास दोस्त है?" मिष्ठी राजवीर के खूब मज़े ले रही थी।
"रुक, राज। मैं भी चलती हूँ। मुझे अपनी दोस्त के यहाँ जाना था।" सोनिया भी उठ गई। दोनों के जाने के बाद आखिरकार शांति छा गई। दादाजी को उन दोनों का खाना छोड़कर जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। एक रिटायर्ड फ़ौजी होने के नाते उन्हें डिसिप्लिन बहुत पसंद था; इस तरह खाना वेस्ट करना बहुत बुरी आदत है।
अनिरूद्ध ने सारा खाना फ़िनिश कर दिया। यह देखकर दादाजी बहुत खुश हुए। जाते हुए अनिरूद्ध शांता काकी से बोला, "काकी, खाना बहुत टेस्टी था।" काकी बहुत खुश हुईं। "दोबारा आना, बेटा।" अनिरूद्ध हाँ कहकर चला गया।
मिष्ठी खिड़की बंद करके पढ़ रही थी। बाहर से खट-खट करके कोई बजाने लगा। मिष्ठी ने पहले तो नजरअंदाज किया, लेकिन जब आवाज नहीं रुकी, तो उसने खिड़की खोलकर चिढ़ते हुए कहा, "क्या है?" सामने वाले को देखकर वह थोड़ी हैरान हो गई। वह यश था।
"तुम? मेरी खिड़की पर क्यों बजाय जा रहे थे?"
"मुझे नहीं पता था तुम यहां रहती हो। अब क्या मैं खिड़की पर बजा भी नहीं सकता?" यश ने बेशर्मों की तरह कहा। फिर कुछ सोचकर उसकी आँखें चमक उठीं। "एक मिनट, तुम यहां हमारे बॉस के पीछे-पीछे आई हो ना? मुझे पता था तुम हमारे बॉस में इंट्रेस्टेड हो।"
मिष्ठी का मुँह खुला रह गया। "यूँ!! तुम ना बिल्कुल अपने दोस्त की तरह हो, बेशर्म! मैं अपने दादाजी के यहाँ रह रही हूँ। तुम्हारा इससे क्या मतलब?"
"क्या हो रहा है?" पीछे से अनिरूद्ध की आवाज आई।
"बॉस!"
"मैं एक मिशन पर जा रहा हूँ।" अनिरूद्ध ने मिष्ठी की आँखों में देखकर कहा। यह सुनते ही मिष्ठी उछल पड़ी। "लेकिन राजवीर ने तो कहा था तुम रिटायर हो गए?"
अनिरूद्ध ने इस बात का जवाब ना देकर कहा, "मुझे एक महीना भी लग सकता है, दो महीने भी या एक साल।" वह मिष्ठी की आँखों में बड़ी गहराई से देख रहा था। मिष्ठी के दिल की धड़कन तेज हो गई, जिस पर उसे गुस्सा आ गया। "तुम मुझे क्यों बता रहे हो? वैसे अच्छा ही है, तुम्हारे जाने से मेरी ज़िंदगी में शांति रहेगी।"
"तुम्हारे अंदर दिल है कि नहीं? हमारे बॉस तुम्हें बचाने के चक्कर में घायल हो गए और अब उन्हें इतनी जल्दी खतरनाक मिशन पर जाना पड़ रहा है, और तुम हो कि दो अच्छे शब्द बोलने की जगह कड़वी बातें सुना रही हो?" यश मिष्ठी पर गुस्सा करते हुए बोला। मिष्ठी अंदर चली गई। "ए, रुको..." यश बोल ही रहा था कि मिष्ठी हाथ में कुछ लिए वापस आई और उसने वह चीज़ अनिरूद्ध की तरफ उछाल दी। अनिरूद्ध ने उसे कैच कर लिया। वह एक छोटा सा लाल पाउच था, जिसके अंदर रुई भरी हुई थी और एक कॉपर का सिक्का बाँधा हुआ था। अनिरूद्ध ने मिष्ठी को सवालिया निगाहों से देखा।
"ये ताबीज़ मेरे गॉडपेरेंट्स ने दिया था। मेरे साथ बचपन से है। यह तुम्हें सेफ रखेगा।" मिष्ठी अपनी उंगलियाँ मरोड़ने लगी। पिछले जन्म में जबसे उसका यह ताबीज़ खोया था, तभी से सब कुछ गलत होने लगा था—पहले उसका एक्सीडेंट, फिर उसका किडनैप होना। इसलिए उसे इस ताबीज़ पर बहुत विश्वास था।
"तुम्हें इसे बिल्कुल संभाल कर रखना होगा। तुम आते ही मुझे वापस कर देना।" बोलते ही मिष्ठी अंदर चली गई। अनिरूद्ध के होंठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने ताबीज़ अपनी मुट्ठी में भींच लिया।
ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे। मिष्ठी अपने एक्टिंग करियर में दिल लगाकर मेहनत कर रही थी। राजवीर का जन्मदिन आने वाला था, जिसकी बहुत बड़ी पार्टी रखी गई थी। मिष्ठी पार्टी के लिए कुछ शॉपिंग करने मॉल आई। तभी वहाँ कुछ एक्सक्लूसिव डिजाइनर ड्रेसेज़ आई थीं। मिष्ठी को उनमें से डार्क रेड कलर की ड्रेस देखते ही पसंद आ गई। "ये ड्रेस दिखाना।" मिष्ठी ने सेल्सगर्ल से कहा। "जी मेम।" सेल्सगर्ल मिष्ठी को ड्रेस दिखाती इससे पहले ही सैंडी ने ड्रेस छीन ली। "इसे पैक कर दो।"
"ये ड्रेस दिखाना," मिष्ठी ने सेल्सगर्ल से कहा। "जी मेम," सेल्सगर्ल मिष्ठी को ड्रेस दिखाती इससे पहले ही सैंडी ने ड्रेस छीन ली। "इसे पैक कर दो।"
सेल्सगर्ल ने नाराजगी से सैंडी को देखा। "मेडम, आप कोई और ड्रेस पसंद कर लीजिए। ये ड्रेस इन्होंने पहले पसंद की थी और वैसे भी ये ड्रेस इन पर ज़्यादा खूबसूरत लगेगी।" सेल्सगर्ल ने मिष्ठी के गोरे रंग और लंबी हाइट देखकर कहा। यह सुनकर सैंडी गुस्से में उबल पड़ी। "तुमसे किसी ने सजेशन मांगा? नहीं ना? तो जितना कहा है उतना करो।" फिर मिष्ठी की तरफ देखकर, "ये मिस्ट्रेस वैसे भी इतनी महंगी ड्रेस नहीं खरीद पाएगी।" सैंडी की आवाज़ तेज थी। जिसे सुनकर बाकी सभी मिष्ठी को अजीब नज़रों से देखने लगे। मिष्ठी गुस्सा नहीं हुई, बल्कि उसने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम जानती हो मिस्ट्रेस किसे कहते हैं? जो तुम्हारी दोस्त है, मोना... मैं तो राजवीर की मंगेतर हूँ, लेकिन तुम्हारी दोस्त कौन है?"
"तुम मोना से मुकाबला करोगी? औक़ात नहीं है तुम्हारी। कहाँ वो प्रिंसेस और कहाँ तुम सड़कछाप गुंडी? बिन माँ की लड़की से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं?"
"मोना के तो माँ-बाप दोनों हैं। उन्होंने उसे इतनी तमीज़ नहीं सिखाई कि किसी और के मंगेतर पर अपनी गंदी नज़र ना रखें?"
"यूँ बिच!!" सैंडी ने मिष्ठी पर हाथ उठाया। मिष्ठी ने उसकी कलाई पकड़कर पीठ से लगा दिया। "एक बात सही कहीं थी तुमने, मैं गुंडी हूँ। इसलिए मुझसे पंगा लेने से पहले हज़ार बार सोच लेना।" मिष्ठी ने सैंडी के कान के पास धीरे से कहा। सैंडी का चेहरा दर्द से सफ़ेद पड़ गया। मिष्ठी ने उसे झटके से छोड़ दिया। सैंडी ने अपना हाथ घुमाकर देखा, कहीं टूट तो नहीं गया।
अब सैंडी की हिम्मत नहीं थी मिष्ठी से उलझने की। उसने मुँह बनाते हुए वो रेड ड्रेस खरीद ली। उसे लगा मिष्ठी ड्रेस के लिए उससे लड़ेगी, पर मिष्ठी ने बेबी पिंक कलर की दूसरी ड्रेस ले ली।
वहाँ से मिष्ठी अपने गॉडपेरेंट्स के घर पहुँची। वहाँ जाकर उसने देखा शानू और रॉकी बलून फुला रहे थे। रॉकी यहाँ का फ़ेमस गुंडा था, लेकिन मिष्ठी से सबक सीखने के बाद वो मिष्ठी से डरता था और पसंद भी करता था। "मिष्ठी, तू इतनी जल्दी कैसे आ गई?" शानू मिष्ठी को सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी देना चाहता था। "तुम लोग ये डेकोरेशन क्यों कर रहे हो? आज कुछ है क्या?" मिष्ठी कंफ़्यूज़ होकर बोली। यह सुनते ही रॉकी शानू पर झपट पड़ा। "तूने मेरे को उल्लू बनाया?"
"मैंने कोई उल्लू नहीं बनाया। आज सच में मिष्ठी का बर्थडे है। आज ही के दिन वो हमारे घर आई थी।" शानू झटपटाकर बोला। रॉकी बहुत लंबा-चौड़ा तगड़ा आदमी था; शानू उसके सीने तक ही आता था। मिष्ठी ने जल्दी से उन दोनों को अलग किया। "रॉकी, शानू सही कह रहा है। आज मेरा जन्मदिन है। मैं काम में भूल गई थी।" रॉकी ने शानू को छोड़ दिया। "देखा, मैंने कहा था ना?" शानू रॉकी को घूरते हुए बोला।
मिनी और राजू भी पार्टी का सामान खरीदकर घर आ गए। मिनी मिष्ठी को कमरे में लेकर गई। "तू यहाँ बैठ। तेरे लिए एक गिफ़्ट है।" मिनी ने अलमारी खोली और ज्वेलरी बॉक्स निकालकर मिष्ठी के हाथों में थमा दिया। "खोलकर देख। इसे तेरे पापा ने तैयार किया है तेरे लिए।" मिनी ने बॉक्स खोला, और एक पल को उसकी आँखें चुंधिया गईं: रेड रूबी सेट! बीच में एक रेड रूबी पेंडेंट था जिसमें छोटी-छोटी पत्तियों का डिज़ाइन बना हुआ था; उसी डिज़ाइन के मैचिंग ईयरिंग भी थे। यह रेड रूबी उसके पास बचपन से था। मिष्ठी ने तंगी हालत में इसे बेचने को भी कहा था, लेकिन राजू ने मना कर दिया था। "नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए, ये रूबी हम नहीं बेचेंगे। ये तुम्हारे माँ-बाप की निशानी है। अगर उन्होंने तुम्हें इसके ज़रिए ढूँढने की कोशिश की तो?" राजू ने ना सिर्फ़ उस रूबी को बेचने से रोका, बल्कि उसके लिए इतना खूबसूरत पूरा सेट भी बना दिया। मिष्ठी का दिल भर आया। "और ये मेरी तरफ़ से," मिनी ने एक की-चेन मिष्ठी को दिखाई। मिष्ठी उसे लेने ही वाली थी कि मिनी ने उसे रोककर कहा, "पहले इसका मैजिक तो देख।" मिनी ने एक छोटा सा बटन दबाया और की-चेन में से एक पेन-नाइफ़ निकला। "इसे हमेशा अपने पास रखना, सेल्फ़ डिफ़ेंस में तुम्हारे काम आएगा।" मिष्ठी रोते हुए मिनी के गले लग गई। "इतनी बड़ी होकर रोते हुए अच्छा लगता है? चलो, चुप हो जाओ।"
"मॉम, आपके और डैडी के लिए मैं एक बड़ा सा बंगला खरीदूँगी।" मिष्ठी मिनी की गोदी में सर रखकर बोली। "ठीक है, मेरी प्यारी गुड़िया।" मिष्ठी को लगा मिनी को उस पर यकीन नहीं हुआ। उसने अपना फ़ोन खोलकर मिनी को दिखाया। "आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? ये देखो, अस्सी हज़ार रुपये मेरी पहली फ़िल्म की कमाई।" मिष्ठी ने सारे पैसे मिनी को ट्रांसफ़र कर दिए।
"ये क्या कर दिया? तू अपने पास रख। दुःख-सुख में काम आयेंगे।"
"मेरे पास और है। आप रखो इन्हें।"
"ठीक है, फिर मैं तेरी शादी के लिए जोड़ लूँगी।" मिनी खुश होकर बोली। मिष्ठी ने माथा पकड़ लिया।
जब दोनों बाहर आईं, सब तैयारियाँ हो चुकी थीं। मिष्ठी ने बर्थडे कैप लगाई, शानू ने म्यूज़िक चालू कर दिया, मिष्ठी ने केक काटा, उसके बाद सब डांस करने लगे।
"मिष्ठी, तेरा फ़ोन बज रहा है।" शानू ने फ़ोन देकर कहा।
मिष्ठी ने शानू के हाथ से फ़ोन लिया। फ़ोन अनिरूद्ध का था। फ़ोन उठाते ही अनिरूद्ध को दूसरी तरफ़ से शोरगुल सुनाई दिया। "इतना शोर क्यों है?"
"मेरा बर्थडे है आज।"
"लेकिन तुम्हारा बर्थडे तो अगस्त में है ना?"
"तुम्हें कैसे पता?" मिष्ठी हैरानी से बोली। उसके माँ-बाप को भी उसकी रियल बर्थडे डेट नहीं पता थी।
"वो... मैंने तुम्हारी आईडी में देखा था।"
"ओह, आज के दिन मेरे गॉडपेरेंट्स ने मुझे अनाथालय से एडॉप्ट किया था।"
"हैप्पी बर्थडे।"
"मेरा गिफ़्ट?" पता नहीं क्यों मिष्ठी को शरारत सूझी।
"मैं आकर दूँगा।"
"हम्म, वैसे तुमने मुझे फ़ोन क्यों किया था?"
तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए, अब ये तो अनिरूद्ध कह नहीं सकता था, तो उसने बहाना बनाकर कहा, "किटी कैसी है?"
किटी अनिरूद्ध की बिल्ली का नाम था जिसे वो मिष्ठी के पास छोड़ गया था।
"वो मस्त है। देखो, मेरा गिफ़्ट मत भूलना। मुझे तुम्हारे हाथों से चाहिए।" मिष्ठी चाहती थी अनिरूद्ध सही-सलामत वापस आ जाएँ। उसकी परवाह देखकर अनिरूद्ध का दिल शहद में घुल गया। "मैं जल्दी आऊँगा।"
घर पहुँचकर मिष्ठी सीधा शॉवर लेकर बेड पर लुढ़क गई। वह बहुत थक चुकी थी। किटी बेड पर कूदी और मिष्ठी के पास बैठ गई। मिष्ठी ने उसे अपने ऊपर बिठा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। तभी फोन की घंटी ने शांति भंग कर दी। मिष्ठी ने देखा, राजवीर का फोन था। जिसे देखकर उसका मूड और बिगड़ गया।
"हैलो?"
"कहां हो तुम?" राजवीर की आवाज में गुस्सा था। मिष्ठी का मन कर रहा था उसका अभी मुँह तोड़ दे। पता नहीं किस बात का घमंड रहता है इस इंसान को?
"घर पर हूँ और कहाँ जाऊँगी?"
"मॉल में तुम्हारी बहस हुई थी?"
"ओह, तो तुम्हें पता चल गया।"
"तुम मोना की इमेज कैसे खराब कर सकती हो? तुम्हें पता है तुम्हारे शब्दों का उस पर क्या असर हुआ है? सब लोग उसके बारे में उल्टी-सीधी बातें बना रहे हैं, हमारे बीच में आने वाली मिस्ट्रेस बता रहे हैं?"
"और मेरा क्या? वह अपने दोस्तों से मेरी बेइज़्ज़ती करवाती है, उसका क्या? वो लोग मुझे अनाथ, बिन माँ की लड़की और जाने क्या-क्या बोलते हैं, उसका क्या? इतना ही नहीं, उसकी दोस्त कहती है मैं तुम दोनों के बीच आ रही हूँ।"
"तुम्हारी बात अलग है, तुम्हें बचपन से ये सब सुनने की आदत है, इसमें नया क्या है?"
"कमीने, मक्कार, गंदी नाली का कीड़ा..."
"मिष्ठी!!!!!!" राजवीर चिल्लाया।
"अरे तुम्हें तो गुस्सा आ गया, पर डोंट वरी, मैं ना तुम्हें इतनी ट्रेनिंग दूंगी कि तुम्हें इसमें कुछ नया नहीं लगेगा।" मिष्ठी मासूमियत से बोली।
राजवीर का सिर लगभग गुस्से में फट पड़ा।
मिष्ठी फिर सीरियस होकर सर्द आवाज में बोली,
"तुम्हारा ये जो दो कौड़ी का एटीट्यूड है ना, इसे अपने पास रखो। तुम्हारे बाप ने जो दो औरतों की ज़िंदगी के साथ खेला है, तुम भी उनके नक्शे-कदम पर चल रहे हो... लेकिन एक बात गाँठ बाँध लो, ना मैं दामिनी हूँ, ना सोनिया।"
एक पल को सन्नाटा छा गया। राजवीर अचानक से हँसने लगा। "मुझे पता है तुम डर रही हो कहीं मोना तुम्हारी जगह ना छीन ले... इसलिए तुम उसे अपने रास्ते से हटाना चाहती हो... लेकिन ये मत भूलो तुम्हारा भी अनिरूद्ध के साथ चक्कर है।"
"मतलब तुम मानते हो कि तुम्हारा मोना के साथ चक्कर है?"
"तुम शब्दों को घुमा रही हो।"
"तुम मोना के लिए मुझसे लड़ने आए हो। अब मैं गुस्सा हूँ, बोलो अब मैं क्या करूँ?"
"क्या मतलब है तुम्हारा?"
"मतलब एकदम साफ़ है। तुम्हें मुझसे इतनी ही दिक्क़त है तो इस सगाई को कैंसल करते हैं।"
राजवीर हैरान रह गया। फिर खिसियानी हँसी हँसते हुए बोला, "और फिर तुम अनिरूद्ध की बाहों में?"
"मिस्टर राजवीर, तुमसे सगाई तोड़कर मैं किसी के साथ जाऊँ, मेरी मर्ज़ी। तुम अपना देखो।"
मिष्ठी को पता था राजवीर यह सगाई नहीं तोड़ेगा। पिछले जन्म में भी वह चाहे कितना ही उससे दूर रहता था, लेकिन शादी करी। कोई तो वजह थी जो इस जन्म में भी है।
मिष्ठी की बेपरवाही देखकर राजवीर सकपका गया।
"मैं मोना से दूर रहूँगा, तुम भी अनिरूद्ध से दूर रहना और ये सगाई तोड़ने की बात दोबारा मत करना, मुझे नहीं पसंद।"
मिष्ठी ने गुस्से में दाँत किटकिटाए।
"मैंने सुना है अनिरूद्ध मिशन पर गया है। बहुत खतरनाक है ये मिशन, तुम्हें क्या लगता है वह ज़िंदा वापस आएगा?" राजवीर ने तंज कसा।
"ज़रूर आएगा।" मिष्ठी ने पूरे आत्मविश्वास से कहा। राजवीर ने गुस्से में फोन काट दिया।
अगले दिन मिष्ठी अपनी मैनेजर रमा और अपनी नई असिस्टेंट मिंटी के साथ रेस्टोरेंट में लंच कर रही थी। राजवीर की उसी रेस्टोरेंट के प्राइवेट रूम में मीटिंग थी। मीटिंग पूरी करने के बाद जब वह नीचे आया, उसे मिष्ठी की आवाज सुनाई दी। उसके कदम उस तरफ बढ़ गए।
"मिस्टर राजवीर?" रमा ने हैरानी से राजवीर को देखा।
मिष्ठी, जो जाने के लिए उठी थी, वापस बैठ गई।
"चलो मैं तुम्हें घर ड्रॉप कर देता हूँ। मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी है।" राजवीर दोनों पॉकेट में हाथ डालकर, बढ़े रूबाब के साथ बोला।
"अपनी बचपन की दोस्त मोना के बारे में या अपनी मिस्ट्रेस के बारे में?"
राजवीर के एक्सप्रेशन खराब हो गए। "ऐसे बात करना ज़रूरी है?"
"मैं ऐसे ही बात करती हूँ। तुम्हें जो बोलना है बोलो और जाओ।"
"मुझे अकेले में बात करनी है।"
"अकेले में मेरे साथ कुछ ग़लत करने की तो नहीं सोच रहे?" मिष्ठी मासूमियत से खुद को ढककर बोली। रमा और मिंटी हंसने लगीं।
राजवीर के दाँत किटकिटा गए। मिष्ठी मुस्कुराई और उसके साथ चली गई। कार में बैठकर वह बेसब्री से बोली, "जो बोलना है बोलो।"
"मैं चाहता हूँ मेरी बर्थडे पार्टी में तुम मोना से माफ़ी मांगकर सब क्लियर कर दो कि तुमने उसे जो कहा वह सब तुम्हारी ग़लती थी।"
"और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है मैं तुम्हारी बात मानूँगी?" मिष्ठी ने अपनी भौंहें उछालीं।
"मुझे पता है तुम्हें क्या चाहिए। अगर तुम वैसे करोगी जैसा मैं कहता हूँ, मेरी बीवी की पोज़िशन तुम्हारी।" राजवीर मिष्ठी की तरफ झुकते हुए बोला।
मिष्ठी के दिल में आक्रोश की ज्वाला धधक उठी। राजवीर पिछले जन्म में भी ऐसा ही था। उसे लगता था दुनिया उसके आगे-पीछे घूमती है। राजवीर को अपनी तरफ झुकता देख मिष्ठी को उसके इरादे समझने में देर नहीं लगी। 'ये गन्दा आदमी मुझे किस करना चाहता है? डिस्गस्टिंग!!' मिष्ठी की कमर किसी डिब्बे से टकराई। मिष्ठी ने बॉक्स एकदम से आगे कर दिया। वह गिफ्ट बॉक्स था। "गिफ्ट? ये मेरे लिए है?"
गिफ्ट देखते ही राजवीर के एक्सप्रेशन बदल गए। "रूको..." लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मिष्ठी ने गिफ्ट खोल दिया था। "वाओ!!" वह एक बेहद खूबसूरत रॉयल ब्लू कलर का इवनिंग गाउन था। मिष्ठी को याद आया पिछले जन्म में राजवीर की बर्थडे पार्टी में यही गाउन मोना ने पहना था और उसने तेजू की हुई सेकेंड हैंड ड्रेस पहनी थी। सबने उसका बहुत मज़ाक बनाया था। अब समय आ गया था सब कुछ बदलने का।
"ये बहुत खूबसूरत है। मुझे बहुत अच्छा लगा। सॉरी, मैंने तुम्हें ग़लत समझ लिया। मुझे लगा तुमने मोना की तरफ़दारी करने मुझे यहाँ बुलाया है, लेकिन तुम मेरे लिए गिफ्ट लाये? थैंक्यू।" मिष्ठी ने राजवीर की आँखों में अपनी गहरी नीली आँखें डालकर देखा।
मिष्ठी के चेहरे पर बच्चों जैसी खुशी देखकर राजवीर का दिल मचल गया। 'इस जंगली बिल्ली ने पहली बार मुझसे ढंग से बात की है। इसके लिए एक ड्रेस जाती है तो जाए।' सोचकर राजवीर सहमति में मुस्कुरा दिया।
"मेरी बर्थडे पार्टी में तुम यही ड्रेस पहनना।" मिष्ठी को इस गाउन में इमेजिन कर राजवीर का गला सूखने लगा।
एक बार फिर वह मिष्ठी की तरफ़ झुकने लगा।
"साहब, मिष्ठी मैडम का घर आ गया।" ड्राइवर कार रोककर बोला। मिष्ठी ने मन ही मन ड्राइवर को थैंक्यू कहा और झटपट कार से निकल गई। राजवीर ने गुस्से में ड्राइवर को घूरा।
राजवीर ने मिष्ठी को मनीष के घर छोड़ा था और मिष्ठी के दिमाग में एक खुराफ़ात चल रही थी। मिष्ठी अंदर आई। खुशी को देखते ही वह अपना बैग छिपाने लगी, जैसे वह कोई ख़ज़ाना छिपा रही हो। "मैं अपने रूम में जा रही हूँ।"
खुशी ने मिष्ठी के कमरे के बाहर से आवाज़ें सुनीं। जब मिष्ठी बाथरूम में शॉवर लेने गई, खुशी अंदर घुसी और बैग खोलकर देखा। इतना खूबसूरत गाउन देखते ही उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। खूबसूरत रॉयल ब्लू गाउन जिसमें छोटे-छोटे डायमंड जड़े हुए थे। मिष्ठी ने आकर गाउन उससे छीन लिया। "तुम्हें पता है कितनी महंगी ड्रेस है ये? इसे मैं राजवीर की बर्थडे पार्टी में पहनूँगी।"
"पर ये तुम्हें छोटी आएगी। एक काम करते हैं हम ना ड्रेस एक्सचेंज कर लेते हैं?"
"मुझे पता था तुम मेरी ड्रेस छीनना चाहती हो। जो भी हो, मैं इसे पहन लूँगी।" मिष्ठी ड्रेस को सीने से लगाकर बोली।
"मैं इस ड्रेस के बदले तुझे...हाँ...मुझे एक गेम का ऐड मिला है। मैं तुझे वो दे दूँगी।"
मिष्ठी थोड़ा झिझकी। "पर ये ड्रेस बहुत ज़्यादा महंगी है। पूरी दुनिया में एक पीस है।"
"तो और क्या चाहिए तुम्हें?"
"तीन लाख कैश और वो गेम ऐड। तुम्हारी वजह से मेरी कार बर्बाद हो गई और ये तो बहुत सस्ती डील है। अगर मंज़ूर है तो बोलो नहीं तो...मैं खुद पहन लूँगी।"
"डन।" खुशी ने अपनी मैनेजर से कहकर अपना ऐड मिष्ठी को दिलवा दिया और तीन लाख कैश भी ट्रांसफर कर दिया। सब चीज़ पक्की होने के बाद मिष्ठी ने दुखी मन से वह ड्रेस खुशी को दे दी। खुशी उछलते हुए ड्रेस लेकर चली गई। उसके जाते ही मिष्ठी खिलखिलाकर हंसने लगी। पिछले जन्म में यह गेम बहुत ज़्यादा फेमस हुआ था जिससे खुशी का करियर बन गया था। "अब आएगा पार्टी में मज़ा।"
पार्टी का दिन आ गया था। शाम के सात बजे सभी लोग पार्टी हॉल में आने लगे थे। राजवीर, आज की पार्टी का हीरो, ब्लू थ्री पीस सूट में गजब लग रहा था। बिजनेसमैन उसकी तारीफ कर रहे थे कि इतनी कम उम्र में उसने बिज़नेस को ऊंचाईयों पर पहुँचा दिया था। मोना ने आज वाइट ब्लू फॉर्मल ड्रेस पहनी थी। लाइट मेकअप में, वह बहुत सुंदर लग रही थी। मोना को देखते ही राजवीर के एक्सप्रेशन सोफ्ट हो गए।
"राज, हैप्पी बर्थडे!" मोना ने राजवीर को साइड हग करते हुए गिफ्ट दिया।
"थैंक्यू।"
उसी समय माहौल में हलचल हुई जब पार्टी में खुशी की एंट्री हुई। रॉयल ब्लू गाउन में, आज वह कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। किसी मॉडल की तरह, सारे लड़के उसे देखकर दीवाने हो रहे थे। कुछ को तो लगा राजवीर की शादी खुशी के साथ ही पक्की हुई है। मनीष और तेजू अपनी बेटी की तारीफें सुनकर बहुत खुश थे।
"खुशी, यहां आओ बेटा," मनीष जी ने प्यार से बुलाया।
खुशी इतराती-बलखाती हुई उनके पास आकर खड़ी हो गई। आज वह बहुत खुश थी; इतनी ज़्यादा अटेंशन उसे कभी नहीं मिली थी।
राजवीर खुशी को उस ड्रेस में देखकर गुस्से में तमतमा गया। उसे लगा उसके पैसे पानी में डूब गए। वहीं, मोना सफेद पड़ गई। यह तो वही ड्रेस थी जो उसने पसंद की थी।
अपने पास राजवीर को आता देख खुशी शर्मा गई।
"राजवीर,"
"ये ड्रेस कहाँ से आई तुम्हारे पास?" राजवीर ने शब्दों को चबाते हुए कहा। उसके एक्सप्रेशन एकदम कठोर थे; होंठ भींचे हुए थे।
खुशी अचानक हुए इस सवाल से चौंक गई।
"किसी ने दी है मुझे," और उसने बहुत बड़ी कीमत भी चुकाई है इसकी।
"किसी ने??" राजवीर ठंडी हँसी हँसा और चला गया। सब लोग बातें बनाने लगे। खुशी बहुत आक्वर्ड महसूस कर रही थी।
उसी समय एक और लड़की अंदर आई, जो आसमान से उतरी परी लग रही थी। बेबी पिंक कलर की ड्रेस में मिष्ठी ड्रॉप-डेड गॉर्जियस लग रही थी। उसका ओरा एक क्वीन का था, और उसकी खूबसूरती ऐसी थी जो किसी के दिल में बस जाए तो भूलना नामुमकिन था। उसकी नीली आँखें, स्लिम फिगर, लंबी हाइट, कर्ली हेयर उसे सबसे अलग और यूनिक लुक देते थे।
मिष्ठी मुस्कुराते हुए खुशी के पास आकर तारीफ करते हुए बोली,
"तुम इस गाउन में बहुत सुंदर लग रही हो।"
अब खुशी और मोना से हटकर सबकी अटेंशन मिष्ठी पर थी। मनीष जी हैरान और खुश दोनों थे।
"मिष्ठी, मैं तो तुम्हें पहचान ही नहीं पाया।"
"ये हैं राजवीर की फ़ियान्से।"
"राजवीर इज़ सो लकी।"
आवाजें सुनकर राजवीर ने मिष्ठी की ओर देखा। मिष्ठी को देखते ही उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। बेबी पिंक कलर की ड्रेस में वह एकदम डॉल लग रही थी। वह मिष्ठी के पास जाता, उससे पहले एक तीखी आवाज आई,
"सुना है तुमने पियानो कॉम्पिटिशन में फर्स्ट प्राइज जीता है? चैलेंज हो जाए?" सैंडी खुशी की ड्रेस को घूरने लगी।
मिष्ठी समझ गई सैंडी यह सब मोना के लिए कर रही है। मोना बहुत पहुँची हुई चीज़ थी; अपने दोस्तों का इस्तेमाल करना उसे बहुत अच्छे से आता था, और वह खुद इतनी भोली और मासूम बनी रहती थी कि कोई उस पर कभी शक न करे।
मिष्ठी समझ गई कि सैंडी यह सब मोना के लिए कर रही है। मोना बहुत पहुँची हुई चीज़ थी; अपने दोस्तों का इस्तेमाल करना उसे बहुत अच्छे से आता था, और वह खुद इतनी भोली और मासूम बनी रहती थी कि कोई उस पर कभी शक न करे।
जैसा मिष्ठी ने सोचा था, मोना सैंडी को पीछे खींचकर समझाने लगी,
"सैंडी, बवाल मत करो।"
"तू बहुत भोली है, तू चुप रह। इससे तो मैं निपट लूँगी। इसकी हिम्मत कैसे हुई तेरी ड्रेस पहनने की?"
"तू बोल, चैलेंज एक्सेप्टेड?" खुशी ने देखा कि सब लोग उनकी तरफ देख रहे हैं। अब अगर वह मना करेगी तो उसकी बेइज्जती होगी, और हां करेगी तो उसे पता था कि वह हार जाएगी। खुशी के लिए इधर कुआँ, उधर खाई वाली स्थिति हो गई थी। मिष्ठी को देखकर उसके दिमाग में शैतानी आइडिया आया।
"क्या????? मिष्ठी, तुम सैंडी से ज़्यादा अच्छा पियानो बजाती हो? तुम सैंडी को चैलेंज करना चाहती हो?" उसने गला फाड़कर कहा। सब लोग उसे छोड़कर अब मिष्ठी को देखने लगे।
मिष्ठी ने टेढ़ी मुस्कान दी।
"ओके, चैलेंज एक्सेप्टेड।"
मिष्ठी की कॉन्फिडेंट स्माइल देखकर राजवीर सोचने पर मजबूर हो गया, 'इस लड़की के कितने चेहरे हैं?' लेकिन जितना राजवीर मिष्ठी को जान रहा था, उतना ही उसकी ओर आकर्षित हो रहा था। वह सबसे अलग थी, सबसे जुदा।
"सैंडी, छोड़ ना।" मोना डरते हुए बोली।
"इसने तुझसे राजवीर छीना है। यही अच्छा मौका है इसे सबक सिखाने का।" सैंडी ने मोना का हाथ थपथपाया और हाथ बाँधकर बोली,
"इस चैलेंज में जीतने वाले को कुछ तो मिलना ही चाहिए?"
"क्या?"
"अगर मैं जीती तो खुशी को यह गाउन अभी मुझे देना होगा।"
"मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।" मिष्ठी मुस्कुराई। वहीं खुशी लगभग बेहोश हो गई, 'घूम फिर कर बात उसी पर आ गई।'
सबसे पहले सैंडी स्टेज पर गई। उसने पियानो पर उंगलियाँ रखीं, और सुरीली धुन पूरे हॉल में गूंज गई। वह वेडिंग म्यूज़िक था। सभी को यकीन था कि सैंडी ही जीतेगी।
गाना पूरा होते ही पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मिष्ठी ने भी ताली बजाते हुए तारीफ की,
"एक्सीलेंट!"
सैंडी ने गर्व से सिर ऊँचा करके कहा,
"तुम पहले ही हार मान सकती हो, कम बेइज्जती होगी।"
"मैं कोशिश करके देखती हूँ।" मिष्ठी नर्वस होकर उंगलियाँ मरोड़ने लगी।
सैंडी हँसते हुए नीचे आ गई। मिष्ठी पियानो के सामने बैठी। पूरे हॉल में अंधेरा छा गया और एक स्पॉटलाइट उस पर पड़ी, जिसमें वह चाँद सी चमक रही थी।
राजवीर, मोना, खुशी के चेहरों को देखकर मिष्ठी के दिमाग में अपने पिछले जन्म की तस्वीरें घूमने लगीं। एक धीमी धुन शुरू हुई, जिसमें बेइंतेहा दर्द था; तीन साल तक शहर से दूर, अकेले, सुनसान जगह पर एक घर, घर में वह अकेली, उसका प्रेग्नेंसी में अकेले रहना, उसकी दर्दनाक मौत। संगीत तेज होने लगा, बहुत तेज; उसका पुनर्जन्म, फिर उसे मारने की कोशिश, राजवीर और मोना का घिनौना चेहरा। संगीत फिर धीमा होने लगा। संगीत के साथ सब जैसे सम्मोहन से बाहर आए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि मिष्ठी इतना मुश्किल संगीत इतनी आसानी से प्ले करेगी। खुशी भले ही मिष्ठी से जल रही थी, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान थी, क्योंकि यह ड्रेस उसे सैंडी को नहीं देनी होगी। मिष्ठी के होंठों पर शरारती मुस्कान आ गई। उसने लास्ट की धुन गलत बजाकर संगीत पूरा किया। साफ था कि वह हार जानबूझकर हार गई थी।
"डैडी, देखा आपने? मिष्ठी जानबूझकर मेरा मज़ाक बनवा रही है?" खुशी पैर पटकने लगी। मनीष जी भी गुस्से में थे।
"मिष्ठी, जाओ, दोबारा पियानो बजाओ।"
"मैं हर बार ऐसे ही बजाऊँगी।" मिष्ठी मुस्कुराई। मनीष जी गुस्से में तिलमिला गए।
"चलो, वाशरूम में। शर्त के मुताबिक यह ड्रेस उतारनी होगी तुम्हें।" सैंडी खुशी को खींचकर ले गई। इतनी बेइज्जती उसकी कभी नहीं हुई थी। मनीष और तेजू मिष्ठी को खा जाने वाली नज़रों से देख रहे थे।
"मिष्ठी, यह तुमने सही नहीं किया। घर चलो तुम।" मनीष जी तमतमाए।
"मिस्टर राठोड़, आप मेरी मंगेतर को धमकी दे रहे हैं?" राजवीर मिष्ठी के सामने आकर बोला।
मनीष हैरान था। राजवीर मिष्ठी के लिए उसे धमका रहा था?
"तुम चलो मेरे साथ।" राजवीर मिष्ठी का हाथ पकड़कर एक खाली कमरे में ले गया। इससे पहले कि मिष्ठी कुछ समझती, राजवीर ने उसे दीवार से लगा दिया। राजवीर की नज़र मिष्ठी के नर्म, गुलाबी होंठों पर गई, और वह उनकी तरफ झुकने लगा। मिष्ठी ने उसके पैर को अपनी हाई हील्स से जोर से ठोका।
"गेट लॉस्ट!!!"
राजवीर को इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। उसने ना मिष्ठी को छोड़ा, बल्कि उसके हाथ दीवार से लगा दिए। मिष्ठी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया। उसने अपना घुटना मारा और...
आआआआ!!!!!
राजवीर तुरंत मिष्ठी को छोड़कर झुक गया। उसके सेंसिटिव पार्ट में इतना दर्द हुआ कि एक पल को उससे कुछ बोला नहीं गया। राजवीर के साथ पहली बार किसी ने यह जुर्रत की थी। उसने लाल आँखों से मिष्ठी को घूरा।
"क्या ऐसे देख क्या रहे हो? मेरी मर्ज़ी के खिलाफ़ मुझे छूने की सोचना भी मत।" मिष्ठी ने ठंडे लहजे में कहा।
"हम इंगेज्ड हैं।" राजवीर मुश्किल से बोला।
"तो?"
राजवीर के कान लाल हो गए।
"यह सब कपल्स के बीच नॉर्मल है।"
"इंटिमेट होने के लिए सिर्फ़ कपल होना काफी नहीं होता, मिस्टर राजवीर। ज़रूरी होता है उनके बीच का प्यार... और तुम? तुम देखकर ही मुझे घिन आती है।"
राजवीर का चेहरा काला पड़ गया।
"तुम जानती हो मैं कौन हूँ? तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूँ?"
"क्या करोगे? यह इंगेजमेंट तोड़ोगे? मुझे कोई परेशानी नहीं है।" मिष्ठी मुस्कुराई और चली गई। राजवीर ने दीवार पर जोरदार पंच मारा। मिष्ठी को पाने की तलब उसके दिल में और बढ़ती जा रही थी।
मिष्ठी कमरे से बाहर निकली। वहाँ मोना खड़ी थी।
"मिष्ठी, सैंडी की तरफ से मैं माफ़ी माँगती हूँ। सैंडी थोड़ी बिगड़ी हुई है, लेकिन दिल की अच्छी है।" मोना ने सिर झुकाकर कहा।
"मुझे बुरा नहीं लगा, लेकिन राजवीर ने उसे गलत समझ लिया। अब वह तुमसे गुस्सा है। जाओ, उसे समझाओ।"
"क्या?? मैं अभी जाती हूँ।"
मोना के अंदर जाते ही मिष्ठी बाहर छिप गई। उसने अपना फोन निकाला। वह फ़ोटो लेती, इससे पहले ही वहाँ किसी के आने की आहट हुई। मिष्ठी ने फ़ोन रखा और दौड़ते हुए बाहर भागी। उसकी आँखों में आँसू थे और नाक लाल हो गई थी, जैसे वह बहुत रोई हो। उसे इस तरह जाते देख लोग कन्फ़्यूज़ थे। उसी समय राजवीर, मोना के साथ, हँसते-मुस्कुराते निकला और सब लोग सब कुछ समझ गए।
राजवीर स्टेज पर गया और माइक लेकर बोला, "लेडीज एंड जेंटलमैन, आप सभी का इस पार्टी में शामिल होने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।"
पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा।
"आज मैं एक ज़रूरी अनाउंसमेंट करना चाहता हूँ।" कहते हुए राजवीर की नज़र मिष्ठी पर गई। मिष्ठी एकदम शांत थी, वहीं मोना की मुट्ठियाँ कस गईं।
राजवीर ने मिष्ठी को देखकर हाथ बढ़ाया। मिष्ठी स्टेज पर आ गई। राजवीर ने मिष्ठी का हाथ थामकर अनाउंस किया, "ये है मेरी फ़िआंसे, मिष्ठी राठोड़।"
सब लोग तालियाँ बजाने लगे। मिष्ठी और राजवीर की जोड़ी की तारीफ़ें करने लगे।
मोना के दिल में जैसे लाखों तीर चुभ गए। 'नहीं, ये नहीं हो सकता!' मिष्ठी ने भीड़ में मोना को देखा, जो इस समय बहुत हर्ट लग रही थी। अचानक मोना बेहोश होकर गिर गई। राजवीर के एक्सप्रेशन बदल गए। वह बिजली की फुर्ती से मोना के पास गया और उसे अपनी गोद में उठा लिया। "मोना??? देख क्या रहे हो? कॉल द डॉक्टर!" वह दहाड़ा और जाने लगा। संजय ने उसे रोककर बोला, "राजवीर, बिहेव योरसेल्फ! मोना को देखने के लिए और लोग हैं यहाँ।"
"डैड, प्लीज़।"
राजवीर उन्हें इग्नोर करके मोना को गोद में उठाकर निकल गया। मोना खुशी से फूली नहीं समा रही थी। 'राजवीर के दिल में मेरी जगह कोई नहीं छीन सकता।'
मिष्ठी स्टेज पर अकेली खड़ी रह गई। सब लोग बातें बनाने लगे, मिष्ठी पर दया करने लगे, लेकिन मिष्ठी के एक्सप्रेशन बिल्कुल नहीं बदले। वह मुस्कुराई। "मिस्टर राजवीर को उनका सच्चा प्यार मिलने के लिए कांग्रेचुलेशन। इसी के साथ इस इंगेजमेंट को कैंसिल करते हैं।"
सब लोग आँखें फाड़े मिष्ठी को देखने लगे। मिष्ठी स्टेज से उतरकर जाने लगी। संजय उसके पास आकर रोकते हुए बोले, "मिष्ठी, जल्दबाजी में कोई फैसला मत लो। राजवीर को मैं समझाऊँगा।"
"थैंक्यू, मिस्टर राजवंशी, पर मुझे नहीं लगता राजवीर मेरी फीलिंग्स के काबिल है, इसलिए मुझे उस पर अपना समय बर्बाद नहीं करना।" मिष्ठी फिर एक पल वहाँ नहीं रुकी।
दूसरी ओर, राजवीर ने मोना को बेड पर लेटाया और जाने लगा। उसी समय मोना ने उसके गले में बाहें डाल दीं और उसे किस करने लगी। राजवीर ने चौंककर उसे दूर कर दिया। "तुम बेहोश होने का नाटक कर रही थी?"
"राज, मैं तुम्हें किसी और के साथ नहीं देख पा रही थी। आई लव यू ना?" मोना नम आँखों से बोली। राजवीर के एक्सप्रेशन सॉफ्ट हो गए। "पर मोना, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।"
"राज, तुमने तो कहा था कि मिष्ठी को तुम पसंद नहीं करते, लेकिन आज तुमने सबके सामने उसे इंट्रोड्यूस कर दिया?" मोना शिकायती लहजे में बोली।
"राज, तुमने तो कहा था कि मिष्ठी को तुम पसंद नहीं करते, लेकिन आज तुमने सबके सामने उसे इंट्रोड्यूस कर दिया?" मोना ने शिकायती लहजे में कहा।
"मिष्ठी अनिरूद्ध से जुड़ी है। अनिरूद्ध की कमजोरी मिलना इतना आसान नहीं है; इसलिए मिष्ठी को मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगा।" कहकर राजवीर जाने लगा।
"सिर्फ अनिरूद्ध ही वजह है?"
राजवीर ने हाँ में सिर हिलाया और निकल गया, लेकिन यह कहकर उसके दिल को अच्छा नहीं लगा।
"ठीक है, राज। अनिरूद्ध और मिष्ठी, मैं तुम्हें दोनों से एकसाथ छुटकारा दिलाकर रहूंगी।"
बाहर आकर राजवीर को माहौल कुछ बदला हुआ सा लगा। सभी मेहमान उसे अजीब नज़रों से देख रहे थे। राजवीर ने हॉल में चारों ओर नज़र दौड़ाई, लेकिन मिष्ठी उसे कहीं नहीं दिखी। "राज बाबा, आपको साहब बुला रहे हैं," बटलर ने आकर कहा। राजवीर स्टडी रूम की तरफ बढ़ गया। रूम में घुसते ही कोई चीज़ उड़ती हुई आई; राजवीर ने समय पर उसे कैच कर लिया। वह एक किताब थी।
"इडियट!!!! तेरी वजह से वो दो कौड़ी की लड़की सबके सामने सगाई तोड़कर चली गई?" संजय गुस्से में लाल-पीले हो रहे थे।
"क्या??? मिष्ठी ने सगाई तोड़ दी??" राजवीर का मुँह खुला रह गया।
"उस लड़की की हिम्मत कैसे हुई सगाई तोड़ने की? अगर सगाई तोड़नी है, तो हम तोड़ेंगे।"
संजय ने राजवीर की तरफ देखा। "राजवीर, कैसे भी करके उस लड़की को मनाओ। यह हमारे खानदान की इज़्ज़त का सवाल है। उसके बाद देखते हैं उसका क्या करना है।"
"डैड!! मैं संभाल लूँगा सब। आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।"
"ठीक है, जाओ।"
अगले दिन राजवीर ने मिष्ठी से माफी माँग ली, और यह किस्सा यहीं खत्म हो गया। मिष्ठी को पता था कि इतनी आसानी से यह सब खत्म नहीं होगा, लेकिन यह सगाई वह हरगिज़ नहीं करेगी।
कुछ दिनों बाद मिष्ठी को शूटिंग के लिए कश्मीर जाना पड़ा। रात को होटल में रुकने के बाद सभी शूटिंग लोकेशन पर पहुँच गए थे, सिवाय मिष्ठी और उसकी असिस्टेंट मिंटी के। वे दोनों अलग से कैब करके जा रही थीं। तभी मिष्ठी को लगा कि रास्ता बहुत लंबा हो रहा है। उसने जीपीएस से लोकेशन चेक की, और उसकी आँखें फैल गईं। "गाड़ी रोको!" लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी रोकने की जगह और तेज कर दी।
मिष्ठी को जब होश आया, वह जंग के मैदान में थी। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। मुश्किल से उसने आँखें खोलीं। पूरा मैदान खून से रंगा हुआ था। चारों तरफ गोलियाँ चलने और बम धमाकों की आवाज़ आ रही थी। मिष्ठी का दिल बैठ गया।
मिष्ठी उठी और वहाँ से निकलने लगी। उसके पीछे किसी के आने की आहट हुई। वे दो आतंकवादी थे। उनमें से एक के हाथ पर गोली लगी थी, और दूसरा उसे संभाल रहा था। उन्होंने मिष्ठी को देख लिया था। मिष्ठी भागने लगी।
बूम!!!
मिष्ठी के सामने पेड़ पर गोली धँस गई। मिष्ठी को सच्ची रोनी आ रही थी। उसने अपने हाथ सरेंडर में खड़े कर दिए। एक आतंकवादी ने उस पर गन तान दी। "चलो!!"
एक मिलिट्री ऑफिसर, हाथ में बंदूक ताने, उनके सामने आ गया। "मेजर, बंदूक नीचे करो! नहीं तो इस लड़की की खोपड़ी उड़ा दूँगा।"
मेजर के सिर पर कैप होने से मिष्ठी उनका चेहरा नहीं देख पाई। मेजर ने एक गोली चलाई और एक आतंकवादी ढेर हो गया। मिष्ठी को पकड़े आतंकवादी ने यह देखा और उसने और जोर से उसकी कनपटी पर गन तान दी।
"खबरदार आगे मत बढ़ना, इसे उड़ा दूंगा मैं!"
मिष्ठी ने मेजर की तरफ नम आंखों से देखा।
"सेव मी!"
"डोंट बी स्केयर्ड, आय एम हेयर।" मेजर ने गहरी आवाज़ में कहा। मिष्ठी हैरान रह गई। यह तो अनिरूद्ध की आवाज थी।
"गन नीचे, मैं चला दूंगा गोली।" आतंकवादी ने फिर धमकी दी।
अनिरूद्ध ने गन नीचे रख दी।
आतंकवादी ने गन मिष्ठी से हटाकर अनिरूद्ध पर तान दी। मिष्ठी की धड़कन रुक गई। उसने अपनी कोहनी आतंकवादी के पेट पर मारी जिससे उसकी पकड़ छूट गई। गोली चलने की आवाज आई और एक पल में अनिरूद्ध उसके पास था। अनिरूद्ध की आगोश में आकर मिष्ठी का डर छूमंतर हो गया। वह अपने आप को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी। मिष्ठी ने देखा, वह आतंकवादी अभी मरा नहीं था।
"मेजर, मुझसे हाथ मिला ले। पैसों की कोई कमी नहीं होगी।"
"सरेंडर और डाई?" अनिरूद्ध की आँखें एकदम ठंडी थीं।
मिष्ठी अनिरूद्ध का यह रूप पहली बार देख रही थी।
वह आदमी नहीं बोला और उसके सीने पर गोली चल गई। खून का फव्वारा छूट गया। मिष्ठी, जिसने शॉर्ट्स पहने थे, उसके पैरों पर खून की बारिश हो गई। मिष्ठी को गुज़बंप आ गए।
अभी वे सेफ नहीं थे। चारों तरफ घना जंगल था और उसमें वे बीच में थे। अनिरूद्ध चारों तरफ देखते हुए मिष्ठी के साथ आगे बढ़ा। तभी एक और आतंकवादी ने मिष्ठी पर गन पॉइंट कर दी।
"ओह! तो यह है मेजर की कमजोरी?"
मिष्ठी को लगा अब तो पक्का वह गई, क्योंकि यह इन आतंकवादियों का लीडर लग रहा था। उसने मिष्ठी के सिर पर गन फायर की। मिष्ठी ने डर के आँखें बंद कर लीं। अनिरूद्ध मिष्ठी को लेकर घूम गया, लेकिन फायरिंग रुक नहीं रही थी। एक के बाद एक। मिष्ठी ने कसकर अनिरूद्ध को पकड़ लिया। दस मिनट बाद, फाइनली सब शांत हो गया। मिष्ठी ने पीछे देखा, वह आतंकवादी भी ढेर हो गया था। उसके पूरे शरीर से खून बह रहा था। मिष्ठी ने नज़रें फेर लीं। उसने नोटिस किया, अनिरूद्ध का चेहरा पीला पड़ गया है।
"अनिरूद्ध?" उसने अनिरूद्ध के गाल पर हाथ रखा।
"आय एम फाइन, लेट्स गो।" अनिरूद्ध जैसे ही आगे बढ़ा, मिष्ठी की आँखें बड़ी हो गईं। अनिरूद्ध के सीधे पैर में गोली लगी थी, और वह उस पैर को जमीन पर सीधे रख भी नहीं पा रहा था। मिष्ठी की आँखों में आँसू आ गए। अनिरूद्ध ने देखा तो उसने मिष्ठी का हाथ पकड़कर कहा,
"मैं ठीक हूँ, सच में।"
मिष्ठी ने अनिरूद्ध का हाथ अपने कंधे पर डाल लिया।
"इस पैर पर जोर मत दो, खून ज़्यादा बहेगा।"
अनिरूद्ध के होंठों पर मुस्कराहट आ गई।
एक गुफा थी, जो ज़्यादा बड़ी नहीं थी, लेकिन सेफ थी। अंदर आते ही अनिरूद्ध जमीन पर गिर गया। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। अनिरूद्ध ने अपनी जेब में हाथ डालकर खींचा और उसकी आह निकल गई। मिष्ठी हैरान होकर सब देख रही थी। अनिरूद्ध ने जोर से खींचा और कुछ निकालकर मिष्ठी की तरफ बढ़ा दिया। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। मिष्ठी ने उसकी हथेली पर देखा। यह वही ताबीज़ था जो मिष्ठी ने दिया था। ताबीज़ का कपड़ा फट चुका था। उसके अंदर की रुई खून से लथपथ थी और वह सिक्का... उस पर गोली धंसी हुई थी, और अनिरूद्ध ने इसे यूँ ही खींचकर निकाल दिया।
"डेयरडेविल!" मिष्ठी बुदबुदाई।
"डेयरडेविल!" मिष्ठी बुदबुदाई।
"मेरी पैंट उतारने में मदद करो," अनिरूद्ध ने कहा। मिष्ठी ने एक पल उसे घूरा, लेकिन कैसे उसकी वजह से अनिरूद्ध की यह हालत है, सोचकर वह नीचे बैठी और अनिरूद्ध की बेल्ट खोली। मिष्ठी का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था। 'मिष्ठी यूं इडियट अनिरूद्ध पेशेंट है,' उसने खुद को फटकार लगाई और अनिरूद्ध की पैंट उतार दी। अनिरूद्ध ने अपनी आँखें खोलीं और मिष्ठी का लाल चेहरा देखकर उसे मन ही मन हँसी आ गई।
पैंट उतारते ही मिष्ठी ने देखा अनिरूद्ध की जाँघ पर खून ही खून था और बीच में गोली का निशान, जहाँ से लगातार खून बह रहा था। उसके आस-पास की त्वचा सूजकर लाल हो गई थी। 'अगर समय पर खून नहीं रोका तो अनिरूद्ध की जान खतरे में पड़ जाएगी। क्या करूँ? अनिरूद्ध के कपड़े नायलॉन के हैं,' मिष्ठी ने दिमाग पर जोर डाला और उसकी नज़र अपनी वाइट कॉटन शर्ट पर गई। मिष्ठी ने अपनी शर्ट उतारी, उसे उल्टा किया और अनिरूद्ध के घाव पर बाँध दिया। दर्द से अनिरूद्ध ने आँखें खोलीं और मिष्ठी को देखते ही उसकी आँखें बड़ी हो गईं। मिष्ठी ने अंदर पतली सी वाइट टॉप पहनी थी, जिसमें उसका परफेक्ट फिगर, गोरी मुलायम त्वचा साफ नज़र आ रही थी। अनिरूद्ध का गला सूखने लगा। अनिरूद्ध की नज़रें महसूस करके मिष्ठी के गाल टमाटर की तरह लाल हो गए। वह अनिरूद्ध पर गुर्राई, "आँखें बंद करो अपनी।"
अनिरूद्ध मुश्किल से उठकर बैठा, अपनी जैकेट उतारी और मिष्ठी को दे दी। "इसे पहन लो, कोई भी अंदर आ सकता है।"
मिष्ठी ने अनिरूद्ध की जैकेट पहन ली। जैकेट उसके लिए बहुत बड़ी थी; लग रहा था जैसे बच्चे ने अपने पापा के कपड़े पहन लिए हों।
उसी समय यश अंदर आया। "बॉस?"
यश को देखकर मिष्ठी में हिम्मत आई कि वह अब खतरे से बाहर है। लेकिन यश मिष्ठी को अनिरूद्ध की जैकेट और अनिरूद्ध को आधे कपड़ों में देखकर कुछ और समझ बैठा। वह शरमाते हुए पलट गया। "बॉस, ये आप दोनों क्या कर रहे थे?"
"अपना दिमाग साफ करो और यहाँ आओ।" अनिरूद्ध की सर्द आवाज सुनकर यश उसके पास आया। अनिरूद्ध का घाव देखकर वह चौंक गया। "ये कैसे हुआ?"
यश ने अनिरूद्ध को उठाया। अनिरूद्ध ने अपनी पैंट पहनते हुए कहा, "गन शॉट ब्लीडिंग रुक गई है।"
"ये उन्हीं का काम था?"
"हम्म। अच्छा हुआ, अब यह किस्सा खत्म। हम अब चैन से वापस जा पाएँगे।"
"मतलब अब तुम आर्मी से रिटायर हो रहे हो?" मिष्ठी ने दोनों को बात करता देख कहा।
"हम्म।" अनिरूद्ध ने उसे गहरी नज़रों से देखा।
"तुम यहाँ कैसे आई? पता है यह जगह कितनी असुरक्षित है?" यश मिष्ठी को डाँटते हुए बोला।
"मैं जानबूझकर नहीं आई। मेरा किडनैप करके यहाँ छोड़ दिया गया।" मिष्ठी को यकीन था यह काम मोना का ही था।
"मनीष जी, आपकी बेटी का किडनैप हो गया है।" दूसरी तरफ से यह खबर सुनकर मनीष जी बुरी तरह से चौंक गए। "क्या कहा? खुशी किडनैप हो गई?"
तेजू जो वहीं बैठी थी, वह भी उछल पड़ी।
"खुशी नहीं, आपकी दूसरी बेटी मिष्ठी।" उधर से कहा गया।
यह सुनकर दोनों ने राहत की साँस ली, पर राजवीर के साथ इंगेजमेंट का सोचकर मनीष जी को मिष्ठी की चिंता होने लगी।