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Love with my brother in-law

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kj..queen of worlds

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कुछ किस्से अधूरे रह जाते है जिंदगी के,जिसे पूरा करने का मौका बेहद कम लोगो को मिलता है, जिसमें से एक थी रूह.......जानने के लिए अभी पढ़िए.....कुछ किस्से अधूरे रह जाते है जिंदगी के,जिसे पूरा करने का मौका बेहद कम लोगो को मिलता है, जिसमें से एक थी रूह.......

Total Chapters (21)

Page 1 of 2

  • 1. Love with my brother in-law - Chapter 1

    Words: 910

    Estimated Reading Time: 6 min

    दिल्ली की कड़कती ठंड में एक लड़की नंगे पाँव सड़क पर दौड़ रही थी। उसके हाथों में एक बैग था, जिसमें बहुत सारे पैसे थे। उसके गले में मंगलसूत्र था, लेकिन मांग में सिंदूर नहीं। वह लड़की दिखने में बला की खूबसूरत थी, लेकिन चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था। वह बार-बार अपने पीछे देख रही थी, शायद उसे डर था कि कहीं कोई उसके पीछे तो नहीं आ रहा है। "आज मैं अपने प्यार की हमेशा-हमेशा के लिए हो जाऊँगी। मैं आ रही हूँ, विराट।" उस लड़की ने हांफते हुए कहा। वह एक खाली फैक्ट्री के बाहर खड़ी थी। लग रहा था जैसे ना जाने कितने ही सालों से वह फैक्ट्री बंद हो। वह लड़की उस खंडहर के अंदर चली गई। "तुम आ गईं, रूह? किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं ना? राजवीर को पता तो नहीं चल गया ना?" विराट वालिया ने थोड़ा घबराकर कहा। यह रूह का बचपन का दोस्त था, जिससे रूह बेहद प्यार करती थी। लेकिन राजवीर जिंदल के दादा जी और रूह के पापा ने रूह की शादी राजवीर से करवा दी थी। शादी को तीन महीने हो गए थे, लेकिन रूह के दिल में बस विराट ही रहा, जिस वजह से विराट ने प्लान बनाया कि राजवीर के घर से पैसे लेकर वे दोनों बहुत दूर चले जाएँगे। रूह भी मान गई विराट की बात और आज वह पैसे लेकर घर छोड़कर आ गई थी। "राजवीर घर पर रहता ही कहाँ है और उसका भाई और दोस्त पता नहीं कहाँ भटक रहे होंगे।" रूह ने हँसते हुए कहा। उसके पैरों में भी बहुत दर्द हो रहा था। "लाओ, यह बैग मुझे दे दो। तुम यहाँ आराम से बैठो और ये रहे हमारे मैरिज रजिस्ट्रेशन के पेपर। यहाँ साइन कर दो। यह USA का है। हम USA में हसबैंड-वाइफ होंगे। जल्दी करो। हाँ, अगर तुम्हें कोई शक है तो पढ़कर साइन कर देना।" विराट ने रूह के हाथ से बैग ले लिया और उसके हाथ में एक पेन और पेपर थमा दिया। रूह विराट पर आँख बंद करके भरोसा करती थी, इसलिए उसने तुरंत साइन कर दिया। "मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, विराट।" रूह ने बड़े ही प्यार से विराट को देखते हुए कहा। तभी उसे एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी। "यही तो बात है, सिस्टर।" यह थी यामिनी बंसल, रूह की छोटी बहन। उसे देख रूह थोड़ी हैरान हो गई। "यामिनी, तुम यहाँ? विराट ने तुम्हें बुलाया है क्या? लेकिन विराट, यहाँ खतरा है, फिर भी तुमने यामिनी को यहाँ बुलाया?" रूह ने यामिनी की फ़िक्र जताई। "खतरा तुम्हारे लिए है, बहना, मेरे लिए नहीं। जो पेपर्स तुमने साइन किए हैं, वह कंपनी के पेपर्स हैं जो कि तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए छोड़ गई थीं। अब से वह मेरे हुए।" यामिनी ने एक केन निकाला और उसमें जो लिक्विड था, वह रूह पर छिड़क दिया। "ये…ये क्या कर रही हो तुम? और क्या बोल रही हो? मेरी माँ तुम्हारी भी तो माँ है, और कंपनी तो पापा के नाम है ना?" रूह को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यामिनी क्या कर रही है और कहना क्या चाहती है। तभी उसे केरोसिन की गंध आई, जिसे सूँघकर उसके मन में अजीब सी बेचैनी और डर बैठ गया। विराट बड़े ही आराम से यह नज़ारा देख रहा था। "तेरी माँ मेरी माँ नहीं है, समझी? मेरी माँ का नाम है रीना बंसल। तू तो ना जाने किस गंदे खून का अंश है। शायद तुझे 'डैड' की नाजायज़ औलाद बोल सकते हैं। खैर, तुझे पता है आज मैं तुझे यह सब क्यों बता रही हूँ? क्योंकि यह तेरा आखिरी दिन है। विराट हमेशा से ही मुझसे प्यार करता आया है, समझी? तुम, यह तो बस हमारा प्लान था तुम्हें फँसाने का। अब तो राजवीर भी तुम्हें ढूँढना तक नहीं चाहेगा।" यामिनी ने जैसे रूह की ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई दिखा दी हो कुछ ही लफ़्ज़ों में। रूह की आँखों से आँसू बहने लगे। उसे वे सब पल याद आने लगे जब यामिनी ने कैसे बेहद चालाकी से उसके मन में राजवीर के लिए नफ़रत पैदा की थी और कैसे विराट के लिए वह पागल सी हो बैठी थी। और जिस बहन के लिए उसने इतना कुछ किया, आज उसे पता चला वह तो उसकी बहन ही नहीं है। उसे अपनी पूरी ज़िंदगी बस एक मज़ाक से ज़्यादा कुछ नहीं लग रही थी। "विराट, तुम तो कुछ कहो! इसे आखिर हमारे बीच कुछ तो था ना? मैंने महसूस किया, वह सब गलत नहीं हो सकता। बोलो ना कुछ।" रूह ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। "तुम्हारे चेहरे का यह दाग देख मुझे घिन आती है तुमसे, और मैं यह भी नहीं चाहता कि राजवीर से मेरी दुश्मनी हो। मिलते हैं अगले जन्म में, रूह, तब तक के लिए गुड बाय।" विराट ने मुस्कुराकर कहा। रूह के चेहरे पर वह दाग उसकी शादी के दिन ही आया था, यामिनी को बचाते हुए, जो कि यामिनी ने जानबूझकर किया था ताकि रूह और राजवीर की शादी न हो, क्योंकि राजवीर एक बड़ा नाम था बिज़नेस वर्ल्ड का और रूह के साथ कुछ अच्छा हो, यह यामिनी कहाँ देख सकती थी। विराट ने लाइटर जलाकर उसे रूह की तरफ़ फेंक दिया। रूह की दर्द भरी चीखें ना जाने कितने समय तक उस खंडहर में गूँजीं, लेकिन विराट या यामिनी दोनों में से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। "आह… …हेल्प… …प्लीज़ बचाओ मुझे… …आह्ह… …।" रूह की दर्द भरी चीख सुनकर दिल दहल उठा। उसकी ग़लती क्या थी? भरोसा करना या प्यार करना?

  • 2. Love with my brother in-law - Chapter 2

    Words: 1298

    Estimated Reading Time: 8 min

    रूह की आँखें खुलीं तो उसके आस-पास बस सफ़ेद बादल थे। "ये कहाँ हूँ मैं?" रूह ने कहा ही था कि तभी उसके सामने एक उड़ती हुई छोटी सी लड़की आई। वह लगभग रूह की उंगली जितनी बड़ी होगी, उसके पंख बेहद प्यारे थे, जैसे किसी तितली के हों। "हम हैं तारा, इस लोक की सबसे प्रिय परी, और नियति के राजदूत। हमारा अनुसरण करो।" तारा की बात अगर कोई और होता तो समझ नहीं पाता, लेकिन रूह को शुद्ध हिंदी आती थी, इसलिए वह समझ गई कि अनुसरण का मतलब होता है पीछे आओ। वह चुपचाप तारा के पीछे जाने लगी। तभी खूबसूरत झरनों के बीच होते हुए उसे एक महल दिखा। रूह के कानों में एक आवाज़ पड़ी। "तुम्हारी ज़िंदगी में जो अब तक हुआ, वो तुम जानती हो, लेकिन आगे के अनुभवों से तुम वापिस अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकती हो, और ये मौका हम तुम्हें देंगे, लेकिन एक शर्त पर। बोलो, क्या तुम्हें मंज़ूर है?" मानो रूह को इसी का तो इंतज़ार था। "जी, जी बिल्कुल। लेकिन आप मुझे दिख नहीं रही, कहाँ हो आप?" रूह ने कहा। तभी तारा ने उसे आँखें दिखाईं और चुप रहने का इशारा किया। तो रूह का मुँह बन गया। "धरती पर जैसे अच्छी शक्तियाँ मौजूद हैं, वैसे बुरी भी हैं। तो तुम्हें उनको पहचान कर खत्म करना होगा। ये सब कैसे होगा, आने वाले वक्त में पता चल जाएगा। इसलिए तुम्हारे साथ तारा भी धरती लोक पर ही रहेगी। हर अंत अपने साथ एक आरंभ लाता है, ये याद रखना।" वो आवाज़ फिर गूँजी। "नहीं, नियति, आप हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं?" तारा ने हैरानी से कहा। तभी एक तेज रोशनी से तारा और रूह की आँखें बंद हो गईं। दिल्ली के लेविश एरिया में एक बड़ा सा विला था, जिसकी नेम प्लेट पर "जिंदल फ़ैमिली" लिखा था। इतना खूबसूरत, जैसे धरती पर ही स्वर्ग हो। इंटीरियर डिज़ाइन एकदम यूनिक, स्विमिंग पूल, गार्डन, फ़ाउंटेन, सुंदर सा झूला, पर्सनल गैरेज, बड़ी सी कार पार्किंग, जिसमें कम से कम 200+ कारें और बाइक्स होंगी। विला के अंदर थिएटर, म्यूज़िक रूम, जिम, ट्यूटर रूम, पार्टी हॉल और एक शानदार टेरेस, जहाँ गार्डनिंग की हुई थी। रूह ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उसके सामने एक बेहद हैंडसम और चार्मिंग फ़ेस दिखा, जिसे वह अपनी पिछली ज़िंदगी में तीन महीने से अवॉइड करने की कोशिश करती थी। राजवीर ने ब्लू एंड व्हाइट कलर का सूट पहना हुआ था। उसके बाल सेट थे और आँखें चमक रही थीं। राजवीर को देख रूह के मन में फिर से वो बात गूँजी, "हर अंत अपने साथ एक आरंभ लाता है..." राजवीर ही उसका आरंभ है। "Hey, are you okay? डॉक्टर को बुलाऊँ?" राजवीर ने धीरे से कहा। उसका ओरा बेहद स्ट्राँग था। उसकी एक झलक के लिए कोई भी कुछ भी कर जाए। "मैं... मैं... नहीं, मैं ठीक हूँ। अभी मैं कहाँ हूँ और ये कौन सी डेट है, आह...?" रूह ने कहते हुए खुद को चुटकी काटी ताकि उसे पता चले कि ये कोई सपना तो नहीं है ना। "तुम्हें याद नहीं क्या? आज हमारी सगाई होने वाली है। तुम ज़िद कर-कर के पार्लर गई और फिर वहीं बेहोश हो गई। What's wrong with you, Ruh?" राजवीर ने रूह के पास बेड पर बैठते हुए कहा। रूह को याद आया कि यामिनी ने ही उसे पार्लर बुलाया था और वहाँ उसे कहा था कि वह तमाशा करे सगाई पर, ताकि राजवीर खुद ही शादी से मना कर दे। रूह ने वैसा ही किया था। एक तो लेट पहुँची सगाई में, और यामिनी की दी हुई ड्रिंक पीकर नाचने लगी। ये देख राजवीर बेहद गुस्सा हुआ था उससे, लेकिन उसने अपने दादा जी के लिए फिर भी उससे शादी की, लेकिन कभी उसे देखने तक नहीं आया। "See, I know तुम इस शादी से खुश नहीं हो, और ना ही मैं अपनी मर्ज़ी से शादी कर रहा हूँ। सो, तुम अगर ना बोलना चाहती हो तो मैं दादा जी से अभी बात करता हूँ।" राजवीर ने कहा। "नहीं, नहीं। मैं आपसे शादी करना चाहती थी। कसम अस्सी घाट की।" बनारस का अस्सी घाट से रूह को बहूत प्यार था। "ठीक है। तो चलो, मैं स्टाइलिस्ट को भेजता हूँ। तुम रेडी हो जाओ।" राजवीर बोल ही रहा था कि तभी उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी। "भाई, प्लीज़ फ़ास्ट! सभी मेहमान आ चुके हैं और भाभी और आपका ही वेट कर रहे हैं।" विनिल जिंदल, राजवीर का छोटा भाई, जो कि एक फ़ेमस सिंगर है। "बस दो मिनट, देवर जी। हम आ ही रहे हैं।" रूह ने जल्दी से खड़े होते हुए कहा। उसके ऐसे बोलने से राजवीर और विनिल दोनों ही हैरान थे। सबको पता था कि ये शादी राजवीर और रूह की मर्ज़ी से नहीं हो रही, इसलिए दोनों ही उखड़े-उखड़े रहते थे एक-दूसरे के साथ। और रूह तो किसी से कोई बात भी नहीं करती थी, तो ऐसे अचानक "देवर जी" सुनकर शॉक होना तो बनता ही था। "ठीक है भाभी, जल्दी आइएगा।" विनिल ने शर्मा कर कहा और जल्दी से वहाँ से भाग गया। आखिर उसे ये बात बाकी सबको भी तो बतानी थी। "मैं एक और बार बोल रहा हूँ। अब भी वक्त है, पीछे हट जाओ।" राजवीर इस बार बेहद सीरियस दिख रहा था। उसे ऐसे देखकर एक पल के लिए रूह डर सी गई। "मैं जानती हूँ ये शादी अरेंज मैरिज है, कोई लव मैरिज नहीं। लेकिन मैं अपना पूरा प्यार इस रिश्ते को देना चाहती हूँ। मैं जानती हूँ आपको वक्त लगेगा, लेकिन प्लीज़ मुझे एक मौका दीजिए।" रूह ने कॉन्फिडेंस के साथ कहा और जाकर राजवीर के गरम होंठों को अपने सॉफ्ट होंठों से छू लिया। ये पल उसकी दोनों ज़िंदगियों में से सबसे खास था। ये उसकी पहली किस थी, जो राजवीर के लिए थी। "ठीक है। लेकिन और भी गलतियाँ हैं जो तुमने की हैं, उन्हें भी सुधार लो तो अच्छा होगा।" राजवीर ने कहा और वहाँ से जाने लगा। रूह को याद आया कैसे यामिनी के कहने पर रूह ने राजवीर के P.A. साहिल और सिक्योरिटी इंचार्ज अभिनव को इंसल्ट किया था। सगाई के दो दिन पहले। ये सब याद कर उसे खुद से निराशा महसूस हुई। "हाँ, मैं सब ठीक कर दूँगी वीर। बस कुछ वक्त दो मुझे। और हाँ, स्टाइलिस्ट को मत भेजना। मैं अभी रेडी होकर आती हूँ।" रूह ने कहा तो राजवीर चला गया। रूह ने कमरा देखा। ये वही कमरा था जो उसकी सगाई तय होने पर उसके लिए सजाया गया था। रूह ने वॉर्डरोब ओपन किया। वहाँ राजवीर के सूट से मैच कई ड्रेस और साड़ियाँ थीं। रूह को पता था राजवीर को साड़ी बेहद पसंद थी, लेकिन रूह ने कभी पहनी ही नहीं। हमेशा शॉर्ट्स पहने, ताकि राजवीर को पसंद ना आए। रूह ने एक ब्लू एंड व्हाइट कलर की नेट की साड़ी निकाली और जल्दी से रेडी हो गई। हल्के से काजल, लिपस्टिक, बिंदी और मैचिंग एक्सेसरीज़ पहनकर उसे बस दस मिनट लगे तैयार होने में। ये सब इतनी स्पीड में उसने रोबोट की तरह किया था। ये अंबिलिविबल था। तभी उसे शीशे में एक उड़ती हुई परी दिखाई दी, जो उसे ही घूर रही थी। "तुम्हें यहाँ मिशन के लिए भेजा है, मोहब्बत का फूल उगाने नहीं।" तारा ने कहा। "तुम? तुम्हें तो मै भूल ही गई थी! क्या बात है? धरती पर आते ही तुम तो यहाँ की भाषा बोलने लगी। खैर, मुझे क्या? मैं तो बस अब राजवीर को पाना और विराट-यामिनी को बर्बाद करना चाहती हूँ। अब तक विराट ने मेरी मोहब्बत देखी, अब वो मेरी नफ़रत देखेगा। बहुत चल ली चाल दोनों ने, अब बारी मेरी है।" रूह का चेहरा अभी एक डेविल से कम नहीं लग रहा था। रूह को बस अब नीचे होने वाले तमाशे का इंतज़ार था। रूह ने आईना देख अपने चेहरे पर हाथ लगाया। अभी निशान नहीं था। उसके चेहरे पर पहले जैसा साफ़ चेहरा पाकर वो खुश थी, लेकिन आँखों में दर्द था और बदले की आग थी।

  • 3. Love with my brother in-law - Chapter 3

    Words: 1161

    Estimated Reading Time: 7 min

    रूह और राजवीर एक साथ सीढ़ियों से नीचे उतरे; सभी का ध्यान बस उन दोनों पर ही था। "यामिनी, तुमने तो कहा था राजवीर और रूह के बीच कुछ नहीं है। उनको तो देखो, कितने प्यार से एक-दूसरे को देख रहे हैं?" माया ने यामिनी से कहा; ये सब क्लासमेट-फ्रेंड थे। "बस देखती जाओ, इस बहन जी का मैं क्या हाल करती हूँ।" यामिनी ने जलती निगाहों से कहा। "अरे शीतल, तू यहाँ? तुझे किसने बुलाया?" माया भी यामिनी की तरह थी; शॉर्ट ड्रेस में घूमकर बस अपनी बॉडी से लड़कों को रिझाने की कोशिश करती रहती। राजवीर और रूह जैसे ही नीचे आए, राजवीर के कुछ दोस्त और बिज़नेस पार्टनर्स उससे मिलने आ पहुँचे। अभी सगाई में कुछ वक्त था, इसलिए रूह भी उनसे कुछ इधर-उधर की बात करने लगी। तभी उसकी नज़र शीतल पर पड़ी। "सुनो वीर, मैं अभी आती हूँ; अपनी दोस्त को तुमसे मिलवाना है।" रूह ने राजवीर के कान में कहा, तो राजवीर ने हल्के से अपनी गर्दन हिलाई। "क्यों मैं नहीं आ सकती यहाँ? और तुम्हें इससे क्या मतलब कि मुझे किसने बुलाया है?" शीतल दिखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही दिमाग से अड़ियल; उससे ज़ुल्म बर्दाश्त नहीं होता था। पिछली ज़िंदगी में बस दो लोग थे रूह के हमदर्द—एक शीतल और दूसरा आयुष (यामिनी का छोटा भाई)—लेकिन माया ने शीतल और रूह के बीच दरार डाल दी थी। "हाँ, लेकिन मैं तो पूछ सकती हूँ क्योंकि ये मेरे घर का फ़ंक्शन है।" यामिनी ने अपने दोनों हाथ बाँधकर शीतल के सामने खड़ी होते हुए कहा। "तुम्हारे घर का फ़ंक्शन? ओह, कम ऑन यामिनी, मुझसे मज़ाक मत करो।" शीतल ने भी अपने दोनों हाथ बाँधते हुए यामिनी के करीब जाते हुए, यामिनी के ही अंदाज़ में कहा। "बदतमीज़ बी…" इससे पहले कि यामिनी कुछ और बोलती, वहाँ रूह आ गई। "ज़ुबान को लगाम दो, प्यारी छोटी बहन। शीतल मेरी बेस्ट फ्रेंड है, तो ऑफ़कोर्स मेरी सगाई में वो आएगी ही। नहीं माया, सही कहा ना?" रूह ने शीतल के पास खड़े होते हुए कहा। शीतल और रूह को वापस एक साथ देख यामिनी और माया हैरान थे। "लेकिन तुम्हारा और शीतल का तो झगड़ा हो गया था ना? फिर इसे तुमने कैसे इनवाइट किया? तुम भूल गई, इसने तुम्हारा नेकलेस चुराया था। इसे कैसे बुला सकती हो तुम?" माया ने गुस्से से कहा। "मैं नहीं मानती कि मेरी दोस्त चोर है। मुझे भरोसा है शीतल पर, और आगे से ऐसी बकवास बातें मत फैलाना।" रूह ने कहा और शीतल का हाथ पकड़कर राजवीर की ओर बढ़ गई। "थैंक यू, मुझ पर भरोसा करने के लिए। मुझे लगा नहीं था तुम मुझे बुलाओगी।" शीतल ने धीमी आवाज़ में कहा। "थैंक यू तो मुझे बोलना चाहिए तुम्हें, जो मेरे एक कॉल पर तुम जल्दी से आ गई।" रूह ने मुस्कुराकर कहा। "वीर, इससे मिलो; ये है मेरी इकलौती बेस्ट फ्रेंड, शीतल मिश्रा, और शीतल, इन्हें तो तुम जानती ही हो—मेरे होने वाले पति, राजवीर जिंदल।" रूह ने मुस्कुराकर कहा; वो जानबूझकर जोर से बोल रही थी ताकि यामिनी को बहुत गुस्सा आए। "हाय।" राजवीर ने हाथ बढ़ाया; शीतल ने भी हाथ मिलाया। दोनों ने एक-दूसरे को नॉर्मली इंट्रोड्यूस किया। तभी वहाँ साहिल, अभिनव, विनिल और कुणाल रॉय (राजवीर का बेस्ट फ्रेंड) आ गए। "अच्छा हुआ आप दोनों यहीं मिल गए; मुझे आप दोनों से कुछ बात करनी थी।" रूह ने साहिल और अभिनव को देखते हुए कहा। "जी, बोलिए मैडम?" साहिल और अभिनव ने एक साथ कहा। "मैडम नहीं, भाभी। और हाँ, मुझसे जो भी गलती हुई पिछली बार, उसके लिए दिल से सॉरी। मेरा इरादा आप दोनों को हर्ट करने का बिल्कुल भी नहीं था।" रूह ने माफ़ी माँगते हुए कहा। "अरे नहीं, कोई बात नहीं मै… भाभी।" साहिल ने मुस्कुराकर कहा। "चलिए, सगाई का मुहूर्त हो गया है।" अभिनव ने कहा और चला गया; शायद वो अपनी इंसल्ट भूल नहीं पाया था। "क्या अभिनव नाराज़ है मुझसे?" रूह ने अभिनव के ऐसे ही चले जाने पर कहा। "जो तुमने किया, उसके आगे ये कुछ नहीं।" राजवीर ने धीरे से रूह के कान में कहा; लग रहा था राजवीर भी बेहद नाराज़ था रूह से, लेकिन अपने दादा जी की वजह से कुछ कर नहीं रहा था। "अरे भाभी, डोंट वरी; अभिनव कम बोलता है, लेकिन उसका दिल साफ़ है। वो ज़्यादा देर आपसे नाराज़ नहीं रहेगा।" विनिल ने कहा। "अरे भाई, कोई हमें भी मिलाओ अपनी भाभी से।" कुणाल ने कहा। "ये मेरा दोस्त है, कुणाल रॉय, और ये है रूह; तुम तो जानते ही हो।" राजवीर ने कहा, लेकिन उसका तरीका रूह को पसंद नहीं आया। ["लगता है इससे प्यार से बात करके कोई फ़ायदा नहीं; इसे अपनी भाषा में समझाना होगा।"] रूह ने मन ही मन कहा; तभी वहाँ तारा भी आ गई। "तुम भूल गई, मैं तुम्हारे मन की बात भी सुन सकती हूँ।" तारा ने कहा; तारा को सिर्फ़ रूह ही देख सकती थी और सुन सकती थी। ["हाँ, बदकिस्मती मेरी।"] रूह ने कहा और स्टेज की तरफ़ बढ़ गई; शीतल भी उसके साथ ही थी। रूह और राजवीर ने एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई, लेकिन रूह ने महसूस किया कि इसमें वो प्यार नहीं था जो वो महसूस करना चाहती थी। एक-दूसरे को अंगूठी पहनने के बाद रूह और राजवीर ने दादा जी के पैर छुए, क्योंकि रूह के परिवार से तो बस यामिनी ही आई थी। फिर राजवीर और रूह आए हुए मेहमानों को डिनर के लिए कहने लगे; सभी गेस्ट से बात करना और उन्हें खाने के लिए कहना एक परंपरा थी जिंदल परिवार की; उसके बाद ही ब्राइड और ग्रूम एक साथ खाना खाते हैं। "बड़ी बहन, चलो ये जूस पी लो; कब से तुम खड़े-खड़े सबको डिनर के लिए बोल रही हो।" यामिनी ने कहा; रूह को याद था इस जूस में यामिनी ने नशा मिला दिया था जिसे पीने के बाद रूह ने बहुत तमाशा किया था। "बिल्कुल, लेकिन हम साथ में पीते हैं। रुको, मैं तुम्हारे लिए भी जूस ले कर आती हूँ।" रूह ने यामिनी का नशे वाला जूस अपने दाएँ हाथ में लेते हुए कहा और जूस काउंटर की ओर बढ़ गई। रूह ने चालाकी से अपने दाएँ हाथ में अपना बिना नशे वाला जूस का ग्लास लिया और बाएँ हाथ में नशे वाला जूस, जिसे उसने यामिनी को दिया। ["ये दाएँ वाला ग्लास ही था जिसमें ड्रग है; हाँ, मुझे पक्का याद है। चलो, अब मज़ा आएगा। मैं भी देखती हूँ ये राजवीर के करीब कैसे जा पाती है।"] यामिनी ने अपना जूस पीते हुए कहा। उसकी शैतानी हँसी देखकर रूह को समझ आ रहा था कि अभी यामिनी के दिमाग में क्या चल रहा है। ["मज़ा तो आएगा यामिनी, लेकिन मज़ाक इस बार मेरा नहीं, तुम्हारा बनेगा। बस देखना ये है कि विराट कब तक पहुँच रहा है यहाँ?"] रूह ने यामिनी को देखते हुए मन ही मन कहा।

  • 4. Love with my brother in-law - Chapter 4

    Words: 1349

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा... रूह और राजवीर की सगाई के बाद, यामिनी ने जो नशे वाले जूस की साज़िश रचाई थी, उसे रूह ने उसी पर आजमाया था। अब आगे... जूस पी रही यामिनी का सिर भारी होने लगा। एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया घूम रही हो। "ये सब घूम क्यों रहा है...?" यामिनी ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा। रूह ने एक नज़र यामिनी को देखा और फिर अभिनव की ओर बढ़ गई। "अभिनव, क्या मेरी बहन का कोई दोस्त गेट पर है? ज़रा चेक कर लो ना, सिक्योरिटी उसे आने नहीं दे रही है।" रूह ने अभिनव से कहा। पिछली ज़िंदगी में विराट अंदर आने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सिक्योरिटी ने उसे आने नहीं दिया था क्योंकि उसके पास इनविटेशन नहीं था। लेकिन इस बार रूह चाहती थी कि विराट यहाँ आए और तमाशे को हवा लगे। "जी, हम अभी देखते हैं।" अभिनव ने कहा। "भाभी, क्या बात है? आज आपके चेहरे पर अलग ही मुस्कान दिख रही है।" अभिनव के जाने के बाद विनिल ने कहा। रूह, विनिल, शीतल, कुणाल और साहिल साथ ही खड़े हुए थे; बस राजवीर ही था जो अपने दादा जी से बात कर रहा था। "हाँ, क्योंकि आज मेरी सगाई हुई है, तो मैं खुश तो होऊँगी ही ना, देवर जी।" रूह ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा। "मैं जानता हूँ, अभी तुम खुश नहीं हो, लेकिन मैंने जिसे तुम्हारे लिए चुना है, वो सही है।" रघुबीर जिंदल ने दूर खड़ी रूह को देखते हुए राजवीर से कहा। "मैं आपके फ़ैसले का सम्मान करता हूँ, लेकिन अगर इस लड़की ने कुछ ऐसा किया जो हमारे खानदान की इज़्ज़त को नागवार हुआ, तो मैं यह शादी तोड़ दूँगा।" राजवीर ने रूह को देखते हुए कहा। राजवीर यह शादी करना ही नहीं चाहता था, ऐसा लग रहा था। "मत भूलो उसकी माँ के हम पर उपकार..." रघुबीर जिंदल इससे पहले कि कुछ आगे बोलते, उनके कानों में यामिनी की झूमती हुई आवाज़ गूंज उठी। "मैंने पी नहीं... नहीं है... मुझे... मुझे पिला दी गई है..." यामिनी ने झूमते हुए गाना शुरू किया। सभी की नज़र उस पर ठहर गई। "भाभी, ये आपकी बहन पागलखाने से भागी हुई मरीज़ है क्या?" विनिल ने यामिनी को देखते हुए कहा। "पता नहीं।" रूह ने जवाब दिया। "इसे क्या हुआ?" शीतल ने कहा। तभी उसकी नज़र रूह के चेहरे पर पड़ी जो बेहद सुकून से भरा था। "क्या ये तुमने किया है?" शीतल ने धीरे से कहा। "मैंने कुछ नहीं किया, बस शतरंज का पक्ष बदल दिया।" रूह ने कहा तो शीतल के चेहरे पर मुस्कान आ गई। "तुम जैसी दुष्ट इंसान मैंने आज तक नहीं देखी।" तारा ने कहा तो रूह ने उसे घूरा। तारा तुरंत गायब हो गई। "यामिनी, यामिनी, तुम ठीक तो हो?" विराट ने यामिनी को कंधे से पकड़कर कहा जो झूल रही थी। अभिनव भी आकर अपनी मंडली के पास खड़ा हो गया। "वि... विराट, तुम यहाँ? ओह माय..." इससे पहले कि यामिनी कुछ आगे बोलती, विराट ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। उसे डर था कहीं यामिनी रूह के सामने उन दोनों के रिश्ते की सच्चाई न बयाँ कर दे। "छोड़ो मुझे! अरे तुम, राजवीर! तुम भी ना जाने किस बहन जी से शा... शादी करने चले हो! मैं नहीं दिखती क्या तुम्हें? अरे... अरे वो तो... मेरे... मेरे सामने कुछ... कुछ... कुछ भी तो नहीं।" यामिनी ने राजवीर को देखते हुए कहा। "यामिनी, सब देख रहे हैं! ये क्या बोल रही हो?" विराट ने गुस्से से कहा। रूह यही तो चाहती थी, विराट और यामिनी के बीच दरार। "सब देख रहे हैं? कौन देख रहा है? कोई... कोई भी तो नहीं देख रहा! यहाँ तो बस मैं और तुम हो! अरे ये बूढ़ा कहाँ से आ गया? इस... इस कमबख्त की वजह से ही उस बहन जी की झोली में सीधे राजवीर जैसा... जैसा जेम आ गिरा... हिची..." यामिनी ने रघुबीर जिंदल को देखकर कहा। इसे सुनकर सभी के चेहरे पर गुस्सा आ गया। रूह और शीतल की तो आँखें ही बड़ी हो गईं। वहीं माया तो कब का पार्टी के बाहर निकल चुकी थी। "सिक्योरिटी, इसे बाहर ले जाओ।" राजवीर ने गुस्से से कहा। राजवीर के बोलते ही तुरंत गार्ड आ गए और यामिनी को उठाकर ले जाने लगे। "अरे रे रे! तुम मुझे खुद से दूर कैसे कर सकते हो? मैं खूबसूरत हूँ..." यामिनी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा। यामिनी के पीछे विराट भी गया। राजवीर अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ गया; उसे अब इस तमाशे में कोई इंटरेस्ट नहीं था। "माफ़ी चाहती हूँ। मैं जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह से आप सब अपना मन खराब ना करें और इस फ़ंक्शन की अच्छी यादों के साथ अलविदा लें।" रूह ने स्टेज पर आकर हाथ जोड़कर कहा। सभी मेहमान चले गए। मेहमानों के जाने के बाद दादा जी, विनिल, साहिल, अभिनव और कुणाल स्टडी रूम की ओर बढ़ गए। "तू अब जा। मैं तुझे मैसेज करती हूँ बाद में।" रूह ने शीतल से कहा। "ठीक है, लेकिन तू अपना ख्याल रखना। और क्या तू आज रात यहीं रुकने वाली है?" शीतल ने जाने से पहले कहा। "पता नहीं, बाद में पता चलेगा। अभी तू जा यार, मैं पहले ही इतनी परेशान हूँ, तेरे सवाल मुझे और परेशान कर रहे हैं।" रूह नहीं चाहती थी दादा जी इंसल्ट हों, लेकिन अब हो गया तो ना जाने क्या होगा। "ठीक है, ठीक है, जाती हूँ मैं, बाय।" रूह से गले लगकर शीतल ने कहा और वहाँ से चली गई। रूह धीरे-धीरे स्टडी रूम में पहुँची। "दादा जी, अब सुनने को रह क्या गया है? हम ऐसे घर में शादी करेंगे? इट्स रिडिकुलस।" राजवीर ने गुस्से से कहा। "देखो बेटा, इसमें रूह की क्या गलती? यामिनी और रूह में ज़मीन और आसमान का फ़र्क है, जो तुम धीरे-धीरे समझ जाओगे।" रघुबीर जिंदल ने अपने पोते को समझाते हुए कहा। "दादा जी, मुझे समझ नहीं आ रहा आपको उस लड़की में क्या दिख रहा है? मैंने आपके ख़ातिर मोना से दूरियाँ बना लीं, लेकिन अब ये सब देखकर मुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो रहा है। रूह की माँ के किए एक एहसान के बदले हम अपना सब कुछ नहीं छोड़ सकते।" राजवीर ने गुस्से से चिल्लाकर कहा। ये सारी बातें रूह सुन रही थी। "भाई, ये सही नहीं कर रहे भाभी के साथ।" विनिल ने कहा तो साहिल ने भी हाँ में गर्दन हिलाई। "क्या मैंने राजवीर को चुनने में कोई जल्दबाज़ी कर दी?" रूह की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपनी और राजवीर की किस्मत याद आ गई। पहली ज़िंदगी में कुणाल ने उसे ठुकराया था, अब इस ज़िंदगी में आकर भी उसे कुछ बदला हुआ नज़र नहीं आ रहा था। इस बार राजवीर उसे ठुकरा रहा था। मोना के बारे में रूह ने सुना था अपनी पहली ज़िंदगी में, लेकिन उसे लगा अफ़वाह होगी, और उसे कोई इंटरेस्ट भी नहीं था राजवीर की लव लाइफ़ को जानने में, इसलिए उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया। "त्रुटि तो तुमसे हुई है रूह, लेकिन अब भी वक़्त है सुधार का। तुम्हें धरती पर बस अपने प्रेम को खोजने नहीं, और भी कई कर्मों का प्रदान हेतु भेजा गया है। अपने इस द्वितीय अवसर को यूँ ही व्यर्थ मत करो, अपनी पहचान ढूँढो और अपने अस्तित्व पर ध्यान दो।" ये आवाज़ रूह के कानों में पड़ी। ये तारा थी जो वापस से अपने मूल रूप में आ चुकी थी, एक समझदार परी जो रास्ता दिखा रही थी। "हाँ, सही कहा।" रूह ने अपने आँसू पोछकर कहा। तभी उसके दिमाग में एक बात बिजली की तरह दौड़ी: "रूह की माँ का एहसान।" ये बात रूह के लिए अजीब के साथ एक रोशनी की किरण की तरह थी। "राजवीर, अब तुम हद पार कर रहे हो। तुम्हारी सगाई हो चुकी है, अब कोई भी गलत फ़ैसला लेना अच्छा नहीं होगा।" दादा जी ने गुस्से से कहा। "तुम्हें इस बारे में ठीक से सोचना चाहिए।" कुणाल ने कहा। "मैंने अच्छे से सोच लिया है, कुणाल।" राजवीर की आँखों में गुस्सा था अपने दादा जी के अपमान को देख। "हम कुछ बोलना चाहते हैं, दादा जी।" रूह की आवाज़ सुनकर सभी एक पल के लिए थोड़ा झिझक से गए। ना जाने अब क्या मोड़ लेगी रूह की ज़िंदगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ... जय महाकाल... अपना रिव्यू देना ना भूलें!

  • 5. Love with my brother in-law - Chapter 5

    Words: 1704

    Estimated Reading Time: 11 min

    अब तक हमने देखा… … … राजवीर ने अपने मन की सारी भड़ास निकाल ली थी। वहीं, स्टडी रूम में रूह को देख सभी हैरान हो गए थे कि कहीं रूह ने राजवीर की बात न सुन ली हो। अब आगे… … … रूह स्टडी रूम के दरवाज़े पर खड़ी थी; सबकी नज़र उस पर ही थी। "अरे आओ ना बेटा, अंदर आओ, बताओ क्या बात है?" दादा जी ने रूह से बड़े ही प्यार से कहा। "दादा जी, अगर मिस्टर राजवीर को मोना जी से शादी करनी है, तो मैं आपसे रिक्वेस्ट करूंगी कि आप उन्हें फ़ोर्स न करें, क्योंकि यह फ़ैसला उनके साथ-साथ मेरी भी ज़िंदगी खराब कर देगा। और एक बात, मैंने सुना आप मेरी माँ के बारे में बात कर रहे थे। मैं जानती हूँ रीना बंसल मेरी माँ नहीं है, तो आप मुझ पर एक एहसान कर दीजिए, मुझे मेरी माँ के बारे में सब कुछ जानना है, जो भी आप जानते हैं, वो सब कुछ। यकीन मानिए, मुझे बस यही चाहिए।" रूह ने बिना राजवीर की ओर देखे कहा। उसे लगा था राजवीर उसकी नई उम्मीद है, लेकिन दोस्तों, अक्सर जो दिखता है वैसा होता नहीं, और जो होता है वो दिखता नहीं। "नहीं-नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है। ज़रूर तुम्हें कोई गलतफ़हमी हो रही है। राजवीर और मोना के बीच में बस दोस्ती थी, और कुछ नहीं।" दादा जी ने पूरी कोशिश की बात को संभालने की, लेकिन अब कोई फ़ायदा नहीं था। "हाँ, भाभी, ज़रूर कुछ गलत सुना होगा आपने।" विनिल नहीं चाहता था रूह की जगह वो मोना ले, इसलिए उसने भी जल्दी से दादा जी का साथ दिया। "मुझे मिस्टर राजवीर या उनके अफ़ेयर के बारे में जानने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मैं बस इतना चाहती हूँ दादा जी कि आप मुझे मेरी माँ के बारे में बताएँ। मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच है, उससे मुझे रूबरू करवाएँ।" रूह ने कहा तो राजवीर ने अपनी आँखें छोटी करके उसे घूरा। ["इस लड़की को मुझ में इंटरेस्ट नहीं है, तो मुझे किस क्यों किया? आखिर इसको तो मैं छोड़ूँगा नहीं। आई विल शो यू, मिस रूह।"] राजवीर ने मन ही मन गुस्सा करते हुए कहा। उसके मन की बात सच में भगवान भी समझ नहीं पा रहे होंगे। एक तो उसे मोना से रिश्ता रखना है, ऊपर से उसे यह भी पसंद नहीं कि रूह को उसमें इंटरेस्ट नहीं है। सच में, औरत ही नहीं, आदमी को समझना भी बहुत मुश्किल है। औरतें तो यूँ ही बदनाम हैं। "चलो, बताता हूँ मैं तुम्हें तुम्हारी माँ के बारे में। उसका नाम था 'आरोही शेखावत'। एक दिन की बात है, मैं अपने दोस्तों के साथ मनाली गया था। ठंड तो बहुत थी। मैं रात को अकेले वॉक करने निकल पड़ा, तभी अचानक मेरे दिल में जोर से दर्द होने लगा और मैं वहीं ज़मीन पर गिर गया। सड़क सुनसान थी, कोई था नहीं। मुझे लगा मैं तो मर ही जाऊँगा, तभी एक बाइक निकली वहाँ से। मैंने देखा एक लगभग 22 साल की एक लड़की बाइक से उतरी, उसके पीछे एक नन्ही सी बच्ची बंधी हुई थी। वो लड़की और कोई नहीं, आरोही थी, तुम्हारी माँ, और वो बच्ची तुम थीं, रूह। आरोही मेरे पास आई और उसने मेरी जाँच की और ना जाने ऐसा क्या किया कि मेरा दर्द बस कुछ ही समय में गया। मैंने उसे शुक्रिया कहा। ना जाने वो ना होती तो क्या होता? उसके बाद मैंने उससे रिक्वेस्ट की अपने साथ चलने की। वो भी मुझे सही-सलामत छोड़ना चाहती थी, इसलिए वो फ़ार्महाउस तक छोड़ने आई मुझे। उसके बाद कभी-कभी हमारी बातचीत हो जाती, लेकिन एक साल बाद अचानक आरोही मुझे दिल्ली में मेरे घर के बाहर मिली। उसकी हालत बहुत खराब थी, खून से लथपथ थी वो। उसने अपने आखिरी लफ़्ज़ों में बस इतना कहा, 'मेरी बेटी रूह को ढूँढ कर अपनी बहू बना लेना, अंकल।' उसकी आखिरी साँसों में भी उसने बस तुम्हारा नाम लिया। आरोही राजवीर को जानती थी, शायद उसे राजवीर बचपन से ही तुम्हारे लिए पसंद आ गया था। मैंने तुम्हें ठीक 20 साल बाद ढूँढा और यह शादी कराकर अपना फ़र्ज़ पूरा करने की कोशिश की, बस।" दादा जी ने अपनी बात रखी। रूह इमोशनल हो चुकी थी अपनी माँ के बारे में जानकर, लेकिन अब भी कई पहेलियाँ बाकी थीं। आखिर उसके पिता ने कभी उसे सच्चाई क्यों नहीं बताई? क्या उसका हक नहीं था अपनी माँ के बारे में जानने का? ना जाने उसकी माँ उसे ऐसे छोड़कर क्यों चली गई? "ये सब बताने के लिए शुक्रिया दादा जी, लेकिन इस शादी की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे लिए इतना ही काफ़ी है कि मुझे मेरी माँ का नाम कम से कम पता चल गया है आपसे। मैं अब चलती हूँ।" रूह ने कहा, और जैसे ही जाने के लिए आगे बढ़ी, दादा जी की आवाज़ गूँजी। "तुम्हारी माँ के नाम मेरी कंपनी में 24 परसेंट शेयर्स हैं और उसकी प्रॉपर्टी भी है जो उसने तुम्हारे लिए छोड़ी है। मुझे यकीन है तुम उसका पता खुद लगा लोगी बेटा, लेकिन एक बात कहूँगा, यह रिश्ता तुम्हारी माँ की मर्ज़ी से हुआ था। तुम दोनों कम से कम एक-दूसरे को एक महीने का वक्त दो। मुझे यकीन है एक-दूसरे को जानने के बाद तुम दोनों इस शादी के लिए श्योर हो जाओगे। कोई भी फ़ैसला जल्दबाज़ी में मत लेना, बाकी तुम लोगों की मर्ज़ी।" दादा जी ने कहा। "ठीक है दादा जी, अगर मिस्टर राजवीर इस बात से अग्री करते हैं तो मुझे भी कोई प्रॉब्लम नहीं है। अगर वो हाँ बोलते हैं तो एक महीने तक मैं इसी घर में रहूँगी और ऑफ़िस में जाऊँगी। अपना जवाब जल्दी ही सोच लीजिएगा।" रूह ने कहा और वहाँ से चली गई; रूह ने जैसे अपनी शर्तें बयाँ कर दी थीं। "कूल डूड, ये भाभी आज कुछ ज़्यादा ही बदली हुई नहीं लग रही।" विनिल ने अपने दादा के कंधे पर कोहनी टिकाते हुए कहा। "हाँ, लग तो रही है जैसे आज राजवीर का फ़ीमेल वर्ज़न आ गया हो।" कुणाल ने विनिल के कंधे पर कोहनी टिकाते हुए कहा। "हाहाहा… … … ये बहुत फ़नी था हाँ।" साहिल ने जोर से ठहाका लगाया, तो राजवीर उसे घूरने लगा, लेकिन उस बेचारे का ध्यान ही नहीं था राजवीर की गुस्से भरी आँखों पर। अभिनव ने साहिल के पैर पर पैर रखा, तब जाकर साहिल की हँसी बन्द हुई। "आज लग रहा है कि मैंने जो फ़ैसला किया है राजवीर के लिए, वो सही है।" दादा जी ने मुस्कुरा कर विनिल को देखते हुए कहा। रूह ने जैसे बड़ी ही चालाकी से दादा जी के सामने राजवीर पर सारा दोष डाल दिया था, वो सही था। "ओह फ़ॉरस कूल डूड! आप आखिर दादा जी किसके हो? द विनिल जिंदल के।" विनिल ने अपनी वाहवाही शुरू कर दी, तभी दादा जी ने अपनी लाठी उठाई और दे मारी विनिल के बट पर; सभी हँसने लगे। "दादू, ये क्या कर रहे हो? आह! लग रहा है यार।" विनिल ने कहा और तुरंत स्टडी रूम से बाहर निकल गया। "चलो अब सब राजवीर को अकेले छोड़ दो, आखिर इसे सोचना भी तो है।" दादा जी ने कहा और वो भी निकल गए बाहर। उनके पीछे साहिल और अभिनव भी निकल लिए। "सोच-समझकर फ़ैसला लेना, मुझे तुम पर भरोसा है।" कुणाल ने राजवीर के कंधे पर हाथ रखकर कहा और वहाँ से निकल गया। अब स्टडी की जगह हॉल में मंडली जम गई। कुणाल, अभिनव, विनिल, साहिल और दादा जी सब सोफ़े पर आकर बैठ गए। सबको राजवीर के आने का इंतज़ार था, तभी किचन से रूह बाहर आई और सबको घूरने लगी। "क्या हुआ भाभी? ऐसे क्यों देख रही हो आप मुझे? आई नो, मैं बहुत हैंडसम हूँ, लेकिन आप मेरी भाभी हो यार।" विनिल की बात सुनकर सभी उसे घूरने लगे; क्या पागल था यह इंसान! "बहुत अच्छा जोक था दे… विनिल, लेकिन हँसी नहीं आई। वैसे आप सब यहाँ क्यों बैठे हैं? किसी को भूख नहीं लगी क्या? और दादा जी, आपको तो टाइम से डिनर करना चाहिए।" रूह ने सबसे कहा। "भाभी, आप मुझे देवर ही बोलो, अच्छा लगता है सुनने में। [विनिल ने शर्माकर कहा] कूल डूड, भाभी ने इनडायरेक्टली आपको ओल्ड बोल दिया। [दादा जी के कान में धीरे से कहा।]" विनिल के नखरे बेहद ख़तरनाक थे पूरे घर में; उसका मज़ाक कभी-कभी भारी पड़ जाता। "बेटा, बस राजवीर को आने दो, फिर सब साथ में खाते हैं। वैसे भी किसी ने पार्टी में कुछ खाया है तो भूख तो लगी ही है सबको।" दादा जी ने हँसते हुए कहा। तभी राजवीर भी कमरे से बाहर आ गया। "अरे आओ, बस तुम्हारा ही इंतज़ार था, जापान।" कुणाल ने खड़े होते हुए कहा। "ये जापान क्या है?" रूह ने कहा। "अरे भाभी, कुणाल भाई का मतलब है जहाँपन। दरअसल, इनकी अगली फ़िल्म में इन्हें उर्दू बोलना है, तो बस इसकी ही प्रैक्टिस कर रहे हैं।" विनिल ने कहा, तब जाकर रूह के पल्ले बात आई। "मैं एक महीने तक इस लड़की के साथ रहने के लिए तैयार हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है, जैसे इसने रखी, मैं भी रखूँगा।" राजवीर ने कहा तो रूह की आँखें छोटी हो गईं। ["इसकी इतनी हिम्मत कि मेरे सामने शर्त रखे? चिटर कहीं का! एक तो खुद किसी और की बीवी होते हुए दूसरी लड़कियों के बारे में सोच रहा है खुलकर। इसे तो मैं बताती हूँ मैं क्या चीज़ हूँ।"] रूह ने मन ही मन गुस्से से राजवीर को देखते हुए कहा। "इस प्राणी को बाद में बताना कि आखिर तुम कौन सी वस्तु हो, परन्तु सर्वप्रथम तुम स्वयं तो सुनिश्चित कर लो कि तुम कौन सी वस्तु हो; तत्पश्चात् सर्वप्रथम संधि तुमने ही रखी थी।" तारा ने उड़ते हुए कहा, जो आराम से सब कुछ देख रही थी, जैसे कोई मूवी चल रही हो। ["ये तुम्हारी वैरियिंग हिल क्यों जाती है लैंग्वेज में? मैं तो रख सकती हूँ, लेकिन वो कैसे रख सकता है।"] रूह ने मन ही मन तारा से कहा। तभी उसके कानों में दादा जी की आवाज़ गूँजी। "ये तो ऐसा हो गया जैसे शादी-विवाह में शर्तें लागू।" साहिल ने विनिल के कान में कहा तो विनिल को हँसी आ गई, लेकिन उसने अपने मुँह पर हाथ रख दिया। "बताओ, क्या बोलना चाहते हो तुम?" दादा जी ने राजवीर से कहा। अब सबका ध्यान राजवीर पर था और राजवीर का रूह पर। क्या होगी राजवीर की शर्त? क्या राजवीर और रूह की कहानी आगे बढ़ेगी या मोना नाम का तूफ़ान सब उड़ा ले जाएगा इनके रिश्ते की डोर? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… … … जय महाकाल… … … कमेंट और रिव्यू प्लीज, अगर पसंद आ रही है कहानी तो ज़रूर दें… … … इस बड़े से चैप्टर के लिए थैंक्स कहना ना भूलें… … …

  • 6. Love with my brother in-law - Chapter 6

    Words: 1647

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैलो एवरीवन, आपके सपोर्ट के लिए शुक्रिया, लेकिन प्लीज़ आप लोग रिव्यू भी ज़रूर दें। अब तक हमने देखा… … । राजवीर की शर्तों का सब इंतज़ार कर रहे थे। अब आगे… …। रूह और बाकी सब की निगाहें भी बस राजवीर पर थीं। "मैं चाहता हूँ कि सबको यह लगे कि मैं और रूह अलग हो चुके हैं; मतलब मैं नहीं चाहता लोग इसे मेरी होने वाली पत्नी समझें। अगर यह मंज़ूर है, तो मैं इस रिश्ते को एक महीने का वक़्त देने के लिए तैयार हूँ।" राजवीर ने कहा तो सब उसे घूरने लगे। भला यह कौन सी शर्त हुई? तभी अभिनव वहाँ से चला गया; शायद उसे इन बकवास बातों से भी ज़्यादा ज़रूरी काम था। "भाई, क्या बकवास है यह? ऐसे कैसे बोल सकते हो? हम आज ही सगाई हुई और आज ही ब्रेकअप? WTF…" विनिल ने गुस्से से कहा। "मंज़ूर है तो ठीक, वरना मैं ऐसे ही ठीक हूँ।" राजवीर ने कहा। "बेटा, तुम्हारा क्या कहना है?" दादा जी ने रूह से कहा, जो कब से अपने फ़ोन में लगी हुई थी। इससे पहले कि रूह कुछ भी बोलती, सबके कानों में रीना बंसल के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ गूँजी। "अहाहा… … … … ना जाने किसकी नज़र लग गई मेरी फ़ूल सी बेटी को। रघुबीर जी, माफ़ कर दीजिये, ना जाने ऐसी गलती क्यों हो गई मेरी मासूम सी बच्ची से। माफ़ कर दीजिये।" रीना बंसल ने रोते हुए कहा। उसके पीछे वनराज बंसल, आयुष बंसल, यामिनी और विराट आ रहे थे, और उन सब के पीछे अभिनव आ रहा था। शायद वह इन्हें ही लेने गया था। लग रहा था जैसे यामिनी का नशा अच्छी खासी मार के साथ उतर चुका है। "शांत हो जाइए, मिसेज़ बंसल। हमें यामिनी से कोई शिकायत नहीं है; बस रूह और राजवीर की शादी तक हमें यह लड़की दिखनी नहीं चाहिए।" दादा जी ने गुस्से से कहा। "लेकिन दादा जी, इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी। मुझे जूस दीदी ने दिया था, वह भी जानबूझकर।" यामिनी ने रोते हुए कहा। अभी उसे देखकर किसी को भी उस पर दया आ जाती। रूह को लगा नहीं था यामिनी ऐसे सीधे-सीधे उसका नाम लेगी। "यह क्या बोल रही हो तुम, यामिनी? लगता है अभी तक तुम्हारा नशा उतरा नहीं है।" रूह ने अपनी आँखें छोटी कीं और यामिनी के करीब आकर खड़ी हो गई। "यह कितनी गिरी हुई है।" विनिल ने साहिल के कान में यामिनी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। "हाँ, है तो सही।" साहिल ने भी हाँ में गर्दन हिलाई। "दीदी, आप क्यों झूठ बोल रही हो? आप ही थीं वो जिसने मुझे जूस दिया था।" यामिनी ने रोते हुए कहा। वह अपनी इमेज राजवीर के सामने खराब करना नहीं चाहती थी; ऊपर से यहाँ विनिल और कुणाल जैसे स्टार्स भी तो मौजूद थे। "मैं झूठ बोल रही हूँ? क्या सबूत है तुम्हारे पास कि मैंने यह सब किया है? तुम्हें शर्म नहीं आती अपनी बड़ी बहन से इस तरह बात करते हुए? क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें यही सिखाया है?" रूह ने कहा। "यह क्या बकवास कर रही हो तुम? उसकी माँ तुम्हारी भी तो माँ है। ऐसे बात करते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए।" वनराज बंसल ने कहा। "अब नाटक करने की ज़रूरत नहीं है, पापा। मुझे पता चल चुका है यह मेरी माँ नहीं है। आपने एक बार भी मुझे बताने तक की कोशिश नहीं की। क्या मेरा हक़ नहीं था अपनी माँ के बारे में जानने का? मैं बचपन से सोचती आई हूँ कि रीना बंसल जी मुझे प्यार क्यों नहीं करती, जबकि यामिनी को तो वह अपने सीने से लगाकर रखती है। लेकिन मैं बेवकूफ़; मुझे कहाँ पता था यह तो मेरी माँ ही नहीं है, तो मुझे प्यार क्यों ही देगी?" रूह के बोलने पर वनराज बंसल एकदम खामोश हो गए; शायद अब उनके पास कोई शब्द नहीं थे। "हाँ, तो अब सब समझ आ रहा है मुझे। इसलिए तुमने मेरी बेटी से बदला लिया। अब मेरी सब साफ़-साफ़ समझ आ रहा था।" रीना बंसल ने कहा। "अरे रीना बंसल जी, आप तो अचानक ललिता पवार के रौद्र रूप में आ गईं। आपका सती-सावित्री रीना रॉय वाला स्वरूप कहाँ गया?" रूह ने रीना बंसल की ओर देखते हुए कहा। "हहाहा… … …" विनिल की हँसी की गूँज सबके कानों में गूँजी। जैसे ही सबने विनिल की ओर देखा, वह अजीब तरीके से सोफ़े पर बैठ गया और अपना मुँह पिल्लो से कवर कर लिया। उसे रूह की बात पर बड़ी हँसी आ रही थी। "रूह, शांत हो जाओ। चलो घर चलकर बात करते हैं। अगर तुमसे कोई गलती हुई भी है, तो कोई बात नहीं।" विराट ने कहा। उसकी बात सुनकर रूह को खुद पर गुस्सा आ रहा था। कैसे इंसान को चुना था उसने? सच में वह पागल ही थी। लेकिन उसकी बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। "सही कहा। अगर मेरी बेटी के साथ कोई कुछ गलत करे, तो मैं माँ काली का भी रूप ले सकती हूँ, चाहे वह मेरी दूसरी बेटी ही क्यों ना हो।" अपना मज़ाक बनते देख रीना बंसल ने एक अलग ममता का रूप दिखाया। [“यह अपना नाटक कब बंद करेगी?”] साहिल ने मन ही मन कहा। "दीदी, हमारे पास गवाह भी है। यह वही वेटर है जिसके पास से जूस लेकर आपने मुझे दिया था; उसमें कुछ मिलाकर।" यामिनी की बात सुनकर सब सीरियस हो गए; यहाँ तक कि साहिल और विनिल भी। सबकी निगाहें अब रूह पर टिक गईं। रूह के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। [“अब क्या करोगी? तुम्हारा फँसने का प्लान एकदम तैयार है, रूह दीदी।”] यामिनी ने अपनी मुस्कान छिपाते हुए मन ही मन कहा। "अगर मिस रूह ने यह किया है, तो यह शादी अभी कैंसल।" राजवीर को तो बस मौक़ा चाहिए था। रूह ने एक तेज नज़र राजवीर पर डाली, फिर अभिनव को देखा। "यह आप कैसे बात कर रहे हो, जीजू? मेरी दीदी ऐसा कुछ नहीं कर सकती। मुझे यकीन है सबको गलतफ़हमी हुई है। चलो दी, हम घर चलते हैं, और दीदी आप बकवास मत करना। ऐसी आप मेरी ही दीदी हो समझी आप।" आयुष ने रूह का हाथ पकड़ते हुए कहा। उसकी आँखें नम थीं। रूह ने आयुष को देखा, फिर अपने हाथ को जिस तरह आयुष ने बड़े ही विश्वास के साथ थाम रखा था, उसे देखा। "आयु, यकीन रखो, बस कुछ पल में तुम्हारी दीदी सब ठीक कर देगी।" रूह ने आयुष के गाल पर हाथ रखकर बड़े ही प्यार से कहा। आयुष भले रूह का सगा भाई नहीं था, लेकिन उससे कम भी नहीं था। आयुष को बहुत बड़ा धक्का लगा था यह जानकर कि रूह उसकी सगी बहन नहीं है, लेकिन दोनों में प्यार सगे भाई-बहन से भी बढ़कर था। रूह के लिए आयुष कोई 18 साल का लड़का नहीं था; बस वह बच्चा था जिसका उसने बचपन से ही बहुत ख्याल रखा था। "अभिनव, ज़रा वह CCTV की फ़ुटेज लाना प्लीज़।" रूह की ईविल मुस्कान से अब डरने की बारी थी यामिनी की। [“कोशिश सभी की है, लेकिन हराना आसान नहीं। मैं वह हूँ जिससे जीतने का कोई मार्ग नहीं।”] रूह ने मन ही मन खुद से कहा। अभिनव ने कुछ ही सेकंड में CCTV फ़ुटेज की एक क्लिप सबको दिखाई, जो कि रूह ने उसे कही थी। जिसमें साफ़ नज़र आ रहा था कि रूह ने यामिनी का ही ग्लास उसे वापस दिया था। रूह इस घर में तीन महीने तक रुकी थी; उसे इस घर के हर CCTV और उसके एंगल के बारे में पता था, तो गलती की तो कोई गुंजाइश ही नहीं बचती। "अब बोलिए, रीना बंसल जी। फिर से वही डायलॉग तो ज़रा दोहराइए। वह क्या कहा था आपने? ‘मैं माँ काली बन सकती हूँ अगर कोई मेरी बेटी के साथ गलत करे, तो फिर चाहे वह मेरी दूसरी बेटी क्यों ना हो,’ राइट?" रूह ने कहा। सभी के एक्सप्रेशन अलग-अलग थे। "हाँ हाँ, राइट भाभी।" विनिल ने खुश होते हुए कहा। "तो अब क्या सज़ा देगी आप माँ काली बनकर अपनी इस नालायक बेटी को? खैर, मुझे बस इतना कहना है, मिस्टर बंसल, कि मेरी माँ की जो भी प्रॉपर्टी है, जल्द से जल्द मुझे उसके सारे पेपर्स चाहिए। आई बात समझ?" रूह ने कहा तो वनराज बंसल की पूरी फैमिली चोंक गई, सिवाय आयुष बंसल के। उसके तो सब समझ से परे हो रहा था। "चलिए, मिस्टर बंसल। अब आप अपने घर जाकर अपना पारिवारिक मामला सुलझाइए।" दादा जी को आख़िरकार बोलना पड़ा। "जी।" अब वैसे भी वनराज बंसल के पास कुछ बोलने के लिए था भी कहाँ। "दीदी, आप नहीं चलोगी क्या?" आयुष ने रूह की ओर देखते हुए कहा। "मैं कल आती हूँ, शाम को। अभी मुझे काम है। तू अपना ख्याल रखना, ओके।" रूह ने बड़े ही प्यार से कहा। आयुष निराश तो था, लेकिन वह अपनी बहन के लिए खुश भी था। बंसल हाउस में, "कितनी बार कहा था तुमसे कि अपनी बेटी को संभालकर रखो? देखा अब इसकी आज़ादी का नतीजा? जिंदल परिवार के सामने हमारी इज़्ज़त कटवा दी।" वनराज बंसल ने गुस्से से कहा। "इसमें यामिनी का कोई दोष नहीं। यह सब उस चालक लोमड़ी ने किया है। ना जाने उस रूह में इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई।" रीना बंसल की आँखों में अब भी रूह का चेहरा घूम रहा था। "उस लड़की के पर निकाल आएँ हैं। कल आना; दो उसे वहाँ तो मैं कुछ नहीं बोल पाया, लेकिन कल उसका हिसाब अच्छे से करूँगा।" वनराज की आँखों में घृणा थी; शायद रूह पर कोई मुसीबत आने वाली है। जिंदल विला, "तो अब बताओ बेटा, तुम्हारा क्या ख्याल है राजवीर की शर्त के बारे में?" दादा जी ने सबके जाने के बाद यह सवाल किया। "ओह हाँ, मैं तो भूल ही गई थी शर्त के बारे में। तो मेरा यह ख्याल है कि…" रूह ने इतना कहा और अपने फ़ोन की स्क्रीन सबके सामने कर दी; जिसे देख सब हैरान थे। "What the f*…" राजवीर के मुँह से ज़ोर से बस यह कुछ शब्द निकले। आख़िर ऐसा भी क्या था रूह के फ़ोन की स्क्रीन पर? क्या करेगा अब वनराज बंसल? कहीं रूह की जान को कोई खतरा तो नहीं? राजवीर और रूह सही हैं एक-दूसरे के लिए? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… …।

  • 7. Love with my brother in-law - Chapter 7

    Words: 1310

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब तक हमने देखा… … … वनराज बंसल के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। रूह को लेकर वही राजवीर ने शर्त रखी थी, जिस पर रूह ने अपना फ़ोन दिखा दिया था। फ़ोन की स्क्रीन को देखकर सभी हैरान थे, ख़ासकर राजवीर जिंदल। अब देखते हैं आगे क्या होता है। अब आगे… … … रूह का फ़ोन देख दादा जी भी हैरान थे। "भाभी, कमाल हो आप!" विनिल ने हैरानी से कहा। रूह के हाथ में जो फ़ोन था, उसकी स्क्रीन पर लिखा था: "हैलो वैशाली, कल MTV पर बस एक ही न्यूज़ आनी चाहिए। राजवीर जिंदल के बहुत सारे अफ़ेयर की वजह से रूह ने तोड़ दी सगाई। दादा जी की दरियादिली से रूह करेगी ऑफ़िस जॉइन, साथ ही दिखा देगी राजवीर को कि वो भी किसी से कम नहीं।" यह मेसेज देखकर राजवीर को गुस्सा आया और बाकी सबको हैरानी के साथ हँसी भी बहुत आ रही थी। "तुम ऐसा नहीं कर सकती, समझी? दादा जी देखिए, ये मेरी रेपुटेशन बर्बाद करना चाहती है।" राजवीर ने गुस्से से कहा। "तो क्या मैं अपनी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाऊँ, वो भी खुद अपने हाथों से? दादा जी, आपको तो पता भी है, लड़कियों का रिश्ता टूटने पर सभी दोष उसे ही देते हैं। तो मेरी सगाई की तो पूरी दुनिया में चर्चा है। अगर यह रिश्ता टूटने की बात सबके सामने आई, तो लोग क्या-क्या बातें बनाएँगे मेरे बारे में? यहाँ तक कि मेरा घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में मुझे यही सही तरीका लगा।" रूह की बात सभी को सही लगी। "हाँ, सही कहा बेटा, और राजवीर तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा, तो निश्चिंत रहो।" दादा जी ने कहा। "ठीक है। अगर इस न्यूज़ का कोई भी गलत असर मेरी कंपनी पर पड़ा, तो मैं यह बर्दाश्त नहीं करूँगा।" राजवीर ने गुस्से से कहा। "नहीं होगा, क्योंकि कल से मैं भी ऑफ़िस जाऊँगी, आपके साथ। है ना दादा जी?" रूह ने मुस्कुराकर कहा। "हाँ हाँ, बिल्कुल। आप हमारे लिए शुभ हो बेटा।" दादा जी ने कहा। तो रूह ने एक तिरछी मुस्कान के साथ राजवीर की तरफ़ देखा। ["ना जाने क्यों इसकी मुस्कान शुभ नहीं, बल्कि जन्मजात अशुभ लग रही है। WTF! ये मैं क्या सोच रहा हूँ? लग रहा है जैसे मैं पागल हो जाऊँगा।"] राजवीर ने मन ही मन कहा। "तो भाभी, किस डिपार्टमेंट में जाएँगी?" विनिल ने खुशी से कहा। "अभी इन्होंने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं किया, तो ये कैसे ऑफ़िस जॉइन कर सकती है?" अभिनव ने कहा। "वाह! ग्रेट! मैं तो भूल ही गया था। दादा जी, इस लड़की ने अभी तक कॉलेज भी पूरा नहीं किया। तो कोई भी डिपार्टमेंट इसके लिए फ़िट नहीं है।" राजवीर अभिनव की बात से बेहद खुश हो गया था। "हाँ, लेकिन मैं शेयरहोल्डर हूँ, ये तो याद है ना आपको, मिस्टर राजवीर? या ये भी भूल गए आप? वैसे, मैं बिज़नेस के बारे में सब कुछ जानती हूँ। कोई भी डिपार्टमेंट हो, मुझे प्रॉब्लम नहीं होगी।" रूह ने कहा, तो राजवीर ने उसे घूरना शुरू कर दिया। "रूह ऑफ़िस जाकर खुद देख लेगी कि उसे क्या काम करना है।" दादा जी ने जैसे फ़ैसला सुनाया। "चलो, अब सब खाना खाते हैं।" रूह ने कहा और डाइनिंग की ओर चली गई। "हाँ भाई, मुझे भी बहुत भूख लगी है।" विनिल ने कहा और वह भी रूह के पीछे चला गया। सबने खाना खाया और कुणाल, साहिल अपने घर चले गए। राजवीर, अभिनव अपने-अपने कमरे में चले गए। अब हॉल में बचे थे रूह, दादा जी और विनिल। "देखो रूह बेटा, मैं जानता हूँ कि मेरा पोता थोड़ा दिमाग से टेढ़ा है, लेकिन दिल का अच्छा है। तुम उसके बारे में कुछ भी गलत राय इतनी जल्दी मत बना लेना। वक़्त देना अपने और उसके रिश्ते को।" दादा जी ने कहा। "दादा जी, किसी का प्यार ज़बरदस्ती नहीं पाया जाता। अगर भाग्य में साथ लिखा है, तो चाहे कुछ भी हो, मिल जाएगा, वरना लाख कोशिशें भी विफल हो जाती हैं। अब आप आराम कीजिए, रात बहुत हो गई है।" रूह की बात सुन दादा जी ने स्नेह से उसके सर पर हाथ रखा और अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गए। "सौ प्रतिशत सत्य! रूह, प्रेम की जो व्याख्या तुमने कही, काबिल-ए-तारीफ़ है, अद्भुत।" तारा ने कहा। ["काश कोई इसे भूत बना देता।"] रूह ने मन ही मन तारा को देखकर कहा। शायद वह भूल चुकी थी कि तारा उसकी बात सुन सकती है। "हम सुन सकते हैं तुम्हें। कदाचित तुम्हें यह स्मरण नहीं।" तारा ने गुस्से से कहा, लेकिन रूह ने उस पर ध्यान नहीं दिया। "चलिए भाभी, सो जाइए। आपको कल ऑफ़िस भी तो जाना है।" विनिल ने जैसे ही कहा, रूह ने विनिल को पुकारा। "अरे रुको रुको! विनिल, दरअसल किसी से कहना नहीं, लेकिन मुझे ना बिज़नेस, क्या कंपनी के बारे में भी कुछ आता-जाता नहीं है। तो क्या तुम मुझे कुछ बेसिक चीज़ें बता सकते हो, एक कंपनी के बारे में?" रूह ने इधर-उधर देखते हुए विनिल से कहा। "हाहाहाहा… … … तो मतलब आप बस हवा में बाण छोड़ रही थीं।" विनिल ने हँसते हुए कहा। विनिल ने जैसे रूह की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। रूह ने विनिल को घूरा। "क्या तुम चाहते हो कि मैं दादा जी को तुम्हारे सिगरेट पीने वाली बात बताऊँ?" रूह को पता था विनिल का सीक्रेट। विनिल जब भी अपने दोस्तों के साथ बाहर जाता था, सिगरेट पीता था, जबकि दादा जी ने साफ़ मना किया था कि उनके बच्चे कभी शराब या सिगरेट जैसी वस्तु को हाथ भी ना लगाएँ। यह सब रूह को अगले जन्म में पता था, जिसका फ़ायदा वो अब उठाने वाली थी। "ये आपको कैसे पता?" विनिल की सारी हँसी पल भर में ग़ायब हो गई। "वो बाद में बताऊँगी। अभी चलो, बोलना शुरू करो।" रूह ने कहा। U.S.A. ASPEN CITY सात समुंदर पार, एक सुंदर सा बंगला था, जैसे शीश महल हो, बर्फ से बना। Aspen City, जो कि एक फ़ेमस हिल स्टेशन है U.S.A का, जहाँ हर मौसम का अंदाज़ ही अलग होता है। बंगला इतना बड़ा कि आराम से तीस से चालीस लोग रह सकें, लेकिन रहता था बस एक ही इंसान। जो मन से चंचल, तन से जैसे कामदेव। उसका ओरा ही इतना मज़बूत था कि अगर वो हँसे, तो लगे जैसे दुनिया हँस रही है; अगर क्रोध में हो, तो जैसे नदी भी आग बरसा रही है; रोए, तो जैसे… खैर, रोते हुए तो उसे किसी ने देखा ही नहीं आज तक, तो मैं कैसे बता सकती हूँ। "रामू काका, रामू काका।" उस लड़के ने अपने एकमात्र सर्वेंट को आवाज़ लगाई। "जी जी बाबा, सब तैयारी हो चुकी है। फ़्लाइट दो घंटे बाद की है।" रामू काका ने कहा। "रिश्ते भी बड़े अजीब बने हैं हमारे। कोई दूर होकर भी पास सा लगता है, कोई पास होकर भी दूर सा।" उस लड़के ने अपने फ़ोन की स्क्रीन को देखते हुए कहा। उसके खड़े होने पर उसकी आँखें काँच के झूमरों में दिख रही थीं, जो दीवार पर टंगे थे। वो भूरी आँखें, जिनमें आकर्षकता कूट-कूट कर भरी हुई थी। "बाबा, जब आपको पता है हमें ये आपकी गोल-गोल बातें समझ नहीं आतीं, तो आप ना जाने करते क्यों हैं ऐसी बातें?" रामू काका ने मुँह बनाते हुए कहा। "चलिए, जाने से पहले आपको एक सवाल देता हूँ। जवाब मुझे SMS कीजिएगा: 'मैं वो हूँ जो रोज़ तुम्हारे साथ होती हूँ, जिसे जानकर भी तुम अनजान रहते हो। मैं दिखती नहीं हूँ, पर महसूस करते हो। बताओ मैं हूँ कौन?' सोचकर ज़रूर बताना।" उस लड़के ने कहा और वहाँ से चला गया। रामू काका सर खुजाते हुए जाते हुए उस लड़के को देख रहे थे। "ये बाबा हर बार हमें यूँ ही फँसा देते हैं। ना जाने इसका जवाब मैं किससे पूछूँ?" रामू काका ने मुँह बनाया और अपने काम में वापस लग गए। आखिर कौन था ये लड़का? कल ऑफ़िस में ना जाने कौन सा तूफ़ान आएगा? रूह के लिए कौन सी नई मुसीबत इंतज़ार कर रही है? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे साथ… … … रिव्यू दे दो यार, प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़! रिक्वेस्ट कर-कर के थक गई हूँ… … … जय महाकाल… … …

  • 8. Love with my brother in-law - Chapter 8

    Words: 1484

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा… … … … रूह विनिल से ऑफिस के बारे में जानकारी ले रही थी, तो वहीं सात समंदर पार एक शख्स जो ना जाने कौन सी डोर से बंधा था। अब आगे… … … … रूह और विनिल हॉल के सोफ़े पर बैठे बातें कर रहे थे। रात के दो बज गए थे, लेकिन उनकी बातें खत्म नहीं हो रही थीं। "अरे भाभी, सब सिम्पल ही तो है। देखो, कंपनी दो तरीके की होती है—एक प्राइवेट, एक पब्लिक। प्राइवेट कंपनी के शेयर ज़्यादातर परिवार और दोस्तों में होते हैं, और पब्लिक में स्टॉक मार्केट के थ्रू लाखों लोगों के पास।" विनिल ने कहा। "हाँ हाँ, वो तो समझ गई। जैसे अंबानी प्राइवेट कंपनी है, तो उसकी फैमिली के पास 70 प्रतिशत शेयर हैं, और टाटा पब्लिक है, और उसके शेयर तो लाखों लोगों के पास हैं।" रूह ने उदाहरण देते हुए कहा। "Yeah right, but it's not so right. अंबानी की रिलायंस पब्लिक कंपनी ही है, उसके शेयर लाखों लोगों के पास हैं, लेकिन उसके Jio प्राइवेट है। ऐसे ही, कंपनी के वैल्यूएशन के हिसाब से उसके शेयर की वैल्यू होती है। जैसे अगर कंपनी की वैल्यू 10,000 रुपये है और अवेलेबल शेयर और कंपनी ने 100 स्टॉक इशू किए हैं, तो इसका डिवीज़न करके एक शेयर की वैल्यू होगी 100 रुपये। आई बात समझ?" विनिल ने कहा। "हाँ, समझ गई। कंपनी पर शेयरों का बड़ा प्रभाव होता है। मतलब, मेरे शेयर 24 प्रतिशत हैं कंपनी में, तो मैं भी ओनर हुई ना? वैसे, तुम्हारे कितने हैं?" रूह ने कहा। "10 प्रतिशत मेरे, 10 प्रतिशत भाई के।" विनिल ने मुँह बनाते हुए कहा। रूह को थोड़ी हैरानी हुई कि आखिर इन दोनों के पास इतने कम शेयर कैसे हो सकते हैं? ये दोनों तो वारिस हैं इस खानदान के। खैर, बड़े लोग, बड़ी बातें। "अच्छा, चलो आगे बताओ। कंपनी में क्या काम है जो मुझे करना चाहिए?" रूह ने कहा। "आप कुछ भी मत करना, भाभी। ये बेसिक चीज़ भी आपको नहीं पता, तो क्या ही करोगी? कंपनी में हमारे अलावा और भी शेयर होल्डर हैं। सब शेयर होल्डर कंपनी नहीं आते, इसलिए हर कंपनी में चुनाव के साथ बोर्ड मेंबर डिसाइड होते हैं। प्राइवेट कंपनी में लगभग ओनर की फैमिली और दोस्तों को वोट दिया जाता है, और कुछ-कुछ शेयरहोल्डर ऐसे होते हैं जिनके पास अगर ज़्यादा शेयर हैं, तो वो भी बोर्ड मेंबर बन जाते हैं। शेयरहोल्डर के नीचे होते हैं CEO और बोर्ड मेंबर। सब सोचते हैं कि CEO ही मालिक होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता। भाई को ही देख लो। हमारी कंपनी में CEO है, लेकिन उनके पास शेयर कितने हैं? 10 प्रतिशत। उनके नीचे सारे डिपार्टमेंट के हेड होते हैं, जैसे HR, PR, मार्केटिंग, सेल्स। सभी के हेड उनके नीचे काम करते हैं, फिर लास्ट में इम्प्लॉई, जो बेचारे गधों की तरह काम करते हैं, फिर भी सब उन्हें लास्ट में ही पूछते हैं।" विनिल ने जैसे पूरी कंपनी रूह को दिखा दी। "हम्म, समझ गई। अब सो जाओ। बाकी का कल ऑफिस में देखा जाएगा।" रूह ने कहा। तो विनिल चला गया। रूह भी फ़्रेश होकर सो गई। वैसे भी, रात के तीन बज चुके थे। अगली सुबह, रूह उठकर वॉर्डरोब में अपने लिए कपड़े देखती है जो कि ऑफिस जाने के लिए सही लगें, लेकिन मोस्ट ऑफ़ साड़ी ही रखी हुई थीं। "चलो, साड़ी ही पहनते हैं।" रूह ने कहा और एक हल्के गुलाबी रंग की साड़ी निकालकर तैयार होने चली गई। जैसे ही वो अपने कमरे से बाहर आई, तैयार होकर उसने देखा राजवीर जल्दी-जल्दी में कहीं जा रहा है। "मिस्टर राजवीर, रुकिए।" रूह ने उसके पीछे जाते हुए कहा। "क्या हुआ? तुम में इतने मेनर्स नहीं हैं कि जाते हुए इंसान को पीछे से टोकते नहीं हैं?" राजवीर ने पीछे मुड़कर गुस्से से कहा। "ओह, ये मेनर्स होते हैं? मुझे तो पता ही नहीं था। वैसे, इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो?" रूह ने कहा, तो राजवीर का मुँह फिर बन गया। "क्यों प्रातःकाल इस बेचारे भले मानुष को व्यथा दे रही हो? इन्हें प्रस्थान करने दो ना।" तारा ने उड़ते हुए कहा। ["तुझे बड़ा बेचारा लग रहा है ये? इसकी शक्ल देखी है? लगता है सो राक्षस मरे होंगे, तब जाकर ये पैदा हुआ है।"] रूह ने मन ही मन कहा, जिसे सुन तारा भाग गई। "तुम होती कौन हो मुझसे ये सब पूछने वाली? एक तो तुम्हारी वजह से मैं प्रॉब्लम में हूँ, और किस्मत देखो, बहस भी तुमसे ही कर रहा हूँ।" राजवीर ने कार में बैठते हुए कहा। "ठीक है, फिर मैं भी चलती हूँ प्रॉब्लम देखने।" रूह भी जल्दी से करके दूसरी ओर का दरवाज़ा ओपन करके बैठ गई। ड्राइवर की सीट पर बैठा अभिनव सोच रहा था कार चलाए या ना चलाए। "मैंने कहा, निकलो मेरी कार से! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी कार में बैठने की?" राजवीर ने गुस्से से कहा। "ठीक है, मैं दादा जी को बुलाती हूँ। फ़्री, उन्हें ही ये अपनी मधुर धुन सुनाना जो अभी मुझे सुनाई।" रूह ने कहा, और जैसे ही अपना फ़ोन निकाला, राजवीर की आवाज़ सुनाई दी। "अभिनव, जल्दी ऑफिस ले चलो। मेरे पास फ़ालतू वक्त नहीं है।" राजवीर ने कहा और खिड़की से बाहर देखने लगा। अभिनव ने कार स्टार्ट कर दी। रूह के चेहरे पर जीत की मुस्कान थी। जिंदल एम्पायर, एक 73 फ़्लोर की ऊँची बिल्डिंग। सच में लाजवाब थी ये कारीगरी। हर फ़्लोर पर जैसे क्रिएटिविटी की बौछार की गई हो। अनोखे स्टेयर्स, लिफ़्ट, म्यूज़िक सिस्टम, जिससे ऑफिस का माहौल खुशनुमा रहे। ये सब किया था राजवीर के पिता ने। उनके अपने हर इम्प्लॉई की चिंता थी, लेकिन समय के साथ राजवीर ने कंपनी संभाली, कंपनी बढ़ती गई, लेकिन इम्प्लॉई के साथ मालिक का लगाव घटता गया और दूरियाँ बढ़ती गईं। इस कंपनी के बारे में भला कौन नहीं जानता? ये अपनी हर फ़ील्ड में बेहतर है—चाहे वो होटल चेन हो, स्कूल-कॉलेज हो, कंस्ट्रक्शन हो, डिज़ाइनिंग हो, फ़ैशन शोज़ हों या फ़िल्म इंडस्ट्री हो, हर जगह इनका नाम दिख ही जाता था। ऑफिस में अफ़रा-तफ़री मची हुई थी। राजवीर, अभिनव और रूह कॉन्फ़्रेंस हॉल की तरफ़ बढ़ रहे थे। रूह ने देखा, सभी लोग डरे हुए हैं। राजवीर जब भी आता था, अभी इम्प्लॉईज़ के मन में एक डर उठ जाता था। "ये सभी लोग इतना घबरा क्यों रहे हैं?" रूह ने अभिनव से कहा, जो उसके साथ-साथ चल रहा था। राजवीर आगे-आगे था। "क्योंकि बॉस गुस्से में है। आपकी न्यूज़ वाली दोस्त ने कमाल कर दिया है।" अभिनव ने अपना फ़ोन रूह को देते हुए कहा, जिसमें आज की ब्रेकिंग न्यूज़ थी। "जी हाँ, आप सब ने सही सुना। राजवीर जिंदल, जो सिर्फ़ चेहरे से नहीं, बल्कि दिल से भी कठोर है, ना जाने कहाँ-कहाँ चक्कर चल रहा था उस दरिंदे का। बेचारी रूह, जो मेरी दोस्त भी है, उसके साथ भी बेहद गलत किया। लेकिन रूह ने वुमन पावर दिखाया। बड़े घर का रिश्ता हुआ तो क्या हुआ? उसने तोड़ दी है उस नामर्द से सगाई, और उसी की ऑफ़िस में अब से काम करेगी। रूह दिखाएगी कि वो भी किसी से कम नहीं है। अपना सर ऊँचा रखकर, उस राजवीर की आँखों के सामने रहेगी। हमारी आज की देवी कलयुग में वुमन पावर के साथ होगी रूह की जीत।" वैशाली फ़ुल जोश के साथ अपनी दोस्त की मदद कर रही थी, साथ ही राजवीर की इज़्ज़त की धज्जियाँ भी उड़ा रही थी। "इसका जोश कहीं भारी ना पड़ जाए।" रूह ने कहा और फ़ोन अभिनव को दिया। ["हे भगवान! इतने भले मानुष को ऐसे फ़ंसाया तुमने! तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं आती।"] लग रहा था जैसे तारा को राजवीर बहुत पसंद है। रूह बिना उस पर ध्यान दिए कॉन्फ़्रेंस रूम में आई। बहुत से लोग वहाँ आपस में बात कर रहे थे, जो राजवीर के एंटर होते ही चुप हो गए। "देखिए, मिस्टर राजवीर, आपकी वजह से हम कोई रिस्क नहीं ले सकते। या तो आप मीडिया में जाकर माफ़ी माँगिए या पद से रिज़ाइन कीजिए।" मिस्टर हुड्डा ने कहा, तो रूह की तो आँखें ही बाहर आ गईं। "क्या इतनी सी बात के लिए ये इसे कंपनी छोड़ने के लिए बोल रहे हैं?" रूह ने अभिनव के कान में कहा। "इतनी सी बात नहीं है। पहले तो आपकी दोस्त की न्यूज़, उसके बाद एक वीडियो रिलीज़ हुआ है जिसमें बॉस एक इम्प्लॉई के साथ बुरा बर्ताव कर रहे हैं, जिस वजह से अफ़रा-तफ़री मची हुई है। मिस्टर हुड्डा तो ही लालची, सब शेयर होल्डर को अपनी तरफ़ करके बॉस की जगह लेना चाहते हैं।" अभिनव ने कहा, तब जाकर रूह को कुछ समझ आया। "आपका दिमाग तो ठीक है, मिस्टर हुड्डा! आप ऐसे कैसे CEO से रिज़ाइन के लिए कह सकते हैं?" तभी एक लड़की ने अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए कहा। "अब ये कौन है?" रूह ने फिर से सवाल किया। "अ ये वो… ये ये मोना है, मार्केटिंग टीम की हेड, साथ ही बोर्ड मेंबर भी है।" अभिनव मोना के बारे में बताने से थोड़ा हिचकिचा रहा था। "ओह।" रूह ने मोना को देखते हुए कहा। मोना भी दिखने में सुंदर थी, लेकिन उसका रंग थोड़ा साँवला था। बिज़नेस सूट में काफ़ी जच रही थी। मोना और रूह के बीच अब क्या होगा? आखिर इस मुसीबत से निकल पाएगा राजवीर? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… … … प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ रिव्यू देना ना भूलें… … … जय महाकाल… … … …

  • 9. Love with my brother in-law - Chapter 9

    Words: 1292

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब तक हमने देखा... राजवीर की एक वीडियो पब्लिक हुई थी जिससे उसकी छवि खराब हुई और कंपनी पर संकट के बादल छा गए थे। वहीं, रूह ने ऑफिस में मोना को देखा। आइए देखते हैं आगे क्या होता है। अब आगे... राजवीर के साथ पूरा ऑफिस चिंता में था, लेकिन रूह की नज़र अब मोना पर टिक गई थी। शेयरहोल्डर्स की मीटिंग में नौ लोग मौजूद थे। "मुझे नहीं लगता इसके अलावा कोई और रास्ता है। लगातार हमारे शेयर्स के दाम गिर रहे हैं। अगर जल्द से जल्द CEO को कुछ नहीं किया, तो हम सब बर्बाद हो जाएँगे।" मिस्टर हुड्डा की बात सुनकर बाकी शेयरहोल्डर्स भी आपस में बातें करने लगे। "मैं जल्द से जल्द सब ठीक कर दूँगा। आप लोग चिंता मत कीजिए। आज तक जैसे मैंने ये कंपनी संभाली है, आगे भी संभाल लूँगा।" राजवीर खड़े होते हुए बोले। "अब पानी सर के ऊपर चला गया है, राजवीर जिंदल। आपके पास जो शेयर्स हैं, वो 10 प्रतिशत हैं। आपके भाई के पास भी 10 प्रतिशत हैं, मतलब कुल मिलाकर 20 प्रतिशत। और बाकी हम सबके शेयर्स मिलकर 41 प्रतिशत हैं। तो हम तय करेंगे कि CEO आप रहेंगे या कोई और। क्या सही कहा ना?" मिस्टर हुड्डा भी खड़े होते हुए बोले। "आप हद पार कर रहे हैं, मिस्टर हुड्डा।" राजवीर गुस्से से बोले। "ना ना, CEO बाबू, हद तो अभी पार की कहाँ है हमने? हम सबको क्या पागल समझ रखा है? हमारे पैसे लगे हैं इस कंपनी में। ऐसे ही इसे बर्बाद होने नहीं देंगे।" मिस्टर हुड्डा बोले। उनकी बात अपनी जगह पर सच भी थी। "मिस्टर हुड्डा..." इससे पहले कि मोना कुछ और बोल पाती, मिस्टर हुड्डा ने उसकी बात बीच में ही काट दी। "मोना, तुम्हारे पास बस 3 प्रतिशत शेयर हैं। तो अगर तुम इनके साथ होती भी हो, तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। तो तुम्हारा चुप रहना ही बेहतर होगा।" मिस्टर हुड्डा की बात सुनकर मोना चुप हो गई। "मैं भी कुछ बोलना चाहूँगी, मिस्टर चड्डा।" रूह आगे आते हुए बोलीं। "अब तुम क्यों बोल रही हो? चुपचाप पीछे खड़ी रहो, वरना अच्छा नहीं होगा। और हाँ, मैं हुड्डा हूँ, चड्डा नहीं।" राजवीर एक कदम पीछे हटते हुए रूह के कान में बोले। तो रूह अपने एक हाथ से उसे और पीछे करके उसकी जगह पर खड़ी हो गईं। सब हैरान थे। "तुम कौन हो?" मिस्टर हुड्डा बोले। "ये तो रूह हैं, जिनकी सगाई कल ही हुई थी मिस्टर राजवीर से, और आज टूटने की भी खबर आ रही है।" शेयरहोल्डर्स में से एक, मिस्टर दवे बोले। "ओह! हाँ, तो मिस रूह, आप CEO की पत्नी हुई नहीं हैं जो आप बीच में बोलें।" मिस्टर हुड्डा बोले। "ये मनुष्य तुमने हल्के में ले रहा है।" तारा ने उड़ते हुए कहा। "हाँ, सही कहा। मेरे और मिस्टर CEO के बीच कोई संबंध नहीं है, लेकिन मैं इस कंपनी की 24 प्रतिशत शेयरहोल्डर हूँ। तो इस नाते तो मेरा हक बनता है ना, मिस्टर चड्डा... सॉरी, गढ़ा... गधा... या जो कुछ भी हो आप।" रूह राजवीर की कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं। "क्या?" मिस्टर हुड्डा हैरानी से बोले। उनके साथ-साथ बाकी सब भी हैरान थे। "अरे आप छोड़िए मिस्टर गद्दा, आप बताइए मिस मोना, मैं इस मीटिंग में कुछ बोल सकती हूँ या नहीं?" रूह मोना की तरफ अपनी कुर्सी घुमाते हुए बोलीं। "जी, बिल्कुल आप बोल सकती हैं।" मोना बोलीं। "हाँ, तो मिस्टर चड्डा, मेरे शेयर्स 24 प्रतिशत, मिस्टर CEO के 10 और विनिल के 10, मतलब होते हैं 44 प्रतिशत, यानी कि आपके 31 से 3 प्रतिशत ज़्यादा। और मोना जी भी, आई एम श्योर, CEO को ही वोट देंगी। तो 6 प्रतिशत ज़्यादा है CEO की तरफ। तो मुझे नहीं लगता आप कुछ और बोलने का हक या हिम्मत रखते हैं।" रूह की बात ने पूरे हॉल में ख़ामोशी ला दी। "ठीक है, लेकिन मान लिया कि हमारे पास ये अधिकार नहीं है कि इन्हें CEO की पोस्ट से निकालें, लेकिन अगर ये मुसीबत टली नहीं, तो ना ये कंपनी रहेगी, ना ही ये पोस्ट। समझ आई बात?" मिस्टर हुड्डा बोले। तभी कॉन्फ़्रेंस रूम का दरवाज़ा खुला। ये साहिल था। उसने राजवीर के कान में कुछ कहा। साहिल घबराया हुआ था और अब राजवीर भी घबराया हुआ लग रहा था। "लेकिन वो यहाँ कब आया? और सबसे इम्पॉर्टेन्ट, क्यों आ रहा है?" राजवीर इरिटेट होकर गुस्से से बोले। "मिस्टर CEO, एक तो इतना ज़रूरी डिस्कशन चल रहा है, ऊपर से आप हो कि अपने से फुरसत नहीं।" रूह अपनी कुर्सी पीछे करके राजवीर की तरफ घुमाते हुए बोलीं। "हाँ, बिल्कुल सही कहा मिस रूह ने। आपको अभी इसकी फ़िक्र करनी चाहिए कि ये कंपनी बचेगी या बर्बाद होगी।" मिस्टर हुड्डा बोले। तभी एक बार फिर कॉन्फ़्रेंस रूम का दरवाज़ा खुला। इस बार एक लड़का आया, जिसने ब्लैक सूट के ऊपर ग्रे कलर का लॉन्ग कोट पहना हुआ था। आँखें भूरी, शक्ल ऐसी कि बस देखते रह जाएँ। उस लड़के को देखकर सभी खड़े हो गए, सिवाय रूह के। वो बस बैठी-बैठी उस लड़के को देखकर यही सोच रही थी कि ये है कौन? कहीं इसे देखा-देखा लग रहा है क्या? "हमारे होते हुए ना हमारी कंपनी को कुछ होगा, ना ही राजवीर की पोस्ट को। तो आगे से बोलने से पहले 100 बार सोच लेना, मिस्टर हुड्डा।" उस लड़के ने रूह के एकदम पास खड़े होते हुए मिस्टर हुड्डा से कहा, फिर रूह की तरफ देखा। तो रूह ने अभिनव की तरफ देखा, जैसे कह रही हो ये है कौन? "ये बॉस के बड़े पापा के बेटे, अद्वित जिंदल, जो विदेश में रहते हैं। आज ना जाने क्यों आए हैं। ये इस कंपनी के मेजर शेयरहोल्डर हैं, 25 प्रतिशत के ऊपर। विदेश में भी इनका खुद का बहुत बड़ा कारोबार है, इसलिए सभी इनसे डरते हैं।" अभिनव झुककर रूह के कान में बोला। रूह को तो समझ ही नहीं आ रहा था। अपनी इस दो ज़िंदगियों में ये पहली बार था जब वो अद्वित के बारे में सुन रही थी, उसे देख रही थी। "लेकिन अद्वित जी, कंपनी मुसीबत में है। अगर CEO ने मीडिया और उस इम्प्लॉयी से माफ़ी नहीं मांगी, तो सब खत्म हो जाएगा। हर बीतते मिनट के साथ शेयर्स के दाम गिरते ही जा रहे हैं। ऐसे में तो हम बर्बाद हो जाएँगे।" मिस्टर हुड्डा बोले। "ऐसा कुछ नहीं होगा। सबसे पहले तो, साहिल, पता करो कि आखिर वो इम्प्लॉयी कौन है जिसने ऐसा वीडियो बनाया है। और एक सोशल मीडिया सेलेब्रिटी को बुलाओ और उनसे एक वीडियो पोस्ट करवाओ जिसमें हमारे चुने हुए कुछ इम्प्लॉयी होंगे जो कंपनी के बारे में तारीफ करेंगे। उसके बाद मेरे लिए लाइव सेशन अरेंज करवाओ। अंडरस्टैंड?" अद्वित जिंदल बोले। उसके बोलते ही साहिल अपने काम में लग गया। "ये मीटिंग यहीं खत्म होती है। रिजल्ट कल तक मिल जाएँगे।" अद्वित बोले। तो सभी वहाँ से चले गए, सिवाय राजवीर, रूह, अभिनव और अद्वित के। रूह तो अब भी उस कुर्सी पर बैठी सोच रही थी। "आपको यहाँ आने की ज़रूरत नहीं थी। मैं संभाल लेता सब कुछ, जैसे आज तक सब संभाला था।" राजवीर गुस्से से बोले और वहाँ से चले गए। ["लगता है इन दोनों में बनती नहीं है।"] रूह ने मन ही मन कहा। अभिनव भी राजवीर के पीछे चला गया। अब बस उस कॉन्फ़्रेंस रूम में दो लोग थे: अद्वित और रूह। दोनों ही बस एक-दूसरे को देख रहे थे। "क्या तुमने मुझे पहचाना?" अद्वित रूह के करीब आकर बोला। रूह को इस सवाल की जरा भी उम्मीद नहीं थी। भला जब वो इस लड़के से मिली ही नहीं कभी, तो पहचानने का सवाल ही कहाँ से आता है? आखिर कौन है ये अद्वित? और ऐसा सवाल क्यों किया उसने? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे, यानी KJ के साथ... प्लीज़, प्लीज़, कमेंट और रिव्यू देते रहिए... जय महाकाल...

  • 10. Love with my brother in-law - Chapter 10

    Words: 1173

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो एवरीवन, उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा…

    कंपनी पर जो मुसीबत आई थी, उसके समाधान के लिए एक किरदार सामने आया था, जिसका नाम था अद्विक जिंदल। देखते हैं यह नया किरदार ना जाने सबकी ज़िंदगी में क्या तूफान लाएगा।

    अब आगे…

    अद्विक के सवाल का जवाब तो दूर, रूह को समझ भी नहीं आ रहा था।

    "क्या मतलब तुम्हारा? हम कभी मिले हैं क्या?" रूह ने अजीब तरीके से कहा क्योंकि उसे तो यह लड़का बिल्कुल भी याद नहीं था। अद्विक ने रूह की बात सुनकर मुस्कुराया; उसकी मुस्कान में दर्द महसूस हो रहा था।

    "कहते हैं धरती की बेताबी आसमान ही जानता है। क्या हो जब धरती ही भूल जाए आसमान की चाहत को?" अद्विक ने दोनों हाथों से रूह के चिन को पकड़कर, झुककर उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा।

    ["ना जाने यह कौन-सी भाषा में बात कर रहा है? कुछ समझ ही नहीं आ रहा। क्या मैं इसे जानती हूँ? नहीं, नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है?"] रूह मन ही मन खुद से बातें कर रही थी, और अद्विक उसे ही देख रहा था। तभी कॉन्फ्रेंस डोर फिर एक बार खुला। इस बार यह था कबीर, अद्विक का असिस्टेंट, साथ ही एक बहुत ही अच्छा दोस्त भी। कबीर, अद्विक और रूह को इतने ध्यान से देखकर, वहाँ से भागने की बजाय, रुककर उन दोनों को ध्यान से देखने लगा।

    "क्या? मूवी चल रही है यहाँ जो इतने ध्यान से देख रहे हो? और तुम हमें सवालों में उलझाओ मत, समझ गए? दूर हटो।" रूह ने पहले कबीर से कहा, जो उन दोनों को घूर रहा था, फिर अद्विक को धक्का देते हुए खुद खड़ी हो गई।

    "ये… ये तो वही लड़की है ना, अद्विक? यह यहाँ कैसे?" कबीर ने रूह को कुछ देर घूरने के बाद कहा।

    "मैं? क्या तुम मेरी बात कर रहे हो? अरे, कोई मुझे समझाएगा कि तुम दोनों मुझे कैसे जानते हो?" रूह ने इरिटेट होते हुए कहा।

    "बिल्कुल, रूह। हम आपको बताएँगे, लेकिन इसके लिए आपको एक पहेली का जवाब देना होगा।" अद्विक ने एक अलग ही मुस्कान के साथ कहा।

    "क्या लगता है आपको कि हमें आपकी पहेली में या आप में कोई इंटरेस्ट है? कतई नहीं! ना हमें कोई पहेली सुलझानी है, ना ही आपकी बात सुननी है।" अद्विक की आँखों में आँखें डालकर रूह ने जवाब दिया।

    "ठीक है, आपकी मर्ज़ी। जवाब देना है तो दीजिएगा, वरना मत दीजिएगा। बाकी हम तो पहेली पूछेंगे: 'सख्त हूँ पर पत्थर नहीं, पिघलता हूँ पर मोम नहीं, बरसता हूँ पर बारिश नहीं। बताओ मैं हूँ कौन?' अगर इस पहेली का जवाब आपने दिया, तो शायद आपको याद भी आ जाए कि हम हैं कौन? चलो, अभी हम जा रहे हैं लाइव।" अद्विक ने कहा और वहाँ से चला गया।

    "अद्विक को तुम बड़ी मुश्किल से मिली हो। अब भूलकर भी उससे दूर मत होना।" कबीर ने कहा और चला गया। रूह को तो समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।

    "क्या ये दोनों मुझे अप्रैल फूल बना रहे हैं? खैर, जाने दो। मेरे पास और भी बहुत काम है। वैसे, देखती हूँ यह पहेली वाला बंदर लाइव पर कौन-सी गुलाटी मारता है।" रूह ने कहा और अपने फोन पर अद्विक का लाइव सेशन देखने लगी।

    "हैलो एवरीवन, हम हैं अद्विक जिंदल। अभी जो आपको वीडियो दिखाया गया, उसमें हमारी कंपनी के कुछ एम्प्लॉयी थे, जो बड़ी ही लंबी जर्नी तय करके इस ऑफिस में उन्होंने अपनी जगह बनाई है। लेकिन ना जाने किसी एक की गलती क्यों आप सब हमारी पूरी कंपनी को देना चाहते हैं? एक गलत अफवाह से लाखों लोगों की ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है। मीडिया का तो काम ही है, बात को ऐसे खींचना जैसे कोई च्यूइंग गम हो, लेकिन जनता को ख्याल रखना चाहिए कि कौन-सी बात पर यकीन करे, कौन-सी पर नहीं। हमें जितनी फ़िक्र है हमारे एम्प्लॉयी की, उतनी मुझे नहीं लगता किसी भी कंपनी को होगी। और जिसने भी हमारी कंपनी की रेपुटेशन को गिराने की कोशिश की है, वह हमारे इस लाइव को एक चेतावनी समझे।" अद्विक की बात सुनकर रूह के चेहरे पर मुस्कान आ गई। इमोशनली सबको न्यूज़ से भटकाने का आइडिया सही था।

    "चलो, अब यहाँ हमारा अब कोई काम नहीं है।" रूह ने कहा और जिंदल विला के लिए निकल गई।

    जिंदल विला,

    घर पहुँचकर रूह ने देखा, कुणाल, दादा जी और साहिल हॉल के सोफ़े पर थोड़े परेशान होकर बैठे हुए थे।

    "दादा जी, क्या हुआ? लग रहा है जैसे कोई परेशानी हो? क्या आप ऑफिस की बात से परेशान हैं?" रूह ने दादा जी के पास जाते हुए कहा।

    "नहीं बेटा, वह तो अद्विक आ गया है, तो संभाल ही लेगा सब। हमें तो चिंता इस बात की है कि अद्विक कहीं यहाँ आकर ना रुके।" दादा जी की बात रूह के समझ नहीं आई।

    "माफ़ कीजिए दादा जी, लेकिन आपकी बात मेरी समझ में नहीं आई। अगर अद्विक जी यहाँ आकर रुकते हैं तो दिक्कत ही क्या है?" रूह ने कंफ़्यूज़ होकर कहा।

    "दरअसल बेटा, राजवीर और अद्विक के बीच बनती नहीं है। तो दोनों एक साथ एक छत के नीचे… ना जाने क्या होगा?" दादा जी ने निराश होकर कहा।

    "कूल डूड! मुझे लगता है आज रात ही हमारे घर में थर्ड वर्ल्ड वॉर शुरू होगा।" विनिल ने अपना सर पकड़कर कहा।

    "हाँ, लगता तो मुझे भी यही है, यार।" कुणाल ने कहा। रूह अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए बस यही सोच रही थी कि आखिर ऐसा भी क्या हुआ है? राजवीर और अद्विक के बीच… दो भाई एक-दूसरे के दुश्मन हैं? वह पूछे भी तो किससे?

    "दादा जी के जाने के बाद कोई अच्छा सा मौका देखकर विनिल से पूछना होगा कि आखिर यह इन दोनों बंदरों के बीच का राज क्या है?" रूह ने सोचते हुए खुद से कहा। तभी उसके फ़ोन में एक मैसेज आया।

    "ज़िंदगी आराम से कट रही है ना, रूह? लेकिन ज़्यादा दिन नहीं होगी इतनी आसान ज़िंदगी। अपनी माँ की मौत का राज़ जानना नहीं चाहोगी?" इस मैसेज को देखकर रूह हैरान हो गई। आखिर ऐसा मैसेज उसे कौन कर सकता है? उसने तारा की ओर देखा। यह मैसेज अननोन नंबर से था।

    "माँ की मौत का राज़ ही नहीं, बल्कि मुझे बहुत कुछ जानना है, लेकिन कैसे? तुम ही बताओ कि मैं कहाँ से शुरू करूँ? ना कोई कड़ी है, ना ही कोई सुराग। यहाँ तक कि मुझे तो मेरी माँ का चेहरा तक याद नहीं।" रूह की आँखें नम थीं। रूह का सवाल सुनकर तारा की भी आँखें नम हो गईं।

    "नियति ने अगर कठिनाइयाँ दी हैं, तो अवश्य उससे बाहर निकलने का मार्ग भी सुझाएगी। बस धैर्य रखो।" तारा की बात सच थी। अगर भगवान हमें किसी मुसीबत में डालते हैं, तो उससे बाहर निकलने का रास्ता भी वह ज़रूर दिखाते हैं। बस ज़रूरत होती है तो कुछ समय खुद को देने की, आराम से सोचने की। उसके बाद भगवान भी आपका साथ ज़रूर देते हैं।

    आखिर कौन है जिसने रूह को मैसेज किया है? कौन-सी दुश्मनी है राजवीर और अद्विक के बीच? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… प्लीज़ दोस्तों, अगर कहानी पसंद आ रही हो तो अपना रिव्यू ज़रूर दें… जय महाकाल…

  • 11. Love with my brother in-law - Chapter 11

    Words: 1374

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा था……।। रूह के फ़ोन पर एक अननोन नंबर से मैसेज आया था जिसमें उसकी माँ की मौत के बारे में लिखा था। अब आगे……। रूह के दिमाग में बस यही चल रहा था कि आखिर ऐसा मैसेज उसे कौन भेज सकता है? "हमें प्रतीत हो रहा है कि तुम गहन चिंता में हो," तारा ने रूह के आसपास घूमते हुए कहा। "बात ही ऐसी है तो चिंता तो होगी ही ना? तुम तो एक परी हो, क्या तुम नहीं बता सकती कि यह कौन है और मेरी माँ कौन थीं? उनकी मौत क्यों हुई?" रूह ने एक साथ बहुत सारे सवाल तारा से कर दिए। "नहीं, क्योंकि हमारा इससे कोई संबंध नहीं है। हम केवल अपने उद्देश्य से यहाँ आए हैं, जो आने वाली पूर्णिमा की रात को तुम्हें भी भली-भाँति ज्ञात हो जाएगा," तारा की बात रूह के सर के ऊपर से गई। "ठीक है, मत बताओ, रहो चुप। मैं खुद ही पता लगा लूँगी।" [फिर कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद] "कहीं यह काम मिस्टर वनराज का तो नहीं?" रूह ने कहा और फिर तुरंत अपने कमरे से बाहर निकल गई। वह बाहर जा ही रही थी कि उसे विनिल सामने मिला। उसे यह सही मौका लगा। "विनिल, एक मिनट रुको!" रूह ने दूर से आवाज लगाई। फिर उसके पास जाकर खड़ी हो गई और आसपास देख लिया। "एक बात बताओ, इन दोनों भाइयों के बीच आखिर कौन-सी दुश्मनी चल रही है?" रूह ने कहा तो विनिल जोर-जोर से हँसने लगा। "भाभी, ये 'बंदर' नाम सच में सही है। वैसे, बात क्या है, ये तो मुझे भी नहीं पता। आठ साल पहले, जब अद्वित भैया बीस साल के थे, तो घर छोड़कर अचानक चले गए थे। उसके बाद जब मैंने और दादा जी ने राजवीर भाई से पूछा, तो वह गुस्से से लाल-पीले हो गए। ऊपर से तब उनकी तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। लेकिन फिर भी राजवीर भाई ने अद्वित भैया के जाने के बाद, महज़ अठारह साल की उम्र में, सब संभाल लिया और मुझे गर्व है उन पर। लेकिन उन दोनों के बीच बोलने की हिम्मत दादा जी भी नहीं करते।" विनिल ने कहा तो रूह को निराशा हुई। उसे लगा था कि विनिल से पता चल जाएगा कि आखिर उन दोनों के बीच चल क्या रहा था। "अरे भाभी, आप जा कहाँ रही हैं?" विनिल ने कहा। "बंसल हाउस," रूह ने धीरे से कहा। उसके दिमाग में तो अभी बहुत सी बातें चल रही थीं। सोचते-सोचते रूह बाहर निकल गई। अब उसके दिमाग में अपने और राजवीर के ऐज गैप को लेकर सवाल उठने लगे। "मैंने तो कभी राजवीर की उम्र पर ध्यान ही नहीं दिया। कहाँ मैं, प्रिंसेस, बाईस साल की और वहाँ वो 'बंदर', छब्बीस का!" रूह ने कहा और कैब लेकर बंसल हाउस के लिए निकल पड़ी। रूह को अपने से बड़े लड़के पसंद नहीं थे; जैसे विराट को ही देख लो, वह भी उसी की उम्र का था। बंसल हाउस, रूह जैसे ही घर के अंदर आई, उसने देखा वनराज बंसल और रीना बंसल हॉल में बैठे आपस में कुछ बात कर रहे थे। बंसल हाउस जिंदल विला जितना बड़ा नहीं था, लेकिन इतना छोटा भी नहीं था। उसकी बनावट काफी सुंदर थी। वो प्यारा सा बंगला रूह के जीवन की कई सारी कड़वी यादों में शामिल था। "तो तुम आ ही गई? मुझे तो लगा तुम्हारे इतने पैसे हैं कि सीधे अब आसमान में ही उड़ोगी," रीना बंसल की नज़र जैसे ही रूह पर पड़ी, उसने जोर से कहा। "आसमान में तो बहुतों को भेजना है, जिसमें से एक आप भी हैं, रीना जी," रूह ने कहा तो रीना का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। "बस, बहुत हो गया! भूलो मत कि तुम मेरे घर में खड़ी हो। यह जिंदल विला नहीं है कि हम चुप रहेंगे," वनराज बंसल ने आगे आते हुए गुस्से से कहा। "हाँ, सही कहा। यह जिंदल विला नहीं, लेकिन यह आपका घर भी नहीं, मिस्टर वनराज। आपको क्या लगा कि मैं बिना तैयारी के यहाँ आ जाऊँगी? मैंने सब पता लगा लिया है कि कौन-सी प्रॉपर्टी मेरी माँ ने मेरे नाम की है और कौन-सी आपकी?" रूह की बात सुनकर वनराज थोड़ा हैरान जरूर हुआ, लेकिन अपने चेहरे के एक्सप्रेशन उसने बदलने नहीं दिए। "यह घर मेरे नाम पर है, समझी तुम?" वनराज ने अपनी बात फिर दोहराई। "हाँ, है तो, लेकिन तब तक जब तक मैं ना चाहूँ? अगर मैं चाहूँ तो तुम सबको यहाँ से धक्के मारकर निकाल सकती हूँ, पता है ना?" रूह की माँ ने यह घर अपने पति के नाम करते वक्त यह साफ़ मेंशन किया था कि अगर उनकी बेटी अठारह साल की है और अगर यह घर वह अपने नाम करना चाहती है तो कोई भी उसे नहीं रोक सकेगा। यह एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह था। "तुम ऐसा नहीं कर सकती। आखिर ये तुम्हारे पिता हैं," रीना के रंग बदल चुके थे। "मैं कुछ भी कर सकती हूँ, लेकिन अगर मुझे मेरी माँ के बारे में सब सही-सही बता दिया मिस्टर वनराज ने, तो मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी।" रूह बस जानना चाहती थी अपनी माँ के बारे में; बाकी उसे इस बंगले में कोई इंटरेस्ट नहीं था। "तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम हमें धमकी दो?" वनराज बंसल ने कहा और एक जोरदार थप्पड़ रूह के गाल पर मार दिया। रूह की गर्दन नीचे झुक चुकी थी। इस अचानक हुए हमले की उसे उम्मीद नहीं थी। उसके सफ़ेद, दूध जैसे गाल पर वनराज बंसल के निर्दयी हाथ की छाप पड़ चुकी थी। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं। वह खुद को रोने से रोक रही थी। वह इन हैवानों के सामने खुद को कमज़ोर दिखाना नहीं चाहती थी। "हाँ, सही! धमकी ही दे रही हूँ, मैं समझी?" रूह ने कहा और एक जोरदार थप्पड़ अपने सामने खड़े इंसान के गाल पर मार दिया। रूह ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। वनराज बंसल सीधे जमीन पर जाकर गिर गया। "आगे से भूलकर भी मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश मत करना, समझी? वरना थप्पड़ के बदले थप्पड़ मिलेगा। मैं वह रूह नहीं हूँ जो रोकर चुप हो जाएगी। और अपनी माँ के बारे में तो मैं पता लगाकर रहूँगी," रूह ने गुस्से से कहा और वहाँ से बाहर की ओर चली गई। उसकी आँखें इतनी लाल हो गई थीं कि कोई भी देखकर डर जाए। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये उसके असली पिता हैं। भला कोई अपनी खुद की बेटी के साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है? "आआआआ……………।" [रूह पास ही के एक खाली गार्डन में गई और जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई। उसने अपनी अंदर की सारी भड़ास को चीख के रूप में बाहर निकाला।] "मेरे साथ ही क्यों किया ऐसा? बोलो! माँ को छीन लिया, बाप ऐसा दिया जिससे प्यार किया उसने धोखा दिया, अब फिर से यह ज़िंदगी दी है, इसमें भी क्या सही है? बताओ मुझे? मेरा मंगेतर किसी और से प्यार करता है? मेरी अपनी माँ के बारे में मुझे कुछ पता तक नहीं, सिवाय उनके नाम के। आखिर क्यों? मेरे साथ ही ऐसा क्यों? क्यों मुझे कोई प्यार नहीं करता?" रूह घुटनों के बल बैठकर सिसक-सिसक कर रोने लगी। उसकी आवाज़ बस हवा, सूरज, बादल के कानों में थी; बाकी उस सुनसान जगह पर कोई नहीं था जो उसको सुन सके। हर कोई अपनी ज़िंदगी में कभी ना कभी निराश जरूर होता है अपनी ज़िंदगी से, लेकिन अगर हिम्मत की जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता। जानती हूँ ये बातें कहने में आसान लगती हैं, लेकिन असल में करने वाला ही जानता है कि उस पर क्या बीतती है। लेकिन यकीन मानिए, मैं ये सब अपने अनुभवों से बोल रही हूँ। मैंने कई लोगों को मौत की ख्वाहिश करते देखा है, लेकिन बस एक उम्मीद ने उनकी ज़िंदगी स्वर्ग समान कर दी है। रूह अपने गम में रो ही रही थी कि तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। रूह ने जब उसे देखा तो चौंक गई। "तुम यहाँ?" रूह ने हैरानी से कहा। आखिर कौन था वह शख्स जिसने रूह के कंधे पर हाथ रखा? अगर वनराज नहीं, तो किसने किया होगा वह मैसेज? कई राज हैं जो खुलने बाकी हैं। आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ……। दोस्तों, अगर कहानी पसंद आ रही हो तो प्लीज यार रिव्यू दे दिया करो। ना जाने कौन-सी जायदात चली जाती है एक रिव्यू या कमेंट करने में। पता नहीं…… जय महाकाल……।।।

  • 12. Love with my brother in-law - Chapter 12

    Words: 1569

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब तक हमने देखा था… रूह जब बंसल हाउस गई थी, तभी बहस के बीच वनराज बंसल ने एक थप्पड़ लगा दिया था। रूह ने भी थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से दिया था। उसके बाद रूह रोने लगी थी। कोई आया था जिसने उसके कंधे पर हाथ रखा था। अब आगे… रूह ने जब उस इंसान को देखा था, तो वह हैरान हो गई थी, और उसके मुँह से निकल गया था, "तुम यहाँ?" उसके सामने खड़ा इंसान भी उसके पास जमीन पर बैठ गया था। "हाँ, मैं यहाँ? क्यों नहीं आ सकता क्या?" अद्विक ने रूह को देखते हुए कहा था। "तुम मेरा पीछा कर रहे थे?" रूह ने सवाल किया था। वह इस बात से काफी नाराज़ लग रही थी। "नहीं, तो जब मैं घर गया था, तो विनिल से पता चला था कि तुम बंसल हाउस आई हो, तो मैं भी यहाँ आ गया था।" अद्विक ने कहा था, तो रूह उसे घूरने लगी थी। "तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, ये पीछा करना ही तो हुआ।" रूह ने कहा था और वहीं जमीन पर हाथ-पैर मारकर बैठ गई थी। "वो सब छोड़ो, तुम ये बताओ कि मेरी पहेली का जवाब मिला कि नहीं तुम्हें?" अद्विक ने सवाल किया था। "हाँ, मैंने ढूँढ लिया था। तुम्हारी पहेली का जवाब है बर्फ, जो सख्त भी होता है लेकिन पत्थर नहीं होता, जो पिघलता भी है लेकिन मोम नहीं होता, जो बरसता भी है लेकिन बरसात नहीं होता। क्यों, सही कहा ना?" रूह ने बहुत सोचने के बाद यह जवाब ढूँढा था। जब से वह ऑफिस से निकली थी, घर पहुँचने तक वह यही सोचती आई थी। "वाह! क्या बात है! सही जवाब! चलो अब घर चलते हैं, रात होने वाली है।" अद्विक ने ढलते सूरज को देखकर कहा था। "मैंने जवाब दे दिया, अब बताओ कि तुम मुझे कैसे जानते हो?" रूह ने क्यूरियोसिटी के साथ कहा था। "तुमने तो कहा था तुम्हें मेरी पहेली या मेरी बातें जानने में कोई इंटरेस्ट नहीं है, तो अब क्या हुआ?" अद्विक की बात सुनकर रूह ने आँखें छोटी की थीं। उसे यह लड़का बिल्कुल पसंद नहीं आया था। "ठीक है, मत बताओ। मुझे क्या? मैं तो जा रही हूँ, हूँ…।" रूह ने कहा था और खड़ी हो गई थी। अद्विक भी उसके साथ ही खड़ा हो गया था। हल्के गुलाबी रंग की साड़ी जो रूह ने सुबह से ही पहनी हुई थी, वह सच में लाजवाब लग रही थी। "चलो, मैं कार लेकर आया हूँ।" अद्विक ने अपनी कार की पैसेंजर सीट का दरवाज़ा खोलकर कहा था। एक पल के लिए रूह ने अद्विक को घूरा था, फिर जाकर पैसेंजर सीट पर बैठ गई थी। अद्विक भी मुस्कुराकर दरवाज़ा बंद करने के बाद ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गया था। उसने कार स्टार्ट की थी और म्यूज़िक सिस्टम ऑन कर दिया था। उसकी नज़रें बार-बार रूह पर जा रही थीं। "क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम, वो इरादा…," यह गाना बजते ही रूह ने सॉन्ग चेंज कर दिया था। उसे उदास भरे सॉन्ग नहीं सुनने थे। "जग सूना सूना लगे, जग सूना सूना लगे, कोई रहे ना जब अपना…," दूसरा गाना बजते ही रूह का मुँह अजीब हो गया था। उसने फिर गाना चेंज किया था। अब तो जो बजा था, वह हद पार कर देने वाला था। "क्या पाया तूने दिल से मेरे, खेल के ऐसे, इस दर्द भरे नेनों से देखूँ तुझे कैसे…," रूह ने सीधे अब म्यूज़िक सिस्टम ही बंद कर दिया था। "ये क्या? सारे सॉन्ग आपकी प्लेलिस्ट में देवदास वाले ही हैं? कोई अच्छा सॉन्ग नहीं है क्या?" रूह ने अजीब तरीके से कहा था। बड़ा अजीब आदमी था। "अ… सॉरी, वो मेरी प्लेलिस्ट। अब बदल दूँगा। ये कबीर का काम होगा। एक काम करो, तुम रेडियो ऑन करो।" अद्विक ने अपने बालों में हाथ घुमाते हुए कहा था। "क्या उस गली में कभी तेरा जाना हुआ, जहाँ से जमाने को गुज़रे जमाना हुआ, मेरा समय तो वहीं पे है ठहरा हुआ, बताऊँ तुम्हें क्या मेरे साथ क्या-क्या हुआ, खामोशियाँ एक साज़ है, तुम घुँघरु कोई लाओँ जरा, खामोशियाँ अल्फ़ाज़ हैं, कभी आ गुनगुना लो जरा, बेकरार हैं बात करने को, कहने दो इनको जरा, खामोशियाँ तेरी मेरी, खामोशियाँ, लिपटी हुई खामोशियाँ…" [“ये गाना सैड है या रोमांटिक? समझ क्यों नहीं आ रहा?”] अद्विक ने मन ही मन कहा था, लेकिन वह तो बस इस बात से खुश था कि रूह उसके साथ थी। रास्ते भर बस गाने चलते रहे थे और दोनों के बीच खामोशी रही थी। जिंदल विला आते ही अद्विक को लगा था कि रास्ता बहुत छोटा था। काश वो वक्त वहीं रुक जाता जिसमे बस वो और रूह थे। जब भी आपको ऐसा एहसास होता है दोस्तों, यकीन मानिए आप तब प्यार में होते हैं। जिंदल विला, रूह और अद्विक अंदर जा रहे थे, तभी दोनों के कानों में किसी औरत की आवाज़ पड़ी थी। रूह ने उस आवाज़ को जैसे ही सुना था, उसके कदम अपनी जगह पर रुक गए थे। "क्या हुआ? कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ना?" अद्विक के शब्दों में अपने लिए चिंता देखकर रूह को कहीं न कहीं अच्छा महसूस हो रहा था। "नहीं-नहीं, मैं ठीक हूँ। चलो।" रूह ने कहा था। अब दोनों के बीच की फ़ॉर्मेलिटी कहीं न कहीं कम हो गई थी। दोनों एक-दूसरे के साथ कम्फ़र्टेबल थे। [“क्या हुआ? प्रतीत होता है तुम्हारे मन में कोई बात चल रही है।”] तारा ने उड़ते हुए कहा था। [“हाँ, ये आवाज़ राजवीर की बुआ जी की है, जिसने पिछली बार आकर मेरा जीना हराम कर दिया था। इसने पूरी कोशिश की थी मुझे दादा जी और राजवीर के सामने नीचा गिराने की। ये अपनी नन्द की बेटी की शादी राजवीर से कराना चाहती थी, लेकिन उस वक्त दादा जी ने सब गलती मेरी नज़रअंदाज़ कर दी थी, जबकि मैंने तो कुछ किया भी नहीं था।”] रूह ने मन ही मन चलते हुए कहा था। तभी हॉल भी आ गया था। हॉल में एक मोटी औरत के साथ दो लड़कियाँ बैठी हुई थीं। साथ में दादा जी, राजवीर, विनिल और अभिनव भी थे। "आओ बीटा रूह, ये हैं दुर्गा, हमारी बेटी राजवीर की बुआ, और ये हैं दिया और मोनी, दुर्गा की नन्द की बेटियाँ, और दुर्गा ये है रूह, राजवीर की होने वाली बीवी।" ना जाने क्यों दादा जी की बात सुन अद्विक की मुस्कान चली गई थी। रूह की नज़र अद्विक पर ही थी। उसे यह लड़का समझ ही नहीं आ रहा था। "पापा, हमने देखा टीवी में इन दोनों के रिश्ते को लेकर क्या-क्या खबरें फैल रही हैं।" दुर्गा जी का कहना साफ़ था कि रिश्ता टूट चुका है, तो अब क्यों दादा जी रूह को राजवीर की होने वाली बीवी बोल रहे हैं। "जी, बुआ जी, सही कहा। रिश्ता तो टूट चुका है, लेकिन दादा जी फिर भी मुझे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।" रूह ने सोफ़े पर बैठते हुए कहा था। "हाँ, सगाई किसी और के साथ और घूमना किसी और के साथ? क्या बहू चुनी है पापा आपने? कम से कम हमें बता देते, हम राजवीर के लिए एक से बढ़कर एक लड़की चुनते।" बुआ जी की बात सुनकर राजवीर के सिर में दर्द हो गया था। उससे यह एक लड़की हैंडल हो नहीं रही थी, दूसरी को कैसे करेगा? "ज़बान संभालकर बुआ जी, रूह के बारे में एक भी गलत बात नहीं।" अद्विक की आँखें गुस्से से लाल हो गई थीं। वहीं रूह की आँखें हैरानी से बाहर आ गई थीं। पहली बार कोई ऐसा था जो उसके खातिर लग रहा था। "बुआ, मेरे लिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। मैं खुद के लिए लड़की खुद भी ढूँढ सकता हूँ, और दादा जी आप, आपने इस लड़की को ऑफिस आने के लिए कहा था ना? देखिए ये तो दोपहर से ही ग़ायब थी।" राजवीर ने साथ में रूह की भी लंका लगा दी थी। "अरे दादा जी, वो मैं बंसल हाउस गई थी, कुछ काम था तो, और मिस्टर राजवीर, मेरे पास कोई काम ही नहीं था। वो क्या है ना, मैं तो शेयरहोल्डर हूँ, मुझे काम करने की क्या ज़रूरत?" रूह ने कहा था तो राजवीर का मुँह बन गया था। "देख रहे हो पापा, कैसे इसकी जुबान चलती है, कैंची की तरह! अपने ससुराल के सामने कोई ऐसे बात करता है?" बुआ जी ने गुस्से से कहा था। "बस करो अब सब! और दुर्गा, तुमने हमारी पसंद पर सवाल उठाने का कोई हक़ नहीं है। उत्तरायण आ रही है, सब उसकी तैयारी करो।" दादा जी ने कहा था और अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गए थे। "चलो दिया और मोनी, हमें भी यहाँ बाहर वालों के मुँह देखने का कोई शौक़ नहीं है।" बुआ जी ने कहा था और दिया-मोनी के साथ अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई थीं। अभिनव भी वहाँ से चला गया था, विनिल भी चला गया था। राजवीर और अद्विक एक-दूसरे को घूर रहे थे। वहीं रूह भी कभी राजवीर को देखती तो कभी अद्विक को। तभी उसने देखा था विनिल पिलर के पास छिपकर रूह को उसके पास आने का इशारा कर रहा था। रूह उसके पास जाकर खड़ी हो गई थी। "क्या हुआ? ऐसे इशारे क्यों कर रहे हो?" रूह ने विनिल के पास जाकर धीरे से कहा था। "देख नहीं रही? आप दोनों के बीच साइलेंट वॉर चल रहा है। अगर इनके बीच फँसना ना हो तो जब भी ये दोनों हों, निकल जाओ चुपके से।" विनिल ने उन दोनों को देखते हुए कहा था। "बड़े अजीब प्राणी हो सब।" रूह ने मुँह बनाते हुए कहा था। तभी उसके कानों में राजवीर की आवाज़ पड़ी थी। "तो बताओ, अब फिर कब जाओगे?" राजवीर ने गुस्से से कहा था। "मेरा कोई इरादा नहीं है यहाँ से जाने का। हाँ, अगर किसी को मुझसे कोई प्रॉब्लम है, तो वो जा सकता है।" अद्विक की आवाज़ शांत थी, लेकिन एक अलग ही रौब था उसमें, जिसे सुनने के बाद कोई भी काँप जाए। "दुनिया में कोई भी बदल सकता है, लेकिन आप जैसा इंसान कभी नहीं बदल सकता।" राजवीर की आवाज़ में निराशा महसूस की जा सकती थी। राजवीर वहाँ से चला गया था। आखिर अब ये बुआ नाम की कौन सी बला है? क्यों नफ़रत करता है राजवीर अद्विक से? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… प्लीज़-प्लीज़-प्लीज़ दोस्तों, रिव्यू ज़रूर दीजिए… जय महाकाल…

  • 13. Love with my brother in-law - Chapter 13

    Words: 1269

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब तक हमने देखा… … … अद्विक और रूह के बीच थोड़ी बांडिंग बनने की शुरुआत हो गई थी, वहीं बुआ जी का आगमन और राजवीर, अद्विक के बीच तकरार दिखी। अब आगे… … … राजवीर के जाने के बाद अद्विक पुल की ओर चला गया। "चलो भाभी! मुझे तो लगा आज पता चल जाएगा कि आखिर दोनों के बीच चल क्या रहा है, लेकिन ये दोनों हैं कि एकदम सस्पेंस में। ये सस्पेंस मुझसे हज़म नहीं होता। अब पेट दर्द करेगा तो भाभी मुझे खाने के लिए मत बुलाना।" विनिल ने अपना पेट पकड़ कर कहा। "ये तीनों भाई जंगल से आए हैं क्या?" रूह ने अजीब तरीके से कहा। फिर थोड़ी देर रुक कर वह जल्दी से पुल की ओर गई। उसने देखा अद्विक वहीं पुल के किनारे बैठा हुआ था। रूह भी अद्विक के पास जाकर बैठ गई। "आज के लिए थैंक्यू।" रूह ने अद्विक को देखते हुए कहा। अद्विक का ध्यान पुल में इधर-उधर घूम रहे पानी पर था, जिसमें चाँद का प्रतिबिंब पड़ रहा था। ["तुम यहां इसके पास आकर क्यों बैठी हो? कदाचित तुम्हारी दृष्टि से अनुचित ना हो, परंतु हमारी दृष्टि से यह अनुचित है।"] तारा ने गुस्से से कहा, लेकिन रूह ने उस पर ध्यान नहीं दिया। "थैंक्यू? " अद्विक ने कन्फ्यूज़ होकर कहा। "आज तुम मेरे पीछे आए, मेरा ध्यान भटकाया, उसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।" रूह ने कहा तो अद्विक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। "एहसान उतार रही हो।" अद्विक के शब्द रूह समझ रही थी। "मैं बस तुम्हारा साथ देना चाहती थी।" रूह ने वही कहा जो उसका दिल कह रहा था। अद्विक एक पल के लिए उसमें ही खो गया। सच में, जब भी आपका दिल दुख रहा हो, और तब कोई अपना साथ देने वाला हो, तो मुसीबत आधी कम हो जाती है, बिना कुछ किए ही। "भाई, भाभी! चलो दादा जी खाना खाने बुला रहे हैं।" विनिल ने पुल के पास आकर अद्विक और रूह से कहा। "तुम्हें तो डिनर नहीं करना था ना? पेट दर्द हो रहा है ना तुम्हारा?" रूह ने अपनी आइब्रो उठाते हुए कहा। "अरे वो… वो तो कब का ठीक हो गया! आज मटर पनीर बना है। चलो जल्दी खाते हैं।" सभी जानते थे मटर पनीर और गुलाब जामुन विनिल के फेवरेट थे, तो वह भला कैसे छोड़ सकता था। "चलो चलते हैं।" अद्विक ने कहा और खड़ा हो गया। फिर रूह के आगे हाथ किया। रूह ने अद्विक का हाथ पकड़ा और खड़ी हो गई। डाइनिंग टेबल पर, दादा जी, राजवीर, अभिनव, बुआ जी, दिया, मोनी सभी डिनर के लिए बैठ चुके थे। विनिल, रूह और अद्विक भी आकर बैठ गए। चाहे कुछ भी क्यों ना हुआ हो, दादा जी का रूल था कि सबको खाना साथ में ही खाना होगा। "अद्विक, मैं जानता हूं तुम अभी शादी नहीं करना चाहते, लेकिन बेटा, सभी काम सही उम्र पर किए जाएं तो अच्छा होता है। उम्मीद है तुम हमारी बात को समझोगे। और दुर्गा, तुम मैं जानता हूं तुम्हें अपनी नन्द की बेटियों की शादी करवानी है, इसलिए मैंने कपूर जी से बात की थी। आखिर तुम्हारी ज़िम्मेदारी हमारी भी तो है। कल वे आएंगे, तो तुम्हें ध्यान रखना है कि उनका स्वागत अच्छे से हो। उनका बड़ा बेटा तो शादी नहीं करना चाहता, लेकिन छोटा बेटा है। इसलिए मैंने करन कपूर के साथ दिया का रिश्ता तय करने की सोची है।" दादा जी की बात सुनकर दिया के चेहरे पर मुस्कान नहीं दिख रही थी, लेकिन बुआ जी बहुत खुश हो गई थीं। "जी पापा! इनकी माँ के जाने के बाद मैंने इन दोनों को अपनी बेटियों की तरह रखा है, तो बस एक इच्छा है कि इन दोनों की शादी अच्छे से हो जाए।" बुआ जी ने मुस्कुरा कर कहा। "ठीक है, तो फिर तय रहा। कल लड़के वाले आ रहे हैं, तो तैयार रहना सब।" दादा जी ने कहा और फिर अपने कमरे की ओर बढ़ गए। सभी खाना खाने के बाद अपने-अपने कमरे में चले गए। रूह किचन में गई तो कड़वी ताई बर्तन धो रही थीं। इस ठंड में उनके हाथ ठिठुर रहे थे। "ताई, आप जाओ। अब मैं किचन में समेट लूंगी।" रूह ने अपनी साड़ी का पल्लू कमर पर कसते हुए कहा और बर्तन धोने लग गई। "अरे मेडम जी! हम कर लेंगे। छोड़ो आप, छोड़ो। बप्पा पाप देंगे।" कड़वी ताई ने रूह को साइड करने की कोशिश करते हुए कहा। "अरे ताई, कुछ नहीं होता। आप जाओ। बप्पा कह रहे हैं कि आराम करो। घर पर बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे।" रूह ने कहा तो कड़वी ताई ने रूह की बात मान ली और वहां से चली गई। रूह मुस्कुरा कर अपने काम पर लग गई। बर्तन धो रही रूह को महसूस हुआ कि कोई उसके पीछे खड़ा है। ["कहीं ये बुआ तो मुझे मारने नहीं आई?"] रूह ने मन ही मन खुद से कहा और एक कड़छी उठाई और जैसे पीछे पलटी और मारने की कोशिश की। उस इंसान को उसने देखा, यह अद्विक था। "अरे ये क्या कर रही हो तुम?" अद्विक ने हैरानी से कहा। "मैंने क्या किया? कुछ भी तो नहीं किया। ऐसे पीछे खड़े रहोगे तो कोई भी मारेगा ना।" रूह ने अपनी सफाई में कहा। "मैं तो बस किचन साफ कर रहा था, लेकिन तुमने तो मुझ पर ढाबा बोल दिया।" अद्विक ने अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा। रूह ने उसकी भूरी आंखें देखीं, खूबसूरत लग रही थीं। "ठीक है, तो करो।" रूह ने कहा और वापस पलटकर बर्तन धोने लग गई और अद्विक किचन साफ करने लगा, लेकिन उसकी नज़र बार-बार रूह की गोरी कमर पर चली जाती, जिसका एहसास रूह को नहीं था। ["अपने कार्य से जरा ऊपर उठकर देखो! वह मनुष्य अपनी नयन कहाँ रख रहा है।"] तारा ने सीरियस होकर कहा। ["क्या मतलब है तुम्हारा?"] रूह ने बोलते हुए जैसे ही पीछे देखा, उसे एहसास हुआ कि अद्विक की आंखें ठीक नहीं लग रही थीं। "कहां देख रहे थे तुम? देखो, तुम भूलो मत, मैं भाभी होने वाली… मतलब होने वाली भाभी हूं तुम्हारी, समझे?" रूह ने अपनी उंगली दिखाते हुए अद्विक से कहा। "होने वाली थी, अब नहीं होगी, क्योंकि अब मैं आ गया हूं रू, और तुम्हें मेरा होने से कोई नहीं रोक सकता।" अद्विक का ऐसे खुलकर बोल देना रूह की धड़कनें बढ़ा गया। अद्विक वहां से चला गया, लेकिन रूह के कानों में अब भी उसकी गूंज रही थी। "अभी-अभी इसने मुझे क्या कहा?" रूह ने खुद से बड़बड़ाया। सच में, यह लड़का पागल था। अगली सुबह, राजवीर और अभिनव ऑफिस के लिए निकल चुके थे। आज लड़के वाले आने वाले थे, इसलिए बुआ और विनिल मिलकर सारी तैयारियां कर रहे थे। इसमें रूह भी उनका हाथ बटा रही थी। अद्विक भी घर पर ही था क्योंकि रूह घर पर थी। "पापा, कपूर परिवार तो बहुत अमीर है और इज़्ज़तदार भी। तो क्या उनके सामने रूह को लाना सही होगा? आप ही सोचिए! सभी जगह यह बात फैली है कि राजवीर और रूह की सगाई टूट चुकी है, तो हम उनको क्या जवाब देंगे कि आखिर रूह क्यों यहां हमारे घर में रुकी है?" बुआ जी की बात वैसे अपनी जगह पर सही थी। "बात तो सही है तुम्हारी। कुछ तो कहना होगा। यह रूह की इज़्ज़त का भी सवाल है।" दादा जी ने रूह की तरफ देखते हुए कहा। "मेरे पास एक आइडिया है दादा जी।" अद्विक के बोलते ही रूह परेशान हो गई। उसे डर था कहीं अद्विक कुछ गलत ना बोल दे दादा जी के सामने। एक तो वह सुबह से ही अद्विक को अवॉइड कर रही थी। जो कुछ भी कल रात को हुआ, उसे भूल पाना रूह के लिए मुमकिन नहीं था। क्या कहेगा अद्विक? रूह और अद्विक के बीच इतनी आसानी से क्या सब ठीक होगा? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… … … प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ दोस्तों! अगर कहानी पसंद आ रही हो तो रिव्यू और कमेंट कर दो ना! क्या चला जाएगा… … जय महाकाल… …

  • 14. Love with my brother in-law - Chapter 14

    Words: 1399

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा था कि बुआ जी ने नंद की बेटी के लिए दादा जी के साथ मिलकर देश के सबसे मशहूर कपूर परिवार के छोटे बेटे, करन कपूर, से बातचीत शुरू कर दी थी। लड़के वाले देखने आने वाले थे, लेकिन बुआ जी का कहना था कि रूह को कैसे उनके सामने आने दिया जाए। इस पर अद्विक ने कहा था कि उसके पास उपाय है। अब आगे… सभी का ध्यान अब अद्विक की तरफ था। "क्या आइडिया है तुम्हारे पास?" रूह ने अद्विक की तरफ देखते हुए कहा। उसकी आँखें अद्विक को चेतावनी दे रही थीं कि कुछ भी उल्टा-सीधा न बोले। "क्यों न हम यह कहें कि रूह मेरी फुल-टाइम असिस्टेंट है, जो हर समय मेरे साथ रहती है? तो उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।" अद्विक की बात सुनकर दादा जी सोच में पड़ गए। "अरे बेटा, कौन सी असिस्टेंट घर में रहती है भला?" बुआ जी ने बीच में बोलते हुए कहा, अन्यथा उनका खाना थोड़ा न हजम होता। "फुल-टाइम असिस्टेंट का नाम सुना है बुआ जी, जैसे अभिनव राजवीर का फुल-टाइम बॉडीगार्ड है, वैसे ही।" अद्विक की बात सुनकर बुआ जी चुप हो गईं। "ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगे। चलो अब सब जल्दी हाथ चलाओ।" दादा जी ने अद्विक से कहा और वहाँ से चले गए। रूह ने एक चैन की साँस ली। उसे तो लगा था कि यह लड़का क्या करेगा। "बुआ, यह आप सही नहीं कर रही हैं। यह शादी दिया को नहीं, मुझे करनी है, और मैं कपूर फैमिली में शादी करके रहूँगी।" मोनी ने अपने बालों की लट को अपनी उंगली से घुमाते हुए कहा। "चुप कर तू! तेरे लिए तो अद्विक है ना, भूल मत! अद्विक इस खानदान का सबसे बड़ा बेटा है। न सिर्फ उसके पास शेर और ज़्यादा है, बल्कि उसका खुद का बिज़नेस भी है, फ़ॉरेन देश में।" बुआ जी ने मोनी के सामने एक शिकार के तौर पर अद्विक को पेश किया। मोनी की निगाहें अब अद्विक को तलाश करने लगीं। वहीं रूह किचन में मेहमानों के लिए नाश्ता बना रही थी, तभी वहाँ अद्विक भी पहुँच गया। "तुम यह सब क्यों कर रही हो? हमारे घर में कई सर्वेंट हैं ना।" अद्विक ने रूह के पास आकर कहा। "हाँ, लेकिन मेहमानों को खाना हमें खुद बनाकर ही देना चाहिए, क्योंकि अतिथि देवो भव।" रूह ने कहा। अद्विक मुस्कुराने लगा। सच में, कभी-कभी बहुत भोली लगती थी रूह। अद्विक उसे प्यार से देखता रहा। रूह को अजीब लग रहा था, लेकिन वह अद्विक से क्या कहे, समझ नहीं पा रही थी। तभी वहाँ मोनी आ गई और अद्विक के एकदम करीब आकर खड़ी हो गई। "अद्विक जी… यहाँ क्या कर रहे हैं आप? चलिए ना, मैं आपको कुछ बताना चाहती हूँ।" मोनी ने यह सेडक्टिव आवाज़ में कहा। लग रहा था जैसे उसे बहुत प्रैक्टिस है लड़कों को घुमाने की। सच में, आजकल लड़कों से ज़्यादा लड़कियाँ खतरनाक हो गई हैं। पर एक बात तो है, चाहे वह लड़का हो या लड़की, कोई एक गलती करे तो सुनना बाकी सभी को पड़ता है। ["इसके विचार कुछ खोट वाले प्रतीत होते हैं।"] तारा ने मोनी के आस-पास उड़ते हुए कहा। "जो बोलना है, यहीं बोलो, क्योंकि मुझे यहीं रहना है।" अद्विक ने सीधे-सीधे बोल दिया और मोनी के पास से हटकर रूह की दूसरी ओर खड़ा हो गया। "ऐसे कैसे? मैं यहाँ बात करना चाहती हूँ अद्विक जी… प्लीज़ चलिए ना।" मोनी ने फिर एक बार अद्विक के पास आकर कहा। "मैं तुम्हें इंसल्ट करना नहीं चाहता, बहन, तो प्लीज़ जाओ यहाँ से।" अद्विक की बात सुनकर मोनी के लिए आगे कुछ बोलना बाकी नहीं था। तभी उसके कानों में रूह के हँसने की आवाज़ आई। वह जोर-जोर से हँस रही थी। "ओ सॉरी, सॉरी! हाहाहा…" रूह माफ़ी माँगकर फिर हँसने लगी। "तुम्हें तो मैं देख लूँगी।" मोनी ने धीरे से रूह को देखकर कहा और वहाँ से गुस्से से चली गई। "तुम इतना क्यों हँस रही हो?" अद्विक ने मोनी के जाने के बाद रूह से सवाल किया। "अरे, क्या अब मैं हँस भी नहीं सकती? इसमें भी तुम्हें प्रॉब्लम है?" रूह ने मुँह बनाकर कहा। "नहीं, नहीं। हँसा करो। बहुत प्यारी लगती हो।" अद्विक ने कहा और वहाँ से चला गया। "बंदर कहीं का।" रूह ने जाते हुए अद्विक को देखकर कहा और मुस्कुरा उठी। इन दोनों ज़िंदगियों में यह पहली बार था जब कोई उसकी तरफ़दारी करता था, उसे मुस्कुराने के लिए बोलता था और उसके ग़म में भी साथ देता था। इसलिए वह खुश थी। "मुझे नहीं लगता जिंदल परिवार में मेरा कुछ होने वाला है। मुझे कुछ करके करन कपूर के साथ ही अपनी शादी फ़िक्स करनी होगी। लेकिन इससे पहले उस रूह को तो मैं अच्छा सबक सिखाऊँगी।" मोनी को पता था कि राजवीर मोना से प्यार करता है, और जिस तरीके से अद्विक ने अभी उससे बात की है, समझो कि वे दोनों तो गए हाथ से। और जिंदल परिवार के बाद कपूर परिवार ही है जो सबसे अमीर है, इसलिए अब मोनी की नज़र थी कपूर परिवार के छोटे बेटे, करन कपूर पर। अब देखना यह है कि किसकी शादी किससे होती है। सारी तैयारी हो चुकी थी। रूह घूमते-घूमते विला के गार्डन एरिया में पहुँची। उसने देखा अद्विक वहाँ झूले पर आराम से बैठा आसमान को देख रहा था, जहाँ कुछ पंछी और बादल छाए थे। धूप तो बस हल्की-हल्की दिख रही थी। "एक बात पूछूँ?" रूह भी जाकर उसके पास बैठ गई। "हाँ, एक क्या? सोचो पूछो।" अद्विक ने मुस्कुराकर कहा। "तुम्हारे और राजवीर के बीच ऐसा भी क्या हुआ कि तुम विदेश चले गए?" रूह के बोलते ही अद्विक की मुस्कान गायब हो गई। रूह जानती थी यह पूछना सही नहीं होगा, लेकिन वह यह बात जानना चाहती थी। "अभी हम इतने भी करीब नहीं हैं कि मैं तुम्हें यह सारी बात बताऊँ।" अद्विक तुरंत खड़ा हो गया और वहाँ से चला गया। "क्या हम इतने करीब नहीं थे?" रूह की आँख में फिर नमी आ गई। ["हमने चेताया था तुम्हें कि इतनी शीघ्र भरोसा मत करो। तुम्हारा धरती पर आना एक बहुत बड़ी योजना है, जिसमें प्रेम नहीं, अपितु युद्ध लिखा है, एक महायुद्ध, मानव से भी और दानव से भी।"] तारा ने कहा और वहाँ से चली गई। रूह का मन किया तारा का सर फोड़ दे। माना कि उसने विराट पर भरोसा किया था और राजवीर को गलती से चुन लिया, लेकिन अद्विक को उसने खुद चुना था। वही अद्विक था जो उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा था। "ठीक है, अब मैं उसे देखूँगी भी नहीं।" रूह ने कहा। तभी उसका फोन रिंग हुआ। यह वही अनजान नंबर से मैसेज था जो पहले भी रूह को आया था। "अगर तुम अपने और अपनी माँ के बारे में जानना चाहती हो, तो अभी के अभी इस पते पर आ जाओ।" इस मैसेज के नीचे एक एड्रेस भी मेंशन किया गया था। रूह भी बिना कुछ आगे की सोचे तुरंत निकल गई। उसने वॉचमैन से दादा जी ने जो उसे कार दी थी उसकी चाबी मँगवाई और लोकेशन सेट करके तुरंत वहाँ से निकल गई। तारा भी हड़बड़ी में उसके साथ जाने लगी। "हमारी बात पर गौर करो। ऐसे जाना उचित नहीं होगा। हो सकता है यह कोई षड्यंत्र हो।" तारा की बात को रूह ने अनसुना कर दिया और ड्राइव करने लगी। कुछ ही देर बाद वह एक सुनसान फैक्ट्री के बाहर थी। उसने ध्यान से उस जगह को देखा। "हम अब भी चेता रहे हैं तुम्हें।" तारा ने कहा, लेकिन तब तक रूह आगे बढ़ चुकी थी। फैक्ट्री के अंदर जाते ही उसने देखा वहाँ आसपास कोई नहीं था। फैक्ट्री बाहर से जितनी खराब थी, अंदर से उतनी ही साफ-सुथरी थी। रूह ने उस पूरी जगह में अपनी नज़रें दौड़ाईं। तभी उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पीछे है। वह तुरंत नीचे झुकी और घूम गई और अपने पीछे खड़े इंसान को कमर से पकड़कर पछाड़ दिया। रूह ने देखा यह एक मास्क वाला आदमी था। "आह…" यह एक आदमी की आवाज़ थी। "मुझसे चालाकी करने की कोशिश भी मत करना। अब बताओ मेरे बारे में क्या जानते हो?" रूह ने उस आदमी के पैरों पर अपने पैर रखकर कहा। तभी उसे धुआँ दिखने लगा। "ये… ये क्या?" मात्र दो सेकंड में ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। आखिर कौन हैं ये लोग? क्या रूह की जान खतरे में है? अद्विक और रूह के रिश्ते बिगड़ जाएँगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़! बोलकर थक चुकी हूँ। नहीं जानती क्यों आप सब रिव्यू देने में इतनी कंजूसी कर रहे हो। क्या आप सबको कहानी पसंद नहीं आ रही? … जय महाकाल!

  • 15. Love with my brother in-law - Chapter 15

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब तक हमने देखा… … … … … … … … … … … …॥ अद्विक के गुस्से से बोलने पर रूह उससे नाराज़ हो गई थी। वहीं रूह को एक मैसेज आया, जिसके लिए वह फ़ैक्टरी गई और वहाँ बेहोश हो गई। अब आगे… … … … … … … … … … … … … … … …॥ जिंदल विला, कपूर परिवार चुकी थी और उनकी खातिरदारी में बुआ जी और दादा जी कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। आखिर दो बड़े-बड़े खानदान एक होने जा रहे थे; यह वैसा ही था जैसे टाटा और अंबानी का परिवार एक हो रहा हो। एक समय था जब कपूर परिवार जिंदल परिवार से भी ऊपर माना जाता था। तब परिवार का कारोबार रोहित कपूर संभाला करते थे, लेकिन फिर सुनने में आया कि उनकी होने वाली पत्नी एक कीमती हीरे की चोरी करके भाग गई थी। तब वे डिप्रेशन में चले गए थे और सारा कारोबार अपने बड़े भाई विक्रम कपूर को दे दिया और खुद रिटायर हो गए। उसके बाद कपूर परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए। विक्रम कपूर को बिज़नेस करना नहीं आता था; आए दिन घाटे होते चले गए। फिर जब विक्रम कपूर का बड़ा बेटा मानिक कपूर बीस साल का हुआ, उसने कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ले ली। महज़ पाँच साल में आज फिर से कपूर परिवार देश का अमीर और प्रतिष्ठित परिवार बन चुका था। "हमें बस एक अच्छी, शूशील बहू चाहिए जो हमारे घर के नियम-रिवाजों को निभा सके। आजकल की लड़कियों को तो आप जानते ही हैं ना—ईश्वर में यकीन नहीं, कोई दया का भाव नहीं, बस दिन भर मोबाइल में लगे रहते हैं।" सुष्मिता कपूर (विक्रम कपूर की पत्नी) ने कहा। "सही कहा आपने, लेकिन हमारी बेटी ऐसी नहीं है। हमने उसे बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं।" बुआ जी ने अपनी बात रखते हुए कहा। "हमारे घर में कोई बेटी नहीं है, तो हम बस एक बहू के रूप में बेटी चाहते हैं।" विक्रम जी दिल के बेहद अच्छे थे। "बेटा, ये तो बहुत उत्तम बात कही आपने। वैसे, रोहित नहीं आए?" दादा जी ने सवाल किया। "आप तो जानते हैं, रोहित अपने कमरे से ही नहीं निकलता है। इतने साल हो गए, लेकिन उसने हमारे साथ बैठकर कभी चाय तक नहीं पी है। लेकिन हाँ, सगाई में वह ज़रूर आएगा।" विक्रम कपूर ने अफ़सोस जताते हुए कहा। लग रहा था उन्हें सच में अपने बेटे की परवाह है। "अब लड़की को बुलाइए ताकि करन और हम सब फ़ैसला ले सकें।" सुष्मिता कपूर ने कहा। "मैं ले कर आता हूँ दीदी को।" विनिल ने कहा क्योंकि दिया उससे एक साल बड़ी थी। विनिल की उम्र चौबीस साल थी और दिया की पच्चीस साल; इसलिए विनिल दिया को दीदी कहता था। वहीं दिया के कमरे में अलग ही सीन चल रहा था। "दिया, मैं करन से शादी करना चाहती हूँ।" मोनी ने सीधे-सीधे दिया से बोल दिया था। वैसे तो दिया और मोनी जुड़वा बहनें थीं, लेकिन उनमें एक भी गुण नहीं मिलते थे। मोनी स्वार्थी थी, वहीं दिया दिल की साफ़ थी। "ठीक है, तो कर लो। मुझे वैसे भी यह शादी नहीं करनी।" दिया ने शांति से जवाब दिया। ["क्या बात है! यह तो आसानी से मान गई। मुझे तो लगा था इसका सर फोड़ना होगा।"] मोनी ने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा। सच में ऐसे लोग किसी के सगे नहीं हो सकते जो अपनी ही बहन की दुश्मन बनी बैठी है। वह रूह के लिए क्या ही अच्छा करेगी? "ठीक है, तुम बाहर मत आना। मैं बाहर जाऊँगी। अब जल्दी से रेडी करो मुझे।" मोनी ने कहा और जल्दी से तैयार हो गई। विनिल जब कमरे में आया तो उसने देखा कि दिया बिस्तर पर बैठी है और मोनी हरे रंग की साड़ी पहनकर तैयार होकर ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी है। दिया ने उसे अच्छे से तैयार कर दिया था। "ये क्या, दीदी? ये मोनी तैयार होकर क्यों बैठी है?" विनिल ने कहा। विनिल अच्छे लोगों को ही इज़्ज़त देता था। "मैं भी दीदी ही हूँ तुम्हारी। अब चलो, बाकी बातें बाद में सोचना।" मोनी ने विनिल का हाथ पकड़कर बाहर जाते हुए कहा। बुआ और दादा जी ने जैसे ही दिया के जगह मोनी को देखा, वे हैरान हो गए, लेकिन सबके सामने बोल भी क्या सकते थे? ["यह लड़की नहीं सुधरेगी।"] बुआ ने मन ही मन कहा। मोनी और करन कपूर ने एक-दूसरे से बात की। मोनी की एक्टिंग लाजवाब थी; वह अब एक शूशील, सर्वगुण संपन्न लड़की दिख रही थी। लंच करने के बाद कपूर परिवार अपने घर के लिए निकलने लगा। "चलिए, अब हम चलते हैं। रात तक आपको जवाब मिल जाएगा।" विक्रम कपूर ने हाथ जोड़कर कहा। "जी, ज़रूर।" बुआ जी ने भी हाथ जोड़कर कहा। "और यह तो अद्विक है ना? इनके बारे में बहुत सुना है हमने।" विक्रम कपूर ने अपनी ओर आते हुए अद्विक को देखकर कहा। "हाँ, इनकी इंडस्ट्री में बहुत चलती है।" करन ने भी अपने पिता की बात में सहमति दी। "हैलो, एवरीवन।" अद्विक ने दादा के आँखों के इशारे को समझकर मजबूरी में सबको हाय बोला। "रूह दिख नहीं रही।" अद्विक ने विनिल के कान में धीरे से कहा। "पता नहीं, भाभी तो सुबह से ही नहीं दिख रही। कहीं ऑफ़िस तो नहीं गई?" विनिल ने धीरे से कहा। "तू पूछ राजवीर से।" अद्विक के कहने पर विनिल ने उसे घूरा, फिर राजवीर को कॉल किया। वहीं दूसरी ओर एक बंद पड़ी फ़ैक्टरी में, सुबह से शाम होने आई थी। रूह को धीरे-धीरे होश आया। उसने देखा वह अकेली ही उस जगह पर पड़ी हुई है। तभी उसकी नज़र दौड़कर अपनी ओर आ रहे अद्विक पर पड़ी। "तुम ठीक तो हो? यहाँ कैसे आई? क्या हुआ था यहाँ?" अद्विक ने रूह के पास झुककर कहा। "हाँ, मैं ठीक हूँ। तुम यहाँ क्यों आए हो?" रूह सुबह की बात भूली नहीं थी। "क्यों आया हूँ से क्या मतलब है? तुम सुबह से गायब हो, एक तो यहाँ बेहोश थी और मुझसे पूछ रही हो मैं यहाँ क्यों आया हूँ?" अद्विक ने गुस्से से कहा। "हाँ, मैं पूछ रही हूँ कि यहाँ क्यों आए हो? मुझे खुद का ख्याल रखना आता है। मेरे पीछे दुबारा मत आना, समझे? हम इतने भी करीब नहीं हैं।" रूह के बोलने पर अद्विक समझ गया कि रूह उससे नाराज़ है। "अभी लड़ने का सही वक्त नहीं। चलो पहले हॉस्पिटल चलते हैं।" फ़ैक्टरी से बाहर निकलते हुए अद्विक ने कहा। "मुझे सलाह की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम अपने रास्ते जाओ, मुझे अपने रास्ते जाने दो।" आगे-आगे चल रही रूह ने कहा और अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई। "रुको, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। मुझे कार चलाने दो।" अद्विक ने कार का दरवाज़ा पकड़कर कहा। "मैं बिल्कुल ठीक हूँ और तुम्हारी कार भी तो है, उसे कौन चलाएगा?" अद्विक की कार को देखते हुए रूह ने कहा। "रूह, तुम बहस मत करो। मैंने कहा ना मुझे कार चलाने दो, तो दो।" अद्विक ने गुस्से से कहा। एक पल के लिए रूह डर सी गई। "ठीक है, मुझे क्या?" रूह ने कहा और उठकर पैसेंजर सीट की ओर बैठने लगी। अद्विक ने उसे अच्छे से बिठाया और दरवाज़ा अच्छे से लॉक कर दिया। वैसे तो रूह को अद्विक का यूँ उसका ख्याल रखना अच्छा लग रहा था, लेकिन उसका गुस्सा भी अभी उसके नाक पर था। "वैसे, तुम यह बताओ, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?" रूह ने अद्विक से सवाल किया। "जिंदल परिवार की सभी कार में ट्रैकर लगा हुआ है सिक्योरिटी के लिए। तो जैसे ही मुझे पता चला तुम दादा जी की कार लेकर गई हो, मैंने ट्रैक किया और आ गया।" अद्विक ने कहा। "यह तो नाइंसाफ़ी हुई! कोई स्पेस नाम की चीज़ ही नहीं।" रूह ने कहा। "तुम यह बताओ, तुम यहाँ करने क्या आई थी? तुम्हें इस खाली फ़ैक्टरी में क्या काम था? और तुम बेहोश कैसे हो गई थी?" अद्विक ने सवाल किया तो रूह की बोलती बंद हो गई। "दरअसल, मैं… मैं बस वहाँ…" रूह को समझ नहीं आ रहा था कि वह अद्विक को क्या कहे, क्योंकि उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। अगर कोई उसे नुकसान पहुँचाना चाहता था, तो उसे ऐसे ही क्यों छोड़ दिया? मार देता वक्त तो था। रूह को अफ़सोस इस बात का था कि न उसे कोई अपनी माँ की खबर मिली, ना ही वह उस हमलावर को देख पाई। "कोई बात नहीं। जब तुम कम्फ़र्टेबल हो, बता देना। मैं समझ सकता हूँ, कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें बताना आसान नहीं होता, लेकिन मुझे खुशी है तुमने झूठ नहीं बोला।" अद्विक ने ड्राइव करते हुए कहा। रूह ने अद्विक को देखा; उसका चेहरा कितना हैंडसम था! उसके चेहरे पर एक अलग ही शांति नज़र आ रही थी, जिसे देखकर रूह को सुकून मिल रहा था। हमारे जीवन में कोई न कोई बात ऐसी होती है जिसे बताने में झिझक महसूस होती है, इसलिए हम झूठ बोल देते हैं और वह झूठ अक्सर या तो मुसीबत बनता है या तो हमारे मन में अफ़सोस रहता है। जिसका दिल साफ़ हो, वह झूठ सहन नहीं कर सकता; इसलिए जितना हो सके झूठ नाम की बीमारी से बचना चाहिए। आखिर यह छुपा हुआ हमलावर करना क्या चाहता है? कौन है वह? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ… … … … … … … … … … … … … … … … प्लीज़ मेरे प्यारे-प्यारे रीडर्स दोस्तों, अपना कीमती रिव्यू दीजिए। इसमें आपकी जायदाद का कोई भी हिस्सा नहीं जाएगा, इसकी गारंटी मेरी है… … जय महाकाल… … … …

  • 16. Love with my brother in-law - Chapter 16

    Words: 1449

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा.................................................................॥ रूह के बेहोश होने के बाद, अद्विक और रूह घर वापस लौट रहे थे, क्योंकि रूह ने अस्पताल जाने से मना कर दिया था। अब आगे.................................................................॥ कार में शांति थी। अद्विक और रूह शांति से ड्राइव का मज़ा ले रहे थे। "क्या हम अस्पताल नहीं जा सकते?" अद्विक ने एक और बार कहा। वह अपनी कार बहुत धीरे-धीरे चला रहा था। "नहीं, अस्पताल नहीं जा सकते। लेकिन हाँ, अगर तुम चाहो तो हम डिनर बाहर कर सकते हैं। वैसे भी मैंने लंच तक नहीं किया, अब भूख लगी है।" रूह ने कहा। तो अद्विक के लिए तो यह सुनहरा मौका था। "ठीक है, अभी चलते हैं रॉयल विंग में।" अद्विक ने इंडिया के फेमस होटल का नाम लिया, जो कि असल में उनके ही परिवार का था। "नहीं, तुम अपने ही होटल हमें ले जाना चाहते हो ताकि तुम्हें बिल न देना पड़े, है ना?" रूह ने अद्विक की तरफ देखते हुए कहा। "अरे नहीं रू, ऐसा नहीं है। अच्छा, बताओ कहाँ जाना है, हम वहीं जाएँगे।" अद्विक ने मुस्कुरा कर कहा। "होटल अन्नपूर्णा में ले चलो।" रूह ने कार में लोकेशन सेट करते हुए कहा। "यह कौन सा होटल है? मैंने तो कभी नाम नहीं सुना इसका?" अद्विक ने थोड़ा हैरान होकर कहा। "तुम्हें जाना है कि नहीं, यह बताओ। वरना मैं खुद अकेली चली जाऊँगी।" रूह ने अद्विक को घूरते हुए कहा। "ठीक है, ठीक है, चलते हैं।" अद्विक ने कहा, और फिर मुस्कुराने लगा। ["यह कितनी बार स्माइल करता है! जब देखो बस दांत दिखाता रहता है।"] रूह ने मन ही मन कहा। तभी उसके सामने तारा प्रकट हो गई। "अगर तुम्हें इतना ही यह मनुष्य नापसंद है, तो इसके साथ भोजन हेतु जा ही क्यों रही हो?" तारा ने कहा। तो रूह का मन किया तारा को वापस भेज दे। हर बात में अपनी टांग अड़ाना जैसे आदत हो चुकी थी। ["तुम्हें क्या लगता है, मैं सुबह के किए इसके बिहेवियर को ऐसे ही भूल जाऊँगी? बिल्कुल नहीं! मुझे सब याद है। होटल तो मैं अपने मकसद से जा रही हूँ।"] रूह ने मन ही मन कहा। "उचित है, तो हमें भी कृपया बताओ कि तुम्हारी मनशा क्या है?" तारा ने कहा। इससे पहले कि रूह कोई जवाब देती, अद्विक ने कार रोकी, क्योंकि होटल अन्नपूर्णा आ चुका था। "चलो, लेकिन हाँ, ध्यान से, ओके।" अद्विक पहले खुद कार से उतरा, फिर रूह की साइड का डोर ओपन करते हुए कहा। "इसका बस चले, तो यह तो मुझे उठाकर ही ले जाए।" रूह ने धीरे से खुद से कहा, जिसे बस तारा सुन पाई। वह रेस्टोरेंट छोटा सा था, जहाँ महज़ 4 से 5 लोग खाना खा रहे थे। रूह और अद्विक एक टेबल पर बैठे। अद्विक के एक्सप्रेशन से यह साफ़ समझ आ रहा था कि उसे ऐसे छोटे रेस्टोरेंट में खाने में कितनी तकलीफ हो रही थी। अद्विक ने पहले टेबल साफ़ किया अपने हैंकी से, फिर प्लेट, स्पून, जो भी आया सब साफ़ किया। रूह को बड़ा अजीब लग रहा था। आसपास के सभी लोग भी उन्हें ही घूर रहे थे। "यह क्या कर रहे हो तुम?" अपने गालों पर हाथ फेरते हुए, रूह ने बेहद धीमी आवाज़ में, दाँत भींचते हुए कहा। "क्लीन कर रहा हूँ। इट्स टोटली अनहाइजीनिक।" अद्विक ने खुद को शांत रखने की बेहद कोशिश की, लेकिन हो नहीं रहा था। "हमारे लिए एक-दो पनीर हांडी, दो पुलाव, दो स्वीट बासुंदी, दो नान और हाँ, एक में एक्स्ट्रा बटर डालना।" रूह ने उन दोनों का ऑर्डर खड़े वेटर को दिया। "अब तुम चुपचाप बैठना, मैं वॉशरूम जाकर आती हूँ।" रूह ने कहा और वहाँ से चली गई। उसके जाते ही, अद्विक, जो कि मासूम लग रहा था, अचानक से खतरनाक लगने लगा। रूह जल्दी से बिल काउंटर की ओर गई, और रिसेप्शन पर जाकर बात करने लगी। "आपके यहाँ का खाना सच में बेहद टेस्टी है। मैं सोच रही थी, अपने ऑफिस में होने वाले इवेंट में आपके यहाँ के पार्सल ही ले जाऊँ।" रूह ने जैसे जाल तैयार किया। "अरे जी जी, मेडम! आप बस एड्रेस दे दीजिए, हम खुद पार्सल भिजवा देंगे।" सेठ मनीलाल ने कहा। "जी जी, कुछ हमारे ऑफिस में भिजवाने हैं और कुछ यहाँ पास ही में बंद पड़ी फैक्ट्री में। यहाँ से बस 15 मिनट की दूरी पर ही है।" रूह ने कहा। "अरे हाँ जी जी, मेडम! पिछले कुछ दिनों से तो रोज़ ही हम वहाँ पार्सल भिजवाते रहते हैं।" मनीलाल ने कहा। "अच्छा, वहाँ पार्सल देने कौन जाता है? मैंने भी बड़ी तारीफ़ सुनी थी डिलीवरी के बारे में?" रूह ने हँसते हुए कहा। "वहाँ महेंद्र जाता था, लेकिन आज तो वह आया ही नहीं है।" मनीलाल ने कहा। "ओह, क्या आप मुझे उसका फ़ोन नंबर दे सकते हैं? दरअसल, जब भी मुझे पार्सल मंगवाना होगा, तो एड्रेस के लिए तकलीफ़ नहीं होगी।" रूह ने पूरी बात अच्छे से समझाई, तो मनीलाल ने महेंद्र का एड्रेस दे दिया। "यह कौन सा भोज का प्रबंध कर रही हो तुम?" तारा ने उड़ते हुए कहा। ["भोज नहीं, शिकार करने के लिए जाल बुन रही हूँ। जब मैं फैक्ट्री में गई थी, मैंने आसपास सब जगह नज़र फेरी। मुझे वहाँ दो सुराग मिले, एक इस होटल का बिल दिखा और दूसरा, एक कैमरे की रसीद। मैं जल्द ही हमलावर तक पहुँच जाऊँगी।"] रूह ने मन ही मन कहा। अब जाकर तारा को सारी बात समझ आ रही थी। रूह की अक्ल देखकर तारा खुश थी। "मेरा नाम अद्विक है। अगर भूल से भी कोई गलती हुई तुमसे, तो जान से जाओगे। दो दिन हैं तुम्हारे पास। अगर तीसरा दिन हुआ, तो तुम्हारे घर वाले तुम्हारी अर्थी सजा रहे होंगे।" रूह जब टेबल के करीब आई, तो उसने देखा अद्विक रेस्टोरेंट की खिड़की के पास खड़ा किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसका चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात यमराज धरती पर आए हों। "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" जैसे ही रूह ने अद्विक के कंधे पर हाथ रखकर कहा, अभी-अभी जो अद्विक इतना भयंकर दिख रहा था, अचानक ही उसके एक्सप्रेशन बदलकर एकदम नॉर्मल हो गए। "कुछ नहीं, बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। चलो अब डिनर करते हैं।" अद्विक ने मुस्कुराकर कहा। रूह और अद्विक ने खाना खाया और घर के लिए निकल गए। जिंदल विला, जब रूह और अद्विक घर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि हॉल में दादा जी, राजवीर, अभिनव और बुआ बैठे हुए थे, और उनके ठीक सामने मोनी और दिया खड़ी हुई थीं, और उन दोनों के ठीक पीछे खड़ा था विनिल। रूह और अद्विक ने एक-दूसरे की तरफ देखा, जैसे पूछ रहे हों कि आखिर यह चल क्या रहा है? फिर दोनों ने एक साथ कंधे उचका दिए। सच में, राम मिलाए जोड़ी थी दोनों की। "तुम्हें शर्म नहीं आई? हमने कहा था ना दिया कि शादी होगी करन कपूर के साथ। तुम्हें बीच में आने की ज़रूरत ही क्या थी? और दिया, तुम चलो यह बेवकूफ़ है, लेकिन तुम तो सोच-समझकर फ़ैसला कर सकती हो ना? और तुम विनिल, तुम्हें तो ध्यान देना चाहिए था। इसे बंद कर देना चाहिए था।" बुआ जी ने गुस्से से कहा। बुआ जी का गुस्सा आसमान को छू रहा था। "बुआ, मेरी क्या गलती इसमें? अब किसी को भी नहीं आता तो नाक कट जाती है। इससे अच्छा मैंने सोचा किसी एक को तो लेकर ही जाता हूँ।" विनिल ने अपनी सफ़ाई पेश की। "मामी, मेरी भी कोई गलती नहीं है। दिया ही नहीं चाहती थी बाहर आना, तो मैंने तो बस परिवार की इज़्ज़त रखी थी बाहर आकर।" मोनी ने भी जल्दी से पल्ला झाड़ लिया। दोनों ने मिलकर इल्ज़ाम दिया दिया पर, और दिया बस चुपचाप सिर झुकाए खड़ी थी। "कितनी चालाक औरत है यह मोनी! बेचारी दिया को फँसा रही है।" रूह ने धीरे से कहा। "अच्छा, ऐसा क्यों लगता है तुम्हें?" अद्विक ने रूह के पास झुककर कहा। "मुझे ना पक्का यकीन है कि यह कांड मोनी ने ही किया होगा। देखा नहीं था सुबह कैसे डोरे डाल रही थी तुम पर।" रूह ने जोश-जोश में बोल तो दिया, लेकिन उसका जोश अब उस पर ही भारी था। जब रूह को एहसास हुआ कि उसने क्या बोला है, तो वह बाहर से जल्दी से भागकर अभिनव के पास खड़ी हो गई। "जलते तो हम उस हवा से हैं ग़ालिब, जो उसकी हर साँस में समा जाए, काश उसकी मुस्कान पर हक़ हमारा हो जाए, अगर वह रोना भी चाहे तो भी मुस्कान आ जाए॥" अद्विक की यह शायरी दिल को छू लेने वाली थी। उसने दूर से रूह को देखते हुए कहा। ["यह मेरी ज़ुबान एक ना एक दिन मेरी जान ले कर रहेगी।"] रूह ने मन ही मन कहा। "सत्य वचन।" तारा ने जैसे ही कहा, रूह ने अपनी जलती आँखों से उसे देखा, तो तारा तुरंत गायब हो गई। आखिर कौन सा सही रूप है अद्विक का? क्या रूह पहुँच पाएगी हमलावरों तक? या अरचने बढ़ेगी नए दुश्मनों के साथ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ.................................................... प्लीज़ दोस्तों, आपको आपके फ़ोन की कसम, रिव्यू दीजिए। अच्छे-अच्छे रिव्यू दीजिए और कमेंट भी कीजिए.........................जय महाकाल........................

  • 17. Love with my brother in-law - Chapter 17

    Words: 1590

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब  तक हमने देखा....................॥

    विनिल और मोनी तो अपनी अपनी सफाई पेश कर के फसा गए दिया को,दिया चुप चाप बस खड़ी रही,वही रूह और अद्विक की आँख मिचौली चल रही थी।

    अब आगे...........................॥

    अब सभी की नजर दिया पर थी।

    "बताओ दिया आखिर ये सब क्यू किया?" दादा जी ने कहा।

    ["ये सारा पराक्रम मोनी का किया है,उसी ने कहा था की उसे ये विवाह करना है तो दिया ने भी मंजूरी दे दी।"] तारा ने उड़ते हुए कहा।

    "दादा जी मुझे ये शादी नहीं करनी है।" दिया की आँखों मे आँसू थे।

    "तो पहले बता देत बेटा हम क्या जबरदस्ती तुम्हारी शादी कराते?" दादा जी ने कहा।

    "पापा आप भी हद करते है इतने अच्छे परिवार का लड़का हमे कहा मिलेगा भला?" बुआ जी की बात वेसे अपनी जगह पर सही थी।

    "दादा जी मोनी ने दिया से कहा था की वो करन कपूर से शादी करना चाहती है,तो अब इसमे दिया क्या ही करती आप ही बताओ?" रूह ने आगे या कर कहा तो,सभी हेरान हो गए,वही मोनी को तो यकीन ही नहीं हो रहा था की रूह को ये बात केसे पता,उसे कहा पता था तारा रूह के पास है जो की एक अंतर्यामी है।

    "ये ये जूठ है तुमसे ये किसने कहा?" मोनी ने आगे आते हुए कहा।

    "रहने दो अब सब,इस बात को यही खत्म करो अब जब मोनी को उन लोगों ने पसंद कर लिया है तो हम क्या कर सकते है,चलो अब सब सो जाओ,परसों सगाई है मे नहीं चाहती दोनों परिवार के बीच इस बात को ले कर कोई मनमुटाव हो जाए।" बुआ ने जी ने कहा और अपने कमरे की और बढ़ गई।

    ["ये बुढ़िया बेहद चालक है।"] रूह ने जाती हुआ बुआ को देख कर कहा।

    सभी सोने चले गए,अपने रूम मे जा कर रूह ने जल्दी से उस नंबर पर कॉल किया जो नंबर उसे सेठ मनीलाल ने दिया था।

    कॉल रिंग हो रहा था लेकिन उसे कोई उठा नहीं रहा था,रूह ने दूसरी बार ट्राइ किया तो सामने से एक लड़के की आवाज़ आई।

    "हैलो कोन?" लड़के ने कहा।

    "हैलो मे हु दिल्ली पुलिस से इंस्पेक्टर मालिनी,महेंद्र से बात करनी है।" रूह ने अपनी आवाज़ थोड़ी भारी करते हुए कहा।

    "अ जी जी,,,,,जी मेडम हम ही है महेंद्र,बताइए हमसे कोनों गलती हो गई है का?" महेंद्र ने कहा।

    "तुम जो फ़ेक्टरी मे पार्सल देने जाते थे वहाँ कोन कोन था विस्तार से बताओ।" रूह ने कहा।

    "वहाँ कोन कोन था ये तो पता नहीं लेकिन रोज जब मे वहाँ पार्सल देने जाता था तब एक आदमी बाहर आता था,उसके मुह पर मास्क होता था इसलिए पता नहीं वो कोन था।" महेंद्र ने कहा।

    "क्या और कुछ है जिससे हमे उस आदमी को पहचानने मे मदद मिले?" रूह ने अगला सवाल बड़ी उम्मीद के साथ किया की काश ये महेंद्र उस आदमी के बारे मे कुछ और सुराग दे सके।

    "नहीं ऐसा कुछ तो मेडम याद नहीं।" महेंद्र का ये जवाब रूह के लिए निराशा बन गया।

    अपने मन में उठ रहे सवालों को सोचते सोचते ना जाने कब उसे नींद आ गई।

    अगली सुबह,

    रूह जब उठी उसने देखा बुआ ने सगाई की तैयारिया शुरू कर दी थी।

    "ये सगाई रिश्ता कुछ ज्यादा ही जल्दी ही नहीं हो रहा?" रूह ने बुआ को देखते हुए तारा से कहा,ये बात उसके पास से गुजर रहे विनिल और कुणाल ने भी सुन ली,वो भी अपने दोनों हाथ बांध कर रूह क आस पास खड़े हो गए।

    "हा जेसे चट मंगनी पठानी ब्याह।" कुणाल ने फिर से गलत मुहावरा कहा।

    "कुणाल भी आपसे कहा था हिन्दी की क्लास लो लेकिन नहीं,वो चट मंगनी पट मांग होता है।" विनिल ने कुणाल को घूरते हुए कहा,रूह ने अपने दाए बाए देखा,दो नमूने खड़े थे।

    ["हिन्दी भाषा अत्यंत खतरे मे है ऐसे प्राणी के चलते।"] तारा ने गुस्से से कहा।

    "तुम भी अगर उस क्लास मे थोड़ी देर बेठ जाते तो पता चलता की मुहावरा है चट मंगनी पट ब्याह।" रूह ने कहा तो कुणाल की हंसी निकल गई,हर बार विनिल उसकी हिन्दी या उर्दू सुधारता लेकिन आज उसे मोका मिला था विनिल को सुनाने का,वो अपना पेट पकड़ कर हसने लगा।

    "क्या बात है भाभी मज़ा या गया।" कुणाल ने हस्ते हुए कहा।

    "बस बस ज्यादा हसने की जरूरत नहीं है,कुणाल भाई दांत टूट जाएंगे।" विनिल ने कहा और मुह बना कर वहाँ से चला गया।

    डाइनिंग टेबल पर,

    सभी नाश्ता करने बेठ गए थे,रूह सबको चाय दे रही थी और कड़वी ताय सबको नाश्ता परोस रही थी,जब राजवीर की मा जिंदा थी तब वो खाना बनाती थी लेकिन उनके जाने के बाद से रसोई को कड़वी ताई ने ही संभाला था।

    "अरे भाभी अद्विक भैया कहा चाय पीते है।" विनिल ने जब देखा रूह ने अद्विक के सामने चाय का कप रखा है तो बेचारा बोल पड़ा क्या करता आदत से मजबूर जो था,रूह ने जेसे अद्विक की तरफ आंखे घुमाई अद्विक जल्दी से बोल पड़ा।

    "विनिल क्या बोल रहा है मेने चाय पीना शुरू कर दिया है।" अद्विक ने जल्दी से कहा और तुरंत चाय पीने लगा।

    "क्या बात है?" विनिल ने हेरानी से कहा।

    "दादा जी अपने बड़े पोते से पूछ लीजिएगा की उनको ऑफिस आना भी है या नहीं?" राजवीर ने अपना नाश्ता करते हुए कहा।

    "राजवीर ये क्या तरीका है अपने बड़े भाई से बात करने का?" दादा जी ने गुस्से से कहा।

    "दादा जी मे आज जाऊंगा ऑफिस लेकिन मेरा उस ऑफिस मे काम करने का कोई इरादा नहीं है,मे सोच रहा हु इंडिया मे भी अपना स्टूडियो शुरू करू,आपका क्या कहना है?" अद्विक ने एक दम कुल हो कर कहा।

    "जेसी तुम्हारी मर्जी बेटा।" दादा जी ने मुस्कुरा कर कहा,तो राजवीर गुस्से से वहाँ से चला गया सब का ध्यान उस पर चला गया।

    "अरे अद्विक ये मेरे लिए तो एक दम सही रहेगा।" कुणाल ने महोल को हल्का करने के लिए हस्ते हुए कहा।

    "हम्म।" अद्विक ने कहा।

    "चलो अब सब चुप चाप नाश्ता करो।" दादा जी ने कहा तो सब नाश्ता करने लगे।

    रूह भी नाश्ता करने के लिए बेठ गई,सुबह से रूह ने अद्विक से बात तक नहीं की थी,अद्विक समझ गया था की रूह अब भी नाराज है उससे लेकिन वो भी क्या करे ये उसे समझ ही नहीं या रहा था।

    नाश्ता करने के बाद सब अपने अपने काम पर लग गए,बुआ,दिया और मोनी सगाई की तैयारी कर रहे थे,दादा जी मंदिर के लिए निकल गए,अभिनव और राजवीर ऑफिस के लिए निकल गए,कुणाल और विनिल आपस मे गप्पे लड़ा रहे थे,उन दोनों का काम शूटिंग के दी या तो सॉन्ग रेकॉर्ड के समय होता था बाकी के दिन ये दोनों फ्री होते थे।

    "अद्विक और कितनी देर रुकना है?" कबीर ने ड्राइविंग सीट पर बेठ कर इरिरिटेट हो कर कहा।

    "रुक तो अभी आती ही होगी मेरी रू।" अद्विक कार से टिक कर साज धज कर खड़ा था,ब्लेक बिजनेस सूट के साथ बालों को सेट किया हुआ उसकी भूरी आँखों सबसे खास थी।

    "आधे घंटे से तो खड़े है हम यार,सच मे लोग प्यार मे पागल हो जाते है।" कबीर सच मे गुस्से मे था,तभी रूह घर से निकली,उसने जब अद्विक को देखा तो उसके कदम धीमे हो गए।

    "तुम अभी तक गए नहीं?" रूह ने अद्विक के पास या कर कहा,रूह ने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी बाल बंधे हुए,हल्का काजल,लिपग्लोस और छोटी सी बिंदी के साथ रूह बेहद खुसबुरत लग रही थी।

    "चलो साथ चलते है।" अद्विक ने खोई हुई आवाज़ मे कहा,रूह ने कुछ पल उसे घूरा फिर कार मे बेठ गई,कबीर ड्राइव कर रहा था,पीछे रूह और अद्विक बेठे हुए थे,रूह खिड़की के बाहर देख रही थी वही अद्विक का पूरा ध्यान रूह पर ही था।

    "एक मिनट कबीर कार रोको,मुझे यही उतरना है।" रूह ने जल्दी से कहा जेसे उसे कुछ याद आया हो।

    "क्या हुआ कोई प्रॉबलम है क्या।" कबीर ने तो कार नहीं रोकी लेकिन अद्विक ने सवाल कर लिया।

    "हा वो दरसल मुझे बंसल होऊस जाना था मेरे कपड़े और समान लेने थे वहाँ से।" रूह ये रोज रोज साड़ी पहन कर थक चुकी थी,ऊपर से जब भी उसे यामिनी की बात याद आती थी की राजवीर को साड़ी पहनने वाली लड़किया पसंद है तो उसके दिमाग का दही हो जाता था।

    "हा तो श्याम को चलेंगे न ताकि समान सीधे घर ले जा सके।" अद्विक ने लॉजिक वाली बात कही थी।

    "नहीं मुझे अभी जाना है,तुम मुझे यही उतार दो मे अपना समान पहले घर पर छोड़ आऊँगी फिर ऑफिस जाऊँगी।" रूह ने ज़िद करते हुए कहा।

    "ठीक है कबीर बंसल होऊस ले चलो,शांति नगर चाँदनी चोक के पास,gps सेट कर लेना।" अद्विक ने कबीर से कहा,कबीर बिना कुछ बोले बस कार चला रहा था लेकिन उसकी आंखे ओहोत कुछ बोल रही थी जेसे कह रही हो कहा इन दोनों के बीच फस गया।

    ["ये केसा लड़का है सोचा था इससे बच कर एक और बार उस फ़ेक्टरी मे जा कर सुराग ढूँढूँगी,लेकिन ये है की पीछा ही नहीं छोड़ रहा।"] रूह ने मन ही मन अद्विक को न जाने कितनी ही गाली दे दी थी।

    "कहा खो गई रूह चलो एक पहली का जवाब दो,"हरी बस मे लाल सवारी,लाल सवारी की काली है दाढ़ी,बताओ मे हु कोन?" इस पहली का जवाब अगर तुमने दिया तो मे तुम्हें वो सीक्रेट बात दूंगा जो तुम्हें जानना है।" पहले तो रूह को अद्विक की पहेली मे कोई इंटरेस्ट नहीं था लेकिन जेसे ही अद्विक ने सीक्रेट बताने की बात की रूह का इंटरेस्ट 100 की स्पीड से बढ़ गया।

    क्या रूह पोहोच पाएगी अपनी मा के सच तक? अद्विक का कॉनसा रूप सच है? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानि kj के साथ.............................................................................॥



    प्लीज प्लीज प्लीज बोल कर थक चुकी हु यार रिव्यू दे दिया करो ना....................जय महाकाल....................

  • 18. Love with my brother in-law - Chapter 18

    Words: 1273

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब तक हमने देखा..............॥

    मोनी और करन की सगाई की तैयारी चल रही थी,वही रूह और अद्विक ऑफिस जा रहे थे तब अद्विक ने रूह से पहेली पूछी जिसके जवाब के बाद अद्विक उसे बताएगा की राजवीर और उसके बीच तनाव क्यू है?

    अब आगे.............................................................................॥

    कबीर ने कार बंसल होऊस रोकी,अद्विक और रूह बाहर निकले।

    "तुम रुको मे अभी आती हु।" रूह ने अद्विक से बाहर ही रुकने के लिए कहा वो नहीं चाहती थी अद्विक उसके घर वालों की बुरी साइड देखे।

    "मुझे समझ नहीं आता तुम यहाँ आती ही क्यू हो जब यहाँ या कर दुखी ही होना है।" अद्विक जब पिछली बार आया था तब उसने देखा था केसे रूह गार्डन मे रो रही थी।

    "कोई बात नहीं आखिर वो मेरे डेड है खून के रिश्ते से ऐसे ही मुह नहीं मोड सकते अद्विक।" रूह ने कहा उसकी आँखों मे एक उदासी थी जिसे देख कर अद्विक को अच्छा नहीं लग रहा था।

    जेसे ही रूह अंदर आई और अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी तभी वहाँ रीना आ गई।

    "अरे कर्मजली शर्म नहीं आती फिर मुह उठा कर यहाँ या गई,और प्रॉपर्टी के बारे मे तो भूल ही जो तुम समझी,कम से कम हमारी नहीं तो अपने पिता की तो एहसान मंद रहो।" रीना बंसल ने गुस्से से कहा,लेकिन रूह ने उस पर ध्यान नहीं दिया और चुप चाप अपना सामान पेक करने लगी,उसने अपने कपड़े कुछ किताबे,और कुछ जरूरत की चीज़े रखी और हॉल मे चली आई।

    "तुम मेरी बात सुन भी रही हो की नहीं?" रीना ने गुस्से से कहा,तभी वहाँ यामिनी भी या गई।

    "मा क्यू अपनी आवाज़ और एनर्जी वेस्ट कर रही हो,इसकी बेशर्मी नहीं देखि तुमने,सगाई टूटने के बाद भी वहाँ उन सब लड़कों के बीच रह रही है क्या हमे नहीं पता की क्या हो रहा है वहाँ?" यामिनी की कड़वी बाते रूह को तीर की तरह चुभ रही थी।

    "अक्सर लोगों को दूसरे भी अपनी तरह ही लगते है क्यू सही कहा ना यामिनी?" रूह ने अपनी जलती आँखों के साथ कहा।

    "बस अब हमारे सामने सती सावित्री बनने का नाटक मत करो,हमे सब पता है आखिर सगाई टूटने के बाद भी कोई क्यू रहेगा वहाँ।" यामिनी ने शेतानी मुस्कान के साथ कहा..॥

    "दूसरों पर सवाल करने से पहले अपने गिरेबान मे झाक कर देखना चाहिए,मुझे तुम लोग जेसी आदत नहि है,जो आमिर और हेंडसम लड़के देख कर अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट भूल कर हाथ धो कर पीछे पड़ जाए,पहले विराट के पीछे थी तुम अब राजवीर के पीछे फिर शायद अद्विक के पीछे हो जाओगी।" रूह ने जेसे ही कहा रीना ने रूह को मारने के लिए अपना हाथ उठाया,इससे पहले की रीना रूह को मार पाती अद्विक ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "रु तुम्हारे रहते मेरा पीछा अब भला कोन कर सकता है।" अद्विक ने धीरे से कहा,रूह हेरान तो थी लेकिन अब उसके गाल भी लाल हो चुके थे,सच मे अद्विक एक कहानी मे दिखने वाले राजकुमार की तरह था,जो हर लड़की का सपना होता है।

    "आगे से अगर ये हाथ और ये जान सही सलामत चाहिए तो ऐसी हिम्मत मत करना।" अद्विक ने एक झटके से रीना बंसल का हाथ झटक कर कहा,फिर उसने रूह का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से रूह का बेग,अद्विक और रूह के जाने के बाद रीना और यामिनी का गुस्सा सतवे आसमान पर था।

    "लगता है अब झाल बिछाना होगा,मे भी देखती हु केसे ये बाहर घूमती है इसको मे किसी को मुह दिखाने लायक नहीं छोड़ूँगी।" यामिनी ने गुस्से से कहा,और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।

    "जो भी कर ध्यान से करना हमारा नाम नहीं आना चाहिए।" रीना ने कहा तो यामिनी के कदम रुक गए।

    "चिंता मत करो मोम मेरी चाल से सांप भी मार जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।" यामिनी ने कहा और अपने कमरे मे चली गई।

    "तुम इन्हे घर से निकाल क्यू नहीं देती,ये तुम्हारा घर हो और तुम्हारा हक बनता है।" अद्विक ने ककह तो रूह सोच मे पड़ गई।

    "तुम्हें केसे पता ये घर मेरा है?" रूह के सवाल को सुन अद्विक को एहसास हुआ की उसने कुछ ज्यादा ही बोल दिया।

    "मुझे केसे पता था ये मे बाद मे बताऊँगा,अभी चलो ऑफिस चलते है समान कबीर घर पर छोड़ आएगा।" अद्विक ने कहा और बेग कबीर को थमा दिया।

    "लड़की क्या मिली इसमे तो दोस्ती ही तोड़ दी।" जाती हुई कार को देख कर कबीर ने कहा।

    जिंदल एम्पायर,

    "तुम कहा जा रही हो?" ऑफिस पोहोच कर अद्विक ने कहा।

    "मेरा ऑफिस मे क्या ही काम तुम अपने केबिन मे जो मे एक चक्कर लगा कर आती हु।" रूह ने कहा।

    "मेरे केबिन मे चलो ठंड मे क्यू घूमती हो।" अद्विक ने रूह का हाथ पकड़ कर कहा और उसे अपने केबिन की तरफ ले गया।

    "अरे ये क्या कर रहे हो किसी ने देखा तो क्या सोचेगा।" रूह ने हेरानी से कहा।

    "वही सोचेगा जो सच है,मुझे नहीं लगता लफ़्ज़ से समझाने की जरूरत है फिल नहीं होती क्या तुम्हें मेरी फिलीगस?" अद्विक की बाते अब रूह को डरा भी रही थी और उसकी धड़कने बढ़ा भी रही थी।

    "ये ये क्या कर रहे हो?तुम तुम दूर हटो।" रूह ने हकला कर कहा।

    "सर,,,,[जेसे ही मोना अंदर आई,रूह ने जल्दी से अद्विक को धक्का दिया जिससे अद्विक पीछे हो कर कुर्सी पर बेठ गया और कुर्सी ज़ूम से सीधे डोर पर या कर रुकी,अद्विक ने खुद को बेलेन्स कर के रूह को घूरा,रूह ने डर और श्रम के मारे अपनी आंखे बंद कर ली।

    ["न जाने आज सुबह मेने किसका चेहरा देखा था।"] रूह ने मन ही मन खुद को कोसते हुए कहा।

    "सर आपको ceo ने बुलाया है,और तुमको भी।" मोना ने अद्विक और रूह को देखते हुए कहा और वहाँ से चली गई।

    "क्या कर रही थी तुम अगर मे गिर जाता तो?" अद्विक ने आंखे दिखाते हुए कहा।

    "गिरते तो कुछ नहीं होता आखिर ऐसी बॉडी का क्या फायदा अगर छोटी सी चोट भी न सह पाओ,चलो अब राजवीर बुला रहा है।" रूह ने कहा और अद्विक के केबिन से निकल गई।

    "आखिर इसका मतलब क्या था?" अद्विक ने कहा और अपना सूट ठीक कर के रूह के पीछे जाने लगा।

    जब अद्विक और रूह राजवीर के केबिन मे पोहचे तब उन्होंने देखा राजवीर अपने ऑफिस मे इधर से उधर घूम रहा था उसके चेहरे पर चिंता की लकिरे साफ साफ दिख रही थी।

    "क्या हुआ तुमने हमे यहाँ क्यू बुलाया है?" रूह ने कहा ही था की राजवीर ने उसे गुस्से से देखा,रूह को समझ नहीं आ रहा था की आखिर उसने ऐसा क्या कर दिया तो राजवीर उससे इतना नाराज हो गया।

    "उसे ऐसे क्या देख रहे हो बताओ क्या हुआ है।" अद्विक ने रूह के सामने खड़े होते हुए कहा,अब सीन ऐसा था की अद्विक और राजवीर आमने सामने और अद्विक के पीछे रूह खड़ी हुई थी।

    राजवीर ने अपनी टेबल पर रखे कुछ पिक्चर्स उठाए और जमीन पर फेक दिए,रूह और अद्विक ने देखा ये उन दोनों के पिक्चर्स थे,कुछ अन्नपूर्ण होटल मे खाते हुए,कुछ बंसल होऊस के बाहर हाथ पकड़े हुए,कुछ कार की भी थी जिसमे ऐसे एंगल से फोटो लिया गया था की जेसे लग रहा हो दोनों किस्स कर रहे हो,जबकि असल मे ऐसा कुछ नहीं था।

    "क्या है ये सब,जानते भी हो अगर ये बात न्यूज मे आ गई तो खानदान की कितनी बदनामी होगी।" राजवीर ने गुस्से से कहा,रूह और अद्विक बस पिक्चर्स देख रहे थे हलाकी दोनों के एक्सप्रेशन अलग अलग था,रूह जहां हेरान और चिंता मे लग रही थी वही अद्विक खुश और प्राउड़ फिल कर रहा था।

    आखिर किसने भेजे ये पिक्चर्स? यामिनी क्या साज़िश करने वाली है? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानि kj के साथ.............................................................................॥

    अगर कहानी पसंद आए तो रिव्यू कॉमेंट जरूर करे,....सबके कमेंट्स पढे मेने उसके लिए दिल से शुक्रिया..................जी महाकाल....................................॥

  • 19. Love with my brother in-law - Chapter 19

    Words: 1388

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब तक हमने देखा...........................॥

    रीना और यामिनी के सामने अद्विक ने रूह को बचा लिया था वही ऑफिस पोहोच कर उन दोनों के रोमेनस के बीच या गई थी मोना,राजवीर ने कुछ तस्वीरे दिखाई अद्विक और रूह को जो काफी गलत ऐंगल से खिची गई थी।

    अब आगे....................॥

    रूह ने तस्वीरे उठाई और अद्विक की तरफ देखा जो आराम से वो तस्वीरे देख रहा था।

    "राजवीर तुम जेसा सोच रहे हो वेसा नहीं है,जरूर कोई ये सब जानबूझ कर हमे बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।" रूह ने कहा।

    "वो जो भी हो लेकिन मुझे कोई मुसीबत नहीं चाहिए,ना ही अपनी कंपनी पर ना ही अपने परिवार पर समझी तुम।" राजवीर बेहद रुड था।

    "जुबान को लगाम दो छोटे भाई,रूह की इसमे कोई गलती नहीं है तो उससे तमीज़ से बात करो समझे,और रही बात मुसीबत की तो तुमने भी कोई कम प्रॉबलम क्रीएट नहीं की थी,लेकिन मेने सॉर्ट कर दी ना,तो बस ये भी कर दूंगा डॉन्ट वरी ओके रिलेक्स।" अद्विक का ओरा ही कुछ ऐसा था उसके बोलने के बाद कोई केसे बोल सकता था,राजवीर जानता था उसने भी अपने एक इमपलॉय से बत्तमीजी की थी जिसका खमियाज़ा उसकी कुर्सी और परिवार की इज्जत दोनों हो सकता था लेकिन अद्विक ने संभाल लिया था।

    "अद्विक बस करो,ये हमारी गलती है हमे देखना चाहिए था की कोई हमारे पीछे है की नहीं।" रूह ने कहा और वहाँ से निकल गई,रूह के जाते ही मोना केबिन के बाहर रुकी वो अद्विक के जाने का इंतजार कर रही थी ताकि उसे बता सके की आखिर क्या देखा था उसने अद्विक के केबिन मे वो बेसब्री से इंतजार कर रही थी अद्विक के जाने का।

    "भाई एक बार एक लड़की के खातिर हम पर मुसीबत आ चुकी है मे नहीं चाहता फिर से कुछ ऐसा हो।" राजवीर ने कहा।

    "मेरा यकीन कर मे सब संभाल लूँगा 8 साल पहले मे कमजोर था शायद लेकिन अब नहीं हु,मे बस जानना चाहता था रूह के बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल है?" अद्विक का सवाल बोहोत जरूरी था वो नहीं चाहता था राजवीर और उसके रिश्ते मे और गलतफेहमी बढ़े।

    "मेरी और उसकी सगाई के बाद से 1 महिना दिया है दादा जी ने तब तक मे कुछ नहीं कह सकता,तो आप भी उससे दूर रहना।" राजवीर ने कहा,अद्विक वहाँ से चला गया,मोना जो की केबिन के बाहर ही छुप कर खड़ी थी उसकी आंखे नम हो गई,मोना ने अपने आँसू पोंछे और अंदर राजवीर के केबिन मे गई।

    "तो अभी तक तुम्हारी सगाई टूटी नहीं है,तभी रूह के हाथ मे अब भी इंगेजमेंट रिंग है,1 महीने बाद शायद वो तुम्हें पसंद भी या जाए और तुम तो उससे शादी भी करो लो है ना?" मोना ने गुस्से से कहा,राजवीर ने उससे ये नहीं बताया था की उनके रिश्ते का फेसला अभी 1 महीने बाद होगा।

    "नहीं मोना बात सुनो पहले मेरी फिर कुछ बोलना।" राजवीर ने मोना को शांत करने की कोशिश की।

    "मुझे अब कुछ नहीं सुनना।" मोना ने कहा और गुस्से से वहाँ से चली गई,राजवीर ने अभी उसके पीछे जाना सही नहीं समझा वरना मोना के गुस्से से पूरा ऑफिस गूंज उठता।

    वही अद्विक के केबिन मे अलग ही सीन चल रहा था,

    रूह अद्विक की चेर पर बेठी हुई थी और अद्विक उसके ठीक सामने सोफ़े पर बेठा हुआ था और रूह को ही देख रहा था।

    "आखिर ऐसा कोन हो सकता है जो हमे बदनाम करना चाहे? इसमे किसका फायदा है?" रूह ने सोचते हुए कहा।

    "तुम क्यू इतना सोच रही हो,ये फोटोस ना तो न्यूज पर आ पाएगी ना ही किसी और प्लेटफ़ॉर्म पर कोई पोस्ट कर पाएगा,तुम रिलेक्स रहो चीता करने की कोई जरूरत ही नहीं है।" अद्विक ने रूह को शांत करने के लिया कहा वो नहीं चाहता था रूह फिक्र करे।

    "हा फिर भी आखिर ऐसा हो कोन सकता है? मे जानती हु तुम ये फ़ोटो पब्लिक नहीं होने दोंगे लेकिन ये जानना भी तो जरूरी है ना की आखिर हमारा पीछा कोन कर रहा है,क्युकी मे तो ठीक से सांस भी नहीं ले पाऊँगी ये सोच कर की कोई हर व्यक्त मुझ पर नजर रख रहा है।" रूह की बात अपनी जगह पर सही थी।

    "ठीक है मे पता करता हु की कोन है जो ये सब कर रहा है,चलो अभी लंच टाइम हो गया है कही बाहर लंच कर के आते है।" अद्विक ने कहा और खड़ा हो कर अपने केबिन मे लगे मिरर के सामने खड़ा हो कर अपना सूट और अपने बाल सही करने लगता है।

    "ये जानते हुए की कोई हमारे पीछे है तुम्हें बाहर जाना है?" रूह ने अद्विक के पास खड़े हो कर कहा,अद्विक ने रूह को देखा और उसका हाथ पकड़ कर उसे मिरर के सामने खड़ा कर दिया,दोनों एक साथ काफी अच्छे लग रहे थे।

    "मे चाहता हु कोई ना तो मुझे कमजोर समझे ना ही तुम्हें।" अद्विक की बात ने रूह का दिल छु लिया,अद्विक जितनी इज्जत खुद की करता था शायद उससे ज्यादा ही रूह की करता था,एक लड़का एक लड़की से प्यार आसानी से कर सकता है लेकिन जब उसकी नज़रों मे उस लड़की के लिए इज्जत भी हो तब वो रिश्ता बोहोत मजबूत हो जाता है उसे किसी नाम की जरूरत नहीं पड़ती वो रिश्ता अपने आप मे ही एक दुनिया होता है।

    "ठीक है लेकिन मुझे फ़्लर्ट करने की कोशिश भी मत करना समझे,मे तुम्हारे भाई की मंगेतर हु समझ रहे हो।" रूह ने अद्विक को घूरते हुए कहा।

    "मेने भी तुमसे पहले ही कहा है अभी तक तुम मेरे भाई की बीवी बनी नहीं हो।" अद्विक ने केबिन के बाहर जाते हुए कहा।

    "ये लड़का.....॥" रूह ने गुस्से से कहा और वो भी केबिन के बाहर निकलने लागि तभी वो मोना से टकरा गई।

    "ओ सॉरी।" रूह ने कहा क्युकी उसका ध्यान नहीं था।

    "तुम्हें बोलना भी चाहिए,मेने तुम जेसी चालबाज़ लड़की नहीं देखि जो एक साथ दो नाव पर सवार होना चाहती है,एक तरफ ceo और दूसरी तरफ प्रेसीडेंट क्या बात है,लड़कियों को तो तुमसे कुछ सीखना चाहिए।" मोना ने गुस्से मे बोहोत कुछ बोल दिया था रूह को,रूह तो हेरान थी आखिर मोना को तो उसने कुछ कहा भी नहीं था।

    "बस मोना अपनी हद मे रहो समझी,ना तो मुझे तुम्हारे ceo मे कोई इंटरेस्ट है ना ही मुझे नाव की सवारी मे,तो आगे से बोलने से पहले ध्यान रखना समझी तुम,वरना मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन मुझे मजबूरन तुम्हारी नोकरी छिननी पड़ेगी।" रूह ने गुस्से से कहा,रूह तक तक किसी को कुछ नहीं बोलती थी जब तक कोई जानबूझ कर उसे परेशान न करे,अगर कोई चाहता ही था की रूह उसकी बैजती करे तो रूह क्या ही कर सकती थी।

    "अति उत्तम,अर्थात तुम्हारी रुचि उस अद्विक नामक प्राणी मे है?" तारा ने रूह को घूरते हुए कहा,लेकिन रूह ने ऐसा बर्ताव किया जेसे उसने तारा को देखा ही नहीं है।

    "साबाश मेरी किटकेट,चलो अब लंच के लिए देर हो रही है।" अद्विक ने कहा जो रूह को अपने पीछे न देख कर अपने केबिन की अतर्फ वापिस आया था और उसने रूह की बात भी सुनी थी,हालाकी उसने मोना की बात नहीं सुनी थी लेकिन वो रूह के जवाब से समझ जरूर गया था की मोना ने कोई गलत ही बात की होगी।

    "प्रतीत हो रहा है नियति के आशीर्वाद से हमे ही इन्हे अलग करना होगा,वरना अनर्थ हो जाएगा।" तारा ने रूह के जाने के बाद खुद से कहा।

    अद्विक की कार मे शांति छाई हुई थी,तभी अचानक से रूह उछल पड़ी।

    "मुझे जवाब मिल गया,मुझे जवाब मिल गया।" रूह ने खुशी से कहा।

    "अच्छा बताओ क्या है जवाब?" अद्विक ने ड्राइव करते हुए कहा।

    "वॉटरमेलन,हरी बस और लाल सवारी मतलब बाहर हरा है अंदर से लाल होता है तरबूज,उसके बाद क्या था हा लाल सवारी की काली दाढ़ी मतलब की उसके काले बीज जो तरबूज मे होते है,क्यू सही कहा ना?" रूह ने खुशी से कहा,अद्विक के चेहरे पर भी मुस्कान या गई।

    "बिल्कुल सही जवाब।" अद्विक ने कहा।

    "तो अब बताओ आखिर तुम दोनों के बीच ये कॉनसी वॉर चल रही है?" रूह ने अब अपना सवाल किया,जिसका जवाब जानने के लिए वो कब से बेताब थी।

    क्या अद्विक बता देगा सारा सच? क्या तारा कर देगी अद्विक और रूह को अलग? अभी तक तो उनका रिश्ता भी ठीक से नहीं जुड़ा क्या ऐसे मे टूट जाएगी उनकी डोर? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानि kj के साथ.............................................................................॥



    रिव्यू और कमेन्ट करना आपकी मर्जी है मे बस इतना कहूँगी अगर स्टोरी अच्छी है तो अपनी राय जरूर दे॥ जय महाकाल..........................................................................................॥

  • 20. Love with my brother in-law - Chapter 20

    Words: 1256

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब तक हमने देखा......................................................॥

    मोना और रूह के बीच तकरार हुई और रूह ने अद्विक की पहेली का जवाब दे दिया था अब बस उसे अद्विक के जवाब का इंतजार था।

    अब आगे.................................................................॥

    अद्विक के जवाब के इंतजार मे रूह कब से उसका चेहरा देख कर बेठी थी लेकिन अद्विक जानबूझ कर बस सामने देख कर ड्राइव कर रहा था।

    "अब बताओ भी क्यू सस्पेंस बढ़ाए जा रहे हो?" अद्विक के कंधे पर एक मुक्का मार कर इरिटेट हो कर कहा।

    "बता दूंगा पहले लंच तो कर लो।" अद्विक ने होटल फ़लूवट मे या कर रोकी।

    "ना पहले बताओ की आखिर बात क्या है तुम दोनों के बीच,वरना मे लंच नहीं करूंगी।" रूह ने अपने दोनों हाथ बांध कर अपनी सीट पर आथली पाथली मारली।

    "ठीक है ठीक है बताता हु,मे जानता हु मेरे जवाब से तुम्हारे मन मे और भी सवाल बढ़ जाएंगे पर अभी मे सब बात नहीं पाऊँगा,8 साल पहले मे एक लड़की थी जिसे मे बचाना चाहता था,जिसकी वजह से मेरे परिवार पर मुसीबत आ गई,मेरे डेड को उन्होंने मार दिया,इस बात से तो राजवीर नाराज था ही लेकिन फिर मे अपनी फेमिली को मुसीबत से दूर करने के लिए मे खुद ही दूर चला गया इस बात से राजवीर और भी गुस्सा हो गया।" अद्विक की बात सुन कर रूह के चेहरे पर मिक्स एक्सप्रेशन थे,उसे जलन भी हो रही थी और अद्विक पर दया भी या रही थी और राजवीर और अद्विक का एक दूसरे के प्रति प्यार भी दिख रहा था वो खुश भी थी साथ ही दुखी भी थी।

    "बस बस अब कुछ नहीं सुनना मुझे,चलो लंच करना हो तो वरना यही बेठे रहो।" रूह ने कहा और कार से नीचे उतर गई।

    "लगता है मेडम जल गई है।" अद्विक ने हस्ते हुए कहा और रूह के पीछे जाने लगा,दोनों ने चुप चाप लंच किया,खामोशी थी दोनों के बीच रूह नाराज थी और उसकी नाराजगी का मज़ा अद्विक ले रहा था।

    रूह और अद्विक लंच कर के ऑफिस निकल गए,रूह अद्विक से बात नहीं कर रही थी इसलिए वो पूरे दिन ऑफिस मे कही न कही बिज़ी रही लेकिन अद्विक के सामने नहीं आई,अद्विक भी अपने कुछ जरूरी काम निपटा रहा था।

    श्याम हो गई थी सभी घर जा रहे थे,रूह भी ऑफिस से निकल रही थी तभी अद्विक उसके सामने आ गया।

    "कहा जा रही हो मेरी किटकेट??" अद्विक ने कहा।

    "ये किटकेट क्या होता है जब देखो तब किटकेट किटकेट,मेरा नाम रूह है समझे,और मे कही भी जाऊँ तुम्हें क्या??" रूह ने गुस्से से कहा,अद्विक को उसका गुस्सा भी बड़ा प्यारा लग रहा था।

    "अरे इतना गुस्सा? मेने भला ऐसा क्या कर दिया मेड़म?" अद्विक ने बड़े ही प्यार से कहा,रूह ने उसकी तरफ देखा उसकी आंखे कितनी खूबसूरत थी,रूह ने जल्दी से अपना ध्यान दूसरी तरफ कर लिया वो अद्विक को देख कर पिघलना नहीं चाहती थी।

    "तुम बस जो मे खुद से या जाऊँगी।" रूह ने कहा तभी कबीर अद्विक की कार ले कर उन दोनों के सामने या चुका था।

    "चलिए अब या यही रुकना है।" कबीर ने इरिटेट हो कर कहा,ये दोनों जब देखो तब बेचारे कबीर का व्यक्त बर्बाद करते थे।

    "कबीर मे भी क्या करू? तुम्हारी भाभी नहीं आएगी तो मे केसे या सकता हु?" अद्विक ने बिना रूह से अपनी नज़रे हटाए कहा,रूह को समझ नहीं या रहा था की कबीर और राजवीर मे तो बनती भी नहीं है,तो कबीर उसे भाभी भला क्यू कहेगा?

    "क्यू भाभी क्यू? बेहेन भी तो बोल सकते है कबीर भाई?" रूह ने अद्विक की तरफ देख कर अपने हाथ बांधते हुए कहा।

    "नहीं कहेगा तो वो भाभी ही तुम्हें,अब चलो वरना तुम्हारी वजह से उसे भी यही रुकना होगा।" अद्विक ने कहा तो रूह पेर पटक कर कार मे बेठ गई,अद्विक भी मुस्कुरा कर उसके पास बेठ गया।

    "भाई मेने सुना है आज राजवीर बोहोत परेशान था।" कबीर ने कार ड्राइव करते हुए कहा।

    "अच्छा लेकिन क्यू?" इससे पहले की अद्विक बोलत रूह बोल पडी,और ये बोल कर शायद उसने गलती कर दी थी,उसे महसूस हुआ की कबीर कुछ नहीं बोल रहा और किसी की जलती निगाहे उस पर ही है,जेसे ही उसने अपनी लेफ्ट साइड देखा वो कुछ पीछे हो गई।

    "क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हो?" रूह ने अद्विक से कहा जो उसे ही घूर रहा था।

    "तुम्हें बड़ी फिक्र है राजवीर की?" अद्विक की जलन साफ उसके चेहरे पर दिख रही थी,कुछ देर तो खामोश रही रूह,फिर उसके दिमाग मे एक खुराफात सूझी।

    "क्यू जलन हो रही है तुम्हें?" रूह ने मुस्कुरा कर कहा।

    "नहीं तो मुझे जलन क्यू होगी भला।" अद्विक के कहने का तरीका की बात रहा था की वो कितना जेलस हो रहा है।

    "तो फिर ठीक है,मुझे तो लगा कही जलन तो नहीं हो रही तुम्हें,चलो कबीर आगे बताओ।" रूह ने कबीर की तरफ देखते हुए कहा जो की ड्राइव कर रहा था।

    ["अब आएगा मज़ा आएगा बड़ा आया मुझे चिढ़ाने वाला।"] रूह ने मन ही मन कहा तभी वहाँ तारा प्रकट हो गई।

    "वो शायद इसलिए क्युकी उनकी लड़ाई मोना से हो गई है,,।" कबीर ने कहा तो अब अद्विक के चेहरे पर मुस्कान थी और और रूह की मुस्कान चली गई थी,वो तो राजवीर का नाम ले कर अद्विक को जलाना चाहती थी लेकिन यहाँ देखो क्या से क्या हो गया था।

    ["इसके जीवन मे और भी महिलाए है ये जानने के पश्चयात भी तुम्हारा पूरा ध्यान इस पर है ये जान कर सच मे पीड़ा का अनुभव होता है हमारा हदय को।"] तारा ने कहा तो रूह भी निराश हो गई,वो उस लड़की को केसे भूल सकती थी,पूरे रास्ते अब रूह खामोश ही रही।

    जिंदल विला,

    जब रूह और अद्विक घर पोहचे तब वहाँ एक ज्वेलर आया हुआ था।

    "बेटा रूह तुम भी अपने लिए कुछ पसंद कर लो।" दादा जी ने रूह को बुलाते हुए कहा,मोनी की सगाई के लिए तैयारिया ज़ोरों शोरों से चल रही थी,बुआ जी के पति यानि फूफा जी भी या चुके थे,और बुआ जी का बेटा मीत भी या चुका था।

    "नहीं दादा जी मुझे कुछ नहीं चाहिए,मे वेसे भी ये सब कहा पहनती हु।" रूह ने कहा और वही सोफ़े पर बेठ गई,अद्विक भी जा कर उसके पास बेठ गया।

    "हा लेकिन कुछ तो पसंद कर लो तुम्हारी शादी मे काम आएंगे।" दादा जी ने कहा।

    "दादा जी प्लीज मुझे नहीं चाहिए,मे जाती हु फ्रेश हो कर आती हु।" रूह ने कहा और अपने कमरे की तरफ निकल गई।

    "देखा पापा कितना घमंड है इसमे।" दुर्गा जी ने जहर उगला।

    "इसे खुद्दारी बोलते है बुआ।" अद्विक ने खड़े होते हुए कहा।

    "भैया मोम को ये वर्ड का मतलब नहीं पता है।" मीत ने कहा,तो उसके डेड मिस्टर योगेश भल्ला भी हसने लगे,लग रहा था बुआ से उन दोनों की कुछ खास नहीं बनती।

    "चुप कर खोते अपनी मा से बात करने की भी तमीज़ नहीं है।" बुआ जी बोलती रही लेकिन मीत और अद्विक तो वहाँ से निकल चुके थे बचे थे फूफा जी जो बुआ जी की कंजर जेसी नजोर का सामना दटकर कर रहे थे।

    "ये लो मोनी जा कर इन गहनों को अपने कमरे मे रख दो,और ये दो दिया के लिए है उसे दे देना।" दादा जी ने कहा तो मोनी गहनों को ले कर चली गई।

    "बोहोत ही घमंड है ना तुम्हें रूह अब मे बताती हु की मुझसे दुश्मनी का क्या अंजाम होता है।" अपने कमरे मे आईने के सामने खड़ी हो कर मोनी ने कहा,लग रहा था की कोई ना कोई साजिश चल रही है उसके दिमाग मे लेकिन क्या?

    क्या इस बार भी रूह बच जाएगी साजिश से? या फस जाएगी मोनी के बवंडर मे? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानि kj के साथ........................................................................................................॥

    ..जय महाकाल...................